PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

Punjab State Board PSEB 11th Class English Book Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 English Chapter 4 Liberty and Discipline

Short Answer Type Questions

Question 1.
How does the author define liberty’ ?
Answer:
‘Liberty’ is the freedom to think what we like, say what we like, work at what we like and go where we like. Liberty is the birthright of each and every person. But even then, it is not a personal affair. It is a compromise or social contract.

‘लिबर्टी’ आज़ादी है – वह सोचने की जो हम सोचना चाहते हैं, वह कहने की जो हम कहना चाहते हैं, वह काम करने की जो हम करना चाहते हैं और वहां जाने की जहां हम जाना चाहते हैं। स्वतन्त्रता प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार होती है। परन्तु फिर भी यह कोई निजी विषय नहीं होता। यह एक समझौता अथवा एक सामाजिक इकरारनामा होता है।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

Question 2.
What is discipline ?
Answer:
Discipline is restraint on liberty. It trains people to obey rules and orders and punishes them if they don’t do. Discipline is very necessary in every field of society. It is only discipline that enables men to live in a society and yet retain individual liberty.

अनुशासन स्वतन्त्रता पर लगाई गई एक पाबन्दी है। यह लोगों को नियमों तथा आदेशों का पालन करने में प्रशिक्षित करता है और यदि वे ऐसा न करें तो उन्हें दण्ड देता है। समाज के हर क्षेत्र में अनुशासन बहुत जरूरी है। यह केवल अनुशासन ही है जो व्यक्ति को समाज में रहने और फिर भी अपनी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को कायम रखने के योग्य बनाता है।

Question 3.
Why should one keep to the left ?
Answer:
Keeping to the left while going on a road is the rule of the road. We should obey this rule of the road not only for our own advantage, but also for the rights of others. If we don’t do so, we will not only endanger others, but ourselves also.

सड़क पर जाते समय बाएं तरफ चलना सड़क का नियम है। हमें सड़क के इस नियम का पालन सिर्फ अपने फायदे के लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के अधिकारों के लिहाज से भी करना चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम सिर्फ दूसरों को ही नहीं, बल्कि स्वयं को भी खतरे में डालते हैं।

Question 4.
How does pure discipline differ from enforced discipline ?
Answer:
The discipline that comes from our inside is pure discipline. And the discipline that is enforced on us from outside is enforced discipline. Since discipline is a restraint on liberty, it is quite natural that man has an inclination to avoid this restraint.

वह अनुशासन जो हमारे अन्दर से उठता है, वह शुद्ध अनुशासन होता है। और वह अनुशासन जो बाहर से हम पर थोपा जाता है, वह बाध्यकारी (जबरदस्ती लागू किया गया) अनुशासन होता है। क्योंकि अनुशासन स्वतन्त्रता पर लगा एक प्रतिबन्ध होता है, इसलिए यह बहुत स्वाभाविक है कि मनुष्य के अन्दर इस प्रतिबन्ध को नज़रअंदाज करने की प्रवृत्ति होती है ।

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Question 5.
What types of liberty do the British believe in ?
Answer:
The British believe in four types of liberty. They want the liberty to think what they like. They want the liberty to say what they like. They want to have liberty to work at what they like. They want to have the liberty to go where they like.

अंग्रेज चार किस्मों की स्वतन्त्रता में विश्वास रखते हैं। वह सोचने की आजादी चाहते हैं जो वे सोचना चाहें। वह कहने की आजादी चाहते हैं जो वे कहना चाहें। वह काम करने की आजादी चाहते हैं जो वे करना चाहें। वे वहां जाने की आजादी चाहते हैं जहां वे जाना चाहें।

Question 6.
Why does one have a natural inclination to avoid discipline ?
Answer:
Discipline trains people to obey rules and orders and punishes them if they don’t do so. It is a restraint on liberty. So it is quite natural that man has an inclination to avoid this restraint.

अनुशासन लोगों को नियमों और आदेशों का पालन करने की शिक्षा देता है और यदि वे ऐसा नहीं करते तो यह उन्हें दण्ड देता है। यह स्वतन्त्रता पर लगा एक प्रतिबन्ध होता है। इसलिए यह बहुत स्वाभाविक है कि मनुष्य के अन्दर इस प्रतिबन्ध को नज़रअंदाज करने की प्रवृत्ति होती है ।

Question 7.
Why is discipline unavoidable for a modern man ?
Answer:
Modern man lives in complex communities in which every person is dependent on others. So discipline is unavoidable for a modern man. If every man were free to do what he liked, there
would be chaos everywhere. So discipline is very necessary for modern man in every field of society.

आधुनिक मनुष्य मिश्रित समुदायों में रहता है जिनमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरों पर निर्भर करता है। इसलिए आधुनिक मनुष्य के लिए अनुशासन बहुत अनिवार्य है। यदि प्रत्येक व्यक्ति वही करने को आजाद हो जो वह करना चाहता है, तो सभी जगह अराजकता फैल जाएगी। इसलिए आधुनिक मनुष्य के लिए समाज के हर क्षेत्र में अनुशासन बहुत जरुरी हैं।

Question 8.
How did the author acknowledge the salute of a private soldier ?
Answer:
The author was a brand new second lieutenant at that time. Once he was walking on to parade. A private soldier passed him and saluted him. The author acknowledged the salute of that soldier with an airy wave of his hand.

उस समय लेखक नया-नया भर्ती हुआ सैकण्ड लेफ्टिनेंट था। एक दिन वह परेड के लिए जा रहा था। एक निचले दर्जे का सैनिक उसके पास से गुजरा और उसने उसे सलामी दी। लेखक ने उस सैनिक की सलामी का जवाब हवा में अपना हाथ लहराते हुए दिया ।

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Question 9.
How did the Colonel punish the author for not returning a salute properly ?
Answer:
The Colonel rebuked the author for not returning a salute properly. He punished the author for this. He made the author march in front of the whole battalion and practise before the Sergeant Major’s cane how to return a salute. “Discipline begins with the officers,” he said to the author.

कर्नल ने सलामी का जवाब उचित ढंग से न देने के लिए लेखक को डांटा। उसने इसके लिए लेखक को दंडित किया। उसने लेखक से पूरी बटालियन के सामने मार्च करवाया और सार्जेंट मेजर के बेंत के आगे अभ्यास करवाया कि सलामी का जवाब कैसे दिया जाता है। “अनुशासन की शुरुआत अफसरों से होती है,” उसने लेखक से कहा।

Question 10.
What did the Colonel tell the author about discipline ?
Answer:
The author had not returned the salute of a private soldier properly. The Colonel rebuked him for this and also punished him. He made the author practise before the Sergeant Major’s cane how to return a salute. The Colonel told the author that discipline begins with the officers.

लेखक ने एक निजी सैनिक की सलामी का जवाब उचित ढंग से नहीं दिया था। कर्नल ने उसे इस बात के लिए डांटा और उसे सजा भी दी। उसने सार्जेन्ट मेजर के बेंत के आगे उससे अभ्यास भी करवाया कि सलामी का जवाब कैसे दिया जाता है। कर्नल ने लेखक को बताया कि अनुशासन की शुरुआत अफसरों से होती है ।

Question 11.
How can the leader build up the leadership of his team ?
Answer:
The leader can build up the leadership of his team on the discipline of understanding. In order to inculcate a sense of discipline in his team, he must first realize his own responsibility. He must display high standards of discipline in his own life. Only then he can succeed in building up the leadership of his team.

नेता अपने दल के नायकत्त्व का निर्माण आपसी समझ के अनुशासन के आधार पर कर सकता है। अपने दल में अनुशासन की भावना भरने के लिए एक नेता को सबसे पहले अपनी स्वयं की जिम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। उसे स्वयं के जीवन में अनुशासन के उच्च मापदण्डों का प्रदर्शन करना चाहिए। सिर्फ तभी वह अपने दल के नायकत्व का निर्माण करने में सफल हो सकता है।

Question 12.
What, according to the author, was not a new technique invented in the last war ?
Answer:
According to the author, taking men into one’s confidence was not a new technique invented in the last war. He says that leaders have always followed this technique to lead the people by winning their confidence. This art is a must in a successful leader. It helps in building a good rapport between the leader and his followers.

लेखक के अनुसार लोगों को अपने विश्वास में ले लेना पिछले युद्ध में खोजी गई कोई नई तकनीक नहीं थी। वह कहता है कि नेताओं ने लोगों का विश्वास जीत कर उनका नेतृत्व करने के लिए हमेशा ही इस तकनीक का अनुसरण किया है। एक सफल नेता में यह कला होना अनिवार्य है। यह नेता तथा उसके अनुचरों के बीच अच्छे संबंध पैदा करने में मदद करती है।

Question 13.
How can you say that discipline is not derogatory?
Answer:
It is only discipline that enables people to live in a community and yet retain individual liberty. It does put some check on our freedom, but it does not cut down our individual freedom. It makes man truly free. Totalitarian discipline with its slogan-shouting masses is deliberately designed to submerge the individual.

यह केवल अनुशासन ही है जो लोगों को समाज में रहने और फिर भी अपनी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को बनाए रखने के योग्य बनाता है। यह हमारी स्वतन्त्रता पर कुछ रोक अवश्य लगाता है, परन्तु यह हमारी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में कोई कटौती नहीं करता। यह व्यक्ति को सही अर्थों में स्वतन्त्र बनाता है। सर्वसत्तावादी अनुशासन, जिसमें नारेबाजी करती जनता शामिल होती है, का निर्माण पूर्ण विचार-विमर्श के साथ किया गया है, व्यक्ति को पूरी तरह से गायब कर देने के लिए।

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Question 14.
What type of discipline is deliberately designed to submerge the individual ?
Answer:
Totalitarian discipline with its slogan-shouting masses is deliberately designed to submerge the individual. Totalitarian discipline means a system of government in which there is only one political party that has complete power and control over the people.

सर्वसत्तावादी अनुशासन, जिसमें नारेबाजी करती जनता शामिल होती है, का निर्माण पूर्ण विचार-विमर्श के साथ किया गया है, व्यक्ति को पूरी तरह से गायब कर देने के लिए। सर्वसत्तावादी अनुशासन का अर्थ है, सरकार की एक ऐसी प्रणाली जिससे केवल एक राजनीतिक दल होता है जिसका लोगों के ऊपर सम्पूर्ण अधिकार एवं नियंत्रण होता है।

Question 15.
How does the author commend the role of British railway signalmen in the last war?
Answer:
The author says that in the blitz of the last war, not even a single British Railway signalman left his post. They stood in the heart of the target area. They didn’t leave their place. They put
their job before themselves. They knew the importance of their work for their country.

लेखक कहता है कि पिछले युद्ध में हुए हमलों के दौरान बरतानवी रेलवे सिग्नलमैनों में से एक भी व्यक्ति ने अपनी नियुक्त की गई जगह नहीं छोड़ी। वे लक्ष्य बनाई गई जगहों के बीचो-बीच पर डटे रहे। उन्होंने अपनी जगह न छोड़ी। उन्होंने अपने काम को अपने से पहले रखा। वे जानते थे कि उनके देश के लिए उनके काम का क्या महत्त्व था।

Question 16.
How can a nation overcome an economic or military crisis ?
Answer:
A nation can overcome an economic or military crisis with the help of discipline only. Any nation without discipline surely goes to the dogs. And no work or progress is possible without a disciplined living. Rather there is bound to be confusion, disorder and chaos.

सिर्फ अनुशासन की सहायता से ही एक राष्ट्र किसी आर्थिक अथवा सैन्य संकट से उभर सकता है। किसी भी ऐसे राष्ट्र की दुर्दशा होना निश्चित है जिसमें अनुशासन न हो। और अनुशासित जीवन के बिना कोई भी कार्य अथवा प्रगति संभव नहीं है। बल्कि वहां अफरा-तफरी, अव्यवस्था तथा अशांति होना निश्चित है।

Question 17.
What, according to the author, is meant by democracy ?
Answer:
According to the author, democracy means that responsibility is decentralised. And no one can avoid doing something he should do. He says that a nation can overcome an economic or military crisis with the help of discipline only.

लेखक के अनुसार, प्रजातन्त्र का अर्थ है कि ज़िम्मेदारी विकेन्द्रित होती है। और कोई भी उस काम को नज़रअंदाज नहीं कर सकता जो उसे करना चाहिए। वह कहता है कि सिर्फ अनुशासन की सहायता से ही एक राष्ट्र किसी आर्थिक अथवा सैन्य-संकट से उभर सकता है।

Question 18.
Why did the Colonel punish the author ?
Answer:
The author had acknowledged the salute of a private soldier with an airy wave of his hand. At this, his Colonel punished him for not returning a salute properly. He made the author march in front of the whole battalion and practise before the Sergeant Major’s cane how to return a salute.

लेखक ने एक निजी सैनिक की सलामी का जवाब हवा में अपना हाथ लहराते हुए दिया था। इस बात पर उसके कर्नल ने उसे सलामी का जवाब उचित प्रकार से न देने के लिए दंड दिया। उसने लेखक से पूरी बटालियन के सामने मार्च करवाया और सार्जेंट मेजर के बेंत के सामने अभ्यास करवाया कि सलामी का जवाब कैसे दिया जाता है।

Question 19.
What are the advantages of discipline ?
Answer:
Discipline is, in fact, the foundation of all freedom. It makes man truly free. It enables man to live in the society and yet retain individual liberty. It brings order in the society. It is only discipline which enables a nation to march on the way to progress.

वास्तव में, अनुशासन ही संपूर्ण स्वतन्त्रता की नींव होता है। यह मनुष्य को सही अर्थों में स्वतन्त्र बनाता है। यह मनुष्य को समाज में रहने और फिर भी अपनी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता कायम रखने के योग्य बनाता है। यह समाज में व्यवस्था लाता है। यह सिर्फ अनुशासन ही है जो किसी राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जाता है।

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Question 20.
What does indiscipline lead to ?
Answer:
Indiscipline leads to confusion and chaos in a society. It creates corruption, lawlessness and disorder all around. The evil elements in the society look for excuses to create violence. Security for the poor and the weak vanishes. In short, indiscipline eats into the roots of our moral, social and national life.

अनुशासनहीनता समाज में अफरा-तफरी तथा अशांति फैलाती है। यह हर तरफ भ्रष्टाचार, अराजकता तथा अव्यवस्था फैलाती है। समाज में फैले बुरे तत्त्व हिंसात्मक कार्य करने के बहाने ढूंढते रहते हैं। गरीब लोगों तथा कमज़ोरों के प्रति सुरक्षा गायब हो जाती है। संक्षेप में, अनुशासनहीनता हमारे नैतिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन की जड़ों तक को खा जाती है।

Question 21.
What do you mean by totalitarian discipline?
Answer:
Totalitarian discipline means a system of government in which there is only one political party that has complete power and control over the people. Totalitarian discipline with its slogan-shouting masses is deliberately designed to submerge the individual.

सर्वसत्तावादी अनुशासन का अर्थ है, सरकार की एक ऐसी प्रणाली जिसमें सिर्फ एक राजनीतिक दल होता है जिसका लोगों के ऊपर सम्पूर्ण अधिकार तथा नियंत्रण होता है। सर्वसत्तावादी अनुशासन, जिसमें नारेबाजी करती जनता शामिल होती है, का निर्माण पूर्ण विचार-विमर्श के साथ किया गया है, व्यक्ति को पूरी तरह से गायब कर देने के लिए।

Question 22.
What great job did the British Railway signalmen do during the last war ?
Answer:
They never left their post during the war. They stood often in the heart of target areas where the bombs were dropped. They always put their job before themselves.

युद्ध के दौरान उन्होंने अपना स्थान बिल्कुल न छोड़ा। वे अक्सर उन लक्ष्य क्षेत्रों के मध्य में खड़े रहते थे जहां बम गिराए जाते थे। उन्होंने अपने काम को सदैव स्वयं से पहले रखा।

Long Answer Type Questions

Question 1.
How does history teach us the need of a disciplined living ? Explain.
Answer:
From history, we have learnt that whenever the sense of order or discipline fades in a nation, its economic life declines completely. Its standard of living falls and its security vanishes. Then the nation goes into the hands of either some more powerful militant power or a dictator.

In short, any nation without discipline surely goes to the dogs. And no work or progress is possible without a disciplined living. Rather there is bound to be confusion, disorder and chaos. Modern man lives in complex communities in which every person is dependent on others. So discipline is indispensable for a modern man.

इतिहास से हमने सीखा है कि जब भी किसी राष्ट्र में व्यवस्था अथवा अनुशासन की भावना लुप्त हो जाती है, तब इसके आर्थिक जीवन का पूरी तरह पतन हो जाता है। इसका जीवन-स्तर गिर जाता है तथा इसकी सुरक्षा गायब हो जाती है। फिर वह राष्ट्र या तो किसी अधिक ताकतवर लड़ाकू शक्ति के हाथों में चला जाता है या फिर किसी तानाशाह के हाथों में चला जाता है। संक्षेप में कहें तो किसी भी ऐसे राष्ट्र की दुर्दशा होना निश्चित है जिसमें अनुशासन न हो।

और अनुशासित जीवन के बिना कोई भी कार्य अथवा प्रगति संभव नहीं है। बल्कि वहां अफरा-तफरी, अव्यवस्था तथ अशांति होना निश्चित है। आधुनिक मनुष्य जटिल समुदायों में रहता है जिनमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरे पर निर्भर करता है। इसलिए आधुनिक मनुष्य के लिए अनुशासन बहुत अनिवार्य है।

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Question 2.
What is the relationship between liberty and discipline ?
Answer:
“Liberty’ is the freedom to think what we like, say what we like, work at what we like and go where we like. Discipline is a restraint on liberty. It trains people to obey rules and orders and punishes them if they don’t do. Liberty is the birthright of each and every person. But even then, it is not a personal affair. It is a compromise or social contract.

If every man were free to do what he liked, there would be chaos everywhere. So discipline is very necessary in every field of society. It is only discipline that enables men to live in a society and yet retain individual liberty. We can have discipline without liberty, but we cannot have liberty without discipline.

‘लिबर्टी’ आज़ादी है वह सोचने की जो हम सोचना चाहते हैं, वह कहने की जो हम कहना चाहते हैं, वह काम करने की जो हम करना चाहते हैं और वहां जाने की जहां हम जाना चाहते हैं। अनुशासन स्वतन्त्रता पर लगाई गई एक पाबन्दी है। यह लोगों को नियमों तथा आदेशों का पालन करने में प्रशिक्षित करता है और यदि वे ऐसा न करें, तो उन्हें दण्ड देता है। स्वतन्त्रता प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार होती है।

परन्तु फिर भी यह कोई निजी विषय नहीं होता। यह एक समझौता अथवा एक सामाजिक इकरारनामा होता है। यदि प्रत्येक व्यक्ति वही करने के लिए आज़ाद हो जो वह करना चाहता है, तो सभी जगह अराजकता फैल जाएगी। इसलिए समाज के हर क्षेत्र में अनुशासन बहुत ज़रूरी है। यह केवल अनुशासन ही है जो व्यक्ति को समाज में रहने और फिर भी अपनी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को कायम रखने के योग्य बनाता है। हम स्वतन्त्रता के बिना अनुशासन तो प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु अनुशासन के बिना स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं कर सकते।

Question 3.
What does indiscipline lead to ?
Answer:
Indiscipline leads to confusion and chaos in a society. It creates corruption, lawlessness and disorder all around. It creates violence also among the people. The evil elements in the society look for excuses to create violence. Security for the poor and the weak vanishes. Indiscipline eats into the roots of our moral, social and national life.

Whenever the sense of order or discipline fades in a nation, its economic life declines completely. Its standard of living falls and its security vanishes. Then the nation goes into the hands of either some more powerful militant power or a dictator. And an indisciplined nation surely goes to the dogs.

अनुशासनहीनता समाज में अफरा-तफरी तथा अशांति फैलाती है। यह हर तरफ भ्रष्टाचार, अराजकता तथा अव्यवस्था फैलाती है। यह लोगों के बीच हिंसा की भावना पैदा करती है। समाज में फैले बुरे तत्त्व हिंसात्मक कार्य करने के बहाने ढूंढते हैं। गरीब लोगों तथा कमज़ोरों के प्रति सुरक्षा गायब हो जाती है। अनुशासनहीनता हमारे नैतिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन की जड़ों तक को खा जाती है।

जब भी किसी राष्ट्र में व्यवस्था अथवा अनुशासन की भावना लुप्त हो जाती है, तब इसके आर्थिक जीवन का पूरी तरह पतन हो जाता है। इसका जीवन-स्तर गिर जाता है तथा इसकी सुरक्षा गायब हो जाती है। फिर वह राष्ट्र या तो किसी अधिक ताकतवर लड़ाकू शक्ति के हाथों में चला जाता है या फिर किसी तानाशाह के हाथों में चला जाता है। और एक अनुशासनहीन राष्ट्र को अवश्य ही दुर्दशा का शिकार होना पड़ता है।

Question 4.
How can an officer inculcate a sense of discipline in his subordinates ?
Answer:
In order to inculcate a sense of discipline in his subordinates, an officer must first realize his own responsibility. He must display high standards of discipline in his own life. Only then can his teaching or his instructions have an effect on his subordinates.

In this chapter, the writer tells us that once he acknowledged the salute of a private soldier with an airy wave of his hand. And his Colonel punished him for not returning the salute properly. He made the writer march in front of the whole battalion and practise before the Sergeant Major’s cane how to return a salute. He said to the writer, “Discipline begins with the officers.”

अपने अधीनस्थ कर्मचारियों में अनुशासन की भावना जगाने के लिए एक अधिकारी को पहले अपनी खुद की ज़िम्मेदारी का अहसास होना चाहिए। उसे स्वयं अपने जीवन में अनुशासन के उच्च मानदण्डों का प्रदर्शन करना चाहिए। सिर्फ तब ही उसकी शिक्षा अथवा उसके दिशा-निर्देश उसके अधीनस्थ कर्मचारियों पर कोई प्रभाव डाल सकते हैं।

इस पाठ में लेखक हमें बताता है कि एक बार उसने निचले दर्जे के एक सैनिक की सलामी का जवाब हवा में अपना हाथ लहराते हुए दिया। और उसके कर्नल ने उसे सलामी का जवाब उचित प्रकार से न देने के लिए दण्ड दिया। उसने लेखक से पूरी बटालियन के सामने मार्च करवाया और सार्जेंट मेजर के बेंत के सामने इस बात का अभ्यास करवाया कि सलामी का जवाब कैसे दिया जाता है। उसने लेखक से कहा, “अनुशासन की शुरुआत अफ़सरों से होती है।”

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

Question 5.
What are the advantages of discipline ?
Answer:
Discipline is very necessary in every field of society. It means training of the mind and character. It trains people to obey rules and orders. It does put some checks on our freedom. But it does not cut down our individual freedom. In fact, it is the foundation of all freedom.

It makes man truly free. It enables man to live in the society and yet retain individual liberty. It helps in maintaining law and order in the society. It is only discipline which enables a nation to march on the way to progress.

समाज के हर क्षेत्र में अनुशासन का होना बहुत जरूरी है। इसका अर्थ है, मन तथा चरित्र का प्रशिक्षण। यह लोगों को नियमों तथा आदेशों का पालन करने में प्रशिक्षित करता है। यह हमारी स्वतन्त्रता पर कुछ रोक अवश्य लगाता है। परन्तु यह हमारी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में कोई कटौती नहीं करता है। वास्तव में यह सारी स्वतन्त्रता की नींव है।

यह मनुष्य को सही अर्थों में स्वतन्त्र बनाता है। यह मनुष्य को समाज में रहने और फिर भी अपनी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता कायम रखने के योग्य बनाता है। यह समाज में कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने में मदद करता है। यह सिर्फ अनुशासन ही है जो किसी राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जाता है।

Question 6.
In the chapter, Liberty and Discipline’, the writer describes an incident which took place when he was a brand new second lieutenant. What was that incident ?
Answer:
Once he was walking to to parade. A private soldier passed him and saluted him. The writer acknowledged his salute with an airy wave of the hand. Just then, his Colonel came there along with the Regimental Sergeant Major.

He rebuked the writer for not returning the salute properly. He punished the writer for this. He said to the Major, “Plant your staff in the ground and let Mr Slim practise until he does know how to return a salute !” After about ten minutes, he called the writer up to him and said, “Now remember, discipline begins with the officers.”

एक दिन वह परेड के लिए जा रहा था। एक निचले दर्जे का सैनिक उसके पास से गुजरा और उसने उसे सलामी दी। लेखक ने उसकी सलामी का जवाब अपना हाथ हवा में लहराते हुए दिया। तभी उसका कर्नल, रेजिमेण्टल सार्जेंट मेजर के साथ वहां आ गया। उसने सलामी का जवाब उचित तरीके से न देने के लिए लेखक को डांटा।

उसने इसके लिए लेखक को दण्ड दिया। उसने मेजर से कहा, “अपना डंडा जमीन में गाड़ दो और मिस्टर स्लिम को तब तक अभ्यास करने दो जब तक उसे यह न पता चल जाए कि सलामी का जवाब कैसे दिया जाता है !” लगभग दस मिनट के पश्चात् उसने लेखक को अपने पास बुलाया और कहा, “अब याद रखना, अनुशासन की शुरुआत अफसरों से होती है।”

Question 7.
What should a person do when he / she holds a position of authority ?
Answer:
If a man holds a position of authority, he must impose discipline on himself first. It is true that if he gives orders, they will be obeyed. But he should keep in mind that he can build up the leadership of his team on the discipline based on understanding only.

In order to inculcate a sense of discipline in his subordinates, an officer must first realize his own responsibility. He must display high standards of discipline in his own life. Only then can his teaching or his instructions have an effect on his subordinates.

यदि किसी व्यक्ति के पास प्रभावशाली पद हो तो उसे सबसे पहले खुद के ऊपर अनुशासन लागू करना चाहिए। यह सच है कि अगर वह आदेश देगा तो उसका पालन होगा। लेकिन उसे यह बात दिमाग़ में रखनी चाहिए कि वह अपने दल के नेतृत्व का निर्माण केवल आपसी समझ के अनुशासन की नींव पर ही कर सकता है।

अपने अधीनस्थ कर्मचारियों में अनुशासन की भावना भरने के लिए एक अधिकारी को सबसे पहले अपनी स्वयं की जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। उसे स्वयं के जीवन में अनुशासन के उच्च मापदण्डों का प्रदर्शन करना चाहिए। केवल.तभी उसके अधीनस्थ कर्मचारियों पर उसकी शिक्षा या उसके दिशा-निर्देशों का कोई प्रभाव हो सकता है।

Question 8.
We can have discipline without liberty. But we can’t have liberty without discipline. Explain.
Answer:
Without discipline, no nation can overcome any economic or military crisis. Democracy means that responsibility is decentralised. And no one can avoid doing something he should do. But it is very sad that many of us shirk our share of work. If everyone of us really works, we can overcome any sort of crisis.

But all that takes discipline pure discipline that comes from inside. We think more of liberty than of responsibility. We should always keep in mind that we can never get anything without paying something for it. And in this case, liberty is no exception. We can have discipline without liberty, but we cannot have liberty without discipline.

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अनुशासन के बिना कोई भी राष्ट्र किसी आर्थिक अथवा सैनिक संकट पर काबू नहीं पा सकता है। प्रजातन्त्र का अर्थ होता है, जिम्मेदारी का विकेन्द्रीकृत होना। और कोई भी उस काम की अनदेखी नहीं कर सकता जो काम करने की उससे आशा की जाती है। लेकिन यह बड़े दुःख की बात है कि हम में से बहुत से लोग अपने हिस्से के काम से जी चुराते हैं। यदि हम में से हर कोई काम करे, तो हम किसी भी प्रकार के संकट पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

लेकिन इस सब के लिए अनुशासन – बल्कि शुद्ध अनुशासन -की आवश्यकता होती है जो कि हमारे अन्दर से पैदा होता है। हम अपनी ज़िम्मेदारी से ज़्यादा अपनी आज़ादी के बारे में सोचते हैं। हमें यह बात हमेशा दिमाग़ में रखनी चाहिए कि हम किसी भी चीज़ की कीमत अदा किए बगैर उसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं। और इस संबंध में आज़ादी भी कोई अपवाद नहीं है। हम आज़ादी के बिना अनुशासन तो प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन अनुशासन के बिना हम आज़ादी प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

Objective Type Questions

Question 1.
Who wrote the chapter, ‘Liberty and Discipline’ ?
Answer:
William Slim.

Question 2.
What is discipline’ ?
Answer:
It is the training of mind and character.

Question 3.
What is considered as a restraint on liberty ?
Answer:
Discipline

Question 4.
What would happen if everybody did what he wanted ?
Answer:
There would be complete disorder in the world.

Question 5.
What happens when the sense of order or discipline fades in a nation ?
Answer:
Its economic life declines.

Question 6.
What would you call the discipline imposed forcibly’ ?
Answer:
It is nothing but dictatorship.

Question 7.
Who saluted the narrator when he was walking on to a parade ?
Answer:
A private soldier.

Question 8.
What did the Colonel rebuke the writer for ?
Answer:
For not returning a salute properly.

Question 9.
For what purpose is totalitarian discipline designed ?
Answer:
To submerge the individual.

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Question 10.
How can a nation overcome an economic or military crisis?
Answer:
With the help of discipline only.

Question 11.
How can an officer build up the leadership of his team ?
Answer:
He can build up the leadership of his team on the discipline of understanding only.

Question 12.
What should an officer do to inculcate a sense of discipline in his subordinates ?
Answer:
He must display high standards of discipline in his own life.

Vocabulary And Grammar

1. Tick mark (✓) the correct meaning of each of the following words :

1. choose
a. select
b. reject
c. accept

2. sermon
a. rebuke
b. a holy lecture
c. a political practice

3. inclination
a. dislike
b. hatred
c. bent of mind

4. unavoidable
a. impossible
b. simultaneous
c. inevitable

5. acknowledge
a. admire
b. dislike
c. know to be correct

6. grin
a. burst out
b. smile widely
c. praise

7. technique
a. desire
b. method
c. description

8. derogatory
a. ennobling
b. insulting
c. praiseworthy

9. initiative
a. fear
b. helplessness
c. courage to start

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10. crisis a.
a walkover
b. a difficult situation
c. a challene.
Answer:
1. choose = select
2. sermon = a holy lecture
3. inclination = bent of mind;
4. unavoidable = inevitable
5. acknowledge = know to be correct
6. grin = smile widely
7. technique = method
8. derogatory = insulting
9. initiative = courage to start
10. crisis = a difficult situation.

2. Form adjectives from the following words :

Word — Adjective

1. ornament — ornamental
2. delight — delightful
3. business — businesslike
4. use — useful / useless
5. craft — crafty
6. taste — tasty
7. curiosity — curious
8. memory — memorable
9. wit — witty
10. defect — defective.

3. Fill in each blank with a suitable determiner :

1. We felt …………… indefinable sense of discomfort. (a / an)
2. …………… fugitives had fled from Hiroshima. (many / much)
3. ………….. living thing was petrified in an attitude of indescribable suffering. (many / every)
4. Children begin learning by imitating …………… elders. (his/ their)
5. Each unhappy family is unhappy in ………….. own way. (his / its)
Answer:
1. an
2. Many
3. Every
4. their
5. its.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

4. Change the form of narration :

1. The teacher will say, “Gita is performing on the stage.”
2. She said, “If I were rich, I would help him.”
3. “Oh, Tom,” she said, “I am so ashamed of you !”
4. The lawyer asked Bob, “Do you still deny the charges ?”
5. The principal said, “Virtue is its own reward.”
Answer:
1. The teacher will say that Gita is performing on the stage.
2. She said that if she had been rich, she would have helped him.
3. She rebuked Tom saying she was very ashamed of him.
4. The lawyer asked Bob if he still denied the charges.
5. The principal said that virtue is its own reward.

5. Use each of the following words as a noun and a verb :

face, lock, delight, water, consent.
Answer:
1. Face (noun) – Her face is very pretty.
(verb) – I had to face several difficulties.

2. Lock (noun) – I have lost the key to this lock.
(verb) – Lock the room.

3. Delight (noun) – He takes great delight in teasing others.
(verb) – His victory delighted his fans all over the world.

4. Water (noun) — Please give me a glass of water.
(verb) – The gardener is watering the plants.

5. Consent (noun) – Our parents finally gave their consent to our marriage.
(verb) – At last, Mr Raman had to consent to answer our questions.

Liberty and Discipline Summary & Translation in English

Liberty and Discipline Summary in English:

Liberty is the freedom to think what we like, say what we like, work at what we like and go where we like. Discipline is the training of mind and character. It trains people to obey rules and orders and punishes them if they don’t. In short, discipline is a restraint on liberty.

So man has a very natural inclination to avoid it. But since ancient times, man has no option but to accept it. If everybody did what he wanted, there would be complete disorder in the world. There would be the law of the jungle.

From all history we have learnt that whenever the sense of order or discipline fades in a nation, its economic life declines. Its standard of living falls and its security vanishes. Then the nation goes into the hands of either some more virile militant power or a dictator.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

Then both of them impose their own brand of discipline. Somehow, eventually, discipline is again enforced. Now the question is not “Shall we accept discipline ?” Sooner or later we have to accept it. So the question is  “How shall we accept it ?” Shall it be imposed by physical violence and fear or accepted by consent and understanding. However, the discipline imposed forcibly is not discipline. That is dictatorship. The discipline that comes from our inside is pure discipline.

Here the writer describes an incident which took place when he was a brand new second lieutenant. Once he was walking on to parade. A private soldier passed him and saluted him. The writer acknowledged his salute with an airy wave of the hand. Just then, his Colonel came there along with the Regimental Sergeant Major.

He rebuked the writer for not returning a salute properly. He punished the writer for this. He said to the Major, “Plant your staff in the ground and let Mr Slim practise until he does know how to return a salute !” After about ten minutes, he called the writer up to him and said, “Now remember, discipline begins with the officers.”

If a man holds a position of authority, he must impose discipline on himself first. It is true that if he gives orders, they will be obeyed. But he should keep in mind that he can build up the leadership of his team on the discipline based on understanding only.

In order to inculcate a sense of discipline in his subordinates, an officer must first realize his own responsibility. He must display high standards of discipline in his own life. Only then can his teaching or his instructions have an effect on his subordinates.

No doubt, discipline puts some checks on our freedom. But it does not cut down individual freedom. In fact, it is the foundation of all freedom. It makes man truly free. It enables man to live in a community and yet retain individual liberty.

So it is not at all derogatory for any man or woman. Rather it is ennobling. Without discipline, no nation can overcome any economic or military crisis. Democracy means that responsibility is decentralised. And no one can avoid doing something he should do. But it is very sad that many of us shirk our share of work. If everyone of us really works,

we can overcome any sort of crisis. But all that takes discipline pure discipline that comes from inside. We think more of liberty than of responsibility. We should always keep in mind that we can never get anything without paying something for it. And in this case, liberty is no exception. We can have discipline without liberty. But we cannot have liberty without discipline.

Liberty and Discipline Translation in English:

Field Marshal Sir William Slim, the Chief of the Imperial General Staff, held the highest office in the British Army. He is well qualified to speak on the subject of discipline and the relation it bears to liberty?. This chapter has been condensed from an article contributed by Sir William Slim to The Fortnightly, London. This will be of special interest to all those who are rightly worried about the general disquiet for lack of discipline both at the personal and the national level.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

When you get into your car or on your bicycle, you can choose where you want to go. That is liberty. But, as you drive or ride through the streets, you will keep to the left of the road. That is discipline.

There are four reasons why you will keep to the left :

  • Your own advantage
  • Consideration for others
  • Confidence in your fellows; and
  • Fear of punishment.

It is the relative weight which we give to each of these reasons that decides what sort of discipline we have. And that can vary from the pure self-discipline of the Sermon on the Mount to the discipline of the concentration camp, the enforced discipline of fear. In spite of all our squabbles, the British are united when it comes to the most of the things that matter and liberty is one of them.

We believe in freedom to think what we like, say what we like, work at what we like, and go where we like. Discipline is a restraint on liberty, so many of us have a very natural inclination to avoid it. But we cannot. Man, ever since the dim prehistoric past, has had no option but to accept the discipline of some kind. For a modern man, living in complex communities, in which every individual is dependent on others, discipline is more than ever unavoidable.

All history teaches that when through either idleness, weakness or faction, the sense of order fades in a nation, its economic life sinks into decay, then, as its standard of living falls and security vanishes, one of two things happens.

Either some more virile militant power steps in to impose its own brand of discipline or a dictator arises and clamps down the iron control of the police state. Somehow, eventually, discipline is again enforced. The problem is not; “Shall we accept discipline ?”

sooner or later we have to; it is “How shall we accept it ?” Shall it be imposed by physical violence and fear, by grim economic necessity, or accepted by consent and understanding ? Shall it come from without or from within ? The word “discipline” for some flashes on the screen of the mind a jackbooted commissar bawling commands across the barrack square at tramping squads. But that is dictatorship, not discipline. The voluntary, reasoned discipline accepted by free, intelligent men and women is another thing. It is binding on all, from top to bottom.

One morning, long ago, as a brand new second lieutenant, I was walking on to parade. A private soldier passed me and saluted. I acknowledged his salute with an airy wave of the hand. Suddenly behind me, a voice rasped out my name.

I spun round and there was my Colonel, for whom I had a most wholesome respect, and with him the Regimental Sergeant Major, of whom also I stood in some awe . “I see,” said the Colonel, “you don’t know how to return a salute. Sergeant Major, plant your staff in the ground, and let Mr Slim practise saluting it until he does know how to return a salute !”

So to and fro I marched in sight of the whole battalion, saluting the Sergeant Major’s cane. (I could cheerfully have murdered the Colonel, the Sergeant Major, and my grinning9 fellow-subalterns.) At the end of ten minutes, the Colonel called me up to him. All he said was : “Now remember, discipline begins with the officers !”

And so it does. The leader must be ready, not only to accept a higher degree of responsibility but a severer standard of self – discipline than those he leads. If you hold a position of authority, whether you are the managing director or the charge-head, you must impose discipline on yourself first. Then forget the easy way of trying to enforce

it on others by just giving orders and expecting them to be obeyed’. You will give orders and you will see they are obeyed, but you will only build up the leadership of your team on the discipline of understanding. There is more to a soldier’s discipline than blind obedience and to take men into your confidence is not a new technique invented in the last war.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

Oliver Cromwell demanded that every man in his new model army should “know what he fights for, and love what he knows. Substitute work for fight and you have the essence of industrial discipline too to know what you work for and to love what you know. it is only discipline that enables men to live in a community and yet retain individual liberty.

Sweep away or under mine discipline, and security for the weak and the poor vanishes. That is why, far from it being derogatory” for any man or woman voluntarily to accept discipline, it is ennobling.

Totalitarian discipline with its slogan shouting masses is deliberately designed to submerge the individual. The discipline a man imposes on himself because he believes intelligently that it helps him to get a worthwhile job done to his own and his country’s benefit, fosters character and initiative’.

It makes a man do his work, without being watched, because it is worth doing. in the blitzt of the last war not a man of the thousands of British railway signalmen even left his post. They stood, often in the heart of the target areas, cooked up in flimsy buildings, surrounded by glass, while the bombs screamed down. They knew what they worked for, they knew its importance to others and to their country and they put their job before themselves.

That was discipline. No nation even got out of a difficult position, economic or military, without discipline. Democracy means that responsibility is decentralized and that no one can shirk his share of the strain. And some of us, a lot of us, in all walks of life, do not. If everyone not only the other fellows we are always pointing at really worked when we were supposed to be working, we should beat our economic crisis hollow.

That takes discipline based not only on ourselves, but backed by a healthy public opinion. We are apt these days to think more of liberty than of responsibility but, in the long run, we never get anything worth having without paying something for it. Liberty is no exception. You can have discipline without liberty, but you cannot have liberty without discipline.

Liberty and Discipline Summary & Translation in Hindi

Liberty and Discipline Summary in Hindi:

लेख का विस्तृत सार । आजादी वह सोचने की स्वतंत्रता होती है जो हम सोचना चाहते हैं, वह कहने की स्वतंत्रता जो हम कहना चाहते हैं, वह काम करने की स्वतंत्रता जो हम करना चाहते हैं, वहां जाने की स्वतंत्रता जहां हम जाना चाहते हैं। अनुशासन दिमाग तथा चरित्र का प्रशिक्षण होता है। यह लोगों को नियमों तथा आदेशों का पालन करना सिखाता है और यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो यह उन्हें दण्ड देता है।

संक्षेप में, अनुशासन आजादी पर लगाई गई पाबन्दी होता है। इसलिए मनुष्य के अन्दर इसे अनदेखा करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। लेकिन प्राचीन समय से ही मनुष्य के पास इसे स्वीकार करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रहा है। अगर हर कोई वही करता जो उसे पसन्द था, तो दुनिया में पूर्ण अव्यवस्था होती।

तब वहां जंगल का कानून चलता। पूरे इतिहास से हमने सीखा है कि जब भी किसी राष्ट्र में व्यवस्था तथा अनुशासन की भावना लुप्त हो जाती है, तो इसके आर्थिक जीवन का पतन हो जाता है। उसका जीवन-स्तर गिर जाता है तथा उसकी सुरक्षा गायब हो जाती है। फिर राष्ट्र या तो किसी अधिक ताकतवर लड़ाकू शक्ति के हाथों में चला जाता है या किसी तानाशाह के हाथ में। फिर वे दोनों अपने-अपने किस्म के अनुशासन को जबरदस्ती लागू कर देते हैं।

अब प्रश्न यह नहीं है -“क्या हम इसे स्वीकार करें ?” देर-सवेर हमें इसे स्वीकार करना ही पड़ता है। इसलिए प्रश्न यह है – “हम इसे कैसे स्वीकार करें ?” क्या इसे शारीरिक हिंसा तथा भय के द्वारा थोपा जाएगा अथवा सहमति और आपसी समझ के द्वारा स्वीकार कर लिया जाएगा ? परंतु जबरदस्ती थोपा गया अनुशासन, अनुशासन नहीं होता है। वह तानाशाही होता है। वह अनुशासन जो हमारे अन्दर से उत्पन्न होता है, वही शुद्ध अनुशासन होता है।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

यहां लेखक उस समय की एक घटना का वर्णन करता है जब वह बिल्कुल नया-नया भर्ती हुआ सैकण्ड लेफ्टिनेंट था। एक दिन वह परेड के लिए जा रहा था। एक निचले दर्जे का सैनिक उसके पास से गुजरा और उसने उसे सलामी दी। लेखक ने उसकी सलामी का जवाब अपना हाथ हवा में लहराते हुए दिया। तभी उसका कर्नल, रेजीमेण्टल सारजैंट मेजर के साथ वहां आ गया।

उसने सलाम का जवाब उचित तरीके से न देने के लिए लेखक को डांटा। उसने इसके लिए लेखक को दण्ड दिया। उसने मेजर से कहा, “अपना डंडा जमीन में गाड़ दो और मिस्टर स्लिम को तब तक अभ्यास करने दो जब तक उसे यह न पता चल जाए कि सलामी का जवाब कैसे दिया जाता है !” लगभग दस मिनट के पश्चात् उसने लेखक को अपने पास बुलाया और कहा, “अब याद रखना, अनुशासन की शुरुआत अफसरों से होती है।”

यदि किसी व्यक्ति के पास प्रभावशाली पद हो तो उसे सबसे पहले खुद के ऊपर अनुशासन लागू करना चाहिए। यह सच है कि अगर वह आदेश देगा तो उसका पालन होगा, लेकिन उसे यह बात दिमाग में रखनी चाहिए कि वह अपने दल के नेतृत्व का निर्माण केवल आपसी समझ के अनुशासन की नींव पर ही कर सकता है।

अपने अधीनस्थ कर्मचारियों में अनुशासन की भावना भरने के लिए एक अधिकारी को सबसे पहले अपनी स्वयं की जिम्मेवारी का एहसास होना चाहिए। उसे स्वयं के जीवन में अनुशासन के उच्च मापदण्डों का प्रदर्शन करना चाहिए। केवल तभी उसके अधीनस्थ कर्मचारियों पर उसकी शिक्षा या उसके दिशा-निर्देशों का कोई प्रभाव हो सकता है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि अनुशासन हमारी स्वतंत्रता पर कुछ पाबन्दियां लगाता है। लेकिन यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता में किसी प्रकार की कटौती नहीं करता है। वास्तव में यह सारी स्वतंत्रता की नींव है। यह मनुष्य को वास्तव में स्वतंत्र बनाती है। यह मनुष्य को समाज में रहने और फिर भी अपनी निजी आज़ादी बनाए रखने के योग्य बनाती है। यह किसी पुरुष या स्त्री के लिए अपमानजनक नहीं होता है। अपितु यह तो महान् बनाने वाला होता है। अनुशासन के बिना कोई भी राष्ट्र किसी आर्थिक अथवा सैनिक संकट पर काबू नहीं पा सकता है।

प्रजातन्त्र का अर्थ होता है-जिम्मेवारी का विकेन्द्रीकृत होना। और कोई भी उस काम की अनदेखी नहीं कर सकता जो काम करने की उससे आशा की जाती है। लेकिन यह बड़े दुःख की बात है कि हम में से बहुत से लोग अपने 53 हिस्से के काम से जी चुराते हैं। यदि हम में से हर कोई काम करे, तो हम किसी भी प्रकार के संकट पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन इस सब के लिए अनुशासन – बल्कि शुद्ध अनुशासन – की आवश्यकता होती है जो कि हमारे अन्दर से पैदा होता है।

हम अपनी जिम्मेवारी से ज़्यादा अपनी आज़ादी के बारे में सोचते हैं। हमें यह बात हमेशा दिमाग में रखनी चाहिए कि हम किसी भी चीज़ की कीमत अदा किए बगैर उसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं। और इस संबंध में आजादी भी कोई अपवाद नहीं है। हम आज़ादी के बिना अनुशासन तो प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन अनुशासन के बिना हम आजादी प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

Liberty and Discipline Translation in Hindi:

फील्ड मार्शल सर विलियम स्लिम, जो कि इंपीरियल जनरल स्टाफ का मुखिया था, बरतानवी सेना में सबसे ऊँचे ओहदे पर था। वह अनुशासन तथा स्वतंत्रता के साथ इसके सम्बन्ध के विषय में बोलने के लिए सुयोग्य है। यह अध्याय सर विलियम स्लिम के दि फोर्टनाईटली, लन्दन, के लिए लिखे गए लेख में से संक्षिप्त किया गया है। यह उन सभी लोगों के लिए विशेष दिलचस्पी वाला साबित होगा जो उचित रूप से व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर अनुशासन की कमी के कारण फैली अशांति के बारे में चिंतित हैं।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

आप जब अपनी कार में बैठते हैं या अपनी साइकिल पर बैठते हैं तो आप फैसला कर सकते हैं कि आप कहां जाना चाहते हैं। इसे स्वतंत्रता कहते हैं। लेकिन जब आप कार में या साइकिल पर सवार होकर गलियों में से निकलेंगे तो आप सड़क की बाईं तरफ रहेंगे। इसे अनुशासन कहते हैं।

इसके चार कारण हैं कि आप बाईं तरफ ही क्यों चलेंगे :

  • आपका अपना फायदा
  • दूसरों का लिहाज़
  • अपने साथियों में आपका विश्वास; और
  • सज़ा का भय।

यह तुलनात्मक महत्त्व है जो कि हम इन कारणों मेंसे प्रत्येक को देते हैं जो यह निश्चित करता है कि हम किस प्रकार का अनुशासन रखते हैं। और यह सरमन ऑन दि माउन्ट (ईसा मसीह द्वारा पहाड़ी पर खड़े होकर दिया गया पहला उपदेश) वाले शुद्ध आत्म-अनुशासन से लेकर बंदी शिविर, जो कि भय पैदा करने का जबरदस्ती लागू किया हुआ अनुशासन था, तक भिन्न हो सकता है। हमारे सभी महत्त्वहीन झगड़ों के बावजूद, बरतानवी लोग एक हैं जब बात उन ज्यादातर चीज़ों पर आ जाती है जो महत्त्व की हैं और स्वतंत्रता इनमें से एक है।

हम इन बातों की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं की जो हम चाहते हैं, वह कहने की जो हम चाहते हैं, वह काम करने की जो हम चाहते हैं, तथा वहां जाने की जहां हम जाना चाहते हैं। अनुशासन स्वतंत्रता पर लगाई गई पाबन्दी है, इसलिए हम में से बहुतेरों का स्वाभाविक झुकाव इसे नज़रअंदाज़ करने की तरफ ही रहता है, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते।

धुंधले अति पुरातन काल से ही मनुष्य के पास किसी न किसी प्रकार के अनुशासन को स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं रहा है। उस आधुनिक मनुष्य के लिए, जो कि जटिल समुदायों में रहता है, जिनमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरों पर निर्भर है, अनुशासन पहले से भी कहीं अधिक अनिवार्य है।

सारे इतिहास ने हमें सिखाया है कि जब आलस्य, कमज़ोरी अथवा गुटबन्दी के कारण किसी राष्ट्र में व्यवस्था की भावना लुप्त हो जाती है, तो इसके आर्थिक जीवन का पतन हो जाता है, फिर, जब इसका जीवन-स्तर गिर जाता है तथा सुरक्षा गायब हो जाती है, तो दो में से एक बात घटित होती है। या तो कोई अधिक ताकतवर लड़ाकू

शक्ति अपनी ही किस्म का अनुशासन थोपने के लिए आ जाती है अथवा एक तानाशाह का उदय होता है और वह पुलिस राज्य (शासन) का सख़्त नियंत्रण (लोगों के ऊपर) लागू कर देता है। किसी न किसी तरह अन्ततः अनुशासन को दोबारा लागू कर दिया जाता है। समस्या यह नहीं है; “क्या हम अनुशासन को स्वीकार करें?” आज नहीं तो कल हमें करना ही पड़ना है-; समस्या तो यह है “हम इसे कैसे स्वीकार करें?”

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

क्या इसे शारीरिक हिंसा या भय के द्वारा, गंभीर आर्थिक आवश्यकता के द्वारा लागू किया जाएगा अथवा सहमति तथा (आपसी) समझ के द्वारा स्वीकार कर लिया जाएगा? क्या यह कहीं बाहर से आएगा या हमारे भीतर से? शब्द ‘अनुशासन’ कुछ लोगों के लिए मन के पर्दे पर एक ऊँचे जूते पहने हुए अधिकारी, जो कि बैरकों के

चौराहे के उस तरफ मार्च कर रहे फौजियों के दस्ते को जोर-जोर से आदेश दे रहा हो, की तस्वीर बिजली की चमक की भांति ले आता है। लेकिन यह तानाशाही है, अनुशासन नहीं। बुद्धिमान पुरुषों और स्त्रियों के द्वारा स्वीकार किया गया स्वैच्छिक तथा तर्कसंगत अनुशासन एक दूसरी चीज़ है।

यह ऊपर से नीचे तक सभी के ऊपर लागू होता है। बहुत समय पहले, एक सुबह नए-नए भर्ती हुए सेकण्ड लेफ्टिनेंट के रूप में, मैं परेड के लिए जा रहा था। एक निचले दर्जे का सैनिक मेरे पास से गुज़रा और उसने सलामी दी। मैंने उसकी सलामी का जवाब हवा में हाथ लहराते हुए दिया। अचानक मेरे पीछे से एक रूखी-सी आवाज़ ने मेरा नाम पुकारा। मैं तुरंत घूमा और यह मेरा कर्नल था, जिसके लिए मेरे अंदर बहुत आदर था, तथा |

उसके साथ रेजीमेण्टल सारजैंट मेजर था, जिसका मैं आदर भी करता था और जिससे मैं डरता भी था। “मैंने देखा है,” कर्नल ने कहा, “तुम्हें नहीं मालूम कि सलामी का जवाब कैसे दिया जाता है। सारजैंट मेजर, अपना डंडा मैदान में गाड़ दो, और मिस्टर स्लिम को तब तक अभ्यास करने दो जब तक उसे पता न चल जाए कि सलामी का जवाब कैसे दिया जाता है!”

