Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान
निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
गुरु अर्जन देव जी का आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयाँ
(Early Career and Difficulties of Guru Arjan Dev Ji)
प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें। गुरुगद्दी पर बैठते समय उन्हें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(Describe briefly the early life of Guru Arjan Dev Ji. What difficulties he had to face at the time of his accession to Guruship ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे। उनका गुरु काल 1581 से 1606 ई० तक था। गुरु अर्जन देव जी के गुरु काल में जहाँ सिख पंथ का अद्वितीय विकास हुआ, वहीं उनके बलिदान से सिख इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु जी के आरंभिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
I. आरंभिक जीवन (Early Career)
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। आप गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे तथा सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। आपके माता जी का नाम बीबी भानी जी था।
2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अर्जन देव जी बचपन से ही सबके विशेषकर अपने नाना गुरु अमरदास जी के बड़े लाडले थे। गुरु अमरदास जी ने एक बार भविष्यवाणी की, “यह मेरा दोहता वाणी का बोहथा होगा” अर्थात् यह एक ऐसी नाव बनेगा जो मानवता को संसार-सागर से पार उतारेगी। उनकी यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। गुरु अर्जन देव जी आरंभ से ही बड़े धार्मिक विचारों के थे। उन्होंने हिंदी, फ़ारसी तथा गुरुवाणी के संबंध में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। आपका विवाह मऊ गाँव (फिल्लौर) के निवासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ। 1595 ई० में आपके घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ।
3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे। सबसे बड़ा पुत्र पृथी चंद बड़ा स्वार्थी तथा बेईमान था। दूसरा पुत्र महादेव वैरागी स्वभाव का था। उसकी सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। तीसरे तथा सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी थे। उनमें गुरुभक्ति, सेवा भाव तथा नम्रता आदि गुण प्रमुख थे। इसी कारण गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी को 1581 ई० में अपना उत्तराधिकारी बनाया। इस तरह गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु बने।
II. गुरु अर्जन देव जी की कठिनाइयाँ (Difficulties of Guru Arjan Dev Ji)
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. पृथी चंद का विरोध (Opposition of Prithi Chand)-पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। उसने मीणा संप्रदाय की स्थापना की थी। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना हक समझता था परंतु गुरु रामदास जी ने उसके कपटी तथा स्वार्थी स्वभाव को देखते हुए अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस पर उसने अपने पिता जी को दुर्वचन कहे। उसने गुरु रामदास जी के ज्योति-जोत समाने के समय यह अफवाह फैला दी कि गुरु अर्जन देव जी ने उन्हें विष दे दिया है। उसने गुरु अर्जन देव जी से संपत्ति भी ले ली। उसने लंगर के लिए आई माया भी हड़पनी आरंभ कर दी। जब 1595 ई० में गुरु साहिब के घर हरगोबिंद का जन्म हुआ तो उसने इस बालक की हत्या के कई प्रयत्न किए। उसने लाहौर के मुग़ल कर्मचारी सुलही खाँ से मिलकर बादशाह अकबर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया। इस प्रकार पृथिया ने गुरु अर्जन साहिब को परेशान करने में कोई यत्न खाली न छोड़ा।
2. कट्टर मुसलमानों का विरोध (Opposition of Orthodox Muslims)-गुरु अर्जन देव जी को कट्टर मुसलमानों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। ये मुसलमान सिखों के बढ़ते प्रभाव के कारण उनके दुश्मन बन गए। कट्टरपंथी मुसलमानों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए सरहिंद में ‘नक्शबंदी’ लहर का गठन किया। इस लहर का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। 1605 ई० में जहाँगीर मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। नक्शबंदियों ने जहाँगीर को सिखों के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही करने का मन बना लिया।
3. ब्राह्मणों का विरोध (Opposition of Brahmans) गुरु अर्जन देव जी को पंजाब के हिंदुओं के प्रमुख वर्ग अर्थात् ब्राह्मणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। इसका कारण यह था कि सिख धर्म के प्रचार के कारण समाज में ब्राह्मणों का प्रभाव बहुत कम होता जा रहा था। सिखों ने ब्राह्मणों के बिना अपने रीति-रिवाज मनाने शुरू कर दिए थे। गुरु अर्जन देव जी ने जब आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया तो ब्राह्मणों ने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि इसमें हिंदुओं तथा मुसलमानों के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा है। जाँच करने पर अकबर का कहना था कि यह ग्रंथ तो पूजनीय है।
4. चंदू शाह का विरोध (Opposition of Chandhu Shah)-चंदू शाह जो कि लाहौर का दीवान था, अपनी पुत्री के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के आदमियों ने चंदू शाह को गुरु अर्जन देव जी के सुपुत्र हरगोबिंद से रिश्ता करने का सुझाव दिया। इस पर उसने गुरु जी को अपशब्द कहे। बाद में अपनी पत्नी के विवश करने पर चंदू शाह यह रिश्ता करने के लिए सहमत हो गया। क्योंकि उस समय तक सिखों को चंदू शाह द्वारा कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल गया था इसलिए उन्होंने गुरु जी को यह रिश्ता स्वीकार न करने के लिए प्रार्थना की। परिणामस्वरूप गुरु साहिब ने यह रिश्ता स्वीकार करने से इंकार कर दिया। अब चंदू शाह
SRI HARMANDIR SAHIB : AMRITSAR
एक लाख रुपया लेकर गुरु जी के पास पहुँचा और गुरु जी को दहेज का लालच देने लगा। गुरु जी ने चंदू शाह से कहा, “मेरे शब्द पत्थर पर लकीर हैं। यदि तू समस्त संसार को भी दहेज में दे दे तो भी मेरा पुत्र तेरी पुत्री से विवाह नहीं करेगा।” इस पर चंदू शाह गुरु जी का घोर शत्रु बन गया। .
गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख पंथ का विकास
(Development of Sikhism under Guru Arjan Dev Ji)
प्रश्न 2.
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी ने क्या योगदान दिया ?
(What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution in the evolution of Sikhism ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी द्वारा सिख धर्म के विकास के लिए किए संगठनात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
(Describe the various organisational works done by Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की विभिन्न सफ़लताओं का विवरण दें। .
(Give an account of various achievements of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
सिख धर्म के संगठन तथा विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान का वर्णन करें। (Describe Guru Arjan Dev’s contribution to the organisation and development of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी का योगदान की चर्चा करें।
(Discuss the contribution of Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। उनके गुरुगद्दी पर बैठने से सिख इतिहास में एक नए युग का आगमन हुआ। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—
1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण (Construction of Harmandir Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। सर्वप्रथम गुरु अर्जन देव जी ने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू कराए गए अमृतसर सरोवर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफ़ी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। सिखों ने गुरु जी को हरिमंदिर साहिब को आस-पास की इमारतों से ऊँचा बनवाने के लिए कहा परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता इसकी चारों दिशाओं में बनाए गए एक-एक द्वार हैं। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ।
इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि इस मंदिर की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा। सिख वहाँ बड़ी संख्या में आने लगे। फलस्वरूप जल्दी ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। प्रसिद्ध लेखक जी० एस० तालिब के अनुसार,
“इस मंदिर एवं सरोवर का सिखों के लिए वही स्थान है जो मक्का का मुसलमानों के लिए, जेरूस्लेम का यहूदियों तथा ईसाइयों के लिए तथा बौद्ध गया का बौद्धों के लिए।”1
2. तरनतारन की स्थापना (Foundation of Tarn Taran)-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरनतारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरनतारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरनतारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा। तरनतारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन्होंने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।
3. करतारपुर एवं हरगोबिंदपुर की स्थापना (Foundation of Kartarpur and Hargobindpur)गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था “ईश्वर का शहर’। यह शहर ब्यास और सतलुज नदियों के मध्य स्थित है। करतारपुर में गुरु साहिब ने गंगसर नामक एक सरोवर भी बनवाया। इस प्रकार करतारपुर जालंधर दोआब में एक प्रसिद्ध प्रचार केंद्र बन गया। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।
4. लाहौर में बाऊली का निर्माण (Construction of a Baoli at Lahore)-गुरु अर्जन देव जी एक बार सिख संगतों के आग्रह पर लाहौर गए। यहाँ उन्होंने डब्बी बाजार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस प्रकार उस क्षेत्र के सिखों को भी एक तीर्थ स्थान मिल गया।।
5. मसंद प्रथा का विकास (Development of Masand System)-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक था। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। ये मसंद अपने क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के साथ-साथ धन भी एकत्रित करते थे तथा इस धन को वैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में गुरु साहिब के पास आकर जमा करवाते थे। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। इस कारण सिख धर्म एवं गुरु साहिब की लोकप्रियता में बढ़ौतरी हुई।
6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब का संकलन करना था। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्व सिख गुरुओं की वाणी को वास्तविक रूप में अंकित करना तथा सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ देना था। आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का कार्य रामसर नामक सरोवर के किनारे आरंभ किया गया। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफ़ी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इस ग्रंथ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई तथा आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिखों को एक पावन धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हुआ। इसने सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस समय के पंजाब की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। डॉक्टर हरी राम गुप्ता का यह कहना पूर्णतः सही है,
“गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन सिख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।”2
7. घोड़ों का व्यापार (Trade of Horses)-गुरु अर्जन देव जी सिखों की आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ आर्थिक प्रगति भी चाहते थे। इसलिए उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया। इसके तीन लाभ हुए। प्रथम, सिख अच्छे व्यापारी सिद्ध हुए जिस कारण उनकी आर्थिक दशा सुधर गई। दूसरा, वे अच्छे घुड़सवार बन गए। तीसरा, इसने समाज में प्रचलित इस भ्रम पर गहरा आघात किया कि समुद्र पार जाने से ही किसी व्यक्ति का धर्म भ्रष्ट हो जाता है।
8. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु अर्जन देव जी तथा मुग़ल सम्राट अकबर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। गुरु अर्जन देव जी के विरोधियों पृथिया, चंदू शाह, ब्राह्मणों एवं कट्टरपंथी मुसलमानों ने अकबर को गुरु साहिब जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया परंतु उनकी चालें बेकार गईं। कई मुसलमानों ने अकबर को यह कहकर भड़काने का प्रयास किया कि आदि ग्रंथ साहिब जी में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं, परंतु अकबर इस ग्रंथ को पूजनीय मानता था। गुरु अर्जन देव जी के अनुरोध करने पर अकबर ने कृषकों के लगान में 10% की कमी कर दी। इसके कारण जहाँ गुरु साहिब की ख्याति में वृद्धि हुई, वहीं सिख पंथ के विकास में भी काफ़ी सहायता मिली।
9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अर्जन देव जी ने अपना बलिदान देने से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु साहिब ने उसे पूर्ण रूप से सशस्त्र होकर गुरुगद्दी पर बैठने और सेना रखने का भी आदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने न केवल गुरुगद्दी की परंपरा को ही बनाए रखा, बल्कि इसके स्वरूप में भी परिवर्तन कर दिया।
10. गुरु अर्जन साहिब की सफलताओं का मूल्यांकन (Estimate of Guru Arjan Sahib’s Achievements) इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हरिमंदिर साहिब, तरनतारन, हरगोबिंदपुर, करतारपुर और लाहौर में बाऊली की स्थापना, मसंद प्रथा के विकास तथा आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिख धर्म को नई दिशा मिली। फलस्वरूप यह एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभर कर सामने आया। प्रोफ़ेसर हरबंस सिंह के शब्दों में,
“पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म अच्छी प्रकार दृढ़ हो गया था।”3
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी के अनुसार,
“गरु अर्जन जी के गरु काल में सिख धर्म का तीव्र विकास हुआ है।”4
1. “This temple and the pool became to Sikhism what Mecca is to Islam, Jerusalem to Judaism and Christianity and Bodh Gaya to Bhuddhism.” G.S. Talib, An Introduction to Sri Guru Granth Sahib (Patiala : 1991) p. 10.
