Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar alankar अलंकार Exercise Questions and Answers, Notes.
PSEB 12th Class Hindi Grammar अलंकार
प्रश्न-पत्र में अलंकारों के लक्षण तथा उदाहरण भी पूछे जाएँगे। अलंकारों के भेदोपभेद अथवा उन पर तुलनात्मक प्रश्न पूछे जाएँगे। यहाँ प्रत्येक अलंकार का लक्षण, उदाहरण तथा स्पष्टीकरण दिया गया है।
‘अन्य उदाहरण’ शीर्षक के अन्तर्गत कुछ और उदाहरण भी दिए गए हैं। विद्यार्थी अपनी सुविधा एवं रुचि के अनुसार कोई भी उदाहरण कंठस्थ कर सकता है।
आरम्भ में अलंकार का महत्त्व, लक्षण तथा उसके भेदों का भी उल्लेख कर दिया गया है। अलंकार का महत्व-अलंकार का साधारण अर्थ है-अलंकृत करना, शोभा बढ़ाना। लोक-भाषा में अलंकार का अर्थ गहना अथवा आभूषण है। जिस प्रकार स्त्रियाँ अपने सौन्दर्यवर्द्धन के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के गहनों का प्रयोग करती हैं उसी प्रकार कवि भिन्न-भिन्न प्रकार के अलंकारों के प्रयोग द्वारा कविता-कामिनी की शोभा बढ़ाते हैं। कंगन से हाथ की, कुण्डल से कान की और हार से गले की शोभा बढ़ती है और ये मिलकर कामिनी के शरीर को सौन्दर्य और आकर्षण प्रदान करते हैं। ठीक इसी प्रकार अनुप्रास, उपमा आदि अलंकारों का प्रयोग कविता को आकर्षक और प्रभावशाली बना देता है। कभी शब्द-विशेष का प्रयोग कविता को चमत्कार प्रदान करता है तो कभी अर्थ का प्रयोग कविता के भाव में उत्कर्ष ला देता है।
उपर्युक्त संक्षिप्त विवेचन के उपरान्त अलंकार की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है-
परिभाषा-“शब्द और अर्थ में चमत्कार उत्पन्न कर कविता की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्व को अलंकार कहते है।
अलंकार के भेद-अलंकार के मुख्य रूप में दो भेद हैं-
1. शब्दालंकार
2. अर्थालंकार
1. शब्दालंकार-जहाँ शब्दों के कारण किसी रचना में चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ शब्दालंकार होता है। अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति आदि शब्दालंकार हैं।
2. अर्थालंकार-जहाँ अर्थों के कारण किसी रचना में चमत्कार उत्पन्न हो वहाँ अर्थालंकार होता है। उपमा, रूपक आदि प्रसिद्ध अर्थालंकार हैं।
शब्दालंकार और अर्थालंकार में अन्तर
स्पष्ट किया जा चुका है कि शब्द के कारण चमत्कार उत्पन्न होने पर शब्दालंकार और अर्थ के कारण चमत्कार उत्पन्न होने पर अर्थालंकार होता है।
शब्दालंकार में शब्द-विशेष के निकाल देने पर चमत्कार समाप्त हो जाता है अर्थात् शब्द-विशेष के स्थान पर समानार्थी शब्द भी चमत्कार को बनाए रखने में असमर्थ हैं।
जैसे–’पानी के बिना मोती का कोई महत्त्व नहीं’ यहाँ मोती के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ ‘चमक’ है। अब इसके स्थान पर समानार्थी शब्द जल, नीर, अम्बु, तोय आदि शब्दों को रख दें तो अलंकार समाप्त हो जाएगा, क्योंकि केवल ‘पानी’ का अर्थ ही चमक है। शेष कोई भी शब्द इस अर्थ को प्रकट नहीं करता।
उसका मुख ‘चन्द्रमा’ के समान सुंदर है। इस कथन में चमत्कार का कारण अर्थ है- ‘चाँद’ भी सुंदर है और उसका मुख भी सुंदर है। यहाँ चाँद का कोई भी समानार्थी शब्द राकेश, इन्दु, शशि आदि रख देने से अर्थ का चमत्कार बना रहता है।
(क) शब्दालंकार
1. अनुप्रास
अनुप्रास अलंकार की परिभाषा और उदाहरण लिखें।
लक्षण-जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण- चारू चंद्र की चंचल किरणें
खेल रही थीं जल थल में।
यहाँ ‘च’ की आवृति के कारण चमत्कार है।
अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है। विशेष- व्यंजनों की आवृति के साथ स्वर कोई भी आ सकता है अर्थात् जहाँ स्वरों की विषमता होने पर भी व्यंजनों की एक क्रम में आवृति हो, वहाँ ‘अनुप्रास’ अलंकार होता है। जैसे-
क्या आर्यवीर विपक्ष वैभव देखकर डरते कहीं?
