PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है (2nd Language)

Hindi Guide for Class 8 PSEB परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है Textbook Questions and Answers

परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है अभ्यास

1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखने का अभ्यास करें :

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 1
PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 2
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

2. नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखें :

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 3
PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 4
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

3. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :

(क) सुमति कौन था?
उत्तर :
सुमति राजा शूरसेन का मन्त्री था।

(ख) सुमति किस बात पर विश्वास करता था?
उत्तर :
सुमति आस्तिक था। वह परमात्मा के बारे में यह सोचता था – परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।

(ग) राजा शूरसेन शिकार खेलने कहाँ गया?
उत्तर :
राजा शूरसेन शिकार खेलने के लिए घोड़े पर सवार होकर मन्त्री और बहुत से सेवकों के साथ जंगल में गया था।

(घ) राजा ने मंत्री से बदला लेने का क्या उपाय सोचा?
उत्तर :
राजा शूरसेन ने मन्त्री से बदला लेने के लिए प्यास का बहाना बनाकर मन्त्री को कुएँ से जल लाने की आज्ञा दी और जैसे ही मन्त्री जल निकालने के लिए नीचे झुका तो राजा ने उसे कुएँ में गिरा दिया।

(ङ) राजा ने अपने घोड़े का कहाँ बाँधा?
उत्तर :
राजा शूरसेन ने अपने घोड़े को वृक्ष से बाँध दिया था।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

(च) घोड़े को वृक्ष के साथ बँधा देखकर सैनिकों ने क्या सोचा?
उत्तर :
घोड़े को वृक्ष के साथ बँधा देखकर सैनिकों ने सोचा कि यहां निकट ही उसका मालिक अवश्य होगा।

(छ) सैनिक राजा शूरसेन को क्यों पकड़ना चाहते थे?
उत्तर :
सैनिक राजा शूरसेन को इसलिए पकड़ना चाहते थे ताकि वे उसकी बलि चढ़ा सकें।

(ज) राजा के प्राण कैसे बचे?
उत्तर :
जब राजा की बलि दी जाने लगी तो दूसरे राजा की दृष्टि उसकी कटी अंगुली पर पड़ी। उसने कहा कि अंगहीन मनुष्य की बलि नहीं दी जा सकती। इसलिए इसे छोड़ दिया जाए। इस प्रकार राजा की जान बच गई।

(झ) राजा ने मंत्री को कुँए से कब निकाला?
उत्तर :
जब राजा बलि न दिए जाने से बच कर राजधानी लौट रहा था, तब एकाएक उसके विचारों में परिवर्तन आया और उसने मन्त्री को कुएँ से निकाल लिया।

(ञ) राजा ने किससे क्षमा माँगी और क्यों?
उत्तर :
उंगली कटी होने के कारण राजा जब बलि होने से बच गया तो उसे एहसास हुआ कि मन्त्री ठीक कहता था कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। अब उसे मन्त्री से किए व्यवहार पर पछतावा था अतः राजा ने मन्त्री से क्षमा माँगी।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

4. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें :

(क) राजा अपने जीवन से निराश क्यों हो गया था?
उत्तर :
राजा शूरसेन एक प्रतापी राजा था। एक बार राजा की उंगली में एक फोड़ा निकल आया। इस फोड़े का दर्द असहनीय था। राजा ने पीड़ा से आहत होकर मन्त्री को बुलवाया। मन्त्री ने दर्द से तड़पते हुए राजा को देखकर कहा कि राजन ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। मन्त्री के ये शब्द सुनकर राजा सोचने लगा कि यह मन्त्री कितना पत्थर – दिल है। इसके हृदय में किसी के प्रति सहानुभूति नहीं है। कुछ दिनों के बाद राजा की उंगली गल गई। उस समय राजा अपनी दयनीय स्थिति को देखकर निराश हो गया।

(ख) कुँए के पास से गुजरते हुए राजा ने क्या सोचा?
उत्तर :
राजा शूरसेन को रह – रहकर मन्त्री की वह बात कचौट रही थी जो उसने पीड़ा से तड़प रहे राजा को कही थी कि – ‘परमात्मा जो करता है, अच्छे के लिए करता है। अब राजा मन्त्री से उस बात का बदला लेना चाहता था। इसलिए राजा ने जंगल में कुएँ के पास से निकलते हुए एक योजना सोची कि वह प्यास का बहाना बनाकर, मन्त्री को कुएँ से पानी निकालने को कहेगा। जब मन्त्री पानी निकालने के लिए नीचे झुकेगा तब वह उसे कुएँ में धकेल देगा।

(ग) राजा की बलि क्यों नहीं दी जा सकती थी?
उत्तर :
जब राजा शूरसेन की बलि दी जाने लगी तो दूसरे राजा की दृष्टि उसकी कटी हुई उंगली पर पड़ी तो राजा हैरान होकर चिल्ला उठा – ‘अरे पापियो! यह क्या कर डाला ? तुम नहीं जानते कि अंगहीन मनुष्य की बलि नहीं दी जाती। तो हटाइए इसे यहाँ से।’ इस प्रकार राजा की जान बच गई और उसकी बलि नहीं दी जा सकी।

(घ) ‘मुझ भले-अच्छे मनुष्य का मौत से छुटकारा पाना संभव न होता’ मंत्री के इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर :
‘मुझ भले अच्छे मनुष्य का मौत से छुटकारा पाना सम्भव न होता’ मन्त्री के इस कथन का अभिप्राय यह है कि यदि राजा के सैनिक उसे पकड़ लेते तो राजा शूरसेन अंगहीन होने के कारण बच जाते लेकिन मन्त्री पूर्णतः स्वस्थ था। अतः वे लोग उसकी बलि चढ़ा देते तब अच्छे भले मनुष्य का मौत से छुटकारा पाना सम्भव न होता। इसलिए यह मानना ग़लत न होगा कि ईश्वर ने सब कुछ मनुष्य की भलाई के लिए ही किया है।

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(ङ) इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर :
‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य के जीवन में जो कुछ भी अच्छा – बुरा होता है, उससे दुःखी एवं निराश नहीं होना चाहिए। इसमें भी कहीं न कहीं अच्छाई छिपी रहती है। ईश्वर सदैव सही करता है। उसकी दृष्टि में सभी मनुष्य एक समान हैं। उसके द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य उद्देश्य पूर्ण होता है। सृष्टि की कोई वस्तु निरर्थक नहीं अत: परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।

5. कहानी में घटी घटनाओं के क्रम बॉक्स में अंकों में लिखो :

[ ] बार-बार अपना दोष स्वीकार करते हुए राजा ने मंत्री से क्षमा माँगी।
[ ] राजा की उँगली पर फोड़ा निकल आया।
[ 1. ] राजा मंत्री और बहुत-से सेवकों को साथ लेकर जंगल की ओर निकल पड़ा।
[ ] मंत्री ने दर्द से बेहाल राजा को कहा कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।
[ ] राजा ने मंत्री को कुँए से बाहर निकाला।
[ ] दूसरे राजा के सैनिकों ने राजा को पकड़ लिया और अपने स्वामी की सेवा में हाज़िर कर दिया।
[ ] राजा ने अपने मंत्री को कुँए में धक्का दे दिया।
[ ] दूसरे राजा ने अंगहीन होने के कारण राजा की बलि देने से इंकार कर दिया।
[ ] राजा को जंगल से बाहर निकलने का मार्ग नहीं सूझ रहा था।
[ ] राजा शूरसेन अपने प्राणों की खैर मनाता हुआ वहाँ से तत्काल निकल भागा।
उत्तर :
[ 1 ] राजा की उंगली पर फोड़ा निकल आया।
[ 2 ] मन्त्री ने दर्द से बेहाल राजा को कहा कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।
[ 3 ] राजा मन्त्री और बहुत – से सेवकों को साथ लेकर जंगल की ओर निकल पड़ा।
[ 4 ] राजा ने अपने मन्त्री को कुएँ में धक्का दे दिया।
[ 5 ] राजा को जंगल से बाहर निकलने का मार्ग नहीं सूझ रहा था।
[ 6 ] दूसरे राजा के सैनिकों ने राजा को पकड़ लिया और अपने स्वामी की सेवा में हाजिर कर दिया।
[ 7 ] दूसरे राजा ने अंगहीन होने के कारण राजा की बलि देने से इन्कार कर दिया।
[ 8 ] राजा शूरसेन अपने प्राणों की खैर मनाता हुआ वहाँ से तत्काल निकल भागा।
[ 9 ] राजा ने मन्त्री को कुएँ से बाहर निकाला।
[ 10 ] बार – बार अपना दोष स्वीकार करते हुए राजा ने मन्त्री से क्षमा माँगी।

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6. किसने कहा, किससे कहा?
किसने कहा? – किससे कहा?
(क) अरे पापियो! यह क्या कर डाला?
तुम नहीं जानते कि अंगहीन मनुष्य की
बलि नहीं दी जाती।
(ख) परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।
(ग) हे धर्मात्मा बंधुवर ! क्या तुम अब भी जिंदा हो?
(घ) मेरा कुँए में गिरना भी एक शुभ लक्षण था।
उत्तर :
किसने कहा? – किससे कहा?
(क) बलि देने वाले राजा ने – अपने सैनिकों से कहा।
(ख) सुमति मन्त्री ने – राजा शूरसेन से कहा।
(ग) राजा शूरसेन ने – सुमति मन्त्री से कहा।
(घ) मन्त्री सुमति ने – राजा शूरसेन से कहा।

7. इन शब्दों और मुहावरों के अर्थ लिखते हुए वाक्यों में प्रयोग करें :

  1. पत्थर दिल _____________________
  2. रोगहीन _____________________
  3. थका-हारा _____________________
  4. नेकदिल _____________________
  5. शुभ लक्षण _____________________
  6. मौत के घाट उतारना _____________________
  7. संकल्प पूरा करना _____________________
  8. प्राणों की खैर मनाना _____________________
  9. मृत्यु-तुल्य जीवन बिताना _____________________
  10. जल भुनना _____________________

उत्तर :

  1. पत्थर दिल = कठोर हृदय वाला।
    वाक्य – राजा शूरसेन सुमति मन्त्री को प्रारम्भ में पत्थर दिल समझ रहा था।
  2. रोगहीन = जिसे कोई बीमारी न हो।
    वाक्य – रोगहीन व्यक्ति रोगी व्यक्ति की अपेक्षा अधिक दिन जीवित रह सकता है।
  3. थका – हारा = बहुत थका हुआ।
    वाक्य – दिन – भर की मेहनत से थका – हारा किसान खेत में सो गया।
  4. नेकदिल = दयावान, अच्छे हृदय वाला।
    वाक्य – महात्मा जी बहुत नेकदिल थे।
  5. शुभ लक्षण = अच्छा संकेत।
    वाक्य – तुम्हारे बेटे के शुभ लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
  6. मौत के घाट उतारना = मार देना।
    वाक्य – गुरु जी ने दोनों पठानों को मौत के घाट उतार दिया।
  7. संकल्प पूरा करना = इच्छा पूरी करना।
    वाक्य – रावण को मारकर श्री राम ने अपना संकल्प पूरा किया।
  8. प्राणों की खैर मनाना = अपनी जान का बचाव करना।
    वाक्य – भारतीय सेना ने हथियार संभालते हुए दुश्मन को ललकारा कि अब तुम अपने प्राणों की खैर मनाओ।
  9. मृत्यु तुल्य जीवन बताना = दुःखों और अभावों में जीवन जीना।
    वाक्य – रमेश गम्भीर बीमारी से ग्रस्त होने के कारण मृत्यु तुल्य जीवन बिता रहा था।
  10. जल भुनना = ईर्ष्या करना।
    वाक्य – राकेश की नई कार को देखकर मुकेश जल भुन गया।

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8. इन शब्दों के विपरीत अर्थ वाले शब्द लिखें :

  1. जीवित = मृत
  2. भलाई = ………………………….
  3. अस्त = ………………………….
  4. प्रात:काल = ………………………….
  5. कृतघ्न = ………………………….
  6. शुभ = ………………………….
  7. रोगहीन = ………………………….
  8. दोष = ………………………….
  9. स्वामी = ………………………….
  10. इच्छा = ………………………….

उत्तर :

  1. जीवित = मृत
  2. भलाई = बुराई
  3. अस्त = उदय
  4. प्रात:काल = सायंकाल
  5. शुभ = अशुभ
  6. कृतघ्न = कृतज्ञ
  7. रोगहीन = रोगग्रस्त
  8. दोष = गुण
  9. स्वामी = सेवक, दास
  10. इच्छा = अनिच्छा

9. इन शब्दों के दो-दो समानार्थक शब्द लिखें :

  1. राजा = नृप, भूपति
  2. परमात्मा = ………………………….
  3. घोड़ा = ………………………….
  4. सेवक = ………………………….
  5. रात = ………………………….
  6. जंगल = ………………………….
  7. वृक्ष = ………………………….
  8. तलवार = ………………………….

उत्तर :

  1. राजा = नृप, भूपति, भूप, नरेश
  2. परमात्मा = ईश्वर, भगवान, प्रभु, ईश
  3. घोड़ा = अश्व, तुरंग, घोटक, सैंधव
  4. सेवक = दास, नौकर, अनुचर, परिचारक
  5. रात = निशा, रात्रि, रजनी, यामिनी
  6. जंगल = वन, कानन, अरण्य, अटवी
  7. वृक्ष = पेड़, पादप, विटप, तरू तलवार
  8. तलवार = खड्ग, कृपाण, असि, करवाल

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10. नये शब्द बनायें :

  1. धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
  2. भला + आई = भलाई
  3. परम + आत्मा = ………………………….
  4. अच्छा + आई = ………………………….

उत्तर :

  1. धर्म + आत्मा = धर्मात्मा
  2. परम + आत्मा = परमात्मा
  3. भला + आई = भलाई
  4. अच्छा + आई = अच्छाई

11. इन शब्दों के शुद्ध रूप लिखें :

  1. कृतघन = ………………………….
  2. चूमुण्डा = ………………………….
  3. पतथर = ………………………….
  4. डावाडोल = ………………………….
  5. कुआ = ………………………….
  6. सैनीक = ………………………….

उत्तर :

  1. कृतघन = कृतघ्न
  2. चूमुण्डा = चामुण्डा/चामुंडा
  3. पतथर = पत्थर
  4. डावाडोल = डांवाडोल
  5. कुआ = कुआँ
  6. सैनीक = सैनिक

प्रयोगात्मक व्याकरण

1. (क) (i) जल्लाद ने तलवार उठायी।
(ii) सैनिकों ने राजा को पकड़ लिया।

पहले वाक्य में जल्लाद ने क्या उठायी? उत्तर-तलवार’। तलवार’ कर्म है। इसलिए यह सकर्मक क्रिया है। इसी तरह दूसरे वाक्य में सैनिकों ने किसे पकड़ लिया? उत्तर-राजा को। ‘राजा को’ कर्म है। इसलिए यह भी सकर्मक क्रिया है।

अतएव जिस क्रिया में कर्म होता है, वह सकर्मक क्रिया कहलाती है।

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(ख) (i) राजा चिल्ला रहा था।
(ii) सैनिक चल पड़े।

उपर्युक्त वाक्यों में केवल कर्ता (राजा, सैनिक) तथा क्रिया (चिल्ला रहा था, चल पड़े) का, प्रयोग किया गया है। यहाँ कर्म नहीं है। इसलिए यहाँ अकर्मक क्रिया है।

अतएव जिन क्रियाओं में कर्म नहीं होता, वह अकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं।

सकर्मक एवं अकर्मक क्रिया की पहचान सकर्मक तथा अकर्मक क्रिया की पहचान करने के लिए वाक्य में आई क्रिया पर ‘क्या’, ‘किसे’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न किया जाये। यदि उत्तर में कोई व्यक्ति या वस्तु आए, तो क्रिया सकर्मक होगी अन्यथा क्रिया अकर्मक होगी। जैसे : –

जल्लाद ने क्या उठायी? उत्तर मिलता है- ‘तलवार’। इसी तरह सैनिकों ने किसे पकड़ लिया? उत्तर मिलता है- राजा को। अतएव ये सकर्मक क्रियाएँ हैं किंतु ‘ख’ भाग के दोनों वाक्यों में प्रश्न करें तो उत्तर नहीं मिलता। जैसे

राजा क्या चिल्ला रहा था? तथा सैनिक क्या चल पड़े? यहाँ प्रश्न ही अटपटा लगता है। यहाँ ‘चिल्ला रहा था’ तथा ‘चल पड़े’ क्रियाएँ कर्म की अपेक्षा नहीं रखतीं, अतः ये अकर्मक क्रियाएँ हैं।

2. (क) सेवक चला गया।
(ख) सेविका चली गयी।

उपर्युक्त पहले वाक्य में ‘क’ उदाहरण में क्रिया का कर्ता पुल्लिग (सेवक) है, अतः क्रिया भी पुल्लिग (चला गया) है जबकि दूसरे वाक्य में ‘ख’ उदाहरण में क्रिया का कर्ता स्त्रीलिंग (सेविका) है अतः क्रिया भी स्त्रीलिंग (चली गयी) है।

अत: लिंग में परिवर्तन के कारण क्रिया में भी परिवर्तन हुआ।

इस प्रकार- संज्ञा शब्दों की तरह क्रिया शब्दों के भी दो लिंग होते हैं।
1. पुल्लिग
2. स्त्रीलिंग।

3. (क ) राजा जंगल की ओर निकल पड़ा।
(ख) वे (राजा और मंत्री) जंगल की ओर निकल पड़े।

उपर्युक्त पहले वाक्य में ‘क’ उदाहरण में कर्ता (राजा) एक वचन है, अत: क्रिया भी एक वचन (निकल पड़ा) प्रयुक्त हुई है तथा दूसरे वाक्य में कर्ता वे’ बहुवचन है, अतः क्रिया भी बहुवचन (निकल पड़े) प्रयुक्त हुई है।

अत: वचन बदलने पर क्रिया का रूप भी बदल जाता है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

इस प्रकार क्रिया शब्दों के दो वचन होते हैं।
1. एकवचन
2. बहुवचन।

  • परमात्मा पर विश्वास रखते हुए सभी काम ईमानदारी से करो।
  • किसी को धोखा नदो।
  • किसी का बुरा मत करो।

परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है Summary in Hindi

परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है पाठ का सार

किसी देश में शूरसेन नाम का एक राजा था। सुमति नाम का उसका मन्त्री था, जो ईश्वर में अटूट विश्वास रखता था। एक बार राजा की अंगुली पर फोड़ा निकल आया। बेचैन राजा ने मन्त्री को बुलाया। मन्त्री ने राजा को देखकर कहा,”परमात्मा जो करता है, अच्छा ही, करता है।”

राजा ने सोचा यह कैसा मन्त्री है, जिसे मुझ पर दया नहीं आती। रोग के बढ़ जाने से राजा की अंगुली गल गई। मन्त्री ने देखकर फिर कहा कि “परमात्मा जो करता है, वह अच्छा ही करता है।” इस पर राजा के दिल में बहुत क्रोध आया। उसने निश्चय कर लिया कि स्वस्थ होने पर वह उसे मौत के घाट उतार देगा।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है 5

कुछ दिन बाद राजा स्वस्थ हो गया। वह मन्त्री और सैनिकों को लेकर शिकार के लिए निकला। जंगल में उसने प्यास का बहाना बनाकर मन्त्री को कुएँ से पानी लाने को कहा। मन्त्री जैसे ही पानी निकालने लगा, राजा ने उसे कएँ में धकेल दिया। मन्त्री ने कएँ में गिरते हुए भी यही वाक्य दोहराया कि “परमात्मा जो करता है, वह अच्छा ही करता है।”

रात हो जाने के कारण राजा रास्ता भूल गया। वह घोड़े को पेड़ से बाँधकर खुद पेड़ पर जा छिपा। तभी किसी दूसरे राजा के सैनिकों का दल वहाँ आ पहुँचा। वह किसी मनुष्य की खोज में था, जिसे उनका राजा चामुण्डा देवी को बलि चढ़ाकर अपना संकल्प पूरा कर सके। वे राजा को बांध कर अपने देश की ओर चल पड़े। राजधानी पहुँच कर उन्होंने उसे अपने राजा के सामने पेश कर दिया।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

चामुण्डा देवी को मनुष्य की बलि चढ़ाने का अवसर आ गया। जैसे ही उसकी बलि दी जाने लगी राजा ने उसकी कटी अंगुली देखकर जल्लादों को बलि चढाने से रोक दिया। उसने कहा कि अंगहीन की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती। अत: इसे छोड़ दो।

राजा शूरसेन तत्काल वहाँ से निकल भागा। अब उसके विचारों ने पलटा खाया। उसे भी अब विश्वास हो गया था कि “परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।” वह कुएँ के पास गया और अपने मन्त्री को कुएँ से बाहर निकाला और उससे क्षमा माँगी। राजा और मन्त्री दोनों प्रसन्नतापूर्वक अपनी राजधानी लौटे।

परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है कठिन शब्दों के अर्थ

  • संतान = औलाद।
  • प्रजा = जनता, लोग।
  • अटूट विश्वास = गहरा यकीन, न टूटने वाला यकीन।
  • संयोग = मेल, इत्तफाक।
  • पीड़ा = कष्ट।
  • दया = रहम।
  • क्रोध = गुस्सा।
  • कृतघ्न = किए हुए उपकार को न मानने वाला।
  • स्वस्थ = तन्दुरुस्त।
  • रोगहीन = नीरोग।
  • प्रबन्ध = इन्तजाम।
  • सेवकों = नौकरों।
  • आदेश = आज्ञा।
  • अस्त होना = छिप जाना।
  • भयानक = डरावने।
  • प्रातः काल = सुबह।
  • बलि = कुर्बानी।
  • संकल्प = निश्चय।
  • सैनिक = सिपाही, फौजी।
  • विजय = जीत।
  • स्वामी = मालिक।
  • अंगहीन = जिसका कोई अंग न हो।
  • तत्काल = उसी समय।
  • हत्या = मारना।
  • अपराध = जुर्म, पाप।
  • धर्मात्मा = धार्मिक विचारों वाला, धार्मिक।
  • बन्धुवर = भाई।
  • मृत्यु – तुल्य = मौत के समान।
  • स्वीकार = मन्जूर, मान्य।
  • प्रसन्नतापूर्वक = खुशी से।।

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परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. राजा घोड़े पर सवार होकर मंत्री और बहुत से सेवकों को साथ लेकर जंगल – की ओर निकल पड़ा। जब वह घने जंगल में पहुँच गया तो उसने सेवकों को वहीं ठहर , जाने का आदेश दिया और मंत्री को साथ लेकर भयानक जंगल के बीचों – बीच चल पड़ा।घूमते – घूमते जब वे एक कुएँ के पास से गुज़रे, राजा अपने मन में विचार करने लगा – – – – इससे अच्छा मौका कहाँ मिलेगा? प्यास का बहाना बनाकर इसे कुएँ से जल लाने की आज्ञा देता हूँ और ज्योंही यह जल निकालने के लिए नीचे की ओर झुकेगा, मैं इसे कुँए में गिरा दूंगा।

राजा ने जैसा सोचा था वैसा ही कर दिखाया। मंत्री ने गिरते – गिरते भी वही पुराने शब्द दोहराए ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है।’

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठय पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखिका ने राजा के मन में छिपी बदले की भावना को उजागर करने का प्रयास किया है।

व्याख्या – लेखिका का कहना है कि अपनी शिकार खेलने की इच्छा को पूर्ण करने के लिए राजा शूरसेन घोड़े पर सवार होकर बहुत से नौकरों और मंत्री सुमति के साथ जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल के बीचों – बीच पहुँच कर राजा ने सेवकों को वहीं रुक जाने का आदेश दिया। तत्पश्चात् राजा सुमति मंत्री को अपने साथ लेकर घने जंगल के बीचों – बीच चल पड़ा। जंगल में घूमते हुए राजा को एक कुँआ दिखाई दिया।

जिसे देखकर उसके मन में एक विचार आया कि यही सही अवसर है कि वह मंत्री सुमति से अपना बदला ले ले। इसके लिए राजा ने अपने मन में एक विचार बनाया कि वह मंत्री को कुएँ से पाने लाने को कहेगा, जब मंत्री पानी निकालने के लिए कुएँ में झुकेगा तब वह उसे कुएँ में धक्का दे देगा।

जब मौका मिला तब राजा ने अपनी योजनानुसार मंत्री सुमति को कुएँ में धकेल दिया। कुएँ में गिरते हुए भी मंत्री सुमति ने ईश्वर में अपनी पूर्ण आस्था और विश्वास को प्रकट करते हुए अपने वही पुराने शब्द कहे जो वो हमेशा कहता था कि ‘परमात्मा जो करता है, अच्छे के लिए ही करता है।’

विशेष –

  • लेखिका ने ईश्वर के प्रति अपनी आस्था प्रकट की है।
  • भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।

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2. अब रात काफी घनी हो चुकी थी। इतने में किसी दूसरे राजा के सैनिकों का एक बहुत बड़ा दल उस भयानक जंगल में घुस आया। घोड़े को वृक्ष के साथ बँधा देखकर उनको विश्वास हो गया कि इसका सवार भी अवश्य ही आस – पास छिपा बैठा होगा। वे लोग मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे कि यदि कोई मनुष्य उनके हाथ लग जाएगा तो वे उसे प्रातःकाल राजा के पास ले जायेंगे। राजा चामुण्डा देवी को उसकी बलि चढ़ा कर अपना संकल्प पूरा कर लेगा और उनके कर्तव्य का पालन भी हो जाएगा।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ शीर्षक से लिया गया है। लेखिका ने जंगल में एक अन्य राजा के सिपाहियों के आने का वर्णन किया है।

व्याख्या – लेखिका कहती है कि जंगल में रात काफी अंधकारमय हो चुकी थी। तभी अचानक जंगल में किसी अन्य राजा के सिपाहियों का एक बहुत बड़ा झुंड जंगल में आ गया। वे सिपाही राजा शूरसेन के घोड़े को पेड़ से बँधा देखकर बहुत खुश हुए। उन्हें पूर्ण विश्वास हो गया था कि इस घोड़े का सवार भी यहीं कहीं छुपा होगा। इन बातों को सोचकर राजा के सिपाही अपने मन में खुश हो रहे थे। वे सोच रहे थे कि यदि उन्हें इसका सवार मिल गया तो वे उसे पकड़ कर सुबह – सवेरे अपने राजा के पास ले जाएँगे। जहाँ उनका राजा चामुण्डा देवी के समक्ष उसकी बलि चढ़ा कर अपने संकल्प को पूरा करेगा। साथ ही साथ राजा के प्रति उनके कर्त्तव्य का भी पालन स्वतः हो जाएगा।

विशेष –

  • लेखिका ने पुरानी कुप्रथा मानव – बलि की ओर संकेत किया है।
  • भाषा – शैली प्रवाहमयी है।

3. अब बलि देने की तैयारियां शुरू हो गईं। अभी जल्लाद ने तलवार उठाई ही थी कि राजा की नज़र बलि – जीव के कटे हुए अंग पर जा टिकी। राजा हैरान होकर चिल्ला उठा – – – ‘अरे पापियो! यह क्या कर डाला? तुम नहीं जानते कि अंगहीन मनुष्य की बलि नहीं दी जाती। तो हटाइए इसे यहाँ से।’ फिर क्या था। राजा शूरसेन अपने प्राणों की खैर मनाता हुआ वहाँ से तत्काल निकल भागा।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ से अवतरित है। लेखिका ने बलि की कुप्रथा का यथार्थ चित्रण किया
है।

व्याख्या – लेखिका कहती है कि राजा शूरसेन को पकड़ने के बाद उसकी बलि देने की सभी तैयारियाँ पूर्ण हो चुकी थीं। बलि देने के लिए जल्लाद ने अभी अपनी तलवार ऊपर उठाई ही थी कि तभी बलि देने वाले राजा की दृष्टि शूरसेन की कटी हुई उंगली पर जा पड़ी, जिसे देखकर राजा आश्चर्य से चिल्ला उठा कि पापियो! तुम सबने यह क्या अनर्थ कर दिया। तुम्हें इस बात का ज्ञान नहीं कि किसी ऐसे व्यक्ति की बलि नहीं दी जा सकती जिसके शरीर का कोई अंग भंग हो या कटा हुआ हो। इसलिए इस अंगहीन व्यक्ति को बलि की वेदी से तुरन्त हटा दो। राजा के आदेश के तुरंत बाद राजा शूरसेन अपनी जान की खैर मनाता हुआ वहाँ से उसी समय भाग निकला।

विशेष –

  • लेखिका ने बलि – प्रथा की उस बात का उल्लेख किया है जहाँ अंगहीन व्यक्ति की बलि नहीं दी जाती।
  • भाषा सरल, सरस है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

4. राजधानी लौटते हए मार्ग में राजा के विचारों ने पलटा खाया। सोचने लगा कि मन्त्री के इस विश्वास को कि परमात्मा जो करता है अच्छा ही करता है, मैंने भली भांति परख लिया है। अंगहीन होने के कारण ही मेरी जान बची है। अब मैं शीघ्र ही अपने नेकदिल मन्त्री के पास जाता है। नाहक उसकी हत्या करके मैंने घोर अपराध किया है। क्या वह अब भी जीवित है? चलकर देखता हूँ।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ से लिया गया है। लेखिका ने यहाँ राजा शूरसेन के मन में आए परिवर्तन का उल्लेख किया है।

व्याख्या – लेखिका कहती है कि बलि का शिकार होने से बच जाने के बाद जब राजा शूरसेन अपनी राजधानी लौट रहे थे, तभी अचानक उनके विचारों में परिवर्तन आया और वे सोचने लगे कि ‘परमात्मा जो करता है वह अच्छा ही करता है। उसने अपने आस्तिक मंत्री को आज भली प्रकार से जान और समझ लिया है। उँगली कटी होने के कारण ही आज मेरा जीवन बच सका है। अब जल्दी उस साफ दिल मन्त्री सुमति के पास जाता हूँ, जिसकी हत्या करने का घोर अपराध मैंने किया है। राजा के मन में बार – बार विचार आ रहा था कि क्या मन्त्री सुमति अभी जिन्दा होगा। उसे चलकर देखना चाहिए।

विशेष –

  • लेखिका ने राजा शूरसेन के मन में ईश्वर के प्रति उत्पन्न हुए आस्था के भाव और पश्चाताप को उजागर किया है।
  • भाषा सरल, सहज और सरस है।

5. राजा ने मन्त्री को कुएँ से बाहर निकाला। बार – बार अपना दोष स्वीकार करते हुए उससे क्षमा माँगी। मन्त्री ने कहा, महाराज ! परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। मेरा कुएँ में गिरना भी एक शुभ लक्षण था। अंगहीन होने के कारण आप तो बच जाते परन्तु मुझ भले – अच्छे मनुष्य का मौत से छुटकारा पाना सम्भव न होता। इसलिए मानना पड़ता है कि यह सब कुछ परमात्मा ने भलाई के लिए ही किया है।

प्रसंग – प्रस्तुत अवतरण हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है’ से लिया गया है। लेखिका ने यहाँ राजा के मन में आए पश्चाताप और ईश्वर के प्रति विश्वास को उजागर किया है।

व्याख्या – लेखिका कहती है कि मन में पश्चाताप लिए राजा शूरसेन ने मन्त्री सुमति को कुएँ से बाहर निकाला। वह बार – बार सुमति से अपने अपराध की क्षमा याचना कर रहे थे। राजा द्वारा क्षमा याचना करने पर मन्त्री सुमति ने कहा महाराज! ईश्वर जो भी कार्य करता है, वह अच्छा ही होता है। आपके द्वारा मुझे कुएँ में गिराना अच्छा संकेत था। अन्यथा आप तो अंगहीन होने के कारण बंच जाते और वे लोग इस अच्छे खासे व्यक्ति को बलि पर चढ़ा देते। तब इस मन्त्री के लिए बच पाना असम्भव था। अत: मानना पड़ता है, ईश्वर जो भी करता है। वह भलाई के लिए है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 2 परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है

विशेष –

  • लेखिका ने बताया है कि प्रत्येक कार्य मानव की भलाई के लिए ही होता है।
  • भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक (2nd Language)

Hindi Guide for Class 8 PSEB राष्ट्र के गौरव प्रतीक Textbook Questions and Answers

राष्ट्र के गौरव प्रतीक अभ्यास

1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखने का अभ्यास करें :

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 1
PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 2
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

2. नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिन्दी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखें :

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 3
PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 4
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

3. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :

(क) राष्ट्रीय प्रतीक किसे कहते हैं?
उत्तर :
प्रत्येक राष्ट्र अपने आत्म सम्मान, एकता, गौरव एवं स्वाभिमान के लिए जो प्रतीक निश्चित करता है उसे राष्ट्रीय प्रतीक कहते हैं।

(ख) हमारे देश के झंडे को क्या कहते हैं?
उत्तर :
हमारा देश भारत है और इसके झंडे को तिरंगा कहते हैं।

(ग) राष्ट्रीय गान के रचयिता का नाम लिखें।
उत्तर :
राष्ट्रीय गान के रचयिता रवीन्द्रनाथ टैगोर हैं।

(घ) राष्ट्रीय गीत कौन-सा है?
उत्तर :
हमारा राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् है।

(ङ) राष्ट्रीय चिह्न कौन-सा है?
उत्तर :
हमारा राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तम्भ है, जिसके शीर्ष पर चार सिंह बने हैं जो कि शक्ति, साहस एवं आत्मविश्वास के सूचक हैं।

(च) राष्ट्रीय फल आम किस लिए मशहूर है?
उत्तर :
राष्ट्रीय फल आम अपने स्वाद एवं आत्मविश्वास के सूचक हैं।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

(छ) गंगा नदी की क्या विशेषता है?
उत्तर :
गंगा नदी भारत की एक पवित्र नदी है। हिंदुओं की आस्था इससे जुड़ी हुई है। इस नदी में स्नान करना हिंदू अपने लिए बहुत बड़ा पुण्य समझते हैं।

(ज) भारत सरकार ने किस पशु और पक्षी के शिकार पर रोक लगायी हुई है? और क्यों?
उत्तर :
भारत सरकार ने राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय पक्षी मोर के शिकार पर रोक लगाई हुई है क्योंकि इनकी संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। इसे न रोका गया तो कहीं ये जातियाँ लुप्त न हो जाएँ।

(झ) हॉकी को राष्ट्रीय खेल के रूप में क्यों स्वीकार किया गया है?
उत्तर :
हॉकी के खेल में खिलाड़ियों ने सन् 1928 से लेकर सन् 1956 तक भारत को छः ओलम्पिक स्वर्ण पदक दिलवाए। इस बीच उन्होंने इस बीच उन्होंने चौबीस मैच खेले और सभी के सभी जीते, इसलिए हॉकी को हमारा राष्ट्रीय खेल निश्चय किया गया।

(ञ) बरगद का वृक्ष हमें क्या संदेश देता है?
उत्तर :
बरगद का पेड़ हमें अपनी संस्कृति एवं विरासत से जुड़े रहने का संदेश देता है।

4. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें:

(क) राष्ट्रीय झंडे के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर :
हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में सबसे ऊपर भगवा रंग, फिर सफेद रंग तथा सबसे नीचे हरे रंग की पटियाँ हैं। सफेद पट्टी के बीच में सम्राट अशोक के सारनाथ स्तंभ पर अंकित चक्र को स्थान दिया गया है। भगवा रंग त्याग और साहस का, सफेद रंग शांति और सत्य का तथा हरा रंग हरी-भरी फ़सलों और खुशहाली का प्रतीक है। सफेद पट्टी के बीच में अंकित चक्र हमारी गतिशीलता तथा प्रगति के पथ पर निरंतर बढ़ने के संकल्प का प्रतीक है। ध्वज की लंबाई और चौड़ाई में 3 और 2 का अनुपात होता है। स्वाधीनता के बाद झण्डे में चरखे के बाद चक्र लिया गया।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

(ख) राष्ट्रीय चिह्न का प्रयोग कहाँ-कहाँ पर होता है? पता करके लिखें।
उत्तर :
भारत का राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तम्भ है। यह भारत सरकार के अधिकारिक लेटरहेड का भाग है। यह राष्ट्रपति और राज्यपालों की सरकारी मोहर है। यह सभी भारतीय मुद्राओं पर अंकित होता है। यह भारत गणराज्य के राजनयिक, पासपोर्ट, पहचान पत्र आदि पर भी छपा होता है। देश की रक्षा करने वाले वीर जवान और पुलिस वाले इसे अपनी टोपी पर लगाते हैं। यह राष्ट्रीय चिह्न स्वतंत्र भारत की पहचान तथा सम्प्रभुता का प्रतीक है।

5. नये शब्द बनायें:

  1. राष्ट्र + ईय = …………………….
  2. भारत + ईय = …………………….
  3. मानव + ईय = …………………….
  4. सम्पादक + ईय = …………………….
  5. सराहना + ईय = …………………….
  6. देश + ईय = …………………….

उत्तर :

  1. राष्ट्रीय
  2. भारतीय
  3. मानवीय
  4. सम्पादकीय
  5. सराहनीय
  6. देशीय।

6. पाठ में आये सभी चिन/प्रतीकों के चित्र इकट्ठे करें और उन्हें अपनी कॉपी पर चिपका कर प्रत्येक चिह्न पर पाँच-पाँच वाक्य लिखें।
उत्तर :
पाठ में आए सभी चिह्नों का परिचय निम्न प्रकार से है –

राष्ट्र ध्वज-

  • भारत के राष्ट्र ध्वज में तीन रंग हैं, इस लिए इसे तिरंगा कहा जाता है।
    PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 5
  • इसे सभी पर्यों और विशेष अवसरों पर फहराया जाता है।
  • राष्ट्र ध्वज की लंबाई चौड़ाई 3 अनुपात 2 है।
  • सफेद पट्टी में बना नीला चक्र अशोक स्तम्भ से लिया गया है।
  • राष्ट्र ध्वज के तीनों रंग ध्वज में समान अनुपात में हैं।

राष्ट्रगान-

  1. राष्ट्रगान के रचयिता रवीन्द्रनाथ टैगोर हैं।
  2. राष्ट्रगान की रचना 27 दिसम्बर, सन् 1911 में हुई थी।
  3. राष्ट्रगान को 24 जनवरी, सन् 1950 में स्वीकार कर लिया गया।
  4. राष्ट्रगान को गाते समय सावधान की दशा में खड़ा होना होता है।
  5. राष्ट्रगान गाने का अधिकतम समय 52 सैकण्ड है।

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राष्ट्रगान :

जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत-भाग्य विधाता।
पंजाब-सिंध-गुजरात-मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग,
विंध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा
उच्छल-जलधि-तरंग।
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष मांगे,
गाहे तव जय गाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे,
भारत-भाग्य विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे॥ – रवीन्द्रनाथ टैगोर

राष्ट्रगीत-

  • ‘वन्दे मातरम्’ हामारा राष्ट्रीय गीत है।
  • सन् 1886 में इसे पहली बार गाया गया था।
  • इसके रचनाकार बंकिमचन्द्र चटर्जी हैं।
  • ‘वंदे मातरम्’ गीत की रचना सन् 1875 में हुई थी।
  • इस गीत की पहली सात पंक्तियों को ही राष्ट्रीय के रूप में स्वीकार किया गया है।

राष्ट्रगीत :

वन्दे मातरम् !
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज-शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम् !
शुभ्रज्योत्सना, पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम्, वरदाम्, मातरम् ! – बंकिमचन्द्र चटर्जी

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

राष्ट्रीय चिह्न-

  • आशोक स्तम्भ हमारा राष्ट्रीय चिह्न है।
  • यह सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए 70 फुट ऊँचे सिंह स्तम्भ के ऊपरी भाग का नमूना है।
  • सामने से इसके तीन सिंह दिखाई देते हैं चौथा सिंह पीछे ओर में छिपा है।
  • इसके नीचे ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है।
  • यह भारत सरकार के आधिकारिक लेटरहेड का भाग है।
    PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 6

राष्ट्रीय मुद्रा-

  • ‘१’ हमारी राष्ट्रीय मुद्रा है।
  • इसे 15 जुलाई, सन् 2010 को आधिकारिक रूप में मान्य किया गया।
  • इसे तैयार करने का श्रेय आई०आई०टी० गुवाहटी के प्रोफैसर डी० उदय कुमार को जाता है।
  • इसमें देवनागरी लिपि के र और रोमन लिपि के आर दोनों की छवि मिलती है।
  • इसमें R बिना डंडे के है।
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राष्ट्रपिता-

  • हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी हैं।
  • इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को गुजरात के पोरबंदर शहर में हुआ था।
  • इन्हें बापू कहकर भी पुकारा जाता है।
  • इनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है।
  • इन्होंने सत्याग्रह, भारत छोड़ो आदि आंदोलन चलाकर अंग्रेजी शासन की नींव उखाड़ दी।
    PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 8

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

राष्ट्रीय खेल-

  • हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है।
  • इसने सन् 1928 से लेकर सन् 1956 तक भारत को छहः ओलम्पिक स्वर्ण पदक दिलवाए।
  • ध्यानचंद राष्ट्रीय खेल हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे।
  • छ: ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद उन्होंने चौबिस मैच खेले और सभी के सभी जीते। इसलिए इसे हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी निश्चित किया गया।
  • हॉकी के खेल में ग्यारह खिलाड़ी होते हैं।
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राष्ट्रीय पक्षी-

  • मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है।
  • 31 जनवरी, सन् 1963 को मोर की राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया था।
  • मोर साँप तथा कीड़े-मकोड़ों को खा जाता है।
    PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 10
  • मोर का शिकार करना दंडनीय अपराध है।
  • यह अपनी सुंदरता के लिए विदेशों में भी चर्चित है।

राष्ट्रीय पशु-

  • बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु है।
  • बाघ का शिकार करना दंडनीय अपराध है।
  • यह वीरता, दृढ़ता एवं साहस का प्रतीक है।
  • इसकी दहाड़ बड़ी डरावनी है।
  • अपनी चुस्ती एवं फुर्ती के लिए यह जग प्रसिद्ध है।
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    राष्ट्रीय पशु बाघ (पैन्थर)

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राष्ट्रीय वृक्ष-

  • भारत का राष्ट्रीय वृक्ष बरगद है।
  • यह वृक्ष हमें अपनी संस्कृति एवं विरासत से जुड़े रहने का संदेश देता है।
  • यह हमें एक होकर रहने का संदेश देता है।
    PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 12
  • इसकी टहनियाँ लिपटकर तने को मजबूती देती हैं।
  • यह हमें सभी को साथ लेकर चलने को कहता है।

राष्ट्रीय कैलेंडर-

  • शक संवत् भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है।
  • इसे 22 मार्च, सन् 1957 को अपनाया गया था।
  • शक सम्वत् कैलेंडर में 365 दिन एक वर्ष में तथा 12 देसी महीने चैत्र से फाल्गुन तक होते हैं।
  • इस कैलेंडर का ग्रेगोरियन कैलेंडर से सटीक मिलान किया होता है।
  • इससे पहले भारत में ईसा सम्वत् कैलेंडर का उपयोग होता था।

राष्ट्रीय पुष्प-

  • भारत का राष्ट्रीय पुष्प कमल है।
  • इस के पत्ते चौड़े तथा पंखुड़ियाँ चमकदार होती हैं।
  • इसका जन्म पानी में होता है।
  • अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है जो कीचड़ में खिलता है।
    PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 13
  • यह सफेद, गुलाबी तथा नीले रंग का होता है।

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राष्ट्रीय नदी-

  • गंगा हमारी राष्ट्रीय नदी है।
  • हिन्दू इसमें स्नान करना अपना सौभाग्य समझते हैं।
  • वे इसे पापों का नाश करने वाली पवित्र-पावन नदी मानते हैं।
  • भारत के लोग गंगा नदी को माँ कहकर पुकारते हैं।
  • यह अपनी निर्मलता एवं पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है।
    PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 14

राष्ट्रीय फल-

  • आम भारत का राष्ट्रीय फल है।
  • इसके अनेक रूप भारत में पाए जाते हैं।
  • यह अपनी मिठास एवं स्वाद के लिए जग ज़ाहिर है।
  • आम की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
  • दशहरी आम खाने में सबसे अच्छा माना जाता है।
    PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक 15

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

7. राष्ट्रीय-गान, राष्ट्रीय-गीत, जुबानी याद करें।
उत्तर :
राष्ट्रीय गान

जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत-भाग्य विधाता
पंजाब-सिंध-गुजरात-मराठा
द्राविड़ उत्कल बंग
विन्धय-हिमाचल-यमुना गंगा
उच्छल जलधि-तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष माँगे
गाहे तव जय गाथा
जन-गण-मंगलदायक जय हे
भारत-भाग्य विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे।

