Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व
SST Guide for Class 10 PSEB गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व Textbook Questions and Answers
(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो
प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द राय जी का जन्म कब और कहां हुआ ? उनके माता-पिता का नाम भी बताओ।
उत्तर-
22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में। उनकी माता का नाम गुजरी जी और पिता का नाम श्री गुरु तेग़ बहादुर जी था।
प्रश्न 2.
बचपन में पटना में गुरु गोबिन्द जी क्या-क्या खेल खेलते थे?
उत्तर-
नकली लड़ाइयां तथा अदालत लगाकर अपने साथियों के झगड़ों का निपटारा करना।
प्रश्न 3.
गुरु गोबिन्द राय जी ने किस-किस अध्यापक से शिक्षा ली?
उत्तर-
काज़ी पीर मुहम्मद, पण्डित हरजस, राजपूत बजर सिंह, भाई साहिब चन्द, भाई सतिदास आदि से।
प्रश्न 4.
कश्मीरी पण्डितों की क्या समस्या थी ? गुरु तेग़ बहादुर जी ने उसे कैसे हल किया?
उत्तर-
औरंगज़ेब कश्मीरी पण्डितों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था। गुरु तेग़ बहादुर जी ने इस समस्या को आत्म-बलिदान देकर हल किया।
प्रश्न 5.
भंगानी की विजय के बाद गुरु गोबिन्द राय ने कौन-कौन से किले बनवाए?
उत्तर-
आनन्दगढ़, केशगढ़, लोहगढ़ तथा फतेहगढ़।
प्रश्न 6.
पांच प्यारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई मोहकम सिंह, भाई साहब सिंह तथा भाई हिम्मत सिंह।
प्रश्न 7.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ज्योति जोत कैसे समाए?
उत्तर-
एक पठान ने गुरु साहिब के पेट में छुरा घोंप दिया।
प्रश्न 8.
‘खण्डे का पाहुल’ तैयार करते समय किन-किन बाणियों का पाठ किया जाता है?
उत्तर-
जपुजी साहिब, आनन्द साहिब, जापु साहिब, सवैये, चौपाई आदि बाणियों का।
प्रश्न 9.
खालसा का सृजन कब और कहां किया गया?
उत्तर-
1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में।
प्रश्न 10.
बिलासपुर के राजा भीमचन्द पर खालसा की स्थापना का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उसने गुरु जी के विरुद्ध कई पहाड़ी राजाओं से गठजोड़ कर लिया।
प्रश्न 11.
नादौन के युद्ध का क्या कारण था?
उत्तर-
पहाड़ी राजाओं ने गुरु साहिब से मित्रता स्थापित करके मुग़ल सरकार को वार्षिक कर देना बन्द कर दिया था।
प्रश्न 12.
मुक्तसर का पुराना नाम क्या था? इसका यह नाम क्यों रखा गया?
उत्तर-
खिदराना। खिदराना के युद्ध में शहीदी को प्राप्त हुए सिक्खों को 40 मुक्ते’ का नाम दिया गया और उनकी याद में खिदराना का नाम मुक्तसर रखा गया।
प्रश्न 13.
‘ज़फ़रनामा’ नामक पत्र गुरु जी ने किसे लिखा था?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट औरंगजेब को।
प्रश्न 14.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की प्रसिद्ध चार रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
जापु साहिब, ज़फ़रनामा, अकाल उस्तति तथा शस्त्र नाम माला।
(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखिए
प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पटना में अपना बचपन कैसे बिताया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने बचपन के पांच वर्ष पटना में व्यतीत किए। वहां उनकी देख-रेख उनके मामा कृपाल ने की। कहते हैं कि घूड़ाम (पटियाला में स्थित) का एक मुस्लिम फ़कीर भीखणशाह बालक गोबिन्द राय के दर्शनों के लिए पटना गया था। बालक को देखते ही उसने यह भविष्यवाणी की थी कि “यह बालक बड़ा होकर महान् पुरुष बनेगा और लोगों का पथ-प्रदर्शन करेगा।” उसकी यह भविष्यवाणी बिल्कुल सत्य सिद्ध हुई। गुरु जी में महानता के लक्षण बाल्यकाल से ही दिखाई देने लगे थे। वे अपने साथियों को दो टोलियों में बांटकर युद्ध का अभ्यास किया करते थे और उन्हें कौड़ियां तथा मिठाई आदि देते थे। वे उनके झगड़ों का निपटारा भी करते थे। कोई भी निर्णय करते समय वे बड़ी सूझबूझ से काम लेते थे।
प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के राजसी चिह्नों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने दादा गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति राजसी चिह्नों को अपनाया। वे राजगद्दी जैसे ऊँचे सिंहासन पर विराजमान होने लगे और अपनी पगड़ी पर कलगी सजाने लगे। उन्होंने अपने सिक्खों के दीवान सुन्दर तथा मूल्यवान् तम्बुओं में लगाने आरम्भ कर दिये। वे साहसी सिक्खों के साथ-साथ अपने पास हाथी तथा घोड़े भी रखने लगे। वे आनन्दपुर के जंगलों में शिकार खेलने जाते। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘रणजीत नगारा’ भी बनवाया।
प्रश्न 3.
खालसा के नियमों का वर्णन करो।
उत्तर-
खालसा की स्थापना 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने की । खालसा के नियम निम्नलिखित थे
- प्रत्येक खालसा अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाएगा । खालसा स्त्री अपने नाम के साथ ‘कौर’ शब्द लगाएगी ।
- खालसा में प्रवेश से पूर्व प्रत्येक व्यक्ति को ‘खण्डे के पाहुल’ का सेवन करना पड़ेगा । तभी वह स्वयं को खालसा कहलवाएगा।
- प्रत्येक ‘सिंह’ आवश्यक रूप से पांच ‘ककार’ धारण करेगा-केश, कड़ा, कंघा, किरपान तथा कछहरा।
- सभी सिक्ख प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करके उन पांच बाणियों का पाठ करेंगे जिनका उच्चारण ‘खण्डे का पाहुल’ तैयार करते समय किया गया था।
प्रश्न 4.
भंगानी के युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर-
भंगानी की लड़ाई 1688 ई० में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु गोबिन्द राय जी के बीच हुई । इस लड़ाई के निम्नलिखित कारण थे
- पहाड़ी राजा गुरु गोबिन्द राय जी की सैनिक गतिविधियों को अपने लिए खतरा समझते थे।
- गुरु जी मूर्ति-पूजा के विरोधी थे । परन्तु पहाड़ी राजा मूर्ति-पूजा में विश्वास करते थे।
- गुरु जी ने मुगल सेना में से निकाले गए 500 पठानों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया था। पहाड़ी राजा मुग़ल सरकार के स्वामिभक्त थे । इसलिए वे गुरु जी के विरुद्ध हो गए।
- मुग़ल फ़ौजदारों ने पहाड़ी राजाओं को गुरु जी के विरुद्ध उकसा दिया था।
- गुरु जी के साथ पहाड़ी राजा भीमचन्द की पुरानी शत्रुता थी। भीमचन्द के पुत्र की बारात गढ़वाल जा रही थी, परन्तु सिक्खों ने इन्हें पाऊंटा साहब से न गुज़रने दिया। परिणामस्वरूप पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी से युद्ध करने का निर्णय कर लिया।
प्रश्न 5.
आनन्दपुर साहिब की दूसरी लड़ाई कब हुई? इसका संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
आनन्दपुर की दूसरी लड़ाई 1704 ई० में हुई। आनन्दपुर साहिब के पहले युद्ध में गुरु गोबिन्द साहिब से पहाड़ी राजा बुरी तरह पराजित हुए थे। सन्धि के बाद भी वे पुनः सैनिक तैयारियां करने लगे । उन्होंने गुज्जरों को अपने साथ मिला लिया । मुगल सम्राट ने भी उनकी सहायता की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया । 1704 ई० में सरहिन्द के गवर्नर वज़ीर खां ने सिक्खों की शक्ति को कुचलने के लिए विशाल सेना भेजी। सभी ने मिलकर आनन्दपुर का घेरा डाल दिया। गुरु जी ने अपने वीर सिक्खों की सहायता से डट कर मुग़लों का सामना किया, परन्तु धीरे-धीरे सिक्खों की रसद समाप्त हो गई । उन्हें भूख और प्यास सताने लगी। इस कठिन समय में 40 सिक्ख बेदावा लिखकर गुरु जी का साथ छोड़कर चले गए। अन्त में 21 दिसम्बर, 1704 ई० को माता गुजरी जी के कहने पर गुरु जी ने आनन्दपुर साहिब को छोड़ दिया।
प्रश्न 6.
चमकौर साहिब की लड़ाई पर नोट लिखें।
उत्तर-
सरसा नदी को पार करके गुरु गोबिंद सिंह जी चमकौर पहुंचे। वहां उन्होंने गांव के ज़मींदार के कच्चे मकान में आश्रय लिया परन्तु पहाड़ी राजाओं तथा मुग़ल सेनाओं ने उन्हें वहां भी घेर लिया। उस समय गुरु जी के साथ केवल 40 सिक्ख तथा उनके दोनों साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह थे। फिर भी गुरु जी ने साहस न छोड़ा और मुग़लों का डट कर सामना किया। इस युद्ध में उनके दोनों साहिबजादे वीरगति को प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त 35 सिक्ख भी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। इनमें तीन प्यारे भी शामिल थे। परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत थीं। अत: सिक्खों के प्रार्थना करने पर गुरु जी अपने पांच साथियों सहित माछीवाड़ा के जंगलों की ओर चले गए।
प्रश्न 7.
