PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

PSEB 12th Class Geography Guide प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित में सही उत्तर चुनें-

(क) जनसंख्या विभाजन दिखाने के लिए कौन-सा नक्शा बनाया जाता है ?
(A) वर्णात्मक नक्शा
(B) सममूल्य नक्शा
(C) बिंदु नक्शा
(D) वर्गमूल्य नक्शा।
उत्तर-
(C) बिंदु नक्शा।

(ख) जनसंख्या की दशक वृद्धि को दिखाने के लिए कौन-सा तरीका उचित है ?
(A) पंक्ति ग्राफ
(B) बार चित्र
(C) लकीरी चित्र
(D) बहाव नक्शा ।
उत्तर-
(C) लकीरी ग्राफ।

(ग) बहु-ग्राफ प्रदर्शित करता है ?
(A) केवल एक परिवर्तनशील तत्व
(B) केवल दो परिवर्तनशील तत्व
(C) दो से अधिक परिवर्तनशील तत्व
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(C) दो से अधिक परिवर्तनशील तत्व।

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(घ) इनमें से किसके गत्यात्मक नक्शा कहा जाता है ?
(A) बिंदु नक्शा
(B) वर्णात्मक नक्शा
(C) सममूल्य नक्शा
(D) बहाऊ नक्शा ।
उत्तर-
(D) बहाऊ नक्शा।

प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें:

(i) विषयगत नक्शा क्या होता है ?
उत्तर-
आंकड़ों की विशेषताएँ दर्शाने के लिए और तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए ग्राफ और चित्र एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं लेकिन क्षेत्रीय परिदृश्य को दिखाने के लिए चित्र और ग्राफ असफल रहते हैं। इसलिए स्थानीय भिन्नता को दिखाने के लिए और क्षेत्रीय विभाजन को अच्छी तरह समझने के लिए कई तरह के नक्शे बनाए जाते हैं। इनको विषयगत और वितरण नक्शे कहा जाता है।

(ii) बहु-बार ग्राफ और मिश्रित बार ग्राफ में क्या अंतर है ?
उत्तर-
बहु-बार ग्राफ और मिश्रित बार ग्राफ में अंतर निम्नलिखित हैं-
बहु-बार ग्राफ- इनको दो या दो से अधिक परिवर्तनशील तत्वों को दर्शाने और तुलना करने उद्देश्य से बनाया जाता है।
मिश्रित बार ग्राफ – मिश्रित बार ग्राफ अलग-अलग इलाकों में हिस्सेदारी/समानता दिखाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

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(iii) बिंदु नक्शा बनाने के लिए क्या-क्या आवश्यक है ?
उत्तर-
बिंदु नक्शा बनाने के लिए आवश्यक बातें निम्नलिखित हैं-

  • संबंधित क्षेत्र का प्रबंधकीय सीमा के साथ नक्शे का खाका तैयार करना।
  • संबंधित क्षेत्र के विषय संबंधी आंकड़े एकत्रित करना।
  • बिंदु की कीमत के लिए नक्शों का चुनाव करना।
  • संबंधित क्षेत्र का प्राकृतिक नक्शा तैयार करना।

(iv) यातायात बहाव नक्शा बनाने का तरीका बताओ।
उत्तर-
यातायात बहाव नक्शे दो किस्म के आंकड़ों को पेश करने के लिए बनाए जाते हैं-
(i) गाड़ियों की उनके पहुंच के स्थान की तरफ संख्या
(ii) यात्रियों/परिवहन की जाने वाले वस्तुओं की संख्या।

इस प्रकार का नक्शा (मानचित्र) बनाने के लिए हमें वस्तुओं, सेवा गाड़ियों की संख्या इत्यादि के संबंधित आंकड़े, जिले में उनसे संबंधित वस्तुओं इत्यादि की उपज तथा स्थान बताया हो तथा आवश्यकता के पैमाने का चुनाव करके, जिस द्वारा आंकड़े बहाव नक्शे पर पेश किया जाना होता है, काफ़ी आवश्यक है तथा ज़रूरत अनुसार ट्रांसपोर्ट रूट का रूट नक्शा जिस पर स्टेशन दिखाये गए हों काफ़ी आवश्यक है।

नोट (Method)-कागज़ पर X बिंदु बना लो तथा सही पैमाने से सही दिशा की तरफ अ-ग-बिंदु लगा लो। मानो कि पैमाना है 1 cm : 10 km बिंदु x के उत्तर दिशा की तरफ 5.7 सैं०मी० लम्बी एक रेखा खींच लो। यह बिंदु अ की स्थिति दिखायेगी। इस प्रकार बिंदु ‘ग’ तक आवश्यकता अनुसार लंबाई की रेखाएं उनकी ही दिशा की तरफ लगा दो। बसों की संख्या का एक पैमाना बना लो तथा निर्धारित करो जोकि 6 से 10 की संख्या दिखा सके। इस पैमाने अनुसार मोटी तथा पट्टी संबंधित दिशाओं की तरफ को बना दो।

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(v) सममान नक्शा क्या है ? वृद्धि कैसे की जाती है ?
उत्तर-
Isopleth दो शब्दों के जोड़ से बना है (Iso + Plethron) Iso शब्द का अर्थ है समान तथा Plethron शब्द का अर्थ है। मूल्य इस प्रकार सममान रेखाएं वह रेखाएं हैं जिनका मूल्य तीव्रता तथा घनत्व समान हो। यह रेखा उन स्थानों को आपस में जोड़ती है जिनका मूल्य समान हो।

मिलावट/वृद्धि करने के तरीके- दो स्थानों के दर्ज मुख्य में बीच के मुख्य को पाने को मिलावट/वृद्धि कहते हैं। इसको पाने के लिए दो तरीके प्रयोग किये जाते हैं।

  1. दिए जाने वाले नक्शों का अधिक से अधिक तथा कम-से-कम मूल्य निर्धारित करके।
  2. दोनों मूल्यों का फैलाव ज्ञात करके।
  3. फैलाव के आधार पर अंतराल निर्धारित करके जैसे कि 5,10 या 15 इत्यादि।

(vi) वर्णात्मक नक्शा बनाने की विधि (ढंग) बताओ।
उत्तर-
वर्णात्मक नक्शे बनाने का ढंग इस प्रकार है-
1. किसी वस्तु के निश्चित आंकड़े इकट्ठे करो। आंकड़ों को बढ़ते घटते क्रम में करो। 2. यह आंकड़े औसत रूप में हो या प्रतिशत के रूप में हो। 3. आंकड़ों को समूहों, बहुत अधिक, मध्यम, कम तथा बहुत कम में विभाजित कर लो। 4. चुने गये समूहों को दर्शाने वाले रंग या गहराई बढ़ते या घटते क्रम में लिखो। 5. हर एक शासकीय इकाई में घनत्व के अनुसार से छायाकरण करके नक्शे तैयार किये जाते हैं।

(vii) पाई चार्ट के साथ आंकड़ा पेशकारी का ढंग बताओ।
उत्तर-
पाई चार्ट आंकड़ा पेशकारी की एक अच्छा ढंग है। यह दिये गये तत्व को सम्पूर्ण रूप में एक चक्र के द्वारा पेश करती है। आंकड़ों के उपभागों को दिखाने के लिए चक्र को बनते कोणों के अनुसार काटा तथा विभाजित किया जाता है।

  • आंकड़ों को घटते क्रम में लिखकर अलग-अलग भूमि उपयोगों का कोण पता किया जाता है।
  • चक्र बनाने के लिए जरूरत अनुसार चुनाव बहुत आवश्यक है। दिये आंकड़ों के लिए 3, 4 या 5 सैं०मी० का अर्धव्यास चुना जाना चाहिए।
  • एक लाइन केन्द्र से लेकर अर्धव्यास तक खींच लेनी चाहिए ताकि अर्ध-व्यास केंद्र को दिखाया जा सके।
  • चक्र की चाप से हर एक भूमि उपयोग श्रेणी के कोणों के अनुसार छोटे कोण से शुरू करके घड़ी की सुइयों की दिशा में कोण चिह्न लगाओ।
  • लकीरों को लगाकर चित्र पूरा कर दो।
  • फिर संकेत, शीर्षक, उपशीर्षक इत्यादि बना दो।

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प्रश्न III. दिए गए विकल्पों में सही विकल्प चुनो :

(i) निम्नलिखित आंकड़ों के लिए कौन-सा चित्र उचित रहेगा ? भारतीय राज्यों का कच्चा लोहा उत्पादन में प्रतिशत अनुपात :

मध्य प्रदेश 23.44
गोवा 21.82
कर्नाटक 20.95
बिहार 16.98
उड़ीसा 16.30
आन्ध्र प्रदेश 0.45
महाराष्ट्र 0.04

(i) लाइन ग्राफ
(ii) बहुविकल्पीय बार ग्राफ
(iii) पाई चार्ट
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(iii) पाई चार्ट।

(ii) किसी राज्य के अलग-अलग जिले स्थानीय आंकड़ों के तौर पर किस प्रकार दर्शाए जाएंगे ?
(i) बिंदुओं के साथ
(ii) लाइनों के साथ
(iii) बहुभुजों के साथ
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(iii) बहुभुजों के साथ।

(iii) निम्नलिखित में कौन-सा आपरेटर एक्शल फार्मूले में पहले हल होगा ?
(i) +
(ii) –
(iii) /
(iv) =
उत्तर-
(iv) =

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(iv) एक्शल में फंक्शन विजार्ड आपको किसके योग्य बनाती है ?
(i) रेखाचित्र बनाने के
(ii) गणितज्ञ या संख्यात्मक क्रिया के लिए
(iii) नक्शे बनाने के लिए
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ii) गणितज्ञ या संख्यात्मक क्रिया के लिए।

प्रश्न IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
कंप्यूटर (संगणक) के अलग-अलग हिस्सों के क्या काम हैं ?
उत्तर-
संगणक (कम्यूटर) एक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण है। आमतौर पर हम इस प्रणाली को दो हिस्सों में विभाजित करते हैं
I. यंत्र सामग्री (Hardware)-सारे कंप्यूटर के भाग जिनको हाथ से छुआ जा सके।
II. प्रक्रिया सामग्री (Software) कंप्यूटर के जिस हिस्से को हाथ से छुआ न जा सके।

I. यंत्र सामग्री (Hardware)-कंप्यूटर के भौतिक हिस्से जिनको हम देख या छू सकते हैं, वह हार्डवेयर कहलाते हैं। यह भाग मशीनी, इलैक्ट्रॉनिक या इलैक्ट्रीकल हो सकते हैं। यह संगणक के यंत्र सामग्री कहलाते हैं। हर संगणक की यंत्र सामग्री अलग-अलग हो सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि संगणक किस उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाया जा सके तथा व्यक्ति की आवश्यकता क्या है। एक कंप्यूटर में विभिन्न तरह के हार्डवेयर होते हैं जैसे कि सी०पी०यू०, हार्ड डिस्क, रैम, प्रोसैसर, मोनीटर, मदर बोर्ड, फ्लापी ड्राइव इत्यादि।
संगणक के सिर्फ पावर सप्लाई यूनिट की बोर्ड, माऊस इत्यादि भी यंत्र सामग्री के अंतर्गत आते हैं।

II. प्रक्रिया सामग्री (Software)-संगणक हमारी तरह हिन्दी या अंग्रेजी भाषा नहीं समझता। हम संगणक को जो निर्देश देते हैं वह एक नियत भाषा होती है इसको मशीनी लैंग्वेज़ (भाषा) या मशीन की भाषा कहते हैं। संगणक सॉफ्टवेयर लिखित प्रोग्रामों का एक समूह है जो कि संगणक की भंडार शाखा में जमा हो जाता है। आजकल कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें संगणक का उपयोग नहीं होता। आज संगणक का प्रयोग हर कार्यालय में किया जाता है।

संगणक के भाग हैं-

1. निवेश एवं निर्गत उपकरण (Input Output Device)-इन उपकरणों का प्रयोग संगणक में निवेश करने के लिए तथा संगणक द्वारा निर्गत दिखाने के लिए किया जाता है। निवेश उपकरण जैसे की बोर्ड का प्रयोग, आंकड़ों तथा प्रोग्रामों को संगणक स्मृति में भरने के लिए किया जाता है। दूसरी प्रकार चूंकि एक कंप्यूटर के भीतर सभी आँकड़ों, कार्यक्रमों को कोड स्वरूप में वैद्युत् धारा में संचित किया जाता है, निर्गत उपकरणों जैसे प्रिंटर, प्लाटर, इत्यादि का प्रयोग इन आंकड़ों की सूचनाओं के रूप में बदलने के लिए किया जाता है जिनका मानव द्वारा उपयोग किया जा सके।

2. सिस्टम यूनिट (System Unit)–सिस्टम यूनिट को सिस्टम कैबिनेट भी कहा जाता है। कंप्यूटर के इस भाग के कई हिस्से हैं जैसे मदरबोर्ड, रैम तथा प्रोसैसर सिस्टम यूनिट के अंदर ही आते हैं।

3. मैमोरी (Memory) कंप्यूटर में मैमोरी का प्रयोग प्रोग्राम तथा डाटा को संग्रहित करने के लिए होता है, ताकि बाद में ज़रूरत के अनुसार उसका प्रयोग किया जा सके। मैमोरी किसी भी कंप्यूटर का एक काफी महत्त्वपूर्ण अंग होता है। मैमोरी का उपयोग परिणामों को संग्रहित करने के लिए भी किया जाता है। मैमोरी दो प्रकार की ‘होती है।

  • रोम (Rom)—इसको Read Only Memory कहते हैं। इसमें जो जानकारी होती है उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता बस सिर्फ उसे पढ़ा जा सकता है।
  • रैम (Ram)-Random Access Memory इसका प्रयोग तब होता है जब कंप्यूटर पर काम करते हैं । यह जानकारी सिर्फ तब तक रहती है जब तक आपका कंप्यूटर काम कर रहा होता है। कंप्यूटर को बंद करते ही रैम की जानकारी नष्ट हो जाती है।

4. संग्रहक उपकरण (Storage Unit)—एक कंप्यूटर में कई संग्राहक इकाइयाँ जैसे हार्ड डिस्क, फ्लापी, टेप, मैगनेट, आप्टिकल डिस्क, कांपेक्ट डिस्क (सीडी), कार्टिज इत्यादि लगे होते हैं जिनका प्रयोग आंकड़ों तथा कार्यक्रम-निर्देशों को संचित करने के लिए होता है। इन युक्तियों की आंकड़ा-संग्रहण करने की क्षमता मेगाबाइड (MB) से गीगावाइट (GB) तक होती है।

5. संचार (Communication) संचार के लिए काफी उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इन यंत्रों का उपयोग एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर के साथ जोड़ने के लिए तथा इंटरनैट का प्रयोग करने के लिए किया जाता है। वाई फाई रिसीवर, मोडम इत्यादि इस वर्ग में शामिल हैं।

6. सॉफ्टवेयर का एक हिस्सा आँकड़ा प्रक्रिया की पेशकारी के लिए, प्रयोग के लिए तथा कंप्यूटर के माध्यम में तालमेल बिठाता है। तत्वों को क्रमवार करने के लिए, अशुद्धियों को हटाने के लिए, आंकड़ों के जोड़-तोड़ तथा संभाल इत्यादि काम सॉफ्टवेयर द्वारा किये जाते हैं। प्रमुख सॉफ्टवेयर हैं—MS-Excel, Spreadsheet, Lotus-1,2,3, तथा D-Base, Arc-view, Are GIS-Geomedia इत्यादि। इनके द्वारा सॉफ्टवेयर नक्शे बनाने के लिए अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 2.
आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के लिए लुभावने तरीके के मुकाबले संगणक प्रयोग करने के क्या फायदे हैं ?
उत्तर-
आंकड़ा प्रक्रिया के परिणाम हासिल करने के लिए संगणक प्रक्रिया में से गुजरना पड़ता है। संगणक तकनीक ने पिछले एक दशक से इतना विकास कर लिया है कि आंकड़ों को मनचाहे ढंग के साथ पेश किया जा सकता है। इसके द्वारा आंकड़ा प्रक्रिया तथा पेशकारी तथा संचालन का काम अच्छे ढंग के साथ किया जा सकता है। संगणक की सहायता के साथ आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के साथ अधिक अच्छे ढंग से जोड़ घटाव से लेकर तर्क के साथ हल होने वाले साधारण तथा जटिल सवाल भी हल किये जा सकते हैं। संगणक की सहायता के साथ आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के लिए हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर दोनों की ही आवश्यकता होती है। संगणक के सॉफ्टवेयर का एक हिस्सा आंकड़े प्रक्रिया तथा आंकड़ों की पेशकारी के लिए प्रयोग योग्य तथा कंप्यूटर के मध्य में तालमेल बिठाता है।

इसके द्वारा आसानी के साथ तत्वों को क्रमशः से करना, अशुद्धियों को हटाना, आंकड़ों के जोड़-तोड़ तथा संभाल इत्यादि का काम जल्दी हो जाता है। कंप्यूटर तकनीक के विकास के साथ आंकड़ों को मनचाहे ढंग के साथ पेश भी किया जा सकता है। इसके द्वारा स्क्रीन के हिस्से को बड़ा करके देखा जा सकता है, रंग तबदील किये जा सकते हैं, तीन-पसारी तथा परिपेक्ष्य प्रदर्शन किया जा सकता है। विविध विषयों का ऐच्छिक अध्ययन किया जा सकता है। बहुभुज शेडिंग, लाइन स्टाइलिंग तथा प्वाइंट मेकर प्रदर्शित किया जा सकता है। इसके बिना प्रिंटर प्लाटर, स्पीकर इत्यादि के साथ तालमेल बिठाने में कोई मुश्किल नहीं आती। इसलिए हम कह सकते हैं कि आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के लिए लुभावने तरीके के मुकाबले कंप्यूटर प्रयोग करने के फ़ायदे अधिक हैं।

