PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 25 भारतीय संघात्मक व्यवस्था

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 25 भारतीय संघात्मक व्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 25 भारतीय संघात्मक व्यवस्था

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारतीय संघात्मक व्यवस्था की प्रकृति की व्याख्या करें। (Discuss the nature of Indian Federalism.)
अथवा
“भारतीय संविधान की प्रकृति संघीय है, परन्तु आत्मिक रूप से एकात्मक है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
(“The Indian Constitution is federal in nature but unitary in spirit.” Examine the statement.)
उत्तर- भारतीय संविधान ने भारत में संघात्मक शासन-प्रणाली की व्यवस्था की है और भारतीय संघ को विश्व के संघात्मक संविधान में एक विशेष स्थान प्राप्त है। परन्तु भारतीय संविधान की किसी अन्य व्यवस्था की शायद ही इतनी आलोचना हुई हो जितनी कि संघीय व्यवस्था की हुई है। प्रायः यह प्रश्न उठाया जाता है कि क्या भारत वास्तव में एक संघीय राज्य है ? क्योंकि भारत के संविधान में कई प्रकार के उपबन्ध तथा एकात्मक रुचियां देखकर यह सन्देह होने लगता है कि भारत एक संघीय राज्य नहीं है। भारतीय संविधान में संघात्मक शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। संविधान के अनुच्छेद एक में भारत को यूनियन ऑफ़ स्टेट्स (Union of States) कहा गया है।

प्रो० डी० एन० बैनर्जी ने इस विषय पर अपना विचार बताते हुए कहा कि “भारतीय संविधान रूप में तो संघात्मक है पर भावना में एकात्मक है।” (“It is federal in structure but unitary in spirit.”) श्री दुर्गादास बसु (D.D. Basu) का विचार है कि, “भारत का संविधान न तो पूर्ण रूप से एकात्मक है तथा न ही पूर्ण संघात्मक ; यह दोनों का मिश्रण है।”
स्पष्ट है कि विद्वानों ने भारतीय संघ के स्वरूप पर विभिन्न मत प्रकट किए हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि भारतीय संघ का स्वरूप संघात्मक है जिसमें सन्तुलन केन्द्र की ओर झुका हुआ है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान की वे कौन-सी विशेषताएं हैं जिनके कारण यह एक संघात्मक संविधान बन गया है ?
(What are the major characteristics that make the Indian Constitution a Federal Constitution ?)
अथवा
भारत की संघात्मक प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(Describe the major characteristics of Indian Federal System.)
अथवा
उन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो जो भारतीय संविधान को संघात्मक स्वरूप प्रदान करती हैं।
(Describe the major characteristics that make the Indian Constitution federal.)
उत्तर-
यद्यपि भारत के संविधान में संघ (Federal) शब्द का प्रयोग नहीं किया गया, इसके बावजूद भी पो० एलेग्जेंडरा विक्स (Alexandra Wics) ने कहा है, “भारत निःसन्देह संघात्मक राज्य है जिसमें प्रभुसत्ता के तत्त्वों को केन्द्र और राज्यों में बांटा हुआ है।” पाल एपलबी (Paul Appleby) के मतानुसार, “भारत पूर्ण रूप में संघात्मक राज्य है।” (India is completely a federal state)। भारतीय संविधान में निम्नलिखित संघीय तत्त्व विद्यमान हैं-

1. शक्तियों का विभाजन (Division of Powers) हर संघीय देश की तरह भारत में भी केन्द्र और प्रान्तों के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया है। इन शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित किया गया है-संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची। संघ सूची के 97 विषयों पर केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार है। राज्य सूची में मूल रूप से 66 विषय हैं। इन पर राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है। समवर्ती सूची में 47 विषय हैं । समवर्ती सूची के विषयों पर केन्द्र और राज्य दोनों को कानून बनाने का अधिकार है।

अवशेष शक्तियां (Residuary Powers)-वे विषय जिनका वर्णन राज्य सूची और समवर्ती सूची में नहीं आया वे केन्द्रीय क्षेत्राधिकार में आ जाते हैं और इन विषयों पर केन्द्र कानून बना सकती है।

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2. लिखित संविधान (Written Constitution)—संघीय व्यवस्था का संविधान लिखित होता है ताकि केन्द्र और प्रान्तों की शक्तियों का वर्णन स्पष्ट रूप से किया जा सके। भारत का संविधान लिखित है। इसमें 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं।