राष्ट्रीय गीत

वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्य श्यामलां मातरम्
शुभ्र ज्योत्स्न पुलकित यामिनीम्
फुल्ल कुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनी सुमधुर भाषिनीम
सुखदां वरदां मातरम्
वन्दे मातरम्

ऊपर लिखित राष्ट्रीय गान एवं राष्ट्रीय गीत को विद्यार्थी स्वयं जुबानी याद करें।

8. राष्ट्रीय गान और राष्ट्रीय गीत को सुलेख के रूप में चार्ट पर लिखकर कक्षा की दीवार पर लटकायें।
उत्तर :
पहले लिखे हुए प्रश्न की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।

राष्ट्र के गौरव प्रतीक Summary in Hindi

राष्ट्र के गौरव प्रतीक पाठ का सार

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PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

प्रस्तुत पाठ ‘राष्ट्र के गौरव प्रतीक’ सुधा जैन ‘सुदीप’ द्वारा लिखा एक श्रेष्ठ निबंध है। इसमें उन्होंने हमारे राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय गीत, राष्ट्र चिह्न, राष्ट्रीय मुद्रा, राष्ट्र पिता, राष्ट्र पशु, राष्ट्र पक्षी, राष्ट्र पुष्प, राष्ट्र फल, राष्ट्रीय नदी, राष्ट्रीय खेल, राष्ट्रीय वृक्ष आदि पर प्रकाश डाला है। इसमें उन्होंने इनके विकास के विभिन्न चरणों पर रोचक ढंग से रोशनी डाली है।

अध्यापक ने कक्षा में सभी छात्रों को बताया कि आज वह उन सभी को विद्यालय के प्रांगण में लगी राष्ट्र-गौरव की प्रदर्शनी दिखाएंगे और उस के बारे में बताएंगे। उन्होंने बताया कि प्रत्येक स्वतन्त्र देश अपनी अलग पहचान स्थापित करने के लिए अपने कुछ प्रतीक निश्चित करता है। ये प्रतीक उसकी सभ्यता, संस्कृति, आदर्शों तथा गौरवमयी परम्पराओं को प्रकट करते हैं। इन्हें ही राष्ट्र प्रतीक कहा जाता है।

राष्ट्रीय झण्डा किसी भी देश की स्वतन्त्रता, एकता, प्रभुसत्ता और उसके अस्तित्व का प्रतीक होता है। इससे राष्ट्र का गौरव झलकता है। इसके सम्मान में ही प्रत्येक नागरिक का सम्मान छिपा है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की पट्टियां हैं इसलिए इसे तिरंगा भी कहते हैं। इसे सभी राष्ट्रीय पर्यों और विशेष अवसरों पर सरकारी कार्यालयों के मुख्य भवनों, स्कूल, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालयों पर इसे लहराया ही जाता है लेकिन 23 जनवरी, सन् 2004 से संविधान ने भारत के सभी नागरिकों को उनके घर, पार्क आदि में इसे फहराने का अधिकार दे दिया है।

प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस के शुभ अवसर पर भारत के प्रधानमन्त्री इसे लालकिले पर तथा 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस पर राष्ट्रपति इसे राज पथ पर फहराते हैं। ‘जन-गण-मन’ हमारा राष्ट्रीय गान है जिसे प्रसिद्ध कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था। इन्होंने 27 दिसम्बर, सन् 1911 में इसकी रचना की थी और 24 जनवरी, सन् 1950 को इसे राष्ट्र गान के रूप में स्वीकार किया गया। इसे गाने का अधिकतम समय 52 सैकण्ड निर्धारित किया गया है। ‘वन्दे मातरम्’ हमारा राष्ट्रीय गीत है। इसकी रचना सन् 1874 में प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने की थी।

यह गीत बांग्ला-संस्कृत भाषा को मिलाकर 26 पंक्तियों में लिखा गया है। किन्तु इसकी पहली सात पंक्तियाँ ही राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार की गई हैं। हमारा राष्ट्रीय चिह्न अशोक-स्तम्भ है। यह स्तम्भ सारनाथ (वाराणसी) में सम्राट अशोक के द्वारा बनवाए गए 70 फुट ऊंचे स्तम्भ के ऊपरी भाग का एक नमूना है। इसके शीर्ष पर चार सिंह बने हैं जो शक्ति, साहस एवं आत्मविश्वास के सूचक हैं। स्तम्भ के नीचे अशोक का धर्म चक्र है जो हमारे तिरंगे में भी है।

इसके नीचे ‘सत्यमेव जयते’ लिखा है जिसका अर्थ है- सत्य की सदैव जीत होती है। राष्ट्रीय चिह्न राष्ट्रपति और राज्यपालों की सरकारी मोहर है। यह पासपोर्ट पर भी छपा रहता है।” हमारी राष्ट्रीय मुद्रा है। इसे 15 जुलाई, सन् 2010 को आधिकारिक रूप में मान्य किया गया।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

इसे तैयार करने का श्रेय आई०आई०टी० गुवाहाटी के प्रोफेसर डी० उदय कुमार को जाता है। इसमें देवनागरी लिपि के ‘र’ और रोमन लिपि के ‘आर’ दोनों की छवि मिलती है। महात्मा गांधी की तस्वीर की ओर संकेत करते हुए अध्यापक ने बच्चों को बताया है कि ये हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हैं। इन्हें लोग प्यार से बापू भी कहते हैं। इन्होंने अंग्रेजी शासन की नींव उखाड़ कर भारत को आजादी दिलाई और नए भारत का निर्माण किया।

इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को गुजरात के पोरबन्दर शहर में हुआ था। इनके जन्म दिवस 2 अक्तूबर को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। हमारा राष्ट्रीय फल आम है। गंगा हमारी राष्ट्रीय नदी है तथा कमल हमारा राष्ट्रीय फूल है। ये सभी क्रमशः अपने स्वाद, मिठास, निर्मलता, पवित्रता एवं सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध हैं। मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है जो अपनी सुन्दरता के लिए न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी चर्चित है।

बाघ की ओर इशारा करते हुए अध्यापक बताता है कि बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु है। यह साहस एवं दृढ़ता का प्रतीक है। भारत सरकार ने मोर और दोनों को मारने और पकड़ने पर प्रतिबन्ध लगाया हुआ है। हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है। हॉकी में भारत को सन् 1928 से लेकर 1956 तक छ: ओलम्पिक स्वर्ण पदक मिले हैं। शक सम्वत् हमारा राष्ट्रीय कैलण्डर है। जिसे 22 मार्च, सन् 1957 को अपनाया गया था।

इससे पहले भारत में ईसा सम्वत् कैलेंडर का उपयोग होता था। बरगद हमारा राष्ट्रीय वृक्ष है। यह वृक्ष हमें अपनी संस्कृति एवं विरासत से जुड़े रहने का सन्देश देता है। हम सभी भारतीय नागरिकों का यह परम कर्तव्य बनता है कि हम अपने राष्ट्रीय प्रतीकों की रक्षा एवं सम्मान के लिए सदैव तत्पर रहें।

राष्ट्र के गौरव प्रतीक कठिन शब्दों के अर्थ

  • प्रांगण = आंगन।
  • स्वतन्त्रता = आज़ादी।
  • रचयिता = रचनाकार।
  • पग = पाँव।
  • ध्वज = झण्डा।
  • शीर्ष = चोटी।
  • सिंह = शेर।
  • सार्वजनिक = जहाँ सभी जा सकें।
  • ओर = तरफ।
  • संरक्षक = रक्षा करने वाला।
  • सरपट = तेज़।
  • सत्यमेव जयते = सत्य की हमेशा जीत होती है।
  • अंकित = छपा हुआ।
  • संप्रभुता = प्रभुसत्ता सम्पन्न।
  • डिजाइन = रूपरेखा।
  • छवि = रूप।
  • बहिष्कार = त्यागना, छोड़ना।
  • स्वाधीनता = आजादी।
  • मशहूर = प्रसिद्ध।
  • उत्सुक = बेचैन।
  • धीरज = धैर्य।
  • चर्चित = विख्यात।
  • बाघ = चीता।
  • प्रतिबन्ध = रोक।
  • बरगद = वृक्ष का नाम।
  • विरासत = पूर्वजों से मिला हुआ।
  • चैत = हिन्दी महीना शक संवत् का।
  • अनुसरण = पीछे चलना या कहे पर चलना।
  • तत्पर = तैयार। अनोखा = अद्भुत।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

राष्ट्र के गौरव प्रतीक गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. चौथा सिंह ओट में हैं। इनके ठीक नीचे सम्राट अशोक का वही धर्म चक्र है जो तिरंगे में भी है। चक्र के साथ चारों दिशाओं के संरक्षक के रूप में : पूर्व दिशा में हाथी, पश्चिम दिशा में बैल, उत्तर दिशा में सिंह और दक्षिण देश में सरपट दौड़ता घोड़ा चिह्नित है। इन्हीं के बीच एक कमल का फूल बना है। इसके नीचे ‘सत्यमेव जयते’ आदर्श वाक्य लिखा है। जिसका अर्थ है- सत्य की हमेशा जीत होती है।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित निबन्ध ‘राष्ट्र के गौरव प्रतीक’ से लिया गया है, जिसकी लेखिका सुधा जैन ‘सुदीप’ हैं। लेखिका ने अपने इस निबन्ध में राष्ट्र के प्रतीकों के बारे में हमें अवगत कराया है। यहाँ लेखिका ने अशोक स्तम्भ का उल्लेख किया है।

व्याख्या-लेखिका भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तम्भ का उल्लेख करते हुए कहती है कि इसे सारनाथ के स्तम्भ से लिया गया था। इसमें चार शेर हैं। तीन शेर हमें दिखाई देते हैं और चौथा शेर ओट में छिपा होने के कारण हमें दिखाई नहीं देता। इन शेरों के नीचे धर्मचक्र है जो हमारे तिरंगे में भी है। चक्र के साथ-साथ चारों दिशाओं की रक्षा हेतु चार पशु बने हैं। पूर्व दिशा में हाथी, पश्चिम दिशा में बैल, उत्तर दिशा में सिंह तथा दक्षिण दिशा में तेज़ दौड़ने वाला घोड़ा है जो प्रतीक रूप में बने हैं। इन्हीं संरक्षक पशुओं के बीच एक कमल का फूल बना है जिसके नीचे लिखा है ‘सत्यमेव जयते’ इसका अर्थ है सत्य की हमेशा जीत होती है।

विशेष-

  • लेखिका ने राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तम्भ का परिचय कराया है।
  • भाषा प्रवाहमयी है।

2. यह हमारा राष्ट्रीय कैलेण्डर : शक सम्वत् है। जिसे 22 मार्च 1957 को अपनाया गया था। इससे पहले भारत में ईसा सम्वत् कैलेण्डर का उपयोग होता था। शक सम्वत् कैलेण्डर में एक वर्ष में 365 दिन और 12 देसी महीने चैत्र से फाल्गुन तक होते हैं। चैत्र की प्रथम तिथि यानि देसी वर्ष का आरम्भ सामान्य वर्ष में 22 मार्च और लीप वर्ष में 21 मार्च को होता है। इस कैलेण्डर का ग्रेगोरियन कैलेण्डर से सटीक मिलान किया होता है।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित लेख ‘राष्ट्र के गौरव प्रतीक’ से लिया गया है, जिसकी रचयिता सुधा जैन ‘सुदीप’ हैं। लेखिका ने इस पाठ में राष्ट्र के प्रतीकों के बारे में बताया है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

व्याख्या-लेखिका कहती है कि अध्यापक बच्चों को समझाते हुए कहते हैं कि हमारा राष्ट्रीय कैलेण्डर शक सम्वत है। इस शक सम्वत कैलेण्डर को भारत ने 22 मार्च सन 1957 को राष्ट्रीय कैलेण्डर के रूप में अपना लिया था। इससे पहले भारत में ईसा सम्वत् कैलेण्डर का प्रयोग किया जाता था। भारत द्वारा अपनाए गए शक संवत् कैलेण्डर में एक साल में 365 दिन तथा बारह देसी महीने होते हैं जिसका प्रारम्भ मास चैत्र तथा अंतिम मास फाल्गुन होता है। चैत्र मास की पहली दिनांक से देसी वर्ष का प्रारम्भ माना जाता है जो आम वर्ष में 22 मार्च को तथा लीप वर्ष में 21 मार्च को शुरू होता है। इस कैलेण्डर का सटीक मिलान ग्रेगोरियन कैलेण्डर से होता है।

विशेष-

  • शक संवत् को राष्ट्रीय कैलेण्डर बताया है।
  • भाषा शैली सरल तथा सहज है।।

3. महात्मा गांधी ने भारत को जगाया। अपना काम स्वयं करने, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की राह दिखाई। सत्याग्रह और असहयोग जैसे आन्दोलन चलाकर अंग्रेज़ी शासन की नींव उखाड़ दी। भारत माता को आजादी दिलाई तथा नये राष्ट्र का निर्माण किया। इसलिए हम उन्हें राष्ट्रपिता और बापू कहते हैं। साथ ही तुम्हें बता दूं कि बापू के जन्मदिन (2 अक्तूबर) को गांधी जयंति यानि राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित लेख ‘राष्ट्र के गौरव प्रतीक’ से अवतरित है जिसकी लेखिका सुधा जैन ‘सुदीप’ हैं। लेखिका ने अपने इस लेख में राष्ट्र के प्रतीकों का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है।

व्याख्या-लेखिका कहती है कि अध्यापक बच्चों को बताते हैं कि महात्मा गांधी ने भारत को देश की स्वतन्त्रता के लिए गुलामी की गहरी नींद से जगाया था। उन्होंने देशवासियों को अपना काम अपने आप करने तथा विदेशी वस्तुओं को पूर्णत: त्यागने की राह दिखाई थी। इन्होंने देश की आजादी के लिए सत्याग्रह तथा असहयोग आन्दोलन चलाए थे, जिनसे अंग्रेजी शासन की नींव उखड़ गई।

गांधी जी ने अपने भरसक प्रयत्नों से भारत को आजादी दिलाई और एक नए भारत का निर्माण किया। गांधी जी के इन्हीं कामों के कारण उन्हें राष्ट्र-पिता और बापू भी कहते हैं। अध्यापक बच्चों को कहते हुए कहता है कि गांधी जी के जन्मदिन को दो अक्तूबर को गांधी जयंती के रूप में राष्ट्रीय पर्व की तरह मनाया जाता है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 6 राष्ट्र के गौरव प्रतीक

विशेष-

  • लेखिका ने भारत की आज़ादी में महात्मा गाँधी के योगदान का उल्लेख किया है।
  • भाषा सरल तथा सहज है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से

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PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 1 भारत के कोने-कोने से (2nd Language)

Hindi Guide for Class 8 PSEB भारत के कोने-कोने से Textbook Questions and Answers

भारत के कोने-कोने से अभ्यास

1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखने का अभ्यास करें :

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से 6
PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से 7
उत्तर :
विद्यार्थी अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से

2. नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखें :

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से 8
PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से 9
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

3. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :

(क) गीत गाने वाले बच्चे कहाँ से आये हैं ?
उत्तर :
गीत गाने वाले बच्चे भारत के कोने – कोने से आए हैं।

(ख) ‘भारत के कोने-कोने से’ कविता में बच्चे क्या संदेश लेकर आये हैं ?
उत्तर :
भारत देश के कोने – कोने से आए बच्चे नई उमंगों और आशाओं का संदेश लेकर आए हैं।

(ग) कविता में ‘गिरि’ और ‘सागर’ का क्या अर्थ है?
उत्तर :
गिरि = पर्वत
सागर = समुद्र

(घ) बच्चे अपने देश के लिए क्या करना चाहते हैं ?
उत्तर :
भारत देश के बच्चे अच्छे और बड़े काम करके भारत के नाम को और अधिक ऊँचा उठाना चाहते हैं।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से

4. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें :

(क) ‘नई उमंगों-आशाओं’ से कवि का क्या भाव है?
उत्तर :
नई उमंगों – आशाओं से कवि का भाव है कि जीवन में आगे बढ़ने का संकल्प लेकर अपना तथा देश का नाम ऊँचा करना। आगे आने वाले समय में बड़े – बड़े काम करके राष्ट्र का नाम ऊँचा करना। अपने मन में इस भाव को बनाए रखना कि देश हमारा और हम देश के लिए।

(ख) ‘कल आने वाली दुनिया में
हम कुछ कर दिखलायेंगे,
भारत के ऊँचे माथे को
ऊँचा और उठायेंगे।’
इन काव्य-पंक्तियों की प्रसंग सहित व्याख्या करें।
उत्तर :
प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित ‘भारत के कोने – कोने से’ नामक कविता में से लिया गया है। इस कविता के रचयिता डॉ० हरिवंशराय बच्चन जी हैं। कवि ने यहाँ बच्चों के मन में व्याप्त देश भक्ति की भावना और संकल्प को उजागर किया है।

व्याख्या – कवि बच्चों के माध्यम से कहता है कि हम भारतीय बच्चे आगे आने वाले समय में कुछ बड़े काम करके दिखाएँगे। जिस भारत का नाम दुनिया में ऊँचा है उसे हम अपने बड़े कामों से और भी ऊँचा उठाएँगे।

5. भाववाचक संज्ञा बनायें :

  1. ऊँचा = ऊँचाई
  2. गहरा = …………………………
  3. अरुण = …………………………

उत्तर :

  1. ऊँचा = ऊँचाई
  2. गहरा = गहराई
  3. अरुण = अरुणिमा

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से

6. निम्नलिखित शब्दों का वर्ण-विच्छेद करें:

  1. भारत : भ् + आ + र् + अ+ त् + अ
  2. गिरि = …………………………
  3. राजस्थानी = …………………………
  4. दुनिया = …………………………
  5. संदेशा = …………………………
  6. निर्मल = …………………………

उत्तर :

  1. भारत : भ् + आ + र् + अ+ त् + अ
  2. गिरि = ग् + इ + + ई
  3. राजस्थानी = र् + आ + ज् + अ + स् + थ् + आ + न् + ई
  4. दुनिया = द् + उ + न् + इ + य् + आ
  5. संदेशा = स् + अ + म् + द् + ए + श् + आ
  6. निर्मल = न् + इ + र् + म् + अ + ल् + अ।

7. समान अर्थवाले शब्द लिखें :

  1. गिरि = पर्वत
  2. सागर = …………………………
  3. संदेशा = …………………………
  4. दुनिया = …………………………
  5. माथा = …………………………
  6. किरण = …………………………
  7. पानी = …………………………
  8. प्रातः = …………………………

उत्तर :

  1. गिरि = पर्वत, पहाड़
  2. माथा = ललाट, मस्तक
  3. सागर = समुद्र, रत्नाकर
  4. किरण = अंशु, कर
  5. संदेशा = समाचार, खबर
  6. पानी = जल, आब
  7. पूरब = पूर्व, प्राची
  8. प्रातः = सवेरा, सुबह

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से

8. बहुवचन रूप लिखें:

  1. आशा = …………………………
  2. उमंग = …………………………
  3. संदेश = …………………………
  4. ऊँचा = …………………………
  5. कोना = …………………………
  6. बच्चा = …………………………

उत्तर :

  1. आशा = आशाएँ
  2. ऊँचा = ऊँचे
  3. उमंग = उमंगें
  4. कोना = कोने
  5. संदेश = संदेशे
  6. बच्चा = बच्चे

9. नीचे दी गई पंक्तियों को पूरा करें:

  1. हम गिरि की = …………………………
  2. हम सागर की = …………………………
  3. हम पश्चिम से आए, लाए = …………………………
  4. हम लाए हैं गंग-जमुन के = …………………………

उत्तर :

  1. हम गिरि की ऊँचाई लाए
  2. हम सागर की गहराई।
  3. हम पश्चिम से आए, लाए
    आग – राग राजस्थानी
  4. हम लाए हैं गंग – जमुन के।
    संगम का निर्मल पानी।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से

10. पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण क्षेत्रों में स्थित दो-दो राज्यों के नाम लिखें :

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से 1
उत्तर :
PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से 3

भारत के कोने-कोने से Summary in Hindi

भारत के कोने-कोने से कविता का सार

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से 2

‘भारत के कोने – कोने से’ नामक कविता डॉ० हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित देश भक्ति पूर्ण श्रेष्ठ रचना है। इसमें कवि ने बच्चों को कविता में स्थान देकर उनके भावों और क्रिया – कलापों को अनोखे रूप में प्रकट किया है। कवि बच्चों की ओर से कहता है कि हम सब बच्चे भारत के कोने – कोने से आए हैं।

हम अपने साथ आशाओं और उमंगों का संदेश लेकर आए हैं। हम पर्वतों की ऊँचाई और सागरों की गहराई भी लाए हैं, जो हमारे ऊँचे और गहरे विचारों के प्रतीक हैं। हम बच्चे भारत के पश्चिमी दिशा में स्थित प्रदेशों से आए हैं। हम अपने साथ खुशियों के गीत और राजस्थानी जोश लेकर आए हैं।

हम प्रयागराज का पवित्र और स्वच्छ जल भी लेकर आए हैं। हम बच्चे भावी जीवन में बड़े – बड़े काम करके दिखाएँगे जिससे हमारे देश का नाम दुनिया में और भी ऊँचा हो जाएगा। हम बच्चों के भीतर उमंगों और आशाओं का भंडार भरा हुआ है।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से

भारत के कोने-कोने से काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. भारत के कोने – कोने से हम सब बच्चे आए हैं।
नई उमंगों – आशाओं का हम सन्देशा लाए हैं।
हम गिरि की ऊँचाई लाए,
हम सागर की गहराई,
हम पूरब से आए, लाए
प्रातः – किरण की अरुणाई।

शब्दार्थ :

  • उमंग = उत्साह।
  • आशाओं = उम्मीदों।
  • सन्देशा = संवाद, समाचार।
  • गिरि = पर्वत।
  • सागर = समुद्र।
  • गहराई = गहरापन।
  • पूरब = पूर्व दिशा।
  • प्रातः – किरण = सुबह की किरण।
  • अरुणाई = लाली, लालिमा।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘आओ हिन्दी सीखें’ में संकलित ‘भारत के कोने – कोने से’ नामक कविता में से लिया गया है। इस कविता के रचयिता डॉ० हरिवंशराय बच्चन जी हैं। इसमें कवि ने भारत की एकता एवं अखंडता का वर्णन किया है।

सरलार्थ – कवि बच्चों के माध्यम से कहता है कि हम सब बच्चे भारत के कोने – कोने से आए हैं। हम नई उमंगों और आशाओं का सन्देश लेकर आए हैं। आगे बढ़ने का संकल्प लेकर आए हैं। हम पर्वत की ऊँचाई और समुद्र की गहराई लेकर आए हैं। हम ऊँचे और गहरे विचारों से भरे हुए हैं। हम पूर्व दिशा से आए हैं और साथ में सुबह की किरणों की लाली लेकर आए हैं। भाव यह है कि हम प्रसन्नता लेकर आए हैं।

विशेष –

  • कवि ने बच्चों को उन्नति का प्रेरक माना है।
  • भाषा सरल है।

2. हम पश्चिम से आए, लाए
आग – राग राजस्थानी,
हम लाए हैं गंग – जमुन के
संगम का निर्मल पानी।
भारत के कोने – कोने से हम सब बच्चे आए हैं।
नई उमंगों – आशाओं का हम संदेशा लाए हैं।

PSEB 7th Class Hindi Solutions Chapter 1 भारत के कोने-कोने से

शब्दार्थ :

  • आग – राग = जोश और प्रेम।
  • गंग – जमुन = गंगा – यमुना।
  • संगम = मेल (प्रयाग राज)।
  • निर्मल = स्वच्छ, साफ।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य – पुस्तक में संकलित डॉ० हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित ‘भारत के कोने – कोने से’ नामक कविता में से लिया गया है। कविवर डॉ० बच्चन ने बच्चों के माध्यम से भारत की एकता और अखंडता का वर्णन किया है।

सरलार्थ – कवि बच्चों के माध्यम से कहता है कि हम बच्चे भारत के पश्चिम दिशा में स्थित प्रदेशों से आए हैं। हम अपने साथ राजस्थानी जोश और खुशियों के गीत लेकर आए हैं। हम गंगा – यमुना के संगम (प्रयाग राज) का स्वच्छ पानी लेकर आए हैं। हम बच्चे अपने देश भारत के हर प्रान्त से आए हैं। हमारे भीतर नई उमंगें और आशाएँ, आगे बढ़ने का भाव भरा है।

विशेष –

  • कवि ने बच्चों के मन में उमड़ते जोश को दर्शाया है।
  • भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।

3. कल आने वाली दुनिया में,
हम कुछ कर दिखलाएँगे,
भारत के ऊँचे माथे को,
ऊँचा और उठाएँगे।
भारत के कोने – कोने से हम सब बच्चे आए हैं।
नई उमंगों – आशाओं का हम संदेशा लाए हैं।

शब्दार्थ :

  • दुनिया = संसार।
  • ऊँचे माथे = ऊपर उठे मस्तक।

प्रसंग – यह पद्यांश हमारी पाठय – पस्तक में संकलित कविता ‘भारत के कोने – कोने से’ में से लिया गया है। डॉ० हरिवंशराय बच्चन ने इन पंक्तियों में भारत की एकता और अखंडता की बात कही है।

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सरलार्थ – कवि बच्चों के माध्यम से कहता है कि – हम भारतीय बच्चे आगे आने वाले समय में कुछ बड़े काम करके दिखाएंगे। जिस भारत का नाम दुनिया में ऊँचा है, उसे हम अपने बड़े कामों से और ऊँचा उठाएँगे। हम बच्चे भारत के हर प्रदेश के कोने – कोने से आए हैं। हमारे अन्दर नई उमंगें और आशाएँ हैं।

विशेष –

  • कवि ने बच्चों के माध्यम से भारतीय एकता और अखंडता को उजागर किया है।
  • भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।

PSEB 7th Class Hindi Grammar व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

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शब्दों का शुद्ध रूप

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लिंग परिवर्तन

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वचन परिवर्तन

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भाववाचक संज्ञाएं

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विशेषण रचना

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विपरीतार्थक या विलोम शब्द

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पर्यायवाची या समानार्थक शब्द

अमृत सोम, सुधा, पीयूष।
असुर राक्षस, दैत्य, दानव, दनुज।
अग्नि आग, अनल, पावक, दहन।
अन्धकार अन्धेरा, तम, तिमिर।
आँख नेत्र, चक्षु, नयन, लोचन।
आकाश गगन, आसमान, नभ, अम्बर।
आनन्द मोद, हर्ष, उल्लास, प्रसन्नता।
इच्छा अभिलाषा, कामना, चाह, लालसा।
ईश्वर भगवान्, परमात्मा, ईश, प्रभु।
कपड़ा वस्त्र, पट, वसन।
कमल पंकज, सरोज, अरविन्द।
किनारा तट, तीर, कूल।
गौ गाय, सुरभि, धेनु।
घर गृह, सदन, भवन।
घोड़ा अश्व, वाजी, घोटक, तुरंग।
चन्द्रमा चाँद, इन्दु, राकेश, शशि, चन्द्र।
जल वारि, पानी, नीर, पय।
तलवार खड्ग, कृपाण, असि।
तीर वाण, शर, सायक।
दिन दिवस, वार, अहन।
देवता सुर, देव, अमर।
नदी सरिता, तरंगिणी, नद, तटिनी।
नमस्कार प्रणाम, नमस्ते, अभिवादन।
पृथ्वी ज़मीन, धरती, भूमि।
पुत्र बेटा, सुत, तनय।
पर्वत गिरि, पहाड़, अचल, शैल।
पक्षी खग, नभचर, विहंग।
बाग़ बगीचा, उपवन, वाटिका।
बादल मेघ, घन, जलद, नीरद।
बिजली विद्युत्, तड़ित, दामिनी।
फूल सुमन, कुसुम, पुष्प।
माता जननी, माँ, मैया।
मृत्यु मौत, अन्त, निधन, देहान्त।
राजा नरेश, नरपति, भूपति।
वायु अनिल, पवन, हवा।
रात रजनी, निशा, रात्रि।
संसार दुनिया, विश्व, जगत्।
सूर्य रवि, भानु, दिनकर।
स्त्री महिला, अबला, नारी, औरत।
सरोवर तालाब, सर, तड़ाग।
समुद्र सागर, सिन्धु, जलधि।
शत्रु दुश्मन, बैरी, अरि।

अनेक शब्दों के लिए एक शब्द

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PSEB 7th Class Hindi Grammar व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language) 26

PSEB 7th Class Hindi Grammar व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

PSEB 7th Class Hindi Grammar व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language) 27
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PSEB 7th Class Hindi Grammar पारिभाषिक व्याकरण (2nd Language)

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PSEB 7th Class Hindi Grammar पारिभाषिक व्याकरण (2nd Language)

1. भाषा

प्रश्न 1.
भाषा किसे कहते हैं?
उत्तर :
जिस साधन द्वारा हम अपने विचार दूसरों पर प्रकट करते हैं, उसे भाषा कहते हैं ; जैसे हिन्दी, मराठी, बांग्ला, पंजाबी आदि भाषाएं हैं।

प्रश्न 2.
भाषा के कितने प्रकार हैं?
उत्तर :
भाषा के दो प्रकार हैं –

  • लिखित और
  • मौखिक।

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प्रश्न 3.
लिपि किसे कहते हैं? हिन्दी की लिपि का नाम बताइए।
उत्तर :
जिन वर्ण चिहनों के द्वारा भाषा लिखी जाती है, उसे लिपि कहते हैं। हिन्दी भाषा की लिपि का नाम देवनागरी है।

प्रश्न 4.
व्याकरण किसे कहते हैं?
उत्तर :
जिस शास्त्र की सहायता से हमें किसी भाषा को शुद्ध लिखना और बोलना आता है, उसे व्याकरण कहते हैं। व्याकरण के तीन भाग होते हैं – वर्ण विचार, शब्द विचार और वाक्य विचार।

प्रश्न 5.
हिन्दी व्याकरण के कितने भाग हैं?
उत्तर :
हिन्दी व्याकरण के तीन भाग हैं –

  • वर्ण विचार – इसमें वर्ण, उसके भेद, उच्चारण एवं शब्द निर्माण के नियम आदि होते हैं।
  • शब्द विचार – इसमें शब्द, भेद, उत्पत्ति, रचना और रूपांतर का वर्णन होता है।
  • वाक्य विचार – इसमें वाक्य भेद, अन्वय, संश्लेषण, विश्लेषण आदि का वर्णन होता है।

प्रश्न 6.
वर्ण या अक्षर किसे कहते हैं?
उत्तर :
वह छोटी – से – छोटी ध्वनि जिसका कोई खंड न हो सके, वर्ण (अक्षर) कहलाती हैं ; जैसे – अ, क, स, प, ह, इ, उ आदि।

प्रश्न 7.
वर्णमाला किसे कहते हैं?
उत्तर :
वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं।

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प्रश्न 8.
हिन्दी वर्णमाला में कितने वर्ण (अक्षर) हैं?
उत्तर :
हिन्दी वर्णमाला में ग्यारह स्वर और तैंतीस व्यंजन हैं। प्रश्न 9. वर्ण के कितने भेद होते हैं? उत्तर : वर्ण के दो भेद हैं –

  • स्वर
  • व्यंजन।

प्रश्न 10.
स्वर किसे कहते हैं? उसके कितने भेद हैं?
उत्तर :
जो बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से बोले जाते हैं, उन्हें स्वर कहा जाता जैसे –
अ, इ, उ, ऋ आदि ग्यारह स्वर हैं।

स्वरों के तीन भेद हैं –

  • ह्रस्व
  • दीर्घ
  • प्लुत।

प्रश्न 11.
मात्रा की परिभाषा दीजिए।
उत्तर :
व्यंजन के साथ मिलाकर लिखे जाने वाले स्वर के संक्षिप्त रूप को मात्रा कहते हैं; जैसे –
प् + ई (1) = पी।

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प्रश्न 12.
शब्द किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर :
अक्षरों के समूह को शब्द कहते हैं। शब्द दो प्रकार के होते हैं –
(i) सार्थक शब्द
(ii) निरर्थक शब्द।

(i) सार्थक शब्द – अक्षरों का ऐसा समूह, जिससे कोई अर्थ प्रकट होता हो, सार्थक शब्द कहलाता है; जैसे – पुस्तक, मेज, कलम, गाय आदि।
(ii) निरर्थक शब्द – अक्षरों का ऐसा समूह, जिससे कोई अर्थ प्रकट न होता हो, निरर्थक शब्द कहलाता है; जैसे – स्तफुल, यमाक आदि।

प्रश्न 13.
शब्द के वर्गीकरण के आधार बताइए।
उत्तर :
शब्द के वर्गीकरण के तीन आधार हैं

  • उत्पत्ति के आधार पर।
  • वाक्य के प्रयोग के आधार पर
  • व्युत्पत्ति के आधार पर।

प्रश्न 14.
पद किसे कहते हैं?
उत्तर :
शब्दों में ने, को, के लिए आदि विभक्ति चिह्न जोड़ने पर वे पद बन जाते हैं; जैसे – राम ने रोटी खाई। यहाँ ‘राम ने’, ‘रोटी’ तथा ‘खाई’ – ये तीन पद हैं।

प्रश्न 15.
शब्द और पद में क्या अंतर है?।
उत्तर :
वर्णों के सार्थक समूह को खंड कहते हैं तथा खंडों में विभक्ति चिह्न जोड़ने पर शब्द ही पद कहलाते हैं।

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प्रश्न 16. वाक्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
पदों के ऐसे समूह को वाक्य कहते हैं, जिससे भाव पूरी तरह स्पष्ट हो ; जैसे –
राम रोटी खाता है।

प्रश्न 17.
वाक्य कैसे बनते हैं?
उत्तर :
शब्दों में विभक्ति चिहन जोड़ने पर वे शब्द ‘पद’ कहलाते हैं और पदों से वाक्य बनते हैं; जैसे –
राम ने पुस्तक पढ़ी।

यहाँ ‘राम ने’ कर्ता पद, ‘पुस्तक’ कर्म पद तथा ‘पढ़ी’ क्रिया पद है। शब्दों से वाक्य कभी नहीं बनते। पदों से ही वाक्य बनते हैं। यदि शब्दों के समूह का नाम वाक्य हो तो सभी शब्द कोश ही वाक्य बन जाएँ।

प्रश्न 18.
शब्द और वाक्य में क्या अंतर है? ..
उत्तर :
वर्णों के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं और पदों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं।

प्रश्न 19.
प्रयोग के अनुसार शब्द के कितने भेद हैं?
उत्तर :
प्रयोग के अनुसार शब्द के आठ भेद हैं
विकारी – अविकारी
(1) संज्ञा – (5) क्रिया विशेषण
(2) सर्वनाम – (6) सम्बन्ध बोधक
(3) विशेषण – (7) समुच्चय बोधक
(4) क्रिया – (8) विस्मयादि बोधक

विकारी – जिन शब्दों का पुरुष, लिंग, वचन आदि के कारण रूप बदल जाता है, उन्हें विकारी कहा जाता है, जैसे – पर्वत, पर्वतों, बादल, बादलों, विद्वान्, विदुषी आदि।

अविकारी – जिन शब्दों का रूप नहीं बदलता, उन्हें अविकारी कहा जाता है। जैसे – और, यहाँ, वहाँ, या, अथवा आदि।

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2. संज्ञा

प्रश्न 1.
संज्ञा की परिभाषा लिखो और उसके भेद बताओ।
उत्तर :
किसी व्यक्ति, जाति, वस्तु, स्थान, भाव आदि के नाम को संज्ञा कहा जाता संज्ञा के तीन भेद हैं –

  • व्यक्तिवाचक – जो शब्द किसी विशेष व्यक्ति, स्थान, वस्तु आदि का बोध कराए, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – कृष्ण, दिल्ली, गंगा आदि।
  • जातिवाचक – जो शब्द किसी सम्पूर्ण जाति का बोध कराए, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – स्त्री, पुरुष, पशु, नगर आदि।
  • भाववाचक – जो शब्द किसी के धर्म, अवस्था, भाव, गुण – दोष आदि प्रकट करे, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – मिठास, मानवता, सत्यता आदि।

3. लिंग

प्रश्न 1.
लिंग किसे कहते हैं? उसके भेद बताओ।
उत्तर :
संज्ञा के जिस रूप में स्त्री या पुरुष जाति का बोध हो, उसे लिंग कहते हैं। हिन्दी में लिंग के दो प्रकार हैं –

  • पुल्लिग – संज्ञा के जिस रूप से पुरुष जाति का बोध हो, उसे पुल्लिग कहते हैं। जैसे – लड़का, शेर, हाथी।
  • स्त्रीलिंग – संज्ञा के जिस रूप से स्त्री जाति का बोध हो, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं। जैसे – लड़की, शेरनी, हथिनी।।

4. वचन

प्रश्न 1.
वचन किसे कहते हैं और वचन कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर :
शब्दों के जिस रूप से किसी वस्तु के एक अथवा अनेक होने का बोध हो, उसे वचन कहते हैं।
हिन्दी में वचन के दो भेद हैं –

  • एकवचन – संज्ञा का जो रूप एक ही वस्तु का बोध कराए, उसे एकवचन कहते हैं। जैसे – लड़की, घोड़ा, बहिन आदि।
  • बहुवचन – संज्ञा का जो रूप एक से अधिक वस्तुओं का बोध कराए, उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे – लड़कियाँ, घोड़े, बहनें आदि।

प्रश्न 2.
एकवचन का बहवचन के रूप में प्रयोग किन स्थितियों में होता है?
उत्तर :
सम्मान के भाव में एकवचन का प्रयोग बहुवचन के रूप में होता है, जैसे –

  • पिता जी आए हैं।
  • बापू महान् नेता थे।

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5. कारक

प्रश्न 1.
कारक किसे कहते हैं? उसके कितने भेद हैं?
अथवा
कारक की परिभाषा लिखिए।
उत्तर :
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका वाक्य के दूसरे शब्दों से सम्बन्ध जाना जाए, उस रूप को कारक कहते हैं। जैसे – मोहन ने पुस्तक को मेज़ पर रख दिया।

विभक्तिकारक प्रकट करने के लिए संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ ‘ने’, ‘को’, ‘से’ आदि जो चिह्न लगाए जाते हैं, उन्हें विभक्ति कहा जाता है।

हिन्दी में आठ कारक हैं। इनके नाम और विभक्ति चिहन इस प्रकार हैं : –
कारक – विभक्ति चिहन

  1. कर्ता – ने
  2. कर्म – को
  3. करण – से, के द्वारा, के साथ
  4. सम्प्रदान – को, के लिए, वास्ते
  5. अपादान – से (पृथकत्व, बोधक)
  6. सम्बन्ध – का, के, की
  7. अधिकरण – में, पर
  8. सम्बोधन – हे, अरे, रे

1. कर्ता – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध होता है, उसे कर्ता कारक कहा जाता है। जैसे –
(i) मोहन पुस्तक पढ़ता है।
(ii) सोहन ने दूध पिया।
2. कर्म – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। जैसे – श्याम पाठशाला को जाता है।
3. करण – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से कर्ता के काम करने के साधन का बोध हो, उसे करण कारक कहा जाता है। जैसे – राम ने बाण से बालि को मारा।
4. सम्प्रदान – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप के लिए क्रिया की जाए, उसे सम्प्रदान कारक कहा जाता है। जैसे – अध्यापक विद्यार्थियों के लिए पुस्तकें लाया।
5. अपादान – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से पृथक्कता, आरम्भ, भिन्नता आदि का बोध होता है, उसे अपादान कारक कहा जाता है। जैसे – वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।
6. सम्बन्ध – संज्ञा या सर्वनाम का जो रूप एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ सम्बन्ध प्रकट करे, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं। जैसे – यह मोहन का घर है।
7. अधिकरण – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। जैसे – वीर सैनिक युद्ध भूमि में मारा गया।
8. सम्बोधन – संज्ञा का जो रूप चेतावनी या किसी को पुकारने का सूचक हो। जैसे हे ईश्वर ! हमारी रक्षा करो।

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6. सर्वनाम

प्रश्न 1.
सर्वनाम की परिभाषा लिखो और उसके भेद भी बताओ।
उत्तर :
संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे – सोहन, मोहन के साथ उसके घर गया। इस वाक्य में ‘उसके’ सर्वनाम मोहन के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है।

सर्वनाम के पाँच भेद हैं –

  1. पुरुषवाचक – जिससे वक्ता (बोलने वाला), श्रोता (सुनने वाला) और जिसके सम्बन्ध में चर्चा हो रही हो, उसका ज्ञान प्राप्त हो, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे –
    • अन्य पुरुष – वह, वे
    • मध्यम पुरुष – तू, तुम
    • उत्तम पुरुष – मैं, हम
  2. निश्चयवाचक इस सर्वनाम से वक्ता के समीप या दर की वस्तु पर निश्चय होता है। जैसे – यह, ये, वह, वे।
  3. अनिश्चयवाचक – इस सर्वनाम से किसी पुरुष एवं वस्तु का निश्चित ज्ञान नहीं होता। जैसे – कोई, कुछ।
  4. सम्बन्धवाचक – इस सर्वनाम से दो संज्ञाओं में परस्पर सम्बन्ध का ज्ञान होता है। जैसे – जो, सो। जो करेगा, सो भरेगा।
  5. प्रश्नवाचक – इस सर्वनाम का प्रयोग प्रश्न पूछने और कुछ जानने के लिए होता है। जैसे – कौन, क्या। आप कौन हैं? मैं क्या करूँगा?

