PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 10 ऐ वीरो, भारतवर्ष के

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 10 ऐ वीरो, भारतवर्ष के Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 10 ऐ वीरो, भारतवर्ष के

Hindi Guide for Class 11 PSEB ऐ वीरो, भारतवर्ष के Textbook Questions and Answers

 

प्रश्न 1.
कवि ने किन भेड़ियों को मज़ा चखाने की बात कही है ?
उत्तर:
कवि ने उन आक्रमणकारियों को भेड़िया कहा है जिनके आक्रमण से देश की स्वतंत्रता को खतरा पैदा हो गया है। कवि ने उन्हें मुँह तोड़ जवाब देने की बात कही है जिस कारण वे फिर भारत की ओर आँख उठाकर भी नहीं देख पाएं। हमारे देश के कुछ शत्रु देश बार-बार हम पर हमला करते हैं, आँखें दिखाते हैं, गुर्राते हैं। हम भारतवासियों को निर्भयतापूर्वक उनका सामना ही नहीं करना बल्कि उन्हें युद्ध जैसा दुस्साहस करने के लिए मज़ा चखा देना है। उनमें इतना भय उत्पन्न कर देना है कि वे फिर हम पर हमला न कर सकें।

प्रश्न 2.
बन्दा बैरागी और गुरु गोबिन्द सिंह जी की वीरता से क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर:
बन्दा बैरागी और गुरु गोबिन्द सिंह जी की वीरता से भारतवासियों को यह प्रेरणा मिलती है कि शत्रु के सामने पहाड़ की तरह डट जाओ और आक्रमणकारियों का विनाश करो। उन्होंने साहसपूर्वक मुगलों का डटकर सामना ही नहीं किया बल्कि उन्हें बार-बार युद्ध में परास्त किया था। उनके हौसले पस्त कर दिए थे। अपने इन महान् सेनानियों की वीरता से आत्मिक बल ही प्राप्त नहीं होता बल्कि अपने उन पूर्वजों पर अभिमान भी होता है।

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प्रश्न 3.
‘हम प्यार बुद्ध से करते हैं, पर नहीं युद्ध से डरते हैं’ का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पंक्ति का भाव यह है कि भले ही भारतवासी अहिंसा में विश्वास रखते हैं किन्तु यदि युद्ध उन पर थोप दिया जाए और देश की स्वतंत्रता पर कोई खतरा आए तो युद्ध से भी नहीं घबराते। देश की सुरक्षा के लिए हम तन-मन-धन न्योछावर करने को तैयार हैं।

प्रश्न 4.
आजाद, भगत, वल्लभ और सुभाष कौन थे और उन्होंने भारतवर्ष के लिए क्या सपना देखा था ?
उत्तर:
चन्द्रशेखर आज़ाद और सरदार भगत सिंह महान् क्रान्तिकारी हुए हैं तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस स्वतंत्रता सेनानी और महान् नेता हुए हैं। इन सबका भारत को स्वतंत्र देखने का सपना था। इन्होंने अपने बाहुबल और मानसिक शक्ति से अंग्रेजों के छक्के छुड़वा दिए थे।

प्रश्न 5.
प्रस्तुत कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में देश पर आक्रमण होने पर देश की स्वतंत्रता के लिए कोई खतरा पैदा होने पर हमें एक जुट होकर आक्रमणकारी का डट कर मुकाबला करना चाहिए और शत्रु को नष्ट करके अपनी स्वतंत्रता और देश की सुरक्षा के उपाय करने चाहिए। हमें अपनी ताकत और एकता से दुश्मन को यह दिखा देना है कि वह अपने बुरे इरादों से देश की अखण्डता को तोड़ नहीं सकता।

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PSEB 11th Class Hindi Guide ऐ वीरो, भारतवर्ष के Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उदयभानु हँस’ का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1930 ई० में।

प्रश्न 2.
उदयभानु हँस’ को किस राज्य के राज्य कवि का श्रेय प्राप्त है ?
उत्तर:
हरियाणा राज्य के।

प्रश्न 3.
उत्तर प्रदेश सरकार ने कवि उदयभानु ‘हंस’ को कौन-सा पुरस्कार दिया था ?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें ‘संत-सिपाही’ पर निराला पुरस्कार से सम्मान दिया।

प्रश्न 4.
‘हे वीरो, भारत वर्ष के’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
उदयभानु ‘हँस’।

प्रश्न 5.
कवि उदयभानु ने भारतवासियों का किस लिए आह्वान किया है ?
उत्तर:
आक्रमणकारियों को मिलकर मज़ा चखाने के लिए।

प्रश्न 6.
कवि ने भारतवासियों को किसकी तरह बनने को कहा है ?
उत्तर:
बंदा बैरागी की तरह बनने को कहा है।

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प्रश्न 7.
कवि ने भारतवासियों को किसकी संतान कहा है ?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध की।

प्रश्न 8.
कवि वीर पुरुष का सपना क्या कहा है ?
उत्तर:
अपने देश को हिंसा मुक्त बनाना।

प्रश्न 9.
कवि शत्रुदल के ………. से युद्ध की देवी का श्रृंगार करना चाहता है।
उत्तर:
गर्म लहू।

प्रश्न 10.
कवि किस सेना के पाँव उखाड़ने की बातें कर रहा है ?
उत्तर:
नीच शत्रु सेना के।

प्रश्न 11.
शत्रु सेना के लिए अडिग दीवार कौन था ?
उत्तर:
बंदा वैरागी।

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प्रश्न 12.
कवि ने किसकी तलवार को धारण करने के लिए कहा है ?
उत्तर:
गुरु गोबिंद सिंह जी की।

प्रश्न 13.
भारतवासियों को बुद्ध से क्या मिला था ?
उत्तर:
अहिंसा का संदेश।

प्रश्न 14.
हमें अपने आपसी भेदभाव भुलाकर क्या करना चाहिए ?
उत्तर:
दुश्मन का मुकाबला।

प्रश्न 15.
कवि के अनुसार शत्रुओं की कब्र खोदकर ………. चाहिए।
उत्तर:
सबको एक साथ गाड़ देना।

प्रश्न 16.
युद्ध क्षेत्र में ……….. के रक्त से धरती ………… हो गई।
उत्तर:
शत्रुओं, लाल।

प्रश्न 17.
कवि शत्रु के आक्रमण के समाने किस प्रकार खड़े होने की बात करता है ?
उत्तर:
पहाड़ बनकर।

प्रश्न 18.
अंग्रेज़ों ने कूटनीति के कारण क्या बना दिया था ?
उत्तर:
पाकिस्तान।

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प्रश्न 19.
कौन-सी नदी को भारत से अलग कर दिया गया था ?
उत्तर:
सिंध नदी।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उद्यभानु हँस किसके लिए प्रसिद्ध हैं ?
(क) दोहों के
(ग) रुबाइयों के
(ख) चौपाई के
(घ) सवैयों के।
उत्तर:
(ग) रुबाइयों के

प्रश्न 2.
उदयभानु हँस को हरियाणा के कौन से कवि का श्रेय प्राप्त है ?
(क) राज्यकवि
(ख) वीर रस कवि
(ग) दोहा कवि
(घ) प्रथम कवि।
उत्तर:
(क) राज्यकवि

प्रश्न 3.
कवि के अनुसार दुश्मनों के खून से हमें किसका श्रृंगार करना है ?
(क) माता का
(ख) मातृभूमि का
(ग) देश का
(घ) वीर का।
उत्तर:
(ख) मातृभूमि का

प्रश्न 4.
दुश्मनों के सामने किसके समान अडिग रहना चाहिए ?
(क) गुरु गोबिंद सिंह जी के
(ख) गुरु तेग बहादुर जी के
(ग) वीरों के
(घ) सभी के।
उत्तर:
(क) गुरु गोबिंद सिह जी के।

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ऐ वीरो, भारतवर्ष के सप्रसंग व्याख्या

1. ऐ वीरो, भारतवर्ष के,
फिर दिन आए संघर्ष के !
पशु-बल की आज चुनौती को, तुम दृढ़ता से स्वीकार करो,
फलों की गलियाँ छोड़, जरा अब काँटों से भी प्यार करो।
इन दुष्ट भेड़ियों को, हमले का मज़ा चखाना है,
वे जीवन भर जो भूल न पाएँ, ऐसा पाठ पढ़ाना है।
अब सदा के लिए रोज़-रोज़ का झगड़ा ही निपटाना है,
यह अमर तिरंगा अब दुश्मन की छाती पर लहराना है!

कठिन शब्दों के अर्थ :
दृढ़ता से = मज़बूती से। दुष्ट भेड़िए = आक्रमणकारी, शत्रु।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री उदयभानु हंस जी द्वारा लिखित कविता ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने आक्रमणकारियों को मिलकर मज़ा चखाने के लिए भारतवासियों से आह्वान किया है।

व्याख्या :
कवि भारतवर्ष के वीरों को संबोधित करतु हुए कहते हैं कि फिर से संघर्ष करने के दिन आ गए हैं। पहले स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष किया था। और अब तुम पशु के समान शत्रु की शक्ति की चुनौती को मजबूती से स्वीकार करो। फूलों की गलियाँ छोड़कर, अपने सुखों का त्याग करके, अब काँटों से प्यार करो, कष्ट झेलने के लिए तैयार हो जाओ। इन दुष्ट भेड़ियों को, आक्रमणकारियों को भारत पर आक्रमण करने का मज़ा चखाना है और ऐसा मज़ा चखाना है कि वे जीवन भर इसे भूल न पाएं। उन्हें ऐसा पाठ पढ़ाना है। अब सदा के लिए रोज़-रोज़ के झगड़े को मिटा देना है तथा यह अमर तिरंगा (हमारा राष्ट्रध्वज) शत्रु की छाती पर लहराना है। वीरता के साथ शत्रुओं का सामना करना है।

विशेष :

  1. कवि ने भारतवासियों को शत्रु का मुकाबला डट कर करने का आह्वान किया है।
  2. भाषा सरल एवं प्रवाहमयी है।
  3. शब्द चयन विषय वस्तु के अनुकूल है।
  4. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार है।
  5. वीर रस है।
  6. संगीतात्मकता का गुण है।

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2. अब समय नहीं है रुकने का
अब प्रश्न नहीं है झकने का,
अवसर आया है, मातृभूमि का संकट से उद्धार करो,
रिपुदल के गर्म लहू से ही रणचंडी का श्रृंगार करो!
तुम युद्ध-क्षेत्र में नीच शत्रु-सेना के पाँव उखाड़ दो,
दुनिया के इतिहास-ग्रंथ से इनका पन्ना फाड़ दो,
जो दुश्मन घर में घुस आए, तुम उनको पकड़ पछाड़ दो,
फिर कब्र खोद कर, एक साथ ही सबको ज़िन्दा गाड़ दो!

कठिन शब्दों में अर्थ :
रिपुदल = शत्रुदल। पन्ना = पृष्ठ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री उदयभानु हंस जी द्वारा लिखित कविता ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने भारतवासियों को आक्रमणकारियों के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या :
कवि ने भारत के वीरों का शत्रु के आक्रमण के समय आह्वान करते हुए कहा है कि अब रुकने और झुकने का समय नहीं है। अब तो ऐसा मौका आया है कि मातृभूमि पर आए संकट से उसका तुम्हें उद्धार करना है। शत्रुदल के गर्म लहू से ही युद्ध की देवी का तुम्हें शृंगार करना है। अतः हे भारतीय वीरो ! तुम युद्धभूमि में नीच शत्रुसेना के पाँव उखाड़ दो। दुनिया के इतिहास ग्रंथ से इनका नामोनिशान मिटा दो। यदि शत्रु घर में घुस आया है तुम उसको पकड़ कर पछाड़ दो फिर उन शत्रुओं की कब्र खोद कर एक साथ ही सबको जिन्दा गाड़ दो। हमें देश के सम्मान और रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए। युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं के रक्त से धरती को लाल कर देना है जिससे वे फिर कभी इधर मुड़कर भी नहीं देखे।

विशेष :

  1. वह समय आ गया है जब हमें अपने दुश्मनों को उसके बार-बार उठने को समाप्त करना है जिससे हम भारतमाता के सम्मान की रक्षा कर पाएं।
  2. भाषा सरल एवं प्रवाहमय है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. मुहावरे का उचित प्रयोग है।
  5. तत्सम प्रधान शब्दावली है।
  6. वीर रस है।
  7. ओज गुण है।
  8. संगीतात्मकता का गुण है। शैली भावपूर्ण है।

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3. तुम पर्वत जैसे तन जाओ,
बंदा बैरागी बन जाओ,
ऐ सिंहो, गुरु गोविंद सिंह की, फिर धारण तलवार करो,
प्राचीन सप्त-सिन्धु प्रदेश पर, फिर अपना अधिकार करो।
अब माँ की बलिवेदी पर, सिर धरने का अवसर आया है,
फिर काली का खाली खप्पर, भरने का अवसर आया है,
कल तक जो कहते थे, वह करने का अवसर आया है,
जीते थे अब तक जहाँ, वहीं मरने का अवसर आया है !
कह दो जग से, हम मुश्किल को, आसान बना कर छोड़ेंगे,
है युद्ध अगर अभिशाप, उसे वरदान बना कर छोड़ेंगे,
हमला करने वालों को, लहू-लुहान बना कर छोड़ेंगे,
हम तो दुश्मन की धरती को, शमशान बना कर छोड़ेंगे।

कठिन शब्दों के अर्थ :
सप्तसिन्धु प्रदेश = भारत-सिंध, रावी, सतलुज, झेलम, गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के कारण ही भारत को सप्तसिंधु वाला देश कहा जाता था।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री उदयभानु हंस जी द्वारा लिखित कविता ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने भारतवासियों को बंदा वैरागी जैसे बनने का संकेत दिया है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि हे भारतवासियो ! तुम शत्रु के आक्रमण के सामने पहाड़ बन कर खड़े हो जाओ और बन्दा बैरागी बन जाओ। जिस प्रकार बंदा वैरागी दुश्मन की सेनाओं के लिए अडिग दीवार था हमें भी उनके जैसा बनना है। हे भारतवासी सिंहो, तुम फिर से गुरु गोबिन्द सिंह की तलवार धारण करो, जिस तलवार से उन्होंने आतताइयों का विनाश किया था। प्राचीन समय में सप्तसिन्धु कहे जाने वाले देश पर फिर से अपना अधिकार करो।

क्योंकि अंग्रेजों की कूटनीति के कारण सिंध नदी को भारत से अलग कर पाकिस्तान बना दिया गया है। अतः भारत माता के लिए बलिदान देने का अवसर आया है और फिर से काली देवी के खप्पर को अपने लहू से भरने का अवसर आया है। कल तो जो हम कहते थे कि देश की, भारत माँ की रक्षा करेंगे अब इस कथन को पूरा करने का अवसर आया है। जिस देश में हम जी रहे थे उस देश के लिए मरने का अब अवसर आया है अर्थात् आज वह समय आ गया है जब हम यह दिखा सकते हैं कि हम गुरु गोबिन्द सिंह जी की तलवार को धारण करने वाले हैं आज कथनी का नहीं करनी का अवसर आया है इसे हमें खोना नहीं है अपितु कुछ कर दिखाना है।

हे भारतवासियो! आज संसार से कह दो कि हम मुश्किल को आसान बनाकर छोड़ेंगे। युद्ध यदि अभिशाप है तो हम इसे वरदान बनाकर छोड़ेंगे। आक्रमण करने वाले सैनिकों को हम लहूलुहान कर देंगे। हम तो शत्रु की धरती को श्मशान बनाकर छोड़ेंगे। युद्ध को अभिशाप माना जाता है परन्तु अपनी रक्षा और सम्मान के लिए कभी-कभी युद्ध वरदान बन जाते हैं। आक्रमणकारियों को उसका जवाब रणक्षेत्र में देने का समय आ गया और उन्हें समाप्त करके इस धरती को उनके लहू से साफ करना है।

विशेष :

  1. भारतवासियों को बंदा बैरागी के समान बहादुर बनकर दुश्मनों के समक्ष पर्वत की तरह मजबूती से खड़ा रहना है।
  2. भाषा सरल एवं प्रभावशाली है।
  3. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
  4. उदाहरण एवं अनुप्रास अलंकार है।
  5. ओज गुण है एवं वीर गुण है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।
  7. भावपूर्ण शैली है।

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4. हम प्यार बुद्ध से करते हैं,
पर नहीं युद्ध से डरते हैं !
है नीति यही, जो मित्र बने, तुम उसे हृदय से प्यार करो,
निर्लज्ज शत्रु जब चढ़ आए, उसका समूल संहार करो।
अब सावधान, फिर शत्रु आक्रमण कभी न दुहराने पाए,
केसर की हँसती फुलवारी पर आग न बरसाने पाए।
भारत की आज़ादी पर, कोई आँच नहीं आने पाए,
सीमाओं पर जो लहू बहा, वह व्यर्थ नहीं जाने पाए।

कठिन शब्दों के अर्थ :
निर्लज्ज =बेशर्म, ढीठ। समूल = जड़ सहित, पूरा। संहार = विनाश।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘श्री उदयभानु हंस’ द्वारा लिखित कविता ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने भारतवासियों को बुद्ध की सन्तान कहा है जो अहिंसा से प्यार करते हैं परन्तु समय आने पर युद्ध के लिए भी तैयार हैं।

व्याख्या :
कवि भारत की नीति की चर्चा करते हुए कहते हैं कि हम भगवान् बुद्ध से प्यार करने वाले हैं अर्थात् हम अहिंसावादी हैं परन्तु यदि युद्ध हम पर थोपा जाए तो हम युद्ध से भी नहीं डरते हैं। हमारी तो यह नीति रही है कि जो हमारा मित्र है उससे हम हृदय से प्यार करते हैं किंतु यदि बेशर्म शत्रु हमारे देश पर चढ़ाई कर दे, आक्रमण कर दे तो हे भारतवासियो! उस शत्रु का पूरी तरह से विनाश कर दे। अब तुम्हें इस बात के लिए भी सावधान हो जाना है कि शत्रु दोबारा आक्रमण करने का साहस न कर सके। हमारी केसर की क्यारी जैसे सुंदर देश पर आग न बरसाने पाये। केसर की क्यारी से कवि का संकेत कश्मीर से है क्योंकि कश्मीर में ही केसर की खेती होती है।

हे भारतवासियो! तुम्हें कुछ ऐसा करना है कि भारत की आजादी पर आँच न आने पाये। सीमाओं पर हमारे सैनिकों ने जो लहू बहाया है वह व्यर्थ न जाने पाए। हमें दुश्मन को अपनी ताकत दिखानी है सभी आपसी भेदभाव भुलाकर एकता के साथ दुश्मन का सामना करना है, उसे उसकी सीमाएं दिखानी हैं।

विशेष :

  1. भारतवासियों को बुद्ध से अहिंसा का संदेश मिला है परन्तु जब कोई बाहरी व्यक्ति देश की अखण्डता को नष्ट करने का प्रयास करता है तो उसे सबक सिखाने के लिए युद्ध के लिए भी तैयार रहना है।
  2. भाषा प्रभावशाली है।
  3. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. ओजगुण है एवं वीर रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है, शैली प्रभावशाली है।

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5. करना है पूर्ण प्रबंध तुम्हें,
भारत, माँ की सौगंध तुम्हें,
हिंसा की ज्वाला में जलती पृथ्वी का हलका भार करो,
आज़ाद, भगत, वल्लभ, सुभाष का चिर सपना साकार करो।

कठिन शब्दों के अर्थ :
आज़ाद = चन्द्रशेखर आज़ाद। वल्लभ = सरदार वल्लभ भाई पटेल।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘श्री उदयभानु हंस’ द्वारा लिखित ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने उन क्रान्तिकारियों के सपने साकार करने को कहा जिन्होंने देश की आजादी में अपने प्राण दे दिए।

व्याख्या :
कवि कहता है कि हमें भारत माँ की सौगन्ध है। हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सारे प्रबन्ध करने होंगे हमें हिंसा की आग में जलती हुई इस धरती के भार को हलका करना होगा। हमें चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के चिरकाल से देखे सपने को साकार करना होगा और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी होगी। हमें प्रत्येक उस वीर का सपना पूरा करना है जिन्होंने इस देश को आजाद करवाने के लिए अपनी जान दे दी।

विशेष :

  1. अपने देश को हिंसा मुक्त बनाकर हर वीर पुरुष का सपना पूरा करना है।
  2. भाषा सरल एवं स्वाभाविक है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. वीर रस है।
  6. ओजगुण है।
  7. शैली प्रभावशाली है।

ऐ वीरो, भारतवर्ष के Summary

ऐ वीरो, भारतवर्ष के जीवन-परिचय

हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवियों में श्री हंस रुबाइयों के सफल प्रयोग के लिए प्रसिद्ध हैं। उदयभानु ‘हंस’ का जन्म सन् 1930 ई० में हुआ था। हिन्दी रुबाइयाँ, धड़कन, सरगम, संत-सिपाही नामक काव्य संग्रह के प्रणेता हंस जी को हरियाणा के राज्य कवि का श्रेय प्राप्त है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें ‘संत-सिपाही’ पर निराला पुरस्कार से सम्मान दिया है। श्री हंस ने बिहारी की काव्य कला, निबन्ध रत्नाकार, हिन्दी के प्रमुख कलाकार, साहित्य-परिचय प्रभूतिगद्य जैसी रचनाओं द्वारा हिन्दी साहित्य की सेवा की है।

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ऐ वीरो, भारतवर्ष के कविता का सार

‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ कविता के रचयिता श्री उदयभानु हँस हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने भारतवासियों से आह्वान किया है कि अब समय आ गया है कि हमें अपने देश पर आक्रमण करने वालों को मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए। हमें दुश्मन के खून से अपनी मातृभूमि का श्रृंगार करना है। उनके सामने हमें गुरु गोबिन्द सिंह जी और बंदा बैरागी की तरह अडिग बनकर खड़ा होना चाहिए। हम यह जानते हैं कि युद्ध करना अच्छी बात नहीं है परन्तु जब सामने वाला प्यार की बात नहीं समझता तो उसे ताकत की भाषा से ऐसा जवाब देना चाहिए कि वह आगे से आंख उठाकर हमारे देश की ओर नहीं देख सकेगा। हमें अपने उन वीर सपूतों की कुर्बानियाँ तथा उनके सपनों को याद रखना चाहिए जिन्होंने देश को आजाद करवाने में अपनी जान दे दी। हमें दुश्मनों को समाप्त करके उनके सपने पूरे करने हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 9 मानव

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 9 मानव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 9 मानव

Hindi Guide for Class 11 PSEB मानव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मानव कविता में दिनकर जी ने ईश्वर से क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में दिनकर जी ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि मनुष्य में अधर्म और शत्रुता की भावना का अन्त हो जाए और धर्म और दया का दीपक जल उठे। वह इस ब्रह्माण्ड में परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है पर उसमें अनेक प्रकार के अवगुण मिल चुके हैं। वह अपने श्रेष्ठ गुणों को भूल चुका है। वह संहारक भावों की अधिकता के कारण संसार को नाश की ओर धकेल रहा है। वह पाखंड और वासना का गुलाम बन चुका है। उसके हृदय में सद्भाव उत्पन्न हों जिससे यह संसार फिर सुख प्राप्त कर सके।

प्रश्न 2.
कवि के अनुसार आज मानव उन्नति के किस शिखर पर पहुँच चुका है ?
उत्तर:
विज्ञान की सहायता से आज मनुष्य ने धरती और आकाश के बीच जो कुछ है उस पर विजय पा ली है। आज मानव उन्नति यहाँ तक पहुँच चुकी है कि उसने प्रकृति के सब रहस्यों पर भी विजय पा ली है। मानव अपने गुणों के कारण ज्ञान-विज्ञान के आलोक शिखर का स्पर्श कर चुका है। इसी अभिमान के कारण वह वासना का गुलाम बन गया है। मानव, मानव का शत्रु बन कर एक -दूसरे का संहार कर देना चाहता है। मानव की उन्नति प्रेम सौहार्द के आधार पर टिकी हुई नहीं है। इसलिए यह भयावह और हानिकारक दिशा की ओर बढ़ रही है।

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प्रश्न 3.
कवि ने मानव को मानवता का घोर अपमान क्यों कहा है ?
उत्तर:
कवि के अनुसार आज का मानव भाग्य का दास बन कर रह गया है। वह मानवता का अपमान इसलिए बन गया है कि आज के मानव में से आपसी प्रेम-प्यार और भाई-चारे की भावना समाप्त हो चुकी है। आज का मानव अपने वैज्ञानिक विकास के कारण प्रकृति के रहस्यों को तो जान गया है पर मानव मन में छिपे प्रेम और कोमलता के भावों को भुला बैठा है। मानव, मानव का दुश्मन बन चुका है। इसलिए कवि ने आज मानव को मानवता का घोर अपमान कहा है।

प्रश्न 4.
कवि के अनुसार मानव का श्रेय किस में निहित है ?
उत्तर:
कवि के अनुसार मानव का श्रेय मानवीय संवेदना, आपसी प्रेम-प्यार, मैत्री और अहिंसा में है। मानव ही मानव का सहायक बनकर प्राणी मात्र के समुचित विकास में सहयोगी बन सकता है। कलह, क्लेश, घृणा, द्वेष, लड़ाईझगड़े तो केवल मानव के लिए अहितकर ही सिद्ध होंगे। इससे केवल मानव और मानवता का हो, अहित नहीं होता अपितु, विश्व के प्रत्येक जीव का अहित होता है। मानव का श्रेय इसी में है कि वह मिलजुल कर कार्य करें और एकदूसरे के हितकर बनकर मानवतावाद की स्थापना करें।

प्रश्न 5.
‘मानव’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने विश्व में सुख-शांति लाने के लिए मानवीय संवेदना, आपसी प्रेम-प्यार और भाईचारे को बढ़ावा देने की बात कही है। मानव ने चाहे विज्ञान के क्षेत्र में अपार उन्नति कर ली है, प्रकृति के रहस्यों को समझ लिया है, धरती आकाश-पाताल को जान गया है। मानव स्वयं इस संसार का दुश्मन बन बैठा है। वह संहार, वासना, पाखंड, धोखा, भ्रष्टाचार, छल और कपट का पर्यायवाची बन गया है। मानव का वास्तविक विकास तो तभी होगा जब वह प्रेमभाव से सभी मानवों को अपनाएगा। उसे अधर्म और शत्रुता का अन्त करना चाहिए।

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PSEB 11th Class Hindi Guide मानव Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘दिनकर’ का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर:
रामधारी सिंह ‘दिनकर’।

प्रश्न 2.
दिनकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
दिनकर का जन्म 30 सितंबर, सन् 1908 ई० में बिहार राज्य के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था।

प्रश्न 3.
दिनकर ने किन माता-पिता के घर जन्म लिया था ?
उत्तर:
दिनकर ने कृषक पिता श्री रवि सिंह और माता मनरूप देवी के घर जन्म लिया था।

प्रश्न 4.
दिनकर तब कितने वर्ष के थे जब इनके पिता का देहांत हो गया था ?
उत्तर:
केवल एक वर्ष के।

प्रश्न 5.
दिनकर की पढ़ाई-लिखाई में किस ने सहायता की थी ?
उत्तर:
दिनकर का विवाह किशोरावस्था में हो गया था और उनकी पत्नी ने इन्हें पढ़ने लिखने में सहायता दी थी।

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प्रश्न 6.
दिनकर की प्राथमिक शिक्षा कहाँ हुई थी ?
उत्तर:
गाँव में।

प्रश्न 7.
किस कारण दिनकर को गाँव से तीन-चार मील दूर शिक्षा प्राप्ति के लिए जाना पड़ा था ?
उत्तर:
असहयोग आंदोलन छिड़ जाने के बाद इन्हें बारो नामक गाँव में राष्ट्रीय पाठशाला में शिक्षा प्राप्ति के लिए जाना पड़ा था।

प्रश्न 8.
जिस स्कूल से उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की उस का खर्च किस से चलता था ?
उत्तर:
उस पाठशाला का व्यय भिक्षाटन से चलता था।

प्रश्न 9.
दिनकर ने मैट्रिक की परीक्षा कब और कहाँ से पूरी की थी ?
उत्तर:
दिनकर ने मोकामाघाट के स्कूल में सन् 1928 ई० में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी।

प्रश्न 10.
दिनकर की प्रारंभिक कविताएं किस पत्रिका में किस नाम से छपने लगी थी ?
उत्तर:
रामवृक्ष वेनीपुरी की पत्रिका ‘युवक’ में इनकी कविताएँ ‘अमिताम’ नाम से छपने लगी थी।

प्रश्न 11.
दिनकर ने किस कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया था ?
उत्तर:
मुज़फ्फरपुर के पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में।

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प्रश्न 12.
दिनकर ने किस विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर कार्य किया था ?
उत्तर:
भागलपुर विश्वविद्यालय ।

प्रश्न 13.
साहित्य अकादमी पुरस्कार की प्राप्ति इन्होंने किस रचना पर प्राप्त किया था ?
उत्तर:
संस्कृति के चार अध्याय।

प्रश्न 14.
दिनकर ने मानव को संसार का किस प्रकार का प्राणी बताया है ?
उत्तर:
सर्वश्रेष्ठ प्राणी।

प्रश्न 15.
दिनकर के अनुसार कौन-सा जीव संसार में ज्ञान का खजाना है ?
उत्तर:
मानव।

प्रश्न 16.
कवि ने किन दीपकों के जलने की बात कही है ?
उत्तर:
धर्म और दया रूपी दीपक।

प्रश्न 17.
धरती से युद्ध के भय तथा …………… का अंत होगा ।
उत्तर:
निराशा।

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प्रश्न 18.
कवि ने किसके माध्यम से बुद्धिवादी मानव के कुकृत्यों पर प्रकाश डाला है ?
उत्तर:
युधिष्ठिर।

प्रश्न 19.
सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कौन है ?
उत्तर:
मानव।

प्रश्न 20.
‘मानव’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
रामधारी सिंह ‘दिनकर’।

प्रश्न 21.
कवि ने समाज में ……… व्यवस्था का समर्थन किया है ।
उत्तर:
समान।

प्रश्न 22.
सच्चा मानव कौन है ?
उत्तर:
जो अपने दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करता है।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रामधारी सिंह दिनकर किस चेतना के कवि थे ?
(क) राष्ट्रीय
(ख) अंतराष्ट्रीय
(ग) भारतीय
(घ) प्रयोगवादी।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय

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प्रश्न 2.
रामधारी सिंह दिनकर को भारत सरकार ने किससे अलंकृत किया ?
(क) पद्मभूषण
(ख) पद्मविभूषण
(ग) पद्म श्री
(घ) पद्मानय।
उत्तर:
(क) पद्मभूषण

प्रश्न 3.
‘मानव’ कविता कवि के किस खंड काव्य से संकलित है ?
(क) रेणुका
(ख) हुंकार
(ग) कुरुक्षेत्र
(घ) उर्वशी।
उत्तर:
(ग) कुरुक्षेत्र

प्रश्न 4.
सच्चा मानव किस पर विजय प्राप्त करता है ? ।
(क) गुणों पर
(ख) दुर्गुणों पर
(ग) सगुणों पर
(घ) निर्गुण पर।
उत्तर:
(ख) दुर्गुणों पर।

मानव सप्रसंग व्याख्या

1. धर्म का दीपक दया का दीप
कब जलेगा, कब जलेगा, विश्व में भगवान् ?
कब सुकोमल ज्योति से अभिषिक्त-
हो, सरस होंगे जली-सूखी रसा के प्राण ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
अभिषिक्त = परिपूर्ण। सरस = हरे भरे। रसा = धरती, पृथ्वी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी के खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग में संकलित शीर्षक मानव से लिया गया है। इसमें कवि ने विश्व में सुख शांति लाने के लिए मानवता का संदेश दिया है।

व्याख्या :
कवि ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ कहता है कि हे भगवान् ! इस विश्व में कब धर्म और दया के दीपक जल-जलकर प्रकाश करेंगे। संसार में कब धर्म और दया का प्रसार होगा ? और कब अत्यन्त कोमल आशा के प्रकाश से परिपूर्ण होकर निराशा और संघर्ष से जली और सूखी धरती सुखी होगी। कब इस धरती से युद्ध के भय और निराशा का अन्त होगा?

विशेष :

  1. कवि ईश्वर से विश्वशान्ति स्थापित करने की प्रार्थना कर रहा है।
  2. शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग है।
  3. तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. ओजगुण है।

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2. यह मनुज ब्रह्माण्ड का सब से सुरम्य प्रकाश,
कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश।
यह मनुष्य जिसकी शिखा उद्दाम।
कर रहे जिसको चराचर भक्तियुक्त प्रणाम।
यह मनुज जो सृष्टि का श्रृंगार।
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मनुज = मनुष्य। ब्रह्माण्ड = सृष्टि। सुरम्य = सुन्दर। शिखा = ज्योति, लौ। उदाम = प्रबल। आलोक = प्रकाश। आगार = भंडार, खज़ाना।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० रामधारी सिंह दिनकर जी के खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग में संकलित काव्यांश से लिया गया है। इसमें कवि ने मानव को सृष्टि की श्रेष्ठ रचना बताया है

व्याख्या :
कवि कहता है कि मनुष्य जो इस सृष्टि का सब से सुन्दर प्रकाश एवं प्राणी है। उससे पृथ्वी और आकाश अपना कोई भी रहस्य नहीं छिपा सकते। यहीं वह मनुष्य जिसके तेज़ का प्रकाश बड़ा प्रबल है, जिसे सारी जड़-चेतन प्रकृति भक्तिपूर्वक प्रणाम करती है। सारे जड़-चेतन मनुष्य की सत्ता को स्वीकार करते हैं। यह मनुष्य सृष्टि का श्रृंगार है। सृष्टि की सुन्दरतम रचना है, इससे सृष्टि की शोभा बढ़ती है। यह मनुष्य ज्ञान, विज्ञान तथा प्रकाश का भंडार है । मनुष्य अपने कर्मों से सृष्टि की शोभा को बढ़ाता है।

विशेष :

  1. कवि कहना चाहता है कि मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। उसे ज्ञान भण्डार की कमी नहीं है फिर भी वह बुरे कर्मों की ओर आकर्षित है।
  2. भाषा सशक्त, प्रभावशाली तथा प्रवाहमय है।
  3. शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग है।
  4. तत्सम शब्दावली है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।
  6. ओजगुण है।

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3. वह मनुज, जो ज्ञान का आगार।
यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार।
नाम सुन भूलो नहीं, सोचो-विचारो कृत्य।
यह मनुज, संहार सेवी, वासना का भृत्य।
छद्म इसकी कल्पना, पाखण्ड इस का ज्ञान।
यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान।

कठिन शब्दों के अर्थ :
आगार = भण्डार। कृत्य = कार्य। संहार सेवी = विध्वंस को प्यार करने वाला, हिंसावादी। भृत्य = नौकर, दास। छद्म = छल-कपट।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के द्वारा रचित खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग से अवतरित किया गया है। कवि ने इस धरती पर विज्ञान के विकास और अनेक प्रकार के लाभों को प्राप्त करने के बाद भी मानव के स्वार्थी-भावों के समाप्त न होने पर दुःख व्यक्त किया है और शोषण की समाप्ति की कामना की है।

व्याख्या :
यह मनुष्य जो ज्ञान का आगार है, खज़ाना है, जो संसार का भूषण है, उसका नाम सुनकर ही भूल में न पड़ जाना। तुम्हें उसके कार्यों पर अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए। यह तो विनाश की उपासना करता है। यह विषय-वासनाओं का दास है। इस की कल्पनाएँ, आशाएं और ज्ञान सब धोखा है, दिखावा मात्र है। यह मनुष्य से मनुष्यता का सब से बड़ा अपमान है। यह मानवता का कलंक है।

विशेष :

  1. कवि ने युधिष्ठिर के माध्यम से बुद्धिवादी मानव के कुकृत्यों पर प्रकाश डाला है।
  2. कवि ने द्वापर युग का मानवीकरण किया है।
  3. ओज गुण की प्रधानता है।
  4. तत्सम और तद्भव शब्दावली का मिला-जुला प्रयोग किया गया है।

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4. व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,
पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।
श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत,
श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत,
एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान,
तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी, वही विद्वान,
और मानव भी वही।

कठिन शब्दों के अर्थ :
व्योम = आकाश। ज्ञेय = जान लेना, मालूम कर लेना, जिसे जान लिया गया है। श्रेय = महत्ता। चैतन्य = सजग, चेतना से युक्त। उर = हृदय। असीमित = असंख्य। प्रीत = प्रेम। व्यवधान = दूरी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह दिनकर जी के खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग में संकलित ‘मानव’ शीर्षक से लिया गया है।

व्याख्या :
कवि सच्चा मानव कौन हो सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर देता हुआ कहता है कि यह सच है कि आकाश से लेकर पाताल तक मनुष्य ने अपनी बुद्धि-शक्ति से सब कुछ जान लिया है, परन्तु यह न तो मनुष्य का वास्तविक परिचय है और न इसमें उसकी महत्ता है। मनुष्य की महत्ता इसी में है कि वह अपनी बुद्धि की दासता से मुक्त हो और उसके सजग हृदय का उसकी बुद्धि पर आधिपत्य हो। वह बुद्धिवादी न होकर मनःवादी होकर असंख्य मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम का सच्चा प्रदर्शन करे। वही मनुष्य ज्ञानी है, विद्वान् है और सच्चे अर्थों में मानव है जो एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के बीच बनी दूरी को मिटा दे तथा पारस्परिक भेदभाव वैर भाव को नष्टकर उन्हें एकता और भाईचारे के सूत्र में बांध दें।

विशेष :

  1. सच्चा मानव वह है जो अपने दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करके भाईचारे तथा सत्संगति का प्रचार करें।
  2. भाषा प्रभावशाली है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. शैली भावात्मक है।

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5. साम्य की वह रश्मि, स्निग्ध, उदार
कब खिलेगी, कब खिलेगी, विश्व में भगवान् ?
कब सुकोमल ज्योति से अभिषिक्त
हो सरस होंगे जली-सूखी रसा के प्राण ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
साम्य = समानता। रश्मि = किरण। स्निग्ध = स्नेहभरा। अभिषिक्त = परिपूर्ण। रसा = धरती।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री रामधारी सिंह दिनकर जी के खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग में संकलित ‘मानव’ शीर्षक काव्यांश से लिया गया है। कवि ईश्वर से जानना चाहता है कि इस धरती पर सुख-समृद्धि और शान्ति का युग कब आएगा।

व्याख्या :
कवि ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ कहता है कि समानता से धरती पर वास्तव में सुख और समृद्धि की वर्षा कब होगी ? हे भगवान् ! वह समानता की प्रेम भरी और उदार किरण विश्व में कब उतरेगी और कब उसके कोमल प्रकाश से भीगकर जली-सूखी धरती के प्राण हरे होंगे? दुःखों से सताई हुई धरती के निवासी कब वास्तविक और अपार आनंद में मग्न होंगे?