2. “The compilation of the Granth formed an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. Hari Ram Gupta, History of Sikh Gurus (New Delhi : 1973) p. 97.
3. “Under Guru Arjan, the Fifth Guru, Sikhism became more firmly established.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 37. .
4. “During the period of Guru Arjan, Sikhism took a significant stride.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 144.
प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी के आरंभिक जीवन का वर्णन करें। उनकी सिख धर्म को क्या देन है ?
(Briefly describe the early life of Guru Arjan Dev Ji. What is his contribution to Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे। उनका गुरु काल 1581 से 1606 ई० तक था। गुरु अर्जन देव जी के गुरु काल में जहाँ सिख पंथ का अद्वितीय विकास हुआ, वहीं उनके बलिदान से सिख इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु जी के आरंभिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
I. आरंभिक जीवन (Early Career)
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। आप गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे तथा सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। आपके माता जी का नाम बीबी भानी जी था।
2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अर्जन देव जी बचपन से ही सबके विशेषकर अपने नाना गुरु अमरदास जी के बड़े लाडले थे। गुरु अमरदास जी ने एक बार भविष्यवाणी की, “यह मेरा दोहता वाणी का बोहथा होगा” अर्थात् यह एक ऐसी नाव बनेगा जो मानवता को संसार-सागर से पार उतारेगी। उनकी यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। गुरु अर्जन देव जी आरंभ से ही बड़े धार्मिक विचारों के थे। उन्होंने हिंदी, फ़ारसी तथा गुरुवाणी के संबंध में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। आपका विवाह मऊ गाँव (फिल्लौर) के निवासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ। 1595 ई० में आपके घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ।
3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे। सबसे बड़ा पुत्र पृथी चंद बड़ा स्वार्थी तथा बेईमान था। दूसरा पुत्र महादेव वैरागी स्वभाव का था। उसकी सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। तीसरे तथा सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी थे। उनमें गुरुभक्ति, सेवा भाव तथा नम्रता आदि गुण प्रमुख थे। इसी कारण गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी को 1581 ई० में अपना उत्तराधिकारी बनाया। इस तरह गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु बने।
गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। उनके गुरुगद्दी पर बैठने से सिख इतिहास में एक नए युग का आगमन हुआ। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—
1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण (Construction of Harmandir Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। सर्वप्रथम गुरु अर्जन देव जी ने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू कराए गए अमृतसर सरोवर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफ़ी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। सिखों ने गुरु जी को हरिमंदिर साहिब को आस-पास की इमारतों से ऊँचा बनवाने के लिए कहा परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता इसकी चारों दिशाओं में बनाए गए एक-एक द्वार हैं। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ।
इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि इस मंदिर की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा। सिख वहाँ बड़ी संख्या में आने लगे। फलस्वरूप जल्दी ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। प्रसिद्ध लेखक जी० एस० तालिब के अनुसार,
“इस मंदिर एवं सरोवर का सिखों के लिए वही स्थान है जो मक्का का मुसलमानों के लिए, जेरूस्लेम का यहूदियों तथा ईसाइयों के लिए तथा बौद्ध गया का बौद्धों के लिए।”1
2. तरनतारन की स्थापना (Foundation of Tarn Taran)-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरनतारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरनतारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरनतारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा। तरनतारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन्होंने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।
3. करतारपुर एवं हरगोबिंदपुर की स्थापना (Foundation of Kartarpur and Hargobindpur)गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था “ईश्वर का शहर’। यह शहर ब्यास और सतलुज नदियों के मध्य स्थित है। करतारपुर में गुरु साहिब ने गंगसर नामक एक सरोवर भी बनवाया। इस प्रकार करतारपुर जालंधर दोआब में एक प्रसिद्ध प्रचार केंद्र बन गया। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।
4. लाहौर में बाऊली का निर्माण (Construction of a Baoli at Lahore)-गुरु अर्जन देव जी एक बार सिख संगतों के आग्रह पर लाहौर गए। यहाँ उन्होंने डब्बी बाजार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस प्रकार उस क्षेत्र के सिखों को भी एक तीर्थ स्थान मिल गया।।
5. मसंद प्रथा का विकास (Development of Masand System)-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक था। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। ये मसंद अपने क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के साथ-साथ धन भी एकत्रित करते थे तथा इस धन को वैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में गुरु साहिब के पास आकर जमा करवाते थे। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। इस कारण सिख धर्म एवं गुरु साहिब की लोकप्रियता में बढ़ौतरी हुई।
6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब का संकलन करना था। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्व सिख गुरुओं की वाणी को वास्तविक रूप में अंकित करना तथा सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ देना था। आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का कार्य रामसर नामक सरोवर के किनारे आरंभ किया गया। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफ़ी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इस ग्रंथ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई तथा आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिखों को एक पावन धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हुआ। इसने सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस समय के पंजाब की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। डॉक्टर हरी राम गुप्ता का यह कहना पूर्णतः सही है,
“गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन सिख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।”2
7. घोड़ों का व्यापार (Trade of Horses)-गुरु अर्जन देव जी सिखों की आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ आर्थिक प्रगति भी चाहते थे। इसलिए उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया। इसके तीन लाभ हुए। प्रथम, सिख अच्छे व्यापारी सिद्ध हुए जिस कारण उनकी आर्थिक दशा सुधर गई। दूसरा, वे अच्छे घुड़सवार बन गए। तीसरा, इसने समाज में प्रचलित इस भ्रम पर गहरा आघात किया कि समुद्र पार जाने से ही किसी व्यक्ति का धर्म भ्रष्ट हो जाता है।
8. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु अर्जन देव जी तथा मुग़ल सम्राट अकबर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। गुरु अर्जन देव जी के विरोधियों पृथिया, चंदू शाह, ब्राह्मणों एवं कट्टरपंथी मुसलमानों ने अकबर को गुरु साहिब जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया परंतु उनकी चालें बेकार गईं। कई मुसलमानों ने अकबर को यह कहकर भड़काने का प्रयास किया कि आदि ग्रंथ साहिब जी में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं, परंतु अकबर इस ग्रंथ को पूजनीय मानता था। गुरु अर्जन देव जी के अनुरोध करने पर अकबर ने कृषकों के लगान में 10% की कमी कर दी। इसके कारण जहाँ गुरु साहिब की ख्याति में वृद्धि हुई, वहीं सिख पंथ के विकास में भी काफ़ी सहायता मिली।
9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अर्जन देव जी ने अपना बलिदान देने से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु साहिब ने उसे पूर्ण रूप से सशस्त्र होकर गुरुगद्दी पर बैठने और सेना रखने का भी आदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने न केवल गुरुगद्दी की परंपरा को ही बनाए रखा, बल्कि इसके स्वरूप में भी परिवर्तन कर दिया।
10. गुरु अर्जन साहिब की सफलताओं का मूल्यांकन (Estimate of Guru Arjan Sahib’s Achievements) इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हरिमंदिर साहिब, तरनतारन, हरगोबिंदपुर, करतारपुर और लाहौर में बाऊली की स्थापना, मसंद प्रथा के विकास तथा आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिख धर्म को नई दिशा मिली। फलस्वरूप यह एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभर कर सामने आया। प्रोफ़ेसर हरबंस सिंह के शब्दों में,
“पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म अच्छी प्रकार दृढ़ हो गया था।”3
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी के अनुसार,
“गरु अर्जन जी के गरु काल में सिख धर्म का तीव्र विकास हुआ है।”4
1. “This temple and the pool became to Sikhism what Mecca is to Islam, Jerusalem to Judaism and Christianity and Bodh Gaya to Bhuddhism.” G.S. Talib, An Introduction to Sri Guru Granth Sahib (Patiala : 1991) p. 10.
2. “The compilation of the Granth formed an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. Hari Ram Gupta, History of Sikh Gurus (New Delhi : 1973) p. 97.
3. “Under Guru Arjan, the Fifth Guru, Sikhism became more firmly established.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 37. .
4. “During the period of Guru Arjan, Sikhism took a significant stride.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 144.
