PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण

PSEB 12th Class Economics आय तथा रोजगार का निर्धारण Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें पारिवारिक क्षेत्र (Household Sector) तथा फर्में (Firms) अथवा उत्पादन क्षेत्र होता है।

प्रश्न 2.
सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर–
सन्तुलन वह स्थिति होती है यहाँ पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति बराबर होते हैं।

प्रश्न 3.
सन्तुलन आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सन्तुलन आय वह स्थिति होती है यहां पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति द्वारा आय अथवा उत्पादन का निश्चित स्तर स्थापित हो जाता है।

प्रश्न 4.
अनैच्छिक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अनैच्छिक बेरोज़गारी एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें कुशल लोग जो वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम करना चाहते हैं, काम प्राप्त नहीं कर पाते।

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प्रश्न 5.
पूर्ण रोज़गार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार वह स्थिति है जिसमें कुशल लोग जो वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम करना चाहते हैं, रोज़गार पर लगे होते हैं।

प्रश्न 6.
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अपूर्ण रोजगार सन्तुलन, सन्तुलन की वह स्थिति है यहाँ कुछ साधन बेरोज़गार होते हैं।

प्रश्न 7.
इच्छित बेरोज़गारी का अर्थ बताओ।
उत्तर-
इच्छित बेरोज़गारी वह स्थिति है यहां पर मज़दूर वर्तमान मज़दूरी पर काम प्राप्त होने पर भी काम नहीं करना चाहते।

प्रश्न 8.
अपूर्ण रोज़गार की स्थिति में AB और AS सन्तुलन में कैसे होते हैं ? रेखाचित्र द्वारा दिखाएं ।
उत्तर-
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन की स्थिति रेखाचित्र 1.
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प्रश्न 9.
आय के सन्तुलन स्तर पर क्या हमेशा पूर्ण रोज़गार की स्थिति होती है ?
उत्तर-
आय के सन्तुलन स्तर पर हमेशा पूर्ण रोज़गार की स्थिति होनी ज़रूरी नहीं। अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन भी हो सकता है।

प्रश्न 10.
परम्परावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार एक पूँजीवाद अर्थव्यवस्था में सदैव ……… की स्थिति होती है।
(a) पूर्ण रोज़गार
(b) पूर्ण बेरोज़गार
(c) छुपी बेरोज़गारी
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) पूर्ण रोज़गार।

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प्रश्न 11.
केन्ज के अनुसार एक पूँजीवाद अर्थव्यवस्था में सन्तुलन ………… की स्थिति में होता है।
(a) पूर्ण रोज़गार
(b) अपूर्ण रोज़गार
(c) पूर्ण रोजगार से अधिक
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
पूर्ण रोज़गार की स्थिति में ………. प्रकार की बेरोज़गारी हो सकती है ?
(a) इच्छित बेरोज़गारी
(b) मौसमी बेरोज़गारी
(c) संरचनात्मक बेरोज़गारी
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 13.
जब मज़दूरों को वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम तो प्राप्त होता है परन्तु वह काम करना नहीं चाहते तो इसको इच्छित बेरोज़गारी कहते हैं ?
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
रोज़गार का स्तर उस बिन्दु पर निश्चित होता है जिस बिन्दु पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति एक दूसरे के बराबर हो जाते हैं।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण रोजगार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार उस स्थिति को कहते हैं जिसमें वह श्रमिक जो वर्तमान प्रचलित मज़दूरी दर पर कार्य करना चाहते हैं तथा उनको बिना देरी से कार्य प्राप्त हो जाता है। पूर्ण रोज़गार में अनइच्छित बेरोज़गारी का अभाव होता है।

प्रश्न 2.
पूर्ण रोज़गार सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार सन्तुलन-
पूर्ण रोज़गार सन्तुलन वह स्थिति है जहां कुल मांग (AD) = कुल पूर्ति (AS) होती है। इस स्थिति में साधनों का पूर्ण प्रयोग होता है। पूर्ण रोज़गार सन्तुलन एक स्थिर सन्तुलन होता है, जिसमें हम परिवर्तन नहीं चाहते। पूर्ण रोज़गार सन्तुलन से अधिक उत्पादन से स्फीति अन्तर उत्पन्न होता है।
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प्रश्न 3.
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन से क्या अभिप्राय
उत्तर-
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन वह स्थिति है जहां कुल मांग (AD) = कुल पूर्ति (AS) होती है। इस स्थिति में साधनों का पूर्ण प्रयोग नहीं होता। अपूर्ण रोजगार सन्तुलन एक अस्थिर सन्तुलन होता है, जिसमें हम परिवर्तन चाहते हैं। अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन से अधिक उत्पादन से स्फीति अन्तर उत्पन्न नहीं होता।
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प्रश्न 4.
‘से’ के बाजार नियम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
‘से’ का बाजार नियम (Say’s Law of Markets)-जे० बी० से फ्रांस के अर्थशास्त्री थे। उनके अनुसार कुल पूर्ति तथा कुल मांग हमेशा समान होती है। इसको स्पष्ट करने के लिए उन्होंने कहा, “पूर्ति अपनी मांग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand) और देश में हमेशा पूर्ण रोज़गार की स्थिति रहती है।