7. विशेषण

प्रश्न 1.
विशेषण किसे कहते हैं? इसके भेद बताओ।
उत्तर :
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें विशेषण कहा जाता है। जैसे – वीर पुरुष। इसमें ‘वीर’ शब्द पुरुष की विशेषता प्रकट करता है। इसलिए यह विशेषण है।

विशेषण के चार भेद हैं –

  1. गुणवाचक – संज्ञा या सर्वनाम के गुण – दोष, रंग, अवस्था आदि को बताने वाला गुणवाचक विशेषण होता है। जैसे विद्वान् पुरुष। मूर्ख लड़का (गुण – दोष)। नीला घोड़ा। काली बिल्ली (रंग)।
  2. संख्यावाचक – जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का ज्ञान कराए, वह संख्यावाचक विशेषण कहलाता है। जैसे – एक पुस्तक। दस मनुष्य।
  3. परिमाणवाचक जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम के नाप – तोल का ज्ञान होता हो, वह परिमाणवाचक विशेषण कहलाता है। जैसे – दो मीटर कपड़ा। चार किलो मिठाई।
  4. सार्वनामिक या सांकेतिक – जब सर्वनाम संज्ञा के साथ उसके संकेत के रूप में आता है, तब वह सर्वनाम विशेषण बन जाता है। जैसे – वह मेरी पुस्तक है।

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8. क्रिया

प्रश्न 1.
क्रिया किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाओ।
उत्तर :
जिस शब्द से किसी काम का करना या होना पाया जाए, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे

  • नेहा दौड़ती है।
  • मैं पुस्तक पढ़ती हूँ।
  • हम खाना खाते हैं।

इन वाक्यों में दौड़ती’, ‘पढ़ती’, ‘खाते’ शब्दों से कोई काम करने या होने का पता चलता है।

प्रश्न 2.
कर्म के अनुसार क्रिया के कितने भेद हैं?
उत्तर :
कर्म के अनुसार क्रिया के दो भेद हैं –

  1. सकर्मक क्रिया – जिस क्रिया का कोई कर्म हो, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे – सुरेश पत्र लिखता है। इस वाक्य में सुरेश क्या लिखता है? ‘पत्र’। पत्र क्या है? कर्म। यह क्रिया सकर्मक है।
  2. अकर्मक क्रिया – जिस क्रिया का कोई कर्म न हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे – सलमा नहाती है। इस वाक्य में ‘नहाती’ है क्रिया का कोई कर्म नहीं है। यह अकर्मक क्रिया है।

क्रिया में परिवर्तन

प्रश्न 3.
क्रिया में परिवर्तन किस प्रकार होता है? उदाहरण देकर स्पष्ट करो।
उत्तर :
संज्ञा शब्दों की तरह क्रिया शब्द भी विकारी शब्द है। क्रिया शब्दों में परिवर्तन लिंग, वचन, पुरुष, काल और वाच्य के कारण होता है। जैसे
(क) लिंग – मोहन गा रहा था। (पुल्लिग)
राधा खेल रही थी। (स्त्रीलिंग)
यहाँ ‘रहा था’ क्रिया पुल्लिग है और ‘रही थी’ क्रिया स्त्रीलिंग है।

इस प्रकार संज्ञा शब्दों की भांति क्रिया शब्दों के दो लिंग होते हैं।

  • पुल्लिग
  • स्त्रीलिंग

(ख) वचन लड़का हँसता है। लड़के पढ़ते हैं। यहाँ ‘हँसता है’ एकवचन है और ‘पढ़ते हैं’ बहुवचन है। इस प्रकार क्रिया शब्दों के दो वचन होते हैं –

  • एकवचन
  • बहुवचन

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(ग) पुरुष – मैं पढ़ता हूँ।
हम लिखते हैं।
यहाँ ‘मैं’ और ‘हम’ कर्ता के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। अत: उत्तम पुरुष हैं।
तू जाता है।
तुम खाते हो।
यहाँ ‘तू’ और ‘तुम’ कर्ता के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। अत: मध्यम पुरुष हैं।
वह देखता है।
कोई जा रहा है।
यहाँ ‘वह’ और ‘कोई’ कर्ता के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। अतः अन्य पुरुष हैं। इस प्रकार कर्ता के अनुसार क्रिया के तीन पुरुष हैं –

  • उत्तम पुरुष – (मैं, हम)
  • मध्यम पुरुष – (तू, तुम)
  • अन्य पुरुष – (वह, वे, संज्ञा शब्द)

9. काल

प्रश्न 1.
काल किसे कहते हैं?
उत्तर :
क्रिया के जिस रूप से क्रिया के करने के समय का बोध हो, उसे काल कहते हैं।

प्रश्न 2.
काल के कितने भेद हैं? उनके नाम लिखो।
उत्तर :
काल के मुख्यत: तीन भेद हैं :

  • भूतकाल
  • वर्तमानकाल
  • भविष्यत्काल।

प्रश्न 3.
भूतकाल किसे कहते हैं?
उत्तर :
जब क्रिया का करना या होना बीते समय में पाया जाए तो भूतकाल की क्रिया होती है।

मैंने रोटी खाई।
गाड़ी तेज़ चल रही थी।
आंधी से कुछ पेड़ गिरे।

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ऊपर के वाक्यों में ‘खाई’, ‘चल रही थी’, ‘गिरे’ क्रियाएँ हैं। इनमें क्रिया का करना या होना बीते हुए समय में हुआ है। बीते हुए समय को भूतकाल कहते हैं।

प्रश्न 4.
वर्तमान काल किसे कहते हैं?
उत्तर :
जब क्रिया का करना या होना चल रहे समय में पाया जाए तो वह वर्तमान काल की क्रिया होती है।
कवि कविता लिखता है।
लड़की गाना गाती है।
छात्र पुस्तकें पढ़ते हैं।

इन वाक्यों में लिखता है’, ‘गाती’ है, ‘पढ़ते’ हैं. क्रियाएँ हैं। इनसे क्रिया का करना या होना इसी समय में पाया जाता है। चल रहे समय को वर्तमान काल कहते हैं।

प्रश्न 5.
भविष्यत् काल किसे कहते हैं?
उत्तर :
जब क्रिया का करना या होना आने वाले समय में पाया जाए, तो भविष्यत् काल की क्रिया होती है।
लड़के मैदान में खेलेंगे।
किसान फसल काटेंगे।
वह दिल्ली जाएगा।
ऊपर के वाक्यों में ‘खेलेंगे’, ‘काटेंगे’, ‘जाएगा’ – क्रियाएँ हैं। इन से क्रिया का करना या होना आने वाले समय में पाया जाता है। ये भविष्यत् काल की क्रियाएँ हैं।

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10. वाच्य

प्रश्न 1.
वाच्य किसे कहते हैं? वाच्य के भेद भी लिखो।
उत्तर :
क्रिया के जिस रूप में कर्ता या कर्म या भाव अर्थात् क्रिया व्यापार की प्रमुखता कही जाए, उसे वाच्य कहते हैं।
वाच्य के तीन भेद होते हैं –

  • कर्तृवाच्य
  • कर्मवाच्य
  • भाववाच्य।

प्रश्न 2.
कर्तृवाच्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
क्रिया के जिस रूप से कर्ता के व्यापार का पता चले उसे कर्तृवाच्य कहते हैं। राम आता है। मोहन ने दरवाज़ा खोला। श्याम ने पुस्तक खरीदी।

यहाँ ‘आता है’। क्रिया व्यापार करने वाला कर्ता राम है। खोलने की क्रिया करने वाला कर्ता मोहन है और खरीदने की क्रिया करने वाला कर्ता श्याम है।

प्रश्न 3.
कर्मवाच्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
जिस क्रिया व्यापार से कर्म का व्यापार मुख्य रूप से सूचित हो, उसे कर्मवाच्य कहते हैं।

छात्र के द्वारा पुस्तक पढ़ी जाएगी।
मोहन से लकड़ी नहीं काटी जा रही है।
शीला से दरवाजा नहीं खोला गया।

यहाँ ‘पढ़ने’ की क्रिया व्यापार में कर्ता गौण होकर कर्म पर बल है। इसी प्रकार ‘लकड़ी’ और ‘दरवाज़ा’ पर बल है। यहाँ कर्ता प्रधान नहीं है, कर्म प्रधान है। इसमें कर्ता के साथ ‘के द्वारा’, ‘से’ आदि लगा दिया जाता है।

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प्रश्न 4.
भाववाच्य किसे कहते हैं?
उत्तर :
जिस वाक्य रचना में क्रिया का व्यापार ही प्रधान हो उसे भाववाच्य कहते हैं। यहाँ अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग होता है।

हम से नहीं नहाया गया।
बच्चे से रोया जाता है।
नेहा से हँसा जाता है।

यहाँ न कर्म प्रधान है और न ही कर्ता, बल्कि क्रिया के व्यापार को प्रमुखता दी गई है।

11. क्रिया विशेषण

प्रश्न 1.
क्रिया विशेषण किसे कहते हैं? उसके कितने भेद हैं?
उत्तर :
क्रिया की विशेषता बताने वाले शब्द को क्रिया विशेषण कहते हैं। यह अभी आया है।
देखो, यहाँ बहुत शोर है।
मोहन आज बहुत सोया।
समय जल्दी – जल्दी जा रहा है।

ऊपर के वाक्यों में यह कब आया? ‘अभी’। कहाँ बहुत शोर है? ‘यहाँ। मोहन आज कितना सोया? ‘बहुत’। समय कैसा जा रहा है? ‘जल्दी – जल्दी’। क्रिया में यदि हम कब, कहाँ, कितना और कैसे प्रश्न लगाएँ तो हमें क्रिया की विशेषताएँ पता चलती हैं।

क्रिया विशेषण के चार भेद हैं –

  • कालवाचक क्रिया विशेषण
  • स्थानवाचक क्रिया विशेषण
  • परिमाणवाचक क्रिया विशेषण
  • रीतिवाचक क्रिया विशेषण।

कुछ क्रिया विशेषण इस प्रकार हैं –

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12. सम्बन्ध बोधक

प्रश्न 1.
सम्बन्ध बोधक का लक्षण लिखो।
अथवा
सम्बन्ध बोधक किसे कहते हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट करो।
उत्तर :
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ बताए, उसे सम्बन्ध बोधक कहते हैं। जैसे –
मोहन और सोहन साथ जा रहे हैं।
नीतू राम के समान बुद्धिमान है।
बच्चे छत के ऊपर उछल – कूद कर रहे हैं।
आपके सामने कौन बोल सकता है?

ऊपर के वाक्यों में साथ, समान, ऊपर, सामने आदि शब्द वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ सम्बन्ध प्रकट करते हैं।

कुछ सम्बन्ध बोधक शब्द ये हैं…
पहले, बाद, आगे, पीछे, बाहर, भीतर, ऊपर, नीचे, बीच, निकट, पास, सामने, तरफ, द्वारा, विरुद्ध, अनुसार, तरह, समान, सिवा, रहित, अतिरिक्त, समेत, संग, साथ आदि।

प्रश्न 2.
सम्बन्ध बोधक और क्रिया विशेषण में अन्तर उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर :
मकान के भीतर जाओ।
भीतर जाओ।

पहले वाक्य में भीतर’ शब्द मकान के साथ आया है जबकि दूसरे वाक्य में भीतर’। शब्द क्रिया की विशेषता बता रहा है। जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयुक्त हो, उसे सम्बन्ध बोधक कहते हैं और क्रिया के साथ प्रयुक्त होकर क्रिया की विशेषता बताए, उसे क्रिया विशेषण कहते हैं।

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13. योजक

प्रश्न 1.
योजक की परिभाषा लिखो।
अथवा
योजक किसे कहते हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट करो।
उत्तर :
दो शब्दों या वाक्यों को मिलाने वाले शब्द को योजक कहते हैं। जैसे हरदीप और मनदीप इकट्ठे खेल रहे हैं।
चुपचाप बैठो अन्यथा बाहर चले जाओ। गुरप्रीत पढ़ने में तो अच्छा है परन्तु स्वास्थ्य में कमजोर है।
ऊपर दिए गए वाक्यों में रेखांकित शब्द ‘और’, ‘अन्यथा’, ‘परन्तु’ आदि दो शब्दों या वाक्यों को आपस में जोड़ते हैं।
कुछ योजकों के उदाहरण ये हैं : तथा, एवं, या, अथवा, नहीं तो, पर, लेकिन, बल्कि, किन्तु, इसलिए, अतः, क्योंकि, चूँकि, कि, जोकि, ताकि, जिससे, जिसमें, यद्यपि, तथापि, अगर तो, यानि, मानो, यहाँ तक कि आदि।

14. विस्मयादिबोधक

प्रश्न 1.
विस्मयादिबोधक का लक्षण लिखो।
अथवा
विस्मयादिबोधक किसे कहते हैं? उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर :
जो शब्द अचानक मुख से निकलकर घृणा, शोक, आश्चर्य, हर्ष आदि मनोभावों को प्रकट करते हैं, वे विस्मयादिबोधक कहलाते हैं।

उदाहरण –
हाय ! मैं तो लुट गया।
वाह ! क्या मधुर आवाज़ है।
शाबाश ! तुमने तो कमाल कर दिया।

उपर्युक्त वाक्यों में ‘हाय’, ‘वाह’, ‘शाबाश’ आदि शब्द मन के भावों को प्रकट करते हैं। कुछ विस्मयादिबोधक शब्द हैं – ओहो, हे, छि:छि:, धन्य, उफ, बाप रे, अहो, ऐं, वाह – वाह, दुर्, धिक्कार, ठीक, भला, अच्छा, सावधान, होशियार, खबरदार, काश आदि।

15. विराम चिहन

प्रश्न 1.
विराम चिह्न से क्या अभिप्राय है? हिन्दी में प्रचलित चिह्न को स्पष्ट करें।
उत्तर :
बातचीत करते समय हम अपने भावों को स्पष्ट करने के लिए कहीं – कहीं ठहरते हैं। लिखने में भी ठहराव प्रकट करते हैं। ठहराव को प्रकट करने के लिए जो चिहन लगाए जाते हैं, वे विराम चिहन कहलाते हैं।

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मुख्य विराम चिह्न

  1. पूर्ण विराम – ()
    (क) हर वाक्य के अन्त में लगाया जाता है। जैसे – गोपाल आठवीं कक्षा में पढ़ता है।
    (ख) कविता में वाक्य की पूर्णता – अपूर्णता नहीं देखी जाती। इसका प्रयोग पद या पंक्ति के अन्त में किया जाता है।
  2. अल्प – विराम – (,)
    बोलने वाला जहाँ बहुत थोड़ी देर के लिए रुकता है, वहाँ अल्प – विराम लगता है ; जैसे – मैं, कमला और गीता कल मन्दिर जाएंगी।
  3. प्रश्न – सूचक चिह्न – (?) प्रश्न – सूचक वाक्य के अन्त में प्रश्न – सू लगाया जाता है; जैसे – इस समय भारत के प्रधानमन्त्री कौन हैं?
  4. उद्धरण चिह्न – (“”) किसी के कथन को उसी रूप में दिखाने के लिए उद्धरण चिह्न लगाया जाता है ; जैसे – महात्मा गांधी जी ने कहा था, “सच्चाई की अन्त में विजय होती है।”
  5. विस्मयादिबोधक चिह्न – (!) विस्मयादिबोधक चिह्न अव्ययों के बाद लगते हैं; जैसे – अहो ! हाय ! आदि।
  6. निर्देशक – ( – ) इसका प्रयोग कथोपकथन (बातचीत) में बोलने वाले के नाम के आगे आता है। माता – पुत्र ! इधर आओ, मेरी बात सुनो।
    आचार्य – बालको ! भारत को कब आजादी मिली थी?
  7. योजक – ( – ) दो शब्दों को जोड़ने के लिए योजक चिह्न का प्रयोग होता है; जैसे – माता – पिता की सेवा करो।
  8. कोष्ठक चिह्न – () (क) किसी शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक चिह्न का प्रयोग होता है ; जैसे – क्या तुम मेरे कहने का तात्पर्य (मतलब) समझ गए?

(ख) विभाग सूचक अंक या अक्षरों के लिए भी इसी चिह्न का प्रयोग होता है ; जैसे – संज्ञा के तीन भेद हैं –

  • व्यक्तिवाचक
  • जातिवाचक और
  • भाववाचक।

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9. लाघव चिन – (०) जहाँ शब्द को पूरा न लिख कर उसका संक्षिप्त रूप लिख दिया जाए वहाँ लाघव चिह्न का प्रयोग होता है ; जैसे पं० नेहरू। ला० लाजपतराय। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद।

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Patra Lekhan पत्र-लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

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प्रश्न 1.
अपने मुख्याध्यापक को बीमारी के कारण छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
खालसा हाई स्कूल,
जालन्धर।

श्रीमान् जी,
सविनय निवेदन यह है कि मुझे कल रात सख्त बुखार हो गया है। डॉक्टर ने दवा देने के साथ-साथ आराम करने को कहा है। इसलिए मैं आज स्कूल नहीं आ सकता। कृपा करके मुझे दो दिन 14-4-20….. से 15-4-20…… की छुट्टी देकर कृतार्थ करें। मैं आपका बहुत धन्यवादी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
विजय सिंह।
कक्षा सातवीं ‘ए’।

तिथि : 14 अप्रैल, 20……

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प्रश्न 2.
आवश्यक काम के कारण छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
गवर्नमैंट हाई स्कूल,
नकोदर।

श्रीमान् जी,
विनम्र निवेदन यह है कि आज मुझे घर पर एक अति आवश्यक कार्य पड़ गया है। इसलिए मैं स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकता। कृपा करके मुझे एक दिन का अवकाश देकर कृतार्थ करें। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद होगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
बलदेव सिंह।
तिथि : 5 मई, 20……
कक्षा सातवीं ‘बी’।

प्रश्न 3.
बड़े भाई/बड़ी बहन के विवाह के कारण अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापिका महोदया,
गुरु तेग बहादुर हाई स्कूल,
फिरोज़पुर।

श्रीमती जी,
सविनय प्रार्थना यह है कि मेरे बड़े भाई/बड़ी बहन का विवाह 12 अक्तूबर को होना निश्चित हुआ है। मेरा इसमें सम्मिलित होना आवश्यक है। इसलिए इन दिनों मैं स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकती। कृपया आप मुझे 11 अक्तूबर से 13 अक्तूबर तक का अवकाश प्रदान करें।

आपकी अति कृपा होगी।

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या,
निर्मल कौर।
रोल नं05
कक्षा सातवीं ‘ए’।

तिथि : 11 अक्तूबर, 20……

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प्रश्न 4.
फीस माफी के लिए मुख्याध्यापक को प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
गवर्नमैंट हाई स्कूल,
नवांशहर।

श्रीमान् जी,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में सातवीं श्रेणी में पढ़ता हूँ। मैं एक निर्धन विद्यार्थी हूँ। मेरे पिता जी एक छोटे से दुकानदार हैं। उनकी मासिक आमदनी केवल चार हज़ार रुपये है। इस आय से परिवार का गुजारा बहुत मुश्किल से होता है। अत: मेरे पिता जी मेरी फीस नहीं दे सकते। मुझे पढ़ने का बहुत शौक है, परन्तु आपके सहयोग की आवश्यकता है। कृपा करके मेरी पूरी फीस माफ करने का कष्ट करें। इस हेतु मैं आपका जीवन भर आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
महेन्द्र सिंह।
कक्षा सातवीं ‘ए’
रोल नं0 15

तिथि : 10 मई, 20……

प्रश्न 5.
जुर्माना माफ करवाने के लिए मुख्याध्यापिका को प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापिका महोदया,
खालसा हाई स्कूल,
अमृतसर।

श्रीमती जी,
सविनय प्रार्थना है कि इस शनिवार को मेरी अंग्रेजी विषय की अध्यापिका जी ने हमारा टैस्ट लेना था। उस दिन मेरे माता जी बीमार थे। घर में मेरे अलावा कोई नहीं था। अत: उस दिन मैं स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकी। मेरी अध्यापिका ने मुझे बीस रुपए विशेष जुर्माना किया। मेरे पिता जी बहुत गरीब हैं। मैं यह जुर्माना नहीं दे सकती। वैसे मैं अंग्रेज़ी विषय में बहुत अच्छी हूँ। इस बार त्रैमासिक परीक्षा में मेरे 100 में से 80 अंक आए थे।

आपसे सविनय प्रार्थना है कि आप कृपया मेरा जुर्माना माफ कर दीजिए। मैं आपकी अत्यन्त आभारी रहूँगी।

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या,
सिमरन,
कक्षा सातवीं ‘ए’।

तिथि : 12 अगस्त, 20……

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

प्रश्न 6.
स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र लेने के लिए मुख्याध्यापक को प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
गुरु नानक मिंटगुमरी हाई स्कूल,
कपूरथला।

श्रीमान् जी,
सविनय प्रार्थना यह है कि मेरे पिता जी की बदली फिरोज़पुर की हो गई है। इसलिए हम सबको यहाँ से जाना पड़ रहा है। मेरा यहाँ अकेला रहना मुश्किल है। अत: मुझे स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र देने की कृपा करें ताकि फिरोज़पुर जाकर मैं अपनी पढ़ाई जारी रख सकूँ। मैं आपका बहुत आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
सुखबीर सिंह,
कक्षा सातवीं ‘बी’
रोल नं0 18

तिथि : 15 सितम्बर, 20……..

प्रश्न 7.
पुस्तकें मँगवाने के लिए पुस्तक विक्रेता को पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
प्रबन्धक महोदय,
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड,
जालन्धर।

श्रीमान् जी,
कृपया निम्नलिखित पुस्तकें वी०पी०पी० द्वारा शीघ्र भेज दें। पुस्तकें भेजते समय इस बात का ध्यान रखें कि कोई पुस्तक मैली और फटी न हो। आपके नियमानुसार दो सौ रुपए मनीआर्डर द्वारा भेज रहा हूँ।

ये सब पुस्तकें सातवीं श्रेणी के लिए और नए संस्करण (एडीशन) की होनी चाहिएँ।
1. MBD हिन्दी गाइड 10 प्रतियाँ
2. MBD इंग्लिश गाइड 12 प्रतियाँ
3. MBD पंजाबी गाइड 8 प्रतियाँ

भवदीय,
मोहन सिंह (मुख्याध्यापक),
माता गुजरी स्कूल,
तिथि : 15 मई, 20…..
अबोहर।

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

प्रश्न 8.
रुपए मँगवाने के लिए पिता जी को पत्र लिखो।
उत्तर :
गवर्नमैंट हाई स्कूल,
गढ़दीवाला।
15 मई, 20….
पूज्य पिता जी,

सादर प्रणाम।
आपको यह जानकर बड़ी खुशी होगी कि मैं छठी कक्षा में से अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण अब मैंने सातवीं श्रेणी में दाखिला लेना है। इस श्रेणी की मैंने पुस्तकें एवं कापियाँ भी खरीदनी हैं। इसलिए कृपा करके मुझे पाँच सौ रुपए मनीआर्डर द्वारा शीघ्र भेज दें ताकि मैं ठीक समय पर सातवीं श्रेणी में दाखिला ले सकूँ। माता जी को प्रणाम। बिट्ट और मधु को प्यार।

आपका आज्ञाकारी बेटा,
राजीव कुमार

प्रश्न 9.
अपने जन्म-दिन पर चाचा जी को निमन्त्रण पत्र लिखो।
उत्तर :
205, मॉडल टाऊन,
जालन्धर शहर।
20 अप्रैल, 20……
पूज्य चाचा जी,

सादर प्रणाम।
आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि 23 अप्रैल को मेरा जन्म-दिन है। इसलिए मैं अपने मित्रों को शाम को चाय पार्टी दे रहा हूँ। आप भी चाची जी एवं रिंकू और नीतू को लेकर इस छोटी-सी चाय पार्टी पर आएँ।

चाची जी को प्रणाम। रिंकू और नीतू को प्यार।

आपका भतीजा,
विजय सिंह

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

प्रश्न 10.
मित्र के प्रथम आने पर बधाई पत्र लिखो।
उत्तर :
208, प्रेमनगर,
लुधियाना।
11 अप्रैल, 20…..

प्रिय मित्र प्रताप,
कल ही तुम्हारा पत्र मिला। यह पढ़कर बहुत खुशी हुई कि तुम पाँचवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गए हो। मेरी ओर से अपनी इस शानदार सफलता पर हार्दिक बधाई स्वीकार करो। मैं कामना करता हूँ कि तुम अगली परीक्षा में भी इसी प्रकार सफलता प्राप्त करोगे। मैं एक बार फिर तुम्हें बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम कहना।

तुम्हारा मित्र,
मनोहर सिंह

प्रश्न 11.
चाचा जी को जन्म-दिन पर भेजे गए उपहार का धन्यवाद देते हुए पत्र लिखो।
उत्तर :
16, जवाहर नगर,
जालन्धर शहर।
24 अगस्त, 20…..
पूज्य चाचा जी,

सादर प्रणाम।
आपका भेजा हुआ उपहार मुझे परसों मिल गया था। जब मैंने उसे खोला तो उसमें अपने लिए एक पैन देखकर बहुत खुश हुआ। यह बहुत बढ़िया पैन है। यह बहुत सुन्दर लिखता है। मैं इसे हर रोज़ अपने स्कूल लेकर जाता हूँ। मेरे मित्रों को यह बहुत पसन्द है। मैं इस सुन्दर उपहार के लिए आपका बहुत आभारी हूँ। चाची जी को प्रणाम। रमा और बिट्ट को प्यार।

आपका भतीजा,
बलवन्त सिंह

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

प्रश्न 12.
अपने मित्र को बड़े भाई के विवाह पर निमन्त्रण-पत्र लिखो।
उत्तर :
105, आदर्श नगर,
लुधियाना।
12 सितम्बर, 20…..

प्रिय मित्र दिनेश,
तुम्हें यह जानकर बड़ी खुशी होगी कि मेरे बड़े भाई का विवाह 15 सितम्बर को होना निश्चित हुआ है। बारात गुरदासपुर जा रही है। इसी खुशी के मौके पर मैं तुम्हें भी विवाह पर आने का निमन्त्रण देता हूँ। कृपया इस शुभ अवसर पर आकर मंडप की शोभा बढ़ाएँ। तुम्हें बारात के साथ भी चलना पड़ेगा। सचमुच अगर तुम साथ होगे तो बड़ा मज़ा आएगा। भैया और माता-पिता जी को साथ लाना न भूलना।

तुम्हारा मित्र,
उदय सिंह

प्रश्न 13.
अपने मित्र को पत्र लिखकर बतायें कि आपका नया स्कूल किन-किन बातों में अच्छा है।
उत्तर :
81, विजय नगर,
पटियाला।
17 मई, 20…..
प्रिय मित्र सुरेश,

सादर प्रणाम!
तुम्हारी इच्छा के अनुसार मैं इस पत्र में अपने स्कूल के बारे में कुछ पंक्तियां लिख रहा हूं। मेरे स्कूल का नाम राजकीय हाई स्कूल है। यह अपने नगर के सभी स्कूलों में सबसे अच्छा स्कूल है। यहां खेलों का बहुत ही अच्छा प्रबंध है। प्रत्येक छात्र किसी-न-किसी खेल में अवश्य भाग लेता है। इसका भवन बहुत बड़ा है। इसमें लगभग 1500 छात्र पढ़ते हैं तथा 50 अध्यापक पढ़ाते हैं। इसके चारों और सुंदर बाग हैं, जिसमें कई प्रकार के फूल खिले रहते हैं। हमारे अध्यापक बहुत ही सदाचारी तथा मेहनती हैं। मुख्याध्यापक तो बहुत ही योग्य, शांत तथा अनुशासन-प्रिय व्यक्ति हैं। मुझे अपने स्कूल पर गर्व है।

तुम्हारा मित्र,
गुरदेव।

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प्रश्न 14.
मान लो आपका नाम गणेश है। आप 15, पटेल नगर, दिल्ली में रहते हैं। अपने मित्र, जिसका नाम हरीश है, को गर्मी की छुट्टियाँ किसी पर्वत पर बिताने के लिए निमन्त्रण-पत्र लिखें।
अथवा
अपने मित्र को एक पत्र लिखें, जिसमें उसे गर्मी की छुट्टियाँ शिमला में बिताने के लिए कहा गया हो।
उत्तर :
15, पटेल नगर,
दिल्ली।
20 मार्च, 20…..
प्रिय मित्र हरीश,

सप्रेम नमस्ते।
तुम्हारा पत्र मिला। तुमने ग्रीष्मावकाश में मेरा कार्यक्रम जानने की इच्छा प्रकट की। तुम्हें याद होगा कि मैंने गत गर्मियों की छुट्टियाँ तुम्हारे साथ जयपुर में बिताई थीं। इस समय तुमने वायदा किया था कि अगली गर्मी की छुट्टियाँ किसी पर्वतीय स्थान पर बिताएंगे। इस बार मेरा विचार शिमला जाने का है। अपने वचन के अनुसार तुम्हें भी मेरे साथ चलना है। मेरे मामा जी वहाँ अध्यापक हैं। अत: वहाँ मनोरंजन के साथ-साथ पढ़ाई भी हो सकेगी।

इस प्रकार शिमला में गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने में एक पंथ और दो काज होंगे। तुम तो जानते ही होगे कि शिमला को पहाड़ों की रानी कहा जाता है। गर्मियों में वहाँ का मौसम बहुत ही सुहावना होता है। वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य तो अद्भुत हैं। चीड़ और देवदार के ऊँचे-घने पेड़ उसकी शोभा को चार चाँद लगाते हैं। वहाँ जब शाम के समय हम रिज और माल रोड पर घूमेंगे तो मज़ा आ जाएगा।

आशा है कि तुम मेरा शिमला चलने का सुझाव अवश्य स्वीकार करोगे। तुम्हारी स्वीकृति आने पर मैं मामा जी को पत्र लिखूगा। पूज्य माता-पिता जी को मेरी चरण वन्दना कहना। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में –

तुम्हारा अभिन्न मित्र,
गणेश।

प्रश्न 15.
खिड़की का शीशा टूट जाने पर क्षमा माँगते हुए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
राजकीय हाई स्कूल,
जालन्धर।

श्रीमान् जी,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में सातवीं श्रेणी में पढ़ता हूँ। मैं एक निर्धन विद्यार्थी हूँ। आधी छुट्टी के समय मैं अपने सहपाठियों के साथ खेल रहा था। अचानक मेरे हाथ से गेंद छूटकर खिड़की के शीशे पर लगी और शीशा टूट गया। मेरे कारण विद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुँचा है। इस नुकसान के लिए मुझं पर ₹ 500 का जुर्माना किया गया है। मुझे अपनी गलती पर दुख एवं शर्मिंदगी है। मेरे पिता जी की मासिक आमदनी बहुत कम है। वह यह जुर्माना नहीं भर पाएँगे। अत: आपसे मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि मेरी इस भूल तथा मुझ पर लगाए जुर्माने को क्षमा करने का कष्ट करें। इस हेतु मैं आपका जीवन भर आभारी रहूँगा।

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
प्रेम कुमार,
कक्षा सातवीं बी,
तिथि : 10 दिसंबर, 20.
रोल नं0 25

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Nibandh Lekhan निबंध-लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

निबंध सूची :

  1. श्री गुरु नानक देव जी
  2. श्री गुरु तेग़ बहादुर का बलिदान
  3. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी
  4. गुरु रविदास
  5. महाराजा रणजीत सिंह
  6. लाला लाजपत राय
  7. महात्मा गांधी
  8. पं० जवाहर लाल नेहरू
  9. अमर शहीद सरदार भगत सिंह
  10. हमारा देश
  11. मेरा पंजाब
  12. मेरा गाँव
  13. मेरी पाठशाला (स्कूल)
  14. मेरा प्रिय अध्यापक
  15. मेरा मित्र
  16. लोहड़ी
  17. दशहरा
  18. दीवाली
  19. वैशाखी
  20. होली
  21. बसंत ऋतु
  22. प्रातः काल की सैर
  23. स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त)
  24. गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी)
  25. समाचार पत्र 26. विद्यार्थी जीवन
  26. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या
  27. टेलीविज़न के लाभ-हानियां
  28. मेरी पर्वतीय यात्रा
  29. आँखों देखी प्रदर्शनी
  30. जनसंख्या की समस्या
  31. देशभक्त/स्वदेश प्रेम
  32. आँखों देखा मैच

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

1. श्री गुरु नानक देव जी

श्री गुरु नानक देव जी सिक्खों के पहले गुरु थे। इनका जन्म सन् 1469 में तलवण्डी नामक गाँव में हुआ। इनके पिता जी का नाम मेहता कालू राय जी और माता का नाम तृप्ता देवी जी था।

वह बचपन से ही प्रभु भक्ति में लीन रहते थे। इसलिए इनका मन पढ़ने में नहीं लगता था। एक बार पिता जी ने इनको कुछ रुपए दिए और सौदा ले आने को कहा। मार्ग में इन्होंने भूखे साधुओं को देखा, इन्होंने उनको भोजन करा दिया और खाली हाथ लौट आए। पिता जी इन पर बहुत गुस्से हुए। फिर उन्होंने गुरु नानक जी को सुल्तानपुर लोधी के मोदी खाने में नौकरी दिलवा दी। यहाँ भी वे अपना वेतन गरीबों और साधुओं में बाँट देते थे।

14 वर्ष की आयु में इनका विवाह सुलक्षणी देवी से हो गया। इनके दो पुत्र हुए श्री चन्द और लखमी दास। लेकिन घर में मन न लगने पर वह घर छोड़कर स्थान-स्थान पर घूमे। इन्होंने अपना सारा जीवन लोगों की भलाई में लगा दिया। लोगों को उपदेश देने के लिए इन्होंने कई यात्राएँ कीं। वह मक्का मदीना भी गए। इन्होंने ईश्वर को निराकार बताया और कहा कि ईश्वर एक है। हम सब भाई-भाई हैं। सदा सच बोलना चाहिए। इनकी वाणी गुरु ग्रन्थ साहिब में है। अन्त में वह करतारपुर में आ गए और वहीं ईश्वर का भजन करते स्वर्ग सिधार गए।

2. श्री गुरु तेग़ बहादुर का बलिदान

सिक्खों के नवम् गुरु श्री गुरु तेग़ बहादुर का आत्म-बलिदान इतिहास की एक अद्भुत घटना है। गुरु जी का जन्म 1 अप्रैल, सन् 1621 ई० को अमृतसर में हुआ। आपके पिता श्री गुरु हरगोबिन्द जी थे। आप शुरू से ही प्रभु के भक्त थे। आप में भलाई की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।

एक बार कश्मीर का शासक ब्राह्मणों पर घोर अत्याचार कर रहा था। वह ब्राह्मणों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था। तब दुःखी ब्राह्मण गुरु जी के पास आए और उन्हें अपने दुःख का कारण बताया। कारण सुनकर गुरु तेग़ बहादुर जी भी चिन्ता में डूब गए। तभी पुत्र गोबिन्द राय ने चिन्ता का कारण पूछा। तब गुरु तेग बहादुर ने कहा कि किसी बड़े भारी बलिदान की आवश्यकता है। तब गोबिन्द राय ने कहा कि आप से बढ़कर कौन महान् है। अपने पुत्र के इस कथन से गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए।

गुरु जी दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में पहुंचे। उन्होंने औरंगजेब को काफ़ी समझाया। लेकिन इनके महान् उपदेश का उस पर कोई प्रभाव न पड़ा। उसने गुरु जी को मौत के घाट उतारने का हुक्म दे दिया। जैसे ही जल्लाद ने तलवार से गुरु जी पर प्रहार किया, आँधी चलने लगी। भाई जैता जी गुरु जी का शीश उठाकर आनन्दपुर गुरु गोबिन्द सिंह जी के पास ले गया। यहाँ शीश का अन्तिम संस्कार किया गया। भाई लखी शाह गुरु जी के शव को उठाकर अपने घर ले गया और घर को आग लगाकर उनका अन्तिम संस्कार कर दिया। दिल्ली में गुरुद्वारा शीश गंज उनके बलिदान की याद दिलाता है।

इस प्रकार गुरु जी ने अपने बलिदान से लोगों को यह प्रेरणा दी कि मौत से नहीं डरना चाहिए। सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगा दी। इनका बलिदान सदैव अमर रहेगा।

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

3. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी

श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें गुरु थे। आपका जन्म सन् 1666 ई० में पटना में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री गुरु तेग बहादुर और माता का नाम माता गुजरी देवी जी था। आपको बचपन से ही तीर चलाने और घुड़सवारी का शौक था। आपने फ़ारसी और संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की। आप बहुत निडर और शक्तिशाली योद्धा थे।

9 वर्ष की आयु में पिता के बलिदान के बाद आप गुरुगद्दी पर बैठे। समाज में फैले अत्याचारों को रोकने के लिए आपने सन् 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना की तथा पाँच प्यारों को अमृत छकाया। धर्म की रक्षा के लिए आपके चारों पुत्रों ने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। आप सारे सिक्खों को अपने पुत्रों के समान समझते थे तथा उनसे प्रेम का व्यवहार करते थे।

अपने अन्तिम समय में आप नंदेड़ चले गए। वहाँ पर गुलखां नामक पठान ने अपनी पुरानी शत्रुता के कारण आपको छुरा घोंप दिया। घाव गहरा था। यहीं पर आपने बन्दा बैरागी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में, बुराई के विरुद्ध लड़ने का संदेश देकर भेजा। सन् 1708 ई० में गुरु जी ज्योति जोत समा गए। आपने देश व धर्म के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इतिहास में आपका नाम हमेशा अमर रहेगा।

4. गुरु रविदास जी

आचार्य पृथ्वीसिंह आजाद के अनुसार भक्तिकाल के महान् संत कवि रविदास (रैदास) जी का जन्म विक्रमी संवत् 1433 ई० में माघ की पूर्णिमा को रविवार के दिन बनारस के निकट मंडुआडीह नामक गाँव में हुआ।

गुरु जी बचपन से ही संत स्वभाव के थे। उनका अधिकांश समय साधु संगति और ईश्वर भक्ति में व्यतीत होता था। गुरु जी जातिपांति या ऊँच-नीच में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने अहंकार के त्याग, दूसरों के प्रति दया भाव रखना तथा नम्रता का व्यवहार करने का उपदेश दिया। उन्होंने लोभ, मोह को त्याग कर सच्चे हृदय से ईश्वर भक्ति करने की सलाह दी।

गुरु जी की वाणी में ऐसी शक्ति थी कि लोग उनके उपदेश सुनकर सहज ही उनके अनुयायी बन जाते थे। उनके अनुयायियों में महारानी झालाबाई और कृष्ण भक्त कवयित्री मीरा बाई का नाम उल्लेखनीय है। गुरु जी की वाणी के 40 पद आदिग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहब में संकलित हैं जो समाज कल्याण के लिए आज भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। रहती दुनिया तक गुरु जी की अमृतवाणी लोगों का मार्ग दर्शन करती रहेगी।

5. महाराजा रणजीत सिंह

महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के एक महान् और वीर सपूत थे। इतिहास में वे ‘शेरे पंजाब’ के नाम से मशहूर है। उनका जन्म 2 नवम्बर, सन् 1780 ई० को गुजराँवाला में हुआ। आपके पिता सरदार महासिंह सुकरचकिया मिसल के मुखिया थे। आपकी माता राज कौर जींद की फुलकिया मिसल के सरदार की बेटी थी। आपका बचपन का नाम बुध सिंह था। सरदार महासिंह ने जम्मू को जीतने की खुशी में बुध सिंह की जगह अपने बेटे का नाम रणजीत सिंह रख दिया।

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महाराजा रणजीत सिंह को वीरता विरासत में मिली थी। उन्होंने दस साल की उम्र में गुजरात के भंगी मिसल के सरदार साहिब सिंह को लड़ाई में करारी हार दी थी। महासिंह के बीमार होने के कारण सेना की बागडोर रणजीत सिंह ने सम्भाली थी।

महाराजा रणजीत सिंह के पिता की मौत इनकी छोटी उम्र में ही हो गई थी। इसी कारण ग्यारह साल की उम्र में उन्हें राजगद्दी सम्भालनी पड़ी। पन्द्रह साल की उम्र में महाराजा रणजीत सिंह का विवाह कन्हैया मिसल के सरदार गुरबख्श सिंह की बेटी महताब कौर से हुआ। इन्होंने दूसरा विवाह नकई मिसल के सरदार की बहन से किया।

महाराजा रणजीत सिंह ने बड़ी चतुराई से सभी मिसलों को इकट्ठा किया और हुकूमत अपने हाथ में ले ली। 19 साल की उम्र में आपने लाहौर पर अधिकार कर लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया। धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर, अमृतसर, मुलतान, पेशावर आदि सब इलाके अपने अधीन करके एक विशाल राज्य की स्थापना की। आपने सतलुज की सीमा तक सिक्ख राज्य की जडें पक्की कर दी।

महाराजा अनेक गुणों के मालिक थे। वे जितने बड़े बहादुर थे, उतने ही बड़े दानी और दयालु भी थे। छोटे बच्चों से उन्हें बहुत प्यार था। चेचक के कारण उनकी एक आँख खराब हो गई थी। इस पर भी उनके चेहरे पर तेज था। वे प्रजा-पालक थे। उनकी अच्छाइयाँ आज भी हमारे दिलों में उत्साह भर रही हैं। उनमें एक आदर्श प्रशासक के गुण थे, जो आज के प्रशासकों को रोशनी दिखा सकते हैं।

6. लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय भारत के वीर शहीदों में सबसे आगे हैं। लाला जी का जन्म जगराओं के समीप दुढिके ग्राम में 28 जनवरी, सन् 1865 में हुआ। इनके पिता लाला राधाकृष्ण एक अध्यापक थे। मैट्रिक परीक्षा में वज़ीफा प्राप्त कर वे गवर्नमैंट कॉलेज में प्रविष्ट हुए। एम० ए० पास करके फिर इन्होंने वकालत पास की। फिर हिसार में वकालत शुरू की।

इनमें देश-भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। देश की स्वतन्त्रता के लिए इन्होंने आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वे इंग्लैण्ड भी गए। वहाँ से वापस आकर इन्होंने बंग-भंग आन्दोलन में भाग लिया जिस कारण इनको जेल में बन्दी बना लिया गया। फिर यूरोप और अमेरिका की यात्रा की।

सन् 1928 ई० में साइमन कमीशन भारत आया तब इन्होंने उसका काली झण्डियों से स्वागत किया। पुलिस ने इन पर लाठियाँ बरसाईं। लाला जी की छाती पर कई चोटें आईं। इन घावों के कारण वे 17 नवम्बर, सन् 1928 को संसार से सदा के लिए विदा हो गए। इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। भारत इनके महान् बलिदान को हमेशा याद रखेगा।

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7. महात्मा गांधी

महात्मा गांधी भारत के महान नेताओं में से एक थे। इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गांधी और माता का नाम पुतली बाई था जो एक धार्मिक स्वभाव की स्त्री थी। इन्होंने मैट्रिक परीक्षा पोरबन्दर में ही पास की। 13 वर्ष की आयु में आपका विवाह हो गया। उच्च शिक्षा के लिए आप विदेश गए। फिर आप बैरिस्टर बनकर भारत में आए तथा बम्बई (मुम्बई) में वकालत शुरू की। किसी मुकद्दमे के सिलसिले में ये दक्षिणी अफ्रीका गए। वहाँ भारतीयों के साथ अंग्रेज़ों का दुर्व्यवहार देखकर ये बहुत दुःखी हुए।

सन् 1915 में भारत वापस आकर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन चलाया। सन् 1928 में साइमन कमीशन का बायकॉट किया। देश के आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने के कारण कई बार जेल गए। सन् 1947 में अपने अहिंसा के शस्त्र से इन्होंने देश को आजाद करवाया। सारा देश इन्हें बापू गांधी कहता है। वे सारे राष्ट्र के पिता थे। 30 जनवरी, सन् 1948 को वे नाथू राम गोडसे की गोली का शिकार हो गए जिससे इनकी मृत्यु हो गई। गांधी जी मर कर भी अमर हैं। हमें गांधी जी के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए।

8. पं० जवाहर लाल नेहरू

पं० जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमन्त्री थे। इनका जन्म 14 नवम्बर, सन् 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम मोती लाल नेहरू तथा माता का नाम स्वरूप रानी था। इनका बचपन बड़े लाड़-प्यार से बीता। 15 वर्ष की आयु में ये इंग्लैण्ड गए। पहले ये हैरो स्कूल में पढ़े फिर कैम्ब्रिज में। वहाँ से बैरिस्टरी पास करके ये भारत लौटे।

वापस आने पर इनका विवाह कमला नेहरू से हुआ। दोनों पति-पत्नी ने बढ़-चढ़ कर देश के कार्यों में भाग लेना शुरू कर दिया। इनमें शुरू से ही देश-प्यार कूट कूट कर भरा हुआ था। देश को स्वतन्त्र कराने के लिए इन्हें कई बार कारावास का दण्ड मिला। सन् 1942 में कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा लगाया। अन्य नेताओं के साथ नेहरू जी भी कारावास में बन्द कर दिए गए। सन् 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तो ये प्रधानमन्त्री बने।

ये सादगी को पसन्द करते थे। ये शान्ति के अवतार और प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ थे। बच्चे प्यार से इन्हें ‘चाचा नेहरू’ कहते थे। 27 मई, सन् 1964 को पं० जवाहर लाल नेहरू स्वर्ग सिधार गए। उन्होंने देश के लिए जितने कष्ट सहन किए, उनकी कोई तुलना नहीं हो सकती। वे भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे।

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9. अमर शहीद सरदार भगत सिंह

सरदार भगत सिंह पंजाब के महान सपूत थे। उन्होंने देश को आजाद करवाने के लिए क्रान्तिकारी रास्ता अपनाया। देश की खातिर हँसते-हँसते फाँसी के तख्ने पर झूल गए। उनकी कुर्बानी रंग लाई और आजादी के लिए तड़प पैदा की। उनका जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 को जन्म हुआ था। इनके पिता सरदार किशन सिंह और चाचा सरदार अजीत सिंह कट्टर देशभक्त थे। उन्होंने शिक्षा गाँव में तथा लाहौर के डी० ए० वी० स्कूल में प्राप्त की।

उनमें देशभक्ति और क्रान्ति के संस्कार बचपन से थे। सन् 1919 में सारे भारत में रौलेट-एक्ट का विरोध हुआ था। भगत सिंह सातवीं में पढ़ते थे, जब जलियाँवाला बाग का हत्याकाण्ड हुआ था। सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ। भगत सिंह पढ़ाई छोड़कर कांग्रेस के स्वयं सेवकों में भर्ती हो गए। इन्होंने अपना जीवन देश को अर्पण करने की प्रतिज्ञा ली। सन् 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना हुई।

भगत सिंह उसके जनरल सैक्रेटरी बने। इस सभा का उद्देश्य क्रान्तिकारी आन्दोलन को बढ़ावा देना था। अक्तूबर, सन् 1927 में लाहौर में दशहरे के अवसर पर किसी ने बम फेंका। पुलिस ने सरदार भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया। वे दो सप्ताह हवालात में रहे। 30 अक्तूबर, सन् 1928 को ‘साइमन कमीशन’ लाहौर पहुँचा तो इसके विरोध का नेतृत्व “नौजवान भारत सभा” ने अपने हाथ में लिया। कांग्रेसी नेता लाला लाजपत राय साइमन कमीशन के विरुद्ध निकाले गए जुलूस में सबसे आगे थे। वे पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज से बुरी तरह घायल हो गए। कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।

भगत सिंह ने अपने प्यारे नेता की हत्या का बदला सांडर्स की जान लेकर किया। 8 अप्रैल, सन् 1929 को केन्द्रीय विधानसभा में एक काला कानून बनाया जा रहा था। सरदार भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने अपना रोष प्रकट करने के लिए केन्द्रीय विधानसभा में बम फेंका। उन्होंने ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाते हुए अपने आपको गिरफ्तारी के लिए पेश किया। उन पर मुकद्दमा चला। 17 अक्तूबर, सन् 1930 को उन्हें फाँसी की सजा हुई।

