Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी
SST Guide for Class 9 PSEB श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी Textbook Questions and Answers
(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम
(क) बीबी भानी
(ख) सभराई देवी
(ग) बीबी अमरो
(घ) बीबी अनोखी।
उत्तर-
(क) बीबी भानी
प्रश्न 2.
गुरु रामदास जी के बड़े पुत्र का नाम
(क) महादेव
(ख) अर्जन देव
(ग) पिरथी चन्द
(घ) हरगोबिंद।
उत्तर-
(ग) पिरथी चन्द
प्रश्न 3.
गुरु हरिगोबिंद जी को जहांगीर ने कौन-से किले में कैद किया था ?
(क) ग्वालियर
(ख) लाहौर
(ग) दिल्ली
(घ) जयपुर।
उत्तर-
(क) ग्वालियर
प्रश्न 4.
खुसरो गुरु अर्जन देव जी को कहां मिला ?
(क) गोइंदवाल
(ख) हरिगोबिंदपुर
(ग) करतारपुर
(घ) संतोखसर।
उत्तर-
(क) गोइंदवाल
प्रश्न 5.
श्री गुरु अर्जन देव जी को जहांगीर द्वारा कब शहीद किया गया ?
(क) 24 मई, 1606 ई०
(ख) 30 मई, 1606 ई०
(ग) 30 मई, 1581 ई०
(घ) 24 मई, 1675 ई०
उत्तर-
(ख) 30 मई, 1606 ई०
(ख) रिक्त स्थान भरो :
1. श्री गुरु अर्जन देव जी का गुरुकाल …….. से …….. तक था।
2. 1590 ई० में श्री गुरु अर्जन देव जी ने ………. नामक सरोवर बनावाया।
उत्तर-
- 1581 ई०-1606 ई०
- तरनतारन।
(ग) सही मिलान करो :
(क) – (ख)
1. श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी – 1. जहांगीर
2. मीरी पीरी – 2. 30 मई 1606 ई०
3. साईं मियां मीर – 3. श्री गुरु हरिगोबिंद जी
4. खुसरो – 4. श्री हरिमंदर साहिब की नींव रखना।
उत्तर-
- 30 मई 1606 ई०
- श्री गुरु हरिगोबिंद जी
- श्री हरिमंदर साहिब की नींव रखना
- जहांगीर।
(घ) अंतर बताओ :
मीरी और पीरी
उत्तर-‘मीरी’ और ‘पीरी’ नामक दो तलवारें थीं-जो श्री गुरु हरगोबिन्द जी ने धारण की थीं। इनमें ‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी, जबकि ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व को प्रतीक दर्शाती थी।
अति लघु उत्तर वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
सिक्खों के पांचवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
श्री गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 2.
श्री हरिमंदर साहिब जी की नींव कब और किसने रखी ?
उत्तर-
श्री हरिमंदर साहिब की नींव 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफी फकीर मियां मीर जी ने रखी।
प्रश्न 3.
श्री गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी को किससे लिखवाया ?
उत्तर-
भाई गुरदास जी से।
प्रश्न 4.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कार्य कब पूरा हुआ ?
उत्तर-
1604 ई० में।
प्रश्न 5.
नक्शबंदी नामक लहर का नेता कौन था ?
उत्तर-
शेख अहमद सरहंदी।
प्रश्न 6.
श्री हरिमंदर साहिब के पहले ग्रंथी कौन थे ?
उत्तर-
बाबा बुड्ढा जी।
प्रश्न 7.
‘दसवंध’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दसवंध से भाव यह है कि प्रत्येक सिख अपनी आय का दसवां भाग गुरु जी के नाम भेंट करे।
लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी किसे और कब सौंपी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी को अपने तीनों पुत्रों में से एक को गुरु पद सौंपना था। उन्होंने तीनों के विषय में काफी सोच-विचार किया। उनमें से एक (महादेव) फकीर था। उसे सांसारिक विषयों से कोई लगाव न था। अतः गुरु जी ने उसे गुरु पद देना उचित न समझा। उनका दूसरा पुत्र पृथीचंद अथवा पृथिया भी इस पद के अयोग्य था क्योंकि वह धोखेबाज तथा षड्यंत्रकारी था। इन परिस्थितियों में गुरु रामदास जी ने 1581 ई० में अपने छोटे पुत्र अर्जन देव को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
प्रश्न 2.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
मुगल सम्राट जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया। परंतु गुरु जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बंदी बना लिया गया और 30 मई 1606 ई० को अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया। सिख परम्परा में गुरु अर्जन देव जी को ‘शहीदों का सिरताज’ कहा जाता है।
प्रश्न 3.
‘जहांगीर की धार्मिक असहष्णुिता’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के विपरीत सम्राट जहांगीर एक कट्टर मुसलमान था। वह अपने धर्म को बढ़ाना चाहता था। परंतु उस समय हर जाति व धर्म के लोग सिक्ख धर्म की उदारता और सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर सिक्ख धर्म को अपना रहे थे। जहांगीर सिख धर्म की बढ़ती लोकप्रियता को सहन नहीं कर सका और वह गुरु अर्जन देव जी से ईर्ष्या करने लगा। अंततः इसी कारण गुरु जी की शहादत हुई।
प्रश्न 4.
चंदूशाह कौन था और वह श्री गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध क्यों हो गया ?
उत्तर-
चंदूशाह लाहौर दरबार (मुग़ल राज्य) का प्रभावशाली अधिकारी.था। उसकी पुत्री का विवाह गुरु अर्जन देव जी के पुत्र हरगोबिंद के साथ होना निश्चित हुआ था, परंतु चंदू शाह अहंकारी था। गुरु जी ने संगत की सलाह मानते हुए इस रिश्ते से साफ इंकार कर दिया। चंदूशाह ने इसे अपना अपमान समझा और गुरु जी का विरोधी बन बैठा। उसने बादशाह अकबर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया, परंतु वह असफल रहा। बाद में उसने मुग़ल बादशाह जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए उकसाया, जोकि अंततः गुरु जी की शहादत का कारण बना।
प्रश्न 5.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तत्कालीन कारण क्या था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी मुग़ल सम्राट् जहांगीर के समय में मई, 1606 ई० में हुई। इस शहीदी के पीछे मुख्यत: जहांगीर की कट्टर धार्मिक नीति का हाथ था। गुरु जी ने जहांगीर के विद्रोही पुत्र खुसरो को आशीर्वाद दिया था। उन्होंने गुरु घर में आने पर उसका आदर-सम्मान किया और उसे लंगर भी छकाया। गुरु जी का यह कार्य राजनीतिक अपराध माना गया। गुरु जी द्वारा आदि ग्रंथ साहिब की रचना ने जहांगीर का संदेह और भी बढ़ा दिया। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रंथ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध काफी कुछ लिखा गया है। अतः जहांगीर ने गुरु जी को दरबार में बुलावा भेजा। उसने गुरु जी को आदेश दिया कि वे इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद साहिब के विषय में भी कुछ लिखें परंतु गुरु जी ने इस संबंध में ईश्वर के आदेश के सिवा किसी अन्य के आदेश का पालन करने से इंकार कर दिया। यह उत्तर सुनकर मुग़ल सम्राट ने गुरु अर्जन देव जी को कठोर शारीरिक कष्ट देकर शहीद करने डालने का आदेश जारी कर दिया।
प्रश्न 6.