इसलिए आगे-पीछे मैं पूरी बटालियन की आंखों के सामने मार्च करने लगा, सारजैंट मेजर के बेंत को सलामी देते हुए। (मैंने प्रसन्नतापूर्वक कर्नल, सारजैंट मेजर तथा दांत निकालकर हँसते हुए अपने साथी अफसरों को मार दिया होता।) दस मिनट समाप्त होने के बाद कर्नल ने मुझे अपने पास बुलाया।

उसने जो भी कहा वह था “अब याद रखना, अनुशासन की शुरुआत अफसरों से |होती है!” और होता भी ऐसे ही है। नेता को तैयार रहना चाहिए, न सिर्फ उत्तरदायित्व के ऊँचे दर्जे को स्वीकार करने के लिए, बल्कि जिनकी अगुवाई वह करता है उनसे भी अधिक सख़्त आत्म-अनुशासन के दर्जे के लिए। अगर आप किसी प्रभावशाली ओहदे पर हैं, चाहे आप प्रबंध निदेशक हैं या किसी कार्यभार के मुखिया हैं, सबसे पहले आपको अनुशासन अपने स्वयं के ऊपर लागू करना चाहिए। फिर इसे दूसरों के ऊपर लागू करने की कोशिश

करने के आसान तरीके को भूल जाइए – केवल आदेश दे देना और आशा करना कि उनका पालन किया जाएगा। आप आदेश देंगे और आप देखेंगे कि उनका पालन किया जाएगा, लेकिन आप केवल (आपसी) समझ के अनुशासन के ऊपर अपनी टीम के नेतृत्व का निर्माण करेंगे। एक फौजी के अनुशासन में अंधाधुंध आज्ञापालन से बढ़कर भी कुछ होता है और लोगों को अपने विश्वास में लेना कोई पिछले युद्ध में खोजी गई नई तकनीक नहीं है।

ओलिवर क्रॉमवैल यह अपेक्षा करता था कि उसकी should नई आदर्श सेना में प्रत्येक व्यक्ति को “यह मालूम होना चाहिए कि वह किस के लिए लड़ रहा है तथा वह जो जानता है, उससे उसे प्यार होना चाहिए।” शब्द ‘लड़ाई’ की जगह ‘काम’ कर दीजिए और आपको औद्योगिक अनुशासन का सार भी मिल जाएगा – यह जानना कि आप किस के लिए काम करते हैं तथा जो आप जानते हैं उससे प्यार करना।

यह केवल अनुशासन ही है जो लोगों को समाज में रहने तथा फिर भी अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कायम रखने के योग्य बनाता है। अनुशासन से छुटकारा पा लीजिए या इसे अंदर ही अंदर खोखला कर लीजिए, और कमज़ोर लोगों तथा गरीबों की सुरक्षा गायब हो जाएगी। इसलिए, किसी पुरुष या स्त्री के द्वारा अनुशासन को स्वेच्छा से स्वीकार करना अपमानजनक होना तो दूर की बात है, बल्कि यह तो श्रेष्ठ बना देने वाला होता है।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 4 Liberty and Discipline

सर्वसत्तावादी अनुशासन, जिसमें नारेबाजी करती जनता शामिल होती है, का निर्माण व्यक्ति को पूरी तरह से छिपा देने के लिए किया गया है। वह अनुशासन, जिसे व्यक्ति अपने ऊपर इसलिए लागू करता है क्योंकि उसका समझदारीपूर्वक मानना होता है कि इससे उसकी अपनी तथा देश की भलाई के लिए किए जाने वाले लाभदायक काम को करने में उसे सहायता मिलेगी, चरित्र तथा पहलकदमी का विकास करता है।

यह व्यक्ति को उसका काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है, किसी के जाने या देखे बगैर, क्योंकि यह काम करने लायक होता है। पिछले युद्ध के हमलों के दौरान हज़ारों बरतानवी रेलवे सिग्नलमैनों में से एक भी व्यक्ति ने अपनी नियुक्त की गई जगह नहीं छोड़ी। जब बम शोर करते हुए नीचे गिर रहे थे तो वे चारों तरफ शीशे लगी हुई कमज़ोर इमारतों में गर्मी से झुलसे हुए लक्ष्य-क्षेत्रों के बीचों-बीच डटे रहे।

वे जानते थे कि वे किस लिए काम कर रहे थे, वे जानते थे कि इसका दूसरों के लिए तथा उनके देश के लिए क्या महत्त्व था और उन्होंने स्वयं से पहले अपने काम को रखा। यह था अनुशासन। कोई भी देश कभी भी अनुशासन के बिना बुरी स्थिति, चाहे वह आर्थिक हो या सैन्य, से बाहर नहीं निकला।

प्रजातन्त्र का अर्थ है कि जिम्मेवारी विकेन्द्रीकृत होती है और कोई भी परिश्रम के अपने हिस्स स जा नहा चुरा सकता। और हम में से कुछ (बल्कि ) हम में से बहुतेरे, जिंदगी के सभी क्षेत्रों में, जी नहीं चुराते हैं। यदि हर किसी – सिर्फ वही अन्य लोग नहीं जिनकी तरफ हम हमेशा इशारा करते रहते हैं ने उस समय काम किया होता जब उससे काम करने की उम्मीद की जाती थी, तो हम अपने आर्थिक संकट से छुटकारा पा चुके होते।

उसके लिए अनुशासन की जरूरत पड़ती है, जो सिर्फ हम पर ही आधारित न हो, बल्कि जिसको एक स्वस्थ जनमत का समर्थन भी प्राप्त हो। आजकल हम जिम्मेवारी से ज्यादा स्वतन्त्रता के बारे में सोचते हैं, लेकिन अन्ततः हमें कोई भी अच्छी चीज़ उसकी कीमत अदा किए बगैर नहीं मिलती। स्वतन्त्रता भी कोई अपवाद नहीं है। आप स्वतन्त्रता के बिना अनुशासन तो प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन आप अनुशासन के बिना स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं कर सकते।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

Punjab State Board PSEB 11th Class English Book Solutions Chapter 3 Of Studies Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 English Chapter 3 Of Studies

Short Answer Type Questions

Question 1.
What do studies serve for?
Answer:
Studies serve for three purposes. They serve for delight, for ornament and for ability. Books give us joy in our leisure. They enable a person to make his conversation polished and beautiful. They make him capable of managing the practical affairs of daily life.

अध्ययन तीन उद्देश्यों के लिए उपयोगी हैं। वे खुशी के लिए, सजावट के लिए तथा योग्यता के लिए उपयोगी होते हैं। पुस्तकें हमें हमारे अवकाश में प्रसन्नता देती हैं। वे एक व्यक्ति को अपना वार्तालाप शिष्ट तथा सुन्दर बनाने के योग्य बनाती हैं। वे उसे दैनिक जीवन के व्यावहारिक धंधों को सुव्यवस्थित करने के योग्य बनाती हैं।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

Question 2.
What are the chief uses of studies ?
Answer:
Studies mould our character in a healthy manner. History makes us wise, as we learn lessons from past experiences. Poetry makes a person witty. The study of mathematics makes us subtle. We can understand difficult or deep ideas. Science makes us profound. Philosophy makes us serious and sober. Rhetoric sharpens our ability to argue and discuss.

पुस्तकों का अध्ययन हमारे चरित्र को श्रेष्ठ रूप से ढालता है। इतिहास हमें बुद्धिमान् बनाता है क्योंकि हम अतीत के अनुभवों से शिक्षा लेते हैं। कविता व्यक्ति को चतुर बनाती है। गणित का अध्ययन हमें सूक्ष्म बुद्धि वाला बनाता है। हम कठिन अथवा गहन विचार समझ पाते हैं। विज्ञान हमें गहन बनाता है। दर्शनशास्त्र हमें गंभीर और विनम्र बनाता है। व्याख्यान हमारी तर्क तथा वाद-विवाद करने की योग्यता को तीक्ष्ण बनाता है।

Question 3.
When do the studies become the humour of a scholar ?
Answer:
No doubt, studies have great importance in our life. But we cannot lead our life completely according to the rules given in the books. This is the reason that studies become the humour of a scholar when he starts judging things on the basis of rules given in the books. A scholar can judge everything according to bookish knowledge.

निस्सन्देह हमारे जीवन में अध्ययन का बहुत महत्व है। परन्तु हम अपना जीवन पूरी तरह से किताबों में दिए गए नियमों के अनुसार नहीं बिता सकते। यही कारण है कि अध्ययन एक विद्वान का मजाक बन जाता है जब वह चीजों का मूल्यांकन किताबों में दिए नियमों के अनुसार करने लगता है। एक विद्वान हर चीज का मूल्यांकन किताबी ज्ञान के आधार पर कर सकता है।

Question 4.
What do the crafty men, simple men and wise men do with the studies respectively ?
Answer:
The crafty men look down upon books. They think that cunningness will do for them; wisdom of books is of no use. Simple men admire books. They look at them with awe. But the wise men derive advantage out of books. With the help of studies, they prune their natural abilities and thus perfect their nature.

मक्कार लोग अध्ययन से घृणा करते हैं। उनके विचार से दुष्टता ही उनके लिए काफी रहेगी; पुस्तकों का ज्ञान किसी काम का नहीं है। साधारण लोग पुस्तकों की सराहना करते हैं। वे इनको प्रशंसा तथा अचम्भे से देखते हैं। परन्तु बुद्धिमान लोग पुस्तकों से लाभ प्राप्त करते हैं। पुस्तकों के अध्ययन की सहायता से वे अपनी स्वाभाविक योग्यताओं की काट-छांट करते हैं और इस प्रकार अपने स्वभाव को संपूर्ण बनाते हैं।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

Question 5.
Why should we read ?
Answer:
Studies offer many advantages. Books give us delight when we study them at leisure. They enable us to make our conversation polished and beautiful. Books also give us the sense to manage the practical affairs of our daily life.

पुस्तकें पढ़ने के बहुत से लाभ हैं। पुस्तकें हमें अवकाश में पढ़ते समय खुशी देती हैं। वे हमें इस योग्य बनाती हैं कि हम अपने वार्तालाप को शिष्ट और सुन्दर बना लें। पुस्तकें हमें अपने दैनिक जीवन के व्यावहारिक धन्धों को सुव्यवस्थित करने की बुद्धिमत्ता भी देती हैं।

Question 6.
‘Some books are to be tasted.’ What does the author mean by this statement ?
Answer:
Some books are good in parts only. So we should taste them, study them in parts. Here the author means to say that some books don’t need thorough reading. They may be given cursory reading only. They don’t need deep and serious reading

कुछ पुस्तकों के कुछ भाग ही अच्छे होते हैं। हमें उनका स्वाद लेना चाहिए, उनको भागों में पढ़ना चाहिए। यहां लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ पुस्तकों को पूरी तरह से पढ़ने की जरूरत नहीं होती। उनका सिर्फ सतही अध्ययन किया जाना चाहिए। उनका गहन तथा गंभीर अध्ययन करने की कोई जरूरत नहीं होती।

Question 7.
What do reading, conference and writing make a man respectively?
Answer:
Reading develops the mental faculties of a man. Conversation and discussion make him a man with a ready wit. Writing makes a man very exact. He can quote exact facts and figures. He learns how to state everything clearly.

अध्ययन मनुष्य के मानसिक गुणों का विकास करता है। वार्तालाप तथा वाद-विवाद उसे हाजिर जवाबी वाला मनुष्य बना देता है। लिखना एक मनुष्य को परम शुद्ध बनाता है। वह बिल्कुल सही तथ्य व आंकड़े बता सकता है। वह सीख लेता है कि प्रत्येक चीज़ को स्पष्ट रूप से कैसे बतलाए।

Question 8.
How are different types of physical activities beneficial to us ?
Answer:
Different types of physical activities and exercises cure our physical ailments. Bowling is good for the stone and the kindneys. Shooting is good for the lungs and breast. Gentle walking is useful for the stomach and riding for the head.

भिन्न-भिन्न प्रकार की शारीरिक गतिविधियां तथा व्यायाम हमारे शरीर की बीमारियों को ठीक करते हैं। गेंद मार कर बोतलों को गिराना पथरी तथा गुर्दो के लिए अच्छा होता है। तीरन्दाजी फेफड़ों तथा छाती के लिए अच्छी होती है। आराम से चलना पेट के लिए तथा घुड़सवारी करना सिर के लिए लाभदायक है।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

Question 9.
When should a man study mathematics?
Answer:
When a man wants to improve his concentration, he should study mathematics. Mathematics improves our concentration. The study of mathematics makes us subtle. We can understand difficult or deep ideas. It makes us intelligent.

जब कोई व्यक्ति अपनी एकाग्रता को सुधारना चाहे, तो उसे गणित का अध्ययन करना चाहिए। गणित हमारी एकाग्रता को सुधारता है। गणित का अध्ययन हमें सूक्ष्म बुद्धि वाला बनाता है। हम कठिन अथवा गहन विचार समझ पाते हैं। यह हमें बुद्धिमान बनाता है।

Question 10.
When should we study lawyers’ cases ?’
Answer:
When we lack reasoning and want to improve our intellect, we should study law and lawyers’ cases. It will make us apt to beat over matter. If we want to call up one thing to prove and illustrate another thing, we should study lawyers’ cases.

जब हम में तर्क की कमी हो और हम अपनी बुद्धि को सुधारना चाहें, तो हमें कानून तथा वकीलों के मुकदमों का अध्ययन करना चाहिए। यह हमें तेजी से निरीक्षण तथा विश्लेषण करने के योग्य बनाएगा। यदि हम किसी बात को साबित करने तथा उदाहरण सहित व्याख्या करने के उद्देश्य से किसी चीज को दिमाग में लाना चाहते हैं, तो हमें वकीलों के मुकदमों का अध्ययन करना चाहिए।

Question 11.
How are natural abilities like plants ?
Answer:
Natural abilities mean natural talents. These talents are like plants. Plants have a wild growth. They must be pruned and trimmed. Only then do they become orderly and beautiful. Same is the case with our abilities. These abilities need guidance in a right direction. Only then they become useful for society.

स्वाभाविक योग्यताओं का अर्थ है, स्वाभाविक प्रतिभाएं। ये प्रतिभाए पौधों के समान होते हैं। पौधे ऊटपटांग तरीके से उगते हैं। उनके अनावश्यक भागों को काट देना चाहिए तथा उनकी काट-छांट कर देनी चाहिए। केवल तभी वे सुव्यवस्थित तथा सुन्दर बन सकते हैं। ऐसा ही हमारी योग्यताओं के साथ होता है। इन योग्यताओं को उचित दिशा में मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। केवल तभी वे समाज के लिए उपयोगी बन सकेंगी।

Question 12.
What must books not be read for?
Answer:
Books should be read not to condemn or refute others. At the same time, we should not suspend our judgement, and believe whatever is written in books. Again, we should not study books merely to deliver talks and discourses.

पुस्तकों को दूसरों से घृणा करने या उनका खंडन करने के लिए नहीं पढ़ा जाना चाहिए। साथ ही, हमें अपनी परख को नहीं छोड़ना चाहिए तथा जो कुछ पुस्तकों में लिखा है उन पर अंधाधुन्ध विश्वास नहीं करना चाहिए। फिर हमें पुस्तकों का अध्ययन केवल व्याख्यान तथा उपदेश देने के लिए नहीं करना चाहिए।

Question 13.
The study of which subject can improve concentration if ‘one’s wits be wandering’ ? How?
Answer:
The study of mathematics is needed to improve our concentration. Solving mathematical problems, in fact, gives us a training in having undivided concentration. If while solving a mathematical sum, our attention wanders, we have to begin all over again. That’s a training in concentration.

गणित का अध्ययन हमारी एकाग्रता को सुधार सकता है। वास्तव में गणित की समस्याओं का समाधान हमें अविभाजित एकाग्रता प्राप्त करने का प्रशिक्षण देता है। यदि गणित का कोई प्रश्न हल करते हुए हमारा ध्यान भटक जाता है, तो हमें वह प्रश्न पुनः आरम्भ करना पड़ता है। यही एकाग्रता का प्रशिक्षण है।

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Question 14.
Do you agree with Bacon that ‘studies pass into character’?
Answer:
We do agree with Bacon partly, not wholly. Studies mould man’s character in a healthy manner. Books do influence our mind. Different subjects teach us wisdom, concentration, sobriety, reasoning, etc. But other factors count too. The reader’s mind, too, should be open to the ideas presented in books. Otherwise those ideas won’t pass into character.

हम बेकन से थोड़ा सहमत हैं, पूरी तरह नहीं। अध्ययन व्यक्ति के चरित्र को एक स्वास्थ्यकर ढंग से ढालता है। पुस्तकें हमारे मस्तिष्क को अवश्य ही प्रभावित करती हैं। भिन्न-भिन्न विषय हमें बुद्धिमत्ता, एकाग्रता, गम्भीरता व तर्क, इत्यादि सिखाते हैं। परन्तु अन्य तत्त्वों का भी महत्त्व होता है। पाठक का मस्तिष्क भी पुस्तकों द्वारा प्रस्तुत किए गए विचारों के लिए खुला होना चाहिए। अन्यथा वे विचार हमारे चरित्र में नहीं उतर पायेंगे।

Question 15.
Do studies have a harmful effect, according to Bacon ?
Answer:
Yes, but only excessive studies. A person who spends too much time in studying books can become lazy. Making too much use of bookish knowledge in conversation will make it artificial. Similarly, judging everything according to bookish knowledge won’t be practical.

हाँ, परन्तु केवल अत्यधिक अध्ययन। एक व्यक्ति जो पुस्तकों के अध्ययन में अत्यधिक समय व्यतीत करता है, सुस्त बन सकता है। वार्तालाप में किताबी ज्ञान का अत्यधिक प्रयोग करने से यह कृत्रिम बन जायेगा। इसी प्रकार हर चीज़ को किताबी ज्ञान से परखना व्यावहारिक नहीं होगा।

Question 16.
Studies are to mind what exercises are to body. How ?
Answer:
Exercises cure physical ailments. Similarly, studies can cure mental ailments. Mathematics improves concentration. It makes a man subtle and he can understand a deep or difficult idea. If a man cannot find differences, he should study the philosophers of the Medieval times. To improve intellect, a man should study legal cases.

व्यायाम शारीरिक बीमारियों को ठीक करते हैं। इसी प्रकार अध्ययन मानसिक बीमारियों को दूर कर सकता है। गणित एकाग्रता सुधारता है। यह व्यक्ति को सूक्ष्म बुद्धि वाला बनाता है और वह गहन अथवा कठिन विचार को समझ सकता है। यदि कोई व्यक्ति (वस्तुओं में) अन्तर नहीं ढूंढ सकता है तो उसे मध्यकाल के दार्शनिकों का अध्ययन करना चाहिए। बुद्धि को सुधारने के लिए मनुष्य को कानूनी मुकदमों का अध्ययन करना चाहिए। .

Question 17.
Some books are to be tasted, others to be swallowed, and some few to be chewed and digested.’ Explain.
Answer:
The author talks about the books of different quality. Some books are good only in parts. So they should be tasted, that is, they should be read in parts. Some books are of a mediocre quality. Not much time should be wasted on them. They should be gone through hurriedly. But some few books are of a very high quality. Such books should be read with full concentration. They should be assimilated.

लेखक भिन्न-भिन्न गुणों वाली पुस्तकों की बात करता है। कुछ पुस्तकें भागों में ही अच्छी होती हैं। अतः उनका स्वाद ही लेना चाहिए, अर्थात उन्हें भागों में ही पढ़ना चाहिए। कुछ पुस्तकें मध्यम (साधारण) श्रेणी की होती हैं। उन पर अधिक समय नष्ट नहीं करना चाहिए। उनको जल्दी-जल्दी पढ़ लेना चाहिए। परन्तु कुछ थोड़ी-सी पुस्तकें उच्चतम व श्रेष्ठ होती हैं। ऐसी पुस्तकों को पूर्ण एकाग्रता से पढ़ना चाहिए। उनको आत्मसात कर लेना चाहिए।

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Long Answer Type Questions

Question 1.
How do studies perfect man’s nature ?
Answer:
Studies mould man’s character in a healthy manner. They have great influence on his mind. Studies, in fact, pass into man’s character. Different subjects teach him wisdom, concentration, soboriety, reasoning, etc. History makes him wise as he learns lessons from past experiences.

Poetry makes him witry. The study of Mathematics makes him subtle and man can understand difficult or deep ideas. Science makes him profound. Philosophy makes him serious and sober. Rhetoric sharpens his ability to argue and discuss. Books enable man to make his conversation polished and beautiful. They enable man to manage the affairs of his day-to-day life most efficiently. Thus studies prune man’s natural abilities and perfect his nature.

पुस्तकों का अध्ययन मनुष्य के चरित्र को श्रेष्ठ रूप में ढालता है। उनका उसके दिमाग पर बहुत प्रभाव पड़ता है। पुस्तकों का अध्ययन वास्तव में मनुष्य के चरित्र का निर्माण करता है। विभिन्न विषय उसे बुद्धिमत्ता, एकाग्रता, गंभीरता तथा तर्क, इत्यादि सिखाते हैं। इतिहास उसे बुद्धिमान बनाता है क्योंकि वह अतीत के अनुभवों से शिक्षा लेता है।

कविता उसे चतुर बनाती है। गणित का अध्ययन उसे सूक्ष्म बुद्धि वाला बनाता है और मनुष्य कठिन अथवा गहन विचार समझ पाता है। विज्ञान मनुष्य को गहन बनाता है। दर्शन-शास्त्र उसे गम्भीर बनाता है। व्याख्यान उसमें तर्क तथा वाद-विवाद करने की योग्यता को तीक्ष्ण बनाता है। पुस्तकें मनुष्य के वार्तालाप को सुन्दर तथा शिष्ट बनाती हैं।

वे मनुष्य को इस योग्य बनाती हैं कि वह अपने दैनिक जीवन के काम-धन्धों को सकुशल रूप से व्यवस्थित कर सके। इस प्रकार पुस्तकों का अध्ययन मनुष्य की स्वाभाविक योग्यताओं की काट-छांट करता है और उसके स्वभाव को संपूर्णता प्रदान करता है।

Question 2.
How do different types of men make use of studies ?
Answer:
Different people have different attitudes towards studies. The wicked people don’t consider studies worthwhile. They look down upon books. They are full of cunningness and they think that their cunningness will do for them. According to them, wisdom of books is of no use.

Simple-minded people have respect for books. They know the value of books in man’s life. But they just admire books and look at them with awe. But the wise men, says the author, derive advantage out of books. With the help of studies, they make their conversation polished and beautiful.

Wisdom and knowledge gained from the books makes them capable of managing the practical affairs of daily life. With the help of studies, they prune their natural abilities and thus perfect their nature.

अध्ययन के प्रति भिन्न-भिन्न लोगों का भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण होता है। दुष्ट लोग पुस्तकों के अध्ययन को व्यर्थ मानते हैं। वे पुस्तकों से घृणा करते हैं। वे धूर्तता से भरे होते हैं और उनके विचार से दुष्टता ही उनके लिए काफी रहेगी। उनके अनुसार पुस्तकों की बुद्धिमत्ता किसी काम की नहीं होती है।

साधारण लोग पुस्तकों का सम्मान करते हैं। वे मनुष्य के जीवन में पुस्तकों के मूल्य को समझते हैं। परन्तु वे पुस्तकों की सिर्फ सराहना करते हैं और इनको प्रशंसा तथा अचम्भे से देखते हैं। परन्तु बुद्धिमान लोग, लेखक कहता है, पुस्तकों से लाभ प्राप्त करते हैं। पुस्तकों के अध्यययन की मदद से वे अपने वार्तालाप को शिष्ट तथा सुंदर बना लेते हैं।

पुस्तकों से प्राप्त हुआ ज्ञान तथा बुद्धिमत्ता उन्हें दैनिक जीवन के व्यावहारिक धंधों को सुव्यवस्थित करने के योग्य बनाता है। पुस्तकों के अध्ययन की सहायता से वे अपनी स्वाभाविक योग्यताओं की काट-छांट करते हैं और इस प्रकार अपने स्वभाव को संपूर्ण बनाते हैं।

Question 3.
What does the author say about different types of books ?
Answer:
The author talks about the books of different quality. He says that some books are good in parts only. So they should be tasted, that is they should be read in parts only. Then there are some books of mediocre quality. They don’t deserve a thoughtful study.

So not much time should be wasted on them. They should be swallowed. In other words, they should be gone through hurriedly. But there are some books which are really good. These books are of a high quality. Such books should be read thoroughly and with full concentration. They should be read seriously and deeply. In short, such books should be assimilated.

लेखक भिन्न-भिन्न गुणों वाली पुस्तकों की बात करता है। वह कहता है कि कुछ पुस्तकें सिर्फ भागों में ही अच्छी होती हैं। इसलिए उनका स्वाद ही लेना चाहिए, अर्थात् उन्हें भागों में ही पढ़ना चाहिए। फिर कुछ पुस्तकें होती हैं जो मध्यम (साधारण) श्रेणी की होती हैं। उन्हें गौर से नहीं पढ़ा जाना चाहिए।

इसलिए उन पर अधिक समय नष्ट नहीं करना चाहिए। उन्हें निगल जाना चाहिए। अन्य शब्दों में, उनको जल्दी जल्दी पढ़ लेना चाहिए। परन्तु कुछ पुस्तकें होती हैं जो वास्तव में बहुत अच्छी होती हैं। ऐसी पुस्तकें उच्चतम व श्रेष्ठ होती हैं। ऐसी पुस्तकों को अच्छी तरह तथा पूर्ण एकाग्रता से पढ़ना चाहिए। उनका अध्ययन गहनता से तथा गंभीरतापूर्वक करना चाहिए। संक्षेप में, ऐसी पुस्तकों को आत्मासात कर लेना चाहिए।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

Question 4.
What must man have if he writes, confers or reads little ?
Answer:
The author says that there are some sort of qualities which a man should possess, if he writes or confers or reads little. He says that if a man writes little, he must have a great memory. With his good memory, he will be able to retain the things in his mind.

Then the author says that if a man confers little, he must have a present wit. According to the author, present wit would make him able to tackle the unexpected and unpleasant situations at times occurring in his life. And if a man reads little, says the author, he must have cunningness. It would make him look confident. Then he would seem to know that he does not know in fact.

लेखक कहता है कुछ किस्म के गुण हैं जो एक मनुष्य में होने चाहिएं यदि वह कम लिखता है, अथवा कम बातचीत करता है अथवा कम पढ़ता है। वह कहता है कि यदि कोई व्यक्ति कम लिखता हो, तो उसकी याद्दाश्त बहुत तेज़ होनी चाहिए। अपनी अच्छी याद्दाश्त की मदद से वह बातों को अपने दिमाग में याद रख सकेगा।

फिर लेखक कहता है कि यदि व्यक्ति कम वार्तालाप करता है, तो उसे हाज़िर-जवाब अवश्य होना चाहिए। लेखक के अनुसार, हाज़िर-जवाबी उसे जीवन में समय-समय पर होने वाली अप्रत्याशित तथा असुखद परिस्थितियों का सामना करने के काबिल बनाएगी। और यदि व्यक्ति कम पढ़ता है, तो लेखक कहता है, उसके अन्दर धूर्तता (चालाकी) अवश्य होनी चाहिए। इससे वह विश्वस्त दिखाई देगा। फिर ऐसा प्रतीत होगा कि वह सब जानता है जो कि वह वास्तव में नहीं जानता होगा।

Question 5.
How do studies pass into the character ?
Answer:
Studies have a great influence on human character. They remove mental deficiencies and improve our character. They enable us to make our conversation polished and beautiful. They make us capable of managing the practical affairs of daily life.

Studies indeed are of immense value in our life. Studies have a great influence on our mind as well. Different subjects teach us wisdom, concentration, sobriety, reasoning, etc. History makes us wise as we learn lessons from past experiences. Poetry makes us witty.

Mathematics makes us subtle. Science makes us profound. Philosophy makes us sober and serious. Rhetoric sharpens our ability to argue and discuss. Thus, studies pass into our character and mould it in a healthy manner.

अध्ययनों का मानव-चरित्र पर बड़ा प्रभाव होता है। ये मानसिक त्रुटियों को दूर करते हैं तथा हमारे चरित्र को सुधारते हैं। ये हमें अपना वार्तालाप शिष्ट तथा सुंदर बनाने योग्य बनाते हैं। वे हमें दैनिक जीवन के व्यावहारिक धंधों को व्यवस्थित करने के योग्य बनाते हैं। हमारे जीवन में अध्ययन की सचमुच बहुत महत्ता है।

अध्ययन का हमारे मस्तिष्क पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है। भिन्न-भिन्न विषय हमें बुद्धिमत्ता, एकाग्रता, गम्भीरता तथा तर्क, इत्यादि सिखाते हैं। इतिहास हमें बुद्धिमान बनाता है क्योंकि हम अतीत के अनुभवों से शिक्षा लेते हैं। कविता हमें हाज़िरजवाब बनाती है। गणित हमें सूक्ष्म बुद्धि वाला बनाता है।

विज्ञान हमें गहन बनाती है। दार्शनिकता हमें शांत तथा गम्भीर बनाती है। व्याख्यान हममें तर्क तथा वाद-विवाद करने की योग्यता को तीक्ष्ण बनाता है। इस प्रकार अध्ययन हमारे चरित्र का निर्माण करता है और इसे एक श्रेष्ठ रूप प्रदान करता है।

Question 6.
What are the different ways of reading books ?
Answer:
The author suggests different ways of reading books. As Bacon says : ‘Some books are to be tasted, others to be swallowed, and some few to be chewed and digested.’. It means there are different types of books, and a reader should have a different approach towards them.

Some books, for example, are good in parts only. So they should be tasted, that is, they should be read in parts only. Then, there are books that don’t deserve a thoughtful study. They should be swallowed. In other words, we should go through them hurriedly. But there are really good books too books of high quality. Such books should be thoroughly read and assimilated.

There are books of a fourth kind too. These books are of a very low quality. Such books should be read by proxy. They should not be read in original. They should be studied through notes, etc. These are the ways of reading different books.

लेखक पुस्तकें पढ़ने के भिन्न-भिन्न तरीके सुझाता है। जैसा कि बेकन कहता है, “कुछ पुस्तकों का स्वाद लेना चाहिए, कुछ पुस्तकों को निगल जाना चाहिए तथा कुछ थोड़ी-सी ऐसी होती हैं जिन्हें चबाया तथा हजम किया जाना चाहिए।” इसका अर्थ है कि पुस्तकें भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं तथा एक पाठक को उनके प्रति भिन्न-भिन्न व्यवहार रखना चाहिए।

उदाहरणतः कुछ पुस्तकों के केवल कुछ भाग ही अच्छे होते हैं। अतः उनका स्वाद लेना चाहिए, अर्थात् उनको भागों में ही पढ़ना चाहिए। तब कुछ ऐसी पुस्तकें होती हैं, जिनको गौर से नहीं पढ़ा जाना चाहिए। उनको निगल जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में, हमें उन्हें शीघ्रता से पढ़ना चाहिए। परन्तु वास्तव में श्रेष्ठ पुस्तकें भी होती हैं – उच्च कोटि की पुस्तकें । इन पुस्तकों को पूर्णतः पढ़ना चाहिए तथा अपने अन्दर आत्मसात करना चाहिए।

पुस्तकों की एक चौथी किस्म भी होती है। ये पुस्तकें बड़े निम्न स्तर वाली होती हैं। ऐसी पुस्तकों को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए रूपांतर में पढ़ना चाहिए। इन्हें इनके मूल रूप में नहीं पढ़ना चाहिए। इन्हे नोट्स, इत्यादि के जरिए पढ़ना चाहिए। ये भिन्न-भिन्न पुस्तकों को पढ़ने के तरीके हैं।

Question 7.
What are the advantages of studies ?
Answer:
Studies offer many advantages. Books give us delight when we study them at leisure. They enable us to make our conversation polished and beautiful. Books also give us the sense to manage the practical affairs of our daily life.

Studies mould our character in a healthy manner. History makes us wise, as we learn lessons from past experiences. Poetry makes a person witty. The study of mathematics makes us subtle. We can understand difficult or deep ideas. Science makes us profound. Philosophy makes us serious and sober. Rhetoric sharpens our ability to argue and discuss.

Books are useful in another way also. They serve as an effective cure for many mental ailments. Mathematics improves our concentration. The philosophers of the Middle Ages teach us to find differences. If we lack reasoning, we should study law and lawyers’ cases. Thus studies offer a variety of advantages.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

पुस्तकें पढ़ने के बहुत से लाभ होते हैं। पुस्तकें हमें अवकाश में पढ़ते समय खुशी देती हैं। वे हमें इस योग्य बनाती हैं कि हम अपने वार्तालाप को सुन्दर बना लें। पुस्तकें हमें अपने दैनिक जीवन के व्यावहारिक धन्धों को सुव्यवस्थित करने की बुद्धिमत्ता भी देती हैं। पुस्तकों का अध्ययन हमारे चरित्र को श्रेष्ठ रूप से ढालता है।

इतिहास हमें बुद्धिमान् बनाता है क्योंकि हम अतीत के अनुभवों से शिक्षा लेते हैं। कविता व्यक्ति को चतुर बनाती है। गणित का अध्ययन हमें सूक्ष्म बुद्धि वाला बनाता है। हम कठिन अथवा गहन विचार समझ पाते हैं। विज्ञान हमें गहन बनाता है। दर्शनशास्त्र हमें गंभीर और विनम्र बनाता है। व्याख्यान हमारी तर्क तथा वाद-विवाद करने की योग्यता को तीक्ष्ण बनाता है। पुस्तकें एक और तरीके से भी लाभदायक होती हैं।

वे बहुत-सी मानसिक बीमारियों के प्रभावशाली उपचार का कार्य करती हैं। गणित हमारी एकाग्रता को सुधारता है। मध्यकाल के दार्शनिक हमें अन्तर करना सिखाते हैं। यदि हम में तर्क की कमी है तो हमें कानून तथा वकीलों के मुकदमों का अध्ययन करना चाहिए। अतः पुस्तकों के अध्ययन के बहुत से लाभ होते हैं।

Question 8.
Give the substance of the essay, ‘Of Studies’.
Answer:
Of Studies’ tells us the importance of studying books. Books are a source of delight and usefulness. They entertain us when we read them at leisure. They make our conversation polished and beautiful. Excessive studies, however, will make us lazy and pedant.

Studies do give us an insight into the working of human mind. But we should not read books to condemn or contradict others. Nor should we use our bookish knowledge for delivering talks and discourses. The real aim of studies is the acquisition of wisdom. Books are of different kinds. Some are to be studied in parts. There are books which we should go through hurriedly.

But really good books should be studied thoroughly, with full concentration. Studies have a great influence on human character. They remove mental deficiencies and improve our character. They, indeed, are of immense value.

‘Of Studies हमें पुस्तकों के अध्ययन की महत्ता बताता है। पुस्तकें खुशी तथा उपयोगिता का स्रोत हैं। जब हम अवकाश में इन्हें पढ़ते हैं, तो ये हमारा मनोरंजन करती हैं। ये हमारे वार्तालाप को शिष्ट और सुन्दर बनाती हैं। परन्तु पुस्तकों का अत्यधिक अध्ययन हमें सुस्त तथा विद्यागर्वी बना देता है।

पुस्तकों का अध्ययन हमें मानव-मस्तिष्क के कार्य के ढंग का अन्तर्ज्ञान देता है। हमें दूसरों की निन्दा अथवा उनकी बात काटने के लिए पुस्तकें नहीं पढ़नी चाहिएं। न ही हमें अपने किताबी ज्ञान का प्रयोग भाषण अथवा उपदेश देने के लिए करना चाहिए। अध्ययन का वास्तविक उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति है। पुस्तकें भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं। कुछ को भागों में ही पढ़ना चाहिए। कुछ पुस्तकें ऐसी हैं जिन्हें हमें शीघ्रता से पढ़ लेना चाहिए।

परन्तु वास्तविक श्रेष्ठ पुस्तकों को पूर्ण एकाग्रता के साथ पूरी तरह पढ़ना चाहिए। अध्ययन का मानव-चरित्र पर बड़ा प्रभाव होता है। यह मानसिक त्रुटियों को दूर करता है तथा हमारे चरित्र को सुधारता है। सचमुच उनकी अत्यधिक महत्ता है।

Objective Type Questions

Question 1.
Who wrote the essay, ‘Of Studies’ ?
Answer:
Francis Bacon.

Question 2.
How many purposes does the study of books serve ?
Answer:
Three purposes.

Question 3.
When do the books give us joy ?
Answer:
When we study, When we study them in loneliness.

Question 4.
What is the harm of spending too much time in studies ?
Answer:
It makes us lazy and ease-loving.

Question 5.
What perfects the study of books ?
Answer:
Experience.

Question 6.
For what purpose should we read books ?
Answer:
To think deep and gain wisdom.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

Question 7.
What sort of books should be read by proxy ?
Answer:
The books of lower quality.

Question 8.
What must a man have if he writes little ?
Answer:
A good memory.

Question 9.
What influence does writing poetry have on man?
Answer:
It makes a man creative.

Vocabulary And Grammar

1. Fill in the blanks in the following sentences with suitable words selected from the box below :

learned , extract, perfect ,crafty, chew, exact ,contradict

1. This gold …………. carries a purity of 95 percent.
2. Many a ………….. professor took part in the conference.
3. You must ……….. your food well.
4. ………….. persons are sometimes caught in their own nets.
5. This passage is an …………. from a speech by Nehru.
6. Your reply must be ………….. and to the point.
7. Practice makes a man ……………. .
8. I do not mean to …………….. what you are saying.
Answer:
1. ornament
2. learned
3. chew
4. Crafty
5. extract
6. exact
7. perfect
8. contradict.

2. Form nouns from the following words :

Word –Noun

1. consider — consideration
2. punish — punishment
3. believe — belief
4. opt — option
5. idle — idleness
6. weak — weakness
7. dictate — dictation
8. violent — violence
9. intelligent — intelligence
10. obey — obedience

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

3. Fill in each blank with a suitable preposition :

1. Her face was a criss-cross ……. wrinkles.
2. She used to get up …………. the morning and get me ready …………. school.
3. He rules ………… a vast empire.
4. I never bothered ……………… learn the prayer.
5. The driver jumped …………… the car.
Answer:
1. of
2. in; for
3. over
4. to
5. out of.

4. Change the voice :

1. Baron Hausberg buys all my pictures.
2. Will Pakistan build a nuclear breeder ?
3. His conduct amazed us.
4. Who is creating this mess?
5. He is said to be very rich.
Answer:
1. All my pictures are bought by Baron Hausberg.
2. Will a nuclear breeder be built by Pakistan ?
3. We were amazed at his conduct.
4. By whom is this mess being created ?
5. They say that he is very rich.

5. Change the form of narration :

1. My mother said to me, “You will miss the train.”
2. “Gandhiji believed in non-violence,” said the Prime Minister.
3. Rita said to me, “Trust in God and do the right.”
4. “Don’t run away, Hughie,” said he.
5. “What an amazing model !” shouted Trevor.
Answer:
1. My mother told me that I would miss the train.
2. The Prime Minister said that Gandhiji believed in non-violence.
3. Rita advised me to trust in God and do the right.
4. He asked Hughie not to run away.
5. Trevor shouted that it was an amazing model.

Of Studies Summary & Translation in English

Of Studies Summary in English:

According to Bacon, studying books serves three useful purposes. They are a source of entertainment for us in our leisure. They enable us to make our conversation polished and beautiful. They enable us to manage the affairs of our day-to-day life most efficiently. Thus studies give us profit as well as pleasure.

But excessive studies can prove harmful. Spending too much time on studies will make us lazy. Using bookish knowledge in conversation will make it artificial. Judging everybody and everything according to the bookish knowledge too is no good. The author calls it the mere whim of a scholar. There is nothing sensible about it.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

Different people have different attitudes towards studies. The wicked people look down upon books. They think that cunningness will do for them; wisdom of books is of no use. Simple-minded people admire books. They look at them with awe.

But the wise men derive advantage out of books. A person, however, must have clear aims of studying books. We should not use bookish knowledge to contradict and condemn others. We should not have blind faith in books. We should not suspend our judgement and believe all that is written in books. Moreover, the aim of studies is not to indulge in talks and discourses.

The aim of studies, in fact, is the acquisition of wisdom. We must develop the wisdom to judge the actions, achievements and values of men and society.

According to Bacon, every book should not be read with the same interest and concentration. There are books and books in the world. There are good books and bad books – well-written books and badly-written books, as they say. There are books of high quality and books of low quality. Time on books should be spent according to their quality.

Bacon beautifully remarks : Some books are to be tasted, others to be swallowed, and some few to be chewed and digested.’ It means that some books should be read in parts – they are good in parts only. Some books should be swallowed. We should go through them hurriedly.

They don’t deserve our time and concentration. But some books are of a very high quality. We must read them with full concentration. We must digest them, assimilate them. But there are certain books which need not be read in original. Reading them through notes and extracts will be enough. Such books are read through proxy.

Bacon goes on to say : ‘Reading maketh a full man; conference a ready man; and writing an exact man. In other words, it means that reading develops the mental faculties of man; conversation and discussion make him quick-witted. Writing makes him an accurate man. He can quote exact facts and figures. Studies have a great influence on the human mind. History makes men wise. Poetry makes him witty and Mathematics, subtle. Science makes man profound and philosophy makes him sober and serious.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

Books have curative powers too. Physical exercises cure physical ailments while studies cure a man of his mental deficiencies. Mathematics cures lack of concentration. If a man cannot find differences, he should study the philosophers of the Middle Ages. Similarly, if a man lacks reasoning, he should study law and lawyers’ cases. Thus, Bacon believes that every defect of the mind has a special remedy.

Of Studies Translation in English:

Francis Bacon (1561-1626), “the brightest, wisest and meanest? of mankind”, is known as the father of the English essay and the father of modem English prose. Eke was a voluminous writer. His essays mostly deal with the ethicall qualities of men or with matters pertaining to the government or the state. They are full of practical wisdom of life. His style is aphoristic ,formal, impersonal and informative.

In the present essay Bacon describes the advantages of studies. This is one of his most popular essays. Studies give pleasure, embellish our conversation and augment our practical abilities. Different men view studies differently.

Reading, writing and conversation are all necessary to perfect and develop the powers of a man. A study of different subjects carries with it different advantages. Studies cure mental ailments or defects just as certain sports and exercises cure specific physical ailments.

Studies serve for delight, for ornament, and for ability. Their chief use for delight, is in privateness and retiring, for ornament, is in discourse, and for ability, is in the judgement and disposition of business.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

For expert men can execute, and perhaps judge of particulars, one by one, but the general counsels, and the plots and marshalling of affairs, come best from those that are learned. To spend too much time in studies is sloth; to use them too much for ornament is affectation; to make judgement wholly by their rules, is the humour of a scholar.

They perfect nature and are perfected by experience: for natural abilities are like natural plants that need pruning by study; and studies themselves do give forth directions too much at large, except they be bounded in by experience. Crafty men condemn studies; simple men admire them; and wise men use them for they teach not their own use; but that is a wisdom without them, and above them, won by observation.

Read not to contradict and confute, nor to believe and take for granted, nor to find talk and discourse; but to weigh and consider. Some books are to be tasted, others to be swallowed, and some few to be chewed and digested, that is, some books are to be read only in parts; others to be read but not curiously, and some to be read wholly and with diligence and action.

Some books also may be read by deputy, and extracts made of them by others, but that would be only in the less important arguments and the meaner sort of books, else distilled books are like common distilled waters, flashy things.

Reading maketh a full man; conference a ready man; and writing an exact man. And therefore if a man writes little; he had need have a great memory; if he confers little, he had need have a present wit, and if he reads little, he had need have much cunning, to seem to know that he doth not. Histories make men wise, poets witty; the mathematics subtle; natural philosophy deep; moral grave ; logic and rhetoric able to contend. About studia in mores (Studies pass into the character).

Nay there is no stand or impediment in the wit, but may be wrought out by fit studies: like as diseases of the body may have appropriate exercise. Bowling is good for the stone and reins shooting for the lungs and breast, gentle walking for the stomach; riding for the head, and the like.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

So if a man’s wit be wandering, let him study the mathematics, for in demonstration if his wit be not apt to distinguish or find differences, let him study the schoolmen; for they are cymini sectores If he be not apt to beat over matters, and to call up one thing to prove and illustrate another, let him study the lawyers’ cases. So every defect of the mind may have a special

Of Studies Summary & Translation in Hindi

Of Studies Summary in Hindi:

लेख का विस्तृत सार बेकन के विचार में पुस्तकें पढ़ने के तीन लाभदायक उद्देश्य हैं। वे हमारे अवकाश में मनोरंजन का साधन हैं। वे हमारे वार्तालाप को शिष्ट तथा सुन्दर बनाती हैं। वे हमें इस योग्य बनाती हैं कि हम अपने दैनिक जीवन के धन्धों को सकुशल रूप से व्यवस्थित कर सकें। इस प्रकार पुस्तकें हमें लाभ तथा मनोरंजन दोनों ही प्रदान करती हैं। परन्तु अत्यधिक अध्ययन हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

अध्ययन करने में अत्यधिक समय बिताना हमें सुस्त बना देगा। वार्तालाप में किताबी ज्ञान का प्रयोग इसको कृत्रिम बना देगा। प्रत्येक व्यक्ति तथा प्रत्येक वस्तु को किताबी ज्ञान के अनुसार परखना भी कोई अच्छी बात नहीं है। लेखक इसे एक विद्वान् के मन की लहर मात्र कहता है। इसमें कुछ भी बुद्धिमत्ता की बात नहीं है।

अध्ययन के प्रति भिन्न-भिन्न लोगों का भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण होता है। दुष्ट लोग अध्ययन से घृणा करते हैं। उनके विचार में दुष्टता ही उनके लिए काफी रहेगी। पुस्तकों का ज्ञान किसी काम का नहीं है। साधारण लोग पुस्तकों की सराहना करते हैं। वे इनको प्रशंसा व अचम्भे से देखते हैं। परन्तु बुद्धिमान लोग पुस्तकों से लाभ प्राप्त करते हैं। परन्तु एक व्यक्ति के पुस्तकों के अध्ययन के स्पष्ट उद्देश्य होने चाहिएं। हमें किताबी ज्ञान का प्रयोग दूसरों की बात काटने तथा निन्दा करने के लिए नहीं करना चाहिए। हमें पुस्तकों में अन्धविश्वास नहीं होना चाहिए।

हमें अपनी परख को रोक कर उन सब बातों पर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए जोकि पुस्तकों में लिखी हुई हैं। इसके अतिरिक्त अध्ययन का उद्देश्य वार्तालाप तथा व्याख्यान करना नहीं है। वास्तव में अध्ययन का उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति है। हम में मनुष्यों तथा समाज के कार्यों, उपलब्धियों तथा महत्ताओं को परखने की बुद्धिमत्ता होनी चाहिए।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

बेकन के विचार से प्रत्येक पुस्तक को सामान्य रुचि तथा एकाग्रता के साथ नहीं पढ़ना चाहिए। संसार में पुस्तकें ही पुस्तकें हैं। अच्छी पुस्तकें हैं तथा बुरी पुस्तकें हैं – ऐसा कहा जाता है कि अच्छी लिखी पुस्तकें तथा बुरी लिखी पुस्तकें होती हैं। उच्च श्रेणी की पुस्तकें होती हैं तथा घटिया श्रेणी की पुस्तकें होती हैं।

पुस्तकों पर समय उनके गुण के हिसाब से लगाना चाहिए। बेकन ने बड़े सुन्दर तरीके से कहा, “कुछ पुस्तकों का स्वाद चखना चाहिए, कुछ को निगल जाना चाहिए तथा कुछ थोड़ी-सी पुस्तकें ऐसी होती हैं जिनको चबाना तथा हज़म करना चाहिए।” इसका अर्थ यह है कि कुछ पुस्तकों को भागों में पढ़ना चाहिए – वे भागों में ही अच्छी होती हैं।

कुछ पुस्तकों को निगल जाना चाहिए। उन्हें शीघ्रता से पढ़ डालना चाहिए। वे हमारे समय तथा एकाग्रता की अधिकारी नहीं होती। परन्तु कुछ पुस्तकें श्रेष्ठ गुण वाली होती हैं। हमें उन्हें पूर्ण एकाग्रता के साथ पढ़ना चाहिए। हमें उन्हें हज़म करना चाहिए, रचा-बसा लेना चाहिए। परन्तु कुछ पुस्तकें ऐसी होती हैं जिन्हें मूल रूप से पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती। इन पुस्तकों को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए रूपान्तर में पढ़ना चाहिए!

