PSEB 10th Class Hindi Vyakaran विज्ञापन, सूचना और प्रतिवेदन

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar vigyapan suchana aur prativedan विज्ञापन, सूचना और प्रतिवेदन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar विज्ञापन, सूचना और प्रतिवेदन

I. विज्ञापन

प्रश्न 1.
विज्ञापन किस प्रकार की कला है?
उत्तर:
विज्ञापन किसी जानकारी को प्रदान करने की एक सशक्त और प्रभावशाली कला है।

प्रश्न 2.
क्या विज्ञापन व्यक्तिगत होता है?
उत्तर:
विज्ञापन व्यक्तिगत नहीं होता क्योंकि इसका सीधा संबंध वस्तु विशेष से होता है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran विज्ञापन, सूचना और प्रतिवेदन

प्रश्न 3.
व्यापारिक क्षेत्र में विज्ञापन के मुख्य तीन उद्देश्य कौन-से हैं?
उत्तर:

  1. मांग उत्पन्न करना
  2. मांग बनाए रखना
  3. मांग की वृद्धि करना।

प्रश्न 4.
विज्ञापन व्यवसाय को क्या बनाते हैं?
उत्तर:
विज्ञापन व्यवसाय को सर्वांगमुखी बनाते हैं।

प्रश्न 5.
विज्ञापन किन-किन चीज़ों के होते हैं?
उत्तर:
विज्ञापन व्यक्ति के गुणों, अनुभवों, उत्पादित वस्तु आदि के होते हैं।

प्रश्न 6.
विज्ञापन का सर्वाधिक जन-सुलभ माध्यम कौन-सा है?
उत्तर:
विज्ञापन का सर्वाधिक जन-सुलभ माध्यम समाचार-पत्र है।

प्रश्न 7.
‘विज्ञान’ शब्द कैसे बना है?
उत्तर:
विज्ञान शब्द ‘वि’ उपसर्ग और ‘ज्ञापन’ शब्द से बना है।

प्रश्न 8.
विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य वस्तु, व्यक्ति आदि की जानकारी देना होता है।

प्रश्न 9.
विज्ञापन किसे कहते हैं?
उत्तर:
विज्ञापन जनसंपर्क का वह माध्यम है जो व्यापारिक क्षेत्र को समुचित रूप से विकसित करने की क्षमता रखता है। विज्ञापन व्यक्तिगत नहीं होता क्योंकि इसका सीधा संबंध वस्तु विशेष से होता है और वस्तु का संबंध औद्योगिक संस्था से रहता है।

प्रश्न 10.
प्राय: विज्ञापन किन रूपों में देखने को मिलते हैं?
उत्तर:
प्रायः विज्ञापन तीन रूपों में देखने को मिलते हैं-

  1. पत्र-पत्रिकाएं-पत्र-पत्रिकाओं में हम अक्सर विभिन्न प्रकार के विज्ञापनों को पढ़ते हैं उन विज्ञापनों को देखकर हमारे विचारों में बदलाव आता है।
  2. बाह्य विज्ञापन- इस प्रकार के विज्ञापन हमें पोस्टर, होर्डिंग, पंफलेट आदि में देखने को मिलते हैं। (ii) अन्य साधन-विज्ञापन के अन्य साधनों में रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा आदि को रखा जा सकता है।

प्रश्न 11.
विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ता को उत्पाद एवं उत्पादक की जानकारी देना है। वह उत्पादित वस्तु के रूप, गुण, मूल्य आदि की जानकारी एवं सूचना आकर्षक ढंग से प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ता में उस वस्तु को खरीदने की इच्छा जागृत हो उठती है। यह उत्पादक और उपभोक्ता के बीच मधुर संबंधों को भी स्थापित करता है। इसका उद्देश्य विज्ञापन देने वाली संस्था के नाम की प्रसिद्धि करना तथा उसकी ख्याति को बढ़ाना भी होता है। मांग उत्पन्न करना और मांग में वृद्धि करना ही विज्ञापन का उद्देश्य है।

प्रश्न 12.
पहले और आज के समय में विज्ञापन में क्या अंतर आया है?
उत्तर:
पहले के समय में विज्ञापन का अर्थ मात्र सूचना देने तक का होता था, किन्तु आज इसका अर्थ अत्यंत व्यापक हो गया है। आज का युग विज्ञापनमय हो गया है। आज विज्ञापन एक सीमित साधन न होकर अत्यंत विस्तृत हो गया है। आज विज्ञापन एक कला के रूप में मुखरित हो चुका है। इसके द्वारा उत्पादक उत्पादन के रूप, गुण, मूल्य आदि की पूरी सूचना आकर्षक ढंग से प्रदान करता है, जिससे उपभोक्ता में उस वस्तु को खरीदने की इच्छा जागृत हो उठती है। आज विज्ञापन केवल उत्पादन की वृद्धि में ही सहायता नहीं देते, बल्कि प्रतिस्पर्धा की क्षमता बढ़ा कर मूल्यों को स्थिरता भी प्रदान करती है।

प्रश्न 13.
वर्तमान युग में विज्ञापन का कार्य कैसे सरल हो गया है?
उत्तर:
विज्ञापन आधुनिक युग में बहुत बड़ी व्यापारिक शक्ति है जो वस्तुओं को बेचने में अनुपम सहायता करती है। ऐसे में ऋण की सुविधा ने विज्ञापन के कार्य को और भी अधिक सरल बना दिया है। उत्पादक, डीलर, दुकानदार आदि सभी किसी न किसी बैंक या ऋण देने वाली कंपनियों से उपभोक्ता को ऋण दिला देते हैं और वस्तु को बेच देते हैं। कभी-कभी तो एक रुपया देकर शेष बची धनराशि किश्तों में अदा की जाती है। अत: स्पष्ट है कि ऋण की सुविधा ने विज्ञापन का कार्य सरल से सरलतम बना दिया है।

प्रश्न 14.
वर्तमान युग विज्ञापन का युग है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
आज का युग विज्ञापन अथवा प्रचार का युग है। जिसका अधिक प्रचार अथवा विज्ञापन हो जाएगा वही वस्तु एवं व्यक्ति सर्वत्र लोकप्रिय हो जाता है बच्चे-बच्चे के मुख से लोकप्रिय विज्ञापनों के शब्द सुने जा सकते हैं। बच्चे क्या बड़े भी उसी उत्पाद को लेना चाहते हैं जिसका विज्ञापन आकर्षक हो। दंत मंजन से लेकर दुल्हन की साड़ी, कपड़े धोने के साबुन से लेकर दर्द निवारक दवा तक विज्ञापन के आधार पर बिक रहे हैं। यही कारण है कि आज का व्यापार विज्ञापन की शक्ति पर निर्भर हो गया है। प्रत्येक व्यापारी अपने उत्पाद को उपभोक्ता तक पहुंचाने के विज्ञापन का आश्रय लेता है। अतः स्पष्ट है कि वर्तमान युग विज्ञापन का युग है।

प्रश्न 15.
व्यक्ति के जीवन में विज्ञापन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
आज व्यक्ति का जीवन विज्ञापनमय हो गया है। विज्ञापन उपभोक्ताओं की सेवा करता है। उन्हें जहां वह नवीन वस्तुओं की जानकारी देता है। वहीं उन्हें उचित दाम पर माल भी दिलाता है। नई-नई वस्तुओं के गुण, उपयोग और मूल्यों की जानकारी से उपभोक्ताओं को पारिवारिक बजट बनाने में सहायता मिलती है। उनका रहन-सहन का स्तर भी बढ़ता जाता है। इससे अनेक लोगों को रोज़गार भी प्राप्त होता है। सेल काऊंटरों पर स्त्री-पुरुषों की बड़ी भीड़ का जमाव इन्हीं के कारण होता है।

प्रश्न 16.
विज्ञापन केवल व्यापारिक अनिवार्यता नहीं है, बल्कि सभी क्षेत्रों में है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन केवल व्यापारिक अनिवार्यता ही नहीं है, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी यह अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुका है। लोकतंत्रीय व्यवस्था की तो यह जान है। विज्ञापन के बिना लोकतंत्रीय पद्धति सफलता प्राप्त नहीं कर सकती। विभिन्न राजनीतिक दल अपने सिद्धांतों, कार्यक्रमों इत्यादि के संबंध में जनसाधारण को विज्ञापनों के द्वारा ही जानकारी प्रदान करते हैं। धार्मिक नेता भी विज्ञापन का पूरा सहारा लेते हैं। धार्मिक स्थानों पर किए जाने वाले पूजा-पाठ की फिल्म स्लाइडें सिनेमा गृहों में दिखाई जाती हैं। रंग-बिरंगे बड़े-बड़े पोस्टर लगाए जाते हैं। लाऊड-स्पीकर पर प्रवचन तथा नेताओं की घोषणाएं अक्सर सुनी जाती हैं।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran विज्ञापन, सूचना और प्रतिवेदन

प्रश्न 17.
विज्ञापन को तैयार करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
आज का युग विज्ञापन का युग है। अब किसी भी व्यापार की सफलता विज्ञापन पर निर्भर करती है। इसलिए विज्ञापन की भाषा सदा वही होनी चाहिए जिस क्षेत्र में उसका प्रचार हो रहा हो। विज्ञापन को तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
(i) आकर्षण-किसी भी विज्ञापन का पहला गुण उसका आकर्षक लगना होता है। सुंदर-रंगीन एवं आकर्षक चित्रों से सजे विज्ञापन उपभोक्ता को अपनी ओर शीघ्रता से खींच लेते हैं।

(ii) संक्षिप्तता-एक अच्छा सटीक एवं उपयुक्त विज्ञापन बनाते समय उसकी संक्षिप्तता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। संक्षिप्त विज्ञापन सरलता से समझ में आ जाता है। खर्च भी कम पड़ता है।

(iii) सरल-सरस भाषा-विज्ञापन बनाते एवं लिखते समय भाषा का बहुत अधिक महत्त्व होता है। विज्ञापन की भाषा क्षेत्र की भाषा के अनुकूल होनी चाहिए। भाषा में सरल एवं सरस शब्दों का प्रयोग होना चाहिए। भाषा ही विज्ञापन की जान होती है। नारा लेखन, शीर्षक आदि में इसका विशेष महत्त्व है।

(iv) माध्यम-विज्ञापन को तैयार करते समय इसके माध्यम का चुनाव बड़ी ही सजगता से करना चाहिए। विभिन्न वस्तुओं के रूप, गुण, मूल्य आदि की जानकारी देने के लिए माध्यम का चुनाव अत्यंत आवश्यक है क्योंकि सही या ग़लत माध्यम के चुनाव से विज्ञापन सफल या असफल हो सकता है। विज्ञापन के तीन माध्यम हैं-

  • पत्र-पत्रिकाएं
  • बाह्य विज्ञापन-पोस्टर, पंफलेट, होर्डिंग आदि।
  • अन्य साधन-रोडियो, टेलीविज़न, सिनेमा आदि।

(v) स्पष्टता-विज्ञापन लिखते समय अमूक जानकारी को स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए। फिर चाहे वह वस्तु की गुणवत्ता हो या फिर विज्ञापन देने वाले का पता ही सब कुछ साफ-साफ स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए।

(vi) छलकपट से रहित-विज्ञापन सदैव छल-कपट से रहित होना चाहिए। धोखे तथा जालसाजी से उपभोक्ता वस्तु एक बार तो ले लेता है किंतु दोबारा कभी उस ओर मुंह नहीं करता। बाज़ार में विश्वास बनाना कठिन कार्य है जबकि विश्वास तोड़ना क्षण-भर का काम है। अतः विज्ञापन सदैव छल-कपट से पूरी तरह रहित होना चाहिए।

(vii) स्मरणीयता-विज्ञापन को लिखते समय उसकी स्मरणीयता पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। एक अच्छा विज्ञापन वही है जो लोगों को शीघ्रता से स्मरण हो जाए जैसे रुकावट के लिए खेद है। आज नगद कल उधार। निष्कर्ष- स्पष्ट है कि विज्ञापन सरल भाषा में रचा गया प्रभावशाली एवं आकर्षक होना चाहिए जो ग्राहक को वस्तु लेने के लिए विवश कर दे।

प्रश्न 18.
विज्ञापन के विभिन्न माध्यमों अथवा साधनों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामान्य रूप से विज्ञापन का अर्थ ‘विशेष सूचना या जानकारी’ देना है। यह जानकारी उत्पादक उपभोक्ता को देता है। वह उत्पादित वस्तु के रूप, गुण, उपादेयता, मूल्य आदि की पूरी सूचना आकर्षक ढंग से प्रदान करता है जिससे उपभोक्ता को उस वस्तु को खरीदने की इच्छा जागृत हो उठती है। व्यापारिक क्षेत्र को समुचित रूप से विकसित करने के लिए विज्ञापन के निम्नलिखित माध्यमों एवं साधनों का प्रयोग किया जाता है-
(i) घर-घर जाकर-विज्ञापन का सबसे पुराना साधन एवं माध्यम घर-घर जाकर वस्तु की विशेषताओं से लोगों को परिचित कराना है। इस माध्यम में कंपनियां अपने एजेंट लोगों के बीच भेजते हैं जो घर-घर जाकर वस्तु की गुणवत्ता को लोगों तक पहुंचाते हैं। ये लोग घर-घर जाकर सामान भी बेचते हैं। उसका आर्डर भी लेते हैं।

(ii) ढिंढोरा पीटकर-प्राचीन समय में ढोल, ड्रम आदि को पीट-पीटकर मुनादी करवाई जाती थी। उसे ही ढिंढोरा पीटना कहते हैं। आज वही रिक्शा, आटो रिक्शा, रेहड़ी, टैम्पू आदि के माध्मय से किया जाता है। आज भी गांव में इसका चलन देखने को मिलता है।

(iii) रेडियो, टेलीविज़न तथा सिनेमा-आधुनिक युग में रेडियो, टेलीविज़न तथा सिनेमा श्रव्यदृश्य माध्यम के अंतर्गत आते हैं। नर-नारी तथा वाह्य यंत्रों की मिली-जुली आवाज़ दूर से सही-संभावित उपभोक्ता को अपनी ओर आकर्षित करने का गुण रखती है। छोटी-छोटी विज्ञापन फिल्मों की भरमार है।

(iv) पोस्टर, होर्डिंग, पंफलेट-पोस्टर, होर्डिंग, पंफलेट आदि को बाह्य विज्ञापनों की श्रेणी में रखा जाता है। इनका प्रदर्शन सार्वजनिक स्थानों पर किया जाता है। सुंदर-रंगीन एवं आकर्षक चित्रों से सजे विज्ञापनों को सड़कों, चौराहों आदि पर कहीं भी देखा जा सकता है। यद्यपि यह माध्यम महंगा है पर फिर भी इसका प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। दीवारों पर लेखन, इश्तिहार, छोटे-बड़े प्रपत्र एवं पंफलेट इसी माध्यम के अंतर्गत आते हैं।

(v) पत्र-पत्रिकाएं-पत्र-पत्रिकाएं अन्य माध्यमों की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय तथा जन-सुलभ माध्यम है। इनका प्रचार विश्वव्यापी है। इसलिए किसी एक स्थान की वस्तु का प्रचार पूरे विश्व में संभव हो सकता है। सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर छपी सभी पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन अनिवार्य रूप में छपे रहते हैं। इनसे प्राप्त आय के द्वारा पत्रिका का प्रकाशन सरलता से किया जा सकता है। समाचार-पत्र तो विज्ञापन का प्रचार का सीधा और सबसे सरल साधन है। यह लोकप्रिय और आसान माध्यम है।

(vi) स्टॉल लगाकर-आजकल उत्पाद को सड़कों के किनारे स्टॉल लगाकर बेचने का भी प्रचलन हो चुका है। कंपनी के कर्मचारी आवाज़ लगाकर या बोर्ड आदि दिखाकर स्टॉल पर लोगों को आने के लिए आकर्षित करते हैं। वे अपने सामान की नुमाइश एवं प्रदर्शन करते हैं।

(vii) वाहनों पर पोस्टर चिपकाकर-कुछ कंपनियां बस, ट्रक, कार आदि के पीछे अपने उत्पाद के प्रभावशाली पोस्टर चिपकाती हैं। यह उनकी बिक्री को बढ़ाने का काम करता है।

(vii) मोबाइल और इंटरनेट द्वारा-विज्ञापन के सशक्त साधनों में आज मोबाइल और इंटरनेट ने अपना विशेष स्थान बना रखा है। यह वस्तु के क्रय-विक्रय का एक साधन बन चुका है। युवा पीढ़ी इसका सर्वाधिक प्रयोग कर रही
है।

(ix) डाक द्वारा-आधुनिक युग में डाक द्वारा भी विज्ञापन का प्रसार किया जा रहा है। संस्थाएं एवं कपनियां अपने उत्पादन की सूची एवं विवरणिका डाक द्वारा भेज कर लोगों को अपने उत्पाद से परिचित कराती हैं।

निष्कर्ष-निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि आज विज्ञापन वस्तु को बेचने तथा लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। विज्ञापन के अभाव में वस्तु का लोकप्रिय और अधिक मात्रा में बिकना असंभव-सा जान पड़ता है। विज्ञापन के उक्त माध्यमों का प्रयोग कर वस्तु के क्रय-विक्रय की गति को तेजी से बढ़ाया जा सकता है।

विज्ञापन के उदाहरण

प्रश्न 1.
आप विवेकानंद पब्लिक स्कूल, सैक्टर-32, चण्डीगढ़ के प्राचार्य हैं। विद्यालय की बस हेतु एक अनुभवी ड्राइवर की आवश्यकता है। वर्गीकृत विज्ञापन का प्रारूप तैयार कीजिए।
उत्तर:
ड्राइवर की आवश्यकता है।
विद्यालय की बस के लिए एक अनुभवी ड्राइवर की आवश्यकता है। आयु 55 वर्ष से अधिक न हो। बस चलाने का कम-से-कम दस वर्षों का अनुभव हो। घर का पक्का पता, स्वयं की चार तस्वीरें तथा ड्राइविंग लाइसेंस के साथ एक सप्ताह के अंदर विद्यालय में मिलें।

प्राचार्य
विवेकानंद पब्लिक स्कूल, सैक्टर-32, चण्डीगढ़।

प्रश्न 2.
आपको अपने मकान नं0 452 सैक्टर-31, चंडीगढ़ के बगीचे के रख-रखाव के लिए माली की आवश्यकता है। उस हेतु एक वर्गीकृत विज्ञापन का प्रारूप तैयार कीजिए।
उत्तर:
माली की आवश्यकता है।
बगीचे की रख-रखाव तथा देखभाल के लिए एक कुशल एवं अनुभवी माली की आवश्यकता है। चार दिन के अंदर संपर्क करें। मकान नं0 452 सैक्टर-31, चंडीगढ़। मोबाइल नं0 94666-66666

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प्रश्न 3.
सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल, करनाल में आगामी सत्र के लिए छठी कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के बच्चों के दाखिले का विज्ञापन विद्यालय के प्राचार्य की ओर से तैयार कीजिए।
उत्तर:
स्कूल में दाखिले संबंधी विज्ञापन
सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल, करनाल में आगामी सत्र हेतु छठी से बारहवीं कक्षा के दाखिले प्रारम्भ हो गए हैं। विद्यालय में शिक्षा के तीन माध्यम पंजाबी, हिंदी, अंग्रेज़ी उपलब्ध हैं। प्रतिभावान एवं ग़रीब बच्चों के लिए शिक्षा के विशेष अवसर एवं व्यवस्था हैं। कंप्यूटर एवं खेलकूद की सुविधाओं का उचित प्रबंध है। विवेक कुमार, प्राचार्य, मोबाइल नं० 89250-00000

प्रश्न 4.
आपका नाम रोहित शर्मा है। आपके कोचिंग सैंटर का नाम सरस्वती कोचिंग सेंटर है। आपका मोबाइल नं0 9416…….. है। आपने अम्बाला शहर में इंजीनियरिंग और मैडिकल की प्रवेश परीक्षाओं की कोचिंग हेतु नया कोचिंग सेंटर खोला है। कोचिंग सेंटर के उद्घाटन के संदर्भ में एक विज्ञापन लिखिए।
उत्तर:
सरस्वती कोचिंग सेंटर
01.04.20….. से इंजीनियरिंग और मैडिकल की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी हेतु कोचिंग क्लास शुरू हो रही है। नए विद्यार्थियों के लिए पढ़ने और पढ़ाने की विशेष व्यवस्था है। 90% से अधिक अंक पाने वाले विद्यार्थियों को उनकी फीस में 80% छूट दी जाएगी। आने-जाने के लिए वाहन का भी उचित प्रबंध है। संपर्क करें-रोहित शर्मा, डायरेक्टर सरस्वती कोचिंग सेंटर, अम्बाला हरियाणा। मोबाइल नं0 94160-…..

प्रश्न 5.
आप मालरोड स्थित मकान नं0 414 अमृतसर के निवासी हैं। आप अपना दस मरले का मकान बेचना चाहते हैं। वर्गीकृत विज्ञापन का प्रारूप तैयार कीजिए।
उत्तर:
मकान बिकाऊ है
दस मरले में बनी कोठी बिकाऊ है। मार्बल फ्लोर, आधुनिक फिटिंग, आधुनिक रसोई-घर। संपर्क करें-सिंह, 414मालरोड, अमृतसर। फोन नं० 279842.

प्रश्न 6.
आपका नाम सुभाष है। आप जैन नगर लुधियाना में स्थित अपने फ्लैट को किराए पर देना चाहते हैं। इस हेतु एक वर्गीकृत विज्ञापन का प्रारूप तैयार कीजिए।
उत्तर:
किराये के लिए खाली
जैन कॉलोनी, लुधियाना में फ्लैट किराए के लिए खाली है। दो कमरे, किचन, बाथरूप, ड्राइंगरूम तथा ड्राइनिंग रूम आधुनिक सुविधाओं से युक्त। केवल शाकाहारी अधिकारी वर्ग के व्यक्ति संपर्क करें। सुभाष, फोन नं० 419250

प्रश्न 7.
आपकी पवार टूर एंड ट्रैवल्स नाम की एक ट्रांसपोर्ट ऐजेन्सी है। शहर के लोगों को भ्रमण संबंधी सुविधा देने हेतु एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
भ्रमण संबंधी
रेल, हवाई जहाज़, टैक्सी आदि से भ्रमण करने के लिए तथा होटल आदि में कमरे बुक करवाने हेतु सुविधा उपलब्ध है। देश-विदेश में कहीं भी भ्रमण तथा रुकने के लिए संपर्क करें। पवार टूर एंड ट्रैवल्स, मो० नं० 82652-……

प्रश्न 8.
आपकी लुधियाना टैक्सी सर्विस नाम की ट्रांसपोर्ट सेवा है। उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में अपनी टैक्सी सेवाएं देने हेतु वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
टैक्सी सर्विस
हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, जम्मू आदि शहरों में जाने के लिए टैक्सी की उचित व्यवस्था है। सुविधा पाने हेतु संपर्क करें-लुधियाना टैक्सी सर्विस, मो० नं० 8262-….

प्रश्न 9.
आपका नाम हरविंदर सिंह है। आपकी आयु 30 वर्ष तथा कद 6 फुट 3 इंच है। आपको अपने लिए 5 फुट 7 इंच तथा एम० ए०/एम० एससी लड़की चाहिए। इस हेतु एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
वधू चाहिए।
जट सिख लड़का, आयु 30 वर्ष, कद 6 फुट 3 इंच, एम० एससी०, इंग्लैंड निवासी हेतु वधू 5 फुट 7 इंच एम० ए०/एम०एससी० चाहिए। संपर्क करें हरविंदर सिंह। मो० नं0 9462 ….

प्रश्न 10.
आपका नाम गजेन्द्र कुमार है। आपको अपनी पुत्री जिसकी आयु 24 वर्ष, कद 5 फुट 3 इंच, रंग गोरा, ग्रेजुएट के लिए बिजनेसमैन वर चाहिए। इसके लिए वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
वर चाहिए
अरोड़ा लड़की, आयु 24 वर्ष, कद 5 फुट 3 इंच, रंग गोरा, बहुत सुन्दर, सुशील ग्रेजुएट के लिए अच्छे घराने का बिजनैसमैन वर चाहिए। सम्पर्क करें-गजेन्द्र कुमार, मोबाइल नं० 8256……. ।

प्रश्न 11.
आप शीघ्र ही रिटायर्ड कॉलेज प्राचार्या की देख-रेख में लड़कियों का एक हॉस्टल खोलने जा रहे हैं, जिसमें 20 कमरे तथा सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इस हेतु एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
होस्टल
बीस कमरों का लड़कियों के लिए एक होस्टल शीघ्र ही कॉलेज की एक रिटायर्ड प्राचार्या द्वारा संचालित किया जाने वाला है। होस्टल में घर जैसा पौष्टिक आहार, सुरक्षा, वातानुकूलित कमरे, गीजर आदि की सुविधाएं उपलब्ध होंगी। सुरक्षा की उचित व्यवस्था रहेगी। होस्टल में आरक्षण करवाने हेतु संपर्क करें-मोबाइल नं0 8246………. ।

प्रश्न 12.
आपका नाम मोहित शर्मा है। आपका मोबाइल नम्बर 9416000000 है। आप अपनी आल्टो एल० एक्स आई० 2012 मॉडल कार बेचना चाहते हैं। इसके लिए एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
गाड़ी बिकाऊ है
आल्टो एल० एक्स आई० मॉडल 2012, कीमत 100000 रुपये, अत्यन्त अच्छी हालत में बिकाऊ है। खरीदने के लिए संपर्क करें-9416000000। मोहित शर्मा।

प्रश्न 13.
‘मल्होत्रा बुक डिपो’ रेलवे रोड जालन्धर में कुशल सेल्समैन की आवश्यकता है। इसके लिए एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
सेल्ज़मैन की आवश्यकता है
पुस्तक विक्रेता को कुशल सेल्समैन की आवश्यकता है। वेतन योग्यतानुसार। शीघ्र मिलें-मैनेजर, मल्होत्रा बुक डिपो, रेलवे रोड, जालन्धर।

प्रश्न 14.
आपका नाम डॉ० मदन सिंह वालिया है। आपका राजनगर जालन्धर में धन्वंतरी मैडिकल हॉल नामक एक चिकित्सालय है। यहां पर आप गारंटी के साथ जोड़ों के दर्द का इलाज करते हैं। इसके लिए एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
चिकित्सा सम्बन्धी विज्ञापन
हर प्रकार के जोड़ों के दर्द का गारंटी से इलाज करवाने के लिए मिलें-डॉ० मदन सिंह वालिया, धन्वंतरी मैडिकल हॉल, राजनगर, जालन्धर। फोन : 278718

प्रश्न 15.
आपकी लूथरा पेस्ट कंट्रोल नामक दवाइयों की एक दुकान है जहां दीमक, कॉकरोच, चूहों, छिपकलियों, मच्छरों को मारने की दवाई दी जाती है। आपका मोबाइल नंबर 94162 90909 है। इसके लिए एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
दीमक, कॉकरोच, चूहों, छिपकलियों एवं मच्छरों से पाये छुटकारा
दीमक, कॉकरोच, चूहों, छिपकलियों एवं मच्छरों से पाये छुटकारा। शहर में पिछले तीस वर्षों से जाना-पहचाना नाम। नाम ही काम की पहचान। अवश्य मिलें। संपर्क करें-लूथरा पेस्ट कंट्रोल, मोबाइल नं0 9416290909।

प्रश्न 16.
आपका नाम रवि कुमार शर्मा है तथा आपके पिता का नाम विवेक शर्मा है। आप गाँव डवरेड़ा तहसील और ज़िला होशियारपुर के निवासी हैं। आप अपना नाम बदलकर रविश कुमार रखना चाहते हैं। इसके लिए एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
नाम परिवर्तन
मैं, रवि कुमार शर्मा पुत्र श्री विवेक शर्मा, गाँव डवरेड़ा तहसील और जिला होशियारपुर घोषणा करता हूँ कि मैंने अपना नाम बदलकर रविश कुमार रख लिया है। सभी संबंधित नोट करें और मुझे इसी नाम से पुकारा और जाना जाए।

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प्रश्न 17.
करन मार्केटिंग, डेरा रोड, सरहिंद की ओर से बॉल पैन के रिफिल बनाने तथा हज़ारों रुपए कमाने की बात कहते हुए एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
व्यापार
बॉल पैन के रिफिल बनाने का उद्योग लगाकर हज़ारों रुपए महीना कमाएं। मशीन, ट्रेनिंग, बना माल खरीदने की सुविधा उपलब्ध है। संपर्क करें-करन मार्केटिंग, डेरा रोड, सरहिंद।।

प्रश्न 18.
आपका नाम राजेश शर्मा है। आप सैक्टर-18-सी, मकान नंबर-1107 मानसा के निवासी हैं। आपने राजपुरा मुख्य मार्ग पर अपना आठ मरले का मकान बेचना है। इसके लिए एक वर्गीकृत विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर:
‘प्लाट बिकाऊ है’
आठ मरले का प्लाट राजपुरा मुख्य मार्ग पर बिकाऊ है। खरीदने के लिए संपर्क करें-राजेश शर्मा, 1107, सैक्टर18-सी मानसा।

प्रश्न 1.
आपका नाम प्रज्ञा है। आप समाज सेविका हैं। आपके कोचिंग सेंटर का नाम है-प्रज्ञा कोचिंग सैंटर। आपका फोन नंबर 1891000000 है। आपने मेन शहर शामपुरा में दसवीं, बारहवीं कक्षा के गरीब विद्यार्थियों के लिए साईंस व गणित विषयों की निःशुल्क कोचिंग कक्षाएँ एक नये कोचिंग सेंटर में खोली है। कोचिंग सेंटर के उद्घाटन के सम्बन्ध में एक विज्ञापन का प्रारूप तैयार करके लिखिए।
उत्तर:
प्रज्ञा कोचिंग सेंटर
आगामी शिक्षा सत्र को ध्यान में रखते हुए आपके अपने शहर में दसवीं, बारहवीं के विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क साईंस और गणित विषय की तैयारी हेतु कोचिंग सेंटर को आरंभ किया जा रहा है, जिसमें नगर के प्रतिष्ठित अध्यापक/ अध्यापिकाएं अपनी सेवाएं प्रदान करेंगे संपर्क करें-प्रज्ञा। डायरेक्टर, प्रज्ञा कोचिंग सैंटर, शामपुरा। मोबाइल नं० 1891000000.

प्रश्न 2.
आपका नाम मंगल राय है। आपकी मेन बाज़ार, अम्बाला में कपड़े की दुकान है। आपका फोन नंबर 1746578673 है। वर्गीकृत विज्ञापन के अंतर्गत ‘सेल्ज़मैन की आवश्यकता है’ का प्रारूप तैयार करके लिखिए।
उत्तर:
सेल्ज़मैन की आवश्यकता
कपड़े की दुकान पर एक कुशल सेल्ज़मैन की आवश्यकता है। वेतन योग्यतानुसार। शीघ्र मिलें-मंगलराय मंगल क्लाथ हाऊस, अम्बाला। मोबाइल नं0 1746578673.

प्रश्न 3.
आपका नाम पंडित अखिलेश नाथ है। आपका मोबाइल नंबर 1464246200 है। आपने सेक्टर-22, चंडीगढ़ में एक ‘अखिलेश योग साधना केंद्र’ खोला है। जहाँ आप लोगों को योग सिखाते हैं जिसकी प्रति व्यक्ति, प्रति मास 1000 रु० फीस है। वर्गीकृत विज्ञापन के अंतर्गत ‘योग सीखिए’ का प्रारूप तैयार करके लिखिए।
उत्तर:
योग सीखिए
योग सीखने का सुनहरा मौका। पंडित अखिलेश नाथ से योग के आसान तथा सटीक आसन सीखिए। योग सीखने की फीस प्रति व्यक्ति 1000 रु० मासिक है। योग सीखने का समय प्रात: 5 से 7 बजे तथा सायं 5 से 7 बजे तक। संपर्क करें-योगेश्वर योग साधना केंद्र, सेक्टर-22, चंडीगढ़। मोबाइल न० 1464246200.

प्रश्न 4.
आपका नाम नीरज कुमार है। आप मकान नम्बर 1450, सैक्टर-19, नंगल में रहते हैं। आपने अपना नाम नीरज कुमार से बदल कर नीरज कुमार वर्मा रख लिया है। ‘नाम परिवर्तन’ शीर्षक के अंतर्गत विज्ञापन का प्रारूप तैयार करें।
उत्तर:
नाम परिवर्तन
मैं नीरज कुमार, मकान नंबर 1450, सैक्टर-19, नंगल निवासी ने अपना नाम बदलकर नीरज कुमार वर्मा रख लिया है। भविष्य में मुझे इसी नाम से पुकारा और लिखा जाए।

प्रश्न 5.
आपका नाम विमल प्रसाद है। आप मकान नंबर 227, सैक्टर-22, जगाधरी में रहते हैं। आपका मोबाइल नम्बर 1987642345 है। आप अपनी 2009 मॉडल की मारुति कार बेचना चाहते हैं। वर्गीकृत विज्ञापन के अंतर्गत ‘कार बिकाऊ है’ का प्रारूप तैयार करके लिखिए।
उत्तर:
कार बिकाऊ है
मारुति, मॉडल 2009 बिकाऊ है। कीमत 60000 रुपये हैं। चलती हालत में है। संपर्क करें-विमल प्रसाद मकान नम्बर 227, सैक्टर-22, जगाधरी, मोबाइल नंबर 1987642345।

प्रश्न 6.
आपका नाम सोनिया रानी है। आपको घर के कामकाज के लिए एक नौकरानी की आवश्यकता है। आपका फोन नम्बर 9988990380 है। वर्गीकृत विज्ञापन के अंतर्गत ‘नौकरानी की आवश्यकता है’ का प्रारूप तैयार करके लिखें।
उत्तर:
नौकरानी की आवश्यकता है
घर के कामकाज के लिए एक अनुभवी नौकरानी की आवश्यकता है। अच्छा वेतन, रहने के लिए कमरा, भोजन आदि दिया जाएगा। संपर्क करें-सोनिया रानी, मोबाइल नम्बर 9988990380.

प्रश्न 7.
आपका नाम अवधेश कुमार है। आपकी मेन बाज़ार मेरठ में रेडीमेड कपड़ों की दुकान है। आपका फोन नम्बर 1464566234 है। आपने अपनी दुकान में रेडीमेड कमीज़ों पर 60% भारी छूट दी है। ‘रेडीमेड कमीज़ों पर 60% भारी छूट’ विषय पर अपनी दुकान की ओर से एक विज्ञापन का प्रारूप तैयार करके लिखिए।
उत्तर:
रेडीमेड कमीज़ों पर 60% भारी छूट
रेडीमेड कमीज़ों पर 60% की भारी छूट। जल्दी आएँ अवसर का लाभ उठाएँ। कहीं मौका हाथ से छूट न जाए। पहली बार इतनी भारी छूट, तुरंत लाभ उठाएं। संपर्क करें-अवधेश कुमार, गुप्ता वस्त्र भंडार, मेन बाज़ार, मेरठ, मोबाइल नंबर 1464566234।

प्रश्न 8.
आपका नाम अमिताभ है। आपका सैक्टर-22. मुम्बई में बहुत बड़ा पाँच सितारा होटल है। आपका मोबाइल नम्बर 1354456695 है। आपको अपने होटल के लिए एक मैनेजर की आवश्यकता है। वर्गीकृत विज्ञापन के अंतर्गत ‘मैनेजर की आवश्यकता है’ का प्रारूप तैयार करके लिखिए।
उत्तर:
मैनेजर की आवश्यकता
सैक्टर-17, चंडीगढ़ में एक प्रतिष्ठित पाँच सितारा होटल में काम करने के लिए एक मैनेजर की आवश्यकता है। डॉक्टरी, बीमा, फंड की सुविधा। अंग्रेज़ी भाषा बोलना अनिवार्य है। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता होटल मैनेजमेंट में डिग्री। वेतन योग्यतानुसार। तीन वर्ष का अनुभव आवश्यक। संपर्क करें—मोबाइल नंबर 1354456695

प्रश्न 9.
आपका नाम हरिराम है। आपकी सैक्टर-14, यमुनानगर में एक दस मरले की कोठी है। आप इसे बेचना चाहते हैं। आपका मोबाइल नम्बर 1456894566 है, जिस पर कोठी खरीदने के इच्छुक आपसे संपर्क कर सकते हैं। वर्गीकृत विज्ञापन के अंतर्गत ‘कोठी बिकाऊ है’ का प्रारूप तैयार करके लिखिए।
उत्तर:
‘कोठी बिकाऊ’
सैक्टर-14, यमुनानगर में एक दस मरले की कोठी बिकाऊ है। मार्बल फ्लोर, आधुनिक फिटिंग, चार कमरे, दो बाथरूम, एक किचन आधुनिक सुविधाओं से युक्त है। संपर्क करें-हरिराम, मोबाइल नंबर 1456894566.

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प्रश्न 10.
आपका नाम सुदेश कुमार है। आप मकान नम्बर 46, सैक्टर-4, नोएडा में रहते हैं। आपका बेटा जिसका नाम रोहित कुमार है उसका रंग साँवला, आयु दस वर्ष, कद चार फुट है। वह दिनांक 23.04.2015 से पुणे से गुम है। ‘गुमशुदा की तलाश’ शीर्षक के अंतर्गत विज्ञापन का प्रारूप तैयार करें।
उत्तर:
‘गुमशुदा की तलाश’ ‘मेरा पुत्र रोहित कुमार, जिसकी उम्र दस वर्ष, कद चार फुट और रंग सांवला है दिनांक 23 अप्रैल, 2015 से पुणे से लापता है। उसका पता देने वाले अथवा उसे घर तक पहुंचाने वाले को समुचित पुरस्कार दिया जाएगा। संपर्क करेंसुदेश कुमार, मकान नं० 46, सैक्टर 4-नोएडा।

प्रश्न 11.
आपका नाम नंद किशोर है। आप मकान नम्बर 69, पटियाला में रहते हैं, आपका पुत्र पीयूष 28 वर्ष, कद 5 फुट 9 ईंच, राजकीय अध्यापक हेतु कार्यरत वधू चाहिए। वैवाहिक शीर्षक के अंतर्गत विज्ञापन का प्रारूप तैयार करें।
उत्तर:
लड़का, आयु 28 वर्ष, कद 5 फुट 9 ईंच राजकीय अध्यापक पटियाला निवासी हेतु कार्यरत वधू चाहिए। संपर्क करें-नंद किशोर, म०न० 69, पटियाला।

प्रश्न 12.
आपका नाम अशोक शर्मा है, आप मकान नम्बर 87, सैक्टर 17, चण्डीगढ़ में रहते हैं। आपकी सुपुत्री पलक 25 वर्ष, कद 5 फुट 4 ईंच, एम०ए० पास हेतु योग्य वर चाहिए। वैवाहिक शीर्षक के अंतर्गत एक विज्ञापन का प्रारूप तैयार करें।
उत्तर:
शर्मा लड़की, आयु 25 वर्ष, कद 5 फुट 4 ईंच, एम० ए० पास हेतु योग्य वर चाहिए। संपर्क करें-अशोक शर्मा, म०नं० 87, सैक्टर 17, चण्डीगढ़।

II. सूचना

प्रश्न 1.
सूचना किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी संस्थान में सब के सूचनार्थ जारी किए गए वे आदेश जो संस्थान की दैनिक कार्यवाही के लिए आवश्यक होते हैं, सूचना कहलाते हैं।

प्रश्न 2.
‘सूचना’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘सूचना’ शब्द का अर्थ है-जानकारी या इत्तला। अंग्रेज़ी में इसे नोटिस कहते हैं।

प्रश्न 3.
जिस पर सूचना लिखी जाती है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
जिस पर सूचना लिखी जाती है उसे सूचना-पट या पटल कहते हैं।

प्रश्न 4.
अंग्रेजी भाषा में सूचना पटल को क्या कहते हैं?
उत्तर:
अंग्रेजी भाषा में सूचना पटल को नोटिस बोर्ड कहते हैं।

प्रश्न 5.
सूचना कितनी प्रकार की होती है?
उत्तर:
सूचना दो प्रकार की होती है।

प्रश्न 6.
प्रथम श्रेणी में कौन-सी सूचनाएँ आती हैं?
उत्तर:
प्रथम श्रेणी में बैंकों, क्लबों, हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों, स्कूल, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों, सरकारी, गैरसरकारी आदि में सूचना पटल पर लिखी हुई आती हैं।

प्रश्न 7.
दूसरी श्रेणी में कौन-सी सूचनाएँ आती हैं?
उत्तर:
दूसरी श्रेणी में सार्वजनिक सूचनाएँ आती हैं।

प्रश्न 8.
सार्वजनिक सूचनाओं को कहाँ छपवाया जाता है?
उत्तर:
सार्वजनिक सूचनाओं को प्रायः समाचार-पत्रों में छपवाया जाता है।

प्रश्न 9.
सूचना लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
सूचना लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. शीर्षक-सूचना लिखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सूचना का शीर्षक साफ़ स्पष्ट और सरल रूप में लिखा होना चाहिए।
  2. संक्षिप्त-सूचना का आकार विस्तृत नहीं होना चाहिए। उसका रूप संक्षिप्त होना चाहिए। कम शब्दों में सारी बात ठीक प्रकार से समझाने वाला होना चाहिए।
  3. दिनांक-सूचना लिखते समय दिनांक लिखना अति आवश्यक होता है, ताकि पढ़ने वाले को सूचना जारी करने की तिथि का ज्ञान हो सके।
  4. छोटे वाक्य-सूचना लिखते समय छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। सरल, संक्षिप्त वाक्य सूचना को सरल बनाते हैं।
  5. भाषा-सूचना लिखते समय प्रयोग की जाने वाली भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल होनी चाहिए। भाषा स्पष्टता से युक्त होनी चाहिए। कठिन शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
  6. सूचना पट-सूचना को लगाने वाला स्थान जिसे सूचना पट कहते हैं वह साफ, सुथरा होना चाहिए ताकि जो उस पर लिखा जाए या लगाया जाए उसे सरलता और स्पष्टता से पढ़ा जा सके। महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित कर देना चाहिए।
  7. सरल-सूचना की भाषा अति सरल होनी चाहिए। कठिन शब्दों और लंबे वाक्यों के प्रयोग से बचना चाहिए।
  8. सूचना देने वाले के विषय में सूचना देने वाले का नाम, पद आदि का उल्लेख किया जाना चाहिए।

सूचना लेखन के उदाहरण

प्रश्न 1.
सरकारी हाई स्कूल, सैक्टर-56, चंडीगढ़ के मुख्याध्यापक की ओर से स्कूल के सूचना-पट (नोटिस बोर्ड) के लिए एक सूचना तैयार कीजिए, जिसमें स्कूल की सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए सैक्शन बदलने की अंतिम तिथि 18. 04. 2016 दी गयी हो।
उत्तर:
सैक्शन बदलने संबंधी सूचना
सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि जो विद्यार्थी किसी भी कारण अपना सैक्शन बदलना चाहता है वह अपना नाम अपने कक्षा अध्यापक को दिनांक 07 मई, 20….. से पहले लिखवा दे।

मुख्याध्यापक
सरकारी हाई स्कूल
सैक्टर-14, चंडीगढ़।

प्रश्न 2.
आपका नाम प्रदीप कुमार है। आप सूर्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल, पठानकोट में हिंदी के अध्यापक हैं। आप स्कूल की हिंदी साहित्य समिति के सचिव हैं। इस समिति द्वारा आपके ही स्कूल में दिनांक 11. 08. 20….. को ‘सड़क सुरक्षा’ विषय पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इस संबंध में आप अपनी ओर से एक सूचना तैयार कीजिए जिसमें विद्यार्थियों को इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कहा गया हो।
उत्तर:
भाषण प्रतियोगिता का आयोजन
विद्यालय के सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि हिंदी-साहित्य-समिति की ओर से दिनांक 11 अगस्त, सन् 20…. को विद्यालय के हाल में ‘सड़क सुरक्षा’ विषय पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इसमें नगर के सभी विद्यालयों के विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। इस प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु आप सभी आमंत्रित हैं। आप अपना नाम 20 जुलाई तक सचिव हिंदी-साहित्य-समिति के पास लिखा दें।

प्रदीप कुमार
सचिव, हिंदी साहित्य समिति।
सूर्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल, पठानकोट।

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प्रश्न 3.
आपका नाम परंजय कुमार है। आप संकल्प पब्लिक स्कूल, पटियाला के डायरेक्टर हैं। आपके स्कूल में दिनांक 7 सितंबर, 20….. को विज्ञान प्रदर्शनी लग रही है। आप अपनी ओर से एक सूचना तैयार कीजिए जिसमें स्कूल के विद्यार्थियों को इसमें भाग लेने के लिए कहा गया हो।
उत्तर:
विज्ञान प्रदर्शनी
आप सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि आपके विद्यालय में दिनांक 07 सितंबर, 20….. को एक विज्ञान प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है। जो भी विद्यार्थी इस प्रदर्शनी में भाग लेना चाहता है, वह अपना नाम कक्षा अध्यापक को 20 अगस्त से पहले दे दें। विद्यालय के सभी विद्यार्थियों से आग्रह है कि वे प्रदर्शनी में भाग लें।

परंजय कुमार
डायरेक्टर
संकल्प पब्लिक स्कूल
पटियाला।

प्रश्न 4.
आपके ज्ञान प्रकाश मॉडल सीनियर सैकेंडरी स्कूल, मोहाली में दिनांक 06. 12. 20…. को वार्षिक उत्सव पर गिद्दा और भाँगड़ा का आयोजन किया जा रहा है। स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अध्यक्ष श्री भूपेंद्रपाल सिंह द्वारा एक सूचना तैयार कीजिए, जिसमें इच्छुक विद्यार्थियों को इनमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया हो।
उत्तर:
वार्षिक उत्सव संबंधी सूचना
सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 06 दिसंबर, सन् 20….. को विद्यालय का वार्षिक उत्सव मनाने का आयोजन किया जा रहा है। इस उत्सव में गिद्दा और भाँगड़ा का आयोजन भी होगा। जो विद्यार्थी इनमें भाग लेना चाहते हैं, वे सभी अपना नाम सांस्कृतिक कार्यक्रम के अध्यक्ष को 15 नवम्बर से पहले दे दें।

भूपेंद्रपाल सिंह
अध्यक्ष, सांस्कृतिक कार्यक्रम।
ज्ञान प्रकाश मॉडल सीनियर सैकेंडरी स्कूल, मोहाली।

प्रश्न 5.
आपका नाम जगदीश सिंह है। आप आलोक सीनियर सैकेण्डरी स्कूल, मानसा के ड्रामा क्लब के डायरेक्टर हैं। आपके स्कूल में 25 दिसंबर, 20…. को एक ऐतिहासिक नाटक का मंचन किया जाना है, जिसका नाम है ‘रानी लक्ष्मीबाई’। आप इस संबंध में एक सूचना तैयार करें जिसमें विद्यार्थियों को उपर्युक्त नाटक में भाग लेने के लिए नाम लिखवाने के लिए कहा गया हो।
उत्तर:
‘रानी लक्ष्मीबाई’ नाटक का मंचन विद्यालय के सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 25 दिसंबर, सन् 20….. को विद्यालय के ड्रामा क्लब की ओर से ऐतिहासिक नाटक ‘रानी लक्ष्मीबाई’ का मंचन होने जा रहा है। इस नाटक में भाग लेने के लिए इच्छुक विद्यार्थी सादर आमंत्रित हैं। नाटक में भाग लेने वालों के लिए विद्यालय की ओर से प्रशिक्षण हेतु समुचित व्यवस्था की जाएगी।

जगदीश सिंह
डायरेक्टर, ड्रामा क्लब,
रोपड़।

प्रश्न 1.
महर्षि दयानंद विद्यालय दिनांक 15 मई से 1 जुलाई, 20 ……… तक ग्रीष्मावकाश के लिए बंद रहेगा। इस आशय की सूचना जारी करें।
उत्तर:
महर्षि दयानंद विद्यालय,
मुक्तसर।
दिनांक 10 मई, 20….
सूचना
सभी विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि ग्रीष्मावकाश के कारण विद्यालय 15 मई से 1 जुलाई, 20……. तक बंद रहेगा। विद्यालय 2 जुलाई को प्रातः 8 बजे खुलेगा।

सर्वजीत कौर
प्राचार्य।

प्रश्न 2.
राजकीय विद्यालय, फरीदकोट के अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों को अपनी छात्रवृत्ति महाविद्यालय के लेखापाल से प्राप्त करने की सूचना जारी करें।
उत्तर:
राजकीय विद्यालय,
फरीदकोट।
दिनांक 10 मई, 20….
सूचना

अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों की छात्रवृत्तियां पंजाब सरकार से प्राप्त हो गई हैं। वे विद्यालय के लेखापाल से खिड़की संख्या दो पर अपनी छात्रवृत्ति किसी भी कार्य दिवस में प्रातः 9 बजे से दोपहर 1-00 बजे तक प्राप्त कर सकते हैं।

गोविंद सिंह बेदी
प्राचार्य।

प्रश्न 3.
श्री हरबंस लाल भंडारी का पंद्रह वर्षीय लड़का घर से भाग गया है। उसकी तलाश के लिए सूचना जारी करने का प्रारूप प्रस्तुत करें।
उत्तर
सूचना
सभी को सूचित किया जाता है कि मेरा पुत्र जिसका नाम संदीप कुमार है दिनांक 22 सितंबर से घर से लड़ कर भाग गया है। उसकी उम्र पन्द्रह वर्ष, कद 5′-2″, शरीर गठीला, चेहरा गोल तथा बायें गाल पर चोट का निशान है। उसने काली सफेद धारियों वाली कमीज़ तथा खाकी पैंट पहनी हुई है। उसका पता देने वाले अथवा घर तक पहुंचाने वाले को समुचित पुरस्कार दिया जाएगा। यदि संदीप स्वयं इस सूचना को पढ़ता है तो वह स्वयं घर चला आए। उसकी माँ बहुत बीमार है। उसे अब कोई कुछ नहीं कहेगा।

हरबंस लाल भंडारी
512-सदर बाजार,
फिरोज़पुर छावनी।

प्रश्न 4.
भूकंप पीड़ितों की सहायता के लिए सूचना जारी करें।
उत्तर:
सूचना
भूकंप पीड़ितों की सहायता के लिए आर्थिक सहायता

आम जनता को सूचित किया जाता है कि जो दानी महानुभाव/स्वयंसेवी संगठन और निजी तौर पर गुजरात के भूकंप पीड़ितों के लिए राहत कार्यों हेतु वित्तीय सहायता देने के इच्छुक हैं, वह ‘पंजाब चीफ मिनिस्टर रिलीफ फंड गुजरात’ के नाम चैक/ड्राफ्ट तैयार करवा करके पंजाब सिविल सचिवालय, चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री के कार्यालय में डाक द्वारा या स्वयं दे सकते हैं।

जारीकर्ता
सूचना एवं लोक संपर्क, पंजाब।

प्रश्न 5.
अपने विद्यालय में वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह मनाने के लिए सूचना लिखें।
उत्तर:
गुरु नानक देव कन्या विद्यालय, खन्ना
दिनांक 13 मार्च, 20 …………..
सूचना

विद्यालय का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह विद्यालय परिसर में शनिवार दिनांक 17 मार्च, 20………… को प्रातः 11.00 बजे मनाया जाएगा। मुख्य अतिथि श्रीमती सिमरण कौर, शिक्षा आयुक्त होंगी। सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों की उपस्थिति अनिवार्य है।

समारोह के बाद जलपान की व्यवस्था है।
तृप्ता सचदेवा
प्रधानाचार्य।

प्रश्न 6.
अपने विद्यालय में गुरु नानक देव जी का प्रकाशोत्सव मनाने के लिए सूचना लिखें।
उत्तर:
माता प्रकाश कौर कन्या उच्च विद्यालय, फिरोज़पुर
दिनांक : 15 नवम्बर, 20……..
सूचना

सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि मंगलवार दिनांक 19 नवंबर, 20……. को प्रात: 11.00 बजे विद्यालय परिसर में श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाशोत्सव मनाया जाएगा। इसमें विभिन्न विद्वान् तथा रागी अपने प्रवचन तथा राग प्रस्तुत करेंगे। इस समागम में सबकी उपस्थिति अनिवार्य है। दोपहर 12.30 बजे से अखंड लंगर का प्रबंध है।
सिमरन कौर
प्राचार्य।

प्रश्न 7.
अपने विद्यालय में वृक्षारोपण समारोह मनाने के लिए सूचना लिखें।
उत्तर:
भारतीय विद्या मंदिर,
खन्ना।
दिनांक 14 जुलाई, 20……
सूचना

समस्त विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय परिसर में बुधवार, दिनांक 20 जुलाई, 20………… को प्रातः वृक्षारोपण समारोह का आयोजन किया जा रहा है। इस समारोह की अध्यक्षता प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ० गोविंद खुराना करेंगे तथा विद्यालय प्रांगण में वृक्ष लगाए जाएंगे। सभी विद्यार्थियों तथा अध्यापकों की उपस्थिति अनिवार्य है।

के० सी० शर्मा
प्रधानाचार्य।

प्रश्न 8.
अपने विद्यालय में गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाशोत्सव मनाने के लिए सूचना लिखें।
उत्तर:
दयाल सिंह पब्लिक स्कूल,
मोहाली।
दिनांक 12 फरवरी, 20……………
सूचना

सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि सोमवार, दिनांक 21 फरवरी, 20………… प्रातः 10 बजे विद्यालय परिसर में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा जिसमें विद्वानों के प्रवचन तथा रागियों के रागों का आयोजन किया गया है। सभी की उपस्थिति अनिवार्य है।
दोपहर बाद 1.00 बजे से अखंड लंगर का आयोजन होगा।
एस० के० सिंह
प्रधानाचार्य।

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प्रश्न 9.
अपने विद्यालय में शहीद भगत सिंह जी का शहीदी दिवस मनाने के लिए सूचना लिखो।
उत्तर:
राजकीय उच्च विद्यालय,
होशियारपुर।
दिनांक : 10, अप्रैल 20……….
सूचना

सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय परिसर में बुधवार, दिनांक 18 अप्रैल, 20…….. को प्रातः 10.00 बजे अमर शहीद भगत सिंह जी का शहीदी दिवस मनाया जाएगा जिसमें अनेक विद्वान् अपने-अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। इस समारोह में सभी की उपस्थिति अनिवार्य है।

समारोह के पश्चात् जलपान का प्रबंध है।
हरभजन सिंह संधु प्राचार्य।
विद्यालय,

प्रश्न 10.
अपने विद्यालय में अध्यापक दिवस मनाने के लिए सूचना लिखें।
उत्तर:
गुरु तेग़ बहादुर पब्लिक स्कूल, नाभा। दिनांक : 01 सितम्बर, 20………
सूचना

सभी विद्यार्थियों तथा अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 05 सितंबर, 20……….. को प्रातः 9.00 बजे विद्यालय प्रांगण में अध्यापक दिवस मनाया जाएगा। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अध्यापक श्री रत्नसिंह चावला करेंगे।
इस कार्यक्रम में सभी की उपस्थिति अनिवार्य है।
देवेंद्र सिंह सचदेव
प्राचार्य।

प्रश्न 1.
लुधियाना पुलिस की ओर से एक सार्वजनिक सूचना लिखिए जिसमें आम जनता को लावारिस वस्तुओं एवं सामान को न छूने की सलाह दी गई हो।
उत्तर:
सार्वजनिक सूचना
सभी जनमानस को सूचित किया जाता है कि लावारिस पड़ी वस्तुओं को हाथ न लगाएं। ऐसी वस्तुएँ जानलेवा या विस्फोटक हो सकती हैं। इनमें बम आदि होने की आशंका हो सकती है। लावारिस वस्तु देखने या संदेह होने पर तुरंत पुलिस को 100 नम्बर पर सूचना दें।
जारीकर्ता लुधियाना, पुलिस।

प्रश्न 2.
डी० ए० वी० पब्लिक स्कूल, जालन्धर (पंजाब) के प्राचार्य की ओर से विद्यालय के अभिभावकों को माता-पिता-शिक्षक-बैठक सम्बन्धी सूचना लिखिए।
उत्तर:
माता-पिता-शिक्षक-बैठक सम्बन्धी सूचना
आप सभी सम्मान योग्य अभिभावकों को सूचित किया जाता है कि आगामी 15 अक्तूबर को माता-पिता-शिक्षकबैठक का आयोजन सुबह 9.00 बजे से 12.00 बजे तक रखा गया है। बैठक में सभी विद्यार्थी विद्यालय की वर्दी में अपने माता-पिता के साथ उपस्थित हों।

प्राचार्य
डी० ए० वी० पब्लिक स्कूल,
जालन्धर (पंजाब)

प्रश्न 3.
आपका नाम विनोद पाण्डेय है। आप विद्यालय के सांस्कृतिक क्लब के अध्यक्ष हैं। विद्यालय में क्लब की ओर से वाद-विवाद प्रतियोगिता ‘बेटी-बचाओ-बेटी-पढ़ाओ’ विषय पर होनी निश्चित हुई है। इस संदर्भ में एक सूचना लिखिए।
उत्तर:
वाद-विवाद प्रतियोगिता सम्बन्धी सूचना
समस्त विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय परिसर में बुधवार, दिनांक 20 अप्रैल, 20…… को प्रातः 10.00 बजे ‘बेटी-बचाओ-बेटी-पढ़ाओ’ विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। जो विद्यार्थी इस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं। वह कक्षा अध्यापक को 16 अप्रैल तक अपना नाम लिखवा दें। प्रतियोगिता की अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० गणपति चंद्र गुप्त कर रहे हैं।

विनोद पाण्डेय
अध्यक्ष,
सांस्कृतिक क्लब।

प्रश्न 4.
सरकारी मॉडल सीनियर सैकेंडरी स्कूल, रामनगर के प्रिंसीपल की ओर से सूचना-पट के लिए एक सूचना तैयार करें जिसमें वर्दी न पहनकर आने वाले विद्यार्थियों को अनुशासनिक कार्यवाही की चेतावनी दी गई हो।
उत्तर:
वर्दी पहनना अनिवार्य
सभी विद्यार्थियों को सचित किया जाता है कि वे सभी नियमित रूप से प्रतिदिन विद्यालय में वर्दी पहनकर आएं। वर्दी न पहनकर आने वाले विद्यार्थियों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी। जो विद्यार्थी अभी तक किसी भी कारण से अपनी वर्दी नहीं ले पाएं हैं उन्हें 3 दिन का अतिरिक्त समय दिया जा रहा है। दिनांक-06 मई, 20…. प्रिंसीपल सरकारी

मॉडल सीनियर
सैकेंडरी स्कूल,
रामनगर।

प्रश्न 5.
आपका नाम विशाल कुमार है। आप सरकारी हाई स्कूल लुधियाना में पढ़ते हैं। आप एन० एस० एस० यूनिट के मुख्य सचिव हैं। आपके स्कूल में दिनांक 25 मई, 20…… को रक्तदान शिविर का आयोजन किया जा रहा है। आप अपनी तरफ से एक नोटिस तैयार करें जिसमें स्कूल के विद्यार्थियों से रक्तदान के लिए अनुग्रह किया जाये।
उत्तर:
रक्तदान शिविर का आयोजन
विद्यालय के सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जा रहा है कि आपके विद्यालय के प्रांगण में दिनांक 25 मई, 20….. को एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया जा रहा है। रक्त दान से बड़ा कोई दान नहीं होता। जो भी विद्यार्थी स्वेच्छा से रक्तदान करना चाहता है वह सादर आमंत्रित है। आपके द्वारा दिया गया रक्त किसी के जीवन को बचा सकता है।

दिनांक 18 मई, 20………
विशाल कुमार
मुख्य सचिव एन० एस० एस० यूनिट ।।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran विज्ञापन, सूचना और प्रतिवेदन

प्रश्न 6.
आपका नाम मुकेश वर्मा है। आपके ‘माँ सरस्वती विद्यालय’ जगाधरी के बारहवीं कक्षा के विद्यार्थी शैक्षणिक भ्रमण हेतु दिनांक 14 सितंबर, 20……को रॉक गार्डन देखने चंडीगढ़ जा रहे हैं। आप स्कूल के छात्रसंघ के सचिव हैं। आप अपनी ओर से इस संबंध में एक सूचना तैयार कीजिए।
उत्तर:
शैक्षणिक भ्रमण का आयोजन
बारहवीं कक्षा के सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि विद्यालय की ओर से दिनांक 14 सितंबर, 20….. को रॉक गार्डन चंडीगढ़ भ्रमण का आयोजन किया गया है। भ्रमण फीस 300 रुपए प्रति विद्यार्थी है। जो विद्यार्थी इस भ्रमण में जाने के इच्छुक हैं, वे अपने कक्षा अध्यापक से संपर्क करें। इच्छुक विद्यार्थी 10 सितंबर से पहले अपना नाम और निश्चित धनराशि जमा करवा दें।

मुकेश वर्मा
सचिव छात्रसंघ

प्रश्न 7.
आपका नाम चाीं है। आप आदर्श इंटरनेशनल स्कूल दादर (मुंबई) में पढ़ती हैं। आप अपने स्कूल की वार्षिक पत्रिका की छात्र-सम्पादिका है। आप पत्रिका के लिए विद्यार्थियों से वर्ष 20….. के अंक के लिए कहानियाँ, कविताएँ, लघु कथाएँ, लेख प्राप्त करने के लिए अपनी ओर से सूचना तैयार कीजिए।
उत्तर:
वार्षिक पत्रिका संबंधी सूचना
विद्यालय के सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि वर्ष 20….. के लिए वार्षिक पत्रिका के छपने का समय निश्चित हो गया है। इस पत्रिका में छपने के लिए जो विद्यार्थी अपनी कहानी, कविता, लेख एवं लघु कथाएँ देना चाहता है, वह अपनी मौलिक रचना 15 अक्तूबर तक छात्र सम्पादिका के पास जमा करवा दें।

चार्वी
वार्षिक पत्रिका-छात्र सम्पादिका।

प्रश्न 8.
सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल, किशनपुरा के प्रिंसीपल की ओर से सूचना-पट के लिए एक सूचना तैयार करें जिसमें प्रिंसीपल की ओर से सभी अध्यापकों और छात्रों को 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में सुबह 8.00 बजे स्कूल आना अनिवार्य रूप से कहा गया हो।
उत्तर:
गणतंत्र दिवस कार्यक्रम
विद्यालय के सभी विद्यार्थियों एवं अध्यापकों को सूचित किया जाता है कि गणतंत्र दिवस कार्यक्रम विद्यालय परिसर में 26 जनवरी को प्रात: 8.00 बजे मनाया जाएगा। मुख्य अतिथि श्रीमती निर्मल सिंह, शिक्षा आयुक्त होंगी। सभी विद्यार्थियों और अध्यापकों की उपस्थिति अनिवार्य है। समारोह के बाद मिष्ठान वितरण की भी व्यवस्था है। प्राचार्य सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल किशनपुरा।

प्रश्न 9.
आपका नाम रवि कुमार है। आप सूर्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल, पठानकोट में हिंदी के अध्यापक हैं। आप स्कूल की हिंदी साहित्य समिति के सचिव हैं। इस समिति द्वारा आपके ही स्कूल में दिनांक 11. 08. 2018 ‘ को ‘सड़क सुरक्षा’ विषय पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इस संबंध में आप अपनी ओर से एक सूचना तैयार कीजिए जिसमें विद्यार्थियों को इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कहा गया हो।
उत्तर:
भाषण प्रतियोगिता का आयोजन
विद्यालय के सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि हिंदी साहित्य समिति की ओर से दिनांक 11 अगस्त, सन् 2018 को विद्यालय के हाल में ‘सड़क सुरक्षा’ विषय पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। इसमें नगर के सभी विद्यालयों के विद्यार्थी भाग ले रहे हैं। इस प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु आप सभी आमंत्रित हैं। आप अपना नाम 20 जुलाई तक सचिव हिंदी साहित्य समिति के पास लिखा दें।

रवि कुमार
सचिव, हिंदी साहित्य समिति।
सूर्या सीनियर सेकेंडरी स्कूल, पठानकोट।

III. प्रतिवेदन

प्रश्न 1.
आपका नाम संदीप कुमार है। आप सरकारी हाई स्कूल, नवांशहर में पढ़ते हैं। आप अपने स्कूल के छात्र संघ के सचिव हैं। आपके स्कूल में दिनांक 14 नवंबर, 20….. को ट्रैफिक पुलिस अधिकारी द्वारा विद्यार्थियों को सड़क पर चलने के नियमों की जानकारी दी गयी तथा इस संबंधी पढ़ने की सामग्री भी दी गयी। इस आधार पर प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक-सड़क सुरक्षा गोष्ठी
सरकारी हाई स्कूल, नवाँशहर के परिसर में दिनांक 14 नवंबर, 20….. को प्रातः 10 बजे स्थानीय ट्रैफिक पुलिस अधिकारी द्वारा विद्यार्थियों को सड़क पर चलने के नियमों की जानकारी देते हुए बताया कि सड़क पर किस प्रकार से सुरक्षित चलना चाहिए। उन्होंने यातायात से संबंधित विभिन्न नियमों की सामग्री भी पढ़ने के लिए विद्यार्थियों में वितरित की। उन्होंने मंत्र दिया कि सड़क पर सावधानी से चलने में ही सुरक्षा है। मुख्याध्यापक महोदय ने उनकी इस महत्त्वपूर्ण ‘जानकारी देने के लिए आभार व्यक्त किया।

संदीप कुमार
सचिव, छात्र संघ

प्रश्न 2.
आपका नाम मनजीत सिंह है। आप चंडीगढ़ पब्लिक स्कूल, चंडीगढ़ में पढ़ते हैं। आप अपने स्कूल के हिन्दी साहित्य परिषद् के सचिव हैं। आपके स्कूल में दिनांक 20 नवम्बर, 20….. को हास्य कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न कक्षाओं के विद्यार्थियों ने भाग लिया। कवियों द्वारा अपनी हास्य कविताओं से सभी का मनोरंजन किया गया। इस आधार पर प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक-हास्य कवि-सम्मेलन का आयोजन
चंडीगढ़ पब्लिक स्कूल, चंडीगढ़ के सभागार में दिनांक 20 नवंबर, 20….. को प्रातः 11 बजे मुख्याध्यापक श्री रतनचंद्र शर्मा जी की अध्यक्षता में एक हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न कक्षाओं के चौबीस विद्यार्थियों ने अपनी हास्य कविताओं द्वारा श्रोताओं को हँसा-हँसा कर लोट-पोट कर दिया। सर्वश्रेष्ठ प्रथम तीन विद्यार्थियों को मुख्याध्यापक महोदय ने विजयोपहार प्रदान किए। कार्यक्रम की समाप्ति पर अल्पाहार का विशेष प्रबंध किया गया था।

मनजीत सिंह
सचिव, हिंदी साहित्य परिषद्

प्रश्न 3.
आपका नाम सूर्यप्रकाश है। आप उपकार हाई स्कूल, नागपुर में पढ़ते हैं। आप स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अध्यक्ष हैं। आप स्कूल में दिनांक 01 दिसम्बर, 20….. को विश्व एड्स दिवस मनाया गया जिसमें : डॉ० कंवलदीप सिंह मुख्य अतिथि थे। इस अवसर पर विद्यार्थियों को एड्स के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से पोस्टर मेकिंग, नारा-लेखन, भाषण व निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। डॉ० साहिब ने एड्स के प्रति विद्यार्थियों की सभी भ्रांतियों को दूर किया तथा प्रत्येक प्रतियोगिता में पहले तीन स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को सम्मानित किया। इस आधार पर प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक-विश्व एड्स दिवस समारोह
उपकार हाई स्कूल, नागपुर के परिसर में दिनांक 01 दिसंबर, 20….. को विश्व एड्स दिवस के उपलक्ष्य में पोस्टर मेकिंग, नारा लेखन, भाषण तथा निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया, जिनमें विद्यार्थियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस आयोजन के मुख्य अतिथि डॉ० कंवलदीप सिंह ने एड्स से संबंधित विभिन्न भ्रांतियों का निवारण करते हुए एड्स पीड़ितों के प्रति सद्भाव रखने के लिए श्रोताओं को प्रेरित किया और प्रत्येक प्रतियोगिता में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को विजयोपहारों से सम्मानित किया। मुख्याध्यापक महोदय ने मुख्य अतिथि का आभार व्यक्त किया।

सूर्यप्रकाश
अध्यक्ष, सांस्कृतिक कार्यक्रम

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प्रश्न 4.
आपका नाम अमनदीप सिंह है। आप सरकारी हाई स्कूल देसूमाजरा में पढ़ते हैं। आप अपने स्कूल के एन०एन०एस० यूनिट (राष्ट्रीय सेवा योजना) की सचिव हैं। आपके स्कूल में दिनांक 12 अक्तूबर, 20….. को स्थानीय सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों की टीम के सहयोग से दो दिवसीय ‘दंत-जाँच-शिविर’ का आयोजन किया गया। डॉक्टरों द्वारा विद्यार्थियों के दाँतों की जाँच की गयी और रोगियों को मुफ्त दवाइयाँ दी गयीं। उन्हें दाँतों की सफाई व सुरक्षा के बारे में जागरूक भी किया गया। इस आधार पर प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक-‘दंत जाँच शिविर’ का आयोजन
सरकारी हाई स्कूल, देसूमाजरा में स्कूल के एन०एस०एस० यूनिट द्वारा स्कूल परिसर में दिनांक 12 अक्तूबर, सन् 20….. को स्थानीय सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों की टीम के सहयोग से दो दिवसीय ‘दंत जाँच शिविर’ का आयोजन किया गया। डॉक्टरों ने विद्यार्थियों के दाँतों की जाँच की और रोगियों को मुफ्त दवाइयाँ दी तथा उन्हें दाँतों की सफाई और सुरक्षा के बारे में जागरूक किया। मुख्याध्यापक महोदय ने डॉक्टरों का आभार व्यक्त किया।

अमनदीप
सचिव एन०एन०एस०यूनिट
(राष्ट्रीय सेवा योजना)

प्रश्न 5.
आपका नाम अनुकांत कौशल है। आप दयानंद पब्लिक स्कूल, बहादुरगढ़ में पढ़ते हैं। आप दसवीं कक्षा के प्रतिनिधि छात्र हैं। आपकी कक्षा का एक छात्र दल दिनांक 16.12.20….. को शैक्षिक भ्रमण हेतु चंडीगढ़ गया था जहाँ उन्होंने रोज़ गाडर्न व रॉक गाडर्न के साथ-साथ पंजाब विश्वविद्यालय की सैर की। इस आधार पर प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
विषय-शैक्षिक भ्रमण
दयानंद पब्लिक स्कूल, बहादुरगढ़ की कक्षा दसवीं के दस छात्रों का एक दल दिनांक 16.12.20….. को शैक्षिक भ्रमण के लिए चंडीगढ़ गया, जहाँ उन्होंने रोज़ गार्डन, रॉक गार्डन, पंजाब विश्वविद्यालय सचिवालय, सुखना लेक आदि स्थानों का भ्रमण किया। साथ गए अध्यापक महोदय ने सभी स्थानों की विशेषताओं से परिचित कराते हुए भ्रमण के महत्त्व पर प्रकाश डाला। सभी छात्र इस भ्रमण यात्रा से अत्यंत प्रसन्न तथा लाभान्वित हुए।

अनुकान्त कौशल
प्रतिनिधि, कक्षा दसवीं

परीक्षोपयोगी प्रतिवेदन के कुछ अन्य उदाहरण

प्रश्न 1.
आप के स्कूल में हिंदी साहित्य परिषद् की एक सभा हिंदी दिवस समारोह को मनाने हेतु आयोजित की। गई। उसका प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
“हिंदी-दिवस समारोह’ संबंधी प्रतिवेदन
स्कूल में हिंदी भाषा के प्रति विद्यार्थियों के हृदय में इस का निरंतर प्रयोग करने के भाव जगाने और इसकी वैज्ञानिक प्रकृति को समझाने के लिए 14 सितंबर को व्यापक स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता हिंदी साहित्य परिषद् के द्वारा अनुभव की गई हैं। अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्राप्त करने के कारण विज्ञान और वाणिज्य विषय पढ़ने वाले विद्यार्थियों की सामान्य बोलचाल की भाषा में अंग्रेज़ी का प्रभाव निरंतर बढ़ता जा रहा है जो किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। हिंदी हमारे देश की राजभाषा है और इस का मानसम्मान बना कर रखना अति आवश्यक है। किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के लिए अपनी भाषा की पहचान और प्रयोग गर्व की बात है। स्कूल में हिंदी दिवस पर भाषण, कविता-पाठ और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। हिंदी के गौरव को प्रकट करने वाली उक्तियाँ स्कूल परिसर में लिखी जाएंगी। गत वर्ष की वार्षिक हिंदी परीक्षा विषय में अधिकतम अंक प्राप्त करने वाले प्रत्येक कक्षा के विद्यार्थी को स्कूल की सभा में सम्मानित किया जाएगा।

डॉ० सुनीता कौशल
प्राचार्या
दिनांक 12 अगस्त, 20…

प्रश्न 2.
इस वर्ष ग्रीष्म ऋतु में राज्य में विद्युत उत्पादन बहुत कम हुआ है। इस संबंध में जांच करने के बाद अधिकारी को प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
‘राज्य में’ कम विद्युत उत्पादन संबंधी प्रतिवेदन इस वर्ष ग्रीष्म ऋतु में राज्य के सभी जिलों में विद्युत का गंभीर संकट अनुभव किया गया जिस कारण जनता को भीषण कष्ट उठाना पड़ा। इससे खेतों में फ़सलों को अपार क्षति हुई और राज्य की औद्योगिक इकाइयों की उत्पादन क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। राज्य के विभिन्न नगरों-कस्बों में विद्युत विभाग को जनता का आक्रोश झेलना पड़ा।

राज्य की विद्युत क्षमता को कोयले की कम आपूर्ति ने प्रभावित किया। राज्य सरकार के द्वारा समय पर भुगतान न होने के कारण कोयला खानों से समय पर कोयला थर्मल प्लांटों में नहीं पहुंचा। पानीपत के चार में से दो यूनिट तो पिछले दो महीने से बंद पड़े हैं। शेष दो अपनी क्षमता से आधा विद्युत उत्पादन कर रहे हैं। भाखड़ा के जल स्तर में कमी हो जाने के कारण राज्य को अपने पूल में कम बिजली प्राप्त हुई। उत्तर भारत ग्रिड पर अधिक लोड होने के कारण भी विद्युत संकट की स्थिति बिगड़ी।

मानसून आने तक यह स्थिति बनी रहने की संभावना है। थर्मल प्लांटों को पूरी क्षमता से विद्युत प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त कोयले को मंगवाना होगा। यदि कोयले की देश में कमी है तो उसे आयात करने का प्रबंध किया जाए।

राजस्थान सीमा के निकट राज्य में कुछ क्षेत्रों पर सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पन्न की जा सकने की स्थितियाँ हैं। नवीकरणीय ऊर्जा प्रबंधन के केंद्रीय विभाग से सहायता प्राप्त सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया आरंभ की जाए।

महीय गोस्वामी
चेयरमैन
18 जुलाई, 20…

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प्रश्न 3.
पिछले सप्ताह स्कूल के माली और चपरासी में हुए आपसी झगड़े और मारपीट की एक सदस्यीय जाँच संबंधी प्रतिवेदन प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
‘माली और चपरासी में आपसी झगड़े’ संबंधी प्रतिवेदन
‘बुधवार, 4 जुलाई को श्री राम लखन (माली) और श्री नरेश कुमार (चपरासी) के बीच प्रयोगशाला के निकट बोटेनीकल पार्क में झगड़ा हुआ। उस समय स्कूल लगा हुआ था और प्रयोगशालाओं में विद्यार्थी काम कर रहे थे। झगड़ा किसी गंभीर विषय से संबंधित नहीं था। नरेश कुमार के गाली देने और क्रोधी स्वभाव के कारण दोनों में हुआ झगड़ा मारपीट तक जा पहुँचा। इस झगड़े से प्रयोगशाला और कक्षाओं में विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हुई और कर्मचारियों में अनुशासनहीनता की बात अनेक घरों तक पहुँची, जो स्कूल के लिए अच्छा नहीं है।

दोनों कर्मचारी स्कूल में पिछले बीस वर्ष से कार्य कर रहे हैं। श्री नरेश कुमार पहले भी तीन-चार बार अन्य कर्मचारियों से झगड़ा और मारपीट कर चुके हैं। उनके विरुद्ध इससे पहले कभी भी कोई कार्यवाही नहीं हुई जिस कारण उनका दुस्साहस बढ़ता जा रहा है।

श्री नरेश कुमार को लिखित चेतावनी दी जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

डॉ० रवनीत कौर
अध्यक्ष
जीव विज्ञान विभाग
14 जुलाई, 20…

प्रश्न 4.
मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के लिए आंशिक सरकारी सहायता प्राप्त संस्था कल्याण की स्थिति स्पष्ट करने हेतु ज़िम्मेदारी उपायुक्त महोदय ने चार सदस्यों की एक जाँच समिति को सौंपी थी। इस का एक प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
मॉडल टाऊन में स्थित संस्था ‘कल्याण’ की स्थिति से संबंधित प्रतिवेदन उपायुक्त महोदय के द्वारा गठित जाँच समिति नगर के मॉडल टाऊन में स्थित मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के लिए आंशिक सरकारी सहायता से चलने वाली संस्था की पूर्ण जाँच करके निम्नलिखित प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है-

  1. ‘कल्याण’ पूर्ण रूप से सरकारी संस्था नहीं है। इसे सरकारी सहायता अवश्य प्राप्त होती है पर यह पूर्ण रूप से उससे न चल कर नगर के दानी और उपकारी लोगों के सहयोग से चलती है।
  2. ‘कल्याण’ की निश्चित आय का स्रोत कोई नहीं है। यह संस्था अपने प्रयत्नों से अपने लिए कुछ आर्थिक आधार तैयार करने योग्य है।
  3. ‘कल्याण’ में तीन वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की आयु के 200 मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग रहते हैं। इनमें से तीस लोग शारीरिक रूप से विकलांग भी हैं।
  4. ‘कल्याण’ में विक्षिप्तों और विकलांगों की देखभाल करने के लिए 24 लोग हैं जिन्हें संस्था निश्चित वेतन देती है। वह वेतन संस्था के द्वारा ही निर्धारित किया जाता है और उस में प्रतिवर्ष वृद्धि नहीं होती । इस पर भविष्य निधि का प्रावधान भी नहीं है।
  5. आर्थिक अभाव के कारण वहां रहने वालों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
  6. संस्था के पास केवल आठ मध्यम आकार के कमरे हैं जहाँ सुबह के समय उन्हें पढ़ाने के लिए कक्षाएं लगती हैं और रात को वे वहीं ज़मीन पर दरी बिछाकर सोते हैं।
  7. इनके पास चिकित्सा सुविधाएं नाम-मात्र की हैं। आवश्यकता पड़ने पर नगर के सेवा भावी चिकित्सक उनकी मुक्त देखभाल करते हैं।
  8. संस्था समाज सेवा के इस कार्य को बढ़ाना चाहती है पर आर्थिक संकट और नाममात्र सरकारी सहायता के कारण ऐसा हो पाना संभव नहीं हो पा रहा।।

संस्था का यह भवन 5000/- रुपए प्रति मास किराये पर है। सुझाव-समिति यह अनुभव करती है कि-

  1. सरकार को इस समाज सेवी संस्था कल्याण का आर्थिक अनुदान बढ़ाना चाहिए।
  2. इसका किसी खुले स्थान पर निश्चित योजना के अनुसार भवन बनवाना चाहिए जहां खुली हवा, पानी का समुचित प्रबंध हो।
  3. इस संस्था की आर्थिक सहायता के लिए जनजागरण के उपाय किए जाने चाहिएं।
  4. यहां काम करने वाले कर्मचारियों के नियमित वेतन और भविष्यनिधि की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।
  5. मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांगों को आजीविका प्राप्ति के लिए योग्य बनाने हेतु छोटे-मोटे काम सिखाने का प्रबंध किया जाना चाहिए।

दिनांक : 29 दिसंबर 20…
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प्रश्न 5.
आपके स्कूल के निकट शराब बेचने का एक ठेका है जो विद्यार्थियों के संस्कार, शिक्षा और अनुशासन की दृष्टि से उचित नहीं है। इस संबंध में एक प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
शराब का ठेका बंद कराने हेतु प्रतिवेदन
विवेकानंद सीनियर सैकेंडरी स्कूल रेलवे रोड पर जहां स्थित है वहां से केवल 100 मीटर दूर शराब का एक ठेका पिछले एक वर्ष से चल रहा है। जब यह ठेका यहां आरंभ हुआ था तब भी इसके विरोध में लोगों ने शिकायत की थी पर संबंधित सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों पर इस का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। पिछले एक वर्ष में इस ठेके ने विद्यार्थियों के संस्कारों और विचारों को प्रभावित किया है जो उनकी बातचीत से स्पष्ट झलकने लगा है। टी० वी० चैनलों और सिनेमा ने युवा वर्ग को शराबखोरी की ओर प्रवृत्त किया है। ठेके पर लगे बड़े-बड़े विज्ञापन पट और सिनेमा के उत्तेजक पोस्टर मिल कर छात्र वर्ग का अहित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। ठेके पर शराब खरीदने वालों की भीड़ लगी रहती है।

हमारा सहशिक्षा स्कूल है। वहां खड़े शराबी आनेजाने वाली छात्राओं की तरफ भद्दी और अश्लील इशारेबाजी करते हैं, गंदे दोहरे अर्थ वाले वाक्य बोलते हैं। उन्हें ऐसा करते देख अध्यापक वर्ग का खून खौलता है। संभव है कि किसी दिन यह झगड़े का कारण बन जाए। वैसे भी वहां दिन भर शराबी गुत्थम-गुत्था होते ही रहते हैं। स्कूली विद्यार्थी कच्ची बुद्धि के होते हैं। वे तो कच्ची मिट्टी के समान होते हैं जिन्हें कोई भी आकार समाज और परिवार के द्वारा दिया जा सकता है। वे अच्छे सभ्य नागरिक बनते हैं तो वे ही गुंडे और आवारा भी बनते हैं। समय रहते उन्हें सँवारा जा सकता है या बिगाड़ा भी जा सकता है। कानूनी दृष्टि से भी शिक्षण संस्था के इतनी निकट शराब के ठेके नहीं हो सकते।

इस ठेके को कहीं दूर स्थानांतरित करवा दिया जाना चाहिए।
डॉ० अविनाश कौशल
प्राचार्य
26 मार्च, 20….