प्रश्न 3.
वर्कशीट (कार्यपत्रक) क्या है ?
उत्तर-
वर्कशीट (कार्यपत्रक) आमतौर पर एक कागज़ की शीट होती है जिस पर विद्यार्थियों के लिए कुछ प्रश्न लिखे होते हैं तथा उत्तर लिए जाते हैं। एक्सल वर्कशील एकहरी स्प्रेडशीट होती है जिसका प्रयोग आंकड़ा प्रक्रिया नक्शे तथा रेखाचित्र इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है। वर्कशीट टर्म का प्रयोग एक स्प्रेडशीट सॉफ्टवेयर के तौर पर भी किया जाता है तथा एक एकांऊटैंट की तरफ से प्रयोग किए गये एक पेपर जिस पर कोई रिकार्ड लिखा हैं, को वर्कशीट का नाम दिया जाता है। वर्कशीट शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1900 में किया गया।

एक कक्षा के कमरे में वर्कशीट से भाव उन कागजों की शीटों से है, जिन पर प्रश्न तथा कुछ अभ्यास योग्य प्रश्न विद्यार्थी के लिए पूरा करने तथा जवाब रिकार्ड करने के लिए बनाई गई होती हैं। अकाऊंट में वर्कशीट का अर्थ है, एक खुले पन्ने होते हैं जिसमें वर्क शैड्यूल, काम का समय, खास हिदायतों इत्यादि का रिकार्ड रखा जाता है तथा कंप्यूटर में एक्सल वर्कशीट में आंकड़े बहुत ही सरल तरीके के साथ दाखिल तथा जमा किये जा सकते हैं। आंकड़ों की नकल की जा सकती है या एक सैल से दूसरे सैल में भेजे जाते हैं। इसके द्वारा आंकड़े मिटाये जा सकते हैं। इस वर्कशीट द्वारा काम के आंकड़े स्थाई तौर पर संभाले जा सकते हैं। इस तरह आंकड़े सरलता से दाखिल किये जाते हैं। कालम बनाकर आंकड़े दाखिल करने के समय नंबर-पैड के साथ ऐंटर की या डाऊन-चिह्नित का प्रयोग किया जाता है। स्तरों में आंकड़ों को दाखिल करते समय नंबर पैड के साथ राइट चिन्हित का भी प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
स्थानिक तथा गैर-स्थानिक आंकड़ों में क्या अन्तर है ? उदाहरणों सहित बताओ।
उत्तर-
स्थानिक तथा गैर-स्थानिक आंकड़ों में अंतर निम्नलिखित हैं –

स्थानिक आंकड़े-

  1. स्थानीय आंकड़े किसी स्थान की भौगोलिक स्थिति को दर्शाते हैं। यह धरती पर किसी स्थान को दर्शाता है।
  2. स्थानीय आंकड़ों में किसी क्षेत्र जैसे अस्पताल, स्कूल इत्यादि क्षेत्रों की भौगोलिक विशेषताओं के बारे में दिखाया जाता है।
  3. इनको तैयार करना थोड़ा मुश्किल होता है।
  4. इसमें लकीरों की सहायता के साथ नदियों, रेलवे लाइन इत्यादि दिखाये जाते हैं।
  5. जब नक्शे के ऊपर केवल स्कूल को दिखाया जाता है उसको स्थानीय आँकड़े कहते हैं।
  6. Shx तथा Shq फाइलों में स्थानिक आंकड़े होते हैं।

गैर-स्थानिक आंकड़े-

  1. x`जब कोई डाटा/आंकड़ा हमें धरती की किसी जगह के बारे ज्ञान की करवाए वह गैर-स्थानीय आंकड़े कहलाते हैं।
  2. गैर-स्थानिक आंकड़ों में नंबर, अंक, व्यक्ति या श्रेणियों की संख्या इत्यादि को दिखाया जाता है।
  3. गैर-स्थानीय आंकड़े तैयार करने आसान होते हैं।
  4. गैर-स्थानीय आंकड़ों की सहायता के साथ आंकड़ों की विशेषता बारे दिखाया जाता है।
  5. अगर स्कूल का नाम, कक्षा, कक्षों तथा विद्यार्थियों की संख्या के बारे बताया जाए। तब वह गैर स्थानीय आंकड़े कहलाते हैं।
  6. dbf एक dbase फाइल होती है जो कि Shx तथा Shp फाइलों से जुड़े होते हैं।

उदाहरण-जब हम किसी स्कूल, कस्बे, गाँव, इत्यादि की भौगोलिक विशेषता को बिन्दुओं, बहुभुजों या लकीरों की सहायता से नक्शे पर दिखाते हैं, तो उसे स्थानीय आंकड़े कहते हैं तथा अगर हम स्कूल का नाम, कक्षा, बच्चों की संख्या, गांव/कस्बे में घर, घरों में व्यक्तियों की संख्या का अध्ययन करते हैं, तब वह गैर-स्थानीय आंकड़ों की उदाहरण मानी जाती है।

प्रश्न 2.
भौगोलिक आंकड़ों के तीन रूप कौन-से हैं ?
उत्तर-
भौगोलिक आंकड़े कई तरह की जानकारी का संग्रह होते हैं। यह हमें किसी दृढ़ विषय के विभाजन तथा घनत्व के बारे जानकारी देता है। भौगोलिक आंकड़े कई प्रकार के होते हैं। अब भूगोल प्राकृतिक तथा मानवीय दोनों ही पक्षों को हल करता है। भौगोलिक आंकड़ों में हम धरती पर चट्टानों, मौसम, फसलों, उद्योगों, जानवरों तथा मानवीय आंकड़ों तथा इनकी विशेषता के बारे ज्ञान हासिल करते हैं। भौगोलिक आंकड़े गुणवाचक तथा परिमाणवाचक दोनों रूपों में हमें मिलते हैं। भौगोलिक आंकड़े समधर्मी (Analogue) तथा डिजीटल रूप में मिलते हैं। नक्शे के लिए जब चित्र आसमान से लिए जाते हैं तो वे समधर्मी आंकड़ों की उदाहरणे हैं तथा जब स्कैन करके कंप्यूटर में डाला जाता चित्र होता तो वह डिजीटल आंकड़े की उदाहरण होती है। भौगोलिक डाटा के मुख्य रूप हैं-

1. भौगोलिक (स्थानीय ) वर्गीकरण-यह वर्गीकरण भौगोलिक आंकड़ों तथा स्थानों में अंतर पर निर्भर करता है। इसको स्पष्ट करने के लिए हमें आंकड़े इकट्ठे करने होते हैं जैसे कि कितनी फर्मे (Firms) भारत में साइकिल बना रही हैं।

Number of Firms Producing Bicycles in 2013 Across Different Locations.

Place Number of Firms
Punjab 20
Haryana U.P. 25

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2. समयानुसार या ऐतिहासिक वर्गीकरण (Chronological Classification)-जब आंकड़ों का समय के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है उसे Chronological वर्गीकरण कहते हैं। इसको निम्नलिखितानुसार स्पष्ट कर सकते हैं-

Sales of a Firm (2011-2013)

Year Sales(Rs)
2011 80 Lakhs
2012 90 Lakhs
2013 95 Lakhs

3. गुणवाचक वर्गीकरण (Qualitative Classification)—यह वर्गीकरण गुण या विशेषता के आंकड़ों के अनुसार होता है, जैसे कि डाटा को जनसंख्या के पेशे, धर्म तथा योग्यता के स्तरों के अनुसार विभाजित किया जाता है। इससे दो तरीकों से विभाजित किया जा सकता है

1. Simple Classification
2. Manifold Classification.

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प्रश्न 3.
संगणक की सहायता से उपयुक्त तरीका प्रयोग करते हुए आंकड़ों की पेशकारी करो तथा ग्राफ का विश्लेषण करो।
उत्तर-
आंकड़ा प्रक्रिया तथा पेशकारी के लिए कई प्रकार के तरीके प्रयोग किये जाते हैं पर ये तरीके काफी समय लेने वाले तथा मुश्किल होते हैं। आधुनिक युग में कंप्यूटर की सहायता के साथ आकडों की पेशकारी की जा रही है तथा इसके साथ यह बोझिल तथा समय खराब करने वाले काम आप आसानी से कर सकते हैं। कंप्यूटर एक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण है। इसमें हार्डवेयर तथा साफ्टवेयर दो हिस्से होते हैं तथा आंकड़ा प्रक्रिया तथा आंकड़ा पेशकारी के लिए हम इन दोनों हिस्सों का प्रयोग करते हैं। आंकड़ों की पेशकारी अलग-अलग तरीकों से की जाती है। जैसे कि बार ग्राफ, हिस्टोग्राफ, पाई-चार्ट इत्यादि। अब हम आंकड़ों की पेशकारी के लिए उपयुक्त ढंग का प्रयोग करेंगे। हम एक्सल में इनकी पेशकारी तथा ग्राफ बनाने का विश्लेषण करेंगे-

  1. हर एक चित्र को क्रमानुसार नंबर देना आवश्यक है।
  2. हर एक चित्र का एक उपयुक्त शीर्षक बनाना चाहिए तथा शीर्षक ऐसा होना चाहिए जिसमें आंकड़ों का समय तथा स्थान भी स्पष्ट हो जाए।
  3. शीर्षक तथा उपशीर्षक, इकाइयों के यूनिट भी लिखे जाने चाहिए।
  4. शीर्षक, उपशीर्षक, इकाइयां इत्यादि को दर्शाने के लिए फौंट का ख्याल रखना चाहिए। फौंट ऐसा होना चाहिए कि हर एक चीज उपयुक्त स्थान पर मिल जाए। कंप्यूटर में आंकड़ों की पेशकारी के लिए अलग-अलग तरीके जैसे कि बार ग्राफ, हिस्टोग्राफ, मिश्रित बार चित्र, पाई चार्ट इत्यादि बनाये जाते हैं तथा कंप्यूटर पर इनका प्रयोग करना काफ़ी आसान तथा स्पष्ट हो जाता है। हम कंप्यूटर की सहायता से मिश्रित बार ग्राफ का प्रयोग करके आंकड़ों की पेशकारी करेंगे तथा ग्राफ का विश्लेषण करेंगे। सबसे पहले आँकड़े इकट्ठे करके एक सारणी बनाई जाए तथा फिर Excel पर एक बार ग्राफ बनाया जाए।

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  1. इसके लिए सबसे पहले Excel Open करेंगे फिर Spreadsheet को खोलेंगे जिसमें चार्ट बनाया जाएगा।
  2. फिर पूरे आंकड़े (Data) जिसको चार्ट में शामिल करना है उसको Select करो। Column तथा Row बना लो। जैसे कि बार चार्ट में सारणी बनाया जाता है। इसके बाद Chart Wizard टूलबार बटन पर क्लिक करो तथा Insert मीनू में चार्ट की किस्म Select कर लो। इसके बाद एक बार ग्राफ की सबटाइप चुन लो तथा फिर Next पर क्लिक करो।
  3. यह देख लो कि Data जो लिया है वह ठीक हो तथा Data Range भी चुन लो फिर Next पर क्लिक करो।
  4. इसके बाद (Title) शीर्षक चार्ट के लिए प्रवेश करो जो xaxis या yaxis के लिए आपने देना है।
  5. इसके बाद Finish पर क्लिक करो। आपका बार ग्राफ बन जाएगा।
  6. आखिर पर कोई बदलाव करने के लिए आप Chart Toolbar का प्रयोग कर सकते हैं।

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Geography Guide for Class 12 PSEB प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन-सा प्रारंभिक आंकड़ों का स्रोत नहीं है ?
(A) इंटरव्यू
(B) शैड्यूल
(C) निजी निरीक्षण
(D) अखबार।
उत्तर-
(D) अखबार।

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प्रश्न 2.
नक्शा कला के डिजाइन के नीचे लिखे महत्त्वपूर्ण भागों में से कौन-सा भाग शामिल नहीं किया जाता है ?
(A) संकेत
(B) सही पैमाने का चुनाव
(C) शीर्षक
(D) दिशा।
उत्तर-
(B) सही पैमाने का चुनाव

प्रश्न 3.
जनसंख्या में वृद्धि जन्म दर तथा मृत्यु दर दिखाने के लिए कौन-से ग्राफ बनाये जाते हैं ?
(A) लकीरी ग्राफ
(B) साधारण बार चित्र
(C) बहु-बार चित्र
(D) पाई चित्र।
उत्तर-
(A) लकीरी ग्राफ

प्रश्न 4.
बहाव चार्ट क्या है ?
(A) नक्शे तथा ग्राफ का सुमेल
(B) नक्शे तथा डाटा का सुमेल
(C) आंकड़ों का सुमेल
(D) नक्शों का सुमेल।
उत्तर-
(A) नक्शे तथा ग्राफ का सुमेल

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प्रश्न 5.
किस विधि से सड़कों, रेलमार्गों इत्यादि लम्बे तथा कम चौड़े क्षेत्र के नक्शे को बड़ा या छोटा किया जाता है ?
(A) बिन्दु विधि
(B) समरूप त्रिभुजाकार विधि
(C) पैटोग्राफ के साथ
(D) फोटोग्राफिक कैमरे के साथ।
उत्तर-
(B) समरूप त्रिभुजाकार विधि

प्रश्न 6.
किस विधि के द्वारा वस्तु के उत्पादन तथा वितरण के आंकड़ों को बिन्दुओं के रूप में दिखाया जाता है ?
(A) बिन्दु नक्शे
(B) वितरण नक्शे
(C) समरूपी नक्शे
(D) लकीरी ग्राफ।
उत्तर-
(A) बिन्दु नक्शे

प्रश्न 7.
किस पद्धति को Choropleth Method कहते हैं ?
(A) वितरण नक्शे
(B) वर्णमात्री नक्शे
(C) यांत्रिक पद्धति
(D) विशेषतः नक्शे।
उत्तर-
(B) वर्णमात्री नक्शे

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प्रश्न 8.
Isopleth कौन से शब्दों का मेल से बनता है?
(A) Iso +pleth
(B) Isoe + pletho
(C) Iso + plethron
(D) Iso + Plethron.
उत्तर-
(C) Iso + plethron

प्रश्न 9.
Ctrl + N दबाने के साथ क्या होता है ?
(A) नई एक्शल फाइल खुलती है।
(B) कंप्यूटर में मौजूद हर फाइल खुल जाती है।
(C) पेस्ट करने के लिए दबाया जाता है।
(D) फाइल को कंप्यूटर में संभाला जाता है।
उत्तर-
(A) नई एक्शल फाइल खुलती है।

प्रश्न 10.
बिन्दुओं की सहायता के साथ निम्नलिखित में से कौन-से स्थानीय आंकड़े दिखा सकते हैं ?
(A) ज़िले
(B) स्कूल
(C) रेलवे स्टेशन
(D) जंगल।
उत्तर-
(B) स्कूल

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B. खाली स्थान भरें :

1. जीओ-सिनक्रोसिन सैटेलाइट (GSLY) को ……….. द्वारा तैयार किया गया है।
2. इंडियन रीजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम में ……….. उपग्रह हैं।
3. लांच व्हीकल दो तरह के होते हैं PSLV तथा ………….।
4. दो पसारी चित्रों में …………… तथा …………. शामिल होते हैं।
5. बहु बार चित्र ……….. या ……….. अधिक परिवर्तनशील तत्वों को दर्शाने के लिए बनाये जाते हैं।
उत्तर-

  1. इसरो
  2. सात
  3. GSLV
  4. पाई चित्र, आयताकार
  5. दो या दो से।

C. निम्नलिखित कथन सही (√) है या गलत (x) :

1. पुरुषों तथा औरतों की जनसंख्या कुल ग्रामीण तथा शहरी आबादी को दर्शाने के लिए बहु बार चित्र बनाये जा सकते हैं।
2. बहाव चार्ट नक्शे तथा ग्राफ का सुमेल होते हैं।
3. विशेषत नक्शे आमतौर पर मात्रात्मक तथा गैर मात्रात्मक किस्मों में विभाजित किए जाते हैं।
4. Ctrl + z दबाने के साथ चुने हुए सैल में आंकड़े मिट जाते हैं।
5. पुलाडी हिस्से में 27 उपग्रह होते हैं।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत
  5. ग़लत।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले उत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
डाटा क्या है ?
उत्तर-
भिन्न प्रकार के आंकड़े जैसे कि वस्तु की मात्रा, गुण, गुणवत्ता, वितरण इत्यादि को स्पष्ट किया जाता है। संख्या पर आधारित जानकारी डाटा कहलाती है।

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प्रश्न 2.
आंकड़ा/डाटा कौन से स्रोतों से प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर-
प्रारंभिक स्रोतों तथा गौण स्रोतों से डाटा प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 3.
दूसरे दर्जे के गौण आंकड़ों के स्त्रोतों में कौन-से स्रोत शामिल हैं ?
उत्तर-
इन स्रोतों में सरकारी प्रकाशनाएं, दस्तावेज, रिपोर्ट तथा प्रकाशित या अप्रकाशित स्रोत शामिल हैं।

प्रश्न 4.
रेखा ग्राफ किसको प्रदर्शित करने के लिए बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
तापमान, वर्षा, जनसंख्या वृद्धि, जन्म दर तथा मृत्यु दर को।

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प्रश्न 5.
अलग-अलग परिवर्तनशील तत्वों को दिखाने के लिए कौन-से रैखिक नमूने प्रयोग किये जाते हैं ?
उत्तर-
सीधी रेखा (-), विभाजित रेखा (—), बिन्दु रेखा (….) या मिश्रित रेखा में विभाजित तथा बिन्दु रेखा।

प्रश्न 6.
दण्ड आरेख को और किस नाम से बुलाया जाता है ?
उत्तर-
कालमी चित्र।

प्रश्न 7.
तुरन्त तुलना के लिए कौन से चित्र बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
साधारण दण्डचित्र।

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प्रश्न 8.
बहु-बार चित्र किस उद्देश्य के लिए बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
दो या दो से अधिक परिवर्तनशील तत्वों को दर्शाने तथा तुलना करने के लिए।