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प्रश्न 5.
केन्ज़ के अनुसार आय तथा रोज़गार कैसे निर्धारण होते हैं ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय तथा रोजगार का निर्धारण (Determination of Income and Employment)- राष्ट्रीय आय का स्तर उस स्थान पर निर्धारित होता है जहां पर समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति समान होते हैं उस बिन्दु को प्रभावी मांग (Effective demand) का बिन्दु कहा जाता है। यह बिन्दु सन्तुलन का प्रतीक होता है। इसको रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पूर्ण रोज़गार तथा अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन में अन्तर बताओ।
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार तथा अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन में अन्तर –
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प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आय के सन्तुलन की रेखाचित्र द्वारा व्याख्या करो।
उत्तर-
केन्ज़ के रोज़गार सिद्धान्त को आय तथा रोज़गार निर्धारण का आधुनिक सिद्धान्त कहा जाता है। उनके अनुसार किसी अर्थव्यवस्था में किसी समय राष्ट्रीय आय का सन्तुलन कुल माँग तथा कुल पूर्ति की समानता द्वारा निर्धारित होता है।
AD = C +I
AS = C + S
∴ S = I
∴ AD = AS
AD (C+I)
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रेखाचित्र 5 में कुल माँग तथा कुल पूर्ति (AD = AS) बिन्दु E पर सन्तुलन में है। इससे OY राष्ट्रीय आय निर्धारण हो जाती है। यदि राष्ट्रीय आय कम है, जैसे कि OY1 तो आय होने की सम्भावना Y1 R1 अधिक है तथा लागत Y1C2 कम है। इसलिए उत्पादन में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन E बिन्दु पर पहुंच जाएगा। यदि राष्ट्रीय आय OY2 है तो आय होने की सम्भावना Y2 R2 कम है तथा लागत Y2C2 अधिक है। इसलिए उत्पादन कम हो जाएगा तथा सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होगा जहां AD = AS है। इसको अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
रेखाचित्र द्वारा बचत तथा निवेश दृष्टिकोण की सहायता से एक अर्थव्यवस्था में आय तथा उत्पादन के सन्तुलन को स्पष्ट करो। अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जब अर्थव्यवस्था में सन्तुलन नहीं होता तथा बचत निवेश से अधिक होती है ?
अथवा
आय में सन्तुलन बचत तथा निवेश वक्रों द्वारा स्पष्ट करो। यदि बचतें, नियोजित निवेश से बढ़ जाती हैं तो इनके सन्तुलन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था में नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक होती है तो सन्तुलन कैसे स्थापित होता है ?
उत्तर-
रेखाचित्र 6 में बचत तथा निवेश के सन्तुलन को दिखाया | गया है। बचत तथा निवेश एक-दूसरे के समान E बिन्दु पर दिखाए | गए हैं। इससे OY राष्ट्रीय आय का स्तर निर्धारण हो जाता है। इसको सन्तुलन की स्थिति कहा जाता है।
सन्तुलन = बचत = नियोजित निवेश यदि बचत, नियोजित निवेश से अधिक है।
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यदि बचत निवेश से बढ जाती है, जैसे कि रेखाचित्र में राष्ट्रीय आय OY1 पर बचत Y1S1 है तथा निवेश Y1I1 कम है। इस स्थिति में उत्पादकों की वस्तुओं का भण्डार बढ़ जाएगा, क्योंकि वस्तुओं का उपभोग अथवा माँग कम हो जाती है। इसलिए कीमतें कम हो जाती हैं। उत्पादकों के लाभ कम हो जाते हैं। इसलिए उत्पादक उत्पादन घटा देते हैं, परिणामस्वरूप रोज़गार कम हो जाता है तथा आय में कमी हो जाती है।इसलिए राष्ट्रीय आय OY1 से कम होकर OY रह जाएगी, जहां बचत तथा निवेश में सन्तुलन स्थापित हो जाएगा।

