Punjab State Board PSEB 12th Class Religion Book Solutions Chapter 4 वैदिक साहित्य की जानकारी Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Religion Chapter 4 वैदिक साहित्य की जानकारी
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
वैदिक साहित्य के प्रमुख लक्षण एवं महत्ता का वर्णन कीजिए।
(Describe the salient features and importance of Vedic literature.)
अथवा
चार वेदों के प्रमुख लक्षणों के बारे में भावपूर्ण संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
(Describe the Pre-eminent features of four Vedas in brief but meaningful.)
अथवा
वैदिक साहित्य से क्या भाव है ? आरम्भिक और उत्तर वैदिक काल के साहित्य का संक्षेप में वर्णन करो।
(What is meant by Vedic literature ? Explain briefly the early and later Vedic literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य की संक्षेप जानकारी दो । चार वेदों पर संक्षेप में नोट लिखें।
(Give a brief introduction of Vedic literature. Write short notes on four Vedas as well.)
अथवा
वैदिक साहित्य की मुख्य विशेषताओं और महत्ता का वर्णन करो। (Explain the main features and importance of the Vedic literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के बारे बताएँ।
(Give a brief introduction about the Vedic literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के प्रमुख लक्षणों के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the salient features of Vedic literature.)
उत्तर-
वैदिक साहित्य से भाव उस साहित्य से है जिसकी रचना आर्यों ने की थी। इस साहित्य को अनमोल ज्ञान का भंडार माना जाता है। इस में जीवन की आध्यात्मिक और अन्य समस्याओं के समाधान का वर्णन किया गया है। निस्संदेह वैदिक साहित्य को लिखने का मुख्य उद्देश्य धार्मिक था परन्तु इस से वैदिक और उत्तर वैदिक काल के लोगों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन की भी स्पष्ट झलक प्राप्त होती है। इसी कारण इस साहित्य को प्राचीन काल भारतीय इतिहास लिखने के लिए एक बहुत ही विश्वसनीय स्रोत माना जाता है। यह सारा साहित्य संस्कृत भाषा में लिखा गया है। रचना काल के आधार पर वैदिक साहित्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है। आरंभिक वैदिक काल का साहित्य और उत्तर वैदिक काल का साहित्य। इनका संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
(क) आरंभिक वैदिक काल का साहित्य (Early Vedic Literature)-
आरंभिक वैदिक काल के साहित्य में चार वेद, ब्राह्मण, आरण्य और उपनिषद् आदि शामिल हैं। इस साहित्य को स्मति भी कहा जाता है क्योंकि इसकी रचना मनुष्यों के द्वारा नहीं बल्कि परमात्मा के बताये जाने पर ऋषियों द्वारा की गई। इसलिए इस साहित्य को परमात्मा के ज्ञान का भंडार माना जाता है।
1. चार वेद (The Four Vedas)-वेदों को भारत का सब से प्राचीन साहित्य माना जाता है। इन को सारे भारतीय दर्शन का मूल माना जाता है। वेद शब्द “विद” धातु से निकला है जिसका अर्थ है “जानना” या “ज्ञान”। दूसरे शब्दों में वेदों को आर्यों के ज्ञान का भंडार कहा जा सकता है। वेद चार हैं :-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
ऋग्वेद (The Rigveda)-ऋग्वेद आर्यों का सब से पुराना और महत्त्वपूर्ण वेद है। इस की रचना 1500-1000 ई० पू० में हुई। इस में 1028 सूक्त हैं जिनको 10 अध्यायों में बाँटा गया है। प्रत्येक सूक्त में अनेक मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों में देवी-देवताओं की उपासना की गई है। सबसे अधिक मंत्र इंद्र देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। इनकी संख्या 250 है। ऋग्वेद में वर्णित देवी-देवताओं को प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक समझा जाता था। इन की पूजा लड़ाई में विजय के लिए, धन और संतान तथा सुखी जीवन की प्राप्ति के लिए की जाती थी। ऋग्वेद को आर्य लोगों के जीवन को जानने के लिए बहुमूल्य स्रोत माना जाता है।
सामवेद (The Samaveda)-सामवेद में कुल 1875 मंत्र दिये गये हैं। इनमें से केवल 75 मंत्र नये हैं और बाकी सारे मंत्र ऋग्वेद में से लिये गये हैं। इन मंत्रों को यज्ञों के समय पुरोहित निश्चित स्वरों में गाते थे। इसी कारण सामवेद को “गायन ग्रंथ” भी कहा जाता है। यदि इस वेद को भारतीय संगीत कला का स्रोत कह दिया जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
यजुर्वेद (The Yajurveda)-यजुर्वेद में यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों में यज्ञों को किये जाने के ढंग भी बताये गये हैं। वेद दो भागों शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद में बाँटा गया है। शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्रों का वर्णन है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ-साथ उनके अर्थ भी बताये गये हैं। इस वेद से हमें आर्यों के धार्मिक और सामाजिक जीवन के बारे में बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
अथर्ववेद (The Atharvaveda)—इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता है। इस वेद को सबसे बाद में वेदों की गिनती में शामिल किया गया है। इस वेद में 731 सूक्त दिये गये हैं। यह वेद जादू-टोनों और भूतों तथा चुडैलों को वश में करने के मंत्रों का संग्रह है। इस में अनेक बीमारियों से बचने के लिए औषधियों का भी वर्णन किया गया है।
2. ब्राह्मण ग्रंथ (The Brahmanas) ब्राह्मण ग्रंथों की रचना वेदों की रचना के बाद हुई। इनमें वेदों की सरल व्याख्या की गई है ताकि साधारण लोग उनके अर्थ समझ सकें। प्रत्येक वेद के अलग-अलग ब्राह्मण हैं। एतरेय ब्राह्मण, तैत्तरीय ब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण तथा शतपथ ब्राह्मण आदि नाम के ब्राह्मण सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। यह गद्य में लिखे गये हैं। इनसे यज्ञों और बलियों की विधियों का ज्ञान प्राप्त होता है। इनमें कई प्रसिद्ध राजाओं के बहादुरी से भरपूर कारनामों का भी वर्णन मिलता है। ऐतिहासिक तौर पर ब्राह्मण ग्रंथों की बड़ी महत्ता है।
3. आरण्यक (The Aranyakas)—ये ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथों का ही हिस्सा हैं। ये ग्रंथ जंगलों में रहने वाले साधुओं के लिये लिखे गये हैं। इनमें आध्यात्मिक विषयों और नैतिक कर्तव्यों पर अधिक जोर दिया गया है। इनमें यज्ञों और बलियों की रस्मों के बारे में भी समझाया गया है। ऐतरेय आरण्यक, कोषतकी आरण्यक, तैत्तरीय आरण्यक और बृहद आरण्यक नामों के ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हैं।
4. उपनिषद् (The Upanishads)-उपनिषद् वे ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान का वर्णन किया गया है। क्योंकि ये वेदों का अंतिम भाग है इसलिए इनको वेदांत भी कहा जाता है। इनकी कुल गिनती 108 है और इनकी रचना अलग-अलग ऋषियों द्वारा 1000-500 ई० पू० के मध्य की गई। इन उपनिषदों में से ईश, केन, कठ, छांदोग्य, तैत्तरीय, ऐतरेय, मुंडक और वृहद आरण्यक आदि नाम के उपनिषद् सबसे प्रसिद्ध हैं। इनमें बहुत गहरे आध्यात्मिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इनमें यह बताने का यत्न किया गया है कि आत्मा क्या है तथा इस का परमात्मा के साथ क्या संबंध है। जीवन तथा मृत्यु से संबंधित बहत से भेदों को सुलझाने का यत्न किया गया है। कर्म, मोक्ष, माया और आवागमन के विषयों पर बहुत अधिक प्रकाश डाला गया है। डॉक्टर एस० आर० गोयल का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“उपनिषद् दर्शन को ठीक ही भारतीय दर्शन का स्रोत कहा जा सकता है।”1
1. “The Upanishadic philosophy is rightly regarded as the source of all Indian Philosophy.” Dr. S. R. Goyal, A Religious History of Ancient India (Meerut : 1984) Vol. 1, p. 119.