प्रश्न 6.
दालों के दाम बड़ी तेज़ी से आकाश को छूने लगे हैं। इन्हें नियंत्रित करने के सुझाव देते हुए एक प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
दालों के बढ़ते दामों’ पर प्रतिवेदन सारे देश में दालों के दाम बड़ी तेज़ी से बढ़े हैं, जो चिंता का विषय है। ‘दाल-रोटी’ को किसी भी निर्धन या मध्यवर्गीय का सस्ता भोजन स्वीकार किया जाता रहा है पर अब तो दालों का दाम किसी महँगे से महँगे फल से भी महँगा हो गया है। निर्धन तो क्या, ये तो मध्यवर्गीय लोगों की पहुंच से बाहर हो गई हैं। इनका दाम शीघ्र अति शीघ्र नियंत्रित करना होगा ताकि आम आदमी इन्हें खरीद सके।
सुझाव-

  1. दाल व्यापारियों पर कड़ी नज़र रखकर जमाखोरी करने वालों को कठोरतापूर्वक नियंत्रित करना चाहिए।
  2. दालों का निर्यात पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
  3. जिन दालों की अधिक कमी अनुभव की जा रही है उनका सीमित मात्रा में कुछ समय के लिए आयात किया जाना चाहिए।
  4. किसानों को दालों की खेती अधिक करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
  5. जनता के द्वारा अधिक मात्रा में प्रयुक्त की जाने वाली मूंग, अरहर, चने और उड़द दालों को सरकारी उपभोक्ता दुकानों पर कम दाम पर तब तक बेचने का प्रबंध किया जाए जब तक इनके दामं नियंत्रित नहीं हो जाते।

ये सभी कार्य तब तक जारी रहने चाहिएं जब तक दालों के मूल्यों पर पूर्ण रूप से नियंत्रण नहीं होता।

दलजीत सिंह
अध्यक्ष
कंज्यूमर प्रोटैक्शन सैल
26 मई, 20…

प्रश्न 7.
नगर सुधार समिति ने नगर में स्वच्छता अभियान चलाने से पूर्व तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था। समिति के द्वारा दिए प्रतिवेदन को प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
नगर में स्वच्छता प्रबंधन संबंधी प्रतिवेदन
हमारा नगर प्राचीन और ऐतिहासिक महत्त्व का है जिसकी स्वच्छता का ध्यान रखना.अनिवार्य है। यह राष्ट्रीय धरोहर के रूप में देश भर में प्रतिष्ठित है। इसकी स्वच्छता और देखभाल के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जाने चाहिएं-
1. मुख्य मंदिर की ओर जाने वाली सड़क की चौड़ाई बहुत कम है। आवासीय क्षेत्र होने के कारण उसे चौड़ा करना भी संभव प्रतीत नहीं होता पर उसके दोनों ओर बनी नालियां अधिक गहरी और पक्की की जानी चाहिएं ताकि उनसे बहने वाला गंदा पानी सड़क पर इकट्ठा न हो।

2. धार्मिक स्थलों पर चढ़ाई गई फूल मालाओं, पत्तों, छिलकों आदि को इधर-उधर बिखराने या नदी में प्रवाहित करने की अपेक्षा खेतों में दबा कर खाद बनाने के लिए प्रयुक्त किया जाए।

3. मुख्य मार्ग से रेहड़ी वालों को हटा कर उन्हें अन्यत्र भेजा जाना चाहिए।

4. सड़कों के किनारों पर कुछ-कुछ दूरी पर कूड़ा-कचरा फेंकने के लिए धातु/प्लास्टिक के ढक्कनदार ड्रमों आदि का प्रबंध किया जाना चाहिए।

5. दुकानदारों ने अपनी-अपनी दुकानों के बाहर दूर तक जगह घेर रखी है जहाँ वे ग्राहकों को आकृष्ट करने हेतु सामान सजाते हैं पर इस से लोगों का रास्ता रुकता है। दुकानदारों को समझा-बुझा कर या बलपूर्वक ऐसा करने से रोका जाए।

6. टूटी-फूटी सड़कों की मुरम्मत कर पटडियों की स्थिति को सुधारा जाए।

7. पुराने जर्जर होते धार्मिक स्थलों की देख-रेख हेतु भारतीय पुरातत्व विभाग की सेवाएं प्राप्त करें।

8. चौराहों का पुनर्निर्माण कर उन पर पेड़-पौधे तथा आकर्षक मूर्तियां आदि लगाई जाएं।

9. टेलीफोन के खंभों को तंग सड़कों के दोनों ओर से हटाने का प्रबंध कराएं। तारों को भूमिगत कर दिया जाए।

10. टी०वी० केबल लगाने वालों को निर्देश दिए जाएं कि वे सड़कों पर तारों के जाल न फैलाएं। इससे नगर की सड़कें मकड़ी के जाल-सी लगती हैं।

11. अधिक व्यस्त. चौराहों पर यातायात नियंत्रण संबंधी बत्तियों की व्यवस्था की जाए।
दिनांक : 14 अप्रैल, 20…
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प्रश्न 8.
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कर्ज में डूबे निर्धन किसानों की आत्महत्या करने की घटनाएं निरंतर बढ़ती जा रही हैं। उन पर नियंत्रण पाने हेतु एक प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
‘विदर्भ क्षेत्र में कर्ज में डूबे किसानों द्वारा आत्महत्या’ संबंधी प्रतिवेदन महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के छः ज़िलों में अतिशय कर्ज में डूबे किसानों की दशा दिन प्रतिदिन शोचनीय होती जा रही है। समुचित सिंचाई व्यवस्था न होने तथा मानसून की अनिश्चितता के कारण किसानों को बैंकों तथा अन्य ऋणदाता एजैंसियों से उधार लेकर खेती करनी पड़ी लेकिन फ़सल न हो पाने के कारण मानसिक प्रताड़ना ने उन्हें आत्महत्या के लिए विवश कर दिया। पिछले पाँच वर्ष में इस क्षेत्र के 530 किसान अब तक इसी कारण आत्महत्या कर चुके हैं, जो किसी को भी विचलित कर सकने वाली त्रासदी है। किसानों को इस संकट से उबारने के लिए शीघ्र ठोस कदम सरकार के द्वारा उठाए जाने चाहिएं ताकि पीड़ित किसानों, विधवाओं और अनाथ बच्चों को सहारा मिल सके।

सुझाव-

  1. इस क्षेत्र के किसानों के बकाया ऋण माफ़ कर दिए जाने चाहिएं।
  2. इस क्षेत्र में सिंचाई की वैकल्कि सुविधाएं दी जानी चाहिएं।
  3. कपास उत्पादकों को बेहतर दाम दिलाने की प्रभावी योजनाएं बनाई जानी चाहिएं।
  4. पीड़ित बच्चों की शिक्षा का भार सरकार को उठाना चाहिए।
  5. पढ़े-लिखे किसानों की नौकरी की व्यवस्था करनी चाहिए।

प्रभा शंकर मुले
सरपंच
यवतमाल (महाराष्ट्र)
19 जून, 20…

प्रश्न 9.
राज्य सरकार के द्वारा भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सीधा ग्राम पंचायतों के द्वारा काम कराने हेतु एक प्रतिवेदन प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
‘ग्राम पंचायतों से विकास कार्य कराने’ संबंधी प्रतिवेदन राज्य में विकास कार्यों को गति देने हेतु सरकारी दफ्तरों में फैली लाल फीताशाही को समाप्त करने की परम आवश्यकता है। केंद्र और राज्य सरकारें गाँवों के लिए जितनी योजनाएँ बनाती हैं और उनके लिए धन की व्यवस्था करती हैं, वे गाँव तक पहुँचते-पहुँचते आधी से भी कम रह जाती हैं। ऐसा आवश्यक हो गया है कि सरकार कुछ विकास कार्यों को ग्राम पंचायतों के माध्यम से कराने के निर्देश दे ताकि विकास कार्यों में तेज़ी एवं भ्रष्टाचार को कम किया जा सके।

सुझाव-

  1. विकास कार्य ग्राम पंचायतों के द्वारा किए जाएं।
  2. उन कार्यों का खंड एवं जिला स्तर पर गठित सतर्कता समितियों द्वारा परिवीक्ष्ण किया जाए।
  3. किसी भी पंचायत के द्वारा किए जाने वाले विकास कार्यों के लिए निर्धारित राशि पाँच लाख से अधिक नहीं होनी चाहिए।
  4. विकास कार्यों के लिए ग्राम पंचायतों को धन सीधा मुहैया कराया जाना चाहिए।
  5. विकास कार्यों के लिए तकनीकी रूप से दक्ष व्यक्तियों की सेवा ली जानी चाहिए।
  6. परियोजना की लागत का अधिकतम कुल 2 प्रतिशत जिला उपायुक्त द्वारा तकनीकी रूप से दक्ष व्यक्तियों को दक्षता पैनल के आधार पर खर्च किया जाए।
  7. विकास कार्यों में आम आदमियों को शामिल किया जाए।

सेवा राम
अध्यक्ष
ग्राम सुधार समिति
मंगलपुर।
27 मई, 20…

प्रश्न 10.
देश-विदेश में रोज़गार प्रदान कराने हेतु नई युवा नीति संबंधी प्रतिवेदन
उत्तर:
रोज़गार प्राप्ति हेतु नई युवा नीति की आवश्यकता हमारा राज्य आर्थिक सबलता और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा कुछ बेहतर है पर अभी भी राज्य के युवाओं को देश-विदेश में रोज़गार के समुचित अवसर उपलब्ध कराने के लिए नई युवा नीति बनाए जाने की आवश्यकता है। राज्य के कॉलेज प्रतिवर्ष लगभग 15000 इंजीनियर तैयार करते हैं। हजारों की संख्या में उच्च शिक्षित युवा रोज़गार ढूंढने के लिए तैयार हो जाते हैं। इनकी आकांक्षाओं और इच्छाओं को समुचित दिशा देने के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिएं ताकि इनकी ऊर्जा और कौशल का सदुपयोग किया जा सके।

सुझाव-

  1. देश-विदेश रोज़गार ब्यूरो विभिन्न देशों के विभिन्न संस्थानों में उपलब्ध रोज़गारोन्मुखी पाठ्यक्रमों तथा रोज़गार के विभिन्न अवसरों के संबंध में युवाओं को आवश्यक जानकारी निःशुल्क मुहैया कराएं।
  2. विदेश जाने के लिए पासपोर्ट तथा वीज़ा लेने की प्रक्रिया के संबंध में समुचित मार्ग दर्शन उपलब्ध कराया जाए।
  3. राज्य में विभिन्न विभागों में रिक्त पदों को योग्यता के अनुसार भरा जाए।

राजेश्वर शुक्ला
सचिव युवा संगठन।
19 अगस्त, 20…

प्रश्न 11.
आपका नाम संजीव कुमार है। आप विवेकानन्द हाई स्कूल, मुक्तसर में पढ़ते हैं। आप स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अध्यक्ष हैं। आपने स्कूल में 18 अप्रैल, 2015 को सुन्दर लिखाई प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें साठ विद्यार्थियों ने भाग लिया। स्कूल की मुख्याध्यापिका द्वारा पहले, दूसरे तथा तीसरे स्थान पर आने वाले प्रतिभागियों को इनाम बाँटे गये। इस आधार पर प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
सुंदर लिखाई प्रतियोगिता का आयोजन विद्यार्थियों में सुन्दर लिखाई को प्रोत्साहित करने के लिए विवेकानंद हाई स्कूल, मुक्तसर में दिनांक 18 अप्रैल, 2015 को सुंदर लिखाई प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें साठ विद्यार्थियों ने भाग लिया। स्कूल की मुख्याध्यापिका द्वारा पहले, दूसरे तथा तीसरे स्थान को प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को इनाम बांटे गए।

संजीव कुमार
अध्यक्ष, (सांस्कृतिक कार्यक्रम)

प्रतिवेदन किसी ऐसे विवरण को कहते हैं जो किसी संस्था, सभा, विभाग, विद्यालय, पंचायत, समिति आदि की किसी घटना या कार्यवाही का लिपिबद्ध रूप होता है। इसके तीन भाग-शीर्षक, विषय का वर्णन तथा प्रतिवेदन लिखने वाले के हस्ताक्षर होते हैं। शीर्षक में जिस संबंध में प्रतिवेदन लिखा जा रहा हो उसका शीर्षक दिया जाता है। विषय का वर्णन में संबंधित कार्यवाही का विवरण दिया जाता है तथा अंत में प्रतिवेदन प्रस्तुतकर्ता के पद सहित हस्ताक्षर होते हैं।
प्रतिवेदन दो प्रकार के होते हैं-

1. औपचारिक प्रतिवेदन
वे प्रतिवेदन जो किसी सरकारी या गैर-सरकारी संस्था के अधिकारी के आदेश के अनुसार तैयार किए जाते हैं उन्हें औपचारिक प्रतिवेदन कहते हैं। इनमें निष्कर्षों के साथ-साथ सुझाव दिए जाते हैं और संस्तुतियां भी की जाती हैं।

2. अनौपचारिक प्रतिवेदन
ये प्रतिवेदन किसी एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्तियों के पास भेजे जाने वाले पत्रों के समान होते हैं। कोई अकेला व्यक्ति अपनी इच्छा से इसका लेखन कार्य करता है। वही इस का उत्तरदायी होता है। ऐसे प्रतिवेदन उत्तम पुरुष में ‘मैं’ और ‘हम’ की शैली में लिखे जाते हैं।

प्रतिवेदन लिखते समय सावधानियां:
प्रतिवेदन जिस विषय से सम्बन्धित है, उसे स्पष्ट रूप से सरल शब्दों में प्रस्तुत करना चाहिए।

  1. प्रतिवेदन में सम्बन्धित सभी मुख्य तथ्यों का समावेश होना चाहिए।
  2. प्रतिवेदन लिखते समय अनावश्यक विस्तार नहीं करना चाहिए।
  3. प्रतिवेदन स्वयं में पूर्ण होना चाहिए। वह अधूरा नहीं लगना चाहिए।
  4. प्रतिवेदन में सभी घटनाओं का क्रमानुसार वर्णन होना चाहिए।
  5. प्रतिवेदन की भाषा सहज तथा शालीन होनी चाहिए।
  6. प्रतिवेदन लिखते समय विषयांतर नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए यहाँ कुछ प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जा रहे हैं-

प्रश्न 1.
जनता हाई स्कूल, मुक्तसर में हुई वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता का प्रतिवेदन प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
शीर्षक : वार्षिक खेल-कूद प्रतियोगिता
जनता हाई स्कूल, मुक्तसर में दिनांक 20 अगस्त, 20….. को स्कूल में वार्षिक खेल दिवस मनाया गया। इस अवसर पर मानवीय जिला शिक्षा अधिकारी मुख्य अतिथि के रूप में पधारें। स्कूल के मुख्याध्यापक ने उनका हार्दिक स्वागत किया। उन्होंने खेल दिवस का शुभारम्भ साइकिल रेस को हरी झंडी दिखा करके किया। विद्यार्थियों ने हाई जम्प, शॉर्ट पुट, 100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर रेस, बाधा दौड़, स्किपिंग रेस आदि में बढ़-चढ़कर भाग लिया। प्रत्येक खेल में पहले दूसरे तथा तीसरे स्थान पर आने वाले प्रतियोगियों को मुख्य अतिथि के कर कमलों द्वारा पुरस्कृत किया गया।

प्रभजोत कौर
खेल सचिव

प्रश्न 2.
आपका नाम नवनीत कौर है। आप गुरु नानक देव जी कन्या विद्यालय, मोगा में पढ़ती हैं। आप विद्यालय की हिन्दी परिषद की अध्यक्ष हैं। आपके विद्यालय में दिनांक 25 मई, 20…………… को सुलेख प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न कक्षाओं की एक सौ छात्राओं ने भाग लिया था। विद्यालय की मुख्याध्यापिका द्वारा प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया तथा अन्य को प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र दिए गए।
उत्तर:
शीर्षक-सुलेख प्रतियोगिता का आयोजन
विद्यार्थियों में सुन्दर लिखाई को प्रोत्साहित करने के लिए गुरु नानक देव जी कन्या विद्यालय, मोगा में दिनांक 25 मई, 20……….. को सुलेख प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न कक्षाओं की एक सौ छात्राओं ने भाग लिया। विद्यालय की मुख्याध्यापिका, श्रीमती प्रीतम कौर कालरा द्वारा प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया तथा अन्य को प्रतिभागिता प्रमाण-पत्र दिए गए।

नवनीत कौर
अध्यक्ष, हिन्दी परिषद्

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran विज्ञापन, सूचना और प्रतिवेदन

प्रश्न 3.
आपका नाम हरप्रीत सिंह है। आप राजकीय उच्च विद्यालय, फरीदकोट में पढ़ते हैं। आप विद्यालय की सामाजिक परिषद् के अध्यक्ष हैं। आपके विद्यालय में 15 अगस्त, 20……….. को स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं समाजसेवी सरदार करतार सिंह सराभा को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। मुख्य अतिथि ने झंडा अभिवादन के पश्चात् स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों का स्मरण कराते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी तथा विद्यार्थियों में देशप्रेम की भावना को अपनाने पर बल दिया। विद्यार्थियों ने विभिन्न झांकियाँ तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए। मुख्याध्यापक महोदय ने मुख्य अतिथि का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के अन्त में सबको मिठाई वितरित की गई।
उत्तर:
शीर्षक-स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन
राजकीय उच्च विद्यालय, फरीदकोट में दिनांक 15 अगस्त, 20……….. को प्रात: 9 बजे स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं समाजसेवी सरदार करतार सिंह सराभा ने तिरंगा झंडा फहराया तथा स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी। उन्होंने अपने उद्बोधन में विद्यार्थियों को देश के प्रति समर्पण की भावना से कार्य करने की प्रेरणा दी। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा झांकियाँ प्रस्तुत की। मुख्याध्यापक महोदय ने मुख्य अतिथि का आभार व्यक्त किया तथा सब को मिठाई वितरित की गई।

हरप्रीत सिंह
अध्यक्ष, सामाजिक परिषद

प्रश्न 4.
सचिव, युवा प्रगति मंच, लुधियाना द्वारा देश-विदेश में रोजगार के अवसर प्रदान कराने के लिए नई युवा नीति से संबंधित प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक-रोज़गार प्राप्ति हेतु नई युवा नीति की आवश्यकता
हमारा राज्य आर्थिक सबलता और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा कुछ बेहतर है पर अभी भी राज्य के युवाओं को देश-विदेश में रोज़गार के समुचित अवसर उपलब्ध कराने के लिए नई युवा नीति बनाए जाने की आवश्यकता है। राज्य के कॉलेज प्रतिवर्ष लगभग 15,000 इंजीनियर तैयार करते हैं। हजारों की संख्या में उच्च शिक्षित युवा रोज़गार ढूंढ़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। इनकी आकांक्षाओं और इच्छाओं को समुचित दिशा देने के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिएं जिससे इनकी ऊर्जा और कौशल का सदुपयोग किया जा सके।
सुझाव-(क) देश-विदेश रोज़गार ब्यूरो विभिन्न देशों के विभिन्न संस्थानों में उपलब्ध रोज़गारोन्मुखी पाठ्यक्रमों , तथा रोजगार के विभिन्न अवसरों के संबंध में युवाओं को आवश्यक जानकारी नि:शुल्क प्रदान कराएं।
(ख) विदेश जाने के लिए पासपोर्ट तथा वीज़ा लेने की प्रक्रिया के संबंध में समुचित मार्ग दर्शन उपलब्ध कराया जाए। (ग) राज्य में विभिन्न विभागों में रिक्त पदों को योग्यता के अनुसार भरा जाए।

दिनांक
19.08.20..
विकास बंसल
सचिव, युवा प्रगति मंच

प्रश्न 5.
आपका नाम शहनवाज है। आप स्वदेशी हाई स्कूल, होशियारपुर में पढ़ते हैं। आप अपने स्कूल की इको क्लब के अध्यक्ष हैं। आपके स्कूल में दिनांक 16 अप्रैल, 20…………. को पर्यावरण दिवस मनाया गया, जिसमें सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद श्री परमानंद जी मुख्य अतिथि थे। उन्होंने विद्यार्थियों को पर्यावरण संरक्षण का महत्त्व समझाते हुए इसके लिए प्रेरित किया। उन्होंने विद्यार्थियों के साथ स्कूल में पौधारोपण किया। विद्यार्थियों ने इन पौधों के संरक्षण की प्रतिज्ञा की। इस कार्यक्रम का प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक-पर्यावरण दिवस का आयोजन

स्वदेशी हाई स्कूल, होशियारपुर में दिनांक 16 अप्रैल, 20………… को पर्यावरण संरक्षण दिवस मनाया गया, जिसमें सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद श्री परमानंद ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेकर विद्यार्थियों को पर्यावरण संरक्षण का महत्त्व समझाते हुए इसके संरक्षण के लिए प्रेरित किया तथा विद्यालय परिसर में पौधारोपण कर इन पौधों के संरक्षण के लिए विद्यार्थियों से प्रतिज्ञा कराई।
शहनवाज
इको क्लब

प्रश्न 6.
विद्यालय परिसर में आयोजित सामान्य नेत्र जाँच शिविर के आयोजन के समय हुई गतिविधियों का प्रतिवेदन लिखिए।
अथवा
आपका नाम सुमन शर्मा है। आप सरस्वती वन्दना सीनियर सेकेंडरी स्कूल, रोपड़ में पढ़ती हैं। आप अपने स्कूल के एन० एस० एस० यूनिट (राष्ट्रीय सेवा योजना) की सचिव हैं। आपके स्कूल में दिनांक 25 सितम्बर, 2016 को स्थानीय अस्पताल के डॉक्टरों की टीम के सहयोग से तीन दिवसीय ‘नेत्र जाँच शिविर’ का आयोजन किया गया। डॉक्टरों द्वारा विद्यार्थियों की आँखों की जाँच की गयी और रोगियों को मुफ्त दवाइयां दी गयीं। उन्होंने विद्यार्थियों को नेत्रों की सफाई व सुरक्षा के बारे में जागरूक भी किया। इस आधार पर प्रतिवेदन लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक-नेत्र जाँच शिविर का आयोजन
सरस्वती वंदना सीनियर सैकेंडरी स्कूल, रोपड़ की एन०एस०एस० विंग द्वारा विद्यालय परिसर में विद्यार्थियों की सामान्य नेत्र जाँच के लिए दिनांक 25 सितंबर, 2016 को प्रात: 9 बजे से शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें आरोग्य चिकित्सालय के डॉक्टरों ने विद्यार्थियों के नेत्रों की सामान्य जाँच की तथा उन्हें स्वस्थ रहने के उपाय बताए। जिन विद्यार्थियों के नेत्रों में कुछ कमियाँ थीं, उन्हें समुचित उपचार बताकर दवाइयाँ भी दी गईं। मुख्याध्यापक महोदय ने डॉक्टरों की टीम का धन्यवाद किया।
सुमन शर्मा
सचिव, एन०एस०एस०

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar muhavare aur lokoktiyan मुहावरे और लोकोक्तियाँ Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar मुहावरे और लोकोक्तियाँ

नीचे दिए गए लोकोक्तियों के अर्थ समझकर वाक्य बनाइए

प्रश्न 1.
अपना वही जो आवे काम (मित्र वही जो मुसीबत में काम आए)
उत्तर:
सरदार सिंह की बेटी की शादी में जब उसे कुछ रुपयों की ज़रूरत पड़ी तब रविसिंह ने उसे मुंहमांगी रकम तुरंत दे दी तो सरदार सिंह कह उठा अपना वही जो आवे काम।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

प्रश्न 2.
आग लगा कर पानी को दौड़ना (झगड़ा कराने के बाद स्वयं ही सुलह कराने बैठना)
उत्तर:
पहले तो सुलक्षणा मनोरमा से लड़ती रही फिर स्वयं ही उसे मनाने लगी तो मनोरमा ने कहा तुम तो आग लगा कर पानी को दौड़ने का काम कर रही हो।

प्रश्न 3.
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे (अपराध करने वाला उल्टी धौंस जमाए)
उत्तर:
बलकार सिंह ने साइकिल से ठोकर मार कर वृद्ध को गिरा दिया और फिर उसे बुरा-भला कहने लगा, इसी को कहते हैं उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे।

प्रश्न 4.
ओस चाटे प्यास नहीं बुझती (अधिक आवश्यकता वाले को थोड़े से संतुष्टि नहीं होती)
उत्तर:
हाथी का पेट एक केले से नहीं भरता उसे तो कई दर्जन केले खाने के लिए देने होंगे क्योंकि उसकी ओस चाटे प्यास नहीं बुझती।

प्रश्न 5.
कोठी वाला रोये छप्पर वाला सोये (धनी प्रायः चिंतित रहते हैं और निर्धन निश्चित रहते हैं।)
उत्तर:
धनराज करोड़ों का मालिक है। उसे अपने धन की सुरक्षा की सदा चिंता बनी रहती है। जबकि फकीरचंद फक्कड़ है, इसलिए सदा खुश रहता है। इसलिए कहते हैं कि कोठी वाला रोये छप्पर वाला सोये।

प्रश्न 6.
बंदर घुड़की, गीदड़ धमकी (झूठा रौब दिखाना/जमाना)
उत्तर:
रंगा कुछ करता-धरता नहीं है बेकार ही सब को बंदर घुड़की, गीदड़ धमकी देकर डराता रहता है।

प्रश्न 7.
बीति ताहि बिसारि दे, आगे की सुध लेय (पुरानी एवं दुःखपूर्ण बातों को भूल कर भविष्य में सावधानी बरतनी चाहिए)
उत्तर:
रामदास को व्यापार में बहुत घाटा हुआ तो सिर पकड़ कर बैठ गया तब सेवा सिंह ने उसे समझाया कि बीति ताहि बिसारि दे, आगे की सुध लेय तब सब ठीक हो जाएगा।

प्रश्न 8.
मन चंगा तो कठौती में गंगा (मन शुद्ध हो तो घर ही तीर्थ समान)
उत्तर:
अशुद्ध मन से तीर्थाटन करने से कोई लाभ नहीं होता, घर पर ही मानसिक शुद्धि हो जाए तो वही तीर्थाटन हो जाता क्योंकि मन चंगा तो कठौती में गंगा होती है।

प्रश्न 9.
सावन हरे न भादौं सूखे (सदा एक जैसी दशा रहना)
उत्तर:
रेशम सिंह गरीबी में पाई-पाई के लिए मरता था, अब उसका व्यापार चमक उठा है तो भी वह पाई उत्तर: पाई के लिए मर रहा है, उसकी तो सावन हरे न भदौं सूखे जैसी हालत है।

प्रश्न 10.
हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊँ (सहायता प्रदान करने वाले को ही धमकाना)
उत्तर:
हरभजन की स्कूटर से टक्कर हो गई तो वह गिर पड़ा, सुजान ने उसे हाथ पकड़ कर उठाया तो वह उसी पर बरस पड़ा इसी को कहते हैं हमारी बिल्ली हमी से म्याऊँ।

निम्नलिखित में से किन्हीं तीन मुहावरों/लोकोक्तियों के वाक्य इस तरह बनाएं ताकि उनके अर्थ स्पष्ट हो जाएं

1. (क) इस कान सुनना उस कान उड़ा देना
(ख) कच्चा चिट्ठा खोलना
(ग) तिनके का सहारा।
(घ) अपना कोढ़ बढ़ता जाय, औरों को दवा बताय
(ङ) जोते हल तो होंवे फल।
उत्तर:
(क) इस कान सुनना उस कान उड़ा देना-अनीश को कुछ भी समझाना बेकार है क्योंकि वह तो इस कान सुनकर उस कान से उड़ा देने वाला व्यक्ति है।
(ख) कच्चा चिट्ठा खोलना-सांध्य समाचार-पत्र ने सरकारी भ्रष्टाचार का कच्चा चिट्ठा खोल दिया।
(ग) तिनके का सहारा-मुसीबत में फंसे व्यक्ति के लिए तिनके का सहारा भी बहुत होता है।
(घ) अपना कोढ़ बढ़ता जाय, औरों को दवा बताय-रमन कौर सब को खूब मेहनत से पढ़ने के लिए कहती रहती है पर स्वयं पढ़ाई न करने से फेल हो गई; इसी को कहते हैं अपना कोढ़ बढ़ता जाय, औरों को दवा बताय।
(ङ) जोते हल तो होवे फल-सारा वर्ष कठिन परिश्रम से पढ़ाई करने वाला विद्यार्थी परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सफल होते हैं क्योंकि कहा भी गया है कि जोते हल तो होवें फल।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

2. (क) गले का हार
(ख) भगवान् को प्यारा हो जाना
(ग) छक्के छुड़ाना
(घ) अधूरा छोड़े सो पड़ा रहे
(ङ) जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।।
उत्तर:
(क) गले का हार–सुमित अपने माता-पिता के गले का हार है।
(ख) भगवान् को प्यारा हो जाना-कल सुबह छः बजे आरती की दादी माँ भगवान को प्यारी हो गई।
(ग) छक्के छुड़ाना-भारतीय सेना ने शत्रु सेना के छक्के छुड़ा दिए।
(घ) अधूरा छोड़े सो पड़ा रहे-पप्पू ने पहले आटर्स में दाखिला लिया, फिर कामर्स में चला गया और फिर पढ़ाई छोड़ दी, उसकी तो अधूरा छोड़ सो पड़ा रहे की हालत हो गई।
(ङ) जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई–लाला रामनाथ चाँदी के बर्तन में खाना खाते हैं, वे क्या जाने कि इस महंगाई में ग़रीब कैसे अपनी रोटी का जुगाड़ करता है क्योंकि जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।

3. (क) पीठ दिखाना
(ख) सफेद झूठ
(ग) आँखें चुराना
(घ) कथनी नहीं, करनी चाहिए
(ङ) नीम हकीम खतरा जान।
उत्तर:
(क) पीठ दिखाना- भारतीय सेना का आक्रामक रूप देखकर शत्रु सेना पीठ दिखा गई।
(ख) सफेद झूठ-मनजीत कौर से बचकर रहना क्योंकि वह हमेशा सफेद झूठ बोलती है।
(ग) आँखें चुराना-सुरेश ने कृष्ण से सौ रुपये उधार लिए थे। अब उसे देखते ही उस से आँखे चुराने लगता है।
(घ) कथनी नहीं, करनी चाहिए-आजकल के नेताओं की कथनी और करनी में बहुत अंतर है क्योंकि जनता को उनकी कथनी नहीं करनी चाहिए।
(ङ) नीम हकीम खतरा जान-जब तुम्हें बिरयानी बनानी नहीं आती तो इतना ताम-झाम क्यों कर रही हो, पता है कि नीम हकीम खतरा जान होता है।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

प्रश्न 1.
किन्हीं तीन मुहावरों / लोकोक्तियों को वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग करें कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाए: लोहा लेना, मोती पिरोना, जोते हल तो होवे फल, घर का भेदी लंका ढाए, जो गरजते हैं वो बरसते नहीं।
उत्तर:
(क) लोहा लेना-डटकर मुकाबला करना।
वाक्य-भारतीय सेना ने शत्रु सेना से लोहा लेकर उसे पराजित कर दिया।

(ख) मोती पिरोना-सुंदर लिखना।
वाक्य-अनन्या की लिखाई ऐसी लगती है जैसे उसने एक-एक अक्षर से मोती पिरो दिए हों।

(ग) जोते हल तो होवे फल-मेहनती व्यक्ति सफल होते हैं।
वाक्य-सारा वर्ष कठिन परिश्रम से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सफल होते हैं क्योंकि कहा भी गया है कि जोते हल, तो होवे फल।

(घ) घर का भेदी लंका ढाए-आपसी फूट से नुकसान।
वाक्य-देश में आतंकवाद कुछ देश द्रोहियों के कारण ही फैल रहा है क्योंकि घर का भेदी लंका ढाहे।

(ङ) जो गरजते हैं वो बरसते नहीं बढ़ाई करने वाले कुछ नहीं कर पाते।
वाक्य-चुनाव के दिनों में बड़े-बड़े वायदे करने वाले नेता चुनाव के बाद अपने सब वायदे भूल जाते हैं क्योंकि जो गरजते हैं वो बरसते नहीं।

प्रश्न 2.
किन्हीं तीन मुहावरों/लोकोक्तियों को वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग करें कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाए-
अंग-अंग ढीला होना, आँखें चुराना, काला अक्षर भैंस बराबर, एक पंथ दो काज, एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत।
उत्तर:
(क) अंग-अंग ढीला होना-थक जाना।।
वाक्य-दिनभर परिश्रम के बाद मेरा अंग-अंग ढीला हो गया है।

(ख) आँखें चुराना-नज़र बचाना।
वाक्य-सुरेश ने कृष्ण से सौ रुपए उधार लिए थे। अब उसे देखते ही उससे आँखें चुराने लगता है।

(ग) काला अक्षर भैंस बराबर-निरक्षर।।
वाक्य-इंद्रजीत कौर के बनाव-श्रृंगार पर मत जाओ, जब वह बोलेगी तो तुम्हें पता चल जाएगा कि वह तो काला अक्षर भैंस बराबर है।

(घ) एक पंथ दो काज-एक उद्यम से दो कार्य होना।
वाक्य-प्रकाश कौर अस्पताल अपना चैकअप कराने गई थी और लौटते हुए फल-सब्जी भी ले आई। इस प्रकार एक पंथ दो काज हो गए।

(ङ) एक तन्दरुस्ती हजार नियामत-सेहत सबसे बड़ी नियामत।
वाक्य-सारा दिन पढ़ते रहने से कुछ नहीं होता, खाने-पीने का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि एक तन्दरुस्ती हजार नियामत होती है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

प्रश्न 3.
किन्हीं तीन मुहावरों/लोकोक्तियों को वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग करें कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाए
जी भर आना, पेट में चूहे दौड़ना, तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सौर, नेकी कर दरिया में डाल, तू डाल-डाल मैं पातपात।
उत्तर:
(क) जी भर आना-मन का परेशान होना।
वाक्य-पेशावर में स्कूल के बच्चों की हत्या की घटना देखकर मेरा जी भर आया।

(ख) पेट में चूहे दौड़ना-भूख लगना।
वाक्य-खूब खेलने के बाद बच्चों के पेट में चूहे दौड़ने लगते हैं।

(ग) तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सौर-आमदनी के अनुसार खर्च करना।
वाक्य-मनुष्य को कभी भी ऋण लेकर आराम की वस्तुएँ नहीं खरीदनी चाहिए क्योंकि इससे ऋणग्रस्त जीवन भार स्वरूप हो जाता है। इसलिए गुणी कहते हैं कि तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर।

(घ) नेकी कर दरिया में डाल-उपकार करके जताना नहीं चाहिए।
वाक्य-प्रकाश सिंह ने दर्शन सिंह को नौकरी दिलवाई थी पर इस बात का किसी को पता नहीं चला कि दर्शन सिंह को नौकरी मिली कैसे क्योंकि प्रकाश सिंह नेकी कर दरिया में डाल कहावत पर विश्वास करता था, किसी को कुछ बताता नहीं था।

(ङ) तू डाल-डाल मैं पात-पात-विरोधी के दाँव समझना।
वाक्य-चुनाव के दिनों में दल ‘क’ की चालों का दल ‘ख’ ने होशियारी से जवाब दिया और कहा कि तू डालडाल मैं पात-पात।

(क) मुहावरे-मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश है जो सामान्य अर्थ का बोध न कराकर विशेष अर्थ का बोध कराता है। वाक्य में इसका प्रयोग क्रिया के समान होता है, जैसे-‘आकाश-पाताल एक करना’। इस वाक्यांश का सामान्य अर्थ है ‘पृथ्वी और आकाश को मिलाना’ लेकिन ऐसा संभव नहीं है। अतः इसका लक्षण शब्द-शक्ति से विशेष अर्थ होगा। ‘बहुत परिश्रम करना’। इसी प्रकार ‘अंगारे बरसना’ का अर्थ होगा ‘बहुत तेज़ धूप पड़ना।’

‘मुहावरा’ शब्द अरबी भाषा का है और इसका अर्थ है-‘रुढ़ वाक्यांश’। मुहावरे शाब्दिक अर्थ को व्यक्त नहीं करते बल्कि रूढ़ अर्थ को प्रकट कराने का कार्य करते हैं।

(ख) लोकोक्तियां-लोकोक्ति को ‘कहावत’ भी कहा जाता है। भाषा को प्रभावशाली बनाने के लिए मुहावरों के समान लोकोक्तियों का प्रयोग किया जाता है। “लोक में प्रचलित उक्ति को लोकोक्ति कहते हैं। यह एक ऐसा वाक्य होता है जिसे कथन पुष्टि के लिए प्रमाणस्वरूप प्रस्तुत किया जाता है।” लोकोक्ति के पीछे मानव समाज का अनुभव अथवा घटना विशेष रहती है। मुहावरे के समान इसका भी विशेष अर्थ ग्रहण किया जाता है, जैसे “हाथ कंगन को आरसी क्या” इसका अर्थ होगा “प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।” यहां लोक-जीवन का अनुभव प्रकट हो रहा है-यदि हाथ में कंगन पहना तो उसे देखने के लिए शीशे की आवश्यकता नहीं होती।

मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर

मुहावरा लोकोक्ति
1. मुहावरा वाक्य में एक वाक्यांश की तरह प्रयुक्त होता है। 1. लोकोक्ति अपने आप में एक स्वतंत्र वाक्य होती है।
2. मुहावरा स्वतंत्र रूप से अपने अर्थ को ठीक प्रकार से अभिव्यक्त नहीं कर सकता। 2. लोकोक्ति स्वतंत्र रूप से अपना अर्थ प्रयुक्त कर सकती है।
3. मुहावरे का लाक्षणिक अर्थ होता है। 3. लोकोक्ति में शाब्दिक और लाक्षणिक दोनों अर्थ होते है।
4. मुहावरे का प्रयोग भाषा को सौंदर्य तथा किया जाता है। 4. लोकोक्ति से किसी विशेष घटना अथवा प्रसंग को प्रकट साहित्यिकता देने के लिए किया जाता है।
5. मुहावरों में लिंग, वचन, आदि के अनुसार परिवर्तन होता है। 5. लोकोक्ति में ऐसा परिवर्तन नहीं होता है।
6. मुहावरे लिंग, वचन आदि में परिवर्तन कर सकते है। 6. लोकोक्ति लिंग और वचन को प्रभावित नहीं करती है।
7. मुहावरे भाषा को सजीवता और चमत्कार प्रदान करते हैं। 7. लोकोक्ति वक्ता/लेखक की बात का समर्थन करती है।
8. मुहावरों में प्रायः ‘न’ का प्रयोग होता है जैसे- अंगूठा दिखाना, दाल न गलना आदि। 8. लोकोक्ति के अंत में प्रायः ‘न’ का प्रयोग नहीं होता।
9. मुहावरों में प्रायः क्रिया, दशा आदि व्यक्त होती है। 9. लोकोक्ति में कोई न कोई अनुभव या सच्चाई छिपी होती है।

(क) मुहावरों के अर्थ सहित वाक्य प्रयोग

1. अंगारों पर पैर रखना (जानबूझ कर मुसीबत मोल लेना)-दुबले-पतले रमेश ने भीम पहलवान को कुश्ती लड़ने की चुनौती देकर अंगारों पर पैर रख दिया है।
2. अंगूठा दिखाना (मना करना)-जब मैंने अपने मित्र से सहायता मांगी तो उसने अंगूठा दिखा दिया।
3. अकल का अंधा होना (बेवकूफ होना)-उसे समझाने की कोशिश करना व्यर्थ है। वह तो पूरा अकल का अंधा
4. अक्ल पर पत्थर पड़ना (सोच-विचार न करना)-प्रेम सिंह की अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं, जो वह सारा दिन शराब पीता रहता है।
5. अंग-अंग ढीला होना (थक जाना)-दिनभर परिश्रम करने में मेरा अंग-अंग ढीला हो गया है। 6. अंधे की लकड़ी (एकमात्र सहारा)-मोहन अपने बूढे माता-पिता के लिए अंधे की लकड़ी है।
7. अंधे को दीपक दिखाना (नासमझ को उपदेश देना)-भगवान् कृष्ण दुर्योधन के धृष्टतापूर्ण व्यवहार से समझ गए थे कि उसे उपदेश देना अंधे को दीपक दिखाना है।
8. अपना उल्लू सीधा करना (अपना मतलब निकालना)-स्वार्थी मित्रों से बचकर रहना चाहिए। उन्हें तो अपना उल्लू सीधा करना आता है।
9. अकल मारी जाना (घबरा जाना)-प्रश्न-पत्र देखते ही शांति की अकल मारी गई।
10. अकल चरने जाना (सोच-समझकर काम न करना)-बना बनाया मकान तुड़वा रहे हो, इसे बनवाते समय क्या तुम्हारी अकल चरने गई थी।
11. अपनी खिचड़ी अलग पकाना (सबसे अलग रहना)-अपनी खिचड़ी अलग पकाने से कोई लाभ नहीं होता इसलिए सब से मिल-जुलकर रहना चाहिए।
12. अपने मुँह मियाँ मिट्ट बनना (अपनी तरीफ़ खुद करना)-वीर अपने मुँह मियाँ मिट्ट नहीं बनते वे तो वीरता दिखाते हैं।
13. आँख उठाना (नुकसान पहुँचाना)-यदि तुमने मेरी ओर आँख उठा कर देखा तो मुझ से बुरा कोई न होगा।
14. आँखें चार होना (आमने-सामने होना)-पुलिस से आँखें चार होते ही चोर घबरा गया।
15. आँखें चुराना (नज़र बचाना)-सुरेश ने कृष्ण से सौ रुपए उधार लिए थे। अब उसे देखते ही उस से आँखें चुराने लगता है।
16. आँखें दिखाना (क्रोध करना)-कक्षा में शोर सुनकर जैसे ही अध्यापक ने आँखें दिखाई कि सब चुप हो गए।
17. आँखें फेरना (प्रतिकूल होना)-मतलबी लोग अपना काम होते ही आँखें फेर लेते हैं।
18. आँखें खुलना (अकल आना)-कुणाल को समझाने से कोई लाभ नहीं है जब उसे ठोकर लगेगी तो उसकी आँखें खुल जाएंगी।
19. आँखों का तारा (बहुत प्यारा)-राम दशरथ की आँखों के तारे थे।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

20. आँखों में खटकना (बुरा लगना)-अनुशासनहीन बच्चे सब की आँखों में खटकते हैं।
21. आँच न आने देना (नुकसान न होने देना)-माँ अपनी संतान पर आँच नहीं आने देती।
22. आँखों में धूल झोंकना (धोखा देना)-पुलिस की आँखों में धूल झोंकना आसान नहीं है।
23. आग में घी डालना (गुस्सा बढ़ाना)-रमनदीप के स्कूल न जाने से पिता जी क्रोधित थे और उसके झूठ बोलने ने तो उनके क्रोध को और बढ़ा कर आग में घी डालने का काम कर दिया।
24. आस्तीन का साँप (कपटी मित्र)-विश्वासघात करने वाला मित्र मित्र न हो कर आस्तीन का साँप होता है।
25. आसमान पर चढ़ना (बहुत अभिमान करना)-कक्षा का प्रतिनिधि बनते ही महेंद्रसिंह का दिमाग आसमान पर चढ़ गया है।
26. इस कान सुनना उस कान उड़ा देना (किसी बात पर ध्यान न देना)-अनीश को कुछ भी समझाना बेकार है क्योंकि वह तो इस कान सुन कर उस कान से उड़ा देने वाला व्यक्ति है।
27. ईंट का जवाब पत्थर से देना (मुँह तोड़ जवाब देना)-शत्रु पक्ष की धमकियों का जब ईंट का जवाब पत्थर से दिया गया तो उनकी बोलती बंद हो गई।
28. उड़ती चिड़िया पहचानना (अनुभवी होना)-हमारे अध्यापक जी के सामने हमारा कोई भी बहाना नहीं चलता क्योंकि वे तो उड़ती चिड़िया पहचान लेते हैं।
29. ऊपर की आमदनी (रिश्वत, भ्रष्ट कमाई)-ईमानदार व्यक्ति हक की कमाई खाता है, ऊपर की आमदनी पर विश्वास नहीं करता।
30. एक-एक रग जानना (अच्छी तरह से परिचित होना)-मेरे से तुम कोई बहाना बना कर नहीं बच सकते क्योंकि मैं तो तुम्हारी एक-एक रग जानता हूँ।
31. कान खा लेना (किसी बात को बार-बार कहना)-सुचित्रा ने सुबह से पिकनिक पर जाने की रट लगाकर अपनी माता के कान खा लिए।
32. कान पर जूं न रेंगना (कोई असर नहीं होना)—रजनी को चाहे कितना भी समझाते हो उसके कान पर जॅ नहीं रेंगती है।
33. कान में पड़ना (सुनाई देना)-चिल्ला क्यों रहे हो, तुम्हारी बातें मेरे कान में पड़ रही हैं।
34. कानों को हाथ लगाना (तौबा करना)-कानों को हाथ लगाकर कहती हूँ कि अब कभी झूठ नहीं बोलूँगी।
35. कच्चा चिट्ठा खोलना (गुप्त वार्ता प्रकट करना)-सांध्य समाचार-पत्र ने सरकारी भ्रष्टाचार का कच्चा चिट्ठा खोल दिया।
36. कफ़न सिर पर बांधना (मरने के लिए तैयार रहना)-भारतीय सैनिक कफ़न सिर पर बांध कर युद्धभूमि में जाते
37. कलेजे का टुकड़ा (बहुत प्रिय)-अपनी संतान माँ-बाप के कलेजे का टुकड़ा होती है।
38. खाने के लाले पड़ना (बहुत गरीब होना)-कोई काम न मिलने से राम लाल के घर खाने के लाले पड़ गए हैं।
39. खून पसीना एक करना (बहुत मेहनत करना)-किसान अपना खून पसीना एक कर के अन्न उगाता है।
40. गड़े मुर्दे उखाड़ना (बीती हुई बातों को कहना)-रवि वर्तमान की बात नहीं करता, हमेशा गड़े मुर्दे उखाड़ता रहताहै।
41. गागर में सागर भरना (बड़ी बात थोड़े से शब्दों से कहना)-बिहारी ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।
42. गुद्ड़ी का लाल (सामान्य परंतु गुणी)-सतीश एक गरीब रिक्शे वाले का पुत्र थे लेकिन उसने भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रथम स्थान प्राप्त कर सिद्ध कर दिया है कि वह तो गुदड़ी का लाल है।
43. घर सिर पर उठाना (बहुत शोर करना)-घर में मम्मी के न होने पर बच्चों ने शोर करके मानो घर सिर पर उठा लिया था।
44. घाव पर नमक छिड़कना (दु:खी को और दुःखी करना)-महंगाई के इस युग में निर्धन कर्मचारियों के भत्ते बंद करना घाव पर नमक छिड़कना है।
45. घी के दिये जलाना (बहुत प्रसन्न होना)-अपने सैनिकों की विजय का समाचार सुनकर भारतवासियों ने घी के दिये जलाए।
46. चादर के बाहर पैर पसारना (आय से अधिक खर्च करना)-चादर के बाहर पैर पसारने वाले लोग सदा दुःखी रहते हैं।
47. चूड़ियाँ पहनना (कायर)-जो सैनिक युद्ध में जाने से डरते हैं, उन्हें घर में चूड़ियाँ पहन कर बैठना चाहिए।
48. चोली दामन का साथ (सदा साथ रहना)-राम शाम चाहे कितना झगड़ा कर लें फिर भी उनमें चोली दामन का साथ है क्योंकि वे एक-दूसरे के बिना रह नहीं सकते।
49. चिकना घड़ा (निर्लज्ज व्यक्ति, बेअसर वाला)-राम सिंह तो चिकना घड़ा है, उस पर तुम्हारे उपदेशों का कोई असर नहीं होगा, वह अपनी बुरी आदतें नहीं छोड़ने वाला।
50. चिकनी चुपड़ी बातें करना (चापलूसी करना)-नम्रता की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर उसे उधार मत दे बैठना, वह लौटाने वाली नहीं है।
51. छोटा मुँह बड़ी बात (अपनी हैसियत से बढ़कर बात करना)-चींटी ने कहा मैं हाथी को मार दूंगी और उसका ऐसा कहना तो छोटा मुँह बड़ी बात है।
52. छक्के छुड़ाना (पराजित करना)-भारतीय सेना ने शत्रु सेना के छक्के छुड़ा दिए।
53. ज़हर उगलना (ईर्ष्या की बातें करना)-कैकेयी के कानों में मंथरा हरपल ज़हर उगलती रहती थी।
54. जी भर आना (मन का परेशान होना)-पेशावर में स्कूल के बच्चों की हत्या की घटना देखकर मेरा जी भर आया।
55. टस से मस न होना (परवाह न करना)-राघव को कितना समझाओ कि बुरे लोगों का साथ छोड़ दे पर वह टस से मस नहीं होता और उन्हीं लोगों के साथ रहता है।
56. टेढ़ी खीर (कठिन कार्य)-क्रिकेट का विश्व कप जीतना टेढ़ी खीर है।
57. ठोक बजा कर देखना (अच्छी तरह से जाँचना-परखना)–कोई भी सौदा खरीदने से पहले उसे ठोक बजा कर देखना अच्छा होता है।
58. डींग हाँकना/मारना (बढ़ चढ़ कर बातें करना)-शुभम की बातों में मत आ जाना क्योंकि वह सदा डींगें हाँकता रहता है।
59. ढेर करना (मार देना)-राम ने एक ही बाण से मारीच को ढेर कर दिया।
60. तलवार की धार पर चलना (बहुत कठिन काम करना)-आई० ए० एस० की परीक्षा में सफल होना आसान नहीं है, यह तो तलवार की धार पर चलने के समान है।
61. तिनके का सहारा (थोड़ा-सा सहारा)- मुसीबत में फंसे व्यक्ति के लिए तिनके का सहारा भी बहुत होता है।
62. थककर चूर होना (बहुत थक जाना)-माता वैष्णव देवी के मंदिर की चढ़ाई करते हुए सभी यात्री थक कर चूर हो गए।
63. दिन फिरना (भाग्य बदलना)-पंजाब स्टेट लाटरी का प्रथम पुरस्कार मिलते ही फकीर के दिन फिर गए।
64. दिल्ली दूर होना (उद्देश्य प्राप्ति में देरी होना)-नेहा ने अभी दसवीं पास की नहीं पर डॉक्टर बनने के सपने देख रही है जबकि उसके लिए अभी दिल्ली दूर है।
65. दौड़-धूप करना (बहुत कोशिश करना)-नौकरी पाने के लिए हरप्रीत बहुत दौड़-धूप कर रहा है। 66. दूध का धुला (निर्दोष)-आज के नेताओं में कोई एक ही दूध का धुला होता है।
67. धीरज बँधाना (सांत्वना देना)-सुक्खा सिंह के पिता के अचानक स्वर्गवास होने पर उसके मित्र उसका धीरज बंधा रहे थे।
68. नाक रख लेना (मर्यादा बचाना)-कुश्ती में मुक्तसर के पहलवान को हरा कर रक्खे पहलवान ने फिरोज़पुर की नाक रख ली।
69. निन्यानवे के फेर में पड़ना (असमंजस में होना)-निन्यानवे के फेर में पड़ कर मनुष्य अपना जीवन नष्ट कर देता है।
70. पेट में चूहे कूदना (दौड़ना, भूख लगना)-खूब खेलने के बाद बच्चों के पेट में चूहे दौड़ने लगते हैं।
71. पत्थर निचोड़ना (कंजूस से दान, निर्दयी से दया मांगना)-दमड़ी मल है तो करोड़पति पर उससे दान मांगना पत्थर निचोड़ने जैसा है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

72. पगड़ी उछालना (अपमान करना)-बड़ों की पगड़ी उछालना बुरी बात है।
73. पत्थर की लकीर होना (पक्की बात होना)-सरदार पटेल का कहना पत्थर की लकीर होता था।
74. पाँचों उंगलियाँ घी में होना (बहुत लाभ होना)-वस्तुओं के भाव चढ़ जाने से व्यापारियों की पाँचों उंगलियाँ घी में होती हैं।
75. फूल झड़ना (मीठा बोलना)-शुकंतला जब गीतगाती है तो ऐसा लगता है, जैसे फूल झड़ रहे हों।
76. बाएँ हाथ का खेल (आसान काम)-तैराकी में प्रथम स्थान प्राप्त करना नकुल के लिए बाएँ हाथ का खेल है।
77. भगवान् को प्यारा हो जाना (मर जाना)-आज सुबह अचानक ही प्रेम सिंह के पिता जी भगवान् को प्यारे हो गए।
78. भीगी बिल्ली बनना (भयभीत हो जाना)-पुलिस को देखते ही चोर भीगी बिल्ली बन गया।
79. भैंस के आगे बीन बजाना (समझाने पर भी कोई प्रभाव न होना)-नशे वाले को कितना भी नशा छोड़ने के लिए कहो उसके सामने सब कुछ कहना तो भैंस के आगे बीन बजाने जैसा ही होता है।
80. मिट्टी का माधो (कुछ न करने वाला)-जतिन बिलकुल मिट्टी का माधो है, उसे कितना ही समझाओ उस पर कोई असर नहीं होता।
81. मामला रफा-दफा करना (मामला समाप्त करना)-परमेंद्रसिंह और सुखदेव सिंह के झगड़े को सरपंच ने सुलझा कर मामला रफा-दफ़ा कर दिया।
82. मोती पिरोना (सुंदर लिखना)-आद्या की लिखाई ऐसी लगती है जैसे उसने एक-एक अक्षर से मोती पिरो दिए हों।
83. रंग में भंग डालना (आनंद में बाधा आना)-क्रिकेट मैच के बीच में वर्षा आने से रंग में भंग हो गया।
84. रंग उड़ना (घबरा जाना)-पुलिस को देखते ही चोर का रंग उड़ गया।
85. रुपया पानी में फेंकना (व्यर्थ खर्च करना)-लाला कस्तूरीलाल ने अपनी बेटी की शादी में रुपया पानी में फेंक कर अपनी अमीरी का प्रदर्शन किया।
86. लोहा लेना (डटकर मुकाबला करना)-भारतीय सेना ने शत्रु सेना से लोहा लेकर पराजित कर दिया।
87. विपत्ति मोल लेना (अपने आप मुसीबत में पड़ना)-पुलिस वाले से बहस कर के गिफ्टी सिंह ने स्वयं ही विपत्ति मोल ले ली।
88. शान में बट्टा लगना/फर्क आना (इज्ज़त घटना)-अमयादित भाषा का प्रयोग करने से नेता जी की शान में बट्टा लग गया।
89. सफेद झूठ (बिलकुल असत्य)-मनजीत कौर से बच कर रहना क्योंकि वह हमेशा सफेद झूठ बोलती है।
90. सिर-आँखों पर बैठाना (बहुत सम्मान देना)-जब रजत को प्रथम पुरस्कार मिला तो सब ने उसे सिर-आँखों पर बैठा लिया।
91. सिर पर पाँव रख कर भागना (बहुत तेज़ भागना)-पुलिस को देखते ही चोर सिर पर पाँव रख कर भाग गया।
92. श्री गणेश करना (प्रारंभ करना)-परीक्षाओं के सिर पर आते ही रमन ने पढ़ने का श्रीगणेश कर दिया।
93. हक्का -बक्का रहना (आश्चर्य चकित होना)-अपने शत्रु को अपने घर आया देखकर मनजीत हक्का-बक्का रह गया।
94. हाथ मलते रह जाना (पछताना)-सारा साल इंद्रजीत पढ़ी नहीं। परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाने पर हाथ मलते रह गई।
95. हाथों के तोते उड़ जाना (बहुत व्याकुल तथा शोकग्रस्त होना)-पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके हाथों के तोते उड़ गए।
96. हरी झंडी दिखाना (स्वीकृति देना)-प्रधान मंत्री ने सर्वशिक्षा अभियान कार्यक्रम चलते रहने को हरी झंडी दिखा दी।
97. हाथ मलना (पछताना)-स्टेशन पर पहुँचते ही रेलगाड़ी को जाते देख कर संतोख सिंह हाथ मलते रह गया कि थोड़ा पहले आता तो गाड़ी मिल जाती।।
98. हाथ तंग होना (पैसे का अभाव)-इन दिनों मेरा हाथ तंग है इसलिए मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता।
99. हाथ का सच्चा (ईमानदार)-हमारा वर्तमान नेता हाथ का सच्चा व्यक्ति है।
100. हवा हो जाना (भाग जाना)-पुलिस को देखते ही चोर हवा हो गया।

नीचे दिए गए मुहावरों के अर्थ समझकर वाक्य बताइए

1. अपने पैरों पर खड़ा होना (आत्मनिर्भर बनना)-समाज में अपने पैरों पर खड़े होने वाले का बहुत सम्मान होता है।
2. आँच न आने देना (किसी तरह का नुकसान न होने देना)-हमें अपने देश की मान-मर्यादा पर आँच नहीं आने देनी चाहिए।
3. उन्नीस-बीस का अंतर होना (बहुत कम अंतर होना)-राम और श्याम की आयु में उन्नीस-बीस का अंतर है।
4. कान में तेल डाल लेना (बात न सुनना)-सुधा को कितना बुलाओ सुनती ही नहीं, लगता है उस ने कान में तेल डाल लिया है।
5. गले का हार (बहुत प्यारा)-सुमित अपने माता-पिता के गले का हार है।। 6. चैन की बंसी बजाना (सुखपूर्वक रहना)-प्रेम पाल सेवानिवृत्ति के बाद चैन की बंसी बजा रहा है।
7. तिल का ताड़ बनाना (छोटी सी बात को बढ़ाना)-सुधाकर की ज़रा सी डॉट को अपने ऊपर आरोप समझना प्रभाकर का तिल का ताड़ बनाना है।
8. दाँतों में जीभ होना (चारों ओर विरोधियों से घिरे रहना)-चुनाव के दंगल में सुच्चा सिंह ऐसे घिर गया जैसे दाँतों में जीभ हो।
9. पीठ दिखाना (हार कर भाग जाना)-भारतीय सेना का आक्रामक रूख देख कर शत्रु सेना पीठ दिखा गई।
10. मुँह में पानी भर आना (ललचाना)-रसगुल्लों को देखते ही हार्दिक के मुँह में पानी भर आया।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

लोकोक्तियों का अर्थ सहित वाक्य प्रयोग

1. अपना लाल गंवायं के दर-दर माँगे भीख (अपनी लापरवाही से अपनी वस्तु नष्ट कर दूसरों से मांगते फिरना)सुक्खा सिंह ने अपनी सारी दौलत शराब पी-पी कर गँवा दी और अब लोगों से उधार मांग कर गुजारा कर रहा है; इसी को कहते हैं अपना लाल गंवाय कर दर-दर मांगे भीख।
2. अधूरा छोड़े सो पड़ा रहे (बीच में छोड़ा गया काम अधूरा रह जाता है)-पप्पू ने पहले आर्टस में दाखिला लिया फिर कामर्स में चला गया और फिर पढ़ाई छोड़ दी, उसकी तो अधूरा छोड़े सो पड़ा रहे की हालत हो गई।
3. अपना कोढ़ बढ़ता जाय, औरों को दवा बताए (दूसरों को नसीहत देना पर खुद उस पर चलना)-रमन कौर सब को खूब मेहनत से पढ़ने के लिए कहती रहती है पर स्वयं पढ़ाई न करने से फेल हो गई; इसी को कहते हैं अपना कोढ़ बढ़ता जाय, औरों को दवा बताए।
4. आसमान से गिरा खजूर में अटका (एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में फंसना)-सोहन सिंह का जो स्कूटर चोरी हो गया था वह मिल गया पर जैसे ही वह स्कूटर लेकर घर आ ही रहा था कि टक्कर मार बैठा, इसी को कहते हैं आसमान से गिरा खजूर में अटका।
5. आँखों देखी सच्ची, कानों सुनी झूठी (आँखों से देखा सच्चा होता है पर कानों से सुना नहीं)-सुमनबाला के कहने से ही रजनी को बुरी लड़की नहीं मान सकते क्योंकि आँखों देखी सच्ची, कानों सुनी झूठी बातें होती हैं।
6. अंत भले का भला (अच्छे को अंत में अच्छा फल मिलता है)-मैं तो सच्चाई और ईमानदारी का पक्षधर हूँ और मेरा ‘अंत भले का भला’ में दृढ़ विश्वास है।
7. अंधा क्या जाने बसंत की बहार (असमर्थ व्यक्ति गुणों को नहीं पहचान सकता)-उस मूर्ख को गीता का उपदेश देना व्यर्थ है क्योंकि उस पर तो ‘अंधा क्या जाने बसंत की बहार’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।
8. अंधी पीसे कुत्ता चाटे (नासमझ अथवा सीधे-सादे व्यक्ति के परिश्रम का लाभ दूसरे व्यक्ति उठाते हैं)-दिनेश जो कुछ कमाता है, उसके मित्र उड़ा कर ले जाते हैं। यहां तो अंधी पीसे कुत्ता चाटे वाली बात हो रही है।
9. अंधों में काना राजा (मूों में थोड़े ज्ञान वाला भी बड़ा मान लिया जाता है)-हमारे गाँव में किशोरी लाल ही थोड़ा-सा पढ़ा-लिखा व्यक्ति है। सभी उसकी इज्जत करते हैं। इसी को कहते हैं-अंधों में काना राजा।
10. अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग (भिन्न-भिन्न मत होना)-इस सभा में कोई भी निर्णय नहीं हो सकता। यहाँ तो सबकी अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग है।
11. आम के आम गुठलियों के दाम (दोहरा लाभ)-आजकल तो अखबार की रद्दी भी अच्छे भाव पर बिक जाती है। यह तो आम के आम गुठलियों के दाम वाली बात है।
12. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत (समय निकल जाने पर पछताना)-सारा साल तो रमेश पढ़ा नहीं, अब अनुत्तीर्ण हो गया। इसलिए ठीक कहा गया है कि अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।।
13. अधजल गगरी छलकल जाए (ओछे व्यक्ति का दिखावा करना)-उसे अपना नाम तक तो लिखना आता नहीं, स्वयं को ज्ञानी बताता है। उसका वही हाल है कि अधजल गगरी छलकत जाए।
14. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता (बड़ा काम अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता)-देश से भ्रष्टाचार एक व्यक्ति नहीं मिटा सकता। सबको मिलकर प्रयास करना चाहिए क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
15. अशर्फियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर (लापरवाही से खर्च करना और पाई-पाई का हिसाब रखना)-सुरजीत लाटरी पर हजारों रुपए खर्च कर देता है परंतु सर्वजीत कौर के घर खर्च का पाई-पाई का हिसाब मांगता है। यही तो हैअशर्फ़ियाँ लूटें और कोयलों पर मोहर।
16. आँख के अंधे गाँठ के पूरे (मूर्ख परंतु धनी)–हरजीत के पास कोई डिग्री तो नहीं है परन्तु पैसा तो अच्छा कमा लेता है। वह आँख का अंधा तो है पर गाँठ का पूरा है।
17. आँख का अंधा, नाम नैन सुख (नाम अच्छा काम बुरा)-करोड़ीमल भीख माँग कर अपना पेट भरता है। यह तो वही बात हुई कि आँख का अंधा, नाम नैन सुख।
18. ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया (परमात्मा ने किसी को धनवान बनाया है और किसी को निर्धन)-मंबई जैसे बड़े नगरों में एक ओर तो धनवान् है जो महलों में रहते हैं, दूसरी ओर निर्धन हैं जिनके पास कुटिया भी नहीं। इसी को कहते हैं ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

19. उल्टे बांस बरेली को (विपरीत कार्य)-बनारस का आम तो वैसे ही प्रसिद्ध है और तुम यहां से घटिया किस्म का आम बनारस ही अपने दादा जी को भेज रहे हो। यह तो उल्टे बांस बरेली को वाली बात हो रही है।
20. ऊँट किस करवट बैठता है (परिणाम न मालूम क्या होगा)-अमनदीप सिंह और अमृत पाल सिंह के बीच शतरंज की बाज़ी जीतने की होड़ लगी हुई है, देखना है कि ऊँट किस करवट बैठता है।
21. ऊँट के मुँह में जीरा (इच्छा से कम मिलना)-सुमन को खाने का बहुत शौक है और उसका भारी-भरकम शरीर भी तो देखो, उसे एक इडली देना ऊँट के मुँह में जीरा देने के समान है।
22. एक और एक ग्यारह होना (एकता में बल)-अकेले की बजाए मिलकर काम करने से बहुत लाभ होता है क्योंकि एक और एक ग्यारह होते हैं।
23. एक अनार सौ बीमार (वस्तु कम, चाहने वाले अधिक)-यदि किसी कार्यालय में एक स्थान ही रिक्त होता है तो उसकी पूर्ति के लिए सैंकड़ों प्रार्थना-पत्र आते हैं। इसी को कहते हैं एक अनार सौ बीमार।
24. एक तो चोरी दूसरे सीना ज़ोरी (काम बिगाड़ कर आँख दिखाना)-जतिन ने आयूष को पीटा और फिर जा कर अपनी माता से आयूष की शिकायत की, यह तो वही बात हुई कि एक तो चोरी दूसरे सीना जोरी।
25. एक पंथ दो काज (एक उद्यम से दो कार्य होना)-प्रकाश कौर अस्पताल अपना चैकअप कराने गई थी और लौटते हुए फल-सब्जी भी ले आई। इस प्रकार एक पंथ दो काज हो गए।
26. एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है (एक की बुराई से सब पर दोष लगता है)-दफ़्तर में बड़े बाबू के रिश्वत लेने से सारे दफ्तर की बदनामी हो रही है। सच है कि एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है।
27. एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं (दो विरोधी एक स्थान पर एक साथ शासन नहीं कर सकते)-शेर सिंह ने गब्बर सिंह को ललकारते हुए कहा कि इस इलाके में तुम रहोगे या मैं क्योंकि एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं।
28. एक तंदुरुस्ती हज़ार नियामत (सेहत सब से बड़ी नियामत है)-सारा दिन पढ़ते रहने से कुछ नहीं होता खानेपीने का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि एक तंदुरुस्ती हजार नियामत होती है। सेहत ठीक होगी तो पढ़ाई भी हो सकती है।
29. ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डर (कठिन कार्य करने का निश्चय करने के बाद कठिनाइयों से क्या घबराना)-जब सत्याग्रहियों ने महात्मा गांधी से अंग्रेजों के अत्याचारों की शिकायत की, तो गांधी जी ने उन्हें समझाया कि साथियो जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर ?
30. ओछे की प्रीत बालू की भीत (नीच की मित्रता)-दुर्योधन से मित्रता करना सबके लिए विनाश का कारण बनी थी क्योंकि ओछे की प्रीत बालू की भीत होती है।
31. और बात खोटी, सही दाल रोटी (सब धंधा दाल-रोटी का है)-भीम सिंह सारा दिन मेहनत करता है, उसे और कोई बात अच्छी नहीं लगती। उसका मानना है कि और बात खोटी, सही दाल रोटी।
32. कंगाली में आटा गीला (मुसीबत पर मुसीबत)-महेंद्र सिंह के मकान की छत गिर गई और साथ ही उसके पिता की भी मृत्यु हो गई। उसका हाल तो कंगाली में आटा गीला जैसी हो गई।
33. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली (असंभव बात)-अमर सिंह जैसे मेधावी छात्र के साथ निकम्मे बोध सिंह की कोई तुलना नहीं है क्योंकि कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली।
34. कागज़ की नाव नहीं चलती (बेईमानी से काम नहीं होता)-वज़ीर सिंह ज्यादा हेरा-फेरी मत किया करो क्योंकि हमेशा कागज़ की नाव नहीं चलती।
35. काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती (धोखा एक बार होता है)-एक बार तुमसे गेहूँ लेकर मैं धोखा खा चुकी हूँ अब दुबारा नहीं लूँगी क्योंकि काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती।
36. काम प्यारा है चाम नहीं (काम देखा जाता है)-सुरेंद्र कौर की खूबसूरती का फैक्टरी के मालिक पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि उसे तो काम प्यारा है चाम नहीं।
37. का वर्षा जब कृषि सुखानी (मुसीबत टल जाने पर सहायता आना)-करोड़ों की संपत्ति जब जल कर राख हो गई तो आग बुझाने वाले आए। यह तो वही हुआ का वर्षा जब कृषि सुखानी।
38. काला अक्षर भैंस बराबर (निरक्षर)-इंद्रजीत कौर के बनाव-श्रृंगार पर मत जाओ, जब वह बोलेगी तो तुम्हें पता चल जाएगा कि वह तो काला अक्षर भैंस बराबर है।
39. कुत्ते की दुम बारह वर्ष नली में रखी जाए फिर भी टेढ़ी की टेढ़ी (दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता)-शराबी लाख कसमें खा कर भी शराब पीना नहीं छोड़ता तभी तो कहा है कि कुत्ते की दुम बारह वर्ष नली में रखी जाए फिर भी टेढ़ी की टेढ़ी।
40. कथनी नहीं करनी चाहिए (बातें बहुत परंतु काम कुछ नहीं)-आजकल के नेताओं की कथनी और करनी में बहुत अंतर है क्योंकि जनता को उन की कथनी नहीं करनी चाहिए।
41. कौआ कोयल को काली कहे (दोषी दूसरे को दोषी कह कर उसकी बुराई करे)-जिस पर पहले से ही कत्ल के आरोप लग चुके हों वह निर्दोष को कातिल कहने लगे तो वही बात हुई कि कौआ कोयल को काली कहे।
42. क्या जन्म भर का ठेका लिया है (कोई किसी की जीवन भर सहायता नहीं कर सकता)-मोहन सिंह को रामसिंह ने पढ़ा लिखाकर नौकरी पर लगवा दिया है फिर भी वह राम सिंह से कुछ न कुछ मांगता रहता है। इस पर राम सिंह ने उसे साफ-साफ कह दिया कि उसने क्या उसका जन्म भर का ठेका लिया है, अपनी चादर देख कर पाँव पसारा कर।
43. कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर (ज़रूरत में एक-दूसरे की मदद करना)-सुरेंद्र कौर ने बलवेंद्र कौर की गणित में सहायता की तो बलवेंद्र ने सुरेंद्र कौर की अंग्रेज़ी में मदद कर दी, इसलिए कहा गया है कि कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर।
44. कोयले की दलाली में मुँह काला (बुरी संगत से बदनामी होती है)-तुम शराबी मोहन सिंह का साथ छोड़ दो नहीं तो लोग तुम्हें भी शराबी समझ लेंगे क्योंकि कोयले की दलाली में मुँह काला हो जाता है।
45. खोदा पहाड़ निकली चुहिया (मेहनत का फल कम मिलना)-हम मोरनी हिल देखने गए तो वहाँ हिल के नाम पर टीला-सा देख कर मुँह से निकल गया कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
46. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है (देखा-देखी परिवर्तन)-भाग सिंह को शराब पीते देखकर उसका बेटा भी पीना सीख गया है। ठीक ही है खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग पकड़ता है।
47. खग जाने खग ही की भाषा (आस-पास रहने वाले ही एक-दूसरे का स्वभाव जानते हैं)-रतन सिंह का रिश्वत लेना सुजान सिंह ही जानता है क्योंकि दोनों ही एक दफ्तर में काम करते हैं। इसलिए कहते हैं कि खग जाने खग ही की भाषा।
48. खरी मज़दूरी चोखा काम (पूरा पैसा देने से अच्छा काम होता है)-नीलम के घर की चमकती हुई रंगत देखकर जब सीमा ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने कहा कि उसने खरी मजदूरी दी थी इसलिए चोखा काम हुआ
49. खूट के बल बछड़ा कूदे (दूसरे के भड़काने पर अकड़ना)-शीतल सिंह मुख्यमंत्री का विशेष कृपापात्र है इसलिए सब पर अपना रौब डालता रहता है। उसकी तो वही दशा है कि खूट के बल बछड़ा कूदे।
50. खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे (लज्जित हो कर गुस्सा करना)-वीरावाली से दूध का गिलास गिर गया तो वह कहने लगी कि रास्ते में पानी किसने गिरा दिया जो पैर फिसलने से दूध गिरा गया। सच है खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

51. गंगा गए गंगाराम यमुना गए यमुना दास (अवसरवादी)-आजकल के नेताओं का कोई धर्म नहीं है, कभी वे ‘क’ दल में तो कभी ‘ख’ दल में। उनका हाल तो यह है कि गंगा गए गंगा राम यमुना गए यमुना दास।।
52. गधा खेत खाए जुलाहा मारा जाए (दुष्ट की दुष्टता का फल दूसरे को मिलना)-कक्षा में शोर संदीप मचा रहा था, परंतु मार अशोक को पड़ी। यह तो बही बात हुई कि गधा खेत खाए जुलाहा मारा जाए।
53. गाय न बच्छी नींद आवे अच्छी (संपत्तिहीन)-अमीर करवटें बदलते हैं, परंतु ग़रीब गहरी नींद सोता है क्योंकि कहा है कि गाय न बच्छी नींद आवे अच्छी।
54. गड खाए गलगलों से परहेज़ (दिखावटी परहेज़)-शास्त्री जी मिठाई तो खा लेते हैं, परंतु चाय फीकी पीते हैं। उनका तो वही हाल है कि गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज़।
55. घर का भेदी लंका ढाहे (आपसी फूट से नुकसान)-देश में आतंकवाद कुछ देश द्रोहियों के कारण ही फैल रहा है क्योंकि घर का भेदी लंका ढाहे।
56. घाट-घाट का पानी पीना (बहुत अनुभवी)-जितेंद्र ने घाट-घाट का पानी पिया है, वह तुम्हारे बहकावे में नहीं आ सकता।
57. घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध (अपने घर के बाहर इज्ज़त होना)-भारत में भारतीय विश्वविद्यालयों की डिग्री के स्थान पर विदेशी विश्वविद्यालयों की डिग्रियों को अधिक महत्त्व दिया जाता है क्योंकि घर का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध होता है।
58. घर की मुर्गी दाल बराबर (आसानी से मिलने वाली वस्तु का कोई महत्त्व नहीं होना)-मुक्ता को अपनी माता जी द्वारा बनाया गया सुंदर स्वैटर अच्छा नहीं लगता वह तो बाज़ार से रेडीमेड स्वैटर लेना पसंद करती है क्योंकि घर की मुर्गी दाल बराबर होती है।
59. जो गरजते हैं वो बरसते नहीं (शेखी बघारने वाले कुछ नहीं कर पाते)-चुनाव के दिनों में बड़े-बड़े वायदे करने वाले नेता चुनाव के बाद अपने सब वायदे भूल जाते हैं क्योंकि जो गरजते हैं वो बरसते नहीं।
60. जोते हल तो होवे फल (मेहनती व्यक्ति सफल होते हैं)-सारा वर्ष कठिन परिश्रम से पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सफल होते हैं क्योंकि कहा भी गया है कि जोते हल तो होवे फल।
61. जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई (जिस ने मुसीबतें नहीं सही वह दूसरे का दुःख भी नहीं समझ सकता)-लाला जगतनारायण चाँदी के बर्तनों में खाना खाते हैं, वे क्या जानें कि इस महँगाई में गरीब कैसे अपनी रोटी-दाल का जुगाड़ करता है क्योंकि जाके पैर न फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई?
62. तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर (आमदनी के अनुसार खर्च करना)-मनुष्य को कभी भी ऋण लेकर आराम की वस्तुएँ नहीं खरीदनी चाहिए क्योंकि इससे ऋण ग्रस्त जीवन भारस्वरूप हो जाता है। इसलिए गुणी कहते हैं कि तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर।
63. तुम जानो तुम्हारा काम जाने (मनमानी करने वाले को समझाना व्यर्थ है)-जब बार-बार समझाने पर भी गेंडा सिंह ने अपनी बुरी आदतें नहीं छोड़ी तो शेर सिंह ने गुस्से में कहा कि अब तो तुम जानो तुम्हारा काम जाने।
64. तू डाल-डाल मैं पात-पात (विरोधी के दाँव समझना)-चुनाव के दिनों में दल ‘क’ की चालों का दल ‘ख’ ने होशियारी से जवाब दिया और कहा कि तू डाल-डाल तो मैं पात-पात।
65. नीम हकीम खतरा जान (अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है)-जब तुम्हें बिरयानी बनानी नहीं आती तो इतना तामझाम क्यों कर रही हो, पता है कि नीम हकीम खतरा जान होता है।
66. नेकी कर दरिया में डाल (उपकार करके जताना नहीं चाहिए)-प्रकाश सिंह ने दर्शन सिंह को नौकरी दिलवा दी थी पर इस बात का किसी को पता नहीं चला कि दर्शन सिंह को नौकरी मिली कैसे क्योंकि प्रकाश सिंह ने कीकर दरिया में डाल कहावत पर विश्वास करता था, किसी को कुछ बताता नहीं था।
67. नाम बड़े और दर्शन छोटे (प्रसिद्ध जैसे गुणों का ना होना)-संता सिंह का नाम तो बड़ा सुना था कि वह बहुत अच्छा उपदेशक है पर जब उस से बोला नहीं गया तो यही लगा कि नाम बड़े और दर्शन छोटे।
68. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी (जड़ से नष्ट करना, कारण के न रहने से कार्य भी नहीं हो सकता)-तुम अपने घर से जामुन का पेड़ ही कटवा दो। इससे शरारती बच्चे इन पर पत्थर नहीं फेंकेगे, इस तरह न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाली बात सिद्ध हो जाएगी।
69. लातों के भूत बातों से नहीं मानते (दुष्ट व्यक्ति कहने से नहीं दंड देने से वश में आते हैं)-जब तक उसकी पिटाई नहीं करोगे, वह सच नहीं बोलेगा, क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran मुहावरे और लोकोक्तियाँ

70. सीधी उंगली से घी नहीं निकलता (सीधेपन से काम नहीं चलता)-जब रामू ने श्यामू को उसके हिस्से की मिठाई नहीं दी तो वह माँ के पास उसकी शिकायत करने जाने लगा तो रामू ने तुरंत उसे मिठाई दे दी। इसी को कहते हैं कि सीधी उंगली से घी नहीं निकलता।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar anuvad अनुवाद Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar अनुवाद

निम्नलिखित पंजाबी के गद्यांशों का हिंदी में अनुवाद करें

1. ਮੈਨੂੰ ਜਦੋਂ ਵੀ ਆਪਣਾ ਬਚਪਨ ਯਾਦ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਮੇਰਾ ਦਿਲ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਉਸੇ ਬਚਪਨ ਵਿਚ ਗੁਮ ਹੋ ਜਾਵਾਂ । ਮਨ ਬਚਪਨ ਦੀਆਂ ਖੇਡਾਂ ਵਲ ਚਲਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਪਤੰਗ ਉਡਾਣਾ, ਦੋਸਤਾਂ ਨਾਲ ਸਾਈਕਲ ਦੀਆਂ ਰੇਸਾਂ ਲਗਾਉਣਾ,ਬੰਟੇ ਖੇਡਣੇ ਅਤੇ ਰਾਤ ਨੂੰ ਲੁਕਣ-ਮੀਟੀ ਖੇਡਣਾ ਮੈਨੂੰ ਅੱਜ ਵੀ ਯਾਦ ਹੈ । ਤਪਦੀ ਗਰਮੀ ਵਿਚ ਬਾਗ ਵਿੱਚ ਅੰਬ ਤੋੜ ਕੇ ਖਾਣੇ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ ਮੀਂਹ ਵਿਚ ਨਹਾਉਣਾ ਮੈਨੂੰ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਲਗਦਾ ਸੀ ।
अनुवाद:
मुझे जब भी अपना बचपन याद आता है तो मेरा दिल करता है कि मैं अपने उस बचपन में गुम हो जाऊँ। मन बचपन की खेलों की तरफ चला जाता है। पतंग उड़ाना, मित्रों के साथ साइकिल की दौड़ें लगाना, कंचे खेलने और रात को छुपम-छुपाई खेलना मुझे आज भी याद है। तपती गर्मी में बाग में आम तोड़ कर खाने और बहुत तेज़ बारिश में नहाना मुझे बहुत अच्छा लगता था।

2. ਭ੍ਰਿਸ਼ਟ ਆਚਰਨ ਹੀ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਕੁਝ ਲੋਕ ਕੇਵਲ ਪੈਸੇ ਦੀ ਹੇਰਾਫੇਰੀ ਅਤੇ ਘਪਲੇਬਾਜ਼ੀ ਨੂੰ ਹੀ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਪਰ ਇਸ ਵਿਚ ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮਿਲਾਵਟ, ਅਨਿਆਂ, ਸਿਫਾਰਿਸ਼, ਕਾਲਾਬਜ਼ਾਰੀ, ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਅਤੇ ਧੋਖਾ ਆਦਿ ਸਭ ਕੁਛ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਾਰਾ ਸਮਾਜ ਇੱਕ ਜੁਟ ਹੋ ਕੇ ਹੀ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਰੂਪੀ ਇਸ ਦੈਤ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
अनुवाद:
भ्रष्ट आचरण भी भ्रष्टाचार होता है। कुछ लोग केवल पैसे की हेराफेरी और घपलेबाजी को ही भ्रष्टाचार कहते हैं। पर इसके अतिरिक्त मिलावट, अन्याय, सिफ़ारिश, कालाबाजारी, शोषण और धोखा आदि सब कुछ आ जाता है। सारा समाज एकजुट हो कर भ्रष्टाचार रूपी इस दैत्य को समाप्त कर सकता है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद

3. ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਮਿਹਨਤ ਦਾ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਹੈ । ਮਿਹਨਤੀ ਵਿਅਕਤੀ ਵਿਚ ਜੇਕਰ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ ਸੰਕਲਪ ਵੀ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਕਈ ਵਾਰ ਅਜਿਹੇ ਕੰਮ ਵੀ ਕਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਆਮ ਇਨਸਾਨ ਨੂੰ ਅਸੰਭਵ ਲਗਦੇ ਹਨ । ਸੱਚਾ ਮਿਹਨਤੀ ਵਿਅਕਤੀ ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਅਸਫਲ ਵੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਕਮੀਆਂ ਦਾ ਪਤਾ ਲਗਾ ਕੇ ਵਧੇਰੇ ਸ਼ਕਤੀ ਨਾਲ ਉਸ ਕੰਮ ਵਿਚ ਜੁੱਟ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
अनुवाद:
जीवन में मेहनत का बहुत महत्त्व है। मेहनती व्यक्ति में यदि दृढ़ संकल्प भी हो तो वह कई बार ऐसे काम भी कर जाता है जो कि आम इन्सान को अंसभव लगते हैं। सच्चा मेहनती व्यक्ति यदि किसी काम में असफल भी हो जाता है तो वह अपनी कमियों का पता लगा कर अधिक शक्ति से उस काम में जुट जाता है।

4. ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਤਨ ਨੂੰ ਤੰਦਰੁਸਤ ਰੱਖਣ ਲਈ ਕਸਰਤ ਕਰਨ ਦੀ ਆਦਤ ਪਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਕਸਰਤ ਨਾਲ ਕੇਵਲ ਤਨ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਸਾਡਾ ਮਨ ਵੀ ਚੰਗਾ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਤਨ ਅਤੇ ਮਨ ਦੋਵੇਂ ਤੰਦਰੁਸਤ ਹੋ ਜਾਣਗੇ ਤਾਂ ਸਾਡੇ ਮਨ ਵਿਚ ਚੰਗੇ ਵਿਚਾਰ ਆਉਣਗੇ । ਚੰਗੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਨਾਲ ਹੀ ਅਸੀਂ ਚੰਗੇ ਕਰਮ ਕਰਾਂਗੇ ।
अनुवाद:
हमें अपने तन को स्वस्थ रखने के लिए कसरत की आदत डालनी चाहिए। कसरत के साथ केवल तन ही नहीं अपितु हमारा मन भी अच्छा बनता है। जब तन और मन दोनों स्वस्थ हो जाएंगे तो हमारे मन में अच्छे विचार आएंगे। अच्छे विचारों से ही हम अच्छे कार्य करेंगे।

5. ਚੰਗੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਸੁੱਖ ਅਤੇ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਖਜ਼ਾਨਾ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਔਖੀ ਘੜੀ ਵਿਚ ਇਹ ਸਾਡਾ ਮਾਰਗ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕਿਤਾਬਾਂ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਕਿਤਾਬਾਂ ਕਿਸੇ ਖਜ਼ਾਨੇ ਤੋਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀਆਂ । ਲੋਕਮਾਨਿਆ ਤਿਲਕ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ-“ਮੈਂ ਨਰਕ ਵਿਚ ਵੀ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦਾ ਸਵਾਗਤ ਕਰਾਂਗਾ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸ਼ਕਤੀ ਹੈ ਕਿ ਜਿੱਥੇ ਇਹ ਹੋਣਗੀਆਂ ਉੱਥੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਸਵਰਗ ਬਣ ਜਾਏਗਾ ।
अनुवाद:
अच्छी पुस्तकें सुख और प्रसन्नताओं का खज़ाना होती हैं। कठिन घड़ी में ये हमारा मार्गदर्शन करती हैं। जिन लोगों को पुस्तकों से प्रेम होता है, उनके लिए पुस्तकें किसी खज़ाने से कम नहीं होतीं। लोकमान्य तिलक का कहना था-‘मैं नर्क में भी पुस्तकों का स्वागत करूँगा। क्योंकि इनमें वह शक्ति है कि जहाँ ये होंगी वहाँ अपने आप स्वर्ग बन हैं।

6. ਓਜ਼ੋਨ ਪਰਤ ਸੂਰਜ ਤੋਂ ਨਿਕਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਨੁਕਸਾਨਦਾਇਕ ਕਿਰਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਪਰਾਬੈਂਗਣੀ ਕਿਰਨਾਂ ਨੂੰ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਵਿਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ ਤੋਂ ਰੋਕਣ ਲਈ ਫਿਲਟਰ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਵਿਜ, ਏ. ਸੀ. ਉਪਕਰਨ ਆਦਿ ਵਿਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜ਼ਹਿਰੀਲੀਆਂ ਗੈਸਾਂ ਇਸ ਪਰਤ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਏ. ਸੀ. ਉਪਕਰਨਾਂ ਦਾ ਘੱਟ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
अनुवाद:
ओज़ोन परत से निकलने वाली हानिकारक किरणों के साथ-साथ पराबैंगनी किरणों को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकने के लिए फिल्टर के रूप में काम करती हैं। फ्रिज, ए०सी० उपकरण आदि में प्रयुक्त होने वाली विषैली गैसें इस परत का नुकसान करती हैं। इसलिए हमें ए०सी० उपकरणों का कम प्रयोग करना चाहिए।

7. ਹਿੰਦੀ ਨੂੰ ਸੰਘ ਦੀ ਰਾਜਭਾਸ਼ਾ ਕਹਿਣ ਦਾ ਇਹ ਅਰਥ ਨਹੀਂ ਕਿ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਦੂਜੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਇਸ ਤੋਂ ਘੱਟ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹਨ । ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਿਕ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਸਮਾਨ ਮਹੱਤਵ ਰੱਖਦੀਆਂ ਹਨ । ਜੇਕਰ ਅਖਿਲ ਭਾਰਤੀ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਹਿੰਦੀ ਰਾਜਭਾਸ਼ਾ ਹੈ ਤਾਂ ਦੂਜੀਆਂ ਦੇਸ਼ਿਕ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਆਪਣੇ-ਆਪਣੇ ਰਾਜਾਂ ਵਿਚ ਰਾਜਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ।
अनुवाद:
हिंदी को संघ की राजभाषा कहने का यह अर्थ नहीं कि भारत में अन्य भाषाएं इस से कम महत्त्वपूर्ण हैं। भारत की सभी प्रादेशिक भाषाएँ समान महत्त्व रखती हैं। यदि अखिल भारतीय स्तर पर हिंदी राजभाषा है तो अन्य प्रादेशिक भाषाएं अपने-अपने राज्यों में राजभाषा के रूप में काम कर रही हैं।

8. ਸਾਨੂੰ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਖਪਤ ਘੱਟ ਅਤੇ ਬੜੇ ਹੀ ਕਿਫ਼ਾਇਤੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਜਿਸ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਅਸੀਂ ਮੌਜੂਦ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ, ਉਸ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਬਿਜਲੀ ਚਲਦੀ ਨਹੀਂ ਰਹਿਣ ਦੇਣੀ ਚਾਹੀਦੀ । ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬੱਚਤ ਸੰਬੰਧੀ ਇੱਕ ਨਾਰਾ ਹੈ ‘ਲੋੜ ਨਹੀਂ ਜਦੋਂ, (ਸਵਿੱਚ ਬਟਨ ਬੰਦ ਉਦੋਂ ਜੇਕਰ ਇਸ ਨਾਰੇ ਨੂੰ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਅਪਨਾ ਲੈਣ ਤਾਂ ਵੀ ਅਸੀਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀ ਬਿਜਲੀ ਬਚਾ ਸਕਦੇ ਹਾਂ।
अनुवाद:
हमें बिजली की खपत कम और अति किफ़ायती ढंग से करनी चाहिए। जिस स्थान पर हम उपस्थित नहीं होते, उस स्थान पर बिजली चलती नहीं रहने देनी चाहिए। बिजली की बचत संबंधी एक नारा है ‘आवश्यकता नहीं जब, बटन बंद तब।’ यदि इस नारे को सभी लोग अपने जीवन में अपना लें तो हम बहुत-सी बिजली बचा सकते हैं।

9. ਮਹਿੰਗਾਈ ਨੇ ਅੱਜ ਗਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਕਮਰ ਤੋੜ ਦਿੱਤੀ ਹੈ । ਘਰੇਲੂ ਪ੍ਰਯੋਗ ਵਿਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਇਸ ਕਦਰ ਵੱਧ ਗਈਆਂ ਹਨ ਕਿ ਗਰੀਬ ਵਰਗ ਦਾ ਘਰ-ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਕਰਨਾ ਬਹੁਤ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਜਲਦੀ ਤੋਂ ਜਲਦੀ ਮਹਿੰਗਾਈ ਨੂੰ ਘਟਾ ਕੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਰਾਹਤ ਦੇਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
अनुवाद:
महंगाई ने आज गरीब लोगों की कमर तोड़ दी है। घरेलू प्रयोग में आने वाली वस्तुओं के मूल्य इस तरह बढ़ गए हैं कि निर्धन वर्ग के घर-परिवार का निर्वाह करना बहुत कठिन हो गया है। सरकार को शीघ्रातिशीघ्र महंगाई को घटा कर लोगों को राहत देनी चाहिए।

10. ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਦਾ ਸਲਾਨਾ ਸਮਾਗਮ ਬੜੀ ਧੂਮਧਾਮ ਨਾਲ ਮਨਾਇਆ ਗਿਆ | ਸਾਰੇ ਸਕੂਲ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੁੰਦਰ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸਜਾਇਆ ਗਿਆ ਸਕੂਲ ਦੇ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਨੇ ਸਕੂਲ ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਪੜ੍ਹੀ । ਮੁੱਖ ਮਹਿਮਾਨ ਨੇ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦੀ ਪ੍ਰਸ਼ੰਸਾ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਸਾਲ ਹਰ ਜਮਾਤ ਵਿੱਚੋਂ ਪਹਿਲੇ ਤਿੰਨ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਇਨਾਮ ਵੰਡੇ ।
अनुवाद:
हमारे स्कूल का वार्षिक समारोह बड़ी धूमधाम से मनाया गया। सारे स्कूल को बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया गया। स्कूल के प्राचार्य ने स्कूल की रिपोर्ट पढ़ी। मुख्य अतिथि ने शिक्षा के क्षेत्र में हमारे स्कूल के योगदान की प्रशंसा की। उन्होंने इस वर्ष कक्षा में पहले तीन स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कार बांटे।

हल सहित अनुवाद संबंधी अवतरण

1. ਪੜਨਾ ਅੱਜ ਸਾਡੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ, ਪਰ ਪੜਾਈ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਹੁਨਰ ਅਤੇ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਨੂੰ ਸਭ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਵਿਖਾਉਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਜਿੰਨਾ ਚਿਰ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਅਤੇ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਨੂੰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਨਾ ਲਿਆਏ ਉਨਾ ਚਿਰ ਇਸ ਦਾ ਕੋਈ ਫਾਇਦਾ ਨਹੀਂ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਇਨ੍ਹਾਂ ਹੁਨਰਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਲਿਆਉਣ ਦੇ ਕਈ ਸਾਧਨ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਹੈ ‘ਸਾਹਿਤ’ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਾਹਿਤ ਸਮਾਜ ਦਾ ਦਰਪਣ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਕਥਨ ਬਿਲਕੁਲ ਸਹੀ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਸਾਹਿਤ ਹੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਾਪਰ ਰਹੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਲੇਖਣੀ ਅੰਦਰ ਬੰਦ ਕਰਕੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਪੇਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਜ਼ਰਾ ਸੋਚੋ, ਜੇਕਰ ਇਹ ਸਾਹਿਤ ਹੀ ਨਾ ਹੁੰਦਾ ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਹਾਨ ਕਵੀਆਂ ਅਤੇ ਸਾਹਿਤਕਾਰਾਂ ਬਾਰੇ ਸਾਨੂੰ ਜਾਣਕਾਰੀ ਕਿਵੇਂ ਮਿਲਦੀ?
अनुवाद:
पढ़ना आज हमारे लिए बहुत आवश्यक हो गया है, पर पढ़ाई के साथ-साथ अपने गुणों और प्रतिभा को सबके सामने दर्शाना अतिआवश्यक है। जब तक व्यक्ति अपने विचारों और प्रतिभा को लोगों के सामने न लाए तब तक इन का कोई लाभ नहीं। आजकल इन गुणों को समाज में लाने के अनेक साधन हैं। इनमें एक ‘साहित्य’ है। कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। यह कथन पूरी तरह से सत्य है क्योंकि यह साहित्य ही समाज में घटित हो रही घटनाओं को अपने लेखन में बंद करके लोगों के समक्ष प्रस्तुत करता है। ज़रा सोचो कि यदि साहित्य ही न होता तो इन महान् कवियों और साहित्यकारों के विषय में हमें जानकारी किस प्रकार प्राप्त होती?