आदि ग्रंथ साहिब जी (Adi Granth Sahib Ji)
प्रश्न 4.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और इसके ऐतिहासिक महत्त्व के संबंध में एक विस्तृत नोट लिखें।
(Write a detailed note on the compilation and historical importance of Adi Granth Sahib Ji.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन, भाषा, विषय-वस्तु तथा महत्त्व पर एक आलोचनात्मक नोट लिखें ।
(Write a critical note on compilation, language, contents and significance of the Adi Granth Sahib Ji.) i
उत्तर-
1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था। सिखों के मन में इस ग्रंथ साहिब के प्रति वही श्रद्धा है, जो बाइबल के लिए ईसाइयों; कुरान के लिए मुसलमानों और गीता के लिए हिंदुओं के मन में है। वस्तुतः आदि ग्रंथ साहिब जी समस्त मानव जाति के लिए एक अमूल्य निधि है। आदि ग्रंथ साहिब जी से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. संकलन की आवश्यकता (Need for its Compilation)-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए कई कारण उत्तरदायी थे। पहला, सिखों के नेतृत्व के लिए एक पावन धार्मिक ग्रंथ की आवश्यकता थी। दूसरा, गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथिया ने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की वाणी कहकर प्रचलित करनी आरंभ कर दी थी। पर गुरु अर्जन देव जी गुरु साहिबान की वाणी शुद्ध रूप में अंकित करना चाहते थे। तीसरा, गुरु अमरदास जी ने भी सिखों को गुरु साहिबान की सच्ची वाणी पढ़ने के लिए कहा था।
2. वाणी को एकत्रित करना (Collection of Hymns)-गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए भिन्न-भिन्न स्रोतों से वाणी एकत्रित की। गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी और गुरु अमरदास जी की वाणी गुरु अमरदास जी के बड़े सुपुत्र बाबा मोहन जी के पास पड़ी थी। अतः गुरु साहिब स्वयं अमृतसर से गोइंदवाल साहिब नंगे पाँव गए। गुरु जी की नम्रता से प्रभावित होकर बाबा मोहन जी ने समस्त वाणी गुरु जी के सुपुर्द कर दी। गुरु रामदास जी की वाणी गुरु अर्जन देव जी के पास ही थी। तत्पश्चात् गुरु साहिब ने हिंदू भक्तों और मुस्लिम संतों के श्रद्धालुओं से उनके गुरुओं की सही वाणी माँगी। इस प्रकार भिन्न-भिन्न स्रोतों से वाणी का संग्रह किया गया।
3. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib Ji)-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य अमृतसर के रामसर नामक एक स्थान पर किया गया। गुरु अर्जन देव जी वाणी लिखवाते गए और भाई गुरदास जी इसे लिखते गए। यह महान् कार्य अगस्त, 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश हरिमंदिर साहिब जी में किया गया। बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया।
4. आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वाले (The Contributors of the Adi Granth Sahib Ji)आदि ग्रंथ साहिब जी एक विशाल ग्रंथ (5,894 शब्द) है। आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वालों का वर्णन निम्नलिखित है—
- सिख गुरु (Sikh Gurus)—आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907, गुरु रामदास जी के 679 और गुरु अर्जन देव जी के 2216 शब्द अंकित हैं। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग बहादुर जी के 116 शब्द एवं श्लोक (59 शब्द और 57 श्लोक) सम्मिलित किए गए।
- भक्त एवं संत (Bhagats and Saints)-आदि ग्रंथ साहिब जी में 15 हिंदू भक्तों और सफ़ी संतों की वाणी अंकित की गई है। प्रमुख भक्तों तथा संतों के नाम ये हैं-भक्त कबीर जी, भक्त फ़रीद जी, भक्त नामदेव जी, गुरु रविदास जी, भक्त धन्ना जी, भक्त रामानंद जी और भक्त जयदेव जी। इनमें भक्त कबीर जी के सर्वाधिक 541 शब्द हैं।
- भट्ट (Bhatts) आदि ग्रंथ साहिब जी में 11 भट्टों के 123 सवैये भी अंकित किए गए हैं। कुछ प्रमुख भट्टों के नाम ये हैं-कलसहार जी, नल जी, बल जी, भिखा जी और हरबंस जी।।
5. वाणी का क्रम (Arrangement of the Matter)-आदि ग्रंथ साहिब जी में दर्ज की गई वाणी को तीन भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम भाग में जपुजी साहिब, रहरासि साहिब और सोहिला आते हैं। दूसरे भाग में वर्णित वाणी को 31 रागों के अनुसार 31 भागों में विभाजित किया गया है। सभी गुरुओं के शब्दों में ‘नानक’ का नाम ही प्रयुक्त हुआ है, इसलिए उनके शब्दों में अंतर प्रकट करने के लिए महलों का प्रयोग किया गया है। तीसरे भाग में भट्टों के सवैये, सिख गुरुओं और भक्तों के वे श्लोक हैं जिन्हें रागों में विभाजित नहीं किया जा सका। आदि ग्रंथ साहिब जी ‘मुंदावणी’ नामक दो श्लोकों से समाप्त होता है। आदि ग्रंथ साहिब जी में कुल 1430 अंग (पन्ने) है।
6. विषय (Subject) आदि ग्रंथ साहिब जी में प्रभु की भक्ति, नाम का जाप, सच्चखंड की प्राप्ति और गुरु के महत्त्व से संबंधित विषयों की जानकारी दी गई है। इसके अतिरिक्त इसमें मानवता के कल्याण, प्रभु की एकता और विश्व-बंधुत्व का संदेश दिया गया है।
7. भाषा (Language)-आदि ग्रंथ साहिब जी गुरुमुखी लिपी में लिखा गया है। इसके अतिरिक्त इसमें पंजाबी, हिंदी, मराठी, गुजराती, संस्कृत तथा फ़ारसी इत्यादि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।
आदि ग्रंथ साहिब जी का महत्व (Significance of Adi Granth Sahib Ji)
आदि ग्रंथ साहिब जी ने मानव समुदाय को जीवन के प्रत्येक पक्ष में नेतृत्व करने वाले स्वर्ण सिद्धांत दिए हैं। इसकी वाणी ईश्वर की एकता एवं परस्पर भ्रातृत्व का संदेश देती है।
1. सिखों के लिए महत्त्व (Importance for the Sikhs) आदि ग्रंथ साहिब जी का सिख इतिहास में एक विशेष स्थान है। प्रत्येक सिख गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब जी की बीड़ को बहुत मान-सम्मान सहित उच्च स्थान पर रेशमी रुमालों में लपेट कर रखा जाता है तथा इसका प्रकाश किया जाता है। सिख संगतें इसके सामने बहुत आदरपूर्ण ढंग से माथा टेककर बैठती हैं। सिखों की जन्म से लेकर मृत्यु तक की सभी रस्में गुरु ग्रंथ साहिब जी के सम्मुख पूर्ण की जाती हैं। यह ग्रंथ आज भी इनकी प्रेरणा का मुख्य स्रोत है। डॉक्टर वजीर सिंह के अनुसार,
“आदि ग्रंथ साहिब जी वास्तव में उनका (गुरु अर्जन देव जी का) सिखों के लिए सबसे मूल्यवान् उपहार था।”5
2. भ्रातृत्व का संदेश (Message of Brotherhood)-आदि ग्रंथ साहिब जी में बिना किसी जातीय. ऊँचनीच, धर्म अथवा राष्ट्र के भेदभाव की वाणी सम्मिलित की गई है। ऐसा करके गुरु अर्जन देव जी ने समस्त मानवता को भाईचारे का संदेश दिया।
3. साहित्यिक महत्त्व (Literary Importance)-आदि ग्रंथ साहिब जी साहित्यिक पक्ष से एक उच्चकोटि का ग्रंथ है। इसमें सुंदर उपमाओं और अलंकारों का प्रयोग किया गया है। पंजाबी का जो उत्तम रूप ग्रंथ साहिब में प्रस्तुत किया गया है, उसकी तुलना उत्तरोत्तर लेखक भी नहीं कर पाए।
4. ऐतिहासिक महत्त्व (Historical Importance)—अगर ऐतिहासिक महत्त्व की दृष्टि से देखें, तो आदि ग्रंथ के गहन अध्ययन से हम 15वीं से 17वीं शताब्दी की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं। बाबर के आक्रमण के समय पंजाब के लोगों की दुर्दशा का आँखों देखा हाल गुरु नानक देव जी ने ‘बाबर वाणी’ में किया है। सामाजिक क्षेत्र में स्त्रियों को बहुत निम्न स्थान प्राप्त था। विधवा का बहुत अनादर किया जाता था। समाज कई जातियों और उपजातियों में विभाजित था। उस समय की कृषि तथा व्यापार के संबंध में भी पर्याप्त प्रकाश गुरु ग्रंथ साहिब जी में डाला गया है। डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“इसका (आदि ग्रंथ साहिब जी का) संकलन निस्संदेह सिख इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी।”6
5. “The Adi Granth was indeed his most precious gift to the Sikh world.” Dr. Wazir Singh, Guru Arjan Dev (New Delhi : 1991) p. 21.
6. “Its compilation was undoubtedly an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) pp. 103-04.
गरु अर्जन देव जी का बलिदान । (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)
प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए जिम्मेवार हालातों का वर्णन करें।
(Explain the circumstances responsible for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ? इस शहीदी का क्या महत्त्व था ?
(What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ? What was its importance ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए जिम्मेदार कारणों का वर्णन करें। शहीदी का वास्तविक कारण क्या था ?
(Explain the causes which led to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the real cause of his martyrdom ?)
अथवा गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारणों की व्याख्या कीजिए। उनकी शहीदी का क्या महत्त्व था ?
(Examine the circumstances leading to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the significance of his martyrdom ?)
अथवा
उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जो गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के लिए उत्तरदायी थीं। उनके बलिदान का क्या महत्त्व था ?
(Describe the circumstances that led to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the significance of his martyrdom ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण एवं महत्त्व बताएँ।
(Discuss the causes and importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास की अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। इस घटना से सिख पंथ में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारणों और महत्त्व का वर्णन इस प्रकार है—
I. बलिदान के कारण
(Causes of Martyrdom)
1. जहाँगीर की धार्मिक कट्टरता (Fanaticism of the Jahangir)-जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसकी यह कट्टरता गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। वह इस्लाम धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म के अस्तित्व को कभी सहन नहीं कर सकता था। वह पंजाब में सिखों के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करने के किसी स्वर्ण अवसर की तलाश में था। इस संबंध में उसने अपनी आत्मकथा तुजकए-जहाँगीरी में स्पष्ट लिखा है।
2. सिख पंथ का विकास (Development of Sikh Panth)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में सिख पंथ की बढ़ती लोकप्रियता का भी योगदान है। हरिमंदिर साहिब के निर्माण, तरनतारन, करतारपुर और हरगोबिंदपुर के नगरों तथा मसंद प्रथा की स्थापना के कारण सिख पंथ दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होता चला गया। आदि ग्रंथ साहिब जी की रचना के कारण सिख धर्म के प्रचार में बहुत सहायता मिली। यह बात मुग़लों के लिए असहनीय थी। इसलिए उन्होंने सिखों की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया।
3. पृथी चंद की शत्रुता (Enmity of Prithi Chand)—पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा लोभी और स्वार्थी था। उसे गुरुगद्दी नहीं मिली इसलिए वह गुरु साहिब से रुष्ट था। उसने इस बात की घोषणा की कि वह तब तक चैन से नहीं बैठेगा जब तक उसे गुरुगद्दी प्राप्त नहीं हो जाती। उसने मसंदों द्वारा गुरुघर के लंगर के लिए लाया धन हड़प करना आरंभ कर दिया। उसने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की वाणी कहकर प्रचलित करना आरंभ कर दिया। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे। इन षड्यंत्रों ने मुग़लों में गुरु जी के विरुद्ध और शत्रुता उत्पन्न कर दी।
4. चंदू शाह की शत्रुता (Enmity of Chandu Shah)-चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह को गुरु साहिब के पुत्र हरगोबिंद का नाम सुझाया गया। इस पर उसने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे परंतु पत्नी द्वारा विवश करने पर वह यह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। गुरु साहिब को चंदू शाह द्वारा कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल चुका था, इसलिए उन्होंने इस शगुन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह ने अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए जहाँगीर के कान भरने आरंभ कर दिए। जहाँगीर पर इसका प्रभाव पड़ा और उसने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का मन बना लिया।
5. नक्शबंदियों का विरोध (Opposition of Naqshbandis)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का भी बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों का संप्रदाय था। यह संप्रदाय इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित होता देख कभी सहन नहीं कर सकता था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि नक्शबंदियों का नेता था का मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। इसलिए जहाँगीर ने गुरु अर्जन साहिब के विरुद्ध कार्यवाई करने का निर्णय किया।
6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib Ji)-आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन भी गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का एक प्रमुख कारण बना। गुरु साहिब के विरोधियों ने जहाँगीर को कहा कि इस ग्रंथ में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं। गुरु जी का कहना था कि इस ग्रंथ में कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी गई जो किसी भी धर्म के विरुद्ध हो। जहाँगीर ने ग्रंथ साहिब में हज़रत मुहम्मद साहिब के संबंध में भी लिखने के लिए कहा। गुरु साहिब का कहना था कि वे ईश्वर के आदेश के बिना ऐसा नहीं कर सकते। निस्संदेह, जहाँगीर के लिए यह बात असहनीय थी।
7. खुसरो की सहायता (Help to Khusrau)-गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तात्कालिक कारण बना। शहज़ादा खुसरो अपने पिता के विरुद्ध असफल विद्रोह के बाद भाग कर पंजाब आ गया। पंजाब पहुँचकर खुसरो गुरु अर्जन साहिब का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरनतारन पहुँचा। गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे काबुल जाने के लिए कुछ वांछित सहायता प्रदान की। जब जहाँगीर को इस बात का पता चला तो उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खान को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए।