प्रश्न 4.
बचत तथा निवेश द्वारा आय का सन्तुलन कैसे स्थापित होता है ? आय के सन्तुलन । की स्थिति में क्या हमेशा पूर्ण रोज़गार की स्थिति होगी ?
अथवा
बचत तथा निवेश द्वारा आय का सन्तुलन कैसे स्थापित होता है ? स्पष्ट करो।
उत्तर-
जब नियोजित बचत तथा नियोजित निवेश एक-दूसरे के समान होते हैं तो सन्तुलन की स्थिति होती है, जैसे कि रेखाचित्र में बचत तथा निवेश का सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है तो OY आय
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निर्धारित हो जाती है। यदि आय OY1 अधिक होती है तो निवेश Y1I1 अधिक है तथा बचत Y1S1 कम है। इससे आय पर रोज़गार में वृद्धि होती है, जब तक सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित नहीं हो जाता। यदि आय OY2 है तो बचत Y2S2 अधिक है तथा निवेश Y2I2 कम है तो राष्ट्रीय आय कम है तो राष्ट्रीय आय कम हो जाती है तथा अन्त में सन्तुलन बचत तथा निवेश की समानता द्वारा E बिन्दु पर स्थापित होता है तथा राष्ट्रीय आय OY निश्चित हो जाएंगी। आय सन्तुलन तथा पूर्ण रोज़गार-आय सन्तुलन की स्थिति में पूर्ण रोज़गार की स्थिति भी हो सकती है, परन्तु यह अनिवार्य नहीं कि उस स्थिति में पूर्ण रोज़गार भी हो।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आय तथा रोज़गार के परम्परागत सिद्धान्तों को स्पष्ट करो। (Explain Classical Theory of Income and Employment determination.)
अथवा
कुल माँग तथा कुल पूर्ति की समानता से आय तथा रोजगार निर्धारण के परम्परागत दृष्टिकोण को स्पष्ट करो।
उत्तर-
परम्परागत आय तथा रोजगार निर्धारण के दो दृष्टिकोण हैं

  1. कुल माँग तथा कुल पूर्ति में सन्तुलन (Equilibrium with AD & AS)
  2. बचत तथा निवेश में सन्तुलन (Equilibrium with Saving & Investment)

1. कुल माँग तथा कुल पूर्ति में सन्तुलन (Equilibrium with AD & AS)-परम्परागत अर्थशास्त्रियों का विचार था कि एक मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है। इसके मुख्य दो आधार होते हैं।

(a) ‘से’ का बाज़ार नियम (Say’s Law of Markets)-जे० बी० से फ्रांस के अर्थशास्त्री थे। उनके अनुसार कुल पूर्ति तथा कुल माँग हमेशा समान होती है। इसको स्पष्ट करने के लिए उन्होंने कहा, “पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.) मान लो एक देश में वस्तु विनिमय प्रणाली है। विभिन्न मनुष्य विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। किसान गेहूँ उत्पन्न करता है। जुलाहा कपड़ा बनाता है। लकड़हारा लकड़ी की वस्तुओं का उत्पादन करता है। किसान गेहूँ देकर कपड़ा प्राप्त करता है। गेहूँ का मूल्य कपड़े के मूल्य के समान होगा। इस प्रकार देश में वस्तुओं का एक-दूसरे से विनिमय किया जाता है तथा कुल पूर्ति, कुल मांग के समान हो जाती है।

(b) मज़दूरी कीमत लोचशीलता (Wage Price Flexibility)-परम्परागत अर्थशास्त्रियों के अनुसार पूर्ण रोज़गार का दूसरा आधार मज़दूरी कीमत लोचशीलता होती है। मजदूरी की दर में परिवर्तन मज़दूर की माँग तथा पूर्ति में परिवर्तन उत्पन्न करती है। किसी समय मज़दूरी अधिक है तो मज़दूरों की पूर्ति अधिक हो जाएगी तथा माँग कम होगी।