2. ਅਰਦਾਸਾਂ ਕਰਕੇ ਅਤੇ ਜੋਤਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਹੱਥ ਦਿਖਾ ਕੇ ਸਾਡੇ ਮਨਾਂ ਅੰਦਰ ਉਮੀਦਾਂ ਜਾਗਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਉਮੀਦਾਂ ਦਾ ਨਸ਼ਾ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਾਨੂੰ ਚੜਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ ਅਸੀਂ ਲਾਟਰੀ ਦੀ ਟਿਕਟ ਖ਼ਰੀਦ ਕੇ ਸੁਪਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਲੱਖਾਂਪਤੀ ਬਣ ਕੇ ਉਸ ਰਕਮ ਨੂੰ ਖ਼ਰਚਣ ਦੀਆਂ ਤਰਕੀਬਾਂ ਬਣਾਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਾਂ | ਕਈ ਵਾਰੀ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਇਹ ਸੋਚਣ ਉੱਤੇ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਜੇ ਭਾਰਤੀ ਲੋਕ ਅਰਦਾਸਾਂ ਅਤੇ ਜੋਤਸ਼ੀਆਂ ਉੱਤੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਾ ਕਰਦੇ ਹੁੰਦੇ ਤਾਂ ਇੱਥੇ ਵੱਡੀਆਂ ਕਰਾਂਤੀਆਂ ਆ ਸਕਦੀਆਂ ਸਨ ।
अनुवाद:
प्रार्थनाएं करके और ज्योतषियों को हाथ दिखा कर हमारे मन के भीतर आशाएं जागृत होती हैं और इन आशाओं का नशा हमें उसी प्रकार चढ़ा रहता है जैसे लाटरी की टिकट खरीद कर सपनों में ही लखपति बन कर उस राशि को व्यय करने की योजनाएँ बनाते रहते हैं। अनेक बार तो हम यह सोचने के लिए विवश हो जाते हैं कि यदि हम भारतीय प्रार्थना और विश्वास न करते होते तो यहाँ बड़ी क्रांतियां आ सकती थीं।

3. ਭਾਰਤ ਦੇ ਉੱਤਰ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦੇ ਆਗਰਾ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਸਥਿਤ ਤਾਜ ਮਹੱਲ ਇੱਕ ਖੂਬਸੂਰਤ ਮਕਬਰਾ ਹੈ । ਇਸਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਮੁਗਲ ਸਮਰਾਟ ਸ਼ਾਹ ਜਹਾਨ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਤਨੀ ਮੁਮਤਾਜ ਮਹੱਲ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਕਰਵਾਇਆ ਸੀ ।ਇਹ ਆਪਣੀ ਸੁੰਦਰਤਾ ਅਤੇ ਉੱਤਮ ਵਾਸਤੁਕਲਾ ਕਰਕੇ ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਵਿਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਹ ਵਿਲੱਖਣ ਮਕਬਰਾ ਸਵੇਰ ਨੂੰ ਲਾਲ-ਗੁਲਾਬੀ, ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਦੁਧੀਆ ਅਤੇ ਰਾਤ ਨੂੰ ਸੁਨਹਿਰੀ ਝਲਕ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਵੇਖੇ ਬਿਨਾਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੈਰ-ਸਪਾਟਾ ਅਧੂਰਾ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
अनुवाद:
भारत के उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में स्थित ताजमहल एक खूबसूरत मकबरा है। इसका निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था। यह अपनी सुन्दरता तथा उत्तम वास्तुकला के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह विलक्षण मकबरा सुबह को लाल-गुलाबी, शाम को दूधिया और रात को सुनहरी झलक देता है। इस को देखे बिना भारत का सैर-सपाटा अधूरा माना जाता है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद

4. ਪੂਰੀ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿਚ 8 ਮਾਰਚ ਦਾ ਦਿਨ ਮਹਿਲਾ ਦਿਵਸ ਵਜੋਂ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਰਕਾਰਾਂ ਵਲੋਂ ਔਰਤਾਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਕਈ ਨੀਤੀਆਂ ਵੀ ਬਣਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਲੜਕੀਆਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਵੱਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਵੱਲ ਵੀ ਠੋਸ ਕਦਮ ਚੁੱਕਣ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ । ਲੜਕੀਆਂ ਨੂੰ ਖ਼ੁਦ ਵੀ ਸਿੱਖਿਅਤ ਹੋ ਕੇ ਆਤਮਨਿਰਭਰ ਬਣਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ।
अनुवाद:
पूरे विश्व में 8 मार्च का दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। सरकारों की ओर से महिलाओं के विकास के लिए कई नीतियाँ बनाई जाती हैं। लड़कियों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। शिक्षा के साथसाथ महिलाओं की सुरक्षा की ओर भी ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है। लड़कियों को स्वयं भी शिक्षित होकर आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है।

5. ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਲੋਕ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਦਾ ਗ਼ਲਤ ਮਤਲਬ ਕੱਢਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸਰੀਰ ਦੀ ਬਾਹਰੀ ਬਨਾਵਟ ਨੂੰ ਹੀ ਉਸਦਾ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਚੰਗੇ ਕੱਪੜੇ ਦੇਖ ਕੇ ਉਹ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਲਗਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇਸ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਚੰਗਾ ਹੈ । ਬਾਹਰੀ ਬਨਾਵਟੀ ਕਿਸੇ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਨੂੰ ਨਿਰਧਾਰਤ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ । ਇਹ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਮਾਤਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਕ ਮਨੁੱਖ ਜਿਸ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਵਧੀਆ ਹਨ ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਬਾਰੇ ਕੋਈ ਗਿਆਨ ਨਹੀਂ, ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਉਸਦਾ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਇਕ ਚੰਗੇ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕਰਨ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਵਰਤਮਾਨ ਸਮੇਂ ਬਾਰੇ ਗਿਆਨ ਹੋਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।
अनुवाद:
प्रायः लोग व्यक्तित्व का ग़लत अर्थ निकालते हैं। वे मनुष्य की बाह्य रचना को ही उसका व्यक्तित्व समझते हैं। अच्छे वस्त्र देखकर वे अनुमान लगा लेते हैं कि इस व्यक्ति का व्यक्तित्व अच्छा है। बाह्य बनावट किसी मनुष्य के व्यक्तित्व को निर्धारित नहीं करती। यह व्यक्तित्व का एक अंश-मात्र होती है। एक मनुष्य जिसके वस्त्र बढ़िया हैं पर उसे किसी वस्तु का कोई ज्ञान नहीं तो हम कह सकते हैं कि उस का व्यक्तित्व प्रभावशाली नहीं है। एक अच्छे व्यक्तित्व का विकास करने हेतु हमें वर्तमान समय के विषय में ज्ञान होना आवश्यक है।

6. ਭਾਰਤ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਕਈ ਦੇਸ਼ ਭਗਤਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਪਿਆ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਬਾਬਰ ਨੇ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਵਿਰੁੱਧ ਆਵਾਜ਼ ਉਠਾਈ । ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣਾ ਨਾਮ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਪੰਨਿਆਂ ਉੱਤੇ ਸ਼ਹੀਦ-ਏ-ਆਜ਼ਮ ਸਰਦਾਰ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਲਿਖਵਾਇਆ, ਸ਼ੇਰੇ ਪੰਜਾਬ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ, ਸ਼ਹੀਦ ਊਧਮ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹਰੇਕ ਹਿੱਸੇ ਤੋਂ ਅਨੇਕਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਜਾਨਾਂ ਇਸ ਆਜ਼ਾਦੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕੁਰਬਾਨ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਸ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਅਹਿਮੀਅਤ ਸਮਝਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਸਿਖਰ ਤੇ ਪਹੁੰਚਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀਆਂ ਬੁਰਾਈਆਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
अनुवाद:
भारत का इतिहास अनेक देशभक्तों के बलिदानों से भरा हुआ है। जब बाबर ने भारत पर हमला किया तो उस समय गुरु नानक देव जी ने इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई। भगत सिंह ने अपना नाम इतिहास के पृष्ठों पर शहीदए-आज़म सरदार भगत सिंह लिखवाया। शेरे पंजाब लाला लाजपत राय, शहीद ऊधम सिंह और हमारे देश के प्रत्येक हिस्से से अनेक लोगों ने अपने जीवन इस स्वतंत्रता को प्राप्त करने हेतु बलिदान कर दिए थे। इसलिए हमें इस स्वतंत्रता का महत्त्व समझना चाहिए और देश को विश्व के शिखर तक पहुँचाना चाहिए तथा भारत में व्याप्त बुराइयों को दूर करना चाहिए।

7. ਅੱਜ ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮ-ਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਸਮਾਨ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਤੇ ਏਕਤਾ ਦੀ ਬਹੁਤ ਲੋੜ ਹੈ । ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ, ਦੇਸ਼ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਨੂੰ, ਸਭਿਆਚਾਰ ਅਤੇ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ ਹੀ ਦੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਹੈ । ਜਿਸ ਇਨਸਾਨ ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਦਾ ਜ਼ਜਬਾ ਨਹੀਂ ਉਹ ਗੱਦਾਰ, ਅਣਖਹੀਣ ਤੇ ਮੁਰਦਾ ਹੈ । ਸਾਡਾ ਦੁੱਖ-ਸੁੱਖ ਸਭ ਕੁਝ ਦੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਹੀ ਬੱਝਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜਿਸ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਨਹੀਂ ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹੀ ਜੰਜ਼ੀਰਾਂ ਵਿੱਚ ਜਕੜੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
अनुवाद:
आज हमारा देश पृथक् पृथक् धर्म-जातियों में बंट गया है। इसलिए हमारे देश में समान विचारधारा और एकता की बहुत आवश्यकता है। अपने देश के लोगों को, देश की मिट्टी को, सभ्याचार और मातृभाषा से प्रेम करना ही देश-प्रेम है। जिस इन्सान में देश-प्रेम का भाव नहीं, वह गद्दार, अस्वाभिमानी और मृतक है। हमारा सुख-दुःख, सब कुछ देश-प्रेम से ही बंधा होता है। जिस देश के लोगों में देश-प्रेम नहीं, वह सदा जंजीरों में ही जकड़े रहते हैं।

8. ਹਰ ਸਾਲ 31 ਮਈ ਨੂੰ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਤੰਬਾਕੂਮੁਕਤ ਦਿਵਸ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਿਨ ਸਰਕਾਰੀ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਵੱਲੋਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਤੰਬਾਕੂਨੋਸ਼ੀ ਤੋਂ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਪ੍ਰਤੀ ਜਾਗਰੂਕ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਤੰਬਾਕੂਨੋਸ਼ੀ ਕਾਰਨ ਕਈ ਨਾਮੁਰਾਦ ਅਤੇ ਲਾਇਲਾਜ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਲੱਗ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਕੈਂਸਰ, ਦਮਾ, ਚਮੜੀ ਦੇ ਰੋਗ, ਫੇਫੜਿਆਂ ਦੇ ਰੋਗ ਤੇ ਹੋਰ ਅਨੇਕ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ ।
अनुवाद:
प्रति वर्ष 31 मई को राष्ट्रीय तंबाकू मुक्त दिवस मनाया जाता है। इस दिन सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं की ओर से लोगों को तंबाकूनोशी से होने वाली बीमारियों के प्रति जागरूक किया जाता है। तंबाकूनोशी के कारण कई नामुराद तथा लाइलाज रोग लग जाते हैं जिनमें कैंसर, दमा, चमड़ी के रोग, फेफड़ों के रोग तथा अन्य अनेक बीमारियों ਬ ਚਿਰ ਵੈਂ ।

9. ਨਵੇਂ ਵੋਟਰਾਂ ਨੂੰ ਉਤਸਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਭਾਰਤ ਵਿਚ 25 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਹਰ ਸਾਲ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਵੋਟਰ ਦਿਵਸ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਭਾਰਤੀ ਚੋਣ ਕਮਿਸ਼ਨ ਦੇ ਡਾਇਮੰਡ ਜੁਬਲੀ ਸਮਾਰੋਹ ਦੇ ਸਮਾਪਤੀ ਸਮਾਗਮ ਦੌਰਾਨ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਭਾਰਤੀ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਧਾਰਾ 326 ਵਿਚ ਸੋਧ ਕਰਕੇ ਵੋਟ ਪਾਉਣ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਲਈ ਉਮਰ ਸੀਮਾ 21 ਸਾਲ ਤੋਂ ਘਟਾ ਕੇ 18 ਸਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ ਤਾਂ ਕਿ ਨੌਜਵਾਨ ਵਰਗ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਵਿਚ ਭਾਗ ਲੈਣ ਦੇ ਯੋਗ ਬਣਾਇਆ ਜਾ ਸਕੇ ।
अनुवाद:
नए मतदाताओं को उत्साहित करने के लिए भारत में 25 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय मतदाता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसका प्रारंभ भारतीय चुनाव आयोग की हीरक जयंती समारोह के समापन समारोह के दौरान किया गया ਆਰੀਧ ਸੰਥਿਆਰ ਨੀ. ਪਾਵਾ 326 ਸੌ ਸੰਗੀਬਰ ਕੇ ਸਰ ਕਰੇ ਕੇ ਖਿਝ ਕੇ ਜਿਤੁ ਆਧੁ ਜੀ 21 ਕਥੇ ਬਟਨ 18 वर्ष कर दी गयी थी ताकि नौजवान वर्ग को देश की राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने के योग्य बनाया जा सके।

10. ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦਾ ਇਕ ਹੋਰ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਸਾਡੀ ਵਿੱਦਿਅਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਸਹੀ ਨਾ ਹੋਣਾ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਆਰਟ ਦੇ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਦੀ ਥਾਂ ਤੇ ਜੇਕਰ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਤਕਨੀਕੀ ਕੋਰਸਾਂ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਪਣੇ ਪੈਰਾਂ ਤੇ ਆਪ ਖੜੇ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਕਈ ਵਾਰ ਇੰਟਰਵਿਊ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਉਹ ਨੌਜਵਾਨ ਰੱਖ ਲਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜੋ ਰਿਸ਼ਵਤ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਉਮੀਦਵਾਰ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਨੰਬਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੀ । ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਹੱਲ ਕਿਸੇ ਇਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਠੋਸ ਕਦਮ ਚੁੱਕਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ । ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵੱਧ ਰਹੀ ਆਬਾਦੀ ਤੇ ਰੋਕ ਲਗਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਰਿਸ਼ਵਤਖੋਰੀ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ चै।
अनुवाद:
बेरोज़गारी का एक अन्य कारण हमारी शिक्षा प्रणाली का ठीक न होना भी हो सकता है। आर्ट्स (कला) के विषयों की जगह यदि विद्यार्थियों को तकनीकी पाठ्यक्रमों में प्रविष्ठ किया जाए जो विद्यार्थी अपने पांवों पर स्वयं खड़े हो सकते हैं । अनेक बार साक्षात्कार से पहले उन नवयुवकों को रख लिया जाता है जो रिश्वत देते हैं। वे प्रार्थी जिनके अच्छे अंक होते हैं उन्हें नौकरी नहीं मिलती। बेरोज़गारी की समस्या का हल किसी एक व्यक्ति के हाथ में नहीं है। सरकार को बेरोज़गारी को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिएं। सबसे पहले बढ़ रही जनसंख्या पर प्रतिबंध लगाना चाहिए और रिश्वतखोरी को समाप्त करना चाहिए।

11. ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਹਰ ਇਕ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਸਾਹਿਤ ਮੌਜੂਦ ਹੈ । ਹਰ ਇਕ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਵਿੱਚ ਸਾਹਿਤ ਦੀ ਸਿਰਜਣਾ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ | ਹਰ ਇਕ ਸਾਹਿਤ ਆਪਣੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਉਜਾਗਰ ਕਰਨ ਤੇ ਲੱਗਾ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਪਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ‘‘ਪੰਜਾਬੀ ਸਾਹਿਤ ਦਾ ਇਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਹੈ। ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜਿੰਨਾ ਚੰਗਾ ਸਾਹਿਤ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਵਿੱਚ ਲਿਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਉੱਨਾ ਸ਼ਾਇਦ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਸਾਹਿਤ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ । ਅੱਜ ਸਾਡੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਦਿਨ ਦੁਗਣੀ ਅਤੇ ਰਾਤ ਚੌਗਣੀ ਤਰੱਕੀ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ | ਅੱਜ ਸਾਡੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਕੇਵਲ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਬਾਹਰ ਵੀ ਚੰਗਾ ਨਾਮ ਕਮਾ ਰਹੀ ਹੈ | ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਪੰਜਾਬੀ ਲੇਖਕਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀਅਤ ਨੂੰ ਇੰਗਲੈਂਡ ਅਤੇ ਅਮਰੀਕਾ ਜਿਹੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਅੰਦਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਦਰਜਾ ਦਵਾਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ।
अनुवाद:
आजकल प्रत्येक भाषा का साहित्य उपलब्ध है। हर एक भाषा में साहित्य की सर्जना हो रही है। हर एक साहित्य अपनी विशिष्टताओं को उजागर करने में लगा हुआ है पर इनमें ‘पंजाबी-साहित्य’ का एक विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि जितना अच्छा साहित्य अपनी मातृभाषा में लिखा जा सकता है उतना संभवतः किसी अन्य साहित्य में नहीं। आज हमारी मातृभाषा दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रही है। आज हमारी मातृभाषा केवल भारत में ही नहीं अपितु बाहर भी अच्छा नाम कमा रही है। आजकल पंजाबी लेखकों ने पंजाबियत को इंग्लैंड और अमेरिका जैसे देशों में विशेष स्थान दिलवाया हुआ है।

12. ਅਸੀਂ ਭਾਰਤੀ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਉਜਲੇ ਭਵਿੱਖ ਦੀਆਂ ਆਸਾਂ ਲਾਈ ਬੈਠੇ ਹਾਂ। ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਭਵਿੱਖ ਲਈ ਸੰਘਰਸ਼ ਵੀ ਕੀਤੇ ਹਨ । ਅਰਦਾਸਾਂ ਵੀ ਕੀਤੀਆਂ ਹਨ ਸਮਾਧੀਆਂ ਵੀ ਲਗਾਈਆਂ ਹਨ । ਬੰਦਗੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਜੋਤਸ਼ੀਆਂ ਅੱਗੇ ਹੱਥ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਵੀ ਬੈਠੇ ਹਾਂ । ਪਰ ਏਨਾ ਕੁੱਝ ਕਰਨ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸਾਡਾ ਭਵਿੱਖ ਉਜਲਾ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਹਾਲਤ ਸੰਵਾਰਨੀ ਤਾਂ ਕੀ ਸੀ ਬਲਕਿ ਹਰ ਸਾਲ ਸਾਡੇ ਹਾਲਾਤ ਅੱਗੇ ਨਾਲੋਂ ਵੀ ਬਦਤਰ ਹੋ ਕੇ ਸਾਡਾ ਮਜ਼ਾਕ ਉਡਾਉਂਦੇ ਹਨ ।
अनुवाद:
हम भारतीय शताब्दियों से उज्ज्वल भविष्य की आशा लगाए बैठे हैं। हम ने अपने समृद्ध भविष्य के लिए संघर्ष भी किए हैं। प्रार्थनाएं भी की हैं। समाधियां भी लगाई हैं। वंदनाएं भी की हैं तथा ज्योतषियों के आगे हाथ फैलाफैला कर बैठे भी हैं। पर इतना कुछ करने के उपरांत भी हमारा भविष्य उज्ज्वल नहीं हुआ। हमने अपने हालात संवारने तो क्या बल्कि प्रतिवर्ष हमारे हालात पहले से भी बदतर होकर हमारा मज़ाक उड़ाते हैं।

13. ਮੋਬਾਇਲ ਅੱਜ ਸਾਡੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਅਹਿਮ ਹਿੱਸਾ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ । ਫਿਰ ਵੀ ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਦਾ ਬੜੀ ਹੀ ਸਮਝਦਾਰੀ ਨਾਲ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਕੇਵਲ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋਣ ਤੇ ਹੀ ਮੋਬਾਇਲ ਫ਼ੋਨ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਘਰ ਵਿਚ ਲੈਂਡਲਾਈਨ ਟੇਲੀਫੋਨ ਨੂੰ ਹੀ ਪਹਿਲ ਦੇਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਮੋਬਾਇਲ ਫ਼ੋਨ ਦੇ ਘਟ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਨ ਨਾਲ ਇਸਦੇ ਦਿਮਾਗ ਅਤੇ ਕੋਸ਼ਿਕਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਤਿਕੂਲ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੈਣ ਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਕਾਫੀ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
अनुवाद:
मोबाइल आज हमारी जिंदगी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गया है । फिर भी हमें इसका बहुत ही समझदारी से प्रयोग करना चाहिए। केवल बहुत ज़रूरी होने पर ही मोबाइल फ़ोन का प्रयोग करना चाहिए। घर में लैंडलाइन टैलीफ़ोन को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। मोबाइल फोन के कम प्रयोग से मस्तिष्क और कोशिकाओं पर इसके प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना काफी कम हो जाती है।

14. ਕੁਦਰਤ ਵਲੋਂ ਸਾਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਰੱਖ਼ਤ, ਹਰਿਆਲੀ, ਠੰਡੀਆਂ ਹਵਾਵਾਂ, ਰੰਗ-ਬਿਰੰਗੇ ਫੁੱਲ, ਅਨੇਕ ਕਿਸਮਾਂ ਦੇ ਫਲ, ਪਵਿੱਤਰ ਜਲ, ਸੁਹਾਵਣੇ ਜੰਗਲ, ਪਸ਼ੂ-ਪੰਛੀ ਰੂਪੀ ਅਨੋਖੀ ਦੌਲਤ ਮਿਲੀ ਹੈ । ਪਰ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਨਿਜੀ ਸਵਾਰਥਾਂ ਕਾਰਨ ਇਸ ਕੁਦਰਤੀ ਦੌਲਤ ਨੂੰ ਹੀ ਨੁਕਸਾਨ ਪਹੁੰਚਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਅੱਜ ਸਮਾਂ ਆ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਮਿਲ ਕੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਦੀ ਸੰਭਾਲ ਲਈ ਵਚਨਬੱਧ ਹੋਈਏ ।
अनुवाद:
प्रकृति की ओर से हमें भिन्न-भिन्न तरह के वृक्ष, हरियाली, शीतल हवाएं, रंग-बिरंगे फूल, अनेक प्रकार के फल, पवित्र जल, सुहावने वन, पशु-पक्षी रूपी अद्भुत संपत्ति मिली है। परंतु मानव अपने निजी स्वार्थों के कारण इस प्राकृतिक दौलत को ही हानि पहुँचा रहा है। आज समय आ गया है कि हम सभी मिलकर पर्यावरण की संभाल के लिए वचनबद्ध हों।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद

15 ਇੱਕ ਵਾਰ ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਸੀ ਜਿਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਰੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਕਦੇ ਕੋਈ ਚੰਗਾ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੂੰ ਪਤਾ ਸੀ ਕਿ ਮਰਨ ਪਿੱਛੋਂ ਉਸਨੂੰ ਸਿੱਧਾ ਨਰਕ ਵਿੱਚ ਹੀ ਜਾਣਾ ਪਵੇਗਾ । ਉਸਨੇ ਪੁਰਾਤਨ ਪੁਸਤਕਾਂ ਅਤੇ ਕਥਾਕਹਾਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਪੜ੍ਹਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਕਿ ਨਰਕ ਵਿੱਚ ਅੱਗ ਦੇ ਭਾਂਬੜ ਬਲਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਧੂੰਆਂ ਹੀ ਧੂੰਆਂ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ।ਉੱਥੋਂ ਦੀ ਧਰਤੀ ਭਖਦੇ ਲੋਹੇ ਵਾਂਗ ਤਪਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉੱਥੋਂ ਦੀਆਂ ਨਦੀਆਂ ਦਾ ਪਾਣੀ ਉਬਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਪਾਪੀ ਆਤਮਾਵਾਂ ਹਰ ਥਾਂ ਅੱਗ ਦੇ ਭਾਂਬੜ ਵਿੱਚ ਸੜਦੀਆਂ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਹ ਸਭ ਗੱਲਾਂ ਸੁਣ ਕੇ ਉਹ ਬੜਾ ਦੁਖੀ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ।
अनुवाद:
एक बार एक मनुष्य था जिसने अपने सारे जीवन काल में कभी कोई अच्छा काम नहीं किया था। इसलिए उसे पता था कि मृत्यु के पश्चात् उसे सीधा नर्क में जाना पड़ेगा । उसने प्राचीन पुस्तकों और कथा-कहानियों में पढ़ा हुआ था कि नर्क में आग की लपटें दहकती रहती हैं और चारों तरफ धुआँ ही धुआँ दिखाई देता है। वहाँ की धरती दहकते लोहे की तरह तपती रहती है इसलिए वहाँ की नदियों का जल उबलता रहता है। पापी आत्माएँ हर जगह आग की लपटों में जलती हुई दिखाई देती हैं। इन सब बातों को सुनकर वह बहुत दुःखी रहता था।

16. ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕਰਨ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਠੋਸ ਕਦਮ ਚੁੱਕਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ । ਸਿਰਫ਼ ਗੱਲਾਂ ਕਰਨ ਨਾਲ ਹੀ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਸੰਗਤ ਦਾ ਵੀ ਸਾਡੇ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਤੇ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਬੁਰੀ ਸੰਗਤ ਨਾਲੋਂ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਇਕੱਲਾ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਬੁਰੀ ਸੰਗਤ ਸਾਡੇ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਨੂੰ ਵਿਗਾੜ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਕਈ ਆਦਤਾਂ ਆਪਣੀ ਸੰਗਤ ਤੋਂ ਗ੍ਰਹਿਣ ਕਰਦੇ ਹਾਂ । ਇਸ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਸਮਝਦਾਰ ਵਿਅਕਤੀ ਨਾਲ ਹੀ ਮਿੱਤਰਤਾ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਕਿਸੇ ਸ਼ਰਾਬੀ ਅਤੇ ਜੁਆਰੀਏ ਦੀ ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਰਹਿ ਕੇ ਅਸੀਂ ਚੰਗੇ ਵਿਅਕਤੀਤਵ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ । ਬੁਰੀ ਸੰਗਤ ਵਿਚ ਰਹਿ ਕੇ ਅਸੀਂ ਬੁਰੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਾਂ । ਇਕ ਵਾਰ ਜੇ ਅਸੀਂ ਬੁਰੀ ਸੰਗਤ ਵਿਚ ਫਸ ਗਏ ਤਾਂ ਨਿਕਲਣਾ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
अनुवाद:
हमें अपने व्यक्तित्व का विकास करने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। केवल बातें करने से कुछ नहीं होता। संगति का भी हमारे व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बुरी संगति की अपेक्षा मनुष्य को अकेला रहना चाहिए। बुरी संगति हमारे व्यक्तित्व को बिगाड़ सकती है। हम अनेक आदतें अपनी संगति से ग्रहण करते हैं। इसलिए हमें प्रभावशाली और समझदार व्यक्ति के साथ ही मित्रता करनी चाहिए। किसी शराबी और जुआरी की संगति में रहकर हम अच्छे व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकते। बुरी संगति में रह कर हम बुरी आदतों का शिकार हो जाते हैं। एक बार यदि हम बुरी संगति में फंस गए तो निकलना कठिन हो जाता है।

17. ਸ਼ੇਖ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ ਪਹੁੰਚੇ ਹੋਏ ਫ਼ਕੀਰ ਹੋਏ ਹਨ । ਆਪ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ । ਆਪ ਜੀ . ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮੁਰੀਦ ਸਨ । ਇਹ ਮੁਰੀਦ ਆਪ ਜੀ ਪਾਸ ਭੇਟਾਵਾਂ ਲੈ ਕੇ ਹਾਜ਼ਿਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇੱਕ ਵਾਰ ਇਕ ਮੁਰੀਦ ਨੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਸੋਨੇ ਦੀ ਇੱਕ ਕੈਂਚੀ ਭੇਟਾਂ ਕੀਤੀ । ਮੁਰੀਦ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਆਸ ਸੀ ਕਿ ਸੋਨੇ ਦੀ ਕੈਂਚੀ ਲੈ ਕੇ ਬਾਬਾ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ ਬੜੇ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋਣਗੇ ਪਰ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ ਬੋਲੇ ‘‘ਸਾਨੂੰ ਇਹ ਕੈਂਚੀ ਨਹੀਂ ਚਾਹੀਦੀ ਸਾਨੂੰ ਤਾਂ ਲੋਹੇ ਦੀ ਇੱਕ ਸੂਈ ਲਿਆ ਦੇ’ ਮੁਰੀਦ ਉਦਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ ਨੇ ਮੁਰੀਦ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ‘‘ਕੈਂਚੀ ਦਾ ਕੰਮ ਵੱਢਣਾ ਹੈ, ਸਾਨੂੰ ਤਾਂ ਸੁਈ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੋਈਆਂ ਲੀਰਾਂ ਨੂੰ ਜੋੜਿਆ ਜਾ ਸਕੇ. ਅਸੀਂ ਕੱਟਣ ਦਾ ਨਹੀਂ ਸੀਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਹੈ । ਧਰਮ ਦਾ ਕੰਮ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਜੋੜਨ ਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਤੋੜਨ ਨਾਲੋਂ ਜੋੜਨ ਦਾ ਕੰਮ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹੀ ਵੱਡਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।”
अनुवाद:
शेख फ़रीद पहुँचे हुए फ़कीर हुए हैं। आप की वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में सम्मिलित है। आप के अनेक शिष्य थे। ये शिष्य आप के पास भेंटें लेकर उपस्थित होते थे। एक बार एक शिष्य ने आप को सोने की एक कैंची भेट की। शिष्य को बहुत आशा थी कि सोने की कैंची लेकर बाबा फरीद बहुत प्रसन्न होंगे पर फ़रीद जी बोले, “हमें यह कैंची नहीं चाहिए। हमें तो लोहे की एक सूई ला दो।” शिष्य उदास हो गया। फ़रीद जी ने शिष्य को समझाया “कैंची का काम काटना है, हमें तो सूई चाहिए जिस के साथ अलग-अलग हुई कतरनों को जोड़ा जा सके। हमने काटने का नहीं सिलने का कार्य करना है। धर्म का कार्य सदा जोड़ने का है। इसलिए तोड़ने की अपेक्षा जोड़ने का कार्य सदा ही ਕਢਾ ਵੀਗ ਵੈ ।’

18. ਹਰ ਮਨੁੱਖ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਰਤਨ ਹੈ ਅਤੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਹੀਰਿਆਂ ਦੇ ਸਮਾਨ ਹਨ । ਵਰਤਮਾਨ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ, ਆਰਥਿਕ ਅਤੇ ਸਭਿਆਚਾਰਕ ਉਸਾਰੀ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦਾ ਰੋਲ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ। ਇਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਦੇ ਦੀਪਕ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਵਿੱਦਿਆ ਰਾਹੀਂ ਦੂਸਰੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਵੀ ਚਾਨਣ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਵਿੱਦਿਆ ਦਾ ਪਾਤਰ ਹਰ ਕੋਈ ਵਿਅਕਤੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ । ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿੱਦਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਅਭਿਮਾਨ, ਕ੍ਰੋਧ, ਲੋਭ, ਆਲਸ ਆਦਿ ਵਿਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇੱਕ ਚੰਗੇ ਵਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਸਬਰ, ਸੰਤੋਖ, ਮਿੱਠਾ ਬੋਲਣਾ ਆਦਿ ਗੁਣਾਂ ਨੂੰ ਅਪਨਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਆਪਣੇ ਉਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਠੋਰ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
अनुवाद:
प्रत्येक मनुष्य देश का बहुमूल्य रत्न है और विद्यार्थी हीरों के समान हैं। वर्तमान समय में भारत के सामाजिक, आर्थिक और सभ्यतापूर्ण निर्माण के लिए विद्यार्थियों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। ये विद्यार्थी हमारे देश के विकास के दीपक हैं जो शिक्षा की राह से दूसरे लोगों के जीवन में उजाला कर सकते हैं। शिक्षा का पात्र हर व्यक्ति नहीं हो सकता। विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए अभिमान, क्रोध, लोभ, आलस्य आदि विकारों को त्याग देना चाहिए। एक अच्छे विद्यार्थी को धैर्य, संतोष, मीठा बोलना आदि गुणों को अपनाना चाहिए। अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कठोर मेहनत करनी चाहिए।

19. ਹਰੇਕ ਸਾਲ ਵਿਸ਼ਵ ਵਾਤਾਵਰਣ ਦਿਵਸ 5 ਜੂਨ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਵਿਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਮਕਸਦ ਇਸ ਧਰਤੀ ਤੇ ਰਹਿ ਰਹੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵਾਤਾਵਰਣ ਪ੍ਰਤੀ ਜਾਗਰੂਕ ਕਰਨਾ ਹੈ । ਹਵਾ, ਪਾਣੀ ਤੇ ਧਰਤੀ ਦਾ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਜਦੋਂ ਲਗਾਤਾਰ ਵੱਧਣ ਲੱਗਾ ਤਾਂ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵ ਵਾਤਾਵਰਨ ਦਿਵਸ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਲੋੜ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਈ । ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਵੀ ਇਸ ਦਿਹਾੜੇ ਨੂੰ ਵੱਖਵੱਖ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਉਤਸਾਹ ਨਾਲ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
अनुवाद:
प्रत्येक वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को पूरे विश्व में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य इस पृथ्वी पर रह रहे लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है। वायु, जल तथा पृथ्वी का प्रदूषण जब लगातार बढ़ने लगा तो विद्वानों को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की आवश्यकता महसूस हुई। भारत में ही इस दिन को भिन्न-भिन्न शिक्षण संस्थाओं द्वारा उत्साह पूर्वक मनाया जाता है।

20. ਖੇਡਾਂ ਦਾ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਜੀਵਨ ਦਾ ਇਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਲਾਜ਼ਮੀ ਅੰਗ ਹਨ । ਇਹ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਸਿਹਤਮੰਦ ਰੱਖਣ ‘ਚ ਸਹਾਇਕ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇੱਕ ਸਿਹਤਮੰਦ ਵਿਅਕਤੀ ਹੀ ਚੰਗੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਵਿਚ ਯੋਗਦਾਨ ਪਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਖੇਡਾਂ ਨੌਜਵਾਨ ਪੀੜ੍ਹੀ ਨੂੰ ਨਸ਼ਿਆਂ ਤੋਂ ਵੀ ਬਚਾਅ ਕੇ ਰੱਖਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਅਤੇ ਵਿਦਿਅਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਖੇਡਾਂ ਵੱਲੋਂ ਵੀ ਉਤਸਾਹਿਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
अनुवाद:
खेलों का मानव जीवन में बहुत बड़ा योगदान होता है। ये जीवन का एक बहुत ही आवश्यक अंग हैं। ये शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होती हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति ही अच्छे समाज के निर्माण में योगदान दे सकता है। इसके अतिरिक्त खेलें युवा पीढ़ी को नशों से भी बचाकर रखती हैं। इसलिए माता-पिता तथा शिक्षण संस्थाओं को अपने बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलों की ओर भी उत्साहित करना चाहिए।

21. ਜਿਸ ਵੀ ਮਨੁੱਖ ਤੋਂ ਇੱਕ ਸਵਾਲ ਪੁੱਛੋ ਕਿ ਤੂੰ ਕਦੋਂ ਮਰਨਾ ਹੈ ? ਕਿਸ ਦਿਨ ਸੰਸਾਰ ਛੱਡਣਾ ਹੈ ਤੇ ਸੋਚੀਂ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਲਿਖੀ ਹੈ ਉਸ ਟਾਈਮ । ਜੇ ਪੁੱਛੋ ਕਿ ਤੇਰਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ? ਤੇ ਅੱਗੇ ਦੱਸੇਗਾ ਕਿ ਮੇਰਾ ਜਨਮ ਇਸ ਤਾਰੀਖ, ਦਿਨ, ਸੰਨ, ਸਾਰਾ ਕੁੱਝ ਦੱਸ ਦਵੇਗਾ । ਜੇ ਇਨਸਾਨ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਜਨਮ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਹੈ, ਤੇ ਆਪਣੀ ਮੌਤ ਬਾਰੇ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਪਤਾ ? ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਤਾਂ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਪਰ ਉਸ ਦੀ ਕੋਈ ਬੁਨਿਆਦ ਨਾ ਰੱਖੀ । ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬੀਤੇ ਕੱਲ੍ਹ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਹੈ ਪਰ ਅੱਗੇ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਕੱਲ੍ਹ ਦਾ ਨਹੀਂ ਪਤਾ । ਇਨਸਾਨ ਇੱਕ ਡੂੰਘੀ ਸੋਚ ਸੋਚਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਇਸ ਦੁਨੀਆਂ ਤੇ ਆ ਗਿਆ ਹਾਂ । ਹੁਣ ਮੈਂ ਕਦੀ ਵੀ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਤੋਂ ਵਾਪਸ ਨਹੀਂ ਜਾਣਾ ।
अनुवाद:
जिस भी मनुष्य से एक प्रश्न पूछे कि तूने कब मरना है ? किस दिन संसार छोड़ना है, तो वह सोच में पड़ जाता है और कहता है-जो लिखी है उसी समय। यदि पूछो कि तेरा जन्म कब हुआ ? तो आगे बताएगा कि मेरा जन्म इस तारीख, दिन, सन्–सब कुछ बता देगा। यदि इन्सान को अपने जन्म के बारे पता है तो अपनी मौत के विषय में क्यों नहीं पता ? परमात्मा ने मनुष्य को जीवन तो दे दिया पर उसकी कोई नींव नहीं रखी। मनुष्य को अपने बीते हुए कल के बारे में पता है पर आगे आने वाले कल के बारे में पता नहीं। इन्सान एक गहरी सोच में डूब कर सोचता है कि मैं इस दुनिया में आ गया हूँ। अब मुझे कभी भी इस संसार से वापस नहीं जाना।

22. ਬਹੁਤ ਸਮੇਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਇਕ ਆਦਮੀ ਬੜਾ ਹੀ ਗ਼ਰੀਬ ਸੀ । ਉਹ ਰੋਜ਼ ਅਮੀਰ ਹੋਣ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਦੇਖਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਉਹ ਮਿਹਨਤ ਉਨੀ ਹੀ ਕਰਦਾ ਸੀ, ਜਿੰਨੀ ਨਾਲ ਉਹ ਢਿੱਡ ਭਰ ਕੇ ਰੋਟੀ ਖਾ ਸਕੇ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਇਸ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਤੋਂ ਤੰਗ ਆ ਕੇ ਅਮੀਰ ਬਣਨ ਦੀ ਸਕੀਮ ਸੋਚੀ ਅਤੇ ਭਗਵਾਨ ਸ਼ਿਵ ਦੀ ਅਰਾਧਨਾ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਉਸ ਦੀ ਕਈ ਦਿਨਾਂ ਦੀ ਕਠਿਨ ਤਪੱਸਿਆ ਤੋਂ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਭਗਵਾਨ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਵਰ ਮੰਗਣ ਲਈ ਕਿਹਾ | ਉਸ ਨੇ ਭਗਵਾਨ ਅੱਗੇ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ ਕੀਤੀ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਅਮੀਰ ਬਣਾ ਦਿਉ । ਉਸ ਕੋਲ ਧਨ-ਦੌਲਤ ਦੀ ਕੋਈ ਕਮੀ ਨਾ ਰਹੇ । ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਭਗਵਾਨ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਸ ਜਗਾ ਤੋਂ ਜਿਸ ਦਿਸ਼ਾ ਵਲ ਦੋ ਮੀਲ ਜਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਧਰਤੀ ਪੁੱਟੇਂਗਾ ਤੈਨੂੰ ਉੱਥੇ ਹੀ ਬੇਅੰਤ ਮਾਇਆ ਮਿਲੇਗੀ ।
अनुवाद:
बहुत समय पहले की बात है कि एक आदमी बहुत ही ग़रीब था। वह प्रतिदिन अमीर होने के स्वप्न देखता था। पर वह परिश्रम उतना ही करता था जिस के साथ वह पेट भर कर रोटी खा सके। उसने अपनी इस जिंदगी से तंग आ कर अमीर बनने की योजना सोची और भगवान् शिव की आराधना करने लगा । उस की अनेक दिनों की कठिन तपस्या पर प्रसन्न हो कर भगवान् ने उसे वरदान मांगने के लिए कहा। उसने भगवान् के आगे प्रार्थना की कि उसे अमीर बना दो। उस के पास धन-दौलत की कोई कमी न रहे। यह सुन कर भगवान् ने उसे कहा कि इस जगह से जिस दिशा की ओर दो मील जाएगा और धरती खोदेगा, तुझे वहीं अनंत संपत्ति मिलेगी।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद

23. ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਆਜ਼ਾਦ ਹੋਇਆਂ ਕਈ ਸਾਲ ਹੋ ਗਏ ਹਨ । ਵਿਗਿਆਨ ਤਰੱਕੀ ਕਰਕੇ ਕਿਤੇ ਦਾ ਕਿਤੇ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ਪਰ ਬੜੇ ਅਫਸੋਸ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਅੰਧਵਿਸ਼ਵਾਸ ਦੀਆਂ ਜੜ੍ਹਾਂ ਹਾਲੇ ਵੀ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਡੂੰਘੀਆਂ ਫੈਲੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ । ਅਨਪੜ੍ਹਤਾ ਦਾ ਹਨੇਰਾ ਇਸ ਨੂੰ ਹੋਰ ਵੀ ਗਾੜ੍ਹਾ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਪਿੰਡ ਦੇ ਭੋਲੇ-ਭਾਲੇ ਲੋਕ ਅੰਧਵਿਸ਼ਵਾਸ ਦੀਆਂ ਜ਼ੰਜੀਰਾਂ ਵਿਚ ਜਕੜੇ ਹੋਏ ਹਨ ।
अनुवाद:
हमारे देश को स्वतंत्र हुए अनेक वर्ष हो गए हैं। विज्ञान उन्नति कर के कहां से कहां पहुँच गया पर बड़े अफ़सोस की बात है कि अंधविश्वास की जड़ें अभी भी हमारे देश में गहरी फैली हुई हैं। अशिक्षा का अंधकार इसे और भी गहरा कर देता है। गाँवों के भोले-भाले लोग अंधविश्वास की श्रृंखलाओं में जकड़े हुए हैं।

24. ਉਸਨੂੰ ਅੱਗੋਂ ਉੱਤਰ ਮਿਲਿਆ, “ਮੈਂ ਇੱਥੋਂ ਦਾ ਇੱਕ ਪਹਿਰੇਦਾਰ ਹਾਂ। ਮੈਂ ਇੱਥੇ ਨਵੇਂ ਆਏ ਵਸਨੀਕਾਂ ਲਈ ਪੁੱਛ-ਗਿੱਛ ਲਈ ਨਿਯੁਕਤ ਹਾਂ । ਜਨਾਬ, ਗੱਲ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ ਕਿ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਨਰਕ ਬਣਾਇਆ ਸੀ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਨਰਕ ਵਿੱਚ ਸਦਾ ਅੱਗ ਬਲਦੀ ਰਹੇ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਸੀ ਕਿ ਬਹੁਤੇ ਆਦਮੀ ਨੇਕ ਹੋਣਗੇ ਤੇ ਟਾਵੇਂ-ਟਾਵੇਂ ਹੀ ਪਾਪੀ ਹੋਣਗੇ । ਪਰ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਇਹ ਗੱਲ ਉਲਟ ਹੋ ਗਈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਇਤਨੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪਾਪੀ-ਮਨੁੱਖਾਂ ਲਈ ਅੱਗ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨ ਲਈ ਬੜੀ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੈ । ਕਰੋੜਾਂ ਮਣ ਕੋਇਲੇ ਅਤੇ ਲੱਕੜਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਪੈਂਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਅਗਾਂਹ ਤੋਂ ਹਰ ਪਾਪੀ ਆਪੋ ਆਪਣੀ ਅੱਗ ਨਾਲ ਹੀ ਲਿਆਇਆ ਕਰੇਗਾ ।
अनुवाद:
उसे आगे से उत्तर मिला, “मैं यहाँ का एक पहरेदार हूँ। मैं यहाँ नए आए वासियों की पूछ-ताछ के लिए नियुक्त हूँ। मान्यवर, बात इस तरह है कि आरंभ में जब परमात्मा ने नर्क बनाया था तो उस ने आदेश दिया था कि नर्क में सदा आग जलती रहे क्योंकि उसका विचार था कि अधिक आदमी भले होंगे और कोई-कोई ही पापी होंगे। पर वास्तव में यह बात उलट हो गई। इसी कारण परमात्मा ने निर्णय किया कि इतने अधिक पापी इन्सानों के लिए आग का प्रबंध करने के लिए बहुत कठिनाई होगी। करोड़ों मन कोयले और लकड़ियों की आवश्यकता पड़ेगी। इसी कारण परमात्मा ने फैसला किया कि आगे से. प्रत्येक पापी अपनी आग स्वयं अपने साथ लाया करेगा।”

25. ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਦਾ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸਨਮਾਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਬੁੱਧੀਮਾਨ, ਅਨੁਭਵੀ ਅਤੇ ਘਰ ਦਾ ਸ਼ਿੰਗਾਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਕਈ ਵਾਰ ਲੋਕ ਆਪੋ-ਆਪਣੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਲੱਗੇ ਰਹਿਣ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਨੂੰ ਘੱਟ ਸਮਾਂ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਨਿਰਾਸ਼ਾ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਨੂੰ ਉੱਚਿਤ ਸਮਾਂ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਹੱਲ ਕੱਢਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਸਾਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਬੈਠ ਕੇ ਰੋਟੀ ਖਾਣਾ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੈਰ ਸਪਾਟੇ ਲਈ ਨਾਲ ਲੈਕੇ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਸਾਨੂੰ ਇਹ ਨਹੀਂ ਭੁੱਲਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਕਿ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਦੀ ਮਿਹਨਤ, ਪਿਆਰ ਅਤੇ ਚੰਗੀ ਪਰਵਰਿਸ਼ ਸਦਕਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰ ਰਹੇ ਹਾਂ ।
अनुवाद:
हमें अपने बुजुर्गों का अधिक-से-अधिक सम्मान करना चाहिए क्योंकि वे बुद्धिमान, अनुभवी तथा घर का शृंगार होते हैं। कई बार लोग अपने-अपने कामों में लगे रहने के कारण अपने बुजुर्गों को कम समय देते हैं जिस कारण उनके जीवन में निराशा आ जाती है। हमें अपने बुजुर्गों को उचित समय देना चाहिए। हमें उनके साथ बैठकर रोटी खाना, उन्हें सैरसपाटे के लिए साथ लेकर जाना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम अपने बुजुर्गों की मेहनत, प्यार तथा अच्छे पालन-पोषण के कारण ही अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

26. ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਇਕ ਚਿੰਤਾ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਦਿਨੋ ਦਿਨ ਵੱਧਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ । ਇਸ ਸਮੱਸਿਆ ਨਾਲ ਪਿੰਡਾਂ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨ ਦੋਨੋਂ ਹੀ ਜੂਝ ਰਹੇ ਹਨ | ਹਰੇਕ ਨੌਜਵਾਨ ਚੰਗੀ ਨੌਕਰੀ ਵੱਲ ਨੂੰ ਭੱਜਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਉਸਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੀ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਸਵੈਰੋਜ਼ਗਾਰ ਦਾ ਰਸਤਾ ਅਪਣਾ ਕੇ ਦੇਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ | ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਨੂੰ ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਕੰਮਧੰਦਾ ਖੋਲ੍ਹਣ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।
अनुवाद:
भारत में बेरोज़गारी की समस्या चिंता का एक विषय है। इस देश में बेरोज़गारों की गिनती दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इस समस्या के साथ गाँवों और शहरों के नौजवान दोनों ही जूझ रहे हैं। प्रत्येक नौजवान अच्छी नौकरी की तरफ भागता है। यदि उसे नौकरी नहीं मिलती तो उसे स्वरोजगार का रास्ता अपनाकर देखना चाहिए। सरकार की ओर से बेरोजगारों को ऋण देकर उनको अपना कारोबार खोलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

27. ਇੱਕ ਵਾਰ ਦੋ ਬੰਦੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡਦੇ ਇੱਕ ਵੱਡੇ ਜੰਗਲ ਵਿੱਚ ਰਾਹ ਭੁੱਲ ਗਏ। ਉਹ ਕਾਫ਼ੀ ਦੇਰ ਤਕ ਭਟਕਦੇ ਰਹੇ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਬਾਹਰ ਜਾਣ ਲਈ ਰਾਹ ਨਾ ਮਿਲਿਆ | ਬਹੁਤ ਗਰਮੀ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲੱਗ ਗਈ । ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਇੱਧਰ-ਉੱਧਰ ਪਾਣੀ ਵੀ ਨਾ ਮਿਲਿਆ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਛੋਟੀ ਜਿਹੀ ਝੁੱਗੀ ਵੇਖੀ । ਉਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਬੁੱਢੀ ਬੈਠੀ ਸੀ | ਦੋਹਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨੂੰ ਬੋਲਣ ਦਾ ਬੜਾ ਢੰਗ ਆਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਆਖਿਆ ਕਿ ਤੂੰ ਘੋੜੇ ਨੂੰ ਫੜ, ਪਹਿਲਾਂ ਮੈਂ ਪਾਣੀ ਪੀ ਕੇ ਆਉਂਦਾ ਹਾਂ । ਫਿਰ ਤੂੰ ਪਾਣੀ ਪੀਣ ਚਲਾ ਜਾਂਵੀਂ । ਉਹ ਉਸ ਨੂੰ ਘੋੜੇ ਫੜਾ ਕੇ ਝੁੱਗੀ ਅੰਦਰ ਚਲਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਬੁੱਢੀ ਨੂੰ ਬੜੇ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਕਿਹਾ, “ਮਾਂ ਜੀ ਪੀਣ ਲਈ ਥੋੜ੍ਹਾ ਪਾਣੀ ਮਿਲੇਗਾ |’ ਇਹਨਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਬੁੱਢੀ ਦੀ ਮਮਤਾ ਜਾਗ ਪਈ । ਉਸ ਨੇ ਝੱਟ ਪਾਣੀ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਪਾਣੀ ਪੀ ਕੇ ਬੁੱਢੀ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ ।
अनुवाद:
एक बार दो आदमी शिकार खेलते हुए एक बड़े जंगल में रास्ता भूल गए। वे काफ़ी देर तक भटकते रहे पर उनको बाहर जाने के लिए रास्ता नहीं मिला। बहुत गरमी होने के कारण उन्हें बहुत प्यास लग गई। उन्हें इधर-उधर पानी भी नहीं मिला। अंत में उन्होंने एक छोटी-सी झोंपड़ी देखी। उसमें एक बुढ़िया बैठी थी। उन दोनों में से एक को बातचीत का बड़ा अच्छा ढंग आता था। उसने दूसरे से कहा कि तू घोड़े को पकड़, पहले मैं ‘पानी पी आता हूँ। फिर तू पानी पीने चले जाना। वह उसे घोड़ा पकड़ा कर झोंपड़ी के भीतर चला गया। उसने बुढ़िया को बड़े प्यार से कहा, “माँ जी, पीने के लिए थोड़ा पानी मिलेगा।” इन शब्दों से बुढ़िया की ममता जाग गई। उसने तुरंत पानी दे दिया। उसने पानी पी कर बुढ़िया को धन्यवाद किया।

28. ਨਕਲ ਇੱਕ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਰਾਫ਼ ਹੈ ਜੋ ਕਿਸੇ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਮੰਦ ਬੁੱਧੀ, ਕੰਮ ਚੋਰ ਅਤੇ ਸੁਸਤ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਕੋਈ ਬੇਹਤਰੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ, ਸਗੋਂ ਅੱਗੇ ਵੱਧਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਮਨੁੱਖ ਪਿੱਛੇ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਨਕਲ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਚੰਗੇ ਗੁਣ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਦੀ ਬਜਾਏ ਬੱਚਿਆਂ ਵਿੱਚ ਜੁਰਮ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕਰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ੱਕੀ ਸਭਾਉ ਦਾ ਬਣਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਨਕਲ ਬੱਚਿਆਂ ਵਿੱਚ ਯੋਗਤਾ ਨੂੰ ਉਭਾਰਣ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੀ । ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦਾ ਪੂਰਾ ਵਿਕਾਸ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ।
अनुवाद:
नकल एक इस तरह का श्राप है जो किसी मनुष्य को मंद बुद्धि, कामचोर और सुस्त बनाता है। इस के साथ कोई बेहतरी नहीं होती अपितु आगे बढ़ने की अपेक्षा मनुष्य पीछे रहता है। नकल की भावना श्रेष्ठ गुण उत्पन्न करने की अपेक्षा बच्चों में अपराध की भावना का विकास करती है अतः उन को शंकालु स्वभाव का बनाती है। नकल बच्चों में योग्यता को उभरने नहीं देती। जिस के साथ उनकी शख्सीयत का पूर्ण विकास नहीं होता।

29. ਆਤੰਕਵਾਦ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਆਰਥਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਤੇ ਭਾਈਚਾਰਕ ਜੀਵਨ ਲਈ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਖ਼ਤਰਾ ਹੈ । ਆਤੰਕਵਾਦ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਹੱਲ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਆਤੰਕਵਾਦ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਠੋਸ ਕਦਮ ਚੁੱਕਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ । ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਆਮ ਜਨਤਾ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਤਿਆਰ ਕੀਤੇ ਗਏ ਠੋਸ ਕਦਮਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸੇ ਤਾਂ ਜੋ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਜਨਤਾ ਵੀ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਝ ਜਾਏ । ਅੱਜ ਸਾਡੀ ਉਨਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਰੋਕ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡੇ ਵਿੱਚ ਕਰਨੀ ਨਾਲੋ ਕਹਿਣਾ ਵੱਧ ਗਿਆ ਹੈ । ਅੱਜ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ ਕਥਨੀ ਤੇ ਕਰਨੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਕੇ ਦਿਖਾਉਣ ਦੀ ਜੋ ਮੂੰਹੋਂ ਕੱਢ ਦਿੱਤਾ ਉਸ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਕੇ ਦਿਖਾਉਣ ਦੀ । ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਇਹੋ ਹੀ ਕਹਿਣਾ ਚਾਹਾਂਗਾ ਕਿ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਮਿਲ ਕੇ ਆਤੰਕਵਾਦ ਵਿਰੁੱਧ ਕਦਮ ਚੁੱਕਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ । ਤਾਂ ਹੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦਾ ਜੀਵਨ ਸੁਖੀ ਬਣ ਸਕੇਗਾ ।
अनुवाद:
आतंकवाद देश के आर्थिक, सामाजिक और भाईचारे के जीवन के लिए एक बड़ा खतरा है। आतंकवाद की समस्या का हल किसी एक मनुष्य के हाथ नहीं है। भारत सरकार को आतंकवाद समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। भारत सरकार को चाहिए कि वह सामान्य जनता को अपने तैयार किए गए ठोस कदमों के विषय में बताए ताकि देश की जनता भी उन्हें भली-भांति समझ जाए। आज हमारी उन्नति की राह में सब से बड़ी रुकावट यह है कि हममें करनी की अपेक्षा कथनी बढ़ गई है। आज आवश्यकता है कथनी और करनी को एक कर के दिखाने की। जो मुँह से निकाल दिया उसे कर के दिखाने की। अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि सारे विश्व को मिलकर आतंकवाद के विरुद्ध कदम उठाने चाहिए। तभी मनुष्यता का जीवन सुखी बन सकेगा।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद

30. ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਸੋਚਣ ਦੇ ਨਾਲ ਬੋਲਣ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਵੀ ਬਖ਼ਸ਼ੀ ਹੈ। ਗੱਲਬਾਤ ਤਾਂ ਹਰ ਕੋਈ ਮਨੁੱਖ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਬੋਲਣਾ ਵੀ ਇੱਕ ਕਲਾ ਹੈ । ਇੱਕ ਢੰਗ ਹੈ । ਸੁਚੱਜੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਕੇ ਮਨੁੱਖ ਜਿੱਥੇ ਗਾਗਰ ਵਿੱਚ ਸਾਗਰ ਭਰਦਾ ਹੋਇਆ, ਮਿੱਠਾ ਬੋਲ ਕੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਮਿੱਤਰ ਬਣਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ । ਉੱਥੇ ਅਣਜਾਣ ਬੰਦਾ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਉਲਟ-ਪੁਲਟ ਕਰ ਕੇ ਆਪਣਿਆਂ ਨਾਲ ਹੀ ਲੜਾਈ ਪਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ । ਬੋਲਣ ਨਾਲ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸੁਭਾਅ ਤੇ ਵਿਹਾਰ ਦਾ ਪਤਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ । ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਲਣਾ ਤੇ ਫਿਰ ਬੋਲਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਸਾਨੂੰ ਇਹ ਵੇਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਕਿਹੜੀ ਗੱਲ ਕਿਹੜੇ ਸਮੇਂ ਤੇ ਢੁੱਕਵੀਂ ਬਹਿੰਦੀ ਹੈ । .
अनुवाद:
संसार में परमात्मा ने मनुष्य को सोचने के साथ बोलने की शक्ति भी प्रदान की है। बातचीत तो प्रत्येक मनुष्य कर लेता है, पर बोलना भी एक कला है। एक ढंग है। अच्छे ढंग से बातचीत करके मनुष्य जहाँ गागर में सागर भरता हुआ, मीठा बोल कर दुश्मनों को भी मित्र बना लेता है। वहीं अनजान व्यक्ति शब्दों को उलट-पुलट करके अपनों के साथ ही लड़ाई आरंभ कर लेता है। बोलने के साथ ही मनुष्य के स्वभाव और व्यवहार का पता लगता है। इन्सान को पहले तोलना और फिर बोलना चाहिए। हमें यह देखना चाहिए कि कौन-सी बात किस समय उचित लगती है।

31. ਕੱਲ੍ਹ ਐਤਵਾਰ ਸੀ । ਇਹ ਛੁੱਟੀ ਦਾ ਦਿਨ ਸੀ । ਮੇਰੇ ਘਰ ਵਿੱਚ ਪਾਰਟੀ ਸੀ । ਇਹ ਮੇਰੇ ਜਨਮ ਦਿਨ ਦੀ ਪਾਰਟੀ ਸੀ । ਉੱਥੇ ਇਕ ਕੇਕ ਸੀ, ਜਿਸ ਉੱਤੇ ਬਾਰਾਂ ਮੋਮਬੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਉੱਥੇ ਮਿਠਾਈਆਂ ਤੇ ਬਿਸਕਟ ਸਨ । ਮੇਰੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੇ ਮੋਮਬੱਤੀਆਂ ਬਾਲੀਆਂ । ਮੈਂ 11 ਮੋਮਬੱਤੀਆਂ ਬੁੱਝਾ ਦਿੱਤੀਆਂ | ਮੈਂ ਕੇਕ ਕੱਟਿਆ | ਮੇਰੇ ਮਿੱਤਰ ਗਾ ਰਹੇ ਸਨ, “ਜਨਮ ਦਿਨ ਦੀ ਲੱਖਲੱਖ ਵਧਾਈ ਹੋਵੇਂ’ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ ਸੀ । ਪਰ ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਸਭ ਤੋਂ ਚੰਗੇ ਮਿੱਤਰ ਰਾਜ ਦੀ ਯਾਦ ਆਈ । ਮੇਰੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਸਭ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ ।
अनुवाद:
कल रविवार था। यह अवकाश का दिन था। मेरे घर में पार्टी थी। यह मेरे जन्मदिन की पार्टी थी। वहाँ केक था, जिस पर बारह मोमबत्तियाँ थीं। वहाँ मिठाइयाँ और बिस्कुट थे। मेरी माँ ने मोमबत्तियाँ जलाईं। मैंने ग्यारह मोमबत्तियाँ बुझा दीं। मैंने केक काटा। मेरे मित्र गा रहे थे, “जन्मदिन की लाखों-लाख बधाई हो”। हम सब बड़े प्रसन्न थे परंतु मुझे अपने पिता जी और अपने सबसे अच्छे मित्र राजू की बड़ी याद आई। मेरी माँ ने अंत में सबका धन्यवाद किया।

32. ਕਾਫ਼ੀ ਸਮੇਂ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਇਕ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਦੋ ਔਰਤਾਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਕ ਔਰਤ ਨੇ ਆਪਣੇ ਗੁਜ਼ਾਰੇ ਵਾਸਤੇ ਬੱਕਰੀ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਸੀ ਤੇ ਦੂਜੀ ਨੇ ਮੱਝ । ਬੱਕਰੀ ਵਾਲੀ ਔਰਤ ਆਪਣਾ ਚੰਗਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਕ ਵਾਰ ਮੱਝ ਵਾਲੀ ਔਰਤ ਨੇ ਬੱਕਰੀ ਵਾਲੀ ਤੋਂ ਇਕ ਕਿਲੋ ਘਿਉ ਉਧਾਰ ਲਿਆ । ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਜਦੋਂ ਬੱਕਰੀ ਵਾਲੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਘਿਉ ਦੇ ਪੈਸੇ ਮੰਗੇ ਤਾਂ ਮੱਝ ਵਾਲੀ ਔਰਤ ਮੁਕਰ ਗਈ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਘਿਉ ਲਿਆ ਹੀ ਨਹੀਂ । ਉਹ ਕਹਿਣ ਲੱਗੀ ਭਲਾ ਮੱਝ ਵਾਲੀ ਕਿਸੇ ਬੱਕਰੀ ਵਾਲੀ ਕੋਲੋਂ ਘਿਉ ਲੈ ਸਕਦੀ ਹੈ ? ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕ ਸੋਚਦੇ ਕਿ ਬੱਕਰੀ ਵਾਲੀ ਔਰਤ ਝੂਠ ਮਾਰਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਮੱਝ ਵਾਲੀ ਔਰਤ ਕੋਲ ਆਪਣਾ ਕਾਫੀ ਦੁੱਧ ਸੀ । ਇਹ ਝਗੜਾ ਅਦਾਲਤ ਵਿਚ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ।

183 अनुवाद-काफ़ी समय की बात है कि एक गाँव में दो औरतें रहती थीं। एक औरत ने अपने गुजारे के लिए बकरी रखी थी और दूसरी ने भैंस। बकरी वाली औरत अपना अच्छी तरह गुजारा करती थी। एक बार भैंस वाली औरत ने बकरी वाली से एक किलो घी उधार लिया। कुछ समय बाद जब बकरी वाली ने अपने घी के पैसे माँगे तो भैंस वाली औरत मुकर गई कि उस ने घी लिया ही नहीं। वह कहने लगी कि भला भैंस वाली किसी बकरी वाली से घी ले सकती है ? गाँव के लोग सोचते कि बकरी वाली औरत झूठ बोलती है क्योंकि भैंस वाली औरत के पास अपना काफ़ी दूध था। यह झगड़ा अदालत में पहुँच गया।

33. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਸਧਾਰਨ ਪੁਰਖ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਉਹ ਇੱਕ ਅਵਤਾਰ ਪੁਰਖ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਸਨ । ਉਹ ਏਕਤਾ, ਸਮਾਨਤਾ, ਪ੍ਰੇਮ, ਸੱਚਾਈ ਅਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸਨ । ਉਹ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੈਦਾ ਹੋਏ, ਜਦ ਉੱਚੀ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕ ਨੀਵੀਂ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਫ਼ਰਤ ਨਾਲ ਦੇਖਦੇ ਸਨ । ਲੋਕ ਭਰਮਾਂ ਅਤੇ ਝੂਠੇ ਰੀਤੀ ਰਿਵਾਜ਼ਾਂ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਰੱਬ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸੱਚਾ ਰਾਹ ਵਿਖਾਇਆ । ਉਹਨਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸੱਚਾ ਧਰਮ ਅਤੇ ਪੂਜਾ ਮਨੁੱਖਤਾ ਨਾਲ ਪ੍ਰੇਮ ਕਰਨਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਨੂੰ ਆਪਸ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਂਦਾ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਕ ਵਾਰ ਕਿਸੇ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਹਿੰਦੂ ਵੱਡੇ ਹਨ ਜਾਂ ਮੁਸਲਮਾਨ । ਉਹਨਾਂ ਉੱਤਰ ਦਿੱਤਾ ਨੇਕ ਕਰਮ ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਚੰਗੇ ਨਹੀਂ ਹਨ ।
अनुवाद:
गुरु नानक देव जी एक साधारण व्यक्ति नहीं थे। वे एक अवतार पुरुष और समाज सुधारक थे। वे एकता. समानता, प्रेम, सत्य और शांति के प्रतीक थे। वे उस समय पैदा हुए, जब ऊँची जाति के लोग नीच जाति के लोगों को निम्न दृष्टि से देखते थे। लोग भ्रमों और झूठे रीति-रिवाजों में विश्वास रखते थे। वे भगवान् को भूल चुके थे। उन्होंने उन्हें सच्चा मार्ग दिखाया। उन्होंने कहा कि सच्चा धर्म और पूजा मानवता से प्रेम करना है। यह हमें आपस में मिलाता है, न कि अलग करता है। एक बार किसी ने उनसे पूछा कि हिंदू बड़े हैं या मुसलमान। तब उन्होंने उत्तर दिया कि बिना नेक काम के दोनों ही अच्छे नहीं हैं।

34. ਸਿਆਲ ਦੀ ਰਾਤ ਸੀ । ਠੰਡੀ-ਠੰਡੀ ਹਵਾ ਚਲ ਰਹੀ ਸੀ । ਇਕ ਅਮੀਰ ਤੇ ਦਿਆਲੂ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੇ ਘਰ ਵਿਚ ਸੁੱਤਾ ਪਿਆ ਸੀ | ਅਚਾਨਕ ਅੱਧੀ ਰਾਤ ਵੇਲੇ ਕਿਸੇ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਦਰਵਾਜੇ ਨੂੰ ਖੜਕਾਇਆ | ਅਮੀਰ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਦਰਵਾਜਾ ਖੋਲ ਕੇ ਬਾਹਰ ਵੇਖਿਆ । ਇਕ ਨੌਜਵਾਨ ਫਟੇ ਪੁਰਾਣੇ ਕੱਪੜਿਆਂ ਵਿਚ ਠੰਡ ਨਾਲ ਕੰਬ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦਿਆਲੂ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਵੇਖਦੇ ਉਸ ਨੇ ਅਰਜ਼ ਕੀਤੀ ‘‘ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਮੈਂ ਬਹੁਤ ਭੁੱਖਾ ਹਾਂ ਅਤੇ ਠੰਡ ਨਾਲ ਕੰਬ ਰਿਹਾ ਹਾਂ । ਜੇਕਰ ਤੁਹਾਡੀ ਆਗਿਆ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਮੈਂ ਅੰਦਰ ਆ ਜਾਵਾਂ ।” ਉਸਦੀ ਹਾਲਤ ਵੇਖ ਕੇ ਅਮੀਰ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਉਸ ਤੇ ਦਇਆ ਆ ਗਈ । ਉਸ ਨੇ ਨੌਜਵਾਨ ਨੂੰ ਅੰਦਰ ਬੁਲਾ ਲਿਆ ।
अनुवाद:
सर्दियों की रात थी। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। एक अमीर और दयाल व्यक्ति अपने घर में सोया हुआ था। अचानक आधी रात के समय किसी ने उस के दरवाजे को खटखटाया। अमीर व्यक्ति ने दरवाज़ा खोल कर बाहर देखा। एक नौजवान फटे-पुराने वस्त्रों में ठंड के कारण काँप रहा था। दयालु व्यक्ति को देख कर उसने प्रार्थना की, “श्रीमान, मैं बहुत भूखा हूँ और ठंड से कांप रहा हूँ। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं भीतर आ जाऊँ।” उसकी हालत देख कर. अमीर व्यक्ति को उस पर दया आ गई। उसने नौजवान को भीतर बुला लिया।

35. माहा नीठ वश ममें 3 घरला ना लिगा चै। हिसार मधयां, पडी-घउठी, हुँचतली भाभरठ, ई-ढां, ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦ, ਧਾਰਮਿਕ ਕਰਮ-ਕਾਂਡ ਅਤੇ ਮਾਪਿਆਂ ਤੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ ਬਦਲਦੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ । ਅੱਜ हिरिभातवी, प्टिमउतीमा, भलत, उल-हाग्व, पुनाती मार माते घेतात उठ। लॅट-धेठ, मउिभाउा, ਦੁਰਾਚਾਰੀ ਤੇ ਚੋਰ ਬਾਜ਼ਾਰੀ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਹੈ। ਨੌਜਵਾਨ ਪੀੜ੍ਹੀ ਕੋਲ ਕੋਈ ਜਿਉਂਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ ਤੇ ਬਿਨਾਂ ਜਿਉਂਦੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਦੇ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਸਫ਼ਲ, ਸੋਚਵੀ ਤੇ ਦੁਰਗਾਮੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ।
अनुवाद:
हमारा जीवन कुछ समय से बदलता जा रहा है। विवाह संबंध, पति-पत्नी, ऊपर की आय, फूं-फां, राष्ट्रवाद, धार्मिक कर्म-कांड तथा माता-पिता और बच्चों के संबंधों के बारे में विचार बदलते जा रहे हैं। आज विद्यार्थी, स्त्रियाँ, मज़दूर, हल-वाहक, पुजारी आदि सभी परेशान हैं। लूट-खसोट, असभ्यता, दुराचारी और चोर बाज़ारी का बोलबाला है। नवयुवा पीढ़ी के पास कोई जीवंत विश्वास नहीं रहा और बिना जीवंत-विश्वास के जिंदगी सफल, विचारमयी और दूरगामी नहीं हो सकती।

36. ਨਕਲ ਸੱਚ ਨੂੰ ਦੂਜਿਆਂ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਬਣਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਇਹੋ ਕਾਰਨ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਖੋਜ ਦੀ ਦੁਨੀਆਂ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹਿੰਦੇ ਹਾਂ । ਨਕਲ ਦਾ ਔਗੁਣ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਹਲਕੇ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਨਤੀਜਾ ਇਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਬੱਚਾ ਝੂਠ ਬੋਲਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਝੂਠ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਰੇਤ ਦੀ ਕੰਧ ਵਾਂਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਮਨੋਬਲ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਜਿਸ ਆਦਮੀ ਦੀ ਨੀਂਹ ਝੂਠ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਹੋਵੇ, ਉਸ ਨੂੰ ਹਰ ਵੇਲੇ ਸਹਾਰੇ ਦੀ ਲੋੜ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਨਕਲੇ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਖ਼ੁਦਗਰਜ ਬਣਾ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਵਿਅਕਤੀ ਕਦੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਸਹਾਈ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ।
अनुवाद:
नकल सत्य को दूसरों पर निर्भर बनाती है। यही कारण है कि हम अन्वेषण की दुनिया से दूर रहते हैं। नकल का अवगुण बच्चों को कमज़ोर बनाता है। परिणाम यह होता है कि बच्चा झूठ बोलना आरंभ कर देता है। झूठ का सहारा रेत की दीवार की तरह होता है। यह बच्चों के मनोबल को दूर करता है। जिस व्यक्ति की नींव झूठ के आधार पर हो उसे हर समय सहारे की आवश्यकता रहती है और नकल व्यक्ति को खुदगरज़ बना देती है। ऐसा व्यक्ति कभी भी अपने देश का सहायक नहीं हो सकता।

37. ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰ ਮਨੁੱਖ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਆਰਥਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਤੇ ਭਾਈਚਾਰਕ ਜੀਵਨ ਲਈ ਇਕ ਵੱਡਾ ਖ਼ਤਰਾ ਹੈ । ਰੋਜ਼ਗਾਰ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੇ ਆਂਕੜੇ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ਕਿ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦਿਨੋਂ ਦਿਨ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਕਈ ਕਾਰਨ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦਾ ਇਕ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਆਬਾਦੀ ਦਾ ਦਿਨੋਂ-ਦਿਨ ਵਧਣਾ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਦੀ ਆਬਾਦੀ ਇੰਨੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਰਫ਼ਤਾਰ ਨਾਲ ਵੱਧ ਰਹੀ ਹੈ ਕਿ ਜੇਕਰ ਇਸ ਤੇ ਕਾਬੂ ਨਾ ਪਾਇਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਇਸ ਦੇ ਭਿਆਨਕ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲ ਸਕਦੇ ਹਨ ਜੋ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀ ਵਿਚ ਅੜਚਨ ਪੈਦਾ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ | ਰੋਜ਼ਗਾਰ ਤਾਂ ਕੀ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰਹਿਣ ਲਈ ਇਕ ਇੰਚ ਥਾਂ ਵੀ ਨਹੀਂ ਬਚੇਗੀ । ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦਾ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੀ ਮਾਨਸਿਕਤਾ ਤੇ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । __
अनुवाद:
बेरोज़गार व्यक्ति देश के आर्थिक, सामाजिक और भ्रातृत्व जीवन के लिए एक बड़ा खतरा है। रोज़गार कार्यालयों के आंकड़े बताते हैं कि बेरोज़गारी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। बेरोज़गारी का एक बड़ा कारण जनसंख्या का दिन-प्रतिदिन बढ़ना है। भारत की जनसंख्या इतनी तेज़ गति से बढ़ रही है कि यदि इस पर काबू नहीं पाया गया तो इस के भयानक परिणाम हो सकते हैं जो देश की प्रगति में अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं। रोज़गार तो क्या मनुष्य को रहने के लिए जगह ही नहीं बचेगी। बेरोज़गारी का नवयुवकों की मानसिकता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

38. ਅੱਜ ਸਾਰਾ ਸੰਸਾਰ ਅਨਿਸ਼ਚਿਤਤਾ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਸਮੁੱਚੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੇ ਭਵਿੱਖ ਪ੍ਰਤੀ ਅਨੇਕਾਂ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਉੱਠ ਖੜੇ ਹੋਏ ਹਨ | ਖੇਤਰ ਕੋਈ ਵੀ ਹੋਵੇ, ਸਥਿਤੀ ਡਾਵਾਂ ਡੋਲ ਨਜ਼ਰ ਆ ਰਹੀ ਹੈ । ਹਰੇਕ ਬੰਦਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਚੰਗੀ ਨੌਕਰੀ ਤੇ ਲੱਗ ਜਾਵੇ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਦਿਨੋਂ-ਦਿਨ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਤੱਕ ਇਸ ਸਮੱਸਿਆ ਤੇ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਬੂ ਨਹੀਂ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਉਦੋਂ ਤੱਕ ਭਾਰਤ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦਾ ਕੋਈ ਮਤਲਬ ਨਹੀਂ ।
अनुवाद:
आज सारा विश्व अनिश्चितता की स्थिति से गुजर रहा है। समूची इन्सानियत के भविष्य के प्रति अनेक प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। क्षेत्र कोई भी हो, स्थिति डावांडोल दिखाई दे रही है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि वह किसी न किसी नौकरी में लग जाए पर फिर भी भारत में बेरोज़गारों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जब तक इस समस्या पर पूर्ण रूप से नियंत्रण प्राप्त नहीं किया जाता तब तक भारत की स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है।