विशेष :

  1. कवि ने समाज में समान व्यवस्था का समर्थन किया है।
  2. भाषा प्रभावशाली है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. शैली भावपूर्ण है।

मानव Summary

मानव जीवन-परिचय

राष्ट्रीय चेतना के क्रान्तिकारी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म सन् 1908 ई० में मुंगेर जिले के सिमरिया में हुआ। इनके पिता एक साधारण किसान थे। उन्होंने अपनी प्रतिभा के विकास के लिए निरन्तर संघर्ष किया। अपने परिश्रम तथा अध्यवसाय द्वारा उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया। बाद में उन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद को सुशोभित किया। सन् 1952 में उन्हें राज्य-सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया। ___ इनकी काव्य-रचनाओं में ‘रेणुका’, ‘रसवंती’, ‘द्वन्द्वगीत’, ‘हुंकार’, ‘धूपछांव’, ‘सामधेनी’, ‘इतिहास के आंस’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मि-रथ’, ‘उर्वशी’ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। ‘उर्वशी’ के लिए इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।

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मानव कविता का सार

‘मानव’ शीर्षक कविता ‘दिनकर’ जी के प्रसिद्ध खंड काव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग से ली गई है। कवि ने मनुष्य को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना कहा है। मनुष्य को धरती, पाताल और आकाश की सब सूचना है। उसने ज्ञान और विज्ञान में अपार सफलता प्राप्त की है। इसीलिए मानव को सृष्टि का श्रृंगार कहा गया है परन्तु मानव का दूसरा पक्ष यह भी है कि वह संहार, वासना, पाखंड और छल-कपट की मूर्ति भी है। उसने धरती और आकाश की दूरी को माप कर दोनों को पास लाकर खड़ा कर दिया है परन्तु एक मनुष्य की दूसरे मनुष्य से दूरी अब भी बनी हुई है। मानव इस दूरी को दूर करने में सफल नहीं हो पाया है। कवि का कहना है कि केवल ज्ञान-विज्ञान के आधार पर ही मानव को ज्ञानी नहीं मानता। मानव तभी ज्ञानी हो सकता है जब वह दूसरे मानव से प्यार करना और भाइचारे से रहना सीख जाएगा। कवि ईश्वर से पूछता है कि मानव अधर्म और शत्रुता की भावना से कब बाहर आएगा और दया-धर्म का दीपक जलाएगा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो

Hindi Guide for Class 11 PSEB वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कवयित्री ने हिमाचल की किस पुकार और ‘उद्धि’ की गर्जन से किस ओर संकेत किया है ?
उत्तर:
युद्ध के साथ वसन्त का भी आगमन हो चुका है। इसलिए वीर युवक दुविधा में है कि उसे क्या करना चाहिए। हिमाचल पुकार-पुकार कर और सागर गरज-गरज कर यही पूछ रहा है कि वीरों का वसन्त कैसा होना चाहिए? उसे युद्ध के मैदान में वसन्त मनाना चाहिए।

प्रश्न 2.
वीरांगना अपने मन में चिन्तित क्यों हो रही है ?
उत्तर:
वीरांगना अपने मन में इसलिए चिन्तित हो रही है इधर बसन्त ऋतु का आगमन हुआ है और उधर पति युद्ध में जाने की तैयारी किये बैठा है। उसके हृदय में अनकहा भय का भाव विद्यमान है पर साथ ही साथ देश के प्रति निष्ठा और उसकी रक्षा के प्रति ज़िम्मेदारी का भाव भी उपस्थित है। वह भविष्य के विषय में कुछ कर नहीं सकती। जहाँ कोई उपाय न हो वहाँ चिंता तो होती ही है।

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प्रश्न 3.
कवयित्री अतीत से क्या पूछना चाहती है ? 40 शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर:
कवयित्री अतीत (बीते हुए समय) को अपनी चुप्पी तोड़कर यह बताने के लिए कहती है कि लंका दहन क्यों हुआ था? कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत का युद्ध क्यों हुआ था? इन दोनों ही घटनाओं के सम्बन्ध में उसे अपने असीम अनुभव बताने चाहिए।

प्रश्न 4.
हल्दीघाटी और सिंहगढ़ का दुर्ग किन महावीरों की स्मृतियाँ जगाना चाहता है ?
उत्तर:
हल्दीघाटी (मेवाड़ में एक स्थान) में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ था। अतः हल्दीघाटी महाराणा प्रताप की स्मृति को जगाना चाहती है। सिंहगढ़ के दुर्ग में छत्रपति शिवाजी के दाहिने हाथ ताना जी ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था। अत: यह दुर्ग ताना जी की वीरता की स्मृति जगाना चाहता है।

प्रश्न 5.
कवि भूषण’ एवं ‘चन्दवरदाई’ में क्या समानता थी ?
उत्तर:
दोनों कवि वीर रस की कविता लिखने के लिए विख्यात हैं। उनकी कविता नवयुवकों में उत्साह भर देती है। उन्हें युद्ध में लड़ने की प्रेरणा देती थी। वे केवल कवि ही नहीं थे बल्कि स्वयं भी योद्धा थे और युद्धभूमि में शत्रु के सामने डट कर खड़े हो जाते थे। वे दोनों अपने देश के लिए मर-मिटना जानते थे।

प्रश्न 6.
कवियों की कलम पर अंकुश क्यों लगा हुआ था ?
उत्तर:
कवयित्री ने प्रस्तुत पंक्ति में देश के परतन्त्र होने के समय लेखकों, साहित्यकारों एवं कवियों की भी कलम बंधी होने का संकेत दिया है। अंग्रेज़ी शासन में किसी को भी अपनी बात कहने या लिखने का अधिकार नहीं था। भारत उस समय अंग्रेजों का गुलाम जो था। देश में उस समय भूषण और चन्दवरदाई जैसे कवि नहीं थे जो अपनी कविता द्वारा सोयी हुई जनता में स्वतन्त्रता की आग फिर से भड़का दे।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो

प्रश्न 7.
धनी लोग परमात्मा की उपासना किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर:
धनी लोग परमात्मा की सेवा में कई तरह की बहुमूल्य वस्तुएँ भेंट कर उसकी उपासना करते हैं। वे धूमधाम से, साजबाज़ से मन्दिर में आते हैं और मोती, माणिक जैसी बहुमूल्य वस्तुएँ लाकर चढ़ाते हैं। उनकी भक्ति में भावना के साथ-साथ दिखावे का भाव भी जुड़ा रहता है।

प्रश्न 8.
‘धूप, दीप, नैवेद्य नहीं, झाँकी का श्रृंगार नहीं’ में कवयित्री का वास्तव में किस ओर संकेत है ?
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में कवयित्री का वास्तव में पूजा की सामग्री की ओर संकेत है जो उस ग़रीबनी के पास नहीं है, उसके पास तो प्रेम भरा हृदय ही है। उसके पास केवल श्रद्धापूर्ण भक्ति का भाव ही है।

प्रश्न 9.
समर्पण की निष्कपट भावना का चित्रण ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता में हुआ है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने समर्पण की निष्कपट भावना का सुन्दर चित्रण किया है। वह ग़रीबनी है। उसके पास पूजा की सामग्री भी नहीं है। झाँकी सजाने का सामान भी नहीं है। दान दक्षिणा के लिए भी कुछ नहीं है फिर भी वह सबसे बड़ी पुजारिन सिद्ध होती है क्योंकि उसके पास प्रेम भरा हृदय जो है और साथ ही अर्पण की ऊँची भावना भी भरी हुई है।

प्रश्न 10.
‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ या ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर:
(क) ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ कविता की कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने राष्ट्र प्रेम का वर्णन किया है। वसन्त आगमन तथा युद्ध में वीर का जाना एक साथ आ गया है। वीर युवक दुविधा में है कि उसे क्या करना चाहिए परन्तु वीरों के लिए वसन्त युद्ध का मैदान है। इसलिए कवयित्री तरह-तरह के उदाहरण देकर वीरों को युद्ध के लिए प्रेरित करती है। कवयित्री इस बात का दुःख है कि परतन्त्र देश में लेखकों की कलम भी प्रतिबंधित है इसलिए वीरों में शक्ति भरने का काम कवयित्री कर रही है उन्हें उनके कर्त्तव्य को पूरा करने के लिए प्रेरित कर रही है।

(ख) ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने एक अनजान, दिखावे से दूर ईश्वर प्रेम की प्यासी दासी का वर्णन किया है। वह ईश्वर भक्ति के लिए अपने साथ माया रूपी वस्तुएँ जैसा वस्त्र, सोनाचांदी, प्रसाद आदि साथ लेकर नहीं जाती, उसके पास केवल प्रेम से भरा हृदय है जिसे वह ईश्वर चरणों में समर्पित करती है। अपने आत्मसमपर्ण को वह ईश्वर पर छोड़ देती है कि यह उनकी इच्छा है चाहे उसकी भेंट को अपना ले या ठुकरा दें।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो

PSEB 11th Class Hindi Guide वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1904 में नाग पंचमी को।

प्रश्न 2.
सुभद्रा कुमारी चौहान के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर:
ठाकुर राम नाथ सिंह।

प्रश्न 3.
सुभद्रा कुमारी चौहान के पति का क्या नाम था ?
उत्तर:
ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान।

प्रश्न 4.
‘वीरों का कैसा हो वसंत’ नामक कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
सुभद्रा कुमारी चौहान।

प्रश्न 5.
वसंत की मादकता किसे अपनी ओर खींच रही है ?
उत्तर:
वसंत की मादकता वीर पुरुषों को अपनी ओर खींच रही है।

प्रश्न 6.
समुद्र गर्जना करता हुआ किससे प्रश्न पूछता है ?
उत्तर:
समुद्र गर्जना करते हुए वीर पुरुषों से प्रश्न पूछता है।

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प्रश्न 7.
वीर पुरुषों के लिए वसंत क्या होता है ?
उत्तर:
वीर पुरुषों के लिए वसंत युद्ध का मैदान होता है।

प्रश्न 8.
कवयित्री सुभद्रा किसे अपनी चुप्पी तोड़ने के लिए कहती है ?
उत्तर:
अतीत को।

प्रश्न 9.
कवयित्री अतीत को किसे और क्या बताने को कहती है ?
उत्तर:
देश के वीरों को आग लगने की बात।

प्रश्न 10.
कवयित्री ने लंका और ……. की याद दिलाई है ।
उत्तर:
कुरुक्षेत्र।

प्रश्न 11.
भारतवासियों को रांग रंग छोड़कर …………… में कूदना चाहिए ।
उत्तर:
युद्ध क्षेत्र में।

प्रश्न 12.
राणा प्रताप के साथ कवयित्री ने किस अन्य वीर पुरुष के नाम का उल्लेख किया है ?
उत्तर:
तानाजी मूलसरे।

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प्रश्न 13.
राणा प्रताप की सेना ने हल्दी घाटी के मैदान में किसकी सेना के छक्के छुड़ाए थे ?
उत्तर:
अकबर।

प्रश्न 14.
कवयित्री वीरों को उन युद्धों के माध्यम से किसकी याद दिलाती है ?
उत्तर:
उनके कर्तव्यों की।

प्रश्न 15.
वीरों की वीरता देखने के लिए कवयित्री किसके प्रार्थना करती है ?
उत्तर:
हल्दी घाटी और सिंहगढ़।

प्रश्न 16.
ताना जी ने किस पर विजय प्राप्त की थी ?
उत्तर:
सिंहगढ़ पर।

प्रश्न 17.
भूषण और चन्दवरदाई किस प्रकार के कवि थे ?
उत्तर:
वीर रस के कवि थे।

प्रश्न 18.
आजकल किस प्रकार के कवियों का अभाव है ?
उत्तर:
वीर रस के कवियों का।।

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प्रश्न 19.
कवयित्री मंदिर में ………….. करने जाती है ।
उत्तर:
प्रभु की पूजा।

प्रश्न 20.
कवयित्री के पास देवता की पूजा करने के लिए क्या नहीं था ?
उत्तर:
धूप और दीपक।

प्रश्न 21.
कवयित्री किस प्रकार मंदिर में गई थी ?
उत्तर:
खाली हाथ।

प्रश्न 22.
कवयित्री क्या चढ़ाने के लिए मंदिर आई थी ?
उत्तर:
अपने हृदय को।

प्रश्न 23.
कौन पूजा करने का तरीका नहीं जानता था ?
उत्तर:
कवयित्री।

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प्रश्न 24.
‘ठुकरा दो या प्यार करो’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
सुभद्रा कुमारी चौहान।

प्रश्न 25.
कलम कब परतंत्र हो जाती है ?
उत्तर:
परतंत्र देश में।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सुभद्रा कुमारी चौहान किस काव्यधारा की कवयित्री थीं ?
(क) राष्ट्रीय काव्य धारा
(ख) भाव काव्य
(ग) प्रेम काव्य
(घ) गीति काव्य।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय काव्य धारा

प्रश्न 2.
‘वीरों का कैसा हो वसंत’ कविता में कवयित्री ने किनका गुणगान किया है ?
(क) राजाओं का
(ख) देशभक्त वीरों का
(ग) गद्दारों का
(घ) नेताओं का।
उत्तर:
(ख) देशभक्त वीरों का

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प्रश्न 3.
कवयित्री मंदिर में क्या चढ़ाना चाहती थी ?
(क) हृदय
(ख) पुण्य
(ग) पुण्यावली
(घ) अंतरांजलि।
उत्तर:
(क) हृदय

प्रश्न 4.
कलम किस देश में परतंत्र हो जाती है ?
(क) स्वतंत्र
(ख) परतंत्र
(ग) गणतंत्र
(घ) स्वतंत्रता।
उत्तर:
(ख) परतंत्र।

वीरों का कैसा हो वसन्त सप्रसंग व्याख्या

1. वीरों का कैसा हो वसंत ?
आ रही हिमाचल से पुकार,
है उदधि गरजता बार-बार
प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार,
सब पूछ रहे हैं दिग-दिगन्त,
वीरों का कैसा हो वसंत ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
हिमाचल = हिमालय। उदधि = समुद्र । प्राची = पूर्व दिशा। अपार = असीम। दिग्दिगन्त = दिशाएँ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संकलित ‘वीरों का कैसा हो वसन्त ?’ शीर्षक कविता में से लिया गया है। वसन्त ऋतु मादकता का प्रतीक है। श्रृंगार रस के लिए भी यह ऋतु अति उपयुक्त मानी गयी है क्योंकि इस ऋतु में काम विशेष रूप से उद्दीप्त होता है। कवयित्री प्रस्तुत कविता में प्रश्न कर रही है कि वीर पुरुषों को वसन्त कैसे मनानी चाहिए। रतिक्रीड़ा में लीन रहना चाहिए या फिर युद्ध भूमि में जाकर अपनी वीरता और शौर्य का प्रदर्शन करना चाहिए।

व्याख्या :
कवयित्री प्रश्न करती है कि वीरों को वसन्त ऋतु कैसे मनानी चाहिए ? हिमालय से भी यही पुकार आ रही है। यही प्रश्न पूछा जा रहा है। समुद्र भी गर्जना करता हुआ यही पूछ रहा है। पूर्व दिशा, पश्चिम दिशा, पृथ्वी और असीम आकाश एवं सभी दिशाएँ भी यही प्रश्न पूछ रही हैं कि वीरों का वसन्त कैसा हो ? उन्हें वसन्त कैसे मनानी चाहिए।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री का भाव यह है कि वसन्त ऋतु के आगमन पर वीर पुरुष को युद्ध के लिए उसकी मातृभूमि पुकार वही है। उसे ऐसे समय में क्या करना चाहिए अर्थात् वीरों का वसन्त घर में हो या युद्ध भूमि में इसका निर्णय वीर पुरुष को करना चाहिए।
  2. भाषा शैली सहज तथा सरल है।
  3. मानवीकरण तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. ओज गुण है। वीर रस है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 8 वीरों का कैसा हो वसन्त?, ठुकरा दो या प्यार करो

2. भर रहीं कोकिला इधर तान,
मारू बाजे पर उधर गान,
है रंग और रण का विधान,
मिलने आए हैं आदि-अन्त,
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
कोकिला = कोयल। तान भर रही = मीठा राग गा रही। मारू बाजा = युद्ध भूमि में बजने वाला बाजा। रंग = राग रंग, भोग-विलास। रण = युद्ध। विधान = संरचना, तैयारी। आदि = आरम्भ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ से ली गई हैं, जिसमें कवयित्री ने वीरों से पूछा है कि उन्हें वसन्त कैसे मनाना चाहिए ?

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि वसन्तागमन पर कोयल ने मीठे गीत गाने शुरू कर दिये हैं; वह वातावरण में मादकता भर रही है और उधर युद्ध आरम्भ होने के बाजे बजने लगे हैं जो सूचना दे रहे हैं कि अब युद्ध शुरू होने वाला है। कवयित्री कहती है कि वसन्त आगमन पर रंग, यौवन का आनन्द मनाने का समय और युद्ध दोनों की एक साथ तैयारी हुई है।

कवयित्री के कहने का तात्पर्य यह है कि वीर पुरुष को एक ओर तो वसन्त की मादकता उसे काम-चेष्टाओं की ओर आकर्षित करती है तो दूसरी ओर स्वतन्त्रता संग्राम भी छिड़ गया है। युद्ध भूमि और कर्त्तव्य उसे अपनी ओर बुला रहे हैं। प्रेम और कर्त्तव्य दोनों एक साथ आ खड़े हुए हैं। दोनों विरोधी बातें हैं। इनका एक साथ आना ऐसा लगता है जैसे आदि और अन्त मिलने आए हों। इसलिए कवयित्री प्रश्न करती है कि ऐसे समय में वीर पुरुष अपनी वसन्त कैसे मनाएं ?

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में कवयित्री का भाव यह है कि वसन्त की मादकता वीर पुरुष को अपनी ओर खींच रही है। परन्तु उसका कर्त्तव्य उसे पुकार रहा है। उसके मन में दोनों को लेकर उथल-पुथल मची हुई है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. विरोधाभास और अनुप्रास अलंकार है।
  4. ओजगुण है। वीर रस है।

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3. फूली सरसों ने दिया रंग,
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग,
वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग
है वीर वेश में किन्तु कन्त ?
वीरों का कैसा हो बसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
मधु = शहद, मिठास। अनंग = काम देव। वसुधा = धरती। कन्त = स्वामी, पति, प्रिय।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’, शीर्षक कविता से ली गई हैं। इनमें कवयित्री ने वीरों की मनोस्थिति का वर्णन किया है। वसन्त और युद्ध दोनों एक समय में आ गया है। वीर पुरुष की पत्नी वसन्त देखकर प्रसन्न है परन्तु जब पति को युद्ध में जाने के लिए तैयार देखती है तो दुविधा में पड़ जाती है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि वसन्त में सरसों फूल कर रंग बिखेर रही है, चारों ओर पीली-पीली सरसों बिखरी हुई है। भँवरे भी फूलों से पराग लेकर गुन-गुन करते हुए प्रसन्नचित घूम रहे हैं। ऐसे पृथ्वी रूपी दुल्हन भी प्रसन्नता से झूम रही है। पृथ्वी प्रकृति के कारण तथा वीरांगना वसन्त के कारण खुशी से नाच रही है। परन्तु उसका पति तो वसन्त की मादकता को छोड़कर युद्धभूमि में जाने के लिए तैयार खड़ा है। वीर पुरुषों का वसन्त कैसा होना चाहिए ? उसे देश के लिए मर-मिटना चाहिए या प्रेम-भाव में डूबे रहना चाहिए ?

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री का भाव यह है कि वीर पुरुषों के जीवन में वसन्त का अर्थ युद्ध भूमि में अपने प्राणों की आहुति देने से होता है। वीर पुरुष को कोई बसन्त नहीं रोक सकता है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. पुनरुक्ति, अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
  4. ओजगुण है। वीर रस है।

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4. गलबाहें हों, या हो कृपाण
चल चितवन हो या धनुष-बाण,
हो रस-विलास या दलित-त्राण,
अब यही समस्या है दुरन्त,
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
गलबाहें = प्रिया की बाँहें गले में, भाव आलिंगन से है। चल चितवन = चंचल दृष्टि, कटाक्ष । रस-विलास = शृंगार रस और आनन्द मनाना भाव प्रणय क्रीड़ा या काम क्रीड़ा से। दलित-त्राण = दीन लोगों की रक्षा करना, उन्हें भयमुक्त करना। दुरन्त = कठिन, प्रचण्ड, अति गम्भीर।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। वसन्त और युद्ध एक ही समय पर आ जाने पर पुरुष के मन में दुविधा चल रही है कि उसे क्या करना चाहिए ? इन पंक्तियों में कवयित्री ने एक वीर पुरुष की दुविधा पूर्ण मनः स्थिति का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कवयित्री वसन्त ऋतु के आगमन पर वीरों के सामने प्रणय क्रीड़ा और युद्ध भूमि में जाना दोनों विकल्प एक साथ आ जाने पर प्रश्न करती है कि क्या वीर पुरुष अपनी प्रेमिका की बाँहों का हार अपने गले में धारण करे या फिर युद्ध भूमि में जाकर तलवार धारण करें। क्या वीर पुरुष अपनी प्रेमिका के चंचल नयनों के इशारों की ओर आकर्षित हो या फिर युद्ध भूमि में जाकर धनुष-बाण धारण करें। क्या वीर पुरुष रस-विलास, प्रणय क्रीड़ा में लीन हों या कि दलित लोगों की रक्षा करे अथवा उन्हें भय मुक्त करें। अब यही समस्या अति गम्भीर बनी हुई है कि वीर पुरुष अपनी वसन्त कैसे मनाएँ।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री का भाव है कि वीर पुरुष के सामने समस्या है कि उसे प्रिय की बाहें या तलवार में से किसे चुनना चाहिए। वीर पुरुषों के लिए वसन्त कैसा होना चाहिए ? इसका निर्णय उसे स्वयं करना चाहिए।
  2. भाषा शैली सरल तथा सहज है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. ओज गुण है। वीर रस है।

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5. कह दे अतीत अब मौन-त्याग,
लंके ! तुझ में क्यों लगी आग ?
ऐ कुरुक्षेत्र ! अब जाग, जाग,
बतला अपने अनुभव अनन्त
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
अतीत = बीता हुआ समय। मौन = चुप्पी। अनन्त = जिसका कोई अन्त न हो, अनगिनत, बेशुमार।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संकलित ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। इसमें कवयित्री वीर पुरुष से अपना मौन त्यागने के लिए कहती है और उसे उन महापुरुषों की याद दिलाती है जिन्होंने बड़े-बड़े युद्ध लड़े थे।

व्याख्या :
कवयित्री अपने प्रश्न-कि वीरों का वसन्त कैसा हो-का उत्तर बीते हुए समय से याद दिलाने के लिए कहती है। वह कहती है कि हे अतीत (बीते हुए युग) अब तू अपनी चुप्पी तोड़ दे। ऐ लंका ! मेरे देश के इन वीरों को बता कि तुझ में आग क्यों लगी थी? ऐ कुरुक्षेत्र ! अब तुम एक बार फिर जाग उठो और अपने अनगिनत अनुभव बताओ कि वीरों का वसन्त कैसा होना चाहिए ?

लंका और कुरुक्षेत्र की याद दिलाने से कवयित्री का तात्पर्य यह है कि लंका को आग हनुमान जी ने वीरता धारण करते हुए लगाई थी और कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन आदि वीरों ने अपना अद्भुत पराक्रम दिखलाया था। उसी प्रकार वीरता को धारण कर आज के भारतवासियों को राग-रंग छोड़ कर स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु युद्ध में कूद पड़ना चाहिए।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि वीर पुरुष अब तुझे चुप नहीं रहना चाहिए। तुझे यह निर्णय कर लेना चाहिए कि वीरों के लिए किस वसंत का अधिक महत्त्व है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. मानवीकरण, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार है।

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6. हल्दी घाटी के शिला-खण्ड,
ऐ दुर्ग ! सिंह-गढ़ के प्रचण्ड,
राना ताना का कर घमण्ड,
दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलन्त
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
हल्दी घाटी = मेवाड़ में एक स्थान-जहाँ राणा प्रताप और अकबर की सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ था। शिला-खण्ड = पहाड़ियों के टुकड़े-पत्थर, चट्टानें। सिंह गढ़ = दक्षिण में स्थित एक मज़बूत और ऊँचा किला जिसे जीतने के लिए छत्रपति शिवाजी के दाहिने हाथ ताना जी ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था तथा अपना बलिदान दे दिया था। प्रचण्ड = जबरदस्त, पक्का तथा ऊँचा। राना = राणा प्रताप। ताना = तानाजी मूलसरे। स्मृतियाँ = यादें। ज्वलन्त = उज्ज्वल।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ से लिया गया है। इसमें कवयित्री वीरों को उन युद्धों के माध्यम से उनके कर्तव्य की याद दिलाना चाहती है, जिनके कारण छत्रपति शिवाजी और महाराणा प्रताप अमर हो गए हैं।

व्याख्या :
कवयित्री वीरों को वसन्त कैसे मनाना चाहिए ? प्रश्न का उत्तर देने के लिये राणा प्रताप और तानाजी मूलसरे की वीरता देखने वाले स्थलों हल्दी घाटी और सिंहगढ़ से प्रार्थना करती है कि वे मेरे देश के नवयुवक वीरों को बताएँ कि वीरों ने वसन्त कैसे मनाया था।

कवयित्री कहती है कि हे हल्दी घाटी की पर्वत शिलाओं, हे प्रचण्ड (बहुत दृढ़ एवं ऊँचे) सिंहगढ़ दुर्ग, आप राणा प्रताप और तानाजी के गौरव एवं शौर्य की उज्ज्वल यादों को मेरे देश के नवयुवक वीरों को बताओ कि किस प्रकार राणा प्रताप ने हल्दी घाटी के मैदान में अकबर की सेना के छक्के छुड़ाए थे और किस प्रकार ताना जी ने सिंहगढ़ पर विजय प्राप्त करने के लिए वीरतापूर्वक लड़ते हुए अपना बलिदान किया था। आप बताओ कि वीरों को वसन्त कैसे मनाना चाहिए?

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि वीरो पुरुषों के लिए वसन्त युद्ध का मैदान होता है। वहाँ पर उसे अपने कर्तव्य की बलि-बेदी पर चढ़कर वसन्त मनाना है।
  2. भाषा शैली सरल तथा सहज है।
  3. मानवीकरण तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. वीर रस है।

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7. भूषण अथवा कवि चन्द नहीं
बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी, स्वच्छन्द नहीं,
फिर हमें बतावे कौन ? हन्त !
वीरों का कैसा हो वसन्त ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
भूषण = रीतिकालीन का एक कवि जिन्होंने छत्रपति शिवाजी और छत्रसाल की वीरता की प्रशंसा में वीर रस की कविताएँ लिखीं। चन्द = कवि चन्दरवरदाई-जो पृथ्वीराज चौहान के मित्र एवं दरबारी कवि थे। उन्होंने वीर रस की कविता रची। छन्द = कविता के छन्द । कलम बंधी परतन्त्रता के कारण लेखक स्वतन्त्रतापूर्वक लिख नहीं सकते उनकी कलम बंधी हुई है। स्वच्छन्द = स्वतन्त्र । हन्त = खेद है, दुःख है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य कृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ से लिया गया है। इसमें कवयित्री चन्दरवरदाई और भूषण कवियों को याद कर रही है। इन कवियों की लेखनी कायर से कायर पुरुष में भी वीरता का संचार कर देती थी।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि आज भारत परतन्त्र है। नवयुवकों में वीरता जगाने की आवश्यकता है किन्तु हाय, आज भूषण और चन्दवरदाई जैसे वीर रस की कविता लिखने वाले कवि नहीं हैं जो अपनी कविता द्वारा नवयुवकों में वीर रस जगाया करते थे। आज कोई भी ऐसी कविता लिखने वाला नहीं है जो देशवासियों की नसों में बिजली भर दे अथवा वीरता का संचार करे। इसका कारण यह है कि कवियों की, लेखकों की कलम भी, परतन्त्र होने के कारण, बंधी हुई है वे अपना मनचाहा लिखने के लिए स्वतन्त्र नहीं हैं। ऐसे में फिर हमें और कौन बताएगा कि वीरों का वसन्त कैसा होना चाहिए ? बस इसी बात का हमें खेद है, दःख है।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री का भाव है कि अब पहले जैसे कवि नहीं रहे हैं जो लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जगा सके। परतन्त्र देश में कलम भी परतन्त्र हो जाती है इसलिए वीरों को उनके कर्त्तव्य याद दिलाने में सभी असमर्थ हैं।
  2. भाषा शैली सरल तथा सहज है।
  3. विरोधाभास तथा अनुप्रास अलंकार है।

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तुकरा दो या प्यार करो सपसंग व्याख्या

1. देव ! तुम्हारे कई उपासक
कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे
कई रंग की लाते हैं
धूमधाम से, साजबाज से
वे मन्दिर में आते हैं।
मुक्ता-मणि बहुमूल्य वस्तुएँ
लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ :
उपासक = पूजा करने वाले। कई ढंग से = कई तरह से। कई रंग की = कई तरह की। धूमधाम से= समारोह मनाते हुए। साजबाज = सजधज कर। मुक्ता = मोती। मणि = बहुमूल्य पत्थर, हीरे।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति ‘मुकुल’ में संकलित कविता ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ में से लिया गया है। इसमें कवयित्री ने अपने नि:श्छल आत्मनिवेदन का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे प्रभु ! तुम्हारी पूजा करने वाले कई भक्त कई तरह से तुम्हारी पूजा करने के लिए आते हैं। वे तुम्हारी सेवा में भेंट करने के लिए अपने साथ कई तरह की बहुमूल्य वस्तुएँ लाते हैं। हे प्रभु ! ऐसे तुम्हारे भक्त बड़ी धूमधाम से सजधज कर मन्दिर में आते हैं और हीरे-मोती जैसी कीमती वस्तुएँ लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि ईश्वर की पूजा के लिए लोग मन्दिर में कुछ-न-कुछ लेकर आते हैं। सभी अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. भक्ति रस है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।

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2. मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी
जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मन्दिर में
पूजा करने को आयी।

कठिन शब्दों के अर्थ : गरीबिनी = निर्धन।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति में संग्रहीत ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ शीर्षक कविता से अवतरित हैं। इनमें कवयित्री स्वयं को गरीब पुजारिन बताती है जिसके पास भगवान को अर्पित करने के लिए कुछ भी नहीं है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि मैं ही ऐसी निर्धन हूँ जो पूजा में मन्दिर में देवता को चढ़ाने के लिए कोई भी वस्तु साथ नहीं लायी हूँ फिर भी हिम्मत करके मन्दिर में मैं पूजा करने चली आयी हूँ।

विशेष :
प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री का भाव यह है कि वह एक गरीब पुजारिन है जो खाली हाथ भक्ति भाव में मन्दिर में आई है।
भाषा शैली सरल और सहज है।
भक्ति रस है। माधुर्य गुण है।

3. धूप-दीप-नैवेद्य नहीं हैं
झांकी का श्रृंगार नहीं।
हाय ! गले में पहनाने को
फूलों का भी हार नहीं

                     कैसे करूँ कीर्तन,
                    मेरे स्वर में माधुर्य नहीं।
                    मन का भाव प्रकट करने को
                    वाणी में चातुर्य नहीं॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
नैवेद्य = देवता के लिए भोग की मिठाई या मीठी वस्तु। झाँकी = देवता की मूर्ति । शृंगार = सजावट। माधुर्य = मिठास। चातुर्य = चतुराई, निपुणता।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति में संग्रहीत ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ शीर्षक कविता से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री के यह भाव व्यक्त करती है कि उसके पास कुछ नहीं जिससे वह अपना भक्ति भाव प्रकट करे।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि मेरे पास तो देवता की पूजा करने के लिए धूप और दीपक भी नहीं है और न ही भोग लगाने के लिये कोई मीठी वस्तु ही है। मेरे पास तो देवता की मूर्ति को सजाने के लिए कोई सामान भी नहीं है यहाँ तक कि देवता के गले में पहनाने के लिए फूलों का हार भी नहीं है। मैं खाली हाथ मंदिर में ईश्वर की पूजा करने के लिए आई हूँ। मैं कीर्तन भी नहीं कर सकती क्योंकि न तो मेरे गले में मिठास है और न ही अपने मन के भावों को प्रकट करने वाली वाणी की चतुराई है। मैं हर तरह से खाली हूँ।।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि उसके पास भगवान को चढ़ाने के लिए लौकिक वस्तु नहीं है। पूजा सामग्री, भोग लगाने के लिए प्रसाद आदि भी नहीं है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. भक्ति रस है। माधुर्य गुण है।

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4. नहीं दान है नहीं दक्षिणा
खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती
फिर भी नाथ ! चली आयी

               पूजा और पुजापा प्रभुवर
               इसी पुजारिन को समझो
               दान दक्षिणा और निछावर
               इसी भिखारिन को समझो

कठिन शब्दों के अर्थ :
विधि = तरीका। नाथ = हे प्रभु। पुजापा = पूजा की सामग्री। निछावर = भेंट।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान काव्यकृति ‘मुकुल’ में संग्रहीत ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता से अवतरित है। इसमें कवयित्री स्वयं को प्रभु भक्ति की प्रक्रिया से अन्जान बताती है। इसलिए वह स्वयं को प्रभु चरणों में अर्पित करनी आयी है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे प्रभु ! मेरे पास न तो दान देने के लिए कुछ है न ही दक्षिणा देने के लिए। मैं तो खाली हाथ मन्दिर में आपके दर्शनों के लिए चली आई हूँ। मैं तो पूजा करने का तरीका भी नहीं जानती। फिर भी चली आई हूँ। हे प्रभु ! पूजा और पूजा की सामग्री आप इसी पुजारिन को समझो। इसी भिखारिन को, गरीबिनी को दान, दक्षिणा और भेंट के रूप में समझ लो। मैं खाली हाथ प्रभु भक्ति के लिए आई हूँ। मेरा भक्ति भाव से आना ही दान सामग्री सब कुछ है इसे स्वीकार करें।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि वह प्रभु भक्ति के विषय में कुछ नहीं जानती है इसलिए वह अपने साथ कुछ नहीं लाई है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. अनुप्रास अलंकार है। भक्ति रस है।

5. मैं उन्मत्त प्रेम की लोभी,
हृदय दिखाने आयी हूँ।
जो कुछ है, वह यही पास है,
इसे चढ़ाने आयी हूँ।

            चरणों पर अर्पित है, इसको
           चाहो तो स्वीकार करो।
           यह तो वस्तु तुम्हारी ही है।
           ठुकरा दो या प्यार करो॥

कठिन शब्दों के अर्थ : उन्मत्त = मतवाला। अर्पित है = भेंट है।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्यकृति ‘मुकुल’ में संग्रहित ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता से अवतरित हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री कहती है कि प्रभु चरणों में चढ़ाने के लिए उनके पास केवल उनका प्यार भरा हृदय है जिसे वह स्वीकार कर लें।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे प्रभु ! मैं तो आपको अपना मतवाले प्रेम का लोभी अपना हृदय दिखाने के लिए आयी हूँ। मेरे पास तो यही हृदय जिसे मैं मन्दिर में चढ़ाने के लिए आयी हूँ। यही इसे ही मैं तुम्हें भेंट करती हूँ। यह तो आप ही की वस्तु है चाहे इसे स्वीकार करो या इसे ठुकरा दो, चाहे तो इसे त्याग दो, चाहे इसे प्यार करके अपना लो। मेरे पास प्रेम से भरा हृदय है जिसे आप पर अर्पित करने के लिए लाई हूँ।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवयित्री का भाव यह है कि वह प्रभु चरणों में अर्पित करने के लिए दिखावे की वस्तुएँ नहीं लाई हैं। उसके पास प्रेम से भरा हृदय जिसे वह प्रभु चरणों में अर्पित करना चाहती है।
  2. भाषा शैली सरल और सहज है।
  3. भक्ति रस है।

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वीरों का कैसा हो वसन्त Summary

जीवन परिचय

हिन्दी कवयित्रियों में सुभद्रा कुमारी चौहान का प्रमुख स्थान है। काव्य के क्षेत्र में इन्होंने राष्ट्रीय और नारी हृदय की अनुभूतियों से अपनी कल्पनाओं का श्रृंगार किया है। इनका जन्म सन् 1904 की नाग पंचमी को प्रयाग के निहालपुर मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था। वे शिक्षा प्रेमी और उच्च विचार के व्यक्ति थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा प्रयाग में ही सम्पन्न हुई। इनका विवाह छात्रावस्था में ही खंडवा निवासी ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान के साथ हुआ था। सन् 1948 ई० में इनका निधन हो गया था।

इनके हृदय की भांति इनकी कविताएं भी सरल और निर्मल भावों से युक्त हैं। इनकी कविताओं के दो संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय है-‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’। इन्होंने अनेक राष्ट्रीय नेताओं के विषय में भी कविताएं लिखी हैं। इनकी कुछ कविताएं विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं-झांसी की रानी, वीरों का कैसा हो बसन्त, राखी की चुनौती, जलियां वाला बाग में बसन्त आदि। इन्हें ‘मुकुल’ और ‘बिखरेमोती’ पर भी पुरस्कार मिले थे।

वीरों का कैसा हो वसन्त कविता का सार

‘वीरों का कैसा हो वसन्त’ कविता की कवयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। इस कविता के माध्यम से कवयित्री वीर पुरुषों में वीर-भावनाओं का संचार करने का प्रयास करती हैं। कवयित्री यह प्रश्न पूछती है कि वीर पुरुषों का बसन्त कैसा होना चाहिए। वसन्त ऋतु तथा युद्ध में जाने का समय दोनों एक साथ आ गए हैं। वीर पुरुषों को युद्ध भूमि अपने कर्त्तव्य को पूरा करने के लिए पुकार रही है परन्तु वसन्त ऋतु की मादकता, उसकी पत्नी का साथ उसे वहां जाने से रोक रही है। वह दुविधा में है कि उसे क्या करना चाहिए। कवयित्री उसे उसके कर्त्तव्य की याद दिलाते हुए कह रही है कि वह अपने पूर्वजों द्वारा युद्ध भूमि में लड़े गए युद्धों को याद करके अपने कर्त्तव्य को पूरा करे। अब चन्दवरदाई तथा भूषण जैसे कवियों का भी अभाव है क्योंकि उन कवियों की लेखनी कायर से कायर पुरुष में शक्ति भरने का काम करती थी। आज परतन्त्र देश की लेखनी भी परतन्त्र है। वह अपना कर्त्तव्य पूरा करने में असमर्थ है। इसलिए वीर पुरुष तुम्हें ही निर्णय लेना है कि तुम्हारा वसन्त कैसा होना चाहिए।

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तुकरा दो या प्यार करो Summary

