PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 14 गीता डोगरा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 14 गीता डोगरा

Hindi Guide for Class 12 PSEB गीता डोगरा Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘कच्चे रंग’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
कवयित्री के अपने अतीत अर्थात् गाँव, पगडंडी, देवदार के वृक्ष, जंगल के गुम हो जाने का दुःख है। शहर में तो उसे संवेदनाशून्य व्यक्ति ही मिलते हैं। अब वह प्रकृति की गोद में निशंक नहीं जा सकती। गाँव में प्यार था, अपनापन था, जो शहर में नहीं है। इसलिए, वह फिर से उन कच्चे रंगों को पाना चाहती है जिसमें अपनापन हो, प्यार हो। वह अपने भविष्य के टूटने से भी चिन्तित है।

प्रश्न 2.
‘कच्चे रंग’ कविता का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ?
उत्तर:
‘कच्चे रंग’ शीर्षक अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है क्योंकि यह अपनेपन और प्यार मुहब्बत को दर्शाता है। नगरीय सभ्यता में इसका लोप हो गया है। शहरी लोग तो संवेदन-शून्य हैं, मुर्दादिल हैं। भौतिकवादी संसार के बदलते परिवेश की इसी स्थिति को प्रस्तुत कविता में स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।

प्रश्न 3.
‘कच्चे रंग’ कविता का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में भौतिकवादी संसार के बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। कवयित्री को अफ़सोस है कि अतीत से तो वह पूरी तरह कट चुकी है और फिक्र है कि कहीं उसका भविष्य भी वर्तमान से कट न जाए। कहीं उसकी अपनी बेटी भी इस संवेदनाशून्य वातावरण से हताश होकर लौट न जाए।

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प्रश्न 4.
‘कच्चे रंग’ कविता में कौन-कौन से मानवीय रिश्तों का विवरण है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में दादी और बेटी के मानवीय रिश्तों का विवरण है। दादी गाँव में नानकशाही ईंटों से बने मकान की दीवारों पर हर वर्ष कच्चे रंगों से उन सबके नाम लिखती है जिनसे उसे प्रेम था। वह कवयित्री का प्यार से माथा भी चूमती थी और हाथ भी। इसी तरह वह अपनी बेटी के बारे में भी चिन्ता व्यक्त करती है कि वह कहीं उसकी तरह टूट कर निराश होकर उसके द्वार से न लौट जाए।

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 5.
अब शहर ………. सिमट जाती थी।
उत्तर:
कवयित्री बदले परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि गाँव खो जाने पर अब शहर, उसकी सड़कें और गलियाँ ही रह गए हैं। गाँव के साथ-साथ वे पर्वत भी कहीं खो गए हैं जो मुझे खामोशी से आवाज़ देते थे। तब मैं थकी हारी धूल भरे पाँव लेकर उसकी गोद में सिमट जाती थी।

प्रश्न 6.
सब कुछ बदल गया ……. कितना डरती हूँ मैं।
उत्तर:
कवयित्री बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करती हुई कहती हैं कि आज सब कुछ बदल गया है। जंगल, पर्वत, पगडंडी और यहाँ तक कि घर भी बदल गया है। शेष केवल मैं बची हूँ जो आज भी उन कच्चे रंगों को ढूंढ़ रही है, जिससे मैं उन सभी लोगों के नाम घर की कच्ची दीवारों पर लिख सकूँ जो मेरे अपने हो सके थे। कवयित्री का संकेत अपनी दादी द्वारा घर की कच्ची दीवारों पर कच्चे रंग से उन सब का नाम लिखने की ओर है जिनसे वह प्यार करती थी, जिन्हें वह अपना समझती थी।

PSEB 12th Class Hindi Guide गीता डोगरा Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गीता डोगरा का जन्म किस वर्ष व कहाँ हुआ था?
उत्तर:
सन् 1955 में; पंजाब के फिरोज़पुर में।

प्रश्न 2.
गीता डोगरा के द्वारा रचित काव्य संबंधी दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
धूप उदास, दहलीज, अगले पड़ाव तक।

