Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions स्रोत आधारित प्रश्न.
PSEB Solutions for Class 11 Sociology स्रोत आधारित प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित स्रोत को पढ़ें तथा साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
19वीं सदी में प्राकृतिक विज्ञानों ने बहुत प्रगति की। प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों द्वारा प्राप्त सफलता ने बड़ी संख्या में समाज, विचारकों को उनका अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि यदि प्राकतिक विज्ञान की पद्धतियों से भौतिक विश्व में भौतिक या प्राकृतिक प्रघटनाओं को सफलतापूर्वक समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों को सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को समझने में भी सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है। अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे विद्वानों तथा अन्य समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन विज्ञान की पद्धतियों से करने का समर्थन किया क्योंकि वे प्राकृतिक वैज्ञानिकों की खोजों से प्रेरित थे और समान तरीके से ही समाज का अध्ययन करना चाहते थे।
(i) किस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए ?
(ii) किन समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन किया ?
(ii) समाजशास्त्रियों का प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों के बारे में क्या विचार था ?
उत्तर-
(i) 19वीं शताब्दी में प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को काफी सफलता प्राप्त हुई। इस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए।
(ii) अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे समाजशास्त्रियों ने समाज का गहनता से अध्ययन किया।
(iii) समाजशास्त्रियों का मानना था कि जैसे प्राकृतिक विज्ञान की पद्धतियों से प्राकृतिक घटनाओं को आसानी से समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों की सहायता से सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को भी सफलतापूर्वक समझा जा सकता है।
प्रश्न 2.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
यूरोप और अमेरिका में, 19वीं सदी के बाद समाजशास्त्र एक विषय के रूप में विकसित हुआ। हालांकि, भारत में, यह न केवल थोड़ी देर से उभरा अपितु अध्ययन के एक विषय के रूप में इसे कम महत्त्व दिया गया। तथापि, स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारत में समाजशास्त्र के महत्त्व में वृद्धि हुई और देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम मे एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्थान प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक विषय के रूप मे भी पहचान बनायी। राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० धुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाडिया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई इत्यादि कुछ महत्त्पूर्ण विद्वान हैं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।
(i) एक विषय के रूप में समाजशास्त्र यूरोप में कब विकसित हुआ ?
(ii) कुछ भारतीय समाजशास्त्रियों के नाम बताएं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।
(iii) भारत में समाजशास्त्र कैसे विकसित हुआ ?
उत्तर-
(i) यूरोप तथा अमेरिका में समाजशास्त्र एक विषय के रूप में 19वीं शताब्दी के पश्चात् काफी तेज़ी से विकसित हुआ।
(ii) राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० घुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाड़िया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई जैसे भारतीय समाजशास्त्रियों ने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में काफी योगदान दिया।
(iii) 1947 से पहले भारत में समाजशास्त्र का विकास तेज़ी से न हो पाया क्योंकि भारत पराधीन था। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में समाजशास्त्र तेजी से विकसित हुआ तथा देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में इसे एक स्वतन्त्र विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा। इसके अतिरिक्त, इसे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्रयोग किया जाने लगा जिस कारण यह तेजी से विकसित हुआ।
प्रश्न 3.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति तथा इतिहास के दर्शन में हैं। इस कारण से समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है। प्रत्येक सामाजिक समस्या का एक राजनीतिक कारण है। राजनीतिक व्यवस्था या शक्ति संरचना की प्रकृति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन समाज में भी परिवर्तन लाता है। विभिन्न राजनीतिक घटनाओं को समझने के लिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान से मदद लेता है। इसी तरह, राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र पर पर निर्भर करता है। राज्य अपने नियमों, अधिनियमों और कानूनों का निर्माण सामाजिक प्रथाओं, परम्पराओं तथा मूल्यों के आधार पर करता है। अतः बिना समाजशास्त्रियों पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा होगा। लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति सामाजिक है तथा इन राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है।
(i) मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार समाजशास्त्र राजनीति पर क्यों निर्भर है ?
