PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है (2nd Language)

Hindi Guide for Class 8 PSEB परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है Textbook Questions and Answers

परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है अभ्यास

1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखने का अभ्यास करें :

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 1
PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 2
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

2. नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखें :

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 3
PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 4
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

3. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :

(क) सुमति कौन था?
उत्तर :
सुमति राजा शूरसेन का मन्त्री था।

(ख) सुमति किस बात पर विश्वास करता था?
उत्तर :
सुमति आस्तिक था। वह परमात्मा के बारे में यह सोचता था – परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।

(ग) राजा शूरसेन शिकार खेलने कहाँ गया?
उत्तर :
राजा शूरसेन शिकार खेलने के लिए घोड़े पर सवार होकर मन्त्री और बहुत से सेवकों के साथ जंगल में गया था।

(घ) राजा ने मंत्री से बदला लेने का क्या उपाय सोचा?
उत्तर :
राजा शूरसेन ने मन्त्री से बदला लेने के लिए प्यास का बहाना बनाकर मन्त्री को कुएँ से जल लाने की आज्ञा दी और जैसे ही मन्त्री जल निकालने के लिए नीचे झुका तो राजा ने उसे कुएँ में गिरा दिया।

(ङ) राजा ने अपने घोड़े का कहाँ बाँधा?
उत्तर :
राजा शूरसेन ने अपने घोड़े को वृक्ष से बाँध दिया था।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

(च) घोड़े को वृक्ष के साथ बँधा देखकर सैनिकों ने क्या सोचा?
उत्तर :
घोड़े को वृक्ष के साथ बँधा देखकर सैनिकों ने सोचा कि यहां निकट ही उसका मालिक अवश्य होगा।

(छ) सैनिक राजा शूरसेन को क्यों पकड़ना चाहते थे?
उत्तर :
सैनिक राजा शूरसेन को इसलिए पकड़ना चाहते थे ताकि वे उसकी बलि चढ़ा सकें।

(ज) राजा के प्राण कैसे बचे?
उत्तर :
जब राजा की बलि दी जाने लगी तो दूसरे राजा की दृष्टि उसकी कटी अंगुली पर पड़ी। उसने कहा कि अंगहीन मनुष्य की बलि नहीं दी जा सकती। इसलिए इसे छोड़ दिया जाए। इस प्रकार राजा की जान बच गई।

(झ) राजा ने मंत्री को कुँए से कब निकाला?
उत्तर :
जब राजा बलि न दिए जाने से बच कर राजधानी लौट रहा था, तब एकाएक उसके विचारों में परिवर्तन आया और उसने मन्त्री को कुएँ से निकाल लिया।

(ञ) राजा ने किससे क्षमा माँगी और क्यों?
उत्तर :
उंगली कटी होने के कारण राजा जब बलि होने से बच गया तो उसे एहसास हुआ कि मन्त्री ठीक कहता था कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। अब उसे मन्त्री से किए व्यवहार पर पछतावा था अतः राजा ने मन्त्री से क्षमा माँगी।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

4. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें :

(क) राजा अपने जीवन से निराश क्यों हो गया था?
उत्तर :
राजा शूरसेन एक प्रतापी राजा था। एक बार राजा की उंगली में एक फोड़ा निकल आया। इस फोड़े का दर्द असहनीय था। राजा ने पीड़ा से आहत होकर मन्त्री को बुलवाया। मन्त्री ने दर्द से तड़पते हुए राजा को देखकर कहा कि राजन ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। मन्त्री के ये शब्द सुनकर राजा सोचने लगा कि यह मन्त्री कितना पत्थर – दिल है। इसके हृदय में किसी के प्रति सहानुभूति नहीं है। कुछ दिनों के बाद राजा की उंगली गल गई। उस समय राजा अपनी दयनीय स्थिति को देखकर निराश हो गया।