मसंद प्रथा का सिख धर्म के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर-मसंद प्रथा से अभिप्राय उस प्रथा से है जिसका आरंभ गुरु रामदास जी ने सिक्खों से नियमित रूप से भेंटें एकत्रित करने तथा उसे समय पर गुरु जी तक पहुंचाने के लिए किया था। गुरु जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो तालाबों की खुदवाई के लिए और लंगर चलाने तथा धर्म प्रचार करने के लिए काफ़ी धन चाहिए था। अतः उन्होंने अपने कुछ शिष्यों को विभिन्न प्रदेशों में धन एकत्रित करने के लिए भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए इन शिष्यों को ‘मसंद’ कहा जाता था। इस प्रकार मसंद प्रणाली का आरंभ हुआ। सिक्खों के लिए मसंद प्रथा बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई। इस प्रथा द्वारा गुरु जी को एक निश्चित आय प्राप्त होने लगी और धर्म प्रचार का कार्य भी सुचारु रूप से चलने लगा। परंतु आगे चलकर मसंद कपटी और भ्रष्टाचारी हो गए। इसलिए दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस प्रथा का अंत कर दिया।
दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी का सिक्ख धर्म के विकास में क्या योगदान है ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के गुरुगद्दी संभालते ही सिक्ख धर्म के इतिहास ने नवीन दौर में प्रवेश किया। उनके प्रयास से हरिमंदर साहिब बना और सिक्खों को अनेक तीर्थ स्थान मिले। यही नहीं उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया जिसे आज सिक्ख धर्म में वही स्थान प्राप्त है जो हिंदुओं में रामायण, मुसलमानों में कुरान शरीफ तथा इसाइयों में बाइबिल को प्राप्त है। संक्षेप में, गुरु अर्जन देव जी के कार्यों तथा सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-
1. हरिमंदर साहिब का निर्माण-गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर तथा संतोखसर नामक तालाबों का निर्माण कार्य पूरा किया। उन्होंने ‘अमृतसर’ तालाब के बीच हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया। हरिमंदर साहिब की नींव 1588 ई० में सूफ़ी फ़कीर मीयां मीर जी ने रखी। 1604 ई० में हरिमंदर साहिब में आदि ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया गया। बाबा बुड्ढा जी यहां के पहले ग्रंथी बने। गुरु साहिब ने हरिमंदर साहिब के चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात का प्रतीक हैं कि यह स्थान सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए खुला है।
2. तरनतारन की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों तथा स्मारकों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। उन्होंने इसका निर्माण प्रदेश के ठीक मध्य में करवाया। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
3. लाहौर में बाऊली का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के दौरान डब्बी बाज़ार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस बाऊली के निर्माण से निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हुई।
4. हरगोबिंदपुर तथा छहरटा की स्थापना-गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिंद के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा।
5. करतारपुर की नींव रखना-गुरु जी ने 1593 ई० में जालंधर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया। यहां उन्होंने एक तालाब का निर्माण करवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है।
6. मसंद प्रथा का विकास-गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को आदेश दिया कि वे अपनी आय का 1/10 भाग (दशांश अथवा दसवंद) आवश्यक रूप से मसंदों को जमा कराएं। मसंद वैसाखी के दिन इस राशि को अमृतसर के केंद्रीय कोष में जमा करवा देते थे। राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हें ‘संगती’ कहते थे।
7. आदि ग्रंथ साहिब का संकलन-श्री गुरु अर्जन देव जी के समय तक सिक्ख धर्म काफी लोकप्रिय हो चुका था। सिक्ख गुरुओं ने बड़ी मात्रा में बाणी की रचना कर ली थी। स्वयं श्री गुरु अर्जुन देव जी ने भी 30 रागों में 2218 शब्दों की रचना की थी। गुरुओं के नाम पर कुछ लोगों ने भी बाणी की रचना शुरु कर दी थी। इस लिए श्री गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को गुरु साहिबान की शुद्ध गुरबाणी का ज्ञान करवाने तथा गुरुओं की बाणी की संभाल करने के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया। ग्रंथ के संकलन का कार्य अमृतसर में रामसर सरोवर के किनारे एकांत स्थान पर शुरु किया गया। श्री गुरु अर्जन देव जी ने स्वयं बोलते गए और भाई गुरदास जी लिखते गए। आदि ग्रंथ साहिब में सिक्ख गुरुओं की बाणी के अतिरिक्त कई हिन्दू भक्तों, सूफी-संतों, भट्टों और गुरुसिक्खों के शब्दों को शामिल किया गया था।। 1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य सम्पूर्ण हुआ और इसका प्रथम प्रकाश श्री हरिमंदिर साहिब में किया गया। बाबा बुड्ढा जी को इसका पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया।
8. घोड़ों का व्यापार-गुरु जी ने सिक्खों को घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रेरित किया। इससे सिक्खों को निम्नलिखित लाभ हुए
- उस समय घोड़ों के व्यापार से बहुत लाभ होता था। परिणामस्वरूप सिक्ख लोग भी धनी हो गए। अब उनके लिए दसवंद (1/10) देना कठिन न रहा।
- इस व्यापार से सिक्खों को घोड़ों की अच्छी परख हो गई। यह बात उनके लिए सेना संगठन के कार्य में बड़ी काम आई।
9. धर्म प्रचार कार्य-गुरु अर्जन देव जी ने धर्म-प्रचार द्वारा भी अनेक लोगों को अपना शिष्य बना लिया। उन्होंने अपनी आदर्श शिक्षाओं, सद्व्यवहार, नम्र स्वभाव तथा सहनशीलता से अनेक लोगों को प्रभावित किया।
संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि गुरु अर्जन देव जी के काल में सिक्ख धर्म ने बहुत प्रगति की। आदि ग्रंथ साहिब की रचना हुई, तरनतारन, करतारपुर तथा छहरटा अस्तित्व में आए तथा हरिमंदर साहिब सिक्ख धर्म की शोभा बन गया।
प्रश्न 2.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने धर्म की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
1. सिक्ख-धर्म का विस्तार-गुरु अर्जन देव जी के समय सिख धर्म का तेजी से विस्तार हो रहा था। कई नगरों की स्थापना, श्री हरिमंदर साहिब के निर्माण तथा आदि ग्रंथ साहिब के संकलन के कारण लोगों की सिक्ख धर्म में आस्था बढ़ती जा रही थी। दसबंध प्रथा के कारण गुरु साहिब की आय में वृद्धि हो रही थी। अतः लोग गुरु अर्जन देव जी को ‘सच्चे पातशाह’ कह कर पुकारने लगे थे। मुग़ल सम्राट जहांगीर इस स्थिति को राजनीतिक संकट के रूप में देख रहा था।
2. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-1605 ई० में जहांगीर मुग़ल सम्राट् बना। वह सिक्खों के प्रति घृणा की भावना रखता था। इसलिए वह गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उनको मारना चाहता था और या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था। अत: यह मानना ही पड़ेगा कि गुरु जी की शहीदी में जहांगीर का पूरा हाथ था।