खिदराना की लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
चमकौर के युद्ध के पश्चात् गुरु गोबिन्द सिंह जी खिदराना में दाब नामक स्थान पर पहुंचे। वहां मुग़लों से उनका अन्तिम युद्ध हुआ। इस युद्ध में वे 40 सिक्ख भी गुरु जी के साथ आ मिले जो आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में उनका साथ छोड़ गए थे। उन्होंने अपनी गुरु भक्ति का परिचय दिया और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी इस गुरु भक्ति तथा बलिदान से गुरु जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने वहां इन शहीदों की मुक्ति के लिए प्रार्थना की । ये 40 शहीद इतिहास में ’40 मुक्ते ‘ कहलाते हैं। इस लड़ाई में माई भागो विशेष रूप से गुरु साहिब के पक्ष में लड़ने के लिए पहुंची थी। वह भी बुरी तरह से घायल हुई। अंत में गुरु साहिब विजयी रहे और मुग़ल सेना परास्त होकर भाग खड़ी हुई।
प्रश्न 8.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के सेनानायक के रूप में व्यक्तित्व का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी एक कुशल सेनापति तथा वीर सैनिक थे । पहाड़ी राजाओं तथा मुग़लों के विरुद्ध लड़े गए प्रत्येक युद्ध में उन्होंने अपने वीर सैनिक होने का परिचय दिया। तीर चलाने, तलवार चलाने तथा घुड़सवारी करने में तो वे विशेष रूप से निपुण थे। गुरु जी में एक उच्च कोटि के सेनानायक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने कम सैनिक तथा कम युद्ध सामग्री के होते हुए भी पहाड़ी राजाओं तथा मुग़लों के नाक में दम कर दिया। चमकौर की लड़ाई में तो उनके साथ केवल चालीस सिक्ख थे, परन्तु गुरु जी के नेतृत्व में उन्होंने वे हाथ दिखाए कि एक बार तो हज़ारों की मुग़ल सेना घबरा उठी।
(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए
प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें तथा अन्तिम गुरु थे। उनमें आध्यात्मिक नेता, उच्चकोटि के संगठनकर्ता, सफल सेनानायक, प्रतिभाशाली विद्वान् तथा महान् सुधारक सभी के गुण विद्यमान थे। उनके जीवन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है —
जन्म तथा माता-पिता — गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर,1666 ई० में पटना (बिहार की राजधानी) में हुआ। वह गुरु तेग़ बहादुर जी के इकलौते पुत्र थे। उनकी माता का नाम गुजरी जी था। आरम्भ में उनका नाम गोबिन्द दास रखा गया परन्तु कुछ समय पश्चात् उन्हें गोबिन्द राय भी कहा जाने लगा।
पटना में बचपन — गोबिन्द राय जी ने अपने जीवन के प्रारम्भिक पाँच वर्ष पटना में व्यतीत किए। बचपन में वह ऐसे खेल खेलते थे, जिनसे यह पता चलता था कि एक दिन वह धार्मिक एवं महान् नेता बनेंगे। वह अपने साथियों की दौड़ें, कुश्तियाँ तथा नकली युद्ध करवाया करते थे। वह स्वयं भी इन खेलों में भाग लेते थे। वह अपने साथियों के झगडे का निपटारा करने के लिए अदालत भी लगाया करते थे। __ लखनौर में दस्तार — बंदी की रस्म-1671 ई० में बालक गोबिन्द राय जी की लखनौर में दस्तारबन्दी की रस्म पूरी की गई।
शिक्षा-1672 ई० के आरम्भ में गुरु तेग़ बहादुर जी अपने परिवार सहित चक नानकी (आनन्दपुर साहिब) में रहने लगे। यहां गोबिन्दराय जी को संस्कृत, फारसी तथा पंजाबी भाषा के साथ-साथ घुड़सवारी तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी गई।
पिता की शहादत तथा गुरु — गद्दी की प्राप्ति-1675 ई० में गुरु साहिब के पिता गुरु तेग़ बहादुर जी ने मुग़ल अत्याचारों के विरोध में अपनी शहीदी दे दी। पिता जी की शहादत के पश्चात् गोबिन्द राय जी ने गुरुगद्दी सम्भाली और सिक्खों का नेतृत्व करना आरम्भ किया।
विवाह-कुछ विद्वानों के अनुसार गोबिन्द राय जी ने माता जीतो, माता सुन्दरी तथा माता साहिब कौर नामक तीन स्त्रियों से विवाह किया था। परंतु कुछ विद्वान ये तीनों नाम माता जीतो जी के ही मानते हैं। गुरु जी के चार पुत्र हुएसाहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह तथा साहिबजादा फतह सिंह।
सेना का संगठन — सिक्ख धर्म की रक्षा के लिए गुरु साहिब के लिए सेना का संगठन करना अत्यन्त आवश्यक था। अत: गुरु साहिब जी की ओर से यह घोषणा कर दी गई कि जिस सिक्ख के चार पुत्र हों, उनमें से वह दो पुत्रों को उनकी सेना में भर्ती करवाए। सिक्खों को यह भी आदेश दिया गया कि वे अन्य वस्तुओं के स्थान पर घोड़े तथा शस्त्र भेंट करें। परिणामस्वरूप शीघ्र ही गुरु साहब के पास बहुत-से सैनिक तथा युद्ध-सामग्री इकट्ठी हो गई। उन्होंने सढौरा के पीर बुद्ध शाह के 500 पठान सैनिकों को भी अपनी सेना में शामिल कर लिया।
गुरु जी के राजसी चिह्न तथा शानदार दरबार — गुरु गोबिन्द राय जी ने भी अपने दादा गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति राजसी चिह्नों को अपनाया। वह राजगद्दी की तरह ऊँचे सिंहासन पर विराजमान होने लगे और अपनी पगड़ी पर कलगी सजाने लगे। उन्होंने सिक्खों के दीवान सुन्दर तथा मूल्यवान् तम्बुओं में लगाने आरम्भ कर दिए। वह साहसी सिक्खों के साथ-साथ अपने पास हाथी तथा घोड़े भी रखने लगे। वह आनन्दपुर के जंगलों में शिकार खेलने जाते। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘रणजीत नगारा’ भी बनवाया।
गुरु जी पाऊँटा साहब में — गुरु साहिब द्वारा आनन्दपुर साहिब में की गई कार्यवाहियाँ बिलासपुर के राजा भीमचन्द को अच्छी नहीं लगीं। इसलिए वह किसी-न-किसी बहाने गुरु जी से युद्ध करना चाहता था। परन्तु गुरु जी उससे लड़ाई करके अपनी सैनिक शक्ति नहीं गंवाना चाहते थे। इसलिए वह नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के निमन्त्रण पर नाहन राज्य में चले गए। वहां उन्होंने यमुना नदी के किनारे एक सुन्दर एकान्त स्थान को चुन लिया। उस स्थान का नाम ‘पाऊँटा’ रखा गया।
खालसा की स्थापना से पहले (पूर्व खालसा काल) की लड़ाइयां —
- 1688 ई० में गुरु जी को भंगानी की लड़ाई लड़नी पड़ी। इस युद्ध में गुरु जी ने राजा फतह शाह तथा उसके साथियों को हराया।
- इसी बीच मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने 1693 ई० में पंजाब के शासकों को आदेश दिया कि वे गुरु जी के विरुद्ध युद्ध छेड़ें। अतः कांगड़ा प्रदेश के फ़ौजदार ने अपने पुत्र खानजादा को गुरु जी के विरुद्ध भेजा, परन्तु सिक्खों ने उसे हरा दिया।
- 1696 ई० के आरम्भ में कांगड़ा प्रदेश के फ़ौजदार ने हुसैन खान को गुरु जी के विरुद्ध भेजा। परन्तु वह पहाड़ी राजाओं के साथ ही उलझ कर रह गया।
खालसा की स्थापना — 1699 ई० में बैसाखी के दिन गुरु गोबिन्द राय जी ने खालसा की साजना की। उन्होंने अमृत तैयार करके पाँच प्यारों-दया राम, धर्म दास, मोहकम चन्द, साहब चन्द तथा हिम्मत राय को छकाया और उनके नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाया। गुरु जी ने स्वयं भी अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द जोड़ा।
उत्तर खालसा काल की लड़ाइयां-खालसा की स्थापना के बाद के काल को ‘उत्तर खालसा काल’ कहा जाता है। इस काल में गुरु जी युद्धों में ही उलझे रहे। उन्होंने 1701 ई० में आनन्दपुर का पहला युद्ध, 1702 ई० में निरमोह का युद्ध, 1702 ई० में ही बसौली का युद्ध, 1704 ई० में आनन्दपुर का दूसरा युद्ध, शाही टिब्बी का युद्ध तथा 1705 ई० में चमकौर का युद्ध लड़ा। चमकौर से निकलकर वह माछीवाड़ा, दीना कांगड़ आदि स्थानों से होते हुए खिदराना (मुक्तसर) पहुँचे। वहाँ 1705 ई० में उन्होंने मुग़ल सेना को हराया। खिदराना से वह तलवंडी साबो चले गए। ___ गुरु साहिब का ज्योति-जोत समाना-गुरु गोबिन्द सिंह जी सितम्बर, 1708 ई० में नंदेड़ (दक्षिण) पहुँचे। एक दिन सायं एक पठान ने गुरु साहिब के पेट में छुरा घोंप दिया। इसी घाव के कारण 7 अक्तूबर, 1708 ई० को गुरु जी ज्योति-जोत समा गए।
प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द सिंह जी को खालसा के सृजन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर-
प्रत्येक वर्ग, जाति, धर्म तथा समुदाय के जीवन में एक ऐसा भी दिन आता है जब उसका रूप परिवर्तन होता है सिक्ख धर्म के इतिहास में भी एक ऐसा दिन आया जब गुरु नानक देव जी के सन्त ‘सिंह’ बनकर उभरे। यह महान परिवर्तन 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा की स्थापना से आया। गुरु साहिब को निम्नलिखित कारणों से खालसा की स्थापना की आवश्यकता पड़ी