(ख) कुँए के पास से गुजरते हुए राजा ने क्या सोचा?
उत्तर :
राजा शूरसेन को रह – रहकर मन्त्री की वह बात कचौट रही थी जो उसने पीड़ा से तड़प रहे राजा को कही थी कि – ‘परमात्मा जो करता है, अच्छे के लिए करता है। अब राजा मन्त्री से उस बात का बदला लेना चाहता था। इसलिए राजा ने जंगल में कुएँ के पास से निकलते हुए एक योजना सोची कि वह प्यास का बहाना बनाकर, मन्त्री को कुएँ से पानी निकालने को कहेगा। जब मन्त्री पानी निकालने के लिए नीचे झुकेगा तब वह उसे कुएँ में धकेल देगा।

(ग) राजा की बलि क्यों नहीं दी जा सकती थी?
उत्तर :
जब राजा शूरसेन की बलि दी जाने लगी तो दूसरे राजा की दृष्टि उसकी कटी हुई उंगली पर पड़ी तो राजा हैरान होकर चिल्ला उठा – ‘अरे पापियो! यह क्या कर डाला ? तुम नहीं जानते कि अंगहीन मनुष्य की बलि नहीं दी जाती। तो हटाइए इसे यहाँ से।’ इस प्रकार राजा की जान बच गई और उसकी बलि नहीं दी जा सकी।

(घ) ‘मुझ भले-अच्छे मनुष्य का मौत से छुटकारा पाना संभव न होता’ मंत्री के इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘मुझ भले अच्छे मनुष्य का मौत से छुटकारा पाना सम्भव न होता’ मन्त्री के इस कथन का अभिप्राय यह है कि यदि राजा के सैनिक उसे पकड़ लेते तो राजा शूरसेन अंगहीन होने के कारण बच जाते लेकिन मन्त्री पूर्णतः स्वस्थ था। अतः वे लोग उसकी बलि चढ़ा देते तब अच्छे भले मनुष्य का मौत से छुटकारा पाना सम्भव न होता। इसलिए यह मानना ग़लत न होगा कि ईश्वर ने सब कुछ मनुष्य की भलाई के लिए ही किया है।

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(ङ) इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य के जीवन में जो कुछ भी अच्छा – बुरा होता है, उससे दुःखी एवं निराश नहीं होना चाहिए। इसमें भी कहीं न कहीं अच्छाई छिपी रहती है। ईश्वर सदैव सही करता है। उसकी दृष्टि में सभी मनुष्य एक समान हैं। उसके द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य उद्देश्य पूर्ण होता है। सृष्टि की कोई वस्तु निरर्थक नहीं अत: परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।

5. कहानी में घटी घटनाओं के क्रम बॉक्स में अंकों में लिखो :

[ ] बार-बार अपना दोष स्वीकार करते हुए राजा ने मंत्री से क्षमा माँगी।
[ ] राजा की उँगली पर फोड़ा निकल आया।
[ 1. ] राजा मंत्री और बहुत-से सेवकों को साथ लेकर जंगल की ओर निकल पड़ा।
[ ] मंत्री ने दर्द से बेहाल राजा को कहा कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।
[ ] राजा ने मंत्री को कुँए से बाहर निकाला।
[ ] दूसरे राजा के सैनिकों ने राजा को पकड़ लिया और अपने स्वामी की सेवा में हाज़िर कर दिया।
[ ] राजा ने अपने मंत्री को कुँए में धक्का दे दिया।
[ ] दूसरे राजा ने अंगहीन होने के कारण राजा की बलि देने से इंकार कर दिया।
[ ] राजा को जंगल से बाहर निकलने का मार्ग नहीं सूझ रहा था।
[ ] राजा शूरसेन अपने प्राणों की खैर मनाता हुआ वहाँ से तत्काल निकल भागा।
उत्तर :
[ 1 ] राजा की उंगली पर फोड़ा निकल आया।
[ 2 ] मन्त्री ने दर्द से बेहाल राजा को कहा कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।
[ 3 ] राजा मन्त्री और बहुत – से सेवकों को साथ लेकर जंगल की ओर निकल पड़ा।
[ 4 ] राजा ने अपने मन्त्री को कुएँ में धक्का दे दिया।
[ 5 ] राजा को जंगल से बाहर निकलने का मार्ग नहीं सूझ रहा था।
[ 6 ] दूसरे राजा के सैनिकों ने राजा को पकड़ लिया और अपने स्वामी की सेवा में हाजिर कर दिया।
[ 7 ] दूसरे राजा ने अंगहीन होने के कारण राजा की बलि देने से इन्कार कर दिया।
[ 8 ] राजा शूरसेन अपने प्राणों की खैर मनाता हुआ वहाँ से तत्काल निकल भागा।
[ 9 ] राजा ने मन्त्री को कुएँ से बाहर निकाला।
[ 10 ] बार – बार अपना दोष स्वीकार करते हुए राजा ने मन्त्री से क्षमा माँगी।