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्यों अधूरा है ?
(ii) किस प्रकार राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है ?
उत्तर-
(i) गिंसबर्ग के अनुसार ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति व इतिहास के दर्शन में हैं। इसलिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर है।
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार राज्य जब भी अपने नियम अथवा कानून बनाता है, उसे सामाजिक मूल्यों, प्रथाओं, परम्पराओं का ध्यान रखना पड़ता है। इस कारण बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा है।
(iii) गिंसबर्ग के अनुसार लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति समाज में से ही होती है तथा समाज का अध्ययन समाजशास्त्र करता है। इस लिए जब भी राजनीति विज्ञान को समाज का अध्ययन करना होता है, उसे समाजशास्त्र की सहायता लेनी ही पड़ती है।
प्रश्न 4.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
विभिन्न समाज विज्ञानों में समाज का भिन्न अर्थ लगाया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की सामाजिक इकाइयों के संदर्भ में होता है। समाजशास्त्र का मुख्य ध्यान मानव समाज पर तथा इसमें पाये जाने वाले सम्बन्धों के नेटवर्क/जाल पर होता है। एक समाज में समाजशास्त्री सामाजिक प्राणियों के अन्तः सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं तथा यह ज्ञात करते हैं कि एक विशिष्ट स्थिति में एक व्यक्ति कैसे व्यवहार करता है, उसे दूसरों से क्या उम्मीद करनी चाहिए तथा दूसरे उससे क्या उम्मीदें/अपेक्षाएं करते हैं।
(i) समाज शब्द का प्रयोग अलग-अलग समाज विज्ञानों में अलग-अलग क्यों है ?
(ii) समाजशास्त्र में समाज का क्या अर्थ है ?
(iii) समाज व एक समाज में क्या अंतर है ?
उत्तर-
(i) अलग-अलग समाज विज्ञान समाज के एक विशेष भाग का अध्ययन करते हैं। जैसे अर्थशास्त्र पैसे से संबंधित विषय का अध्ययन करता है। इस कारण वह समाज शब्द का अर्थ भी अलग-अलग ही लेते हैं।
(ii) समाजशास्त्र में सम्बन्धों के जाल को समाज कहा जाता है। जब लोगों के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं तो समाज का निर्माण होना शुरू हो जाता है। इस प्रकार सामाजिक सम्बन्धों के जाल को समाज कहते हैं।
(iii) जब हम समाज की बात करते हैं तो यह सभी समाजों को इक्ट्ठे लेते हैं तथा अमूर्त रूप से उसका अध्ययन करते हैं परन्तु एक समाज में हम किसी विशेष समाज की बात कर रहे होते हैं जैसे कि भारतीय समाज या अमेरिकी समाज। इस कारण यह मूर्त समाज हो जाता है।
प्रश्न 5.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं। समुदाय से अभिप्राय लोगों के एक समुच्चय से भी लिया जाता है जो समान प्रकार के कार्य या गतिविधियों में संलग्न रहते हैं जैसे प्रजातीय समुदाय, धार्मिक समुदाय, एक राष्ट्रीय समुदाय, एक जाति समुदाय या एक भाषायी समुदाय इत्यादि। इस अर्थ में यह समान विशेषताओं या पक्षों वाले एक सामाजिक, धार्मिक या व्यावसायिक समूह का प्रतिनिधित्व करता है तथा वहद समाज जिसमें यह रहता है, से स्वयं को कुछ अर्थों में भिन्न प्रदर्शित करता है। अत: समुदाय का अभिप्राय एक विशाल क्षेत्र में फैले लोगों से है जो एक या अन्य किसी प्रकार से समानताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरण के लिए, ‘अन्तर्राष्ट्रीय समदाय’ या ‘एन० आर० आई० समुदाय’ जैसे शब्द समान विशेषताओं से निर्मित कुछ सुसंगत समूहों के रूप में साहित्य में प्रयुक्त किये जाते हैं।
(i) समुदाय का क्या अर्थ है ?
