Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 7 समानता Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 समानता
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
समानता का क्या अर्थ है ? स्वतन्त्रता एवं समानता के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
(What is the meaning of equality ? Discuss the relationship between liberty and equality.)
उत्तर-
समानता का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्त्व है। स्वतन्त्रता की प्राप्ति की तरह मनुष्य में समानता की प्राप्ति की इच्छा सदा रही है। समानता की प्राप्ति के लिए मनुष्य को बहुत संघर्ष करना पड़ा है। प्राचीन काल में दास-प्रथा प्रचलित थी जिसके कारण असमानता स्वाभाविक थी। ‘अमेरिका की स्वाधीनता घोषणा’ (American Declaration of Independence) में कहा गया, “सब मनुष्य स्वतन्त्र तथा समान बनाए गए हैं।” फ्रांस की क्रान्ति के पश्चात् ‘अधिकारों के घोषणा-पत्र’ में कहा गया “मनुष्य स्वतन्त्र पैदा हुए हैं और वे अपने अधिकारों के विषय में भी स्वतन्त्र और समान रहते हैं।” (“Men are born free and always continue free and equal in respect of their right.”) 19वीं शताब्दी के अन्त में तथा 20वीं शताब्दी के आरम्भ में प्रायः सभी राज्यों में समानता का अधिकार लिखा गया है।
समानता का अर्थ (Meaning of Equality)-
साधारण शब्दों में समानता का यह अर्थ लिया जाता है कि सभी व्यक्ति समान हैं, सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए और सभी को समान वेतन मिलना चाहिए। इस मत के समर्थकों का कहना है कि प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान बनाया है और यह प्रकृति की इच्छा है कि वे समान रहें। इस विचार का समर्थन अमेरिका की स्वतन्त्रता की घोषणा तथा फ्रांस के अधिकारों के घोषणा-पत्र में किया गया है। परन्तु यह विचार ठीक नहीं है। प्रकृति ने सब मनुष्यों को समान नहीं बनाया। कोई व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से शक्तिशाली है तो कोई कमज़ोर, कोई सुन्दर है तो कोई कुरूप, कोई बुद्धिमान् है तो कोई मूर्ख तथा सभी व्यक्तियों के समान विचार नहीं होते।
प्रकृति ने मनुष्य में असमनाताएं उत्पन्न की हैं, परन्तु सभी मनुष्यों में मौलिक समानताएं होती हैं। समानता का अर्थ है, मनुष्यों की मौलिक समानताएं समाज की असमानताओं से नष्ट होनी चाहिएं। समाज में पाई जाने वाली असमानताओं को दूर करके सभी को उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिएं। किसी भी मनुष्य के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर भेद नहीं होना चाहिए।
समाज के अन्दर सभी व्यक्तियों को उन्नति के लिए समान अधिकार प्राप्त होने चाहिएं। प्रत्येक व्यक्ति को समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं ताकि वह अपनी योग्यता के अनुसार अपना विकास कर सके। समानता का सही अर्थ यह है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिएं ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर अपना विकास कर सके और इसके लिए विशेषाधिकार की समाप्ति होनी चाहिए अर्थात् सभी को उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिएं।
बार्कर (Barker) के अनुसार, “समानता के सिद्धान्त का यह अभिप्राय: है कि अधिकारों के रूप में जो सुविधाएं मुझे प्राप्त हैं, वे उसी रूप में अन्य व्यक्तियों को प्राप्त होंगी और जो अधिकार अन्य को प्रदान किए गए हैं वे मुझे भी दिए जाएंगे।”
प्रो० लॉस्की ने समानता की परिभाषा बिल्कुल ठीक की है। उन्होंने लिखा है, “समानता का यह अर्थ नहीं कि प्रत्येक के साथ एक-जैसा व्यवहार किया जाए अथवा प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाए। यदि एक ईंटें ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ अथवा वैज्ञानिक के समान कर दिया गया, तो इससे समाज में समानता का उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा, इसीलिए समानता का यह अर्थ है कि विशेषाधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान तथा उचित अवसर प्राप्त हों।” समानता की उपर्युक्त विवेचना के आधार पर हम कह सकते हैं कि समानता की अग्रलिखित विशेषताएं हैं-
- विशेष अधिकारों का अभाव-समानता की प्रथम विशेषता यह है कि समाज में किसी वर्ग को विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होते।
- उन्नति के समान अधिकार-समानता की द्वितीय विशेषता यह है कि समाज में सभी व्यक्तियों को उन्नति के समान अवसर प्रदान किए जाते हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर अपनी उन्नति कर सके। किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, रंग, लिंग तथा धन के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता।