- प्रथम नौ गुरु साहिबान के कार्य-खालसा की स्थापना की पृष्ठभूमि गुरु नानक देव जी के समय से ही तैयार हो रही थी। गुरु नानक देव जी ने जाति-प्रथा तथा मूर्ति-पूजा का खण्डन किया और अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। इस प्रकार उन्होंने खालसा की स्थापना के बीज बोये। गुरु नानक देव जी के पश्चात् सभी गुरु साहिबान ने इन्हीं बातों का बढ़-चढ़ कर प्रचार किया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को देखते हुए छठे गुरु हरगोबिन्द जी ने ‘नवीन नीति’ का अनुसरण किया और सिक्खों को ‘सन्त सिपाही’ बना दिया। नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया और शहीदी से पूर्व अपने सिक्खों से ये शब्द कहे-“न किसी से डरो और न किसी को डराओ।” उनके इन शब्दों से सिक्खों में वीरता और साहस के भाव उत्पन्न हुए जो खालसा की स्थापना की आधारशिला बने।
- औरंगजेब के अत्याचार-गुरु गोबिन्द सिंह जी के समय में मुग़लों के अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने हिन्दुओं के अनेक मन्दिर गिरवा दिये थे और उन्हें सरकारी पदों से हटा दिया था। उसने हिन्दुओं पर अतिरिक्त कर और कुछ अन्य अनुचित प्रतिबन्ध भी लगा दिये। सबसे बढ़कर वह हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बना रहा था। फलस्वरूप हिन्दू धर्म का अस्तित्व मिटने को था। गुरु गोबिन्द सिंह जी अत्याचारों के विरोधी थे और वे अत्याचारी को मिटाने के लिए दृढ़ संकल्प थे। इसलिए उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना करके एक शक्तिशाली सेना का संगठन किया।
- जाति-पाति का अस्तित्व-भारतीय समाज में अभी तक भी बहुत-सी बुराइयां चली आ रही थीं। इनमें से एक बुराई जाति-प्रथा की थी। ऊँच-नीच के भेदभाव के कारण हिन्दू जाति पतन की ओर जा रही थी। गंडा सिंह के मतानुसार जाति-पाति राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा बन गई थी। शूद्रों तथा उच्च जाति के लोगों के बीच एक बहुत बड़ा अन्तर आ चुका था। इस अन्तर को मिटाने के लिए इस समय कोई गम्भीर कदम उठाना अत्यन्त आवश्यक था। इसी कारण से गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करने का विचार किया। गुरु जी चाहते थे कि इस पंथ के लोग अपने सभी भेद-भावों को भूल कर एकता के सूत्र में बंध जायें।
- पहाड़ी राजाओं द्वारा गुरु जी का विरोध-खालसा की स्थापना से पहले गुरु गोबिन्द सिंह जी शिवालिक की पहाड़ी रियासतों के राजाओं के साथ मिलकर अत्याचारी मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाना चाहते थे। परन्तु शीघ्र ही गुरु जी को यह पता चल गया कि पहाड़ी राजाओं पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसी दशा में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने निश्चय कर लिया कि औरंगज़ेब के अत्याचारों का सामना करने के लिये उनका अपना सैनिक दल होना आवश्यक है। अतः उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की।
- गुरु जी के जीवन का उद्देश्य–’बचित्तर नाटक’, जोकि गुरु जी की आत्मकथा है, में गुरु साहिब ने लिखा है कि उनके निजी जीवन का उद्देश्य संसार में धर्म का प्रचार करना, अत्याचारी लोगों का नाश करना तथा सन्त-महात्माओं की रक्षा करना है। किसी शस्त्रधारी धार्मिक संगठन के बिना यह उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता था। फलस्वरूप गुरु साहिब ने खालसा की स्थापना आवश्यक समझी।
प्रश्न 3.
खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व था?
उत्तर-
खालसा की स्थापना सिक्ख इतिहास की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। डॉ० हरिराम गुप्ता के शब्दों में, “खालसा की स्थापना देश के धार्मिक तथा राजनीतिक इतिहास की एक युग-प्रवर्तक घटना थी।” (“The creation of the Khalsa was an epoch making event in the religious and political history of the country.”)
इस घटना का महत्त्व निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है —
- गुरु नानक देव जी द्वारा प्रारम्भ किए गए कार्यों की पूर्ति-गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी थी। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा का सृजन करके उनके द्वारा प्रारम्भ किए गए कार्य को सम्पन्न किया।
- मसन्द प्रथा का अन्त-चौथे गुरु रामदास जी ने ‘मसन्द प्रथा’ का आरम्भ किया था। मसन्दों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया था। परन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी के समय तक मसन्द लोग स्वार्थी, लोभी तथा भ्रष्टाचारी हो गए थे। इसलिए गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने सिक्खों को आदेश दिया कि वे मसन्दों से कोई सम्बन्ध न रखें। परिणामस्वरूप मसन्द-प्रथा समाप्त हो गई।
- खालसा संगतों के महत्त्व में वृद्धि-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा संगत को ‘खण्डे का पाहुल’ छकाने का अधिकार दिया। उन्हें आपस में मिलकर निर्णय करने का अधिकार भी दिया गया। परिणामस्वरूप खालसा संगतों का महत्त्व बढ़ गया।
- सिक्खों की संख्या में वृद्धि-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने सिक्खों को अमृत छका कर खालसा बनाया। इसके उपरान्त गुरु साहिब ने यह आदेश दे दिया कि खालसा के कोई पाँच सदस्य अमृत छका कर किसी को भी खालसा में शामिल कर सकते हैं। फलस्वरूप सिक्खों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होने लगी।
- सिक्खों में नई शक्ति का संचार-खालसा की स्थापना से सिक्खों में एक नई शक्ति का संचार हुआ। अमृत छकने के बाद वे स्वयं को ‘सिंह’ कहलाने लगे। ‘सिंह’ कहलाने के कारण उनमें भय तथा कायरता का कोई अंश न रहा। वे अपना चरित्र भी शुद्ध रखने लगे। इसके अतिरिक्त खालसा जाति-पाति का भेदभाव समाप्त हो जाने से सिंहों में एकता की भावना मज़बूत हुई।
- मुग़लों का सफलतापूर्वक विरोध-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा का सृजन करके सिक्खों में वीरता तथा साहस की भावनाएं भर दीं। उन्होंने चिड़िया को बाज़ से तथा एक सिक्ख को एक लाख से लड़ना सिखाया। परिणामस्वरूप गुरु जी के सिक्खों ने 1699 ई० से 1708 ई० तक मुगलों के साथ कई सफलतापूर्वक युद्ध लड़े।।
- गुरु साहिब के पहाड़ी राजाओं से युद्ध-खालसा की स्थापना से पहाड़ी राजा भी घबरा गए। विशेष रूप से बिलासपुर का राजा भीमचन्द गुरु साहिब की सैनिक कार्यवाहियों को देख कर भयभीत हो उठा। उसने अन्य कई पहाड़ी राजाओं से गठजोड़ करके गुरु साहिब की शक्ति को दबाने का प्रयास किया। अतः गुरु साहिब को पहाड़ी राजाओं से कई युद्ध करने पड़े।
- सिक्ख सम्प्रदाय का पृथक् स्वरूप-गुरु गोबिन्द सिंह जी के काल तक सिक्खों के अपने कई तीर्थ-स्थान बन गए थे। उनके लिए पवित्र ग्रन्थ ‘आदि ग्रन्थ साहिब’ का संकलन भी हो चुका था। वे अपने ही ढंग से तीज-त्योहार मनाते थे। अब खालसा की स्थापना से सिक्खों ने पाँच ‘ककारों’ का पालन करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने अपने बाहरी स्वरूप को भी जन-साधारण से अलग कर लिया।
- लोकतान्त्रिक तत्त्वों का प्रचलन-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘पाँच प्यारों’ को अमृत छकाने के बाद स्वयं उनके हाथों से अमृत छका। उन्होंने यह आदेश दिया कि कोई भी पाँच सिंह या संगत किसी भी व्यक्ति को अमृत छका कर सिंह बना सकती है। अपने ज्योति जोत समाने से पहले गुरु जी ने गुरु-शक्ति को ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ तथा खालसा में बांट कर लोकतान्त्रिक परम्परा की नींव रखी।
- सिक्खों की राजनीतिक शक्ति का उत्थान-खालसा के संगठन से सिक्खों में वीरता, निडरता, हिम्मत तथा आत्म-बलिदान की भावनाएँ जागृत हो उठीं। परिणामस्वरूप सिक्ख एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे।
सच तो यह है कि खालसा की स्थापना ने ‘सिंहों’ को ऐसा अडिग विश्वास प्रदान किया जिसे कभी भी विचलित नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 4.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की पूर्व खालसा काल की लड़ाइयों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन काल में 1675 ई० से 1699 ई० तक का समय पूर्व खालसा काल के नाम से विख्यात है। इस काल में गुरु साहिब ने निम्नलिखित लड़ाइयां लड़ी___
- भंगानी का युद्ध-बिलासपुर का राजा भीमचन्द गुरु जी की बढ़ती हुई सैनिक शक्ति से घबरा उठा और वह उनके विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगा। यह बात नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के लिए चिन्ताजनक थी। इसलिए उसने गुरु जी से सम्बन्ध बढ़ाने चाहे और गुरु जी को अपने यहां आमन्त्रित किया। गुरु जी पाऊंटा पहुंचे और वहां उन्होंने पौण्टा नामक किले का निर्माण करवाया। कुछ समय पश्चात् भीमचन्द ने अपने पुत्र की बारात को पाऊंटा में से गुज़ारना चाहा, परन्तु गुरु जी जानते थे कि उसकी नीयत ठीक नहीं है। इसलिए उन्होंने भीमचन्द को पाऊंटा में से गुज़रने की आज्ञा न दी। भीमचन्द ने इसे अपना अपमान समझा और अपने पुत्र के विवाह के पश्चात् अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। पाऊंटा से कोई 6 मील दूर भंगानी के स्थान पर घमासान लड़ाई लड़ी गई। इस लड़ाई में गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह से परास्त किया।