3. कठोर संविधान (Rigid Constitution)-संघीय व्यवस्था में संविधान का कठोर होना अति आवश्यक है। भारत का संविधान कठोर संविधान है चाहे यह इतना कठोर नहीं जितना कि अमेरिका का संविधान। संविधान की महत्त्वपूर्ण धाराओं में संसद् दो तिहाई बहुमत से राज्यों के आधे विधानमण्डलों के समर्थन पर ही संशोधन कर सकती है।

4. संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of the Constitution)-भारतीय संघ की अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता संविधान की सर्वोच्चता है। संविधान के अनुसार बनाए गए कानूनों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। कोई व्यक्ति, संस्था, सरकारी कर्मचारी या सरकार संविधान और संविधान के अन्तर्गत बनाए गए कानूनों के विरुद्ध नहीं चल सकता। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय किसी भी कानून को या कार्यपालिका के आदेश को अंसवैधानिक घोषित कर सकते हैं जो संविधान के विरुद्ध हों।

5. न्यायपालिका की सर्वोच्चता (Supremacy of the Judiciary)-भारतीय संघ की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता न्यायपालिका की सर्वोच्चता है। न्यायालय स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष है और इसे संघ व राज्यों के आपसी झगड़ों को निपटाने, संविधान की व्याख्या करने और संविधान की रक्षा हेतु कानूनों तथा आदेशों की संवैधानिकता परखने और उसके बारे में अपना निर्णय देने का अधिकार है। संघ और राज्यों का आपसी झगड़ा सीधा इसके पास आता है, किसी अन्य न्यायालय में नहीं ले जाया जा सकता। इसके द्वारा दी गई संविधान की व्याख्या सर्वोच्च तथा अन्तिम मानी जाती है।

6. द्विसदनीय व्यवस्थापिका (Bicameral Legislature)-संघात्मक शासन प्रणाली में विधानमण्डल का द्विसदनीय होना आवश्यक होता है। भारतीय संसद् के दो सदन हैं-लोकसभा और राज्यसभा। लोकसभा जनसंख्या के आधार पर समस्त देश का प्रतिनिधित्व करती है जबकि राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है।

7. दोहरी शासन प्रणाली (Dual Polity)-एक संघीय राज्य में दोहरी शासन प्रणाली होती है। संघ अनेक इकाइयों से निर्मित होता है। संघीय सरकार तथा राज्य सरकार दोनों संविधान की उपज हैं। जिस प्रकार केन्द्र में संसद्, राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री व मन्त्रिमण्डल हैं, उसी प्रकार प्रत्येक राज्य में विधानमण्डल, गवर्नर, मुख्यमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल है। केन्द्र और राज्य सरकारों के वैधानिक, प्रशासनिक तथा वित्तीय सम्बन्ध संविधान द्वारा निर्धारित किए गए हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में वर्णित उन धाराओं का वर्णन करें जो केन्द्र को शक्तिशाली बनाने के पक्ष में
(Describe the various provisions in the Indian Constitution which show a bias in favour of the centre.)
उत्तर-
इसमें शक नहीं है कि भारतीय संविधान में संघ के सभी लक्षण विद्यमान हैं, परन्तु जो लोग इसकी आलोचना करते हैं और कहते हैं कि इसका झुकाव एकात्मकता की ओर है, उनकी बातें भी तर्कहीन नहीं हैं। निम्नलिखित बातों के आधार पर भारतीय संविधान को एकात्मक बताया जाता है-

1. शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में (Division of powers in favour of Centre)-भारतीय संविधान में शक्तियों का जो विभाजन किया गया है, वह केन्द्र के पक्ष में है। संघीय सूची में बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय हैं। इनकी संख्या भी राज्यसूची के विषयों के मुकाबले में बहुत अधिक है। संघीय सूची में 97 विषय हैं जबकि राज्य-सूची में 66 विषय हैं। समवर्ती सूची के 47 विषयों पर भी वास्तविक अधिकार केन्द्र का है, राज्यों का नहीं। क्योंकि यदि राज्य सरकार केन्द्रीय कानून का विरोध करती है तो राज्य सरकार द्वारा निर्मित कानून उस सीमा तक रद्द कर दिया जाएगा। अवशेष शक्तियां भी केन्द्र के पास हैं राज्य के पास नहीं। अमेरिका, स्विट्ज़रलैण्ड, रूस, ऑस्ट्रेलिया आदि के संविधानों में अवशेष शक्तियां राज्यों के पास हैं।