23 मार्च, सन् 1931 को अंग्रेज़ सरकार ने सरदार भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु को फाँसी के तख्ते पर चढ़ा दिया। सरदार भगत सिंह अपनी शहादत से भारतीय नौजवानों के सामने एक महान् आदर्श कायम कर गए। सदियों तक भारत की आने वाली पीढ़ियाँ भगत सिंह और उनके साथियों की कुर्बानी से प्रेरणा लेती रहेंगी।

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10. हमारा देश

हमारे देश का नाम भारत है। यह हमारी मातृभूमि है। दुष्यन्त और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर इसका भारत नाम पड़ा। यह एक विशाल देश है। जनसंख्या की दृष्टि से यह संसार में दूसरे स्थान पर है। इसकी जनसंख्या 125 करोड़ से ऊपर पहुँच चुकी है। यहाँ पर अलग-अलग जातियों के लोग रहते हैं।

भारत के उत्तर में हिमालय है और शेष तीनों ओर समुद्र है। इस पर अनेक पर्वत, नदियाँ, मैदान और मरुस्थल हैं। स्थान-स्थान पर हरे-भरे वन इसकी शोभा हैं। यह एक कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की अधिकतर जनता गाँवों में रहती है। यहाँ गेहूँ, मक्का, बाजरा, ज्वार, गन्ना आदि फसलें होती हैं। यहाँ की धरती बहुत उपजाऊ है। यहाँ गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियाँ बहती हैं। इसकी भूमि से लोहा, कोयला, सोना आदि कई प्रकार के खनिज पदार्थ निकलते हैं।

यहाँ पर कई धर्मों के लोग निवास करते हैं। सभी प्रेम से रहते हैं। यहाँ पर अनेक तीर्थ स्थान हैं। ताजमहल, लाल किला, सारनाथ, शिमला, मसूरी, श्रीनगर आदि प्रसिद्ध स्थान हैं जो देखने योग्य हैं। यहाँ पर कई महापुरुषों ने जन्म लिया। श्री राम, श्री कृष्ण, गुरु नानक, स्वामी दयानन्द, रामतीर्थ, तिलक, महात्मा गाँधी आदि इस देश की शोभा हैं। यह देश दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।

11. मेरा पंजाब

पौराणिक ग्रंथों में पंजाब का पुराना नाम ‘पंचनद’ मिलता है। मुस्लिम शासन के आगमन पर इसका नाम पंजाब अर्थात् पाँच पानियों (नदियों) की धरती पड़ गया। किन्तु देश के विभाजन के पश्चात् अब रावी, ब्यास और सतलुज तीन ही नदियाँ पंजाब में रह गई हैं। 15 अगस्त, 1947 को इसे पूर्वी पंजाबी की संज्ञा दी गई। 1 नवम्बर 1966 को इसमें से हिमाचल प्रदेश और हरियाणा प्रदेश अलग कर दिए गए किन्तु फिर से इस प्रदेश को पंजाब पुकारा जाने लगा।

आज के पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर तथा सन् 2001 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या 2.42 करोड़ है।।

पंजाब के लोग बड़े मेहनती हैं। यही कारण है कि कृषि के क्षेत्र में यह प्रदेश सबसे आगे है। औद्योगिक क्षेत्र में भी यह प्रदेश किसी से पीछे नहीं है। पंजाब का प्रत्येक गाँव पक्की सड़कों से जुड़ा है। शिक्षा के क्षेत्र में भी पंजाब देश में दूसरे नम्बर पर है। यहाँ छ: विश्वविद्यालय हैं।

गुरुओं, पीरों, वीरों की यह धरती. उन्नति के नए शिखरों को छू रही है।

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12. मेरा गाव

मेरे गाँव का नाम…….है। यह होशियारपुर का सबसे बड़ा गाँव है। यहाँ की जनसंख्या पन्द्रह हज़ार है। यह होशियारपुर से छ: मील की दूरी पर स्थित है। यह पक्की सड़कों द्वारा शहर के साथ जुड़ा हुआ है। यहाँ पर रेल लाइन भी बिछी है जिस कारण यहाँ के रहने वालों को आने-जाने में कोई मुश्किल नहीं होती।

इस गाँव में एक हाई स्कूल तथा एक प्राइमरी स्कूल भी है। यहाँ लड़के और लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त करते हैं। यहाँ पर अधिकतर लोग खेती-बाड़ी करते हैं। वे नए ढंगों से खेती करते हैं। यहाँ सब लोग मिल-जुलं कर रहते हैं।

मेरे गाँव में एक सरकारी अस्पताल भी है जहाँ पर रोगियों की देखभाल की जाती है। एक पंचायत घर भी है जहाँ लोगों को सच्चा न्याय मिलता है। यहाँ पर ट्यूबवैल और कुओं आदि से खेती की जाती है। पीने के पानी का विशेष प्रबन्ध है।

अधिकतर मकान कच्चे हैं। कुछ पक्के भी हैं। गाँव की गलियाँ पक्की बनी हुई हैं। लोग आपस में मिल-जुल कर रहते हैं। गाँव की सफाई का पूर्ण ध्यान रखते हैं। मुझे अपने गाँव की मिट्टी के कण-कण से प्यार है तथा मैं इस पर गर्व करता हूँ।

13. मेरी पाठशाला (स्कूल)

मेरी पाठशाला का नाम………..है। यह एक बहुत बड़ी इमारत है। यह जी० टी० रोड पर स्थित है। इसमें 20 कमरे हैं। सभी कमरे खुले और हवादार हैं। प्रत्येक कमरे में दो खिड़कियाँ और दो-दो दरवाज़े हैं। ये बहुत साफ़-सुथरे हैं।

पानी पीने के लिए यहाँ पर चार नलके लगे हुए हैं। पुस्तकें पढ़ने के लिए एक पुस्तकालय है। यहाँ पर लगभग 12 हज़ार पुस्तकें हैं। पाठशाला के सामने ही एक वाटिका है। यहाँ पर कई प्रकार के फूल लगे हैं जो पाठशाला की शोभा को चार चाँद लगा देते हैं।

पाठशाला में अन्दर आते ही मुख्याध्यापक का दफ्तर है और दूसरी तरफ अध्यापकों का कमरा है। इनके साथ ही एक साईंस-रूम है। यहाँ बच्चों को क्रियात्मक कार्य करवाया जाता है।

मेरी पाठशाला में पच्चीस अध्यापक हैं जो बहुत योग्य हैं और परिश्रम से बच्चों को पढ़ाते हैं। वे मुख्याध्यापक का सम्मान करते हैं और बच्चों के साथ भी प्रेम का व्यवहार करते हैं। पाठशाला के पीछे एक खेल का मैदान है जहाँ पर बच्चे शाम को खेलते हैं। मेरी पाठशाला का परिणाम हर साल बहुत अच्छा निकलता है। अनुशासन और प्रेम का व्यवहार यहाँ पर सिखाया जाता है। मुझे अपनी पाठशाला पर गर्व है।

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14. मेरा प्रिय अध्यापक

मेरे स्कूल में बहुत से अध्यापक हैं लेकिन उन सबमें से मुझे श्री वेद प्रकाश जी बहुत अच्छे लगते हैं। वह हमें हिन्दी पढ़ाते हैं। उनके पढ़ाने का ढंग बहुत अच्छा है। उन्होंने बी० ए० और प्रभाकर किया हुआ है। वह ओ० टी० भी हैं। वह सभी विद्यार्थियों से स्नेह का व्यवहार करते हैं और पाठ को अच्छी तरह से समझाते हैं।

वह एक उच्च विचारों वाले और नम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं। वह सादगी को बहुत पसन्द करते हैं और बच्चों को भी सादा रहने का उपदेश देते हैं। वह सदा सच बोलते हैं। वह हमेशा समय पर स्कूल आते हैं। वह अन्य सभी अध्यापकों का तथा मुख्याध्यापक का बहुत सम्मान करते हैं। उनकी वाणी में मिठास है। वह किसी बच्चे को पीटते नहीं हैं बल्कि उन्हें प्यार से समझाते हैं। वे किसी भी बुरी आदत के शिकार नहीं हैं।

वह बहुत रहम दिल हैं और वह कमज़ोर और ग़रीब बच्चों की सहायता करते हैं। वह बच्चों के सच्चे हित को चाहने वाले हैं। वह एक खिलाड़ी हैं और बच्चों को भी खेलने की प्रेरणा देते हैं। बच्चे उनकी शिक्षाओं से अच्छे बन सकते हैं। सभी विद्यार्थी उनका बहुत सम्मान करते हैं। मुझे उन पर गर्व है।

15. मेरा मित्र

रमेश मेरा बहुत अच्छा मित्र है। वह मेरे साथ ही सातवीं कक्षा में पढ़ता है। उसकी आयु बारह साल के लगभग है। उसके पिता जी एक डॉक्टर हैं। उसकी माता जी एक धार्मिक स्वभाव की स्त्री हैं। वह उसे सदाचार की शिक्षा देती हैं।

रमेश पढ़ने में बहुत होशियार है। परीक्षा में वह सदा प्रथम रहता है। वह हमारे घर के पास ही रहता है। उसके पिता जी उसे और मुझे सुबह सैर करने ले जाते हैं। वह सुबह जल्दी ही उठ जाता है। वह प्रतिदिन स्नान करता है और समय पर स्कूल जाता है। वह सभी के साथ बड़ा नम्र व्यवहार करता है। वह हमेशा सादे कपड़े पहनता है और सदा सत्य बोलता है। उसका चेहरा हँसमुख और स्वभाव सरल है। वह किसी बुरे और शरारती लड़के की संगति नहीं करता है और मुझे भी बुरी संगति करने से रोकता है। वह कमजोर विद्यार्थियों की सहायता करता है।

रमेश खेलों में भी बहुत रुचि लेता है। वह स्कूल की हॉकी टीम में खेलता है। वह शाम को खेलने जाता है। वह बड़ा स्वस्थ दिखाई देता है। वह रात को पढ़ता है। वह बड़ा मन व्याकरण तथा रचना भाग लगाकर पढ़ाई करता है। इसी कारण वह हमेशा प्रथम रहता है। उसे कई इनाम भी मिल चुके हैं। सभी अध्यापक उसे बहुत प्यार करते हैं। मुझे अपने इस मित्र पर गर्व है।

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16. लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार विक्रमी संवत् के पौष मास के अन्तिम दिन अर्थात् मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले मनाया जाता है। अंग्रेज़ी महीने के अनुसार यह दिन प्राय: 13 जनवरी को पड़ता है। इस दिन सामूहिक तौर पर या व्यक्तिगत रूप में घरों में आग जलाई जाती है और उसमें मूंगफली, रेवड़ी और फूल-मखाने की आहुतियाँ डाली जाती हैं। लोग एक दूसरे को तिल, गुड़ और मूंगफली बाँटते हैं।

पता नहीं कब और कैसे इस त्योहार को लड़के के जन्म के साथ जोड़ दिया गया। प्रायः उन घरों में लोहडी विशेष रूप से मनाई जाती है जिस घर में लड़का हआ हो। किन्तु पिछले वर्ष से कुछ जागरूक और सूझवान लोगों ने लड़की होने पर भी लोहड़ी मनाना शुरू कर दिया है।

लोहड़ी, अन्य त्योहारों की तरह ही पंजाबी संस्कृति के साँझेपन का, प्रेम और भाईचारे का त्योहार है। खेद का विषय है कि आज हमारे घरों में ‘दे माई लोहडी-तेरी जीवे जोडी’ या ‘सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन बेचारा’ जैसे गीत कम ही सुनने को मिलते हैं। लोग लोहड़ी का त्योहार भी होटलों में मनाने लगे हैं जिससे इस त्योहार की सारी गरिमा कम होती जा रही है।

17. दशहरा

दशहरा प्रधान त्योहारों में से एक है। यह आश्विन मास की शुक्ला दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्री राम ने लंका के सम्राट् रावण पर विजय पाई थी। भगवान् राम के वनवास के दिनों में रावण छल से सीता को हर कर ले गया था। राम जी ने हनमान और सुग्रीव आदि मित्रों की सहायता से लंका पर हमला किया तथा रावण को मार कर लंका पर विजय पाई। तभी से यह दिन मनाया जाता है।

दशहस रामलीला का आखिरी दिन होता है। भिन्न-भिन्न स्थानों में अलग-अलग प्रकार से यह दिन मनाया जाता है। बड़े-बड़े नगरों में रामायण के पात्रों की झांकियाँ निकाली जाती हैं। दशहरे के दिन रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद के कागज़ के पुतले बनाए जाते हैं। सायँकाल के समय राम और रावण के दलों में बनावटी लड़ाई होती है। राम रावण को मार देते हैं। रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। पटाखे आदि छोड़े जाते हैं। बाजारों में दुकानें खूब सजी होती हैं और बाजारों में खूब रौनक होती है। लोग मिठाइयाँ तथा खिलौने लेकर घरों को लौटते हैं।

इस दिन कुछ लोग शराब पीते हैं और जुआ आदि भी खेलते हैं। यह सब ठीक नहीं है। यदि ठीक ढंग से इस त्योहार को मनाया जाए तो बहुत लाभ हो सकता है।

18. दीवाली

दीवाली हमारे देश का एक पवित्र और प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह दशहरे के बीस दिन बाद आता है। इस दिन भगवान् राम लंका के राजा रावण को मार कर तथा वनवास के चौदह वर्ष खत्म कर अयोध्या लौटे थे। तब लोगों ने उनके स्वागत में रात को दिये जलाए थे। उनकी पवित्र याद में यह दिन बड़े सम्मान से मनाया जाता है।

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इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द जी ग्वालियर के किले से जहाँगीर की कैद से मुक्त होकर लौटे थे। लोगों ने उनके स्वागत में घर-घर दीपमाला की थी।

दीवाली से कई दिन पूर्व तैयारी आरम्भ हो जाती है। लोग घरों की लिपाई-पुताई करते हैं। कमरों को सजाते हैं। घरों का कूड़ा-कर्कट बाहर निकालते हैं। अमावस को दीपमाला की जाती है।

इस दिन लोग मित्रों को बधाई देते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं। बच्चे नए-नए कपड़े पहनते हैं। रात को लक्ष्मी पूजा के बाद बच्चे आतिशबाजी चलाते हैं। कई लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते हैं।

दीवाली हमारा धार्मिक त्योहार है। इसे उचित रीति से मनाना चाहिए। विद्वान लोगों को जन-साधारण को उपदेश देकर अच्छे रास्ते पर चलाना चाहिए। कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते और शराब पीते हैं जो कि बहुत बुरा है, लोगों को इससे बचना चाहिए। आतिशबाजी पर अधिक खर्च नहीं करना चाहिए।

19. वैशाखी

भारत में हर साल अनेक प्रकार के उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। वैशाखी भी ऐसा ही पर्व है जिसमें लोग अपनी खुशी प्रकट करते हैं। यह त्योहार हर साल नवीन उत्साह एवं उमंग लेकर आता है तथा लोगों में एक नई चेतना भरता है। वैशाखी वैशाख मास की संक्रान्ति को होती है। 13 अप्रैल को यह मेला मनाया जाता है। सूर्य के गिर्द वर्ष भर का चक्कर काट कर पृथ्वी जब दूसरा चक्कर आरम्भ करती है तो उस दिन वैशाखी होती है। वैशाख महीने से नया साल शुरू होता है। इसी दिन वर्ष भर के कामों का लेखा-जोखा किया जाता है। इस समय नई फसल पक कर तैयार हो जाती है। किसान अपनी फसल को पाकर झूम उठते हैं। वे कहते हैं –

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फसलां दी मुक गई राखी
ओ जट्टा, आई वैशाखी

इस प्रकार इस पर्व का सम्बन्ध मौसम से माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन अर्थात् 13 अप्रैल, सन् 1699 ई० को दशम गुरु श्री को गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखकर पाँच प्यारों को अमृत छकाया था। सन् 1919 में वैशाखी वाले दिन ही अमृतसर में जलियाँवाले बाग में अंग्रेज़ हाकिम डायर ने निहत्थे भारतीयों पर गोली चलाई थी और सैंकड़ों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था।

वैशाखी के दिन पंजाब के कई स्थानों पर मेले लगते हैं। लोग नए-नए रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर मेला देखने आते हैं। वहाँ कई प्रकार की दुकानें सजी होती हैं जहाँ से लोग अपनी मन पसंद चीजें खरीदते हैं। लोगों की बहत भीड होती है। पशुओं की मंडियाँ लगती हैं। जगह-जगह पर कुश्तियाँ होती हैं। मदारी अपने करतब दिखाते हैं। बच्चे तो बड़े खुश दिखाई देते हैं। गीत गाते हैं और झूम-झूम कर अपनी मस्ती और खुशी प्रकट करते हैं। किसानों के दल खुशी से अपने लहलहाते खेतों को देखकर भंगड़ा डालते हैं। ढोल की आवाज़ सबको अपनी ओर आकर्षित करती है।

इस दिन लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करते हैं। इसके बाद वे श्रद्धा अनुसार दान-पुण्य करते हैं और मित्रों में मिठाई बाँटते हैं। अमृतसर में वैशाखी का मेला देखने योग्य होता है।

20. होली

होली बसन्त का उल्लासमय पर्व है। इसे ‘बसन्त का यौवन’ कहा जाता है।

होली प्रकृति की सहचरी है। बसन्त में जब प्रकृति के अंग-अंग में यौवन फूट पड़ता है तो होली का त्योहार उसका श्रृंगार करने आता है। होली ऋतु सम्बन्धी त्योहार है। शीत की समाप्ति पर किसान आनन्द विभोर हो जाते हैं। खेती पक कर तैयार होने लगती है। इसी कारण सभी मिल कर हर्षोल्लास में खो जाते हैं।

कहते हैं कि भक्त प्रह्लाद भगवान् का नाम लेता था। उसका पिता हिरण्यकश्यप ईश्वर को नहीं मानता था। वह प्रह्लाद को ईश्वर का नाम लेने से रोकता था। प्रह्लाद इसे किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार न था। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। इसमें होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। इसी कारण होली के दिन होलिका दहन होता है।

आज कुछ लोगों ने होली का रूप बिगाड़ कर रख दिया है। सुन्दर एवं कच्चे रंगों के स्थान पर कुछ लोग काली स्याही व तवे की कालिमा का प्रयोग करते हैं। कुछ मूढ़ व्यक्ति एक-दूसरे पर गन्दगी फेंकते हैं। प्रेम और आनन्द के त्योहार को घृणा और दुश्मनी का त्योहार बना दिया जाता है। इन बुराइयों को समाप्त करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।

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होली के पवित्र अवसर पर हमें ईर्ष्या, द्वेष, कलह आदि बुराइयों को दूर भगाना चाहिए। समता और भाईचारे का प्रचार करना चाहिए।

21. वसंत ऋतु

वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। यह ऋतु विक्रमीसंवत के महीने चैत्र और वैशाख महीने में आती है। इस ऋतु के आगमन की सूचना हमें कोयल की कूहू-कूहू की आवाज़ से मिल जाती है। वृक्षों पर, लताओं पर नई कोंपलें आनी शुरू हो जाती हैं। प्रकृति भी सरसों के फूले खेतों में पीली चुनरिया ओढ़ें प्रतीत होती है। इसी ऋतु में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। जो पूर्णमासी तक कौमदी महोत्सव तक मनाया जाता है इस त्योहार में लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। घरों में पीला हलवा या पीले चावल बनाया जाता है। कुछ लोग वसंत पंचमी वाले दिन व्रत भी रखते हैं।

पुराने जमाने में पटियाला और कपूरथला की रियासतों में यह दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। पतंगबाजी के मुकाबले होते थे। कुश्तियों और शास्त्रीय संगीत का आयोजन किया जाता था। पुराना मुहावरा था कि आई वसंत तो पाला उड़त किंतु पर्यावरण दूषित होने के कारण अब तो पाला वसंत के बाद ही पड़ता है। पंजाबियों को ही नहीं समूचे भारतवासियों को अमर शहीद सरदार भगत सिंह का मेरा रंग दे वसंती चोला इस दिन की सदा याद दिलाता रहेगा।

22. प्रातः काल की सैर

प्रात:काल की सैर मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है। यह स्वास्थ्य के लिए बड़ी लाभदायक होती है। सुबह के समय सैर करना वैसे भी मनोरंजन करने के समान है। सुबह के समय प्राकृतिक छटा निराली होती है। सुबह की लाली चारों ओर फैली होती है। पक्षियों के कलरव हो रहे होते हैं जो बहुत अच्छे लगते हैं। शीतल हवा चल रही होती है। खिले हुए फूल बड़े सुन्दर लगते हैं। पेड़-पौधों का दृश्य बड़ा लुभावना होता है।

सुबह की सैर के लाभ भी बहुत होते हैं। शरीर में फुर्ती आती है। स्वच्छ वायु के सेवन से खून साफ़ होता है। शरीर की कसरत होती है। शारीरिक रोगों से बचाव होता है। दिमाग की ताकत बढ़ती है। आलस्य दूर भागता है। सदाचार की वृद्धि होती है। काम करने में मन लगता है।

अत: हमें नियमित रूप से प्रातः भ्रमण करना चाहिए।

23. स्वतन्त्रता दिवस (15 अगस्त)

पन्द्रह अगस्त, 1947 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने योग्य है। इस दिन भारत माता की गुलामी के बन्धन टूटे थे। इस आज़ादी को प्राप्त करने के लिए अनेक देशभक्तों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। पण्डित जवाहर लाल जी स्वतन्त्र भारत के पहले प्रधानमन्त्री बने। संसद् भवन पर तिरंगा झण्डा लहराया गया। उस दिन दिल्ली के लाल किले पर पं० जवाहर लाल नेहरू जी ने अपने हाथों से तिरंगा झण्डा लहराया। लाखों लोगों ने इसमें भाग लिया।

तब से लेकर अब तक यह त्योहार हर वर्ष सारे भारतवर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। दिल्ली में वायुयानों द्वारा फूलों की वर्षा की जाती है। उसके बाद तीन सेनाओं के जवान सलामी देते हैं। इस दिन लाल किले के सामने विशाल जन समूह इस शोभा को देखता है। प्रधानमन्त्री जी का भाषण होता है। इण्डिया गेट की शोभा निराली ही होती है। देश के सभी नगरों में यह उत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। रात को समस्त सरकारी भवन बिजली के बल्बों से जगमगा रहे होते हैं।

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आज हमें आजादी तो मिल गई है परन्तु हमें देश के प्रति कर्त्तव्यों को निभाना चाहिए। हमें उन शहीदों को याद रखना चाहिए जिन्होंने अपनी कुर्बानी देकर हमें आजादी दिलवाई।

24. गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी)

भारत पर्यों तथा त्योहारों की भूमि है। भारत में साल-भर में भिन्न-भिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न पर्व मनाए जाते हैं। 26 जनवरी का दिन भारत के लिए विशेष महत्त्व का दिन है। यह एक राष्ट्रीय त्योहार है। इस दिन अर्थात् 26 जनवरी, सन् 1950 के दिन हमारे देश का संविधान लागू हुआ था और इसी दिन भारत एक गणराज्य घोषित किया गया था। भारत की सभी जातियाँ-हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध तथा जैनी बिना किसी भेदभाव के इसे बड़े उत्साह से मनाती हैं।

26 जनवरी का दिन प्रतिवर्ष भारत के प्रत्येक प्रांत में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। नगर-नगर में सभाएँ तथा जुलूस निकलते हैं। राष्ट्रीय झण्डे लहराए जाते हैं। किन्तु दिल्ली में यह दिन जिस धूमधाम से मनाया जाता है, उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। वहां इस त्योहार की शान तो निराली ही होती है। यह समारोह भारत के राष्ट्रपति की सवारी से शुरू होता है।

राष्ट्रपति की सवारी को सलामी देने के लिए स्थल सेना, जल सेना और वायु सेना तीनों की चुनी हुई टुकड़ियाँ सवारी के साथ-साथ चलती हैं। सवारी इण्डिया गेट से शुरू होती है और नई दिल्ली के खास-खास स्थानों से होती हुई आगे बढ़ती है। अनगिनत नर-नारी सवारी को देखने के लिए इकट्ठे हो जाते हैं। सवारी के पीछे-पीछे अलग-अलग प्रान्तों के लोग अपने कार्यक्रम की झांकियाँ दिखाते हैं। राष्ट्रपति को 21 तोपों से सलामी दी जाती है।

26 जनवरी का दिन मनोरंजन का दिन ही नहीं मानना चाहिए बल्कि इस दिन हमें कुछ प्रतिज्ञाएँ करनी चाहिए ताकि देश में बढ़ती हुई रिश्वतखोरी, लूटमार, पक्षपात आदि दूर किए जा सकें। हमें उन वीरों का कर्जा चुकाना होगा जिन्होंने अपनी कुर्बानियों द्वारा हमें आजादी से साँस लेने का अवसर दिया। तभी हमारी आज़ादी सफल तथा पूर्ण होगी।

25. समाचार-पत्र

मनुष्य एक जिज्ञासु प्राणी है। वह अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं की जानकारी प्राप्त करना चाहता है। प्राचीन काल में उसकी यह जिज्ञासा पूरी न हो पाती थी। विज्ञान ने जहाँ हमें अन्य प्रकार की सुविधाएँ दी हैं, उनमें समाचार-पत्र के द्वारा हम घर पर बैठे ही देश-विदेश के समाचारों को जान लेते हैं। संसार के किसी कोने में घटने वाली घटना तार, टेलीफोन अथवा टेलीप्रिंटर के द्वारा समाचार-पत्रों के कार्यालयों में पहुँच जाती है।

समाचार-पत्रों से हमें अनेक लाभ हैं। नगर, प्रान्त, देश तथा विदेश आदि के समाचारों को हम समाचार-पत्र द्वारा घर बैठे जान लेते हैं। इससे हमारे ज्ञान में भी वृद्धि होती है। समय-समय पर इनमें अनेक प्रकार के चित्र भी छपते रहते हैं। इन चित्रों के द्वारा जहाँ हमारा मनोरंजन होता है, वहाँ इनसे अनेक प्रकार के ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक स्थानों की भी जानकारी होती है।

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समाचार-पत्रों में कहानियाँ, कविताएँ, जीवनियाँ तथा हास्य की सामग्री भी छपती रहती हैं। इन्हें पढ़कर हमारा मनोरंजन होता है। इनमें नौकरी सम्बन्धी विज्ञापन भी छपते हैं। पाठक अपने विचारों को भी समाचार-पत्र में छपवा सकते हैं। इस प्रकार ये समाचार-पत्र हमारे लिए वरदान का काम करते हैं। उनके द्वारा हमें घर बैठे ही बहुत-सी जानकारी प्राप्त होती है।

26. विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी जीवन मनुष्य के जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। यह मानव जीवन की नींव है। इसी पर उसके जीवन की सफलता-असफलता निर्भर करती है। यह जीवन तैयारी का जीवन है।

विद्यार्थी जीवन विद्या प्राप्ति का समय है। विद्यार्थी का यह कर्त्तव्य है कि वह पढ़ाई में अपना मन लगाए। उसे घर के अन्य छोटे-छोटे कामों में हाथ बँटाना चाहिए। विद्यार्थी जीवन की सफलता अच्छी बातों के पालन पर निर्भर करती है। उसे अपने अध्यापकों के उपदेश के अनुसार चलना चाहिए। माता-पिता की आज्ञा का पालन करना भी उसका प्रमुख कर्त्तव्य है। उसे स्वभाव का नम्र और मधुरभाषी होना चाहिए। उसे अपने स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। उसे हमेशा अच्छे छात्रों का संग करना चाहिए। अच्छी संगति स्वयं में एक शिक्षा है। समय का पालन करना चाहिए।

विद्यार्थी जीवन में खूब परिश्रम करना चाहिए। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य उन्नति कर सकता है। आलसी व्यक्ति तो अपने लिए ही बोझ बनकर जीता है। अतः प्रत्येक विद्यार्थी का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने विद्यार्थी जीवन का सदुपयोग करे। अच्छा विद्यार्थी ही अच्छा नागरिक तथा अच्छा नेता बन सकता है।

27. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या

वनस्पति जगत् से मानव का बहुत प्राचीन सम्बन्ध है। आम, तुलसी, केला, आँवला, बरगद आदि वृक्षों की लोग पूजा करते रहे हैं। प्रकृति और मानव का मधुर सम्बन्ध था, इसी कारण मानव-समाज सुखी था। आज प्रकृति पर विजय पाने की इच्छा से प्रदूषण फैल रहा है। इसके कारण अनेक समस्याएं जन्म ले रही हैं।

जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ वनों को काटकर उद्योग-धंधों के विस्तार से कल कारखानों से दूषित विषैले पदार्थ बाहर निकलने लगे हैं। इससे वायुमण्डल दूषित हो रहा है तथा पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ रहा है। प्रदूषण के कारण ही समय पर वर्षा नहीं होती, कहीं कम होती है तो कहीं बाढ़ें आती हैं।

भीड़-भाड़ वाले बड़े नगरों में वाहनों से निकलने वाले धुएँ तथा पेट्रोल की गंध से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सीसा के तत्व आदि हानिकारक पदार्थ निकलते हैं। इनसे साँस, फेफड़े आदि के रोग तथा दमा, जुकाम, कैंसर जैसे अन्य रोग फैलते हैं। गंदी वायु में साँस लेने से खून शुद्ध नहीं रह पाता। आँखों की रोशनी कमजोर हो जाती है और चर्म रोग भी हो जाते हैं। वायु का प्रदूषण ‘धीमा विष’ जो धीरे-धीरे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण भी होता है। गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल तथा कल-कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ नदियों में बहा दिए जाते हैं जिससे पानी पीने योग्य नहीं रहता तथा फसलों तथा फलों को भी हानि पहुंचाता है। सुख के लिए काम मानव के दुःख के कारण बन गए। पेड़, पौधों की कटाई से हरियाली समाप्त हो गई, सुन्दरता नष्ट हो गई।

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कृषि योग्य भूमि की कमी हो जाने से लोगों को शहरों की तंग गलियों में रहना पड़ रहा है। विज्ञान का वरदान उसके लिए अभिशाप बन गया। प्रदूषण के कारण गंगा का जल विषैला बन गया। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल, मथुरा तेल शोधक कारखाने की चिमनियों के धुएँ तथा आगरा के चमड़ा उद्योगों से अपना सौन्दर्य खो रहा है।

प्रदूषण की समस्या भारत में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में बढ़ रही है। इसे रोकना हमारा परम कर्त्तव्य है। इसे रोकने के लिए हम गंदगी न फैलाएँ तथा वृक्ष लगाएँ।

28. टेलीविज़न के लाभ-हानियाँ

टेलीविज़न का आविष्कार सन् 1926 ई० में स्काटलैण्ड के इन्जीनियर जान एल० बेयर्ड ने किया। भारत में इसका प्रवेश सन् 1964 में हुआ। दिल्ली में ऐशियाई खेलों के अवसर पर टेलीविज़न रंगदार हो गया। टेलीविज़न को आधुनिक युग का मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन माना जाता है। केवल नेटवर्क के आने पर इस में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गया है। आज देश भर में दूरदर्शन के अतिरिक्त 300 से अधिक चैनलों द्वारा कार्यक्रम प्रसारित किये जा रहे है। इन में कुछ चैनल तो केवल समाचार, संगीत या नाटक ही प्रसारित करते हैं।

टेलीविज़न के आने पर हम दुनिया के किसी भी कोने में होने वाले मैच का सीधा प्रसारण देख सकते हैं। आज व्यापारी वर्ग अपने उत्पाद की विक्री बढ़ाने के लिए टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों का सहारा ले रहे हैं। ये विज्ञापन टेलीविजन चैनलों की आय का स्रोत भी है। शिक्षा के प्रचार प्रसार में टेलीविज़न का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

टेलीविज़न की कई हानियाँ भी हैं। सबसे बड़ी हानि छात्र वर्ग को हुई है। टेलीविज़न उन्हें खेल के मैदान से तो दूर ले जाता ही है अतिरिक्त पढ़ाई में भी रूचि कम कर रहा है। टेलीविज़न अधिक देखना छात्रों की नेत्र ज्योति को भी प्रभावित कर रहा है। हमें चाहिए कि टेलीविज़न के गुणों को ही ध्यान में रखें, इसे बीमारी न बनने दें।

29. मेरी पर्वतीय यात्रा

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। एक स्थान पर रहते-रहते मनुष्य का मन ऊब जाता है। वह इधर-उधर घूम कर अन्य प्रदेशों के रीति-रिवाजों आदि से परिचित होना चाहता है और इस प्रकार अपना ज्ञान बढ़ाता है। – दशहरे की छुट्टियां आने वाली थीं। मेरे मित्र सुरेन्द्र ने आकर शिमला चलने की बात कही। माता जी से परामर्श करने के पश्चात् बात पक्की हो गई। अगले दिन प्रात:काल ही हम दोनों मित्र रेलगाड़ी में जा बैठे। मैदान तो मैंने देखे ही थे पर जब पर्वतीय क्षेत्र आया तो मैं देख रहा था कि नदियां कलकल ध्वनि के साथ इठलाती बहुत सुन्दर लग् रही थीं। रास्ते का दृश्य बड़ा मनोहारी था।

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हम प्रसन्न मुद्रा में शिमला पहुंचे। शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। अधिकतर मकान आधुनिक ढंग से बने हुए हैं। शहर के अन्दर आधुनिक ढंग के कई होटल तथा सिनेमा गृह हैं जो कि वहां की सुन्दरता को चार चांद लगाते हैं।

मुझे स्केटिंग रिंक बहुत सुन्दर लगा। सुरेन्द्र के पिता जी ने मुझे बताया कि शरद् ऋतु में युवक तथा युवतियां इस ऋतु का आनन्द लूटने के लिये यहां पर आते हैं। सुरेन्द्र को यह सब सुनने में कोई आनन्द नहीं आ रहा था। वह तो राजभवन देखने का इच्छुक था। अतः कुछ समय के पश्चात् हम लोग विशाल भवन के सम्मुख थे। इस दो दिवसीय यात्रा से हमने इस विशाल नगरी का प्रत्येक ऐतिहासिक स्थान देख लिया।

दो दिवसीय यात्रा के पश्चात् हम सब वहां से चल पड़े। मैं और सुरेन्द्र तो वहां से चलना नहीं चाहते थे। कारण कि हमें पर्वतीय छटा ने अत्यधिक आकृष्ट कर लिया था। वहां का शान्त एवं सुन्दर वातावरण मुझे अधिक प्रिय लग रहा था। पर सुरेन्द्र के पिता केवल चार दिन का अवकाश लेकर ही चले थे। अत: मन को मार कर हम सब वापस लौट पड़े। यह यात्रा सदा स्मरण रहेगी।

30. आँखों देखी प्रदर्शनी

हमारे देश में हर साल अनेक प्रदर्शनियां आयोजित होती हैं। लाखों लोग इनसे मनोरंजन प्राप्त करते हैं। प्रदर्शनियां देख-कर व्यक्ति का ज्ञान भी बढ़ता है। दिल्ली में लगी उद्योग प्रदर्शनी मझे कभी नहीं भल सकती। मेरे मन-मस्तिष्क पर इस की छाप आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। इस अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का विवरण इस प्रकार है –

विगत मास दिल्ली में एक अन्तर्राष्ट्रीय उद्योग प्रदर्शनी आयोजित की गई थी। यह प्रदर्शनी एक विशाल उद्योग मेला ही था। क्योंकि इसमें विश्व के लगभग साठ विकसित और विकासशील देशों ने भाग लिया था। तीन किलोमीटर की परिधि में फैली इस महान् एवं आकर्षक प्रदर्शनी में प्रत्येक देश ने अपने मंडप सजाए थे, जिनमें अपने देश की औद्योगिक झांकी प्रदर्शित की थी। मुख्य द्वार पर प्रदर्शनी में भाग लेने वाले देशों के झंडे फहरा रहे थे। जिधर भी नज़र उठती दूर तक मंडप ही दिखाई देते। इतनी बड़ी प्रदर्शनी को कुछ समय में देखना असम्भव था।

छात्रों को यह प्रदर्शनी दिखाने की विशेष व्यवस्था की गई थी। सब से पहले हमारी टोली भारतीय मंडप में पहुँची। यह मंडप क्या था मानो एक विशाल भारत का लघु रूप था। देश में तैयार होने वाले छोटे-से-छोटे पुर्जे से लेकर युद्ध पोत तक का प्रदर्शन किया गया था। कहीं आधुनिक राडार युक्त तोपें थीं। कहीं नेट-जेट विमान और कहीं टैंक। वहां स्वदेश निर्मित साइकिलों, स्कूटरों, विभिन्न तरह की कारों, बसों का मॉडल देखकर आश्चर्य होने लगा था।

अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, पश्चिमी जर्मनी, जापान आदि विकसित देशों में मंडप देखकर हमारी टोली का प्रत्येक सदस्य चकित रह गया। एक से बढ़िया इलैक्ट्रानिक उपकरण। हर काम मिनटों-सैकिंडों में करने वाली मशीनें मनुष्य की दास बनी प्रतीत हुईं। मिनटों में मैले कपड़े धुल कर प्रैस होकर और तह लगकर आपके सामने लाने वाली धुलाई मशीनें। धड़कते दिल का साफ चित्र लेने वाले श्रेष्ठतम उपकरण चिकित्सा क्षेत्र में एक नई उपलब्धि है।

दिन भर हमारी टोली औद्योगिक प्रदर्शनी का कोना-कोना झांकती रही। इधर से उधर घूमते-घूमते हमारी टांगें जवाब देने लगी थीं, परन्तु दिल नहीं भरे थे। आँखें हर नई चीज़ देखने को तरस रही थीं। शाम तक बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ सुना। ज्ञान के नये चूंट पीने को मिले। इसलिये यह अन्तर्राष्ट्रीय औद्योगिक प्रदर्शनी सदा याद रहेगी।

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31. जनसंख्या की समस्या

बढ़ती हुई जनसंख्या देश के लिए एक भयानक समस्या बन गई है। प्राचीन काल में लोग अधिक संतान की इच्छा करते थे। आज स्थिति बदल गई है। आज बड़े परिवार का पालन-पोषण एक समस्या है। अधिक आबादी किसी भी देश के लिए लाभकारी नहीं। भारत इस समय जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद दूसरे स्थान पर आता है। इस समय भारत की जनसंख्या 121 करोड़ से अधिक है।

बढ़ती हुई जनसंख्या ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। बेकारी की समस्या, महंगाई की समस्या तथा अन्न का संकट इसी की देन है। यही कारण है कि आज जनसंख्या के नियन्त्रण की ज़रूरत समझी जा रही है। छोटा परिवार सुखी परिवार का नारा लगाया जा रहा है।

जिस परिवार के पास आय के साधन कम हों और बच्चों की संख्या अधिक होगी, वहां अनेक प्रकार की कठिनाइयां जन्म लेंगी। न तो बच्चों का ठीक तरह से पालन-पोषण हो पाएगा और न ही उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध हो सकेगा। जीवन स्तर भी ऊँचा उठने की बजाए गिर जाएगा। ऐसे परिवार में निर्धनता अपना अड्डा जमा लेगी। देश और समाज भी तो परिवारों का योग है।

यदि देश के लोगों का स्तर ऊंचा न होगा तो देश का स्तर भी ऊंचा न हो सकेगा। यदि इसी तरह जनसंख्या बढ़ती गई तो एक दिन ऐसा आएगा कि न तो रोगियों के लिए अस्पताल में जगह रहेगी और न ही जीवन की अन्य आवश्यकताएं पूरी हो सकेंगी।

अतः जीवन को सुखी बनाने के लिए जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाना ज़रूरी है। सरकार की ओर से इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। लोगों को परिवार नियोजन का महत्त्व बताएं। सरकार को चाहिए कि वह परिवार नियोजन का पालन करने वालों को प्रोत्साहन दे। यदि हम स्वयं को तथा अपने देश को उन्नति के पथ पर ले जाना चाहते हैं तो बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगानी होगी।

32. देश-भक्ति अथवा स्वदेश-प्रेम

देश-भक्ति का अर्थ है अपने देश से प्यार अथवा अपने देश के प्रति श्रद्धा। जो मनुष्य जिस देश में पैदा होता है, उसका अन्न-जल खा पीकर बड़ा होता है, उसकी मिट्टी में खेल कर हृष्ट-पुष्ट होता है, वहीं पढ़-लिख कर विद्वान् बनता है, वही उसकी जन्म-भूमि है। – प्रत्येक मनुष्य तथा प्राणी अपने देश से प्यार करता है। वह कहीं भी चला जाए, संसार भर की खुशियों तथा महलों के बीच में क्यों न विचरण कर रहा हो उसे अपना देश, अपना स्थान ही प्रिय लगता है।

देश-भक्त सदा ही अपने देश की उन्नति के बारे में सोचता है। हमारा इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब देश पर विपत्ति के बादल मंडराए, जब-जब हमारी आजादी को खतरा रहा, तब-तब हमारे देश-भक्तों ने अपनी भक्ति भावना दिखाई। सच्चे देश-भक्त अपने सिर पर लाठियां खाते हैं, जेलों में जाते हैं, बार-बार अपमानित किए जाते हैं तथा हँसते-हँसते फांसी के फंदे चूम जाते हैं। जंगलों में स्वयं तो भूख से भटकते हैं और साथ ही अपने बच्चों को भी बिलखते देखते हैं।

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महाराणा प्रताप के नाम को कौन भूल सकता है। जो अपने देश की आजादी के लिए.. दर-दर भटकते रहे परन्तु शत्रु के सामने सिर नहीं झुकाया। हमारे देश के न जाने कितने वीरों ने अपना बलिदान दे कर अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति प्राप्त की थी। वे कट मरे लेकिन शत्रु के सामने उन्होंने सिर नहीं झुकाया। आज हम जो भी हैं वे सब उन देशभक्तों के कारण ही हैं। उन्हीं के त्याग के कारण हम सब स्वतन्त्र देश में सुख-चैन भरी सांस ले रहे हैं। हमें उन वीरों से प्रेरणा लेकर नि:स्वार्थ भाव से अपने देश की सेवा करने का वचन लेना चाहिए।

33. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सबसे आगे रहा किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला।

यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फारवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये।

परन्तु नामधारी, एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेजी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा।

इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये। रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ।

रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

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34. मेरी कक्षा का कमरा

मैं सातवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे विद्यालय का नाम राजकीय सीनियर सैकण्डरी विद्यालय है। हमारा विद्यालय चार मंजिला इमारत का है। मेरी कक्षा का कमरा तीसरी मंजिल पर है। इसकी लम्बाई 20 फुट तथा चौड़ाई 15 फुट है। इसमें 20 बैंच हैं। बैंच और डैस्क एक साथ जुड़े हैं। कमरे में दो दरवाजें हैं। एक आगे की तरफ तथा दूसरा पीछे की तरफ। इसमें हवादार खिड़कियाँ भी हैं। कमरे की दीवार पर एक बुलेटिन बोर्ड भी है।

दूसरी तरफ डिस्पले बोर्ड है। इस पर हम हर महीने नई-नई चीजें लगाते रहते हैं। इसमें अध्यापक के लिए एक लैक्चर स्टैण्ड है। एक श्यामपट्ट भी है। हमारी कक्षा की दीवारों पर सुंदर-सुंदर चित्र लगे हुए हैं। पढ़ाई करने का एक उपयुक्त वातावरण हमें यहाँ मिलता है। मेरी कक्षा का कमरा मुझे बहुत अच्छा लगता है। हम इसे कभी गंदा नहीं करते। इसकी स्वच्छता का हम पूरा ध्यान रखते हैं।

PSEB 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Nibandh Lekhan निबंध लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Rachana निबंध लेखन (2nd Language)

श्री गुरु नानक देव जी

सिक्खों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ई० में लाहौर के निकट स्थित ‘राय भोए की तलवंडी (वर्तमान में पाकिस्तान स्थित ननकाना साहब)’ में हुआ। इनकी माता का नाम तृप्ता देवी जी तथा पिता का नाम मेहता कालू राय था। बचपन से आप आत्म-चिंतन में लीन रहा करते थे और आपका अधिकतर समय साधु संतों की सेवा में बीतता था। गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी मूलचन्द की सुपुत्री सुलक्खणी जी के साथ हुआ जिनसे इन्हें दो पुत्र-श्रीचन्द और लखमी दास प्राप्त हुए।