(ख) उत्तर वैदिक काल का साहित्य
(Later Vedic Literature)
उत्तर वैदिक काल के साहित्य में वेदांग, सूत्र, उपवेद, पुराण, धर्म-शास्त्र और महाकाव्य आदि शामिल हैं। इस काल में रचे साहित्य को स्मृति भी कहा जाता है क्योंकि इस की रचना ऋषियों ने अपने ज्ञान के द्वारा की।
- वेदांग (The Vedangas)—वेदांग से अभिप्राय है वेदों के अंग। इनकी गिनती 6 है और ये अलग-अलग विषयों से संबंधित हैं। इनके नाम शिक्षा, छंद, कल्प, व्याकरण, निरुक्त और ज्योतिष हैं। इनमें से कल्प वेदांग सबसे महत्त्वपूर्ण है जिसमें आर्यों के धार्मिक रीति-रिवाजों का वर्णन किया गया है। वेदों को समझने के लिए और उनका ठीक उच्चारण करने के लिए वेदांगों को विशेष महत्त्व प्राप्त है।
- सूत्र (The Sutras)-उत्तर वैदिक काल में साहित्य लिखने की एक नई शैली की शुरुआत हुई। इनको सूत्र कहा जाता है। इनमें कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बातें कहने का यत्न किया गया है। इस का उद्देश्य यह था कि लोग वैदिक साहित्य को आसानी से याद कर सकें। इनको तीन श्रेणियों में बाँटा गया है।
- स्त्रोत सूत्र-इसमें सोम यज्ञ, बलियाँ और अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों का वर्णन किया गया है।
- ग्रह सूत्र-यह सूत्र सब सूत्रों से महत्त्वपूर्ण है। इस में जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के कर्तव्यों का वर्णन किया गया है।
- धर्म सूत्र-इसमें उस समय के प्रचलित कानूनों और रिवाजों का वर्णन किया गया है।
- उपवेद (The Upavedas)-उपवेद सहायक वेद हैं। इनकी संख्या चार है—
- आयुर्वेद-इसमें औषधियों का वर्णन किया गया है।
- धनुर्वेद-इसमें युद्ध-कला का वर्णन किया गया है।
- गन्धर्ववेद-इसमें संगीत संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
- शिल्प वेद-इसमें कला और भवन निर्माण कला से संबंधित जानकारी दी गई है।
- धर्मशास्त्र (The Dharma Shastras)-धर्म शास्त्र हिंदुओं के कानूनी ग्रंथ थे। इन को स्मृति ग्रंथ भी कहा जाता है। इनमें से मनु स्मृति सब से पुराना और महत्त्वपूर्ण धर्मशास्त्र है। इसके अतिरिक्त याज्ञवल्क्य स्मृति, विष्णु स्मृति और नारद स्मृति भी बहुत प्रसिद्ध शास्त्र माने जाते हैं। इनमें चार जातियों, आश्रमों, नित्य की रस्मोंरीतियों, शासकों के कर्त्तव्य और न्यायिक व्यवस्था आदि पर भरपूर प्रकाश डाला गया है। इसलिए ऐतिहासिक तौर पर धर्मशास्त्रों की बहुत महत्ता है।
- पुराण (The Puranas)—पुराण से अभिप्राय है प्राचीन यह हिंदुओं के प्राचीन इतिहास को जानने के लिए हमारा एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। पुराणों की कुल संख्या 18 है। इनमें से विष्णु, भागवत, मत्स्य और वायु पुराण बहुत प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक पुराण पाँच भागों में बाँटा हुआ है। पहले भाग में विश्व की उत्पत्ति, दूसरे में विश्व की पुनः उत्पत्ति, तीसरे भाग में देवताओं के वंशों, चतुर्थ में महायुगों और पाँचवें भाग में प्रसिद्ध राजवंशों का वर्णन किया गया है। ऐतिहासिक तौर पर पुराणों का पाँचवां भाग बहुत लाभदायक है।
- दर्शन के षट-शास्त्र (Six Shastras of Philosophy)-उत्तर वैदिक काल में अलग-अलग ऋषियों ने भारतीय दर्शन से संबंधित 6 शास्त्र लिखे। इनके नाम ये हैं—
- कपिल का सांख्य शास्त्र,
- पतंजलि का योग शास्त्र,
- गौतम का न्याय शास्त्र
- कणाद का वैशेषिक शास्त्र,
- जैमिनी का पूर्व मीमांसा और
- व्यास का उत्तर मीमांसा।
इनमें ऋषियों ने आत्मा-परमात्मा और जीवन-मृत्यु से संबंधित अलग-अलग पहलुओं पर भरपूर प्रकाश डाला है। वास्तव में यह शास्त्र एक ऐसे दर्पण की तरह है जिसमें भारतीय दर्शन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।
महाकाव्य (The Epics)-रामायण और महाभारत उत्तर वैदिक काल के दो प्रसिद्ध महाकाव्य हैं। रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि जी ने की थी। इस में 24,000 श्लोक हैं। रामायण का मुख्य विषय रामचंद्र और रावण के मध्य युद्ध है। महाभारत भारत का सब से बड़ा महाकाव्य है। इस की रचना ऋषि वेद व्यास ने की थी। इस में 1,00,000 से अधिक श्लोक दिये गये हैं। भगवद् गीता, महाभारत का ही एक हिस्सा है। महाभारत का मुख्य विषय पांडवों और कौरवों के मध्य युद्ध है। ये दोनों महाकाव्य उस समय के लोगों की धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति पर भरपूर प्रकाश डालते हैं। प्रोफेसर एच० वी० श्रीनिवास मूर्ति का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“दोनों महाकाव्य रामायण और महाभारत भारतीय संस्कृति के अलग-अलग पक्षों पर भरपूर प्रकाश डालते हैं। उन्होंने पर्याप्त सीमा तक हमारे लोगों के चरित्र और जीवन को परिवर्तित किया है। इस तरह वे पुराने और नये भारत के मध्य एक मजबूत कड़ी हैं।”2
वैदिक साहित्य का महत्त्व (Importance of the Vedic Literature)-
वैदिक साहित्य को भारतीय इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। इस को हिंदू धर्म की जान कहा जा सकता है। इस का कारण यह है कि इस साहित्य में हिंदू दर्शन के मूल सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। संसार की रचना कैसे हुई ? आत्मा क्या है ? उसका परमात्मा के साथ क्या संबंध है ? मोक्ष क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? कर्म क्या है ? ज्ञान क्या है ? मनुष्य अवगुणों के चक्रों में क्यों भटकता रहता है ? ये कुछ ऐसे रहस्यवादी प्रश्न हैं जिनका उत्तर वैदिक साहित्य में बहुत स्पष्ट शब्दों में दिया गया है। इस तरह वैदिक साहित्य हिंदू धर्म को जानने के लिए प्रकाश स्तंभ का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त यह साहित्य आर्यों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन को जानने के लिए भी हमारा एक बहुमूल्य स्रोत है। संक्षेप में वैदिक साहित्य भारतीय संस्कृति को समझने के लिए एक दर्पण का कार्य करता है। आधुनिक काल में यह न केवल भारतीय बल्कि विदेशी लेखकों और विद्वानों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र है। निस्संदेह यह हमारे लिए एक बहुत ही गर्व की बात है। प्रसिद्ध लेखकों वी० पी० शाह तथा के० एस० बहेरा का यह कहना उचित है कि,
“वैदिक साहित्य आर्यों द्वारा भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को दी गई सबसे अमूल्य देन है। निःसंदेह, वेद मख्य तौर पर धार्मिक साहित्य है, परंतु इनसे सीधे रूप से उस समय की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दशा के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।”3
2. “The two great epics, the Ramayana and the Mahabharata, throw a flood of light on various aspects of Indian culture. They have to a large extent, moulded the character and life of our people. Thus they form the strongest link between India, old and new.” Prof. H. V. Sreenivasa Murthy, History and Culture of India to 1000 A.D. (New Delhi : 1980) p. 68.
3. “The Vedic literature is a magnificient contribution of the Aryan’s to the Indian culture and civilisation. No doubt the Vedas are predominantly religious literature but the Vedas directly indicate about religious, social, economic and political conditions of the time.” B.P. Saha and K.S. Bahera, Ancient History of India (New Delhi : 1988) p.72.
प्रश्न 2.
निम्नलिखित के बारे पहचान कराएँ—
(1) पुराण,
(2) उपनिषद्
(3) ऋग्वेद,
(4) शास्त्र।
[Explain the following :
(1) Puranas
(2) Upanishads
(3) Rigveda
(4) Shastras.]
उत्तर-
1. पुराण (Purana)—पुराण से अभिप्राय है प्राचीन यह हिंदुओं के प्राचीन इतिहास को जानने के लिए हमारा एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। पुराणों की कुल संख्या 18 है। इनमें से विष्णु, भागवत, मत्स्य और वायु पुराण बहुत प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक पुराण पाँच भागों में बाँटा हुआ है। पहले भाग में विश्व की उत्पत्ति, दूसरे में विश्व की पुनः उत्पत्ति, तीसरे भाग में देवताओं के वंशों, चतुर्थ में महायुगों और पाँचवें भाग में प्रसिद्ध राजवंशों का वर्णन किया गया है। ऐतिहासिक तौर पर पुराणों का पाँचवां भाग बहुत लाभदायक है।
2. उपनिषद् (Upanishads)—उपनिषद् वे ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान का वर्णन किया गया है। क्योंकि ये वेदों का अंतिम भाग है इसलिए इनको वेदांत भी कहा जाता है। इनकी कुल गिनती 108 है और इनकी रचना अलग-अलग ऋषियों द्वारा 1000-500 ई० पू० के मध्य की गई। इन उपनिषदों में से ईश, केन, कठ, छांदोग्य, तैत्तरीय, ऐतरेय, मुंडक और वृहद आरण्यक आदि नाम के उपनिषद् सबसे प्रसिद्ध हैं। इनमें बहुत गहरे आध्यात्मिक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इनमें यह बताने का यत्न किया गया है कि आत्मा क्या है तथा इस का परमात्मा के साथ क्या संबंध है। जीवन तथा मृत्यु से संबंधित बहत से भेदों को सुलझाने का यत्न किया गया है। कर्म, मोक्ष, माया और आवागमन के विषयों पर बहुत अधिक प्रकाश डाला गया है। डॉक्टर एस० आर० गोयल का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“उपनिषद् दर्शन को ठीक ही भारतीय दर्शन का स्रोत कहा जा सकता है।”1
3. ऋग्वेद (Rigveda)-ऋग्वेद आर्यों का सब से पुराना और महत्त्वपूर्ण वेद है। इस की रचना 1500-1000 ई० पू० में हुई। इस में 1028 सूक्त हैं जिनको 10 अध्यायों में बाँटा गया है। प्रत्येक सूक्त में अनेक मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों में देवी-देवताओं की उपासना की गई है। सबसे अधिक मंत्र इंद्र देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। इनकी संख्या 250 है। ऋग्वेद में वर्णित देवी-देवताओं को प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक समझा जाता था। इन की पूजा लड़ाई में विजय के लिए, धन और संतान तथा सुखी जीवन की प्राप्ति के लिए की जाती थी। ऋग्वेद को आर्य लोगों के जीवन को जानने के लिए बहुमूल्य स्रोत माना जाता है।
4. शास्त्र (Shashtras)—धर्म शास्त्र हिंदुओं के कानूनी ग्रंथ थे। इन को स्मृति ग्रंथ भी कहा जाता है। इनमें से मनु स्मृति सब से पुराना और महत्त्वपूर्ण धर्मशास्त्र है। इसके अतिरिक्त याज्ञवल्क्य स्मृति, विष्णु स्मृति और नारद स्मृति भी बहुत प्रसिद्ध शास्त्र माने जाते हैं। इनमें चार जातियों, आश्रमों, नित्य की रस्मोंरीतियों, शासकों के कर्त्तव्य और न्यायिक व्यवस्था आदि पर भरपूर प्रकाश डाला गया है। इसलिए ऐतिहासिक तौर पर धर्मशास्त्रों की बहुत महत्ता है।
1. “The Upanishadic philosophy is rightly regarded as the source of all Indian Philosophy.” Dr. S. R. Goyal, A Religious History of Ancient India (Meerut : 1984) Vol. 1, p. 119.
प्रश्न 3.
धार्मिक क्षेत्र में चार वेदों तथा उनके महत्त्व के बारे में संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
(Discuss in brief the four Vedas and their importance in the field of Religion.)
अथवा
वेद कितने माने जाते हैं तथा इनके नाम क्या हैं ? संक्षेप परंतु प्रभावशाली जानकारी दें।
(How many Vedas are there ? Explain with their names in brief but meaningful.)
अथवा
वेदों के मुख्य लक्षणों का वर्णन करें।
(Describe the main features of the Vedas.)
अथवा
चार वेदों के प्रमुख लक्षणों की जानकारी दीजिए।
(Describe the salient features of the four Vedas.)
अथवा
चार वेदों के नाम लिखें। किन्हीं दो के बारे में संक्षिप्त जानकारी दें।
(Write the names of the four Vedas. Explain in brief any two Vedas.)
अथवा
वेदों की रचना किस प्रकार हुई ? दो वेदों की संक्षिप्त जानकारी दें।
(How Vedas were written ? Discuss any two in brief.)
अथवा
चारों वेदों की महत्ता की संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण चर्चा कीजिए। (Describe in brief, but meaningful the importance of the four Vedas.)
अथवा
चार वेदों के बारे में संक्षेप से बताएँ। (Write in brief about the four Vedas.)
अथवा
वेदों के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the Vedas ?)
अथवा
चार वेदों के नाम बताएँ। ऋग्वेद के बारे में विस्तार से बताएँ।
(Name the four Vedas. Explain Rigveda in detail.)