उपरोक्त पंक्ति में ‘व’ की आवृति है।
इस प्रकार
1. तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाय। इस पंक्ति में ‘त’ की आवृति है।
2. तजकर तरल तरंगों को, इन्द्रधनुष के रंगों को॥ (‘त’ की आवृति)
3. सत्य स्नेह सील सुख सागर उपरोक्त पंक्ति में (स) की आवृति है।
4. कल-कल कोमल कुसुम कुंज पर मधु बरसाने वाला कौन?
उपरोक्त पंक्ति में ‘क’ की आवृति है।
2. यमक
प्रश्न-यमक अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
परिभाषा-जहाँ एक शब्द अथवा शब्द-समूह का एक से अधिक बार प्रयोग हो परन्तु प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण- कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौराय जग, वा पाए बौराय॥
कनक का अर्थ यहाँ पर सोना तथा धतूरा है। यहाँ कनक शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है और दोनों ही बार उनके अर्थ भिन्न-भिन्न हैं अतः यहाँ यमक अलंकार है।
उदाहरण- तों पर बारों उरबसी, सुनो राधिके सुजान।
तू मोहन के उरबसी, है उरबसी समान॥
‘उरबसी’ शब्द का प्रयोग तीन बार हुआ है। (i) उर्वशी नामक अप्सरा। (ii) उर में बसी हुई। (iii) गले में पहना जाने वाला आभूषण।
(2) ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी,
ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती है।
(i) मन्दर = महल (ii) मन्दर = गुफा।
(3) आँखें ये निगोड़ी खूब ऊधम मचाती आली,
आप कलपाती नहीं, हमें कलपाती हैं।
(i) कल्पाती = चैन पाती (ii) कलपाती = बेचैन करती, व्याकुल करती।
(4) रहिमन उतरे पार भार झोंकि सब भार में।
(i) भार = बोझा (ii) भार = भाड़।
(ख) अर्थालंकार
1. उपमा
उपमा अलंकार के चार अंग हैं-
1. उपमेय 2. उपमान 3. वाचक शब्द 4. साधारण धर्म।
1. उपमेय-जिसकी समता की जाती है, उसे उपमेय कहते हैं।
2. उपमान-जिससे ममता की जाती है, उसे उपमान कहते हैं।
3. वाचक शब्द-उपमेय और उपमान की समता प्रकट करने वाले शब्द को वाचक शब्द कहते हैं।
साधारण धर्म-उपमेय और उपमान में गुण (रूप, गुण आदि) की समानता को साधारण धर्म कहते हैं।
लक्षण-जहाँ रूप, रंग या गुण के कारण उपमेय की उपमान से तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
उदाहरण-
पीपर पात सरिस मन डोला।
(पीपल के पत्ते के समान मन डोल उठा)
उपमेय-मन
उपमान–पीपर-पात
वाचक शब्द-सरिस (समान)
साधारण धर्म-डोला
जिस उपमा के चारों अंग होते हैं, उसे पूर्णोपमा कहते हैं। इनमें से किसी एक अथवा अधिक के लुप्त होने से लुप्तोपमा अलंकार होता है। अतः उपमा दो प्रकार की होती है
1. पूर्णोपमा 2. लुप्तोपमा।
अन्य उदाहरण-
1. हो क्रुद्ध उसने शक्ति छोड़ी एक निष्ठुर नाग-सी।
(उसने क्रोध से भरकर एक शक्ति (बाण) छोड़ी जो साँप के समान भयंकर थी।
(यहाँ ‘शक्ति’ उपमेय की ‘नाग’ उपमान से तुलना होने के कारण उपमा अलंकार है।)
2. वह किसलय के से अंग वाला कहाँ ?