II. बलिदान कैसे हुआ ? (How was Guru Martyred ?)
जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को 24 मई, 1606 ई० को बंदी बनाकर लाहौर लाया गया। जहाँगीर ने गुरु जी को मृत्यु के बदले 2 लाख रुपए जुर्माना देने के लिए कहा। गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप मुग़ल अत्याचारियों ने गुरु साहिब को लोहे के तपते तवे पर बिठाया और शरीर पर गर्म रेत डाली गई। गुरु साहिब ने इन अत्याचारों को ईश्वर की इच्छा समझकर, यह कहते हुए अपना बलिदान दे दिया,
तेरा किया मीठा लागे।
हरि नाम पदार्थ नानक माँगे।
इस प्रकार 30 मई, 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी लाहौर में शहीद हो गए।
III. गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व (Importance of the Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुआ। इस बलिदान के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले—
1. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का गुरु हरगोबिंद जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने सिखों को सशस्त्र करने का निश्चय किया। उन्होंने अकाल तख्त का निर्माण करवाया। यहाँ सिखों को शस्त्रों का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार सिख एक संत-सिपाही बनकर उभरने लगे। प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल के अनुसार,
“गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने समस्या को प्रबल बनाया। इसने पंजाब तथा सिख राजनीति को नई दिशा दी।”7
2. सिखों में एकता (Unity among the Sikhs)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से सिख यह अनुभव करने लगे कि मुग़लों के अत्याचार के विरुद्ध उनमें एकता का होना अति आवश्यक है। अतः सिख तीव्रता से एकता के सूत्र में बंधने लगे।
3. सिखों और मुग़लों के संबंधों में परिवर्तन (Change in the relationship between Mughals and the Sikhs)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से पूर्व मुग़लों और सिखों के मध्य संबंध सुखद थे किंतु अब स्थिति पूर्णतया परिवर्तित हो चुकी थी। सिखों के दिलों में मुग़लों से प्रतिशोध लेने की भावना भड़क उठी थी। मुग़लों को भी सिखों का गुरु हरगोबिंद जी के अधीन सशस्त्र होना पसंद नहीं था। इस प्रकार सिखों तथा मुग़लों के बीच खाई और बढ़ गई।
4. सिखों पर अत्याचार (Persecution of the Sikhs) गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के साथ ही मग़लों के सिखों पर अत्याचार आरंभ हो गए। जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। शाहजहाँ के समय गुरु जी को मुग़लों के साथ लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं। 1675 ई० में औरंगजेब ने गुरु तेग़ बहादुर जी को दिल्ली में शहीद कर दिया था। उसके शासनकाल में सिखों पर घोर अत्याचार किए गए। सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह, बंदा सिंह बहादुर तथा अन्य सिख नेताओं के अधीन मुग़ल अत्याचारों का डटकर सामना किया तथा हँसतेहँसते शहीदियाँ दीं।
5. सिख धर्म की लोकप्रियता (Popularity of Sikhism)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिख धर्म पहले की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हो गया। इस घटना से न केवल हिंदू अपितु बहुत-से मुसलमान भी प्रभावित हुए। वे बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होना आरंभ हो गए। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिख इतिहास में एक नए युग का आरंभ किया।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी का यह कहना पूर्णत: सही है,
“गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख धर्म के विकास में एक नया मोड़ था।”8
7. “Guru Arjan’s martyrdom precipitated the issues. It gave a new complexion to the shape of things in the Punjab and the Sikh polity.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 123.
8. “The martyrdom of Guru Arjan marks a turning point in the development of Sikh religion.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 146.
संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
गुरुगद्दी पर बैठने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji after he ascended the Gurgaddi ?)
अथवा
गुरु बनने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji immediately after his accession to Gurgaddi ? Explain briefly.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को सर्वप्रथम अपने बड़े भाई पृथी चंद के विरोध का सामना करना पड़ा। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझता था। उसने मुग़ल बादशाह जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काने का हर संभव प्रयत्न किया। पंजाब के कट्टर मुसलमान पंजाब में सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव से घबरा रहे थे। उन्होंने गुरु जी के विरुद्ध जहाँगीर के कान भरे। कट्टर मुसलमान होने के कारण जहाँगीर पर इनका बहुत प्रभाव पड़ा। चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की का गुरु अर्जन देव जी द्वारा उनके सुपुत्र हरगोबिंद जी के साथ रिश्ते को इंकार करने के कारण घोर शत्रु बन गया।
प्रश्न 2.
श्री हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व पर संक्षेप में लिखें। (Give a brief account of the foundation and importance of Sri Harmandir Sahib.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में क्य योगदान दिया ?
(What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान को संक्षेप में लिखें। (Describe briefly the contribution of Guru Arjan Dev Ji in the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी के संगठनात्मक कार्यों का संक्षिप्त वर्णन करो। (Give a brief account of the organisational works of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
- गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का निर्माण करके गुरु अर्जन देव जी ने सिखों को एक पावन तीर्थ स्थान प्रदान किया।
- गुरु साहिब ने लाहौर में एक बाऊली का निर्माण करवाया।
- पसंद प्रथा का विकास गुरु अर्जन देव जी के महान कार्यों में से एक था।
प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा हरिमंदिर साहिब की स्थापना और इसकी महत्ता के बारे में बताइए।
(Describe briefly the importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
रिमंदिर साहिब पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a brief note on Harmandir Sahib.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब का सिख इतिहास में अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसकी स्थापना सिखों के पाँचवें गुरु अर्जन देव जी ने की थी। गुरु अर्जन देव जी ने इसकी नींव 1588 ई० में विख्यात सूफ़ी संत मियाँ मीर जी द्वारा रखवाई थी। हरिमंदिर से अभिप्राय था-ईश्वर का मंदिर। गुरु साहिब ने हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से निम्न रखाया क्योंकि गुरु साहिब का मानना था कि जो निम्न होगा, वही उच्च कहलाने के योग्य होगा। शीघ्र ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे पवित्र तीर्थ-स्थान बन गया।
प्रश्न 4.
मसंद व्यवस्था तथा इसके महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Masand system and its importance.)
अथवा
मसंद प्रथा के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए।
(Examine the organisation and development of Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा के बारे में आप.क्या जानते हैं ? वर्णन करें।
(What do you know about Masand system ? Explain.)
अथवा
मसंद प्रथा किसने शुरू की ? इसके उद्देश्य बताएँ।
(Who started Masand system ? What were its aims?)
अथवा
मसंद प्रथा के संगठन तथा विकास की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा से क्या अभिप्राय है?
(What do you mean by Masand system ?)
उत्तर-
मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से बना है जिसका अर्थ है ‘उच्च स्थान’। इस प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी। इसका वास्तविक विकास गुरु अर्जन साहिब जी के समय में हुआ। गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दसवाँ भाग गुरु साहिब को भेंट करें। मसंदों का मुख्य कार्य इसी धन को इकट्ठा करना था। ये मसंद धन एकत्रित करने के साथ-साथ सिख धर्म का प्रचार भी करते थे। मसंद प्रथा सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुई।
प्रश्न 5.
मसंदों के प्रमुख कार्य क्या थे? (What were the main functions of the Masands ?)
उत्तर-
- मसंद अपने अधीन प्रदेश में सिख धर्म का प्रचार करते थे।
- वह सिख धर्म के विकास कार्यों के लिए सिखों से दसवंध एकत्रित करते थे।
- मसंद प्रत्येक वर्ष एकत्रित हुए धन को वैसाखी तथा दीवाली के अवसरों पर गुरु साहिब के पास अमृतसर आ कर जमा करवाते थे।
प्रश्न 6.
तरन तारन पर एक संक्षिप्त नोट लिखें तथा इसका महत्त्व भी बताएँ। (Write a short note on Tarn Taran and its importance.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने 1590 ई० में तरन तारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरन तारन नामक एक सरोवर की खुदवाई भी आरंभ करवाई। तरन तारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भवसागर से पार हो जाएगा। तरन तारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत-से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन जाटों ने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।
प्रश्न 7.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और महत्त्व के संबंध में बताएँ।
[Write a note on the compilation and importance of Adi Granth Sahib Ji (Guru Granth Sahib Ji).]
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी पर संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी के काल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था। इसका उद्देश्य गुरुओं की वाणी को एक स्थान पर एकत्रित करना था। गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी का कार्य रामसर में आरंभ किया। आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने का कार्य भाई गुरदास जी ने किया। इसमें प्रथम पाँच गुरु साहिबों, अन्य संतों और भक्तों की वाणी को भी सम्मिलित किया। इसका संकलन 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। बाद में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी इसमें सम्मिलित की गई। आदि ग्रंथ साहिब जी का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है।
प्रश्न 8.
आदि ग्रंथ साहिब जी का क्या महत्त्व है ? (What is the significance of Adi Granth Sahib Ji ?)