बेकन आगे कहता है : “अध्ययन एक मनुष्य को पूर्ण बनाता है, वार्तालाप उसे तत्पर बनाता है तथा लिखने से वह परम शुद्ध बन जाता है।” दूसरे शब्दों में इसका अर्थ यह है कि अध्ययन मनुष्य की मानसिक योग्यताओं का विकास करता है; वार्तालाप तथा वाद-विवाद उसे चालाकी वाला बना देते हैं। लिखना उसे शुद्ध बनाता है।

वह शुद्ध तथ्य तथा आंकड़े लिख सकता है। मानव मस्तिष्क पर अध्ययन का बहुत बड़ा प्रभाव होता है। इतिहास मनुष्य को बुद्धिमान बनाता है। कविता उसे चतुर और गणित उसे सूक्ष्म बनाता है। विज्ञान उसे गहरा और दार्शनिकता उसे शांत तथा गम्भीर बनाती है। किताबों में आरोग्यकर शक्तियां होती हैं।

शारीरिक व्यायाम शारीरिक बीमारियों का इलाज करते हैं जबकि अध्ययन मानसिक त्रुटियों को दूर करता है। गणित विद्या एकाग्रता की कमी को दूर करती है। यदि कोई मनुष्य अन्तर नहीं ढूंढ सकता है तो उसे मध्यकाल के दार्शनिकों का अध्ययन करना चाहिए। इसी प्रकार यदि उसमें तर्कशक्ति नहीं है तो उसे कानून तथा वकीलों के मुकदमें पढ़ने चाहिएं। इस प्रकार बेकन विश्वास करता है कि मस्तिष्क की प्रत्येक त्रुटि का एक विशेष उपचार होता है।

Of Studies Translation in Hindi:

फ्रांसिस बेकन (1561-1626), जो कि मानवता में “सबसे अधिक होनहार, बुद्धिमान तथा घटिया” था, को अंग्रेज़ी लेख तथा आधुनिक अंग्रेज़ी गद्य के जन्मदाता के रूप में जाना जाता है। वह एक बहुत ज्यादा लिखने वाला लेखक था। उसके लेख ज़्यादातर लोगों के नैतिक गुणों से सम्बन्ध रखते हैं या सरकार अथवा राज्य से सम्बन्ध रखते हैं।

वे जीवन की व्यावहारिक बुद्धिमत्ता से भरपूरैं। उसकी शैली सूक्तिपूर्ण, औपचारिक, अवैयक्तिक तथा ज्ञान देने वाली है।
प्रस्तुत लेख में बेकन अध्ययन करने के लाभों का वर्णन करता है। यह उसके सबसे प्रसिद्ध लेखों में से एक है। अध्ययन हमें आनंद देता है, हमारे वार्तालाप को सुन्दर बनाता है तथा हमारी व्यावहारिक योग्यताओं में बढ़ोतरी करता है। भिन्न-भिन्न लोग अध्ययन को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से देखते हैं।

पढ़ना, लिखना तथा बातचीत करना व्यक्ति की शक्तियों को संपूर्ण बनाने तथा विकसित करने के लिए अति आवश्यक हैं। भिन्न-भिन्न विषयों के अध्ययन के भिन्न-भिन्न लाभ होते हैं। अध्ययन मानसिक बीमारियों या त्रुटियों को दूर करता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे कुछ विशेष खेल तथा व्यायाम कुछ विशेष शारीरिक रोगों को दूर करते हैं।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

अध्ययन आनंद, सुंदरता तथा योग्यता प्रदान करता है। आनंद से संबंधित उसका फायदा अकेलेपन तथा फुरसत के समय में ही लिया जा सकता है, सुन्दरता के सम्बन्ध में उसका फायदा बातचीत करने में ही लिया जा सकता है, तथा योग्यता के सम्बन्ध में उसका फायदा परख करने में अथवा दैनिक कार्यों की व्यवस्था करने में ही लिया जा सकता है।

क्योंकि विशेषज्ञ लोग काम कर सकते हैं, और शायद व्यक्तिगत मामलों की परख कर सकते हैं, एक एक करके, लेकिन आम सलाहें, तथा योजनाएं तथा चीज़ों की व्यवस्था सबसे उत्तम ढंग से उन लोगों के द्वारा की जाती है जो विद्वान होते हैं। अध्ययन में बहुत ज्यादा समय व्यतीत करना आलसी बना देता है; वार्तालाप को सुंदर बनाने के लिए उसका अत्यधिक प्रयोग बनावटीपन

लाता है। पूरी तरह से उसके नियमों के अनुसार फैसला करना विद्वानों के मन का वहम होता है। वह हमारे स्वभाव को संपूर्ण बनाता है तथा खुद भी अनुभव के द्वारा संपूर्ण बन जाता है : क्योंकि स्वाभाविक योग्यताएं प्राकृतिक पौधों की भांति होती हैं जिन्हें अध्ययन के मार्गदर्शन द्वारा काट-छांट की आवश्यकता होती है; तथा अध्ययन खुद भी आमतौर पर बहुत ज्यादा निर्देश देता है, सिवाए जब उसे अनुभव के द्वारा सीमित न कर दिया गया हो।

दुष्ट लोग अध्ययन से घृणा करते हैं; साधारण लोग उसकी प्रशंसा करते हैं; तथा बुद्धिमान लोग उसका प्रयोग करते हैं: क्योंकि वे (पुस्तकें) सिर्फ अपना प्रयोग करना नहीं सिखातीं; बल्कि वह समझदारी भी सिखाती हैं जो उनके बगैर भी होती है, तथा उनसे ऊपर भी होती है, जो

जिंदगी का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने से प्राप्त होती है। किसी की बात का खंडन करने के लिए तथा किसी को गलत साबित करने के लिए न पढ़ें, न ही बिना जांचे परखे किसी बात को स्वीकार करने के लिए पढ़ें (न ही अन्धविश्वास करने के लिए पढ़ें), न ही वार्तालाप तथा व्याख्यान की तलाश में पढ़ें; बल्कि इसलिए पढ़ें ताकि आप ध्यानपूर्वक आंकलन कर सकें तथा सोचने-समझने की शक्ति विकसित कर सकें।

कुछ पुस्तकों का स्वाद चखना चाहिए, अन्यों को निगलना चाहिए, तथा कुछ थोड़ी-सी पुस्तकें ऐसी होती हैं जिनको चबाना तथा हज़म करना चाहिए, यानि कि कुछ पुस्तकों के केवल भागों को ही पढ़ना चाहिए; दूसरी पुस्तकों को भी पढ़िए लेकिन उत्सुकतापूर्वक नहीं, तथा कुछ पुस्तकों को पूरी तरह पढ़ना चाहिए तथा बड़े ध्यान से और निरंतर प्रयास के साथ। कुछ पुस्तकों को किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा भी

पढ़ा जा सकता है। (यानि कि अगर किसी दूसरे व्यक्ति ने कोई पुस्तक पढ़ी है तो उसके साथ उस पुस्तक के बारे में बातचीत करके), तथा उनके अंशों को पढ़कर जो किसी और के द्वारा लिखे गए हैं, लेकिन वे पुस्तकें कम महत्त्वपूर्ण विषय-वस्तु वाली होंगी तथा घटिया दर्जे की होंगी, ऐसी पुस्तकें जिनमें मौलिक पुस्तक के सिर्फ अंश | ही हों, वे तो साधारण शुद्ध किए हुए पानी की भांति होती हैं स्वादहीन, खोखली चीजें।

अध्ययन मनुष्य को संपूर्ण बनाता है; वार्तालाप उसे तत्पर बनाता है; तथा लिखना उसे परम शुद्ध बना देता है। और इसलिए अगर कोई व्यक्ति कम लिखता है; तो उसे अत्यधिक याद्दाश्त की आवश्यकता है; अगर वह लोगों के साथ कम बातचीत करता है, तो उसे हाज़िर-जवाब होने की आवश्यकता है, और अगर वह कम पढ़ता है, तो उसे बहुत चतुराई की आवश्यकता है ताकि देखने में ऐसा प्रतीत हो कि उसके अंदर कोई कमी नहीं है।

सारे इतिहास लोगों को बुद्धिमान बनाते हैं, कवि लोगों को कल्पनाशील बनाते हैं; गणित उन्हें सूक्ष्म (तीव्र बुद्धि वाला) बनाता है; नैतिक दर्शन उन्हें गंभीर बनाता है; तर्क तथा प्रभावशाली तरीके से बोलने या लिखने की कला उन्हें वाद-विवाद करने की योग्यता प्रदान करते हैं।

स्वाद चरित्र बन जाते हैं (अध्ययन चरित्र में उतर जाता है)। नहीं, दिमाग़ में कोई अवरोध या रुकावट नहीं होती है लेकिन (अगर कोई हो तो) उसे अध्ययन के द्वारा दूर किया जा सकता है जिस तरह शरीर की बीमारियों को सही व्यायाम के द्वारा दूर किया जा सकता है। गेंद मार के बोतलों को गिराना पथरी तथा गुर्दो के लिए, तीरन्दाजी फेफड़ों तथा छाती के लिए; आराम से चलना पेट के लिए; घुड़सवारी सिर के लिए लाभदायक है तथा इसी तरह अन्य भी।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 3 Of Studies

इसलिए अगर किसी व्यक्ति में एकाग्रता की कमी हो तो उसे गणित का अध्ययन करना चाहिए, अगर कोई व्यक्ति अन्तर नहीं ढूंढ सकता तो उसे मध्य काल के यूरोपीय दार्शनिकों तथा अध्यापकों का अध्ययन करना चाहिए : क्योंकि वे सब बाल की खाल निकालने वाले हैं। अगर वह तेजी से निरीक्षण तथा विश्लेषण नहीं कर सकता, तो किसी बात को साबित करने तथा उदाहरण सहित व्याख्या करने के उद्देश्य से किसी बात को दिमाग़ में लाने के लिए उसे वकीलों के मुकद्दमें पढ़ने चाहिएं। दिमाग़ की हरेक त्रुटि को दूर करने के लिए कोई न कोई नुस्खा या उपचार हो सकता है।

 

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

Punjab State Board PSEB 11th Class English Book Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 English Chapter 2 The Portrait of a Lady

Short Answer Type Questions

Question 1.
Whose portrait hung above the mantelpiece in the drawing-room ?
Answer:
It was the portrait of the author’s grandfather that hung above the mantelpiece in the drawing room. He wore a big turban and loose-fitting clothes. He had a long white beard. He looked at least a hundred years old.

यह लेखक के दादा का चित्र था जो बैठक की अंगीठी के ऊपर लटका हुआ था। उसने एक बड़ी पगड़ी और खुलेढीले वस्त्र पहने हुए थे। उसकी लम्बी सफेद दाढ़ी थी। वह कम से कम एक सौ वर्ष का बूढ़ा प्रतीत होता था।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

Question 2.
What, according to the author, was absurd and undignified on Grandmother’s part ?
Answer:
Grandmother often described the games she used to play in her childhood. It seemed to the author absurd and undignified on her part. It was so because as a child, the author could not imagine that his grandmother who was so old, could ever have been young and pretty.

दादी प्रायः उन खेलों का वर्णन करती जो वह अपने बचपन में खेला करती थी। लेखक को उसकी तरफ से ऐसी बातें मूर्खतापूर्ण तथा अशोभनीय प्रतीत होती थीं। ऐसा इसलिए था क्योंकि एक बच्चे के रूप में लेखक कभी यह कल्पना ही नहीं कर सकता था कि उसकी दादी जो इतनी बूढ़ी थी, कभी नौजवान तथा सुन्दर भी रही होगी।

Question 3.
Why did she say her prayer in a monotonous singsong ?
Answer:
Every day when grandmother got the author ready for school, she would keep saying her morning prayer all the time. But she would say her prayer in a monotonous singsong. She did so with the hope that the author would listen and get to know it by heart.

हर रोज सुबह जब दादी लेखक को स्कूल के लिए तैयार करती तो वह उस दौरान सारा समय अपना प्रातः का धार्मिक पाठ बोलती रहती। वह अपने पाठ को एक ही लय में बोलती रहती। वह ऐसा इस आशा के साथ किया करती थी कि लेखक इसे सुनता रहे और इस प्रकार यह उसे धीरे-धीरे जुबानी याद हो जाए।

Question 4.
What did they have for breakfast ?
Answer:
For breakfast, they used to have thick stale chapattis with some butter and sugar spread on them.
नाश्ते में वे मोटी बासी चपातियां खाया करते थे जिनके ऊपर थोड़ा-सा मक्खन तथा चीनी का लेप लगा होता।

Question 5.
Why did Grandmother always go to school. with the author ?
Answer:
Grandmother always went to school with the author because the school was attached to the village temple. While the author studied in the school, Grandmother would read the scriptures in the temple. And after the school, Grandmother and the author would come back home together.

दादी हमेशा लेखक के साथ स्कूल जाती थी क्योंकि स्कूल गांव के गुरुद्वारे के अंदर ही बना हुआ था। जिस दौरान लेखक स्कूल में पढ़ाई करता, दादी गुरुद्वारे में धार्मिक ग्रन्थ पढ़ा करती। और स्कूल के बाद दादी तथा लेखक दोनों इकट्ठे घर वापिस आया करते थे।

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Question 6.
The children in the village school were taught the alphabet. Did Grandmother know the alphabet ?
Answer:
Yes, she knew the alphabet. She used to read the scriptures in the village temple.
हां, उसे वर्णमाला आती थी। वह गांव के गुरुद्वारे में धार्मिक ग्रंथ पढ़ा करती थी।

Question 7.
How did they feed the village dogs while returning home ?
Answer:
Every day in the morning before taking the author for school, Grandmother would pack several stale chapattis for the village dogs. And while returning home after the school, she and the author would feed the village dogs with those chapattis.

हर रोज सुबह लेखक को स्कूल ले जाने से पहले दादी गांव के कुत्तों के लिए कई बासी चपातियां पैक कर लेती। और स्कूल से वापिस घर आते समय वह तथा लेखक गांव के कुत्तों को वही चपातियां खिलाया करते थे।

Question 8.
‘That was the turning-point in our friendship.’ What happened to the friendship ?
Answer:
While living in the village, Grandmother used to accompany the author to his school. Grandmother knew the alphabet. She helped the author in his studies also. But in the city, she could neither accompany him to school nor help him in his studies. Their friendship did not remain as intimate as it was in the village.

गांव में रहते हुए दादी लेखक के स्कूल जाने के वक्त उसके साथ जाया करती थी। दादी को वर्णमाला आती थी। वह पढ़ाई में लेखक की मदद भी करती थी। परन्तु शहर में वह न उसके साथ स्कूल जा सकती थी और न ही अब वह पढ़ाई में मदद कर सकती थी। उनकी मित्रता इतनी घनिष्ठ न रही, जितनी गांव में हुआ करती थी।

Question 9.
How did the author go to school in the city ?
Answer:
In the village, the author used to go to school on foot with his Grandmother. There the school was situated not far from Grandmother’s house. But in the city, the school was very far from the author’s home. So he would go to school in a motor-bus in the city.

गांव में लेखक अपनी दादी के साथ पैदल ही स्कूल जाया करता था। वहां स्कूल दादी के घर से अधिक दूर नहीं था। परन्तु नगर में स्कूल लेखक के घर से बहुत दूर था। इसलिए वह नगर में एक मोटर-बस में बैठ कर स्कूल जाया करता था ।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

Question 10.
Why was Grandmother unhappy about the school education in the city ?
Answer:
In the city school, the children were taught lessons in science and music only. They were not given any religious education. They were not taught any holy books or prayers. This was the reason that Grandmother was unhappy about the school education in the city.

नगर वाले स्कूल में बच्चों को सिर्फ विज्ञान और संगीत के पाठ सिखाए जाते थे। उन्हें कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती थी। उन्हें कोई धार्मिक पुस्तकें नहीं पढ़ाई जाती थीं और उन्हें कोई प्रार्थनाएं नहीं सिखाई जाती थी। यही कारण था कि दादी नगर के स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा से नाखुश थी।

Question 11.
Why did she feel disturbed when the author announced that they were being given – music lessons at school ?
Answer:
According to grandmother, music had lewd associations. She considered it the monopoly of harlots and beggars. She believed that music was not meant for gentle folk. This was the reason why she felt disturbed when the author announced that they were being given music lessons at school.

दादी के विचार में संगीत घटिया किस्म की काम-वासनाएं पैदा करने वाली चीज़ था। वह समझती थी कि यह केवल वेश्याओं तथा भिखारियों का ही एकाधिकार था। उसका मानना था कि संगीत भले लोगों के लिए नहीं बना था। यही कारण था कि वह बहुत परेशान हो गई जब लेखक ने बताया कि उसके स्कूल में उन्हें संगीत के पाठ पढ़ाए जा रहे थे।

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Question 12.
When was the common link of friendship between the author and his grandmother broken ?
Answer:
The common link of friendship between the author and his grandmother was broken when the author went to a university. He was given a room of his own. Grandmother accepted her seclusion calmly. Now she would spend most of her time in spinning wheel.

लेखक तथा उसकी दादी के बीच की मित्रता की साझी कड़ी तब टूट गई जब लेखक ने विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया। उसे उसका अपना एक अलग कमरा दे दिया गया। दादी ने इस अकेलेपन को शन्तिपूर्वक स्वीकार कर लिया। अब वह अपना अधिकतर समय चरखा कातने में बिताती थी।

Question 13.
What did Grandmother do from sunrise to sunset ?
Answer:
When the author joined the university and was given a separate room for him, Grandmother started spending most of her time in spinning wheel. From sunrise to sunset, she would sit by her wheel, spinning and reciting prayers. She would rarely leave her spinning wheel to talk to anyone.

जब लेखक ने विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया और उसे उसके लिए एक अलग कमरा दे दिया गया, तो दादी अपना अधिकतर समय चरखा कातने में बिताने लगी। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक वह अपने चरखे पर बैठी सूत कातती रहती और प्रार्थना करती रहती। वह किसी से बात करने के लिए अपने चरखे से शायद ही कभी उठा करती थी।

Question 14.
What took the place of village dogs in Grandmother’s life in the city ?
Answer:
Sparrows took the place of village dogs in her life in the city. Grandmother would daily feed the sparrows with breadcrumbs. She would feed them very lovingly. Hundreds of sparrows collected round her. But she never shooed them away.

उसकी नगर वाली जिंदगी में गांव वाले कुत्तों की जगह चिड़ियों ने ले ली। दादी रोजाना चिड़ियों को रोटी के टुकड़े खिलाया करती। वह उन्हें बड़े प्यार से खिलाया करती। सैंकड़ों चिड़ियां उसके इर्द-गिर्द इकट्ठी हो जाती। परन्तु वह उन्हें कभी परे नहीं हटाती थी।

Question 15.
What could have been the cause of Grandmother’s falling ill ?
Answer:
When the author came back from aborad, she celebrated his homecoming in her own way. She collected the women of her neighbourhood, got a drum and started singing. Grandmother overstrained herself in thumping the drum and singing. That was why she fell ill.

जब लेखक विदेश से वापिस लौटा, तो उसने लेखक की घर-वापसी की खुशी अपने ही तरीके से मनाई। उसने पड़ोस की औरतों को इकट्ठा किया, एक ढोलक ली और गाना शुरू कर दिया। दादी ने ढोलक बजाने और गाने में स्वयं को बहुत ज्यादा थका लिया। यही कारण था कि वह बीमार पड़ गई।

Question 16.
How did the sparrows show (on the last day) that they had not come for the bread ?
Answer:
Grandmother was lying dead in her room. A large number of sparrows came and sat all around her. The author’s mother threw crumbs to them, but the sparrows didn’t eat them. When the dead body was carried off for cremation, the sparrows also flew away in silence. It clearly shows that they had not come for the bread.

दादी अपने कमरे में मृत पड़ी हुई थी। बड़ी संख्या में चिड़ियां आईं और उसके चारों ओर बैठ गईं। लेखक की मां ने रोटी के टुकड़े उनकी ओर फेंके, परन्तु चिड़ियों ने उनको नहीं खाया। जब मृत शरीर को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जा रहा था, तो चिड़ियां भी चुपचाप वहां से उड़ गईं। इससे साफ़ पता चलता है कि वे रोटी के लिए नहीं आई थीं।

Question 17.
What was Grandmother’s routine when she lived with the author together in their village home?
Answer:
Grandmother would wake the author in the morning. She would bathe and dress him for school. She would give him breakfast and then accompany him to school. The school was attached to the village temple. While the author studied in the school, Grandmother would read scriptures in the temple. She would walk back with the author after school.

दादी लेखक को सवेरे जगा देती थी। स्कूल भेजने के लिए वह उसे नहलाती व कपडे पहनाती थी। वह उसे नाश्ता देती थी व फिर स्कूल तक उसके साथ जाती थी। स्कूल गांव के गुरुद्वारे के साथ संबद्ध था। जिस दौरान लेखक स्कूल में पढ़ाई करता, दादी मंदिर में धर्मग्रंथ पढ़ती थी। वह स्कूल बंद होने के बाद लेखक के साथ ही वापस लौटती थी।

Question 18.
Draw a comparison between the village-school education and city-school education.
Answer:
The village school was attached to the village temple. The priest acted as the teacher. He taught the children the alphabet and the prayer. Thus religious education was given in the village school. But in the city school, there was no religious education. Children were taught there science and even music.

गांव का स्कूल गांव के मंदिर से संबद्ध था। पुजारी ही अध्यापक का काम करता था। वह बच्चों को वर्णमाला तथा प्रार्थना सिखाता था। इस प्रकार गांव के स्कूल में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी। परन्तु शहर के स्कूल में धार्मिक शिक्षा बिल्कुल नहीं थी। बच्चों को वहां विज्ञान और यहां तक कि संगीत भी सिखाया जाता था।

Question 19.
What was the happiest moment of the day for the grandmother ?
Answer:
It was the afternoon time when she fed the sparrows. She took great delight in feeding them. She would feed them very lovingly. Hundreds of sparrows collected round her. Some sat on her legs, shoulders and head. She would just keep smiling. She never shooed them away.

वह दोपहर का समय होता था जब वह चिड़ियों को खिलाया करती थी। उसे उन्हें खिलाने में बहुत आनंद आता था। वह उन्हें बहुत प्रेमपूर्वक खिलाया करती। सैंकड़ों चिड़ियां उसके चारों ओर इकट्ठा हो जाती थीं। उनमें से कुछ उसकी टांगों, कंधों और सिर पर भी बैठ जाती थीं। वह सिर्फ मुस्कराती रहती थी। वह उन्हें कभी भगाती नहीं थी।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

Question 20.
What was the last sign of physical contact between the author and his grandmother ? Why did the author think it to be the last physical contact ?
Answer:
The author was going abroad. Grandmother came to see him off at the railway station. She kissed him on the forehead. The author thought it to be the last sign of physical contact between them. Grandmother had grown very old. The author didn’t think she would live long. That was why he thought it to be the last physical contact.

लेखक विदेश जा रहा था। दादी उसे अलविदा कहने के लिए रेलवे स्टेशन आई। उसने उसके माथे पर चूमा। लेखक ने सोचा कि यह उनके बीच शारीरिक संपर्क का अंतिम चिन्ह था। दादी बहुत बूढ़ी हो चुकी थी। लेखक को विश्वास नहीं था कि अब वह ज्यादा देर जी पाएगी। इसी वजह से वह उसको अंतिम संपर्क ही मानता था।

Question 21.
Everybody including the sparrows mourned Grandmother’s death. Elaborate.
Answer:
Grandmother lay dead in her room. When the people went to take her to the funeral ground, they saw sparrows all round her body. The author’s mother threw crumbs to them, but the sparrows didn’t eat them. Thus everybody, including the sparrows, mourned Grandmother’s death.

दादी अपने कमरे में मृत पड़ी थी। जब लोग उसे श्मशान ले जाने के लिए अंदर आए तो उन्होंने चिड़ियों को उसके शरीर के चारों ओर बैठे देखा। लेखक की मां ने रोटी के टुकड़े उनकी तरफ फेंके, पर चिड़ियों ने उन्हें नहीं खाया। इस प्रकार चिड़ियों समेत सभी ने दादी की मृत्यु पर शोक जताया।

Long Answer Type Questions

Question 1.
Grandmother ‘had always been short and fat and slightly bent’: Is this true in the light of what is said in the first paragraph ? What information in the first paragraph would you cite in support of your answer ?
Answer:
In the chapter, ‘The Portrait of a Lady, the author Khuswant Singh describes the physical appearance of his Grandmother. He says that his Grandmother was terribly old. He says that Grandmother had always been short and fat and slightly bent.

He further says that people said that she had been once young and pretty. But the author finds it hard to believe. He says that he had known her for twenty years and she had always looked the same; short and slightly bent.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

But it is not true. The very first paragraph of the chapter tells us that she was once young and pretty. In this passage, we come to know that Grandmother often told the author about the games she used to play in her childhood. This shows that the author’s grandmother had not always been short and fat and slightly bent’.

इस पाठ, ‘The Portrait of a Lady, में लेखक खुशवन्त सिंह अपनी दादी के शारीरिक रूप का वर्णन करता है। वह कहता है कि उसकी दादी बहुत ज्यादा बूढ़ी थी। वह कहता है कि दादी हमेशा से ही छोटे कद वाली और मोटी और थोड़ी-सी कुबड़ी थी। वह आगे कहता है कि लोग कहते थे कि वह भी कभी जवान तथा सुन्दर हुआ करती थी।

परन्तु लेखक को इस पर विश्वास करना बहुत कठिन लगता है। वह कहता है कि वह उसे बीस सालों से जानता आ रहा था। और वह हमेशा एक जैसी ही दिखाई दी – छोटे कद की और मोटी और थोड़ी-सी कुबड़ी। – परन्तु यह सच नहीं है। पाठ का सबसे पहला पैरा हमें बतलाता है कि वह किसी समय जवान और सुन्दर हुआ करती थी।

इस पैरे में हमें यह भी पता चलता है कि दादी लेखक को उन खेलों के बारे में बताया करती थी जो वह अपने बचपन में खेला करती थी। इससे पता चलता है कि लेखक की दादी सदा से ही ‘नाटी और मोटी तथा थोड़ी सी कुबड़ी’ नहीं थी।

Question 2.
How would Grandmother prepare the author for school ?
Answer:
The author’s grandmother would wake him up in the morning to get him ready for school. She would bathe him and dress him up for school. All the time, she would keep saying her morning prayer. She would say her prayer in a monotonous singsong.

She did so with the hope that the author would listen and get to learn it by heart. She would wash his wooden slate and plaster it with yellow chalk. She would tie a tiny earthen inkpot and a reed pen in a bundle.

Then she would give the author a thick stale chapatti to eat. She would spread on it some butter and sugar. Then after breakfast, she would hand the bundle to the author and walk with him to school.

लेखक की दादी उसे प्रात:काल जगा देती थी। वह उसे नहलाती और स्कूल के लिए तैयार करती। इस दौरान सारा समय वह अपना प्रातः का धार्मिक पाठ करती रहती। वह अपने पाठ को एक ही लय में बोलती रहती। वह ऐसा इस उम्मीद के साथ करती कि लेखक इसे सुनता रहे और इस प्रकार उसे यह धीरे-धीरे जुबानी याद हो जाए।

वह उसकी लकड़ी की स्लेट धोती और उस पर पीली मिट्टी का लेप करती। वह मिट्टी की छोटी-सी दवात और सरकण्डे की कलम को एक गठरी में बांध देती। फिर वह लेखक को खाने के लिए एक मोटी बासी रोटी दिया करती। वह इस पर कुछ मक्खन और चीनी लगा देती। फिर नाश्ते के बाद वह लेखक को गठरी थमा देती और उसके साथ स्कूल चल पड़ती।

Question 3.
Grand mother is portrayed as a very religious woman. What details in the story create that impression ?
Answer:
The author’s grandmother was a deeply religious lady. She spent most of her time saying prayers and telling beads. She was fond of reading the scriptures also. She would spend whole day in the temple of the village. When the author was sent to an English school, she was unhappy because children were not given any religious education there. It was because of her religious nature that she fed birds and animals.

Her inner peace was also because of this. She remained calm and showed no emotion when the author left for abroad for five years. Like all great persons of religion, she knew when her end was near. Now she did not want to waste her little time in talking to anyone. She kept saying her prayers and telling the beads till her last breath.

लेखक की दादी गहरे रूप से एक धार्मिक स्त्री थी। वह अपना अधिकतर समय प्रार्थना करने तथा माला फेरने में ही व्यतीत करती थी। उसे धार्मिक ग्रन्थों का पाठ करना बहुत अच्छा लगता था। वह अपना पूरा दिन गांव के गुरुद्वारे में व्यतीत करती थी। जब लेखक को अंग्रेजी स्कूल में भेजा गया, तो वह अप्रसन्न हो गई क्योंकि वहां बच्चों को कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती थी। अपनी धार्मिक प्रवृत्ति के कारण ही वह पशु-पक्षियों को खाना खिलाती थी।

उसकी आंतरिक शान्ति भी इसी वजह से थी। वह शान्त रही और बिल्कुल भावुक नहीं हुई जब लेखक पांच वर्ष के लिए विदेश चला गया। सभी महान् लोगों की भांति वह जान गई जब उसका अंतिम समय नज़दीक आ गया। अब वह अपना थोड़ासा बचा समय किसी से बातचीत करने में नष्ट नहीं करना चाहती थी। वह अपने अन्तिम श्वास तक प्रार्थना करती रही और माला फेरती रही।

Question 4.
Grandmother has been portrayed as a kind woman. What details in the story illustrate this?
Answer:
The author’s grandmother had a truly kind heart. Her love for the author is no proof of her kindness. Every grandmother loves her grandchildren. The real proof of the old lady’s kindness lies in her love for animals and birds.

As long as she lived in the village, she used to feed the dogs with stale chapatties. And when she came to live in the city, she took to feeding the sparrows. She took great delight in it. The sparrows would perch on her legs, shoulders and even on her head.

But the old woman never shooed them away. The little birds were full of grief when their foster mother passed away. All this shows that the author’s grandmother was really a kind-hearted lady.

लेखक की दादी का हृदय सचमुच में बहुत दयालु था। लेखक के लिए उसका प्यार उसकी दयालुता का कोई प्रमाण नहीं है। हर दादी अपने पोते-पोतियों से प्यार करती है। बूढ़ी औरत की दयालुता का सही प्रमाण जानवरों और पक्षियों के उसके प्रति उसके प्यार में दिखता है। जब तक वह गांव में रही, वह गांव के कुत्तों को बासी रोटियां खिलाती रही।

और जब वह शहर में रहने आई, तो वह चिड़ियों को खिलाने लगी। इसमें उसे अत्यधिक आनन्द मिलता। चिड़ियां उसकी टांगों, कन्धों और यहां तक कि उसके सिर पर भी बैठ जातीं। परन्तु बूढ़ी औरत कभी उन्हें दूर नहीं हटाती थी। छोटे-छोटे पक्षी भी दुःख से भर गए जब उनका पालन-पोषण करने वाली मां की मृत्यु हो गई। इन सब बातों से पता चलता है कि लेखक की दादी सचमुच एक दयालु हृदय वाली औरत थी।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

Question 5.
What was Grandmother’s daily routine in the city ?
Answer:
From sunrise to sunset, Grandmother would sit by her wheel spinning and reciting her prayer. Only in the afternoon, she would relax a little when she fed sparrows with little bits of bread. She took great delight in feeding them. She would feed them very lovingly.

Hundreds of sparrows collected round her. Some sat on her legs, shoulders and head. She would just keep smiling. She never shooed them away. The sparrows also seemed to feel quite at home in her company. It used to be the happiest half hour of the day for Grandmother.

सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक दादी अपने चरखे पर बैठी सूत कातती रहती और प्रार्थना करती रहती। केवल दोपहर के समय ही वह थोड़ी देर के लिए आराम करती जब वह चिड़ियों को रोटी के लिए छोटे-छोटे टुकड़े खिलाती। उसे उन्हें खिलाने में बहुत आनंद आता। वह उन्हें बहुत प्रेमपूर्वक खिलाया करती।

सैंकड़ों चिड़ियां उसके चारों ओर इकट्ठा हो जाती थीं। उनमें से कुछ उसकी टांगों, कंधों और सिर पर भी बैठ जाती थीं। वह सिर्फ मुस्कराती रहती। वह उन्हें कभी भगाती नहीं थी। चिड़ियों को भी उसकी संगति में आनन्द आता प्रतीत होता था। दादी के लिए आधे घण्टे का वह समय दिन-भर में सबसे अधिक खुशी वाला समय हुआ करता था।

Question 6.
Give a brief pen-portrait of the grandmother.
Answer:
The authors grandmother was very old. Her face was criss-cross of wrinkles. She was fat and had a little stoop. She was so old that she couldn’t have looked older. The author had lived with her for twenty years. She had always looked the same.

It was difficult to imagine that she had ever been young and pretty. But in spite of being so old, she looked very attractive. She was dignified in her looks and habits. She was deeply religious. She spent

most of her time saying prayers and telling the beads. She was fond of reading the scriptures also. She had a kind heart. She took great delight in feeding dogs and little birds. She dressed in spotless white. In her soul also, she was spotless.

Her inner purity lent her spiritual peace. Like all pious souls, the grandmother knew when her end was near. She refused to talk to anybody. She kept saying her prayers and telling the beads till her end.

लेखक की दादी बहुत बूढ़ी थी। उसका चेहरा झुर्रियों का एक ताना-बाना था। वह मोटी थी तथा कुछ झुकी हुई थी। वह इतनी बूढ़ी थी कि वह इससे अधिक बूढ़ी नहीं लग सकती थी। लेखक उसके साथ बीस वर्षों तक रहा था। वह हमेशा एक जैसी ही दिखी। इस बात पर विश्वास करना मुश्किल था कि वह कभी जवान तथा सुन्दर भी रही होगी। परन्तु इतनी बूढ़ी होने के बावजूद वह आकर्षक दिखाई देती थी।

अपनी शक्ल-सूरत तथा आदतों में वह ओजस्वी लगती थी। वह बहुत धार्मिक स्वभाव की थी। वह अपना अधिकतर समय प्रार्थना करने तथा माला के मनकों को फेरने में बिताती थी। उसे धार्मिक ग्रन्थ पढ़ने का भी शौक था। उसका हृदय दयालु था। कुत्तों तथा नन्ही चिड़ियों को खिलाने में उसे बहुत प्रसन्नता मिलती थी।

वह बिल्कुल बेदाग सफेद कपड़े पहनती थी। उसकी आत्मा भी बिल्कुल बेदाग थी। उसकी आंतरिक शुद्धता उसे आध्यात्मिक शांति प्रदान करती थी। सभी पावन आत्माओं की भांति दादी को भी पता चल गया था कि कब उसका अन्त निकट था। उसने किसी से भी बात करने से इन्कार कर दिया। वह अपने अन्त तक प्रार्थना करती रही तथा माला फेरती रही।

Question 7.
Write a brief note on Grandmother’s relationship with the sparrows.
Answer:
In the city, Grandmother used to feed the sparrows daily with breadcrumbs. She took great delight in it. She would feed the sparrows very lovingly. Hundreds of sparrows collected round her. The sparrows would come and sit on her legs, shoulders, and head also.

But the old woman never shooed them away. The little birds too loved her. They seemed to enjoy her company. When Grandmother died, the sparrows were full of grief. Thousands of sparrows came to the place where Grandmother lay dead.

They were all very quiet. They did not chirp at all. The author’s mother threw some crumbs to them. But they did not touch them even. They flew away quietly when Grandmother’s deadbody was carried off for cremation.

शहर में दादी रोज़ाना चिड़ियों को रोटी के टुकड़े खिलाया करती थी। ऐसा करने में उसे बहुत आनन्द अनुभव होता था। वह चिड़ियों को बहुत प्रेमपूर्वक खिलाया करती थी। सैंकड़ों चिड़ियां उसके गिर्द इकट्ठी हो जातीं। चिड़ियां
आ कर उसकी टांगों, उसके कन्धों और सिर पर भी बैठ जातीं। परन्तु बूढी औरत उन्हें कभी भगाती नहीं थी।

नन्हे पक्षी भी उससे प्रेम करते थे। वे भी उसकी संगति का आनन्द उठाते प्रतीत होते थे। जब दादी की मृत्यु हो गई, तो चिड़ियां दुख से भर गईं। हजारों चिड़ियां उस जगह पर आ गई जहां दादी का शव पड़ा हुआ था। वे सब बहुत शान्त थीं। वे बिल्कुल भी नहीं चहचहाई। लेखक की मां ने उनके सामने रोटी के कुछ टुकड़े फेंके। परन्तु चिड़ियों ने उन्हें छुआ तक नहीं। जब अंतिम संस्कार के लिए दादी का शव उठा लिया गया तो वे चुपचाप उड़ गईं।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

Question 8.
The grandmother was not formally educated, but was serious about the author’s education. How does the text support this ?
Answer:
While living in the village, Grandmother rook every care of the author and his education. She would wake him up in the morning. She would bathe him and dress him up for school. She would wash his wooden slate and plaster it with yellow chalk.

She would tie a tiny earthen inkpot and a reed pen in a bundle. Then after breakfast, she would hand all these to the author and walk with him to school. She would pass the day in the village temple and walk back home with the author after school. All this shows how serious the old lady was about her grandson’s education.

गांव में रहते समय दादी लेखक और उसकी शिक्षा का पूरा ख्याल रखा करती थी। वह उसे प्रात:काल जगा देती थी। वह उसे नहलाती और स्कूल के लिए तैयार करती। वह उसकी लकड़ी की स्लेट धोती और उस पर पीली मिट्टी का लेप करती। वह मिट्टी की छोटी-सी दवात और सरकण्डे की कलम को एक गठरी में बांध देती।

फिर नाश्ते के बाद वह इसे लेखक को थमा देती और उसके साथ स्कूल चल पड़ती। वह गांव के गुरुद्वारे में अपना दिन व्यतीत करती और स्कूल के बाद लेखक के साथ घर वापस आती। यह सब इस बात को दर्शाता है कि बूढ़ी औरत अपने पोते की शिक्षा के प्रति कितनी गम्भीर थी।

Question 9.
Gradually, the author and Grandmother saw less of each other and their friendship was broken. Was the distancing in the relationship deliberate or due to demand of
the situation ?
Answer:
As long as the author and his grandmother lived together in the village, they were good friends. Grandmother used to wake him up in the morning. She bathed and dressed him. She got him ready for school. She would give him breakfast. Then she would accompany him to school also.

But this friendship was broken when they came to live in the city. The author was sent to an English school. Now Grandmother could neither accompany him to school nor help him in his lessons. She was shocked to know that there was no religious teaching in the new school and that music was taught there.

Now she rarely talked to the author. But this distancing wasn’t deliberate. It was due to the new situation. The old lady understood this and accepted the new situation calmly.

जब तक लेखक और उसकी दादी गांव में रहते थे, वे अच्छे मित्र थे। दादी उसे सुबह जगाया करती थी। वह उसे नहलाती और कपड़े पहनाती थी। वह उसे स्कूल के लिए तैयार करती थी। वह उसे नाश्ता देती थी। फिर वह स्कूल भी उसके साथ जाया करती थी। परन्तु उस समय यह मित्रता टूट गई जब वे शहर में रहने आ गए।

लेखक को एक अंग्रेजी स्कूल में भेजा जाने लगा। दादी न तो अब उसके साथ स्कूल जा सकती थी और न ही वह उसकी पढ़ाई में कोई सहायता कर सकती थी। उसे इस बात से बहुत आघात लगा कि नए स्कूल में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती थी और वहां संगीत सिखाया जाता था। अब वह लेखक से कभी-कभार ही बात करती। परन्तु यह दूरी जानबूझ कर नहीं उत्पन की गई थी। यह नई परिस्थिति की वजह से थी। बूढ़ी औरत इसे समझ गई और उसे नई परिस्थिति को शान्ति से स्वीकार कर लिया।

Question 10.
Give a brief account of the friendship between the author and his grandmother.
Answer:
The author spent his early childhood with his grandmother in the village. The two lived as good friends. Grandmother used to wake him up in the morning. She bathed and dressed him. She got him ready for school. After breakfast, she would walk with him to school.

She would pass her day in the village temple. She would sit and read scriptures there. Then after school, she would walk back home with the author. On their way, they would throw chapattis to the village dogs. But this bond of friendship was broken when they came to live in the city with the author’s parents. The author was sent to an English school.

He went to school in a motor-bus. Grandmother had no need to go with him. She was shocked when she came to know that children in the English school were not given any religious education and were taught music. After this, she rarely talked to the author.

लेखक ने अपना शुरुआती बचपन गांव में अपनी दादी के साथ बिताया। वे अच्छे मित्रों की भांति रहे। दादी उसे प्रातः उठाया करती। वह उसे नहलाती और कपड़े पहनाती। वह उसे स्कूल के लिए तैयार करती। नाश्ते के बाद वह उसके साथ स्कूल जाया करती। वह अपना दिन गांव के गुरुद्वारे में व्यतीत करती।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

वह वहां बैठ कर धार्मिक ग्रन्थ पढ़ा करती। फिर स्कूल के बाद वह लेखक के साथ वापस घर जाती। रास्ते में वे गांव के कुत्तों को रोटियां डाला करते। परन्तु मित्रता का यह बन्धन उस समय टूट गया जब वे शहर में लेखक के मां-बाप के साथ रहने आ गए। लेखक को एक अंग्रेजी स्कूल में भेजा जाने लगा।

वह स्कूल एक मोटर-बस में जाता । दादी को उसके साथ जाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। उसे उस समय धक्का लगा जब उसे पता लगा कि अंग्रेजी स्कूल में बच्चों को कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती थी और उन्हें संगीत सिखाया जाता था। इसके बाद वह लेखक से कभी-कभार ही बात करती थी।

Objective Type Questions

Question 1.
Name the writer of the story, ‘The Portrait of a Lady’.
Answer:
Khushwant Singh.

Question 2.
Whose portrait does the writer give in ‘The Portrait of a Lady’ ?
Answer:
His grandmothers.

Question 3.
Was the writer’s grandmother still alive or dead ?
Answer:
She was dead.

Question 4.
Was the writer’s grandmother tall or short ?
Answer:
She was short.

Question 5.
Was the writer’s grandmother thin or fat ?
Answer:
She was fat.

Question 6.
Who accompanied the writer to the village school ?
Answer:
His grandmother.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

Question 7.
Why did the author’s grandmother carry stale chapattis with her ?
Answer:
To feed the village dogs.

Question 8.
Which school was the writer sent to in the city ?
Answer:
An English school.

Question 9.
Why did the author’s grandmother stop feeding the dogs in the city ?
Answer:
There were no street dogs in the city.

Question 10.
Who did the author’s grandmother feed in the city instead of the dogs ?
Answer:
The sparrows.

Question 11.
How many years did the author study abroad ?
Answer:
Five.

Question 12.
Who threw breadcrumbs to the sparrows after the grandmother’s death?
Answer:
The author’s mother.

Vocabulary And Grammar

1. Match the words under column A with their antonyms under column B :

Α —– B

1. pretty — happy
2. absurd — dry
3. untidy — noisily
4. distressed — eastern
5. sure — fresh
6. moist — serious
7. frivolous — doubtful
8. quietly — rational
9. western — smart-looking / neat
10. stale — ugly
Answer:
1. pretty → ugly
2. absurd → rational
3. untidy → smart-looking / neat;
4. distressed – happy
5. sure → doubtful
6. moist → dry
7. frivolous → serious
8. quietly — noisily
9. western → eastern
10. stale → fresh.

2. Form verbs from the following words :

Word — Verb
1. belief — believe
2. knowledge — know
3. prayer — pray
4. food — feed
5. association — associate
6. arrival — arrive
7. decision — decide
8. suspicion — suspect
9. sweeper — sweep
10. Sure — assure

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

3. Fill in each blank with a suitable determiner :

1. ……….. of us were constantly together. (our / both)
2. She told me about the games she used to play as ……….. child. (the / a)
3. ……….. parents left me with Grandmother. (my / each)
4. …………. drop of water is precious. (every / all)
5. We hear …………. amazing success stories but we refuse to acknowledge them. (much / many)
Answer:
1. Both
2. a
3. My
4. Every
5. many.

4. Fill in each blank with a suitable modal :

1. I did not know who headed Telco. I thought it …………. be one of the Tatas. (need / must)
2. The film ………….. to be a great success. (should / ought)
3. My hostel mates told me I ……. use the opportunity to go to Pune. (should I would)
4. She …………. never have been pretty. (can I could)
5. You …………. …… start somewhere, otherwise, no woman will ever be able to work in your factories. (may / must)
Answer:
1. must
2. ought
3. should
4. could
5. must.

5. Do as directed :

1. I was too scared to go to meet Mr JRD Tata. (Rewrite the sentence after removing ‘too’)
2. She was too old to have grown older. (Rewrite the sentence after removing too’)
3. We are so lazy that we do not care to lift the garbage lying around us. (Rewrite using too’)
4. Major Som Nath was too brave to quit even in the face of heavy firing. (Rewrite after removing too’)
5. I’m not too sure about it. (Rewrite after removing too’)
Answer:
1. I was so scared that I could not go to meet Mr JRD Tata.
2. She was so old that she could not look older.
3. We are too lazy to care to lift the garbage lying around us.
4. Major Som Nath was so brave that he did not quit even in the face of heavy firing.
5. I’m not so very sure about it.

The Portrait of a Lady Summary & Translation in English

The Portrait of a Lady Summary in English:

Khushwant Singh draws here an interesting portrait of his grandmother. He presents her as a tender, loving and deeply religious old lady. Khushwant Singh says that his grandmother was an old woman. She was so old and her face was so wrinkled that it was difficult to believe she could ever have been young and pretty.

It appeared unbelievable when she talked of the games she used to play in her childhood. Her hair was as white as snow. She had a little stoop in her back. She could be seen telling the beads of her rosary all the time. The author says, “She was like the winter landscape in the mountains, an expanse of pure white serenity breathing peace and contentment.”

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

A picture of author’s grandfather hung on the wall. He appeared too old to believe that he ever had a wife. He appeared to have only lots and lots of grandchildren. Khushwant Singh was only a child at that time. His parents had gone to live in the city, leaving him behind in the village with Grandmother.

She would wake him in the morning and get him ready for school. As she bathed and dressed him, she would sing prayers. She hoped that in time, Khushwant Singh would also come to learn it by heart, but he could never do so.

After a breakfast of a stale bread and butter, Grandmother would accompany Khushwant Singh to the village school. The school was attached to the village temple. While the children sat in the verandah singing the alphabet or the prayer in chorus, Grandmother would read religious books in the temple. She would walk back home with Khushwant Singh when the school was over. On their way back, they would throw chapattis to the village dogs.

When his parents were well settled in the city, Khushwant Singh and his grandmother also went to live with them. Khushwant Singh joined an English-medium school. His grandmother didn’t like many things taught in this school. Though she still shared her room with Khushwant Singh, she could no longer help him in his lessons. She no longer went with him to his school.

In due course, Khushwant Singh went up to the University. He was then given a room of his own, and thus the common link of friendship between them now snapped completely. Grandmother began to pass her time at the spinning wheel from sunrise to sunset.

Only in the afternoon did she relax a little when she fed sparrows with little bits of bread. The sparrows also seemed to feel quite at home in her company. Some of the birds would sit on her shoulders, and even on her head.

Khushwant Singh decided to go abroad for further studies. He was to be away for five years. His grandmother went to the railway station to see him off. Khushwant Singh felt

that his grandmother would not live till the time he was to come back. But that was not so. She was there to receive him at the station when he came back. She celebrated his homecoming in her own way. She collected the women of the neighbourhood, got an old drum and started singing.

She kept singing and beating the drum for several hours. Next morning Grandmother fell ill. The doctor said that it was only a mild fever and would soon go. But Grandmother knew that her end was near.

She lay peacefully in bed, praying and telling the beads of her rosary. She did’t want to waste the remaining moments of her life in talking to anybody. Quite suddenly, the rosary fell from her hand. She had breathed her last.

Her body was placed on the ground and covered with a red shroud. After making preparations for her funeral, they went to her room to fetch her body for the last journey.

Thousands of sparrows had already gathered in the verandah and in her room right up to her dead body. The birds were all silent, and there was no chirping. The writer’s mother brought some bread, broke it into bits and threw it to them.

The sparrows did not pay any attention to the crumbs. When Grandmother’s dead body was taken away, the sparrows flew away quietly.

The Portrait of a Lady Translation in English:

Khushwant Singh has written a number of books on Sikh history and religion. He has also translated a number of books from Urdu and Punjabi into English. Apart from being a writer, he has been a lawyer, a public relations officer, and the editor of the Illustrated Weekly of India.

Two of his well-known novels are ‘Train to Pakistan and Shall Not Hear the Nightingale’. My grandmother, like everybody’s grandmother, was an old woman. She had been old and wrinkled for the twenty years that I had known her.

People said that she had once been young and pretty and even had a husband. But that was hard to believe. My grandfather’s portrait hung above the mantelpiece in the drawing-room. He wore a big turban and loose-fitting clothes. His long, white beard covered the best part of his chest and he looked at least a hundred years old. He did not look the sort of person who would have a wife or children. He looked as if he could only have lots and lots of grandchildren.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

As for my grandmother being young and pretty, the thought was almost revolting. She often told us of the games she used to play as a child. That seemed quite absurd and undignified on her part and we treated it like the fables’ of the prophets she used to tell us.

She had always been short and fat and slightly bent. Her face was a criss-cross of wrinkles running from everywhere to everywhere. No, we were certain she had always been as we had known her. Old, so terribly old that she could not have grown older, and has stayed at the same age for twenty years. She could never have been pretty; but she was always beautiful.

She hobbled about the house in spotless white with one hand resting on her waist to balance her stoop and the other telling the beads of her rosary. Her silver locks were scattered undtidily over her pale, puckere face and her lips constantly moved in an inaudible prayer. Yes, she was beautiful.

She was like the winter landscape in the mountains, and expanse of pure white serenity breathing peace and contentment. My grandmother and I were good friends. My parents left me with her when they went to live in the city and we were constantly together. She used to wake me up in the

morning and get me ready for school. She said her morning prayer in a monotonous singsong while she bathed and dressed me in the hope that I would listen and get to know it by heart. I listened because I loved her voice but never bothered to learn it.

Then she would fetch my wooden slate which she had already washed and plastered with yellow chalk, a tiny earthen ink-pot and a reed pen, tie them all in a bundle and hand it to me. After a breakfast of a thick, stale chapatti with a little butter and sugar spread on it, we went to the school. She carried several stale chapattis with her for the village dogs.

My grandmother always went to school with me because the school was attached to the temple. The priest taught us the alphabet and the morning prayer. While the children sat in rows on either side of the verandah singing the alphabet or the prayer in a chorus, my grandmother sat inside reading the scriptures.

When we had both finished, we would walk back together. This time the village dogs would meet us at the temple door. They followed us to our home growling and fighting with each other for chapattis we threw to them.

When my parents were comfortably settled in the city, they sent for us. That was a turning-point in our friendship. Although we shared the same room, my grandmother no longer came to school with me. I used to go to an English School in a motor bus. There were no dogs in the streets and she took to feeding sparrows in the courtyard of our city house. As years rolled by, we saw less of each other. For some time she continued to wake

me up and get me ready for school. When I came back she would ask me what the teacher had taught me. I would tell her English words and little things of western science and learning, the law of gravity, Archimedes’ principle, the world being round, etc. This made her unhappy. She could not help me with my lessons.

She did not believe in the things they taught at the English school and was distressed that there was no teaching about God and scriptures. One day I announced that we were being given music lessons. She was very disturbed. To her music had lewd associations. It was the monopoly’ of harlots and beggars and not meant for gentlefolk. She said nothing but her silence meant disapproval. She rarely talked to me after that.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

When I went up to the University, I was given a room of my own. The common link of friendship was snapped. My grandmother accepted her seclusion with resignation. She rarely left her spinning-wheel to talk to anyone. From sunrise to sunset, she sat by her wheel spinning and reciting prayers.

Only in the afternoon she relaxed for a while to feed the sparrows. While she sat in the verandah breaking the bread into little bits, hundreds of little birds collected round her creating a veritable bedlam of chirrupings. Some came and perched on her legs, others on her shoulders. Some even sat on her head. She smiled but never shood them away. It used to be the happiest half-hour of the day for her.

When I decided to go abroad for further studies, I was sure my grandmother would be upset. I would be away for five years, and at her age one could never tell. But my grandmother could. She was not even sentimental.

She came to leave me at the railway station but did not talk or show any emotion. Her lips moved in prayers, her mind was lost in prayer. Her fingers were busy telling the beads of her rosary’. Silently she kissed my forhead, and when I left I cherished the moist imprint as perhaps the last sign of physical contact between us.

But that was not so. After five years I came back and was met by her at the station. She did not look a day older. She still had no time for words, and while she clasped me in her arms, I could hear her reciting her prayer. Even on first day of my arrival, her happiest moments were with her sparrows whom she fed longer and with frivolous rebukes. In the evening a change came over her.

She did not pray. She collected the women of the neighbourhood, got an old drum and started to sing. For several hours she thumped the sagging skin of the dilapidated drum and sang of the homecoming of warriors.

We had to persuade her to stop to avoid overstraining. That was the first time since I had known her that she did not pray. The next morning she was taken ill. It was a mild fever and the doctor told us that it would go. But my grandmother thought differently. She told us that her end was near.

She said that, since only a few hours before the close of the first chapter of her life she had omitted to pray, she was not going to waste any more time talking to us. We protested. But she ignored our protest. She lay peacefully in bed praying and telling her beads.

Even before we could suspect, her lips stopped moving and the rosary fell from her lifeless fingers. A peaceful pallor spread on her face and we knew that she was dead.

We lifted her off the bed and, as is customary, laid her on the ground and covered her with a red shroud. After a few hours of mourning, we left her alone to make arrangements for her funeral. In the evening we went to her room with a crude stretcher to take her to be cremated.

The sun was setting and had lit her room and verandah with a blaze of golden light. We stopped halfway in the courtyard. All over the verandah and in her room right up to where she lay dead and stiff wrapped in red shroud, thousands of sparrows sat scattered on the floor. There was no chirruping. We felt sorry for the birds and my mother fetched some bread for them.

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

She broke it into little crumbs, the way my grandmother used to, and threw it to them. The sparrows took no notice of the bread. When we carried my grandmother’s corpse off, they flew away quietly. Next morning the sweeper swept the breadcrumbs into the dustbin.