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39. ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਇਸੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਾਲ ਸਾਰੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਨਾਲ ਇਨਸਾਫ਼ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰੇ । ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਇਸ ਦੀ ਸਾਧਨਾ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ | ਸਾਰੇ ਸਿਆਣਿਆਂ, ਸਾਇੰਸਦਾਨਾਂ ਤੇ ਮਨੋਵਿਗਿਆਨੀਆਂ ਦੀਆਂ ਅਕਲਾਂ ਨੂੰ ਜੋੜ ਕੇ ਅਜਿਹਾ ਸੰਸਾਰ ਬਣਾਇਆ ਜਾਵੇ, ਜਿਹੜਾ ਹਰ ਇਕ ਦੀ ਭੁੱਖ, ਨੰਗ ਤੇ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੂਰ ਕਰੇ । ਹਰ ਇਕ ਕੋਲ ਪੜ੍ਹਨ, ਖੇਡਣ ਤੇ ਗਾਉਣ ਦੀ ਵਿਹਲ ਹੋਵੇ ਤੇ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਹਰ ਸੱਸ ਨੂੰ ਹੁਨਰ ਦੇ ਕਮਾਲ ਤੱਕ ਪੁਚਾਉਣ ਦੀ ਲਗਨ ਹਰ ਘਰ ਵਿਚ ਹੋਵੇ | ਮਨੁੱਖ ਦੀਆਂ ਦੋ ਖਿੱਚਾਂ-ਪਿਆਰ ਤੇ ਹੁਸਨ ਨੂੰ ਸੁਤੰਤਰ ਰੱਖਿਆ ਜਾਵੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੋਹਣੇ ਵਸੀਲੇ ਹੀ ਮਨੁੱਖੀ ਤਰੱਕੀ ਦਾ ਨਾਂ ਹੈ ।
अनवाद:
मानव को चाहिए कि वह इसी विश्वास के साथ सारी मानवता से इन्साफ की बात करे। मानव को इस की साधना करनी चाहिए। सारे बुद्धिमान, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिकों की बुद्धियों को जोड़ कर ऐसा संसार बनाया जाए, जो सभी की भूख, नग्नता और बेरोज़गारी को दूर करे। सभी के पास पढ़ने, खेलने और गाने के लिए खाली समय हो और जिंदगी की प्रत्येक साँस के गुण को श्रेष्ठता तक पहुँचने की लग्न हर घर में हो। मानव के दो आकर्षण-प्रेम और सुंदरता को स्वतंत्र रखा जाए। इनके सुंदर उपकरण ही मानवी विकास का नाम है।

40. ਅੱਜ ਸਾਰਾ ਸੰਸਾਰ ਆਤੰਕਵਾਦ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਸਮੁੱਚੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦਾ ਭਵਿੱਖ ਖ਼ਤਰੇ ਵਿੱਚ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਆਤੰਕਵਾਦ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਵੱਧ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਇਸਦੀ ਰਫ਼ਤਾਰ ਘੱਟ ਨਾ ਹੋਈ, ਤਾਂ ਉਹ ਦਿਨ ਦੂਰ ਨਹੀਂ ਜਦੋਂ ਆਮ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਜੀਵਨ ਗੁਜ਼ਾਰਨਾ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ | ਭਾਰਤ ਆਤੰਕਵਾਦ ਦਾ ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਹੀ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਪਰ ਇਸਨੇ ਤਾਂ ਦੂਜਿਆਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਛੱਡਿਆ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਆਤੰਕਵਾਦ ਕੇਵਲ ਭਾਰਤ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਨਹੀਂ । ਇਹ ਤਾਂ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਵੱਡੀ ਸਮੱਸਿਆ ਹੈ ।
अनुवाद:
आज सारा विश्व आतंकवाद की स्थिति से गुजर रहा है। समूची इन्सानियत का भविष्य संकट में है। भारत में आतंकवाद दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। यदि इस की गति कम नहीं हुई तो वह दिन दूर नहीं जब सामान्य इन्सान के लिए जीवन व्यतीत करना कठिन हो जाएगा। भारत आतंकवाद का आरंभ से ही शिकार होता रहा है पर इसने तो अन्य देशों को भी नहीं छोड़ा। इस समय आतंकवाद मात्र भारत की समस्या नहीं है। यह तो सारे विश्व की बड़ी समस्या है।

41. ਅੱਜ 26 ਜਨਵਰੀ ਦਾ ਦਿਨ ਹੈ । ਸਾਡਾ ਸ਼ਹਿਰ ਬੜਾ ਸਾਫ਼ ਸੁਥਰਾ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਪੁਰਸ਼ਾਂ, ਇਸਤਰੀਆਂ ਅਤੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੇ ਨਵੇਂ-ਨਵੇਂ ਕੱਪੜੇ ਪਾਏ ਹੋਏ ਹਨ । ਉਹ ਸਾਰੇ ਪਰੇਡ ਗਰਾਉਂਡ ਵੱਲ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ । ਉੱਥੇ ਸਿੱਖਿਆ ਮੰਤਰੀ ਜੀ ਆ ਰਹੇ ਹਨ । ਉਹ ਸਾਡਾ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਝੰਡਾ ਲਹਿਰਾਉਣਗੇ । ਜਦ ਮੈਂ ਗਰਾਉਂਡ ਵਿਚ ਪੁੱਜਿਆ, ਮੰਤਰੀ ਜੀ ਮੰਚ ਉੱਤੇ ਸਨ । ਉਹ ਝੰਡੇ ਦੀ ਰੱਸੀ ਖਿੱਚ ਰਹੇ ਸਨ । ਝੰਡਾ ਉਪਰ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਡਾ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਝੰਡਾ ਹੈ । ਮੰਤਰੀ ਜੀ ਝੰਡੇ ਨੂੰ ਸਲਾਮੀ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ । ਲੋਕ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਗੀਤ ਗਾ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੰਤਰੀ ਜੀ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਿਤ ਕੀਤਾ | ਭਾਰਤ ਦੋ ਸੌ ਸਾਲਾਂ ਤੱਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸ਼ਾਸ਼ਨ ਦੇ ਅਧੀਨ ਰਿਹਾ | ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਸਾਡੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਲਈ ਲੜੇ । ਸਾਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਾਂਗ-ਡੋਰ ਹੇਠ ਆਜ਼ਾਦੀ ਮਿਲੀ । ਉਹ ਸਾਡੇ ਰਾਸ਼ਟਰ ਪਿਤਾ ਹਨ । ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਹਾਨ ਨੇਤਾਵਾਂ ਤੇ ਮਾਣ ਹੈ ।
अनुवाद:
आज 26 जनवरी का दिन है। हमारा शहर बड़ा साफ़-सुथरा दिखाई दे रहा है। पुरुषों, स्त्रियों तथा बच्चों ने नये-नये वस्त्र पहने हुए हैं। वे सब परेड ग्राउंड की ओर जा रहे थे। वहाँ शिक्षामंत्री जी आ रहे हैं। वे हमारा राष्ट्रीय ध्वज लहराएँगे। जब मैं ग्राऊंड में पहुँचा, मंत्री जी मंच पर थे। वे झंडे की रस्सी खींच रहे हैं। झंडा ऊपर जा रहा है। यह हमारा राष्ट्रीय ध्वज है। मंत्री जी, झंडे को सलामी दे रहे हैं। सभी लोग राष्ट्रीय गान गा रहे हैं। इसके पश्चात् मंत्री जी ने लोगों को संबोधित किया। भारत दो सौ वर्षों तक अंग्रेज़ी शासन के अधीन रहा। महात्मा गांधी हमारी आज़ादी के लिए लड़े। हमें उनके नेतृत्व में स्वतंत्रता मिली। वे हमारे राष्ट्रपिता हैं। हमें अपने महान् नेताओं पर गर्व है।

42. ਪੰਡਿਤ ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਸਿਰਫ਼ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਹੀ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ । ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਪਿਤਾ ਪੰਡਿਤ ਮੋਤੀ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਇਕ ਨਾਮੀ ਵਕੀਲ ਸਨ ਅਤੇ ਰਾਜਸੀ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਸੰਨ 1921 ਵਿੱਚ ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਲਈ ਅੰਦੋਲਨ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਪਿਤਾ ਵਾਂਗ ਪੁੱਤਰ ਨੇ ਵੀ ਇਸ ਵਿੱਚ ਭਾਗ ਲਿਆ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਬੀਰਤਾ ਦਾ ਪਰਿਚੈ ਦਿੱਤਾ | ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਅਨੇਕਾਂ ਕਸ਼ਟ ਸਹੇ, ਪਰ ਭਾਰਤ ਮਾਤਾ ਦੀ ਸੇਵਾ ਤੋਂ ਮੁੱਖ ਨਹੀਂ ਮੋੜਿਆ । ਨਹਿਰੂ ਜੀ ਸਚਮੁਚ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਰਤਨ ਹਨ । अनुवाद:
पंडित जवाहर लाल नेहरू केवल भारतवर्ष में नहीं, अपितु पूरे संसार में प्रसिद्ध हैं। उनके पिता पंडित मोती लाल नेहरू एक प्रसिद्ध वकील थे और राजसी जीवन व्यतीत करते थे। सन् 1921 में गांधी जी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन शुरू किया। पिता की तरह पुत्र ने भी इसमें भाग लिया और अपनी वीरता का परिचय दिया। सभी ने अनेक कष्ट सहे परंतु भारत माता की सेवा से मुख नहीं मोड़ा। नेहरू जी सचमुच हमारे देश के रत्न है।

43. ਰੰਗ-ਬਿਰੰਗੇ ਸੁੰਦਰ ਫੁੱਲਾਂ ਵਾਲਾ ਇਹ ਗੁਲਦਸਤਾ ਤਾਂ ਮੈਂ ਖੁਸ਼ੀ ਨਾਲ ਲੈ ਰਹੀ ਹਾਂ ਬਾਕੀ ਇਹ ਗਿਫਟ ਕਿਸੀ ਇਹੋ ਜਿਹੀ ਔਰਤ ਨੂੰ ਦੇ ਦੇਣਾ ਜਿਸਦਾ ਕੋਈ ਬਬਲੁ ਹੋਵੇ । ਮੇਰਾ ਤਾਂ ਕੋਈ ਬਬਲੁ ਹੈ ਹੀ ਨਹੀਂ । ਮੈਂ ਤਾਂ ਹਾਲੇ ਤਕ ਸ਼ਾਦੀ ਹੀ ठी वीडी।
अनुवाद:
रंग-बिरंगे सुंदर फूलों वाला यह गुलदस्ता तो मैं प्रसन्नता से ले रही हूँ। शेष यह गिफ्ट (उपहार) किसी ऐसी औरत को दे देना जिसका कोई बबलू हो। मेरा तो कोई बबलू है ही नहीं। मैंने तो अभी तक शादी ही नहीं की।

44 ਠਾਕੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਚਲੇ ਜਾਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮਨੋਹਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਤੇਜ਼ਾ ਨੂੰ ਬੁਲਾਕੇ ਛਾਤੀ ਨਾਲ ਲਾਇਆ ਤੇ ਕਿਹਾ-ਪੁੱਤਰ, ਇਸ ਦਰਖ਼ਤ ਤੂੰ ਨੂੰ ਹੀ ਬਚਾਇਆ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਮੈਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੇ ਪਿਛੋਂ ਤੂੰ ਇਸ ਦਰਖ਼ਤ ਦੀ ਪੂਰੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰ ਸਕੇਂਗਾ ।
अनुवाद:
ठाकुर साहिब के चले जाने के पश्चात् मनोहर सिंह ने तेजा को बुला कर छाती से लगाया और कहापुत्र, इस वृक्ष को तूने बचाया है, इसलिए मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे बाद तू इसकी पूरी रक्षा कर सकेगा।

प्रश्न 1.
अनुवाद किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी भाषा में कही या लिखी गई बात को किसी दूसरी भाषा में सार्थक परिवर्तन करने को अनुवाद कहते हैं। इसे साहित्यिक विधा माना जाता है लेकिन यह मौलिक साहित्य रचना की श्रेणी में नहीं आता।

प्रश्न 2.
अनुवादक किसे कहते हैं?
उत्तर:
जो व्यक्ति अनुवाद कार्य को करता है उसे अनुवादक कहते हैं।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद

प्रश्न 3.
अनुवाद के लिए सबसे आवश्यक किसे माना जाता है?
उत्तर:
अनुवाद के लिए सबसे आवश्यक उन दो भाषाओं का माना जाता है जिनका एक से दूसरी में सार्थक परिवर्तन किया जाता है।

प्रश्न 4.
स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
स्रोत भाषा-जिस भाषा की सामग्री का अनुवाद किया जाता है उसे स्रोत भाषा कहते हैं।
लक्ष्य भाषा-जिस भाषा में अनुवाद किया जाता है उसे लक्ष्य भाषा कहते हैं।
उदाहरण-यदि हिंदी में लिखित किसी कविता को पंजाबी में अनूदित किया जाए तो हिंदी स्रोत भाषा कहलाती है। इस स्थिति में पंजाबी लक्ष्य भाषा होगी।

प्रश्न 5.
किसी भाषा में रचित सामग्री को किसी दूसरी भाषा में अनूदित करते समय किस-किस प्रकार के पूर्ण ज्ञान की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
अनुवाद कार्य करते समय अनुवादक को स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा की लिपियों, शब्दावली, वाक्य संरचना और व्याकरण का पूर्ण ज्ञान आवश्यक रूप से होना चाहिए क्योंकि प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि, शब्दावली और व्याकरण होती है।

प्रश्न 6.
पंजाबी और हिंदी की स्वर ध्वनियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पंजाबी में स्वरों को लिखित रूप देने के लिए केवल तीन ही अक्षर होते हैं । ध्वनि के स्तर पर इनकी संख्या दस स्वीकार की जाती है-
PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद 1

प्रश्न 7.
पंजाबी और हिंदी की स्वर ध्वनियों को उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद 2

प्रश्न 8.
पंजाबी और हिंदी की व्यंजन ध्वनियों को लिखिए।
उत्तर:
PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुवाद 3

प्रश्न 9.
पंजाबी में बिंदी () और टिप्पी (“) का प्रयोग कैसे किया जाता है?
उत्तर:
पंजाबी में बिंदी (‘) और टिप्पी (“) का प्रयोग मात्राओं के अनुसार किया जाता है। हिंदी में इनके लिए प्रायः बिंदी का ही प्रयोग होता है लेकिन बड़े ‘अ’ के साथ बिंदी की जगह चंद्रबिंदु का प्रयोग किया जाता है। पंजाबी में दुलैंकड़ मात्राओं के साथ टिप्पी का प्रयोग होता है पर हिंदी में दीर्घ ‘ऊ’ (‘) के साथ चंद्र बिंदु का प्रयोग किया जाता है; जैसेनँ, बूँद, चूं-चूँ।

प्रश्न 10.
पंजाबी के टिप्पी वाले शब्दों का हिंदी में कैसे प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
(I) हिंदी में पंजाबी के टिप्पी वाले शब्दों का प्रयोग करते समय चंद्र बिंदु लगाया जाता है; जैसे-
भव – मुँह
यस – पहँच

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(II) कहीं-कहीं टिप्पी वाले शब्दों का प्रयोग करते समय टिप्पी की जगह कुछ नहीं लगाया जाता; जैसे-
ਧੰਨ – धन

(III) कुछ स्थानों पर ऐसी स्थिति में ‘क’, ‘च’ आदि की जगह ‘का’, ‘चा’ आदि का प्रयोग किया जाता है; जैसे-
ਕੰਨ – कान
ਚੰਮ – चाम
ਕੰਮ – काम

(IV) कुछ जगह टिप्पी की जगह चंद्र बिंदु का प्रयोग और अंतिम अक्षर में परिवर्तन किया जाता है; जैसे-
ਦੰਦ – दाँत
ਪੰਜ – पाँच

(V) पंजाबी में कन्ना, लां, दुलावां, होड़ा तथा कनौड़ा मात्राओं के साथ बिंदी का प्रयोग होता है लेकिन हिंदी में कई जगह बिंदी की जगह चंद्र बिंदु का प्रयोग किया जाता है; जैसे-
ਚਾਂਦੀ – चाँदी
उप्वा – ताँबा
ਸਾਂਝਾ – साँझा

प्रश्न 11.
हिंदी के जिन शब्दों में ‘य’ से पहले आधा अक्षर प्रयुक्त किया जाता है वहाँ पंजाबी में क्या परिवर्तन होता है? उदाहरण देकर लिखिए।
उत्तर:
हिंदी के शब्दों में जहाँ ‘य’ से पहले आधा अक्षर आता है वहाँ पंजाबी में प्रायः आधा अक्षर पूरा लिखा जाता है और पूरे अक्षर के साथ ‘इ’ की मात्रा लगा दी जाती है। साथ ही ‘य’ की जगह ”लिखा जाता है। कहीं-कहीं कुछ अन्य परिवर्तन भी किए जाते हैं। उदाहरण के लिए-
हिंदी – पंजाबी
माध्यम – ਮਾਧਿਅਮ
सभ्यता – ਸਭਿਅਤਾ
अभ्यास – ਅਭਿਆਸ
अध्यापक – ਅਧਿਆਪਕ
व्यर्थ – ਵਿਅਰਥ
व्यापक – ਵਿਆਪਕ
व्यक्ति – ਵਿਅਕਤੀ
व्यवस्था – ਵਿਵਸਥਾ

प्रश्न 12.
हिंदी के जिन शब्दों में ‘आ’ अथवा ‘या’ लगाया जाता है वहाँ पंजाबी में अनुवाद करते समय क्या परिवर्तन किया जाता है?
उत्तर:
पंजाबी में अनुवाद करते समय ऐसी स्थिति में धातु के अंतिम अक्षर के साथ ‘ई’ की मात्रा लगा कर मा’ लगा दिया जाता है। उदाहरण
हिंदी – पंजाबी
पढा – ਪੜਿਆ
भेजा – ਭੇਜਿਆ
लिखा – ਲਿਖਿਆ
माया – ਮਾਇਆ
गाया – ਗਾਇਆ
मापा – ਮਾਪਿਆ
हिंदी की जिन क्रियाओं के अंत में ‘या’ लगा होता है वहाँ पंजाबी में ‘आ’ लगाया जाता है; जैसे-सोया-मॅग, किया-वीउ, दिया-टॅिग, लिया-लिभा|

प्रश्न 13.
हिंदी में जहाँ ‘व’ से पहले आधा अक्षर होता है वहाँ पंजाबी में परिवर्तन करते समय क्या किया जाता है?
उत्तर:
हिंदी के जिन शब्दों में ‘व’ से पहले आधा अक्षर होता है वहाँ पंजाबी में पूरा अक्षर लिखा जाता है और वहाँ ‘व’ के साथ की मात्रा (_) का प्रयोग किया जाता है; जैसे-
हिंदी – पंजाबी
द्वारा – ਦੁਆਰ
स्वतंत्र – ਸੁਆਗਤ
द्वार – ਦੁਆਰਾ
स्वागत – ਸੁਆਗਤ
कहीं-कहीं इस स्थिति में तनिक अंतर होने पर भिन्न विधि अपनाई जाती है; जैसे-
स्वरोजगार – ਸਵੈ ਰੋਜ਼ਗਾਰ
स्वर – ਸਵਰ

प्रश्न 14.
पंजाबी में सरलता बनाए रखने के लिए हिंदी के संयुक्त व्यंजनों में किस प्रकार परिवर्तन किया जाता है?
उत्तर:
हिंदी के संयुक्त व्यंजनों में पंजाबी में अनुवाद करते समय सरलता बनाए रखने के लिए प्रायः दो प्रकार से परिवर्तन किए जा रहे हैं-
(I) संयुक्त व्यंजनों के मध्य में स्वराज्य से उच्चारण में सरलता लाने का प्रयास किया जाता है; जैसे-
हिंदी – पंजाबी
फ़िक्र – ਫ਼ਿਕਰ
राष्ट्र – ਰਾਸ਼ਟਰ
इन्द्र/इंद्र – ਇੰਦਰ
कलेश – ਕਲੇਸ਼
विश्वास – ਵਿਸ਼ਵਾਸ
शास्त्र – ਸ਼ਾਸਤਰ
स्कूल – ਸਕੂਲ
कृपा – ਕਿਰਪਾ
पुत्री – ਪੁੱਤਰੀ
संग्राम – ਸੰਗਰਾਮ

(II) स्वरों के लोप से भी शब्दों की सरलता बनाई जाती है. जैसे-
परंतु – ਪ੍ਰੰਤੂ
प्रत्यक्ष – ਪ੍ਰਤੱਖ
लक्ष्मी – ਲੱਛਮੀ
लक्षण – ਲੱਛਣ
ईर्ष्या – ਈਰਖਾ

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प्रश्न 15.
हिंदी के संयुक्त व्यंजनों को पंजाबी में किस प्रकार लिखा जाता है?
उत्तर:
हिंदी के संयुक्त व्यंजनों को सरल बनाने के लिए पंजाबी में अलग-अलग व्यंजनों के साथ लिखा जाता है; जैसे-
हिंदी – पंजाबी
विश्राम – ਵਿਸ਼ਰਾਮ
मात्रा – ਮਾਤਰਾ
पवित्र – ਪਵਿੱਤਰ
कृपा – ਕਿਰਪਾ
भ्रम – ਭਰਮ
पदार्थ – ਪਦਾਰਥ
अर्पण – ਅਰਪਣ
निर्धन – ਨਿਰਧਨ

प्रश्न 16.
हिंदी के जिन शब्दों के अंत में ‘व’ आ जाता है वहाँ पंजाबी में अनुवाद करते समय प्रायः क्या परिवर्तन किया जाता है?
उत्तर:
हिंदी के जिन शब्दों के अंत में ‘व’ आ जाता है उसकी जगह पंजाबी में प्राय: लिख दिया जाता है; जैसे-
हिंदी – पंजाबी
स्वभाव – महाभ
दुर्भाव – ਦੁਰਭਾਵ

प्रश्न 17.
हिंदी में ‘ह’ से पहले ‘ए’ (‘) की मात्रा के स्थान पर पंजाबी में क्या परिवर्तन किया जाता है?
उत्तर:
पंजाबी में किसी शब्द में ‘उ’ से पहले ‘प्टे’ की मात्रा हो तो वहाँ छोटी ‘इ’ की मात्रा लगाई जाती है; जैसे-
हिंदी – पंजाबी
मेहनत – ਮਿਹਨਤ
मेहर – ਮਿਹਰ
मेहरबान – ਮਿਹਰਬਾਨ
सेहत – ਸਿਹਤ
चेहरा – ਚਿਹਰਾ

प्रश्न 18.
हिंदी में जिन शब्दों का उच्चारण ऐह’ है लेकिन क्रम अह’ होता है उसे पंजाबी में किस प्रकार लिखा जाता है?
उत्तर:
पंजाबी में ऐसे शब्द का ‘हाहे’ से पहला अक्षर मुक्त रहता है पर उसे छोटी ‘इ’ की मात्रा लगती है; जैसे-
हिंदी – पंजाबी
नहर – ਨਹਿਰ
शहर – ਸ਼ਹਿਰ
वहम – ਵਹਿਮ
महंगा – ਮਹਿੰਗਾ
महल – ਮਹਿਲ
शहद – ਸ਼ਹਿਦ

प्रश्न 19.
हिंदी में जिन शब्दों में नासिक्य ध्वनि प्राय: ‘ण’ का प्रयोग होता है तो वहाँ पंजाबी शब्दों में के अनुवाद में क्या परिवर्तन आता है?
उत्तर:
हिंदी में जिन शब्दों में ‘ण’ का प्रयोग होता है उनका पंजाबी में अनुवाद में नासिक्य ध्वनि को प्रयुक्त किया जाता है; जैसे-
हिंदी – पंजाबी
कारण – ਕਾਰਨ
कर्ण – ਕਰਨ
किरण – ਕਿਰਨ
शरण – ਸ਼ਰਨ
हिरण – ਹਿਰਨ
धर्म – ਧਰਮ
दर्शन – ਦਰਸ਼ਨ
ਅਰਜਨ

प्रश्न 20.
हिंदी भाषा की देवनागरी लिपि और गुरुमुखी लिपि में द्वित्व शब्दों के लेखन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) देवनागरी लिपि में द्वित्व वर्णों का प्रयोग किया जाता है लेकिन गुरुमुखी लिपि में अद्धक (‘) का प्रयोग होता है; जैसे- शुद्ध = रॉय, खट्टा = बॅटा, बच्चा = वसा, पक्का = पॅवा, आदि।

प्रश्न 21.
हिंदी और पंजाबी में उच्चारण भिन्नता के कारण व्यंजनों के प्रयोग में क्या बदलाव आता है?
उत्तर:
उच्चारण भेद होने के कारण हिंदी और पंजाबी में ‘ब’, ‘ग’, ‘न’, ‘ड’ पंजाबी में क्रमश: ‘उ’, ‘व’, ‘ह’ और ‘इ’ में बदल जाते हैं ; जैसे- सब = र्मठ, पानी = पाटी, लोग = प्लेव आदि।

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प्रश्न 22.
लिंग परिवर्तन करते समय हिंदी और पंजाबी में आए अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(क) हिंदी में कुछ आकारांत शब्दों का लिंग बदलते समय ‘आ’ को इया में बदल दिया जाता है लेकिन पंजाबी में ‘आ’ के स्थान पर प्टी (१) का प्रयोग किया जाता है; जैसे-
चूहा = चुहिया = तुगी, बूढ़ा = बुढ़िया = वडी।।

(ख) हिंदी में जहाँ अंत में ‘इन’ प्रत्यय लगाया जाता है वहाँ पंजाबी में ‘ठ’ या ‘ह’ लगाया जाता है; जैसे-
तेली = तेलिन = उलट, सपेरा = सपेरिन = मयेण्ट।

(ग) हिंदी में अंतिम स्वर के स्थान पर जहाँ आनी’ लगाया जाता है वहाँ पंजाबी में ‘टी’ लगाया जाता है; जैसे-
नौकर = नौकरानी = वाटी, सेठ = सेठानी = मिठाटी, पंडित = पंडिताइन = पंडाटी, बनिया = बनियाइन = घटिभाटी।

(घ) हिंदी में अक’ अंत वाले पुल्लिग शब्दों के अंत में ‘इका’ लगाया जाता है लेकिन पंजाबी में ‘अक’ अंत वाले पुल्लिग शब्दों में कन्ना लगा दिया जाता है; जैसे-
नायक = नायिका = ठाप्टिवा, सेवक = सेविका = मेहवा ।।

(ङ) हिंदी और पंजाबी में लिंग परिवर्तन में अनेक स्थानों पर कोई परिवर्तन दिखाई नहीं देता; जैसे-
चाचा = चाची = सासी, पुत्र = पुत्री = ‘उठी, सरदार = सरदारनी = मराठठी।

प्रश्न 23.
पंजाबी और हिंदी में उच्चारण भिन्नता के कारण
उत्तर:
पंजाबी के कुछ शब्दों में स्वर या व्यंजन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है; जैसे-
गुरु = ताठ, स्थान = पाठ, स्कूल = मवल।

प्रश्न 24.
हिंदी के शब्दों में प्रयुक्त ‘क्ष’ और ‘ष’ के उच्चारण में बदलाव के कारण पंजाबी में क्या बदलाव दिया जाता है?
उत्तर:
उच्चारण में परिवर्तन के कारण ‘क्ष’ के स्थान पर ‘ध’ और ‘ष’ की जगह ‘ह’ का प्रयोग किया जाता है; जैसे-
पुरुष = पठध, ईर्ष्या = प्टीतधा, लक्ष्मी = लॅधनी, पक्षी = धंढी।

प्रश्न 25.
पंजाबी और हिंदी में बहुवचन बनाने में क्या-क्या अंतर दिखाई देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
I. हिंदी में अकारांत स्त्रीलिंग संज्ञाओं के अंत में बहुवचन बनाते हुए ‘अ’ को ‘ऐं’ में बदला जाता है लेकिन पंजाबी में ‘कन्ने’ के ऊपर बिंदी लगाई जाती है; जैसे-
रात = रातें = ठारा; मशीन = मशीनें = भतीठां; सड़क = सड़कें = मइयां।

II. हिंदी के ‘आकारांत’ एकवचन शब्दों के अंत में ‘एँ’ लगाया जाता है लेकिन ऐसी स्थिति में पंजाबी में ‘गं’ लगाया जाता है; जैसे
कविता = कविताएँ = वहिउाहां, सभा = सभाएँ = माहां, अध्यापक = अध्यापिकाएँ = अयिभाववाहां, हवा = हवाएँ = उहाहां।

III. हिंदी के इकारांत या ईकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में बहुवचन बनाते हुए ‘ई’ की जगह ‘इ’ कर दिया जाता है लेकिन पंजाबी में बिहारी की जगह बहुवचन के अंत में ‘भा’ लगा दिया जाता है; जैसे-
नदी = नदियाँ = ठटीला, कली = कलियाँ = वप्लीमां, लड़की = लड़कियाँ = लक्वीनां।

IV. हिंदी में उकारांत और ऊकारांत स्त्रीलिंग शब्दों को बहुवचन में बदलते समय ‘एँ’ लगाया जाता है लेकिन पंजाबी में इस स्थिति में जहाँ औंकड़ और दुलैंकड़ होते हैं वहाँ बहुवचन बनाते हुए ‘मां’ लगा दिया जाता है; जैसे
धातु = धातुएँ = पाउला ; वस्तु = वस्तुएँ = हमला|

V. अनेक स्थानों पर आकारांत पुल्लिग शब्दों में बहुवचन बनाते समय हिंदी और पंजाबी में समानता रहती है। दोनों में ही ‘आ’ को ‘ए’ में बदल दिया जाता है: जैसे-
रुपया = रुपये = तृघटे; कपड़ा = कपड़े = वॅपडे; चाचा = चाचे = सासे; पत्ता = पत्ते = डे।

प्रश्न 26.
हिंदी और पंजाबी की वाक्य-संरचना में समानताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हिंदी और पंजाबी दोनों भाषाओं में उच्चारण की दृष्टि से बहुत अधिक समानता है। इनकी वाक्य-संरचना और व्याकरणिक नियमों में भी कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं है; जैसे-
आज हमारा देश भिन्न-भिन्न धर्म-जातियों में बंटा हुआ है।
ਅੱਜ ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮ ਜਾਤਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ।
इन दोनों भाषाओं में क्रिया का लिंग मुख्य कर्ता के अनुसार ही होता है; जैसे-
ਮੁੰਡਾ ਦਸਵੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਦਾ ਹੈ ।
लड़का दसवीं कक्षा में पढ़ता है।
इन दोनों भाषाओं में कर्तृवाच्य में क्रिया का लिंग मुख्य कर्ता के समान ही रहता है। इनमें कर्मवाच्य की क्रिया का लिंग मुख्य रूप से कर्म के अनुसार ही होता है; जैसे-
भेठे उ प हॅप्ल निभा । मुझ से दूध गिर गया।
भेठे 3 साग इल ताप्टी । मुझ से चाय गिर गई।
पंजाबी और हिंदी में भाववाच्य की क्रिया सदा पुल्लिंग में रहती है: जैसे-
मुंडे पङिमा ठगीं सांस । लड़के से पढ़ा नहीं जाता।
वही घडिमा ठगी मांग । लड़की से पढ़ा नहीं जाता।

पंजाबी और हिंदी में क्रिया के दो ही वचन होते हैं-एक वचन और बहुवचन। इन दोनों में ही एक के लिए एकवचन की क्रिया और अनेक के लिए बहुवचन क्रिया का प्रयोग होता है, इन दोनों भाषाओं में संज्ञा, वचन और लिंग के अनुसार ही विशेषण बोधकों के रूप में परिवर्तन होता है।

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पंजाबी से हिंदी में अनुवाद संबंधी वाक्यों के कुछ उदाहरण

निम्नलिखित पंजाबी के वाक्यों का हिंदी में अनुवाद करें
1. नाव जुठीहमिटी उडीगाड हिच चै।
2. रिहाली वॅउव सी मॅमिभा सी ठाउ मठाप्टी सांटी चै।
3. ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਨਾਲ ਸਾਡੇ ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ !
4. ਛੱਬੀ ਜਨਵਰੀ ਅਤੇ ਪੰਦਰਾਂ ਅਗਸਤ ਸਾਡੇ ਕੌਮੀ ਤਿਉਹਾਰ ਹਨ ।
5. ਸਾਡੇ ਹਿਰਦੇ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਲਈ ਪਿਆਰ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
6. ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ ਸਰਾਭਾ ਨੇ ਉੱਨੀ ਸਾਲ ਦੀ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਲਈ ਸ਼ਹੀਦੀ ਪਾਈ ।
7. भिठाम पडे ठित मावे ताहां रा ठिठेइ ।।
8. ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਲਗਾਤਾਰ ਵਾਧਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ।
9. ਅਖ਼ਬਾਰ ਦਾ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਹੈ ।
10. ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਵੱਧਣ ਨਾਲ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵੀ ਵੱਧ ਰਹੀ ਹੈ ।
11. माठु विनप्ली टी घुउउ वठठी नग्गीसी चै।
12. ਜੇਕਰ ਤੁਸੀਂ ਆਪਣਾ ਅੱਜ ਖ਼ਰਾਬ ਕਰੋਗੇ ਤਾਂ ਤੁਹਾਡਾ ਕਲ਼ ਵੀ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਏਗਾ ।
13. लठउर मडी सी धिभा व भडे ठिसा उँ त।
14. लठिरत मिप पइसा चै ठाले तेवठी वठरा वै।
15. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਰਤ ਕਰਕੇ ਖਾਣ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਹੈ ।
16. ऐमराठाल वरे ही गाढेठी ठगीं वठठी साजीसी।
17. नेवत तेवठी ठगीं मिल ठगी गं -तृलताठ रा ठमठा सपठाठ।
18. डेल सी माहान मह वे ममी पत्रे वापत मा ताप्टे ।।
19. ਸਿਆਣਾ ਇਨਸਾਨ ਖ਼ਾਲੀ ਸਮੇਂ ਦਾ ਵੀ ਸਦਉਪਯੋਗ ਕਰਦਾ ਹੈ ।
20. पत हांठा मल हित ही महाप्टी घउ सती गै।
उत्तर:
1. पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में है।
2. दिवाली कार्तिक की अमावस्या की रात्रि में मनाई जाती है।
3. ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा से हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है।
4. छब्बीस जनवरी और पंद्रह अगस्त हमारे राष्ट्रीय त्यौहार हैं।
5. हमारे हृदय में अपनी मातृ-भाषा के लिए प्रेम होना चाहिए।
6. करतार सिंह सराभा ने उन्नीस वर्ष की छोटी आयु में देश के लिए कुर्बानी पाई।
7. मिठास और नम्रता सभी गुणों का निचोड़ है।
8. विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर विकास हो रहा है।
9. समाचार-पत्र का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
10. जनसंख्या के बढ़ने के साथ बेरोज़गारी भी बढ़ रही है।
11. हमें बिजली की बचत करनी चाहिए।
12. यदि आप अपना आज खराब करोगे तो आपका कल भी खराब हो जाएगा।
13. पशु संपत्ति की रक्षा करो और हिंसा से दूर रहो।
14. जतिंद्र सिंह पढ़ता है साथ नौकरी करता है।
15. गुरु नानक देव जी ने कार्य (मेहनत) करके खाने की शिक्षा दी है।
16. मित्रों से कभी भी हेराफेरी नहीं करनी चाहिए।
17. यदि नौकरी नहीं मिल रही तो स्वरोजगार का रास्ता अपनाओ।
18. ढोल की आवाज़ सुन कर हम घर से बाहर आ गए।
19. बुद्धिमान इन्सान खाली समय का भी सदुपयोग करता है।
20. घर की तरह विद्यालय में भी सफ़ाई बहुत आवश्यक है।

PSEB 10th Class English Reading Skills Note-Making

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PSEB 10th Class English Reading Skills Note-Making

Note-making का अर्थ है किसी पैरे की मुख्य बातों को संक्षिप्त और साफ-सुथरे ढंग से प्रस्तुत करना। अच्छे Notes में निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं

1. वे संक्षिप्त होते हैं।

2. केवल प्रासंगिक बातें ही उनमें दी जाती हैं।

3. केवल शब्दों या वाक्यांशों का प्रयोग ही किया जाता है। पूरे वाक्यों की आम तौर पर आवश्यकता नहीं होती।
अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि Notes बनाते समय प्रयुक्त भाषा व्याकरण की दृष्टि से पूरी तरह सही नहीं भी हो सकती।

4. सूचना को सूचीबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। इसे विभाजित व उपविभाजित किया जाता है। विभाजन निम्न प्रकार से हो सकता है
मुख्य खण्ड : 1, 2, 3, इत्यादि।
उपखण्ड : a, b, c, इत्यादि।

PSEB 10th Class English Reading Skills Note-Making

5. पूरे शब्दों के स्थान पर संक्षिप्त शब्दों या चिन्हों का प्रयोग भी किया जा सकता है।
आम प्रयोग में आने वाले संक्षिप्तीकरण शब्दकोशों में दिए होते हैं। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वयं के संक्षिप्त शब्द या चिन्हों का प्रयोग कर सकता है।
उदाहरणार्थ_ ‘Parliament’ के स्थान पर ‘Parlt’ या ‘Par’ या ‘P’ का प्रयोग किया जा सकता है। परन्तु इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि एक संक्षिप्त-रूप शब्द एक से अधिक शब्दों के लिए न प्रयोग किया जाए।

Question : On the basis of your reading of the given passage, make notes on it in points only.

Passage 1

Good Manners

Good manners occupy a unique place in our life. They are to be acquired? and cultivated. The sooner it is done, the better it is. Childhood is the best period for learning and imbibing good manners. It is obvious that it is in the formative years that good conduct, behaviour and manners are to be developed and cultivated. As Milton said, “The childhood shows the man as morning shows the day.” Good manners help us to make friends and to gain appreciation. Manners make men and morals.

Word-meanings : 1. acquire-अर्जित करना; 2. cultivate-पैदा करना; 3. imbibe ग्रहण करना; 4. formative-रचनात्मक।

Notes
1. Good manners in life
(A) have unique place in life
(B) are to be acquired and cultivated
(C) sooner the better.

2. Best period for learning good manners

  • childhood
  • childhood shows the man as morning shows the day – Milton.

3. Good manners helpful

  • make friends
  • win over people
  • gain appreciation.

Passage 2

The Importance Of The Freedom Of Thought

The most important thing is that we should have freedom of thought. This is not as easy as it sounds, for everyone likes to have this freedom for himself, but is not ready to give it to others when they express different opinions. This is particularly the case when differences of opinion arise on such important matters as religion and politics. But if we refuse to let other people hold their opinion on these matters and especially, if we try to force them to accept our own, progress is impossible. If everyone went on thinking the same things as his ancestors thought, progress would come to an end because as the Buddha said, “What a man thinks, he becomes.” So if we think exactly what our forefathers thought, we shall remain in the condition in which they were.

Word-meanings : 1. sounds-प्रतीत होता है; 2. opinions-विचार, मत; 3. particularly – विशेष रूप से; 4. progress-प्रगति; 5. ancestors-पूर्वज; 6. exactly-बिल्कुल वैसा; 7. forefathersपूर्वज।

Notes
A Freedom of thought

  • each one loves to have
  • not willing to give to others
  • especially in matters of religion and politics.

B. Progress impossible

  • without the freedom of thought
  • no progress if we think as our forefathers did.

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Passage 3

The Tissue Culture Of Plants

Man has depended on plants ever since life began. The reasons are various for food, shelter and clothing. The destruction of plants has been a cause of tremendous concern to him. Hence he tries to preserve plants from both man-made and natural calamities3. He adopts4 various methods to overcome these calamities. To do so, the scientists have evolved the process of tissue culture whereby complete plant can be developed from just a part of the plant. This has proved to be a boon. This technique involves a process in which small pieces of different parts of a plant body are grown on a nutritional media under completely sterile conditions. This concept dates back to 1878 when German botanist6 Vochting said that from a small plant piece, a whole plant could be regenerated. Later, Haberlandt in 1902 postulated that the cultivation of artificial embryos is possible depending on the nutritional media.

Word-meanings : 1. destruction—तबाही; 2. tremendous—अत्यधिक; 3. calamities – विपदाएं; 4. adopts – अपनाता है; 5. sterile – कीटाणुओं से मुक्त; 6. botanist-वनस्पति-विज्ञानी; 7. postulated — प्रमाणित किया

Notes

1. Man’s dependence on plants for the……….
(a) food
(b) shelter
(c) clothing.

2. Causes of destruction
(a) man-made calamities
(b) natural calamities

3. Way to overcome the loss – tissue culture
(a) involves taking pieces of plant body and growing under sterile conditions
(b) suggested by German botanist Vochting (1878)
(c) Haberlandt (1902) postulated the cultivation.

Passage 4

The Functioning Of Newspapers 

A newspaper is usually owned by one or by a group of proprietors. They provide the capital and usually decide the policy of the paper, though they do not normally take part in the day-to-day running of it. This is the responsibility of the editor, whose job is to make sure that the paper comes out every day and that it contains the information that readers expect to find in it. He has a large staff to help him do this, of course. The actual news comes from two main sources the paper’s own reporters, and the news agencies. Most papers subscribe to one or more agencies, i.e. they pay a certain sum of money each year and in return, they are allowed to make use of the news which the agency sends them every day. Naturally, they do not use all this news they select from it what they need.

Word-meanings : 1. proprietor – किसी व्यापारिक संस्थान का मलिक ; 2. provide – प्रदान करना; 3. capital – पंजी; 4. subscribe – ग्राहक बनना

Notes
1. Ownership of newspapers = one or a group of proprietors.

2. Day-to-day working – an editor helped by a large staff.

3. Collection of news –

  • own reporters
  • news agencies.

Passage 5

Gandhiji’s Childhood

Gandhiji’s childhood was a solemn one and lacking strangely in the frivolities with which we surround our children today. Children of those days had a curiously grown-up status, maybe because of the early marriage to which they had to submit, but they soon learned to take up and acquaint themselves with responsibilities and Gandhiji was no exception’ to this. Though the youngest in the family, he acquired grown-up wisdom by consorting with his elders, particularly his. mother, imbibing her wisdom and sound common sense. From the earliest days, his love for truth at any cost dominated his mind and he was free from the tiring little lies that fill the life of any child.

Word-meanings :1. solemn – पवित्र; 2. frivolities – ओछी बातें; 3. acquaint – परि करवाना; 4. exception-अपवाद;
5. consorting – साथी बनना; 6.imbibing-धारण करना, सीखना।

PSEB 10th Class English Reading Skills Note-Making

Notes
Gandhiji’s childhood
(a) solemn
(b) no frivolities

2. No different from the children of his age
(a) early marriage
(b) conscious of responsibilities

3. Gandhiji imbibed
(a) his mother’s wisdom
(b) love for truth.

Passage 6

Advantages Of Early Rising

Early rising leads to health and happiness. The man who rises late, can have little rest in the course of the day. Anyone who lies in bed late is compelled to work till a late hour in the evening. He has to go without the morning exercise which is so necessary for his health. In spite of all efforts, his work will not produce as good results as that of the early riser. The reason for this is that he cannot take advantage of the refreshing hours in the morning. Some people say that the quiet hour of midnight is the best time for working. Several great thinkers say that they can write best only when they burn the midnight oil. Yet it is true to say that few men have a clear brain at midnight when the body needs rest and sleep. Those who work at that time soon ruin their health. Bad health must, in the long run, have a bad effect on the quality of their work.

Word-meanings :1. efforts-प्रयत्न; 2. advantage-लाभ; 3. refreshing-ताज़गी प्रदान करने वाले; 4. ruin-नष्ट करना।

Notes
1. Advantages of early rising
(1) health
(ii) happiness.

2. Disadvantages of late rising
(i) work till late in the evening
(ü) go without morning exercise
(iii) work not done properly.

3. (i) Burning midnight oil bad for health.
(ii) Bad health, poor quality of our work.

Passage 7

Sportsmanship

Sportsmanship is a noble attitude of mind. It is a noble principle which great men observe and everyone should keep in mind. Sportsmanship does not mean art in games according to the set rules. Rather, it means observing all those rules in life which the players have been taught to observe while playing games. Games and sports are to mould the character of the players by the training they are given in the field. Sportsmanship implies fair dealing. In games if a player plays foul, the side to which he belongs is penalised Exactly in the same manner, in the bigger game of life, one must be fair in one’s dealings with others. Fairness, honesty, integrity, openness of heart and frankness are the qualities of a sportsman.

Word-meanings: 1. sportsmanship-खिलाडीपन; 2. observe – पालन करना; 3. to mould – ढालना ; 4. implies-का अर्थ है; 5. fair dealing-न्याय-संगत व्यवहार; 6. play foul-नियम विरुद्ध खेलना ; 7. penalise – दण्डित करना; 8. integrity-ईमानदारी; 9. frankness-निष्कपट ढंग।

PSEB 10th Class English Reading Skills Note-Making

Notes

1. Sportsmanship
(a) noble attitude of mind
(b) moulds character
(c) implies fair dealing
Qualities of sportsman :
(a) fairness
(b) honesty
(c) integrity
(d) openness of heart
(e) frankness.

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar patra lekhan पत्र-लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar पत्र-लेखन

प्रश्न 1.
अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक आवेदन-पत्र लिखिए जिसमें बड़ी बहन के विवाह के लिए चार दिन का अवकाश माँगा गया हो।
उत्तर:
सेवा में
मुख्याध्यापक
सरकारी हाई स्कूल
नवांशहर।
विषय-अवकाशार्थ प्रार्थना-पत्र।
महोदय,

निवेदन है कि मेरी बड़ी बहन की शादी 11 नवंबर, 20… को दिल्ली में होनी तय हुई है। हमारे परिवार के सभी सदस्य वहाँ पहुँच चुके हैं। मैं और मेरी छोटी बहन 9 नवंबर को रात की गाड़ी से दिल्ली जाएंगे। कृपया मुझे चार दिन का अवकाश, दिनांक 10 से 13 नवंबर तक प्रदान कीजिए।

धन्यवाद,
आपका आज्ञाकारी शिष्य
महेंद्र सिंह लांबा
कक्षा दसवीं ‘ग’
अनुक्रमांक 541
तिथि : 9 नवंबर, 20…

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

प्रश्न 2.
अपने स्कूल के प्रधानाचार्य को स्कूल में अधिक-से-अधिक खेलों का सामान मंगवाने के लिए अनुरोध करते हुए प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में
प्रधानाचार्य
डी०ए०वी० हाई स्कूल
धुरी।
विषय-खेल समानार्थ प्रार्थना-पत्र।
महोदय,

आपने एक छात्र-सभा में भाषण देते हुए इस बात पर बल दिया था कि छात्रों को शिक्षा के साथ-साथ खेलों का महत्त्व भी समझना चाहिए। खेल शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। खेद की बात है कि आप खेलों की आवश्यकता तो खूब समझते हैं पर खेल सामग्री के अभाव की ओर कभी आपका ध्यान नहीं गया। खेलों के अनेक लाभ हैं। ये स्वास्थ्य के लिए बड़ी उपयोगी हैं। ये अनुशासन, समय पालन, सहयोग तथा सद्भावना का भी पाठ पढ़ती हैं।

अतः आपसे नम्र निवेदन है कि आप खेलों का सामान उपलब्ध करवाने की कृपा करें। इससे छात्रों में खेलों के प्रति रुचि बढ़ेगी वे अपनी खेल प्रतिभा का विकास कर सकेंगे। आशा है कि आप मेरी प्रार्थना पर उचित ध्यान देंगे और आवश्यक आदेश जारी करेंगे।

आपका आज्ञाकारी शिष्य
रजत शर्मा
कक्षा दसवीं ‘ब’
दिनांक : 17 अप्रैल, 20…

प्रश्न 3.
किसी कंपनी में क्लर्क के रिक्त पद की पूर्ति हेतु आवेदन पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में
प्रबन्धक
मल्होत्रा बुक डिपो
जालंधर।
विषय-क्लर्क के पद के लिए आवेदन-पत्र।
महोदय,

दैनिक ट्रिब्यून दिनांक 26 जून, 20… के विज्ञापन से ज्ञात हुआ है कि आप की संस्था में एक क्लर्क की आवश्यकता है। मैं इस पद के लिए अपनी सेवाएँ निम्नलिखित योग्यताओं के आधार पर प्रस्तुत करता हूँ-
(i) बी०ए० द्वितीय श्रेणी – पंजाब विश्वविद्यालय से।
(ii) टाइप का पूर्ण ज्ञान-गति 50 शब्द प्रति मिनट। कम्प्यूटर में प्रशिक्षित।
(iii) अनुभव-एक वर्ष-कंप्यूटर सैंटर पर।
(iv) आयु–24वें वर्ष में प्रवेश, जन्म तिथि 19-9-20…
मुझे अंग्रेज़ी एवं हिंदी का अच्छा ज्ञान है। पंजाबी भाषा पर भी अधिकार है।
आशा है कि आप मेरी योग्यता को देखते हुए अपने अधीन काम करने का अवसर प्रदान करेंगे। मैं सच्चाई एवं ईमानदारी के साथ काम करने का आश्वासन दिलाता हूँ। योग्यता एवं अनुभव संबंधी प्रमाण-पत्र इस प्रार्थना-पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूँ।

धन्यवाद सहित,
संलग्न :उपर्युक्त
भवदीय
राघवेंद्र सिंह
दिनांक 28 जून, 20…
15/11-अड्डा होशियारपुर
जालंधर शहर।
मोबाइल : 8654213421

प्रश्न 4.
आपके नगर में कुछ अनधिकृत मकान बनाए जा रहे हैं। इनकी रोकथाम के लिए जिलाधीश को . पत्र लिखिए।
उत्तर:
303, कर्ण पुरी,
फिरोज़पुर।
2 मई, 20…
सेवा में
जिलाधीश
फिरोज़पुर।
विषय-अनधिकृत निर्माण पर रोक हेतु।
महोदय,

सविनय निवेदन यह है कि फिरोज़पुर छावनी की जोख रोड पर कुछ लोगों ने ज़बरदस्ती कब्जा करके छावनी की ज़मीन पर अनधिकृत रूप से मकान बनाने शुरू कर दिए हैं जिससे इस क्षेत्र के निवासियों को बहुत परेशानी हो रही है तथा क्षेत्र का पर्यावरण भी नष्ट हो रहा है। हरे-भरे वृक्षों को काट दिया गया है तथा खुली सड़कों को तंग गलियों में तबदील कर दिया है। स्थानीय अधिकारी इस अनधिकृत निर्माण को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे हैं।

आपसे प्रार्थना है कि इस प्रकार के गैर-कानूनी निर्माण को रोक कर गिरा दिया जाए तथा छावनी क्षेत्र के सौंदर्य को नष्ट होने से बचाया जाए।

धन्यवाद,
भवदीय
हुकम सिंह

प्रश्न 5.
परीक्षा के दिनों में लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाने के लिए जिलाधीश को पत्र लिखिए।
उत्तर:
म. -108, विक्रमपुर
अमृतसर।
1 मार्च, 20 ……..
सेवा में
जिलाधीश
अमृतसर।
विषय-लाउडस्पीकरों पर प्रबंध हेतु।
महोदय,

निवेदन यह है कि इन दिनों हमारे क्षेत्र के प्रार्थना-पूजा स्थलों में लाउडस्पीकरों का प्रयोग समय-कुसमय बहुत ज़ोरशोर से हो रहा है। सुबह चार बजे से लेकर रात के बारह-एक बजे तक ऊँची आवाज़ में बजने वाले इन लाउडस्पीकरों से जहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थियों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, वहीं बीमार तथा वरिष्ठ नागरिक भी इनके कारण ठीक से सो भी नहीं पाते।

आप से अनुरोध है कि इन लाउडस्पीकरों के प्रयोग के लिए निश्चित समय-सीमा तथा आवाज़ की धीमी गति तय कर दीजिए जिससे उनके पूजा-पाठ में कोई विघ्न न आए, विद्यार्थी ठीक से पढ़ सकें तथा सोने वालों की नींद में भी बाधा न पड़े।

धन्यवाद,
भवदीय
नवजोत सिंह

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

प्रश्न 6.
किसी समाचार-पत्र के संपादक के नाम पत्र लिखिए जिसमें दिन-प्रतिदिन बढ़ रही महंगाई पर रोकथाम लगाने की बात कही गई हो।
उत्तर:
505, नेता जी नगर,
खन्ना।
5 जून, 20…
सेवा में
संपादक
विश्वामित्र दैनिक
खन्ना।
विषय-महंगाई-समस्या और समाधान।
महोदय,

आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं प्रशासन का ध्यान दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई महंगाई की ओर दिलाना चाहती हूँ, जिसके कारण आम आदमी को दाल-रोटी भी बहुत कठिनाई से मिल पा रही है। आज बाज़ार में थैला भर कर नोट ले जाने पर ही लिफाफे भर सामग्री मिल पाती है। आलू, प्याज़ जैसी आम सब्जियाँ भी आम आदमी की जेब पर भारी पड़ रही हैं। दालें सौ रुपए किलो तक जा पहुंची हैं। स्थिति यह हो गई है कि आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया जैसी दशा हो रही है। कितनी भी कटौती करें कहीं न कहीं कमी रह ही जाती है।

इस बढ़ती हुई महंगाई रूपी सुरसा के विनाश के लिए प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त होना चाहिए। आवश्यक वस्तुओं को दबाकर रखने वालों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए। सरकार को सस्ते मूल्यों पर वस्तुएँ सहकारी भंडारों द्वारा बेचनी चाहिए। आशा है एक आम गृहिणी की समस्याओं को समझते हुए सरकार महंगाई पर काबू पाने के उचित उपाए करेगी।

धन्यवाद।
भवदीय
जोगेंद्र कौर

प्रश्न 7.
आवारा कुत्तों के आतंक की ओर ध्यान दिलाने हेतु किसी संपादक के नाम पत्र लिखिए।
उत्तर:
13, हरि नगर,
जालंधर।
22 जून, 20…
सेवा में
संपादक
पंजाब केसरी
जालंधर।
विषय-आवारा जानवरों पर रोकथाम के लिए।
महोदय,

आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं नगर निगम, जालंधर के अध्यक्ष का ध्यान नगर में निरंतर बढ़ रहे कुत्तों के आतंक की ओर दिलाना चाहता हूँ। पिछले एक सप्ताह में नगर के विभिन्न क्षेत्रों से कुत्तों द्वारा काटे गए दस व्यक्तियों की मृत्यु तथा अनेक व्यक्तियों के घायल होकर उपचार कराने के समाचार विभिन्न समाचार-पत्रों में प्रकाशित होते रहे हैं। माई हीरां गेट, पुरानी रेलवे रोड, नई बस्ती, मॉडल टाउन आदि क्षेत्रों में निवासियों से अधिक जनसंख्या कुत्तों की हो गई है जो आठ-आठ, दस-दस का झुंड बनाकर आक्रमण करते हैं। मॉडल टाउन में तो एक सात वर्षीय बालक को ही इन कुत्तों ने काट-काट कर अधमरा कर दिया था।

आप से अनुरोध है कि इन आवारा कुत्तों को पकड़ कर कहीं अन्यत्र भेजने का प्रबंध किया जाए तथा इन का बंध्याकरण किया जाए जिससे इनकी वृद्धि पर रोक लग सके। आशा है इस संदर्भ में शीघ्र ही उचित कार्यवाही की जाएगी, जिससे नगरवासी कुत्तों के आतंक से मुक्त हो सकेंगे।

धन्यवाद।
भवदीय
रमनदीप सिंह

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

1. आपका नाम दीपक कुमार है। आप मकान नम्बर 345, सुन्दर नगर, फरीदाबाद में रहते हैं। आपका मोबाइल नम्बर 2134474657 है। आप नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी को अपने क्षेत्र की सफाई कराने के लिए प्रार्थनापत्र लिखिए।

2. आपका नाम विशाल कुमार है। आप सरकारी हाई स्कूल, मेरठ में दसवीं-बी कक्षा के मॉनीटर हैं। आपका रोल नम्बर-25 है। आप अपनी कक्षा की समस्याओं को हल करवाने के सम्बन्ध में अपने स्कूल के प्रधानाचार्य को प्रार्थनापत्र लिखिए।

3. आपका नाम सुमित कुमार है। आप मकान नम्बर 254, शांति नगर, मुम्बई में रहते हैं। आपका मोबाइल नम्बर 1234567890 है। आप मुम्बई के ‘सर्वमंगल’ समाचार पत्र के मुख्य सम्पादक के नाम सड़क दुर्घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के सुझाव सम्बन्धी पत्र लिखिए।

4. आपका नाम रणजीत सिंह है। आप शिशु कल्याण पब्लिक स्कूल, अहमदाबाद में दसवीं-ए कक्षा में पढ़ते हैं। आपका रोल नम्बर-26 है। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक आवेदन पत्र लिखिए जिसमें बड़ी बहन के विवाह के लिए चार दिन का अवकाश माँगा गया हो।

5. आपका नाम अजय कुमार है। आप मकान नम्बर 1564, गुलाब नगर, पठानकोट में रहते हैं। आपका मोबाइल नम्बर 1673489710 है। आप पठानकोट के ‘जन उत्थान’ समाचार पत्र के मुख्य सम्पादक के नाम पत्र लिखिए जिसमें दिन-प्रतिदिन बढ़ रही महंगाई पर रोकथाम लगाने की बात कही गयी हो।

6. आपका नाम मीना कुमारी है। आप मकान नम्बर 234 सुख नगर, कपूरथला (पंजाब) में रहते हैं। आपका मोबाइल नम्बर 1343485769 है। आप कपूरथला के ‘जन चेतना’ समाचार पत्र के सम्पादक के नाम आवारा कुत्तों के आतंक की ओर ध्यान दिलाने हेतु एक पत्र लिखिए।

7. ‘रोजाना भारत’ पंजाब के समाचार पत्र के प्रमुख संपादक के नाम ‘बालश्रम एक अपराध’ विषय पर एक पत्र लिखिए।

8. अपनी कक्षा की समस्याओं के समाधान के लिए विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखो।

9. आपका नाम जगजीत कौर है। आप शिवाजी नगर, मुम्बई में रहते हैं। आप अपनी ओर से मुम्बई के जन चेतना’ समाचार-पत्र के मुख्य सम्पादक के नाम सड़क दुर्घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए दुर्घटनाओं को रोकने के सुझाव सम्बन्धी एक पत्र लिखिए।

10. आपका नाम अनीता पुरी है। आप ज्ञानोदय पब्लिक स्कूल, जगाधरी में दसवीं कक्षा में पढ़ती हैं। अपने स्कूल के प्रधानाचार्य को स्कूल में अधिक से अधिक खेलों का सामान मंगवाने के लिए अनुरोध करते हुए आवेदन-पत्र लिखिए।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

मानव-मन सदा अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए व्याकुल रहता है। अपने सामने वाले व्यक्ति से वह बोलकर अपने मन की बात कह सकता है परंतु कहीं दूर रहने वाले व्यक्ति को वह लिखकर ही अपनी भावनाएँ समझा सकता है। इस स्थिति में पत्र लिखने की परंपरा प्रारंभ हुई होगी, जिसे कभी कबूतरों अथवा दूत-दूती के माध्यम से भेजा गया, जो अब डाकिए के द्वारा पूरा किया जाता है। पत्र, संदेश अथवा समाचार भेजने और प्राप्त करने का सर्वाधिक सुगम एवं सस्ता साधन है।

पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय-पत्र अथवा बंद लिफ़ाफ़े में पत्र लिखकर भेजा जा सकता है। पत्र की रसीद प्राप्त करने के लिए पत्र पंजीकृत डाक से तथा तुरंत वितरण के लिए पत्र ‘स्पीड-पोस्ट’ द्वारा भेज़ा जाता है। इन दिनों ‘कोरियर सर्विस’ से भी पत्र भेजे जाते हैं। कोरियर सेवा में प्रेषित सामग्री के लिए समुचित राशि प्राप्त कर रसीद दी जाती है। यह सेवा निजी क्षेत्र में चल रही है।

आज के वैज्ञानिक युग में चाहे दूरभाष, वायरलेस, इंटरनेट, फैक्स, एस०एम०एस०, एम०एम०एस०, ई-मेल आदि के प्रयोग से दूर स्थित सगे-संबंधियों, सरकारी, गैर-सरकारी संस्थानों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों से पल-भर में बात की जा सकती है पर पत्र-लेखन का अभी भी हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पत्र-लेखन विचारों के आपसी आदान-प्रदान का सशक्त, सुगम और सस्ता साधन है। पत्र-लेखन केवल विचारों का आदान-प्रदान ही नहीं है, बल्कि इससे पत्र-लेखक के व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, चरित्र, संस्कार, मानसिक स्थिति आदि का ज्ञान हो जाता है। पत्र लिखते समय अनेक सावधानियाँ अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं-

  1. सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग।
  2. स्नेह, शिष्टता और भद्रता का निर्वाह।
  3. पत्र प्राप्त करने वाले का पद, योग्यता, संबंध, सामर्थ्य, स्तर, आयु आदि।
  4. अनावश्यक विस्तार से बचाव।
  5. विषय-वस्तु की पूर्णता।
  6. कठोर, कड़वे, अशिष्ट और अनर्गल भावों और शब्दों का निषेध।

पत्रों के भेद

प्रमुख रूप से पत्रों को दो प्रकार का माना जाता है। ये हैं-
(क) अनौपचारिक-पत्र
जिन लोगों के आपसी संबंध आत्मीय होते हैं उनके द्वारा एक-दूसरे को लिखे जाने वाले पत्र अनौपचारिकपत्र कहलाते हैं। ऐसे पत्र प्रायः रिश्तेदारों, मित्रों, स्नेही-संबंधियों आदि के द्वारा लिखे जाते हैं। इन पत्रों में एकदूसरे के प्रति प्रेम, लगाव, गुस्से, उलाहने, आदर आदि के भाव अपनत्व के आधार पर स्पष्ट दिखाई देते हैं। इन पत्रों में बनावटीपन की मात्रा कम होती है। वाक्य-संरचना बातचीत के स्तर पर आ जाती है। मन के भाव और विचार बिना किसी संकोच के प्रकट किए जा सकते हैं। इनमें औपचारिकता का समावेश नहीं किया जाता। प्रायः सभी प्रकार के सामाजिक पत्रों को इसी श्रेणी में सम्मिलित कर लिया जाता है। विवाह, जन्मदिन, गृहप्रवेश, मुंडन संस्कार, शोक सूचनाओं आदि को इन्हीं के अंतर्गत ग्रहण किया जाता है। अनौपचारिक-पत्रों की रूपरेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है-

  1. पत्र के दाईं ओर भेजने वाले का पता।
  2. दिनांक।
  3. पत्र प्राप्त करने वाले के प्रति संबोधन।
  4. पत्र प्राप्त करने वाले से संबंधानुसार अभिवादन।
  5. पत्र लिखने का कारण, विषय का विस्तार तथा परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति अभिवादन।
  6. समापन।
  7. बाईं ओर पत्र-लेखक का पत्र प्राप्त करने वाले से संबंध।
  8. पत्र लिखने वाले का नाम।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन 1

उदाहरण-
अपने मित्र को अपने विद्यालय में हुए वार्षिकोत्सव के विषय में पत्र लिखिए।
पत्र-भेजने वाले का पता – 437-राजेंद्र नगर लुधियाना
दिनांक – 18 मई, 20…
संबोधन – प्रिय मित्र राघव,
अभिवादन – स्नेह।

पत्र-लिखने का कारण आशा है तुम स्वस्थ एवं सानंद होंगे। तुम्हारा पत्र मुझे समय पर मिल गया था,
विषय का विस्तार – किंतु इन दिनों हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव हो रहा था जिस कारण इस
कार्यक्रम में व्यस्त रहने के कारण तुम्हें पत्र न लिख सका। मुझे इस अवसर पर वर्ष का ‘सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी’ पुरस्कार प्राप्त हुआ है। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ० राधाकृष्ण ने की थी। नृत्य, संगीत आदि के कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए गए थे। तुम होते तो तुम्हें यह आयोजन बहुत आकर्षक लगता। हमारे विद्यालय का प्रांगण दुल्हन के घर के समान सजा हुआ था तथा हम सभी विद्यार्थी उल्लास और उमंग से भरे हुए थे। सर्वत्र प्रसन्नता का वातावरण ही था। अध्यक्ष महोदय ने अपने भाषण में जीवन में संघर्षों का सामना करते हुए निरंतर उन्नति करने की बात कही जो सबको बहुत पसंद आई। अपने विद्यालय के बारे में लिखना।

समापन – शुभकामनाओं सहित,
पत्र प्राप्त करने वाले से संबंध – तुम्हारा अभिन्न मित्र,
पत्र लिखने वाले का नाम – मनमोहन सिंह।
(नौवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में केवल अनौपचारिक पत्र हैं)

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

औपचारिक-पत्र

जिन लोगों के साथ औपचारिक संबंध होते हैं उन्हें औपचारिक-पत्र लिखे जाते हैं। इन पत्रों में व्यक्तिगत और . आत्मीय विचार नहीं प्रकट किए जाते। इनमें अपनेपन का भाव नहीं रहता है। इनमें अपने विचारों को भली-भाँति सोच-विचार कर प्रकट किया जाता है। प्रायः औपचारिक-पत्र सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों के अधिकारियों, निजी संस्थानों, पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों, अध्यापकों, प्रधानाचार्यों, व्यापारियों आदि को लिखे जाते हैं। औपचारिक-पत्रों की रूप-रेखा प्रायः निम्नलिखित आधारों पर निर्धारित की जाती है-

  1. पत्र का क्रमांक
  2. विभाग/कार्यालय/मंत्रालय का नाम
  3. दिनांक
  4. प्रेषक का नाम तथा पद
  5. प्राप्तकर्ता का नाम तथा पद
  6. विषय का संक्षिप्त उल्लेख
  7. संबोधन
  8. विषय-वस्तु
  9. समापन शिष्टता
  10. प्रेषक के हस्ताक्षर
  11. प्रेषित का पद/नाम/पता।

औपचारिक पत्र के आरंभ और समापन की विधि

पद/नाम/संबंध संबोधन पत्र के अंत में लिखा जाने वाला शब्द/वाक्यांश
कार्यालयी-पत्र
किसी सरकारी/गैर-सरकारी कार्यालय/ संस्थान/प्रतिष्ठान के अध्यक्ष/सचिव/ निर्देशक को
ऊपर कार्यालय/विभाग/मंत्रालय/पद सहित पूरा पता, नीचे मान्यवर। महोदय/आदरणीय/माननीय भवदीय/प्रार्थी/निवेदक/विनीत नीचे नाम तथा पूरा पता
व्यावसायिक-पत्र
किसी कंपनी/फ़र्म/दुकान के प्रबंधक व्यवस्थापक को
व्यक्ति का पद एवं कंपनी/फ़र्म/दुकान का पूरा नाम तथा पता (नीचे) प्रिय, महोदय, मान्यवर भवदीय/प्रार्थी/निवेदक/विनीत (नीचे) नाम तथा पूरा पता

उदाहरण-
भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सचिव की ओर से मुख्य सचिव, पंजाब प्रदेश को एक सरकारी-पत्र लिखें जिसमें राज्य में कानून और व्यवस्था की बिगड़ती हुई स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई हो।
उत्तर:
क्रमांक – संख्या 48 (गृ०)/12.8.50/2011-12/50195
प्रेषक कार्यालय – भारत सरकार गृह मंत्रालय, नई दिल्ली।
दिनांक – 11 जुलाई, 20…
प्रेषक – प्रेषक आर० के० मेनन सचिव, भारत सरकार गृह मंत्रालय नई दिल्ली।
प्राप्तकर्ता – मुख्य सचिव पंजाब प्रदेश चण्डीगढ़।

विषय-राज्य में कानून तथा व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति।
संबोधन महोदय,
विषय-वस्तु मुझे यह सूचना देने का निर्देश हुआ है कि आपके राज्य में कानून और व्यवस्था की दिनों-दिन बिगड़ती स्थिति से केंद्र सरकार बहुत चिंतित है। सरकार ने आपका ध्यान इस गंभीर समस्या की ओर आकृष्ट किया है और इस स्थिति से दृढ़ता से निपटने का निश्चय किया है। राज्य सरकार को भी इस दिशा में कड़े कदम उठाने चाहिए। इस संदर्भ में आपको सूचित किया जाता है कि राज्य में कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक कार्यवाही की जाए तथा केंद्र सरकार को भी प्रगति से अवगत कराया जाए। इस संबंध में केंद्र सरकार राज्य सरकार को सब प्रकार की सहायता देने के लिए तैयार है।

समापन शिष्टता भवदीय,
प्रेषक के हस्ताक्षर आर० के० मेनन
प्रेषक का पद सचिव, गृह मंत्रालय।

आवेदन-पत्र

आवेदन-पत्र नौकरी प्राप्त करने के लिए तथा अन्य कार्यों के लिए लिखे जाते हैं। इनकी भाषा भी सहज तथा आवेदक की योग्यताओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने वाली होनी चाहिए। आवेदन-पत्र पत्रात्मक शैली तथा प्रपत्रात्मक शैली में लिखे जाते हैं। स्कूल तथा संस्थाओं के प्रमुखों को लिखे जाने वाले प्रार्थना-पत्र भी आवेदन-पत्र कहलाते हैं।
उदाहरण-
‘डाटा एंट्री ऑपरेटर’ पद पर नियुक्ति हेतु आवदेन-पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में प्रधानाचार्य दयानंद हाई स्कूल होशियारपुर।
विषय-‘डाटा एंट्री ऑपरेटर’ पद के लिए आवेदन-पत्र।
महोदय

दैनिक ट्रिब्यून दिनांक 15 जून, 20… में प्रकाशित आप के स्कूल के विज्ञापन से ज्ञात हुआ कि आप के स्कूल में डाटा एंट्री ऑपरेटर के पाँच पद रिक्त हैं। मैं इनमें से एक पद के लिए अपनी सेवाएँ निम्नलिखित योग्यताओं के आधार पर प्रस्तुत करता हूँ-
(क) सामान्य परिचय
PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन 2

(ग) अनुभव
विगत एक वर्ष से गुरु नानक देव कम्प्यूटर सैंटर, फिरोजपुर में डाटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में कार्य कर रहा हूँ।
भवदीय
हरनाम सिंह
दिनांक 20 जून, 20…
उदाहरण-
अपनी किसी गलती के लिए क्षमा याचना करते हुए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थनापत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में
प्रधानाचार्य
टैगोर पब्लिक स्कूल
जालंधर।
दिनांक 25-10-20….
विषय-क्षमा याचना के लिए प्रार्थना-पत्र।
महोदय,

सविनय निवेदन यह है कि आज सुबह जब मैं स्कूल आया तो मेरे पैर की ठोकर से कक्षा के बाहर रखा गमला टूट गया। मैं उसे वैसा ही टूटा तथा उसकी मिट्टी और पौधे को बिखरा छोड़कर कक्षा में चला गया। पीछे से आ रहे एक छात्र ने मेरी यह लापरवाही देखकर अध्यापक जी से मेरी शिकायत कर दी और उन्होंने मुझे आर्थिक दंड दिया है।
आप से प्रार्थना है कि मेरी इस गलती को क्षमा करें क्योंकि मैं अपनी इस लापरवाही पर बहुत शर्मिंदा हूँ। भविष्य में मैं ऐसी कोई भी हरकत नहीं करूँगा।

मैं आपका अत्यंत आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
खुशवन्त सिंह
कक्षा-दसवीं, अनुक्रमांक 912

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

उदाहरण-
विषय बदलने के लिए विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में
प्रधानाचार्य
सरकारी हाई स्कूल
अबोहर।
दिनांक 25-04-20….
विषय-विषय परिवर्तनार्थ प्रार्थना-पत्र।
महोदय,

सविनय निवेदन यह है कि मैं कक्षा दसवीं ‘ए’ का विद्यार्थी हूँ। मैंने प्रवेश के समय अतिरिक्त विषय ‘शारीरिक शिक्षा’ प्रवेश-प्रपत्र में भर दिया था, जिसे पढ़ते हुए मुझे कठिनाई हो रही है।
अतः आप से प्रार्थना है कि मुझे इस विषय के स्थान पर ‘संस्कृत’ विषय पढ़ने की आज्ञा प्रदान करने की कृपा कीजिए। मैं आप का अत्यंत आभारी रहूंगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य
अनुराग शर्मा
कक्षा दसवीं ए, अनुक्रमांक 321

उदाहरण-
अपनी कक्षा की समस्याओं के समाधान के लिए विद्यालय के प्रधानाचार्य को प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में
प्रधानाचार्य
खालसा हाई स्कूल
फगवाड़ा।
दिनांक 26-04-20….
विषय-कक्षा की समस्याओं के समाधानार्थ प्रार्थना-पत्र।
महोदय,

निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय का दसवीं कक्षा ‘ए’ का विद्यार्थी हूँ। इस समय मैं अपनी कक्षा का मॉनीटर हूँ। मैं आपका ध्यान एक अतीव महत्त्वपूर्ण विषय की ओर दिलाना चाहता हूँ। मैं विगत तीन मास से देख रहा हूँ कि हमारी कक्षा के कमरे की हालत बहुत ही खस्ता है। विशेषकर इसके दरवाजे और खिड़कियां टूटी हुई हैं। कुछ दिनों बाद अंधड़ का मौसम आने वाला है। तेज़ आँधियों में कमरे में पढ़ाई होना बहुत कठिन बात होगी। बरसात और सर्दी के मौसम में भी यह कमरा विद्यार्थियों के लिए पढ़ाई के योग्य नहीं कहा जा सकता। इसके साथ ही स्थान-स्थान से प्लस्तर उखड़ा हुआ है।

मेरी अपनी और अपनी कक्षा के सभी छात्रों की ओर से करबद्ध प्रार्थना है कि शीघ्रातिशीघ्र कमरे के दरवाज़े और खिड़कियां ठीक करवाई जाएं। यदि मुरम्मत होकर काम चल सके तो ठीक है, नहीं तो नये दरवाजे और खिड़कियां लगवाई जाएं। प्लस्तर उखड़ा होने से सभी छात्रों को असुविधा होती है। इसे भी ठीक करवाया जाए। धृष्टता के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

आपका विनीत शिष्य
लखविंदर सिंह
कक्षा दसवीं, अनुक्रमांक 916

उदाहरण-
नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी को पत्र लिखकर अपने क्षेत्र/मुहल्ले की सफाई कराने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर:
507-बड़ा बाज़ार
अमृतसर।
दिनांक 14 अगस्त, 20…
सेवा में
स्वास्थ्य अधिकारी
नगर निगम
अमृतसर।
विषय-क्षेत्र की सफाई कराने हेतु प्रार्थना-पत्र।
महोदय,

निवेदन यह है कि मैं बड़ा बाज़ार का एक निवासी हूँ। यह नगर सफ़ाई की दृष्टि से पूरी तरह उपेक्षित है। इसे देखकर कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे यह नगर-निगम के क्षेत्र के बाहर है। गाँव की गंदगी के विषय में तो केवल सुना था लेकिन यहाँ की गंदगी को प्रतिदिन आँखों से देखता हूँ। सफ़ाई कर्मचारी की नियुक्ति तो अवश्य हुई है लेकिन वह कभी-कभी ही दिखाई देता है। उसके व्यवहार में अशिष्टता भी है। इधर-उधर गंदगी के ढेर लगाकर चला जाता है। नालियों का भी ठीक प्रबंध नहीं है। पानी निचले स्थान पर आकर रुक जाता है। मच्छरों के जमघट ने नाक में दम कर रखा है। अनेक प्रकार की बीमारियों के फैलने का भय बना रहता है।

आपसे नम्र निवेदन है कि आप एक बार स्वयं इस नरक को आकर देख जाएं। तभी आप हमारी कठिनाई का अनुभव करेंगे। एक बार पहले भी आपकी सेवा में प्रार्थना कर चुके हैं। लगता है हमारी बात आप तक पहुंची नहीं अन्यथा इस नगर की दशा ऐसी न होती। कृपया सफ़ाई सेवक को चेतावनी दें ताकि वह अपने काम को ईमानदारी से करें।

आशा है कि आप मेरी प्रार्थना पर ध्यान देंगे और शिवाजी नगर की सफ़ाई कर उचित प्रबंध करेंगे।

भवदीय
सुरेंद्र कुमार

उदाहरण-
पंजाब रोडवेज़ के महाप्रबंधक को बस में छूट गए सामान के बारे में बताते हुए उस के मिलने पर सूचित करने अथवा लौटाने के लिए पत्र लिखिए।
उत्तर:
9/25-सैक्टर 28
मोहाली।
दिनांक 19 सितंबर, 20…
सेवा में
महाप्रबंधक
पंजाब रोडवेज़
मोहाली।
विषय-बस में छूटे सामान को खोजने के लिए।
महोदय,

निवेदन यह है कि मैं आज प्रातः 7 बजे दिल्ली से मोहाली आने वाली वाल्वो बस संख्या पी०बी० 10 ए 9406 से मोहाली के सैक्टर 28 के बस शैल्टर पर उतरा था। उतरते समय मेरा ब्रीफ केस जिसका रंग नीला तथा एस०के० का लेबल लगा हुआ था। बस में ही रह गया था। जब मुझे याद आया तो बस जा चुकी थी। बस स्टैंड जा कर पता किया तो बस सवारियाँ लेकर दिल्ली जा चुकी थी। वहाँ पूछताछ करने पर कुछ भी पता नहीं चला।

आप से प्रार्थना है कि बस के परिचालक से पता करके मेरे ब्रीफ केस के संबंध में ज्ञात कीजिए क्योंकि उसमें मेरे अनेक प्रमाण-पत्र तथा मेरा पहचान पत्र भी है। आशा है शीघ्र ही इस विषय में प्राप्त जानकारी से मुझे सूचित करेंगे, जिससे मैं अपना ब्रीफ केस प्राप्त कर सकूँ।

धन्यवाद।
भवदीय
कँवरपाल सिंह

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

उदाहरण-
बिजली की सप्लाई के संबंध में विद्यत् बोर्ड को शिकायत पत्र लिखिए।
उत्तर:
प्रेमपाल संधु
19-प्रेम नगर
दोराहा।
दिनांक 12 मार्च, 20…
सेवा में
कार्यकारी अधिकारी
पंजाब विद्युत् बोर्ड
दोराहा।
विषय-बिजली की अनियमित पूर्ति के समाधान के लिए।
महोदय,

निवेदन यह है कि हमारे मोहल्ले प्रेम नगर में विगत कई दिनों से दिन और रात में कई-कई घंटों तक बिजली चली जाती है। दिन तो किसी प्रकार से निकल जाता है परंतु रात को जब घंटों बिजली गायब रहती है तो बहुत कठिनाई होती है। परीक्षाओं के दिन होने के कारण विद्यार्थी पढ़ नहीं पाते। रातें अंधेरी होने से सड़क पर चलने वाले दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं तथा चोर-लुटेरों की बन आती है। इस क्षेत्र के विद्युत् विभाग के कर्मचारियों, सहायक अभियंता आदि को भी शिकायत की थी परंतु कोई सुनवाई नहीं हुई।
आशा है आप बिजली सप्लाई की समुचित आपूर्ति की शीघ्र ही व्यवस्था करेंगे।

धन्यवाद,
भवदीय
प्रेमपाल

उदाहरण-
अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को विद्यालय-त्याग का प्रमाण-पत्र प्रदान करने के लिए प्रार्थनापत्र लिखो।
उत्तर:
सेवा में
प्रधानाचार्य
सरकारी उच्च विद्यालय
पठानकोट।
विषय-विद्यालय त्याग-प्रमाण-पत्र हेतु प्रार्थना-पत्र।
महोदय,

सविनय निवेदन है कि मेरे पिता जी का स्थानांतरण शिमला हो गया है। वे कल यहाँ से जा रहे हैं और साथ में परिवार भी जा रहा है। इस अवस्था में मेरा यहाँ अकेला रहना कठिन है। कृपा करके मुझे स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र दीजिए ताकि मैं वहाँ जाकर स्कूल में प्रविष्ट हो सकूँ।

धन्यवाद।
आपका विनीत शिष्य
सुनील कुमार
दसवीं ‘बी’
दिनांक 11 फरवरी, 20…

उदाहरण-
अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को शिक्षा-शुल्क क्षमा करवाने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर:
सेवा में
प्रधानाचार्य
डी०ए०वी० उच्च विद्यालय
फ़ाज़िल्का।
विषय-शिक्षा-शुल्क माफी के लिए प्रार्थना-पत्र।
मान्यवर,

सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा दसवीं ‘ए’ में पढ़ता हूँ। मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखता हूँ। मेरे पिता जी एक स्थानीय कार्यालय में केवल दो हज़ार रुपये मासिक पर कार्य करते हैं। हम परिवार में छः सदस्य हैं। इस महँगाई के समय में इतने कम वेतन में निर्वाह होना अति कठिन है। ऐसी स्थिति में मेरे पिता जी मेरा शुल्क अदा करने में असमर्थ हैं।

मेरी पढाई में विशेष रुचि है। मैं सदा अपनी कक्षा में प्रथम रहता आया हूँ। मैं स्कूल की हॉकी टीम का कप्तान भी हूँ। मेरे सभी अध्यापक मुझ से सर्वथा संतुष्ट हैं। अतः आपसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप मेरा शिक्षा-शुल्क माफ कर मुझे आगे पढ़ने का सुअवसर प्रदान करने की कृपा करें।
मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य
सुखदेव सिंह
कक्षा दसवीं ‘ए’
दिनांक 15 मई, 20…

उदाहरण-
अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को चरित्र प्रमाण-पत्र प्रदान करने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर:
सेवा में
प्रधानाचार्य
विवेकानंद उच्च विद्यालय
मलेरकोटला।
विषय-चरित्र प्रमाण-पत्र के लिए प्रार्थना-पत्र।
महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैं विगत सत्र में आपके विद्यालय में कक्षा दसवीं ‘ए’ का छात्र था। मैंने पंजाब विद्यालय शिक्षा बोर्ड की दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। कक्षा रजिस्टर में मेरा अनुक्रमांक 27 तथा बोर्ड का नामांक 11670 था।

मैं विद्यालय की छात्र परिषद् का सक्रिय सदस्य था। मैंने जिला स्तर की भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। विद्यालय पत्रिका का सहसंपादक होने के साथ-साथ मैंने विद्यालय की प्रत्येक गतिविधि में सदैव बढ़-चढ़कर भाग लिया है।
आपसे मेरा अनुरोध है कि मुझे एक चरित्र प्रमाण-पत्र दिया जाए जिसमें मेरी रुचियों का भी उल्लेख हो। आशा है कि मुझे वांछित प्रमाण-पत्र यथाशीघ्र नीचे लिखे पते पर भिजवाने की कृपा करेंगे।

‘धन्यवाद सहित।
आपका आज्ञाकारी
प्रमोद तिवारी
16-शक्ति नगर
अजमेर।
दिनांक 10 मई, 20…

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

उदाहरण-
अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को छात्रवृत्ति के लिए आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर:
सेवा में
प्रधानाचार्य
राजकीय उच्च विद्यालय
दसुआ।
विषय-छात्रवृत्ति प्रदान करने हेतु प्रार्थना-पत्र।
महोदय

सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की दसवीं कक्षा का एक छात्र हूँ। मैं प्रथम श्रेणी से आपके विद्यालय में पढ़ रहा हूँ। मैंने परीक्षा में सदैव अच्छे अंक प्राप्त किए हैं। खेलकूद तथा विद्यालय के अन्य कार्यक्रमों में भी मेरी रुचि है। मुझे पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। अपने सहपाठियों के प्रति मेरा व्यवहार हमेशा शिष्टतापूर्ण रहा है। अध्यापक वर्ग भी मेरे आचार-व्यवहार से संतुष्ट हैं।

हमारे घर की आर्थिक स्थिति अचानक खराब हो गई है। मेरी पढ़ाई में बाधा उपस्थित हो गई है। मेरे पिता जी मेरी पढ़ाई का व्यय भार संभालने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं। अतः आप से मेरी विनम्र प्रार्थना है कि मुझे छात्रवृत्ति प्रदान करने की कृपा करें। मैं जीवन भर आपका आभारी रहूंगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि कठोर परिश्रम द्वारा मैं बोर्ड की परीक्षा में विशेष योग्यता प्राप्त करने वाले छात्राओं की सूची से उच्च स्थान प्राप्त कर विद्यालय की शोभा बढ़ाऊंगा।

धन्यवाद सहित,
आपका आज्ञाकारी शिष्य
हरदेव सिंह कक्षा
दसवीं ‘ग’
दिनांक : 7 नवंबर, 20…

संपादकीय-पत्र

देश/नगर/प्रदेश/मुहल्ले की किसी समस्या की ओर उच्च अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए किसी समाचारपत्र के संपादक को लिखे गए पत्र संपादकीय-पत्र कहलाते हैं। इन पत्रों में विषय से संबंधित तथ्य संक्षेप में तथा स्पष्ट रूप से लिखे जाते हैं। अनावश्यक विस्तार नहीं किया जाता तथा सहज, सरल, मर्यादित भाषा का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण 1.
संपादक, दैनिक ट्रिब्यून, चंडीगढ़ को ‘बाल मजदूरी’ पर चिंता व्यक्त करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर:
103, संत नगर,
चंडीगढ़।
5 जून, 20…
सेवा में
संपादक
दैनिक ट्रिब्यून
चंडीगढ़।
विषय-बाल मजदूरी समस्या-समाधान।
मान्यवर,

आपके समाचार-पत्र में यह पढ़कर कि ‘हैदराबाद से दो सौ बाल मजदूरों को मुक्त कराया गया’ मैं अधिकारियों तथा जनता का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहती हूँ कि सरकारी कानून होते हुए भी बाल मजदूरों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। चाय की दुकान, ढाबों, अन्य अनेक दुकानों तथा ठेलों पर छोटे-छोटे बच्चे काम करते दिखाई देते हैं। जिन बच्चों को बस्ता लेकर स्कूल जाना चाहिए था, वे आजीविका कमाने का बोझ ढो रहे हैं। घरेलू नौकरों के रूप में भी बाल-मजदूरों का शोषण हो रहा है। बाल-श्रम सरकारी कागजों में घोषित अपराध है फिर भी इसमें वृद्धि चिंताजनक है।

विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, पत्रकारों, जागरूक नागरिकों तथा सरकारी संस्थानों को इन बाल श्रमिकों के शोषण के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करनी चाहिए तथा मज़दूरी में लगे बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार दिलाना चाहिए। ऐसे बच्चों के खान-पान, रहन-सहन आदि की भी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

आशा है कि संबंधित अधिकारी बाल-मज़दूरी को रोकने के लिए उचित कदम उठाएंगे तथा जनता बच्चों को मज़दूरी करने के लिए विवश नहीं करेगी।

सधन्यवाद
भवदीया,
जसुलोक कौर

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

उदाहरण 2.
दैनिक जागरण जालंधर के संपादक को अपने क्षेत्र में चल रहे शराब, जुआ आदि के अड्डों की जानकारी देते हुए इन पर रोक लगाने का अनुरोध कीजिए।
उत्तर:
13, शांति निकेतन,
फरीदकोट।
2 मार्च, 20…
सेवा में
संपादक
दैनिक जागरण
जालंधर।
विषय-नशाखोरी, जोआखोरी की रोकथाम के लिए निवेदन।
महोदय,

आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं संबंधित अधिकारियों का ध्यान नई बस्ती में चल रहे शराब तथा जुआखोरी के अड्डों की ओर दिलाना चाहता हूँ। इन में दिनभर नशेड़ियों तथा जुआरियों के अड्डे जमे रहते हैं। शाम ढलते ही इनमें बहुत भीड़ हो जाती है, जिससे राह चलना भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि कई शराबी तथा जुआरी तो फुटपाथ पर ही जम जाते हैं। जब उन्हें वहाँ से हटाने की कोशिश की जाती है तो मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। स्थानीय पुलिस को बार-बार शिकायत करने पर भी कोई लाभ नहीं हुआ है। इससे क्षेत्र के निवासियों में निरंतर आक्रोश बढ़ रहा है। संबंधित अधिकारी इस घटना चक्र का संज्ञान लेकर इन अड्डों को बंद कराएं तथा इनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही करें अन्यथा क्षेत्र के निवासी आंदोलन करने पर विवश हो जाएंगे।

धन्यवाद,
भवदीय
बलकार सिंह

उदाहरण 3.
सार्वजनिक स्थानों पर पोस्टर लगाने से होने वाली असुविधा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए संपादक, दैनिक लोकमत, बठिंडा को पत्र लिखिए।
उत्तर:
313, नंद नगर,
बठिंडा।
1 मई, 20…
सेवा में
संपादक
दैनिक लोकमत
बठिंडा।
विषय-पोस्टरों से असुविधा।
महोदय,

आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं प्रशासन तथा संबंधित अधिकारियों का ध्यान उन संस्थाओं/संस्थानों की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ जो घरों, सार्वजनिक स्थलों, स्कूलों, मार्गदर्शक पटों आदि पर अपने पोस्टर चिपका अथवा लगा देते हैं। इससे जहाँ नगर की सुंदरता बिगड़ती है, वहीं मार्गदर्शक पटों पर लगे पोस्टरों के कारण किसी मार्ग की तलाश करने वाले को मार्ग ही नहीं दिखाई देता। नगर के चौराहों पर लगे बड़े-बड़े पोस्टरों से तो आने-जाने वाले दुर्घटनाग्रस्त भी हो जाते हैं क्योंकि ड्राइव करते समय या पैदल चलते हुए जैसे ही वे पोस्टर देखने लगते हैं कि अन्य वाहन की टक्कर से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। इसीलिए इन पोस्टर लगाने वालों के लिए पोस्टर लगाने के लिए कोई निर्धारित स्थान निश्चित होना चाहिए तथा ऐसा न करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही होनी चाहिए जिससे नगर स्वच्छ रह सके।

धन्यवाद,
भवदीय
नफे सिंह बराड़

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran पत्र-लेखन

उदाहरण 4.
सड़क दुर्घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए संपादक, जनवाणी, होशियारपुर को पत्र लिखिए।
उत्तर:
नेहा ठकुराल
912/14-महाजन लेन
संगरूर।
दिनांक 22 अगस्त, 20…
सेवा में
संपादक,
जनवाणी
होशियारपुर।
विषय-सड़क दुर्घटनाएँ-समस्या और सुझाव।
महोदय,

आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं दिन प्रतिदिन बढ़ती हुई सड़क दुर्घटनाओं की ओर दिलाना चाहती हूँ तथा इन्हें रोकने के लिए अपनी ओर से कुछ सुझाव भी दे रही हूँ।

आजकल निरंतर बढ़ती हुई सड़क दुर्घटनाओं का मुख्य कारण बिना वाहन चलाने के वैध लाइसेंस के गाड़ी चलाना, नशे में गाड़ी चलाना, तेजगति से गाड़ी चलाना, ट्रेफिक नियमों की अनदेखी करते हुए वाहन चलाना, ट्रकों आदि में निर्धारित सीमा से अधिक माल भरना, वाहनों की समय-समय पर समुचित सर्विस न कराना आदि हैं। नाबालिग लड़के/लड़कियाँ बिना लाइसेंस के तीन-तीन सवारियों को बैठाकर बाइक/स्कूटी आदि चलाते हैं, इन से भी दुर्घटना घट जाती है।

इन सब समस्याओं से निपटने के लिए परिवहन तथा पुलिस विभाग को मिल-जुलकर काम करना चाहिए। वाहन चालक को लाइसेंस उसके ट्रैफिक नियमों से परिचित तथा वाहन चलाने की परीक्षा लेने के बाद ही दिया जाए। ट्रैफिक नियमों को तोड़ने वालों को कठोर दंड दिया जाए। समय-समय पर स्कूल-कॉलेजों-संस्थानों में ट्रैफिक नियमों की जानकारी देने संबंधी कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। आशा है प्रशासन मेरे इन सुझावों की ओर ध्यान देकर सड़क दुर्घटनाओं को रोकने की पहल करेगा।

धन्यवाद,
भवदीया
नेहा ठकुराल

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Picture/Poster Based

Punjab State Board PSEB 10th Class English Book Solutions English Reading Comprehension Picture/Poster Based Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Picture/Poster Based

1. Look at this poster and answer the questions given below :
PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture Poster Based 1

Choose the correct option to answer each question :

Question 1.
This poster is designed about
(a) the need for daily walk
(b) the need for regular exercise
(c) the need for heathy diet
(d) the need for pure environment.
Answer:
(b) the need for regular exercise

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

Question 2.
How can we keep the doctor away ?
(a) By having medicine without fail.
(b) By taking rich diet.
(c) By doing exercise every day.
(d) By getting up early in the morning.
Answer:
(c) By doing exercise every day.