- प्राकृतिक असमानताओं का नाश-समानता की तृतीय विशेषता यह है कि समाज में प्राकृतिक असमानताओं को नष्ट किया जाता है। यदि समाज में प्राकृतिक असमानताएं रहेंगी तो समानता के अधिकार का कोई लाभ नहीं है।
- सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति-समानता की यह भी विशेषता है कि समाज के सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए।
- कानून के समक्ष समानता–समानता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान हैं और कोई व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।
स्वतन्त्रता और समानता में सम्बन्ध (Relationship between Liberty and Equality)-
समानता और स्वतन्त्रता लोकतन्त्र के मूल तत्त्व हैं। व्यक्ति के विकास के लिए स्वतन्त्रता तथा समानता का विशेष महत्त्व है। बिना स्वतन्त्रता और समानता के मनुष्य अपना विकास नहीं कर सकता। परन्तु स्वतन्त्रता और समानता के सम्बन्धों पर विद्वान् एकमत नहीं हैं। कुछ विचारकों का विचार है कि स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं जबकि कुछ विचारकों के अनुसार स्वतन्त्रता तथा समानता में गहरा सम्बन्ध है और स्वतन्त्रता की प्राप्ति के बिना समानता स्थापित नहीं की जा सकती अर्थात् एक के बिना दूसरे का कोई महत्त्व नहीं है।
स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं (Liberty and Equality are opposed to each other)-
कुछ विचारकों के अनुसार, स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं और एक ही समय पर दोनों की प्राप्ति नहीं की जा सकती है। टाक्विल तथा लॉर्ड एक्टन इस विचारधारा के मुख्य समर्थक हैं। इन विद्वानों के मतानुसार जहां स्वतन्त्रता है वहां समानता नहीं हो सकती और जहां समानता है वहां स्वतन्त्रता नहीं हो सकती। इन विचारकों ने निम्नलिखित आधारों पर स्वतन्त्रता तथा समानता को विरोधी माना है-
- सभी मनुष्य समान नहीं हैं (All men are not Equal)-इन विचारकों के अनुसार असमानता प्रकृति की देन है। कुछ व्यक्ति जन्म से ही शक्तिशाली होते हैं तथा कुछ कमज़ोर। कुछ व्यक्ति जन्म से ही बुद्धिमान् होते हैं तथा कुछ मूर्ख। अतः मनुष्य में असमानताएं प्रकृति की देन हैं और इन असमानताओं के होते हुए सभी व्यक्तियों को समान समझना अन्यायपूर्ण तथा अनैतिक है।
- आर्थिक स्वतन्त्रता और समानता परस्पर विरोधी हैं (Economic Liberty and Equality are opposed to each other)-व्यक्तिवादी सिद्धान्त के आधार पर भी स्वतन्त्रता तथा समानता को परस्पर विरोधी माना जाता है। व्यक्तिवादी सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य को आर्थिक क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए तथा आर्थिक क्षेत्र में स्वतन्त्र प्रतियोगिता होनी चाहिए। यदि स्वतन्त्र प्रतियोगिता को अपनाया जाए तो कुछ व्यक्ति अमीर हो जाएंगे, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ेगी और यदि आर्थिक समानता की स्थापना की जाए तो व्यक्ति का स्वतन्त्र व्यापार का अधिकार समाप्त हो जाता है। आर्थिक समानता तथा स्वतन्त्रता परस्पर विरोधी हैं और एक समय पर दोनों की स्थापना नहीं की जा सकती।
- समान स्वतन्त्रता का सिद्धान्त अनैतिक है ( The theory of equal Liberty is immoral)-सभी व्यक्तियों की मूल योग्यताएं समान नहीं होती। इसलिए सबको समान अधिकार अथवा स्वतन्त्रता प्रदान करना अनैतिक अन्याय है।
- प्रगति में बाधक (Checks the Progress)-यदि स्वतन्त्रता के सिद्धान्त को समानता के आधार पर लागू किया जाए तो इससे व्यक्तित्व तथा समाज को समान रूप दे दिए जाते हैं जिससे योग्य तथा अयोग्य व्यक्ति में अन्तर करना कठिन हो जाता है। इससे योग्य व्यक्ति को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर नहीं मिलता।
स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी नहीं हैं (Liberty and Equality are not opposed to each other)-
अधिकांश विचारकों के अनुसार स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी न होकर एक-दूसरे के सहयोगी हैं। आजकल इस बात को मानने के लिए कोई तैयार नहीं होता कि स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं। वास्तव में ये दोनों एकदूसरे के पूरक हैं। समानता के अभाव में स्वतन्त्रता व्यर्थ है। आर० एच० टानी (R.H. Towny) का कथन है, “समानता स्वतन्त्रता की विरोधी न होकर इसके लिए आवश्यक है।” जो विचारक स्वतन्त्रता तथा समानता को विरोधी मानते हैं, उन्होंने स्वतन्त्रता तथा समानता का गलत अर्थ लिया है। उन्होंने स्वतन्त्रता का अर्थ पूर्ण स्वतन्त्रता तथा प्रतिबन्धों का अभाव लिया है। परन्तु समाज में व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं दी जा सकती। सामाजिक हितों की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य की स्वतन्त्रता पर उचित तथा न्यायपूर्ण प्रतिबन्ध लगाए जाएं।