2. राज्य सूची पर केन्द्र का हस्तक्षेप (Encroachment over the State List by the Union Government)-राज्य सरकारों को राज्य-सूची पर भी पूर्ण अधिकार प्राप्त नहीं है। संघ सरकार निम्नलिखित परिस्थितियों में राज्य-सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है-

  • संसद् विदेशों से किए गए किसी समझौते या सन्धि को लागू करने और किसी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हुए निर्णय को लागू करने के लिए किसी भी विषय पर कानून बना सकती है, चाहे वह विषय राज्य-सूची में क्यों न हो।
  • राज्यसभा जो कि संसद् का एक अंग है, 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पास करके राज्य-सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर सकती है और संसद् को उस विषय पर कानून बनाने का अधिकार दे सकती है।
  • जब किसी राज्य में संवैधानिक यन्त्र फेल होने पर वहां का शासन राष्ट्रपति अपने हाथों में ले ले, तो संसद् को यह अधिकार है कि वह राज्य-सूची के विषयों पर कानून बनाए। यह कानून केवल संकटकाल वाले राज्यों पर ही लागू होता है।
  • राज्य-सूची में कुछ विषय ऐसे हैं जिनके बारे में राज्य विधानमण्डल में कोई भी बिल राष्ट्रपति की पूर्व-स्वीकृति के बिना पेश नहीं किया जा सकता। कुछ विषय ऐसे भी हैं जिन पर राज्य विधानमण्डल द्वारा पास किए गए बिल राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए अवश्य रक्षित किए जाते हैं, राज्यपाल उन पर अपनी स्वीकृति नहीं दे सकता।
  • जब दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डल संसद् से राज्यसूची के किसी विषय पर कानून बनाने की प्रार्थना करें तो संसद् उस मामले पर कानून बना सकेगी। यह कानून प्रार्थना करने वाले पर ही लागू होगा।

3. राष्ट्रपति द्वारा राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति (Appointment of the Governors by the President)-भारत में राज्यों के राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वे राष्ट्रपति की प्रसन्नता तक ही अपने पद पर रह सकते हैं अर्थात् राष्ट्रपति जब चाहे राज्यपाल को हटा सकता है। अमेरिका में राज्यों के राज्यपाल जनता द्वारा निश्चित अवधि के लिए चुने जाते हैं। भारत में राज्यपाल केन्द्र का प्रतिनिधि है तथा राज्यपालों द्वारा केन्द्र का राज्यों पर पूरा नियन्त्रण रहता है। शान्तिकाल में राज्यपाल नाममात्र का अध्यक्ष होता है परन्तु संकटकाल में राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में वास्तविक शासक बन जाता है।

4. राज्यों को अपना अलग संविधान बनाने का अधिकार नहीं है-संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड आदि देशों में संघ की इकाइयों का अपना अलग संविधान है और वे अपने संविधान में स्वयं संशोधन कर सकते हैं। परन्तु भारत में जम्मू व कश्मीर राज्य को छोड़कर अन्य राज्यों का अपना अलग कोई संविधान नहीं। उनकी शासन व्यवस्था का विवरण संघीय संविधान में ही किया गया है।

5. संसद् को राज्यों के क्षेत्र में परिवर्तन करने, नवीन राज्य उत्पन्न करने या पुराने राज्य समाप्त करने का अधिकार–संसद् राज्यों के क्षेत्रों को कम या बढ़ा सकती है। संसद् को यह अधिकार है कि वह दो या अधिक राज्यों को मिलाकर उनमें से कोई क्षेत्र निकाल कर नए राज्य बनाए। इस प्रकार संसद् किसी राज्य की सीमा बदल सकती है और उसका नाम भी बदल सकती है।

