Punjab State Board PSEB 6th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana kahaniyan कहानियाँ Questions and Answers.
PSEB 6th Class Hindi Rachana कहानियाँ (2nd Language)
प्यासा कौआ
एक बार गर्मी का मौसम था। जेठ महीने की दोपहर थी। आकाश से आग बरस रही थी। सभी प्राणी गर्मी से घबरा कर अपने आवासों में आराम कर रहे थे। पक्षी अपने घोंसलों में दोपहरी काट रहे थे।
ऐसे समय में एक कौआ प्यास से व्याकुल था। वह पानी की तलाश में इधर – उधर उड़ रहा था। परन्तु उसे कहीं पानी न मिला। अन्त में वह उद्यान (बाग)। वहाँ पानी का घड़ा पड़ा था। कौआ घड़े को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह उड़कर घड़े के पास गया। उसने पानी पीने के लिए घड़े में अपनी चोंच डाली। परन्तु घड़े में पानी बहुत कम था। उसकी चोंच पानी तक न पहुँच सकी। उसके सब प्रयास बेकार गए। तब भी उसने आशा न छोड़ी।।
उसी समय उसको एक युक्ति सूझी। वहाँ बहुत से कंकर पड़े थे। उसने एक – एक कंकर घड़े में डालना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में पानी ऊपर आ गया। कौआ बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने जी भर कर पानी पिया और ईश्वर को धन्यवाद दिया।
शिक्षा –
- जहाँ चाह वहाँ राह।
- आवश्यकता आविष्कार की जननी है।
- यत्न करने पर कोई उपाय निकल आता है।
चालाक लोमड़ी
एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह भोजन की खोज में इधर – उधर घूमने लगी। जब उसे सारे जंगल में भटकने के बाद कुछ न मिला तो बड़ी गर्मी और भूख से परेशान होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई। अचानक उसकी नज़र ऊपर गई। वृक्ष पर एक कौआ बैठा हुआ था। उसके मुँह में रोटी का टुकड़ा था। रोटी का टुकड़ा देखकर लोमड़ी के मुँह में पानी भर आया। वह कौए से रोटी छीनने का उपाय सोचने लगी।
तभी उसे एक युक्ति सूझी। उसने कौए को कहा, “कौआ भैया! सुना है तुम गीत बहुत अच्छा गाते हो। क्या मुझे गीत नहीं सुनाओगे ?” कौआ अपनी प्रशंसा को सुनकर बहुत खुश हुआ। वह लोमड़ी की बातों में आ गया और गाना गाने के लिए उसने जैसे ही मुँह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गिया। लोमड़ी ने झट से वह टुकड़ा उठाया और नौ दो ग्यारह हो गई। कौआ अपनी भूल पर पछताने लगा।
शिक्षा –
- दूसरों की मीठी बातों में नहीं आना चाहिए।
- झूठी खुशामद से प्रसन्न नहीं होना चाहिए।
- जो कार्य शक्ति से नहीं होता, वह युक्ति से हो जाता है।
लालची कुत्ता
एक दिन एक कुत्ता इधर – उधर भोजन की तलाश में घूम रहा था। उसे कहीं से एक मांस का टुकड़ा मिल गया। वह उसे अकेले बैठकर खाना चाहता था इसीलिए वह उसे मुँह में रख कर नगर से बाहर की ओर दौड़ा। रास्ते में एक नदी पड़ती थी। पुल पार करते हुए उसने जल में देखा। जल में अपनी परछाईं देख कर उसने समझा कि यह कोई दूसरा कुत्ता है, जिसके मुँह में भी माँस का एक टुकड़ा है। वह मांस का टुकड़ा छीनने के लिए उस पर झपटा। उसका अपना माँस का टुकड़ा भी पानी में गिर गया। इस प्रकार लोभ में पड़कर उसने अपना माँस का टुकड़ा भी गँवा दिया। अब वह अपनी मूर्खता पर पछता रहा था।