प्रश्न 9.
भारत की 1951 की साक्षरता दर कितनी थी ?
उत्तर-
18.33 प्रतिशत।

प्रश्न 10.
अगर आंकड़ा प्रतिशत रूप में ही तब कोण प्राप्त करने के लिए कौन सा फार्मूला प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
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प्रश्न 11.
बहाव नक्शे किस किस्म के आंकड़े पेश करने के लिए बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
गाड़ियों की उनके पहुंच स्थान की तरफ की संख्या तथा बारंबारता के लिए तथा मुसाफिरों तथा परिवहन की जाने वाली वस्तुओं की संख्या के लिए।

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प्रश्न 12.
बिन्दु नक्शे किसलिए बनाये जाते हैं ?
उत्तर-
यह नक्शे जनसंख्या, पशुओं की संख्या, फसलों की किस्मों इत्यादि के उपयोगों का विभाजन दिखाने के लिए बनाये जाते हैं।

प्रश्न 13.
बिन्दु नक्शे का कोई एक दोष बताओ।
उत्तर-
इनको बनाने में काफी समय लगता है तथा यह एक मुश्किल काम है।

प्रश्न 14.
सममान रेखाओं की किस्में बताओ।
उत्तर-
समदाब रेखाएं, समताप रेखाएं, समवर्षा रेखाएं, सम उच्च रेखाएं, सममेघ रेखाएं।

प्रश्न 15.
वर्णमात्री नक्शे किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इस पद्धति में किसी एक वस्तु के वितरण को नक्शे के अलग-अलग शेडों या रंगों के द्वारा दर्शाया जाता है। किसी रंग की तुलना में Black and White Shading का प्रयोग करना अच्छा समझा जाता है।

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प्रश्न 16.
कंप्यूटर के हिस्सों को कौन से भागों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
साफ्टवेयर तथा हार्डवेयर।

प्रश्न 17.
जी०पी०एस० के तीन हिस्से कौन-से हैं ?
उत्तर-
पुलाड़ी हिस्सा, नियंत्रण हिस्सा, उपयोगी हिस्सा।

प्रश्न 18.
पुलाड़ी हिस्से में कितने उपग्रह हैं ?
उत्तर-
24 उपग्रह, 2016 में इनकी संख्या बढ़ाकर 32 कर दी गई है।

प्रश्न 19.
लांच व्हीकल की किस्में बताओ।
उत्तर-
पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (PSLV) तथा जीओ सिनक्रोसन सैटेलाइट लांच व्हीकल (GSLV) ।

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प्रश्न 20.
भारतीय नेवीगेशन सिस्टम का नाम बताओ।
उत्तर-
इण्डियन रीजनल नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम।

प्रश्न 21.
PSLV को किस द्वारा तैयार किया गया है?
उत्तर-
ISRO द्वारा।

प्रश्न 22.
वितरण नक्शे से क्या अर्थ है ?
उत्तर-
यह वे नक्शे हैं जो धरती के किसी भाग पर किसी तत्व के वितरण के मूल्य को या घनत्व को प्रकट करते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
डाटा की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र के फसली पैटर्न के अध्ययन के लिए उस क्षेत्र के फसली क्षेत्र, उपज, उत्पादन का अध्ययन करने के लिए सिंचाई के अधीन क्षेत्र, वर्षा की मात्रा, खादें तथा कीटनाशक दवाइयां इत्यादि के प्रयोग संबंधी अंकात्मक/डाटा जानकारी की ज़रूरत होती है। इसके अलावा भौगोलिक विश्लेषण संबंधी डाटा की भी अहम् भूमिका होती है।

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प्रश्न 2.
ग्राफ, चित्र तथा नक्शे बनाने के लिए आम नियम कौन से हैं ?
उत्तर-
ग्राफ, चित्र तथा नक्शे बनाने के लिए आम नियम निम्नलिखित हैं-

  • सही तरीके का चुनाव
  • सही पैमाने का चुनाव
  • रूपरेखा तैयार करना इस शीर्षक, संकेत तथा दिशा शामिल है।

प्रश्न 3.
बार ग्राफ (दण्ड आरेख) की रचना के लिए कौन-से नियमों में ध्यान रखना आवश्यक है ?
उत्तर-
दण्ड आरेख को कालमी चित्र भी कहते हैं। इसके मुख्य नियम हैं-

  • सारे बार समान चौड़ाई के होने चाहिए।
  • सारे बार एक समान दूरी पर होने चाहिए।
  • सारे बार अलग-अलग रंगों द्वारा आकर्षित तथा एक-दूसरे से अलग दिखाये जाते हैं।

प्रश्न 4.
आंकड़ा चित्रों के लाभ बताओ।
उत्तर-
आंकड़ा चित्रों के लाभ इस प्रकार हैं-

  • आंकड़ों का सजीव रूप–प्रायः किसी विषय सम्बन्धी आंकड़े नीरस व प्रेरणा रहित होते हैं। रेखाचित्र इन विषयों को एक सजीव तथा रोचक रूप देते हैं। एक ही दृष्टि में रेखाचित्र तथ्यों का मुख्य उद्देश्य व्यक्त करने में सहायक होते हैं।
  • सरल रचना-रेखाचित्रों की रचना सरल होने के कारण अनेक विषयों में इनका प्रयोग किया जाता है।
  • तुलनात्मक अध्ययन-रेखाचित्रों द्वारा विभिन्न आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन सरल हो जाता है।
  • अधिक समय तक स्मरणीय-रेखाचित्रों का दर्शनीय रूप मस्तिष्क पर एक लम्बे समय के लिए गहरी छाप छोड़ जाता है। यह आरेख दृष्टिक सहायता का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
  • विश्लेषण में उपयोगी-शोधकार्य में किसी तथ्य के विश्लेषण में रेखाचित्र सहायक होते हैं।
  • साधारण व्यक्ति के लिए उपयोगी-साधारण व्यक्ति आंकड़ों को चित्र द्वारा आसानी से समझ सकता है।

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प्रश्न 5.
चक्र चित्र (Pie Diagram) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
यह वृत्त चित्र (Circular Diagram) का ही एक रूप है। इसमें विभिन्न राशियों को जोड़ कर एक वृत्त द्वारा दिखाया जाता है। फिर इस वृत्त को विभिन्न भागों में बांटकर विभिन्न राशियों का आनुपातिक प्रदर्शन अंशों में किया जाता है। इस चित्र को चक्र चित्र, पहिया चित्र या सिक्का चित्र भी कहते हैं।

प्रश्न 6.
वृत्त चक्र के गुण-दोष बताओ।
उत्तर-

  1. चक्र चित्र विभिन्न वस्तुओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयोगी है।
  2. ये कम स्थान घेरते हैं। इन्हें वितरण मानचित्रों पर भी दिखाया जाता है।
  3. इसका चित्रीय प्रभाव भी अधिक है।
  4. इसमें पूरे आँकड़ों का ज्ञान नहीं होता तथा गणना करनी कठिन होती है।

प्रश्न 7.
बहाव नक्शों के लिए कौन-सी जरूरतमंद वस्तुएं आवश्यक चाहिए ?
उत्तर-
बहाव नक्शों के लिए-

  • जरूरतमंद ट्रांसपोर्ट रूट का नक्शा जिस पर स्टेशन दिखाया गया हो उसकी आवश्यकता होती है।
  • वस्तुओं, सेवाओं, गाड़ियों की संख्या इत्यादि सम्बन्धी डाटा, जिनमें उनके संबंधित वस्तुओं की उपज तथा पहुंच का स्थान बताना बहुत आवश्यक है।
  • ज़रूरत के पैमाने का चुनाव भी आवश्यक है।

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प्रश्न 8.
वर्णमात्री नक्शे बनाने के सिद्धान्त क्या हैं ?
उत्तर-
जैसे-जैसे किसी वस्तु में वितरण का घनत्व बढ़ता जाता है। उसी प्रकार आभा भी अधिक गहरी होती जाती हैं। आभा को अधिक सघन करने के कई तरीके हैं-

  • बिन्दुओं का आकार बड़ा करके।
  • रेखाओं को मोटा करके।
  • रेखाओं को निकट करके।
  • रेखा जाल बनाकर।
  • रंगों को गहरा करके।

प्रत्येक मानचित्र के नीचे Scheme of Shades का एक सूचक दिया जाता है।

प्रश्न 9.
विषयगत नक्शे कौन से हैं ?
उत्तर-
जिन नक्शों के द्वारा आँकड़ों की विशेषता दर्शाने के लिए तथा तुलना करने के लिए ग्राफ तथा चित्र एक अहम् भूमिका निभाते हैं, विषयगत नक्शे होते हैं पर इनमें क्षेत्रीय परिदृश्य दिखाने के लिए चित्र तथा ग्राफ असफल होते हैं। इसलिए स्थानिक भिन्नता को तथा क्षेत्रीय वितरण को समझने के लिए इस तरह के नक्शे बनाये जाते हैं।

प्रश्न 10.
कंप्यूटर क्या कर सकता है ?
उत्तर-
कंप्यूटर एक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण है। इसके अपने कई हिस्से होते हैं जिनमें कुछ हैं, मैमोरी, माइक्रो प्रोसैसर, निवेश एवं निर्गत उपकरण। कंप्यूटर के यह सारे हिस्से मिलकर बहुत ही अधिक प्रभावशाली उपकरण मतलब कंप्यूटर का निर्माण करते हैं। इसके द्वारा आंकड़ा पेशकारी, प्रक्रिया तथा संचालन का काम अच्छे ढंग के साथ किया जा सकता है। कंप्यूटर की सहायता के साथ जोड़ तथा घटाव से लेकर तर्क से हल करने वाले सारे साधारण तथा जटिल प्रश्न हल किये जा सकते हैं।

प्रश्न 11.
MS-Excel या स्प्रेडशीट क्या है ?
उत्तर-
यह कुछ ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी हम आंकड़ा प्रक्रिया के लिए सबसे अधिक उपयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग नक्शे तथा रेखाचित्र बनाने में करते हैं। इसको रेखाचित्र या नक्शे बनाने वाले प्रोग्राम या स्प्रेडशीट के नाम से पहचाना जाता है।

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प्रश्न 12.
स्थानीय आंकड़े कौन से होते हैं ?
उत्तर-
जो आंकड़े किसी स्थान की भौगोलिक स्थिति को दर्शाते उनको स्थानीय आंकड़े कहते हैं। इसे आमतौर पर बिन्दु रेखाओं तथा बहुर्भुज के रूप में मिलते हैं। इसमें ट्यूवबैल, कस्बे, गाँव, अस्पताल इत्यादि बिन्दुओं की सहायता के साथ, रेल की लाइनों, नदियों इत्यादि रेखाओं की सहायता के साथ तथा भूमि, तालाब, झीलों, जंगल, ज़िले इत्यादि बहुभुजों की सहायता से दिखाये जाते हैं।

प्रश्न 13.
Sun-Synchronerus Circular Orbit क्या है ?
उत्तर-
Sun-Synchronerus Circular Orbit होता है जब पृथ्वी के केन्द्रीय पार्ट को उपग्रह के साथ मिलाने वाली एक रेखा तथा पृथ्वी के केन्द्र को सूर्य के साथ मिलाने वाली रेखा के मध्य में बनने वाले कोण स्थाई हों।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बिन्दु नक्शे बनाने के लिए मुख्य आवश्यकताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
बिन्दु मानचित्र बनाने के लिए आवश्यकताएं-बिन्दु विधि द्वारा मानचित्र बनाने के लिए कुछ चीज़ों की आवश्यकता होती है-

  • निश्चित आंकड़े (Definite an Detailed Data)-जिस वस्तु का वितरण प्रकट करना हो उसके सही सही आंकड़े उपलब्ध होने चाहिए। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर होने चाहिए जैसे जनसंख्या तहसील या जिले के अनुसार होनी चाहिए।
  • रूपरेखा मानचित्र (Outline Map) उस प्रदेश का एक सीमा चित्र हो जिसमें जिले या राज्य इत्यादि शासकीय भाग दिखाए हों। यह सीमा चित्र समक्षेत्र प्रक्षेप पर बना हो।
  • धरातलीय मानचित्र (Relief Map)-उस प्रदेश का धरातलीय मानचित्र हो जिसमें Contours, thills, marshes, इत्यादि धरातल की आकृतियां दिखाई गई हों।
  • जलवायु मानचित्र (Climatic Map)-उस प्रदेश का जलवायु मानचित्र हो जिसमें वर्षा तथा तापमान का ज्ञान हो सके।
  • मृदा मानचित्र (Soil Map)—विभिन्न कृषि पदार्थों की उपज वाले मानचित्रों में भूमि के मानचित्र आवश्यक हैं क्योंकि हर प्रकार की मिट्टी की उपजाऊपन विभिन्न होता है।

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प्रश्न 2.
विषयगत नक्शों का महत्त्व वर्णन करो।
उत्तर-
विषयगत नक्शों का महत्त्व निम्नलिखितानुसार है-

  • यह आर्थिक भूगोल के अध्ययन के लिए विशेष रूप में महत्त्व रखता है। पृथ्वी पर अलग-अलग साधन तथा मनुष्य के सम्बन्ध में इन शक्तियों द्वारा स्पष्ट रूप से दर्शाया जा सकता है।
  • आंकड़ों की लम्बी-लम्बी तालिकाओं को याद रखना मुश्किल हो जाता है पर वितरण नक्शे किसी तत्व की दिमाग पर स्थाई छाप छोड़ देते हैं।
  • इनका उपयोग शिक्षा संबंधी कामों के लिए किया जाता है।
  • इन नक्शों के द्वारा एक नज़र में ही किसी वस्तु के वितरण का तुलनात्मक अध्ययन हो जाता है। यह स्पष्ट हो जाता है कि कौन सी वस्तु कौन से क्षेत्र में अधिक तथा कौन से क्षेत्र में कम होती है।
  • इन नक्शों के द्वारा क्षेत्रफल तथा उत्पादन की मात्रा का तुलनात्मक अध्ययन हो जाता है।
  • वितरण नक्शे वास्तविक आंकड़ों के स्थान नहीं ले सकते। असल में नक्शों के द्वारा एक भूगोलकार सिर्फ तत्त्व ही दर्शा सकता है।

प्रश्न 3.
आंकड़ा डाटा के प्रारंभिक स्रोत कौन-से हैं ?
उत्तर-
आंकड़ा डाटा के प्रारंभिक स्रोत इस प्रकार हैं-

  • निजी निरीक्षण-यह निरीक्षण किसी समूह, संस्था, व्यक्ति या क्षेत्र से सीधे निरीक्षण द्वारा जानकारी इकट्ठी की जाती है। क्षेत्रीय कार्य के द्वारा स्थल रूपों, प्रवाह प्रणाली, मिट्टी की किस्में तथा वनस्पति, जनसंख्या संरचना इत्यादि की जानकारी इकट्ठी की जाती है।
  • साक्षात्कार-इस द्वारा खोज की जानकारी पर वार्तालाप किया जाता है तथा इस पर्यावरण द्वारा जानकारी इकट्ठी की जाती है।
  • स्टेडले-इसमें कुछ सवाल तथा उनके जवाब एक कागज़ पर लिखे जाते हैं तथा प्रश्नों के जवाब देने वाले को उनको अपने चुनाव के अनुसार चुनना होता है। जिस स्थान पर जवाब देने के दो विचारों का चुनाव होता हैं उस स्थान पर कागज़ पर आवश्यकता अनुसार जगह छोड़ी जाती होती है। इस तरीके से बड़े क्षेत्र की जानकारी इकट्ठी की जाती है। पर सिर्फ पढ़े-लिखे व्यक्ति से ही इस तरीके की जानकारी इकट्ठी की जाती है।
  • अन्य तरीके-मिट्टी किट तथा पानी गुणवत्ता किट से भी सीधे तौर पर जल तथा मिट्टी की गुणवत्ता संबंधी आँकड़े इकट्ठे किये जा सकते हैं।

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प्रश्न 4.
आंकड़े को प्रदर्शित करने की कौन-कौन सी विधियां हैं ?
उत्तर-
आंकड़े रेखाचित्रों तथा वितरण मानचित्रों द्वारा प्रकट किए जाते हैं। आँकड़ों के विस्तार तथा प्रकृति के अनुसार ये रेखाचित्र निम्न प्रकार के हैं-

  1. रेखा आरेख चित्र (Line Graph)
  2. दण्डारेख चित्र (Bargraph)
  3. चलाकृति चित्र (Wheel diagram)
  4. तारक चित्र (Star Diagram)
  5. क्लाइमोग्राफ (Climograph)
  6. हीथर ग्राफ (Hythergraph)
  7. चित्रीय आरेख (Pictorial diagram)
  8. आयत चित्र (Rectangular Diagram)
  9. मुद्रिक चित्र (Ring Diagram)
  10. मेखला चित्र (Circular Diagram)

प्रश्न 5.
रेखाग्राफ की रचना तथा महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
सांख्यिकी चित्रों में रेखाग्राफ का महत्त्व बहुत अधिक है। इसमें प्रत्येक वस्तु को दो निर्देशकों की सहायता से दिखाया जाता है। यह ग्राफ किसी निश्चित समय में किसी वस्तु के शून्य में परिवर्तन को प्रकट करता है। आधार रेखा पर समय को प्रदर्शित किया जाता है जिसे ‘X’ अक्ष कहते हैं। ‘Y’ अक्ष या खड़ी रेखा पर किसी वस्तु के मूल्य को प्रदर्शित किया जाता है। दोनों निर्देशकों के प्रतिच्छेदन के स्थान पर बिन्दु लगाया जाता है। इस प्रकार विभिन्न बिन्दुओं को मिलाने से एक वक्र रेखा प्राप्त होती है। ये रेखा ग्राफ दो प्रकार के होते हैं।