अथवा
ऋग्वेद के विषय-वस्तु के बारे में जानकारी दें। चार वेदों के नाम बताएँ।
(Discuss the subject-matter of the Rigveda. Name the four Vedas.)
अथवा
ऋग्वेद की विषय-वस्तु पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the subject-matter of the Rigveda.)
अथवा
कुल वेद कितने हैं ? किन्हीं दो वेदों के बारे में व्याख्या करें।
(What are the total number of Vedas ? Explain any two Vedas.)
अथवा
ऋग्वेद एवं सामवेद के प्रमुख विषयों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the main contents of Rigveda and Samaveda.)
अथवा
चार वेदों के बारे में संक्षेप में भावपूरित जानकारी दीजिए।
(Describe in brief meaningfully the four Vedas.)
अथवा
चार वेदों के आध्यात्मिक महत्त्व पर प्रकाश डालें।
(Elucidate the spiritual importance of the four Vedas.)
उत्तर-
वैदिक साहित्य में वेदों को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। वेद चार हैं। इनके नाम ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद हैं। अथर्ववेदं को वेदों की संख्या में सब से बाद में शामिल किया गया। इस कारण पहले तीन वेदों को “तरई” के नाम से भी जाना जाता है। ये वेद संस्कृत में लिखे गये हैं। ये हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ माने जाते हैं। वेद शब्द “विद्” धातु से निकला है जिस का अर्थ है ज्ञान या जानना। दूसरे शब्दों में वेदों को आर्यों के ज्ञान का भंडार कहा जा सकता है। यह ज्ञान ऋषियों ने ईश्वर से प्राप्त किया था। इसी कारण वेदों को “श्रुति” भी कहा जाता है। वेदों का रचना काल 1500 ई० पू० से 600 ई० पू० माना जाता है। निस्संदेह वेद आर्यों के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक इतिहास को जानने के लिए हमारा एक अनमोल स्रोत हैं। वेदों की विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. ऋग्वेद (The Rigveda)-ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण वेद है। ऋग “ऋक” शब्द से निकला है जिसका अर्थ है स्तुति में रचे गये मंत्र। इसी कारण ऋग्वेद को देवताओं की स्तुति में रचे गये मंत्रों का समूह कहा जाता है। ऋग्वेद की रचना 1500-1000 ई० पू० के मध्य हुई। यह वो समय था जब आर्य पंजाब में रहते थे। ऋग्वेद एक विशाल ग्रंथ है। इस में 1028 सूक्त हैं। एक सूक्त में अनेक मंत्र होते हैं। ऋग्वेद में मंत्रों की कुल संख्या 10,580 है। इन को दस अध्यायों में बाँटा गया है। इनमें कुछ अध्याय बड़े हैं और कुछ छोटे। पहला और दसवाँ अध्याय (मंडल) सब से बड़े हैं। इन दोनों मंडलों में 191-191 सूक्त दिये गये हैं। दूसरे मंडल से लेकर सातवें मंडल में दिये गये सूक्तों को ऋग्वेद का दिल माना जाता है। ये शेष मंडलों से पुराने समझे जाते हैं। ऋग्वेद के नवम अध्याय में केवल सोम देवता से संबंधित मंत्र दिये गये हैं।
ऋग्वेद में सबसे अधिक मंत्र (250) इंद्र देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। अग्नि की प्रशंसा में 200 मंत्र हैं। बाकी के मंत्र वरुण, सूर्य, रुद्र, सोम, ऊषा, रात्रि और सरस्वती आदि देवी-देवताओं को समर्पित हैं। इन सभी देवीदेवताओं को प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक समझा जाता था। ये देवता बहुत शक्तिशाली और महान् थे। वे मनुष्य का रूप धारण करते थे और अपने श्रद्धालुओं की प्रार्थनाओं से खुश हो कर उन पर कई प्रकार की कृपा करते थे। उनकी पूजा युद्ध में विजय के लिए, धन की प्राप्ति के लिए, सुखी और लंबे जीवन तथा संतान की प्राप्ति के लिए की जाती थी। ऋग्वेद में अनेक ऋषियों ने मंत्र लिखे हैं। इनमें विश्वामित्र, भारद्वाज, वशिष्ट, वामदेव, अत्री, कण्व तथा ग्रितस्मद बहुत प्रसिद्ध थे। ऋग्वेद में अपाला, घोषा, विश्ववरा, मुदगालिनी तथा लोपामुद्रा आदि स्त्रियों के भी मंत्र दिये गये हैं। ऋग्वेद में प्रसिद्ध गायत्री मंत्र भी दिया गया है जिसे हिंदू आज भी प्रतिदिन पढ़ते हैं। ऋग्वेद की रचना यद्यपि धार्मिक तौर पर की गई थी परंतु इस की ऐतिहासिक महत्ता भी बहुत है।
2. सामवेद (The Samaveda) साम शब्द से भाव सरीले गीत से है। इस कारण सामवेद को सुरीले गीतों का एक संग्रह माना जाता है। इसमें कुल 1875 मंत्र हैं। इनमें से केवल 75 मंत्र नये हैं और बाकी के सभी मंत्र ऋग्वेद में से लिए गये हैं। ये मंत्र दो भागों में बाँटे गये हैं जिन को पूर्वरचिका तथा उत्तररचिका कहते हैं। पूर्वरचिका में 650 मंत्र हैं जबकि उत्तररचिका में 1225 मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों को यज्ञ के समय सुरताल में गाया जाता था। जो पुरोहित इन मंत्रों को गाते थे उनको उद्गात्री कहा जाता था। इन मंत्रों को सात स्वरों में गाया जाता था। इन मंत्रों को गाते समय तीन प्रकार के वाद्यों वेणु, दुंदुभि और वीणा का प्रयोग किया जाता था। निस्संदेह सामवेद को भारतीय संगीत कला का पहला और अमूल्य स्रोत कहा जा सकता है।
3. यजुर्वेद (The Yajurveda)—यर्जु से भाव है यज्ञ तथा यजुर्वेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है। इस में कुल 2086 मंत्र दिये गये हैं। ये मंत्र 40 अध्यायों में बाँटे गये हैं। यजुर्वेद का कुछ भाग गद्य है और कुछ भाग कविता के रूप में है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस वेद की रचना कुरुक्षेत्र में हुई। इस वेद का उद्देश्य यज्ञों से संबंधित विधियों को बताना था। जो पुजारी यज्ञों के कार्यों में सहायता करते थे उनको “अध्वरयु” कहते थे। यज्ञों द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जाता था ताकि वे अपने श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करें। इस लिए इस वेद को कर्मकांड प्रधान वेद कहा जाता है। इस में दैवी शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधन भी बताये गये हैं। यह वेद दो भागों शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद में बाँटा हुआ है। शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्रों का वर्णन है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ-साथ उनके अर्थ भी दिये गये हैं। इस वेद से हमें आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन के बारे बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है।
4. अथर्ववेद (The Atharvaveda)-अथर्ववेद की रचना सब से बाद में हुई। इस वेद का नाम अथर्वन ऋषि के नाम से पड़ा। यह ऋषि जादुई शक्तियों का स्वामी था और भूतों-प्रेतों का नाश करने के लिए प्रसिद्ध था। अथर्ववेद वास्तव में जादू टोनों के मंत्रों का संग्रह है। इस में भूतों और चुडैलों की शक्तियों और उनको वश में करने के तरीके बताये गये हैं। इस से पता चलता है कि आर्यों के धार्मिक जीवन में पहले से बहत तबदीली आ गई थी। इन के अतिरिक्त इस वेद में अनेकों बीमारियों के उपचार का भी वर्णन किया गया है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता था क्योंकि यह वेद ब्राह्मण पुजारियों के लिए लिखा गया था। वे अग्नि की सहायता से मनुष्यों को भूतों-प्रेतों से बचा कर उनकी सहायता करते थे। अथर्ववेद में कुल 731 सूक्त और लगभग 6000 मंत्र हैं। इन मंत्रों में से लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद में से लिये गये हैं। यह वेद 20 अध्यायों में बाँटा गया है। इस का 20वाँ अध्याय सब से बड़ा है जिसमें 928 मंत्रों का वर्णन है।
प्रश्न 4.
चार वेदों में से यजुर्वेद के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe Yajurveda among the four vedas.)
उत्तर-
यर्जु से भाव है यज्ञ तथा यजुर्वेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है। इस में कुल 2086 मंत्र दिये गये हैं। ये मंत्र 40 अध्यायों में बाँटे गये हैं। यजुर्वेद का कुछ भाग गद्य है और कुछ भाग कविता के रूप में है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस वेद की रचना कुरुक्षेत्र में हुई। इस वेद का उद्देश्य यज्ञों से संबंधित विधियों को बताना था। जो पुजारी यज्ञों के कार्यों में सहायता करते थे उनको “अध्वरयु” कहते थे। यज्ञों द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जाता था ताकि वे अपने श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करें। इस लिए इस वेद को कर्मकांड प्रधान वेद कहा जाता है। इस में दैवी शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधन भी बताये गये हैं। यह वेद दो भागों शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद में बाँटा हुआ है। शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्रों का वर्णन है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ-साथ उनके अर्थ भी दिये गये हैं। इस वेद से हमें आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन के बारे बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है।
प्रश्न 5.
वैदिक साहित्य से आप क्या समझते हैं ? वैदिक साहित्य के प्रमुख विषय कौन-कौन से हैं ?
(What is meant by the Vedic literature ? What are the main subjects of the Vedic literature ?)
अथवा
वैदिक साहित्य के मुख्य विषयों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the main contents of the Vedic literature.)
अथवा
वेदों के महत्त्वपूर्ण पक्षों के बारे में बहस करें।
(Examine the important aspects of the Vedas.)
अथवा
ऋग्वेद में कौन से मुख्य विषय छुए गए हैं ? ऋग्वेद के बीच कुल मंत्रों की संख्या बताओ।
(Which main subjects are touched in the Rigveda ? Mention the total number of hymns given in Rigveda.)
अथवा
ऋग्वेद की विषय-वस्तु के बारे जानकारी दो। पुरुष सूक्त के बारे संक्षेप नोट लिखो ।
(Write about the subject-matter of the Rigveda. Write a brief note on the PurushSukta hymn.)
अथवा
हिंदू धर्म के प्रमुख सिद्धांतों के बारे में जानकारी दें। (Write about the main features of Hinduism.)
अथवा
वेदों के धार्मिक विचारों के बारे में बताएँ। (Give an account of the religious thoughts of the Vedas.)
अथवा
आध्यात्मिक क्षेत्र में वेदों का क्या महत्त्व है ? स्पष्ट करें।
(Explain the spirityal importance of the Vedas.)..