आदि ग्रंथ साहिब जी के ऐतिहासिक महत्त्व की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Briefly explain the historical significance of Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है। इससे सिखों को एक अलग पवित्र धार्मिक ग्रंथ उपलब्ध हुआ। इसने सिखों में एक नवीन चेतना उत्पन्न की। इसमें बिना किसी जातीय भेदभाव ऊँच-नीच, धर्म अथवा राष्ट्र के वाणी सम्मिलित की गई है। ऐसा करके गुरु अर्जन देव जी ने समस्त मानवता को आपसी भाईचारे का संदेश दिया। इसमें किरत करने, नाम जपने तथा बाँट छकने का संदेश दिया गया है। यह 15वीं से 17वीं शताब्दी के पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा को जानने के लिए हमारा एक बहुमूल्य स्रोत है।
प्रश्न 9.
पृथी चंद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a short note on Prithi Chand.)
अथवा
पृथी चंद कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? ..
(Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। उसने मीणा संप्रदाय की स्थापना की थी। वह बहुत स्वार्थी स्वभाव का था। यही कारण है कि गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी गुरु अर्जन देव जी को सौंपी। इससे पृथी चंद क्रोधित हो उठा। पृथी चंद ने गुरुगद्दी के लिए गुरु अर्जन देव का खुलकर विरोध करना आरंभ कर दिया। वह यह आशा लगाए बैठा था कि गुरु अर्जन देव जी के पश्चात् गुरुगद्दी उसके पुत्र मेहरबान को अवश्य मिलेगी परंतु जब हरगोबिंद जी का जन्म हुआ तो उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया। इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के प्राणों का शत्रु बन गया।
प्रश्न 10.
चंदू शाह कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह ने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया?
(Why did Chandu Shah oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Chandu Shah.)
उत्तर-
चंदू शाह लाहौर प्रांत का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। उसके परामर्शदाताओं ने उसे अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करने का परामर्श दिया। इस पर चंदू शाह ने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे। बाद में पत्नी के विवश करने पर रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। उसने गुरु अर्जन देव जी को शगुन भेजा। गुरु अर्जन देव जी ने इस शगुन को लेने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप चंदू शाह ने मुग़ल बादशाह अकबर तथा जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध बहुत भड़काया।
प्रश्न 11.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कोई तीन मुख्य कारण बताएँ।
(Mention any three main causes for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Briefly explain any three causes responsible for the martyrdom of the Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
- मुग़ल बादशाह जहाँगीर एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह पंजाब में सिखों के तीव्रता से बढ़ रहे प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।
- लाहौर का दीवान चंदू शाह अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करना चाहता था। गुरु साहिब द्वारा इंकार करने पर वह गुरु साहिब का घोर शत्रु बन गया।
- पृथी चंद इस बात को सहन करने को कभी तैयार नहीं था कि गुरुगद्दी उसे न मिलकर किसी ओर को मिले।
- गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में कट्टरपंथी नक्शबंदियों का बहुत बड़ा हाथ था।
- गुरु अर्जन देव जी द्वारा जहाँगीर के बड़े पुत्र खुसरो को दी गई सहायता भी उनके बलिदान का तत्कालिक कारण बनी।
प्रश्न 12.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका का वर्णन करें। (Describe the role of Naqshbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा आरंभ किया गया एक आंदोलन था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि उस समय नक्शबंदियों का नेता था बहुत कट्टर ‘ विचारों का था। वह पंजाब में सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था। उसका मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय किया।
प्रश्न 13.
जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध क्यों था ? (Why was Jahangir against Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
- जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।
- कुछ मुसलमानों द्वारा सिख धर्म को अपनाने के कारण जहाँगीर का खून खौल रहा था।
- गुरु अर्जन देव जी द्वारा विद्रोही शहज़ादे खुसरो को तिलक लगाने के कारण जहाँगीर भड़क गया था।
प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तुरंत कारण बनी। शहज़ादा खुसरो जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध राज्य सिंहासन प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारन पहुँचा। सिख गुरुओं के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध थे, यह स्वाभाविक था कि गुरु अर्जन देव जी उससे सहानुभूति रखते। कहा जाता है कि गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया। जब जहाँगीर को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसे गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का स्वर्ण अवसर मिल गया।
प्रश्न 15.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व लिखें। .
(Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom in the Sikh History. ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly describe the importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के प्रभाव बताएँ। (Write down the impact of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का क्या महत्त्व है ?
(What is the significance of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। इस बलिदान के कारण शाँति से रह रहे सिख भड़क उठे। उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि अब शस्त्र उठाने बहुत आवश्यक हैं। इसीलिए गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपनाई। उन्होंने मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। इस प्रकार सिख एक संत सिपाही बन गया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों एवं मुग़लों में मित्रतापूर्वक संबंधों का अंत हो गया। इसके पश्चात् सिखों और मुग़लों के मध्य एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ। दूसरी ओर इस शहीदी ने सिखों को संगठित करने में सराहनीय योगदान दिया।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)
प्रश्न 1.
सिखों के पाँचवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
1563 ई०।
प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कहाँ हुआ था ?’
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब।
प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम बताओ।
उत्तर-
बीबी भानी जी।
प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी के पिता जी का नाम क्या था ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।
प्रश्न 6.
गुरु अर्जन देव जी कब से लेकर कब तक गुरुगद्दी पर बने रहे ?
अथवा
गुरु अर्जन देव जी का गुरुकाल लिखें ।
उत्तर-
1581 ई० से 1606 ई०।
प्रश्न 7.
पृथिया कौन था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का सबसे बड़ा भाई।
प्रश्न 8.
पृथी चंद ने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ?
उत्तर-
क्योंकि वह स्वयं को गुरुगद्दी का वास्तविक अधिकारी मानता था।
प्रश्न 9.
पृथी चंद ने किस संप्रदाय की नींव रखी ?
उत्तर-
मीणा।
प्रश्न 10.
मेहरबान के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
पृथी चंद।
प्रश्न 11.
चंदू शाह कौन था ?
उत्तर-
लाहौर का दीवान।
प्रश्न 12.
गुरु अर्जन साहिब की कोई एक महत्त्वपूर्ण सफलता बताएँ ।
उत्तर-
अमृतसर में हरिमंदिर साहिब की स्थापना की। ।
प्रश्न 13.
हरिमंदिर साहिब से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
हरि (परमात्मा) का मंदिर (घर)।
प्रश्न 14.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण किस गुरु ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 15.
हरिमंदिर साहिब की आधारशिला किसने रखी ?
उत्तर-
सूफी संत मीयाँ मीर जी।
प्रश्न 16.
हरिमंदिर साहिब की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर-
1588 ई०।
प्रश्न 17.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य कब संपूर्ण हुआ ?
उत्तर-
1601 ई०। ।
प्रश्न 18.
हरिमंदिर साहिब का पहला मुख्य ग्रंथी कौन था ?
उत्तर-
बाबा बुड्ढा जी।
प्रश्न 19.
हरिमंदिर साहिब के कितने दरवाज़े रखे गए थे ?
उत्तर-चार।
प्रश्न 20.
हरिमंदिर साहिब की चारों दिशाओं में चार द्वार क्यों बनाए गए हैं ?
अथवा
हरिमंदिर साहिब के चार दरवाज़े किस उपदेश का संकेत करते हैं ?
उत्तर-
यह मंदिर चार जातियों और चार दिशाओं से आने वाले लोगों के लिए खुला है।
प्रश्न 21.
‘तरन तारन’ का भावार्थ क्या है ?
उत्तर-
इस सरोवर में स्नान करने वाला व्यक्ति इस भवसागर से पार हो जाएगा।
प्रश्न 22.
तरन तारन नगर का निर्माण किसने किया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 23.
लाहौर के डब्बी बाज़ार में बाऊली का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 24.
मसंद शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ऊँचा स्थान।
प्रश्न 25.
दशांश (दसवंध) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दशम भाग जो कि सिख मसंदों को अपनी आय में से देते थे।
प्रश्न 26.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब किया गया था ?
उत्तर-
1604 ई०।
प्रश्न 27.
आदि ग्रंथ साहिब जी की रचना किस ने की थी ?
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किस गुरु ने किया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 28.
आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने के लिए गुरु अर्जन देव जी ने किसकी सहायता ली ?
उत्तर-
भाई गुरदास जी की।
प्रश्न 29.
हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कब किया गया था ?
उत्तर-
16 अगस्त, 1604 ई०।
प्रश्न 30.
आदि ग्रंथ साहिब जी में सर्वाधिक शब्द किसके हैं ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 31.
गुरु अर्जन देव जी ने कितने शब्द लिखे थे ?
उत्तर-
2216.
प्रश्न 32.
आदि ग्रंथ साहिब जी में कितने भक्तों की वाणी शामिल की गई है ?
उत्तर-
15.
प्रश्न 33.
किसी एक भक्त का नाम लिखो जिनकी वाणी को गुरु ग्रंथ साहिब जी में शामिल किया गया।
उत्तर-
भक्त कबीर जी।
प्रश्न 34.
आदि ग्रंथ साहिब जी को कुल कितने रागों में विभाजित किया गया है ?
उत्तर-
31 रागों में।
प्रश्न 35.
आदि ग्रंथ साहिब जी के कुल पृष्ठों (अंगों) की गिनती बताएँ।
उत्तर-
1430.
प्रश्न 36.
आदि ग्रंथ साहिब जी की लिपि का नाम लिखो।
उत्तर-
गुरुमुखी।
प्रश्न 37.
सिखों की केंद्रीय धार्मिक पुस्तक (ग्रंथ साहिब) का नाम लिखो।
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी।
प्रश्न 38.
आदि ग्रंथ साहिब जी किस वाणी के साथ आरंभ होता है ?
उत्तर-
जपुजी साहिब जी।
प्रश्न 39.
जपुजी साहिब का पाठ कब किया जाता है ?
उत्तर-
सुबह के समय।
प्रश्न 40.
आदि ग्रंथ साहिब जी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
इसने संपूर्ण मानवता को एकता का संदेश दिया।
प्रश्न 41.
बाबा बुड्डा जी कौन थे ?
उत्तर-
दरबार साहिब अमृतसर के प्रथम मुख्य ग्रंथी।
प्रश्न 42.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक गुरुद्वारे का नाम बताएँ।
उत्तर-
श्री हरिमंदिर साहिब (अमृतसर)।
प्रश्न 43.
चंदू शाह कौन था ?
उत्तर-
लाहौर का दीवान।
प्रश्न 44.
शेख अहमद सरहिंदी कौन था ?
उत्तर-
नक्शबंदी संप्रदाय का नेता।
प्रश्न 45.
जहाँगीर के सबसे बड़े बेटे का क्या नाम था ?
उत्तर-
खुसरो।
प्रश्न 46.
शहीदी प्राप्त करने वाले सिखों के प्रथम गुरु कौन थे ?
अथवा
शहीदों के सिरताज किस गुरु साहिब को कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 47.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी किस मुग़ल बादशाह के आदेश पर हुई ?
उत्तर-
जहाँगीर।
प्रश्न 48.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई ?