  1. जब किसी निरन्तर परिवर्तनशील वस्तु (तापमान, नमी, वायु, भार इत्यादि) को दिखाना हो तो उसे वक्र रेखा से दिखाया जाता है।
  2. जब किसी रुक रुक कर बदलने वाली वस्तु का प्रदर्शन करना हो तो विभिन्न बिन्दुओं को सरल रेखा द्वारा मिलाया जाता है। जैसे वर्षा, कृषि उत्पादन, जनसंख्या।

महत्त्व-रेखा ग्राफ से तापमान, जनसंख्या वृद्धि, जन्म दर, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन दिखाया जाता है। यह आसानी से बनाए जा सकते हैं। रेखा ग्राफ समय तथा उत्पादन में एक स्पष्ट सम्बन्ध प्रदर्शित करते हैं।

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प्रश्न 6.
दण्ड आरेख (Bar Diagram) के गुण तथा दोष लिखो।
उत्तर-
गुण-दोष (Merits and Demerits)

  • यह आंकड़े दिखाने की सबसे सरल विधि है।
  • इसके द्वारा तुलना करना आसान है।
  • दण्ड चित्र बनाने कठिन हैं जब समय अवधि बहुत अधिक हो।
  • जब अधिकतम तथा न्यूनतम संख्या में बहुत अधिक अन्तर हो, तो दण्ड चित्र नहीं बनाए जा सकते हैं।

प्रश्न 7.
वृत्त चक्र (Pie Diagram) की रचना के बारे में बताओ।
उत्तर-
यह वृत्त चित्र का ही एक रूप है। इसमें विभिन्न राशियों के जोड़ को एक वृत्त द्वारा दिखाया जाता है। फिर इस वृत्त को विभिन्न भागों में बांटकर विभिन्न राशियों का आनुपातिक प्रदर्शन अंशों में किया जाता है। इस चित्र को चक्र चित्र, पहिया चित्र या सिक्का चित्र भी कहते हैं।
रचना-इस चित्र में वृत्त का अर्द्धव्यास मानचित्र के आकार के अनुसार अपनी मर्जी से लिया जाता है। इसका सिद्धांत यह है कि कुल राशि वृत्त के क्षेत्रफल के बराबर होती है। एक वृत्त के केंद्र पर 360° का कोण बनता है। प्रत्येक राशि के लिए वृत्तांश ज्ञात किए जाते हैं। इसलिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
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कई बार वृत्त के विभिन्न भागों को प्रभावशाली रूप से दिखाने के लिए इनमें भिन्न-भिन्न शेड कर दिए जाते हैं।

प्रश्न 8.
विषयगत नक्शे बनाने के लिए जरूरतमंद वस्तुओं तथा आम नियमों के बारे में बताओ।
उत्तर-
आंकड़ों की तुलना करने तथा विशेषताएं दर्शाने के लिए बनाये ग्राफ तथा चित्र इसमें अहम् भूमिका निभाते हैं। विषय नक्शे बनाने के लिए आवश्यकता की वस्तुएं हैं-

  • चुने हुए विषय संबंधी जिले स्तर पर आंकड़े।
  • चुने हुए क्षेत्र का प्रबंधन सीमाओं सहित नक्शा।
  • संबंधित क्षेत्र का भौतिक नक्शा।

विषयगत नक्शे बनाने के लिए मुख्य नियम-

  • इन नक्शों को योजना बंदी तरीके के साथ तथा सावधानी के साथ तैयार किया जाना चाहिए। पूर्ण रूप में तैयार नक्शा निम्न जानकारी देता है, जैसे कि क्षेत्र का नाम, विषय का शीर्षक, आंकड़े का स्रोत तथा साल, चिन्हों, प्रतीकों, रंगों की गहराइयों इत्यादि की सूचना।
  • विषयगत: नक्शों के साथ सही तरीके का चुनाव होना बहुत आवश्यक है।

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प्रश्न 9.
वर्णमात्री नक्शे बनाने की विधि के बारे में बताओ।
उत्तर-
इस विधि को Choropleth Method भी कहते हैं। इस विधि में किसी एक वस्तु के वितरण को मानचित्र पर विभिन्न आभाओं या रंगों द्वारा प्रकट किया जाता है। किसी रंग की अपेक्षा Black and White shading को प्रयोग करना उचित समझा जाता है।

विधि (Procedure)

  • किसी वस्तु के निश्चित आंकड़े प्राप्त करो। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर हों।
  • ये आंकड़े औसत के रूप में हो या प्रतिशत या अनुपात के रूप में, जैसे जनसंख्या का घनत्व।
  • घनत्व को प्रकट करने के लिए उचित अन्तराल चुन लेना चाहिए।
  • अन्तराल के अनुसार Shading का सूचक मानचित्र के कोने में बनाना चाहिए।
  • यह आभा घनत्व के अनुसार गहरी होती चली जाए।
  • प्रत्येक प्रशासकीय इकाई में घनत्व के अनुसार शेडिंग करके मानचित्र तैयार किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
सममान नक्शे किसे कहते हैं ? इनके गुण बताओ।
उत्तर-
Isopleth शब्द दो शब्दों के जोड़ से बना है (Iso + Plethron) Iso का अर्थ है समान तथा plethron शब्द का अर्थ है मान रेखाएं अर्थात् वह रेखाएं हैं जिनका मूल्य तीव्रता तथा घनत्व समान हो। ये रेखाएं उन स्थानों को आपस में जोड़ती हैं जिनका मान समान हो।

गुण (Merits)

  • सममान रेखायें वर्षा, तापमान इत्यादि आंकड़ों के परिवर्तन को शुद्ध रूप से प्रदर्शित करती हैं।
  • ये रेखायें किसी स्थान पर उपस्थित मूल्य को प्रकट करती हैं।
  • अन्य विधियों की अपेक्षा यह एक अधिक वैज्ञानिक विधि है।
  • बिन्दु मानचित्र तथा वर्णमात्री को समान रेखा मानचित्र में बदला जा सकता है।
  • इन मानचित्रों का प्रशासकीय इकाइयों में कोई सम्बन्ध नहीं होता।

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प्रश्न 11.
संगणक सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर बारे बताओ।
उत्तर-
संगणक के भौतिक हिस्से जिनको हम देख सकते हैं तथा छू सकते हैं वे हार्डवेयर कहलाते हैं। यह भाग मशीनी, इलैक्ट्रॉनिक या इलैक्ट्रीकल हो सकते हैं। ये कंप्यूटर के हार्डवेयर अलग-अलग हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता हैं कि कंप्यूटर किस उद्देश्य के लिए प्रयोग में लाया जा सके तथा व्यक्ति की आवश्यकता क्या है। एक कंप्यूटर में विभिन्न तरह के हार्डवेयर होते हैं जिसमें सी०पी०यू०, हार्ड डिस्क, रैम, प्रोसैसर, मॉनीटर, मदरबोर्ड, फ्लापी ड्राइव कंप्यूटर के सिर्फ पावर संचालित यूनिट की बोर्ड, माऊस इत्यादि भी हार्डवेयर के अंतर्गत आते हैं। कंप्यूटर हमारी तरह हिन्दी या अंग्रेजी भाषा नहीं समझता। हम कंप्यूटर को जो निर्देशन देते हैं उसकी एक नियत भाषा होती है इसको मशीन लैंगवेज़ या मशीन भाषा कहते हैं। कंप्यूटर साफ्टवेयर लिखित प्रोग्राम का एक समूह है जो कि कंप्यूटर की भंडार शाखा में जमा हो जाता है। इसमें MS-Excel, जी०पी०एस० इत्यादि शामिल हैं।

प्रश्न 12.
राकेट या लांच व्हीकल पर नोट लिखो।
उत्तर-
राकेट या लांच व्हीकल की सहायता से उपग्रह को अंतरिक्ष में दागा जा सकता है। कुछ दूरी पर पहुंच कर राकेट उपग्रह से अलग हो जाता है। उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंच जाता है तथा राकेट समुद्र या बंजर धरती पर वापिस आ जाता है। राकेट या लांच व्हीकल दो किस्मों के होते हैं-

  • पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (PSLV)—इस व्हीकल को ISRO की तरफ से तैयार किया गया है। इस व्हीकल की सहायता से 1750 कि०ग्रा० तक के भार के Earth Observation उपग्रहों को 600-900 कि०मी० ऊंचाई तक के Sun-Synchronous Circular Polar Orbit में डाला जाता है।
  • जीऊ सिनक्रोसन सैटेलाइट लांच व्हीकल (GSLV)-इस व्हीकल को ISRO ने तैयार किया है। इसके मुख्य तीन पड़ाव होते हैं। इसकी तीसरी पड़ाव में क्रायोजनिक इंजन होता है। इसकी सहायता के साथ 2500 कि०ग्रा० या इससे भी भारे उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जा स ते हैं।

प्रश्न 13.
भौगोलिक जानकारी तंत्र क्या है ?
उत्तर-
विद्वानों ने भौगोलिक जानकारी तंत्र का अलग-अलग तरीकों से वर्णन किया है। यह एक ऐसा तंत्र है जिस द्वारा हमें GPS उपग्रहों के द्वारा भेजे गये आंकड़ों को जान सकते हैं क्योंकि यह आंकड़े अंतरिक्ष से होते हैं। इनको पूरी तरह से समझना मुश्किल होता है। इन निरोल आंकड़ों को एक खास सिस्टम में निकाल कर आम मनुष्य की समझ में लाया जा सकता है। जी०पी०एस० तथा मनुष्य में तालमेल बिठाने का काम भौगोलिक जानकारी तंत्र ही करता है। इसकी सहायता के साथ स्थानिक तथा गैर-स्थानिक दोनों ही आंकड़ों को इकट्ठा किया जा सकता है। यह तंत्र आंकड़ों को इकट्ठा करता है उनको संभालता है तथा एक प्रतिक्रिया में से निकाल कर उसको उपयोग योग्य बनाता है। भौगोलिक जानकारी तंत्र की सहायता से शहरों तथा क्षेत्रों का योजनाबद्ध निर्माण भी किया जाता है। यह नक्शे तथा रेखाचित्रों के आगे की चीज है। कंप्यूटर तथा सूचना तकनीक में हो चुके विकास कारण इस तंत्र के साथ मौजूदा प्रबंधन की समस्याओं का हल किया जा सकता है।

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प्रश्न 14.
ग्लोबल पोजीशनिंग योजना (GPS) पर नोट लिखो।
उत्तर-
भूमण्डलीय स्थितीय तंत्र (ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम )(GPS) संयुक्त राज्य सेना द्वारा विकसित भूमंडलीय स्थितीय तंत्र सर्व ऋतु-रेडियो नौकायन प्रणाली है, जिसमें उपग्रह से नीचे प्रक्षेपित आँकड़ों का व्यक्तिगत यंत्र (रिसीवर) द्वारा प्रक्रमण होता है। यह विश्व में प्रतिदिन चौबीसों घंटे तीन आयामी स्थिति बताता है। अंतरिक्षीय उपग्रह प्रणाली की वृत्तीय कक्षा के परिक्रम पथ में 24 उपग्रह सम्मिलित होते हैं, तथा इसकी कक्षा में परिक्रमा अवधि 12 घंटे की होती है। यह परिक्रमा पथ 55° के कोण पर झुका होता है। उपग्रहों पर एक आण्विक घड़ी लगी होती है, जो घूर्णन के साथ स्थायी रूप से संकेत पैदा करती रहती है। ये संकेत उपग्रह के समय तथा पंचांग (किसी निश्चित समय बिंदु पर उपग्रह की स्थिति) में सम्बन्धित सूचना का वहन करती है। इसमें अक्षांश, देशान्तर तथा किसी भी स्थानीय इकाई की ऊँचाई प्राप्त करते हैं। इस प्रकार, भूमंडलीय स्थितीय तंत्र का स्थानीय मानचित्रण के क्षेत्र में अत्यधिक योगदान है।

प्रश्न 15.
भूमि उपयोग निरीक्षण के उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-
कृषि भारतीय लोगों का मुख्य पेशा है। इसलिए सही भूमि उपयोग को समझना बहुत आवश्यक है। इस भूमि उपयोग के द्वारा हम कुछ त्रुटियों के बारे में जान सकते हैं तथा इन खामियों को दूर करके स्थिति को सुधारने के लिए सुझाव पेश कर सकते हैं। भूमि उपयोग निरीक्षण का मुख्य उद्देश्य एक कृषि के क्षेत्र में सही भूमि के उपयोग के बारे में जानना बहुत आवश्यक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरा गाँव या गाँव का एक हिस्सा उसके आकार के अनुसार लिया जा सकता है। हम अपने उद्देश्य की पूर्ति को नंबर अलाट करके उनमें बीजी गई फसलों को भर कर तथा सम्बन्धित क्षेत्र का भूमि-उपयोग नक्शा तैयार करके कर सकते हैं। इसके लिए हमें मिट्टी, पानी के निकास, सिंचाई की सुविधाओं, खादों के सही उपयोग के बारे सही तथा स्पष्ट जानकारी इकट्ठी करनी बहुत आवश्यक है। इसके लिए खेतों के नंबर तथा गाँव के पास सीमाबंदी के नक्शे मिल सकते हैं जिससे ज़रूरत अनुसार जानकारी इकट्ठी की जा सकती है।

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
आंकड़ा (डाटा) क्या है ? इसकी ज़रूरत क्यों होती है ? इसके मुख्य स्रोतों का वर्णन करो।
उत्तर-
डाटा-संख्या पर आधारित इकट्ठी की गई जानकारी डाटा कहलाती है। जैसे हम कई बार सुनते हैं कि लुधियाना में 60 सें०मी० तक लगातार वर्षा हुई तथा कर्नाटक में 24 घंटों में 40 सें०मी० वर्षा हुई इत्यादि। जब संख्या पर आधारित ऐसी जानकारी इकट्ठी की जाती है उसे डाटा कहते हैं।

डाटा की ज़रूरत-भूगोल के अध्ययन के लिए नक्शों की काफी आवश्यकता है।

  • किसी क्षेत्र के फ़सली पैटर्न का अध्ययन डाटा द्वारा करना आसान होता है। क्षेत्र के फ़सली पैटर्न का अध्ययन करने के लिए क्षेत्र का फसली क्षेत्र, फसल, उपज, उत्पादन, सिंचाई की सुविधा, वर्षा की मात्रा, खाद तथा कीटनाशक दवाइयों इत्यादि के प्रयोग सम्बन्धी आंकड़ात्मक जानकारी की आवश्यकता होती है।।
  • किसी शहर के विकास का अध्ययन करना शहर की आबादी, लोगों के पेशे, वेतन, उद्योगों, यातायात के साधनों इत्यादि सम्बन्धी आंकड़ों की आवश्यकता पड़ती है।
  • तथ्यों को जानने के लिए डाटा इकट्ठा करना बहुत आवश्यक है।

आँकड़ा/डाटा के स्रोत डाटा मुख्य रूप में निम्न दो स्रोतों से प्राप्त किया जाता है-

I. प्राथमिक स्रोत (Primary Source)—जो किसी व्यक्ति । संस्था द्वारा इकट्ठे किया जाए।
II. गौण स्त्रोत (Secondary Source)—किसी प्रकाशित या अप्रकाशित स्रोत से इकट्ठे किया जाए।

I. प्राथमिक स्त्रोत (Primary Sources)-

1. निजी प्रेक्षण (Personal Observation)–निजी प्रेक्षण किसी व्यक्ति या ग्रुप द्वारा सीधे प्रेक्षण द्वारा जानकारी इकट्ठा करने से सम्बन्धित है। क्षेत्री कार्यों के द्वारा स्थल रूपों, प्रवाह प्रणाली, मिट्टी की किस्मों, लिंग अनुपात, आयु संरचना, साक्षरता, यातायात के साधन, शहरी, ग्रामीण बस्तियाँ इत्यादि की जानकारी इकट्ठी की जाती है।
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2. इंटरव्यू (Interview)-इस तरीके से खोजकर्ता सीधी जानकारी जवाब देने वाले से बातचीत द्वारा इकट्ठा कर . सकता है। इस प्रकार इंटरव्यू लेने वाला निम्नलिखित सावधानियों को इंटरव्यू लेते समय ध्यान में रखे-

  • इंटरव्यू लेने वाले द्वारा प्रश्नों की एक लिस्ट बना लेनी चाहिए ताकि बातचीत द्वारा अच्छी जानकारी इकट्ठी की जा सके।
  • इंटरव्यू लेने वाला इंटरव्यू का संचालन करने के उद्देश्य से पूरी तरह परिचित होना चाहिए तथा उस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए काम करता हो।
  • इंटरव्यू लेने वाले को जवाबदेह व्यक्ति को अपने विश्वास में लेना आवश्यक है।
  • प्रश्नों की भाषा स्पष्ट तथा सादी होनी चाहिए।
  • ऐसे प्रश्नों से परहेज करना चाहिए जो किसी जवाबदेह की भावनाओं को दुःख पहुंचाएं।

3. प्रश्नावली (Questionnaire) इस तरीके में सरल प्रश्न तथा उनके योग्य उत्तर एक साफ पेपर पर लिख लेने चाहिए तथा जवाबदेह को अपनी योग्यता तथा समझ के अनुसार उन उत्तरों का चुनाव करना चाहिए। जिस स्थान पर जवाब देने वाले के विचारों को जानने की आवश्यकता होती है वहां कागज़ पर ज़रूरत अनुसार जगह दी होती है। इस प्रकार के तरीके के साथ बड़े क्षेत्र की जानकारी हासिल करनी अधिक उपयुक्त है। इस तरीके की सीमा की कमी यह है कि सिर्फ पढ़े लिखे तथा शिक्षित व्यक्ति की ही जानकारी इस द्वारा इकट्ठी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त मिट्टी तथा जल की गुणवत्ता के सम्बन्ध में आंकड़े सीधे तौर पर मिट्टी, धूल तथा जल गुणवत्ता जांच की सहायता से इकट्ठे किए जा सकते हैं।

II. दूसरे दों के स्त्रोत (Secondary Sources of Data)-दूसरे दों में प्रकाशित तथा अप्रकाशित रिकार्ड जो कि सरकारी प्रकाशनायों, दस्तावेजों तथा रिपोर्टों के रूप में होते हैं।