3. पृथिया (पिरथी चन्द) की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। परंतु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। उसने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि गुरु अर्जन देव जी एक ऐसे धार्मिक ग्रंथ (आदि ग्रंथ साहिब) की रचना कर रहे हैं, जो इस्लाम धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है, परंतु सहनशील अकबर ने गुरु जी के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की। इसके बाद पृथिया लाहौर के गवर्नर सुलेही खां तथा वहां के वित्त मंत्री चंदृशाह से मिलकर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा। मरने से पहले वह मुग़लों के मन में गुरु जी के विरुद्ध घृणा के बीज बो गया।
4. नक्शबंदियों का विरोध-नक्शबंदी लहर एक मुस्लिम लहर थी जो गैर-मुसलमानों को कोई भी सुविधा दिए जाने के विरुद्ध थे। इस लहर के एक नेता शेख अहमद सरहिंदी के नेतृत्व में मुसलमानों ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध सम्राट अकबर से शिकायत की। परन्तु एक उदारवादी शासक होने के कारण, अकबर ने नक्शबंदियों की शिकायतों की ओर कोई ध्यान न दिया। अतः अकबर की मृत्यु के बाद नक्शबंदियों ने जहांगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काना शुरु कर दिया।
5. चंदू शाह की शत्रुता-चंदू शाह लाहौर का दीवान था। गुरु अर्जन देव जी ने उसकी पुत्री के साथ अपने पुत्र का विवाह करने से इंकार कर दिया था। अत: उसने पहले सम्राट अकबर को तथा बाद में जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध यह कह कर भड़काया कि उन्होंने विद्रोही राजकुमार की सहायता की है। जहांगीर पहले ही गुरु जी के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकना चाहता था। इसलिए वह गुरु जी के विरुद्ध कठोर पग उठाने के लिए तैयार हो गया।
6. आदि ग्रंथ साहिब का संचलन-गुरु जी ने आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किया था। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रंथ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा गया है। अतः जहांगीर ने गुरु जी को आदेश दिया कि आदि ग्रंथ साहिब में से ऐसी सभी बातें निकाल दी जाएं जो इस्लाम धर्म के विरुद्ध हों। इस पर गुरु जी ने उत्तर दिया, “आदि ग्रंथ साहिब से हम एक भी अक्षर निकालने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि इसमें हमने कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी जो किसी धर्म के विरुद्ध हो।” कहते हैं कि यह उत्तर पाकर जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी से कहा कि वे इस ग्रंथ में मुहम्मद साहिब के विषय में भी कुछ लिख दें। परंतु गुरु जी ने जहांगीर की यह बात स्वीकार न की और कहा कि इस विषय में ईश्वर के आदेश के सिवा किसी अन्य के आदेश का पालन नहीं किया जा सकता।
7. राजकुमार खुसरो का मामला (तात्कालिक कारण)-खुसरो जहांगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहांगीर की सेनाओं ने उसका पीछा किया। वह भाग कर गुरु अर्जन देव जी की शरण में पहुंचा। कहते हैं कि गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे लंगर भी छकाया। परंतु गुरु साहिब के विरोधियों ने जहाँगीर के कान भरे कि गुरु साहिब ने खुसरो की धन से सहायता की है। इसे गुरु जी का अपराध माना गया और उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया गया।
8. शहीदी-गुरु साहिब को 24 मई 1606 ई० को बंदी के रूप में लाहौर लाया गया। उपर्युक्त बातों के कारण जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर पहुंच गई थी। अतः उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करने का आदेश जारी कर दिया। शहीदी से पहले गुरु साहिब को कठोर यातनाएं दी गई। कहा जाता है कि उन्हें तपते लोहे पर बिठाया गया और उनके शरीर पर गर्म रेत डाली गई। 30 मई 1606 ई० में गुरु जी शहीदी को प्राप्त हुए। उन्हें शहीदों का ‘सरताज’ कहा जाता है।
शहीदी का महत्त्व-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिक्ख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
- गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों में सैनिक भावना जागृत की। अत: शांतिप्रिय सिक्ख जाति ने लड़ाकू जाति का रूप धारण कर लिया। वास्तव में वे ‘संत सिपाही’ बन गए।
- गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुग़लों के आपसी संबंध अच्छे थे। परंतु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया और उनके मन में मुग़ल राज्य के प्रति घृणा पैदा हो गई।
- इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार हो गए।
नि:संदेह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई। इसने शांतिप्रिय सिक्खों को संत सिपाही बना दिया। उन्होंने समझ लिया कि यदि उन्हें अपने धर्म की रक्षा करनी है तो उन्हें शस्त्र धारण करने ही पड़ेंगे।
प्रश्न 3.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का सिक्ख धर्म पर क्या प्रभाव पड़ा ? वर्णन करें।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास की एक बड़ी महत्त्वपूर्ण घटना है। इस शहीदी से यों तो सारी हिंदू जाति प्रभावित हुई परंतु सिक्खों पर इसका विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। इस विषय में डॉ० ट्रंप ने लिखा है-“गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख संप्रदाय के विकास के लिए एक युग प्रवर्तक थी। उस समय एक ऐसा सघर्ष आरंभ हुआ जिसने सुधार आंदोलन के पूर्ण स्वरूप को ही बदल दिया। गुरु अर्जन देव जी अन्याय को सहन न कर सके और उन्होंने मुग़ल सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का बड़े साहस तथा निर्भीकता से विरोध किया और अंत में अपने प्राणों तक की बलि दे दी। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का महत्त्व निम्नलिखित बातों से स्पष्ट हो जाता है
1. सिक्ख संप्रदाय में महान् परिवर्तन : गुरु हरगोबिन्द साहिब की नयी नीति-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण सिक्ख संप्रदाय में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया। शहीदी के पश्चात् सिक्खों ने अनुभव किया कि वे बिना शस्त्र उठाये धर्म की रक्षा नहीं कर सकते। कहते हैं कि अपनी शहीदी से पूर्व गुरु अर्जन देव जी ने अपने पुत्र को एक
संदेश भेजा था जो इस प्रकार था, “उसे पूर्णतया सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए और अपनी योग्यता अनुसार – सेना रखनी चाहिए।” अतः अपने पिता जी के उपदेश के अनुसार सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर बैठने के बाद नई नीति अपनाई। उन्होंने ‘मीरी’ तथा ‘पीरी’ नामक दो तलवारें धारण कीं। कुछ समय बाद उन्होंने सिक्खों को राजनीतिक तथा सैनिक कार्यों के लिए संगठित किया तथा एक भवन का निर्माण कराया जो आज ‘अकाल तख्त’ के नाम से प्रसिद्ध है। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने अमृतसर नगर की रक्षा के लिए किलाबंदी भी कराई। परंतु सेना के लिए अभी शस्त्रों तथा घोड़ों की बड़ी आवश्यकता थी। अतः उन्होंने अपने शिष्यों को घोड़ों तथा शस्त्र भेंट देने का आदेश दिया। शीघ्र ही सिक्खों को सैनिक प्रशिक्षण देना आरंभ कर दिया गया। इस प्रकार सिक्ख भक्तों ने संत सैनिकों का रूप धारण कर लिया।
1. “The Death of Guru Arjun is therefore, the great turning point in the development of the Sikh community.”