(यहाँ अंग’ उपमेय की ‘किसलय’ उपमान से तुलना है) .
3. राम कीर्ति चाँदनी-सी, गंगाजी की धारा-सी,
सुपचपला की चमक से सुशोभित अपार है।
(धर्म लुप्त है, अतः यहाँ लुप्तोमा अलंकार है।)
4. भारत के सम भारत है।
5. सीमा-रहित अनंत गगन-सा विस्तृत उसका प्रेम हुआ।
6. हँसने लगे तब हरि अहा ! पूणेन्दु-सा मुख खिल गया।
7. कर लो नभ-सा शुचि जीवन को,
नर हो, न निराश करो मन को।
8. मांगन मरन समान है मत कोई मांगो भीख।
2. रूपक
लक्षण-उपमेरु उपमान जहँ एकै रूप कहायें।
अर्थात्-जहाँ उपमान पर उपमेय का आरोप किया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है। इस अलंकार में लक्षणा से चमत्कार उत्पन्न होता है।
‘रूपक’ का अर्थ है-‘रूप धारण करना।’ इस अलंकार में उपमेय उपमान का रूप धारण करता है।
उदाहरण-
उदित उदय-गिरि मंच पर रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत-सरोज सब हरषे लोचन भंग॥
स्पष्टीकरण-
मंच पर श्रीराम के आने पर संतजनों को हर्ष हुआ। प्रस्तुत चौपाई में इतना ही कहा गया है किन्तु उदयगिरी (पर्वत यहाँ से सूर्योदय होता है) और मंच, रघुवर और बाल पतंग (सूर्य) संत और सरोज (कमल) लोचन और भृग (भंवरा) में एकरूपता दिखाकर सुन्दर रूपक बाँधा गया है।
दूसरा उदाहरण-
अम्बर-पनघट में डुबो रही
ताराघट उषा-नगरी : -जय शंकर प्रसाद
स्पष्टीकरण-
यहाँ अम्बर में पन घट, तारा में घट (घड़ा) और उषा में नागरी (सुन्दर स्त्री) का आरोप किया गया है। अत: यहाँ रूपक अलंकार है।
3. श्लेष
लक्षण-जहाँ पर एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलें वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण-
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून॥
(रहीम कवि कहते हैं कि मनुष्य को पानी अर्थात् अपनी इज्जत अथवा मान-मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए। बिना पानी के सब सूना है, व्यर्थ है। पानी के चले जाने से मोती का, मनुष्य का और चूने का कोई महत्त्व नहीं।)
यहाँ ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं-
1. मोती के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ है ‘चमक’
2. मनुष्य के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ ‘इज्जत’.