जब गुरु नानक देव जी 20 वर्ष के हुए तब वह ज़िला कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी नामक स्थान में अपनी बहन नानकी के पास आ गए। वहाँ इनके बहनोई ने इन्हें वहाँ के गवर्नर दौलत खाँ के यहाँ मोदीखाने में नौकरी दिलवा दी। यहीं गुरु नानक देव जी के तोलने में तेरह-तेरह की जगह ‘तेरा-तेरा’ रटने की कथा भी विख्यात है। यहीं उनके बेईं में प्रवेश करने और तीन दिन तक अदृश्य रहने की घटना घटी। वास्तव में उन दिनों गुरु जी ‘सच्चखण्ड’ में पहुँच गए थे। यहीं गुरु जी ने ‘न को हिन्दू न को मुसलमान’ की घोषणा की।

सन् 1500 से 1521 तक गुरु जी ने देश-विदेश की चार.यात्राएँ की जो गुरु जी की चार उदासियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन यात्राओं में गुरु जी ने हिन्दुओं और मुसलमानों के तीर्थ रथानों की यात्रा भी की और वहाँ के पंडितों और मुल्लाओं के आडंबर का खंडन करते हुए उन्हें रागात्मक भक्ति का उपदेश दिया।

जीवन के अन्तिम भाग सन् 1521 से 1539 गुरु जी करतारपुर (पाकिस्तान) में रहे। वहाँ उन्होंने अनेक गोष्ठियों का आयोजन किया। इनमें सिद्ध गोष्ठी विशेष उल्लेखनीय है। सन् 1539 ई० में गुरु गद्दी भाई लहना जी, जो बाद में गुरु अंगद देव जी कहलाए, को सौंप कर ईश्वरीय ज्योति में विलीन हो गए।

गुरु तेग़ बहादुर जी

गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए जो बलिदान दिया, उसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या धर्म की चादर कहा जाता है। गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल सन् 1621 ई० (5 वैसाख सं० 1678) को अमृतसर में छठे गुरु हरगोबिन्द जी के घर हुआ।

आतार में यह पवित्र स्थान ‘गुरु के महल’ के नाम से जाना जाता है। आपका बचपन का नाम त्यागमल था। सन् 1635 ई० में 14 वर्षीय त्यागमल ने सिक्खों और मुग़ल सेना के बीच करतारपुर में हुए युद्ध में तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि प्रसन्न होकर उनका नाम तलवार के धनी अर्थात् तेग़ बहादुर रख दिया।

गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता सैनिक गतिविधियों का संचालन करने के लिए कीरतपुर आ गए परन्तु गुरु तेग बहादुर जी अपने ननिहाल बाबा बकाला में ही रहे और प्रभचिंतन में अपना समय बिताने लगे। सन् 1645 में इनके पिता ने अपने पौत्र हरराय को गुरु गद्दी

निबन्ध-लेखन सौंप दी किन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी ने कोई आपत्ति नहीं की। बाबा बकाला में आप कोई बीस वर्ष तक रहे। 30 मार्च, सन् 1664 में गुरु हरकृष्ण जी के ज्योति जोत समाने के बाद उन्हीं के आदेशानुसार गुरु तेग़ बहादुर जी अगस्त, 1664 ई० में गुरु गद्दी पर आसीन हुए। गुरु गद्दी मिलने के बाद आप 1664 में हरमन्दिर साहब दर्शनों के लिए गए किन्तु मसन्दों ने उन्हें दर्शन नहीं करने दिये और गुरु घर को ताले लगा दिये। इस पर बिना रुष्ट हुए आप निकट के गाँव वल्ला में चले गए। ग्रंथियों की क्षमा याचना के बाद भी गुरु जी हरमन्दिर साहब नहीं गए और वापस बाबा बकाला लौट आए।

गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म प्रचार के लिए किसी सुरक्षित स्थान के लिए बिलासपुर के राजा से माखोवाल गाँव से कुछ ज़मीन खरीदी। वहाँ अपनी माता के नाम पर चक्क नानकी’ नामक नगर बसाया, जो बाद में आनन्दपुर साहब के नाम से विख्यात हुआ। इसी दौरान औरंगज़ेब के हिन्दुओं पर आत्याचार बढ़ रहे थे। उन्हीं अत्याचारों से बचने के लिए गुरु जी के पास कुछ कश्मीरी पण्डित आए और गुरु जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की।

गुरु जी ने कहा कि ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ तभी पास बैठे उनके नौ वर्षीय पुत्र गोबिन्द राय बोल पड़े, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान के योग्य महापुरुष और कौन हो सकता है ?’ गुरु जी अपने पुत्र की बात को समझ गए और धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली पहुंच गए। उन्हें बन्दी बना लिया गया और इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। गुरु जी अपने धर्म पर अडिग रहे। 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० को गुरु जी ने चाँदनी चौक में शहीदी प्राप्त की। वहीं आजकल गुरुद्वारा शीशगंज स्थित है।

गुरु गोबिन्द सिंह जी

महान योद्धा, कुशल प्रशासक, प्रबुद्ध धर्म गुरु और योग्य राष्ट्र नायक गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर, सन् 1666 ई० को पटना (बिहार) में सिक्खों के नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी के घर हुआ। छ: वर्ष की अवस्था तक गुरु जी पटना में ही रहे फिर आप पिता द्वारा बसाए नगर आनन्दपुर साहब में आ गए।

आनन्दपुर में ही एक दिन कुछ कश्मीरी पण्डितों ने आकर गुरु तेग़ बहादुर जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की। गुरु जी ने कहा, ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ पास बैठे नौ वर्षीय बालक गोबिन्दराय ने कहा, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान योग्य महापुरुष कौन हो सकता है।’ पुत्र की बात समझ कर गुरु जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक में 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० में शहीदी प्राप्त की।

नवम् गुरु की शहीदी के बाद नौ वर्ष की अवस्था में गोबिन्द राय जी गुरु गद्दी पर बैठे। गद्दी पर बैठते ही गुरु जी ने अपनी शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी जिससे अनेक राजाओं और मुगल सरदारों को ईर्ष्या होने लगी। इसी ईर्ष्या के फलस्वरूप गुरु जी को पांवटा से छ: मील दूर भंगाणी नामक स्थान पर कहलूर के राजा भीम चन्द के साथ युद्ध लड़ना पड़ा। उस युद्ध में गुरु जी को पहली जीत प्राप्त हुई। इसके बाद गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं की ओर से लड़ते हुए नादौन में आलिफ खाँ को पराजित किया। इस युद्ध से पहाड़ी राजाओं को गुरु जी की शक्ति का पता चल गया।

सन् 1699 की वैशाखी को गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने आनन्दपुर साहिब में पाँच प्यारों को अमृत छकाया और उनसे स्वयं अमृत छका। इस अवसर पर गुरु जी ने अपना नाम गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह कर लिया और अपने सब शिष्यों को अपने नाम के साथ सिंह लगाने का आदेश दिया।

गुरु जी की शक्ति को बढ़ता देख औरंगजेब ने उसे समाप्त करने का निश्चय कर लिया। अप्रैल 1704 को मुगल सेना ने आनन्दपुर साहब को घेर लिया। यह घेरा दिसम्बर 1704 तक जारी रहा। मुग़ल सेना ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आनन्दपुर साहब को छोड़ने पर उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाई जाएगी। किन्तु सरसा नदी को पार करते समय मुग़ल सेना ने विश्वासघात करते हुए गुरु जी की सेना पर आक्रमण कर दिया। अफरातफरी में गुरु जी की माता और दोनों छोटे साहिबजादे उनसे बिछुड़ गए। गुरु जी किसी तरह चमकौर की गढ़ी पहुँचे। चमकौर के युद्ध में सिक्खों ने मुग़ल सेना का डटकर मुकाबला किया। इस युद्ध में गुरु जी के दोनों बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह शहीद हो गए। उधर गुरु जी के दोनों छोटे साहिबजादों जोरावार सिंह और फतेह सिंह को सरहिन्द के नवाब ने जीवित दीवार में चुनवाकर शहीद कर दिया। अपने चारों साहिबजादों की कुर्बानी से गुरु जी विचलित नहीं हुए।

अपने अन्तिम दिनों में गुरु जी नांदेड़ (महाराष्ट्र) में रहने लगे। वहीं एक दिन गुल खाँ नामक पठान ने उन्हें छुरा घोंप दिया। गुरु जी का घाव कई दिनों बाद भरा। अभी वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए थे कि एक कठोर धनुष पर चिल्ला चढ़ाते हुए उनका घाव खुल गया और 7 अक्तूबर, सन् 1708 को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

महात्मा गाँधी

देश के महान् नेता महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहन दास कर्मचन्द गाँधी था। इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता पोरबन्दर, राजकोट और बीकानेर राज्यों के दीवान पद पर रहे। इनकी माता पुतलीबाई बड़ी धर्मनिष्ठ स्वभाव वाली स्त्री थी। उन्हीं की शिक्षा का बाल मोहनदास पर यथेष्ठ प्रभाव पड़ा। सन् 1887 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। सन् 1888 में आप इंग्लैण्ड में बैरिस्ट्री पढ़ने के लिए चले गए। इंग्लैण्ड से वापस आकर आप ने पोरबन्दर में वकालत शुरू कर दी। कुछ समय पश्चात् इन्हें एक मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिणी अफ्रीका जाना पड़ा। वहां आप ने भारतीयों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से आहत होकर आपने एक आन्दोलन चलाया जिसके कारण वहाँ भारतीयों के सम्मान की रक्षा होने लगी।

भारत लौटकर गाँधी जी ने देश की राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1914 के प्रथम महा युद्ध में आपने अंग्रेज़ों की इस शर्त पर सहायता की कि युद्ध जीतने की सूरत में अंग्रेज़ भारत को आजाद कर देंगे किन्तु अंग्रेजों ने विश्वासघात करते हुए रोल्ट एक्ट और जलियांवाला बाग के नरसंहार की घटना पुरस्कार रूप में दी।

सन् 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया जिसमें हिंसा आ जाने पर सन् 1922 में इन्होंने यह आन्दोलन वापस ले लिया। सन् 1930 में गाँधी जी ने नमक आन्दोलन शुरू किया। सन् 1942 में गाँधी जी ने देश को भारत छोड़ो का नारा दिया। इसी दौरान देश की जनता सरदार भगत सिंह और चन्द्र शेखर जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान से जागरूक हो चुकी थी। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज के बढ़ते आक्रमण से डरकर अंग्रेज़ों ने 15 अगस्त, सन् 1947 को भारत को एक स्वाधीन देश घोषित कर दिया किन्तु जाते-जाते अंग्रेज़ देश का बंटवारा कर गए जिसके परिणामस्वरूप देश में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठे। दंगों को शान्त करने के लिए गाँधी जी ने मरण व्रत रखा।

30 जनवरी, सन् 1948 की शाम 6 बजे नात्थूराम गोडसे नामक युवक ने गाँधी जी की हत्या कर दी। इस तरह देश से एक युग पुरुष उठ गया।

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जी का जन्म 28 जनवरी, सन् 1865 ई० में ज़िला फिरोजपुर के एक गाँव दुडिके में हुआ। सन् 1880 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद आपने मुख्तारी की परीक्षा पास की और हिसार में वकालत शुरू कर दी। सन् 1892 में आप लाहौर चले गए। वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक बिना वेतन लिए डी० ए० वी० कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। आपने अपने गाँव दुडिके में अपने पिता के नाम पर राधा कृष्ण हाई स्कूल खोला।

लाला जी का राजनीति में प्रवेश संयोग से हुआ। उस समय सर सैय्यद अहमद खां मुसलमानों को भड़काने वाले और राष्ट्र विरोधी लेख लिख रहे थे। लाला जी पहले व्यक्ति थे जिसने इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई। इसी के परिणामस्वरूप सन् 1888 में कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में लाला जी का जोरदार स्वागत हुआ। सन् 1893 के कांग्रेस अधिवेशन में भी लाला जी ने ओजपूर्ण भाषण दिए और कांग्रेस को अपनी कार्रवाई अंग्रेज़ी में न कर हिन्दुस्तानी में करने पर विवश कर दिया।

लाला जी सन् 1902, सन् 1908 और सन् 1913 में इंग्लैंड गए और वहाँ के लोगों को अपने भाषणों और लेखों द्वारा भारत की वास्तविक स्थिति से अवगत करवाया। सन् 1914 में प्रथम महायुद्ध छिड़ने पर लाला जी अमेरिका चले गए। वहाँ उन्होंने ‘इंडियन होम लीग’ की स्थापना की और ‘यंग इंडिया’ नामक साप्ताहिक पत्र भी निकाला।

देश में वापस आने पर सन् 1921 में लाला जी को कांग्रेस के विशेष अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने पर इन्हें जेल भी जाना पड़ा।

30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। सरदार भगत सिंह की नौजवान भारत सभा ने इसका विरोध किया। इस विरोध प्रदर्शन की अगुवाई लाला जी ही कर रहे थे। जुलूस पर लाठीचार्ज किया गया। लाहौर के डी० एस० पी० सांडर्स ने लाला जी पर ताबड़तोड़ लाठियाँ बरसाईं। जिसके परिणामस्वरूप 17 नवम्बर, सन् 1928 की सुबह लाला जी का देहान्त हो गया। बाद में सरदार भगत सिंह ने सांडर्स की हत्या कर लाला जी की मौत का बदला लिया।

शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह

देश की स्वतन्त्रता के लिए शहीद होने वालों में सरदार भगत सिंह का नाम प्रमुख है। सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 को ज़िला लायलपुर (पाकिस्तान) के गाँव बंगा में हुआ। आपका पैतृक गाँव नवांशहर के निकट खटकड़ कलां है। आपकी आरम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। फिर आपने लाहौर के डी०ए०वी० स्कूल से मैट्रिक पास की। कॉलेज में दाखिला लेते ही आप क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ गए, जिसके परिणामस्वरूप आपने पढ़ाई छोड़ दी। देश भक्ति और क्रान्ति के संस्कार भगत सिंह को विरासत में मिले थे। आपके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह इन्कलाबी गतिविधियों में भाग लेते रहे थे।

सरदार भगत सिंह महात्मा गाँधी की अहिंसावादी नीति को पसन्द नहीं करते थे। क्योंकि उनका विचार था अहिंसात्मक आन्दोलन से देश को आजादी नहीं मिल सकती। इसी उद्देश्य से उन्होंने सन् 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया। उनके जोश और उत्साह को देखकर महात्मा गाँधी को भी मानना पड़ा कि जिस वीरता और साहस का ये नौजवान प्रदर्शन कर रहे थे उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। सरदार भगत सिंह और क्रान्तिकारी साथियों का समर्थन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पं० जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने भी किया।

9 सितम्बर, सन् 1928 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में क्रान्तिकारी युवकों की एक बैठक हुई, जिसमें हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र सेना का गठन किया गया। सरदार भगत सिंह इसके सचिव और चन्द्र शेखर आजाद को कमांडर बनाया गया।

30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। नौजवान भारत सभा ने उसके विरोध में प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में जुलूस की अगुवाई कर रहे लाला लाजपत राय घायल हो गए। 17 नवंबर, सन् 1928 को उनका निधन हो गया। सरदार भगत सिंह ने लाला जी पर लाठियाँ बरसाने वाले डी० एस० पी० सांडर्स की हत्या कर अपने प्रिय नेता की हत्या का बदला ले लिया। गिरफ्तारी से बचने के लिए आप भेस बदलकर रातों-रात लाहौर से निकलकर बंगाल चले गए।

ब्रिटिश सरकार की शोषण नीतियों के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, सन् 1929 को केन्द्रीय विधानसभा में एक धमाके वाला खाली बम फेंका। वे वहाँ से भागे नहीं बल्कि इन्कबाल जिंदाबाद के नारे लगाते रहे। सरदार भगत सिंह जानते थे कि अंग्रेजी सरकार इस जुर्म में उन्हें फाँसी की सज़ा देगी। वे अपनी कुर्बानी से देश में जागृति लाना चाहते थे।

17 अक्तूबर, सन् 1930 को सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सज़ा सुना दी गई। सज़ा सुनाए जाने के अवसर पर सरदार भगत सिंह और उनके साथियों ने ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’ के खूब नारे लगाए। उनकी फांसी की सज़ा के बारे में सुनकर जनता में खूब रोष फैल गया। अंग्रेज़ी सरकार ने जनता के रोष से डरकर 23 मार्च, सन् 1931 को ही लाहौर जेल में फाँसी दे दी और उनके शव सतलुज किनारे हुसैनीवाला नामक स्थान पर जला दिए।

सरदार भगत सिंह ने शहीदी पाकर भारतीय जनता में एक नया जोश भर दिया। आखिर 15 अगस्त, सन् 1947 को हमारा देश आजाद हुआ। भारतवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे।

स्वामी विवेकानन्द

कलकत्ता हाईकोर्ट में सफल वकील श्री विश्वनाथ दत्त के घर 12 जनवरी, सन् 1863 को स्वामी विवेकानन्द का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम नरेन्द्र दत्त था। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी इन्हें स्नेह से केवल रामायण व महाभारत की कहानियाँ सुनाकर साहसी, बहादुर और निडर बनाने की प्रेरणा देती थी। नरेन्द्र उन्हें अपना प्रथम गुरु मानते थे। उन्हीं से नरेन्द्र ने अंग्रेजी और बंगला भाषाएँ सीखीं। परिणामतः नरेन्द्र में प्रारम्भ से ही देश-प्रेम, त्याग, तपस्या और ध्यान के संस्कार फलने फूलने लगे। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् इनके पिता इनका विवाह कर देना चाहते थे किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। नरेन्द्र परमहंस राम कृष्ण के सम्पर्क में आए और उनकी असाधारण आध्यात्मिक व धार्मिक उपलब्धियों से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए और सन् 1883 में उन्होंने संन्यास ले लिया और नरेन्द्र दत्त से स्वामी विवेकानन्द हो गए। 16 अगस्त, सन् 1886 परमहंस राम कृष्ण का देहान्त हो जाने पर उन्होंने अपने साथी संन्यासियों और भक्तजनों ने मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस संस्थान ने देश और विदेश में अनेक प्रशंसनीय और अभूतपूर्ण कार्य किये हैं।

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में कलकत्ता में प्लेग का भयंकर रोग फैल गया। स्वामी जी ने अनेक रोगियों को मौत के मुँह से बचाया। उनकी सेवा की और बंगाल से प्लायन करने से रोका। सेवा कार्य में धन की कमी आने पर उन्होंने अपना बैलूर मठ बेचने का निर्णय किया। यह सुनकर बहुत से धनवान् लोगों ने उन्हें धन दिया जिससे सेवा कार्य बिना किसी बाधा के चलता रहा।

11 सितम्बर, सन् 1893 को अमरीका के शिकागो शहर में स्वामी जी ने विश्व धर्म सम्मेलन की धर्म संसद् में जो ओजस्वी, ज्ञानपूर्ण और मौलिक भाषण दिया उससे प्रभावित होकर लाखों अमरीकन उनके भक्त और शिष्य बन गए। उनके प्रवचनों से अमरीका में धूम मच गई। स्वामी जी लगभग ढाई वर्षों तक अमरीका में रहे और वहाँ भारतीय संस्कृति, अध्यात्म व वेदान्त का प्रचार-प्रसार करते रहे।

भारत लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। सारे देश ने उन्हें सिर आँखों पर बैठाया। किन्तु 4 जुलाई, सन् 1902 को इस धर्म वीर, कर्म सूर्य और ज्ञान समुद्र का मात्र 39 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया।

स्वामी जी का यह सन्देश हमें सदा प्रेरणा देता रहेगा। “जिस समय तुम भयभीत होते हो, उसी समय तुम दुर्बल होते हो। भय ही जगत में सब अनर्थ का मूल है। सबसे पहले हमारे नवयुवक बलवान होने चाहिए, धर्म बाद में आवेगा मेरे तरुण मित्रो निडर और बलवान बनो।”

सतगुरु राम सिंह जी

नामधारी सिक्ख समुदाय के संस्थापक सतगुरु राम सिंह जी का जन्म 3 फरवरी, सन् 1816 ई० में जिला लुधियाना के एक गाँव राइयाँ में बाबा जस्सा सिंह जी के घर हुआ। छ: वर्ष की छोटी सी आयु में आपका विवाह कर दिया गया। युवावस्था में आप महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र नौनिहाल सिंह की फौज में भर्ती हो गए। कुछ समय बाद नौकरी छोड़कर श्री भैणी साहब में आकर प्रभु सिमरन और समाज सेवा में लग गए। साथ ही देश को आजाद करवाने के लिए यत्न करने लगे।

12 अप्रैल, सन् 1857 ई० को वैशाखी के पावन दिन आपने पाँच शिष्यों को अमृतपान कराकर नामधारी सिक्ख समुदाय की नींव रखी। गुरु जी ने लोगों में आत्म सम्मान जगाने, भक्ति और वीरता पैदा करने तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रचार शुरू किया। गुरु जी ने देश में कई जगह प्रचार केन्द्र स्थापित किए और प्रत्येक केन्द्र को सूबे की संज्ञा दी। गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर हज़ारों लोग नामधारी बन गए। अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कूकें (हुंकार) मारने के कारण इतिहास में नामधारी सिक्ख कूका नाम से प्रसिद्ध हो गए।

कूका समुदाय के प्रमुख धार्मिक सिद्धान्त-नामधारी ईश्वर को एक मानते हैं। गुरवाणी का पाठ, पाँच ककारों का धारण करना, सफेद रंग के कपड़े पहनना, सफेद रंग की ऊन के 108 मनकों की माला धारण करना इनके मुख्य धार्मिक सिद्धान्त हैं।

सामाजिक बुराइयों का विरोध-सत् गुरु राम सिंह जी ने अनेक सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हुए जन साधारण को जागरूक किया। इनमें बाल विवाह, कन्या वध, गौवध, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा, माँस एवं नशीले पदार्थों के सेवन का विरोध प्रमुख थीं। गुरु जी ने दहेज प्रथा का विरोध करते हुए मात्र सवा रुपए में सामूहिक अंतर्जातीय विवाह की प्रथा आरम्भ की।

स्वतन्त्रता संग्राम में नामधारी समुदाय का योगदान-नामधारी समुदाय ने राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भाग लिया। सतगुरु राम सिंह जी ने भारत को आजाद कराने के उद्देश्य से असहयोग व स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ किया। इसी आन्दोलन का महात्मा गाँधी ने सन् 1920 में प्रयोग किया। गुरु जी ने अपनी अलग डाक व्यवस्था के प्रबन्ध कर लिए। उन्होंने अंग्रेज़ी अदालतों और स्कूलों का बहिष्कार कर न्याय और शिक्षा के अपने प्रबन्ध किये। अंग्रेज़ों को लगने लगा कि गुरु जी ने एक समानान्तर सरकार बना ली है। नामधारी सिक्खों ने अंग्रेजों द्वारा स्थापित गौवध के लिए बनाये जाने वाले बूचड़खानों का डटकर विरोध किया। उन्होंने ऐसे बूचड़खानों पर हमला करके अंग्रेजों को बता दिया कि भारतीय अपने धर्म में किसी का हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकते।

अंग्रेज़ों से विरोध करने के कारण सन् 1871 में रायकोट, अमृतसर और लुधियाना में 9 नामधारी सिक्खों को फाँसी दी और सन् 1872 में मालेरकोटला के खुले मैदान में 65 नामधारियों को खड़े करके तोपों से उड़ाकर शहीद कर दिया। नामधारियों के आन्दोलन को सरकार विरुद्ध घोषित करके गुरु जी को गिरफ्तार करने रंगून (तत्कालीन बर्मा) भेज दिया गया जहाँ सन् 1885 में गुरु जी ने इस नश्वर शरीर को त्यागा।

सत् गुरु राम सिंह जी द्वारा चलाया नामधारी समुदाय आज भी भैणी साहब से सादा, पवित्र और आडम्बर रहित जीवन का प्रचार कर रहा है। आजकल गुरु गद्दी पर सत् गुरु जगजीत सिंह जी महाराज विराजमान हैं।

बाबा साहब अम्बेदकर

बाबा साहब अम्बेदकर का जन्म 14 अप्रैल, सन् 1891 को मध्य प्रदेश में इन्दौर के निकट मऊ-छावनी नामक स्थान पर हुआ। आपके पिता श्री राम जी राव ने आपका नाम भीम राव रखा। आपने सोलह वर्ष की अवस्था में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। स्कूल में ही एक अध्यापक ने इनके नाम के साथ अम्बेदकर शब्द जोड़ दिया।

स्कूली जीवन में अम्बेदकर जी को कई कठिनाइयाँ सहनी पड़ीं, किन्तु अम्बेदकर जी ने हिम्मत नहीं हारी और सन् 1912 में बी० ए० की डिग्री प्राप्त कर ली। सन् 1913 में बड़ौदा नरेश से छात्रवृत्ति पाकर आप विदेश चले गए। वहाँ आप सन् 1917 तक रहे और कोलम्बिया विश्वविद्यालय से आपने एम० ए०, पी० एच-डी० एवं एल० एल० बी० की डिग्रियाँ प्राप्त की। स्वदेश लौटकर बड़ौदा राज्य के सैनिक सचिव नियुक्त हुए। कुछ समय पश्चात् आपने आजीविका चलाने के लिए वकालत का पेशा अपना कर निम्न वर्ग को छुआछूत से छुटकारा दिलाने के लिए काम शुरू कर दिया। लोगों में जागृति लाने के लिए आपने ‘बहिष्कृत हितकारिणी’ और ‘बहिष्कृत भारत’ नामक समाचार-पत्र निकाले। सन् 1927 में आप मुम्बई विधानसभा के सदस्य मनोनीत हुए।

इसी बीच महात्मा गाँधी जैसे राष्ट्रीय नेताओं के साथ मिलकर निम्न वर्ग के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये, अनेक आन्दोलन चलाये। इनमें 20 मार्च, सन् 1927 में चलाया चोबदार-तालाब सत्याग्रह उल्लेखनीय है।

सन् 1947 में देश की पहली राष्ट्रीय सरकार में आप कानून मन्त्री बने । आपको संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। आपके ही प्रयत्नों से भारतीय संविधान को धर्म-निरपेक्ष बनाया। जिसमें प्रत्येक नागरिक को चाहे वह किसी भी जाति, वर्ण का हो, समान अधिकार दिए गए। आप ही के यत्नों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान मिला।

किन्हीं अज्ञात कारणों से बाबा साहब अम्बेदकर जी ने नागपुर में बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली।

6 दिसम्बर, सन् 1956 को यह महान विभूति इस दुनिया से चाहे सदा के लिए उठ गयी लेकिन उनके कार्यों और ख्याति को कभी कोई नहीं भुला पाएगा।

मेरी क्यूरी

मेरी क्यूरी का नाम उसकी सेवाओं के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। वह पहली महिला थी जिसे नोबेल पुरस्कार (इनाम) दिया गया था। मेरी क्यूरी का जीवन हमारे सामने एक महान् आदर्श पेश करता है।

आपका जन्म 7 नवम्बर, सन् 1867 को हुआ। बचपन का नाम ‘मार्यास्कोटोस्को’ था। उसकी चार बहनें और एक भाई था। पिता स्कूल में अध्यापक होने के साथ-साथ देश-भक्त भी थे। देश को रूसी अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए उसे नौकरी छोड़नी पड़ी। उन्होंने अपने बच्चों में भी देश-भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी।

बचपन में मार्या की बुद्धि अनोखी थी। उसे विज्ञान (साईंस) में रुचि थी। वह हाई स्कूल की परीक्षा में प्रथम आई। उसे स्वर्ण पदक (सोने का मैडल) मिला। मार्या को नृत्य (नाच)
और संगीत का भी शौक था।

23 वर्ष की आयु में मार्या पढ़ने के लिए बहन ब्रोन्या के पास चली गई। उसने विश्वविद्यालय में अपना नाम ‘मेरी’ लिखवाया। वह विज्ञान विभाग की छात्रा थी। वह एम० एससी० में प्रथम आई। उसके बाद वह पैरिस लौट आई।

सन् 1895 में एक युवक “पियरी क्यूरी” से उसका विवाह सम्पन्न हो गया। वह पेरिस के रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान संस्थान में प्रयोगशाला का अध्यक्ष था। दोनों की विज्ञान में रुचि थी। दोनों इकट्ठे मिल कर अनुसंधान (प्रयोग) करने लगे।

क्यूरी पति-पत्नी हेनरी बेकरेल के प्रयोगों में रुचि लेने लगे। हेनरी बेकरेल पहला वैज्ञानिक था जिसने यह खोज की थी कि यूरेनियम के लवणों में अजीब गुण हैं। उससे विकरित होने वाली किरणें अपारदर्शी पदार्थों को भी बींध सकती हैं। क्यूरी दम्पति ने यह खोज की कि केवल यूरेनियम ही नहीं, बल्कि कई दूसरे तत्वों के परमाणुओं में भी उपरोक्त किरणें विकरित करने (फैलाने) की क्षमता होती है। कुछ समय बाद उन्होंने किरणें विकरित करने वाले एक और अज्ञात तत्व की खोज की। उन्होंने उसका नाम ‘रेडियम’ रखा। इस खोज पर उन्हें सन् 1903 में नोबेल पुरस्कार मिला।

बदकिस्मती से पियरी क्यूरी की दुर्घटना ( हादसे) में मृत्यु हो गई। उसके पति की जगह उसे प्रोफेसर बना दिया गया। उसने पति के काम को आगे बढ़ाया। उसे दूसरा नोबेल पुरस्कार सन् 1911 में मिला।

सन् 1914 में विश्व युद्ध छिड़ा। मेरी क्यूरी ने घायल सैनिकों के लिए कई चिकित्सक दल संगठित किए। एक-दूसरे के माध्यम से डॉक्टरों की सहायता की। घायलों का इलाज किया। सन् 1918 में युद्ध समाप्त हुआ। युद्ध के पश्चात् फिर मेरी क्यूरी पर उपाधियों और पार्टियों की वर्षा हुई।

मेरी क्यूरी का एक ही सन्देश था कि मानव जाति की सेवा में अपने आपको न्योछावर कर दो। उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया कि महिलाएँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं। सन् 1934 में मेरी क्यूरी स्वर्ग सिधार गईं।

महाराजा रणजीत सिंह

शेरे पंजाब कहे जाने वाले महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, सन् 1780 ई० को गुजरांवाला (पाकिस्तान) में हुआ। आपके पिता का नाम महासिंह था जो सुकरचकिया मिसल के सरदार थे। आपकी माता राजकौर जींद की फुलकिया मिसल के सरदार की बेटी थी। आपका बचपन का नाम बुध सिंह था, किन्तु आपके पिता ने अपनी जम्मू विजय को याद रखने के लिए आपका नाम रणजीत सिंह रख दिया।

महाराजा रणजीत सिंह ने उस समय छोटे-छोटे राज्यों को और मिसलों को एक किया। मुसलमानों और पठानों को हरा कर समय की माँग को देखते हुए रोपड़ (रूपनगर) के स्थान पर अंग्रेजों के साथ समझौता कर एक सुदृढ़ सिक्ख राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह एक महान् योद्धा और कुशल प्रशासक थे। दस वर्ष की आयु में आपने पहली जीत प्राप्त की। विजयी रणजीत सिंह जब लौटे तो उनके पिता की मृत्यु हो चुकी थी, किन्तु उन्होंने अपनी योग्यता और वीरता से अपने अधिकार को स्थिर रखा।

महाराजा रणजीत सिंह ने पन्द्रह वर्ष की आयु में महताब कौर से विवाह किया। किन्तु यह विवाह सफल न हो सका। तब उन्होंने सन् 1798 ई० में दूसरा विवाह किया जो सफल रहा।

सत्रह वर्ष की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते आपने सारी मिसलों का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। उन्नीस वर्ष की अवस्था में लाहौर पर अधिकार करके उसे अपनी राजधानी बनाया। धीरे-धीरे आपने जम्मू-कश्मीर, अमृतसर, मुल्तान, पेशावर आदि क्षेत्रों को अपने अधीन कर एक विशाल पंजाब राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह की उदारता और छोटे बच्चों से प्रेम की अनेक घटनाएँ प्रचलित हैं। आप एक कुशल प्रशासक और न्यायप्रिय शासक थे। सभी जातियों के लोग आपकी सेना में थे। महाराजा जहाँ वीरों, विद्वानों का आदर कर उन्हें इनाम देते थे, वहाँ अत्याचारी जागीरदारों को दण्ड भी देते थे। वे बिना किसी भेदभाव से सभी उत्सवों और पर्यों में भाग लेते थे। यही कारण है कि जब सन् 1839 में आपकी मृत्य हुई तो सभी धर्मों के लोगों ने आप की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की।

अमर शहीद मेजर भूपेन्द्र सिंह

मेजर भूपेन्द्र सिंह का नाम उन शहीदों में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा जिन्होंने देशहित में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। सन् 1965 के पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में मेजर भूपेन्द्र सिंह ने जो अद्भुत शौर्य दिखाया उसके लिए भारतीय सदा उनके ऋणी रहेंगे।

मेजर भूपेन्द्र सिंह लुधियाना जिले के रहने वाले थे। देश सेवा और देश भक्ति की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। उन्होंने पाकिस्तान के साथ स्यालकोट फ्रंट की लड़ाई में अपने उच्च अधिकारी से टैंकों के संचालन की आज्ञा माँगी। आज्ञा पाकर अगले ही दिन मेजर भूपेन्द्र ने तुरन्त शत्रु पर आक्रमण करने का निश्चय किया। मेजर सिंह के टैंकों ने इतनी भयंकर गोलाबारी की कि शत्रु पक्ष के अनेक टैंक ध्वस्त हो गए। मेजर सिंह के नेतृत्व वाले टैंक दल ने शत्रु के 21 टैंक नष्ट कर दिए, इनमें सात तो अकेले मेजर सिंह ने नष्ट किये थे। कुछ टैंकों को मेजर सिंह ने सही हालत में अपने अधिकार में ले लिया। पाकिस्तानी टैंकों की सहायता उनके विमान भी करने लगे। वे हड़बड़ी में बम फेंक रहे थे। दुर्भाग्य से जिस टैंक में मेजर सिंह बैठे थे उस पर पाकिस्तानी विमान द्वारा फेंकी गई एक मिजाइल आ लगी। उनका टैंक जलने लगा। मेजर सिंह साहस से काम लेते हुए टैंक से बाहर कूद पड़े। अभी वे अपने लिए सुरक्षित स्थान ढूँढ़ ही रहे थे कि उनके साथियों की जलते हुए टैंकों से बचाओ-बचाओ की आवाजें सुनाई दी। मेजर सिंह ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने तीन साथियों को जलते हुए टैंकों से बाहर निकाला। उनके कपड़ों को आग लग चुकी थी जिससे उनका सारा शरीर झुलस चुका था। अपने साथियों की जान बचाने के बाद वे स्वयं बेहोश होकर गिर पड़े। उन्हें तुरन्त सेना अस्पताल पठानकोट पहुँचाया गया। वहाँ से उन्हें दिल्ली लाया गया। उनकी वीरता और साहस की कहानी सुन कर प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री स्वयं अस्पताल आए। उनके आने पर मेजर सिंह ने कहा-‘काश मेरे हाथ इस योग्य होते कि मैं उन्हें सैल्यूट कर सकता’-इस वीर की यह हालत देख शास्त्री जी की भी आँखें भर आईं। मेजर सिंह कुछ दिन मौत से लड़ते रहे फिर एक दिन भारत माँ का यह शूरवीर हम से सदा के लिए विदा हो गया।

भारत सरकार ने इस वीर सपूत को महावीर चक्र (मरणोपरान्त) देकर सम्मानित किया। मेजर भूपेन्द्र सिंह की शहादत युवा पीढ़ी को सदा प्रेरित करती रहेगी।

पंजाब के ग्रामीण मेले और त्योहार

देवी-देवताओं, गुरुओं, पीर-पैगम्बरों, ऋषि-मुनियों एवं महात्माओं की पंजाब की धरती अपने कर्मठ किसानों और वीर सपूतों के कारण देश भर के सभी प्रान्तों में शिरोमणि है। पंजाब को मेले और त्योहारों के लिए भी जाना जाता है। साल के शुरू में ही लोहड़ी का त्योहार और माघी का मेला आता है। लोहड़ी पौष मास के अंतिम दिन मनाया जाता है। कड़ाके की सर्दी की परवाह न करते हुए युवक-युवतियों की टोलियाँ-दे माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी या सुंदर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-के गीत गाते हुए उन घरों से विशेषकर लोहड़ी माँगते हैं जिनके घरों में पुत्र का विवाह हुआ हो या पुत्र उत्पन्न हुआ हो। लोहड़ी से अगले दिन मुक्तसर में चालीस मुक्तों की याद में माघी का मेला मनाया जाता है। वैसे माघ महीने की संक्रान्ति को सभी पवित्र सरोवरों और नदियों में स्नान कर लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।

माघी के बाद बसंत पंचमी का त्योहार आता है, जो सारे पंजाब में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं और घरों में पीले चावल या पीला हलवा बनाते हैं और पीले वस्त्र पहनते हैं। प्रकृति भी उस दिन पीली चुनरी (सरसों के फूल खेतों के रूप में) ओढ़ लेती है। पुरानी पटियाला और कपूरथला रियासतों में यह दिन बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता था। इसी दिन बटाला में वीर हकीकत राय की समाधि पर एक बड़ा भारी मेला लगता है।

बसन्त पंचमी के बाद बैसाखी का त्योहार आता है। इस दिन किसान अपनी गेहूँ की फसल को तैयार देखकर झूम उठता है और गा उठता है-‘जट्टा ओ आई बिसाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। गाँव-गाँव शहर-शहर मेले लगते हैं।

इसके बाद सावन महीने में पूर्णिमा को रक्षा बन्धन का त्योहार आता है। यह त्योहार भाईबहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इसी महीने पंजाब का एक ग्रामीण त्योहार भी आता है। इस त्योहार को मायके आई विवाहित लड़कियों का तीज का त्योहार कहा जाता है। मायके आई विवाहित लड़कियाँ सखियों संग झूला झूलती हैं और मन की बातें खुल कर करती हैं। । उपर्युक्त मेलों और त्योहारों के अतिरिक्त पंजाब में कुछ धार्मिक मेले भी होते हैं। इनमें सबसे बड़ा आनन्दपुर साहब में लगने वाला होला-मुहल्ला का मेला है। ग्रामीण मेलों में किला रायपुर का मिनी ओलिम्पिक मेला प्रसिद्ध है। कुछ मेलों में पशुओं की मण्डियाँ भी लगती हैं।

पंजाब के ये मेले और त्योहार आपसी भाई-चारे के प्रतीक हैं। हमें इन्हें पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

जीवन में त्योहारों का महत्त्व

कहा जाता है कि जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है और मनुष्य शुरू से संघर्ष के बाद, आराम या मनोरंजन चाहता है। इसलिए मनुष्य ने ऐसे अवसरों की तलाश की जिनमें वह अपने सब दुःख-दर्द भूल कर कुछ क्षणों के लिए खुल कर हँस गा सके। हमारे पर्व या त्योहार यही काम करते हैं। त्योहार वाले दिन, चाहे एक दिन के लिए ही सही हम यह भूलने की कोशिश करते हैं कि हम गरीब हैं, दु:खी हैं। आराम जीवन की जरूरत है, परिवर्तन मानव-स्वभाव की माँग है। हमारे पर्व या त्योहार इस ज़रूरत और माँग को पूरा करते हैं।

त्योहार का नाम सुनते ही सभी के मन में उल्लास एवम् स्फूर्ति भर जाती है। त्योहार के दिन हम आनन्द के साथ-साथ जातीय गौरव का भी अनुभव करते हैं। ये त्योहार आपसी भाईचारे के प्रतीक हैं। इनमें सभी धर्मों, सम्प्रदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं। जहाँ ये त्योहार आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़ करते हैं, वहाँ राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा देते

हमारे देश में मनाए जाने वाले त्योहार धर्म और राजनीति के उच्चतम आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं। प्रत्येक पर्व या त्योहार किसी-न-किसी आदर्श चरित्र से जुड़ा है। जैसे बसन्तोत्सव हमें भगवान् शंकर के कामदहन और श्रीकृष्ण के पूतनावध की याद दिलाता है। आषाढ़ में काल की दुर्निवार गति की याद में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा होती है। श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबन्धन के त्योहार द्वारा हिन्दू समाज में भ्रातृत्व का स्मरण दिलाया जाता है। दीवाली के दिन हम लक्ष्मी पूजन के साथ नरकासुर वध की घटना को याद करते हैं। रामनवमी के दिन हमें भगवान् राम के जीवन से त्याग, तपस्या और जन सेवा की शिक्षा मिलती है।

हमारे देश में अनेक त्योहार ऋतुओं या फसलों से भी जुड़े हैं जैसे लोहड़ी, होली, बैशाखी, श्रावणी पूर्णिमा आदि। कुछ त्योहारों पर व्रत रखने की भी परम्परा है जैसे महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि । स्वास्थ्य की दृष्टि से इन व्रतों की बहुत उपयोगिता है। ये व्रत व्यक्ति की पाचन क्रिया को सही रखते हैं। संक्षेप में कहा जाए तो हमारे पर्व या त्योहार आत्म शुद्धि का साधन हैं। त्योहार हमारे जीवन में खुशियाँ लाते हैं। त्योहारों के अवसर पर हम अपने सब राग, द्वेष, मद, मोह को भस्मीभूत करके, ऊँच-नीच का, जाति-पाति का भेद भुला कर, एक होकर आनन्द मनाते हैं। इन्हीं त्योहारों ने हमारी प्राचीन संस्कृति को और सामाजिक मूल्यों को बचाए रखा है।

लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार विक्रमी संवत् के पौष मास के अन्तिम दिन अर्थात् मकर संक्रान्ति (माघी) से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे हम ऋतु सम्बन्धी त्योहार भी कह सकते हैं। अंग्रेज़ी कलैण्डर के अनुसार साल का यह पहला त्योहार होता है। इस दिन सर्दी अपने पूर्ण यौवन पर होती है। लोग अपने-अपने घरों में आग जलाकर उसमें मूंगफली, रेवड़ियों, फूलमखानों की आहुति डालते हैं और लोक गीतों को गाते हुए नाचते हुए आग तापते हैं।

लोहड़ी वाले दिन माता-पिता अपनी विवाहिता बेटियों के घर उपर्युक्त चीजें और वस्त्राभूषण भेजते हैं। जिनके घर लड़के की शादी हुई हो या लड़का पैदा हुआ हो, वे लोग अपने नाते-रिश्तेदारों को बुलाकर धूमधाम से लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं। कुछ क्रांतिकारी लोगों ने अब लड़की के जन्म पर भी लोहड़ी मनाना शुरू कर दिया है।

पुराने जमाने में लड़के-लड़कियाँ समूह में घर-घर जाकर लोहड़ी माँगते थे और आग जलाने के लिए उपले और लकड़ियाँ एकत्र करते थे। साथ ही वे ‘दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी’, ‘गीगा जम्यां परात गुड़ वंडिया’ तथा ‘सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-दुल्ला भट्ठी वाला’ जैसे लोक गीत भी गाया करते थे। युग और परिस्थितियाँ बदलने के साथ-साथ लोहड़ी माँगने की यह प्रथा लुप्त होती जा रही है। लोग अब अपने घरों में कम होटलों में अधिक लोहड़ी मनाते हैं और आग जलाने के स्थान पर डी०जे० पर फिल्मी गाने गाते हैंलोक गीत तो जैसे लोग भूल ही गए हैं। बस लोहड़ी के अवसर पर पीना-पिलाना और नाचना-गाना ही शेष बचा है।

कुछ लोग लोहड़ी के त्योहार को फसली त्योहार मानते हैं। गन्ने की फसल तैयार हो जाती है और गुड़-शक्कर बनना शुरू हो जाता है। सरसों की फसल भी तैयार हो जाती। मकई की फसल घरों में आ चुकी होती है। शायद इन्हीं कारणों से आज भी गन्ने के रस की खीर, सरसों का साग और मकई की रोटी बनाने का रिवाज है।

समय चाहे कितना बदल गया हो, किन्तु लोहड़ी के त्योहार को आपसी भाईचारे और पंजाबी संस्कृति का त्योहार माना जाता है।

होली

हिंदुओं के त्योहारों में होली का त्योहार एक प्रमुख त्योहार है। रंगों का यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्राचीन काल में इस दिन को हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका से जोड़ कर देखा जाता था। होलिका दहन की घटना को याद कर सामूहिक रूप से अग्नि प्रज्वलित की जाती थी और यह कल्पना की जाती थी राक्षसी प्रवृत्ति वाली होलिका जल गई है। आज भी कुछ स्थानों पर होली बसन्त के बाद महीना भर मनाई जाती है। वृन्दावन और बरसाने की होली देखने तो देश-विदेश से कई लोग आते हैं।