-Dr. E. Trump
2. सिक्खों तथा मुग़लों के संबंधों में टकराव-मुग़ल सम्राट अकबर बड़ा उदार हृदय था और उसके विचार धार्मिक थे। वह सिक्ख गुरु साहिबान का बड़ा आदर करता था। अतः उसके समय में मुग़लों तथा सिक्खों के संबंध बड़े मैत्रीपूर्ण रहे। परंतु जहांगीर एक कट्टर मुसलमान था इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध हो गया। उसने गुरु जी को अनेक शारीरिक यातनाएं दी और बड़ी निर्दयतापूर्वक उनको शहीद करा दिया। इससे सिक्खों में रोष की लहर दौड़ गई और उनके मुग़लों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध शत्रुता में बदल गये। इस संबंध में इतिहासकार लतीफ ने लिखा है, “इससे सिक्खों की धार्मिक भावनाएं भड़क उठी थीं और इस सब से गुरु नानक देव जी के सच्चे अनुयायियों के हृदय में मुसलमान शक्ति के प्रति घृणा के ऐसे बीज बो गए जिनकी जड़ें बड़ी गहरी थीं।” सिक्ख अब यह भली-भांति समझ गए थे कि धर्म की रक्षा के लिए उन्हें मुग़लों का मुकाबला करना पड़ेगा। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने सैनिक तैयारियां आरंभ कर दी। इस प्रकार मुग़लों तथा सिक्खों में संघर्ष बिल्कुल अनिवार्य हो गया और गुरु हरगोबिंद जी के समय में खुले रूप में युद्ध छिड़ गया।
3. सिक्खों पर अत्याचार-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् मुग़ल शासकों ने सिक्खों पर बड़े अत्याचार किये। शाहजहां के समय में सिक्खों तथा मुग़लों के संबंध और भी खराब हो गये। गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया गया। छठे गुरु जी के काल में मुग़लों तथा सिक्खों के बीच कई युद्ध लड़े गये। 1675 ई० में गुरु तेग बहादुर जी को इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। जब उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने उनको शहीद करा दिया। दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में भी सिक्खों पर मुग़लों के अत्याचार जारी रहे। मुग़ल सम्राट ने सिक्खों का दमन करने के लिए विशाल सेनाएं भेजीं। सिक्खों तथा मुग़ल सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ जिसमें गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्र लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके दो पुत्रों को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया गया। बंदा बहादुर की पराजय के पश्चात् 740 सिक्खों को पकड़ कर इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया गया। जब उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो उनका वध कर दिया गया। 1716 ई० से 1746 ई० तक भाई मनी सिंह, भाई तारा सिंह, भाई बूटा सिंह तथा भाई महताब सिंह आदि अनेक सिक्खों को शहीद कर दिया गया।
4. सिक्खों में एकता-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण सिक्खों में एकता की भावना उत्पन्न हुई। गुरु जी की शहीदी व्यर्थ नहीं गई बल्कि इससे सिक्खों को एक नया उत्साह तथा एक नई शक्ति मिली। वे अत्याचारों का विरोध करने के लिए एकत्रित हो गये। श्री खुशवंत सिंह ने लिखा है, “गुरु अर्जन देव जी का रक्त सिक्ख संप्रदाय तथा पंजाबी राज्य का बीज सिद्ध हुआ।”2 सच तो यह है कि गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के परिणामस्वरूप सिक्खों का अपने धार्मिक नेता में विश्वास और भी बढ़ गया। सिक्ख संप्रदाय अब पहले से कहीं अधिक संगठित हो गया। धर्म की रक्षा के लिये अब सिक्ख अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो गए।
5. भावी सिक्ख इतिहास पर प्रभाव-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का भावी सिक्ख इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनकी शहीदी के परिणामस्वरूप ही सिक्खों ने अत्याचार का विरोध करने के लिये शस्त्र उठाने का निश्चय किया। उन्होंने शक्तिशाली मुग़ल शासकों से टक्कर ली और युद्धों में अपने साहस, निर्भीकता तथा वीरता का परिचय दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी के पश्चात् सिक्खों ने साहस न छोड़ा और बंदा बहादुर के नेतृत्व में उन्होंने पंजाब के अधिकतर भागों पर अधिकार कर लिया। सिक्खों की शक्ति निरंतर बढ़ती गई और 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में उन्होंने बारह स्वतंत्र राज्य स्थापित किए जो ‘मिसलों’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुछ समय पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों तथा मिसल सरदारों को पराजित करके पंजाब में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि गुरु अर्जन देव जी की शहीदी भावी सिक्ख इतिहास को निर्धारित करने का एक बहुत बड़ा कारण सिद्ध हुई।
1. “A struggle was thus becoming, more or less inevitable and it openly broke out under Guru Arjun’s son and successor, Guru Hargobind.”
-Dr. Indu Bhushan Banerjee
2.“Arjun’s blood became the seed of the Sikh Church as well as of the Punjabi nation.”-Khuswant Singh
PSEB 9th Class Social Science Guide श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी Important Questions and Answers
I. बहुविकल्पीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किया
(क) गुरु अमरदास जी ने
(ख) गुरु अर्जन देव जी ने
(ग) गुरु रामदास जी ने
(घ) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(ख) गुरु अर्जन देव जी ने
प्रश्न 2.
हरिमंदर साहिब का पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया
(क) भाई पृथिया को
(ख) श्री महादेव जी को
(ग) बाबा बुड्डा जी को
(घ) नत्थामल जी को।
उत्तर-
(ग) बाबा बुड्डा जी को
प्रश्न 3.
छहरटा का निर्माण करवाया
(क) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(ख) गुरु हरगोबिंद जी ने
(ग) गुरु अर्जन देव जी ने
(घ) गुरु रामदास जी ने।
उत्तर-
(ग) गुरु अर्जन देव जी ने
प्रश्न 4.
मीरी और पीरी नामक तलवारें धारण की
(क) गुरु अर्जन देव जी ने
(ख) गुरु हरगोबिंद जी ने
(ग) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(घ) गुरु रामदास जी ने।
उत्तर-
(ख) गुरु हरगोबिंद जी ने
प्रश्न 5.
जहाँगीर के काल में शहीद होने वाले सिख गुरु थे
(क) गुरु अंगद देव जी
(ख) गुरु अमरदास जी
(ग) गुरु अर्जन देव जी
(घ) गुरु तेग बहादुर जी।
उत्तर-
(ग) गुरु अर्जन देव जी
II. रिक्त स्थान भरें :
- गुरु अर्जन देव जी को अपने सबसे बड़े भाई ……. की शत्रुता का सामना करना पड़ा।
- गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को ……….. में हुआ।
- ………. शहीदी देने वाले प्रथम सिख गुरु थे।
- हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य ……… ई० में पूरा हुआ।
- ………….. सिक्खों के छठे गुरु थे।
उत्तर-
- पृथिया अथवा पिरथिया
- गोइंदवाल साहिब
- गुरु अर्जन साहिब
- 1601
- गुरु हरगोबिंद जी।।
III. सही मिलान करो :
(क) – (ख)
1. हरिमंदर साहिब – (i) आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
2. मीरी – (ii) तरनतारन
3. श्री गुरु अर्जन देव जी – (iii) सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
4. पीरी – (iv) मसंद प्रथा
5. दसवंद – (v) प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर
उत्तर-
- प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर
- सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
- तरनतारन
- आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
- मसंद
अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न
उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :
(I)
प्रश्न 1.
हरिमंदर साहिब की नींव कब तथा किसने रखी ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब की नींव 1588 ई० में उस समय के प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर ने रखी।
प्रश्न 2.
हरिमंदर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से क्या भाव है ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से भाव यह है कि यह पवित्र स्थान सभी वर्गों, सभी जातियों और सभी धर्मों के लिए समान रूप से खुला है।
प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के मध्य में किस शहर की नींव रखी तथा कब ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के बीच 1590 ई० में तरनतारन नगर की नींव रखी।
प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा स्थापित किए गए चार शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
तरनतारन, करतारपुर, हरगोबिंदपुर तथा छहरटा।
प्रश्न 5.
‘दसवंध’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
‘दसवंध’ से भाव यह है कि प्रत्येक सिक्ख अपनी आय का दसवां भाग गुरु जी के नाम भेंट करें।
प्रश्न 6.
लाहौर की बाऊली (जल स्रोत) के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
लाहौर के डब्बी बाज़ार में बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया।
प्रश्न 7.
गुरु अर्जन देव जी को आदि ग्रंथ साहिब की स्थापना की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों को एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ देना चाहते थे, ताकि वे गुरु साहिबान की शुद्ध वाणी को पढ़ या सुन सकें।
प्रश्न 8.
गुरु अर्जन देव जी के समय में घोड़ों के व्यापार का कोई एक लाभ बताएं।
उत्तर-
इस व्यापार से सिक्ख धनी बने और गुरु साहिब के खजाने में भी धन की वृद्धि हुई।
अथवा
इससे जाति-प्रथा को करारी चोट लगी।
प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी के समाज सुधार के कोई दो काम लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने विधवा विवाह के पक्ष में प्रचार किया और सिक्खों को शराब तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन करने से मना किया।
प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी तथा अकबर के संबंधों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव के सम्राट अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे।
प्रश्न 11.
जहांगीर गुरु अर्जन देव जी को क्यों शहीद करना चाहता था ?
उत्तर-
जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी।
अथवा
जहांगीर को इस बात का दुःख था कि हिंदुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु साहिब से प्रभावित हो रहे हैं।
प्रश्न 12.