इसी प्रकार इन विचारकों ने समानता का अर्थ यह लिया है कि सभी व्यक्ति समान हैं, सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए तथा सभी का सम्मान मिलना चाहिए। परन्तु समानता का यह अर्थ गलत है। समानता का अर्थ है-सभी व्यक्तियों को उन्नति के लिए समान अवसर तथा सुविधाएं प्रदान की जाएं। किसी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग तथा धन के आधार पर भेद नहीं किया जाना चाहिए। सभी व्यक्तियों को रोज़ी कमाने के समान अवसर मिलने चाहिएं।
- दोनों का विकास एक साथ हुआ है (Both have grown simultaneously)-स्वतन्त्रता और समानता का सम्बन्ध जन्म से है। जब निरंकुशता और असमानता के विरुद्ध मानव ने आवाज़ उठाई और क्रान्तियां हुईं, तो स्वतन्त्रता और समानता के सिद्धान्तों का जन्म हुआ। इस प्रकार इन दोनों में रक्त सम्बन्ध है।
- दोनों प्रजातन्त्र के आधारभूत सिद्धान्त हैं ( Both are Basic Principles of Democracy)-स्वतन्त्रता तथा समानता का विकास प्रजातन्त्र के साथ हुआ है। प्रजातन्त्र के दोनों मूल सिद्धान्त हैं। दोनों के बिना प्रजातन्त्र की स्थापना नहीं की जा सकती।
- दोनों के रूप समान हैं (Both are having same form)-स्वतन्त्रता और समानता के प्रकार एक ही हैं और उनके अर्थों में भी कोई विशेष अन्तर नहीं है। प्राकृतिक स्वतन्त्रता तथा प्राकृतिक समानता का अर्थ प्रकृति द्वारा प्रदान की गई स्वतन्त्रता अथवा समानता है। नागरिक स्वतन्त्रता का अर्थ समान नागरिक अधिकारों की प्राप्ति है। इसी प्रकार दोनों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि रूप हैं।
- दोनों के उद्देश्य एक ही हैं (Aims are the same)-दोनों का एक ही उद्देश्य है और वह है-व्यक्ति के विकास के लिए सुविधाएं प्रदान करना ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। एक के बिना दूसरे का उद्देश्य पूरा नहीं होता । आशीर्वादम (Ashirvatham) ने दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध बताया है। उन्होंने लिखा है, “फ्रांस के क्रान्तिकारियों ने जब स्वतन्त्रता, समानता तथा भाईचारे को अपने युद्ध का नारा बनाया तो वे न पागल थे और न ही मूर्ख।” इस प्रकार स्पष्ट है कि समानता तथा स्वतन्त्रता में गहरा सम्बन्ध है।
- आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता निरर्थक है (Political Liberty is meaningless in the absence of economic equality)-स्वतन्त्रता तथा समानता में गहरा सम्बन्ध ही नहीं है, बल्कि आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई मूल्य नहीं है। राजनीतिक स्वतन्त्रता की स्थापना के लिए पहले आर्थिक समानता की स्थापना करना आवश्यक है। जिस समाज में आर्थिक असमानता है वहां ग़रीब व्यक्ति की राजनीतिक स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती।
जिस देश में नागरिकों को आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती वहां नागरिक अपनी राजनीतिक स्वतन्त्रता का प्रयोग नहीं कर पाते। एक नागिरक जो अपने मालिक की दया पर हो, शीघ्र ही उसके दबाव में आकर अपने मत का अधिकार उसके कहने के अनुसार प्रयोग करेगा। यदि एक नागरिक को आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हो अर्थात् उसे नौकरी की चिन्ता न हो और उसे यह पता हो कि यदि वह अपने वोट के अधिकार का प्रयोग अपनी इच्छा से करेगा तो उसे नौकरी से नहीं निकाला जाएगा तो वह अपने अधिकार का स्वतन्त्रता से प्रयोग कर पाएगा। एक मज़दूर, जो दैनिक मज़दूरी पर कार्य करता हो, वोट डालने नहीं जाएगा क्योंकि उसके लिए वोट के अधिकार से अधिक मजदूरी का महत्त्व है। ग़रीब व्यक्ति अपनी वोट बेच डालता है। ग़रीब व्यक्ति न ही चुनाव लड़ सकते हैं क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए योग्यता से अधिक धन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार ग़रीब व्यक्ति के लिए राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई महत्त्व नहीं है। हॉब्सन (Hobson) ने लिखा है कि, “एक भूख से मरते हुए व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता का क्या लाभ है। वह स्वतन्त्रता को न तो खा सकता है और न ही पी सकता है।”
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए आर्थिक समानता को होना आवश्यक है।
प्रश्न 2.
समानता कितने प्रकार की होती है ? (What are the kinds of equality ?)
