Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 8 हरिवंशराय बच्चन Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 8 हरिवंशराय बच्चन
Hindi Guide for Class 12 PSEB हरिवंशराय बच्चन Textbook Questions and Answers
(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दें:
प्रश्न 1.
‘पौधों की पीढ़ियाँ’ में छोटे-छोटे सुशील और विनम्र पौधों का क्या कहना है ?
उत्तर:
बड़े बरगद के पेड़ की छत्र-छाया में रहने वाले छोटे-छोटे पौधे अपने को किस्मत वाला मानते हैं जो उन्हें बड़े पेड़ का संरक्षण मिला है। उन्हें किसी प्रकार की कोई चिन्ता नहीं है क्योंकि गर्मी, सर्दी या बरसात की सब मुसीबतें बरगद का पेड़ अपने ऊपर झेल लेता है। उसी के आसरे हम दिन काट रहे हैं। हम निश्चित हैं और सुखी हैं।
प्रश्न 2.
‘बरगद का पेड़’ किसका प्रतीक है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
बरगद का पेड़ बड़े-बुजुर्गों का प्रतीक है जो अपने से छोटों को, अपने परिवार को संरक्षण प्रदान करते हैं तथा उनकी मुसीबतें अपने ऊपर झेल लेते हैं।
प्रश्न 3.
‘पौधों की पीढ़ियाँ’ युग सत्य को उद्भासित करती हैं, स्पष्ट करें।
उत्तर:
नई और पुरानी पीढ़ी में युगों से विचार भेद रहा है किंतु वर्तमान युग का सत्य यह है कि नई पीढ़ी ने विद्रोह दर्शाने के साथ-साथ पुरानी पीढ़ी के अस्तित्व को ही नकारना शुरू कर दिया है। उसे पुरानी पीढ़ी का अस्तित्व असहय लगने लगा है। इसी कारण वह पुरानी पीढ़ी को समूल नष्ट करने पर तुल गई है। युग की इस भयावह स्थिति का यथार्थ चित्र कवि ने प्रस्तुत कविता में चित्रित किया है।
प्रश्न 4.
‘मधु पात्र टूटने’ तथा ‘मंदिर के ढहने’ के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर:
‘मधुपात्र टूटने’ के द्वारा कवि कहना चाहता है कि यदि किसी कारण से तुम्हारी कोई बहुमूल्य वस्तु खो जाती है तो उस को लेकर दु:खी होने की बजाए जो कुछ शेष बचा है उसी को काम में लाते हुए नए सिरे से निर्माण करना चाहिए। नए संसार की रचना करनी चाहिए। यही बात कवि ने मंदिर के ढहने के द्वारा कही है कि यदि तुम्हारी कल्पना, तुम्हारी भावनाओं, तुम्हारे सपनों से बना हुआ मंदिर ढह जाता है तो निराश न होकर शेष बचे ईंट, पत्थर और कंकर एकत्र कर एक नए संसार, नये मंदिर का निर्माण करना चाहिए।
प्रश्न 5.
‘अंधेरे का दीपक’ कविता का सार लिखो।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता बच्चन जी का एक आशावादी गीत है। कवि मनुष्य को यह सन्देश देना चाहता है कि कल्पना के असफल हो जाने पर, भावनाओं और स्वप्नों के टूट जाने पर तुम्हें निराश नहीं होना चाहिए बल्कि जो कुछ भी तुम्हारे पास बचा है उसे ही संजोकर नवनिर्माण करना चाहिए। रात भले ही अन्धेरी है पर दीपक जलाकर उस अन्धकार को दूर करने से तुम्हें किस ने रोका है।
(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:
प्रश्न 6.