(ii) समुदाय की कुछ उदाहरण दीजिए।
(iii) समुदाय तथा समिति में दो अंतर बताएं।
उत्तर-
(i) समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं।
(ii) अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, भारतीय समुदाय, पंजाबी समुदाय इत्यादि समुदाय के कुछ उदाहरण हैं।
(iii) (a) समुदाय स्वयं ही निर्मित हो जाता है परन्तु समिति को जानबूझ कर किसी विशेष उद्देश्य से निर्मित किया जाता है।
(b) सभी लोग स्वत: ही किसी न किसी समुदाय का सदस्य बन जाते हैं परन्तु समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है अर्थात् व्यक्ति जब चाहे किसी समिति की सदस्यता ले तथा छोड़ सकता है।
प्रश्न 6.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
सामाजिक समूह व्यक्तियों का संगठन है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य अंतः क्रियाएँ पाई जाती हैं। इसमें वे व्यक्ति आते हैं, जो एक दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हैं, और अपने को अलग सामाजिक इकाई मानते हैं। समूह में सदस्यों की संख्या को दो से सौ व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके साथ, सामाजिक समूह की प्रकृति गतिशील होती है, इसकी गतिविधियों में समय-समय पर परिवर्तन आता रहता है। सामाजिक समूह के अन्तर्गत व्यक्तियों में अंतक्रियाएँ व्यक्तियों को अन्यों से पहचान के लिए भी प्रेरित करती हैं। समूह, आमतौर पर स्थिर तथा सामाजिक इकाई है। उदाहरण के लिए, परिवार, समुदाय, गाँव आदि, समूह विभिन्न संगठित क्रियाएँ करते हैं, जोकि समाज के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
(i) सामाजिक समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या भीड़ को समूह कहा जा सकता है ? यदि नहीं तो क्यों ?
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
(i) व्यक्तियों के उस संगठन को सामाजिक समूह कहा जाता है, जिसमें व्यक्तियों के बीच अन्तक्रियाएँ पाई जाती हैं। जब लोग एक-दूसरे के साथ अन्तक्रियाएं करते हैं तो उनके बीच समूह का निर्माण होता है।
(ii) जी नहीं, भीड़ को समूह नहीं कहा जा सकता क्योंकि भीड में लोगों के बीच अन्तक्रिया नहीं होगी।
अगर अन्तक्रिया नहीं होगी तो उनमें संबंध नहीं बन पाएंगे। जिस कारण समूह का निर्माण नहीं हो पाएगा।
(iii) प्राथमिक समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा सीधा, प्रत्यक्ष ब रोज़ाना का संबंध होता है उसे हम प्राथमिक समूह कहते हैं। जैसे-परिवार, मित्र समूह, स्कूल इत्यादि। द्वितीय समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा प्रत्यक्ष व रोज़ाना का संबंध नहीं होता उसे हम द्वितीय
समूह कहते हैं। जैसे कि मेरे पिता का ऑफिस।
प्रश्न 7.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर देंद्वितीय समूह लगभग प्राथमिक समूह के विपरीत होते हैं। कूले ने द्वितीय समूह के बारे में नहीं बताया, जब वह प्राथमिक समूह के सम्बन्ध में बता रहे थे। बाद में, विचारकों ने प्राथमिक समूह से द्वितीय समूह के विचार को समझा। द्वितीय समूह वे समूह हैं, जो आकार में बड़े होते हैं तथा थोड़े समय के लिए होते हैं। सदस्यों में विचारों का आदान-प्रदान औपचारिक, उपयोग-आधारित, विशेष तथा अस्थायी होता है। क्योंकि इसके सदस्य अपनी-अपनी, भूमिकाओं तथा किये जाने वाले कार्यों के कारण ही आपस में जुड़ें होते हैं। दुकान के मालिक एवं ग्राहक, क्रिकेट मैच में इकट्टे हुए लोग तथा औद्योगिक संगठन इसके उत्तम उदाहरण हैं। कारखाने के मजदूर, सेना, कॉलेज का विद्यार्थी-संगठन-विश्व-विद्यालय के विद्यार्थी, एक राजनैतिक दल आदि भी द्वितीय समूह के अन्रा उदाहरण हैं।
(i) द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) द्वितीय समूह की कुछ उदाहरण दें।
