PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

PSEB 12th Class Economics भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
घरेलू उद्योगों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
घरेलू उद्योग वह उद्योग होता है जो कि एक परिवार के सदस्यों द्वारा कम पूंजी से लगाया जाता है।

प्रश्न 2.
लघु उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर-
लघु उद्योग वे उद्योग हैं जिनमें एक करोड़ रुपए तक की पूंजी निवेश की गई हो।

प्रश्न 3.
औद्योगीकरण की कोई एक समस्या का वर्णन करें।
उत्तर-
बड़े घरानों का विकास-भारत में औद्योगिक क्षेत्र में कुछ घराने तीव्रता से विकसित हो रहे हैं।

प्रश्न 4.
नई औद्योगिक नीति में उदारवादी नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत की नई औद्योगिक नीति 1991 में सरकार ने उदारवादी नीति (Liberal Policy) अपनाई है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 5.
औद्योगिक विकास के लिए कोई एक सुझाव दें।
उत्तर-
औद्योगिक विकास के लिए सरकार को आधारभूत सुविधाओं में वृद्धि करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
भारत में घरेलू तथा छोटे उद्योगों के महत्त्व पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
इन उद्योगों द्वारा रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान किए जाते हैं।

प्रश्न 7.
छोटे पैमाने के उद्योगों की कठिनाइयां बताएं।
उत्तर-
घरेलू तथा छोटे उद्योगों में उत्पादन लागत अधिक आती है इसलिए बड़े उद्योगों से मुकाबला करना कठिन होता है।

प्रश्न 8.
भारत की 1991 की औद्योगिक नीति की कोई दो मुख्य विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  • सार्वजनिक क्षेत्र में केवल चार उद्योग सुरक्षित रखे गए हैं।
  • लाइसेंस प्राप्त करने की नीति का त्याग किया गया है।

प्रश्न 9.
किसी देश में उद्योगों की स्थापना में क्रान्तिकारी परिवर्तन को …………….. कहते हैं।
उत्तर-
औद्योगिक विकास।

प्रश्न 10.
परम्परागत वस्तुओं की पैदावार परम्परागत विधि से करने को ………………. उद्योग कहते हैं।
(a) छोटे उद्योग
(b) घरेलू उद्योग
(c) बड़े पैमाने के उद्योग
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) घरेलू उद्योग।

प्रश्न 11.
भारत में नई औद्योगिक नीति 1991 को ………………. नीति कहा जाता है।
उत्तर-
उदारवादी नीति।

प्रश्न 12.
बारहवीं योजना में औद्योगिक विकास का वार्षिक टीचा …………… प्रतिशत रखा गया है।
(a) 8%
(b) 9%
(c) 12%
(d) 14%.
उत्तर-
(b) 9%.

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प्रश्न 13. विभिन्न सिद्धान्त एवं क्रियाएं जो देश के औद्योगीकरण के लिए बनाए जाते हैं उनको ………… कहा जाता है।
(a) आर्थिक विकास
(b) औद्योगिक विकास
(c) औद्योगिक लाइसेंसिंग
(d) उपरोक्त में से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) औद्योगिक विकास।

प्रश्न 14.
भारत में नई औद्योगिक नीति सन् …………………… में बनाई गई।
(a) 1956
(b) 1980
(c) 1991
(d) 2012.
उत्तर-
(c) 1991.

प्रश्न 15.
सन् 1991 में 6 उद्योगों को छोड़कर बाकी सभी उद्योगों के लिए लाइसेंस समाप्त कर दिया गया |
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
नई औद्योगिक नीति अनुसार विदेशी पूंजी निवेश की सीमा बढ़ा कर 51 प्रतिशत कर दी गई है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए पूंजी की कोई कमी नहीं है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 18.
नई औद्योगिक नीति में निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 19.
भारत में औद्योगिक विकास की कोई एक समस्या बताएँ।
उत्तर-
भारत में आधारभूत उद्योगों का कम विकास हुआ है।

प्रश्न 20.
घरेलू तथा अल्प उद्योगों के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
घरेलू तथा अल्प पैमाने के उद्योग श्रम के गहन होने के कारण इन द्वारा रोज़गार प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 21.
भारत में नई औद्योगिक नीति कब बनाई गई ?
(a) 1971
(b) 1981
(c) 1991
(d) 2001.
उत्तर-
(c) 1991.

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में उद्योगों के महत्त्व सम्बन्धी कोई दो बिन्दु बताएँ।
उत्तर-
भारत में औद्योगीकरण का विशेष महत्त्व है। उद्योगों के विकास द्वारा राष्ट्रीय आय, उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि कर भारतीय अर्थ-व्यवस्था की विकास दर को बढ़ाया जा सकता है। उद्योगों का महत्त्व इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. रोज़गार में वृद्धि-औद्योगिक विकास द्वारा रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है। भारत में भिन्न-भिन्न योजनाओं में रोज़गार की वृद्धि के लिए रखे गए लक्ष्य प्राप्त नहीं हुए इस कारण बेरोज़गारी में बहुत वृद्धि हुई है। 2019-20 में उद्योग द्वारा 125 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान किया गया है। 2022 तक 200 मिलियन लोगों को रोजगार देने का अनुमान है।
  2. आर्थिक विकास- भारत के आर्थिक विकास की दर तीव्र करने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण |

प्रश्न 2.
भारत की 12वीं योजना में भारत के औद्योगिक ढांचे का वर्णन करें।
उत्तर-
बारहवीं योजना में उद्योग (Industries in 12th Plan)-बारहवीं योजना (2012-17) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 12% से 14% रखा गया है। इस योजना में 200 मिलियन लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है।

प्रश्न 3.
भारत की नई औद्योगिक नीति (1991) के गुण बताएं।
उत्तर-
नई औद्योगिक नीति के गुण (Merits)-

  • नई नीति से उद्योगों की कुशलता में वृद्धि होगी।
  • देश में विदेशी तकनीकों के प्रयोग के कारण उत्पादन में वृद्धि होगी।
  • यह नीति उदारवादी नीति है जिसमें निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है।
  • भारतीय उद्योगों को विदेशी उद्योगों से प्रतियोगिता करने के समर्थ बनाने का यत्न किया गया है।
  • घरेलू तथा छोटे उद्योगों को अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है तथा मज़दूरों के कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाए गए हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय उद्योगों की कोई दो समस्याएं बताएं।
उत्तर-
1. कम प्राप्तियां (Less Achievements) भारत की भिन्न-भिन्न योजनाओं में विकास दर के लक्ष्य हमेशा अधिक रखे गए हैं। प्रत्येक योजना में 8% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया परन्तु वास्तव में 5.6% विकास दर प्राप्त की गई है। इसलिए निर्धारित लक्ष्यों तथा प्राप्तियों में बहुत अन्तर पाया जाता है।

2. बीमार उद्योग (Industrial Sickness)-भारत के रिज़र्व बैंक ने व्यापारिक बैंकों से जो सूचना प्राप्त की है उसके अनुसार 31 मार्च, 2020 तक 2,40,000 बीमार औद्योगिक इकाइयां थीं। 2020 में छोटे पैमाने के उद्योगों की बीमार इकाइयों की संख्या 1,00,000 थी। इस प्रकार बीमार इकाइयों की संख्या में वृद्धि होने के कारण औद्योगिक विकास नहीं हो रहा है।

प्रश्न 5.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए कोई दो सुझाव दें।
उत्तर-

  1. आधुनिकीकरण (Modernisation)-भारत में उद्योगों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। इस लक्ष्य के लिए नई मशीनों तथा औज़ारों का निर्माण करना चाहिए ताकि उद्योगों में उत्पादन लागत कम हो सके।
  2. मूलभूत सुविधाएं (Basic Facilities)- उद्योगों के विकास के लिए मूलभूत सुविधाएं जैसे कि कच्चा माल, साख सहूलियतें, करों में राहत तथा लघु उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शक्ति, कोयला, यातायात के साधन, सड़कें, रेलों का विकास करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 6.
भारत ने लाइसेंसिंग नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति (Industrial Lincensing Policy)-स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने सन् 1951 में एक एक्ट ‘औद्योगिक विकास एवं नियमन’ पास किया जिसके अनुसार प्रत्येक उद्योग को सरकार से अनुमति लेकर ही औद्योगिक उत्पादन करने का हक होता था। बिना सरकार की अनुमति और बिना लाइसेंस कोई भी व्यक्ति उद्योग स्थापित नहीं कर सकता था। उद्योग कहां स्थापित किया जाए, कौन-सी वस्तु का उत्पादन किया जाए और उस वस्तु का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए, इन बातों के लिए लाइसेंस लेना ज़रूरी था। सरकार की इस नीति को औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति कहा जाता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में औद्योगीकरण के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में औद्योगीकरण का विशेष महत्त्व है। उद्योगों के विकास द्वारा राष्ट्रीय आय, उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि कर भारतीय अर्थ-व्यवस्था की विकास दर को बढ़ाया जा सकता है। उद्योगों का महत्त्व इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. रोज़गार में वृद्धि-औद्योगिक विकास द्वारा रोजगार में वृद्धि की जा सकती है। भारत में भिन्न-भिन्न योजनाओं में रोज़गार की वृद्धि के लिए रखे गए लक्ष्य प्राप्त नहीं हुए इस कारण बेरोजगारी में बहुत वृद्धि हुई है। 2019-20 में उद्योग द्वारा 160 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान किया गया है। 2022 तक 200 मिलियन लोगों को रोज़गार देने का अनुमान है।

2. आर्थिक विकास-भारत के आर्थिक विकास की दर तीव्र करने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण |

3. साधनों का उचित प्रयोग-भारत में प्राकृतिक साधन लोहा, कोयला, मैंगनीज़ तथा मानवीय साधन बहुत अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसका उचित प्रयोग करने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण है।

4. विदेशी व्यापार-भारत द्वारा विदेशों को निर्यात कम मात्रा में किया जाता है तथा आयात अधिक होने के कारण भुगतान सन्तुलन भारत के प्रतिकूल रहता है। औद्योगीकरण द्वारा विदेशी व्यापार में वृद्धि करके भुगतान सन्तुलन को अनुकूल किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
भारत की योजनाओं में औद्योगिक विकास दर पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत एक विकासशील देश है। इससे 1991 की औद्योगिक नीति से पूर्व सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया था परन्तु अब निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है जिस कारण भारत में भिन्नभिन्न योजनाओं में विकास दर इस प्रकार रही है-
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इससे ज्ञात होता है कि भारत में उद्योगों की विकास दर 10% से कम रही है। देश के आर्थिक विकास में वृद्धि करने के लिए विकास दर में और वृद्धि करने की आवश्यकता है। वर्ष 2012-17 में औद्योगिक विकास दर का लक्ष्य 9% रखा गया है। 2020-21 में 9.4% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य है।

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प्रश्न 3.
भारत में औद्योगिक विकास की मन्द गति के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
भारत में औद्योगिक विकास की मन्द गति के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –

  1. आधारभूत उद्योगों का कम विकास-प्रत्येक देश का आर्थिक विकास आधारभूत उद्योगों के विकास पर निर्भर करता है। यद्यपि भारत में मशीनें, लोहा तथा इस्पात, सीमेंट इत्यादि बनाने के उद्योग स्थापित किए गए हैं परन्तु देश की आवश्यकताओं को देखते हुए इनका कम विकास हुआ है।
  2. पूंजी की कमी-उद्योगों के विकास के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है। भारत में अधिक लोग निर्धन हैं इसलिए लोगों की बचत कम है। बचत द्वारा ही पूंजी निर्माण किया जाता है। पूंजी की कमी के कारण उद्योगों की गति मन्द है।
  3. शक्ति की कमी-उद्योगों के विकास के लिए शक्ति साधनों की आवश्यकता होती है। भारत में शक्ति के तीन साधन विद्युत्, कोयला तथा तेल हैं। भारत में कोयला काफ़ी मात्रा में मिलता है परन्तु यह घटिया किस्म का होने के कारण आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करता। कोयले की खाने बिहार तथा बंगाल में केन्द्रित हैं इसलिए अन्य क्षेत्रों को कोयला भेजने की लागत बढ़ जाती है। इस कारण उद्योगों के विकास की गति मन्द है।
  4. क्षेत्र असमानता-भारत में अधिकतर उद्योग कुछ क्षेत्रों जैसे कि महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु में केन्द्रित हो गए हैं। कुछ राज्य जैसे कि पंजाब, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान उद्योगों के पक्ष से पिछड़े हुए राज्य हैं। क्षेत्रीय असमानता होने के कारण भी उद्योगों के विकास की गति मन्द है।

प्रश्न 4.
भारत में औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए चार सुझाव दें।
उत्तर-
भारत में उद्योग पिछड़ी हुई स्थिति में हैं। उद्योगों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-

  • निजी क्षेत्र का विकास- भारत में सार्वजनिक क्षेत्र असफल हो गया है। इसलिए निजी क्षेत्र को उत्साहित करने की आवश्यकता है। सरकार को निजी क्षेत्र के विकास के लिए अधिक सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। इससे निजी पूंजीपति अधिक उद्योग स्थापित करेंगे ताकि उद्योगों का विकास हो सके।
  • साधनों का उचित प्रयोग-भारत में प्राकृतिक साधन काफ़ी मात्रा में पाए जाते हैं। देश के प्राकृतिक साधनों का उचित प्रयोग करके उद्योगों का विकास किया जा सकता है।
  • आधुनिकीकरण तथा तकनीकी विकास-भारत में उत्पादन करने की विधियां पुरातन होने के कारण उद्योग पिछड़े हुए हैं। उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक है कि आधुनिक युग में प्रयोग होने वाली मशीनों का प्रयोग किया जाए। तकनीकी तौर पर विकसित मशीनों के प्रयोग से न केवल उत्पादन लागत कम हो जाती है बल्कि उद्योग प्रतियोगिता करने में समर्थ हो जाते हैं।
  • अवरोध दूर करना-औद्योगिक विकास के लिए आधारभूत ढांचे के मुख्य अवरोधों को दूर करना चाहिए अर्थात् देश में शक्ति, यातायात के साधन, संचार तथा कच्चे माल इत्यादि अवरोधों को दूर किया जाए तो इससे औद्योगिक पिछड़ापन दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
ग्यारहवीं योजना में औद्योगिक विकास पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत में बारहवीं पंचवर्षीय योजना 2012-17 तक बनाई गई। इस योजना में उद्योगों के विकास तथा खनिज पदार्थों पर 196000 करोड़ रुपए खर्च करने के लिए रखे गए थे। ग्यारहवीं योजना में चार क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है। विदेशी पूंजी 75% से 100% तक लगाई जा सकती है। पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है। इस प्रकार भारतीय उद्योगों को प्रतियोगिता के योग्य बनाया जा रहा है। बारहवीं योजना (2012-17) में औद्योगिक विकास दर 12% का लक्ष्य रखा गया है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत की अर्थ-व्यवस्था में उद्योगों के महत्त्व पर टिप्पणी लिखें। (Write a detailed note on the Importance of Industrialization in India.)
उत्तर-
भारत जैसे विकासशील देश के लिए औद्योगीकरण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. रोज़गार में वृद्धि-भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए रोजगार – के नए अवसर उत्पन्न करने के लिए औद्योगीकरण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कृषि से जनसंख्या का बोझ घटाने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण है।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि-अगर हम विश्व के उन्नत देशों को देखते हैं तो आय में अधिक योगदान उद्योगों द्वारा दिया जाता है। भारत में 1950-51 में उद्योगों द्वारा 16% योगदान दिया गया था जो कि अब 2019-20 में बढ़ कर 25% हो गया है। आज भी उद्योगों से कृषि का योगदान महत्त्वपूर्ण है।
  3. पूंजी निर्माण में वृद्धि-पूंजी निर्माण के अतिरिक्त कोई भी देश आर्थिक उन्नति नहीं कर सकता। प्रो० लुईस का विचार था कि कोई देश इतना निर्धन नहीं होता कि राष्ट्रीय आय का 12% भाग पूंजी निर्माण न कर सके। परन्तु उद्योगों के विकास के अतिरिक्त बचत में वृद्धि नहीं हो सकती इसलिए पूंजी निर्माण में वृद्धि करने के लिए औद्योगिक विकास आवश्यक है।
  4. कृषि का विकास-कृषि का विकास औद्योगिक विकास के बिना सम्भव नहीं। उद्योगों में ऐसी मशीनें विकसित की जा सकती हैं जिनसे उत्पादन बढ़ाया जा सके। जब कृषि का उत्पादन बढ़ जाता है तो इससे उद्योगों का विकास होता है। इस प्रकार कृषि का विकास तथा औद्योगिक विकास एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।
  5. विदेशी व्यापार का विकास-उद्योगों के विकास द्वारा विदेशी व्यापार में वृद्धि होती है। उद्योगों में जो वस्तुएं उत्पन्न की जाती हैं इनका निर्यात करके विदेशी पूंजी अर्जित की जा सकती है जो कि देश के आर्थिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होती है।
  6. सन्तुलित आर्थिक विकास- भारत में आर्थिक विकास तीव्र करने के लिए सन्तुलित आर्थिक विकास करने की आवश्यकता है। जब एक देश में कृषि तथा उद्योग एक साथ विकसित होते हैं तो इस को सन्तुलित विकास कहा जाता है। इसलिए भारत में सन्तुलित विकास करके आर्थिक विकास तीव्र गति से प्राप्त किया जा सकता है।
  7. आत्म-निर्भरता- भारत में विदेशों से बहुत-सी वस्तुएं तथा मशीनें आयात की जाती हैं। इसलिए स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत का भुगतान सन्तुलन भारत के प्रतिकूल रहा है। औद्योगिक विकास द्वारा वस्तुओं की अधिक आवश्यकता को पूर्ण किया जा सकता है।
  8. सुरक्षा के लिए लाभदायक-देश की सुरक्षा के लिए औद्योगिक विकास लाभदायक होता है। देश में सुरक्षा सम्बन्धी उपकरणों का विकास करके विदेशों पर निर्भरता कम की जा सकती है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के पश्चात् योजनाओं के दौरान भारत में औद्योगिक विकास के ढांचे का वर्णन करें। (Explain the Industrial development of India after Independence during plan period.)
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के औद्योगिक विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया गया था क्योंकि इंग्लैण्ड के उद्योगों में जो माल तैयार होता था वह भारत की मण्डियों में बेचा जाता था। भारत में से कच्चा माल इंग्लैण्ड को निर्यात किया जाता था। इसलिए स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में औद्योगिक विकास नहीं हुआ, परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक विकास की तरफ ध्यान देना आरम्भ किया गया है। इसलिए भारतीय योजनाओं के दौरान उद्योगों को जिस प्रकार महत्त्व दिया गया है उसका विवरण इस प्रकार से है-
1. प्रथम योजना में उद्योग (Industries in First Plan)-प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में कृषि के विकास की तरफ अधिक ध्यान दिया गया, परन्तु औद्योगिक विकास के लिए विशेष कार्य नहीं किया गया, परन्तु इस योजना में कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग जैसे कि सीमेंट, फैक्टरियां, टेलीफोन, इण्डस्ट्री, चितरंजन लोकोमोटिव वर्कस इत्यादि आरम्भ किए गए। इस योजना में उद्योगों के उत्पादन में 39% वृद्धि हुई है।

2. द्वितीय योजना में उद्योग (Industries in Second Plan)-द्वितीय योजना (1956-61) में उद्योगों के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। यह योजना प्रो० पी० सी० महलानोबिस ने तैयार की थी। 1956 में औद्योगिक नीति की घोषणा की गई। इस योजना काल में सार्वजनिक क्षेत्र में आधारभूत उद्योग स्थापित करने को अधिक महत्त्व दिया गया। लोहा तथा इस्पात के उत्पादन के लिए दुर्गापुर, भिलाई तथा राऊरकेला के स्थान पर उद्योग स्थापित किए गए। नंगल में उर्वरक उद्योग स्थापित किया गया। इस योजना में औद्योगिक उत्पादन की विकास दर 6.6% वार्षिक रही।

3. तृतीय योजना में उद्योग (Industries in Third Plan)-भारत की तृतीय योजना (1961-66) में भारी उद्योग के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। इसका मुख्य लक्ष्य औद्योगिक क्षेत्र में रोज़गार में वृद्धि करना रखा गया ताकि राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो सके। इस योजना में जो उद्योग द्वितीय योजना में स्थापित किए गए थे उनकी योग्यता में वृद्धि की गई। भारत में मशीनों के पुर्जे, स्वास्थ्य से सम्बन्धित उपकरण तथा वैज्ञानिक औजार बनाने के कारखाने लगाए गए। इस योजना में औद्योगिक उत्पादन में 25% वृद्धि की गई।

4. चतुर्थ योजना में उद्योग (Industries in Fourth Plan)-चतुर्थ योजना (1969-74) से तीव्र गति से आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए औद्योगिक विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। भारत में पेट्रोल तथा रासायनिक पदार्थों के विकास के लिए निवेश में वृद्धि की गई। इस योजना काल में औद्योगिक उत्पादन को वार्षिक दर 5% रही।

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5. पांचवीं योजना में उद्योग (Industries in Fifth Plan)-पांचवीं योजना (1974-78) में औद्योगिक विकास में. ६, वार्षिक विकास दर प्राप्त करने के लिए बनाई गई थी। इस योजना में उद्योगों के विकास के लिए सा जनिक क्षेत्र में 39,426 करोड़ रुपए का निवेश किया गया। योजना काल में इस्पात, उर्वरक, खनिज तेल, निर्यात, कपड़ा, चीनी इत्यादि उद्योगों के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया परन्तु औद्योगिक उत्पादन में विकास दर 5.3% रही।

6. छठी योजना में उद्योग (Industries in Sixth Plan)-छठी योजना (1980-85) में नए उद्योग स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया। विशेषतया टेलीफोन तथा इलेक्ट्रोनिक्स उद्योगों की तरफ अधिक ध्यान. दिया गया। इस योजना में औसत वार्षिक विकास दर 5.5% वार्षिक रही।

7. सातवीं योजना में उद्योग (Industries in Seventh Plan)-सातवीं योजना (1985-90) में देश में औद्योगीकरण की नीति जारी रही। इस योजना में बड़े उद्योगों तथा खनिजों के उत्पादन की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। उत्पादन में वृद्धि करने के लिए तकनीक को विकसित करने का कार्य आरम्भ किया गया। देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर उद्योगों को विकसित करने की योजना बनाई गई। विकास सम्भावना वाली सन्राइज इण्डस्ट्री (Sun Rise Industry) की स्थापना की गई। इस योजना काल में औद्योगिक विकास दर 8.5% वार्षिक रही।

8. आठवीं योजना में उद्योग (Industries in 8th Plan).- आठवीं योजना (1992-97) में उद्योगों पर कृषि से अधिक खर्च करने का कार्यक्रम बनाया गया। इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्योगों के विकास के लिए 44.33 करोड़ रुपए खर्च किए गा ! इस निवेश का मुख्य लक्ष्य निजी उद्योगों की उत्पादन शक्ति में वृद्धि करना रखा गया।

9. नौवीं योजना में उद्योग (Industries in 9th Plan)-नौवीं योजना (1997-2002) में उदारीकरण की नीति को अपनाया गया है। नई औद्योगिक नीति के अनुसार उद्योगों में उत्पादन शक्ति को बढ़ाकर शेष विश्व की जस्तुओं से मुकाबला करने के योग्य बनाना है। इसके लिए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता दी है। पूंजी बाज़ार को विशाल बनाया गया है। इस योजना में औद्योगिक विकास दर 5.5% रही।

10. दसवीं योजना में उद्योग (Industries in 10th Plan)-दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002-07 में उदारीकरण व निजीकरण की नीति को अपनाया गया है। इस योजना काल में 8.2% वार्षिक विकास दर प्राप्त की गई है।

11. ग्यारहवीं योजना में उद्योग (Industries in 11th Plan)-ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 15% प्रति वर्ष रखा गया है। ग्यारहवीं योजना में औद्योगिक विकास पर 153600 करोड़ रुपए व्यय किया गया।

12. बारहवीं योजना में उद्योग (Industries in 12th Plan)-बारहवीं योजना (2012-17) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 9% रखा गया है। इस योजना काल में 292098 करोड़ रुपए व्यय किये जाएंगे।

प्रश्न 3.
भारत में घरेलू तथा लघु पैमाने के उद्योगों के महत्त्व की व्याख्या करें। (Explain the importance of cottage and small scale industries in India.)
उत्तर-
माईक्रो, लघु तथा मध्यम उद्योगों की परिभाषा (Definition of Micro, Small and Medium Industries)-भारत में माईक्रो, लघु तथा मध्यम उद्योगों के विकास एक्ट के अनुसार इन उद्योगों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है-वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण ने 2 फरवरी 2020 को बजट में इन उद्योगों की परिभाषा बदल दी है-

निर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector)-

उद्यम श्रेणी प्लांट तथा मशीनरी पर निवेश
माईक्रो उद्यम ₹ 1 करोड़ से अधिक निवेश नहीं होना चाहिए।
लघु उद्यम ₹10 करोड़ से अधिक परन्तु ₹ 50 करोड़ का उत्पादन नहीं होना चाहिए।
मध्यम उद्यम ₹ 10 करोड़ से अधिक परन्तु ₹ 50 करोड़ से अधिक निवेश नहीं होना चाहिए।

भारत में घरेलु तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का महत्त्व बहुत अधिक है। यह उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 8% योगदान डालते हैं। इस उद्योगों द्वारा उत्पादन का 40% भाग निर्यात किया जाता है। भारत में इन उद्योगों की संख्या 26 मिलियन है जिसमें 60 मिलियन मज़दूरों को रोजगार दिया जाता है।

इन उद्योगों के महत्त्व को निम्नलिखित से ज्ञात किया जा सकता है –
1. रोज़गार (Employment)-घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग श्रम गहन होने के कारण रोज़गार में वृद्धि करते हैं। भारत में जनसंख्या बहुत अधिक है। इसलिए बेरोज़गारी की समस्या पाई जाती है। बेरोज़गारी को दूर करने के लिए घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग अधिक योगदान दे सकते हैं। लघु तथा मध्यम वर्ग के उद्योगों द्वारा 7.2 लाख लोगों को रोजगार प्रदान किया जाता है।

2. पूंजी की कम आवश्यकता (Need for Less Capital)-घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों में पूंजी की कम आवश्यकता होती है। इसलिए भारत जैसे निर्धन देश में यह उद्योग विशेष महत्त्व रखते हैं।

3. विदेशी सहायता की आवश्यकता नहीं (No need of Foreign Help)-घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों को स्थापित करने के लिए विदेशी मशीनों तथा आधुनिक तकनीकों की आवश्यकता नहीं होती। घरेलू तकनीक द्वारा ही उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।

4. कृषि पर जनसंख्या का कम बोझ (Less Pressure of Population on Agriculture)-भारत में कृषि पर 70% लोग निर्भर करते हैं। कृषि पर से जनसंख्या का बोझ हटाने के लिए घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास आवश्यक है।

5. आय का समान विभाजन (Equal Distribution of Income)-भारत में आय का असमान विभाजन पाया जाता है। अमीर तथा निर्धन लोगों की आय में अन्तर बहुत अधिक है। आय के समान विभाजन के लिए भी घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास आवश्यक है।

6. उद्योगों का विकेन्द्रीकरण (Decentralisation of Industries)-बड़े पैमाने के उद्योग एक स्थान पर केन्द्रित हो जाते हैं। उद्योगों में विकेन्द्रीकरण के लिए घरेलू तथा छोटे उद्योगों का विकास आवश्यक है।

7. बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए सहायक (Helpful to Large Scale Industries)-छोटे पैमाने के उद्योगों में ऐसी वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है जो कि बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए सहायक हो सके जैसे कि साइकिल बनाने के उद्योगों के लिए छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा हैण्डल, स्टैण्ड, तारें इत्यादि नियमित किए जा सकते हैं।

8. कम औद्योगिक लड़ाई-झगड़े (Less Industrial Disputes)-बड़े पैमाने के उद्योगों से औद्योगिक लड़ाई-झगड़े आरम्भ हो जाते हैं परन्तु छोटे पैमाने पर उत्पादन करने से औद्योगिक झगड़ों की सम्भावना कम हो जाती है।

9. किसानों की आय में वृद्धि (Supplement to Farmer’s Income)-घरेलू उद्योग विशेषतया किसानों द्वारा आरम्भ किए जा सकते हैं। इससे किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 4.
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक नीति की आलोचना सहित व्याख्या करें। (Critically examines the Industrial Policy of India after Independence.)
अथवा
भारत में 1991 की औद्योगिक नीति की व्याख्या करें। (Explain the Industrial Policy of 1991 in India.)
अथवा
भारत की नई औद्योगिक नीति को स्पष्ट करें। (Explain the New Industrial Policy of India.)
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक नीति का निर्माण किया गया। औद्योगिक नीति समय-समय पर परिवर्तित की गई है, जिसका विवरण इस प्रकार है-
1. औद्योगिक नीति 1948 (Industrial Policy of 1948)-भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् अर्थव्यवस्था (Mixed Economy) को अपनाया गया। इसमें औद्योगिक विकास के लिए सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के कार्य क्षेत्र निर्धारित किए गए। उद्योगों को चार क्षेत्रों में विभाजित करके स्पष्ट किया गया।

  • सार्वजनिक क्षेत्र
  • सरकारी तथा निजी क्षेत्र
  • नियमित निजी क्षेत्र
  • निजी तथा सहकारी क्षेत्र में बनाई गई।

2. इस नीति में-

  • सार्वजनिक क्षेत्र में 17 उद्योगों का वर्णन किया गया।
  • सरकारी तथा निजी क्षेत्र में साझे तौर पर चलाने के लिए 12 उद्योग रखे गए।
  • निजी क्षेत्र में शेष उद्योगों को शामिल किया गया। घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों की तरफ विशेष ध्यान दिया गया है।

इस औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया तथा एकाधिकारी शक्तियों को नियन्त्रण में रखा गया।

3. औद्योगिक नीति 1997 (Industrial Policy of 1977)-1977 में जनता सरकार का राज्य स्थापित हुआ। इसलिए उन्होंने 1956 की औद्योगिक नीति में कुछ परिवर्तन किए परन्तु 1980 में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने भी औद्योगिक नीति में परिवर्तन किए। नई औद्योगिक नीति 1991 (New Industrial Policy of 1991)–भारत सरकार ने 24 जुलाई, 1991 को नई औद्योगिक नीति की घोषणा की।

इस नीति की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  1. सरकारी क्षेत्र का संकुचन (Contraction of Public Sector)-नई नीति के अनुसार सरकारी क्षेत्र में सैन्य उपकरण, परमाणु, ऊर्जा, खनन तथा रेल यातायात के चार उद्योग रहेंगे जबकि शेष उद्योग निजी क्षेत्र के लिए आरक्षित किए गए।
  2. लाइसेंस की समाप्ति (Delicensing)-नई औद्योगिक नीति में 18 उद्योग रखे गए जिनके लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता है जैसे कि कोयला, पेट्रोलियम, शराब, चीनी, मोटर, कारें, दवाइयां इत्यादि। इनके अतिरिक्त अन्य उद्योगों में लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है।
  3. विदेशी पूंजी (Foreign Capital)-नई नीति के अनुसार विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 40% से बढ़ा कर 51% की गई है।
  4. बोर्डों का संगठन (Organisation of Boards)-नई नीति के अनुसार विदेशी पूंजी को उत्साहित करने के लिए विशेष बोर्डों का गठन किया जाएगा।
  5. तकनीकी माहिर (Technical Experts)-नई नीति में तकनीकी माहिरों की सहायता लेकर औद्योगिक विकास किया जाएगा।
  6. सरकारी निर्णय (Government Decision)-सरकार ने भारतीय औद्योगिक अर्थव्यवस्था को अफसरशाही नियन्त्रण के चंगुल से बाहर निकालने का फैसला किया विशेषतया सुरक्षा के क्षेत्र तथा अन्य आवश्यक क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र में आरक्षित रखे जाएंगे जबकि अन्य क्षेत्रों में निजी पूंजीपतियों को निवेश करने की छूट दी जाएगी। भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में लगातार हो रही हानि को ध्यान में रख कर नई औद्योगिक नीति उदारवादी नीति बनाई गई है। बारहवीं योजना में विकास दर 89% प्राप्त करने का लक्ष्य है।

नई नीति का मूल्यांकन (Evaluation of New Industrial Policy)गुण (Merits)-

  1. नई नीति से उद्योगों की कुशलता में वृद्धि होगी।
  2. देश में विदेशी तकनीकों के प्रयोग के कारण उत्पादन में वृद्धि होगी।
  3. यह नीति उदारवादी नीति है जिसमें निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है।
  4. भारतीय उद्योगों को विदेशी उद्योगों से प्रतियोगिता करने के समर्थ बनाने का यत्न किया गया है।
  5. घरेलू तथा छोटे उद्योगों को अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है तथा मजदूरों के कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाए गए हैं।

त्रुटियां (Shortcomings)-

  • इससे सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व कम हो गया है।
  • सरकारी कर्मचारियों की निरन्तर छंटनी हो रही है।
  • आर्थिक शक्ति कुछ हाथों में केन्द्रित हो जायेगी तथा एकाधिकारी शक्तियों का निर्माण होगा।
  • विदेशी पूंजी से आर्थिक गुलामी की स्थिति उत्पन्न होगी।
  • इस नीति से सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं की जा सकती तथा पिछड़े क्षेत्रों का विकास नहीं होगा।

प्रश्न 5.
भारत में औद्योगीकरण की मुख्य समस्याओं का वर्णन करें। उद्योगों के विकास के लिए सुझाव दें।
(Explain the main problems of Industrialization in India. Suggest measures for the Industrial development.)
उत्तर –
भारत में औद्योगिक विकास सन्तोषजनक नहीं हुआ। आज भी कृषि क्षेत्र का योगदान राष्ट्रीय आय में अधिक है। औद्योगिक विकास न होने के मुख्य कारण इस क्षेत्र की कुछ समस्याएं हैं जो कि इस प्रकार हैं-

कम प्राप्तियां (Less Achievements)-
भारत की भिन्न-भिन्न योजनाओं में विकास दर के लक्ष्य हमेशा अधिक रखे गए हैं। प्रत्येक योजना में 8% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया परन्तु वास्तव में 5.6% विकास दर प्राप्त की गई है। इसलिए निर्धारित लक्ष्यों तथा प्राप्तियों में बहुत अन्तर पाया जाता है।

  1. बीमार उद्योग (Industrial Sickness)-भारत के रिज़र्व बैंक ने व्यापारिक बैंकों से जो सूचना प्राप्त की है उसके अनुसार 31 मार्च, 2019 तक 2,40,000 बीमार औद्योगिक इकाइयां थीं। 2019 में छोटे पैमाने के उद्योगों की बीमार इकाइयों की संख्या 1,13,178 थी। इस प्रकार बीमार इकाइयों की संख्या में वृद्धि होने के कारण औद्योगिक विकास नहीं हो रहा है।
  2. बड़े घरानों का विकास (Growth of Big Houses)-भारत में टाटा, बिरला, डाल्मिया, श्री राम, मफतलाल जैसे बड़े घरानों के पास सम्पत्ति निरन्तर बढ़ रही है। इस प्रकार देश की आर्थिक शक्ति थोड़े से हाथों में केन्द्रित हो रही है।
  3. विलास वस्तुओं का उत्पादन (Production of Luxury things)-भारत में औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन में अमीर लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं का अधिक उत्पादन किया जाता है जबकि साधारण लोगों द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं में उत्पादन की तरफ ध्यान नहीं दिया गया।
  4. क्षेत्रीय असन्तुलन (Regional Imbalance)-भारत में उद्योग थोड़े से राज्यों में केन्द्रित हो गए हैं जैसे कि महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु राज्य औद्योगिक पक्ष से विकसित हैं जबकि बिहार, उड़ीसा, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश औद्योगिक पक्ष से पिछड़े हुए राज्य हैं।
  5. कम सुविधाएं (Less Facilities)-भारत के उद्योगों को बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जैसे कि विदेशी प्रतियोगिता, विद्युत्, प्राकृतिक साधनों की कमी, प्रशिक्षण के माहिरों की कमी जिसके कारण औद्योगिक क्षेत्रों की उत्पादकता बहुत कम है। परिणामस्वरूप उद्योगों द्वारा लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं की जा सकती।

औद्योगिक (Suggestion for Industrial Growth) –

  • आधुनिकीकरण (Modernisation)-भारत में उद्योगों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। इस लक्ष्य के लिए नई मशीनों तथा औज़ारों का निर्माण करना चाहिए ताकि उद्योगों में उत्पादन लागत कम हो सके।
  • मूलभूत सुविधाएं (Basic Facilities) उद्योगों के विकास के लिए मूलभूत सुविधाएं जैसे कि कच्चा माल, साख सहूलियतें, करों में राहत तथा लघु उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शक्ति, कोयला, यातायात के साधन, सड़कें, रेलों का विकास करने की आवश्यकता है।
  • सरकारी सहायता (Government Assistance) सरकार को औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करना चाहिए। बीमार इकाइयों के सम्बन्ध में उचित नीति अपनानी चाहिए। उत्पादन करने की विधियों में परिवर्तन करके मांग में वृद्धि करनी चाहिए।
  • वस्तुओं का मानकीकरण (Standardisation of Products)-भारत में वस्तुओं के मानकीकरण की आवश्यकता है ताकि विश्व स्तर पर वस्तुओं को प्रतियोगिता करने के योग्य बनाया जा सके। इसके लिए सरकार को नई मण्डियों की खोज करनी चाहिए। वस्तुओं का प्रचार करके मांग में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
  • औद्योगिक केन्द्र (Industrial Centres)-देश में कच्चे माल, विद्युत्, जल, मज़दूरों इत्यादि साधनों को ध्यान में रख कर औद्योगिक केन्द्र स्थापित करने चाहिए, विशेषतया कृषि उद्योगों को गांवों में स्थापित करने की आवश्यकता है। इस प्रकार सरकार को भिन्न-भिन्न प्रकार की सूचना प्रदान करके उद्योगों के विकास की तरफ ध्यान देना चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 6.
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति से क्या अभिप्राय है ? भारत में लाइसेंस नीति के उद्देश्य तथा कार्य कुशलता का मूल्यांकन करें।
(What is meant by Industrial Licensing Policy? Discuss the objectives of this Policy. Evaluate the working of this Policy.)
उत्तर-
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति (Industrial Lincensing Policy) स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने सन् 1951 में एक एक्ट ‘औद्योगिक विकास एवं नियमन’ पास किया जिसके अनुसार प्रत्येक उद्योग को सरकार से अनुमति लेकर ही औद्योगिक उत्पादन करने का हक होता था। बिना सरकार की अनुमति और बिना लाइसेंस कोई भी व्यक्ति उद्योग स्थापित नहीं कर सकता था।

औद्योगिक कहां स्थापित किया जाए, कौन-सी वस्तु का उत्पादन किया जाए- और उस वस्तु का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए, इन बातों के लिए लाइसेंस लेना ज़रूरी था। सरकार की इस नीति को औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति कहा जाता है। औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के उद्देश्य (Objectives of Industrial Lincensing Policy)-औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. निवेश तथा उत्पादन पर नियन्त्रण-औद्योगिक नीति का उद्देश्य भारत में निवेश तथा उत्पादन पर नियन्त्रण रखना था। इस प्रकार विभिन्न योजनाओं में औद्योगिक विकास के लक्ष्यों की पूर्ति सम्भव है।
  2. लघु उद्योगों का विकास-बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास से लघु उद्योगों के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लाइसेंसिंग नीति द्वारा सरकार उन उद्योगों को अनुमति नहीं देती थी जिनके विकास से लघु उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़े।
  3. क्षेत्रीय सन्तुलन-भारत में सभी उद्योग एक स्थान पर केन्द्रित न हो जाए और देश के हर क्षेत्र का विकास हो इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए भी लाइसेंसिंग नीति अनिवार्य भी है।
  4. तकनीकी सुधार-औद्योगिक नीति का उद्देश्य तकनीकी सुधारों को बढ़ावा देना भी है।
  5. विकेन्द्रीयकरण-उद्योगों के विकेन्द्रीयकरण के लिए भी लाइसेंसिंग नीति ज़रूरी थी। इस नीति का एक उद्देश्य उद्योगों का सन्तुलित विकास करना भी है। इसलिए नई औद्योगिक इकाइयां लाभ के लिए, वर्तमान में चल रही औद्योगिक ईकाइयों का पंजीकरण अनिवार्य है। नए उत्पादन बनाने के लिए और उत्पादन का विस्तार करने के लिए भी लाइसेंस लेना अनिवार्य है। यदि उद्यमी औद्योगिक इकाई के स्थान में परिवर्तन करता है तो इस के लिए भी सरकार की अनुमति अनिवार्य है।

लाइसेंसिंग नीति का मूल्यांकन (Evaluation of the Licensing Policy)-भारत में औद्योगिक नीति इस प्रकार रही है-
1. अनिवार्य लाइसेंसिंग-भारत में 1951 की नीति के अनुसार उन उद्योगों के लिए लाइसेंस लेना आवश्यक था जिनकी स्थाई पूंजी 10 लाख रुपए थी। इस सीमा में समय-समय पर परिवर्तन किया गया है। यह सीमा 1970 में एक करोड़, 1990 में 25 करोड़ कर दी गई। 1991 की नई औद्योगिक नीति में सुरक्षा से सम्बन्धित 14 उद्योगों को छोड़कर किसी उद्योग को लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है। 1999 में से 6 उद्योग हैं जिनके लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य है। यह उद्योग है, तम्बाकू उत्पादन, सुरक्षा उपकरण, औद्योगिक विस्फोटक, दवाइयां, खतरनाक रसायन और एरोस्पेस । सरकार की इस नई औद्योगिक नीति को उदारवादी नीति कहा जाता है।

2. एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (M.R.T.P. Act)–भारत सरकार ने एकाधिकार पर नियन्त्रण पाने के लिए एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम बनाया था जिसको 1969 में लागू किया गया। बड़े औद्योगिक गृहों पर नियन्त्रण पाने के लिए इस नियम को लागू किया गया ताकि बड़े घरानों पर प्रतिबन्ध लगाया जा सके। इस नियम को 2002 में समाप्त कर दिया गया है।

3. लघु उद्योगों को संरक्षण-लघु उद्योगों के लिए सरकार ने कई वस्तुओं के उत्पादन को सुरक्षित कर दिया है जिनका उत्पादन बड़े पैमाने के उद्योगों में नहीं किया जा सकता। 2016-17 में लघु उद्योगों के लिए 598 वस्तुएं सुरक्षित की गई हैं।

4. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए संरक्षण-सार्वजनिक क्षेत्र को भारत में पहले अधिक महत्त्व दिया जाता था। अब सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया जाता है। स्वतन्त्रता के पश्चात् सार्वजनिक क्षेत्र के लिए 17 उद्योग सुरक्षित रखे गए थे। इन उद्योगों की संख्या 1991 में कम करके 8 की गई तथा 2004-05 में केवल 3 उद्योग ही सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित है। 31 मार्च, 2016 तक कुल 62 औद्योगिक इकाइयां काम कर रही थीं, जिनमें 5,28,951 करोड़ रुपए का निवेश किया गया था।

सरकार द्वारा सार्वजनिक उद्योगों के अध्ययन के लिए एक बोर्ड की स्थापना की गई। इस बोर्ड द्वारा अक्तूबर 2015 को 62 उद्योगों के पुनर्गठन की सिफ़ारिश की। बोर्ड ने 43 उद्योगों के पुनर्निर्माण (Revival) की मन्जूरी दी और 2 उद्योगों को बन्द करवा दिया। पुनर्निर्माण उद्योगों को 25104 करोड रुपए की सहायता दी। फलस्वरूप 13 उद्योगों द्वारा अधिक उत्पादन करके लाभ प्राप्त किया। भारत में लाइसेंसिंग नीति 1951 में लागू की गई इस नीति में सुधार के लिए समय-समय पर समितियों की स्थापना की गई। 1967 में हजारी समिति तथा 1969 में दत्त समिति में लाइसेंसिंग नीति में सुधार करने के लिए सुझाव दिये। इसके बाद औद्योगिक लाइसेंसिंग में 1991 तक बहुत तबदीली की गई। इन परिवर्तनों का मुख्य उद्देश्य लाइसेंसिंग नीति को सरल बनाना था।

इस प्रकार लाइसेंसिंग नीति में आए परिवर्तन के कारण अब यह नीति उदारवादी नीति में तबदील हो चुकी है। इस कारण देश में उद्योगों के विकास को बढ़ावा मिला है। नई सरकार ने ‘Make in India’ की नीति अपनाई है जिसमें नई क्रियाएं, नया आर्थिक ढांचा, नई मानसिक सोच तथा नए क्षेत्रों के विकास पर बल दिया गया है। वर्ष 2022 तक औद्योगिक क्षेत्र में 25% वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। अब सरकार सार्वजनिक उद्यमों में विनिवेश की नीति अपना रही है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

PSEB 12th Class Economics अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है।

प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-

  • कर
  • सार्वजनिक ऋण
  • घाटे की वित्त व्यवस्था।

(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-

  • सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
  • सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
  • देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
  • आर्थिक सहायता

प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 4.
अभावी मांग में वृद्धि के लिए राजकोषीय नीति के कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए कोई एक राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में कमी-अभावी मांग की वृद्धि के लिए, करों में कमी करनी चाहिए। इससे मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल में कमी होगी।

प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।

प्रश्न 6.
मौद्रिक नीति के कोई एक उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  • बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता
  • खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना।

प्रश्न 7.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।

प्रश्न 8.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है।

प्रश्न 9.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है।

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प्रश्न 10.
उधार की सीमान्त शर्ते (Marginal Requirements of Laws) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उधार की सीमान्त शर्तों का अर्थ है उधार लेने के लिए गिरवी रखी जाने वाली वस्तु का प्रचलित कीमत तथा दिए जाने वाले ऋण की मात्रा का अन्तर होता है।

प्रश्न 11.
सस्ती मुद्रा नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सस्ती मुद्रा नीति वह स्थिति होती है, जिसमें लोगों को कम ब्याज की दर पर आसानी से मुद्रा प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 12.
महंगी मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
महंगी मौद्रिक नीति वह स्थिति होती है, जिसमें ब्याज की दर अधिक होती है तथा आसानी से ऋण प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस नीति का उद्देश्य लोगों के व्यय को घटाना होता है ताकि मुद्रा स्फीति की समस्या का हल किया जा सके।

प्रश्न 13.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर वह कर होते हैं जोकि जिन मनुष्यों पर लगाए जाते हैं, उन मनुष्यों को ही कर का भार सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो लगाया एक मनुष्य पर जाता है, परन्तु उसका भार किसी अन्य मनुष्य को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 15.
वह कर जो जिन व्यक्तियों पर लगाए जाते हैं उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है को …………….. कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) प्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 16.
वह कर जो लगाए एक व्यक्ति पर जाते हैं परन्तु कर का भार और व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है को ………………… कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) प्रतिगामी कर।
उत्तर-
(ख) अप्रत्यक्ष कर।

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प्रश्न 17.
व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं
(क) खुशहाली,
(ख) सुस्ति,
(ग) मन्दी,
(घ)……. हैं।
उत्तर-
पूर्ण चेतना।

प्रश्न 18.
वह दर जो केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय प्राप्त करता है को कहते हैं।
उत्तर-
बैंक दर।

प्रश्न 19.
घाटे की वित्त व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सरकार उदार मुद्रा लेकर अथवा नए नोट छुपा कर सार्वजनिक व्यय करती है तो इस को घाटे की वित्त व्यवस्था कहते हैं।

प्रश्न 20.
किसी व्यापारिक बैंक की जमा राशि का वह न्यूनतम भाग जो केन्द्रीय बैंक के पास जमा रखना पड़ता है को ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
न्यूनतम नकद निधि अनुपात।

प्रश्न 21.
वह नीति जिस द्वारा देश की सरकार और केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए मुद्रा और ब्याज दर को नियंत्रित करते हैं को …………. कहते हैं।
उत्तर-
मौद्रिक नीति।

प्रश्न 22.
निश्चित उद्देश्यों को प्राप्ति करने के लिए आमदन, व्यय और ऋण संबंधी नीति को ……………. कहते हैं।
(क) मौद्रिक नीति
(ख) राजकोषीय नीति
(ग) वित्त नीति
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) राजकोषीय नीति।

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प्रश्न 23.
मंदीकाल और तेज़ीकाल की स्थिति को व्यापारिक चक्र कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
देश का केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय जो ब्याज की दर प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है। यह नीति अधिक मांग तथा अभावी मांग की समस्याओं का हल करने के लिए अपनाई जाती है। इसलिए सरकार के निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आमदन (कर) तथा व्यय नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-

  • कर
  • सार्वजनिक ऋण
  • घाटे की वित्त व्यवस्था

(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-

  • सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
  • सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
  • देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
  • आर्थिक सहायता।

प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-

  1. करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।
  2. सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सेहत, शिक्षा तथा आर्थिक सहायता के रूप में दी जाने वाली सहायता तथा कम व्यय करना चाहिए। इससे स्फीतिक अन्तर कम हो जाता है।

प्रश्न 4.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा –
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।

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प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति के कोई दो उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  • बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता है। बैंक दर के बढ़ने से ब्याज की दर बढ़ जाती है तथा उधार निर्माण कम हो जाता है।
  • खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना। जब साख निर्माण करना होता है तो केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदता है।

प्रश्न 6.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-

  1. बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।
  2. खुले बाज़ार की नीति-खुले बाज़ार में सरकार प्रतिभूतियाँ बेचती है। इसे लोग बैंकों में से पैसे लेकर केन्द्रीय बैंक की प्रतिभूतियाँ खरीद लेते हैं तथा स्फीतिक अन्तर तथा अधिक मांग कम हो जाती है।

प्रश्न 7.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-

  • बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है। ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार मुद्रा की मांग में वृद्धि होती है।
  • खुले बाज़ार की नीति-केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ खरीदता है। इससे अर्थव्यवस्था की कार्य शक्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है। नकद रिज़र्व अनुपात देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा निश्चित किया जाता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक चक्रों से क्या अभिप्राय है ? व्यापारिक चक्रों की मुख्य अवस्थाएं बताओ। ..
अथवा
चक्रीय परिवर्तनों की अवस्थाओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यापारिक चक्र एक अर्थव्यवस्था में अच्छे समय तथा बुरे समय की स्थिति में होता है। अभावी मांग तथा अधिक मांग के परिणामस्वरूप किसी देश में आमदन, उत्पादन तथा रोज़गार में जो उतार-चढ़ाव आते हैं, उनको चक्रीय परिवर्तन अथवा व्यापारिक चक्र कहते हैं। व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं होती हैं।

  1. प्रथम अवस्था (खुशहाली)-इस स्थिति में आमदन, रोज़गार, व्यय, बचत, निवेश, लाभ में वृद्धि होती है।
  2. द्वितीय अवस्था (सुस्ती)-कुछ उद्योगों में आय रोज़गार उत्पादन घटता है, जिसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों में पड़ता है।
  3. तीसरी अवस्था (मन्दी)-इस स्थिति में आमदन तथा रोज़गार बहुत कम हो जाते हैं तथा बुरी स्थिति होती है।
  4. चौथी अवस्था (पुनः चेतना)-इस स्थिति में रोज़गार बढ़ने लगता है तथा आर्थिक गति में वृद्धि होने लगती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय 1

प्रश्न 2.
सरकारी क्षेत्र से अर्थव्यवस्था ( अधिक मांग की समस्या) पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
सरकारी क्षेत्र का महत्त्व प्रो० केन्ज़ ने स्पष्ट किया था। जब सरकार व्यय करती है तो इससे अभावी मांग को दूर किया जा सकता है तथा कर लगाकर सरकार अधिक मांग की समस्या का हल करती है। सरकार के योगदान के कारण अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –

  1. कर (Taxes)-सरकार लोगों पर कर लगाती है। प्रत्यक्ष कर लगाने से लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाती है तथा अप्रत्यक्ष करों से लोगों की खरीद शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार करों में वृद्धि तथा कमी करके सरकार अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या का हल करती है।
  2. सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure)-सरकार द्वारा जो आय प्राप्त की जाती है, इसको लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है। सरकार द्वारा लोक निर्माण कार्यों, सड़कों, नहरों, पुलों इत्यादि पर व्यय किया जाता है तथा सरकार हस्तांतरण भुगतान, बुढ़ापा पैन्शन इत्यादि देती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति पर वृद्धि होती है।
  3. सार्वजनिक ऋण (Public Debt)-जब देश में अधिक मांग की स्थिति होती है तो सरकार लोगों से ऋण लेती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है।
  4. घाटे की वित्त व्यवस्था (Deficit Financing) अभावी मांग के समय सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था का प्रयोग करती है। इससे लोगों की मौद्रिक आय में वृद्धि होती है तथा मांग बढ़ जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 3.
उधार नियन्त्रण के विभिन्न ढंगों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
बैंक दर नीति तथा खुले बाज़ार की नीति उधार की उपलब्धता को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिसमें-

  • मुद्रा की पूर्ति
  • मुद्रा की लागत (ब्याज की दर) तथा
  • मुद्रा की उपलब्धता उधार (नियन्त्रण) द्वारा आवश्यक उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है।

मौद्रिक नीति के मुख्य औज़ार निम्नलिखित अनुसार हैं –

  1. बैंक दर (Bank Rate)-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त करता है।
  2. खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)-इस नीति में देश का केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों की खरीद-बेच करता है। जब प्रतिभूतियां बेची जाती हैं तो लोगों के पास पैसा केन्द्रीय बैंक के पास चला जाता है तथा लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है। व्यापारिक बैंकों की उधार देने की शक्ति भी कम हो जाती है।
  3. नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को अपने पास जमा राशि का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास नकद रखना पड़ता है, जिसको नकद रिज़र्व अनुपात कहते हैं। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जाता है तथा नकद रिज़र्व अनुपात घटाकर उधार बढ़ाया जाता है।
  4. तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को जमा राशि का कुछ भाग अपने पास नकद रखना पड़ता है, जिसको तरलता अनुपात कहा जाता है। इसमें वृद्धि करके उधार निर्माण को घटाया जाता है।
  5. सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirement) केन्द्रीय बैंक द्वारा दिए जाने वाले उधार की कटौती निर्धारण की जाती है। ₹ 100 की वस्तु गहने रखकर बैंक ₹ 80 का उधार दे सकते हैं तो 100 – 80 = ₹ 20 अथवा 20% सीमान्त आवश्यकता होगी। इसमें परिवर्तन करके उधार को प्रभावित किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति में सार्वजनिक व्यय तथा आय द्वारा (i) अधिक मांग (ii) अभावी मांग को कैसे नियन्त्रित किया जाता है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ सरकार की आय तथा व्यय की नीति से होता है। प्रो० डाल्टन के अनुसार, “सरकार के निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, व्यय तथा उधार सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं।” इस नीति से अधिक मांग तथा अभावी मांग की स्थिति का हल किया जाता है।
1. अधिक मांग दौरान राजकोषीय नीति-

  • कर नीति-करों में वृद्धि करनी चाहिए ताकि लोगों की मांग में कमी हो सके।
  • व्यय नीति-सरकार को सार्वजनिक कार्यों, भलाई कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान पर कम व्यय करना चाहिए।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था-ऐसे समय घाटे की वित्त व्यवस्था को घटाकर मुद्रा की पूर्ति में कमी करनी चाहिए।
  • ऋण नीति-सरकार को लोगों से उधार लेना चाहिए जिससे मांग में कमी हो जाएगी।

2. अभावी मांग दौरान राजकोषीय नीति –

  • करों में कमी-अभावी मांग (Deficient Demand) समय सरकार को कर घटा देने चाहिए इससे लोगों की मांग में वृद्धि हो जाती है।
  • व्यय में वृद्धि-अभावी मांग समय सरकार को व्यय अधिक करना चाहिए।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाकर मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करनी चाहिए।
  • सार्वजनिक ऋण की वापसी-सरकार को ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि हो जाएगी।

प्रश्न 5.
अधिक मांग से क्या अभिप्राय है ? अधिक मांग को ठीक करने के लिए दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जोकि पूर्ण रोज़गार की स्थिति में कुल पूर्ति से कुल मांग की वृद्धि के कारण उत्पन्न होती है। इस स्थिति में कुल मांग का स्तर पूर्ण रोज़गार के लिए कुल पूर्ति से अधिक हो जाता है। इस स्थिति को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति के दो उपाय निम्नलिखित अनुसार हैं-

  1. करों में वृद्धि-ऐसे समय जब अधिक मांग की स्थिति होती है, सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए। नए कर लगाने चाहिए तथा पुराने करों की दर में वृद्धि करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप देश के लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाएगी तथा मांग में कमी होने से अधिक मांग की समस्या का हल हो जाएगा।
  2. सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को अधिक मांग की समस्या का हल करने के लिए सार्वजनिक व्यय में कमी करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप लोगों की आय कम हो जाएगी। लोगों की मांग में कमी होगी।

प्रश्न 6.
अधिक मांग तथा अभावी मांग का हल कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
अधिक मांग (Excess Demand)-यह ऐसी स्थिति है जोकि पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से अधिक मांग को प्रकट करती है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-
1. राजकोषीय नीति-

  • सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए
  • सार्वजनिक व्यय को सार्वजनिक कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान के रूप में घटा देना चाहिए
  • सार्वजनिक ऋण अधिक लेना चाहिए।

2. मौद्रिक नीति-

  • बैंक दर में वृद्धि करके ब्याज की दर बढ़ानी चाहिए ताकि उधार निर्माण कम हों।
  • खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ बेचनी चाहिए।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए।
  • उधार की सीमान्त शतों में वृद्धि करनी चाहिए।

अभावी मांग (Deficient Demand)-यह स्थिति ऐसी होती हैं, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इसका हल इस प्रकार करना चाहिए –
1. राजकोषीय नीति- इसका प्रयोग अधिक मांग के विपरीत करना चाहिए-

  • कर घटाने चाहिए
  • सार्वजनिक व्यय बढ़ाना चाहिए
  • ऋण की वापसी करनी चाहिए।

2. मौद्रिक नीति-

  • बैंक दर घटानी चाहिए
  • खुले बाजार में प्रतिभूतियां खरीदनी चाहिए
  • नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए
  • उधार की शर्ते नरम करनी चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 7.
कोई चार उपाय बताओ जिनके द्वारा अभावी मांग की स्थिति को ठीक किया जा सकता है ?
अथवा
अस्फीतिक अन्तर का हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अभावी मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इस स्थिति को अस्फीतिक अन्तर कहा जाता है। इसका हल करने के लिए चार उपाय इस प्रकार हैं-

  1. करों में कमी-प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों में कमी करनी चाहिए । इससे लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होगी।
  2. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर अधिक व्यय करना चाहिए। सरकार को निवेश में वृद्धि करके रोजगार बढ़ाना चाहिए ।
  3. बैंक दर में कमी-सरकार को बैंक दर घटानी चाहिए। इससे ब्याज़ की दर घट जाती है तथा लोग अधिक उधार लेते हैं। इससे मांग में वृद्धि होती है।
  4. नकद रिज़र्व अनुपात में कमी-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक, अधिक उधार देने में सफल होते हैं तथा मांग में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
कोई चार उपाय बताओ, जिसके द्वारा अधिक मांग की समस्या का हल किया जा सकता है ?
अथवा
स्फीतिक अन्तर को हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग अधिक होती है। इस स्थिति को स्फीतिक अन्तर की स्थिति कहा जाता है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-

  • करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर बढ़ाने चाहिए।
  • सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सार्वजनिक कार्यों सड़कों, नहरों, बिजली इत्यादि पर व्यय कम करना चाहिए।
  • बैंक दर में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक को उधार देते समय जो ब्याज प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं। इसमें वृद्धि करनी चाहिए।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए। इससे व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं तथा मांग में कमी हो जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न । (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग के समय राजकोषीय नीति को स्पष्ट करो।
(What is Fiscal Policy ? Discuss the instruments of Fiscal Policy. Explain Fiscal Policy during deficient and Excess Demand.)
अथवा
राजकोषीय नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तर तथा स्फीतिक अन्तर का हल कैसे किया जाता है ?
(How is the problem of Deflationary Gap and the Inflationary Gap be solved with Fiscal Policy ?)
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ (Meaning of Fiscal Policy)-एक देश में निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सरकार की आय, व्यय तथा ऋण सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है। इसलिए राजकोषीय नीति सरकार की आय तथा व्यय की नीति होती है, जिस द्वारा अभावी मांग अथवा अधिक मांग की समस्याओं का हल किया जाता है।

राजकोषीय नीति के औज़ार (Instruments of Fiscal Policy)-राजकोषीय नीति के औज़ारों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
(A) सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार (Instrument related to Government Expenditure)सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं

  • सार्वजनिक निर्माण के कार्य जैसे कि सड़कें, नहरें, पुल इत्यादि का निर्माण करवाना।
  • लोक सेवाएं जैसे कि शिक्षा, सेहत, बुढ़ापे में सहायता इत्यादि पर व्यय।
  • उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने के लिए सबसिडी देना।
  • देश की आन्तरिक तथा बाहरी सुरक्षा पर व्यय करना।

(B) सरकारी आय से सम्बन्धित औज़ार (Instruments related to Public Revenue)-इस सम्बन्ध में मुख्य औज़ार निम्नलिखित हैं

  • कर-प्रत्येक देश की सरकार की आय का मुख्य स्रोत कर होते हैं। सरकार प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर लगाती है।
  • उधार-सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए लोगों से उधार भी लेती है।
  • बजट नीति-सरकार द्वारा व्यय को पूरा करने के लिए घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाती है।

अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग तथा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति इस प्रकार की अपनानी चाहिए –

  1. करों में कमी-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए करों में कमी की जाए तो मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल समाप्त हो जाएगा।
  2. सरकारी व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर व्यय बढ़ा देना चाहिए। इससे लोगों की आय में वृद्धि होगी तथा मांग बढ़ जाएगी।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनानी चाहिए। इससे कुल मांग में वृद्धि होगी।
  4. सार्वजनिक ऋण-सरकार को नया ऋण नहीं लेना चाहिए, बल्कि पुराने ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि की जा सकती है।

अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Excess Demand & Inflationary Gap)-अधिक मांग तथा मुद्रा स्फीति समय सरकार को निम्नलिखित अनुसार राजकोषीय नीति अपनानी चाहिए-

  1. करों में वृद्धि-सरकार को लोगों पर कर अधिक लगाने चाहिए। इससे लोगों की मांग में कमी हो जाएगी।
  2. सरकारी व्यय में कमी-सरकार को मुद्रा स्फीति समय अपना व्यय घटा देना चाहिए।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था में कमी-सरकार को ऐसी स्थिति में घाटे की वित्त व्यवस्था को अपनाना नहीं चाहिए।
  4. सार्वजनिक ऋण-सरकार को लोगों से अधिक ऋण लेना चाहिए ताकि अधिक मांग में कमी आए तथा स्फीतिक अन्तर समाप्त हो सके।

प्रश्न 2.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ? मौद्रिक नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या को हल करने के लिए मौद्रिक नीति के योगदान को स्पष्ट करो।
(What is Monetary Policy ? Explain the instruments of Monetary Policy. How can Monetary Policy be used during Excess Demand & Deficient Demand ?)
अथवा
मौद्रिक नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तराल तथा स्फीति अन्तराल का हल कैसे किया जा सकता है ?
(How can the problem of Deflationary Gap & Inflationary Gap be solved with Monetary Policy ?)
उत्तर-
मौद्रिक नीति का अर्थ (Meaning of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिस द्वारा एक देश की सरकार केन्द्रीय बैंक द्वारा

  • मुद्रा की पूर्ति
  • मुद्रा की लागत अथवा ब्याज की दर तथा
  • मुद्रा की उपलब्धि द्वारा स्थिरता प्राप्त करने का प्रयत्न करती है।

मौद्रिक नीति के औज़ार (Instruments of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति के औज़ारों का वर्गीकरण अग्रलिखित अनुसार किया जा सकता है
(A) मात्रात्मक औजार (Quantitative Instruments) मौद्रिक नीति के मात्रात्मक औज़ार वे औज़ार हैं, जिन के द्वारा उधार मुद्रा को नियन्त्रित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए केन्द्रीय बैंक निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग करता है-
1. बैंक दर (Bank Rate)- बैंक दर वह दर होती है, जोकि केन्द्रीय बैंक द्वारा व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त की जाती है। बैंक दर बढ़ने से देश में ब्याज दर बढ़ जाती है। इसलिए उधार मुद्रा की मांग कम हो जाती है। जब केन्द्रीय बैंक द्वारा बैंक दर घटा दी जाती है तो बाज़ार में ब्याज की दर कम हो जाएगी तथा उधार मुद्रा विस्तार हो जाता है।

2. खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)- उधार मिया के लिए केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों (Securities) की खरीद बेच करता है। जब केन्द्रीय प्रतिभूतियाँ बेचता है तो लोग केन्द्र की प्रतिभूतियां खरीद लेते हैं तथा व्यापारिक बैंकों को उधार देन को शक्ति का ही जागो है। अब केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदने लगता है तो बाज़ार में पैसे चले जाते हैं, इससे ज्यादा का अधिक उधार देने लगते

3. न्यूनतम नकद रिज़र्व अनुपात (Minimum Cash Reserve Ratio)- नाना नकद रिजाव अनुपात वह दर होती है, जो कि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का कुछ ‘हे ? बैंक के पास नत्र के रूप में रखना आवश्यक होता है। यदि रिज़र्व अनुपात 10% से बढ़ाकर मा. काया जाता है तो व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं। पहले वह ₹ 100 में से ₹ 90 परन्तु अन् मारो

4. तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-प्रत्येक व्यापारिक बैंक को अपनी जमा छ प्रतिशत हिस्सा अपने पास नकदी अथवा प्रतिभूतियों के रूप में रखना अनिवार्य होता है। इसको तरलता अनुपात कहा जाता है। जब केन्द्रीय बैंक तरलता अनुपात में वृद्धि कर देता है तो उधार मुद्रा का कम निर्माण होता है।

(B) गुणात्मक औज़ार (Quantitative Instruments)-यह औज़ार विशेष प्रकार के उधार को नियंत्रित करते हैं
1. सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirements)-जब उधार लेते समय किसी वस्तु को गिरवी रखा
जाता है, उसको गिरवी रखकर कितना उधार दिया जाता है। इसके अन्तर को सीमान्त आवश्यकता कहा जाता है, जैसे कि ₹ 100 की वस्तु गिरवी रखकर ₹ 80 का उधार प्राप्त हुआ तो उधार की सीमान्त आवश्यकता 20% है। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जा सकता है।

2. उधार का राशन (Rationing of Credit) केन्द्रीय बैंक स्टेट के लिए उधार दी जाने वाली राशि का कोटा निर्धारण कर देता है, इसको उधार का राशन कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

3. नैतिक दबाव (Moral Pressure) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों पर दबाव डालकर अधिक अथवा कम देने के लिए निवेदन करता है जोकि व्यापारिक बैंकों के लिए आदेश होता है।

अस्फीतिक अन्तर अथवा अभावी मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय निम्नलिखित अनुसार मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-

  • बैंक दर घटा दी जाती है। इससे ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार निर्माण में वृद्धि होती है।
  • खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों की खरीद करता है। लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होती है।
  • नकद रिज़र्व अनुपात को घटा दिया जाता है, इससे व्यापारिक बैंक अधिक उधार देने लगते हैं।
  • तरलता अनुपात को घटाया जाता है, व्यापारिक बैंक की उधार देने की शक्ति बढ़ जाती है।
  • उधार की सीमान्त शर्ते नर्म की जाती हैं।
  • उधार अधिक देने के लिए नैतिक प्रभाव का प्रयोग किया जाता है।

इस नीति को सस्ती मौद्रिक नीति (Cheap Monetary Policy) कहा जाता है। स्फीतिक अन्तराल अथवा अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Excess Demand or Inflationary Gap)-मुद्रा स्फीति अथवा अधिक मांग के समय निम्नलिखित मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-

  • बैंक दर बढ़ा दी जाती है। इससे ब्याज की दर बढ़ जाती है।
  • खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचने लगता है।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि की जाती है। व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं।
  • तरलता अनुपात में वृद्धि की जाती है। बैंक कम उधार देने लगते हैं।
  • सीमान्त शर्ते सख्त की जाती हैं।
  • उधार का राशन किया जाता है। इस नीति को महंगी मौद्रिक नीति (Dear Monetary Policy) कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 11 निवेश गुणक Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 निवेश गुणक

PSEB 12th Class Economics निवेश गुणक Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको गुणक कहते हैं। जैसे कि निवेश में 10 करोड़ रु० की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में ₹ 30 करोड़ की वृद्धि हो जाती है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 1

प्रश्न 2.
निवेश गुणक का सूत्र बताएँ।
उत्तर-
निवेश गुणक का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 2
उदाहरण के लिए निवेश 2 करोड़ करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 4 करोड़ हो जाती है तो गुणक इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 3

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है गुणक का आकार इस प्रक
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}\) = 2

प्रश्न 4. गुणक (K) = ——- .
उत्तर-
गुणक K = \(\frac{\Delta \mathrm{y}}{\Delta \mathrm{I}}\)|

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 5. यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है तो गुणक का आकार ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{\frac{1}{1}}{2}=\frac{1 \times 2}{1}\) = 2

प्रश्न 6.
गुणक दोधारी तलवार है जो राष्ट्रीय आय में तेज़ी से वृद्धि करती है अथवा कमी करती है ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 7.
यदि MPC = 1 है तो गुणक का आकार ———– होगा।
उत्तर-
(a) शुन्य (0)
(b) 1
(c) अनंत
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) अनंत।

प्रश्न 8.
यदि राष्ट्रीय आय में वृद्धि 4 करोड़ रुपये और निवेश में वृद्धि 2 करोड़ रुपये है तो गुणक ज्ञात करें।
उत्तर-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 4

प्रश्न 9.
यदि MPS = \(\frac{1}{4}\) है गुणक का आकार ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)

प्रश्न 10.
जितनी सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) कम होगी गुणक का प्रभाव उतना ही कम होता है।
उत्तर-
गलत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको गुणक कहते हैं। जैसे कि निवेश में ₹ 10 करोड़ की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में ₹ 30 करोड़ की वृद्धि हो जाती है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 5

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 2.
निवेश गुणक का सूत्र बताएँ। ‘
उत्तर-
निवेश गुणक का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 6
उदाहरण के लिए निवेश 2 करोड़ करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 4 करोड़ हो जाती है तो गुणक इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 7

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
K = \(\frac{1}{1-M P C}\)
यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2\)

III. लघु उत्तरीय प्रश्न | (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक की धारणा को स्पष्ट करो। यह सीमान्त बचत प्रवृत्ति से कैसे सम्बन्धित है ?
अथवा
गुणक से क्या अभिप्राय है ? गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
निवेश गुणक का अर्थ है, निवेश में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि की अनुपात (The rate of change in Income due to change in investment)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\mathrm{MPC}}\)
इसमें K =गुणक, ΔY = आय में परिवर्तन, ΔI = निवेश में परिवर्तन, MPC = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति, MPS = सीमान्त बचत प्रवृत्ति
Example : यदि ΔI = 100 करोड़, MPC = \(\frac{3}{4}\) , MPS = 1- \(\frac{3}{4}\) = \(\frac{1}{4}\)= तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि को स्पष्ट करो।

K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{3}{4}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)
अथवा
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)
यदि हमें MPC अथवा MPS का पता हो तो गुणक का आकार माप सकते हैं
∴ K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) अथवा K. ΔI = ΔY = 4 x 10 = 40 करोड़ रुपए।

(i) स्पष्ट है कि MPC का पता हो तो K का आकार माप सकते हैं। जितनी MPC अधिक होगी, गुणक का आकार उतना बड़ा होगा। K तथा MPC का सीधा सम्बन्ध होता है।
(ii) MPS जितनी अधिक होगी गुणक का आकार उतना कम होगा अर्थात् K तथा MPS का विपरीत सम्बन्ध होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 2.
एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो कि निवेश वृद्धि आय स्तर में वृद्धि को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि महत्त्वपूर्ण होती है, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि कई गुणा अधिक हो जाती है। इसका कारण गुणक की धारणा का लागू होना होता है। गुणक की धारणा अधिक हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि अधिक होगी। परन्तु गुणक की धारणा स्वयं सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करती है। यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) अधिक होती है तो गुणक का प्रभाव अधिक होगा। मान लो एक देश में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति MPC = \(\frac{1}{2}\) = 0.5 है तथा निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपये की जाती है। निवेश की वृद्धि राष्ट्रीय आय में कितनी वृद्धि करेगी, इसको निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट करते हैं-
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=K \times \Delta I=\Delta Y\)
अथवा
ΔY= \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \times \Delta \mathrm{I}\) (∵ K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \))
ΔY = \(\frac{1}{1-0.5} \times 100=\frac{1}{\frac{1}{2}} \times 100\)
100 x 2 = ₹ 200 करोड़ उत्तर
निवेश की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि गुणक के आकार अनुसार हो जाती है।

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में ₹ 1000 करोड़ की वृद्धि की जाती है। यदि MPC = 0.75 है तो आय तथा बचत में वृद्धि का पता करो।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\)
ΔY = K. ΔI
= 4 x 1000 = 4000 करोड़

MPS = 1 – MPC
= 1 – 0.75 = 0.25
बचत में वृद्धि = AY x MPS
= 4000 x 0.25 = ₹ 1000 करोड़ उत्तर

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
निवेश गुणक की परिभाषा दीजिए। इसका सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या सम्बन्ध है ? निवेश गुणक की कार्यकुशलता को स्पष्ट करो।।
(What is Multiplier ? How is it related to MPC ? Explain the working of Investment multiplier.)
उत्तर-
निवेश गुणक का अर्थ (Meaning of Multiplier)-इस धारणा का अर्थशास्त्र में केन्ज़ ने प्रयोग किया। निवेश गुणक की धारणा निवेश में परिवर्तन होने से आय में होने वाले परिवर्तन के सम्बन्ध को प्रकट करती है। जब निवेश में वृद्धि की जाती है तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको निवेश गुणक कहा जाता है। (The rate of change in Income due to change in investment is called Multiplier) इसका अनुमान इस प्रकार लगाया जाता है-
Κ. ΔΙ = ΔΥ
अथवा
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
इसमें K = गुणक, ΔY = आय में परिवर्तन, ΔI = निवेश में परिवर्तन। उदाहरणस्वरूप सरकार द्वारा 50 करोड़ रु० निवेश किया जाता है। इससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि 100 करोड़ रु० हो जाती है तो
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{100}{50}\) = 2

गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध (Relationship between K and M.P.C.)-गुणक का मूल्य सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति द्वारा निर्धारण होता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना ही बड़ा होता है तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जितनी कम होगी, गुणक का आकार उतना कम होगा। इनके सम्बन्ध को एक समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
अथवा
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{Y}-\Delta \mathrm{C}}\)
[∵ Y = C+S
ΔY = ΔC + ΔS
ΔS = ΔI
∴ ΔY = ΔC+ΔI
ΔY – ΔC = ΔI]

दाईं ओर की समीकरण को ΔY से विभाजित करने से
K = \(\frac{\Delta Y / \Delta Y}{\Delta Y / \Delta Y-\Delta C / \Delta Y}=\frac{1}{1-\Delta C / \Delta Y}=\frac{1}{1-M P C}\)
अथवा
K= \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
∵ (MPS = 1 – MPC)

उदाहरणस्वरूप-

  • यदि MPC शून्य है- यदि MPC शून्य है तो MPS = 1 होगी तथा गुणक का आकार इकाई के समान होगा अथवा आय में वृद्धि निवेश से एक गुणा होगी।
  • यदि MPC एक है- यदि MPC एक के समान है तो आय में वृद्धि बहुत अधिक गुणा होगी। परन्तु MPC न तो शून्य होती है तथा न ही एक के समान होती है। यह 0 से अधिक तथा 1 से कम होती है।
  • यदि MPC शून्य से अधिक तथा एक से कम है-MPC जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना अधिक होता है।

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MPC = \(\frac{1}{2} \) = तो K = 2, MPC =\(\frac{9}{10} \) तो K = 10.
गुणक की कार्यकुशलता (Working of Multiplier)-गुणक की कार्यकुशलता को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैंयदि
Y = ₹ 100 करोड़, Y1 = ₹ 200 करोड़, I = ₹ 10 करोड़,
I1 = ₹ 30 करोड़ तो गुणक का पता करो।
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\mathrm{MPS}}\)
ΔY = (Y1 – Y) = 200 – 100 = 100
ΔI = (I1 – I) = 30 -10 = 20
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{100}{20}\) = 5

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जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना अधिक होगा। MPC जब अधिक होगी तो MPS कम होती है। इसलिए MPS तथा गुणक का विपरीत सम्बन्ध होता है। जब सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) कम होती है तो गुणक का प्रभाव अधिक होता है। रेखाचित्र 1 अनुसार मौलिक सन्तुलन E बिन्दु पर है तथा राष्ट्रीय आय OY है। निवेश में वृद्धि ΔI होने से राष्ट्रीय अन्य OY से बढ़कर OY1 हो जाती है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय में वृद्धि YY1 है इसे गुणक की Forward Working कहते हैं। यदि निवेश ΔI कम हो जाता है तो राष्ट्रीय आय YY2 कम हो जाती है इसे गुणक की Backward working कहते हैं।
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V. संरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
यदि गुणक का मूल्य 3 है और एक अर्थव्यवस्था में ₹ 100 करोड़ का निवेश किया जाए तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि कितनी होगी ?
उत्तर-
गुणक के सूत्र अनुसार
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
3 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{100}\) = 3 × 100 = ΔY
∴ ΔY = ₹ 300 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
गुणक का मूल्य, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। इनका आपस में सीधा सम्बन्ध होता है।
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
यदि
MPC = \(\frac{1}{2}\) तो K = \(\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2\)
MPC = \(\frac{4}{5}\) तो K = \(\frac{1}{1-\frac{4}{5}}=\frac{1}{\frac{1}{5}}=\frac{1 \times 5}{1} \) = 5

स्पष्ट है कि MPC जितनी अधिक होती है, गुणक का आकार उतना ही बड़ा होता है। MPC जितनी कम होती है, गुणक का मूल्य उतना कम होता है।

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का सम्बन्ध विपरीत होता है-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
यदि
MPS = \(\frac{1}{3}\) तो K = \(\frac{1}{\frac{1}{3}}=\frac{1 \times 3}{1}\) = 3
यदि MPS = \(\frac{1}{10}\) तो K = \(\frac{1}{\frac{1}{10}}=\frac{1 \times 10}{1}\) = 10
स्पष्ट है कि सीमान्त बचत प्रवृत्ति जितनी कम होती है गुणक का आकार उतना अधिक होता है तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) जितनी अधिक होती है, गुणक का आकार उतना कम होता है। इनका परस्पर में विपरीत सम्बन्ध होता है।

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प्रश्न 4.
यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो गुणक का आकार (मूल्य ) क्या होगा ?
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
= \(\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 10 करोड़ होती है तथा परिणामस्वरूप आय में वृद्धि ₹ 50 करोड़ हो जाती है। गुणक का मूल्य क्या होगा ?
उत्तर-
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प्रश्न 6.
यदि MPC = 0.8 है, निवेश में परिवर्तन ₹ 1000 है तो आय में परिवर्तन का पता करो।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{\frac{2}{10}}=\frac{1 \times 10}{2}=5\)
आय में परिवर्तन Κ X ΔΙ
= 5 x 1000
= ₹ 5000 उत्तर

प्रश्न 7.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 10,000 है, परिणामस्वरूप आय में वृद्धि ₹ 40,000 है तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{40,000}{10,000} \) = 4
अथवा
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\) अथवा MPS = \(\frac{1}{K}=\frac{1}{4}\)
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = \(\frac{1}{4}\) or 0.25 उत्तर

प्रश्न 8.
यदि MPC = 0.75 है तो गुणक का मूल्य बताओ।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
= \(1 \times \frac{100}{25}\) = 4

प्रश्न 9.
यदि एक अर्थव्यवस्था में MPC = 0.75 है, निवेश व्यय में वृद्धि ₹ 500 करोड़ होती है। कुल आय में वृद्धि बताओ तथा उपभोग व्यय ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75} \frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}\) = 4
आय में वृद्धि = ΔI x K
= 500 x 4 = ₹ 2000 करोड़
उपभोग व्यय = 2000 x 0.75 = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
निवेश में ₹ 20 करोड़ की वृद्धि के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 100 करोड़ हो जाती है। MPC ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{100}{20}\) = 5
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
5 = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
5 (1 – MPC) = 1
5 – 5 MPC = 1
5 – 1 = 5 MPC
4 = 5MPC
MPC = \(\frac{4}{5}\) = 0.8 उत्तर

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। ₹ 500 करोड़ की निवेश में वृद्धि की जाती है। उपभोग व्यय तथा आय में कुल वृद्धि की गणना करें।
उत्तर-
K= \(\frac{1\cdot}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{\frac{2}{10}}=\frac{10}{12}=5\)
K = \(\frac{\Delta y}{\Delta \mathrm{I}}\)
∴ 5 = \(\frac{\Delta y}{500}\)
ΔΙx K
आय में वृद्धि (Δy) = 500 x 5 = ₹ 2500 करोड़
उपभोग में वृद्धि (ΔC) = Δy x MPC
= 2500 x 0.8
= 2500 x \(\frac{8}{10}\) = ₹ 2000 करोड उत्तर

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प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में वास्तविक आय ₹ 500 करोड़ है, जबकि पूर्ण रोज़गार पर राष्ट्रीय आय ₹ 800 करोड़ है। यदि MPC = 0.75 है तो कितना निवेश बढ़ाया जाए कि पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त हो जाए ?
उत्तर-
वास्तविक आय = ₹ 500 करोड़
पूर्ण रोज़गार पर आय = ₹ 800 करोड़
आय में अनिवार्य वृद्धि = 800 – 500 = ₹ 300 करोड़
M.P.C. = 0.75
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) =4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) अथवा ΔI = \(\frac{\Delta Y}{K}=\frac{300}{4}\) = ₹ 75 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 13.
यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। निवेश खर्च में वृद्धि 500 करोड़ रुपये की जाती है। आमदन और उपभोग में वृद्धि का माप करो ।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.75. ΔI = ₹ 500 करोड़
गुणक
= \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{100}{25}\)
= 4
(i) आमदन में वृद्धि
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\), K × ΔI = ΔY
ΔΥ = 4 × 500 = ₹ 2000 करोड़

(ii) उपभोग खर्च में वृद्धि = MPC ×ΔY = 0.75 × 2000 = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 14.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश खर्च की वृद्धि ₹ 700 करोड़ है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.9 है। आमदन और उपभोग खर्च में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर –
ΔI = ₹ 700 करोड़, MPC = 0.9
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{.1}\) = 10
(i) आमदन में वृद्धि = KΔI = 10 x 700 = ₹ 7000 करोड़
(ii) उपभोग खर्च में वृद्धि = ΔY x MPC = 7000 x 0.9 = ₹ 6300 करोड़ उत्तर

प्रश्न 15.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि ₹ 600 करोड़ है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है। आमदन में वृद्धि और उपभोग खर्च में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर-
ΔI = 600, MPC = 0.6
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{\frac{1}{4}}{\frac{4}{10}}=\frac{10}{4} \) = 2.5
(i) आमदन में वृद्धि (ΔY) = K x ΔI = 2.5 x 600 = ₹ 1500 करोड़
(ii) उपभोग में वृद्धि (ΔC) = ΔY x MPC = 1500 x 0.6 = ₹ 900 करोड़ उत्तर