कल्पना के हाथ से कमनीय …. था ।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि माना कि रात अँधेरी है परन्तु इस अँधेरी रात में प्रकाश फैलाने के लिए दीपक जलाने से तुम्हें किस ने रोका है? मान लो कि तुम ने कल्पना में जिस सुंदर महल का निर्माण किया था और अपनी भावनाओं से जो तंबू तान दिए थे जिन्हें तुमने अपने स्वप्नों से अपनी पसंद के अनुसार सजाया था, और जो स्वर्ग में भी कठिनाई से प्राप्त अर्थात् दुर्लभ रंगों से लिप्त था। यदि वह महल, ढह जाए अर्थात् तुम्हारी कल्पना साकार नहीं होती, तुम्हारे सपने अधूरे रह जाते हैं, तो ढहे हुए उस महल के ईंट, पत्थर और कंकड़ों को जोड़ कर एक शांतिदायक कुटिया बनाना भी कब मना है ? माना कि रात अँधेरी है और अंधकार को दूर करने के लिए दीपक जलाने से तुम्हें कौन रोकता है ?
प्रश्न 7.
नहीं वक्त का जुल्म हमेशा ….. इसे समूचा।
उत्तर:
कवि वर्तमान पीढ़ी द्वारा बड़ों को समूल नष्ट करने की बात का उल्लेख करता हुआ कहता है कि हम समय के अत्याचार को सदा इसी प्रकार सहन नहीं करते जाएँगे। हम तो काँटों की आरी और कुल्हाड़ी तैयार करेंगे। फिर आप जब यहाँ आएँगे तो बरगद की डाली-डाली कटी हुई पाएँगे और यह बरगद का पेड़ जो अपने आपको बड़ा समझता है डालियों और पत्तों से रहित एक सूखे पेड़ की तरह नंगा बूचा रह जाएगा। हम इसे सारे का सारा निगल जाएँगे।
PSEB 12th Class Hindi Guide हरिवंशराय बच्चन Additional Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हरिवंशराय बच्चन’ का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
27 नवंबर, सन् 1907 को इलाहाबाद में।
प्रश्न 2.
बच्चन को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस रचना पर प्राप्त हुआ था?
उत्तर:
‘दो चट्टानों’ पर।
प्रश्न 3.
हरिवंशराय बच्चन की दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
मधुशाला, मधुबाला, निशा निमंत्रण, दो चट्टानें।
प्रश्न 4.
हरिवंशराय बच्चन’ का देहावसान कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 2002 में।
प्रश्न 5.
‘पौधों की पीढ़ियों’ में कवि ने किस-किस के बीच अंतर दर्शाया है?
उत्तर:
पुरानी और नई पीढ़ी की विचारधारा के बीच।
प्रश्न 6.
‘बरगद का पेड़’ किसका प्रतीक है?
उत्तर:
पुरानी पीढ़ी का।
प्रश्न 7.
नई पीढ़ी के प्रतीक कौन-से हैं ?
उत्तर:
बरगद के नीचे उगे छोटे-छोटे असंतुष्ट और रुष्ट कुछ पौधे।
प्रश्न 8.
कवि के अनुसार नई पीढ़ी किस स्वभाव की है?
उत्तर:
उग्र, विद्रोही और निरादर के भाव से भरी हुई।
प्रश्न 9.
‘अंधेरे का दीपक’ कविता में कवि का स्वर कैसा है?
उत्तर:
आशावादी।
प्रश्न 10.
‘अंधेरी रात’ किसकी प्रतीक है?
उत्तर:
गरीबी, निराशा, पीड़ा, हताशा और दुःख।
प्रश्न 11.
कवि की भाषा में कैसे शब्दों के प्रयोग की अधिकता है?
उत्तर:
तत्सम और तद्भव शब्दों की।
प्रश्न 12.
कवि ने ‘बरगद का पेड़’ कविता के माध्यम से क्या व्यक्त किया है?
उत्तर:
वर्तमान युग की भयावह स्थिति की यथार्थता।।
वाक्य पूरे कीजिए
प्रश्न 13.
छोटे-छोटे कुछ पौधे…….