प्रकाशित स्त्रोत (Published Sources)

  • सरकारी प्रकाशन (Government Publications)—इनमें भारत सरकार तथा राज्य की सरकारों के अलग अलग मंत्रालयों तथा विभागों के प्रकाशन तथा जिला बुलेटिन सबसे अधिक अच्छे स्रोत हैं। इन स्रोतों में भारतीय जनगणना, राष्ट्रीय सैंपल सर्वे की रिपोर्ट, भारतीय मौसम विभाग की रिपोर्ट, राज्य सरकार के आंकड़ासार तथा अलग-अलग कमीशन की रिपोर्ट आती हैं।
  • अर्धसरकारी प्रकाशन (Quasi Government Publications)-इस श्रेणी में शहरी विकास अथारिटी, नगर निगमों तथा जिला परिषदों इत्यादि की रिपोर्टों को शामिल किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन (International Publications)—इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की अलग-अलग एजैंसियों जैसे कि यूनेस्को/संयुक्त राष्ट्र विकास प्रोग्राम, यू०एन०डी०पी०, विश्व स्वास्थ्य संगठन, खाद्य तथा कृषि संगठन इत्यादि की रिपोर्ट आती हैं।
  • निजी प्रकाशन (Private Publications)-इसमें अलग-अलग अखबारों, सर्वे, संस्थानों द्वारा प्रकाशित रिपोर्टो, मोनोग्राफ तथा वार्षिक बुक इत्याद शामिल हैं।
  • अखबार तथा पत्रिका (Newspaper and Magazines). दैनिक अखबार तथा साप्ताहिक तथा मासिक पत्रिका इत्यादि इस कैटेगरी में शामिल हैं।
  • इलैक्ट्रॉनिक मीडिया (Electronic Media)-आज के समय में इसका खासकर इंटरनैट के आंकड़ों का मुख्य स्रोत के तौर पर उभरा हुआ रूप है।

अप्रकाशित स्रोत (Unpublished Sources)-

  1. सरकारी दस्तावेज (Government Documents)-अप्रकाशित रिपोर्टों मोनोग्राफ, दस्तावेज गौण स्रोतों का एक रूप है। उदाहरण के तौर पर पटवारियों का रिकार्ड किसी गाँव की जानकारी के लिए एक बहुत अच्छा स्रोत है।
  2. अर्धसरकारी दस्तावेज (Quasi-government Records)-अलग-अलग नगर निगम की रिपोर्टों तथा विकास प्रोग्राम इत्यादि की रिपोर्ट इस भाग में आती है।
  3. निजी दस्तावेज़ (Private Documents)-इनमें ट्रेड कंपनियां, ट्रेड यूनियनें, राजनीतिक तथा गैर-राजनीतिक संस्थाएं इत्यादि की रिपोर्ट शामिल होती हैं।

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प्रश्न 2.
आंकड़ा चित्र से क्या अभिप्राय है ? इनके लाभ तथा सीमाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
आंकड़ा चित्र (Stastical Diagram)-आर्थिक भूगोल के अध्ययन में आंकड़ों का विशेष महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के आंकड़े किसी वस्तु की मात्रा, गुण, घनत्व, वितरण इत्यादि को स्पष्ट करते हैं। ये आंकड़े अनेक तथ्यों की पुष्टि करते हैं। किसी क्षेत्र की जलवायु के अध्ययन में तापमान, वर्षा इत्यादि के आंकड़ों का भी अध्ययन किया जाता हैं। इन आंकड़ों का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाले जाते हैं। परन्तु इस विश्लेषण के लिए अनुभव, समय तथा परिश्रम की आवश्यकता होती है। बड़ी-बड़ी तालिकाओं को याद करना बहुत कठिन तथा नीरस होता है। लम्बी-लम्बी सारणियां कई बार भ्रम उत्पन्न कर देती हैं। उन्हें सरल और स्पष्ट बनाने के लिए ये आंकड़े रेखाचित्रों द्वारा प्रकट किए जाते हैं। इन सांख्यिकीय आंकड़ों पर आधारित रेखाचित्रों तथा आलेखों को सांख्यिकीय आरेख कहा जाता है।

“सांख्यिकीय आंकड़ों को चित्रात्मक ढंग से प्रदर्शित करने वाले रेखाचित्रों को सांख्यिकीय आरेख कहते हैं।” इन विधियों में विभिन्न प्रकार की ज्यामितीय आकृतियां, रेखाएं, वक्र रेखाएं रचनात्मक ढंग से प्रयोग की जाती हैं। ये आंकड़ों को एक दर्शनीय रूप देकर मस्तिष्क पर गहरी छाप डालते हैं।

सांख्यिकीय आरेखों के लाभ (Advantages of Statistical Diagram)-

  • आंकड़ों का सजीव रूप-प्रायः किसी विषय सम्बन्धी आंकड़े नीरस व प्रेरणा रहित होते हैं। रेखाचित्र इन विषयों को एक सजीव तथा रोचक रूप देते हैं। एक ही दृष्टि में रेखाचित्र तथ्यों का मुख्य उद्देश्य व्यक्त करने में सहायक होते हैं।
  • सरल रचना-रेखाचित्रों की रचना सरल होने के कारण अनेक विषयों में इनका प्रयोग किया जाता है।
  • तुलनात्मक अध्ययन-रेखाचित्रों द्वारा विभिन्न आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन सरल हो जाता है।
  • अधिक समय तक स्मरणीय-रेखाचित्रों का दर्शनीय रूप मस्तिष्क पर एक लम्बे समय के लिए गहरी छाप छोड़ जाता है। यह आरेख दृष्टि की सहायता का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
  • विश्लेषण में उपयोगी-शोध कार्य में किसी तथ्य के विश्लेषण में रेखाचित्र सहायक होते हैं।
  • साधारण व्यक्ति के लिए उपयोगी-साधारण व्यक्ति आंकड़ों को चित्र द्वारा आसानी से समझ सकता है।
  • समय की बचत-रेखाचित्रों द्वारा तथ्यों को शीघ्र ही समझा जा सकता है जिसमें समय की बचत होती है।

ग्राफ चित्र बनाने के लिए आम नियम-

1. सही तरीके का चुनाव-आंकड़े, अलग-अलग विषयों जैसे कि तापमान, जनसंख्या में वृद्धि तथा वितरण, उत्पादन अलग-अलग वस्तुओं का वितरण तथा व्यापार इत्यादि को पेश करते हैं। आंकड़ों की इन विशेषताओं को सही तरीके से चुनने के लिए सही चित्रात्मक तरीके की आवश्यकता होती है।
2. सही पैमाने का चुनाव-पैमाना किसी नक्शे या चित्र पर आंकड़े के प्रदर्शन के लिए मापक के तौर पर प्रयोग में आता है। इस प्रकार सही पैमाने का चुनाव भी काफ़ी आवश्यक है।
3. रूपरेखा/डिजाइन-यह नक्शे कला का महत्त्वपूर्ण गुण है। नक्शा कला के डिजाइन के कुछ भाग इस प्रकार हैं –

  • शीर्षक-नक्शे के शीर्षक क्षेत्र के नाम तथा प्रयोग किए आंकड़ों के सम्बन्ध को दर्शाते हैं। यह भाग अलग-अलग आकार तथा मोटाई के अक्षरों तथा नंबरों के रूप में दिखाये जाते हैं।
  • संकेत-संकेत चित्र का महत्त्वपूर्ण भाग हैं। यह नक्शों में प्रयोग किए गये रंग, रंग की गहराई, चिन्हों इत्यादि की व्याख्या करता है।
  • दिशा-क्योंकि नक्शे में धरती के किसी हिस्से को दिखाया जाता है इसलिए यह विषय केन्द्रित होना आवश्यक है। इसलिए दिशा चिन्ह आवश्यक है।

चित्रों की रचना-आँकड़े लम्बाई चौड़ाई मात्रा इत्यादि मापने योग्य तरीकों पर आधारित होते हैं। इसको मुख्य रूप में तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. एक पसारी जैसे कि लकीरी ग्राफ, बहुलकीरी ग्राफ, दण्ड आरेख, हिस्टोग्राफ इत्यादि।
  2. दो पसारी जैसे कि वृत्त-चक्र तथा आयताकार चित्र।
  3. तीन पसारी जैसे कि घन तथा गोला चित्र इत्यादि।

आकंड़ो चित्रों की सीमाऍ (Limitations of Statistical Diagrams)—

  • आंकड़ों का शुद्ध रूप से निरूपण का सम्भव न होना-रेखाचित्र आंकड़ों को कई बार शुद्ध रूप में प्रदर्शित नहीं करते। इनमें थोड़ा बहुत परिवर्तन किया जाता है।
  • आरेख आंकड़ों के प्रतिस्थापन नहीं हैं-मापक के अनुसार रेखाचित्रों का आकार बदल जाता है तथा कई भ्रम उत्पन्न हो जाते हैं।
  • बहुमुखी आंकड़ों का निरूपण सम्भव नहीं है-एक ही रेखाचित्र पर एक से अधिक प्रकार के आंकड़े नहीं दिखाए जा सकते हैं। इसके द्वारा एक ही इकाई में मापे जाने वाले समान गुणों वाले आंकड़ों को ही दिखाया जा सकता है।
  • उच्चतम तथा न्यूनतम मूल्य में अधिक अन्तर-जब उच्चतम तथा न्यूनतम मूल्य में बहुत अधिक अन्तर हो तो रेखाचित्र नहीं बनाए जा सकते।
  • भ्रमात्मक परिणाम-उपयुक्त आरेख का प्रयोग न करने से गलत तथा भ्रमात्मक परिणाम निकलने की सम्भावना होती है।

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प्रश्न 3.
लकीरी ग्राफ (रेखाग्राफ) क्या है ? इसकी रचना तथा महत्त्व बताओ तथा निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से अमृतसर नगर के तापमान का लाइन ग्राफ बनाओ।
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उत्तर-
रेखा ग्राफ रेखा ग्राफ आमतौर पर समय श्रृंखला सम्बन्धित आंकड़े होते हैं जैसे की तापमान, वर्षा, जनसंख्या की वृद्धि, जन्म दर, मृत्यु दर, जंगलों अधीन क्षेत्र इत्यादि दिखाने के लिए बनाये जाते हैं।
अमृतसर नगर के तापमान का लाइन चित्र-ग्राफ पेपर पर आधार रेखा लगाओ। इस पर पांच-पांच लकीरों के अंतर के 12 महीने दिखाओ। इसको लेटवा पैमाना कहते हैं। लंबरेखा पर तापमान के लिए पैमाना बनाओ। हर एक वर्ग की दस रेखाओं 10° C तापमान प्रकट करती हैं। हर एक महीने के तापमान के लिए बिन्दु लगाओ। इन 12 बिन्दुओं को मिलाने के लिए एक वर्ग आकार का रेखाचित्र बनेगा।
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रेखा ग्राफ-सांख्यिकी चित्रों में रेखा ग्राफ का महत्त्व बहुत अधिक है। इसमें प्रत्येक वस्तु को दो निर्देशकों की सहायता से दिखाया जाता है। यह ग्राफ किसी निश्चित समय में किसी वस्तु के शून्य में परिवर्तन को प्रकट करता है। आधार रेखा पर समय को प्रदर्शित किया जाता है जिसे ‘X’ अक्ष कहते हैं। ‘Y’ अक्ष या खड़ी रेखा पर किसी वस्तु के मूल्य को प्रदर्शित किया जाता है। दोनों निर्देशकों के प्रतिच्छेदन के स्थान पर बिन्दु लगाया जाता है। इस प्रकार विभिन्न बिन्दुओं को मिलाने से एक वक्र रेखा प्राप्त होती है। ये रेखा ग्राफ दो प्रकार के होते हैं-

  • जब किसी निरन्तर परिवर्तनशील वस्तु (तापमान, नमी, वायु, भार इत्यादि) को दिखाना हो तो उसे वक्र रेखा से दिखाया जाता है।
  • जब किसी रुक-रुक कर बदलने वाली वस्तु का प्रदर्शन करना हो तो विभिन्न बिन्दुओं को सरल रेखा द्वारा मिलाया जाता है। जैसे वर्षा, कृषि उत्पादन, जनसंख्या।

महत्त्व (Importance)-रेखाग्राफ से तापमान, जनसंख्या, वृद्धि, जन्म दर, विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन दिखाया जाता है। यह आसानी से बनाए जा सकते हैं। रेखा ग्राफ समय तथा उत्पादन में एक स्पष्ट सम्बन्ध प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 4.
बहुरेखा ग्राफ क्या होता है ? इसकी रचना तथा महत्त्व बताओ। निम्नलिखित 1980 से 2011 तक के आंकड़ों की सहायता से पंजाब अधीन अलग-अलग फसली रकबे (600 हैक्टेयर) का बहुरेखा ग्राफ बनाओ।
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उत्तर-
बहु-रेखाग्राफ भी रेखिक ग्राफ की तरह है जिसमें दो या फिर दो से अधिक परिवर्तनशील तत्व एक समान संख्या की लाइनों के द्वारा, तुरन्त तुलना करने के लिए दिखाये जाते हैं। इन बहु रैखिक ग्राफी के द्वारा अलग-अलग देशों/राज्यों में अलग-अलग फसलें जैसे कि चावल, गेहूं, दालों की उपजें, जन्म तथा मृत्यु दर, जीवन आस, लिंग अनुपात, लकीरों के द्वारा दिखाये जाते हैं। यह लकीरें कई तरह के होती हैं जैसे कि सीधी रेखा (-), विभाजित रेखा (—) तथा बिन्दु रेखा (….) इत्यादि या फिर अलग-अलग रंगों की रेखाएं इन तत्वों को दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
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बहुरैखिक ग्राफ की रचना :

  • सबसे पहले X धुरा बनाओ तथा इससे 4 भागों में विभाजित कर लो (1980-81, 1990-91, 2000-2001, 2010-11) इत्यादि दोनों सिरों पर दो Y धुरे बनाओ।
  • इसके दाहिने तरफ Y धुरे पर सही पैमाना को निश्चित करके 5° या 10° के फर्क से फसली रकबे को दिखाओ।

महत्त्व-बहुरैखिक ग्राफ की सहायता से तापमान, जनसंख्या, वर्षा, फसलों का रकबा। जन्म दर, मृत्यु दर इत्यादि तत्व दिखाये जाते हैं। यह समय तथा उत्पादन में एक स्पष्ट सम्बन्ध प्रकट करते हैं।

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प्रश्न 5.
दण्ड आरेख (Bar Diagrams) क्या होते हैं ? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर-
दण्ड आरेख (Bar Diagrams)-आंकड़े दिखाने की यह सबसे सरल विधि है। इसमें आंकड़ों को समान चौड़ाई वाले दण्डों या स्तम्भों (Columns) द्वारा दिखाया जाता है। इन दण्डों की लम्बाई वस्तुओं की मात्रा के अनुपात के अनुसार छोटी-बड़ी होती है। प्रत्येक दण्ड किसी एक वस्तु की कुल मांग को प्रदर्शित करता है। इन आरेखों के प्रयोग से संख्याओं का तुलनात्मक अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।

दण्ड आरेखों की रचना (Drawing of Bar Diagrams)—दण्ड चित्र बनाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है-

1. मापक (Scale)-वस्तु की मात्रा के अनुसार मापक निश्चित करना चाहिए। मापक तीन बातों पर निर्भर करता
(क) कागज़ का विस्तार। (ख) अधिकतम संख्या। (ग) न्यूनतम संख्या।
मापक अधिक बड़ा या अधिक छोटा नहीं होना चाहिए।

2. दण्डों की लम्बाई (Length of Bars)—दण्डों की चौड़ाई समान रहती है, परन्तु लम्बाई मात्रा के अनुसार घटती-बढ़ती है।
3. शेड करना (Shading)–दण्ड रेखा खींचने के पश्चात् उसे काला कर दिया जाता है।
4. मध्यान्तर-दण्ड रेखाओं के मध्य अन्तर समान रखा जाता है।
5. आंकड़ों को निश्चित करना-सर्वप्रथम आंकड़ों को संख्या के अनुसार क्रमवार तथा पूर्णांक बना लेना चाहिए।

गुण-दोष (Merits and Demerits)-

  • यह आंकड़े दिखाने की सबसे सरल विधि है।
  • इनके द्वारा तुलना करना आसान है।
  • दण्ड चित्र बनाने कठिन हैं जब समय अवधि बहुत अधिक हो।
  • जब अधिकतम तथा न्यूनतम संख्या में बहुत अधिक अन्तर हो, तो दण्ड चित्र नहीं बनाए जा सकते हैं।

दण्ड आरेखों के प्रकार (Types of Bar Diagrams)–दण्ड आरेख मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

1. क्षैतिज दण्ड आरेख (Horizontal Bars)—ये सरल दण्ड आरेख हैं। इन दण्डों से किसी वस्तु का कुछ वर्षों का वार्षिक उत्पादन, जनसंख्या इत्यादि दिखाए जाते हैं। ये समान चौड़ाई के होते हैं। ये आसानी से पढ़े जा सकते हैं।

2. लम्बवत् दण्ड आरेख (Vertical Bars)—ये आरेख किसी आधार रेखा के ऊपर खड़े दण्डों के रूप में बनाए जाते हैं। आधार रेखा को शून्य माना जाता है, दण्डों की ऊंचाई पैमाने के अनुसार मापी जाती है। इन दण्डों से वर्षा का वितरण भी दिखाया जाता है। जब उच्चतम तथा न्यूनतम संख्याओं में अन्तर बहुत अधिक हो तो दण्ड आरेख प्रयोग नहीं किए जाते। दण्ड की लम्बाई कागज़ के विस्तार से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि दण्डों की संख्या अधिक हो तो भी ये आरेख प्रयोग नहीं किए जाते।