उत्तर-
वैदिक साहित्य में मुख्य तौर पर हिंदू धर्म के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है। इसमें बहुदेववाद, एकेश्वरवाद और सर्वेश्वरवाद का वर्णन किया गया है। इस में परमात्मा को खुश करने के लिए यज्ञों और बलियों का भी वर्णन मिलता है। इसमें यह भी बताया गया है कि संसार की उत्पत्ति कैसे हुई ? आत्मा क्या हैं और ब्रह्म क्या है ? आत्मा और ब्रह्म में क्या संबंध है कर्म और आवागमन सिद्धांत क्या है ? मोक्ष क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? स्वर्ग-नरक क्या हैं ? इन विषयों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. बहुदेववाद (Polytheism)—ऋग्वेद के वर्णन से पता चलता है कि आरंभ में आर्य प्रकृति की शक्तियों को देवता समझ कर उनकी पूजा करते थे। आर्यों ने प्रकृति की हर चमकने वाली, भयानक अथवा सुंदर नज़र आने वाली हर शक्ति को कोई न कोई देवी अथवा देवता समझ लिया। ऋग्वेद के अनुसार आर्य 33 देवताओं की पूजा करते थे। इनको 3 भागों में बाँटा गया था। ये भाग इस प्रकार थे- आकाश के देवता, पृथ्वी के देवता और पृथ्वी तथा आकाश के मध्य निवास करने वाले देवता। इन सभी देवताओं को शक्तिशाली और महान् समझा गया था। कभी एक देवता की स्तुति की जाती और कभी दूसरे की। इस तरह बहुदेववाद का सिद्धांत प्रचलित हुआ।
2. एकेश्वरवाद (Monotheism) वैदिक काल के बहुदेववाद के पीछे सदैव ही एकेश्वरवाद या एक ईश्वर का विचार रहा है। ऋग्वेद में ऐसी कई उदाहरणें मिलती हैं जैसे इंद्र ब्रह्म है, देवताओं का प्राणदाता एक है, ‘सभी देवता एक ही हैं केवल ऋषियों ने उनका विभिन्न रूपों में वर्णन किया है।’ ईश उपनिषद् में कहा गया है, “वह अग्नि है, वही सूर्य है, वो ही वायु है, वो ही चंद्रमा है, वो ही शुक्र है, वो ही ब्रह्म है, वो ही जल है और वो ही प्रजापति है।” “ज्योतियों की ज्योति एक है।” इन उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि आर्य एक सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास रखते थे।
3. सर्वेश्वरवाद (Henotheism)—यद्यपि आर्य लोग अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे परंतु उनमें से किसी को बड़ा या छोटा नहीं समझा जाता था। सभी को एक दूसरे से बढ़कर माना जाता था और आर्य लोग सभी देवताओं की प्रशंसा करते थे। जिस क्षेत्र से संबंधित जो देवता होता था, उसको उस क्षेत्र का प्रधान माना जाता था। ऋग्वेद के एक सूक्त में कहा गया है, “हे देवताओ आप में से कोई छोटा नहीं है, आप में से कोई छोटा बच्चा नहीं है। आप सभी महान् हैं।” इस तरह आर्यों के लिए उनके सभी देवता बराबर थे।
4. यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)—वैदिक काल में आर्य अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे। इन यज्ञों को बहुत विधिपूर्वक किया जाता था ताकि किसी छोटी-सी गलती के कारण देवता नाराज़ न हो जायें। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी। इस अग्नि में घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों जैसे बकरी, भेड़ और घोड़ों आदि की बलि भी दी जाती थी। छोटे यज्ञ पारिवारिक स्तर के होते थे जबकि बड़े यज्ञ अमीर लोगों के द्वारा करवाये जाते थे। उत्तर वैदिक काल में यह यज्ञ अधिक जटिल हो गये थे। इन यज्ञों को करवाने के पीछे युद्ध में विजय, धन की प्राप्ति, संतान की प्राप्ति और सुखी जीवन मिलने की आशा की जाती थी। डॉक्टर एस० आर० गोयल के अनुसार,
“वैदिक धर्म को निश्चित तौर पर यज्ञ तथा बलियों का एक धर्म समझा जाता था। पूजा करने वाला प्रार्थनाओं के उच्चारण से कुछ भेंटें देता था और देवता से इसके बदले में किसी वरदान की आशा करता था।”4
5. संसार की उत्पत्ति कैसे हुई ? (How was World Created ?)-संसार की उत्पत्ति कैसे हुई ? इस से संबंधित हमें ऋग्वेद के नासदिया सूक्त से जानकारी प्राप्त होती है। इसमें यह बताया गया है कि संसार की उत्पत्ति से पहले अकेला ईश्वर ही था। उसके बिना चारों तरफ अंधकार था। जब उस ईश्वर के मन में आया तो उसने संसार की रचना कर दी । उसने न केवल मनुष्य, पशु, पक्षी आदि बनाये बल्कि सूर्य, चाँद, तारों, पहाड़ों, समुद्रों, नदियों तथा फूलों आदि की भी रचना की । उपनिषदों में भी यह वर्णन बार-बार आता है कि ब्रह्म ने सारे ब्रह्माण्ड की रचना की।
6. आत्मा क्या है (What is Self)-आर्य आत्मा में विश्वास रखते थे। उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है। यह सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। सभी जीवों में जो चेतन शक्ति है वो ही आत्मा है। इसी कारण इस को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। यह ब्रह्म अथवा ईश्वर है। यही जीव रूप धारण करके सबके हृदयों में निवास करती है। आत्मा अमर है। यह एक शरीर से दूसरे शरीर में तब तक प्रवेश करती रहती है जब तक यह कर्मों के बंधन से मुक्त न हो जाये। ऐसा होने पर यह ब्रह्म में लीन हो जाती है । इस तरह आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं रह जाता।
7. ब्रह्म क्या है ? (What is Absolute ?)-उपनिषदों में ब्रह्म पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। ब्रह्म एक तत्त्व है जिस से इस संसार की उत्पत्ति हुई है। वह असीम शक्तियों का स्वामी है। वह जो चाहे कर सकता है। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। वह सभी ज्योतियों की ज्योति है। वह सत्य मन और आनंद रूप है। वह संपूर्ण
ज्ञान का भंडार है। शब्दों में उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। वह अमर है। ब्रह्म को आत्म रूप माना जाता है। इसी कारण ब्रह्म और आत्मा में कोई मूल भेद नहीं रह जाता।
8. पितरों की पूजा (Worship of Forefathers)-ऋग्वेद में पितरों की पूजा का वर्णन मिलता है। पितर स्वर्गों में निवास करते थे। यह आर्यों के आरंभिक बुजुर्ग थे। उनकी पूजा भी देवताओं के समान की जाती थी। ऋग्वेद में बहुत सारे मंत्र उनकी स्तुति में दिये गये हैं। पितरों की पूजा इस आशा से की जाती थी कि वे अपने वंश की रक्षा करेंगे, उनके दुःख, मुसीबतों को दूर करेंगे, उनको धन, शक्ति, लंबी आयु तथा संतान देंगे। समय के साथसाथ आर्यों की पितर पूजा के प्रति आस्था में वृद्धि होती गई।
9. ऋत और धर्मन (Rita and Dharman)—ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में ऋत और धर्मन शब्दों का अनेक बार वर्णन आया है। ऋत से भाव है वह व्यवस्था जिस के अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। ऋत के नियमानुसार ही सुबह पौ फूटती है। सूर्य चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है। वह अंधेरे को दूर करके प्रकाश देती है। इस तरह ऋत एक सच्चाई है। इस का उल्ट अनऋत (झूठ) है। उपनिषदों के समय धर्म शब्द ने ऋत का स्थान ल लिया। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून से है। ये देवताओं द्वारा बनाये जाते थे। ये भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होते थे। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।
10. कर्म और आवागमन (Karma and Transmigration)-वैदिक साहित्य में इस बात का बार-बार वर्णन आया है कि मनुष्य अपनी किस्मत का स्वयं ही निर्माता है। जैसे वह कर्म करेगा वैसा ही उसको फल प्राप्त होगा। यदि उसके कर्म अच्छे होंगे तो वह आवागमन के चक्करों से छुटकारा प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त कर लेगा। यदि उसके कर्म बुरे हैं वह सदा ही दुःखी रहेगा और किसी भी स्थिति में आवागमन से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। कर्म मनुष्य का साथ उस तरह नहीं छोड़ते जैसे कि उसकी परछाईं।
11. मोक्ष (Moksha)-मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। अविद्या अथवा अज्ञानता के कारण मनुष्य संसार के सुखों को प्राप्त करने के पीछे अपना सारा जीवन लगा देता है। वह एंद्रीय सुख भोग कर और धन प्राप्त करके यह समझता है कि उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया है। वह यह भूल जाता है कि सभी सुख क्षण-भंगुर हैं। इन कारणों के लिए वह कभी भवसागर से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। जब मनुष्य का अज्ञान दूर हो जाता है तो उसके सभी-शक अपने आप दूर हो जाते हैं। वह सब कुछ जान लेता है और संसार के बंधनों से छूट जाता है। यह मोक्ष की स्थिति है। आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है और हमेशा का सुख प्राप्त करती है।
12. स्वर्ग और नरक में विश्वास (Faith in Heaven and Hell)—वैदिक साहित्य में इस बात का वर्णन मिलता है कि आर्य स्वर्ग और नरक में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार जो व्यक्ति अपना जीवन नैतिक नियमों के अनुसार व्यतीत करता है, दान देता है और कभी किसी को कोई दुःख तकलीफ नहीं देता, वह मौत के बाद स्वर्ग में निवास करता है। यह वो स्थान है जहाँ देवताओं का वास है। यहाँ सदा ही खुशी रहती है। दूसरी ओर पापी और अधर्मी व्यक्ति मौत के बाद नरक में जाते हैं। पुराणों आदि में नरक में मिलने वाले घोर दुःखों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
13. पुरुष सूक्त (Purusha-Sukta)-पुरुष सूक्त का वर्णन ऋग्वेद के दसवें अध्याय में किया गया है। इसके अनुसार ब्रह्मा ने अपने मुख से ब्राह्मणों को, बाजुओं से क्षत्रियों को, जाँघ से वैश्यों को और पाँवों से शूद्रों को पैदा किया। इस से कई इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया है कि ऋग्वैदिकं काल में जाति प्रथा प्रचलित हो गई थी। परंतु इस के संबंध में ऋग्वेद में कहीं और कोई वर्णन नहीं मिलता। यह कहा जाता है कि पुरुष सूक्त की रचना भी ऋग्वेद से कई सौ वर्ष बाद की गई थी। इसकी भाषा ऋग्वेद से भिन्न है। पुरुष सूक्त से यह स्पष्ट होता है कि उस समय चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र दुनिया में आ चुके थे। ब्राह्मण पुरोहित, क्षत्रिय युद्ध, वैश्य खेतीबाड़ी और व्यापार तथा शूद्र उपरोक्त तीन वर्गों की सेवा का कार्य करते थे।
4. “Vedic religion was essentially a religion of yaznas or sacrifices. The worshipper offered some oblations to god with the chanting of prayers and expected that god would grant him desired boon in return.” Dr. S. R. Goyal, A Religious History of Ancient India (Meerut : 1984) Vol. 1, p. 72.