The Portrait of a Lady Summary & Translation in Hindi

The Portrait of a Lady Summary in Hindi:

खुशवंत सिंह यहां अपनी दादी की एक दिलचस्प तस्वीर पेश करता है। वह उसे एक कोमल, प्रेमपूर्ण तथा गहरे रूप से धार्मिक बूढ़ी स्त्री के रूप में पेश करता है। खशवंत सिंह कहता है कि उसकी दादी एक बढी स्त्री थी।

वह इतनी बुढी थी तथा उसका चेहरा झर्रियों से इतना भरा हुआ था कि यह विश्वास करना कठिन था कि वह कभी जवान और सुन्दर भी रही थी। यह अविश्वसनीयसा प्रतीत होता जब वह उन खेलों के बारे में बातें करती जो वह अपने बचपन में खेला करती थी। उसके बाल बर्फ़ की भांति सफ़ेद थे। उसकी पीठ थोड़ी-सी झुकी हुई थी।

उसे हमेशा ही अपनी माला के मनके फेरते हुए देखा जा सकता था। लेखक कहता है, “वह पर्वतों के शीतकालीन प्राकृतिक नज़ारे की भांति प्रतीत होती थी, शुद्ध सफ़ेद स्थिरता की एक प्रतिमा जिसके श्वासों में शांति और सन्तोष भरा होता था।”

लेखक के दादा का एक चित्र दीवार पर टंगा हुआ था। वह इतना बूढ़ा प्रतीत होता था कि यह विश्वास कर पाना कठिन था कि कभी उसकी कोई पत्नी भी थी। ऐसा प्रतीत होता था कि उसके केवल ढेर सारे पोते । पोतियां / नवासे / नवासियां ही हो सकते थे।

उस समय खुशवंत सिंह सिर्फ एक बच्चा ही था। उसके माता-पिता उसे पीछे गांव में उसकी दादी के पास छोड़कर शहर में रहने चले गए थे। वह उसे प्रातःकाल जगा देती तथा उसे स्कूल जाने के लिए तैयार करती। जब वह उसे नहला और वस्त्र पहना रही होती, तो वह अपनी प्रार्थनाएं गाती रहती। उसे आशा थी कि धीरे-धीरे खुशवंत सिंह को वे ज़बानी याद हो जाएंगी, लेकिन वह ऐसा कभी न कर पाया।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 2 The Portrait of a Lady

बासी रोटी और मक्खन का नाश्ता करने के बाद दादी खुशवंत सिंह के साथ स्कूल तक उसे छोड़ने जाती। स्कूल गांव के गुरुद्वारे के अन्दर ही बना हुआ था। जिस दौरान बच्चे बरामदे में बैठे गा-गा कर अक्षर-माला अथवा प्रार्थना एक सुर में बोल रहे होते, तो उस समय दादी गुरुद्वारे के अंदर बैठी धार्मिक ग्रन्थ पढ़ रही होती।

स्कूल के बंद होने के बाद वह खुशवंत सिंह के साथ ही चलते हुए वापस आ जाती। वापस आते समय वे गांव के कुत्तों के आगे चपातियां फेंका करते। जब उसके माता-पिता शहर में अच्छी तरह से बस गए, तो खुशवंत सिंह तथा उसकी दादी भी उनके साथ रहने के लिए चले गए। खुशवंत सिंह ने अंग्रेजी माध्यम के एक स्कूल में दाखिला ले लिया। उसकी दादी इस स्कूल में पढ़ाई जाने वाली बहुत-सी चीज़ों को पसन्द नहीं करती थी।

यद्यपि वह अभी भी खुशवंत सिंह के साथ एक ही कमरे में रहती थी, लेकिन अब वह उसके पाठों (lessons) में उसकी सहायता नहीं कर पाती थी। अब वह उसके साथ उसके स्कूल तक नहीं जाती थी।

समय बीतने के साथ खुशवंत सिंह ने विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया। तब उसे उसका एक अलग कमरा दे दिया गया, और इस तरह उनके बीच की मित्रता की साझी कड़ी पूरी तरह से टूट गई। दादी सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक अपना समय चरखे पर ही बिताने लगी। वह केवल तीसरे पहर ही विश्राम करती जब वह चिड़ियों को रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े खिला रही होती। चिड़ियां भी उसकी संगति में आनंदमय महसूस करतीं।

उनमें से कुछ पंछी उसके कंधों, तथा सिर पर भी बैठ जाते। खुशवंत सिंह ने आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने का फैसला कर लिया। उसे पांच वर्ष तक (घर से) दूर रहना था। उसकी दादी उसे विदा करने के लिए रेलवे स्टेशन पर गई। खुशवंत सिंह ने महसूस किया कि वह उस समय तक जीवित नहीं रहेगी जब वह वापस आएगा। लेकिन ऐसा न हुआ। जब वह वापस आया तो वह स्टेशन

पर उसका स्वागत करने के लिए मौजूद थी। उसने उसकी घर-वापसी की खुशी को अपने ही ढंग से मनाया। उसने आस-पड़ोस की औरतों को इकट्ठा किया, एक पुराना-सा ढोलक लिया और गाना शुरू कर दिया। वह कई घंटों तक गाती रही और ढोलक को बजाती रही।

अगली सुबह दादी बीमार पड़ गई। डॉक्टर ने बताया कि यह सिर्फ हल्का-सा ज्वर था और जल्दी उतर जाएगा। किंतु दादी जानती थी कि उसका अंतिम समय करीब आ गया था। वह बिस्तर पर प्रार्थना करती हुई तथा अपनी माला के मनके फेरती हुई शांतिपूर्वक पड़ी रही। वह अपनी जिंदगी के बचे हुए पल किसी से बात करने में व्यर्थ नहीं गंवाना चाहती थी। अचानक ही माला उसके हाथ से गिर पड़ी। उसके प्राण निकल चुके थे।

उसके शव को ज़मीन पर रख दिया गया और लाल कफ़न से ढक दिया गया। उसके अंतिम संस्कार की तैयारियां करने के बाद वे उसकी अंतिम यात्रा के लिए उसे ले जाने के लिए उसके कमरे में गए। बरामदे में तथा उसके कमरे में उसके शव तक हज़ारों की संख्या में चिड़ियां इकट्ठी हो गई थीं।

पंछी बिल्कुल शांत थे और वहां चहचहाने का कोई शोर नहीं था। लेखक की मां कुछ रोटियां लाई, इसे छोटेछोटे टुकड़ों में तोड़ा और उनके आगे फेंक दिया। चिड़ियों ने रोटी के टुकड़ों की तरफ कोई ध्यान न दिया। जब दादी के शव को उठाकर ले जाया गया तो चिड़ियां चुपचाप उड़ गईं।

The Portrait of a Lady Translation in Hindi:

खुशवंत सिंह ने सिखों के इतिहास तथा धर्म पर कई पुस्तकें लिखी हैं। उसने उर्दू तथा पंजाबी की कई किताबों का अंग्रेज़ी में अनुवाद भी किया है। एक लेखक होने के अतिरिक्त वह एक वकील, एक जन सम्पर्क अधिकारी का सम्पादक भी रहा है। उसके सुप्रसिद्ध उपन्यासों में से दो हैं : मेरी दादी प्रत्येक व्यक्ति की दादी की भांति एक वृद्धा स्त्री थी।

पिछले बीस वर्षों से वह बूढ़ी और झुर्रियों से भरी चली आ रही थी, जब से मैं उसे पहचानने लगा था। लोग कहा करते थे कि कोई समय था जब वह जवान और सुन्दर हुआ करती थी, तथा उसका एक पति भी हुआ करता था। किन्तु इन बातों पर विश्वास हो पाना कठिन था। मेरे दादा का चित्र बैठक में अंगीठी के ऊपर की ओर लटका हुआ था। उसने एक बड़ी पगड़ी और खुले-ढीले वस्त्र पहने हुए थे। उसकी लम्बी सफेद दाढ़ी से उसके

वक्षस्थल का अधिकतर भाग ढका हुआ था और वह कम से कम एक सौ वर्ष बूढ़ा प्रतीत होता था। वह इस तरह का व्यक्ति प्रतीत नहीं होता था जिसकी कोई पत्नी अथवा बच्चे हो सकते हों। वह ऐसे लगता था जैसे उसके केवल पोते / पोतियां / नवासे / नवासियां ही हो सकते थे।

जहां तक मेरी दादी के जवान और सुन्दर होने का सम्बन्ध है, ऐसा सोचना भी लगभग असहनीय था। वह हमें प्रायः उन खेलों के बारे में बतलाती जो वह बचपन में खेला करती थी। ऐसी बात उसकी तरफ से बहुत मूर्खतापूर्ण और अशोभनीय प्रतीत होती थी, और हम इसे सन्त महात्माओं की उन काल्पनिक कहानियों जैसी ही एक काल्पनिक कहानी समझा करते थे जो वह हमें सुनाया करती थी।

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वह सदा से ही छोटे कद वाली और मोटी और थोड़ी-सी कुबड़ी थी। उसके चेहरे पर ताना-बाना बनाती हुई अनगिनत झुर्रियां रही थीं जो हर जगह से हर जगह की तरफ फैली हुई थीं। नहीं, हमें पक्का विश्वास था कि वह सदा से वैसी ही थी जैसा हम उसे देखते आ रहे थे। वह बूढ़ी, इतनी भयानक रूप से बूढ़ी थी कि वह इससे और अधिक बूढ़ी हो ही नहीं सकती थी, और बीस वर्ष से वह उसी आयु पर टिकी हुई थी।

वह कभी भी सुन्दर नहीं रही हो सकती थी, किन्तु वह सदा आकर्षक दिखलाई दिया करती थी। वह घर में इधर-उधर लंगड़ाती हुई चक्कर काटती रहती; उसने बेदाग़ सफेद वस्त्र पहने होते, अपने एक हाथ को उसने अपनी कमर पर टिकाया होता जिससे उसके झुके हुए शरीर का सन्तुलन बना रह सके तथा दूसरा उसकी माला के मनके फेरने में व्यस्त रहता। उसकी चांदी जैसी सफेद लटें उसके पीले, सिकुड़े हुए चेहरे पर उलझी हुई लटकी रहतीं और उसके होंठ मौन पाठ (प्रार्थना) में लगातार हिलते रहते। हां, वह आकर्षक अवश्य थी।

वह पर्वतों के शीतकालीन प्राकृतिक नज़ारे की भांति प्रतीत होती थी, शुद्ध सफेद स्थिरता की एक प्रतिमा जिसके श्वासों में शान्ति और सन्तोष भरा होता था। मेरी दादी और मैं अच्छे मित्र थे। मेरे माता-पिता मुझे उसके पास छोड़ गए जब वे रहने के लिए शहर चले गए थे, और अब हम हर समय इकट्ठे ही रहते थे। वह मुझे प्रातःकाल जगा दिया करती और मुझे स्कूल के लिए

तैयार किया करती थी। जब वह मुझे नहला और वस्त्र पहना रही होती तो वह अपना प्रातः का पाठ एक ही लय में बोलती रहती, इस आशा के साथ कि मैं इसे सुनता रहूं और इस प्रकार यह मुझे धीरे-धीरे जबानी याद हो जाए। मैं इसे सुनता रहता क्योंकि मुझे उसकी आवाज़ अच्छी लगती थी, किन्तु उसे याद करने का मैंने कभी कष्ट न किया।

फिर वह मेरी लकड़ी की तख्ती लेकर आती जिसे उसने पहले ही धोया होता और उस पर पीली मिट्टी का लेप किया होता; मिट्टी की एक छोटी-सी दवात और सरकंडे की एक कलम लाती जिन्हें वह एक पोटली में बांधती और मुझे पकड़ा देती। मोटी बासी रोटी जिसके ऊपर थोड़ा-सा मक्खन और चीनी का लेप किया गया होता, नाश्ते के रूप में खाने के बाद हम स्कूल की तरफ चल पड़ते। वह गांव के कुत्तों के लिए बहुत-सी बासी

रोटियां अपने साथ ले लिया करती थी। मेरी दादी सदा मेरे साथ स्कूल जाया करती क्योंकि स्कूल (गांव के) गुरुद्वारे के अन्दर ही बना हुआ था। पुजारी (पाठी) हमें अक्षरमाला तथा प्रात:कालीन प्रार्थना (पाठ) सिखलाया करता। जिस दौरान बच्चे बरामदे के दोनों तरफ पंक्तियों में बैठे गा-गा कर अक्षर-माला अथवा पाठ बोल रहे होते, तो उस समय मेरी दादी अंदर बैठी धार्मिक ग्रन्थ पढ़ रही होती।

जब हम दोनों अपना अपना काम समाप्त कर लेते, तो हम इकट्ठे चलते हुए वापस आ जाते। इस समय गांव के कुत्ते हमें मन्दिर (गुरुद्वारे) के द्वार पर मिल जाते। वे हमारे पीछे-पीछे हमारे घर तक आ जाते, गुर्राते हुए तथा उन रोटियों के लिए एक-दूसरे से लड़ते हुए जो हम उनकी तरफ फेंका

करते। जब मेरे माता-पिता शहर में अच्छी तरह से बस गए तो उन्होंने हमें बुलवा भेजा। यह हमारी मित्रता में एक नया मोड़ था। यद्यपि हम एक ही कमरे में इकट्ठे रहते थे, मेरी दादी अब मेरे साथ स्कूल नहीं जाया करती थी। मैं एक मोटर-बस में बैठ कर एक अंग्रेजी स्कूल में जाया करता था।

वहां गलियों में कोई कुत्ते नहीं होते थे, और उसने (मेरी दादी ने) हमारे शहर वाले मकान के आंगन में चिड़ियों को दाने खिलाने की आदत डाल ली थी। जैसे-जैसे वर्ष बीतते गए हम एक-दूसरे को पहले से कम देखने-मिलने लगे। कुछ समय तक उसने मुझे जगाना और स्कूल के लिए तैयार करना जारी रखा। जब मैं वापस आता तो वह मुझसे पूछती कि अध्यापक ने मुझे क्या-क्या पढ़ाया था।

मैं उसे अंग्रेज़ी के शब्दों और पश्चिमी ज्ञान विज्ञान, गुरुत्व-आकर्षण के नियम, आर्कीमीडीज़ के सिद्धान्त, संसार के गोल होने, आदि के सम्बन्ध में छोटी-छोटी बातें बतलाया करता था। यह सब सुन कर वह दुःखी हो उठती। वह मेरे पाठों में मेरी सहायता नहीं कर सकती थी। वह उन चीज़ों में विश्वास नहीं रखती थी जो अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाई जाती थीं और उसे इस बात पर बहुत पीड़ा महसूस होती कि वहां ईश्वर और धार्मिक ग्रन्थों के सम्बन्ध में कोई पढ़ाई नहीं करवाई जाती थी।

एक दिन मैंने कह दिया कि हमें संगीत के पाठ सिखलाए जा रहे थे। वह बहुत बेचैन हो उठी। उसके विचार में संगीत घटिया किस्म की वासनाएं पैदा करने वाली चीज़ थी। यह केवल वेश्याओं और भिखारियों का ही एकाधिकार था और शरीफ लोगों का इससे कोई प्रयोजन नहीं हो सकता था। वह बोली तो कुछ नहीं, किन्तु उसकी खामोशी उसकी नापसंदगी की सूचक थी। इसके बाद वह मेरे साथ कभी-कभार ही बोला करती थी। जब मैंने विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया तो मुझे अपना एक अलग से कमरा दे दिया गया। इस प्रकार हमारी मित्रता की साझी कड़ी टूट गई।

मेरी दादी ने अपना एकान्तपन शान्तिपूर्वक स्वीकार कर लिया। वह किसी से बात करने के लिए अपने चरखे पर से शायद ही कभी उठा करती थी। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक वह कातती और पाठ (प्रार्थना) करती हुई अपने चरखे पर बैठी रहती। केवल तीसरे पहर को ही वह चिड़ियों को खिलाने के लिए थोड़ा आराम किया करती। जब वह रोटी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ती हुई बरामदे में बैठी होती तो सैंकड़ों छोटे-छोटे पक्षी उसके गिर्द एकत्रित हो जाते जिससे वहां चहचहाने की आवाज़ों से भरा हुआ एक सचमुच का पागलखाना बना जाता।

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कुछ (चिड़ियां) आ कर उसकी टांगों पर बैठ जाती, और अन्य उसके कन्धों पर। कुछ उसके सिर पर भी बैठ जातीं। वह मुस्कराती रहती और कभी भी उन्हें (डरा कर) उड़ाती नहीं थी। उसके लिए आधे-घण्टे का यह समय दिन भर में सबसे खुशी वाला समय हुआ करता था।

जब मैंने आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने का मन बनाया, तो मुझे पक्का विश्वास था कि मेरी दादी बेचैन हो उठेगी। मैंने पांच वर्ष तक (घर से) दूर रहना था और उसकी आयु के हिसाब से कुछ नहीं कहा जा सकता था। किन्तु मेरी दादी जानती थी। वह तनिक भी भावुक न हुई। वह मुझे छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन पर आई, किन्तु न तो वह कुछ बोली और न ही उसने कोई भावुकता दिखलाई।

उसके होंठ पाठ करते हुए हिल रहे थे, उसका मन पाठ में खोया हुआ था। उसकी अंगुलियां उसकी माला के मनकों को फेरने में व्यस्त थीं। उसने खामोशी से मेरे माथे को चूमा और जब मैं (गाड़ी में) चल दिया तो मुझे वह नम छाप बहुत प्रिय महसूस होती रही, शायद हम दोनों के बीच शारीरिक सम्पर्क के एक अन्तिम चिह्न के रूप में। किन्तु ऐसा नहीं था। पांच वर्ष पश्चात् मैं घर लौट आया और वह मुझे स्टेशन पर मिली।

वह पहले की अपेक्षा एक दिन भी अधिक बूढी प्रतीत नहीं हो रही थी। अब भी उसके पास बोलने को कोई समय नहीं था, तथा जब उसने मुझे अपनी बांहों में कसकर लिया तो मुझे उसके पाठ करने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मेरे वापस आने से पहले दिन भी उसके सबसे खुशी-भरे क्षण अपनी चिड़ियों के मध्यं ही बीते जिन्हें वह पहले से अधिक देर तक खिलाती रही और उन्हें मज़ाक-भरी गालियां निकालती रही।

सायंकाल के समय उसमें एक परिवर्तन आ गया। उसने पाठ न किया। उसने पड़ोस की औरतों को इकट्ठा किया, एक पुराना ढोलक लिया और गाने बैठ गई। कई घण्टों तक वह उस टूटे-फूटे ढोलक की धंसी हुई चमड़ी को पीटती रही और योद्धाओं के घर लौटने सम्बन्धी गीत कहीं अधिक थकावट न हो जाए।

जब से मैं उसे पहचानने लगा था, यह पहला अवसर था जब उसने अपना पाठ नहीं किया था। अगली प्रातः वह बीमार पड़ गई। यह हल्का-सा ज्वर था और डॉक्टर ने हमें बतलाया कि यह उतर जाएगा। किन्तु मेरी दादी कुछ अलग ही सोच रही थी। उसने हमें बतलाया कि उसका अन्त समीप आ गया था।

उसने कहा कि क्योंकि अपने जीवन के पहले अध्याय की समाप्ति से कुछ ही घण्टे पहले वह अपना पाठ करना भूल गई थी, इसलिए वह अब और कोई समय हमारे साथ बातें करने में व्यर्थ गंवाना नहीं चाहती थी। हमने इस पर विरोध व्यक्त किया। किन्तु उसने हमारे विरोध की कोई परवाह न की। वह बिस्तर पर शान्तिपूर्वक पड़ी रही, पाठ करती हुई और अपनी माला फेरती हुई। हमें कोई सन्देह होने से पहले ही उसके होंठ हिलना बन्द हो गए और उसकी निर्जीव अंगुलियों में से माला नीचे गिर पड़ी। उसके चेहरे पर एक शान्तिमय पीलापन

छा गया और हम समझ गए कि वह मर चुकी थी। हमने उसे बिस्तर पर से उठाया और, जैसा कि रिवाज है, धरती पर लिटा दिया तथा उसे एक लाल कफ़न से ढक दिया। कुछ घण्टों तक विलाप करने के पश्चात् हम अन्तिम संस्कार की तैयारियां करने के लिए उसे अकेला छोड़ कर चले गए।

सायंकाल को हम उसका अन्तिम संस्कार करने को ले जाने के लिए एक अर्थी लेकर उसके कमरे में गए। सूर्य अस्त हो रहा था तथा उसके कमरे और बरामदे को अपनी सुनहरी रोशनी की चमक के साथ प्रकाशित कर रहाथा । हम बरामदे के आधे रास्ते में रुक गए। पूरे बरामदे में और कमरे में ठीक उस जगह तक जहां तक वह लाल कफ़न में लिपटी हुई निर्जीव और अकड़ी पड़ी थी, हजारों चिड़ियां फ़र्श पर सभी जगह बैठी हुई थीं।

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वहां कोई चहचहाना नहीं हो रहा था। हमें इन पक्षियों पर दया आई, और मेरी मां उनके लिए रोटी ले आई। उसने उसे तोड़ कर छोटे-छोटे टुकड़े किए, जिस तरह मेरी दादी किया करती थी, और इन्हें उनके सामने फेंक दिया। चिड़ियों ने रोटी की ओर कोई ध्यान न दिया। जब हम दादी का शव उठा कर ले गए तो वे (चिड़ियां) खामोशी से उड़ कर वहां से चली गईं। अगली प्रातः सफाई करने वाले ने झाड़ लगा कर उन रोटी के टुकड़ों को कूड़ेदान में डाल दिया।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 1 Gender Bias

Punjab State Board PSEB 11th Class English Book Solutions Chapter 1 Gender Bias Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 English Chapter 1 Gender Bias

Short Answer Type Questions

Question 1.
What course was the author pursuing at the Indian Institute of Science, Bangalore ?
Answer:
Sudha Murthy, the author of this chapter, was very bright at studies. She was pursuing her M.Tech. course at the Indian Institute of Science in Bangalore. At that time, this institute was known as the Tata Institute. She was the only girl in her postgraduate department.

सुधा मूर्थी, इस अध्याय की लेखिका, पढ़ाई में बहुत होशियार थी। वह बेंगलौर के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में अपना एम० टेक० का कोर्स कर रही थी। उस समय इस संस्थान को टाटा इंस्टिट्यूट के नाम से जाना जाता था। वह अपने पोस्टग्रैजुएट विभाग में एकमात्र लड़की थी।

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Question 2.
Where did the author want to complete a doctorate in computer science ?
Answer:
The author was pursuing her M.Tech. course at the Indian Institute of Science in Bangalore. She was doing there her master’s course in computer science. She also wanted to do doctorate in it. And she wanted to go abroad to complete her doctorate in computer science.

लेखिका बेंगलोर के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में अपना एम० टेक० कोर्स कर रही थी। वह वहां कंप्यूटर साइंस में अपना पोस्टग्रैजुएट का कोर्स कर रही थी। वह इसमें डॉक्टरेट भी करना चाहती थी। वह कंप्यूटर साइंस में अपनी डॉक्टरेट की डिग्री पूरी करने के लिए विदेश जाना चाहती थी।

Question 3.
What advertisement did the author see on the noticeboard ?
Answer:
It was in 1974 when the author was pursuing her M. Tech. course at the Indian Institute of Science in Bangalore. She was then in the final year. One day, she saw an advertisement on the noticeboard. It was a standard job-requirement notice from the famous automobile company, Telco (now called Tata Motors).

यह वर्ष 1974 में तब हुआ जब लेखिका बेंगलोर के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में अपना एम० टेक० का कोर्स कर रही थी। तब वह अंतिम वर्ष में थी। एक दिन उसने नोटिसबोर्ड पर एक विज्ञापन देखा। यह प्रसिद्ध कार-निर्माता कंपनी, टेल्को (जिसे आज टाटा मोटर्ज के नाम से जाना जाता है), द्वारा दिया गया नौकरी के विषय में एक मानक नोटिस था।

Question 4.
What was it in the advertisement that made the author very upset ?
Answer:
The advertisement was a standard job-requirement notice from the famous automobile company, Telco (now called Tata Motors). The author became very upset when she read a line in the advertisement. It said, “Lady candidates need not apply.”

वह विज्ञापन नौकरी के विषय में दिया गया मानक नोटिस था जो कि मोटर-कार बनाने वाली प्रसिद्ध कंपनी टेल्को (जिसे आज टाटा मोटर्ज के नाम से जाना जाता है), की तरफ से था। लेखिका ने जब विज्ञापन में एक पंक्ति पढ़ी तो वह दुःखी हो गई। इसमें कहा गया था, “स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।”

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Question 5.
Why did she write a postcard to Telco ?
Answer:
The famous automobile company, Telco, had given an advertisement about a standard job-requirement. In it, lady candidates were asked not to apply. Sudha became upset when she read it. She wrote a postcard to Telco to express her displeasure at the discrimination against women shown by Telco.

प्रसिद्ध कार-निर्माता कंपनी, टेल्को, ने नौकरी के विषय में एक मानक विज्ञापन दिया था। इसमें स्त्री उम्मीदवारों से प्रार्थना-पत्र न देने के लिए कहा गया था। सुधा विचलित हो गई जब उसने उस विज्ञापन को पढ़ा। उसने टेल्को द्वारा महिलाओं के विरुद्ध दिखाए गए भेदभाव पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करने के लिए उस कंपनी को एक पोस्टकार्ड लिखा।

Question 6.
What telegram did the author receive from Telco ?
Answer:
The author had written a postcard to the automobile company, Telco, to express her displeasure at the discrimination against women shown by them. In its reply, she got a telegram from Telco. She was called to appear for an interview at Telco’s Pune office at the company’s expense.

लेखिका ने कार-निर्माता कम्पनी, टेल्को, द्वारा स्त्रियों के प्रति दिखाए गए भेदभाव के विरुद्ध अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए कंपनी को एक पोस्टकार्ड लिखा था। उसके जवाब में उसे टेल्को की ओर से एक डाक-तार प्राप्त हुई। उसे टेल्को के पुणे-स्थित कार्यालय में कम्पनी के खर्चे पर इंटरव्यू के लिए उपस्थित होने के लिए बुलाया गया था।

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Question 7.
Why did author’s hostelmates want her to go to Pune for the interview ?
Answer:
The author had received a telegram from the famous automobile company, Telco. She was called to appear for an interview at Telco’s Pune office at the company’s expense. So her hostelmates wanted her to use the opportunity to go to Pune free of cost and buy them the famous Pune sarees for cheap.

लेखिका को प्रसिद्ध कार-निर्माता कंपनी, टेल्को, की तरफ से एक डाक-तार प्राप्त हुई थी। उसे कंपनी के खर्च पर ही टेल्को के पुणे-स्थित कार्यालय में इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। इसलिए छात्रावास में रहने वाली उसकी साथिनें चाहती थीं कि वह इस मौके का इस्तेमाल मुफ्त में पुणे जाने के लिए करे और उनके लिए पुणे की प्रसिद्ध साड़ियां सस्ते दामों पर खरीद लाए।

Question 8.
How many people were there on the interview panel ? What did the author realize ?
Answer:
There were six people on the interview panel. Then the author realized that it was a serious business. So before the interview, Sudha told the panel that she hoped that it was only a technical interview. The interview panel asked the author technical questions only.

इंटरव्यू में विशेषज्ञों के समूह में छः लोग थे। तब जाकर लेखिका को एहसास हुआ कि यह एक गंभीर मामला था। इसलिए इंटरव्यू से पहले ही सुधा ने विशेषज्ञों के समूह से कह दिया कि उसे आशा थी कि यह केवल एक तकनीकी (नाममात्र का) इंटरव्यू था। इंटरव्यू में विशेषज्ञों के समूह ने लेखिका से केवल तकनीकी प्रश्न ही पूछे।

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Question 9.
What did Sudha tell the panel before the interview ?
Answer:
When Sudha went for the interview at Telco’s Pune office, she saw there were six people on the panel. Then the author realized that it was a serious business. So before the interview, Sudha told the panel that she hoped it was only a technical interview.

जब सुधा इंटरव्यू के लिए टेल्को के पुणे-स्थित कार्यालय गई तो उसने देखा कि वहां विशेषज्ञों के समूह में छ: लोग थे। तब लेखिका को एहसास हुआ कि यह एक गंभीर मामला था। इसलिए इंटरव्यू से पहले ही सुधा ने विशेषज्ञों के समूह से कह दिया कि उसे उम्मीद थी कि यह सिर्फ एक तकनीकी इंटरव्यू था।

Question 10.
What type of questions was the author asked by the interview panel ?
Answer:
The panel asked Sudha technical questions only. One of the six people on the interview panel was an elderly gentleman. He talked to Sudha very affectionately. He told her why they had said ‘Lady candidates need not apply’. He told her that they had never employed any ladies on the shop floor of the company. “This is not a co-ed college; this is a factory,” he said.

विशेषज्ञों के समूह ने सुधा से सिर्फ तकनीकी प्रश्न ही पूछे। विशेषज्ञों के उस छ:-सदस्यीय समूह में एक वृद्ध भद्रपुरुष था। उसने सुधा से बड़े प्यार से बात की। उसने उसे बताया कि उन्होंने क्यों कहा था कि ‘स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है’। उसने उसे बताया कि उन्होंने कभी स्त्रियों को कंपनी के कारखाने में नौकरी नहीं दी थी। “यह एक सह-शिक्षा महाविद्यालय नहीं है; यह एक कारख़ाना है,” उसने कहा।

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Question 11.
When did Sudha first see Mr JRD Tata ?
Answer:
After joining Telco, Sudha did not get a chance to meet him till she was transferred to Mumbai. One day, she went to the chairman’s office. Suddenly Mr JRD too came there. It was the first time that she met Mr JRD Tata.

टेल्को कंपनी में शामिल होने के बाद सुधा को उससे मिलने का अवसर तब तक न मिल पाया जब तक कि उसका तबादला मुम्बई न हो गया। एक दिन वह चेयरमैन के कार्यालय में गई। अचानक मिस्टर जे० आर० डी० भी वहां आ गया। यह पहली बार था कि वह मिस्टर जे० आर० डी० टाटा से मिली थी।

Question 12.
What did Sumant Moolgaokar tell Mr JRD about Sudha ?
Answer:
One day, Sudha had to show some reports to the chairman, Mr Moolgaokar. She went to his office. Suddenly Mr JRD too came there. It was the first time that she met Mr JRD Tata. Mr Moolgaokar introduced her to Mr JRD saying, “She is the first woman to work on the Telco’s shop floor.”

एक दिन सुधा ने मिस्टर मूलगांवकर को कुछ रिपोर्ट दिखानी थीं। वह उसके कार्यालय में गई। अचानक मिस्टर जे० आर० डी० भी वहां आ गया। यह पहली बार था जब सुधा मिस्टर जे० आर० डी० से मिली थी। मिस्टर मूलगॉवकर ने यह कहते हुए उसे मिस्टर जे० आर० डी० टाटा से मिलवाया, “यह टेल्को के कारखाने में काम करने वाली पहली स्त्री है।”

Question 13.
How many girls are now studying in engineering colleges ?
Answer:
In 1974 when Sudha Murthy was pursuing her M.Tech. course at the Indian Institute of science, in Banglore, very few girls took engineering as their career. It was so because girls were not given jobs of engineers in the companies. But today, nearly 50 per cent of the students in engineering colleges are girls.

वर्ष 1974 में जब सुधा मूर्थी बेंगलोर में टाटा इंस्टिट्यूट में अपना एम० टेक० कोर्स कर रही थी, बहुत कम लड़कियां इंजीनियरिंग को अपना व्यवसाय बनाती थीं। ऐसा इसलिए था क्योंकि लड़कियों को कंपनियों में इंजीनियरों की नौकरियां नहीं दी जाती थीं। लेकिन आज इंजीनियरिंग कालजों में लगभग पचास प्रतिशत विद्यार्थी लड़कियां हैं।

Question 14.
What would the author want from life, if time stops ?
Answer:
Sudha Murthy was greatly impressed by Mr JRD Tata, the owner of the very famous automobile company, Telco (now Tata Motors). Sudha says that if time stops and asks her what she wants from life, she would say she wishes Mr Tata was alive today. He would have been very happy to see his company having made so much progress.

सुधा मूर्थी एक अत्यंत प्रसिद्ध कार-निर्माता कंपनी, टेल्को (जिसे अब टाटा मोटर्स कहा जाता है), के मालिक, मिस्टर जे० आर० डी० टाटा, से अत्यंत प्रभावित हुई। सुधा का कहना है कि यदि समय रुक जाए और उससे पूछे कि वह जीवन से क्या चाहती है, तो वह कहेगी कि उसकी कामना है कि काश, मिस्टर. टाटा आज जीवित होते। वह यह देख कर अत्यंत प्रसन्न होते कि उनकी कंपनी ने कितनी उन्नति कर ली है।

Question 15.
Describe Sudha’s life as a student at the Indian Institute of Science, Bangalore.
Answer:
Sudha was doing her master’s course in computer science at the Indian Institute of Science in Bangalore. She was a bright student. She was the only girl in her postgraduate department. She was very bold and idealistic. Her life was full of fun and joy.

सुधा बेंगलोर के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में कम्प्यूटर साइंस में अपना मास्टर्ज़ कोर्स कर रही थी। वह एक होशियार विद्यार्थी थी। वह अपने पोस्टग्रैजुएट विभाग में अकेली लड़की थी। वह बहुत ही साहसी और आदर्शवादी थी। उसकी जिंदगी मौज-मस्ती से भरपूर थी।

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 1 Gender Bias

Question 16.
Why did Sudha want to go abroad ?
Answer:
Sudha was a bright student. She had been offered scholarship from universities in the U.S. and she didn’t want to take up any job in India. So after completing her master’s course in computer science, she was looking forward to going abroad. There she wanted to complete her doctorate in computer science.

सुधा एक होशियार विद्यार्थी थी। उसे अमरीका के विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रवृत्ति का प्रस्ताव दिया गया था और वह भारत में कोई नौकरी नहीं करना चाहती थी। इसलिए कम्प्यूटर साइंस में अपना मास्टर्स कोर्स पूरा करने के पश्चात् वह विदेश जाने के लिए उत्सुकता से इंतज़ार कर रही थी। वहां वह कम्प्यूटर साइंस में अपनी डॉक्टरेट पूरी करना चाहती थी।

Question 17.
Why did Sudha write a postcard to Telco ? And what did she receive in reply from the company ?
Answer:
Sudha wrote a postcard to Telco because she wanted to express her displeasure at the discrimination against women shown by the famous automobile company. In reply to that letter, Sudha received a telegram from Telco. She was called to appear for an inteview at Telco’s Pune office at the company’s expense.

सुधा ने टेल्को कम्पनी को एक पत्र लिखा क्योंकि वह मोटर-कार बनाने वाली उस प्रसिद्ध कम्पनी के द्वारा स्त्रियों के प्रति दिखाए गए भेदभाव के विरुद्ध अपनी नाराजगी व्यक्त करना चाहती थी। उस पत्र के जवाब में सुधा को टेल्को कम्पनी की ओर से एक डाक-तार प्राप्त हुई। उसे टेल्को के पुणे-स्थित कार्यालय में कम्पनी के खर्चे पर इंटरव्यू के लिए उपस्थित होने के लिए बुलाया गया था।

Question 18.
What was the reason given by the elderly man for not employing women in Telco ?
Answer:
The elderly gentleman talked to Sudha very affectionately. He told her why they had said ‘Lady candidates need not apply’. He told her that they had never employed any ladies on the shop floor of the company. “This is not a co-ed college; this is a factory,” he said.

उस वृद्ध भद्रपुरुष ने सुधा से बड़े प्यार से बात की। उसने उसे बताया कि उन्होंने क्यों कहा था कि ‘स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है। उसने उसे बताया कि उन्होंने कभी स्त्रियों को कंपनी के कारख़ाने में नौकरी नहीं दी थी। “यह एक सह-शिक्षा महाविद्यालय नहीं है; यह एक कारख़ाना है,” उसने कहा।

Question 19.
What did the writer see as a challenge ? What did she decide to do and why?
Answer:
To apply for the job which was not considered applicable for women by the Telco company was a challenge for the writer. She decided to write to the topmost person in Telco’s management. She wanted to inform him about the injustice being perpetrated by the company.

उस नौकरी के लिए आवेदन करना जिसे टेल्को कंपनी द्वारा स्त्रियों के लिए उपयुक्त नहीं समझा जाता था, लेखिका के लिए एक चुनौती थी। उसने टेल्को के प्रबंधन वर्ग के सर्वोच्च व्यक्ति को एक पत्र लिखने का निश्चय किया। वह उसे उस अन्याय के बारे में सूचित करना चाहती थी, जो कंपनी के द्वारा किया जा रहा था।

Question 20.
What did she write in the letter to Telco company ?
Answer:
In the postcard, she wrote that the great Tatas not only started the basic infrastructure industries in India, but also established the Indian Institute of Science. But she was surprised to find Telco discriminating on the basis of gender.

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पोस्टकार्ड में उसने लिखा कि महान् टाटा परिवार के लोगों ने न सिर्फ भारत में बुनियादी ढांचागत उद्योगों की शुरुआत की, बल्कि इंडियन इंस्टियूट ऑफ साइंस की स्थापना भी की। उसे यह देख कर बड़ी हैरानी हुई थी कि टेल्को लिंग के आधार पर भेदभाव कर रही थी।

Long Answer Type Questions

Question 1.
Describe Sudha’s life as a student at the Indian Institute of Science, Bangalore.
Answer:
Sudha was doing her master’s course in computer science at the Indian Institute of Science in Bangalore. At that time, this institute was known as the Tata Institute. It was a co-ed college. Sudha stayed at the ladies hostel in Bangalore. Sudha was a bright student.

She was the only girl in her postgraduate department. Other girls in the institute were pursuing research in different departments of science . Sudha was very bold and idealistic. Her life was full of fun and joy.

She did not know what helplessness or injustice meant till she came to know about the gender bias prevalent in the society. Her one move against this bias brought a great change in the policy of the famous automobile company named Telco (Tata Motors). Telco company started giving work to women also on its shop floor.

सुधा बेंगलोर के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में कम्प्यूटर साइंस में अपना मास्टर्ज कोर्स कर रही थी। उस समय यह संस्थान टाटा इंस्टिट्यूट के नाम से जाना जाता था। यह एक सह-शिक्षा कालेज था। सुधा बेंगलोर में लड़कियों के छात्रावास में रहती थी। सुधा एक होशियार विद्यार्थी थी। वह अपने पोस्टग्रैजुएट विभाग में अकेली लड़की थी। उस संस्थान में अन्य लड़कियां विज्ञान के विभिन्न विभागों में खोज-कार्य में पढ़ाई कर रही थीं।

सुधा बहुत ही साहसी और आदर्शवादी थी। उसकी जिंदगी मौज-मस्ती से भरपूर थी। वह तब तक नहीं जानती थी कि लाचारी तथा अन्याय का क्या अर्थ था जब तक कि उसे समाज में फैले लिंग भेदभाव के बारे में पता न चला। इस भेदभाव के विरुद्ध उसकी एक चेष्टा ने टेल्को (टाटा मोटर्स) नाम की एक सुप्रसिद्ध कार-निर्माता कम्पनी की नीति में एक बड़ा बदलाव ला दिया। टेल्को कम्पनी ने अपने कारखाने में औरतों को भी काम पर रखना शुरू कर दिया।

Question 2.
What were Sudha’s plans after completing her master’s course in computer science ?
Answer:
Sudha was an intelligent student. She was pursuing her M.Tech. course at the Indian Institute of Science in Bangalore. She was in the final year of her M.Tech. course. She was the only girl in her postgraduate department. She was very bright at studies.

She had always been excellent in academics and in M.Tech. she had done better than most of her male classmates. She had been offered scholarship from universities in the U.S. and she didn’t want to take up any job in India.

So after completing her master’s course in computer science, she was looking forward to going abroad. She wanted to go abroad to study for her doctorate in computer science. But there was something different in store for her. An incident changed her decision of going abroad for further studies and also starting her career there. She got a job in the famous automobile company, Telco, in Pune.

सुधा एक होशियार विद्यार्थी थी। वह बेंगलोर में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में अपने एम० टेक० कोर्स की पढ़ाई कर रही थी। वह एम० टेक० कोर्स के अंतिम वर्ष में थी। अपने पोस्टग्रैजुएट विभाग में वह अकेली लड़की थी। वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी। वह पढ़ाई में सदा ही अति उत्तम रही थी और एम० टेक० में उसने अपने अधिकतर पुरुष सहपाठियों के मुकाबले बेहतर किया था।

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उसे अमरीका के विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रवृत्ति का प्रस्ताव दिया गया था और वह भारत में नौकरी नहीं करना चाहती थी। इसलिए कम्प्यूटर साइंस में अपना मास्टर्ज़ कोर्स पूरा करने के पश्चात् वह विदेश जाने के लिए उत्सुकता से इंतज़ार कर रही थी। वह कम्प्यूटर साइंस में अपनी डॉक्टरेट पूरी करने के लिए विदेश जाना चाहती थी। परन्तु उसके भाग्य में कुछ और ही लिखा था। एक घटना ने उसके आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने और वहीं अपना काम करने के निश्चय को बदल दिया। उसे पुणे में सुप्रसिद्ध कम्पनी टैल्को में एक नौकरी मिल गई।

Question 3.
Why did Sudha become angry after reading the job advertisement from the automobile company, Telco ?
Answer:
There was a small line at the bottom of the job advertisement from the famous company, Telco. It said, “Lady candidates need not apply.” Sudha was shocked to read this. She was surprised how a company such as Telco was discriminating on the basis of gender.

She grew so angry that she decided to write to the topmost person in Telco’s management. She wanted to inform him about the injustice being perpetrated by the company. And she wrote a letter to Mr JRD Tata, expressing her displeasure at the discrimination against women. She took it as a challenge to apply for the job which was not considered applicable for women by the Telco company.

मोटर-कार बनाने वाली प्रसिद्ध कंपनी, टेल्को, के द्वारा दिए गए नौकरी के विज्ञापन में सबसे नीचे एक लाइन थी। इसमें कहा गया था : “स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।” सुधा को इसे पढ़कर झटका लगा। उसे हैरानी हुई कि टेल्को जैसी एक कंपनी किस तरह लिंग के आधार पर भेदभाव कर रही थी। वह इतनी क्रोधित हो उठी कि उसने टेल्को के प्रबंधन-वर्ग के शिखर पर बैठे व्यक्ति को पत्र लिखने का निश्चय किया।

वह उसे उस अन्याय के बारे में सचित करना चाहती थी जो कम्पनी कर रही थी। और उसने स्त्रियों के प्रति भेदभाव पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए मिस्टर जे० आर० डी० टाटा को एक पत्र लिख दिया। उसने उस नौकरी के लिए आवेदन भेजने को जिसे टेल्को कंपनी द्वारा स्त्रियों के लिए उपयुक्त नहीं समझा जाता था, एक चुनौती के रूप में लिया।

Question 4.
What was the reason given by the elderly man for not employing women in Telco ?
Answer:
When Sudha went for the interview at Telco’s Pune office, there were six people on the panel. One of them was an elderly gentleman. He talked to Sudha very affectionately. He told her why they had said ‘Lady candidates need not apply’.

He told her that they had never employed any ladies on the shop floor of the company. “This is not a co-ed college; this is a factory,” he said to Sudha. He appreciated Sudha for being first ranker throughout her academics. That elderly gentleman said to Sudha that bright people like her should work in research laboratories.

जब सुधा इंटरव्यू के लिए टेल्को के पुणे-स्थित कार्यालय गई तो वहां विशेषज्ञों के समूह में छः लोग थे। उनमें से एक वृद्ध भद्रपुरुष था। उसने सुधा से बड़े प्यार से बात की। उसने उसे बताया कि उन्होंने क्यों कहा था कि ‘स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है’।

उसने उसे बताया कि उन्होंने कभी किसी स्त्री को कंपनी के कारखाने में नौकरी नहीं दी थी। “यह एक सह-शिक्षा महाविद्यालय नहीं है; यह एक कारख़ाना है,” उसने सुधा से कहा।उसने शिक्षा में पूरे समय के दौरान सदैव प्रथम आने के लिए सुधा की प्रशंसा की। इस वृद्ध भले आदमी ने सुधा से कहा कि उसके जैसे बुद्धिमान लोगों को खोज-कार्य करने वाली प्रयोगशालाओं में काम करना चाहिए।

Question 5.
When did Sudha come to know who Mr JRD Tata was ? When did she happen to meet him ?
Answer:
It was only after joining Telco that Sudha came to know who Mr JRD Tata was. He was the uncrowned king of Indian industry. However, she did not get to meet him till she was transferred to Bombay. One day, she went to the chairman’s office to show some reports.

Mr Moolgaokar was the chairman of the company. When Sudha was showing Mr Moolgaokar the reports, suddenly, Mr JRD too came there. It was the first time that she met Mr JRD Tata. On seeing Mr JRD Tata all of a sudden before her, Sudha became very nervous, remembering her postcard episode.

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But Mr Moolgaokar introduced her very nicely to Mr JRD Tata. He said, “Jeh, this young woman is an engineer and that too a postgraduate. She is the first woman to work on the Telco shop floor.

यह टेल्को कंपनी में शामिल होने के बाद ही था कि सुधा को पता चला कि मिस्टर जे० आर० डी० टाटा कौन था। वह भारतीय उद्योग का बेताज बादशाह था। लेकिन उसको उसे मिलने का अवसर तब तक न मिल पाया जब तक कि उसका तबादला बंबई न हो गया। एक दिन वह चेयरमैन के कार्यालय में कुछ रिपोर्ट दिखाने के लिए गई थी।

मिस्टर मूलगावकर कम्पनी का चेयरमैन था। जब सुधा मिस्टर मूलगावकर को रिपोर्ट दिखा रही थी, अचानक मि० जे० आर० डी० भी वहां आ गया। यह पहली बार था कि वह मिस्टर जे० आर० डी० टाटा से मिली थी। मिस्टर जे० आर० डी० टाटा को अचानक अपने सामने आया देख कर सुधा को घबराहट होने लगी, अपनी उस पोस्टकार्ड वाली घटना को याद करके। परन्तु मिस्टर मूलगावकर ने मिस्टर जे० आर० डी० टाटा से उसका परिचय बहुत अच्छे ढंग से करवाया।

उसने कहा, “जेह, यह नौजवान स्त्री एक इंजीनियर है और वह भी एक पोस्टग्रैजुएट। यह टैल्को के कारखाने में काम करने वाली पहली स्त्री है।” ..

Question 6.
What was written in the job advertisement from a famous automobile company that the writer got shocked ? What did she do and what was the result ?
Answer:
There was a small line at the bottom of the job advertisement from the famous company, Telco. It said, “Lady candidates need not apply.” Sudha was shocked to read this. She was surprised how a company such as Telco was discriminating on the basis of gender.

She grew so angry that she wrote a letter to Mr JRD Tata, expressing her displeasure at the discrimination against women. In response to her letter, Sudha received a telegram from the Telco. She was called to appear for an interview at Telco’s Pune office at the company’s expense.

मोटर-कार बनाने वाली प्रसिद्ध कंपनी, टेल्को, के द्वारा दिए गए नौकरी के विज्ञापन में सबसे नीचे एक लाइन थी। इसमें कहा गया था : “स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।”सुधा को इसे पढ़कर झटका लगा। उसे हैरानी हुई कि टेल्को जैसी कोई कंपनी किस तरह लिंग के आधार पर भेदभाव कर रही थी।

वह इतनी क्रोधित हो गई कि उसने स्त्रियों के प्रति भेदभाव पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए मिस्टर जे० आर० डी० टाटा को एक पत्र लिख दिया। उस पत्र के उत्तर में सुधा को टेल्को कंपनी की ओर से एक डाक-तार प्राप्त हुआ। उसे टेल्को के पुणे-स्थित कार्यालय के ही खर्चे पर इंटरव्यू के लिए हाज़िर होने के लिए बुलाया गया था।

Question 7.
What happened when Sudha went for the interview at Telco’s Pune office ? How many people were there on the interview panel ? What did the author realize ?
Answer:
When Sudha went for the interview at Telco’s Pune office, she saw there were six people on the panel. Then the author realized that it was a serious business. So before the interview, Sudha told the panel that she hoped it was only a technical interview.

And the panel asked Sudha technical questions only. One of the six people on the interview panel was an elderly gentleman. He talked to Sudha very affectionately. He told her why they had said ‘Lady candidates need not apply’. He told her that they had never employed any ladies on the shop floor of the company. “This is not a co-ed college; this is a factory,” he said.

जब सुधा इंटरव्यू के लिए टेल्को के पुणे-स्थित कार्यालय गई, तो उसने देखा कि वहां विशेषज्ञों के समूह में छ: लोग थे। तभी लेखिका को अहसास हुआ कि यह एक गंभीर मामला था। इसलिए इंटरव्यू से पहले ही सुधा ने विशेषज्ञों के समूह से कह दिया कि उसे उम्मीद थी कि यह सिर्फ एक तकनीकी इंटरव्यू था।

और विशेषज्ञों के समूह ने भी सुधा से सिर्फ तकनीकी प्रश्न ही पूछे। विशेषज्ञों के समूह में एक वृद्ध भद्रपुरुष था। उसने सुधा से बड़े प्यार से बात की। उसने उसे बताया कि उन्होंने क्यों कहा था कि ‘स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है’। उसने उसे बताया कि उन्होंने कभी स्त्रियों को कंपनी के कारखाने में नौकरी नहीं दी थी। “यह एक सहशिक्षा महाविद्यालय नहीं है; यह एक कारख़ाना है,” उसने कहा।

Objective Type Questions

Question 1.
Name the writer of the chapter, ‘Gender Bias’.
Answer:
Sudha Murthy.

Question 2.
What was the writer doing at the Indian Institute of Science in Bangalore ?
Answer:
She was doing her master’s course in computer science.

Question 3.
Where did the writer want to do a doctorate in computer science ?
Answer:
In a foreign country.

Question 4.
What did the writer see as a challenge ?
Answer:
To apply for the job which was not considered suitable for women by the Telco Company.

Question 5.
Who was Mr Sumant Moolgaokar ?
Answer:
The chairman of Telco Company.

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Question 6.
Who did the writer address her postcard to ?
Answer:
To Mr JRD Tata, the owner of Tata Industries.

Question 7.
Who started the basic infrastructure industries in India ?
Answer:
The great Tatas.

Question 8.
What did the writer receive from Telco ?
Answer:
A telegram to appear for an interview at Telco’s Pune office.

Question 9.
How many people were there on the interview panel ?
Answer:
Six.

Question 10.
What type of questions was the writer asked by the interview panel ?
Answer:
Technical questions.

Question 11.
In which company did the writer get a job in Pune ?
Answer:
In the famous automobile company, Telco.

Question 12.
Where did the writer see Mr JRD Tata for the first time?
Answer:
In Mr Moolgaokar’s office.

Vocabulary And Grammar

1. Match the words under column A with their meanings under column B :

A — B
1. opportunity — educational
2. bias — loving
3. pursue — Part
4. academic — luckily
5. fortunately — anxious
6. affectionate — afraid
7. scared — continue with
8. nervous — prejudice
9. segment — rude
10. impolite — chance
Answer:
1. opportunity = chance;
2. bias = prejudice;
3. pursue = continue with;
4. academic = educational;
5. fortunately = luckily;
6. affectionate = loving;
7. scared = afraid;
8. nervous = anxious;
9. segment = part;
10. impolite = rude.

2. Form nouns from the following words :

Word — Noun
1. long — length
2. know — knowledge
3. apply — application
4. decide — decision
5. collect — collection
6. advertise — advertisement
7. receive — receipt
8. affectionate — affection
9. marry — marriage
10. young — youth

3. Fill in each blank with a suitable preposition :

1. Life was full …………. fun and joy.
2. I was looking forward …………… going abroad.
3. She saw an advertisement …………… the notice board.
4. Sudha fell …………. love with the beautiful city.
5. She had done better than most …………. her male peers.
Answer:
1. of
2. to
3. on
4. in
5. of.

4. Fill in the blanks with the correct form of the verbs given in the brackets :

1. The workers ………… (go) on strike. (Present Perfect Tense)
2. Children ………. (play) in the park. (Present Continuous Tense)
3. Hard work ………. (bring) success. (Simple Present)
4. He ……….. (reach) the ground before the match started. (Past Perfect Tense)
5. She ………. (stay) here till Sunday. (Future Continuous Tense)
Answer:
1. have gone
2. are playing
3. brings
4. had reached
5. will be staying.

5. Use each of the following words as a noun and a verb :

book, challenge, interview, iron, change.
Answer:
1. Book (noun) – I have read this book.
(verb) — Have you booked your passage to London ?

2. Challenge (noun) — The role of Milkha Singh was the-biggest challenge for his acting career.
(verb) – Mohan challenged me to a game of chess.

3. Interview (noun) — He has an interview next week for the manager’s job.
(verb) – Which post are you being interviewed for ?

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4. Iron (noun) — Iron is a useful metal.
(verb) – Iron your clothes.

5. Change (noun) — Change is the law of nature.
(verb) — He has changed his programme.

Gender Bias Summary & Translation in English

Gender Bias Summary in English

In this essay, the writer Sudha Murthy describes how she got a job which had been advertised only for men. It was in 1974. Sudha Murthy was in the final year of her M.Tech. course at the Indian Institute of Science in Bangalore.

At that time, this institute was known as the Tata Institute. It was a co-ed college. Sudha stayed at the ladies’ hostel in Bangalore. She was very bright at studies. She was the only girl in her postgraduate department.

Sudha wanted to go abroad to study for her doctorate in computer science. In fact, she was offered scholarship from universities in the U.S. Moreover, she had not thought of taking up any job in India. But there was something different in store for her.

One day, she saw an advertisement on the noticeboard of her college. It was about a job requirement from the famous automobile company named Telco, which is now known as Tata Motors. The company required young and hard-working engineers with an excellent academic background.

But Sudha became very upset when she read a line at the bottom of the advertisement. It said : “Lady candidates need not apply.” She was quite surprised to find such a big company discriminating on the basis of gender.

Though Sudha was not at all interested in getting that job, she took it as a challenge. She had always been par excellence in academics and in M.Tech. She had done better than most of her male classmates. So she decided to apply for the job and also inform the highest official in Telco’s management about the injustice that Telco company was doing. But there was a problem. Sudha didn’t know who headed Telco.