तुकरा दो या प्यार करो कविता का सार

‘ठुकरा दो या प्यार करो’ कविता की कवयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान हैं। इस कविता में सहज, सरल और निःश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति है। कवयित्री मन्दिर में प्रभु पूजा करने जाती है। वहाँ वह लोगों को विभिन्न वस्तुएं चढ़ाते हुए देखती है। उसे मन्दिर में खाली हाथ आना अच्छा नहीं लगता परन्तु वह प्रभु भक्ति की प्रक्रिया से अंजान है। वह अपने साथ मन्दिर में कुछ भी लेकर नहीं जाती है। वह प्रभु से निवेदन करती है कि उसके पास प्रेम से भरा हृदय है जो वह उनके चरणों में अर्पित करना चाहती है। अब प्रभु की इच्छा पर निर्भर है कि वे उसकी इस तुच्छ भेंट को प्यार से स्वीकार कर लें या फिर ठुकरा दें।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 7 वह तोड़ती पत्थर, जागो फिर एक बार

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 7 वह तोड़ती पत्थर, जागो फिर एक बार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 7 वह तोड़ती पत्थर, जागो फिर एक बार

Hindi Guide for Class 11 PSEB वह तोड़ती पत्थर, जागो फिर एक बार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कविता के आधार पर पत्थर तोड़ने वाली युवती का चित्रांकन करो।
उत्तर:
पत्थर तोड़ने वाली साँवले रंग की युवती पूर्ण रूप से जवान थी किन्तु निर्धनता के कारण उसके कपड़े तारतार हो रहे थे। इलाहाबाद के एक रास्ते पर आँखें नीची किए पत्थर तोड़ रही थी। वहाँ कोई छायादार वृक्ष भी नहीं था। धूप तेज़ हो रही थी। लू चल रही थी किन्तु वह काम में मस्त थी। उसने कवि की ओर ऐसी नज़रों से देखा जैसे कोई मार खाकर रोया न हो।

प्रश्न 2.
‘तोड़ती पत्थर’ कविता में कवि ने ग्रीष्म ऋतु का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर:
जिन दिनों वह युवती पत्थर तोड़ रही थी वे गर्मियों के दिन थे। धूप बढ़ रही थी और शरीर को झुलसाने वाली लू चल रही थी। उस लू में धरती रुई की भांति जल रही थी। उस समय धूल रूपी चिनगारियाँ चारों ओर छायी हुई थीं। वह दोपहर का समय था और दहकती हुई लू सब कुछ जला देने के लिए चारों तरफ फैल रही थी।

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प्रश्न 3.
कर्म में लीन होते हुए पत्थर तोड़ने वाली युवती के मन में क्या-क्या विचार आये ?
उत्तर:
कर्म में लीन होते हुए पत्थर तोड़ने वाली युवती के मन में यही विचार आया कि वह एक पत्थर तोड़ने वाली है। इससे पूर्व उसने कवि की ओर देखने से पहले उस भवन की ओर भी डरते हुए देखा था कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा। वह अपने मन में अपनी गरीबी, पीड़ा और असहायता के कारण दुखी थी। उसने सोचा होगा कि ईश्वर ने उसे गरीबी क्यों दी।

प्रश्न 4.
‘सवा सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँगा’ यह पंक्ति किसने कही और कवि इसके माध्यम से क्या कहना चाहता है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कही है। कवि इसके माध्यम से भारतीय वीरों को जागृत करना चाहता है। वह भारतवासियों को गुरु गोबिन्द सिंह जी की वीरता के माध्यम से यह याद दिलाना चाहता है कि हम भारतीय दुश्मनों के लिए लाख के बराबर हैं। हमें अपनी शक्ति पहचानकर उसे सबल बनाना चाहिए।

प्रश्न 5.
‘सिंहनी’ और ‘मेषमाता’ के उदाहरण के द्वारा कवि ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर:
सिंहनी और मेष माता के उदाहरण के द्वारा कवि हमें यह संदेश देना चाहता है कि जब कोई बाहरी शक्ति हम पर आक्रमण करती है तो उसका मुकाबला करना चाहिए। हमें किसी भेड़ के समान चुपचाप नहीं खड़े रहना चाहिए। शक्तिशाली मनुष्य के सामने कोई आँख नहीं उठा सकता है। कमज़ोर और कायर ही सदा अत्याचारियों के शिकार बनते हैं। उनका सामना अवश्य किया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
‘जागो फिर एक बार’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
‘जागो फिर एक बार’ कविता में सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी ने गुरु गोबिन्द सिंह जी की वीरता का उदाहरण देकर भारतवासियों की शक्ति को जागृत करने का प्रयास किया है। मनुष्य की बौद्धिक शक्ति को जागृत करके सरल बनाने को कहा है। किसी बाहरी दुश्मन का डटकर सामने करने का विश्वास जगाया है। हमें इतना शक्तिशाली बनना है कि निडर होकर विचरण करना था।

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PSEB 11th Class Hindi Guide वह तोड़ती पत्थर, जागो फिर एक बार Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म कब और कहाँ हआ था ?
उत्तर:
निराला जी का जन्म सन् 1896 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक स्थान पर हुआ था।

प्रश्न 2.
निराला जी के पिता का नाम और व्यवसाय क्या था ?
उत्तर:
इनके पिता का नाम पंडित राम सहाय त्रिपाठी था, जो उन्नाव के गड़कोला गांव के निवासी थे तथा महिषादल रियासत में कोषाध्यक्ष की नौकरी करते थे।

प्रश्न 3.
निराला जी की पत्नी का नाम क्या था ?
उत्तर:
मनोहरा देवी।

प्रश्न 4.
निराला जी की संतानें कितनी थीं और उनके नाम क्या थे ?
उत्तर:
दो, एक पुत्र राम कृष्ण तथा पुत्री सरोज।

प्रश्न 5.
निराला जी की पुत्री का निधन कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1935 ई० में।

प्रश्न 6.
‘सरोज-स्मृति’ कैसा गीत है ?
उत्तर:
शोक-गीत।

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प्रश्न 7.
निराला जी का निधन कब हुआ ?
उत्तर:
15 अक्तूबर, सन् 1961 ई० ।

प्रश्न 8.
निराला जी की प्रमुख काव्य-रचनाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, अर्चना, सरोजस्मृति, राम की शक्ति पूजा, नए पत्ते, आराधना, तुलसीदास आदि।

प्रश्न 9.
कवि निराला ने इलाहाबाद के रास्ते पर किसे देखा था ?
उत्तर:
एक पत्थर तोड़ती हुई साँवली जवान युवती को।

प्रश्न 10.
कवि निराला ने भारतवासियों को किसकी याद दिलाई है ?
उत्तर:
गुरु गोबिंद सिंह जी की।

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प्रश्न 11.
‘जागो फिर एक बार’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’।

प्रश्न 12.
मज़दूर महिला भीषण गर्मी में सड़क किनारे क्या कर रही थी ?
उत्तर:
पत्थर तोड़ रही थी।

प्रश्न 13.
मज़दूर महिला पत्थर क्यों तोड़ रही थी ?
उत्तर:
अपना पेट भरने के लिए।

प्रश्न 14.
मज़दूर महिला के हाथ में क्या था ?
उत्तर:
एक भारी हथौड़ा।

प्रश्न 15.
कवि निराला के हृदय को किसने छू लिया था ?
उत्तर:
मज़दूर महिला की दुःखभरी नज़र ने।

प्रश्न 16.
‘जागो फिर एक बार’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।

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प्रश्न 17.
गुरु गोबिंद सिंह जी अपने शत्रुओं के लिए कितनों के बराबर थे ?
उत्तर:
सवा लाख।

प्रश्न 18.
आजकल के युवकों में …………. का समावेश होना आवश्यक है ।
उत्तर:
संयम।

प्रश्न 19.
निराला भारतवासियों को किसके पराक्रम की याद दिलाते हैं ?
उत्तर:
गुरु गोबिंद सिंह।

प्रश्न 20.
अतीत में हमारे देश में …………….. हुए थे ।
उत्तर:
गौरवशाली वीर।

प्रश्न 21.
‘जागो फिर एक बार’ कविता में किस नदी के नाम का उल्लेख हुआ है ?
उत्तर:
सिन्धु नदी।

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प्रश्न 22.
वीरों के लिए मुक्ति क्या है ?
उत्तर:
देश की रक्षा के लिए वीरगति।

प्रश्न 23.
युद्ध क्षेत्र में उतरते हुए गुरु गोबिंद सिंह के मस्तक से क्या निकलती है ?
उत्तर:
धू-धू करती अग्नि।।

प्रश्न 24.
उस अग्नि में मृत्यु …………. हो गई थी ।
उत्तर:
जलकर भस्म।

प्रश्न 25.
मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला देवता कौन है ?
उत्तर:
भगवान् शंकर।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निराला किस छन्द के प्रवर्तक माने जाते हैं ?
(क) मुक्त छद
(ख) दोहा
(ग) चौपाई
(घ) सवैया।
उत्तर:
(क) मुक्त छन्द

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प्रश्न 2.
‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता किस भाव से ओत-प्रोत है ?
(क) प्रगतिवादी
(ख) प्रयोगवादी
(ग) छायावादी
(घ) हालावादी।
उत्तर:
(क) प्रगतिवादी

प्रश्न 3.
निराला किस अन्य नाम से प्रसिद्ध थे ?
(क) अज्ञेय
(ख) महाप्राण
(ग) देवप्राण
(घ) सुरप्राण।
उत्तर:
(ख) महाप्राण

प्रश्न 4.
कवि ने महिला की किस दशा का चित्रण किया है ?
(क) विरह
(ख) प्रेम
(ग) ग़रीबी
(घ) मिलन।
उत्तर:
(ग) ग़रीबी।

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वह तोड़ती पत्थर सप्रसंग व्याख्या

1. वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार,
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय कर्मरत मन।
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।

कठिन शब्दों के अर्थ :
तले = नीचे। स्वीकार = मर्जी से। श्याम तन = साँवला शरीर। भर-बंधा यौवन = भरपूर जवान । नत = झुके हुए। प्रिय-कर्म-रत-मन = अपने प्रिय काम में लगा हुआ मन । गुरु = भारी, बड़ा। प्रहार = चोट। तरु-मालिका = वृक्षों का समूह। अट्टालिका = कोठी । प्राकार = चार दीवारी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी द्वारा लिखित कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’ में से लिया गया है। यह कविता प्रगतिवादी रचना है। इसमें कवि ने एक पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का करुणा-पूर्ण चित्र अंकित किया है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि इलाहाबाद के रास्ते पर मैंने एक पत्थर तोड़ती हुई स्त्री देखी। जहाँ वह पत्थर तोड़ रही थी वहाँ कोई छायादार वृक्ष नहीं था जिसके नीचे बैठी विवश होकर अपनी मर्जी से वह अपना काम कर रही थी। साँवले रंग की वह स्त्री पूरी जवान थी। वह आँखें झुका कर अपने प्रिय काम-पत्थर तोड़ने में मग्न थी। उसके हाथ में एक भारी हथौड़ा था जिससे वह पत्थरों पर बार-बार चोट करती थी। उसके सामने ही वृक्षों की पंक्ति और कोठी की चारदीवारी थी।

विशेष :

  1. मज़दूर वर्ग के लोग अपनी जीविका चलाने के लिए भीषण गर्मी में काम करने के लिए मजबूर हैं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  4. मुक्तक छंद की प्रस्तुति अत्यन्त मनोहारी है।

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2. चढ़ रही थी धूप
गर्मियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप।
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू
गर्द चिनगी छा गई
प्रायः हुई दोपहर
वह तोड़ती पत्थर।

कठिन शब्दों के अर्थ :
दिवा = दिन, सूर्य। भू = पृथ्वी। गर्द = धूलि। चिनगी = चिंगारियों के समान, गर्म।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी द्वारा लिखित कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’ से लिया गया है। इसमें कवि ने मज़दूर महिला का चित्रण किया है। वह भीषण गर्मी में भी अपने पेट के लिए सड़क पर काम कर रही है।

व्याख्या :
कवि इलाहाबाद के रास्ते पर एक पत्थर तोड़ती हुई साँवली जवान युवती को देखते हैं तो उस समय धूप चढ़ रही थी। गर्मियों के दिन थे। सूर्य अपनी पूरी गर्मी के साथ चमक रहा था और झुलसाने वाली लू चल रही थी और धरती रुई की भांति जल रही थी और गर्म धूलि चारों ओर फैल रही थी। प्रायः उस समय दोपहर हो गई थी और वह युवती पत्थर तोड़ती ही जा रही थी।

विशेष ;

  1. मज़दूर महिला भीषण गर्मी में सड़क पर अपने परिवार का पेट भरने के लिए पत्थर तोड़ रही है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान है।
  3. उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  4. मुक्तक छंद की रचना है।

3. देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार।
देख कर कोई नहीं, देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोयी नहीं।

कठिन शब्दों के अर्थ :
छिन्नतार = फटे हुए कपड़े, तार-तार हुए कपड़े पहने।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी द्वारा लिखित कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’ से लिया गया है। इसमें कवि ने आर्थिक विषमता का वर्णन किया है। मज़दूर महिला भीषण गर्मी में अमीरों के महल के लिए पत्थर तोड़ रही है

व्याख्या :
कवि ने इलाहाबाद के रास्ते पर घोर गर्मी में पत्थर तोड़ती हुई युवती को देखा तो कवि को अपनी ओर देखते हुए उस युवती ने पहले कवि को फिर उस कोठी की ओर देखा, जिसके लिए वह पत्थर तोड़ रही थी। फिर उसकी नज़र अपने तार-तार हुए कपड़ों पर गई। जब उसने यह देखा कि उस समय कोई दूसरा वहाँ नहीं है। कोई उसे नहीं देख रहा है तो उसने कवि की ओर ऐसे देखा जैसे कोई मार खाकर रोया न हो। उसने अपनी सारी व्यथा अपनी नज़रों द्वारा ही व्यक्त कर दी।

विशेष :

  1. मज़दूर महिला ने जब कवि को अपनी ओर देखते हुए देखा तो उसे अपने फटे कपड़ों का ध्यान आया। उसकी आँखें उसकी पीड़ा व्यक्त कर रही थीं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान है।
  3. अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  4. मुक्तक छंद की रचना है।

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4. सजा सहज सितार
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार।
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा
‘मैं तोड़ती पत्थर’

कठिन शब्दों के अर्थ :
सहज = स्वाभाविक रूप से। सुघर = सुन्दर । सीकर = पसीने की बूंदें। लीन होते = मग्न होते हुए।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी द्वारा लिखित कविता ‘वह तोड़ती पत्थर’ से लिया गया है। इसमें कवि ने मज़दूर महिला की भावना व्यक्त की है, उसका कर्म पत्थर तोड़ना है। इसलिए वह पत्थर तोड़ रही है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि उस पत्थर तोड़ने वाली मज़दूर महिला ने मुझे जिस नज़र से देखा उसमें उसने अपनी सारी दुःख भरी कहानी कह दी जैसे कोई सितार पर स्वाभाविक रूप से उंगलियाँ चलाकर एक अद्भुत झंकार-सी उत्पन्न कर देता हो। वह सयानी सुन्दर युवती एक क्षण के बाद काँप उठी। उसके माथे पर पसीने की बूंदें झलक आईं उसने फिर से अपने काम में मग्न होते हुए मानो यह कहा कि हाँ मैं पत्थर तोड़ती हूँ।

विशेष :

  1. मज़दूर महिला की दुःखभरी नज़र ने कवि के हृदय को छू लिया। वह महिला क्षण भर रुकी, फिर अपने काम में लग गई।
  2. मुक्तक छन्द की रचना है।
  3. अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा अलंकार है।
  4. भाषा तत्सम प्रधान है।

जागो फिर एक बार सप्रसंग व्याख्या

1. जागो फिर एक बार
समर में अमर कर प्राण,
गान गाये महासिन्धु-से
सिन्धु-नद-तीरवासी !
सैन्धव तुरंगों पर
चतुरङ्ग चमू सङ्ग;
“सवा-सवा लाख पर
एक को चढ़ाऊंगा,”
गोबिन्द सिंह निज
नाम जब कहाऊंगा।” ।

कठिन शब्दों के अर्थ :
समर = युद्ध। अमर = जो कभी न मरे। महा सिन्धु = महासागर। सिन्धु-नद-तीरवासी = सिंध नदी के किनारे रहने वाले। सैन्धव = सिन्ध देश का। तुरंग = घोड़ा। चतुरङ्ग = हाथी, घोड़ा, रथ, पैदलसेना के चार अंग। चम् = सेना।।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्यांश छायावाद एवं प्रगतिवाद के प्रमुख कवि श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित काव्य ग्रन्थ ‘परिमल’ में संकलित कविता ‘जागो फिर एक बार’ से लिया गया है। यह कविता निराला जी की आरम्भिक कविताओं में से एक है। इसमें कवि की राष्ट्रीय भावना का भरपूर परिचय मिलता है। स्वभावतः इसमें युवाओं के हृदय में भरे आवेश और क्रान्ति का प्रखर स्वर सुनाई पड़ता है। इस कविता द्वारा निराला जी ने सम्पूर्ण भारतीय समाज को नई प्रेरणा और नई दिशा देने का प्रयास किया है।

व्याख्या :
कवि भारतवासियों को गुरु गोबिन्द सिंह जी के पराक्रम की याद दिलाता हुआ कहता है कि भारतवासियो तुम एक बार फिर जागो जैसे अतीत में हमारे देश में गौरवशाली वीर हुए थे जो युद्ध भूमि में वीरगति पाकर अमर हो गए और जिन्होंने महासागर के समान महान् वीरता के गीत गाए थे।

हे सिन्धु नदी के किनारे रहने वालो ! सिन्ध देश के घोड़ों पर सवार होकर चारों प्रकार की सेना (हाथी, घोड़े, रथ और पैदल) से युद्ध करते हुए तुमने यह ललकार किसकी सुनी थी कि सवा-सवा लाख पर एक सिंह को चढ़ाऊंगा तब मैं अपने को गोबिन्द सिंह नाम से कहलाऊंगा। सवा लाख से एक भारतीय योद्धा को लड़वा कर ही मैं अपना नाम सार्थक करूंगा।

विशेष :

  1. प्रस्तुत काव्यांश में कवि का भाव है कि भारत के वीर पुरुषों में देश भक्ति की भावना जागृत करता है। इसके लिए वह गुरु गोबिन्द सिंह जी का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
  2. भाषा सरल एवं सरस है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  4. छन्द मुक्त की रचना है।
  5. वीर रस विद्यमान है। देश-प्रेम की भावना व्यक्त की गई।

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2. किसने सुनाया यह
वीर-जन-मोहन अति
दुर्जन संग्राम-राग,
फाग का खेला रण
बारहों महीनों में ?
शेरों की मांद में
आया है आज स्यार-
जागो फिर एक बार !

कठिन शब्दों के अर्थ :
वीर-जन-मोहित = वीर पुरुषों को मोह लेने वाला। अति दुर्जय = जो शीघ्रता से जीता जा सके। संग्राम-राग = युद्ध गीत। फाग = होली। रण = युद्ध (यहां रंग)। मांद = गुफा, खोह, रहने का स्थान। स्यार = गीदड़।

प्रसंग :
यह काव्यांश छायावाद तथा प्रगतिवाद के प्रमुख कवि श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित काव्य ग्रन्थ ‘परिमल’ में संकलित कविता ‘जागो फिर एक बार’ से लिया गया है। इसमें कवि ने भारतीय नौजवानों में देशभक्ति की भावना का संचार करने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह जी की वीरता का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या :
कवि भारतवासियों को फिर से जगाने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह जी की उस उक्ति की याद दिलाता है, जिसमें इन्होंने कहा था कि ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं तभी गोबिन्द सिंह नाम कहाऊं’। कवि इसी उक्ति की याद दिलाता हुआ कहता है कि वीर लोगों को मोहित कर लेने वाला यह अति दुर्जय, जो शीघ्रता से न जीता जा सके युद्ध गीत किसने सुनाया था ? तनिक उसकी तो याद करो। उन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने बारह महीने युद्ध भूमि में शत्रुओं के खून से होली खेली थी।

हे भारतवासियो ! तुम सिंह हो, आज तुम्हारी मांद में, तुम्हारे घर में एक गीदड़ आ गया है क्या उसको मार भगाने के लिए तुम जागोगे नहीं, ऐसे ही सोये रहोगे। जरा गुरु गोबिन्द सिंह जी जैसे शूरवीरों को याद तो करो।।

विशेष :

  1. प्रस्तुत काव्यांश से कवि का भाव है कि भारतवासियो तुम्हें अपने देश में घुस आए दुश्मनों का सामना वीरता से करना चाहिए। इसलिए वह उन्हें गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा लड़े गए युद्धों में वीरता का वर्णन करता है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान है। छंद मुक्त की रचना है।
  3. वीर रस विद्यमान है। इसमें देश-प्रेम की भावना व्यक्त की गई है।

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3. सत् श्री अकाल,
भाल-अनल धक-धक कर जला,
भस्म हो गया था काल-
तीनों गुण-ताप त्रय,
अभय हो गये थे तुम
मृत्युञ्जय व्योमकेश के समान,
अमृत सन्तान ! तीव्र
भेदकर सप्तावरण-मरण-लोक,
शोकहारी ! पहुंचे थे वहां
जहां आसन है सहस्रार-
जागो फिर एक बार !

कठिन शब्दों के अर्थ :
भाल-अनल = आग का मस्तक। तीनों गुण = सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण। तापत्रय = दैहिक, दैविक, भौतिक ताप। अभय = निर्भय, भय रहित। मृत्युञ्जय = मृत्यु को जीतने वाला। व्योमकेश = शिव। अमृत संतान = वह संतान जिसने अमृत छका है। सप्तावरण = सात पर्दे। सहस्रार = हठयोग के अनुसार छ: चक्रों में से एक जो मस्तिष्क में होता है।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ छायावाद तथा प्रगतिवाद के प्रमुख कवि श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित काव्य ग्रन्थ ‘परिमल’ में संकलित कविता ‘जागो फिर एक बार’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि भारतीय नौजवानों को वीरता का पाठ पढ़ाना चाहता है। वीरों के लिए देश की रक्षा के लिए वीरगति प्राप्त करना संसार से मुक्ति है।

व्याख्या :
कवि पुन: गुरु गोबिन्द सिंह जी के पराक्रम का वर्णन करके सोये हुए भारतवासियों को जागृत कर रहा है। हे भारतवासियो ! जब गुरु गोबिन्द सिंह ‘सत् श्री अकाल’ का जयकारा बुलाते हुए युद्ध के क्षेत्र में उतरते थे तो उनके मस्तक से धू-धू करती हुई अग्नि प्रकट होती थी। (यहां कवि का संकेत गुरु गोबिन्द सिंह जी के तेजोमय मस्तक की ओर है) उस अग्नि में मृत्यु भी जल कर भस्म हो गयी थी। उस अग्नि से संसार के तीनों गुण (सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण) तथा तीनों ताप (दैहिक, दैविक भौतिक, दुःख-कष्ट) नष्ट हो गए थे। गुरु गोबिन्द सिंह के संरक्षण के कारण तुम (भारतवासी) भय रहित हो गए थे।

हे भारतवासियो ! उस समय तुम (गुरु गोबिन्द सिंह जी से प्रेरणा पाकर) मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले भगवान् शंकर की अमृत संतान जैसे बन गए थे। भाव यह कि गुरु गोबिन्द सिंह के रहते मृत्यु तुम पर विजय नहीं पा सकती थी अथवा तुम्हें मृत्यु का भय नहीं रहा था। हे भारतवासियो! तुम अपने भौतिक संसार (मृत्यु लोक) के सातों पर्दे (योगसाधना में सात प्रकार के आवरण माने जाते हैं) भेद कर (पार कर) हे शोक को दूर करने वाले ! तुम वहां पहुँच गए थे जहां हज़ार पंखुड़ियों वाला कमल खिला हुआ था (सहस्रार तक पहुंचने के पश्चात् मनुष्य पूर्णतः मुक्त हो जाता है।) इसलिए हे भारतवासियो ! तुम एक बार वैसे ही जाग पड़ो, सचेत हो जाओ।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश से निराला जी के योग साधना सम्बन्धी ज्ञान का परिचय मिलता है। भारतवासियों को योग-साधना से परिचित होना चाहिए। योग साधना से मनुष्य अपने पर संयम रखकर सामने वाले को पराजित कर सकता है।
  2. पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार है।
  3. भाषा तत्सम प्रधान है। छंद मुक्त की रचना है।
  4. देश प्रेम की भावना व्यक्त की गई है।

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4. सिंहनी की गोद से
छीनता रे शिशु कौन ?
मौन भी क्या रहती वह
रहते प्राण ? रे अजान !
एक मेषमाता ही
रहती है निर्निमेष-
दुर्बल वह-
छिनती सन्तान जब
जन्म पर अपने अभिशप्त
तप्त आंसू बहाती है-
किन्तु क्या,
योग्य जन जीता है,
पश्चिम की उक्ति नहीं
गीता है, गीता है-
स्मरण करो बार बार-
जागो फिर एक बार !

कठिन शब्दों के अर्थ :
मेषमाता = भेड़ की माँ। निर्निमेष = अपलक। अभिशप्त = शापित। तप्त = गर्म। उक्ति = कथन।

प्रसंग :
यह काव्यांश छायावाद तथा प्रगतिवाद के प्रमुख कवि श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ द्वारा लिखित काव्य ग्रन्थ ‘परिमल’ में संकलित कविता ‘जागो फिर एक बार’ से लिया गया है। इसमें कवि भारतीयों में शेरनी जैसी हिम्मत देखना चाहता है। अपने तथा उसकी संतान पर जब संकट आता है तब वह अपना सर्वस्व दुश्मन से मुकाबला करने के लिए लगा देती है।

व्याख्या :
कवि भारतवासियों में चेतना लाने के लिए उन्हें उनके पूर्व गौरव की याद दिलाता हुआ कहता है कि तुम तो शूरवीरों की संतान हो, शूरवीर कभी डरा नहीं करते। उदाहरण देते हुए कवि कहता है कि क्या कोई शेरनी की गोद से भी उसका बच्चा छीनता है, कोई नहीं छीनता अथवा छीनने की हिम्मत नहीं करता और यदि कहीं कोई उसके बच्चे को छीनने का प्रयास भी करता है तो क्या वह अपने प्राण रहते चुप रहती है, नहीं।

किन्तु जब कोई किसी भेड़ से उसका बच्चा छीनता है तो भेड़ की माता विवश होकर अपलक देखती रह जाती है। वह अपने शापित जन्म पर, जो अपनी सन्तान के छीने जाने पर उसकी रक्षा नहीं कर सकती, गर्म-गर्म आंसू बहाती है अथवा दुःख भरे आँसू बहाती है किन्तु क्या योग्य व्यक्ति, वीर व्यक्ति उस भेड़ की तरह जी सकता है ? यह कथन पश्चिमी देशों का नहीं हमारी गीता का ज्ञान है जिसे तुम बार-बार स्मरण करो और शत्रु का नाश करने के लिए एक बार फिर से जाग जाओ, सचेत हो जाओ।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवि का यह भाव है कि भारतवासियो तुम्हें अपने देश के मान-सम्मान की रक्षा के लिए एक शेर की तरह तैयार हो जाना चाहिए।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, प्रवाहमयी है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. छन्द मुक्त की रचना है।
  5. वीर रस विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 7 वह तोड़ती पत्थर, जागो फिर एक बार

5. पशु नहीं, वीर तुम,
समर-शूर, क्रूर नहीं,
काल-चक्र में हो दबे
आज तुम राजकुंवर ! समर-सरताज !
पर, क्या है,
सब माया है-माया है,
मुक्त हो सदा ही तुम,
बाधा विहीन बन्ध छन्द ज्यों,
डूबे आनन्द में सच्चिदानन्द रूप।

कठिन शब्दों के अर्थ :
समर सूर = युद्ध में शूरवीरता दिखाने वाले। क्रूर = निर्दय । काल-चक्र = समय के चक्र। समर-सरताज = युद्ध भूमि के अगुआ, नेता। माया = भ्रम, छल। बाधा विहीन = रुकावटों से रहित । बन्ध छन्द = बन्धनहीन छन्द। सच्चिदानन्द रूप = ब्रह्म रूप।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्यांश छायावाद तथा प्रगतिवाद के प्रमुख कवि श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित काव्य ग्रन्थ ‘परिमल’ में संकलित कविता ‘जागो फिर एक बार’ से अवतरित है। इसमें कवि ने भारतवासियों को उनके पूर्वजों के शौर्य की याद दिलाता है तथा उनसे कहता है कि तुम्हारी शक्ति दबी हुई है। उसे जागृत करने का समय आ गया है।

व्याख्या :
कवि भारतवासियों को उनके पूर्व अद्भुत शौर्य और पराक्रम की याद दिलाता हुआ कहता है कि हे भारतवासियो ! तुम अपने आपको पशु समान क्यों समझते हो, तुम तो महावीर और पराक्रमी हो। युद्ध भूमि में सदा तुम ने अपनी शूरवीरता का परिचय दिया है। तुम निर्दय नहीं हो ; निष्ठुर नहीं हो।

यह भिन्न बात है कि इस समय तुम समय के चक्र में दब गए हो किन्तु तुम्हारी अपार शक्ति किसी से छिपी नहीं है। आज भी तुम राजकुंवर हो, युद्ध क्षेत्र में सब के अगुआ हो, नेता हो, तुम आज भी युद्ध करने में कुशल हो, किंतु इस सबसे क्या होता है ? यह तो केवल भ्रम है, माया है कि तुम परतंत्र हो। वास्तविकता तो यह है कि तुम सदा-सदा से उसी तरह से मुक्त रहे हो जैसे कि बंधन-हीन छंद होते हैं। तुम तो सदैव सच्चिदानंद ब्रह्म में लीन रहे हो।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पंक्तियों से कवि का भाव यह है कि वह भारतीयों में देशभक्ति की भावना जागृत करना चाहता है। इसलिए उन्हें शूरवीर पूर्वजों के पराक्रम की याद दिलाता है।
  2. अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग है।
  3. भाषा तत्सम प्रधान है। छंद मुक्त रचना है।
  4. वीर रस विद्यमान है। देशभक्ति की भावना जागृत की गई है।

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6. महामन्त्र ऋषियों का
अणुओं-परमाणुओं में फूंका हुआ-
तुम हो महान्, तुम सदा हो महान्,
है नश्वर यह दीन भाव,
कायरता, कामपरता
ब्रह्म हो तुम,
पद-रज-भर भी है नहीं पूरा यह विश्व-भार-
जागो फिर एक बार।

कठिन शब्दों के अर्थ :
कामपरता = इच्छाओं के अधीन। पद-रज-भर = पैरों की धूलि के बराबर।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियां छायावाद तथा प्रगतिवाद के प्रमुख कवि श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा लिखित काव्यग्रन्थ ‘परिमल’ में संकलित कविता ‘जागो फिर एक बार’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि भारतवासियों को प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा उत्पन्न शक्ति की याद दिलाता है। उस शक्ति से पूरा संसार प्रभावित था। उस शक्ति को जागृत करने का समय आ गया है।

व्याख्या :
कवि भारतवासियों को उनके पूर्व अद्भुत शौर्य और पराक्रम की याद दिलाता हुआ कहता है कि हे भारतवासियो ! हमारे ऋषियों का यह महामन्त्र जिसे उन्होंने देश के अणुओं परमाणुओं में फूंक दिया है, देश के कोने-कोने में वह स्वर गूंज रहा है कि हे भारतवासियो ! तुम महान् हो, तुम सदा महान् रहोगे, इस दीनता के भाव को नष्ट कर दो क्योंकि ये भाव कायरता और इच्छाओं के अधीन होने के चिह्न हैं। तुम तो स्वयं ब्रह्म रूप हो और तुम्हारे समक्ष यह समूचे संसार का भार पैरों की धूलि के भार बराबर भी नहीं है। इसलिए हे भारतवासियो ! एक बार फिर जाग जाओ और संसार को अपनी वीरता और पराक्रम का परिचय दो।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में निराला जी वेदान्त से प्रभावित प्रतीत होते हैं। कवि ने भारतवासियों को उनके अंदर छिपी राष्ट्र भक्ति की याद दिलाई है। भारतवासी अपने सभी दुश्मनों का सामना करने में सक्षम हैं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान है।
  3. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। छंद मुक्त की रचना है।
  4. वीर रस विद्यमान है। देश भक्ति की भावना जागृत की गई है।

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वह तोड़ती पत्थर Summary

जीवन परिचय

आधुनिक हिन्दी काव्य-विकास की चर्चा में ‘निराला’ को महाप्राण, काव्य-पुरुष, महाकवि इत्यादि विशेषणों से सम्बोधित किया जाता है। इनका जन्म सन् 1896 में बंगाल प्रान्त के मेदिनीपुर जिले में महिषादल नामक स्थान पर हुआ था। इसी स्थान पर इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने अनेक भाषाओं का अध्ययन भी किया। वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस एवं विवेकानन्द की विचारधारा से विशेष प्रभावित थे। उन्मुक्तता अक्खड़ता के साथ निर्बल, असहाय एवं दीन दुःखियों की सहायता इनके व्यक्तित्व की विलक्षणता है। सन् 1961 में इनका निधन हो गया था।
निराला जी की काव्य-चेतना को अनेक रूपों में देखा जा सकता है। इनकी रचनाओं को काव्य-विकास की दृष्टि से क्रमशः तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम चरण 1921-36, द्वितीय चरण 1937-46, तृतीय चरण 1950-61। परिमल, अनामिका, गीतिका, अपरा, नए पत्ते, तुलसीदास इत्यादि इनकी उल्लेखनीय काव्य रचनाएँ हैं। निराला ही एक ऐसे कवि हैं जिन्होंने कठोर एवं कोमल भावों को आत्मसात् कर काव्य में रुपायित किया है। इनकी कविताओं में छायावादी कोमलता, सुन्दरता एवं कल्पना की बहुलता है। रहस्यवादी दार्शनिकता के साथ प्रगतिवादी आक्रोश तथा अवसाद भी है।

वह तोड़ती पत्थर का सार

‘तोड़ती पत्थर’ कविता के कवि ‘सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला जी’ हैं’। इस कविता के माध्यम से कवि ने मजदूर वर्ग को आर्थिक विषमता का वर्णन किया है। एक मज़दूर महिला भीष्ण गर्मी में सड़क किनारे पत्थर तोड़ रही है। उसके कपड़े भी फटे हुए हैं, जिस सड़क पर बैठी वह पत्थर तोड़ रही है, वहाँ उसके सामने बहुत बड़ा महल है, यह कैसी विडंबना है ? बड़े-बड़े महल खड़े करने वाले हाथ अपनी आजीविका के लिए भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ रहे हैं। यह आर्थिक विषमता के कारण है। शोषित वर्ग को जीवन के न्यूनतम साधन जुटाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ रहा है।’

जागो फिर एक बार Summary

जागो फिर एक बार कविता का सार

‘जागो फिर एक बार’ कविता के कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं। कवि ने कविता में गुरु गोबिन्द सिंह की वीरता का उदाहरण देकर मनुष्य की सोई हुई पौरुष शक्ति को जागृत करने का प्रयास किया है। गुरु गोबिन्द सिंह जी अपने शत्रुओं के लिए अकेले ही सवा लाख के बराबर थे। कवि ऐसी ही शक्ति आज के युवक में जागृत करना चाहता है जिससे वह आततायियों से लड़ सके। अपने देश की रक्षा कर सके। युवकों को गुरु गोबिन्द सिंह की तरह सभी प्रकार क्रियाओं में निपुण होना चाहिए। उनमें संयम का समावेश होना चाहिए। हममें शेरनी की तरह हिम्मत होनी चाहिए। जब हमारे देश की प्रभुसत्ता पर खतरा हो तो हम उसकी रक्षा के लिए डटकर सामना करना चाहिए। हमारे पूर्वजों का यश चारों दिशाओं में फैला हुआ है। हमें सदैव याद रखना है कि हम किन लोगों की सन्तान हैं और पूरे संसार को अपनी शक्ति का परिचय देना है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 6 पवनदूत Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 6 पवनदूत

Hindi Guide for Class 11 PSEB पवनदूत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण के वियोग में राधा की व्यथा का चित्रण करें।
उत्तर:
श्रीकृष्ण के वियोग में राधा दिन-रात रोती रहती थी। उसकी आँखों में सदा आँसू भरे रहते थे और वह अत्यंत उदास दिखाई देती थी। राधा भी चातक की तरह वियोग की पीड़ा की अधिकता के कारण दिन-रात पिउ-पिउ रटती रहती थी। उसके मन में श्रीकृष्ण से मिलन की लालसा दिन-रात बढ़ती जा रही थी। उसे सुखद वस्तुएँ और क्रियाएँ भी दुखदायी प्रतीत होती थीं।

प्रश्न 2.
पवन ने आकर राधा के दुःख को किस प्रकार कम किया ?
उत्तर:
प्रात:कालीन सुगन्धित पवन ने राधा के घर में प्रवेश कर राधा के घर को सुगन्धि से भर दिया। उसने अपनी सुगंध से राधा के व्यथित मन की पीड़ा को कम करने का प्रयास किया। इसी उद्देश्य से पवन ने राधा के आँसुओं को बड़ी शालीनता से पृथ्वी पर गिरा दिया। उसने तरह-तरह की क्रियाओं से उसकी विरह-वियोग से उत्पन्न पीड़ा को कम करना चाहिए।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

प्रश्न 3.
राधा ने पवन को दूत बना कर क्यों भेजा ?
उत्तर:
राधा ने पवन को दूत बनाकर इसलिए भेजा कि जब से श्रीकृष्ण मथुरा गए थे तो उन्होंने वहाँ से उन्हें कोई सन्देश नहीं भेजा था। राधा चाहती थी कि पवन मथुरा में श्रीकृष्ण के पास जाए और उसकी सारी विरह-गाथा उन को कह सुनाये।

प्रश्न 4.
राधा ने पवन को श्रीकृष्ण का परिचय किस प्रकार दिया ?
उत्तर:
राधा ने पवन को श्रीकृष्ण का परिचय देते हुए कहा कि श्रीकृष्ण के शरीर का रंग जल से भरे नए बादलों के समान साँवला, उनके नेत्र कमल के फूल के समान बड़े-बड़े हैं। उनकी मुख-मुद्रा सौम्यता की मूर्ति तथा उनके वचन अमृत रस में भीगे हुए हैं।

प्रश्न 5.
मुरझाये फूल, फूले कमलदल और मलिन लतिका जैसे उपमानों के द्वारा राधा ने अपनी व्यथा किस प्रकार व्यक्त की ?
उत्तर:
प्रस्तुत उपमानों के द्वारा राधा ने अपनी विरह-व्यथा व्यक्त करते हुए कहा है कि वह श्रीकृष्ण के वियोग में मुरझाए फूल के समान हो गयी है। खिले हुए कमल की पत्तियों को श्रीकृष्ण के सामने दुखित भाव से जल-पुंज में डुबा कर अपने आँसुओं को जताना चाहती है तथा सूखी लता को श्रीकृष्ण के कदमों में डालकर अपनी विरह वेदना से उन्हें परिचित करवाना है।