- नादौन का युद्ध-भंगानी की विजय के पश्चात् भीमचन्द और अन्य पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी से मित्रता कर ली और मुग़ल सम्राट को कर देना बन्द कर दिया। इस पर सरहिन्द के मुग़ल गवर्नर ने अलिफ खां के नेतृत्व में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु जी के विरुद्ध एक विशाल सेना भेजी। कांगड़ा से 20 मील दूर नादौन के स्थान पर घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुग़ल बुरी तरह पराजित हुए।
- मुग़लों से संघर्ष-मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब उस समय दक्षिण में था जब गुरु साहिब की शक्ति बढ़ रही थी। उसने पंजाब में मुग़ल फ़ौजदारों को आदेश दिया कि वह गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करें।
- सर्वप्रथम कांगड़ा प्रदेश के फ़ौजदार दिलावर खां ने अपने पुत्र खानज़ादा रुस्तम खां के अधीन गुरु साहिब के विरुद्ध 1694 ई० में मुहिम भेजी। सिक्ख पहले ही उससे दो-दो हाथ करने को तैयार थे। उन्होंने शत्रु पर अभी कुछ गोले ही बरसाए थे कि खानजादा तथा उसके साथी भयभीत होकर भाग गए। इस प्रकार गुरु साहिब को बिना युद्ध किए ही विजय प्राप्त हुई।
- 1696 ई० के आरम्भ में दिलावर खां ने हुसैन खां को आनन्दपुर साहब पर आक्रमण करने के लिए भेजा। मार्ग में हुसैन खां ने गुलेर तथा जसवान के राजाओं से कर मांगा। परन्तु उन्होंने कर देने की बजाय हुसैन खां से युद्ध करने का निर्णय कर लिया। भीमचन्द (बिलासपुर) तथा किरपाल चन्द (कांगड़ा) हुसैन खां से जा मिले। परन्तु गुरु जी ने अपने कुछ सिक्खों को हुसैन खां के विरुद्ध भेजा। हुसैन खां की पराजय हुई और वह मारा गया।
- हुसैन खां की मृत्यु के पश्चात् दिलावर खां ने जुझार सिंह तथा चंदेल राय के नेतृत्व में सेनाएँ भेजीं। परन्तु वे भी आनन्दपुर साहिब में पहुँचने से पहले ही राजा राजसिंह (जसवान) से पराजित होकर भाग गईं।
- अंततः मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने शहज़ादा मुअज्जम को गुरु साहिब तथा पहाड़ी राजाओं के विरुद्ध भेजा। उसने लाहौर पहुँच कर मिर्जा बेग के नेतृत्व में एक विशाल सेना पहाड़ी राजाओं के विरुद्ध भेजी। वह पहाड़ी राजाओं को परास्त करने में सफल रहा।
प्रश्न 5.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की उत्तर-काल की लड़ाइयों का वर्णन करो।
उत्तर-
उत्तर-खालसा काल में गुरु जी अनेक युद्धों में उलझे रहे। इन युद्धों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है —
- आनन्दपुर का प्रथम युद्ध 1701 ई०-खालसा की स्थापना से पहाड़ी राजा घबरा गए। अतः बिलासपुर के राजा भीमचन्द ने गुरु जी को पत्र लिखा कि वे या तो आनन्दपुर छोड़ दें या जितना समय वह वहाँ रहे हैं उसका किराया दें। गुरु जी ने उसकी इस अनुचित माँग को अस्वीकार कर दिया। इस पर भीमचन्द ने अन्य पहाड़ी राजाओं के साथ मिलकर आनन्दपुर पर आक्रमण कर दिया। गुरु जी कम सैनिकों के होते हुए भी उन्हें परास्त करने में सफल हो गए। तत्पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने मुग़लों से सहायता प्राप्त की और एक बार फिर आनन्दपुर पर आक्रमण किया। इस बार भी उन्हें मुँह की खानी पड़ी। विवश होकर उन्हें गुरु जी से सन्धि करनी पड़ी। सन्धि की शर्त के अनुसार गुरु साहिब आनन्दपुर छोड़कर निरमोह नामक स्थान पर चले गये।
- निरमोह का युद्ध 1702 ई०-राजा भीमचन्द ने अनुभव किया कि उसके लिए सिक्खों की शक्ति को समाप्त करना असम्भव है। अतः उसने मुग़ल सरकार से सहायता की मांग की। 1702 ई० के आरम्भ में एक ओर से राजा भीमचन्द की सेना और दूसरी ओर से सरहिन्द के सूबेदार के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने निरमोह पर आक्रमण कर दिया। आस-पास के गूजरों ने भी आक्रमणकारियों का साथ दिया। सिक्खों ने बड़ी वीरता से शत्रु का सामना किया। एक रात तथा एक दिन तक लड़ाई होती रही। अन्त में गुरु जी ने शत्रु की सेना को भागने पर विवश कर दिया।
- सतलुज की लड़ाई 1702 ई०-निरमोह की विजय के पश्चात् गुरु जी ने निरमोह छोड़ने का निर्णय कर लिया। उन्होंने अभी सतलुज नदी को पार भी नहीं किया था कि शत्रु सेना ने उन पर पुनः आक्रमण कर दिया। लगभग चार घण्टे युद्ध चला जिसमें गुरु जी विजयी रहे।
- बसौली का युद्ध 1702 ई०-सतलुज नदी को पार करके गुरु जी अपने सिक्खों सहित बसौली में चले गए। यहां भी राजा भीमचन्द की सेना ने गुरु जी की सेना का पीछा किया। परन्तु गुरु जी ने उन्हें फिर से हरा दिया। क्योंकि बसौली तथा जसवान के राजा गुरु जी के मित्र थे, इसलिए भीमचन्द ने गुरु जी से समझौता करने में ही अपनी भलाई समझी। यह सन्धि 1702 ई० के मध्य में हुई। परिणामस्वरूप गुरु जी फिर से आनन्दपुर में आ गए।
- आनन्दपुर का दूसरा युद्ध 1704-पहाड़ी राजाओं ने एक संघ स्थापित करके गुरु जी से आनन्दपुर छोड़कर चले जाने के लिए कहा। जब गुरु जी ने उनकी मांग को स्वीकार न किया तो उन्होंने गुरु जी पर धावा बोल दिया। परन्तु उन्हें एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। अपनी पराजय का बदला लेने के लिए भीमचन्द तथा अन्य पहाड़ी राजाओं ने मुग़ल सरकार से सहायता प्राप्त कर गुरु जी पर आक्रमण कर दिया और आनन्दपुर साहिब को चारों ओर से घेर लिया। परिणामस्वरूप सिक्खों के लिए युद्ध जारी रखना कठिन हो गया। सिक्खों ने आनन्दपुर छोड़कर जाना चाहा, परन्तु गुरु जी न माने। इस संकट के समय में चालीस सिक्ख अपना ‘बेदावा’ लिख कर गुरु जी का साथ छोड़ गए। अन्त में 21 दिसम्बर, 1704 ई० को माता गुजरी जी के कहने पर गुरु साहिब ने आनन्दपुर साहिब को छोड़ दिया।
- शाही टिब्बी का युद्ध-गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा आनन्दपुर छोड़ देने के पश्चात् शत्रु ने आनन्दपुर पर अपना अधिकार कर लिया। उन्होंने सिक्खों का पीछा भी किया। गुरु जी के आदेश पर उनके सिक्ख ऊधे सिंह ने अपने 50 साथियों के साथ शत्रु की विशाल सेना का शाही टिब्बी नामक स्थान पर डट कर सामना किया। भले ही ये सभी सिक्ख शहीद हो गए, तो भी उन्होंने सैंकड़ों शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया।
- सरसा की लड़ाई-आगे बढ़ते हुए गुरु साहिब तथा उनके साथी सरसा नदी पर पहुँचे। शत्रु की सेना भी उनके निकट पहुँच चुकी थी। गुरु जी ने अपने एक मुख्य सिक्ख भाई जीवन सिंह रंगरेटा को लगभग 100 सिक्खों सहित शत्रु का सामना करने के लिए पीछे छोड़ दिया था। इन सिक्खों ने शत्रु का डट कर सामना किया तथा शत्रु को भारी क्षति पहुँचाई। । उस समय सरसा नदी में बाढ़ आई हुई थी। फिर भी गुरु जी, उनके सैंकड़ों सिक्ख तथा साथी अपने घोड़ों सहित नदी में कूद पड़े। इस भाग-दौड़ में बहुत-से सिक्ख तथा गुरु जी के छोटे साहिबजादे ज़ोरावर सिंह तथा फतेह सिंह तथा माता गुजरी जी उनसे बिछुड़ गए।
- चमकौर का युद्ध 1705 ई०-सरसा नदी को पार करके गुरु जी चमकौर पहुंचे। परन्तु पहाड़ी राजाओं तथा मुग़ल सेनाओं ने उन्हें वहाँ भी घेर लिया। उस समय गुरु जी के साथ केवल 40 सिक्ख तथा उनके दो साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह थे। फिर भी गुरु जी ने मुग़लों का डट कर सामना किया। इस युद्ध में 35 सिक्ख तथा दोनों साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। गुरु साहिब खिदराना पहुंचे।
- खिदराना का युद्ध 1705 ई०-खिदराना में मुग़लों से गुरु जी का अन्तिम युद्ध हुआ। इस युद्ध में वे 40 सिक्ख भी गुरु जी के साथ आ मिले जो आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में उनका साथ छोड़ गए थे। गुरु जी के पास लगभग 2000 सिक्ख थे जिन्हें 10,000 मुग़ल सैनिकों का सामना करना पड़ा। गुरु जी के पास पुनः आए सिक्खों ने अपनी गुरु भक्ति का परिचय दिया और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी गुरु भक्ति तथा बलिदान से गुरु जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने वहां इन शहीदों की मुक्ति के लिए प्रार्थना की। ये 40 शहीद इतिहास में 40 मुक्ते’ कहलाते हैं। आज भी सिक्ख अपनी अरदास के समय इन्हें याद करते हैं। उनकी याद में खिदराना का नाम मुक्तसर पड़ गया।
प्रश्न 6.
