Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 9 निर्वाचक Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 9 निर्वाचक
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
स्त्री मताधिकार से क्या अभिप्राय है ? स्त्री मताधिकार के विपक्ष में अपने चार तर्क दें। (What is Woman suffrage ? Write four arguments against women suffrage.) (P.B. 2017)
अथवा
स्त्री मताधिकार के पक्ष और विपक्ष में तर्क दें। (Give arguments for and against the Women Franchise.)
अथवा
स्त्री मताधिकार के पक्ष में तर्क दीजिए। (Give arguments for Women Suffrage.)
अथवा
स्त्री मताधिकार के पक्ष व विपक्ष में तर्क दीजिए। (Make a case for and against Women Suffrage.)
उत्तर-
महिला मताधिकार का अर्थ महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार देना है। लोगों में इस बात पर काफ़ी मतभेद रहा है कि स्त्रियों को मत का अधिकार मिलना चाहिए या नहीं। आधुनिक युग में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो स्त्रियों को मताधिकार देने के पक्ष में नहीं हैं। इंग्लैण्ड जैसे उदारवादी देश में भी स्त्रियों को समानता के आधार पर मताधिकार सन् 1928 में दिया गया था। अमेरिका में सन् 1920 में और फ्रांस में सन् 1946 में, स्विट्ज़रलैण्ड में जिसे प्रजातन्त्र का घर माना जाता है, स्त्रियों को मत डालने और चुनाव लड़ने का अधिकार सन् 1971 तक प्राप्त नहीं था लेकिन भारतीय संविधान में 1950 से ही स्त्रियों को मताधिकार दिया गया है। स्त्री मताधिकार के पक्ष तथा विपक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं.
स्त्री मताधिकार के विपक्ष में तर्क (Arguments against Women Suffrage)-स्त्री मताधिकार के विरुद्ध निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं
1. स्त्री का कार्य क्षेत्र घर है-यदि स्त्री को मत देने का अधिकार दिया जाए तो वह घर की ओर ठीक से ध्यान न दे सकेगी। इससे पारिवारिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा घर की शान्ति समाप्त हो जाएगी।
2. स्त्री का मत पुरुष के मत की पुनरावृत्ति-अधिकतर स्त्रियां, अपने पति, पिता या भाई अदि के कहने के अनुसार ही अपने मत का प्रयोग करती हैं। वे अपनी ओर से यह सोचने का प्रयत्न नहीं करतीं कि वोट किसे देना चाहिए।
3. घरेलू शान्ति के भंग होने का खतरा-यदि स्त्री मताधिकार लागू किया जाए तो इससे घरेलू शान्ति भंग होने का बहुत भय रहता है।
4. स्त्रियां शारीरिक तौर पर दुर्बल होती हैं-यह भी कहा जाता है कि स्त्रियां शारीरिक दृष्टि से दुर्बल होती हैं और अधिक परिश्रम नहीं कर सकतीं। वे पुरुष के साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर राजनीति में भाग नहीं ले सकतीं।
5. स्त्रियां राजनीति के प्रति उदासीन रहती हैं-यह देखा गया है कि प्रायः स्त्रियां राजनीति के प्रति उदासनी रहती हैं। इसका कारण यह है कि उन्हें अपने घरेलू मामलों से ही अवकाश नहीं मिलता।
6. स्त्रियों में आत्म-विश्वास नहीं होता-स्त्रियों में आत्म-विश्वास और आत्म-निर्णय की भावना नहीं होती क्योंकि वे पुरुषों पर निर्भर रहती आई हैं। स्त्रियों के विचार भी रूढ़िवादी होते हैं और उन्हें राजनीतिक जीवन का अनुभव भी नहीं होता।
7. भ्रष्टाचार-राजनीति में कई प्रकार की चालबाजियां प्रयोग करके ही व्यक्ति सफल होते हैं। स्त्रियों के वे गुण जिनके कारण उनका आदर-मान है, समाज में समाप्त हो जाएगा।
8. स्त्रियां रूढ़िवादी होती हैं-इस प्रकार उनको मताधिकार देने का अर्थ है प्रगति के रास्ते में बाधाएं उत्पन्न करना।
9. स्त्रियां भावुक होती हैं-भावना में बहकर स्त्रियां मताधिकार का उचित प्रयोग नहीं कर सकतीं। राजनीति में भावनाओं का कोई स्थान नहीं है।
10. स्त्रियों के सम्मान में कमी-वर्तमान समय में राजनीति में गलत आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं, जिसके चलते स्त्रियां भी इस प्रकार की गंदी राजनीति से बच नहीं पायेंगी। इससे स्त्रियों के सम्मान में कमी आयेगी।
11. प्राकृतिक गुणों का नाश-स्त्रियों में दया, सहानुभूति, प्रेम, सहनशीलता तथा कोमलता जैसे प्राकृतिक गुण पाए जाते हैं, राजनीति में आने के कारण इन गुणों के समाप्त होने की सम्भावना बनी रहती है। – स्त्री मताधिकार के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Woman Suffrage)-प्रायः सभी देशों में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हैं, मत डालने का भी और चुनाव लड़ने का भी।
स्त्री मताधिकार के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं-
1. लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित रखना उचित नहीं-मिल (Mill) का कहना है कि मत का अधिकार स्वाभाविक है, अतः स्त्री को केवल लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित रखना न्याय-संगत नहीं है।
2. यह लोकतन्त्रात्मक है-स्त्रियों को मत का अधिकार देना लोकतन्त्र के सिद्धान्त के अनुसार है। लोकतन्त्र में समस्त जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार मिलता है और जनता में जितना भाग पुरुष का है उतना ही स्त्री का
3. स्त्रियों को मताधिकार की अधिक आवश्यकता-शारीरिक दृष्टि से निर्बल व्यक्ति को कानून की रक्षा की अधिक आवश्यकता होती है। जो सबल है वह तो कानून को भी अपने हाथ में ले सकता है।
4. स्त्रियां दूसरे सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं-इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्रशासन के क्षेत्र में भी स्त्रियों ने बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया है। आजकल पुलिस और सेना में भी स्त्रियां काम कर रही हैं, फिर राजनीति के क्षेत्र में वे कार्य क्यों नहीं कर सकेंगी।
5. कानून मानने वालों को ही कानून बनाने का अधिकार होना चाहिए-राज्य के कानून स्त्री-पुरुष दोनों पर ही समान रूप में लागू होते हैं, दोनों पर समान रूप से ही कर लगते हैं। फिर पुरुष को ही कानून बनाने का अधिकार क्यों ? यह अधिकार दोनों को समान रूप से मिलना चाहिए।
6. स्त्रियां शान्तिप्रिय होती हैं-स्त्रियां स्वभाव से ही शान्ति-प्रिय होती हैं और इससे राजनीति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
7. स्त्री का मत पुरुष के मत की पुनरावृत्ति नहीं होता-यदि स्त्री अपने पति के अनुसार ही अपना मत देती है तो उसमें हानि क्या है। स्त्री का राजनीतिक क्षेत्र में महत्त्व बना रहता है।
8. राजनीति शुद्ध होगी-स्त्रियां अपनी कोमलता, मृदु भाषण और सहानुभूति से राजनीतिक क्षेत्र में व्यस्त पुरुषों की कठोरता, निर्दयता, बेईमानी और चालबाज़ी को दूर कर देंगी।
9. मताधिकार स्त्री के प्राकृतिक कार्यों में कोई रुकावट नहीं-भारत, इंग्लैण्ड, रूस, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अनेक देशों में स्त्रियों को मताधिकार दिया गया है और इन देशों में स्त्रियां अपने प्राकृतिक कार्यों को बड़ी सफलता से पूरा कर रही हैं।
10. नागरिक अधिकार तथा राजनीतिक अधिकार साथ-साथ चलते हैं- यदि स्त्रियों को राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होंगे तो उनको नागरिक अधिकार देने का कोई महत्त्व नहीं रहेगा।
11. स्त्रियां पुरुषों से पीछे नहीं-अन्य क्षेत्रों की तरह राजनीति में भी स्त्रियां पुरुषों की अपेक्षा पीछे नहीं हैं। जिस प्रकार पुरुष जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य कर रहा है उसी तरह स्त्रियां भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं। भारत में स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गान्धी, इंग्लैण्ड में एलिज़ाबेथ द्वितीय एवं मारग्रेट थैचर, इज़रायल में स्वर्गीय प्रधानमन्त्री गोल्डा मायर और श्रीलंका की भूतपूर्व एवं स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्रीमती भण्डारनायके जैसी महिलाएं इस बात के स्पष्ट उदाहरण हैं।
12. मानसिक रूप से भी दृढ़-स्त्रियां मानसिक रूप से भी पुरुषों के समान ही दृढ़ हैं। जिस प्रकार की सुविधाएं पुरुषों को मिलती हैं, यदि वैसी ही सुविधाएं स्त्रियों को भी मिलें तो स्त्रियां बेशक पुरुषों से आगे भी जा सकती हैं। वर्तमान समय में बहुत-सी स्त्रियां अच्छी शिक्षा प्राप्त करके राजनीतिक एवं प्रशासनिक पदों पर विराजमान हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)-स्त्री मताधिकार के विरोध में कई तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं, उनमें अधिक जान नहीं है। स्त्री मताधिकार के लाभ बहत होते हैं और प्रायः सभी लोकतन्त्रीय देशों में स्त्रियों को पुरुषों के साथ समान रूप से मत डालने और चुनाव लड़ने का अधिकार दिया जाता है।
प्रश्न 2.
व्यस्क मताधिकार से क्या अभिप्राय है ? वयस्क मताधिकार के पक्ष तथा विपक्ष में दो-दो तर्क दीजिए।
(What is meant by Adult Franchise ? Write two arguments in favour and two in against Adult Franchise.)
अथवा
वयस्क मताधिकार के पक्ष और विपक्ष में दलीलें दो। (Write arguments in favour of and against Adult Franchise.).
अथवा
वयस्क मताधिकार के पक्ष व विपक्ष में तर्क दो।। (Give arguments for and against Adult Franchise.)