उत्तर:
बड़े सुशील-विनम्र।
प्रश्न 14.
हमको बौना बना रखा..
उत्तर:
हम बड़े दुःखी हैं।
प्रश्न 15.
और निगल जाएँगे……
उत्तर:
तन हम इसे-इसे समूचा।
प्रश्न 16.
है अंधेरी रात………………………।
उत्तर:
पर दीवा जलाना कब मना है।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 17.
‘अंधेरे का दीपक’ एक निराशावादी कविता है।
उत्तर:
नहीं।
प्रश्न 18.
नई-पुरानी पीढ़ियों में सदा ही भेद रहा है।
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 19.
बरगद का पेड़ बड़े-बुजुर्गों का प्रतीक है।
उत्तर:
हाँ।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. भारत सरकार ने बच्चन को किस मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ नियुक्त किया ?
(क) भारत
(ख) स्वदेश
(ग) विदेश
(घ) श्रम
उत्तर:
(ग) विदेश
2. ‘दो चट्टानों’ पर कवि को कौन सा पुरस्कार मिला?
(क) साहित्य
(ख) साहित्य अकादमी
(ग) ज्ञानपीठ
(घ) पद्मभूषण
उत्तर:
(ख) साहित्य अकादमी
3. श्री हरिवंशराय बच्चन ने आत्मकथा कितने भागों में लिखी ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(घ) चार
4. बच्चन को भारत सरकार ने किस अलंकार से अलंकृत किया ?
(क) पद्मभूषण
(ख) पद्मविभूषण
(ग) पद्मश्री
(घ) ज्ञानपीठ
उत्तर:
(ख) पद्मविभूषण
5. ‘अंधेरे का दीप’ कविता किस प्रकार की कविता है ?
(क) आशावादी
(ख) निराशावादी
(ग) प्रयोगवादी
(घ) प्रगतिवादी
उत्तर:
(क) आशावादी
हरिवंशराय बच्चन सप्रसंग व्याख्या
पौधों की पीढ़ियाँ कविता का सार
‘पौधों की पीढ़ियाँ’ कविता में कवि ने पुरानी और नई पीढ़ी की विचारधारा के अन्तर को स्पष्ट किया है। प्राचीन समय में बुजुर्गों की छत्रछाया को वरदान माना जाता था, जो आज अभिशाप बन गई है। बरगद के पेड़ के नीचे उगे छोटे-छोटे पौधे स्वयं को उस की छत्रछाया में समस्त विपत्तियों से सुरक्षित मानकर सौभाग्यशाली मानते हैं। इसके बाद की पीढ़ी बरगद के नीचे के पौधे स्वयं को बदकिस्मत कहते हैं क्योंकि बरगद की छाया ने उन्हें बौना बनाकर खतरों का सामना नहीं करने दिया। इसके भी बाद की पीढ़ी उदंडतापूर्वक बरगद पर आरोप लगाती है कि उन्हें छोटा रखकर ही वह बड़ा बना हुआ है, यदि वे पहले जन्म लेते तो बरगद के बड़े भाई होते। इस प्रकार वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपने अंग्रेजों के प्रति विद्रोह को कवि ने उचित नहीं माना है।
1. देखा, एक बड़ा बरगद का पेड़ खड़ा है।
उसके नीचे हैं
छोटे-छोटे कुछ पौधे
बड़े सुशील-विनम्र
लगे मुझसे यों कहने,
“हम कितने सौभाग्यवान् हैं।
आसमान से आग बरसे, पानी बरसे,
आँधी टूटे, हमको कोई फिकर नहीं है ।
एक बड़े की वरद छत्र-छाया के नीचे
हम अपने दिन बिता रहे हैं
बड़े सुखी हैं !”