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ऋग्वेद के प्रमुख लक्षणों का संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण बयान कीजिए। (Describe in brief but meaningful the salient features of Rigveda.)
अथवा
ऋग्वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के महत्त्व के बारे में चर्चा कीजिए। (Discuss the importance of Rigveda in the Rigvedic literature.)
उत्तर-
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण वेद है। इसकी रचना 1500-1000 ई० पू० के मध्य हुई। इसमें 1028 सूक्त हैं जिनको 10 मंडलों (अध्यायों) में बाँटा गया है। प्रत्येक सूक्त में अनेक मंत्र हैं। ऋग्वेद में कुल 10,552 मंत्र हैं। इन मंत्रों में देवी-देवताओं की स्तुति की गई है। ऋग्वेद में सर्वाधिक मंत्र इंद्र देवता की प्रशंसा में दिए गए हैं। इनकी संख्या 250 हैं। भारतीय दर्शन को जानने के लिए ऋग्वेद का अध्ययन आवश्यक है।
प्रश्न 2.
सामवेद के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the Samaveda ?)
उत्तर-
साम शब्द से भात्र सुरीले गीत से है। इस कारण सामवेद को सुरीले गीतों का एक संग्रह माना जाता है। इसमें कुल 1875 मंत्र हैं। इनमें से केवल 75 मंत्र नये हैं और बाकी के सभी मंत्र ऋग्वेद में से लिए गये हैं। इन मंत्रों को यज्ञ के समय सुरताल में गाया जाता था। जो पुरोहित इन मंत्रों को गाते थे उनको उद्गात्री कहा जाता था। निस्संदेह सामवेद को भारतीय संगीत कला का पहला और अमूल्य स्रोत कहा जा सकता है।
प्रश्न 3.
यजुर्वेद के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिए। (Give a brief account of the Yajurveda.)
उत्तर-
यजुर से भाव है यज्ञ तथा यजुर्वेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है। इस में कुल 2086 मंत्र दिये गये हैं। यजुर्वेद का कुछ भाग गद्य है और कुछ भाग कविता के रूप में है। इस वेद का उद्देश्य यज्ञों से संबंधित विधियों को बताना था। जो पुजारी यज्ञों के कार्यों में सहायता करते थे उनको “अध्वरयु” कहते थे। यज्ञों द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जाता था ताकि वे अपने श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करें। इसलिए इस वेद को कर्मकांड प्रधान वेद कहा जाता है।
प्रश्न 4.
अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Atharvaveda.)
अथवा
अथर्ववेद के बारे में आप क्या जानते हैं ? उल्लेख करें। (What do you know about Atharvaveda ? Explain.)
उत्तर-
अथर्ववेद की रचना सब से बाद में हुई। अथर्ववेद वास्तव में जादू-टोनों के मंत्रों का संग्रह है। इस में भूतों और चुडैलों की शक्तियों और उनको वश में करने के तरीके बताये गये हैं। इस से पता लगता है कि आर्यों के धार्मिक जीवन में पहले से बहुत तबदीली आ गई थी। इन के अतिरिक्त इस वेद में अनेकों बीमारियों के उपचार का भी वर्णन किया गया है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता था क्योंकि यह वेद ब्राह्मण पुजारियों के लिए लिखा गया था।
प्रश्न 5.
दर्शन के षट शास्त्र क्या हैं एवं इनका क्या महत्त्व है ? (What is the importance of the Six Shastras of Philosophy ?)
अथवा
खट दर्शन के महत्त्व के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the importance of Khat Darshan.)
उत्तर-
उत्तर वैदिक काल में अलग-अलग ऋषियों ने भारतीय दर्शन से संबंधित 6 शास्त्र लिखे। इनके नाम ये हैं—
- कपिल का सांख्य शास्त्र,
- पतंजलि का योग शास्त्र,
- गौतम का न्याय शास्त्र
- कणाद का वैशेषिक शास्त्र,
- जैमिनी का पूर्व मीमांसा और
- व्यास का उत्तर मीमांसा।
इनमें ऋषियों ने आत्मा-परमात्मा और जीवन-मृत्यु से संबंधित अलग-अलग पहलुओं पर भरपूर प्रकाश डाला है। वास्तव में यह शास्त्र एक ऐसे दर्पण की तरह है जिसमें भारतीय दर्शन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।
प्रश्न 6.
महाकाव्य से क्या अभिप्राय है एवं इनका क्या महत्त्व है ? (What do you mean by Epics and their importance ?)
उत्तर-
रामायण और महाभारत उत्तर वैदिक काल के दो प्रसिद्ध महाकाव्य हैं। रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि जी ने की थी। इस में 24,000 श्लोक हैं। रामायण का मुख्य विषय श्री रामचंद्र और रावण के मध्य युद्ध है। महाभारत भारत का सब से बड़ा महाकाव्य है। इस की रचना ऋषि वेद व्यास ने की थी। इस में 1.00.000 से अधिक श्लोक दिये गये हैं। भगवद् गीता, महाभारत का ही एक हिस्सा है। महाभारत का मुख्य विषय पाँडवों और कौरवों के मध्य युद्ध है। ये दोनों महाकाव्य उस समय के लोगों की धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति पर भरपूर प्रकाश डालते हैं।
प्रश्न 7.
वैदिक साहित्य की महत्ता के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the importance of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य का क्या महत्त्व है ? (What is importance of the Vedic Literature ?)
अथवा
वैदिक साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ बताओ। (Describe the prominent features of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के प्रमुख लक्षणों के बारे में बताओ। (Describe the salient features of Vedic Literature.)
उत्तर-
वैदिक साहित्य को भारतीय इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। इस को हिंदू धर्म की जान कहा जा सकता है। इस का कारण यह है कि इस साहित्य में हिंदू दर्शन के मूल सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। संसार की रचना कैसे हुई ? आत्मा क्या है? उसका परमात्मा के साथ क्या संबंध है ? मोक्ष क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? कर्म क्या है? ज्ञान क्या है? मनुष्य अवगुणों के चक्रों में क्यों भटकता रहता है ? ये कुछ ऐसे रहस्यवादी प्रश्न हैं जिनका उत्तर वैदिक साहित्य में बहुत स्पष्ट शब्दों में दिया गया है।
प्रश्न 8.
वैदिक साहित्य के किन्हीं दो विषयों के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the two subjects of Vedic Literature.)
उत्तर-
- सर्वेश्वरवाद-यद्यपि आर्य लोग अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे परंतु उनमें से किसी को बड़ा या छोटा नहीं समझा जाता था। सभी को एक दूसरे से बढ़कर माना जाता था और आर्य लोग सभी देवताओं की प्रशंसा करते थे। जिस क्षेत्र से संबंधित जो देवता होता था, उसको उस क्षेत्र का प्रधान माना जाता था।
- यज्ञ और बलियाँ-वैदिक काल में आर्य अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे। इन यज्ञों को बहत विधिपूर्वक किया जाता था। उत्तर वैदिक काल में यज्ञ जटिल हो गये थे। इन यज्ञों को करवाने के पीछे युद्ध में विजय, धन की प्राप्ति, संतान की प्राप्ति और सुखी जीवन मिलने की आशा की जाती थी।
प्रश्न 9.
वैदिक साहित्य के अनुसार आत्मा एवं ब्रह्म से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Self and Absolute according to Vedic Literature ?)
उत्तर-
- आत्मा क्या है ?-आर्य आत्मा में विश्वास रखते थे। उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है। यह सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। सभी जीवों में जो चेतन शक्ति है वो ही आत्मा है। इसी कारण इस को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। यह ब्रह्म अथवा ईश्वर है। यही जीव रूप धारण करके सबके हृदयों में निवास करती है। आत्मा अमर है।
- ब्रह्म क्या है?- ब्रह्म एक तत्त्व है जिस से इस संसार की उत्पत्ति हुई है। वह असीम शक्तियों का स्वामी है। वह जो चाहे कर सकता है। वह सभी ज्योतियों की ज्योति है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। वह अमर है। ब्रह्म को आत्म रूप माना जाता है।
प्रश्न 10.
ऋत और धर्मन से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you meant by Rita and Dharman ?)
उत्तर-
ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में ऋत और धर्मन शब्दों का अनेक बार वर्णन आया है। ऋत से भाव है वह व्यवस्था जिस के अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। ऋत के नियमानुसार ही सुबह पौ फूटती है। सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है। वह अंधेरे को दूर करेके प्रकाश देती है। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून से है। ये देवताओं द्वारा बनाये जाते थे। ये भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होते थे।
प्रश्न 11.
वैदिक साहित्य के अनुसार मोक्ष से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Moksha according to Vedic Literature ?)
उत्तर-
वैदिक साहित्य के अनुसार मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। अविद्या अथवा अज्ञानता के कारण मनुष्य संसार के सुखों को प्राप्त करने के पीछे अपना सारा जीवन लगा देता है। जब मनुष्य का अज्ञान दूर हो जाता है तो उसके सभी शक अपने आप दूर हो जाते हैं। वह सब कुछ जान लेता है और संसार के बंधनों से छूट जाता है। यह मोक्ष की स्थिति है। आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है और हमेशा का सुख प्राप्त करती
प्रश्न 12.
पुरुष सूक्त के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Purusha-Sukta ?)
उत्तर-
पुरुष सूक्त का वर्णन ऋग्वेद के दसवें अध्याय में किया गया है। इसके अनुसार ब्रह्मा ने अपने मुख से ब्राह्मणों को, बाजुओं से क्षत्रियों को, जांघ से वैश्यों को और पाँवों से शूद्रों को पैदा किया। पुरुष सूक्त से यह स्पष्ट होता है कि उस समय चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र दुनिया में आ चुके थे। ब्राह्मण पुरोहित, क्षत्रिय युद्ध, वैश्य खेतीबाड़ी और व्यापार तथा शूद्र उपरोक्त तीन वर्गों की सेवा का कार्य करते थे।
प्रश्न 13.
ऋग्वेद के प्रमुख लक्षणों का संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण बयान कीजिए। (Describe in brief but meaningful the salient features of Rigveda.)
अथवा
ऋग्वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के महत्त्व के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the importance of Rigveda in the Rigvedic literature.)