शिक्षा –
- लालच बुरी बला है।
कुसंगति का फल
किसी नगर में एक धनी पुरुष रहता था। उसका एक पुत्र था। माता – पिता अपने पुत्र को बहुत लाड़ – प्यार करते थे। वह अपने श्रेणी में हमेशा प्रथम रहता था। उसके अध्यापक भी उसे बहुत प्यार करते और उसकी प्रशंसा करते थे।
दुर्भाग्य से वह बुरे लड़के की संगति में रहने लगा। उसका ध्यान अब बुरी बातों में लग गया। वह समय पर विद्यालय न जाता और न ही अपना पाठ याद करता। कोई भी अध्यापक अब उसे प्यार नहीं करता था। उसकी शिकायत उसके पिता से की गई। पिता को बड़ी चिन्ता हुई। उन्होंने अपने पुत्र को समझाने के लिए एक उपाय सोचा। वे बाजार से एक सुन्दर सेबों की टोकरी ले आए। बाद में अपने पुत्र को बुला कर उसे एक सड़ा गला सेब देकर कहा कि इसे भी टोकरी में रख दो। पुत्र ने वैसा ही किया।
प्रात:काल पिता ने पुत्र को वही सेबों की टोकरी उठा लाने के लिए कहा। जब टोकरी खोली गई तो सारे सेब सड़े पड़े थे। पुत्र ने आश्चर्य से पूछा – “पिता जी! ये सारे सेब कैसे सड़ गए ?”
पिता ने समझाया, “बेटा, जैसे एक सड़े – गले सेब से सारे अच्छे सेब खराब हो गए हैं, उसी तरह बुरे लड़कों की संगति से सब अच्छे बालक बुरी बातों को अपना लेते हैं। इसलिए अच्छे बालकों से संगति करो।” पुत्र पर इस बात का बहुत असर पड़ा। उसने बुरे लड़कों की संगति को छोड़ दिया और दिल लगा कर पढ़ने लगा।
शिक्षा –
- बुरी संगति से बच कर रहो।
- बुरी संगति से अकेला भला।
ईमानदार लकड़हारा
एक गाँव में एक लकड़हारा रहता था। वह बहुत ग़रीब था। वह निकट के जंगल से लकड़ी काट कर लाता और उसे बेचकर अपना निर्वाह करता था।
एक दिन वह नदी के किनारे वृक्ष काट रहा था। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ा छूट गया और नदी में गिर पड़ा। लकड़हारा बेचारा रोने लगा। उसने सोचा मैं अब बच्चों का पालन कैसे करूँगा। वह रो रहा था कि जल का देवता उपस्थित हुआ। उसने पूछा, “तुम रो क्यों रहे हो ?” लकड़हारे ने सारी बात बताई। जल का देवता पानी में कूद पड़ा और सोने का कुल्हाड़ा निकाल लाया। उसने लकड़हारे से पूछा – क्या यही तुम्हारा कुल्हाड़ा है ? लकड़हारे ने उसे लेने से इन्कार कर दिया और कहा यह मेरा कुल्हाड़ा नहीं है। जल के देवता ने फिर पानी में डुबकी लगाई और दूसरी बार चाँदी का कुल्हाड़ा लाया। परन्तु लकड़हारे ने फिर वह कुल्हाड़ा लेने से इन्कार कर दिया। अब तीसरी बार जल का देवता फिर नदी में कूदा और वहीं से लोहे का कुल्हाड़ा निकाल लाया।
उस कुल्हाड़े को देखते ही लकड़हारा खुशी से नाच उठा – हाँ, हाँ, यही मेरा कुल्हाड़ा है। जल का देवता उसकी ईमानदारी पर खुश हुआ। उसने लकड़हारे को शेष दोनों कुल्हाड़े भी ईनाम के तौर पर दे दिए।
शिक्षा –
- ईमानदारी सबसे उत्तम नीति है।
- सदा सच बोलना चाहिए।