प्रश्न 16.
यदि MPC = 0 है तो गुणक पता करें।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0}=\frac{1}{1}\) = 1 उत्तर

प्रश्न 17.
यदि MPS = 0 है तो गुणक का आकार बताओ।
उत्तर-
MPC = 1 – MPS = 1 – 0 = 1
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-1}=\frac{1}{0}\) = ∞(Infinity)
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0}\) = ∞ (Infinity)

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प्रश्न 18.
यदि गुणक 5 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति और सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPS}}\) = 5 = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}\)
∴ MPS = \(\frac{1}{5}\) = 0.2
और MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 19.
यदि MPS = 0.2 है और राष्ट्रीय आमदन में वृद्धि ₹ 100 करोड़ करनी हो तो निवेश में वृद्धि कितनी करनी चाहिए ?
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.2}=\frac{\frac{1}{2}}{\frac{10}{10}}=\frac{10}{2}\) = 5
और
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = K x ΔI = ΔY = 5 x ΔI = 100
ΔI = \(\frac{100}{5}\) = ₹ 20 करोड़ उत्तर

प्रश्न 20.
यदि MPC = 0.75 है और राष्ट्रीय आमदन में वृद्धि ₹ 2000 करोड़ करनी हो तो कितना निवेश करने की ज़रूरत है ?
उत्तर-
K=\(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\Delta\mathrm{Y}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{\frac{1}{25}}{\frac{25}{100}}=\frac{100}{25} \)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) या KΔI = ΔY
= 4 x ΔI = 2000 = ΔI = \(\frac{2000}{4}\) = ₹ 500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में ₹ 200 करोड़ का अतिरिक्त निवेश होने पर यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{1}{2}\) हो तो कितनी अतिरिक्त आय का सृजन होगा ?
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2 \)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
2 = \(\frac{\Delta Y}{200}\) = 400 = BY
ΔY = ₹400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 22.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि निवेश में ₹ 500 करोड़ की वृद्धि की जाए तो आय में कितनी वृद्धि होगी ?
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = 4
= \(\frac{\Delta Y}{500}\) = 4 x 500 = ΔY
ΔY = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

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प्रश्न 23.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.95 है। निवेश में ₹ 100 करोड़ की वृद्धि होने पर आय में वृद्धि ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.95}=\frac{1}{0.05}=\frac{1}{\frac{5}{100}}=\frac{1 \times 100}{5}\) = 20
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
= 20 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{100}\) = 20 x 100 ΔY
∴ ΔY = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 24.
यदि एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवत्ति \( \frac{3}{4}\) में है और निवेश में ₹ 500 करोड़ की वृद्धि की जाती है तो आय में वृद्धि ज्ञात करो।
उत्तर –
दिया है MPC = \( \frac{3}{4}\)
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{3}{4}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}\) = 4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = 4 = \(\frac{\Delta Y}{500}\)
ΔY = 500 x 4 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 25.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.4 है ।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}=\frac{1}{0.4}=\frac{1}{\frac{0.4}{10}}=\frac{1 \times 10}{1}\) = 2.5 उत्तर

प्रश्न 26.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.5 है ।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}=\frac{1}{0.5}=\frac{1}{\frac{0.5}{10}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2 \) उत्तर

प्रश्न 27.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.8 है ।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.8}=\frac{1}{\frac{8}{10}}=\frac{1 \times 10}{8}\) = 1.25

प्रश्न 28.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश ₹ 300 करोड़ की वृद्धि होती है यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तो आय तथा उपभोग में वृद्धि कर ज्ञात करें।
उत्तर-
निवेश में वृद्धि (Δ I) = ₹ 300 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC = 0.6)
गुणक = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{10}{4}\) = 2.5

गुणाक के सूत्र अनुसार-
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
= 2.5 = \(\frac{\Delta Y}{300}\)
= 750 = (ΔY)
आय में वृद्धि (ΔY) = ₹ 750 करोड़ उत्तर
उपभोग व्यय में वृद्धि (Δ C)ΔY x MPC = 750 x 0.6 = ₹ 450 करोड़ उत्तर

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प्रश्न 29.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 900 करोड़ की होती है यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तो राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर-
निवेश में वृद्धि (ΔI) = ₹ 900 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.6
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{10}{4}\) = 2.5

गुणक के सुत्र अनुसार
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\)
2.5 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{900}\)
= 2.5 x 900 = AY
2250 = ΔY
आय में वृद्धि ΔY = ₹ 250 करोड़
उपभोग व्यय में वृद्धि (ΔC) = ΔY x MPC
= 2250 x 0.6
= ₹ 1350 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

PSEB 12th Class Economics सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बजट एक वित्तीय वर्ष दौरान सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 2.
बजट के कोई दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर-

  • संसाधनों का पुनः वितरण
  • आय तथा धन का समान वितरण।

प्रश्न 3.
बजट के मुख्य अंश बताओ।
अथवा
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में अन्तर बताओ।
उत्तर-
बजट के मुख्य दो अंश होते हैं-

  1. राजस्व बजट-इसमें आय प्राप्तियां तथा आय व्यय को शामिल किया जाता है, जोकि सरकार को भिन्न-भिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है।
  2. पूंजीगत बजट-इसमें पूंजीगत प्राप्तियां तथा पूंजीगत व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 4.
आय मदें क्या हैं ?
उत्तर-
आय मदों से अभिप्राय सरकार को प्राप्त होने वाली सब साधनों से आय से होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 5.
सरकारी आय के मुख्य अंश बताओ।
उत्तर-
सरकारी आय के मुख्य दो अंश होते हैं

  • कर प्राप्तियां
  • गैर-कर प्राप्तियां।

प्रश्न 6.
कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कर एक कानूनो भुगतान है जोकि एक देश के निवासी सरकार को अदा करते हैं ताकि सरकार संयुक्त उद्देश्यों की पूर्ति कर सके।

प्रश्न 7.
कर आय को परिभाषित करो।
उत्तर-
कर आय- कर आय एक अनिवार्य भुगतान होता है, जोकि एक देश के लोग सरकार को अदा करते हैं।

प्रश्न 8.
गैर कर आप से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गैर कर आय-और-कर आय अनिवार्य भुगतान नहीं है। यह आय लोगों को वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान करके प्राप्त की जाती है। गैर-कर आय तथा लाभ का सीधा सम्बन्ध होता है, जैसे कि ब्याज द्वारा आय, लाभ तथा लाभांश।

प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जोकि बदली नहीं किया जा सकता। जितने मनुष्यों पर कर . लगाया जाता है, उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 10.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष कर-अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जिसका भार बदली किया जा सकता है, जैसे कि बिक्री कर। यह कर दुकानदारों पर लगता है, परन्तु इसका भार ग्राहकों को सहन करना पड़ता है।

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प्रश्न 11.
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर की दो-दो उदाहरणे दीजिए।
उत्तर-
(i) प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर जिन मनुष्यों पर लगता है, उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है, जैसे कि

  • आय कर
  • निगम कर।

(ii) अप्रत्यक्ष कर-यह कर वस्तुओं तथा सेवाओं पर लगता है तथा इस कर का भार बदली किया जा सकता है जैसे कि

  • बिक्री कर
  • उत्पादन कर।

प्रश्न 12.
प्रगतिशील कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रगतिशील कर वह कर है जिसमें आय बढ़ने के साथ कर की दर बढ़ जाती है।

प्रश्न 13.
प्रतिगामी कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रतिगामी कर वह कर है जिनमें आय बढ़ने के साथ कर की दर कम हो जाती है।

प्रश्न 14.
आनुपातिक कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आनुपातिक कर वह कर है जिसमें आय बढ़ने से कर की दर समान रहती है।

प्रश्न 15.
कर, पूंजी प्राप्ति क्यों नहीं है ?
उत्तर-
कर इसलिए पूंजी प्राप्ति नहीं है क्योंकि इससे न तो सरकार की देनदारी में वृद्धि होती है तथा न ही सरकार के भण्डार में कमी होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 16.
ऋण की वापसी को पूंजी प्राप्ति क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति से अभिप्राय वह प्राप्तियां हैं जोकि देनदारी में वृद्धि करती हैं अथवा परिसम्पत्तियों में कमी करती हैं।

प्रश्न 17.
पूंजी प्राप्तियों में कौन-सी मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्तियों में मुख्य तौर पर-

  1. सरकार द्वारा प्राप्त किए गए उधार
  2. सार्वजनिक उद्यमों अथवा परिसम्पत्तियों के विनिवेश द्वारा आय
  3. सरकार द्वारा जो ऋण दिया गया था, उस ऋण की वापसी इत्यादि पूंजी प्राप्तियां हैं।

प्रश्न 18.
उधार को पूंजी प्राप्तियां क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति वे प्राप्तियां होती हैं जोकि

  • सरकार की देनदारी में वृद्धि करती हैं
  • इनसे सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी होती है। इसलिए उधार को पूंजी प्राप्ति कहा जाता है।

प्रश्न 19.
सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
सार्वजनिक व्यय को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
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प्रश्न 20.
राजस्व व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजस्व व्यय-राजस्व व्यय वह व्यय है जो सरकार की देनदारियों में कमी नहीं करते तथा न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं, जैसे कि ब्याज का भुगतान तथा आर्थिक सहायता कानून तथा व्यवस्था पर व्यय इत्यादि।

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प्रश्न 21.
पूंजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजीगत व्यय-पूंजीगत व्यय वह व्यय है, जो सरकार की देनदारियों में कमी करते हैं तथा सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं, जैसे कि सरकारी भवनों का निर्माण अथवा ऋण की वापसी, सड़कें तथा डैमों का निर्माण।

प्रश्न 22.
नियोजन व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजन व्यय-देश द्वारा तैयार की गई वार्षिक योजना अनुसार जो व्यय किया जाता है, उसको योजना व्यय कहा जाता है।

प्रश्न 23.
गैर-नियोजन व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गैर-नियोजन व्यय-सरकार द्वारा तैयार की गई वार्षिक योजना के बिना सरकार द्वारा जो अन्य व्यय किया जाता है उसको गैर-नियोजन व्यय कहा जाता है।

प्रश्न 24.
ब्याज के भुगतान को राजस्व व्यय क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
ब्याज के भुगतान को राजस्व व्यय कहा जाता है, क्योंकि इससे ब्याज देने वाले की देनदारी में कमी नहीं होती, क्योंकि मूलधन का भार उस पर रहता है।

प्रश्न 25.
सबसिडी को राजस्व व्यय क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
सरकार विभिन्न उद्यमियों तथा विभिन्न वर्ग के लोगों को सबसिडी के रूप में सहायता करती है। इसको राजस्व व्यय कहा जाता है।

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प्रश्न 26.
विकासवादी व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विकासवादी व्यय वह व्यय होता है, जिसका सम्बन्ध देश के आर्थिक विकास से होता है।

प्रश्न 27.
गैर-विकासशील व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
और-विकासशील व्यय वह व्यय है जो सरकार देश में गैर-विकासशील परन्तु अनिवार्य कार्यों पर व्यय करती है।

प्रश्न 28.
बजट घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार का कुल अनुमानित व्यय सरकार की कुल वार्षिक प्राप्तियों से अधिक है तो इसको बजट का घाटा कहा जाता है।

प्रश्न 29.
राजकोषीय घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार के कुल व्यय में से यदि राजस्व प्राप्तियों तथा ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियों को बगैर उधार के घटा दिया जाए तो शेष राशि को राजकोषीय घाटा कहा जाता है।
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के) |
अथवा
राजकोषीय घाटा = उधार तथा अन्य देनदारियां

प्रश्न 30.
प्राथमिक घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक घाटे से अभिप्राय है राजकोषीय घाटे में से यदि ब्याज भुगतान को घटा दिया जाए तो शेष राशि को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान|

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प्रश्न 31.
राजस्व घाटे तथा राजकोषीय घाटे में अंतर बताओ।
उत्तर

  • राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां
  • राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के)

प्रश्न 32.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सरकार का अनुमानित व्यय अधिक होता है तथा अनुमानित प्राप्तियां कम होती हैं तो ऐसे बजट को घाटे का बजट कहा जाता है।

प्रश्न 33.
सन्तुलित बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ऐसा बजट जिसमें सरकार का अनुमानित व्यय सरकार की अनुमानित आय के समान होता है तो ऐसे बजट को सन्तुलित बजट कहा जाता है।

प्रश्न 34.
वृद्धि के बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह बजट जिसमें सरकार की आय, सरकार के व्यय से अधिक होती है, ऐसे बजट को वृद्धि का बजट कहा जाता है।

प्रश्न 35.
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था दो तरह से की जाती है-

  • उधार (Borrowing)
  • नई करन्सी छापकर (Printing New Currency)।

प्रश्न 36.
जब आय में वृद्धि के कारण कर की दर में वृद्धि होती है तो इसको ………….. कहते हैं।
(क) आनुपातिक कर
(ख) प्रगतिशील कर
(ग) मूल्य वृद्धि कर
(घ) विशिष्ट कर।
उत्तर-
(ख) प्रगतिशील कर।

प्रश्न 37.
जब आय में परिवर्तन होने से कर की दल में तबदीली नहीं होती तो उस कर को ……….. कहते
(क) प्रगतिशील कर
(ख) आनुपातिक कर
(ग) विशिष्ट कर
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) आनुपातिक कर।

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प्रश्न 38.
जब वह कर जिस का भुगतान उस व्यक्ति को करना पड़ता है जिस पर यह कर लगाया जाता है तो इसको ………….. कहते हैं।
(क) अप्रत्यक्ष कर
(ख) प्रत्यक्ष कर
(ग) मूल्य वृद्धि कर
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(क) अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 39.
पूँजीगत बजट किसको कहते हैं ?
उत्तर-
सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों और पूँजीगत व्यय के विवरण को पूँजीगत बजट कहते हैं।

प्रश्न 40.
राजस्व बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजस्व बजट वह बजट है जिसमें राजस्व प्राप्तियों तथा राजस्व व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 41.
निम्नलिखित में से कौन सा प्रत्यक्ष कर है?
(a) बिक्री कर
(b) वैट
(c) आय कर
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) आय कर।

प्रश्न 42.
निम्नलिखित में से कौन सा अप्रत्यक्ष कर है?
(a) सम्पत्ति कर
(b) आबकारी कर
(c) आय कर
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) आबकारी कर।

प्रश्न 43.
जब राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है तो इस स्थिति को ………………….. कहते हैं।
(a) राजकोषीय घाटा
(b) राजस्व घाटा
(c) राजस्व व्यय
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) राजस्व घाटा।

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प्रश्न 44.
यदि आयात की कीमत निर्यात की कीमत से अधिक हो तो देश का व्यापार बाकी ……….. होता
(a) प्रतिकूल
(b) सन्तुलित
(c) दोनों
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) प्रतिकूल।

प्रश्न 45.
जब कुल व्यय कुल प्राप्तियों से अधिक हो तो इस हालत को ………. कहते हैं।
(a) राजस्व घाटा
(b) राजकोषीय घाटा
(c) बजट घाटा
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(c) बजट घाटा।

प्रश्न 46.
मूल्य वृद्धि कर (VAT) से क्या अभिप्राय है।
उत्तर–
प्रत्येक फर्म द्वारा वस्तु और सेवा की लागत से अधिक निर्धारित कीमत अर्थात् मूल्य वृद्धि पर लगाए गए कर को मूल्य वृद्धि कर कहते हैं।

प्रश्न 47.
सरकारी बजट एक निजी वर्ष में सरकार की ………. आय और व्यय का विवरण है।
उत्तर-
अनुमानित।

प्रश्न 48.
इन में से कौन सा प्रत्यक्ष कर है ?
(a) आय कर
(b) बिक्री कर
(c) वैट
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) आय कर।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बजट एक वित्तीय वर्ष दौरान सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है। भारत में सरकारी बजट फरवरी महीने के आखिरी दिन संसद् में पेश किया जाता है। यह बजट सरकार को 1 अप्रैल से 31 मार्च तक के समय की आय तथा व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 2.
बजट के कोई दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर-

  1. संसाधनों का पुनः वितरण-सरकारी बजट का मुख्य उद्देश्य संसाधनों का वितरण इस प्रकार करने से होता है ताकि आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जा सके।
  2. आय तथा धन का समान वितरण-सरकारी बजट देश में आय तथा धन का समान वितरण करने का स होता है।

प्रश्न 3.
बजट के मुख्य अंश बताओ।
अथवा
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में अन्तर बताओ।
उत्तर-
बजट के मुख्य दो अंश होते हैं –

  • राजस्व बजट- इसमें आय प्राप्तियां तथा आय व्यय को शामिल किया जाता है, जोकि सरकार को भिन्न भिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है।
  • पूंजीगत बजट-इसमें पूंजीगत प्राप्तियां तथा पूंजीगत व्यय का विवरण होता है।

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प्रश्न 4.
कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कर एक अनिवार्य भुगतान है जोकि एक देश के निवासी सरकार को अदा करते हैं ताकि सरकार संयुक्त उद्देश्यों की पूर्ति कर सके। कर देकर किसी सेवा की मांग नहीं की जा सकती। कर का भुगतान कानूनी तौर पर अनिवार्य होता है। कर न देने वाले मनुष्य अथवा संस्था को सज़ा भी हो सकती है।

प्रश्न 5.
कर तथा गैर-कर आय को परिभाषित करो।
उत्तर-

  • कर आय-कर आय एक अनिवार्य भुगतान होता है, जोकि एक देश के लोग सरकार को अदा करते हैं। कर देने तथा लाभ का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता, जैसे कि आय कर, बिक्री कर इत्यादि।
  • गैर-कर आय-गैर-कर आय अनिवार्य भुगतान नहीं है। यह आय लोगों को वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान करके प्राप्त की जाती है। गैर-कर आय तथा लाभ का सीधा सम्बन्ध होता है, जैसे कि ब्याज द्वारा आय, लाभ तथा लाभांश।

प्रश्न 6.
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  1. प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जोकि बदली नहीं किया जा सकता। जितने मनुष्यों पर कर लगाया जाता है, उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है।
  2. अप्रत्यक्ष कर–अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जिसका भार बदली किया जा सकता है, जैसे कि बिक्री कर। यह कर दुकानदारों पर लगता है, परन्तु इसका भार ग्राहकों को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 7.
कर, पूंजी प्राप्ति क्यों नहीं है ?
उत्तर-
कर इसलिए पूंजी प्राप्ति नहीं है क्योंकि इससे न तो सरकार की देनदारी में वृद्धि होती है तथा न ही सरकार के भण्डार में कमी होती है। पंजी प्राप्ति से सरकार की देनदारी अधिक होती है तथा भण्डार में कमी होती है, परन्तु कर से पूंजी प्राप्ति की दो विशेषताएं लागू नहीं होती।

प्रश्न 8.
ऋण की वापसी को पूंजी प्राप्ति क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति से अभिप्राय वह प्राप्तियां हैं जोकि देनदारी में वृद्धि करती हैं अथवा परिसम्पत्तियों में कमी करती हैं। सरकार द्वारा दिया गया ऋण, सरकार की परिसम्पत्ति होती है। जब ऋण की वापसी होती है तो सरकारी परिसम्पत्तियों में कमी होती है। इसलिए इसको पूंजी प्राप्ति कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पूंजी प्राप्तियों में कौन-सी मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्तियों में मुख्य तौर पर-

  1. सरकार द्वारा प्राप्त किए गए उधार
  2. सार्वजनिक उद्यमों अथवा परिसम्पत्तियों के विनिवेश द्वारा आय
  3. सरकार द्वारा जो ऋण दिया गया था, उस ऋण की वापसी इत्यादि पूंजी प्राप्तियां हैं। पूंजी प्राप्तियों से सरकार की देनदारी बढ़ती है अथवा सरकारी परिसम्पत्तियों में कमी होती है।

प्रश्न 10.
उधार को पूंजी प्राप्तियां क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति वे प्राप्तियां होती हैं जोकि-

  • सरकार की देनदारी में वृद्धि करती हैं
  • इनसे सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी होती है।

जब सरकार देश में से अथवा विदेशों में से उधार प्राप्त करती है तो इससे सरकार की देनदारी बढ़ जाती है क्योंकि प्राप्त किए उधार को ब्याज समेत करने की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है। इसलिए उधार को पूंजी प्राप्ति कहा जाता है।

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प्रश्न 11.
सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
सार्वजनिक व्यय को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
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प्रश्न 12.
राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय की दो-दो उदाहरणे दीजिए।
उत्तर-

  • राजस्व व्यय-राजस्व व्यय वह व्यय है जो सरकार की देनदारियों में कमी नहीं करते तथा न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं। जैसे कि ब्याज का भुगतान तथा आर्थिक सहायता कानून तथा व्यवस्था पर व्यय इत्यादि।
  • पूंजीगत व्यय-पूंजीगत व्यय वह व्यय है, जो सरकार की देनदारियों में कमी करते हैं तथा सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं। जैसे कि सरकारी भवनों का निर्माण अथवा ऋण की वापसी, सड़कें तथा डैमों का निर्माण।

प्रश्न 13.
बजट घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार वित्तीय वर्ष के लिए वार्षिक बजट का निर्माण करती है। इसमें वर्ष की अनुमानित प्राप्तियों तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है। यदि सरकार का कुल अनुमानित व्यय सरकार की कुल वार्षिक प्राप्तियों से अधिक है तो इसको बजट का घाटा कहा जाता है।

प्रश्न 14.
राजकोषीय घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार के कुल व्यय में से यदि राजस्व प्राप्तियों तथा ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियों को बगैर उधार के घटा दिया जाए तो शेष राशि को राजकोषीय घाटा कहा जाता है।
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के)
अथवा
राजकोषीय घाटा = उधार तथा अन्य देनदारियां

प्रश्न 15.
प्राथमिक घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक घाटे से अभिप्राय है राजकोषीय घाटे में से यदि ब्याज भुगतान को घटा दिया जाए तो शेष राशि को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान

प्रश्न 16.
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था दो तरह से की जाती है-

  • उधार (Borrowing)-घाटे के बजट को पूरा करने के लिए सरकार बाज़ार में जनता, व्यापारिक बैंकों अथवा केन्द्रीय बैंक से उधार लेती है।
  • नई करेन्सी छापकर (Printing New Currency)-घाटे के बजट की पूर्ति यदि उधार द्वारा न हो तो सरकार नई करेन्सी छापकर घाटे के बजट की पूर्ति करती है।

प्रश्न 17.
सरकारी व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकारी व्यय का अर्थ (Meaning of Public Expenditure)-सरकारी व्यय से अभिप्राय एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा किए गए आनुपातिक व्यय से होता है। सार्वजनिक व्यय द्वारा सरकार लोगों की आर्थिक तथा सामाजिक भलाई में वृद्धि करने का प्रयत्न करती है। इससे आर्थिक उतार-चढ़ाव पर नियन्त्रण किया जाता है। देश के आर्थिक विकास में तेजी लाने के उद्देश्य की पूर्ति की जाती है। इसलिए सरकारी व्यय राष्ट्रीय हित के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा किए गए व्यय से होता है जोकि एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा व्यय किया जाता है।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बजट के कोई चार उद्देश्य बताओ।
उत्तर-
सरकार की वार्षिक वित्तीय अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय के विवरण को बजट कहा जाता है। सरकारी बजट के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. संसाधनों का पुन:वितरण-सरकारी बजट का उद्देश्य देश के संसाधनों का वितरण इस प्रकार करने से होता है, आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण प्राप्त करना भी होता है।
  2. आय तथा धन का समान वितरण-बजट का उद्देश्य देश में आय तथा धन का समान वितरण करना होता है। इससे देश में अमीर तथा गरीब का अन्तर कम हो जाता है।
  3. आर्थिक स्थिरता-बजट का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता प्राप्त करना भी होता है। इससे मन्दीकाल तथा तेज़ीकाल की अवस्थाओं को नियन्त्रण में किया जाता है।
  4. निर्धनता तथा बेरोज़गारी को दूर करना-बजट द्वारा निर्धनता तथा बेरोजगारी को घटाने के उद्देश्य की पूर्ति भी की जाती है। इससे निर्धनता की समस्या का हल किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में क्या अन्तर होता है ?
उत्तर-
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में अन्तर –

अंतर का आधार राजस्व बजट पूंजीगत बजट
1. प्राप्तियां राजस्व बजट में राजस्व प्राप्तियों का विवरण होता है। पूंजीगत बजट में पूंजीगत प्राप्तियों का विवरण होता है।
2. व्यय राजस्व बजट में राजस्व व्यय का विवरण होता है। पूंजीगत बजट में पूंजीगत व्यय का विवरण होता है।
3. देनदारियां राजस्व प्राप्तियों से सरकार पर कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती। कर द्वारा प्राप्त आय से कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती तथा राजस्व व्यय सरकार की देनदारी को कम नहीं करते। पूंजीगत प्राप्ति से सरकार पर देनदारी उत्पन्न होती है। उधार लेने से देनदारी उत्पन्न होती है तथा पूंजीगत व्यय सरकार की देनदारी को कम करते हैं।
4. परिसम्पत्तियां राजस्व प्राप्ति से सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी नहीं होती, राजस्व व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं होता है। पूंजीगत प्राप्तियों से सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी नहीं होती, पूंजीगत व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में अन्तर –

अन्तरका आधार प्रत्यक्ष कर अप्रत्यक्ष कर
1. कर लाभ तथा कर भार प्रत्यक्ष कर जिस मनुष्य पर लगाया जाता है, कर का भार भी उसी मनुष्य को सहन करना पड़ता है, जैसे कि आयकर। अप्रत्यक्ष कर एक मनुष्य पर लगाया जाता है, कर का भार किसी अन्य मनुष्य को सहन करना पड़ता है, जैसे कि बिक्री कर।
2. कर बदली प्रत्यक्ष कर की बदली (shifting) नहीं की जा सकती। अप्रत्यक्ष कर की बदली (shifting) की जा सकती है।
3. कर की दर प्रत्यक्ष कर साधारण तौर पर प्रगतिशील होते हैं। आय में वृद्धि होने से कर की दर बढ़ती जाती है। अप्रत्यक्ष कर साधारण तौर पर आनुपातिक होते हैं। आय अधिक अथवा कम होने की स्थिति में कर की दर समान रहती है।
4. वास्तविक भार प्रत्यक्ष कर का वास्तविक भार अमीर लोगों से अधिक होता है। अप्रत्यक्ष कर का वास्तविक भार गरीब लोगों से अधिक होता है।

प्रश्न 4.
प्रगतिशील कर, आनुपातिक कर तथा प्रतिगामी कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  1. प्रगतिशील कर-प्रगतिशील कर वह कर होता है, जिसमें आय के बढ़ने से कर की दर बढ़ती जाती है। इस कर का भार गरीबों पर बहुत कम तथा अमीर लोगों पर अधिक होता है। प्रत्यक्ष कर साधारण तौर पर प्रगतिशील कर होते हैं।
  2. आनुपातिक कर-आनुपातिक कर वह कर होता है, जिसमें आय के बढ़ने अथवा घटने से कर की दर समान रहती है, जैसे कि बिक्री कर में कर की दर समान होती है। इस कर का वास्तविक भार गरीब लोगों पर अधिक होता है।
  3. प्रतिगामी कर-प्रतिगामी कर वह कर है जिसमें आय के बढ़ने से कर की दर घटती जाती है। ऐसे कर का भार अमीर लोगों पर कम तथा निर्धन लोगों पर अधिक होता है। इन करों को एक चार्ट की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।

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प्रश्न 5.
राजस्व प्राप्तियां तथा पूंजीगत प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है ? इनमें अन्तर स्पष्ट करो।
अथवा
किस आधार पर राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों के बीच सरकारी बजट में अन्तर किया जा सकता है ?
उत्तर-
1. राजस्व प्राप्तियां-राजस्व प्राप्तियां वे प्राप्तियां होती हैं, जिनसे सरकार की देनदारियाँ उत्पन्न नहीं होती तथा न ही परिसम्पत्तियों (Assets) में कमी होती है। इसके दो अंश हैं-

  • कर प्राप्तियां जैसे कि आय कर, निगम कर, बिक्री कर इत्यादि
  • गैर-कर प्राप्तियां जैसे कि ब्याज, लाभ, लाभांश तथा विदेशी सहायता इत्यादि।

2. पूंजीगत प्राप्तियां-पूंजीगत प्राप्तियां वे प्राप्तियां होती हैं, जिनसे सरकार की देनदारियां उत्पन्न होती हैं तथा परिसम्पत्तियों में कमी होती है, जैसे कि उधार (Borrowings) तथा ऋण की प्राप्ति, विनिवेश द्वारा प्राप्तियां इत्यादि। राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों में अन्तर राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों में मुख्य तौर पर यह अन्तर होता है कि राजस्व प्राप्तियों से सरकार की देनदारियां उत्पन्न नहीं होतीं। सरकार की परिसम्पत्तियों में भी कोई कमी नहीं होती। दूसरी ओर पूंजीगत प्राप्तियों से सरकार की देनदारियों में वृद्धि होती है तथा परिसम्पत्तियों में कमी हो जाती है।

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प्रश्न 6.
राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है ? इनमें अन्तर को स्पष्ट करो।
अथवा
किस आधार पर राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय के बीच सरकारी बजट में अन्तर किया जा सकता है ?
उत्तर-

  1. राजस्व व्यय-राजस्व व्यय वे व्यय होता है, जिस द्वारा न तो देनदारियों में कमी होती है तथा न ही परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है। उदाहरणस्वरूप सरकार का अनुशासन पर व्यय, कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने पर व्यय, सेना पर व्यय।
  2. पूंजीगत व्यय-पूंजीगत व्यय वह व्यय होता है, जिस द्वारा सरकार की देनदारियों में कमी होती है तथा परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है। उदाहरणस्वरूप, सड़कें, नहरें, डैम, बिजली इत्यादि का निर्माण अथवा सार्वजनिक ऋण की वापसी। राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय में अन्तर-राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय में मुख्य अन्तर यह होता है कि राजस्व व्यय द्वारा देनदारियों में कमी नहीं होती तथा न ही परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है। दूसरी ओर पूंजीगत व्यय में सरकार की देनदारियों में कमी होती है तथा परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 7.
विकासशील तथा गैर-विकासशील व्यय में अन्तर बताओ।
उत्तर-

  • विकासशील व्यय-विकासशील व्यय सरकार का वह व्यय होता है, जिस द्वारा देश का आर्थिक तथा सामाजिक विकास होता है, जैसे कि कृषि, उद्योगों, सेहत, शिक्षा, ग्रामीण विकास तथा भलाई इत्यादि पर किए गए व्यय को विकासशील व्यय कहा जाता है। विकासशील व्यय में अन्य मदें रेलें, डाकखाने, तार तथा संचार विभाग इत्यादि को भी शामिल किया जाता है।
  • गैर-विकासशील व्यय-गैर-विकासशील व्यय में सरकार द्वारा सेवाओं पर किए गए व्यय को शामिल किया जाता है, जैसे कि पुलिस, सुरक्षा, न्यायपालिका, अनुशासन, सहायता, कर एकत्रित करने के व्यय इत्यादि को शामिल किया जाता है। विकासशील तथा गैर-विकासशील व्यय में अन्तर-विकासशील तथा गैर-विकासशील व्यय में मुख्य अन्तर यह है कि विकासशील व्यय से राष्ट्रीय आय तथा उत्पादन में प्रत्यक्ष तौर पर वृद्धि होती है। इससे सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि होती है। दूसरी ओर गैर-विकासशील व्यय सरकार द्वारा साधारण सेवाएं प्रदान करने पर व्यय किया जाता है। इस व्यय से राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि प्रत्यक्ष तौर पर नहीं होती। यह केवल विकास की वृद्धि में सहायक तत्त्व होता है।

प्रश्न 8.
राजकोषीय घाटे का अर्थ तथा महत्त्व स्पष्ट करो।
उत्तर-
राजकोषीय घाटा किसी देश में कुल व्यय में से राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों (बगैर उधार के) के योग को घटाने से प्राप्त होता है।
Fiscal Deficit = Total Expenditure – (Revenue Receipts + Capital Receipts excluding Borrowings)
इसमें महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राजकोषीय घाटे में हम उधार को लेखे-जोखे में नहीं लेते जो कि पूंजीगत प्राप्तियों का हिस्सा होता है। सरकार की कुल प्राप्तियों में राजस्व प्राप्तियों तथा गैर उधार पूंजीगत प्राप्तियों को शामिल किया जाता है। गैर उधार पूंजीगत प्राप्तियों में ऋण की वापसी तथा विनिवेश से आय को जोड़ते हैं। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि
Fiscal Deficit = Borrowings Requirements of the Government
महत्त्व-राजकोषीय घाटा एक देश की सरकार की वित्तीय वर्ष में उधार आवश्यकताओं को स्पष्ट करता है। (Significance or Implications)

प्रश्न 9.
राजस्व घाटे से क्या अभिप्राय है ? राजस्व घाटे के महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
राजस्व घाटे से अभिप्राय सरकार के कुल राजस्व व्यय तथा कुल राजस्व प्राप्तियों का अन्तर होता है।
Revenue Deficit =Total Revenue Expenditure – Total Revenue Receipts
उदाहरणस्वरूप भारत सरकार के वार्षिक बजट 2005-06 में कुल राजस्व व्यय ₹ 446512 करोड़ तथा कुल राजस्व प्राप्तियां ₹ 351200

करोड़ थीं। इस प्रकार राजस्व घाटा ₹ 95312 करोड़ हैं। महत्त्व (Significance or Implications) –

  • बचतों में कमी-राजस्व घाटे सरकार की बचतों में कमी को प्रकट करता है। इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार को उधार लेना पड़ता है अथवा भण्डारों की बिक्री करनी पड़ती है।
  • मुद्रा स्फीति-सरकार द्वारा प्राप्त किया उधार उपभोग व्यय के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसलिए देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रश्न 10. योजना खर्च और गैर-योजना खर्च में अन्तर स्पष्ट करें।

उत्तर-योजना खर्च (Plan Expenditure)-यह खर्च योजना आयोग की स्वीकृति से सरकार व्यय करती है। योजना आयोग, योजना काल के लिए खर्च करने के निश्चित निर्देश जारी करता है। इसमें केन्द्र सरकार की योजनाओं का विवरण होता है, राज्य तथा केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का विवरण भी होता है।

गैर-योजना खर्च (Non Plan Expenditure)-और-योजना खर्च वह व्यय है जोकि योजना के व्यय के बिना कार्य की पूर्ति करता है गैर-योजना खर्च, योजना खर्च के बगैर शेष सभी प्रकार के खर्च होते हैं।

प्रश्न 11.
घाटे की वित्त पूर्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घाटे की वित्त पूर्ति कैसे की जाती है। इसके मुख्य ढंग इस प्रकार हैं-

  1. मुद्रा विस्तार (Monetary Expansion)-इस ढंग अनुसार सरकार घाटे (Deficit) को पूरा करने के लिए घाटे की राशि के समान नए नोट छाप लेती है। इस विधि में देश की सरकार खज़ाना बिल केन्द्रीय बैंक को देकर उसके बदले में नकद मुद्रा प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार घाटे को पूरा किया जा सकता है।
  2. जनता से उधार (Borrowing from the Public)-घाटे की वित्त पूर्ति का दूसरा महत्त्वपूर्ण ढंग सरकार लोगों से उधार प्राप्त कर लेती है। बाज़ार में सरकार लोगों को उधार देने के लिए कहती है तो लोग सरकार की प्रतिभूतियां ब्रांड इत्यादि खरीद लेते हैं। इनको बाज़ार ऋण कहा जाता है।

प्रश्न 12.
कर की परिभाषा दें। कर की विभिन्न किस्में बताएँ।
उत्तर-
कर का अर्थ-कर कानूनी तौर पर लाज़मी भुगतान है जो कि देश की सरकार द्वारा लोगों की आय अथवा जायदाद पर लगाया जाता है। यह कंपनियों के उत्पादन पर भी लगता है, परन्तु इसके बदले में लाभ प्रदान करना अनिवार्य नहीं होता।

कर की किस्में (Types of Taxes)
1. प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर-

  • प्रत्यक्ष कर वह कर होते हैं जो कि जिन व्यक्तियों पर लगाए जाते हैं कर का भार भी उन व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है। यह कर और व्यक्तियों अथवा संस्थाओं पर बदली नहीं किये जा सकते।
  • अप्रत्यक्ष कर वह कर हैं जो एक व्यक्ति पर लगाए जाते हैं, परन्तु उनका भार किसी और व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है।

2. प्रगतिशील, आनुपातिक और प्रतिगामी कर-

  • प्रगतिशील कर वह कर है जिनमें आय में वृद्धि से कर की दर में वृद्धि होती है।
  • आनुपातिक कर वह कर है जिन में आय में वृद्धि होने से कर की दर में कोई वृद्धि नहीं होती अथवा कर की दर सामान्य रहती है।
  • प्रतिगामी कर वह कर है जिन में आय में वृद्धि से कर की दर कम होने लगती है।

3. मूल्य वृद्धि और वज़न अनुसार कर –

  • मूल्य वृद्धि कर वह कर है जिन में वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने से, मूल्य वृद्धि की राशि पर लगाए जाते हैं।
  • वज़न अनुसार कर वह कर है जो कि वस्तुओं के नाप-तोल पर लगाए जाते हैं।

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प्रश्न 13.
राजस्व प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है? राजस्व प्राप्तियों के अंशों की व्याख्या करें।
उत्तर-
बजट प्राप्तियों का अर्थ (Meaning of Budget Receipts)-किसी वित्तीय वर्ष सरकार को प्राप्त होने वाली अनुमानित आय जोकि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, उसे बजट प्राप्तियां कहा जाता है। बजट प्राप्तियों के दो स्रोत हैं-
(1) राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)-राजस्व प्राप्तियों की दो विशेषताएं होती हैं

  • इन प्राप्तियों से सरकार की कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती।
  • इन प्राप्तियों से सरकारी भण्डारों में कोई कमी उत्पन्न नहीं होती। राजस्व प्राप्तियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

1. कर प्राप्तियां (Tax Receipts)-सरकार द्वारा लगाए गए करों द्वारा जो आय प्राप्त होती है, उसको कर प्राप्तियां कहा जाता है। कर (Tax) एक अनिवार्य भुगतान होता है जोकि एक देश के निवासी बिना किसी प्रतिफल की आशा से अदा करते हैं। कर की विशेषताएं हैं-

  • यह अनिवार्य भुगतान होता है।
  • कर तथा लाभ में कोई-सीधा सम्बन्ध नहीं होता।
  • कर लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है।
  • कर के पीछे कानून व्यवस्था होती है।
  • कर देना, व्यक्ति की निजी ज़िम्मेदारी होती है।

2. गैर कर प्राप्तियां (Non Tax Receipts) यह सरकार की वह प्राप्तियां हैं जो गैर कर साधनों से होती हैं। इन प्राप्तियों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं।

  • लाभ तथा लाभांश ।
  • फीस तथा जुर्माने।
  • विशेष कर
  • ब्याज
  • ग्रांट और तोहफे।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न माम। (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सरकारी बजट से क्या अभिप्राय है ? बजट के मुख्य उद्देश्य तथा अंश बताओ। (What is Government Budget ? Explain its main objectives and components.)
उत्तर-
सरकारी बजट का अर्थ (Meaning of Government Budget)-सरकारी बजट वार्षिक आय तथा व्यय का विवरण है जो आने वाले वर्ष के अनुमानों को प्रकट करता है। (“The budget is an annual statement of the estimated receipts and expenditures of the government over the fiscal year.”)
भारत में वार्षिक बजट 1 अप्रैल से अगले वर्ष 31 मार्च तक बनाया जाता है। बजट में पिछले वर्ष की प्राप्तियों का विवरण भी होता है, परन्तु आने वाले वर्ष में रखे गए उद्देश्यों की पूर्ति के लिए साधनों के प्रयोग सम्बन्धी नीति का निर्माण किया जाता है। इसमें आगामी वर्ष की सम्भावित आय तथा व्यय का विवरण होता है। बजट की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • सरकारी बजट सरकार की आय तथा व्यय का विवरण होता है।
  • बजट आने वाले वर्ष के अनुमानों से सम्बन्धित होता है।
  • सरकार कुछ उद्देश्यों को सामने रखकर बजट का निर्माण करती है।
  • अनुमानित आय तथा व्यय को प्रकट किया जाता है।
  • सरकारी बजट को सरकार की स्वीकृति लेनी अनिवार्य होती है। .