अथवा
गुरु अर्जन देव जी कब शहीद हुए ?
उत्तर-
30 मई, 1606 ई०।
प्रश्न 49.
गुरु अर्जन देव जी को कहाँ शहीद किया गया था ?
उत्तर-
लाहौर में।
प्रश्न 50.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का कोई एक प्रभाव बताओ।
उत्तर-
इस शहीदी के कारण सिखों की भावनाएँ भड़क उठीं।
(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)
प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी सिखों के …………… गुरु थे।
उत्तर-
(पाँचवें)
प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी के पिता जी का नाम ………. था।
उत्तर-
(गुरु रामदास जी)
प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम ……………
उत्तर-
(बीबी भानी)
प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी के पुत्र का नाम ……………… था।
उत्तर-
(हरगोबिंद)
प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी ……………… में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-
(1581 ई०)
प्रश्न 6.
पृथी चंद ने …………… संप्रदाय की स्थापना की।
उत्तर-
(मीणा)
प्रश्न 7.
शेख अहमद सरहिंदी ने ………….. लहर की स्थापना की।
उत्तर-
(नक्शबंदी)
प्रश्न 8.
नक्शबंदी ने अपना मुख्य केंद्र ………….. में स्थापित किया।
उत्तर-
(सरहिंद)
प्रश्न 9.
चंदू शाह ……. का दीवान था।
उत्तर-
(लाहौर)
प्रश्न 10.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण …………… ने करवाया।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब)
प्रश्न 11.
हरिमंदिर साहिब की नींव पत्थर ……………….. ने रखा।
उत्तर-
(मीयाँ मीर)
प्रश्न 12.
तरनतारन की स्थापना. ……………. ने की थी।
उत्तर-
(गुरु अर्जन देव जी)
प्रश्न 13.
……………….. ने लाहौर में बाऊली का निर्माण करवाया।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब)
प्रश्न 14.
………….. ने आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब)
प्रश्न 15.
आदि ग्रंथ साहिब जी के लेखन का महान् कार्य …………… में संपूर्ण हुआ।
उत्तर-
(1604 ई०)
प्रश्न 16.
हरिमंदिर साहिब में पहला मुख्य ग्रंथी ……………. को नियुक्त किया गया।
उत्तर-
(बाबा बुड्डा जी)
प्रश्न 17.
जहाँगीर की आत्मकथा का नाम …………….. है।
उत्तर-
(तुज़क-ए-जहाँगीरी)
प्रश्न 18.
दारा शिकोह के पिता का नाम ………… था।
उत्तर-
(जहाँगीर)
प्रश्न 19.
गुरु अर्जन साहिब को ……………. में शहीद किया गया।
उत्तर-
(1606 ई०)
प्रश्न 20.
गुरु अर्जन साहिब को …………..में शहीद किया गया।
उत्तर-
(लाहौर)
प्रश्न 21.
गुरु अर्जन देव जी को मुग़ल बादशाह …….. …….. ने शहीद किया।
उत्तर-
(जहाँगीर)
(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)
नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें
प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम तृप्ता देवी था।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी के पुत्र का नाम हरगोबिंद था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 5.
मीणा संप्रदाय की स्थापना पृथी चंद ने की थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 6.
चंदू शाह गुरु अर्जन देव जी का मित्र बन गया था।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 7.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 8.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य 1688 ई० में आरंभ किया गया था।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 9.
हरिमंदिर साहिब की नींव सूफ़ी संत मीयाँ मीर ने रखी थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 10.
मसंद प्रथा के विकास में गुरु अर्जन देव जी ने सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 11.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन 1604 ई० में किया।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 12.
बाबा बुड्डा जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी की बाणी को लिखने का कार्य किया।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 13.
हरिमंदिर साहिब के प्रथम मुख्य ग्रंथी बाबा बुड्डा जी थे।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 14.
आदि ग्रंथ साहिब जी की बाणी को 33 रागों के अनुसार बांटा गया है।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 15.
आदि ग्रंथ साहिब जी में कुल 1430 पन्ने (अंग) हैं।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 16.
गुरु ग्रंथ साहिब जी में छ: गुरुओं की बाणी शामिल है।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 17.
आदि ग्रंथ साहिब जी को संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 18.
तुज़क-ए-जहाँगीरी का लेखक बाबर था।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 19.
गुरु अर्जन देव जी को 1606 ई० में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 20.
गुरु अर्जन देव जी को औरंगज़ेब के आदेश पर शहीद किया गया था।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 21.
गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक
(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए-
प्रश्न 1.
सिखों के पाँचवें गुरु कौन थे ?
(i) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अर्जन देव जी
(iii) गुरु हरगोबिंद जी
(iv) गुरु हरकृष्ण जी।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1539 ई० में
(ii) 1560 ई० में
(iii) 1563 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
(i) अमृतसर
(ii) खडूर साहिब
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) तरन तारन।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी के पिता जी कौन थे ?
(i) गुरु अमरदास जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) भाई गुरदास जी
(iv) हरीदास जी।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) बीबी भानी जी
(ii) बीबी अमरो जी
(iii) बीबी अनोखी जी
(iv) बीबी दानी जी।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 6.
पृथिया ने किस संप्रदाय की स्थापना की थी ?
(i) मीणा
(ii) उदासी
(iii) हरजस
(iv) निरंजनिया।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 7.
मेहरबान किसका पुत्र था ?
(i) गुरु अर्जन देव जी का
(ii) श्री चंद जी का
(iii) भाई मोहन जी का
(iv) पृथी चंद का।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 8.
गुरु अर्जन देव जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
(i) 1580 ई० में
(ii) 1581 ई० में
(iii) 1585 ई० में
(iv) 1586 ई० में।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 9.
पंजाब में नक्शबंदियों का मुख्यालय कहाँ था ?
(i) मालेरकोटला
(ii) लुधियाना
(iii) जालंधर
(iv) सरहिंद।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी के समय नक्शबंदी लहर का नेता कौन था ?
(i) बाबा फ़रीद जी
(ii) दाता गंज बख्स
(iii) शेख अहमद सरहिंदी
(iv) राम राय।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 11.
चंदू शाह कौन था ?
(i) लाहौर का दीवान
(ii) जालंधर का फ़ौजदार
(iii) पंजाब का सूबेदार
(iv) मुलतान का दीवान।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 12.
गुरु अर्जन देव जी ने हरिमंदिर साहिब की नींव कब रखी थी ?
(i) 1581 ई० में
(ii) 1585 ई० में
(iii) 1587 ई० में
(iv) 1588 ई० में।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 13.
हरिमंदिर साहिब की नींव किसने रखी थी ?
(i) गुरु अर्जन देव जी ने
(ii) बाबा फ़रीद जी ने
(iii) संत मीयाँ मीर ने
(iv) बाबा बुड्डा जी ने।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य कहाँ आरंभ किया ?
(i) रामसर
(ii) गोइंदवाल साहिब
(iii) खडूर साहिब
(iv) बाबा बकाला।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 15.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने का कार्य किसको दिया ?
(i) बाबा बुड्डा जी को
(ii) भाई गुरदास जी को
(iii) भाई मोहकम चंद जी को
(iv) भाई मनी सिंह जी को।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 16.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब पूर्ण हुआ ?
(i) 1600 ई० में
(ii) 1601 ई० में
(iii) 1602 ई० में
(iv) 1604 ई० में।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 17.
आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कहाँ हुआ ?
(i) हरिमंदिर साहिब
(ii) खडूर साहिब
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) ननकाणा साहिब।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 18.
आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कब हुआ ?
(i) 1602 ई० में
(ii) 1604 ई० में
(iii) 1605 ई० में
(iv) 1606 ई० में।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 19.
हरिमंदिर साहिब जी के पहले मुख्य ग्रंथी कौन थे ?
(i) भाई गुरदास जी
(ii) भाई मनी सिंह जी
(iii) बाबा बुड्डा जी ।
(iv) बाबा दीप सिंह जी।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 20.
आदि ग्रंथ साहिब जी में वाणी को कितने रागों में विभाजित किया गया है ?
(i) 10
(ii) 15
(iii) 21
(iv) 31.
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 21.
आदि ग्रंथ साहिब जी को किस लिपि में लिखा गया है ? (i) हिंदी .
(ii) फ़ारसी
(iii) मराठी
(iv) गुरमुखी।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 22.
बाबा बुड्डा जी कौन थे ?
(i) हरिमंदिर साहिब, अमृतसर के प्रथम मुख्य ग्रंथी थे
(ii) आदि ग्रंथ साहिब जी की वाणी लिखने वाले
(iii) हरिमंदिर साहिब की नींव रखने वाले
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 23.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक ग्रंथ का नाम बताएँ।
(i) आदि ग्रंथ साहिब जी।
(ii) दशम ग्रंथ साहिब जी
(iii) ज़फ़रनामा
(iv) रहितनामा।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 24.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक गुरुद्वारे का नाम बताएँ।
(i) हरिमंदिर साहिब
(ii) शीश गंज
(iii) रकाब गंज
(iv) केशगढ़ साहिब।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 25.
जहाँगीर की आत्मकथा का क्या नाम था ?
(i) तुज़क-ए-बाबरी
(ii) तुजक-ए-जहाँगीरी
(iii) जहाँगीरनामा
(iv) आलमगीरनामा।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 26.
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु कौन थे ?
(i) गुरु नानक देव जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु अर्जन देव जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 27.
किस मुगल बादशाह ने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करने का आदेश दिया था ?
(i) जहाँगीर
(ii) बाबर
(iii) शाहजहाँ
(iv) औरंगजेब।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 28.
गुरु अर्जन देव जी को कहाँ शहीद किया गया था ?
(i) दिल्ली
(ii) अमृतसर
(iii) लाहौर
(iv) मुलतान।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 29.
गुरु अर्जन देव जी को कब शहीद किया गया था ?
(i) 1604 ई० में
(ii) 1605 ई० में
(iii) 1606 ई० में
(iv) 1609 ई० में।
उत्तर-
(iii)
Long Answer Type Question
प्रश्न 1.
गुरुगद्दी पर बैठने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji’ after he ascended the Gurgaddi.)
अथवा
गुरु बनने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Write a brief note on the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji immediately after his accession to Gurgaddi.)