उत्तर-
वयस्क मताधिकार किसे कहते हैं ? (What is Franchise or Adult Suffrage ?) आज प्रजातन्त्र का युग है और सभी नागरिकों को समान रूप से मत डालने तथा चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया है अर्थात् आज सभी लोकतन्त्रात्मक देशों में वयस्क मताधिकार (Adult Franchise) का सिद्धान्त अपनाया गया है।
जब देश के सभी वयस्कों (Adults) जाति, धर्म, रंग, वंश, धन, स्थान आदि के आधार पर उत्पन्न भेदभाव के बिना, समान रूप से मतदान का अधिकार दे दिया जाए तो उस व्यवस्था को वयस्क मताधिकार या सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के नाम से पुकारा जाता है। वयस्क होने की उम्र राज्य द्वारा निश्चित की जाती है। इंग्लैण्ड और रूस में यह आयु 18 वर्ष है जबकि स्विट्ज़रलैण्ड में यह आयु 20 वर्ष है। भारत में पहले यह आयु 21 वर्ष की थी परन्तु 61वें संशोधन द्वारा यह आयु 18 वर्ष कर दी गई है। निश्चित आयु होने के पश्चात् प्रत्येक नागरिक बिना किसी भेदभाव के मत डालने का अधिकार बन जाता है। हां, एक निश्चित समय तक निवास की शर्त भी रखी जाती है।।
वयस्क मताधिकार के पक्ष में तर्क (Arguments in Favour of Adult Franchise)-आधुनिक युग में वयस्क मताधिकार को ही उचित तथा न्यायसंगत माना गया है। इसके पक्ष में अग्रलिखित तर्क दिए जाते हैं
1. प्रभुसत्ता जनता के पास है (Sovereignty is possessed by the People)-लोकतन्त्र में प्रभुसत्ता जनता के पास होती है और जनता की इच्छा तथा कल्याण के लिए शासन चलाया जाता है। जनता में अमीर-गरीब तथा अशिक्षित-शिक्षित सभी सम्मिलित हैं। इसलिए मत डालने का अधिकार सबको समानता के साथ मिलना चाहिए। यदि वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त लागू न किया जाए तो जनता की प्रभुसत्ता की बात सत्य सिद्ध नहीं होती।।
2. कानून का प्रभाव सब पर पड़ता है (Laws of State affects all the People)-राज्य में जो भी कानून बनते हैं उनका प्रभाव राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों पर पड़ता है। कानून की दृष्टि में सब नागरिक समान समझे जाते हैं और एक ही कानून सब लोगों पर समान रूप से लागू होते हैं। इसलिए उन कानूनों को बनाने का अधिकार भी सब को समान रूप से मिलना चाहिए। मिल (Mill) का कहना है कि, “लोकतन्त्र व्यक्ति की समानता का समर्थन करता है और राजनीतिक समानता उसी समय मिल सकती है जब सब नागरिकों को वोट का अधिकार दिया जाए। सरकार के कानूनों और नीतियों का सम्बन्ध सब लोगों के साथ है और जो सब पर प्रभाव डालता है। अतः इसका निर्णय सब के द्वारा होना चाहिए।”
3. समानता के सिद्धान्त पर आधारित (Based on the Principles of Equality)-संविधान नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करता है और समानता का सिद्धान्त लोकतन्त्र का मूल सिद्धान्त है। वयस्क मताधिकार समानता के सिद्धान्त पर आधारित है क्योंकि सभी नागरिकों को जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना मताधिकार दिया जाता है।
4. कानूनों का प्रभाव सब पर पड़ता है (Laws effect all the people)-राज्य में जो भी कानून बनते हैं उनका प्रभाव राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों पर पड़ता है। कानून की दृष्टि में सब नागरिक समान समझे जाते हैं और एक ही कानून सब लोगों पर समान रूप से लागू होते हैं इसलिए उन कानूनों को बनाने का अधिकार भी सबको समान रूप से मिलना चाहिए। मिल (Mill) का कहना है कि, “लोकतन्त्र व्यक्ति की समानता का समर्थन करता है और राजनीतिक समानता उसी समय मिल सकती है जब सब नागरिकों को वोट का अधिकार दिया जाए। सरकार के कानूनों और नीतियों का सम्बन्ध सब लोगों के साथ है और यह सब पर प्रभाव डालता है, अतः सबके द्वारा ही उसका निर्णय होना चाहिए।”
5. व्यक्ति के विकास के लिए मताधिकार आवश्यक (Right to vote is essential for the development of an individual)-लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का विकास करने के लिए कई प्रकार के अधिकार मिलते हैं। उन अधिकारों में मताधिकार भी आवश्यक है और इनके बिना कोई भी व्यक्ति अपना विकास नहीं कर सकता। दूसरे अधिकारों की रक्षा के लिए मताधिकार आवश्यक है। जिन लोगों के पास राजनीतिक अधिकार नहीं होते, उनके नागरिक और आर्थिक अधिकार भी सुरक्षित नहीं रह सकते।
6. सरकार को अधिक बल मिलता है (Government becomes strong)-समस्त जनता अर्थात् वयस्क मताधिकार द्वारा चुनी गई सरकार अधिक शक्तिशाली रहती है। इसका कारण यह है कि ऐसी सरकारों को यह विश्वास रहता है कि उसके साथ समस्त जनता है और वह जो भी कार्य करेगी सभी नागरिक उसे मानेंगे। यदि कुछ नागरिकों को मत का अधिकार न होगा तो सरकार समस्त जनता का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती और उसे भय रहेगा कि ऐसे नागरिक कहीं उसके विरुद्ध न हों।
7. लोगों में राजनीतिक जागृति (Political awakening among the people)-वयस्क मताधिकार से लोगों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न होती है और उन्हें राजनीतिक शिक्षा भी मिलती है। जिस व्यक्ति को मत डालने का अधिकार नहीं मिलता, वह राजनीतिक कार्यों के प्रति उदासीन रहता है परन्तु चुनाव के दिनों में राजनीतिक दल और उम्मीदवार मतदाताओं की राजनीतिक निद्रा को भंग करके उनमें सार्वजनिक कार्यों के प्रति रुचि उत्पन्न करते हैं।
8. लोगों में स्वाभिमान की जागृति (Self-respect among the people)-मताधिकार द्वारा लोगों में स्वाभिमान की भावना जागृत होती है। चुनावों के समय प्रत्येक उम्मीदवार को चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो, धनी-निर्धनों सभी के पास जा कर वोट के लिए निवेदन करना पड़ता है। इससे लोग यह समझने लगते हैं उनका शासन में भाग है, सरकार को बनाने में उनका भी हाथ है। वे अपने को देश का महत्त्वपूर्ण अंग समझने लगते हैं। उनमें हीनता की भावना नहीं रहती।
9. राष्ट्रीय एकता (National Unity)-राष्ट्रीय एकता के लिए भी वयस्क मताधिकार का होना आवश्यक है। यदि कुछ व्यक्तियों को ही मताधिकार प्राप्त होगा तो समस्त जनता सरकार को अपना नहीं समझ सकती। जनता दो गुटों में बंट जाएगी और जिन लोगों को वोट का अधिकार न होगा, वे कभी भी सरकार का साथ देने से इन्कार कर सकते हैं। इससे राष्ट्रीय एकता की प्राप्ति नहीं हो सकती, परन्तु वयस्क मताधिकार के कारण सभी नागरिक राज्य को अपना समझने लगेंगे। भारत में वयस्क मताधिकार ने राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन दिया है।
10. क्रान्ति का भय नहीं रहता (No danger of revolution)—वयस्क मताधिकार के अनुसार चुनी हुई सरकार समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करती है और इस सरकार के द्वारा जनता के हितों का पूरा-पूरा आदर किया जाना स्वाभाविक ही है। दूसरे, यदि सरकार जनमत का उल्लंघन करे तो लोगों के पास साधन है जिसके द्वारा यह उसे अपदस्थ कर सकते हैं। इन कारणों के परिणामवस्वरूप देश में शान्ति और व्यवस्था बनी रहती है और क्रान्ति का भय नहीं रहता। भारत में वयस्क मताधिकार के कारण क्रान्ति नहीं हुई। मताधिकार द्वारा जनता जब चाहे सरकार बदल सकती है। 1977 में जनता ने कांग्रेस सरकार को हरा कर सत्ता जनता पार्टी को सौंप दी। इसी प्रकार अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व में सत्ता परिवर्तन शान्तिपूर्ण ढंग से हुआ।
11. सभी लोग कर देते हैं (All people are tax payers)-सभी लोग कर देते हैं। आज कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो कर न देता हो। बिक्री कर, उत्पादन शुल्क आदि सभी लोग देते हैं। इसलिए यह अधिकार सभी वयस्कों को मिलना चाहिए।
12. शान्ति और व्यवस्था स्थापित रहती है (Peace and order remain established)-वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को लागू करने से देश में शान्ति और व्यवस्था स्थापित होती है। कानून जनता के प्रतिनिधियों द्वारा उनकी इच्छानुसार बनाए जाते हैं। इस कारण उसका पालन सहज भाव से ही होता है। जनता का सरकार के साथ पूर्ण सहयोग होता है और इन बातों के कारण कानूनों का उल्लंघन बहुत कम होता है और शान्ति व व्यवस्था बनी रहती है।
13. अल्पसंख्यक सन्तुष्ट (Minorities feel satisfied)—प्रत्येक देश में अल्पसंख्यक पाए जाते हैं और भारत में धार्मिक, भाषायी व सांस्कृतिक अल्पसंख्यक रहते हैं। वयस्क मताधिकार के कारण अल्पसंख्यकों को अपने हितों एवं अधिकारों की रक्षा का अवसर मिल जाता है। वयस्क मताधिकार से अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व मिल जाता है। मताधिकार प्राप्त करके अल्पसंख्यक सन्तुष्ट रहते हैं और बहुसंख्यक भी उन पर किसी प्रकार की ज्यादती नहीं कर सकते हैं।