सरकारी बजट के उद्देश्य (Objectives of Government Budget)-सरकार बजट का निर्माण करते समय कुछ उद्देश्यों को ध्यान में रखती है। बजट के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखितानुसार हैं-
1. संसाधनों का पुनःवितरण (Reallocation of Resources)-सरकारी बजट का उद्देश्य देश के संसाधनों का वितरण इस प्रकार करने से होता है, जिससे आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण भी प्राप्त किया जा सके। इसलिए आर्थिक विकास के उद्देश्य को पूरा करने के साथ-साथ सरकार यह भी ध्यान रखती है कि लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि हो।

2. आय तथा धन का समान वितरण (Equal distribution of Income and Wealth)-बजट द्वारा सरकार, आय तथा धन का समान वितरण का प्रयत्न करती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अमीर लोगों पर अधिक कर लगाए जाते हैं तथा गरीब लोगों को सहायता प्रदान करके उनकी आय में वृद्धि करने के प्रयत्न लिए जाते हैं। भारत में आर्थिक नियोजन का यह मुख्य उद्देश्य रहा है।

3. आर्थिक स्थिरता (Economic Stability)-सरकार व्यापारिक चक्रों (Trade Cycles) को नियन्त्रण करने का प्रयत्न करती है। अर्थव्यवस्था में मन्दीकाल तथा तेज़ीकाल की अवस्थाओं पर नियन्त्रण करके असन्तुलन स्थापित करने के प्रयत्न किए जाते हैं। बजट में करों की दर में परिवर्तन इस प्रकार किया जाता है, जिससे देश में आर्थिक स्थिरता स्थापित की जा सके।

4.निर्धनता तथा बेरोज़गारी को दूर करना (Eradication of Poverty and Unemployment)-भारत जैसे देशों में निर्धनता तथा बेरोज़गारी नज़र आती है। इसका मुख्य कारण देश में तीव्रता से बढ़ रही जनसंख्या होती है। बजट में ऐसी नीतियों का निर्माण किया जाता है, जिससे निर्धनता तथा बेरोज़गारी की समस्या का हल किया जा सके।

5. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबन्ध (Management of Public Entreprises) सरकार ऐसे उद्यम आरम्भ करती है, जिनमें प्राकृतिक एकाधिकारी (Natural Monopoly) हो। प्राकृतिक एकाधिकारी में बड़े पैमाने पर कार्य किया जाता है। इससे पैमाने की बचतें प्राप्त होती हैं। इससे उत्पादन लागत कम आती है। इसीलिए सरकार रेलवे, बिजली, डाकखाने इत्यादि उद्योगों में निवेश करके लोगों की सामाजिक भलाई में वृद्धि करने का प्रयत्न भी करती है।

बजट का प्रभाव (Impact of the Budget)-अर्थव्यवस्था के तीन स्तरों (Levels) पर बजट का प्रभाव पड़ता है-
1. कुल राजकोषीय अनुशासन (Aggregate Fiscal Discipline)—सरकार को व्यय का विवरण तैयार करते समय अपनी आय को ध्यान में रखना चाहिए। यदि सरकार अपनी आय से अधिक व्यय करती है तो घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाएगी। इससे देश में कीमत स्तर तीव्रता से बढ़ जाता है।

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2. संसाधनों का वितरण (Allocation of Resources)-सामाजिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर __संसाधनों का वितरण करना चाहिए। बजट का प्रभाव संसाधनों के वितरण के स्तर पर भी डालता है।

3. सरकारी सेवाएँ (Government Services)-सरकारी सेवाओं द्वारा भी अर्थव्यवस्था को बजट प्रभावित करता है। सरकार द्वारा प्रभावी तथा कुशल नीति का निर्माण करना चाहिए, जिस द्वारा सरकारी सेवाएं अच्छी तरह प्रदान की जा सकें तथा अर्थव्यवस्था में सामाजिक भलाई में वृद्धि हो। इस उद्देश्य के लिए सड़कें, नहरें, शिक्षा, सेहत सुविधाएं अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती हैं।

बजट के अंश (Components of the Budget) बजट को दो भागों में बांटा जा सकता है –
1. राजस्व बजट (Revenue Budget)
2. पूंजीगत बजट (Capital Budget)

1. राजस्व बजट (Revenue Budget)-राजस्व जट में प्राप्तियों तथा आय, व्यय का विवरण होता है। यह आय सरकार को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है तथा उस आय के व्यय का विवरण होता है।
2. पूंजीगत बजट (Capital Budget)-पूंजीगत बजट में पूंजीगत प्राप्तियों तथा दीर्घकाल के व्यय का विवरण होता है। इस प्रकार बजट की रचना के दो अंश होते हैं
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प्रश्न 2.
बजट प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है ? सरकारी प्राप्तियों को आय प्राप्तियों तथा पूँजीगत प्राप्तियों में किस आधार तथा वर्गों में वितरण किया जाता है ?
(What do you understand Budget Receipts ? What is the basis of classifying Government Receipts into Revenue Receipts and Capital Receipts ?)
अथवा
आय प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है ? आय प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों के अंश बताओ।
(What are Revenue Receipts and Capital Receipts ? Explain the components of Revenue Receipts and Capital Receipts.)
उत्तर-
बजट प्राप्तियों का अर्थ (Meaning of Budget Receipts)-किसी वित्तीय वर्ष सरकार को प्राप्त होने वाली अनुमानित आय जोकि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, उसे बजट प्राप्तियां कहा जाता है। बजट प्राप्तियां दो प्रकार की होती हैं-
1. राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)
2. पूंजीगत प्राप्तियां (Capital Receipts)
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राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)-राजस्व प्राप्तियों की दो विशेषताएं होती हैं

  • इन प्राप्तियों से सरकार की कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती।
  • इन प्राप्तियों से सरकारी भण्डारों में कोई कमी उत्पन्न नहीं होती।

राजस्व प्राप्तियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
1. कर प्राप्तियां (Tax Receipts)—सरकार द्वारा लगाए गए करों द्वारा जो आय प्राप्त होती है, उसको कर प्राप्तियां कहा जाता है। कर (Tax) एक अनिवार्य भुगतान होता है जोकि एक देश के निवासी बिना किसी प्रतिफल की आशा से अदा करते हैं।

कर की विशेषताएं हैं –

  • यह अनिवार्य भुगतान होता है।
  • कर तथा लाभ में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता।
  • कर लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है।
  • कर के पीछे कानूनी व्यवस्था होती है।
  • कर देना, व्यक्ति की निजी ज़िम्मेदारी होती है।

कर की किस्में (Types of Taxes)
(a) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर (Direct and Indirect Taxes)

  • प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह कर है जोकि जिन मनुष्यों पर लगाए जाते हैं, कर का भार भी उन मनुष्यों को ही सहन करना पड़ता है जैसे कि आय कर, जायदाद कर इत्यादि।
  • अप्रत्यक्ष कर-अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो लगाए तो एक मनुष्य पर जाते हैं, परन्तु इनका भार पूर्ण अथवा आंशिक तौर पर दूसरे मनुष्यों पर पाया जा सकता है।

(b) प्रगतिशील, आनुपातिक तथा प्रतिगामी कर (Progressive, Proportional and Regressive Tax)

  • प्रगतिशील कर-प्रगतिशील कर वह कर है, जिनमें आय के बढ़ने से कर की दर बढ़ती जाती है, जैसे कि एक लाख रुपये आय वाले को 5% तथा 2 लाख आय वाले व्यक्ति को 10% कर देना पड़े तो यह प्रगतिशील कर है।
  • आनुपातिक कर में आय के बढ़ने से कर की दर समान रहती है।
  • प्रतिगामी कर में आय के बढ़ने से कर की दर घटती जाती है।

(c) मूल्य वृद्धि तथा वज़न अनुसार कर (Advalorem and Specific Tax)

  • मूल्य वृद्धि कर (Value Added Tax)—वह कर है जोकि वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने से मूल्य वृद्धि की राशि पर लगाए जाते हैं।
  • वज़न अनुसार कर-वस्तुओं के नाप-तोल पर लगते हैं।

2. गैर-कर राजस्व प्राप्तियां (Non Tax Revenue Receipts)-यह सरकार की आय की वे प्राप्तियां हैं जोकि गैर-कर साधनों से होती हैं, इन प्राप्तियों के मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं-
(i) लाभ तथा लाभांश (Profits and Dividends) सरकार ने बहुत से उद्यम जैसे कि बैंक, बीमा कम्पनियां, रेलवे, बिजली पूर्ति इत्यादि स्थापित किए हैं। इनको सार्वजनिक उद्यम कहा जाता है। सरकार को उद्यमों से लाभ प्राप्त होता है। सरकार द्वारा किए गए निवेश पर लाभांश भी मिलता है।

(ii) फ़ीस तथा जुर्माने (Fees and Fines)-सरकार द्वारा प्रदान की सेवाओं के बदले में फ़ीस प्राप्त की जाती है, जैसे कि स्कूलों, अस्पतालों, कचहरी इत्यादि में सुविधा देने के लिए सरकार फ़ीस प्राप्त करती है। कानून भंग करने वाले लोगों पर जुर्माने लगाए जाते हैं, जोकि सरकार की आय का स्रोत होता है।

(iii) विशेष कर (Special Assessment)—सरकार द्वारा सड़कों, पार्क इत्यादि सुविधाएं प्रदान करने से इस क्षेत्र की जायदाद का मूल्य बढ़ जाता है तो सरकार विकास व्यय कर के एवज़ में विशेष कर लगाती है तो इसको विशेष कर कहा जाता है, जोकि सरकार की आय का स्रोत होती है।

(iv) ब्याज (Interest)-सरकार द्वारा दिए ऋण का ब्याज सरकार की आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है।

(v) ग्रान्ट तथा उपहार (Grants and Gifts) सरकार विदेशों से सहायता ग्रान्ट तथा उपहार प्राप्त करती है जोकि गैर कर राजस्व प्राप्ति होती है।

3. पूंजी प्राप्तियां (Capital Receipts)-पूँजी प्राप्तियों से

(i) सरकार की देनदारी उत्पन्न होती है।
(ii) सरकार की परिसम्पत्तियों (भण्डारों) में कमी होती है।

प्रमुख पूंजी प्राप्तियां इस प्रकार हैं –

  • छोटी बचतें (Small Savings)-सरकार डाकखानों में छोटी बचतें, G.P.F., N.S.S., किसान विकास पत्र इत्यादि के रूप में पंजी प्राप्त करती है।
  • उधार (Borrowings)-सरकार देश से उधार लेती है तथा विदेशी सरकारों अथवा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं I.M.F., विश्व बैंक इत्यादि से उधार प्राप्त करती है। ऐसा राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए किया जाता है।
  • ऋण की वसूली (Recovery of Loans) केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों, सार्वजनिक उद्यमों तथा विदेशों को दिए गए ऋण की वसूली द्वारा भी पूँजी प्राप्ति का स्रोत है।
  • विनिवेश (Dis-Investment) सार्वजनिक उद्यम जिनमें सरकार को हानि होती है उनके बिक्री द्वारा प्राप्त होने वाली आय को विनिवेश कहा जाता है। यह भी पूंजी प्राप्ति का एक स्रोत है।

प्रश्न 3.
सरकारी व्यय से क्या अभिप्राय है ? सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण स्पष्ट करो। (What is meant by Government Expenditure. Explain its Classification.)
अथवा
राजस्व तथा पूंजीगत व्यय, योजना तथा गैर-योजना व्यय, विकास तथा गैर-विकास व्यय में अन्तर स्पष्ट करो। (Distinguish between Revenue and Capital Expenditure, Plan and Non-Plan Expenditure, Development and non-development expenditure.)
उत्तर-
सरकारी व्यय का अर्थ (Meaning of Public Expenditure)-सरकारी व्यय से अभिप्राय एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा किए गए आनुपातिक व्यय से होता है। सार्वजनिक व्यय द्वारा सरकार लोगों की आर्थिक तथा सामाजिक भलाई में वृद्धि करने का प्रयत्न करती है। इससे आर्थिक उतार-चढ़ाव पर नियन्त्रण किया जाता है। देश के आर्थिक विकास में तेजी लाने के उद्देश्य की पूर्ति की जाती है। इसलिए सरकारी व्यय राष्ट्रीय हित के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा किए गए व्यय से होता है जो कि एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा व्यय किया जाता है।

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सरकारी व्यय का वर्गीकरण (Classification of Government Expenditure)-सरकारी व्यय का वर्गीकरण तीन भागों में किया जाता है
1. राजस्व तथा पूंजीगत व्यय (Revenue and Capital Expenditure)
2. योजना तथा गैर-योजना व्यय (Plan and Non-plan Expenditure)
3. विकासवादी तथा गैर विकासवादी व्यय (Development and Non-development Expenditure)

1. राजस्व तथा पूंजीगत व्यय (Revenue and Capital Expenditure)
(a) राजस्व व्यय (Revenue Expenditure)-राजस्व व्यय की दो विशेषताएं होती हैं

  • यह व्यय सरकार के लिए परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं करते
  • इस प्रकार के व्यय से सरकार की देनदारी में कमी नहीं होती। राजस्व व्यय सरकार की उपभोगी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। यह व्यय सरकारी विभागों के संचालन, कर्मचारियों के वेतन, पैंशन इत्यादि पर व्यय किया जाता है

(b) पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure)-पूंजीगत व्यय से

  • सरकार परिसम्पत्तियों का निर्माण करती है।
  • यह सरकार की देनदारी में कमी करते हैं। ऐसे व्यय से अर्थव्यवस्था के भण्डार में वृद्धि होती है तथा सरकार की देनदारियों में कमी करता है। सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष में किए गए व्यय जिसके द्वारा नहरें, सड़कें, रेलों इत्यादि का निर्माण होता है, उनको पूंजीगत व्यय कहा जाता है।

2. योजना तथा गैर-योजना व्यय (Plan and Non-Plan Expenditure)-भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ चलाई जाती हैं। ग्यारहवीं योजना 1 अप्रैल, 2007 से आरम्भ होकर 31 मार्च, 2012 तक चलीं। अब बारहवीं योजना चल रही है जो 31 मार्च, 2017 को पूरी होगी। प्रत्येक वर्ष योजना का निर्माण करते समय कुछ व्यय का अनुमान लगाया जाता है, जबकि कुछ व्यय गैर-नियोजित होता है।

(a) योजना व्यय (Plan Expenditure)-योजना का निर्माण करते समय रखे गए उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक वर्ष में सरकार द्वारा जो व्यय बजट में निर्धारित किया जाता है, उसको योजना व्यय कहा जाता है। वर्तमान नियोजन अधीन विकासवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जो व्यय सम्बन्धी सुझाव पेश किए जाते हैं, उनको योजना व्यय कहा जाता है। इसमें उपभोग तथा निवेश सम्बन्धी व्यय शामिल होते हैं, जिनको विभिन्न क्षेत्रों, कृषि, उद्योग, यातायात इत्यादि का विकास किया जाता है।

(b) गैर-योजना व्यय (Non-Plan Expenditure)-और-योजना व्यय वह व्यय है, जोकि योजना में व्यय के बिना अन्य कार्य की पूर्ति पर व्यय किया जाता है। गैर-योजना व्यय, योजना व्यय के बगैर शेष सभी व्यय होते हैं। (Non-Plan Expenditure is the expenditure other than the plan expenditure) सरकार को कुछ व्यय सुरक्षा, कानून तथा व्यवस्था अनुदान इत्यादि के रूप में करना पड़ता है, जिससे जनता को सामाजिक सुविधाएं प्रदान की जा सकें। ऐसे व्ययों को गैर-योजना व्यय कहा जाता है।

3. विकास तथा गैर-विकासशील व्यय (Development and Non-Development Expenditure)-
(a) विकास व्यय (Development Expenditure)-देश के आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए सरकार द्वारा किए गए व्यय को विकास व्यय कहा जाता है। इसमें ग्रामीण, शहरी, कृषि, उद्योगों, सड़कें, नहरें, बिजली, पानी, सेहत सुविधाएँ तथा शिक्षा इत्यादि पर किया गया व्यय शामिल होता है। इसमें रेलें, डाकखानों तथा व्यापारिक उद्यमों के विकास के लिए किया गया व्यय भी शामिल किया जाता है।

(b) गैर-विकासशील व्यय (Non-Development Expenditure)-इसमें सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली साधारण सुविधाओं पर व्यय शामिल होता है, जैसे कि प्रशासन, सेना, पुलिस, ऋण का ब्याज़, बुढ़ापा पेंशन इत्यादि पर किया जाने वाला व्यय शामिल होता है। करों को एकत्रित करने पर व्यय भी गैर
विकासशील व्यय होता है।

सार्वजनिक व्यय का महत्त्व (Importance of Public Expenditure)-वर्तमान में सार्वजनिक व्यय का महत्त्व बढ़ गया है, क्योंकि –

  • सरकार के कार्यों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। प्रत्येक राज्य कल्याण के कार्यों में भाग लेता है, इसलिए सार्वजनिक व्यय महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • आर्थिक विकास की वृद्धि के लिए भी सरकारी व्यय महत्त्वपूर्ण होता है। इससे आर्थिक विकास की दर बढ़ जाती है।
  • आर्थिक भलाई के कार्यों में वृद्धि होने के कारण सरकार सड़कें, बिजली, बुढ़ापा पेंशन, सेहत सुविधाएं प्रदान करती हैं।
  • व्यापारिक चक्रों को नियन्त्रण करने के लिए भी सरकारी व्यय का योगदान अधिक है।
  • आय तथा धन के समान वितरण के उद्देश्य की पूर्ति भी सरकारी व्यय से की जाती है।

प्रश्न 4.
सन्तुलित, वृद्धि तथा घाटे के बजट को स्पष्ट करो। इनके गुण तथा अवगुण बताओ। (Explain balanced, deficit or deficit Budgets. Give their relative merits and demerits.)
अथवा
सन्तुलित तथा असन्तुलित बजट में तुलना करो। इनके गुण तथा अवगुण बताओ। (Compare a balanced and unbalanced Budget. Give their merits and demerits.)
उत्तर-
बजट सरकार की वार्षिक अनुमानित प्राप्तियों तथा व्यय का विवरण होता है। (Budget is defined as an annual statement of the estimated receipts and expenditure of the government during a fiscal year)

बजट तीन प्रकार का होता है।

Estimates
1. Revenue = Expenditure Balanced Budget
2. Revenue > Expenditure Surplus Budget
3. Revenue < Expenditure Deficit Budget

1. सन्तुलित बजट (Balanced Budget)-एक सरकारी बजट को सन्तुलित बजट कहा जाता है यदि सरकार की राजस्व तथा पूंजीगत प्राप्तियां, सरकार के राजस्व तथा पूंजीगत व्यय के समान हों। प्राचीन काल में सन्तुलित बजट को अच्छा बजट माना जाता था। जैसे कि अर्थशास्त्र के पिता एड्म स्मिथ (Adam Smith) ने कहा था, “सरकारी व्यय, सरकारी आय से अधिक नहीं होना चाहिए” सरकार जनता के पैसे का प्रयोग अच्छी तरह नहीं कर सकती। व्यक्ति अपनी आय का प्रयोग निजी तौर पर अच्छी तरह कर सकते हैं। इसलिए परम्परागत अर्थशास्त्री सन्तुलित बजट के पक्ष में थे।

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गुण (Merits)-

  • फिजूल व्यय (Wasteful Expenditure)-सरकार द्वारा जो व्यय किया जाता है, उसमें फिजूल व्यय की सम्भावना अधिक होती है। इसलिए फिजूल व्यय से बचने के लिए सन्तुलित बजट अच्छा होता है।
  • वित्तीय स्थिरता (Financial Stability)-सन्तुलित बजट से वित्तीय स्थिरता प्राप्त होती है। वित्तीय साधनों की प्राप्ति पर अधिक ज़ोर नहीं दिया जाता। अवगुण (Demerits)

(i) व्यापारिक चक्रों के लिए अनुचित (Unsuitable for Trade cycles)-व्यापारिक चक्रों के लिए सन्तुलित बजट उचित नहीं क्योंकि मन्दीकाल तथा तेज़ीकाल का हल सन्तुलित बजट द्वारा नहीं किया जा सकता।

(ii) आर्थिक विकास के लिए अनुचित (Unsuitable for Economic Development) अल्प-विकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए सन्तुलित बजट उचित नहीं होता। आर्थिक विकास के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। जब सरकार की प्राप्तियां सरकार के अनुमानित व्यय से अधिक अथवा कम होती हैं तो इस स्थिति को असन्तुलित बजट (Unbalanced Budget) कहते हैं।

असन्तुलित बजट दो प्रकार का हो सकता है
(i) बचत का बजट (Surplus Budget) तथा
(ii) घाटे का बजट (Deficit Budget)

2. बचत का बजट (Surplus Budget)-बचत का बजट वह बजट होता है, जिसमें सरकार की अनुमानित आय सरकार के अनुमानित व्यय से अधिक होती है। इससे अभिप्राय है कि सरकार करों द्वारा अर्थव्यवस्था में से अधिक मुद्रा प्राप्त कर रही है तथा सरकार व्यय द्वारा अर्थव्यवस्था में कम मुद्रा भेज रही है। ऐसी स्थिति में लोगों की मांग कम हो जाएगी तथा मुद्रा स्फीति पर रोक लग जाती है। जब सरकार लोगों की मांग को घटाना चाहती है तो बचत का बजट बनाया जाता है।

गुण (Merits)

  • मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Control over Inflation)-यदि देश में कीमत स्तर में तीव्रता से वृद्धि होती है तो बचत के बजट द्वारा मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।
  • मांग में कमी (Decrease in Demand)-जब देश में मुद्रा स्फीति का कारण मांग में वृद्धि होता है तो मांग में कमी करने के लिए बचत का बजट लाभदायक सिद्ध होता है।

अवगुण (Demerits)

  • मन्दीकाल (Depression) यदि बचत का बजट दीर्घ समय के लिए अपनाया जाता है तो इससे अर्थव्यवस्था में मन्दीकाल की स्थिति उत्पन्न होने का डर उत्पन्न हो जाता है।
  • बेरोज़गारी (Unemployment)-मांग की कमी के कारण देश में बेरोज़गारी फैल जाती है। इसलिए बचत का बजट अन्य कई आर्थिक समस्याओं को जन्म देता है।

3. घाटे का बजट (Deficit Budget)-घाटे का बजट वह बजट है जिसमें सरकार की अनुमानित आय सरकार के अनुमानित व्यय से कम होती है अथवा हम कह सकते हैं कि सरकार का व्यय, सरकार की आय से अधिक हो जाता है तो इसी तरह के बजट को घाटे का बजट कहा जाता है। 1929-30 में अमेरिका में महामन्दी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। अमेरिका अमीर देश था। वस्तुओं की पूर्ति अधिक थी, परन्तु मांग कम होने के कारण कीमतें तथा लाभ कम हो गए। उत्पादन घटने से बेरोजगारी फैल गई तो प्रो० जे० एम० केन्ज़ ने घाटे के बजट को अपनाने की सिफारिश की थी। आजकल घाटे का बजट अल्प-विकसित देशों में भी अपनाया जाता है।

गुण (Merits)

  • आर्थिक विकास (Economic Growth) अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास की गति तीव्र करने के लिए घाटे का बजट अच्छा होता है।
  • आर्थिक भलाई (Economic Welfare)-सरकार लोगों की आर्थिक भलाई में वृद्धि करना चाहती है तो घाटे के बजट द्वारा भलाई कार्यों पर अधिक व्यय किया जा सकता है।

अवगुण (Demerits)-

  1. फिजूल व्यय (Wasteful Expenditure)-घाटे के बजट द्वारा सरकार द्वारा फिजूल व्यय किया जाता है, इससे देश में भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।
  2. मुद्रा स्फीति (Inflation)-घाटे के बजट द्वारा देश में कीमतों का स्तर तीव्रता से बढ़ने लगता है। कीमतों की वृद्धि से आर्थिक तथा राजनीतिक संकट उत्पन्न होता है।

प्रश्न 5.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है ? घाटे के बजट की किस्में बताओ। इनका माप कैसे किया जाता है ?
(What is meant by Budget Deficit? Explain the types of Budget deficit. How can these be measured ?)
अथवा
राजस्व घाटे, राजकोषीय घाटे तथा प्राथमिक घाटे से क्या अभिप्राय है ? इसके माप को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
(What is meant by Revenue Deficit, Fiscal Deficit and Primary Deficit ? Explain the measurement of these deficits with the help of an example.)
उत्तर–
बजट घाटे से सम्बन्धित चार धारणाएं हैं-

  1. बजट घाटा
  2. राजस्व घाटा
  3. राजकोषीय घाटा
  4. प्राथमिक घाटा।

इनकी व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है-

1. बजट घाटा (Budget Deficit)-जब सरकार का कुल व्यय अधिक होता है तथा कुल प्राप्तियां कम होती हैं तो इस प्रकार के बजट को घाटे का बजट कहा जाता है। इसमें एक ओर सरकार के कुल व्यय में से राजस्व प्राप्तियां तथा पूंजीगत प्राप्तियों को घटा दिया जाता है तो इनके अन्तर को बजट घाटा कहा जाता है। बजट घाटा कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय) (-) कुल प्राप्तियां (राजस्व प्राप्तियां + पूंजी प्राप्तियां) इसलिए बजट घाटा सरकार की कुल व्यय तथा कुल प्राप्तियों का अंतर होता है। (Budget deficit is the excess of government expenditures over the receipts) बजट घाटे को भारत सरकार के 2003-04 के बजट अनुमानों के आंकड़ों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
Budget Deficit of Centre, State & Union territory. Govt’s as per 2004-05
Budgetary Estimates

No. Item ₹ (in crores)
1. Total outlay (Expenditure) 902287
2. Current Revenue 655618
3.Gap (1-2) 246669
4. Net Capital Receipts 241587
5. Overall Budget Deficit (3-4) 5082

Source: Economic Survey 2005-06

भारत सरकार के बजट 2004-05 अनुसार बजट घाटा ₹ 5082 करोड़ था। कुल व्यय में से कुल प्राप्तियां घटाने से बजट घाटा प्राप्त होता है। कुल प्राप्तियों में चालू आय तथा शुद्ध पूंजी प्राप्तियां शामिल की जाती हैं।

2. राजस्व घाटा (Revenue Deficit)-राजस्व घाटे का सम्बन्ध सरकार के अधिक राजस्व व्यय तथा राजस्व प्राप्तियों के अन्तर से होता है। (The revenue deficit is the excess of government’s revenue expenditure over revenue receipts.) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां (Revenue Deficit = Revenue Expenditure – Revenue Receipts) जब किसी देश में राजस्व घाटा होता है तो इसकी पूर्ति पूंजी प्राप्तियों के रूप में उधार लेकर की जाती है जब उधार इस घाटे को पूरा किया जाता है तो सरकार की देनदारी बढ़ जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

महत्त्व अथवा निहित तत्त्व (Importance or Implications)-

  1. मुद्रा स्फीति (Inflation)-राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए उधार प्राप्त किया जाता है। इसलिए देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  2. बचतों में कमी (Dis-savings)-सरकार राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए भण्डारों की तथा परिसम्पत्तियों की बिक्री करती है। इससे भण्डारों की कमी हो जाती है।
  3. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)-राजकोषीय घाटे का अर्थ सरकार के राजस्व तथा पूंजीगत व्यय तथा उधार को छोड़कर राजस्व तथा पूंजीगत प्राप्तियों से होता है। (Fiscal deficit is the excess of total expenditure over the seem of revenue receipts and capital receipts excluding borrowings during a year)

जब सरकार का कुल व्यय कहते हैं तो इसमें राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय शामिल होता है तथा कुल प्राप्तियों में राजस्व प्राप्तियां + पूंजीगत प्राप्ति होती है, पर उधार को छोड़ दिया जाता है।
Fiscal deficit = Total Budget Expenditure – Total Budget Receipts other than borrowings
राजकोषीय घाटा = कुल बजट व्यय – उधार के बिना कुल बजट प्राप्तियाँ उधार पूंजीगत प्राप्तियों का हिस्सा होता है, परन्तु राजकोषीय घाटे में हम राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-उधार पूंजीगत प्राप्तियों को शामिल करते हैं।

महत्त्व अथवा निहित तत्त्व (Importance or Implications) –

  1. मुद्रा स्फीति (Inflation) राजकोषीय घाटे का अधिक होना मुद्रा स्फीति का सूचक होता है।
  2. ऋण में अधिक भार (More Burden of Debt)-ऋण तथा ऋण का ब्याज अधिक हो जाता है। इसलिए राजकोषीय घाटे से देश की देनदारी बढ़ जाती है।
  3. विदेशी निर्भरता (Foreign Dependence)-राजकोषीय घाटा अधिक होने से विदेशी ऋण का भार बढ़ जाता है। इसलिए विदेशी निर्भरता बढ़ जाती है।
  4. प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)—प्राथमिक घाटा, राजकोषीय घाटे तथा ब्याज भुगतान का अन्तर होता है।

प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान Primary Deficit = Fiscal Deficit – Interest Payments
महत्त्व अथवा छिपे तत्त्व (Importance or Implications) राजकोषीय घाटे में सरकार की उधार आवश्यकताओं तथा ब्याज भुगतान की जानकारी प्राप्त होती है, परन्तु प्राथमिक घाटे में सरकार को व्यय पूरा करने के लिए कितना उधार अनिवार्य है, इसकी जानकारी प्राप्त होती है, पर ब्याज भुगतान को इसमें छोड़ दिया जाता है।

राजस्व घाटे, राजकोषीय घाटे तथा प्राथमिक घाटे का उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण
भारत सरकार का 2005-06 (बजट अनुसार) प्राप्तियां तथा व्यय

₹ करोड़
1. राजस्व प्राप्तियां = 351200
2. राजस्व व्यय = 446512
3. राजस्व घाटा (2-1) = 95312
4. पूंजीगत प्राप्तियां = 163144
5. पूंजीगत व्यय = 67832
6. कुल व्यय (2+5) = 514344
7. ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियां = 12000
8. राजकोषीय घाटा (6-7-1) = 151144
9. ब्याज भुगतान = 133945
10. प्राथमिक घाटा (8-9) = 17199

Source : Economic Survey 2005-06
पीछे दी सूचना अनुसार

  1. राजस्व घाटा = राजस्व व्यय-राजस्व प्राप्तियां = 351200 – 44612 = ₹ 95312 करोड़
  2. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियां – राजस्व प्राप्तियां = 514344 – 12000 – 351200 = ₹ 151144 करोड़
  3. प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान = 151144 – 133945 = ₹ 17199 करोड़

V. संरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों के अनुसार –
बजट घाटे का माप करो।

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 50,000
(ii) कुल प्राप्तियां 48,000

उत्तर-
बजट घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां
= 50000 – 48000 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर बजट घाटे का माप करो-

मदें ₹ करोड़
(i) राजस्व प्राप्तियाँ 80,000
(ii) पूंजीगत प्राप्तियां 45,000
(iii) राजस्व व्यय 10,000
(iv) पूंजीगत व्यय 40,000

उत्तर-
बजट घाटा = (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय)- (राजस्व प्राप्तियां + पूंजीगत प्राप्तियां)
= (10,0000 + 40,000) — (80,000 + 45000) = 1,40,000 – 1,25000
= ₹ 15,000 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर राजस्व घाटे का माप करो

मदें ₹ करोड़
(i) राजस्व प्राप्तियां 45,000
(ii) राजस्व व्यय 75,000

उत्तर-
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां
= 75000 – 45000
= ₹30.000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा राजकोषीय घाटे का माप करो –

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 50,000
(ii) कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के) 40,000

उत्तर –
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के)
= 50,000 – 40,000 = ₹ 10,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
राजकोषीय घाटा बताओ।

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 90,000
(ii) राजस्व प्राप्तियां 50,000
(iii) पूंजीगत प्राप्तियां (बगैर उधार के) 22,000

उत्तर –
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – राजस्व प्राप्तियां – पूंजीगत प्राप्तियां (बगैर उधार के)
= 90,000 – 50000 = 22,000
= ₹ 18,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 6.
राजकोषीय घाटा ज्ञात करो –

मदें ₹ करोड़
(i) उधार तथा अन्य प्राप्तियां 151144
(ii) ब्याज भुगतान 133945
(iii) ऋण वसूली 12000

उत्तर-
राजकोषीय घाटा = उधार तथा अन्य प्राप्तियाँ
= ₹ 151144 करोड़ उत्तर

प्रश्न 7.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करोमदें

मदें ₹ करोड़
(i) राजकोषीय घाटा 10,000
(ii) ब्याज भुगतान 4.000

उत्तर –
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान = 10,000 – 4000 = ₹ 6,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करें –

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 90,000
(ii) कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के) 70,000
(iii) सरकार द्वारा व्याज का भुगतान 10,000

उत्तर-
प्राथमिक घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ (बगैर व्याज के) – सरकार द्वारा व्याज का भुगतान = 90,000 – 70,000 – 10,000 = ₹ 10,000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
सरकार द्वारा ब्याज भुगतान ज्ञात करें –

मदें ₹ करोड़
(i) राजकोषीय घाटा 50,000
(ii) प्राथमिक घाटा 41,000

उत्तर-
सरकार द्वारा ब्याज का भुगतान  = राजकोषीय घाटा (-) प्राथमिक घाटा।
= 50,000 – 41,000 = ₹ 9,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
सरकार के बजट में प्राथमिक घाटा ₹ 4400 करोड़ रुपए है ब्याज भुगतान पर खर्च ₹ 400 करोड़ है, राजकोषीय घाटा ज्ञात करें-
उत्तर-
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 4400 + 400 = ₹ 4800 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class History Map Questions

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Map Questions Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 12th Class History Map Questions

ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles of Guru Gobind Singh Ji:)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਪੂਰਵ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਅਤੇ ਉੱਤਰ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four places of battles of the Pre-Khalsa and Post-Khalsa period of Guru Gobind Singh.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਿਕ | ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four important places of Guru Gobind Singh Ji’s battles.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the battles as shown in the map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four important places where the battles of Guru Gobind Singh Ji were fought.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ-
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of Guru Gobind Singh Ji’s battles.
(b) Explain in about 20-25 words each the places given in the map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of the battles of Guru Gobind Singh Ji.
(b) Explain these places in about 20-25 words on each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict four places of the battles of Sri Guru Gobind Singh Ji.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the places of the battles shown in the map.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਲੜਨਾ ਪਿਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਪੁਰਵ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

I. ਪੂਰਵ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles of Pre-Khalsa Period)

1. ਭੰਗਾਣੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 1688 ਈ. (Battle of Bhangani 1688 A.D.) – ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਕਹਿਲੂਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਭੀਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਸ੍ਰੀਨਗਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਫ਼ਤਿਹ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਇੱਕ ਗਠਜੋੜ ਤਿਆਰ ਕਰ ਲਿਆ । 22 ਸਤੰਬਰ, 1688 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ ਭੰਗਾਣੀ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਢੋਰਾ ਦੇ ਪੀਰ ਬੁੱਧੂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਮੇਤ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਜੋਸ਼ ਅੱਗੇ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜੇ ਨਾ ਟਿਕ ਸਕੇ । ਉਹ ਮੈਦਾਨ ਛੱਡ ਕੇ ਭੱਜਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ।

2. ਨਾਦੌਣ ਦੀ ਲੜਾਈ 1690 ਈ. (Battle of Nadaun 1690 A.D.) – ਭੰਗਾਣੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਕਰ ਲਈ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨੂੰ ਸਾਲਾਨਾ ਖਿਰਾਜ ਕਰ ਭੇਜਣਾ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਆਲਿਫ਼ ਖ਼ਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਫ਼ੌਜ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੇਜੀ ਗਈ । ਉਸ ਨੇ 20 ਮਾਰਚ, 1690 ਈ. ਨੂੰ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਭੀਮ ਚੰਦ ਦੀ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਨਾਦੌਨ ਵਿਖੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਭੀਮ ਚੰਦ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸਾਂਝੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ | ਆਲਿਫ਼ ਖ਼ਾਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਨੱਸਣਾ ਪਿਆ |
PSEB 12th Class History Map Questions 1
II. ਉੱਤਰ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles of Post-Khalsa Period)

3. ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 1701 ਈ. (First Battle of Sri Anandpur Sahib 1701 A.D.) – 1699 ਈ. ਵਿੱਚ ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਸਿਰਜਨਾ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲੱਗੇ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਇਸ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਕਹਿਰ ਦੇ ਰਾਜਾ ਭੀਮ ਚੰਦ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਖ਼ਾਲੀ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਭੀਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਾਥੀ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ 1701 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿਲੇ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਰ ਸਫਲਤਾ ਨਾ ਮਿਲਣ ਕਾਰਨ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨਾਲ ਸੰਧੀ ਕਰ ਲਈ ।

4. ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ 1704 ਈ. (Second Battle of Sri Anandpur Sahib 1704 A.D.) – ਪਹਾੜੀ ਰਾਜੇ ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਤੋਂ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦੇ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ 1704 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ‘ਤੇ ਦੁਸਰੀ ਵਾਰ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਅੰਦਰੋਂ ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਘੇਰਾ ਲੰਬਾ ਹੋ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਅੰਦਰ ਰਸਦ ਥੁੜਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਕੁਝ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚੋਂ ਭੱਜ ਨਿਕਲਣ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ 40 ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਕੇ ਚਲੇ ਗਏ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਫਲਤਾ ਨਾ ਮਿਲਦੀ ਵੇਖ ਕੇ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਚਾਲ ਚੱਲੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਝੂਠੀਆਂ ਕਸਮਾਂ ਖਾ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਇਹ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜੇਕਰ ਉਹ ਕਿਲ੍ਹਾ ਛੱਡ ਦੇਣ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇਗਾ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਕਿਲ੍ਹਾ ਛੱਡਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ।

5. ਸ਼ਾਹੀ ਟਿੱਬੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 1704 ਈ. (Battle of Shahi Tibbi 1704 A.D.) – ਜਿਵੇਂ ਹੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਖ਼ਾਲੀ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਟੁੱਟ ਪਈਆਂ । ਸਿੱਟੇ ਵੱਜੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਗਦੜ ਮਚ ਗਈ । ਸ਼ਾਹੀ ਟਿੱਬੀ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਉਧੈ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ 50 ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਅੰਤ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਪਾ ਗਏ ।

6. ਚਮਕੌਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਲੜਾਈ 1704 ਈ. (Battle of Chamkaur Sahib 1704 A.D.) – ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਆਪਣੇ 40 ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ 21 ਦਸੰਬਰ, 1704 ਈ. ਨੂੰ ਚਮਕੌਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਗੜ੍ਹੀ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੇ 22 ਦਸੰਬਰ, 1704 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾ ਲਿਆ । ਇੱਥੇ ਬੜੀ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਵੱਡੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਜੁਝਾਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਉਹ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ਕਿ ਮੁਗ਼ਲ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ । ਉਹ ਅੰਤ ਲੜਦੇ-ਲੜਦੇ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ । ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਇੱਥੋਂ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋ ਗਏ ।

7. ਖਿਦਰਾਣਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 1705 ਈ. (Battle of Khidrana 1705 A.D.) – 29 ਦਸੰਬਰ, 1705 ਈ. ਨੂੰ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੇ ਖਿਦਰਾਣਾ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਅਦੁੱਤੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ 40 ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਜੋ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਗਏ ਹਨ, ਨੇ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀਆਂ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਮਹਾਂ ਸਿੰਘ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੁਕਤੀ ਦਾ ਵਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਖਿਦਰਾਣਾ ਦਾ ਨਾਂ ਸ੍ਰੀ ਮੁਕਤਸਰ ਸਾਹਿਬ ਪੈ ਗਿਆ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਆਖਰੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਮਹਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ (Important Battles of Banda Singh Bahadur)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
(ੳ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਕਾਰਨਾਮਿਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four places of military exploits of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places of battles shown in the map.
ਜਾਂ
(ੳ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, fill places of four important battles of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places shown in the map.
ਜਾਂ
(ਉ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of the battles ‘ of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places shown in the map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of military exploits of Banda Singh Bahadur.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict the four battle places of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places of the battle shown in the map.
ਉੱਤਰ-
ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ 1709 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਤੋਂ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਲੈ ਕੇ ਨੰਦੇੜ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਲਈ ਰਵਾਨਾ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਸਬਕ ਸਿਖਾਇਆ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦਿਨੇ ਤਾਰੇ ਨਜ਼ਰ ਆ ਗਏ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ :-

1. ਸੋਨੀਪਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ (Attack on Sonepat) – ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਨਵੰਬਰ, 1709 ਈ. ਵਿੱਚ 500 ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਸੋਨੀਪਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ | ਸੋਨੀਪਤ ਦਾ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਬਿਨਾਂ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤੇ ਦਿੱਲੀ ਵੱਲ ਭੱਜ ਗਿਆ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ।

2. ਸਮਾਣਾ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Samana) – ਸਮਾਣਾ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੂੰ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਛੋਟੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਜੱਲਾਦ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਸਮਾਣਾ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਿੱਤ ਸੀ ।

3. ਕਪੂਰੀ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Kapuri) – ਕਪੂਰੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਕਦਮਉੱਦੀਨ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਕਪੂਰੀ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਕਦਮਉੱਦੀਨ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੇ ਘਾਟ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਪੂਰੀ ’ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਗਈ ।

4. ਸਢੋਰਾ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Sadhaura) – ਸਢੌਰਾ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਉਸਮਾਨ ਖ਼ਾ ਬੜਾ ਜ਼ਾਲਮ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਪੀਰ ਬੁੱਧੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਇਸ ਲਈ ਤਸੀਹੇ ਦੇ ਕੇ ਕਤਲ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੇ ਭੰਗਾਣੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਸਢੋਰਾ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਇਸ ਸਥਾਨ ਦਾ ਨਾਂ ਕਤਲਗੜੀ ਪੈ ਗਿਆ ।

5. ਸਰਹਿੰਦ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Sirhind) – ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਛੋਟੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਜ਼ੋਰਾਵਰ ਸਿੰਘ ਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕੰਧ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿੰਦਾ ਚਿਣਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ 12 ਮਈ, 1710 ਈ. ਨੂੰ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਚੱਪੜਚਿੜੀ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਵਾਧੂ ਆਹੂ ਲਾਹੇ । ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਯਮਲੋਕ ਪਹੁੰਚਾ ਕੇ ਉਸ ਦੀ ਲਾਸ਼ ਨੂੰ ਦਰੱਖ਼ਤ ਨਾਲ ਲਟਕਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ।

6. ਰਾਹੋਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Rahon) – ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਸ਼ਮਸ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ਿਹਾਦ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਤੋਂ ਸਹਾਇਤਾ ਮੰਗੀ | ਅਕਤੂਬਰ, 1710 ਈ.
PSEB 12th Class History Map Questions 2
ਵਿੱਚ ਰਾਹੋਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਅਤੇ ਸ਼ਮਸ ਖ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਸਾਰੇ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

7. ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ’ਤੇ ਹਮਲਾ Attack of Mughals on Lohgarh) – ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਹਾਦਰ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਮੁਨੀਮ ਖ਼ਾਂ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਵਿਖੇ ਅਚਾਨਕ ਘੇਰ ਲਿਆ । ਕੁਝ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚੋਂ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮੁਗ਼ਲ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ ।