She had seen the pictures of Mr JRD Tata in newspapers and magazines. So she thought Mr JRD Tata was the head of the Tata Group. But, in fact, Sumant Moolgaokar was the chairman of the company at that time. However, Sudha wrote a letter to Mr JRD Tata, saying, “The great Tatas have always been pioneers.

They started the basic infrastructure industries in India. They cared for higher education in India and so they established the Indian Institute of Science in Bangalore.” She further wrote, “Fortunately, I study in this institute. But I am shocked to find such a huge company Telco discriminating on the basis of gender.”

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About ten days after posting the letter, Sudha received a telegram from Telco. She was asked to appear for an interview at Telco’s Pune office. She was called there at the company’s expense. It was a big surprise for Sudha. She was not at all prepared for this. But her hostel mates asked her to make use of the opportunity of going to Pune free of cost.

They also asked her to buy them famous Pune sarees for cheap. And each girl who wanted a Pune sari paid its price to Sudha in advance. When Sudha reached Pune, she went to Telco’s Pimpri office as directed. There she was to appear for the interview. On the interview panel, there were six people. As Sudha entered the room, she heard a whisper, “This is the girl who wrote to Mr JRD.” It made Sudha sure

that she would not get this job. This realization abolished all fears from her mind and she became rather cool during the interview. Even before the interview started, she had the opinion that the panel was still biased on the basis of gender. So she said to the panel, “I hope this is only a technical interview.” They were taken aback at her rudeness. However, they asked her technical questions. And Sudha gave right answers to all the questions.

Then an elderly gentleman of the panel asked her very affectionately, “Do you know why we said lady candidates need not apply?” He told her that they had never before employed any ladies on the shop floor. He further said, “This is not a co-ed college; this is a factory.”

At this Sudha said, “But you must start somewhere, otherwise no woman will ever be able to work in your factories.” Finally, Sudha remained successful in the interview and got a job in Pune.

After joining Telco, now Sudha realized who Mr JRD was : the uncrowned king of Indian industry. However, she couldn’t meet Mr JRD till she was transferred to Mumbai. One day, Sudha had to show some reports to the chairman, Mr Moolgaokar.

She went to his office. Suddenly Mr JRD too came there. It was the first time that she met Mr JRD Tata. Mr Moolgaokar introduced her to Mr JRD saying, “She is the first woman to work on the Telco’s shop floor.”

Gender Bias Translation in English

Sudha Murthy (b. 1950,) is a well-known social worker and author. She is renowned for her noble mission of providing computer and library facilities in all government schools of Karnataka. Her stories deal with the lives of common people and social issues.

After a degree in electrical engineering from Hubli, Sudha Murthy went on to do an M. Tech. in computer Science from Indian Institute of Science, Bangalore. In 2006, she was a warded the Padma Shri. She is the chairperson

of Infosys Foundation and has successfully implemented various projects relating to poverty alleviationfi, education and health. This essay is an extract from the collection of Stories, ‘How I Taught My Grandmother to Read’.

The book is a collection of twenty-five heart-warming stories from the life of the author, Sudha Murthy. In this particular essay, the writer describes how she applied for and got a job that had been advertised solely for men. When she was in the final year of the M. Tech course at the Indian Institute of Science in Bangalore, Sudha Murthy came across an advertisement for a job at Telco in Pune. What caught her attention with regard to the advertisement was the line‘Lady candidates need not apply.

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She not only applied for the job, taking it as a challenge, but also wrote a postcard to Mr JRD Tata conveying her displeasure at the discrimination against women.Sudha Murthy was surprised to be called for the interview. She was sure she would not be selected and hence was cool.

At the interview, she was told that women were not selected as they would find it difficult to work on the shop floor. However, this did not deter Sudha Murthy and she said that a beginning had to be made sometimes and somewhere.

Sudha Murthy was offered the job. Later, she met Mr JRD Tata, who said that he was happy that women were becoming engineers. Thanks to the perseverance of Sudha Murthy, women engineers have become very common in todays world and are employed in factories. It was long time ago. I was young and bright, bold and idealistic. I was in the

final year of my master’s course in computer science at the Indian Institute of Science [IISc] in Bangalore, then known as the Tata Institute. Life was full of fun and joy. I did not know what helplessness or injustice meant. It was probably the April of 1974.

Bangalore was getting warm and gulmohars were blooming at the IISc campus. I was the only girl in my postgraduate department and was staying at the ladies’ hostel. Other girls were pursuing research in different departments of science. I was looking forward to going abroad to complete a doctorate in computer science.

I had been offered scholarship from universities in the U.S. I had not thought of taking up a job in India. One day, while on the way to my hostel from our lecture-hall complex, I saw an advertisement on the notice board. It was a standard job-requirement notice from the famous automobile company Telco (now Tata Motors).

It stated that the company required young, bright engineers, hard working and with an excellent academic background, etc. At the bottom was a small line : “Lady candidates need not apply.” I read it and was very upset. For the first time in life I was up against gender discrimination.

Though I was not keen on taking up the job, I saw it as a challenge. I had done extremely well in academics, better than most of my male peers . Little did I know then that in real life

started to write, but there was a problem : I did not know who headed Telco ! I thought it must be one of the Tatas, I knew Mr JRD Tata was the head of the Tata Group; I had seen his pictures in newspapers. (Actually, Sumant Moolgaokar was the company’s chairman then.)

I took the card, addressed it to Mr JRD and started writing. To this day I remember clearly what I wrote. “The great Tatas have always been pioneers.

They are the people who started the basic infrastructure industries in India, such as iron and steel, chemicals, textiles and locomotives’. They have cared for higher education in India since 1900 and they were responsible for the establishment of the Indian Institute of Science.

Fortunately, I study there. But I am surprised how a company such as Telco is discriminating on the basis of gender.” I posted the letter and forgot about it. Less than 10 days later, I received a telegram stating that I had to appear for an interview at Telco’s Pune office at the company’s expense. I was taken aback by the telegram.

My hostelmates told me I should use the opportunity to go to Pune free of cost and buy them the famous Pune saris for cheap. I collected Rs. 30 each from everyone who wanted a sari. When I look back, I feel like laughing at the reasons for my going, but back then they seemed good enough to make the trip. It was my first visit to Pune and I immediately fell in love with the city.

To this day it remains dear to me. I feel as much at home in Pune as I do in Hubli, my hometown. The place changed my life in so many ways. As directed, I went to Telco’s Pimpri office for the interview. There were six people

the panel and I realized then that this was a serious business.“This is the girl who wrote to Mr JRD,” I heard somebody whisper as soon as I entered the room. By then I knew for sure that I would not get the job. The realization abolished all fear from my mind, so I was rather cool while the interview was being conducted. Even before the interview started, I reckoned the panel was biased, so I told them, rather impolitely, “I hope this is only a technical interview.”

They were taken aback by my rudeness, and even today I am ashamed about my attitude6. The panel asked me technical questions and I answered all of them. Then an elderly gentleman with an affectionate voice told me, “Do you know why we said lady candidates need not apply ? The reason is that we have never employed any ladies on the shop floor.

This is not a co-ed college; this is a factory. When it comes to academics, you are a first ranker throughout. We appreciate that, but people like you should work in research laboratories.”

I was a young girl from a small town, Hubli. My world had been a limited place. I did not know the ways of large corporate houses and their difficulties, so I answered, “But you must start somewhere, otherwise no woman will ever be able to work in your factories.” Finally, after a long interview, I was told I had been successful. So this was what the

future had in store for me. Never had I thought I would take up a job in Pune. I met a shy young man from Karnataka there, we became good friends and we got married. It was only after joining Telco that I realized who Mr JRD was : the uncrowned king of Indian industry. Now I was scared’, but I did not get to meet him till I was transferred to Bombay. One day I had to show some reports to Mr Moolgaokar, our chairman, who we all knew as SM.

I was in his office on the first floor of Bombay House when, suddenly Mr JRD walked in . That was the first time I saw “appro JRD”. ‘Appro’ means “our” in Gujarati. This was the affectionate term by which people at Bombay House called him. I was feeling very nervous, remembering my postcard episode.

SM introduced me nicely, “Jeh (that’s what his close associates called him), this young woman is an engineer and that too a postgraduate. She is the first woman to work on the Telco shop floor.” Mr JRD looked at me. I was praying he would not ask me any question about my interview (or the postcard that preceded9 it).

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 1 Gender Bias

Close to 50 percent of the students in todays engineering colleges are girls. And there are women on the shop floor in many industry segments. I see these changes and I think of Mr JRD. If at all time stops and asks me what I want from life, I would say I wish Mr JRD were alive today to see how the company he started has grown. He would have enjoyed it wholeheartedly.

Gender Bias Summary & Translation in Hindi

Gender Bias Summary in Hindi

पाठ का विस्तृत सार इस लेख में लेखिका, सुधा मूर्ती, वर्णन करती है कि किस तरह उसने एक ऐसी नौकरी प्राप्त की जिसका विज्ञापन केवल पुरुषों के लिए ही दिया गया था। यह 1974 का समय था। वह बेंगलोर में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में अपने एम० टेक० कोर्स के अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी।

उस समय यह संस्थान टाटा इंस्टिट्यूट के नाम से जाना जाता था। यह एक सह-शिक्षा महाविद्यालय था। सुधा बेंगलोर में लड़कियों के हॉस्टल में रहती थी। वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी। अपने पोस्टग्रैजुएट विभाग में वह एकमात्र लड़की थी। सुधा कम्प्यूटर साइंस में अपनी डॉक्टरेट की पढ़ाई करने के लिए विदेश जाना चाहती थी।

वास्तव में उसे अमरीका के विश्वविद्यालयों की तरफ से छात्रवृत्ति का प्रस्ताव दिया गया था। इसके अलावा उसने कभी भी भारत में नौकरी करने के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन भाग्य में तो उसके लिए कुछ और ही लिखा था। एक दिन उसने अपने महाविद्यालय के नोटिस बोर्ड पर एक विज्ञापन देखा। यह नौकरी के लिए आवश्यकता के बारे में था जो कि मोटर-कार बनाने वाली टेल्को नाम की एक प्रसिद्ध कंपनी, जिसे आजकल टाटा मोटर्ज के नाम से जाना जाता है, की तरफ से था।

कंपनी को उत्तम शैक्षणिक पृष्ठभूमि वाले नौजवान तथा परिश्रमी इंजीनियरों की जरूरत थी। लेकिन जब सुधा ने सबसे नीचे लिखी एक पंक्ति पढ़ी तो वह दुःखी हो गई। इसमें कहा गया था : “स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।” इस प्रकार की बड़ी कंपनी को लिंग के आधार पर पक्षपात करते हुए देखकर उसे अचंभा हुआ। यद्यपि सुधा को उस नौकरी में बिल्कुल भी रुचि न थी, फिर भी उसने इसे एक चुनौती की भांति लिया।

वह पढ़ाई-लिखाई में हमेशा ही सर्वश्रेष्ठ रही थी और एम० टेक० में उसने अपने अधिकतर पुरुष सहपाठियों की अपेक्षा बेहतर किया था। इसलिए उसने नौकरी के लिए आवेदन करने तथा टेल्को के प्रशासन में सर्वोच्च अधिकारी को उस अन्याय के बारे में सूचित करने का भी फैसला किया जो कि टेल्को कंपनी कर रही थी। किंतु एक समस्या थी।

सुधा नहीं जानती थी कि टेल्को का मुखिया कौन था। उसने मिस्टर जे० आर० डी० टाटा की तस्वीरें समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में देखी थीं। इसलिए उसने सोचा कि मिस्टर जे० आर० डी० टाटा ही टाटा समूह का मुखिया था। लेकिन वास्तव में उस समय सुमंत मूलगांवकर कंपनी का चेयरमैन था। फिर भी सुधा ने यह कहते हुए मिस्टर जे० आर० डी० टाटा को एक पत्र लिखा, “महान टाटा परिवार के लोग हमेशा ही मार्ग प्रशस्त करने वाले रहे हैं।

उन्होंने भारत में बुनियादी ढांचागत उद्योगों की शुरुआत की। उन्होंने भारत में उच्च शिक्षा के बारे में चिंता की और इसलिए उन्होंने बेंगलोर में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना की।” उसने आगे लिखा, “सौभाग्यवश, मैं इसी संस्थान में पढ़ती हूं। परंतु मुझे यह देखकर झटका लगा है कि टेल्को जैसी कंपनी लिंग के आधार पर भेदभाव कर रही है।”

PSEB 11th Class English Solutions Chapter 1 Gender Bias

पत्र भेजने के करीब दस दिन बाद सुधा को टेल्को की तरफ से एक डाकतार प्राप्त हुई। उसे टेल्को के पुणे वाले कार्यालय में इंटरव्यू के लिए उपस्थित होने के लिए कहा गया था। उसे वहां कंपनी के खर्चे पर बुलाया गया था। यह सुधा के लिए बड़े अचंभे की बात थी। वह इसके लिए कतई तैयार नहीं थी। लेकिन उसके हॉस्टल के साथियों ने उसे कहा कि उसे मुफ्त में पुणे घूमने जाने के अवसर का फायदा उठाना चाहिए। उन्होंने उसे उन्हें प्रसिद्ध पुणे साड़ियां भी सस्ते दाम पर खरीद कर ला देने को कहा। तथा प्रत्येक लड़की, जो कि पुणे साड़ी लेना चाहती थी, ने इसके पैसे सुधा को पेशागी दे दिए।

सुधा जब पुणे पहुँची तो वह टेल्को के पिंपरी कार्यालय गई जैसा कि उसे कहा गया था। वहां उसे इंटरव्यू देना था। इंटरव्यू के लिए विशेषज्ञों के समूह में छः लोग थे। जैसे ही सुधा ने कमरे में प्रवेश किया, उसने एक फुसफुसाहट सुनी, “यह वही लड़की है जिसने मिस्टर जे० आर० डी० को पत्र लिखा था।” इससे सुधा को यह यकीन हो गया कि उसे यह नौकरी नहीं मिलेगी।

इस एहसास ने उसके दिमाग से सारे डर को खत्म कर दिया और इंटरव्यू के दौरान वह बल्कि और भी शांत हो गई। इंटरव्यू शुरू होने के पहले तक भी उसकी सोच यही थी कि विशेषज्ञों का समूह अभी भी लिंग के आधार पर पक्षपाती था। इसलिए उसने विशेषज्ञों के समूह से कह दिया, “मैं आशा करती हूँ कि यह सिर्फ एक तकनीकी इंटरव्यू है।” वे उसकी अभद्रता देखकर चकित रह गए। फिर भी उन्होंने उससे तकनीकी प्रश्न पूछे। और सुधा ने सभी प्रश्नों के सही उत्तर दिए।

फिर उन सदस्यों में से एक वृद्ध भद्रपुरुष ने उससे बड़े प्यार से पूछा, “क्या तुम्हें मालूम है कि हमने क्यों कहा था कि स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है ?” उसने उसे बताया कि उन्होंने इससे पहले कभी भी कारखाने में किसी स्त्री को नौकरी पर नहीं रखा था।

उसने आगे कहा, “यह कोई सह-शिक्षा महाविद्यालय नहीं है, यह एक कारखाना है।” इस पर सुधा ने कहा, “लेकिन आपको कहीं से तो शुरुआत करनी ही चाहिए, वर्ना कोई भी स्त्री कभी भी आपके कारखानों में काम करने के योग्य नहीं हो पाएगी।” सुधा इंटरव्यू में सफल रही और उसे पुणे में नौकरी मिल गई।

टेल्को कंपनी में शमिल होने के पश्चात् उसे एहसास हुआ कि मिस्टर जे० आर० डी० कौन था : भारतीय उद्योग का बेताज बादशाह। लेकिन वह तब तक मिस्टर जे० आर० डी० से नहीं मिल पाई जब तक उसका तबादला मुम्बई न हो गया। एक दिन सुधा ने मिस्टर मूलगाँवकर को कुछ रिपोर्ट दिखानी थीं। वह उसके कार्यालय गई।

अचानक मिस्टर जे० आर० डी० भी वहां आ गया। यह पहली बार था जब सुधा मिस्टर जे० आर० डी० से मिली थी। मिस्टर मूलगॉवकर ने यह कहते हुए उसे मिस्टर जे० आर० डी० टाटा से मिलवाया, “यह टेल्को के कारखाने में काम करने वाली पहली स्त्री है।”

Gender Bias Translation in Hindi

सुधा मूर्ती (जन्म 1950) एक जानी-पहचानी सामाजिक कार्यकर्ता तथा लेखिका है। वह कर्नाटक के सभी सरकारी स्कूलों में कम्प्यूटर तथा लाइब्रेरी की सुविधाएं प्रदान करने के अपने महान् मिशन के लिए प्रसिद्ध है। उसकी कहानियां साधारण लोगों की जिंदगियों तथा सामाजिक मुद्दों से संबंध रखती हैं।

हुबली से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् उसने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सांइस, बेंगलोर, से कम्प्यूटर विज्ञान में एम०टेक० किया। में उसे पद्म श्री प्रदान किया गया। वह इनफोसिस

फाऊडेशन की अध्यक्ष है और उसने ग़रीबी निवारण, शिक्षा तथा स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न परियोजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया है। यह लेख कहानी-संग्रह ‘How I Taught My Grand Mother to Read’ से लिया गया एक अंश है। यह पुस्तक लेखिका, सुधा मूर्ती, के जीवन से ली गई पच्चीस आनंददायक कहानियों का संग्रह है। इस लेख-विशेष में लेखिका वर्णन करती है कि किस तरह उसने एक नौकरी के लिए आवेदन किया और उसे प्राप्त किया जिसका विज्ञापन केवल पुरुषों के लिए ही दिया गया था।

जब वह इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलोर, में एम० टेक० कोर्स के अंतिम वर्ष में पढ़ रही थी तो सुधा मूर्ती की नज़र अचानक एक विज्ञापन पर पड़ी जो कि पुणे की टेल्को कंपनी में एक नौकरी के लिए था। विज्ञापन के संबंध में जिस बात ने उसका ध्यान आकर्षित किया वह थी एक लाइन : ‘स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है’।

इसे एक चुनौती की तरह लेते हुए, उसने न सिर्फ आवेदन किया, बल्कि मिस्टर जे० आर० डी० टाटा को एक पत्र भी लिखा औरतों के प्रति भेदभाव के विरुद्ध अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए इंटरव्यू के लिए बुलाए जाने पर सुधा मूर्ती को हैरानीहुई। उसे विश्वास था कि उसे नौकरी के लिए रखा नहीं जाएगा और इसलिए वह शांत थी। इंटरव्यू में उसे बताया गया कि औरतों को इसलिए नहीं रखा जाता था क्योंकि कारखानों में काम करना उन्हें मुश्किल लगेगा था।

परंतु fइससे सुधा मूर्ती डरी नहीं और उसने कहा कि कभी और कहीं तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी। सुधा मूर्ती को नौकरी की पेशकश की गई। बाद में, वह मिस्टर जे० आर० डी० टाटा से मिली जिसने उसे बताया कि उसे इस बात की खुशी थी कि औरतें इंजीनियर बन रही थीं। सुधा मूर्ती की दृढ़ता के कारण ही आज की थी। मैं बेंगलोर के

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस )जिसे उस समय टाटा इंस्टिट्यूट के नाम से जाना जाता था, में कम्प्यूटर साइंस के मास्टर्ज कोर्स के अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी। जिंदगी मौज-मस्ती से भरपूर थी। मुझे नहीं मालूम था कि लाचारी और अन्याय का अर्थ क्या था। यह शायद 1974 के अप्रैल का समय था। बेंगलोर में गर्मी बढ़ रही थी और आई० आई० एस० सी० के अहाते में गुलमोहर के पेड़ों पर फूल आ रहे थे।

पोस्टग्रैजुएट विभाग में मैं अकेली ही लड़की थी और मैं लड़कियों के हॉस्टल में रह रही थी। अन्य लड़कियां विज्ञान के विभिन्न विभागों में शोधकार्य कर रही थीं। मैं कम्प्यूटर विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि के लिए पढ़ाई पूरी करने के लिए विदेश जाने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी। मुझे अमरीका के विश्वविद्यालयों के द्वारा छात्रावृत्ति की पेशकश की गई थी। मैंने भारत में नौकरी करने के बारे में नहीं सोचा था। एक दिन, लेक्चर

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हॉल भवन से अपने हॉस्टल को जाते समय, मैंने नोटिस बोर्ड पर एक विज्ञापन देखा। यह एक विशिष्ट नौकरी सम्बन्धी विज्ञापन था जोकि वाहन बनाने वाली मशहूर कंपनी, टेल्को (अब टाटा मोटर्ज), की तरफ से था। इसमें कहा गया था कि कंपनी को नौजवान, होशियार इंजीनियरों, जो परिश्रमी हों तथा जिनकी उत्तम शैक्षणिक पृष्ठभूमि, इत्यादि हो की ज़रूरत थी। सबसे नीचे एक छोटी सी लाइन में लिखा था : “स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।” मैंने इसे पढ़ा और बहुत दु:खी हुई। जिंदगी में पहली बार मैं लिंग भेदभाव का सामना कर रही थी।

यद्यपि मैं नौकरी (शुरू) करने के लिए उत्सुक नहीं थी, मैंने इसे एक चुनौती के रूप में देखा। मैंने पढ़ाई में बहुत अच्छा किया था, अपने ज़्यादातर पुरुष साथियों से बेहतर। तब मुझे बहुत ही कम पता था कि वास्तविक जीवन में सफल होने के लिए पढ़ाई-लिखाई में श्रेष्ठता ही काफ़ी नहीं है। नोटिस पढ़ने के बाद मैं आग-बबूला हुई अपने कमरे में चली गई। मैंने टेल्को के प्रबन्धक वर्ग के चोटी पर बैठे व्यक्ति को उस अन्याय के बारे में सूचित करने का फैसला कर लिया जो कि कंपनी कर रही थी। मैंने एक पोस्टकार्ड लिया और लिखना शुरू किया,

लेकिन एक समस्या थी : मैं नहीं जानती थी कि टेल्को का मुखिया कौन था! मैंने सोचा कि वह टाटा परिवार में से ही कोई एक होगा। मैं जानती थी कि मिस्टर जे० आर० डी० टाटा, टाटा समूह का मुखिया था; मैंने उसकी तस्वीरें समाचारपत्रों में देखी थीं। (वास्तव में सुमन्त मूलगॉवकर उस समय कंपनी का चेयरमैन था।)

मैंने पोस्टकार्ड लिया, इसे मिस्टर जे० आर० डी० को संबोधित किया और लिखना शुरू कर दिया। आज भी मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि मैंने क्या लिखा था। “महान् टाटा परिवार के लोग हमेशा ही मार्ग प्रशस्त करने वाले रहे हैं। वे वही लोग हैं जिन्होंने भारत में बुनियादी ढांचागत उद्योगों, जैसे कि लोहा और इस्पात, रसायनद्रव्य, वस्त्र तथा (रेलगाड़ियों के) इंजनों की शुरुआत की।

वर्ष 1900 से उन्होंने भारत में उच्च शिक्षा के बारे में चिंता की है और वे इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना के लिए जिम्मेदार थे। सौभाग्यवश, मैं वहीं पढ़ती हूँ। लेकिन मुझे हैरानी है कि टेल्को जैसी एक कंपनी किसतरह लिंग के आधार पर भेदभाव कर रही है।”

मैंने पत्र भेज दिया और इसके बारे में भूल गई। दस दिन से भी कम समय बाद मुझे एक डाकतार प्राप्त हुई जिसमें लिखा था कि मुझे टेल्को के पुणे वाले कार्यालय में इंटरव्यू के लिए कंपनी के ही खर्च पर हाज़िर होना था। डाकतार पा कर मैं हक्की-बक्की रह गई। मेरे हॉस्टल के साथियों ने मुझसे कहा कि मुझे मुफ्त में पुणे जाने तथा उनके लिए पुणे की मशहूर साड़ियां सस्ते दाम में खरीद कर लाने के अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

मैंने हर किसी से, जो भी साड़ी चाहता था, 30-30 रुपए इकट्ठे कर लिये। (आज) जब मैं मुड़कर देखती हूँ तो मेरा अपने (पुणे) जाने के कारणों पर हँसने का दिल करता है, लेकिन उस समय वे मुझे वहां जाने के लिए अच्छे-खासे कारण प्रतीत हुए थे। पुणे की यह मेरी पहली यात्रा थी और मुझे पहली ही नज़र में इस शहर से प्यार हो गया।

आज तक यह मेरा प्रिय शहर बना हुआ है। पुणे में मुझे उतना ही घर के जैसा महसूस होता है जितना कि मेरे गृहनगर, हुबली, में होता है। इस जगह ने मेरे जीवन को कई तरह से बदल दिया। जैसा कि मुझे निर्देश दिया गया था, मैं टेल्को के पिंपरी कार्यालय में इंटरव्यू के लिए गई। विशेषज्ञों के

समूह में छः लोग थे और तब मुझे एहसास हुआ कि यह एक गम्भीर मामला था। “यह वही लड़की है जिसने मिस्टर जे० आर० डी० को पत्र लिखा था,” मैंने किसी व्यक्ति को फुसफुसाते सुना, जैसे ही मैंने कमरे में प्रवेश किया। तब तक मुझे निश्चित तौर पर पता लग गया था कि यह नौकरी मुझे नहीं मिलेगी। इस एहसास ने मेरे दिमाग़ में से सारे डर को खत्म कर दिया, इसलिए जब इन्टरव्यू लिया जा रहा था, मैं बल्कि और भी शांत हो गई। इन्टरव्यू शुरू होने से पहले ही मुझे लगा कि विशेषज्ञों का समूह पक्षपाती था, इसलिए मैंने उन्हें बता दिया, बल्कि थोड़े रूखे ढंग से, “मुझे उम्मीद है कि यह सिर्फ ”

एक तकनीकी (नाम-मात्र का) इन्टरव्यू है।” मेरी अभद्रता को देखकर वे हक्के-बक्के रह गए और आज भी मैं अपने उस रवैए के लिए शर्मिन्दा हूं। विशेषज्ञों ने मुझ से तकनीकी प्रश्न पूछे और मैंने उन सब के उत्तर दिए। फिर एक वृद्ध भद्रपुरुष बहुत स्नेहपूर्वक आवाज़ में मुझसे बोला, “क्या तुम्हें मालूम है कि हमने यह क्यों कहा था कि स्त्री उम्मीदवारों को आवेदन भेजने की आवश्यकता नहीं है ?

इसका कारण यह है कि हमने कंपनी के कारखाने में इससे पहले कभी किसी स्त्री को नौकरी पर नहीं रखा है। यह एक सह-शिक्षा महाविद्यालय नहीं है; यह एक कारखाना है। जब शिक्षा की बात आती है, तुम अपनी शिक्षा के पूरे समय के दौरान प्रथम स्थान

पर रही हो। हम इस बात की प्रशंसा करते हैं, परन्तु तुम जैसे लोगों को शोधकार्यों के लिए बनी प्रयोगशालाओं में काम करना चाहिए।” मैं एक छोटे से शहर, हुबली, से आई एक युवा लड़की थी। एक सीमित जगह ही मेरी दुनिया रही थी। मुझे बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों के तौर-तरीकों और उनकी मुश्किलों के बारे में कुछ पता नहीं था, इसलिए मैंने उत्तर देते हुए कहा, “लेकिन आपको कहीं से तो शुरुआत अवश्य करनी चाहिए, नहीं तो कोई भी स्त्री ” कभी भी आपके कारखानों में काम करने में समर्थ नहीं हो पाएगी।” अन्ततः एक लम्बे इन्टरव्यू के बाद मुझे बताया गया कि मैं (इन्टरव्यू में) सफल रही थी। इस प्रकार यह था

जो मेरे भाग्य में लिखा था। मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मैं पुणे में नौकरी करूँगी। वहां मेरी मुलाकात कर्नाटक से आए एक शर्मीले-से नौजवान से हुई, हम अच्छे दोस्त बन गए और फिर हमने शादी कर ली। ऐसा टेल्को कंपनी में आने के बाद ही हुआ कि मुझे एहसास हुआ कि मिस्टर जे० आर० डी० कौन था : भारतीय उद्योग का बेताज बादशाह। अब मैं बहुत डर गई थी, परन्तु मुझे उससे मिलने का अवसर तब तक नहीं मिल पाया जब तक कि मेरी बदली बम्बई नहीं हो गई।

एक दिन मुझे हमारे चेयरमैन मिस्टर मूलगॉवकर, जिसे हम के नाम से जानते थे, को कुछ रिपोर्ट दिखानी थीं। मैं बॉम्बे हाउस की पहली मंजिल पर स्थित उसके कार्यालय में थी जब अचानक मिस्टर जे० आर० डी० अन्दर आया। यह पहली बार था जब मैंने ‘अपरो जे० आर० डी०’ को देखा। गुजराती में ‘अपरो’ का अर्थ होता है ‘हमारा।’ बॉम्बे हाउस के लोग उसे इसी

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प्यार-भरे शब्द से पुकारते थे। अपनी पोस्टकार्ड वाली घटना को याद करके मुझे बहुत घबराहट हो रही थी। SM ने बहुत अच्छी तरह से मेरा परिचय देते हुए कहा, “जेह (यह वह नाम था जिससे उसके बहुत नज़दीकी लोग उसे बुलाया करते थे), यह नवयुवती एक इंजीनियर है और वह भी पोस्टग्रेजुएट।

टेल्को के कारखाने में काम करने वाली यह पहली स्त्री है।” मिस्टर जे० आर० डी० ने मेरे ओर देखा। मैं (मन ही मन) प्रार्थना कर रही थी कि वह मेरी इन्टरव्यू के बारे में (या इस से पहले आने वाले पोस्ट कार्ड के बारे में) मुझसे कोई सवाल न पूछ ले। आज के इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में लगभग 50% लड़कियां है। और उद्योगों के कई हिस्सों के कारखानों में स्त्रियां काम करती हैं।

मैं इन परिवर्तनों को देखती हूँ और फिर मिस्टर जे० आर० डी० के बारे में सोचती हूँ। यदि समय रुक जाए और मुझसे पूछे कि मैं जिंदगी से क्या चाहती हूँ, तो मैं कहूँगी कि काश, मिस्टर जे० आर० डी० आज यह देखने के लिए जिंदा होते कि जिस कम्पनी को उन्होंने शुरू किया था, वह आज कितनी आगे बढ़ गई है। उन्होंने | इसका पूरे दिल से आनन्द उठाना था।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल संक्षेपिका लेखन / संक्षेपीकरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi संप्रेषण कौशल संक्षेपिका लेखन / संक्षेपीकरण Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल संक्षेपिका लेखन / संक्षेपीकरण

(ग) संक्षेपिका लेखन/संक्षेपीकरण
(ABRIDGEMENT)

आज के यान्त्रिक युग में लोगों के पास समय की बड़ी कमी है और काम उसे बहुत-से करने होते हैं, इसलिए संक्षेपीकरण का महत्त्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। आज लम्बी-लम्बी, हातिमताई जैसी कहानियां सुनने का समय किसके पास है। आज रात-रात भर पण्डाल में बैठकर नाटक कोई नहीं देख सकता। हर कोई चाहता है कि बस काम फटाफट हो जाए। संक्षेपीकरण हमारी इसी प्रवृत्ति का समाधान करता है।
संक्षेपीकरण का अर्थ विषय को संक्षिप्त करने से है। उसकी जटिलताओं को दूर कर सरल बनाना ही संक्षेपीकरण का मूल उद्देश्य है। संक्षेपीकरण के द्वारा विषय के मूलभूत तत्त्वों का विश्लेषण करके उसका भावार्थ सरलतापूर्वक समझा जा सकता है।

संक्षेपीकरण की परिभाषा-संक्षेपीकरण की परिभाषा हम इन शब्दों में कर सकते हैं

“विभिन्न लेखों, कहानियों, संवादों, व्यावसायिक एवं कार्यालयों पत्रों आदि में वर्णित विषयों का भावार्थ संक्षेप में, सरल शब्दों में स्पष्ट करना ही संक्षेपीकरण है।”

संक्षेपीकरण द्वारा विषय का जो रूप प्रस्तुत किया जाता है, उसे ही संक्षेपिका कहते हैं। वर्तमान युग में हमें संक्षेपीकरण की कदम-कदम पर आवश्यकता पड़ती है। व्यापार एवं वाणिज्य के अन्तर्गत व्यावसायिक एवं कार्यालयीन पत्र-व्यवहार में तो इसका विशेष महत्त्व है। सरकारी व गैर-सरकारी कार्यालयों में, व्यापारिक संस्थानो में प्रतिदिन सैकड़ों पत्र आते हैं। उन पत्रों को निपटाने और उन पर अन्तिम निर्णय अधिकारियों को ही लेना होता है और उनके पास इतना समय नहीं होता कि वे प्राप्त होने वाले सभी पत्रों को पढ़ सकें। अतः उनके सामने इन पत्रों की संक्षेपिका तैयार करके प्रस्तुत की जाती है। इसके लिए कार्यालयों में, व्यापारिक संस्थानों में अनेक कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है जो आने वाले पत्रों को पढ़कर उनका संक्षेपीकरण करके उच्चाधिकारी के सामने प्रस्तुत करते हैं।

संक्षेपीकरण केवल पत्रों का ही नहीं होता, समाचारों का भी होता है अथवा किया जाता है। सरकारी और गैरसरकारी कार्यालयों में इस उद्देश्य से लोक सम्पर्क विभाग का गठन किया गया है। प्रायः बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थान भी अपने यहां लोक सम्पर्क अधिकारी (P.R. O.) नियुक्त करते हैं। इन अधिकारियों का काम समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों की संक्षेपिका तैयार करके सम्बन्धित अधिकारी को भेजना होता है क्योंकि उच्चाधिकारी के पास सारे समाचार पढ़ने का समय नहीं होता। वह उस संक्षेपिका के ही आधार पर अपने अधीनस्थ अधिकारियों अथवा कार्यालयों को आवश्यक कारवाई हेतु निर्देश जारी कर देता है।
संक्षेपीकरण भी एक कला है जो निरन्तर अभ्यास से आती है। इसका मूलभूत उद्देश्य विषय की जटिलता को समाप्त कर उसे अधिक सरल, स्पष्ट एवं ग्राह्य बनाकर समय एवं श्रम की बचत करना तथा एक शिल्पी की भान्ति उसे आकर्षक बनाना है। संक्षेपीकरण से विषय की पूरी जानकारी प्राप्त हो जाती है।

संक्षेपीकरण का महत्त्व एवं व्यवहारक्षेत्र

यदि यह कहा जाये कि आज का युग संक्षेपीकरण का युग है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। आप ने प्रायः बड़ेबड़े अफसरों की मेज़ पर यह तख्ती अवश्य रखी देखी होगी- ‘Be Brief’ । इसका कारण समय की कमी और काम की ज़्यादती के अतिरिक्त यह भी है कि हम आज हर काम Short cut से करना चाहते हैं। संक्षेपीकरण का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है, व्यापारियों, अफसरों, वकीलों, न्यायाधीशों, डॉक्टरों, प्राध्यापकों, संवाददाताओं, नेताओं और छात्रों इत्यादि सभी के लिए संक्षेपीकरण का ज्ञान आवश्यक है। इससे श्रम और समय की बचत तो होती ही है, व्यक्ति को जीवन की निरन्तर बढ़ती हुई व्यस्तता के कारण विषय की पूरी जानकारी भी हो जाती है।

विद्यार्थी वर्ग के लिए इसका विशेष महत्त्व है। पुस्तकालय में किसी पुस्तक को पढ़ते समय जो विद्यार्थी पठित पुस्तक अथवा अध्याय की संक्षेपिका तैयार कर लेता है, उसके ज्ञान में काफी वृद्धि होती है, जो परीक्षा में उसकी सहायक होती है। इसी प्रकार जो विद्यार्थी कक्षा में प्राध्यापक के भाषण की नित्य संक्षेपिका तैयार कर लेता है, उसे बहुत-सी पुस्तकों को पढ़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि प्राध्यापक का भाषण भी तो एक तरह से बहुत-सी पुस्तकों को पढ़कर एक संक्षेपिका का ही रूप होता है। कुछ विद्यार्थी तो परीक्षा से पहले मूल पाठ के स्थान पर अपनी तैयार की गयी संक्षेपिका को ही पढ़ते हैं। किन्तु याद रहे कि वह संक्षेपिका विद्यार्थी की अपनी तैयार की हुई होनी चाहिए, किसी गाइड से नकल की हुई नहीं।

संक्षेपीकरण से मस्तिष्क में विचार-शक्ति का विकास होता है। व्यक्ति को थोड़े में बहुत कह जाने का अभ्यास हो जाता है। इससे तर्क-शक्ति तथा भावों को प्रकट करने की शक्ति का भी विकास होता है। इसलिए प्रत्येक विद्यार्थी, प्रत्येक कर्मचारी, अधिकारी, व्यापारी, डॉक्टर या प्राध्यापक को इसमें दक्षता प्राप्त करना ज़रूरी है। यह आधुनिक युग का श्रमसंचक यन्त्र है।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल संक्षेपिका लेखन / संक्षेपीकरण

संक्षेपिका लेखन के प्रकार

अध्ययन की दृष्टि से संक्षेपिका लेखन तीन प्रकार का हो सकता है

1. संवादों का संक्षेपीकरण-संक्षेपिका लेखन का अभ्यास करने के लिए उसका पहला चरण संवादों का संक्षेपीकरण करना है। संवादों की संक्षेपिका प्रायः हर विद्यार्थी तैयार कर सकता है। संवादों की संक्षेपिका तैयार करने में दक्ष होने पर हर व्यक्ति अन्य विषयों का संक्षेपीकरण सरलता से कर सकता है।

2. समाचारों, विशेष लेख, भाषण या अवतरण की संक्षेपिका लिखना-समाचारों की संक्षेपिका दो तरह के व्यक्ति तैयार करते हैं एक पत्रकार या संवाददाता, दूसरे लोक सम्पर्क अधिकारी (Public Relation Officer)। पत्रकार अथवा संवाददाता किसी समाचार के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि पाठक सरलतापूर्वक उसके विचारों को समझ जाएं। समाचार पत्रों के संवाददाता के लिए तो संक्षेपीकरण विशेष महत्त्व रखता है। वह किसी घटना को देखता है, किसी नेता का भाषण सुनता है और उसे जब तार द्वारा, टेलिफोन पर या पत्र द्वारा समाचार पत्र को उसका प्रतिवेदन (Report) भेजता है, तो वह एक प्रकार की संक्षेपिका ही होती है। आजकल इसी कारण समचारपत्रों में संवाददाता का नाम भी प्रकाशित किया जाने लगा है ताकि लोगों को पता चल जाये कि इस समाचार की संक्षेपिका किस ने तैयार की है। अपनी संक्षेपिका लेखन के कौशल के कारण ही बहुत-से संवाददाता पाठकों में अपनी एक अलग पहचान बना लेने में सफल होते हैं। कुछ ऐसा ही कार्य समाचार-पत्रों के सह-सम्पादक या उप-सम्पादक करते हैं। वे प्राप्त समाचारों को, अपने पत्र की पॉलिसी अथवा स्थान को देखते हुए संक्षेपिका करके ही प्रकाशित करते हैं।

ठीक ऐसा ही कार्य समाचारों की संक्षेपिका तैयार करने में लोक सम्पर्क अधिकारी अथवा उस कार्यालय के अन्य सम्बन्धित अधिकारी करते हैं। जो अधिकारी कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक सरल और स्पष्ट भाषा में समाचार-पत्रों की संक्षेपिका तैयार कर अपने अधिकारियों अथवा मन्त्रियों को भेजता है वही विभाग में नाम कमाता है और ऐसे लोक सम्पर्क अधिकारी को हर अफसर, हर मन्त्री अपने साथ रखना चाहता है।
एक प्रकार की संक्षेपिका विद्यार्थी भी लिखते हैं। परीक्षा में उन्हें किसी विशेष लेख, किसी विद्वान् के भाषण या किसी अवतरण, कविता अथवा निबन्ध की संक्षेपिका लिखने को कहा जाता है। यह अध्ययन किये हुए विषय की संक्षेपिका लिखना है। इस प्रकार की संक्षेपिका में विद्यार्थी को चाहिए कि वह लेख, भाषण, अवतरण, कविता या निबन्ध में प्रस्तुत किये गये विचारों को सही ढंग से प्रस्तुत करें। भाषा उसकी अपनी हो किन्तु मूल प्रतिपाद्य वही हों।।

3. पत्रों अथवा टिप्पणियों की संक्षेपिका-सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में तथा व्यापारिक संस्थानों में नित्य प्रति हज़ारों पत्रों का आदान-प्रदान होता रहता है। सभी मामलों को शीघ्रता से निपटाने के लिए कार्यालय में आने वाले पत्रों अथवा इन पर लिखी गयी टिप्पणियों की संक्षेपिका तैयार करनी पड़ती है। कार्यालयों में प्रायः अधिकारियों और कर्मचारियों का स्थानान्तरण होता रहता है। ऐसी दशा में कार्य को निपटाने में संक्षेपिका ही सहायक होती है। हर मामले में सम्बन्धित फाइल में उसकी संक्षेपिका रहने से नये व्यक्ति को कोई मामला समझने में देर नहीं लगती।

सार लेखन और संक्षेपिका लेखन में अन्तर

सार लेखन और संक्षेपिका लेखन में महत्त्वपूर्ण अन्तर है। सारांश लिखते समय मूल अवतरण अथवा पत्र में लेखक के द्वारा प्रस्तुत किये गये विचारों को, जो कि बिखरे हुए होते हैं, एक सूत्र में बांध कर अधिक स्पष्ट एवं सरल बनाकर प्रस्तुत किया जाता है जबकि संक्षेपिका तैयार करते समय लेखक के भावों को महत्त्व दिया जाता है और उसे अपने शब्दों में प्रस्तुत कर दिया जाता है। सारांश लिखते समय मूल अवतरण या पत्र में लेखक द्वारा प्रस्तुत सभी तर्कों को प्रस्तुत किया जाता है, जबकि संक्षेपिका लिखते समय केवल आवश्यक तथ्यों एवं तर्कों को ही प्रस्तुत किया जाता है। अनावश्यक बातों को संक्षेपिका में कोई स्थान नहीं दिया जाता। संक्षेपिका सारांश की अपेक्षा अधिक सरल और स्पष्ट होती है।

संक्षेपिका में कौन-से गुण होने चाहिएँ

संक्षेपिका लेखन एक कला है। इसलिए संक्षेपिका लिखते समय एक कलाकार की भान्ति अत्यन्त कुशलता से उसे लिखना चाहिए। वर्तमान युग की मांग और परिस्थितियों को देखते हुए हमें संक्षेपिका के महत्त्व एवं आदर्श स्वरूप को समझकर उसे लिखने का अभ्यास करना चाहिए। जैसा कि हम ऊपर कह आए हैं कि एक आदर्श संक्षेपिका वही होती है जिसमें विचारों को संक्षेप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए कि आम आदमी भी उसे आसानी से समझ जाए। समाचार पत्रों के संवाददाताओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि समाचार-पत्र हर वर्ग का व्यक्ति पढ़ता है।
आदर्श संक्षेपिका के गुण-एक आदर्श संक्षेपिका में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है

1. संक्षिप्तता-संक्षेपिका का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण उसकी संक्षिप्तता है। किन्तु संक्षेपीकरण इतना भी संक्षिप्त नहीं होना चाहिए कि उसका अर्थ ही स्पष्ट न हो सके तथा उसमें सभी महत्त्वपूर्ण तथ्यों का समावेश न हो। संक्षेपिका कितनी संक्षिप्त होनी चाहिए, इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं है (जैसे कि सार लेखन में अवतरण के तृतीयांश का नियम है)। बस इतना ध्यान रखना चाहिए कि उसमें सभी महत्त्वपूर्ण तथ्यों का समावेश हो जाए।

2. स्पष्टता-संक्षेपिका तैयार ही इसलिए की जाती है कि समय और श्रम की बचत हो अत: उसमें स्पष्टता का गुण अनिवार्य माना गया है। यदि संक्षेपिका पढ़ने वाले को अर्थ समझने में कठिनाई हो अथवा देरी लगे तो उसका मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा। संक्षेपिका इस प्रकार तैयार की जानी चाहिए कि उसे पढ़ते ही सारी बातें पाठक के सामने स्पष्ट हो जाएं।

3. क्रमबद्धता-संक्षेपिका में सभी तथ्यों का वर्णन श्रृंखलाबद्ध रूप में किया जाना चाहिए। मूल अवतरण में यदि वैचारिक क्रम न भी हो तो भी संक्षेपिका में उन विचारों को क्रम से लिखना चाहिए इस तरह संक्षेपिका पढ़ने वाले को सारी बात आसानी से समझ में आ जाएगी।

4. भाषा की सरलता और प्रवाहमयता-संक्षेपिका की भाषा शैली इतनी सरल एवं सुबोध होनी चाहिए कि आम आदमी भी उसे आसानी से समझ सके। संक्षेपिका तैयार करते समय लेखक को चाहिए कि वह क्लिष्ट और समासबहुल भाषा का प्रयोग न करे और न ही अलंकृत भाषा का प्रयोग करें।

5. भाषा की शुद्धता-भाषा की शुद्धता से दो अभिप्राय हैं

  • संक्षेपिका में वे ही तथ्य या तर्क लिखे जाएं जो मूल सन्दर्भ में हों, जिनसे उनके सही-सही वे ही अर्थ लगाये जाएं जो मूल अवतरण या पत्र में दिये गए हों। अपनी तरफ से उसमें कुछ मिलाने की आवश्यकता नहीं।
  • संक्षेपिका की भाषा व्याकरण सम्मत और विषयानुकूल हो। मूल अवतरण के शब्दों के समानार्थी शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार संक्षेपिका में पूर्ण शुद्धता बनी रहेगी। ध्यान रहे कि संक्षेपिका, जहां तक सम्भव हो सके, भूतकाल और अन्य पुरुष में ही लिखी जानी चाहिए।

6. अपनी भाषा शैली-संक्षेपिका लिखते समय लेखक को स्वयं अपनी भाषा शैली का प्रयोग करना चाहिए। अपनी भाषा और शैली में भावों को संक्षिप्त रूप में सरलता से प्रस्तुत किया जा सकता है।

7. स्वतः पूर्णतः-संक्षेपिका का लेखन एक कला है और कोई भी कलाकृति अपने में पूर्ण होती है। अत: संक्षेपिका लेखक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि संक्षेपिका संक्षिप्त भी हो, स्पष्ट भी हो और साथ ही साथ पूर्ण भी हो, तभी उसे आदर्श संक्षेपिका कहा जाएगा। अत: संक्षेपिका में मूल अवतरण के सभी आवश्यक तथ्यों का समावेश करना ज़रूरी है जिससे पढ़ने वाले को इस संदर्भ में अपूर्णता की अनुभूति न हो। यदि संक्षेपिका लेखक उपर्युक्त सभी गुणों को अपनी संक्षेपिका में ले आए तो उसमें पूर्णतः अपने आप आ जाएगी।

संक्षेपिका लेखन की विधि

जिस प्रकार एक कुशल चित्रकार अपने चित्र का पहले अच्छा प्रारूप तैयार करता है जो उसकी कल्पना और भावनाओं के अनुरूप होता है, उसी प्रकार एक कुशल संक्षेपिका लेखक को भी पहले संक्षेपिका अथवा संक्षेपीकरण का अच्छा प्रारूप तैयार करना चाहिए। इसके लिए उसे पहले दो-तीन बार संक्षेपिका तैयार करने लिए कहे जाने वाले मसौदे को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए और कच्चा प्रारूप तैयार हो जाने पर यह चैक कर लेना चाहिए कि मूल अवतरण या पत्र का कोई महत्त्वपूर्ण तथ्य छूट तो नहीं गया है, जिसके बिना संक्षेपिका पूर्ण नहीं होगी। साथ ही वह अपनी भाषा अथवा व्याकरण की रह गई अशुद्धियों को भी ठीक कर सकेगा।

संक्षेपिका तैयार करने से पूर्व अवतरण का भली-प्रकार अध्ययन करके उस में निहित भावों, विचारों, तथ्यों को रेखांकित कर लेना चाहिए और हो सके तो उस रेखा के नीचे 1, 2, 3 इत्यादि भी लिख देना चाहिए ताकि संक्षेपिका का प्रारूप तैयार करते समय आप अवतरण के विचारों, तथ्यों आदि को क्रमपूर्वक लिख सकें।

जब मूल अवतरण का अध्ययन एवं विश्लेषण करने के उपरान्त उसका भावार्थ मस्तिष्क में स्पष्ट हो जाए तब उसका कच्चा प्रारूप लिख देना चाहिए।
जब आपको सन्तोष हो जाए कि कच्चा प्रारूप मूल अवतरण के भावों, विचारों और तथ्यों को भली-भान्ति स्पष्ट करने में सक्षम है तो उसे सरल और स्पष्ट भाषा में लिख देना चाहिए।

संक्षेपिका लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें

(1) मूल अवतरण को सावधानीपूर्वक दो तीन बार पढ़ना चाहिए।
(2) महत्त्वपूर्ण विचारों, भावों अथवा तथ्यों को रेखांकित कर लेना चाहिए।
(3) संक्षेपिका का पहले एक कच्चा प्रारूप तैयार करना चाहिए।
(4) संक्षेपिका यदि किसी समाचार की तैयार की जानी है तो उसका उचित शीर्षक भी दे दिया जाना चाहिए (वैसे समाचारों का शीर्षक समाचार-पत्र का सम्पादक ही दिया करता है।)
(5) संक्षेपिका की भाषा-शैली सरल, सुबोध और ग्राह्य होनी चाहिए।
(6) संक्षेपिका अपने शब्दों या भाषा में लिखनी चाहिए।
(7) संक्षेपिका जहां तक सम्भव हो सके, भूतकाल और अन्य पुरुष में लिखनी चाहिए।
(8) संक्षेपिका में मूल अवतरण के विचारों, तथ्यों आदि को श्रृंखलाबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
(9) संक्षेपिका ऐसी होनी चाहिए कि पाठक उसे तुरन्त समझ जाए। उसकी भाषा-शैली ऐसी होनी चाहिए कि सामान्य ज्ञान रखने वाला आम आदमी भी उसे समझ जाए।
(10) संक्षेपिका अपने आप में पूर्ण होनी चाहिए।

संक्षेपिका लेखक को इन बातों से बचना चाहिए

(1) मूल अवतरण में प्रस्तुत किसी कथन को ज्यों-का-त्यों नहीं लिखना चाहिए।
(2) अपनी ओर से कोई विवरण या आलोचना नहीं करनी चाहिए।
(3) संक्षेपिका में द्वि-अर्थी या अलंकारिक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(4) संक्षेपिका का रूप किसी भी हालत में मूल अवतरण से बड़ा नहीं होना चाहिए वह जितना संक्षिप्त और सारगर्भित होगा, उतना ही अच्छा है।
(5) संक्षेपिका में शब्दों या विचारों की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।

(क) संवादों का संक्षेपीकरण

‘संवाद’ कथोपकथन या वार्तालाप को कहते हैं। वार्तालाप दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच होता है। ऐसे संवादों या कथोपकथन का संक्षेपीकरण प्रस्तुत करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है जैसे
(1) संवादों में ऐसी बहुत-सी बातें होती हैं जिन्हें संक्षेपीकरण करते समय त्याग देना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक वाक्य का भाव या सार संक्षेपीकरण में अवश्य शामिल किया जाए।
(2) संवादों में कभी-कभी किसी पात्र का संवाद बहुत लम्बा हो जाता है ऐसी दशा में उस संवाद का सारपूर्ण मुख्य भाव ही ग्रहण करना चाहिए।
(3) महत्त्वपूर्ण भावों वाले संवादों को रेखांकित कर लेना चाहिए।
(4) प्रत्यक्ष कथन को अप्रत्यक्ष कथन में बदल देना चाहिए। इसका भाव यह है कि किसी व्यक्ति द्वारा व्यक्त किये गए विचारों को ज्यों का त्यों उद्धृत नहीं करना चाहिए। संक्षेपीकरण में सभी उद्धरण चिह्नों को हटा देना चाहिए तथा प्रथम पुरुष तथा मध्यम पुरुष सर्वनाम मैं और तुम को अन्य पुरुष वह आदि में बदल देना चाहिए। क्रियापद भी अन्य पुरुष सर्वनाम वह के अनुसार रखे जाने चाहिएं।
(5) संवादों की संक्षेपिका प्रस्तुत करते समय इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए कि वक्ता या पात्रों की मनोदशा और भाव-भंगिमा स्पष्ट हो जाए।