इसलिए मज़दूरी कम हो जाएगी। यदि मजदूरी कम है तो मजदूरों की मांग अधिक होगी तथा पूर्ति कम होगी तो मज़दूरी बढ़ जाएगी। इस प्रकार मजदूरों की माँग तथा पर्ति द्वारा सन्तुलन स्थापित होता है। कुल पूर्ति, कुल माँग के समान होती है तथा पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। रेखाचित्र 8 में कुल पूर्ति AS पूर्ण अलोचशील होती है। ON रोज़गार की स्थिति को प्रकट करती है। सन्तुलन AS = AD द्वारा E बिन्दु पर स्थापित होता है। इसको पूर्ण रोजगार का बिन्दु कहा जाता है।
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2. बचत तथा निवेश में सन्तुलन (Equilibrium with Saving & Investment)- यदि लोगों की आय का कुछ भाग उपभोग पर व्यय किया जाता है तथा कुछ भाग बचत की जाती है तो इससे भी अर्थव्यवस्था में सन्तुलन रहता है, क्योंकि बचत तथा निवेश हमेशा समान रहते हैं तथा इनमें सन्तुलन ब्याज की दर से स्थापित हो जाता है। इसलिए प्रत्येक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति ही स्थापित हो जाती है।
अर्थात्
∵ S = f (r) and
I = f (7)
∴ S = I
किसी देश में ब्याज की दर पर बचत निर्भर करती है तथा इनका परस्पर सीधा सम्बन्ध होता है। ब्याज की दर तथा निवेश का परस्पर में विपरीत सम्बन्ध होता है। बचत तथा निवेश द्वारा सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित हो जाता है। इस प्रकार परम्परागत अर्थशास्त्रियों के अनुसार बचत तथा निवेश में सन्तुलन ब्याज की दर से स्थापित होता है। परम्परागत रोज़गार सिद्धान्त अनुसार एक मुक्त अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार एक साधारण स्थिति होती है।
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प्रश्न 2.
कुल माँग तथा कुल पूर्ति द्वारा आय तथा रोज़गार निर्धारण करने के केन्ज़ के सिद्धान्त की व्याख्या करो।
(Explain Keynes theory of determination of income and employment with the help of aggregate demand and aggregate supply.)
उत्तर-
केन्ज़ का विचार है कि कुल पूर्ति तथा कुल माँग में समानता में आवश्यक नहीं कि पूर्ण रोज़गार की स्थिति हो। कुल पूर्ति तथा कुल माँग के सन्तुलन में अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन की स्थिति में भी हो सकता है। अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Under Employment Equilibrium) की स्थिति में कुछ साधन बेरोज़गार होते हैं। केन्ज़ ने कुल पूर्ति तथा कुल मांग में समानता परम्परागत अर्थशास्त्रियों से विभिन्न ढंग से पेश की है।

1. कुल पूर्ति (Aggregate Supply)-कुल पूर्ति को केन्ज़ ने दो ढंगों से स्पष्ट किया-
(a) कीमत स्तर तथा कुल पूर्ति-कीमत स्तर के संदर्भ में पूर्ति रेखा OX के समान्तर होती है, क्योंकि मज़दूरों की संख्या में परिवर्तन से प्रति इकाई उत्पादन लागत स्थिर रहती है। इसलिए कीमत स्थिर रहती है तथा मज़दूरों की मज़दूरी में स्थिरता पाई जाती | है। इसको मज़दूरी कीमत कठोरता (Wage Price Rigdity) कहा | जाता है।
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(b) रोज़गार तथा कुल पूर्ति–रोज़गार तथा कुल पूर्ति के | संदर्भ में केन्ज़ के अनुसार कुल पूर्ति (AS) वक्र 0 से 45° के कोण पर बढ़ती है। यदि रोज़गार ON1 है तो उत्पादन अथवा आय OY1 है। रोज़गार N1N2 बढ़ जाता है तो आय 12 बढ़ जाती है। रोज़गार के पक्ष से केन्ज़ ने कुल पूर्ति (AS) को इस रेखाचित्र 7.11 अनुसार दिखाया है।
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2. कुल माँग (Aggregate Demand)–केन्ज़ ने कुल माँग को इस प्रकार स्पष्ट किया AD = उपभोग व्यय (C) + निवेश व्यय (I)
1. उपभोग व्यय-उपभोग व्यय रेखा OC से आरम्भ होती है। अर्थात्
C = a + by
इसमें C = उपभोग, a = स्वतन्त्र उपभोग, by = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
यदि आय O है तो भी OC उपभोग किया जाता है इसको a द्वारा दिखाया गया है तथा आय बढ़ने से by = MPC अनुसार उपभोग बढ़ता है।