उत्तर-
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. पृथी चंद का विरोध-पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना हक समझता था परंतु गुरु रामदास जी ने उसके कपटी तथा स्वार्थी स्वभाव को देखते हुए गुरु अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस पर उसने अपने पिता जी को दुर्वचन कहे। उसने लाहौर के मुग़ल कर्मचारी सुलही खाँ से मिलकर बादशाह अकबर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया।
2. कट्टर मुसलमानों का विरोध-गुरु अर्जन देव जी को कट्टर मुसलमानों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। ये मुसलमान सिखों के बढ़ते प्रभाव के कारण उनके दुश्मन बन गए। कट्टरपंथी मुसलमानों ने सरहिंद में ‘नक्शबंदी’ लहर का गठन किया। इस का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। 1605 ई० में जहाँगीर मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। नक्शबंदियों ने जहाँगीर को सिखों के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही करने का मन बना लिया।
3. पुजारी वर्ग का विरोध-गुरु अर्जन देव जी को पंजाब के हिंदुओं के पुरोहित वर्ग अर्थात् ब्राह्मणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। इसका कारण यह था कि सिख धर्म के प्रचार के कारण समाज में पुजारी वर्ग का प्रभाव बहुत कम होता जा रहा था। गुरु अर्जन देव जी ने जब आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया तो पुजारी वर्ग ने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि इसमें हिंदुओं तथा मुसलमानों के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा है। जाँच करने पर अकबर का कहना था कि यह ग्रंथ तो पूजनीय है।
4. चंदू शाह का विरोध-चंदू शाह जो कि लाहौर का दीवान था, अपनी पुत्री के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के आदमियों ने चंदू शाह को गुरु अर्जन देव जी के सुपुत्र हरगोबिंद से रिश्ता करने का सुझाव दिया। इस पर उसने गुरु जी को अपशब्द कहे। बाद में अपनी पत्नी के विवश करने पर चंदू शाह यह रिश्ता करने के लिए सहमत हो गया। किंतु गुरु साहिब जी ने यह रिश्ता स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह गुरु जी का घोर शत्रु बन गया।
प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी ने सिख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ? (What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान का वर्णन करें। (Describe the contribution of Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। जिनका विवरण निम्नलिखित है—
1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफ़ी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ। हरिमंदिर साहिब का निर्माण सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर प्रमाणित हुआ।
2. तरनतारन की स्थापना-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरनतारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरनतारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरनतारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा।
3. करतारपुर एवं हरगोबिंदपुर की स्थापना—गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था ‘ईश्वर का शहर’। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।
4. मसंद प्रथा का विकास-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान कार्यों में से एक था। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका।
5. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन-गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन करना था। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफ़ी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। बाद में इस ग्रंथ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
6. घोड़ों का व्यापार-गुरु अर्जन देव जी सिखों को आर्थिक पक्ष से खुशहाल बनाना चाहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया।
प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा हरिमंदिर साहिब की स्थापना और इसकी महत्ता के बारे में बताइए।
(Describe briefly the importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब पर एक संक्षेप नोट लिखें।
(Write a brief note on Harmandir Sahib.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब जी की स्थापना गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक है। इसका निर्माण अमृत सरोवर के मध्य आरंभ किया गया। गुरु अर्जन देव जी ने इसकी नींव प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर जी से 13 जनवरी, 1588 ई० को रखवाई। इस समय कुछ सिखों ने गुरु साहिब को यह सुझाव दिया कि हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से ऊँचा होना चाहिए परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वहीं ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता यह थी कि इसकी चारों दिशाओं में एक-एक द्वार बनाया गया था। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी जातीय या अन्य भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ। हरिमंदिर साहिब की शान को देखकर गुरु अर्जन देव जी ने इस शब्द का उच्चारण किया,
डिठे सभे थांव नहीं तुध जिहा।
इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि हरिमंदिर साहिब की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा तथा यदि कोई यात्री सच्ची श्रद्धा से अमृत सरोवर में स्नान करेगा, उसे इस भवसागर से मुक्ति प्राप्त होगी। इसका लोगों के दिलों पर बहुत प्रभाव पड़ा। वे बड़ी संख्या में यहाँ आने लगे। इससे सिख धर्म के प्रसार में बड़ी सहायता मिली। 16 अगस्त, 1604 ई० को यहाँ आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश किया गया तथा बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया। इस प्रकार हरिमंदिर साहिब सेवा, सिमरिन तथा सांझीवालता का प्रतीक बन गया।
प्रश्न 4.
मसंद व्यवस्था तथा इसके महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Masand System and its importance.)
अथवा
मसंद प्रथा के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए।
(Examine the organisation and development of Masand System.)
अथवा
मसंद प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Masand System ?)
अथवा
मसंद प्रथा किसने शुरू की ? इसके उद्देश्य बताएँ। (Who started Masand System ? What were its aims ?)
अथवा
मसंद प्रथा के संगठन तथा विकास की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand System.)
अथवा
मसंद प्रथा पर संक्षिप्त नोट लिखो।
(Write.a short note on Masand System.)
उत्तर-
सिख पंथ के विकास में जिन संस्थाओं ने अति प्रशंसनीय योगदान दिया मसंद प्रथा उनमें से एक थी। इस प्रथा के विभिन्न पक्षों का संक्षिप्त इतिहास निम्न अनुसार है :—
1. मसंद प्रथा से भाव-मसंद शब्द फ़ारसी के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है। मसनद से भाव है उच्च स्थान। क्योंकि संगत में गुरु साहिबान के प्रतिनिधि उच्च स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा।
2. आरंभ-मसंद प्रथा का आरम्भ कब हुआ इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि मसंद प्रथा का आरंभ गुरु रामदास जी के समय हुआ। इसी कारण आरंभ में मसंदों को रामदासिए भी कहा जाता था। अनेक इतिहासकारों का विचार है कि मसंद प्रथा का आरंभ तो यद्यपि गुरु रामदास जी ने किया था पर इसका वास्तविक विकास गुरु अर्जन देव जी के समय हुआ।
3. मसंद प्रथा की आवश्यकता-मसंद प्रथा को आरंभ करने का मुख्य कारण यह था कि गुरु रामदास जी को अमृतसर नगर तथा यहाँ आरंभ किए गए अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई के लिए धन की आवश्यकता थी। दूसरा, क्योंकि इस समय तक सिख संगत की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी अतः बड़े पैमाने पर लंगर के प्रबंध के लिए भी धन की आवश्यकता थी। तीसरा, मसंद प्रथा को आरंभ करने का उद्देश्य यह था कि सिख पंथ का योजनाबद्ध ढंग से सुदूर प्रदेशों में प्रचार किया जा सके।
4. मसंदों की नियुक्ति-मसंद के पद पर उन व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता था जो बहत सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। प्रदेश के लोगों में उनका बहुत सम्मान होता था। वे अपने निर्वाह के लिए श्रम करते थे तथा गुरु घर के लिए एकत्र धन में से एक पैसा लेना भी घोर पाप समझते थे। मसंदों का पद पैतृक नहीं होता था।
5. मसंद प्रथा का महत्त्व-मसंद प्रथा ने आरंभ में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। इस कारण सिख धर्म का दूर के क्षेत्रों में प्रचार संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। तीसरा, आय में बढ़ोतरी के कारण लंगर संस्था को अच्छे ढंग से चलाया जा सका। चतुर्थ, मसंद प्रथा सिखों को संगठित करने में काफ़ी सहायक सिद्ध हुई|
प्रश्न 5.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और महत्त्व के संबंध में बताएँ। [Write a note on the compilation and importance of Adi Granth (Guru Granth Sahib Ji.)]
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Discuss in brief about the importance of Adi Granth Sahib Ji.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी पर संक्षेप में नोट लिखें। (Write a note on Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था।
1 संकलन की आवश्यकता-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए कई कारण उत्तरदायी थे। पहला, सिखों के नेतृत्व के लिए एक पावन धार्मिक ग्रंथ की आवश्यकता थी। दूसरा, गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथिया ने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की बाणी कहकर प्रचलित करना आरंभ कर दिया था। इसलिए गुरु अर्जन देव जी गुरु साहिबान की बाणी शुद्ध रूप में अंकित करना चाहते थे। तीसरा, गुरु अमरदास जी ने भी सिखों को गुरु साहिबान की सच्ची बाणी पढ़ने के लिए कहा था।
2. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य अमृतसर के रामसर नामक एक स्थान पर किया गया। गुरु अर्जन देव जी वाणी लिखवाते गए और भाई गुरदास जी इसे लिखते गए। यह महान् कार्य अगस्त, 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश हरिमंदिर साहिब जी में किया गया। बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया।
3. आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वाले-आदि ग्रंथ साहिब जी एक विशाल ग्रंथ है। आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वालों का वर्णन निम्नलिखित है
- सिख गुरु-आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907, गुरु रामदास जी के 679 और गुरु अर्जन देव जी के 2216 शब्द अंकित हैं। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग़ बहादुर जी के 116 शब्द एवं श्लोक सम्मिलित किए गए।
- भक्त एवं संत-आदि ग्रंथ साहिब जी में 15 हिंदू भक्तों और सूफ़ी संतों की बाणी अंकित की गई है। प्रमुख भक्तों तथा संतों के नाम ये हैं-भक्त कबीर जी, भक्त फ़रीद जी, भक्त नामदेव जी, गुरु रविदास जी, भक्त धन्ना जी, भक्त रामानंद जी और भक्त जयदेव जी। इनमें भक्त कबीर जी के सर्वाधिक 541 शब्द हैं।
- भट्ट-आदि ग्रंथ साहिब जी में 11 भट्टों के 123 सवैये भी अंकित किए गए हैं। कुछ प्रमुख भट्टों के नाम ये हैं-नल जी, बल जी, भिखा जी और हरबंस जी।
4. आदि ग्रंथ साहिब जी का महत्त्व-आदि ग्रंथ साहिब जी ने मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में नेतृत्व करने वाले स्वर्ण सिद्धांत दिए हैं। इसकी बाणी ईश्वर की एकता एवं परस्पर भ्रातृत्व का संदेश देती है। आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें 16वीं-17वीं शताब्दियों के पंजाब की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दशा के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 6.
पृथी चंद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a short note on Prithi Chand.)
अथवा
पृथी चंद कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
पृथी चंद अथवा पृथिया गुरु रामदास जी का सबसे बड़ा पुत्र और गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बहुत स्वार्थी एवं लोभी स्वभाव का था। इसके कारण गुरु रामदास जी ने उसे गुरुगद्दी सौंपने की अपेक्षा गुरु अर्जन देव जी को सौंपी। पृथी चंद यह जानकर क्रोधित हो उठा। वह तो गुरगद्दी पर बैठने के लिए काफ़ी समय से स्वप्न देख रहा था। परिणामस्वरूप गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए उसने गुरु अर्जन देव जी का खुलकर विरोध करना आरंभ कर दिया। उसने घोषणा की कि वह तब तक चैन से नहीं बैठेगा जब तक उसे गुरुगद्दी प्राप्त नहीं हो जाती। उसका यह विचार था कि गुरु अर्जन देव जी के पश्चात् गुरुगद्दी उसके पुत्र मेहरबान को अवश्य मिलेगी, परंतु जब गुरु साहिब के घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ तो उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया। इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के प्राणों का शत्रु बन गया। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए। उसके ये षड्यंत्र गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का एक कारण बने।
प्रश्न 7.