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6. संवैधानिक संशोधन में संघीय सरकार का महत्त्व (Importance of the Union Govt. in Constitutional Amendments)-कहने को तो भारतीय संविधान कठोर है परन्तु संविधान के संशोधन में राज्यों का भाग लेने का अधिकार महत्त्वपूर्ण नहीं है। संविधान का थोड़ा-सा भाग ही कठोर है जिसमें संशोधन के लिए आधे राज्यों का अनुमोदन आवश्यक है। संविधान के शेष भाग में संशोधन करते हुए राज्यों की स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं। इसके अतिरिक्त संविधान में संशोधन का प्रस्ताव संसद् ही पेश कर सकती है, राज्य नहीं। अमेरिका तथा स्विट्ज़रलैण्ड दोनों देशों में इकाइयों को भी संशोधन का प्रस्ताव पेश करने का अधिकार है। ।

7. राज्यसभा में राज्यों का असमान प्रतिनिधित्व-अमेरिका और स्विट्ज़रलैंड के उच्च सदनों में इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व दिया गया है। परन्तु भारत में राज्यसभा के प्रतिनिधियों की संख्या राज्यों की जनसंख्या के आधार पर निश्चित की गई है और वह समान नहीं है।

8. इकहरी नागरिकता (Single Citizenship)-संघात्मक देशों के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्रदान की जाती है। वे अपने राज्यों के भी नागरिक कहलाते हैं और समस्त देश के भी। परन्तु भारत में लोगों को एक ही नागरिकता प्रदान की गई है। वे केवल भारत के ही नागरिक कहला सकते हैं, अलग-अलग राज्यों के नागरिक नहीं। यह बात भी संघीय सिद्धान्त के विरुद्ध है।

9. इकहरी न्याय व्यवस्था (Single Judicial System)—संघीय राज्य में प्रायः दोहरी न्याय व्यवस्था को अपनाया जाता है जैसे कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में है। परन्तु भारत में इकहरी न्याय व्यवस्था की स्थापना की गई है। देश के सभी न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के अधीन कार्य करते हैं और न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय सबसे ऊपर है।

10. अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाएं (All India Administrative Services)-राज्यों में उच्च पदों पर कार्य करने वाले अधिकारी अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं जैसे I.A.S. I.P.S. इत्यादि के सदस्य होते हैं। इन अधिकारियों पर केन्द्रीय सरकार का नियन्त्रण होता है और राज्य सरकारें इन्हें हटा नहीं सकतीं।

11. संविधान में संघ शब्द का अभाव (Constitution does not mention the word Federation)भारतीय संविधान ‘संघ’ (Federation) शब्द का प्रयोग नहीं करता बल्कि इसने Federation के स्थान पर Union शब्द का प्रयोग किया है।

12. संकटकाल में एकात्मक शासन (Unitary Government in time of emergency)-संकटकाल में देश का संघात्मक ढांचा एकात्मक ढांचे में बदला जा सकता है और इसके लिए संविधान में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं। संघ सरकार ही संकटकाल की घोषणा जारी कर सकती है। अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 के अनुसार राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है। संकट के नाम पर देश के समस्त शासन को एकात्मक रूप दिया जा सकता है।

13. राज्य का वित्तीय मामलों में संघीय सरकार पर निर्भर होना (Financial Dependence of the State on Centre)-आलोचकों का यह भी कथन है कि हमारे संविधान में राज्यों की आर्थिक अवस्था इतनी कमज़ोर रखी गई है कि वे अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी केन्द्र पर निर्भर रहते हैं। योजना आयोग तथा केन्द्रीय सरकार कुछ इस प्रकार की शर्ते लगा सकते हैं जिन्हें पूरा किए बिना राज्यों को अनुदान नहीं मिलेगा।

14. राष्ट्रीय विकास परिषद् (National Development Council)-ऐसी राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना से केन्द्रीय सरकार के आर्थिक क्षेत्र के नियन्त्रण में विशेष वृद्धि हुई है।

15. एक चुनाव आयोग (One Election Commission)-समस्त भारत के लिए एक ही चुनाव आयोग है। यही संघ तथा इकाइयों के लिए चुनावों की व्यवस्था करता है।

16. एक नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (One Comptroller and Auditor General)-एकात्मक शासन-प्रणाली वाले देशों की तरह सारे देश की वित्तीय शासन व्यवस्था को भारत में एक नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के अधीन रखा गया है।

17. केन्द्रीय क्षेत्रों का शासन केन्द्रीय सरकार के अधीन-केन्द्रीय क्षेत्रों का प्रशासन सीधे केन्द्रीय सरकार करती है जो संघीय व्यवस्था के माने हुए सिद्धान्तों के विरुद्ध है।