प्रश्न 6.
‘पवन दूत’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
‘पवन दूत’ कविता में कवि ने राधा की विरह-व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवि ने राधा द्वारा पवन को दूती बना कर अपनी विरह-वेदना श्रीकृष्ण तक पहुँचाने का प्रयास किया है। राधा ने पवन से श्रीकृष्ण की चरण धूलि को लेकर आने को कहा है। उस चरण-धूलि को अपने शरीर पर लगाकर अपना जीवन सफल बनाना चाहती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

PSEB 11th Class Hindi Guide पवनदूत Important Questions and Answers

अति लघसरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘प्रिय प्रवास’ का कौन-सा प्रसंग वायु को दूत बना कर भेजने से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
‘पवनदूत प्रसंग’।

प्रश्न 2.
कृष्ण के वियोग में राधा अपना समय कैसे बिताया करती थी ?
उत्तर:
रो-रो कर चिंता सहित।

प्रश्न 3.
राधा के आँस किसे भिगो रहे थे ?
उत्तर:
धरती को।

प्रश्न 4.
सुगंधित वायु ने राधा के घर में कहाँ से प्रवेश किया था ?
उत्तर:
वातायनों से।

प्रश्न 5.
पवन ने राधा के आँस कहाँ से कहाँ गिराये थे ?
उत्तर:
राधा की पलकों से धरती पर।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

प्रश्न 6.
पवन की प्यार वाली क्रियाएँ राधा को कैसी लगी थीं ?
उत्तर:
वैरिणी जैसी।

प्रश्न 7.
राधा ने पवन को कौन-सी गाली दी थी ?
उत्तर:
पापिष्ठे (पापी)।

प्रश्न 8.
श्रीकृष्ण का रंग कैसा था ?
उत्तर:
नव जलद-सा (नए-नए बादलों जैसा)।

प्रश्न 9.
श्रीकृष्ण से बिछुड़ कर राधा को किस पर भरोसा था ?
उत्तर:
वायु पर।

प्रश्न 10.
राधा ने वायु से कौन-सा संबंध जोड़ा था ?
उत्तर:
बहन का (भगिनी)।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

प्रश्न 11.
मथुरा नगरी किस नदी के किनारे बसी हुई थी ?
उत्तर:
यमुना नदी।

प्रश्न 12.
राधा ने किसके कष्टों को कम करने का पवन से आग्रह किया था ?
उत्तर:
मेहनत करने वाले श्रमिकों और किसानों का।

प्रश्न 13.
राधा ने पवन को किस के साथ खेलने के लिए कहा था ?
उत्तर:
कमल के फूलों, पेड़-पौधों और बेलों का।

प्रश्न 14.
मथुरा के मंदिर किस के समान ऊँचे वर्णित किए गए हैं ?
उत्तर:
सुमेरु पर्वत जैसे।

प्रश्न 15.
श्रीकृष्ण की आँखों को क्या कहा गया है ?
उत्तर:
ज्योति उत्कीर्णकारी।

प्रश्न 16.
श्रीकृष्ण के वस्त्र किस रंग के थे ?
उत्तर:
पीले रंग के।

प्रश्न 17.
श्रीकृष्ण की काली-काली लटें कहाँ की शोभा बढ़ा रही थीं ?
उत्तर:
गालों और कनपटियों की (गंडशोभी)।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

प्रश्न 18.
श्रीकृष्ण की भुजाएँ किस के समान शक्तिशाली और लंबी थीं ?
उत्तर:
हाथी की सूंड जैसी।।

प्रश्न 19.
अंभोजनेत्रा’ शब्द के द्वारा किस की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर:
राधा।

प्रश्न 20.
कवि ने किस छंद का प्रयोग किया है ?
उत्तर:
वार्णिक छंद।

प्रश्न 21.
कवि ने किस बोली का प्रमुखता से प्रयोग किया है ?
उत्तर:
खड़ी बोली।

प्रश्न 22.
किस शैली का प्रयोग प्रमुख रूप से किया गया है ?
उत्तर:
अतुकांत।

प्रश्न 23.
कवि ने किस काव्य गुण का प्रमुखता से प्रयोग किया है ?
उत्तर:
प्रसाद गुण।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

प्रश्न 24.
कवि की शब्द-योजना मुख्य रूप से कैसी है ?
उत्तर:
तत्सम-तद्भव शब्दावली का समन्वित प्रयोग।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का सुप्रसिद्ध महाकाव्य कौन सा है ?
(क) प्रिय प्रवास
(ख) प्रिय प्यार
(ग) प्रिय पाजेब
(घ) प्रिय-प्रिया।
उत्तर:
(क) प्रिय प्रवास

प्रश्न 2.
‘प्रिय प्रवास’ महाकाव्य किस भाषा में रचित है ?
(क) ब्रज
(ख) अवधी
(ग) खड़ी बोली
(घ) बुंदेली।
उत्तर:
(ग) खड़ी बोली

प्रश्न 3.
श्री कृष्ण ब्रज छोड़कर कहां चले गये थे ?
(क) मथुरा
(ख) काशी
(ग) वाराणसी
(घ) अयोध्या।
उत्तर:
(क) मथुरा

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

प्रश्न 4.
मथुरा नगरी किस नदी के तट पर विराजमान है ?
(क) गंगा
(ख) यमुना
(ग) सरस्वती
(घ) कावेरी।
उत्तर:
(ख) यमुना।

पवनदूत सप्रसंग व्याख्या

(1) नाना चिन्ता सहित दिनों को राधिका थी बिताती।
आँखों को थी सजल रखती उन्मना थी बिताती।
शोभा वाले जलद-वपु की हो री चातकी थी।
उत्कण्ठा थी परम प्रबल वेदना वर्द्धिता थी॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
सजल = आँसुओं भरे। उन्मना = उदास । जलद-वपु = मेघ जैसे शरीर वाले श्री कृष्ण। उत्कण्ठा = लालसा, बेचैनी । परम प्रबल = तीव्र । वेदना = पीड़ा, कष्ट, दुःख। वर्द्धिता = बढ़ रही।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी द्वारा लिखित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि राधा जी की वियोग दशा का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या :
कवि कहता है कि श्रीकृष्ण के वियोग में व्यतीत होने वाले प्रत्येक दिन को राधा रोते हुए और नाना प्रकार की दुश्चिंताओं में ग्रस्त होकर व्यतीत करती थी। उसकी आँखों में सदैव आँसू भरे रहते थे और वे अत्यन्त उदास दिखाई देती थी। वह मेघों जैसे कांति के शरीर वाले श्रीकृष्ण की वह चातकी बनी हुई थी, जैसे स्वाति नक्षत्र के बादलों के लिए व्याकुल होकर चातकी पिउ-पिउ रटती रहती थी, उसी प्रकार राधा जी भी श्रीकृष्ण के नाम की रट लगाए रहती थी। उनके मन में श्रीकृष्ण से मिलन की लालसा अधिक बढ़ती जा रही थी और श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति के कारण उनकी पीड़ा बढ़ती ही जा रही थी।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि राधा श्रीकृष्ण जी के वियोग में व्याकुल थी। वह चातकी की तरह अपने प्रिय के मिलन के लिए तड़प रही थी।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(2) बैठी खिन्ना एक दिवस वे गेह में थी अकेली।
आके आँसू युगल दृग में थे धरा को भिगोते।
आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गंध को ले।
प्रातः वाली सुपवन इसी काल-वातायनों से॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
एग दिवस = एक दिन । खिन्ना = उदास। दृग-युगल = दोनों आँखें। धरा = पृथ्वी। सदन = घर। सद्गंध = सुन्दर सुगंध। वातायनों = झरोखों।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी’ द्वारा लिखित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के पवन दूत प्रसंग से लिया गया है। इन पंक्तियों में कवि श्री कृष्ण जी के मथुरा चले जाने पर राधा जी की विरह दशा का वर्णन करता है।

व्याख्या :
कवि राधा जी की विरह दशा का वर्णन करते हुए कहता है कि एक दिन वे बड़ी उदास, अपने घर में अकेली बैठी थीं। उनकी आँखों में बहते आँसू पृथ्वी को भिगो रहे थे कि तभी उस घर में, फूलों की सुगन्धि से युक्त प्रातः वेला की पवन ने झरोखों के मार्ग से प्रवेश किया।

विशेष :

  1. राधा श्रीकृष्ण जी के वियोग में निरन्तर रोए जा रही थी।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. वियोग श्रृंगार रस विद्यमान है।

(3) आके पूरा सदन उसने सौरभीला बनाया।
चाहा सारा कलुष तन का राधिका के मिटाना।
जो बूंदें थीं सजल दृग के पक्ष में विद्यमाना।
धीरे-धीरे क्षिति पर उन्हें सौम्यता से गिराया॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
सौरभीला = सुगन्धित। सदन = घर। कलुष = क्लेश, व्यथा। सजल दृग = आँसू भरे नेत्र। पक्ष = बरौनियों, भवें। क्षिति = पृथ्वी। सौम्यता = मधुरता।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ जी द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने सुगन्धित पवन का वर्णन किया है। यह पवन राधा के मन की पीड़ा दूर करने की चेष्टा कर रही थी।

व्याख्या :
कवि कहता है कि मन्द गति से प्रवाहित प्रात:कालीन सुगन्धित वायु ने राधा जी के घर को सुगन्धि से भर दिया और वह वायु राधा जी के मन की व्यथा को मिटाने की चेष्टा करने लगी। इसी उद्देश्य से उसने राधा जी के आंसू भरे नेत्रों की बरौनियों में विद्यमान अश्रुकणों को बड़ी ही मधुरतापूर्वक अर्थात् शालीनता से पृथ्वी पर गिरा दिया।

विशेष :

  1. प्रकृति भी राधा जी के वियोग दूर करने के लिए उसके आस-पास सुगन्धित हवा बहा रही थी।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास तथा उपमा अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(4) श्री राधा को यह पवन की प्यार वाली क्रियाएँ।
थोड़ी-सी न सुखद हुई हो गई वैरिणी-सी।
भीनी-भीनी महक सिगरी शान्ति उन्मूलती थी।
पीड़ा देती व्यथित चित को वायु की स्निग्धता थी।

कठिन शब्दों के अर्थ :
भीनी-भीनी = हल्की-हल्की। महक = खुशबू। सिगरी = सारी। उन्मूलती = नष्ट कर रही थी। व्यथित = दुःखी। स्निग्धता = सरसता।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवनदूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने सुगन्धित पवन से राधा जी को होने वाली पीड़ा का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि वायु की यह प्रेम से भरी शालीन क्रिया भी राधा जी को सुख देने वाली न लग कर दुःखमयी और शत्रुतापूर्ण लग रही थी। वायु से जो हल्की-हल्की खुशबू आ रही थी, उससे उनके मन की शांति नष्ट हो रही थी और वायु की यह सरसता उनके दुखी चित को पीड़ा दे रही थी।

कवि का अभिप्राय यह है कि श्रीकृष्ण के वियोग में राधा जी के मन की व्यथा सुगन्धित वायु के संस्पर्श से और भी अधिक बह गई थी, क्योंकि वायु की इस क्रिया से राधा जी को संयोगकाल में श्रीकृष्ण से संस्पर्श करने की याद ताज़ा हो उठी थी।

विशेष :

  1. सुगन्धित हवा ने राधाजी की व्याकुलता को और बढ़ा दिया। उन्हें उस समय श्री कृष्ण जी के मिलन की याद आने लगी थी।
  2. भाषा प्रवाहमयी संस्कृत तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास तथा उपमा अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

(5) संतापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो।
धीरे बोली सदुख उससे श्रीमती राधिका यो।
“प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से॥”

कठिन शब्दों के अर्थ :
संतापों = दुःखों। विपुल = अत्यधिक। कलुषित = दूषित। क्रूरता = कठोरता।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय- प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इसमें कवि ने श्री कृष्ण के वियोग में संतप्त राधा की दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रात:कालीन सुगंधित वायु के प्रभाव स्वरूप जब राधा जी ने अपने मन की व्यथा को बहते देखा तो बड़े ही दुःखपूर्वक मन्द स्वर में उससे कहने लगी कि अरी ! प्रभातकालीन प्रिय वायु ! तू मुझे इस प्रकार क्यों दुखी कर रही है ? क्या तुम भी मेरी तरह समय की कठोरता से दूषित हो गई हो। क्या तुझ पर भी मेरी विरह की छाया पड़ गई है जिससे तू दूषित होकर क्रूर, कठोर या निर्दय हो गई हो ?

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि राधाजी सुगन्धित हवा चलने से और अधिक दुःखी हो जाती है। वह प्रभात बेला से उसे और दुःखी नहीं करने के लिए कहती है।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास अंलकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(6) मेरे प्यारे नव-जलद-से, कंज-से नेत्रवाले,
जाके आये न मधुवन से औ न भेजा सँदेसा।
मैं रो-रो के प्रिय-विरह से बावरी हो रही हूँ,
जाके मेरी सब कथा स्याम को तू सुना दे॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
नव = नये। जलद = बादल। कंज = कमल। मधुवन = मथुरा। बावरी = पगली। स्याम = श्रीकृष्ण।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के पवन-दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने राधा जी द्वारा पवन को दूत बनाकर श्री कृष्ण जी के पास मथुरा भेजने का वर्णन किया है। वह अपनी पीड़ा श्री कृष्ण जी के पास पहुँचाना चाहती है।

व्याख्या :
राधा प्रातः कालीन वायु की पहले तो तीव्र भर्त्सना करती है फिर उससे सखीपना स्थापित करते हुए कहती है कि हे प्रात:कालीन पवन ! मेरे प्रिय श्रीकृष्ण नए बादल के समान है, उनके शरीर का वर्ण बादलों जैसा सांवला है। वे कमल के समान नेत्रों वाले हैं, जो मथुरा जाकर फिर नहीं लौटे हैं और न ही वहां जाकर कोई सन्देश भेजा है। मैं श्रीकृष्ण के वियोग में रो-रोकर पागल हो रही हूँ। हे पवन ! तू श्रीकृष्ण के पास जाकर मेरी सारी कथा सुना देना।

विशेष :

  1. राधा जिस हवा के बहने के कारण दुखी थी, बाद में उसे ही अपनी दूत बना कर श्री कृष्ण के पास संदेश भेजती है।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

(7) कालिन्दी के तट पर घने रम्य उद्यान वाला।
ऊंचे-ऊंचे धवल-गृह की पंक्तियों से प्रशोभी।
जो है न्यारा नगर मथुरा प्राण प्यारा वहीं है।
मेरा सूना सदन तज के तू वहां शीघ्र ही जा।

कठिन शब्दों के अर्थ :
कालिन्दी = यमुना। रम्य = सुन्दर। उद्यान = बाग-बगीचे। धवल-गृह = सफेद घर। प्रशोभी = शोभायमान न्यारा । न्यारा = अलग। सदन = घर । तज के = छोड़ कर।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने राधा जी द्वारा पवन दूत को मथुरा का मार्ग बताने के विषय का वर्णन किया है।

व्याख्या :
राधा जी वायु को मथुरा जाने का रास्ता बताती हुई कहती है कि मथुरा नगर यमुना के तट पर बना है और वह नगर घने और सुन्दर बाग-बगीचों वाला है। वहां ऊंचे-ऊंचे सफेद घरों की पंक्तियाँ शोभायमान हो रही हैं। जो मथुरा नगर दूसरे नगरों से अलग है वहीं मेरे प्राण प्यारे श्रीकृष्ण रहते हैं। अतः मेरा यह सूना घर छोड़ कर तुम शीघ्र वहां जाओ और श्रीकृष्ण तक पहुँच जाओ।

विशेष :

  1. राधा जी हवा को श्री कृष्ण का पता बता कर शीघ्र वहाँ जाने के लिए कहती है।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(8) जाते-जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे।
तो जा के सन्निकट उसकी क्लान्तियों को मिटाना।
धीरे-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना।
सद्गंधों से श्रमित जन को हर्षित-सा बनाना॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
क्लान्त = थका हुआ। सन्निकट = पास जाकर। क्लान्तियों = थकावट। परस करके = स्पर्श करके। गात = शरीर के। उत्ताप = दुःख, व्याकुलता। खोना = दूर करना। सद्गंधों से = अपनी सुगन्धि से। श्रमित = थके हुए। दूषित-सा = प्रफुल्लित।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध द्वारा रचित महाकाव्य प्रिय-प्रवास के ‘पवन दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने राधा जी द्वारा पवन दूत को यह समझाने का प्रयास किया है कि मार्ग में यदि कोई थका मुसाफ़िर मिले तो उसे ठण्डक पहुंचाने का प्रयास करने का वर्णन है।

व्याख्या :
राधा जी मथुरा का मार्ग बताती हुई वायु से कहती है कि मथुरा जाते समय यदि तुम्हें रास्ते में थका हुआ व्यथित मुसाफिर दिखाई दे तू उसके समीप जाकर उसकी थकान और कष्टों को दूर करने की कृपा करना। उसके शरीर को धीरे-धीरे मधुर रीति से स्पर्श करते हुए उसकी थकान और कष्टों को दूर करना। अपनी सुगन्धि से उस थके हुए मुसाफ़िर को प्रफुल्लित कर देना।

विशेष :

  1. राधा जी हवा से दूसरे मुसाफ़िरों की सहायता करने के लिए कहती है।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(9) तेरे जैसी मृदु पवन से सर्वथा शान्ति-कामी,
कोई रोगी पथिक पथ में जो कहीं भी पड़ा हो।
तो तू मेरे सकल दुख को भूल के, धीर होके,
खोना सारा कलुष उसका शान्ति सर्वांग होना॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
मृदु = कोमल । सर्वथा = भली प्रकार, पूरी तरह । शान्ति-कामी = शान्ति चाहने वाला। कलुष = रुग्णता। सर्वांग = सभी अंगों की।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य प्रिय प्रवास के ‘पवन दूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इनमें कवि ने श्री कृष्ण के वियोग में संतप्त राधा की दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या :
राधा पवन को दूत बना कर श्रीकृष्ण के पास भेजती हुई कहती है कि हे सखी! तेरे जैसी कोमल पवन से जब कोई शान्ति की कामना करता हुआ रोगी मुसाफ़िर रास्ते में पड़ा हो, तो तू मेरे सारे दुःखों को भूलकर, थोड़ा धीरे होकर उसका सारा रोग और कष्ट हर लेना और उसके शरीर के सब अंगों को शान्ति प्रदान करना।

विशेष :

  1. राधा जी हवा से दूसरे मुसाफ़िरों की सहायता करने के लिए कहती है।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

(10) जाते-जाते पहुँच मथुरा-धाम में उत्सुका हो,
न्यारी शोभा वन नगर की देखना मुग्ध होना।
तू होवेगी चकित लख के मेरु-से मन्दिरों को,
आभावाले कलश जिनके दूसरे अर्क-से हैं।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मथुरा-धाम = मथुरा नगरी। न्यारी = अनोखी। लखके = देखकर। मेरु-से = सुमेरु पर्वत से। (कहते हैं कि सुमेरु पर्वत सोने का था।) कलश = मन्दिरों के कलश (छत्र) अर्क-से = सूर्य के समान ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने राधा जी द्वारा मथुरा नगरी की सुन्दरता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
राधा पवन को दूत बनाकर श्रीकृष्ण के पास भेजती हुई कहती है कि तू बड़ी उत्सुकता से आगे बढती जाना और मथुरा नगरी पहुँच कर वहां की अनोखी शोभा को देखती हुई मोहित हो उठना। तू वहां के ऊंचे और सुमेरु पर्वत के समान सुनहरी मन्दिरों को देखेगी तो आश्चर्य से चकित रह जाएगी। उन मन्दिरों के चमकते हुए कलश शोभा में दूसरे सूर्य जैसे हैं।

विशेष :

  1. मथुरा नगरी की सुंदरता का वर्णन किया गया है।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. उपमा तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. वियोग श्रृंगार रस विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(11) तू देखेगी जलद-तन को जा वहीं तद्गता हो,
होंगे लोने नयन उनके ज्योति-उत्कीर्णकारी।
मुद्रा होगी वह बदन की मूर्ति-सी सौम्यता की,
सीधे-साधे वचन उनके सिक्त पीयूष होंगे।

कठिन शब्दों के अर्थ :
जलद-तन = मेघ की सी कान्ति के शरीर वाले श्रीकृष्ण। तद्गता हो = तन्मय होकर। लोने = सुन्दर । ज्योति उत्कीर्णकारी = जिनमें से ज्योति (प्रकाश) निकल रहा हो। मुद्रा = भाव भंगिमा। बदन = मुख । सौम्यता = शालीनता। सिक्त = भीगे हुए। पीयूष = अमृत।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय-प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने श्री कृष्ण जी की सुन्दरता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
राधा पवन से कहती है कि जब तू मथुरा जाएगी तो तुझे मेघों जैसी श्याम कान्ति वाले मेरे प्रिय श्रीकृष्ण इन राजमहलों में ही दिखाई देंगे, जिनकी शारीरिक कान्ति और शोभा इतनी अधिक मनोहर है कि तू उन्हें देखते हुए तन्मय हो उठेगी, अपनी सुध-बुध खो बैठेगी। श्रीकृष्ण के नेत्र बहुत हो सुन्दर दिखाई देंगे, उनमें ज्योति की किरणें फूटती रही होंगी। उनके मुख की भाव भंगिमा तुझे ऐसी दिखाई देगी मानो वह शालीनता की प्रतिमूर्ति है जबकि उनके मुख से निकलने वाली वाणी अमृत रस में डूबी हुई प्रतीत होगी।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि राधा जी हवा को श्री कृष्ण जी के रूप-रंग के विषय में बताती है।
  2. भाषा प्रवाहमयी है संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. उपमा, रूपक अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

(12) नीले कुंजों सदृश उनके गात की श्यामता है,
पीला प्यारा वसन कोटि में पहनते हैं फबीला।
छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती,
सदवस्त्रों में नवल तन की फटती-सी प्रभा है।

कठिन शब्दों के अर्थ :
कुंजों = फूलों का समूह । गात = शरीर। श्यामता = सांवलापन। वसन = वस्त्र। कटि = कमर। फबीला = सजने वाला। अलक = लूट। सद्वस्त्रों = सुन्दर वस्त्रों। नवल-तन = नया शरीर अर्थात् युवावस्था को प्राप्त करता शरीर। प्रभा = प्रकाश, कांति।।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियां अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवनदूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इनमें कृष्ण वियोग में संतप्त राधा पवन को अपना दूत बना कर श्री कृष्ण के पास भेजती है।

व्याख्या :
राधा पवन को श्रीकृष्ण की रूपाकृति से परिचित करवाती हुई आगे कहती है कि श्रीकृष्ण के शरीर का सांवलापन खिले हुए नील कमलों की पंखुड़ियों के समान है। वे कमर में पीला वस्त्र पहनते हैं जो उनके सांवले शरीर पर अत्यधिक शोभा पाता है। उनके मुख पर धुंघराले बालों की लट उनके मुख से सौन्दर्य और कान्ति को और अधिक बढ़ा रही है। उनके सुन्दर वस्त्रों से युवावस्था में प्रवेश करते हुए शरीर की कांति फूट रही है। उनकी दिव्य शारीरिक कांति उनके वस्त्रों में भी नहीं छिप रही है।

विशेष :

  1. राधा जी हवा को श्री कृष्ण जी के रूप-रंग से परिचित करवा रही है। उन्हें डर है कि हवा उनका संदेश श्री कृष्ण के स्थान पर किसी अन्य को न दे दे।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुप्रास तथा अलंकार है।
  4. शृंगार रस का वर्णन है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(13) जाते ही छू कमल-दल से पाँव को पूत होना,
काली काली अलक मृदुता से कपोलों को हिलाना॥
क्रीड़ायें भी कलित करना ले दुकूलादिकों को,
धीरे-धीरे परस तन को, प्यार की बेलि बोना॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
कमल-दल-से = कमल के पत्तों के समान कोमल। पूत होना = पवित्र होना। अलक = लटें। मृदुता = कोमलता। कपोलों = गालों। क्रीड़ायें = खेल। कलित = सुन्दर। दुकूलदिकों की = दुपट्टे आदि की। परस = स्पर्श करके।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ हरिऔध रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें राधा ने पवन दूत को श्री कृष्ण का स्पर्श करने के लिए कहा है।

व्याख्या :
राधा पवन को दूत बना कर श्रीकृष्ण के पास भेजते हुए कह रही है कि तू जैसे ही मेरे प्रिय श्रीकृष्ण के भवन में प्रवेश करे उनके कमल की पंखुड़ियों के समान कोमल चरणों का स्पर्श करके तू अपने को पवित्र कर लेना। उस के बाद तू उनकी काली-काली सुन्दर लटाओं को बड़ी कोमलता से उनके गालों पर लहराना, हिलाना और उनके दुपट्टे आदि के साथ भी सुन्दर खेल खेलना, उन लटाओं को लहरा भी देना। फिर उनके कोमल शरीर का स्पर्श करके प्यार की बेल बोना, उनके हृदय में प्रेमलता अंकुरित कर देना।

विशेष :

  1. राधा जी हवा से श्रीकृष्ण जी को छूने के लिए कहती है। इससे श्रीकृष्ण जी को उनके प्यार का एहसास होगा।
  2. अनुप्रास तथा उपमा अलंकार है।
  3. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  4. श्रृंगार इस का वर्णन है।

(14) कोई प्यारा कुसुम कुम्हला भौन में जो पड़ा हो,
तो प्यारे के चरण पर ला डाल देना उसे तू।
यों देना ए पवन ! बतला फूल-सी एक बाला,
म्लाना हो हो कमल-पग को चूमना चाहती है।

कठिन शब्दों के अर्थ :
कुसुम = फूल। मौन = भवन। बाला = लड़की। म्लाना = दुखी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने विभिन्न साधनों द्वारा राधा जी की विरह पीड़ा श्रीकृष्ण तक पहुँचाने का वर्णन किया है।

व्याख्या :
राधा पवन से कहती है जो तुझे कोई प्यारा-सा मुरझाया फूल भवन में पड़ा हुआ मिले तो उस मुरझाये फूल को मेरे प्रिय के चरणों में लाकर डाल देना। इस तरह हे पवन ! तू श्रीकृष्ण को यह बतला देना कि एक फूलसी कोमल लड़की दुखी होकर उनके चरण कमलों को चूमना चाहती है।

विशेष :

  1. राधा जी हवा के द्वारा श्रीकृष्ण के चरणों में मुरझाए फूल अर्पित करके अपना दुःख प्रकट करना चाहती है।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता।
  3. उपमा तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(15) लाके फूले कमल-दल को श्याम के सामने ही
थोड़ा-थोड़ा विपुल जल में व्यग्र हो हो डुबाना।
यों देना तू भगिनी जतला एक अंभोजनेत्रा,
आँखों को हो विरह-बिधुरा वारि में बोरती है।

कठिन शब्दों के अर्थ :
फूले = खिले हुए। विपुल = अथाह । बहुत अधिक व्यग्र हो हो = व्याकुल हो-हो कर। भगिनी = बहन। अंभोजनेत्रा = कमल जैसी आंखों वाली। विरह-बिधुरा = विरह में पागल या दुखी। वारि में बोरती है = आंसुओं में डुबोती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इनमें कवि ने कृष्ण वियोग में संतप्त राधा के पवन को दूत बना कर श्री कृष्ण के पास भेजने का वर्णन किया गया है।

व्याख्या :
पवन से राधा कहती है कि हे बहन ! तू किसी खिले हुए कमल के फूल की पंखुड़ियों को उड़ाकर श्रीकृष्ण के सामने दुखित भाव से धीरे-धीरे जलपुंज में डुबोना और इस प्रकार श्रीकृष्ण को अहसास करा देना कि कमल जैसी आँखों वाली एक बाला राधा विरह-व्यथा के कारण अपनी आँखों को आँसुओं के जल में इसी प्रकार डुबो रही है तथा विरह कातर होकर वह सदा रोती रहती है।

विशेष :

  1. राधा जी हवा से कहती है कि वह अपने आचरण से श्रीकृष्ण जी को यह अनुभव कराए की राधा जी उनसे बिछुड़ कर बहुत दुखी है।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. रूपक तथा अनुप्रास अलंकार है।
  4. वियोग श्रृंगार रस है।

(16) सूखी जाती मलिन लतिका जो धरा में पड़ी हो,
तो तू पांवों के निकट उसको श्याम के ला गिराना।
यों सीधे से प्रकट करना प्रीति से वंचिता हो,
मेरा होना अति मलिन और सूखते नित्य जाना॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
मलिन = दुखी, मुरझाई हुई। लतिका = बेल। धरा = धरती, पृथ्वी। वंचित = रहित।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के पवन दूत’ प्रसंग से ली गई हैं। इनमें कवि ने कृष्ण वियोग में संतप्त राधा के पवन को दूत बना कर श्री कृष्ण के पास भेजने का वर्णन किया गया है।

व्याख्या :
राधा पवन को सम्बोधित करती हुई कहती है कि यदि कोई सूखी हुई मैली-कुचैली, गंदी-सी लता को धरती पर पड़े हुए देखो तो हे बहन ! उस लता को उठा कर श्रीकृष्ण के चरणों के निकट ला गिराना और उस सरल सीधी रीति से यह भाव व्यक्त कर देना कि उनके प्रेम से रहित होकर राधा दिन-रात सूखती जा रही है, क्षीण होती जा रही है।

विशेष :

  1. राधा जी हवा को उनका दुःख व्यक्त करने के साधन बताती है। वह अपने भावों से श्री कृष्ण जी को उनका दुःख बताए।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. उपमा अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(17) यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथायें,
धीरे-धीरे वहन करके पाँव की धूलि लाना।
थोड़ी-सी भी चरण-रज जो ला न देगी हमें तू,
हा! कैसे तो व्यथित चित को बोध मैं दे सकंगी।

कठिन शब्दों के अर्थ :
विदित करके = जता कर। वहन करके = उठाकर। बोध = आश्वासन, ज्ञान, समझ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन-दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने पवन दूत से श्री कृष्ण के चरणों की धूल लाने का वर्णन किया है।

व्याख्या :
पवन को संबोधित करते हुए राधा कहती है कि इस प्रकार प्रिय श्रीकृष्ण को मेरी सारी पीड़ाएँ बता देना और धीरे से उनके चरणों की धूलि को धीरे-से उठा कर ले आना। यदि तू मुझे श्रीकृष्ण की थोड़ी-सी भी चरण धूलि ला देगी तो मैं किसी प्रकार अपने विरह से दुखी चित्त को आश्वासन दे सकूँगी।

विशेष :

  1. राधा जी हवा से उनका दुःख श्री कृष्ण को व्यक्त करने के लिए कहती है तथा श्रीकृष्ण जी के चरणों की धूल अपने साथ लाने के लिए कहती है। इससे उनका विरह दुःख कम हो जाएगा।
  2. भाषा प्रवाहमयी है।
  3. उपमा अलंकार है।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

(18) जो ला देगी चरण-रज तू तो बड़ा पुण्य लेगी,
पूता हूँगी परम उसको अंग में मैं लगाके।
पोतुंगी जो हृदय-दल में वेदना दूर होगी,
डालूंगी मैं शिर पर उसे आँख में ले मलूंगी।

कठिन शब्दों के अर्थ :
पूता हूँगी = पवित्र हो जाऊंगी। अंग में = शरीर में। पोतूंगी = लिपटाऊँगी, लगाउँगी। ‘वेदना = पीड़ा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन-दृत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने पवन दूत से श्री कृष्ण के चरणों की धूल लाने का वर्णन किया है।

व्याख्या :
राधा पवन से प्रार्थना करती हुई कहती है कि यदि तू मुझे श्रीकृष्ण के चरणों की धूलि ला देगी तो तेरा बड़ा पुण्य होगा। मैं उसे अपने शरीर के अंगों पर लगाकर पवित्र हो जाऊँगी, जब मैं उस चरण धूलि को अपने शरीर पर लगाऊँगी तो मेरी विरह व्यथा दूर हो जाएगी। मैं उस पवित्र चरण धूलि को सिर पर डालूँगी और उसे अपनी आँखों में भी डालूँगी।

विशेष :

  1. राधा जी श्रीकृष्ण जी के चरणों की धूलि को अपने शरीर पर लगाकर, उनके होने का अनुभव करना चाहती थी।
  2. भाषा प्रवाहमयी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. अनुभव करना चाहती थी।
  4. वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

(19) पूरी होवें न यदि तुझसे अन्य बातें हमारी,
तो तू मेरी विनय इतनी मान ले औ चली जा।
छूके प्यारे कमल पग को प्यार के साथ आ जा,
जी जाऊँगी हृदय तल में मैं तुझी को लगाके॥”

कठिन शब्दों के अर्थ : विनय = प्रार्थना।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ द्वारा रचित महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के ‘पवन दूत’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने पवनदूत द्वारा चरणों की धूलि नहीं लाने पर, उसे केवल चरणों के स्पर्श को ही अपने साथ लाने का वर्णन किया है।

व्याख्या :
राधा पवन से प्रार्थना करते हुए कहती है कि यदि तुम से दूसरी बातें पूरी न हो सकें तो तू मेरी इतनी प्रार्थना को मान मथुरा नगरी में श्रीकृष्ण के पास चली जाओ और वहाँ श्रीकृष्ण के प्यारे चरणों को बड़े प्यार के साथ छूकर लौट आना तब मैं तुझे अपने दुखी हृदय से लगा कर सुख पाऊँगी।

विशेष :
श्री राधा जी हवा से कहती है कि यदि वह कुछ भी करने में असमर्थ है तो वह श्रीकृष्ण जी को छूकर ही आ जाए। वह उसके द्वारा उनकी छुवन को महसूस कर लेंगी।
भाषा प्रवाहमयी है।
वियोग शृंगार रस विद्यमान है।

पवनदूत Summary

पवनदूत जीवन परिचय

‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ का जन्म निजामबाद जिला आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में सन् 1865 ई० को हुआ था। उन्होंने अपने नाम-क्रम ‘सिंह’ (हरि) तथा अयोध्या (औध) को बदलकर ‘हरिऔध’ उपनाम से काव्य रचना की। ‘हरिऔध’ जी का गद्य और पद्य दोनों पर पूर्ण अधिकार था। किन्तु इन्हें काव्य जगत में विशेष प्रसिद्धि मिली। इनके रचनाकाल के समय खड़ी बोली अपने शैशवकाल में थी। इनकी मृत्यु सन् 1941 ई० में हो गई थी।

इनका प्रिय प्रवास महाकाव्य अत्यंत लोकप्रिय हुआ। इसमें भगवान श्री कृष्ण के ब्रज से मथुरा चले जाने पर गोपियों की विरह का मार्मिक चित्रण हुआ है। खड़ी बोली में इस प्रसंग को लेकर पहला काव्य रचा गया है। कवि ने अपने सभी ग्रन्थों में बड़े उपयुक्त छंदों, रसों और अलंकारों का वर्णन किया है। इन ग्रन्थों में प्राकृतिक छटा के बड़े सुन्दर उदाहरण हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 6 पवनदूत

पवनदूत का सार

कविता का सार ‘पवन दूत’ कविता अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा रचित प्रबन्ध काव्य ‘प्रिय-प्रवास’ से ली गई है। इसमें कवि ने राधा जी के विरह का वर्णन किया है। श्री कृष्ण जी के मथुरा जाने के बाद उनके वियोग में उनकी प्रेयसी राधा की हालत दयनीय हो जाती है। एक दिन वह श्री कृष्ण जी के वियोग में घर में बैठी आँसू बहा रही थी, उसी समय प्रातः कालीन सुगंधित पवन आकर सम्पूर्ण वातावरण को सुहावना बना देती है। परन्तु पवन का झोंका राधा जी की विरह वेदना को और बढ़ा देता है। उस समय राधा जी पवन को अपना दूत बनाकर श्री कृष्ण जी के पास अपनी विरह वेदना का संदेश भेजती है। वे पवन को मथुरा और श्री कृष्ण का परिचय देती है। वे पवन को श्री कृष्ण जी के चरणों की धूल लाने के लिए कहती है। क्योंकि राधा जी श्री कृष्ण जी के चरणों की धूलि को अपने तन पर लगाकर अपना जीवन सार्थक बनाना चाहती हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 4 दोहे Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 4 दोहे

Hindi Guide for Class 11 PSEB दोहे Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मानव शरीर की नश्वरता का प्रतिपादन करते हुए रहीम ने क्या कहा है ?
उत्तर:
रहीम जी मानव शरीर की नश्वरता के विषय में कहते हैं कि जब तक मनुष्य का शरीर चलता है तब तक उसके परिजन, मित्र आदि उसे अच्छी तरह पूछते हैं परन्तु जब वह बूढ़ा हो जाता है तब उसे कोई नहीं पूछता है। शरीर का मोल तब तक है जब तक काम आता है इसीलिए इसे नाशवान कहा गया है जिसका मोह नहीं करना चाहिए। इस नाशवान शरीर को तो मिटना ही है पर ईश्वर ही इसकी सदा सहायता करते हैं इसलिए उसे प्रभु को कभी नहीं भुलाना चाहिए।

प्रश्न 2.
रहीम जी ने कुपुत्र को सदैव कुल के लिए अपमान का कारण क्यों कहा है ?
उत्तर:
रहीम जी ने कुपुत्र को कुल के लिए अपमान का कारण इसलिए कहा है क्योंकि उसके बड़ा होने पर कुल में अँधेरा छा जाता है। कुल के दुःख बढ़ जाते हैं और उसके बुरे कर्म कुल के लिए अपमानजनक बनते हैं। जैसे-जैसे वह बढ़ता है वैसे-वैसे उसके द्वारा किए गए कुकर्म भी बढ़ते जाते हैं जिस कारण माता-पिता और परिवार की प्रतिष्ठा मिटती चली जाती है। कुपुत्र अपने पूरे वंश की ख्याति को मिट्टी में मिलाने का कार्य करता है।

प्रश्न 3.
रहीम जी ने मनुष्य को सोच समझ कर बोलने की शिक्षा देते हुए क्या कहा है ?
उत्तर:
रहीम जी कहते हैं कि मनुष्य को सोच समझकर बोलना चाहिए क्योंकि जीभ तो बुरा-भला बोल कर मुँह के अन्दर जाकर छिप जाती है और जूते सिर को खाने पड़ते हैं। बुरा बोलकर मनुष्य अपने रिश्ते-नाते खराब कर लेता है। जिह्वा से निकले हुए ग़लत बोल कभी भी दूसरे भुला नहीं पाते। किसी भी व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से लड़ाई का मूल कारण सदा बातचीत ही होती है। कड़वा और झगड़ालू व्यवहार बोलने से ही आरंभ होता है इसलिए सोच-समझ कर ही बोलना चाहिए।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

प्रश्न 4.
प्रेमपूर्वक खिलाये जाने वाले भोजन को रहीम जी ने उत्तम क्यों माना है ?
उत्तर:
रहीम जी के अनुसार प्रेमपूर्वक खिलाया गया भोजन उत्तम है क्योंकि उसके सादे भोजन में भी मिठास होती है और तन और मन दोनों को तृप्त कर देता है अपितु मैले मन से खिलाए गए पकवान पेट और मन दोनों खराब कर देते हैं। प्रेमपूर्वक किया गया व्यवहार और बातचीत सदा संबंधों को बढ़ाती है और पारस्परिकता को समृद्ध करती है।