कठिन शब्दों के अर्थ:
सुशील = अच्छे स्वभाव वाले। विनम्र = विनीत, झुके हुए। आगी = आग। वरद = वर देने वाला। छत्र-छाया = आश्रय।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश छायावादोत्तर युग के कवि डॉ० हरिवंशराय बच्चन’ द्वारा लिखित काव्यकृति ‘बहुत दिन बीते’ में संकलित कविता ‘पौधों की पीढ़ियाँ’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने नई और पुरानी पीढ़ी की सोच में अन्तर को स्पष्ट किया है। नई पीढ़ी अपने बड़ों की छत्र-छाया में सुख का अनुभव करती थी जबकि नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी के प्रति विद्रोह करती है, उसके अस्तित्व को नकारते हुए उन्हें समूल नष्ट करने पर उतारू है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि मैंने देखा कि एक बड़ा बरगद का पेड़ खड़ा है। उसके नीचे कुछ छोटे-छोटे पौधे उगे हैं जो बड़े अच्छे स्वभाव और विनीत भाव के थे। वे छोटे-छोटे पौधे कवि से कहने लगे कि हम कितने सौभाग्यशाली हैं कि आसमान से चाहे आग बरसे या पानी अर्थात् गर्मी की ऋतु हो या वर्षा ऋतु , आँधी तूफान आए पर हमें कोई चिंता नहीं है। क्योंकि हम एक बड़े बरगद के वृक्ष की छत्र-छाया में रह कर अपने दिन बिता रहे हैं और बड़े सुखी हैं। बरगद उन की रक्षा करता है।
विशेष:
- कवि के अनुसार पुराने समय में लोग किसी बड़े के आश्रय में रह कर सुख एवं सुरक्षा का आभास करते थे क्योंकि उनका मानना था कि बड़े उनकी हर हाल में रक्षा करेंगे और सुख सुविधा का ध्यान रखेंगे और रखते हैं। बड़ों के संरक्षण में रह कर वे संतुष्ट थे। छोटे बड़ों के सामने विनम्र और विनीत भाव से खड़े रहते थे तथा उनका आदर करते थे।
- भाषा अत्यन्त सरल तथा प्रतीकात्मक है।
- अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश तथा मानवीकरण अलंकार हैं।
2. देखा, एक बड़ा बरगद का पेड़ खड़ा है;
उसके नीचे हैं
छोटे-छोटे कुछ पौधे
असंतुष्ट और रुष्ट।
देखकर मुझको बोले,
“हम भी कितने बदकिस्मत हैं!
जो खतरों का नहीं सामना करते
कैसे वे ऊपर को उठ सकते हैं !”
इसी बड़े की छाया ने तो
हमको बौना बना रखा
हम बड़े दुःखी हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ:
रुष्ट = नाराज़। बौना = छोटे कद का।।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘पौधों की पीढ़ियाँ’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने नई और पुरानी पीढ़ी की बुजुर्गों के प्रति विचारधारा का विश्लेषण किया है।
व्याख्या:
कवि बदले परिवेश में नई पीढ़ी के मनोभावों को व्यक्त करता हुआ कहता है कि मैंने देखा कि बड़ा बरगद का पेड़ खड़ा है जिसके नीचे कुछ छोटे-छोटे पौधे थे जो असंतुष्ट और नाराज़ थे। कवि कहता है कि मुझे देखकर वे छोटे-छोटे पौधे कहने लगे कि हम कितने बदकिस्मत हैं जो खतरों का सामना नहीं कर सकते क्योंकि हमारे स्थान पर यह बड़ा बरगद का पेड़ सब कुछ सह लेता है। बिना संघर्ष किए तथा खतरों का सामना करके हम कैसे उन्नति कर सकते हैं, क्योंकि इसी बड़े बरगद के पेड़ की छाया ने हमें छोटे कद का बना रखा है। अतः हम बड़े दुःखी हैं क्योंकि हम कुछ नहीं कर सकते।