प्रश्न 3.
गीता डोगरा के द्वारा रचित उपन्यास कौन-सा है ?
उत्तर:
बंद दरवाज़े।

प्रश्न 4.
लेखिका वर्तमान में कहां कार्यरत है?
उत्तर:
समाचार दैनिक जागरण-जालंधर।

प्रश्न 5.
कवयित्री के परिवेश में क्या-क्या खो गया है?
उत्तर:
गाँव, पगडंडी, देवदारु के वृक्ष पर्वत और जंगल।

प्रश्न 6.
कवयित्री को खामोशी से कौन आवाज़ दिया करता था?
उत्तर:
पर्वत।

प्रश्न 7.
कवयित्री का पुराना घर किन ईंटों से बना हुआ था?
उत्तर:
नानकशाही ईंटों से।

प्रश्न 8.
कवयित्री की बड़ी माँ किन रंगों से दीवारों पर लिखा करती थी?
उत्तर:
कच्चे रंगों से।

प्रश्न 9.
कवयित्री को अपने अतीत के प्रति कैसा विश्वास है?
उत्तर:
कवयित्री अपने अतीत के प्रति शंका ग्रस्त है।

प्रश्न 10.
कवयित्री किस से डरती है?
उत्तर:
कवयित्री अपने भविष्य में होने वाले परिवर्तनों से डरती है।

प्रश्न 11.
कवयित्री की भाषा कैसी है?
उत्तर:
सीधी-सरल, भावपूर्ण और प्रतीकात्मकता के गुण से संपन्न।

प्रश्न 12.
‘कच्चे रंग’ कविता किस कवि की रचना है ?
उत्तर:
गीता डोगरा।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 13.
जहाँ से गुजरते-गुजरते….
उत्तर:
कविता मुझसे मिली थी।

प्रश्न 14.
खो गए हैं पर्वत भी..
उत्तर:
जो गुप-चुप आवाज़ देते थे मुझे।

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प्रश्न 15.
मेरा वह पुराना घर…….
उत्तर:
नानकशाही ईंट वाला।

प्रश्न 16.
……………..मैं वहाँ से भी लौट आई।
उत्तर:
छितरे-छितरे हो।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
कवयित्री को कहीं भी अपनत्व का भाव दिखाई नहीं देता।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 18.
कवयित्री की बड़ी माँ पक्के-गहरे रंगों से लिखा करती थी।
उत्तर:
नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘बन्द दरवाजे’ किस विधा की रचना है ?
(क) उपन्यास
(ख) कहानी
(ग) कविता
(घ) रेखाचित्र
उत्तर:
(क) उपन्यास

2. ‘धूप उदास है’ की विधा क्या है ?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) काव्य
(घ) गद्य।
उत्तर:
(ग) काव्य

3. ‘कच्चे रंग’ कविता में कवयित्री ने किसके अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है ?
(क) मानवीय संबंधों के
(ख) प्रेम के
(ग) घृणा के
(घ) विश्वास के।
उत्तर:
(क) मानवीय संबंधों के

4. कवयित्री को खामोशी से कौन आवाज़ दिया करता था ?
(क) पर्वत
(ख) नदी
(ग) नाले
(घ) वन।
उत्तर:
(क) पर्वत

गीता डोगरा सप्रसंग व्याख्या

कच्चे रंग

1. खो गया है मेरा गाँव
वह पगडंडी
देवदार के पेड़
वह जंगल भी
जहाँ से गुजरते गुजरते
कविता मुझ से मिली थी।

कठिन शब्दों के अर्थ:
पगडंडी = छोटा रास्ता।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती गीता डोगरा द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘सप्तसिन्धु’ में संकलित कविता ‘कच्चे रंग’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने भौतिकवादी संसार के बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