18. विधान परिषद् की समाप्ति-किसी प्रान्त की विधानसभा यदि मत देने वाले उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई तथा कुल सदस्यों के स्पष्ट बहुमत से विधानपरिषद् को समाप्त करने का प्रस्ताव पास कर दे तो संसद् उसे कानून बनाकर समाप्त भी कर सकती है। यदि विधानपरिषद् न हो और ऐसा ही एक प्रस्ताव विधानसभा पास कर दे तो संसद् विधानपरिषद् को बना भी सकती है।

19. वित्त आयोग की नियुक्ति (Appointment of Finance Commission)-वित्त आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यह केन्द्र तथा राज्यों के बीच वित्तीय सम्बन्धों के बारे में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। केन्द्रीय सरकार वित्तीय आयोग की सिफारिशों को मानने के लिए स्वतन्त्र है। राष्ट्रपति ने 27 नवम्बर, 2017 को श्री एन० के० सिंह की अध्यक्षता में 15वें वित्त आयोग की नियुक्ति की।

क्या भारत को सच्चा संघ कहना उचित होगा ?
(Is India a True Federation ?)

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारतीय संविधान में संघात्मक शासन की विशेषताएं हैं और संविधान में ऐसे भी लक्षण हैं जिनसे भारतीय संविधान का एकात्मक शासन की ओर झुकाव दिखाई देता है। हमारे संविधान निर्माता संघात्मक शासन-प्रणाली के साथ-साथ केन्द्र को इतना शक्तिशाली बनाना चाहते थे ताकि किसी भी स्थिति का सामना किया जा सके। शक्तिशाली केन्द्र के कारण ही कई विद्वानों ने भारत को संघात्मक शासन मानने से इन्कार किया है और उन्होंने भारतीय संविधान को अर्द्ध-संघात्मक (Quasi-Federal) कहा है। संविधान सभा के कई सदस्यों ने ऐसा ही मत प्रकट किया था। उदाहरणस्वरूप, श्री पी० टी० चाको (P.T. Chacko) ने कहा है, “संविधान का बाहरी रूप संघात्मक होगा, परन्तु वास्तव में इसमें एकात्मक सरकार की स्थापना की गई है।” डॉ० के० सी० हवीयर ने इसे अर्द्ध-संघात्मक कहा है।

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यद्यपि आलोचकों के मत में काफ़ी वजन है किन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि भारत में संघात्मक व्यवस्था नहीं है। हमारे संविधान निर्माताओं ने संघात्मक व्यवस्था के साथ-साथ केन्द्र को जान-बूझ कर शक्तिशाली बनाया था। __शान्ति के समय भारत में संघात्मक शासन प्रणाली है और प्रान्तों को अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त है। परन्तु असाधारण परिस्थितियों में केन्द्रीय सरकार को विशेष शक्तियां दी गई हैं ताकि देश की एकता तथा स्वतन्त्रता को बनाए रखा जा सके। संकटकाल की समाप्ति के साथ ही प्रान्तों को पुन: सभी शक्तियां सौंप दी जाती हैं। अतः भारत में संघात्मक व्यवस्था के साथ-साथ शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना की गई है ताकि असाधारण परिस्थितियों पर काबू पाया जा सके। बदलती हुई राजनीति परिस्थितियों में केन्द्र तथा राज्यों के बीच मुठभेड़ से राष्ट्रीय एकता कमज़ोर पड़ सकती है। इसलिए केन्द्र और राज्यों की सरकारों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए ताकि राष्ट्र की समस्याओं को हल किया जा सके।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के चार संघात्मक लक्षण लिखें।
उत्तर-
भारतीय संविधान में अग्रलिखित संघीय तत्त्व विद्यमान हैं-

  1. शक्तियों का विभाजन-प्रत्येक संघीय देश की तरह भारत में भी केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। इन शक्तियों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची।
  2. लिखित संविधान-संघीय व्यवस्था में संविधान लिखित होता है ताकि केन्द्र और प्रान्तों की शक्तियों का स्पष्ट वर्णन किया जा सके। भारत का संविधान लिखित है। इसमें 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं।
  3. कठोर संविधान-संघीय व्यवस्था में संविधान का कठोर होना अति आवश्यक है। भारत का संविधान भी कठोर है। संविधान की महत्त्वपूर्ण धाराओं में संसद् दो-तिहाई बहुमत तथा राज्यों के विधानमण्डलों के बहुमत से ही संशोधन कर सकती है।
  4. संविधान सर्वोच्चता-भारतीय संघ की अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता संविधान की सर्वोच्चता है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान के चार एकात्मक लक्षण लिखें।
उत्तर-
निम्नलिखित बातों के आधार पर भारतीय संविधान को एकात्मक कहा जाता है-