मनुष्य के रूप में आप गुरु गोबिन्द सिंह जी के बारे में क्या जानते हैं?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्ख इतिहास की महानतम् विभूतियों में से एक थे। वह सचरित्र, साहस, सन्तोष तथा सहनशीलता की मूर्ति थे। मानव के रूप में इनका और कहीं उदाहरण मिलना कठिन ही नहीं, अपितु असम्भव है। आदर्श मानव के रूप में गुरु साहिब के चरित्र के विभिन्न पक्षों का वर्णन इस प्रकार है —
- प्रभावशाली आकृति-गुरु गोबिन्द सिंह जी एक सुन्दर आकृति वाले पुरुष थे। उनका कद लम्बा, रंग गोरा, माथा चौड़ा तथा शरीर गठा हुआ था। उनके चेहरे पर एक विशेष चमक थी। वह शस्त्र धारण करके रहते थे. उनकी पगड़ी पर कलगी लगी रहती थी और उनके हाथ में बाज़ होता था।
- आदर्श पुत्र तथा पिता-गुरु जी आदर्श पुत्र तथा पिता थे। अपने पिता को यह कहकर कि “बलिदान देने के लिए आपसे बढ़कर योग्य कौन हो सकता है,” उन्होंने एक आदर्श पुत्र होने का ज्वलन्त उदाहरण दिया। धर्म के लिए उन्होंने अपने चारों पुत्रों को हँसते-हँसते बलिदान कर दिया। उनके दो पुत्र दीवार में जीवित चिनवा दिए गए। उनके अन्य दो पुत्र आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में शहीद हो गए थे। यह गुरु जी के आदर्श पिता होने का स्पष्ट प्रमाण है। गुरु जी अपनी माता जी की आज्ञा का पालन करना भी अपना बहुत बड़ा कर्त्तव्य समझते थे। उन्होंने अपनी माता जी के कहने पर आनन्दपुर का किला खाली कर दिया था।
- दृढ़ संकल्प-गुरु गोबिन्द सिंह जी एक दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति थे। भयंकर से भयंकर विपत्तियां भी उन्हें अपने मार्ग से विचलित न कर सकीं। अभी वह 9 वर्ष के ही थे कि उनके पिता ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। उनके दो पुत्रों को दीवार में जीवित चिनवा दिया गया। उनके अन्य दो पुत्र युद्ध में शहीदी को प्राप्त हुए। इतना होने पर भी गुरु जी अपने पथ से विचलित नहीं हुए। उन्होंने सत्य के मार्ग पर चलते हुए आजीवन संघर्ष जारी रखा।
- उदार तथा सहनशील-मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण गुरु गोबिन्द सिंह जी के पिता गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद कर दिया था, फिर भी गुरु गोबिन्द सिंह जी के मन में मुसलमानों के प्रति कोई घृणा नहीं थी। गुरु साहिब के उदार तथा सहनशील स्वभाव के कारण ही पीर मुहम्मद, पीर बुद्ध शाह, निहंग खान, नबी खां, गनी खां जैसे मुसलमान गुरु जी के मित्र थे। गुरु जी की सेना में भी अनेक मुसलमान तथा पठान सैनिक थे।
- सर्वगुण-सम्पन्न-गुरु जी एक सर्वगुण-सम्पन्न व्यक्ति थे। वे निडर, सहनशील तथा स्वतन्त्र विचारों वाले व्यक्ति थे। उस समय की सबसे बड़ी शक्ति मुग़ल भी उन्हें न डरा सकी। उन्होंने अपने पुत्रों का बलिदान दे दिया, परन्तु मुग़लों के सामने घुटने न टेके। उनके स्वतन्त्र विचारों का ज्ञान हमें उनकी रचना ‘ज़फ़रनामा’ से हो जाता है। ज़फ़रनामा में उन्होंने औरंगजेब की शक्ति को ललकारा था। उन्होंने इसमें औरंगज़ेब के पिठू कर्मचारियों की खुले रूप से निन्दा की है। इन सब बातों से हमें पता चलता है कि गुरु जी एक स्वतन्त्र विचारों वाले व्यक्ति थे।
प्रश्न 7.
चमकौर साहिब तथा खिदराना की लड़ाई का वर्णन करें।
उत्तर-
चमकौर साहिब तथा खिदराना की लड़ाइयां गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा लड़ी गईं दो महत्त्वपूर्ण लड़ाइयां थीं। . ये दोनों लड़ाइयां गुरु साहिब ने उत्तर खालसा काल में लड़ी।
- चमकौर का युद्ध 1705 ई०-सरसा नदी को पार करके गुरु साहिब अपने सिक्खों सहित चमकौर साहिब पहुंच गए। उस समय उनके साथ केवल 40 सिक्ख थे। उनके दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह उनके साथ थे। वहां उन्होंने एक कच्ची गढ़ी में शरण ली। इसी बीच शत्रु सेना ने उन पर आक्रमण कर दिया। सिक्खों ने इसका उत्तर बड़ी वीरता से दिया। गुरु जी के दोनों साहिबजादे बड़े साहस से लड़े। शत्रु को मारते-काटते वे शहीदी को प्राप्त हुए। पाँच प्यारों में से तीन प्यारे-साहिब सिंह, मोहकम सिंह तथा हिम्मत सिंह ने भी इसी युद्ध में शहादत प्राप्त की। अन्त में गुरु जी के सिंहों में से केवल पांच सिंह ही रह गए। उन्होंने हुक्मनामे के रूप में गुरु जी को चमकौर साहिब छोड़ जाने के लिए विवश कर दिया। भाई दया सिंह तथा भाई धरम सिंह उनके साथ गढ़ी से बाहर चले गए। शेष सिंह लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए।
गुरु गोबिन्द सिंह जी माछीवाड़ा, आलमगीर, दीना आदि स्थानों से होते हुए खिदराना की ओर चले गए। - खिदराना का युद्ध 1705 ई०-चमकौर साहिब से चलकर गुरु गोबिन्द सिंह जी जब खिदराना में ढाब नामक स्थान पर पहुंचे तो उस समय तक उनके साथ असंख्य सिक्ख शामिल हो चुके थे। वे 40 सिंह जो आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में गुरु जी को ‘बेदावा’ लिख कर गुरु साहिब का साथ छोड़ गए थे, वे भी वहां पहुंच गए। उनके साथ माई भागो विशेष रूप से गुरु जी के पक्ष में लड़ने के लिए वहाँ पहुंची थी। कुल मिला कर गुरु जी के पास लगभग 2,000 सिक्ख थे।
दूसरी ओर सरहिन्द का सूबेदार वज़ीर खां 10,000 सैनिकों की विशाल सेना लेकर वहां पहुंचा। 29 दिसम्बर, 1705 ई० को खिदराना की ढाब नामक स्थान पर घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में भी गुरु साहिब तथा उनके साथियों ने अपने अद्वितीय शौर्य का परिचय दिया। उन्होंने शत्रु की भयंकर मार-काट की। वहाँ पानी की कमी के कारण मुग़लों के लिए लड़ना बड़ा कठिन था। परिणामस्वरूप मुग़ल सेना परास्त हो कर भाग खड़ी हुई। चाहे माई भागो बुरी तरह से घायल हुई तथा बेदावा लिखने वाले 40 सिंह भी शहीद हो गए, परन्तु विजय गुरु जी की ही हुई। गुरु जी ने चालीस सिंहों की वीरता देख कर उनके मुखिया भाई महा सिंह के सामने उनकी ओर से दिया गया ‘बेदावा’ फाड़ दिया। उन सिक्खों को अब इतिहास में ‘चालीस मुक्ते’ कह कर याद किया जाता है। उनकी याद में ही खिदराना का नाम ‘मुक्तसर’ पड़ गया।
PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में
प्रश्न 1.
(i) गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का क्या नाम था?
(ii) उन्होंने कब से कब तक गुरु गद्दी का संचालन किया?