होली रंगों का और मेल मिलाप का त्योहार है, किन्तु आज की युवा पीढ़ी ने इसे हुड़दंग बाजी का त्योहार बना दिया है। होली के त्योहार को ही कई लोग गांजा, सुल्फा, भांग या शराब पीना शुभ समझते हैं, किन्तु ऐसा करना कभी भी शुभ नहीं माना जाता। यदि किसी पवित्र त्योहार के दिन हम व्यसनों और कुरीतियों की ओर बढ़ते हैं तो इससे हम त्योहार के वास्तविक महत्त्व से बहुत दूर हट जाते हैं।

होली के अवसर पर पहले लोग अबीर, गुलाल से रंग खेलते थे, किन्तु आज हम सस्ते के चक्कर में सिंथेटिक रंगों से होली खेलते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं। इन रंगों के आँखों में पड़ने से आँखों की रोशनी जाने का खतरा बना रहता है। आज आवश्यकता है होली के त्योहार की पवित्रता से युवा पीढ़ी को, बच्चों को परिचित करवाने की। इसके लिए हमारे धार्मिक और सामाजिक नेताओं को आगे आना चाहिए, होली आपसी भाईचारे का, मेल-मिलाप का त्योहार है, हमें यह त्योहार ऊँच-नीच का, छोटे-बड़े का भेद भुला देना सिखाता है। हमें इस दिन लोगों में खुशियाँ बाँटनी चाहिए न कि दुःख या कष्ट पहुँचाना। हमें बड़ों की ही नहीं डॉक्टरों की सलाह पर भी ध्यान देना चाहिए।

वैशाखी

वैशाखी का त्यौहार वैशाख मास की संक्रान्ति को मनाया जाता है। पहले पहल यह त्योहार फसली त्योहार माना जाता था जिसे किसान लोग अपनी गेहूँ की फसल तैयार हो जाने पर मनाते थे। इस दिन गाँव-गाँव मेले लगते हैं। कई स्थानों पर यह मेला दो-दो अथवा तीन-तीन दिनों तक चलता है। नौजवान लोग भाँगड़ा डालते हैं । लोग सजधज कर इन मेलों में शामिल होते हैं । इस त्योहार को शीत ऋतु के प्रस्थान और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का त्योहार भी माना जाता है। लोग पवित्र नदियों व सरोवरों में जाकर स्नान करते हैं और गुरुद्वारों में मत्था टेक कर निहाल होते हैं।

वैशाखी के दिन रबी की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है जिससे किसानों के ही नहीं, मज़दूरों और शिल्पकारों और दुकानदारों के चेहरे पर रौनक आ जाती है। वास्तव में सारा व्यापार रबी की अच्छी फसल पर ही निर्भर करता है।

वैसाखी का यह पर्व हमें सन् 1699 का वह दिन भी याद दिलाता है जिस दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसे की साजना की थी। गुरु जी कहा करते थे-जब शान्ति एवं समझौते के सभी तरीके असफल हो जाते हैं तब तलवार उठाने में नहीं झिझकना चाहिए।

वैशाखी का यह पर्व पहले उत्तर भारत में ही विशेषकर गाँवों में मनाया जाता था, किंतु सन् 1919 में इसी दिन जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार को याद करते हुए वैशाखी का यह पर्व सारे भारत में मनाया जाता है और जलियांवाला बाग में शहीदों को याद किया जाता है।

वैशाखी वाले दिन से ही नवीन विक्रमी वर्ष का आरम्भ माना जाता है। कई जगहों पर इसी दिन साहुकार लोग अपने नए बही खाते खोलते हैं और मनौतियाँ मनाते हैं। पंजाब के किसान तो खुशी से झूम कर गा उठते हैं-‘जट्टा ओ आई वैशाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। युवक भाँगड़ा डालते हैं तो युवतियाँ गिद्दा डालती हैं। इसी कारण वैशाखी के त्योहार को पंजाब के ग्रामीण मेलों का सिरताज कहा जाता है।

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी कारण कई लोग इसे श्रावणी पर्व के नाम से भी याद करते हैं। इसी त्योहार के दिन से कार्तिक शुक्ला एकादशी तक चतुर्मास भी मनाया जाता है। पुराने जमाने में ऋषि-मुनि और ब्राह्मण इन चार महीनों में यात्रा नहीं करते थे, अपने आश्रमों में ही रहते थे। राज्य की ओर से उनके रहने खाने-पीने का प्रबंध किया जाता था। आजकल इस नियम का पालन केवल जैन साधु एवं साधवियाँ ही कर रहे हैं।

रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्यार से कब से सीमित हो गया इसका इतिहास में कोई प्रमाण नहीं मिलता। केवल चित्तौड़ की महारानी करमवती द्वारा मुग़ल सम्राट् हुमायूँ को भेजी राखी की घटना का ही उल्लेख मिलता है। हुमायूँ ने राखी मिलने पर गुजरात के मुसलमान शासक को हरा कर अपनी मुँह बोली बहन के राज्य की रक्षा की थी, किन्तु शुरूशुरू में रक्षाबंधन केवल ब्राह्मण ही अपने यजमानों के ही बाँधा करते थे। समय के परिवर्तन के साथ राजपूत स्त्रियों ने अपने पतियों की कलाई पर युद्ध में जाते समय रक्षाबंधन बाँधना शुरू कर दिया।

आजकल यह त्योहार केवल भाई-बहनों का त्योहार बन कर ही रह गया है। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और भाई उसकी सुरक्षा की प्रतिज्ञा करता है। किंतु आज बहन स्वयं आत्मनिर्भर हो गई है। अपने परिवार का (माता-पिता, भाई-बहन का) भरण पोषण करती है फिर वह अपनी सुरक्षा की गारंटी क्यों चाहेगी। दूसरे आज यह त्योहार मात्र परंपरा का निर्वाह बन कर रह गया है। आज बहन अबला नहीं सबला नारी हो गई है।

पुराने जमाने में विवाहित स्त्रियाँ अपने मायके चली जाती थीं। वह अपनी सहेलियों संग झूला झुलती, आमोद-प्रमोद में दिन बिताती हैं। शायद इसीलिए बड़े-बुजुर्गों ने श्रावण महीने में सास-बहु के इकट्ठा रहने पर रोक लगा दी थी, किंतु आज बड़ों के इस आदेश या नियम की कोई पालना नहीं करता। … हमें चाहिए कि आज प्रत्येक त्योहार को हम पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाएँ और अपनी जाति के गौरव और अपने देश की संस्कृति का ध्यान रखें। समय और परिस्थिति के अनुसार उसमें उचित सुधार कर लें।

दशहरा (विजयदशमी)

दशहरा (विजयदशमी) का त्योहार देश भर में शारदीय नवरात्रों के बाद दशमी तिथि को मनाया जाता है। प्रसिद्ध एवं सर्वज्ञात रूप से विजयदशमी के त्योहार को भगवान् श्रीराम की लंकापति रावण पर विजय के रूप में अथवा धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर विजय के रूप में मनाया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में देश के विभिन्न नगरों और गाँवों में दशहरे का मेला लगता है जिसमें रामलीला का मंचन होता है और श्रीराम के जीवन से जुड़ी अनेक झाँकियाँ निकाली जाती हैं। जिन गाँवों में यह मेला नहीं लगता वहाँ के लोग निकट के नगर में यह मेला देखने जाते हैं। दशमी के दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के बड़े-बड़े पुतले, जो रामलीला मैदान में स्थापित किए होते हैं, जलाए जाते हैं।

विजयदशमी का यह त्योहार बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। प्रान्त भर में माँ दुर्गा की विशाल मूर्तियाँ बनाई जाती हैं और विजयदशमी के दिन गंगा में या निकट की नदियों में विसर्जित की जाती हैं। प्राचीन काल में क्षत्रिय लोग शक्ति के प्रतीक शस्त्रों की पूजा किया करते थे।

महाराष्ट्र में विजयदशमी सीमोल्लंघन के रूप में मनाई जाती है। सायंकाल गाँव के लोग नए वस्त्र पहन गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘सोना’ लूट कर गाँव लौटते हैं और उस सुवर्ण का आदान-प्रदान करते हैं।

प्राचीन इतिहास के अनुसार इसी दिन देवराज इन्द्र ने महादानव वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की थी। पाण्डवों ने भी इसी दिन अपना तेरह वर्षों का अज्ञातवास पूरा कर द्रौपदी का वरण किया था।

विजयदशमी धार्मिक दृष्टि से आत्म-शुद्धि का पर्व है। राष्ट्रीय दृष्टि से यह दिन सैन्य संवर्धन का दिन है। शक्ति के उपकरण शस्त्रों की पूजा का दिन है। हम स्वयं को आराधना और तप से उन्नत करें, धर्म की, सत्य की अधर्म और असत्य पर विजय को याद रखें और राष्ट्र की सैन्य शक्ति को सुदृढ़ करें, यही विजयदशमी का संदेश है।

दीपावली

दीपावली का त्योहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। इस त्योहार को भगवान् श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण जी सहित लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे थे। इस अवसर पर अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। यह त्योहार प्रायः सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। लोग अपने घरों और दुकानों को साफ़ कर सजाते हैं। बाज़ारों में चहल-पहल बढ़ जाती है। लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ और उपहार भेंट करते हैं।

दीपावली का यह त्योहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्र्योदशी को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग बर्तन या गहने खरीदना शुभ मानते हैं। इससे अगला दिन नरक चौदस अथवा छोटी दीवाली के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। अमावस्या की रात को दीवाली का मुख्य पर्व होता है। इस रात धन की देवी लक्ष्मी जी और विघ्ननाशक गणेश जी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी और गणेश जी की समन्वित पूजा का अर्थ है धन का मंगलमय संचयन और उसका धर्म सम्मत उपयोग। अमावस्या से अगला दिन विश्वकर्मा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन गोवर्धन पूजा का भी विधान है तथा कार्तिक शुक्ला द्वितीया को भाई-बहन का दूसरा बड़ा त्योहार भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। इस तरह पाँच दिनों तक चलने वाला दीवाली का त्योहार समाप्त हो जाता है।

दीवाली के अवसर पर जुआ खेलने की कुप्रथा का भी प्रचलन है। इस कुप्रथा को बन्द होना चाहिए। भले ही जुआ खेलना एक कानूनी अपराध है, किन्तु फिर भी लोग जुआ खेलते हैं। दीवाली के अवसर पर पटाखे चलाने और आतिशवाजी भी हमें बंद कर देने चाहिए। हर वर्ष करोड़ों रुपए पटाखे चलाकर ही हम नष्ट कर देते हैं । इन रुपयों से लाखों भूखों को रोटी दी जा सकती है। लाखों गरीब बच्चों को पढ़ाया जा सकता है। चण्डीगढ़ में सन् 2008 में छात्रों ने पटाखे न चलाने का प्रण करते हुए एक जुलूस भी निकाला था, जो एक सराहनीय कदम है। दीवाली के इस त्योहार को हमें बदली परिस्थितियों के अनुसार मनाना चाहिए।

वसंत ऋतु

वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। यह ऋतु अंग्रेज़ी महीने के मार्च-अप्रैल और विक्रमी संवत् के महीनों चैत्र-वैशाख महीनों में आती है, किन्तु लोग वसंत आगमन का त्योहार वसंत पंचमी का त्योहार माघ महीने की पंचमी को ही मना लेते हैं। कहा जाता है आया वसंत तो पाला उड़त अर्थात् इस ऋतु में शीत का अंत हो जाता है। मानव शरीर में नई चेतना एवं स्फूर्ति का अनुभव होने लगता है। इस ऋतु में शरीर में नए रक्त का संचार होता है। प्रकृति भी नए रूप और यौवन के साथ प्रकट होती है। हर तरफ मादकता छायी रहती है। वृक्षों पर नई कोंपलें फूट निकलती हैं और बागों में तरह तरह के फूल खिल उठते हैं। खेतों में फूली सरसों देखकर लगता है जैसे प्रकृति ने पीली चुनरी ओढ़ रखी हो। शायद इसीलिए वसंत को कामदेव का पुत्र माना जाता है। कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाकर प्रकृति नाच उठती है। हर तरफ हरियाली छा जाती है। शीत मंद और सुगंध भरी वायु बहने लगती है। फूलों पर भौरे मँडराने लगते हैं।

वसंतागमन की सूचना हमें कोयल की कूहू कुहू से मिल जाती है और प्रकृति की इस मादकता का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ना शुरू हो जाता है। कहा जाता है कि ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म इसी दिन हुआ था। इसी दिन धर्मवीर हकीकत राय ने धर्म के नाम पर अपना बलिदान दिया था। वसंत पंचमी के दिन बटाला में उनकी समाधि पर बड़ा भारी मेला लगता है। साहित्य जगत् के लोग भी कविवर निराला का जन्म दिन वसंत पंचमी वाले दिन ही मनाते हैं।

वसंत पंचमी के दिन अनेक नगरों में मेले लगते हैं। दिन में कुश्तियाँ होती हैं और शास्त्रीय गायन की सभा सजती है। दिन में लोग पतंग उड़ाते हैं। लखनऊ में पतंगबाजी के मुकाबले सारे देश में प्रसिद्ध हैं। इस दिन लोग पीले कपड़े पहनते हैं। घरों में पीले चावल या पीला हलवा बनाया जाता है।

जब तक ‘मेरा रंग दे वसन्ती चोला नी माए’ गीत गाया जाता रहेगा, वसंत ऋतु हमें सरदार भगत सिंह और वीर हकीकत राय शहीदों की याद दिलाती रहेगी।

मेरे जीवन का उद्देश्य

संसार में मनुष्य के दो ही उद्देश्य होते हैं। पहला आध्यात्मिक और दूसरा भौतिक या सांसारिक। आध्यात्मिक लक्ष्य-ईश्वर प्राप्ति सबका समान होता है किन्तु सांसारिक लक्ष्य मनुष्य अपनी योग्यता और परिस्तिथतियों के अनुसार चुनता है और उसे पूरा करने का यत्न करता है।

मैंने बचपन से ही यह सोच रखा है कि मैं बड़ा होकर एक प्राध्यापक बनूँगा। प्राध्यापक बन कर जहाँ मैं अपनी ज्ञान की भूख मिटा सकूँगा वहाँ समाज, देश की भी सेवा कर सकूँगा। जितने भी डॉक्टर, इंजीनियर बनते हैं उन्हें बनाने वाले प्राध्यापक ही होते हैं। कहते हैं सारा पानी इसी पुल के नीचे से गुज़रता है। बड़ों ने ठीक कहा है कि किसी भी देश या जाति के भविष्य को अगर कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। किसी भी देश या जाति के चरित्र को यदि कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। शायद इसी कारण कबीर जी गुरु (अध्यापक) को ईश्वर से बड़ा मानते हैं। भले ही आज न तो वैसे शिष्य रहे हैं और न ही अध्यापक किन्तु फिर भी अध्यापक की महत्ता कम नहीं हुई।

आज के माता-पिता के पास अपने बच्चों को पढ़ाने, सिखाने या कुछ बनाने का समय ही नहीं है। केवल अध्यापक ही है जो अपने छात्रों के अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचानता है और उसे सही रूप देता है। इसलिए मैं भी एक अच्छा और आदर्श अध्यापक बनना चाहता हूँ। इसके लिए मुझे पहले एम० ए० करना पड़ेगा फिर बी० एड० या पी एच- डी०।

इसके लिए काफ़ी मेहनत की ज़रूरत है। आजकल प्रतियोगिता का युग है। अतः मुझे सभी परीक्षाएँ अच्छे नम्बरों से पास करनी होंगी। इसके लिए हिम्मत और लग्न चाहिए क्योंकि कहा भी है हिम्मत करे इन्सान तो क्या हो नहीं सकता।

परोपकार या सेवा धर्म

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की यह विशेषता रही है कि व्यक्ति अपने हित की बात छोड़कर दूसरों की सेवा करता रहा है। इसी लिए तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है’परहित सरिस धर्म नहीं भाई।’ सच है परोपकार ही जीवन का सार है, स्वार्थ नहीं निस्वार्थ और परोपकार ही मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाते हैं। पर उपकार से बढ़कर कोई दूसरी सेवा या पुण्य नहीं। ऐसा ही उदाहरण भाई कन्हैया ने सन् 1704 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी की सेना और मुग़ल सेना के बीच हो रहे युद्ध में घायलों को बिना किसी भेदभाव के पानी पिलाकर पर सेवा का अद्भुत नमूना प्रस्तुत किया था।

कालान्तर में महात्मा बुद्ध, भगवान् महावीर, महात्मा गाँधी और मदर टेरेसा जैसी महान् विभूतियों ने भी परोपकार को ही अपनाकर नाम कमाया। उन्होंने दूसरों को सुखी बनाने के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। इन महापुरुषों ने अहिंसा को अपना आदर्श बनाया। क्योंकि स्वार्थ परपीड़ा और हिंसा को जन्म देता है। हिंसा में सभी अधर्मों और पापों का समावेश हो जाता है। परपीड़ा यदि अधर्म की सीमा है तो परहित, दूसरों की निस्वार्थ सेवा करना धर्म की दीन दुखियों की सेवा करना एक अनुपम गुण है। यह गुण जिस व्यक्ति में आ जाए, वह महान् आत्मा है।

परोपकार की शिक्षा मनुष्य ने प्रकृति से ली है। नदियाँ कभी अपना जल नहीं पीती हैं, वे सदा दूसरों की प्यास शान्त करती हैं। वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते, वे उनको संसार के प्राणियों के लिए अर्पित कर देते हैं। बादल सदा दूसरों की सेवा के लिए बनते हैं, वे स्वयं नष्ट होकर धरती को हरियाली प्रदान करते हैं। इसी प्रकार सज्जन लोग भी परोपकार के लिए ही धन संचय करते हैं। हमारा इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जब लोगों ने परोपकार के लिए अपनी धन सम्पत्ति ही नहीं घरबार को त्याग दिया। महर्षि दधीचि का वह त्याग कैसे भुलाया जा सकता है जब उन्होंने देवताओं की सहायता के लिए अपनी हड्डियों तक का दान दे दिया था।

भले ही आज रेडक्रास जैसी संस्था यही कार्य कर रही है किन्तु स्वार्थ भरे इस युग में परोपकार के लिए किसी के पास समय नहीं है आज तो बस इतना ही कहा जाता है-पहले पूत फिर परोहित।

सदाचार

सदाचार का अर्थ है अच्छा आचरण अर्थात् व्यवहार। सदाचार से मनुष्य में अनेक अच्छे गुण आते हैं जैसे वह दूसरों के प्रति विनम्रता, आदर भाव, दया भाव रखता है। सदाचार से ही व्यक्ति में नैतिकता और सत्यनिष्ठा आती है। सदाचार ही मनुष्य को आदर्श नागरिक बनाता है। सदाचारी मनुष्य में साम्प्रदायिक भेद नहीं होता और न ही ईर्ष्या द्वेष होता है। वह मानव मात्र से प्रेम करता है जिससे समाज में व्यवस्था और शान्ति स्थापित होती है।

प्राणियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी इसलिए माना जाता है क्योंकि उसके पास बौद्धिक शक्ति होती है। इसी शक्ति के आधार पर व्यक्ति अच्छे बुरे या सत् असत् का निर्णय करता है शास्त्रों में सत् को धर्म तथा सदाचार अर्थात् सत् को जानता और उस पर आचरण करना परम धर्म माना गया है। गुरुओं ने भी सच्चे आचरण को ही महत्त्व दिया है। सदाचार का मुख्य गुण सत् है। हमारी आस्था है कि सदा सत्य की जीत होती है, झूठ की नहीं। सत्यवादी हरिश्चन्द्र की कथा सुन कर ही बचपन में महात्मा गाँधी इतने प्रभावित हुए कि जीवन भर उन्होंने सत्य का सहारा लिया और देश को स्वतन्त्र कराया।

बच्चा सामान्य रूप से सत्य ही बोलता है। हम स्वार्थवश ही उसे झूठ बोलना सिखाते हैं। हमें बच्चे को झूठ बोलने का अवसर नहीं देना चाहिए क्योंकि सत्यवादी बालक निर्भय हो जाता है और छल कपट या अपराध से दूर भागता है। ऐसा बालक सबका विश्वास पात्र बन जाता है।

अहिंसा, नम्रता और नैतिकता सदाचार के अन्य गुण हैं इनमें से नैतिकता सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बच्चों में नैतिकता लाने के लिए उनकी संगति का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। अच्छी संगति से ही बच्चों का चरित्र निर्माण होता है। वह स्वस्थ एवं नीरोग रहता है। माता-पिता की सेवा करता है, उनका कहा मानता है।

इस तरह सदाचार में सत्यवादिता, नम्रता, प्रेम भावना, नैतिकता आदि गुणों का समावेश है। जिसे अपनाने से मनुष्य अपना जीवन सार्थक करता है, मान-सम्मान पाता है, समाज तथा राष्ट्र का हित करता है।

सहयोग

एक-दूसरे का साथ देना सहयोग कहलाता है। हर आदमी को एक-दूसरे की सहायता अथवा रास्ता दिखाने की ज़रूरत पड़ती है। हम उन कमियों को एक-दूसरे का सहयोग प्राप्त कर दूर कर लेते हैं। सहयोग से ही हम कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं। सहयोग जीवन का आधार है।

अन्धे और लंगड़े की कहानी भी सहयोग का एक उदाहरण है। किसी गाँव में अन्धा और लंगड़ा रहते थे। गाँव में वर्षा के दिनों पानी भर गया। गाँव के लोग वहाँ से चले गए। अन्धा और लंगड़ा ही केवल वहाँ रह गए। मुसीबत को सामने देख लंगड़े को एक बात सूझी। उसने अन्धे से कहा कि तुम मुझे अपने कन्धे पर बैठा लो। मैं तुम्हें रास्ता बताता जाऊँगा। इस तरह हम बच जाएँगे। अन्धे को उसकी बात पसन्द आई। ऐसा करके अर्थात् एक-दूसरे के सहयोग से दोनों इस संकट को पार कर गए।

जीवन का कोई भी क्षेत्र हो चाहे बचपन हो, चाहे जवानी या बुढ़ापा, सहयोग के बिना हम कहीं भी आगे नहीं बढ़ सकते। बड़ी-से-बड़ी विपत्ति का मुकाबला सहयोग द्वारा किया जा सकता है। जैसे एक छोटा-सा तिनका तो एकदम आप तोड़कर नष्ट कर सकते हैं परन्तु यदि 50-100 तिनके इकट्ठे करके आप उन्हें तोड़कर नष्ट कर देना चाहें तो कठिनाई आएगी। यह उनका आपसी सहयोग ही आपके लिए कठिनाई ला सकता है।

इसी तरह आपने कबूतरों की कहानी सुनी होगी कि जब वे इकटे आकाश में उड़े जा रहे थे तो किसी शिकारी ने उन्हें पकड़ने के लिए जंगल में चावलों के दाने बिखेर कर ऊपर जाल बिछा दिया। कबूतरों की दृष्टि जब जंगल में पड़े दानों पर पड़ी तो उनका मन ललचा गया। सभी उन दानों पर टूट पड़े। नीचे बैठते ही जाल में फँस गए। अब क्या किया जा सकता था ? कबूतरों के राजा को एक युक्ति (ढंग) सूझी। उसने सबसे आपसी सहयोग की प्रार्थना की। ऐसा सुनते ही सभी कबूतरों ने इकट्ठे होकर (सहयोग से) उड़ान भरी और शिकारी का जाल उठाकर उड़ गए। शिकारी मुँह देखता ही रह गया। कबूतर आपसी सहयोग से ही शिकारी के जाल से छुटकारा पा सके।

सहयोग के बिना हम किसी क्षेत्र में भी अकेले सफल नहीं हो सकते। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी को अध्यापक, चपड़ासी अथवा अन्य किसी भी कर्मचारी के सहयोग की आवश्यकता बनी रहती है। खेल जगत् में तो सहयोग ही सफलता प्राप्त करने का एकमात्र साधन है।

हमें आपसी सहयोग को ध्यान में रखते हुए हर हालत में एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए या सहयोग देना चाहिए तभी हम ऊँचे-से-ऊँचे पद प्राप्त कर सकते हैं। बड़े-बड़े कार्य कर सकते हैं और बड़े-से-बड़े दुश्मन को दबा सकते हैं। इसलिए सहयोग शब्द का अनुसरण करना ही हमारे लिए सब सुख देने वाला है।

दाँतों की आत्म-कथा
अथवा
दाँत कुछ कहते हैं

हमारा निवास स्थान मुँह है। हमारी टीम के 32 सदस्य हैं। हमारा मुख्य काम भोजन को चबाना है। भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े करना और पीस कर चबाना हमारे परिवार के विभिन्न सदस्यों का काम है।

भोजन को चबाने के अलावा ठीक प्रकार से और सही बोलने के लिए भी हमारा होना बहुत ज़रूरी है। हमारा जन्म शरीर के दूसरे अंगों की तरह न होकर बाद में एक-एक, दोदो करके मसूढ़ों पर होता है।

हम आपकी सेवा तभी कर सकेंगे यदि आप भी हमारा ठीक से ध्यान रखेंगे। नियमित रूप से हमारी सफ़ाई होनी चाहिए। अगर सफ़ाई न हो तो भोजन के छोटे-छोटे टुकड़ें हम में फंसे रह जाते हैं। वे वहाँ पड़े-पड़े सड़ने लगते हैं। इनमें कीटाणु पैदा होकर एक प्रकार का तेज़ाब तैयार कर देते हैं। इस तेज़ाब के प्रभाव से एनेमल की ऊपरी तह संक्षारित (नष्ट) हो जाती है। एनेमल की तह हटते ही ये कीटाणु हमारी जड़ों तक पहुँच कर हमें खोखला कर देते हैं। अन्त में हम एक-एक करके आपकी सेवा करना छोड़ देते हैं।

सफ़ाई के अलावा हमें अपने व्यायाम की भी ज़रूरत होती है। सख्त पदार्थ खाने से हमारा व्यायाम होता है। मगर बहुत सख्त चीज़ हम से तुड़वाने की कोशिश न करो। हो सकता है ऐसा करने में हमारा कोई साथी जवाब दे जाए।

यदि आप अपने आपको तन्दरुस्त रखना चाहते हैं तो पहले हमें स्वस्थ रखें। हमें स्वस्थ रखने के लिए कैल्शियम, फॉस्फोरस, विटामिन सी और डी युक्त भोजन खाना चाहिए।

अगर किसी भी कारण से हमारी सेहत कमज़ोर होती दिखाई दे तो तुरन्त ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए न कि खुद ही कोई उल्टा-पुल्टा इलाज करने लग जाएँ। क्योंकि नीमहकीम खतरा जान। आप हमारे मालिक हैं और हम आपके सेवक हैं। हम आपके दाँत हैं जिनके महत्त्व के बारे में किसी ने कहा है-दाँत गए तो स्वाद ही गया।

सबको अपने दाँतों का ख्याल रखना चाहिए। बच्चों में दाँतों की देख-रेख के विचार शुरू से ही पैदा करने चाहिएँ। खूबसूरत दाँत सबको अच्छे लगते हैं। बहुत-सी बीमारियां दाँतों की खराबी के कारण पैदा हो जाती हैं। इसलिए हमेशा अपने दाँतों की रक्षा करो।

मोबाइल के लाभ और हानियाँ

एक समय था जब टेलीफ़ोन पर किसी दूसरे से बात करने के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। किसी दूसरे नगर या देश में रहने वालों से बातचीत टेलीफ़ोन एक्सचेंज के माध्यम से कई-कई घण्टों के इन्तजार के बाद संभव हो पाती थी किन्तु अब मोबाइल के माध्यम से कहीं भी कभी भी सेकेंडों में बात की जा सकती है। सेटेलाइट मोबाइल फ़ोन के लिए यह कार्य और भी अधिक आसानी से सम्भव हो जाता है। तुरन्त बात करने और सन्देश पहुँचाने को इससे सुगम उपाय सामान्य लोगों के पास अब तक और कोई नहीं है। विज्ञान के इस अद्भुत करिश्मे की पहुंच इतनी सरल, सस्ती और विश्वसनीय है कि आज यह छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, बच्चे-बूढ़े सभी के पास दिखाई देता है।

मोबाइल फ़ोन दुनिया को वैज्ञानिकों की ऐसी अद्भुत देन है जिसने समय की बचत कर दी है, धन को बचाया है और दूरियाँ कम कर दी हैं। व्यक्ति हर अवस्था में अपनों से जुड़ा-सा रहता है। कोई भी पल-पल की जानकारी दे सकता है, ले सकता है और इसी कारण यह हर व्यक्ति के लिए उसकी सम्पत्ति-सा बन गया है, जिसे वह सोते-जागते अपने पास ही रखना चाहता है। कार में, रेलगाड़ी में, पैदल चलते हुए, रसोई में, शौचालय में, बाज़ार में मोबाइल फ़ोन का साथ तो अनिवार्य-सा हो गया है। व्यापारियों और शेयर मार्किट से सम्बन्धित लोगों के लिए तो प्राण वायु ही बन चुका है। दफ्तरों, संस्थाओं और सभी प्रतिष्ठिानों में इसकी रिंग टोन सुनाई देती रहती है।

मोबाइल फ़ोन की उपयोगिता पर तो प्रश्न ही नहीं किया जा सकता। देश-विदेश में किसी से भी बात करने के अतिरिक्त यह लिखित संदेश, शुभकामना संदेश, निमंत्रण आदि मिनटों में पहुँचा देता है। एस. एम. एस. के द्वारा रंग-बिरंगी तस्वीरों के साथ संदेश पहुँचाए जा सकते हैं। अब तो मोबाइल फ़ोन चलते-फिरते कम्प्यूटर ही बन चुके हैं, जिनके माध्यम से आप अपने टी०वी० के चैनल भी देख-सुन सकते हैं। यह संचार का अच्छा माध्यम तो है ही, साथ ही साथ वीडियो गेम्स का भंडार भी है। यह टॉर्च, घड़ी, संगणक, संस्मारक, रेडियो आदि की विशेषताओं से युक्त है। इससे उच्च कोटि की फोटोग्राफ़ी की जा सकती है। वीडियोग्राफ़ी का काम भी इससे लिया जा सकता है। इससे आवाज़ रिकॉर्ड की जा सकती है और उसे कहीं भी, कभी भी सुनाया जा सकता है। एक तरह से यह छोटा-सा उपकरण अलादीन का चिराग ही तो है।

मोबाइल फ़ोन के केवल लाभ ही नहीं हैं बल्कि इसकी कई हानियाँ भी हैं। बारबार बजने वाली इसकी घंटी परेशानी का बड़ा कारण बनती है। जब व्यक्ति गहरी नींद में डूबा हो तो इसकी घंटी कर्कश प्रतीत होती है। मन में खीझ-सी उत्पन्न होती है। अनचाही गुमनाम कॉल आने से असुविधा का होना स्वाभाविक ही है। मोबाइल फ़ोन से जहाँ रिश्तों में प्रगाढ़ता बढ़ी है वहाँ इससे छात्र-छात्राओं की दिशा में भटकाव भी आया है। फ़ोन-मित्रों की संख्या बढ़ी है जिससे उनका वह समय जो पढ़ने-लिखने में लगना चाहिए था वह गप्पें लगाने में बीत जाता है। इससे धन भी व्यर्थ खर्च होता है। अधिकांश युवा वाहन चलाते समय भी मोबाइल फ़ोन से चिपके ही रहते हैं और ध्यान बँट जाने के कारण बहुत बार दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। मोबाइल फ़ोन अपराधी तत्वों के लिए सहायक बनकर बड़े-बड़े अपराधों के संचालन में सहायक बना हुआ है। जेल में बंद अपराधी भी चोरी-छिपे इसके माध्यम से अपने साथियों को दिशा-निर्देश देकर अपराध, फिरौती और अपहरण का कारण बनते हैं।

मोबाइल फ़ोन अदश्य तरंगों से ध्वनि संकेतों का प्रेषण करते हैं जो मानव-समाज के लिए ही नहीं अपितु अन्य जीव-जन्तुओं के लिए भी हानिकारक होती हैं। ये मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। कानों पर बुरा प्रभाव डालती हैं और दृश्य के तारतम्य को बिगाड़ती है। यही कारण है कि चिकित्सकों द्वारा पेसमेकर प्रयोग करने वाले रोगियों को मोबाइल फ़ोन प्रयोग न करने का परामर्श दिया जाता है।

वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया है कि भविष्य में नगरों में रहने वाली चिड़ियों की अनेक प्रजातियाँ अदृश्य तरंगों के प्रभाव से वहाँ नहीं रह पाएँगी। वे वहाँ से कहीं दूर चली जाएँगी या मर जाएँगी, जिससे खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होगी।

प्रत्येक सुख के साथ दुःख किसी-न-किसी प्रकार से जुड़ा ही रहता है। मोबाइल फ़ोन के द्वारा दिए गए सुखों और सुविधाओं के साथ कष्ट भी जुड़े हुए हैं।

मेरा पंजाब

पंजाब को पाँच पानियों की धरती कहा जाता है किन्तु विभाजन के बाद यह प्रदेश तीन पानियों (नदियों) की धरती ही रह गया है। 1 नवम्बर, सन् 1966 से पंजाब में से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश अलग कर दिए गए, जिससे वर्तमान पंजाब और छोटा हो गया है। वर्तमान पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है तथा सन् 2011 को जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार इसकी जनसंख्या 2.77 करोड़ है।

गुरुओं, पीरों पैगम्बरों, ऋषिमुनियों की पंजाब की इस धरती ने भारत पर होने वाले प्रत्येक आक्रमण का सामना किया। यूनान के सिकन्दर महान् के आक्रमण को तो पंजाबियों ने खदेड़ दिया था किन्तु मुहम्मद गौरी के आक्रमण का आपसी फूट के कारण मुकाबला न कर सके। राष्ट्रीयता की कमी के कारण यहाँ मुसलमानी शासन स्थापित हो गया। किन्तु शूरवीरता, देशभक्ति पंजाबियों की रग-रग में भरी रही। इसका प्रमाण पंजाबियों ने पहले तथा दूसरे विश्व युद्ध में तथा सन् 1948, 1965 और 1971 के पाकिस्तान के हुए युद्धों तथा मई, सन् 1999 में हुए कारगिल युद्ध में दिया।

पंजाबी लोग दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं वहाँ उन्होंने अपने परिश्रमी स्वरूप की धाक जमा दी है। पंजाब के किसान देश के अन्य भण्डार में सबसे अधिक अनाज देते हैं इसका कारण यहाँ की उपजाऊ भूमि, आधुनिक कृषि तकनीक तथा सिंचाई सुविधाओं का विस्तार है। यहाँ की मुख्य उपज गेहूँ, कपास, गन्ना, मक्की और मूंगफली आदि है। सब्जियों में आलू, मटर की पैदावार के लिए पंजाब जाना जाता है।

पंजाब में औद्योगिक क्षेत्र में भी काफ़ी उन्नति की है। लुधियाना हौजरी के सामान के लिए, जालन्धर खेलों के सामान के लिए, अमृतसर सूती व ऊनी कपड़े के उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। मण्डी गोबिन्दगढ़ इस्पात उद्योग तथा नंगल व बठिण्डा खाद बनाने के कारखानों के लिए जाने जाते हैं।

शिक्षा के प्रसार के लिए पंजाब देशभर में दूसरे नम्बर पर है। पंजाब में छः विश्वविद्यालय, सैंकड़ों कॉलेज और हज़ारों स्कूल हैं।

पंजाब की इस प्रगति के कारण इस प्रदेश में प्रति व्यक्ति की औसत आय 20 से 30 हज़ार वार्षिक है। गुरुओं, पीरों, महात्माओं और वीरों की यह धरती उन्नति के शिखरों को छू रही है।

चण्डीगढ़

चण्डीगढ़ देश का पहला आयोजित (Planned) शहर है। इस शहर की नींव 7 अक्तूबर, सन् 1953 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद द्वारा रखी गयी थी। इस सुन्दर और आदर्श शहर की योजना फ्रांस के एक इंजीनियर एस० डी० कारबूजियर द्वारा तैयार की गई है। पूरा शहर आयतकार सैक्टरों में बँटा हुआ है। प्रत्येक सैक्टर को स्वावलम्बी बनाने के लिए स्कूल, डाकखाना, डिस्पैंसरी, धार्मिक स्थान, मार्कीट, पार्क आदि की व्यवस्था की गई है। सैक्टर 17 को केवल क्रय-विक्रय, होटलों, कार्यालयों आदि के लिए ही रखा गया है। अधिकांश उद्योग राम दरबार में स्थापित हैं।

पयर्टकों के लिए भी यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं, जिनमें रॉक-गार्डन, सुखना लेक, रोज़ गार्डन आदि प्रमुख हैं। जहाँ की चौड़ी-चौड़ी सड़कें और सड़कों के दोनों ओर लगे छायादार वृक्ष इस शहर की शोभा को चार चाँद लगाते हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ किसी से पीछे नहीं है। पूरा सैक्टर 14 पंजाब विश्वविद्यालय के लिए रखा गया है। सैक्टर 12 में इन्जीनियरिंग कॉलेज, सैक्टर 32 में मैडिकल कॉलेज तथा कोई दर्जन भर लड़के-लड़कियों के कॉलेज हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ पंजाब और हरियाणा की सेवा कर रहा है। सैक्टर 12 में पी० जी० आई०, सैक्टर 16 और सैक्टर 32 में सरकारी अस्पताल हैं।

सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों के लिए सैक्टर 15 में गुरु गोबिन्द सिंह भवन, लाला लाजपतराय भवन विद्यमान है तो सैक्टर 18 में टैगोर थियेटर बना है। चण्डीगढ़ के विषय में एक विशेष बात यह है कि इसमें कोई 13 नम्बर का सैक्टर नहीं है।

चण्डीगढ़ में सचिवालय, विधानसभा तथा उच्च न्यायालय के भवन आधुनिक वास्तुकला का सुन्दर नमूना है। चण्डीगढ़ को बाबूओं का शहर भी कहा जाता है क्योंकि बहुत-से सरकारी कर्मचारी अवकाश प्राप्त करने के बाद यहीं बस गए हैं। चण्डीगढ़ में अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने कार्यालय खोलकर इस शहर की रौनक को और भी बढ़ा दिया है। केन्द्रीय आँकड़ा संस्थान सन् 2005-06 की जो रिपोर्ट भारतीय संसद् में 5-12-2007 को प्रस्तुत की गई थी उसके अनुसार चण्डीगढ़ देश भर में प्रतिव्यक्ति की वार्षिक औसत आय के हिसाब से सबसे आगे है। रिपोर्ट के अनुसार यहाँ के प्रत्येक व्यक्ति की औसत वार्षिक आय 67910 रुपए है।

सन् 2011 की जनगणना के अनुसार चण्डीगढ़ की जनसंख्या 10.5 लाख के करीब है। जो निश्चय ही अगामी जनगणना में 20 लाख के करीब हो जाएगी।

प्रातःकाल की सैर

अंग्रेज़ी की एक कहावत है कि Early to bed and early to rise, makes a man. healthy, wealthy and wise अर्थात् शीघ्र सोने और शीघ्र उठने से व्यक्ति स्वस्थ, सम्पन्न और बुद्धिमान बनता है। आजकल कोई भी छात्र इस नियम का पालन नहीं करता। इस का बड़ा कारण तो यह है कि छात्र देर रात तक टेलीविज़न से चिपके रहते हैं और फिर सुबह सवेरे स्कूल जाने की तैयारी करनी होती है। छात्रों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि उनके लिए जितनी पढ़ाई ज़रूरी है उतना ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी है और स्वस्थ रहने के लिए छात्रों को ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रात:काल में सैर अवश्य करनी चाहिए।

प्रात:काल का समय अत्यन्त सुहावना होता है। व्यक्ति को शुद्ध प्रदूषण रहित वायु मिलती है। प्रातःकालीन सैर के अनेक लाभ हैं। यह ईश्वर द्वारा दी गई ऐसी औषधि है जो प्रत्येक अमीर-गरीब को समान रूप से निःशुल्क मिलती है। प्रात:काल की सैर मनुष्य को नीरोग रखने में सहायक होती है। व्यक्ति का शरीर बलिष्ठ और सुन्दर बनता है। मस्तिष्क को शक्ति और शान्ति मिलती है जिससे व्यक्ति की स्मरण शक्ति का विकास होता है, जिसकी विद्यार्थियों को बहुत ज़रूरत है।

हमारे शास्त्रों में लिखा है कि प्रात:काल में, सूर्योदय से पहले, पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर 21 बार गायत्री मन्त्र का जाप करना चाहिए। आज के वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि पीपल का वृक्ष यों तो 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है किन्तु ब्रह्म मुहूर्त में वह दुगुनी ऑक्सीजन छोड़ता है और गायत्री मन्त्र ऐसा मन्त्र है जिसके उच्चारण से शरीर के प्रत्येक अंग में ऑक्सीजन पहुँचती है। अतः इस तथ्य को प्रात: सैर करते हुए ध्यान में रखना चाहिए।

प्रात:काल की सैर करते समय हमें अपनी चाल न बहुत तेज़ और न बहुत धीमी रखनी चाहिए। दूसरे प्रात:काल की सैर नियमित रूप से की जानी चाहिए तभी उसका लाभ होगा। हमें याद रखना चाहिए कि प्रात:कालीन सैर शारीरिक दृष्टि से ही नहीं मानसिक दृष्टि से भी अत्यन्त गुणकारी है।

स्वतंत्रता दिवस-15 अगस्त

15 अगस्त भारत के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है। इस दिन भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। लगभग डेढ़ सौ वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से भारत मुक्त हुआ था। राष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक युवाओं ने बलिदान दिए थे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का लाल किले पर तिरंगा फहराने का सपना इसी दिन सच हुआ था।

देश में स्वतंत्रता दिवस सभी भारतवासी बिना किसी प्रकार के भेदभाव के अपने-अपने ढंग से प्रायः हर नगर, गाँव में तो मनाते ही हैं, विदेशों में रहने वाले भारतवासी भी इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्रता दिवस का मुख्य कार्यक्रम दिल्ली के लाल किले पर होता है। लाल किले के सामने का मैदान और सड़कें दर्शकों से खचाखच भरी होती हैं। 15 अगस्त की सुबह देश के प्रधानमंत्री पहले राजघाट पर जाकर महात्मा गाँधी की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं फिर लाल किले के सामने पहुँच सेना के तीनों अंगों तथा अन्य बलों की परेड का निरीक्षण करते हैं। उन्हें सलामी दी जाती है और फिर प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर पर जाकर तिरंगा फहराते हैं, राष्ट्रगान गाया जाता है और राष्ट्र ध्वज को 31 तोपों से सलामी दी जाती है। ध्वजारोहण के पश्चात् प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हुए एक भाषण देते हैं। अपने इस भाषण में प्रधानमंत्री देश के कष्टों, कठिनाइयों, विपदाओं की चर्चा कर उनसे राष्ट्र को मुक्त करवाने का संकल्प करते हैं। देश की भावी योजनाओं पर प्रकाश डालते हैं। अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री तीन बार जयहिंद का घोष करते हैं। तीन बार जयहिंद का घोष करने की प्रथा भारत के पहले प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने शुरू की थी, जिसका उनके बाद आने वाले सारे प्रधानमंत्री अनुसरण करते हैं। प्रधानमंत्री के साथ एकत्रित जनसमूह जयहिंद का नारा लगाते हैं। अन्त में राष्ट्रीय गीत के साथ प्रात:कालीन समारोह समाप्त हो जाता है।

सायंकाल में सरकारी भवनों पर विशेषकर लाल किले में रोशनी की जाती है। प्रधानमंत्री दिल्ली के प्रमुख नागरिकों, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं, विभिन्न धर्मों के आचार्यों और विदेशी राजदूतों एवं कूटनीतिज्ञों को सरकारी भोज पर आमंत्रित करते हैं।

हमारे शास्त्रों में लिखा है कि प्रात:काल में, सूर्योदय से पहले, पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर 21 बार गायत्री मन्त्र का जाप करना चाहिए। आज के वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि पीपल का वृक्ष यों तो 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है किन्तु ब्रह्म मुहूर्त में वह दुगुनी ऑक्सीजन छोड़ता है और गायत्री मन्त्र ऐसा मन्त्र है जिसके उच्चारण से शरीर के प्रत्येक अंग में ऑक्सीजन पहुँचती है। अतः इस तथ्य को प्रात: सैर करते हुए ध्यान में रखना चाहिए।

प्रात:काल की सैर करते समय हमें अपनी चाल न बहुत तेज़ और न बहुत धीमी रखनी चाहिए। दूसरे प्रात:काल की सैर नियमित रूप से की जानी चाहिए तभी उसका लाभ होगा। हमें याद रखना चाहिए कि प्रात:कालीन सैर शारीरिक दृष्टि से ही नहीं मानसिक दृष्टि से भी अत्यन्त गुणकारी है।