विशेष:
- कवि का भाव यह है कि नई पीढ़ी अपने बुजुर्गों से बड़ी नाराज़ है क्योंकि उन्हें लगता है कि बड़ों का संरक्षण उन की उन्नति एवं विकास में बाधक बन रहा है। बड़ों के संरक्षण में वे संघर्ष करने, खतरों का सामना करने से वंचित रह जाते हैं। कवि ने यहाँ दूसरी पीढ़ी की बात की है जो बड़ों के संरक्षण से असंतुष्ट और नाराज़ है।
- भाषा सरल तथा प्रतीकात्मक है।
- अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश तथा मानवीकरण अलंकार है।
3. देखा, एक बड़ा बरगद का पेड़ खड़ा है
उसके नीचे हैं
छोटे-छोटे कुछ पौधे
तने हुए उद्दण्ड।
देखकर मुझको गरजे,
“हमको छोटा रखकर ही
यह बड़ा बना है,
जन्म अगर हम पहले पाते
तो हम इसके अग्रज होते,
हम इसके दादा कहलाते,
इस पर छाते।”
कठिन शब्दों के अर्थ:
तने हुए = अकड़ कर खड़े हुए। उदंड = गुस्ताख, जिसके स्वर में विद्रोह झलकता हो, किसी की न मानने वाला। अग्रज = बड़े। छाते = छाया प्रदान करते।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘पौधों की पीढ़ियाँ’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने नई और पुरानी पीढ़ी की विचारधारा का अन्तर प्रस्तुत किया है।
व्याख्या:
कवि वर्तमान पीढ़ी की अपने बड़ों के प्रति उदंडता का वर्णन करता हुआ कहता है कि मैंने देखा कि बरगद का बड़ा पेड़ खड़ा है, उसके नीचे छोटे-छोटे पौधे कुछ अकड़े हुए विद्रोही स्वभाव के बने हुए हैं । वे कवि को देखकर गरज कर बोले कि यह बरगद का पेड़ हमें छोटा बना कर ही बड़ा बना है। यदि हमारा जन्म भी इससे पहले हुआ होता तो हम इस के बड़े भाई अर्थात् बुजुर्ग या बड़े होते। तब हम इसके दादा कहलाते और इसे अपनी छाया प्रदान करते अर्थात् यह हमारे संरक्षण में रहता।
विशेष:
- कवि के अनुसार वर्तमान पीढ़ी अपने बड़ों का आदर करना तो दूर रहा वह उनके प्रति विद्रोह की भावना रखती है। उसे बड़ों का होना असह्य लगने लगा है।
- भाषा सरल किन्तु प्रतीकात्मक है।
- अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश तथा मानवीकरण अलंकार है।
4. नहीं वक्त का जुल्म हमेशा
हम यों ही सहते जाएँगे।
हम काँटो की
आरी और कुल्हाड़ी अब तैयार करेंगे,
फिर जब आप यहाँ आएँगे,
बरगद की डाली-डाली कटती पाएँगे।
ठूठ-मात्र यह रह जाएगा
नंगा-बूचा,
और निगल जाएँगे तन हम इसे समूचा।”
कठिन शब्दों के अर्थ:
जुल्म = अत्याचार । हमेशा = सदा। ढूंठ मात्र = डालियों और पत्तों से रहित सूखा पेड़। समूचा = सारा।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘पौधों की पीढ़ियाँ’ से ली गई हैं, जिसमें नई और पुरानी पीढ़ी के विचारों का अन्तर स्पष्ट किया गया है।
व्याख्या:
कवि वर्तमान पीढ़ी द्वारा बड़ों को समूल नष्ट करने की बात का उल्लेख करता हुआ कहता है कि हम समय के अत्याचार को सदा इसी प्रकार सहन नहीं करते जाएँगे। हम तो काँटों की आरी और कुल्हाड़ी तैयार करेंगे। फिर आप जब यहाँ आएँगे तो बरगद की डाली-डाली कटी हुई पाएँगे और यह बरगद का पेड़ जो अपने आपको बड़ा समझता है डालियों और पत्तों से रहित एक सूखे पेड़ की तरह नंगा बूचा रह जाएगा। हम इसे सारे का सारा निगल जाएँगे।
