PSEB 8th Class Hindi Solutions Chapter 17 नीरज के दोहे

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Chapter 17 नीरज के दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Hindi Chapter 17 नीरज के दोहे

Hindi Guide for Class 8 PSEB नीरज के दोहे Textbook Questions and Answers

(क) भाषा – बोध

I. शब्दार्थ:

उत्तर:
विषय विकार = लोभ, मोह, अहंकार आदि विषय वासनाएँ। शूल = काँटा, चुभन। प्रभु = भगवान । कृपा = दया। निर्मूल = बिना जड़ का, बिना कष्टों और दुखों का। मर्यादा = सदाचार। रम गया = लग गया। निष्काम = इच्छा से रहित। जग = संसार। अनूप = बेजोड़, अति सुंदर। दीखे = दिखाई देता है। भीतर = अंदर। लोभ = लालच। क्रोध = गुस्सा। मुक्ति = छुटकारा। धन = पैसा, दौलत, संपत्ति। मात्र = केवल। मनुज = मनुष्य। ध्येय = उद्देश्य। अगर = यदि। हेय = हीन, तुच्छ। अमरत्व = सदा बने रहना। हित = भला, कल्याण। सर्व-भूत-हित-रत = सब के कल्याण में लीन। सदा = हमेशा। डसे = डसना, डंक मारना। त्यागे = छोड़े। दुष्टता = बुराई। मसलो = कुचलो, दोनों हाथों के बीच रगड़ो। स्नेह = प्रेम। निवास = रहने का स्थान, रहना। निष्ठा = कौशल। श्रद्धा = एकाग्रता, आधार।

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(ख) विषय – बोध

I. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :

(क) इन दोहों के कवि का नाम लिखें।
उत्तर:
इन दोहों के कवि का नाम श्री नीरज है।

(ख) कवि ने प्रभु से क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर:
कवि ने प्रभु से प्रार्थना की है कि वे उसके हृदय में विद्यमान सभी बुराइयों और विषय विकारों को सदा के लिए दूर कर दें।

(ग) हमें अपना मन किस में और किस भाव से रमाना चाहिए ?
उत्तर:
हमें अपना मन मर्यादा और त्याग के प्रतीक श्री राम में रमाना चाहिए।

(घ) कवि ने जग के रंग की तुलना किस रंग से की है ?
उत्तर:
कवि ने जग के रंग की तुलना इंद्रधनुष के रंगों से की है।

(ङ) हम अपने को कब पहचान सकते हैं ?
उत्तर:
जब हमारे मन में लोभ और क्रोध न हो तो हम अपने को पहचानते हैं।

(च) जीवन में महत्त्व किस बात का है ?
उत्तर:
जीवन का महत्त्व इस बात में छिपा है कि हम अपना जीवन किस प्रकार जीते हैं। जीवन का महत्त्व लंबी आयु से नहीं है।

(छ) सभी देशों में भारत की विशेष पहचान क्या है ?
उत्तर:
भारत अन्य देशों के समान स्वार्थी आधार पर कार्य नहीं करता बल्कि सभी देशों के कल्याण की दिशा में कार्य करता है।

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(ज) दृष्ट व्यक्ति की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर:
दुष्ट व्यक्ति की तुलना साँप से की गई है।

(झ) फूल की क्या विशेषता है ?
उत्तर:
फूल की विशेषता है कि वह मसले जाने पर भी सुगंध ही देता है।

(ञ) घर की सुख-शान्ति किस में निहित है ?
उत्तर:
घर की सुख-शान्ति माता-पिता के गुणों और व्यवहार में निहित है।

II. इन दोहों की सप्रसंग व्याख्या करें :

(क) लोभ न जाने……………पहचान।
उत्तर:
देखिए, सप्रसंग व्याख्या भाग।

(ख) स्नेह, शान्ति……………..विश्वास।
उत्तर:
देखिए सप्रसंग व्याख्या भाग।

(ग) साँप’ और ‘फूल’ के उदाहरण द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘साँप’ और ‘फूल’ के उदाहरण देकर कवि ने मानव के स्वभाव को स्पष्ट करना चाहा है। दुष्ट और बुरे लोग साँप जैसे होते हैं जो उनका भला करना वालों का भी बुरा ही करते हैं। अच्छे स्वभाव के लोग फूल की तरह सब को सुगंध ही प्रदान करते हैं। जिस प्रकार फूल मसला जाने के बाद भी सुगंध ही प्रदान करता है उसी प्रकार अच्छे स्वभाव का व्यक्ति बुरे और दुष्ट लोगों का भी कल्याण करना चाहता है।

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(घ) जीवन की पहचान क्या है ? पठित दोहे के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
जीवन की पहचान बुराइयों से दूर रहकर परिश्रम करते हुए ईमानदारी से जीना है। सभी का हित चाहते हुए लोभ और क्रोध से दूर रहकर अच्छी भावना को धारण करना ही इसकी पहचान है।

(ङ) कवि ने धर्म/अध्यात्म से सम्बन्धित दोहों में क्या-क्या कहा है ?
उत्तर:
कवि ने धर्म और अध्यात्म से संबंधित दोहों में कहा है कि इन्सान को केवल अपने स्वार्थ के लिए काम न करते हुए परोपकार की भावना को महत्त्व देना चाहिए। मर्यादा और त्याग के द्वारा समाज को एक साथ जोड़ा जा सकता है। ईश्वर सर्वत्र है और उसे कभी नहीं भुलाना चाहिए। ईश्वर ही हमारे विषय विकारों को दूर करते हैं।

(ग) व्यावहारिक व्याकरण

I. दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें :

जग = ………………..
मुक्ति = ………………..
ध्येय = ………………..
मनुज = ………………..
हित = ………………..
हाथ = ………………..
साँप = ………………..
खुशबू = ………………..
फूल = ………………..
स्नेह = ………………..
उत्तर:
जग = संसार, जगत
मुक्ति = मोक्ष, निर्वाण
ध्येय = उद्देश्य, लक्ष्य
मनुज = मानव, मनुष्य
हित = कल्याण, भलाई
हाथ = हस्त, कर
दूध = दुग्ध, क्षीर
साँप = सर्प, नाग
खुशबू = सुगंध, महक
फूल = पुष्प, प्रसून
स्नेह = प्रेम, प्यार।

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II. ‘जीवित’ में ‘इत’, ‘महत्त्व’ में त्व’ और ‘दुष्टता’ में ‘ता’ प्रत्यय लगे हैं। इन तीनों प्रत्ययों से नये शब्द बनायें :

मर्यादा + इत = ————–
अमर + त्व = ————–
मनुज + ता = ————–
क्रोध + इत = ————–
—– + —— = ————–
—– + —— = ————–
—– + —— = ————–
—– + —— = ————–
—– + —— = ————–
—– + —— = ————–
उत्तर:
मर्यादा + इत = मर्यादित
क्रोध + इत = क्रोधित
सुगन्ध + इत = सुगन्धित
अमर + त्व = अमरत्व
कवि + त्व = कवित्व
मनुष्य + त्व = मनुष्यत्व
मनुज + ता = मनुजता
महान + ता = महानता
मानव + ता = मानवता

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PSEB 8th Class Hindi Guide नीरज के दोहे Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखें :

प्रश्न 1.
मर्यादा और त्याग के नाम से किसे स्मरण करते हैं ?
(क) राम को
(ख) परशुराम को
(ग) अहिराम को
(घ) जगराम को।
उत्तर:
राम को।

प्रश्न 2.
संसार का रंग किसके समान अनुपम है ?
(क) इंद्रधनुष
(ख) अर्जुनधनुष
(ग) राम धनुष
(घ) शिव धनुष।
उत्तर:
इंद्रधनुष।

प्रश्न 3.
लोभ किसे नहीं जानता ?
(क) त्याग को
(ख) प्रेम को
(ग) दान को
(घ) मान को।
उत्तर:
दान को।

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प्रश्न 4.
दुष्ट क्या नहीं त्यागता ?
(क) प्रेम
(ख) संबंध
(ग) मित्रता
(घ) दुष्टता।
उत्तर:
दुष्टता।

प्रश्न 5.
फूल को मसल देने पर भी वह क्या नहीं त्यागता ?
(क) आकार
(ख) पंखुड़ियाँ
(ग) पराग
(घ) सुगंध।
उत्तर:
सुगंध।

सप्रसंग व्याख्या

1. मेरे विषय विकार जो, बने हृदय के शूल।
हे प्रभु, मुझ पर कृपा कर, करो उन्हें निर्मूल॥

शब्दार्थ:
विषय विकार = लोभ, मोह, अहंकार आदि विषय वासनाएँ। शूल = काँटा, चुभन। प्रभु = भगवान । कृपा = दया। निर्मूल = बिना जड़ का, बिना कष्टों और दुखों का।

प्रसंग:
यह दोहा कविवर ‘नीरज’ द्वारा रचित ‘नीरज के दोहे’ नामक कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि वे उनके हृदय को विकारों से रहित बना

व्याख्या:
कवि कहता है हे भगवन् ! मेरे हृदय में तरह-तरह के विषय-विकार काँटा बनकर चुभे हुए हैं। लोभ, मोह, अहंकार आदि बुराइयाँ मेरे भीतर चुभ कर मुझे सदा कष्ट देते रहते हैं। आप कृपा करके मेरे इन कष्टों और दुखों को सदा के लिए दूर कर दीजिए। भाव है कि कवि अपने जीवन को विषय विकारों से मुक्त करना चाहता है जिससे हृदय में पवित्रता का भाव बना रहे।

विशेष:

  1. कवि ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि वह उसे तरह-तरह की बुराइयों से दूर रखे।
  2. तत्सम शब्दों का प्रयोग अधिक किया गया है।

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2. मर्यादा और त्याग का, एक नाम है राम।
उसमें जो मन रम गया, रहा सदा निष्काम।।

शब्दार्थ: मर्यादा = सदाचार। रम गया = लग गया। निष्काम = इच्छा से रहित।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित कविता ‘नीरज के दोहे’ से लिया गया है। कवि ने इसमें श्री राम के महत्त्व को प्रकट किया और माना है कि उनके नाममात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

व्याख्या:
कवि ने श्री राम के गुणों को प्रकट करते हुए कहा है कि सदाचार का पालन और त्याग देने की अपार शक्ति ही श्री राम का एक नाम है। जो भी प्राणी उस नाम में एक बार लीन हो गया वह सदा-सदा के लिए किसी भी प्रकार की इच्छा से रहित हो गया। भाव है कि श्री राम की भक्ति का फल भक्त को यह मिलता है कि उसकी सभी इच्छाएँ अपने आप ही पूरी हो जाती हैं और वह किसी अतिरिक्त इच्छा को प्रकट ही नहीं करता।

विशेष:

  1. कवि ने श्री राम के प्रति आस्था और उनकी अपार शक्ति को प्रकट किया है।
  2. तत्सम शब्दों का अधिकता से प्रयोग किया गया है।

3. इन्द्रधनुष के रंग-सा जग का रंग अनूप।
बाहर से दीखे अलग, भीतर एक स्वरूप।

शब्दार्थ : जग = संसार। अनूप = बेजोड़, अति सुंदर। दीखे = दिखाई देता है। भीतर = अंदर।

प्रसंग:
यह दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित पाठ ‘नीरज के दोहे’ से लिया गया है। यह कवि नीरज द्वारा रचित है। कवि ने ईश्वर के द्वारा बनाई इस सृष्टि के अद्भुत रूप को प्रकट किया है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि यह संसार इन्द्रधनुष के सात रंगों की तरह अति सुंदर और अनूठा है। इसमें पूरी तरह से सुंदरता छिपी हुई है। यह बाहर से अलग तरह का दिखाई देता है, पर इसके भीतर ईश्वर का एक स्वरूप ही विद्यमान है। भाव है कि माया से युक्त इस सतरंगी दुनिया की रचना करने वाले ईश्वर ही हैं।

विशेष:

  1. कवि ने ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को व्यक्त किया है।
  2. भाषा सरस और भावपूर्ण है। तत्सम शब्दों की अधिकता है। |

4. लोभ न जाने दान को, क्रोध न जाने ज्ञान।
हो दोनों से मुक्ति जब, हो अपनी पहचान॥

शब्दार्थ : लोभ = लालच। क्रोध = गुस्सा। मुक्ति = छुटकारा।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित पाठ ‘नीरज के दोहे’ से लिया गया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि इस संसार में रहने वाले अपनी वास्तविक पहचान प्रकट कर सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें प्रयत्न करना पड़ेगा।

व्याख्या:
कवि कहता है कि मनुष्य के हृदय में जब लालच और जमाखोरी का भाव आ जाता है तो वह दूसरों को दान नहीं दे सकता। वह औरों की सहायता नहीं करता। गुस्सा करने पर वह अपना ज्ञान भूल जाता है, वह अज्ञानी और मूर्ख-सा व्यवहार करने लगता है। जब लालच और गुस्से से वह मुक्ति पा जाता है तो वह अपनी पहचान बना पाता है भाव है कि अवगुणों के समाप्त हो जाने के बाद ही वह समाज में अपना नाम और पहचान को बना सकता है।

विशेष:

  1. कवि ने जीवन की वास्तविकता को प्रकट किया है।
  2. भाषा सरल, सरस और भावपूर्ण है।

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5. धन तो साधन मात्र है, नहीं मनुज का ध्येय।
ध्येय बनेगा धन अगर, जीवन होगा हेय॥

शब्दार्थ : धन = पैसा, दौलत, संपत्ति। मात्र = केवल। मनुज = मनुष्य। ध्येय = उद्देश्य। अगर = यदि। हेय = हीन, तुच्छ।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित पाठ ‘नीरज के दोहे’ से लिया गया है। कवि ने इस में धन को मनुष्य की आवश्यकता तो माना है लेकिन उसे अपना सब कुछ न मानने की शिक्षा दी है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि हम सब मनुष्यों के लिए धन केवल एक साधन है। यह किसी भी प्रकार से मनुष्य के जीवन का उद्देश्य नहीं है। यदि धन-संपत्ति को जीवन का उद्देश्य मान लिया तो हमारा जीवन हीन हो जाएगा, वह व्यर्थ हो जाएगा। कवि का भाव है कि मनुष्य के जीवन में धन का महत्त्व अवश्य है पर वह उसका उद्देश्य नहीं मान लिया जाना चाहिए।

विशेष:

  1. कवि ने मानव-जीवन में धन की स्थिति को प्रकट किया है जो किसी भी प्रकार सब कुछ नहीं माना जाना चाहिए।
  2. कवि की भाषा सरल, सरस और भावपूर्ण है। तत्सम शब्दों की अधिकता है।

6. हम कितना जीवित रहे, इसका नहीं महत्त्व।
हम कैसे जीवित रहे, यही तत्त्व अमरत्व।

शब्दार्थ : अमरत्व = सदा बने रहना।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘नीरज के दोहे’ नामक कविता से लिया गया है। कवि ने जीवन के लंबे होने को महत्त्वपूर्ण नहीं माना बल्कि जीवन जीने के ढंग को महत्त्वपूर्ण माना है।

व्याख्या:
कवि कहता है मनुष्य के जीवन में इस बात का महत्त्व नहीं है कि हम कितना लंबा जीवन जीते हैं। हम किस प्रकार जीवित रहते हैं-यही महत्त्वपूर्ण है और यही किसी व्यक्ति के अमरत्व तत्व को प्रकट करता है। भाव है कि छोटी-सी अच्छे ढंग से जी हुई, मानव की जिंदगी लंबे जीवन से कई गुना अच्छी होती है जो उसे सेवा, कल्याण, भक्ति और श्रेष्ठता के कारण समाज में ऊँचा नाम प्रदान कर देती है। उसके मर जाने के लंबे समय बाद भी उस का सम्मानपूर्वक नाम लिया जाता है, उसे याद किया जाता है।

विशेष:

  1. कवि ने मनुष्य को जीवित अवस्था में श्रेष्ठ कार्य करने की प्रेरणा देते हुए लंबे जीवन को महत्त्वपूर्ण नहीं माना है।
  2. भाषा सरल, सरस और भावपूर्ण है। तत्सम शब्दावली की अधिकता है।

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7. अपना ही हित साधते, सारे देश विशेष।
सर्व-भूत-हित-रत सदा, वो है भारत देश।

शब्दार्थ : हित = भला, कल्याण। सर्व-भूत-हित-रत = सब के कल्याण में लीन। सदा = हमेशा।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित पाठ ‘नीरज के दोहे’ से लिया या है। इसके कवि श्री नीरज हैं। कवि ने भारत देश की महत्ता को प्रकट किया है और माना है कि वह अपने गुणों के कारण अन्य देशों से भिन्न है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि संसार के अन्य देश विशेष रूप से अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए ही कार्य करते हैं, वे केवल अपना ही हित साधते हैं। वे दूसरे देशों के कल्याण की बात नहीं सोचते। वह केवल भारत देश ही है जो सदा सब के कल्याण के लिए कार्य करने में लगा रहता है।

विशेष:

  1. कवि ने भारतवासियों की परोपकारिता और कल्याणकारी प्रकृति को प्रकट किया है।
  2. भाषा में तत्सम शब्दावली की अधिकता है।

8. दूध पिलाये हाथ जो, डसे उसे भी साँप।
दुष्ट न त्यागे दुष्टता, कुछ भी कर लें आप॥

शब्दार्थ : डसे = डसना, डंक मारना। त्यागे = छोड़े। दुष्टता = बुराई।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक में श्री नीरज के द्वारा रचित ‘नीरज के दोहे’ नामक कविता से लिया गया है। कवि ने दुष्ट स्वभाव वाले व्यक्ति के बारे में अपने भाव प्रकट किये हैं।

व्याख्या:
कवि कहता है कि साँप उस हाथ को भी डस लेता है जो उसे दूध पिलाता है। वह उसके प्रति भी अहित ही करता है जो उसे जीवन देना चाहता है। दुष्ट प्राणी कभी भी अपनी दुष्टता को नहीं छोड़ता चाहे कोई उसके हित के लिए कुछ भी कर ले। भाव है कि दुष्ट व्यक्ति किसी भी अवस्था में अपनी दुष्टता को नहीं त्यागता। वह किसी का कैसा भी एहसान नहीं मानता, चाहे कोई कुछ भी कर ले।

विशेष:

  1. कवि ने दुष्ट स्वभाव वाले प्राणियों के स्वभाव का सटीक चित्रण किया
  2. भाषा सरल, सरस और भावपूर्ण है।

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9. तोड़ो मसलो या कि तुम, उस पर डालो धूल।
बदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल।

शब्दार्थ : मसलो = कुचलो, दोनों हाथों के बीच रगड़ो।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘नीरज के दोहे’ नामक कविता से लिया गया है जिसमें कवि ने अच्छे स्वभाव वाले लोगों की विशेषता को प्रकट किया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि अच्छे स्वभाव के लोग हानि पहुँचाने वालों के प्रति भी बुरा व्यवहार नहीं करते। वे उनके लिए भी कल्याण का भाव ही अपने मन में रखते हैं। यदि किसी फूल को तोड़ो, दोनों हाथों के बीच मसलो या उस पर धूल डालो तो भी बदले में कभी नुकसान नहीं पहुंचाते। वे बदले में तुम्हें खुशबू ही देते हैं। अच्छे लोग विपरीत व्यवहार करने पर भी अहित का भाव मन में कभी नहीं लाते। भाव है कि अच्छे लोग हर स्थिति में अच्छे ही रहते हैं।

विशेष:

  1. कवि ने अच्छे स्वभाव के लोगों को हर स्थिति में अच्छा व्यवहार करने वाला ही माना है।
  2. भाषा सरल, सरस और भावपूर्ण है।

10. स्नेह, शान्ति, सुख सदा ही, करते वहाँ निवास।
निष्ठा जिस घर माँ बने, पिता बने विश्वास॥

शब्दार्थ : स्नेह = प्रेम। निवास = रहने का स्थान, रहना। निष्ठा = कौशल। श्रद्धा = एकाग्रता, आधार।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित पाठ ‘नीरज के दोहे’ से लिया गया है। इसके रचयिता श्री नीरज हैं। कवि ने किसी भी अच्छे घर के गुणों को माता-पिता के गुणों के आधार पर प्रकट किया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि किसी भी घर की सुख-शांति और प्रेम की नींव की मज़बूती उसके माता-पिता के गुण होते हैं। जिस भी घर में श्रद्धा, एकाग्रता और कौशल की आधार माँ होती है और पिता विश्वास के आधार बनते हैं। उस घर में सदा ही स्नेह, शांति और सुख का निवास होता है। उस घर में सब प्रकार का आनंद होता है। भाव है कि किसी भी घर की खुशियाँ उसमें रहने वाले माता-पिता के उच्च संस्कारों और गुणों पर निर्भर करती हैं। बच्चे उन्हीं अच्छे गुणों को प्राप्त करके अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाते हैं।

विशेष:

  1. कवि ने किसी भी परिवार के संस्कारों की श्रेष्ठता को माता-पिता के कारण माना है जो परिवार की सुख-शांति के आधार बनते हैं।
  2. भाषा में सरलता, सरसता और सहजता के गुण विद्यमान है।

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नीरज के दोहे Summary

नीरज के दोहे दोहों का सार

कवि ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहता है कि हे भगवन् ! तरह-तरह की बुराइयाँ मेरे हृदय में काँटे की तरह चुभ रही हैं। कृपा कर के उन्हें सदा के लिए मिटा दो। मर्यादा और त्याग ही तो राम का नाम है। जिसका मन इन दोनों में लग जाता है वह सदा बुराइयों से दूर हो जाता है। यह सारा संसार इंद्रधनुष के रंग जैसा दिखाई देता है। यह बाहर से अलगअलग तरह का दिखाई देता है पर इसके अंदर तो परमात्मा का एक स्वरूप ही विद्यमान है। लालच का भाव कभी दान नहीं करने देता और गुस्सा मनुष्य को ज्ञान से दूर करता है। इन दोनों से जब मुक्ति मिल जाती है तभी अपनी पहचान बनती है। धन केवल साधन है। यह मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं होता। यदि जीवन का लक्ष्य केवल धन बन जाएगा तो यह तुच्छ और व्यर्थ हो जाएगा। हम मनुष्य कितना लंबा जीवन जीते हैं इसका कोई अर्थ नहीं है। वास्तविकता तो इस बात में है कि हम किस प्रकार जीवित रहते हैं। इस संसार के सारे देश अपना-अपना स्वार्थ पूरा करते हैं। केवल भारत देश ही ऐसा है जो प्राणी मात्र के लिए प्रयत्न करता रहता है। जो हाथ दूध पिलाते हैं साँप तो उन्हें भी डसता है। आप कुछ भी कर लीजिए दुष्ट व्यक्ति कभी भी अपनी दुष्टता नहीं छोड़ सकता। अच्छा व्यक्ति हर स्थिति में अपने गुणों को ही प्रकट करता है। आप किसी फूल को तोड़ो या मसल डालो पर बदले में वह सदा सुगंध ही देता है। जिस घर में माँ निष्ठावान होती है और इसे किसी भी तरह पिता विश्वास का रूप बन जाते हैं वहाँ सदा प्रेम, शांति और सुख ही निवास करते हैं।

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