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6. किसने कहा, किससे कहा?
किसने कहा? – किससे कहा?
(क) अरे पापियो! यह क्या कर डाला?
तुम नहीं जानते कि अंगहीन मनुष्य की
बलि नहीं दी जाती।
(ख) परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।
(ग) हे धर्मात्मा बंधुवर ! क्या तुम अब भी जिंदा हो?
(घ) मेरा कुँए में गिरना भी एक शुभ लक्षण था।
उत्तर :
किसने कहा? – किससे कहा?
(क) बलि देने वाले राजा ने – अपने सैनिकों से कहा।
(ख) सुमति मन्त्री ने – राजा शूरसेन से कहा।
(ग) राजा शूरसेन ने – सुमति मन्त्री से कहा।
(घ) मन्त्री सुमति ने – राजा शूरसेन से कहा।

7. इन शब्दों और मुहावरों के अर्थ लिखते हुए वाक्यों में प्रयोग करें :

  1. पत्थर दिल _____________________
  2. रोगहीन _____________________
  3. थका-हारा _____________________
  4. नेकदिल _____________________
  5. शुभ लक्षण _____________________
  6. मौत के घाट उतारना _____________________
  7. संकल्प पूरा करना _____________________
  8. प्राणों की खैर मनाना _____________________
  9. मृत्यु-तुल्य जीवन बिताना _____________________
  10. जल भुनना _____________________

उत्तर :

  1. पत्थर दिल = कठोर हृदय वाला।
    वाक्य – राजा शूरसेन सुमति मन्त्री को प्रारम्भ में पत्थर दिल समझ रहा था।
  2. रोगहीन = जिसे कोई बीमारी न हो।
    वाक्य – रोगहीन व्यक्ति रोगी व्यक्ति की अपेक्षा अधिक दिन जीवित रह सकता है।
  3. थका – हारा = बहुत थका हुआ।
    वाक्य – दिन – भर की मेहनत से थका – हारा किसान खेत में सो गया।
  4. नेकदिल = दयावान, अच्छे हृदय वाला।
    वाक्य – महात्मा जी बहुत नेकदिल थे।
  5. शुभ लक्षण = अच्छा संकेत।
    वाक्य – तुम्हारे बेटे के शुभ लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
  6. मौत के घाट उतारना = मार देना।
    वाक्य – गुरु जी ने दोनों पठानों को मौत के घाट उतार दिया।
  7. संकल्प पूरा करना = इच्छा पूरी करना।
    वाक्य – रावण को मारकर श्री राम ने अपना संकल्प पूरा किया।
  8. प्राणों की खैर मनाना = अपनी जान का बचाव करना।
    वाक्य – भारतीय सेना ने हथियार संभालते हुए दुश्मन को ललकारा कि अब तुम अपने प्राणों की खैर मनाओ।
  9. मृत्यु तुल्य जीवन बताना = दुःखों और अभावों में जीवन जीना।
    वाक्य – रमेश गम्भीर बीमारी से ग्रस्त होने के कारण मृत्यु तुल्य जीवन बिता रहा था।
  10. जल भुनना = ईर्ष्या करना।
    वाक्य – राकेश की नई कार को देखकर मुकेश जल भुन गया।

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8. इन शब्दों के विपरीत अर्थ वाले शब्द लिखें :

  1. जीवित = मृत
  2. भलाई = ………………………….
  3. अस्त = ………………………….
  4. प्रात:काल = ………………………….
  5. कृतघ्न = ………………………….
  6. शुभ = ………………………….
  7. रोगहीन = ………………………….
  8. दोष = ………………………….
  9. स्वामी = ………………………….
  10. इच्छा = ………………………….