उत्तर-
ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण वेद है। इसकी रचना 1500-1000 ई० पू० के मध्य हुई। यह वह समय था जब आर्य पंजाब में रहते थे। ऋग्वेद एक विशाल ग्रंथ है। इसमें 1028 सूक्त हैं। प्रत्येक सूक्त में अनेक मंत्र हैं। ऋग्वेद में कुल 10,552 मंत्र हैं। इन्हें दस मंडलों (अध्यायों) में विभाजित किया गया है। इनमें कुछ मंडल छोटे हैं तथा कुछ बड़े। ऋग्वेद में सर्वाधिक 250 मंत्र इंद्र देवता की तथा 200 मंत्र अग्नि देवता की प्रशंसा में दिए गए हैं। शेष मंत्र वरुण, सूर्य, ऊषा, सरस्वती तथा अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। ये सभी देवी-देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक हैं। इनकी उपासना युद्ध में विजय के लिए, धन की प्राप्ति के लिए, सुखमय तथा लंबे जीवन के लिए तथा संतान प्राप्ति के लिए की जाती थी। ऋग्वेद में विख्यात गायत्री मंत्र भी दिया गया है जिसे हिंदू आज भी प्रतिदिन पढ़ते हैं। ऋग्वेद की रचना का मुख्य उद्देश्य यद्यपि धार्मिक था किंतु ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्त्व है। यह वैदिक काल के लोगों के जीवन को जानने का हमारा एकमात्र तथा बहुमूल्य स्रोत है। भारतीय दर्शन को जानने के लिए ऋग्वेद का अध्ययन आवश्यक है।
प्रश्न 14.
सामवेद के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the Samaveda ?)
उत्तर-
साम शब्द से भाव सुरीले गीत से है। इस कारण सामवेद को सुरीले गीतों का एक संग्रह माना जाता है। इसमें कुल 1875 मंत्र हैं। इनमें से केवल 75 मंत्र नये हैं और बाकी के सभी मंत्र ऋग्वेद में से लिए गये हैं। ये मंत्र दो भागों में बाँटे गये हैं जिन को पूर्वरचिका तथा उत्तररचिका कहते हैं। पूर्वरचिका में 650 मंत्र हैं जबकि उत्तररचिका में 1225 मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों को यज्ञ के समय सुरताल में गाया जाता था। जो पुरोहित इन मंत्रों को गाते थे उनको उद्गात्री कहा जाता था। इन मंत्रों को सात स्वरों में गाया जाता था। इन मंत्रों को गाते समय तीन प्रकार के वाद्यों वेणु, दुंदुभि और वीणा का प्रयोग किया जाता था। निस्संदेह सामवेद को भारतीय संगीत कला का पहला और अमूल्य स्रोत कहा जा सकता है।
प्रश्न 15.
यजुर्वेद के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिए। (Give a brief account of the Yajurveda.)
उत्तर-
यजुर से भाव है यज्ञ तथा यजुर्वेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है। इस में कुल 2086 मंत्र दिये गये हैं। ये मंत्र 40 अध्यायों में बाँटे गये हैं। यजुर्वेद का कुछ भाग गद्य है और कुछ भाग कविता के रूप में है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस वेद की रचना कुरुक्षेत्र में हुई। इस वेद का उद्देश्य यज्ञों से संबंधित विधियों को बताना था। जो पुजारी यज्ञों के कार्यों में सहायता करते थे उनको “अध्वरयु” कहते थे। यज्ञों द्वारा देवताओं को प्रसन्न किया जाता था ताकि वे अपने श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरा करें। इसलिए इस वेद को कर्मकांड प्रधान वेद कुहा जाता है। इस में दैवी शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधन भी बताये गये हैं। यह वेद दो भागों शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद में बाँटा हुआ है। शुक्ल यजुर्वेद में केवल मंत्रों का वर्णन है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथसाथ उनके अर्थ भी दिये गये हैं। इस वेद से हमें आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन के बारे बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है।
प्रश्न 16.
अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Atharvaveda.)
अथवा
अथर्ववेद के बारे में आप क्या जानते हैं ? उल्लेख करें। (What do you know about Atharvaveda ? Explain.)
उत्तर-
अथर्ववेद की रचना सब से बाद में हुई। इस वेद का नाम अर्थवन ऋषि के नाम से पड़ा। यह ऋषि जादुई शक्तियों का स्वामी था और भूतों-प्रेतों का नाश करने के लिए प्रसिद्ध था। अथर्ववेद वास्तव में जादू-टोनों के मंत्रों का संग्रह है। इस में भूतों और चुडैलों की शक्तियों और उनको वश में करने के तरीके बताये गये हैं। इस से पता लगता है कि आर्यों के धार्मिक जीवन में पहले से बहुत तबदीली आ गई थी। इन के अतिरिक्त इस वेद में अनेकों बीमारियों के उपचार का भी वर्णन किया गया है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता था क्योंकि यह वेद ब्राह्मण पुजारियों के लिए लिखा गया था। वे अग्नि की सहायता में मनुष्यों को भूतों-प्रेतों से बचा कर उनकी सहायता करते थे। अथर्ववेद में कुल 731 सूक्त और लगभग 6000 मंत्र हैं। इन मंत्रों में से लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद में से लिये गये हैं। यह वेद 20 अध्यायों में बाँटा गया है। इस का 20वाँ अध्याय सब से बड़ा है जिसमें 928 मंत्रों का वर्णन है।
प्रश्न 17.
दर्शन के षट शास्त्र क्या हैं एवं इनका क्या महत्त्व है ? (What is the importance of the Six Shastras of Philosophy ?)
अथवा
खट दर्शन के महत्त्व के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the importance of Khat Darshan.)
उत्तर-
उत्तर वैदिक काल में अलग-अलग ऋषियों ने भारतीय दर्शन से संबंधित 6 शास्त्र लिखे। इनके नाम ये हैं—
- कपिल का सांख्य शास्त्र,
- पतंजलि का योग शास्त्र,
- गौतम का न्याय शास्त्र
- कणाद का वैशेषिक शास्त्र,
- जैमिनी का पूर्व मीमांसा और
- व्यास का उत्तर मीमांसा।
इनमें ऋषियों ने आत्मा-परमात्मा और जीवनमृत्यु से संबंधित अलग-अलग पहलुओं पर भरपूर प्रकाश डाला है। वास्तव में यह शास्त्र एक ऐसे दर्पण की तरह है जिसमें भारतीय दर्शन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।
प्रश्न 18.
महाकाव्य से क्या अभिप्राय है एवं इनका क्या महत्त्व है ? (What do you mean by Epics and their importance ?)”
उत्तर-
रामायण और महाभारत उत्तर वैदिक काल के दो प्रसिद्ध महाकाव्य हैं । रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि जी ने की थी। इस में 24,000 श्लोक हैं। रामायण का मुख्य विषय श्री रामचंद्र और रावण के मध्य युद्ध है । महाभारत भारत का सब से बड़ा महाकाव्य है। इस की रचना ऋषि वेद व्यास ने की थी। इस में.1,00,000 से अधिक श्लोक दिये गये हैं। भगवद् गीता, महाभारत का ही एक हिस्सा है। महाभारत का मुख्य विषय पाँडवों और कौरवों के मध्य युद्ध है। ये दोनों महाकाव्य उस समय के लोगों की धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति पर भरपूर प्रकाश डालते हैं। इनमें कुछ काल्पनिक घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसके बावजूद ऐतिहासिक पक्ष से इन दोनों महाकाव्यों का विशेष महत्त्व है।
प्रश्न 19.
वैदिक साहित्य के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य की महत्ता के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the importance of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य का क्या महत्त्व है ?
(What is importance of the Vedic Literature ?)
अथवा
वैदिक साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ बताओ।
(Describe the prominent features of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के प्रमुख लक्षणों के बारे में बताओ।
(Describe the salient features of Vedic Literature.)
उत्तर-
वैदिक साहित्य को भारतीय इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। इस को हिंदू धर्म की जान कहा जा सकता है। इस का कारण यह है कि इस साहित्य में हिंदू दर्शन के मूल सिद्धांतों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। संसार की रचना कैसे हुई ? आत्मा क्या है ? उसका परमात्मा के साथ क्या संबंध है ? मोक्ष क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? कर्म क्या है ? ज्ञान क्या है ? मनुष्य अवगुणों के चक्रों में क्यों भटकता रहता है ? ये कुछ ऐसे रहस्यवादी प्रश्न हैं जिनका उत्तर वैदिक साहित्य में बहुत स्पष्ट शब्दों में दिया गया है। इस तरह वैदिक साहित्य हिंदू धर्म को जानने के लिए प्रकाश स्तंभ का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त यह साहित्य आर्यों के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन को जानने के लिए भी हमारा एक बहुमूल्य स्रोत है। संक्षेप में वैदिक साहित्य भारतीय संस्कृति को समझने के लिए एक दर्पण का कार्य करता है। आधुनिक काल में यह न केवल भारतीय बल्कि विदेशी लेखकों और विद्वानों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र है। निस्संदेह यह हमारे लिए एक बहुत ही गर्व की बात है।
प्रश्न 20.
वेदों की संख्या और इनके रचयिता के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the number of Vedas and their author.)
अथवा
वैदिक साहित्य के किसी पाँच प्रमुख विषयों के बारे में वर्णन करो।
(Give a brief account of the main five subjects of the Vedic Literature.)
अथवा
वेदों में क्या दर्शाया गया है ? स्पष्ट करें।
(What has been described in Vedas ? Explain.)
अथवा
वैदिक साहित्य के किसी एक विषय के बारे में संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the one subject of Vedic Literature.)
अथवा
वैदिक साहित्य के विषय-वस्तु के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the subject matter of Vedic Literature.)
उत्तर-
- वेदों की संख्या-वेदों की संख्या चार है। इनके नाम हैं- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
- विषय-वस्तु-वेदों के मुख्य विषय निम्नलिखित हैं—
- सर्वेश्वरवाद-यद्यपि आर्य लोग अनेक देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे परंतु उनमें से किसी को बड़ा या छोटा नहीं समझा जाता था। सभी को एक दूसरे से बढ़कर माना जाता था और आर्य लोग सभी देवताओं की प्रशंसा करते थे। जिस क्षेत्र से संबंधित जो देवता होता था, उसको उस क्षेत्र का प्रधान माना जाता था।
- यज्ञ और बलियाँ-वैदिक काल में आर्य अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे। इन यज्ञों को बहुत विधिपूर्वक किया जाता था। छोटे यज्ञ पारिवारिक स्तर के होते थे जबकि बड़े यज्ञ अमीर लोगों के द्वारा करवाये जाते थे। उत्तर वैदिक काल में यह यज्ञ जटिल हो गये थे। इन यज्ञों को करवाने के पीछे युद्ध में विजय, धन की प्राप्ति, संतान की प्राप्ति और सुखी जीवन मिलने की आशा की जाती थी।
- संसार की उत्पत्ति कैसे हुई-संसार की उत्पत्ति कैसे हुई? इस से संबंधित हमें ऋग्वेद के नासदिया सूक्त से जानकारी प्राप्त होती है। इसमें यह बताया गया है कि संसार की उत्पत्ति से पहले अकेला ईश्वर ही था। उसके बिना चारों तरफ अंधकार था। जब उस ईश्वर के मन में आया तो उसने संसार की रचना कर दी।
- आत्मा क्या है-आर्य आत्मा में विश्वास रखते थे। उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है। यह सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। सभी जीवों में जो चेतन शक्ति है वो ही आत्मा है। इसी कारण इस को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है।
- ब्रह्म क्या है?-उपनिषदों में ब्रह्म पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। ब्रह्म एक तत्त्व है जिस से इस संसार की उत्पत्ति हुई है। वह असीम शक्तियों का स्वामी है। वह जो चाहे कर सकता है। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। वह सभी ज्योतियों की ज्योति है। वह अमर है।
प्रश्न 21.
