Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 10 शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
Hindi Guide for Class 12 PSEB शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ Textbook Questions and Answers
(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:
प्रश्न 1.
‘चलना हमारा काम है’ कविता आशा और उत्साह की कविता है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने गतिशीलता को ही जीवन माना है। स्थिरता को उसने मृत्यु समान माना है। गतिशील जीवन ही जीवन पथ में आने वाली बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने की हिम्मत रखता है। जब व्यक्ति के पैरों में चलने की शक्ति है तो वह किनारे पर खड़ा क्यों देखता रहे । जीवन में सुख-दुःख, आशा-निराशा तो आते ही रहते हैं किन्तु जीवन रुकना नहीं चाहिए। स्पष्ट है कि कविता में आशा और उत्साह बनाए रखने की बात कही गई है।
प्रश्न 2.
‘चलना हमारा काम है’ कविता का सार लिखो।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में गतिशीलता को जीवन और स्थिरता को मृत्यु बताया गया है। गतिशील जीवन में बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने की हिम्मत होती है। कवि कहते हैं कि जब मेरे पैरों में चलने की शक्ति है तो मैं दूर खड़ा क्यों देखता रहूँ। जब तक मैं अपनी मंज़िल न पा लूँ मैं रुकूँगा नहीं। जीवन में सुख-दुःख तो आते ही रहते हैं किन्तु भाग्य को दोष देकर मुझे रुकना नहीं है चलते ही जाना है। भले ही जीवन की इस यात्रा में कुछ लोग रास्ते से ही लौट गए किंतु जीवन तो निरंतर चलता ही रहता है।
प्रश्न 3.
‘मानव बनो, मानव ज़रा’ कविता का शीर्षक क्या सन्देश देता है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता का शीर्षक यह सन्देश देता है कि मानव कल्याण के लिए जियो अथवा अपना जीवन लगाओ ताकि मानवता तुम पर गर्व कर सके।
प्रश्न 4.
‘मानव बनो, मानव जरा’ कविता का सार लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में मनुष्य को आत्मनिर्भर होने की बात कही गई है। कवि का कहना है प्यार करना और उसमें खुशामद करना तथा किसी दूसरे का आश्रय ग्रहण करना तुम्हारी भूल है, इससे कोई लाभ न होगा। न ही आँसू बहाने और न ही किसी के आगे हाथ फैलाने से कोई लाभ होगा। कष्टों में हाय तौबा करना या कराहना तुम्हें शोभा नहीं देता। अपने इन आँसुओं का सदुपयोग करते हुए विश्व के कण-कण को सींच कर हरा-भरा कर देना है। अब पछताओ मत बल्कि यदि तुम्हें जलना ही है तो अपनी भस्म से इस धरती को उपजाऊ बनाओ।
(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:
प्रश्न 5.
मैं तो फ़कत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया।
जो बंद कर पलकें सहज
दो घूट हँस कर पी गया।
जिसमें सुधा मिश्रित गरल, वह साकिया का जाम है
चलना हमारा काम है।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि मैं तो केवल इतना जानता हूँ कि जो मिट जाता है वही जी जाता है। जो स्वाभाविक रूप से आँखें बन्द करके सुख-दुःख ऐसे दो घुट हँसकर पी जाता है जिसमें अमृत मिश्रित विष होता है अर्थात् सुख के साथ दुःख भी होते हैं वही वास्तव में साकी का दिया हुआ शराब का प्याला है।
प्रश्न 6.
उफ़ हाय कर देना कहीं
शोभा तुम्हें देता नहीं
इन आँसुओं से सींच कर दो
विश्व का कण-कण हरा
मानव बनो, मानव ज़रा।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि कष्ट में कराहना-हाय तौबा करना तुम्हें शोभा नहीं देता बल्कि तुम्हें चाहिए कि अपने इन आँसुओं से सींच कर विश्व के कण-कण को हरा कर दो अर्थात् धरती का कण-कण अपनी संवेदना से भर दो। अत: हे मनुष्य ! तुम मानव बनो और ज़रा मानव बन कर देखो।
PSEB 12th Class Hindi Guide शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ Additional Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ ने उच्च शिक्षा किस विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी?