संवादों का संक्षेपीकरण करने का सरल उपाय : एक उदाहरण

टेलिफोन की घण्टी बजती है। रमन कुमार के भाई को उसके मित्र सुभाष का टेलिफोन आया है जो उस समय घर पर नहीं है। रमन कुमार उस टेलिफोन को सुनता है। रमन कुमार और सुभाष में टेलिफोन पर इस प्रकार बातचीत होती है।
रमन-हैलो?
सुभाष-हैलो, क्या मैं कमल से बात कर सकता हूं?
रमन-जी, वे तो बाहर गये हैं, क्या आप उनके लिए कोई सन्देश छोड़ना चाहेंगे?
सुभाष-ओह, हां क्यों नहीं। मैं सुभाष बोल रहा हूं। क्या कमल आज संध्या के समय खाली होगा? मैं संध्या को ज्योति सिनेमा में फिल्म देखने जा रहा हूं। मैं चाहता हूं कि वह भी मेरे साथ फिल्म देखने चले। वह कब तक लौट आयेगा?
रमन-वे बड़ी देर तक बाहर नहीं रहेंगे। बस डाकघर तक कुछ पत्र पोस्ट करने गये हैं। मुझे विश्वास है कि आज संध्या के समय वे बिलकुल खाली हैं।
सुभाष-बहुत अच्छे। तो फिर आप उससे कह दें कि मैं उसकी पांच रुपए के टिकट वाली खिड़की के पास 600 बजे तक प्रतीक्षा करूंगा। यदि वह 6-30 तक नहीं पहुंचा तो मैं टिकट लेकर सिनेमा हाल के भीतर चला जाऊंगा। रमन-हां हां, निश्चय रखिए, मैं उनसे बोल दूंगा।
सुभाष-धन्यवाद।
जब कमल बाहर से लौटकर घर आया तो रमन ने उसे सुभाष के टेलिफोन के बारे में इन शब्दों में बात की भैया जब तुम बाहर गए थे तो सुभाष का फोन आया था। वह यह जानना चाहता था कि इस संध्या को तुम खाली हो। वह ज्योति सिनेमा में फिल्म देखने जा रहा है और चाहता है कि तुम भी उसके साथ फिल्म देखो। मैंने उसे कह दिया है कि तुम शीघ्र लौट आओगे और संध्या को भी तुम्हें कोई काम नहीं है। वह तुम्हारी 6-00 और 6-30 के बीच पांच रुपये की टिकट-खिड़की के पास प्रतीक्षा करेगा।

इस उदाहरण में रमन ने जो कमल को कहा वह उसके और कमल के मित्र सुभाष के बीच हुई वार्तालाप का संक्षेपीकरण था।

उदाहरण-1 मूल संवाद

द्रोणाचार्य-युधिष्ठिर तुम्हें पेड़ पर क्या दिखाई दे रहा है?
युधिष्ठिर-गुरु जी मुझे पेड़ पर चिड़िया, पत्ते आदि सभी कुछ दिखाई दे रहा है।
द्रोणाचार्य-अच्छा भीम तुम बताओ, तुम्हें पेड़ पर क्या दिखाई दे रहा है?
भीम-गुरुदेव मुझे तो चिड़िया दिखाई दे रही है।
द्रोणाचार्य-अच्छा अर्जुन तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?
अर्जुन-गुरुदेव मुझे तो चिड़िया की आंख दिखाई दे रही है।
द्रोणाचार्य-बहुत अच्छे, तीर चलाओ।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल संक्षेपिका लेखन / संक्षेपीकरण

संक्षेपीकरण (कच्चा प्रारूप)

जब द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन से बारी-बारी पूछा कि उन्हें पेड़ पर क्या-क्या दिखाई दे रहा है तो युधिष्ठिर ने कहा उसे चिड़िया, पत्ते आदि सभी कुछ दिखाई दे रहा है। भीम न कहा उसे केवल चिड़िया दिखाई दे रही है और अर्जुन ने कहा उसे केवल चिड़िया की आंख दिखाई दे रही है। गुरु जी ने प्रसन्न होकर अर्जुन को तीर चलाने की आज्ञा दी।

आदर्श संक्षेपीकरण

जब द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन से पूछा कि उन्हें पेड़ पर क्या-क्या नज़र आ रहा है तो युधिष्ठिर ने चिड़िया और पत्ते, भीम ने चिड़िया और अर्जुन ने केवल चिड़िया की आंख दिखाई देने की बात कही। गुरु द्रोण ने प्रसन्न होकर अर्जुन को तीर चलाने का आदेश दिया।

उदाहरण-2 मूल संवाद

चन्द्रगुप्त-कुमारी आज मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई।
कार्नेलिया-किस बात की?
चन्द्रगुप्त-कि मैं विस्मृत नहीं हुआ।
कार्नेलिया-स्मृति कोई अच्छी वस्तु है क्या?
चन्द्रगुप्त-स्मृति जीवन का पुरस्कार है सुन्दरी।
कार्नेलिया-परन्तु मैं कितने दूर देश की हूं। स्मृति ऐसे अवसर पर दण्ड हो जाती है। अतीत के कारागृह में बंदिनी। स्मृतियां अपने करुण विश्वास की श्रृंखलाओं को झनझना कर सूची भेद्य अंधकार में खो जाती हैं। __ चन्द्रगुप्त-ऐसा हो तो भूल जाओ मुझे। इस केन्द्रच्युत जलते हुए उल्कापिण्ड की कोई कक्षा नहीं। निर्वासित, अपमानित प्राणों की चिन्ता क्या?
कार्नेलिया-नहीं चन्द्रगुप्त, मुझे इस देश से, जन्म भूमि के समान स्नेह होता जा रहा है। यहां के श्याम कुञ्ज, घने जंगल, सरिताओं की माला पहने हुए शैली-श्रेणी, हरी-भरी वर्षा, गर्मी की चांदनी, शीतकाल की धूप और भोले कृषक तथा सरल कृषक बालिकाएं बाल्यकाल की सुनी हुई कहानियों की जीवित प्रतिमायें हैं। यह स्वप्नों का देश, वह त्याग और ज्ञान का पालन, यह प्रेम की रंग भूमि-भारतभूमि क्या भुलाई जा सकती है? कदापि नहीं। अन्य देश मनुष्य की जन्म भूमि हैं, भारत मानवता की जन्म भूमि है।
-‘चन्द्रगुप्त’ नाटक, जयशंकर प्रसाद से ‘उपर्युक्त संवादों में दो मुख्य बातें देखने को मिलती है। सिल्योकस की पुत्री कार्नेलिया के चन्द्रगुप्त के प्रति प्रेम और भारत देश के प्रति अनुराग और श्रद्धा।

संक्षेपिका का कच्चा प्रारूप

चन्द्रगुप्त ने स्मृति को जीवन का पुरस्कार बताया और कार्नेलिया ने उसे प्रवास में हृदय को झकझोर देने वाला दण्ड। चन्द्रगुप्त ने कहा कि वह स्मृति को दण्ड मानती है तो वह उसे भी भूल जाए। इस जलते हुए उल्कापिण्ड की कोई कक्षा नहीं। कार्नेलिया ने उत्तर दिया कि ऐसी बात नहीं है। उसे इस देश के वन, पर्वत, नदियां, गर्मी-सर्दी, वर्षा चांदनी और धूप, बचपन में सुनी कहानियों को साकार करने वाले और प्रिय लगते हैं। यह भारत भूमि, जो प्रेम की रंग भूमि है, कभी भुलाई नहीं जा सकती। यह तो मनुष्य की नहीं, मानवता की जन्म-भूमि है।

आदर्श संक्षेपीकरण

जब चन्द्रगुप्त ने स्मृति को जीवन का पुरस्कार बताया तो कार्नेलिया ने उसे प्रवास का दण्ड कहा। इस पर चन्द्रगुप्त . ने कहा कि यदि ऐसा है तो वह उसे भूल जाए। कार्नेलिया ने अस्वीकृति के स्वर में कहा वह इस देश को कैसे भूल सकती है ? भारत के वन, पर्वत, नदियां, ऋतुएं बचपन में सुनी कहानियों को साकार कर देते हैं। यह देश प्रेम की रंगभूमि है। मनुष्य की नहीं, मानवता की जन्म भूमि है।

उदाहरण-3 मूल संवाद

सिपाही-महाराज का आदेश है कि जो हट्टा-कट्टा हो, उसे पकड़ कर फांसी पर चढ़ा दो।
गुरु ने शिष्य से धीरे से कहा-‘खा लिए लड्डू’ परन्तु गुरु घबराया नहीं। वह बड़ा समझदार था, उसने शिष्य के कान में कोई बात कह दी।
जब वे राजा के सामने फांसी के तख्ते के पास लाये गये तो गुरु ने कहा-“पहले मैं फांसी पर चढंगा।” शिष्य ने धक्का देकर कहा-“मेरा अधिकार पहले है।” वह आगे बढ़ा।
फांसी पर चढ़ने के लिए इस होड़ को देखकर राजा अचम्भे में था। उसने पूछा-‘भाई बात क्या है कि तुम दोनों फांसी पर चढ़ना चाहते हो?”
गुरु बोला-‘अरे महाराज मुझे चढ़ने भी दो, मेरा समय क्यों बरबाद करते हो?’ राजा ने कहा-आखिर कोई बात तो होगी ही।
गुरु ने कहा-अच्छा तुम बहुत हठ करते हो तो सुनो। इस समय स्वर्ग लोक में इन्द्र का आसन खाली पड़ा है। जो फांसी पर पहले चढ़ेगा, वही स्वर्ग का राजा होगा। राजा-अच्छा, यह बात है! तब तो मैं ही सबसे पहले फांसी पर चढुंगा।

संक्षेपीकरण

गुरु-शिष्य के पूछने पर कि उन्हें क्यों पकड़ा है, सिपाही ने राजा की आज्ञा बताई कि किसी हट्टे-कट्टे आदमी को फांसी पर चढ़ाना है। गुरु समझदार था, घबराया नहीं। उसने शिष्य के कान में कुछ कहा। फांसी के तख्ते के निकट लाये जाने पर दोनों गुरु-शिष्य पहले फांसी चढ़ने के लिए जिद्द करने लगे। राजा ने हैरान होकर इसका कारण पूछा तो गुरु ने कहा, इस समय स्वर्ग में इन्द्रासन खाली पड़ा है जो पहले फांसी चढ़ेगा वही उस आसन को पायेगा। राजा ने कहा तब तो वह ही सबसे पहले फांसी पर चढ़ेगा।

उदाहरण-4 मूल संवाद

यश-आप अंग्रेज़ी भी जानते हैं ?
कामरेड जगत हँसे–हाँ हाँ, क्यों? तुम्हें आश्चर्य क्यों हो रहा है?
यश-इसलिए कि इधर के जितने नेता हैं, वे दर्जा चार से आगे नहीं पढ़ सके। आप भी तो नेता ही हैं न।
कामरेड जगत बहुत ज़ोर से हँसे–’बहुत मज़ेदार हो दोस्त। हां कहो, तुम कौन हो, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं।’
यश-मैं इसी कस्बे का रहने वाला हूँ। विद्यार्थी हूँ। दर्जा सात का इम्तिहान दिया है। आप के बारे में बहुत सुना था। आप से मिलने की इच्छा बहुत दिनों से थी।
कामरेड जगत-क्यों, मुझ में ऐसी क्या खास बात है कि तुम मुझसे मिलना चाहते रहे? वे मुस्कराये। यश-मुझे हमेशा से लगता रहा है कि सेठ चोकर दास को आप मार सकते हैं। ‘क्या कहा?’ कामरेड चौंक गये थे। “क्या मेरे हाथ में बन्दूक है, क्या मैं हत्यारा हूँ?” यश थोड़ा डर गया और सोचने लगा कि क्या कह बैठा। फिर सम्भल कर बोला
“कामरेड, मेरे कहने का अर्थ दूसरा था। वह यह कि सेठ ग़रीबों का खून चूसता है और आप ग़रीबों की भलाई के लिए इतना सारा काम करते हैं। आप ही हैं जो ग़रीबों को सेठ या उन जैसे लोगों से छुड़ा सकते हैं। सेठ को मारने का मतलब उसके छल-कपट की ताकत को मारने का है।”

संक्षेपीकरण

यश ने जब कामरेड जगत को अंग्रेजी बोलते सुना तो हैरान हुआ। कामरेड के पूछने पर उसने बताया कि और नेता तो दर्जा चार तक पढ़े होते हैं। यश ने कामरेड को अपना परिचय दिया कि वह इसी गांव का है, दर्जा सात का इम्तिहान दिया है। उसने यह भी बताया कि वह उसको बहुत दिनों से मिलना चाहता था। कामरेड ने कारण पूछा तो यश ने कहा कि वह सेठ चोकर दास को मार सकता है। कामरेड ने कहा क्या उसके हाथ में कोई बन्दूक है? क्या वह हत्यारा है? इस पर यश डर गया कि क्या कह बैठा। उसने सम्भल कर कहा कि उसका अर्थ यह नहीं था। सेठ ग़रीबों का खून चूसता है और वह उनकी भलाई करता है। वह ही ग़रीबों को सेठ या उस जैसे लोगों से छुड़ा सकता है। सेठ को मारने से उसका भाव उसके छल-कपट को समाप्त करने से था।

संक्षेपीकरण के अभ्यासार्थ कुछ संवाद

-बाल सुलझाते-सुलझाते रूपमति ने उसकी नज़रों को पकड़ लिया और मुस्कराने लगी।
-“अब तुम जवान हो गये जस बाबू! ओह कितने दिन बीत गये तुम्हें यहां से गये हुए।” वह मुस्कराती रही लेकिन यश संकुचित हो गया।
– “मुझे प्यास लगी है रूपमति। पानी नहीं पिलाओगी।” -“पानी मैं कैसे पिलाऊं, बामण के लड़के को?” -“क्यों बामन का लड़का होना कोई गुनाह है, रूपमति? क्या उसे प्यास लगी हो तो पानी नहीं मांग सकता?”
-गुनाह तुम्हारा बामन होना नहीं, गुनाह है एक अछूत जाति की औरत से पानी मांगना। वह पानी तो पिला देगी लेकिन सोचो, तुम्हारी जाति वाले तुम्हें कहां रखेंगे और फिर तुम्हें तो दोष कम देंगे, मुझे ज्यादा गाली देंगे। खैर मुझे अपनी चिन्ता नहीं, तुम्हारी है।” वह मुस्कराती रही।
__-रूपमति, मुझे तुम पानी पिलाओ, अपनी जाति वालों से क्या, अपने घर वालों से भी कब का निष्कासित हो चुका हूं। अब मेरा कोई घर-द्वार, जाति-पाति नहीं है। जहां चाहूं जाऊंगा, जहां चाहूं रहूंगा, जहां चाहूं जिऊंगा, जहां चाहूं मरूंगा।

2.

मेरी आँख लगने को थी कि वह बोल उठा-“छुट्टी कब दोगी?”
– “पांच बजे” कह मैंने फिर आंख मूंद ली। वह बोला
– “स्कूल में भी चार बजे छुट्टी हो जाती है और नौकरी में पांच बजे ! मैंने स्कूल ही इसलिए छोड़ दिया था।” कुछ क्षण वह चुप रहा फिर बोला।
-“मां कहती थी स्कूल जाने से बाबू बनते हैं–पर नौकरी करने से क्या बनते हैं।”
मैं उसका प्रश्न सुन चौंक उठी और चुप रह गयी। कहती भी क्या-यही न कि नौकरी करने से पंखा कुली कहलाते
धीरे से बोली
– “तुम स्कूल जाया करो!”
-“स्कूल? स्कूल कैसे जाया करूं? मास्टर जी का गोल-गोल काला-काला मोटा रूल नहीं देखा तुम ने, तभी कहती हो! एक दिन मास्टर जी के मकान के पास से क्या निकले कि वो कहने लगे, तुम ने मेरे खेत की ककड़ियां तोड़ ली हैं। दूसरे दिन स्कूल में उन्होंने खूब पीटा। मैं नहीं गया स्कूल उसके बाद-और फिर स्कूल में चार बजे तक बैठना जो पड़ता है।”

3.

युवती-“मगर हमारा विवाह हो कैसे सकेगा?” युवती ने पूछा, “सुना है शीघ्र ही फिर उन भयानक विदेशी और विजातियों की चढ़ाई मेवाड़ पर होने वाली है। ऐसे अवसर पर तुम युद्ध करोगे या व्याह?”
युवक-“तुम्हारी क्या इच्छा है?”
युवती-(गर्व से) मैं यदि पुरुष होता तो ऐसे अवसर पर विदेशियों से युद्ध करती और जन्मभूमि मेवाड़ की उद्धार चिन्ता में प्राण दे देती।”
युवक-मगर पद्मा बुरा न मानना, मैं तो पहले तुम्हें चाहता हूं, फिर किसी और को। यदि युद्ध हुआ भी तो मैं पहले तुमसे व्याह करूंगा और फिर रण प्रस्थान।
युवती-(भंवों पर अनेक बल देकर) क्यों?
युवक-इसलिए कि तुम सी युवती सुन्दरियों का पता विदेशी सूंघते फिरते हैं। उन्हें यदि मालूम हो गया कि इस देवपुर रूपी गुदड़ी में पद्मा रूपी कोई मणि रहती है तो मुश्किल ही समझो।
युवती-(बगल से कटार निकाल कर दिखाती हुई) हि:! तुम भी कैसी बातें करते हो! जब तक यह मां दुर्गा हमारे साथ है तब तक विदेशी हमारी ओर क्या आंखें उठाएंगे। पिछले दो युद्धों में मेरी दो बड़ी विवाहिता बहनें जौहर कर चुकी है।
युवक-और मेरे तीन भाई वीरगति पा चुके हैं।
युवती—फिर क्या जब तक हम राजपूत स्त्री-पुरुषों को स्वतन्त्रता, स्वधर्म और स्वदेश के लिए प्राण देना आता है, तब तक एक विदेशी तो क्या, लाख विदेशी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

4.
बाज ने मनुष्य की आवाज़ में कहा:
“आप न्याय को जानने वाले राजा हैं। आप को किसी का भोजन नहीं छीनना चाहिए। यह कबूतर मेरा भोजन है। आप इसे मुझे दे दीजिए।”
महाराज शिवि ने कहा:”
“तुम मनुष्य की भाषा में बोलते हो। तुम साधारण पक्षी नहीं हो सकते। तुम चाहे कोई भी हो, यह कबूतर मेरी शरण में आया है; मैं शरणागत को त्याग नहीं सकता।”
बाज बोला:
“मैं बहुत भूखा हूं। आप मेरा भोजन छीन कर मेरे प्राण क्यों लेते हैं ?”
राजा शिवि बोले:
“तुम्हारा काम तो किसी भी मांस से चल सकता है। तुम्हारे लिए यह कबूतर ही मारा जाये, इसकी क्या आवश्यकता है? तुम्हें कितना मांस चाहिए?”
बाज कहने लगा:

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल संक्षेपिका लेखन / संक्षेपीकरण

“महाराज! कबूतर मरे या कोई दूसरा प्राणी मरे, मांस तो किसी को मारने से ही मिलेगा। सभी प्राणी आप की प्रजा हैं, सब आपकी शरण में हैं। उनमें से जब किसी को मरना ही है, तो इस कबूतर को ही मारने में क्या दोष है। मैं तो ताज़ा मांस खाने वाला प्राणी हूं और अपवित्र मांस नहीं खाता। मुझे कोई लोभ भी नहीं है। इस कबूतर के बराबर तोल कर किसी पवित्र प्राणी का ताज़ा मांस मुझे दे दीजिए। उतने से ही मेरा पेट भर जाएगा।”
राजा ने विचार किया और बोले-“मैं दूसरे किसी प्राणी को नहीं मारूंगा, अपना मांस ही मैं तुम को दूंगा।”

बाज बोला:
“एक कबूतर के लिए आप चक्रवर्ती सम्राट होकर अपना शरीर क्यों काटते हैं ? आप फिर से सोच लीजिए।”

राजा ने कहा:
“बाज तुम्हें तो अपना पेट भरने से काम है। तुम मांस लो और अपना पेट भरो। मैंने सोच-समझ लिया है। मेरा शरीर कुछ अजर–अमर नहीं है। शरण में आए हुए एक प्राणी की रक्षा में शरीर लग जाए, इससे अच्छा इसका दूसरा कोई उपाय नहीं हो सकता।”

5.
-“तेरे घर कहां हैं?”
-“मगरे में; और तेरे?”
-“माझे में, यहां कहां रहती है?”
-‘अतर सिंह की बैठक में; वह मेरे मामा होते हैं।’
-‘मैं भी मामा के यहां आया हूं, उनका घर गुरु बाज़ार में है।’
इतने में दुकानदार निबटा और इनका सौदा देने लगा। सौदा लेकर दोनों साथ-साथ चले। कुछ दूर जा कर लड़के ने मुस्करा कर पूछा
‘तेरी कुड़माई हो गई।’
इस पर लड़की कुछ आंख चढ़ाकर ‘धत्त’ कहकर दौड़ गई और लड़का मुंह देखता रह गया।

(ख) समाचारों का संक्षेपीकरण

समाचार-पत्रों के कार्यालयों में संक्षेपीकरण अथवा संक्षेपिका लेखन का अत्यन्त महत्त्व है। यह कार्य प्रायः समाचारपत्र के सहायक या उपसंपादकों द्वारा किया जाता है। इसलिए इस कला में उन्हें पूर्ण दक्ष होना चाहिए। यह उनका दैनिक कार्य है। वैसे तो संक्षेपीकरण का कार्य पत्रों को समाचार भेजने वाले संवाददाता भी करते हैं किन्तु किसी घटना का, किसी नेता के भाषण का अथवा किसी महत्त्वपूर्ण सम्मेलन का ब्योरा समाचार-पत्र को भेजते समय वे तनिक विस्तार से उसका प्रतिवेदन भेजते हैं।

अब यह काम समाचार-पत्र के सह-सम्पादक, उप-संपादक का होता है कि संवाददाता द्वारा भेजे गए समाचार का इस तरह संक्षेपीकरण करे कि समाचार के महत्त्व के अनुसार उसका समाचार-पत्र में प्रकाशन हो सके और पाठक उस समाचार अथवा घटना इत्यादि के विवरण से अवगत भी हो सके। समाचार-पत्रों में स्थान की कमी के कारण कभी-कभी कुछ समाचार अत्यन्त संक्षिप्त रूप में प्रकाशित किये जाते हैं। ये संक्षिप्त समाचार समाचारपत्र के कार्यालय में संक्षेपीकरण के पश्चात् प्रकाशित किये जाते हैं। अतः समाचार-पत्र के सह-सम्पादक, उपसंपादक तथा संवाददाता के लिए संक्षेपीकरण की कला में प्रवीण होना अनिवार्य है।
समाचारों का संक्षेपीकरण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है

(1) नेताओं के भाषणों का संक्षेपीकरण करते समय नेता के नाम का उल्लेख अवश्य करना चाहिए।

(2) घटनाओं के विवरण का संक्षेपीकरण करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उस घटना के मुख्यमुख्य तथ्यों का उल्लेख अवश्य हो जाए। जैसे घटनास्थल, उससे प्रभावित लोगों के नाम अथवा संख्या तथा उस पर सरकार अथवा जनता की प्रतिक्रिया आदि।

(3) किसी समिति की बैठक अथवा किसी महत्त्वपूर्ण सम्मेलन के समाचार का संक्षेपीकरण करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि संक्षेपिका में उस बैठक अथवा सम्मेलन के सभी महत्त्वपूर्ण तथ्यों का समावेश हो जाए। जैसे बैठक कहां, कब और किस की अध्यक्षता में हुई, उसका उद्देश्य क्या था तथा उसमें पारित कुछ महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव कौन-से थे।

ऐसे समाचारों का शीर्षक सभा या बैठक के अध्यक्ष या मुख्य मेहमान के भाषण के किसी महत्त्वपूर्ण तथ्य को आधार बनाकर दिया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप किसी कॉलेज के दीक्षान्त समारोह के समाचार का शीर्षक लिखा जा सकता
“विद्यार्थी देश का भविष्य हैं-उपकुलपति……………
अथवा
“विद्यार्थी समाज सेवा के कामों में रुचि लें” इत्यादि।
(4) प्रत्यक्ष कथन को अप्रत्यक्ष कथन में बदल लेना चाहिए।
(5) आवश्यकतानुसार अनेक शब्दों या वाक्यांशों के लिए ‘एक शब्द’ का प्रयोग करना चाहिए। समस्त पदों के प्रयोग की विधि अपनानी चाहिए।
(6) समाचार किसी भी प्रकार का हो उसमें तिथि, स्थान और सम्बद्ध व्यक्तियों के नाम अवश्य रहने चाहिएं।
(7) स्थानीय समाचारों में अधिक-से-अधिक स्थानीय व्यक्तियों के नामों का उल्लेख करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से समाचार-पत्र की बिक्री बढ़ती है और उससे अधिक-से-अधिक लोग जुड़ते हैं।
(8) स्थानीय सभा-सोसाइटियों, गोष्ठियों, बैठकों आदि के समाचारों का संक्षेपीकरण करते समय यह न समझना चाहिए कि यह समाचार तो एक कोने में छपेगा, इसलिए जैसा चाहो छाप दो, ध्यान रहे जो लोग उस सभा सोसाइटी के सदस्य हैं वे तो उस समाचार को ढूंढ़ ही लेंगे। ऐसे समाचारों की भाषा प्रभावशाली होनी चाहिए।
(9) जब कोई समाचार अनेक स्रोतों से प्राप्त हो तो सभी स्रोतों का नामोल्लेख समाचार से पूर्व अवश्य देना चाहिए जैसे प्रैस ट्रस्ट आफ इण्डिया, यू० एन० आई० और हिन्दुस्तान समाचार से प्राप्त होने वाले समाचारों को मिलाकर उनका संक्षेपीकरण करना चाहिए। हो सकता है कि किसी महत्त्वपूर्ण तथ्य का उल्लेख करना कोई समाचार एजेंसी भूल गयी हो।
(10) संक्षेपीकरण का यदि कच्चा प्रारूप पहले तैयार कर लिया जाए तो अच्छा रहता है।

समाचारों का संक्षेपीकरण : कुछ उदाहरण

उदाहरण 1
मूल समाचार
नई दिल्ली 5 जुलाई, …….., आज यहां शब्दावली आयोग की एक बैठक हुई जिसमें सर्वसम्मति से सरकार को सुझाव दिया गया कि प्राध्यापकों की सीमित भाषागत सामर्थ्य को देखते हुए तथा उनको अध्यापन कार्य में आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए, आठवीं पंचवर्षीय योजना में प्राध्यापकों के लिए ऐसी कार्यशालाएं आयोजित की जाएं, जिनसे उन्हें व्यावहारिक हिन्दी और परिभाषिक और तकनीकी शब्दावली के उचित प्रयोग के विषय में उनकी दक्षता में वृद्धि हो और अपने विषय को पढ़ाने की भाषा-सामर्थ्य भी बढ़े। ये कार्यशालाएं विश्वविद्यालयों और प्रमुख महाविद्यालयों में आयोजित की जाएंगी, जिनमें विशिष्ट भाषण देने के लिए ऐसे वरिष्ठ अध्यापक आमन्त्रित किये जाएंगे जो सफलतापूर्वक व्यावहारिक हिन्दी की कक्षाएं ले रहे हैं।

संक्षेपीकरण (कच्चा प्रारूप)

नई दिल्ली 5 जुलाई, ………..-शब्दावली आयोग ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह प्राध्यापकों को व्यावहारिक हिन्दी और पारिभाषिक एवं तकनीकी शब्दावली के प्रयोग और अध्ययन में आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए आठवीं पंचवर्षीय योजना में ऐसी कार्यशालाओं का आयोजन करे जो प्राध्यापकों की इस विषय सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर कर उनकी भाषा सामर्थ्य और दक्षता में वृद्धि कर सकें। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में ऐसी कार्यशालाएं आयोजित की जाएं जिनमें कुछ वरिष्ठ प्राध्यापकों को भाषण देने के लिए आमन्त्रित किया जाए।

आदर्श संक्षेपीकरण

नई दिल्ली-5 जुलाई। शब्दावली आयोग ने व्यावहारिक हिन्दी एवं पारिभाषिक शब्दावली के पठन-पाठन की कठिनाइयों को दूर करने हेतु सरकार से अनुरोध किया है कि आठवीं पंचवर्षीय योजना में इस उद्देश्य की कार्यशालाएं आयोजित करने के लिए विश्वविद्यालयों को आवश्यक निर्देश दें।

उदाहरण-2
मूल समाचार
नई दिल्ली 26 मार्च, ……. – भारतीय लेखक संगठन के तत्वाधान में आज यहां के कांस्टीट्यूशन क्लब में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें जीवन के पैंसठ वर्ष पूरा करने पर हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार रामदरश मिश्र को सम्मानित किया गया। इस गोष्ठी में डॉ० नित्यानन्द तिवारी और डॉ० ज्ञानचन्द्र गुप्त के संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘रचनाकार रामदरश मिश्र’ पर भी चर्चा की गई जिसमें दिल्ली और बाहर के अनेक गण्यमान्य और नये रचनाकारों ने भाग लिया। चर्चा में भाग लेते हुए कन्हैयालाल नन्दन में मिश्रजी से शिकायत की कि वे अब गीत क्यों नहीं लिखते। महीप सिंह ने कहा कि मिश्र जी ने अंतरंग मानवीय सम्बन्ध की गरिमा हमेशा बनाये रखी। लेखन के प्रति समर्पित व प्रतिबद्ध मिश्र जी ने एक पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया।

नरेन्द्र मोहन ने कहा कि मिश्रजी के साहित्य में अपनी जमीन से जुड़े रहने का संवेदन और उसकी अनुभूति के दर्शन होते हैं। डॉ० रमाकान्त शुक्ल ने कहा कि मिश्र जी ने बड़ी-बड़ी बातें नहीं की बल्कि छोटी-छोटी बातों को संवेदनशील ढंग से सामने रखा और विशिष्ट शैली अर्जित की।

मुख्य अतिथि कमलेश्वर ने कहा कि मिश्र जी में आक्रोश है किन्तु उत्तेजना नहीं। मिश्र जी को आक्रोश की शक्ति का प्रयोग और अधिक करना चाहिए। मिश्र जी में अहम् नहीं है, ठोस स्वाभिमान है। स्वयं मिश्र जी ने अपने सम्बन्ध में कहा कि मैं बहुत मामूली इन्सान हूं मुझे इस बात का बोध हमेशा रहा, नहीं तो मैं आज महत्त्वाकांक्षा के जंगल में खो गया होता। संगठन सचिव डॉ० रत्न लाल शर्मा ने गोष्ठी का संचालन किया तथा महासचिव डॉ० विनय ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

संक्षेपीकरण

नई दिल्ली 26 मार्च,………..- भारतीय लेखक संगठन ने प्रसिद्ध उपन्यासकार रामदरश मिश्र के जीवन के पैंसठ वर्ष पूरा करने पर उन्हें सम्मानित करने हेतु एक गोष्ठी आयोजन किया गोष्ठी में डॉ० नित्यानन्द तिवारी और डॉ० ज्ञान चन्द गुप्त द्वारा संपादित पुस्तक ‘रचनाकार रामदरथ मिश्र’ पर भी चर्चा की गयी। चर्चा में भाग लेने वालों में मुख्य विद्वान् थे-कन्हैया लाल नन्दन, महीपसिंह, नरेन्द्र मोहन तथा गोष्ठी के मुख्य मेहमान कमलेश्वर। मिश्र जी ने अपने सम्बन्ध में कही गयी बातों का उत्तर देते हुए कहा कि वे बहुत मामूली इंसान हैं और उन्हें सदा इस बात का बोध रहा है, नहीं तो वे आज महत्त्वाकांक्षा के जंगल में खो गये होते। गोष्ठी का संचालन संगठन के साहित्य सचिव डॉ० रत्नलाल शर्मा ने किया तथा महासचिव डॉ० विनय ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

उदाहरण-3
मूल समाचार
पेरिस, 25 नवम्बर (ए० पी०) विश्व प्रसिद्ध धावक बेन जानसन ने कल फ्रांसीसी टैलीविजन के एक कार्यक्रम में भी स्वीकार किया कि उसने 1988 के सियोल ओलम्पिक में नशीले पदार्थ का सेवन किया था। इस कार्यक्रम में अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के मेडिकल कमीशन के प्रमुख प्रिंस एलेक्जेंडर डी-मेरोड भो शामिल थे। उन्होंने कहा कि–“बेन जानसन की धोखा–धड़ी से उन्हें काफ़ी गहरा दुःख हुआ था लेकिन इस घटना से नशीले पदार्थों के सेवन के खिलाफ हमारी लड़ाई और तेज़ हो गई।”

बेन जानसन की मेडिकल जांच के दौरान नशीले पदार्थों के सेवन की पुष्टि होने के समय श्री मेरोड भी उस समय मंच पर थे। इस घटना के बाद पहली बार दोनों का इस कार्यक्रम में आमना-सामना हुआ। इस कार्यक्रम में कई वरिष्ठ फ्रांसीसी एथलीट, प्रशिक्षक और खेल संगठनों के अधिकारी भी शामिल थे।
जानसन ने न केवल 1992 ओलम्पिक में भाग लेने की बल्कि 1991 में टोक्यो में विश्व इंडोर चैम्पियनशिप में भाग लेने की इच्छा जाहिर की। उसने कहा कि वह कड़ी मेहनत कर रहा है और अगले ओलम्पिक में तेज़ दौड़ेगा तथा टोक्यो में वह सबको पीछे छोड़ देगा।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल संक्षेपिका लेखन / संक्षेपीकरण

संक्षेपीकरण

टोक्यो में सबको पीछे छोड़ दूँगा : जॉनसन

पेरिस, 25 नवम्बर (ए० पी०) विश्व प्रसिद्ध धावक बेन जॉनसन ने कल यहां फ्रांसीसी टेलीविज़न से प्रसारित एक कार्यक्रम में 1988 के सियोल ओलम्पिक में नशीले पदार्थों के सेवन को स्वीकार किया। इसी कार्यक्रम के अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के मैडिकल कमीशन के प्रमुख श्री मेरोड ने कहा कि जॉनसन की धोखाधड़ी से उन्हें गहरा दुःख हुआ था। वे नशीले पदार्थों के सेवन के विरुद्ध अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।

जॉनसन की डॉक्टरी जांच के दौरान श्री मेरोड भी वहीं मौजूद थे। इस घटना के पश्चात् पहली बार दोनों इस कार्यक्रम में आमने-सामने हुए थे। इस कार्यक्रम में फ्रांस के वरिष्ठ एथलीट, प्रशिक्षक और खेल संगठनों के अधिकारी भी मौजूद थे। बेन जॉनसन ने कहा कि उसकी इच्छा है कि वह 1991 के टोक्यो में होने वाली इन्डोर चैम्पियनशिप तथा 1992 के ओलम्पिक में भाग ले। उसके लिए वह अभी से कड़ी मेहनत कर रहा है और उसे पूरी आशा है कि इन दोनों प्रतियोगिताओं में सबको पीछे छोड़ देगा।

उदाहरण-4
मूल समाचार
चण्डीगढ़ 20 जनवरी (संघी); मध्यम आय वर्ग के ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया ने दो नई योजनाएं ‘स्कूम’ तथा ‘ट्रैवल कैश’ शुरू की हैं। इस पहली योजना के तहत नए दोपहिया वाहन जैसे स्कूटर, मोटर साइकिल तथा मोपेड खरीदने के लिए ऋण देने की व्यवस्था है। बैंक के चीफ जनरल मैनेजर श्री जी० एच० देवलालकर ने यहां पत्रकारों को बताया है कि जो कर्मचारी न्यूनतम 1000 रु० मासिक शुद्ध वेतन लेते हैं, वे इस वेतन का 12 गुणा या खरीदे जाने वाले वाहन की कीमत का 90% जो भी कम होगा, ऋण रूप में ले सकते हैं। इस ऋण पर 16.5% वार्षिक दर से ब्याज लगेगा और इस ऋण की वसूली 36 बराबर मासिक किस्तों में की जाएगी।

उन्होंने बताया कि ‘ट्रैवल कैश’ के तहत विभिन्न संस्थानों (सरकारी, सार्वजनिक और निजी) के कर्मचारी देश भर में किसी भी स्थान की यात्रा के लिए ऋण ले सकते हैं बशर्ते कि पिछले छः मास के दौरान बैंक के चालू खाते में उनकी पर्याप्त बचत हो। यह ऋण मासिक आय की चार गुना राशि या परिवार के बस/रेल/हवाई टिकट का खर्च या 30000 रु० जो भी कम हो, लिया जा सकता है। 17.5% वार्षिक ब्याज दर वाले इस ऋण की वसूली 12 मासिक बराबर किस्तों में की जाएगी।

संक्षेपीकरण

स्टेट बैंक की मध्यम वर्ग के लोगों के लिए दो नई योजनाएँ
चण्डीगढ़ 20 जनवरी-भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य महा प्रबन्धक श्री जी० एच देवलालकर ने यहां पत्रकारों को बताया कि उनके बैंक ने मध्यम आय वर्ग के ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए दो नई योजनाएं स्कूम’ तथा ‘ट्रैवल कैश’ शुरू की है। पहली योजना के अन्तर्गत दोपहिया नये वाहन खरीदने के लिए ऋण दिया जाएगा। यह ऋण, 1000 रु० मासिक शुद्ध वेतन पाने वालों को उनके वेतन के बारह गुणा अथवा वाहन का 90% जो भी कम होगा, के बराबर होगा। इस ऋण की ब्याज-दर 16.5% होगी और इसकी वसूली 36 बराबर मासिक किस्तों में की जाएगी।

उन्होंने दूसरी योजना का ब्यौरा देते हुए बताया कि कोई भी कर्मचारी, चाहे वह किसी भी संस्थान, सरकारी या गैरसरकारी में कार्यरत हो, देशभर में किसी भी स्थान की यात्रा के लिए ऋण ले सकता है किन्तु उतनी राशि उसके बचत स्रोत में पिछले छः मास से होनी ज़रूरी है। यह ऋण, मासिक आय का चार गुना अथवा वास्तविक यात्रा टिकट का खर्चा अथवा वह राशि जो 30000 रु० से कम हो, लिया जा सकता है। इस ऋण की ब्याज दर 17.5% होगी और वसूली 12 बराबर मासिक किस्तों में की जाएगी।

उदाहरण-5
मूल समाचार
वेलिंगटन, 24 मार्च (ए०पी०) इस महीने के शुरू में क्रिकेट जीवन से संन्यास लेने की घोषणा करने वाले न्यूज़ीलैण्ड के हरफनमौला रिचर्ड हैडली ने आज कहा कि इंग्लैण्ड जाने वाली अपने देश की भ्रमणकारी क्रिकेट टीम में वह भी शामिल होंगे। न्यूज़ीलैण्ड की टीम के चयनकर्ताओं ने 16 खिलाड़ियों की जिस टीम की घोषणा की है, उसमें हैडली तथा कप्तान जान राइट भी शामिल हैं। इससे पूर्व उन्होंने इंग्लैण्ड के दौरे पर जाने अथवा न जाने के बारे में कुछ नहीं बताया था। इससे पहले टेस्ट क्रिकेट मैचों में रिकार्ड विकेट लेने वाले हैडली ने इस महीने के शुरू में वेलिंगटन में ऑस्ट्रेलियाई टीम के विरुद्ध नौ विकेट की जीत के बाद कहा था कि यह उसके जीवन का अन्तिम टेस्ट मैच होगा, लेकिन बाद में उसने अपना विचार बदल कर कहा कि वह भ्रमणकारी टीम में शामिल होगा।

संक्षेपीकरण

हैडली द्वारा संन्यास का इरादा फिलहाल स्थगित!

वेलिंगटन, 25 मार्च (ए०पी०)-टैस्ट मैचों में सर्वाधिक विकेट लेने वाले न्यूज़ीलैण्ड के गेंदबाज़ रिचर्ड हैडली ने इस महीने के शुरू में वेलिंगटन में ऑस्ट्रेलियाई टीम के विरुद्ध नौ विकेट लेने के पश्चात् क्रिकेट जगत् से संन्यास लेने की जो बात कही थी, लगता है उन्होंने अपना यह निर्णय अभी स्थगित कर दिया है। इंग्लैण्ड के दौरे पर जाने वाली न्यूज़ीलैण्ड की टीम में उनका नाम भी शामिल है।

गद्यांशों का सार

उदाहरण-1
अनुशासनहीनता एक प्रचंडतम संक्रामक बीमारी है। आग की तरह यह फैलती है और आग की ही तरह जो कुछ इसके अधीन आता जाता है, उसे ध्वस्त करती जाती है। अत: हर स्तर पर जो भी संचालक अथवा प्रभारी है, उसका यह प्रमुख कर्तव्य हो जाता है कि अनुशासनहीनता के पहले लक्षणों को देखते ही उसका प्रभावी उपचार कर दें अन्यथा यह बीमारी सम्पूर्ण राष्ट्र का ही पतन कर सकती है। वस्तुतः अनुशासन शिथिल होने का अर्थ है, मूल्यों और मान्यताओं का अवमूल्यन होना और जब ऐसा होता है तो कोई भी राष्ट्र अथवा सभ्यता कितनी ही दिव्य क्यों न हो, नष्ट हो जाएगी। अनुशासित हुए बिना कोई समाज, कोई विभाग या कोई राष्ट्र शक्तिशाली नहीं बन सकता। इतना ही नहीं अनुशासन के बिना किसी देश से दरिद्रता, अन्याय आपसी फूट और वैमनस्थ कभी दूर नहीं हो सकते।

संक्षेपीकरण शीर्षक : अनुशासनहीनता

अनुशासनहीनता का अर्थ है-मूल्यों और मान्यताओं का अवमूल्यन होना और ऐसी स्थिति में कोई भी शक्तिशाली राष्ट्र भी नष्ट हो सकता है। अनुशासनहीनता के कारण कोई समाज, विभाग या राष्ट्र शक्तिशाली नहीं बन सकता न ही इससे अन्याय और पारस्परिक भेदभाव मिट सकते हैं।

उदाहरण-2
गुरु गोबिन्द सिंह जी का व्यक्तित्व भारतीय संस्कृति के जीवन-दर्शन के ताने बाने से बुना गया था। यही व्यक्तित्व उनकी रचनाओं में अभिव्यक्त हुआ है। उनका ‘दशमग्रंथ’ अन्याय के प्रतिकार के लिए सत्य के लिए, आत्म बलिदान हेतु और अन्तरम को परिकृत और सरस बनाने के लिए नियोजित काव्य और देश और काल की सीमाओं के माध्यम से सीमातीत को हृदयंगम कराने का आध्यात्मिक प्रतीक है। वह महान भारतीय संस्कृति का कवच है और शुष्क वैयक्तिक साधना के स्थान पर सरस धार्मिक जीवन का संदेशवाहक है। वह कायरता, भीरूता और निष्कर्म पर कस के कुशाघात है। वह छुपी हुई जाति का प्राणप्रद संजीवन-रस है और मोहनग्रस्त समाज का मूर्छा-मोचन रसायन है।

संक्षेपीकरण शीर्षक : दशमग्रंथ

गरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा रचित ‘दशमग्रंथ’ गुरु जी के व्यक्तित्व यथा अन्याय के विरुद्ध लड़ना, सत्य के लिए आत्मबलिदान तक को तत्पर रहने जैसे गुणों का द्योतक है। यह भारतीय संस्कृति का कवच है जो वैयक्तिक साधन के स्थान पर धार्मिक जीवन का सन्देश देता है।

उदाहरण-3
‘मध्यकालीन ब्रज संस्कृति के दो पक्ष हो सकते हैं। पहला, नगर-सभ्यता, दूसरा कृषक-समाज। पहले का प्रतिनिधित्व मथुरा करती है और गोपियां उसे अपनी पीड़ा का कारण मानते हुए कोसती हैं। उनके लिए तो मथुरा काजल की कोठरी है इसीलिए वे मथुरा की नागरिकाओं को कोसती हैं, कुब्जा पर व्यंग्य करती हैं। सूरदास की रचनाओं में जो ब्रज मंडल उपस्थित है, वह ग्राम-जन, कृषक-समाज और चरवाहों की ज़िन्दगी का समाज है-सीधा-सादा, सरल, निश्छल। सूरदास की सृजनशीलता यह है कि ब्रजमंडल का लगभग समूचा सांस्कृतिक जगत् अपने संस्कारों, त्योहारों, जीवन-चर्चा की कुछ झांकियों और शब्दावली के साथ यहां प्रवेश कर जाता है।

संक्षेपीकरण शीर्षक : मध्यकालीन ब्रज संस्कृति

सर के काव्य में ब्रजमण्डल की कृषक संस्कृति अपनी सम्पूर्ण उत्सवशीलता के साथ झूम रही है। वहां मथुरा के रूप में नागर संस्कृति भी है तो सही, परन्तु गोपियों के माध्यम से उसे निन्दा और उपहास का पात्र ही बनाया गया है। वस्तुतः सूरदास ग्राम्य-संस्कृति के चितेरे कवि हैं।

उदाहरण-4

किसी नेता द्वारा रामपुर में 14 अक्तूबर को दिए गए भाषण का अंश-
हमने अपने पाँच वर्ष के कार्यकाल में इस इलाके के विकास के लिए जो कुछ किया है, उसे यदि अपने मुँह से कहूँ तो कोई कह सकता है, अपने मुँह मियाँ मिठू। लेकिन भाइयो, यदि मैं वह सब आपको नहीं बताऊँगा तो आप ही कहिए, किस हक से मैं आपसे फिर से वोट मांगूंगा। मैंने पाँच सालों से इस इलाके के लिए अपना खून-पसीना बहाया है। कोई भी अपनी समस्या लेकर आया, मैंने उसका समाधान करने की भरसक कोशिश की। आज जब मेरी जीप इस रैली-स्थल की ओर आ रही थी तो सड़क की बढ़िया हालत देख मुझे विश्वास हो गया जो पैसा मैंने इस इलाके के विकास के लिए आबंटित किया था, उसका सही उपयोग हुआ है। भाइयो, मैं गलत तो नहीं कह रहा न ? आपने भी तो आज उस सड़क को देखा ही होगा !

याद करो पाँच साल पहले उस सड़क की हालत कैसी थी ? जगह-जगह गड्ढे, उनमें भरा हुआ पानी और वो गड्ढे तो होने ही थे। किया क्या था हमारे प्रतिपक्षियों ने ? भाइयो, अब मैं उनके बारे में क्या बोलूँ ? और अपने बारे में ही क्या बोलूँ ? हमारा तो काम बोलता है। हमारा तो धर्म ही आपकी सेवा करना है। यदि मेरी जान भी चली जाए तो भी परवाह नहीं। भाइयो, देश-सेवा का, आप सबकी सेवा का व्रत मैंने तो तब ही ले लिया था जब मैं राजनीति में आया था।………….’ (संवाददाता द्वारा उपर्युक्त भाषण के आधार पर बनाया गया संक्षिप्त समाचार)

संक्षेपीकरण शीर्षक : ‘देश के लिए कुर्बान मेरी जान’……. (नाम)

रामपुर, 14 अक्तूबर
एक स्थानीय चुनाव-सभा को सम्बोधित करते हुए………… पार्टी के नेता श्री …………. ने अपनी पार्टी के कार्यकाल में हुए विकास कार्यों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने सड़क-निर्माण के क्षेत्र में उनकी पार्टी द्वारा किए गए कार्य का बार-बार उल्लेख किया। अपने भाषण के दौरान उन्होंने विरोधी दलों पर कई बार चुटीला व्यंग्य भी कसा।

उदाहरण-5
सोमा बुआ बोली, “अरे मैं कहीं चली जाऊं तो इन्हें नहीं सुहाता। कल चौक वाले किशोली लाल के बेटे का मुंडन था, सारी बिरादरी का न्यौता था। मैं तो जानती थी कि ये पैसे का गरूर है कि मुण्डन पर भी सारी बिरादरी का न्यौता है, पर काम उन नई नवेली बहुओं से सम्भलेगा नहीं, सो जल्दी ही चली गई। हुआ भी वही,” और सरककर बुआ ने राधा के हाथ से पापड़ लेकर सुखाने शुरू कर दिए। “एक काम गत से नहीं हो रहा था। भट्टी पर देखो तो अजब तमाशासमोसे कच्चे ही उतार दिए और इतने बना दिए कि दो बार खिला दो, और गुलाब जामुन इतने कम किए कि एक पंगत में भी पूरे न पड़ें। उसी समय मैदा बनाकर नए गुलाब जामुन बनाए। दोनों बहुएं और किशोरी लाल तो बेचारे इतना जस मान रहे थे कि क्या बताऊँ।”

सार:
सोमा बुआ को काम का बहुत अनुभव है। उनके बिना कहीं भी कोई काम अच्छी प्रकार से नहीं होता है। इसीलिए वे सभी जगह काम को अपने काम तरह करती है। इसलिए सभी जगह उनका मान होता है।

शीर्षक:
सोमा बुआ।

उदाहरण-6
सुख की तरह सफलता भी ऐसी चीज़ है जिसकी चाह प्रत्येक मनुष्य के दिल में बसी मिलती है। इन्सान की तो बात ही क्या है, हर जीव अपने अस्तित्व के उद्देश्य को निरन्तर पूरा करने में लगा ही रहता है और अपने जीवन को सफल बना जाता है। यही हाल पदार्थों तक का है, उनकी भी कीमत तभी है जब तक वे अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं। एक छोटी-सी माचिस भी जब कभी बहुत सील जाती है और जलने में असफल हो जाती है, तो उसे कूड़े की टोकरी में फेंक दिया जाता है। टॉर्च से सेल बल्ब जलाने में असमर्थ हो जाते हैं तो बिना किसी मोह के उन्हें निकाल कर फेंक दिया जाता है। जाहिर है, किसी वस्तु की कीमत तभी तक है, जब तक वह सफल है। इसी तरह हर इन्सान की कीमत भी तभी तक है, जब तक वह सफल है। शायद इसीलिए इन्सान सफलता का उतना ही प्यासा रहता है, जितना सुख का, या जितना जिन्दा रहने का। सफलता ही किसी के जीवन को मूल्यवान बनाती है। मगर सफलता है क्या ?