प्रश्न 5.
प्रभु के प्रति विनय-भावना व्यक्त करते हुए रहीम ने क्या कहा ?
उत्तर:
रहीम जी ने प्रभु के प्रति विनय-भावना व्यक्त करते हुए कहा है प्रभु की मन से भक्ति करनी चाहिए और आदर भाव से उन्हें देखना चाहिए तभी वे वश में होते हैं। ईश्वर सदा भक्त की भक्ति ही चाहते हैं। ईश्वर तो दया की खान है। वह तो भक्त की पुकार पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाता है और उसकी क्षमा याचना से पहले ही क्षमा कर देता है।

प्रश्न 6.
रहीम जी के अनुसार प्रभु को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है ?
उत्तर:
रहीम जी के अनुसार प्रभु को प्राप्त करने के लिए मन से स्मरण करना चाहिए, आँखों में आदर लेकर पूर्ण रूप से उनके प्रति समर्पित होना ज़रूरी है। प्रभु की प्राप्ति उसे पुकारने से अवश्य हो जाती है। उसके प्रति मन में सच्चे भाव होने चाहिए। छल-फरेब और लालच से रहित मानव उसे सच्चे मन से चाहने पर अवश्य प्राप्त कर लेता है।

प्रश्न 7.
रहीम के अनुसार जीवन में सत्संगति का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
रहीम जी के अनुसार सत्संगति का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्त्व है। मनुष्य जिस संगति में बैठता है उसमें वैसे ही गुण आ जाते हैं। सत्संगति में बैठने से मनुष्य सज्जन पुरुष बन जाता है तथा चारों ओर प्रशंसा का पात्र बनता है। सत्संगति से मनुष्य अपने सहायक स्वयं प्राप्त कर लेता है जो सुख-दुःख में उसके सहायक बनते हैं।

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PSEB 11th Class Hindi Guide दोहे Important Questions and Answer

अति लघूतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि रहीम का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1553 में।

प्रश्न 2.
रहीम का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर:
अब्दुर्ररहीम खान खाना।

प्रश्न 3.
कवि रहीम के अनुसार प्रेम में किसका स्थान नहीं है ?
उत्तर:
कवि रहीम के अनुसार प्रेम में दिखावे का स्थान नहीं है।

प्रश्न 4.
किसे इधर-उधर खोजना व्यर्थ है ?
उत्तर:
परमात्मा को इधर-उधर खोजना व्यर्थ है।

प्रश्न 5.
हाथी किस धूल को ढूँढ़ रहा था ?
उत्तर:
हाथी उस धूल को ढूँढ़ रहा था जिससे गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार हुआ था।

प्रश्न 6.
कौन पहले ही अपनी स्थिति के कारण मरा हुआ होता है ?
उत्तर:
माँगने वाला व्यक्ति।

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प्रश्न 7.
मनुष्य पर किसका प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
मनुष्य पर अच्छी बुरी संगति का प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 8.
पेट भरने के लिए बलशाली को भी क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
पेट भरने के लिए बलशाली को भी दूसरों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है।

प्रश्न 9.
ईश्वर स्वयं किनकी चिंता करते हैं ?
उत्तर:
ईश्वर स्वयं उपयोगी तथा अनुपयोगी वस्तुओं की चिंता करते हैं।

प्रश्न 10.
कवि रहीम के अनुसार किसकी जीभ बड़ी पगली है ?
उत्तर:
मनुष्य की जीभ बड़ी पगली है।

प्रश्न 11.
कौन-सा शासक अच्छा होता है ?
उत्तर:
जो शासक चंद्रमा के समान सुख देता है वह अच्छा होता है।

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प्रश्न 12.
अधिकतर व्यक्ति किसके साथी होते हैं ?
उत्तर:
अधिकतर व्यक्ति दुःखों के साथी न होकर सुखों के साथी होते हैं।

प्रश्न 13.
कौन-से लोग मृत समान होते हैं ?
उत्तर:
जो लोग होने के बाद भी दान नहीं देते।

प्रश्न 14.
रहीम जी ने अपने दोहों में ……………… दिया है ।
उत्तर:
गहन संकेत।

प्रश्न 15.
माँगने वाला चाहे कितना ही हो वह ……………….. रहता है ।
उत्तर:
छोटा।

प्रश्न 16.
ईश्वर का वास ……….. में होता है ।
उत्तर:
मन।

प्रश्न 17.
प्रेम में किसका स्थान नहीं होता है ?
उत्तर:
दिखावे का।

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प्रश्न 18.
रहीम जी किस स्थान पर रहना चाहते हैं ?
उत्तर:
जिस स्थान पर लोग चरित्रवान हों।

प्रश्न 19.
सच्ची सेवा, आवभगत और उपकार किससे संभव है ?
उत्तर:
प्रेमभाव से।

प्रश्न 20.
गौतम ऋषि की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर:
अहिल्या।

प्रश्न 21.
मनुष्य को अपनी …………. की रक्षा करनी चाहिए ।
उत्तर:
मान-मर्यादा।

प्रश्न 22.
तालाब में पानी के साथ और क्या होता है ?
उत्तर:
कीचड़।

प्रश्न 23.
मनुष्य को अपनी जुबान पर क्या रखना चाहिए ?
उत्तर:
संयम।

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प्रश्न 24.
ताड़ और खजूर के पेड़ कैसे होते हैं ?
उत्तर:
बहुत बड़े।

प्रश्न 25.
कौन-से लोग पशु समान होते हैं ?
उत्तर:
जो दूसरों के गुणों पर रीझकर भी उसे कुछ नहीं देते।

प्रश्न 26.
परिवार में अंधेरा कब छा जाता है ?
उत्तर:
जब पुत्र कपूत निकल जाता है।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रहीम किसके नवरत्नों में से एक थे ?
(क) अकबर
(ख) शाहजहाँ
(ग) बीरबल
(घ) नूरजहां।
उत्तर:
(क) अकबर

प्रश्न 2.
रहीम किसके भक्त माने जाते हैं ?
(क) श्री राम के
(ख) श्री कृष्ण के
(ग) रहीम के
(घ) करीम के।
उत्तर:
(ख) श्री कृष्ण के

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प्रश्न 3.
रहीम के कौन से दोहे सुप्रसिद्ध हैं ?
(क) गीति के
(ख) रीति के
(ग) नीति के
(घ) प्रीति के।
उत्तर:
(ग) नीति के

प्रश्न 4.
रहीम के अनुसार ईश्वर का वास कहां होता है ?
(क) तन में
(ख) मन में
(ग) ब्रहम में
(घ) जगत में।
उत्तर:
(ख) मन में।

दोहों सप्रसंग व्याख्या

1. अमर बेलि बिनु मूल की, प्रति पालत जो ताहि ॥
रहिमन ऐसे प्रभुहि तजि, खोजत फिरिये काहि॥1॥

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें कवि ने मनुष्य को उपदेश दिया है कि उसे ईश्वर की खोज में व्यर्थ नहीं भटकना चाहिए। वह तो स्वयं सहायक बनकर उसके साथ ही मन में रहता

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि हे मनुष्य ! जो, ईश्वर बिना जड़ की अमर बेल का पालन-पोषण करते हैं तथा जिन पौधों की कोई रखवाली नहीं करता, उन्हें भी ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। तू ऐसे ईश्वर को छोड़कर व्यर्थ में उसकी खोज में इधर-उधर भटकता रहता है। वे तो स्वयं ही तेरा ध्यान रखते हैं।

विशेष :

  1. ईश्वर सब पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। उन्हें इधर-उधर खोजना व्यर्थ है। इसलिए सच्चे मन से उनकी आराधना करनी चाहिए।
  2. भाषा सरल तथा सामान्य बोलचाल की है।
  3. प्रसाद गुण है।
  4. शांत रस है।
  5. गेयता का गुण है।
  6. अनुप्रास अलंकार है।

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काम न काहू आवई, मोल रहीम न लेई।
बाजू टूटे बाज को, साहब चारा देइ ॥2॥

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें में कवि ने कहा है कि जो वस्तु काम में आने वाली न हो उसे कभी भी खरीदना नहीं चाहिए।

व्याख्या :
कवि कहते हैं कि जो वस्तु हमारे काम में आने वाली नहीं होती उसे खरीदना नहीं चाहिए। बेकार की वस्तुओं की चिन्ता ईश्वर स्वयं करते हैं। जैसे टूटे पंख वाले बाज के पेट को भरने की चिन्ता ईश्वर करते हैं। वही उसे खाना प्रदान कराते हैं। उसके लिए किसी को चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।

विशेष :

  1. ईश्वर उपयोगी तथा अनुपयोगी वस्तुओं की चिन्ता स्वयं करते हैं।
  2. भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
  3. प्रसाद गुण है।
  4. शान्त रस है।
  5. गेयता का गुण है।
  6. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।

धूरि धरत नित सीस पै, कह रहीम केहि काज।
जेहि रज मुनि-पतनी तर, सो ढूंढत गजराज॥3॥

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें कवि ने उस हाथी का वर्णन किया है जो सती अनसूया के चरणों की रज को ढूंढ़ रहा है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि हाथी प्रति दिन अपने सिर पर संड से धरती की धूल धारण करता है। वह ऐसा क्यों कर रहा है क्योंकि हाथी का अपने मस्तक पर धूल लगाने के पीछे भी कुछ कारण होगा। रहीम जी अपने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि हाथी उस धूल को ढूंढ रहा है जिस धूल के स्पर्श से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार हो गया। हाथी श्रीराम जी के चरणों की धूल ढूंढ रहा है जिससे उसका उद्धार हो सके।

विशेष :

  1. मानव तो मानव पशु भी श्रीराम के चरणों की धूल प्राप्त करके अपना जीवन सफल बनाना चाहते हैं।
  2. भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. गेयता का गुण है।

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बडे पेट के भरन में है रहीम दख बाढ़ि॥
यातें हाथि हहरि कै, दिये दाँत द्वै काढ़ि ॥4॥

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने खाने और दिखाने के दांत का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि बड़े पेट को भरने के लिए बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं। इसी बड़े पेट को भरने के लिए हाथी जैसे विशाल शरीर वाले जानवर को भी भूख से घबराकर अपने लम्बे दाँत दिखाने पड़ते हैं। दूसरों के सामने सहायता के लिए सभी को प्रार्थना करनी पड़ती है; गिड़गिड़ाना पड़ता है।

विशेष :

  1. पेट भरने के लिए शक्तिशालियों को भी दूसरों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है; सहायता पाने की इच्छा करनी पड़ती है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।
  7. ‘दाँत निकलना’ मुहावरे का प्रयोग सार्थक है।

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रहिमन अपने पेट सों, बहुत कहयो समुझाइ।
जो तू अनखाये रहै, तोसों तो अनखाई॥5॥

शब्दार्थ : कहयो = कहना। अन खाना (अन्न + खाना) = पेट भरा हो। अनखाना = क्रुद्ध होकर बुरा मानना।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने अपने पेट को समझाने की बात कही है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि उन्होंने अपने पेट को बहुत समझाया है कि यदि तेरे साथ अन्य सभी का भी पेट भरा रहेगा तो किसी को किसी से मांगना नहीं पड़ेगा। भाव है कि जब कोई किसी से मांगने जाता है तो उसे बुरा मालूम होता है पर यदि पेट भरा हुआ हो न कोई मांगेगा और न किसी को बुरा लगेगा।

विशेष :

  1. कवि ने पेट की आग को ही सम्बन्धों के अच्छे या बुरे होने का आधार माना है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
  3. प्रसाद गुण है।
  4. शांत रस है।
  5. गेयता का गुण विद्यमान है।

रहिमन रहिला की भली, जो परसै चित लाइ।
परसत मन मैला करै, सो मैदा जरि जाई॥6॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
रहिला = चना। मैदा = आटे की एक बारीक प्रकार, जिगर। जरि जाइ = जल जाता है। परसत = स्पर्श से।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ पाठ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने हृदय के प्रेम की निर्मलता की ओर संकेत किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि यदि कोई प्रेमपूर्वक सच्चे हृदय से चने की रोटी खिलाता है तो वह भी अच्छी लगती है। परन्तु यदि कोई बुरे मन से मैदे से बने अनेक व्यंजन खिलाता है तो उससे कोई लाभ नहीं होता अपितु मनुष्य का मैदा खाने से उसका जिगर जल जाता है। सच्ची सेवा, आवभगत और उपकार तो प्रेमभाव से ही संभव होती
मभाव से ही संभव हो

विशेष :

  1. प्रेम में दिखावे का स्थान नहीं है।
  2. भाषा सहल, सहज है। अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार है।
  3. प्रसाद गुण है।
  4. शांत रस है।
  5. गेयता का गुण विद्यमान है।

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रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनतै पहिल वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं 7 ॥

प्रसंग :
यह दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि कहते हैं कि माँगना बुरा है परन्तु द्वार पर मांगने आए व्यक्ति को इनकार करना उससे भी अधिक बुरा है।।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि वे मनुष्य मरे हुए के समान हैं जो किसी से कुछ भी मांगने जाते हैं। मांगने वाला व्यक्ति अपना स्वाभिमान त्याग कर दूसरों से सहायता रूप में कुछ मांगने जाता है। परन्तु मांगने वाले से पहले वे व्यक्ति मर गए होते हैं जिनके पास सब कुछ होते हुए भी मांगने वाले को कुछ भी देने से इनकार कर देते हैं।

विशेष :

  1. माँगने वाला तो पहले ही अपनी स्थिति के कारण मरा हुआ होता है परन्तु जिसके पास सब कुछ है और वह देने से इनकार कर दे तो वह मांगने वाले से पहले मर चुका है।
  2. भाषा आम बोलचाल की है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।

रहिमन-रहिबो वाँ भलो, जो लौं सील समच।
सील-ढील जब देखिये, तुरत कीजिए कूच।।8॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
रहिबो = रहना। सील = शील, चरित्र। समूच = पूर्ण रूप से। तुरत = तुरन्त, उसी समय, फौरन। कूच करना = चल पड़ना।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें रहीम जी कहते हैं कि जिसका चरित्र, स्वभाव और व्यवहार ठीक नहीं। उनका वहां से चले जाना ही ठीक रहता है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि उस स्थान पर रहना अच्छा होता है जहां पर लोग पूर्ण रूप से चरित्रवान हों। अच्छे चरित्र वाले लोगों की संगति अच्छी रहती है। परन्तु जब ऐसा अनुभव हो कि लोगों के चरित्र में गिरावट आ गई है तो वहां से चले जाना ही अच्छा है। बुरे लोगों की संगति मनुष्य को बुरा बना देती है।

विशेष :

  1. मनुष्य पर अच्छी-बुरी संगति का प्रभाव पड़ता है। इसलिए बुरी संगति वाले लोगों से दूरी अच्छी होती है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा आम बोलचाल की है।
  3. अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।

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रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून॥
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुस चून॥9॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
पानी = इज्जत, मान-मर्यादा जल, चमक । राखिये = रक्षा करनी चाहिए। पानी = जल, चमक, इज्जत । सून = सूना होना। चून = आटा, सफेदी।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित रहीम सतसई, के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि कहता हैं कि मनुष्य को अपनी मान-मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मनुष्य को पानी, अपनी इज्जत अथवा मान मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए। पानी के बिना सब सूना है; व्यर्थ है। चमक (पानी) के चले जाने से मोती का, मनुष्य का और जल (पानी) न रहने से आटा किसी काम का नहीं रहता।

विशेष :

  1. पानी अर्थात् इज्जत मनुष्य के लिए, पानी अर्थात् चमक मोती के लिए और पानी अर्थात् जल आटे को गूंथने के लिए जरूरी है। मान-मर्यादा और सम्मान के बिना मनुष्य, चमक के बिना मोती तथा जल के बिना सूखा आटा सब बेकार है।
  2. भाषा आम बोलचाल की है।
  3. अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार है।
  4. प्रसाद गुण तथा शांत रस हैं।
  5. संगीतात्मकता विद्यमान है।

रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग-पतार।
आप तो कहि भीतर भयी, जूती खात कपार॥10॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
जिह्वा = जीभ। बावरी = पगली। सरग = स्वर्ग। पतार = पाताल। कपार = सिर।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने जीभ की महिमा का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मनुष्य की जीभ बड़ी पगली है। वह स्वर्ग से लेकर पाताल तक की सभी बातें कह जाती हैं। मनुष्य का अपनी जीभ पर नियन्त्रण नहीं होता है। जीभ अच्छी बुरी बात कहकर स्वयं तो मुंह के अन्दर चली जाती है और जिनके विषय में बुरा-भला कहा होता है उनकी मार सिर को खानी पड़ती है।

विशेष :

  1. मनुष्य को अपनी जुबान पर संयम रखना चाहिए।
  2. भाषा आम बोलचाल की है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. प्रसाद गुण तथा शांतरस है।
  5. गेयता का गुण विद्यमान है।

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होइ न जाकी छाँह ढिग, फल रहीम अति दूर।
बाढ़ेउ सो बिनु काज ही, जैसे तार-खजूर॥11॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
छाँह = छाया। ढिग = पास में। अति = बहुत । तार = ताड़ का वृक्ष।

प्रसंग :
यह दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि का बड़े होने से अभिप्राय यह है कि पहुंच से दूर किसी अच्छी वस्तु का भी कोई लाभ नहीं होता।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि जिस पेड़ की छाया पास नहीं होती और उस पर फल भी बहुत ऊंचे लगते हों तो उस पेड़ का फलदार होना व्यर्थ है। जिसकी छाया या फल लोगों की पहुंच से दूर होते हैं उनका बड़ा होना व्यर्थ है। जो किसी भी काम नहीं आते जैसे ताड़ और खजूर के पेड़ हैं। ताड़ और खजूर के पेड़ ऊँचाई में बहुत बड़े होते हैं परन्तु न तो उसकी छाया काम आती है और उसका फल लोगों की पहुंच से दूर होता है।

विशेष:

  1. उन लोगों का बड़ा होना व्यर्थ है जो किसी के भी काम नहीं आते।
  2. भाषा आम बोलचाल की है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।

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नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत-समेत।
ते रहीम पसु ते अधिक, रीझेहु कछू न देत॥12॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
नाद = शब्द, संगीत। मृग = हिरण। हेत = हित। पसु = पशु। रीझेहु = प्रसन्न होकर।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि न उन लोगों का वर्णन किया है जो दूसरों के गुणों पर प्रसन्न होने के बाद भी पुरस्कार स्वरूप भी कुछ नहीं देते।।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि वीणा की मधुर ध्वनि पर प्रसन्न होकर हिरण जैसा पशु भी अपना शरीर त्यागने को तैयार हो जाता है, मनुष्य प्रसन्न होकर दूसरे के भले के लिए अपना सारा धन दे देता है। रहीम जी के अनुसार वे लोग पशु के समान हैं जो दूसरों के गुणों पर रीझने और प्रसन्न होने पर भी पुरस्कार स्वरूप किसी को कुछ नहीं देते।

विशेष :

  1. जो लोग प्रसन्न होकर दूसरों को कुछ देते हैं उन लोगों का जीना अच्छा रहता है लेकिन जो लोग प्रसन्न होने पर भी किसी को कुछ नहीं देते, वे लोग पशु के समान हैं।
  2. कवि की ब्रज भाषा आम बोलचाल की है।
  3. प्रसाद गुण है।
  4. शांत रस है।
  5. गेयता का गुण विद्यमान है।

रहिमन अँसुआ नयन ढरि, जिय दःख प्रकट करेड़।
जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ ॥13॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
ढरि = ढलकना। नयन = आँखों से। जिय = मन, हृदय। जाहि = जिसे। निकारो = निकालो। गेह ते = घर से। कस = क्यों।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने उन लोगों का वर्णन किया है जो घर से निकाले जाने पर घर का भेद दूसरों पर प्रकट कर देते हैं।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि आंखों से निकले आँसू मनुष्य के दिल की हर बात कह देते हैं। मनुष्य के आंसू उसके सुख या दुःख को छिपा नहीं पाते। जैसे घर से निकाला गया मनुष्य, घर के सारे भेद कैसे एक-एक करके प्रकट कर देता है। आंख के आंसू तथा घर से निकाला गया मनुष्य दोनों ही अन्दर के भेद बाहर प्रकट कर ही देते हैं।

विशेष :

  1. यदि कोई बात दूसरों पर प्रकट करनी हो तो आंख के आंसू और घर से निकाला गया मनुष्य इस काम को अच्छी तरह से पूरा कर देते हैं।
  2. ब्रज भाषा सरल, सहज एवं आम बोलचाल की है।
  3. प्रसाद गुण है।
  4. शांत रस है।
  5. गेयता का गुण है।

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धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाइ॥
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पियासो जाई॥14॥

कठिन शब्दों के अर्थ-पंक = कीचड़। लघु = छोटा। जिय = हृदय में। आघाई = तृप्त होना।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने छोटे होने की भी महत्ता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि तालाब में कीचड़ युक्त पानी भी धन्य है जो छोटे होने पर भी लोगों की प्यास बुझाता है परन्तु समुद्र आकार में बड़ा है। उसका पानी खारा होने के कारण वह लोगों की प्यास बुझाने में असमर्थ है और लोग वहां से प्यासे लौटते हैं। बड़ा होने पर भी खारे पानी की उपस्थिति के कारण सारा संसार उसे पीकर अपनी प्यास नहीं बुझा सकता और प्यासा ही रह जाता है। ऐसे बड़प्पन का भी क्या लाभ जो दूसरों के सुख का कारण नहीं बनता।

विशेष :

  1. कभी-कभी बड़ा होना महत्त्वपूर्ण नहीं है। क्योंकि जो काम करने में वह असमर्थ है वह छोटी-सी वस्तु कर देती है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमय है।
  3. तत्सम और तद्भव शब्दावली है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।

रहिमन राज सराहिये, ससि सम सुखद जो होइ।
कहा बापुरो भानु है तपै तरैयनि खोइ ॥15॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
राज = शासन। सराहिये = प्रशंसा करो। ससि सम = चन्द्रमा के समान। भानु = सूर्य। बापुरो = बेचारा। तरैयनि = नदियां।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने शांत रहने की महत्ता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि शासक वह अच्छा है जो चन्द्रमा के समान सुख प्रदान करता है। जिस प्रकार चन्द्रमा की शीतलता मनुष्य को शांति प्रदान करती है उसी प्रकार अच्छे शासक की प्रजा भी सुख से रहती है और एक बेचारा सूरज है जो अपनी गर्मी से नदियों के जल को सुखा देता है। क्रोधी स्वभाव वाले शासक की प्रजा सदा दुःखी रहती है।

विशेष :

  1. चन्द्रमा और सूरज के द्वारा मनुष्य को समझाया गया है कि चन्द्रमा के समान शांत रहने से ही वह प्रशंसा का पात्र बन सकता है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है।
  3. तत्सम और तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

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ज्यों रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोइ।
बारे उजियारो करै, बढ़े अँधेरो होइ॥16॥

कठिन शब्दों के अर्थ : कपूत = बुरा पुत्र। बारे = जलने पर। उजियारो = उजाला।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने कपूत की तुलना उस दीपक से की है जिसके बुझने से उसके नीचे ही अँधेरा छा जाता है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि वंश में पैदा हुआ कपूत उस दीपक की तरह है जो जलने पर उजाला तो देता है । पुत्र के पैदा होने पर घर में खुशियों का उजियारा फैल जाता है परन्तु जब दीपक की ज्योति बढ़ जाती है अर्थात् बुझ जाती है तो चारों ओर अँधेरा छा जाता है। उसी प्रकार पुत्र के बड़े होने पर कपूत निकलने पर कुल में परिवार में अंधेरा छा जाता है।

विशेष :

  1. एक पुत्र ही घर का नाश कर देता है या फिर उसे दीपक की रोशनी की तरह संसार में चमका देता है।
  2. भाषा सरल है।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास, श्लेष अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण है।

माँगे घटत रहीम पद, कितौ करौ बड़काम।
तीन पैंड बसुधा करी, तऊ बावनै नाम17॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
पद = पदवी। कितौ = कितना ही। पैंड = कदम। बसुधा = धरती। बावनै = छोटा कद।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इन पंक्तियों में कवि ने मांगने वाले को छोटा बताया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मनुष्य के द्वारा किसी से भी कुछ मांगने पर उसकी पदवी कम हो जाती है। वह मनुष्य चाहे कितना बड़ा ही काम क्यों न करे, बड़े से बड़ा मनुष्य जब मांगने पर आता है तो उसे भी नीचा होना पड़ता है जैसे भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पैर धरती मांगी थी और उन्होंने तीन पैर में पूरा ब्रह्मांड नाप लिया था उनके जैसा महान कार्य और दूसरा नहीं कर सकता था परन्तु फिर भी उन्हें वामन नाम से जाना जाता रहा है।

विशेष :

  1. मांगने वाला मनुष्य कितना ही बड़ा काम क्यों न कर ले, वह मांगने के कारण छोटा ही रहेगा।
  2. भाषा सरल, सहज एवं सरस है।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

रहिमन मनहि लगाई कै,देख लेहु किन कोय।
नर को बस करबिो कहा, नारायण बस होय॥18॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
किन कोय = चाहे कोई। नारायण = प्रभु, ईश्वर। प्रस्तुत-प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ में से लिया गया है। इसमें में कवि ने मन को एकाग्र करके प्रभु को प्राप्त करने के लिए कहा है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि कोई भी इसे देख ले; परख ले कि यदि कोई व्यक्ति मन लगाकर काम करता है तो वह मनुष्य को नहीं अपितु प्रभु को भी अपने वश में कर सकता है, प्राप्त कर सकता है।

विशेष :

  1. एकाग्रचित और प्रेमपूर्वक व्यवहार करने वाले मनुष्य के सभी कार्य सफल होते हैं।
  2. भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है।
  3. तत्सम और तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।

रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुन अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लेहैं कोई ॥19॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
व्यथा = दु:ख। गोय = गुप्त, छिपाकर। अठिलैहैं = हँसी-मजाक करना।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने अपने दुःखों को दूसरों के सामने प्रकट करने से मना किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि अपने मन के दुःखों को मन ही मन में छिपाकर रखना अच्छा होता है। यदि लोगों के सामने अपने दुःखों को सुनाओगे तो वे उन्हें सुनकर दुःख बांटने की अपेक्षा उनका मजाक उड़ाएंगे, अपना दुःख सदा छिपाकर रखना चाहिए। कोई भी किसी के दुःख को बांटने को तैयार नहीं होता।

विशेष :

  1. अधिकतर व्यक्ति दुःखों के नहीं अपितु सुखों के साथी होते हैं इसलिए हमें अपना दुःख दूसरों से छिपाकर रखना चाहिए।
  2. भाषा सरल है।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसे संगति बैठिये, तैसोई फल दीन ॥20॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
कदली = केले का वृक्ष। सीप = मोती। भुजंग = साँप। स्वाति = नक्षत्र।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें कवि ने संगति के परिणाम का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि केले का पेड़, सीप और साँप का मुख-ये तीनों एक-दूसरे से अलग अलग हैं। स्वाति नक्षत्र में बरसी हुई वर्षा की एक बूंद यदि केले के पत्ते पर पड़ती है तो वह कर्पूर बन जाती है; सीप के खुले मुख में जाती है मोती बन जाती है और यदि सांप के मुख में जाती है तो विष बन जाती है। इस प्रकार स्वाति नक्षत्र में बरसी किसी एक बूंद के गुण तीन हैं परन्तु वह जैसी संगति में जाती है वैसा ही रूप धारण कर लेती है।

विशेष :

  1. मनुष्य जैसी संगति में बैठता है वह वैसे ही अच्छे बुरे. गुण धारण कर लेता है।
  2. भाषा सरल एवं सहज है।
  3. तत्सम तद्भव शब्दावली है।
  4. श्लेष अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।
  8. काव्य रूढ़ि का प्रयोग किया गया है।

कमला थिर न, रहीम कहि, यह जानत सब कोई।
पुरुष पुरातन की वधू, क्यों न चंचला होई॥21॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
कमला = लक्ष्मी, धन की देवी। थिर न = एक जगह टिक कर नहीं रहती। पुरुष पुरातन = बूढ़ा व्यक्ति, भगवान विष्णु। वधू = पत्नी। चंचला = धन की देवी लक्ष्मी।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने धन को देवी लक्ष्मी को चंचला कहा है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि सब जानते हैं कि लक्ष्मी जी धन की देवी है जो एक जगह टिक कर कभी भी नहीं रहती है। जैसे किसी बूढे पुरुष की जवान पत्नी चंचल होती है और वह एक जगह स्थिर नहीं रहती है। भगवान विष्णु की पत्नी होने के कारण लक्ष्मी को चंचला कहा गया है।

विशेष :

  1. चंचल प्रकृति वाले मनुष्य या वस्तु को आप अधिक देर तक एक स्थान पर नहीं रोक सकते।
  2. भाषा सरल है।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

जो रहीम ओछो बढै, तो अति ही इतराइ।
प्यादा सों फरजी भयो, टेढ़ी-टेढ़ी जाइ॥22॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
ओछौ = नीच व्यक्ति। इतिराइ = इतराना, घमण्ड करना। प्यादा = शतरंज के खेल की गोट। फर्जी = शतरंज के खेल की गोट-घोड़ा।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने निम्न व्यक्ति को सम्मान देने पर उसकी चाल बदलने का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि जब किसी छोटे व्यक्ति को सम्मान मिलता है तो उसमें घमंड आ जाता है। दूसरों को अपने से छोटा समझने लगता है। जैसे शतरंज के खेल में छोटा-सा प्यादा जब फरजी बन जाता है तो वह घोड़े के समान टेढ़ा-मेढ़ा चलने लगता है।

विशेष :

  1. छोटे व्यक्ति को सम्मान मिलने पर उसे घमण्ड नहीं करना चाहिए।
  2. भाषा सरल है। आम बोलचाल की भाषा है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश, उदाहरण अलंकार है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।

रहिमन सूधी चाल सो, प्यादो होत वजीर।
फरजी मीर न लै सके, गति टेढ़ी तासीर ॥23।।

कठिन शब्दों के अर्थ :
सूधी चाल = सीधी चाल। तासीर = गुण, असर।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने मनुष्य को अपनी चाल सीधी रखने के लिए कहा है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि शतरंज के खेल में प्यादा सीधी चाल चलने के कारण वजीर बन जाता है और जब प्यादा घोड़ा बन जाता है तो उसकी चाल टेढ़ी हो जाती है जिसके कारण वह वजीर नहीं बन पाता है। मनुष्य को जितना मिले उतने में ही शांति रखनी चाहिए नहीं तो मिला हुआ भी समाप्त हो जाता है।

विशेष :

  1. छोटा व्यक्ति अपने गुणों से बड़ा बन जाता है। परन्तु उस समय उसे अपना स्वभाव नहीं बदलना चाहिए। नहीं तो मिला हुआ सम्मान चला जाता है।
  2. भाषा सरल एवं स्वाभाविक है। आम बोलचाल की भाषा है।
  3. प्रसाद गुण है।
  4. शांत रस है।
  5. गेयता का गुण है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

काज परे कछु और है, काज सरे कछु और।
रहिमन भाँवरि के परे, नदी सिरावत मौर॥24॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
काज = काम। सरे = पूरा होने पर। सिरावत = प्रवाहित करना।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने संसार के चाल चलन का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि संसार में काम पड़ने पर व्यक्ति का स्वभाव भिन्न प्रकार का हो जाता है और काम पूरा हो जाने पर वह किसी और प्रकार का हो जाता है। जब मनुष्य को किसी से काम पड़ता है तो वह उसकी मिन्नतें करता है और जब काम पूरा हो जाता है तो वह परवाह भी नहीं करता और अपना मुंह भी नहीं दिखाता है। रहीम जी ने उदाहरण देते हुए कहा कि विवाह के समय दूल्हे के सिर पर सजा मोर मुकुट भांवर (फेरे और सप्तपदी) तक बहुत सहेज-सम्भाल कर रखा जाता है पर विवाह होने के शीघ्र बाद ही उसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।

विशेष :

  1. संसार का नियम है कि जब किसी को ज़रूरत पड़ती है तो वह आगे-पीछे चक्कर काटता है परन्तु जब उसका काम निकल जाता है तो वह दिखाई भी नहीं पड़ता।
  2. भाषा स्वाभाविक है।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास, उदाहरण अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण, शांत रस एवं गेयता का गुण विद्यमान है।

आवत काज, रहीम कहि, गाढ़े बन्धु सनेह।
जीरन होत न पेड़ ज्यों, थामै बरहि बरेह ॥25॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
काज = काम। आवत = आना। गाढ़े = मुसीबत, संकट। बन्धु = साथी। जीरन = कमज़ोर, पुराना। बरेह-वट वृक्ष की डालों से भूमि तक आने वाली जटाएँ जो पुराने हो जाने पर वट वृक्ष को सहारा देती हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ से लिया गया है। इसमें कवि कहता है कठिनाई में अपने ही साथ देते हैं।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि जीवन में विपत्ति आ जाने पर अपने सगे-सम्बन्धी और मित्र ही काम आते हैं। वही कष्टों-विपत्तियों से मुक्ति पाने में सहायक सिद्ध होते हैं। बरगद (वट) वृक्ष भी भूमि तक लटककर नीचे आने वाली हवाई जटाएं ही उसके मूल तने के कमजोर हो जाने पर आंधियों तूफ़ानों से उसकी रक्षा करती हैं और उसे गिरने से बचा लेती हैं।

विशेष :

  1. कष्ट के समय अपने ही साथ देते हैं और मुसीबत से बचा लेते हैं।
  2. भाषा सरल एवं स्वाभाविक है।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

दादुर मोर किसान मन, लग्यो रहै घन माहिं।
रहिमन चातक-रटनि कै, सरवरि को कोउ नाहि ॥26॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
दादुर = मेंढक। घन = बादल। रटनि = पुकारा। सरवरि = तालाब।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने सभी लोग अपने-अपने स्वार्थ को देखते हैं,का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मेंढक, मोर और किसान का मन बादलों में लगा रहता है। तीनों पानी से भरे बादलों की प्रतीक्षा अपने-अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। किन्तु चातक की पुकार से सरोवर को कोई लेना देना नहीं

विशेष :

  1. मनुष्य अपने स्वार्थ की पूर्ति करके प्रसन्न होता है। उसे दूसरों के सुख-दुःख से कोई लेना-देना नहीं है।
  2. भाषा सरल है।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।

मन सो कहाँ रहीम प्रभु, दुग सो कहाँ दिवान।
देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान ॥27॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
दुगन = आंखों। हाथ बिकान = बिक जाना, वश में होना।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने प्रभु को वश में करने का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि मानव के मन में कैसा भाव-विचार होगा-यह उस पर प्रायः निर्भर नहीं करता। वह ईश्वर की ओर लगता है या नहीं, यह उस के मन पर निर्भर नहीं करता अपितु आँखों पर निर्भर करता है। कवि ने मन को राजा और आँख को दीवान की उपमा देकर कहा है कि जिस प्रकार मन्त्री के परामर्श से राजा काम करता है उसी प्रकार आँख के प्रिय को मन भी अपनाता है; उसी को स्वीकार कर लेता है। भाव है कि मनुष्य अधिकतर आँखों देखी बात पर शीघ्रता से विश्वास कर लेता है।

विशेष :

  1. मनुष्य अपनी आँखों देखी बातों को मन में अधिक जल्दी बिठा लेता है और उन्हीं पर विश्वास करने लगता है।
  2. भाषा सरल है।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है शांत रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

जो रहीम करिबौ हतौ, ब्रज को इहै हवाल।
तो काहे कर पर धरयौ, गोवर्धन गोपाल ॥28॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
इहै = यह। हवाल = वर्तमान अवस्था। कर = हाथ। गोवर्धन = एक पर्वत जिसे ब्रजवासियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने एक उंगली पर धारण किया था।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ के दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने काम करने की महिमा का वर्णन किया है।

व्याख्या:
रहीम जी श्रीकृष्ण के वियोग से पीड़ित ब्रजवासियों से कहते हैं कि यदि श्रीकृष्ण ने ब्रज-क्षेत्र की हालत को वास्तव में ही दुखदायी बनाना था तो वे गाँवों के रक्षक श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ पर उठाकर उसकी इन्द्र के प्रकोप से रक्षा ही न करते। श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की इन्द्र के क्रोध से रक्षा की थी। उन्होंने ब्रज क्षेत्र के वासियों को सुख दिया था न कि दुःख।

विशेष :

  1. भाषा सरल एवं सरस है।
  2. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. प्रसाद गुण एवं शांत रस है।
  5. गेयता का गुण है।

हरि रहीम ऐसी करी, ज्यों कमान सर पूरि।
बैंचि आपनी ओर को, डारि दियो पुनि दूरि॥29॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
हरि = ईश्वर। सर = तीर।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने ईश्वर की व्यवस्था का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि ईश्वर ने ऐसी व्यवस्था की है जैसे तीर और कमान के साथ है। कमान अथवा धनुष की डोरी को जितना ही हम अपनी ओर खींचते हैं तीर उतनी ही दूर जाकर गिरता है अर्थात् जितना हम मोह माया में खींचते जाते हैं उतने ही ईश्वर से दूर हो जाते हैं।

विशेष :

  1. ईश्वर ने मनुष्य के स्वभाव के अनुसार व्यवस्था कर रखी है।
  2. मनुष्य जितनी मोह माया में उलझता है उतना ही ईश्वर से दूर हो जाता है।
  3. ब्रज भाषा का प्रयोग है।
  4. तद्भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

सर सूखे पंछी उहै, और सरन्ह समाहिं।
दीन मीन बिन पच्छ के, कह रहीम कहँ जाँहि ॥30॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
सर = तालाब। मीन = मछली। पच्छ = पंख।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा रहीम जी द्वारा लिखित ‘रहीम सतसई’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने असमर्थ प्राणियों का वर्णन किया है।

व्याख्या :
रहीम जी कहते हैं कि सरोवर के सूख जाने पर पक्षी किसी दूसरे सरोवर पर चले जाते हैं परन्तु सूखे सरोवर की मछलियां बहुत लाचार हैं; दीन हैं। वे तो उड़कर कहीं जा भी नहीं सकतीं। इसका कारण यह है कि उनके पंख नहीं हैं। उन्हें तो मृत्यु प्राप्ति तक वहीं तड़पना है।

विशेष :

  1. असमर्थ प्राणी अपनी असमर्थता के कारण स्वयं को लाचार अनुभव करता है।
  2. भाषा सरल है।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण है।