उत्तर:
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से।
प्रश्न 2.
सुमन जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस रचना पर प्राप्त हुआ था?
उत्तर:
मिट्टी की बारात पर।
प्रश्न 3.
कवि के विचार से जीवन और मृत्यु क्या है?
उत्तर:
कवि के विचार से गतिशीलता जीवन है और स्थिरता मृत्यु है।
प्रश्न 4.
इन्सान को अपने जीवन में शक्ति की प्राप्ति किससे होती है?
उत्तर:
इन्सान को गतिशील जीवन में बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने से शक्ति प्राप्त होती है।
प्रश्न 5.
कवि के सामने तय करने के लिए कैसा रास्ता पड़ा है ?
उत्तर:
लंबा रास्ता।
प्रश्न 6.
जीवन की राह को किस तरह आसानी से काटा जा सकता है?
उत्तर:
एक-दूसरे से सुख-दुख को बांटते हुए जीवन की राह को आसानी से काटा जा सकता है।
प्रश्न 7.
जीवन की राह पर बढ़ते हुए इन्सान सदा किस से घिरा रहता है?
उत्तर:
वह निराशा से घिरा रहता है।
प्रश्न 8.
इन्सान का मूल कार्य क्या है?
उत्तर:
जीवन की राह में आगे बढ़ते जाना।
प्रश्न 9.
कवि ने दुनिया को क्या कहा है?
उत्तर:
सुंदर संसार रूपी सागर।
प्रश्न 10.
संसार में सभी को क्या सहने ही पड़ते हैं ?
उत्तर:
संसार में सभी को दु:ख सहने ही पड़ते हैं।
प्रश्न 11.
कवि पूर्णता की खोज में कहाँ-कहाँ भटकता रहा?
उत्तर:
कवि पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता रहा।
प्रश्न 12.
जीवन की राह में सफलता की प्राप्ति किसे होती है?
उत्तर:
जीवन की राह में सफलता की प्राप्ति निरंतर आगे बढ़ने वालों को ही प्राप्त होती है।
प्रश्न 13.
कवि ने इन्सान को क्या न करने की सलाह दी है?
उत्तर:
कवि ने इन्सान को कष्टों से डरने, व्यर्थ पछताने, रोने-पीटने और निराशावादी न बनने की सलाह दी है।
वाक्य पूरे कीजिए
प्रश्न 14.
जब तक न मंजिल पा सकूँ…………
उत्तर:
तब तक न मुझे विराम है।
प्रश्न 15.
इस विशद विश्व प्रवाह में,
उत्तर:
किसको नहीं बहना पड़ा।
प्रश्न 16.
कर दो धरा को उर्वरा,
उत्तर:
मानव बनो, मानव बनो।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 17.
अपने हृदय की राख से धरती को उपजाऊ बना दो।
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 18.
कवि जीवन की पूर्णता के लिए दर-दर भटकता फिरा।
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 19.
कवि अपूर्ण जीवन लेकर कवि सब कुछ प्राप्त करता रहा।
उत्तर:
नहीं।
प्रश्न 20.
आपस में कहने-सुनने से बोझ कम नहीं होता।
उत्तर:
नहीं।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. सुमन को ‘मिट्टी की बारात’ कृति पर कौन सा पुरस्कार मिला ?
(क) साहित्य अकादमी
(ख) पद्मश्री
(ग) पद्मभूषण
(घ) पद्मविभूषण
उत्तर:
(क) साहित्य अकादमी
2. कवि को देव पुरस्कार किस काव्य संग्रह पर मिला ?
(क) आपका विश्वास
(ख) विश्वास बढ़ता ही गया
(ग) विश्वास
(घ) धूप
उत्तर:
(ख) विश्वास बढ़ता ही गया
3. कवि के अनुसार गतिशीलता क्या है ?
