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PSEB 12th Class History Notes Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ
→ गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को राय भोय की तलवंडी में हआ-आपके पिता जी का नाम मेहता कालू तथा माता जी का नाम तृप्ता जी था
→ आपकी बहन का नाम बेबे नानकी था। गुरु नानक देव जी बचपन से ही बहुत गंभीर और विचारशील स्वभाव के थे-गुरु साहिब के आध्यात्मिक ज्ञान से उनके अध्यापक चकित रह गए
→ गुरु नानक देव जी के पिता जी ने उन्हें कई व्यवसायों में लगाने का प्रयत्न किया परंतु गुरु जी ने कोई रुचि न दिखाई
→ 14 वर्ष की आयु में आपका विवाह बटाला निवासी मूल चंद की सुपुत्री सुलक्खनी जी से कर दिया गया
→ 20 वर्ष की आयु में आप सुल्तानपुर लोधी के मोदीखाना अन्न भंडार में नौकरी करने लगे-सुल्तानपुर लोधी में आपको बेईं नदी में स्नान के दौरान सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई-उस समय आपकी आयु 30 वर्ष की थी।
→ गुरु नानक देव जी की उदासियाँ (Udasis of Guru Nanak Dev Ji): 1499 ई० में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी देश और विदेशों की लंबी यात्रा पर निकल पड़े-गुरु साहिब ने कुल 21 वर्ष इन उदासियों अथवा यात्राओं में व्यतीत किए
→ इन उदासियों का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और एक ईश्वर की आराधना का प्रचार करना था-गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में भाई मरदाना के साथ अपनी पहली उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने सैदपुर, तालुंबा, कुरुक्षेत्र, पानीपत, दिल्ली, हरिद्वार, गोरखमता, बनारस, कामरूप, गया, जगन्नाथपुरी, लंका और पाकपटन के प्रदेश की यात्रा की-
→ गुरु नानक देव जी ने 1513-14 ई० में अपनी दूसरी उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने पहाड़ी रियासतों, कैलाश पर्वत, लद्दाख, कश्मीर, हसन अब्दाल और स्यालकोट की यात्रा की-
→ 1517 ई० में आरंभ की गई अपनी तृतीय उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी ने मुलतान, मक्का, मदीना, बगदाद, काबुल, पेशावर और सैदपुर के प्रदेशों की यात्रा कीइन उदासियों के दौरान गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों लोग उनके अनुयायी बन गए।
→ गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ (Teachings of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल और प्रभावशाली थीं-गुरु जी के अनुसार ईश्वर एक है-
→ वह इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और नाशवान्कर्ता हैं-वह निराकार और सर्वव्यापक है-उनके अनुसार माया मनुष्य के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है-हऊमै (अहं) मनुष्य के सभी दुःखों का मूल कारण है-
→ गुरु जी ने जाति प्रथा तथा खोखले रीति रिवाजों का जोरदार शब्दों में खंडन किया-गुरु जी ने स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थान देने के लिए आवाज़ उठाई-गुरु जी द्वारा नाम जपने पर विशेष बल दिया गया-उन्होंने गुरु को मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी माना है।
→ ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light): 22 सितंबर, 1539 ई० को गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत समा गए। ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।