मीरी तथा पीरी तलवारों की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी, जबकि ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।
प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिंद जी के राजसी चिह्नों का वर्णन करें।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने कलगी, छत्र, तख्त और दो तलवारें धारण की और ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण की।
प्रश्न 14.
अमृतसर की किलेबंदी के बारे में गुरु हरगोबिंद जी ने क्या किया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अमृतसर की रक्षा के लिए इसके चारों ओर एक दीवार बनवाई और नगर में ‘लोहगढ़’ नामक एक किले का निर्माण करवाया।
प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने अंतिम दस वर्ष कहां और कैसे व्यतीत किए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष कीरतपुर में धर्म-प्रचार में व्यतीत किए।
प्रश्न 16.
जहांगीर के काल में कौन-से सिख गुरु शहीद हुए थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।।
प्रश्न 17.
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी किस मुग़ल शासक के काल में हुई ?
उत्तर-
औरंगज़ेब।
प्रश्न 18.
सिक्खों के पांचवें मुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 19.
अमृतसर में हरिमंदर साहिब का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।
प्रश्न 20.
‘मीणा’ सम्प्रदाय किसने चलाया ?
उत्तर-
पृथी चंद (पिरथिया) ने।
(II)
प्रश्न 1.
‘दसवंद’ (आय का दसवां भाग) का संबंध किस प्रथा से है ?
उत्तर-
मसंद प्रथा से।
प्रश्न 2.
‘आदि ग्रंथ’ साहिब का संकलन (सम्पादन) कार्य कब पूरा हुआ ?
उत्तर-
1604 ई० में।
प्रश्न 3.
‘आदि ग्रंथ’ साहिब का संकलन कार्य किसने किया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।
प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई ?
उत्तर-
1606 ई० में।
प्रश्न 5.
मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें किसने धारण की ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।
प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी का पठान सेनानायक कौन था ?
उत्तर-
पैंदा खां।
प्रश्न 7.
अकाल तख़त का निर्माण, सिक्खों के किस गुरु ने किया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।
प्रश्न 8.
अमृतसर की किलाबंदी किसने करवाई ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।
प्रश्न 9.
कीरतपुर शहर के लिए जमीन किसने भेंट की थी ?
उत्तर-
राजा कल्याण चंद ने।
प्रश्न 10.
किस मुग़ल बादशाह ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बनाया ?
उत्तर-
जहांगीर ने।
प्रश्न 11.
गुरुगद्दी की प्राप्ति में गुरु अर्जन देव जी की कोई एक कठिनाई बताओ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को अपने भाई पृथिया की शत्रुता तथा विरोध का सामना करना पड़ा।
अथवा
गुरु अर्जन देव जी का ब्राह्मणों तथा कट्टर मुसलमानों ने विरोध किया।
प्रश्न 12.
शहीदी देने वाले प्रथम सिक्ख गुरु का नाम बताओ।
उत्तर-
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु का नाम गुरु अर्जन साहिब था।
प्रश्न 13.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक प्रभाव लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी ने सिक्खों को धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने के लिए प्रेरित किया।
अथवा
गुरु जी की शहीदी के परिणामस्वरूप सिक्खों और मुग़लों के संबंध बिगड़ गए।
प्रश्न 14.
हरिमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में किन दो व्यक्तियों ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में भाई बुड्डा जी तथा भाई गुरदास जी ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की।
प्रश्न 15.
हरिमंदर साहब का निर्माण कार्य कब पूरा हुआ ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य 1601 ई० में पूरा हुआ।
प्रश्न 16.
मसंद कौन थे और वे संगतों से उनकी आय का कौन-सा भाग एकत्र करते थे ?
उत्तर-
गुरु जी के प्रतिनिधियों को मसनद कहा जाता था तथा वे संगतों से उनकी आय का दसवां भाग एकत्र करते थे।
प्रश्न 17.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किन्होंने किया ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया।
प्रश्न 18.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कब संपूर्ण हुआ ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ।
प्रश्न 19.
‘आदि ग्रंथ साहिब’ को कहां स्थापित किया गया ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब को अमृतसर के हरिमंदर साहिब में स्थापित किया गया।
प्रश्न 20.
हरिमंदर साहिब का पहला ग्रंथी किस व्यक्ति को नियुक्त किया गया ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब का पहला ग्रंथी बाबा बुड्डा जी को नियुक्त किया गया।
(III)
प्रश्न 1.
‘आदि ग्रंथ साहिब में क्रमशः गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी तथा गुरु रामदास जी के कितने-कितने शब्द हैं ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी के 974, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907 तथा गुरु रामदास जी के 679 शब्द हैं।
प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा किससे प्राप्त की ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा भाई बुड्डा जी से प्राप्त की।
प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी की गद्दी पर बैठते समय आयु कितनी थी ?
उत्तर-
गुरुगद्दी पर बैठते समय उनकी आयु केवल ग्यारह वर्ष की थी।
प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नवीन नीति (सैन्य-नीति) अपनाने का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
आत्म रक्षा तथा धर्म की रक्षा के लिए गुरु जी ने नवीन नीति का सहारा लिया।
प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय तक कौन-कौन से चार स्थान सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय तक गोइंदवाल, अमृतसर, तरनतारन तथा करतारपुर सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे।
प्रश्न 6.
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में किन चार संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में ‘पंगत’, ‘संगत’, ‘मंजी’ तथा ‘मसंद’ संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद साहिब के किन्हीं चार सेनानायकों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब के चार सेनानायकों के नाम विधिचंद, पीराना, जेठा और पैंदे खां थे।
प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने दरबार में किन दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया ?
उत्तर-
उन्होंने अपने दरबार में अब्दुल तथा नत्थामल नामक दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया।
प्रश्न 9.
गुरु हरगोबिंद जी को बंदी बनाए जाने का एक कारण बताओ।
उत्तर-
जहांगीर को गुरु साहिब की नवीन नीति पसंद न आई।
अथवा चंदू शाह ने जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया जिससे वह गुरु जी का विरोधी हो गया।
प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ की उपाधि क्यों प्राप्त हुई ?
उत्तर-
52 बंदी राजाओं को मुक्त कराने के कारण।
प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी के राय में मुग़लों और सिक्खों के बीच कितने युद्ध हुए ? यह युद्ध कब और कहां हुए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के समय में मुग़लों और सिक्खों के बीच तीन युद्ध हुए। लहिरा (1631), अमृतसर (1634) तथा करतारपुर (1635)।
प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों के नाम अलमस्त, ‘फूल, गौड़ा तथा बलु हसना थे।
लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
हरिमंदर साहिब के बारे में जानकारी दीजिए ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने ‘अमृतसर’ सरोवर के बीच हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया। इसका नींव पत्थर 1589 ई० में सूफी फ़कीर मियां मीर जी ने रखा। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात के प्रतीक हैं कि यह मंदर सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खुला है। हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य भाई बुड्डा जी की देख-रेख में 1601 ई० में पूरा हुआ। 1604 ई० में हरिमंदर साहिब में आदि ग्रंथ साहिब की स्थापना की गई और भाई बुड्डा जी वहां के पहले ग्रंथी बने।
हरिमंदर साहिब शीघ्र ही सिक्खों के लिए ‘मक्का’ तथा ‘गंगा-बनारस’ अर्थात् एक बहुत बड़ा तीर्थ-स्थल बन गया।
प्रश्न 2.
तरनतारन साहिब के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
तरनतारन का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया। इसके निर्माण का सिक्ख इतिहास में बड़ा महत्त्व है। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। हज़ारों की संख्या में यहां सिक्ख यात्री स्नान करने के लिए आने लगे। उनके प्रभाव में आकर माझा प्रदेश के अनेक जाट सिक्ख धर्म के अनुयायी बन गए। इन्हीं जाटों श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी ने आगे चल कर मुग़लों के विरुद्ध युद्धों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और असाधारण वीरता का परिचय दिया। डॉ. इंदू भूषण बनर्जी ठीक ही लिखते हैं, “जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश से सिक्ख इतिहास को एक नया मोड़ मिला।”
प्रश्न 3.