(क) जीवन
(ख) भाव
(ग) भावना
(घ) चलना
उत्तर:
(क) जीवन
4. कवि के अनुसार स्थिरता क्या है ?
(क) ठहरना
(ख) मृत्यु
(ग) जीवन
(घ) जीवन-मृत्यु
उत्तर:
(ख) मृत्यु
5. कवि के अनुसार संसार में वह किसकी खोज में दर-दर भटकता है ?
(क) पूर्णता
(ख) अपूर्णता
(ग) ईश्वर
(घ) शांति
उत्तर:
(क) पूर्णता
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ सप्रसंग व्याख्या
चलना हमारा काम है !
1. गति प्रबल पैरों में भरी
फिर क्यों रहूँ दर-दर खड़ा,
है रास्ता इतना पड़ा।
जब तक न मंज़िल पा सकूँ, तब तक न मुझे विराम है,
चलना हमारा काम है।
कठिन शब्दों के अर्थ:
गति = चाल। प्रबल = बलशाली, ज़ोर की। मंज़िल = ठिकाना, लक्ष्य। विराम = रुकना, आराम।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने बताया है कि गतिशीलता जीवन है और स्थिरता मृत्यु । गतिशील जीवन में बाधाओं को लाँघते हुए आगे बढ़ने की शक्ति प्राप्त होती है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि जीवन चलते रहने का नाम है रुकने का नहीं। इसी तथ्य की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं कि जब मेरे पैरों में चलने की बलशाली शक्ति है तो फिर मैं क्यों जीवन-पथ पर जगह-जगह रुकता रहूँ। जब मैं यह जानता हूँ कि मेरे सामने बड़ा लम्बा रास्ता पड़ा है तो फिर मैं क्यों रुकूँ। मुझे तो तब तक चलना होगा जब तक मैं अपनी मंज़िल, अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लूँ। मुझे रुकना नहीं है क्योंकि चलना ही हमारा काम है।
विशेष:
- कवि का मानना है जब तक मनुष्य को अपना लक्ष्य न प्राप्त हो जाए, उसे निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए।
- भाषा सहज, भावपूर्ण है।
- उद्बोधनात्मक शैली है।
- अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया,
कुछ बोझ अपना बँट गया।
अच्छा हुआ तुम मिल गई,
कुछ रास्ता ही कट गया।
क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है।
चलना हमारा काम है!
कठिन शब्दों के अर्थ:
राही = रास्ते पर चलने वाला।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ में से ली गई हैं, जिसमें कवि ने मनुष्य को निरंतर गतिमान रहने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या:
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि जीवन की डगर पर चलते समय अपनी जीवन संगिनी का साथ होने की बात कह रहे हैं। कवि कहते हैं कि जीवन का रास्ता तब कटता है जब साथी मुसाफिरों से व्यक्ति कुछ अपने दिल की बात या दु:ख दर्द की बात कहे और कुछ उनके दुःख दर्द की बात सुने। इस तरह रास्ता आसानी से कट जाता है। जीवन यात्रा में मनुष्य यदि दूसरों से सुख-दुःख बाँटता हुआ चले तो रास्ता आसानी से कट जाता है। कवि अपनी प्रियतमा को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि अच्छा हुआ तुम मुझे मिल गईं, तुम्हारे साथ के कारण मेरा रास्ता तो सुखपूर्वक कट गया। क्या रास्ते में ही मैं अपना परिचय तुम्हें दूँ ? मेरा परिचय तो बस इतना ही समझ लो कि मैं भी तुम्हारी तरह रास्ता चलने वाला एक राही हूँ। हमें तो बस चलते ही जाना है क्योंकि चलना ही हमारा काम है।
विशेष:
- जीवन-संघर्ष में साथी के मिल जाने से डगर सहज हो जाती है।
- भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। अनुप्रास अलंकार है।
3. जीवन अपूर्ण लिए हुए,
पाता कभी, खोता कभी
आशा-निराशा से घिरा
हँसता कभी रोता कभी,