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूहों में दो अंतर दें।
उत्तर-
(i) वह समूह जिनके साथ हमारा सीधा व प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता, जिनकी सदस्यता हम अपनी इच्छा से ग्रहण करके कभी भी छोड़ सकते हैं, उसे द्वितीय समूह कहा जा सकता है।
(ii) पिता का दफ़तर, माता का ऑफिस, पिता का मित्र समूह, राजनीतिक दल, कारखाने के मजदूर इत्यादि द्वितीय समूह की उदाहरण हैं।
(iii) (a) प्राथमिक समूह आकार में काफ़ी छोटे होते हैं परन्तु द्वितीय समूह आकार में काफी बड़े होते हैं।
(b) प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच अनौपचारिक व प्रत्यक्ष संबंध होते हैं परन्तु द्वितीय समूह के सदस्यों के बीच औपचारिक व अप्रत्यक्ष संबंध होते हैं।
प्रश्न 8.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
संस्कृतियां एक समाज से दूसरे समाज तक भिन्नता रखती हैं तथा हर एक संस्कृति के अपने मूल्य तथा मापदण्ड होते हैं। सामाजिक मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त व्यवहारों के नियम हैं जबकि मूल्य से अभिप्राय, उस सामान्य पक्ष से है कि “क्या ठीक है या अभिलाषित व्यवहार है” तथा “क्या नहीं होना चाहिए”मान्य से संबंधित है। उदाहरण के लिए किसी एक संस्कृति में सत्कार को उच्च सामाजिक मूल्य माना जाता है जबकि अन्य समाज मे ऐसा नहीं होता। सामान्यतः कुछ समाजों में बहुपत्नी प्रथा को एक पारम्परिक रूप का विवाह माना जाता है जबकि अन्य समाजों में इसे एक उपयुक्त प्रथा नहीं माना जाता।
(i) संस्कृति का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या दो देशों की संस्कृति एक सी हो सकती है?
(iii) संस्कृति के प्रकार बताएं।
उत्तर-
(i) आदिकाल से लेकर आज तक जो कुछ भी मनुष्य ने अपने अनुभव से प्राप्त किया है, उसे संस्कृति कहते हैं। हमारे विचार अनुभव, विज्ञान, तकनीक, वस्तुएं, मूल्य, परंपराएं इत्यादि सब कुछ संस्कृति का ही हिस्सा हैं।
(ii) जी नहीं, दो देशों की संस्कृति एक सी नहीं हो सकती। चाहे दोनों देशों के लोग एक ही धर्म से क्यों न संबंध रखते हों, उनके विचारों, आदर्शों, मूल्यों इत्यादि में कुछ न कुछ अंतर अवश्य रहता है। इस कारण उनकी संस्कृति भी अलग होती है।
(iii) संस्कृति के दो प्रकार होते हैं-
(a) भौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख व स्पर्श कर सकते हैं, भौतिक संस्कृति कहलाता है। उदाहरण के लिए कार, मेज़, कुर्सी, पुस्तकें, पैन, इमारतें इत्यादि। (b) अभौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख या स्पर्श नहीं कर सकते, उसे अभौतिक संस्कृति कहते हैं। उदाहरण के लिए हमारे मूल्य, परंपराएं, विचार, आदर्श इत्यादि।
प्रश्न 9.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
जीवन के विभिन्न स्तरों के दौरान व्यक्ति भिन्न-भिन्न संस्थाओं, समुदायों तथा व्यक्तियों के संपर्क में आता है। अपने संपूर्ण जीवन के दौरान वे बहुत कुछ सीखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में विभिन्न अभिकरण तथा संगठन महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं तथा संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों का संस्थापन करते हैं। प्रत्येक समाज के समाजीकरण के अभिकरण होते हैं जैसे व्यक्ति, समूह, संगठन तथा संस्थाएं जो कि जीवन क्रम के समाजीकरण के लिए पर्याप्त मात्रा प्रदान करते हैं। अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसके द्वारा स्वयं विचारों, विश्वासों एवं संस्कृति के व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेक स्थानों को ढूंढ़ने में सहायता करते हैं उसी प्रकार जैसे वे समाज के वृद्धावस्था को नई जिम्मेदारियों के लिए तैयार करते हैं।
(i) समाजीकरण का क्या अर्थ है ?