उत्तर-
मनुष्य को अपने जीवन का विकास करने के लिए जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समानता की आवश्यकता होती है। समानता के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं
- प्राकृतिक समानता (Natural Equality)
- नागरिक समानता (Civil Equality)
- सामाजिक समानता (Social Equality)
- राजनीतिक समानता (Political Equality)
- आर्थिक समानता (Economic Equality)।
1. प्राकृतिक समानता (Natural Equality)-प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है, इसलिए सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। परन्तु यह विचार ठीक नहीं है। प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान नहीं बनाया है। व्यक्तियों में शक्ति, रंग, बुद्धि तथा स्वभाव में भिन्नता पाई जाती है। परन्तु आधुनिक लेखक प्राकृतिक समानता का यह अर्थ नहीं लेते। प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ मौलिक समानताएं हैं जिनके कारण सभी व्यक्तियों को समान माना जाना चाहिए। एक व्यक्ति के विकास के लिए दूसरे व्यक्ति को केवल साधन नहीं बनाया जा सकता। समाज में प्राकृतिक समानता तो होनी चाहिए पर अप्राकृतिक समानताएं जो मनुष्य ने बनाई हैं, वे समाप्त होनी चाहिएं।
2. नागरिक समानता (Civil Equality)-नागरिक समानता को कानूनी समानता का नाम भी दिया जाता है। नागरिक समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों अर्थात् कानून के सामने सभी व्यक्ति समान हैं। धर्म, जाति, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ कानून भेदभाव नहीं करता। कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होता है। यदि किसी देश में कानून किसी एक वर्ग के लिए बनाए जाते हैं तो उस देश में नागरिक समानता नहीं रहती। इंग्लैण्ड, भारत तथा अमेरिका में कानून के सामने सभी व्यक्तियों को बराबर माना जाता है।
3. सामाजिक समानता (Social Equality)-सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान समझा जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति समाज का बराबर अंग है और सभी को समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं। किसी व्यक्ति से धर्म, जाति, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर भेदभाव न हो। भारत में जाति-पाति के आधार पर भेद किया जाता था। अब भारत सरकार ने कानून द्वारा समानता स्थापित की जबकि दक्षिण अफ्रीका में काले तथा गोरे लोगों में सितम्बर 1992 तक भेदभाव किया जाता रहा है। इसीलिए हम कह सकते हैं कि सितम्बर 1992 तक दक्षिणी अफ्रीका में नागरिकों को सामाजिक समानता प्राप्त नहीं थी। सामाजिक समानता की स्थापना केवल कानून द्वारा ही नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए लोगों के सामाजिक, धार्मिक तथा जाति के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन लाना आवश्यक है।
4. राजनीतिक समानता (Political Equality)-राजनीतिक समानता का अर्थ है कि नागरिकों को राजनीतिक अधिकार समान मिलने चाहिएं। वोट का अधिकार, चुने जाने का अधिकार, प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार तथा सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार, सभी नागरिकों को धर्म जाति, रंग, लिंग तथा धन के आधार पर भेद किए बिना समान रूप से प्राप्त होने चाहिएं। वोट के अधिकार तथा चुने जाने के लिए सरकार कुछ योग्यताएं निश्चित कर सकती है, पर ये योग्यताएं धर्म, जाति, रंग, लिंग पर आधारित नहीं होनी चाहिएं।
5. आर्थिक समानता (Economic Equality) आर्थिक समानता का यह अर्थ नहीं है कि सभी व्यक्तियों को समान वेतन दिया जाए तथा सभी के पास सम्पत्ति हो। आर्थिक समानता का सही अर्थ यह है कि समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए अर्थात् व्यक्ति की रोटी, कपड़ा तथा मकान की आवश्यकताएं पूर्ण होनी चाहिएं। प्रत्येक राज्य का परम कर्त्तव्य है कि वह अपने नागरिकों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे। उनके जीवन स्तर को ऊंचा करने के अनेक कार्य करे। साम्यवादी देशों में नागरिकों की आर्थिक दशा को सुधारने के लिए अनेक कार्य किए गए हैं और आर्थिक समानता की स्थापना के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में लाखों व्यक्ति बेरोज़गार हैं और कई लोगों को तो दो समय भोजन भी नहीं मिलता। भारत में आर्थिक समानता नहीं है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
समानता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में समानता का अर्थ यह लिया जाता है कि सभी व्यक्ति समान हैं, सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए और सभी को समान वेतन मिलना चाहिए। परन्तु समानता का यह अर्थ सही नहीं है। आज के युग में समानता का सही अर्थ यह है कि कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। सभी नागरिकों को उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं। किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग, वंश आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए और समाज में उत्पन्न असमानताओं की समाप्ति हो। प्रो० लॉस्की ने समानता की परिभाषा बिल्कुल ठीक की है। उन्होंने लिखा है कि, “समानता का अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए अथवा प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाए। यदि एक ईंट ढोने वाले का वेतन प्रसिद्ध गणितज्ञ या वैज्ञानिक के समान कर दिया जाए, तो इससे समाज में समानता का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। इसलिए समानता का अर्थ यह है कि विशेषाधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान तथा उचित अवसर प्राप्त हों।”
प्रश्न 2.
समानता की विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
समानता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- विशेष अधिकारों का अभाव-समानता की प्रथम विशेषता यह है कि समाज में किसी वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते।
- उन्नति के समान अवसर-समानता की द्वितीय विशेषता यह है कि समाज में सभी व्यक्तियों को उन्नति के समान अवसर प्रदान किए जाते हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कार्य कर सके। किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, रंग, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
- प्राकृतिक असमानताओं का नाश-समानता की तृतीय विशेषता यह है कि समाज में प्राकृतिक असमानताओं का नाश किया जाता है। यदि समाज में प्राकृतिक असमानताएं रहेंगी तो समानता के अधिकार का कोई लाभ नहीं है।
- सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति-समानता की यह भी विशेषता है कि समाज के सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए।
प्रश्न 3.
समानता के नकारात्मक तथा सकारात्मक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर-
समानता के दो पक्ष हैं-
- नकारात्मक पक्ष-समानता के इस पक्ष का अर्थ विशेष अधिकारों की अनुपस्थिति है। अन्य शब्दों में, इसका अर्थ यह है कि किसी व्यक्ति को किसी भी आधार पर कोई विशेष अधिकार उपलब्ध नहीं होना चाहिए। जन्म, जाति अथवा धर्म इत्यादि के आधार पर किसी वर्ग के लिए विशेष अधिकारों का न होना ही समानता के नकारात्मक तथ्य का सारांश है।
- सकारात्मक पक्ष-सकारात्मक पक्ष से अभिप्राय यह है कि सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के अपने जीवन का विकास करने के लिए समान अवसर उपलब्ध होने चाहिएं। यह ठीक है कि सभी व्यक्तियों के लिए प्रत्येक प्रकार के समान अवसर प्रदान करना राज्य के लिए असम्भव है, परन्तु उचित तथा समानता के आधार पर ऐसे अवसर प्रदान करना राज्य के लिए कोई कठिन नहीं है तथा इस प्रकार के अवसर प्रदान करने को ही समानता का सकारात्मक पक्ष कहा जाता है।
प्रश्न 4.