शेर और खरगोश
अथवा
बुद्धि ही बल है
किसी वन में एक शेर रहता था। वह हर रोज़ तीन – चार पशुओं को मार देता था। जंगल के पशु उससे बड़े दु:खी थे। एक दिन सब पशुओं ने मिलकर उससे प्रार्थना की कि आप हमारा विनाश न करें। हम प्रतिदिन एक – एक पशु भेज दिया करेंगे। शेर मान गया। इस प्रकार प्रतिदिन बारी – बारी एक – एक पशु जाने लगा।
एक दिन एक खरगोश की बारी आई। खरगोश ने शेर को मारने का निश्चय किया। मार्ग में उसने एक कुएँ में अपनी परछाईं देखी। उसने शेर को कुएँ में गिराने का निश्चय किया। उसने सोचा, “यदि मुझे मर ही जाना है तो शेर के आगे गिड़गिड़ाने से क्या लाभ होगा। क्यों न मज़े – मज़े जाऊँ।” ऐसा सोचते – सोचते वह शेर के पास पहुँचा। देरी से आने के कारण शेर ने भी ज़ोर से उससे पूछा – “देर से क्यों आए हो ?” खरगोश बोला, महाराज यह मेरा कसूर नहीं है। मैं आ रहा था तो किसी दूसरे शेर ने भी मुझे ज़बरदस्ती पकड़ लिया। परन्तु उसके आगे फिर आने की प्रतिज्ञा करके मैं स्वामी को निवेदन करने आया हूँ।
यह सुनकर शेर कुछ डर गया और बोला – क्या कोई दूसरा शेर भी इस जंगल में है ? खरगोश ने हाँ में उत्तर दिया। शेर फिर बोला चल पहले मुझे दिखा वह दुष्टात्मा कहाँ ठहरा है ? पहले उसी का काम तमाम कर लूँ। खरगोश उसे कुएँ पर ले गया और उसमें उसकी परछाईं दिखा दी। शेर क्रोध में भर कर दहाड़ने लगा। उत्तर में परछाईं ने भी दहाड़ दी। इस प्रकार उस परछाईं को दूसरा शेर समझ कर उसने अपने को कुएँ में गिरा दिया और वह मर गया।
शिक्षा –
- बुद्धि बल से बड़ी है।
खरगोश और कछुआ
किसी वन में खरगोश और कछुआ पक्के मित्र रहते थे। खरगोश अपनी तेज़ दौड़ का अभिमान करता था। एक दिन दोनों सैर को निकले। खरगोश तेज़ चलता तो कछुआ धीरे धीरे। खरगोश ने कछुए से कहा – भाई कछुए तुम तो बहुत सुस्त हो। यहि मेरे साथ दौड़ लगाओ तो मैं तुम्हें बुरी तरह हरा सकता हूँ। कछुआ भी अपनी बुराई सहन न कर सका। उसने दौड़ लगाना स्वीकार कर लिया।
दोनों की दौड़ शुरू हो गई। खरगोश इतना तेज़ भागा कि कछुआ बहुत पीछे रह गया। रास्ते में एक सुन्दर बगीचे को देखकर खरगोश ने सोचा क्यों न कुछ देर यहाँ आराम कर लिया जाए। जब कछुआ यहाँ आएगा फिर दौड़ लगा लूँगा और उससे पहले तालाब पर पहुँच जाऊँगा। यह सोचकर खरगोश वहाँ लेट गया। ठण्डी – ठण्डी वायु चल रही थी। लेटते ही उसे नींद आ गई। थोड़ी देर के बाद कछुआ भी वहाँ आ गया। खरगोश को सोता देखकर वह चुपके से आगे निकल गया। धीरे – धीरे वह तालाब पर पहले पहुँच गया।
खरगोश की जब नींद खुली तो उसने सोचा कछुआ अभी पीछे ही होगा। उसने फिर दौड़ना शुरू कर दिया। जब वह तालाब पर पहुँचा तो कछुआ पहले ही वहाँ पहुँचा हुआ था। यह देखकर वह बहुत लज्जित हुआ।
शिक्षा –
- सहज पके सो मीठा होय।
- घमण्डी का सिर नीचा।
दो बिल्लियाँ और बन्दर
किसी नगर में दो बिल्लियाँ रहती थीं। एक दिन उन्हें रोटी का एक टुकड़ा मिला। वे इसे लेकर आपस में लड़ने लगीं। वे उसे आपस में समान भागों में बाँटना चाहती थीं लेकिन उन्हें कोई ढंग न मिला।