वैदिक साहित्य के अनुसार आत्मा एवं ब्रह्म से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Self and Absolute according to Vedic Literature ?)
उत्तर-
1. आत्मा क्या है ?-आर्य आत्मा में विश्वास रखते थे। उपनिषदों में आत्मा शब्द का बहुत अधिक प्रयोग किया गया है। यह सर्वव्यापक चेतन तत्त्व है। सभी जीवों में जो चेतन शक्ति है वो ही आत्मा है। इसी कारण इस को सभी ज्योतियों की ज्योति माना जाता है। यह ब्रह्म अथवा ईश्वर है। यही जीव रूप धारण करके सबके हृदयों में निवास करती है। आत्मा अमर है। यह एक शरीर से दूसरे शरीर में तब तक प्रवेश करती रहती है जब तक यह कर्मों के बंधन से मुक्त न हो जाये। ऐसा होने पर यह ब्रह्म में लीन हो जाती है। इस तरह आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं रह जाता।
2. ब्रह्म क्या है ?-उपनिषदों में ब्रह्म पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। ब्रह्म एक तत्त्व है जिस से इस संसार की उत्पत्ति हुई है। वह असीम शक्तियों का स्वामी है। वह जो चाहे कर सकता है । वह निर्गुण भी है और सगुण भी। वह सभी ज्योतियों की ज्योति है। वह सत्य मन और आनंद रूप है। वह संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। शब्दों में उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। वह अमर है। ब्रह्म को आत्म रूप माना जाता है। इसी कारण ब्रह्म और आत्मा में कोई मूल भेद नहीं रह जाता।
प्रश्न 22.
रित और धर्मन से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you meant by Rita and Dharman ?)
उत्तर-
ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का अनेक बार वर्णन आया है। रित से भाव है वह व्यवस्था जिस के अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। ऋत के नियमानुसार ही सुबह पौ फूटती है। सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है। वह अंधेरे को दूर करके प्रकाश देती है। इस तरह रित एक सच्चाई है। इस का उल्ट अनऋत (झूठ) है। उपनिषदों के समय धर्म शब्द ने रित का स्थान ले लिया। धर्मन’ शब्द से भाव कानून से है। ये देवताओं द्वारा बनाये जाते थे। ये भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होते थे। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।
प्रश्न 23.
वैदिक साहित्य के अनुसार मोक्ष से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Moksha according to Vedic Literature ?)
उत्तर-
वैदिक साहित्य के अनुसार मोक्ष प्राप्ति मनुष्य के जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। अविद्या अथवा अज्ञानता के कारण मनुष्य संसार के सुखों को प्राप्त करने के पीछे अपना सारा जीवन लगा देता है। वह एंद्रीय सुख भोग कर और धन प्राप्त करके यह समझता है कि उसने सब कुछ प्राप्त कर लिया है। वह यह भूल जाता है कि सभी सुख क्षण-भंगुर हैं। इन कारणों के लिए वह कभी भवसागर से छुटकारा प्राप्त नहीं कर सकता। जब मनुष्य का अज्ञान दूर हो जाता है तो उसके सभी शक अपने आप दूर हो जाते हैं। वह सब कुछ जान लेता है और संसार के बंधनों से छूट जाता है। यह मोक्ष की स्थिति है। आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है और हमेशा का सुख प्राप्त करती है।
प्रश्न 24.
पुरुष सूक्त के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Purusha-Sukta ?)
उत्तर-
पुरुष सूक्त का वर्णन ऋग्वेद के दसवें अध्याय में किया गया है। इसके अनुसार ब्रह्मा ने अपने मुख से ब्राह्मणों को, बाजुओं से क्षत्रियों को, जांघ से वैश्यों को और पाँवों से शूद्रों को पैदा किया। इस से कई इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया है कि ऋग्वैदिक काल में जाति प्रथा प्रचलित हो गई थी। परंतु इस के संबंध में ऋग्वेद में कहीं और कोई वर्णन नहीं मिलता। यह कहा जाता है कि पुरुष सूक्त की रचना भी ऋग्वेद से कई सौ वर्ष बाद की गई थी। इसकी भाषा ऋग्वेद से भिन्न है। पुरुष सूक्त से यह स्पष्ट होता है कि उस समय चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र दुनिया में आ चुके थे। ब्राह्मण पुरोहित, क्षत्रिय युद्ध, वैश्य खेतीबाड़ी और व्यापार तथा शूद्र उपरोक्त तीन वर्गों की सेवा का कार्य करते थे।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. वैदिक साहित्य से क्या भाव है ?
उत्तर- वैदिक साहित्य से भाव उस साहित्य से है जिसकी रचना आर्यों द्वारा की गई थी।
प्रश्न 2. वैदिक साहित्य की रचना किस भाषा में की गई है?
उत्तर-संस्कृत भाषा में।
प्रश्न 3. वैदिक साहित्य को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर-दो भागों में।
प्रश्न 4. वेदों का रचना काल बताएँ।
उत्तर-1500-600 ई० पू०
प्रश्न 5. वेदों की रचना किसने की ?
अथवा
वेदों का रचियता किसे माना जाता है ?
अथवा
हिंदू धर्म के अनुसार वेदों का रचयिता कौन है ?
उत्तर-वेदों की रचना ईश्वर के कहने पर ऋषियों ने की।
प्रश्न 6. श्रुति से क्या भाव है ?
उत्तर-श्रुति से भाव उस वैदिक साहित्य से है, जिसकी रचना ईश्वर के बताने पर ऋषियों द्वारा की गई।
प्रश्न 7. स्मृति से क्या भाव है ?
उत्तर-स्मृति से भाव उस वैदिक साहित्य से है, जिसकी रचना ईश्वर के बताने ऋषियों ने अपने ज्ञान द्वारा की।
प्रश्न 8. वेद से क्या भाव है ?
उत्तर-वेद से भाव है ज्ञान का भंडार।
प्रश्न 9. वेद शब्द किस भाषा से तथा कैसे बना ?
उत्तर-वेद शब्द संस्कृत भाषा के शब्द विद् से बना है, जिसका भाव है जानना।
प्रश्न 10. कुल कितने वेद हैं ?
उत्तर-कुल चार वेद हैं।
प्रश्न 11. चार वेदों की बाँट किसने की थी ?
उत्तर-चार वेदों की बाँट ऋषि वेद व्यास ने की थी।
प्रश्न 12. चार वेदों के नाम बताएँ।
अथवा
किन्हीं दो वेदों के नाम बताएँ।
उत्तर-चार वेदों के नाम ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद है।
प्रश्न 13. वेदों के नाम व संख्या बताएँ।
उत्तर-वेदों के नाम ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद थे और इनकी संख्या चार है।
प्रश्न 14. भारत का सबसे प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण वेद कौन-सा है ?
अथवा
सबसे पुराना वेद कौन-सा माना जाता है ?
उत्तर-ऋग्वेद।
प्रश्न 15. ऋग्वेद का रचना काल क्या है ?
उत्तर-1500-1000 ई० पूर्व।
प्रश्न 16. ऋग्वेद में कुल कितने सूक्त दिए गए हैं ?
उत्तर-1028 सूकत।
प्रश्न 17. ऋग्वेद को कुल कितने मंडलों में बाँटा गया है ?
उत्तर-10 मंडलों में।
प्रश्न 18. ऋग्वेद में कुल कितने भजन हैं ?
अथवा
ऋग्वेद में कुल मंत्रों की संख्या बताएँ।
उत्तर-ऋग्वेद में कुल मंत्रों की संख्या 10,552 हैं।
प्रश्न 19. ऋग्वेद में सर्वाधिक मंत्र किस देवता की प्रशंसा में दिए गए हैं ?
उत्तर-इंद्र देवता की।
प्रश्न 20. ऋग्वेद में इंद्र देवता की प्रशंसा में कुल कितने मंत्र दिये गए हैं ?
उत्तर–250 मंत्र।
प्रश्न 21. ऋग्वेद में जिन ऋषियों के मंत्र दिए गए हैं, उनमें से किन्हीं चार के नाम लिखें।
अथवा
ऋग्वेद में मंत्र लिखने वाले किन्हीं चार ऋषियों के नाम लिखें।
उत्तर-
- वामदेव
- विश्वामित्र
- भारद्वाज
- अत्री।
प्रश्न 22. ऋग्वेद में जिन स्त्रियों ने मंत्र लिखें हैं उनमें से किन्हीं दो के नाम बताएँ।
अथवा
ऋग्वेद में मंत्र लिखने वाली किन्हीं दो स्त्रियों के नाम लिखें।
उत्तर-
- अपाला
- घोषा।
प्रश्न 23. हिंदुओं के प्रसिद्ध गायत्री मंत्र का वर्णन किस वेद में किया गया है ?
उत्तर-ऋग्वेद में।
प्रश्न 24. किस वेद को भारतीय संगीत कला का स्रोत कहा जाता है ?
उत्तर-सामवेद को।
प्रश्न 25. सामवेद में कुल कितने मंत्र दिए गए हैं ?
उत्तर-875 मंत्र।
प्रश्न 26. वेदों में दिए गए मंत्रों को गाने वाले पुरोहितों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-उद्गात्री।
प्रश्न 27. किस वेद में यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्र दिए गए हैं ?
उत्तर-यजुर्वेद में।
प्रश्न 28. यज्ञों के समय बलि देने वाले पुरोहितों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-होतरी।
प्रश्न 29. यजुर्वेद को कौन-से दो भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर-
- शुक्ल यजुर्वेद
- कृष्ण यजुर्वेद ।
प्रश्न 30. किस वेद की रचना सबसे बाद में हुई ?
उत्तर- अथर्ववेद।
प्रश्न 31. अथर्ववेद में कुल कितने सूक्त दिए गए हैं ?
उत्तर-731 सूक्त।
प्रश्न 32. किस वेद में जादू टोनों के मंत्रों का संग्रह है ?
उत्तर-अथर्ववेद।
प्रश्न 33. किन्हीं दो वेदों के नाम बताओ जो त्रिविधिया में शामिल थे ?
उत्तर-
- ऋग्वेद
- सामवेद।
प्रश्न 34. ब्राह्मण ग्रंथों की रचना क्यों की, गई थी ?
उत्तर-वेदों की सरल व्याख्या के लिए।
प्रश्न 35. किन्हीं दो ब्राह्मण ग्रंथों के नाम बताएँ।
उत्तर-
- ऐतरीय ब्राह्मण
- तैत्तरीय ब्राह्मण।
प्रश्न 36. जंगलों में रहने वाले साधुओं के निर्देशों के लिए कौन-से ग्रंथों की रचना की गई थी ?