समानता के विभिन्न रूपों का नाम लिखें तथा किन्हीं चार रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
समानता के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं-
(1) प्राकृतिक समानता (2) नागरिक समानता (3) सामाजिक समानता (4) राजनीतिक समानता (5) आर्थिक समानता।
- नागरिक समानता-नागरिक समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हैं अर्थात् कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, रंग, लिंग, वंश आदि के आधार पर कानून के समक्ष भेदभाव नहीं किया जाता। कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होता है।
- सामाजिक समानता-सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समान समझा जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति समाज का समान अंग है अतः सभी को बराबर सुविधाएं मिलनी चाहिएं। सामाजिक समानता की स्थापना केवल कानून द्वारा नहीं की जा सकती बल्कि इसके लिए लोगों के विचारों में परिवर्तन लाना भी आवश्यक है।
- राजनीतिक समानता-राजनीतिक समानता का अर्थ है कि नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार मिलने चाहिएं। वोट देने का अधिकार, चुने जाने का अधिकार, सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार इत्यादि राजनीतिक अधिकार सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मिलने चाहिएं।
- आर्थिक समानता–समाज में से आर्थिक असमानता समाप्त होनी चाहिए तथा सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिए।
प्रश्न 5.
आर्थिक समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आर्थिक समानता का यह अर्थ नहीं है कि सभी व्यक्तियों को समान वेतन दिया जाए तथा सभी के पास समान सम्पत्ति हो। आर्थिक समानता का सही अर्थ यह है कि समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए अर्थात् व्यक्ति की रोटी, कपड़ा तथा मकान की आवश्यकताओं पूर्ण होनी चाहिए। प्रत्येक राज्य का प्रथम कर्त्तव्य है कि वह अपने नागरिकों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे। उनके जीवन-स्तर को ऊंचा करने के अनेक कार्य करे। साम्यवादी देशों में नागरिकों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए अनेक कार्य किए गए हैं और आर्थिक समानता की स्थापना के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में करोड़ों व्यक्ति बेरोज़गार हैं और कई व्यक्तियों को तो दो समय भरपेट भोजन भी नहीं मिलता। भारत में आर्थिक समानता नहीं है।
प्रश्न 6.
आर्थिक असमानता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
आर्थिक असमानता उस अवस्था को कहा जाता है जब समाज का एक भाग रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत ज़रूरतों से वंचित रहते हुए अत्यन्त निम्न परिस्थितियों में जीवनयापन करता है और दूसरा भाग समस्त सुखसुविधाओं से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करता है। आर्थिक असमानता के अन्तर्गत निर्धन और धनी के बीच अंतर बढ़ जाता है। निर्धन व्यक्ति प्रत्येक दृष्टि से पिछड़ कर रह जाते हैं। भारत में व्यापक पैमाने पर आर्थिक असमानता पाई जाती है। आज भी कुल आबादी का एक तिहाई भाग ग़रीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहा है। इनके लिए उच्च शिक्षा, राजनीतिक भागीदारी आदि एक स्वप्न की तरह है। निर्धन व्यक्तियों का जीवन स्तर अत्यन्त निम्न हैं।
प्रश्न 7.
भारत में आर्थिक असमानता के कोई चार कारण लिखें।
उत्तर-
- ग़रीबी-भारत में आर्थिक असमानता का एक बड़ा कारण भारत में पाई जाने वाली ग़रीबी है। ग़रीब व्यक्ति को पेट भर भोजन न मिल सकने के कारण उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास नहीं हो पाता।
- अनपढ़ता-भारत में आर्थिक असमानता का एक और बड़ा कारण भारत में पाई जाने वाली अनपढ़ता है। अनपढ़ व्यक्ति को अच्छा रोज़गार नहीं मिल पाता, जिसके कारण वह न तो अपना पेट भर पाता है और न ही अपने परिवार का। इसी कारण समाज में उसकी स्थिति निम्न स्तर की बनी रहती है।
- असन्तुलित विकास-भारत में होने वाला असन्तुलित विकास भी आर्थिक असमानता के लिए जिम्मेदार है। जिन स्रोतों का अधिक विकास हुआ है, वहां के लोगों का आर्थिक स्तर अच्छा है, जबकि जहां विकास नहीं हुआ है, वहां के लोगों का सामाजिक तथा आर्थिक जीवन निम्न स्तर का है।
- भारत में बेरोज़गारी पाई जाती है।
प्रश्न 8.