  1. शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में भारतीय संविधान में शक्तियों का जो विभाजन किया गया है वह केन्द्र के पक्ष में है। संघीय सूची में बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय हैं। इनकी संख्या भी राज्य सूची के विषयों की संख्या से अधिक है। संघीय सूची में 97 विषय हैं जबकि राज्य सूची में 66 विषय हैं। समवर्ती सूची के विषयों पर भी असल अधिकार केन्द्र का है।
  2. राष्ट्रपति द्वारा राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति-भारत में राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वे राष्ट्रपति की प्रसन्नता पर्यन्त ही अपने पद पर रह सकते हैं अर्थात् राष्ट्रपति जब चाहे राज्यपाल को हटा सकता है।
  3. राज्यों को अपना अलग संविधान बनाने का अधिकार नहीं है—भारत में जम्मू-कश्मीर राज्यों को छोड़कर अन्य किसी भी राज्य का अपना अलग कोई संविधान नहीं है। उनकी शासन व्यवस्था का विवरण संघीय संविधान में ही किया गया है।
  4. इकहरी नागरिकता-भारत में लोगों को इकहरी नागरिकता प्रदान की गई है।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी भावना में एकात्मक है। व्याख्या करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान का ढांचा संघात्मक है परन्तु भावना में एकात्मक है। भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षण पाए जाते हैं जैसे कि लिखित एवं कठोर संविधान, शक्तियों का विभाजन, संविधान की सर्वोच्चता, स्वतन्त्र न्यायपालिका इत्यादि। परन्तु भारतीय संविधान में एकात्मक तत्त्व भी मिलते हैं जिनके कारण यह कहा जाता है कि भारतीय संविधान एकात्मक है। भारत में शक्तियों का विभाजन केन्द्र के पक्ष में है इसलिए केन्द्र सरकार बहुत ही शक्तिशाली है। केन्द्र सरकार अनेक परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है। सारे देश के लिए एक संविधान है और नागरिकों को इकहरी नागरिकता प्राप्त है। राज्यों के राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। राज्यपाल केन्द्रीय सरकार के एजेन्ट के रूप में कार्य करता है। संकटकाल में देश का संघात्मक ढांचा एकात्मक ढांचा में बदला जा सकता है और इसके लिए संविधान में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं है। भारत में इकहरी न्याय व्यवस्था की स्थापना की गई है। सम्पूर्ण भारत के लिए एक ही चुनाव आयोग है।

प्रश्न 4.
अर्द्ध-संघात्मक शब्द का अर्थ बताओ।
उत्तर-
अर्द्ध-संघात्मक का अर्थ है कि संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा तो किया गया हो, परन्तु राज्य कम शक्तिशाली हो जबकि केन्द्र अधिक शक्तिशाली हो। भारत की संघीय व्यवस्था को अर्द्ध-संघात्मक का नाम दिया जाता है क्योंकि भारत में केन्द्र प्रान्तों की अपेक्षा बहुत शक्तिशाली है। प्रो० के० सी० बीयर के शब्दों में, “भारत का नया संविधान ऐसी शासन व्यवस्था को जन्म देता है जो अधिक-से-अधिक अर्द्ध-संघीय है। भारत एकात्मक लक्षणों वाला संघात्मक राज्य नहीं है, अपितु सहायक संघात्मक लक्षणों वाला एकात्मक राज्य है।”

प्रश्न 5.
राज्यों की स्वायत्तता का अर्थ बताओ।
उत्तर-
संघीय शासन प्रणाली में संविधान के अन्तर्गत केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा किया जाता है। राज्यों की स्वायत्तता का अर्थ है कि इकाइयों को अपने आन्तरिक क्षेत्र में अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। जो शक्तियां राज्यों को संविधान के द्वारा दी गई हैं, उनमें केन्द्र का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

