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PSEB 12th Class History Notes Chapter 20 महाराजा रणजीत सिंह का नागरिक एवं सैनिक प्रशासन
→ महाराजा रणजीत सिंह का नागरिक प्रबंध (Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh)-महाराजा रणजीत सिंह के नागरिक प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-
→ केंद्रीय शासन प्रबंध (Central Administration)-महासजा राज्य का मुखिया था-राज्य की सभी आंतरिक तथा बाह्य नीतियाँ महाराजा द्वारा तैयार की जाती थीं-
→ प्रशासन व्यवस्था की देख-रेख के लिए एक मंत्रिपरिषद् का गठन किया हुआ था-मंत्रियों की नियुक्ति महाराजा स्वयं करता था-
→ केंद्र में महाराजा के बाद दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान प्रधानमंत्री का था-विदेश मंत्री, वित्त मंत्री, मुख्य सेनापति और ड्योढ़ीवाला मंत्रिपरिषद् के अन्य मुख्य मंत्री थे-प्रबंधकीय सुविधाओं के लिए केंद्रीय शासन-व्यवस्था को अनेक दफ्तरों में विभाजित किया गया था।
→ प्रांतीय प्रबंध (Provincial Administration)-महाराजा ने अपने राज्य को चार बड़े प्राँतों में विभाजित किया हुआ था-ये प्राँत थे-सूबा-ए-लाहौर, सूबा-ए-मुलतान, सूबा-ए-कश्मीर और सूबाए-पेशावर-प्राँत का प्रशासन नाज़िम के हाथ में होता था-नाज़िम कभी भी महाराजा द्वारा परिवर्तित किया जा सकता था।
→ स्थानीय व्यवस्था (Local Administration)-प्रत्येक प्राँत कई परगनों में विभाजित थापरगने के मुख्य अधिकारी को कारदार कहते थे-प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव अथवा मौजा थी-
→ गाँव की व्यवस्था पंचायत के हाथ में होती थी-पटवारी, चौधरी, मुकद्दम और चौकीदार गाँव के प्रमुख अधिकारी होते थे-लाहौर शहर की व्यवस्था अन्य शहरों की अपेक्षा अलग थी।
→ वित्तीय व्यवस्था (Financial Administration)-राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि का लगान था-लगान एकत्रित करने के लिए बटाई प्रणाली सर्वाधिक प्रचलित थी-
→ इसके अतिरिक्त कनकूत प्रणाली, ज़ब्ती प्रणाली, बीघा प्रणाली, हल प्रणाली और इज़ारादारी प्रणाली भी प्रचलित थी-लगान वर्ष में दो बार एकत्रित किया जाता था-
→ यह भूमि की उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करता था-चुंगी कर, नज़राना, ज़ब्ती और आबकारी आदि से भी सरकार को आय होती थी।
→ जागीरदारी प्रथा (Jagirdari System)-जागीरदारों को दी जाने वाली जागीरों में सेवा जागीरें सबसे महत्त्वपूर्ण थीं-इन जागीरों को घटाया, बढ़ाया अथवा जब्त किया जा सकता था-
→ ये सैनिक तथा असैनिक अधिकारियों को दी जाती थीं-इसके अतिरिक्त ईनाम जागीरें, गुज़ारा जागीरें, वतन जागीरें और धर्मार्थ जागीरें भी प्रचलित थीं।
→ न्याय व्यवस्था (Judicial System)-न्याय प्रणाली साधारण थी-कानून लिखित नहीं थेनिर्णय प्रचलित प्रथाओं व धार्मिक विश्वासों के आधार पर किए जाते थे-
→ न्याय व्यवस्था में पंचायत सबसे लघु और महाराजा की अदालत सर्वोच्च अदालत थी-लोग किसी भी अदालत में जाकर मुकद्दमा प्रस्तुत कर सकते थे-अपराधों का दंड प्रायः जुर्माना ही होता था। मृत्यु दंड किसी भी अपराधी को नहीं दिया जाता था।
→ महाराजा रणजीत सिंह का सैनिक प्रबंध (Military Administration of Maharaja Ranjit Singh)-महाराजा रणजीत सिंह ने अपने सैनिक प्रबंध की ओर विशेष ध्यान दिया-
→ उसकी सेना में देशी एवं विदेशी दोनों सैनिक प्रणालियों का समन्वय किया गया था-सेना ‘फ़ौज-ए-आईन’ और ‘फ़ौज-ए-बेकवायद’ नामक दो भागों में विभाजित थी-फ़ौज-ए-आईन को पैदल, घुड़सवार और तोपखाना में विभाजित किया गया था-
→ फ़ौज-ए-खास महाराजा की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली अंग थी-इसे जनरल वेंतूरा ने तैयार किया था-
→ फ़ौज-ए-बेकवायद को निश्चित नियमों का पालन नहीं करना पड़ता था-रणजीत सिंह की सेना में भिन्न-भिन्न वर्गों से संबंधित लोग शामिल थेअधिकाँश इतिहासकारें का मत है कि उनकी सेना की संख्या 75,000 से 1,00,000 के बीच थी।