Question 3.
If we exercise regularly, we will become
(a) healthy
(b) wealthy
(c) wise
(d) all of these three.
Answer:
(d) all of these three.

Question 4.
What do we gain from regular exercise ?
(a) A sound body
(b) A sound mind.
(c) Both (a) and (b)
(d) Neither (a) nor (b).
Answer:
(c) Both (a) and (b)

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

Question 5.
Which word is the antonym of ‘healthy’ ?
(a) fit
(b) unfit
(c) misfit
(d) none of these three.
Answer:
(b) unfit

2. Look at this poster and answer the questions given below :
PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture Poster Based 2
Choose the correct option to answer each question :

Question 1.
This poster highlights the need for
(a) blood donation
(b) eye donation
(c) kidney donation
(d) all of these three.
Answer:
(b) eye donation

Question 2.
We can help the blind by donating them our eyes.
(a) live the life
(b) see the world
(c) earn their living
(d) any of these three.
Answer:
(b) see the world

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

Question 3.
How can our eyes see even after we have left the world ?
(a) By giving our eyes to a blind person.
(b) By taking care of our eyes.
(c) Both (a) and (b).
(d) Neither (a) nor (b).
Answer:
(a) By giving our eyes to a blind person.

Question 4.
How can we gain more information about eye donation ?
(a) By contacting eye bank.
(b) By contacting blood bank.
(c) By contacting organ bank.
(d) None of these three.
Answer:
(a) By contacting eye bank.

Question 5.
Which word is the antonym of ‘more’ ?
(a) much
(b) less
(c) most
(d) least.
Answer:
(b) less

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

3. Look at this poster and answer the questions given below
PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture Poster Based 3
Choose the correct option to answer each question :

Question 1.
This poster is drafted to
(a) create awareness among people
(b) indicate the need to maintain neat environment
(c) indicate the need to keep the surroundings dry and hygiene
(d) all of these three.
Answer:
(d) all of these three.

Question 2.
What is ‘Chikungunya’ ?
(a) A deadly virus
(b) A deadly disease.
(c) A deadly weapon.
(d) Any of these three.
Answer:
(c) A deadly weapon.

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

Question 3.
‘Chikungunya’ is caused by
(a) flies
(b) germs
(c) mosquitoes
(d) bats.
Answer:
(c) mosquitoes

Question 4.
What is always better than cure ?
(a) Precaution.
(b) Prevention.
(c) Proclamation.
(d) Promotion.
Answer:
(b) Prevention.

Question 5.
This message is issued by
(a) World Health Organisation
(b) Human Welfare Association
(c) Human Resources
(d) All of these three.
Answer:
(b) Human Welfare Association

4. Look at these pictures and answer the questions given below :
PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture Poster Based 4
Choose the correct option to answer each question :

Question 1.
What was Amit very fond of ?
(a) He was very fond of flying kites.
(b) He was very fond of playing cricket.
(c) He was very fond of playing marbles.
(d) He was very fond of reading books
Answer:
(a) He was very fond of flying kites.

Question 2.
Where was he standing one day when he was flying kites ?
(a) On the walls of his neighbour’s house.
(b) On the walls of his house.
(c) On the roof of his house.
(d) On the roof of his neighbour’s house.
Answer:
(b) On the walls of his house.

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

Question 3.
What happened when he saw his kite going very high in the sky ?
(a) He became very happy and excited.
(b) He forgot that he was standing on a wall.
(c) He lost his balance and fell down.
(d) All of these three.
Answer:
(d) All of these three.

Question 4.
Thank God he did not fall to the side of the
(a) roof
(b) street
(c) wall
(d) none of these three.
Answer:
(b) street

Question 5.
He broke both his
(a) left arm and left leg
(b) right arm and right leg
(c) left arm and right leg
(d) right arm and left leg.
Answer:
(b) right arm and right leg

5. Look at these pictures and answer the questions given below :
PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture Poster Based 5
Choose the correct option to answer each question :

Question 1.
Why did Ram’s mother send him to the post office one day?
(a) To post her letter
(b) To get some postage stamps.
(c) To get her parcel.
(d) To deposit his fees.
Answer:
(b) To get some postage stamps.

Question 2.
How did Ram go to the post office ?
(a) He went there on his foot.
(b) He went there on his bicycle.
(c) He went there on his motorcycle.
(d) He went there on a rickshaw.
Answer:
(b) He went there on his bicycle.

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

Question 3.
What did he see when he reached the post office ?
(a) He saw there a long queue of people.
(b) He saw the post office closed.
(c) He saw the postman absent.
(d) None of these three.
Answer:
(a) He saw there a long queue of people.

Question 4.
When Ram had bought the postage stamps,
(a) he came to the place where he had placed his cycle
(b) he found his cycle missing
(c) both (a) and (b)
(d) neither (a) nor (b).
Answer:
(c) both (a) and (b)

Question 5.
How did Mother react when she learnt about the loss of the cycle ?
(a) She reboked him for his carelessness.
(b) She praised him for his negligence.
(c) She asked him to be careful in future.
(d) All of these three.
Answer:
(a) She reboked him for his carelessness.

6. Look at this chart and answer the questions given below :
PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture Poster Based 6
Choose the correct option to answer each question :

Question 1.
In olden times who were fond of trees and gardens ?
(a) Potters.
(b) Musicians.
(c) Kings.
(d) Villagers.
Answer:
(c) Kings.

Question 2.
The Kings grew trees
(a) all along roads of their state
(b) around the buildings of their state
(c) in and around their palaces
(d) all of these three.
Answer:
(d) all of these three.

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

Question 3.
In modern times take care of roads and parks.
(a) state governments
(b) local governments
(c) common people
(d) rich people.
Answer:
(b) local governments

Question 4.
Since local governments pay no attenion to the growing of trees, there are very trees along the roads in the cities.
(a) few
(b) a few
(c) the few
(d) fewer.
Answer:
(a) few

Question 5.
What will happen in future if no attention is now paid to tree plantation ?
(a) No trees will be left.
(b) It will be all barren everywhere.
(c) Both (a) and (b).
(d) Neither (a) nor (b).
Answer:
(c) Both (a) and (b).

7. Look at this picture and answer the questions given below :

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture Poster Based 7

Choose the correct option to answer each question

Question 1.
The man in this picture is ………..
(a) Mahatma Gandhi
(b) Jawahar Lai Nehru
(c) Narendra Modi
(d) APJ Abdul Kalam.
Answer:
(d) APJ Abdul Kalam.

Question 2.
He was the ………. of India.
(a) former Health Minister
(b) former President
(c) former Prime Minister
(d) former Home Minister.
Answer:
(b) former President

Question 3.
This great scientist was known as the ………….
(a) Missile man of India
(b) Gun man of India
(c) Fire man of India
(d) Rifle man of India.
Answer:
(a) Missile man of India

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

Question 4.
He was the …… of several prestigious awards.
(a) receive
(b) received
(c) recipient
(d) receipt.
Answer:
(c) recipient

Question 5.
He was honoured with Bharat Ratna which is ………..
(a) Ireland’s highest civilian honour
(b) India’s highest civilian honour
(c) America’s highest civilian honour
(d) England’s highest civilian honour.
Answer:
(b) India’s highest civilian honour

8. Look at this picture and answer the questions given below :
PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture Poster Based 8

Choose the correct option to answer each question :

Question 1.
The two goat met in the middle of a ……
(a) bridge
(b) forest
(c) road
(d) market.
Answer:
(a) bridge

Question 2.
Why could the two goats not cross the bridge at the same time ?
(a) Because the bridge was broken.
(b) Because the bridge was narrow.
(c) Because the bridge was broad.
(d) Because the bridge was very old.
Answer:
(b) Because the bridge was narrow.

Question 3.
Why did the goats begin to fight ?
(a) Because they were not friendly.
(b) Because they were foolish.
(c) Because neither of them was ready to make way for the other.
(d) All of these three.
Answer:
(d) All of these three.

Question 4.
What happened to the goats ?
(a) They fell down into the river.
(b) Both of them drowned in the river.
(c) Both (a) and (b).
(d) Neither (a) nor (b).
Answer:
(c) Both (a) and (b).

PSEB 10th Class English Reading Comprehension Unseen Picture/Poster Based

Question 5.
The moral taught here is
(a) Might is right
(b) Unity is strength
(c) Don’t be foolish
(d) Greed is a curse.
Answer:
(c) Don’t be foolish

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar anuchchhed lekhan अनुच्छेद लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar अनुच्छेद लेखन

1. एक आदर्श विद्यार्थी के गुण
संकेत बिंदु : (i) प्रातः जल्दी उठना व नित्य व्यायाम करना (ii) समय पर स्कूल जाना (iii) मन लगाकर पढ़ना (iv) सहपाठियों से मधुर संबंध (v) अनुशासनप्रिय।

एक आदर्श विद्यार्थी के गुण
आदर्श विद्यार्थी अपने सम्मुख सदा एक लक्ष्य रखता है और अपना लक्ष्य स्थिर रखने वाले विद्यार्थी सदा उसके अनुसार अपने जीवन क्रम को दिशा देने का प्रयत्न करता है। निष्ठापूर्वक उस लक्ष्य के अनुसार कार्य करता है। आदर्श विद्यार्थी को समय और अवसर के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसे सुबह-सवेरे जल्दी उठकर सैर करनी चाहिए। उसे प्रतिदिन व्यायाम भी करना चाहिए। व्यायाम उसके शरीर को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ उसकी बुद्धि में चिंतन और मनन की क्षमता का विकास करता है। एक आदर्श विद्यार्थी के गुणों में उसका समय पर स्कूल जाना भी आता है। यह आदत उसे समय का महत्त्व समझाती है। समय पर अपने कार्य और जीवन को आगे बढ़ाने का काम करती है।

कक्षा में साथ में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के साथ मैत्रीपूर्ण एवं मधुर संबंध बनाए रखने वाला विद्यार्थी एक आदर्श विद्यार्थी कहलाता है। उसके विचार तथा व्यवहार दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने का काम करते हैं। एक आदर्श विद्यार्थी को कौवे के समान प्रयत्नशील, बगुले के समान ध्यानरत, कुत्ते के समान कम और सावधान निद्रा लेने वाला तथा विद्या की शरण लेने वाला होना चाहिए। उसे अपनी विद्या प्राप्ति के लिए खूब मन लगाकर पढ़ना चाहिए। विद्यार्थी जीवन को सुंदर बनाने के लिए अनुशासन का विशेष महत्त्व है। एक अच्छे और गुणी विद्यार्थी के लिए उसका शान्तिपूर्ण अनुशासित होना अति आवश्यक है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

2. जीवन में परिश्रम का महत्त्व
संकेत बिंदु : (i) सफलता का मूल मंत्र : परिश्रम (ii) आलस्य के कारण असफलता व निराशा (iii) परिश्रम से भाग्य का बदलना (iv) पुरुषार्थ से लक्ष्य प्राप्ति।

जीवन में परिश्रम का महत्त्व
जीवन नाम ही परिश्रम का है। इस संसार में जितने भी प्राणी हैं। उन सभी को अपना जीवनयापन करने के लिए परिश्रम करना ही पड़ता है। कर्म अथवा परिश्रम के बिना मानव जीवन की गाड़ी चल ही नहीं सकती है। सच है कि संसार में मनुष्य ने आज तक जितनी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। वह सब उनके परिश्रम का ही परिणाम है। परिश्रम का परम शत्रु है आलस्य। जिस व्यक्ति में आलस्य या सुस्ती की भावना घर कर जाती है, उसका विकास रुक जाता है। वह उन्नति के पथ पर पिछड़ जाता है। आलस्य के कारण उसे असफलता तथा निराशा का मुँह देखना पड़ता है।

परिश्रम ही छोटे से बड़े बनने का साधन है। परिश्रम करके व्यक्ति उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है। परिश्रम व्यक्ति जीवन और उसके भाग्य को बदलने का काम करता है। परिश्रमी व्यक्ति ही स्वावलम्बी, ईमानदार, सत्यवादी, चरित्रवान और सेवा-भाव से युक्त होता है। वह अपने पुरुषार्थ के बल पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। इसी कारण वह अपने परिवार और देश की उन्नति में सहयोग देता है। पुरुषार्थ का रहस्य ही है कि मिट्टी सोना उगलती है।

3. सब्जी मंडी में सब्जी खरीदने का मेरा पहला अनुभव
संकेत बिंदु : (i) घर के पास सब्जी मंडी का लगना (ii) सब्जी मंडी से सब्जी लेने जाना (iii) सब्जियाँ व फल खरीदना (iv) सब्जी मंडी का खट्टा-मीठा अनुभव।

सब्जी मंडी में सब्जी खरीदने का मेरा पहला अनुभव
जीवन में जितनी आवश्यकता काम की है। उससे कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण उस काम का अनुभव प्राप्त करना है। अनुभव कार्य में गति और प्रगति लाता है। अनुभव के आधार पर किया जाने वाला कार्य श्रेष्ठकर होता है। मेरा घर शहर के सैक्टर आठ क्षेत्र में है। हमारे घर के पास ही सब्जी मंडी लगती है। आस-पास के किसान सब्जी बेचने के लिए यहाँ आते हैं। बड़ी मंडी से भी कुछ छोटे दुकानदार सब्जी बेचने के लिए यहाँ आते हैं। सब्जी लेने और बेचने वालों का कोलाहल देखते ही बनता है। प्रायः वहाँ से सब्जी खरीदने के लिए मंडी मम्मी या बड़ी बहन ही जाते हैं लेकिन गत सप्ताह मैं सब्जी खरीदने वहाँ गया था। वह मेरे जीवन का अलग ही अनुभव था। सब्जी मंडी लोगों की भीड़ से भरी हुई थी।

रेहड़ियों की भीड़ के अतिरिक्त तरह-तरह की सब्जियां बेचने वाले ईंटों के बने फर्श पर बैठ कर अपना काम कर रहे थे। बड़े-बड़े टोकरों और धरती पर बिछाए हुए कपड़ों पर सब्जियों के ढेर लगे हुए थे। लोग दुकानदारों से सब्जियों के मोलभाव कर रहे थे। मैंने भी टमाटर, प्याज, आलू और मटर खरीदने के लिए मोलभाव किया। मैंने स्वयं सब्जियों को चुना और फिर उन्हें तुलवाया। मुझे केले और कीनू भी खरीदने थे। फल अधिकतर रेहड़ियों पर सजे हुए थे। मैंने चार-पाँच रेहड़ियों पर बिकने वाले फलों के दाम पूछे और फिर एक रेहड़ी से फल खरीदे। मुझे यह कार्य करके कुछ अलग प्रकार का संतोष अनुभव हुआ। सब्जियां और फल खरीद कर जब मैं घर पहुंचा तो मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैं कुछ अलग ही काम करके वापस लौटा हूँ।

4. जब मुझे स्कूल के खेल-मैदान से बटुआ मिला
संकेत बिंदु : (i) खेल के मैदान से बटुए का मिलना (ii) बटुए में रुपयों का होना (iii) बटुए को अध्यापक को सौंपना (iv) प्रात:कालीन सभा में ईमानदारी की शाबाशी मिलना (v) मन फूला न समाना।

जब मुझे स्कूल के खेल-मैदान से बटुआ मिला
हमारे विद्यालय में खेल का एक बहुत बड़ा मैदान है। हम सभी आधी छुट्टी में तथा गेम के क्लास में खेलने के लिए खेल के मैदान में जाते हैं। प्रतिदिन की तरह आज भी मैं खेलने के लिए खेल के मैदान में गया। जब मैं अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था तो वहीं घास में मुझे एक बटुआ मिला। बटुआ देखने में आकर्षक तथा महंगा लग रहा था। वह भारी भी था। जब बटुए को खोलकर देखा तो उसमें लगभग दो हज़ार रुपये थे। रूपयों को देखकर पलभर के लिए भी मेरा मन विचलित नहीं हुआ। मैंने उसमें पहचान ढूँढ़ने की कोशिश की, ताकि उसे उसके मालिक तक पहुँचाया जा सके।

काफी अथाह परिश्रम के बाद भी जब बटुए से कोई जानकारी नहीं मिली तो तुरंत ही, उस बटुए को मैंने कक्षा अध्यापक को सौंप दिया तथा बटुए के विषय में सारी बातें उन्हें बता दीं। अध्यापक ने मेरी ईमानदारी को देखते हुए अगले दिन प्रात:कालीन सभा में मेरी ईमानदारी का परिचय देते हुए मुझे शाबाशी दी। सभी ने मेरे द्वारा किए कार्य को प्रोत्साहित किया। प्रात:कालीन सभा में सारे स्कूल के सामने शाबाशी और प्रोत्साहन मिलने के कारण मन खूब रोमांचित हो रहा था। दिल में खुशी बढ़ती जा रही थी। मन खुशी से झूम रहा था।

5. परीक्षा से एक घंटा पूर्व
संकेत बिंदु : (i) परीक्षा भवन में एक घंटा पूर्व पहुँचना (ii) परीक्षार्थियों का चिंतित होना (iii) महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा से परेशानी दूर होना (iv) सूचना पट्ट पर परीक्षा में बैठने की योजना का लगना (v) परीक्षा भवन में प्रवेश।

परीक्षा से एक घंटा पूर्व
वैसे तो. प्रत्येक मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से भयभीत होता है। पराक्षी में पास होना आवश्यक है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। इसी घबराहट और डर के कारण परीक्षा से पूर्व का एक घंटा उसके लिए अति महत्त्वपूर्ण सिद्ध होता है। परीक्षा शुरू होने से एक घंटा पहले मैं जब परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक्-धक् कर रहा था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जाग कर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्न-पत्र में न आए तो क्या होगा ? परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए विद्यार्थी परीक्षा में आने वाले प्रश्नों को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे थे। कोई कह रहा था कि उसने सारा पाठ्यक्रम दोहरा लिया है लेकिन कोई प्रश्न घुमा-फिरा कर आ गया तो मुश्किल हो जाएगी। हम कुछ छात्र परीक्षा से पूर्व प्रश्न-पत्र हल करने को लेकर विचार-विमर्श कर रहे थे।

प्रश्नों को हल करने तथा समझने के तरीके एक-दूसरे से सांझा कर रहे थे। एक-दूसरे के विचारों को सुनने के बाद मानसिक तनाव तथा थकान में कमी महसूस हुई। परीक्षा भवन के बाहर विद्यार्थियों का जमघट लगा हुआ था। थोड़ी ही देर में घंटी बजी। परीक्षा भवन का गेट खुला। परीक्षा भवन के बाहर अनुक्रमांक और स्थान देखने के लिए सूचनापट्ट पर सूचनाएं तालिकाओं के रूप में क्रमबद्ध रूप में लगी हुई थीं। सभी विद्यार्थी देखते ही देखते अपना स्थान और अनुक्रमांक सूचना पट्ट में ढूँढ़ने लगे। सूचनापट्ट पर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया।

6. खुशियाँ और उमंग लाते हैं जीवन में त्योहार
संकेत बिंदु : (i) त्योहारों का महत्त्व (ii) विभिन्न त्योहार (iii) उमंग और जोश से भरे त्योहार (iv) सद्भावना, एकता व प्रेम के प्रतीक (v) सभी को त्योहारों का इंतज़ार।

खुशियाँ और उमंग लाते हैं जीवन में त्योहार
भारत त्योहारों का देश कहा जाता है। ये त्योहार अनेक प्रकार के हैं। कुछ त्योहार धार्मिक महत्त्व रखते हैं तो कुछ राष्ट्रीय त्योहारों के रूप में देश-भर में मनाए जाते हैं। हमारे देश के त्योहार चाहे धार्मिक दृष्टि से मनाए जा रहे हैं या नए वर्ष के आगमन के रूप में सभी अपनी विशेषताओं एवं क्षेत्रीय प्रभाव से मुक्त होने के साथ-साथ देश की राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक एकता और अखण्डता को मज़बूती प्रदान करते हैं। ये त्योहार जहाँ जनमानस में उल्लास, उमंग एवं खुशहाली भर देते हैं, वहीं हमारे अंदर देशभक्ति एवं गौरव की भावना के साथ विश्व-बंधुत्व एवं समन्वय की भावना भी बढ़ाते हैं। भारत में विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं। जैसे-होली, दीपावली, ईद, दशहरा, वैशाखी, रामनवमी, गुरुपर्व, बसंत पंचमी आदि। ये सभी त्योहार हमें समता और भाईचारे का प्रचार करने पर बल देते हैं। भारतीय त्योहार एक अलग अंदाज में एक अलग तरीके से मनाए जाते हैं।

यह हमें प्रसन्न रहने की प्रेरणा देते हैं। हमारे जीवन में उत्साह, उमंग एवं जोश का संचार करते हैं। ये आशा और उम्मीद को जन्म देने का काम भी करते हैं। त्योहार आपसी प्रेमभाव तथा सोहार्द्र को बढ़ाने का काम करते हैं। ये व्यक्ति में नई जागृति और चेतना पैदा करने का काम करते हैं। ये हमें शिक्षा देते हैं कि हमें कभी भी अत्याचार के सामने नहीं झुकना चाहिए। एक-दूसरे को साथ लेकर चलने तथा एकता के प्रसार पर बल देते हैं। हम सभी को बड़ी ही उत्सुकता के साथ त्योहारों का इतंजार रहता है। ये हमारी एकता एवं अखंडता को बनाए रखने का काम करते हैं।

7. नाटक में अभिनय में मेरा पहला अनुभव
संकेत बिन्दु : (i) स्कूल में नाटक मंचन की तैयारी (ii) स्वयं को नाटक में मुख्य रोल के लिए चुना जाना (ii) नाटक मंचन का अभ्यास (iv) मेकअप को लेकर उत्साह (v) मंचन के बाद आत्म-संतुष्टि व लोगों द्वारा सराहना।

नाटक में अभिनय मेरा पहला अनुभव
अभिनय करना एक कला है। इस कला के माध्यम से व्यक्ति अपने अंदर की भावनाओं एवं अनुभूतियों को अभिनय के माध्यम से प्रकट करता है। हमारे विद्यालय में समय-समय अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं। बीते दिनों में स्कूल में ‘कन्या भ्रूण हत्या’ विषय को लेकर एक नाटक के मंचन की तैयारी की जाने लगी। मैंने भी बड़े चाव से इस नाटक में भाग लिया। नाटक के प्रति मेरी उत्सुकता तथा मेरे अभिनय कौशल को देखते हुए अध्यापकों ने मुझे नाटक . में मुख्य रोल के लिए चुन लिया। यह मेरे जीवन का सबसे उत्तम और अच्छा पल था। विद्यालय में हमें नाटक मंचन के अभ्यास के लिए प्रतिदिन आखिरी के तीन पीरियड मिले थे। हम सभी पूरे जोश तथा उत्साह के साथ नाटक मंचन के अभ्यास में लगे रहते थे।

हमारे नाटक और उत्साह की सभी ने सराहना भी की थी। अभिनय करने के लिए किया जाने वाला मेकअप हमारे लिए सबसे ज्यादा उत्साहवर्धक काम था। हम सभी चरित्रों तथा उनकी आवश्यकतानुसार मेकअप करने में उत्साह दिखा रहे थे। नाटक में अभिनय करने के बाद मुझे आत्म-संतुष्टि का अनुभव हुआ। मैंने स्वयं को नाटक के चरित्र में डूबो दिया था। मेरी इस अभिनय कला की सभी ने सराहना भी की थी।

1. मेरी माँ की ममता

माँ का रिश्ता दुनिया के सब रिश्तेनातों से ऊपर है, इस बात से कौन इनकार कर सकता है। माँ को हमारे शास्त्रों में भगवान् माना गया है। जैसे भगवान् हमारी रक्षा, हमारा पालन-पोषण और हमारी हर इच्छा को पूरा करते हैं वैसे ही माँ भी हमारी रक्षा, पालन-पोषण और स्वयं कष्ट सहकर हमारी सब इच्छाओं को पूरा करती है। इसलिए कहा गया है कि माँ के कदमों में स्वर्ग है। मुझे भी अपनी माँ दुनिया में सबसे प्यारी है। वह मेरी हर ज़रूरत का ध्यान रखती है। मैं भी अपनी माँ की सेवा करता हूँ। मेरी माँ घर में सबसे पहले उठती है। उठकर वह घर की सफ़ाई करने के बाद स्नान करती है और पूजा-पाठ से निवृत्त होकर हमें जगाती है। जब तक हम स्नानादि करते हैं, माँ हमारे लिए नाश्ता तैयार करने में लग जाती है।

नाश्ता तैयार करके वह हमारे स्कूल जाने के लिए कपड़े निकालकर हमें देती है। जब हम स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाते हैं तो वह हमें नाश्ता परोसती है। स्कूल जाते समय वह हमें दोपहर के भोजन के लिए कुछ खाने के लिए डिब्बों में बंद करके हमारे बस्तों में रख देती है। स्कूल में हम आधी छुट्टी के समय मिलकर भोजन करते हैं। कई बार हम अपना खाना एक-दूसरे से भी बाँट लेते हैं। मेरे सभी मित्र मेरी माँ के बनाए भोजन की बहुत तारीफ़ करते हैं। सचमुच मेरी माँ बहत स्वादिष्ट भोजन बनाती है। मेरी माँ हमारे सहपाठियों को भी उतना ही प्यार करती हैं जितना हम से। मेरे सहपाठी ही नहीं हमारे मुहल्ले के सभी बच्चे भी उनका आदर करते हैं। हम सब भाई-बहन अपनी माँ का कहना मानते हैं। छुट्टी के दिन हम घर की सफ़ाई में अपनी माँ का हाथ बँटाते हैं। मेरी माँ इतनी अच्छी है कि मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि उस जैसी माँ सबको मिले।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

2. मेले की सैर

भारत एक त्योहारों का देश है। इन त्योहारों को मनाने के लिए जगह-जगह मेले लगते हैं। इन मेलों का महत्त्व कुछ कम नहीं है। किंतु पिछले दिनों मुझे जिस मेले को देखने का सुअवसर मिला वह अपने आप में अलग ही था। भारतीय मेला प्राधिकरण तथा भारतीय कृषि और अनुसंधान परिषद के सहयोग से हमारे नगर में एक कृषि मेले का आयोजन किया गया था। भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों का इस मेले में सहयोग प्राप्त किया गया था। इस मेले में विभिन्न राज्यों ने अपने-अपने मंडप लगाए थे। उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र के मंडपों में गन्ने और गेहूँ की पैदावार से संबंधित विभिन्न चित्रों का प्रदर्शन किया गया था।

केरल, गोवा के काजू और मसालों, असम में चाय, बंगाल में चावल, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब में रूई की पैदावार से संबंधित सामग्री प्रदर्शित की थी। अनेक व्यावसायिक एवं औद्योगिक कंपनियों ने भी अपने अलग-अलग मंडप सजाए थे। इसमें रासायनिक खाद, ट्रैक्टर, डीज़ल पंप, मिट्टी खोदने के उपकरण, हल, अनाज की कटाई और छटाई के अनेक उपकरण प्रदर्शित किए गए थे। यह मेला एशिया में अपनी तरह का पहला मेला था। इसमें अनेक एशियाई देशों ने भी अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मंडप लगाए थे। इनमें जापान का मंडप सबसे विशाल था। इस मंडप को देखकर हमें पता चला कि जापान जैसा छोटा-सा देश कृषि के क्षेत्र में कितनी उन्नति कर चुका है। हमारे प्रदेश के बहुत-से कृषक यह मेला देखने आए थे। मेले में उन्हें अपनी खेती के विकास संबंधी काफ़ी जानकारी प्राप्त हुई।

इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण था मेले में आयोजित विभिन्न प्रांतों के लोकनृत्यों का आयोजन। सभी नृत्य एक से बढ़कर एक थे। मुझे पंजाब और हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य सबसे अच्छे लगे। इन नृत्यों को आमने-सामने देखने का मेरा यह पहला ही अवसर था।

3. प्रदर्शनी अवलोकन

पिछले महीने मुझे दिल्ली में अपने किसी मित्र के पास जाने का अवसर प्राप्त हुआ। संयोग से उन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी चल रही थी। मैंने अपने मित्र के साथ इस प्रदर्शनी को देखने का निश्चय किया। शाम को लगभग पाँच बजे हम प्रगति मैदान पहँचे। प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर हमें यह सूचना मिल गई कि इस प्रदर्शनी में लगभग तीस देश भाग ले रहे हैं। हमने देखा की सभी देशों ने अपने-अपने पंडाल बड़े कलात्मक ढंग से सजाए हुए हैं। उन पंडालों में उन देशों की निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन किया जा रहा था।

अनेक भारतीय कंपनियों ने भी अपने-अपने पंडाल सजाए हुए थे। प्रगति मैदान किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था। प्रदर्शनी में सजावट और रोशनी का प्रबंध इतना शानदार था कि अनायास ही मन से वाह निकल पड़ती थी। प्रदर्शनी को देखने के लिए आने वालों की काफ़ी भीड़ थी। हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीदकर भीतर प्रवेश किया। सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए। जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूर-संचार, कंप्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था। हमने वहाँ इक्कीसवीं सदी में टेलीफ़ोन एवं दूर-संचार सेवा कैसी होगी इसका एक छोटा-सा नमूना देखा। जापान ने ऐसे टेलीफ़ोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फ़ोटो भी देख सकेंगे। वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा जो माचिस की डिबिया जितना था। सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए। उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के पंडाल देखे। उस प्रदर्शनी को देखकर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का

मुकाबला करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी। हमने वहाँ भारत में बनने वाले टेलीफ़ोन, कंप्यूटर आदि का पंडाल भी देखा। वहाँ यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है। भारतीय उपकरण किसी भी हालत में विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे। हमने प्रदर्शनी में ही बने रेस्टोरेंट में चाय-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए।

4. नदी किनारे एक शाम

गर्मियों की छुट्टियों के दिन थे। स्कूल जाने की चिंता नहीं थी और न ही होमवर्क की। एक दिन चार मित्र एकत्र हुए और सभी ने यह तय किया कि आज की शाम नदी किनारे सैर करके बिताई जाए। कुछ तो गर्मी से राहत मिलेगी, कुछ प्रकृति के सौंदर्य के दर्शन करके मन खुश होगा। एक ने कही दूजे ने मानी के अनुसार हम सब लगभग छह बजे के करीब एक स्थान पर एकत्र हुए और पैदल ही नदी की ओर चल पड़े।

दिन अभी ढला नहीं था बस ढलने ही वाला था। ढलते सूर्य की लाल-लाल किरणें पश्चिम क्षितिज पर ऐसे लग रही थीं मानो प्रकृति रूपी युवती लाल-लाल वस्त्र पहने मचल रही हो। पक्षी अपने-अपने घोंसलों की ओर लौटने लगे थे। खेतों में हरियाली छायी हुई थी। ज्यों ही हम नदी किनारे पहुँचे सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी पर पड़ती हुई बहुत भली प्रतीत हो रही थीं। ऐसे लगता था मानों नदी के जल में हज़ारों लाल कमल एक साथ खिल उठे हों। नदी तट पर लगे वृक्षों की पंक्ति देखकर ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ कविता की पंक्ति याद हो आई। नदी तट के पास वाले जंगल से ग्वाले पशु चराकर लौट रहे थे। पशुओं के पैरों से उठने वाली धूलि एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर रही थी।

हम सभी मित्र बातें कम कर रहे थे, प्रकृति के रूप रस का पान अधिक कर रहे थे। थोड़ी ही देर में सूर्य अस्ताचल की ओर में जाता हुआ प्रतीत हुआ। नदी का जो जल पहले लाल-लाल लगता था अब धीरे-धीरे नीला पड़ना शुरू हो गया था। उड़ते हुए बगुलों की सफ़ेदसफ़ेद पंक्तियाँ उस धूमिल वातावरण में और भी अधिक सफ़ेद लग रही थीं। नदी तट पर सैर करते-करते हम गाँव से काफ़ी दूर निकल आए थे। प्रकृति की सुंदरता निहारते-निहारते ऐसे खोए थे कि समय का ध्यान ही न रहा। हम सब गाँव की ओर लौट पड़े। नदी तट पर नृत्य करती हुई प्रकृति रूपी नदी की यह शोभा विचित्र थी। नदी किनारे सैर करते हुए बिताई यह शाम हमें जिंदगी-भर नहीं भूलेगी।

5. परीक्षा से पहले
अथवा
परीक्षा से एक घंटा पूर्व

वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है किंतु विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएँगे। ऐसी चिंताएँ हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक्-धक् कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहाँ पहुँच गया था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जाग कर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्नपत्र में न आए तो मेरा क्या होगा? इसी चिंता में मैं अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था।

परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिलकुल बेफ़िक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मार-मारकर बातें कर रहे थे। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों या नोट्स से चिपके हुए थे। मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था। क्योंकि मेरे पिताजी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल नहीं जाता। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं जिससे सवेरे उठकर विद्यार्थी ताज़ा दम होकर परीक्षा देने जाए न कि थका-थका महसूस करे। परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं। उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण-शक्ति पर पूरा भरोसा था।

थोड़ी ही देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी। इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया। हँसते हुए चेहरों पर अब गंभीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना अनुक्रमांक और स्थान देखकर मैं परीक्षा भवन में प्रविष्ट हुआ और अपने स्थान पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न-पत्र बँटने की प्रतीक्षा करने लगा।

6. मदारी का खेल

कल मैं बाज़ार सब्जी लेने के लिए घर से निकला। चौराहे के एक कोने पर मैंने कुछ लोगों की भीड़ देखी। दूर से देखने पर मुझे लगा कि शायद यहाँ कोई दुर्घटना हो गई। उत्सुकतावश मैं वहाँ चला गया। वहाँ जाकर मुझे पता चला कि वहाँ एक मदारी तमाशा दिखा रहा था। बच्चों की भीड़ जमा है। बहुत-से युवक-युवतियाँ और बुजुर्ग के लोग भी वहाँ एकत्र थे। जब मैं वहाँ पहँचा तो मदारी अपने बंदर और बंदरिया का नाच दिखा रहा था। मदारी डुगडुगी बजा रहा था और बाँसुरी भी बजा रहा था।

बंदरिया ने घाघरा-चोली पहन रखी थी और सिर पर चुनरी भी ओढ़ रखी थी। बंदर ने भी धोती-कुरता पहन रखा था। बंदरिया ने गले में मोतियों की माला और हाथों में चूड़ियाँ भी पहन रखी थीं। मदारी बंदर से पूछ रहा था कि क्या तुम ने विवाह करवाना है। बंदर हाँ में सिर हिलाता। फिर वह यही प्रश्न बंदरिया से करता। बंदरिया भी हाँ में सिर हिलाती। फिर मदारी ने पूछा कि कैसी लड़की से विवाह करवाएगा। बंदर ने हाव-भाव से बताया। उसके हाव-भाव को देखकर सभी हँसने लगे। फिर बंदर दूल्हा बनकर विवाह करने चला और बंदरिया को ब्याह कर लाया। इस सारे तमाशे में बंदर की हरकतों, बंदरिया के शर्माने के अभिनय को देखकर लोगों ने कई बार तालियाँ बजाईं। मदारी ने डुगडुगी बजाकर नाच समाप्त होने की घोषणा की। बंदर-बंदरिया का नाच दिखाने के बाद मदारी ने एक चौंका देने वाला तमाशा दिखाया।

मदारी ने अपने साथ एक छोटे लड़के को ज़मीन पर लिटाकर उसकी एक तेज़ छुरी से जीभ काट ली। बच्चा खून से लथपथ ज़मीन पर छटपटा रहा था। उस भीड़ में मौजूद स्त्रियाँ यह दृश्य देखकर काँप उठीं। कुछ स्त्रियों ने तो उस मदारी को बुरा-भला भी कहना शुरू कर दिया। मदारी पर उनका कोई प्रभाव न पड़ा। वह शांत बना रहा। उसने लोगों को बताया कि यह तो मात्र एक तमाशा है। क्या कोई अपने बच्चे की जीभ काट सकता है। उसने ज़मीन पर पड़े अपने बच्चे का नाम लेकर पुकारा और लड़का हँसता हुआ उठ खड़ा हुआ। उसने अपना मुँह खोल कर लोगों को दिखाया तो उसकी जीभ सही सलामत थी। यह खेल दिखा कर मदारी ने बंदर और बंदरिया के हाथों में दो टोपियाँ पकड़ाकर लोगों से पैसा माँगने के लिए कहा-बंदर और बंदरिया लोगों के सामने मटकते हुए जाते और उनके आगे अपनी टोपी करते। सभी लोगों ने उनकी टोपी में कुछ-न-कुछ ज़रूर डाला जिन्होंने कुछ नहीं डाला उन्हें बंदरों ने घुड़की मारकर डराया और भागने पर विवश कर दिया। मदारी का तमाशा खत्म हुआ। भीड़ छट गई।

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7. अवकाश का दिन

अवकाश के दिन की हर किसी को प्रतीक्षा होती है। विशेषकर विद्यार्थियों को तो इस दिन की प्रतीक्षा बड़ी बेसबरी से होती है। उस दिन न तो जल्दी उठने की चिंता होती है, न स्कूल जाने की। स्कूल में भी छुट्टी की घंटी बजते ही विद्यार्थी कितनी प्रसन्नता से कक्षाओं से बाहर आ जाते हैं। अध्यापक महोदय के भाषण का आधा वाक्य ही उनके मुँह में रह जाता है और विद्यार्थी कक्षा छोड़कर बाहर की ओर भाग जाते हैं। जब यह पता चलता है कि आज दिनभर की छुट्टी है तो विद्यार्थी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। वे उस दिन खूब जी भरकर खेलते हैं, घूमते हैं। कोई सारा दिन क्रिकेट के मैदान में बिताता है तो कोई पतंगबाज़ी में सारा दिन बिता देते हैं।

सुबह के घर से निकले शाम को ही घर लौटते हैं। कोई कुछ कहे तो उत्तर मिलता कि आज तो छुट्टी है। लड़कियों के लिए छुट्टी का दिन घरेलू काम-काज का दिन होता है। छुट्टी के दिन मुझे सुबह-सवेरे उठकर अपनी माताजी के साथ कपड़े धोने में सहायता करनी पड़ती है। मेरी माताजी एक स्कूल में पढ़ाती हैं अतः उनके पास कपड़े धोने के लिए केवल छुट्टी का दिन ही उपयुक्त होता है। कपड़े धोने के बाद मुझे अपने बाल धोने होते हैं, बाल धोकर स्नान करके फिर रसोई में माताजी का हाथ बटाना पड़ता है। इस दिन ही हमारे घर में विशेष व्यंजन पकते हैं। दूसरे दिनों में तो सुबह-सवेरे तो सबको भागम-भाग लगी होती है। किसी को स्कूल जाना होता है तो किसी को दफ़्तर। दोपहर के भोजन के पश्चात् थोड़ा आराम करते हैं। फिर माताजी मुझे लेकर बैठ जाती हैं। कुछ सिलाई, बुनाई या कढ़ाई की शिक्षा देती हैं। उनका मानना है कि लड़कियों को ये सब काम आने चाहिए। शाम होते ही शाम की चाय का समय हो जाता है।

अवकाश के दिन शाम की चाय में कभी समोसे, कभी पकौड़े बनाए जाते हैं। चाय पीने के बाद फिर रात के खाने की चिंता होने लगती है और इस तरह अवकाश का दिन एक लड़की के लिए अवकाश का नहीं बल्कि अधिक काम का दिन होता है।

8. रेलवे प्लेटफ़ॉर्म का दृश्य

एक दिन संयोग से मुझे अपने बड़े भाई को लेने रेलवे स्टेशन जाना पड़ा। मैं प्लेटफॉर्म टिकट लेकर रेलवे स्टेशन के अंदर गया। पूछताछ खिड़की से पता चला कि दिल्ली से आने वाली गाड़ी प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर आएगी। मैं रेलवे पुल पार करके प्लेटफ़ॉर्म नंबर चार पर पहुँच गया। वहाँ यात्रियों की बड़ी संख्या थी। कुछ लोग अपने प्रियजनों को लेने के लिए आए थे तो कुछ अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराने के लिए आए हुए थे। जाने वाले यात्री अपने-अपने सामान के पास खड़े थे।

कुछ यात्रियों के पास कुली भी खड़े थे। मैं भी उन लोगों की तरह गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा। इसी दौरान मैंने अपनी नज़र रेलवे प्लेटफॉर्म पर दौड़ाई। मैंने देखा कि अनेक युवक और युवतियाँ अत्याधुनिक पोशाक पहने इधर-उधर घूम रहे थे। कुछ यात्री टी-स्टाल पर खड़े चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, परंतु उनकी नज़रें बार-बार उस तरफ़ उठ जाती थीं, जिधर से गाड़ी आने वाली थी। कुछ यात्री बड़े आराम से अपने सामान के पास खड़े थे, लगता था कि उन्हें गाड़ी आने पर जगह प्राप्त करने की कोई चिंता नहीं। उन्होंने पहले से ही अपनी सीट आरक्षित करवा ली थी। कुछ फेरीवाले भी अपना माल बेचते हुए प्लेटफॉर्म पर घूम रहे थे। सभी लोगों की नज़रें उस तरफ़ थीं जिधर से गाड़ी ने आना था। तभी लगा जैसे गाड़ी आने वाली हो। प्लेटफॉर्म पर भगदड़-सी मच गई। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाकर तैयार हो गए। कुलियों ने सामान अपने सिरों पर रख लिया। सारा वातावरण उत्तेजना से भर गया। देखतेही-देखते गाड़ी प्लेटफॉर्म पर आ पहुँची।

कुछ युवकों ने तो गाड़ी के रुकने की भी प्रतीक्षा न की। वे गाड़ी के साथ दौड़ते-दौड़ते गाड़ी में सवार हो गए। गाड़ी रुकी तो गाड़ी में सवार होने के लिए धक्कम-पेल शुरू हो गई। हर कोई पहले गाड़ी में सवार हो जाना चाहता था। उन्हें दूसरों की नहीं अपनी केवल अपनी चिंता थी। मेरे भाई मेरे सामने वाले डब्बे में थे। उनके गाड़ी से नीचे उतरते ही मैंने उनके चरण-स्पर्श किए और उनका सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा। चलते-चलते मैंने देखा जो लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराकर लौट रहे थे। उनके चेहरे उदास थे और मेरी तरह जिनके प्रियजन गाड़ी से उतरे थे उनके चेहरों पर खुशी थी।

9. सूर्योदय का दृश्य

पूर्व दिशा की ओर उभरती हुई लालिमा को देखकर पक्षी चहचहाने लगते हैं। उन्हें सूर्य के आगमन की सबसे पहले सूचना मिल जाती है। वे अपनी चहचहाहट द्वारा समस्त प्राणी-जगत को रात के बीत जाने की सूचना देते हुए जागने की प्रेरणा देते हैं। सूर्य देवता का स्वागत करने के लिए प्रकृति रूपी नदी भी प्रसन्नता में भरकर नाच उठती है। फूल खिल उठते हैं, कलियाँ चटक जाती हैं और चारों ओर का वातावरण सुगंधित हो जाता है।

सूर्य देवता के आगमन के साथ ही मनुष्य रात भर के विश्राम के बाद ताज़ा दम होकर जाग उठते हैं। हर तरफ़ चहल-पहल नज़र आने लगती है। किसान हल और बैलों के साथ अपने खेतों की ओर चल पड़ते हैं। गृहणियाँ घरेलू काम-काज में व्यस्त हो जाती हैं। मंदिरों एवं गुरुद्वारों में लगे लाउडस्पीकर से भजन-कीर्तन के कार्यक्रम प्रसारित होने लगते हैं। भक्तजन स्नानादि से निवृत्त हो पूजा-पाठ में लग जाते हैं। स्कूली बच्चों की माताएँ उन्हें झिंझोड़-झिंझोड़कर जगाने लगती हैं। दफ्तरों को जाने वाले बाबू जल्दी-जल्दी तैयार होने लगते हैं जिससे समय पर बस पकड़कर अपने दफ्तर पहुँच सकें। थोड़ी देर पहले जो शहर सन्नाटे में लीन था आवाज़ों के घेरे में घिरने लगता है। सड़कों पर मोटरों, स्कूटरों, कारों के चलने की आवाजें सुनाई देने लगती हैं।

ऐसा लगता है मानो सड़कें भी नींद से जाग उठी हों। सूर्योदय के समय की प्राकृतिक सुषमा का वास्तविक दृश्य तो किसी गाँव, किसी पहाड़ी क्षेत्र अथवा किसी नदी तट पर ही देखा जा सकता है। प्रात: वेला में सोये रहने वाले लोग प्रकृति की इस सुंदरता के दर्शन नहीं कर सकते। कौन उन्हें बताए कि सूर्योदय के समय सूर्य के सामने आँखें बंदकर दो-चार मिनट खड़े रहने से आँखों की ज्योति कभी क्षीण नहीं होती।

10. अपना घर

कहते हैं कि घरों में घर अपना घर । सच है अपना घर अपना ही होता है। अपने घर में चाहे सारी सुख-सुविधाएँ न भी प्राप्त हों तो भी वह अच्छा लगता है। जो स्वतंत्रता व्यक्ति को अपने घर में होती है वह किसी बड़े-बड़े आलीशान घर में भी नहीं प्राप्त होती। पराये घर में जो झिझक, असुविधा होती है वह अपने घर में नहीं होती। अपने घर में व्यक्ति अपनी मर्जी का मालिक होता है। दूसरे के घर में उस घर के स्वामी की इच्छानुसार अथवा उस घर के नियमों के अनुसार चलना होता है।

अपने घर में आप जो चाहें करें, जो चाहें खाएँ, जहाँ चाहें बैठें, जहाँ चाहें लेटें पर दूसरे के घर में यह सब संभव नहीं। इसीलिए तो किसी ने कहा है-‘जो सुख छज्जू दे चौबारे वह न बलख, न बुखारे।’ शायद यही कारण है कि आजकल नौकरी करने वाले प्रतिदिन मीलों का सफ़र करके नौकरी पर जाते हैं परंतु रात को अपने घर वापस आ जाते हैं। पुरुष तो पहले भी नौकरी करने बाहर जाते थे। आजकल स्त्री भी नौकरी करने घर से कई मील दूर जाती है परंतु आजकल सभी अपने-अपने घरों को लौटना पंसद करते हैं। मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी तक भी अपने घर के महत्त्व को समझते हैं। सारा दिन जंगल में चरने वाली गाएँ, भैंसें, भेड़, बकरियाँ संध्या होते ही अपने-अपने घरों को लौट आते हैं।

पक्षी भी दिनभर दाना-दुनका चुगकर संध्या होते ही अपने-अपने घोंसलों को लौट आते हैं। घर का मोह ही उन्हें अपने घोंसलों में लौट आने के लिए विवश करता है क्योंकि जो सुख अपने घर में मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता। इसीलिए कहा गया है कि घरों में घर अपना घर।

11. जब आँधी आई

मई का महीना था। सूर्य देवता लगता था मानो आग बरसा रहे हों। धरती भट्ठी की तरह जल रही थी। हवा भी गरमी के डर से सहमी हुई थम-सी गई थी। पेड़-पौधे तक भीषण गरमी से घबराकर मौन खड़े थे। पत्ता तक नहीं हिल रहा था। उस दिन हमारे विद्यालय में जल्दी छुट्टी कर दी गई। मैं अपने कुछ सहपाठियों के साथ पसीने में लथपथ अपने घर की ओर लौट रहा था कि अचानक पश्चिम दिशा में कालिमा-सी दिखाई दी।

आकाश में चीलें मँडराने लगीं। चारों ओर शोर मच गया कि आँधी आ रही है। हम सब ने तेज़-तेज़ चलना शुरू किया जिससे आँधी आने से पूर्व सुरक्षित अपनेअपने घर पहुँच जाएँ। देखते-ही-देखते तेज़ हवा के झोंके आने लगे। दूर आकाश धूलि से अट गया लगता था। हम सब साथी एक दुकान के छज्जे के नीचे रुक गए और प्रतीक्षा करने लगे कि आँधी गुज़र जाए तो चलें। पलक झपकते ही धूल का एक बहुत बड़ा बवंडर उठा। दुकानदारों ने अपना सामान सहेजना शुरू कर दिया। आस-पास के घरों की खिड़कियाँ, दरवाज़े ज़ोर-ज़ोर से बजने लगे। धूल भरी उस आँधी में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। हम सब आँखें बंद करके खड़े थे जिससे हमारी आँखें धूल से न भर जाएँ। राह चलते लोग रुक गए। स्कूटर, साइकिल और कार चलाने वाले भी अपनी-अपनी जगह रुक गए थे। अचानक सड़क के किनारे लगे एक वृक्ष की एक बहुत बड़ी टहनी टूटकर हमारे सामने गिरी। दुकानों के बाहर लगी कनातें उड़ने लगीं।

बहुत-से दुकानदारों ने जो सामान बाहर सजा रखा था, वह उड़ गया। धूल भरी आँधी में कुछ भी दिखाई न दे रहा था। चारों तरफ़ अफ़रा-तफरी मची हुई थी। आँधी का यह प्रकोप करीब घंटा भर रहा। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होने लगी। यातायात फिर से चालू हो गया। हम भी उस दुकान के छज्जे के नीचे से बाहर आकर अपने-अपने घरों की ओर रवाना हुए। सच ही उस आँधी का दृश्य बड़ा ही डरावना था। घर पहुँचते-पहुँचते मैंने देखा रास्ते में बिजली के कई खंबे, वृक्ष आदि उखड़े पड़े थे। सारे शहर में बिजली भी ठप्प हो गई थी। मैं कुशलतापूर्वक अपने घर पहुँच गया। घर पहुँचकर मैंने सुख की साँस ली।

12. मतदान केंद्र का दृश्य

प्रजातंत्र में चुनाव अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। गत 22 फरवरी को हमारे नगर में विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव हुआ। चुनाव से कोई महीना भर पहले विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा बड़े जोर-शोर से चुनाव प्रचार किया गया। धन का खुलकर वितरण किया गया। हमारे यहाँ एक कहावत प्रसिद्ध है कि चुनाव के दिनों में यहाँ नोटों की वर्षा होती है। चुनाव आयोग ने लाख सिर पटका पर ढाक के तीन पात ही रहे। आज मतदान का दिन है।

मतदान से एक दिन पूर्व ही मतदान केंद्रों की स्थापना की गई है। मतदान वाले दिन जनता में भारी उत्साह देखा गया। इस बार पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का प्रयोग किया जा रहा था। अब मतदाताओं को मतदान केंद्र पर मत-पत्र नहीं दिए जाने थे और न ही उन्हें अपने मत मतपेटियों में डालने थे। अब तो मतदाताओं को अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम और चुनावचिह्न के आगे लगे बटन को दबाना भर था। इस नए प्रयोग के कारण भी मतदाताओं में काफी उत्साह देखने में आया। मतदान प्रात: आठ बजे शुरू होना था किंतु मतदान केंद्रों के बाहर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने पंडाल समय से काफ़ी पहले सजा लिए थे। उन पंडालों में उन्होंने अपनी-अपनी पार्टी के झंडे एवं उम्मीदवार के चित्र भी लगा रखे थे। दो-तीन मेजें भी पंडाल में लगाई गई थीं। जिन पर उम्मीदवार के कार्यकर्ता मतदान सूचियाँ लेकर बैठे थे और मतदाताओं को मतदाता सूची में से उनकी क्रम संख्या तथा मतदान केंद्र की संख्या तथा मतदान केंद्र का नाम लिखकर एक पर्ची दे रहे थे।

आठ बजने से पूर्व ही मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की लंबी-लंबी पंक्तियाँ लगनी शुरू हो गई थीं। मतदाता खूब सज-धज कर आए थे। ऐसा लगता था कि वे किसी मेले में आए हों। दोपहर होते-होते मतदाताओं की भीड़ में कमी आने लगी। राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता मतदाताओं को घेर-घेर कर ला रहे थे। चुनाव आयोग ने मतदाताओं को किसी प्रकार के वाहन में लाने की मनाही की है किंतु सभी उम्मीदवार अपने-अपने मतदाताओं को रिक्शा, जीप या कार में बैठाकर ला रहे थे। सायं पाँच बजते-बजते यह मेला उजड़ने लगा। भीड़ मतदान केंद्र से हटकर उम्मीदवारों के पंडालों में जमा हो गई थी और सभी अपने-अपने उम्मीदवार की जीत के अनुमान लगाने लगे।

13. जब भूचाल आया

गरमियों की रात थी। मैं अपने भाइयों के साथ मकान की छत पर सो रहा था। रात लगभग आधी बीत चुकी थी। गरमी के मारे मुझे नींद नहीं आ रही थी। तभी अचानक कुत्तों के भौंकने का स्वर सुनाई पड़ा। यह स्वर लगातार बढ़ता ही जा रहा था और लगता था कि कुत्ते तेज़ी से इधर-उधर भाग रहे हैं। कुछ ही क्षण बाद हमारी मुरगियों ने दड़बों में फड़फड़ाना शुरू कर दिया। उनकी आवाज़ सुनकर ऐसा लगता था कि जैसे उन्होंने किसी साँप को देख लिया हो। मैं बिस्तर पर लेटा-लेटा कुत्तों के भौंकने के कारण पर विचार करने लगा। मैंने समझा कि शायद वे किसी चोर को या संदिग्ध व्यक्ति को देखकर भौंक रहे हैं।

अभी मैं इन्हीं बातों पर विचार कर ही रहा था कि मुझे लगा जैसे मेरी चारपाई को कोई हिला रहा है अथवा किसी ने मेरी चारपाई को झुला दिया हो। क्षण भर में ही मैं समझ गया कि भूचाल आया है। यह झटका भूचाल का ही था। मैंने तुरंत अपने भाइयों को जगाया और उन्हें छत से शीघ्र नीचे उतरने को कहा। छत से उतरते समय हम ने परिवार के अन्य सदस्यों को भी जगा दिया। तेजी से दौड़कर हम सब बाहर खुले मैदान में आ गए। वहाँ पहुँचकर हमने शोर मचाया कि भूचाल आया है। सब लोग घर से बाहर आ जाओ। सभी गहरी नींद में सोये पड़े थे, हड़बड़ाहट में सभी बाहर की ओर दौड़े। मैंने उन्हें बताया कि भूचाल के झटके कभी-कभी कुछ मिनटों के बाद भी आते हैं। अतः हमें सावधान रहना चाहिए। अभी यह बात मेरे मुँह में ही थी कि भूचाल का एक ज़ोरदार झटका और आया। सारे मकानों की खिड़कियाँ, दरवाज़े खड़-खड़ा उठे।

हमें धरती हिलती महसूस हुई। हम सब धरती पर लेट गए। ‘तभी पड़ोस से मकान ढहने की आवाज़ आई। साथ ही बहुत-से लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाजें भी आईं। हम में से कोई भी डर के मारे अपनी जगह से नहीं हिला। कुछ देर बाद जब हम ने सोचा कि जितना भूचाल आना था आ चुका, हम उस जगह की ओर बढ़े। निकट जाकर देखा तो काफ़ी मकान क्षतिग्रस्त हुए थे। ईश्वर कृपा से जान-माल की कोई हानि न हुई थी। वह रात सारे गाँववासियों ने पुनः भूचाल के आने की अशंका में घरों से बाहर रहकर ही बिताई।

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14. मेरी रेल-यात्रा

हमारे देश में रेलवे ही एक ऐसा विभाग है जो यात्रियों को टिकट देकर भी सीट की गारंटी नहीं देता। रेल का टिकट खरीदकर सीट मिलने की बात तो बाद में आती है पहले तो गाड़ी में घुस पाने की समस्या सामने आती है। यदि कहीं आप बाल-बच्चों अथवा सामान के साथ यात्रा कर रहे हों तो यह समस्या और भी विकट हो उठती है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि टिकट पास होते हुए भी आप गाड़ी में सवार नहीं हो पाते और ‘दिल की तमन्ना दिल में रह गयी’ गाते हुए या रोते हुए घर लौट आते हैं। रेलगाड़ी में सवार होने से पूर्व गाड़ी की प्रतीक्षा करने का समय बड़ा कष्टदायक होता है।

मैं भी एक बार रेलगाड़ी में मुंबई जाने के लिए स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था। गाड़ी दो घंटे लेट थी। यात्रियों की बेचैनी देखते ही बनती थी। गाड़ी आई तो गाड़ी में सवार होने के लिए जोर आजमाई शुरू हो गयी। किस्मत अच्छी थी कि मैं गाड़ी में सवार होने में सफल हो सका। गाड़ी चले अभी घंटा भर ही हुआ था कि कुछ यात्रियों के मुख से मैंने सुना कि यह डब्बा जिसमें मैं बैठा था अमुक स्थान पर कट जाएगा। यह सुनकर मैं तो दुविधा में पड़ गया। गाड़ी रात के एक बजे उस स्टेशन पर पहुंची जहाँ हमारा वह डब्बा मुख्य गाड़ी से कटना था और हमें दूसरे डब्बे में सवार होना था। उस समय अचानक तेज़ वर्षा होने लगी। स्टेशन पर कोई भी कुली नज़र नहीं आ रहा था।

सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाए वर्षा में भीगते हुए दूसरे डब्बे की ओर भागने लगे। मैं अपना अटैची लेकर उतरने लगा कि एकदम से वह डब्बा चलने लगा। मैं गिरते-गिरते बचा और अटैची मेरे हाथ से छूटकर प्लेटफॉर्म पर गिर पड़ी। मैंने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटा और दूसरे डब्बे की ओर बढ़ गया। गरमी का मौसम और उस डब्बे के पंखे बंद थे। गाड़ी चली तो थोड़ी हवा लगी और कुछ राहत मिली।

15. एक दिन बिजली न आई

मनुष्य विकास कर रहा है। वह अपनी सुख-सुविधाओं के साधन भी जुटाने लगा है। बिजली भी उन साधनों में से एक है। आजकल हम बिजली पर किसी हद तक निर्भर हो गए हैं इसका पता मुझे उस दिन चला जब हमारे शहर में सारा दिन बिजली नहीं आई। जून का महीना था। सूर्य देव ने उदय होते ही गरमी बरसानी शुरू कर दी थी। आकाश में धूल-सी चढ़ी हुई थी। सात बजे होंगे कि बिजली चली गई। बिजली जाने के साथ ही पानी भी चला गया। घर में बड़े बुजुर्ग तो स्नान कर चुके थे पर हम तो अभी सोकर ही उठे थे इसलिए हमारा नहाना बीच में ही लटक गया।

घर के अंदर इतनी तपश थी कि खड़ा न हुआ जाता था। बाहर निकलते तो वहाँ भी चैन न था। एक तो धूप की तेज़ी और ऊपर से हवा भी बंद थी। दिन चढ़ता गया और गरमी की प्रचंडता भी बढ़ने लगी। हमने बिजलीघर के शिकायत केंद्र को फ़ोन किया तो पता चला कि बिजली पीछे से ही बंद है। कोई पता नहीं कि कब आएगी। गरमी के मारे सब का बुरा हाल था। छोटे बच्चों की हालत देखी न जाती थी। गरमी के कारण माताजी को खाना पकाने में भी बड़ा कष्ट झेलना पड़ा। गला प्यास के मारे सूख रहा था। खाना खाने से पहले तक कई गिलास पानी पी चुके थे। इसलिए खाना भी ठीक ढंग से नहीं खाया गया। उस दिन हमें पता चला कि हम कितने बिजली पर निर्भर हो चुके हैं। मैं बार-बार सोचता था कि जिन दिनों बिजली नहीं थी तब लोग कैसे रहते होंगे। घर में हाथ से चलाने वाले पंखे भी नहीं थे। हम अखबार या कापी के गत्ते को ही पंखा बनाकर हवा ले रहे थे। सूर्य छिप जाने पर गरमी की प्रचंडता में कुछ कमी तो हुई किंतु हवा बंद होने के कारण बाहर खड़े होना भी कठिन लग रहा था।

हमें चिंता हुई कि यदि बिजली रातभर न आई तो रात कैसे कटेगी। बिजली आने पर लोगों ने घरों के बाहर या छत पर सोना छोड़ दिया था। सभी कमरों में ही पंखों, कूलरों को लगाकर ही सोते थे। बाहर सोने पर मच्छरों के प्रकोप को सहना पड़ता था। रात के लगभग नौ बजे बिजली आई और मुहल्ले के हर घर में बच्चों ने ज़ोर से आवाज़ लगाई–’आ गई, आ गई’ और हम सब ने सुख की साँस ली।

16. परीक्षा भवन का दृश्य

मार्च महीने की पहली तारीख थी। उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो रही थीं। परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परंतु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है। मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक्– धक् कर रहा था। मैं रातभर पढ़ता रहा था और चिंता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न-पत्र में न आया तो क्या होगा? परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिंतित से नज़र आ रहे थे। कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उसके पन्ने उलट-पुलट रहे थे। कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। लड़कों से ज़्यादा लड़कियाँ अधिक गंभीर नज़र आ रही थीं।

कुछ लड़कियाँ तो बड़े आत्मविश्वास से भरी दिखाई पड़ रही थीं। लड़कियाँ इसी आत्मविश्वास के कारण परीक्षा में लड़कों से बाज़ी मार जाती हैं। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न-पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई। यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया। भीतर पहुँचकर हम सब अपने-अपने अनुक्रमांक के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाएँ बाँट दी गयीं और हम ने उस पर अपना-अपना अनुक्रमांक आदि लिखना शुरू कर दिया। ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्नपत्र बाँट दिए। कुछ विद्यार्थी प्रश्न-पत्र प्राप्त करके उसे माथा टेकते देखे गए। मैंने भी ऐसा ही किया। माथा टेकने के बाद मैंने प्रश्न-पत्र पढ़ना शुरू किया। मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न-पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए प्रश्नों में से थे।

मैंने किए जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाए और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया। मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो। तीन घंटे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा। मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।

17. साइकिल चोरी होने पर

एक दिन मैं अपने स्कूल में अवकाश लेने का आवेदन-पत्र देने गया। मैं अपनी साइकिल स्कूल के बाहर खड़ी कर के, उसे ताला लगाकर स्कूल के भीतर चला गया। थोड़ी देर में ही मैं लौट आया। मैंने देखा मेरी साइकिल वहाँ नहीं थी जहाँ मैं उसे खड़ी करके गया था। मैंने आसपास देखा पर मुझे मेरी साइकिल कहीं नज़र नहीं आई। मुझे यह समझते देर न लगी कि मेरी साइकिल चोरी हो गयी है। मैं सीधा घर आ गया। घर आकर मैंने अपनी माँ को बताया कि मेरी साइकिल चोरी हो गयी है।

मेरी माँ यह सुनकर रोने लगी। उसने कहा कि बड़ी मुश्किल से तीन हजार रुपया खर्च करके तुम्हें साइकिल लेकर दी थी तुम ने वह भी गँवा दी। मेरी साइकिल चोरी हो गयी है, यह बात सारे मुहल्ले में फैल गयी। किसी ने सलाह दी कि पुलिस में रिपोर्ट अवश्य लिखवा देनी चाहिए। मैं पुलिस से बहुत डरता हूँ। मैं डरता-डरता पुलिस चौकी गया। मैं इतना घबरा गया था, मानो मैंने ही साइकिल चुराई हो। पुलिस वालों ने कहा साइकिल की रसीद लाओ, उसका नंबर बताओ, तब हम तुम्हारी रिपोर्ट लिखेंगे। साइकिल खरीदने की रसीद मुझ से गुम हो गयी थी और साइकिल का नंबर मुझे याद नहीं था। मुझे क्या यह मालूम था कि मेरी साइकिल चोरी हो जाएगी? निराश हो मैं घर लौट आया। लौटने पर पता चला कि मेरी साइकिल चोरी होने का समाचार सारे मुहल्ले में फैल गया है। हमारे देश में शोक प्रकट करने का कुछ ऐसा चलन है कि लोग मामूली-से-मामूली बात पर भी शोक प्रकट करने आ पहुँचते हैं। हर आने वाला मुझ से साइकिल कैसे चोरी हुई ? प्रश्न का उत्तर जानना चाहता था। मैं एक ही उत्तर सभी को देता उकता-सा गया। कुछ लोग मुझे सांत्वना देते हुए कहते-जो होना था सो हो गया।

ईश्वर चाहेंगे तो साइकिल ज़रूर मिल जाएगी। मेरा एक मित्र विशेष रूप से शोक-ग्रस्त था। क्योंकि यदाकदा वह मुझसे साइकिल माँगकर ले जाता था। कुछ लोग मुझे यह भी सलाह देने लगे कि मुझे अब कौन-सी कंपनी की बनी साइकिल खरीदनी चाहिए और किस दुकान से खरीदनी चाहिए तथा रसीद सँभालकर रखनी चाहिए। एक तरफ़ मुझे अपनी साइकिल चोरी हो जाने का दुख था तो दूसरी तरफ़ संवेदना प्रकट करने वालों की ऊल-जलूल बातों से परेशानी हो रही थी।

18. जेब कटने पर

यह घटना पिछले साल की है। परीक्षाएँ समाप्त होने के बाद मैं अपने ननिहाल जाने के लिए बस अड्डे पहुँचा। बस अड्डे पर उस दिन काफ़ी भीड़ थी। स्कूलों में छुट्टियाँ हो जाने पर बहुत-से माता-पिता अपने बच्चों को लेकर कहींन-कहीं छुट्टियाँ बिताने जा रहे थे। मेरे गाँव को जाने वाली बस में काफ़ी भीड़ थी। मैं जब बस में सवार हुआ तो बस में बैठने की कोई जगह खाली न थी। मैं भी अपने सामान का बैग कंधे पर लटकाए खड़ा हो गया। कुछ ही देर में बस खचाखच भर चुकी थी परंतु बस वाले अभी बस चलाने को तैयार नहीं थे। वे और सवारियों को चढ़ा रहे थे।

जब बस के अंदर तिल धरने को भी जगह न रही तो कंडक्टर ने सवारियों को बस की छत पर चढ़ाना शुरू कर दिया। गरमियाँ अभी पूरी तरह से शुरू नहीं हुई थी फिर भी हम बस के अंदर खड़े-खड़े पसीने से लथपथ हो रहे थे। मेरे पीछे एक सुंदर लड़की खड़ी थी। बस चलने से कुछ देर पहले वह लड़की यह कहकर बस से उतर गई कि यहाँ तो खड़ा भी नहीं हुआ जाता। मैं अगली बस से चली जाऊँगी। बड़ी मुश्किल से बस ने चलने का नाम लिया। बस चलने के बाद कंडक्टर ने टिकटें बाँटना शुरू किया। थोड़ी देर में ही पीछे खड़े यात्रियों में से दो यात्रियों ने शोर मचाया कि उनकी किसी ने जेब काट ली है। कंडक्टर ने उन्हें बस रोककर बस से उतार दिया। कंडक्टर जब मेरे पास आया तो मैंने पैंट की पिछली जेब से जैसे ही बटुआ निकालने के लिए हाथ बढ़ाया। मैंने अनुभव किया कि मेरी जेब में बटुआ नहीं है। मैंने कंडक्टर को बताया कि मेरी जेब भी किसी ने काट ली है। सौभाग्य से मेरी दूसरी जेब में इतने पैसे थे कि मैं टिकट के पैसे दे. सकता।

कंडक्टर ने मुझे टिकट देते हुए कहा तुम फ़ैशन के मारे बटुए पैंट की पिछली जेब में रखोगे तो जेब कटेगी ही। मैं थोड़ा शर्मिंदा अनुभव कर रहा था। दूसरे यात्री हँस रहे थे कि मैं बस से उतारे जाने से बच गया। मुझे यह समझते देर न लगी कि जो फैशनेबल-सी लड़की मेरे पीछे खड़ी थी उसी ने मेरी जेब साफ़ की है। मेरी ही नहीं बल्कि दूसरे यात्रियों की जेबों की वही सफ़ाई कर गई है। मैं सोचने लगा कि बस अड्डे पर तो सरकार ने लिखा है कि जेबकतरों से सावधान रहें बसों में भी ऐसे बोर्ड लगवा देने चाहिए या फिर बस चालक गिनती से अधिक सवारियाँ बस में न चढ़ाएँ। इतनी भीड़ में तो किसी की भी जेब कट सकती है।

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19. जीवन की अविस्मरणीय घटना

आज मैं दसवीं कक्षा में हूँ। माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो। मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। हाँ, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ। मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं। एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनंद-विभोर हो उठता हूँ। घटना कुछ इस तरह से है। कोई दो-तीन साल पहले की घटना है। मैंने एक दिन देखा कि हमारे आँगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है।

मैं उस बच्चे को उठा कर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किंतु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है। मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया। पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश-सा लगता था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिए। यह देख कर मैं प्रसन्न हुआ। मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उसकी टाँग में चोट आई है। मैंने अपने छोटे भाई को माँ से मरहम की डिबिया लाने के लिए कहा। वह तुरंत मरहम की डिबिया ले आया। उसमें से थोड़ी-सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई। मरहम लगाते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई। वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था। मेरा छोटा भाई भी उसके पंखों पर हाथ फेरकर खुश हो रहा था। कोई घंटा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा। मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था।

मैंने छोटे भाई से रोटी मँगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी। वह उसे खाने लगा। हम दोनों भाई उसे खाते हुए देखकर खुश हो रहे थे। मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया। रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई। दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है। वह मुझे देख चींची करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था। एक-दो दिनों में ही उसका घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया। वह उड़ गया। मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनंद प्राप्त हुआ उसे मैं जीवनभर नहीं भुला पाऊँगा।

20. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं परंतु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सबसे आगे रहा किंतु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनोंदिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यंत रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला। यह मैच सुभाष एकादश और चंद्र एकादश की टीमों के बीच चेन्नई के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए देशभर में जानी जाती हैं।

दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय-स्तर के खिलाड़ी भाग ले रहे थे। चंद्र एकादश की टीम क्योंकि अपनी घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने सुभाष एकादश को मैच के आरंभिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फॉरवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किए। सुभाष एकादश का गोलकीपर बहुत ही चुस्त और होशियार था उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। जब सुभाष एकादश ने तेजी पकड़ी तो देखते-ही-देखते चंद्र एकादश के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर चंद्र एकादश की टीम ने एक-जुट होकर दो-तीन बार सुभाष एकादश पर कड़े आक्रमण किए परंतु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच चंद्र एकादश को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। सुभाष एकादश ने कई अच्छे मूव बनाए। उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था।

इसी बीच सुभाष एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे चंद्र एकादश के खिलाड़ी हताश हो गए। चेन्नई के दर्शक भी उनके खेल को देखकर कुछ निराश हुए। मध्यांतर के समय सुभाष एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यांतर के बाद खेल बड़ी तेजी से शुरू हुआ। चंद्र एकादश के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दाएँ कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर सुभाष एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से चंद्र एकादश के जोश में ज़बरदस्त वृद्धि हो गई। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी से नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देखकर आनंद आ गया।

21. पत्थर तोड़ती मज़दूरिन

जून का महीना था। गरमी इतनी प्रचंड पड़ रही थी कि मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक सभी घबरा उठे थे। दूरदर्शन पर बीती रात बताया गया था कि गरमी का प्रकोप 46 डिग्री तक बढ़ जाने का अनुमान है। सड़कें सूनी हो गई थीं। यातायात भी मानो रुक गया हो। लगता था वृक्षों की छाया भी गरमी की भीषणता से घबराकर छाया तलाश रही थी। ऐसे में हमारे मुहल्ले के कुछ लड़के वृक्षों की छाया में क्रिकेट खेल रहे थे। उनमें मेरा छोटा भाई भी था।

मेरी माँ ने कहा उसे बुला लाओ कहीं लू न लग जाए। मैं उसे लेने के लिए घर से निकला तो मैंने कड़कती धूप और भीषण गरमी में एक मज़दूरिन को एक नए बन रहे मकान के पास पत्थर तोड़ते देखा। जहाँ वह स्त्री पत्थर तोड़ रही थी वहाँ आसपास कोई वृक्ष भी नहीं था। वह गरमी की भयंकरता की परवाह न करके भी हथौड़ा चलाए जा रही थी। उसके माथे से पसीना टपक रहा था। कभी-कभी वह उदास नज़रों से सामने वाले मकानों की ओर देख लेती थी। जिनके अमीर मालिक गरमी को भगाने के पूरे उपाय करके अपने घरों में आराम कर रहे थे। उसे देखकर मेरे मन में आया कि विधि की यह कैसी बिडंबना है कि जो लोग मकान बनाने वाले हैं वे तो कड़कती दुपहरी में काम कर रहे हैं और जिन लोगों के मकान बन रहे हैं वे इस कष्ट से दूर हैं।

मेरी सहानुभूति भरी नज़र को देखकर वह मज़दूरिन पहले तो कुछ ठिठकी किंतु फिर कुछ ध्यान कर अपने काम में व्यस्त हो गयी। उसकी नज़रें मुझे जैसे कह रही हों काम नहीं करूँगी तो रात को रोटी कैसे पकेगी। मैं वेतन भोगी नहीं दिहाड़ीदार मज़दूर हूँ। इस सामाजिक अन्याय को देखकर मेरा हृदय चीत्कार कर उठा। काश ! मैं इन लोगों के लिए कुछ कर सकता।

22. आँखों देखी दुर्घटना

रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह-सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहत-से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आए हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी। तभी मैंने वहाँ एक युवा दंपति को अपने छोटे बच्चे को बच्चागाड़ी में बैठाकर सैर करते देखा।

अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर से एक ताँगा आता हुआ दिखाई दिया। उस में चार-पाँच सवारियाँ भी बैठी थीं। बच्चागाड़ी वाले दंपति ने ताँगे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ़ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस ताँगे से टकरा गई। ताँगा चलाने वाला और दो सवारियाँ बुरी तरह से घायल हो गये थे। बच्चागाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चागाड़ी छूट गई। किंतु इस से पूर्व कि वह बच्चे समेत ताँगे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँचकर उनसे टकरा जाती, मेरे साथी ने भागकर उस बच्चागाड़ी को सँभाल लिया। कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उसकी कार को कोई खास क्षति नहीं पहुंची थी। माल रोड पर गश्त करने वाले पुलिस के तीन-चार सिपाही तुरंत घटना-स्थल पर पहुँच गए। उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और हस्पताल को फ़ोन किया।

चंद मिनटों में वहाँ ऐंब्युलेंस गाड़ी आ गई। हम सब ने घायलों को उठाकर ऐंब्युलेंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरंत वहाँ पहुँच गए। उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था। इस सैर-सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और ताँगा सामने आने पर ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ़ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुर्ती और चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दंपति ने उसका विशेष धन्यवाद किया।

23. हम ने मनाई पिकनिक

पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एकदम स्फूर्ति ला देता है। मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी। परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था। उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनायी जाए। अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गए। माधोपुर हैडवर्क्स हमारे नगर से दस कि० मी० दूरी पर था। हम सब ने अपने-अपने साइकिलों पर जाने का निश्चय किया।

पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया। रविवार को हम सब ने नाश्ता करने के बाद अपन-अपने लंच बॉक्स तैयार किए तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने अपने साइकिलों पर रख लिया। मेरे मित्र के पास एक छोटा सी०डी० प्लेयर भी था उसे भी अपने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मनपंसद गानों की सी०डी० भी रख ली। हम सब अपनी-अपनी साइकिल पर सवार होकर, हँसते-गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की अनुच्छेद लेखन ओर बढ़ चले। लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुंच गए। वहाँ हम ने प्रकृति को अपनी संपूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा।

चारों तरफ़ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल और मंद-मंद हवा बह रही थी। हम ने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी। हमने वहाँ एक दरी बिछा दी। साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गए थे, अतः हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया। हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फ़ोटो उतारी। थोड़ी देर सुस्ता कर हमने सी०डी० प्लेयर चला दिया और उसने गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे। कुछ देर तक हम ने इधर-उधर घूमकर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नजारा किया। दोपहर को हम सब ने अपने-अपने टिफ़न खोले और सबने मिल-बैठकर एक-दूसरे का भोजन बाँटकर खाया। उसके बाद हम ने वहाँ स्थित कैनाल रेस्ट हाउस रेस्टोराँ में जाकर चाय पी।

चाय-पान के बाद हम ने अपने स्थान पर बैठकर अंताक्षरी खेलनी शुरू की। इसके बाद हमने एकदूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आप बीती हँसी-मज़ाक की बातें बताईं। समय कितनी जल्दी बीत गया इसका हमें पता ही न चला। जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े।

24. पर्वतीय यात्रा

आश्विन महीने के नवरात्रों में पंजाब के अधिकतर लोग देवी दुर्गा माता के दरबार में हाजिरी लगवाने और माथा टेकने जाते हैं। पहले हम हिमाचल प्रदेश में स्थित माता चिंतपूर्णी और माता ज्वाला जी के मंदिरों में माथा टेकने जाया करते थे। इस बार हमारे मुहल्लेवासियों ने मिलकर जम्मू-क्षेत्र में स्थित माता वैष्णो देवी के दर्शनों को जाने का निर्णय किया। हमने एक बस का प्रबंध किया था जिसमें लगभग पचास के करीब बच्चे-बूढ़े और स्त्री-पुरुष सवार होकर जम्मू के लिए रवाना हुए। सभी परिवारों ने अपने साथ भोजन आदि सामग्री भी ले ली थी। पहले हमारी बस पठानकोट पहुँची वहाँ कुछ रुकने के बाद हम ने जम्मू-क्षेत्र में प्रवेश किया। हमारी बस टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्ते को पार करती हुई जम्मूतवी पहुँच गयी।