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प्रश्न 6.
भारत में शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता के चार कारण लिखें।
अथवा
भारत में केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के कोई दो कारण लिखो।
उत्तर-

  • देश की विभिन्न समस्याओं का सामना करने के लिए शक्तिशाली केन्द्र की व्यवस्था की गई है।
  • देश के आर्थिक विकास के लिए शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता थी और इसीलिए शक्तिशाली केन्द्र की व्यवस्था की गई।
  • राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए तथा राष्ट्रवाद की भावना के विकास के लिए शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता थी।
  • बाहरी आक्रमणों का मुकाबला करने के लिए तथा देश की सुरक्षा के लिए शक्तिशाली केन्द्र की व्यवस्था की गई।

प्रश्न 7.
वित्त आयोग के प्रावधान व रचना का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान की धारा 280 के अनुसार यह व्यवस्था की गई है कि, “देश की आर्थिक एवं वित्तीय परिस्थिति के अध्ययन के लिए समय-समय पर राष्ट्रपति वित्त आयोग की नियुक्ति कर सकता है।” अनुच्छेद 280 में यह प्रावधान है कि, “इस संविधान के प्रारम्भ अथवा लागू होने के दो वर्ष के भीतर और उसके बाद आने वाले पांच वर्षों के लिए उसकी अवधि समाप्त होने से पूर्व राष्ट्रपति वित्त आयोग का गठन करेगा, जोकि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक सभापति और 4 अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा। अशोक चन्दा के शब्दों में, “वित्त आयोग के प्रावधान का अभिप्राय राज्यों को आश्वस्त कराने के लिए किया गया था कि वितरण की योजना संघ द्वारा स्वेच्छा से नहीं बनाई जाएगी बल्कि एक स्वतन्त्र आयोग द्वारा बनाई जाएगी जो राज्यों की बदलती हुई आवश्यकताओं को आंकेगा। अब तक राष्ट्रपति द्वारा 15 वित्त आयोग नियुक्त किए जा चुके हैं।”

प्रश्न 8.
वित्त आयोग के चार मुख्य कार्य लिखें।
उत्तर-
वित्त आयोग के कार्यों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है-

  1. वित्त आयोग संघीय राज्यों के मध्य राजस्व के वितरण जैसे जटिल किन्तु महत्त्वपूर्ण प्रश्नों से सम्बन्धित है। वित्त आयोग से यह अपेक्षा की जाती है कि वह राज्यों के मध्य आपसी दूरी को व केन्द्र और राज्य के मध्य पैदा हुए विवादों के निपटारे के लिए एक निर्णायक की भूमिका अदा करेगा।
  2. आयोग का प्रमुख कार्य आयकर के प्रमुख साधनों को वितरित करने हेतु तथा राज्यों के मध्य अपना प्रतिवेदना या फैसला प्रस्तुत करना है।
  3. राष्ट्रपति वित्त आदि मामले के विषय में हस्तक्षेप कर सकता है किन्तु आयकर के सम्बन्ध में उसकी सिफ़ारिशों का अध्ययन करने के बाद राष्ट्रपति अपने आदेश द्वारा वितरण की प्रणाली एवं प्रतिशत भाग को निर्धारित करता है। इस कार्य में संसद् प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेती है।
  4. वित्त आयोग पर कर वितरण के सिद्धांत निश्चित करने के दायित्व हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान में मौलिक कर्तव्यों की व्यवस्था किस संशोधन द्वारा की गई?
उत्तर-
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई थी। परन्तु 42वें संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग IV-A ‘मौलिक कर्त्तव्य’ शामिल किया गया है। इस नए भाग में 51-A नाम का एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया है जिसमें नागरिकों के मुख्य कर्त्तव्यों का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में शामिल किन्हीं दो मौलिक कर्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. संविधान, राष्ट्रीय झण्डे तथा राष्ट्रीय गीत का सम्मान करना- भारतीय नागरिक का प्रथम कर्त्तव्य यह है कि वह पूर्ण श्रद्धा से भारतीय संविधान, राष्ट्रीय झण्डे तथा राष्ट्रीय गीत का सम्मान करे।
  2. राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के उद्देश्यों को स्मरण तथा प्रफुल्लित करना-42वें संशोधन के अन्तर्गत लिखा गया है कि “प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए किए गए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रोत्साहित करने वाले आदर्श का सम्मान एवं पालन करे।”