3. चूने के पक्ष में ‘पानी’ का अर्थ है पानी (जल)
क्योंकि पानी के बिना चूने की सफेदी नहीं उभरती।
यहाँ ‘पानी’ शब्द के एक से अधिक अर्थ निकलते हैं। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
अन्य उदाहरण-
(क) विपुल धन अनेकों रत्न हो साथ लाये।
प्रियतम बतला दो लाल मेरा कहाँ है॥
लाल-1. पुत्र 2. मणि।
(ख) को घटि ये वृषभानुजा।
वे हलधर के वीर।
वृषभानुजा-
1. वृषभानु की पुत्री अर्थात् राधिका।
2. वृष की अनुजा अर्थात् बैल की बहन।
हलधर-1. बलराम 2. हल को धारण करने वाला।
(ग) जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति तोई।
बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरो होई॥
(दीपक की और कपूत की एक-सी गति होती है। दीपक के जलने पर प्रकाश होता है और उसके बुझने पर अन्धेरा हो जाता है। इसी प्रकार कपूत बचपन में कुल को उज्ज्वल करता है, परन्तु बड़ा होने पर अन्धेरा करता है, कुल को बदनाम करता है।)
‘बारे’ और ‘बढ़े’ के दो अर्थ हैं और दोनों अभीष्ट होने से श्लेष अलंकार होता है।
श्लेष अलंकार दो प्रकार का होता है-
(क) शब्द-श्लेष (ख) अर्थ-श्लेष।
ऊपर के उदाहरण में चमत्कार ‘बारे’ और ‘बढ़े’ के दो अर्थ होने के कारण हैं। यदि इनके बदले इनके पर्यायवाची शब्द रख दिए जाएं तो चमत्कार न रहेगा। यह चमत्कार शब्द-विशेष के प्रयोग के कारण है, अतः यहाँ शब्द-श्लेष है। अर्थ-श्लेष में श्लिष्ट शब्द को उसके पर्याय से बदल देने पर भी चमत्कार बना रहता है। अर्थ-श्लेष में शब्द का अर्थ तो प्राय: एक ही होता है, परन्तु वह दो पक्षों में उसी अर्थ के द्वारा भिन्न तात्पर्य देता है।
बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथन की तुलना किसी दूसरी वस्तु के साथ की जाए, वह ……. अलंकार होता है।
उत्तर:
उपमा अलंकार।
प्रश्न 2.
जहां उपमान पर उपमेय का आरोप किया जाए, वहां …….. अलंकार होता है।
उत्तर:
रूपक अलंकार।
प्रश्न 3.
जिस रचना में व्यंजनों की आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ ……… अलंकार होता है ।
अथवा
जिस रचना में वर्गों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ ……… अलंकार होता है।
उत्तर:
अनुप्रास।
प्रश्न 4.
जहाँ एक वस्तु की तुलना किसी दूसरी प्रसिद्ध वस्तु के साथ की जाये, वहाँ ……. अलंकार होता
उत्तर:
उपमा।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
अलंकार का प्रमुख कार्य होता है?
(क) शोभा बढ़ाना
(ख) शोभा खोना
(ग) शोभा लेना
(घ) नष्ट करना।
उत्तर:
(क) शोभा बढ़ाना
प्रश्न 2.
अलंकार के प्रमुख भेद होते हैं?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
(ख) दो
प्रश्न 3.
‘काली घटा का घमंड घटा’ में निहित अलंकार है
(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) रूपक।
उत्तर:
(ख) यमक
प्रश्न 4.
‘रघुपति राघव राजा राम’ पंक्ति में निहित अलंकार है
(क) यमक
(ख) श्लेष
(ग) अनुप्रास
(घ) रूपक।
उत्तर:
(ग) अनुप्रास,
प्रश्न 5.
‘आए महंत बसंत’ में निहित अलंकार का नाम लिखिए
(क) रूपक
(ख) उपमा
(ग) अनुप्रास
(घ) यमक।
उत्तर:
(क) रूपक
प्रश्न 6.
‘पीपर पात सरिस.मन डोला’ पंक्ति में उपमेय क्या है?
(क) मन
(ख) पीपर
(ग) पात
(घ) डोला।
उत्तर:
(क) मन
प्रश्न 7.
जहां एक ही शब्द के अनेक अर्थ प्रकट हों वहां कौन-सा अलंकार होता है?
(क) अनुप्रास
(ख) रूपक
(ग) यमक
(घ) श्लेष।
उत्तर:
(घ) श्लेष।