सारे रास्ते में दोनों तरफ़ अद्भुत प्राकृतिक दृश्य देखने को मिले जिन्हें देखकर हमारा मन प्रसन्न हो उठा। बस में सवार सभी यात्री माता की भेटें गा रहे थे और बीच में माँ शेरावाली का जयकारा भी बुला रहे थे। प्रातः सात बजे हम कटरा पहुँच गए। वहाँ एक धर्मशाला में हम ने अपना सामान रखा और विश्राम किया और वैष्णो देवी जाने के लिए टिकटें प्राप्त की। दूसरे दिन सुबह-सवेरे हम सभी माता की जय पुकारते हुए माता के दरबार की ओर चल पड़े। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है। कटरे से माता के दरबार तक जाने के दो मार्ग हैं। एक सीढ़ियों वाला मार्ग तथा दूसरा साधारण। हमने साधारण मार्ग को चुना। इस मार्ग पर कुछ लोग खच्चरों पर सवार होकर भी यात्रा कर रहे थे। मार्ग में हमने बाण-गंगा में स्नान किया। पानी बर्फ़-सा ठंडा था फिर भी सभी यात्री बड़ी श्रद्धा से स्नान कर रहे थे। कहते हैं यहाँ माता वैष्णो देवी ने हनुमान जी की प्यास बुझाने के लिए बाण चलाकर गंगा उत्पन्न की थी।

यात्रियों को बाण-गंगा में नहाना ज़रूरी माना जाता है अन्यथा कहते हैं कि माता के दरबार की यात्रा सफल नहीं होती। चढ़ाई बिलकुल सीधी थी। चढ़ाई चढ़ते हुए हमारी साँस फूल रही थी परंतु सभी यात्री माता की भेटें गाते हुए और माता की जय-जयकार करते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे। सारे रास्ते में बिजली के बल्ब लगे हुए थे और जगह-जगह पर चाय की दुकानें और पीने के पानी का प्रबंध किया गया था। कुछ ही देर में हम आदक्वारी नामक स्थान पर पहुँच गए। मंदिर के निकट पहुँचकर हम दर्शन करने वाले भक्तों की लाइन में खड़े हो गए। अपनी बारी आने पर हम ने माँ के दर्शन किए। श्रद्धापूर्वक माथा टेका और मंदिर से बाहर आ गए। आजकल मंदिर का सारा प्रबंध जम्मू-कश्मीर की सरकार एवं एक ट्रस्ट की देख-रेख में होता है। सभी प्रबंध बहुत अच्छे एवं सराहना के योग्य थे। घर लौटते तक हम सभी माता के दर्शनों के प्रभाव का अनुभव करते रहे।

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25. ऐतिहासिक यात्रा

यह बात पिछली गरमियों की है। मुझे मेरे मित्र का पत्र प्राप्त हुआ जिसने मुझे कुछ दिन उसके साथ आगरा में बिताने का निमंत्रण दिया गया था। यह निमंत्रण पाकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ। किसी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान को देखने का मुझे अवसर मिल रहा था। मैंने अपने पिता से बात की तो उन्होंने खुशी-खुशी मुझे आगरा जाने की अनुमति दे दी। मैं रेल द्वारा आगरा पहुँचा। मेरा मित्र मुझे स्टेशन पर लेने आया हुआ था। वह मुझे अपने घर ले गया। उस दिन पूर्णिमा थी और कहते हैं पूर्णिमा की चाँदनी में ताजमहल को देखने का आनंद ही कुछ और होता है। रात के लगभग नौ बजे हम घर से निकले। दूर से ही ताजमहल के मीनारों और गुंबदों का दृश्य दिखाई दे रहा था।

हमने प्रवेश-द्वार से टिकट खरीदे और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे। भारत सरकार ने ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए कई उपाय किए हैं जिनमें यात्रियों की संख्या को नियंत्रित करना भी एक है। ताजमहल के चारों ओर लाल पत्थर की दीवारें हैं जिसमें एक बहुत बड़ा सुंदर उद्यान है जिसकी सजावट और हरियाली देखकर मन मोहित हो उठता है। हमने ताजमहल परिसर में जब प्रवेश किया तो देखा कि अंदर देशी कम विदेशी पर्यटक अधिक थे। ताजमहल तक जाने के लिए सबसे पहले एक बहुत ऊँचे और सुंदर द्वार से होकर जाना पड़ता है। ताजमहल उद्यान के एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है जो सफ़ेद संगमरमर का बना है। इसका गुंबद बहुत ऊँचा है उसके चारों ओर बड़ी-बड़ी मीनारें हैं। ताजमहल के पश्चिम की ओर यमुना नदी बहती है। यमुना जल में ताज की परछाईं बहुत सुंदर और मोहक लग रही थी। हम ने ताजमहल के भीतर प्रवेश किया। सबसे नीचे के भवन में मुगल सम्राट शाहजहाँ और उसकी पत्नी और प्रेमिका मुमताज महल की कब्रे हैं।

उन पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है और बहुत-से रंग-बिरंगे बेलबूटे बने हुए हैं। इस कमरे के ठीक ऊपर एक ऐसा ही भाग है। सौंदर्य की दृष्टि से भी उसका विशेष महत्त्व है। कहते हैं इसमें बनी संगमरमर की जाली की जगह पहले सोने की बनी जाली थी जिसे औरंगजेब ने हटवा दिया था। कहते हैं कि ताजमहल के निर्माण में बीस वर्ष लगे थे और उस युग में तीस लाख रुपये खर्च हुए थे। इसे बनाने में तीस हज़ार मजदूरों ने योगदान किया था। यह स्मारक बादशाह ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था। इसे संसार के सात आश्चर्यों में भी गिना जाता है। दुनियाभर से हर वर्ष लाखों लोग इसे देखने के लिए आते हैं।

26. जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जब तक वह समाज से संपर्क स्थापित नहीं करता तब तक उसके जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। समाज में कई प्रकार के लोग होते हैं। कुछ सदाचारी हैं तो कुछ दुराचारी। हमें ऐसे लोगों की संगति करनी चाहिए जो हमारे जीवन को उन्नत एवं निर्मल बनाएँ। अच्छी संगति का प्रभाव अच्छा तथा बुरी संगति का प्रभाव बुरा होता है। क्योंकि ‘जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत’ कहा भी है कि किसी व्यक्ति के आचरण को जानने के लिए उसकी संगति को जानना चाहिए। क्योंकि दुष्टों के साथ रहने वाला व्यक्ति भला हो ही नहीं सकता। संगति का प्रभाव जाने अथवा अनजाने अवश्य पड़ता है। बचपन में जो बालक परिवार अथवा मुहल्ले में जो कुछ सुनते हैं, प्रायः उसी को दोहराते हैं।

कहा गया है “दुर्जन यदि विद्वान् भी हो तो उसकी संगति छोड़ देना चाहिए। मणि धारण करने वाला साँप क्या भयंकर नहीं होता?” सत्संगति का हमारे चरित्र के निर्माण में बड़ा हाथ रहता है। अच्छी पुस्तकों का अध्ययन भी सत्संग से कम नहीं। विद्वान् लेखक अपनी पुस्तक रूप में हमारे साथ रहता है। अच्छी पुस्तकें हमारी मित्र एवं पथप्रदर्शक हैं। महान् व्यक्तियों के संपर्क ने अनेक व्यक्तियों के जीवन को कंचन के समान बहुमूल्य बना दिया। दुष्टों एवं दुराचारियों का संग मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है। मनुष्य को विवेक प्राप्त करने के लिए सत्संगति का आश्रय लेना चाहिए। अपनी और समाज की उन्नति के लिए सत्संग से बढ़कर दूसरा साधन नहीं है। अच्छी संगति आत्म-बल को बढ़ाती है तथा सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

27. सब दिन होत न एक समान

जीवन को जल की संज्ञा दी गई है। जल कभी सम भूमि पर बहता है तो कभी विषम भूमि पर। कभी रेगिस्तान की भूमि उसका शोषण करती है तो कभी वर्षा की धारा उसके प्रवाह को बढ़ा देती है। मानव-जीवन में भी कभी सुख का अध्याय जुड़ता है तो कभी दुख अपने पूरे दल-बल के साथ आक्रमण करता है। प्रकृति में दुख-सुख की धूप-छाया के दर्शन होते हैं। प्रात:काल का समय सुख का प्रतीक है तो रात्रि दुख का। विभिन्न ऋतुएँ भी जीवन के विभिन्न पक्षों की प्रतीक हैं। राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा है-
संसार में किसका समय है एक सा रहता सदा,
है निशा दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा-संपदा।
संसार के बड़े-बड़े शासकों का समय भी एक-सा नहीं रहा है। अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफ़र का करुण अंत इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य का समय हमेशा एक-सा नहीं रहता। जो आज दीन एवं दुखी है वह कल वैभव के झूले में झूलता दिखाई देता है। जो आज सुख-संपदा एवं ऐश्वर्य में डूबा हुआ है, संभव है भाग्य के विपरीत होने के कारण उसे दर-दर की ठोकरें खाने पर विवश होना पड़े। जो वृक्ष, लताएँ एवं पौधे वसंत ऋतु में वातावरण को मादकता प्रदान करते हैं, वही पतझड़ में वातावरण को नीरस बना देते हैं। जीवन सुख-दुख, आशा-निराशा एवं हर्ष-विषाद का समन्यव है। एक ओर जीवन का उदय है तो दूसरी ओर जीवन का अस्त। अतः ठीक ही कहा गया है-‘सब दिन होत न एक समान।’

28. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपिगरीयसी

इस कथन का भाव है, “जननी और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊँचा है।” जो व्यक्ति अपनी माँ से और भूमि से प्रेम नहीं करता, वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। देश-द्रोह एवं मातृद्रोह से बड़ा अपराध कोई और नहीं है। यह ऐसा अपराध है जिसका प्रायश्चित्त संभव ही नहीं है। देश-प्रेम की भावना ही मनुष्य को यह प्रेरणा देती है कि जिस भूमि से उसका भरण-पोषण हो रहा है, उसकी रक्षा के लिए उसे अपना सब कुछ अर्पित कर देना उसका परम कर्तव्य है। जननी एवं जन्मभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवधारियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अतः उसके हृदय में देशानुराग की भावना का उदय स्वाभाविक है। मरुस्थल में रहने वाले लोग हाँफ-हाँफ कर जीते हैं, फिर भी उन्हें अपनी जन्मभमि से अगाध प्रेम है। ध्रववासी अत्यंत शीत के कारण अंधकार तथा शीत में काँप-काँप कर तो जीवन व्यतीत कर लेते हैं, पर अपनी मातृभूमि का बाल-बाँका नहीं होने देते। मुग़ल साम्राज्य के अंतिम दीप सम्राट् बहादुरशाह जफ़र की रंगून के कारागार से लिखी ये पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं-
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़न के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कूचा-ए-यार में।
जिस देश के लोग अपनी मातृ-भूमि से जितना अधिक स्नेह करते हैं, वह देश उतना ही उन्नत माना जाता है। देशप्रेम की भावना ने ही भारत की पराधीनता की जंजीरों को काटने के लिए देश-भक्तों को प्रेरित किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के प्रति हमारा कर्त्तव्य और भी बढ़ गया है। इस कर्त्तव्य की पूर्ति हमें जी-जान लगाकर करनी चाहिए।

29. नेता नहीं, नागरिक चाहिए

लोगों के नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को नेता कहते हैं। आदर्श नेता एक मार्ग-दर्शक के समान है जो दूसरों को सुमार्ग की ओर ले जाता है। आदर्श नागरिक ही आदर्श नेता बन सकता है। आज के नेताओं में सद्गुणों का अभाव है। वे जनता के शासक बनकर रहना चाहते हैं, सेवक नहीं। उनमें अहं एवं स्पर्धा का भाव भी पाया जाता है। वर्तमान भारत की राजनीति इस तथ्य की परिचायक है कि नेता बनने की होड़ ने आपसी राग-द्वेष को ही अधिक बढ़ावा दिया है। इसीलिए यह कहा गया है-नेता नहीं नागरिक चाहिए। नागरिक को अपने कर्त्तव्य एवं अधिकारों के बीच समन्वय रखना पड़ता है। यदि नागरिक अपने समाज के प्रति अपने कर्त्तव्य का समुचित पालन करता है तो राष्ट्र किसी संकट का सामना कर ही नहीं सकता।

नेता बनने की तीव्र लालसा ने नागरिकता के भाव को कम कर दिया है। नागरिक के पास राजनीतिक एवं सामाजिक दोनों अधिकार रहते हैं। अधिकार की सीमा होती है। हमारे ही नहीं दूसरे नागरिकों के भी अधिकार होते हैं। अतः नागरिक को अपने कर्तव्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। नेता अधिकारों की बात ज़्यादा जानता है, लेकिन कर्त्तव्यों के प्रति उपेक्षा भाव रखता है। उत्तम नागरिक ही उत्तम नेता होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह परम कर्त्तव्य है कि वह अपने आपको एक अच्छा नागरिक बनाए। नागरिक में नेतृत्व का भाव स्वयंमेव आ जाता है। नेता का शाब्दिक अर्थ है जो दूसरों को आगे ले जाए अर्थात् अपने साथियों के प्रति सहायता एवं सहानुभूति का भाव अपनाए। अतः देश को नेता नहीं नागरिक चाहिए।

30. आलस्य दरिद्रता का मूल है

जो व्यक्ति श्रम से पलायन करके आलस्य का जीवन व्यतीत करते हैं वे कभी भी सुख-सुविधा का आनंद प्राप्त नहीं कर सकते। कोई भी कार्य यहाँ तक कि स्वयं का जीना भी बिना काम किए संभव नहीं। यह ठीक है कि हमारे जीवन में भाग्य का बड़ा हाथ है। दुर्भाग्य के कारण संभव है मनुष्य को विकास और वैभव के दर्शन न हों पर परिश्रम के बल पर वह अपनी जीविका के प्रश्न को हल कर ही सकता है। यदि ऐसा न होता तो श्रम के महत्त्व का कौन स्वीकार करता। कुछ लोगों का विचार है कि भाग्य के अनुसार ही मनुष्य सुख-दुख भोगता है। दाने-दाने पर मोहर लगी है, भगवान् सबका ध्यान रखता है। जिसने मुँह दिया है, वह खाना भी देगा। ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि भाग्य का निर्माण भी परिश्रम द्वारा ही होता है। राष्ट्रकवि दिनकर ने ठीक ही कहा है-
ब्रह्मा ने कुछ लिखा भाग्य में, मनुज नहीं लाया है।
उसने अपना सुख, अपने ही भुजबल से पाया है।

भगवान् ने मुख के साथ-साथ दो हाथ भी दिए हैं। इन हाथों से काम लेकर मनुष्य अपनी दरिद्रता को दूर कर सकता है। हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने वाला व्यक्ति आलसी होता है। जो आलसी है वह दरिद्र और परावलंबी है क्योंकि आलस्य दरिद्रता का मूल है। आज इस संसार में जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह श्रम का ही परिणाम है। यदि सभी लोग आलसी बने रहते तो ये सड़कें, भवन, अनेक प्रकार के यान, कला-कृतियाँ कैसे बनती? श्रम से उगले मिट्टी सोना परंतु आलस्य से सोना भी मिट्टी बन जाता है। अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की दरिद्रता दूर करने के लिए आलस्य को परित्याग कर परिश्रम को अपनाने की आवश्यकता है। हमारे राष्ट्र में जितने हाथ हैं, यदि वे सभी काम में जुट जाएँ तो सारी दरिद्रता बिलख-बिलखकर विदा हो जाएगी। आलस्य ही दरिद्रता का मूल है।

31. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत

मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता दिखा सकता है। यदि उसका मन हार गया तो बड़े-बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं।

मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अत: ठीक ही कहा गया है-“मन के हारे हार है मन के जीते जीत।”

32. बादलों से घिरा आकाश

आकाश की शोभा बादल हैं। बादलों के बिना आकाश शून्य है। जब आकाश में बादल घिरते हैं तो आकाश का रूप । अत्यंत मोहक एवं आकर्षक बन जाता है। जब आकाश में बादल इधर-उधर विचरते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो हाथी मस्त होकर झूम रहे हों। बादलों की गर्जन वातावरण में संगीत भर देती है। बीच-बीच में बिजली की कौंध भी आकर्षक प्रतीत होती है। श्याम बादलों की छाया में प्राणी का हृदय आनंदित हो उठता है। ग्रीष्म ऋतु की झुलसा देने वाली लू से छुटकारा दिलाने वाला पावन ऋतु बादलों की रानी है। विज्ञान ने मानव की सेवा में अनेक साधन जुटाए हैं, लेकिन जो वरदान प्रकृति के पास है वह विज्ञान के पास कहाँ? जब प्रकृति प्रसन्न होती है तो स्वर्ग-सा दृश्य बन जाता है।

फूल महकने लगते हैं। भ्रमर गूंजने लगते हैं। बादलों से घिरा आकाश मनुष्य के हृदय को ही उल्लासित नहीं करता, पशु-पक्षी तक प्रसन्नता से झूमने लगते हैं। बादलों के बरस जाने के बाद तो दृश्य ही बदल जाता है। संतप्त धरा शांत हो जाती है। पेड़-पौधों में नव-जीवन का संचार होने लगता है। सर्वत्र हरियाली का दृश्य छा जाता है। शीतल हवा के झोंके शरीर को सुखद प्रतीत होते हैं। धरती से मीठी-मीठी सुगंध उठने लगती है। किसान बीज बोने की तैयारी करने लगते हैं। वर्षा का जल तो ईश्वरीय कृपा का जल है।

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33. सबै सहायक सबल के

यह संसार शक्ति का लोहा मानता है। लोग चढ़ते सूर्य की पूजा करते हैं। शक्तिशाली की सहायता के लिए सभी तत्पर रहते हैं लेकिन निर्बल को कोई नहीं पूछता। वायु भी आग को तो भड़का देती है, पर दीपक को बुझा देती है। दीपक निर्बल है, कमज़ोर है, इसलिए वायु का उस पर पूर्ण अधिकार है। व्यावहारिक जीवन में भी हम देखते हैं कि जो निर्धन है, वे और निर्धन बनते जाते हैं, और जो धनवान हैं उनके पास और धन चला आ रहा है। इसका एकमात्र कारण यही है कि सबल की सभी सहायता कर रहे हैं और निर्धन उपेक्षित हो रहा है। सर्वत्र जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। सामाजिक जीवन से लेकर अंतर्राष्ट्रीय जीवन तक यह भावना काम कर रही है।

एक शक्तिशाली राष्ट्र दूसरे शक्तिशाली राष्ट्र की सहायता सहर्ष करता है जबकि निर्धन देशों को शक्ति संपन्न देशों के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है। परिवार जैसे सीमित क्षेत्र में भी प्राय: यह देखने को मिलता है कि जो धनवान हैं, उनके प्रति सत्कार एवं सहायता की भावना अधिक होती है। घर में जब कभी कोई धनवान आता है तो उसकी खूब सेवा की जाती है, लेकिन जब द्वार पर भिखारी आता है तो उसको दुत्कार दिया जाता है। निर्धन ईमानदारी एवं सत्य के पथ पर चलता हुआ भी अनेक कष्टों का सामना करता है जबकि शक्तिशाली दुराचार एवं अन्याय के पथ पर बढ़ता हुआ भी दूसरों की सहायता प्राप्त करने में समर्थ होता है। इसका कारण यही है कि उसके पास शक्ति है तथा अपने कुकृत्यों को छिपाने के लिए साधन हैं। अत: वृंदकवि का यह कथन बिलकुल सार्थक प्रतीक होता है-सबै सहायक सबल के, कोऊ न निबल सहाय।

34. सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के अभाव में उसका जीवन-निर्वाह संभव नहीं। सामाजिकों के साथ हमारे संबंध अनेक प्रकार के हैं। कुछ हमारे संबंधी हैं, कुछ परिचित तथा कुछ मित्र होते हैं। मित्रों में भी कुछ विशेष प्रिय होते हैं। जीवन में यदि सच्चा मित्र मिल जाए तो समझना चाहिए कि हमें बहुत बड़ी निधि मिल गई है। सच्चा मित्र हमारा मार्ग प्रशस्त करता है। वह दिन प्रतिदिन हमें उन्नति की ओर ले जाता है। उसके सद्व्यवहार से हमारे जीवन में निर्मलता का प्रसार होता है। दुख के दिनों में वह हमारे लिए विशेष सहायक होता है। जब हम निरुत्साहित होते हैं तो वह हम में उत्साह भरता है। वह हमें कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है। सुदामा एवं कृष्ण की तथा राम एवं सुग्रीव की आदर्श मित्रता को कौन नहीं जानता। श्रीकृष्ण ने अपने दरिद्र मित्र सुदामा की सहायता कर उसके जीवन को ऐश्वर्यमय बना दिया था। राम ने सुग्रीव की सहायता कर उसे सब प्रकार के संकट से मुक्त कर दिया।

सच्चा मित्र कभी एहसान नहीं जतलाता। वह मित्र की सहायता करना अपना कर्तव्य समझता है। वह अपनी दरिद्रता एवं अपने दुख की परवाह न करता हुआ अपने मित्र के जीवन में अधिक-से-अधिक सौंदर्य लाने का प्रयत्न करता है। सच्चा मित्र जीवन के बेरंग खाके में सुखों के रंग भरकर उसे अत्यंत आकर्षक बना देता है, अत: ठीक ही कहा गया है “सच्चे मित्र से जीवन में सौंदर्य आता है।”

35. जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है

प्रत्येक मनुष्य अपनी रुचि के अनुसार अपना जीवन लक्ष्य निर्धारित करता है। कोई व्यापारी बनना चाहता है तो कोई कर्मचारी, कोई इंजीनियर बनने की लालसा से प्रेरित है तो कोई डॉक्टर बनकर घर भरना चाहता है। स्वार्थ पूर्ति के लिए किया गया काम उच्चकोटि की संज्ञा नहीं पा सकता। स्वार्थ के पीछे तो संसार पागल है। लोग भूल गए हैं कि जीवन का रहस्य निष्काम सेवा है। जो व्यक्ति काम-भावना से प्रेरित होकर काम करता है, वह कभी भी सुपरिणाम नहीं ला सकता। उससे कोई लाभ हो भी तो वह केवल व्यक्ति विशेष को ही होता है। समाज को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। निष्काम सेवा के द्वारा ही मनुष्य समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभा सकता है। कबीरदास ने भी अपने एक दोहे में यह स्पष्ट किया है-
जब लगि भक्ति सकाम है, तब लेगि निष्फल सेव।
कह कबीर वह क्यों मिले निहकामी निज देव॥

निष्काम सेवा के द्वारा ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। समाज एवं देश को उन्नति की ओर ले जाने का श्रेष्ठतम तथा सरलतम साधन निष्काम सेवा है। हमारे संत कवियों तथा समाज-सुधारकों ने इसी भाव से प्रेरित होकर अपनी चिंता छोड़ देश और जाति के कल्याण की। इसलिए वे समाज और राष्ट्र के लिए कुछ कर सके। अपने लिए तो सभी जीते हैं। जो दूसरों के लिए जीता है, उसका जीवन अमर हो जाता है। तभी तो गुप्तजी ने कहा है-‘वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।”

36. भीड़ भरी बस की यात्रा का अनुभव

वैसे तो जीवन को ही यात्रा की संज्ञा दी गई है पर कभी-कभी मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए गाड़ी अथवा बस का भी सहारा लेना पड़ता है। बस की यात्रा का अनुभव भी बड़ा विचित्र है। भारत जैसे जनसंख्या प्रधान देश में बस की यात्रा अत्यंत असुविधानजनक है। प्रत्येक बस में सीटें तो गिनती की हैं पर बस में चढ़ने वालों की संख्या निर्धारित करना एक जटिल कार्य है। भले ही बस हर पाँच मिनट बाद चले पर चलेगी पूरी तरह भर कर। गरमियों के दिनों में तो यह यात्रा किसी भी यातना से कम नहीं। भारत के नगरों की अधिकांश सड़कें सम न होकर विषम हैं। खड़े हुए यात्री की तो दुर्दशा हो जाती है, एक यात्री दूसरे यात्री पर गिरने लगता है। कभी-कभी तो लड़ाई-झगड़े की नौबत पैदा हो जाती है। लोगों की जेबें कट जाती हैं। जिन लोगों के कार्यालय दूर हैं, उन्हें प्रायः बस का सहारा लेना ही पड़ता है।

बस-यात्रा एक प्रकार से रेल-यात्रा का लघु रूप है। जिस प्रकार गाड़ी में विभिन्न जातियों एवं प्रवृत्तियों के लोगों के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार बस में भी अलग-अलग विचारों के लोग मिलते हैं। इनसे मनुष्य बहुत कुछ सीख भी सकता है। भीड़ भरी बस की यात्रा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का छोटा-सा शिक्षालय है। यह यात्रा इस तथ्य की परिचायक है कि भारत अनेक क्षेत्रों में अभी तक भरपूर प्रगति नहीं कर सका। जो व्यक्ति बसयात्रा के अनुभव से वंचित है, वह एक प्रकार से भारतीय जीवन के बहुत बड़े अनुभव से ही वंचित है।

37. हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ

इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है, उस सबके पीछे विधि का प्रबल हाथ है। मनुष्य के भविष्य के विषय में बड़े-बड़े ज्योतिषी भी सही अनुमान नहीं लगा सकते। भाग्य रूपी नर्तकी के क्रिया-कलाप बड़े विचित्र हैं। विधि के विधान पर भले कोई रीझे अथवा शोक मनाए पर होनी होकर और अपना प्रभाव दिखाकर रहती है। मनुष्य तो विधि के हाथ का खिलौना मात्र है। हमारे भक्त कलाकारों ने विधि की प्रबल शक्ति के आगे नत-मस्तक होकर जीवन की प्रत्येक स्थिति पर संतोष प्रकट करने की प्रेरणा दी है। उक्त उक्ति जीवन संबंधी गहन अनुभव का निष्कर्ष है।

जो व्यक्ति जीवन के सुखद एवं दुखद अनुभवों का भोक्ता बन चुका है, वह बिना किसी तर्क के इस उक्ति का समर्थन करेगा-“हानिलाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ” मनुष्य सोचता कुछ है पर विधाता और भाग्य को कुछ और ही स्वीकार होता है। मनुष्य लाभ के लिए काम करता है, दिन-रात परिश्रम करता है, वह काम की सिद्धि के लिए एड़ीचोटी का पसीना एक कर देता है, लेकिन परिणाम उसकी आशा के सर्वथा विपरीत भी हो सकता है। मनुष्य जीने की लालसा में न जाने क्या कुछ करता है पर जब मौत अनायास ही अपने दल-बल के साथ आक्रमण करती है तो सब कुछ धरे का धरा रह जाता है। मनुष्य समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है, पर उसे मिलती है बदनामी और निराशा। इतिहास में असंख्य उदाहरण हैं जो उक्त कथन के साक्षी रूप में प्रस्तुत किए जा सकते हैं।

राम, कृष्ण, जगत जननी सीता एवं सत्य के उपासक राजा हरिश्चंद्र तक विधि की विडंबना से नहीं बच सके। तब सामान्य मनुष्य की बात ही क्या है? वह व्यर्थ में ही अपनी शक्ति एवं साधनों की डींगे हाँकता है। उक्त उक्ति में यह संदेश निहित है कि मनुष्य को अपने जीवन में आने वाली प्रत्येक आपदा का सामना करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। कबीरजी ने भी कहा है कि-“करम गति टारे नाहिं टरे।”

38. दैव दैव आलसी पुकारा

इस उक्ति का अर्थ है कि आलसी व्यक्ति ही भाग्य की दुहाई देता है। वह भाग्य के भरोसे ही जीवन बिता देना चाहता है। सुख प्राप्त होने पर वह भाग्य की प्रशंसा करता है और दुख आने पर वह भाग्य को कोसता है। यह ठीक है कि भाग्य का भी हमारे जीवन में महत्त्व है, लेकिन आलसी बनकर बैठे रहना तथा असफलता प्राप्त होने पर भाग्य को दोष देना किसी प्रकार भी उचित नहीं। प्रयास और परिश्रम की महिमा कौन नहीं जानता? परिश्रम के बल पर मनुष्य भाग्य की रेखाओं को बदल सकता है। परिश्रम सफलता की कुंजी है। कहा भी है-“यदि पुरुषार्थ मेरे दाएँ हाथ में है तो विजय बाएँ हाथ में।” परिश्रम से मिट्टी भी सोना उगलती है। आलसी एवं कामचोर व्यक्ति ही भाग्य के लेख पढ़ते हैं।

वही ज्योतिषियों का दरवाजा खटखटाते हैं। कर्मठ व्यक्ति तो बाहबल पर भरोसा करते हैं। परिश्रमी व्यक्ति स्वावलंबी, ईमानदार, सत्यवादी एवं चरित्रवान होता है। आलसी व्यक्ति जीवन में कभी प्रगति नहीं कर सकता। आलस्य जीवन को जड़ बनाता है। आलसी परावलंबी होता है। वह कभी भी पराधीनता के बंधन से मुक्त नहीं हो सकता। वह भाग्य के भरोसे रहकर जीवन-भर दुख भोगता रहता है।

39. आवश्यकता आविष्कार की जननी है

आवश्यकता अनेक आविष्कारों को जन्म देती है। शारीरिक तथा बौद्धिक दोनों प्रकार के बल का उपयोग करके मनुष्य ने अपने लिए अनेक सुविधाएँ जुटाई हैं। इन्हीं आविष्कारों के बल पर मनुष्य आज सुख-सुविधा के झूले में झूल रहा है। जब उसने अनुभव किया कि बैलगाड़ी की यात्रा न सुविधाजनक है और न ही इससे समय की बचत होती है। तो उसने तेज़ गति से चलने वाले वाहनों का आविष्कार किया। रेल, कार तथा वायुयान आदि उसकी आवश्यकता की पूर्ति करने वाले साधन हैं। बिजली के अनेक चमत्कार, टेलीफ़ोन आदि भी मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति करने वाले साधन हैं। इन आविष्कारों की कोई सीमा नहीं। जैसे-जैसे मानव-जाति की आवश्यकता बढ़ती है वैसे-वैसे नए आविष्कार हमारे सामने आते हैं। मनुष्य की बुद्धि के विकास के साथ ही आविष्कारों की भी संख्या बढ़ती जाती है। अत: यह ठीक ही कहा है कि ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है।’

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40. आत्म-निर्भरता

आत्म-निर्भरता अथवा स्वावलंबन का अर्थ है-अपना सहारा आप बनना। बिना किसी की सहायता लिए अपना कार्य सिद्ध कर लेना आत्म-निर्भरता कहलाता है। आत्म-निर्भरता का यह अर्थ कदापि नहीं कि मनुष्य हर काम में मनमर्जी करे। आवश्यकतानुसार उसे दूसरों से परामर्श भी लेना चाहिए। आत्म-निर्भरता का गुण साधन एवं परिश्रम से आता है। आत्मविश्वास आत्म-निर्भरता का मूल आधार है। आत्मविश्वास के अभाव में आत्म-निर्भरता का गुण नहीं आता। आत्मनिर्भरता का गुण मनुष्य का एकमात्र सच्चा मित्र है। अन्य मित्र तो विपत्ति में साथ छोड़ सकते हैं, पर इस मित्र के बल पर मनुष्य चाहे तो विश्व-विजय का सपना साकार कर सकता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रता-प्रिय होता है। वह अपने उद्धार के साथ-साथ देश और जाति का उद्धार करने में भी समर्थ होता है। जिस देश के प्रत्येक नागरिक में आत्म-निर्भरता का गुण होता है, वह प्रत्येक क्षेत्र में भरपूर उन्नति कर सकता है।

41. करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान

निरंतर अभ्यास से मूर्ख मनुष्य भी मेधावी बन सकता है। जिस प्रकार रस्सी के निरंतर आने-जाने से शिला पर निशान पड़ जाते हैं। उसी प्रकार अभ्यास से मनुष्य जड़मति से सुजान हो जाता है। यह ठीक है कि गधे को पीट-पीटकर घोड़ा तो नहीं बनाया जा सकता, किंतु निरंतर अभ्यास और प्रयत्न से अनेकानेक गुणों का विकास किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, कवियों में कविता करने की शक्ति ईश्वर-प्रदत्त होती है, परंतु निरंतर अभ्यास से भी कविता संपादित की जा सकती है। सच तो यह है कि अभ्यास सबके लिए आवश्यक है। कोई भी कलाकार बिना अभ्यास के सफलता की चरम-सीमा को नहीं छू सकता। परिपक्वता अभ्यास से ही आती है। जब हम किसी भी काम को सीखना चाहते हैं तो उसके लिए अभ्यास अनिवार्य है। एक अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए नित्य प्रति खेलने का अभ्यास आवश्यक है तो एक अच्छा संगीतकार बनने के लिए निरंतर स्वर-साधना का अभ्यास अपेक्षित है।

42. अधजल गगरी छलकत जाय

जल से आमुख भरी गगरी चुपचाप बिना उछले चलती है। आधी भरी हुई जल की मटकी उछल-उछलकर चलती है। ठीक यही स्वभाव मानव मन का भी है। वास्तविक विद्वान् विनम्र हो जाते हैं। नम्रता ही उनकी शिक्षा का प्रतीक होता है। दूसरी ओर जो लोग अर्द्ध-शिक्षित होते हैं अथवा अर्द्ध-समृद्ध होते हैं, वे अपने ज्ञान अथवा धन की डींग बहुत हाँकते हैं। अर्द्ध-शिक्षित व्यक्ति का डींग हाँकना बहुत कुछ मनोवैज्ञानिक भी है। वे लोग अपने ज्ञान का प्रदर्शन करके अपनी अपूर्णता को ढकना चाहते हैं। उनके मन में अपने अधूरेपन के प्रति एक प्रकार की हीनता का मनोभाव होता है जिसे वे प्रदर्शन के माध्यम से झूठा प्रभाव उत्पन्न करके समाप्त करना चाहते हैं।

यही कारण है कि मध्यमवर्गीय व्यक्तियों के जीवन जितने आडंबरपूर्ण, प्रपंचपूर्ण एवं लचर होते हैं उतने निम्न या उच्चवर्ग के नहीं। उच्चवर्ग में शिक्षा, धन और समृद्धि रच जाती है। इस कारण ये चीजें महत्त्व को बढ़ाने का साधन नहीं बनती। मध्यमवर्गीय व्यक्ति अपनी हर समृद्धि को, अपने गुण को, अपने महत्त्व को हथियार बनाकर चलाता है। प्रायः यह व्यवहार देखने में आता है कि अंग्रेज़ी की शिक्षा से अल्प परिचित लोग अंग्रेजी बोलने तथा अंग्रेजी में निमंत्रण-पत्र छपवाने में अधिक गौरव अनुभव करते हैं। अत: यह सत्य है कि अपूर्ण समृद्धि प्रदर्शन को जन्म देती है अर्थात् अधजल गगरी छलकत जाय।

43. निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

अपनी भाषा के उत्थान के बिना व्यक्ति उन्नति ही नहीं कर सकता। भाषा अभिव्यक्ति का प्रमुख माध्यम है। भाषा सामाजिक जीवन का अपरिहार्य अंग है। इसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अपनी भाषा में अपने मन के विचारों को प्रकट करने में सुविधा रहती है। विदेशी भाषा कभी भी हमारे भावों को उतनी गहरी अभिव्यक्ति नहीं दे सकती जितनी हमारी मातृभाषा। महात्मा गांधीजी ने भी इसी बात को ध्यान में रखकर मातृ-भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया था। हमारे देश में अंग्रेज़ी के प्रयोग पर इतना अधिक बल दिए जाने के उपरांत भी अपेक्षित सफलता इसी कारण नहीं मिल पा रही है क्योंकि इसके द्वारा हम अपने विचारों को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं दे सकते। हम हीनता की भावना का शिकार हो रहे हैं। अंग्रेज़ी-परस्तों द्वारा दिया जाने वाला यह तर्क भ्रमित कर रहा है कि, “अंग्रेज़ी ज्ञान का वातायन है।” अपनी भाषा के बिना मानव की मानसिक भूख शांत नहीं हो सकती। निज भाषा की उन्नति से ही समाज की उन्नति होती है। निज भाषा जननी तुल्य है। अतः कहा गया है कि-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल॥

44. वीर भोग्या वसुंधरा

वीर लोग ही वसुंधरा का भोग करते हैं। जयशंकर प्रसाद के नाटक ‘स्कंदगुप्त’ में भटार्क नामक पात्र कहता है ‘वीर लोग एक कान से तलवार का तथा दूसरे से नूपुर की झंकार सुना करते हैं।’ यह सत्य उक्ति है कि वीरता और भोग परस्पर पूरक हैं। वीरता भोगप्रिय होती है। विजय पाने के लिए प्रेरणा चाहिए, उत्साह चाहिए, पौरुष और सामर्थ्य चाहिए। भोग . करने के लिए स्वस्थ, उमंगपूर्ण, उत्साहित एवं शक्तिशाली शरीर चाहिए। बूढ़े लोग कभी भोग नहीं कर सकते। हर गहरे भोग के लिए अंत:स्थल में जोश और आवेग होना चाहिए, जो वीरों में ही होता है। हिंदी साहित्य का आदिकाल इस प्रकार के उदाहरणों से भरा पड़ा है। तत्कालीन राजा लड़ते थे, भोगते थे, मर जाते थे।

इतिहास साक्षी है कि भोग के साधनों को उसी जाति या राजा ने विपुल मात्रा में जुटाया जो जूझारू थे, संघर्षशील थे। यह सामान्य मानव-प्रकृति है कि व्यक्ति युवावस्था में सांसारिक द्रव्यों के पीछे भागता है, उन्हें एकत्र करता है, किंतु वृद्धावस्था में उन्हीं द्रव्यों को मायामय कहकर तिरस्कृत करने लगता है। उस तिरस्कार के पीछे द्रव्य का मायामय हो जाना नहीं, अपितु उसकी भोग की इच्छा का शिथिल पड़ जाना है, उसकी पाचन-शक्ति मंद पड़ जाना है। युवावस्था में शरीर हर प्रकार की तेजस्विता से संपन्न होता है, इसलिए उस समय भोग की इच्छा सर्वाधिक उठती है। अतः यह प्रमाणित सत्य है कि वीर लोग ही धरती का तथा धरती के समस्त भोगों का रसपान करते हैं, कर पाते हैं।

45. मन चंगा तो कठौती में गंगा

संत रविदास का यह वचन एक मार्मिक सत्य का उद्घाटन करता है। मानव के लिए मन की निर्मलता का होना आवश्यक है। जिसका मन निर्मल होता है, उसे बाहरी निर्मलता ओढ़ने या गंगा के स्पर्श से निर्मलता प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिनके मन में मैल होती है, उन्हें ही गंगा की निर्मलता अधिक आकर्षित करती है। स्वच्छ एवं निष्पाप हृदय का व्यक्ति बाह्य आडंबरों से दूर रहता है। अपना महत्त्व प्रतिपादित करने के लिए वह विभिन्न प्रपंचों का सहारा नहीं लेता। प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि घर-बार सभी त्याग कर सभी भौतिक सुखों से रहित होकर भी परमानंद की प्राप्ति इसीलिए कर लेते थे कि उनकी मन-आत्मा पर व्यर्थ के पापों का बोझ नहीं होता था। बुरे मन का स्वामी चाहे कितना भी प्रयास कर ले कि उसे आत्मिक शांति मिले, परंतु वह उसे प्राप्त नहीं कर सकता। भक्त यदि परमात्मा को पाना चाहते हैं तो भगवान् स्वयं भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो उसके निकट आना चाहता है। वह भक्त के निष्कपट, निष्पाप और निष्कलुष हृदय में मिल जाना चाहता है।

46. व्यक्ति और समाज

व्यक्ति एवं समाज का आपस में गहरा संबंध है। व्यक्तियों के समूह से ही समाज बनता है। व्यक्ति और समाज दोनों एक-दूसरे के अस्तित्व के परिचायक हैं। व्यक्ति के समाज के प्रति अनेक कर्त्तव्य हैं। उसे समाज के नियमों का पालन करना पड़ता है। राज्य के आदेशों को स्वीकार करना पड़ता है, समाज में रहते हुए व्यक्ति को अपनी बात कहने का, स्वतंत्रतापूर्वक एक-दूसरे से मिलने-जुलने का अधिकार रहता है। व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि वह कोई भी काम ऐसा न करे जिससे समाज की व्यवस्था में बाधा पड़े। व्यक्ति का निर्माण समाज का निर्माण है। यदि सभी व्यक्ति अलगअलग से अपने चरित्र को संपन्न बना लें तो उनसे आदर्श समाज का निर्माण होगा। व्यक्ति कारण है तो समाज कार्य है।

अत: जिस समाज में रहने वाले व्यक्ति जितने सभ्य होंगे, वह समाज उतना ही सभ्य माना जाएगा। उत्तम नागरिक वही है जो कर्तव्यों का तत्परता से पालन करे और दूसरों की सुविधा का ध्यान रखे। व्यक्ति को केवल अपने लिए ही जीवित नहीं रहना होता बल्कि समाज के प्रति भी अपने दायित्व को निभाना होता है। व्यक्ति को अपनी अपेक्षा समाज को प्राथमिकता देनी चाहिए। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने इसी भावना पर बल देते हुए कहा है-“समष्टि के लिए व्यष्टि हों बलिदान।” अर्थात् समाज की मान-मर्यादा की रक्षा के लिए व्यक्ति को त्याग एवं बलिदान के पथ पर बढ़ते रहना चाहिए। इस बात का हमेशा ध्यान रहे कि व्यक्तियों के समूह का नाम समाज नहीं। समाज बनता है आपसी संबंधों से। समूह में तो जानवर भी रहते हैं, पर उनके समूह को समाज की संज्ञा नहीं दी जाती। अतः व्यक्ति एवं समाज में समन्वय की नितांत आवश्यकता है।

47. तेते पाँव पसारिए जेती लांबी सौर

जीवन में अनेक दुख मनुष्य स्वयं मोल लेता है। इन दुखों का कारण उसके चरित्र में छिपी दुर्बलता होती है। अपव्यय की आदत भी एक ऐसी ही दुर्बलता है। जीवन में सुखी बनने के लिए अपनी आय एवं व्यय के बीच संतुलन रखना अत्यंत आवश्यक है। अपनी इच्छाओं पर अंकुश रखे बिना मनुष्य जीवन में सफल नहीं हो सकता। आय के अनुसार व्यय की आदत डालना जीवन में संयम, व्यवस्था एवं स्वावलंबन जैसे गुण लाती है।

आय के अनुरूप खर्च करना किसी प्रकार से भी कंजूसी नहीं कहलाता। कंजूस की संज्ञा तो वह पाता है जो धन के होते हुए भी जीवन के लिए आवश्यक कार्यों में भी धन खर्च नहीं करता। अल्प व्यय के गुण को लक्ष्य करके ही वृंद कवि ने कहा था कि “तेते पाँव पसारिए जेती लांबी सौर”।

यदि संसार के अधिकांश व्यक्ति अपव्ययी होते तो इस संसार का निर्माण भी संभव न होता। सरकार का भी कर्तव्य है कि वह व्यय करने में अपनी आय की मर्यादा का उल्लंघन न करे अन्यथा जनता को संतुलित रखने के लिए स्वयं को असंतुलित बनाना पड़ेगा। आय के अनुरूप व्यय करने से मनुष्य को कभी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पडता। मितव्ययिता के अभ्यास द्वारा उसका भविष्य भी सुरक्षित हो जाता है। उसे किसी की खुशामद नहीं करनी पड़ती। मितव्ययी बनने के लिए आवश्यक है कि अपना हर एक काम योजना बनाकर किया जाए। कहीं भी आवश्यकता से अधिक व्यय न करें। अपनी आय के अनुसार खर्च करने वाला व्यक्ति स्वयं भी आनंद उठाता है और उसका परिवार भी प्रसन्नचित्त दिखाई देता है। यह आदत समाज में प्रतिष्ठा दिलाती है। अतः प्रत्येक को अधोलिखित सूक्ति के अनुसार अपने जीवन को ढालने का प्रयत्न करना चाहिए।
तेते पाँव पसारिए जेती लंबी सौर।

48. जहाँ चाह वहाँ राह

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में प्रतिष्ठापूर्वक जीवन-यापन करने के लिए उसे निरंतर संघर्षशील रहना पड़ता है। इसके लिए वह नित्य नवीन प्रयास करता है जिससे उसकी प्रतिष्ठा बनी रहे तथा वह नित्य प्रति उन्नति करता रहे। यदि मनुष्य के मन में उन्नति करने की इच्छा नहीं होगी तो वह कभी उन्नति कर ही नहीं सकता। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए मनुष्य अनेक प्रयत्न करता है तब कहीं अंत में उसे सफलता मिलती है। सबसे पहले मन में किसी कार्य को करने की इच्छा होनी चाहिए, तभी हम कार्य करते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं। संस्कृत में एक कथन है कि ‘उद्यमेनहि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः’ अर्थात् परिश्रम से ही कार्य की सिद्धि होती है। परिश्रम मनुष्य तब करता है जब उसके मन में परिश्रम करने की इच्छा उत्पन्न होती है। जिस मनुष्य के मन में कार्य करने की इच्छा ही नहीं होगी वह कुछ भी नहीं कर सकता। जैसे पानी पीने की इच्छा होने पर हम नल अथवा कुएँ से पानी लेकर पीते हैं। यहाँ पानी पीने की इच्छा ने पानी को प्राप्त करने के लिए हमें नल अथवा कुएँ तक जाने का मार्ग बनाने की प्रेरणा दी। अत: कहा जाता है कि जहाँ चाह वहाँ राह।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

49. का वर्षा जब कृषि सुखाने

गोस्वामी तुलसीदास की इस सूक्ति का अर्थ है-जब खेती ही सूख गई, तब पानी के बरसने का क्या लाभ है? जब ठीक अवसर पर वांछित वस्तु उपलब्ध न हुई तो बाद में उस वस्तु का मिलना बेकार ही है। साधन की उपयोगिता तभी सार्थक हो सकती है, जब वे समय पर उपलब्ध हो जाएँ। अवसर बीतने पर सब साधन व्यर्थ पड़े रहते हैं। अंग्रेज़ी में एक कहावत है-लोहे पर तभी चोट करो जबकि वह गर्म हो अर्थात् जब लोहा मुड़ने और ढलने को तैयार हो, तभी उचित चोट करनी चाहिए। उस अवसर को खो देने पर केवल लोहे की टन-टन की आवाज़ के अतिरिक्त कुछ लाभ नहीं मिल सकता।

अतः मनुष्य को चाहिए कि वह उचित समय की प्रतीक्षा में हाथ-पर-हाथ धरकर न बैठा रहे, अपितु समय की आवश्यकता को पहले से ध्यान करके उसके लिए उचित तैयारी करे। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि समय एक ऐसी स्त्री है जो अपने लंबे बाल मुँह के आगे फैलाए हुए निरंतर दौड़ती चली जा रही है। जिसे भी समय रूपी उस स्त्री को वश में करना हो, उसे चाहिए कि वह समय के आगे-आगे दौड़कर उस स्त्री के बालों से उसे पकड़े। उसके पीछे-पीछे दौड़ने से मनुष्य उसे नहीं पकड़ पाता। आशय यह है कि उचित समय पर उचित साधनों का होना ज़रूरी है। जो लोग आग लगाने पर कुआँ खोदते हैं, वे आग में अवश्य झुलस जाते हैं। उनका कुछ भी शेष नहीं बचता।

50. परिश्रम सफलता की कुंजी है

संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति है–’उद्यमेनहि सिद्धयंति कार्याणि न मनोरथः’ अर्थात् परिश्रम से ही कार्य सिद्धि होती है, मात्र इच्छा करने से नहीं। सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम ही एकमात्र मंत्र है। श्रमेव जयते’ का सूत्र इसी भाव की ओर संकेत करता है। परिश्रम के बिना हरी-भरी खेती सूखकर झाड़ बन जाती है जबकि परिश्रम से बंजर भूमि को भी शस्य-श्यामला बनाया जा सकता है। असाध्य कार्य भी परिश्रम के बल पर संपन्न किए जा सकते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति कितने ही प्रतिभाशाली हों, किंतु उन्हें लक्ष्य में सफलता तभी मिलती है जब वे अपनी बुद्धि और प्रतिभा को परिश्रम की सान पर तेज़ करते हैं। न जाने कितनी संभावनाओं के बीज पानी, मिट्टी, सिंचाई और जुताई के अभाव में मिट्टी बन जाते हैं, जबकि ठीक संपोषण प्राप्त करके कई बीज सोना भी बन जाते हैं।

कई बार प्रतिभा के अभाव में परिश्रम ही अपना रंग दिखलाता है। प्रसिद्ध उक्ति है कि निरंतर घिसाव से पत्थर पर भी चिह्न पड़ जाते हैं। जड़मति व्यक्ति परिश्रम द्वारा ज्ञान उपलब्ध कर लेता है। जहाँ परिश्रम तथा प्रतिभा दोनों एकत्र हो जाते हैं वहाँ किसी अद्भुत कृति का सृजन होता है। शेक्सपीयर ने महानता को दो श्रेणियों में विभक्त किया है-जन्मजात महानता तथा अर्जित महानता। यह अर्जित महानता परिश्रम के बल पर ही अर्जित की जाती है। अत: जिन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त नहीं है, उन्हें अपने श्रम-बल का भरोसा रखकर कर्म में जुटना चाहिए। सफलता अवश्य ही उनकी चेरी बनकर उपस्थित होगी।

51. पशु न बोलने से और मनुष्य बोलने से कष्ट उठाता है

मनुष्य को ईश्वर की ओर से अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इनमें वाणी अथवा वाक्-शक्ति का गुण सबसे महत्त्वपूर्ण है। जो व्यक्ति वाणी का सदुपयोग करता है, उसके लिए तो यह वरदान है और जिसकी जीभ कतरनी के समान निरंतर चलती रहती है, उसके लिए वाणी का गुण अभिशाप भी बन जाता है। भाव यह है कि वाचालता दोष है। पशु के पास वाणी की शक्ति नहीं, इसी कारण जीवन-भर उसे दूसरों के अधीन रहकर कष्ट उठाना पड़ता है। वह सुखदुख का अनुभव तो करता है पर उसे व्यक्त नहीं कर सकता। उसके पास वाणी का गुण होता तो उसकी दशा कभी दयनीय न बनती। कभी-कभी पशु का सद्व्यवहार भी मनुष्य को भ्रांति में डाल देता है।

अनेक कहानियाँ ऐसी हैं जिनके अध्ययन से पता चलता है कि पशुओं ने मनुष्य-जाति के लिए अनेक बार अपने बलिदान और त्याग का परिचय दिया है पर वाक्-शक्ति के अभाव के कारण उसे मनुष्य के द्वारा निर्मम मृत्यु का भी सामना करना पड़ा है। इसके विपरीत मनुष्य अपनी वाणी के दुरुपयोग के कारण अनेक बार कष्ट उठाता है। रहीम ने अपने दोहे में व्यक्त किया है कि जीभ तो अपनी मनचाही बात कहकर मुँह में छिप जाती है पर जूतियाँ का सामना करना पड़ता है बेचारे सिर को। अभिप्राय यह है कि मनुष्य को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। इस संसार में बहुत-से झगड़ों का कारण वाणी का दुरुपयोग है। एक नेता के मुख से निकली हुई बात सारे देश को युद्ध की ज्वाला में झोंक सकती है। अतः यह ठीक ही कहा गया है कि पशु न बोलने से कष्ट उठाता है और मनुष्य बोलने से। कोई भी बात कहने से पहले उसके परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए।

52. कारज धीरे होत हैं, काहे होत अधीर

जिसके पास धैर्य है, वह जो इच्छा करता है, प्राप्त कर लेता है। प्रकृति हमें धीरज धारण करने की सीख देती है। धैर्य जीवन की लक्ष्य प्राप्ति का द्वारा खोलता है। जो लोग ‘जल्दी करो, जल्दी करो’ की रट लगाते हैं, वे वास्तव में ‘अधीर मन, गति कम’ लोकोक्ति को चरितार्थ करते हैं। सफलता और सम्मान उन्हीं को प्राप्त होता है, जो धैर्यपूर्वक काम में लगे रहते हैं। शांत मन से किसी कार्य को करने में निश्चित रूप से कम समय लगता है। बचपन के बाद जवानी धीरे-धीरे आती है। संसार के सभी कार्य धीरे-धीरे संपन्न होते हैं। यदि कोई रोगी डॉक्टर से दवाई लेने के तुरंत पश्चात् पूर्णतया स्वस्थ होने की कामना करता है, तो यह उसकी नितांत मूर्खता है। वृक्ष को कितना भी पानी दो, परंतु फल प्राप्ति तो समय पर ही होगी। ससार के सभी महत्त्वपूर्ण विकास कार्य धीरे-धीरे अपने समय पर ही होते हैं। अत: हमें अधीर होने की बजाय धैर्यपूर्वक अपने कार्य में संलग्न होना चाहिए।

53. दूर के ढोल सुहावने

इस उक्ति का अर्थ है कि दूर के रिश्ते-नाते बड़े अच्छे लगते हैं। जो संबंधी एवं मित्रगण हम से दूर रहते हैं, वे पत्रों के द्वारा हमारे प्रति कितना अगाध स्नेह प्रकट करते हैं। उनके पत्रों से पता चलता है कि वे हमारे पहुँचने पर हमारा अत्यधिक स्वागत करेंगे। हमारी देखभाल तथा हमारे आदर-सत्कार में कुछ कसर न उठा सकेंगे। लेकिन जब उनके पास पहँचते हैं तो उनका दूसरा ही रूप सामने आने लगता है। उनके व्यवहार में यह चरितार्थ हो जाता है कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं। दूर बजने वाले ढोल की आवाज़ भी तो कानों को मधुर लगती है। पर निकट पहुँचते ही उसकी ध्वनि कानों को कटु लगने लगती है। दूर से झाड़-झंखाड़ भी सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है पर निकट जाने पर पाँवों के छलनी हो जाने का डर उत्पन्न हो जाता है। ठीक ही कहा है-दूर के ढोल सुहावने।

54. लोभ पाप का मूल है

संस्कृत के किसी नीतिकार का कथन है कि लोभ पाप का मूल है। मन का लोभ ही मनुष्य को चोरी के लिए प्रेरित करता है। लोभ अनेक अपराधों को जन्म देता है। लोभ, अत्याचार, अनाचार और अनैतिकता का कारण बनता है। महमूद गज़नवी जैसे शासकों ने धन के लोभ में आकर मनमाने अत्याचार किए। औरंगज़ेब ने अपने तीनों भाइयों का वध कर दिया और पिता को बंदी बना लिया। ज़र, जोरू तथा ज़मीन के झगड़े भी प्रायः लोभ के कारण होते हैं। लोभी व्यक्ति का हृदय सब प्रकार की बुराइयों का अड्डा होता है। महात्मा बुद्ध ने कहा है कि इच्छाओं का लोभ ही चिंताओं का मूल कारण है। लालची व्यक्ति बहुत कुछ अपने पास रखकर भी कभी संतुष्ट नहीं होता। उसकी दशा तो उस मूर्ख लालची के समान हो जाती है जो मुरगी का पेट फाड़कर सारे अंडे निकाल लेना चाहता है। लोभी व्यक्ति अंत में पछताता है। लोभी किसी पर उपकार नहीं कर सकता। वह तो सबका अपकार ही करता है। इसलिए अगर कोई पाप से बचना चाहता है तो वह लोभ से बचे।

55. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं

‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं’ उक्ति का अर्थ है कि पराधीन व्यक्ति सपने में भी सुख का अनुभव नहीं कर सकता। पराधीन और परावलंबी के लिए सुख बना ही नहीं। पराधीनता एक प्रकार का अभिशाप है। मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक पराधीनता की अवस्था में छटपटाने लगते हैं। पराधीन हमेशा शोषण की चक्की में पिसता रहता है। उसका स्वामी उसके प्रति जैसे भी अच्छा-बुरा व्यवहार चाहे कर सकता है। पराधीन व्यक्ति अथवा जाति अपने आत्म-सम्मान को सुरक्षित नहीं रख सकते। किसी भी व्यक्ति, जाति अथवा देश की पराधीनता की कहानी दुख एवं पीड़ा की कहानी है। स्वतंत्र व्यक्ति दरिद्रता एवं अभाव में भी जिस सुख का अनुभव कर सकता है, पराधीन व्यक्ति उस सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता। अत: ठीक ही कहा गया है-‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं।’

56. पर उपदेश कुशल बहुतेरे

दूसरों को उपदेश देना अर्थात् सब प्रकार से आदर्शों का पालन करने की प्रेरणा देना सरल है। जैसे कहना सरल तथा करना कठिन है, उसी प्रकार स्वयं अच्छे पथ पर चलने की अपेक्षा दूसरों को अच्छे काम करने का संदेश देना सरल है। जो व्यक्ति दूसरों को उपदेश देता है, वह स्वयं भी उन उपदेशों का पालन कर रहा है, यह जरूरी नहीं। हर व्यापारी, अधिकारी तथा नेता अपने नौकरों, कर्मचारियों तथा जनता को ईमानदारी, सच्चाई तथा कर्मठता का उपदेश देता है जबकि वह स्वयं भ्रष्टाचार के पथ पर बढ़ता रहता है। नेता मंच पर आकर कितनी सारगर्भित बातें कहते हैं, पर उनका आचरण हमेशा उनकी बातों के विपरीत होता है। माता-पिता तथा गुरुजन बच्चों को नियंत्रण में रहने का उपदेश देते हैं-पर वे यह भूल जाते हैं कि उनका अपना जीवन अनुशासनबद्ध एवं नियंत्रित ही नहीं।

57. जैसा करोगे वैसा भरोगे

जैसा करोगे वैसा भरोगे’ उक्ति का अर्थ है कि मनुष्य अपने जीवन में जैसा कर्म करता है, उसी के अनुरूप ही उसे फल मिलता है। मनुष्य जैसा बोता है, वैसा ही काटता है। सुकर्मों का फल अच्छा तथा कुकर्मों का फल बुरा होता है। दूसरों को पीड़ित करने वाला व्यक्ति एक दिन स्वयं पीड़ा के सागर में डूब जाता है। जो दूसरों का भला करता है, ईश्वर उसका भला करता है। कहा भी है, ‘कर भला हो भला’। पुण्य से परिपूर्ण कर्म कभी भी व्यर्थ नहीं जाते। जो दूसरों का शोषण करता है, वह कभी सुख की नींद नहीं सो सकता। ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ वाली बात प्रसिद्ध है। मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्मों में रुचि लेनी चाहिए। दूसरों का हित करना तथा उन्हें संकट से मुक्त करने का प्रयास मानवता की पहचान है। मानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति मानव तथा दानवता के पथ पर बढ़ने वाला व्यक्ति दानव कहलाता है। मानवता की पहचान मनुष्य के शुभ कर्म हैं।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

58. समय का महत्त्व/समय सबसे बड़ा धन है

दार्शनिकों ने जीवन को क्षणभंगुर कहा है। इनकी तुलना प्रभात के तारे और पानी के बुलबुले से की गई है। अतः यह प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन को सफल कैसे बनाएँ। इसका एकमात्र उपाय समय का सदुपयोग है। समय एक अमूल्य वस्तु है। इसे काटने की वृत्ति जीवन को काट देती है। खोया समय पुनः नहीं मिलता। दुनिया में कोई भी शक्ति नहीं जो बीते हुए समय को वापस लाए। हमारे जीवन को सफलता-असफलता के सदुपयोग तथा दुरुपयोग पर निर्भर करती है। कहा भी है-क्षण को क्षुद्र न समझो भाई, यह जग का निर्माता है। हमारे देश में अधिकांश लोग समय का मूल्य नहीं समझते। देर से उठना, व्यर्थ की बातचीत करना, खेल, शतरंज आदि में रुचि का होना आदि के द्वारा समय का नष्ट करना।

यदि हम चाहते हैं तो पहले अपना काम पूरा करें। बहुतसे लोग समय को नष्ट करने में आनंद का अनुभव करते हैं। मनोरंजन के नाम पर समय नष्ट करना बहुत बड़ी भूल है। समय का सदुपयोग करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने दैनिक कार्य को करने का समय निश्चित कर लें। फिर उस कार्य को उसी काम में करने का प्रयत्न करें। इस तरह का अभ्यास होने से समय का मूल्य समझ जाएँगे और देखेंगे कि हमारा जीवन निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के सदुपयोग से ही जीवन का पथ सरल हो जाता है। महान् व्यक्तियों के महान् बनने का रहस्य समय का सदुपयोग ही है। समय के सदुपयोग के द्वारा ही मनुष्य अमर कीर्ति का पात्र बन सकता है। समय का सदुपयोग ही जीवन का सदुपयोग है। इसी में जीवन की सार्थकता है–“कल करै सो आज कर, आज करै सो अब, पल में परलै होयगी, बहुरि करोगे कब।”

59. स्त्री-शिक्षा का महत्त्व

विद्या हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी।
अर्धांगनियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी।

आज शिक्षा मानव-जीवन का एक अंग बन गई है। शिक्षा के बिना मनुष्य ज्ञान पंगु कहलाता है। पुरुष के साथ-साथ नारी को भी शिक्षा की आवश्यकता है। नारी शिक्षित होकर ही बच्चों को शिक्षा प्रदान कर सकती है। बच्चों पर पुरुष की अपेक्षा नारी के व्यक्तित्व का प्रभाव अधिक पड़ता है। अतः उसका शिक्षित होना ज़रूरी है। ‘स्त्री का रूप क्या हो?’-यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि नारी और पुरुष के क्षेत्र अलगअलग हैं। पुरुष को अपना अधिकांश जीवन बाहर के क्षेत्र में बिताना पड़ता है जबकि नारी को घर और बाहर में समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता होती है।

सामाजिक कर्त्तव्य के साथ-साथ उसे घर के प्रति भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है। अत: नारी को गृह-विज्ञान की शिक्षा में संपन्न होना चाहिए। अध्ययन के क्षेत्र में भी वह सफल भूमिका का निर्वाह कर सकती है। शिक्षा के साथ-साथ चिकित्सा के क्षेत्र में भी उसे योगदान देना चाहिए। सुशिक्षित माताएँ ही देश को अधिक योग्य, स्वस्थ और आदर्श नागरिक दे सकती हैं। स्पष्ट हो जाता है कि स्त्री-शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार होना चाहिए। नारी को फ़ैशन से दूर रहकर सादगी के जीवन का समर्थन करना चाहिए। उसकी शिक्षा समाजोपयोगी हो।

60. स्वास्थ्य ही जीवन है

जीवन का पूर्ण आनंद वही ले सकता है जो स्वस्थ है। स्वास्थ्य के अभाव में सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ व्यर्थ प्रमाणित होती हैं। तभी तो कहा है-‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् शरीर ही सब धर्मों का मुख्य साधन है। स्वास्थ्य जीवन है और अस्वस्थता मृत्यु है। अस्वस्थ व्यक्ति का किसी भी काम में मन नहीं लगता। बढ़िया-से-बढ़िया खाद्य-पदार्थ उसे विष के समान लगता है। वस्तुतः उसमें काम करने की क्षमता ही नहीं होती। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहे। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए नियमितता तथा संयम की सबसे अधिक ज़रूरत है। समय पर भोजन, समय पर सोना और जागना अच्छे स्वास्थ्य के लक्षण हैं। शरीर की सफ़ाई की तरफ़ भी पूरा ध्यान देने की ज़रूरत है।

सफ़ाई के अभाव से तथा असमय खाने-पीने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। क्रोध, भय आदि भी स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। नशीले पदार्थों का सेवन तो शरीर के लिए घातक साबित होता है। स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए पौष्टिक एवं सात्विक भोजन भी ज़रूरी है। स्वास्थ्य रक्षा के लिए व्यायाम का भी सबसे अधिक महत्त्व है। व्यायाम से बढ़कर न कोई औषधि है और न कोई टॉनिक। व्यायाम से शरीर में स्फूर्ति आती है, शक्ति, उत्साह एवं उल्लास का संचार होता है। शरीर की आवश्यकतानुसार विविध आसनों का प्रयोग भी बड़ा लाभकारी होता है। खेल भी स्वास्थ्य लाभ का अच्छा साधन है। इनसे मनोरंजन भी होता है और शरीर भी पुष्ट तथा चुस्त बनता है। प्रायः भ्रमण का भी विशेष लाभ है। इससे शरीर का आलस्य भागता है, काम में तत्परता बढ़ती है। जल्दी थकान का अनुभव नहीं होता।

61. मधुर-वाणी

वाणी ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। वाणी के द्वारा ही मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान दूसरे व्यक्तियों से करता है। वाणी का मनुष्य के जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुमधुर वाणी के प्रयोग से लोगों के साथ आत्मीय संबंध बन जाते हैं, जो व्यक्ति कर्कश वाणी का प्रयोग करते हैं, उनसे लोगों में कटुता की भावना व्याप्त हो जाती है। जो लोग अपनी वाणी का मधुरता से प्रयोग करते हैं उनकी सभी लोग प्रशंसा करते हैं। सभी लोग उनसे संबंध बनाने के इच्छुक रहते हैं। वाणी मनुष्य के चरित्र को भी स्पष्ट करने में सहायक होती है। जो व्यक्ति विनम्र और मधुरवाणी से लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उसके बारे में लोग यही समझते हैं कि इनमें सद्भावना विद्यमान है।

मधुरवाणी मित्रों की संख्या में वृद्धि करती है। कोमल और मधुर वाणी से शत्रु के मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है। वह भी अपनी द्वेष और ईर्ष्या की भावना को विस्तृत करके मधुर संबंध बनाने के इच्छुक हो जाता है। यदि कोई अच्छी बात भी कठोर और कर्कश वाणी में कही जाए तो लोगों पर उसकी प्रतिक्रिया विपरीत होती है। लोग यही समझते हैं कि यह व्यक्ति अहंकारी है। इसलिए वाणी मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है तथा उसे उसका सदुपयोग करना चाहिए।

62. नारी शक्ति

नारी त्याग, तपस्या, दया, ममता, प्रेम एवं बलिदान की साक्षात मूर्ति है। नारी तो नर की जन्मदात्री है। वह भगिनी भी और पत्नी भी है। वह सभी रूपों में सुकुमार, सुंदर और कोमल दिखाई देती है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी नारी को पूज्य माना गया है। कहा गया है कि जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। उसके हृदय में सदैव स्नेह की धारा प्रवाहित होती रहती है। नर की रुक्षता, कठोरता एवं उदंडता को नियंत्रित करने में भी नारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वह धात्री, जन्मदात्री और दुखहीं है। नारी के बिना नर अपूर्ण है। नारी को नर से बढ़कर कहने में किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है। नारी प्राचीनकाल से आधुनिक काल तक अपनी महत्ता एवं श्रेष्ठता प्रतिपादित करती आई है।

नारियाँ ज्ञान, कर्म एवं भाव सभी क्षेत्रों में अग्रणी रही हैं। यहाँ तक कि पुरुष वर्ग के लिए आरक्षित कहे जाने वाले कार्यों में भी उसने अपना प्रभुत्व स्थापित किया है। चाहे एवरेस्ट की चोटी ही क्यों न हो, वहाँ भी नारी के चरण जा पहुँचे हैं। एंटार्कटिका पर भी नारी जा पहुँची है। प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन वह अनेक क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कर चुकी है। आधुनिक काल की प्रमुख नारियों में श्रीमती इंदिरा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, बचेंद्री पाल, सानिया मिर्जा आदि का नाम गर्व के साथ लिया जा सकता है।

63. चाँदनी रात में नौका विहार

ग्रीष्मावकाश में हमें पूर्णिमा के अवसर पर यमुना नदी के नौका विहार का अवसर प्राप्त हुआ। चंद्रमा की चाँदनी से आकाश शांत, तर एवं उज्ज्वल प्रतीत हो रहा था। आकाश में चमकते तारे ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे आकाश के नेत्र हैं जो अपलक चाँदनी से स्नात पृथ्वी के सौंदर्य को देख रहे हैं। तारों से जड़े आकाश की शोभा यमुना के जल में द्विगुणित हो गई थी। इस रात-रजनी के शुभ प्रकाश में हमारी नौका धीरे-धीरे चलती है जो ऐसी लगती है मानो कोई सुंदर परी धीरे-धीरे चल रही हो।

जब नौका नदी के मध्य में पहुँच जाती है तो चाँदनी में चमकता हुआ पुलिन आँखों से ओझल हो जाता है तथा यमुना के किनारे खड़े हुए वृक्षों की पंक्ति भृकुटि-सी वक्र लग रही थी। नौका के चलने से जल में उत्पन्न लहरों के कारण उसमें चंद्रमा एवं तारक वृंद ऐसे झिलमिला रहे थे मानो तरंगों की लताओं में फूल खिले हों। रजत सर्पो-सी सीधी तिरछी नाचती हुई चाँदनी की किरणों की छाया चंचल लहरों में ऐसी प्रतीत होती थी मानो जल में आड़ी-तिरछी रजत रेखाएँ खींच दी गई हों। नौका के चलते रहने से आकाश के ओर-छोर भी हिलते हुए लगते थे। जल में तारों की छाया ऐसी प्रतिबिंबित हो रही थी मानो जल में दीपोत्सव हो रहा हो। ऐसे में हमारे एक मित्र ने मधुर राग छेड़ दिया जिससे वातावरण और भी अधिक उन्मादित हो गया। धीरे-धीरे हम नौका को किनारे की ओर ले आए।

डंडों से नौका को खेने पर जो फेन उत्पन्न होती थी वह भी चाँदनी के प्रभाव से मोतियों की ढेर-सी प्रतीत होती थी जिसे डंडों रूपी हथेलियों ने जल में बिखेर दिया हो। समस्त दृश्य अत्यंत दिव्य, अलौकिक एवं अपार्थिव ही लगता था।

64. राष्ट्रीय एकता

आज देश के विभिन्न राज्य क्षेत्रीयता के मोह में ग्रस्त हैं। सर्वत्र एक-दूसरे से बिछुड़कर अलग होने तथा अपना-अपना मनोराज्य स्थापित करने की होड़ लगी हुई है। यह स्थिति देश की एकता के लिए अत्यंत घातक है क्योंकि राष्ट्रीय एकता के अभाव में देश का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। राष्ट्र से तात्पर्य किसी भौगोलिक भू-खंड मात्र अथवा उस भू-खंड में सामूहिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों से न होकर उस भू-खंड में रहने वाली संवेदनशील अस्तित्व से युक्त जनता से होता है। अत: राष्ट्रीय एकता वह भावना है जो किसी एक राष्ट्र के समस्त नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है। राष्ट्र के प्रति ममत्व की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना का जन्म होता है।

भारत की प्राकृतिक, भाषायी, रहन-सहन आदि की दृष्टि से अनेक रूप वाला. होते हुए भी राष्ट्रीय स्वरूप में एक है। पर्वतराज हिमालय एवं सागर इसकी प्राकृतिक सीमाएँ हैं, समस्त भारतीय धर्म एवं संप्रदाय के आवागमन में आस्था रखते हैं। भाषाई भेद-भाव होते हुए भी भारतवासियों की भाव-धारा एक है। यहाँ की संस्कृति की पहचान दूर से ही हो जाती है। भारत की एकता का सर्वप्रमुख प्रमाण यहाँ का एक संविधान का होना है। भारतीय संसद की सदस्यता धर्म, संप्रदाय, जाति, क्षेत्र आदि के भेद-भाव से मुक्त है। इस प्रकार अनेकता में एकता के कारण भारत की राष्ट्रीय एकता सदा सुदृढ़ है।

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65. जब मैं अकेली होती हूँ

जब कभी मैं अकेली होती हूँ मेरा मन न जाने कहाँ-कहाँ भटकने लगता है। मुझे अपने आस-पास सब कुछ व्यर्थ लगने लगता है। उपन्यास, कहानी, पत्र-पत्रिकाएँ आदि व्यर्थ लगने लगती हैं। मैं रेडियो चलाकर गाने सुनने लगती हूँ। जब उनसे मेरा मन भर जाता है तो सी० डी० प्लेयर पर मन-पसंद दुख भरे गाने सुनने लगती हूँ। इनसे भी ऊब होने पर घर की हो चुकी सफ़ाई की पुनः सफ़ाई करने में जुट जाती हूँ, इतने से जब अकेलापन नहीं दूर होता तो चित्रकारी करने बैठ जाती हूँ। रेखांकन के पश्चात् जब रंग भरने लगती हूँ तो पुनः अकेलेपन का एहसास जाग उठता है तथा रंग भरने का उत्साह भी समाप्त हो जाता है। मुझे लगता है, यह अकेलापन मुझे पागल बना देगा। मैं जब भी अकेली होती हूँ मुझे अकेलेपन का एहसास चारों ओर से घेर कर ऐसा चक्रव्यूह बना लेता है जिससे निकलने के समस्त प्रयास करते-करते जब पराजित हो जाती हूँ तो अंत में निद्रा देवी की गोद में जाकर अकेलेपन से उबरने का प्रयास करती हूँ।

66. बारूद के इक ढेर पे बैठी है यह दुनिया

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। मनुष्य ने अपने भौतिक सुखों की वृद्धि के लिए इतने अधिक वैज्ञानिक उपकरणों का आविष्कार कर लिया है कि एक दिन वे सभी उपकरण मानव सभ्यता के विनाश का कारण भी बन सकते हैं। एक-दूसरे देश को नीचा दिखाने के लिए अस्त्र-शस्त्रों, परमाणु बमों, रासायनिक बमों के निर्माण ने जहाँ परस्पर प्रतिद्वंद्विता पैदा की है वहीं इनका प्रयोग केवल प्रतिपक्षी दल को ही नष्ट नहीं करता अपितु प्रयोग करने वाले देश पर भी इनका प्रभाव पड़ता है। नए-नए कारखानों की स्थापना से वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। भोपाल गैस दुर्घटना के भीषण परिणाम हम अभी भी सहन कर रहे हैं। देश में एक कोने से दूसरे कोने तक ज़मीन के अंदर पेट्रोल तथा गैस की नालियाँ बिछाई जा रही हैं जिनमें आग लगने से सारा देश जलकर राख हो सकता है। घर में गैस के चूल्हों से अकसर दुर्घटनाएं होती रहती हैं। पनडुब्बियों के जाल ने सागर-तल को भी सुरक्षित नहीं रहने दिया है। धरती का हृदय चीर कर मेट्रो-रेल बनाई गई है। इसमें विस्फोट होने से अनेक नगर ध्वस्त हो सकते हैं। इस प्रकार आज की मानवता बारूद के एक ढेर पर बैठी है जिसमें छोटी-सी चिंगारी लगने मात्र से भयंकर विस्फोट हो सकता है।

67. जिस दिन समाचार-पत्र नहीं आता

समाचार-पत्र का हमारे आधुनिक जीवन में बहुत महत्त्व है। देश-विदेश के क्रिया-कलापों का परिचय हमें समाचारपत्र से ही प्राप्त होता है। कुछ लोग तो प्रायः अपना बिस्तर ही तभी छोड़ते हैं जब उन्हें चाय का कप और समाचारपत्र प्राप्त हो जाता है। जिस दिन समाचार-पत्र नहीं आता उस दिन इस प्रकार के व्यक्तियों को यह प्रतीत होता है कि मानो दिन निकला ही न हो कुछ लोग अपने घर के छज्जे आदि पर चढ़कर देखने लगते हैं कि कहीं समाचार-पत्र वाले ने समाचार-पत्र इतनी ज़ोर से तो नहीं फेंका कि वह छज्जे पर जा गिरा हो। वहाँ से भी जब निराशा हाथ लगती है तो वह आस-पास के घर वालों से पूछते हैं कि क्या उनका समाचार-पत्र आ गया है ? यदि उनका समाचार-पत्र आ गया हो तो वे अपने समाचार-पत्र वाले को कोसने लगते हैं।

उन्हें लगता है आज का उनका दिन अच्छा नहीं व्यतीत होगा। उनका अपने काम पर जाने का मन भी नहीं होता। वे पुराना अखबार उठाकर पढ़ने का प्रयास करते हैं किंतु पढ़ा हुआ होने पर उसे फेंक देते हैं तथा समाचार-पत्र वाहक पर आक्रोश व्यक्त करने लगते हैं। कई लोग तो समाचार-पत्र के अभाव में अपनी नित्य क्रियाओं से भी मुक्त नहीं हो पाते। वास्तव में जिस दिन समाचार-पत्र नहीं आता वह दिन अत्यंत फीका-फीका, उत्साह रहित लगता है।

68. वर्षा ऋतु की पहली बरसात

गरमी का महीना था। सूर्य आग बरसा रहा था। धरती तप रही थी। पशु-पक्षी तक गरमी के कारण परेशान थे। मज़दूर, किसान. रेहडी-खोमचे वाले और रिक्शा चालक तो इस तपती गरमी को झेलने के लिए विवश होते हैं। पंखों, कूलरों और एयर कंडीशनरों में बैठे लोगों को इस गरमी की तपन का अनुमान नहीं हो सकता। जुलाई महीना शुरू हुआ इस महीने में ही वर्षा ऋतु की पहली वर्षा होती है। सबकी दृष्टि आकाश की ओर उठती है। किसान लोग तो ईश्वर से प्रार्थना के लिए अपने हाथ ऊपर उठा देते हैं। अचानक एक दिन आकाश में बादल छा गए। बादलों की गड़गड़ाहट सुनकर मोर पिऊ-पिऊ मधुर आवाज़ में बोलने लगे। हवा में भी थोड़ी ठंडक आ गई। धीरे-धीरे हल्कीहल्की बूंदा-बाँदी शुरू हो गई। मैं अपने साथियों के साथ गाँव की गलियों में निकल पड़ा।

साथ ही हम नारे लगाते जा रहे थे, ‘बरसो राम धड़ाके से, बुढ़िया मर गई फाके से’। किसान भी खुश थे। उनका कहना था-‘बरसे सावन तो पाँच के हों बावन’ नववधुएँ भी कह उठी ‘बरसात वर के साथ’ और विरहिणी स्त्रियाँ भी कह उठीं कि ‘छुट्टी लेके आजा बालमा, मेरा लाखों का सावन जाए।’ वर्षा तेज़ हो गई थी। खुले में वर्षा में भीगने, नहाने का मजा ही कुछ और है। वर्षा भी उस दिन कड़ाके से बरसी। मैं उन क्षणों को कभी भूल नहीं सकता। मैं उसे छू सकता था, देख सकता था और पी सकता था। मुझे अनुभव हुआ कि कवि लोग क्योंकर ऐसे दृश्यों से प्रेरणा पाकर अमर काव्य का सृजन करते हैं।

69. बस अड्डे का दृश्य

हमारे शहर का बस अड्डा राज्य के अन्य उन बस अड्डों में से एक है जिसका प्रबंध हर दृष्टि से बेकार है। इस बस अड्डे के निर्माण से पहले बसें अलग-अलग स्थानों से अलग-अलग अड्डों से चला करती थीं। सरकार ने यात्रियों की असुविधा को ध्यान में रखते हुए सभी बस अड्डे एक स्थान पर कर दिए। आरंभ में तो ऐसा लगा कि सरकार का यह कदम बडा सराहनीय है किंतु ज्यों-ज्यों समय बीतता गया जनता की परेशानियाँ बढ़ने लगीं। बस अड्डे पर अनेक दुकानें बनाई गई हैं जिनमें खान-पान, फल-सब्जियों, पुस्तकों आदि की अनेक दुकानें हैं । खानपान की दुकान से उठने वाला धुआँ सारे यात्रियों की परेशानी का कारण बनता है। दुकानों की साफ़-सफ़ाई की तरफ़ कोई ध्यान नहीं देता। वहाँ माल बहुत महँगा मिलता है और गंदा भी। बस अड्डे में कई रेहडी वालों को भी फल बेचने की आज्ञा दी गई है।

ये लोग पोलीथीन के काले लिफ़ाफ़े रखते हैं जिनमें वे सड़े-गले फल पहले से ही तोल कर रखते हैं और लिफ़ाफ़ा इस चालाकी से बदलते हैं कि यात्री को पता नहीं चलता। घर पहुँचकर ही पता चलता है कि उन्होंने जो फल चुने थे वे बदल दिए गए हैं। बस अड्डे की शौचालय की साफ़-सफ़ाई न होने के बराबर है। यात्रियों को टिकट देने के लिए लाइन नहीं लगवाई जाती। लोग भाग-दौड़ कर बस में सवार होते हैं। औरतों, बच्चों और वृद्ध लोगों का बस में सवार होना ही कठिन होता है। अनेक बार देखा गया है कि जितने लोग बस के अंदर होते हैं उतने ही बस के ऊपर चढ़े होते हैं। अनेक बस अड्डों का हाल तो उनसे भी गया-बीता है। जगहजगह गंदा पानी, कीचड़, मक्खियाँ, मच्छर और न जाने किस-किस गंदगी की भरमार है। सभी बस अड्डे जेबकतरों के अड्डे बने हुए हैं। हर यात्री को अपने-अपने घर पहुँचने की जल्दी होती है इसलिए कोई भी बस अड्डे की इस बुरी हालत की ओर ध्यान नहीं देता।

70. शक्ति अधिकार की जननी है

शक्ति का लोहा कौन नहीं मानता है? इसी के कारण मनुष्य अपने अधिकार प्राप्त करता है। प्राय: यह दो प्रकार की मानी जाती है-शारीरिक और मानसिक। दोनों का संयोग हो जाने से बड़ी-से-बड़ी शक्ति को घुटने टेकने पर विवश किया जा सकता है। अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि अधिकार सरलता, विनम्रता और गिड़गिड़ाने से प्राप्त नहीं होते। भगवान् कृष्ण ने पांडवों को अधिकार दिलाने की कितनी कोशिश की पर कौरव उन्हें पाँच गाँव तक देने के लिए सहमत नहीं हुए थे। तब पांडवों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए युद्ध का रास्ता अपनाना पड़ा। भारत को अपनी आज़ादी तब तक नहीं मिली थी जब तक उसने शक्ति का प्रयोग नहीं किया। देशवासियों ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ सरकार से टक्कर ली थी।

तभी उन्हें सफलता प्राप्त हुई थी और देश को आजादी प्राप्त हो गयी। कहावत है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। व्यक्ति हो अथवा राष्ट्र उसे शक्ति का प्रयोग करना ही पड़ता है। तभी अधिकारों की प्राप्ति होती है। शक्ति से ही अहिंसा का पालन किया जा सकता है, सत्य का अनुसरण किया जा सकता है, अत्याचार और अनाचार को रोका जा सकता है। इसी से अपने अधिकारों को प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में ही शक्ति अधिकार की जननी है।

71. भाषण नहीं राशन चाहिए

हर सरकार का यह पहला काम है कि वह आम आदमी की सुविधा का पूरा ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। केवल भाषणों से किसी का पेट नहीं भरता। यदि बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से परेशान न होता। भूखे पेट से तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातंत्र देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है। इस देश में जो भी नेता कुरसी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बड़ी-बड़ी बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता। जब मंच पर आकर नेता भाषण देते हैं तो जनता उनके द्वारा दिखाए गए सब्जबाग से खुशी का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से गरीबी सदा के लिए दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है।

अमीरों की अमीरी बढ़ती जाती है और आम जनता की गरीबी बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है। इन नेताओं पर हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को ज़रूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या का सामना न करना पड़े। सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए। भाषणों की झूठी खुराक से जनता को बहुत लंबे समय तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।

72. हमारे पड़ोसी

अच्छे पड़ोसी तो रिश्तेदारों से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। वे हमारे सुख-दुख के भागीदार होते हैं। जीवन के हर सुख-दुख में पड़ोसी पहले आते हैं और दूर रहने वाले सगे-संबंधी तो सदा ही देर से पहुँचते हैं। आज के स्वार्थी युग में ऐसे पड़ोसी मिलना बहुत कठिन है। जो सदा कंधे-से-कंधा मिलाकर सुख-दुख में एक साथ चलें। हमारे पड़ोस में एक अवकाश प्राप्त अध्यापक रहते हैं। वे सारे मुहल्ले के बच्चों को मुफ्त पढ़ाते हैं। एक दूसरे सज्जन हैं जो सभी पड़ोसियों के छोटे-छोटे काम बड़ी प्रसन्नता से करते हैं। हमारे पड़ोस में एक प्रौढ़ महिला भी रहती है जिन्हें सारे मुहल्ले वाले मौसी कहकर पुकारते हैं। यह मौसी मुहल्ले भर के लड़के-लड़कियों की खोज-खबर रखती है। यहाँ तक कि किसकी लड़की अधिक फ़ैशन करती है, किसका लड़का अवारागर्द है।

मौसी को सारे मुहल्ले की ही नहीं, सारे शहर की खबर रहती है। हम मौसी को चलता-फिरता अखबार कहते हैं। वह कई बार झूठी चुगली करके कुछ पड़ोसियों को आपस में लड़वाने की कोशिश भी कर चुकी है। परंतु सब उसकी चाल को समझते हैं। हमारे सारे पड़ोसी बहुत अच्छे हैं। एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं और समय पड़ने पर उचित सहायता भी करते हैं।

73. सपने में चाँद पर यात्रा

आज के समाचार-पत्र में पढ़ा कि भारत भी चंद्रमा पर अपना यान भेज रहा है। सारा दिन यही समाचार मेरे अंतर में घूमता रहा। सोया तो स्वप्न में लगा कि मैं चंद्रयान से चंद्रमा पर जाने वाला भारत का प्रथम नागरिक हूँ। जब मैं चंद्रमा के तल पर उतरा तो चारों ओर उज्ज्वल प्रकाश फैला हुआ था। वहाँ की धरती चाँदी से ढकी हुई-सी लग रही थी। तभी एकदम सफ़ेद वस्त्र पहने हुए परियों जैसी सुंदरियों ने मुझे पकड़ लिया और चंद्रलोक के महाराज के पास ले गईं। वहाँ भी सभी सफ़ेद उज्ज्वल वस्त्र पहने हुए थे। उनसे वार्तालाप में मैंने स्वयं को जब भारत का नागरिक बताया तो उन्होंने मेरा सफ़ेद रसगुल्लों जैसी मिठाई से स्वागत किया। वहाँ सभी कुछ अत्यंत निर्मल और पवित्र था। मैंने मिठाई खानी शुरू ही की थी कि मेरी मम्मी ने मेरी बाँह पकड़कर मुझे उठा दिया और डाँट पड़ी कि चादर क्यों खा रहा है ? मैं हैरान था कि यह क्या हो गया? कहाँ तो मैं चंद्रलोक का आनंद ले रहा था और यहाँ चादर खाने पर डाँट पड़ रही है। मेरा स्वप्न भंग हो गया था और मैं भाग कर बाहर की ओर चला गया।

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74. मेट्रो रेल : महानगरीय जीवन का सुखद सपना

मेट्रो रेल वास्तव में ही महानगरीय जीवन का एक सुखद सपना है। भाग-दौड़ की जिंदगी में भीड़-भाड़ से भरी सड़कों पर लगते हुए गतिरोधों से मुक्त दिला रही है मेट्रो रेल। जहाँ किसी निश्चित स्थान पर पहुँचने में घंटों लग जाते थे वहीं मेट्रो रेल मिनटों में पहुँचा देती है। यह यातायात का तीव्रतम एवं सस्ता साधन है। यह एक सुव्यवस्थित क्रम से चलती है। इससे यात्रा सुखद एवं आरामदेह हो गई है। बसों की धक्का-मुक्की, भीड़-भाड़ से मुक्ति मिल गई है। समय पर अपने काम पर पहुँचा जा सकता है। एक निश्चित समय पर इसका आवागमन होता है इसलिए समय की बचत भी होती है। व्यर्थ में इंतज़ार नहीं करना पड़ता है। महानगर के जीवन में यातायात क्रांति लाने में मेट्रो रेल का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

एक ही अनुच्छेद में किसी विषय से संबंधित विचारों को व्यक्त करना ‘अनुच्छेद लेखन’ कहलाता है। इसे लिखने के लिए कुशलता प्राप्त करना निरन्तर अभ्यास पर निर्भर करता है। अनुच्छेद को लिखने के लिए निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक होता है-

  1. अनुच्छेद लिखने के लिए दिए गए विषय को भली-भांति समझ लेना चाहिए। शीर्षक में दिए गए भावों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए।
  2. अनुच्छेद की भाषा शुद्ध, स्पष्ट और क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित और उचित शब्दों से युक्त होनी चाहिए।
  3. अनुच्छेद पूरी तरह से विषय पर ही आधारित होना चाहिए। उसमें व्यर्थ का विस्तार कदापि नहीं होना चाहिए।
  4. अनुच्छेद की शैली ऐसी होनी चाहिए कि कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक बात कह दी जाए। अप्रासंगिक और इधर-उधर की बातों को अनुच्छेद में स्थान नहीं दिया जाना चाहिए।
  5. अनुच्छेद के सभी वाक्य विषय से ही संबंधित होने चाहिए।
  6. अनुच्छेद किसी निबन्ध की तरह विस्तृत नहीं होना चाहिए।
  7. वाक्य संरचना सरल, सरस, सार्थक और सुगठित होनी चाहिए।
  8. भाव और भाषा में स्पष्टता, मौलिकता और सरलता विद्यमान रहनी चाहिए।
  9. भाषा निश्चित रूप से विषय के अनुरुप और स्तरीय होनी चाहिए। विचार-प्रधान विषयों में विचारात्मकता और. तार्किकता होनी चाहिए। भावात्मकता में अनुभूतियों की अधिकता होनी चाहिए।
  10. वाक्य संरचना में सुघड़ता और लयात्मकता को स्थान दिया जाना चाहिए।

पाठ्य पुस्तक में दिए गए विषयों पर आधारित अनुच्छेद

1. मेरी दिनचर्या

प्रतिदिन किए जाने वाले कार्य को दिनचर्या कहते हैं। मैं प्रतिदिन सुबह पाँच बजे उठता हूँ। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सबसे अच्छा साधन व्यायाम है। व्यायामों में सबसे सरल और लाभदायक व्यायाम प्रातः भ्रमण ही है इसलिए मैं प्रतिदिन भ्रमण के लिए जाता हूँ। प्रातःकाल भ्रमण के अनेक लाभ हैं। इससे हमारा स्वास्थ्य उत्तम होता है। इसके बाद कुछ योगासन करता हूँ। मैंने अपनी दिनचर्या बड़े क्रमबद्ध तरीके से बनाई हुई। योगासन के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर नाश्ता करता हूँ। फिर अपना बस्ता तैयार करके स्कूल के लिए साइकिल पर निकल जाता हूँ। दोपहर दो बजे तक विद्यालय पढ़ाई करने के बाद घर आकर भोजन करता हूँ। शाम को दोस्तों के साथ खेलने के लिए पार्क में जाता हँ। वहाँ हम सभी दोस्त मिलकर खेलते हैं। इसके बाद घर आकर अपना पढ़ाई का काम करता हूँ। फिर कुछ देर टी० वी० भी देखता हूँ। इतने में माँ रात का भोजन लगा देती है। रात का भोजन करने के बाद मैं बिस्तर में जाकर सो जाता हूँ।

2. मेरी पहली हवाई यात्रा

मानव जीवन में प्रायः ऐसी रोमांचक घटनाएं घटित होती हैं जो मानव को सदैव याद रह जाती हैं। ऐसे कुछ क्षण, ऐसी कुछ यादें ऐसी कुछ यात्राएँ जिन्हें मनुष्य सदा याद कर रोमांचित हो उठता है। बैंगलौर की हवाई यात्रा मेरे जीवन की एक ऐसी ही रोमांचकारी यात्रा थी। जो सदैव मुझे याद रहेगी। मुझे अच्छी तरह याद है कि वह जनवरी का महीना था। हमारी अर्द्धवार्षिक परीक्षा हो चुकी थी। हम घर पर छुट्टियों का आनंद उठा रहे थे कि एक दिन पिता जी दफ्तर से घर आए और कहा कि हम सब दो दिन बाद बैंगलौर घूमने जा रहे हैं। उन्होंने इसके लिए पूरे परिवार की जैट एयर से उड़ान की टिकट बुक करवा ली थीं। ये सुनते ही मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना न था। निश्चित दिन हम सभी टैक्सी से एयरपोर्ट पहुँच गए। काऊंटर पर हमने अपना सामान जमा करवाया। कंप्यूटर से सारे सामान की जाँच हुई।

उसके बाद हमें यात्री पास मिले। हमारी भी चैकिंग हुई। इसके बाद हम विमान के अंदर गए। वहाँ विमान परिचारिकाओं ने हमें हमारी निश्चित सीट पर बैठाया। उड़ान से पूर्व हमें बताया गया कि हमारी उड़ान कहाँ और कितनी देर की है। हमें सीट बेल्ट बाँधने को कहा गया। मेरी सीट खिड़की के साथ थी। मैं आकाश से धरती के लगातार बदलते रूपों को देख रहा था। यह एक ऐसा निर्वचनीय आनंद था जिसकी अनुभूति तो हो सकती है पर वर्णन नहीं। यह मेरे जीवन की एक रोमांचक यात्रा थी जिसे मैं कभी नहीं भुला सकता।

3. मेरे जीवन का लक्ष्य

संसार में प्रत्येक मनुष्य के जीवन का कोई-न-कोई लक्ष्य अवश्य होता है। एक मनुष्य एवं सामाजिक प्राणी होने के नाते मैंने भी अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया है। मैं बड़ा होकर एक आदर्श अध्यापक बनना चाहता हूँ और अध्यापक के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाता हुआ अपने राष्ट्र की सेवा करना चाहता हूँ। मैं आदर्श शिक्षक बनकर अपने राष्ट्र की भावी पीढ़ी के बौद्धिक स्तर को उच्च स्तर पर पहुँचाना चाहता हूँ ताकि मेरे देश की युवा पीढ़ी कुशल, विवेकशील, कर्मनिष्ठ बन सके और मेरा देश फिर से शिक्षा का सिरमौर बन सके। फिर से हम विश्व-गुरु की उपाधि को ग्रहण कर सकें। विद्यार्थी होने के कारण मैं भली-भांति जानता हूँ कि किसी अध्यापक का विद्यार्थियों पर कैसा प्रभाव पड़ता है। कोई अच्छा अध्यापक उनको उच्छी दिशा दे सकता है। मैं भी ऐसा करके देश के युवा वर्ग को नई दिशा देना चाहता हूँ।

4. हम घर में सहयोग कैसे करें?