मसंद प्रथा से सिक्ख धर्म को क्या लाभ हुए ?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसंद प्रथा का विशेष महत्त्व रहा। इसके महत्त्व को निम्नलिखित बातों जाना जा सकता है
- गुरु जी की आय अब निरंतर तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। उन्होंने इस धन राशि से न केवल अमृतसर तथा संतोखसर के सरोवरों का निर्माण कार्य संपन्न किया अपितु अन्य कई नगरों, तालाबों, कुओं आदि का भी निर्माण किया।
- मसंद प्रथा के कारण जहां गुरु जी की आय निश्चित हुई वहां सिक्ख धर्म का प्रचार भी ज़ोरों से हुआ। गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब से बाहर भी मसंदों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
- मसंद प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूर-दूर से आए मसंद तथा श्रद्धालु भक्त गुरु जी से भेंट करने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में शाही दरबार-सा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली।
प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद साहिब की सेना के संगठन का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। मोहसिन फानी के मतानुसार, गुरु जी की सेना में 800 घोड़े, 300 घुड़सवार तथा 60 बंदूकची थे। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। यह सिक्ख सेना पांच जत्थों में बंटी हुई थी। इनके जत्थेदार थे-विधिचंद, पीराना, जेठा, पैरा तथा लंगाह । इसके अतिरिक्त पैंदा खां के नेतृत्व में एक पृथक् पठान सेना भी थी।
प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी के रोज़ाना जीवन के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वह प्रात:काल स्नान आदि करके हरिमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सिक्खों तथा सैनिकों में प्रातःकाल का लंगर कराते थे। इसके पश्चात् वह कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्था मल को वीर रस की वारें सुनाने के लिए नियुक्त किया। उन्होंने दुर्बल मन को सबल बनाने के लिए अनेक गीत मंडलियां बनाईं। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।
प्रश्न 6.
आदि ग्रंथ साहिब के संकलन अथवा सम्पादना पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
श्री गुरु अर्जन देव जी के समय तक सिक्ख धर्म काफी लोकप्रिय हो चुका था। सिक्ख गुरुओं ने बड़ी मात्रा में बाणी की रचना कर ली थी। स्वयं श्री गुरु अर्जन देव जी ने भी 30 रागों में 2218 शब्दों की रचना की थी। गुरुओं के नाम पर कुछ लोगों ने भी बाणी की रचना शुरू कर दी थी। इसलिए श्री गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को गुरु साहिबान की शुद्ध गुरबाणी का ज्ञान करवाने तथा गुरुओं की बाणी की संभाल करने के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया। ग्रंथ के संकलन का कार्य अमृतसर में रामसर सरोवर के किनारे एकांत स्थान पर शुरु किया गया। श्री गुरु अर्जन देव जी स्वयं बोलते गए और भाई गुरदास जी लिखते गए। आदि ग्रंथ साहिब में सिक्ख गुरुओं की बाणी के अतिरिक्त कई हिन्दू भक्तों, सूफीसंतों, भट्टों और गुरुसिक्खों के शब्दों को शामिल किया गया था। 1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य संपूर्ण हुआ और इसका प्रथम प्रकाश श्री हरिमंदर साहिब में किया गया। बाबा बुड्ढा जी को इसका पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया। इस प्रकार सिक्खों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ मिल गया।
प्रश्न 7.
अकाल तख्त के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब हरिमंदर साहिब में सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देते थे। उन्हें राजनीति की शिक्षा देने के लिए गुरु साहिब ने हरिमंदर साहिब के सामने पश्चिम की ओर एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया। इस नए भवन के अंदर 12 फुट ऊंचे एक चबूतरे का निर्माण भी करवाया गया। इस चबूतरे पर बैठ कर वह सिक्खों की सैनिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने लगे। इसी स्थान पर वह अपने सैनिकों को वीर रस के जोशीले गीत सुनवाते थे। अकाल तख्त के निकट वह सिक्खों को व्यायाम करने के लिए प्रेरित करते थे।
प्रश्न 8.
मसंद प्रथा से क्या भाव है तथा इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
मसंद प्रथा से हमारा अभिप्राय उस प्रथा से है जिसका आरंभ गुरु रामदास जी ने सिक्खों से नियमित रूप से भेटें एकत्रित करने तथा उसे समय पर गुरु जी तक पहुंचाने के लिए किया था। गुरु जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो तालाबों की खुदाई के लिए और लंगर चलाने तथा धर्म प्रचार करने के लिए भी काफ़ी धन चाहिए था। परंतु सिक्ख संगतों से चढ़ावे के रूप में पर्याप्त तथा निश्चित धनराशि प्राप्त नहीं होती थी। अत: उन्होंने अपने कुछ शिष्यों को विभिन्न प्रदेशों में धन एकत्रित करने के लिए भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए इन शिष्यों को ‘मसंद’ कहा जाता था। इस प्रकार मसंद प्रणाली का आरंभ हुआ।
प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी की शहादत पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे संबंध थे, परंतु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति को छोड़ दिया। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। परंतु गुरु अर्जन देव जी ने जुर्माना देने से इंकार कर दिया। इसलिए उन्हें बंदी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।
प्रश्न 10.
आदि ग्रंथ साहिब का सिक्ख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब के संकलन से सिक्ख इतिहास को एक ठोस आधारशिला मिली। यह सिक्खों के लिए पवित्र और प्रामाणिक बन गया। उनके जन्म, नामकरण, विवाह, मृत्यु आदि सभी संस्कार इसी ग्रंथ को साक्षी मान कर संपन्न होने लगे। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब के प्रति श्रद्धा रखने वाले सभी सिक्खों में जातीय प्रेम की भावना जागृत हुई और वे एक अलग पंथ के रूप में उभरने लगे। आगे चल कर इसी ग्रंथ साहिब को ‘गुरु पद’ प्रदान किया गया और सभी सिक्ख इसे गुरु मान कर पूजने लगे। आज सभी सिक्ख गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहित वाणी को आलौकिक ज्ञान का भंडार मानते हैं। उनका विश्वास है कि इसका श्रद्धापूर्वक अध्ययन करने से सच्चा आनंद प्राप्त होता है।
प्रश्न 11.