व्याख्या:
कवयित्री बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करती हुई कहती हैं कि इस बदलते परिवेश में मेरा वह गाँव कहीं खो गया है। उस गाँव की वह पगडंडी देवदार के वृक्ष तथा वह जंगल भी आज खो गया है। जहाँ से गुजरते हुए मेरी कविता से भेंट हुई थी अर्थात् कविता लिखनी शुरू की थी।

विशेष:

  1. कवयित्री को अपना अतीत खो गया प्रतीत होता है क्योंकि अब वहाँ वैसा कुछ नहीं है जैसा पहले होता था।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. अब शहर ………….
सड़कें …… गलियाँ हैं
खो गए हैं पर्वत भी
जो गुपचुप आवाज़ देते थे मुझे
तो मैं थकी हारी
धूल सने पाँव सहित……..
उसकी आगोश में सिमट जाती थी।

कठिन शब्दों के अर्थ:
गुपचुप = खामोशी से। धूल सने = धूल में लिपटे, धूल भरे। आगोश = गोद।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डोगरा द्वारा रचित कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं, जिसमें कवयित्री ने इस भौतिकतावादी युग में संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री बदले परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती हैं कि गाँव खो जाने पर अब शहर, उसकी सड़कें और गलियाँ ही रह गए हैं। गाँव के साथ-साथ वे पर्वत भी कहीं खो गए हैं जो मुझे खामोशी से आवाज़ देते थे। तब मैं थकी हारी धूल भरे पाँव लेकर उसकी गोद में सिमट जाती थी।

विशेष:

  1. वर्तमान परिवेश में संबंधों की गरिमा के नष्ट होने पर कवयित्री चिंतित है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा लाक्षणिक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

3. मेरा वह पुराना घर
नानकशाही ईंट वाला
जहाँ हर वर्ष बड़ी माँ
कच्चे रंगों से लिखती थी
सबका नाम ………
प्यार से चूमती थी मेरा माथा
मेरे हाथ ………

कठिन शब्दों के अर्थ:
नानकशाही ईंट = पुराने जमाने की छोटी ईंट। बड़ी माँ = दादी या नानी।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गीता डोगरा द्वारा कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने इस भौतिकतावादी युग में संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री अपने खो गए गाँव को याद करती हुई कहती है कि गाँव में मेरा पुराने जमाने की छोटी ईंटों से बना घर था। जहाँ हर वर्ष मेरी दादी कच्चे रंगों से दीवारों पर सबके नाम लिखती थी और प्यार से कभी मेरा माथा और कभी मेरा हाथ चूमती थी।

विशेष:

  1. कवयित्री को अपना अत्यंत मोहक लगता है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा सहज है।

4. वे रिश्ते भी खो गए
अब रहता है वहाँ भी
सीमेंट पत्थर का आदमी
जो रिश्तों को तराजू पर
तोलता है
और पटक देता है………
छितरे-छितरे हो
मैं वहाँ से भी लौट आई।

कठिन शब्दों के अर्थ:
सीमेंट पत्थर का आदमी = मुर्दादिल, संवेदनाशून्य आदमी। छितरे-छितरे हो = टुकड़ेटुकड़े होकर, बिखर कर।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गीता डोगरा द्वारा कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने इस भौतिकतावादी युग में संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री नगरीय सभ्यता की चर्चा करती हुई कहती हैं कि शहर में आने पर गाँवों के से वे रिश्ते भी टूट गए हैं क्योंकि शहरों में तो सीमेंट पत्थर का अर्थात् संवेदनाशून्य आदमी रहता है जो रिश्तों को स्वार्थ के तराजू पर तौलता है और उस पर पूरा न उतरने पर वह रिश्तों को पटक देता है, उन्हें धरती पर फेंक देता है। इसलिए वह वहाँ से टूटकर तथा निराश होकर लौट आई है।

विशेष:

  1. नगरीय सभ्यता की संवेदनशन्यता पर व्यंग्य है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

5. सब कुछ बदल गया
जंगल, पर्वत, पगडंडी
घर भी
शेष बची मैं।
आज भी खोजती हूँ, कच्चे रंग
जिससे लिख पाऊँ
मैं उन सबके नाम
जो मेरे अपने हो सके