14. नागरिक-कल्याण के लिए सरकार की स्थापना (Establishment of a Government for the welfare of all) यदि मताधिकार कुछ व्यक्तियों को ही प्राप्त होगा तो सरकार केवल कुछ व्यक्तियों के कल्याण के लिए ही कानून बनाएगी परन्तु वयस्क मताधिकार के कारण सरकार सभी के कल्याण के लिए कार्य करेगी जोकि उचित भी है।
वयस्क मताधिकार के विपक्ष में तर्क (Arguments against Adult Franchise)-बहुत-से व्यक्ति ऐसे भी हैं जो वयस्क मताधिकार के विरुद्ध हैं और अपनी बात की पुष्टि के लिए बहुत-से-तर्क प्रस्तुत करते हैं-
1. शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए (Right to Vote only to the Educated)-बहुतसे लोगों का कहना है कि शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए। शिक्षित व्यक्ति अपने मत का ठीक प्रयोग कर सकता है। मिल का कहना है कि वयस्क मताधिकार से पहले शिक्षा को अनिवार्य बनाना आवश्यक है और जिसे लिखना-पढ़ना नहीं आता उसे वोट देने का अधिकार कभी नहीं मिलना चाहिए।
2. मूों का शासन (Government of the Fools)-वयस्क मताधिकार द्वारा मूल् का शासन स्थापित हो जाता है क्योंकि समाज में अनपढ़ और मूरों की संख्या अधिक होती है। सर जेम्स स्टीफेन (Sir James Stephen) का कहना है कि इससे जो वास्तविक तथा स्वाभाविक सम्बन्ध बुद्धि और मूर्खता में रहता है वह उल्ट जाएगा अर्थात् बुद्धिमानों को मूर्तों पर शासन करना चाहिए परन्तु इनसे मूर्ख बुद्धिमानों पर शासन करेंगे । (It inverts the time and national relation between wisdom and folly.) लेकी (Lecky) का भी यह मत है कि वयस्क मताधिकार द्वारा सत्ता उन व्यक्तियों के हाथों में चली जाएगी जो कंगाल, मूर्ख तथा निकम्मे हैं क्योंकि इनकी संख्या ही समाज में सबसे अधिक होती है।
3. मताधिकार सम्पत्ति के आधार पर मिलना चाहिए (Franchise should be Based on Property)कुछ लोगों का कहना है कि सम्पत्तिशाली व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए नहीं तो दूसरे लोग राष्ट्र के धन का दुरुपयोग करेंगे। मैकाले (Macaulay) का मत है कि ऐसी अवस्था में भूखे नंगे लोग सारी सम्पत्ति और वैभव को नष्ट करके आपस में छीना झपटी करके खा जाएंगे।
4. सब नागरिक समान नहीं (AII Citizens are not Equal)-इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि सभी नागरिक समान नहीं होते। प्रकृति ने सब व्यक्तियों को समान उत्पन्न नहीं किया। कुछ जन्म से मोटे, कुछ पतले, कुछ बुद्धिमान्, कुछ चतुर और कुछ बुद्धिहीन होते हैं। इसलिए समानता के आधार पर सभी वयस्कों को मताधिकार देना उचित नहीं है।
5. मत का दुरुपयोग (Misuse of Votes)–यदि अशिक्षित और निर्धन व्यक्तियों को भी मताधिकार दे दिया जाए तो वे इसका ठीक प्रयोग नहीं करेंगे। अशिक्षित व्यक्ति बिना सोचे-समझे अपने मत का प्रयोग कर अयोग्य व्यक्तियों का शासन स्थापित करेंगे और निर्धन व्यक्ति कुछ पैसों के लालच में आकर अपना वोट बेचने को तैयार हो जाएंगे। जाति, धर्म, वंश आदि के आधार पर भी मत का प्रयोग होगा और योग्यता की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाएगा।
6. स्त्रियों को मताधिकार नहीं मिलना चाहिए (No Right to Vote to Women)-कुछ लोगों का विचार है कि स्त्रियों को मत डालने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए। इससे घरेलू शान्ति नष्ट होने का भय रहता है। वैसे भी स्त्रियां अपने मत का प्रयोग अपनी इच्छा से नहीं करतीं और न ही उनमें इतनी सूझ-बूझ होती है कि वे मत का उचित प्रयोग कर सकें।
7. शासन एक कला है (Governing is an Art) आज शासन.को एक कला माना जाता है जिसके सामने बहुत-सी जटिल समस्याएं होती हैं। इसलिए योग्य और अयोग्य का विचार किए बिना मताधिकार देना बुद्धिमत्ता नहीं कहा जा सकता। मत का अधिकार उसे ही दिया जाना चाहिए जो इसके योग्य हो।
8. मताधिकार एक पवित्र राष्ट्रीय कर्त्तव्य है (Franchise is a sacred National Duty) मताधिकार कोई खिलौना नहीं कि बच्चा उसके साथ जैसे चाहे खेलता रहे और जैसे चाहे उसका प्रयोग करे। मताधिकार एक राष्ट्रीय कर्तव्य है। इसका प्रयोग बड़ी बुद्धिमत्ता के साथ किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि यह अधिकार सोचसमझ कर केवल योग्य नागरिकों को ही मिलना चाहिए।
9. वैज्ञानिक उन्नति के विरुद्ध (Against Scientific Progress)—सर हैनरी मेन का यह विश्वास है कि वयस्क मताधिकार वैज्ञानिक उन्नति के विरुद्ध कार्य करेगा। साधारण व्यक्तियों को गुमराह करके चालाक और रूढ़िवादी लोग सत्ता में आ जाते हैं जिनके अधीन वैज्ञानिक उन्नति नहीं हो पाती।
10. मताधिकार कोई जन्म-सिद्ध अधिकार नहीं (Franchise is not a Birthright)-मिल तथा लेकी (Mill and Lecky) जैसे लेखकों का विचार था कि मतदान का अधिकार कोई जन्म-सिद्ध अधिकार नहीं है। वह तो केवल उनको ही मिलना चाहिए जो इसके ठीक प्रयोग के लिए योग्यता रखते हैं।
11. केवल मताधिकार से अन्य अधिकार सुरक्षित नहीं हो जाते (Suffrage alone does not protect other rights)—यह विचार ठीक नहीं है कि मताधिकार नागरिक के अन्य अधिकारों की आधारशिला है। केवल नागरिक को मताधिकार दे देने से उसके सामाजिक तथा आर्थिक अधिकार सुरक्षित नहीं हो जाते। नागरिकों के सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए नागरिकों की सतत् जागरूकता, स्वतन्त्र न्यायपालिका, स्वतन्त्र प्रेस, स्वस्थ लोकमत, संगठित विरोधी दल आदि का होना अधिक आवश्यक है।
12. अधिक खर्चीला (More Expensive)—वयस्क मताधिकार से बहुत अधिक नागरिकों को मताधिकार प्राप्त हो जाता है। चुनाव के समय सरकार को बहुत अधिक व्यापक स्तर पर मतदान केन्द्रों की व्यवस्था करनी पड़ती है और उतने अधिक चुनाव अधिकारी नियुक्त करने पड़ते हैं। इससे बहुत अधिक खर्चा होता है और यह खर्चा अन्तिम रूप से गरीब जनता पर पड़ता है। उदाहरण के लिए 16वीं लोकसभा के चुनाव के समय भारत में मतदाताओं की संख्या 81 करोड़ से अधिक थी, जिस कारण चुनाव पर करोड़ों रुपए खर्च हुए।
जिन व्यक्तियों को मताधिकार नहीं मिलना चाहिए (Persons who should not be given the Right to Vote)-वयस्क मताधिकार लागू करने का यह अर्थ नहीं कि सभी वयस्क नागरिकों को पूर्ण रूप से मताधिकार दिया जाए। समाज में कुछ व्यक्ति या नागरिक ऐसे भी होते हैं जिन्हें मताधिकार नहीं दिया जा सकता-
- नाबालिग (Minors). किसी भी राज्य में नाबालिग को मताधिकार नहीं दिया जा सकता।
- पागल (Isane Persons)-ऐसे व्यक्तियों को भी जो पागल हों मताधिकार से वंचित रखा जाता है उन्हें मत प्रयोग के बारे में पता नहीं होता।
- घोर अपराधी (Criminals)—घोर अपराधियों को भी मताधिकार से वंचित रखा जाता है ताकि उन्हें यह बात महसूस हो और भविष्य में अपराध न करें। अपने मत का दुरुपयोग करने वाले व्यक्तियों को भी इस अधिकार से वंचित रखा जाता है।
- दिवालिए (Insolvent) दिवालिए को भी मतदान का अधिकार नहीं दिया जाता।
- सरकारी कर्मचारी (Government Officials) कुछ विद्वानों का विचार है कि सरकारी कर्मचारी को भी मताधिकार नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि इससे वे राजनीति को भ्रष्ट करते हैं, परन्तु केवल कुछ ही देशों में सरकारी कर्मचारियों को मताधिकार से वंचित किया गया है।
- धार्मिक नेता (Religious Leaders)-धार्मिक नेताओं को भी कई देशों में मताधिकार प्राप्त नहीं होता।
- विदेशी (Aliens)-विदेशियों को भी मताधिकार प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि वे अपने देश के प्रति वफादार होते है।
निष्कर्ष (Conclusion) वयस्क मताधिकार के बिना लोकतन्त्र न तो पूर्ण है और न ही सफल हो सकता है। लोकतन्त्र जनता का शासन होता है किसी वर्ग विशेष का नहीं, इसलिए आवश्यक है कि अपनी सरकार चुनने का अधिकार सब को एक समान होना चाहिए। वयस्क मताधिकार ही प्रजातन्त्र का प्रतीक और सूचक है। आज प्रायः सभी लोकतन्त्रीय राष्ट्रों में वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त अपनाया गया है।
प्रश्न 3.
अनुपातिक प्रतिनिधिता का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके दो गुणों व दो दोषों का वर्णन करें।
(What do you understand by the term. ‘Proportional Representation ? Describe its two merits and two demerits.)
अथवा
आनुपातिक प्रतिनिधित्व के गुण और दोषों का वर्णन कीजिए। (Write down the merits and demerits of proportional representational system.)