(ii) समाजीकरण के साधनों के नाम बताएं।
(iii) अभिकरण क्या है ?
उत्तर-
(i) समाजीकरण एक सीखने की प्रक्रिया है। पैदा होने से लेकर जीवन के अंत तक मनुष्य कुछ न कुछ सीखता रहता है जिसमें जीवन जीने व व्यवहार करने के तरीके शामिल होते हैं। इस सीखने की प्रक्रिया को हम समाजीकरण कहते हैं।
(ii) परिवार, स्कूल, खेल समूह, राजनीतिक संस्थाएं, मूल्य, परम्पराएं इत्यादि समाजीकरण के साधन अथवा अभिकरण के रूप में कार्य करती हैं।
(iii) अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसकी सहायता से व्यक्ति विचारों विश्वास व संस्कृति में व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेकों स्थानों को ढूंढने में सहायता करते हैं। इस प्रकार वृद्धावस्था में नए उत्तरदायित्वों को संभालने को तैयार होता है।
प्रश्न 10.
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यद्यपि धर्म की महत्ता लोगों में अब कम हो गई है जबकि कुछ पीढ़ियां पहले, यह हमारे विचारों, मूल्यों और व्यवहारों को भी काफी प्रभावित करती थीं। भारत जैसे देश में धर्म हमारे जीवन के हर पक्ष को नियंत्रित करता है और यह समाजीकरण का एक शक्तिशाली अभिकर्ता (एजेंट) होता है।
कई प्रकार के धार्मिक संस्कार एवं कर्मकाण्ड, विश्वास एवं श्रद्धा, मूल्य एवं मापदण्ड धर्म के अनुसार ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होते हैं। धार्मिक त्योहार आमतौर पर सामूहिक रूप से निभाये जाते हैं जोकि समाजीकरण की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। धर्म के सहारे ही एक बच्चा एक अलौकिक शक्ति (भगवान) के बारे में सीखता है कि यह हमें बुरी आत्माओं तथा बुराई से बचाती है। यह देखा जाता है कि अगर एक व्यक्ति के माता-पिता धार्मिक होते हैं तो जब एक बच्चा बड़ा होगा वो भी धार्मिक बनता जाएगा।
(i) धर्म क्या है ?
(ii) धर्म की समाजीकरण में क्या भूमिका है ?
(iii) क्या आज धर्म का महत्त्व कम हो रहा है ? यदि हाँ तो क्यों ?