उत्तर :

  1. जीवित = मृत
  2. भलाई = बुराई
  3. अस्त = उदय
  4. प्रात:काल = सायंकाल
  5. शुभ = अशुभ
  6. कृतघ्न = कृतज्ञ
  7. रोगहीन = रोगग्रस्त
  8. दोष = गुण
  9. स्वामी = सेवक, दास
  10. इच्छा = अनिच्छा

9. इन शब्दों के दो-दो समानार्थक शब्द लिखें :

  1. राजा = नृप, भूपति
  2. परमात्मा = ………………………….
  3. घोड़ा = ………………………….
  4. सेवक = ………………………….
  5. रात = ………………………….
  6. जंगल = ………………………….
  7. वृक्ष = ………………………….
  8. तलवार = ………………………….

उत्तर :

  1. राजा = नृप, भूपति, भूप, नरेश
  2. परमात्मा = ईश्वर, भगवान, प्रभु, ईश
  3. घोड़ा = अश्व, तुरंग, घोटक, सैंधव
  4. सेवक = दास, नौकर, अनुचर, परिचारक
  5. रात = निशा, रात्रि, रजनी, यामिनी
  6. जंगल = वन, कानन, अरण्य, अटवी
  7. वृक्ष = पेड़, पादप, विटप, तरू तलवार
  8. तलवार = खड्ग, कृपाण, असि, करवाल

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10. नये शब्द बनायें :

  1. धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
  2. भला + आई = भलाई
  3. परम + आत्मा = ………………………….
  4. अच्छा + आई = ………………………….

उत्तर :

  1. धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
  2. परम + आत्मा = परमात्मा
  3. भला + आई = भलाई
  4. अच्छा + आई = अच्छाई

11. इन शब्दों के शुद्ध रूप लिखें :

  1. कृतघन = ………………………….
  2. चूमुण्डा = ………………………….
  3. पतथर = ………………………….
  4. डावाडोल = ………………………….
  5. कुआ = ………………………….
  6. सैनीक = ………………………….

उत्तर :

  1. कृतघन = कृतघ्न
  2. चूमुण्डा = चामुण्डा/चामुंडा
  3. पतथर = पत्थर
  4. डावाडोल = डांवाडोल
  5. कुआ = कुआँ
  6. सैनीक = सैनिक

प्रयोगात्मक व्याकरण

1. (क) (i) जल्लाद ने तलवार उठायी।
(ii) सैनिकों ने राजा को पकड़ लिया।

पहले वाक्य में जल्लाद ने क्या उठायी? उत्तर-तलवार’। तलवार’ कर्म है। इसलिए यह सकर्मक क्रिया है। इसी तरह दूसरे वाक्य में सैनिकों ने किसे पकड़ लिया? उत्तर-राजा को। ‘राजा को’ कर्म है। इसलिए यह भी सकर्मक क्रिया है।

अतएव जिस क्रिया में कर्म होता है, वह सकर्मक क्रिया कहलाती है।

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(ख) (i) राजा चिल्ला रहा था।
(ii) सैनिक चल पड़े।

उपर्युक्त वाक्यों में केवल कर्ता (राजा, सैनिक) तथा क्रिया (चिल्ला रहा था, चल पड़े) का, प्रयोग किया गया है। यहाँ कर्म नहीं है। इसलिए यहाँ अकर्मक क्रिया है।

अतएव जिन क्रियाओं में कर्म नहीं होता, वह अकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं।

सकर्मक एवं अकर्मक क्रिया की पहचान सकर्मक तथा अकर्मक क्रिया की पहचान करने के लिए वाक्य में आई क्रिया पर ‘क्या’, ‘किसे’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न किया जाये। यदि उत्तर में कोई व्यक्ति या वस्तु आए, तो क्रिया सकर्मक होगी अन्यथा क्रिया अकर्मक होगी। जैसे : –

जल्लाद ने क्या उठायी? उत्तर मिलता है- ‘तलवार’। इसी तरह सैनिकों ने किसे पकड़ लिया? उत्तर मिलता है- राजा को। अतएव ये सकर्मक क्रियाएँ हैं किंतु ‘ख’ भाग के दोनों वाक्यों में प्रश्न करें तो उत्तर नहीं मिलता। जैसे