राजनीतिक स्वतन्त्रता और आर्थिक समानता में सम्बन्ध बताओ।
उत्तर-
गरीब व्यक्ति के लिए राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि जिन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है वास्तव में उन्हीं को राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। आर्थिक समानता और राजनीतिक स्वतन्त्रता में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है जोकि निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है-
- वोट के अधिकार का ग़रीब व्यक्ति के लिए कोई मूल्य नहीं-राजनीतिक अधिकारों में से वोट का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण है। परन्तु एक ग़रीब व्यक्ति के लिए जिसे दो वक्त खाने के लिए रोटी नहीं मिलती उसके लिए रोटी का मूल्य, वोट के अधिकार से अधिक है।
- निर्धन व्यक्ति द्वारा मत के अधिकार का लालच में दुरुपयोग-ग़रीब व्यक्ति थोड़े से पैसों के लालच में आकर अपने मताधिकार को पूंजीपतियों के हाथों में बेच डालता है। कई बार व्यक्ति पैसे के अलावा शराब या किसी अन्य चीज़ के लालच में मताधिकार का दुरुपयोग कर बैठता है।
- ग़रीब व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ना असम्भव-आजकल चुनाव लड़ने के लिए हज़ारों तो क्या लाखों रुपयों की आवश्यकता होती है। ग़रीब व्यक्ति जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता, चुनाव लड़ना तो दूर की बात रही, चुनाव लड़ने की बात सोच भी नहीं सकता।
- आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती। अतः आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक दिखावा मात्र है।
प्रश्न 9.
समानता के महत्त्व पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
समानता का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्त्व है। स्वतन्त्रता की प्राप्ति की तरह मनुष्य में समानता की प्राप्ति की इच्छा सदा रही है। स्वतन्त्रता के लिए समानता का होना आवश्यक है। समानता तथा स्वतन्त्रता प्रजातन्त्र के दो महत्त्वपूर्ण स्तम्भ हैं। समानता का महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि नागरिकों के बीच जाति, धर्म, भाषा, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। सामाजिक न्याय और सामाजिक स्वतन्त्रता के लिए समानता का होना आवश्यक है। वास्तव में समानता न्याय की पोषक है। कानून की दृष्टि में सभी को समान समझा जाता है। भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों के अध्याय में समानता का अधिकार लिखा गया है।
प्रश्न 10.
‘स्वतन्त्रता व समानता एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, पूरक हैं।’ व्याख्या करो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता तथा समानता में गहरा सम्बन्ध है। अधिकांश आधुनिक विचारकों के अनुसार स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी न होकर एक-दूसरे के सहयोगी हैं। समानता के अभाव में स्वतन्त्रता व्यर्थ है। आर० एच० टाउनी (Towney) ने ठीक ही कहा है कि, “समानता स्वतन्त्रता की विरोधी न होकर इसके लिए आवश्यक है।” आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्य मनुष्य की स्वतन्त्रता के लिए आर्थिक तथा सामाजिक समानता स्थापित करने के प्रयास करते हैं। आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता निरर्थक है। जिस देश में नागरिकों को आर्थिक समानता प्राप्त नहीं होती वहां नागरिक अपनी राजनीतिक स्वतन्त्रता का प्रयोग नहीं कर पाते। भारत में राजनीतिक स्वतन्त्रता तो है पर आर्थिक समानता नहीं है। ग़रीब, बेकार एवं भूखे व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता का कोई महत्त्व नहीं है। एक ग़रीब व्यक्ति अपनी वोट बेच डालता है और वह चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता। अतः स्वतन्त्रता के लिए समानता का होना अनिवार्य है।
प्रश्न 11.
नागरिक समानता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नागरिक समानता को कानूनी समानता का नाम भी दिया जाता है। नागरिक समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों अर्थात कानून के सामने सभी व्यक्ति समान हैं। धर्म, जाति, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ कानून भेदभाव नहीं करता है। कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होता है। यदि किसी देश में कानून किसी एक वर्ग विशेष के लिए बनाये जाते हैं तो उस देश में नागरिक समानता नहीं रहती है। सितम्बर 1992 से पहले दक्षिण अफ्रीका में नागरिक समानता नहीं थी। वहां कानून गोरे लोगों के हितों की रक्षा के लिए ही बनाए जाते थे, परन्तु सितम्बर 1992 से वहां नागरिक समानता से सम्बन्धित कानून पारित किया गया है। अब वहां पर नागरिक समानता स्थापित है। भारत, इंग्लैण्ड और अमेरिका में कानून के सामने सभी व्यक्ति एक समान हैं। इन देशों में कानून का शासन है और प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान है। कानून का उल्लंघन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक समान सज़ा मिलती है।
प्रश्न 12.
राजनीतिक समानता को सुनिश्चित बनाने के लिए आवश्यक शर्ते लिखो।
उत्तर-
- मत देने का अधिकार–राजनीतिक समानता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को जाति, धर्म, रंग, वंश, लिंग, धन, स्थान आदि के आधार पर उत्पन्न भेदभाव के बिना समान रूप से मतदान का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
- चुनाव लड़ने का अधिकार-राजनीतिक समानता के लिए यह आवश्यक है कि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से चुनाव लड़ने और चुने जाने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
- सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार-लोकतन्त्रीय राज्यों में राजनीतिक सत्ता में भागीदार बनाने के लिए नागरिकों को सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार दिया जाता है। कोई भी सार्वजनिक पद किसी विशेष वर्ग के लोगों के लिए सुरक्षित नहीं होता। 4. लोगों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए।
प्रश्न 13.