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ गीता डोगरा द्वारा कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने वर्तमान परिवेश में बदलते जीवन मूल्यों पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री बदलते परिवेश की स्थिति को स्पष्ट करती हुई कहती हैं कि आज सब कुछ बदल गया है। जंगल, पर्वत, पगडंडी और यहाँ तक कि घर भी बदल गया है। शेष केवल मैं बची हूँ जो आज भी उन कच्चे रंगों को ढूंढ़ रही है, जिससे मैं उन सभी लोगों के नाम घर की कच्ची दीवारों पर लिख सकूँ जो मेरे अपने हो सके थे। कवयित्री का संकेत अपनी दादी द्वारा घर की कच्ची दीवारों पर कच्चे रंग से उन सब का नाम लिखने की ओर है जिनसे वह प्यार करती थी, जिन्हें वह अपना समझती थी।

विशेष:

  1. कवयित्री वर्तमान में भी अतीत को चाहती है, जो संबंधों की गरिमा से युक्त था।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 14 गीता डोगरा

6. और सोचती हूँ
गलती से जन न बैठूँ
कोई सीमेंट पत्थर का आदमी
कि कहीं
मेरी बेटी भी छितरे-छितरे हो
लौट जाए
मेरी दहलीज से ……..
सच कितना डरती हूँ मैं।

कठिन शब्दों के अर्थ:
जन न बैठूँ = जन्म न दे दूँ। दहलीज = द्वार। .

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियां गीता डोगरा द्वारा रचित कविता ‘कच्चे रंग’ में से ली गई हैं जिसमें कवयित्री ने वर्तमान परिवेश में बदलते जीवन मूल्यों पर चिंता व्यक्त की है।

व्याख्या:
कवयित्री अतीत के टूट जाने पर भविष्य के प्रति अपनी शंका व्यक्त करती हुई कहती हैं कि मैं यह सोचती हूँ कि कहीं भूल से ऐसे व्यक्ति को जन्म न दे दूँ जो सीमेंट पत्थर का बना हो अर्थात् संवेदनाशून्य और मुर्दादिल हो। मुझे इस बात का भी डर है कि कहीं मेरी बेटी भी, मेरी तरह टुकड़े-टुकड़े होकर मेरे द्वार से लौट न जाए। कवयित्री कहती हैं कि सच ही मैं भविष्य में टूटने से बड़ा डरती हूँ।

विशेष:

  1. कवयित्री इस भौतिकतावादी युग में भविष्य कहे और भी अधिक संवेदन शून्य होने की संभावना से चिंतित है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा प्रतीकात्मक है।
  3. पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

गीता डोगरा Summary

गीता डोगरा जीवन परिचय

गीता डोगरा जी का जीवन परिचय लिखिए।

गीता डोगरा का जन्म सन् 1955 में फिरोज़पुर (पंजाब) में हुआ। आपने हिन्दी साहित्य की कविता, उपन्यास एवं आलोचना विधा में अपना योगदान दिया। अगले पड़ाव तक, धूप उदास है तथा दहलीज आपके काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। बन्द दरवाजे’ शीर्षक एक उपन्यास भी प्रकाशित हो चुका है। आपको अनेक पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं। आपकी कुछ रचनाएँ, बांग्ला, गुजराती और तमिल भाषा में अनुदित हुई हैं। आजकल आप जालन्धर से प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्र दैनिक जागरण में काम कर रही हैं।

गीता डोगरा कविता का सार

‘कच्चे रंग’ कविता में कवयित्री ने मानवीय संबंधों के अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की है। उसे लगता है कि इस भौतिकतावादी परिवेश में वह अपने अतीत को खो बैठी है तथा भविष्य भी उसे उसके वर्तमान से टूटता लगता है। सर्वत्र संवेदनहीनता के दर्शन हो रहे हैं। कहीं भी अपनत्व नहीं दिखाई देता।

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