उत्तर-
प्रजातन्त्रात्मक शासन में चुनी गई विधानपालिका के लिए आवश्यक है कि इसमें जनता के हर वर्ग और दल को पूरा-पूरा प्रतिनिधित्व मिले। परन्तु चुनाव के लिए जो प्रणाली आमतौर पर अपनाई जाती है, वह इस उद्देश्य की प्राप्ति में सफल नहीं हो सकती। यह प्रणाली है एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र और साधारण बहुमत की। इस प्रणाली के अनुसार एक निर्वाचन क्षेत्र में जितने भी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हों, उनमें से जिसको दूसरे से अधिक वोटें प्राप्त हों वह विजयी घोषित कर दिया जाता है। इस प्रणाली के कुछ गम्भीर दोष हैं जैसे कि-
(1) मान लो कि किसी निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या एक हज़ार है और दो उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। मान लो चुनाव में एक उम्मीदवार को 501 वोटें मिली और दूसरे को 499। चूंकि पहले उम्मीदवार को दूसरे की अपेक्षा अधिक वोटें मिली हैं, वह निर्वाचित घोषित किया जाएगा। इसका दोष यह हुआ कि विधानमण्डल में 499 मतदाताओं को प्रतिनिधित्व नहीं प्राप्त हो सका।
(2) सन् 1971 के संसद् के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 43 प्रतिशत वोटें पड़ीं, परन्तु इसको संसद् में 68 प्रतिशत सीटें प्राप्त हुईं। इसी चुनाव में जनसंघ को 7 प्रतिशत वोटें पड़ी परन्तु संसद् में केवल चार प्रतिशत सीटें प्राप्त हुईं। इसी प्रकार कांग्रेस (संगठन) को 10 प्रतिशत से भी अधिक वोटें पड़ीं, परन्तु संसद् में इसे केवल 3 प्रतिशत सीटें प्राप्त हुईं। इसका दोष यह हुआ कि संसद् भारतीय जनता का ठीक अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं करती। इन दोषों को दूर करने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का सुझाव दिया जाता है।
प्रश्न 4.
अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व से क्या भाव है ? अल्पसंख्यओं को प्रतिनिधित्व देने वाली किन्हीं चार विधियों का वर्णन करें।
(What is meant by Minority Representation ? Explain any four methods by which minority representation can be possible.)
उत्तर-
हर देश में लोग कई आधार पर बंटे होते हैं। कई समूहों या वर्गों के लोग संख्या में दूसरे वर्गों के लोगों से कम होते हैं। ऐसे लोगों को अल्पसंख्यक कहा जाता है जैसे कि भारत में ईसाई और पारसी लोग हैं।
लोकतन्त्र को वास्तविक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि देश के हर वर्ग व समूह को विधानमण्डल में उचित प्रतिनिधित्व मिले । उचित प्रतिनिधित्व का भाव यह है कि चुनाव प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि हर वर्ष में अपने प्रतिनिधि विधानपालिका में भिजवा सके ताकि हर वर्ग अपनी विचारधारा और दृष्टिकोण को पेश कर सके। यदि ऐसा नहीं हो सकेगा तो विधानमण्डल में कुछ ही बहुसंख्यक दलों या वर्गों के प्रतिनिधि होंगे और विधानमण्डल जनमत का दर्पण (Mirror of the Public Opinion) नहीं कहला सकेगा। मिल (Mill) ने भी कहा है कि, “लोकतन्त्र के लिए यह आवश्यक है कि अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।”
आजकल प्रायः सभी देशों में एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र (Single member Constituency) है और चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है। उसका एक काफ़ी बड़ा दोष है कि इस प्रणाली में बहुमत वर्ग को ही सभी क्षेत्रों में प्रतिनिधि भेजने का अवसर मिलता है अर्थात् जिस वर्ग या राजनीतिक दल के मतदाताओं की संख्या बहुमत में हो उसका सभी क्षेत्रों में सफल होना स्वाभाविक है। इस तरह अल्पसंख्यक वर्ग या राजनीतिक दल के उम्मीदवार सभी क्षेत्रों में हार जाते हैं। कभी-कभी तो जहां कई राजनीतिक दल हों एक उम्मीदवार थोड़े से मत लेकर भी प्रतिनिधि चुना जाता है। मान लो एक दल को लगभग सभी क्षेत्रों में 60% मत प्राप्त होते हैं। इससे तो यह पता चलता है कि राज्य में केवल 60% मतदाताओं का ही वह दल प्रतिनिधित्व करता है और न्यायसंगत बात यह है कि संसद् में उस दल के कुल 60% सदस्य होने चाहिएं परन्तु वास्तव में उस दल को लगभग सभी स्थान प्राप्त हो जाते हैं। इसमें शेष 40 प्रतिशत लोगों को संसद् में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिलता और उनके हितों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। इससे लोकतन्त्र वास्तविक नहीं बन सकता। प्रजातन्त्र को वास्तविक प्रजातन्त्र बनाने के लिए यह आवश्यक है कि उन 40 प्रतिशत लोगों को भी सरकार में प्रतिनिधित्व दिया जाए। एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र प्रणाली में तो अल्पसंख्यकों को उनकी संख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व मिलना सम्भव नहीं और कई बार तो उन्हें प्रतिनिधित्व मिलता ही नहीं। इसलिए कुछ ऐसे तरीके निकाले गए हैं जिसके द्वारा अल्पसंख्यक, वर्गों को कुछ उनकी संख्या के अनुसार, व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो सके। इन तरीकों की विस्तारपूर्वक व्याख्या नीचे दी जा रही है-
1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System)-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा सभी वर्गों या राजनीतिक दलों को उनकी संख्या के अनुपात से व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व मिलने की काफ़ी सम्भावना रहती है। बहुत ही छोटे दल या महत्त्वहीन दल को बेशक प्रतिनिधित्व न मिले, परन्तु अल्पसंख्यक कहे जाने वाले वर्गों को अवश्य स्थान मिल जाता है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के भी दो तरीके हैं—’एकल संक्रमणीय मत प्रणाली या प्राथमिकता मत प्रणाली तथा सूची प्रणाली।’
2. सीमित मत प्रणाली (Limited Vote System)-सीमित मत प्रणाली भी अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने का तरीका है। इस प्रणाली में बहु-सदस्यीय चुनाव क्षेत्र होते हैं और कम-से-कम तीन सदस्य चुने जाते हैं। प्रत्येक मतदाता को एक से अधिक परन्तु स्थानों की संख्या से कम मत दिए जाते हैं। मान लो एक क्षेत्र में 5 सदस्य चुने जाते हैं तो एक मतदाता को तीन वोटे मिलेंगे और वह अपने तीन वोट एक ही उम्मीदवार को नहीं दे सकता। बल्कि तीन अलग-अलग उम्मीदवारों को ही दे सकता है। इससे बहुसंख्यक वर्ग पांच में से तीन स्थान तो प्राप्त कर लेगा परन्तु दो स्थान फिर भी अल्पसंख्यक वर्गों को प्राप्त हो जाते हैं।
इसके गुण (Its Merits)-इस प्रणाली में कई गुण पाए जाते हैं-
(1) इस प्रणाली द्वारा अल्पसंख्यकों को व्यवस्थापिका में कुछ स्थान प्राप्त हो जाते हैं।
(2) यह तरीका आसान भी है क्योंकि इसमें मतों के संक्रमण की आवश्यकता नहीं होती। इसके दोष (Its Demerits)-इस प्रणाली के कई दोष भी हैं-
- इससे अल्पसंख्यक वर्ग को संसद् में एक-दो स्थान बेशक मिल जाएं परन्तु अपनी संख्या के अनुपात में स्थान नहीं मिल सकते।
- जिस देश में कई अल्पसंख्यक वर्ग हों, वहां यह प्रणाली उचित रूप से कार्य नहीं कर पाती। थोड़ी-थोड़ी संख्या वाले वर्गों को कोई स्थान प्राप्त होने की कोई सम्भावना नहीं होती, क्योंकि उनकी वोटें बंट जाती हैं।
- यह प्रणाली एक सदस्यीय क्षेत्र में लागू नहीं हो सकती।
- इस प्रणाली के अन्दर उप-चुनाव की कोई व्यवस्था नहीं हो सकती। जापान और इटली में इस प्रणाली को कुछ समय बाद बंद कर दिया गया था।
3. संचित मत प्रणाली (Cumulative Vote System)—संचित मत प्रणाली में बहु सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र होते हैं। एक मतदाता को उतने ही मत मिलते हैं जितने कि सदस्य चुने जाने हों। मान लो उस क्षेत्र में 15 सदस्य चुने जाने हैं तो एक मतदाता को 15 वोट मिलते हैं। मतदाता को यह स्वतन्त्रता होती है कि वे अपने इन सभी वोटों का जैसे चाहे प्रयोग करे अर्थात् वह अपने सब वोट एक ही उम्मीदवार को दे सकता है और अलग-अलग उम्मीदवारों को भी।
इसके लाभ (Its Merits)-इस प्रणाली के कई गुण हैं। इस प्रणाली का यह लाभ है कि इसके द्वारा अल्पसंख्यक वर्गों को कुछ स्थान प्राप्त हो जाते हैं। अल्पसंख्यक मतदाता अपने सब मत एक ही उम्मीदवार को देंगे और इससे उसके पास काफ़ी मात्रा में वोट हो जाएंगे और उसके चुने जाने की सम्भावना हो जाएगी।
इसके दोष (Its Demerits)—इस प्रणाली में कई दोष पाए जाते हैं-
- इस प्रणाली में भी अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी संख्या के अनुपात के अनुसार स्थान नहीं मिलते।
- इस प्रणाली में बहुत-से मतों के व्यर्थ जाने की सम्भावना भी रहती है।
- इस प्रणाली में राजनीतिक दलों का अच्छा संगठन होना चाहिए जिनके बिना अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकता। इससे राजनीतिक दलों की बुराइयां भी बढ़ जाती हैं।
4. द्वितीय मतदान प्रणाली (Second Ballot System)–इस प्रणाली के लिए एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र होना चाहिए। उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए कुल डाले गए वोटों का पूर्ण बहुमत प्राप्त होना चाहिए। यदि चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत प्राप्त न हो तो उस उम्मीदवार को जिसने चुनाव में सबसे कम मत प्राप्त किए हों चुनाव से निकाल दिया जाता है और दूसरी बार मतदान करवाया जाता है। यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक किसी उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत प्राप्त न हो जाए।
5. पृथक् निर्वाचन प्रणाली (Separate Electorate System)-अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का एक और तरीका भारत में अंग्रेजों ने लागू किया था। इसे पृथक् निर्वाचन प्रणाली कहा जाता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न धर्मों और जातियों के लिए उनकी संख्या के अनुसार व्यवस्थापिका में स्थान सुरक्षित (Reserve) किए जाते हैं और उन विभिन्न धर्मों और जातियों के मतदाता अपने-अपने प्रतिनिधि अलग-अलग चुनते हैं अर्थात् मुसलमान मतदाता मुसलमान उम्मीदवारों को वोट देते हैं और दूसरे धर्मों और जातियों के मतदाता अपने-अपने उम्मीदवारों को। 1909 के एक्ट के अनुसार भारत में मुसलमानों को अपने प्रतिनिधि अलग चुनने का अधिकार दिया गया था। 1919 के एक्ट द्वारा सिक्खों को भी अपने प्रतिनिधि अलग चुनने का अधिकार दिया गया था। 1935 के एक्ट द्वारा इसे और फैलाया गया। इस प्रणाली को साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व (Communal Representation) भी कहा जाता था।
इस प्रणाली के गुण व दोष (Its Merits and Demerits)-इस प्रणाली का गुण तो केवल यही है कि प्रत्येक जाति और धर्म को लोगों के उनकी संख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व मिल जाता है, परन्तु इस प्रणाली के दोष अधिक हैं। इससे लोगों में राष्ट्रीय एकता उत्पन्न नहीं होती बल्कि वे जाति और धर्म के नाम पर छोटे-छोटे गुटों में बंट जाते हैं। लोगों में आपसी झगड़े होते हैं जैसे कि भारत में हिन्दू और मुसलमानों में हुए और बाद में देश के दो टुकड़े हो गए।
6. सुरक्षित स्थान सहित संयुक्त निर्वाचन (Reservation of Seats with Joint Electorate)-भारत में संविधान द्वारा अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का एक और तरीका अपनाया गया है। यह तरीका पृथक् निर्वाचन प्रणाली से अच्छा माना जाता है। इस तरीके के अनुसार अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के लिए उनकी जनसंख्या के आधार पर कुछ स्थान सुरक्षित कर दिए जाते हैं। उन सुरक्षित स्थानों के लिए उम्मीदवार उसी जाति या वर्ग से खडे हो सकते हैं, परन्तु मतदाता सभी नागरिक होते हैं अर्थात् अल्पसंख्यक वर्ग के सदस्य समस्त मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं।
इसका लाभ यह है कि इससे अल्पसंख्यक वर्ग को प्रतिनिधित्व भी मिल जाता है और राष्ट्रीय एकता भी नष्ट नहीं होने पाती, परन्तु इसका दोष यह है कि इससे ऐसी जातियों और वर्गों में हीनता की भावना आ जाती है।
प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली तथा अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के गुणों तथा अवगुणों की विस्तार सहित व्याख्या कीजिए।
(Discuss in details the Merits and Demerits of Direct Election System and indirect Election system.)