2. निवेश व्यय-यह निवेश व्यय स्वतन्त्र है जोकि II द्वारा दिखाया है तथा OX के समान्तर है। कुल मांग (AD) =उपभोग व्यय (C) + निवेश व्यय (I)
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रोजगार तथा आय का निर्धारण (Determination of Income & Employment)-
(a) अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Under Employment Equilibrium)-केन्ज़ अनुसार आय तथा रोज़गार कुल पूर्ति तथा कुल माँग के सन्तुलन द्वारा निर्धारण होता है, जैसे कि रेखाचित्र 13 में AS = AD बिन्दु E पर सन्तुलन में है। इसलिए ON रोज़गार का स्तर स्थापित हो जाएगा, इसको अपूर्ण रोज़गार (Under Employment Equilibrium) कहा जाता है। यदि ON1 रोज़गार स्थापित होता है तो कुल माँग AD अधिक है तथा कुल पूर्ति AS कम है। आय होने की सम्भावना अधिक है। इसलिए रोज़गार में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन E पर पहुंच AD जाएगा। यदि ON2 रोज़गार का स्तर है तो OC2 लागत अधिक है तथा OR2 आय कम है, इसलिए उत्पादन का स्तर कम हो जाएगा तथा रोजगार E बिन्दु पर पहुंच जाता है। इसको अपूर्ण रोजगार सन्तुलन कहा जाता है।
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(b) रोज़गार तथा कुल पूर्ति-रोजगार तथा कुल पूर्ति के संदर्भ में केन्ज़ के अनुसार कुल पूर्ति (AS) व 0 से 45° के कोण पर बढ़ती है। यदि रोज़गार ON1 है तो उत्पादन अथवा आय OY1 है। रोज़गार N1N2 बढ़ जाता है तो आय ½ ½ बढ़ जाती है। 1Y, रोज़गार के पक्ष से केन्ज़ ने कुल पूर्ति (AS) को इस रेखाचित्र 7.11 अनुसार दिखाया है।
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2. कल माँग (Aggregate Demand) केन्ज ने कुल माँग को इस प्रकार स्पष्ट किया…..
AD = उपभोग व्यय (C) + निवेश व्यय (1) 1. उपभोग व्यय-उपभोग व्यय रेखा OC से आरम्भ होती है।
AD (C+ 1) अर्थात्
C = a + by
इसमें C = उपभोग, a = स्वतन्त्र उपभोग, by == सीमांत .. उपभोग प्रवृत्ति
यदि आय O है तो भी OC उपभोग किया जाता है इसको a द्वारा दिखाया गया है तथा आय बढ़ने से by = MPC अनुसार उपभोग बढ़ता है।

2. निवेश व्यय-यह निवेश व्यय स्वतन्त्र है जोकि II द्वारा दिखाया है तथा OX के समान्तर है। कुल मांग (AD) = उपभोग व्यय (C) + निवेश व्यय (I) रेखाचित्र 12 रोज़गार तथा आय का निर्धारण (Determination of Income & Employment)-

(a) अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Under Employment Equilibrium)-केन्ज़ अनुसार आय तथा रोजगार कुल पूर्ति तथा कुल माँग के सन्तुलन द्वारा निर्धारण होता है, जैसे कि रेखाचित्र 13 में AS = AD बिन्दु E पर सन्तुलन में है। इसलिए ON रोज़गार का स्तर स्थापित हो जाएगा, इसको अपूर्ण रोज़गार (Under Employment Equilibrium) कहा जाता है।

यदि AS ON1 रोज़गार स्थापित होता है तो कुल माँग AD अधिक है तथा कुल पूर्ति AS कम है। आय होने की सम्भावना अधिक है। इसलिए रोज़गार में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन E पर पहुंच जाएगा। यदि ON2 रोज़गार का स्तर है तो OC2 लागत अधिक है तथा OR2 आय कम है, इसलिए उत्पादन का स्तर कम हो जाएगा तथा रोज़गार E बिन्दु पर पहुंच जाता है। इसको अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन कहा जाता है।
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(b) पूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Full Employment Equilibrium)-केन्ज़ अनुसार कुल पूर्ति से कुल माँग अधिक प्रभावशाली होती है। यदि कुल माँग AD अधिक हो जाती है तथा उद्यमियों को अधिक आय होने की सम्भावना होती है तो पूर्ण रोजगार भी स्थापित हो सकता है, जैसे F बिन्दु द्वारा दिखाया गया है।
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(c) अतिपूर्ण रोजगारसन्तुलन (Over Full Employment Equilibrium)- जब कुल माँग (AD) में अधिक वृद्धि हो जाती है तो सन्तुलन पूर्ण रोजगार से अधिक स्थिति में पहुंच जाता है। इस स्थिति को अति पूर्ण रोजगार सन्तुलन की स्थिति कहते हैं। इस प्रकार की स्थिति अमरीका में 1929-30 से पहले हो गई थी। रेखाचित्र 15 के अनुसार रोज़गार का सन्तुलन AS = AD द्वारा E बिन्दु पर दिखाया गया है। पूर्ण रोज़गार F बिन्दु द्वारा प्रकट किया गया है तथा सन्तुलन E बिन्दु पर है जिसे अति पूर्ण रोज़गार सन्तुलन कहा जाता है। इस को मुद्रा स्फीति की हालत भी कहते हैं।
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