‘संरक्षात्मक विभेद’ से आपका क्या अभिप्राय है ? इससे सम्बन्धित कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर–
प्रत्येक समाज में बहुत-से व्यक्ति ऐसे होते हैं जो सामाजिक आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं। इन वर्गों को कानून द्वारा विशेष रियायतें प्रदान की जाती हैं ताकि ये अन्य वर्गों के समान अपना विकास कर सकें। इस प्रकार पिछड़े वर्गों के लोगों के पक्ष में विशेष सुविधाओं और रियायतों की व्यवस्था को ‘सुरक्षित भेदभाव’ कहा जाता है क्योंकि ऐसा पक्षपात विशेष वर्गों के लोगों के हितों की सुरक्षा के लिए किया जाता है। चाहे विशेष रियायतें और सुविधाएं समानता के कानूनी अधिकार की धारणा अनुसार नहीं होतीं, परन्तु आधुनिक कल्याणकारी राज्य के लिये पिछड़े वर्गों के लोग न तो योग्य विकास कर सकते हैं और न ही उन्नत व के लोगों की सामाजिक समानता करने का साहस कर सकते हैं। पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए विशेष सुविधाओं की व्यवस्था करना बहुत आवश्यक हो गया है।
प्रश्न 14.
समानता के कानूनी पक्ष (Legal Dimension) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आधुनिक युग में समानता के कानूनी पक्ष पर बहुत बल दिया जाता है। समानता के कानूनी पक्ष का अर्थ यह है कि राज्य में रहने वाले सभी व्यक्ति कानून के सामने समान है और किसी व्यक्ति को कानून के उपबन्धों में छूट नहीं दी जा सकती है। समानता के कानूनी पक्ष में निम्नलिखित बातें शामिल हैं-
1. कानून के समक्ष समानता-कानून के समक्ष समानता का अर्थ है कि कानून की दृष्टि में सभी नागरिक समान हैं। कानून तथा न्यायालय किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
2. कानून के समान संरक्षण-कानून के समान संरक्षण का अभिप्राय यह है कि समान परिस्थितियों में सबके साथ समान व्यवहार किया जाएगा।
3. समान अधिकार और कर्त्तव्य-हॉबहाउस के अनुसार कानूनी समानता में यह भी शामिल है कि सभी व्यक्तियों को समान रूप से अधिकार और कर्त्तव्य प्राप्त होने चाहिएं।
प्रश्न 15.
राजनीतिक समानता और आर्थिक समानता में सम्बन्ध बताएं।
उत्तर-
राजनीतिक समानता को सही अर्थों में स्थापित करने के लिए आर्थिक समानता अनिवार्य है। उदारवादी राजनीतिक समानता पर अधिक बल देते हैं जबकि मार्क्सवादी आर्थिक समानता को अधिक महत्त्व देते हैं। परन्तु वास्तव में दोनों एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं। राजनीतिक समानता की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि समाज में अमीरों और गरीबों में बहुत अधिक अन्तर नहीं होना चाहिए और सभी व्यक्तियों की मौलिक आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए। भूखे नंगे व्यक्ति के लिए राजनीतिक समानता का कोई अर्थ नहीं है। निर्धन व्यक्ति न तो मत का प्रयोग करने जाता है और न ही चुनाव लड़ने की सोच सकता है। ग़रीब व्यक्ति अपना मत बेच देता है और उच्च पदों से व्यवहारिक रूप से वंचित रहता है क्योंकि उसके पास शिक्षा करने के लिए धन नहीं होता। अतः आर्थिक समानता राजनीतिक समानता की स्थापना में सहायक होती है। राजनीतिक समानता भी आर्थिक समानता की स्थापना में सहायक होती है। इसलिए दोनों एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में समानता का अर्थ यह लिया जाता है कि सभी व्यक्ति समान हैं, सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए और सभी को समान वेतन मिलना चाहिए। परन्तु समानता का यह अर्थ सही नहीं है। आज के युग में समानता का सही अर्थ यह है कि कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। सभी नागरिकों को उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं। किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग, वंश आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए और समाज में उत्पन्न असमानताओं की समाप्ति हो।
प्रश्न 2.
समानता की दो विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
1. विशेष अधिकारों का अभाव-समानता की प्रथम विशेषता यह है कि समाज में किसी वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते।
2. उन्नति के समान अवसर-समानता की द्वितीय विशेषता यह है कि समाज में सभी व्यक्तियों को उन्नति के समान अवसर प्रदान किए जाते हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कार्य कर सके। किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, रंग, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
प्रश्न 3.
समानता के दो रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
1. नागरिक समानता-नागरिक समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हैं अर्थात् कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं।
2. सामाजिक समानता–सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समान समझा जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति समाज का समान अंग है अतः सभी को बराबर सुविधाएं मिलनी चाहिएं।
प्रश्न 4.
आर्थिक समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आर्थिक समानता का यह अर्थ नहीं है कि सभी व्यक्तियों को समान वेतन दिया जाए तथा सभी के पास समान सम्पत्ति हो। आर्थिक समानता का सही अर्थ यह है कि समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए अर्थात् व्यक्ति की रोटी, कपड़ा तथा मकान की आवश्यकताओं पूर्ण होनी चाहिएं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-
प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तरप्रश्न 1. समानता का अर्थ क्या है ?