अथवा
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के गुणों तथा अवगुणों का वर्णन करो।
(Write merits and demerits of Direct Election System.)
उत्तर-
आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। प्रजातन्त्र जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा चलाया हुआ शासन होता है। प्रजातन्त्र के दो रूप होते हैं-एक प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र तथा दूसरा अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र। प्राचीन यूनान में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र प्रचलित था। आधुनिक युग में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है क्योंकि आधुनिक राज्यों की जनसंख्या इतनी अधिक है कि इसके लिए एक स्थान पर एकत्रित होकर कानून बनाना तथा नीति का निर्माण करना असम्भव है। इसलिए सरकार का काम लोगों के प्रतिनिधियों की ओर से चलाया जाता है। जनता द्वारा एक निश्चित समय के पश्चात् अपने प्रतिनिधियों को स्थानीय संस्थाओं के लिए तथा विधानसभाओं के लिए चुनकर भेजने के ढंग को चुनाव (Election) कहा जाता है। भारत में विधानसभाओं तथा संसद् के लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं। नगरपालिका, जिला परिषद् तथा पंचायतों के सदस्य भी चुने जाते हैं। बिना चुनावों के लोकतन्त्रीय शासन के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। आज प्रायः सभी देशों में वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त अपनाया गया है। प्रतिनिधियों को चुनने के दो तरीके हैं-प्रत्यक्ष चुनाव तथा अप्रत्यक्ष चुनाव। .
प्रत्यक्ष चुनाव (Direct Election)-प्रायः निचले अर्थात् लोकप्रिय सदनों (Popular House) का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होता है। मतदाताओं के मतों के आधार पर ही सदस्य चुने जाते हैं। जब मतदाता स्वयं अपने प्रतिनिधि चुनें और वे प्रतिनिधि ही संसद् या व्यवस्थापिका में अपना पद ग्रहण करते हों तो उसे प्रत्यक्ष चुनाव कहा जाता है। भारत में पंचायतों, नगरपालिकाओं, विधानसभाओं तथा लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने जाते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
वयस्क मताधिकार से आपका क्या भाव है ? ।
उत्तर-
सार्वभौम वयस्क मताधिकार का अभिप्राय यह है कि एक निश्चित आयु के वयस्क नागरिकों को बिमा किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार देना है। वयस्क होने की आयु राज्य द्वारा निश्चित की जाती है। इंग्लैण्ड में पहले 21 वर्ष के नागरिक को मताधिकार प्राप्त था, परन्तु अब यह 18 वर्ष है। रूस और अमेरिका में वयस्क मताधिकार की आयु 18 वर्ष है। भारत में मताधिकार की आयु पहले 21 वर्ष थी, परन्तु 61वें संशोधन एक्ट द्वारा यह आयु 18 वर्ष कर दी गई है। सार्वभौम मताधिकार में पागलों, दिवालियों, बच्चों, सज़ा प्राप्त व्यक्तियों इत्यादि को मत देने का अधिकार प्राप्त नहीं होता। निश्चित आयु के होने के पश्चात् प्रत्येक नागरिक बिना किसी भेदभाव के मत डालने का अधिकारी बन जाता है, पर इसके साथ एक निश्चित समय तक निवास की शर्त भी रखी जाती है। आधुनिक युग में सार्वभौम वयस्क मताधिकार को ही उचित और न्यायसंगत माना गया है।
प्रश्न 2.
अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने से क्या अभिप्राय है ? अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने वाली दो विधियों के नाम लिखें।
अथवा
अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक देश में लोग कई आधारों पर बंटे होते हैं। कई समूहों या वर्गों के लोग किसी राज्य में दूसरे वर्गों के लोगों से कम होते हैं। ऐसे लोगों को अल्पसंख्यक कहा जाता है जैसे कि भारत में ईसाई, मुस्लिम और पारसी लोग। लोकतन्त्र को वास्तविक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि देश के हर वर्ग तथा समूह को विधानमण्डल में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। अल्पसंख्यकों को अपनी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। एक सदस्यीय चुनाव प्रणाली के अन्तर्गत अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। अतः अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देना आवश्यक है ताकि विधानमण्डल जनमत का दर्पण कहला सके।
अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने वाली दो विधियां-इसके लिए प्रश्न नं. 19 देखें।
प्रश्न 3.
स्त्री मताधिकार के पक्ष में चार दलीलें लिखो।
उत्तर-
स्त्रियों को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए। स्त्री मताधिकार के पक्ष में मुख्यत: निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं
- यह लोकतन्त्रात्मक है-स्त्रियों को मत का अधिकार देना लोकतन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार है। लोकतन्त्र में समस्त जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार मिलता है और जनता में जितना भाग पुरुष का है, उतना ही स्त्री का है।
- स्त्रियों को मताधिकार की अधिक आवश्यकता-शारीरिक दृष्टि से निर्बल व्यक्ति को कानून की रक्षा की अधिक आवश्यकता होती है। जो सबल है वह तो कानून को भी अपने हाथ में ले सकता है।
- स्त्रियां दूसरे सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य कर रही हैं-इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्रशासन के क्षेत्र में स्त्रियों ने बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया है। आजकल पुलिस और सेना में भी स्त्रियां कार्य कर रही हैं, फिर राजनीति के क्षेत्र में वे कार्य क्यों नहीं कर सकेंगी।
- स्त्रियां शान्तिप्रिय होती हैं-स्त्रियां स्वभाव से ही शान्ति प्रिय होती हैं और इससे राजनीति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 4.
स्त्री मताधिकार के विपक्ष में चार तर्क दें।
अथवा
स्त्री मताधिकार के विरुद्ध चार तर्क दो।
उत्तर-
स्त्री मताधिकार के विरुद्ध मुख्य तर्क निम्नलिखित दिए जाते हैं
- स्त्री का कार्य क्षेत्र घर है- यदि उसे मत देने का अधिकार दिया जाए तो वह घर की ओर ठीक ध्यान न दे सकेगी। इससे पारिवारिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा घर की शान्ति समाप्त हो जाएगी।
- स्त्री का मत पुरुष के मत की पुनरावृत्ति है-अधिकतर स्त्रियां अपने पति, पिता या भाई आदि के कहने के अनुसार ही अपने मत का प्रयोग करती हैं। वे अपनी ओर से यह सोचने का प्रयत्न नहीं करतीं कि वोट किसे देना चाहिए।
- घरेलू शान्ति के भंग होने का खतरा–यदि स्त्री मताधिकार लागू किया जाए तो इससे घरेलू शान्ति के भंग होने का बहुत डर रहता है।
- उदासीनता-स्त्रियां प्रायः राजनीति के प्रति उदासीन रहती हैं। इसलिए वे अपने वोट का उचित प्रयोग नहीं कर पातीं।
प्रश्न 5.
बालिग मताधिकार के पक्ष में चार तर्क दें।
अथवा
सार्वजनिक वयस्क (बालिग) मताधिकार के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
वयस्क मताधिकार के पक्ष में मुख्य निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं-
- प्रभुसत्ता जनता के पास है-लोकतन्त्र में प्रभुसत्ता जनता के पास होती है और जनता की इच्छा तथा कल्याण के लिए शासन चलाया जाता है। इसलिए मत डालने का अधिकार सबको समानता के साथ मिलना चाहिए। यदि वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त लागू न किया जाए तो जनता की प्रभुसत्ता की बात सत्य सिद्ध नहीं होती।
- कानून का प्रभाव सब पर पड़ता है-राज्य में जो भी कानून बनते हैं उनका प्रभाव राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों पर पड़ता है। इसीलिए उन कानूनों को बनाने का अधिकार भी सबको समान रूप से मिलना चाहिए।
- व्यक्ति के विकास के लिए मताधिकार आवश्यक-लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का विकास करने के लिए कई प्रकार के अधिकार मिलते हैं। उन अधिकारों में मताधिकार भी आवश्यक है और इसके बिना कोई भी व्यक्ति अपना विकास नहीं कर सकता। दूसरे अधिकारों की रक्षा के लिए मताधिकार आवश्यक है।
- रकार को अधिक बल मिलता है-वयस्क मताधिकार द्वारा चुनी गई सरकार अधिक शक्तिशाली होती है।
प्रश्न 6.