चंदू शाह कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Chandu Shah.)
उत्तर-
चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के परामर्शदाताओं ने उसे अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करने का परामर्श दिया। इससे चंदू तिलमिला उठा। उसने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे। बाद में चंदू शाह की पत्नी द्वारा विवश करने पर वह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। उसने इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए गुरु अर्जन देव जी को शगुन भेजा, क्योंकि अब तक गुरु साहिब को चंदू शाह द्वारा उनके संबंध में कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल चुका था। इसलिए उन्होंने इस शगुन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। जब चंदू शाह को यह ज्ञात हुआ तो उसने गुरु साहिब से अपने इस अपमान का प्रतिशोध लेने का निर्णय किया। उसने पहले मुग़ल बादशाह अकबर तथा उसकी मृत्यु के पश्चात् जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया। इसका जहाँगीर पर वांछित प्रभाव पड़ा और उसने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने का निर्णय किया। अत: चंदू शाह का विरोध गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ।
प्रश्न 8.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के छः मुख्य कारण बताएँ।
(Mention six causes for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly explain the causes responsible for the martyrdom of the Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
1. जहाँगीर की धार्मिक कट्टरता-जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसकी यह कट्टरता गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। वह इस्लाम धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म के अस्तित्व को कभी सहन नहीं कर सकता था। वह पंजाब में सिखों के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करने के किसी स्वर्ण अवसर की तलाश में था।
2. सिख पंथ का विकास गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में सिख पंथ की बढती लोकप्रियता का भी योगदान है। हरिमंदिर साहिब के निर्माण, तरनतारन, करतारपुर और हरगोबिंदपुर के नगरों तथा मसंद प्रथा की स्थापना के कारण सिख पंथ दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होता चला गया। आदि ग्रंथ साहिब की रचना के कारण सिख धर्म के प्रचार में बहुत सहायता मिली। यह बात मुग़लों के लिए असहनीय थी। इसलिए उन्होंने सिखों की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया।
3. पृथी चंद की शत्रुता–पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा लोभी और स्वार्थी था। उसे गुरुगद्दी नहीं मिली इसलिए वह गुरु साहिब से रुष्ट था। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे। इन षड्यंत्रों ने मुग़लों में गुरु जी के विरुद्ध और शत्रुता उत्पन्न कर दी।
4. चंदू शाह की शत्रुता—चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह को गुरु साहिब के पुत्र हरगोबिंद का नाम सुझाया गया। इस पर उसने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे। परंतु पत्नी द्वारा विवश करने पर वह यह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। गुरु साहिब इस रिश्ते को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह ने अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए जहाँगीर के कान भरने आरंभ कर दिए। अतः जहाँगीर ने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का मन बना लिया।
5. नक्शबंदियों का विरोध-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। उस समय इस संप्रदाय का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। वह सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काया।
6. खुसरो की सहायता—गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तात्कालिक कारण बना। शहज़ादा खुसरो गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारन पहुँचा। गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे कुछ वांछित सहायता प्रदान की। जब जहाँगीर को इस बात का पता चला तो उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खाँ को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए।
प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका का वर्णन करें। (Describe the role of Naqashbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा आरंभ किया गया एक आंदोलन था। इस आंदोलन का मुख्य केंद्र सरहिंद में था। यह आंदोलन पंजाब में सिखों के तीव्रता से बढ़ रहे प्रभाव को देखकर बौखला उठा था। इसका कारण यह था कि यह आंदोलन इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित होता देख कभी सहन नहीं कर सकता था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि उस समय नक्शबंदियों का नेता था बहुत कट्टर विचारों का था। उसका मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। उसका कथन था कि यदि समय रहते सिखों का दमन न किया गया तो इसका इस्लाम पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय किया।
प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तुरंत कारण बना। शहज़ादा खुसरो जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध राज्य सिंहासन प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। जब शाही सेनाओं ने खुसरो को पकड़ने का यत्न किया तो वह भाग कर पंजाब आ गया। पंजाब पहुँच कर खुसरो गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारनं पहुँचा। अकबर का पौत्र होने के कारण, जिसके सिख गुरुओं के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध थे, यह स्वाभाविक था कि गुरु अर्जन देव जी उससे सहानुभूति रखते। साथ ही गुरु-घर में आकर कोई भी व्यक्ति गुरु साहिब को आशीर्वाद देने की याचना कर सकता था। कहा जाता है कि गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे काबुल जाने के लिए कुछ वांछित सहायता भी प्रदान की। जब जहाँगीर को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसे गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का स्वर्ण अवसर मिल गया। उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खाँ को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए। उन्हें घोर यातनाएँ देकर मौत के घाट उतार दिया जाए तथा उनकी संपत्ति जब्त कर ली जाए।
प्रश्न 11.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व लिखें। (Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom in the Sikh history.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly describe the importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुआ। इस बलिदान के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले—
1. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का गुरु हरगोबिंद जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने सिखों को सशस्त्र करने का निश्चय किया। उन्होंने अकाल तख्त का निर्माण करवाया। यहाँ सिखों को शस्त्रों का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार सिख एक संत-सिपाही बनकर उभरने लगे।
2. सिखों में एकता—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से सिख यह अनुभव करने लगे कि मुग़लों के अत्याचार के विरुद्ध उनमें एकता का होना अति आवश्यक है। अतः सिख तीव्रता से एकता के सूत्र में बंधने लगे।
3. सिखों और मुग़लों के संबंधों में परिवर्तन शुरु अर्जन देव जी के बलिदान से पूर्व मुग़लों और सिखों के मध्य संबंध सुखद थे, किंतु अब स्थिति पूर्णतया परिवर्तित हो चुकी थी। सिखों के दिलों में मुग़लों से प्रतिशोध लेने की भावना भड़क उठी थी। मुग़लों को भी सिखों का गुरु हरगोबिंद जी के अधीन सशस्त्र होना पसंद नहीं था। इस प्रकार सिखों तथा मुग़लों के बीच खाई और बढ़ गई।
4. सिखों पर अत्याचार-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के साथ मुग़लों का सिखों पर अत्याचार का युग आरंभ होता है। सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह, बंदा सिंह बहादुर तथा अन्य सिख नेताओं के अधीन मुग़ल अत्याचारों का डट कर सामना किया तथा अनेक शहीदियाँ दी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिखों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गया।
5. सिख धर्म की लोकप्रियता—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिख धर्म पहले की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हो गया। इस घटना से न केवल हिंदू अपितु बहुत-से मुसलमान भी प्रभावित हुए। वे बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होना आरंभ हो गए। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिख इतिहास में एक नए युग का आरंभ किया।
6. स्वतंत्र सिख राज्य की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों ने प्रण किया कि जब तक वे मुग़लों के शासन का, अंत नहीं कर लेते तब तक वे चैन से नहीं बैठेंगे। अतः उन्होंने शस्त्र उठा लिए। इस प्रकार अंत में महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सिखों का स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का सपना यथार्थ हुआ।
Source Based Questions
नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। गुरु रामदास जी ने अमृतसर में अमृत सरोवर की खुदवाई आरंभ करवाई थी। इस कार्य को गुरु अर्जन देव जी ने संपूर्ण करवाया था। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर ने रखी थी। सिखों ने गुरु साहिब को यह सुझाव दिया कि हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से ऊँचा होना चाहिए परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचे रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता यह थी कि इसकी चारों दिशाओं में एक-एक द्वार बनाया गया था।
- हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य किस गुरु साहिब ने किया था ?
- हरिमंदिर साहिब की नींव किसने रखी थी ?
- हरिमंदर साहिब की नींव ……….. में रखी गई थी।
- हरिमंदिर साहिब में प्रवेश के लिए कितने दरवाज़े रखे गए थे ?
- हरिमंदिर साहिब का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
- हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया था।
- हरिमंदिर साहिब की नींव प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी।
- 1588 ई०।
- हरिमंदिर साहिब में प्रवेश के लिए चार दरवाज़े रखे गए थे।
- इस कारण सिखों को उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान मिला।
2
मसंद प्रथा का विकास गुरु अर्जन साहिब के महान् कार्यों में से एक था। इस प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। क्योंकि गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। गुरु अर्जन साहिब जी के समय सिखों की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी इसलिए उन्हें लंगर के लिए तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे।
- मसंद प्रथा की स्थापना किस गुरु साहिब ने की थी ?
- मसंद किस भाषा का शब्द है ?
- दसवंध से क्या भाव है ?
- मसंद प्रथा का क्या महत्त्व था ?
- मसंद प्रथा का विकास किस गुरु साहिब के समय हुआ ?
- गुरु रामदास जी
- गुरु अर्जन देव जी
- गुरु हरगोबिंद जी
- गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
- मसंद प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी।
- मसंद फ़ारसी भाषा का शब्द है।
- दसवंध से भाव है आमदनी का दसवाँ भाग।
- इस कारण सिख धर्म का प्रचार दूर-दूर तक फैल गया।
- गुरु अर्जन देव जी।
3
जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा तुज़क-ए-जहाँगीरी में स्पष्ट लिखा है, “ब्यास नदी के किनारे गोइंदवाल में अर्जन नामक हिंदू पीर अथवा शेख के लिबास में रहता था। उसने अपने रंग ढंग से बहुत-से सरल स्वभाव वाले हिंदुओं और मूर्ख एवं नासमझ मुसलमानों पर डोरे डाल रखे थे। उसने अपने पीर एवं वली होने का खूब डंका बजाया हुआ था। लोग उसे गुरु कहते थे। सभी ओर से मासूम और अजनबी लोग उसके पास आकर अपनी पूर्ण श्रद्धा प्रकट करते थे। तीन चार पीढ़ियों से उन्होंने यह दुकान चला रखी थी। काफ़ी समय से मेरे मन में यह विचार आता रहा था कि इस झूठ की दुकान को बंद करना चाहिए अथवा उसे इस्लाम में ले आना चाहिए।”
- जहाँगीर की आत्मकथा का क्या नाम था ?
- जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध क्यों था ?
- जहाँगीर किसे झूठ की दुकान कहता है ?
- गुरु अर्जन देव जी को कब शहीद किया गया था ?
- गुरु अर्जन देव जी को ……………. में शहीद किया गया था।
उत्तर-
- जहाँगीर की आत्मकथा का नाम तुज़क-ए-जहाँगीरी था।
- वह गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म के शीघ्र प्रसार को सहन करने को तैयार नहीं था।
- जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी द्वारा किए जा रहे प्रचार को झूठ की दुकान कहता है।
- गुरु अर्जन देव जी को 30 मई, 1606 ई० को शहीद किया गया था।
- लाहौर।