आदि ग्रंथ साहिब के ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब सिक्खों का पवित्र धार्मिक ग्रंथ है। यद्यपि इसे ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया, तो भी इसका अत्यंत ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके अध्ययन से हमें 16वीं तथा 17वीं शताब्दी के पंजाब के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन की अनेक बातों का पता चलता है। गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में लोधी शासन तथा पंजाब के लोगों पर बाबर द्वारा किये गये अत्याचारों की घोर निंदा की। उस समय की सामाजिक अवस्था के विषय में पता चलता है कि देश में जाति-प्रथा जोरों पर थी, नारी का कोई आदर नहीं था तथा समाज में अनेक व्यर्थ के रीति-रिवाज प्रचलित थे। इसके अतिरिक्त धर्म नाम की कोई चीज़ नहीं रही थी। गुरु नानक देव जी ने स्वयं लिखा है “न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान” अर्थात् दोनों ही धर्मों के लोग पथ भ्रष्ट हो चुके थे।
प्रश्न 12.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
- जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-मुग़ल सम्राट जहांगीर गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उन्हें मारना चाहता
था या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था। - पृथिया की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था, परंतु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। इसलिए वह गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा।
- गुरु अर्जन देव जी पर जुर्माना-धीरे-धीरे जहांगीर की धर्मांधता चरम सीमा पर पहुंच गई। उसने विद्रोही राजकुमार खुसरो की सहायता करने के अपराध में गुरु जी पर दो लाख रुपये जुर्माना कर दिया। परंतु गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इंकार कर दिया। इस पर उसने गुरु जी को कठोर शारीरिक कष्ट देकर शहीद कर दिया।
प्रश्न 13.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की सिक्खों पर महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई-
- गुरु अर्जन देव जी ने ज्योति-जोत समाने से पहले अपने पुत्र हरगोबिंद के नाम यह संदेश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अत: मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना।” गुरु जी के इन अंतिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया। अब सिक्ख ‘संत सिपाही’ बन गए जिनके एक हाथ में माला थी और दूसरे हाथ में तलवार।
- गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुग़लों के आपसी संबंध अच्छे थे। परंतु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया जिससे मुग़ल-सिक्ख संबंधों में टकराव पैदा हो गया।
- इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हो गए। नि:संदेह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।
प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी के चरित्र तथा व्यक्तित्व के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पांचवें सिक्ख गुरु अर्जन देव जी उच्च कोटि के चरित्र तथा व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके चरित्र के चार विभिन्न पहलुओं का वर्णन इस प्रकार है-
- गुरु जी एक बहुत बड़े धार्मिक नेता और संगठनकर्ता थे। उन्होंने सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्वक प्रचार किया और मसंद प्रथा में आवश्यक सुधार करके सिक्ख समुदाय को एक संगठित रूप प्रदान किया।
- गुरु साहिब एक महान् निर्माता भी थे। उन्होंने अमृतसर नगर का निर्माण कार्य पूरा किया, वहां के सरोवर में हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया और तरनतारन, हरगोबिंदपुर आदि नगर बसाये। लाहौर में उन्होंने एक बावली बनवाई।
- उन्होंने ‘आदि ग्रंथ साहिब’ का संकलन करके एक महान् संपादक होने का परिचय दिया।
- उनमें एक समाज सुधारक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने विधवा विवाह का प्रचार किया और नशीली वस्तुओं के सेवन को बुरा बताया। उन्होंने एक बस्ती की स्थापना करवाई जहाँ रोगियों को औषधियों के साथ-साथ मुफ्त भोजन तथा वस्त्र भी दिए जाते थे।
प्रश्न 15.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जिनके कारण गुरु हरगोबिंद जी को नवीन नीति अपनानी पड़ी।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने निम्नलिखित कारणों से नवीन नीति को अपनाया
- मुग़लों की शत्रुता तथा हस्तक्षेप-मुग़ल सम्राट जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के बाद भी सिक्खों के प्रति दमन की नीति जारी रखी। फलस्वरूप नए गुरु हरगोबिंद जी के लिए सिक्खों की रक्षा करना आवश्यक हो गया
और उन्हें नवीन नीति का आश्रय लेना पड़ा। - गुरु अर्जन देव जी की शहीदी-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से यह स्पष्ट हो गया था कि यदि सिक्ख धर्म को बचाना है तो सिक्खों को माला के साथ-साथ शस्त्र भी धारण करने पड़ेंगे। इसी उद्देश्य से गुरु जी ने ‘नवीन नीति’ अपनाई।
- गुरु अर्जन देव जी के अंतिम शब्द-गुरु अर्जन देव जी ने शहीदी से पहले अपने संदेश में सिक्खों को शस्त्र धारण करने के लिए कहा था। अतः गुरु हरगोबिंद जी ने सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के साथ-साथ सैनिक शिक्षा भी देनी आरंभ कर दी।
- जाटों का सिक्ख धर्म में प्रवेश-जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश के कारण भी गुरु हरगोबिंद जी को नवीन नीति अपनाने पर विवश होना पड़ा। ये लोग स्वभाव से ही स्वतंत्रता प्रेमी थे और युद्ध में उनकी विशेष रुचि थी।
प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन तथा कार्यों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पंथ को एक नया मोड़ दिया।
- उन्होंने गुरुंगद्दी पर बैठते ही दो तलवारें धारण कीं। एक तलवार मीरी की और दूसरी पीरी की। इस प्रकार सिक्ख गुरु धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये।।
- उन्होंने हरिमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिंद जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।
- जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया। कुछ समय के पश्चात् जहांगीर को पता चल गया कि गुरु जी निर्दोष हैं। इसलिए उनको छोड़ दिया गया। परंतु गुरु जी के कहने पर जहांगीर को उनके साथ के बंदी राजाओं को भी छोड़ना पड़ा।
- गुरु जी ने मुग़लों के साथ युद्ध भी किए। मुग़ल सम्राट शाहजहां ने तीन बार गुरु जी के विरुद्ध सेना भेजी। गुरु जी ने बड़ी वीरता से उनका सामना किया। फलस्वरूप मुग़ल विजय प्राप्त करने में सफल न हो सके।
दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
मसंद प्रथा के आरंभ, विकास तथा लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
आरंभ-मसंद प्रथा को चौथे गुरु रामदास जी ने आरंभ किया। जब गुरु जी ने संतोखसर तथा अमृतसर नामक तालाबों की खुदवाई आरंभ की तो उन्हें बहुत-से धन की आवश्यकता अनुभव हुई। अतः उन्होंने अपने सच्चे शिष्यों को अपने अनुयायियों से चंदा एकत्रित करने के लिए देश के विभिन्न भागों में भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए ये लोग मसंद कहलाते थे।
विकास-गुरु अर्जन साहिब ने मसंद प्रथा को नया रूप प्रदान किया ताकि उन्हें अपने निर्माण कार्यों को पूरा करने के लिए निरंतर तथा लगभग निश्चित धन राशि प्राप्त होती रहे। उन्होंने निम्नलिखित तरीकों द्वारा मसंद प्रथा का रूप निखारा
- गुरु जी ने अपने अनुयायियों से भेंट में ली जाने वाली धन राशि निश्चित कर दी। प्रत्येक सिक्ख के लिए अपनी आय का दसवां भाग (दसवंद) प्रतिवर्ष गुरु जी के लंगर में देना अनिवार्य कर दिया गया।
- गुरु अर्जन देव जी ने दसवंद की राशि एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए जिन्हें मसंद कहा जाता था। ये मसंद एकत्रित की गई धन राशि को प्रति वर्ष वैशाखी के दिन अमृतसर में स्थित गुरु जी के कोष में जमा करते थे। जमा की गई राशि के बदले मसंदों को रसीद दी जाती थी।
- इन मसंदों ने दसवंद एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए हुए थे जिन्हें संगतिया कहते थे। संगतिये दूर-दूर के क्षेत्रों से दसवंद एकत्रित करके मसंदों को देते थे जो उन्हें गुरु जी के कोष में जमा कर देते थे।
- मसंद अथवा संगतिये दसवंद की राशि में से एक पैसा भी अपने पास रखना पाप समझते थे। इस बात को स्पष्ट करते हुए गुरु जी ने कहा था कि जो कोई भी दान की राशि खाएगा, उसे शारीरिक कष्ट भुगतना पड़ेगा।