उत्तर-
(i) धर्म और कुछ नहीं बल्कि एक अलौकिक शक्ति में विश्वास है जो हमारी पहुँच से बहुत दूर है। यह विश्वासों, मूल्यों, परंपराओं इत्यादि की व्यवस्था है जिसमें इस धर्म के अनुयायी विश्वास करते हैं।
(ii) धर्म का समाजीकरण में काफी महत्त्व है क्योंकि व्यक्ति धर्म के मूल्यों, परंपराओं के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करता । बचपन से ही बच्चों को धार्मिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है जिस कारण व्यक्ति शुरू से ही अपने धर्म से जुड़ जाता है। वह कोई ऐसा कार्य नहीं करता जो धार्मिक परंपराओं के विरुद्ध हो। इस प्रकार धर्म व्यक्ति पर नियन्त्रण भी रखता है और उसका समाजीकरण भी करता है।
(iii) यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। लोग आजकल अधिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं व विज्ञान की तरफ उनका झुकाव काफी बढ़ रहा है। परन्तु धर्म में तर्क का कोई स्थान नहीं होता जो विज्ञान में सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार लोग अब धर्म के स्थान पर विज्ञान को महत्त्व दे रहे हैं।
प्रश्न 11.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
विवाह महिलाओं एवं पुरुषों की शारीरिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए निर्मित एक संस्था है। यह पुरुष एवं महिला को परिवार निर्मित करने हेतु एक दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करने की अनुमति देता है। विवाह का प्राथमिक उद्देश्य स्थायी सम्बन्धों के द्वारा यौनिक क्रियाओं को नियन्त्रित करना है। सरल शब्दों में, विवाह को एक ऐसी संस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो पुरुषों एवं महिलाओं को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देने तथा पति, पत्नी तथा बच्चों से सम्बन्धित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है। समाज एक पुरुष एवं महिला के मध्य वैवाहिक सम्बन्धों को एक धार्मिक संस्कार के रूप में अपनी अनुमति प्रदान करता है। विवाहित दंपति एक दूसरे के प्रति तथा सामान्य तौर पर समाज के प्रति अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हैं। विवाह एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक उद्देश्य को भी पूरा करता है यह उत्तराधिकार से सम्बद्ध सम्पत्ति अधिकार को परिभाषित करता है। इस प्रकार, हम समझ सकते हैं कि विवाह एक पुरुष और महिला के बीच बहु-आयामी सम्बन्धों को व्यक्त करता है।
(i) विवाह का क्या अर्थ है ?
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को क्या कहते हैं ?
(iii) क्या आजकल विवाह का महत्त्व कम हो रहा है ?
उत्तर-
(i) विवाह एक ऐसी संस्था है जो पुरुष-स्त्री को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देना तथा पति-पत्नी व बच्चों से संबंधित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है।
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता है क्योंकि विवाह बहुत से धार्मिक अनुष्ठान करके पूर्ण किया जाता है।
(iii) जी हाँ, यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। आजकल विवाह को धार्मिक
संस्कार न मानकर समझौता माना जाता है जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है। आजकल तो बहुत से युवक व युवतियों ने बिना विवाह किए इक्ट्ठे रहना शुरू कर दिया है जिससे विवाह का महत्त्व कम हो रहा है।
प्रश्न 12.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
परिवार का अध्ययन इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुषों और स्त्रियों तथा बच्चों को एक स्थाई सम्बन्धों में बांधकर मानव समाज के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संस्कृति का हस्तान्तरण परिवारों के भीतर होता है। सामाजिक प्रतिमानों, प्रथाओं तथा मूल्यों के विषय में सांस्कृतिक समझ तथा ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते हैं। एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसे परिवार को समरक्त परिवार कहते हैं जिसके सदस्य रक्त सम्बन्धों के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं जैसे भाई एवं बहिन तथा पिता और पुत्र इत्यादि।वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है उसे ‘प्रजनन का परिवार’ या दापत्यमूलक परिवार कहते हैं जो ऐसे व्यस्क सदस्यों से निर्मित होता है जिनके बीच यौनिक सम्बन्ध होते हैं।
(i) परिवार किसे कहते हैं ?
(ii) जन्म का परिवार व दापत्यमूलक परिवार किसे कहते हैं ? ।
(ii) परिवार का अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर-
(i) परिवार पुरुष व स्त्री के मेल से बनी ऐसी संस्था है जिसमें उन्हें लैंगिक संबंध स्थापित करने, संतान उत्पन्न करने व उनका भरण पोषण करने की आज्ञा होती है।
(ii) एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार कहते हैं। वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है इसे दापत्यमूलक अथवा प्रजनन परिवार कहते हैं।
(iii) परिवार का अध्ययन काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुष, स्त्री व बच्चों को एक स्थायी बंधन में बाँधकर रखता है। इससे परिवार समाज निर्माण मे महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। परिवार ही संस्कृति के हस्तांतरण में सहायता करता है। सामाजिक प्रथाओं, प्रतिमानों, व्यवहार करने के तरीकों में हस्तांतरण में भी परिवार समाज की सहायता करता है। इस प्रकार परिवार हमारे जीवन में व समाज निर्माण में सहायक होता है।