सार्वभौम वयस्क मताधिकार के विरोध में चार तर्क लिखिए।
उत्तर-
वयस्क मताधिकार के विरुद्ध मुख्य तर्क निम्नलिखित दिए जाते हैं
- शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए-बहुत से लोगों का कहना है कि शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए। शिक्षित व्यक्ति अपने मत का ठीक प्रयोग कर सकता है। मिल का कहना है कि वयस्क मताधिकार से पहले शिक्षा को अनिवार्य बनाना आवश्यक है। जिसे लिखना-पढ़ना नहीं आता उसे वोट देने का अधिकार कभी नहीं मिलना चाहिए।
- मूों का शासन-वयस्क मताधिकार द्वारा मूों का शासन स्थापित हो जाता है, क्योंकि समाज में अनपढ़ और मूों की संख्या अधिक होती है।
- मत का दुरुपयोग- यदि अशिक्षित और निर्धन व्यक्तियों को भी मताधिकार दे दिया जाए तो वे इसका ठीक प्रयोग नहीं करेंगे। अशिक्षित व्यक्ति बिना सोचे-समझे अपने मत का प्रयोग कर अयोग्य व्यक्तियों का शासन स्थापित करेंगे और निर्धन व्यक्ति कुछ पैसों के लालच में आकर अपना वोट बेचने को भी तैयार हो जाएंगे।
- खर्चीली व्यवस्था-वयस्क मताधिकार से बहुत अधिक लोगों को मताधिकार प्राप्त हो जाता है, जिससे चुनाव प्रक्रिया बहुत खर्चीली हो जाती है।
प्रश्न 7.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ है ?
अथवा
क्षेत्रीय प्रतिनिधत्व से क्या भाव है ? क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के कोई दो गुण बताएं।
उत्तर-
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त प्रायः सभी देशों में पाया जाता है। इसके अनुसार सारे देश के मतदाताओं को प्रादेशिक इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है जिन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं। एक निर्वाचन क्षेत्र से एक या अधिक प्रतिनिधि चुने जाते हैं। एक निर्वाचन क्षेत्र या प्रदेश में रहने वाले सभी मतदाता उस क्षेत्र के प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं और प्रतिनिधि उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रादेशिक प्रतिनिधित्व में प्रतिनिधि क्षेत्र के समस्त मतदाताओं की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं। निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन प्रायः भौगोलिक आधार पर किया जाता है। इन निर्वाचन क्षेत्रों का निश्चित समय के पश्चात् बढ़ती हुई जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया जाता है। यह कार्य परिसीमन आयोग के द्वारा किया जाता . है। भारत में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों का चुनाव प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर होता है और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है।
क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के निम्नलिखित दो गुण हैं –
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व से प्रादेशिक एकता को बढ़ावा मिलता है।
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व से अधिक विकास की सम्भावना बनी रहती है।
प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
अथवा
प्रत्यक्ष निर्वाचन विधि से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोकतन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधि निर्वाचन द्वारा चुनती है। प्रतिनिधियों को चुनने के दो तरीके हैं-प्रत्यक्ष चुनाव तथा अप्रत्यक्ष चुनाव।
जब मतदाता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या सीधे तौर पर अपने प्रतिनिधि चुने और वे प्रतिनिधि ही संसद् या व्यवस्थापिका में अपना पद ग्रहण करते हों तो उसे प्रत्यक्ष चुनाव कहा जाता है। उदाहरण के लिए भारत में पंचायतों, नगरपालिकाओं, विधानसभाओं तथा लोक सभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने जाते हैं। इंग्लैण्ड में कॉमन सदन (House of Common) तथा अमेरिका में प्रतिनिधि सदन (House of Representative) के सदस्य जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के कोई चार गुण लिखें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-
- मतदाताओं और प्रतिनिधियों में सीधा सम्पर्क-प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि इसमें मतदाताओं तथा प्रतिनिधियों के बीच सीधा सम्बन्ध रहता है, क्योंकि प्रतिनिधि मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं। प्रत्यक्ष सम्पर्क से प्रतिनिधि और मतदाता एक-दूसरे की भावनाओं और विचारों को समझते हैं।
- यह प्रणाली अधिक लोकतन्त्रात्मक है-लोकतन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और समस्त शक्तियां अन्तिम रूप में जनता में निहित होती हैं। मतदाता प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि चुनते हैं। अतः प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का सिद्धान्त लोकतन्त्र के अनुकूल है।।
- मतदाता की प्रतिष्ठा में वृद्धि-प्रत्यक्ष चुनाव में मतदाता प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव में भाग लेते हैं। चुनाव के समय प्रत्येक उम्मीदवार को चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो, धनी-निर्धन सभी के पास जाकर वोट के लिए निवेदन करना पड़ता है। इससे लोग यह समझने लगते हैं कि उनका शासन में भाग है, सरकार को बनाने में उनका भी हाथ है। इस तरह मतदाताओं की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
- समानता की भावना-प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप में मताधिकार प्रयोग करने का अवसर मिलता है।
प्रश्न 10.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में अन्तर बताइए।
अथवा
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनाव विधि में अन्तर लिखिए।
उत्तर-
जब मतदाता स्वयं अपने प्रतिनिधि चुनें और वे प्रतिनिधि ही संसद् या व्यवस्थापिका में अपना पद ग्रहण करते हों तो उसे प्रत्यक्ष चुनाव कहा जाता है। परन्तु अप्रत्यक्ष चुनाव में जनता के चुने प्रतिनिधि संसद् या विधानसभा के सदस्यों का चुनाव करते हैं। संसद् के निम्न सदन का चुनाव आमतौर पर प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा होता है जबकि ऊपरि सदन के सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं। भारत में राज्यसभा के सदस्य इसी प्रकार से चुने जाते हैं, जबकि पंचायतों, नगरपालिकाओं, विधानसभाओं तथा लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने जाते हैं।
प्रश्न 11.
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से क्या भाव है ?
उत्तर-
प्रजातन्त्र के लिए चुनाव का होना अनिवार्य है। जनता निश्चित अवधि के पश्चात् अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। प्रतिनिधियों को चुनने के दो तरीके हैं-प्रत्यक्ष चुनाव तथा अप्रत्यक्ष चुनाव। जब वे प्रतिनिधि जिनके हाथ में शासन सत्ता रहती हो, जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से न चुने जाकर जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाते हों तो उस प्रणाली को अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली कहा जाता है। अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में जनता निर्वाचक मण्डल के सदस्यों को चुन लेती है और वे सदस्य मुख्य प्रतिनिधियों को चुन लेते हैं। भारत में राज्य सभा के सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं। राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति तथा राज्यों की विधान परिषदों के सदस्य भी अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं।
प्रश्न 12.
चुनाव प्रणाली में अप्रत्यक्ष चुनाव के चार गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. योग्य प्रतिनिधियों के चुनाव की अधिक सम्भावना – अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के अन्तर्गत मतदाताओं की संख्या पर्याप्त कम होती है। अल्प मतदाता उम्मीदवारों की योग्यताओं सम्बन्धी परस्पर विचार-विमर्श कर सकते हैं। प्रत्येक मतदाता का उम्मीदवार के साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क भी सम्भव हो सकता है। इस प्रकार योग्य प्रतिनिधियों के चुनाव की अधिक सम्भावना हो सकती है।
2. राजनीतिक दलों के प्रभावों की कम सम्भावना-अप्रत्यक्ष चुनाव के अधीन राजनीतिक दलों के कुप्रभावों की सम्भावना पर्याप्त कम हो जाती है। मताधिकार अल्प-मात्र बुद्धिमान् व्यक्तियों तक ही सीमित होता है इसलिए राजनीतिक दलों को विशाल स्तर पर जलसे, जुलूस का प्रबन्ध अथवा प्रचार करने की आवश्यकता नहीं होती।
3. कम खर्चीली विधि-इस प्रणाली अधीन अत्यधिक धन व्यय नहीं किया जाता। अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में मतदाताओं की संख्या कम तथा चुनाव क्षेत्र का आकार छोटा होने के कारण अत्यधिक धन व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती।
4. सार्वजनिक उत्तेजना की कम सम्भावना-प्रत्यक्ष चुनाव प्राय: लोगों को उकसाते हैं। उनमें दल गुटबन्दी की भावना इतनी अधिक होती है कि छोटे-छोटे मामलों सम्बन्धी झगड़े करने के लिए तैयार रहते हैं। इसी कारण विभिन्न उम्मीदवारों के समर्थकों में दंगे-फसाद प्रायः होते रहते हैं परन्तु ऐसी स्थिति अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में कम ही सम्भव हो सकती है।
प्रश्न 13.
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के कोई चार दोष लिखें।
उत्तर-
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं-
- अलोकतन्त्रीय प्रणाली-अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अलोकतन्त्रीय है, क्योंकि इस प्रणाली के द्वारा जनता को अपनी इच्छा को प्रकट करने का अवसर नहीं मिलता। सरकार के निर्माण में मतदाताओं का सीधा हाथ नहीं होता।
- लोगों को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती-अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के कारण लोगों को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती, क्योंकि प्रतिनिधियों का चुनाव जनता के हाथ में नहीं होता है। मतदाता अपने आपको शासन का अंग और भागीदार अनुभव नहीं करते और वे चुनाव के प्रति उदासीन ही रहते हैं।
- कम खर्चीली नहीं-यह प्रणाली उतनी कम खर्चीली नहीं जितनी कि सोची जाती है। इसका कारण यह है कि पहले निर्वाचक मण्डल के सदस्यों का चुनाव किया जाता है और बाद में निर्वाचक मण्डल के सदस्य प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। इस प्रकार इस प्रणाली में काफ़ी खर्चा होता है, जिस तरह प्रत्यक्ष प्रणाली में होता है।
- इस प्रणाली में मतदाताओं एवं प्रतिनिधियों के बीच सीधा सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाता।
प्रश्न 14.