उत्तर-
(i) गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का नाम गोबिन्द राय था।
(ii) उन्होंने 1675 ई० में गुरु गद्दी सम्भाली। गुरु जी ने 1708 ई० तक गुरु गद्दी का संचालन किया।
प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कौन-सा नगारा बनवाया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने एक नगारा बनवाया जिसे रणजीत नगारा के नाम से पुकारा जाता था।
प्रश्न 3.
(i) आनन्दपुर का प्रथम युद्ध किस-किस के बीच हुआ?
(ii) इस युद्ध में किसकी विजय हुई?
उत्तर-
(i) आनन्दपुर का प्रथम युद्ध बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच हुआ।
(ii) इस युद्ध में गुरु जी ने पहाड़ी राजा को बुरी तरह परास्त किया।
प्रश्न 4.
आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में किसकी विजय हुई?
उत्तर-
आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में गुरु गोबिन्द सिंह जी की विजय हई।
प्रश्न 5.
(i) भंगानी का युद्ध कब हुआ?
(ii) दो पहाड़ी राजाओं के नाम बताओ जो इस युद्ध में गुरु गोबिन्द सिंह जी के विरुद्ध लड़े।
उत्तर-
(i) भंगानी का युद्ध 1688 ई० में हुआ।
(ii) इस युद्ध में बिलासपुर का राजा भीमचन्द तथा कांगड़ा का राजा कृपाल चन्द गुरु साहिब के विरुद्ध लड़े।
प्रश्न 6.
(i) आनन्दपुर की सभा में कितने व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान देने के लिए उपस्थित किया?
(ii) उसमें से पहला व्यक्ति कौन था?
उत्तर-
(i) इस सभा में पांच व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान देने के लिए उपस्थित किया।
(ii) इनमें से पहला व्यक्ति लाहौर का दयाराम खत्री था।
प्रश्न 7.
खालसा के सदस्य आपस में मिलते समय किन शब्दों से एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं?
उत्तर-
खालसा के सदस्य ‘वाहिगुरु जी का खालसा’, ‘वाहिगुरु जी की फतेह’ कह कर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं।
प्रश्न 8.
(i) गुरु जी के दो साहिबजादों के नाम बताओ जिन्हें जीवित दीवार में चिनवा दिया गया था।
(ii) उनके किन दो साहिबजादों ने चमकौर के युद्ध में शहीदी दी?
उत्तर-
(i) गुरु जी के दो साहिबजादों जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह को जीवित दीवार में चिनवा दिया गया।
(ii) चमकौर के युद्ध में शहीदी देने वाले दो साहिबजादे थे-अजीत सिंह तथा जुझार सिंह।
प्रश्न 9.
गुरु गोबिन्द राय जी के बचपन के प्रथम पांच वर्ष कहां बीते?
उत्तर-
पटना में।
प्रश्न 10.
गुरु गोबिन्द राय जी की दस्तारबंदी कहां हुई?
उत्तर-
लखनौर में।
प्रश्न 11.
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी कब हुई?
उत्तर-
11 नवम्बर, 1675 ई० को।
प्रश्न 12.
गुरु तेग बहादुर साहिब के शीश का, अन्तिम संस्कार किसने और कहां किया?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर साहिब के शीश का अन्तिम संस्कार भाई नेता तथा गोबिन्द्र राय जी ने आनन्दपुर साहिब में किया।
प्रश्न 13.
गुरु गोबिन्द राय जी द्वारा अपनाए गए किसी एक राजसी चिन्ह का नाम बताओ।
उत्तर-
कलगी।
प्रश्न 14.
‘पाऊंटा साहिब’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘पाऊंटा साहिब’ का अर्थ है-पैर रखने का स्थान।
प्रश्न 15.
सढौरा की पठान सेना का नेता कौन था?
उत्तर-
पीर बुद्धू शाह।।
प्रश्न 16.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खिदराना (मुक्तसर) में मुगल सेना को कब हराया?
उत्तर-
1705 में।
प्रश्न 17.
गुरु गोबिन्द सिंह जी कब और कहां ज्योति जोत समाए?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी 7 अक्तूबर, 1708 को नंदेड़ में ज्योति जोत समाए।
प्रश्न 18.
किस मुगल बादशाह ने हिन्दुओं को इस्लाम धर्म अपनाने पर विवश किया?
उत्तर-
औरंगजेब ने।
प्रश्न 19.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवन कथा से सम्बन्धित ग्रन्थ कौन-सा है?
उत्तर-
बचित्तर नाटक।
प्रश्न 20.
खालसा स्त्री अपने नाम के साथ कौन-सा अक्षर लगाती है?
उत्तर-
कौर।
प्रश्न 21.
खालसा को कितने ‘ककार’ धारण करने होते हैं?
उत्तर-
पांच।
प्रश्न 22.
मसन्द प्रथा को किसने समाप्त किया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने।
प्रश्न 23.
सिक्खों के अन्तिम तथा दसवें गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी।
प्रश्न 24.
प्रत्येक खालसा के नाम के साथ लगा ‘सिंह’ शब्द किस बात का प्रतीक है?
उत्तर-
यह शब्द उनकी वीरता तथा निडरता का प्रतीक है।
प्रश्न 25.
नादौन का युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1690 ई० में।
प्रश्न 26.
उत्तर-खालसा काल की समयावधि क्या थी?
उत्तर-
1699-1708 ई०।
प्रश्न 27.
निरमोह का युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1702 ई० में।
प्रश्न 28.
आनन्दपुर साहिब में ‘बेदावा’ लिखने वाले 40 सिंहों को खिदराना के युद्ध में क्या नाम दिया गया?
उत्तर-
चालीस मुक्ते।
प्रश्न 29.
आनन्दपुर साहिब के दूसरे युद्ध में ‘बेदावा’ लिखने वाले 40 सिक्खों का मुखिया कौन था?
उत्तर-
भाई महा सिंह।
प्रश्न 30.
गुरु गोबिन्द सिंह साहिब के जीवन काल का अन्तिम युद्ध कौन सा था?
उत्तर-
खिदराना का युद्ध।
प्रश्न 31.
‘आदि ग्रन्थ साहिब’ को अन्तिम रूप किसने दिया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह साहिब जी ने।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति
- गुरु गोबिन्द राय जी के पिता का नाम …………….. और माता का नाम ………. था।
- खालसा की स्थापना …………… ई० में हुआ।
- मुक्तसर का पुराना नाम …………….. था।
- गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘जफ़रनामा’ नामक पत्र मुग़ल सम्राट् ………….. को लिखा।
- श्री गुरु …………. को लोकतंत्र प्रणाली का प्रारम्भकर्ता कहा जाता है।
- मसन्द प्रथा को …………… ने समाप्त किया।
- आनन्दपुर साहिब के दूसरे युद्ध में ‘बेदावा’ लिखने वाले 40 सिखों का मुखिया ……… था।
उत्तर-
- श्री गुरु तेग़ बहादुर जी, गुजरी जी,
- 1699,
- खिदराना,
- औरंगज़ेब,
- गोबिंद सिंह जी,
- गुरु गोबिन्द सिंह जी,
- भाई महा सिंह।
III. बहविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द राय जी का जन्म हुआ
(A) 2 दिसंबर, 1666 ई० को
(B) 22 दिसंबर, 1666 ई० को
(C) 22 दिसंबर, 1661 ई० को
(D) 2 दिसंबर, 1661 ई० को।
उत्तर-
(B)
प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द जी ने शिक्षा ली
(A) काजी पीर मुहम्मद
(B) पटना में
(C) भाई सतिदास
(D) अमृतसर में।
उत्तर-
(D) अमृतसर में।
प्रश्न 3.
ख़ालसा का सृजन हुआ
(A) करतारपुर में
(B) पण्डित हरजस से
(C) आनंदपुर साहिब में
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(C) आनंदपुर साहिब में
प्रश्न 4.
भंगानी का युद्ध कब हुआ?
(A) 1699 ई० में
(B) 1705 ई० में
(C) 1688 ई० में
(D) 1675 ई० में।
उत्तर-
(C) 1688 ई० में
प्रश्न 5.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खिदराना (श्री मुक्तसर साहिब) में मुग़ल सेना को पराजित किया
(A) 1688 ई० में
(B) 1699 ई० में
(C) 1675 ई० में
(D) 1705 ई० में।
उत्तर-
(B) 1699 ई० में
IV. सत्य-असत्य कथन
प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं
- पहाड़ी राजाओं ने अब तक मुग़लों के विरुद्ध गुरु गोबिंद सिंह जी का साथ दिया।
- ‘खालसा’ की स्थापना पटना में हुई।
- ‘बचित्तर नाटक’ गुरु गोबिंद सिंह जी की आत्मकथा है।
- ‘चालीस मुक्तों’ का संबंध खिदराना के युद्ध से है।
- सिक्ख परम्परा में ‘खण्डे के पाहुल’ की बहुत बड़ी महिमा है।
उत्तर-
- (✗),
- (✗),
- (✓),
- (✓),
- (✓).