गति-मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठों याम है।
चलना हमारा काम है।
कठिन शब्दों के अर्थ:
अपूर्ण जीवन = अधूरा जीवन । पाना = प्राप्त करना। खोना = गँवाना। गति-मति = चाल और बुद्धि। अवरुद्ध = रुका हुआ, बन्द। आठो याम = आठों पहर-दिन के चौबीस घंटों में आठ पहर होते हैं, हर समय।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ में से ली गई हैं, जिसमें कवि ने मनुष्य को निरंतर गतिमान रहने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि अधूरा जीवन लेकर मनुष्य कभी कुछ प्राप्त कर लेता है और कभी कुछ खो देता है। वह सदा आशा-निराशा से घिरा रहता है। कभी वह हँसता है तो कभी रोता है अर्थात् कभी उसके जीवन में खुशियाँ आती हैं तो कभी दुःख आते हैं। इन सब के होते हुए यदि आठों पहर इस बात का ध्यान रहे कि कहीं हमारी चाल या हमारी बुद्धि में कोई रुकावट न आए तभी हम जीवन रूपी मार्ग पर अच्छी तरह चल सकेंगे। क्योंकि चलते रहना ही हमारा काम है।
विशेष:
- मनुष्य को कभी निराश नहीं होना चाहिए।
- भाषा सरल, भावपूर्ण है। ओज गुण प्रेरक स्वर है।
4. इस विशद विश्व प्रवाह में,
किस को नहीं बहना पड़ा।
सुख-दुःख हमारी ही तरह
किस को नहीं सहना पड़ा।
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ;‘मुझ पर विधाता वाम है,
चलना हमारा काम है !
कठिन शब्दों के अर्थ:
विशद = स्वच्छ, सुन्दर। विश्व-प्रवाह = संसार रूपी सागर का बहाव। व्यर्थ = बेकार में। विधाता = भाग्य। वाम = उलटा, विपरीत। – प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने निरंतर गतिशील रहने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि इस सुन्दर संसार रूपी सागर के स्वच्छ प्रवाह में किस को नहीं बहना पड़ा अर्थात् जिसने संसार में जन्म लिया है उसे संसार के दुःख-सुख तो भोगने ही पड़े हैं। हमारी तरह हर किसी को दुःख सहने पड़े हैं। फिर मैं ही बेकार में यह कहता फिरूँ कि भाग्य मेरे विपरीत है अर्थात् मेरा मन्द भाग्य है। हमारा काम तो चलते ही रहना है।
विशेष:
- संसार में सबको सुख-दुःख सहना पड़ता है।
- भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। रूपक तथा अनुप्रास अलंकार है।
5. मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा,
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा,
पर हो निराशा क्यों मुझे ? जीवन इसी का नाम है।
चलना हमारा काम है !
कठिन शब्दों के अर्थ:
दर-दर भटकना = जगह-जगह मारे-मारे फिरना। पग = कदम। रोड़ा अटकना = बाधा पड़ना, रुकावट पड़ना। निराश = आशा छोड़ना, ना उम्मीद होना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने निरंतर गतिशील रहने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि मैं तो जीवन की पूर्णता की खोज में जगह-जगह मारा-मारा फिरता रहा। तब मैंने पाया कि मुझे हर कदम पर कुछ न कुछ रुकावटें आती रहीं, परन्तु इन रुकावटों से विघ्न बाधाओं से क्या मुझे निराश हो जाना चाहिए ? अर्थात् कभी नहीं क्योंकि जीवन तो इसी का नाम है। अतः हमें विघ्न बाधाओं से निराश नहीं होकर जीवन में सदा चलते रहना चाहिए क्योंकि जीवन तो चलते रहने का नाम है।
विशेष:
- मनुष्य को बाधाओं से घबराना नहीं चाहिए।
- भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार हैं।
6. कुछ साथ में चलते रहे,
कुछ बीच ही से फिर गये,
पर गति न जीवन की रुकी,
पर जो गिर गये सो गिर गये
चलता रह शाश्वत, उसी की सफलता अभिराम है।
चलना हमारा काम है !