मानव एक सामाजिक प्राणी है इसलिए उसे अपने जीवन-यापन हेतु समाज में दूसरों से किसी-न-किसी कार्य के लिए सहयोग लेना और देना पड़ता है। मानवीय जीवन में सहयोग का बहुत महत्त्व है। हमें इसका प्रारंभ अपने घर से ही करना चाहिए। हमें अपने घर में प्रत्येक सदस्य के साथ सहयोगपूर्ण भावना से मिलजुल कर कार्य करना चाहिए जैसे माता-पिता अपना सब कुछ समर्पित करके घर को चलाते हैं। पिता जी सुबह से शाम तक कठिन परिश्रम करते हैं और माता जी सुबह से लेकर रात तक साफ-सफाई, भोजन बनाना, बर्तन धोना आदि घर के अनेक कार्यों को निपटाने में लगी रहती हैं।

इसलिए हमें भी घर के किसी-न-किसी कार्य में माता-पिता का सहयोग ज़रूर करना चाहिए। हम अनेक छोटे-बड़े कार्यों में माता-पिता का सहयोग कर सकते हैं ; जैसे-दुकान से फल-सब्जियां तथा रसोई का सामान लाना, लांड्री से कपड़े लाना, खाना परोसना आदि। हम अपने छोटे भाई-बहनों को उनके पढ़ाने में उनकी मदद कर सकते हैं। अपने बगीचे की साफ-सफाई तथा घर की सफाई में सहयोग दे सकते हैं। पौधों में खाद-पानी दे सकते हैं तथा उनकी नियमित देख-रेख कर सहयोग दे सकते हैं। इस प्रकार घर में सहयोग की भावना का विकास होगा जिससे पारस्परिक सद्भाव एवं प्रेम की भावना बढ़ेगी और घर खुशहाल बन जाएगा।

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5. गाँव का खेल मेला

मेले भारतीय संस्कृति की अनुपम पहचान हैं। ग्रामीण संस्कृति में इनका विशेष महत्त्व है। हमारे गाँव में प्रति वर्ष
खेल मेले का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष भी हमारे गांव में मई मास में खेल मेले का धूमधाम से आयोजन किया गया। इस अवसर पर पूरे गाँव को दुल्हन की तरह सजाया गया था। गांव की प्रत्येक गली में बड़ी-बड़ी लाइटें तथा ध्वनि यंत्र लगाए गए। खेल मैदान में दर्शकों के लिए बैठने की विशेष सुविधा की गई थी। मैदान में चारों तरफ लाइटों का भी विशेष प्रबंध था। इस मेले का उद्घाटन राज्य खेल मंत्री के कर कमलों से हुआ।

खेल प्रारंभ होने से पूर्व खेल मंत्री ने सभी टीमों से मुलाकात की तथा उन्हें संबोधित करते हुए कहा कि खिलाड़ियों को खेल-भावना से खेलना चाहिए। प्रथम दिवस कबड्डी, खो-खो तथा साइकिल दौड़ का आयोजन किया गया तथा दूसरे दिन सौदो सौ तथा पाँच सौ मीटर दौड़ आयोजित की गई। क्रिकेट मैच ने सब दर्शकों का मन मोह लिया। खेल मेले के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि शिक्षा अधिकारी ने प्रत्येक वर्ग में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर रहे सभी खिलाड़ियों को मेडल प्रदान किए। वास्तव में हमारे गाँव का खेल मेला अत्यंत रोचक, मनोरंजकपूर्ण रहा। यह हमारे लिए अविस्मरणीय रहेगा।

6. परीक्षा में अच्छे अंक पाना ही सफलता का मापदंड नहीं

परीक्षा में विद्यार्थियों के धैर्य और वर्षभर किए गए परिश्रम की परख होती है। यह सत्य है कि परीक्षा में सभी विद्यार्थियों की अच्छे अंक पाने की कामना होती है और अच्छे अंक प्राप्त करने से उनका सभी जगह सम्मान होता है। इससे विद्यार्थी का आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास बढ़ता है। उसकी स्वर्णिम भविष्य की राहें आसान हो जाती हैं। किंतु परीक्षा में अच्छे अंक पाना ही सफलता का मापदंड नहीं हैं क्योंकि सफलता केवल अच्छे अंकों से ही प्राप्त नहीं होती बल्कि सफलता के इसके अतिरिक्त कई पहलू और भी हैं। सफलता के लिए आत्मविश्वास, साहस, विवेक, इच्छाशक्ति, सकारात्मक सोच होनी चाहिए। कम अंक पाने वाले लोग भी इन बिंदुओं के आधार पर सफलता की ऊँचाइयों को छू सकते हैं।

इसके लिए आदमी को अपनी क्षमता की पहचान अवश्य होनी चाहिए। दुनिया में ऐसे बहुत उदाहरण हैं जिन्हें कम अंक पाने के बावजूद भी श्रेष्ठ स्तर की सफलता को प्राप्त किया है। दुनिया के श्रेष्ठ वैज्ञानिक आइंस्टाइन स्कूली स्तर पर औसत विद्यार्थी रहे लेकिन आगे चलकर उन्होंने अनूठे आविष्कार किए। इसी तरह मुंशी प्रेमचन्द ने दसवीं की परीक्षा मुश्किल से द्वितीय श्रेणी में पास की और कई बार फेल होने के बाद बी०ए० की परीक्षा पास की थी। इसके बावजूद भी मुंशी प्रेमचंद दुनिया के अमर उपन्यासकार के रूप में जाने जाते हैं। इसी प्रकार अनेक क्रिकेटर, खिलाड़ी, संगीतकार, नेता, अभिनेता, गायक आदि हुए हैं जो अपने अकादमिक रूप में नहीं बल्कि अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रसिद्ध हैं। सचमुच परीक्षा में केवल अच्छे अंक पाना ही जीवन में सफलता की प्राप्ति का मापदंड नहीं है।

7. ज्ञान वृद्धि का साधन-भ्रमण

संसार में ज्ञान-वृद्धि और ज्ञानार्जन के अनेक साधन हैं। पाठ्य-पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएं आदि पढ़कर तथा अनेक स्थलों की यात्राएं करके भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। रेडियो, टेलीविज़न सुन-देखकर भी देश-विदेश की अनेक जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं। किन्तु भ्रमण ज्ञान वृद्धि का अनुपम साधन है। यह ज्ञानवृद्धि के साथ-साथ आनंद . और मौज-मस्ती का अनूठा साधन है। ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों के भ्रमण से ज्ञानवृद्धि ही नहीं, मन की शांति, आत्मिक प्रसन्नता और सौंदर्यानुभूति भी प्राप्त होती है। इसी तरह नदियों, पर्वतों, झरनों, वनों, तालाबों आदि के भ्रमण से प्राकृतिक सौंदर्य का ज्ञान एवं आनंद ग्रहण किया जा सकता है। भ्रमण से मनुष्य को चहुँमुखी ज्ञान की प्राप्ति होती है। उसके आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलता है वस्तुतः भ्रमण ज्ञान वृद्धि का साधन है।

8. प्रकृति का वरदान : पेड़-पौधे

प्रकृति ने संसार को अनेक अनूठे उपहार भेंट किए हैं। पेड़-पौधे प्रकृति का अनूठा वरदान है। पेड़-पौधे संपूर्ण जीवजगत के जीवन का मूलाधार हैं। ये पर्यावरण को साफ, स्वच्छ एवं सुंदर बनाते हैं। ये कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन दूसरों को देते हैं। इस ऑक्सीजन से सम्पूर्ण प्राणी जगत सांस लेता है। पेड़-पौधे स्वयं सूर्य की तपन को सहन कर दूसरों को छाया प्रदान करते हैं। वे अपने फल स्वयं कभी नहीं खाते बल्कि उन्हें भी हमें ही दे देते हैं। वे इतने विन्रम होते हैं कि फल आने पर स्वयं ही नीचे की तरफ झुक जाते हैं। पेड़-पौधे वातावरण को शुद्ध बनाते हैं। धरा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। भूमि को पानी के कटाव से रोकते हैं। पेड़-पौधों से हमें लकड़ियाँ, औषधियाँ, छाल आदि अनेक अमूल्य उपहार प्राप्त होते हैं। संभवतः पेड़-पौधे प्रकृति का अनूठा वरदान हैं। हमें भी पेड़-पौधों का संरक्षण करना चाहिए। अधिक-से-अधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए।

9. अपने नए घर में प्रवेश

मैंने बचपन में एक सपना देखा था कि हमारा नया घर होगा जिसमें हम सपरिवार खुशी से रहेंगे। मेरा यह सपना गत सप्ताह पूर्ण हुआ। पिछले सप्ताह ही हमारा नया घर बनकर तैयार हुआ जिसमें घर के अनुरूप नए पर्दै, फर्नीचर आदि लगवाया गया। सोमवार को हमारा गृह-प्रवेश था जिसमें हमने अपने सभी मित्रों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को सादर आमंत्रित किया था। इस अवसर पर सुबह सात बजे ही पंडित जी ने पूजा विधान का कार्यक्रम आरंभ कर दिया। इसके बाद हवन-यज्ञ किया गया जिसमें परिवार के सभी लोग सम्मिलित हुए। पंडित जी ने नारियल फोड़कर परिवार से गृहप्रवेश करवाया। पूजा-विधान के पश्चात् दोपहर के भोजन का प्रबंध किया गया था। हमारे सभी मित्रों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने आनंदपूर्वक भोजन किया और जाते समय सभी ने गृह-प्रवेश पर लाखों बधाइयां दी। हमने सपरिवार सभी मेहमानों का धन्यवाद किया। वास्तव में नए गृह-प्रवेश के अवसर पर हम सब बहुत उत्साहित थे।

10. कैरियर चनाव में स्वमूल्यांकन

कैरियर चुनाव मानव-जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि कैरियर चुनाव की सार्थकता ही मानव-जीवन की सफलता की सीढ़ी है। यह वर्तमान युवा वर्ग की सबसे बड़ी चुनौती है। यह बात सच है कि कैरियर के चुनाव में माता पिता, मित्र, रिश्तेदार आदि अनेक लोगों की राय होती हैं किंतु कैरियर चुनाव में स्वमूल्यांकन सर्वोत्तम है। युवा वर्ग को अपने विद्यार्थी जीवन के प्रारंभ से ही इसकी जानकारी होनी चाहिए। उसे प्रारंभ से स्वमूल्यांकन कर लेना चाहिए। अपनी पसंद, क्षमता, पुरुषार्थ, विवेक, बुद्धि कौशल और आत्म-विश्वास को ध्यान में रखकर अपने कैरियर का चुनाव करना अति महत्त्वपूर्ण है। यदि विद्यार्थी अपनी क्षमता, पुरुषार्थ, विवेक बुद्धि-कौशल और आत्मविश्वास को ध्यान में रखकर अपने कैरियर का चुनाव करता है तो वह अवश्य ही सफल होता है। उसे अपने कैरियर के चुनाव में किसी बात की कोई कठिनाई नहीं आती। वह अपनी रुचि के अनुकूल अपना कैरियर बनाने में सफल हो सकता है। अत: कैरियर चुनाव में दूसरों की राय की अपेक्षा स्वमूल्यांकन अत्यावश्यक है।

11. विद्यार्थी और अनुशासन

विद्यार्थी और अनुशासन एक-दूसरे के पूरक हैं। यूं कहें कि अनुशासन ही विद्यार्थी जीवन की नींव है। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासित विद्यार्थी ही सफलता की ऊंचाई को छूने में सफल होता है जो विद्यार्थी अपने जीवन में अनुशासन को नहीं अपनाता वह कभी भी सफल नहीं होता बल्कि अपने जीवन को ही बर्बाद कर लेता है। बिना अनुशासन के विद्यार्थी जीवन कटी-पतंग के समान होता है जिसका कोई लक्ष्य नहीं होता। जो विद्यार्थी अपने विद्यालय के प्रांगण में रहकर प्रतिक्षण अनुशासन का पालन करता है। अपने शिक्षकों का आदर करता है और इतना ही नहीं जीवन में हर पल नियमों-अनुशासन में बंधकर चलता है ; वह कदापि निष्फल नहीं हो सकता। सफलता उसके कदम अवश्य ही चूमती है। इसलिए विद्यार्थी को कभी भी अनुशासन भंग नहीं करना चाहिए बल्कि सदैव अनुशासन का पालन करना चाहिए। एक अनुशासित विद्यार्थी ही राष्ट्र का आदर्श नागरिक बनता है और देश के चहुंमुखी विकास में अपना योगदान देता है।

12. कोचिंग संस्थानों का बढ़ता जंजाल

वर्तमान युग कंपीटीशन का युग है। आज हर क्षेत्र में प्रतियोगिता है। आज के विद्यार्थी को पग-पग पर अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। मेडिकल, सेना, कानून, प्रशासनिक सेवाओं, इंजीनियरिंग आदि कोरों में प्रवेश लेने के लिए अलग-अलग परीक्षाएं देनी पड़ती हैं। इतना ही नहीं अनेक प्रकार की नौकरियां पाने के लिए भी आजकल प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं जिनके पास करने के उपरांत ही प्रतियोगी को आगे बढ़ने का मौका मिलता है। आज के युग में प्रतियोगिता निरन्तर बढ़ती जा रही है। एक-एक सीट पर दाखिला लेने और नौकरी पाने के लिए हजारों-लाखों प्रतियोगी पंक्तिबद्ध होकर प्रतीक्षा में रहते हैं जिसके चलते आज कोचिंग संस्थानों की भरमार हो रही है।

चूंकि हर कोई अपने को सिद्ध करने के लिए कोचिंग संस्थानों की ओर भागता है। परिणामस्वरूप छोटे से लेकर बड़े शहरों तक कोचिंग संस्थानों ने अपना जाल बिछा दिया है। दिल्ली, मुंबई, बंगलौर जैसे शहरों में तो जगह-जगह बड़ेबड़े संस्थान खुले हुए हैं जिनमें लाखों लोग पढ़ रहे हैं। ये संस्थान लाखों की फीस ऐंठकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं क्योंकि कोचिंग से बढ़कर स्वाध्ययन ज़रूरी है। स्वध्ययन से ही प्रतियोगी के अंदर आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न होती है और आत्मविश्वास ही सफलता होती है। इसलिए हमें स्वाध्ययन को ही आधार बनाना चाहिए।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनुच्छेद लेखन

13. मैंने लोहड़ी का त्योहार कैसे मनाया?

लोहड़ी भारतीय संस्कृति का पवित्र और महत्त्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह प्रतिवर्ष 13 जनवरी को संपूर्ण भारत वर्ष में बड़े हर्षोल्लास एवं मौज-मस्ती के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष मैंने लोहड़ी का त्योहार अपने मामा जी के घर अमृतसर में मनाया। मैं एक दिन पहले ही अपने मामा जी के घर पहुंच गया था। लोहड़ी वाले दिन सुबह से ही ढोल-नगाड़े बजने प्रारंभ हो गए थे। सब गले मिलकर एक-दूसरे को पावन पर्व की बधाइयाँ दे रहे थे। मैंने भी अपने भाई के साथ मिलकर पूरे मोहल्ले वालों को बधाइयां दी। सब लोग एक-दूसरे के घर मिठाइयां, रेवड़ी, मूंगफली बांट रहे थे।

उस दिन शाम को मोहल्ले के बीच में सबने अपने-अपने घर से लकड़ियाँ लाकर बड़ा ढेर लगा दिया। सभी उसके चारों तरफ इकट्ठे हो गए। पूरी श्रद्धा एवं आनंद के साथ लकड़ियों में अग्नि प्रज्वलित की गई। तत्पश्चात् सबने लोहड़ी की पूजा अर्चना की। सब उसकी परिक्रमा कर रहे थे और गीत गा रहे थे। पूजा के बाद सबको रेवड़ी, मूंगफली आदि का प्रसाद बांटा गया। इसके बाद ढोल-नगाड़े बजने लगे तो सभी लोग झूम उठे। लड़कियां गिद्दा पाने लगी तो लड़के भांगड़ा करने लगे। सचमुच यह लोहड़ी का त्योहार मैंने खूब आनंदपूर्वक मनाया। यह मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगा।

14. जनसंचार के माध्यम

वर्तमान युग विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं भूमंडलीकरण का युग है। आज के युग में जनसंचार के क्षेत्र में क्रांति-सी आ गई है। आज पहले की अपेक्षा जनसंचार के आधुनिक एवं अनेक साधन हैं जिनसे हम दूसरों तक अपनी बात को आसानी से पहँचा सकते हैं। अब तो जनसंचार के लिए मोबाइल फोन हर व्यक्ति की जेब में सदा विद्यमान रहता है जिससे आप देश-विदेश कहीं भी बात कर सकते हो, संदेश प्राप्त कर सकते हो या उन्हें कहीं भी भेज सकते हो। इंटरनेट की सुविधा ने तो पूरे संसार को एक गाँव में बदल कर रख दिया है। पत्र-पत्रिकाएं, रेडियो, टेलीविज़न, मोबाइल, टेलीफोन, इंटरनेट, ई-मेल, फैक्स आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यम हैं। जनसंचार के इन माध्यमों को हम अनेक वर्गों में बांट सकते हैं। मौखिक और लिखित। दृश्य और श्रव्य तथा दृश्य एवं श्रव्य दोनों। इन सभी माध्यमों का देश के शिक्षा, व्यापार, व्यवसाय, मनोरंजन आदि क्षेत्रों में अनूठा योगदान है।

15. भ्रूण हत्या : एक जघन्य अपराध

आज हमारे देश में दहेज प्रथा, बाल विवाह, जनसंख्या वृद्धि, कन्या भ्रूण हत्या आदि अनेक समस्याएं हैं जिनमें कन्या भ्रूण हत्या एक भयंकर समस्या है। यह एक ऐसा जघन्य अपराध है जो देश की महानता और गौरव-गरिमा को धूमिल कर रहा है। वैज्ञानिक उन्नति ने इस अपराध को बढ़ावा देने का कार्य किया है। मेडिकल क्षेत्र में नवीन खोज़ से जो बड़ीबड़ी और अति आधुनिक अल्ट्रासाऊंड मशीनें आई हैं जिनका उपयोग जनकल्याण कार्यों के लिए किया जाना था। आज कुछ स्वार्थी लोग अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु उनका गलत कार्यों के लिए उपयोग कर रहे हैं।

वे माता-पिता को जन्म से पूर्व ही अल्ट्रासांऊड के माध्यम से यह बता देते हैं कि गर्भ में पल रहा भ्रूण बेटा है अथवा बेटी। हालांकि ऐसा करना हमारे देश में कानूनी अपराध है किन्तु फिर भी कुछ लोग अपने लालच के कारण ऐसा कर रहे हैं जिससे मातापिता एक बेटे की चाह में उस कन्या को जन्म से पहले ही गर्भ में मरवा देते हैं। इसका दुष्परिणाम यह है कि देश में लड़कियों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए। इसके लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति को कड़ी सजा देनी चाहिए।

16. मेरी दिनचर्या

प्रतिदिन किए जाने वाले कार्य को दिनचर्या कहते हैं। मैं प्रतिदिन सुबह पाँच बजे उठता हूँ। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सबसे अच्छा साधन व्यायाम है। व्यायामों में सबसे सरल और लाभदायक व्यायाम प्रातः भ्रमण ही है इसलिए मैं प्रतिदिन भ्रमण के लिए जाता हूँ। प्रातःकाल भ्रमण के अनेक लाभ हैं। इससे हमारा स्वास्थ्य उत्तम होता है। इसके बाद कुछ योगासन करता हूँ। मैंने अपनी दिनचर्या बड़े क्रमबद्ध तरीके से बनाई हुई है। योगासन के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर नाश्ता करता हूँ। फिर अपना बस्ता तैयार करके स्कूल के लिए साइकिल पर निकल जाता हूँ। दोपहर दो बजे तक विद्यालय पढ़ाई करने के बाद घर आकर भोजन करता हूँ। शाम को दोस्तों के साथ खेलने के लिए पार्क में जाता हूँ। वहाँ हम सभी दोस्त मिलकर खेलते हैं। इसके बाद घर आकर अपना पढ़ाई का काम करता हूँ। फिर कुछ देर टी०वी० भी देखता हूँ। इतने में माँ रात का भोजन लगा देती है। रात का भोजन करने के बाद मैं बिस्तर में जाकर सो जाता हूँ।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar apathit gadyansh अपठित गद्यांश Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar अपठित गद्यांश

1. इस संसार में प्रकृति द्वारा मनुष्य को प्रदत्त सबसे अमूल्य उपहार ‘समय’ है। ढह गई इमारत को दुबारा खड़ा किया जा सकता है। बीमार व्यक्ति को इलाज द्वारा स्वस्थ किया जा सकता है; खोया हुआ धन दुबारा प्राप्त किया जा सकता है। किंतु एक बार बीता समय दुबारा नहीं पाया जा सकता। जो समय के महत्त्व को पहचानता है, वह उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। जो समय का तिरस्कार करता है, हर काम में टालमटोल करता है, समय को बर्बाद करता है, समय भी उसे एक दिन बर्बाद कर देता है। समय पर किया गया हर काम सफलता में बदल जाता है जबकि समय के बीत जाने पर बहुत कोशिशों के बावजूद भी कार्य को सिद्ध नहीं किया जा सकता।

समय का सदुपयोग केवल कर्मठ व्यक्ति ही कर सकता है, लापरवाह, कामचोर और आलसी नहीं। आलस्य मनुष्य की बुद्धि और समय दोनों का नाश करता है। समय के प्रति सावधान रहने वाला मनुष्य आलस्य से दूर भागता है तथा परिश्रम, लगन व सत्कर्म को गले लगाता है। विद्यार्थी जीवन में समय का अत्यधिक महत्त्व होता है। विद्यार्थी को अपने समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन में करना चाहिए न कि अनावश्यक बातों, आमोद. प्रमोद या फैशन में।
उपयुक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया सबसे अमूल्य उपहार क्या है?
उत्तर:
प्रकृति के द्वारा मनुष्य को दिया गया अमूल्य उपहार समय है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 2.
समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति किससे दूर भागता है?
उत्तर:
समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति आलस्य से दूर भागता है।

प्रश्न 3.
विद्यार्थी को समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिये?
उत्तर:
विद्यार्थी को समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन से करना चाहिए।

प्रश्न 4.
‘कर्मठ’ तथा ‘तिरस्कार’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कर्मठ-परिश्रमी, तिरस्कार-अपमान।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
समय-प्रकृति का अमूल्य उपहार।

2. हर देश, जाति और धर्म के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धांत पर बल दिया है, क्योंकि हर समाज में ऐश्वर्यपूर्ण, स्वच्छंद और आडंबरपूर्ण जीवन जीने वाले लोग अधिक हैं। आज मनुष्य सुखभोग और धन-दौलत के पीछे भाग रहा है। उसकी असीमित इच्छाएँ उसे स्वार्थी बना रही हैं। वह अपने स्वार्थ के सामने दूसरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता तक की परवाह नहीं करता जबकि विचारों की उच्चता में ऐसी शक्ति होती है कि मनुष्य की इच्छाएँ सीमित हो जाती हैं। सादगीपूर्ण जीवन जीने में उसमें संतोष और संयम जैसे अनेक सदुगुण स्वतः ही उत्पन्न हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त उसके जीवन में लोभ, द्वेष और ईर्ष्या का कोई स्थान नहीं रहता।

उच्च विचारों से उसका स्वाभिमान भी बढ़ जाता है जो कि उसके चरित्र की प्रमुख पहचान बन जाता है। इससे वह छल-कपट, प्रमाद और अहंकार से दूर रहता है। किन्तु आज की इस भाग-दौड़ वाली जिंदगी में हरेक व्यक्ति की यही लालसा रहती है कि उसकी जिंदगी ऐशो-आराम से भरी हो। वास्तव में आज के वातावरण में मानव पश्चिमी सभ्यता, फैशन और भौतिक सुख साधनों से भ्रमित होकर उनमें संलिप्त होता जा रहा है। ऐसे में मानवता की रक्षा केवल सादा जीवन और उच्च विचार रखने वाले महापुरुषों के आदर्शों पर चलकर ही की जा सकती है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
हर देश जाति और धर्म के महापुरुषों ने किस सिद्धांत पर बल दिया है?
उत्तर:
हर देश, जाति और धर्म के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धांत पर बल दिया है।

प्रश्न 2.
अपने स्वार्थ के सामने मनुष्य को किस चीज़ की परवाह नहीं रहती?
उत्तर:
अपने स्वार्थ के सामने मनुष्य को दूसरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता को भी परवाह नहीं रहती।

प्रश्न 3.
सादगीपूर्ण जीवन जीने से मनुष्य में कौन-कौन से गुण उत्पन्न हो जाते हैं?
उत्तर:
सादगीपूर्ण जीवन जीने से मनुष्य में संतोष और संयम के गुण उत्पन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
‘प्रमाद’ तथा ‘लालसा’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
प्रमाद-नशा/उन्माद, लालसा-अभिलाषा।

प्रश्न 5.
उपयुक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
सादा जीवन उच्च-विचार।

3. मनुष्य का जीवन कर्म-प्रधान है। मनुष्य को निष्काम भाव से सफलता-असफलता की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करना है। आशा या निराशा के चक्र में फंसे बिना उसे लगातार कर्त्तव्यनिष्ठ रहना है। किसी भी कर्त्तव्य की पूर्णता पर सफलता अथवा असफलता प्राप्त होती है। असफल व्यक्ति निराश हो जाता है, किंतु मनीषियों ने असफलता को भी सफलता की कुंजी कहा है। असफल व्यक्ति अनुभव की संपत्ति अर्जित करता है, जो उसके भावी जीवन का निर्माण करती है। जीवन में अनेक बार ऐसा होता है कि हम जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम करते हैं, वह पूरा नहीं होता है। ऐसे अवसर पर सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया-सा लगता है और हम निराश होकर चुपचाप बैठ जाते हैं।

उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुनः प्रयत्न नहीं करते। ऐसे व्यक्ति का जीवन धीरे-धीरे बोझ बन जाता है। निराशा का अंधकार न केवल उसकी कर्म-शक्ति, बल्कि उसके समस्त जीवन को ही ढंक लेता है। मनुष्य जीवन धारण करके कर्म-पथ से कभी विचलित नहीं होना चाहिए। विघ्नबाधाओं की, सफलता-असफलता की तथा हानि-लाभ की चिंता किए बिना कर्त्तव्य के मार्ग पर चलते रहने में जो आनंद एवं उत्साह है, उसमें ही जीवन की सार्थकता है।
उपयुक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
कर्त्तव्य-पालन में मनुष्य के भीतर कैसा भाव होना चाहिए?
उत्तर:
कर्त्तव्य-पालन में मनुष्य के भीतर सफलता-असफलता की चिंता को त्याग और केवल कर्त्तव्य के पालन का भाव होना चाहिए।

प्रश्न 2.
सफलता कब प्राप्त होती है?
उत्तर:
सफलता की प्राप्ति तब होती है जब मनुष्य बिना किसी आशा या निराशा के चक्र में फंसे हुए निरंतर अपने कार्य में लगा रहता है।

प्रश्न 3.
जीवन में असफल होने पर क्या करना चाहिए?
उत्तर:
जीवन में असफल होने पर कभी भी निराश-हतांश नहीं होना चाहिए और निरंतर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करते रहना चाहिए।

प्रश्न 4.
‘निष्काम’ और ‘मनीषियों’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
निष्काम-असक्ति से रहित, निरीह।
मनीषियों-विचारशील पुरुषों, पंडितों/विद्वानों।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
जीवन में कर्म का महत्त्व।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

4. व्यवसाय या रोज़गार पर आधारित शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा कहलाती है। भारत सरकार इस दिशा में सराहनीय भूमिका निभा रही है। इस शिक्षा को प्राप्त करके विद्यार्थी शीघ्र ही अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। प्रतियोगिता के इस दौर में तो इस शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। व्यावसायिक शिक्षा में ऐसे कोर्स रखे जाते हैं जिनमें व्यावहारिक प्रशिक्षण अर्थात् प्रैक्टीकल ट्रेनिंग पर अधिक जोर दिया जाता है। यह आत्मनिर्भरता के लिए एक बेहतर कदम है। व्यावसायिक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए भारत व राज्य सरकारों ने इसे स्कूल-स्तर पर शुरू किया है। निजी संस्थाएं भी इस क्षेत्र में सराहनीय भूमिका निभा रही हैं। कुछ स्कूलों में तो नौवीं कक्षा से ही व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है।

परंतु बड़े पैमाने पर इसे ग्यारहवीं कक्षा से शुरू किया गया है। व्यावसायिक शिक्षा का दायरा काफ़ी विस्तृत है। विद्यार्थी अपनी पसंद और क्षमता के आधार पर विभिन्न व्यावसायिक कोरों में प्रवेश ले सकते हैं। कॉमर्स-क्षेत्र में कार्यालय प्रबंधन, आशुलिपि व कंप्यूटर एप्लीकेशन, बैंकिंग, लेखापरीक्षण, मार्कीटिंग एंड सेल्ज़मैनशिप आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलैक्ट्रिकल, इलैक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एंड रेफरीजरेशन एवं ऑटोमोबाइल टैक्नोलॉजी आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। कृषि-क्षेत्र में डेयरी उद्योग, बागबानी तथा कुक्कुट ( पोल्ट्री) उद्योग से संबंधित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। गह-विज्ञानक्षेत्र में स्वास्थ्य, ब्यूटी, फैशन तथा वस्त्र उद्योग आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं।

हैल्थ एंड पैरामैडिकल क्षेत्र में मैडिकल लैबोरटरी, एक्स-रे टैक्नोलॉजी एवं हैल्थ केयर साइंस आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में फूड प्रोडक्शन, होटल मैनेजमैंट, टूरिज्म एंड ट्रैवल, बेकरी से संबंधित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। सूचना तकनीक के तहत आई० टी० एप्लीकेशन कोर्स किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त पुस्तकालय प्रबन्धन, जीवन बीमा, पत्रकारिता आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं।
उपयुक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
व्यावसायिक शिक्षा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यवसाय अथवा रोज़गार पर आधारित शिक्षा को व्यावसायिक शिक्षा कहते हैं।

प्रश्न 2.
इंजीनियरिंग क्षेत्र में कौन-कौन से व्यावसायिक कोर्स आते हैं?
उत्तर:
इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलैक्ट्रिकल, इलैक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एंड रेफरीजरेशन और ऑटोमोबाइल टेक्नॉलाजी आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं।

प्रश्न 3.
आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में कौन-कौन से कोर्स किए जा सकते हैं?
उत्तर:
आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में फूड प्रोडक्शन, होटल मैनेजमेंट, टूरिज्म एंड ट्रेवल, बेकरी आदि से संबंधित कोर्स किए जा सकते हैं।

प्रश्न 4.
‘क्षमता’ तथा ‘विस्तृत’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
क्षमता–शक्ति, सामर्थ्य, योग्यता, विस्तृत-फैला हुआ।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
व्यावसायिक शिक्षा का महत्त्व।

1. साहस की ज़िन्दगी सबसे बड़ी जिंदगी है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल निडर, बिल्कुल बेखौफ़ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला व्यक्ति दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना यह साधारण जीव का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धम बनाते हैं।

(I) साहसी व्यक्ति की विशेषताएं लिखिए।
(II) साहस की जिंदगी की पहचान क्या है?
(III) क्रांति करने वाले क्या नहीं करते?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) साहसी व्यक्ति निडर होता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि लोग उसके विषय में क्या कहते हैं। वह बिना किसी की नकल लिए हुए जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ता है।
(II) साहस की जिंदगी पूरी तरह से निडर और बेखौफ़ होती है। वह आस-पास और जनमत की चिंता नहीं करता।
(III) क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए न तो अपनी चाल धीमी करते हैं और न ही पड़ोसियों से अपनी तुलना करते हैं।
(IV) बेखौफ़ = बिना भय के। जनमत = लोगों का समर्थन।
(V) साहस की जिंदगी।

2. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन से नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन पथ का सारथि बन कर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जय शस्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवन के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुःख और निराशा की काली घटाएं आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुंह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है, लेकिन आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुःख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अंधकार भाग जाता है।

(I) महान् जीवन के रथ किस रास्ते से गुज़रते हैं?
(II) आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं?
(III) निराशा की काली घटाएं किस प्रकार समाप्त हो जाती हैं?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) जीवन रूपी संग्राम स्थल से जो रथ गुजरते हैं वे सरल-सीधे मार्ग से नहीं गुज़रते। वे तो कांटों से भरे बीहड़ रास्ते से गुजरते हैं।
(II) जीवन के कष्टों का सामना हम आत्म-विश्वास के शस्त्र से कर सकते हैं।
(III) निराशा की काली घटाएं दृढ़ आत्मविश्वास और आत्मिक शक्ति से समाप्त हो जाती हैं।
(IV) नंदन वन = स्वर्ग लोक में देवताओं का उपवन । सोपानों = सीढ़ियों।
(V) आत्म-विश्वास।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

3. आजकल हमारी शिक्षा पद्धति के विरुद्ध देश के कोने-कोने में आवाज़ उठाई जा रही है। प्रत्येक मनुष्य जानता है कि इससे समाज की कितनी हानि हुई है। प्रत्येक मनुष्य जानता है कि इसका उद्देश्य व्यक्ति को पराधीन बना कर सरकारी नौकरी के लिए तैयार करना है। मैकाले ने इसका सूत्रपात शासन चलाने के निमित क्लर्क तैयार करने को किया था, दोषपूर्ण है। आधुनिक शिक्षा व्यय साध्य है। उसकी प्राप्ति पर सहस्रों रुपए व्यय करने पड़ते हैं। सर्व-साधारण ऐसे बहुमूल्य शिक्षा को प्राप्त नहीं कर सकता। यदि ज्यों-त्यों करके करे भी तो इससे उसकी जीविका का प्रश्न हल नहीं होता।

क्योंकि शिक्षित युवकों में बेकारी बहुत बढ़ी हुई है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य विद्यार्थियों को सभी विषयों का ज्ञाता बनाना है पर किसी विषय का पण्डित बनाना नहीं। सौभाग्य का विषय है कि अब इस शिक्षा-पद्धति में सुधार की योजना की जा रही है और निकट भविष्य में यह हमारे राष्ट्र के कल्याण का साधन बनेगी।

(I) आधुनिक भारत में चल रही शिक्षा पद्धति का क्या उद्देश्य है?
(II) आधुनिक शिक्षा में कौन-कौन से दोष हैं?
(III) शिक्षा-सुधार से देश में क्या अंतर दिखाई देगा?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) आधुनिक भारत में चल रही शिक्षा पद्धति का उद्देश्य व्यक्ति को पराधीन बना कर सरकारी नौकरी के लिए सस्ते क्लर्क तैयार करना है।
(II) आधुनिक शिक्षा महंगी है जो सब को सुलभ नहीं है। इसके द्वारा किसी व्यक्ति को सभी विषयों का थोड़ाबहुत ज्ञान तो दिया जा सकता है लेकिन किसी विषय का पंडित नहीं बनाया जा सकता।
(III) शिक्षा-पद्धति में सुधार से राष्ट्र का कल्याण होगा तथा सभी शिक्षा को प्राप्त कर सकेंगे।
(IV) मैकाले = अंग्रेज़ी शासन में शिक्षा की नीतियों का रचयिता एक अंग्रेज़ अधिकारी। निमित्त = के लिए।
(V) वर्तमान शिक्षा प्रणाली।

4. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरे उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्त्तव्य पूरा करने में नहीं। अहंकार बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है और एक सीमा तक आवश्यक भी है। किंतु आज के विद्यार्थियों में यह इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाम मात्र को नहीं रह गए हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है।

इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने अधिकारों के बहुत अधिकारी नहीं है। उसे भी वह अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्तव्य दोनों एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का संतुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है परंतु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है। एक सीमा की अति का दूसरे पर भी असर पड़ता है।

(I) आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है?
(II) विद्यार्थी प्रायः किस का विरोध करते हैं?
(III) विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
(IV) रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) आधुनिक विद्यार्थियों में अहं के बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण नम्रता की कमी होती जा रही है।
(II) विद्यार्थी प्रायः अपने गुरुजनों या अपने से बड़ों की बातों का विरोध करते हैं।
(III) विद्यार्थी में अपने अधिकारों और माँगों के प्रति सजगता अधिक है।
(IV) विनय = नम्रता। विमुख = दूर होना, परे हटना।
(V) विद्यार्थी और अहंकार।

5. यह वह समय था जब दिल्ली पर मुसलमान सुल्तानों का राज्य था। एक समय ऐसा भी आया जब यहां के काज़ी को विशेष राजनीतिक शक्ति प्राप्त थी। एक लोक गाथा यह भी है कि रांझे ने न्याय के लिए, इसी नगरी के काज़ी की शरण ली थी। मुगलों के बाद जब यह नगर रियासत पटियाला के अधिकार में आया तो इस नगर की सभ्यता ने भी पलटा खाया और लोगों का रहन-सहन पटियालवी रंग में रंग गया। वही चूड़ीदार पजामा, अचकन और पटियालवी ढंग की पगड़ी। बंटवारे के उपरांत यह रंग-ढंग भी तिरोहित हो गए और अन्य नगरों की भांति सामाना के लोग भी पश्चिमी रंग में रंग गए हैं। एक और बड़े-बूढ़े प्राचीन परंपरा को संभाले हुए हैं और दूसरी ओर युवा पीढ़ी नवीनतम हिप्पी स्टाइल की ओर अग्रसर है।

(I) काज़ी को कब और क्या प्राप्त थी?
(II) सामाना के लोगों पर पटियाला का क्या प्रभाव पड़ा?
(III) सामाना के नये और पुराने लोगों की वेशभूषा कैसी है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) दिल्ली पर मुसलमानों के शासन के समय काजी को विशेष राजनीतिक शक्ति प्राप्त थी।
(II) सामाना के लोगों पर पटियाला के रहन-सहन का प्रभाव पड़ा था जिस कारण वहाँ चूड़ीदार पाजामा, अचकन और पटियालवी ढंग की पगड़ी लोकप्रिय हो गई थी।
(III) सामाना में बड़े-बूढ़े लोग परंपरागत वेशभूषा ही पहनते हैं लेकिन नयी पीढ़ी नवीनतम हिप्पी स्टाइल की ओर बढ़ रहे हैं।
(IV) उपरांत = के पश्चात्। तिरोहित = दूर।
(V) समयानुसार बदलती सभ्यता।

6. प्यासा आदमी कुएं के पास जाता है, यह बात निर्विवाद है। परंतु सत्संगति के लिए यह आवश्यक नहीं कि आप सज्जनों के पास जाएं और उनकी संगति प्राप्त करें। घर बैठे-बैठे भी आप सत्संगति का आनंद लूट सकते हैं। यह बात पुस्तकों द्वारा संभव है। हर कलाकार और लेखक को जन-साधारण से एक विशेष बुद्धि मिली है। इस बुद्धि का नाम प्रतिभा है। पुस्तक निर्माता अपनी प्रतिभा के बल से जीवन भर से संचित ज्ञान को पुस्तक के रूप में उंडेल देता है। जब हम घर की चारदीवारी में बैठकर किसी पुस्तक का अध्ययन करते हैं तब हम एक अनुभवी और ज्ञानी सज्जन की संगति में बैठकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। नित्य नई पुस्तक का अध्ययन हमें नित्य नए सज्जन की संगति दिलाता है। इसलिए विद्वानों ने स्वाध्याय को विशेष महत्त्व दिया है। घर बैठे-बैठे सत्संगति दिलाना पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता है।

(I) घर बैठे-बैठे सत्संगति का लाभ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?
(II) हर पुस्तक में संचित ज्ञान अलग-अलग प्रकार का क्यों होता है?
(III) पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता क्या है?
(IV) रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
(I) घर बैठे-बैठे पुस्तकों का अध्ययन करने से लेखकों के ज्ञान के द्वारा सत्संगति का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
(II) हर लेखक और कलाकार को ईश्वर के द्वारा अलग-अलग प्रकार की बुद्धि मिलती है जिसे वह अपनी पुस्तक के रूप में प्रकट कर देता है। इसलिए हर पुस्तक में संचित ज्ञान अलग-अलग प्रकार का होता है।
(III) घर बैठे-बैठे लोगों को सत्संगति का लाभ दिलाना पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता है।
(IV) निर्विवाद = बिना किसी विवाद के। स्वाध्याय = अपने आप अध्ययन करना।
(V) स्वाध्याय की उपयोगिता।

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7. संसार में धर्म की दुहाई सभी देते हैं। पर कितने लोग ऐसे हैं, जो धर्म के वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं। धर्म कोई बुरी चीज़ नहीं है। धर्म ही एक ऐसी विशेषता है, जो मनुष्य को पशुओं से भिन्न करती है। अन्यथा मनुष्य और पशु में अंतर ही क्या है। उस धर्म को समझने की आवश्यकता है। धर्म में त्याग की महत्ता है। इस त्याग और कर्तव्यपरायणता में ही धर्म का वास्तविक स्वरूप निहित है। त्याग परिवार के लिए, ग्राम के लिए, नगर के लिए, देश के लिए और मानव मात्र के लिए भी हो सकता है। परिवार से मनुष्य मात्र तक पहुंचते-पहुंचते हम एक संकुचित घेरे से निकल कर विशाल परिधि में घूमने लगते हैं। यही वह क्षेत्र है, जहां देश और जाति की सभी दीवारें गिर कर चूर-चूर हो जाती हैं। मनुष्य संसार भर को अपना परिवार और अपने-आप को उसका सदस्य समझने लगता है। भावना के इस विस्तार ने ही धर्म का वास्तविक स्वरूप दिया है जिसे कोई निर्मल हृदय संत ही पहचान सकता है।

(I) धर्म की प्रमुख उपयोगिता क्या है?
(II) धर्म का वास्तविक रूप किसमें निहित है?
(III) मनुष्य संसार को अपना कब समझने लगता है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) धर्म मनुष्य को विवेक और त्याग की भावना प्रदान करता है जिससे मनुष्य पशु से भिन्न बनता है।
(II) धर्म का वास्तविक रूप त्याग और कर्त्तव्यपरायणता में विद्यमान है। त्याग और कर्त्तव्यपरायणता परिवार, ग्राम, नगर, देश, मानव आदि के लिए हो सकता है।
(III) मनुष्य सारे संसार को तब अपना समझने लगता है जब वह व्यक्ति से बाहर निकल मनुष्य-मात्र तक पहुँच जाता है, वहां देश और जाति की सभी दीवारें नष्ट हो जाती हैं और मनुष्य संसार को अपना समझने लगता है।
(IV) अन्यथा = नहीं तो। निहित = विद्यमान।
(V) धर्म का वास्तविक स्वरूप।

8. आधुनिक मानव समाज में एक ओर विज्ञान को भी चकित कर देने वाली उपलब्धियों से निरंतर सभ्यता का विकास हो रहा है तो दूसरी ओर मानव मूल्यों का ह्रास होने से समस्या उत्तरोत्तर गूढ़ होती जा रही है। अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का शिकार आज का मनुष्य विवेक और ईमानदारी को त्याग कर भौतिक . स्तर से ऊंचा उठने का प्रयत्न कर रहा है। वह सफलता पाने की लालसा में उचित और अनुचित की चिंता नहीं करता। उसे तो बस साध्य को पाने का प्रबल इच्छा रहती है। ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भयंकर अपराध करने में भी संकोच नहीं करता। वह इनके नित नये-नये रूपों की खोज करने में अपनी बुद्धि का अपव्यय कर रहा है। आज हमारे सामने यह प्रमुख समस्या है कि इस अपराध वृद्धि पर किस प्रकार रोक लगाई जाए। सदाचार, कर्तव्यपराणता, त्याग आदि नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर समाज के सुख की कामना करना स्वप्न मात्र है।

(I) मानव जीवन में समस्याएं निरंतर क्यों बढ़ रही हैं?
(II) आज का मानव सफलता प्राप्त करने के लिए क्या कर रहा है जो उसे नहीं करना चाहिए।
(III) किन जीवन मूल्यों के द्वारा सुख प्राप्त की कामना की जा सकती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) मानव जीवन में विवेक, ईमानदारी जैसे जीवन मूल्यों की कमी होती जा रही है जिस कारण उसमें समस्याएं निरन्तर बढ़ रही हैं।
(II) आज का मानव सफलता प्राप्त करने के लिए सभी उचित-अनुचित कार्य कर रहा है। उसने विवेक और ईमानदारी को त्याग दिया है जो उसे ऐसा नहीं करना चाहिए।
(III) सदाचार, कर्त्तव्यपरायणता, त्याग आदि जीवन मूल्यों के द्वारा जीवन में सुख की कामना की जा सकती है।
(IV) उत्तरोत्तर = निरंतर, लगातार। ऐश्वर्य = धन-दौलत।
(V) आधुनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता।

9. जीवन घटनाओं का समूह है। यह संसार एक बहती नदी के समान है। इसमें बंद न जाने किन-किन घटनाओं का सामना करती, जूझती आगे बढ़ती है। देखने में तो इस बूंद की हस्ती कुछ भी नहीं। जीवन में कभीकभी ऐसी घटनाएं घट जाती हैं जो मनुष्य को असंभव से संभव की ओर ले जाती हैं। मनुष्य अपने को महान् कार्य कर सकने में समर्थ समझने लगता है। मेरे जीवन में एक रोमांचकारी घटना है जिसे मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ।

(I) जीवन क्या है?
(II) जीवन में अचानक घटी घटनाएँ मनुष्य को कहाँ ले जाती हैं?
(III) लेखक क्या सुनाना चाहती है?
(IV) ‘समूह और रोमांचकारी’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) जीवन विभिन्न घटनाओं का समूह है। यह बहती हुई एक नदी के समान है।
(II) जीवन में अनाचक घटी घटनाएँ मनुष्य को असंभव से संभव की ओर ले जाती हैं।
(III) लेखक अपने जीवन की रोमांचकारी घटना सुनाना चाहता है।
(IV) समूह = झुंड। रोमांचकारी = आनंददायक।
(V) जीवन एक संघर्ष।

10. मनोरंजन का जीवन में विशेष महत्त्व है। दिन भर की दिनचर्या से थका-मांदा मनुष्य रात को आराम का साधन खोजता है। यह साधन है–मनोरंजन। मनोरंजन मानव जीवन में संजीवनी-बूटी का काम करता है। यह मनुष्य के थके-हारे शरीर को आराम की सुविधा प्रदान करता है। यदि आज के मानव के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन नीरस बन कर रह जाता। यह नीरसता मानव जीवन को चक्की की तरह पीस डालती और मानव संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य भी न रह पाता।

(I) मनोरंजन क्या है?
(II) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन कैसा होता?
(III) नीरस मानव जीवन का सब से बड़ा नुकसान क्या होता है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) मनोरंजन मनुष्य की शारीरिक, मानसिक थकान को कम करके उसे सुख देने का साधन है। वह उसके जीवन की संजीवनी बूटी है।
(II) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन पूर्ण रूप से नीरस होता।
(III) नीरस मानव जीवन उसे पूरी तरह से तोड़ डालता है और वह संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य न रह जाता।
(IV) दिनचर्या = दिन-भर के काम। संजीवनी बूटी = मृत व्यक्ति को फिर जीवित करने वाली जड़ी-बूटी।
(V) मनोरंजन का महत्त्व।

11. व्याकरण भाषा के मौखिक और लिखित दोनों ही रूपों का अध्ययन कराता है। यद्यपि इस प्रकार के अध्ययन का क्षेत्र मौखिक भाषा ही रहती है, तथापि भाषा के लिखित रूप को भी अध्ययन का विषय बनाया जाता है। भाषा और लिपि के परस्पर संबंध से कभी-कभी यह भ्रांति भी फैल जाती है कि दोनों अभिन्न हैं। वस्तुत: भाषा लिपि के बिना भी रह सकती है। आदिम जातियों की कई भाषाएं केवल मौखिक रूप में ही व्यवहृत हैं, उनके पास कोई लिपि नहीं है। पर लिपि भाषा के बिना नहीं रह सकती। किसी भी भाषा विशेष के लिए परंपरा के आधार पर एक विशेष लिपि रूढ़ि हो जाती है। जैसे-हिंदी के लिए देवनागरी लिपि। पर इसे अन्य लिपि (फ़ारसी या रोमन) में लिखना चाहें, तो लिख सकते हैं।

(I) व्याकरण किस अध्ययन का आधार है?
(II) भाषा की लिपि सदा आवश्यक क्यों नहीं होती?
(III) हिंदी की लिपि का नाम लिखिए।
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) व्याकरण भाषा के मौखिक और लिखित दोनों रूपों के अध्ययन का आधार है।
(II) यद्यपि भाषा और लिपि में गहरा संबंध है तो भी अनेक जातियां और कबीले केवल बोल कर ही व्यवहार करते हैं। उन्हें लिखने की आवश्यकता अनुभव नहीं होती।
(III) हिंदी की लिपि का नाम देवनागरी है।
(IV) अभिन्न = समान। व्यवहृत = प्रयोग में लायी जाती।
(V) भाषा और लिपि।

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12. कुछ लोग सोचते हैं कि खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है, स्वास्थ्य-रक्षा के लिए व्यायाम कर लेना ही काफ़ी है। पर खेल-कूद से स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ-साथ मनुष्य कुछ ऐसे गुण भी सीखता है जिनका जीवन में विशेष महत्त्व है। सहयोग से काम करना, विजय मिलने पर अभिमान न करना, हार जाने पर साहस न छोड़ना, विशेष ध्येय के लिए नियमपूर्वक कार्य करना आदि गुण खेलों के द्वारा अनायास सीखे जा सकते हैं। खेल के मैदान में केवल स्वास्थ्य ही नहीं बनता वरन् मनुष्यता भी बनती है। खिलाड़ी वे बातें सीख जाता है जो उसे आगे चल कर नागरिक जीवन की समस्या को सुलझाने में सहायता देती हैं।

(I) कुछ लोगों का खेल-कूद के विषय में क्या विचार है?
(II) खेल-कूद से क्या लाभ हैं?
(III) खेल-कूद का अच्छे नागरिक बनाने में क्या योगदान है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) कुछ लोगों का खेल-कूद के विषय में विचार है कि खेल-कूद से केवल समय ही नष्ट होता है।
(II) खेल-कूद स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। इससे साहस, नियमित जीवन, धैर्य, निराभिमानता, सहयोग की भावना के गुण उत्पन्न होते हैं।
(III) खेलकूद जीवन की अनेक समस्याओं को सुलझाने में सहायता देते हैं जिससे लोगों को अच्छा नागरिक बनने में योगदान मिलता है।
(IV) अभिमान = घमंड। अनायास = अचानक।
(V) खेलकूद का महत्त्व।

13. वास्तव में जब तक लोग मदिरापान से होने वाले रोगों के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं कर लेंगे तथा तब तक उनमें यह भावना जागृत नहीं होगी कि शराब न केवल सामाजिक अभिशाप है अपितु शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है, तब तक मद्यपान के विरुद्ध, वातावरण नहीं बन सकेगा। पूर्ण मद्य निषेध तभी संभव हो सकेगा, जब सरकार मद्यपान पर तरह-तरह से अंकुश लगाए और जनता भी इसका सक्रिय विरोध करे।

(I) मद्यपान के विरुद्ध वातावरण कब संभव है?
(II) पूर्ण मद्य निषेध क्या है?
(III) पूर्ण मद्य निषेध कैसे है?
(IV) ‘जागृत’ और ‘मद्यपान’ के शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) मद्यपान के विरुद्ध वातावरण तब तक संभव नहीं है जब तक लोग इस से होने वाले रोगों के विषय में नहीं जान लेते और वे इसे एक सामाजिक अभिशाप नहीं मान लेते।
(II) ‘पूर्ण मद्य निषेध’ का अर्थ है-जब न तो कोई शराब बनाये और न ही इसका सेवन करे।
(III) पूर्ण मद्य निषेध सरकार और जनता के आपस में सहयोग और समझदारी से संभव है।
(IV) जागृत = जागना। मद्यपान = मदिरापान, शराबपीना।
(V) मद्य निषेध।

14. लेखक का काम बहुत अंशों में मधुमक्खियों के काम से मिलता है। मधुमक्खियां मकरंद संग्रह करने के लिए कोसों के चक्कर लगाती हैं और अच्छे-अच्छे फूलों पर बैठकर उनका रस लेती हैं। तभी तो उनके मधु में संसार की सर्वश्रेष्ठ मधुरता रहती है। यदि आप अच्छे लेखक बनना चाहते हैं तो आपकी भी (वृत्ति ) ग्रहण करनी चाहिए। अच्छे-अच्छे ग्रंथों का खूब अध्ययन करना चाहिए और उनकी बातों का मनन करना चाहिए फिर आपकी रचनाओं में से मधु का-सा माधुर्य आने लगेगा। कोई अच्छी उक्ति, कोई अच्छा विचार भले ही दूसरों से ग्रहण किया गया हो, पर यदि यथेष्ठ मनन करके आप उसे अपनी रचना में स्थान देंगे तो वह आपका ही हो जाएगा। मननपूर्वक लिखी गई चीज़ के संबंध में जल्दी किसी को यह कहने का साहस नहीं होगा कि यह अमुक स्थान से ली गई है या उच्छिष्ट है। जो बात आप अच्छी तरह आत्मसात कर लेंगे, वह फिर आपकी ही हो जाएगी।

(I) लेखक और मधुमक्खी में क्या समता है?
(II) लेखक किसी अच्छे भाव को मौलिक किस प्रकार बना लेता है?
(III) कौन-सी बात आप की अपनी हो जाती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) लेखक और मधुमक्खियां एक-सा कार्य करते हैं ! मधुमक्खियां प्रयत्नपूर्वक घूम-घूम कर फूलों से रस इकट्ठा करती हैं और उसे शहद में परिवर्तित करती हैं तथा लेखक अच्छे-अच्छे ग्रन्थों के अध्ययन से ज्ञान अर्जित करके उन्हें अपनी पुस्तकों के द्वारा समाज को प्रदान करता है।
(II) लेखक किसी उक्ति या विचार पर भली-भान्ति मनन करके उसे अपने ही ढंग से भावों के रूप में प्रकट करके उसे मौलिक बना लेता है।
(III) जिस बात को अच्छी तरह से आत्मसात कर लिया जाये और फिर उसे प्रकट किया जाए वह आप की अपनी हो जाती है।
(IV) माधुर्य = मिठास। यथेष्ठ मनन = पूर्ण रूप से सोच-विचार।
(V) श्रेष्ठ लेखक की मौलिकता।

15. शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो तुम्हारे मस्तिष्क में लूंस दिया गया है और आत्मसात् हुए बिना वहाँ आजन्म पड़ा रह कर गड़बड़ मचाया करता है। हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि आप केवल पांच ही परखे हुए विचार आत्मसात् कर उनके अनुसार अपने जीवन और चरित्र का निर्माण कर लेते हैं तो पूरे ग्रंथालय को कंठस्थ करने वाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हैं। शिक्षा और आचरण अन्योन्याश्रित हैं। बिना आचरण के शिक्षा अधूरी है और बिना शिक्षा के आचरण और अंततोगत्वा ये दोनों ही अनुशासन के ही भिन्न रूप हैं।

(I) शिक्षा का महत्त्व कब स्वीकार किया जा सकता है?
(II) शिक्षा का आचरण से क्या संबंध है?
(III) शिक्षा और आचरण को किस का रूप माना गया है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) शिक्षा मात्र जानकारियों का ढेर नहीं है। उसका महत्त्व तब स्वीकार किया जा सकता है जब वह जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण में सहायक होती है।
(II) शिक्षा और आचरण सदा एक-दूसरे पर आश्रित रहते हैं। इनका विकास एक-दूसरे के आपसी सहयोग से होता
(III) शिक्षा और आचरण को अनुशासन का ही रूप माना गया है।
(IV) आत्मसात् = मन में धारण करना। अन्योन्याश्रित = एक-दूसरे पर आश्रित।
(V) शिक्षा और आचरण।

16. शिक्षा का वास्तविक अर्थ और प्रयोजन व्यक्ति को व्यावहारिक बनाना है, न कि शिक्षित होने के नाम पर अहं और गर्व का हाथी उसके मन मस्तिष्क पर बाँध देना। हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जो शिक्षानीति और पद्धति चली आ रही है वह लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी है। उसने एक उत्पादन मशीन का काम किया है। इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि इस देश की अपनी आवश्यकताएं और सीमाएं क्या हैं ? इनके निवासियों को किस प्रकार की व्यावहारिक शिक्षा की ज़रूरत है। बस सुशिक्षितों की ही नहीं, साक्षरों की एक बड़ी पंक्ति इस देश में खड़ी कर दी है जो किसी दफ्तर में क्लर्क और बाबू का सपना देख सकती है। हमारे देशवासियों को कर्म का बाबू बनाने की आवश्यकता है न कि कलम का बाबू-क्लर्क। अतः सरकार को आधुनिक शिक्षा का वास्तविक अर्थ और प्रयोजन को समझने की आवश्यकता है।

(I) स्वतंत्रता से पहले कैसी शिक्षा नीति थी?
(II) देश को कैसी शिक्षा की आवश्यकता है?
(III) सुशिक्षित और साक्षर में क्या अंतर है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें : व्यावहारिक, अहं और गर्व।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) स्वतंत्रता से पहले शिक्षा नीति ऐसी थी जिससे क्लर्क और बाबू बनाये जा सकें।
(II) देशवासियों को कर्म की शिक्षा देने की आवश्यकता है जिससे देशवासी कर्मशील बन सकें।
(III) सुशिक्षित वे होते हैं जो व्यावहारिक जीवन में शिक्षा का उचित उपयोग कर सकें जबकि साक्षर केवल पढ़ालिखा तथा व्यवहार ज्ञान से शून्य व्यक्ति होता है।
(IV) व्यावहारिक = व्यवहार में आने या लाने योग्य।
अहं = अभिमान, अहंकार। गर्व = घमंड।
(V) शिक्षा का प्रयोजन।

17. आजकल भारत में अधिक आबादी की समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। इस अनावश्यक रूप से बढ़ी आबादी के कारण कई प्रकार के प्रदूषण हो रहे हैं। जीवन में हवा, पानी ज़रूरी है पर पानी के बिना हम अधिक दिन नहीं जी सकते। वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण भी है जिसका औद्योगिक विकास तथा जनवृद्धि से घनिष्ठ संबंध है। कारखानों से काफ़ी मात्रा में गंदगी बाहर फेंकी जाती है। स्रोतों, नदियों, झीलों और समुद्र के जल को कीटनाशक, औद्योगिक, अवशिष्ट खादें तथा अन्य प्रकार के व्यर्थ पदार्थ प्रदूषित करते हैं। बड़े नगरों में सीवर का पानी सबसे बड़ा जल प्रदूषण है। प्रदूषित जल के प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं ; जैसे-हैज़ा, टाइफायड, पेचिश, पीलिया आदि। यदि सागर, नदी और झील का पानी प्रदूषित हो गया, तो जल में रहने वाले प्राणियों को भी बहुत अधिक क्षति पहुंचेगी।

(I) भारत की सबसे गंभीर समस्या क्या है?
(II) जल प्रदूषित कैसे होता है?
(III) प्रदूषण से प्राणियों की क्षति कैसे होती है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें : घनिष्ठ, संबंध, औद्योगिक।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) अधिक आबादी की समस्या भारत की सबसे गंभीर समस्या है।
(II) कारखानों से निकलने वाली गंदगी, औद्योगिक-अवशिष्ट खादें, कीटनाशक आदि व्यर्थ पदार्थ जल को प्रदूषित करते हैं।
(III) प्रदूषण से हैज़ा, पेचिश, पीलिया आदि बीमारियां हो जाती हैं। जल में रहने वाले प्राणियों को भी क्षति होती है।
(IV) घनिष्ठ = गहरा। संबंध = साथ जुड़ना। औद्योगिक = उद्योग संबंधी।
(V) जल प्रदूषण।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

18. जब मक्खन शाह का जहाज़ किनारे लगा तो अपनी मनौती पूर्ण करने के लिए गुरु जी के सम्मुख उपस्थित हुआ। वह गुरुघर का भक्त छठे गुरु जी के काल से ही था। इससे पूर्व कश्मीर के रास्ते में मक्खन शाह की अनुनय पर गुरु जी टांडा नामक गांव गये थे जो कि जेहलम नदी के किनारे बसा हुआ था। सर्वप्रथम वह अमृतसर गया, जहां उसे गुरु जी के दिल्ली में होने की सूचना प्राप्त हुई। दिल्ली में पहुंचकर, गुरु हरिकृष्ण के उत्तराधिकारी का समाचार बाबा के बकाला में रहने का मिला। यहाँ पहुंचकर उसने विभिन्न मसंदों को गुरु रूप धारण किया हुआ पाया।

मक्खन शाह का असमंजस में पड़ना उस समय स्वाभाविक ही था। व्यापारी होने के कारण उसमें विवेकशीलता एवं सहनशीलता भी थी। उसने चतुराई से वास्तविक गुरु को ढूंढ़ने का प्रयास किया। इसके लिए उसने चाल चली। उसने सभी गुरुओं के सम्मुख पाँच-पाँच मोहरें रखकर प्रार्थना की। उसे दृढ़ विश्वास था कि सच्चा गुरु अवश्य उसकी चालाकी को भांप लेगा, परंतु किसी भी पाखंडी ने उसके मन की जिज्ञासा को शांत नहीं किया।

(I) मक्खन शाह के अनुनय पर गुरु जी कहाँ गए थे?
(II) उसने सच्चे गुरु की खोज के लिए कौन-सी चाल चली?
(III) पाखंडी कौन थे?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें-विवेकशीलता, दृढ़ विश्वास।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) मक्खन शाह के अनुनय पर गुरु जी टांडा नामक गाँव गए थे।
(II) उसने सबके सामने पाँच-पाँच मोहरें रखीं।
(III) सभी पाखंडी थे।
(IV) विवेकशीलता = समझदारी। दृढ़-विश्वास = पक्का विश्वास।
(V) विवेकशीलता।

19. सहयोग एक प्राकृतिक नियम है, यह कोई बनावटी तत्व नहीं है। प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक व्यक्ति का काम आंतरिक सहयोग पर अवलंबित है। किसी मशीन का उसके पुर्जे के साथ संबंध है। यदि उसका एक भी पुर्जा खराब हो जाता है तो वह मशीन चल नहीं सकती। किसी शरीर का उसके आँख, कान, नाक, हाथ, पांव आदि पोषण करते हैं। किसी अंग पर चोट आती है, मन एकदम वहाँ पहुंच जाता है। पहले क्षण आँख देखती है, दूसरे क्षण हाथ सहायता के लिए पहुंच जाता है। इसी तरह समाज और व्यक्ति का संबंध है। समाज शरीर है तो व्यक्ति उसका अंग है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अंग परस्पर सहयोग करते हैं उसी तरह समाज के विकास के लिए व्यक्तियों का आपसी सहयोग अनिवार्य है। शरीर को पूर्णता अंगों के सहयोग से मिलती है। समाज की पूर्णता व्यक्तियों के सहयोग से मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति, जो जहां पर भी है, अपना काम ईमानदारी और लगन से करता रहे, तो समाज फलता-फूलता है।

(I) समाज कैसे फलता-फूलता है?
(II) शरीर के अंग कैसे सहयोग करते हैं?
(III) समाज और व्यक्ति का क्या संबंध है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें-अविलंब, अनिवार्य।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) समाज व्यक्तियों के आपसी सहयोग से फलता-फूलता है।
(II) शरीर के किसी अंग पर चोट लगने पर सबसे पहले मन पर प्रभाव पड़ता है, फिर आँख उसे देखती हैं और हाथ उसकी सहायता के लिए पहुंच जाता है। इस प्रकार शरीर के अंग आपस में सहयोग करते हैं।
(III) समाज रूपी शरीर का व्यक्ति एक अंग है। इस प्रकार और व्यक्ति का शरीर और अंग का संबंध है।
(IV) अविलंब = तुरंत, बिना देर किए। अनिवार्य = ज़रूरी, आवश्यक।
(V) सहयोग।

20. लोग कहते हैं कि मेरा जीवन नाशवान है। मुझे एक बार पढ़कर लोग फेंक देते हैं। मेरे लिए एक कहावत बनी है “पानी केरा बुदबुदा अस अखबार की जात, पढ़ते ही छिप जात है, ज्यों तारा प्रभात।” पर मुझे अपने इस जीवन पर भी गर्व है। मर कर भी मैं दूसरों के काम आता हूँ। मेरे सच्चे प्रेमी मेरे सारे शरीर को फाइल में क्रम से संभाल कर रखते हैं। कई लोग मेरे उपयोगी अंगों को काटकर रख लेते हैं। मैं रद्दी बनकर भी ग्राहकों की कीमत का एक तिहाई भाग अवश्य लौटा देता हूँ। इस प्रकार महान् उपकारी होने के कारण मैं दूसरे ही दिन नया जीवन पाता हूँ और अधिक जोर-शोर से सजधज के आता हूँ। इस प्रकार एक बार फिर सबके मन में समा जाता हूँ। तुमको भी ईर्ष्या होने लगी है न मेरे जीवन से। भाई ! ईर्ष्या नहीं स्पर्धा करो। आप भी मेरी तरह उपकारी बनो। तुम भी सबकी आँखों के तारे बन जाओगे।

(I) अखबार का जीवन नाशवान कैसे है?
(II) अखबार क्या-क्या लाभ पहुंचाता है?
(III) यह किस प्रकार उपकार करता है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें-उपयोगी, स्पर्धा।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त ‘शीर्षक’ दीजिए।
उत्तर:
(I) इसे लोग एक बार पढ़ कर फेंक देते हैं। इसलिए अखबार का जीवन नाशवान है।
(II) अखबार ताज़े समाचार देने के अतिरिक्त रद्दी बन कर लिफाफ़े बनाने के काम आता है। कुछ लोग उपयोगी समाचार काट कर फाइल बना लेते हैं।
(III) रद्दी के रूप में बिक कर वह अपना एक-तिहाई मूल्य लौटा कर उपकार करता है।
(IV) उपयोगी = काम में आने वाला। स्पर्धा = मुकाबला।
(V) ‘अखबार’।

21. नारी नर की शक्ति है। वह माता, बहन, पत्नी और पुत्री आदि रूपों में पुरुष में कर्त्तव्य की भावना सदा जगाती रहती है। वह ममतामयी है। अतः पुष्प के समान कोमल है। किंतु चोट खाकर जब वह अत्याचार के लिए सन्नद्ध हो जाती है, तो वज्र से भी ज्यादा कठोर हो जाती है। तब वह न माता रहती है, न प्रिया, उसका एक ही रूप होता है और वह है दुर्गा का। वास्तव में नारी सृष्टि का ही रूप है, जिसमें सभी शक्तियां समाहित हैं।

(I) नारी किस-किस रूप में नर में शक्ति जगाती है?
(II) नारी को फूल-सी कोमल और वज्र-सी कठोर क्यों माना जाता है?
(III) नारी दुर्गा का रूप कैसे बन जाती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
(I) नारी नर में माता, बहन, पत्नी और पुत्री के रूप में शक्ति जगाती है।
(II) ममतामयी होने के कारण नारी फूल-सी कोमल है और जब उस पर चोट पड़ती है तो वह अत्याचार का मुकाबला करने के लिए वज्र-सी कठोर हो जाती है।
(III) जब नारी अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए वज्र के समान कठोर बन जाती है तब वह दुर्गा बन जाती
(IV) ममतामयी = ममता से भरी हुई। सन्नद्ध = तैयार, उद्यत।
(V) नारी ही नर की शक्ति।

22. चरित्र-निर्माण जीवन की सफलता की कुंजी है। जो मनुष्य अपने चरित्र-निर्माण की ओर ध्यान देता है, वही जीवन में विजयी होता है। चरित्र-निर्माण से मनुष्य के भीतर ऐसी शक्ति जागृत होती है, जो उसे जीवन संघर्ष में विजयी बनाती है। ऐसा व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। वह जहां कहीं भी जाता है, अपने चरित्र-निर्माण की शक्ति से अपना प्रभाव स्थापित कर लेता है। वह सहस्त्रों और लाखों के बीच में भी अपना अस्तित्व रखता है। उसे देखते ही लोग उसके व्यक्तित्व के सामने अपना मस्तक झुका लेते हैं। उसके व्यक्तित्व में सूर्य का तेज, आंधी की गति और गंगा के प्रवाह की अबाधता है।

(I) जीवन में चरित्र निर्माण का क्या महत्त्व है?
(II) अच्छे चरित्र का व्यक्ति जीवन में सफलता क्यों प्राप्त करता है?
(III) चरित्रवान् व्यक्ति की तीन विशेषताएं लिखें।
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
(I) चरित्र-निर्माण जीवन की सफलता की कुंजी है।
(II) चरित्र-निर्माण से मनुष्य को जीवन में आने वाले संघर्षों का मुकाबला करने की शक्ति प्राप्त होती है और वह जीवन-संघर्ष में सफलता प्राप्त कर लेता है।
(III) चरित्रवान् व्यक्ति का सब लोग आदर करते हैं। उस का अपना-अलग व्यक्तित्व होता है। वह जीवन में सदा सफल रहता है।
(IV) सहस्रों = दस-सौवों की संख्या। व्यक्तित्व = व्यक्ति का गुण।
(V) चरित्र निर्माण : सफलता की कुंजी।

23. जिस जाति की सामाजिक अवस्था जैसी होती है, उसका साहित्य भी वैसा ही होता है। जातियों की क्षमता और सजीवता यदि कहीं प्रत्यक्ष देखने को मिल सकती है, तो उनके साहित्य-रूपी आईने में ही मिल सकती है। इस आईने के सामने जाते ही हमें तत्काल मालूम हो जाता है कि अमुक-जाति की जीवन-शक्ति इस समय कितनी या कैसी है और भूतकाल में कितनी और कैसी थी।आज भोजन करना बंद कर दीजिए, आपका शरीर क्षीण हो जाएगा और नाशोन्मुख होने लगेगा। इसी तरह आप साहित्य के रसास्वादन से अपने मस्तिष्क को वंचित कर दीजिए, वह निष्क्रिय होकर धीरे-धीरे किसी काम का न रह जाएगा।

बात यह है कि शरीर के जिस अंग का जो काम है वह उससे यदि न लिया जाए तो उसकी वह काम करने की शक्ति नष्ट हुए बिना नहीं रहती।शरीर का खाद्य भोजन पदार्थ है और मस्तिष्क का खाद्य साहित्य। अतएव यदि हम अपने मस्तिष्क को निष्क्रिय और कालांतर में निर्जीव-सा नहीं कर डालना चाहते, तो हमें साहित्य का सतत सेवन करना चाहिए और उसमें नवीनता तथा पौष्टिकता लाने के लिए उसका उत्पादन भी करते जाना चाहिए। पर याद रखिए, विकृत भोजन से जैसे शरीर रुग्ण होकर बिगड़ जाता है उसी तरह विकृत साहित्य से मस्तिष्क भी विकारग्रस्त होकर रोगी हो जाता है।

मस्तिष्क का बलवान और शक्तिसंपन्न होना अच्छे साहित्य पर ही अवलंबित है। अतएव यह बात निर्धान्त है कि मस्तिष्क के यथेष्ट विकास का एकमात्र साधन अच्छा साहित्य है। यदि हमें जीवित रहना है और सभ्यता की दौड़ में अन्य जातियों की बराबरी करनी है तो हमें श्रमपूर्वक बड़े उत्साह में सत्साहित्य का उत्पादन और प्राचीन साहित्य की रक्षा करनी चाहिए।

(I) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(II) किसी जाति की क्षमता और सजीवता कहाँ दिखाई देती है?
(III) साहित्य का रसास्वादन न करने से क्या होता है?
(IV) विकृत साहित्य से मस्तिष्क की क्या दशा होती है?
(V) रसास्वादन और अवलंबित शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
(I) साहित्य और विकास
(II) किसी जाति की क्षमता और सजीवता उनके साहित्य रूपी आईने में दिखाई देती है।
(III) साहित्य का रसास्वादन न करने से मस्तिष्क धीरे-धीरे निष्क्रिय हो जाएगा और किसी काम का नहीं रहेगा।
(IV) विकृत साहित्य से मस्तिष्क भी विकारग्रस्त होकर रोगी हो जाता है।
(V) रसास्वादन-आनंद अवलंबित-आधारित।

24. भाषणकर्ता के गुणों में तीन गुण श्रेष्ठ माने जाते हैं-सादगी, असलियत और जोश। यदि भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है तो श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं। इस प्रकार के भाषणकर्ता का प्रभाव समाप्त होने में देरी नहीं लगती। यदि वक्ता में उत्साह की कमी हो तो भी उसका भाषण निष्प्राण हो जाता है। उत्साह से ही किसी भी भाषण में प्राणों का संचार होता है। भाषण को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए उसमें उतारचढ़ाव, तथ्य और आंकड़ों का समावेश आवश्यक है। अतः उपर्युक्त तीनों गुणों का समावेश एक अच्छे भाषणकर्ता के लक्षण हैं तथा इनके बिना कोई भी भाषणकर्ता श्रोताओं पर अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकता।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) अच्छे भाषण के कौन-से गुण होते हैं?
(III) श्रोता किसे तत्काल ताड़ जाते हैं?
(IV) कैसे भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता?
(V) ‘श्रोता’ तथा ‘जोश’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) श्रेष्ठ भाषणकर्ता।
(II) अच्छे भाषण में सादगी, तथ्य, उत्साह, आँकड़ों का समावेश होना चाहिए।
(III) जो भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है, उसे श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं।
(IV) जिस भाषण में सादगी, वास्तविकता और उत्साह नहीं होता, उस भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता।
(V) श्रोता = सुनने वाला। जोश = आवेग, उत्साह।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

25. सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन कहलाता है। व्यक्ति के जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासन के बिना मनुष्य अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता तथा चरित्रहीन व्यक्ति सभ्य समाज का निर्माण नहीं कर सकता। अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए भी मनुष्य का अनुशासनबद्ध होना अत्यंत आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला होती है। अतः विद्यार्थियों के लिए अनुशासन में रहकर जीवन-यापन करना आवश्यक है।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) अनुशासन किसे कहते हैं?
(III) मनुष्य किसके बिना अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता?
(IV) विद्यार्थी जीवन किसकी आधारशिला है?
(V) ‘सुव्यवस्थित’ और ‘आधारशिला’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) अनुशासन।
(II) सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन है।
(III) अनुशासन के बिना मनुष्य अपना चरित्र-निर्माण नहीं कर सकता।
(IV) विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला है।
(V) सुव्यवस्थित = उत्तम रूप से व्यवस्थित। आधारशिला = नींव।

26. सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रेम से प्रेम और विश्वास से विश्वास उत्पन्न होता है और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि घृणा से घृणा का जन्म होता है जो दावाग्नि की तरह सबको जलाने का काम करती है। महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतने में विश्वास करते थे। उन्होंने सर्वधर्म सद्भाव द्वारा सांप्रदायिक घृणा को मिटाने का आजीवन प्रयत्न किया। हिंदू और मुसलमान दोनों की धार्मिक भावनाओं को समान आदर की दृष्टि से देखा। सभी धर्म शांति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन बताते हैं। धर्मों में छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं है। सभी धर्म सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं, इसलिए धर्म के मूल में पार्थक्य या भेद नहीं है।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) सभी धर्म किन बातों पर बल देते हैं?
(III) सांप्रदायिक सद्भावना कैसे बनाये रखी जा सकती है?
(IV) महात्मा गांधी घृणा को कैसे जीतना चाहते थे?
(V) ‘सद्भाव’ और ‘सौहार्द’ का अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) सांप्रदायिक सद्भाव।
(II) सभी धर्म, सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं।
(III) साम्प्रदायिक सद्भावना बनाये रखने के लिए सब धर्मों वालों को आपस में प्रेम और विश्वास बनाए रखते हुए सब धर्मों का समान रूप से आदर करना चाहिए।
(IV) महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतना चाहते थे।
(V) सद्भाव = अच्छा भाव, मेलजोल। सौहार्द = सज्जनता, मित्रता।

27. लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे इसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध करते हैं। बात यह है कि लोग धर्म को छोड़कर संप्रदाय के जाल में फंस रहे हैं। संप्रदाय बाह्य कृत्यों पर जोर देते हैं। वे चिह्नों को अपनाकर धर्म के सार तत्व को मसल देते हैं। धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बनाता है, उसके हृदय के किवाड़ों को खोलता है, उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है। संप्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं, जाति-पाति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेद-भावों से ऊपर नहीं उठने देते।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) लोगों ने धर्म को क्या बना रखा है?
(III) धर्म किसके किवाड़ों को खोलता है?
(IV) संप्रदाय क्या सिखाता है?
(V) ‘कृत्य’ और ‘अंतर्मुखी’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) सांप्रदायिक संकीर्णता।
(II) लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे इसकी आड में अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
(III) धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बना कर उसे हृदय के किवाड़ों को खोलकर उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है।
(IV) संप्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं और मनुष्य को जाति-पाति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेदभावों से ऊपर नहीं उठने देते।
(V) कृत्य = कार्य, काम। अंतर्मुखी = परमात्मा की ओर ध्यान लगाने वाला।

28.
स्वतंत्र भारत का सम्पूर्ण दायित्व आज विद्यार्थियों के ऊपर है, क्योंकि आज जो विद्यार्थी हैं, वे ही कल स्वतंत्र भारत के नागरिक होंगे। भारत की उन्नति और उसका उत्थान उन्हीं की उन्नति और उत्थान पर निर्भर करता है। अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने भावी जीवन का निर्माण बड़ी सतर्कता और सावधानी के साथ करें। उन्हें प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्र, अपने धर्म और अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए, ताकि उनके जीवन से राष्ट्र को कुछ बल प्राप्त हो सके। जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भार-स्वरूप हैं।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) विद्यार्थियों को प्रत्येक क्षण किसको अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए?
(III) भावी भारत के नागरिक कौन हैं?
(IV) हमारे राष्ट्र और समाज पर भार-स्वरूप कौन हैं?
(V) ‘निर्माण’ और ‘दायित्व’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) आज के विद्यार्थी कल के नागरिक।
(II) विद्यार्थियों को प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्र, अपने धर्म और अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए।
(III) आज के विद्यार्थी भावी भारत के नागरिक हैं।
(IV) जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भार-स्वरूप होते हैं।
(V) निर्माण = रचना करना, बनाना। दायित्व = ज़िम्मेदारी।

29. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरे उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्त्तव्य पूरा करने में नहीं। अहं बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है। एक सीमा तक आवश्यक भी है। परंतु आज के विद्यार्थियों में इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाम मात्र को नहीं रह गये हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है। इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने उन अधिकारों को, जिनके वे अधिकारी नहीं हैं, उसे भी वे अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्त्तव्य दोनों एकदूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का संतुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है, परंतु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है।

(I) आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है?
(II) विद्यार्थी प्रायः किसका विरोध करते हैं?
(III) विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिये।
(V) उचित शीर्षक दीजिये।
उत्तर:
(I) आधुनिक विद्यार्थियों में अहंकार बढ़ने और विनम्रता. न होने से नम्रता की कमी होती जा रही है।
(II) विद्यार्थी प्रायः गुरुजनों या बड़ों की बातों का विरोध करते हैं।
(III) विद्यार्थियों में अपने अधिकारों के प्रति सजगता अधिक है।
(IV) विनय = नम्रता। सजग = सावधान।
(V) विद्यार्थियों में अहंकार।

30. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन में नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन पथ का सारथी बनकर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जय शास्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवनों के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुःख और निराशा की काली घटाएं आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुंह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है। लेकिन आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुःख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा, जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अन्धकार भाग जाता है।

(I) महान् जीवन के रथ किस रास्ते से गुज़रते हैं?
(II) आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं?
(III) निराशा की काली घटाएं किस प्रकार समाप्त हो जाती हैं?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) महान् जीवन के रथ फूलों से भरे वनों से ही नहीं गुज़रते बल्कि कांटों से भरे बीहड़ पथ पर भी चलते हैं।
(II) आत्म-विश्वास के शस्त्र के द्वारा हम जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं।
(III) आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति के आगे निराशा की काली घटाएं समाप्त हो जाती हैं।
(IV) सोपानों = सीढ़ियों। ज्योति = प्रकाश।
(V) शीर्षक = आत्मविश्वास।

31. राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश होता है जिसके आधार पर राष्ट्रीयता का जन्म तथा विकास होता है। इस कारण देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के उद्देश्य से कुछ विघटनकारी शक्तियां हमारे देश को देश न कहकर उपमहाद्वीप के नाम से संबोधित करती हैं। भौगोलिक दृष्टि से भारत के विस्तृत भू-खंड, जिसमें अनेक नदियां और पर्वत कभी-कभी प्राकृतिक बाधायें भी उपस्थित कर देते हैं, को ये शक्तियां संकीर्ण क्षेत्रीयता की भावनायें विकसित करने में सहायता करती हैं।

(I) राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण क्या है?
(II) देश की इकाई किस लिए आवश्यक है?
(III) भौगोलिक दृष्टि से भारत कैसा है?
(IV) ‘उपकरण’ और ‘विघटनकारी’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश है।
(II) देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है।
(III) भौगोलिक दृष्टि से भारत उपमहाद्वीप जैसा है जिसमें अनेक नदियां, पहाड़ और विस्तृत भूखंड है।
(IV) उपकरण = सामान। विघटनकारी = तोड़ने वाली।
(V) राष्ट्रीयता।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

32. दस गीदड़ों की अपेक्षा एक सिंह अच्छा है। सिंह-सिंह और गीदड़-गीदड़ है। यही स्थिति परिवार के उन . सदस्य की होती है जिनकी संख्या आवश्यकता से अधिक हो। न भरपेट भोजन, न तन ढकने के लिए वस्त्र। न अच्छी शिक्षा, न मनचाहा रोज़गार। गृहपति प्रतिक्षण चिंता में डूबा रहता है। रात की नींद और दिन का चैन गायब हो जाता है। बार-बार दूसरों पर निर्भर होने की विवशता। सम्मान और प्रतिष्ठा तो जैसे सपने की बातें हों। यदि दुर्भाग्यवश गृहपति न रहे तो आश्रितों का कोई टिकाना नहीं। इसलिए आवश्यक है कि परिवार छोटा हो।

(I) परिवार के सदस्यों की क्या स्थिति होती है?
(II) गृहपति प्रतिक्षण चिंता में क्यों डूबा रहता है?
(III) रात की नींद और दिन का चैन क्यों गायब हो जाता है?
(IV) ‘प्रतिक्षण’ और ‘प्रतिष्ठा’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) जिस परिवार की संख्या आवश्यकता से अधिक होती है, उस परिवार को न भरपेट भोजन, न वस्त्र, न अच्छी शिक्षा और न ही मनचाहा रोज़गार मिलता है। उनकी स्थिति दस गीदड़ों जैसी हो जाती है।
(II) गृहपति प्रतिक्षण परिवार के भरण-पोषण की चिंता में डूबा रहता है कि इतने बड़े परिवार का गुज़ारा कैसे होगा?
(III) रात की नींद और दिन का चैन इसलिए गायब हो जाता है क्योंकि बड़े परिवार के गृहपति को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसका सम्मान तथा प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है। उसे अपने मरने के बाद परिवार की दुर्दशा के संबंध में सोचकर बेचैनी होती है।
(IV) प्रतिक्षण = हर समय। प्रतिष्ठा = इज्ज़त, मान सम्मान।
(V) छोटा परिवार : सुखी परिवार।

33. मैदान चाहे खेल का हो या युद्ध का और चाहे कोई और मन हारा कि बल हारा? मन गिर गया तो समझिए कि तन गिर गया। काम कोई भी, कैसा भी क्यों न हो, मन में उसे करने का उत्साह हुआ तो बस पूरा हुआ। सामान्य आदमी बड़े काम को देखकर घबरा जाता है। साधारण छात्र कठिन प्रश्नों से बचता ही रहता है, किन्तु लगन वाला, उत्साही विद्यार्थी कठिन प्रश्नों पर पहले हाथ डालता है। उसमें कुछ नया सीखने और समझने तथा कठिन प्रश्न से जूझने की ललक रहती है। प्रेमचंद के रास्ते में सैंकड़ों कठिनाइयां थीं, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने की अजब धुन थी, इसलिए हिम्मतवान रहे। अतः स्पष्ट है कि मनुष्य की जीत अथवा हार उसके मन की ही जीत अथवा हार है।

(I) सामान्य आदमी कैसा होता है?
(II) उत्साही छात्र की क्या विशेषता है?
(III) मन गिरने से तन कैसे गिर जाता है?
(IV) ‘हाथ डालना’ तथा ‘जूझना’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) सामान्य आदमी बड़े काम को देखकर घबरा जाता है।
(II) उत्साही छात्र को लगन होती है। वह कठिन प्रश्न पहले हल करता है। उसमें कुछ नया सीखने, समझने और करने की इच्छा होती है।
(III) मन में उत्साह नहीं हो तो मनुष्य कुछ नहीं कर पाता। वह अपने आप को कोसता रहता है और बीमार हो जाता है, जिससे मन गिरने से उसका तन भी गिर जाता है।
(IV) हाथ डालना = हस्तक्षेप करना, कोशिश करना। जूझना = संघर्ष करना।
(V) मन के हारे हार हैं मन जीते जग जीत।

34. मनुष्य जाति के लिए मनुष्य ही सबसे विकट पहेली है। वह खुद अपनी समझ में नहीं आता है। किसी न किसी रूप में अपनी ही आलोचना किया करता है। अपने ही मनोरहस्य खोला करता है। मानव संस्कृति का विकास ही इसलिए हुआ है कि मनुष्य अपने को समझे। अध्यात्म और दर्शन की भांति साहित्य भी इसी खोज में है, अंतर इतना ही है कि वह इस उद्योग में रस का मिश्रण करते उसे आनंदप्रद बना देता है। इसलिए अध्यात्म और दर्शन केवल ज्ञानियों के लिए है, साहित्य मनुष्य मात्र के लिए है।

(I) मानव संस्कृति का विकास क्यों हुआ है?
(II) अध्यात्म और साहित्य में क्या अंतर है?
(III) मनुष्य के लिए रहस्य क्या है?
(IV) ‘मनोरहस्य’ तथा ‘मिश्रण’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) मानव संस्कृति का विकास इसलिए हुआ है कि मनुष्य स्वयं को समझ सके।
(II) अध्यात्म और साहित्य दोनों का लक्ष्य एक है। अध्यात्मक केवल ज्ञान की बात करता है जबकि साहित्य इसमें रस मिला कर इस प्रयास को आनंदप्रद, बना देता है।
(III) मनुष्य के लिए रहस्य स्वयं को समझना है कि वह क्या है?
(IV) मनोरहस्य = मन के भेद। मिश्रण = मिलावट।
(V) साहित्य और समाज।

35. प्रत्येक राष्ट्र के लिए अपनी एक सांस्कृतिक धरोहर होती है। इसके बल पर वह प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। मानव युगों-युगों से अपने को अधिक सुखमय, उपयोगी, शांतिमय एवं आनंदपूर्ण बनाने का प्रयास करता है। इस प्रयास का आधार वह सांस्कृतिक धरोहर होती है जो प्रत्येक मानव को विरासत के रूप में मिलती है और प्रयास के फलस्वरूप मानव अपना विकास करता है। यह विकास क्रम सांस्कृतिक आधार के बिना संभव नहीं होता। कुछ लोग सभ्यता एवं संस्कृति को एक ही अर्थ में लेते हैं। वह उनकी भूल है। यों तो सभ्यता और संस्कृति में घनिष्ठ संबंध है, किंतु संस्कृति मानव जीवन को श्रेष्ठ एवं उन्नत बनाने के साधनों का नाम है और सभ्यता उन साधनों के फलस्वरूप उपलब्ध हुई जीवन प्रणाली है।

(I) सांस्कृतिक धरोहर से क्या तात्पर्य है?
(II) संस्कृति और सभ्यता में क्या अंतर है?
(III) मनुष्य को विरासत में क्या-क्या मिला है?
(IV) ‘विरासत’ तथा ‘घनिष्ठ’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) सांस्कृतिक धरोहर से तात्पर्य उन सब बातों से होता है जो किसी व्यक्ति, जाति अथवा राष्ट्र के मन, रुचि, आचार-विचार, कला कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास की सूचक होती है।
(II) संस्कृति मानव जीवन को श्रेष्ठ और उन्नत बनाने का साधन है तथा सभ्यता उन साधनों से प्राप्त जीवन प्रणाली
(III) मनुष्य को विरासत में वह सांस्कृतिक धरोहर मिली है जो उसे अपना जीवन सुखमय, उपयोगी, शांतिमय तथा आनंदपूर्ण बनाने में सहायक होती है।
(IV) विरासत = उत्तराधिकार, पूर्वजों से प्राप्त। घनिष्ठ = गहरा।
(V) संस्कृति और सभ्यता।

36. आधुनिक युग में मानव परोपकार की भावना से विरक्त होता जा रहा है। उसका हृदय स्वार्थ से भर गया है। उसे हर समय अपनी ही सुख-सुविधा का ध्यान रहता है। उसका हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है। हमारा इतिहास परोपकारी महात्माओं की कथाओं से भरा पड़ा है। महर्षि दधीचि ने देवताओं की भलाई के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया था। महाराज शिवि ने शरणागत की रक्षार्थ अपनी देह का मांस काट कर दे दिया था। हमारे कर्णधारों का नाम इसी कारण उज्ज्वल है। उनका सारा जीवन अपने भाइयों के हित एवं राष्ट्र-कल्याण में बीता। उनके कार्यों को हम कभी नहीं भूल सकते।

(I) किसका हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है?
(II) शरणागत की रक्षार्थ किसने अपनी देह का माँस दे दिया?
(III) हमारे कर्णधारों के नाम क्यों उज्ज्वल हैं?
(IV) ‘विरक्त’ तथा ‘स्वार्थ’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) आधुनिक युग में मानव का हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है।
(II) शरणागत की रक्षार्थ महाराज शिवि ने अपनी देह का माँस दे दिया था।
(III) हमारे कर्णधारों के नाम परोपकार की भावना के कारण उज्ज्वल हैं।
(IV) विरक्त = उदासीन। स्वार्थ = अपना मतलब सिद्ध करना।
(V) परोपकार।

37. शिक्षा मनुष्य को मस्तिष्क तथा शरीर का उचित प्रयोग करना सिखाती है। वह शिक्षा जो मनुष्य को पाठ्य-पुस्तकों के ज्ञान के अतिरिक्त कुछ और चिंतन दे, व्यर्थ है। यदि हमारी शिक्षा हमें सुसंस्कृत, सभ्य और सच्चरित्र नहीं बना सकती, तो उससे क्या लाभ? सहृदय, सच्चरित्र परंतु अनपढ़ मज़दूर उस स्नातक से कहीं अच्छा है, जो निर्दय और चरित्रहीन है। संसार के सभी वैभव तथा सुख-साधन भी मनुष्य को तब तक सुखी नहीं बना सकते, जब तक मनुष्य को आत्मिक ज्ञान न हो। हमारे कुछ अधिकार और उत्तरदायित्व भी है। शिक्षित व्यक्ति को उत्तरदायित्व का भी उतना ही ध्यान रखना चाहिए जितना की अधिकारों का।

(I) कौन-सी शिक्षा मनुष्य के लिए व्यर्थ है?
(II) अनपढ़ मज़दूर स्नातक से किस प्रकार अच्छा है?
(III) किस ज्ञान के बिना मनुष्य संसार में सुखी नहीं बन पाता?
(IV) ‘वैभव’ तथा ‘शिक्षित’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) मनुष्य के लिए वह शिक्षा व्यर्थ है, जो उसे सहृदय, सुसंस्कृत, सभ्य और सच्चरित्र नहीं बना सकती।
(II) सहृदय, सच्चरित्र अनपढ़ मज़दूर उस स्नातक से अच्छा है, जो निर्दय और चरित्रहीन है।
(III) आत्मिक ज्ञान के बिना मनुष्य संसार में सुखी नहीं बन सकता।
(IV) वैभव = ऐश्वर्य, धन-संपत्ति। शिक्षित = पढ़ा-लिखा।
(V) सच्ची शिक्षा।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

38. आज भारत का बुद्धिजीवी युवक पाश्चात्य शिक्षा तथा दर्शन से इतना प्रभावित है कि वह भारतीय दर्शन तथा आध्यात्मिकता को थोथा और सारहीन समझने लगा है। आज भौतिकवाद की इतनी बाढ़ आई हुई है कि मनुष्य भारतीय चिंतन-सत्यों के प्रति उपेक्षा का भाव धारण किए हुए है। हमारा दृष्टिकोण राजनीतिक तथा आर्थिक आंदोलनों की सीमा में सिमटकर रह गया है। आज का विज्ञान, दर्शन तथा मनोविज्ञान समाज के बदले हए रूप को सभ्य बनाने में नितांत असमर्थ है। इसका फल यह हुआ कि वैज्ञानिक प्रगति की शक्ति मनुष्य के लिए लाभकारी न होकर उसके संहार में ही अधिक प्रयोग में लाई जा रही है। आण्विक शक्ति ने निर्माण तथा रचनात्मक पहलू को ध्वस्त ही कर डाला है।

(I) भौतिकवादी विचारधारा ने मनुष्य पर क्या प्रभाव डाला है?
(II) आधुनिक मानव के जीवन का क्या लक्ष्य है?
(III) आण्विक शक्ति से क्या हानि हुई?
(IV) ‘उपेक्षा’ तथा ‘नितांत’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) भौतिकतावादी विचारधारा ने मनुष्य को भारतीय चिंतन सत्यों के प्रति उपेक्षित कर दिया है।
(II) आधुनिक मानव के जीवन का लक्ष्य राजनीतिक तथा आर्थिक आंदोलनों की सीमा में सिमट कर रहा गया है।
(III) आणविक शक्ति का संहारक रूप अधिक प्रचलित हो गया है।
(IV) उपेक्षा = उदासीनता, लापरवाही। नितांत = बिल्कुल।
(V) आण्विक शक्ति का दुरुपयोग।

39. मित्र के चुनाव में सतर्कता का व्यवहार करना चाहिये क्योंकि अच्छे मित्र के चुनाव पर ही हमारे जीवन की सफलता निर्भर करती है। जैसी हमारी संगत होगी, वैसे ही हमारे संस्कार भी होंगे। अतः हमें दृढ़ चरित्र वाले व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए। मित्र एक ही अच्छा है। अधिक की आवश्यकता नहीं होती। बेकन का इस संबंध में कहना है-“समूह का नाम संगत नहीं। जहाँ प्रेम नहीं है, वहाँ लोगों की आकृतियाँ चित्रवत है और उनकी बातचीत झांझर की झनकार है।” अतः हमारे जीवन को उत्तम और आनंदमय करने में सहायता दे सके ऐसा एक मित्र सैंकड़ों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है।

(I) हमें कैसे व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए?
(II) मित्र के चुनाव में सतर्कता क्यों बरतनी चाहिए?
(III) कैसा मित्र श्रेष्ठ है?
(IV) ‘सतर्क’ और ‘समूह’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) हमें उन व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए जिनमें उत्तम वैद्य-सी निपुणता, अच्छी-से-अच्छी माता-सा धैर्य और कोमलता हो।
(II) मित्र के चुनाव में सतर्कता इसलिए बरतनी चाहिए क्योंकि जैसी हमारी संगत होगी, वैसे ही हमारे संस्कार भी होंगे। अतः हम दृढ़ चरित्र वाले व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए।
(III) जो व्यक्ति अपने मित्र को सही दिशा, उचित परामर्श एवं मार्गदर्शन करें वही श्रेष्ठ मित्र है।
(IV) सतर्क = सावधान। समूह = झुंड।
(V) मित्र का चुनाव।

जो गद्यांश पाठ्यक्रम से संबंधित नहीं होता उसे अपठित गद्यांश कहते हैं। यह पाठ्यक्रम से भिन्न किसी पत्रपत्रिका अथवा पुस्तक से संकलित किया जाता है। इसलिए विद्यार्थियों को नियमित पढ़ने की रुचि विकसित करनी चाहिए। अपठित गद्यांश से संबंधित पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने से पहले अपठित अवतरण को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ लेना चाहिए। ऐसा करने से प्रश्नों के उत्तर देने में सरलता होगी। प्रश्नों का उत्तर सोच-विचार कर ही देना चाहिए। अपठित गद्यांश को उचित शीर्षक देना चाहिए। शीर्षक लंबा नहीं होना चाहिए। अपठित गद्यांश में से निम्न प्रश्न पूछे जाएंगे-
1. प्रथम तीन प्रश्न गद्यांश की विषय-सामग्री से सम्बन्धित होंगे।
2. चौथा प्रश्न गद्यांश में से दो कठिन शब्दार्थ-लेखन से संबंधित होगा।
3. पाँचवां प्रश्न गद्यांश के शीर्षक अथवा केंद्रीय भाव से संबंधित होगा।

पाठ्य-पुस्तक पर आधारित अपठित गद्यांश

1. मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 को बनारस के लमही नामक ग्राम में हुआ। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। उनका बचपन अभावों में ही बीता और हर प्रकार के संघर्षों को झेलते हुए उन्होंने बी० ए० तक शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी की किंतु असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पूरी तरह लेखन कार्य में जुट गये। वे तो जन्म से ही लेखक और चिंतक थे। शुरू में वे उर्दू में नवाबराय के नाम से लिखने लगे। एक ओर समाज की कुरीतियों और दूसरी ओर तत्कालीन व्यवस्था के प्रति निराशा और आक्रोश था। उनके लेखों में कमाल का जादू था। वे अपनी बात को बड़ी ही प्रभावशाली ढंग से लिखते थे।

जनता की खबरें पहुँच गयीं। अंग्रेज़ सरकार ने उनके लेखों पर रोक लगा दी। किंतु, उनके मन में उठने वाले स्वतंत्र एवं क्रान्तिकारी विचारों को भला कौन रोक सकता था। इसके बाद उन्होंने ‘प्रेमचंद’ के नाम से लिखना शुरू कर दिया। इस तरह वे धनपतराय से प्रेमचंद बन गए। ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’ और ‘गोदान’ आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं जिनमें सामाजिक समस्याओं का सफल चित्रण है। इनके अतिरिक्त उन्होंने ‘ईदगाह’, ‘नमक का दारोगा’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘बड़े भाई साहब’ और ‘पंच परमेश्वर’ आदि अनेक अमर कहानियाँ भी लिखीं।

वे आजीवन शोषण, रूढ़िवादिता, अज्ञानता और अत्याचारों के विरुद्ध अबाधित गति से लिखते रहे। गरीबों, किसानों, विधवाओं और दलितों की समस्याओं का प्रेमचंद जी ने बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। वे समाज में पनप चुकी कुरीतियों से बहुत आहत होते थे इसलिए उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयास इनकी रचनाओं में सहज ही देखा जा सकता है। निःसंदेह वे महान् उपन्यासकार और कहानीकार थे। सन् 1936 में इनका देहांत हो गया।

प्रश्न 1.
मंशी प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर:
मुंशी प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था।

प्रश्न 2.
प्रेमचंद ने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र क्यों दे दिया था?
उत्तर:
प्रेमचंद ने असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था।

प्रश्न 3.
वे आजीवन किसके विरुद्ध लिखते रहे?
उत्तर:
वे आजीवन सामाजिक समस्याओं से जुड़कर शोषण, अज्ञानता, रूढ़िवादी और गरीब किसानों, विधवाओ, दलितों आदि की विभिन्न समस्याओं और कुरीतियों के विरुद्ध लिखते रहे।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 4.
अबाधित तथा आहत शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘अबाधित’- बिना किसी रुकावट के, ‘आहत’-दुःखी।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
महान् उपन्यासकार एवं कहानीकार: मुंशी प्रेमचंद।

2. सच्चरित्र दुनिया की समस्त संपत्तियों में श्रेष्ठ संपत्ति मानी गयी है। पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि पंचभूतों से बना मानव-शरीर मौत के बाद समाप्त हो जाता है किंतु चरित्र का अस्तित्व बना रहता है। बड़े-बड़े चरित्रवान ऋषि-मुनि, विद्वान्, महापुरुष आदि इसका प्रमाण हैं। आज भी श्रीराम, महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि अनेक विभूतियाँ समाज में पूजनीय हैं। ये अपने सच्चरित्र के द्वारा इतिहास और समाज को नयी दिशा देने में सफल रहे हैं। समाज में विद्या और धन भला किस काम का ।

अत: विद्या और धन के साथसाथ चरित्र का अर्जन अत्यंत आवश्यक है। यद्यपि लंकापति रावण वेदों और शास्त्रों का महान् ज्ञाता और अपार धन का स्वामी था किंतु सीता-हरण जैसे कुकृत्य के कारण उसे अपयश का सामना करना पड़ा। आज युगों बीत जाने पर भी उसकी चरित्रहीनता के कारण उसके प्रतिवर्ष पुतले बनाकर जलाए जाते हैं। चरित्रहीनता को कोई भी पसंद नहीं करता। ऐसा व्यक्ति आत्मशांति, आत्मसम्मान और आत्मसंतोष से सदैव वंचित रहता है। वह कभी भी समाज में पूजनीय स्थान नहीं ग्रहण कर पाता है। जिस तरह पक्की ईंटों से पक्के भवन का निर्माण होता है उसी तरह सच्चरित्र से अच्छे समाज का निर्माण होता है। अतएव सच्चरित्र ही अच्छे समाज की नींव है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
दुनिया की समस्त संपत्तियों में किसे श्रेष्ठ माना गया है?
उत्तर:
सच्चरित्र को दुनिया की समस्त संपत्तियों में श्रेष्ठ माना गया है।

प्रश्न 2.
रावण को क्यों अपयश का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
रावण को सीता जी के हरण के कारण अपयश का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 3.
चरित्रहीन व्यक्ति सदैव किससे वंचित रहता है?
उत्तर:
चरित्रहीन व्यक्ति सदैव आत्मशांति, आत्मसम्मान और आत्मसंतोष से वंचित रहता है।

प्रश्न 4.
‘श्रेष्ठ’ तथा ‘प्रमाण’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘श्रेष्ठ’- सबसे बढ़िया (अच्छा), ‘प्रमाण’-सबूत।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
श्रेष्ठ संपत्ति-सच्चरित्रता।

3. हस्तकला ऐसे कलात्मक कार्य को कहा जाता है जो उपयोगी होने के साथ-साथ सजाने, पहनने आदि के काम आता है। ऐसे कार्य मुख्य रूप से हाथों से अथवा छोटे-छोटे आसान उपकरणों या साधनों की मदद से ही किए जाते हैं। अपने हाथों से सजावट, पहनावे, बर्तन, गहने, खिलौने आदि से संबंधित चीज़ों का निर्माण करने वालों को हस्तशिल्पी या दस्तकार कहा जाता है। इसमें अधिकतर पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार काम करते आ रहे हैं। जो चीजें मशीनों के माध्यम से बड़े स्तर पर बनायी जाती हैं उन्हें हस्तशिल्प की श्रेणी में नहीं लिया जाता। भारत में हस्तशिल्प के पर्याप्त अवसर हैं।

सभी राज्यों की हस्तकला अनूठी है। पंजाब में हाथ से की जाने वाली कढ़ाई की विशेष तकनीक को फुलकारी कहा जाता है। इस प्रकार की कढ़ाई से बने दुपट्टे, सूट, चादरें विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त मंजे (लकड़ी के ढाँचे पर रस्सियों से बने हुए एक प्रकार के पलंग), पंजाबी जूतियाँ आदि भी प्रसिद्ध हैं। राजस्थान वस्त्रों, कीमती हीरे जवाहरात से जड़े आभूषणों, चमकते हुए बर्तनों, मीनाकारी, वड़ियाँ, पापड़, चूर्ण, भुजिया के लिए जाना जाता है। आंध्र प्रदेश सिल्क की साड़ियों, केरल हाथी दांत की नक्काशी और शीशम की लकड़ी के फर्नीचर, बंगाल हाथ से बुने हुए कपड़े, तमिलनाडु ताम्र मूर्तियों एवं कांजीवरम साड़ियों, मैसूर रेशम और चंदन की लकड़ी की वस्तुओं, कश्मीर अखरोट की लकड़ी के बने फर्नीचर, कढ़ाई वाली शालों तथा गलीचों, असम बेंत के फर्नीचर, लखनऊ चिकनकारी वाले कपड़ों, बनारस ज़री वाली सिल्की साड़ियों, मध्य प्रदेश चंदेरी और कोसा सिल्क के लिए प्रसिद्ध है। हस्तकला के क्षेत्र में रोज़गार की अनेक संभावनाएं हैं। हस्तकला के क्षेत्र में निपुणता प्राप्त करके अपने पैरों पर खड़ा हुआ जा सकता है।

इसमें निपुणता के साथ-साथ आत्मविश्वास, धैर्य और संयम की भी आवश्यकता रहती है। इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि जब आप उत्कृष्ट व अनूठी चीज़ बनाते हैं तो हस्तकला के मुरीद लोगों की कमी नहीं रहती। अपने देश के साथ-साथ विदेशों में भी हाथ से बने सामान की माँग बढ़ती है। केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा भी हस्तकला को प्रोत्साहित किया जाता है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
हस्तकला किसे कहते हैं?
उत्तर:
हस्तकला उस श्रेष्ठ कलात्मक कार्य को कहते हैं जो समाज के लिए उपयोगी होने के साथ-साथ सजाने, पहनने आदि के काम आता है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 2.
किन चीज़ों को हस्तकला की श्रेणी में नहीं लिया जाता?
उत्तर:
वे चीजें जो मशीनों के माध्यम से बड़े स्तर पर तैयार की जाती हैं उन्हें हस्तशिल्प की श्रेणी में नहीं लिया जाता।

प्रश्न 3.
पंजाब में हस्तकला के रूप में कौन-कौन सी चीजें प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
पंजाब में हाथ से की जाने वाली कढ़ाई (फुलकारी) से बने दुपट्टे, सूट, चादरें विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त मंजे (लकड़ी के ढांचे पर रस्सियों से बने हुए एक प्रकार के पलंग), पंजाबी जूतियाँ आदि भी अति प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 4.
‘उत्कृष्ट’ तथा ‘निपुणता’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘उत्कृष्ट’-बढ़िया, ‘निपुणता’- कुशलता।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
हस्तकला का महत्त्व अथवा भारतीय हस्तकला।

4. किशोरावस्था में शारीरिक और सामाजिक परिवर्तन आते हैं और इन्हीं परिवर्तनों के साथ किशोरों की भावनाएँ भी प्रभावित होती हैं। बार-बार टोकना, अधिक उपदेशात्मक बातें किशोर सहन नहीं करना चाहते। कोई बात बुरी लगने पर वे क्रोध में शीघ्र आ जाते हैं। यदि उनका कोई मित्र बुरा है तब भी वे यह दलील देते हैं कि वह चाहे बुरा है किन्तु मैं तो बुरा नहीं हूँ। कई बार वे बेवजह बहस एवं ज़िद्द के कारण क्रोध करने लगते हैं। अभिभावकों को उनके साथ डाँट-डपट नहीं अपितु प्यार से पेश आना चाहिए। उन्हें सृजनात्मक कार्यों में लगाने के साथ-साथ बाज़ार से स्वयं फल-सब्जियां लाना, बिजली-पानी का बिल अदा करना आदि कार्यों में लगाकर उनकी ऊर्जा को उचित दिशा में लगाना चाहिए।

अभिभावकों को उन पर विश्वास दिखाना चाहिए। उनके अच्छे कामों की प्रशंसा की जानी चाहिए। किशोरों को भी चाहिए कि वे यह समझें कि उनके माता-पिता मात्र उनका भला चाहते हैं। किशोर पढ़ाई को लेकर भी चिंतित रहते हैं। वे परीक्षा में अच्छे नंबर लेने का दबाव बना लेते हैं जिससे उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है। इसके लिए उन्हें स्वयं योजनाबद्ध तरीके से मन लगाकर पढ़ना चाहिए। उन्हें दिनचर्या में खेलकूद, सैर, व्यायाम, संगीत आदि को भी शामिल करना चाहिए। इससे उनका तनाव कम होगा। उन्हें शिक्षकों से उचित मार्गदर्शन लेना चाहिए। मातापिता को भी उन पर अच्छे नम्बरों का दबाव नहीं बनाना चाहिए और न ही किसी से उनकी तुलना करनी चाहिए। अपने किसी सहपाठी या पड़ोस में किसी को सफलता मिलने पर कई किशोरों में ईर्ष्या की भावना आ जाती है। जबकि उन्हें ईर्ष्या नहीं, प्रतिस्पर्धा रखनी चाहिए। कई बार कुछ किशोर किसी विषय को कठिन मानकर उससे भय खाने लगते हैं कि इसमें पास होंगे कि नहीं जबकि उन्हें समझना चाहिए कि किसी समस्या का हल डर से नहीं अपितु उसका सामना करने से हो सकता है।

इसके अतिरिक्त कुछ किशोर शर्मीले स्वभाव के होते हैं, अधिक संवेदनशील होते हैं। उनका दायरा भी सीमित होता है। वे अपने उसी दायरे के मित्रों को छोड़कर अन्य लोगों से शर्माते हैं। इसके लिए उन्हें स्कूल की पाठ्येतर क्रियाओं में भाग लेना चाहिए जिससे उनकी झिझक दूर हो सके।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
किशोरावस्था में किशोरों की भावनाएँ किस प्रकार प्रभावित होती हैं?
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के शारीरिक और सामाजिक परिवर्तन किशारोवस्था में आते हैं और इन्हीं के कारण उनकी भावनाएँ बहुत तीव्रता से प्रभावित होती हैं।

प्रश्न 2.
किशोरों की ऊर्जा को उचित देशों में कैसे लगाना चाहिए?
उत्तर:
किशोरों को सृजनात्मक कार्यों में लगाने के साथ-साथ उपयोगी कार्यों की तरफ दिशा दिखानी चाहिए और उन्हें बाज़ार से स्वयं फल-सब्जियाँ लेने भेजना, बिजली-पानी का बिल अदा करने आदि कार्यों में लगाकर उनकी ऊर्जा को उचित दिशा में उन्मुख करना चाहिए।

प्रश्न 3.
किशोर अपनी चिंता और दबाव को किस तरह दूर कर सकते हैं?
उत्तर:
किशोर योजनाबद्ध और व्यवस्थित तरीके से पढ़कर, खेलकूद में भाग लेकर, सैर, व्यायाम और संगीत, सामाजिक गतिविधियों आदि को सम्मिलित करके अपनी चिंता और दबाव को दूर कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
‘प्रतिस्पर्धा’ तथा ‘संवेदनशील’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘प्रतिस्पर्धा’-होड़, ‘संवेदनशील’- भावुक।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
किशोरावस्था का भावनात्मक पक्ष।

5. जब एक उपभोक्ता अपने घर पर बैठे इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न वस्तुओं की खरीददारी करता है तो उसे ऑन लाइन खरीददारी कहा जाता है। इस तरह की खरीददारी आज अत्यंत लोकप्रिय हो गयी है। दुकानों, शोरूमों आदि के खुलने व बंद होने का समय होता है किंतु ऑनलाइन खरीददारी का कोई विशेष समय नहीं है।

आप जब चाहें इंटरनेट के माध्यम से खरीददारी कर सकते हैं। आप फर्नीचर, किताबें, सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्र, खिलौने, जूते, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि कुछ भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं। यद्यपि यह बहुत ही सुविधाजनक व लाभदायक है तथापि इसमें कई जोखिम भी समाविष्ट हैं। अत: ऑनलाइन खरीददारी करते समय सावधानी बर्तनी चाहिए। सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि जिस वैबसाइट से आप खरीदारी करने जा रहे हैं वह वास्तविक है अथवा वस्तुओं की कीमतों का तुलनात्मक अध्ययन करके ही खरीददारी करें। बिक्री के नियम एवं शर्तों को पढ़ने के बाद उसका प्रिंट लेना समझदारी होगी। यदि आप क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भुगतान करते हैं तो भुगतान के बाद तुरंत जाँच लें कि आपने जो कीमत चुकाई है वह सही है या नहीं।

यदि आप उससे कोई भी परिवर्तन पाते हैं तो तत्काल संबंधित अधिकारियों से संपर्क स्थापित करके उन्हें सूचित करें। वैसे ऐसी साइटस को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिसमें आर्डर की गई वस्तु की प्राप्ति होने पर नकद भुगतान करने की सुविधा हो एवं खरीदी गई वस्तु नापसंद होने पर वापिस करने का प्रावधान हो।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
ऑनलाइन खरीददारी किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जब कोई उपभोक्ता बिना बाजार गए अपने घर बैठे-बैठे इंटरनेट के माध्यम से तरह-तरह वस्तुओं की खरीदारी करता है तो उसे ऑनलाइन खरीदारी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
आप इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन क्या-क्या खरीदारी कर सकते हो?
उत्तर:
हम इंटरनेट के माध्यम से फर्नीचर, वस्त्र, खिलौने, जूते, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, किताबें, सौंदर्य प्रसाधन, आदि कुछ भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

प्रश्न 3.
क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने के पश्चात् यदि कोई अनियमितता पायी जाती है तो हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:
क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने के पश्चात् यदि कोई अनियमितता पायी जाती है तो तुरंत ही संबंधित अधिकारियों को इसकी सूचना दी जानी चाहिए।

प्रश्न 4.
‘समाविष्ट’ और ‘प्राथमिकता’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समाविष्ट-सम्मिलित होना, प्राथमिकता-वरीयता।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
ऑनलाइन खरीदारी में सजगता।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

6. पंजाब की संस्कृति का भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पंजाब की धरती पर चारों वेदों की रचना हुई। यहीं प्राचीनतम सिंधु घाटी की सभ्यता का जन्म हुआ। यह गुरुओं की पवित्र धरती है। यहाँ गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिंद सिंह जी तक दस गुरुओं ने धार्मिक चेतना तथा लोक-कल्याण के अनेक सराहनीय कार्य किए हैं। गुरु तेग़ बहादुर जी एवं गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों साहिबजादों का बलिदान हमारे लिए प्रेरणादायक है और ऐसा उदाहरण संसार में अन्यत्र कहीं दिखाई नहीं देता।

यहाँ अमृतसर का श्री हरमंदिर साहिब प्रमुख धार्मिक स्थल है। इसके अतिरिक्त आनंदपुर साहिब, कीरतपुर साहिब, मुक्तसर साहिब, फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारे भी प्रसिद्ध हैं। देश के स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के वीरों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। देश के अन्न भंडार के लिए सबसे अधिक अनाज पंजाब ही देता है। पंजाब में लोहड़ी, वैशाखी, होली, दशहरा, दीपावली आदि त्योहारों के अवसरों पर मेलों का आयोजन भी हर्षोल्लास से किया जाता है। आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला, मुक्तसर का माघी मेला, सरहिंद में शहीदी जोड़ मेला, फ़रीदकोट में शेख फरीद आगम पर्व, सरहिंद में रोज़ा शरीफ पर उर्स और छपार मेला जगराओं की रौशनी आदि प्रमुख हैं। पंजाबी संस्कृति के विकास में पंजाबी साहित्य का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।

मुसलमान सूफी संत शेख फरीद, शाह हुसैन, बुल्लेशाह, गुरु नानकदेव जी, शाह मोहम्मद, गुरु अर्जनदेव जी आदि की वाणी में पंजाबी साहित्य के दर्शन होते हैं। इसके बाद दामोदर, पीलू, वारिस शाह, भाई वीर सिंह, कवि पूर्ण सिंह, धनीराम चात्रिक, शिव कुमार बटालवी, अमृता प्रीतम आदि कवियों, जसवंत सिंह, गुरदयाल सिंह और सोहन सिंह शीतल आदि उपन्यासकारों तथा अजमेर सिंह औलख, बलवंत गार्गी तथा गुरशरण सिंह आदि नाटककारों की पंजाबी साहित्य के उत्थान में सराहनीय भूमिका रही है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
चारों वेदों की रचना कहाँ हुई?
उत्तर:
पंजाब की धरती पर चारों वेदों की रचना हुई।

प्रश्न 2.
पंजाब के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल कौन-से हैं?
उत्तर:
अमृतसर, आनंदपुर साहिब, फतेहगढ़ साहिब, कीरतपुर साहिब, मुक्तसर साहिब आदि पंजाब के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं।

प्रश्न 3.
पंजाब के प्रमुख त्योहार कौन-से हैं?
उत्तर:
लोहड़ी, वैशाखी, होली, दशहरा, दीपावली आदि पंजाब के प्रमुख त्यौहार हैं।

प्रश्न 4.
‘सराहनीय’ तथा ‘हर्षोल्लास’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सराहनीय-प्रशंसनीय, ‘हर्षोल्लास’-प्रसन्नता और उत्साह।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
पंजाब की महान् संस्कृति।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar vakya shuddhi वाक्य शुद्धि Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar वाक्य शुद्धि

निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि 1
उत्तर:
PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि 2

शुद्ध वाक्य छाँट कर लिखिए

प्रश्न 1. (क) महादेवी विद्वान् स्त्री थी।
(ख) महादेवी विद्वान् विदुषी थी।
(ग) महादेवी विदुषी स्त्री थी।
(घ) महादेवी विदुषी थी।
उत्तर:
(घ) महादेवी विदुषी थी

प्रश्न 2. (क) सौन्दर्यता सबको मोह लेती है।
(ख) सौन्दर्य सबको मोह लेता है।
(ग) सौन्दर्यत्व सबको मोहता है।
(घ) सौन्दर्यत्व मोहक होता है।
उत्तर:
(ख) सौन्दर्य सबको मोह लेता है

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

प्रश्न 3. (क) वहाँ करोड़ों रुपये संकलित हो गए।
(ख) वहाँ करोड़ों रुपये एकत्र हो गए।
(ग) वहाँ करोड़ों रुपये मिलकर एक साथ हो गए।
(घ) वहाँ करोड़ों रुपये जमा हो गए।
उत्तर:
(घ) वहाँ करोड़ों रुपये जमा हो गए

प्रश्न 4. (क) मेरा रुमाल मेरी जेब ही में है।
(ख) मेरा रुमाल अपनी ही जेब में है।
(ग) मेरा रुमाल जेब ही में है।
(घ) मेरा रुमाल अपनी ही जेब में है।
उत्तर:
(क) मेरा रुमाल मेरी जेब में है

निम्नलिखित वाक्यों के निर्देशानुसार उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
प्रतिदिन दाँत साफ करो। (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
सही

प्रश्न 2.
सर्दियों में लोग गुनगुने गर्म पानी से नहाते हैं। (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत

प्रश्न 3.
धन का प्रयोग समझकर करो। (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत

प्रश्न 4.
सिपाही को देखते ही चोर सात चार ग्यारह हो गया। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 5.
अच्छे विचारों को ग्रहण करो। (हाँ या नहीं लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 6.
आप ग्रह-प्रवेश पर निमंत्रित हैं। (हाँ या नहीं लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
नहीं।

निम्नलिखित में से किसी एक अशुद्ध वाक्य को शुद्ध करके लिखिए-

वर्ष
(क) उसने भूख लगी है।
(ख) दूध में कौन गिर गया है?
उत्तर:
(क) उसे भूख लगी है।
(ख) दूध में क्या गिर गया है?

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

(क) लड़का ने पत्र लिखा।
(ख) बच्चे को काटकर सेब खिलाओ।
उत्तर:
(क) लड़के ने पत्र लिखा।
(ख) सेब काटकर बच्चे को खिलाओ।

(क) मेरी बहन ने मुझे कहानी सुनाया।
(ख) कॉपियाँ ये किसकी हैं?
उत्तर:
(क) मेरी बहन ने मुझे कहानी सुनाई।
(ख) ये कॉपियाँ किसकी हैं?

वर्ष
(क) पेड़ों में मत चढ़ो।
(ख) मेले में बच्ची गुम हो गया।
उत्तर:
(क) पेड़ों पर मत चढ़ो।
(ख) मेले में बच्ची गुम हो गई।

(क) लड़का ने पत्र लिखा।
(ख) बंदर छत में बैठा है।
उत्तर:
(क) लड़के ने पत्र लिखा।
(ख) बंदर छत पर बैठा है।

(क) उसने यह काम करा।
(ख) महात्मा लोग पधारें हैं।
उत्तर:
(क) उसने यह काम किया।
(ख) महात्मा पधारें हैं।

वर्ष
(i) मेरे को मंदिर जाना है।
(ii) मेधावी मेरी अनुज है।
उत्तर:
(i) मुझे मंदिर जाना है।
(ii) मेधावी मेरी अनुजा है।

सार्थक एवं पूर्ण विचार व्यक्त करने वाले शब्द समूह को वाक्य कहा जाता है। प्रत्येक भाषा का मूल ढांचा वाक्यों पर ही आधारित होता है। इसलिए यह अनिवार्य है कि वाक्य रचना में पद-क्रम और अन्वय का विशेष ध्यान रखा जाए। इनके प्रति सावधान न रहने से वाक्य रचना में कई प्रकार की भूलें हो जाती हैं। वाक्य रचना के लिए अभ्यास की परम आवश्यकता होती है।

निर्देश-
(क) हिंदी में समाचार, होश, लोग, दर्शन, प्राण, आँसू, मुक्का, हस्ताक्षर, आदि शब्द सदा पुल्लिग रहते हैं और इनका प्रयोग सदा बहुवचन में होता है।
(ख) जब जातिवाचक पदार्थ, जैसे-जलेबी, मछली, कोयला, पेड़ा आदि, का परिमाण वाचक (किलो, पाव, क्विटल आदि के रूप में) विशेषण के साथ प्रयोग होता है तब बहुवचन का प्रयोग नहीं होता। किंतु जब संख्या का अलग उल्लेख करना हो तो बहुवचन में प्रयोग हो सकता है।
(ग) कोई, प्रत्येक और हर एक के साथ एक वचन तथा सब कोई के साथ बहुवचन क्रिया आती है।
(घ) मुहावरों का रूप बदलना नहीं चाहिए।
(ङ) भाववाचक संज्ञाओं का बहुवचन में प्रयोग नहीं होता। आगे कुछ ऐसे वाक्य दिए जा रहे हैं जिनमें सामान्य अशुद्धियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

1. संज्ञा संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. महात्मा पधार रहे हैं।
2. लड़के ने पत्र लिखा।
3. आपकी पत्नी का क्या नाम है?
4. माली पौधों को सींचता है।
5. वह रविवार को तुम्हारे घर आएगा।
6. उसने सभा में रोष प्रकट किया।
7. मैं अपने दादा के घर जाऊँगी।
8. वह माता-पिता की सेवा में लगा हुआ है।
9. राम ने मोहन की मत्यु पर दुःख प्रकट किया।
10. बढ़ई ने दरवाज़े का निर्माण किया।
11. ये विपत्तियां स्थायी नहीं हैं।

शद्ध वाक्य
1. महात्मा लोग पधार रहे हैं।
2. लड़का ने पत्र लिखा।
3. आपकी नारी का क्या नाम है?
4. माली जल से पौधों को सींचता है।
5. वह रविवार के दिन तुम्हारे घर आएगा।
6. उसने सभा में क्रोध प्रकट किया।
7. मैं अपने दादे के घर जाऊँगी।
8. वह माता-पिता की परिचर्या में लगा हुआ है।
9. राम ने मोहन की मृत्यु पर खेद प्रकट किया।
10. बढ़ई ने दरवाज़े की रचना की।
11. ये विपत्तियां टिकाऊ नहीं हैं।

2. परसर्ग संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध वाक्य
1. रानी युद्ध में वीरता के साथ लड़ी।
2. मैं पुस्तक को पढ़ता हूँ।
3. पूनम यातनाओं को सहती है।
4. सब्जी को खूब पकी हुई चाहिए।
5. छाते को कहाँ से उड़ाया है?
6. पेड़ों में मत चढ़ो।
7. मुकेश ने पुस्तक पढ़ता है।
8. अरविंद स्कूल को जा रहा है।
9. हम पढ़ने को स्कूल जाते हैं।
10. उसने भूख लगी है।
11. मैं मेरी दीदी के पास जा रहा हूँ।
12. पिंकी से हमें उसकी माता जी के स्वर्गवास की होने की खबर मिली।

शुद्ध वाक्य
1. रानी युद्ध में वीरता से लडी।
2. मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।
3. पूनम यातनाएं सहती है।
4. सब्जी खूब पकी होनी चाहिए।
5. छाता कहाँ से उड़ाया है?
6. पेड़ों पर मत चढ़ो।
7. मुकेश पुस्तक पढ़ता है।
8. अरविंद स्कूल जा रहा है।
9. हम पढ़ने के लिए स्कूल जाते हैं।
10. उसे भूख लगी है।
11. मैं अपनी दीदी के पास जा रहा हूँ।
12. पिंकी के द्वारा हमें उसकी माता जी के स्वर्गवास होने खबर मिली।

3. लिंग संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. सारा देश उसके लिए थाती था।
2. उन्होंने मुझे मुंबई घुमाई।
3. यह ट्रंक बहुत भारा है।
4. महादेवी विद्वान् स्त्री थी।
5. मेरा निकर मैला है।
6. रुचि मेरी अनुज है।
7. वह अध्यापिका विद्वान है।
8. कवि महादेवी वर्मा को सब जानते हैं।
9. चांदी महंगा हो गया है।
10. दूध गिर गई थी।
11. रेखा अच्छा गाता है।
12. आद्या गा रहा था।
13. चाची जी आया है।
14. पापा जी ज़ोर से चीखी।

शुद्ध वाक्य
1. सारा देश उसके लिए एक थाती था।
2. उसने मुझे मुंबई में घुमाया।
3. यह ट्रंक बहुत भारी है
4. महादेवी विदुषी थी।
5. मेरी नेकर मैली है।
6. रुचि मेरी अनुजा है।
7. वह अध्यापिका विदूषी है।
8. कवयित्री महादेवी वर्मा को सब जानते हैं।
9. चांदी महंगी हो गई है।
10. दूध गिर गया था।
11. रेखा अच्छा गाती है।
12. आद्या गा रही था।
13. चाची जी आई हैं।
14. पापा जी ज़ोर से चीखे।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

4. वचन संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. दस आदमी के लिए चाय बनी है।
2. हम आपकी कृपाओं को कभी नहीं भूल सकते।
3. सैनिक ने युद्ध में प्राण की बाजी लगा दी।
4. अनुज ने हस्ताक्षर कर दिया है।
5. नीरजा के बाल बहुत लंबा है।
6. युद्ध में अनेकों सिपाही मारे गए।
7. सतीश और नीलम जा रही है।
8. वे सब आप की कृपाएँ हैं।
9. मेरा तो प्राण निकल गया।
10. उसे दो रोटी दे दो।

शुद्ध वाक्य
1. दस आदमियों के लिए चाय बनी है।
2. हम आपकी कृपा को कभी नहीं भूल सकते।
3. सैनिक ने युद्ध में प्राणों की बाजी लगा दी।
4. अनुज ने हस्ताक्षर कर दिये हैं।
5. नीरजा के बाल बहुत लंबे हैं।
6. युद्ध में अनेक सिपाही मारे गए।
7. सतीश और नीलम जा रहे हैं।
8. यह आप की कृपा है।
9. मेरे तो प्राण निकल गए।
10. उसे दो रोटियां दे दो।

5. सर्वनाम संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. इस संबंध में मेरा मत मैं पहले ही प्रकट कर चुका हूँ।
2. मेरा ध्यान मेरे मित्र में था।
3. उसे अपनी विद्वत्ता का अभिमान था, रमेश ने जोरदार शब्दों में ग़लत बात का खंडन किया।
4. उसने दृष्टि उसके चेहरे पर गड़ दी और शीला से कहा।
5. प्रशान्त ने भारती से कहा, “हम तुरन्त आ रहे हैं।”
6. मेरा रूमाल अपनी जेव में है।
7. मैं लिप्स्टिक को उनकी चीज़ समझकर समझकर उनके लिए छोड़ देता हूँ।
8. बहुत से झमेले हैं, जिसे निपटाना है।
9. डाकू मर भी जाए तो उनके लिए कौन रोता है।
10. नेता जी के जन्मदिवस पर भारत की स्वतंत्रता के लिए दिए गए उसके योगदान को स्मरण किया जाता है।
11. जब तक इन हाथों में ताकत है वह मेवाड़ मेवाड़ की रक्षा करेंगे।
12. मैं मेरे घर जा रहा हूं।
13. हम दूध पिऊँगा।
14. आप कहाँ गया था?
15. वे वहाँ खड़ा था।

शुद्ध वाक्य
1. इस संबंध में अपना मत मैं पहले ही प्रकट कर चुका हूँ।
2. मेरा ध्यान अपने मित्र की ओर था।
3. रमेश को अपनी विद्वत्ता का अभिमान था, इसलिए उसने जोरदार शब्दों में ग़लत बात का खंडन किया।
4. उसने दृष्टि शीला के चेहरे पर गड़ा दी और उसे कहा।
5. प्रशान्त ने भारती से कहा, “मैं तुरन्त आ रहा हूँ।”
6. मेरा रूमाल मेरी जेब में है।
7. मैं लिप्स्टिक को स्त्रियों की चीज़ स्त्रियों के लिए छोड़ देता हूँ।
8. बहुत-से झमेले हैं, जिन्हें निपटाना है।
9. डाकू मर भी जाए तो उसके लिए कौन रोता है।
10. नेता जी के जन्मदिवस पर, भारत की स्वतंत्रता के लिए उनके योगदान को स्मरण किया जाता है।
11. जब तक इन हाथों में ताकत है, ये मेवाड़ की रक्षा करेंगे।
12. मैं अपने घर जा रहा हूँ।
13. मैं दूध पिऊँगा।
14. आप कहाँ गए थे?
15. वे वहाँ खड़े थे?

6. विशेषण संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. प्रेमचंद बड़े अच्छे कहानीकार थे।
2. रागिनी सुंदरतम् नाचती है।
3. मैं मधुरतम गाती हूँ।
4. नरेश ने झूठ बात कही।
5. गंगा को भारी प्यास लगी थी।
6. प्रत्येक व्यक्ति को चार-चार रोटी दे दो।
7. डाकुओं ने खूखार अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग किया।
8. ये लड़के बहुत बुरा है।
9. तुम्हारे दायां हाथ में क्या है?
10. युद्ध में खूखार अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग होता है।
11. कर्ण महान दायक थे।
12. नेता जी की मृत्यु से देश को अपूर्व क्षति हुई।

शुद्ध वाक्य
1. प्रेमचंद बहुत अच्छे कहानीकार थे।
2. रागिनी सुंदर नाचती है।
3. मैं मधुर गाती हूँ।
4. नरेश ने झूठी बात कही।
5. गंगा को बहुत प्यास लगी थी।
6. प्रत्येक व्यक्ति को चार रोटी दे दो।
7. डाकुओं ने विनाशकारी अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग किया।
8. ये लड़के बहुत बुरे हैं।
9. तुम्हारे दायें हाथ में क्या है?
10. युद्ध में विनाशकारी अस्त्रों-शस्त्रों का का प्रयोग होता है।
11. कर्ण महान् दानी थे।
12. नेता जी की मृत्यु से देश को महान् क्षति हुई।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

7. क्रिया संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. वह चिल्ला उठा।
2. देश की अर्थ व्यवस्था उत्पादन पर निर्भर करती है।
3. वहाँ गहन अंधकार घिरा हुआ था।
4. बुरी भावना का जन्म होते ही उसे दबा दो।
5. उसका मूल्य आप नहीं नाप सकते।
6. उसको अभिनन्दन-पत्र प्रदान किया।
7. धन का प्रयोग समझकर करो।
8. वह कल तुम्हारे घर आऊँगा।
9. सभी को हरी सब्जियाँ खाना चाहिए।
10. मास्टर जी ने अच्छा भाषण किया।
11. मेरी माँ ने मुझे एक कहानी सुनाया।
12. वह औरत विलाप करके रोने लगी।

शुद्ध वाक्य
1. वह चिल्ला पड़ा।
2. देश की अर्थ-व्यवस्था उत्पादन पर निर्भर है।
3. वहाँ गहन अंधकार छाया हुआ था।
4. बुरी भावना को जन्म लेते ही दबा दो।
5. उसका मूल्य आप नहीं आंक सकते।
6. उसको अभिनंदन-पत्र भेंट किया।
7. धन का प्रयोग समझ-बूझकर करो।
8. वह कल तुम्हारे घर आएगा।
9. सभी को हरी सब्जियाँ खानी चाहिए।
10. मास्टर जी ने अच्छा भाषण दिया।
11. मेरी माँ ने मुझे एक कहानी सुनाई।
12. वह औरत विलाप करने लगी।

8. क्रिया विशेषण संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध वाक्य
1. मैं तो आपके आदेशों के अनुकूल चल रहा चल रहा हूँ।
2. रवींद्र नाथ टैगोर ने नोबेल पुरस्कार विजय किया।
3. प्रत्येक काम अपने अपने समय पर करो।
4. उसकी गर्दन शर्म से नीचे थी।
5. यह संभव नहीं हो सकता।
6. वहाँ करोड़ों रुपये संकलित हो गये।

शुद्ध वाक्य
1. मैं तो आपके आदेशों के अनुसार हूँ।
2. रवींद्रनाथ टैगोर ने नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया।
3. प्रत्येक काम अपने समय पर करो।
4. उसकी गर्दन शर्म से नीची थी।
5. यह संभव नहीं है।
6. वहाँ करोड़ों रुपये जमा हो गए।

9. अव्यय संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. यदि वह मोटी न होती तब और भी तेज़ दौड़ती।
2. वहाँ अपार जनसमूह एकत्रित था।
3. जाकर कोई रोटी खा लो।
4. कल हम तुम्हारे सब कुछ थे, और आज कोई भी नहीं।
5. तुम्हारी बात का कोई अर्थ नहीं निकलता।

शुद्ध वाक्य
1. यदि वह मोटी न होती तो और भी तेज़ दौड़ती।
2. वहाँ अपार जनसमूह एकत्र था।
3. जाकर थोड़ी-सी रोटी खा लो।
4. कल हम तुम्हारे सब कुछ थे, आज कुछ भी नहीं।
5. तुम्हारी बात का कुछ भी अर्थ नहीं निकलता।

10. बेमेल अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. वह प्रति पग-पग पर ठोकरें खाता है।
2. मोरनी को खुश करने के लिए मादा मोर नाचता है।
3. बात तो यह है कि तुम बहुत भोले हो।
4. प्रति रोज़ दाँत साफ़ करो।।
5. शरीफ पुरुष की सभी इज्जत करते हैं।
6. बॉल को फर्श पर लुढ़का दो।
7. मैं दसवीं कक्षा का स्टूडेंट हूँ।
8. समय को व्यर्थ वेस्ट न करो।
9. मेरा ब्रदर आया है।

शुद्ध वाक्य
1. वह पग-पग पर ठोकरें खाता है।
2. मोरनी को खुश करने के लिए मोर नाचता है।
3. बात यह है कि तुम बहुत भोले हो।
4. प्रतिदिन दाँत साफ करो।
5. शरीफ आदमी की सभी इज्जत करते हैं।
6. गेंद को फर्श पर लुढ़का दो।
7. मैं दसवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ।
8. समय को व्यर्थ न गंवाओ।
9. मेरा भाई आया है।

11. वाक्यगत सामान्य अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. वह चित्र मैं जब दसवीं का छात्र था तब का है।
2. उसने अनेकों ग्रंथ लिखे।
3. इस पुस्तक में साधारण लेखकों से जो हैं, उनका इस पुस्तक में अच्छा विवेचन है।
4. दादा की मृत्यु से बड़ा दुःख हुआ।
5. मेरी आयु बीस की है।
6. इस परिश्रम के बदले अपने कार्य से मनुष्य हैं, उनका इस पुस्तक में अच्छा विवेचन है।

शुद्ध वाक्य
1. यह चित्र तब का है, जब मैं दसवीं का छात्र था।
2. उसने अनेक ग्रंथ लिखे।
3. साधारण लेखकों से जो ग़लतियाँ होती गल्तियाँ होती है, उनका अच्छा विवेचन है।
4. दादा की मृत्यु से बड़ा शोक हुआ।
5. मेरी अवस्था बीस वर्ष की है।
6. अपने कार्य से मनुष्य को जो संतोष होता है, वही उसके परिश्रम का बदला है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

12. पुनरुक्ति संबंधी अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. मेरे पिता सज्जन पुरुष हैं।
2. बेफिजूल बोल रहे हो।
3. उन लोगों में कुछ लोग धर्म के प्रति बड़े कट्टर होते हैं।।
4. सर्दियों में प्राय: लोग गुनगुने गर्म पानी से नहाते हैं।
5. आप में जिन आवश्यक गुणों की आवश्यकता है।
6. परिश्रम से अपने आगामी भविष्य को उज्ज्वल बनाया जा सकता है।
7. कृपया यहाँ पधारने की कृपा करें।
8. यह पठनीय कविता पढ़ने योग्य है।
9. यह उपवन केवल मात्र आपके लिए नहीं है।
10. शिमला में अनेक दर्शनीय स्थल देखने योग्य हैं।
11. वह सादर सहित सिर झुका रहा है।
12. वह निरंतर लगातार गाता रहता है।
13. यह गीत सुनने योग्य श्रव्य है।
14. राधा सप्रेम सहित नमस्ते कर रही है।

शुद्ध वाक्य
1. मेरे पिता सज्जन हैं।
2. फिजूल बोल रहे हैं।
3. उनमें से कुछ लोग धर्म के प्रति बड़े कट्टर होते हैं।
4. सर्दियों में प्रायः लोग गुनगुने पानी से नहाते हैं।
5. आप में जिन गुणों की आवश्यकता है।
6. परिश्रम से अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाया जा सकता है।
7. कृपया यहाँ पधारें।
8. यह कविता पढ़ने योग्य है।
9. यह उपवन केवल आपके लिए नहीं है।
10. शिमला में अनेक दर्शनीय स्थल हैं।
11. वह सादर सिर झुका रहा है।
12. वह निरंतर गाता रहता है।
13. यह गीत सुनने योग्य है।
14. राधा सप्रेम नमस्ते कर रही है।

13. सामान्य अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. लड़के पड़ रहे हैं।
2. मैं माता का दर्शन करने आया हूँ।
3. अत्यधिक किया कार्य भी थका देता है।
4. उत्तर दिशा जाने पर तुम्हें मेरा मकान मिल जाएगा।
5. आप ग्रह प्रवेश पर निमंत्रित हैं।
6. आपकी पेन बहुत तेज़ दौड़ती है।
7. स्लेट में लिखो।
8. तुम्हारी बात समझ नहीं आती।
9. अच्छे विचारों का ग्रहण करो।
10. सौंदर्य सबको मोह लेती है।
11. एडीसन प्रसिद्ध विज्ञानी था।
12. तुम्हारी चातुर्यता हर बार कामयाब न होगी।

शुद्ध वाक्य
1. लड़के पढ़ रहे हैं।
2. मैं माता के दर्शन करने आया हूँ।
3. अत्यधिक कार्य भी थका देता है।
4. उत्तर दिशा में जाने पर तुम्हें मेरा मकान मिल जाएगा।
5. आप गृह-प्रवेश पर आमंत्रित हैं।
6. आपका पेन तेज़ी से लिखता है।
7. स्लेट पर लिखो।
8. तुम्हारी बात समझ में नहीं आती।
9. अच्छे विचारों को ग्रहण करो।
10. सौंदर्य सबको मोह लेता है।
11. एडीसन प्रसिद्ध वैज्ञानिक था।
12. तुम्हारा चातुर्य हर बार कामयाब न होगा।

14. व्यंजन की अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. सबको समान अंस देना चाहिए।
2. उसका अंत्य निकट था।
3. कमल अंबु में उत्पन्न होता है।
4. मैं किसी अन्न व्यक्ति से बात नहीं करता।
5. अनु-अनु में भगवान् विराजमान है।

शुद्ध वाक्य
1. सबको समान अंश देना चाहिए।
2. उसका अंत निकट था।
3. कमल अंबु में खिलता है।
4. मैं किसी अन्य व्यक्ति से बात नहीं करता।
5. कण-कण में भगवान् विराजमान है।

15. मुहावरों के प्रयोग में अशुद्धियां

अशुद्ध वाक्य
1. यह काम चार-दो आदमियों का नहीं।
2. मुझे से पाँच-तीन न करना।
3. सिपाही को देखते ही चोर सात चार ग्यारह हो गया।।
4. कैसा निकम्मा नौकर पाले पड़ा है।
5. इकलौता पुत्र आँख का तारा होता है।

शुद्ध वाक्य
1. यह काम दो-चार आदमियों का नहीं।
2. मुझे से तीन-पाँच न करना।
3. सिपाही को देखते ही चोर नौ दो ग्यारह हो गया।
4. कैसा निकम्मा नौकर पल्ले पड़ा है।
5. इकलौता पुत्र आँखों का तारा होता है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran वाक्य शुद्धि

16. पदक्रम संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध वाक्य
1. पुस्तकें ये किसकी हैं?
2. कुछ मालाएँ फूलों की ले आओ।
3. अशोक वर्मा (डॉ०) बहुत ही प्रसिद्ध है।
4. वह काम पर गया दूध पीकर।
5. अनुजा ने गाना गाया बहुत ही मधुर था।
6. मैं नहीं नहाने जाऊँगा।
7. डाकिया लाया है आज की डाक।
8. सुमित्रा पढ़ रही हिंदी की पुस्तक।
9. रघु नहीं सुनता बात किसी की भी।
10. बंदर छत से कूदा था नीचे।
11. गर्म काली गाय का दूध पिया करो।
12. खरगोश को काटकर गाजर खिलाओ।
13. धोकर फल-सब्जियां खानी चाहिए।
14. भौंकता कुत्ता इधर से नहीं गुजरा।

शुद्ध वाक्य
1. ये पुस्तकें किसकी हैं?
2. फूलों की कुछ मालाएँ ले आओ।
3. डॉ० अशोक वर्मा बहुत ही प्रसिद्ध है।
4. वह दूध पीकर काम पर गया।
5. अनुजा ने बहुत ही मधुर गाना गाया।
6. मैं नहाने नहीं जाऊँगा।
7. डाकिया आज की डाक लाया है।
8. सुमित्रा हिंदी की पुस्तक पढ़ रही है।
9. रघु किसी की भी बात नहीं सुनता।
10. बंदर छत से नीचे कूदा था।
11. काली गाय का गर्म दूध पिया करो।
12. गाजर काटकर खरगोश को खिलाओ।
13. फल-सब्जियां धोकर खाली चाहिए।
14. कुत्ता भौंकता हुआ इधर से नहीं गुजरा।

17. वाच्य संबंधी अशुद्धियाँ

अशुद्ध वाक्य
1. रेशमा द्वारा निबंध लिखा।
2. यह दोहा कबीर जी की पुस्तक से लिया है।
3. सेना द्वारा आतंकी को पकड़ा।
4. मैंने पतंग उड़ाया।

शुद्ध वाक्य
1. रेशमा द्वारा निबंध लिखा गया।
2. यह दोहा कबीर जी की पुस्तक से लिया गया है।
3. सेना द्वारा आतंकी को पकड़ा गया।
4. मेरे द्वारा पतंग उड़ाई गई।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar anekarthi shabd अनेकार्थक शब्द Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar अनेकार्थक शब्द

निम्नलिखित शब्दों के अनेकार्थी शब्द लिखिए

अंक – ……………..
अंबर – ……………….
आम – ……………..
गुरु – ……………..
घट – ……………..
निशान – ………………
लाल – ……………..
मत – ………………
भेंट – ………………
हल – ………………
उत्तर:
शब्द – अनेकार्थी शब्द
अंक – गोद, चिह्न, संख्या, भाग्य, नाटक का अंक, अध्याय।
अंबर – वस्त्र, आकाश, कपास, एक सुगंधित पदार्थ।
आम – मामूली, सर्वसाधारण, आम का फल।
गुरु – बड़ा, आचार्य, भारी, बृहस्पति, दो मात्राओं का अक्षर।
घट – घड़ा, शरीर, हृदय।
निशान – चिह्न, ध्वज, तेज करना, यादगार, लक्ष्य, पता-ठिकाना, परिचायक लक्षण।
लाल – रंग, बेटा, मूल्यवान पत्थर।
मत – नहीं, सम्मत, सम्मानित, सोचा-विचारा, सम्मति, वोट, मंशा, सिद्धान्त।
भेंट – मुलाकात, मिलन, नजर।।
हल – खेत जोतने का यंत्र, समाधान।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

निम्नलिखित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
अंबर के अनेकार्थक शब्द हैं
(क) गोद-वस्त्र
(ख) आकाश-वस्त्र
(ग) कपास-केश
(घ) भाग्य-भार।
उत्तर:
(ख) आकाश-वस्त्र

प्रश्न 2.
अहि के अनेकार्थक शब्द हैं
(क) साँप-बकरा
(ख) साँप-भ्रम
(ग) साँप-सूर्य
(घ) साँप-शिव।
उत्तर:
(ग) साँप-सूर्य

प्रश्न 3.
कनक के अनेकार्थक शब्द हैं
(क) सोना-चाँदी
(ख) सोना-गेहूँ
(ग) सोना-जागना
(घ) सोना-खोना।
उत्तर:
(ख) सोना-गेहूँ

प्रश्न 4.
गो के अनेकार्थक शब्द हैं
(क) जाना-आना
(ख) गाय-सूर्य
(ग) गाय-भूमि
(घ) खग-किरण।
उत्तर:
(ग) गाय-भूमि

प्रश्न 5.
नाग के अनेकार्थ हैं-साँप-हाथी (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 6.
कुल के अनेकार्थ हैं-वंश-किनारा (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 7.
सारंग के अनेकार्थ हैं-साँप-हाथी (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 8.
बाल के अनेकार्थ हैं-बालक-केश (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
सही

प्रश्न 9.
श्रुति के अनेकार्थ हैं-नाक-कान (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

प्रश्न 10.
घट के अनेकार्थ हैं-शरीर-घड़ा (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
सही।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

वर्ष
निम्नलिखित में से किसी एक शब्द के अनेकार्थक शब्द (कम-से-कम दो) लिखिए
फल, बोझ।
उत्तर:
फल = परिणाम, लाभ, प्रयोजन, पेड़ का फल।
बोझ = भार, भारी वस्तु, कार्य भार।

कर, बाल।
उत्तर:
कर = टैक्स, हाथ, किरण, सँड
बाल = बालक, केश, अनाज (का ऊपरी हिस्सा)।

नाक, हवा।
उत्तर:
नाक = साँस लेने एवं सूंघने की इंद्री, मगर, घड़ियाल, गौरव की बात।
हवा = वायु, साँस, अफ़वाह।

वर्ष
अंक, फल।
उत्तर:
अंक = गोद, भाग्य, संख्या, अध्याय
फल = परिणाम, लाभ, पेड़ का फल, प्रयोजन।

कनक, उत्तर।
उत्तर:
कनक = धतूरा, सोना, गेहूँ, पलाश
उत्तर = परिणाम, दिशा, जवाब देना, प्रतिकार।

चक्र, काल।
उत्तर:
चक्र = पहिया सैनिक व्यूह, चक्कर, कुम्हार का चक्र, फेरा
काल = समय, यम, अंत, मौसम, क्रियाओं को सूचित करने वाला।

वर्ष
हवा, धूप।
उत्तर;
हवा = पवन, वायु
धूप = सूर्य की धूप, पूजा के लिए प्रयोग की जाने वाली धूप।

प्रश्न 1.
अनेकार्थक शब्द से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भाषा में अनेक ऐसे शब्द होते हैं जिनके अर्थ प्रसंग के अनुसार अलग-अलग होते हैं। ऐसे शब्दों को अनेकार्थक कहते हैं।

प्रश्न 2.
अनेकार्थक शब्दों के पांच उदाहरण वाक्य बना कर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. अंक-

  • संख्या-आप के पांच अंक काट दिए गए थे।
  • चिह्न-उसने दो का अंक मिटा दिया है।
  • नाटक का अंक-‘वीर राजा’ नाटक के तीन ही अंक थे।
  • गोद-बच्चा माँ के अंक में सो रहा था।
  • भाग्य-प्रत्येक बच्चा अपना अंक लेकर ही धरती पर आता है।
  • अध्याय-उत्तर के लिए आप पुस्तक का चौथा अंक देखिए।

2. नीलकंठ-मोर-नाचते हुए नीलकंठ ने अपने पंख फैला रखे थे।
शिवजी-दुःख की इस घड़ी में भगवान् नीलकंठ आप पर दया करें।

3. कुशल-चतुर-आप का भाई आप से अधिक कुशल निकला।
खैरियत-हम सब आप के कुशल मंगल की कामना करते हैं।

4. कृष्ण-काला-अब तो कृष्ण पक्ष आरंभ हो चुका है।
भगवान् कृष्ण-श्री कृष्ण द्वापर युग में अवतरित हुए थे।
वेद व्यास-महामुनि कृष्ण द्वैपायन ने ‘महाभारत’ की रचना की थी।

5. मित्र-प्रिय-आप की मित्र मंडली कहां से पधारी है?
दोस्त-अभी रास्ते में मुझे मेरा मित्र मिला था।
सूर्य-धरती पर जीवन का आधार तो मित्र ही है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

अनेकार्थक शब्दों के उदाहरण

अंक – भाग्य, अध्याय, गोद, चिहन, नाटक का अंक, संख्या।
अंग – भाग, शरीर का कोई हिस्सा।
अर्क – सूर्य, आक का पौधा, रस, ज्योति, दवाई के रूप में पिया जाने वाला औषधियों का काढ़ा।
अनंत – आकाश, विष्णु, असीम, अंतहीन, ब्रह्म।
अर्थ – कारण, धन, ऐश्वर्य, इच्छा, प्रयोजन, मतलब, लिए।
अज – बकरा, ब्रह्मा, शिव, जीव, कामदेव, मेष राशि।
उत्तर – जवाब, उत्तर दिशा, बाद का, प्रतिकार।
अहि – साँप, कष्ट, सूर्य।
अधि – धरोहर, विपत्ति, अभिशाप, मानसिक पीड़ा।
आम – आम का फल, सर्वसाधारण, मामूली।
अंबर – आकाश, वस्त्र, कपास, एक सुगंधित पदार्थ।
अरुण – लाल, सूर्य, सूर्य का सारथी, सिंदूर, वृक्ष, संध्या, राग।
अच्युत – स्थिर, कृष्ण, विष्णु, अविनाशी।
अमृत – जल, पारा, दूध, अन्न।
अलि – सखा, पंक्ति, भौंरा। ‘आराम-बाग, विश्राम, शांति।
आलि – सखी, पंक्ति।
अतिथि–साधु, मेहमान, यात्री, राम का पोता या कुश का बेटा, अपरिचित व्यक्ति।
आपत्ति – मुसीबत, एतराज। अयन – घर, मार्ग, स्थान, आधा, वर्ष।
ईश्वर – प्रभु, स्वामी, धनी, समर्थ।
उत्तर – जवाब, उत्तर दिशा, प्रतिकार, बाद का।
कनक – धतूरा, सोना, गेहूँ, खजूर, छंद का एक भेद, पलाश।
कच – बाल, बादल, झुंड, बृहस्पति का बेटा।
कर्ता – स्वामी, ईश्वर, एक कारक, करने वाला।
कर – टैक्स, हाथ, किरण, सँड।
कर्ण – कान, समकोण के सामने की भुजा, कुंती पुत्र, पतवार।
कल – आगामी/बीता हुआ दिन, चैन, मशीन।
कोटि – श्रेणी, करोड़, धनुष का सिर।
कुशल – चतुर, खैरियत।
काल – समय, अंत, क्रियाओं को सूचित करने वाला शब्द (जैसे भूतकाल, वर्तमानकाल) मौसम, (जैसे शरद काल)।
कृष्ण – काला, वेदव्यास, भगवान् कृष्ण।
काम – इच्छा, कार्य, कामदेव।
कुल – वंश, सभी, सारा।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

खर – गधा, तिनका, दुष्ट, तीक्ष्ण।
खग – पक्षी, तारा, बाण, ग्रह।
गुरु – बड़ा, आचार्य, बृहस्पति, दो मात्राओं का अक्षर।
गति – चाल, हालत, शिव के सैनिक।
गिरा – गिरना, वाणी, सरस्वति।
गो – भूमि, गाय, किरण, वाणी, इंद्रिय, नेत्र, स्वर्ण, आकाश, जल, शब्द, वज्र।
ग्रहण – अपनाना, पकड़ लेना, सूर्य-चंद्र ग्रहण।।
घन – घना, बादल, बहुत बड़ा हथौड़ा, किसी अंक को अंक से तीन बार गुणा करने पर प्राप्त होने वाला गुणनफल (जैसे चार का घन = 4 × 4 × 4 = 64 होगा)
घट – घड़ा, शरीर, हृदय।
घोड़ा – अश्व (पालतु पशु जिस पर सवारी की जाती है), घोड़े के आकार का बंदूक आदि का खटका (जैसे घोड़ा दबाना), शतरंज का मोहरा।
चरण – पैर, आचार, छंद का एक भाग।
चंदा – चाँद, सार्वजानिक कार्य हेतु दी गई आर्थिक सहायता, सदस्यता का शुल्क (जैसे-क्या आपने इस संस्था को वार्षिक चंदा दे दिया है।)
चपला – बिजली, लक्ष्मी।
चक्र – पहिया, कुम्हार का चाक, चक्की, सैनिक व्यूह (जैसे चक्रव्यूह) पानी का भँवर, हवा का बवंडर, चक्कर (फेरा), सुदर्शन चक्र, सैन्य पुरस्कार (वीर चक्र आदि), फेरा।
छज – पद, जल, ढंग, स्वेच्छा चार, हाथ का एक गहना।
जड़ – मूर्ख, मल, अचेतन।
जलज – कमल, चंद्रमा, शंख, मोती।
जीवन – जल, प्राण, वायु।
जलधर – बादल, समुद्र।
जेठ – बड़ा, जेठ का महीना, स्त्री के पति का बड़ा भाई।
तीर – किनारा, बाण।
तम – अंधेरा, पाप, तमाल का पेड़, तमोगुण।
ताल – तालाब, ताड़ का पेड़, गाने का परिणाम, ताली का शब्द।
तात – पिता, मित्र, भाई, पुत्र, शिष्य।
तत्व – मूल, यथार्थ, ब्रह्म, पंचभूत।
तमचर – राक्षस, उल्लू।
तीर्थ – यज्ञ, शास्त्र, उपाय, अवतार, मंत्र।
दंड – लाठी, दमन, सजा, यमराज का अस्त्र, साठ पल का समय।
दान – धर्म, त्याग, पुण्य, शुद्धि, हाथी का मद।
द्विज – पक्षी, ब्राह्मण, वैश्य, चांद।
दक्ष – चतुर, प्रजापति, ब्रह्मा का पुत्र।
दर्शन – भेंट, देखना, शास्त्र।
धन – गणित में जोड़ का निशान, पूंजी, द्रव्य।
धूप – पूजा के लिए प्रयोग की जाने वाली धूप, सूर्य की धूप।
ध्रुव – सत्य, एक नक्षत्र, स्थिर, नित्य, विष्णु का भय, बालक।
नाक – साँस लेने एवं सूंघने की इंद्रिय, मगर, घड़ियाल, गौरव की बात (जैसे नाक रखना)।
नगः – पहाड़, रत्न विशेष।
नाग – साँप, हाथी।
नव – नया, नौ की संख्या।
निशाचर – चोट, राक्षस, प्रेत, उल्लू।
नीलकंठ – शिव, मोर।
नंदन – बेटा, इंद्र की वाटिका, सुख प्रदान करने वाला।
नल – बॉस, नेजा, एक राक्षस, नाली।
पतंग – सूर्य, कनकौआ, पक्षी, विशेष प्रकार का कीड़ा, गुड्डी।
पय – दूध, पानी, पीने का द्रव।
पत्र – पत्ता, चिट्ठी।
पानी – जल, चमक, इज्ज़त।
पट – कपड़ा, परदा, द्वार।
पूर्व – पहला, एक दिशा।
पुर- नगर, शरीर, राक्षस का नाम।
फल – परिणाम, लाभ, प्रयोजन, पेड़ का फल।
बलि – बलिदान, भेंट, राजा बलि।
बली – पिशाच, बीता हुआ समय।
बल – शक्ति, सेना, भरोसा, बलराम, शिकन।
बाल – बालक, केश, अनाज (का ऊपरी हिस्सा)
बोझ – भार, भारी वस्तु, कार्यभार।
भूत – पिशाच, बीता हुआ समय।
भुवन – घर, संसार, लोक।
भव – संसार, जन्म।
भीष्म – भयंकर, भीष्म पितामह।
भाग – हिस्सा, दौड़, भाग्य।
मधु – शहद, शराब, वसंत ऋतु।
मंगल – सौर जगत का एक ग्रह, मंगलवार, शुभ।
मान – अभिमान, इज्ज़त, नाप तोल।
मकर – मगर नामक जलजन्तु, घड़ियाल, मछली, बारह राशियों में से एक राशि।
मूक – गूंगा, विवश, चुप।
यम – वायु, मृत्यु का देवता।
योग – मेल, समाधि, साधना।
रंग – आनंद, शोभा।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अनेकार्थक शब्द

राग – प्रेम, गीत, मोह।
रजत – चांदी, सफेद।
रचना – सृष्टि, कृति, बनावट।
राशि – भंडार, मेष और तुला आदि राशियां।
लाल – बेटा, रंग, मूल्यवान पत्थर।
लघु – छोटा, नीच, अक्षर, ह्रस्व।
लय – स्वर, ताल।
लक्ष्य – निशाना, उद्देश्य।
मुद्रा – रुपया, मोहर, अंगूठी, आकृति, छाप।
मित्र – दोस्त, सूर्य, प्रिय।
वंश – कुल, बाँस।
व्रत – संकल्प, उपवास, नियम।
विधि – भाग्य, ब्रह्मा, रीति, नियम।
वर्ण – रंग, जाति, अक्षर।
वार – आघात, प्रहार, सप्ताह का प्रत्येक दिन।
वत्स – बेटा, बछड़ा।
विहंगम – पक्षी, बादल, बाण।
श्री – शोभा, लक्ष्मी, धन वैभव।
स्वर – तालाब, सिर, बाण।
सारंग – मोर, साँप, बादल, हाथी, शंख, हिरण, कोयल, भंवरा, रात्रि।
सर – तालाब, बान, सिर।
सुधा – अमृत, पानी।
सैंधव – घोड़ा, नमक, सिंधु का विशेषण।
सूत – धागा, सारथी।
सरस्वती – विद्या की देवी, एक नदी का नाम, वाणी।
संज्ञा – नाम, बुद्धि, सूर्य की पत्नी।
सूर – सूरदास, अंधा, सूर्य।
सरभि – गाय, वसंत ऋतु।
शिव – मंगल, महोदय, भाग्यशाली।
शस्य – धान, अनाज।
क्षीर – दूध, पानी।
क्षेत्र – अधिकार, स्थान, भू-भाग।
श्रुति – वेद, कान।
हवा – वायु, साँस, अफवाह।
हरि – इंद्र, विष्णु, बंदर, सूर्य, साँप, कोयल।
हंस – आत्मा, सूर्य, एक पक्षी।