पेशेवर प्रतिनिधित्व क्या है ? पेशेवर प्रतिनिधित्व के कोई दो गुण बताएं।
उत्तर-
व्यावसायिक प्रतिनिधित्व का अर्थ है कि एक क्षेत्र में रहने वाले सभी नागरिक एक प्रतिनिधि न चुनें बल्कि एक व्यवसाय से सम्बन्धित सारे नागरिक अपना प्रतिनिधि चुन कर भेजें और दूसरे व्यवसाय से सम्बन्धित नागरिक अपने प्रतिनिधि चुनें अर्थात् सभी व्यवसायों को विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो ताकि प्रत्येक व्यवसाय के लोगों के हितों की रक्षा की जा सके। इस प्रणाली के अन्तर्गत डॉक्टर, अध्यापक, वकील, मज़दूर, पूंजीपति और व्यापारी अपने-अपने अलग प्रतिनिधि चुनेंगे जो उन व्यवसायों से सम्बन्धित होंगे। अतः इस प्रणाली के अनुसार प्रत्येक व्यवसाय को विधानमण्डल में अपना प्रतिनिधि भेजने का अवसर मिल जाता है। इस प्रणाली का समर्थन सबसे पहले एक फ्रैंच लेखक ‘मिराबो’ ने किया था। फ्रांस की क्रान्ति के समय उसने यह घोषणा की थी कि विधानमण्डल को समाज के सब हितों का एक छोटा-सा दर्पण होना चाहिए। संसार के कई देशों में इस प्रणाली को लाग भी किया गया है। इस प्रणाली को पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट के चुनाव में भी अपनाया गया है।
पेशेवर प्रतिनिधित्व के दो गुण निम्नलिखित हैं-
- पेशेवर प्रतिनिधित्व में राष्ट्र के प्रत्येक वर्ग को प्रतिनिधत्व मिलता है।
- पेशेवर प्रतिनिधित्व अधिक प्रजातांत्रिक है।
प्रश्न 15.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
यह एक ऐसी चुनाव प्रणाली है जिसके अनुसार जनता के हर वर्ग या दल को विधानमण्डल में उतना ही प्रतिनिधित्व मिलता है जितना उनके समर्थकों का अनुपात होता है। एक वर्ग या दल के पीछे जितने प्रतिशत मतदाता होंगे उसे विधानमण्डल में उतने ही प्रतिशत सीटें प्राप्त होंगी। इस प्रणाली के तीन मुख्य लक्षण हैं-
- बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र-निर्वाचन क्षेत्रों का बहु-सदस्यीय (Multi-member) होना आवश्यक है। आम मत यह है कि एक निर्वाचन क्षेत्र में तीन से लेकर पन्द्रह तक प्रतिनिधियों के चुने जाने की व्यवस्था है।
- वोट की तरजीह-हर मतदाता के पास केवल एक ही वोट होती है, परन्तु पर्ची (Ballot-Paper) पर उस वोट के लिए भिन्न-भिन्न उम्मीदवारों के प्रति अपनी तरजीह या पसन्द (जैसे कि प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि) को अंकित कर सकता है।
- वोटों की निश्चित संख्या-चुनाव में विजयी होने के लिए उम्मीदवार को वोटों की एक निश्चित संख्या (Quota) प्राप्त करनी होती है। इस संख्या को निर्धारित करने के लिए कुछ भिन्न-भिन्न नियम प्रचलित हैं।
प्रश्न 16.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के कोई चार गुण लिखो।
उत्तर-
- प्रत्येक वर्ग या दल को उचित प्रतिनिधित्व-इस प्रणाली के अनुसार समाज का कोई वर्ग या देश का कोई भी दल प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं रह जाता है। जिस वर्ग या दल के पीछे जितने मतदाता होते हैं उसको उसी अनुपात में विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व मिल जाता है।
- अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है, जिससे उनके हितों की रक्षा होती है।
- एक राजनीतिक दल की निरंकुशता स्थापित नहीं होती-इस प्रणाली के अधीन किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता। विधानमण्डल में लगभग सभी दलों को कुछ-न-कुछ सीटें प्राप्त होती हैं जिससे कोई एक दल अपनी निरंकुशता स्थापित नहीं कर पाता।
- कोई भी वोट व्यर्थ नहीं जाती-इस प्रणाली के अधीन प्रत्येक वोट की गिनती की जाती है।
प्रश्न 17.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के कोई चार अवगुण लिखो।
उत्तर-
- यह प्रणाली बहुत जटिल है-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली बहुत जटिल है। साधारण वोटर इसे समझ नहीं सकता। वोटों पर पसन्द अंकित करना, कोटा निश्चित करना, वोटों की गिनती करना और वोटों को पसन्द के अनुसार हस्तान्तरित करना आदि बातें एक साधारण पढ़े-लिखे व्यक्ति की समझ से बाहर हैं।
- राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अन्तर्गत छोटे-छोटे दलों को प्रोत्साहन मिलता है। अल्पसंख्यक जातियां भी अपनी भिन्नता बनाये रखती हैं और दूसरी जातियों के साथ अपने हितों को मिलाना नहीं चाहतीं। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्र छोटे-छोटे वर्गों और गुटों में बंटकर रह जाता है और राष्ट्रीय एकता पनप नहीं पाती।
- राजनीतिक दलों का अधिक महत्त्व-आनुपातिक प्रतिनिधित्व की सूची प्रणाली के अन्तर्गत राजनीतिक दलों का महत्त्व बहुत अधिक हो जाता है। मतदाता को किसी-न-किसी दल के पक्ष में वोट डालना होता है। निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ सकते।
- उत्तरदायित्व का अभाव-इस प्रणाली के अधीन निर्वाचन क्षेत्र बहुसदस्यीय होते हैं और एक क्षेत्र में कई प्रतिनिधि होते हैं। चूंकि एक क्षेत्र का प्रतिनिधि निश्चित नहीं होता, इसलिए प्रतिनिधियों में उत्तरदायित्व की भावना पैदा नहीं होती।
प्रश्न 18.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के विरुद्ध चार तर्क दें।
उत्तर-
- योग्य प्रतिनिधियों के निर्वाचन की कम सम्भावना-प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के अधीन साधारण मतादाताओं को ग़लत प्रचार के द्वारा प्रभावित किया जा सकता है। परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष चुनाव विधि के अधीन योग्य उम्मीदवारों के निर्वाचित होने की सम्भावना होती है।
- गुणवान् व्यक्ति ऐसे चुनावों से भयभीत होते हैं-प्रत्यक्ष चुनाव विधि के अधीन राजनीतिक गतिविधियों का स्तर निम्न स्तर पर पहुंच जाता है। ऐसी विधि के अधीन हिंसक घटनाएं भी प्रायः होती हैं। इस प्रकार की अवस्थाओं में बुद्धिमान् तथा गुणवान् व्यक्ति चुनाव लड़ने से भयभीत होते हैं।
- यह चुनाव विधि धनवानों के लिए-इस प्रकार की चुनाव प्रणाली में अत्यधिक धन व्यय किया जाता है। ऐसी प्रणाली में कोई निर्धन गुणवान् व्यक्ति चुनाव लड़ने की कल्पना भी नहीं करता।
- खर्चीली विधि-यह प्रणाली बहुत अधिक खर्चीली है।
प्रश्न 19.
अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की चार विधियां लिखो।
अथवा
अल्प (कम) गिनती को प्रतिनिधित्व देने की किन्हीं तीन मुख्य विधियों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर-
अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने वाले विभिन्न तरीके निम्नलिखित हैं-
1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली-आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा सभी वर्गों या राजनीतिक दलों को उनकी संख्या के अनुपात से व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व मिलने की काफ़ी सम्भावना रहती है।
2. सीमित मत प्रणाली-सीमित मत प्रणाली भी अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने का तरीका है। इस प्रणाली में बहु-सदस्यीय चुनाव क्षेत्र होते हैं और कम-से-कम तीन सदस्य चुने जाते हैं। प्रत्येक मतदाता को एक से अधिक परन्तु स्थानों की संख्या से कम मत दिए जाते हैं।
3. संचित मत प्रणाली-संचित मत प्रणाली में बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र होते हैं। एक मतदाता को उतने ही मत मिलते हैं जितने कि सदस्य चुने जाते हैं।
4. पृथक निर्वाचन प्रणाली-अल्पसंख्यक वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का एक और तरीका भारत में अंग्रेजों ने लाग किया था। इसे पृथक निर्वाचन प्रणाली कहा जाता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न धर्मों और जातियों के लिए उनकी संख्या के अनुसार व्यवस्थापिका में स्थान आसुरक्षित (Reserve) किए जाते हैं और उन विभिन्न धर्मों और जातियों के मतदाता अपने-अपने प्रतिनिधि अलग-अलग चुनते हैं अर्थात् मुसलमान मतदाता मुसलमान उम्मीदवारों को वोट देते हैं और दूसरे धर्मों और जातियों के मतदाता अपने-अपने उम्मीदवारों को। 1909 के एक्ट के अनुसार भारत में मुसलमानों को अपने प्रतिनिधि अलग चुनने का अधिकार दिया गया था।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
वयस्क मताधिकार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सार्वभौम वयस्क मताधिकार का अभिप्राय यह है कि एक निश्चित आयु के वयस्क नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार देना है। वयस्क होने की आयु राज्य द्वारा निश्चित की जाती है। भारत में मताधिकार की आयु पहले 21 वर्ष थी परन्तु 61वें संशोधन एक्ट द्वारा यह आयु 18 वर्ष कर दी गई है।
प्रश्न 2.
अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक देश में लोग कई आधार पर बंटे होते हैं। कई समूह या वर्गों के लोग किसी संस्था में दूसरे वर्गों के लोगों से कम होते हैं। ऐसे लोगों को अल्पसंख्यक कहा जाता है जैसे कि भारत में ईसाई, मुस्लिम और पारसी लोग। लोकतन्त्र को वास्तविक बनाने के लिए यह आवश्यक है कि देश के हर वर्ग तथा समूह को विधानमण्डल में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। अल्पसंख्यकों को अपनी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
प्रश्न 3.
स्त्री मताधिकार के पक्ष में दो तर्क दें।
उत्तर-
स्त्री मताधिकार के पक्ष में मुख्यतः निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं-
- यह लोकतन्त्रात्मक है-स्त्रियों को मत का अधिकार देना लोकतन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार है।
- स्त्रियों को मताधिकार की अधिक आवश्यकता-शारीरिक दृष्टि से निर्बल व्यक्ति को कानून की रक्षा की अधिक आवश्यकता होती है। जो सबल है वह तो कानून को भी अपने हाथ में ले सकता है।
प्रश्न 4.