3. संश्लिष्ट दण्ड आरेख (Compound Bars)-यदि एक दण्ड को अनेक भागों में विभाजित कर उसके द्वारा कई वस्तुओं को एक साथ दिखाया जाए तो संश्लिष्ट दण्ड का निर्माण होता है। विभिन्न भागों में अलग-अलग Shade कर दिए जाते हैं ताकि विभिन्न वस्तुएं स्पष्टतया अलग दृष्टिगोचर हों। इस विधि से जल सिंचाई के विभिन्न साधन, शक्ति के विभिन्न साधन इत्यादि दिखाये जाते हैं।

4. प्रतिशत दण्ड आरेख (Percentage Bar)-किसी वस्तु के विभिन्न भागों को उस वस्तु के कुल मूल्य के प्रतिशत अंश के रूप में दिखाना हो तो प्रतिशत दण्ड बनाए जाते हैं। दण्ड की कुल लम्बाई 100% को प्रकट करती है।

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प्रश्न 6.
भारत में अनाज के कुल उत्पादन के आंकड़ों को दण्ड रेखाचित्र से प्रकट करो।

वर्ष उत्पादन (लाख मी० टन) ।
1982-83 1300
1983-84 1525
1984-85 1450
1985-86 1500
1986-87 1530

उत्तर-
रचना-

  • सबसे पहले एक आधार रेखा खींचो। इसके सिरों पर लम्ब रेखाएं खींचो।
  • बाईं ओर की लम्ब रेखा पर उत्पादन की मापनी निश्चित करो। जैसे 1″ = 500 लाख मी० टन।
  • आधार रेखा पर समय का पैमाना निश्चित करके विभिन्न वर्षों की स्थिति दिखाओ।
  • मापक के अनुसार प्रत्येक वर्ष के उत्पादन के लिए दण्ड रेखा की ऊंचाई ज्ञात करो।

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वर्ष उत्पादन दण्ड रेखा की लम्बाई
1982-83 1300 2.60″
1983-84 1525 3.05″
1984-85 1450 2.90″
1985-86 1500 3.00″
1986-87 1530 3.06″

आधार रेखा पर समान चौड़ाई वाले दण्ड खींचो तथा इन्हें काली छाया से सजाओ।

प्रश्न 7.
वृत्त चित्र किसे कहते हैं ? इनकी रचना तथा गुण-दोष बताओ।
उत्तर-
चक्र चित्र (Pie Diagram)-यह वृत्त चित्र (Circular Diagram) का ही एक रूप है। इसमें विभिन्न चित्र के जोड़ को एक वृत्त द्वारा दिखाया जाता है। फिर इस वृत्त को विभिन्न भागों (Sectors) में बांटकर विभिन्न राशियों का आनुपातिक प्रदर्शन अंशों में किया जाता है। इस चित्र को चक्र चित्र (Pie Diagram) पहिया चित्र (Wheel Diagram) या सिक्का चित्र (Coin Diagram) भी कहते हैं।

रचना-
इस चित्र में वृत्त का अर्धव्यास मानचित्र के आकार के अनुसार अपनी मर्जी से लिया जाता है। इसका सिद्धांत यह है कि कुल राशि वृत्त के क्षेत्रफल के बराबर होती है। एक वृत्त के केन्द्र पर 360° का कोण बनता है। प्रत्येक राशि के लिए वृत्तांश ज्ञात किए जाते हैं। इसलिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
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कई बार वृत्त के विभिन्न भागों को प्रभावशाली रूप से दिखाने के लिए इनमें भिन्न-भिन्न शेड (छायांकन) कर दिए जाते हैं।

गुण-दोष (Merits-Demerits)-

  • चक्र चित्र विभिन्न वस्तुओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयोगी है।
  • ये कम स्थान घेरते हैं। इन्हें वितरण मानचित्रों पर भी दिखाया जाता है।
  • इसका चित्रीय प्रभाव (Pictorial Effect) भी अधिक है।
  • इसमें पूरे आंकड़ों का ज्ञान नहीं होता तथा गणना करना कठिन होता है।

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प्रश्न 8.
भारत में भूमि उपयोग के आंकड़ों को चलाकृति चित्र से दिखाओ।

उपयोग क्षेत्रफल (लाख हेक्टेयर में)
(i) वन 650
(ii) कृषि अयोग्य भूमि 470
(iii)जोतरहित भूमि 330
(iv) परती भूमि 220
(v) अप्राप्य भूमि 230
(vi) बोयी गयी भूमि योग 1400
योग 3300

 

रचना-प्रत्येक राशि के लिए वृत्तांश ज्ञात करो जब कि कुल योग के लिए कोण 360° है।
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एक वृत्त बनाकर प्रत्येक कोण काट कर उपविभाग करके, हर वृत्त खण्ड में छायांकन करके नाम लिखो।
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प्रश्न 9.
विषयक नक्शे (Thematic Maps) से क्या अभिप्राय है ? इनमें ज़रूरत की वस्तुएं बनाने के लिए तरीके, ज़रूरत तथा महत्ता का वर्णन करो।
उत्तर-
विषयक नक्शे-आंकड़ों की विशेषताएं दर्शाने के लिए तथा तुलना करने के लिए ग्राफ तथा चित्र एक महत्त्वपूर्ण रोल अदा करते हैं। पर क्षेत्रीय परिदृश्य दिखाने के लिए चित्र तथा ग्राफ सफल नहीं रहते। इसलिए स्थानीय भिन्नता को दिखाने के लिए क्षेत्र विभाजन को समझने के लिए कई तरह के नक्शे बनाये जाते हैं। विषयक नक्शे वह नक्शे हैं जो धरती के किसी भाग के किसी तत्त्व के वितरण की मूल्य अथवा घनत्व को प्रकट करते हैं।

I. विषयक नक्शे बनाने के लिए ज़रूरत की वस्तुएँ (Requirement for Making Thematic Maps)

  1. चुने हुए क्षेत्र सम्बन्धी आंकड़े।
  2. ज़रूरत के क्षेत्र का प्रबंधन सीमाओं रहित नक्शा
  3. सम्बन्धित क्षेत्र का भौतिक नक्शा।

विषयक नक्शे बनाने के लिए आम नियम (Rules for Making Thematic Maps)-विषयक नक्शे सावधानी से योजना बना कर बनाये जाने आवश्यक हैं। पूर्ण तौर पर तैयार नक्शा निम्नलिखित जानकारी देता है-

  1. क्षेत्र का नाम पता चलता है।
  2. विषय का शीर्षक
  3. आंकड़ों के स्रोत तथा वर्ष
  4. चिह्न, प्रतीकों, रंगों की गहराइयां, इत्यादि की सूचना ।
  5. पैमाना

II. विषयक नक्शे के लिए योग्य तरीके का चुनाव (To choose Appropriate ways for Thematic Maps)-

विषयक नक्शे की ज़रूरत (Need for Thematic Maps)—शुरू में किसी वस्तु के वितरण को दर्शाने के लिए नाम लिखने की विधि का प्रयोग किया जाता है। इस क्षेत्र में जो चीज़ पैदा होती थी, वहाँ उस चीज़ का नाम लिख दिया जाता था। जिस प्रकार भारत में चावल का उत्पादन दिखाने के लिए गंगा के डेल्टा में Rice लिखा जाता है। पर इस विधि के द्वारा न तो चीज़ के कुल उत्पादन तथा न ही उत्पादन क्षेत्र का सही पता चलता था। इसलिए विषयक नक्शे बनाए गए जिनमें वैज्ञानिक शुद्धता हो। भूगोल में अलग-अलग तथ्यों की पुष्टि करने के लिए कई तरह के आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है। यह आंकड़े तालिकाओं के रूप में दिखाए जाते हैं। इन आंकड़ों का अध्ययन बड़ा नीरस तथा मुश्किल होता है तथा बहुत समय में ही नष्ट होता है। आंकड़ों को इकट्ठा देखकर किसी नतीजे पर पहुँचना मुश्किल होता है। इसलिए इन आंकड़ों को वितरण नक्शों के द्वारा
दर्शाकर दिमाग पर एक वास्तविक चित्र की छाप छोड़ी जाती है।

गुण (Advantages)-

  • यह आर्थिक भूगोल के अध्ययन के लिए विशेष रूप में महत्त्वपूर्ण है। धरती के अलगअलग साधन तथा मनुष्य का संबंध इन शक्तियों द्वारा स्पष्ट रूप में दर्शाया जा सकता है।
  • इन नक्शों द्वारा कारण तथा प्रभाव का नियम स्पष्ट हो जाता है। वस्तु विशेष के वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक तथ्य समझ में आ जाते हैं।
  • आंकड़ों की लम्बी-लम्बी तालिकाओं को याद रखना मुश्किल हो जाता है पर विषयक नक्शे किसी तथ्य की दिमाग पर स्थाई छाप छोड़ते हैं।
  • इनका उपयोग शिक्षा सम्बन्धी कामों के लिए किया जाता है।
  • इन नक्शों द्वारा एक नज़र में ही किसी वस्तु के वितरण का तुलनात्मक अध्ययन हो जाता है।
  • इन नक्शों द्वारा क्षेत्रफल तथा उत्पादन की मात्रा का तुलनात्मक अध्ययन हो जाता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रश्न 10.
बिन्दु मानचित्र से क्या अभिप्राय है ? इसकी रचना के लिए क्या आवश्यकताएं हैं ? इसकी रचना सम्बन्धी समस्याओं का वर्णन करो तथा गुण दोष बताओ।
उत्तर-
बिन्दु मानचित्र (Dot Maps)-इस विधि के अन्तर्गत किसी वस्तु के उत्पादन तथा वितरण के आंकड़ों को बिन्दुओं द्वारा प्रकट किया जाता है। ये बिन्दु समान आकार के होते हैं। प्रत्येक बिन्दु द्वारा एक निश्चित संख्या (Specific Value) प्रकट की जाती है। जब किसी वस्तु की निश्चित संख्या तथा मात्रा (Absolute Figures) उपलब्ध हों। वितरण मानचित्र बनाने की यह सबसे अधिक प्रचलित सर्वोत्तम विधि है। (This is the most common method used for showing the distribution of population, livestock, crops, minerals etc.)

बिन्दु मानचित्र बनाने के लिए आवश्यकताएं (Requirements for drawing Dot Maps)-बिन्दु विधि द्वारा मानचित्र बनाने के लिए कुछ चीज़ों की आवश्यकता होती है।
1. निश्चित आंकड़े (Definite and Detailed Data)—जिस वस्तु का वितरण प्रकट करना हो उसके सही सही आंकड़े उपलब्ध होने चाहिएं। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों (Administrative Units) के आधार पर होने चाहिए। जैसे जनसंख्या, तहसील या जिले के अनुसार होनी चाहिए।

2. रूप रेखा मानचित्र (Outline Map)-उस प्रदेश का एक सीमा चित्र हो जिसमें ज़िले या राज्य इत्यादि शासकीय भाग दिखाए हों। यह सीमा चित्र समक्षेत्र प्रक्षेप (Equal Area Projection) पर बना हो।

3. धरातलीय मानचित्र (Relief Map)-उस प्रदेश का धरातलीय मानचित्र हो जिसमें Contours, Hills, Marshes इत्यादि धरातल की आकृतियां दिखाई गई हों।

4. जलवायु मानचित्र (Climatic Map)-उस प्रदेश का जलवायु मानचित्र हो जिसमें वर्षा तथा तापमान का ज्ञान हो सके।

5. मृदा मानचित्र (Soil Map)–विभिन्न कृषि पदार्थों की उपज वाले मानचित्रों में भूमि के मानचित्र आवश्यक हैं क्योंकि हर प्रकार की मिट्टी का उपजाऊपन विभिन्न होता है।

6. स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical Map)-जनसंख्या के वितरण के लिए भूपत्रक मानचित्रों की आवश्यकता होती है जिनमें शहरी (Urban) तथा ग्रामीण (Rural Settlements), नगर, आवागमन के साधन और नहरें इत्यादि प्रकट की होती हैं।

रचना विधि (Procedure)-

  • वितरण मानचित्र की सभी आवश्यक सामग्री को इकट्ठा कर लेना चाहिए।
  • मानचित्र पर प्रशासकीय इकाइयों (Administrative Units) को दिखाओ।
  • राजनीतिक या प्रशासनिक इकाइयों के विस्तार को देखकर तथा आंकड़ों के कम-से-कम और अधिक-से अधिक मूल्य को देखकर बिन्दु का मूल्य ज्ञात करो।
  • प्रत्येक इकाई के लिए बिन्दुओं की संख्या गिनकर पूर्ण अंक बनाओ।
  • प्रत्येक इकाई में बिन्दुओं की संख्या हल्के हाथ से पेंसिल से लिख दो।
  • धरातल, जलवायु और मिट्टी के मानचित्रों की सहायता से उस क्षेत्र में नकारात्मक प्रदेश (Negative Areas) को ज्ञात करो और मानचित्र में पेंसिल से अंकित करो ताकि इन स्थानों को रिक्त छोड़ा जा सके।
  • बिन्दुओं के आकार को समान कर लो।
  • घनत्व के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में बिन्दु प्रकट करके मानचित्र बनाओ।

बिन्दु मानचित्र की समस्याएं (Problems of Dot Map)

1. बिन्दुओं का मान (Value of Dot)—बिन्दुओं को अंकित करने से पहले एक बिन्दु का मूल्य निश्चित कर लेना चाहिए। (The success of the map depends upon the choice of the value of a dot.) मानचित्र को प्रभावशाली बनाने के लिए बिन्दु का मूल्य ध्यानपूर्वक निश्चित करना चाहिए। कई बार गलत मूल्य के कारण बिन्दुओं की संख्या बहुत अधिक हो जाती है या बहुत थोड़ी रह जाती है। मापक या मूल्य ऐसा निश्चित करना चाहिए जिसमें क्षेत्र में बिन्दुओं की संख्या इतनी अधिक न हो कि उन्हें गिनना कठिन हो जाए। बिन्दुओं की संख्या इतनी कम भी न हो कि कुछ प्रदेश खाली रह जायें। मूल्य का चुनाव निश्चित करना तीन बातों पर निर्भर करता है-

  1. मानचित्र का मापक (Scale of the Map)
  2. अधिकतम तथा न्यूनतम आंकड़े (Maximum of Minimum Figures)
  3. प्रदर्शित तत्त्व का प्रकार (Type of the Element)

1. मानचित्र का मापक (Scale of the Map)–यदि मानचित्र लघु मापक (Small Scale) पर बना हुआ है तो बिन्दुओं की संख्या बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए। एक बिन्दु का मूल्य अधिक होना चाहिए ताकि बिन्दुओं की संख्या इतनी हो जो उस छोटे मानचित्र में अंकित की जा सके नहीं तो अधिक बिन्दुओं के कारण मानचित्र
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का प्रभाव स्पष्ट नहीं होगा। (The areas having low density will also appear dark and give a misleading idea.) यदि मानचित्र दीर्घ मापक पर हो तो एक बिन्दु का मूल्य बहुत अधिक नहीं होना चाहिए। एक बिन्दु के अधिक मूल्य के कारण कई क्षेत्रों में बिन्दुओं की संख्या बहुत कम होगी। (With very few dots the map will look blank.)

2. बिन्दुओं को लगाना (Placing of Dots)-बिन्दु मानचित्र बनाते समय ऋणात्मक क्षेत्र (Negative Areas) में बिन्दु नहीं लगाने चाहिएं। ऐसे क्षेत्र प्रायः दलदली भागों में, मरुस्थलों में, पर्वतों पर या बंजर भूमि में मिलते हैं। ये क्षेत्र धरातलीय मानचित्र, मृदा मानचित्र तथा जलवायु मानचित्र की सहायता से मानचित्र पर लगाये जा सकते हैं। इन स्थानों को रिक्त छोड़ दिया जाता है क्योंकि यहां उत्पादन असम्भव होता है। दीर्घ मापक मानचित्र पर क्षेत्र आसानी से दिखाये जा सकते हैं परन्तु लघु मापक मानचित्रों पर इन्हें दिखाना बहुत कठिन होता है।

  • बिन्दुओं की अधिक संख्या के कारण बिन्दु एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। (Dots should not merge together) इसमें मानचित्र पर संख्या गिनना असम्भव हो जाता है।
  • बिन्दु बिखरे हुए रूप में लगाना चाहिए अन्यथा नियमित बिन्दुओं के कारण समान वितरण दिखाई देगा (Straight rows of dots should be avoided.) जैसे कि शेडिंग मानचित्र (Shading Map) में दिखाई देता है। यह भौगोलिक नियम के विपरीत भी है। क्योंकि उत्पादन में विभिन्नता होती है।
  • गुरुत्वीय केन्द्र (Centre of Gravity)-बिन्दु अंकित करते समय प्रत्येक बिन्दु अपने चित्र के आकर्षण केन्द्र को प्रकट करे जैसे जनसंख्या मानचित्र में बिन्दुओं के केन्द्र नगरों के स्थान पर लगाने चाहिए।
  • अधिक उत्पादन के क्षेत्रों में इकट्ठे होने चाहिए।

3. बिंदुओं का आकार (Size of the Date)-बिन्दु मानचित्र की शुद्धता और सुन्दरता इस बात पर निर्भर करती है कि प्रत्येक बिन्दु समान आकार का हो। इनका आकार दो बातों पर निर्भर करता है –

(a) मानचित्र मापक (Scale of the Map)
(b) बिन्दुओं की संख्या (Number of Dots)

यदि मानचित्र दीर्घ मापक पर बना हुआ है तो बिन्दु कुछ बड़े हो सकते हैं, परन्तु लघु मापक मानचित्रों पर बिन्दुओं का आकार अपेक्षाकृत छोटा होगा। इसी प्रकार यदि बिन्दुओं की संख्या अधिक है तो भी बिन्दु का आकार छोटा होगा। बिन्दुओं को समान आकार करने के लिए विशेष प्रकार की निब प्रयोग की जाती है जैसे