उत्तर- अरणायक ग्रंथों की।
प्रश्न 37. वेदांग से क्या भाव है ?
उत्तर-वेदों का अंग।
प्रश्न 38. किन्हीं दो वेदांगों के नाम बताएँ।
उत्तर-
- शिक्षा
- कल्प।
प्रश्न 39. आर्यों के धार्मिक रीति-रिवाजों का वर्णन किस वेदांग में दिया गया है ?
उत्तर-कल्प वेदांग में।
प्रश्न 40. किन्हीं दो तरह के सूत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
- स्रोत सूत्र
- ग्रह सूत्र।
प्रश्न 41. उपवेद कितने हैं ?
उत्तर-चार।
प्रश्न 42. किन्हीं दो उपवेदों के नाम लिखो।
उत्तर-
- आयुर्वेद
- धनुर्वेद।
प्रश्न 43. किस वेद में औषधियों का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-आयुर्वेद।
प्रश्न 44. उस वेद का नाम बताओ जिस में युद्ध-कला का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-धनुर्वेद।
प्रश्न 45. गंधर्ववेद में किन विषयों पर प्रकाश डाला गया है ?
उत्तर-संगीत कला के।
प्रश्न 46. योग शास्त्र की रचना किसने की थी ?
उत्तर-पतंजलि।
प्रश्न 47. किन्हीं दो शास्त्रों के नाम लिखें।
उत्तर-
- योग शास्त्र
- न्याय शास्त्र।
प्रश्न 48. भारत के दो प्रसिद्ध महाकाव्य कौन-से है ?
उत्तर-
- रामायण
- महाभारत।
प्रश्न 49. भारत का सबसे बड़ा महाकाव्य कौन-सा है ?
उत्तर-महाभारत।
प्रश्न 50. महाभारत की रचना किसने की थी ?
उत्तर-महर्षि वेद व्यास जी ने।
प्रश्न 51. महाभारत में कितने श्लोक दिए हैं ?
उत्तर-महाभारत में एक लाख से ज्यादा श्लोक दिए गए हैं।
प्रश्न 52. रामायण की रचना किसने की थी ?
उत्तर-महर्षि वाल्मीकि जी ने।
प्रश्न 53. रामायण में कितने श्लोक दिए गए हैं ?
उत्तर-24,000 श्लोक।
प्रश्न 54. वैदिक साहित्य के कोई दो मुख्य विषय बताओ।
उत्तर-
- आत्मा क्या है
- ऋत और धर्मन।
प्रश्न 55. ऋग्वेद के अनुसार आर्यों के देवताओं की कुल गिनती कितनी है ?
उत्तर-33.
प्रश्न 56. ऋग्वेद के किस सूक्त से संसार की उत्पत्ति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ?
उत्तर-ऋग्वेद के नासदिया सूक्त से संसार की उत्पत्ति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
प्रश्न 57. वैदिक साहित के अनुसार मानव जीवन का प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-मोक्ष प्राप्त करना।
प्रश्न 58. ऋग्वेद के किस सूक्त में चार जातियों का वर्णन किया गया है ?
उत्तर-पुरुष सूक्त में।
नोट-रिक्त स्थानों की पूर्ति करें—
प्रश्न 1. वेदों की कुल संख्या ………. है।
उत्तर-चार
प्रश्न 2. ……….. आर्यों का सबसे पुराना और महत्त्वपूर्ण वेद है।
उत्तर-ऋग्वेद
प्रश्न 3. ऋग्वेद में ………… सूक्त हैं।
उत्तर-1028
प्रश्न 4. सामवेद को ………… ग्रंथ भी कहा जाता है।
उत्तर-गायन
प्रश्न 5. …………. में यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्र दिए गए हैं।
उत्तर-यजुर्वेद
प्रश्न 6. …….. में अनेक बीमारियों से बचने के लिए औषधियों का वर्णन किया गया है।
उत्तर-अथर्ववेद
प्रश्न 7. उपनिषदों की कुल संख्या ……….. है।
उत्तर-108
प्रश्न 8. वेदांग से भाव है ……….. के अंग।
उत्तर-वेदों
प्रश्न 9. वेदांगों की कुल संख्या ………… है।
उत्तर-6
प्रश्न 10. ……….. में युद्ध कला का वर्णन किया गया है।
उत्तर-धनुर्वेद
प्रश्न 11. …………. में संगीत संबंधी विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
उत्तर-गधर्व वेद
प्रश्न 12. योग शास्त्र का लेखक ……… था।
उत्तर-पतंजलि
प्रश्न 13. न्याय शास्त्र के लेखक का नाम ……….. था।
उत्तर-गौतम
प्रश्न 14. रामायण की रचना ……….. ने की थी।
उत्तर-महर्षि वाल्मीकि जी
प्रश्न 15. महाभारत की रचना ………… ने की थी।
उत्तर- महर्षि वेद व्यास जी
प्रश्न 16. यज्ञों के समय आहूति देने वाले पुजारियों को …….. कहा जाता है।
उत्तर-होत्री
प्रश्न 17. वैदिक साहित्य ………. भाषा में लिखा गया है।
उत्तर-संस्कृत
प्रश्न 18. पुरुष-सूक्त का वर्णन ……… में किया गया है।
उत्तर–ऋग्वेद
नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा ग़लत चुनें—
प्रश्न 1. ऋग्वैदिक साहित्य को स्मृति भी कहा जाता है।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 2. वेदों की कुल संख्या आठ है।
उत्तर-ग़लत
प्रश्न 3. ऋग्वेद आर्यों का सबसे पुराना और महत्त्वपूर्ण वेद है।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 4. वेदों को पालि भाषा में लिखा गया था।
उत्तर-ग़लत
प्रश्न 5. महर्षि वेद व्यास जी ने वेदों का विभाजन किया था।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 6. ऋग्वेद को 10 मंडलों में बांटा गया है।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 7. ऋग्वेद में सर्वाधिक मंत्र अग्नि देवता की प्रशंसा में दिए गए हैं।
उत्तर-ग़लत
प्रश्न 8. उदगात्री वह पुरोहित थे जो सुर-ताल में मंत्रों का उच्चारण करते थे।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 9. यर्जुवेद यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्रों का ग्रंथ है।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 10. अर्थववेद को ब्रह्मदेव के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 11. ब्राह्मण ग्रंथ उपनिषदों का अंग है।
उत्तर-ग़लत
प्रश्न 12. उपनिषदों की कुल गिनती 108 है।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 13. वेदांगों में कलप वेदांग को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 14. धर्म सूत्र में मौर्य काल में प्रचलित कानूनों और रिवाज़ों का वर्णन किया गया है।
उत्तर-ग़लत
प्रश्न 15. उपवेदों की कुल गिनती चार है।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 16. आर्युवेद में युद्ध कला का वर्णन किया गया है।
उत्तर-ग़लत
प्रश्न 17. कपिल ने सांख्य शास्त्र की रचना की थी।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 18. रामायण की रचना महर्षि बाल्मीकी जी ने की थी।
उत्तर-ठीक
प्रश्न 19. महाभारत में दिए गए श्लोकों की संख्या 24,000 है।
उत्तर-ग़लत
प्रश्न 20. वैदिक साहित्य के अनुसार मानवीय जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है।
उत्तर-ठीक
नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर चुनें—
प्रश्न 1.
वैदिक साहित्य को किस भाषा में लिखा गया है ?
(i) पालि में
(ii) प्राकृति में
(iii) हिंदी में
(iv) संस्कृत में।
उत्तर-
(iv) संस्कृत में।
प्रश्न 2.
वेदों की कुल संख्या कितनी है ?
(i) 4
(ii) 5
(iii) 6
(iv) 18
उत्तर-
(i) 4
प्रश्न 3.
वेदों का विभाजन किस ऋषि ने किया था ?
(i) वेद व्यास
(ii) विशिष्ठ
(iii) विश्वामित्र
(iv) गौतम।
उत्तर-
(i) वेद व्यास
प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा वेद सबसे पुराना और महत्त्वपूर्ण है ?
(i) ऋग्वेद
(ii) सामवेद
(iii) यर्जुवेद
(iv) अथर्ववेद।
उत्तर-
(i) ऋग्वेद
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सा वेद नहीं है ?
(i) गंधर्ववेद
(ii) सामवेद
(iii) यर्जुवेद
(iv) अथर्ववेद।
उत्तर-
(i) गंधर्ववेद
प्रश्न 6.
ऋग्वेद में कितने सूक्त दिए गए हैं ?
(i) 1028
(ii) 1873
(iii) 731
(iv) 10,552
उत्तर-
(i) 1028
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा वेद त्रिविधा में शामिल नहीं है ?
(i) अथर्ववेद
(ii) यर्जुवेद
(iii) ऋग्वेद
(iv) सामवेद।
उत्तर-
(i) अथर्ववेद
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से किस वेद में यज्ञों के समय पढ़े जाने वाले मंत्र दिए गए हैं ?
(i) ऋग्वेद
(ii) सामवेद
(iii) यर्जुवेद
(iv) अथर्ववेद।
उत्तर-
(iii) यर्जुवेद
प्रश्न 9.
आरण्यक ग्रंथ किन ग्रंथों का भाग है ?
(i) उपनिषद
(ii) ब्राह्मण
(iii) धर्मशास्त्र
(iv) महाभारत।
उत्तर-
(ii) ब्राह्मण
प्रश्न 10.
उपनिषदों की कुल संख्या कितनी है ?
(i) 18
(ii) 108
(iii) 48
(iv) 128
उत्तर-
(ii) 108
प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से किस उपवेद में दवाइयों का वर्णन किया गया है
(i) आयुर्वेद
(ii) धर्नुवेद
(iii) गंधर्ववेद
(iv) शिल्पवेद।
उत्तर-
(i) आयुर्वेद
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किसने योग शास्त्र की रचना की थी ?
(i) कपिल
(ii) पंतजलि
(iii) गौतम
(iv) व्यास।
उत्तर-
(ii) पंतजलि
प्रश्न 13.
रामायण की रचना, किसने की थी ?
(i) महर्षि वेद व्यास जी ने
(ii) महर्षि बाल्मीकी जी ने
(iii) महर्षि विश्वामित्र जी ने
(iv) महर्षि गौतम जी ने।
उत्तर-
(ii) महर्षि बाल्मीकी जी ने
प्रश्न 14.
रामायण में कितने श्लोक दिए गए हैं ?
(i) 14,000
(ii) 20,000
(iii) 24,000
(iv) 26,000।
उत्तर-
(iii) 24,000
प्रश्न 15.
महाभारत की रचना किसने की थी ?
(i) महर्षि वेद व्यास जी ने
(ii) महर्षि बाल्मीकी जी ने
(iii) महर्षि गौतम जी ने
(iv) महर्षि विशिष्ठ जी ने।
उत्तर-
(i) महर्षि वेद व्यास जी ने