दोहे Summary

दोहे जीवन परिचय

रहीम जी का जन्म सन् 1553 में हुआ था। उनका पूरा नाम अब्दुर्ररहीम खानखाना था। वे मुग़ल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक थे। उनके पिता बैरमखां अकबर के अभिभावक थे। रहीम जी अकबर के दरबारी कवि ही नहीं थे अपितु सेनापति और मंत्री भी रहे थे। अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर ने भी इन्हें अपना सेनानायक और जागीरदार बनाया था। परन्तु राजनैतिक कुचक्रों ने भी उन्हें बड़ा परेशान किया था। उन्हें जहाँगीर को लड़ाई में धोखा देने का झूठा आरोप भी सहना पड़ा था और कुछ समय तक कारावास का दंड भुगतना पड़ा था। उनके जीवन का अन्त अत्यन्त गरीबी में हुआ। इनकी मृत्यु सन् 1627 में हुई।

रहीम जी की रचनाओं में रहीम सतसई, बरवै नायिका भेद, शृंगार सोरठ, मदनाष्टक, रासपंचाध्यायी, नगर शोभा, फुटकल बरवै, फुटकल सवैये प्रसिद्ध हैं। वे जन्म से मुसलमान थे परन्तु उन्होंने भगवान् कृष्ण के संबंध में पूर्ण भक्ति-भाव से युक्त रचनाएं प्रस्तुत की थीं। उनके नीति सम्बन्धी दोहे भी अद्वितीय हैं। उनके दोहे केवल उपदेशप्रद ही नहीं, काव्य गुणों से भी सम्पन्न हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 4 दोहे

दोहों का सार

रहीम जी ने अपने द्वारा रचित दोहों में जीवन से संबंधित तरह-तरह के गहन संकेत दिए हैं। उन्होंने जीवन के सूक्ष्म से सूक्ष्म अनुभव को बहुत कम शब्दों में व्यक्त है। उनके अनुसार मनुष्य ईश्वर की खोज में इधर-उधर भटकता रहता है जबकि ईश्वर तो स्वयं अपनी बनाई सृष्टि की सभी रचनाओं की देखभाल करते हैं। मनुष्य तो मनुष्य पशु भी ईश्वर की प्राप्ति के लिए उनके भक्तों के चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाने को तत्पर हैं। प्रेमपूर्वक खिलाई गई चने की रोटी भी अच्छे से अच्छे पकवान से उत्तम है। रहीम जी मानते हैं कि मांगने वाले से पहले वे लोग मृत के समान हैं जो होते हुए भी मांगने वाले को देने से इनकार कर देते हैं।

मनुष्य को सदा अच्छे लोगों की संगति करनी चाहिए। मनुष्य को अपनी जिह्वा को नियन्त्रित करना आना चाहिए नहीं तो बेकाबू जिह्वा के कारण भरे बाज़ार में अपनी इज्जत गंवानी पड़ती है। बड़े के आगे छोटे की महत्ता से इनकार नहीं करना चाहिए क्योंकि कई बार छोटी-सी वस्तु के आगे बड़ेबड़े हार मान जाते हैं। सूरज की गर्मी से जहां सभी लोग परेशान होते हैं वही चन्द्रमा की शीतलता सभी को शांति प्रदान करती है । कपूत कुल के नाश का कारण बनता है। मांगने वाला कितना ही बड़ा क्यों न हो वह छोटा ही रहता है। काम के प्रति लगन भी असम्भव काम को सम्भव कर देती है। रहीम जी मानते हैं कि अपने गुणों के कारण छोटा-सा प्यादा भी वजीर बन जाता है। संसार के नियम बड़े अनोखे हैं जब किसी को कोई काम पड़ता है तो वह गिड़गिड़ाने लगता है परन्तु काम निकल जाने पर पूछता भी नहीं है। सच्ची भक्ति से प्रभु को भी वश में किया जा सकता है। समय पड़ने पर असमर्थ प्राणी के विषय में कोई नहीं सोचता।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 5 पदावली Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 5 पदावली

Hindi Guide for Class 11 PSEB पदावली Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गुरु तेग बहादुर जी के अनुसार गुरमुख में कौन-कौन से गुण होने चाहिए ?
उत्तर:
गुरु तेग बहादुर जी के अनुसार गुरमुख में ये गुण होने चाहिए कि वह मन का मान अहंकार त्याग दें, कामक्रोध और बुरे लोगों की संगति को भी त्याग दें, सुख-दुख को एक जैसा माने, हर्ष-शोक को भी समान माने, उसे प्रशंसा और निन्दा की चिंता नहीं होनी चाहिए। जो गुरमुख संसार में रहते हुए मान-अपमान में अन्तर न करते हुए इन्हें एक समान मानते हैं और विपरीत स्थितियों में अपने पथ से विचलित नहीं होते वे ही मुक्ति के अधिकारी होते हैं।

प्रश्न 2.
कहु नानक प्रभु बिरद पछानउ तब हउ पतित तरउ’ का भावार्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पंक्ति का भाव यह है कि कोई विद्वान् पुरुष अथवा सद्गुरु का उपदेश ही मुझ पतित को इस संसार रूपी सागर से पार उतार सकता है। जन्म लेने के बाद गुरु का ज्ञान ही तो प्रभु से मिलने का रास्ता बताता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

प्रश्न 3.
गुरु जी ने नाम सिमरन पर बल क्यों दिया है ?
उत्तर:
गुरु जी का कहना है कि यदि सिमरन से हाथी का कष्ट दूर हो गया था तो हमारा क्यों नहीं होगा। इसलिए अभिमान का त्याग कर मनुष्य को नाम सिमरन करना चाहिए। सिमरन से कुबुद्धि भी नष्ट हो जाती है और मनुष्य प्रभु को प्राप्त कर लेता है।

प्रश्न 4.
संकलित पदों के आधार पर गुरु तेग़ बहादुर जी की भक्ति भावना का वर्णन करें।
उत्तर:
गुरु जी की वाणी में नाम सिमरन की महत्ता पर बल दिया गया है क्योंकि नाम सिमरन से मुक्ति मिल सकती है तथा मनुष्य भव सागर से पार हो सकता है। गुरु जी ने मनुष्य को अभिमान त्याग कर, सुख-दुख को समान जानने का भी उपदेश दिया है। साथ ही उन्होंने अज्ञान के भ्रम को दूर कर मन को स्थिर करके, विषय वासना का त्याग कर प्रभु की शरण में जाने को कहा है।

प्रश्न 5.
गुरु तेग बहादुर जी ने अपने पदों में सांसारिक नश्वरता का संकेत किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर;
गुरुजी ने सांसारिक नश्वरता को ध्यान में रख कर मनुष्य को कहा है कि मनुष्य को बार-बार जन्म नहीं मिलता है। इसलिए उसे इस नश्वर संसार से पार पाने के लिए प्रभु का स्मरण करना चाहिए। मन, वचन, कर्म से परम सत्ता के प्रति स्वयं को लगा देना चाहिए। गुरु के ज्ञान से ईश्वर के नाम का परिचय मिल सकता है। आडम्बर रचने से ईश्वर कभी प्राप्त नहीं होता। मनुष्य का शरीर भी बार-बार प्राप्त नहीं होता। इसकी प्राप्ति सद्कर्मों से ही होती है। इसलिए अज्ञान के अन्धकार और मोह-ममता से दूर होकर ईश्वर के प्रति उन्मुख हो जाना चाहिए। गुरु के द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर ही सांसारिक नश्वरता से मुक्ति पाई जा सकती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

PSEB 11th Class Hindi Guide पदावली Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सिक्ख गुरु-परम्परा में नौवें गुरु कौन हैं ?
उत्तर-गुरु तेग़ बहादुर जी।

प्रश्न 2.
गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1621 में अमृतसर में।

प्रश्न 3.
गुरु तेग बहादुर जी ने कौन-सा नगर बसाया था ?
उत्तर:
आनन्दपुर साहिब।

प्रश्न 4.
आनन्दपुर साहिब बाद में किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर:
खालसा की जन्मभूमि।

प्रश्न 5.
गुरु तेग़ बहादुर गुरु पद पर कब शोभायमान हुए ?
उत्तर:
गुरु हरिकृष्ण के पद छोड़ने के बाद।

प्रश्न 6.
गुरु तेग़ बहादर जी ने औरंगजेब के अत्याचारों से किसे बचाया था ?
उत्तर:
कश्मीरी पंडितों को बचाया था।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

प्रश्न 7.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने अपने पदों में किसकी संगति न करने पर बल दिया है ?
उत्तर:
दुष्टों की संगति।

प्रश्न 8.
गुरु जी ने किसकी स्थापना पर बल दिया था ?
उत्तर:
गुरु जी ने मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल दिया था।

प्रश्न 9.
गुरु जी ने किसे अनमोल बताया है ?
उत्तर:
गुरु जी ने मनुष्य जन्म को अनमोल बताया है।

प्रश्न 10.
संसार रूपी सागर को पार करने के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर:
संसार रूपी सागर को पार करने के लिए गुरु के उपदेश को पहचानना ज़रूरी है।

प्रश्न 11.
गुरु जी ने अपने पदों में किसे त्यागने की बात कही है ?
उत्तर:
अहंकार, काम, क्रोध और मोह-माया को।।

प्रश्न 12.
गुरु जी ने भक्तिभावना और …………….. की स्थापना पर बल दिया ।
उत्तर:
सांसारिक नश्वरता।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

प्रश्न 13.
किसे व्यर्थ में नहीं खोना चाहिए ?
उत्तर:
मानव जन्म।

प्रश्न 14.
गुरु जी के अनुसार सुख का आधार क्या है ?
उत्तर:
सांसारिक विषय-विकारों में निर्लिप्त रहना सुख का आधार है।

प्रश्न 15.
प्रभु को कौन पहचान सकता है ?
उत्तर:
कोई भी विद्वान् व्यक्ति।

प्रश्न 16.
गुरु जी ने …………. से अपने आप को शरण में लेने की प्रार्थना की है ।
उत्तर:
प्रभु।

प्रश्न 17.
मानव का मन ………… के अंधेरे में उलझा हुआ है ।
उत्तर:
महामोह और अज्ञान।

प्रश्न 18.
मानव ने अपना सारा जन्म ……………. में भटकते हुए बिता दिया ।
उत्तर:
भ्रम।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

प्रश्न 19.
मानव दिन-रात किसमें डूबा रहा ?
उत्तर:
विषय-वासनाओं में।

प्रश्न 20.
सिमरन से किसका कष्ट दूर हो गया था ?
उत्तर:
हाथी।

प्रश्न 21.
गुरु जी की वाणी में किसकी महत्ता पर बल दिया गया है ?
उत्तर:
नाम सिमरन पर।

प्रश्न 22.
सिमरन से क्या नष्ट हो जाती है ?
उत्तर:
कुबुद्धि।

प्रश्न 23.
पतित का उद्धार कौन करता है ?
उत्तर:
परमात्मा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

प्रश्न 24.
जन्म लेने के बाद …………… प्रभु से मिलन का रास्ता है ।
उत्तर:
गुरु का ज्ञान।

प्रश्न 25.
गुरु जी ने बाह्य आडम्बरों का विरोध किया था ?
उत्तर:
सत्य।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गुरु परंपरा में गुरु तेग बहादुर जी कौन-से स्थान पर आते हैं ?
(क) आठवें
(ख) नौंवें
(ग) दसवें
(घ) ग्यारहवें।
उत्तर:
(ख) नौंवें

प्रश्न 2.
गुरु तेग बहादुर जी ने कौन-सा नगर बसाया था ?
(क) आनन्दपुर साहिब
(ख) अमृतसर
(ग) जालंधर
(घ) फतेहगढ़ साहिब।
उत्तर:
(क) आनन्दपुर साहिब

प्रश्न 3.
गुरु जी ने किसको सर्वश्रेष्ठ माना है ?
(क) मानवतावाद
(ख) समाजवाद
(ग) प्रयोगवाद
(घ) प्रगतिवाद।
उत्तर:
(क) मानवतावाद।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

पदावली सप्रसंग व्याख्या

रागु गउड़ी महला 9

1. साधो मन का मानु तिआगउ ॥
कामु क्रोधु संगति दुरजन की ता ते अहनिसि भागउ ॥रहाउ॥
सुख दुख दोनों सम करि जानै अउरु मानु अपमाना ॥
हरख सोग ते रहै अतीता तिनि जगि ततु पछाना ॥1॥
उसतति निंदा दोऊ तिआगै खोजै पदु निरबाना ॥2॥
जनु नानक इहु खेलु कठनु है किनहू गुरमुखि जाना॥
                                      (राग गउड़ी महला-9)॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
मानु = अहँकार ।तिआगउ = छोड़ो, त्यागो । कामु = काम वासना। अहनिसि = दिन-रात। भागउ = भागो, दूर रहो। सम = समान। हरख सोग = हर्ष और शोक। अतीता = दूर, पृथक् । तिनि = उन्होंने। जगि ततु = संसार का सार। उसतति = प्रशंसा । निरबाना = मोक्ष, मुक्ति। इह खेलु = यह खेल।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर द्वारा रचित वाणी के अन्तर्गत ‘रागु गउड़ी महला-9’ से उद्धृत किया गया है। इसमें गुरु जी ने व्यक्ति को सांसारिक विकारों से दूर रहने तथा मोक्ष प्राप्ति का प्रयास करते रहने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं–अरे सांसारिक लोगो ! अपने मन से अहंकार का भाव त्याग दो। काम, क्रोध तथा दुर्जन की संगति से रात-दिन दूर रहो। किसी भी दिन में किसी भी क्षण दुष्टों की संगति न करो। सुख-दुःख, मान तथा अपमान को समान रूप से जानो। जो हर्ष और शोक की भावना से दूर रहते हैं-उनसे प्रभावित नहीं होते, वे ही संसार के तत्व को तथा संसार की वास्तविकता को जान लेते हैं। जो व्यक्ति स्तुति और निन्दा को त्याग देते हैं भाव यह कि जो लोग विषम परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होते, उन्हें ही मुक्ति प्राप्त होती है। नानक के जन, गुरु नानक के भक्त ! सुख-दुःख, मान-अपमान में समान रहने का यह खेल बड़ा कठिन है। सुख-दुःख आदि की अवस्थाओं में समान रहना बड़ा कठिन है। कोई ही अर्थात् बिरला गुरमुख (गुरु का चेला) व्यक्ति इस तत्व को पहचान सकता है।

विशेष :

  1. इन पंक्तियों में गुरु तेग बहादुर जी ने मानसिक विकारों से सदैव दूर रहने का उपदेश दिया है।
  2. सांसारिक विषय-विकारों से निर्लिप्त रहना ही सुख का आधार है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
  4. सधुक्कड़ी शब्दावली है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।
  6. प्रसाद गुण है।
  7. शान्त रस है।
  8. गेयता का गुण विद्यमान है।

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धनासरी महला 9

2. अब मैं कउनु उपाय करउ ।
जह विधि मन को संसा चूकै भउनिधि पारि परउ ॥ रहाउ॥
जनमु पाइ कछु भलो न कीनो ता ते अधिक डरउ ॥
मन बच क्रम हरि गुन नहीं गाए यह जीअ सोच धरउ ॥
गुरमति सुनि कछु गिआनु न उपजिओ पसु जिउ उदरु भरउ ॥
कहु नानक प्रभ बिरद् पछानउ तब हउ पतित तरउ ॥1॥
                                                    (धनासरी महला)

कठिन शब्दों के अर्थ :
कउनु = कौन सा। जिह विधि = जिस तरीके से । संसा = संशय । चूकै = मिटे। भउनिधि = भवसागर। न कीनो = नहीं किया। ता ते = इस से, इसलिए। वच = वचन। क्रम = कर्म। गुरमति = गुरु के उपदेश। न उपजिओ = नहीं उत्पन्न हुआ। उदरु = पेट। विरद = विद्वान्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी रागु धनासरी महला 9 में से लिया गया है। इसमें गुरु जी ने गुरु के उपदेश को संशय दूर करने वाला एवं संसार रूपी सागर से पार उतारने वाला बताया है।

व्याख्या:
गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि अब मैं कौन-सा उपाय करूँ, जिस से मेरे मन का संशय दूर हो या मिट जाए और मैं संसार रूपी सागर से पार उतर जाऊँ। मैंने मनुष्य जन्म प्राप्त करके भी शुभ कर्म नहीं किए इसी कारण मैं अधिक डर रहा हूँ। मैंने मन, वचन और कर्म से भगवान् के गुणों का गान नहीं किया। यही मेरे मन में विचार आ रहा है। गुरु के उपदेश को सुन कर भी मेरे मन में कुछ ज्ञान नहीं उत्पन्न हुआ। मेरा जीवन तो पशु समान ही रहा जो केवल पेट भरना ही जानता है। गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि प्रभु को कोई विद्वान् व्यक्ति ही पहचान सकता है। तभी मैं पतित तर सकता हूँ अर्थात् इस संसार रूपी सागर से पार जा सकता हूँ।

विशेष :

  1. संसार रूपी सागर को पार करने के लिए गुरु के उपदेश को पहचानना ज़रूरी है।
  2. भाषा सरल, सरस एवं सहज है।
  3. तद्भव, तत्सम एवं पंजाबी शब्दावली है।
  4. अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

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3. सोरठि महलामन की मन ही माहि रही।
ना हरि भजे न तीरथ सेवे चोटी काल गही ॥ रहाउ॥
दारा मीत पूत रथ संपति धन पूरन सभ मही ॥
अवर सगल मिथिआ ए जानऊ भजनु राम को सही ॥
फिरत फिरत बहुते जुग हारिओ मानस देह लही॥
नानक कहत मिलन की बरीआ सिमरत कहा नहीं ।
                                            (सोरठि महला 9)

कठिन शब्दों के अर्थ :
चोटि = केश। काल = काल, मृत्यु। गही = पकड़ी।दारा = पत्नी। मीत = मित्र। मही = धरती। अबर = और, दूसरा। सकल = सारा, सब कुछ। सही = ठीक। जुग = समय। लही = ली, मिली। बरीआ = अवसर। सिमरत = स्मरण। कहा नहीं = क्यों नहीं।

प्रसंग : प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी रागु सोरठि महला 9 में से लिया गया है। इसमें गुरु जी ने मनुष्य को ईश्वर के नाम को स्मरण करने का उपदेश दिया है।

व्याख्या :
गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि मेरे मन की बात या इच्छा मन में ही रह गई। क्योंकि जीवन में मैंने ईश्वर का भजन नहीं किया और मृत्यु ने आकर मेरी चोटी (बाल) पकड़ ली। पत्नी, मित्र, पुत्र, रथ, संपत्ति धन आदि से धरती परिपूर्ण थी। मुझे सब कुछ प्राप्त था किन्तु मैंने ईश्वर का भजन नहीं किया। मैंने जाना कि अन्य सारी बातें तो मिथ्या हैं। ईश्वर का भजन ही ठीक है। मुझे भटकते-भटकते बहुत समय बीत गया जबकि मुझे मनुष्य देह मिली थी अर्थात् मनुष्य योनि में जन्म लेकर मुझे ईश्वर का भजन करना चाहिए था। गुरु जी कहते हैं कि ईश्वर से मिलने के लिए इस अवसर का (मनुष्य जन्म लेने का) लाभ उठाते हुए तुम ईश्वर के नाम का स्मरण क्यों नहीं करते।

विशेष :

  1. मनुष्य देह प्राप्त करके मनुष्य को ईश्वर का स्मरण, भजन अवश्य करना चाहिए।
  2. भाषा सरल है।
  3. शब्दावली मिश्रित है।
  4. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शान्त रस।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

4. माई मैं किहि बिधि लखउ गुसाईं।
महा मोह अगिआन तिमरि मो मनु रहिओ उरझाई ॥ (रहाउ)
सगल जनम भरम ही भरम खोइओ नह असथिरु मति पाई ॥॥
बिखिआ सकत रहिओ निस बासुर नह छूटी अधमाई ॥
साध संगु कबहु नहीं कीना नह कीरति प्रभ गाई ॥
जन नानक मैं नाहिं कोऊ गुनु राखि लेहु सरनाई ॥2॥
                                               (सोरठि महला  9)

कठिन शब्दों के अर्थ :
माई = हे माँ। किहि बिधि = किस तरीके से।लखउ = दर्शन करूँ। गुसाईं = प्रभु। अगिआन = अज्ञान, अविद्या। तिमिर = अंधकार। खोइओ नह = नष्ट नहीं हुआ।मति = बुद्धि। बिखिआ सकत = विषय वासनाओं में डूबा हुआ।निस वासुर = दिन-रात । अधमाई = नीचता। कीरति = यश । रखिलेहु = रख लो। सरनाई = अपनी शरण में।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी रागु सोरठि महला-9 में से लिया गया है। इस पद में गुरु जी ने प्रभु से अपने आप को शरण में लेने की प्रार्थना की है।

व्याख्या :
गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि हे माँ! मैं किस तरीके से प्रभु के दर्शन पाऊँ। महामोह और अज्ञान के अन्धेरे में मेरा मन उलझा हुआ है। भटक रहा है। मैंने अपना सारा जन्म भ्रम में भटकते हुए बिता दिया। इस भ्रम का नाश नहीं किया जिससे मेरी बुद्धि अस्थिर ही रही। मैं दिन-रात विषय वासनाओं में ही डूबा रहा। मेरी नीचता दूर नहीं हुई। मैंने कभी भी या जीवन भर साधुओं की संगति नहीं की और न ही प्रभु के यश का गान किया। गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि मुझ में कोई गुण नहीं है फिर भी प्रभु आप मुझे अपनी शरण में ले लो।

विशेष :

  1. मनुष्य प्रभु से कहता है कि वह कितना ही बुरा है फिर भी आप मुझे अपनी शरण में अवश्य ले लें।
  2. भाषा सरल, सरस एवं सहज है।
  3. पंजाबी, तत्सम, तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शान्त रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

5. साधो गोबिन्द के गुन गावह ।
मानस जनम अमोलक पाइओ बिरथा काहि गवावह ॥1॥ रहाउ॥
पतित पुनीत दीन बंध हरि सरनि ताहि तुम आवहु ॥
गज को त्रासु मिटिओ जिह सिमरत तुम काहे बिसरावहु ॥1॥
तजि अभिमान मोह माइआ फुनि भजन राम चितु लावऊ ॥
नानक कहत मुकति पंथ इहु गुरमुखि होइ तुम पावउ ॥ ॥2॥
                                                  (राग गाउड़ी, महला 9)

कठिन शब्दों के अर्थ :
गोबिन्द = ईश्वर। गावहु = गाओ। मानस जनमु = मनुष्य का जन्म । अमोलकु = अनमोल, अमूल्य। बिरथा = व्यर्थ। काहि = किस लिए। पतित = गिरा हुआ, भ्रष्ट। पुनीत = पवित्र। दीन-बन्धु = परमात्मा। सरनि = शरण में। गज = हाथी । त्रास = दुःख। बिसरावहु = भूलता है। फुनि = फिर। मुकति पंथ = मोक्ष का मार्ग। गुरमुखि = गुरु का शिष्य।

प्रसंग :’
प्रस्तुत पद श्री गुरु तेग बहादुर द्वारा रचित वाणी ‘गउड़ी महला 9’ से उद्धृत किया गया है। इसमें गुरु जी ने संसार के लोगों को सन्देश दिया है कि मानव-जीवन को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।

व्याख्या :
गुरु जी कहते हैं-हे ईश्वर भक्तो ! तुम ईश्वर के गुणों का गायन करो, ईश्वर का भजन करते रहो। यह मनुष्य-जन्म अनमोल है, इसको प्राप्त कर सांसारिक विषयों में पड़कर इसे व्यर्थ क्यों गंवा रहे हो। परम पावन ईश्वर पतित, गिरे हुए, भ्रष्ट लोगों का उद्धार करने वाला दीन बन्धु की शरण में तुम्हें जाना चाहिए। भगवान् का स्मरण करते ही उसने हाथी को मगरमच्छ के मुँह से छुड़ाकर उसका दुःख दूर कर दिया था। ऐसे पतित उद्वारक परमात्मा को तुम क्यों भुला रहे हो। अरे मानव ! तुम अहंकार एवं मोह-माया को छोड़कर फिर से भगवान् राम के स्मरण करने में अपने चित्त को लगा ले। श्री गुरु जी के अनुसार मुक्ति का मार्ग यही है इसलिए गुरु का शिष्य बन कर तुम इसे पा सकते हो।

विशेष :

  1. मनुष्य-जन्म सब प्राणियों से श्रेष्ठ है। यह अनमोल है। इसे सांसारिक विषय-वासना में फंस कर गँवाना अनुचित है।
  2. भाषा सरस, सहज एवं सरल है।
  3. पंजाबी, तत्सम और तद्भव शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है।
  6. शांत रस है।
  7. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 5 पदावली

पदावली Summary

पदावली 

गुरु-परम्परा में नवें गुरु तेग बहादुर जी को संयम, त्याग, सहनशीलता एवं करुणा के कारण अति महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मीरी और पीरी की तलवारें धारण करने वाले गुरु श्री हरगोबिन्द साहिब के घर माता नानकी जी के गर्भ से इनका जन्म सन् 1621 को अमृतसर में हुआ था। गुरु गद्दी पर बैठने के पश्चात् आप कई गुरु धामों की यात्रा करते हुए कीरतपुर साहिब पहुंचे। उन्होंने सन् 1666 ई० में पहाड़ी राजाओं से जमीन खरीदकर आनन्दपुर सहिब नामक नगर बसाया जो बाद में खालसा की जन्मभूमि’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा के साथ इन्होंने अध्यात्म-विद्या तथा शस्त्र-विद्या की शिक्षा ग्रहण की। गुरु हरिकृष्ण जी के बाद वे गुरु पद पर शोभायमान हुए। उस समय गुरु जी की आयु 43 वर्ष की थी।

गुरु तेग बहादुर जी ने औरंगजेब के अत्याचारों से पीडित कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया था। यह बलिदान जिस जगह पर हुआ वह दिल्ली में गुरुद्वारा सीस गंज के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु जी अति महान् व्यक्तित्व के स्वामी और तपस्वी थे जिन्होंने निरंकार ईश्वर का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने 59 स्वर तथा 57 श्लोकों की रचना पंजाबी से प्रभावित ब्रजभाषा में की थी। इनकी रचनाओं में संसार की नश्वरता, सांसारिक व्यवहार में कटुता, राम-नाम की महिमा, बाह्य आडम्बरों का विरोध और सहजता की प्रत्यक्षता को महत्त्व दिया गया है। उन्होंने संयम, समभाव, ईश्वर प्रेम, सात्विक व्यवहार, मानवतावाद और शुद्ध चिन्तन को श्रेष्ठतम माना था।

पदावली का सार

प्रस्तुत पदावली में गुरु तेग बहादुर जी के श्रेष्ठ पदों को सम्मिलित किया गया है। गुरु जी ने अपने पदों में अहंकार, काम, क्रोध और मोह-माया को त्यागने के लिए कहा है। उन्होंने भक्ति भावना और सांसारिक नश्वरता के साथ-साथ गुरु जी ने मानवीय मूल्यों की स्थापना पर बल दिया है। मनुष्य सभी बन्धनों से मुक्त होकर साधु संगति में लीन होकर व्यक्ति प्रभु को पा सकता है। मानव जन्म संसार में बहुत दुर्लभ है। फिर इसको व्यर्थ में नहीं खोना चाहिए अपितु इसे सार्थक बनाने के लिए मन को प्रभु में लीन करना आवश्यक है। प्रभु भक्ति से ही मनुष्य संसार रूपी भवसागर से पार हो सकता है और यह सब तभी सम्भव है जब मनुष्य गुरु के बताए उपदेशों को अच्छी तरह समझे। मनुष्य यह समझे कि मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता। यह अनमोल है इसे सांसारिक विषय-वासना में फंसा कर गंवाना अनुचित है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 3 सवैये

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 3 सवैये Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 3 सवैये

Hindi Guide for Class 11 PSEB सवैये Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रसखान किस देवता की आराधना करना चाहते हैं और क्यों ?
उत्तर:
रसखान श्रीकृष्ण की आराधना करना चाहते हैं क्योंकि आप श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य पर मुग्ध थे। उनके साधन श्रीकृष्ण थे। वे ही उनके सभी मनोरथ पूरे करते थे। रसखान जी श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। वे कदापि नहीं चाहते थे कि किसी भी अवस्था में उनसे दूर रहकर वियोग पीड़ा को प्राप्त करते । वे सजीव या निर्जीव अवस्था में उनकी निकटता ही पाना चाहते थे।

प्रश्न 2.
रसखान के अनुसार भवसागर को किस प्रकार पार किया जा सकता है ?
उत्तर:
रसखान कवि कहते हैं कि व्रत, नियम और सच्चाई का पालन करने पर ही भवसागर पार किया जा सकता है। हमें किसी के प्रति राग-द्वेष नहीं रखना चाहिए। सबसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। ईश्वर का नाम लेने वाले साधुओं की संगत में रहकर पवित्र भावों से ईश्वर के नाम में लीन रहना चाहिए। प्रभु की भक्ति एकाग्र चित्त होकर करनी चाहिए तभी भवसागर को पार किया जा सकता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 3 सवैये

प्रश्न 3.
कवि प्राण, रूप, शीश, पैर, दूध और दही की सार्थकता किसमें समझता है ?
उत्तर:
रसखान प्राणों की सार्थकता इसी में समझते हैं जो श्रीकृष्ण पर रीझे रहें और रूप वही सार्थक है जो उन्हें रिझा सके। सिर वही सार्थक है जो सदा उनके कदमों में झुका रहे और पैर वहीं सार्थक हैं जिन्हें प्रभु श्री कृष्ण का स्पर्श हमेशा प्राप्त होता है। दूध वही सार्थक है जिसे श्रीकृष्ण ने दुहा है और दही वही सार्थक है जिसे श्रीकृष्ण ने ढरकाया है। कवि प्रत्येक उसी वस्तु को सार्थक मानता है जो श्रीकृष्ण की निकटता को प्राप्त कर चुकी थी।

प्रश्न 4.
कवि गोकुल गाँव, नन्द की धेनु, गोवर्धन पर्वत, कदम्ब की डालियों पर निवास क्यों करना चाहता है ?
उत्तर:
कवि अपने किसी भी जन्म में केवल उन्हीं वस्तुओं और स्थानों को पाना चाहता है जिनका सम्बन्ध श्रीकृष्ण से रहा है। गोकुल गाँव, नन्द बाबा की गउएँ, गोवर्धन पर्वत, कंद की डालियों आदि सभी का सम्बन्ध श्रीकृष्ण से था। कवि का अटूट विश्वास है कि ये सभी स्थान क्योंकि श्रीकृष्ण से सम्बन्धित है इसलिए वहां उनके दर्शनों का लाभ हो सकता है इसके लिए वे अगले जन्म में ग्वाला, गाय, पत्थर और पक्षी का जन्म पाने की कामना करता हैं।

प्रश्न 5.
गोपिका पूरा स्वाँग करने को तैयार है, परन्तु बाँसुरी को होंठों से लगाना क्यों नहीं चाहती ?
उत्तर:
गोपियां श्रीकृष्ण की ब्रज से अनुपस्थिति में उन जैसा व्यवहार करते हुए उनसे जुड़ी रहने की कामना करती थीं व सब वे कार्य करने को तैयार थीं जो श्रीकृष्ण की संयोगावस्था में किया करती थीं पर वे उनकी बांसुरी को अपने होठों पर लगाने को तैयार नहीं थी क्योंकि वह श्रीकृष्ण की होंठों लगी थी और सदा उनके साथ बनी रहती थी। सौतिया डाह के कारण गोपी श्रीकृष्ण का पूरा स्वांग करने को तैयार है पर बाँसुरी को अपने होंठों से नहीं लगाना चाहती। जिस प्रकार कोई भी नारी अपने जीवन में कभी भी सौत को नहीं पाना चाहती उसी प्रकार गोपियाँ भी बाँसुरी रूपी सौत को स्वीकार नहीं करना चाहतीं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 3 सवैये

PSEB 11th Class Hindi Guide सवैये Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रसखान ने किस संप्रदाय से अपना संबंध जोड़ा था ?
उत्तर:
किसी से नहीं।

प्रश्न 2.
रसखान की भक्ति किस भाव की पर्याय बन गई थी ?
उत्तर:
माधुर्य भाव की।

प्रश्न 3.
रसखान ने किस कारण दिल्ली छोड़ कर ब्रजक्षेत्र की ओर गमन किया था ?
उत्तर:
राज विप्लव और दुर्भिक्ष के कारण।

प्रश्न 4.
रसखान के द्वारा रचित कितने ग्रंथ मिलते हैं ?
उत्तर:
तीन ग्रंथ।

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प्रश्न 5.
रसखान के द्वारा रचित ग्रंथों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सुजान रसखान, प्रेमवाटिका, दानलीला।

प्रश्न 6.
रसखान की रचनाओं का प्रतिपाद्य क्या है ?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की लीला माधुरी का अनुगान।

प्रश्न 7.
रसखान किस प्रकार की कथा कहते हैं ?
उत्तर:
अद्वैत प्रेम की कथा।

बहुविकल्पी पध्नोत्तर

प्रश्न 1.
रसखान किसके अनन्य भक्त थे ?
(क) श्री कृष्ण के
(ख) श्री राम के
(ग) शिव के
(घ) हनुमान के।
उत्तर:
(क) श्री कृष्ण के

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 3 सवैये

प्रश्न 2.
रसखान का किस संस्कृति के प्रति विशेष अनुराग था ?
(क) मुस्लिम
(ख) हिंदू
(ग) सिक्ख
(घ) ईसाई।
उत्तर:
(ख) हिंदू

प्रश्न 3.
रसखान किस प्रेम की कथा कहते हैं ?
(क) द्वैत
(ख) अद्वैत
(ग) निर्गुण
(घ) सुमन।
उत्तर:
(ख) अद्वैत

प्रश्न 4.
गोपियों के अनुसार श्री कृष्ण किसके वश में रहते हैं ?
(क) बांसुरी के
(ख) राधा के
(ग) कृष्ण के
(घ) मोह के।
उत्तर:
(क) बांसुरी के।

सवैये  सप्रसंग व्याख्या

1. सेष सुरेस दिनेस गनेस प्रजेस धनेस महेस मनायौ ।
कोऊ भवानी भजौ, मन की सब आस सवै विधि जाइ पुरावौ॥
कोऊ रमा भजि लेहु महाधन, कोऊ कहूँ, मन वांछिति पायौ ।
पै रसखानि वही मेरे साधन, और त्रैलोक रहौ कि नसावो॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
सेष = शेषनाग। सुरेस = इन्द्र। दिनेस = सूर्य। गनेस = शिव पुत्र गणेश जी। प्रजेस = प्रजापति, ब्रह्मा जी। धनेस = धन के स्वामी-कुबेर । महेस = भगवान् शंकर । भवानी = दुर्गा माँ । सवै विधि = सब तरह से। पुरावौ = पूर्ण कर ले। रमा = लक्ष्मी जी। मनवांछित = मन चाहा। त्रैलोक = तीनों लोक।

प्रसंग :
प्रस्तुत सवैया कृष्ण भक्त कवि रसखान द्वारा लिखित सवैयों से लिया गया है। प्रस्तुत सवैया में कवि रसखान श्री कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति प्रकट कर रहे हैं।

व्याख्या :
रसखान कवि कहते हैं कि कोई शेषनाग को, कोई इन्द्र देवता को, कोई सूर्य देवता को, कोई गणेश जी को, कोई प्रजापति ब्रह्मा जी को, कोई धन के देवता कुबेर को, कोई शंकर भगवान् को मनाता है। उनसे मन्नत माँगता है। कोई दुर्गा माँ का भजन करके अपने मन की सब इच्छाएँ सब प्रकार से पूर्ण करता है। कोई लक्ष्मी जी की पूजा करके बहुत-सा धन प्राप्त करता है। कोई कहीं और अपना मनचाहा प्राप्त करता है। परन्तु रसखान कवि कहते हैं कि तीनों लोकों में और कुछ रहे न रहे पर मेरे तो साधन श्री कृष्ण ही हैं- भाव यह है कि कवि के लिए तो श्रीकृष्ण ही मनोकामना पूर्ण करने वाले आधार हैं।

विशेष :

  1. प्रत्येक मनुष्य अपनी इच्छानुसार अपने आराध्यदेव को मानता है।
  2. रसखान जी के लिए उनके आराध्य देव श्रीकृष्ण हैं वही उनके सभी काम पूर्ण करते हैं।
  3. ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. प्रसाद गुण है, शांत रस है।
  6. भक्ति रस का सुन्दर परिपाक है।
  7. संगीतात्मकता विद्यमान है।
  8. सवैया छंद है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 3 सवैये

2. सुनिए सब की कहियै न कछु रहियै इमि या मन-बागर में ।
करियै ब्रत-नेम सचाई लियें, जिनतें तरिय, भव-सागर में।।
मिलियै सब सौं दुरभाव बिना, रहियै सतसंग उजागर में।
रसखानि गुवन्दिहिं यौं भजियै, जिमि नागरि को चित्त गागर में।

कठिन शब्दों के अर्थ :
इमि = इस प्रकार। मन-बागर = मन रूपी जाल । नेम = नियम। भवसागर = संसार रूपी समुद्र । दुरभाव = बुरी भावना। उजागर = दीप्तिमान, सात्विक। नागरि = स्त्री।

प्रसंग :
प्रस्तुत सवैया कृष्ण-भक्त कवि रसखान द्वारा रचित सवैयों में से लिया गया है। प्रस्तुत सवैया में कवि श्रीकृष्ण की भक्ति सच्चे हृदय से, एकाग्रचित होकर, करने के लिए कह रहे हैं।

व्याख्या :
कवि रसखान जी कहते हैं हमें सब की बात सुननी चाहिए परन्तु किसी को कुछ नहीं कहना चाहिए हमें ऐसे रहना चाहिए जैसे मन रूपी जाल में कोई बंद हो। हमें सच्चे हृदय से व्रत-नियम का पालन करना चाहिए जिससे हम इस संसार रूपी समुद्र से पार हो सके। सब से बुरी भावना के बिना मिलना चाहिए तथा सदा सात्विक सत्संग में रहना चाहिए। रसखान कवि कहते हैं कि श्रीकृष्ण का भजन ऐसे करना चाहिए जैसे गागर उठाने वाली स्त्री का मन गागर में ही रहता है। वह किसी भी अवस्था में कहीं और नहीं भटकता। श्री कृष्ण भक्ति हमें दत्तचित्त होकर सच्चे मन से करनी चाहिए जैसे गागर उठाने वाली स्त्री का ध्यान गागर में ही केन्द्रित रहता है कि कहीं उसमें भरा हुआ दूध गिर न जाए।

विशेष :

  1. एकाग्र मन से ही भक्ति करनी चाहिए।
  2. साफ और सच्चे मन का मनुष्य ही भवसागर से पार हो सकता है।
  3. ब्रज भाषा सरस तथा भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
  4. सवैया छंद है।
  5. अनुप्रास तथा रूपक अलंकार है।
  6. प्रसाद गुण है।
  7. शांत रस है।
  8. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 3 सवैये