राजा क्या चिल्ला रहा था? तथा सैनिक क्या चल पड़े? यहाँ प्रश्न ही अटपटा लगता है। यहाँ ‘चिल्ला रहा था’ तथा ‘चल पड़े’ क्रियाएँ कर्म की अपेक्षा नहीं रखतीं, अतः ये अकर्मक क्रियाएँ हैं।

2. (क) सेवक चला गया।
(ख) सेविका चली गयी।

उपर्युक्त पहले वाक्य में ‘क’ उदाहरण में क्रिया का कर्ता पुल्लिग (सेवक) है, अतः क्रिया भी पुल्लिग (चला गया) है जबकि दूसरे वाक्य में ‘ख’ उदाहरण में क्रिया का कर्ता स्त्रीलिंग (सेविका) है अतः क्रिया भी स्त्रीलिंग (चली गयी) है।

अत: लिंग में परिवर्तन के कारण क्रिया में भी परिवर्तन हुआ।

इस प्रकार- संज्ञा शब्दों की तरह क्रिया शब्दों के भी दो लिंग होते हैं।
1. पुल्लिग
2. स्त्रीलिंग।

3. (क ) राजा जंगल की ओर निकल पड़ा।
(ख) वे (राजा और मंत्री) जंगल की ओर निकल पड़े।

उपर्युक्त पहले वाक्य में ‘क’ उदाहरण में कर्ता (राजा) एक वचन है, अत: क्रिया भी एक वचन (निकल पड़ा) प्रयुक्त हुई है तथा दूसरे वाक्य में कर्ता वे’ बहुवचन है, अतः क्रिया भी बहुवचन (निकल पड़े) प्रयुक्त हुई है।

अत: वचन बदलने पर क्रिया का रूप भी बदल जाता है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

इस प्रकार क्रिया शब्दों के दो वचन होते हैं।
1. एकवचन
2. बहुवचन।

  • परमात्मा पर विश्वास रखते हुए सभी काम ईमानदारी से करो।
  • किसी को धोखा नदो।
  • किसी का बुरा मत करो।

परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है Summary in Hindi

परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है पाठ का सार

किसी देश में शूरसेन नाम का एक राजा था। सुमति नाम का उसका मन्त्री था, जो ईश्वर में अटूट विश्वास रखता था। एक बार राजा की अंगुली पर फोड़ा निकल आया। बेचैन राजा ने मन्त्री को बुलाया। मन्त्री ने राजा को देखकर कहा,”परमात्मा जो करता है, अच्छा ही, करता है।”

राजा ने सोचा यह कैसा मन्त्री है, जिसे मुझ पर दया नहीं आती। रोग के बढ़ जाने से राजा की अंगुली गल गई। मन्त्री ने देखकर फिर कहा कि “परमात्मा जो करता है, वह अच्छा ही करता है।” इस पर राजा के दिल में बहुत क्रोध आया। उसने निश्चय कर लिया कि स्वस्थ होने पर वह उसे मौत के घाट उतार देगा।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 5

कुछ दिन बाद राजा स्वस्थ हो गया। वह मन्त्री और सैनिकों को लेकर शिकार के लिए निकला। जंगल में उसने प्यास का बहाना बनाकर मन्त्री को कुएँ से पानी लाने को कहा। मन्त्री जैसे ही पानी निकालने लगा, राजा ने उसे कएँ में धकेल दिया। मन्त्री ने कएँ में गिरते हुए भी यही वाक्य दोहराया कि “परमात्मा जो करता है, वह अच्छा ही करता है।”

रात हो जाने के कारण राजा रास्ता भूल गया। वह घोड़े को पेड़ से बाँधकर खुद पेड़ पर जा छिपा। तभी किसी दूसरे राजा के सैनिकों का दल वहाँ आ पहुँचा। वह किसी मनुष्य की खोज में था, जिसे उनका राजा चामुण्डा देवी को बलि चढ़ाकर अपना संकल्प पूरा कर सके। वे राजा को बांध कर अपने देश की ओर चल पड़े। राजधानी पहुँच कर उन्होंने उसे अपने राजा के सामने पेश कर दिया।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