विशेष:
- कवि के अनुसार वर्तमान पीढ़ी अपने बड़ों का निरादर करने पर ही नहीं तुली है बल्कि वह उन्हें समूल नष्ट करना भी चाहती है। इसीलिए वह अपनी पूर्व पीढी के प्रति विद्रोह की भावना रखती है।
- भाषा सरल, भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।
- मानवीकरण, अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
अन्धेरे का दीपक कविता का सार
‘अन्धेरे का दीपक’ कविता में कवि का स्वर आशावादी है। वह कहता है कि यदि जीवन में तुमने कोई मधुर कल्पना की है और एक अत्यन्त सुन्दर महल बना लिया है, यदि वह टूट भी जाए तो निराश होने के स्थान पर उसी महल के ईंट, पत्थर जोड़कर नई झोंपड़ी तो बना ही सकते हो। यदि तुम्हारा बनाया सुन्दर मदिरापान का पात्र टूट जाए तो तुम अपनी ओर से निर्मल झरने का जल तो पी ही सकते हो। अन्धेरी रात में प्रकाश लाने के लिए दिया जलाने से तुम्हें कौन रोक सकता है ? इसलिए असफलताओं से निराश होने के स्थान पर फिर से प्रयास करना चाहिए। सफलता अवश्य ही मिलेगी।
1. है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है ?
कल्पना के हाथ से कमनीय
जो मन्दिर बना था,
भावना के हाथ ने जिसमें
वितानों को तना था,
स्वप्न ने अपने करों से
था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों
से, रसों से जो सना था।
ढह गया वह तो जुटाकर
ईंट, पत्थर कंकड़ों को।
एक अपनी शांति की
कुटिया बनाना कब मना है?
है अँधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है ?
कठिन शब्दों के अर्थ:
कमनीय = कोमल, सुंदर। वितान = तंबू, खेमा। करों से = हाथों से। रुचि = पसंद। दुष्प्राप्य = कठिनाई से प्राप्त होने वाला। सना = लिप्त।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश छायावादोत्तर युग के कवि डॉ० हरिवंश राय बच्चन’ जी की काव्यकृति ‘सतरंगिनी’ में संकलित कविता ‘अंधेरे का दीपक’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने यह संदेश दिया है कि दुःख और अवसादपूर्ण क्षणों में भी मनुष्य को आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि माना कि रात अँधेरी है परन्तु इस अँधेरी रात में प्रकाश फैलाने के लिए दीपक जलाने से तुम्हें किस ने रोका है? मान लो कि तुम ने कल्पना में जिस सुंदर महल का निर्माण किया था और अपनी भावनाओं से जो तंबू तान दिए थे जिन्हें तुमने अपने स्वप्नों से अपनी पसंद के अनुसार सजाया था, और जो स्वर्ग में भी कठिनाई से प्राप्त अर्थात् दुर्लभ रंगों से लिप्त था। यदि वह महल, ढह जाए अर्थात् तुम्हारी कल्पना साकार नहीं होती, तुम्हारे सपने अधूरे रह जाते हैं, तो ढहे हुए उस महल के ईंट, पत्थर और कंकड़ों को जोड़ कर एक शांतिदायक कुटिया बनाना भी कब मना है ? माना कि रात अँधेरी है और अंधकार को दूर करने के लिए दीपक जलाने से तुम्हें कौन रोकता है ?