3. प्राण वही जु रहैं रिझि वा पर रूप वही जिहि वाहि रिझायौ।
सीस वही जिन वे पद परसै पद अंक वही जिन वा परसायौ॥
दूध वही जू दुहायौ री वाही दही सु सही जु वही ढरकायौ।
और कहाँ लौ कहौं रसखानि री भाव वही जु वही मन भायौ।।

कठिन शब्दों के अर्थ :
रिझि = रीझ जाएँ. मोहित हो जाएँ। वा पर = उस पर (श्री कृष्ण पर)। जिहि = जिससे। वाहि = उसे (श्री कृष्ण को)। रिझायौ = प्रसन्न किया। परसे = छुए। अंक = गोद । वा = उनसे । परसायौ = स्पर्श कराना, सटाना, छू लेना। वाही = उनके लिए। ढरकरायौ = उंडेल दिया। मन भायौ = मन को अच्छा लगे, मन भावत।।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश कृष्ण भक्त कवि रसखान द्वारा रचित सुजान रसखान में संकलित सवैयों से लिया गया है। प्रस्तुत सवैया में रसखान जी श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति एवं श्रद्धा प्रकट कर रहे हैं।

व्याख्या :
कवि रसखान जी अपने मन में अभिलाषा करते हुए कहते हैं कि उसी व्यक्ति के प्राण सफल हैं जो उन श्रीकृष्ण पर प्रसन्न हो जाएँ तथा रूप वही सफल हैं जो उनको रिझा सके तथा अपने प्रति मोहित कर सके। सिर वही सफल है जो उनके चरणों का स्पर्श करता है और गोद वही सफल है जो उससे सटी रहती हैं। जिसे उनका स्पर्श प्राप्त होता है। दूध वही अच्छा है जो उन श्रीकृष्ण के लिए दुहाया जाता है और दही वही अच्छी है जिसे श्रीकृष्ण ढरकाते हैं एवं उंड़ेलते हैं। रसखान कवि कहते हैं कि और मैं कहाँ तक कहँ । बस वही भाव अच्छा है जो उनको पसंद आता है। भाव यह है कि जो बात श्रीकृष्ण को अच्छी लगती हो वही मैं करना चाहता हूँ।

विशेष :

  1. उसी मनुष्य का जन्म सफल है जिसे श्रीकृष्ण की कृपा मिल जाए।
  2. श्रीकृष्ण का भक्त वही करना चाहता है जो उन्हें प्रसन्न कर सकें।
  3. ब्रज भाषा तथा तद्भव शब्दावली है।
  4. प्रसाद गुण है।
  5. शांत रस है।
  6. सवैया छंद है।
  7. अनुप्रास अलंकार है।
  8. गेयता का गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 3 सवैये

4. मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौ ब्रज-गोकुल-गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहां बसु मेरौ, चरौं नित नन्द की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।
जो खग हौं तो बसेरों करौ, मिलि कालिंदी कूल-कदंब की डारन।।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मानुष = मनुष्य। ग्वारन = गवालों। पसु = पशु। बसु = बस। धेनु = गऊओं। मँझारन = बीच में । पाहन = पत्थर । गिरि = पर्वत । कर = हाथों का। छत्र = छतरी। पुरंदर = इंद्र । खग = पक्षी। कालिंदी कूल = यमुना नदी के किनारे । कदंब की डारन = कदंब वृक्ष की पक्तियों में।

प्रसंग :
प्रस्तुत सवैया श्री कृष्ण भक्त कवि रसखान द्वारा रचित ‘सुजान रसखान’ में संकलित सवैयों में से लिया गया है। प्रस्तुत सवैया में रसखान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति को प्रकट कर रहे हैं।

व्याख्या :
रसखान कवि कहते हैं कि अगले जन्म में यदि मैं मनुष्य ही बनूँ या मनुष्य के रूप में जन्म लूँ तो मेरी यह इच्छा है कि मैं गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच ही बरौं। यदि पशु की योनि में जन्म मिला तो इस पर बस तो कोई नहीं है किन्तु मेरी यह इच्छा है कि मैं सदा नन्द बाबा की गौवों के बीच ही चरता रहूँ, जिन गायों को श्रीकृष्ण चराया करते थे। यदि मैं पत्थर बनूँ तो मेरी यही इच्छा है कि उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ जिसे श्री कृष्ण ने इन्द्र के क्रोध से बचाने के लिए ब्रज वासियों के लिए छत्र बनाकर रक्षा की थी। यदि मेरा अगला जन्म पक्षी के रूप में हो तो मेरी यह इच्छा है कि मैं उन कदंब की डालियों पर बसेरा करूँ जो वृक्ष यमुना नदी के किनारे लगे हुए हैं। कवि हर अवस्था में श्रीकृष्ण से जुड़ी वस्तुओं से संपर्क बनाए रखना चाहता है हर अवस्था में ब्रज के निकट ही बना रहना चाहता है।

विशेष :

  1. श्रीकृष्ण भक्त प्रत्येक स्थिति में अपने प्रभु से जुड़ी हर वस्तु , स्थान तथा व्यक्ति के समीप रहना चाहते हैं।
  2. श्रीकृष्ण भक्त अपनी भक्ति को प्रकट करने के लिए अगला जन्म ब्रजभूमि में लेना चाहते हैं।
  3. ब्रजभाषा है।
  4. तद्भव शब्दावली है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।
  6. प्रसाद गुण है।
  7. शांत रस है।
  8. गेयता का गुण विद्यमान है।
  9. सवैया छंद है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 3 सवैये

5. मोर पखा सिर ऊपर राखि हौं, गुंज की माल गरे पहरौंगी।
ओढि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारन संग फिरौंगी।
भावतो वोहि मेरो रसखानि, सो तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी
या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरौंगी।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मोरपखा = मोर पंख । राखिहौं = धारण करके । गुंज = रत्तक रत्ती। गरे = गले। पितांबर = पीला वस्त्र। लकुटी = लकड़ी। गोधन = वन में गऊओं को चराने वाला गीत। संग = के साथ। भावतो = चाहा हुआ। मुरलीधर = श्री कृष्ण। अधरान धरी = होंठों पर रखी हुई अर्थात् उनकी जूठी। अधरा = होंठों पर। न धरौंगी= नहीं धारण करूँगी।

प्रसंग :
प्रस्तुत सवैया श्री कृष्ण भक्त कवि रसखान द्वारा रचित ग्रन्थ ‘सुजान रसखान’ नामक रचना के सवैयों में से लिया गया है। प्रस्तुत सवैया में कवि ने श्री कृष्ण के प्रति गोपियों के निश्छल तथा निस्वार्थ प्रेम का चित्रण किया है।

व्याख्या :
गोपियाँ श्री कृष्ण की भक्ति के वशीभूत होकर श्री कृष्ण का स्वांग भरने को तैयार हो जाती हैं। इस पर उस गोपी ने कहा कि मैं मोर पंख तो सिर पर धारण कर लूँगी और जंगली बेल पर लगने वाले लाल-काले रंग के गोल आकार के बीज रूपी रत्तियों की बनी माला भी गले में पहन लूँगी। पीले वस्त्र पहनकर गौवों को चराने के लिए लकड़ी हाथ में ले लूँगी। वन में गोधन गीत गाते हुए ग्वालों के साथ घूमूंगी। रसखान कवि कहते हैं जो भी उन्हें अच्छा लगता है वे सभी स्वांग मैं उनके कहे से करूँगी। पर उन श्रीकृष्ण की ओंठों पर धारण की गई इस मुरली को मैं अपने होंठों पर नहीं रखूगी। गोपी श्रीकृष्ण की बाँसुरी अपने होंठों से सौतिया डाह के कारण नहीं लगाना चाहती। गोपी को चिढ़ है कि बाँसुरी तो श्री कृष्ण के मुँह लगी है।

विशेष :

  1. गोपियों के श्रीकृष्ण के प्रति निश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है।
  2. गोपियों का श्रीकृष्ण का स्वांग भरना परन्तु मुरली को होंठों को न लगाना उनकी सौत के प्रति ईर्ष्या भाव को चित्रित करता है।
  3. ब्रज भाषा है। भाषा सरस तथा प्रवाहमयी है।
  4. अनुप्रास और यमक अलंकार है।
  5. सवैया छंद है।
  6. माधुर्य गुण है।
  7. श्रृंगार रस है।
  8. भक्ति रस का सुंदर परिपाक है।
  9. संगीतात्मकता विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 3 सवैये

सवैये Summary

सवैये जीवन-परिचय

हिन्दी के मुसलमान कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने मुस्लिम धर्मावलंबी होने पर भी श्रीकृष्ण के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर अपने हृदय की शुद्धता और विशालता का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया है। रसखान का जन्म सन् 1558 के आस-पास दिल्ली के एक संपन्न पठान परिवार में हुआ था। इनका पठान बादशाहों के वंश से संबंध माना जाता है। इनके जन्म-समय, शिक्षा-दीक्षा, व्यवसाय एवं निधन के सम्बन्ध में प्रामाणिक रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। रसखान श्रीकृष्ण जी के अनन्य भक्त थे। श्रीकृष्ण जी की भक्ति इनका सर्वस्व था। ये मुसलमान थे और फ़ारसी के विद्वान थे फिर भी इनका हिन्दू संस्कृति के प्रति अत्यधिक अनुराग था। साधुओं के संगीत के कारण इन्होंने वेदों और शास्त्रों के सिद्धान्तों का अध्ययन किया। सन् 1616 के लगभग इनका स्वर्गवास हो गया।

इनकी रचनाओं को संपादकों ने अनेक रूपों में प्रस्तुत किया है। रसखान दोहावली, रसखान कवितावली, रसखानि ग्रंथावली, रसखान शतक, प्रेमवाटिका सुजान रसखान, रसखान पदावली, रत्नावली आदि इनके अनेक संकलन हैं। इनकी रचनाओं में कृष्ण की लीलाओं को बड़ी तन्मयता से प्रस्तुत किया गया है। इनमें प्रेम का मनोहारी चित्रण हुआ है।

सवैये का सार

रसखान हिन्दी के कृष्ण-भक्त कवियों में अपना अलग ही स्थान रखते हैं। प्रस्तुत सवैये ‘सुजान रसखान’ नामक रचना से लिए गए हैं। रसखान जी के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के अपने-अपने आराध्य देव होते हैं परन्तु उनके आराध्य देव श्रीकृष्ण हैं जो उनके सभी मनोरथ पूरे करते हैं। मनुष्य को सबकी सुननी चाहिए परन्तु उसे वही करना चाहिए जिसमें उसका हित निहित हो। कवि के अनुसार श्रीकृष्ण की भक्ति हमें एकाग्र होकर करनी चाहिए तभी हम संसार रूपी सागर से पार हो सकेंगे। कवि अपनी भक्ति में वह सब करना चाहता है जिससे श्रीकृष्ण जी प्रसन्न होकर उन्हें अपनी शरण में ले लें। कवि वही रहना चाहता है जहां कण-कण में श्रीकृष्ण का वास है। वह श्रीकृष्ण की निकटता के लिए कुछ भी करने या बनने को तैयार हैं। कवि गोपियों के श्रीकृष्ण प्रेम और बांसुरी के प्रति सौतिया ईर्ष्या का वर्णन किया है। गोपियां श्रीकृष्ण के प्रेम में उनका रूप धारण करती हैं परन्तु उनकी प्रिय बांसुरी को अपने होठों पर धारण नहीं करना चाहती।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 2 रामराज्य वर्णन

Hindi Guide for Class 11 PSEB रामराज्य वर्णन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
श्रीराम के राज्य में सामाजिक स्थिति किस प्रकार की थी ?
उत्तर:
राम-राज्य में राजनीति के दंड और भेद नहीं थे। दंड केवल संन्यासियों के हाथ में होता था तथा भेद केवल नाचने वालों के समाज में था। उनके राज्य में वनों में वृक्ष सदा फूल-फल से लदे रहते थे तथा हाथी और शेर अपने स्वाभाविक वैर को भुलाकर एक साथ रहते थे। पशु-पक्षी आपस में प्रेमपूर्वक रहते थे। भेद-भाव न होने के कारण सामान्य समाज बिना किसी लड़ाई-झगड़े के परस्पर प्रेमपूर्वक रहता था। निर्धनता और अभाव कहीं नहीं थे।

प्रश्न 2.
राम-राज्य में वनस्पति और पशु-पक्षियों की सुरक्षा का वर्णन करें।
उत्तर:
राम-राज्य में वनों में वृक्ष सदा फूल, फलों से लदे रहते थे। लताएँ और वृक्ष जितना माँगो उतना रस टपका देते थे। पक्षी सदा चहचहाते रहते थे और पशु निर्भय होकर वन में चरते थे और आनन्द मनाते थे। पशु और पक्षी सभीअपने सहज वैर को भुलाकर प्रेमपूर्वक रहते थे। सभी प्राणी और प्रकृति इस प्रकार एक-दूसरे के हितचिंतक बने हुए थे कि किसी का भी ह्रास नहीं होता था।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

प्रश्न 3.
‘राम-राज्य’ में प्रकृति का राज्य की समृद्धि में क्या स्थान है?
उत्तर:
राम राज्य में प्रकृति भी राज्य की समृद्धि में पूरा योगदान देती थी। वनों में वृक्ष सदा फूलों और फलों से लदे रहते थे। सदा त्रिविध पवन शीतल, सुगन्धित एवं मंद, बहती रहती थी। लताएँ और वृक्ष जितना माँगो उतना रस टपका देते थे। नदियाँ सदा शीतल, निर्मल, स्वाद और सुख देने वाले जल से भरपूर बहती रहती थीं। पर्वत, विविध मणियों की खानों को अपने आप प्रकट कर देते थे तथा सागर भी सदा अपनी मर्यादा में रहता था।

प्रश्न 4.
चारिउ चरण धर्म जग माहीं’ में धर्म के किन चार चरणों का वर्णन किया गया है?
उत्तर:
श्री राम जी के राज्य में चारों चरणों का पालन होता था। सत्य, शौच (शुद्धता), दया और दान धर्म के यह चार चरण माने जाते थे। कोई भी पाप नहीं करता था। सत्य का पालन करने के परस्पर झगड़े और क्लेश नहीं होते थे। शुद्धता से भरा आचरण मानसिक ताप को दूर करता था जिससे जीवन से हर तरह का क्लेश दूर हो जाता था। दया और दान एक-दूसरे से मिलकर कल्याण को बढ़ाता था जिससे अपनत्व का भाव बढ़ता था। चारों चरण परस्पर मिलकर सौहार्द बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते थे।

प्रश्न 5.
‘दण्ड जतिन्ह कर भेद जहँ, नर्तक नृत्य समाज’ में राम-राज्य की किस व्यवस्था का वर्णन है ?
उत्तर:
राजनीति में शत्रुओं एवं चोर-डाकुओं का दमन करने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद यह चार उपाय किए जाते थे। श्री राम चन्द्र के राज्य में दण्ड शब्द तो था, किन्तु वह संन्यासियों के हाथ में डंडे के स्वरूप में था। भेद तो थे किन्तु वह प्रजा के मन में न होकर नाचने वालों के समाज में स्वर एवं ताल के भेद के रूप में थे। राजा का कोई शत्रु न होने के कारण ‘जीत लो’ शब्द का प्रयोग लोग केवल मन को जीतने के लिए करते थे शत्रु को जीतने के लिए नहीं।

प्रश्न 6.
गोस्वामी तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ के राम-राज्य का आज की स्थिति में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
राम-राज्य का आज की स्थिति में विशेष महत्त्व है। महात्मा गाँधी ने देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् जिस राम-राज्य का सपना देखा था, वह आज पूरी तरह से विफल हो चुका है। देश में आज भी ग़रीबी, भूख, भ्रष्टाचार, भाईभतीजावाद, आपसी मतभेद इस सीमा तक बढ़ गए हैं कि इनका समाधान करना कठिन हो रहा है। काश ! देश में रामराज्य जैसी स्थिति फिर से आ जाए जिसमें कोई दरिद्र न हो, कोई दु:खी न हो और कोई दीन न हो।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

PSEB 11th Class Hindi Guide रामराज्य वर्णन Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
तुलसीदास किस काव्य-धारा के कवि हैं ?
उत्तर:
तुलसीदास रामकाव्य धारा के कवि हैं।

प्रश्न 2.
तुलसीदास का जन्म और मृत्यु कब और कहाँ हुई ?
उत्तर:
तुलसीदास का जन्म विक्रम संवत् 1554 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर गाँव में तथा मृत्यु विक्रम संवत् 1680 में काशी में हुई थी।

प्रश्न 3.
तुलसीदास किस नक्षत्र में पैदा हुए थे ?
उत्तर:
तुलसीदास का जन्म अशुभ अमुक्तभूल नक्षत्र में हुआ था ।

प्रश्न 4.
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ कितनी और कौन-सी हैं ?
उत्तर:
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ बारह मानी गई हैं जो वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, रामाज्ञा प्रश्न, रामचरितमानस, विनय पत्रिका, कवितावली, रामललानहछु गीतावली, कृष्णगीतावली, दोहावली तथा बरवै रामायण हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

प्रश्न 5.
तुलसी परमात्मा के किस स्वरूप की उपासना करते हैं ?
उत्तर:
तुलसी परमात्मा के सगुण-स्वरूप की उपासना करते हैं। राम-सीता उनके आराध्य हैं।

प्रश्न 6.
तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य कौन-सा है ?
उत्तर:
रामचरितमानस तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य है।

प्रश्न 7.
तुलसीदास की काव्य-भाषा कौन-सी है ?
उत्तर:
तुलसीदास ने संस्कृत, अवधी तथा ब्रज भाषा में काव्य रचना की है।

प्रश्न 8.
रामचरितमानस की भाषा तथा मुख्य छंद कौन-से हैं ?
उत्तर:
रामचरितमानस की भाषा अवधी तथा मुख्य छंद दोहा-चौपाई है।

प्रश्न 9.
रामराज की क्या विशेषता है ?
उत्तर:
राम-राज में किसी को दैहिक, दैविक तथा भौतिक संताप नहीं कष्ट देते।

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प्रश्न 10.
धर्म के चार चरण कौन-से हैं ?
उत्तर:
धर्म के चार-चरण सत्य, शौच, दया और दान माने गए हैं।

प्रश्न 11.
‘नभगेस’ कौन है ?
उत्तर:
गरूड़ को नभगेस कहा जाता है।

प्रश्न 12.
श्रुति नीति क्या होती है ?
उत्तर:
वेद-शास्त्रों द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार जीवनयापन करना।

प्रश्न 13.
राम-राज्य के सुखों और संपत्ति का वर्णन कौन नहीं कर सकता ?
उत्तर:
राम-राज्य के सुखों और संपत्ति का वर्णन शेषनाग अपनों सहस्रों मुखों तथा सरस्वती भी अपनी वाणी से नहीं कर सकती।

प्रश्न 14.
राम-राज्य में किस युग की स्थिति बन गई है ?
उत्तर:
रामराज्य में सतयुग की स्थिति बन गई है ।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

प्रश्न 15.
रामराज्य में वनों की क्या दशा है ?
उत्तर:
वन में हाथी-सिंह और पक्षी-पशु परस्पर मिल-जुल कर रहते हैं।

प्रश्न 16.
श्रीराम ने कौन-से यज्ञ किए थे ?
उत्तर:
श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किए थे।

प्रश्न 17.
श्रीराम को कवि ने कैसा राजा कहा है ?
उत्तर:
श्रीराम वेदमार्ग का पालन करने वाले तथा धर्मानुसार चलने वाले थे।

प्रश्न 18.
राजा दशरथ के द्वार पर जाकर सखी ने क्या देखा ?
उत्तर:
राजा दशरथ बालक राम को गोद में लेकर बाहर आए थे।

प्रश्न 19.
सखी ने बालक राम को क्या कहा है ?
उत्तर:
सखी ने बालक राम को सोच-विमोचन कहा है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

प्रश्न 20.
बालक राम की वेशभूषा कैसी है ?
उत्तर:
बालक राम ने पैरों में नूपुर तथा कलाई पर पहुँची बाँधी हुई है। उनके हृदय पर मणियों की माला तथा शरीर पर पीला अँगा सुशोभित हो रहा है।

प्रश्न 21.
श्रीराम के शरीर की कांति कैसी है ?
उत्तर:
श्रीराम के शरीर की कांति ‘स्याम सरोरूह’ की तरह है।

प्रश्न 22.
श्रीराम की आँखों में आँसू क्यों आए ?
उत्तर:
‘सीता जी की व्याकुलता तथा वन-मार्ग में चलने की कठिनाई के कारण श्रीराम की आँखों में आँसू आ गए थे।

प्रश्न 23.
राम-राज्य में वृक्ष सदा ……………… से लदे रहते थे ।
उत्तर:
फल तथा फूलों से।

प्रश्न 24.
राम-राज्य में गऊएँ ………….. देती थीं ।
उत्तर:
मनचाहा दूध।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

प्रश्न 25.
श्रीराम के राज्य में दंड किसके हाथ में दिखाई देता था ?
उत्तर:
केवल संन्यासियों के।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
तुलसीदास की माता जी का नाम क्या था ?
(क) हुलसी
(ख) तुलसी
(ग) भोली
(घ) देवी।
उत्तर:
(क) हुलसी

प्रश्न 2.
तुलसीदास किस शाखा के प्रवर्तक माने जाते हैं ?
(क) कृष्ण भक्ति
(ख) रामभक्ति
(ग) निर्गुण भक्ति
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) रामभक्ति

प्रश्न 3.
‘रामराज्य वर्णन’ कविता रामचरितमानस के किस कांड में संकलित है ?
(क) अयोध्या कांड
(ख) लंका कांड
(ग) उत्तर कांड
(घ) सुंदर कांड।
उत्तर:
(ग) उत्तर कांड

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

प्रश्न 4.
रामचरितमानस किस भाषा में लिखित है।
(क) अवधी
(ख) अवधि
(ग) अवध
(घ) अयोध्या।
उत्तर:
(क) अवधी।

राम-राज्य वर्णन सप्रसंग व्याख्या

1. राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।
बयरु न कर काहु सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि व्यापा।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
त्रैलोका = तीनों लोक। हरषित भए = प्रसन्न हो गए। सोका = शोक । बयरू = वैर। काहूसन = किसी से भी। विषमता = भेदभाव। खोई = नष्ट हो गई। दैहिक = शारीरिक। दैविक = देवताओं द्वारा दिया गया। भौतिक = सांसारिक। तापा = कष्ट, दुःख। व्यापा = होना। प्रीती = प्रेम । स्वधर्म = अपने-अपने धर्म पर। निरत = लीन, लगे हुए, पालन करते थे। श्रुति नीति = वेद की बताई गई नीति (मर्यादा)।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित महाकाव्य रामचरितमानस के उत्तर कांड के अन्तर्गत दिए गए ‘राम राज्य वर्णन’ प्रसंग में से लिया गया है। इसमें कवि ने राम-राज्य के गुणों एवं प्रभाव का वर्णन किया है।

व्याख्या :
गोस्वामी तुलसीदास जी राम-राज्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि श्री राम के राज्य सिंहासन पर बैठने पर तीनों लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे और उनके सब शोक मिट गए। श्री राम के राज्य में कोई किसी से भी वैर नहीं करता था। श्री राम के प्रताप से सब का आंतरिक भेद-भाव मिट गया था। श्री राम के राज्य में किसी को भी शारीरिक, . देवताओं द्वारा दिया गया या सांसारिक कष्ट नहीं था। सभी मनुष्य आपस में प्रेमपूर्वक रहते थे और सदा अपने-अपने धर्म का पालन करते हुए वेद द्वारा बताई गई नीति पर चलते थे।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में तुलसीदास जी का भाव यह है कि श्री राम जी के राज्य में किसी को कोई कष्ट नहीं। सभी लोग वेदों द्वारा बताई गई नीतियों पर चलते थे।
  2. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
  3. गेयता का गुण विद्यमान है, भाषा अवधी है। तत्सम शब्दावली है। चौपाई छंद है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

2. चारिउ चरण धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं।
राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी॥
अल्प मृत्यु नहिं कवीनउ पीरा। सब सुन्दर सब बिरुज सरीरा।
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छनहीना॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
चारिउ = चारों। माहीं = में। पूरि रहा = परिपूर्ण हो रहा है। अघ = पाप। रत = लीन। सकल = सभी। परम गति = मोक्ष पद। अल्प मृत्यु = छोटी अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होना। कवीनउ = किसी को भी। पीरा = दुःख। बिरुज = निरोग। दरिद्र = ग़रीब। अबुध = मूर्ख। लच्छनहीना = शुभ लक्षणों से रहित होना।

प्रसंग :
यह काव्यांश तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तरकांड के ‘राम राज्य वर्णन’ नामक प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने राम राज्य की विशेषताओं का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम के राज्य में धर्म अपने चारों चरणों-सत्य, शौच, दया और दान से जगत् में परिपूर्ण हो रहा था तथा सपने में भी कोई पाप नहीं करता था। सभी स्त्री-पुरुष श्री राम की भक्ति में लीन रहते थे, जो सभी मोक्ष पद (परमपद) को प्राप्त करने के अधिकारी थे।

श्री राम के राज्य में छोटी अवस्था में मृत्यु हो जाने की पीड़ा किसी को नहीं थी। सभी सुंदर थे और निरोग शरीर वाले थे। श्री राम के राज्य में न कोई ग़रीब था, न कोई दुःखी था और न कोई दीन था और न ही कोई मूर्ख था और न ही शुभ लक्षणों से रहित था।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश का भाव यह है कि श्री राम जी के राज्य में चारों ओर प्रभु भक्ति की भावना थी। इसीलिए चारों ओर स्वस्थ लोग निवास करते थे।
  2. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
  3. भाषा अवधी है। तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
  4. चौपाई छन्द है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

3. सब निर्दभ धर्मरत पुनी। नर अरु नारि चतुर सब गुणी।
सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥
दण्ड जतिन्ह कर भेद जहँ के नर्तक नृत्य समाज।
जीतह मनहिं सुनिअ अस रामचंद्र के राज॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
निर्दभ = अभिमान रहित। पुनी = पुण्यवान । चतुर = सयाने। गुणी = गुणवान् । सयानी = चतुर । दण्ड = डंडा, सज़ा। जतिन्ह = संन्यासियों। कर = हाथों में। भेद = अलगाव का भाव, नृत्य के भेद (तोड़े)। जीतहु = जीत लो। मनहिं = मन को। सुनिअ = सुनाई पड़ता है। अस = ऐसा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तरकांड के ‘राम राज्य वर्णन’ प्रसंग से ली गई हैं, जिसमें कवि ने राम-राज्य की विशेषताओं का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम के राज्य में सभी स्त्री-पुरुष अभिमान रहित, धर्मपरायण और पुण्यवान थे। सभी सयाने और गुणवान थे। सभी गुणों को ग्रहण करने वाले, पंडित तथा ज्ञानी थे। सभी किए गए उपकार को मानने वाले तथा कपट करने में चतुर नहीं थे।

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम के राज्य में दंड (डंडा) केवल संन्यासियों के ही हाथ में दिखाई पड़ता था। दंड अथवा सज़ा देना शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता था। इसी प्रकार भेद केवल नाचने वालों के समाज में ही विद्यमान था। प्रजा में कोई आपसी भेदभाव नहीं था। ‘जीत लो शब्द मन को’-जीतने के लिए सुनाई पड़ता था। ऐसा रामचंद्र जी के राज्य में था।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में तुलसीदास जी का भाव यह है कि श्री राम जी के राज्य में सभी लोग गुणवान थे। किसी भी व्यक्ति को दंड देने की आवश्यकता नहीं थी।
  2. अनुप्रास तथा उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग है।
  3. गेयता का गुण विद्यमान है। भाषा अवधी है। तत्सम शब्दावली है।
  4. ‘सब निर्दभ …… सयानी’ में चौपाई छंद तथा ‘दण्ड …… राज’ में दोहा छंद है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

4. फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहिं एक संग गज पंचानन।
खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई।
कूजहिं खग मृग नाना बंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनंदा।
सीतल सुरभि पवन बह मंदा। गुंजत अलि लै चलि मकरंदा॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
तरु = वृक्ष। कानन = वन । गज = हाथी। पंचानन = सिंह। खग = पक्षी। मृग = पशु। सहज = स्वाभाविक। बयरु = वैर। बिसराई = भूलकर। कूजहिं = चहचहाते हैं। बंदा = समूह। अभय = निडर होकर । सुरभि = सुगन्धित। मंदा = धीमी-धीमी। गुंजत = गुंजार करता हुआ। अलि = भंवरा। मकरंदा = फूलों का रस।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तरकांड के ‘राम राज्य वर्णन’ प्रसंग से ली गई हैं, जिसमें कवि ने राम-राज्य की विशेषताओं का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम के राज्य में वनों में वृक्ष फूलों और फलों से सदा लदे रहते थे। हाथी और सिंह भी अपने स्वाभाविक वैर को भुलाकर एक साथ रहते थे। पशु और पक्षी भी अपने स्वाभाविक वैर को भुलाकर आपस में प्रेमपूर्वक रहते थे। पक्षियों के अनेक समूह चहचहाते थे ! पशु निडर होकर चरते थे और वन में आनन्द मनाते थे। तीन तरह की वायु-शीतल, सुगन्धित और धीमी बहती थी और गुंजार करते हुए भँवरे फूलों के रस को लेकर चलते थे।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम जी के राज्य में पशु-पक्षी सभी आपसी भेदभाव भुलाकर प्यार से रहते थे। प्रकृति भी अपना भरपूर रूप बरसाती थी।
  2. अनुप्रास अलंकार है।
  3. भाषा अवधी है। तत्सम शब्दावली है।
  4. चौपाई छन्द है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

5. लता बिटप मांगे मधु चवहीं। मनभावतो धेनु पय स्रवहीं॥
ससि संपन्न सदा रह धरणी। हतां मह कृतजुग कै करनी॥
प्रगटी गिरिन्ह बिबिध मनि खानी। जगदातमा भूप जग जानी।
सरिता सकल बहहिं बर बारी। सीतल अमल स्वाद सुख कारी॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
बिटप = वृक्ष। मधु = रस। मनभावतो = मनचाहा। धेनु = गाय। पय = दूध । स्त्रवहीं = देती हैं। ससि = फसल। संपन्न = भरी रहती है। धरणी = पृथ्वी। कृतयुग = सतयुग। गिरिन्ह = पर्वतों ने। बिबिध = अनेक प्रकार के। मनि खानी = मणियों की खानें, मणियों के भंडार। भूप = राजा। सरिता = नदियाँ। सकल = सारी। बर बारी = श्रेष्ठ जल। सीतल = ठंडा। अमल = निर्मल, स्वच्छ। सुखकारी = सुख देने वाला।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तरकांड के ‘राम राज्य वर्णन’ प्रसंग से ली गई हैं, जिसमें कवि ने राम-राज्य की विशेषताओं का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम के राज्य में लताएँ और वृक्ष जितना चाहो उतना रस टपका देते थे। गऊएँ भी मनचाहा दूध देती थीं। पृथ्वी भी सदा फसल से भरपूर रहती थी। इस तरह त्रेतायुग में भी सतयुग जैसी स्थिति आ गई थी। पर्वत अनेक प्रकार की मणियों की खानें प्रकट कर देते थे। राजा राम को जगत् की आत्मा समझकर सभी नदियाँ निर्मल जल से परिपूर्ण बहती थीं, जिनका जल ठंडा, निर्मल, स्वाद वाला था तथा सुख देने वाला था।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में तुलसी दास जी का भाव यह है कि श्री राम जी के राज्य में किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी। सभी पदार्थ भरपूर थे। जितनी जिसको आवश्यकता होती थी, उतनी वह प्राप्त कर लेता था।
  2. अनुप्रास अलंकार है। भाषा अवधी है। तत्सम शब्दावली है।
  3. गेयता का गुण विद्यमान है।
  4. चौपाई छन्द है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

6. सागर निज मरजादाँ रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहिं।
सरसिज संकुल सकल तड़ागा। अति प्रसन्न दस दिसा बिभागा।
बिधु महि पूर मयूखन्हि रवि तप जेतनेहि काज।
मांगे बारिद देहिं जल, रामचंद्र के राज॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
मरजादाँ = मर्यादा। डारहिं = डाल देता है। लहहिं = ले लेते हैं। सरसिज = कमल । संकुल = समूह में। तड़ागा = तालाब। विभागा = प्रदेश। बिधु = चन्द्रमा। महि = पृथ्वी। पूर = परिपूर्ण । मयूखन्हि = किरणें । रवि = सूर्य । तप = गर्मी । जेतनेहि = जितने की। काज = आवश्यकता होती है। बारिद = बादल।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तरकांड के ‘राम राज्य वर्णन’ प्रसंग से ली गई हैं, जिसमें कवि ने राम-राज्य के गुणों का वर्णन किया है।

व्याख्या :
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री राम के राज्य में सागर सदा अपनी मर्यादा में रहता था। वह रत्नों को किनारे पर डाल देता था जिसे लोग ले लेते थे। सभी तालाबों में कमल के फूल समूह में खिले रहते थे तथा दसों दिशाओं के प्रदेश अत्यन्त प्रसन्न थे।

श्री रामचन्द्र जी के राज्य में चन्द्रमा अपनी किरणों से पृथ्वी को पूर्ण रखता था तथा सूर्य उतनी ही गर्मी देता था जितनी आवश्यकता होती थी। बादल भी माँगने पर जितना जल चाहिए उतना बरसा देते थे।

विशेष :

  1. प्रस्तुत पद्यांश में तुलसीदास जी का भाव यह है कि श्री राम जी के राज्य में प्रकृति मर्यादा में रहते हए सब का कल्याण करती थी।
  2. अनुप्रास अलंकार है। भाषा अवधी है। तत्सम शब्दावली है।
  3. गेयता का गुण विद्यमान है।
  4. ‘सागर …….. बिभागा’ में चौपाई छंद तथा ‘बिधु ……. राज’ मे दोहा छंद है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

राम-राज्य वर्णन Summary

राम-राज्य वर्णन जीवन परिचय

हिन्दी-साहित्य में गोस्वामी तुलसीदास का वर्णन एक महाकवि के रूप में किया जाता है। भक्तिकाल के रामभक्ति शाखा के कवियों में इनको सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है। इनका जन्म सन् 1532 ई० के आस-पास राजापुर में हुआ। इनके पिता का नाम आत्मा राम तथा माता का नाम हुलसी था। तुलसी दास जी का बाल्यकाल कठिनाइयों में बीता। इनका विवाह राजापुर में दीन बन्धु पाठक की कन्या रत्नावली के साथ हुआ । रत्नावली से विवाह के बाद वे उनके प्रेम में डूब गए। उन्हें उनके अतिरिक्त कहीं भी कुछ दिखाई नहीं देता था। एक दिन पत्नी की फटकार ने उनका मन बदल दिया और राम भक्ति की ओर अग्रसर हुए। इन की मृत्यु सन् 1623 ई० में काशी में हुई थी।

गोस्वामी जी एक भक्त, साधक एवं महाकवि थे, इनकी अनेक रचनाएँ उपलब्ध हैं जैसे-रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, कवितावली, गीतावली रामाज्ञा प्रश्न, वैराग्य संदीपिनी, पार्वती-मंगल, रामलला नहछू, बरवै रामायण, कृष्णगीतावली तथा जानकी मंगल आदि है। तुलसीदास जी ने अपने काव्य की रचना अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में की है। उन्होंने अपने काव्य की रचना तत्कालीन युग में प्रचलित सभी शैलियों में की है। इनके प्रिय छन्द दोहा, चौपाई सोरठा, बरवै, कवित्त सवैया आदि हैं। अलंकारों में कवि ने रूपक, अनुप्रास, उपमा, उत्पेक्षा दृष्टान्त, उदाहरण, यमक आदि अलंकारों का अधिक प्रयोग किया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 2 रामराज्य वर्णन

राम-राज्य वर्णन काव्यांश का सार

प्रस्तुत काव्यांश तुलसीदास जी कृत ‘रामचरितमानस’ के उत्तर कांड में संकलित ‘राम-राज्य वर्णन’ से लिया गया है। ‘रामराज्य’ सभी भारतीयों के लिए एक आदर्श है। सभी अपने राज्य में राम जी जैसा राज्य चाहते हैं। उनके राज्य में चारों ओर प्रसन्नता तथा उल्लास का वातावरण था। धर्म अपनी चरमसीमा पर था। उस समय अधर्म तथा पाप का नाम नहीं था। इसलिए उस समय आर्थिक अभाव, अल्पमृत्यु साम्प्रदायिक द्वेष, दारिद्रय तथा अविवेक नहीं था। मानव ही नहीं अपितु पशु-पक्षी तथा प्रकृति भी प्रेम पूर्वक रहते थे। प्रकृति मानव की आवश्यकतानुसार अपनी समस्त निधियाँ जन-कल्याण के लिए देती थी। समुद्र भी अपनी मर्यादा जानते थे, वे अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते थे। इसलिए मनुष्य प्राकृतिक प्रकोप से बचा रहता था।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 कबीर वाणी

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 1 कबीर वाणी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 1 कबीर वाणी

Hindi Guide for Class 11 PSEB कबीर वाणी Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कबीर जी के अनुसार मानव को जीवन में किन-किन गुणों को अपनाना चाहिए ?
उत्तर:
कबीर जी के अनुसार मानव को सदा ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो स्वयं को तो शीतल करेगी ही दूसरों को भी सुख पहुँचाएगी। हमें झूठा अभिमान नहीं करना चाहिए। अहम् को त्याग कर प्यार से रहना चाहिए। विनम्रता का व्यवहार करना चाहिए। जीवन में सत्कर्म रूपी धन का संचय करना चाहिए। भक्ति रूपी धन को जीवन में महत्त्व देना चाहिए। आडंबरों से दूर रह कर सच्चे मन से ईश्वर को पाने की चेष्टा करनी चाहिए।

प्रश्न 2.
मानव को गर्व क्यों नहीं करना चाहिए ?
उत्तर:
मानव को गर्व इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि मानव जीवन नाशवान और क्षणभंगुर है। मौत हर वक्त सिर पर खड़ी रहती है। न जाने वह कब आ जाए। घर में या परदेश में। गर्व मानव के सिर को सदा नीचे करता है और उसे ईश्वर के नाम से दूर करता है। गर्व अपनों को भी दूर कर देता है। गर्व पतन का मूल कारण होता है इसलिए उससे सदा दूर रहना चाहिए।

प्रश्न 3.
कबीर ने किस प्रकार का धन संचय करने को कहा है ?
उत्तर:
कबीर जी ऐसे धन का संचय करने की बात कहते हैं जो मनुष्य के साथ परलोक में भी जाए। क्योंकि इस संसार में संचित किया गया धन तो संसार में ही रह जाता है। किसी को भी संचित धन की पोटली को सिर पर रखकर ले जाते नहीं देखा। मनुष्य खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही चला जाता है। ईश्वर का नाम ही वास्तविक धन है और उसी का संचय करना चाहिए।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 साखी