गुण (Merits)-

  • यह मानचित्र किसी वस्तु के क्षेत्रफल के साथ-साथ उसका मूल्य या मात्रा भी प्रकट करते (This method is both Quantitative and qualitative.)
  • मानचित्रों में नकारात्मक क्षेत्रों को खाली छोड़ा जा सकता है (Waste land can be avoided.)।
  • यह मानचित्र मस्तिष्क पर एक छाप छोड़ जाते हैं कि कहां उत्पादन अधिक है और कहां कम है। (It gives visual impression)।
  • इन मानचित्रों में रंग का गहरापन उत्पादन की मात्रा के अनुसार होता है। इसलिए ये मानचित्र वितरण के स्वरूप (Pattern of Distribution) को ठीक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। इस विधि द्वारा बिन्दुओं को सरलतापूर्वक गिना जा सकता है और बिन्दुओं को पुनः आंकड़ों में बदला जा सकता है। इस प्रकार किसी वस्तु की मात्रा का भी – सही ज्ञान हो जाता है।
  • इन मानचित्रों को शेडिंग मानचित्र (Shading Map) में बदला जा सकता है। अधिक बिन्दुओं वाले क्षेत्र को शेड (Shade) में पूरा दिखाया जा सकता है। एक ही मानचित्र कई अन्य क्षेत्रों के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। जैसे Markets Fairs, Coal Fields, Villages इत्यादि दिखाने के लिए यह एक शुद्ध विधि है जिनमें वितरण तथा तीव्रता ठीक प्रकार से दिखाई जा सकती है।

दोष (Demerits)-

  • एक ही मानचित्र पर एक से अधिक वस्तुओं का वितरण नहीं दिखाया जा सकता।
  • इनके बनाने में काफ़ी समय लगता है और यह कठिन कार्य है।
  • इनका प्रयोग शिक्षा सम्बन्धी कार्यों में किया जाता है, परन्तु वैज्ञानिक कार्यों के लिए समान रेखा विधि (Isopleth) का प्रयोग किया जाता है।
  • यह मानचित्र अनुपातों, प्रतिशत तथा औसत आंकड़ों के लिए प्रयोग नहीं किए जा सकते। (This method cannot be used for ratios and percentages and average figures.)
  • बिन्दु अधिक स्थान घेरते हैं।

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वर्णमात्री मानचित्र (Shading Map)

प्रश्न 11.
वर्णमात्री मानचित्र किसे कहते हैं ? इसका सिद्धान्त क्या है ? इसकी रचना, विधि तथा गुण-दोष का वर्णन करो।
उत्तर-
वर्णमात्री मानचित्र (Shading Map)-इस विधि को Choropleth Method भी कहते हैं। इस विधि में किसी एक वस्तु के वितरण को मानचित्र पर विभिन्न आभाओं या रंगों द्वारा प्रकट किया जाता है। (In this method distribution of an element is shown by different shades.) forest 3412 Black and white shading को प्रयोग करना उचित समझा जाता है।

सिद्धान्त (Principle of Shading)-जैसे-जैसे किसी वस्तु में वितरण का घनत्व बढ़ता जाता है उसी प्रकार आभा (Shade) भी अधिक गहरी होती जाती है। (The lighter shades show lower densities and deeper shades show higher densities.) आभा को अधिक सघन करने के कई तरीके हैं-

  • बिन्दुओं का आकार बड़ा करके (Be enlarging the dots)
  • रेखाओं को मोटा करके (By thickening the lines)
  • रेखाओं को निकट करके (By bringing the lines closed together)
  • रेखा जाल बनाकर (By crossing the lines)।
  • रंगों को गहरा करके (By increasing the depth of the colour) प्रत्येक मानचित्र के नीचे Scheme of shades का एक सूचक (Index) दिया जाता है।

रचना विधि (Procedure)-

  • किसी वस्तु के निश्चित आंकड़े प्राप्त करो। ये आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों के आधार पर हों।
  • ये आंकड़े औसत के रूप में हों या प्रतिशत या अनुपात के रूप में, जैसे जनसंख्या का घनत्व।
  • घनत्व को प्रकट करने के लिए उचित अन्तराल (Interval) चुन लेना चाहिए।
  • अन्तराल के अनुसार Shading का सूचक मानचित्र के कोने में बनाना चाहिए।
  • यह आभा घनत्व के अनुसार गहरी होती चली जाए।
  • प्रत्येक प्रशासकीय इकाई में घनत्व के अनुसार शेडिंग करके मानचित्र तैयार किया जा सकता है।

समस्याएं (Problems) –

1. प्रशासकीय इकाई का चुनाव (Choice of Administrative Unit)-प्रायः आंकड़े प्रशासकीय इकाइयों .. के आधार पर एकत्रित किए जाते हैं, जिसे ज़िले या तहसील के अनुसार मानचित्र बनाने के लिए सबसे पहले
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प्रशासकीय इकाई का चुनाव करना होता है। प्रशासकीय इकाई न बड़ी होनी चाहिए और न बहुत छोटी। यदि काफ़ी बड़ी इकाई को चुन लिया जाए तो मानचित्र से भ्रम उत्पन्न हो सकता है कि इतने बड़े क्षेत्र में समान वितरण है। कई बार कई आंकड़े छोटी इकाइयों के आधार पर उपलब्ध नहीं होते इसलिए उस दशा में बड़ी
इकाइयां चुनी जाती हैं :

2. अन्तराल का चुनाव (Choice of Intervals)-घनता के अनुसार शेडिंग में अन्तर रखा जाता है। इसी अन्तर के अनुसार Scheme of Shading या Scale of Densities या सूचक बनाया जाता है। इस उद्देश्य के लिए सारे आंकड़ों को कुछ वर्गों में बांटा जाता है। यह वर्ग बनाते समय इन आंकड़ों की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।

  • अधिकतम संख्या (Maximum Figures)
  • निम्नतम संख्या (Minimum Figures)
  • मध्यम संख्या (Intermediate Figures)

श्रेणियों की संख्या काफ़ी होनी चाहिए ताकि प्रत्येक इकाई का सापेक्षित महत्त्व (Comparative importance) स्पष्ट रूप से दिखाई दे। बहुत अधिक श्रेणियां नक्शे पर गड़बड़ कर देती हैं और बहुत कम श्रेणियों के कारण वितरण की विभिन्नता प्रकट नहीं होती। (Too many categories can be confusing and too few categories can result in little differentiation.) प्रायः अंतराल नियमित (Regular) होता है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि हर श्रेणी में अन्तर समान हो।

गुण (Merits)-

  • इस विधि के द्वारा किसी वस्तु के क्षेत्रीय घनत्व (Areal Density) के औसत वितरण को प्रकट किया जा सकता है। (It is useful for showing average figures of percentage or ratios.)
  • यह विधि अधिकतर फसलें, पशु, भू-उपयोग और जनसंख्या घनत्व को प्रकट करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसके लिए क्षेत्रफल की प्रत्येक इकाई (Per unit area) के औसत आंकड़े दिए जाते हैं जैसे Number of persons per sq. km. 41 Number or livestock per sq. km 4 Yield of a crop per hectare.
  • एक जैसे प्रभाव के कारण यह रंग विधि से मिलता-जुलता है। (This method is somewhat similar to colour method.)
  • विभिन्न रंग प्रयोग करने से ये मानचित्र मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ जाते हैं। (It gives visual impression to the Mind.)
  • यह मानचित्र गुणात्मक होते हैं जिनमें केवल क्षेत्रफल के साथ-साथ आंकड़ों का ज्ञान हो जाता है।
  • इस विधि से विभिन्न प्रकार के अन्य मानचित्र भी बनाए जा सकते हैं।
  • जनसंख्या के घनत्व को प्रकट करने के कारण इसे मानवीय भूगोल का मुख्य उपकरण कहा जाता है।
    (Choropleth map is the Chief tool of human Geography.)

दोष (Demerits)-

  • ऐसे मानचित्रों के लिए आंकड़े इकट्ठे करना कठिन होता है।
  • इन मानचित्रों से केवल औसत का ही पता चलता है तथा कुल उत्पादन का अनुमान लगाना कठिन है।
  • इस विधि द्वारा किसी क्षेत्र में समान वितरण (Uniform Distribution) प्रकट किया जाता है जोकि भौगोलिक नियम के अनुसार नहीं है। किसी क्षेत्र के विभिन्न भागों में उत्पादन विभिन्न होता है।
  • प्रायः अधिक घनत्व वाले छोटे क्षेत्र अधिक महत्त्वपूर्ण दिखाई देते हैं जबकि किसी बड़े क्षेत्र में बहुत अधिक उत्पादन है, परन्तु औसत घनत्व कम है। ऐसा क्षेत्र अधिक उत्पादन होते हुए भी कम महत्त्वपूर्ण दिखाई देगा।
  • इस विधि द्वारा ऋणात्मक प्रदेश में भी उत्पादन प्रकट किया जाता है। जैसे मरुस्थल, दलदल, झील इत्यादि ऐसे क्षेत्रों में कुछ भी उत्पन्न नहीं होता, परन्तु वहां उत्पादन अंकित होता है।

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प्रश्न 12.
सम मान रेखा मानचित्र किसे कहते हैं ? इसके विभिन्न प्रकार बताओ। इन मानचित्रों की रचना कैसे की जाती है ? इनके गुण तथा दोष बताओ।
उत्तर-
सम मान रेखाएं (Isopleths)-शब्द Isopleth दो शब्दों के जोड़ से बना है (Isos + plethron) | Isos शब्द का अर्थ है समान तथा Plethron शब्द का अर्थ है मान। इस प्रकार समान रेखाएं वे रेखाएं हैं जिनका मूल्य, तीव्रता तथा घनत्व समान हो। ये रेखाएं उन स्थानों को आपस में जोड़ती हैं । जनका मान (Value) समान हो। (Isopleths are lines of equal value in the form of quantity, intensity and density.)

ससमान रेखाओं के प्रकार (Types of Isopleths)-विभिन्न तत्त्वों को दिखाने वाली सम मान रेखाओं को निम्नलिखित नामों से पुकारा जाता है।

  • समदाब रेखाएं (Isobars)-समान वायु दाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समदाब रेखा कहते हैं।
  • समताप रेखाएं (Isotherms)—समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समताप रेखा कहते
  • समवृष्टि रेखा (Isohyetes)—समान वर्षा वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समवृष्टि रेखा कहते हैं।
  • समोच्च रेखाएं (Contours) समान ऊंचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को समोच्च रेखा कहते हैं।
  • सममेघ रेखा (Iso Neph) समान मेघावरण वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा को सममेघ रेखा कहते हैं।
  • अन्य (Others)-जैसे समगम्भीरता रेखा (Isobath), समलवणता रेखा (Iso-Haline) समभूकम्प रेखा (Iso Seismal), समधूप रेखा (Isohets) अन्य उदाहरण हैं।

समान रेखाओं की रचना (Drawings of Isopleths)-

  • सम्बन्धित क्षेत्र का रूपरेखा मानचित्र (Outline Map) की आवश्यकता होती है। इस मानचित्र पर सभी स्थानों की स्थिति अंकित हो।
  • इस क्षेत्र के अधिक-से-अधिक स्थानों के आंकड़े प्राप्त होने चाहिएं।
  • अधिकतम तथा न्यूनतम आंकड़ों के अनुसार इन रेखाओं के मध्य अन्तराल (Interval) चुनना चाहिए। अन्तराल या समान रेखाओं की संख्या न तो कम हो और न ही अधिक हो।
  • अन्तराल का चुनाव किसी तत्त्व के परिवर्तन की दर पर निर्भर करता है। बड़े क्षेत्र पर दूर-दूर स्थित रेखाएं मन्द परिवर्तन प्रकट करती हैं। यदि परिवर्तन दर तीव्र हो तथा क्षेत्र कम हो तो ये रेखाएं उपयोगी सिद्ध नहीं होती।
  • समान मान वाले स्थानों को मिलाकर समान रेखाएं खींची जाती हैं। यदि समान मूल्य वाले स्थान प्राप्त न हों तो विभिन्न मूल्य वाले स्थानों के बीच समानुपात दूरी पर इन रेखाओं का अन्तर्वेशन किया जाता है।
  • कई बार विभिन्न मूल्य क्षेत्रों को अलग-अलग स्पष्ट करने के लिए इन आभाओं (Shades) या रंगों का प्रयोग भी किया जाता है।

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गुण (Merits)-

  • समान रेखाएं वर्षा, तापमान इत्यादि आंकड़ों के परिवर्तन को शुद्ध रूप से प्रदर्शित करती हैं।
  • ये रेखाएं किसी स्थान पर उपस्थित मूल्य को प्रकट करती हैं।
  • अन्य विधियों की अपेक्षा यह एक अधिक वैज्ञानिक विधि है।
  • बिन्दु मानचित्र तथा वर्णमात्री को समान रेखा मानचित्रों में बदला जा सकता है।
  • इन मानचित्रों का प्रशासकीय इकाइयों में कोई सम्बन्ध नहीं होता।

दोष (Demerits)-

  • सममान रेखाओं का अन्तर्वेशन एक कठिन कार्य है।
  • यदि आंकड़े अनेक स्थानों पर प्राप्त न हों तो ये मानचित्र नहीं बनाए जा सकते।
  • घनत्व में अधिक तथा तीव्र परिवर्तन हो, तो ये मानचित्र अर्थपूर्ण नहीं रहते।
  • सममान रेखा मानचित्रों पर ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या को एक साथ नहीं दिखाया जा सकता।

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उपयोग (Uses)-

  • इन मानचित्रों का उपयोग जलवायु सम्बन्धी आंकड़े दिखाने के लिए किया जाता है।
  • इन रेखाओं द्वारा प्रतिशत या अनुपात के आंकड़े भी दिखाए जाते हैं।
  • इन मानचित्रों पर जनसंख्या घनत्व प्रतिवर्ग किलोमीटर, पशु संख्या, प्रति संख्या, प्रति एकड़ उत्पादन इत्यादि आंकड़े भी दिखाए जाते हैं।

प्रश्न 13.
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) पर नोट लिखो।
उत्तर-
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम एक सैटेलाइट आधारित नेवीगेशन सिस्टम है। जो किसी स्थान तथा समय जैसी सूचना प्रदान करती हैं। यह सिस्टम यू० एस० ए० के एक डिपार्टमैंट ऑफ़ डीफैंस द्वारा बनाया गया था जो कि 24 से 32 मीडीयम अर्थ ओरबिट सैटेलाइट के Microweight को बिल्कुल सही जानकारी देने के काम आता है। GPS का सबसे पहले सिर्फ Miltary Applications के उपयोग के लिए बनाया गया था। परंतु 1983 में US सरकार ने सिस्टम को पब्लिक प्रयोग के लिए खोलने की घोषणा कर दी तथा 1994 में पब्लिक के लिए खोल दिया गया। GPS स्थान तथा समय के साथ ही किसी भी जगह का पूरे दिन का मौसम बताने के भी काम आता है।
आजकल हम टैक्नोलॉजी का उपयोग स्मार्टफोन के लिए भी कर रहे हैं। जिसके द्वारा हम अपनी Location पता कर सकते हैं। यह सिस्टम ऐयरक्राफ्ट, रेलों तथा बसों जैसे यातायात के साधनों के लिए काफ़ी उपयोगी सिद्ध हुआ है। अगर हम किसी अज्ञात नंबर के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो हमें GPS की सहायता के साथ नंबर ट्रेस कर सकते

GPS कैसे काम करता है ?
GPS रिसीवर के साथ काम करता है जो सैटेलाइट में मिले डाटा को गिनता है। इस काऊंट (Count) को Traingulation कहते हैं। यहाँ पोजीशन को कम-से-कम एक बार में तीन सैटेलाइट की सहायता से पता किया जाता है। Position Longitude तथा Latitude के साथ दिखाई जाती है। यह 10 से 100 मीटर की रेंज में सही होती है। इसको अलग ऐप्लीकेशन तथा सॉफ्टवेयर अपने हिसाब से काम में लेते हैं।

जी०पी०एस० के मुख्य रूप में तीन हिस्से होते हैं-

  • अंतरिक्ष हिस्सा (Space Segment)—इसमें 24 उपग्रह शामिल हैं जो कि लगातार धरती के आस-पास घूमते-फिरते हैं। फरवरी 2016 में उपग्रहों की संख्या बढ़ाकर 32 कर दी गई है। इनमें से 31 उपग्रह लगातार सिग्नल भेजते रहते हैं। समय तथा मौसम का इनके काम पर कोई असर नहीं होता। जी०आई०एस० को सब तरह की जानकारी की ज़रूरत अनुसार दर्शाया जाता है। इसकी सहायता से जनसंख्या, आमदन, शिक्षा इत्यादि सम्बन्धी आंकड़ों का अध्ययन किया जाता है।
  • कंट्रोल हिस्सा (Control Segment)-इस हिस्से की सहायता से सारा जी०पी० एस० सिस्टम कंट्रोल किया जाता है। यह कंट्रोल अमेरिका की सरकार के हाथ में है।
  • उपयोगी हिस्सा (User Segment)-इस हिस्से में वह सारे उपकरण आते हैं जिनके द्वारा जी०पी०एस० सिस्टम का प्रयोग किया जाता है। यह उपकरण कार, मोबाइल, घड़ी इत्यादि भी हो सकते हैं।

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प्रश्न 14.
क्षेत्रीय प्रेक्षण से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी ज़रूरत तथा कार्य प्रणाली पर नोट लिखो।
उत्तर-
क्षेत्रीय प्रेक्षण-अन्य विज्ञानों की तरह भूगोल भी एक क्षेत्रीय विज्ञान भी है। इसलिए एक अच्छी तथा योजनाबद्ध क्षेत्रीय प्रेक्षण भौगोलिक जांच के पूरक होते हैं। इस प्रकार का प्रेक्षण स्थानिक वितरण तथा स्थानिक स्तर तथा उनके सम्बन्धों के प्रति हमारी समझ को बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय प्रेक्षण स्थानिक स्तर की जानकारी इकट्ठी करने में भी हमारी सहायता करता है जिसको दूसरे दर्जे के स्रोतों से हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए क्षेत्रीय प्रेक्षण ज़रूरत अनुसार जानकारी इकट्ठी करने के लिए किए जाते हैं।