15 अगस्त राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए शहीद होने वाले वीरों को याद करने का दिन भी है। इस दिन शहीदों की समाधियों पर माल्यार्पण किया जाता है।

15 अगस्त अन्य कारणों से भी महत्त्वपूर्ण है। इस दिन पाण्डिचेरी के सन्त महर्षि अरविन्द का जन्मदिन है तथा स्वामी विवेकानन्द के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पुण्यतिथि है। इस दिन हमें अपने राष्ट्र ध्वज को नमस्कार कर यह संकल्प दोहराना चाहिए कि हम अपने तन, मन, धन से अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे।

गणतंत्र दिवस-26 जनवरी

भारत के राष्ट्रीय पर्यों में 26 जनवरी को मनाया जाने वाला गणतंत्र दिवस विशेष महत्त्व रखता है। हमारा देश 15 अगस्त, सन् 1947 को अनेक बलिदान देने के बाद, अनेक कष्ट सहने के बाद स्वतंत्र हुआ था। किन्तु स्वतंत्रता के पश्चात् भी हमारे देश में ब्रिटिश संविधान ही लागू था। अतः हमारे नेताओं ने देश को गणतंत्र बनाने के लिए अपना संविधान बनाने का निर्णय किया। देश का अपना संविधान 26 जनवरी, सन् 1950 के दिन लागू किया गया। संविधान लागू करने की तिथि 26 जनवरी ही क्यों रखी गई इसकी भी एक पृष्ठभूमि है। 26 जनवरी, सन् 1930 को पं० जवाहर लाल नेहरू ने अपनी दृढ़ता एवं ओजस्विता का परिचय देते हुए पूर्ण स्वतन्त्रता के समर्थन में जुलूस निकाले, सभाएँ कीं। अतः संविधान लागू करने की तिथि भी 26 जनवरी ही रखी गई।

26 जनवरी को प्रातः 10 बजकर 11 मिनट पर मांगलिक शंख ध्वनि से भारत के गणराज्य बनने की घोषण की गई। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को सर्वसम्मति से देश का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। राष्ट्रपति भवन जाने से पूर्व डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की। उस दिन संसार भर के देशों से भारत को गणराज्य बनने पर शुभकामनाओं के सन्देश प्राप्त हुए।

गणतंत्र दिवस का मुख्य समारोह देश की राजधानी दिल्ली में मनाया जाता है। सबसे पहले देश के प्रधानमंत्री इण्डिया गेट पर प्रज्ज्वलित अमर ज्योति जाकर राष्ट्र की ओर से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मुख्य समारोह विजय चौक पर मनाया जाता है। यहाँ सड़क के दोनों ओर अपार जन समूह गणतंत्र के कार्यक्रमों को देखने के लिए एकत्रित होते हैं। शुरू-शुरू में राष्ट्रपति भवन से राष्ट्रपति की सवारी छ: घोड़ों की बग्गी पर चला करती थी। किन्तु सुरक्षात्मक कारणों से सन् 1999 से राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस समारोह में बग्घी में नहीं कार में पधारते हैं। परंपरानुसार किसी अन्य राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष या राष्ट्रपति अतिथि रूप में उनके साथ होते हैं। तीनों सेनाध्यक्ष राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। तत्पश्चात् राष्ट्रपति प्रधानमंत्री का अभिवादन स्वीकार कर आसन ग्रहण करते हैं।

इसके बाद शुरू होती है गणतंत्र दिवस की परेड। सबसे पहले सैनिकों की टुकड़ियाँ होती हैं, उसके बाद घोड़ों, ऊँटों पर सवार सैन्य दस्तों की टुकड़ियाँ होती हैं। सैनिक परेड के पश्चात् युद्ध में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन होता है। इस प्रदर्शन से दर्शकों में सुरक्षा और आत्मविश्वास की भावना पैदा होती है। सैन्य प्रदर्शन के पश्चात् विविधता में एकता दर्शाने वाली विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झांकियाँ एवं लोक नृतक मण्डलियाँ इस परेड में शामिल होती हैं।

सायंकाल को सरकारी भवनों पर रोशनी की जाती है तथा रंग-बिरंगी आतिशबाजी छोड़ी जाती है। इस प्रकार सभी तरह के आयोजन भारतीय गणतंत्र की गरिमा और गौरव के अनुरूप ही होते हैं। जिन्हें देखकर प्रत्येक भारतीय यह प्रार्थना करता है कि अमर रहे गणतंत्र हमारा।

राष्ट्र भाषा हिंदी

भारत 15 अगस्त, सन् 1947 को स्वतन्त्र हुआ और 26 जनवरी, सन् 1950 से अपना संविधान लागू हुआ। भारतीय संविधान के सत्रहवें अध्याय की धारा 343 (1) के अनुसार ‘देवनागरी लिपि में हिंदी’ को भारतीय संघ की राजभाषा और देश की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया है। संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई थी सन् 1965 से देश के सभी कार्यालयों, बैंकों, आदि में सारा कामकाज हिंदी में होगा। किन्तु खेद का विषय है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साठ वर्ष बाद भी सारा काम काज अंग्रेज़ी में ही हो रहा है। देश का प्रत्येक व्यक्ति यह बात जानता है कि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है और हिंदी हमारी अपनी भाषा है।

महात्मा गाँधी जैसे नेताओं ने भी हिंदी भाषा को ही अपनाया था हालांकि उनकी अपनी मातृ भाषा गुजराती थी। उन्होंने हिंदी के प्रचार के लिए ही ‘दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार सभा’ प्रारम्भ की थी। उन्हीं के प्रयास का यह परिणाम है कि आज तमिलनाडु में हिंदी भाषा पढ़ाई जाती है, लिखी और बोली जाती है। वास्तव में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा इसलिए दिया गया क्योंकि यह भाषा देश के अधिकांश भाग में लिखी-पढ़ी और बोली जाती है। इसकी लिपि और वर्णमाला वैज्ञानिक और सरल है। आज हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान की राजभाषा हिंदी घोषित हो चुकी है।

हिंदी भाषा का विकास उस युग में भी होता रहा जब भारत की राजभाषा हिंदी नहीं थी। मुगलकाल में राजभाषा फ़ारसी थी, तब भी सूर, तुलसी, आदि कवियों ने श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य की रचना की। उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेज़ी शासन के दौरान अंग्रेज़ी राजभाषा रही तब भी भारतेन्दु, मैथिलीशरण गुप्त और प्रसाद जी आदि कवियों ने उच्च कोटि का साहित्य रचा। इसका एक कारण यह भी था कि हिंदी सर्वांगीण रूप से हमारे धर्म, संस्कृति और सभ्यता और नीति की परिचायक है। भारतेन्दु हरिशचन्द्र जी ने आज से 150 साल पहले ठीक ही कहा था –

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।

लेकिन खेद का विषय है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के 68 वर्ष बाद भी हिंदी के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। अपने विभिन्न राजनीतिक स्वार्थों के कारण विभिन्न राजनेता इसके वांछित और स्वाभाविक विकास में रोड़े अटका रहे हैं। अंग्रेजों की विभाजन करो और राज करो की नीति पर आज हमारी सरकार भी चल रही है जो देश की विभिन्न जातियों, सम्प्रदायों और वर्गों के साथ-साथ भाषाओं में जनता को बाँट रही है ऐसा वह अपने वोट बैंक को ध्यान में रख कर कर रही है। यह मानसिकता हानिकारक है और इसे दूर किया जाना चाहिए। हमें अंग्रेज़ी की दासता से मुक्त होना चाहिए।

राष्ट्रीय एकता

भारत एक अरब से ऊपर जनसंख्या वाला देश है जिसमें विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों के लोग रहते हैं। उनकी भाषाएं भी अलग-अलग हैं, उनकी वेश-भूषा, रीति-रिवाज भी अलग-अलग हैं किन्तु फिर भी सब एक हैं जैसे एक माला में रंग-बिरंगे फूल होते हैं। भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है। हमारी राष्ट्रभाषा एक है। देश के सभी लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं।

नवम्बर, 2008 में मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादियों के आक्रमण के समय भारतवासियों ने जिस प्रकार एक जुटता दिखाई उसका उदाहरण मिलना कठिन है। इससे पूर्व भी पाकिस्तानी आक्रमणों के समय अथवा प्राकृतिक आपदाओं के समय ऐसी ही एक जुटता दिखाई थी। इस से यह स्पष्ट होता है कि भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी है। वे चाहे किसी धर्म को मानते हों, किसी जाति के हों, यही कहते हैं-गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं।

पाकिस्तान और उसके भारत में मौजूद कुछ पिठू पाण्डवों की इस उक्ति को भूल जाते हैं कि उन्होंने कहा था पाण्डव पाँच हैं और कौरव 100 किसी बाहरी शत्रु के लिए हम एक सौ पाँच हैं। वास्तव में पाकिस्तान हमारी उन्नति और विकास को देखकर ईर्ष्या से जलभुन रहा है। पिछले साठ वर्षों में भी वहाँ लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली चालू नहीं हो सकी। इसलिए अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने लोगों का ध्यान बँटाने के लिए कभी कश्मीर का मुद्दा और कभी कोई दूसरा मुद्दा उठाता रहा है।

पड़ोसी देश ही नहीं कुछ भारतीय भी हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने पर तुले हैं। ऐसे लोग अपने स्वार्थ, अपने वोट बैंक और सत्ता हथियाने के चक्र में जो प्रांतवाद का नारा लगाते हैं। अभी हाल ही में महाराष्ट्र में प्रांतवाद के नाम पर जो हिंसा और गुंडागर्दी हुई वह हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने वाला ही कदम है।

हमारा ऐसा मानना है कि सरकार ने भी भाषा के नाम पर देश का बंटवारा कर राष्ट्रीयता को ठेस पहुँचाई है। रही-सही कसर वोट बैंक की राजनीति कर रही है। यदि ईमानदारी से इन बातों को दूर करने का प्रयत्न किया जाए तो राष्ट्रीय एकता के बलबूते भारत विकसित देशों में शामिल हो सकता है।

सांप्रदायिक सद्भाव

सांप्रदायिक एकता के प्रथम दर्शन हमें सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान देखने को मिले। उस समय हिन्दू-मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों से टक्कर ली थी। अंग्रेज़ बड़ी चालाक कौम थी। उस की चालाकी से मुहम्मद अली जिन्ना ने सन् 1940 में पाकिस्तान की माँग की और अंग्रेज़ों ने देश छोड़ने से पहले सांप्रदायिक आधार पर देश के दो टुकड़े कर दिये। विश्व में पहली बार आबादी का इतना बड़ा आदान-प्रदान हुआ। हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिसमें लाखों मारे गए। . सन् 1950 में देश का संविधान बना और भारत को एक धर्म-निरपेक्ष गणतंत्र घोषित किया गया। प्रत्येक जाति, धर्म, संप्रदाय को पूर्ण स्वतंत्रता दी गई और सब धर्मों को समान सम्मान दिया गया। आप जानकर शायद हैरान होंगे कि विश्व में सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या भारत में ही है। बहुत-से देशभक्त मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए। लेकिन पाकिस्तान क्योंकि बना ही धर्म पर आधारित देश था अतः वह आज तक हमारे देश के सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान में स्वतन्त्रता के साठ वर्ष बाद भी जनतांत्रिक प्रणाली लागू नहीं हो सकी और भारत विश्व का सबसे बड़ा जनतांत्रिक देश बन गया है।

हम यह जानते हैं कि कोई भी धर्म हिंसा, घृणा या विद्वेष नहीं सिखाता। सभी धर्म या संप्रदाय मनुष्य की नैतिकता, सहिष्णुता और शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं। किंतु कुछ कट्टरपन्थी धार्मिक नेता अपने स्वार्थ के लिए लोगों में धार्मिक भावनाएँ भड़का कर देश में अशान्ति और अराजकता फैलाने का यत्न करते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि –

मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना,
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा।

संप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने पर ही हम विकासशील देशों की सूची से निकल कर विकसित देशों में शामिल हो सकते हैं।

हमारी सरकार भले ही धर्म-निरपेक्ष होने का दावा करती है किन्तु वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर वह एक ही धर्म की तुष्टिकरण के लिए जो कुछ कर रही है उसके कारण धर्मों और जातियों में दूरी कम होने की बजाए और भी बढ़ रही है। धर्मनिरपेक्षता को यदि सही अर्थों में लागू किया जाए तो कोई कारण नहीं कि धार्मिक एवं सांप्रदायिक सद्भाव न बन सके। जनता को भी चाहिए कि वह सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले नेताओं से चाहे वे धार्मिक हों या राजनीतिक, बचकर रहे, उनकी बातों में न आएँ।

टेलीविज़न के लाभ-हानियाँ

मानव आदिकाल से ही काम के बाद मनोरंजन के साधनों की खोज में रहा है। प्राचीन काल में नाटक, रासलीला, रामलीला या त्योहार मनुष्य के मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। फिर रेडियो, सिनेमा या ग्रामोफोन द्वारा लोगों के मनोरंजन के साधन बने। आज सबसे प्रभावी मनोरंजन का साधन टेलीविज़न है।

टेलीविज़न का आविष्कार स्काटलैण्ड के इंजीनियर जॉन एलन बेयर्ड ने सन् 1926 ई० में किया था। इस का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटिश इण्डिया कार्पोरेशन ने किया था। भारत में इसका प्रसारण सन् 1964 से ही सम्भव हो सका और इसे रंगीन बनाने में लगभग बीस वर्ष लग गए। पंजाब में पहला टेलीविजन केन्द्र अमृतसर में स्थापित हुआ जो बाद में दूरदर्शन केन्द्र जालन्धर में स्थानांतरित कर दिया गया। पहल पहले लोग कार्यक्रम दूरदर्शन पर ही देखा करते थे किन्तु सैटेलाइट नैटबर्क के आगमन से टेलीविजन की दुनिया में क्रान्तिकारी मोड़ ला दिया। आज देश भर में कोई सवा-सौ चैनल अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिसमें समाचार, खेलकूद, धार्मिक, नाटक, संगीत, सामान्य जानकारी के अलग से चैनल हैं। आज अनेक चैनल क्षेत्रीय भाषाओं में अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं। आज टेलीविज़न नैटवर्क (केबल) दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं। इन चैनलों द्वारा शिक्षा एवं धर्म का प्रचार भी किया जा रहा है। टेलीविजन के कारण हम घर बैठे अपने मन पसंद सीरियल, गीत, फिल्में आदि देख सकते हैं।

कहते हैं जहाँ फूल होते हैं वहाँ काँटे भी होते हैं। टेलीविज़न के जहाँ अनेक लाभ हैं वहाँ कई हानियाँ भी हैं। सब से बड़ी हानि यह है कि लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हो गया है। लोग मिलने-जुलने की अपेक्षा अपना मनपसन्द सीरियल या फिल्म देखना पसन्द करते हैं। विद्यार्थियों की खेलकूद और अतिरिक्त पढ़ाई में रुचि कम हो गई है। युवावर्ग टेलीविज़न पर अश्लील गाने देखकर बिगड़ रहा है। लगातार कई घण्टे टेलीविज़न से चिपके रहने के कारण बच्चों की आँखों पर नज़र की ऐनकें लग गई हैं।

हमें चाहिए कि टेलीविज़न के लाभ को ध्यान में रखकर ही इसका उपयोग करना चाहिए। हमें वही कार्यक्रम देखने चाहिए जो ज्ञानवर्धक हों। टेलीविज़न एक वरदान है इसे शाप न बनने देना चाहिए।

समाचार-पत्रों के लाभ-हानियाँ

आज भले ही टेलीविज़न पर अनेक चैनल केवल समाचार ही प्रसारित कर रहे हैं फिर भी समाचार-पत्रों का महत्त्व कम नहीं हुआ है। आज के युग में समाचार-पत्र हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग बन गए हैं। जिस दिन घर में समाचार-पत्र नहीं आता या देर से आता है तो हम उतावले हो उठते हैं। जिज्ञासा मानव स्वभाव की एक प्रवृत्ति रही है और समाचार-पत्र हमारी इस जिज्ञासा को शान्त करते हैं। समाचार-पत्र हमें घर बैठे ही देशविदेश में हुई घटनाओं, समाचारों की सूचना दे देते हैं। समाचार-पत्रों के अनेक लाभ हैं जिनमें से कुछ का उल्लेख हम यहां पर कर रहे हैं।

समाचार-पत्र प्रचार का एक बहुत बड़ा साधन है। चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दल समाचार-पत्रों में विज्ञापन देकर अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष को प्रस्तुत करते हैं। विभिन्न व्यापारिक संस्थान भी अपने उत्पाद का विज्ञापन समाचार-पत्र में देकर अपने उत्पाद की बिक्री में वृद्धि करते हैं।

समाचार-पत्रों के माध्यम से ही आजकल हम नौकरी, विवाह, प्रवेश सूचना आदि सूचनाएँ प्राप्त करते हैं। समाचार-पत्रों में वर्गीकृत विज्ञापन का स्तम्भ हमें अनेक प्रकार की सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के मैगज़ीन अनुभाग हमें धर्म, स्वास्थ्य, समाजशास्त्र, ज्योतिष, वास्तु शास्त्र, आयकर सम्बन्धी सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें रेडियो, टेलीविज़न के कार्यक्रमों की समय सारणी भी प्राप्त हो जाती है। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें पुस्तकों, फिल्मों की समीक्षा भी पढ़ने को मिल जाती समाचार-पत्र पाठकों को भ्रष्टाचार, समाज की कुरीतियों जैसे भ्रूण हत्या आदि से जागरूक करते हैं और समाज में सुधार या नव-निर्माण का कार्य करते हैं।

समाचार-पत्रों की कुछ हानियाँ भी हैं। कुछ समाचार-पत्र अपने पत्र की बिक्री बढ़ाने के लिए झूठी तथा सनसनी भरे समाचार छाप कर जनमानस को दूषित करते हैं। ऐसा ही कार्य वे समाचार-पत्र भी करते हैं जो पक्षपात पूर्ण समाचार और टिप्पणियाँ छापते हैं। समाचार-पत्रों में बड़ी शक्ति है। इस का सही प्रयोग होना चाहिए।

दहेज प्रथा एक अभिशाप

कोई भी प्रथा जब शुरू होती है तो अच्छे उद्देश्य से शुरू होती है किन्तु धीरे-धीरे वही प्रथा कुप्रथा बन जाती है। कुछ ऐसा ही हाल दहेज प्रथा का भी है। दहेज प्रथा कितनी प्राचीन है यह तो नहीं कहा जा सकता। किन्तु इतना अवश्य है कि यह प्रथा जब शुरू हुई होगी तब लड़की को अपने पिता की सम्पत्ति में भागीदार नहीं माना जाता था और मातापिता उसके विवाह अवसर पर अपनी सम्पत्ति में से कुछ भाग लड़की को उपहार के रूप में भेंट करते थे। इसी उपहार को कालान्तर में दहेज का नाम दे दिया गया। किन्तु आज जब लड़की अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर की हिस्सेदार है, लड़की अब स्वयं कमाने लगी है और पुरुष की आर्थिक दृष्टि से गुलाम नहीं रही है, दहेज देने का तर्क नज़र नहीं आता। किन्तु हम लकीर के फकीर अभी तक इस प्रथा को चलाए जा रहे हैं।

समय के परिवर्तन के साथ-साथ दहेज प्रथा एक कुप्रथा बन गई है और इसे नारी जाति के लिए ही नहीं समाज के लिए भी एक अभिशाप बन कर रह गई है। कुछ अमीर लोगों ने लड़की की शादी पर दिखावे के लिए ज़रूरत से ज्यादा खर्च करना शुरू कर दिया। देखादेखी मध्यमवर्ग में भी यह रोग फैलता गया। यह समझा जाने लगा कि लड़के के मातापिता लड़की को नहीं लड़के को या उसके माता-पिता को उपहार दे रहे हैं। देखा-देखी लड़कों वालों की भूख बढ़ती गई और खुल कर दहेज की माँग की जाने लगी। मनवांछित दहेज न मिल पाने पर लड़की को ससुराल में तंग किया जाने लगा। दहेज के लालच में लक्ष्मी मानी जाने वाली बहू को जला कर मार दिया जाने लगा। दहेज की बलि पर न जाने आज तक कितनी ही भोली-भाली लड़कियाँ चढ़ चुकी हैं।

भले ही सरकार ने दहेज विरोधी कई कानून बनाए हैं लेकिन इन कानूनों की सरेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने जनवरी, सन् 2007 में शादी विवाह में बारातियों की संख्या सम्बन्धी एक आदेश जारी किया था किन्तु इस आदेश की न तो कोई पालना कर रहा है और न ही कोई अधिकारी पालना करवा रहा है।

हमारे विचार से दहेज के इस अभिशाप से युवा वर्ग ही समाज को मुक्ति दिलवा सकता है। बिना दहेज के विवाह करके।

कंप्यूटर का जीवन में महत्त्व

आज के युग को कंप्यूटर का युग कहा जाता है। यह आधुनिक युग का एक ऐसा आविष्कार है जिसने मनुष्य की अनेक समस्याओं का समाधान कर दिया है। कंप्यूटर ने मनुष्य का समय और श्रम बचा दिया है। साथ ही दी है पूर्णता और शुद्धता अर्थात् एक्युरेसी। कंप्यूटर का प्रयोग आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लाभकारी सिद्ध हो रहा है। इसी बात को देखते हुए पंजाब सरकार ने स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। इस आदेश से कंप्यूटर का प्रवेश आज आम घरों में भी हो गया है।

कम्प्यूटर का सबसे बड़ा लाभ शिक्षा विभाग को हुआ है। कंप्यूटर की सहायता से परीक्षा परिणाम कुछ ही दिनों में घोषित होने लगे हैं। चुनाव प्रक्रिया में भी इसका प्रयोग चुनाव नतीजों को कुछ ही घंटों में घोषित किया जाने लगा है। बैंकों, रेलवे स्टेशनों, सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में कंप्यूटर के प्रयोग से काम को बड़ा सरल बना दिया है। यहाँ तक कि अब तो कई दुकानदार भी अपने बही खाते रखने या बिल बनाने के लिए कंप्यूटर का प्रयोग करने लगे हैं। आज प्रत्येक समाचार-पत्र कंप्यूटर पर ही तैयार होने लगा है। कंप्यूटर की एक अन्य चमत्कारी सुविधा इंटरनैट के उपयोग की है। इंटरनेट पर हमें विविध विषयों की जानकारी तो प्राप्त होती ही है, साथ ही हमें अपने मित्रों, रिश्तेदारों को ई-मेल द्वारा संदेश भेजने की सुविधा भी प्राप्त होती है। कंप्यूटर के साथ एक विशेष उपकरण (कैमरा इत्यादि) लगा कर हम दूर बैठे अपने मित्रों, रिश्तेदारों से सीधे बातचीत भी कर सकते हैं।

प्रकृति का यह नियम है कि जो वस्तु हमारे लिए लाभकारी होती है उसकी कई हानियाँ भी होती हैं। बच्चे कंप्यूटर वीडियो गेम्स खेलने में व्यस्त रहते हैं और अपना कीमती समय नष्ट करते हैं। युवा वर्ग अश्लील वैवसाइट देख कर, इंटरनैट पर अश्लील चित्र एवं चित्र भेज कर बिगड़ रहे हैं। कंप्यूटर पर अधिक देर तक बैठने पर नेत्रों की ज्योति पर तो प्रभाव पड़ता ही है शरीर में अनेक रोग भी पैदा होते हैं। अतः हमें चाहिए कि इस मशीनी मस्तिष्क के गुणों को ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए।

बढ़ते प्रदूषण की समस्या

मानव और प्रकृति के बीच जब संतुलन बिगड़ जाता है तो हमारा वातावरण दूषित हो जाता है। आज हमारे देश में प्रदूषण की समस्या बड़ी गम्भीर बनी हुई है। प्रदूषण के कारण ही हमारे जीवन की सुरक्षा को भी खतरा बना हुआ है। हमारे देश में प्रदूषण चार प्रकार का है-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण। इन्हीं प्रदूषणों के कारण हमें शुद्ध पीने का पानी, शुद्ध वायु, शांत वातावरण और भूमि की उर्वरा शक्ति नहीं मिल पा रही है।

देश में तेजी से हो रहा औद्योगीकरण प्रदूषण फैलाने का बड़ा कारण बन रहा है। कल कारखानों से उठने वाला धुआँ हमारी वायु को तो प्रदूषित करता है। इन कल कारखानों से छोड़ा जा रहा रसायन युक्त जल हमारे जल और भूमि को भी प्रदूषित कर रहा है। औद्योगीकरण के साथ-साथ शहरीकरण ने भी जल और वायु को दूषित कर दिया है। बड़ेबड़े नगरों में सीवरेज और कल कारखानों का दूषित जल पास की नदियों में डाला जाता है, शहरों में चलने वाले वाहनों का धुआँ वायु को दूषित कर रहा है और कूड़े कर्कट के ढेर वातावरण को दूषित कर रहे हैं शहरीकरण के कारण अनेक वृक्षों की कटाई हो रही है। हम यह नहीं समझते कि वृक्ष ही हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। पीपल जैसा वृक्ष तो हमें 24 घंटे शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करता है किन्तु हम धड़ाधड़ वृक्षकाट रहे हैं।

शहरों में ही नहीं गाँवों में भी प्रदूषण फैलाने के अनेक कार्य होते हैं। किसान लोग अधिक पैदावार की होड़ में कीटनाशक दवाओं और कृत्रिम खादों का प्रयोग करके भूमि की उर्वरा शक्ति को घटा रहे हैं। चावल की पराली को खेतों में ही जलाकर वायु प्रदूषण फैला रहे हैं। आज हम जो फल सब्जियाँ खाते हैं वे सब कीटनाशक दवाइयों से ग्रसित होती हैं। ये सब प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ जन-साधारण के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं।

यदि इस बढ़ते प्रदूषण को रोकने का कोई उपाय न किया गया तो आने वाला समय हमारे लिए अत्यन्त भयानक और घातक सिद्ध होगा। प्रदूषण रोकने के लिए हमें बड़े-बड़े उद्योगों के स्थान पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। वृक्ष लगाने के अभियान को और तेज़ करना होगा। वाहनों में धुआँ रहित पेट्रोल-डीज़ल के प्रयोग को अनिवार्य बनाना होगा। कल कारखानों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने अनिवार्य करने होंगे। प्रदूषण का जन्म ही न हो, ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए।

बढ़ती जनसंख्या की समस्या

किसी भी देश की उन्नति और आर्थिक विकास बहुत कुछ उस देश की जनसंख्या पर निर्भर होता है। भारत को जिन समस्याओं से जूझना पड़ रहा है उनमें तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या प्रमुख है। देश के विभाजन के समय सन् 1947 में देश की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो अब बढ़कर 125 करोड़ से ऊपर हो गई है। आज जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है। जिस गति से हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखकर लगता है कि यह शीघ्र ही चीन को पीछे छोड़ जाएगा।

देश की बढ़ती जनसंख्या अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है। जैसे खाद्य सामग्री की कमी, आवास की कमी, रोज़गार के साधनों की कमी आदि। देश की धरती तो उतनी ही है उस पर देश के औद्योगीकरण और बिजली परियोजनाओं के लिए बहुत-सी उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है। इस तरह खेती योग्य भूमि भी दिनों दिन घटती जा रही है। माना कि नई तकनीक से उपज में काफ़ी वृद्धि हुई है। अनाज के क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो गया है किन्तु यह स्थिति कब तक रहेगी कहा नहीं जा सकता।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार परिवार नियोजन जैसी कई योजनाओं पर काम कर रही है किन्तु इस योजना का लाभ अशिक्षित और गरीब लोग नहीं उठा रहे। कहा जा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण गरीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास और रूढ़िवादिता है।

जनसंख्या वृद्धि में एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत में औसत आयु गत पैंसठ सालों में 21 से बढ़कर 65 तक जा पहुँची है। साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से शिशु मृत्यु दर में भी काफी कमी आई है। बालविवाह अभी भी रुके नहीं।

यदि सरकार और जनता ने मिलजुल कर जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाने का कोई उपाय न किया तो देश को एक दिन खाने के लाले पड़ जाएँगे। हरित क्रान्ति, सफेद क्रान्ति जैसी कोई भी क्रान्ति कारगर सिद्ध न हो सकेगी अतः इस समस्या का समाधान ढूँढ़ना अत्यावश्यक है।

बढ़ती महँगाई की समस्या

आज आम लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या महंगाई की बनी हुई है। बड़ों के मुँह से हम खाद्य पदार्थों के जो भाव सुनते हैं तो हमें या तो झूठ लगता है या सपना। आज महँगाई इतनी बढ़ गई है कि आम आदमी को दो जून की रोटी जुटाना भी कठिन हो रहा है। पंजाबी कवि सूबा सिंह ने ठीक ही कहा है-‘घयो लभदा नहीं धुन्नी नूँ लान जोगा, कित्थों खानियाँ रांझे ने चूरियाँ’-सचमुच आज देसी घी दो सौ रुपए किलो से ऊपर बिक रहा है जो कभी तीन-चार रुपए किलो मिला करता था। तेल, घी, दालें तो अमीर आदमी की पहँच वाली बन कर रह गई हैं। गरीब तो बस यही कहकर संतोष कर लेते हैं कि ‘रूखी सूखी खायकर, ठंडा पानी पी।’.

पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने तो जलती पर तेल छिडकने का काम किया है। पेट्रोल, डीज़ल की कीमतें बढ़ने से बसों की यात्रा तो महँगी हुई ही है ट्रकों का माल भाड़ा भी बढ़ गया है, जिसके कारण फलों, सब्जियों, दालों इत्यादि खाद्य पदार्थों के दाम भी बढ़ गए हैं। सरकार अपने कर्मचारियों का प्रत्येक वर्ष दो बार महँगाई भत्ता बढ़ाती है, इससे कर्मचारियों को तो राहत मिलती नहीं उलटे चीज़ों की कीमतें अवश्य बढ़ जाती हैं।

महँगाई बढ़ने के साथ ही कालाबाजारी, तस्करी और काला धन, जमाखोरी जैसी समस्या बढ़ने लगती है। वर्ष 2008 के अन्त में विश्वव्यापी जो मंदी का दौर आया उसने महँगाई को और भी बढ़ा दिया। उस पर सोने पर सुहागे का काम किया सरकार की दुलमुल नीतियों ने। सरकार अपने मन्त्रियों के वेतन तो हर साल बढ़ा देती है किन्तु सरकारी कर्मचारी पे कमीशनों का कई वर्षों तक मुँह ताकते रहते हैं। मन्त्री अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए सत्ता में बने रहने के लिए बड़े-बड़े उद्योगों को जो सहूलतें दे रहे हैं उससे महँगाई बढ़ रही है।

महँगाई कैसे रुके या कैसे रोकी जाए यह हमारी समझ से तो बाहर है। हाँ यदि सरकार चाहे और दृढ़ संकल्प हो महँगाई पर कुछ हद तक रोक लग सकती है।

नशा बंदी

भारत में नशीली वस्तुओं का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी इस लत की अधिक शिकार हो रही है। यह चिन्ता का कारण है। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी ने कहा था कि जिस देश में करोड़ों लोग भूखे मरते हों वहाँ शराब पीना, गरीबों के रक्त पीने के बराबर है। किन्तु शराब ही नहीं अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। कोई भी खुशी का मौका हो शराब पीने पिलाने के बिना वह अवसर सफल नहीं माना जाता। होटलों, क्लबों में खुले आम शराब पी-पिलाई जाती है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए। शराब को दारू अर्थात् दवाई भी कहा जाता है किन्तु कौन ऐसा है जो इसे दवाई की तरह पीता है। यहाँ तो बोतलों की बोतलें चढ़ाई जाती हैं। शराब महँगी होने के कारण नकली शराब का धंधा भी फल-फूल रहा है। इस नकली शराब के कारण कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी है, यह हर कोई जानता है। कितने ही राज्यों की सरकारों ने सम्पूर्ण नशाबंदी लागू करने का प्रयास किया। किन्तु वे असफल रहीं। ताज़ा उदाहरण हरियाणा का लिया जा सकता है। कितने ही होटल बन्द हो गए और नकली शराब बनाने वालों की चाँदी हो गई। विवश होकर सरकार को नशाबंदी समाप्त करनी पड़ी।

पंजाब में भी सन् 1964 में टेकचन्द कमेटी ने नशाबंदी लागू करने का बारह सूत्री कार्यक्रम दिया था। किंतु जो सरकार शराब की बिक्री से करोड़ों रुपए कमाती हो, वह इसे कैसे लागू कर सकती है। आप शायद हैरान होंगे कि पंजाब में शराब की खपत देश भर में सब से अधिक है, किसी ने ठीक ही कहा है बुरी कोई भी आदत हो वह आसानी से नहीं जाती। किंतु सरकार यदि दृढ़ निश्चय कर ले तो क्या नहीं हो सकता।

सरकार को ही नहीं जनता को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि नशा अनेक झगड़ों को ही जन्म नहीं देता बल्कि वह नशा करने वाले के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ज़रूरत है जनता में जागरूकता पैदा करने की। नशाबंदी राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है। शराब की बोतलों पर चेतावनी लिखने से काम न चलेगा, कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

यह देखने में आया है कि देश का युवा वर्ग ही नहीं, किशोर वर्ग नशों की लपेट में आ रहा है। हमारे नेता यह कहते नहीं थकते कि देश में मादक द्रव्यों का प्रसार विदेशी शत्रुओं के कारण हो रहा है किन्तु अपने युवाओं को, बच्चों को समझाया तो जा सकता है।

नशीले पदार्थों से इस पीढ़ी को बचाने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए नहीं तो देश कमज़ोर हो जाएगा और साँप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का कोई लाभ न होगा।

खेलों का जीवन में महत्त्व

खेल-कूद हमारे जीवन की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। ये हमारे मनोरंजन का प्रमुख साधन भी हैं। पुराने जमाने में जो लोग व्यायाम नहीं कर सकते थे अथवा खेल-कूद में भाग नहीं ले सकते थे वे शतरंज, ताश जैसे खेलों से अपना मनोरंजन कर लिया करते थे। दौड़ना भागना, कूदना इत्यादि भी खेलों का ही एक अंग है। ऐसी खेलों में भाग लेकर हमारे शरीर की मांसपेशियाँ तथा शरीर के दूसरे अंग स्वस्थ हो जाया करते हैं। खेल-कूद में भाग लेकर व्यक्ति की मासिक थकावट दूर हो जाती है।

अंग्रेज़ी की प्रसिद्ध कहावत है कि All work and no play makes jack a dull boy. इस कहावत का अर्थ यह है कि कोई सारा दिन काम में जुटा रहेगा, खेल-कूद या मनोरंजन के लिए समय नहीं निकालेगा तो वह कुंठित हो जाएगा उसका शरीर रोगी बन जाएगा तथा वह निराशा का शिकार हो जाएगा। अतः स्वस्थ जीवन के लिए खेलों में भाग लेना अत्यावश्यक है। इस तरह व्यक्ति का मन भी स्वस्थ होता है। उसकी पाचन शक्ति भी ठीक रहती है, भूख खुलकर लगती है, नींद डटकर आती है, परिणामस्वरूप कोई भी बीमारी ऐसे व्यक्ति के पास आते डरती है।

खेलों से अनुशासन और आत्म-नियन्त्रण भी पैदा होता है और अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। बिना अनुशासन के व्यक्ति जीवन में उन्नति और विकास नहीं कर सकता। खेल हमें अनुशासन का प्रशिक्षण देते हैं। किसी भी खेल में रैफ्री या अंपायर नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ी को दण्डित भी करता है। इसलिए हर खिलाड़ी खेल के नियमों का पालन कड़ाई से करता है। खेल के मैदान में सीखा गया यह अनुशासन व्यक्ति को आगे चलकर जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी काम आता है। देखा गया है कि खिलाड़ी सामान्य लोगों से अधिक अनुशासित होते हैं।

खेलों से सहयोग व सहकार की भावना भी उत्पन्न होती है। इसे Team Spirit या Sportsmanship भी कहा जाता है। केवल खेल ही ऐसी क्रिया है जिसमें सीखे गए उपयुक्त गुण व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन में बहुत काम आते हैं। आने वाले जीवन में व्यक्ति सब प्रकार की स्थितियों, परिस्थितियों और व्यक्तियों के साथ काम करने में सक्षम हो जाता है। Team spirit से काम करने वाला व्यक्ति दूसरों से अधिक सामाजिक होता है। वह दूसरों में जल्दी घुल-मिल जाता है। उसमें सहन शक्ति और त्याग भावना दूसरों से अधिक मात्रा में पाई जाती है।

खेल-कूद में भाग लेना व्यक्ति के चारित्रिक गुणों का भी विकास करता है। खिलाड़ी चाहे किसी भी खेल का हो अनुशासनप्रिय होता है। क्रोध, ईर्ष्या, घृणा आदि हानिकारक भावनाओं का वह शिकार नहीं होता। खेलों में ही उसे देश प्रेम और एकता की शिक्षा मिलती है। एक टीम में अलग-अलग धर्म, सम्प्रदाय, जाति, वर्ग आदि के खिलाड़ी होते हैं। वे सब मिलकर अपने देश के लिए खेलते हैं।

इससे स्पष्ट है कि खेल जीवन की वह चेतन शक्ति है जो दिव्य ज्योति से साक्षात्कार करवाती है। अतः उम्र और शारीरिक शक्ति के अनुसार कोई न कोई खेल अवश्य खेलना चाहिए। खेल ही हमारे जीवन में एक नई आशा, महत्त्वाकांक्षा और ऊर्जा का संचार करते हैं। खेलों के द्वारा ही जीवन में नए-नए रंग भरे जा सकते हैं, इन्द्रधनुषी सुन्दर या मनोरम बनाया जा सकता है।

व्यायाम का महत्त्व

महार्षि चरक के अनुसार शरीर की जो चेष्टा देह को स्थिर करने एवं उसका बल बढ़ाने वाली हो, उसे व्यायाम कहते हैं। शरीर को स्वस्थ रखना व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की नितांत आवश्यकता है।

व्यायाम से हमारा अभिप्राय: वह नहीं है जो आज से कुछ वर्ष पहले समझा जाता था। अर्थात् दंड पेलना, बैठक लगाना आदि किन्तु आज के संदर्भ में व्यायाम का अर्थ किसी ऐसे काम करने से है जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहे। पुराने जमाने में स्त्रियाँ दूध दोहती थीं, बिलोती थीं, घर में झाड़ देती थीं, कपड़े धोती थीं और बाहर से कुएँ से खींचकर पीने के लिए पानी लाया करती थीं। ये सब क्रियाएँ व्यायाम का ही एक भाग हुआ करती थीं। किन्तु आजकल की स्त्रियों के पास इन सब व्यायामों के लिए समय ही नहीं है। जिसका परिणाम यह है कि आज की स्त्री अनेक रोगों का शिकार हो रही है।

पुराने जमाने में पुरुष भी सुबह सवेरे सैर को निकल जाया करते थे। बाहर ही स्नान इत्यादि करते थे। इस तरह उनका व्यायाम हो जाता था। हमारे बड़े बुर्जुगों ने हमारी दिनचर्या कुछ ऐसी निश्चित कर दी जिससे हमारा व्यायाम भी होता रहे और हमें पता भी न चले। जैसे सूर्य उदय होने से पहले उठना, बाहर सैर को जाना, दातुन कुल्ला करना आदि व्यायाम के ही अंग थे। समय बदलने के साथ-साथ हम व्यायाम के उस परिणाम को भूलते जा रहे हैं कि व्यायाम करने से व्यक्ति निरोग रहता है। उसके शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है। पाचन शक्ति ठीक रहती है और शरीर सुडौल बना रहता है।

जो लोग व्यायाम नहीं करते, वे आलसी और निकम्मे बन जाते हैं। सदा किसी-नकिसी रोग का शिकार बने रहते हैं। आज का न ही पुरुष न ही स्त्री, घर का छोटा-मोटा काम भी अपने हाथ से नहीं करना चाहता। सारा दिन कुर्सी पर बैठ कर काम करने वाला कर्मचारी यदि कोई व्यायाम नहीं करेगा तो वह स्वयं बीमारी को बुलावा देने का ही काम करेगा। भला हो स्वामी रामदेव का जिन्होंने लोगों को योग और प्राणायाम की ओर मोड़कर थोड़ा-बहुत व्यायाम करने की प्रेरणा दी है। उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति और शारीरिक आवश्यकता के अनुसार व्यायाम अवश्य करना चाहिए।

एक विद्यार्थी के लिए व्यायाम का अधिक महत्त्व है क्योंकि अपनी इस चढ़ती उम्र में जितना सुन्दर और अच्छा शरीर वह बना सकता है, जितनी भी शक्ति का संचय वह कर सकता है, उसे कर लेना चाहिए। यदि इस उम्र में उसने अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान न दिया तो सारी उम्र वह पछताता ही रहेगा। अतः हमारी विद्यार्थी वर्ग को सलाह है कि वह अपने इस जीवन में खेल-कूद में अवश्य भाग लें, योगासन और प्राणायाम, जो शरीर के लिए श्रेष्ठ व्यायाम है अवश्य करें। प्रातः और सायं भ्रमण के लिए अवश्य घर से बाहर निकलें क्योंकि आने वाला जीवन कोई सरलता लिए हुए नहीं आएगा। तब संघर्ष की मात्रा अधिक बढ़ जाएगी और व्यायाम के लिए समय निकालना कठिन हो जाएगा। अत: जो कुछ करना है इसी विद्यार्थी जीवन में ही कर लेना चाहिए।

समय का सदुपयोग

कहा जाता है कि आज का काम कल पर मत छोड़ो। जिस किसी ने भी यह बात कही है उसने समय के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही कही है। समय सबसे मूल्यवान् वस्तु है। खोया हुआ धन फिर प्राप्त हो सकता है किन्तु खोया हुआ समय फिर लौट कर नहीं आता। इसीलिए कहा गया है ‘The Time is Gold’ क्योंकि समय बीत जाने पर सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं आता फिर तो वही बात होती है कि ‘औसर चूकि डोमनी गावे तालबेताल।’ कछुआ और खरगोश की कहानी में भी कछुआ दौड़ इसलिए जीत गया था कि उसने समय के मूल्य को समझ लिया था। इसीलिए वह दौड़ जीत पाया। विद्यार्थी जीवन में भी समय के महत्त्व को एवं उसके सदुपयोग को जो नहीं समझता और विद्यार्थी जीवन आवारागर्दी और ऐशो आराम से जीवन व्यतीत कर देता है वह जीवन भर पछताता रहता है।

इतिहास साक्षी है कि संसार में जिन लोगों ने भी समय के महत्त्व को समझा वे जीवन में सफल रहे। पृथ्वी राज चौहान समय के मूल्य को न समझने के कारण ही गौरी से पराजित हुआ। नेपोलियन भी वाटरलू के युद्ध में पाँच मिनटों के महत्त्व को न समझ पाने के कारण पराजित हुआ। इसके विपरीत जर्मनी के महान दार्शनिक कांट ने जो अपना जीवन समय के बंधन में बाँधकर कुछ इस तरह बिताते थे कि लोग उन्हें दफ्तर जाते देख अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे।

आधुनिक जीवन में तो समय का महत्त्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। आज जीवन में भागम भाग और जटिलता इतनी अधिक बढ़ गई है कि यदि हम समय के साथ-साथ कदम मिलाकर न चलें तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जाएँगे। आज समय का सदुपयोग करते हुए सही समय पर सही काम करना हमारे जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

विद्यार्थी जीवन में समय का सदुपयोग करना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि विद्यार्थी जीवन बहुत छोटा होता है। इस जीवन में प्राप्त होने वाले समय का जो विद्यार्थी सही सदुपयोग कर लेते हैं वे ही भविष्य में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। और जो समय को नष्ट करते हैं, वे स्वयं नष्ट हो जाते हैं।

इसलिए हमारे दार्शनिकों, संतों आदि ने अपने काम को तुरन्त मनोयोग से करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि ‘काल करे सो आज कर आज करे सो अब।’ कल किसने देखा है अतः दृष्टि वर्तमान पर रखो और उसका भरपूर प्रयोग करो। कर्मयोगी की यही पहचान है। जीवन दुर्लभ ही नहीं क्षणभंगुर भी है अतः जब तक साँस है तब तक समय का सदुपयोग करके हमें अपना जीवन सुखी बनाना चाहिए।

आँखों देखा हॉकी मैच
अथवा
मेरा प्रिय खेल

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारतं हॉकी के खेल में विश्वभर में सब से आगे रहा किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला।

यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फारवर्ड खिलाडियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये। परन्तु नामधारी एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेज़ी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये। रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेजी से शुरू हुआ। रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

आँखों देखा फुटबाल मैच

विश्वभर में फुटबाल का खेल सर्वाधिक लोकप्रिय है। केवल यही एक ऐसा खेल है जिसे देखने के लिए लाखों की संख्या में दर्शक जुटते हैं। फुटबाल के खिलाड़ी भी विश्व भर में सबसे अधिक सम्मान एवं धन प्राप्त करते हैं। 90 मिनट का यह खेल अत्यन्त रोचक, जिज्ञासा भरा होता है। संयोग से पिछले महीने मुझे पंजाब पुलिस और जे० सी० टी० फगवाड़ा की टीमों के बीच हुए मैच को देखने का अवसर मिला। जे० सी० टी० की टीम पिछले वर्ष संतोष ट्राफी की विजेता टीम रही थी। मैच शुरू होते ही पंजाब पुलिस ने विरोधी टीम पर काफी दबाव बनाये रखा परन्तु जे० सी० टी० की टीम भी कोई कम नहीं थी। उसके खिलाड़ियों को थोड़ा अवसर भी मिलता तो वे पंजाब पुलिस के क्षेत्र में जा पहुँचते। पंजाब पुलिस ने अपना आक्रमण और भी तेज़ कर दिया। उनके खिलाड़ियों में आपसी तालमेल और पासिंग तो देखते ही बनता था। उनकी हर मूव को देखकर दर्शक वाह! वाह। कर उठते थे। इस मैच को देखने के लिए पंजाब पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी भी मैदान में मौजूद थे। सैंकड़ों की संख्या में सिपाही भी अपने खिलाड़ियों को , उत्साहित करने के लिए बक-अप कर रहे थे। पहले मध्यान्तर के 26वें मिनट में पंजाब पुलिस के खिलाड़ियों ने इतना बढ़िया मूव बनाया कि जे० सी० टी० के खिलाड़ी देखते ही रह गये और पंजाब पुलिस ने एक गोल दाग दिया। दर्शक दीर्घा में बैठे लोग खुशी से नाच उठे। इस गोल के बाद जे० सी० टी० के खिलाड़ी रक्षा पर उतर आए। जब भी बाल लेकर आगे बढ़ते पंजाब पुलिस के खिलाड़ी उन से बाल छीन लेते। इसी बीच जे० सी० टी० की टीम ने एक ज़ोरदार आक्रमण किया किन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर की दाद देनी होगी कि उसने गोल को फुर्ती से बचा लिया। उधर पंजाब पुलिस ने अपना दबाव फिर बढ़ाना शुरू किया। मध्यान्तर के समय पंजाब पुलिस की टीम एक शून्य से आगे थी। दूसरे मध्यान्ह के 45 मिनट में खेल में काफ़ी तेज़ी आई परन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर ने कई निश्चित गोल बचा कर अपनी टीम को जीत दिलाई। मैच समाप्त होते ही पंजाब पुलिस के कर्मचारियों ने अपनी टीम के खिलाड़ियों को कंधों पर उठा लिया। आज उन्होंने देश की एक प्रसिद्ध टीम को हराया था। कोई दो घण्टे तक मैंने इस मैच का जैसा आनन्द उठाया वह मुझे वर्षों याद रहेगा।

विद्यार्थी और अनुशासन

अनुशासन दो शब्दों से मिलकर बना है-अनु और शासन। अनु का अर्थ है पीछे और शासन का अर्थ है आज्ञा। अतः अनुशासन का अर्थ है-आज्ञा के आगे-पीछे चलना। समाज और राष्ट्र की व्यवस्था और उन्नति के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनका पालन करना ही अनुशासन है। अतः हम जो भी कार्य अनुशासनबद्ध होकर करेंगे तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होगी। अनुशासन के अन्तर्गत उठना-बैठना, खाना-पीना, बोलना-चलना, सीखानासिखाना, आदर-सत्कार करना आदि सभी कार्य सम्मिलित हैं। इन सभी कार्यों में अनुशासन का महत्त्व है।

अनुशासन की शिक्षा स्कूल की परिधि में ही सम्भव नहीं है। घर से लेकर स्कूल, खेल के मैदान, समाज के परकोटों तक में अनुशासन की शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। अनुशासनप्रियता विद्यार्थी के जीवन को जगमगा देती है। विद्यार्थियों का कर्तव्य है कि उन्हें पढ़ने के समय पढ़ना और खेलने के समय खेलना चाहिए। एकाग्रचित होकर अध्ययन करना, बड़ों का आदर करना, छोटों से स्नेह करना ये सभी गुण अनुशासित छात्र के हैं। जो छात्र माता-पिता तथा गुरु की आज्ञा मानते हैं वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं तथा उनका जीवन अच्छा बनता है। वे आत्मविश्वासी, स्वावलम्बी तथा संयमी बनते हैं और जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं।

अनुशासन में रहने वाले छात्र को अपने जीवन में कदम-कदम पर यश तथा सफलता मिलती है। उनका भविष्य उज्ज्वल हो जाता है। ऐसे ही छात्र राष्ट्र नेता बनते हैं और देश का संचालन करते हैं। विद्यार्थी का जीवन सुखी तथा सम्पन्न अनुशासनप्रियता से ही बनता है। अनुशासन भी दो प्रकार का होता है-

  • आन्तरिक,
  • बाह्य।

दूसरे प्रकार का अनुशासन परिवार तथा विद्यालयों में देखने को मिलता है। यह भय पर आधारित होता है। जब तक विद्यार्थी में भय बना रहता है तब तक वह नियमों का पालन करता है। भय समाप्त होते ही वह उद्दण्ड हो जाता है। भय से प्राप्त अनुशासन से बालक डरपोक हो जाता है।

आन्तरिक अनुशासन ही सच्चा अनुशासन है। जो कुछ सत्य है, कल्याणकारी है, उसे स्वेच्छा से मानना ही आन्तरिक अनुशासन कहा जाता है। आत्मानुशासित व्यक्ति अपने शरीर, बुद्धि, मन पर पूरा-पूरा नियन्त्रण स्थापित कर लेते हैं। जो अपने पर नियन्त्रण कर लेता है वह दुनिया पर नियन्त्रण कर लेता है।

बड़े दुर्भाग्य की बात है कि छात्र-वर्ग अनुशासन के महत्त्व को भली-भांति नहीं समझ पाता है जिसका परिणाम यह होता है कि यह नित्य-प्रति स्कूल तथा कालेजों में तोड़-फोड़, परीक्षा में नकल करना, अध्यापकों को पीटना आदि कार्य करता है। तोड़-फोड़, लूट-पाट, आगज़नी, पथराव आदि तो नित्य देखने को मिलते हैं। ऐसे छात्र न विद्या ग्रहण कर पाते हैं और न अपने संस्कारों को ही ठीक कर पाते हैं। वे समाज के लिए कलंक बन जाते हैं और समाज को सदैव दुःख ही देते हैं। ऐसे छात्रों से न माता-पिता को सुख मिलता है और न गुरुजनों को। वे देश के लिए भार बन जाते हैं।

अनुशासन से जीवन सुखमय तथा सुन्दर बनता है। अनुशासनप्रिय व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर लेते हैं। हमें चाहिए कि अनुशासन में रहकर अपने जीवन को सुखी, सम्पन्न एवं सुन्दर बनाएँ।

किसी धार्मिक स्थान की यात्रा
अथवा
किसी पर्वतीय यात्रा का वर्णन
अथवा
वैष्णो देवी की यात्रा

आश्विन के नवरात्रे शुरू होते ही हमने मित्रों सहित माता वैष्णो देवी के दर्शन का निश्चय किया। प्रातः आठ बजे हम चण्डीगढ़ के बस स्टैण्ड पर पहुँचे। वहाँ से हमने पठानकोट के लिए बस ली। वहाँ से हमने जम्मू के लिए बस ली। जम्मू हम सायँ कोई सात बजे पहुँच गए। रात हमने जम्मू की एक धर्मशाला में गुजारी। रात में ही हमने जम्मू के ऐतिहासिक रघुनाथ जी तथा शिव मन्दिर के दर्शन किये। अगले दिन प्रात:काल में ही कटरा जाने वाली बस में सवार हुए। रास्ते भर सभी यात्री माता की भेंटें गाते हुए जय माँ शेराँ वाली के नारे लगा रहे थे। कटरा जम्मू से कोई पचास किलोमीटर दूर है। कटरा पहुँचकर हमने अपना नाम दर्ज करवाया और पर्ची ली। रात हमने कटरा में बिताई। दूसरे दिन सुबह ही हम माता की जय पुकारते हुए माँ के दरवार की और पैदल चल दिए। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है। कटरा से माँ के दरबार को जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक सीढ़ियों वाला मार्ग है और दूसरा साधारण। हमने साधारण रास्ता ही चुना। सभी भक्त जन माँ की जय पुकारते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे। पाँच किलोमीटर चलकर हम चरण पादुका मंदिर पहुंचे।

चरण पादुका मन्दिर से चलकर हम आदकुमारी मंदिर पहुंचे। यह मन्दिर कटरा और माता के भवन के मध्य में स्थित है। यहाँ श्रद्धालुओं के रहने और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। आदकुमारी मन्दिर से हम गर्भवास गुफा की ओर चल पड़े। हमने भी इस गुफा को पार किया और माँ से जन्म मरण से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की।

आगे का मार्ग बड़ा दुर्गम था। शायद इसी कारण इसे हाथी-मत्था की चढ़ाई कहते हैं। इस चढ़ाई को पार करके हम बाण गंगा और भैरों घाटी को पार कर माता के मन्दिर के निकट पहुँच गए। वहाँ हमने अपना नाम दर्ज करवाया बारी आने पर हमने माँ वैष्णो देवी के दर्शन किये। मन्दिर की गुफा में तीन पिण्डियां हैं, जो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से विख्यात हैं। हमने माँ के चरणों में माथा टेका, प्रसाद लिया और पीछे के रास्ते से बाहर आ गए। बाहर आकर हमने कन्या पूजन किया और कन्याओं को दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। वापसी पर हम भैरव मन्दिर के दर्शन करते हुए कटरा आ गए। कटरा से जम्मू और पठानकोट होते हुए चण्डीगढ़ वापस आ गए।

सत्संगति

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे दूसरे के साथ किसी-न-किसी रूप में संपर्क स्थापित करना पड़ता है। अच्छे लोगों की संगति जीवन को उत्थान की ओर ले जाती है तो बुरी संगति पतन का द्वार खोल देती है।

संगति के प्रभाव से कोई नहीं बच सकता। हम जैसी संगति करते हैं, वैसा ही हमारा आचरण बन जाता है। रहीम ने कहा –

कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसे संगति बैठिए, तैसोई गुण दीन॥

सत्संगति का महत्त्व-सत्संगति जीवन के लिए वरदान की तरह है। सत्संगति के द्वारा मनुष्य अनेक प्रकार की अच्छी बातें सीखता है। जिसको अच्छी संगति प्राप्त हो जाए उसका जीवन सफल बन जाता है। अच्छी संगति में रहने पर अच्छे संस्कार पैदा होते हैं। बुरी संगति बुरे विचारों को जन्म देती है। मनुष्य की पहचान उसकी संगति से होती है। अच्छे परिवार में जन्म लेने वाला बालक बुरी संगति में पड़ कर बुरा बन जाता है। इसी प्रकार बुरे परिवार में जन्म लेने वाले बालक को यदि अच्छी संगति प्राप्त हो जाती है तो वह अच्छा एवं सदाचारी बन जाता है।

बिनु सत्संगु विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

सत्संगति मनुष्य के जीवन को सफल बनाती है तो कुसंगति जीवन को नष्ट करती है। कहा भी है, “दुर्जन यदि विद्वान् भी हो तो उसका साथ छोड़ देना चाहिए। मणि धारण करने वाला सांप क्या भयंकर नहीं होता।” बुरी आदतें मनुष्य बुरी संगति से सीखता है। बुरी पुस्तकें, अश्लील चल-चित्र आदि भी मनुष्य को विनाश की ओर ले जाते हैं। बुरे लोगों से बचने की प्रेरणा देते हुए सूरदास जी ने कहा है –

छाडि मन हरि बिमुखन को संग।
चाके संग कुबुद्धि उपजत हैं परत भजन में भंग॥

स्वच्छता अभियान

स्वच्छता अभियान को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ या ‘स्वच्छ भारत मिशन’ भी कहा जाता है। यह अभियान भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के स्वप्न स्वच्छ भारत को पूर्ण करने हेतू शुरू किया गया। यह एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है। इस अभियान को अधिकारिक तौर पर राजघाट, नई दिल्ली में 2 अक्तूबर, 2014 को महात्मा गाँधी जी की 145वीं जयन्ती पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया।

स्वच्छता अभियान में प्रत्येक भारतवासी से आग्रह किया था कि वे इस अभियान से जुड़े और अपने आसपास के क्षेत्रों की साफ-सफाई करें। इस अभियान को सफल बनाने के लिए उन्होंने देश के 11 महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी लोगों को इसका प्रचार करने के लिए चुना जिनमें कुछ ऐसे फिल्मकार, क्रिकेटर तथा महान लोग हैं जिनको लोग सुनना पसंद करते हैं। इस अभियान के अंतर्गत कई शहरी तथा ग्रामीण योजनाएं बनाई गई जिसमें शहरों तथा गांवों में सार्वजनिक शौचालय बनाने की योजनाएं हैं। सरकारी कार्यालयों तथा सार्वजनिक स्थलों पर पान, गुटखा, धूम्रपान जैसे गंदगी फैलाने वाले उत्पादों पर रोक लगा दी गई। इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वयं मोदी जी ने सड़कों पर साफसफाई की थी जिसे देखकर लोगों में भी साफ-सफाई के प्रति उत्साह पैदा हो गया।

स्वच्छता अभियान के लिए बहुत सारे नारों का भी प्रयोग किया गया है ; जैसे –

  • एक कदम स्वच्छा की ओर।
  • स्वच्छता अपनाना है, समाज में खुशियां लाना है।
  • गाँधी जी के सपनों का भारत बनाएंगे, चारों तरफ स्वच्छता फैलाएंगे।

स्वच्छता अभियान को अपनाने से कोई हानि नहीं अपितु लाभ ही लाभ होंगे। इससे हमारे आस-पास की हर जगह साफ-सुथरी होगी। साफ-शुद्ध वातावरण में हम और हमारा परिवार बीमार कम पड़ेगा। देश में हर तरफ खुशहाली आएगी और आर्थिक विकास होगा।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Kahani Lekhan कहानी-लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 7th Class Hindi Rachana कहानी-लेखन (2nd Language)

कहानी – रचना

1. प्यासा कौआ
गर्मियों के दिन थे। दोपहर के समय बहुत सख्त गर्मी पड़ रही थी। एक कौआ पानी की तलाश में इधर – उधर भटकता रहा लेकिन कहीं भी पानी न मिला। अन्त में वह थका हुआ एक बाग में पहुँचा। वह पेड़ की शाखा पर बैठा हुआ था कि अचानक उसकी नज़र वृक्ष के नीचे पड़े एक घड़े पर गई। वह उड़कर वहाँ गया उसने देखा कि घड़े में पानी है। वह पानी पीने के लिए नीचे झुका लेकिन उसकी चोंच पानी तक न पहुँच सकी, क्योंकि घड़े में पानी बहुत कम था।

वह हताश नहीं हुआ बल्कि पानी पीने के लिए उपाय सोचने लगा। तभी उसे एक उपाय सूझा। उसने आस – पास बिखरे हुए कंकर उठाकर घड़े में डालने शुरू कर दिये। कंकड़ पड़ने से पानी ऊपर आ गया। उसने पानी पिया और उड़ गया।

शिक्षा – जहाँ चाह वहाँ राह।
अथवा
आवश्यकता आविष्कार की जननी है।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

2. चालाक लोमड़ी
एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह भोजन की खोज में इधर – उधर घूमने लगी। जब उसे सारे जंगल में भटकने के बाद भी कुछ न मिला तो वह गर्मी और भूख से परेशान होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई। अचानक उसकी नज़र ऊपर गई। वृक्ष पर एक कौआ बैठा हुआ था। उसके मुँह में रोटी का टुकड़ा था। लोमड़ी के मुँह में पानी भर आया। वह कौए से रोटी छीनने का उपाय सोचने लगी।

तभी उसने कौए को कहा, “क्यों भई कौआ भैया ! सुना है तुम गीत बहुत अच्छे गाते हो। क्या मुझे गीत नहीं सुनाओगे ?’ कौआ अपनी प्रशंसा को सुनकर बहुत खुश हुआ। वह उसकी बातों में आ गया। गाना गाने के लिए उसने जैसे ही मुँह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया। लोमड़ी ने झट से वह टुकड़ा उठाया और नौ दो ग्यारह हो गई। अब कौआ अपनी मूर्खता पर पछताने लगा।

शिक्षा – झूठी प्रशंसा से बचो।

3. दो बिल्लियाँ और बन्दर
किसी नगर में दो बिल्लियाँ रहती थीं। एक दिन उन्हें रोटी का टुकड़ा मिला। वे आपस में लड़ने लगीं। वे उसे आपस में समान भागों में बाँटना चाहती थीं लेकिन उन्हें कोई ढंग न मिला।

उसी समय एक बन्दर उधर आ निकला। वह बहुत चालाक था। उसने बिल्लियों से लड़ने का कारण पूछा। बिल्लियों ने उसे सारी बात सुनाई। वह तराजू ले आया और बोला, “लाओ, मैं तुम्हारी रोटी को बराबर बाँट देता हूँ।” उसने रोटी के दो टुकड़े लेकर एक – एक पलड़े में रख दिये। जिस पलड़े में रोटी अधिक होती, बन्दर उसे थोड़ी – सी तोड़ कर खा लेता।

इस प्रकार थोड़ी – सी रोटी रह गई। बिल्लियों ने अपनी रोटी वापस मांगी। लेकिन बन्दर ने शेष बची रोटी भी मुँह में डाल ली। बिल्लियाँ मुँह देखती रह गईं।

शिक्षा – आपस में लड़ना – झगड़ना अच्छा नहीं।

4. एकता में बल
किसी गाँव में एक बूढा किसान रहता था। उसके चार पुत्र थे। वे चारों बहुत आलसी थे। आपस में लड़ते – झगड़ते रहते थे। किसान ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन व्यर्थ । एक दिन उसने अपने चारों पुत्रों को अपने पास बुलाया तथा एक लकड़ियों का गट्ठा लाने को कहा। वे . लकड़ियों का गट्ठा ले आए। उसने हर एक लड़के को वह गट्ठा तोड़ने के लिए दिया लेकिन कोई भी उसे न तोड़ सका । तब उसने गट्ठा खोलकर एक – एक लकड़ी सभी को तोड़ने को दी। अब सभी ने तोड़ दी। तब उसने उन्हें समझाया कि “अगर तुम इन लकड़ियों की तरह इकटे रहोगे तो तुम्हारा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। अगर तुम अकेले – अकेले रहोगे तो लोग तुम्हें नष्ट कर देंगे। अतः तुम सब इकट्ठे रहो। लड़ना, झगड़ना नहीं। एकता में ही बल है।” यह सुनकर वे सब मिल – जुल कर रहने लगे।

शिक्षा – मिल – जुल कर रहना चाहिए
अथवा
एकता में बल है।

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5. अंगूर खट्टे हैं
एक बार एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह भोजन की तलाश में इधर – उधर भटकती रही लेकिन कहीं से भी उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला। अन्त में थक हार कर वह एक बाग में गई। वहाँ उसने अंगूर की बेल पर कुछ अंगूरों के गुच्छे देखे। वह उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुई। वह अंगूरों को खाना चाहती थी। अंगूर बहुत ऊँचे थे। वह उन्हें पाने के लिए ऊँची – ऊँची छलांगें लगाने लगी। किन्तु वह उन तक पहुँच न सकी। वह बहुत थक चुकी थी। आखिर वह बाग से बाहर जाती हुई कहने लगी कि अंगूर खट्टे हैं। यदि मैं इन्हें खाऊँगी तो बीमार हो जाऊँगी।

शिक्षा – जो चीज़ प्राप्त न कर सको, उसे बुरा मत कहो।

6. लालची कुत्ता
एक कुत्ता था। वह बहुत लालची था। वह भोजन की खोज में इधर – उधर गया। परन्तु कहीं भी उसे भोजन न मिला। अन्त में उसे एक होटल में से मांस का एक टुकड़ा मिला। वह उसे अकेले में बैठकर खाना चाहता था। वह उसे लेकर भाग गया। एकान्त स्थान की खोज करते – करते वह एक नदी के किनारे पहुँचा। अचानक उसने अपनी परछाईं नदी में देखी। उसने समझा कि कोई दूसरा कुत्ता है जिसके मुँह में भी मांस का टुकड़ा है। उसने सोचा क्यों न इसका टुकड़ा भी छीन लिया जाए। वह ज़ोर से भौंका। भौंकने से उसका अपना मांस का टुकड़ा भी नदी में गिर पड़ा। अब वह अपना टुकड़ा भी खो बैठा। अब वह बहुत पछताया तथा मुंह लटकाता गाँव को वापस आ गया।

शिक्षा – लालच बुरी बला है,
अथवा
लालच अच्छा नहीं होता।

7. शेर और चुहिया
एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन वह एक वक्ष के नीचे सो रहा था। पास ही एक चुहिया का बिल था। अचानक चुहिया बाहर निकली और शेर को सोया देखकर उस पर कूदने लगी। शेर की नींद उचट गई। वह जाग पड़ा। उसने चुहिया को अपने पंजे में पकड़ लिया। वह उसे मारने लगा था कि चुहिया ने विनय की कि मुझे क्षमा कर दो। मैं भी कभी आपके काम आऊँगी। शेर ने हँसकर उसे छोड़ दिया।

एक दिन जंगल में एक शिकारी आया। उसने वहाँ जाल बिछा दिया। अचानक शेर उस जाल में फँस गया। शेर ने वहाँ से छूटने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु वह अपने आपको छुड़ा न पाया और ज़ोर – ज़ोर से गरजने लगा। शेर की गरज को सुनकर चुहिया बिल से निकल कर उसकी सहायता के लिए दौड़ी। चुहिया ने अपने मित्र को जाल में फँसा देखकर सारा जाल काट दिया और शेर आज़ाद हो गया। उसने चुहिया का धन्यवाद किया और चला गया।

शिक्षा – किसी को छोटा मत समझो।

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8. हाथी और दर्जी
किसी राजा के पास एक हाथी था। हाथी प्रतिदिन स्नान करने के लिए नदी पर जाया करता था। रास्ते में एक दर्जी की दुकान पड़ती थी। दर्जी बहुत दयालु तथा उदार था। उसकी हाथी से मित्रता हो गई। वह हाथी को प्रतिदिन कुछ – न – कुछ खाने के लिए देता था।

एक दिन दर्जी क्रोध में बैठा हुआ था। हाथी आया और कुछ प्राप्त करने के लिए अपनी सूंड आगे की। दर्जी ने उसे कुछ खाने के लिए नहीं दिया, परन्तु उसकी सूंड में सूई चुभो दी। हाथी को क्रोध आ गया। वह नदी पर गया। उसने स्नान किया और लौटते समय अपनी सूंड में गन्दा पानी भर लिया। दर्जी की दुकान पर पहुँच कर उसने सारा गन्दा पानी उसके कपड़ों पर फेंक दिया। दर्जी के सारे कपड़े खराब हो गए। इस तरह हाथी ने दर्जी से बदला लिया।

शिक्षा – जैसे को तैसा।

9. नकलची बन्दर और सौदागर
एक सौदागर था। वह टोपियाँ बेचकर अपना पेट पाला करता था। एक दिन वह टोपियाँ बेचने दूसरे गाँव में गया। गर्मी से व्याकुल होकर वह वृक्ष के नीचे बैठ गया। बैठते ही उसे नींद आने लगी। वह टोपियों से भरा सन्दूक पास रखकर सो गया। उसी वृक्ष पर कुछ बन्दर बैठे थे। वे झट नीचे उतरे, सौदागर के सन्दूक से टोपियाँ निकाल कर उन्होंने अपने सिर पर पहन लीं और छलांगें लगाते हुए वृक्ष पर चढ़ गए। नींद तथा रचना भाग खुलने पर सौदागर ने सन्दूक खुला देखा और टोपियाँ उसमें से गुम पाईं। क्या मेरी टोपियाँ कोई चुरा ले गया है ? वह यह सोच ही रहा था कि तभी उसकी निगाह वृक्ष के ऊपर टोपियाँ पहने बन्दरों पर पड़ी।

सौदागर ने बन्दरों को बहुत डराया लेकिन टोपियाँ प्राप्त करने में उसे सफलता न मिली। अन्त में उसने एक उपाय सोचा और सोचते ही अपने सिर से टोपी उतार कर नीचे फेंक दी। इस पर बन्दरों ने भी अपनी – अपनी टोपियाँ सिर से उतार कर ज़मीन पर फेंक दी। सौदागर ने टोपियाँ इकट्ठी की और अपने घर की ओर चल पड़ा।

शिक्षा – जो काम बुद्धि से हो सकता है, वह ताकत से नहीं।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

10. झूठा गडरिया
किसी गाँव में एक गडरिया रहता था। वह प्रतिदिन भेड़ों को चराने के लिए जंगल में ले जाता था। सायँकाल को वह सब भेड़ों के साथ गाँव को लौट आता था। एक दिन गडरिया बालक को गाँव वालों से मज़ाक करने की सूझी। उसने भेड़िया ! भेड़िया ! की आवाज़ दी। गाँव वाले हाथ में लाठियाँ लिए दौड़े आए। उनको देखकर गडरिया बालक हँस पड़ा। उसने कहा, मैंने तो मज़ाक किया था। वे नाराज होकर चले गए। एक – दो बार उसने फिर वैसा ही किया।

एक दिन सचमुच भेड़िया वहाँ आ गया। बालक ने बड़ा शोर मचाया। पर उसकी सहायता के लिए कोई नहीं आया। भेड़िये ने बहुत – सी भेड़ें मार दी। गडरिये ने वृक्ष पर चढ़कर अपनी जान बचाई।

शिक्षा – झूठे व्यक्ति पर कोई विश्वास नहीं करता।

11. ईमानदार लकड़हारा
एक गाँव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह जंगल से लकड़ियाँ काट कर लाता और उन्हें बेचकर अपना गुजारा करता था।

एक दिन वह नदी के किनारे वृक्ष पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रहा था। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ा छूटकर नदी में गिर पड़ा। लकड़हारा सोचने लगा कि अब मैं अपना निर्वाह कैसे करूंगा ? सोचते – सोचते उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह कुछ देर तक रोता रहा। इतने में वहाँ एक देवता प्रकट हुआ। उसने लकड़हारे से पूछा तुम रो क्यों रहे हो ? लकड़हारे ने सारी बात बताई। देवता पानी में कूद पड़ा और सोने का कुल्हाड़ा निकाल कर बाहर लाया। उसने लकड़हारे से पूछा क्या यही तुम्हारा कुल्हाड़ा है ? लकड़हारे ने कहा – नहीं श्रीमान् जी, यह कुल्हाड़ा मेरा नहीं है। देवता ने फिर पानी में डुबकी लगाई और एक चाँदी का कुल्हाड़ा निकाल लाया। परन्तु लकड़हारे ने वह भी नहीं लिया। अन्त में देवता ने लोहे का कुल्हाड़ा बाहर निकाला। इसे देखकर लकड़हारे ने कहा – श्रीमान् जी, यही मेरा कुल्हाड़ा है। देवता उसकी ईमानदारी पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे तीनों कुल्हाड़े दे दिए।

शिक्षा –

  • मनुष्य को ईमानदार बनना चाहिए।
  • ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

12. दो मित्र और रीछ
एक बार दो मित्र इकटे व्यापार करने घर से चले। दोनों ने एक – दूसरे को वचन दिया कि वे मुसीबत के समय एक – दूसरे की सहायता करेंगे। चलते – चलते दोनों एक भयंकर जंगल में जा पहँचे।

जंगल बहुत विशाल तथा घना था। दोनों मित्र सावधानी से जंगल में से गुजर रहे थे। एकाएक उन्हें सामने से एक रीछ आता हुआ दिखाई दिया। दोनों मित्र भयभीत हो गए। उस रीछ को पास आता देखकर एक मित्र जल्दी से वृक्ष पर चढ़कर पत्तों में छिप कर बैठ गया। दूसरे मित्र को वृक्ष पर चढ़ना नहीं आता था। वह घबरा गया, परन्तु उसने सुना था कि रीछ मरे हुए आदमी को नहीं खाता। वह झट अपना साँस रोक कर भूमि पर लेट गया। – रीछ ने पास आकर उसे सूंघा और मरा हुआ समझकर वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद पहला मित्र वृक्ष से नीचे उतरा। उसने दूसरे मित्र से कहा – “उठो, रीछ चला गया। यह तो बताओ कि उसने तुम्हारे कान में क्या कहा था ?” भूमि पर लेटने वाले मित्र ने कहा कि रीछ केवल यही कह रहा था कि स्वार्थी मित्र पर विश्वास मत करो।

शिक्षा –

  1. मित्र वह है जो विपत्ति में काम आए।
  2. स्वार्थी मित्र से हमेशा दूर रहो।

13. खरगोश और कछुआ
किसी वन में खरगोश और कछुआ पक्के मित्र रहते थे। खरगोश अपनी तेज़ दौड़ का अभिमान करता था। एक दिन दोनों सैर को निकले। खरगोश तेज़ चलता तो कछुआ धीरे धीरे। खरगोश ने कछुए से कहा – भाई कछुए तुम तो बहुत सुस्त हो। यदि मेरे साथ दौड़ लगाओ तो मैं तुम्हें बुरी तरह हरा सकता हूँ। कछुआ भी अपनी बुराई सहन न कर सका। उसने दौड़ लगाना स्वीकार कर लिया।

दोनों की दौड़ शुरू हो गई। खरगोश इतना तेज़ भागा कि कछुआ बहुत पीछे रह गया। रास्ते में एक सुन्दर बगीचे को देखकर खरगोश ने सोचा क्यों न कुछ देर यहाँ आराम कर लिया जाए। जब कछुआ यहाँ आएगा फिर दौड़ लगा लूँगा और उससे पहले तालाब पर पहुँच जाऊँगा। यह सोचकर खरगोश वहाँ लेट गया। ठण्डी – ठण्डी वायु चल रही थी। लेटते ही उसे नींद आ गई। थोड़ी देर के बाद कछुआ भी वहाँ आ गया। खरगोश को सोता देखकर वह चुपके से आगे निकल गया। धीरे – धीरे वह तालाब पर पहले पहुँच गया।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

खरगोश की जब नींद खुली तो उसने सोचा कछुआ अभी पीछे ही होगा। उसने फिर दौड़ना शुरू कर दिया। जब वह तालाब पर पहुँचा तो कछुआ पहले ही वहाँ पहुँचा हुआ था। यह देखकर वह बहुत लज्जित हुआ।

शिक्षा –

  1. सहज पके सो मीठा होय।
  2. घमण्डी का सिर नीचा।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Muhavare Ka Vakya Mein Prayog मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 7th Class Hindi Grammar मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग (2nd Language)

1. अन्धे की लकड़ी एकमात्र सहारा,
प्रयोग – अब तो रमेश ही बुढ़ापे में मुझ अन्धे की लकड़ी है।

2. अंगूठा दिखाना – साफ़ इन्कार करना,
प्रयोग – जब मैंने सुरेश से दस रुपए मांगे तो उसने अंगूठा दिखा दिया।

3. अपना उल्लू सीधा करना – अपना मतलब निकालना,
प्रयोग – आजकल हर कोई अपना उल्लू सीधा करना चाहता है।

4. अंग – अंग हिल जाना – थक जाना,
प्रयोग – दिन भर मेहनत करने से मजदूरों का अंग – अंग हिल जाता है।

5. अपने पैरों पर खड़े होना आत्मनिर्भर होना,
प्रयोग – बच्चों को प्रारम्भ से ही ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे वे बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

6. आँखों का तारा बहुत प्यारा,
प्रयोग – सुनील अपने माता – पिता की आँखों का तारा है।

7. आँख में खटकना – बुरा लगना,
प्रयोग – शरारती बच्चे अध्यापक की आँख में खटकने लगते हैं।

8. आँख बदलना – मुँह फेर लेना,
प्रयोग – मुसीबत के समय अपने भी आँख बदल लेते हैं।

9. आँखों में धूल झोंकना – धोखा देना,
प्रयोग – ठग, राम की आँखों में धूल झोंक कर पाँच सौ रुपए ले गया।

10. आँखें खुलना – होश आना,
प्रयोग – हानि उठाकर ही आँखें खलती हैं।

11. आत्म – समर्पण करना अपने आप को दूसरे के हवाले करना,
प्रयोग – चोर ने पुलिस के सामने आत्म – समर्पण कर दिया।

12. आनाकानी करना टालमटोल करना,
प्रयोग – जब मैंने पीयूष से सौ रुपये उधार माँगे, तो वह आनाकानी करने लगा

13. आव देखा न ताव – बिना सोचे समझे,
प्रयोग – डूबते हुए बच्चे को बचाने के लिए सुरेन्द्र ने आव देखा न ताव नदी में छलांग लगा दी।

14. आसमान सिर पर उठाना बहुत शोर करना,
प्रयोग – अध्यापक के क्लास से बाहर निकलते ही लड़कों ने आसमान सिर पर उठाना शुरू कर दिया।

15. ईंट से ईंट बजाना – नाश करना,
प्रयोग – बन्दा बहादुर ने सरहिन्द की ईंट से ईंट बजा दी।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

16. ईद का चाँद होना बहुत दिनों बाद दिखाई देना,
प्रयोग – अरे सुरेश तुम तो ईद के चाँद हो गए हो, कहाँ रहते हो?

17. एक आँख से देखना बराबर का बर्ताव,
प्रयोग – माता – पिता अपने सभी बच्चों को एक आँख से देखते हैं।

18. काम आना – युद्ध में मारे जाना,
प्रयोग – भारत – पाक युद्ध में अनेक भारतीय वीर काम आए।

19. कलम तोड़ना – बहुत बढ़िया लिखना,
प्रयोग – सुन्दर ने चाहे थोड़ा लिखा है पर कलम तोड़ कर रख दी है।

20. कान पर जूं न रेंगना कोई असर न पड़ना,
प्रयोग – मेरे कहने पर तो उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती।

21. कान भरना – चुगली करना,
प्रयोग – अपने सहपाठियों के विरुद्ध कान भरने वाले विद्यार्थी अच्छे नहीं होते।

22. कानों का कच्चा होना किसी बात पर बिना सोचे – समझे विश्वास कर लेना,
प्रयोग – किसी अफसर के लिए कानों का कच्चा होना ठीक नहीं है।

23. खाला जी का घर – आसान काम,
प्रयोग – आठवीं श्रेणी पास करना खाला जी का घर नहीं है।

24. गले का हार – बहुत प्यारा,
प्रयोग – सुरेश अपने माता – पिता के गले का हार है।

24. गहरी नींद सो जाना – मर जाना।
प्रयोग – फाँसी के बाद सद्दाम हुसैन गहरी नींद सो गया।

25. घी के दीये जलाना – बहुत खुशी मनाना,
प्रयोग – जब श्री रामचन्द्र अयोध्या वापस पहुँचे तो लोगों ने घी के दीये जलाए।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

26. घोड़े बेचकर सोना – बे – फिक्र होकर सोना,
प्रयोग – परीक्षा के बाद सब विद्यार्थी घोड़े बेचकर सोते हैं।

27. घड़ी समीप होना – मृत्यु निकट होना,
प्रयोग – रोगी की साँस बहुत धीमे चल रही थी, ऐसा लगता था जैसे उसकी घड़ी समीप हो।

28. चार चाँद लगाना – शोभा बढ़ाना,
प्रयोग – आपने यहाँ पधार कर उत्सव को चार चाँद लगा दिए।

29. छक्के छुड़ाना बुरी तरह हराना,
प्रयोग – युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना के छक्के छुड़ा दिए।

30. जान हथेली पर रखना अपने को जोखिम में डालना,
प्रयोग – युद्ध में भारतीय सैनिक अपनी जान हथेली पर रखकर लड़ते हैं।

31. जी की कली खिलना – बहुत खुश होना,
प्रयोग – विदेश से वापस आए पुत्र को देखकर माता – पिता के जी की कली खिल उठी।

32. झाँसा देना धोखा देना,
प्रयोग – अपराधी पुलिस को झांसा देकर भाग खड़ा हुआ।

33. टका – सा जवाब देना – साफ़ इन्कार करना,
प्रयोग – मैंने जब महेन्द्र से पुस्तक मांगी तो उसने मुझे टका – सा जवाब दे दिया।

34. टेढ़ी खीर – कठिन काम,
प्रयोग – आठवीं की परीक्षा पास करना टेढ़ी खीर है।

35. डींग मारना शेखी मारना,
प्रयोग – डींग मारने वालों पर विश्वास मत कीजिए।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

36. तलवे चाटना – खुशामद करना,
प्रयोग – बलबीर दूसरों के तलवे चाटकर काम निकालने में निपुण है।

37. दांत खट्टे करना – बुरी तरह हराना,
प्रयोग – भारत ने युद्ध में दो बार पाकिस्तान के दांत खट्टे किए।

38. दांतों तले उंगली दबाना – चकित होना,
प्रयोग – ताजमहल की सुन्दरता को देखकर विश्व के लोग दांतों तले उंगली दबाते हैं।

39. दिल बल्लियों उछलना बहुत खुश होना,
प्रयोग – लाटरी निकलने का समाचार सुनकर जसदेव का दिल बल्लियों उछलने लगा।

40. दिल टूट जाना – हताश हो जाना,
प्रयोग – इकलौते पुत्र की मृत्यु से माँ – बाप का दिल टूट गया।

41. धुन का पक्का – इरादे का पक्का,
प्रयोग – जीवन में वही व्यक्ति उन्नति कर सकता है, जो धुन का पक्का होता है।

42. नस – नस पहचानना हर बात की जानकारी होना,
प्रयोग – राजेन्द्र का विश्वास मत करो, मैं उसकी नस – नस पहचानता

43. नाक कटवाना – बदनामी करवाना,
प्रयोग – सोहन ने चोरी करके अपने कुल की नाक कटवा दी है।

44. नौ दो ग्यारह होना – भाग जाना,
प्रयोग – सिपाही को देखते ही चोर नौ दो ग्यारह हो गया।

45. नाक में दम करना – बहुत तंग करना,
प्रयोग – वर्षा ने नाक में दम कर दिया है, कहीं जाना भी कठिन हो गया है।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

46. पानी – पानी होना बहुत लज्जित होना,
प्रयोग – सच्चाई सामने आने पर बलदेव पानी – पानी हो गया।

47. पीठ दिखाना – युद्ध से भाग जाना,
प्रयोग – युद्ध के मैदान में पीठ दिखाना कायरों का काम है, वीरों का नहीं।

48. प्राण पखेरू उड़ना – मर जाना,
प्रयोग – डॉक्टर के आने से पहले रोगी के प्राण पखेरू उड़ गए।

49. पीठ थपथपाना – शाबाश देना,
प्रयोग – कक्षा में प्रथम आने पर अध्यापक ने सुरेश की पीठ थपथपाई।

50. प्राणों की खैर मनाना – अपना बचाव करना,
प्रयोग – भारतीय सैनिकों ने शत्रु सैनिकों को ललकार कर कहा – प्राणों की खैर मनानी है तो हथियार डाल दो।

51. फूला न समाना – बहुत खुश होना,
प्रयोग – परीक्षा में प्रथम आने का समाचार सुनकर दिनेश फूला नहीं समाता था।

52. फूट – फूट कर रोना बहुत अधिक रोना,
प्रयोग – पिता के मरने का समाचार सुनकर पुत्र फूट – फूट कर रोने लगा।

53. बेसिर पैर की बातें करना – फजूल की बातें करना।
प्रयोग – सुच्चा सिंह हर वक्त बेसिर पैर की बातें करता है।

54. भीगी बिल्ली बनना – डर से दबे रहना,
प्रयोग – जब तक मास्टर जी कक्षा में रहते हैं, लड़के भीगी बिल्ली बनकर बैठे रहते हैं।

55. मन चंगा तो कठौती में गंगा – मन स्वस्थ हो तो घर में ही पुण्य पाया जा सकता है।
प्रयोग – रविदास जी ने तीर्थ यात्रा को निरर्थक बताया। उनका कहना था – मन चंगा तो कठौती में गंगा।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

56. मन मोह लेना – अच्छा लगना, मन लुभाना।
प्रयोग – जसवंत के नृत्य ने सबका मन मोह लिया।

57. मखमल में लपेट कर कहना – चिकनी – चुपड़ी बात कहना।
प्रयोग – आजकल मखमल में लपेटकर कहने वाले ही सफल होते हैं।

58. मुँह मोड़ना – नाराज़ होना।
प्रयोग – संकट में मित्र भी मुँह मोड़ते हैं।

59. मौत के घाट उतारना – मार देना।
प्रयोग – अमेरिका ने इराक में हजारों को मौत के घाट उतार दिया।

60. मृत्यु – तुल्य जीवन बिताना – मरे हुए के समान रहना।
प्रयोग – कालाहांडी में लोग मृत्यु – तुल्य जीवन बिता रहे हैं।

61. मृत्यु की गोद में सो जाना – मर जाना।
प्रयोग – सुनामी लहरों के कहर से लाखों लोग मृत्यु की गोद में सो गए।

62. मुँह की खाना – बुरी तरह हारना,
प्रयोग – 1971 के भारत – पाक युद्ध में पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी।

63. मुट्ठी गर्म करना – रिश्वत देना,
प्रयोग – आजकल मुट्ठी गर्म करने से ही प्रत्येक काम बनता है।

64. रंग में भंग डालना मजा किरकिरा होना,
प्रयोग – विवाह में दादा जी की मृत्यु ने रंग में भंग डाल दिया।

65. रफूचक्कर होना – भाग जाना,
प्रयोग – पुलिस को देखते ही डाकू रफू चक्कर हो गए।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

66. लाल – पीला होना क्रुद्ध होना, गुस्से में आना,
प्रयोग – पहले बात तो सुन लो व्यर्थ में क्यों लाल – पीले हो रहे हो।

67. लोहा लेना युद्ध करना,
प्रयोग – अधिकतर मुग़ल सम्राट् राजपूतों से लोहा नहीं लेना चाहते थे।

68. लोहे के चने चबाना अति कठिन काम करना, कष्ट अनुभव करना,
प्रयोग – भारत पर आक्रमण करके चीन को लोहे के चने चबाने पड़े थे।

69. वीरगति प्राप्त करना – वीरों की मौत मरना, शहीद होना,
प्रयोग – युद्ध में कई भारतीय सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की।

70. वार देना – कुर्बान करना,
प्रयोग – गुरु गोबिन्द सिंह ने धर्म की रक्षा के लिए अपने चारों पुत्र वार दिए थे।

71. श्रीगणेश करना – काम आरम्भ करना,
प्रयोग – सोहन ने कल ही अपने नये व्यवसाय का श्रीगणेश किया है।

72. सिर चढ़ाना – लाड़ प्यार से आदतें खराब करना,
प्रयोग – बच्चों को ज्यादा सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए।

73. हवा से बातें करना बहुत तेज़ दौड़ना,
प्रयोग – महाराणा प्रताप का घोड़ा हवा से बातें करता था।

74. हवा हो जाना – भाग जाना,
प्रयोग – पहरेदार को अपनी तरफ आते देखकर चोर हवा हो गया।

75. हाथ – फैलाना – मांगना,
प्रयोग – स्वाभिमान – रहित व्यक्ति हर किसी के आगे हाथ फैलाने लगता है।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

76. हाथ मलना – पछताना,
प्रयोग – अब फेल होने पर हाथ मलने से क्या लाभ? पहले ही डट कर मेहनत करते तो पास हो जाते।

77. हाथ लगना – अधिकार में होना,
प्रयोग – युद्ध में अनेक पाकिस्तानी टैंक भारतीय सेना के हाथ लगे।

78. हथियार डालना – हार मान लेना,
प्रयोग – बांग्लादेश में पाकिस्तान ने साधारण से युद्ध के बाद हथियार डाल दिए।

79. हृदय पर साँप लोटना – बुरा लगना,
प्रयोग – दूसरे की उन्नति देखकर ईष्यालु व्यक्ति के हृदय पर साँप लोटने लगता है।

80. हँसते – हँसते लोट – पोट होना – बहुत हँसना।
प्रयोग – लाल बुझक्कड़ के किस्से सुनकर बच्चे हँसते – हँसते लोट – पोट हो गए।