- ये मसंद न केवल अपने क्षेत्र में दसवंद एकत्रित करते थे अपितु धर्म प्रचार का कार्य भी करते थे। मसंदों की नियुक्ति करते समय गुरु जी इस बात का विशेष ध्यान रखते थे कि वे उच्च चरित्र के स्वामी हों तथा सिक्ख धर्म में उनकी अटूट श्रद्धा हो।
महत्त्व अथवा लाभ-सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसंद प्रथा का विशेष योगदान रहा है। सिक्ख धर्म के संगठन में इस प्रथा के महत्त्व को निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है
- गुरु जी की आय अब निरंतर तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। इन कार्यों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में काफ़ी सहायता दी।
- पहले धर्म प्रचार का कार्य मंजियों द्वारा होता था। ये मंजियां पंजाब तक ही सीमित थीं। परंतु गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब के बाहर भी मसंदों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
- मसंद प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूर-दूर से आए मसंद तथा श्रद्धालु भक्त गुरु जी को भेंट देने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में ही दरबार जैसा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली। सच तो यह है कि एक विशेष अवधि तक मसंद प्रथा ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में प्रशंसनीय योगदान दिया।
प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् उनके पुत्र हरगोबिंद जी सिक्खों के छठे गुरु बने। उन्होंने एक नई नीति को जन्म दिया। यह नीति गुरु अर्जन देव की शहीदी का परिणाम थी। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य सिक्खों को शांतिप्रिय होने के साथ निडर तथा साहसी बनाना था। गुरु साहिब द्वारा अपनाई गई नवीन नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं-
- राजसी चिह्न तथा ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण करना-नवीन नीति का अनुसरण करते हुए गुरु हरगोबिंद जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण की तथा अनेक राजसी चिह्न धारण करने आरंभ कर दिए। उन्होंने शाही वस्त्र धारण किए और सेली तथा टोपी पहनना बंद कर दिया क्योंकि ये फ़कीरी के प्रतीक थे। इसके विपरीत उन्होंने दो तलवारें, छत्र और कलगी धारण कर लीं। गुरु जी अब अपने अंगरक्षक भी रखने लगे।
- मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिंद जी अब सिक्खों के आध्यात्मिक नेता होने के साथ-साथ उनके सैनिक नेता भी बन गए। वे सिक्खों के पीर भी थे और मीर भी। इन दोनों बातों को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने पीरी तथा मीरी नामक दो तलवारें धारण की। उन्होंने सिक्खों को व्यायाम करने, कुश्तियां लड़ने, शिकार खेलने तथा घुड़सवारी करने की प्रेरणा दी। इस प्रकार उन्होंने संत सिक्खों को संत सिपाहियों का रूप भी दे दिया।
- अकाल तख्त का निर्माण-गुरु जी सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के अतिरिक्त सांसारिक विषयों में भी उनका पथ-प्रदर्शन करना चाहते थे। हरिमंदर साहिब में वे सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देने लगे। परंतु सांसारिक विषयों में सिक्खों का पथ-प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने हरिमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया।
- सेना का संगठन-गुरु हरगोबिंद जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा, मालवा तथा दोआबा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन भी नहीं लेते थे। ये पांच जत्थों में विभक्त थे। इसके अतिरिक्त पैंदे खां नामक पठान के अधीन पठानों की एक अलग सैनिक टुकड़ी थी।
- घोड़ों तथा शस्त्रों की भेंट-गुरु हरगोबिंद जी ने अपनी नवीन-नीति को अधिक सफल बनाने के लिए एक अन्य महत्त्वपूर्ण पग उठाया। उन्होंने अपने सिक्खों से आग्रह किया कि वे जहां तक संभव हो शस्त्र तथा घोड़े ही उपहार में भेट करें। परिणामस्वरूप गुरु जी के पास काफ़ी मात्रा में सैनिक सामग्री इकट्ठी हो गई।
- अमृतसर की किलेबंदी-गुरु जी ने सिक्खों की सुरक्षा के लिए रामदासपुर (अमृतसर) के चारों ओर एक दीवार बनवाई। इस नगर में दुर्ग का निर्माण भी किया गया जिसे लोहगढ़ का नाम दिया गया। इस किले में काफ़ी सैनिक सामग्री रखी गई।
- गुरु जी की दिनचर्या में परिवर्तन-गुरु हरगोबिंद जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वे प्रात:काल स्नान आदि करके हरिमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सैनिकों में प्रात:काल का भोजन बांटते थे। इसके पश्चात् वे कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्थामल को जोशीले गीत ऊंचे स्वर में गाने के लिए नियुक्त किया। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।
- आत्मरक्षा की भावना-गुरु हरगोबिंद जी की नवीन नीति आत्मरक्षा की भावना पर आधारित थी। वह सैनिक बल द्वारा न तो किसी के प्रदेश पर अधिकार करने के पक्ष में थे और न ही वह किसी पर आक्रमण करने के पक्ष में थे। यह सच है कि उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध किए। परंतु इन युद्धों का उद्देश्य मुग़लों के प्रदेश छीनना नहीं था, बल्कि उनसे अपनी रक्षा करना था।
प्रश्न 3.
नई नीति के अतिरिक्त गुरु हरगोबिंद जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए अन्य क्या कार्य किए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी पांचवें गुरु अर्जन देव जी के इकलौते पुत्र थे। उनका जन्म जून,1595 ई० में अमृतसर जिले के एक गांव वडाली में हुआ था। अपने पिता जी की शहीदी पर 1606 ई० में वह गुरुगद्दी पर बैठे और 1645 ई० तक सिक्ख धर्म का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। गुरु साहिब द्वारा किए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है-
- कीरतपुर में निवास-कहलूर का राजा कल्याण चंद गुरु हरगोबिंद साहब का भक्त था। उसने गुरु साहिब को कुछ भूमि भेंट की। गुरु साहिब ने इस भूमि पर नगर का निर्माण करवाया। 1635 ई० में गुरु जी ने इस नगर में निवास कर लिया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष यहीं पर धर्म का प्रचार करते हुए व्यतीत किए।
- पहाड़ी राजाओं को सिक्ख बनाना-गुरु हरगोबिंद साहब ने अनेक.पहाड़ी लोगों को अपना सिक्ख बनाया। यहां तक कि कई पहाड़ी राजे भी उनके सिक्ख बन गए। परंतु यह प्रभाव अस्थायी सिद्ध हुआ। कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने पुनः हिंदू धर्म की मूर्ति-पूजा आदि प्रथाओं को अपनाना आरंभ कर दिया। ये प्रथाएं गुरु साहिबान की शिक्षाओं के अनुकूल नहीं थीं।
- गुरु हरगोबिंद जी की धार्मिक यात्राएं-ग्वालियर के किले से रिहा होने के पश्चात् गुरु हरगोबिंद साहब के मुग़ल सम्राट जहांगीर से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए। इस शांतिकाल में गुरु जी ने धर्म प्रचार के लिए यात्राएं कीं। सबसे पहले वह अमृतसर से लाहौर गए। वहां पर आप ने गुरु अर्जन देव जी की स्मृति में गुरुद्वारा डेरा साहब बनवाया। लाहौर से गुरु जी गुजरांवाला तथा भिंभर (गुजरात) होते हुए कश्मीर पहुंचे। यहां पर आप ने ‘संगत’ की स्थापना की। भाई सेवा दास जी को इस संगत का मुखिया नियुक्त किया गया।
गुरु हरगोबिंद जी ननकाना साहब भी गए। वहां से लौट कर उन्होंने कुछ समय अमृतसर में बिताया। वह उत्तर प्रदेश में नानकमता (गोरखमता) भी गए। गुरु जी की राजसी शान देखकर वहां के योगी नानकमता छोड़ कर भाग गए। वहां से लौटते समय गुरु जी पंजाब के मालवा क्षेत्र में गए। तख्तूपुरा, डरौली भाई (फिरोज़पुर) में कुछ समय ठहर कर गुरु जी पुनः अमृतसर लौट आए। - धर्म-प्रचारक भेजना-गुरु हरगोबिंद जी 1635 ई० तक युद्धों में व्यस्त रहे। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र बाबा गुरदित्ता जी को सिक्ख धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए नियुक्त किया। बाबा गुरदित्ता जी ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए चार मुख्य प्रचारकों-अलमस्त, फूल, गौंडा तथा बलु हसना को नियुक्त किया। इन प्रचारकों के अतिरिक्त गुरु हरगोबिंद जी ने भाई विधिचंद को बंगाल तथा भाई गुरदास को काबुल तथा बनारस में धर्म-प्रचार के लिए भेजा।
- हरराय जी को उत्तराधिकारी नियुक्त करना-अपना अंतिम समय निकट आते देख गुरु हरगोबिंद जी ने अपने पौत्र हरराय (बाबा गुरुदित्ता जी के छोटे पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।