सार:
सफलता मनुष्य जीवन को मूल्यवान् बना देती है। सफल मनुष्य जीवन में सुख का अनुभव करता है इसीलिए वह सफलता के लिए प्रयत्नशील रहता है। परन्तु सफलता क्या है इसका आज तक पता नहीं चला है। सफल मनुष्य भी सफलता के पीछे दौड़ रहा है।

शीर्षक:
सफलता की चाह।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल संक्षेपिका लेखन / संक्षेपीकरण

उदाहरण-7

सम्पूर्ण सृष्टि में, सूक्ष्मतम जीवाणु से लेकर समस्त जीव-जन्तु ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण वनस्पति तथा सृष्टि के समस्त तत्व, बिना किसी आलस्य के, प्रकृति द्वारा निर्धारित, अपने-अपने उद्देश्यों की पूर्ति में निरन्तर लगे हुए देखे जाते हैं। कहीं भी, किसी भी स्तर पर इस नियम का अपवाद देखने को नहीं मिलता। यदि लघुतम एन्जाइम भी अपने कर्त्तव्य में किंचित् भी शिथिलता ले आए, तो मानव खाए हुए भोजन को पचा भी न सकेगा। कैसी विडम्बना है कि अपने को प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट रचना कहने वाला मनुष्य ही इस सम्पूर्ण विधान में अपवाद बनते देखा जाता है। कितने ही मनुष्य नितान्त निरुद्देश्य जीवन-जीते रहते हैं। जो प्रकृति उनका पोषण करती है, जिन असंख्य मानव-रत्नों के श्रम से प्राप्त सुख-सामग्री की असंख्य वस्तुओं का वे नित्य उपभोग करते हैं, जिस समाज में रहते हैं, जिन माता-पिता से उन्होंने जन्म पाया, उन सभी के प्रति मानो उनका कोई दायित्व ही न हो।

सार:
ईश्वर की बनाई सृष्टि में सभी जीव-जन्तु, वनस्पति तथा अन्य तत्त्व अपने कर्त्तव्य और उद्देश्य की पूर्ति निरन्तर करते हैं परन्तु ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना अर्थात् मनुष्य अपने दायित्व के प्रति उदासीन है। वह सबसे लेना जानता है परन्तु अपने कर्तव्यों को पूरा करना नहीं जानता।

शीर्षक:
मनुष्य : अपने कर्त्तव्य के प्रति उदासीन।

उदाहरण-8
‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर उसे अन्य लोगों से मेल या सम्पर्क करना होता है। घर से बाहर निकलते ही उसे किसी मित्र या साथी की आवश्यकता पड़ती है। मित्र ही व्यक्ति के सुख-दुख में सहायक होता है पर किसी को मित्र बनाने से पहले मित्रता की परख कर लेनी चाहिए। जिस प्रकार व्यक्ति घोड़े को खरीदते समय उसकी अच्छी प्रकार जाँच-पड़ताल करता है, उसी प्रकार मित्र को भी जांच-परख लेना चाहिए। सच्चा मित्र वही होता है, जो किसी भी प्रकार की विपत्ति में हमारे काम आता है या हमारी सहायता करता है। सच्चा मित्र हमें बुराई के रास्ते पर जाने से रोकता है तथा सन्मार्ग की ओर ले जाता है। वह हमारी अमीरी-गरीबी को नहीं देखता, जात-पात को महत्ता नहीं देता। वह निःस्वार्थ भाव से मित्र की सहायता करता है। सच्चे मित्र को औषधि, वैद्य और खजाना कहा गया है क्योंकि वह औषधि की तरह हमारे विचारों खो शुद्ध बनाता है, वैद्य की तरह हमारा इलाज करता है, खज़ाने की तरह मुसीबत में हमारी सहायता करता है। आज के जीवन में सच्चा मित्र प्राप्त करना बहुत कठिन है। स्वार्थी मित्रों की आज भरमार है। ऐसे स्वार्थी मित्रों से मनुष्य को सावधान रहना चाहिए। सच्चा मित्र जीवनभर मित्रता के पवित्र सम्बन्ध को निभाता है-कृष्ण और सुदामा की तरह।’

सार:
सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य को मित्र की आवश्यकता पड़ती ही है। यदि भली-भांति जांच-परख कर मित्र बनाया जाए तो ऐसा मित्र सुख-दुख में हमारा सहायक तो होता है, वह हमारा मार्गदर्शक तथा हितैषी भी होता है। आज के स्वार्थ-लोलुप युग में सच्चा मित्र मिलना दुर्लभ है। जिसे वह मिल जाएगा, उसे उस मित्री की मैत्री जीवनभर सम्भालने और निभाने का प्रयास करना चाहिए।

शीषर्क:
सच्ची मित्रता।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पारिभाषिक शब्दावली (A से I तक)

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi संप्रेषण कौशल पारिभाषिक शब्दावली (A से I तक) Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पारिभाषिक शब्दावली (A से I तक)

(ख) पारिभाषिक शब्दावली

बोर्ड द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम अनुसार [A से I तक] पारिभाषिक शब्द
अंग्रेज़ी शब्द हिन्दी रूप

A:
Accept = स्वीकार करना
Acceptance = स्वीकृति
Accord = समझौता
Account = लेखा, खाता
Accountant = लेखाकार
Acknowledgement = पावती, रसीद
Act = अधिनियम
Additional Judge = अपर न्यायाधीश
Adhoc Committee = तदर्थ समिति
Adjustment = समायोजन
Administrator = प्रशासक
Advance Copy = अग्रिम प्रति
Advocate = अधिवक्ता, वकील
Advocate General = महाधिवक्ता
Affidavit = शपथ-पत्र
Aid = सहायता
Aided = सहायता प्राप्त
Answersheet = उत्तर पुस्तिका
Amendment = संशोधन
Attested Copy = साक्ष्यांकित प्रति
Air-Conditioned = वातानुकूलित
Applicant = प्रार्थी, आवेदक
Agenda = कार्य सूची
Appendix = परिशिष्ट
Auditor = लेखा परीक्षक
Airport = हवाई अड्डा

B:
Back ground = पृष्ठभूमि
Bail = जमानत
Block Education-officer = खण्ड शिक्षा अधिकारी
Broadcast = प्रसारण
Bias = झुकाव
Bill of Exchange = विनिमय पत्र
Body Guard = अंगरक्षक
Ballot Paper = मतदान पर्ची
Ballot Box = मतपेटी
Bonafide = वास्तविक
Bond = बंध, बंध-पत्र
Booklet = पुस्तिका
Boycott = बहिष्कार
Bribe = रिश्वत
Bibliography = सन्दर्भ ग्रंथसूची
By force = बलपूर्वक
By law = उपविधि
By hand = दस्ती
By post = डाक द्वारा

C:
Cabinet = मन्त्रिमण्डल
Candidate = उम्मीदवार, अभ्यार्थी
Career = जीविका
Cash book = रोकड़ बही
Cashier = खजानची
Caution = सावधान
Census = जनगणना
Character Certificate = चरित्र सम्बन्धी प्रमाण-पत्र
Chairman = सभापति
Casual leave = आकस्मिक अवकाश
Chief Minister = मुख्यमन्त्री
Chief Secretary = मुख्य सचिव
Chief Election Commissioner = मुख्य निर्वाचन आयुक्त
Chief Justice = मुख्य न्यायाधीश
Civil Court = व्यवहार न्यायालय
Constituency = चुनाव क्षेत्र
Contingency Fund = आकस्मिक-निधि
Circular = परिपत्र
Compensation = क्षतिपूर्ति
Competent = सक्षम
Competition = प्रतियोगिता
Conference = सम्मेलन
Confidential = गोपनीय
Contract = ठेका, संविदा
Convenor = संयोजक
Copy = प्रति, नकल
Corrigendum = शुद्धि पत्र
Courtesy = सौजन्य
Creche = बालवाड़ी
Custody = हिरासत
Custom duty = सीमा शुल्क
Correspondence = पत्राचार
Computer = गणक
Chief Medical Officer = मुख्य चिकित्सा अधिकारी
College = महाविद्यालय
Clerk = लिपिक

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पारिभाषिक शब्दावली (A से I तक)

D:
Date of Birth = जन्म तिथि
Debar = रोकना
Declaration = घोषणा
Default = चूक, गलती
Defaulter = चूक करने वाला
Delay = विलम्ब, देरी
Delegation = प्रतिनिधि मंडल
Demonstration = प्रदर्शन
Demotion = पदावनति
Disobedience = अवज्ञा
Dissolve = भंग करना
Domicile = अधिवास
Despatch Clerk = प्रेषण लिपिक
Driver = परिचालक
Director = निदेशक
District Education Officer = जिला शिक्षा अधिकारी
Ditto = यथोपरि

E:
Earned leave = अर्जित अवकाश
Employee = कर्मचारी
Employer = नियोक्ता
Embassy = दूतावास
Emergency = आपात्काल
Endorcement = पृष्ठांकन
Enquiry = पूछताछ
Enrolment = भर्ती, नामांकन
Editor = सम्पादक
Edition = संस्करण
Estimate = अनुमान
Estate officer = सम्पदा अधिकारी
Examiner = परीक्षक
Excise Inspector = आबकारी निरीक्षक
Excise & Taxation officer = आबकारी तथा कर अधिकारी
Expel = निष्कासित करना
Exemption = छूट, माफी
Extension = विस्तार
Eye-witness = चश्मदीद गवाह, प्रत्यक्ष साक्षी

F:
Fact = तथ्य
Faculty = संकाय
Farewell = विदाई
First-Aid = प्रथमोपचार, प्राथमिक सहायता
File = मिसल
Financial Year = वित्त वर्ष
Fire Brigade = दमकल विभाग
Fitness Certificate = स्वस्थता प्रमाण-पत्र
Forenoon = पूर्वाह्न, दोपहर से पहले
Forwarding Letter = अग्रेषण पत्र
Frame Work = ढाँचा

G:
Gazetted Holiday = राजपत्रित छुट्टी
General Provident Fund = सामान्य भविष्य निधि
Gist = सार
Gratuity = उपदान
Guarantee = प्रतिभूति
Grant = अनुदान
Grievence = शिकायत
Gross = कुल, सकल
Gross Income = कुल आय

H:
Hearing = सुनवाई
High Court = उच्च न्यायालय
Honorarium = मानदेय
Homage = श्रद्धांजलि
House of People = लोकसभा
House Rent = मकान किराया
House Rent Allowance = मकान किराया भत्ता

I:
Immigrant = अप्रवासी
Implement = कार्यान्वित करना
Imprisonment = कारावास
Inland letter = अन्तर्देशीय पत्र
Income Tax Officer = आयकर अधिकारी
Information Officer = सूचना अधिकारी
Inspection = निरीक्षण
Instruction = अनुदेश
Interference = हस्तक्षेप
Interim Relief = अन्तरिम राहत/सहायता
Interpreter = दुभाषिया

पाठ्यक्रम में निर्धारित पुस्तक ‘हिन्दी भाषा बोध और व्याकरण’ के अनुसार

(i) साहित्यिक शब्द

1. Act (अंक)-प्रसाद जी के नाटक ध्रुवस्वामिनी में तीन अंक हैं।
2. Adaptation (रूपान्तर)-विष्णु प्रभाकर जी ने गोदान उपन्यास का ‘होरी’ शीर्षक से सफल नाटकीय रूपान्तर किया है।
3. Advertisement (विज्ञापन)-टी०वी० सीरियलों में विज्ञापनों की भरमार होती है।
4. Autobiography (आत्मकथा)-महात्मा गाँधी की आत्मकथा एक पठनीय पुस्तक है।
5. Character (पात्र, चरित्र)-प्रसाद जी के नाटक चन्द्रगुप्त में पात्रों की भरमार है।
6. Characterisation (चरित्र-चित्रण)-‘झांसी की रानी’ उपन्यास के अनुसार रानी लक्ष्मीबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
7. Chorus (कोरस, समवेतगान, वृन्दगान)-समवेतगान प्रतियोगिता में हमारे स्कूल की टीम प्रथम आई।
8. Climax (चरम सीमा)-अश्क जी के एकांकी देवताओं की छाया में’ का चरम सीमा अत्यन्त रोचक बन पड़ा
9. Commentator (टीकाकार)-सूरदास जी ने सूरसागर की रचना श्रीमद्भगवत के टीकाकार के रूप में नहीं की है।
10. Dialogue (संवाद)-नाटक के संवाद संक्षिप्त और सरल होने चाहिएं।
11. Diary (दैनिकी, डायरी)—हिन्दी गद्य विधा में दैनिकी विधा एक नयी विधा है।
12. Edition (संस्करण)-प्रेम चन्द जी के उपन्यास ‘गोदान’ के अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
13. Editorial (सम्पादकीय)-महाशय कृष्ण अपने समाचार-पत्र ‘प्रताप’ की सम्पादकीय के लिए विख्यात थे।
14. Epiloque (उपसंहार)-इस निबन्ध का उपसंहार अत्यन्त प्रभावी बन पड़ा है।
15. Idiomatic (मुहावरेदार)-प्रेम चन्द जी की कहानियों की भाषा मुहावरेदार है।

(ii) मानविकी शब्द

1. Adolescence (किशोरावस्था)-लड़कों और लडकियों के लिए किशोरावस्था बडी खतरनाक होती है।
2. Adolescent Education (किशोर शिक्षा)-स्कूलों में किशोर शिक्षा को अनिवार्य बना देना चाहिए।
3. Adult Education (प्रौढ़ शिक्षा)-हमारी सरकार प्रौढ़ शिक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है।
4. Aptitude Test (रूझान परीक्षाएँ)-आजकल प्रवेश परीक्षा में रूझान परीक्षा सम्बन्धी प्रश्न भी पूछे जाते हैं।
5. Biographical (जीवन वृत्त)-डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जीवन वृत्त एक अत्यन्त उच्चकोटि की रचना है।
6. Co-education (सह-शिक्षा)-स्कूलों एवं कॉलेजों में सह-शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।
7. Consumer (उपभोक्ता)-सरकार ने आम जनता की सुविधा के लिए उपभोक्ता न्यायालयों का गठन किया
8. Debt (ऋण)-भवन-निर्माण के लिए सरकार ने ऋण की दरों में काफ़ी कटौती कर दी है।
9. Depriciation (मूल्य-हास)-पुराने मकान का मूल्यांकन करते समय मूल्यह्रास को ध्यान में रखा जाता है।
10. Economics (अर्थशास्त्र)-अर्थशास्त्र एक ऐसा विषय है, जिसमें हर वर्ष परिवर्तन हो जाता है।
11. Educational Phychology (शिक्षा मनोविज्ञान)-बी०एड० की परीक्षा में शिक्षा मनोविज्ञान भी एक विषय होता है।
12. Emotions (संवेग)-किसी भी दुर्घटना को देखकर हमारे संवेग उभर आते हैं।
13. Fine Art (ललित कला)-चित्रकला और मूर्तिकला ललित कला मानी जाती है।
14. Physical Education (शारीरिक शिक्षा)-स्कूलों में शारीरिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता
15. Subsidies (वित्तीय सहायता)-भारत सरकार किसानों को खाद पर काफ़ी वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पारिभाषिक शब्दावली (A से I तक)

(ii) साहित्यिक शब्द

1. अलंकार (सं०) अलंकारिक (विशेषण)
सूरदास जी ने श्री कृष्ण की बाल लीला का अलंकारिक वर्णन किया है।

2. अभिव्यक्त (वि०) अभिव्यक्ति (सं०)
प्रत्येक कवि अपनी अनुभूति को ही अभिव्यक्ति प्रदान करता है।

3. आलोचना (भाव सं०) आलोचनात्मक (वि०)
डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने अनेक आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखे हैं।
आलोचक (जाति० सं०)
निष्पक्षता आलोचक का गुण होना चाहिए।

4. अभिनय (व्य० सं०) अभिनेता (जाति० सं०)
कुन्दन लाल सहगल एक उच्चकोटि के गायक के साथ-साथ एक कुशल अभिनेता भी थे।
अभिनेयता (भाव० सं०)
रंगमंच एवं अभिनेयता की दृष्टि से चन्द्रगुप्त नाटक की समीक्षा कीजिए। अभिनेय (वि०)
उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ के सभी एकांकी अभिनेय हैं।

5. कल्पना (सं०) काल्पनिक (वि०)
ऐतिहासिक उपन्यासों में अनेक काल्पनिक कथाओं का भी समावेश होता है।

6. प्रकृति (सं०) प्राकृतिक (वि०)
सुमित्रानन्दन पन्त जी की कविता में प्राकृतिक सौन्दर्य की अद्भुत छटा देखने को मिलती है।

7. प्रतीक (व्य० सं०) प्रतीकात्मक (वि०)
नई कविता में अधिकतर प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग हुआ है। प्रतीकात्मकता (भाव० सं०)
मोहन राकेश के नाटक ‘लहरों के राजहंस’ में प्रतीकात्मकता स्पष्ट देखी जा सकती है।

8. प्रसंग (सं०) प्रासंगिक (वि०) ।
संतों की वाणी आज के युग में भी प्रासंगिक है।

9. प्रयोगवाद (सं०) प्रयोगवादी (वि०)
अज्ञेय जी एक प्रयोगवादी कवि हैं।

10. प्रगतिवाद (सं०) प्रगतिवादी (वि०)
निराला जी की ‘वह तोड़ती पत्थर’ एक प्रगतिवादी कविता है।

11. नाटक (व्य० सं०) नाटकीय (वि०)
विष्णु प्रभाकर जी ने गोदान की नाटकीय प्रस्तुति होरी शीर्षक नाटक से की है।
नाटककार (जाति० सं०)
मोहन राकेश आधुनिक युग के प्रसिद्ध नाटककार हैं।
नाटकीयता (भाव० सं०)
संवादों में नाटकीयता किसी भी नाटक को सफल बनाने में सहायक नहीं होती।

12. यथार्थवाद (सं०) यथार्थवादी (वि०)
नई कविता अधिकतर यथार्थवादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है।

13. रहस्यवाद (सं०) रहस्यवादी (वि०)
कबीर जी की वाणी में रहस्यवादी पुट भी देखने को मिलता है।

14. रंगमंच (सं०) रंगमंचीय (वि०)
अश्क जी ने रंगमंचीय एकांकियों का सृजन किया।

15. व्यंग्य (सं०) व्यंग्यात्मक (वि०)
हरिशंकर परसाई जी अपने व्यंग्यात्मक लेखों के लिए जाने जाते हैं।

(iv) मानविकी शब्द

1. अभिप्रेरणा (सं०) अभिप्रेरित (वि०).
दिनकर जी की अनेक कविताएँ हमें देशभक्ति के लिए अभिप्रेरित करती हैं।

2. अनुसन्धान (सं०) अनुसन्धानात्मक (वि०)
आयुर्वेद में भी अनुसन्धानात्मक कार्य करने की आवश्यकता है।

3. इतिहास (सं०) ऐतिहासिक (वि०)
‘झांसी की रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है।

4. उद्यम (सं०) उद्यमी (वि०)
उद्यमी व्यक्ति जीवन में कभी असफल नहीं होता।

5. कानून (सं०) कानूनी (क्रि० वि०)
भ्रूण हत्या कानूनी अपराध मानी जाती है।

6. प्रशिक्षण (सं०) प्रशिक्षित (वि०)
भारत में तेज़ गेंदबाजों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।

7. बीमा (सं०) बीमाकृत (वि०)
बीमा क्षेत्र में निजी कम्पनियों के आ जाने से देश में बीमाकृत व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हुई है।

8. भाषा (सं०) भाषायी (वि०)
देश में होने वाले भाषायी झगड़े देश की अखण्डता और एकता के लिए हानिकारक हैं।

9. मानकीकरण (सं०) मानकीकृत (वि०) ।
भारत में अनेक वस्तुओं को मानकीकृत किया गया है।

10. मनोविज्ञान (सं०) मनोवैज्ञानिक (वि०)
जैनेन्द्र जी मनोवैज्ञानिक कहानियाँ लिखने वालों में प्रमुख हैं।

11. योजना (सं०) योजनात्मक (वि०)
देश का विकास योजनात्मक ढंग से ही होना चाहिए।

12. लोकतन्त्र (सं०) लोकतान्त्रिक (वि०)
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है।

13. व्यवसाय (सं०) व्यावसायिक (वि०)
सरकार ने व्यावसायिक शिक्षा के महत्त्व को स्वीकार कर लिया है।

14. शिक्षा (सं०) शैक्षिक (वि०)
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों की शैक्षिक योग्यता को बढ़ाने का प्रयत्न किया जा रहा है।

15. संसद् (सं०) संसदीय (वि०)
पंजाब सरकार ने राज्य के संसदीय क्षेत्रों को सुधारने का निर्णय लिया है।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

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PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

(क) पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

1. विधा वठवे प्टिम हुँ तथउ मशिना नाहे ।
कृपया इसे गोपनीय समझिए।

2. उवमा लप्टी येत चै ।
आदेश के लिए प्रस्तुत है।

3. ‘उठ मिलर टी मरठा उन ठिी ताप्टी चै।
पत्र मिलने की सूचना भेज दी गई है।

4. ਵਿਚਾਰਾਧੀਨ ਪੱਤਰ ਮਿਲਣ ਦੀ ਸੂਚਨਾ ਨਹੀਂ ਭੇਜੀ ਗਈ ਹੈ ।
विचाराधीन पत्र की प्राप्ति की सूचना नहीं भेजी गई है।

5. उठ रा भमरा भठत्नुठी लप्टी येन चै ।
उत्तर का मसौदा अनुमोदन के लिए प्रस्तुत है।

6. सतुती वाढहाप्टी वत रिंडी ताप्टी चै ।
ज़रूरी कार्यवाही कर दी गई है।

7. लेडीरे वातास पॅउठ ठेठां उँधे उठ ।
अपेक्षित कागज़-पत्र नीचे रखे हैं।

8. साली मृतठा टी हिडीव वठे ।
अगली सूचना की प्रतीक्षा करें।

9. ਮਸੌਦਾ ਸੋਧੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮਨਜ਼ੂਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
मसौदा संशोधित रूप में अनुमोदित किया जाता है।

10. विठया वठवे पवे उपाधत वीडे ताठ |
कृपया पूरे हस्ताक्षर किए जाएँ।

11. मत्ती ठामठत व ठिी नाहे ।
आवेदन अस्वीकार कर दिया जाए।

12. सती पट व लिभा साहे ।
ज़रूरी संशोधन कर लिया जाए।

13. यमाह मापले-भाध रिस मसट चै ।
प्रस्ताव अपने-आप में स्पष्ट है।

14. Yध भिमप्ल रे हायम माहट सी हडीव वीठी साहे ।
मुख्य मिसल के वापस आने की प्रतीक्षा की जाए।

15. रेव वे पंठहार मउिउ हाधित वीउ सांरा चै ।
देखकर सधन्यवाद वापस किया जाता है।

16. माठ वेष्टी टिपटी ठगीं वठठी ।
हमें कोई टिप्पणी नहीं करनी है।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

17. हेठी MAHIGव उतिभा साहे ।
तुरन्त अनुस्मारक भेजिए।

18. भाप्ली वैठव हित हिसाठ वठ लिभा साठा |
आगामी बैठक में विचार कर लिया जाएगा।

19. पित रे मुशाहां रे भायात उ भर्मेरा उिभात वीउ साहे ।
ऊपर के सुझावों के आधार पर उत्तर का मसौदा तैयार कीजिए।

20. माते मयिउ प्लेव टिम लु विभाठ ठाल ठेट व लैट ।
सभी सम्बन्धित लोग इसे ध्यान से नोट कर लें।

21. वितधा वठवे पिहला मढ़ा रेवे ।
कृपया पिछला पृष्ठ देखें।

22. भलीभां भंगीनां नाल ।
प्रार्थना पत्र माँगे जाएँ।

23. यमामठिव भठसठी उपमिल वीठी नाहे ।
प्रशासनिक मान्यता प्राप्त की जाए।

24. ਵਿਭਾਗ ਵਲੋਂ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ।
विभागीय कार्यवाही की जा रही है।

25. सहाव भगिना माहे |
जवाब तलब किया जाए।

26. भाभले डे ठहें मिते 3 हिसाठ वठठा चै ।
मामले पर नए सिरे से विचार करना है।

27. सांस वीडी डे मी पाटिमा |
जाँच की और सही पाया।

28. पिहले वातास ठाप्ल प्लाठि ।
पिछले कागज़ साथ लगाएं।

29. हिलाता हूँ टिम रे ममात मुनिउ वत ठिा साहेठाा |
विभाग को तदनुसार सूचित कर दिया जाएगा।

30. उनाडा पॅउठ टिम सहउठ हिर पुग्धउ ठगीं सायरा |
आपका पत्र इस कार्यालय में प्राप्त हुआ नहीं जान पड़ता।

31. ਦੱਸੋ ਕਿ ਤੁਹਾਡੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨਾਤਮਿਕ ਕਾਰਵਾਈ ਕਿਉਂ ਨਾ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ ?
बताएं कि आपके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही क्यों न की जाए?

32. डोटी ठियेतट टी हडीव ।
आगे की रिपोर्ट की प्रतीक्षा है।

33. ਜੇਕਰ ਤੁਸੀ ਸਹਿਮਤ ਹੋ ਤਾਂ ਕਾਗਜ਼ ਫਾਇਲ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ।
यदि आप सहमत हों तो कागज़ फाईल कर दिए जाएँ।

34. भैलु टिम भाभले हि वेप्टी ग्रािष्टिउ ठगीं मिली चै ।
मुझे इस मामले में कोई हिदायत नहीं मिली है।

35. मठापठाउभिव गहाप्टी वीठी सा पवटी चै ।
अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।

36. मधेप टिपटी चेठां येस वै ।।
संक्षिप्त टिप्पणी नीचे प्रस्तुत है।

37. सि वि धूमउगह वीउ निभा चै, प्टिहें वाराहाटी वीठी माहे ।
यथा प्रस्तावित कार्यवाही की जाए।

38. वैठव रा टेनडा घेत चै ।
बैठक की कार्य सूची प्रस्तुत है।

39. मेपिसा ऐष्टिमा उठाइट रेवट हामडे येत चै ।
संशोधित प्रारूप अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।

40. भांसी पालठा वीडी माहे ।
आदेशों का पालन किया जाए।

41. वाधी लॅपी चै ।
प्रतिलिपि संलग्न है।

42. भाभले हरा भने डैमप्ला ठा वीउ साहे ।
मामले को अभी निर्णय न किया जाए।

43. ਮੈਂ ਇਸ ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਸਹਿਮਤੀ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ।
मैं इस प्रस्ताव से अपनी सहमति प्रकट करता हूँ।

44. माटवाठी रे लप्टी घेत वै ।
सूचना के लिए प्रस्तुत है।

45. विठया वठवे मामले टी मधेधिवा उिभात वीठी नाहे ।
कृपया मामले की संक्षेपिका तैयार कीजिए।

46. Yध मिसल डे मला वेट उँव व सॅधी ताहे ।
मुख्य मिसल पर निर्णय होने तक इसे रोके रखिए।

47. भाभले 3 घेत वठठे हि चेप्टी रेत लप्टी धेर नै ।
मामले को प्रस्तुत करने में हुई देरी के लिए खेद है।

48. भंगी ताप्टी मसठउ हुँटी रे रिडी साहे ।
माँगी गई आकस्मिक छुट्टी दे दी जाए।

49. नांच पुठी वीठी साहे बडे ठिठट हेठी घेत वीठी माहे ।
जाँच पूरी की जाए और रिपोर्ट जल्दी प्रस्तुत की जाए।

50. उठाइट Tठ साठी वठ ठिा साहे ।
प्रारूप अब जारी कर दिया जाए।

51. सवल से महिला टी ठा रेमठी ठगी चै ठा सुप्मभटी ।
अक्ल के अंधों की न दोस्ती अच्छी न ही दुश्मनी।

52. उठ उठ ठ विडे ही ठीं टिंव मवरे ।
आलसी नौकर कहीं भी नहीं टिक सकते।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

53. ਸ਼ਾਇਦ ਔਰਤਾਂ ਨੂੰ ਚਿੜਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗੁੱਤ ਪਿੱਛੇ ਮੱਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
शायद औरतों को चिढ़ाने के लिए कहा जाता है कि उनकी चोटी के पीछे अक्ल होती है।

54. ਜੁਬਾਨੀ ਜਮਾ ਖਰਚ ਕਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਅਮਲੀ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
जबानी जमा खर्च करने के स्थान पर अमली कार्य करना चाहिए।

55. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਵੰਡ ਛਕਣ ਅਤੇ ਦਸਾਂ ਨੌਹਾਂ ਦੀ ਕਮਾਈ ਕਰਨ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ।
गुरु नानक देव जी ने बाँट कर खाने और दसों नाखूनों द्वारा कर्म करने की शिक्षा दी।

56. मॉन-वल्ल रे लीडठ ढमली घटेठे उठ ।
आज कल के लीडर फसली बटेरे हैं।

57. विमे Hठीढ भाटभी उल वे ही हुँताप्ल ठगीं वठठी नागीटी ।
किसी सज्जन पुरुष पर भूलकर भी उँगली नहीं उठानी चाहिए।

58. ਇਕ ਮੁੱਠ ਹੋ ਕੇ ਹੀ ਵੈਰੀ ਨੂੰ ਹਰਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
एक होकर ही शत्रु को पराजित किया जा सकता है।

59. पी रे हिभाउ रे घन हमें हमरा उँप उता ने निभा |
बेटी की शादी के खर्च के कारण उसका हाथ तंग हो गया।

60. ਉਸਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਕਾਲੀਆਂ ਕਰਤੂਤਾਂ ਕਾਰਨ ਆਪਣੇ ਖਾਨਦਾਨ ਦੇ ਸਿਰ ਖੇਹ ਪੁਆਈ ਹੈ ।
उसने अपनी काली करतूतों के द्वारा अपने खानदान की बदनामी करवाई है।

61. मैं प्टिंधे माहिट लप्टी विप्लवल आप्त ठगी गं ।
मैं यहाँ आने के लिए कदापि खुश नहीं हूँ।

62. हमरा पॅउठ पडाप्टी हॅप्ल पिभाठ ठगी रिंग चै ।
उसका बेटा पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं देता।

63. ਜਦੋਂ ਉਸਨੇ ਸੋਹਣ ਕੋਲੋਂ ਕਿਤਾਬ ਉਧਾਰੀ ਮੰਗੀ, ਤਾਂ ਉਸਨੇ ਟਕੇ ਵਰਗਾ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ।
जब उसने सोहन से पुस्तक उधार माँगी तो उसने टका सा जवाब दे दिया।

64. ਬੰਦਾ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੇ ਘਾਟ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ ।
बन्दा बहादुर ने वज़ीर खाँ को मौत के घाट उतार दिया।

65. ਮੈਂ ਹੱਥਲਾ ਕੰਮ ਮੁਕਾ ਕੇ ਹੀ ਦਸ ਸਕਾਗਾ ।
मैं हाथ का काम समाप्त करके ही बता पाऊँगा।

66. विमे सी तातीधी सी प्ल3 3 मार्ट सॅव ठगी उहिला नग्गी
किसी की ग़रीबी की हालत पर हमें नाक नहीं चिढ़ाना चाहिए।

67. ऑन मैं पजु-पड वे ऑव ठिाना |
आज मैं पढ़-पढ़ कर उकता गया।

68. वी धेडरे हमरे पैठ डे मॅट लॅगी ।
हॉकी खेलते समय उसके पैर पर चोट लगी।

69. भेठी ठॉल मठ वे म उन पप्टे ।
मेरी बात सुनकर सब हंस पड़े।

70. वॅचा भाटभी टिउवात जैता ठगी गुटा ।
कच्चा व्यक्ति विश्वास के योग्य नहीं होता।

71. भेठी पड़ी ठीव हवउ रिटी नै ।
मेरी घड़ी ठीक समय देती है।

72. पसउव रा हाधा हपीना उठा साठीरा चै ।
प्रत्येक पुस्तक की छपाई बढ़िया होनी चाहिए।

73. ३ वाठठ पॅच ठगी ठिवप्ली ।।
बदली छाई होने के कारण धूप नहीं निकली।

74. रत-रत टॅवठां भाठ रा वी प्ला ?
जगह-जगह ठोकरें खाने का क्या लाभ?

75. विधा वठवे पिढप्लीमा टिपटीमा रेध लहि ।
कृपया पिछली टिप्पणियाँ देख लें।

76. प्टिम भाभप्ले हुँडे भने वैप्टी डैमप्ला ठगी गेप्टिमा ।
इस मामले पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है।

77. विधा वतवे माविमा हुँ रिवा वे हटिल वत रिँडा माहे ।
कृपया सभी को दिखा कर फाइल कर दीजिए।

78. प्टिस बिड हित माडा प म उ स वै ।
इस गांव में हमारा घर सबसे ऊंचा है।

79. वेठे उ €उत वे ठॉल वते ।
छत से उतर कर बात करो।

80. मॉन मैं पड-पज वे व ठिामा ।
आज मैं पढ़-लिख कर ऊब गया।

81. ਪਿਸ਼ਨ ਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਅਧਿਆਪਕ ਨੂੰ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਹਾਰ ਪਾਏ ।
पैंशन पर जा रहे अध्यापक को विद्यार्थियों ने हार पहनाए।

82. भेठा रिष्ठ वॅचा चे ठिा चै ।
मेरा दिल कच्चा हो रहा है।

83. ममी भविभाठां टी वध धाउठ वीडी ।
हमने मेहमानों की खूब आवभगत की।

84. रख-रत टॅवतां माठ रा वी ला ?
दर-दर ठोकरें खाने का क्या लाभ? ।

85. ਇਸ ਸੂਟ ਨਾਲ ਦਾ ਸਵੈਟਰ ਕਿੱਥੇ ਹੈ ?
इस सूट के साथ का स्वैटर कहां है?

86. Jउठ टा &उठ रेह टी विधा वठठी ।
पत्र का उत्तर देने की कृपा करें।

87. हा मुल्य चै ।
वह ऊँचा सुनता है।

88. उप रा प्टिव तोप्ला ही घडी उपाठी वत रिट चै ।
तोप का एक गोला भी बड़ी तबाही कर देता है।

89. उनी पड़ी-पझी भै? उठा ठा वते ।
आप घड़ी-घड़ी मुझे तंग न करें।

90. भेठी ठॉल मुह वे म उन पप्टे ।
मेरी बात सुनकर सब हँस पड़े।

91. प्टिम डेल हिस से भट माटा पै सवरा चै ।
इस डोल में दो मन आटा पड़ सकता है।

92. ताल भेता पॅवा मिउठ चै ।।
राज मेरा पक्का मित्र है।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

93. ਉਸਦੇ ਨਾਲ ਮੇਰੀ ਬਣਦੀ ਨਹੀਂ ।
उससे मेरी बनती नहीं।

94. THठ रमही पेटी हिरिभातवी चै ।
रमन दसवीं श्रेणी का विद्यार्थी है।

95. मैं वल्ल प्लिी ताहांठा ।
मैं कल दिल्ली जाऊंगा।

96. मप्लीम भापटी पाउर पइसा चै ।
सलीम अपनी पुस्तक पढ़ता है।

97. तातपीउ उभेमा पग्लेि ठप्पत उ माठिटी चै ।
गुरप्रीत हमेशा पहले नम्बर पर आती है।

98. मग्राम सभा उठाहां हि मतमाताठ म उ पनिय वै ।
सूरदास की रचनाओं में सूरसागर सबसे प्रसिद्ध है।

99. उनी विपशीलां-विग्मीमा धेडां वेडरे ने ।
आप कौन-कौन से खेल खेलते हो।

100. संडीला हित हॅडीमा-हॅडीमा टिभाठ ठ ।
चण्डीगढ़ में बड़ी-बड़ी इमारतें हैं।

101. भेठा हॅहा उठा हवील चै ।
मेरा बड़ा भाई वकील है।

102. तेरिउ मेघ वांरा चै ।
रोहित सेब खाता है।

103. वल्लु माडे मप्ठ हिउ धेडां उष्टीला मठ ।
कल हमारे स्कूल में खेलें हुई थीं।

104. ਐਤਵਾਰ ਨੂੰ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਦਾ ਸਾਲਾਨਾ ਇਨਾਮ ਵੰਡ ਸਮਾਰੋਹ ਹੋਵੇਗਾ ।
रविवार को हमारे स्कूल का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह होगा।

105. मायले रेस टी धिभा लप्टी वष्टी मैतिव मीर प्टेि ।
अपने देश की रक्षा के लिए अनेक सैनिक शहीद हुए।

106. ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਨੂੰ ਚੇਲਿਆਂ ਨੂੰ ਅਸਤਰ-ਸ਼ਸਤਰ ਚਲਾਉਣ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ।
गुरु जी ने अपने शिष्यों को अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी।

107. साथटे मारा-पिता सी मागिभा रा पालठ वठे ।
अपने माता-पिता की आज्ञा का पालना करो।

108. प्टीतहत है उभेला जार उँधे ।
ईश्वर को सदा याद रखो।

109. प्टेवा हि वल चै ।
एकता में बल है।

110. मन BOHP रा पध मठेउ चै ।
सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।

111. माडे पत मउिभाठ भाप्टे चेप्टे उठ ।
हमारे घर मेहमान आए हुए हैं।

112. धूिपही मुतन रे भाप्ले-सभाले नटी चै ।
पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द घूमती है।

113. मी ताठ ठोधिर मिप नी ते 1699 प्टीः हि धालमा धंघ ती मिठसठा वीठी मी ।
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में खालसा पंथ का सृजन किया था।

114. तान रेह ती निधा रे नहें ताठ मत |
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पाँचवें गुरु थे।

115. ਸਾਡੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਗ਼ਰੀਬ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਮੁਫ਼ਤ ਪੜਾਉਂਦੇ ਹਨ ।
हमारे मुख्य अध्यापक ग़रीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाते हैं।

116. सेठ ठगल रा ।
शेर जंगल का राजा है।

117, ਅੱਜ ਦੇ ਵਿਗਿਆਨਕ ਸਭਿਅਤਾ ਵਿਚ ਮਨੁੱਖੀ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦਾ ਲੋਪ ਹੁੰਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।
आज की वैज्ञानिक सभ्यता में मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है।

118. पठभाउभा डे हिप्सहात , हर मउ रा महाभी चै ।
ईश्वर पर विश्वास रखो वह सबका स्वामी है।

119. विठी रे टेचे ताठात हिल माठात लप्टी पमिय उठ ।
बिहारी के दोहे गागर में सागर के लिए प्रसिद्ध हैं।

120. भिउठठी हिवठी उमेमां महल ने सांरा चै ।
परिश्रमी व्यक्ति हमेशा सफ़ल हो जाता है।

121. ठो ठाल भेठे भठ ? मांडी ठगीं टी, मों पिढें मानांठी उगंध हांना भेटी चै ।
नशे से मेरे मन को शान्ति नहीं होती, बल्कि बाद में अशांति की तरह मचती है।

122. ਕੁਝ ਚਿਰ ਲਈ ਸੋਚ ਸ਼ਕਤੀ ਜਾਂਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖ ਸਮਝਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮਨ ਟਿਕ ਰਿਹਾ ਹੈ ।
कुछ समय पश्चात् सोच शक्ति जाती रहती है और मनुष्य समझता है कि मन टिक रहा है।

123. निम्मत रा भी मीठा टी वहिउा रा मध हिमा चै ।
कृष्ण का प्रेम ही मीरा की कविता का मुख्य विषय है।

124. मुतराम सीमा तसताहां हिन मुमाठाठ म उ पनिय चै ।
सूरदास की रचनाओं में सूरसागर सबसे प्रसिद्ध है।

125. भेता उता रिंली ना विग चै ।
मेरा भाई दिल्ली जा रहा है।

126. भाठा-पिठा हुँ माघटे पॅसिमां सा पिसाठ वटा सागीरा चै ।
माता-पिता को अपने बच्चों का ध्यान रखना चाहिए।

127. भिउठउ वठे, विडे टिम उता ठा हे उमी हेल ने ताहे ।
परिश्रम करो, कहीं ऐसा न हो कि आप फेल हो जाओ।

128. मॅसे घटतां टी ठीर सप्लटी ठगी धप्लटी ।
सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती।

129. ठ ठोविट मिध्य ती ठे ‘वालमा यंच’ सी मिलनठा वीठी मी ।
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘खालसा पंथ’ का निर्माण किया था।

130. माडे मभान हिट उर पडे अउर रेटें उठ ।
हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों हैं।

131. ‘] गूप माउिघ’ दिस रप्टी तुलां टी घाटी मुविभाउ चै ।
‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ में कई गुरुओं की वाणी सुरक्षित है।

132. ਉਹੀ ਵਿਅਕਤੀ ਸਭ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਵਾਰਥ ਤੋਂ ਰਹਿਤ ਹੋਵੇ ।
वही व्यक्ति सबकी सेवा कर सकता है जो पूर्णतः निःस्वार्थी हो।

133. ५ दिन हिमाम उँधे ।
प्रभु में विश्वास रखो।

134. बैंमत प्टिव उिभाठव ठेठा चै ।
कैंसर एक भयानक रोग है।

135. डीठाइ उिठ तासां सी तालयाठी वै ।
चण्डीगढ़ तीन राज्यों की राजधानी है।

136. Hधरेट वत्सयत 3 ठी दि३ मा रे मठ |
सुखदेव बचपन से ही दृढ़ स्वभाव के थे।

137. दितिाभाधत वाला उनी ठाल हुँठठी व ती चै ।
विज्ञापन कला तेज़ी से उन्नति कर रही है।

138. पिठां वर वीडे मनवाट विमे रे पिढे ठगी पैटी ।
बिना कुछ किए सरकार किसी के पीछे नहीं पड़ती।

139. वडी भां €जी महाल हित लेठी ठाा ती पी ।
बूढ़ी मां ऊंचे स्वर में लोरी गा रही थी।

140, ਪੰਜਾਬੀ ਸਭਿਆਚਾਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਭੂਗੋਲਿਕ ਖੇਤਰ ਦੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੈ ।
पंजाबी सभ्यता पंजाब के भौगोलिक क्षेत्र की उत्पत्ति है।

141. ताव ी गोलिव उरटी लगाउात वरप्लटी सांटी नै ।
पंजाब की भौगोलिक सीमा निरन्तर बदलती जा रही है।

142. ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਪੱਖੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਇਲਾਕੇ ਅਜੋਕੇ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਹੀ ਬਾਹਰ ਹਨ ।
पंजाबी भाषा के बहुत से क्षेत्र आज के पंजाब से ही बाहर हैं।

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

143. ताव ममल हित हिडिंठ ठसप्लां, साठां पठन सी ममेल भी चै ।
पंजाब वास्तव में विभिन्न नस्लों, जातियों, धर्मों की मिली-जुली भूमि है।

144. ਉਪਜਾਊ ਭੂਮੀ ਕਾਰਨ ਭੁੱਖੇ ਮਰਨਾ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਹਿੱਸੇ ਨਹੀਂ ਆਇਆ ।
उपजाऊ भूमि के कारण भूखे मरना पंजाबियों के हिस्से नहीं आया।

145. ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਨੂੰ ਬੜੇ ਖੋਫਨਾਕ ਸਬਕ ਸਿਖਾਏ ਹਨ ।
जिन्दगी ने पंजाबियों को बड़े खौफनाक सबक सिखाए हैं।

146. ताप्पीभां रे ठाप्टिव उठ-लेगी, जेया रे मातर |
पंजाबियों के नायक हैं-जोगी, योद्धा और आशिक।

147. ਪੰਜਾਬੀ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਵਿੱਚ ਪਿਛਲੀ ਇੱਕ ਸਦੀ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਾਪਰੇ ਹਨ ।
पंजाबी सभ्यता में पिछली एक सदी से बहुत तेजी से परिवर्तन हुए हैं।

148, ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਸ਼ਾਂਤ ਪਾਣੀ ਵਾਂਗ ਠਹਿਰਿਆਂ ਹੋਇਆ ਸੰਕਲਪ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਇਕ ਗਤੀਸ਼ੀਲ ਨਿਰੰਤਰ ਬਦਲਦਾ मवलप चै ।
रहन-सहन शान्त पानी की तरह ठहरा हुआ संकल्प नहीं अपितु एक गतिशील निरन्तर बदलता संकल्प है।

149. विठ-मग्टि रे पाठी मामउठ हांठा ममें टी Hउठत ‘डे चाप्लां सॅलरा चै ।
रहन-सहन दो धारी हथियार की तरह समय की शतरंज पर चाल चलता है।

150. मडिभासाठ लेव मभुत शुभाता मिनी हिमेत तीठ सांस रा ठां चै ।
सभ्यता लोगों के समूह द्वारा बनाई विशेष जीवन जांच का नाम है।

151. ਤੀਜੇ ਉਹ ਅਣਖੀ ਲੋਕ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਹਮਲਿਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸੀਨਾ ਤਾਣ ਕੇ ਜੀਣਾ ਸਿੱਖਿਆ ।
तीसरे वे आने वाले लोग थे जिन्होंने इन आक्रमणों के सामने सदा सीना तानकर जीना सीखा।

152. तग्लि-मचिट ठितउत गाठीतील वै. प्टिव ठिउठ घरप्ल विना नै ।
रहन-सहन निरन्तर गतिशील है, यह निरन्तर बदल रहा है।

153. घातीठात घातीनां पा वे लवां रा भनठ वठरे उठ ।
बाज़ीगर बाजियां डालकर लोगों का मनोरंजन करते हैं।

154. विडे भान उठ ‘डे धीही रख पीड़ी उलटे चिरे उठ ।
काम साधारणतः पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं।

155. ਇਹ ਗੱਲ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਹਰ ਵਸਤੁ ਧਰਤੀ ਦੀ ਹੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੈ ।
यह बात ठीक है कि दुनिया की प्रत्येक वस्तु धरती की ही उत्पत्ति है।

156. लॅवड़ी रे वभ ठाल घउ माते विडे तुझे चेप्टे उठ ।
लकड़ी के काम के साथ बहुत सारे काम जुड़े हुए हैं।

157. ਕਲਾ, ਆਦਿਕਾਲ ਤੋਂ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਮਾਨਸਿਕ ਤ੍ਰਿਪਤੀ ਦਾ ਇੱਕ ਅਹਿਮ ਸਾਧਨ ਰਹੀ ਹੈ ।
कला, आदिकाल से ही मनुष्य की मानसिक सन्तुष्टि का एक अहम् साधन रही है।

158. ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਲੋਕ-ਚਿੱਤਰਕਲਾ ਮਾਨਵੀ ਜੀਵਨ ਦੀਆਂ ਮੂਲ ਪ੍ਰਵਿਰਤੀਆਂ ਨਾਲ ਭਰੀ ਹੋਈ ਹੈ ।
पंजाब की लोक-चित्रकला मानवीय जीवन की मूल प्रवृत्तियों के साथ जुड़ी हुई है।

159. ਮੂਰਤੀ ਵਿੱਚ ਦੇਵੀ ਦਾ ਰੰਗ ਸੁਨਹਿਰੀ ਅਤੇ ਵਸਤਰਾਂ ਦਾ ਰੰਗ ਲਾਲ ਕੀਤਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
मूर्ति में देवी का रंग सुनहरी तथा वस्त्रों का रंग लाल किया जाता है।

160. नाव हित ‘ठां वट’ हामडे वेष्टी धाम ठाम ममराठ ठगी मठाप्टिमा नसा ।
पंजाब में ‘नामकरण’ के लिए कोई विशेष नाम संस्कार नहीं मनाया जाता।

161. मुंडे ही रे महाठ गेट ‘डे हिमान टीनां तमना सी प्लझी मनु सांटी चै ।
लड़के-लड़की के जवान होने पर विवाह की रस्मों की परम्परा शुरू हो जाती है।

162. ਵਿਆਹ ਵਿੱਚ ਫੇਰਿਆਂ ਦੀ ਰਸਮ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਵਿਆਹ ਸੰਪੂਰਨ ਨਹੀਂ मशिभा सांग।
विवाह में फेरों की रस्म बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना विवाह सम्पूर्ण नहीं समझा जाता।

163. ਜੀਵਨ ਨਾਟਕ ਦੇ ਆਰੰਭ ਤੋਂ ਅੰਤ ਤੱਕ ਵਿਭਿੰਨ ਰਸਮ ਰਿਵਾਜ਼ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
जीवन नाटक के आरम्भ से अन्त तक विभिन्न रस्म-रिवाज़ किए जाते हैं।

164. ਕਿਸੇ ਜਾਤੀ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਨੁਹਾਰ ਮੇਲਿਆਂ ਤੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪੂਰੇ ਰੰਗ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
किसी जाति की सांस्कृतिक झलक मेलों और त्योहारों में पूरे रंग में प्रतिबिम्बित होती है।

165. घेडा सा भठंधी सीहत ठाल हुँया मधय चै ।
खेलों का मानवीय जीवन के साथ गहरा सम्बन्ध है।

166. निघे ही नात धनाची टिवठे रे उठ, हर परिप्लां ]तर भाता मघाघउ वत लैरे उठ ।
जहां भी चार पंजाबी इकट्ठे होते हैं, वहां पहले गुरुद्वारा स्थापित कर लेते हैं।

167. Vताव रे घउ भेप्ले भेममा, लॅां अडे उिहितां ठाल मपिउ उठ ।
पंजाब के बहुत से मेले मौसम, ऋतुओं तथा त्योहारों से सम्बन्धित हैं।

168. पंताव रे भेले, यासीठवाल 3 सप्लीमा ठगी मय-पता टी रेठ उठ ।
पंजाब के कुछ मेले प्राचीन काल से चली आ रही सर्प-पूजा की देन हैं।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण रस : शृंगार, हास्य, करुण, शांत, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi व्याकरण रस : शृंगार, हास्य, करुण, शांत, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण रस : शृंगार, हास्य, करुण, शांत, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत

(ग) रस

प्रश्न 1.
रस की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
आचार्य विश्वनाथ ने रस को काव्य की आत्मा माना है। ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यं’ अर्थात् रसात्मक वाक्य ही काव्य है।

प्रश्न 2.
रस के विभिन्न अंग कौन-से हैं ?
उत्तर:
रस स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से बनता है या अभिव्यक्त होता है। इन चारों को ही रस के अंग माना जाता है।

प्रश्न 3.
स्थायी भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जो भाव सहृदयजन के चित्त में स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं उन्हें स्थायी भाव कहा जाता है। ये भाव अनुकूल परिस्थिति आने पर प्रकट होते हैं।

प्रश्न 4.
स्थायी भावों के नाम उनके रसों के नाम सहित लिखें।
उत्तर:

  1. शृंगार-रति
  2. वीर-उत्साह
  3. शांत-निर्वेद
  4. करुण-शोक
  5. रौद्र-क्रोध
  6. भयानक-भय
  7. वीभत्स-घृणा
  8. अद्भुत-विस्मय
  9. हास्य-हास।

प्रश्न 5.
विभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विभाव से अभिप्राय उन वस्तुओं और विषयों के वर्णन से है जिनके प्रति किसी प्रकार की संवेदना होती है अर्थात् भाव के जो कारण होते हैं उन्हें विभाव कहते हैं।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 6.
विभाव कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
विभाव के दो प्रकार होते हैं-आलम्बन और उद्दीपन।

प्रश्न 7.
अनुभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अनुभाव सदा आश्रय से सम्बन्धित होते हैं अर्थात् जहाँ विषय की बाहरी चेष्टाओं को उद्दीपन कहा जाता है वहाँ आश्रय के शरीर विकारों को अनुभाव कहते हैं।

प्रश्न 8.
संचारी भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मन के चंचल विकारों को संचारी भाव कहते हैं। ये सदा आश्रय के मन में उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 9.
रस के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
साहित्य में रस नौ प्रकार के माने गए हैं
श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, शांत और अद्भुत। कुछ लोग वात्सल्य और भक्ति को भी रस की संज्ञा देते हैं।

प्रश्न 10.
विभिन्न रसों के स्थायी भाव लिखिए।
उत्तर:

  1. श्रृंगार-रति
  2. हास्य-हास
  3. वीर-उत्साह
  4. करुण-शोक
  5. रौद्र-क्रोध
  6. भयानक-भय।
  7. वीभत्स-घृणा (जुगुप्सा)
  8. अद्भुत-विस्मय
  9. शांत-शान्त हो जाना, निर्वेद
  10. वात्सल्य–सन्तान स्नेह।

प्रश्न 11.
रस की निष्पत्ति कैसे होती है ?
उत्तर:
जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का संयोग स्थायी भाव से होता है तब रस की निष्पत्ति होती है।

प्रश्न 12.
श्रृंगार रस और वात्सल्य रस में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
शृंगार रस में रति स्थायी भाव अपने प्रिय (पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका) के प्रति होता है। जबकि वात्सल्य रस में अपनी सन्तान या छोटे बच्चों या भाई बहन के प्रति स्नेह के कारण होता है।

1. शृंगार रस

प्रश्न 13.
श्रृंगार रस किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
सहृदय जनों में रति स्थायी भाव अनुकूल वातावरण पाकर परिपक्व अवस्था में पहुँचता है तो उसे शृंगार रस कहा जाता है।

प्रश्न 14.
श्रृंगार रस के कितने भेद हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
शृंगार रस के दो भेद हैं

  1. संयोग शृंगार
  2. वियोग शृंगार।

संयोग में नायक नायिका के मिलन, वार्तालाप, दर्शन, स्पर्श आदि का वर्णन होता है।
उदाहरण-

एक पल मेरे प्रिया के दृग पलक,
थे उठे ऊपर, सहज नीचे गिरे।
चपलता के इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय सम्बन्ध था।
वियोग की अवस्था में जब नायक नायिका के प्रेम का वर्णन हो तो उसे वियोग श्रृंगार कहा जाता है।
उदाहरण-
निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत पावस ऋतु हम पै जब तै स्याम सिधारे ।। दृग अंजन लागत नहिं कबहू उर कपोल भये कारे ।।