उत्तर-प्रत्येक व्यक्ति को समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं ताकि वह अपनी योग्यता के अनुसार अपना विकास कर सके।
प्रश्न 2. समानता की परिभाषा लिखें।
उत्तर-लॉस्की के अनुसार, “समानता का अर्थ है विशेषाधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान तथा उचित अवसर प्राप्त हों।”
प्रश्न 3. समानता की एक विशेषता बताइए।
उत्तर-समानता की विशेषता यह है कि समानता में किसी वर्ग को विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होते।
प्रश्न 4. समानता के विभिन्न रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
- प्राकृतिक समानता
- नागरिक समानता
- सामाजिक समानता
- राजनीतिक समानता
- आर्थिक समानता।
प्रश्न 5. प्राकृतिक समानता का क्या अर्थ है ? ।
उत्तर-प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है, इसलिए सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।
प्रश्न 6. नागरिक समानता किसे कहते हैं ?
उत्तर-सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों अर्थात् कानून के सामने सभी व्यक्ति समान हैं।
प्रश्न 7. सामाजिक समानता से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान समझा जाना व उससे किसी भी प्रकार का धार्मिक, जातिगत, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाना।
प्रश्न 8. राजनीतिक समानता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-राजनीतिक समानता से अभिप्राय है कि नागरिकों को बिना किसी भेद-भाव के मत देने, चुने जाने, प्रार्थनापत्र देने और सरकारी पद ग्रहण करने का अधिकार हो।
प्रश्न 9. आर्थिक समानता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए।
प्रश्न 10. स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं, वर्णन करें।
उत्तर-आर्थिक क्षेत्र में स्वतन्त्र प्रतियोगिता होने के कारण अमीर और अमीर हो जाएंगे, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ेगी।
प्रश्न 11. स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी नहीं, स्पष्ट करें।
उत्तर-दोनों का एक ही उद्देश्य है और वह है व्यक्ति के विकास के लिए सुविधाएं प्रदान करना ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके।
प्रश्न 12. समानता का क्या महत्त्व है?
उत्तर-समानता का महत्त्व इस बात में निहित है कि किसी भी मनुष्य के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर भेद-भाव नहीं होना चाहिए।
प्रश्न 13. किन्हीं दो विद्वानों का नाम लिखें जो स्वतन्त्रता और समानता को परस्पर विरोधी मानते हैं।
उत्तर-लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) और डी० टॉकविल (De-Tocqueville) ।
प्रश्न 14. नागरिक समानता और राजनीतिक समानता में क्या अन्तर है?
उत्तर-नागरिक समानता से अभिप्राय है कि सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं जबकि राजनीतिक समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को समान रूप से राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं।
प्रश्न 15. समानता के दोनों रूपों का नाम लिखिए।
उत्तर-
- नकारात्मक समानता
- सकारात्मक समानता।
प्रश्न II. खाली स्थान भरें-
1. ……………… समानता का सही अर्थ यह है, कि समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए।
2. लॉस्की के अनुसार, आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक …….है।
3. स्वतन्त्रता और समानता परस्पर …………. है।
4. वोट का अधिकार ………. समानता से सम्बन्धित है।
5. काम का अधिकार ……….. समानता से सम्बन्धित है।
उत्तर-
- आर्थिक
- धोखा मात्र
- सहयोगी
- राजनीतिक
- आर्थिक ।
प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-
1. समानता का अर्थ है, समाज में प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति के असमान अवसर प्रदान किये जाएं। प्रत्येक व्यक्ति को असमान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए, ताकि प्रत्येक अपनी योग्यता के अनुसार अपना विकास कर सके।
2. समानता की एक विशेषता यह है, कि किसी वर्ग को विशेष अधिकार प्राप्त हो।
3. प्राकृतिक समानता का अर्थ है, कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है। इसलिए सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।
4. नागरिक समानता को कानूनी समानता का नाम भी दिया जाता है।
5. समानता और स्वतन्त्रता लोकतन्त्र के मूल तत्त्व नहीं हैं। व्यक्ति के विकास के लिए स्वतन्त्रता तथा समानता का कोई महत्त्व नहीं है। बिना स्वतन्त्रता और समानता के मनुष्य अपना विकास कर सकता है।
उत्तर-
- ग़लत
- ग़लत
- सही
- सही
- ग़लत ।
प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
“समानता के नियम का यह अर्थ है कि जो सविधाएं मझे अधिकारों के रूप में प्राप्त हुई हैं, वही सुविधाएं उसी प्रकार से दूसरों को भी दी गई हों। जो अधिकार दूसरों को दिये गए हैं, वह मुझे भी मिलेंगे।” यह कथन किसका है ?
(क) लॉस्की
(ख) बार्कर
(ग) ग्रीन
(घ) बैंथम।
उत्तर-
(घ) लॉस्की ।
प्रश्न 2.
“राजनीति शास्त्र के सम्पूर्ण क्षेत्र में समानता की धारणा से कठिन कोई अन्य धारणा नहीं है।” यह कथन किसका है ?
(क) मिल
(ख) लासवैल
(ग) गार्नर
(घ) लॉस्की ।
उत्तर-
(घ) लॉस्की ।
प्रश्न 3.
यह किसने कहा- “समानता की पर्याप्त मात्रा स्वतन्त्रता की विरोधी न होकर उसके लिए अनिवार्य
(क) रूसो
(ख) लॉस्की
(ग) ग्रीन
(घ) आर० एच० टोनी।
उत्तर-
(घ) आर० एच० टोनी।
प्रश्न 4.
“आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता मिथ्या है।” यह कहा है-
(क) लॉस्की ने
(ख) ग्रीन ने
(ग) एक्टन ने
(घ) लिंकन ने।
उत्तर-
(ग) एक्टन ने