स्त्री मताधिकार के विरुद्ध दो तर्क दें।
उत्तर-
- स्त्री का कार्य क्षेत्र घर है-यदि उसे मत देने का अधिकार दिया जाए तो वह घर की ओर ठीक ध्यान न दे सकेगी। इससे पारिवारिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा घर की शान्ति समाप्त हो जाएगी।
- स्त्री का मत पुरुष के मत की पुनरावृत्ति है-अधिकतर स्त्रियां अपने पति, पिता या भाई आदि के कहने के अनुसार ही अपने मत का प्रयोग करती हैं। वे अपनी ओर से यह सोचने का प्रयत्न नहीं करतीं कि वोट किसे देना चाहिए।
प्रश्न 5.
सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के पक्ष में दो तर्क दें।
उत्तर-
- प्रभुसत्ता जनता के पास है-लोकतन्त्र में प्रभुसत्ता जनता के पास होती है और जनता की इच्छा तथा कल्याण के लिए शासन चलाया जाता है। इसके मत डालने का अधिकार सबको समानता के साथ मिलना चाहिए। यदि वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त लागू न किया जाए तो जनता की प्रभुसत्ता की बात सत्य सिद्ध नहीं होती।
- कानून का प्रभाव सब पर पड़ता है-राज्य में जो भी कानून बनते हैं उनका प्रभाव राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों पर पड़ता है। इसीलिए उन कानूनों को बनाने का अधिकार भी सबको समान रूप से मिलना चाहिए।
प्रश्न 6.
सार्वभौम वयस्क मताधिकार के विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
उत्तर-
- शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए-बहुत से लोगों का कहना है कि शिक्षित व्यक्तियों को ही मताधिकार मिलना चाहिए। शिक्षित व्यक्ति अपने मत का ठीक प्रयोग कर सकता है।
- मूों का शासन-वयस्क मताधिकार द्वारा मूों का शासन स्थापित हो जाता है क्योंकि समाज में अनपढ़ और मूों की संख्या अधिक होती है।
प्रश्न 7.
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के अनुसार सारे देश के मतदाताओं को प्रादेशिक इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है जिन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं। एक निर्वाचन क्षेत्र से एक या अधिक प्रतिनिधि चुने जाते हैं। एक निर्वाचन क्षेत्र या प्रदेश में रहने वाले सभी मतदाता उस क्षेत्र के प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं और प्रतिनिधि उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रादेशिक प्रतिनिधित्व में प्रतिनिधि क्षेत्र के समस्त मतदाताओं की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते
हैं।
प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब मतदाता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या सीधे तौर पर अपने प्रतिनिधि चुने और वे प्रतिनिधि ही संसद या व्यवस्थापिका में अपना पद ग्रहण करते हों तो उसे प्रत्यक्ष चुनाव कहा जाता है। उदाहरण के लिए भारत में पंचायतों, नगरपालिकाओं, विधानसभाओं तथा लोक सभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने जाते हैं।
प्रश्न 9.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
यह एक ऐसी चुनाव प्रणाली है जिसके अनुसार जनता के हर वर्ग या दल को विधानमण्डल में उतना ही प्रतिनिधित्व मिलता है जितना उनके समर्थकों का अनुपात होता है। एक वर्ग या दल के पीछे जितने प्रतिशत मतदाता होंगे उसे विधानमण्डल में उतने ही प्रतिशत सीटें प्राप्त होंगी।
प्रश्न 10.
प्रत्यक्ष चुनाव के कोई दो गुण लिखें।
उत्तर-
- प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में मतदाताओं एवं प्रतिनिधियों के बीच सीधा सम्बन्ध रहता है।
- प्रतिनिधियों में अधिक उत्तरदायित्व की भावना पाई जाती है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
प्रश्न I. एक शब्द वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1.
मताधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वोट डालने के अधिकार को मताधिकार कहा जाता है।
प्रश्न 2.
वयस्क मताधिकार से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
वयस्क मताधिकार का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
वयस्क मताधिकार से भाव सभी बालिग व्यक्तियों को बिना किसी भेद-भाव के मताधिकार देना है।
प्रश्न 3.
बालग मताधिकार के पक्ष में दो तर्क दीजिए।
अथवा
वयस्क मताधिकार के पक्ष में कोई एक तर्क लिखिए।
उत्तर-
- प्रजातन्त्र में सभी व्यक्ति समान माने जाते हैं।
- बालग मताधिकार द्वारा चुनी गई सरकार अधिक शक्तिशाली होती है।
प्रश्न 4.
वयस्क मताधिकार के विरुद्ध एक दलील दीजिए।
उत्तर-
सभी व्यक्तियों को समान रूप से अधिकार देना तर्कहीन है।
प्रश्न 5.
महिला मताधिकार का क्या भाव है ?
उत्तर-
महिला मताधिकार का अर्थ है बिना किसी भेदभाव के महिलाओं को मतदान का अधिकार देना।
प्रश्न 6.
जन-सहभागिता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जन-सहभागिता का अर्थ है, राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना।
प्रश्न 7.
स्त्री मताधिकार के विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर-
अधिकतर स्त्रियां अपने पति, पिता या भाई के कहने के अनुसार ही अपने मत का प्रयोग करती हैं. उनमें इतनी सोच-विचार करने की क्षमता नहीं होती कि वोट किसे दी जानी चाहिए।
प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का क्या अर्थ है ?
अथवा
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जिस चुनाव प्रणाली में मतदाता स्वयं अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं उसे प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली कहते
प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का कोई एक गुण लिखिए।
उत्तर-
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अधिक लोकतान्त्रिक है।
प्रश्न 10.
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के दो दोष लिखें।
अथवा
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का एक दोष लिखिए।
उत्तर-
- आम नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव नहीं कर सकता।
- प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अधिक खर्चीली है।
प्रश्न 11.
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का क्या अर्थ है ?
अथवा
अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब वे प्रतिनिधि जिनके हाथ में शासन सत्ता रहती है, जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से न चुने जा कर जनता के चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाते हों तो उस प्रणाली को अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली कहा जाता है।
प्रश्न 12.
स्त्री मताधिकार के पक्ष में कोई एक तर्क दें।
उत्तर-
स्त्री को केवल लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित रखना न्यायसंगत नहीं है।
प्रश्न 13.
गुप्त मतदान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गुप्त मतदान मत-पत्र द्वारा मतदान की वह पद्धति है जिसमें किसी को यह पता न चले कि मत किस पक्ष अथवा उम्मीदवार को दिया गया है।
प्रश्न 14.
किसी एक आधार पर निर्वाचक सहभागिता का महत्त्व लिखिए।
उत्तर-
निर्वाचक सहभागिता से लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।
प्रश्न 15.
क्या स्त्री मताधिकार आवश्यक है ?
उत्तर-
हां, स्त्री मताधिकार आवश्यक है।
प्रश्न 16.
अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
अल्पसंख्यकों को उनकी संख्या के अनुपात में विधानमण्डल में प्रतिनिधित्व कहलाता है।
प्रश्न 17.
जन-सहभागिता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जन-सहभागिता का अर्थ है, राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना।
प्रश्न 18.
चुनाव मण्डल क्या होता है ?
उत्तर-
कुल जनसंख्या का वह भाग जो प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेता है, सामूहिक रूप से निर्वाचक मण्डल कहलाता है।
प्रश्न 19.
जन सहभागिता की क्या महत्ता है ?
उत्तर-
जन सहभागिता से लोकतन्त्र मज़बूत होता है।
प्रश्न II. खाली स्थान भरें-
1. एकल संक्रमणीय मत प्रणाली ……………. प्रणाली की एक विधि है।
2. ……….. को प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का घर कहा जाता है।
3. ………. विधानपालिका द्वारा बनाए गए कानूनों के विषय में लोगों की राय जानने का एक साधन होता है।
4. जब संसद् या विधानसभा का कोई स्थान किसी कारणवश खाली हो जाए तो उस स्थान की पूर्ति के लिए करवाया . गया चुनाव …………. कहलाता है।
5. चुनाव में सफल उम्मीदवार को …………………. कहा जाता है।
उत्तर-
- आनुपातिक प्रतिनिधित्व
- स्विट्ज़रलैण्ड
- जनमत संग्रह
- उप-चुनाव
- प्रतिनिधि।
प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-
1. इंग्लैण्ड में स्त्रियों को सन् 1928 में मताधिकार प्रदान किया गया।
2. अमेरिका में स्त्रियों को सन् 1950 में मताधिकार प्रदान किया गया।
3. भारतीय संविधान में सन् 1950 में ही स्त्रियों को मताधिकार दिया गया।
4. वयस्क मताधिकार से लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा नहीं होती।
5. वयस्क मताधिकार द्वारा राष्ट्रीय एकता बनी रहती है।
उत्तर-
- सही
- ग़लत
- सही
- ग़लत
- सही।
प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
Franchise का अर्थ है
(क) चुनाव लड़ने का अधिकार
(ख) मतदान करने का अधिकार
(ग) सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार
(घ) समुदाय बनाने का अधिकार।
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 2.
चुनाव प्रक्रिया वह साधन है, जिसके द्वारा
(क) नौकरशाही नियुक्त की जाती है
(ख) न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं
(ग) राजनीतिक दल कार्य करते हैं
(घ) चुनाव करवाए जाते हैं।
उत्तर-
(घ)
प्रश्न 3.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का विरोध किसने किया?
(क) जे० एस० मिल
(ख) गार्नर (ग) लॉस्की
(घ) नेहरू।
उत्तर-
(क)
प्रश्न 4.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का अर्थ है कि
(क) संपूर्ण जनसंख्या को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है
(ख) निश्चित आयु के वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है।
(ग) केवल शिक्षित व्यक्तियों को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है।
(घ) केवल अमीरों को मतदान का अधिकार प्राप्त होता है।
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सा तर्क सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के विरुद्ध है-
(क) यह प्रजातन्त्रिक है
(ख) राजनीतिक समानता
(ग) राजनीतिक जागरूकता
(घ) राष्ट्र विरोधी।
उत्तर-
(घ)