चामुण्डा देवी को मनुष्य की बलि चढ़ाने का अवसर आ गया। जैसे ही उसकी बलि दी जाने लगी राजा ने उसकी कटी अंगुली देखकर जल्लादों को बलि चढाने से रोक दिया। उसने कहा कि अंगहीन की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती। अत: इसे छोड़ दो।

राजा शूरसेन तत्काल वहाँ से निकल भागा। अब उसके विचारों ने पलटा खाया। उसे भी अब विश्वास हो गया था कि “परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।” वह कुएँ के पास गया और अपने मन्त्री को कुएँ से बाहर निकाला और उससे क्षमा माँगी। राजा और मन्त्री दोनों प्रसन्नतापूर्वक अपनी राजधानी लौटे।

परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है कठिन शब्दों के अर्थ

  • संतान = औलाद।
  • प्रजा = जनता, लोग।
  • अटूट विश्वास = गहरा यकीन, न टूटने वाला यकीन।
  • संयोग = मेल, इत्तफाक।
  • पीड़ा = कष्ट।
  • दया = रहम।
  • क्रोध = गुस्सा।
  • कृतघ्न = किए हुए उपकार को न मानने वाला।
  • स्वस्थ = तन्दुरुस्त।
  • रोगहीन = नीरोग।
  • प्रबन्ध = इन्तजाम।
  • सेवकों = नौकरों।
  • आदेश = आज्ञा।
  • अस्त होना = छिप जाना।
  • भयानक = डरावने।
  • प्रातः काल = सुबह।
  • बलि = कुर्बानी।
  • संकल्प = निश्चय।
  • सैनिक = सिपाही, फौजी।
  • विजय = जीत।
  • स्वामी = मालिक।
  • अंगहीन = जिसका कोई अंग न हो।
  • तत्काल = उसी समय।
  • हत्या = मारना।
  • अपराध = जुर्म, पाप।
  • धर्मात्मा = धार्मिक विचारों वाला, धार्मिक।
  • बन्धुवर = भाई।
  • मृत्यु – तुल्य = मौत के समान।
  • स्वीकार = मन्जूर, मान्य।
  • प्रसन्नतापूर्वक = खुशी से।।

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परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. राजा घोड़े पर सवार होकर मंत्री और बहुत से सेवकों को साथ लेकर जंगल – की ओर निकल पड़ा। जब वह घने जंगल में पहुँच गया तो उसने सेवकों को वहीं ठहर , जाने का आदेश दिया और मंत्री को साथ लेकर भयानक जंगल के बीचों – बीच चल पड़ा।घूमते – घूमते जब वे एक कुएँ के पास से गुज़रे, राजा अपने मन में विचार करने लगा – – – – इससे अच्छा मौका कहाँ मिलेगा? प्यास का बहाना बनाकर इसे कुएँ से जल लाने की आज्ञा देता हूँ और ज्योंही यह जल निकालने के लिए नीचे की ओर झुकेगा, मैं इसे कुँए में गिरा दूंगा।

राजा ने जैसा सोचा था वैसा ही कर दिखाया। मंत्री ने गिरते – गिरते भी वही पुराने शब्द दोहराए ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।’

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठय पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखिका ने राजा के मन में छिपी बदले की भावना को उजागर करने का प्रयास किया है।

व्याख्या – लेखिका का कहना है कि अपनी शिकार खेलने की इच्छा को पूर्ण करने के लिए राजा शूरसेन घोड़े पर सवार होकर बहुत से नौकरों और मंत्री सुमति के साथ जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल के बीचों – बीच पहुँच कर राजा ने सेवकों को वहीं रुक जाने का आदेश दिया। तत्पश्चात् राजा सुमति मंत्री को अपने साथ लेकर घने जंगल के बीचों – बीच चल पड़ा। जंगल में घूमते हुए राजा को एक कुँआ दिखाई दिया।

जिसे देखकर उसके मन में एक विचार आया कि यही सही अवसर है कि वह मंत्री सुमति से अपना बदला ले ले। इसके लिए राजा ने अपने मन में एक विचार बनाया कि वह मंत्री को कुएँ से पाने लाने को कहेगा, जब मंत्री पानी निकालने के लिए कुएँ में झुकेगा तब वह उसे कुएँ में धक्का दे देगा।