V. उचित मिलान
- ज़फरनामा लखनौर
- गोबिन्द राय जी की दस्तारबंदी – पीर बुद्ध शाह
- सढौरा की पठान सेना का नेता – गुरु गोबिन्द सिंह जी
- मसन्द प्रथा को समाप्त किया – मुग़ल सम्राट औरंगजेब
उत्तर-
- ज़फरनामा-मुग़ल सम्राट औरंगजेब,
- गोबिन्द राय जी की दस्तारबंदी-लखनौर,
- सढौरा की पठान सेना का नेता-पीर बुद्धू शाह,
- मसन्द प्रथा को समाप्त किया-गुरु गोबिन्द सिंह जी।
छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
पहाड़ी राजाओं तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच भंगानी के युद्ध ( 1688 ई०) पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
(Sure)
उत्तर-
पहाड़ी राजा गुरु जी द्वारा की जा रही सैनिक तैयारियों को अपने लिए खतरा समझते थे। इस कारण वे गुरु जी के विरुद्ध थे। इन्हीं दिनों एक और घटना घटी। बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द ने अपने पुत्र की बारात को पाऊंटा से गुजारना चाहा, परन्तु गुरु जी ने उसे पाऊंटा से गुजरने की आज्ञा न दी। भीमचन्द ने इसे अपना अपमान समझा
और उसने पुत्र के विवाह के पश्चात् अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। पाऊंटा से कोई 6 मील दूर भंगानी नामक स्थान पर घमासान लड़ाई लड़ी गई। युद्ध में पठान तथा उदासी सैनिक गुरु जी का साथ छोड़ गए। परन्तु ठीक उसी समय सढौरा का पीर बुद्धू शाह गुरु जी की सहायता के लिए आ पहुंचा। अपने 4 पुत्रों और 700 शिष्यों सहित उनकी सहायता से गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह परास्त किया। यह गुरु जी की पहली महत्त्वपूर्ण विजय थी।
प्रश्न 2.
खालसा की स्थापना पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
1699 ई० को वैशाखी के दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर में एक विशाल सभा बुलाई। इस सभा में लगभग 80 हजार लोग शामिल हुए। जब सभी लोग अपने-अपने स्थान पर बैठ गए तो गुरु जी ने नंगी तलवार घुमाते हुए कहा-“क्या आप में कोई ऐसा सिक्ख है जो धर्म के लिए अपना सिर दे सके ?” गुरु जी ने इस वाक्य को तीन बार दोहराया। तब लाहौर निवासी दयाराम ने अपने को बलिदान के लिए पेश किया। गुरु जी उसे शिविर में ले गए। बाहर आकर उन्होंने एक बार फिर बलिदान की मांग की। तब क्रमशः धर्मदास, मोहकमचन्द, साहिब चन्द, हिम्मत राय बलिदान के लिए उपस्थित हुए। सिक्ख इतिहास में इन पांच व्यक्तियों को ‘पंज प्यारे’ कह कर पुकारा जाता है। गुरु जी ने दोधारी तलवार खण्डा से तैयार किया हुआ पाहुल अर्थात् अमृत उन्हें छकाया। वे ‘खालसा’ कहलाए और सिंह बन गए। गुरु जी ने स्वयं भी उनके हाथों से अमृतपान किया। इस प्रकार गुरु गोबिन्द राय से गुरु गोबिन्द सिंह जी बन गए।
प्रश्न 3.
पूर्व खालसा काल ( 1675 से 1699) में गुरु गोबिन्द सिंह जी की किन्हीं चार सफलताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
इस काल में गुरु साहिब की चार सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है
- सेना का संगठन-गुरु गोबिन्द सिंह जी अभी 9 वर्ष के ही थे कि उनके पिता को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए शहीदी देनी पड़ी! गुरु जी ने धर्म की रक्षा करनी थी। इसलिए उन्होंने सेना का संगठन करना आरम्भ कर दिया।
- रणजीत नगारे का निर्माण-गुरु जी ने एक नगारा भी बनवाया जिसे रणजीत नगारा के नाम से पुकारा जाता था। शिकार पर निकलते समय इस नगारे को बजाया जाता था।
- पाऊंटा दुर्ग का निर्माण-गुरु जी नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के निमन्त्रण पर उसके यहां गए। वहां उन्होंने पाऊंटा नामक किले का निर्माण करवाया।
- पहाड़ी राजाओं से संघर्ष-1688 ई० में बिलासपुर के राजा भीमचन्द ने अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। भंगानी नामक स्थान पर घमासान लड़ाई हुई। युद्ध में गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह परास्त किया।
प्रश्न 4.
सिक्ख इतिहास में खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
सिक्ख इतिहास में खालसा की स्थापना एक अति महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
- इसकी स्थापना से सिक्खों के एक नए वर्ग-सन्त सिपाहियों का जन्म हुआ। इससे पहले सिक्ख केवल नाम जपने को ही वास्तविक धर्म मानते थे, परन्तु अब गुरु जी ने तलवार को भी धर्म का आवश्यक अंग बना दिया।
- खालसा की स्थापना से सिक्खों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। खालसा के नियमों के अनुसार कोई भी पांच सदाचारी सिक्ख ‘खण्डे का पाहुल’ छका कर अर्थात् अमृतपान करा कर किसी को भी खालसा पन्थ में सम्मिलित कर सकते थे।
- खालसा की स्थापना से पंजाब में जातीय भेदभाव की दीवारें टूटने लगी और शताब्दियों से पिसती आ रही दलित जातियों को नया जीवन मिला।
- खालसा की स्थापना से सिक्खों में वीरता की भावना उत्पन्न हुई। निर्बल से निर्बल सिक्ख भी सिंह (शेर) का रूप धारण करके सामने आया।
प्रश्न 5.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के चरित्र एवं व्यक्तित्व की कोई चार महत्त्वपूर्ण विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान् चरित्र तथा व्यक्तित्व के स्वामी थे।
- महान् विद्वान्-गुरु साहिब एक उच्च कोटि के विद्वान् भी थे। उन्हें पंजाबी, संस्कृत, फ़ारसी तथा ब्रज भाषा का पूरा ज्ञान था। उन्होंने अनेक काव्यों की रचना की जिसमें ‘अकाल उस्तत’, ‘बचित्तर नाटक’ तथा ‘चण्डी दी वार’ प्रमुख हैं।
- महान् संगठनकर्ता, सैनिक तथा सेनानायक-गुरु जी एक महान् संगठनकर्ता, सैनिक तथा सेनानायक थे। उन्होंने खालसा की स्थापना करके सिक्खों को सैनिक रूप से संगठित किया। उन्होंने कई लड़ाइयों में अपने सैनिकों का कुशल नेतृत्व भी किया।
- महान् सन्त तथा धार्मिक नेता-गुरु साहिब एक महान् सन्त तथा धार्मिक नेता के गुणों से परिपूर्ण थे। उन्होंने अपने सिक्खों में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रचार किया और धर्म की रक्षा के लिए उन्हें लड़ना सिखाया।
- उच्चकोटि के समाज सुधारक-गुरु साहिब ने जाति-पाति का विरोध किया और अन्य सामाजिक कुरीतियों की घोर निन्दा की।
प्रश्न 6.
क्या गुरु गोबिन्द सिंह जी एक राष्ट्र-निर्माता थे ? किन्हीं चार तथ्यों के आधार पर अपने तथ्यों की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी निःसन्देह एक महान् राष्ट्र निर्माता थे।
- गुरु साहिबान ने गुरु नानक देव जी द्वारा रखी गई नींव के ऊपर एक ऐसे महल का निर्माण किया जहां बैठ कर लोग अपने भेदभाव भूल गए। मुसलमानों से युद्ध करने में उनका उद्देश्य कोई अलग राज्य स्थापित करना नहीं था बल्कि देश से अत्याचारों का नाश करना था। उनका मुग़लों से कोई धार्मिक विरोध नहीं था।
- गुरु साहिब ने खालसा की स्थापना करके सिक्खों में एकता की भावना उत्पन्न की। इससे खालसा के द्वार सभी जातियों के लिए समान रूप से खुले थे। अतः गुरु जी द्वारा स्थापित यह संस्था एक राष्ट्रीय संस्था ही थी।
- गुरु साहिब ने जिस साहित्य की रचना की वह किसी एक जाति के लिए नहीं अपितु पूरे राष्ट्र के लिए है।
- गुरु साहिब द्वारा समाज सुधार कार्य भी राष्ट्र निर्माण से ही प्रेरित था।
बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भंगानी के युद्ध ( 1688 ई०) का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भंगानी का युद्ध 1688 ई० में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच हुआ। इस युद्ध में भाग लेने वाले प्रमुख पहाड़ी राजा थे-बिलासपुर का शासक भीमचन्द, कटोच का शासक कृपाल, श्रीनगर का शासक फतेहशाह, गुलेर का शासक गोपालचन्द तथा जस्सोवाल का शासक केसर चन्द। इन राजाओं का मुखिया बिलासपुर का राजा भीमचन्द था।
कारण-गुरु जी तथा पहाड़ी राजाओं के बीच भंगानी के युद्ध के मुख्य कारण निम्नलिखित थे
- गुरु जी ने अपने अनुयायियों को अपनी सेना में भर्ती करना आरम्भ कर दिया था। उन्होंने सैनिक सामग्री भी इकट्ठी करनी आरम्भ कर दी थी। पहाड़ी राजा गुरु जी की इन सैनिक गतिविधियों को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे।
- पहाड़ी राजा मूर्ति-पूजा में विश्वास रखते थे, परन्तु गुरु जी ने पाऊंटा में रहते हुए मूर्ति-पूजा का घोर खण्डन किया।
- गुरु जी अब शाही ठाठ-बाठ से रहने लगे थे। उनके इस कार्य से भी पहाड़ी राजाओं के मन में ईर्ष्या पैदा हो गई।
- गुरु जी पहाड़ी प्रदेश में रहकर सैनिक तैयारियां कर रहे थे। अत: पहाड़ी राजा यह नहीं चाहते थे कि गुरु जी के कारण उन्हें सम्राट औरंगज़ेब से उलझना पड़े।