विशेष:
- कवि के अनुसार सुंदर सपनों के महल के ढह जाने पर निराश और हताश होकर नहीं बैठ जाना चाहिए। असफलता से निराश न होकर नव निर्माण का पुनः संकल्प करके जीवन को नए ढंग से जीना चाहिए।
- भाषा तत्सम प्रधान, सरस तथा भावपूर्ण है।
- प्रश्न अलंकार तथा उद्बोधनात्मक स्वर है।
2. बादलों के अश्रु में धोया
गया नभ-नील नीलम
का बनाया था गया मधु
पात्र मनमोहक, मनोरम,
प्रथम ऊषा की किरण को
लालिमा-सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती
नव घनों में चंचला, सम,
वह अगर टूटा मिलाकर
हाथ की दोनों हथेली,
एक निर्मल स्रोत से
तृष्णा बुझाना कब मना है ?
है अंधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मना है ?
कठिन शब्दों के अर्थ:
अश्रु = आँसू। मधुपात्र = शराब पीने का प्याला। मनमोहक = मन को मोहने वाला। मनोरम = सुंदर। मदिरा = शराब। चंचला = बिजली। निर्मल= साफ, स्वच्छ । स्रोत = चश्मा, धारा। तृष्णा = प्यास।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘अन्धेरे का दीपक’ से ली गई हैं, जिसमें कवि ने मनुष्य को कभी भी निराश नहीं होने का सन्देश दिया है।
व्याख्या:
कवि निराशा या असफलता मिलने पर भी निराश न होकर उत्साहित होकर फिर से नवनिर्माण की प्रेरणा देता हुआ कहता है कि यदि तुम ने बादलों के आँसुओं से धुले नीले आकाश जैसे बहुमूल्य नीलम पत्थर से बना शराब पीने का प्याला बनाया था, जो अत्यन्त मन को लुभाने वाला और सुंदर बन पड़ा था, उस प्याले में उषा की पहली किरण जैसी लाललाल शराब डाली थी; जो उस प्याले में पड़ी चमचमा रही थी जैसे नए बादलों में बिजली चमकती हो, वह प्याला यदि किसी कारणवश टूट भी जाए तो अपनी दोनों हाथों की हथेलियों की ओक बनाकर किसी साफ चश्मे से अपनी प्यास बुझाने की तो मनाही नहीं है ? माना कि रात अँधेरी है किंतु रात के अंधेरे को दूर करने के लिए दीपक जलाने से तुम्हें किसने रोका
विशेष:
- कवि का मानना है कि व्यक्ति को अपनी बहुमूल्य वस्तु के नष्ट होने पर दुःखी होने की बजाए जो कुछ भी पास बचा है उसी के भरोसे जिंदगी जीने का प्रयास करना चाहिए। जो कुछ नष्ट हो गया वह तो वापस नहीं आएगा अतः दुःखी न होकर पूरे उत्साह और लग्न से जीवन जीने के नए रास्ते की खोज करनी चाहिए।
- भाषा तत्सम प्रधान, सरस तथा भावपूर्ण है।
- अनुप्रास, उपमा तथा मानवीकरण अलंकार है।
हरिवंशराय बच्चन Summary
हरिवंशराय बच्चन जीवन परिचय
हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय दीजिए।
श्री हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर, सन् 1907 ई० को इलाहाबाद में हुआ। इन्होंने यहीं से अंग्रेज़ी में एम०ए० किया तथा यहीं अंग्रेजी साहित्य पढ़ाते रहे। इन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच०डी० की उपाधि प्राप्त की थी। इन्हें विदेश मन्त्रालय में हिन्दी-विशेषज्ञ के रूप में भारत सरकार ने नियुक्त किया था। ये राज्य सभा के भी सदस्य रहे थे। इन्हें काव्यकृति ‘दो चट्टानों’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। भारत सरकार ने इन्हें पद्मविभूषण की उपाधि से अलंकृत किया। सन् 2002 में इनका निधन हो गया था।
बच्चन जी की प्रमुख रचनाएँ मधुशाला, मधुकलश, मधुबाला, मिलन यामिनी, निशा-निमन्त्रण, सतरंगिनी, दो चट्टानें हैं।