कठिन शब्दों के अर्थ:
फिर गये = लौट गये। शाश्वत = निरन्तर। अभिराम = सुन्दर।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने गति को जीवन माना है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं जीवन की इस यात्रा में कुछ लोग साथ-साथ चलते रहे, कुछ बीच से ही निराश-हताश होकर लौट गये परन्तु जीवन की गति कभी रुकी नहीं। जीवन-यात्रा तो निरन्तर चलती रही जो लोग मार्ग में गिर गये वह समझो गिर गये, नष्ट हो गये। किन्तु जो निरन्तर चलता रहा है उसी की सफलता सुन्दर कहलाती है। अत: चलते जाओ क्योंकि चलना ही हमारा काम है।
विशेष:
- जीवनपथ पर साथी से मिलते-बिछड़ते रहते हैं।
- भाषा सहज, सरल तथा भावपूर्ण है।
7. मैं तो फ़कत यह जानता
जो मिट गया वह जी गया
जो बन्दकर पलकें सहज
दो घूट हँसकर पी गया
जिसमें सुधा-मिश्रित गरल, वह साकिया का जाम है।
चलना हमारा काम है।
कठिन शब्दों के अर्थ:
फ़कत = केवल। सहज = स्वाभाविक रूप से। सुधा = अमृत। गरल = विष। साकिया = शराब परोसने वाली लड़की। जाम = प्याला।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘चलना हमारा काम है’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने गति को जीवन माना है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि मैं तो केवल इतना जानता हूँ कि जो मिट जाता है वही जी जाता है। जो स्वाभाविक रूप से आँखें बन्द करके सुख-दुःख ऐसे दो घुट हँसकर पी जाता है जिसमें अमृत मिश्रित विष होता है अर्थात् सुख के साथ दुःख भी होते हैं वही वास्तव में साकी का दिया हुआ शराब का प्याला है।
विशेष:
- कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति जीवन में सुख-दुःख को सहज भाव से लेता है। उसी का जीवन है।
- भाषा उर्दू शब्दों युक्त भावपूर्ण है।
मानव बनो, मानव ज़रा
1. है भूल करना प्यार भी
है भूल यह मनुहार भी
पर भूल है सबसे बड़ी
करना किसी का आसरा
मानव बनो, मानव ज़रा।
कठिन शब्दों के अर्थ:
मनुहार = खुशामद, चापलूसी। आसरा = सहारा, आश्रय।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता ‘मानव बनो, मानव जरा’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य को आत्म-निर्भर होने की बात कही है। कवि का मानना है कि आँसू बहाने, किसी का आश्रय ग्रहण करने या किसी के सामने हाथ फैलाने का कोई लाभ नहीं है। अगर जलना ही है तो धरती के कल्याण के लिए जलो।
व्याख्या:
कवि मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने का संदेश देते हुए कहते हैं कि प्यार करना भी भूल है और किसी की खुशामद करना भी भूल है। परन्तु इन सबसे बड़ी भूल है किसी दूसरे का आश्रय लेना अतः हे मनुष्य ! तुम मानव बनो, ज़रा मानव बन कर देखो।
विशेष:
- कवि ने आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है।
- भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। अनुप्रास अलंकार है।
2. अब अश्रु दिखलाओ नहीं
अब हाथ फैलाओ नहीं
हुंकार कर दो एक जिससे
थरथरा जाए धरा
मानव बनो, मानव ज़रा।
कठिन शब्दों के अर्थ:
हुँकार = गर्जन। धरा = पृथ्वी।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘मानव बनो जरा’ से ली गई हैं, जिसमे कवि ने. मनुष्य का मानवतावाद का संदेश दिया है।
व्याख्या:
कवि मनुष्य को आत्मनिर्भर बनने का सन्देश देते हुए कहता है कि अब तुम आँसू बहा कर मत दिखाओ और न ही किसी के सामने हाथ फैलाओ बल्कि ऐसी गर्जना करो कि जिस से पृथ्वी काँप उठे। अतः हे मनुष्य ! तुम मानव बनो, ज़रा मानव बनकर देखो।
विशेष:
- मनुष्य को किसी के सम्मुख हाथ नहीं फैलाना चाहिए।
- भाषा सरल भावपूर्ण हैं।
3. उफ़ हाय कर देना कहीं