2. हास्य रस

प्रश्न 15.
हास्य रस का लक्षण उदाहरण सहित दें।
उत्तर:
लक्षण-हास्य रस का विषय हास (हँसी) होता है। किसी विचित्र आकार, वेश या चेष्टा वाले लोगों को देखकर एवं उनकी विचित्र चेष्टाएं, कथन आदि को देख-सुनकर जब हँसी आए तो हास्य रस उत्पन्न होता है। उदाहरण-वेणी कवि को किसी ने श्राद्ध के दिन बासी पेड़े दे दिए, तब वेणी कवि ने कहा

माटिह में कुछ स्वाद मिले, इन्हें खाय तो ढूँढत हर्रे बहेड़ो,
चौंकि परयो पितुलोक में बाप, धरे जब पूत सराध के पेड़े।

अथवा

एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है ?
उसने कहा अपर कैसा ? वह उड़ गया समर है।
उत्तेजित हो पूछा उसने, उड़ा अरे वह कैसे ?
‘फड़’ से उड़ा दूसरा बोली, उड़ा देखिए ऐसे।

3. करुण रस

प्रश्न 16.
करुण रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
लक्षण-करुण रस का विषय शोक होता है। किसी प्रिय व्यक्ति के मर जाने पर या किसी प्रिय वस्तु के नष्ट होने पर जो शोक जागृत होता है उसे करुण रस कहते हैं।

उदाहरण-

हा पुत्र ! कहकर शीघ्र ही वे मही पर गिर पड़े,
क्या वज्र गिरने पर बड़े भी वृक्ष रह सकते खड़े।
अथवा
देखि सुदामा की दीन दसा करुना करि कै करुना निधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैननि के जल सों पग धोये॥

4. शांत रस

प्रश्न 17.
शांत रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
संसार की असारता, नश्वरता को देखकर ईश्वर का रूप जानकर हृदय को जो शान्ति मिलती है उसे ही शान्त रस कहते हैं।
उदाहरण-
समता लहि सीतल भया, मिटी मोह की ताप।
निसि-वासर सुख निधि लह्या, अंतर प्रगट्या आप॥
अथवा
तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि तुझ में यह सारा संसार।
इसी भावना से अंतर भर मिलूँ सभी से तुझे निहार ।।
अथवा
पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुवा, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ।।

5. वीर रूस

प्रश्न 18.
वीर रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
लक्षण-वीर रस का विषय उत्साह या जोश होता है। जैसे किसी व्यक्ति को देखकर लड़ने का उत्साह, किसी दीन-हीन को देखकर उसकी सहायता करने का उत्साह आदि।
उदाहरण-
जय के दृढ़ विश्वास-युक्त थे दीप्तिमान जिनके मुख-मंडल।
पर्वत को भी खण्ड-खण्ड कर रजकण कर देने को चंचल॥
अथवा
हे सारथे ! द्रोण क्या ? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझ से कभी॥

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण रस

6. रौद्र रस

प्रश्न 19.
रौद्र रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
लक्षण-रौद्र रस का विषय क्रोध है। अपने अपकार करने वाले या शत्रु को सामने देखकर जो भाव मन में पैदा होते हैं उन्हें रौद्र रस कहा जाता है।

उदाहरण-
मातु पितहि जानि सोच बस, करसि महीप किशोर।
गर्भन के अर्भक दलन, परशु मोर अति घोर ॥

अथवा
श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर करतल-युगल मलने लगे।
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे हो गये उठकर खड़े॥
अथवा
उस काल मारे क्रोध के तनु उनका कांपने लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।

7. भयानक रूस

प्रश्न 20.
भयानक रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
किसी भयानक वस्तु को देखने से या किसी बलवान् शत्रु आदि को देखकर या उसकी डरावनी बातें सुनने से जो भाव जागृत होते हैं उसे भयानक रस कहा जाता है।
उदाहरण-
समस्त सॉं संग श्याम ज्यों कढ़े
कालिंद की नंदिनी के सु-अंक से।
खड़े किनारे जितने मनुष्य थे,
सभी महा शंकित भीत हो उठे॥
अथवा
नभ ते झपटत बाज़ लखि, भूल्यो सकल प्रपंच।
कंपित तन व्याकुल नयन, लावक हिल्यों न रंप ॥

8. वीभत्स रस

प्रश्न 21.
वीभत्स रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
रक्त, मांस-मज्जा, दुर्गन्ध आदि वस्तुओं को देखकर हृदय में जो ग्लानि या जुगुप्सा के भाव जागृत होते हैं उन्हें वीभत्स कहा जाता है।
उदाहरण-
बहुँस्थान इक अस्थिखंड लै चरि चिचोरत,
कहु कारो महि काक चोंच सो ठोरि टटोरत।
अथवा
रक्त-मांस के सड़े पंक से उमड़ रही है,
महाघो दुर्गन्ध, रुद्ध हो उठती श्वासा।

9. अद्भुत रस

प्रश्न 22.
अद्भुत रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
लक्षण-किसी अलौकिक या अदृष्टपूर्व वस्तु को देखकर जब हृदय में विस्मय का भाव जागृत होता है तो उसे अद्भुत रस कहा जाता है।

उदाहरण-
अखिल भुवन चर-अचर जग हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई, गद्गद् वचन, विकसित दृग, पुलकातु॥
अथवा
जहँ चितवइ तहँ प्रभु आसीना। सेवहि सिद्ध मुनीस प्रवीना॥
सोई रघुबर, सोई लक्ष्मण सीता। देखि सती अति भयी सभीता॥

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. रस को काव्य की आत्मा माना है ?
(क) आचार्य विश्वनाथ ने
(ख) आचार्य शुक्ल ने
(ग) अज्ञेय ने
(घ) भवभूति ने
उत्तर:
(क) आचार्य विश्वनाथ

2. श्रृंगार रस का स्थायी भाव है ?
(क) रति
(ख) उत्साह
(ग) निर्वेद
(घ) शोक
उत्तर:
(क) रति

3. करुण रस का स्थायी भाव है
(क) रति
(ख) शोक
(ग) निर्वेद
(घ) उत्साह
उत्तर:
(ख) शोक

4. निर्वेद स्थायी भाव का रस है
(क) शांत
(ख) करुण
(ग) वीर
(घ) शृंगार
उत्तर:
(क) शांत

5. वीर रस का स्थायी भाव है।
(क) करुण
(ख) उत्साह
(ग) शांत
(घ) वीभत्स
उत्तर:
(ख) उत्साह

6. “कहत-नटत, रीझत, खिझत, मिलत खिलत लजियात भरे मौन में करत है नैनहूं ही सब बात” में निहित रस है।
(क) करुण
(ख) शृंगार
(ग) वीर
(घ) भयानक
उत्तर:
(ख) शृंगार

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण वाक्य विचार वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi व्याकरण वाक्य विचार विश्लेषण/संश्लेषण Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण वाक्य विचार विश्लेषण/संश्लेषण

वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

वाक्य व्यवस्था

प्रश्न 1.
वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सार्थक शब्दों के समूह को वाक्य कहते हैं, जैसे-मैं जम्मू जाऊँगा।

प्रश्न 2.
वाक्य के कितने खंड होते हैं ?
उत्तर:
वाक्य के दो खंड होते हैं
1. उद्देश्य-जिसके विषय में कुछ विधान किया जाता है, उस शब्द को उद्देश्य कहते हैं। जैसे-रमा अपने पिता के साथ गई।
2. विधेय-उद्देश्य के सम्बन्ध में कुछ बताने या विधान करने वाले शब्द को विधेय कहते हैं। जैसे-ऊपर के वाक्य में ‘पिता के साथ गई’ विधेय है।

  • राम (उद्देश्य) वन को गये (विधेय)।
  • गंगा (उद्देश्य) हिमालय से निकलती है (विधेय)।

प्रश्न 3.
अर्थ के आधार पर वाक्य के कितने भेद हैं ? सोदाहरण बताइए।
उत्तर:
अर्थ के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं
1. विधानवाचक:
जिस वाक्य में किसी कार्य के होने का बोध हो, उसे विधानवाचक वाक्य कहते हैं; जैसेदिनेश पढ़ता है। सूर्य प्रातः काल निकलता है।
2. प्रश्नवाचक:
जिस वाक्य में प्रश्न पूछे जाने का बोध हो, उसे प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं: जैसेआप क्या कर रहे हैं ? उस मकान में कौन रहता है ?
3. निषेधवाचक:
जिस वाक्य से किसी कार्य के न होने का बोध हो, उसे निषेधवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे-वह बाज़ार नहीं गया है? वह आज स्कूल नहीं जाएगा।
4. आज्ञावाचक:
जिस वाक्य से किसी प्रकार की आज्ञा का बोध हो, उसे आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं; जैसेमोहन, बैंच पर खड़े हो जाओ। तुम उसके साथ जाओ।
5. संदेहवाचक:
जिस वाक्य से कार्य के होने में संदेह प्रकट हो, उसे संदेहवाचक वाक्य कहते हैं; जैसेउसका पास होना मुश्किल है। वह शायद ही स्कूल आए।
6. इच्छावाचक:
जिस वाक्य से इच्छा, आशीर्वाद, शुभकामना का भाव व्यक्त हो, उसे इच्छावाचक कहते हैं; जैसेईश्वर करे, आप परीक्षा में सफल हों। भगवान् तुम्हें दीर्घायु बनाए।
7. संकेतवाचक:
जिस वाक्य में एक बात के होने को दूसरी बात के होने पर निर्भर किया गया है। उसे संकेतवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे
यदि गाड़ी समय पर आई, तो मैं उसे घर ले जाऊँगा।
यदि तुम कल दुकान पर जाते, तो पुस्तक मिल जाती।
8. विस्मयादिवाचक:
जिस वाक्य से घृणा, शोक, हर्ष, विस्मय आदि का बोध हो, उसे विस्मयादिवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे
वाह ! बहुत अच्छे अंकों से पास हुए। छिः ! छिः ! कितनी गंदगी है।

प्रश्न 4.
रचना के आधार पर वाक्य के कितने भेद होते हैं ? सोदाहरण बताओ।
उत्तर:
रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते हैं

1. सरल वाक्य-जिस वाक्य में एक ही उद्देश्य तथा एक ही विधेय हो, उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं; जैसे-अशोक पुस्तक पढ़ता है।
2. संयुक्त वाक्य-जिस वाक्य में दो या दो अधिक उपवाक्य स्वतन्त्र रूप से समुच्चय बोधक अथवा योजक द्वारा मिले हुए हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं-
जैसे-

  • अशोक स्कूल जाता है और मन लगाकर पढ़ता है।
  • वह चला तो था, परन्तु रास्ते से लौट गया। ऊपर के दोनों वाक्य संयुक्त वाक्य हैं। पहला वाक्य ‘और’ तथा दूसरा ‘परन्तु’ समुच्चय बोधक अव्यय द्वारा संयुक्त किया गया है।

3. मिश्र वाक्य-जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्र वाक्य कहा जाता है;
जैसे-(i) खाने-पीने का मतलब है कि मनुष्य स्वस्थ बने। खाने-पीने का मतलब है = स्वतन्त्र या प्रधान उपवाक्य। कि = समुच्चय बोधक या योजक। मनुष्य स्वस्थ बने = आश्रित उपवाक्य।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण वाक्य विचार

प्रश्न 5.
‘वाक्य विश्लेषण या ‘वाक्य विग्रह’ से क्या अभिप्राय है। इसमें मुख्यतया किन बातों का विश्लेषण किया जाता है।
उत्तर:
किसी वाक्य के अंगों को अलग-अलग करके उनके पारस्परिक सम्बन्ध का विश्लेषण ‘वाक्य विश्लेषण’ या ‘वाक्य विग्रह’ कहलाता है। ‘वाक्य विग्रह’ में निम्नलिखित बातों का विश्लेषण किया जाता है–

(क) वाक्य-भेद-अर्थात् सरल, मिश्रित तथा संयुक्त कौन-सा वाक्य है? यदि ‘मिश्रित’ और ‘संयुक्त’ वाक्य हैं तो उसमें ‘प्रधान वाक्य’ अथवा ‘आश्रित वाक्य’ कौन-कौन से हैं? ‘आश्रित वाक्य’ में भी ‘संज्ञा उपवाक्य’, ‘विश्लेषण उपवाक्य’ तथा ‘क्रिया-विश्लेषण’ में कौन-सा वाक्य है?
(ख) उद्देश्य-संज्ञा या संज्ञा के समान प्रयुक्त सर्वनाम का पृथक् निर्देश करना चाहिए।
(ग) उद्देश्य का विस्तार-वे शब्द या वाक्यांश, जिनका सम्बन्ध ‘उद्देश्य’ अथवा कर्ता के साथ होता है और जो ‘उद्देश्य’ की विशेषता बताते हैं। उद्देश्य का विस्तार-निम्नलिखित चार प्रकार के शब्दों से होता है

(1) विशेषण से
(2) सम्बन्ध कारक से
(3) समानाधिकरण से
(4) वाक्यांश से।

(घ) विधेय (क्रिया) का उल्लेख।
(ङ) विधेय का विस्तार-वे शब्द जिनका सम्बन्ध ‘विधेय’ अथवा ‘क्रिया’ के साथ होता है और जो क्रिया की विशेषता बताते हैं।
विधेय का विस्तार कर्म, पूरक, क्रियाविशेषण, पूर्वकालिक क्रिया, कारक और क्रियाद्योतक कृदंत से होता है। ‘विधेय-विस्तार’ के अन्तर्गत ‘कर्म’ का भी उल्लेख है। कर्ता (उद्देश्य) के समान ‘कर्म’ में भी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, वाक्यांश आदि कुछ विशेषता सूचक शब्द होते हैं। इसे ‘कर्म का विस्तार’ कहते हैं। जैसे- उदाहरण”मैंने अपने मित्र राम को प्यार से समझाया।” इस वाक्य में ‘मैंने’ उद्देश्य है और ‘समझाया’ विधेय है। ‘राम को’ कर्म तथा ‘अपने मित्र’ कर्म का विस्तार (विशेषण) है। ‘बड़े प्यार से’ क्रिया का विस्तार है।

प्रश्न 6.
सरल संयुक्त और मिश्र वाक्यों का विग्रह सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरल वाक्य का विग्रह
कर्ता और उससे सम्बन्धित शब्दों (अर्थात् कर्ता के विस्तार) के अतिरिक्त सरल वाक्य के शेष सभी शब्द ‘विधेय’ कहलाते हैं। कर्त्त और विस्तार के सभी शब्द उद्देश्य कहलाते हैं; जैसे

कर्ता
राम
दशरथ का पुत्र राम
दशरथ का पुत्र सीतापति राम

विधेय
आया
आया
वन से लौट आया

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वाक्य संश्लेषण

संश्लेषण शब्द विश्लेषण का एकदम उलट है। वाक्य विश्लेषण में वाक्यों को एक-दूसरे से अलग-अलग किया जाता है जबकि वाक्य संश्लेषण में अलग-अलग वाक्यों को एक किया जाता है। किसी घटना के दृश्य को देखते समय मन में विचार या भाव छोटे-छोटे वाक्यों में आते हैं। अभिव्यक्ति के समय ये सब वाक्य/विचार एक हो जाते हैं।

प्रश्न 1.
वाक्य संश्लेषण से क्या तात्पर्य है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक से अधिक वाक्यों का एक वाक्य बनाना ‘वाक्य संश्लेषण’ कहलाता है। साधारण (सरल) वाक्यों का संश्लेषण करने का तरीका
1. सभी वाक्यों में महत्त्वपूर्ण क्रिया चुनकर उसे मुख्य क्रिया बना लिया जाता है।
2. अन्य वाक्यों की क्रियाओं को पूर्वकालिक क्रिया, विशेषण या संज्ञा पदबन्ध में बदल लिया जाता है।
3. आवश्यकतानुसार उपसर्ग अथवा प्रत्यय लगाकर शब्दों की रचना की जाती है और उन्हें मुख्य क्रिया के साथ सम्बद्ध कर वाक्य बनाया जाता है।

1. अनेक सरल वाक्यों का एक सरल वाक्य में संश्लेषण
उदाहरण-1.

  • विद्यार्थी ने पुस्तकें बैग में डालीं।
  • विद्यार्थी ने बैग उठाया।
  • विद्यार्थी पढ़ने चला गया।

इन तीनों वाक्यों का एक वाक्य में संश्लेषण इस प्रकार होगा- पुस्तकें बैग में डालकर और उसे उठाकर विद्यार्थी पढ़ने चला गया।
2. वहां एक गाँव था। वह गाँव छोटा-सा था। उसके चारों ओर जंगल था। उस गाँव में आदिवासियों के दस परिवार रहते थे।
इन चारों का एक सरल वाक्य में संश्लेषण इस प्रकार होगावहां चारों ओर जंगल से घिरे एक छोटे से गांव में आदिवासियों के दस परिवार रहते थे।

2. अनेक सरल वाक्यों का मिश्र अथवा संयुक्त वाक्य में संश्लेषण
जिस प्रकार अनेक सरल वाक्यों को एक सरल वाक्य में संश्लिष्ट किया जाता है उसी प्रकार उन्हें मिश्र वाक्य में ही प्रस्तुत किया जाता है।
जैसे:
(1) पुस्तक में एक कठिन प्रश्न था।
(2) कक्षा में उस प्रश्न को कोई भी हल नहीं कर सका।
(3) मैंने उस प्रश्न को हल कर लिया।
मिश्र वाक्य में संश्लेषण-पुस्तक के जिस कठिन प्रश्न को कक्षा में कोई भी हल नहीं कर सका, मैंने उसे हल कर लिया है।
संयुक्त वाक्य में संश्लेषण-पुस्तक में आए उस कठिन प्रश्न को सारी कक्षा में कोई भी हल नहीं कर सका, पर मैंने उसे हल कर दिया।

प्रश्न 2.
वाक्य परिवर्तन से क्या अभिप्राय है ? यह कितने प्रकार से होता है ? सभी को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में बदलने की प्रक्रिया को ‘वाक्य-परिवर्तन’ कहते हैं। वाक्य परिवर्तन तीन प्रकार से होता है
1. वाच्य की दृष्टि से वाक्य परिवर्तन-हिंदी में ‘वाच्य’ तीन हैं-

  • कर्तृवाच्य
  • कर्मवाच्य
  • भाववाच्य।

2. रचना की दृष्टि से वाक्य परिवर्तन-रचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के सरल वाक्य, मिश्रित वाक्य और संयुक्त वाक्य हैं। इनका एक-दूसरे में परिवर्तन होना ही रचना की दृष्टि से वाक्य परिवर्तन कहलाता है। जैसे
सरल वाक्य से मिश्र और संयुक्त वाक्य

1. सरल- वह फल खरीदने के लिए बाजार गया।
मिश्र-उसे फल खरीदने थे इसलिए वह बाजार गया।
संयुक्त-वह बाज़ार गया और वहाँ उसने फल खरीदे।

2. सरल-मैंने उसे पढ़ाकर नौकरी दिलवाई।
संयुक्त-मैंने उसे पढ़ाया और नौकरी दिलवाई।
मिश्र-मैंने पहले उसे पढ़ाया तब नौकरी दिलवाई।

संयुक्त एवं मिश्र वाक्य से सरल वाक्य

1. संयुक्त-बिल्ली झाड़ियों में छिप कर बैठ गई और कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।
सरल-झाड़ियों में छिप कर बैठी बिल्ली कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।

2. संयुक्त-मज़दूर मेहनत करता है लेकिन उसका लाभ उसे नहीं मिलता।
सरल-मजदूर को अपनी मेहनत का लाभ नहीं मिलता।

3. मिश्र-अध्यापक ने छात्रों से कहा कि तुम लोग परिश्रमपूर्वक पढ़ो और परीक्षा में अच्छी श्रेणी लाओ।
सरल-अध्यापक ने छात्रों को परिश्रमपूर्वक पढ़कर परीक्षा में अच्छी श्रेणी लाने के लिए कहा।

3. अर्थ की दृष्टि से वाक्य परिवर्तन-अर्थ की दृष्टि से वाक्य आठ प्रकार के होते हैं। उनका परस्पर रूपांतर ही वाक्य परिवर्तन कहलाता है।

विधानवाचक-राम स्कूल जाएगा।
निषेधवाचक-राम स्कूल नहीं जाएगा।
प्रश्नवाचक-क्या राम स्कूल जाएगा ?
आज्ञावाचक-राम, स्कूल जाओ।
विस्मयवाचक-अरे ! राम स्कूल जाएगा।
इच्छावाचक-राम स्कूल जाए।
संदेहवाचक-राम स्कूल गया होगा।
संकेतवाचक-राम स्कूल जाए तो।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण वाक्य विचार

प्रश्न 3. निम्नलिखित वाक्य का विश्लेषण कीजिएपवन पुत्र हनुमान ने देखते-ही-देखते सोने की लंका जला दी।
उत्तर:
उद्देश्य-पवन पुत्र (कर्ता विस्तार) हनुमान ने (कर्ता)। विधेय-देखते-ही-देखते (क्रिया विशेषण), सोने की (कर्म विस्तार), लंका (कर्म) जला दी (क्रिया पद)।

प्रश्न 4.
साधारण तथा मिश्र वाक्य का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
साधारण वाक्य-बच्चे आँगन में खेल रहे हैं। मिश्र वाक्य-देव ने कहा कि वह बनारस जा रहा है। प्रश्न-नीचे लिखे सरल वाक्यों को मिश्र वाक्यों में बदलो
(1) अच्छे छात्र बड़ों की आज्ञा का पालन करते हैं।
(2) ग़रीब होने पर भी वह ईमानदार है।
उत्तर:
(1) जो छात्र अच्छे हैं, वे बड़ों की आज्ञा का पालन करते हैं।
(2) यद्यपि वह ग़रीब है, तथापि ईमानदार है।

प्रश्न 5.
‘वह फल खरीदने के लिए बाज़ार गया’- इस सरल वाक्य को संयुक्त वाक्य में लिखिए।
उत्तर:
वह बाज़ार गया और वहां उसने फल खरीदे।

प्रश्न:
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार बदलिए-
(1) झाड़ियों में छिप कर बैठी बिल्ली कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी। (संयुक्त वाक्य में)
(2) सुबह पहली बस पकड़ो और शाम तक लौट आओ। (साधारण वाक्य में)
(3) मैंने उस व्यक्ति को देखा जो पीड़ा से कराह रहा था। (साधारण वाक्य में)
(4) उसने नौकरी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखा। (मिश्र वाक्य में)
(5) दिन-रात मेहनत करने वालों को सोच-समझ कर खर्च करना चाहिए। (मिश्र वाक्य में)
(6) लता ने मधुर गीत गा कर सब को मुग्ध कर दिया। (संयुक्त वाक्य में)
(7) कल फूलपुर में मेला है और हम वहां जाएँगे। (साधारण वाक्य में)
(8) मेहनत करने पर भी ग़रीबों को भर पेट रोटी नहीं मिलती। (संयुक्त वाक्य में)
(9) जो लोग परिश्रम करते हैं, उन्हें अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता। (साधारण वाक्य में)
(10) जो समय पर काम करते हैं, उन्हें पछताना नहीं पड़ता। (साधारण वाक्य में)
उत्तर:
(1) बिल्ली झाड़ियों में छिप कर बैठ गई और कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।
(2) सुबह पहली बस पकड़ कर शाम तक लौट आओ।
(3) मैंने पीड़ा से कराहते हुए व्यक्ति को देखा।
(4) उसने जो प्रार्थना-पत्र लिखा था, वह नौकरी के लिए था।
(5) जो दिन-रात मेहनत करते हैं, उन्हें सोच-समझ कर खर्च करना चाहिए।
(6) लता ने एक मधुर गीत गाया और उससे उसने सबको मुग्ध कर दिया।
(7) कल हम फूलपुर के मेले में जाएँगे।
(8) ग़रीब मेहनत करते हैं, फिर भी उन्हें भर पेट रोटी नहीं मिलती।
(9) परिश्रम करने वालों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता।
(10) समय पर काम करने वालों को पछताना नहीं पड़ता।

प्रश्न:
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार बदलिए
(1) सोहन परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया। (प्रश्नवाचक में)
(2) अच्छी वर्षा से अच्छी फसल होती है। (संकेतवाचक में)
(3) उसके पिता जी चल बसे। (विस्मयादिवाचक में)
(4) ग़रीब मेहनत करते हैं तब उन्हें भर पेट रोटी मिलती है। (निषेधवाचक में)
(5) मेरा पत्र आया है। (प्रश्नवाचक में)
(6) आप यहाँ से नहीं जाएँगे। (प्रश्नवाचक में)
(7) वर्षा होगी। (संदेहवाचक में)

उत्तर:
(1) क्या सोहन परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया ?
(2) यदि वर्षा अच्छी होती है तो फसल भी अच्छी होती है।
(3) ओह ! उसके पिता जी चल बसे।
(4) ग़रीब मेहनत करते हैं पर उन्हें भर पेट रोटी के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता।
(5) क्या मेरा पत्र आया ?
(6) क्या आप यहाँ से नहीं जाएँगे ?
(7) शायद वर्षा हो।

बहुविकल्पी प्रश्नोतरा

1. शब्दों का सार्थक समूह कहलाता है ?
(क) शब्द
(ख) वाक्य
(ग) सार्थक
(घ) पद।
उत्तर:
(ख) वाक्य

2. वाक्यों के कितने खंड होते हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ख) दो

3. अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद होते हैं
(क) पाँच
(ख) छह
(ग) सात
(घ) आठ
उत्तर:
(घ) आठ

4. रचना के आधार पर वाक्य के भेद हैं,
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ग) तीन

5. ‘मीरा गा कर नाच रही है’ रचना की दृष्टि से वाक्य भेद हैं
(क) सरल
(ख) संयुक्त
(ग) मिश्र
(घ) कोई नही
उत्तर:
(क) सरल

6. स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि चरित्र-निर्माण मानव का आधार है। रचना की दृष्टि से वाक्य भेद है।
(क) सरल
(ख) संयुक्त
(ग) मिश्र
(घ) कोई नहीं
उत्तर:
(ग) मिश्र

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

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PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

(क) सन्धि और सन्धि-विच्छेद (प्रकार, नियम और उदाहरण)

प्रश्न 1.
सन्धि किसे कहते हैं और ये कितने प्रकार की हैं?
उत्तर:
दो वर्गों के विकार या परिवर्तन सहित मेल को सन्धि कहते हैं। सन्धि तीन प्रकार की होती है
1. स्वर-सन्धि
2. व्यंजन-सन्धि
3. विसर्ग-सन्धि

1. स्वर-सन्धि-स्वर से परे स्वर आने पर जो विकार होता है, उसे स्वर-सन्धि कहते हैं।
जैसे-विद्या + आलय = विद्यालय।। (अ + ई = ए)
परम + ईश्वर = परमेश्वर (आ + आ = आ)

2. व्यंजन-सन्धि-व्यंजन से परे स्वर या व्यंजन आने से जो व्यंजन में विकार होता है, उसे व्यंजन-सन्धि कहते
जैसे-जगत् + ईश = जगदीश। सम् + कल्प = संकल्प।

3. विसर्ग-सन्धि-विसर्ग से परे स्वर या व्यंजन आने से विसर्ग में जो विकार होता है, उसे विसर्ग-सन्धि कहते
जैसे-निः + पाप = निष्पाप। दुः + गति = दुर्गति।

(क) स्वस्सन्धि

स्वर-सन्धि के पांच भेद हैं।
(क) दीर्घ-सन्धि (ख) गुण-सन्धि (ग) वृद्धि-सन्धि (घ) यण-सन्धि (ङ) अयादि-सन्धि।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

(क) दीर्घ-सन्धि:
हस्व और दीर्घ अ, इ, उ, ऋ से परे क्रम से यदि वही ह्रस्व और दीर्घ अ, इ, उ, ऋ हो तो दोनों के स्थान में वही दीर्घ स्वर हो जाता है, इसे दीर्घ-सन्धि कहते हैं।

अ-आ

अ + अ = आ-वेद + अंत = वेदांत, धर्मार्थ, ग्रामांतर, परमार्थ।
अ + आ = आ-हिम + आलय = हिमालय, गृहागत, धर्माधार।
आ + अ = आ-विद्या + अर्थी = विद्यार्थी, महानुभाव, दयार्णव।
आ + आ = आ-विद्या + आलय = विद्यालय, लताश्रय, महाकार।

इ-ई

इ + इ = ई-कवि + इन्द्र = कवीन्द्र, हरीच्छा, मुनीन्द्र।
इ + ई = ई-कवि + ईश = कवीश, मुनीश्वर, मुनीश।
ई + इ = ई-मही + इन्द्र = महीन्द्र, नदीन्द्र।
ई + ई = ई-मही + ईश = महीश, नदीश, रजनीश।

उ-ऊ

उ + ऊ = ऊ-भानु + उदय = भानूदय, विधूदय, प्रभूक्ति, गुरूपदेश।
ऊ + उ = ऊ-वधू + उत्सव = वधूत्सव, श्वश्रूपदेश।
(‘उ’ तथा ‘ऊ’ या ‘ऊ’-‘ऊ’ की सन्धि वाले शब्द हिन्दी में इने-गिने ही आते हैं और ऋ तथा ऋ की सन्धि के शब्द तो हिन्दी में प्रयुक्त ही नहीं होते।

(ख) गुण-सन्धि-अ या आ से परे यदि ह्रस्व और दीर्घ इ, उ और ऋ हो तो दोनों के स्थान पर क्रम से ए, ओ तथा अर् हो जाता है। इसे गुण सन्धि कहते हैं।

अ और आ से परे इ और ई।

अ + इ = ए-देव + इन्द्र = देवेन्द्र, नरेन्द्र, राजेन्द्र।
अ + ई = ए-नर + ईश = नरेश, गणेश, राजेश ।
आ + इ = ए-महा + इन्द्र = महेन्द्र, रमेश, यथेष्ट।
आ + ई = ए-रमा + ईश = रमेश, महेश
अ + इ = ए-स्व + इच्छा = स्वेच्छा।

अ और आ से परे उ और ऊ

अ + उ = ओ-वीर + उचित = वीरोचित, उत्तरोत्तर, सूर्योदय, अरुणोदय।
आ + उ = ओ-महा + उत्सव = महोत्सव, महोदय।
अ + ऋ = अर्-देव + ऋषि = देवर्षि, सप्तर्षि ।
आ + ऋ = अर्-महा + ऋषि = महर्षि, ब्रह्मर्षि।

3. वृद्धि-सन्धि-अ और आ से परे यदि ए और ऐ, ओ और औ हो तो दोनों के स्थान में क्रम से ऐ, औ हो जाते हैं। इसे वृद्धि-सन्धि कहते हैं।

अ और आ से परे ए और ऐ

अ + ए = ऐ-एक + एक = एकैक।
आ + ए = ऐ-सदा + एव = सदैव।
अ + ऐ = ऐ-परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य, मतैक्य।
आ + ऐ = ए-महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य।

अ और आ से परे ओ और औ

अ + ओ = औ-वन + औषिधि = बनौषधि, जलौदधि।
आ + ओ = औ-महा + ओज = महौज।
अ + औ = औ-परम + औषध = परमौषध।
अ + औ = औ-महा + औषध = महौषध।

4. यण-सन्धि-ह्रस्व और दीर्घ इ, उ, ऋ से परे यदि कोई असमान स्वर हो तो इ और ई को य, उ और ऊ को व् और ऋ को र् हो जाता है। इसे यण्-सन्धि कहते हैं।

इ को य-यदि + अपि = यद्यपि, अत्याचाले, भूम्याधार।
ई को य्-देवी + अर्पण = देव्यर्पण, देव्याज्ञा, नद्यवतरण।
उ को व्-सु + आगत = स्वागत, अन्वेषण।
ऊ को व्-स्वयंभू + आज्ञा = स्वयंभ्वाज्ञा।
ऋ को र्-मातृ + आनन्द = मात्रानन्द, पित्राज्ञा।

5. अयादि-सन्धि-ए, ओ, ऐ, औ से परे यदि स्वर हो तो ए को अय, ओ को अव, ऐ को आय और औ को आव् हो जाता है। इसे अयादि-सन्धि कहते हैं।

ए को अय्-ने + अन = नयन।
ओ को अव्-भो + अन = भवन, लवण।
ऐ को आय्-गै + अक = गायक।
औ को आव्-भौ + उक = भावुक।

(क) स्वस्सन्धि

(i) दीर्घ-सन्धि

सन्धि:
स्व + अधीन = स्वाधीन
सत्य + अर्थ = सत्यार्थ
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
विद्या + आलय = विद्यालय
रत्न + आकर = रत्नाकर
देव + आलय = देवालय
हिम + आलय = हिमालय
परम + अर्थ = परमार्थ
राम + अयन = रामायण
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
सचिव + आलय = सचिवालय
कवि + इन्द्र = कवीन्द्र
अवनि + इन्द्र = अवनीन्द्र
मही + इन्द्र = महीन्द्र
नारी + इच्छा = नारीच्छा
परि + ईक्षा = परीक्षा
लक्ष्मी + ईश = लक्ष्मीश
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
मधु + उर्मि = मधूर्मि
अनु + उदित = अनूदित
मातृ + ऋण = मातृण

सन्धि-विच्छेद:
कृपालु = कृपा + आलु
दयानन्द = दया + आनन्द
कार्यालय = कार्य + आलय
पुस्तकालय = पुस्तक + आलय
परमानन्द = परम + आनन्द
कुसुमाकर = कुसुम + आकर
चरणामृत = चरण + अमृत
सुधीन्द्र = सुधि + इन्द्र
सतीश = सती + ईश
मुनीश = मुनी + ईश
गिरीश = गिरी + ईश
भानुदय = भानु + उदय
वधूरु = वधू + ऊरु
वधूत्सव = वधू + उत्सव
पितृण = पितृ + ऋण

(ii) गुण सन्धि

सन्धि:
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
गज + इन्द्र = गजेन्द्र
भारत + इन्दु = भारतेन्दु
रमा + ईश = रमेश
राज + ईश = राजेश
परम + ईश्वर = परमेश्वर
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + उदधि = महोदधि
गंगा + उदक = गंगोदक
चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
मद + उन्मत्त = मदोन्मत्त
लोक + उक्ति = लोकोक्ति
भाग्य + उदय = भाग्योदय
महा + उदय = महोदय
जल + ऊर्मि = जलौर्मि
यमुना + ऊर्मि = यमुनोर्मि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
महा + ऋषि = महर्षि
देव + ऋषि = देवर्षि

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

सन्धि-विच्छेद:
सुरेश = सुर + ईश
उपेन्द्र = उप + इन्द्र
नरेन्द्र = नर + इन्द्र
यथेष्ट = यथा + इष्ट
हितोपदेश = हित + उपदेश
नरोत्तम = नर + उत्तम
नरोत्तम = नर + उत्तम
पुरुषोत्तम = पुरुष + उत्तम
परोपकार = पर + उपकार
प्रश्नोत्तर = प्रश्न + उत्तर
पत्रोत्तर = पत्र + उत्तर
अछूतोद्धार = अछूत + उद्धार
ब्रह्मर्षि = ब्रह्म + ऋषि
राजर्षि = राज + ऋषि
वसन्तर्तु = वसन्त + ऋतु

(iii) वृद्धि सन्धि

सन्धि:
तथा + एव = तथैव
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
धृत + औदन = धृतोदन
सदा + एव = सदैव
परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य
महा + औषध = महौषध
परम + औदार्य = परमौदार्य

सन्धि-विच्छेद:
मतैक्य = मत + ऐक्य
जनश्वर्य = जन + ऐश्वर्य
अमृतौषध = अमृत + औषध
लोकैषणा = लोक + एषणा
वनौषधि = वन + औषधि
महौज = महा + ओज

(iv) यण सन्धि

सन्धि
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
सु + आगत = स्वागत
पितृ + उपदेश = पितृोपदेश
अति + अल्प = अत्यल्प
उपरि + उक्त = उपर्युक्त
नि + ऊन = न्यून
अभि + आगत = अभ्यागत
अति + उपकार = अत्युपकार
देवी + अर्पण = देव्यर्पण
देवी + आगम = देव्यागम
सखि + आगम = सख्यागम
सखि + उचित = सख्युचित
गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा
सु + अल्प = स्वल्प

सन्धि-विच्छेद:
अन्वेषण = अनु + एषण
मात्रानुमति = मातृ + अनुमति
पिताज्ञा = पितृ + आज्ञा
अभ्यागत = अभि + आगत
अत्यावश्यक = अति + आवश्यक
अत्याचार = अति + आचार
इत्यादि = इति + आदि
वध्वागम = वधू + आगम
मध्वालय = मधु + आलय
प्रत्याशा = प्रति + आशा
प्रत्येक = प्रति + एक
अन्वय = अनु + अय
अन्वर्थ = अनु + अर्थ
अन्विति = अनु + इति

(v) अयादि सन्धि

सन्धि
चे + अन = चयन
ने + अन = नयन
दै + अक = दायक
नै + अक = नायक
गै + अक = गायक
पो + अन = पवन
गै + अन = गायन
नौ + इक = नाविक
भो + अन = भवन
हो + अन = हवन

सन्धि-विच्छेद:
शयन = शे + अन
सायक = सै + अक
गवेषणा = गौ + एषणा
पावन = पौ + अन
पावक = पो + अक
भावुक = भौ + उक
भाव = भो + अ

(ख) व्यंजन-सन्धि

(i) किसी वर्ण के पहले वर्ण से परे यदि कोई स्वर या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा वर्ण अथवा य, र, ल, ह में से कोई वर्ण हो तो पहले वर्ण को उसी वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे

दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन (क् को ग्) ।
अच् + अंत = अजंत (च् को ज्)।
षट् + दर्शन = षड्दर्शन (ट् को ड्)।
जगत् + ईश = जगदीश (त् को द्)।
अप् + ज = अब्ज (प् को ब्)।

(ii) किसी वर्ग के पहले या तीसरे वर्ण से परे यदि किसी वर्ग का पाँचवां वर्ण हो तो पहले और तीसरे वर्ण को अपने वर्ग का पाँचवां वर्ण हो जाता है। जैसे

वाक् + मय = वाड्मय (क् को ङ्)।
पट् + मास = पण्मास (ट् को ण्)।
जगत् + नाथ = जगन्नाथ (त् को न्)।
अप् + मय = अम्मय (प् को म्)।

(iii) त् और द् को च और छ परे होने पर च, ज और झ परे होने पर ज, ट और ठ परे होने पर ट्, ड और ढ परे होने पर इ और ल परे होने पर ल हो जाता है। जैसे

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद Img 1

(iv) त् और द् से परे श् हो तो त् और द् को च् और श् को छ् हो जाता है। जैसे

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद Img 2

उद् + शिष्ट = उच्छिष्ट (द् को च्, श् को छ)।

त् और द् से परे यदि ह् हो तो त् को द् और ह् को ध् हो जाता है।
जैसे-उत् + हार = उद्धार (ह् को ध्)
उत् + हरण = उद्धरण।

(v) म् के बाद यदि क् से म् तक में से कोई वर्ण हो तो म् को अनुस्वार अथवा बाद के वर्ण के वर्ग का पाँचवां वर्ण हो जाता है। जैसे
सम् + कल्प = संकल्प, संकल्प (म् को अनुस्वार और ङ)।
सम् + चार = संचार, सञ्चार, किंचित-किञ्चित् (म् को अनुस्वार और ज्)।
सम् + तोप = संतोष, सन्तोष (म् को अनुस्वार और न्)।
सम् + पूर्ण = संपूर्ण, सम्पूर्ण (म् को अनुस्वार और म्)।
सम् + बन्ध = संबंध, सम्बन्ध (म् को अनुस्वार और म्)।

(vi) क् से म् तक वर्णों को छोड़कर यदि और कोई व्यंजन म् से परे हो तो म् को अनुस्वार हो जाता है। जैसे-
सम् + हार = संहार, सम् + यत = संयत, सम् + रक्षण = संरक्षण, सम् + लग्न = संलग्न, सम् + वत् = संवत् (म् को अनुस्वार), सम् + वेदना = संवेदना, सम् + शय = संशय, सम् + सार = संसार ।

(vii) स्वर से परे यदि छ आये तो छ के पूर्व च लग जाता है। (इसे आगम कहते हैं)।
आ + छादन = आच्छादन। वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया (च् का आगम)।
स्व + छंद = स्वच्छंद। प्र + छन्न = प्रच्छन्न।

(viii) ऋ, र, ष से परे न् को ण हो जाता है।
स्वर, कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार और य, व, ह में से किन्हीं वर्गों के बीच आ जाने पर भी ऋ, ऋ, र् और प् से परे न् को ण् हो जाता है। जैसे
भर् + अन = भरण, भूष + अन = भूषण।

(ix) स् से पूर्व अ या आ से भिन्न कोई स्वर हो तो स् को ष् हो जाता है।
जैसे-अभि + सेक = अभिषेक (स् को ष्), सु + समा = सुषमा।

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(ग) विसर्ग संधि

(i) विसर्ग से पहले और बाद में दोनों ओर ‘अ’ होने पर विसर्ग ‘ओ’ में बदल जाते हैं। जैसे-मनः + अनुकूल = मनोऽनुकूल, यश: + अभिलाषा = यशोऽभिलाषा।
(ii) विसर्ग से पहले ‘अ’ तथा बाद में किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण तथा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग को ‘ओ’ हो जाता है। जैसे
(iii) विसर्ग के बाद किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण होने पर विसर्ग को ओ
सरः + ज = सरोज
मनः + ज = मनोज।
पयः + द = पयोद
पयः + धर = पयोधर।
तपः + बल = तपोबल।

(iv) विसर्ग के बाद य, र, ल, व, ह होने पर विसर्ग को ओ

मनः + रंजन = मनोरंजन
मनः + हर + मनोहर।
मनः + योग = मनोयोग
मनः + रथ = मनोरथ।
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
मनः + बल = मनोबल।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

(v) विसर्ग से पहले अ, आ के अतिरिक्त कोई स्वर तथा बाद में कोई स्वर किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवां वर्ण तथा य, र, ल, व, ह में से कोई भी वर्ण हो तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है। जैसे

(vi) विसर्ग के बाद कोई स्वर होने पर विसर्ग को र

दुः + उपयोग = दुरुपयोग
दुः = आशा = दुराशा।
निः + आकार = निराकार
निः + आश्रित = निराश्रित।

(vii) विसर्ग के बाद किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण होने पर

निः + झर = निर्झर
पुनः + जन्म = पुनर्जन्म।
पुनः + निर्माण = पुनर्निर्माण
निः + जन = निर्जन।
दुः + गुण = दुर्गुण
निः + नय = निर्णय।
बहिः + मुख = बहिर्मुख
दु: + बल = दुर्बल।

(viii) विसर्ग के बाद य, र, व, ह होने पर विसर्ग को

र्निः + विकार = निर्विकार
दुः + व्यवहार = दुर्व्यवहार
अन्तः + यामी = अंतर्यामी
दु: + लभ = दुर्लभ

(ix) विसर्ग के बाद च, छ हो तो विसर्ग को ‘श्’, ट्, ठ हो तो ‘ष’ तथा त, थ. हो तो ‘स्’ में परिवर्तित हो जाता है। जैसे

दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
हरिः + चंद्र = हरिश्चंद्र।
निः + चय = निश्चय
निः + छल = निश्छल।
‘धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
इतः + ततः = इतस्ततः
नमः + ते = नमस्ते
दुः + तर = दुस्तर
मनः = ताप = मनस्ताप।

(x) निः तथा दुः के बाद क-ख या प-फ हो तो इनके विसर्ग को ‘ष’ हो जाता है। जैसे-

निः + कपट = निष्कपट
निः + काम = निष्काम।
दुः + कर = दुष्कर
दुः + काल = दुष्काल।
निः + पाप = निष्पाप
निः + फल = निष्फल।
दु: + प्राप्य = दुष्प्राप्य
दुः + प्रभाव = दुष्प्रभाव।

(xi) विसर्ग के बाद यदि श, स हो तो विकल्प के विसर्ग को भी क्रमशः श् तथा स् ही हो जाता है। जैसे-

दु: + शासन = दुश्शासन या दुःशासन दुः + शील = दुश्शील या दुःशील।
निः + सन्देह = निस्सन्देह या निःसन्देह नि: + सार = निस्सार या नि:सार।
दुः + साहस = दुस्साहस।

(xii) यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ तथा बाद में ‘अ-आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तो विसर्ग लोप हो जाता है .और फिर उन अक्षरों में संधि नहीं होती। जैसे-

अतः + एव = अतएव
ततः + एव = तथैव।

हिंदी में अलग से विसर्ग संधि तो नहीं है, किंतु उसने संस्कृत के दो विसर्ग संधि शब्दों को संस्कृत से भिन्न रूप से ही अपनाया है
संस्कृत रूप हिंदी रूप अंतः + राष्ट्रीय अंताराष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुनः + रचना पुनारचना
पुनर्रचना

प्रश्न 1.
व्यंजन संधि और विसर्ग संधि में क्या अंतर है ? उसे उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
व्यंजन संधि वहाँ होती है जब पहले शब्द के अंत में व्यंजन हो और दूसरे शब्द के आदि में व्यंजन या स्वर हो तब दोनों के मिलने से जो परिवर्तन होता है। जैसे-सत् + जन = सज्जन, जगत् + ईश = जगदीश। विसर्ग संधि वहाँ होती है जब विसर्ग का किसी स्वर या व्यंजन के साथ मेल होने पर परिवर्तन होता है। जैसे-नम: + ते = नमस्ते, दु: + उपयोग = दुरुपयोग।

प्रश्न 2.
संधि-विच्छेद से आप क्या समझते हैं ? दो उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब संधि युक्त शब्दों को अलग-अलग करके लिखा जाता है तब उसे संधि-विच्छेद कहते हैं। जैसेमहोत्सव = महा + उत्सव, उज्ज्वल = उत् + ज्वल, निर्धन = निः + धन।

अभ्याम

सन्धि:
दिक् + गज = दिग्गज
दिवग् + गत = दिवंगत
पट् + मास = पण्मास
उत् + मूलन = उन्मूलन
उत् + चारण = उच्चारण
तत् + चित्र = तच्चित्र
उत् + श्वास = उच्छ्वास
भगवत् + शास्त्र = भगवच्छास्त्र
तत् + हित = तद्धित
उत् + हरण = उद्धरण
सत् + गति = सद्गति
सत् + आनन्द = सदानन्द
उद् + वेग = उद्वेग
सत् + धर्म = सद्धर्म
अहम् + कार = अहंकार
सम् + चय = संचय
दम् + डित = दण्डित
सम् + जय = संजय
सम् + गति = संगति
सम् + योग = संयोग
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + शय = संशय
किम् + चित् = किंचित
सम + कल्प = संकल्प
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
सन्धि + छेद = सन्धिच्छेद/सन्धिछेद
निर + नय = निर्णय
विष् + नु = विष्णु
भाश + अन = भाषण
पोष + अन = पोषण
अर्प + न = अर्पण
दर्प + न = दर्पण
निर् + रोग = नीरोग
निर् + रस = नीरस
उत् + डयन = उड्डयन
उत् + लंघन = उल्लंघन
उत् + लास = उल्लास
सम् + राट् = सम्राट
वि + सम = विषम
अभि + सेक = अभिषेक
निस् + गुण = निर्गुण
दुस् + बोध = दुर्बोध
पुरुस् + कार = पुरस्कार
भास + कर = भास्कर
राम + अयन = रामायण
जब + ही = जभी
अब + ही = अभी

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

सन्धि-विच्छेद:
षडानन = षट् + आनन
बागीश = वाक् + ईश
अम्मय = अप् + मय
तन्मय = तत् + मय
बृहच्छवि = बृहत् + छवि
सच्चित् = सत् + चित
भगवच्छोभा = भगवत् + शोभा
उद्धत = उत् + हत
उद्योग = उत् + योग
उद्गार = उत् + गार
उद्भव = उत् + भव
तद्रूप = तत् + रूप
उद्धृत = उत् + धृत
संतप्त = सम् + तप्त
संतान = सम् + तान
संधान = सम् + धान
संभव = सम् + भव
संपूर्ण = सम् + पूर्ण
संवरण = सम् + वरण
संसार = सम् + सार
संहार = सम् + हार
शंकर = शम् + कर
परिच्छेद = परि + छेद
विच्छेद = वि + छेद
तृष्णा = तृप + ना
जिष्णु = जिष् + नु
परिणाम = परि + नाम
प्रमाण = प्रमा + न
ऋण = ऋ+ न
भूषण = भूष् + अन्
नीरव = निर् + रव
नीरज = निर् + रज
उल्लेख = उत् + लेख
तल्लीन = तत् + लीन
विद्युल्लता = विद्युत् + लता
सामराज्य = साम् + राज्य
निषेध = नि + सेध
निषिद्ध = नि + सिद्ध
निर्वाध = निर + वाध
दुर्गुण = दुर + गुण
नमस्कार = नमस + कार
तिरस्कार = तिरस् + कार
मरण = मर् + अन
तभी = तब + ही
कभी = कब + ही

विसर्ग सन्धि:

सन्धि:
अधः + गति = अधोगति
मनः + ज = मनोज
मनः + बल = मनोबल
पयः + द = पयोद
यशः + दा = यशोदा
पयः + धर = पयोधर
तपः + बल = तपोबल
मनः + रंजन = मनोरंजन
मनः + हर = मनोहर
मनः + रथ = मनोरथ
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान
मनः + योग = मनोयोग
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
दुः + उपयोग = दुरुपयोग
निः + चल = निश्चिल
निः + चय = निश्चय
हरिः + चन्द्र = हरिश्चन्द्र
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
निः + ठुर = निष्ठुर
निः + छल = निश्चल
मनः + ताप = मनस्ताप
निः + तेज = निस्तेज
दुः + शासन = दुशासन
निः + सन्देह = निस्सन्देह
निः + संतान = निस्संतान
निः + कपट = निष्कपट
दुः + प्रकृति = दुष्प्रकृति
दुस्तर = दुः + तर
दुष्प्राप्य = दुः + प्राप्य
निष्फल = निः + फल
निष्काम = निः + काम
दुष्प्रभाव = दुः + प्रभाव
दुस्साहस = दु: + साहस

सन्धि-विच्छेद:
निः + आशा = निराशा
निः + गुण = निर्गुण
दुः + नीति = दुर्नीति
निः + आकार = निराकार
निः + आहार = निराहार
निः + आधार = निराधार
दु: + गति = दुर्गति
दु: + भावना = दुर्भावना
निर् + रोग = नीरोग
निर् + रस = नीरस
मनः + अभीष्ट = मनोऽभीष्ट
अतः + एव = अतएव
निः + झर = निर्झर
दुः + आशा = दुराशा
निः + आशा = निराशा
निः + मल = निर्मल
निराश्रित = निः + आश्रित
पुनर्निर्माण = पुनः + निर्माण
निर्जन = निः + जन
दुर्गुण = दुः + गुण
बहिर्मुख = बहिः + मुख
दुर्बल = दु: + बल
निर्णय = निः + नय
निर्विकार = निः + विकार
दुर्लभ = दुः + लभ
दुश्चरित्र = दु: + चरित्र
हरिश्चंद्र = हरिः + चंद्र
नमस्ते = नमः + ते
मनस्ताप = मनः + ताप
तथैव = ततः + एव
निस्सार = निः + सार
दुश्शील = दु: + शील
दुः + कर = दुष्कर
दुः + फल = दुष्फल

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. स्वर संधि के कितने भेद हैं ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर:
(घ) पाँच

2. संधि के कितने भेद हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ग) तीन

3. ‘ने + अन’ में कौन-सी संधि है ?
(क) यण
(ख) वृद्धि
(ग) गुण
(घ) अयादि
उत्तर:
(घ) अयादि

4. ‘विद्या + अर्थी’ में सधि है ?
(क) दीर्घ
(ख) गुण
(ग) यण
(घ) अयादि।
उत्तर:
(क) दीर्घ

5. ‘उत् + ज्वल की संधि है ?
(क) उज्ज्वल
(ख) उत्जवल
(ग) उज्जवल
(घ) उज्जला।
उत्तर:
(क) उज्ज्वल

6. ‘भो + अन किसका विच्छेद है ?
(क) भोउन
(ख) भवन
(ग) भोवन
(घ) भुवन
उत्तर:
(ख) भवन

7. मनोरंजन का संधिविच्छेद है
(क) मनः + रंजन
(ख) मनो + रंजन
(ग) मनः + रंजन
(घ) मनोः + रंजन
उत्तर:
(क) मनः + रंजन