- सिक्ख गुरु जी को बहुमूल्य भेटें देते रहते थे। इन भेंटों के कारण पहाड़ी राजा गुरु जी से ईर्ष्या करने लगे थे।
- इस युद्ध का तात्कालिक कारण यह था कि बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द ने अपने पुत्र की बारात को पाऊंटा में से गुज़ारना चाहा। परन्तु गुरु जी को उसकी नीयत पर सन्देह था, इसलिए उन्होंने उसे ऐसा करने की अनुमति न दी। क्रोध में आकर उसने अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया।
घटनाएं-गुरु साहिब ने युद्ध के लिए भंगानी नामक स्थान को चुना। युद्ध शुरू होते ही गुरु जी के लगभग 500 पठान सैनिक उनका साथ छोड़ गए। परंतु उसी समय सढौरा के पीर बुद्ध शाह अपने चार पुत्रों तथा 700 अनुयायियों सहित गुरु जी से आ मिला। 22 सितंबर 1688 ई० को दोनों पक्षों में एक घमासान युद्ध हुआ। वीरतापूर्वक लड़ते हुए सिक्खों ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह हराया।
युद्ध का महत्त्व-भंगानी की विजय गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन की पहली तथा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विजय थी। इसका निम्नलिखित महत्त्व था
- इस विजय से गुरु जी की शक्ति की धाक जम गई।
- गुरु जी को विश्वास हो गया कि वह अपने अनुयायियों को अच्छी तरह से संगठित करके मुग़लों के अत्याचारों का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं।
- पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी का विरोध छोड़कर उनसे मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर लिए।
- इस विजय ने गुरु जी को पाऊंटा साहिब छोड़कर फिर से आनन्दपुर में जाने का अवसर प्रदान किया।
- राजा भीमचन्द ने विशेषकर गुरु जी से मित्रता की नीति अपनाई।
- गुरु साहिब ने भीमचन्द की मित्रता का लाभ उठाते हुए आनन्दपुर में आनन्दगढ़, केशगढ़, लोहगढ़ तथा फतेहगढ़ नामक चार किलों का निर्माण करवाया।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर गुरु गोबिन्द सिंह जी के चरित्र एवं व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए
- संगठनकर्ता
- सन्त तथा धार्मिक नेता
- समाज सुधारक
- कवि तथा विद्वान्।
उत्तर-
- संगठनकर्ता के रूप में गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान् संगठनकर्ता थे। उनकी संगठन शक्ति असाधारण थी। उन्होंने ‘खालसा की स्थापना’ करके सामाजिक तथा धार्मिक भेदभावों के कारण बिखरी हुई सिक्ख जनता को एक सूत्र में पिरो दिया। गुरु जी पहले भारतीय नेता थे, जिन्होंने प्रजातन्त्रात्मक सिद्धान्त सिखाए तथा अपने अनुयायियों को गुरमत्ता अर्थात् सब. की राय पर चलने को तैयार किया।” वास्तव में ही गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘खालसा’ का द्वार सभी जातियों के लिए खोलकर एक राष्ट्रीय संगठन को जन्म दिया।
- सन्त तथा धार्मिक नेता के रूप में गुरु जी एक धार्मिक नेता के रूप में महान् थे। सहनशीलता उनके धर्म का विशेष गुण था। उन्हें इस्लाम धर्म उतना ही प्यारा था जितना कि अपना धर्म, परन्तु गुरु, जी का धर्म यह आज्ञा नहीं देता था कि माला हाथ में लिए चुपचाप अत्याचारों को सहन करते जाओ। उनकी ‘खालसा स्थापना’ का मुख्य उद्देश्य ही अत्याचारों का विरोध करना था।
एक सन्त होने के नाते गुरु जी को सर्वशक्तिमान ईश्वर पर पूरा भरोसा था और वह अपने सभी कार्य उसी की कृपा पर छोड़ देते थे। उनके महान् सन्त होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उनकी नज़र में धन की कोई कीमत नहीं थी। उन्हें जब कभी भी कहीं से धन प्राप्त हुआ, उन्होंने सारे का सारा धन निर्धनों तथा ज़रूरतमन्दों में बांट दिया। - समाज सुधारक के रूप में गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान् सुधारक भी थे। उन्होंने जाति-प्रथा और मूर्ति-पूजा आदि सामाजिक बुराइयों का घोर खण्डन किया। उनके द्वारा स्थापित ‘खालसा’ में सभी जातियों के लोग प्रवेश पा सकते थे। गुरु जी के प्रयत्नों से वे जातियां जो समाज पर कलंक समझी जाती थीं अब वीर योद्धा बन गईं और उन्होंने देश तथा धर्म की रक्षा का भार सम्भाल लिया। गुरु जी ने यज्ञ, बलि आदि व्यर्थ के कर्म काण्डों का खुला विरोध किया और समाज को एक आदर्श रूप प्रदान किया।
- कवि तथा विद्वान् के रूप में गुरु गोबिन्द सिंह जी एक उच्च कोटि के कवि तथा विद्वान् थे। उन्हें पंजाबी, संस्कृत, फारसी, हिन्दी आदि सभी भाषाओं का पूरा ज्ञान था। उन्हें कविता लिखने का विशेष चाव था। उनकी कविताएं मार्मिकता तथा वीरता से परिपूर्ण हैं। जापु साहिब, ज़फ़रनामा, चण्डी दी वार, अकाल उस्तत तथा बचित्तर नाटक गुरु जी की महत्त्वपूर्ण रचनाएं मानी जाती हैं। गुरु जी कवियों की संगति में बैठने में भी विशेष रुचि लेते थे। पाऊंटा में रहते हुए उनके पास 52 कवि थे।
प्रश्न 3.
‘खालसा’ की स्थापना किस प्रकार हुई? इसके सिद्धान्तों का वर्णन करो।
उत्तर-
‘खालसा’ की स्थापना 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने की। इसे सिक्ख इतिहास की महानतम घटना माना जाता है। खालसा की स्थापना के मुख्य चरण निम्नलिखित थे
- पांच प्यारों का चुनाव-1699 ई० में बैसाखी के दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर साहिब में सिक्खों की एक विशाल सभा बुलाई। इस सभा में विभिन्न प्रदेशों से 80,000 के लगभग लोग इकट्ठे हुए। गुरु जी सभा में पधारे और तलवार को म्यान से निकाल कर घुमाते हुए कहा-“कोई ऐसा सिक्ख है जो धर्म के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे सके।” यह सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया। गुरु जी ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया। अन्त में दयाराम नामक एक क्षत्रिय ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। गुरु जी उसे समीप लगे एक तम्बू में ले गये। कुछ समय के पश्चात् वह तम्बू से बाहर आए और उन्होंने एक और व्यक्ति का शीश मांगा। इस बार दिल्ली निवासी धर्मदास जाट ने अपने आप को भेंट किया। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने यह क्रम तीन बार फिर दोहराया। क्रमशः मोहकम चन्द, साहिब चन्द तथा हिम्मत राय नामक तीन अन्य व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। यहां यह स्पष्ट करना उचित होगा कि गुरु जी ने यह सब कुछ अपने अनुयायियों की परीक्षा लेने के लिए किया। तम्बू में गुरु जी ने उनके साथ क्या किया, इस बारे में वह स्वयं भली-भान्ति जानते थे। अन्त में गुरु जी पांचों व्यक्तियों को सभा के सामने लाए और उन्हें ‘पंज प्यारे’ की उपाधि दी।
- खण्डे का पाहुल-पांच प्यारों का चुनाव करने के पश्चात् गुरु जी ने उन्हें अमृतपान करवाया जिसे ‘खण्डे का पाहुल’ कहा जाता है। यह अमृत गुरु जी ने विभिन्न बाणियों का पाठ करते हुए स्वयं तैयार किया।
सभी प्यारों के नाम के पीछे ‘सिंह’ शब्द जोड़ दिया गया। फिर गुरु जी ने पांच प्यारों के हाथ से स्वयं अमृत छका। इस प्रकार ‘खालसा’ का जन्म हुआ।
खालसा पंथ के सिद्धान्त
खालसा पंथ के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
- ‘खालसा’ में प्रवेश करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को ‘खण्डे का पाहुल’ का सेवन करना पड़ेगा। तब वह स्वयं को खालसा कहलवाएगा।
- प्रत्येक खालसा अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाएगा और खालसा स्त्री अपने नाम के साथ ‘कौर’ शब्द लगाएगी।
- प्रत्येक खालसा पाँच ‘ककार’-केश, कंघा, कड़ा, कछहरा तथा किरपान धारण करेगा।
- खालसा केवल एक ईश्वर में विश्वास रखेगा तथा किसी देवी-देवता तथा मूर्ति की पूजा से दूर रहेगा।
- वह प्रात:काल जल्दी उठ कर स्नान करेगा और पाँच बाणियों-जपुजी साहिब, जापु साहिब, आनन्द साहिब, सवैये तथा चौपाई का पाठ करेगा।
- वह दस नाखूनों की किरत अर्थात् मेहनत की कमाई करेगा। वह अपनी नेक कमाई में से धार्मिक कार्यों के लिए दसवन्द (दसवां हिस्सा) भी निकालेगा।
- वह जाति-पाति तथा ऊँच-नीच के भेदभाव में विश्वास नहीं रखेगा।
- प्रत्येक खालसा गुरु तथा पंथ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को सदैव तैयार रहेगा।
- वह अस्त्र-शस्त्र धारण करेगा और धर्म की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने के लिए तत्पर रहेगा।
- वह तम्बाकू तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं करेगा।
- वह नैतिकता का पालना करेगा और अपने चरित्र को शुद्ध रखेगा।
- खालसा लोग आपस में मिलते समय ‘वाहिगुरु जी का खालसा, वाहिगुरु जी की फतह’ कह कर एकदूसरे का अभिवादन करेंगे।