भूगोल में क्षेत्रीय प्रेक्षण की ज़रूरत-भूगोल में क्षेत्रीय प्रेक्षण की काफ़ी महत्ता है।

  • इस प्रेक्षण के द्वारा स्थानिक वितरण तथा स्थानिक स्तर पर उनके सम्बन्ध प्रति हमारी समझ में वृद्धि होती है।
  • कई बार प्रकाशित आंकड़े भौगोलिक वैज्ञानिक के लिए पूरे नहीं होते इस समय सामाजिक-आर्थिक अलग अलग पक्षों का ज्ञान आवश्यक होता है. ऐसा ज्ञान हमें क्षेत्रीय प्रेक्षण द्वारा ही पता चलता है।
  • हम भौगोलिक प्रेक्षण द्वारा फस्टहैंड जानकारी एकत्र कर सकते हैं। इसलिए मनुष्य का पर्यावरण के साथ सम्बन्ध इत्यादि को समझने के लिए भूगोल में क्षेत्रीय प्रेक्षण की ज़रूरत है।

क्षेत्रीय प्रेक्षण की कार्य प्रणाली-इसकी कार्य प्रणाली को निम्नलिखित हिस्सों में विभाजित किया जाता है-

  • समस्या को परिभाषित करना (Defining the Problem)-सबसे पहले जिस समस्या का अध्ययन करना होता है उसको अच्छी तरह परिभाषित किया जाता है। समस्या स्वरूप को संक्षिप्त रूप से बताने वाले वाक्यों के साथ ऐसा किया जाता है। इसको प्रेक्षण के शीर्षक या उप शीर्षक से दर्शाया जाना चाहिए।
  • उद्देश्य (Objective)-उद्देश्यों को निर्धारित करना इस प्रेक्षण का दूसरा कार्य है। क्योंकि इस प्रेक्षण की रूप रेखा होते हैं तथा इनके द्वारा ही आंकड़े एकत्र करने के ढंग तथा विश्लेषण के तरीके का चुनाव होता है।
  • क्षेत्र (Scope)-अध्ययन किए जाने वाले भौगोलिक क्षेत्र जांच का समय तथा अगर आवश्यकता हो तो अध्ययनों का विषय निर्धारित करना भी किसी हद तक आवश्यक होता है। यह निर्धारण पहले निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति, नतीजों तथा उनके अमल के लिए भी उपयोगी है।

उपकरण तथा तकनीकें (Tools and Techniques of Information Collection)-असलियत में चुनी हुई समस्या की जानकारी एकत्र करने को क्षेत्रीय प्रेक्षण का नाम दिया जाता है। इसके लिए हमें कई उपकरणों की आवश्यकता होती है। इनमें नक्शे, आंकड़े, क्षेत्रीय निरीक्षण, सवाल, सारणी इत्यादि प्रारम्भिक तथा दूसरे दर्जे के स्रोतों को शामिल किया जाता है जैसे कि-

  • दर्ज तथा प्रकाशित आंकड़े (Recorded and Published Data)-इन आंकड़ों द्वारा हमें आंकड़ों के सम्बन्धी आधारभूत जानकारी प्राप्त होती है। यह आंकड़े हमें सरकारी संगठनों, एजेंसियों इत्यादि से मिलते हैं।
  • क्षेत्रीय सर्वेक्षण (Field Observations)-इस सर्वेक्षण का उत्तम होना खोजी निरीक्षण द्वारा जानकारी एकत्र करने की योग्यता पर आधारित है। क्षेत्रीय सर्वेक्षण का असल उद्देश्य भौगोलिक व्यवहारों के लक्षणों तथा संबंधों का निरीक्षण करना होता है। निरीक्षण के पूरक के तौर पर भी जानकारी एकत्र करने के लिए कुछ तकनीकों की जैसा कि स्कैच तथा फोटोग्राफी का प्रयोग किया जाता है।
  • माप-कुछ क्षेत्रीय सर्वेक्षण के लिए घटनाओं इत्यादि के लिए माप की आवश्यकता पड़ती है। इस द्वारा विस्तार के साथ विश्लेषण किया जा सकता है।

इंटरव्यू-जो सर्वेक्षण सामाजिक मुद्दों के साथ सम्बन्ध रखते हों की जानकारी निजी इंटरव्यू द्वारा एकत्र की जाती है। परंतु इस प्रकार जानकारी एकत्र करना, इंटरव्यू लेना, बल की क्षमता, समझ, व्यवहार तथा सम्बन्धों पर निर्भर करती है।

1. उपकरण (Tools) इंटरव्यू के लिए प्रश्न सारणियां तथा शैड्यूल बनाने चाहिए।

2. आधारभूत जानकारी-इंटरव्यू करते समय कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी जैसे कि स्थानों, इंटरव्यू देने वाले व्यक्ति का सामाजिक इतिहास इत्यादि नोट करना आधारभूत जानकारी है।

3. फैलाव (Coverage)-सर्वेक्षक को तय करना चाहिए कि सर्वेक्षण सारी जनसंख्या का होगा या नमूने पर आधारित होगा।

4. अध्ययन की इकाइयां-अध्ययन के तत्त्वों को विस्तार तथा स्पष्टता के साथ परिभाषित करना आवश्यक है इसके साथ ही अध्ययन के फैलाव का फैसला भी आवश्यक है।

5. नमूने का खाका (Sample of Design)-सैंपल सर्वेक्षण का खाका, सर्वेक्षण के उद्देश्य, जनसंख्या विभिन्नताओं, समय तथा खर्च का ध्यान रखना भी आवश्यक है।

6. सावधानियां-इंटरव्यू इत्यादि अधिक संवेदनशील क्रियाएं हैं। इसलिए इनको अधिक ध्यान तथा सावधानी के साथ करना चाहिए। क्योंकि इसमें मानवीय समूह शामिल होते हैं। सही जानकारी प्राप्त करने के लिए आपको जाहिर करना पड़ेगा कि आप उनमें ही हो। इंटरव्यू करते समय इस बात का ध्यान रखो कि कोई व्यक्ति अपनी मौजूदगी कारण कोई दखलअंदाजी न करे।

7. संकलन तथा लेखा (Compilation and Computation)-निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति तथा एकत्र की गई जानकारी को संगठित करना पड़ता है। अध्ययन के उपविषयों के अनुसार लिखित, स्कैच, फोटो अध्ययनों इत्यादि को संगठित किया जाता है तथा प्रश्न-सारणी तथा शैड्यू पर आधारित जानकारी को सारणीबद्ध भी किया जाता है।

8. मानचित्रकारी प्रसंगता (Cartographic Application) हम नक्शे, चित्र, ग्राफ बनाने तथा उन्हें सही तथा साफ बनाने के लिए कम्प्यूटर के प्रयोग के बारे में भी सीख चुके हैं। व्यवहारों में विभिन्नताओं का दिशा प्रभाव प्राप्त करने के लिए चित्र तथा ग्राफ बहुत फायदेमंद हैं।

9. पेशकारी-क्षेत्रीय अध्ययन की संपूर्ण तथा स्पष्ट रिपोर्ट में कार्यशैली, प्रयोग में लाये उपकरण तथा तकनीकों का विस्तार सहित वर्णन होना आवश्यक है। रिपोर्ट का बड़ा भाग एकत्र की गई जानकारी की सारणियों, चार्टी, नतीजों, नक्शों तथा संदेशों समेत विश्लेषण तथा व्याख्या से सम्बन्धित होना चाहिए। रिपोर्ट के अंत में अध्ययन का सार होना चाहिए।

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प्रश्न 15.
भूमि उपयोग सर्वेक्षण पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत एक कृषि प्रधान देश है। किसी क्षेत्र में कृषि की विशेषताएं, प्रकार तथा भूमि उपयोग की जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी एक गांव को इकाई मानकर भूमि उपयोग सर्वेक्षण किया जाता है। इस सर्वेक्षण के द्वारा हम कुछ कमियों के बारे जान सकते हैं तथा फिर इन कमियों को जानकर इनको दूर करने के लिए सुझाव इत्यादि बता सकते हैं।

सर्वेक्षण के मुख्य उद्देश्य-इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य यही है कि भूमि उपयोग के बारे में जानना ताकि कृषि को प्रभावशाली बनाया जा सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरा गाँव या इसका आधा हिस्सा, आकार के अनुसार सर्वेक्षण के लिए लिया जा सकता है। हम अपने उद्देश्य की पूर्ति खेतों को नंबर लगा करके तथा उनकी बोई गई फसलें

भरकर तथा सम्बन्धित क्षेत्र के भूमि उपयोग के नक्शे को तैयार कर सकते हैं। इसके लिए हमें मुख्य तौर पर मिट्टी, पानी के निकास, सिंचाई की सुविधाएं तथा खादों के प्रयोग की जानकारी इकट्ठी करनी आवश्यक है। गाँव के नक्शे की सहायता के साथ खेतों के नंबर तथा सीमाबंदी के बारे में पता लगाया जा सकता है।

विधि (Method)—सबसे पहले पटवारी से गांव का भू-कर मानचित्र प्राप्त किया जाता है जिस पर प्रत्येक खेत की सीमा तथा खसरा नंबर लिखा जाता है। इस मानचित्र की कई प्रतिलिपियाँ तैयार की जाती हैं। गांव की स्थिति निर्धारित की जाती है। इसके पश्चात् गांव के पटवारी के रिकॉर्ड से जानकारी प्राप्त की जाती है।

सर्वेक्षण की कार्य विधि-निर्धारित किए समय तथा तिथि को किसानों के साथ निजी पहचान कायम करो क्योंकि सर्वेक्षण के लिए यह बहुत आवश्यक है तथा फायदेमंद भी हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आप जब एक निश्चित बिन्दु से एक खेत से दूसरे खेत में जाते हो तो नक्शे पर भूमि-उपयोग की किस्मों को भी दर्शाते जाओ। यह दर्शाए निश्चित बिन्दु नक्शे पर सर्वेक्षण शुरू करने से पहले ही निर्धारित किए जाने चाहिए। खासकर कोड नंबर को विस्तार लिखित का प्रयोग भूमि उपभोग के लिए पड़ता है। जैसे कि गेहूँ के लिए, चावल के लिए, कपास के लिए इत्यादि।

इसके बाद एक अलग नक्शा ले लो तथा उस रंग तथा बनावट के अनुसार मिट्टी की किस्म लिखो तथा खेत की आम विशेषताओं जैसे कि ढलान तथा निकास, सिंचाई या सिंचाई के बिना वाली फसल इत्यादि के बारे नोटिस लगाओ। इसके बाद किसान को भूमि उपयोग सम्बन्धी पूछो। इसके लिए आपको एक शैड्यूल बनाने की ज़रूरत होगी। जिसमें आप यह जानकारी दर्ज करो।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 19
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मकप्रयोग भूगोल 20

V. आंकड़ों की सारणी तथा प्रक्रिया-ऊपर दिए शैड्यूल को तैयार करने के पश्चात् आवश्यकता के अनुसार आंकड़ों की सारणी बनाओ। यह भूमि के प्रयोग तथा खेतों की संख्या के पक्ष से करना चाहिए।

VI. मानचित्र बनाना-अलग-अलग फसलों के लिए अलग-अलग रंग या शेड प्रयोग करके गांव की भूमि उपयोग का नक्शा तैयार करो। सिंचित तथा अनसिंचित फसलों को सही रंगों का प्रयोग करके दिखाओ। खेतों में रेत की किस्म, मात्रा तथा खाद के प्रयोग को दिखाता एक नक्शा भी तैयार करो।

VII. विश्लेषण-सारी इकट्ठी की जानकारी का विश्लेषण इस तरह करो-

  1. कृषि वाली भूमि का क्षेत्र/रकबा
  2. खेतों की कुल संख्या
  3. औसतन खेतों का रकबा
  4. मिट्टी की किस्में
  5. खरीफ की फसलों अधीन रकबा
  6. खरीफ की कुल फसलें
  7. रबी की फसलों के अधीन रकबा तथा कुल फसलें
  8. मध्य ऋतु की फसलें/रकबा
  9. सिंचित ऋतु की फसलें/रकबा
  10. रेत तथा खादों का प्रयोग।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 9 प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल

प्रयोगात्मक/प्रयोग भूगोल PSEB 12th Class Geography Notes

  • अंत में निष्कर्ष को पेश करो। इसमें भूमि का मूल्यांकन, दोष तथा सुधार करने के सुझाव भी बताओ।
  • आर्थिक भूगोल के अध्ययन में आंकड़ों का विशेष महत्त्व है। अलग प्रकार के आंकड़े किसी वस्तु की । मात्रा, गुण, घनत्व और वितरण इत्यादि को स्पष्ट करते हैं।
  • डाटा/आंकड़े की संख्या के आधार पर हम कह सकते हैं कि जो असली दुनिया के बीच/मध्य माप को परिभाषित करती है। डट्टम एक एकहरा (Single) माप है। जब हम लगातार हो रही वर्षा इत्यादि के । आधार पर संख्या और जानकारी एकत्र करते हैं वह आंकड़े/डाटा कहलाता है।
  • डाटा/आंकड़ा के स्रोत को मुख्य रूप में प्रारंभिक स्रोत (निजी सर्वेक्षण, साक्षात्कार, शैड्यूल इत्यादि) और गौण स्रोत (सरकारी प्रकाशन, निजी प्रकाशन, अखबार और पत्रिका इत्यादि) में विभाजित किया जाता है।
  • ग्राफ, चित्र और मानचित्र बनाने के लिए आम नियम जैसे कि सही तरीके का चुनाव करना, सही पैमाना और डिज़ाइन इत्यादि का चुनाव आवश्यक है।
  • आंकड़ों की रेखीय पेशकारी में पसारी चित्र, दो पसारी और तीन व पांच पसारी चित्रों में की जाती है। आमतौर पर बनाए जाने वाले इन मानचित्रों, चित्रों और उनकी रचना के तरीकों के आधार पर इनको लकीरी ग्राफ, बार ग्राफ, पाई चार्ट, तारा चित्र, बहाव चार्ट इत्यादि में विभाजित किया जाता है।
  • बहु लकीरी ग्राफ, लकीरी ग्राफ की ही एक किस्म है जिसमें दो या दो से अधिक परिवर्तनशील तत्व एक समान संख्या की लकीरों द्वारा, एकदम तुलना के लिए दिखाए जाते हैं।
  • विषय से संबंधित मानचित्रों की विशेषताएँ दर्शाने वाले और तुलना करने के लिए ग्राफ और चित्र एक अहम् भूमिका अदा करते हैं। स्थानीय अंतराल को दिखाने के लिए और श्रेणी विभाजन को अच्छी तरह समझने के लिए। कंप्यूटर एक बिजली यंत्र है। इसके अनेक भाग होते हैं। जैसे मैमोरी माइक्रो प्रोसेसर, इनपुट, आउटपुट सिस्टम इत्यादि।
  • कंप्यूटर की मदद से साधारण जोड़ घटाव से लेकर तर्क से हल होने वाले साधारण और जटिल प्रश्न भी हल किए जा सकते हैं। कंप्यूटर हार्डवेयर (यंत्र सामग्री) और सॉफ्टवेयर (प्रक्रिया सामग्री) की सहायता से नक्शे भी बनाए जा सकते हैं।
  • भौगोलिक सूचना तंत्र एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिससे हम जी०पी०एस० उपग्रह के द्वारा भेजे गए आकड़ों और तथ्य को समझ सकते हैं।
  • ग्लोबल पोजिशनिंग योजना एक ऐसा नेवीगेशन सिस्टम है जो कि पूरे संसार के अलग-अलग कामों के विषय में जानकारी प्रदान करता है। जी०पी०एस० में 24 उपग्रह होते हैं। जी०पी० एस० के तीन भाग हैं-
    • अंतरिक्ष भाग
    • नियंत्रण भाग
    • प्रयोग योग्य भाग
  • आंकड़ा (Data)—अलग-अलग प्रकार के आंकड़े जैसे वस्तु की मात्रा, गुण, घनत्व और वितरण इत्यादि को , स्पष्ट करते हैं। किसी क्षेत्र की जलवायु के अध्ययन में तापमान, वर्षा इत्यादि के आंकड़ों का भी अध्ययन किया जाता है। संख्या के आधार पर यह जानकारी आंकड़ा अथवा डाटा कहलाती है।
  • लकीरी ग्राफ (Liner Graph)-जब समय से संबंधित सूचना जैसे कि तापमान, वर्षा, आबादी में वृद्धि,
    जन्म दर, मृत्यु दर इत्यादि को प्रदर्शित करने का ग्राफ बनाया जाता है उसे लकीरी ग्राफ कहा जाता है।
  • पाई चित्र (Pie Diagram)—यह आंकड़ों की ग्राफिक पेशकारी का ही एक तरीका है। यह तत्वों को एक चक्र द्वारा पेश करती है। आँकड़ों के उप-भाग को दिखलाने के लिए वक्र को बनते हुए कोणों के मुताबिक हिस्सों/भागों में विभाजित किया जाता है। इसलिए इसे चक्र चित्र भी कहा जाता है।
  • वर्णात्मक नक्शे (Choropleth Maps)-इस विधि में किसी एक वस्तु के वितरण को नक्शे पर अलग अलग रंगों द्वारा दर्शाया जाता है। किसी रंग की तुलना में Black and White Shading का प्रयोग करना अच्छा माना जाता है।
  • सममूल्य नक्शे (Isopleth Maps)-Isopleth शब्द दो शब्दों के मेल से बना है। (Iso + Plethron) Iso
    शब्द का अर्थ समान है और Plethron शब्द का अर्थ है मूल्य। इस तरह सममूल्य रेखाएं वे रेखाएं हैं जिनका मूल्य, तीव्रता और घनत्व समान हो। यह रेखाएं उन स्थानों को आपस में मिलाती हैं जिनका मूल्य समान होता है।

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