जब मौका मिला तब राजा ने अपनी योजनानुसार मंत्री सुमति को कुएँ में धकेल दिया। कुएँ में गिरते हुए भी मंत्री सुमति ने ईश्वर में अपनी पूर्ण आस्था और विश्वास को प्रकट करते हुए अपने वही पुराने शब्द कहे जो वो हमेशा कहता था कि ‘परमात्मा जो करता है, अच्छे के लिए ही करता है।’

विशेष –

  • लेखिका ने ईश्वर के प्रति अपनी आस्था प्रकट की है।
  • भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।

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2. अब रात काफी घनी हो चुकी थी। इतने में किसी दूसरे राजा के सैनिकों का एक बहुत बड़ा दल उस भयानक जंगल में घुस आया। घोड़े को वृक्ष के साथ बँधा देखकर उनको विश्वास हो गया कि इसका सवार भी अवश्य ही आस – पास छिपा बैठा होगा। वे लोग मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे कि यदि कोई मनुष्य उनके हाथ लग जाएगा तो वे उसे प्रातःकाल राजा के पास ले जायेंगे। राजा चामुण्डा देवी को उसकी बलि चढ़ा कर अपना संकल्प पूरा कर लेगा और उनके कर्तव्य का पालन भी हो जाएगा।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ शीर्षक से लिया गया है। लेखिका ने जंगल में एक अन्य राजा के सिपाहियों के आने का वर्णन किया है।

व्याख्या – लेखिका कहती है कि जंगल में रात काफी अंधकारमय हो चुकी थी। तभी अचानक जंगल में किसी अन्य राजा के सिपाहियों का एक बहुत बड़ा झुंड जंगल में आ गया। वे सिपाही राजा शूरसेन के घोड़े को पेड़ से बँधा देखकर बहुत खुश हुए। उन्हें पूर्ण विश्वास हो गया था कि इस घोड़े का सवार भी यहीं कहीं छुपा होगा। इन बातों को सोचकर राजा के सिपाही अपने मन में खुश हो रहे थे। वे सोच रहे थे कि यदि उन्हें इसका सवार मिल गया तो वे उसे पकड़ कर सुबह – सवेरे अपने राजा के पास ले जाएँगे। जहाँ उनका राजा चामुण्डा देवी के समक्ष उसकी बलि चढ़ा कर अपने संकल्प को पूरा करेगा। साथ ही साथ राजा के प्रति उनके कर्त्तव्य का भी पालन स्वतः हो जाएगा।

विशेष –

  • लेखिका ने पुरानी कुप्रथा मानव – बलि की ओर संकेत किया है।
  • भाषा – शैली प्रवाहमयी है।

3. अब बलि देने की तैयारियां शुरू हो गईं। अभी जल्लाद ने तलवार उठाई ही थी कि राजा की नज़र बलि – जीव के कटे हुए अंग पर जा टिकी। राजा हैरान होकर चिल्ला उठा – – – ‘अरे पापियो! यह क्या कर डाला? तुम नहीं जानते कि अंगहीन मनुष्य की बलि नहीं दी जाती। तो हटाइए इसे यहाँ से।’ फिर क्या था। राजा शूरसेन अपने प्राणों की खैर मनाता हुआ वहाँ से तत्काल निकल भागा।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ से अवतरित है। लेखिका ने बलि की कुप्रथा का यथार्थ चित्रण किया
है।

व्याख्या – लेखिका कहती है कि राजा शूरसेन को पकड़ने के बाद उसकी बलि देने की सभी तैयारियाँ पूर्ण हो चुकी थीं। बलि देने के लिए जल्लाद ने अभी अपनी तलवार ऊपर उठाई ही थी कि तभी बलि देने वाले राजा की दृष्टि शूरसेन की कटी हुई उंगली पर जा पड़ी, जिसे देखकर राजा आश्चर्य से चिल्ला उठा कि पापियो! तुम सबने यह क्या अनर्थ कर दिया। तुम्हें इस बात का ज्ञान नहीं कि किसी ऐसे व्यक्ति की बलि नहीं दी जा सकती जिसके शरीर का कोई अंग भंग हो या कटा हुआ हो। इसलिए इस अंगहीन व्यक्ति को बलि की वेदी से तुरन्त हटा दो। राजा के आदेश के तुरंत बाद राजा शूरसेन अपनी जान की खैर मनाता हुआ वहाँ से उसी समय भाग निकला।