उसी समय एक बन्दर उधर आ निकला। वह बहुत चालाक था। उसने बिल्लियों से लड़ने का कारण पूछा। बिल्लियों ने उसे सारी बात सुनाई। वह तराजू ले आया और बोला, “लाओ, मैं तुम्हारी रोटी को बराबर बाँट देता हूँ।’ उसने रोटी के दो टुकड़े लेकर एक एक पलड़े में रख दिए। जिस पलड़े में रोटी अधिक होती बन्दर उसे थोड़ी – सी तोड़ कर खा लेता। इस प्रकार थोड़ी – सी रोटी रह गई। अब बिल्लियों को अपनी गलती तथा बन्दर की चालाकी का पता चला तो उन्होंने बन्दर से अपनी रोटी वापिस मांगी। लेकिन बन्दर ने शेष बची रोटी को अपना मेहनताना बताते हुए उस टुकड़े को भी अपने मुँह में डाल लिया। बिल्लियाँ मुँह देखती रह गईं।
शिक्षा –
- आपस में लड़ना – झगड़ना अच्छा नहीं।
दो मित्र और रीछ
एक बार दो मित्र इकटे व्यापार करने घर से चले। दोनों ने एक – दूसरे को वचन दिया कि वे मुसीबत के समय एक – दूसरे की सहायता करेंगे। चलते – चलते दोनों एक भयंकर जंगल में जा पहुँचे।
जंगल बहुत विशाल तथा घना था। दोनों मित्र सावधानी से जंगल में से गुजर रहे थे। एकाएक उन्हें सामने से एक रीछ आता हुआ दिखाई दिया। दोनों मित्र भयभीत हो गए। उस रीछ को पास आता देखकर एक मित्र जल्दी से वृक्ष पर चढ़कर पत्तों में छिप कर बैठ गया। दूसरे मित्र को वृक्ष पर चढ़ना नहीं आता था। वह घबरा गया। परन्तु उसने सुन रखा था कि रीछ मरे हुए आदमी को नहीं खाता। वह झट अपनी साँस रोक कर भूमि पर लेट गया।
रीछ ने पास आकर उसे सूंघा और मरा हुआ समझ कर वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद पहला मित्र वृक्ष से नीचे उतरा। उसने दूसरे मित्र से कहा – “उठो, रीछ चला गया। यह बताओ कि उसने तुम्हारे कान में क्या कहा था ?” भूमि पर लेटने वाले मित्र ने कहा कि “रीछ केवल यही कह रहा था कि स्वार्थी मित्र पर विश्वास मत करो।”
शिक्षा –
- मित्र वह है जो विपत्ति में काम आए।
- स्वार्थी मित्र से हमेशा दूर रहो।
एकता में बल है
किसी गाँव में एक बूढ़ा किसान रहता था। उसके चार पुत्र थे। वे चारों बहुत आलसी थे। आपस में लड़ते – झगड़ते रहते थे। किसान ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन व्यर्थ। एक दिन उसने अपने चारों पुत्रों को अपने पास बुलाया तथा एक लकड़ियों का गट्ठा लाने को कहा। वे लकड़ियों का गट्ठा ले आएं। उसने हर एक लड़के को वह गट्ठा तोड़ने के लिए दिया लेकिन कोई भी उसे न तोड़ सका। तब उसने गट्ठा खोलकर एक – एक लकड़ी सभी को तोड़ने को दी जिसे उन्होंने आसानी से तोड़ दिया। तब उसने उन्हें समझाया, “अगर तुम इन लकड़ियों की तरह इकट्ठे रहोगे तो तुम्हारा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। अगर तुम अकेले – अकेले रहोगे तो लोग तुम्हें नष्ट कर देंगे। अतः तुम सब इकट्ठे रहो। लड़ना झगड़ना नहीं। एकता में ही बल है।” यह सुनकर वे सब मिल – जुल कर रहने लगे।
शिक्षा –
- मिल – जुल कर रहना चाहिए।
- एकता में बल है।
अंगूर खट्टे हैं