प्रश्न 3.
मौलिक कर्तव्यों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-

  1. मौलिक कर्त्तव्य शून्य स्थान की पूर्ति करते हैं-मौलिक कर्तव्यों को भारतीय संविधान में सम्मिलित करके रिक्त स्थान की पूर्ति की गई है।
  2. मौलिक कर्त्तव्य आधुनिक विचारधारा के अनुकूल हैं-42वें संशोधन द्वारा मौलिक कर्तव्यों को भारतीय संविधान में अंकित किया जाना आधुनिक विचारधारा के अनुकूल है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अधिकार और कर्त्तव्य साथ-साथ चलते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. भारतीय संविधान की कोई एक संघात्मक विशेषता बताइए।
उत्तर-केंद्र तथा प्रांतों में शक्तियों का विभाजन किया गया है।

प्रश्न 2. भारतीय संविधान का कोई एक एकात्मक लक्षण बताइए।
उत्तर-शक्तियों का विभाजन केंद्र के पक्ष में है।

प्रश्न 3. शक्तिशाली केंद्र बनाने का कोई एक कारण बताइए।
उत्तर-देश की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए शक्तिशाली केंद्र की व्यवस्था की गई।

प्रश्न 4. भारत में नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त है या इकहरी ?
उत्तर-भारत में नागरिकों को इकहरी नागरिकता प्राप्त है।

प्रश्न 5. भारत में किस राज्य का अपना अलग संविधान है ?
उत्तर-जम्मू-कश्मीर।

प्रश्न 6. भारतीय संविधान का स्वरूप कैसा है?
उत्तर- संघात्मक ढांचा और एकात्मक आत्मा।

प्रश्न 7. यह कथन किसका है कि, “भारतीय संविधान रूप में तो संघात्मक है, पर भावना में एकात्मक है?”
उत्तर-यह कथन डी० एन० बैनर्जी का है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 25 भारतीय संघात्मक व्यवस्था

प्रश्न 8. क्या संघीय सरकार में शक्तियों का बंटवारा होता है ?
उत्तर-हां, संघीय सरकार में शक्तियों का बंटवारा होता है।

प्रश्न 9. भारत किसका संघ है?
उत्तर–भारत राज्यों का संघ है।

प्रश्न 10. भारतीय संविधान में वर्तमान समय में कितने अनुच्छेद हैं ?
उत्तर- भारतीय संविधान में वर्तमान समय में 395 अनुच्छेद हैं।

प्रश्न 11. अवशेष शक्तियां किसके अधीन हैं?
उत्तर-अवशेष शक्तियां केन्द्र के अधीन हैं।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ………. के अनुसार “भारतीय संविधान रूप में तो संघात्मक है, पर भावना में एकात्मक है।”
2. संघ सूची में ………….. विषय शामिल हैं।
3. राज्य सूची में ………….. विषय शामिल हैं।
4. समवर्ती सूची में …………. विषय शामिल हैं।
5. भारत में …………. विधानपालिका की व्यवस्था की गई है।
उत्तर-

  1. प्रो० डी० एन० बैनर्जी
  2. 97
  3. 66
  4. 47
  5. द्वि-सदनीय।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें।

1. भारत में दोहरी नागरिकता पाई जाती है।
2. भारत में शक्तियों का विभाजन केंद्र के पक्ष में किया गया है।
3. राज्यों को अपना अलग संविधान बनाने का अधिकार है।
4. राज्य सभा में राज्यों को समान प्रतिनिधित्व प्राप्त है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. गलत
  4. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
संघात्मक सरकार के लिए कौन-सा तत्त्व आवश्यक है ?
(क) लिखित संविधान
(ख) संविधान की सर्वोच्चता
(ग) कठोर संविधान
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में कौन-से संघीय तत्त्व पाए जाते हैं ?
(क) शक्तियों का विभाजन
(ख) लिखित संविधान
(ग) संविधान की सर्वोच्चता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
राज्य सूची पर कौन कानून बना सकता है ?
(क) राज्य सरकार
(ख) केंद्र सरकार
(ग) स्थानीय सरकार
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) राज्य सरकार

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प्रश्न 4.
भारतीय संविधान में कितने अनुच्छेद हैं ?
(क) 395
(ग) 365
(ख) 250
(घ) 340.
उत्तर-
(क) 395

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