शोभा तुम्हें देता नहीं
इन आँसुओं से सींच कर दो
विश्व का कण-कण हरा
मानव बनो, मानव ज़रा।
कठिन शब्दों के अर्थ:
उफ़ हाय करना = कष्ट में कराह उठना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘मानव बनो ज़रा’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने मनुष्य का मानवतावाद का संदेश दिया है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि कष्ट में कराहना-हाय तौबा करना तुम्हें शोभा नहीं देता बल्कि तुम्हें चाहिए कि अपने इन आँसुओं से सींच कर विश्व के कण-कण को हरा कर दो अर्थात् धरती का कण-कण अपनी संवेदना से भर दो। अत: हे मनुष्य ! तुम मानव बनो और ज़रा मानव बन कर देखो।
विशेष:
- मनुष्य को दुःख में धैर्य धारण करना चाहिए।
- भाषा सरल तथा भावपूर्ण है। पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. अब हाथ मत अपने मलो
जलना अगर ऐसे जलो
अपने हृदय की भस्म से
कर दो धरा को उर्वरा
मानव बनो, मानव ज़रा।
कठिन शब्दों के अर्थ:
उर्वरा = उपजाऊ। हाथ मलना = पछताना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० शिवमंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘मानव बनो ज़रा’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने मनुष्य का मानवतावाद को संदेश दिया है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि अब पछताने से कोई लाभ न होगा। तुम्हें यदि जलना ही है तो अपने हृदय की भस्म से धरती को उपजाऊ बना दो अर्थात् धरती के कल्याण के लिए जलो जिस से मानवता तुम पर गर्व कर सके। अतः हे मनुष्य ! तुम मानव बनो और ज़रा मानव बनकर तो देखो।
विशेष:
- मनुष्य को लोककल्याण करने की प्रेरणा दे रहा है।
- भाषा सरल मुहावरेदार है। उद्बोधनात्मक स्वर है।
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ Summary
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जीवन परिचय
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी का जीवन परिचय दीजिए।
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर गाँव में 16 अगस्त, सन् 1916 ई० को हुआ था। आप की आरम्भिक शिक्षा रीवां और ग्वालियर में हुई। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से आपने हिन्दी विषय में एम० ए० और डी० लिट० की उपाधियां प्राप्त की। इन्होंने हाई स्कूल के अध्यापक पद से लेकर विश्वविद्यालय के उप-कुलपति पद पर कार्य किया। सन् 1956-61 तक आपने नेपाल में भारत सरकार के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के तौर पर कार्य किया। आपको ‘विश्वास बढ़ता ही गया’ काव्य संग्रह पर देव पुरस्कार, ‘पर आँखें नहीं भरीं’ पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नवीन पुरस्कार, ‘मिट्टी की बारात’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, तथा सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इनकी अन्य रचनाएँ हिल्लोक, प्रणय सृजन, जीवन के गान हैं।
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ कविताओं का सार
चलना हमारा काम है कविता ने मनुष्य को सांसारिक जीवन में आने वाले सुख-दुःखों को समभाव से ग्रहण करते हुए निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी है क्योंकि कठिनाइयों का सामना करना ही जीवन है। कुछ साथी मिलेंगे, कुछ बिछड़ेंगे-परन्तु उत्साह और हिम्मत से आगे बढ़ते रहना चाहिए।
‘मानव बनो, मानव जरा’ कविता में कवि ने मनुष्य को आंसू बहाने, पराश्रित होने घबरा जाने के स्थान पर आत्मनिर्भर बनने का संदेश दिया है तथा संसार को संवेदनापूर्ण बनाकर लोककल्याण का मार्ग अपनाने पर बल दिया है।