विशेष –

  • लेखिका ने बलि – प्रथा की उस बात का उल्लेख किया है जहाँ अंगहीन व्यक्ति की बलि नहीं दी जाती।
  • भाषा सरल, सरस है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

4. राजधानी लौटते हए मार्ग में राजा के विचारों ने पलटा खाया। सोचने लगा कि मन्त्री के इस विश्वास को कि परमात्मा जो करता है अच्छा ही करता है, मैंने भली भांति परख लिया है। अंगहीन होने के कारण ही मेरी जान बची है। अब मैं शीघ्र ही अपने नेकदिल मन्त्री के पास जाता है। नाहक उसकी हत्या करके मैंने घोर अपराध किया है। क्या वह अब भी जीवित है? चलकर देखता हूँ।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ से लिया गया है। लेखिका ने यहाँ राजा शूरसेन के मन में आए परिवर्तन का उल्लेख किया है।

व्याख्या – लेखिका कहती है कि बलि का शिकार होने से बच जाने के बाद जब राजा शूरसेन अपनी राजधानी लौट रहे थे, तभी अचानक उनके विचारों में परिवर्तन आया और वे सोचने लगे कि ‘परमात्मा जो करता है वह अच्छा ही करता है। उसने अपने आस्तिक मंत्री को आज भली प्रकार से जान और समझ लिया है। उँगली कटी होने के कारण ही आज मेरा जीवन बच सका है। अब जल्दी उस साफ दिल मन्त्री सुमति के पास जाता हूँ, जिसकी हत्या करने का घोर अपराध मैंने किया है। राजा के मन में बार – बार विचार आ रहा था कि क्या मन्त्री सुमति अभी जिन्दा होगा। उसे चलकर देखना चाहिए।

विशेष –

  • लेखिका ने राजा शूरसेन के मन में ईश्वर के प्रति उत्पन्न हुए आस्था के भाव और पश्चाताप को उजागर किया है।
  • भाषा सरल, सहज और सरस है।

5. राजा ने मन्त्री को कुएँ से बाहर निकाला। बार – बार अपना दोष स्वीकार करते हुए उससे क्षमा माँगी। मन्त्री ने कहा, महाराज ! परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। मेरा कुएँ में गिरना भी एक शुभ लक्षण था। अंगहीन होने के कारण आप तो बच जाते परन्तु मुझ भले – अच्छे मनुष्य का मौत से छुटकारा पाना सम्भव न होता। इसलिए मानना पड़ता है कि यह सब कुछ परमात्मा ने भलाई के लिए ही किया है।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ से लिया गया है। लेखिका ने यहाँ राजा के मन में आए पश्चाताप और ईश्वर के प्रति विश्वास को उजागर किया है।

व्याख्या – लेखिका कहती है कि मन में पश्चाताप लिए राजा शूरसेन ने मन्त्री सुमति को कुएँ से बाहर निकाला। वह बार – बार सुमति से अपने अपराध की क्षमा याचना कर रहे थे। राजा द्वारा क्षमा याचना करने पर मन्त्री सुमति ने कहा महाराज! ईश्वर जो भी कार्य करता है, वह अच्छा ही होता है। आपके द्वारा मुझे कुएँ में गिराना अच्छा संकेत था। अन्यथा आप तो अंगहीन होने के कारण बंच जाते और वे लोग इस अच्छे खासे व्यक्ति को बलि पर चढ़ा देते। तब इस मन्त्री के लिए बच पाना असम्भव था। अत: मानना पड़ता है, ईश्वर जो भी करता है। वह भलाई के लिए है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

विशेष –

  • लेखिका ने बताया है कि प्रत्येक कार्य मानव की भलाई के लिए ही होता है।
  • भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।

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