एक बार एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह भोजन की तलाश मैं इधर – उधर भटकती रही पर कहीं से भी उसे भोजन न मिला। अन्त में वह एक बाग़ में पहुँची। वहाँ उसने अंगूर की बेल पर अंगरों के कुछ गुच्छे देखे। वह उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुई। वह उन अंगों को खाना चाहती थी। अंगूर बहुत ऊँचे थे। वह उन्हें पाने के लिए ऊँची – ऊँची छलांगें लगाने लगी। किन्तु अनेक कोशिशों के पश्चात् भी वह उन सकी। वह बहुत थक चुकी थी। आखिर वह बाग़ से बाहर जाती हुई कहने लगी कि अंगूर खट्टे हैं। यदि मैं इन्हें खाऊँगी तो बीमार हो जाऊँगी।
शिक्षा –
- जो चीज़ प्राप्त न कर सको , उसे बुरा मत कहो।
शेर और चूहा
एक दिन गर्मी बहुत पड़ रही थी। एक शेर शिकार ढूंढते – ढूंढते थक गया। उसने एक छायादार वृक्ष देखा और उसके नीचे सो गया। पास ही एक चूहे का बिल था। थोड़ी देर बाद चूहा अपने बिल से बाहर निकला। वह शेर के शरीर पर चढ़ कर कूदने लगा। शेर जाग पड़ा और उसने चूहे को अपने पंजे में पकड़ लिया। चूहा बहुत चालाक था। यह घबराया नहीं उसने शेर से कहा – “महाराज आप जंगल के राजा हैं। मैं छोटा – सा जीव हैं। मुझे मारना आपको शोभा नहीं देता। आप दया करके मुझे छोड़ दें। कभी मैं भी आपके काम आ सकता हूँ।” यह सुन कर शेर हँस पड़ा और उसने चूहे को छोड़ दिया।
कुछ दिनों के बाद उस जंगल में एक शिकारी आया। वह शेर शिकारी के जाल में फँस या। उसने अपने आपको जाल से छुड़ाने की बहुत कोशिश की, परन्तु वह सफल न हो सका। अन्त में वह ज़ोर – ज़ोर से दहाड़ने लगा। उसी चूहे ने शेर की आवाज़ को पहचान प्लया। वह झट जाल के पास गया। उसने कुछ ही देर में अपने तेज़ दाँतों से जाल को काट दिया और शेर की जान बचाई। शेर ने उसका धन्यवाद किया।
शिक्षा –
- किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए।
- कर भला हो भला।
झूठा गडरिया
किसी गाँव में एक गडरिया रहता था। वह प्रतिदिन भेड़ों को चराने के लिए जंगल में जाता था। सायंकाल को वह सब भेड़ों के साथ गाँव को लौट आता था। एक दिन पडरिया बालक को गाँव वालों से मज़ाक करने की सूझी। उसने एक ऊँचे टीले पर चढ़कर भेडिया आया ! भेडिया आया!! बचाओ! बचाओ!! की आवाज़ दी। उसकी इस पुकार को सुनकर गाँव वाले हाथों में लाठियाँ लिए दौड़ते हुए जंगल में आए। उनको देखकर गडरिया बालक हँस पड़ा। उसने कहा मैंने तो मजाक किया था। उसकी इस बात से गाँव वाले उस नाराज़ होकर वापिस चले गए। एक – दो बार उसने फिर वैसा ही किया।
एक दिन जब गडरिया भेड़ें चरा रहा था तो अचानक ही सचमुच एक भेड़िया वहाँ आ या। बालक ने खूब शोर मचाया पर गाँव वालों ने समझा कि वह मज़ाक कर रहा है सीलिए इस बार कोई भी उसकी सहायता के लिए नहीं आया। भेड़िये ने बहुत – सी भेड़ें पार दी। गडरिये ने वृक्ष पर चढ़ कर अपनी जान बचाई।
शिक्षा –
- झूठे व्यक्ति पर कोई विश्वास नहीं करता।
- कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए।