PSEB 8th Class Hindi Solutions Chapter 21 हरी-हरी दूब पर

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Chapter 21 हरी-हरी दूब पर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Hindi Chapter 21 हरी-हरी दूब पर

Hindi Guide for Class 8 PSEB हरी-हरी दूब पर Textbook Questions and Answers

(क) भाषा ज्ञान

I. शब्दार्थ

उत्तर:
दूब = प्यास।
ओस = वाष्प का रूप।
क्वाँर = आश्विन (कुआर) का महीना।
फूटा = उगा।
बालसूर्य = प्रात:कालीन सूर्य।
पाँव फैलाना = निकलना, उदित होना।
बगीची = छोटी बगिया।
ताप = गरमी।
भाप = जल का वाष्पीय रूप।
सत्य = सच्चाई।
क्षणिक = पल भर रहने वाली, कम आयु की।
सौन्दर्य = सुन्दरता।

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(ख) विषय-बोध

I. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें

प्रश्न (क)
ओस की बूंदें अभी थीं, अब नहीं हैं’-इस पंक्ति में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर:
कवि कहता है कि ओस की बूंदें कुछ देर पहले तो थीं पर धूप की गर्मी से अब वे भाप बन कर उड़ गई हैं।

प्रश्न (ख)
हमारी खुशियों के बारे में कवि ने क्या कहा है ?
उत्तर:
हमारी खुशियों के बारे में कहा कि वे सदा नहीं रहतीं। वे कभी आती हैं और कभी नष्ट हो जाती हैं।

प्रश्न (ग)
प्रातःकालीन सूर्य से बगीचे की सुन्दरता का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रात:कालीन सूर्य से हर पौधे का एक-एक पत्ता जगमगा उठता है। उनमें चमक-सी आ जाती है।

प्रश्न (घ)
क्यों न मैं क्षण-क्षण को जीऊँ’ में कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर:
कवि कहना चाहता है कि ओस की आयु चाहे बहुत छोटी है पर उसकी सुन्दरता को हर पल वह महसूस करना चाहता है। उसका आनन्द पाना चाहता है।

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II. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें

प्रश्न (क)
जीवन की वास्तविकता को स्वीकार करने में कवि कहाँ तक सफल हो पाया है ?
उत्तर:
कवि ने माना है कि जीवन के तरह-तरह के रंग होते हैं। वे सुख भी देते हैं और दुःख भी। सभी के लिए सुख की प्राप्ति के भिन्न-भिन्न आधार होते हैं। कवि को घास पर पड़ी ओस की छोटी-छोटी बूंदें आकर्षक लगती हैं। वह उन्हें वास्तविकता मानता है पर सूर्य की गर्मी उन्हें भाप में बदल कर मिटा देती है। ओस की बूंदें कवि के जीवन की वास्तविकता हैं पर वे क्षणिक हैं, लेकिन सूर्य का हर रोज पूरब दिशा से प्रकट होना भी वास्तविकता है।

प्रश्न (ख)
शाश्वत खुशियों के सन्दर्भ में कवि की क्या धारणा है ?
उत्तर:
शाश्वत का अर्थ है-जो सदा रहे। जो पहले भी था, अब भी है और आगे भी होगा। जीवन में खुशियाँ सभी को प्राप्त होती हैं पर वे क्षणिक होती हैं। कोई भी ऐसा प्राणी नहीं हो सकता जिसकी खुशियाँ शाश्वत हों। हर व्यक्ति के जीवन में सुखों के बाद दु:ख और दुःखों के बाद सुख अवश्य आते हैं।

(ग) व्यावहारिक व्याकरण

I. पर्यायवाची शब्द लिखें

(क) दूब = …………………
(ख) ओस = …………………
(ग) पाँव = …………………
(घ) क्षण = …………………
(ङ) पत्ता = …………………
(च) सौन्दर्य = ………….
(छ) सूर्य = …………………
(ज) सत्य = …………………
उत्तर:
(क) दूब = घास, दूर्वा
(ख) ओस = शबनम, तुहिनकण
(ग) पाँव = पाद, पैर
(घ) क्षण = पल, अवसर
(ङ) पत्ता = पत्र, पर्ण
(च) सौन्दर्य = सुन्दरता, लावण्य
(छ) सूर्य = सूरज, दिवाकर
(ज) सत्य = सच, यथार्थ।

II. (क) निम्नलिखित अनेकार्थक शब्दों के विभिन्न अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयुक्त करें

मगर – लेकिन – वह आ तो सकता था मगर आया नहीं।
मगर – घड़ियाल – मैंने चिड़ियाघर में एक मगर देखा।
बाल, हरी, हर, पूरब

उत्तर:
बाल – केश = रेवा की दादी जी के बाल बिल्कुल सफेद हैं।
बाल – बच्चा = कृष्ण का बाल-रूप कितना सुन्दर और आकर्षक था।
हरी – एक रंग = आप की साड़ी पर हरी कढ़ाई सुन्दर है।
हरी – हरण करना = कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी की लाज हरी थी।
हर – प्रत्येक = हर सोमवार हमारी गणित की परीक्षा हुआ करती थी।
हर – भगवान शिव = हर-हर गंगे करते हुए सब आगे बढ़ गए थे।
पूरब – एक दिशा का नाम = सूर्य पूरब दिशा से निकलता है।
पूरब – पहले = इससे पूरब तो आप को कभी इस गली में नहीं देखा गया।

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(घ) रचनात्मक व्याकरण

(i) आप प्रात:कालीन और सायंकालीन सैर करने के लिए बाग़ में जाते होंगे। प्रात:कालीन सूर्य की लालिमा, पक्षियों का कलरव, ओस के कणों पर सतरंगी इन्द्रधनुषी आभा, फूलों की खुशबू और सुन्दरता, तालाब में खिला कमल आदि प्राकृतिक सुन्दरता का आपने अनुभव किया होगा। इस तरह के अनुभवों को अपनी डायरी में लिखने का प्रयत्न करें।
(ii) सुमित्रानंदन पंत की किरणों का खेल’ डॉ० राम कुमार वर्मा द्वारा रचित ‘ये गजरे तारों वाले’ तथा ‘जयशंकर प्रसाद की ‘बीती विभावरी जाग री’ कविताएँ पढ़कर प्राकृतिक सुन्दरता का आनन्द लें।
(iii) श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री हैं। वे कविताएँ, गीत, व्यंग्यात्मक रचनाएँ, मुक्तक छंद लिखने में सिद्धहस्त हैं। उनकी अन्य रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
(iv) ‘ओस का मोती’ एक मुहावरा है जिसका अर्थ है-‘क्षणिक अस्तित्व की वस्तु एवं बात।
उत्तर:
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

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बहुविकल्पीय प्रश्न निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
ओस की बूंदें क्या बन कर उड़ गईं ?
(क) पानी
(ख) भाप
(ग) ताप
(घ) धूल।
उत्तर:
भाप।

प्रश्न 2.
ओस की बूंदों को किस ने सुखा दिया ?
(क) सूर्य ने
(ख) हवा ने
(ग) धूल ने
(घ) बादल ने।
उत्तर:
सूर्य ने।

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प्रश्न 3.
किस की कोख से बाल सूर्य निकला ?
(क) क्वॉर
(ख) ज्वार
(ग) बाजरा
(घ) मक्का ।
उत्तर:
क्वॉर।

प्रश्न 4.
बाल सूर्य किस की गोद में पाँव फैलाने लगा ?
(क) पूर्व
(ख) उत्तर
(ग) पश्चिम
(घ) दक्षिण।
उत्तर:
पूर्व।

प्रश्न 5.
कवि उगते सूर्य को नमस्कार करने के स्थान पर किसे ढूँढ रहा है ?
(क) ओस की बूंद को
(ख) क्वॉर को
(ग) पत्ते को
(घ) भाप को।
उत्तर:
ओस की बूंद को।

प्रश्न 6.
कवि के अनुसार सूर्य क्या है ?
(क) एक सत्य
(ख) एक झूठ
(ग) एक चमत्कार
(घ) एक नक्षत्र।
उत्तर:
एक सत्य।

प्रश्न 7.
ओस का जीवन कैसा है ?
(क) स्थाई
(ख) क्षणिक
(ग) रंगीन
(घ) बदरंग।
उत्तर;
क्षणिक।

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प्रश्न 8.
कवि के अनुसार हर मौसम में क्या नहीं मिलती ?
(क) धूप
(ख) वर्षा
(ग) ओस की बूंद
(घ) चाँदनी।
उत्तर:
ओस की बूंद।

सप्रसंग व्याख्या

1. हरी-हरी दूब पर
ओस की बूंदें
अभी थीं,
अब नहीं हैं।
ऐसी खुशियाँ
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थीं,
कहीं नहीं हैं।

शब्दार्थ : दूब = प्यास। ओस = वाष्प का रूप।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता ‘हरी-हरी दूब पर’ से ली गई हैं। कवि ने प्रकृति में आने वाले परिवर्तन से अपने जीवन के सुख-दुखों को जोड़कर प्रकट किया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि अभी कुछ देर पहले प्रातः के समय हरी-हरी घास पर ओस की कुछ बूंदें थीं पर वे अब वहाँ नहीं हैं। ऐसी खुशियाँ जो साथ रहें, मन को प्रसन्नता देती रहें, वे सदा हमारे साथ नहीं रहतीं। न तो वे पहले कभी रही थीं और न कभी वर्तमान में रही हैं। भाव है कि जीवन में सुख आते हैं, लेकिन वे क्षणिक होते हैं। वे कुछ देर तक तो हमारे साथ रहते हैं पर समय के साथ वे भी समाप्त हो जाते हैं।

विशेष:

  1. कवि ने जीवन में आने वाले सुखों की अस्थिरता को प्रकट किया है।
  2. भाषा सरल और सरस है।

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2. क्वाँर की कोख से
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बूंदों को ढूँढूँ ?

शब्दार्थ:
क्वाँर = आश्विन (कुआर) का महीना। फूटा = उगा। बालसूर्य = प्रात:कालीन सूर्य। पाँव फैलाना = निकलना, उदित होना। बगीची = छोटी बगिया। ताप = गरमी। भाप = जल का वाष्पीय रूप। .

प्रसंग:
यह पद्यांश हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘हरी हरी दब पर’ नामक कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने सुबह के समय सूर्य के पूर्व दिशा से निकलने का वर्णन किया है जिसका सारी प्रकृति पर प्रभाव पड़ा है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि आश्विन (कुआर) का महीना था। उसकी कोख से बाल सूर्य प्रकट हुआ। जब वह बाल सूर्य पूर्व दिशा की गोद में धीरे-धीरे अपने पाँव फैलाने लगा तो मेरी छोटी-सी बगिया में पौधों का एक-एक पत्ता जगमगाने लगा था। प्रातः की कोमल धूप में हरे-भरे पत्ते चमकने लगे थे। कवि कहता है कि मुझे अब समझ नहीं आ रहा है कि मैं सुबह के समय आकाश में प्रकट होने वाले सूर्य को प्रणाम करूँ या कुछ देर पहले घास पर जगमगाने वाली ओस की बूंदों को ढूँढूँ जो हल्की धूप के आने से भाप बनकर पता नहीं उड़ गई हैं। भाव है कि कवि का प्रकृति-प्रेम बदलते समय के कारण आए परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर पा रहा। उसे ओस की बूंदों का सौन्दर्य अधिक प्रिय था।

विशेष:

  1. कवि ने प्रकृति के रूप की परिवर्तनशीलता की ओर संकेत किया है।
  2. भाषा सरल, सरस और भावपूर्ण है।

3. सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण-क्षण को जीऊँ ?
कण-कण में बिखरे सौन्दर्य को पीऊँ ?
सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद
हर मौसम में नहीं मिलेगी।

शब्दार्थ : सत्य = सच्चाई। क्षणिक = पल भर रहने वाली, कम आयु की। सौन्दर्य = सुन्दरता।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कविता ‘हरी हरी दूब पर’ से ली गई हैं। कवि प्रकृति में विद्यमान कोमलता को प्रेम करता है पर परिवर्तन तो कठोर भी होता है। कवि उस कठोरता को सहन नहीं कर पा रहा।

व्याख्या:
कवि कहता है कि सूर्य का उगना और संसार को धूप देना एक ऐसी सच्चाई है जिसे किसी भी अवस्था में झुठलाया नहीं जा सकता। पर यह भी सच है कि घास पर ओस की बूंदें प्रकट हुई थीं। यह अलग बात है कि ओस पलभर के लिए रहने वाली है। मैं ओस की उज्ज्वलता, सुन्दरता और कोमलता के हर पल को क्यों न पीऊँ। कण-कण में बिखरी उस सुन्दरता को मैं क्यों मन से प्राप्त करूँ। सूर्य तो फिर भी उगेगा। वह बार-बार प्रकट होगा। धूप हर रोज़ खिलेगी पर मेरी बगीची की हरी-हरी घास पर ओस की बूंदें तो हर मौसम में मुझे नहीं मिलेंगी। भाव है कि ओस तो केवल सर्दी की ऋतु में ही घास पर दिखाई देती है और उसकी अपनी ही सुन्दरता है। उसे भी किसी प्रकार से नकारा नहीं जा सकता।

विशेष:

  1. कवि ने माना है कि प्रकृति के हर रंग में सुन्दरता है, लेकिन हर इन्सान की पसन्द अलग-अलग है। किसी को प्रकृति का कोई रूप अच्छा लगता है तो किसी को कोई।
  2. भाषा सरल और सरस है।

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हरी-हरी दूब पर Summary

हरी-हरी दूब पर कविता का सार

कवि ने अपनी कविता में प्रकृति में आने वाले परिवर्तनों को सूक्ष्मता से देखा है और उन्हें प्रकट किया है। सुबह-सवेरे हरी-हरी घास ओस की बूंदें अभी कुछ देर पहले तो दिखाई दे रही थीं पर अब वे वहाँ नहीं हैं। हमारे जीवन में भी खुशियाँ आती हैं। वे पलभर रहती हैं और फिर हमारा साथ छोड़ जाती हैं। आश्विन महीने में सुबह सूर्य पूर्व दिशा में जब प्रकट हुआ तो मेरी बगीची का पत्ता-पत्ता जगमगा उठा था। मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब मैं सूर्य देव को प्रकाश देने के लिए प्रणाम करूँ या उस धूप के कारण भाप बन गई ओस को ढूँढूँ। सूर्य एक सच्चाई है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता पर ओस की बूंद भी तो सच है। हाँ, इतना ठीक है कि ओस का जीवन पलभर का है और पल-पल की खुशी को पीने का मुझे अधिकार है। मैं उसे प्राप्त क्यों न करूँ ? सूर्य तो फिर उगेगा, धूप भी निकलेगी पर मेरी बगीची में हर मौसम में ओस की बूंदें तो दिखाई नहीं देंगी।

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