प्रश्न 4.
कबीर जी ने ईश्वर को माँ और स्वयं को बालक मानते हुए किस तर्क के आधार पर अपने अवगुणों को दूर करने को कहा है ?
उत्तर:
कबीर जी ने परमात्मा को माता रूप में मान कर अपने सारे अपराध क्षमा करने को कहा है। कबीर जी ने यह तर्क दिया है कि बालक चाहे कितने भी अपराध करे पर माता उसके प्रति अपने स्नेह को कभी नहीं त्यागती। चाहे वह उसके बाल खींचकर उसे चोट क्यों न पहुँचाए। जन्म देने वाला ही अपनी संतान का वास्तविक रक्षक और भला करने वाला हो सकता है। उस जैसा अन्य कोई नहीं हो सकता।

प्रश्न 5.
कबीर जी ने प्रभु को सर्वशक्तिमान मानते हुए क्या कहा है-रमैणी के आधार पर 40 शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर:
कबीर जी ने प्रभु को सर्वशक्तिमान मानते हुए उनके स्वरूप को परमप्रिय, स्वच्छ और उज्ज्वल कहा है। कबीर कहते हैं कि प्रभु की माया को कोई नहीं जान सका चाहे वह पीर-पैगंबर हो, जिज्ञासु शिष्य हो, काजी हो ; मुसलमान हो चाहे कोई देवी-देवता हो, मनुष्य, गण, गंधर्व या फिर आदि देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश ही क्यों न हो। उसे सहजता से नहीं पाया जा सकता। उसे पाने के लिए सच्चे मन से उसका मनन करना चाहिए।

प्रश्न 6.
कबीर ने रूढ़ियों का खण्डन किस प्रकार किया है ?
उत्तर:
कबीर जी ने मुंडी साधुओं के द्वारा बार-बार केश कटवाने की रूढ़ि का खण्डन करते हुए कहा है कि केशों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, उस मन को क्यों नहीं मूंडते जिसमें सैंकड़ों विषय विकार हैं। कबीर का मानना है कि मात्र धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती, उसे पाने के लिए सच्चे मन से उसका स्मरण करना चाहिए। वह आडंबरों से कभी प्राप्त नहीं कर सकता। रूढ़ियाँ इन्सान के मन को व्यर्थ ही इधर-उधर भटकाती हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 साखी

PSEB 11th Class Hindi Guide कबीर वाणी Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कबीरदास का जन्म और मृत्यु कहां और कब हुई थी ?
उत्तर:
कबीरदास का जन्म संवत् 1455 में काशी में और मृत्यु संवत् 1575 मगहर में मानी जाती है।

प्रश्न 2.
कबीरदास का पालन-पोषण किसने किया था ?
उत्तर:
कबीरदास का पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति ने किया था।

प्रश्न 3.
कबीर किस काव्यधारा के कवि थे ?
उत्तर:
कबीर संत काव्यधारा के कवि थे।

प्रश्न 4.
कबीर की कितनी रचनाएँ मानी जाती हैं ?
उत्तर:
कबीर की 150 रचनाएँ मानी जाती हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 साखी

प्रश्न 5.
कबीर की कविता कैसी कविता है ?
उत्तर:
कबीर की कविता गहरे जीवनानुभावों की कविता है।

प्रश्न 6.
कबीर का युग कैसा था ?
उत्तर:
कबीर का युग सामाजिक विषमताओं का युग था।

प्रश्न 7.
कबीर साहित्य किन तीन भागों में मिलता है ?
उत्तर:
कबीर साहित्य साखी, पद (सबद) और रमैणी तीन भागों में मिलता है।

प्रश्न 8.
कबीर के काव्य की भाषा कैसी है ?
उत्तर:
कबीर की भाषा जनभाषा है, जिसे सधुक्कड़ी भाषा कहते हैं।

प्रश्न 9.
कबीर ने सतगुरु की महिमा को कैसा माना है ?
उत्तर:
कबीर ने अनुसार की महिमा अनंत है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 साखी

प्रश्न 10.
कबीर ने उनमनी अवस्था किसे माना है ?
उत्तर:
कबीर के अनुसार मन की शांत अवस्था ही उनमनी है, जिसे तुरीयावस्था, सहजावस्था, भागवती चेतना भी कहते हैं।

प्रश्न 11.
‘सतगुरु’ ने कबीर को क्या दिया ?
उत्तर:
‘सतगुरु’ ने कबीर को ज्ञान रूपी दीपक दिया।

प्रश्न 12.
कबीर ने माया और मनुष्य को क्या माना है ?
उत्तर:
कबीर ने माया को दीपक और मनुष्य को पतंगा बताया है, जो माया के आकर्षण में पड़कर अपना जीवन नष्ट कर बैठता है।

प्रश्न 13.
कबीर प्रभु स्मरण कैसे करने के लिए कहते हैं ?
उत्तर:
कबीर कहते हैं कि मन, वचन और कर्म से प्रभु का नाम स्मरण करना चाहिए।

प्रश्न 14.
कबीर ने किसके घर को बहुत दूर बताया है ?
उत्तर:
कबीर ने हरि के घर को बहुत दूर बताया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 साखी

प्रश्न 15.
कबीर विषय-विकारों की आग को कैसे बुझाने के लिए कहते हैं ?
उत्तर:
कबीर प्रभु नाम के स्मरण द्वारा विषय-विकारों की आग बुझाने के लिए कहते हैं।

प्रश्न 16.
विरहणि कौन है और वह किससे मिलना चाहती है ?
उत्तर:
विरहणि आत्मा है और वह परमात्मा से मिलना चाहती है।

प्रश्न 17.
कबीर ने विरह को क्या माना है ?
उत्तर:
कबीर ने विरह को सुल्तान माना है।

प्रश्न 18.
राम का नाम ले-लेकर कबीर की क्या दशा हो गई है ?
उत्तर:
राम का नाम पुकार-पुकार कर कबीर की जीभ पर छाले पड़ गए हैं।

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प्रश्न 19.
कबीर ने किस का गर्व नहीं करने के लिए कहा है ?
उत्तर:
कबीर ने संपत्ति का गर्व नहीं करने के लिए कहा है।

प्रश्न 20.
कबीर अपने प्रभु के दर्शन करने के लिए क्या करना चाहता है ?
उत्तर:
कबीर इस शरीर का दीपक बना कर, उस में आत्मा की बत्ती बनाकर तथा अपने रक्त का तेल बनाकर इस दीपक को जलाकर प्रभु का दर्शन करना चाहते हैं।

प्रश्न 21.
ईश्वर भक्ति को कैसे प्राप्त किया जा सकता है ?
उत्तर:
अह्म त्याग कर।

प्रश्न 22.
मानव जीवन ……………… है ।
उत्तर:
नश्वर।

प्रश्न 23.
आजकल वास्तविक रूप में कौन जी रहा है ?
उत्तर:
जो भेद बुद्धि में नहीं पड़ता।

प्रश्न 24.
सत्संगति मनुष्य के दोषों को किस में बदलती है ?
उत्तर:
गुणों में।

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प्रश्न 25.
कबीर के अनुसार विषय-वासनाओं को जड़ से काट कर ………. को स्वच्छ करना चाहिए।
उत्तर:
मन।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संत कबीर के गुरु कौन थे ?
(क) मस्तराम
(ख) भावानंद
(ग) रामानंद
(घ) रामदास।
उत्तर:
(ग) रामानंद

प्रश्न 2.
संत कबीर की समाधि कहां स्थित है ?
(क) मगहर में
(ख) काशी में
(ग) इलाहाबाद में
(घ) वाराणसी में।
उत्तर:
(क) मगहर में\

प्रश्न 3.
सतगुरु जी ने कबीर जी को कौन-सा दीपक प्रदान किया ?
(क) ज्ञान
(ख) ध्यान
(ग) प्राण
(घ) संज्ञान।
उत्तर:
(क) ज्ञान

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 साखी

प्रश्न 4.
संत कबीर किस भक्ति को मानते थे ?
(क) सगुण
(ख) निर्गुण
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) निर्गुण

प्रश्न 5.
संत कबीर ने परमात्मा को किसमें विराजमान बताया है ?
(क) घट-घट में
(ख) मन में
(ग) प्राण में
(घ) आत्मा में।
उत्तर:
(क) घट-घट में।

साखी सप्रसंग व्याख्या

1. मनिषा जनम दुर्लभ है, देह न बारंबार।
तरवर थें फल झड़ि पड़या, बहुरि न लागै डार॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
मनिषा = मानव का, मनुष्य का। दुर्लभ = आसानी से प्राप्त न होने वाला। देह = शरीर । तरवर = वृक्ष। बहरि = फिर से। डार = डाली।

प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास जी द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने मनुष्य जन्म बार-बार न मिलने की बात कही है।

व्याख्या:
कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य जन्म बड़ा दुर्लभ है। यह आसानी से प्राप्त होने वाला नहीं है (समाज में मान्यता है कि यह चौरासी लाख योनि भोगने के बाद मिलता है)। जैसे जब वृक्ष से फल झड़ जाता है तो वह फिर डाली से नहीं लगता है। उसी प्रकार एक बार मानव शरीर प्राप्त होने पर फिर नहीं मिलता है।

विशेष:

  1. इस साखी में कबीर जी कहते हैं कि मानव जन्म सरलता से प्राप्त नहीं होता, इसलिए उसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।
  2. भाषा सरल, सहज सधुक्कड़ी है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. दोहा छन्द का सुन्दर प्रयोग है। शैली उपदेशात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 साखी

2. कबीर कहा गरबियौ, काल गहै कर केस।
न जाणै कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस॥

कठिन शब्दों के अर्थ : कहा = क्या। गरबियौ = अभिमान करता है। काल = मृत्यु। गहै = पकड़ रखे हैं। कर = अपने हाथों में। केस = बाल।
प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास जी द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में मानव जीवन की अनिश्चितता पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि इस शरीर पर क्या अभिमान करते हो! यह तो क्षण भर में मिट जाने वाला है। यह मृत्यु को प्राप्त होने वाला है। मृत्यु ने जीव को बालों से पकड़ रखा है, पता नहीं वह उसे कहाँ मारेगी। उसके अपने घर में ही या फिर परदेस में। वह उसे कहीं भी मार सकती है।

विशेष :

  1. इस साखी में कबीर जी ने मनुष्य को जीवन की नश्वरता के विषय में बताया है। मानव जीवन नश्वर है उस पर अभिमान नहीं करना चाहिए।
  2. ‘काल’ का मानवीकरण किया गया है। अनुप्रास अलंकार है।
  3. भाषा, सरल, सरस और स्वाभाविक है।
  4. माधुर्य गुण है। दोहा छन्द है। शैली उपदेशात्मक है।

3. प्रेम न खेतौं नीपजै, प्रेम न हाटि बिकाइ।
राजा प्रजा जिस रुचै, सिर दे सो ले जाइ॥

कठिन शब्दों के अर्थ : प्रेम = ईश्वर भक्ति। नीपजै = पैदा होती है। हाटि = दुकान पर। रुचै = अच्छा लगे। सिर देना = अहं का त्यागना।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित साखी में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने अहं को त्यागने पर ही ईश्वर की भक्ति मिलने की बात कही है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि प्रेम अर्थात् ईश्वर भक्ति न तो खेतों में पैदा होती है और न ही दुकान पर बिकती है। राजा हो चाहे प्रजा, जिस किसी को भी यह प्रेम रूपी ईश्वर भक्ति चाहिए वह अपना सिर देकर तथा अपना अहं त्याग कर इसे प्राप्त कर सकता है। भाव यह है कि ईश्वर की भक्ति उसे ही प्राप्त होती है जो आत्म-त्याग करता है, अपने अहं को नष्ट कर देता है।

विशेष:

  1. इस साखी में कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर की भक्ति उसे ही प्राप्त होती है जो आत्म-त्याग करता है, अपने अहंकार को नष्ट करता है।
  2. भाषा सरल और भावपूर्ण है।
  3. माधुर्य गुण का प्रयोग किया गया है।
  4. दोहा छन्द है। शैली उपदेशात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 साखी

4. साइं सूं सब होत है बंदे थें कछु नांहि।
राई 3 परबत करै, परबत राई मांहि॥

कठिन शब्दों के अर्थ : साई = स्वामी, ईश्वर । बंदे = मनुष्य। परबत = पर्वत, पहाड़।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने ईश्वर को सर्वशक्तिमान बताया है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर सब कुछ करने में समर्थ है क्योंकि वह सर्वशक्तिमान है, मनुष्य से कुछ नहीं हो सकता। ईश्वर चाहे तो राई को पर्वत बना सकता है और पर्वत को राई। भाव यह है कि ईश्वर छोटे या तुच्छ को बड़ा या महान् बनाने की शक्ति रखता है।

विशेष :

  1. प्रस्तुत साखी में कबीर जी का भाव यह है कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है। सभी काम उनकी इच्छानुसार होता है।
  2. अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग किया गया है।
  3. भाषा सरल सहज सधुक्कड़ी है। तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
  4. दोहा छन्द है। माधुर्य गुण है। शैली उपदेशात्मक है।

5. ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन को सुख होई॥

कठिन शब्दों के अर्थ : आपा = अहंकार।खोइ = दूर कर, नष्ट करके। तन = शरीर। सीतल = ठंडा। औरन = दूसरों को।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास जी द्वारा लिखित साखी में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में मधुर वाणी के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि मनुष्य को अपना अहंकार (अहं भाव) त्याग कर ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जिससे मनुष्य के शरीर को तो शीतलता प्राप्त हो ही साथ में दूसरों को भी अर्थात् सुनने वालों को भी सुख मिले। भाव यह है कि मनुष्य को सदा मधुर वचन कहने चाहिएँ इनसे अपने को तथा दूसरों को सुख मिलता है।

विशेष :

  1. प्रस्तुत साखी में कबीर जी का भाव यह है कि मनुष्य को सदा मधुर वचन बोलने चाहिए। ऐसा करने से उसे स्वयं को तो सुख मिलता है साथ ही वह दूसरों को भी सुख प्रदान करते है।
  2. भाषा सरल, सहज सधुक्कड़ी है। तत्सम और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।
  3. दोहा छन्द का सुन्दर प्रयोग है।
  4. प्रसाद गुण अभिधा शब्द शक्ति और शांत रस ने कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है। अर्थान्तरन्यास अलंकार हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 1 साखी

6. कबीर औगुण ना गहै गुण ही को ले बीनि।
घट-घट महु के मधुप ज्यों, पर आत्म ले चीन्हि ।।

कठिन शब्दों के अर्थ : औगुण = अवगुण, बुरी बातें। गहै = ग्रहण करें, ध्यान दें। बीनि = चुन लें, ग्रहण कर लें। घट-घट = प्रत्येक शरीर, फूल। महु = मधु, शहद। मधुप = भँवरा। चीन्हि = चुन लो, पहचान लो।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास जी द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में गुणों का संग्रह कर, अहं को त्याग कर ईश्वर को पहचानने की बात कही है।

व्याख्या :
कबीर जी मनुष्य को सलाह देते हुए कहते हैं कि तुम अवगुणों को न ग्रहण करो। केवल गुणों को ही चुनो तथा उन्हें ही ग्रहण करो। जैसे भँवरा प्रत्येक फूल में से शहद प्राप्त करता है उसी प्रकार प्रत्येक शरीर में विद्यमान तुम उस ईश्वर को चुनो, पहचान लो। भाव यह है कि ईश्वर का आनंद स्वरूप मधु के समान है जिसे मनुष्य को जगत् के दुःखों एवं अहं से अलग कर पहचानना चाहिए।

विशेष :

  1. प्रस्तुत साखी में कबीर जी कहते है कि मनुष्य ईश्वर के स्वरूप को तभी पहचान सकता है जब वह अहं तथा मोह का त्याग करता है।
  2. अनुप्रास तथा उदाहरण अलंकारों का प्रयोग है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है। तत्सम तथा तद्भव शब्दावली है।
  4. प्रसाद गुण और अभिधा शब्द शक्ति ने कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है।

7. हिन्दू मूये राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, दुह में कदे न जाइ॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
मूये = नष्ट हो रहे हैं। सो जीवता = वही जी रहा है। दुह = दुविधा, भेद । कदे न = कभी नहीं।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने राम और खुदा में भेद न कर सच्चे ईश्वर को पहचानने की बात कही है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि हिन्दू अवतारी राम में आस्था रखकर और मुसलमान खुदा में आस्था रखकर नष्ट हो गए। कबीर जी कहते हैं वास्तव में वही व्यक्ति जीवित रहा है जो इस भेद-बुद्धि में नहीं पड़ता, जो राम और खुदा के भेद में न पड़ कर सच्चे ईश्वर को पहचानता है। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि ईश्वर को पाने के लिए, पहचानने के लिए मनुष्य को राम खुदा के भेद से ऊपर उठना होगा।

विशेष :

  1. प्रस्तुत साखी में कबीर जी का भाव है कि परमात्मा घट-घट में समाया हुआ है वह केवल ‘राम’ या ‘अल्लाह’ नामों में छिपा हुआ नहीं है। उसे हर कोई प्राप्त कर सकता है।
  2. अनुप्रास अलंकार का सहज प्रयोग है।
  3. अभिधा शब्द शक्ति के प्रयोग ने कवि के कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है।
  4. प्रसाद गुण और शांत रस विद्यमान है। गेयता का गुण है।

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8. कबीर खाई कोट की, पाणी पिवै न कोई।
जाइ मिलै जब गंग मैं, तब सब गंगोदक होइ॥

कठिन शब्दों के अर्थ : कोट = किला, दुर्ग। गंगोदक = गंगा-जल।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी के सत्संगति के प्रभाव का वर्णन किया है, जो व्यक्ति के अनेक दोषों को दूर कर देती है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि दुर्ग के चारों ओर बनी खाई का पानी कोई नहीं पीता। वह पानी अपवित्र माना जाता है। किन्तु वही पानी जब गंगा नदी में जा मिलता है तो गंगा-जल बन जाता है, पवित्र हो जाता है। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि सत्संगति भी इसी तरह मनुष्य के दोषों को दूर कर उन्हें गुणों में बदल देती है।

विशेष :

  1. इस साखी में कबीर जी का भाव यह है कि सत्संगति मनुष्य के दोषों को दूर करके उसे गुणों में बदल देती है।
  2. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं सधुक्कड़ी है।
  4. प्रसाद गुण और शांत रस विद्यमान है।

9. केसौं कहा बिगाड़िया, जो मुंडै सौ बार।
मन को काहे न मुंडिए, जामैं विषै विकार॥

कठिन शब्दों के अर्थ : केसौं= बालों को। मूंडे = काटता है। विषै विकार = विषय वासनाएँ और उनके दोष। जामैं = जिसमें।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास जी द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी मन में व्याप्त विषय वासनाओं को त्यागने की बात कही है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि इन बालों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुम इन्हें सौ बार-बार अर्थात् बार-बार काटते हो। काटना ही है तो अपने मन को काटो जिस में अनेक प्रकार की विषय वासनाएँ और उनके दोष भरे पड़े हैं। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि इन विषय वासनाओं को जड़ से काटकर अपने मन को स्वच्छ (निर्मल) क्यों नहीं करते। वास्तव में मन ही मूंडने के योग्य है।

विशेष :

  1. प्रस्तुत साखी में कबीर जी का भाव यह है कि मनुष्य को विषय-वासनाओं को समाप्त करके मन को साफ़ बनाना चाहिए।
  2. अनुप्रास अलंकार है।
  3. दोहा छन्द है। लाक्षणिकता ने भाव गहनता को प्रकट किया है।
  4. भाषा सरल, सहज एवं सधुक्कड़ी है। शांत रस है।

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10. पर नारी पर सुन्दरी, विरला बचै कोइ।
खातां मीठी खाँड सी, अंति कालि विष होई॥

कठिन शब्दों के अर्थ :पर नारी = दूसरे की स्त्री। पर सुन्दरी = दूसरे की प्रेमिका। विरला = कोई-कोई। खातां = खाने में, भोगने में। अंति कालि = अंतिम समय में, परिणामस्वरूप।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने विषयी जीव के सहज स्वभाव का चित्रण किया है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि दूसरे की स्त्री और दूसरे की प्रेमिका की ओर आकृष्ट होने से कोई-कोई बच सकता है सभी उनकी ओर आकृष्ट होते हैं, किन्तु वह खाने में, भोग में खांड के समान मीठी अवश्य लगती है, पर अंतिम समय में (बाद में) वे विष के समान, घातक सिद्ध होती है। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि विषयी जीव स्वाभाविक रूप से हानिकारक होते हैं।

विशेष :

  1. इस साखी में कबीर जी के कहने का है कि विषय-वासनाओं डूबे हुए व्यक्ति स्वाभाविक रूप से हानिकारक होते हैं।
  2. उपमा अलंकार का प्रयोग है।
  3. भाषा सरल, सहज तथा सधुक्कड़ी है।
  4. दोहा छन्द है। प्रसाद गुण और शांत रस विद्यमान है।

11. कबीर सो धन संचियै, जो आगै कू होइ।
सीस.चढायै पोटली, ले जात न देख्या कोइ॥

कठिन शब्दों के अर्थ : संचियै = जोड़िए, इकट्ठा कीजिए। आगे कू = आगे के लिए अर्थात् परलोक के लिए। चढ़ाये = चढ़ाकर, रख कर।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने ऐसे धन को एकत्र करने के लिए कहा जो परलोक में भी काम आ सके।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि व्यक्ति को ऐसा धन एकत्र करना चाहिए जो परलोक में भी उसके काम आ सकेयह धन, ज्ञान और ईश्वर भक्ति का ही है। क्योंकि सांसारिक धन की पोटली को सिर पर रखकर तो किसी को ले जाते हुए नहीं देखा। यहाँ का धन यहीं रह जाता है जबकि ज्ञान और भक्ति रूपी धन व्यक्ति के साथ परलोक में भी जाता है। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि हमें ज्ञान और भक्ति रूपी धन को जोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए।

विशेष :

  1. इस साखी में कबीर जी के कहने का भाव यह है कि हमें सत्कर्म रूपी धन का संचय करना चाहिए। यह धन ही मनुष्य के साथ आगे जाएगा।
  2. रूपक अलंकार का प्रयोग है।
  3. भाषा सधुक्कड़ी है।
  4. दोहा छन्द है। प्रसाद गुण तथा शांत रस विद्यमान है।

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12. गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धन खान।
जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
गोधन = गऊओं का धन । गजधन = हाथियों का धन। बाजिधन = घोड़ों का धन। खान – भंडार। धूरि समान = धूल के समान।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने संतोष रूपी धन को सब प्रकार के धनों से बड़ा बताया है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि व्यक्ति के पास गऊओं का धन भी हो सकता है, हाथियों और घोड़ों का धन भी हो सकता है तथा बहुत से रत्नों का भंडार भी हो सकता है किन्तु जब व्यक्ति के पास संतोष रूपी धन आ जाता है तो उपर्युक्त सभी धन धूल के समान व्यर्थ हो जाते हैं। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि संतोष रूपी धन के सामने संसार के दूसरे धन फीके पड़ जाते हैं।

विशेष :

  1. इस साखी में कबीर जी का भाव यह है कि जब मनुष्य के पास संतोष रूपी धन आ जाता है तो उसके सामने संसार के सभी धन फीके पड़ जाते हैं।
  2. रूपक अलंकार का प्रयोग है।
  3. भाषा सधुक्कड़ी है।
  4. दोहा छन्द है। प्रसाद गुण तथा शांत रस विद्यमान है।

13.राम रसाइन प्रेम रस, पीवत अधिक रसाल।
कबीर पीवत दुर्लभ है, मांगै सीस कलाल॥

कठिन शब्दों के अर्थ : रसाइन = रसायन, रस। रसाल = मीठा। दुर्लभ = आसानी से प्राप्त न होने वाला। कलाल = शराब (रस) बेचने वाला—यहाँ भाव गुरु से है।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने ईश्वर भक्ति के रस को सब रसों से श्रेष्ठ बताया है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर के प्रति प्रेम भक्ति का रस ऐसा रसायन है जो मनुष्य में आमूल परिवर्तन करके उसमें नवजीवन का संचार करता है। यह रस पीने में बहुत अधिक मीठा होता है किन्तु इस रस का मिलना आसान नहीं है। क्योंकि इस रस को बेचने वाला कलाल रूपी गुरु इस रस का मूल्य सिर माँगता है। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि जब तक जीव गुरु रूपी कलाल के सामने अपने अहंकार आदि को त्याग कर पूर्ण रूप से उनके प्रति समर्पित नहीं करता तब तक गुरु उसे प्रेम रस का पान नहीं कराता अथवा जीव उस प्रेम रस का पान नहीं कर पाता।

विशेष :

  1. प्रस्तुत साखी में कबीर जी का भाव यह है कि जब तक मनुष्य अपने गुरु के सामने अपना अहंकार त्याग कर पूर्ण रूप से समर्पित नहीं हो जाता तब उसे ईश्वर भक्ति का रस प्राप्त नहीं हो सकता।
  2. अनुप्रास तथा उदाहरण अलंकार का प्रयोग है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है। तत्सम तथा तद्भव शब्दावली है।
  4. दोहा छन्द है। प्रसाद गुण तथा शांत रस विद्यमान है।

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14. सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥

कठिन शब्दों के अर्थ : सुखिया = सुखी। खावै = खाता है।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास जी द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबार जी ने विषय वासना से दूर रहने पर अपने दुःखी होने की बात कही है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि विषय वासनाओं में लीन संसार सुखी है। वह खाता है और सो जाता है, हर प्रकार से निश्चित है। किन्तु मैं कबीर, जो विषय वासनाओं से दूर रहता हूँ, दुःखी हूँ और रोता हूँ। क्योंकि मुझे प्रभु के प्रति प्रेमरस की प्यास है। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि ईश्वर से विरह के कारण तो तड़पन है वह उन्हें दुःखी करती है और रुलाती है।

विशेष :

  1. कबीर जी का भाव यह है कि मोह-माया से दूर होकर भी कई बार दुःख का अनुभव होता है उसका कारण ईश्वर प्रेम को प्राप्त करना है।
  2. अनुप्रास अलंकार है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं सधुक्कड़ी है।
  4. दोहा छन्द है। प्रसाद गुण तथा करुण रस विद्यमान है।

15. बासुरि सुख ना रैणि सुख, ना सुख सुपिनै, माहिं।
कबीर बिछुरया राम , न सुख धूप न छाँहिं॥

कठिन शब्दों के अर्थ : बासुरि = दिन। रैणि = रात । माहि = में।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने कहा है कि प्रभुभक्ति से विमुख व्यक्ति को कहीं भी सुख नहीं प्राप्त हो सकता।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर भक्ति से विमुख होने वाले व्यक्ति को न दिन में सुख मिल सकता है और न ही रात में। उसे तो सपने में भी सुख नहीं मिलता। कबीर जी कहते हैं कि राम से बिछुड़ने वाले जीव को न तो धूप में सुख मिलता है और न ही छाया में। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि ईश्वर भक्ति से विमुख व्यक्ति को संसार में कहीं भी सुख नहीं मिलता।

विशेष :

  1. प्रस्तुत साखी में कबीर जी का भाव यह है कि प्रभु के बिना किसी को कहीं भी सुख प्राप्त नहीं होता है।
  2. अनुप्रास अलंकार है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं सधुक्कड़ी है।
  4. दोहा छंद है। प्रसाद गुण तथा करुण रस विद्यमान है।

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16. पीछे लागा जाइ था, लोक बेद के साथि।
आगै थै सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि॥

कठिन शब्दों के अर्थ : लोक बेद = लोकाचार और वेदाचार, संसार और वेद द्वारा बताया मार्ग। दीया = दे दिया।

प्रसंग : प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास जी द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने सद्गुरु के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि मैं लोकाचार और वेदाचार को मानता हुआ, उनका अंधानुकरण करता हुआ अज्ञान के अंधकार में भटक रहा था, सौभाग्यवश आगे से (रास्ते में) मुझे सद्गुरु मिल गए, उन्होंने मुझ जिज्ञासु को ज्ञान रूपी दीपक हाथ में थमा दिया। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि गुरु ज्ञान के दीपक ने ही मुझे ईश्वर भक्ति की राह दिखाई।

विशेष :

  1. प्रस्तुत साखी में कबीर जी का भाव यह है कि गुरु ज्ञान के बिना ईश्वर भक्ति की प्राप्ति संभव नहीं है। इसीलिए मानव जीवन में गुरु का विशेष महत्त्व है।
  2. अनुप्रास तथा रूपक अलंकार का प्रयोग है।
  3. भाषा सरल, सहज तथा सधुक्कड़ी है।
  4. दोहा छन्द है। प्रसाद गुण तथा शान्त रस विद्यमान है।

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17. लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूरि।
चींटी लै सक्कर चली, हाथि से सिर धूरि॥

कठिन शब्दों के अर्थ : लघुता = छोटापन। प्रभुता = बड़प्पन । सक्कर = खांड। धूरि = धूल।

प्रसंग :
प्रस्तुत दोहा संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने छोटे बनने पर ही बड़प्पन को प्राप्त होने की बात कही है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि छोटा बनने पर ही बड़प्पन मिलता है जब बड़प्पन दर्शाने वाले व्यक्ति से प्रभु दूर ही रहते हैं। प्रभु छोटे, विनम्र व्यक्तियों को ही मिलते हैं जैसे चींटी छोटी होने पर भी खांड को लेकर चलती है और हाथी, जो अपने को बड़ा समझता है, उस के सिर में धूल पड़ती है।

विशेष :

  1. प्रस्तुत साखी में कबीर जी के कहने का भाव यह है कि विनम्र स्वभाव वाले व्यक्ति को ही प्रभु भक्ति की प्राप्ति होती है और बड़प्पन दिखाने वाले व्यक्ति से प्रभु दूर ही रहते हैं।
  2. अनुप्रास अलंकार है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है। तत्सम तथा तद्भव शब्दावली की अधिकता है।
  4. दोहा छन्द है। प्रसाद गुण तथा शान्त रस है, गेयता का गुण विद्यमान है।

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सबद सप्रसंग व्याख्या

1. हरि जननी मैं बालक तेरा।
काहे न औगुण बकसहु मेरा ॥ टेक॥
सुत अपराध करै दिन केते, जननी के चित रहें न तेते॥
कर गहि केस करै जो घाता, तऊ न हेत उतारै माता॥
कहै कबीर एक बुधि बिचारी, बालक दुखी दुखी महतारी॥

कठिन शब्दों के अर्थ :
हरि = परमात्मा। जननी = माता। औगुण = अवगुण । बकसहु = क्षमा करते हो। सुत = पुत्र । केते = कितने ही। तेते = किसी का भी। कर गहि = हाथों से पकड़ कर। घाता = चोट करता है। हेत = स्नेह। न उतारे = नहीं त्यागती।

प्रसंग :
प्रस्तुत सबद संत कवि कबीर दास द्वारा लिखित ‘साखी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत सबद में परमात्मा को माता के रूप में मान कर अपने अपराध क्षमा करने की प्रार्थना की है।

व्याख्या :
कबीर जी परमात्मा को माता मानते हुए कहते हैं कि हे प्रभु! आप मेरी माता हैं और मैं आप का पुत्र हूँ। इसलिए आप मेरे अपराधों को क्षमा क्यों नहीं करते ? पुत्र चाहे कितने ही अपराध करे, माता का मन उनमें से किसी का भी बुरा नहीं मानता। भले ही हाथों से उसके बाल खींचकर पुत्र उसे चोट पहुँचाए तो भी माता पुत्र के प्रति अपने स्नेह को नहीं त्यागती। कबीर जी कहते हैं कि मेरे हृदय में यही विचार बैठ गया है कि यदि बालक को कोई भी कष्ट होता है तो माता अपने आप दुःखी हो जाती है। कबीर जी ने परमात्मा को माता इसलिए कहा है कि पिता की अपेक्षा माता से बालक अपनी बात जल्दी मनवा लेता है। माता का स्नेह पुत्र के प्रति पिता से अधिक होता है।

विशेष :

  1. प्रस्तुत सबद में कबीर जी का भाव यह है कि परमात्मा माता का रूप है। पिता की अपेक्षा माता बालक की बात जल्दी मान जाती है तथा उस पर अपनी कृपा दृष्टि भी बनाए रखती है।
  2. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  3. तद्भव शब्दावली का प्रयोग अधिकता से किया है। लयात्मकता का गुण विद्यमान है।
  4. प्रसाद गुण, अभिधा शब्द शक्ति और शांत रस ने कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है।

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रमैणी सप्रसंग व्याख्या

1. तू सकल गहगरा, सफ सफा दिलदार दीदार।
तेरी कुदरति किनहुँ न जानीं, पीर मुरीद काजी मुसलमांनीं।
देवी देव सुर नर गण गंध्रप ब्रह्म देव महेसर।

कठिन शब्दों के अर्थ :
सकल गहगरा = सर्वशक्तिमान । सफ सफा = उज्ज्वल और स्वच्छ। दिलदार = प्रिय रूप। दीदार = स्वरूप। मुरीद = शिष्य, जिज्ञासु। काजी = न्यायकर्ता। गंध्रप = गंधर्व। महेसर = महादेव, शिवजी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद संत कवि कबीर दास जी द्वारा लिखित ‘रमैणी’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पद में कबीर जी ने ईश्वर के सर्वशक्तिमान होने तथा उसकी माया को न समझ सकने की बात कही है।

व्याख्या :
कबीर जी कहते हैं कि हे ईश्वर! आप सर्वशक्तिमान हो। तुम्हारा स्वरूप परम प्रिय, स्वच्छ एवं उज्ज्वल है। किसी ने भी तुम्हारी माया को नहीं समझा। मुसलमानों में पीर, शिष्य, काजी (न्यायकर्ता) तथा हिन्दुओं के देवी-देवता मनुष्य, गण, गंधर्व, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देव भी तुम्हारी माया को नहीं समझ सके। कबीर जी के कहने का भाव यह है कि कोई भी चाहे हिन्दू को चाहे मुसलमान ईश्वर की प्रकृति को समझ नहीं सका है।

विशेष :

  1. प्रस्तुत रमैणी में कबीर जी ने कहा कि ईश्वर सर्व शक्तिमान है उसकी माया को चाहे हिन्दू हो या मुसलमान कोई भी समझ नहीं सका है।
  2. अनुप्रास अलंकार है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं सधुक्कड़ी है।
  4. प्रसाद गुण तथा शान्त रस है। गेयता का गुण विद्यमान है।

कबीर वाणी Summary

कबीर वाणी जीवन परिचय

भक्ति-काल की निर्गुण भक्ति-धारा के सन्त कवियों में कबीरदास का नाम विशेष सम्मान से लिया जाता है। इनके जन्म सम्वत् तथा स्थान को लेकर मतभेद है। अधिकांश विद्वान् इनका जन्म सम्वत् 1455 ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा (सन् 1398) को मानते हैं। इनका पालन-पोषण जुलाहा परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम नीरू तथा माता का नाम नीमा था। इन की पत्नी का नाम लोई था। इनके कमाल नामक पुत्र तथा कमाली नामक पुत्री थी। कबीर जी की शिक्षा-दीक्षा नहीं हुई थी परन्तु इन्हें अन्तर्ज्ञान था। इनके गुरु का नाम स्वामी रामानन्द था। साधु-संगति, गुरु-महत्त्व तथा जीवन में सहज प्रेमानुभूति की विशेष स्थिति इनकी रचनाओं में मिलती है। इनका देहावसान सम्वत् 1575 (सन् 1518) में काशी के निकट मगहर में हुआ। इनके शिष्य हिन्दू और मुसलमान दोनों थे। इसलिए काशी के निकट मगहर में इन की समाधि और मकबरा दोनों विद्यमान हैं।

कबीर ने स्वयं किसी ग्रन्थ की रचना नहीं की थी। इन की साखियों और पदों को इनके शिष्यों ने संकलित किया था। इनके उपदेश ‘बीजक’ नामक रचना में साखी, सबद और रमैणी तीन रूप में संकलित हैं। कबीर की कुछ उलटबांसियों का भी उल्लेख मिलता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ में भी कबीर की वाणी सुशोभित है। कबीर को सधुक्कड़ी भाषा का कवि कहा जाता है। इन की भाषा में ब्रज, अवधी, खड़ी बोली, बुंदेलखंडी, भोजपुरी, पंजाबी तथा राजस्थानी भाषाओं के अनेक शब्द प्राप्त होते हैं। कबीर की शैली में एक सपाट-स्पष्ट सी बात करने की क्षमता है। अलंकारों की सहजता के साथ लोकानुभव की सूक्ष्मता, सत्यता, वचन-वक्रता और गेयता के गुण इनकी शैली में हैं।

साखी का सार

संत कबीर ने निर्गुण भक्ति के प्रति अपनी आस्था के भावों को प्रकट करते हुए माना है कि मानव जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है। यह शरीर नाशवान है इसलिए इस पर अहंकार नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अहं त्याग कर प्रेम से रहना चाहिए क्योंकि ईश्वर सर्वशक्तिमान है वही सब कुछ करने वाला है। कबीर जी मनुष्य को मधुर वाणी बोलने का उपदेश देते हैं। हमें परमात्मा के नाम में भेदभाव करने से मना करते हैं क्योंकि परमात्मा का स्वरूप एक है। मनुष्य को अपने मन को साफ रखना चाहिए। उसे छोटे-बड़े में भेद नहीं करना चाहिए। कई बार बड़ी वस्तु की अपेक्षा छोटी वस्तु अधिक महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती है। मनुष्य को सत्कर्म रूपी धन का संचय करना चाहिए। यही धन मनुष्य के अंत समय में साथ जाता है। सदगुरु ही मनुष्य को सद्मार्ग दिखाते हैं। अहं का त्याग करना तथा गुरुओं की वाणी का आदर करना सिखाते है। जीवन में दुःख-सुख सभी आते-जाते रहते हैं परन्तु हमें प्रभु भक्ति को कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए।

सबद का सार

निर्गुण-भक्ति के प्रति अपने निष्ठाभाव को प्रकट करते हुए कबीर जी मानते हैं कि वे प्रभु के पुत्र हैं। वे प्रभु को माँ रूप में तथा स्वयं को पुत्र रूप में मानते हैं। इस सम्बन्ध से आत्मा-परमात्मा को अनन्य सम्बन्ध की सृष्टि की गई है। कबीर जी मानते हैं कि वे एक छोटे बालक हैं। माँ बच्चों के अपराध क्षमा कर देती है। माँ स्नेह का पात्र होती है जिसमें अपने बच्चों के लिए प्यार होता है। वह अपने बच्चों को कभी भी दु:खी नहीं देख सकती। इसलिए वह मेरे सभी अपराध क्षमा करके मुझे अपनी शरण में ले।

रमैणी का सार

निर्गुण भक्ति के प्रति अपने निष्ठाभाव को प्रकट करते हुए कबीर जी मानते हैं कि ईश्वर का कोई रूप नहीं है वह सर्वशक्तिमान है। उनके स्वरूप को किसी ने नहीं समझा है। हिन्दू और मुसलमान भी ईश्वर के साकार रूप में भटक रहे हैं। वे ईश्वर की माया को समझ नहीं पा रहे हैं।