8. ਗੁਰਦਾਸ ਨੰਗਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Gurdas Nangal) – ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ 1715 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਹਿਰਾਮਪੁਰ, ਬਟਾਲਾ ਤੇ ਕਲਾਨੌਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਦੁਬਾਰਾ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ‘ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਵੇਂ ਬਣੇ ਸੂਬੇਦਾਰ ਅਬਦੁਸ ਸਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਗੁਰਦਾਸ ਨੰਗਲ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਅਚਾਨਕ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੁਨੀ ਚੰਦ ਦੀ ਹਵੇਲੀ ਵਿੱਚ ਘਿਰ ਗਿਆ । ਇਹ ਘੇਰਾ 8 ਮਹੀਨਿਆਂ ਤਕ ਚਲਦਾ ਰਿਹਾ । ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਮੰਨਣੀ ਪਈ । 9 ਜੂਨ, 1716 ਈ. ਨੂੰ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ (Kingdom of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੀ ਹਰੇਕ ਲੜਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four important places of battles of Maharaja Ranjit Singh.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words on each battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਕੋਈ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places where Maharaja Ranjit Singh fought battles.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab, show four places of the battles of Maharaja Ranjit Singh.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
PSEB 12th Class History Map Questions 3
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict the four places of battles of Maharaja Ranjit Singh.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words eacg on the places of the battles shown in the map.
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੇਤੁ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ (1797-1839) ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਇਸ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਜਿੱਤਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1799 ਈ. (Conquest of Lahore 1799 A.D.) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲੀ ਜਿੱਤ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਤਿੰਨ ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰਾਂ-ਸਾਹਿਬ ਸਿੰਘ, ਮੋਹਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਚੇਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਕਾਰਨ ਇੱਥੋਂ ਦੀ ਪਰਜਾ ਬੜੀ ਦੁਖੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ 7 ਜੁਲਾਈ, 1799 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

2. ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1805 ਈ. (Conquest of Amritsar 1805 A.D.) – ਧਾਰਮਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੱਕਾ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਕੇਂਦਰ ਵੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ । ਬਣਨ ਲਈ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ । 1805 ਈ. ਨੂੰ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਕੇ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਮਾਈ ਸੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

3. ਕਸੂਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1807 ਈ. (Conquest of Kasur 1807 A.D.) – ਕਸੂਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਕੁਤਬ-ਉਦ-ਦੀਨ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਅਧੀਨਤਾ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ 1807 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਸੂਰ ’ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਕੁਤਬ-ਉਦ-ਦੀਨ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਸੂਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

4. ਕਾਂਗੜਾ ਦੀ ਜਿੱਤ 1809 ਈ. (Conquest of Kangra 1809 A.D.) – 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਾਂਗੜਾ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਸੰਸਾਰ ਚੰਦ ਕਟੋਚ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਗੋਰਖਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਹਾਇਤਾ ਮੰਗੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਦਲੇ ਉਸ ਨੇ ਕਾਂਗੜਾ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਦੇਣ ਦਾ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਗੋਰਖਿਆਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ | ਪਰ ਹੁਣ ਸੰਸਾਰ ਚੰਦ ਨੇ ਕਿਲਾ ਦੇਣ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਟਾਲ-ਮਟੋਲ ਕੀਤੀ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਅਨੁਰੋਧ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਨੇ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਕਿਲ੍ਹਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ 1818 ਈ. (Conguest of Multan 1818 A.D.) – ਮੁਲਤਾਨ ਸ਼ਹਿਰ ਵਪਾਰਿਕ ਅਤੇ ਭੁਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 7 ਵਾਰ ਹਮਲੇ ਕੀਤੇ । ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਮੁਜੱਫਰ ਖ਼ਾਂ ਹਰ ਵਾਰੀ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਨਜ਼ਰਾਨਾ ਦੇ ਕੇ ਟਾਲ ਦਿੰਦਾ ਰਿਹਾ । 1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਦੇ ਅਧੀਨ ਭੇਜੀ । ਘਮਸਾਨ ਦੇ ਯੁੱਧ ਮਗਰੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

6. ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1819 ਈ. (Conquest of Kashmir 1819 A.D.) – ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਘਾਟੀ ਆਪਣੀ ਸੁੰਦਰਤਾ ਅਤੇ ਵਪਾਰ ਕਾਰਨ ਬੜੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੀ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਜ਼ਬਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

7. ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1834 ਈ. (Conquest of Peshawar 1834 A.D.) – ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । 1823 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਵਜ਼ੀਰ ਮੁਹੰਮਦ ਆਜ਼ਿਮ ਸ਼ਾਂ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਰਾ ਕੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ (First Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four places of the First Anglo-Sikh War.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the above.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) Show any four places of First Anglo Sikh War on the given map of Punjab.
(b) Write in about 20-25 words each about the spots shown on map.
ਜਾਂ
(ੳ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab, show four places of First Anglo Sikh War.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict four places of First Anglo Sikh War.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the places of the battles shown in the map.
PSEB 12th Class History Map Questions 4
ਉੱਤਰ-
1845-46 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਯੁੱਧ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਿਆ ਗਿਆ-

1. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Mudki) – ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਤੋਂ 20 ਮੀਲ ਦੀ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਮੁਦਕੀ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਅਹਿਸਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨਾ ਕੋਈ ਸੌਖਾ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

2. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ferozeshah) – 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਵਿਖੇ ਦੁਸਰੀ ਲੜਾਈ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਜਾਂਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਪਰ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਮੁੜ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ ।

3. ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Baddowal) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤੀਜੀ ਲੜਾਈ ਲੁਧਿਆਣਾ ਤੋਂ 18 ਮੀਲ ਦੂਰ ਬੱਦੋਵਾਲ ਵਿਖੇ 21 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸਰਦਾਰ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਮਜੀਠੀਆ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਛੱਡਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ ।

4. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Aliwal) – ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਬੱਦੋਵਾਲ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ 28 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਅਲੀਵਾਲ ਵਿਖੇ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Sobraon) – ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਿਮ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਗੱਦਾਰ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਜੋ ਅੰਦਰ ਖਾਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਰਲੇ ਹੋਏ ਸਨ, ਮੌਕਾ ਵੇਖ ਕੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਨੱਸ ਗਏ । ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਉਹ ਜੌਹਰ ਦਿਖਾਏ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਆ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਤ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ (Second Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
(ਓ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਉੱਤੇ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the places of Second Anglo-Sikh War.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦੂਜੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) Show four places of Second Anglo Sikh War on the given outline map of Punjab.
(b) Write in about 20-25 words on each about the spots shown in map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab, show the four places of Second Anglo Sikh War.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers fill the places of battles of the Second Anglo Sikh War.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words on each the places of the battles shown in the map.
PSEB 12th Class History Map Questions 5
ਉੱਤਰ-
1848-49 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੂਸਰਾ ਯੁੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਯੁੱਧ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ਸੀ-

1. ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ramnagar) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਰਾਮਨਗਰ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ | ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਅਤੇ ਮਾਲੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ।

2. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Chillianwala) – ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ 132 ਸੈਨਿਕ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਦੀ ਥਾਂ ਸਰ ਚਾਰਲਸ ਨੇਪੀਅਰ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਸਰਵਉੱਚ ਕਮਾਂਡਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Multan) – ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਜਨਰਲ ਵਿਸ਼ ਅਧੀਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾਇਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਵੀ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨਾਲ ਆ ਰਲਿਆ ਸੀ । ਜਨਰਲ ਵਿਸ਼ ਨੇ ਚਲਾਕੀ ਨਾਲ ਜਾਅਲੀ ਚਿੱਠੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਵਿਚਾਲੇ ਫੁੱਟ ਪੁਆ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ । ਇਕੱਲਾ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕਿਆ ਅਤੇ ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅੱਗੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਇਸ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਮੁੜ ਵੱਧ ਗਏ ।

4. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Gujarat) – ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਆਖਰੀ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ ‘ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਗੋਲਾ-ਬਾਰੂਦ ਛੇਤੀ ਹੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ 3,000 ਤੋਂ 5,000 ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ । 10 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਜਨਰਲ ਗਿਲਬਰਟ ਅੱਗੇ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ ।

29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਨਾਲ ਉਸਾਰੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਦੁਖਮਈ ਅੰਤ ਹੋਇਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਛੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain in brief the six causes of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੁਜੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What were the causes of Second Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਛੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸਨ ? (What were the six main causes for Second Anglo-Sikh War ?) ਉੱਤਰ-
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ – ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਇੱਛਾ – ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋ ਗਈ ਸੀ, ਪਰ ਇਸ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੌਂਸਲੇ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਹੋਏ ਸਨ ।ਇਸ ਹਾਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾਵਾਂ ਵੱਲੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ‘ਤੇ ਪੂਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਹ ਇੱਛਾ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀ ।

2. ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਅਸੰਤੁਸ਼ਟ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ। ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਬਣਾਏ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੰਧੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ ਹੋਰ ਯੁੱਧ ਲੜਨਾ ਪੈਣਾ ਸੀ ।

3. ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਅਸੰਤੋਸ਼ – ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਪੈਦਲ ਤੇ 12,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਰੋਸ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ।

4. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਸਖ਼ਤ ਸਲੂਕ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਜੋ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਵਹਾਰ ਕੀਤਾ, ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਫੈਲੇ ਰੋਸ ਨੂੰ ਹੋਰ ਭੜਕਾ ਦਿੱਤਾ । ਉਹ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

5. ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੇ 20 ਅਪਰੈਲ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੂ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ਦੇ ਕਤਲਾਂ ਦੀ ਝੂਠੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਖੂਨ ਖੌਲਣ ਲੱਗਾ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

6. ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਨੀਤੀ – 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਬਣਿਆ ਸੀ ।ਉਹ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਸੀ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਭਾਲ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਹ ਮੌਕਾ ਉਸ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਨੇ ਦਿੱਤਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the revolt of Diwan Mool Raj.)
ਜਾਂ
ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸੰਬੰਧੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the revolt of Diwan Mool Raj of Multan.)
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਲਗਭਗ 13\(\frac{1}{2}\) ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਵਜੋਂ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਹ ਰਕਮ ਵਧਾ ਕੇ ਲਗਭਗ 20 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਪਰ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਦਾ ਤੀਜਾ ਹਿੱਸਾ ਉਸ ਕੋਲੋਂ ਲੈ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਗਵਰਨਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ | ਮਾਰਚ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਨਵੇਂ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਫਰੈਡਰਿਕ ਹਰੀ ਨੇ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਐਗਨਿਯੂ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ।

ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਵਿਰੋਧ ਦੇ 19 ਅਪਰੈਲ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀਆਂ ਚਾਬੀਆਂ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਪਰ 20 ਅਪਰੈਲ ਨੂੰ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਦੋਨੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦਾ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਮਲਰਾਜ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਕੀਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਸ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਉਸ ਨੂੰ ਫੈਲਣ ਦਿੱਤਾ ਤਾਂ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹਾਨਾ ਮਿਲ ਸਕੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the revolt of Chattar Singh of Hazara ?)
ਉੱਤਰ-
ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਲੜਕੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਮੰਗੀ ਹੋਈ ਸੀ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਰਿਸ਼ਤੇ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਤਾਕਤ ਵੱਧ ਜਾਣੀ ਸੀ । ਇਹ ਤਾਕਤ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪਣ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਰੋੜਾ ਅਟਕਾ ਸਕਦੀ ਸੀ : ਕੈਪਟਨ ਐਬਟ ਜਿਸ ਨੂੰ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਲਾਹਕਾਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ, ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰਨ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਤਿਆਰ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਭੜਕਾਏ ਗਏ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ 6 ਅਗਸਤ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼ਗਾਹ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਰਨਲ ਕੈਨੋਰਾ ਨੂੰ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ।

ਕਰਨਲ ਕੈਨੋਰਾ ਜੋ ਕੈਪਟਨ ਐਬਟ ਨਾਲ ਮਿਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ, ਨੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਿਸਤੌਲ ਨਾਲ ਗੋਲੀਆਂ ਚਲਾ ਕੇ ਦੋ ਸਿੱਖ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਇੱਕ ਸਿੱਖ ਸਿਪਾਹੀ ਨੇ ਅੱਗੇ ਵੱਧ ਕੇ ਆਪਣੀ ਤਲਵਾਰ ਨਾਲ ਕੈਨੋਰਾ ਦਾ ਕੰਮ ਤਮਾਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਇਸ ਘਟਨਾ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਐਬਟ ਨੂੰ ਪਹੁੰਚੀ ਤਾਂ ਉਹ ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਖ਼ੂਨ ਉਬਲ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗਾਵਤ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the battle of Chillianwala.)
ਉੱਤਰ-
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਜੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਵਧੇਰੇ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਪਹੁੰਚਣ ਦੀ ਉਡੀਕ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਇਹ ਸੂਚਨਾ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲਿਆ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਅਜਿਹਾ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਭਾਰੀ ਖ਼ਤਰਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਹਿਉਗ ਗਫ਼ ਨੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪਹੁੰਚਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਵਿਖੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਬੋਲ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਘਮਸਾਣ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਇੰਨਾ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ਕਿ ਇੰਗਲੈਂਡ ਵਿੱਚ ਵੀ ਹਾਹਾਕਾਰ ਮਚ ਗਈ ।ਇਸ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਹਾਰ ਕਾਰਨ ਸੈਨਾਪਤੀ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਦੇ ਸਨਮਾਨ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਧੱਕਾ ਲੱਗਿਆ। ਉਸ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਚਾਰਲਸ ਨੇਪੀਅਰ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਨਵਾਂ ਸੈਨਾਪਤੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਕੇ ਭਾਰਤ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਹੋਈ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? (What is the importance of the battle of Gujarat in the Second Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਆਖਰੀ ਅਤੇ ਫੈਸਲਾਕੁੰਨ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 40,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਚਤਰ ਸਿੰਘ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ। ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਲਗਭਗ 68,000 ਸੀ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਦੋਹਾਂ ਪੱਖਾਂ ਵੱਲੋਂ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਬੜੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਗੋਲਾ-ਬਾਰੂਦ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਅੰਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ।

ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਗਦੜ ਮਚ ਗਈ । ਚਤਰ ਸਿੰਘ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਰਾਵਲਪਿੰਡੀ ਵੱਲ ਦੌੜ ਗਏ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪਿੱਛਾ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ 10 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਬਾਕੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ 14 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅੱਗੇ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ? (What were the results of the Second Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਦੂਸਰੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । (Study in brief the results of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਜੀ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਲੜਾਈ ਦੇ ਕੋਈ ਛੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਲਿਖੋ । (Explain the any six effects of Second Anglo-Sikh War.) ਉੱਤਰ-
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬੜੇ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

  • ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਅੰਤ – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਨਿਕਲਿਆ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖਾਤਮਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਆਖਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।
  • ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ – ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਮਗਰੋਂ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਵੀ ਨਿਸ਼ਸਤਰ ਕਰ ਕੇ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਧੰਦੇ ਵਿੱਚ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਕੁਝ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਭਾਰਤੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।
  • ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲੇ ਦੀ ਸਜ਼ਾ – ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸਜ਼ਾ ਨੂੰ ਕਾਲੇਪਾਣੀ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਪਰ ਉਸ ਦੀ 11 ਅਗਸਤ, 1851 ਈ. ਨੂੰ ਕਲਕੱਤੇ (ਕੋਲਕਾਤਾ) ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ । ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਉਸ ਦੀ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।
  • ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਅਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ (ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀਆਂ ਜੇਲ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । 1854 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਪੰਜਾਬ ਲਈ ਨਵਾਂ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ – ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਬੋਰਡ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ 1849 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1853 ਈ. ਤਕ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੁਧਾਰਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ 1857 ਈ. ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ।
  • ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਵਾਲਾ ਸਲੂਕ – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਟਿਆਲਾ, ਨਾਭਾ, ਜੀਂਦ, ਮਲੇਰਕੋਟਲਾ, ਫ਼ਰੀਦਕੋਟ ਅਤੇ ਕਪੂਰਥਲਾ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖੀ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕੀ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ? ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ ? (Was it proper for Lord Dalhousie to annex Punjab to the British empire ? Give arguments in support of your answer.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੰਯੋਜਨ ਨਿਆਂਸੰਗਤ ਸੀ ? ਆਪਣੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Was the annexation of Punjab by Lord Dalhousie justified ? Give reasons in your favour.)
ਜਾਂ
“ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਇੱਕ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ ।” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“Annexation of Punjab was a violent breach of trust.” Explain.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੰਯੋਜਨ ਨਿਆਂ ਸੰਗਤ ਸੀ ? ਇਸ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਛੇ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਉ । (Was the annexation of Punjab justified ? Give six reasons for it.)
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਨਿਆਂਸੰਗਤ ਨਹੀਂ ਸੀ ।

1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ਗਿਆ – ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਹੋਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ। ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖੋਹ ਲਏ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਅਤੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਬਗ਼ਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗ਼ਾਵਤ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ ।

2. ਬਗ਼ਾਵਤ ਨੂੰ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਨਾ ਦਬਾਇਆ ਗਿਆ – ਜਦੋਂ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿਚ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅੱਗ ਭੜਕੀ ਤਾਂ ਉਸ ‘ਤੇ ਛੇਤੀ ਹੀ ਕਾਬੂ ਪਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਅੱਠ ਮਹੀਨਿਆਂ ਤਕ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਫੈਲਣ ਦੇਣ ਪਿੱਛੇ ਇਕ ਡੂੰਘੀ ਰਾਜਸੀ ਚਾਲ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵੱਡੀ ਸੈਨਿਕ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹਾਨਾ ਮਿਲ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

3. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਕੇਵਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ, ਜਿਹੜੀਆਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਨਿਰਾ ਝੂਠ ਹੀ ਹੈ ।

4. ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਪੂਰਨ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ – ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਤਾਂ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋਣ ਤਕ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਵਫ਼ਾਦਾਰੀ ਨਾਲ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਰਿਹਾ | ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਦੇ ਰਹੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਬਗ਼ਾਵਤਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਸਹਿਯੋਗ ਵੀ ਦਿੱਤਾ

5. ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪਰ ਇਸ ਕਥਨ ਵਿੱਚ ਜ਼ਰਾ ਵੀ ਸੱਚਾਈ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕੇਵਲ ਮੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਬਹੁਤੀ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਅਤੇ ਲੋਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ।

6. ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ – ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਇੱਕ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ । 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਿਗੜ ਰਹੇ ਹਾਲਾਤਾਂ ਲਈ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੋਸ਼ੀ ਠਹਿਰਾਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੇ ਇਸ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਛੇ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ ਕਿ ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ । (Give any six arguments in favour of Dalhousie’s annexation of the Punjab to the British empire.)
ਜਾਂ
ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ੇ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Give arguments in favour of Dalhousie’s policy of the annexation of Punjab.)
ਉੱਤਰ-
1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ ਹੈ । ਸਿੱਖ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੇ ਇਹ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦੇਣਗੇ । ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਅਸ਼ਾਂਤੀ ਅਤੇ ਵਿਦਰੋਹ ਫੈਲਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ । ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੀ ਬਗ਼ਾਵਤ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਜਾਤੀ ਦੀ ਬਗਾਵਤ ਦੱਸਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਗੜ ਰਹੇ ਹਾਲਾਤ ‘ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ ।

2. ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਚੰਗਾ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਨਾ ਰਹਿਣਾ – ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਇਕ ਲਾਭਦਾਇਕ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਸਿੱਧ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਬਿਟਿਸ਼ ਰਾਜ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵੱਲੋਂ ਕਿਸੇ ਖ਼ਤਰੇ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਪਵੇਗਾ । ਪਰੰਤੂ ਉਸ ਦਾ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਗਲਤ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦੋਸਤੀ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਿਆ ।

3. ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਅਦਾਇਗੀ ਨਾ ਕਰਨਾ – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਕਿ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਦੇਣਾ ਸੀ । ਪਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਇੱਕ ਪਾਈ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ।

4. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨਾ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸੀ – ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤ ਮਗਰੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਆਰਥਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਕੋਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਪਾਂਤ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਦੋ ਸਾਲ ਰਹਿਣ ਪਿੱਛੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਇਹ ਰਾਜ ਕਈ ਪੱਖਾਂ ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪਣ ਦਾ ਪੱਕਾ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

5. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ – ਇਹ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਤਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿਰੁੱਧ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਕਰਦੇ ਰਹਿਣਾ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੂਜੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿਚ ਵੀ ਪੈ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਿਆ ।

6. ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਚੰਗਾ – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਦਲੀਲ ਇਹ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਅਜਿਹਾ ਕਰ ਕੇ ਉਸ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਚੰਗਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ । ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫ਼ੈਲੀ ਬਦਅਮਨੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕੀਤਾ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੁਧਾਰਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸੁੱਖ ਦਾ ਸਾਹ ਲਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Maharaja Dalip Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਉਹ 15 ਸਤੰਬਰ, 1843 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਨਵਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਸ ਦੀ ਉਮਰ ਕੇਵਲ 5 ਸਾਲ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਦਾ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਜ ਦਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਹੀਰਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦਾ ਨਵਾਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਭਾਵੇਂ ਉਹ ਬੜਾ ਸਿਆਣਾ ਸੀ ਪਰ ਉਸ ਨੇ ਪੰਡਤ ਜੱਲਾ ਨੂੰ ਮੁਸ਼ੀਰ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਕੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਾਰਾਜ਼ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।

1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੀਰਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕਤਲ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਜਵਾਹਰ ਸਿੰਘ ਰਾਜ ਦਾ ਨਵਾਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਬਣਿਆ ਪਰ ਉਹ ਬੜਾ ਹਠੀ ਅਤੇ ਅਯੋਗ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਸਤੰਬਰ, 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ਕੰਵਰ ਪਿਸ਼ੌਰਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕਤਲ ਕਾਰਨ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਪਹਿਲੇ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਦੇਖਣਾ ਪਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ! 22 ਅਕਤੂਬਰ, 1893 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪੈਰਿਸ ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਜਾਂ ਜਿੰਦ ਕੌਰ ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Maharani Jindan or Jind Kaur.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Maharani Jindan ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ, ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਰਾਣੀ ਸੀ । ਜਦੋਂ 15 ਸਤੰਬਰ, 1843 ਈ. ਨੂੰ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਨਵਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਦਾ ਸਰਪਸਤ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਪੰਜਾਬ ਰਾਜ ਨੂੰ ਆਜ਼ਾਦ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਰੜਕਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ ਹੋਈ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਖੋਹ ਲਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਡੇਢ ਲੱਖ ਰੁਪਿਆ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਨਿਯਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਅਗਸਤ, 1847 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਰਾਣੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਖੂਪੁਰਾ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਨਜ਼ਰਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਮਈ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲਾ ਦੇ ਕੇ ਬਨਾਰਸ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਅਪਰੈਲ, 1849 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਨੇਪਾਲ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋ ਗਈ । 1861 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਇੰਗਲੈਂਡ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਆਇਆ ਤਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਲਈ ਨੇਪਾਲ ਤੋਂ ਆਈ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇੰਗਲੈਂਡ ਲੈ ਗਿਆ ।ਇੱਥੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠੇ ਨਾ ਰਹਿਣ ਦਿੱਤਾ | ਅੰਤ 1 ਅਗਸਤ, 1863 ਈ. ਨੂੰ ਉਹ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਤੋਂ ਚਲ ਵਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Bhai Maharaj Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੌਰੰਗਾਬਾਦ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਤ ਭਾਈ ਬੀਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚੇਲੇ ਸਨ । 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਭਾਈ ਬੀਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪਿੰਡ-ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਜਾ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੰਪੱਤੀ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰਾਉਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ 10,000 ਰੁਪਏ ਇਨਾਮ ਦੇਣ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨਿਡਰ ਹੋ ਕੇ ਆਪਣਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਦੇ ਰਹੇ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ, ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕੀਤਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ।

ਉਹ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੁਆਰਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅੱਗੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟਣ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਅਜਿਹਾ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਉਹ ਜੰਮੂ ਚਲੇ ਗਏ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਕਾਬਲ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ 3 ਜਨਵਰੀ, 1850 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦੀ ਇੱਕ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ । ਇਸ ਯੋਜਨਾ ਬਾਰੇ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਪਤਾ ਚਲ ਗਿਆਂ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਨੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 28 ਦਸੰਬਰ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਕਲਕੱਤਾ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਕਰਨ (Causes of the Second Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਉਨ੍ਹਾਂ ਪਰਿਸਥਿਤੀਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕਰਕੇ ਦੂਜਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਿੱਥੋਂ ਤਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸਨ ? (Discuss the circumstances leading to the Second Anglo-Sikh War. How far were the British responsible for it ?)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main causes of the Second Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਨਾਂ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (Explain important causes of the Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ । (Write the reasons of Second Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਹਾਰ ਅਤੇ ਥੋਪੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁੱਸਾ ਹੋਰ ਭੜਕ ਉੱਠਿਆ । ਇਸ ਦਾ ਨਤੀਜਾ ਦੁਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਇੱਛਾ (Sikh desir to avenge their defeat in the First Anglo-Sikh War) – ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋ ਗਈ ਸੀ, ਪਰ ਇਸ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਹੋਏ ਸਨ । ਇਸ ਹਾਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾਵਾਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ‘ਤੇ ਪੂਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਹ ਤੀਵਰ ਇੱਛਾ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀ ।

2. ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬੀ ਅਸੰਤੁਸ਼ਟ (Punjabis were dissatisfied with the Treaties of Lahore and Bhairowal) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੰਧੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ਵਰਗੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਉਪਜਾਉ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ | ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਬਣਾਏ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ ਹੋਰ ਯੁੱਧ ਲੜਨਾ ਪੈਣਾ ਸੀ ।

3. ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਰੋਸ (Resentment among the Sikh Soldiers) – ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਪੈਦਲ ਤੇ 12,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਰੋਸ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ।

4. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਸਖ਼ਤ ਸਲੂਕ (Harsh Treatment with. Maharani Jindan) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਜੋ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਵਹਾਰ ਕੀਤਾ ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਫੈਲੇ ਰੋਸ ਨੂੰ ਹੋਰ ਭੜਕਾ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਨਾਬਾਲਗ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਮੰਨਿਆ ਸੀ । ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਖੋਹ ਲਈਆਂ । 1847 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਖੂਪੁਰਾ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਨਜ਼ਰਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲਾ ਦੇ ਕੇ ਬਨਾਰਸ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਗਈ ਬਦਸਲੂਕੀ ਕਾਰਨ ਸਾਰੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਗੁੱਸੇ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੌੜ ਗਈ ।

5. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Diwan Moolraj) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ | ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਗ਼ਲਤ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦਸੰਬਰ 1847 ਈ. ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਦਾਰ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਮੁਲਰਾਜ ਤੋਂ ਚਾਰਜ ਲੈਣ ਲਈ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਾਲ ਭੇਜੇ ਗਏ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੁ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ‘ਤੇ ਕੁਝ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ 20 ਅਪਰੈਲ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਤਲ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਖੂਨ ਖੌਲਣ ਲੱਗਾ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਅਜਿਹੇ ਹੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼
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ਵਿੱਚ ਸੀ । ਉਹ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਵਿਦਰੋਹ ਜ਼ਿਆਦਾ ਭੜਕ ਜਾਏ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਮੌਕਾ ਮਿਲ ਜਾਏ । ਡਾਕਟਰ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਉਹ ਚੰਗਿਆੜੀ ਜਿਸ ਨੇ ਭਾਂਬੜ ਬਾਲਿਆ ਅਤੇ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੁਤੰਤਰ ਰਾਜ ਸੜ ਕੇ ਸੁਆਹ ਹੋ ਗਿਆ, ਮੁਲਤਾਨ ਤੋਂ ਉੱਠੀ ਸੀ ।’’ 1

6. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Chattar Singh) – ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਇੱਕ ਸਿਪਾਹੀ ਨੇ ਇੱਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕੈਨੋਰਾ ਦਾ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ’ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗਾਵਤ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਚਾਰ-ਚੁਫ਼ੇਰੇ ਬਗਾਵਤ ਦੀ ਅੱਗ ਫੈਲ ਗਈ ।

7. ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Sher Singh) – ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਵਿਰੁੱਧ ਕੀਤੀ ਗਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਬਦਸਲੂਕੀ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਵੀ 14 ਸਤੰਬਰ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਅਪੀਲ ‘ਤੇ ਕਈ ਸਿੱਖ ਉਸ ਦੇ ਝੰਡੇ ਅਧੀਨ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ ।

8. ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਨੀਤੀ (Policy of Lord Dalhousie) – ਜਨਵਰੀ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਲੈਪਸ ਦੀ ਨੀਤੀ ਰਾਹੀਂ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ | ਕੇਵਲ ਪੰਜਾਬ ਹੀ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਰਾਜ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਹਾਲੇ ਤਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਕਿਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਹ ਮੌਕਾ ਉਸ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲਿਆ ।

ਜਦੋਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅੱਗ ਭੜਕਦੀ ਨਜ਼ਰ ਆਈ ਤਾਂ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨ-ਚੀਫ਼ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ 16 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ ਲੈ ਕੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਦਰਿਆ ਚਨਾਬ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ ।

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ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ (Events of the War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਏ ਦੂਜੇ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss in brief the events of the Second Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਚਲਾਕ ਨੀਤੀਆਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਹੋਰ ਯੁੱਧ ਦੇ ਨੇੜੇ ਲਿਆ ਖੜਾ ਕੀਤਾ | ਮਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਭੇਜਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਦੂਜਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਘਟਨਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-

1. ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ramnagar) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਰਾਮਨਗਰ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ | ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਉਸ ਅਧੀਨ 20,000 ਸੈਨਿਕ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਅਧੀਨ 15,000 ਸੈਨਿਕ ਸਨ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਾ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗ ਗਿਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨਾ ਆਸਾਨ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

2. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Chillianwala) – ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਹ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਇਹ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਮੇਤ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਪਹੁੰਚ ਰਿਹਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ 13 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬਹੁਤ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੇ 695 ਸੈਨਿਕ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ 132 ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ 4 ਤੋਪਾਂ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਆ ਗਈਆਂ । ਸੀਤਾ ਰਾਮ ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਜਦੋਂ ਦਾ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕੀਤਾ ਸੀ ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਇਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਭੈੜੀ ਹਾਰ ਸੀ ।’’ 1

ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹੋਏ ਭਾਰੀ ਵਿਨਾਸ਼ ਕਾਰਨ ਇੰਗਲੈਂਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਹਾਹਾਕਾਰ ਮਚ ਗਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਬਦਲ ਕੇ ਸਰ ਚਾਰਲਸ ਨੇਪੀਅਰ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Multan) – ਮੁਲਤਾਨ ਵਿਖੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਉਸ ਨਾਲ ਆ ਰਲਿਆ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਚਾਲ ਚੱਲੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਅਲੀ ਚਿੱਠੀਆਂ ਲਿਖ ਕੇ ਮਲਰਾਜ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਵਿਚਕਾਰ ਗ਼ਲਤ-ਫਹਿਮੀ ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ । ਦਸੰਬਰ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਰਨਲ ਵਿਸ਼ ਨੇ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾ ਲਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸੁੱਟਿਆ ਇੱਕ ਗੋਲਾ ਅੰਦਰ ਪਏ ਬਾਰੂਦ ’ਤੇ ਆਣ ਡਿੱਗਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਬਹੁਤ ਸਾਰਾ ਬਾਰੂਦ ਨਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਮਲਰਾਜ ਦੇ 500 ਸੈਨਿਕ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਇਸ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਕਾਰਨ ਮੁਲਰਾਜ ਲਈ ਮੁਕਾਬਲੇ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਣਾ ਬੜਾ ਔਖਾ ਹੋ ਗਿਆ ! ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅੱਗੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਇਸ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜੋ ਹੱਤਕ ਹੋਈ ਸੀ, ਉਸ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਪੂਰਤੀ ਹੋ ਗਈ ।

4. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Gujarat) – ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਿੰਘ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਆ ਗਏ । ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ, 3,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਭੇਜੀ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਕੁਲ ਫ਼ੌਜ 40,000 ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਹੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਕੋਲ 68,000 ਸੈਨਿਕ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਦੋਹਾਂ ਪਾਸਿਆਂ ਤੋਂ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਇਹ ਲੜਾਈ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ‘ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈਂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ।

ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਬਾਰੂਦ ਛੇਤੀ ਮੁੱਕ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦਾ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ 3,000 ਤੋਂ 5,000 ਤਕ ਸੈਨਿਕ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਭਗਦੜ ਮੱਚ ਗਈ । 10 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਵਲਪਿੰਡੀ ਦੇ ਨੇੜੇ ਜਨਰਲ ਗਿਲਬਰਟ ਅੱਗੇ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ ।
ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਪਤਵੰਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਗੌਰਵਮਈ ਸਾਮਰਾਜ `ਤੇ ਪਰਦਾ ਪੈ ਗਿਆ ।’’ 2

ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ (Consequences of the War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss the main results of the Second Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬੜੇ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਅੰਤ (End of the Empire of Maharaja Ranjit Singh) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਨਿਕਲਿਆ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖ਼ਾਤਮਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਆਖਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਛੱਡ ਕੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹਿੱਸੇ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜਾਇਦਾਦ ’ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋ ਗਿਆ | ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੋਹਿਨੂਰ ਹੀਰਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਰਾਣੀ ਵਿਕਟੋਰੀਆ ਨੂੰ ਭੇਂਟ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਦੇ ਬਾਅਦ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇੰਗਲੈਂਡ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । 1893 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੈਰਿਸ ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

2. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ (Sikh Army was Disbanded) – ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਮਗਰੋਂ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਵੀ ਨਿਸ਼ਸਤਰ ਕਰ ਕੇ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਧੰਦੇ ਵਿੱਚ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਕੁਝ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਭਾਰਤੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

3. ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲੇ ਦੀ ਸਜ਼ਾ (Banishment of Diwan Moolraj and Bhai Maharaj Singh) – ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸਜ਼ਾ ਨੂੰ ਕਾਲੇਪਾਣੀ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਪਰ ਉਸ ਦੀ 11 ਅਗਸਤ, 1851 ਨੂੰ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ | ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਇਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਉਸ ਦੀ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

4. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ (Punishment to Chattar Singh and Sher Singh) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਇਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀਆਂ ਜੇਲ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । 1854 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਪੰਜਾਬ ਲਈ ਨਵਾਂ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ (New Administration for the Punjab) – ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਬੋਰਡ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ 1849 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1853 ਈ. ਤਕ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਢਾਂਚੇ ਵਿੱਚ ਕਈ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਨਿਸ਼ਸਤਰੀਕਰਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸਸਤਾ ਅਤੇ ਛੇਤੀ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸੜਕਾਂ ਅਤੇ ਨਹਿਰਾਂ ਦਾ ਜਾਲ ਵਿਛਾਇਆ ਗਿਆ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਸਮਾਪਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਯਤਨ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪੱਛਮੀ ਢੰਗ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੁਧਾਰਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ 1857 ਈ. ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ ।

6. ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਵਾਲਾ ਸਲੂਕ (Friendly attitude towards Princely States of the Punjab) – ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਟਿਆਲਾ, ਨਾਭਾ, ਜੀਂਦ, ਮਲੇਰਕੋਟਲਾ, ਫ਼ਰੀਦਕੋਟ ਅਤੇ ਕਪੂਰਥਲਾ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖੀ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਏ ਦੁਸਰੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Discuss the causes and results of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ-ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਅਤੇ ਪਰਿਣਾਮਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What were the causes and results of the 2nd Anglo-Sikh War ? Explain.)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਹਾਰ ਅਤੇ ਥੋਪੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁੱਸਾ ਹੋਰ ਭੜਕ ਉੱਠਿਆ । ਇਸ ਦਾ ਨਤੀਜਾ ਦੁਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਇੱਛਾ (Sikh desir to avenge their defeat in the First Anglo-Sikh War) – ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋ ਗਈ ਸੀ, ਪਰ ਇਸ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਹੋਏ ਸਨ । ਇਸ ਹਾਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾਵਾਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ‘ਤੇ ਪੂਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਹ ਤੀਵਰ ਇੱਛਾ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀ ।

2. ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬੀ ਅਸੰਤੁਸ਼ਟ (Punjabis were dissatisfied with the Treaties of Lahore and Bhairowal) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੰਧੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ਵਰਗੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਉਪਜਾਉ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ | ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਬਣਾਏ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ ਹੋਰ ਯੁੱਧ ਲੜਨਾ ਪੈਣਾ ਸੀ ।

3. ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਰੋਸ (Resentment among the Sikh Soldiers) – ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਪੈਦਲ ਤੇ 12,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਰੋਸ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ।

4. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਸਖ਼ਤ ਸਲੂਕ (Harsh Treatment with. Maharani Jindan) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਜੋ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਵਹਾਰ ਕੀਤਾ ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਫੈਲੇ ਰੋਸ ਨੂੰ ਹੋਰ ਭੜਕਾ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਨਾਬਾਲਗ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਮੰਨਿਆ ਸੀ । ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਖੋਹ ਲਈਆਂ । 1847 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਖੂਪੁਰਾ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਨਜ਼ਰਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲਾ ਦੇ ਕੇ ਬਨਾਰਸ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਗਈ ਬਦਸਲੂਕੀ ਕਾਰਨ ਸਾਰੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਗੁੱਸੇ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੌੜ ਗਈ ।

5. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Diwan Moolraj) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ | ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਗ਼ਲਤ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦਸੰਬਰ 1847 ਈ. ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਦਾਰ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਮੁਲਰਾਜ ਤੋਂ ਚਾਰਜ ਲੈਣ ਲਈ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਾਲ ਭੇਜੇ ਗਏ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੁ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ‘ਤੇ ਕੁਝ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ 20 ਅਪਰੈਲ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਤਲ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਖੂਨ ਖੌਲਣ ਲੱਗਾ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਅਜਿਹੇ ਹੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ 1
ਵਿੱਚ ਸੀ । ਉਹ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਵਿਦਰੋਹ ਜ਼ਿਆਦਾ ਭੜਕ ਜਾਏ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਮੌਕਾ ਮਿਲ ਜਾਏ । ਡਾਕਟਰ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਉਹ ਚੰਗਿਆੜੀ ਜਿਸ ਨੇ ਭਾਂਬੜ ਬਾਲਿਆ ਅਤੇ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੁਤੰਤਰ ਰਾਜ ਸੜ ਕੇ ਸੁਆਹ ਹੋ ਗਿਆ, ਮੁਲਤਾਨ ਤੋਂ ਉੱਠੀ ਸੀ ।’’ 1

6. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Chattar Singh) – ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਇੱਕ ਸਿਪਾਹੀ ਨੇ ਇੱਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕੈਨੋਰਾ ਦਾ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ’ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗਾਵਤ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਚਾਰ-ਚੁਫ਼ੇਰੇ ਬਗਾਵਤ ਦੀ ਅੱਗ ਫੈਲ ਗਈ ।

7. ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Sher Singh) – ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਵਿਰੁੱਧ ਕੀਤੀ ਗਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਬਦਸਲੂਕੀ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਵੀ 14 ਸਤੰਬਰ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਅਪੀਲ ‘ਤੇ ਕਈ ਸਿੱਖ ਉਸ ਦੇ ਝੰਡੇ ਅਧੀਨ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ ।

8. ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਨੀਤੀ (Policy of Lord Dalhousie) – ਜਨਵਰੀ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਲੈਪਸ ਦੀ ਨੀਤੀ ਰਾਹੀਂ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ | ਕੇਵਲ ਪੰਜਾਬ ਹੀ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਰਾਜ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਹਾਲੇ ਤਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਕਿਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਹ ਮੌਕਾ ਉਸ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲਿਆ ।

ਜਦੋਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅੱਗ ਭੜਕਦੀ ਨਜ਼ਰ ਆਈ ਤਾਂ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨ-ਚੀਫ਼ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ 16 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ ਲੈ ਕੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਦਰਿਆ ਚਨਾਬ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ ।

ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬੜੇ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਅੰਤ (End of the Empire of Maharaja Ranjit Singh) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਨਿਕਲਿਆ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖ਼ਾਤਮਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਆਖਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਛੱਡ ਕੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹਿੱਸੇ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜਾਇਦਾਦ ’ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋ ਗਿਆ | ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੋਹਿਨੂਰ ਹੀਰਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਰਾਣੀ ਵਿਕਟੋਰੀਆ ਨੂੰ ਭੇਂਟ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਦੇ ਬਾਅਦ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇੰਗਲੈਂਡ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । 1893 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੈਰਿਸ ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

2. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ (Sikh Army was Disbanded) – ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਮਗਰੋਂ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਵੀ ਨਿਸ਼ਸਤਰ ਕਰ ਕੇ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਧੰਦੇ ਵਿੱਚ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਕੁਝ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਭਾਰਤੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

3. ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲੇ ਦੀ ਸਜ਼ਾ (Banishment of Diwan Moolraj and Bhai Maharaj Singh) – ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸਜ਼ਾ ਨੂੰ ਕਾਲੇਪਾਣੀ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਪਰ ਉਸ ਦੀ 11 ਅਗਸਤ, 1851 ਨੂੰ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ | ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਇਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਉਸ ਦੀ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

4. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ (Punishment to Chattar Singh and Sher Singh) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਇਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀਆਂ ਜੇਲ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । 1854 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਪੰਜਾਬ ਲਈ ਨਵਾਂ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ (New Administration for the Punjab) – ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਬੋਰਡ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ 1849 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1853 ਈ. ਤਕ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਢਾਂਚੇ ਵਿੱਚ ਕਈ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਨਿਸ਼ਸਤਰੀਕਰਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸਸਤਾ ਅਤੇ ਛੇਤੀ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸੜਕਾਂ ਅਤੇ ਨਹਿਰਾਂ ਦਾ ਜਾਲ ਵਿਛਾਇਆ ਗਿਆ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਸਮਾਪਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਯਤਨ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪੱਛਮੀ ਢੰਗ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੁਧਾਰਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ 1857 ਈ. ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ ।

6. ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਵਾਲਾ ਸਲੂਕ (Friendly attitude towards Princely States of the Punjab) – ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਟਿਆਲਾ, ਨਾਭਾ, ਜੀਂਦ, ਮਲੇਰਕੋਟਲਾ, ਫ਼ਰੀਦਕੋਟ ਅਤੇ ਕਪੂਰਥਲਾ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖੀ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ (Annexation of the Punjab)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
“ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀਂ” । ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (“Annexation of Punjab was a violent breach of trust.” Discuss.)
ਜਾਂ
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਿਲਯ ਦਾ ਆਲੋਚਨਾਤਮਕ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Examine critically Lord Dalhousie’s annexation of Punjab.)
ਜਾਂ
‘‘ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਰਾਹੀਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਸਿਧਾਂਤਹੀਨ ਅਤੇ ਅਣਉੱਚਿਤ ਸੀ ।” ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਇਸ ਕਥਨ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹੋ ? ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (“The annexation of Punjab by Lord Dalhousie to the British Empire was unprincipled and unjustified.” Do you agree to this view ? Give arguments in your favour.)
ਉੱਤਰ-
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਬਣ ਕੇ ਆਇਆ ਸੀ । ਉਹ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸਾਰੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਵੀ ਉਸ ਦੀ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਨੀਤੀ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ । 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਲਾਹੌਰ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਹੌਰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਤੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਝੰਡੇ ਨੂੰ ਉਤਾਰਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਝੰਡੇ ਨੂੰ ਲਹਿਰਾਇਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਹੋ ਗਿਆ ।

I. ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਮਿਲਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ (Arguments in favour of Dalhousie’s Policy of Annexation)

ਡਬਲਿਊ. ਡਬਲਿਉ. ਹੰਟਰ, ਮਾਰਸ਼ਮੈਨ ਅਤੇ ਐੱਮ. ਐੱਸ. ਲਤੀਫ ਆਦਿ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਨੇ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ (Sikhs had broken their Promises) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ ਹੈ । ਸਿੱਖ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੇ ਇਹ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦੇਣਗੇ | ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਅਸ਼ਾਂਤੀ ਅਤੇ ਵਿਦਰੋਹ ਫੈਲਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ । ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦੀ ਬਗ਼ਾਵਤ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਜਾਤੀ ਦੀ ਬਗਾਵਤ ਦੱਸਿਆ । ਉਸ ਅਨੁਸਾਰ ਇਹ ਬਗਾਵਤ ਦੁਬਾਰਾ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨ ਲਈ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਕੇ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਗੜ ਰਹੇ ਹਾਲਾਤ ‘ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ,
“ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਪੱਕਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੀ ਕਾਰਵਾਈ ਸਮੇਂ ਅਨੁਸਾਰ, ਨਿਆਂਪੂਰਨ ਅਤੇ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ ।’’ 1

2. ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਚੰਗਾ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਨਾ ਰਹਿਣਾ (Punjab remained no more a useful Buffer State) – ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਇੱਕ ਲਾਭਦਾਇਕ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਸਿੱਧ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰਾਜ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵੱਲੋਂ ਕਿਸੇ ਖ਼ਤਰੇ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਪਵੇਗਾ | ਪਰੰਤੂ ਉਸ ਦਾ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਗ਼ਲਤ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦੋਸਤੀ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਿਆ ।

3. ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਅਦਾਇਗੀ ਨਾ ਕਰਨਾ (Non-payment of the Loans) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਕਿ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਦੇਣਾ ਸੀ । ਪਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਇੱਕ ਪਾਈ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ।

4. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨਾ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸੀ (It was advantageous to annex Punjab) – ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤ ਮਗਰੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਆਰਥਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਕੋਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਪ੍ਰਾਂਤ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਦੋ ਸਾਲ ਰਹਿਣ ਪਿੱਛੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਇਹ ਰਾਜ ਕਈ ਪੱਖਾਂ ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪਣ ਦਾ ਪੱਕਾ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

5. ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ (Advantageous for the people of Punjab) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਵਰਦਾਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਅੱਡਾ ਬਣ ਚੁੱਕਿਆ ਸੀ । ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾ ਕੇ ਚੋਰਾਂ, ਡਾਕੂਆਂ ਅਤੇ ਠੱਗਾਂ ਨੇ ਆਪਣਾ ਧੰਦਾ ਜ਼ੋਰਾਂ ‘ਤੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਕੇ ਇੱਥੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਮੁੜ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਪੁਲਿਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਤੇ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਕੁਸ਼ਲ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਤੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸੜਕਾਂ ਅਤੇ ਨਹਿਰਾਂ ਦਾ ਜਾਲ ਵਿਛਾਇਆ ਗਿਆ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪੱਛਮੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

6. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ (Annexation of the Punjab was Inevitable)-ਇਹ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਤਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿਰੁੱਧ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਕਰਦੇ ਰਹਿਣਾ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੂਜੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪੈ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਿਆ ।

II. ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਮਿਲਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਦਲੀਲਾਂ (Arguments against Dalhousie’s Policy of Annexation)

ਈਵਾਨਜ਼ ਬੈਂਲ, ਜਗਮੋਹਨ ਮਹਾਜਨ, ਗੰਡਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਖੁਸ਼ਵੰਤ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦੁਆਰਾ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਏ ਜਾਣ ਵਿਰੁੱਧ ਅੱਗੇ ਲਿਖੀਆਂ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ਗਿਆ (Sikhs were provoked to Revolt) – ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਹੋਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ । ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖੋਹ ਲਏ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਦੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ‘ਤੇ ਮਾੜਾ ਅਸਰ ਪਿਆ। ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਵਧੇਰੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਅਤੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ ।

2. ਬਗਾਵਤ ਨੂੰ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਨਾ ਦਬਾਇਆ ਗਿਆ (Revolt was not suppressed in Time) – ਜਦੋਂ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅੱਗ ਭੜਕੀ ਤਾਂ ਉਸ ’ਤੇ ਛੇਤੀ ਹੀ ਕਾਬੂ ਪਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ | ਅੱਠ ਮਹੀਨਿਆਂ ਤਕ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਫੈਲਣ ਦੇਣ ਪਿੱਛੇ ਇੱਕ ਡੂੰਘੀ ਰਾਜਸੀ ਚਾਲ ਸੀ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਚਤਰ ਸਿੰਘ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵੱਡੀ ਸੈਨਿਕ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹਾਨਾ ਮਿਲ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

3. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ (British had not fulfilled the terms of the Treaty) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਕੇਵਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ, ਜਿਹੜੀਆਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਨ ।ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਹ ਸ਼ਰਤ ਮੰਨੀ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚੋਂ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਲੈਣਗੇ । ਜਦੋਂ ਇਹ ਸਮਾਂ ਆਇਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਇਸ ਸਮੇਂ ਨੂੰ ਵਧਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਨਿਰਾ ਝੂਠ ਹੀ ਹੈ ।

4. ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਪੂਰਨ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ (Lahore Darbar gave full cooperation in fulfilling the terms of the Treaty) – ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਤਾਂ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋਣ ਤਕ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਵਫ਼ਾਦਾਰੀ ਨਾਲ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਰਿਹਾ | ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਦੇ ਰਹੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਬਗਾਵਤਾਂ ਦੀ ਨਿੰਦਿਆ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬਗਾਵਤਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਸਹਿਯੋਗ ਵੀ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਕਰਜ਼ੇ ਬਾਰੇ ਅਸਲੀਅਤ (Facts about Loan) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਲਗਾਇਆ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਕਿ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਇੱਕ ਪਾਈ ਵੀ ਵਾਪਸ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਤੱਥਾਂ ਦੇ ਬਿਲਕੁਲ ਉਲਟ ਸੀ। ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੀ ਸੀ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ 13,56,837 ਰੁਪਏ ਦੇ ਮੁੱਲ ਦਾ ਸੋਨਾ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਜੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਆਪਣਾ ਸਾਰਾ ਕਰਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਮੋੜਿਆ ਤਾਂ ਇਸ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਉੱਤੇ ਆਉਂਦੀ ਸੀ ।

6. ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ (The whole Sikh Army and the People did not Revolt) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪਰ ਇਸ ਕਥਨ ਵਿੱਚ ਜ਼ਰਾ ਵੀ ਸੱਚਾਈ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕੇਵਲ ਮੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਹੋਇਆ ਸੀ | ਬਹੁਤੀ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਅਤੇ ਲੋਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ ।

7. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ (Annexation of the Punjab was a Breach of Trust) – ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਾਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਲੈ ਲਿਆ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅਮਨ-ਅਮਾਨ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵੀ ਰੱਖ ਲਈ ਸੀ । ਅਜਿਹੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਬਗ਼ਾਵਤ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਦੀ ਸੀ । ਜੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬਗਾਵਤਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਨਾਕਾਮ ਰਿਹਾ ਤਾਂ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਹੀ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਕਸੂਰਾਂ ਲਈ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਦੇਣਾ ਇੱਕ ਬੇਇਨਸਾਫ਼ੀ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਸੀ । ਇਹ ਇੱਕ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਹੋਰ ਕੀ ਸੀ ।
ਉੱਪਰ ਲਿਖਿਤ ਵੇਰਵੇ ਤੋਂ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਨੈਤਿਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਨਾਜਾਇਜ਼ ਸੀ । ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਮੇਜਰ ਈਵਾਨਜ਼ ਬੈੱਲ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,
“ਇਹ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਜਿੱਤ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ ।” 1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain in brief the causes of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe major causes of the Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸਨ ? (What were the three main causes for Second Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਿੱਖ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  2. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਜੋ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ, ਉਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।
  3. ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।
  4. ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਛੇਤੀ ਤੋਂ ਛੇਤੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
  5. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੇ ਬਲਦੀ ‘ਤੇ ਤੇਲ ਪਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the revolt of Diwan Mool Raj.)
ਜਾਂ
ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸੰਬੰਧੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the revolt of Diwan Mool Raj of Multan.)
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੂੰ 1844 ਈ. ਨੂੰ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਤੋਂ ਵਸੂਲ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਸਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਬਹੁਤ ਵਧਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਨਵੇਂ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਐਗਨਿਯੁ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਤਲ ਦਾ ਝੂਠਾ ਇਲਜ਼ਾਮ ਮੂਲਰਾਜ ’ਤੇ ਪਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the revolt of Chattar Singh of Hazara ?)
ਉੱਤਰ-
ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ । ਕੈਪਟਨ ਐਬਟ ਦੁਆਰਾ ਭੜਕਾਏ ਗਏ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ 6 ਅਗਸਤ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼ਗਾਹ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਰਨਲ ਕੈਨੋਰਾ ਨੂੰ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ! ਕਰਨਲ ਕੈਨੋਰਾ ਨੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਕੈਪਟਨ ਐਬਟ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਖੂਨ ਉਬਲ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ। (Write a note on the battle of Chillianwala.)
ਜਾਂ
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the battle of Chillianwala ?)
ਉੱਤਰ-
ਚਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਜੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ, ਨੂੰ ਇਹ ਸੂਚਨਾ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਨੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪਹੁੰਚਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਵਿਖੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਬੋਲ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਹੋਈ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? (What was the importance of the battle of Gujarat in the Second Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਆਖਰੀ ਅਤੇ ਫੈਸਲਾਕੁੰਨ ਲੜਾਈ ਸੀ ।ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 40,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਚਤਰ ਸਿੰਘ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਲਗਪਗ 68,000 ਸੀ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ? (What were the results of Second Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain any three effects of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਨਤੀਜੇ ਦੱਸੋ । (Explain any three results of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? (What were the results of Second Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਨਿਕਲਿਆ ਕਿ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।
  2. ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਅੰਤਿਮ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 50,000 ਪੌਂਡ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਦੇ ਕੇ ਗੱਦੀਓਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।
  3. ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।
  4. ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲੇ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  5. ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਬੋਰਡ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕੀ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ? ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Was it proper of Lord Dalhousie to annex Punjab to the British Empire ? Give arguments in support of your answer.)
ਜਾਂ
“ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਇੱਕ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਘਾਤ ਸੀ ।” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“Annexation of Punjab was a violent breach of trust.” Explain.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੰਯੋਜਨ ਨਿਆਂ ਸੰਗਤ ਸੀ ? ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Was the annexation of Punjab justified ? Give reasons.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੰਯੋਜਨ ਨਿਆਂ ਸੰਗਤ ਸੀ ? ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Was the annexation of Punjab justified ? Give reasons.)
ਉੱਤਰ-
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੀ ਉੱਚਿਤ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਖੋਹ ਲਏ । ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਰੋਸ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਵਿਦਰੋਹ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ਤਾਂ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਬਹਾਨਾ ਬਣਾ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਕਬਜ਼ੇ ਵਿੱਚ ਕਰ ਸਕਣ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੇ ਇਸ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ ਕਿ ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ । (Give arguments in favour of Dalhousie’s annexation of the Punjab to the British empire.)
ਜਾਂ
ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ੇ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Give arguments in favour of Dalhousie’s policy of the annexation of Punjab.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ? ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Was the annexation of Punjab justified ? Give reasons.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ ਸੀ ।
  2. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
  3. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਇਸ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ ।
  4. ਪੰਜਾਬ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਲਈ ਇੱਕ ਖ਼ਤਰਾ ਬਣ ਸਕਦਾ ਸੀ ।
  5. ਪੰਜਾਬ ’ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Maharaja Dalip Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਉਹ 15 ਸਤੰਬਰ, ‘ 1843 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਨਵਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਪਰ ਉਹ ਗੱਦਾਰ ਨਿਕਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਪਹਿਲੇ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਦੇਖਣਾ ਪਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ । 22 ਅਕਤੂਬਰ, 1893 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪੈਰਿਸ ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਜਾਂ ਜਿੰਦ ਕੌਰ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Maharani Jindan or Jind Kaur.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Maharani Jindan ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ, ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਰਾਣੀ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ 15 ਸਤੰਬਰ, 1843 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਵੇਂ ਨਿਯੁਕਤ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਖੋਹ ਲਿਆ ਸੀ । ਅਪਰੈਲ, 1849 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਨੇਪਾਲ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋ ਗਈ । ਅੰਤ 1 ਅਗਸਤ, 1863 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਇੰਗਲੈਂਡ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਅਲਵਿਦਾ ਕਹਿ ਗਈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Bhai Maharaj Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੌਰੰਗਾਬਾਦ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਤ ਭਾਈ ਬੀਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚੇਲੇ ਸਨ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਜ, ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
1848-49 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ (ਜਿੰਦ ਕੌਰ) ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਗਵਰਨਰ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੁਆਰਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਸੂਲ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸਾਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਦੀ ਰਕਮ ਕਾਫ਼ੀ ਵਧਾ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸਾਵਨ ਮਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਪਿਤਾ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਸਰਦਾਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗਾਵਤ ਦਾ ਝੰਡਾ ਕਿਉਂ ਬੁਲੰਦ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਉਸਦੇ ਪਿਤਾ ਨਾਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ਦੁਰਵਿਹਾਰ ਦੇ ਕਾਰਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਹ ਨੌਰੰਗਾਬਾਦ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਤ ਸਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਿਸ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ?
ਜਾਂ
ਕਿਸ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੇ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਆਖਰੀ ਲੜਾਈ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਲੜੀ ਗਈ ਉਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ਜਿਹੜੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਕਦੋਂ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ?
ਜਾਂ
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਕਦੋਂ ਮਿਲਾਇਆ ਗਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਦਲੀਲ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਵਿਰੁੱਧ ਦਿੱਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਦਲੀਲ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਹ ਨੌਰੰਗਾਬਾਦ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਤ ਭਾਈ ਬੀਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਚੇਲਾ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1856 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੰਘਾਪੁਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸਿੱਖ ਸ਼ਾਸਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਅੰਤਿਮ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੈਰਿਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1893 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1863 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਪਤਨ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਨਿਕਲੇ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ :

1. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ …………………… ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(1848-49)

2. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਜਨਰਲ …………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ)

3. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ …………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ)

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਦਾ ਨਾਂ ……………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ)

5. 1844 ਈ. ਵਿੱਚ …………………………. ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ)

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6. ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ………………………… ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਹਜ਼ਾਰਾ)

7. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਨਾਂ ……………………… ਦੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਰਾਮਨਗਰ)

8. ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ …………………………. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ.)

9. ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ …………………………. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.)

10. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ………………………… ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਤੋਪਾਂ)

11. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ………………………….. ਨੂੰ ਮਿਲਾਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ.)

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ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਦੁਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ 1848-49 ਈ. ਵਿੱਚ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

2. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

3. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

6. ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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7. ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ 12 ਨਵੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

8. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

9. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

10. ਦੁਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

11. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

12. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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13. ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਵਾਗਡੋਰ ਸੰਭਾਲੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

14. ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਆਖਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

15. ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਅੰਤਿਮ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ?
(i) 1844-45 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1845-46 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1847-48 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1848-49 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1848-49 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਲਾਰਡ ਲਿਟਨ
(ii) ਲਾਰਡ ਰਿਪਨ
(iii) ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ
(iv) ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ
(iv) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ ਦੀ ਭੈਣ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪਤਨੀ
(iv) ਰਾਜਾ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਗੁਜਰਾਤ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ
(ii) ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ
(iii) ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ
(iv) ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ
ਉੱਤਰ-
(ii) ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਦੋਂ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) 1844 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1845 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1846 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਕਿੱਥੋਂ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ ?
(i) ਹਜ਼ਾਰਾ
(ii) ਮੁਲਤਾਨ
(iii) ਕਸ਼ਮੀਰ
(iv) ਪਿਸ਼ਾਵਰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਹਜ਼ਾਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਿਸ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ
(ii) ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iii) ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iv) ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 12 ਨਵੰਬਰ, 1846 ਈ.
(ii) 15 ਨਵੰਬਰ, 1847 ਈ.
(iii) 17 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ.
(iv) 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
(i) 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ.
(ii) 3 ਜਨਵਰੀ, 1848 ਈ.
(iii) 10 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(iv) 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਖ਼ਤਮ ਹੋਇਆ ?
(i) 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(ii) 23 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(ii) 24 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(iv) 25 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(i) 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਿਸ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਖ਼ਤਮ ਹੋਇਆ ?
ਜਾਂ
ਉਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ਜਿਹੜੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ‘ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ?
(i) ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ
(ii) ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iii) ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iv) ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ.
(ii) 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(iii) 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(iv) 21 ਫਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 21 ਫਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਕਦੋਂ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) 1849 ਈ.
(ii) 1850 ਈ.
(iii) 1848 ਈ.
(iv) 1947 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(i) 1849 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ
(iv) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 1857 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1893 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1849 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1892 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1893 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) ਪੰਜਾਬ
(ii) 1893 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) ਨੇਪਾਲ
(iv) ਲੰਡਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1893 ਈ. ਵਿੱਚ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਆਰੰਭ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਮੁਲਤਾਨ ਸਿੱਖ-ਰਾਜ ਦਾ ਇੱਕ ਸੂਬਾ ਸੀ । 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਨਾਜ਼ਿਮ (ਗਵਰਨਰ) ਸਾਵਨ ਮਲ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਸੂਬੇ ਦੁਆਰਾ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਸਾਲਾਨਾ ਲਗਾਨ 13,47,000 ਰੁਪਏ ਤੋਂ ਵਧਾ ਕੇ 19,71,500 ਰੁਪਏ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਇਸ ਨੂੰ ਵਧਾ ਕੇ 30 ਲੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਵਿਕਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕੁਝ ਜ਼ਰੂਰੀ ਵਸਤਾਂ ਤੋਂ ਕਰ ਹਟਾ ਲਿਆ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ 1/3 ਹਿੱਸਾ ਵੀ ਵਾਪਸ ਲੈ ਲਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਵਧਿਆ ਹੋਇਆ ਲਗਾਨ ਨਹੀਂ ਦੇ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਉਸ ਨੇ ਬਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕਈ ਵਾਰ ਕਿਹਾ ਪਰ ਉਹ ਨਾ ਮੰਨੀ । ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਦਸੰਬਰ, 1847 ਈ. ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਮਾਰਚ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਨਵੇਂ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਮੂਲਰਾਜ ਤੋਂ ਚਾਰਜ ਲੈਣ ਲਈ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਾਲ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫਸਰਾਂ ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੂ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ । ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਚੰਗਾ ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ 19 ਅਪਰੈਲ ਨੂੰ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀਆਂ ਚਾਬੀਆਂ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ | ਪਰ ਅਗਲੇ ਦਿਨ 20 ਅਪਰੈਲ ਨੂੰ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਕੁਝ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਦੋਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫਸਰਾਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ ।

1. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
2. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਕਾਰਨ ਕਰਕੇ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ?
3. 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਕਿਸ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਦੋ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੇ ਕਤਲ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ’ਤੇ ਪਾਈ ?

5. ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ …………………. ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
2. ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
3. ਸਰਦਾਰ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।
4. ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੂ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ।
5. ਮੁਲਰਾਜੇ ।

2. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਦਾ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਕੋਲ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਫ਼ੌਜ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਵਧੇਰੇ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਪਹੁੰਚਣ ਦੀ ਉਡੀਕ ਕਰਨ ਲੱਗਾ । ਜਦੋਂ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਇਹ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਮੇਤ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਪਹੁੰਚ ਰਿਹਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ 13 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬਹੁਤ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਤਬਾਹੀ ਮਚਾ ਦਿੱਤੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ 695 ਸੈਨਿਕ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ 132 ਅਫ਼ਸਰ ਸਨ, ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਾਰੇ ਗਏ ਅਤੇ 1651 ਹੋਰ ਸੈਨਿਕ ਜ਼ਖ਼ਮੀ ਹੋਏ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ 4 ਤੋਪਾਂ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਆ ਗਈਆਂ ।

1. ਦੁਸਰੇ-ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
2. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
3. ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ?
4. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ?
5. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ ?
(i) 132
(ii) 142
(iii) 695
(iv) 1651.
ਉੱਤਰ-
1. ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।
2. ਇਹ ਲੜਾਈ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
3. ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ ।
4. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।
5. 132.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

3. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਆਣ ਮਿਲੇ ਸਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ । ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਵੀ ਗੁਜਰਾਤ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਅਕਰਮ ਖਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ 3,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਭੇਜੀ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਫ਼ੌਜ 40,000 ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਅਜੇ ਵੀ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗ ਹੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਸਰ ਚਾਰਲਸ ਨੇਪੀਅਰ ਅਜੇ ਭਾਰਤ ਨਹੀਂ ਪੁੱਜਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਕੋਲ 68,000 ਸੈਨਿਕ ਸਨ ।

ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਦੋਹਾਂ ਪਾਸਿਆਂ ਤੋਂ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਇਹ ਲੜਾਈ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ‘ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਸਵੇਰੇ 7.30 ਵਜੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਬਾਰੂਦ ਛੇਤੀ ਮੁੱਕ ਗਿਆ । ਜਦੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਤਲਵਾਰਾਂ ਕੱਢ ਲਈਆਂ ਪਰ ਉਹ ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਿੰਨਾ ਕੁ ਚਿਰ ਕਰਦੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦਾ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ।

1. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ …………………… ਲੜਾਈ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।
2. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
3. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕੌਣ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ?
4. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
5. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕੌਣ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਨਿਰਣਾਇਕ ।
2. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ।
3. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ।
4. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਇਸ ਕਰਕੇ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਦੋਹਾਂ ਪਾਸਿਆਂ ਤੋਂ ਭਾਰੀ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।
5. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਬਾਰੇ ਲਿਖੋ । (Write the causes of the First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਛੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸਨ ? (What were the six main causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਛੇ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Briefly describe the six main causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss the causes responsible for the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ – ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਾਫ਼ੀ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਵੇਖ ਰਹੇ ਸਨ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਰਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਦੇ ਪਾਰ ਵੱਲ ਵਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । 1835-36 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1835 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜੀ ਛਾਉਣੀ ਕਾਇਮ ਕਰ ਲਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਨੂੰ ਟਾਲਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

2. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਬਦਅਮਨੀ – ਜੂਨ, 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬਦਅਮਨੀ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ । ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਦੌਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । 1839 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1845 ਈ. ਦੇ 6 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ 5 ਸਰਕਾਰਾਂ ਬਦਲੀਆਂ । ਡੋਗਰਿਆਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਨੂੰ ਬਰਬਾਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਸੁਨਹਿਰੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

3. ਪਹਿਲੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ (1839-42 ਈ. ) ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਭਾਰੀ ਵਿਨਾਸ਼ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਮੁੜ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵੱਲ ਆਪਣਾ ਰੁਖ ਕੀਤਾ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਹੁਤ ਡਾਵਾਂਡੋਲ ਸੀ ।

4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ – ਸਿੰਧ ਦਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ, ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤਣਾਉ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

5. ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ – ਨਵੰਬਰ, 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਮਿਸਟਰ ਕਲਾਰਕ ਦੀ ਥਾਂ ਲੁਧਿਆਣੇ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਕੱਟੜ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।

6. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰਿਆਂ – ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਸੰਭਾਲਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਢੰਗ ਨਾਲ ਜੰਗੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਚਾਰੇ ਪਾਸਿਉਂ ਘੇਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਨੇ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਵਿਸਫੋਟਕ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the battle of Mudki.)
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 5,500 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਹਰਾ ਦੇਣਗੇ, ਪਰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਹਫੜਾ-ਦਫੜੀ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਘਬਰਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਤਾਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਮਰਵਾਉਣ ਆਇਆ ਸੀ, ਪਰ ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਪਾਸਾ ਪੁੱਠਾ ਪੈਂਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਕੁਝ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਖ ਫੇਰ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦੇ ਰਹੇ । ਪਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਅਤੇ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀ ਕਾਰਨ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਇਹ ਜਿੱਤ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਮਹਿੰਗੀ ਪਈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਯੋਧਾ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the battle of Ferozshah or Pherushaher ?)
ਉੱਤਰ-
21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂਸ਼ਹਿਰ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 17 ਹਜ਼ਾਰ ਸੀ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ 69 ਤੋਪਾਂ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਜਾਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 25-30 ਹਜ਼ਾਰ ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ 100 ਤੋਪਾਂ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਗੱਦਾਰ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ। ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਆ ਗਈ ।ਉਹ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ਰਤ ਸਿੱਖਾਂ ਅੱਗੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟਣ ਬਾਰੇ ਸੋਚਣ ਲੱਗੇ । ਪਰ ਕਿਸਮਤ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਸੀ ।22 ਦਸੰਬਰ ਨੂੰ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਅੰਤ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the battle of Sobraon.)
ਉੱਤਰ-
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਿਮ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਹ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮੁਕੰਮਲ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਉਗ ਗਫ਼, ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਅਤੇ ਹੋਰ ਕਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਰਨੈਲ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਗੱਦਾਰਾਂ ਨੇ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ।ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਦੰਦ ਖੱਟੇ ਕੀਤੇ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਭੱਜ ਨਿਕਲੇ ਤੇ ਜਾਂਦੇ-ਜਾਂਦੇ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ‘ਤੇ ਬਣਾਏ ਕਿਸ਼ਤੀਆਂ ਦੇ ਪੁਲ ਨੂੰ ਵੀ ਤੋੜ ਗਏ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਅੰਤ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ (9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ.) ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । [Write a brief note on the Treaty of Lahore (9th March, 1846).]
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਕਾਰ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇੱਕ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਇਹ ਸੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਮਸ਼ਹੂਰ ਹੈ । ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਇਹ ਸਨ :-

  • ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਆਪਣੇ ਤੇ ਆਪਣੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  • ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਤੇ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਾਰੇ ਮੈਦਾਨੀ ਤੇ ਪਹਾੜੀ ਇਲਾਕੇ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
  • ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ।
  • ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਘਟਾ ਕੇ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  • ਜਦ ਕਦੇ ਲੋੜ ਪਵੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਰੁਕਾਵਟ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਦੀ ਲੰਘ ਸਕਣਗੀਆਂ ।
  • ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਇਕਰਾਰ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮਨਜ਼ੂਰੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼, ਯੂਰਪੀਅਨ ਜਾਂ ਅਮਰੀਕਨ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਰੱਖੇਗਾ ।
  • ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਂਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਸੰਬੰਧੀ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the Treaty of Bhairowal ?)
ਜਾਂ
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the Treaty of Bhairowal.)
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਸੰਧੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਾਲੇ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਪਰਿਵਾਰ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰਕੇ ਉਸ ਦੀ 1 ਲੱਖ ਰੁ: ਪੈਨਸ਼ਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਇੱਕ ਅੱਠ ਮੈਂਬਰੀ ਕੌਂਸਲ ਬਣਾਈ ਗਈ ।ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਅਤੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਰੱਖਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੇ ਖ਼ਰਚ ਲਈ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁ: ਸਾਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਦੇਣਾ ਮੰਨਿਆ ।ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬਾਲਗ ਹੋਣ ਤਕ ਭਾਵ 4 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਤਕ ਲਾਗੂ ਰਹਿਣੀਆਂ ਸਨ । ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭਾਵੇਂ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ਕਤੀਹੀਨ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣ ਗਏ ਸਨ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਕੇਵਲ ਨਾਂ-ਮਾਤਰ ਹੀ ਰਹਿ ਗਿਆ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? (What were the results of First Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ? (What were the effects of First Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ । ਇਹ ਯੁੱਧ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਖ਼ਤਮ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ :-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਆਪਣੇ ਤੇ ਆਪਣੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  2. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ।
  3. ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਘਟਾ ਕੇ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ 20,000 ਤਕ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ 12,000 ਤਕ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  4. ਜਦ ਕਦੇ ਲੋੜ ਪਵੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਰੁਕਾਵਟ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਦੀ ਲੰਘ ਸਕਣਗੀਆਂ ।
  5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।

16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਹ ਨਿਰਣਾ ਲਿਆ ਗਿਆ ਕਿ :

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰੇਗੀ ।
  2. ਜਦ ਤਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨਾਬਾਲਗ ਰਹੇਗਾ (ਭਾਵ ਸਤੰਬਰ 1853 ਈ. ਤਕ) ਰਾਜ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਅੱਠ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਕੌਂਸਲ ਆਫ਼ ਰੀਜੈਂਸੀ ਦੁਆਰਾ ਚਲਾਇਆ ਜਾਏਗਾ ।
  3. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ-ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਹੋਇਆ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ 1. ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਮਿਲੇਗੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Sham Singh Attariwala.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਇੱਕ ਅਣਖੀਲੇ ਯੋਧੇ ਸਨ । ਉਹ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਅਟਾਰੀ ਪਿੰਡ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿਤਾ ਸਰਦਾਰ ਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚ ਸਨ । 18 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋ ਗਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਅਨੇਕਾਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਬਦਅਮਨੀ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪਣ ਦੀਆਂ ਚਾਲਾਂ ਕਾਰਨ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਦੇ ਦਿਲ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਠੇਸ ਪਹੁੰਚੀ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਵੀ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ।

ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਜੋ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ਅਤੇ ਜੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲੇ ਹੋਏ ਸਨ ਅਚਾਨਕ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਤੋਂ ਨੱਸ ਤੁਰੇ । ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਤੋਂ ਬਗ਼ੈਰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਘਾਬਰ ਉੱਠੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਬਿਖਰਨ ਲੱਗ ਪਈ । ਅਜਿਹੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅੱਗੇ ਆਏ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਲਲਕਾਰਿਆ ਤੇ ਕਿਹਾ, “ਜਿੱਤੋ ਜਾਂ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਜਾਓ ।” ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧੂਹ ਲਈਆਂ ਤੇ ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਦੇ ਜੈਕਾਰੇ ਗਜਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਵੈਰੀ ‘ਤੇ ਟੁੱਟ ਪਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਗਾਜਰ-ਮੂਲੀਆਂ ਵਾਂਗ ਕੱਟ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇਖ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵੀ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ ਸਨ । ਅੰਤ ਉਹ ਲੜਦੇ-ਲੜਦੇ ਸ਼ਹੀਦੀ ਪਾ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਪਿੱਛੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ? (Why the British did not annex the Punjab to their empire after the First AngloSikh War ?)
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭਾਵੇਂ ਸਭਰਾਉਂ ਦੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਪਰ ਹਾਲੇ ਵੀ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਕਈ ਹਜ਼ਾਰ ਸੈਨਿਕ ਆਪਣੇ ਅਸਲੇ ਸਮੇਤ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਮੌਜੂਦ ਸਨ । ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਇਸ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਤਾਂ ਇਹ ਸੈਨਿਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦਾ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਬਣ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਾ ਕਰਨ ਦਾ ਦੂਜਾ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਹੇ । ਜੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਤਾਂ ਉਸ ਦੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਤਕ ਵੱਧ ਜਾਣੀਆਂ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਕਈ ਨਵੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਣੀਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨਾਲ ਨਜਿੱਠਣ ਲਈ ਅਜੇ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਤੀਸਰਾ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਹੇਠ ਰੱਖਣ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰੱਖਣਾ ਪੈਣਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖ਼ਰਚੇ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਵਾਧਾ ਹੋ ਜਾਣਾ ਸੀ । ਚੌਥਾ, ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਪ੍ਰਾਂਤ ਆਰਥਿਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਿੱਧ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ।ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਥਾਂ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਸੋਮਾ ਸਮਝਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Mention main causes of the Sikhs’ defeat in the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-

  • ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ਜਦ ਕਿ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਵਜੋਂ ਕੰਮ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਨੇਤਾ ਆਪਣੇ ਸੁਆਰਥਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਜਾ ਰਲੇ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਤਾਂ ਭਾਵੇਂ ਇਸ ਪੂਰੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਬੜੀ ਬਹਾਦਰੀ ਅਤੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਲੜੇ ਪਰ ਨੇਤਾਵਾਂ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਡੁੱਬੀ ।
  • ਆਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ।
  • ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਜਿਹੜੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਅਫ਼ਸਰ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਗਏ ਸਨ ਉਹ ਅੰਦਰਖਾਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲੇ ਹੋਏ ਸਨ ਉਹ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਭੇਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਦਿੰਦੇ ਰਹੇ ।
  • ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੁਨੀਆ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਤਾਕਤ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਕੁਦਰਤੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਧਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਨ ।
  • ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਬੜਾ ਤਜਰਬਾ ਸੀ ।ਉਹ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਪੂਰੀ ਈਮਾਨਦਾਰੀ ਅਤੇ ਲਗਨ ਨਾਲ ਲੜੇ । ਅਜਿਹੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਣੀ ਲਾਜ਼ਮੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ (Causes of First Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the causes of the First Anglo-Sikh War between British and Sikhs.).
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What were the causes of First Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the causes of First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਘੇਰਾਓ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਣ-ਬੁੱਝ ਕੇ ਅਜਿਹੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਅਪਣਾਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਅੰਤ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ (British Policy of Encircling the Punjab) – ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਾਫ਼ੀ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਵੇਖ ਰਹੇ ਸਨ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਰਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਦੇ ਪਾਰ ਵੱਲ ਵਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । 1835-36 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1835 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜੀ ਛਾਉਣੀ ਕਾਇਮ ਕਰ ਲਈ ਸੀ । ਇਸੇ ਸਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੰਧ ਵੱਲ ਵੱਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪ ਕਰਨਾ ਹੁਣ ਕੁਝ ਹੀ ਦਿਨਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਰਹਿ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਨੂੰ ਟਾਲਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

2. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਬਦਅਮਨੀ (Anarchy in the Punjab) – ਜੂਨ, 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬਦਅਮਨੀ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ । ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਦੌਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । 1839 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1845 ਈ. ਦੇ 6 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ 5 ਸਰਕਾਰਾਂ ਬਦਲੀਆਂ । ਡੋਗਰਿਆਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਾਜ਼ਸਾਂ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਨੂੰ ਬਰਬਾਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਸੁਨਹਿਰੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

3. ਪਹਿਲੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ (Defeat of the British in the First Afghan War) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ (1839-42 ਈ.) ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਭਾਰੀ ਵਿਨਾਸ਼ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਆਪਣੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਹਾਰ ਦੀ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਧੋਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਜਿੱਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਹੀ ਮਿਲ ਸਕਦੀ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਹੁਤ ਡਾਵਾਂਡੋਲ ਸੀ ।

4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਮਿਲਾਉਣਾ (Annexation of Sind by the British) – ਸਿੰਧ ਦਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ, ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤਣਾਉ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰੀਆਂ (Military preparations by the Britishers-1844) – ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਸੰਭਾਲਣ ਮਗਰੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਜੰਗੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਨੇ ਕਰਨਲ ਰਿਚਮੋਂਡ ਦੀ ਥਾਂ ਲੜਾਕੂ ਸੁਭਾਅ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਉੱਤਰਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਲਾਰਡ ਗਫ਼ ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨਚੀਫ਼ ਸੀ ਨੇ ਅੰਬਾਲੇ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਹੈਡਕੁਆਰਟਰ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਲਿਆ । ਮਾਰਚ, 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਭਾਗਾਂ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਸੈਨਿਕ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ, ਲੁਧਿਆਣਾ ਅਤੇ ਅੰਬਾਲਾ ਭੇਜੇ ਗਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੋ ਗਈ ।

6. ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ (Appointment of Major Broadfoot) – ਨਵੰਬਰ, 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਮਿਸਟਰ ਕਲਾਰਕ ਦੀ ਥਾਂ ਲੁਧਿਆਣੇ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਕੱਟੜ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸੀ । ਉਹ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਲੈ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਰਹੱਦ ‘ਤੇ ਆਇਆ ਸੀ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ । ਡਾਕਟਰ ਫ਼ੌਜਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਿੱਚ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਵਜੋਂ ਨਿਯੁਕਤੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਗਿਣੀ-ਮਿਥੀ ਚਾਲ ਸੀ ਜਿਹੜੀ ਪੰਜਾਬ ਨਾਲ ਛੇਤੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਰੱਖ ਕੇ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।” 1
ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।

7. ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲੋਂ ਲੜਾਈ ਲਈ ਉਕਸਾਹਟ (Incitement for War by Lal Singh and Teja Singh) – ਜਵਾਹਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਨਵਾਂ ਵਜ਼ੀਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਭਰਾ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਅੰਦਰ ਖਾਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਉਹ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇਸ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਲੜਵਾ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ | ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਹੀ ਉਹ ਆਪਣੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਕਾਇਮ ਰਹਿ ਸਕਣਗੇ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਭੜਕਾਉਣ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੇ 11 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕੀਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਉਡੀਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ 13 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਯੁੱਧ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਖੇਤਰਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ (Events and Results of the War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਘਟਨਾਵਾਂ ਕਿਹੜੀਆਂ ਸਨ ? ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What were the main events of the First Anglo-Sikh War ? Briefly explain the consequences of this War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । (Study the events and results of the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਚਾਲਾਕ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ 11 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸੇ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਾੜ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਅਤੇ 13 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਯੁੱਧ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੁਰਗਾਮੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ । ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

(ਉ) ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ, (Events of the War)

1. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Mudki) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 5,500 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਅਜਿਹਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਜੜ ਪੈ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਕੁਝ ਸੈਨਿਕ ਲੈ ਕੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਸੀਤਾ ਰਾਮ ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਇਸ ਵੱਧ ਰਹੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨੂੰ ਗਲਤ ਸਾਬਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨਾ ਕੋਈ ਔਖਾ ਕੰਮ ਨਹੀ ਹੈ ।” 1

2. ਫਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ferozeshah) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੂਸਰੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਖੇ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊ ਗਫ਼, ਜਾਂਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ਕਿ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਆ ਗਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ਰਤ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟਣ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਠੀਕ ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਗੱਦਾਰੀ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਰਣਭੂਮੀ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤੀ ਹੋਈ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਹਾਰ ਗਈ । ਜਨਰਲ ਹੈਵਲਾਕ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ,
“ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਲੜਾਈ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਹਿਲਾ ਦੇਵੇਗੀ ।” 1

3. ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Baddowal) – ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ 10,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਤੋਂ 18 ਮੀਲ ਦੂਰ ਸਥਿਤ ਬੱਦੋਵਾਲ ਪੁੱਜਾ । 21 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਬੜੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਲੜੇ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਥਿਆਰ ਅਤੇ ਖ਼ੁਰਾਕ ਸਾਮਗਰੀ ਵੀ ਲੁੱਟ ਲਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਹਾਰ ਕੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵੱਲ ਨੱਸ ਗਏ ।

4. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Aliwal) – ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਅਲੀਵਾਲ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ | ਅਲੀਵਾਲ ਵਿਖੇ ਸਿੱਖ ਹਾਲੇ ਆਪਣੇ ਮੋਰਚੇ ਲਗਾ ਰਹੇ ਸਨ ਕਿ ਅਚਾਨਕ 28 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਅਧੀਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ।

5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Sobraon) – 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ 30,000 ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਸਭਰਾਉਂ ਪੁੱਜ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁਲ ਗਿਣਤੀ 15,000 ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਐਨ ਇਸੇ ਵੇਲੇ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਬਣਾਈ ਯੋਜਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨੋਂ ਨੱਸ ਤੁਰੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਖਿੰਡਰਨ ਲੱਗ ਪਈ । ਅਜਿਹੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅੱਗੇ ਆਏ । ਉਸ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇਖ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵੀ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ ਸਨ | ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਟੁੱਟ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਤ ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ | ਐੱਚ. ਐੱਸ. ਭਾਟੀਆ ਅਤੇ ਐੱਸ. ਆਰ. ਬਖ਼ਸ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹਰੇਕ ਪੱਖੋਂ ਨਿਰਣਾਇਕ ਸੀ ।” 2

(ਅ) ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ (Results of the War)

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਕਾਰ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ ।

ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ (Treaty of Lahore)

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਦਾ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣੀ ਰਹੇਗੀ ।
  2. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  3. ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਤੇ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਾਰੇ ਮੈਦਾਨੀ ਤੇ ਪਹਾੜੀ ਇਲਾਕੇ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜ਼ਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਇੰਨੀ ਰਕਮ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਨਹੀ ਮਿਲ ਸਕਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਇੱਕ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੇ ਬਦਲੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤੇ ।
  5. ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੀ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  6. ਜਦ ਕਦੇ ਲੋੜ ਪਵੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਰੁਕਾਵਟ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਦੀ ਲੰਘ ਸਕਣਗੀਆਂ ।
  7. ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਇਕਰਾਰ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮਨਜ਼ੂਰੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼, ਯੂਰਪੀਅਨ ਜਾਂ ਅਮਰੀਕਨ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਰੱਖੇਗਾ ।
  8. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  9. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦਖ਼ਲ ਨਹੀਂ ਦੇਵੇਗੀ ਪਰ ਜਿੱਥੇ ਕਿਤੇ ਜ਼ਰੂਰੀ : ਹੋਇਆ ਉੱਥੇ ਲੋੜੀਂਦੀ ਸਲਾਹ ਦੇਵੇਗੀ ।
  10. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਆਗਿਆ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਵਿੱਚ ਅਦਲਾ-ਬਦਲੀ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗੀ ।

ਸਹਾਇਕ ਸੰਧੀ (Supplementary Treaty)

ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਭਾਵ 11 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇਸ ਸੰਧੀ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਸਹਾਇਕ ਸ਼ਰਤਾਂ ਜੋੜੀਆਂ ਗਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਦੀ ਲੋੜੀਂਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ 1846 ਈ. ਦੇ ਅੰਤ ਤਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਸੈਨਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਰਹੇਗੀ ।
  2. ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇਗਾ । ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰੇਗੀ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਸਾਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਦੇਵੇਗੀ ।
  3. ਦੋਨੋਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਮੁਕਰਰ ਕਰਨ ਲਈ ਛੇਤੀ ਹੀ ਆਪਣੇ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨਗੀਆਂ ।

ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ (Treaty of Bhairowal)

ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਸੰਧੀ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਸੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰੇਗੀ ।
  2. ਜਦ ਤਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨਾਬਾਲਿਗ ਰਹੇਗਾ ਰਾਜ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਅੱਠ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਕੌਂਸਲ ਆਫ਼ ਰੀਜੈਂਸੀ ਦੁਆਰਾ ਚਲਾਇਆ ਜਾਏਗਾ ।
  3. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ-ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਹੋਇਆ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਮਿਲੇਗੀ ।
  4. ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਰਹੇਗੀ !
  5. ਜੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਰਾਜਧਾਨੀ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝੇ ਤਾਂ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਿਕ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਜਾਂ ਸੈਨਿਕ ਛਾਉਣੀ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਸਕਣਗੇ ।
  6. ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਦੇ ਖ਼ਰਚ ਲਈ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਹਰ ਸਾਲ ਦੇਵੇਗਾ ।
  7. ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬਾਲਿਗ ਹੋਣ ਤਕ ਅਰਥਾਤ 4 ਸਤੰਬਰ, 1854 ਈ. ਤਕ ਲਾਗੂ ਰਹਿਣਗੀਆਂ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੇਖਕ ਡਾਕਟਰ ਜੀ. ਐੱਸ. ਛਾਬੜਾ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ,
    “ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਮੌਤ ਦੀ ਘੰਟੀ ਵਜਾ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਇਸ ਸੰਧੀ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਅਸਲ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।” 1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ Causes and Results of the First Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ ਦੱਸੋ । (Discuss the causes and results of the First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਅਤੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe the causes and the results of the First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the causes and results of the First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? (What were the causes of the First Anglo-Sikh War ? What were the consequences of this war ?
ਉੱਤਰ-

  1. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।
  2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਸਥਿਰਤਾ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਆਪਣੀ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  4. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਲੜਵਾ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  5. 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਨੇ ਬਲਦੀ ‘ਤੇ ਤੇਲ ਪਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ।

ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਹਰਾ ਦੇਣਗੇ, ਪਰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਹਫੜਾ-ਦਫੜੀ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ, ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss in brief the causes, events and results of the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਘੇਰਾਓ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਣ-ਬੁੱਝ ਕੇ ਅਜਿਹੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਅਪਣਾਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਅੰਤ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ (British Policy of Encircling the Punjab) – ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਾਫ਼ੀ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਵੇਖ ਰਹੇ ਸਨ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਰਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਦੇ ਪਾਰ ਵੱਲ ਵਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । 1835-36 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1835 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜੀ ਛਾਉਣੀ ਕਾਇਮ ਕਰ ਲਈ ਸੀ । ਇਸੇ ਸਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੰਧ ਵੱਲ ਵੱਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪ ਕਰਨਾ ਹੁਣ ਕੁਝ ਹੀ ਦਿਨਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਰਹਿ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਨੂੰ ਟਾਲਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

2. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਬਦਅਮਨੀ (Anarchy in the Punjab) – ਜੂਨ, 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬਦਅਮਨੀ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ । ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਦੌਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । 1839 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1845 ਈ. ਦੇ 6 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ 5 ਸਰਕਾਰਾਂ ਬਦਲੀਆਂ । ਡੋਗਰਿਆਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਾਜ਼ਸਾਂ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਨੂੰ ਬਰਬਾਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਸੁਨਹਿਰੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

3. ਪਹਿਲੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ (Defeat of the British in the First Afghan War) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ (1839-42 ਈ.) ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਭਾਰੀ ਵਿਨਾਸ਼ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਆਪਣੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਹਾਰ ਦੀ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਧੋਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਜਿੱਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਹੀ ਮਿਲ ਸਕਦੀ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਹੁਤ ਡਾਵਾਂਡੋਲ ਸੀ ।

4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਮਿਲਾਉਣਾ (Annexation of Sind by the British) – ਸਿੰਧ ਦਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ, ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤਣਾਉ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰੀਆਂ (Military preparations by the Britishers-1844) – ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਸੰਭਾਲਣ ਮਗਰੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਜੰਗੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਨੇ ਕਰਨਲ ਰਿਚਮੋਂਡ ਦੀ ਥਾਂ ਲੜਾਕੂ ਸੁਭਾਅ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਉੱਤਰਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਲਾਰਡ ਗਫ਼ ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨਚੀਫ਼ ਸੀ ਨੇ ਅੰਬਾਲੇ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਹੈਡਕੁਆਰਟਰ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਲਿਆ । ਮਾਰਚ, 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਭਾਗਾਂ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਸੈਨਿਕ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ, ਲੁਧਿਆਣਾ ਅਤੇ ਅੰਬਾਲਾ ਭੇਜੇ ਗਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੋ ਗਈ ।

6. ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ (Appointment of Major Broadfoot) – ਨਵੰਬਰ, 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਮਿਸਟਰ ਕਲਾਰਕ ਦੀ ਥਾਂ ਲੁਧਿਆਣੇ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਕੱਟੜ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸੀ । ਉਹ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਲੈ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਰਹੱਦ ‘ਤੇ ਆਇਆ ਸੀ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ । ਡਾਕਟਰ ਫ਼ੌਜਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਿੱਚ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਵਜੋਂ ਨਿਯੁਕਤੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਗਿਣੀ-ਮਿਥੀ ਚਾਲ ਸੀ ਜਿਹੜੀ ਪੰਜਾਬ ਨਾਲ ਛੇਤੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਰੱਖ ਕੇ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।” 1
ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।

7. ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲੋਂ ਲੜਾਈ ਲਈ ਉਕਸਾਹਟ (Incitement for War by Lal Singh and Teja Singh) – ਜਵਾਹਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਨਵਾਂ ਵਜ਼ੀਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਭਰਾ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਅੰਦਰ ਖਾਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਉਹ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇਸ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਲੜਵਾ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ | ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਹੀ ਉਹ ਆਪਣੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਕਾਇਮ ਰਹਿ ਸਕਣਗੇ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਭੜਕਾਉਣ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੇ 11 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕੀਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਉਡੀਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ 13 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਯੁੱਧ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਖੇਤਰਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਚਾਲਾਕ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ 11 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸੇ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਾੜ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਅਤੇ 13 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਯੁੱਧ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੁਰਗਾਮੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ । ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

(ਉ) ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ, (Events of the War)

1. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Mudki) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 5,500 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਅਜਿਹਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਜੜ ਪੈ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਕੁਝ ਸੈਨਿਕ ਲੈ ਕੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਸੀਤਾ ਰਾਮ ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਇਸ ਵੱਧ ਰਹੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨੂੰ ਗਲਤ ਸਾਬਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨਾ ਕੋਈ ਔਖਾ ਕੰਮ ਨਹੀ ਹੈ ।” 1

2. ਫਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ferozeshah) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੂਸਰੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਖੇ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊ ਗਫ਼, ਜਾਂਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ਕਿ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਆ ਗਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ਰਤ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟਣ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਠੀਕ ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਗੱਦਾਰੀ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਰਣਭੂਮੀ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤੀ ਹੋਈ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਹਾਰ ਗਈ । ਜਨਰਲ ਹੈਵਲਾਕ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ,
“ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਲੜਾਈ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਹਿਲਾ ਦੇਵੇਗੀ ।” 1

3. ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Baddowal) – ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ 10,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਤੋਂ 18 ਮੀਲ ਦੂਰ ਸਥਿਤ ਬੱਦੋਵਾਲ ਪੁੱਜਾ । 21 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਬੜੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਲੜੇ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਥਿਆਰ ਅਤੇ ਖ਼ੁਰਾਕ ਸਾਮਗਰੀ ਵੀ ਲੁੱਟ ਲਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਹਾਰ ਕੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵੱਲ ਨੱਸ ਗਏ ।

4. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Aliwal) – ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਅਲੀਵਾਲ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ | ਅਲੀਵਾਲ ਵਿਖੇ ਸਿੱਖ ਹਾਲੇ ਆਪਣੇ ਮੋਰਚੇ ਲਗਾ ਰਹੇ ਸਨ ਕਿ ਅਚਾਨਕ 28 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਅਧੀਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ।

5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Sobraon) – 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ 30,000 ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਸਭਰਾਉਂ ਪੁੱਜ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁਲ ਗਿਣਤੀ 15,000 ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਐਨ ਇਸੇ ਵੇਲੇ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਬਣਾਈ ਯੋਜਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨੋਂ ਨੱਸ ਤੁਰੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਖਿੰਡਰਨ ਲੱਗ ਪਈ । ਅਜਿਹੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅੱਗੇ ਆਏ । ਉਸ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇਖ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵੀ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ ਸਨ | ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਟੁੱਟ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਤ ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ | ਐੱਚ. ਐੱਸ. ਭਾਟੀਆ ਅਤੇ ਐੱਸ. ਆਰ. ਬਖ਼ਸ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹਰੇਕ ਪੱਖੋਂ ਨਿਰਣਾਇਕ ਸੀ ।” 2

(ਅ) ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ (Results of the War)

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਕਾਰ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ ।

ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ (Treaty of Lahore)

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਦਾ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣੀ ਰਹੇਗੀ ।
  2. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  3. ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਤੇ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਾਰੇ ਮੈਦਾਨੀ ਤੇ ਪਹਾੜੀ ਇਲਾਕੇ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜ਼ਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਇੰਨੀ ਰਕਮ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਨਹੀ ਮਿਲ ਸਕਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਇੱਕ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੇ ਬਦਲੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤੇ ।
  5. ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੀ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  6. ਜਦ ਕਦੇ ਲੋੜ ਪਵੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਰੁਕਾਵਟ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਦੀ ਲੰਘ ਸਕਣਗੀਆਂ ।
  7. ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਇਕਰਾਰ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮਨਜ਼ੂਰੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼, ਯੂਰਪੀਅਨ ਜਾਂ ਅਮਰੀਕਨ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਰੱਖੇਗਾ ।
  8. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  9. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦਖ਼ਲ ਨਹੀਂ ਦੇਵੇਗੀ ਪਰ ਜਿੱਥੇ ਕਿਤੇ ਜ਼ਰੂਰੀ : ਹੋਇਆ ਉੱਥੇ ਲੋੜੀਂਦੀ ਸਲਾਹ ਦੇਵੇਗੀ ।
  10. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਆਗਿਆ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਵਿੱਚ ਅਦਲਾ-ਬਦਲੀ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗੀ ।

ਸਹਾਇਕ ਸੰਧੀ (Supplementary Treaty)

ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਭਾਵ 11 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇਸ ਸੰਧੀ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਸਹਾਇਕ ਸ਼ਰਤਾਂ ਜੋੜੀਆਂ ਗਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਦੀ ਲੋੜੀਂਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ 1846 ਈ. ਦੇ ਅੰਤ ਤਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਸੈਨਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਰਹੇਗੀ ।
  2. ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇਗਾ । ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰੇਗੀ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਸਾਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਦੇਵੇਗੀ ।
  3. ਦੋਨੋਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਮੁਕਰਰ ਕਰਨ ਲਈ ਛੇਤੀ ਹੀ ਆਪਣੇ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨਗੀਆਂ ।

ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ (Treaty of Bhairowal)

ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਸੰਧੀ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਸੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰੇਗੀ ।
  2. ਜਦ ਤਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨਾਬਾਲਿਗ ਰਹੇਗਾ ਰਾਜ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਅੱਠ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਕੌਂਸਲ ਆਫ਼ ਰੀਜੈਂਸੀ ਦੁਆਰਾ ਚਲਾਇਆ ਜਾਏਗਾ ।
  3. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ-ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਹੋਇਆ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਮਿਲੇਗੀ ।
  4. ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਰਹੇਗੀ !
  5. ਜੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਰਾਜਧਾਨੀ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝੇ ਤਾਂ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਿਕ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਜਾਂ ਸੈਨਿਕ ਛਾਉਣੀ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਸਕਣਗੇ ।
  6. ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਦੇ ਖ਼ਰਚ ਲਈ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਹਰ ਸਾਲ ਦੇਵੇਗਾ ।
  7. ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬਾਲਿਗ ਹੋਣ ਤਕ ਅਰਥਾਤ 4 ਸਤੰਬਰ, 1854 ਈ. ਤਕ ਲਾਗੂ ਰਹਿਣਗੀਆਂ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੇਖਕ ਡਾਕਟਰ ਜੀ. ਐੱਸ. ਛਾਬੜਾ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ,
    “ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਮੌਤ ਦੀ ਘੰਟੀ ਵਜਾ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਇਸ ਸੰਧੀ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਅਸਲ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।” 1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨਾਂ ਦੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief description of the main causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਨਾਂ ਬਾਰੇ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Describe the three main causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Briefly describe the three causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss the causes responsible for the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।
  2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਸਥਿਰਤਾ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਆਪਣੀ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  4. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਲੜਵਾ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  5. 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਨੇ ਬਲਦੀ ‘ਤੇ ਤੇਲ ਪਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the battle of Mudki.)
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਹਰਾ ਦੇਣਗੇ, ਪਰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਹਫੜਾ-ਦਫੜੀ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੁਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the battle of Ferozshah or Pherushahar ?)
ਉੱਤਰ-
-ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੁਸ਼ਹਿਰ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਜਾਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ | ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਗੱਦਾਰ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਅੰਤ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the battle of Sobraon.)
ਉੱਤਰ-
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਿਮ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫੌਜ਼ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ | ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਦੰਦ ਖੱਟੇ ਕੀਤੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਸੰਬੰਧੀ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the Treaty of Lahore ?)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਕਾਰ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਇਹ ਸਨ-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਆਪਣੇ ਤੇ ਆਪਣੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ ।
  2. ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਤੇ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਾਰੇ ਇਲਾਕੇ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਸੰਬੰਧੀ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the Treaty of Bhairowal ?)
ਜਾਂ
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Treaty of Bhairowal.)
ਜਾਂ
ਭੈਰੋਵਾਲ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਲਿਖੋ । (Write the main clauses of the Treaty of Bhairowal.)
ਉੱਤਰ-
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਾਲੇ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਇੱਕ ਅੱਠ ਮੈਂਬਰੀ ਕੌਂਸਲ ਬਣਾਈ ਗਈ । ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿਵਸਥਾ ਤੋਂ ਅਲੱਗ ਕਰਕੇ ਉਸ ਦੀ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਨਿਸਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਅਤੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਰੱਖਣ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ਕਤੀਹੀਨ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।

ਪਸ਼ਨ 7.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । (Study in brief the results of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give in brief the results of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? (What were the results of the First Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  2. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰੇਗੀ ।
  5. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ-ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Sham Singh Attariwala.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਇੱਕ ਅਣਖੀਲੇ ਯੋਧੇ ਸਨ । 18 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਵੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋ ਗਏ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਵੀ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਜੋ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ਅਚਾਨਕ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਨੱਸ । ਤੁਰੇ । ਅਜਿਹੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅੱਗੇ ਆਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਲਲਕਾਰਿਆ ਤੇ ਕਿਹਾ, “ਜਿੱਤੋ ਜਾਂ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਜਾਓ” ਅੰਤ ਉਹ ਲੜਦੇ-ਲੜਦੇ ਸ਼ਹੀਦੀ ਪਾ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਪਿੱਛੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ? (Why the British did not annex the Punjab to their empire after the First Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਇਸ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਤਾਂ ਇਹ ਸੈਨਿਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦਾ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਬਣ ਸਕਦੇ ਹਨ ।
  2. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਹੇ ।
  3. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਹੇਠ ਰੱਖਣ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰੱਖਣਾ ਪੈਣਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖ਼ਰਚੇ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਵਾਧਾ ਹੋ ਜਾਣਾ ਸੀ ।
  4. ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਪ੍ਰਾਂਤ ਆਰਥਿਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਿੱਧ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ।
  5. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਬਜਾਏ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਸੋਮਾ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Mention five causes of the Sikhs’ defeat in the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ ।
  2. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਜਿਹੜੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਅਫ਼ਸਰ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਸਨ ਉਹ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਭੇਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਤਾਕਤ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸਾਧਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਨ ।
  5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਬੜਾ ਤਜਰਬਾ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਵਸਤੂਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਕਿਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਕਦੋਂ ਤਕ ਰਾਜ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
1843 ਈ. ਤੋਂ 1849 ਈ. ਤਕ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਪਹਿਲੇ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

ਪਸ਼ਨ 4.
ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ?
ਜਾਂ
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
ਜਾਂ
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
1845-46 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ !.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਚਾਰੇ ਪਾਸਿਉਂ ਘੇਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
8 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੁਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਕਿਹੜਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨੇਤਾ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਲੜਦਾ ਹੋਇਆ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਿਹੜੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਕਿਹੜੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
9 ਮਾਰਚ , 1846 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
16 ਦਸੰਬਰ , 1846 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਇੱਕ ਬਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਕਰੇਗਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਕਿਸ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਨੇਤਾ ਗੱਦਾਰ ਸਨ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ –

1. 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ………………………… ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਖੜਕ ਸਿੰਘ)

2. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ……………………… ਵਿੱਚ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1843 ਈ.)

3. ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ………………………. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1845-46 ਈ.)

4. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ …………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ)

5. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ……………………. ਸੀ
ਉੱਤਰ-
(ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ)

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6. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਲ ਸਿੰਘ)

7. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸਰਵ-ਉੱਚ ਕਮਾਂਡਰ ……………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗ਼ਫ)

8. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ……………………. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.)

9. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ………………………… ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.)

10. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ …………………….. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ.)

11. ਪਹਿਲੇ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਅੰਤ …………………….. ਦੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸਭਰਾਉਂ)

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12. ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ……………………. ਦੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਹੌਰ)

13. ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ …………………….. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ.)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ 1947 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

2. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

3. ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਐਲਨਬਰੋ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗਵਰਨਰ ਜਨਰਲ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨ-ਚੀਫ਼ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

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6. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

8. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

9. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

10. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

11. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

12. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਜੇਤੂ ਰਹੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

13. ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

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14. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

15. ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪਹਿਲੇ ਜਾਂ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ
(iv) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ
(ii) ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ
(iii) ਲਾਰਡ ਰਿਪਨ
(iv) ਲਾਰਡ ਡਫ਼ਰਿਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ?
(i) 183940 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1841-42 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 184344 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1845-46 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1845-46 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਅਹੁੱਦੇ ‘ਤੇ ਸੀ ?
(i) ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ
(ii) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ
(iii) ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ
(iv) ਦੀਵਾਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਸੈਨਾਪਤੀ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ
(iii) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ
(iv) ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਕਦੋਂ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ?
(i) 1842 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1843 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1844 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗਵਰਨਰ ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤੀ ?
(i) 1848 ਈ.
(ii) 1849 ਈ.
(iii) 1865 ਈ.
(iv) 1845 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਪਹਿਲੇ ਜਾਂ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨ-ਚੀਫ਼ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਲਾਰਡ ਹਿਊ ਗਫ਼
(ii) ਲਾਰਡ ਡਫ਼ਰਨ
(iii) ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ
(iv) ਰਾਬਰਟ ਕਸਟ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਲਾਰਡ ਹਿਊ ਗਫ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) 12 ਦਸੰਬਰ, 1844 ਈ.
(ii) 12 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(iii) 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(iv) 18 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(ii) 19 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(iii) 20 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(iv) 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(ii) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ.
(iii) 15 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ.
(iv) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1847 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਕਿਹੜੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ?
(i) ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ
(ii) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ
(iii) ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ
(iv) ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1845 ਈ.
(ii) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ.
(iii) 7 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ.
(iv) 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਕਿਸ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ?
(i) ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(ii) ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(iii) ਹੀਰਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(iv) ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ.
(ii) 11 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ.
(iii) 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ.
(iv) 26 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. 1842 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਆਕਲੈਂਡ ਦੀ ਥਾਂ ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੀ ਹਾਰ ਨਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹੋਈ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਇਲਾਕਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਸਿੰਧ ਦੇ ਅਮੀਰ ਭਾਵੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪੱਕੇ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਸਨ, ਪਰ ਐਲਨਬਰੋ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਝੂਠੇ ਇਲਜ਼ਾਮ ਲਗਾ ਕੇ ਸਿੰਧ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਾਈ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਕੁੜੱਤਣ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਈ ।

1. ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਕੌਣ ਸੀ?
2. ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕਦੋਂ ਬਣਿਆ ?
(i) 1812 ਈ.
(ii) 1822 ਈ.
(iii) 1832 ਈ.
(iv) 1842 ਈ. ।
3. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਿਉਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ?
4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਕਦੋਂ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ?
5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ੇ ਦਾ ਕੀ ਸਿੱਟਾ ਨਿਕਲਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਸੀ ।
2. 1842 ਈ. ।
3. ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੰਧ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ ।
4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।
5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ੇ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਤਨਾਅ ਆ ਗਿਆ ।

2. ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੂਸਰੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਖੇ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਹ ਸਥਾਨ ਮੁਦਕੀ ਤੋਂ 10 ਮੀਲ ਦੇ ਫਾਸਲੇ ‘ਤੇ ਸਥਿਤ ਹੈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਲੜਾਈ ਲਈ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਤਿਆਰ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ, ਅੰਬਾਲਾ ਅਤੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਤੋਂ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਬੁਲਾ ਲਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 17,000 ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਬੜੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਅਤੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਜਾਂਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 25,000 ਤੋਂ 30,000 ਦੇ ਲਗਭਗ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ

ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਪੂਰਾ ਯਕੀਨ ਸੀ ਕਿ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਉਹ ਇਸ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਜਿੱਤ ਲੈਣਗੇ । ਪਰ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ਕਿ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਡਾਵਾਂਡੋਲ ਹੁੰਦਾ ਨਜ਼ਰ ਆਇਆ ।

1. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
2. ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕੌਣ ਸੀ?
3. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਿਸਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
4. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ …………………….. ਸੀ ।
5. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
2. ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ।
3. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
4. 17,000.
5. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

3. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।ਇਹ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ 30,000 ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਸਭਰਾਉਂ ਪੁੱਜ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮੋਰਚੇ ਤਿਆਰ ਕਰਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਸਨ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਜੋ ਕਿ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ਮਿੰਟ-ਮਿੰਟ ਦੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਹੁੰਚਾ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਵੀ ਚੰਗੀ ਤਿਆਰੀ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁੱਲ ਗਿਣਤੀ 15,000 ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਜਵਾਬੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਪਿੱਛੇ ਹਟਣਾ ਪਿਆ | ਐਨ ਇਸੇ ਵੇਲੇ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਬਣਾਈ ਯੋਜਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਪਹਿਲਾਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫਿਰ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨੋਂ ਨੱਸ ਤੁਰੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨੱਸਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਬਾਰਦ ਨਾਲ ਭਰੀਆਂ ਬੇੜੀਆਂ ਡੁਬੋ ਦਿੱਤੀਆਂ ਅਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਬੇੜੀਆਂ ਦੇ ਬਣੇ ਪੁਲ ਨੂੰ ਵੀ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ।

1. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਕਿਹੜੀ ਲੜਾਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ?
2. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
3. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ …………………….. ਅਤੇ …………………….. ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
4. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ?
5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਸਿੱਖ ਆਗੂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲੇ-ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ-ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਲੜੀ ਗਈ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।
2. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
3. ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ।
4. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।
5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਆਪਣੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਕਿਵੇਂ ਵਰਣਨ ਕਰੋਗੇ ? (How do you describe about Maharaja Ranjit Singh as a man ?)
ਜਾਂ
ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Ranjit Singh as a Man ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਬਾਰੇ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Write about the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਭਾਵੇਂ ਅਨਪੜ੍ਹ ਸੀ ਪਰ ਉਹ ਬੜੀ ਤੀਖਣ ਬੁੱਧੀ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਭੂਗੋਲਿਕ ਸਥਿਤੀ ਜ਼ਬਾਨੀ ਯਾਦ ਸੀ ।ਉਹ ਜਿਸ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਾਰ ਵੇਖ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ਉਸ ਨੂੰ ਕਈ ਸਾਲਾਂ ਮਗਰੋਂ ਵੀ ਪਛਾਣ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ! ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਬੜਾ ਦਿਆਲੂ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨਾਲ ਕਦੇ ਵੀ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਵਰਤਾਓ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਦੇ ਵੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੱਚੇ ਸੇਵਕ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ ਅਤੇ ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ ਨਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕੇ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਵੱਲ ਵਤੀਰਾ ਬੜਾ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰਿਆ ਸੀ । ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਬਰਾਬਰੀ ਵਾਲਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੀ | ਮਹਾਰਾਜਾ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦਿਲ ਖੋਲ੍ਹ ਕੇ ਦਾਨ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਛੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the six features of Maharaja Ranjit Singh as a Man ?)
ਉੱਤਰ-

  • ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ ਬਹੁਤੀ ਖਿੱਚ ਭਰਪੂਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕੱਦ ਦਰਮਿਆਨਾ ਅਤੇ ਜਿਸਮ ਪਤਲਾ ਸੀ | ਬਚਪਨ ਵਿੱਚ ਚੇਚਕ ਨਿਕਲ ਆਉਣ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦੀ ਇੱਕ ਅੱਖ ਵੀ ਮਾਰੀ ਗਈ ਸੀ । ਪਰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਵਿਅਕਤਿੱਤਵ ਵਿੱਚ ਇੰਨੀ ਖਿੱਚ ਸੀ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਮਿਲਣ ਵਾਲਾ ਵਿਅਕਤੀ ਉਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਬਿਨਾਂ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਸਕਦਾ ਸੀ ।
  • ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਵੇਰ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਰਾਤ ਦੇਰ ਤਕ ਰਾਜ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਰੁੱਝਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਵੱਡੇ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਕੰਮ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਛੋਟੇ ਤੋਂ ਛੋਟੇ ਕੰਮ ਵੱਲ ਨਿੱਜੀ ਧਿਆਨ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।
  • ਸਾਹਸੀ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸਾਹਸੀ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ ਵਿਅਕਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਯੁੱਧਾਂ ਵਿੱਚ ਜਾਣ, ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡਣ, ਤਲਵਾਰ ਚਲਾਉਣ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰੀ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕ ਸੀ । ਉਹ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵੀ ਬਿਲਕੁਲ ਘਬਰਾਉਂਦਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਹੋ ਕੇ ਲੜਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਿਆਲੂ ਸੁਭਾਅ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਦਿਆਲਤਾ ਕਾਰਨ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨਾਲ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਵਰਤਾਓ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਹ ਗ਼ਰੀਬਾਂ, ਦੁਖੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ।
  • ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ‘ਤੇ ਅਟੱਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਅਤੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ‘ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਜੀ’ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
  • ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਸਰਪ੍ਰਸਤ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪ ਭਾਵੇਂ ਅਨਪੜ੍ਹ ਸੀ ਪਰ ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਲਈ ਅਨੇਕਾਂ ਸਕੂਲ ਖੋਲੇ । ਆਪ ਨੇ ਫ਼ਾਰਸੀ, ਅਰਬੀ, ਹਿੰਦੀ ਅਤੇ ਗੁਰਮੁਖੀ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਅਨੁਦਾਨ ਅਤੇ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਦਿਆਲੂ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ । ਕਿਵੇਂ ? (Maharaja Ranjit Singh was a kind ruler. How ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਦਿਆਲਤਾ ਕਾਰਨ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਿੱਖ ਮਿਸਲਦਾਰਾਂ, ਰਾਜਪੂਤ ਰਾਜਿਆਂ, . ਪਠਾਣ ਹਾਕਮਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਬਾਦਸ਼ਾਹਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ-ਇੱਕ ਕਰਕੇ ਜਿੱਤਿਆ । ਕਮਾਲ ਦੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨਾਲ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਵਰਤਾਓ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਕਾਬਲ ਤੇ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜੋ ਤਾਜਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਬਣਦੇ ਰਹੇ, ਨਾ ਕੇਵਲ ਆਪਣੇ ਨਜ਼ਦੀਕੀ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਅਤੇ ਦਾਅਵੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਖੂਨ ਨਾਲ ਖੇਡਦੇ ਰਹੇ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਾਰਸਾਂ ਨੂੰ ਗਲੀ ਬਾਜ਼ਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਭੀਖ ਮੰਗਿਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਦਰ-ਬ-ਦਰ ਰੁਲਣ ਲਈ ਛੱਡਦੇ ਰਹੇ । ਅਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਇਸ ਸ਼ਾਸਕ ਨੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੂੰ ਮੈਦਾਨੇ ਜੰਗ ਵਿੱਚ ਹਰਾਇਆ ਨਾ ਕੇਵਲ ਗਲਵੱਕੜੀ ਲਾਇਆ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਔਲਾਦ ਨੂੰ ਵੀ ਜਾਗੀਰਾਂ ਤੇ ਖਿਲਅਤਾਂ ਨਾਲ ਨਿਵਾਜਿਆ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਉਹ ਗ਼ਰੀਬਾਂ, ਦੁਖੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਦਿਆਲਤਾ ਦੀਆਂ ਕਈ ਕਹਾਣੀਆਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Maharaja Ranjit Singh was a devoted follower of Sikhism. Give arguments in your favour.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ‘ਤੇ ਅਟੱਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਇੱਕ ਕਲਗੀ ਆਪਣੇ ਤੋਸ਼ੇਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਸੀ ਜਿਸ ਦੀ ਛੋਹ ਨੂੰ ਉਹ ਆਪਣੇ ਲਈ ਬੜਾ ਵਡਭਾਗਾ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਮਿਹਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤਾਂ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਉਹ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਜਾ ਕੇ ਭਾਰੀ ਚੜ੍ਹਾਵਾ ਚੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।

ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਖਵਾਉਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ‘ਸਿੰਘ ਸਾਹਿਬ’ ਅਖਵਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ ‘ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ’ ਅਤੇ ‘ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ‘ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ “ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕਾ ਖ਼ਾਲਸਾ ਅਤੇ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕੀ ਫ਼ਤਹਿ’ ਦਾ ਜੈਕਾਰਾ ਲਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸਰਕਾਰੀ ਕਾਰਜ ਲਈ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਸਹੁੰ ਚੁਕਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਬਣਵਾਈਆਂ ਅਤੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਵੱਡੀਆਂ-ਵੱਡੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਉਹ ਤਨੋ ਮਨੋ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੱਚੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਧਰਮ-ਨਿਰਪੇਖ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ । ਕਿਵੇਂ ? (Maharaja Ranjit Singh was a secular ruler. How ?)
ਉੱਤਰ-
ਭਾਵੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਧਾਰਮਿਕ ਪੱਖਪਾਤ ਅਤੇ ਫਿਰਕੂਪੁਣੇ ਤੋਂ ਕੋਹਾਂ ਦੂਰ ਸੀ । ਉਹ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸੀ ਕਿ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਚਿਰਸਥਾਈ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਲਈ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਨਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਡੋਗਰੇ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ ।

ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਫਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਮੁਸਲਮਾਨ, ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ, ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀਦਾਸ ਅਤੇ ਸੈਨਾਪਤੀ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਹਿੰਦੂ ਸਨ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ, ਕੋਰਟ, ਗਾਰਡਨਰ ਆਦਿ ਯੂਰਪੀਅਨ ਸਨ । ਦਾਨ ਦੇਣ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਿਸੇ ਧਰਮ ਦੇ ਨਾਲ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂ ਮੰਦਰਾਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਿਮ ਮਸੀਤਾਂ ਅਤੇ ਮਕਬਰਿਆਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਧਨ ਦਿੱਤਾ ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉਲੇਖ ਕਰੋ । (Describe Maharaja Ranjit Singh as an administrator.)
ਜਾਂ
ਇੱਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Maharaja Ranjit Singh as an administrator ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਯੋਗ ਅਤੇ ਈਮਾਨਦਾਰ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਚੰਗੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਵੱਡੇ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਮੌਜਾ ਜਾਂ ਪਿੰਡ ਸੀ ।ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਕਦੇ ਦਖ਼ਲਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪਰਜਾ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਕਦੇ ਅੱਖੋਂ ਉਹਲੇ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਰਾਜ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਯਤਨ ਕਰਨ । ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਕਸਰ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਰਾਜ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕਰਿਆ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਜਾ ਬੜੀ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
“ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਅਤੇ ਜੇਤੂ ਸੀ ।” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“Maharaja Ranjit Singh was a great general and conqueror.” Explain.)
ਜਾਂ
“ਇੱਕ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਜਰਨੈਲ” ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Ranjit Singh as a Soldier and a General ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸਮੇਂ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਜਿੰਨੀਆਂ ਵੀ ਲੜਾਈਆਂ ਲੜੀਆਂ, ਉਸ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਨਹੀਂ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਉਹ ਭਾਰੀ ਤੋਂ ਭਾਰੀ ਔਕੜ ਆਉਣ ‘ਤੇ ਵੀ ਕਦੇ ਘਬਰਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਭਲਾਈ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਵੀ ਮਹਾਰਾਜੇ ਲਈ ਆਪਣੀ ਜਾਨ ਕੁਰਬਾਨ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੇਤੁ ਵੀ ਸੀ । 1797 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਦੀ ਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਅਧੀਨ ਬਹੁਤ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਇਲਾਕਾ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰੀ ਸਦਕਾ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ।

ਲਾਹੌਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਕਸੂਰ, ਸਿਆਲਕੋਟ, ਕਾਂਗੜਾ, ਗੁਜਰਾਤ, ਜੰਮੂ, ਅਟਕ, ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਰਗੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਇਲਾਕਿਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਈ ਭਿਆਨਕ ਲੜਾਈਆਂ ਲੜਨੀਆਂ ਪਈਆਂ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਉੱਤਰ ਵਿੱਚ ਲੱਦਾਖ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ਤਕ ਅਤੇ ਪੂਰਬ ਵਿੱਚ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੱਛਮ ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਤਕ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ “ਸ਼ੇਰੇ ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (Why is Maharaja Ranjit Singh called Sher-i-Punjab ?)
ਜਾਂ
ਤੁਸੀਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਸਥਾਨ ਦਿਉਗੇ ? ਉਸ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰੇ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (What place would you assign in history to Ranjit Singh ? Why is he called Sher-iPunjab ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਭਾਰਤ ਬਲਿਕ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਮਹਾਨ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਮੁਗਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ, ਮਰਾਠਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸ਼ਿਵਾਜੀ, ਮਿਸਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਮਹਿਮਤ ਅਲੀ ਅਤੇ ਫ਼ਰਾਂਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨੈਪੋਲੀਅਨ ਆਦਿ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਨਿਰਪੱਖ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਵੱਧ ਸਨ । ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਾ ਉਸ ਦੇ ਕੋਲ ਸਿਰਫ਼ ਨਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ ! ਪਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇ ਨਾਲ ਇਸ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਨੂੰ ਸਾਕਾਰ ਕੀਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਹੀ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਪਰਜਾ ਦੇ ਦੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਲਸਮਾਨ, ਯੂਰੋਪੀਅਨ ਆਦਿ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਉੱਚੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸਹਿਨਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸੂਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਨਿਆ । ਉਹ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਦਾਨੀ ਵੀ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਵਿਸਥਾਰ ਲਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਵੀ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅੱਜ ਵੀ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ‘ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ’ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਗੌਰਵਮਈ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਚਰਿੱਤਰ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ haracter and Personality of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰਪੂਰਵਕ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain in detail the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe Ranjit Singh as a man.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ ਕਰੋ । (Give a character estimate of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ, ਇੱਕ ਜਰਨੈਲ, ਇੱਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ ਅਤੇ ਇੱਕ ਰਾਜਨੀਤੀਵਾਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ , ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Discuss Maharaja Ranjit Singh as a man, a general, a ruler and a diplomat.)
ਜਾਂ
ਤੁਸੀਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਥਾਂ ਦਿਉਗੇ ? ਉਸ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (What place would you assign to Ranjit Singh in the history ? Why is he called Sher-i-Punjab ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸਗੋਂ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਮਹਾਨ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਉਹ ਬਹੁਪੱਖੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਨੂੰ ਠੀਕ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸ਼ੇਰੇ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

(ਉ) ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ (As a Man)

1. ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ (Appearance) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ ਬਹੁਤੀ ਖਿੱਚ ਭਰਪੂਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕੱਦ ਦਰਮਿਆਨਾ ਅਤੇ ਜਿਸਮ ਪਤਲਾ ਸੀ । ਬਚਪਨ ਵਿੱਚ ਚੇਚਕ ਨਿਕਲ ਆਉਣ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦੀ ਇੱਕ ਅੱਖ ਵੀ ਮਾਰੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਵਿੱਚ ਇੰਨੀ ਖਿੱਚ ਸੀ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਮਿਲਣ ਵਾਲਾ ਵਿਅਕਤੀ ਉਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਬਿਨਾਂ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਚਿਹਰੇ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਖ਼ਾਸ ਕਿਸਮ ਦਾ ਤੇਜ ਅਤੇ ਜਲਾਲ ਟਪਕਦਾ ਸੀ ।

2. ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ (Hardworking and Active) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਸੀ । ਉਹ ਇਸ ਗੱਲ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਕਿ ਵੱਡੇ ਆਦਮੀਆਂ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਮਿਹਨਤੀ ਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਵੇਰ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਰਾਤ ਦੇਰ ਤਕ ਰਾਜ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਰੁੱਝਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਵੱਡੇ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਕੰਮ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਛੋਟੇ ਤੋਂ ਛੋਟੇ ਕੰਮ ਵੱਲ ਨਿਜੀ ਧਿਆਨ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।

3. ਸਾਹਸੀ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ (Courageous and Brave) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸਾਹਸੀ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ ਵਿਅਕਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਯੁੱਧਾਂ ਵਿੱਚ ਜਾਣ, ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡਣ, ਤਲਵਾਰ ਚਲਾਉਣ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰੀ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਛੋਟੇ ਹੁੰਦਿਆਂ ਹੀ ਹਸ਼ਮਤ ਖ਼ਾਂ ਚੱਠਾ ਦਾ ਸਿਰ ਵੱਢ ਕੇ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦਾ ਸਬੂਤ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਹ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵੀ ਬਿਲਕੁਲ ਘਬਰਾਉਂਦਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਹੋ ਕੇ ਲੜਦਾ ਸੀ ।

4. ਅਨਪੜ੍ਹ ਪਰ ਸਿਆਣਾ (Illiterate but Intelligent) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਿੱਚ ਦਿਲਚਸਪੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਅਨਪੜ੍ਹ ਹੀ ਰਿਹਾ । ਅਨਪੜ੍ਹ ਹੋਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਉਹ ਬਹੁਤ ਤੀਖਣ ਬੁੱਧੀ ਅਤੇ ਅਦਭੁਤ ਯਾਦ ਸ਼ਕਤੀ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਭੂਗੋਲਿਕ ਸਥਿਤੀ ਜ਼ਬਾਨੀ ਯਾਦ ਸੀ । ਉਹ ਜਿਸ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਾਰ ਦੇਖ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ਉਸ ਨੂੰ ਕਈ ਸਾਲਾਂ ਮਗਰੋਂ ਵੀ ਪਛਾਣ ਲੈਂਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਇੰਨੀ ਸੀ ਕਿ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਆਏ ਯਾਤਰੀ ਵੀ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

5. ਦਿਆਲੂ ਸੁਭਾਅ (Kind Hearted) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਦਿਆਲਤਾ ਕਾਰਨ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨਾਲ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਵਰਤਾਓ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਇਸ ਸ਼ਾਸਕ ਨੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੂੰ ਮੈਦਾਨੇ ਜੰਗ ਵਿੱਚ ਹਰਾਇਆ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਕੇਵਲ ਗਲਵੱਕੜੀ ਲਾਇਆ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਔਲਾਦ ਨੂੰ ਵੀ ਜਾਗੀਰਾਂ ਤੇ ਖਿਲਅਤਾਂ ਨਾਲ ਨਿਵਾਜਿਆ । ਉਹ ਗ਼ਰੀਬਾਂ, ਦੁਖੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਦਿਆਲਤਾ ਦੀਆਂ ਕਈ ਕਹਾਣੀਆਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ । ਉੱਘੇ ਲੇਖਕ ਫ਼ਕੀਰ ਸੱਯਦੇ ਵਹੀਦਉੱਦੀਨ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਲੋਕ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੀ ਤਸਵੀਰ ਇੱਕ ਜੇਤੂ ਨਾਇਕ ਜਾਂ ਇੱਕ ਬਲਵਾਨ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨਾਲੋਂ ਇੱਕ ਦਿਆਲੂ ਪਿਤਾਮਾ ਵਜੋਂ ਵਧੇਰੇ ਉਕਰਿਤ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਤਿੰਨੇ ਗੁਣ ਸਨ, ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਦਿਆਲਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਆਨ-ਸ਼ਾਨ ਤੇ ਰਾਜ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਪਿੱਛੇ ਛੱਡ ਆਈ ਹੈ ਅਤੇ ਅਜੇ ਤਕ ਜੀਵਿਤ ਹੈ ”1

6. ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ (A devoted follower of Sikhism) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ‘ਤੇ ਅਟੱਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਜਾ ਕੇ ਭਾਰੀ ਚੜ੍ਹਾਵਾ ਚੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਅਤੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਜੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ ‘ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ’ ਅਤੇ ‘ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ‘ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਬਣਵਾਈਆਂ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਗੁੰਬਦ ਉੱਤੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਕੰਮ ਕਰਵਾਇਆ । ਸੰਖੇਪ . ਵਿੱਚ ਉਹ ਤਨੋਂ-ਮਨੋਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੱਚੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸਨ ।

7. ਸਹਿਣਸ਼ੀਲ (Tolerant) – ਭਾਵੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਪੰਥ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਧਾਰਮਿਕ ਪੱਖਪਾਤ ਅਤੇ ਫਿਰਕੂਪੁਣੇ ਤੋਂ ਕੋਹਾਂ ਦੂਰ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਡੋਗਰੇ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਮੁਸਲਮਾਨ, ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ ਅਤੇ ਸੈਨਾਪਤੀ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਹਿੰਦੂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਰਸਮਾਂਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੀ । ਡਾਕਟਰ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਜਾਂ ਮੱਧਕਾਲੀਨ ਭਾਰਤੀ ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਕੋਈ ਵੀ ਸ਼ਾਸਕ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਬਰਾਬਰੀ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ।”

(ਅ) ਇੱਕ ਜਰਨੈਲ ਅਤੇ ਜੇਤੂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ (As a General and a Conqueror)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲਾਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਜਿੰਨੀਆਂ ਵੀ ਲੜਾਈਆਂ ਲੜੀਆਂ ਉਸ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵਿੱਚ ਵੀ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਨਹੀਂ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਉਹ ਵੱਡੀ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਔਕੜ ਆਉਣ ‘ਤੇ ਵੀ ਕਦੇ ਘਬਰਾਉਂਦਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ 1823 ਈ. ਵਿੱਚ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੌਸਲੇਂ ਛੱਡ ਦਿੱਤੇ । ਅਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੌੜ ਕੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਪਹੁੰਚਿਆ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਜੋਸ਼ ਭਰਿਆ ।

ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੇਤੂ ਵੀ ਸੀ । 1797 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਦੀ ਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਅਧੀਨ ਬਹੁਤ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਇਲਾਕਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰੀ ਸਦਕਾ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਕਸੂਰ, ਸਿਆਲਕੋਟ, ਕਾਂਗੜਾ, ਗੁਜਰਾਤ, ਜੰਮੂ, ਅਟਕ, ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਰਗੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਉੱਤਰ ਵਿੱਚ ਲੱਦਾਖ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ਤਕ ਅਤੇ ਪੂਰਬ ਵਿੱਚ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੱਛਮ ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਤਕ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾਕਟਰ ਗੰਡਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, ‘‘ਉਹ (ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ) ਭਾਰਤ ਦੇ ਮਹਾਨ ਨਾਇਕਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ ।” 2

(ੲ) ਇੱਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ (As An Administrator)

ਇਸ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਯੋਗ ਅਤੇ ਈਮਾਨਦਾਰ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਵੱਡੇ ਸਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਮੌਜਾ ਜਾਂ ਪਿੰਡ ਸੀ । ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਕਸਰ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਰਾਜ ਦੇ ਵਿਭਿੰਨ ਹਿੱਸਿਆਂ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕਰਿਆ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਜਾ ਬੜੀ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਵੀ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸੀ ਕਿ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਹੋਣਾ ਅਤਿ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਉਹ ਪਹਿਲਾ ਭਾਰਤੀ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ਜਿਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਯੂਰਪੀਅਨ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਨੇ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਤੋਪਖ਼ਾਨੇ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਨਿਜੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਆਪ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਹੁਲੀਆ ਰੱਖਣ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਦਾਗਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਸੈਨਿਕਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਪੂਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਡਾਕਟਰ ਐੱਚ. ਆਰ. ਗੁਪਤਾ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ, ‘‘ਉਹ ਭਾਰਤੀ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਚੰਗੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ ।’’1

(ਸ) ਇੱਕ ਰਾਜਨੀਤੀਵੇਤਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ (As a Diplomat)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਸਫਲ ਰਾਜਨੀਤੀਵਾਨ ਸੀ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਮਿਸਲ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਕਮਜ਼ੋਰ ਮਿਸਲਾਂ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਧ ਗਈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ-ਇੱਕ ਕਰਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਮਿਸਲਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਉਹ ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾਉਂਦਾ ਸੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਜ਼ਾਰੇ ਲਈ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੇ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੀ ਕੂਟਨੀਤੀ ਸਦਕਾ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਤੋਂ ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲਾ ਬਿਨਾਂ ਲੜੇ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ 1835 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਆਇਆ ਤਾਂ ਮਹਾਂਰਾਜੇ ਨੇ ਅਜਿਹੀ ਚਾਲ ਚਲੀ ਕਿ ਉਹ ਬਿਨਾਂ ਲੜੇ ਹੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ ।

1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਡੂੰਘੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ ਅਤੇ ਦੂਰਦਰਸ਼ਤਾ ਦੀ ਨਿਸ਼ਾਨੀ ਸੀ । ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਸੰਬੰਧੀ ਨੀਤੀ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਡੂੰਘੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ । ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਨਾ ਕਰਨਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਿਆਣਪ ਦਾ ਇੱਕ ਹੋਰ ਸਬੂਤ ਸੀ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾਕਟਰ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, ‘‘ਕੂਟਨੀਤੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣਾ ਕੋਈ ਆਸਾਨ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਸੀ ।” 2

(ਹ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਉਸ ਦਾ ਸਥਾਨ (His Place in the History of the Punjab)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾ ਸਿਰਫ ਭਾਰਤ ਬਲਕਿ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਮਹਾਨ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ, ਮਰਾਠਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸ਼ਿਵਾਜੀ, ਮਿਸਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਮਹਿਮਤ ਅਲੀ ਅਤੇ ਫ਼ਰਾਂਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨੈਪੋਲੀਅਨ ਆਦਿ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਨਿਰਪੱਖ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਵੱਧ ਸਨ । ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਾ ਉਸ ਦੇ ਕੋਲ ਸਿਰਫ ਨਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ । ਪਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇ ਨਾਲ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਨੂੰ ਸਾਕਾਰ ਕੀਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਹੀ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਪਰਜਾ ਦੇ ਦੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਯੂਰਪੀਅਨ ਆਦਿ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਉੱਚੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸਹਿਨਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸੂਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਨ੍ਹਿਆ । ਉਹ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਦਾਨੀ ਵੀ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਵਿਸਥਾਰ ਲਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਵੀ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅੱਜ ਵੀ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ’ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ ।ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਗੌਰਵਮਈ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ ।
ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਡਾਕਟਰ ਐੱਚ. ਆਰ. ਗੁਪਤਾ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,
“ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ, ਯੋਧਾ, ਜਰਨੈਲ, ਜੇਤੂ, ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ, ਹਾਕਮ ਅਤੇ ਰਾਜਨੀਤੀਵੇਤਾ ਵਜੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਮਹਾਨ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਵਿੱਚ ਉੱਚ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ ।”

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਕਿਵੇਂ ਵਰਣਨ ਕਰੋਗੇ ? (How do you describe about Maharaja Ranjit Singh as a Man ?)
ਜਾਂ
ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Ranjit Singh as a Man ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਬਾਰੇ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Write about the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਤੇ ਮੁੱਖ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦੀਆਂ ਤਿੰਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Mention the three characteristics of the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਭਾਵੇਂ ਅਨਪੜ੍ਹ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਕੁਦਰਤ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਅਦੁੱਤੀ ਯਾਦ ਸ਼ਕਤੀ ਅਤੇ ਹੌਸਲੇ ਦਾ ਵਰਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਬੜਾ ਦਿਆਲੂ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਦੇ ਵੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਧਰਮ ਦੇ ਸੱਚੇ ਸੇਵਕ ਸਨ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਵੱਲ ਵਤੀਰਾ ਬੜਾ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰਿਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਦਿਆਲੂ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ । ਕਿਵੇਂ ? (Maharaja Ranjit Singh was a kind ruler. How ?)
ਉੱਤਰ-ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਦਿਆਲਤਾ ਕਾਰਨ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੂੰ ਮੈਦਾਨੇ ਜੰਗ ਵਿੱਚ ਹਰਾਇਆ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜਾਗੀਰਾਂ ਤੇ ਖਿਲਅਤਾਂ ਨਾਲ ਨਿਵਾਜਿਆ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਉਹ ਗ਼ਰੀਬਾਂ, ਦੁਖੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਦਿਆਲਤਾ ਦੀਆਂ ਕਈ ਕਹਾਣੀਆਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Maharaja Ranjit Singh was a devoted follower of Sikhism. Give arguments in your favour.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਆਪਣੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਮਿਹਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਖਵਾਉਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ‘ਸਿੰਘ ਸਾਹਿਬ ਅਖਵਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ ‘ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ’ ਅਤੇ ‘ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਬਣਵਾਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਧਰਮ-ਨਿਰਪੇਖ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ । ਕਿਵੇਂ ? (Maharaja Ranjit Singh was a secular ruler. How ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਭਾਵੇਂ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਨਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਡੋਗਰੇ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉਲੇਖ ਕਰੋ । (Describe Maharaja Ranjit Singh as an administrator.)
ਜਾਂ
ਇਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Maharaja Ranjit Singh as an administrator ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੇਤੂ, ਸਗੋਂ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਚੰਗੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਯੋਗ ਅਤੇ ਇਮਾਨਦਾਰ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ | ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਮੌਜਾ ਜਾਂ ਪਿੰਡ ਸੀ । ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਰਾਜ ਦਾ ਦੌਰਾ ਵੀ ਕਰਿਆ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਵਿਸਤਾਰ ਲਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਵੀ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
“ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਅਤੇ ਜੇਤੂ ਸੀ ।” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“Maharaja Ranjit Singh was a great general and conqueror.” Explain.)
ਜਾਂ
ਇੱਕ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਜਰਨੈਲ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Ranjit Singh as a Soldier and a General ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸੈਨਾਪਤੀ ਅਤੇ ਜੇਤੂ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰੀ ਸਦਕਾ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਸਿਆਲਕੋਟ, ਗੁਜਰਾਤ, ਜੰਮੂ, ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਰਗੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੇ ਸਨ | ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਉੱਤਰ ਵਿੱਚ ਲੱਦਾਖ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ਤਕ ਅਤੇ ਪੂਰਬ ਵਿੱਚ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੱਛਮ ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਤਕ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (Why Maharaja Ranjit Singh is called Sher-i-Punjab ?)
ਜਾਂ
ਤੁਸੀਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਸਥਾਨ ਦਿਉਗੇ ? ਉਸ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (What place would you assign in History to Ranjit Singh ? Why is he called Sher-iPunjab ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਸਫਲ ਜੇਤੂ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਕੁਸ਼ਲ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਪਤੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ ਹੋਈ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਬਣਾਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਕਰਕੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਚਾਈ ਰੱਖਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਗੁਣਾਂ ਕਾਰਨ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ’ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਬੜਾ ਦਿਆਲੂ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਿਸ ਘੋੜੇ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਲਗਾਉ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲੈਲੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮਾਣ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਹਿੰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿ ਕੇ ਬੁਲਾਉਂਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
‘ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਕੁਕਰ’ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
‘ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਜੀ’।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਇੱਕ ਗੈਰ-ਸਿੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼-ਉੱਦ-ਦੀਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਦਰਬਾਰੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸੋਹਣ ਲਾਲ ਸੂਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸੈਨਾ ਨਾਇਕ ਕਿਉਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਸਫਲ ਕੂਟਨੀਤੀਵਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮਾਣ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਨਾ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਸਿਆਣਪ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਅਤੇ ਉੱਚ ਕੋਟੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਨੂੰ ਪਾਰਸ ਕਿਉਂ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ਦਾ ਬਹੁਤ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ –

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ ………………….. ਨਹੀਂ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਖਿੱਚ ਭਰਪੂਰ)

2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ………………………. ਨਾਂ ਦੇ ਘੋੜੇ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲੈਲੀ)

3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ………………………. ਸਮਝਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਕੁਕਰ)

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ …………. ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ)

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5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ……………………. ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਜੀ)

6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸ਼ਰਾਬ ਦੇ ਬਹੁਤ ……………………….. ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ੌਕੀਨ)

7. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ …………………… ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲੈਲੀ ਨਾਂ ਦੇ ਘੋੜੇ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਕੁਕਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸ਼ਰਾਬ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

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7. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਮਹਾਨ ਜੇਤੂ ਸੀ ਸਗੋਂ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

8. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਅੱਜ ਵੀ ਲੋਕ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਸੀ ?
(i) ਉਹ ਬੜਾ ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਸੀ
(ii) ਉਸ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਬਹੁਤ ਦਿਆਲੂ ਸੀ
(iii) ਉਹ ਅਨਪੜ ਪਰ ਸਿਆਣਾ ਸੀ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਿਸ ਘੋੜੇ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਸੀ ?
(i) ਲੈਲੀ
(ii) ਸੈਲੀ
(iii) ਚੇਤਕ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਲੈਲੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿ ਕੇ ਬੁਲਾਉਂਦੇ ਸਨ ?
(i) ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਆਮ.
(ii) ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਸ
(iii) ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ‘ਤੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ ?
(i) ਫ਼ਤਿਹ ਧਰਮ
(ii) ਅਕਾਲ ਸਹਾਏ
(iii) ਫ਼ਤਿਹ ਦਰਸ਼ਨ
(iv) ਨਾਨਕ ਸਹਾਏ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਅਕਾਲ ਸਹਾਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਤੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਸਨ ?
(i) ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ
(ii) ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ
(iii) ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ
(iv) ਤੇਗ਼ ਸਹਾਇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿਦਵਾਨ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਸੋਹਣ ਲਾਲ ਸੁਰੀ
(ii) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼-ਉੱਦ-ਦੀਨ
(iii) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(iv) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਸੋਹਣ ਲਾਲ ਸੁਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰੇ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(iv) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ‘ਤੇ ਅਟੱਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਇੱਕ ਕਲਗੀ ਆਪਣੇ ਤੋਸ਼ੇਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਸੀ ਜਿਸ ਦੀ ਛੋਹ ਨੂੰ ਉਹ ਆਪਣੇ ਲਈ ਬੜਾ ਵਡਭਾਗਾ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਮਿਹਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤਾਂ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਉਹ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਜਾ ਕੇ ਭਾਰੀ ਚੜ੍ਹਾਵਾ ਚੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਅਤੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ‘ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਜੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਖਵਾਉਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ‘ਸਿੰਘ ਸਾਹਿਬ’ ਅਖਵਾਉਂਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ ‘ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ’ ਅਤੇ ‘ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ‘ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਅਟਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਕੋਈ ਇੱਕ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦਿਉ ।
2. ‘ਕੂਕਰ’ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ?
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ ?
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ …………………….. ਤੇ …………………… ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
2. ਕੁਕਰ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਦਾਸ ਜਾਂ ਨੌਕਰ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ‘ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ’ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ ।
5. ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ, ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ ।

2. ਭਾਵੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਧਾਰਮਿਕ ਪੱਖਪਾਤ ਅਤੇ ਫਿਰਕੂਪੁਣੇ ਤੋਂ ਕੋਹਾਂ ਦੂਰ ਸੀ । ਉਹ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸੀ ਕਿ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਚਿਰਸਥਾਈ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਲਈ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਨਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ਤੇ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਡੋਗਰੇ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਮੁਸਲਮਾਨ, ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ, ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀਦਾਸ ਅਤੇ ਸੈਨਾਪਤੀ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਹਿੰਦੂ ਸਨ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ, ਕੋਰਟ, ਗਾਰਡਨਰ ਆਦਿ ਯੂਰਪੀਅਨ ਸਨ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ? ਕਿਵੇਂ ?
2. ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
4. ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀਦਾਸ ਕੌਣ ਸੀ ?
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ………………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਉਹ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
2. ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਸੀ ।
4. ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀਦਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
5. ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਰੂਪ-ਰੇਖਾ ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Give an outline of central administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਧੁਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਅਸੀਮ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਤੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਕਾਨੂੰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ, ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਅਤੇ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਨਾਂ ਦੇ ਮੰਤਰੀ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨਣਾ ਜਾਂ ਨਾ ਮੰਨਣਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਰਜ਼ੀ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਆਪਣੇ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨ ਲੈਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ 12 ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲ, ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ, ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਖਵਾਜਿਬ ਅਤੇ ਦਫ਼ਤਰ-ਏਰੋਜ਼ਨਾਮਚਾ-ਏ-ਇਖਰਾਜਾਤ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the position of Maharaja in Central Administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਸਰੂਪ ਕੀ ਸੀ ? (Explain the nature of administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁਖੀ ਸੀ । ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਸੋਮਾ ਸੀ । ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਅੰਦਰੂਨੀ ਅਤੇ ਬਾਹਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੁਆਰਾ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਮੰਤਰੀਆਂ, ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸੈਨਿਕ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀਆਂ ਨਿਯੁਕਤੀਆਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।ਉਹ ਜਦ ਚਾਹੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।ਉਹ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ਤੇ ਰਾਜ ਦੀ ਸਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਉਸ ਦੇ ਇਸ਼ਾਰੇ ‘ਤੇ ਚਲਦੀ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁੱਖ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਵੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਮੁੰਹ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਕੋਈ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਉਸ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸ਼ਾਸਕ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਜਾਂ ਸੰਧੀ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰਨ ਦਾ ਪੂਰਨ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ‘ਤੇ ਕਰ ਲਗਾਉਣ ਜਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਹਟਾਉਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਕਿਸੇ ਤਾਨਾਸ਼ਾਹ ਨਾਲੋਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਦੇ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੀ ਦੁਰਵਰਤੋਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਵਿੱਚ ਹੀ ਆਪਣੀ ਭਲਾਈ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਅਜਿਹੇ ਮਹਾਨ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਦੀਆਂ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ ? (How was the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕੀ ਸੀ ? (What was the position of Nazim in Province during the times of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਕੁਸ਼ਲ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਤਾਂ ਜਾਂ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਸਨ-ਸੁਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ, ਸੂਬਾ-ਏ-ਮੁਲਤਾਨ, ਸੁਬਾ-ਏ-ਕਸ਼ਮੀਰ, ਸੂਬਾ-ਏ-ਪਿਸ਼ਾਵਰ । ਸੁਬੇ ਜਾਂ ਪਾਂਤ ਦਾ ਮੁਖੀਆ ਨਾਜ਼ਿਮ ਕਹਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਅਹੁਦਾ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਿਸ਼ਵਾਸਯੋਗ, ਸਮਝਦਾਰ, ਈਮਾਨਦਾਰ ਅਤੇ ਅਨੁਭਵ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਹੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਅਨੇਕਾਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ ।

  • ਉਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਜ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਅਤੇ ਕਾਨੂੰਨ ਵਿਵਸਥਾ ਬਣਾ ਕੇ ਰੱਖਣਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਜ਼ਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕਰਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਫੈਸਲਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਬੇਨਤੀਆਂ ਸੁਣਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਸ ਦੇ ਅਧੀਨ ਕੁੱਝ ਸੈਨਾ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਕਈ ਵਾਰ ਛੋਟੇ-ਮੋਟੇ ਅਭਿਯਾਨਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵੀ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਲਗਾਨ ਸਮੇਂ ਤੇ ਕੇਂਦਰੀ ਖ਼ਜਾਨੇ ਵਿੱਚ ਜਮਾਂ ਕਰਾਉਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਜ਼ਰੂਰਤ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਕੇਂਦਰ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ ਵੀ ਭੇਜਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਪੁੱਤ ਦਾ ਚੱਕਰ ਲਗਾ ਕੇ ਇਹ ਪਤਾ ਲਗਾਉਂਦਾ ਸੀ ਕੀ ਪਰਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਖੁਸ਼ ਹੈ ਕਿ ਨਹੀਂ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੇ ਕੋਲ ਅਸੀਮ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਸਨ ਪਰੰਤੂ ਉਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਸੰਬੰਧਿਤ ਕੋਈ ਵੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਫ਼ੈਸਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਤੋਂ ਆਗਿਆ ਲੈਣੀ ਪੈਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਖ਼ੁਦ ਅਤੇ ਕੇਂਦਰੀ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੇ ਕਾਰਜਾਂ ਦਾ

ਨਿਰੀਖਣ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਨਾ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਚੰਗੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਮਿਲਦੀਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਉਹ ਬਹੁਤ ਸ਼ਾਨ ਨਾਲ ਵੱਡੇ ਮਹੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Wrte a note on local administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What do you know about the local administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਅੱਗੇ ਲਿਖੀਆਂ ਹਨ-

1. ਪਰਗਨਿਆਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ – ਹਰ ਸੂਬੇ ਜਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਕਈ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕਾਰਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨਾ, ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਵਾਉਣਾ, ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ, ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮੇ ਸੁਣਨਾ ਸੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਦੇ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਵਾਂਗ ਸਨ । ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਮੁਕੱਦਮ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

2. ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ – ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੌਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਛੋਟੇ-ਮੋਟੇ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਲੋਕ ਪੰਚਾਇਤ ਦਾ ਬੜਾ ਮਾਣ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਟਵਾਰੀ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਚੌਧਰੀ ਲਗਾਨ ਉਗਰਾਹੁਣ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪਿੰਡ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਦਖਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

3. ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ, ਮੁਹੱਲੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ, ਵਪਾਰ ਤੇ ਉਦਯੋਗ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਨਾਪ-ਤੋਲ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨਾ ਆਦਿ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਕੀ ਸਥਿਤੀ ਸੀ ? (What was the position of Kardar during the times of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹਰ ਸੂਬੇ ਜਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਕਈ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕਾਰਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਨਿਭਾਉਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰ ਕੇ ਕੇਂਦਰੀ ਖਜ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਪਰਗਨੇ ਦੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਪੂਰਾ ਹਿਸਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਹਰ ਕਿਸਮ ਦੇ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਵੀ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਕਾਰਦਾਰ ਆਪਣੇ ਇਲਾਕੇ ਦਾ ਆਬਕਾਰੀ ਅਤੇ ਸੀਮਾ ਕਰ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਰਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਉਸ ਦਾ ਕਰਤੱਵ ਸੀ ।

ਉਹ ਕਰ ਨਾ ਦੇਣ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਵੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਲੋਕ ਭਲਾਈ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਰਸੂਖ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲਦਾ-ਜੁਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਵਾਪਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਇੱਕ ਲੇਖਾਕਾਰ ਵਜੋਂ ਵੀ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਬਣੇ ਹੋਏ ਸਰਕਾਰੀ ਅਨਾਜ ਭੰਡਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨਾਜ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਵੀ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the administration of city of Lahore during the times of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਹ ਪਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਹਰ ਮੁਹੱਲਾ ਇੱਕ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਆਪਣੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ । ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ, ਮੁਹੱਲੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ, ਵਪਾਰ ਤੇ ਉਦਯੋਗ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਨਾਪ-ਤੋਲ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨੀ ਆਦਿ ਸਨ । ਉਹ ਦੋਸ਼ੀ ਲੋਕਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਲੋੜੀਂਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਵੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈਆਂ ਬਾਰੇ ਚਾਨਣਾ ਪਾਓ । (Describe main features of Maharaja Ranjit Singh’s land revenue administration.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਬਾਰੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the economic administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਵੱਲ ਆਪਣਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ-

  • ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਸਰਕਾਰ ਫ਼ਸਲ ਕੱਟਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਆਪਣਾ ਲਗਾਨ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਖ਼ਰਚੀਲੀ ਸੀ ।ਦੂਜਾ, ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨੀ ਸੰਬੰਧੀ ਪਹਿਲਾਂ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ ।
  • ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – 1824 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਈ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੀਤਾ ।ਇਸ ਅਧੀਨ ਲਗਾਨ ਖੜੀ ਫ਼ਸਲ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਲਗਾਨ ਨਕਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਵੱਧ ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ 3 ਤੋਂ 6 ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
  • ਬਿਘਾ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਬਿਘੇ ਦੀ ਉਪਜ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਹਲ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਇੱਕੋ ਜੋੜੀ ਦੁਆਰਾ ਜਿੰਨੀ ਭੁਮੀ ‘ਤੇ ਹਲ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ, ਉਸ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਖੂਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਨੁਸਾਰ ਇੱਕ ਖੁਹ ਜਿੰਨੀ ਜ਼ਮੀਨ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸਕਦਾ ਸੀ, ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਦੀ ਉਪਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਅਨਾਜ ਅਤੇ ਨਕਦ ਦੋਹਾਂ ਰੂਪਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕਾਰਦਾਰ, ਮੁਕੱਦਮ, ਪਟਵਾਰੀ, ਕਾਨੂੰਗੋ ਅਤੇ ਚੌਧਰੀ ਸਨ । ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੀ ਸੀ । ਜਿਹੜੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਉਪਜ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ, ਉੱਥੇ ਲਗਾਨ 50% ਸੀ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਉਪਜ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਸੀ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਤੇ ਤੋਂ ਤੇ ਤਕ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the chief features of Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਰਾਜ ਦੇ ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਅਸੈਨਿਕ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ, ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ, ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਅਤੇ ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਜਾਂ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਥਾਈ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਜਾਂ ਅਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਏਜੰਟ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਕੇਵਲ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ਸਗੋਂ ਉਹ ਨਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਵੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਭਰਤੀ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਕੁਝ ਦੋਸ਼ ਤਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਸਨ ਪਰ ਇਹ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Discuss the main features of the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਾਧਾਰਨ ਸੀ । ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਆਖਰੀ ਫ਼ੈਸਲਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਜ ਭਰ ਵਿੱਚ ਕਈ ਅਦਾਲਤਾਂ ਕਾਇਮ ਕੀਤੀਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਦਾ ਨਾਂ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਸੀ । ਇਹ ਨਾਜ਼ਿਮ ਅਤੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲਾਂ ਸੁਣਦੀ ਸੀ । ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਅਤੇ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਨੂੰ ਸੁਣਦੀਆਂ ਸਨ । ਨਿਆਂ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖ਼ਾਸ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਦਾਲਤੀ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਕਸਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵੀ ਕਾਇਮ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਨਿਆਂ ਲਈ ਮੁਸਲਮਾਨ ਅਤੇ ਗ਼ੈਰ-ਮੁਸਲਮਾਨ ਲੋਕ ਜਾ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਸਥਾਨਿਕ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਸਖ਼ਤ ਨਹੀਂ ਸਨ | ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਤੋਂ ਜੁਰਮਾਨਾ ਵਸੂਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਅਪਰਾਧ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਹੱਥ, ਪੈਰ, ਨੱਕ ਆਦਿ ਕੱਟ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਫ਼ੌਜੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main features of Maharaja Ranjit Singh’s military administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਕੀ ਸੁਧਾਰ ਕੀਤੇ ? (What reforms were introduced by Ranjit Singh to improve his military administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸੈਨਾ ’ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the military of Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  • ਰਚਨਾ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਰਗਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਲੋਕ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ, ਰਾਜਪੁਤ, ਬਾਹਮਣ, ਖੱਤਰੀ, ਗੋਰਖੇ ਅਤੇ ਪੂਰਬੀ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।
  • ਭਰਤੀ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਬਿਲਕੁਲ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਮਰਜ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਕੇਵਲ ਰਿਸ਼ਟ-ਪੁਸ਼ਟ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀ ਭਰਤੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕੇਵਲ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉੱਚ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਭਰੋਸੇਯੋਗ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਅਫ਼ਸਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਤਨਖ਼ਾਹ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਜਾਂ ਤਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਜਾਂ ਜਿਣਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦੇਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ।
  • ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਕਾਬਲੀਅਤ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ ਦੇਣ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਿਸੇ ਸੈਨਿਕ ਨਾਲ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਜਾਂ ਧਰਮ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਇਨਾਮ ਅਤੇ ਖ਼ਿਤਾਬ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਹਰ ਸਾਲ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਸੇਵਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਬਾਹਦਰੀ ਵਿਖਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੱਖਾਂ ਰੁਪਏ ਇਨਾਮ ਅਤੇ ਉੱਚੇ ਖਿਤਾਬ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।
  • ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜਾ ਸਖ਼ਤ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਕਾਇਮ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਸੰਗਠਨ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਉੱਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the Fauj-i-Khas of Maharaja Ranjit Singh’s army.)
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅੰਗ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ‘ਮਾਡਲ ਬ੍ਰਿਗੇਡ’ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਪੈਦਲ ਫ਼ੌਜ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਬਟਾਲੀਅਨਾਂ, ਘੋੜਸਵਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਰਜਮੈਂਟਾਂ ਅਤੇ 24 ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਯੂਰਪੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਰੜੀ ਸਿਖਲਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜੇ ਚੋਣਵੇਂ ਸੈਨਿਕ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਗਏ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਵੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਕਿਸਮ ਦੇ ਸਨ । ਇਸੇ ਲਈ ਇਸ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਆਪਣਾ ਵੱਖਰਾ ਝੰਡਾ ਅਤੇ ਚਿੰਨ੍ਹ ਸਨ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਬਹੁਤ ਅਨੁਸ਼ਾਸਿਤ ਸੀ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਕਠਿਨ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਭੇਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਕਾਰਜਕੁਸ਼ਲਤਾ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ ਸਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇ-ਕਵਾਇਦ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? (What do you mean by Fauj-i-Be-Qawaid of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇ-ਕਵਾਇਦ ਉਹ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਚਾਰਾਂ ਭਾਗਾਂ
(i) ਘੋੜ-ਚੜੇ
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲੂਜਾਤ
(iii) ਅਕਾਲੀ ਅਤੇ
(iv) ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਸੀ ।ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਘੋੜ-ਚੜੇ – ਘੋੜ-ਚੜੇ ਬੇ-ਕਵਾਇਦ ਸੈਨਾ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭਾਗ ਸੀ । ਇਹ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਸਨ-

  • ਘੋੜ੍ਹ-ਚੜ੍ਹੇ ਖ਼ਾਸ – ਇਸ ਵਿੱਚ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰੀਆਂ ਦੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਅਤੇ ਉੱਚ ਖ਼ਾਨਦਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵਿਅਕਤੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।
  • ਮਿਸਲਦਾਰ – ਇਸ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ਜਿਹੜੇ ਮਿਸਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸੈਨਿਕ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਸਨ । ਘੋੜ-ਚੜ੍ਹੇ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚ ਮਿਸਲਦਾਰਾਂ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਘੱਟ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲੜਨ ਦਾ ਢੰਗ ਪੁਰਾਣਾ ਸੀ । 1838-39 ਈ. ਵਿੱਚ ਘੋੜ-ਚੜਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 10,795 ਸੀ ।

2. ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲ੍ਹਜਾਤ – ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਕੋਲ ਇੱਕ ਵੱਖਰੀ ਫ਼ੌਜ ਸੀ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲੂਜਾਤ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਹਰੇਕ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕਿਲ੍ਹਾਜਾਤ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਅਨੁਸਾਰ ਵੱਖੋਵੱਖਰੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਕਮਾਨ ਅਫ਼ਸਰ ਨੂੰ ਕਿਲ੍ਹੇਦਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

3. ਅਕਾਲੀ – ਅਕਾਲੀ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਭਿਆਨਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਭੇਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਹੋ ਕੇ ਘੁੰਮਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਸਿਖਲਾਈ ਜਾਂ ਪਰੇਡ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ । ਉਹ ਧਰਮ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 3,000 ਦੇ ਕਰੀਬ ਸੀ । ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅਕਾਲੀ ਸਾਧੂ ਸਿੰਘ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨੇਤਾ ਸਨ ।

4. ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਫ਼ੌਜ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ‘ਤੇ ਇਹ ਸ਼ਰਤ ਲਗਾਈ ਗਈ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਲੋੜ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਦੇਣ । ਇਸ ਲਈ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਰਾਜ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਪੈਦਲ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕ ਰੱਖਦੇ ਸਨ | ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਨਿਰੀਖਣ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਰਜਾ ਵੱਲ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਵਤੀਰਾ ਸੀ ? (What was Ranjit Singh’s attitude towards his subjects ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਰਜਾ ਵੱਲ ਵਤੀਰਾ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੇ ਹਿਤਾਂ ਨੂੰ ਕਦੇ ਅੱਖੋਂ ਉਹਲੇ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਯਤਨ ਕਰਨ | ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਅਕਸਰ ਰਾਜ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ। ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਭਾਰੀ ਅਕਾਲ ਪੈ ਗਿਆ ਸੀ ਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਖੱਚਰਾਂ ’ਤੇ ਅਨਾਜ ਲੱਦ ਕੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਭੇਜਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨਾ ਕੇਵਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਬਲਕਿ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤੀ ਵੀ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲਗਾਨ ਮੁਕਤ ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਦਾਨ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਜਾ ਬੜੀ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਪਏ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the effects of Ranjit Singh’s rule on the life of the people.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ।ਉਸ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸੁੱਖ ਦਾ ਸਾਹ ਲਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤਕ ਮੁਗ਼ਲ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੂਬੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਘੋਰ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਾਰੀਆਂ ਅਣਮਨੁੱਖੀ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਕਿਸੇ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਨਾਗਰਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵੱਲ ਵੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਏ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਖੇਤੀ, ਉਦਯੋਗ ਅਤੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹ ਦੇਣ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਉਪਰਾਲੇ ਕੀਤੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਪਰਜਾ ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਭਾਵੇਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਉਸ ਨੇ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ । ਅੱਜ ਵੀ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਗੌਰਵਮਈ ਸ਼ਾਸਨ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਾਗਰਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ (Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Discuss about the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ‘ਤੇ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Discuss the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਵਿਸਤਾਰਪੂਰਵਕ ਦੱਸੋ । (Explain the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ, ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਅਤੇ ਸਥਾਨਿਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Describe the salient features of Maharaja Ranjit Singh’s Central, Provincial and Local Administration.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਸਹਿਤ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain in detail the Central and Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh.).
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕੇਂਦਰੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the Central and Provincial Administrative System of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
(Give a detailed description of Maharaja Ranjit Singh’s Provincial and Local Government.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰਪੂਰਵਕ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe in detail the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੋਤੁ ਸੀ ਸਗੋਂ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਜਾਂ ਨਾਗਰਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-

1. ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Central Administration)

(ਉ) ਮਹਾਰਾਜਾ (The Maharaja) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਾਰੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਧੁਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਮੰਤਰੀਆਂ, ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸੈਨਿਕ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀਆਂ ਨਿਯੁਕਤੀਆਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਜਦ ਚਾਹੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁੱਖ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਮੁਖ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਪਰਜਾ ਲਈ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਕੋਈ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਉਸ ਦੇ ਹੁਕਮ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਦਾ ਹੌਸਲਾ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਵੀ ਸੀ ਤੇ ਰਾਜ ਦੀ ਸਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਉਸ ਦੇ ਇਸ਼ਾਰੇ ‘ਤੇ ਚਲਦੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਯੁੱਧ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰਨ ਜਾਂ ਸੰਧੀ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ‘ਤੇ ਨਵੇਂ ਕਰ ਲਗਾ ਸਕਦਾ ਜਾਂ ਪੁਰਾਣੇ ਕਰਾਂ ਨੂੰ ਘੱਟ ਜਾਂ ਮਾਫ਼ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਕਿਸੇ ਤਾਨਾਸ਼ਾਹ ਨਾਲੋਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਸਨ | ਪਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਦੇ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੀ ਦੁਰਵਰਤੋਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

(ਅ) ਮੰਤਰੀ (The Ministers-ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਇੱਕ ਮੰਤਰੀ ਪਰਿਸ਼ਦ ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਸਿਰਫ਼ ਯੋਗ ਅਤੇ ਇਮਾਨਦਾਰ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਮੰਤਰੀ ਆਪੋ-ਆਪਣੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਸੰਬੰਧੀ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਸਲਾਹ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਮੰਨਣਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ।

1. ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ (Prime Minister) – ਕੇਂਦਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੂਸਰਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਸਲਾਹ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਗੈਰ-ਹਾਜ਼ਰੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਦੀ ਨੁਮਾਇੰਦਗੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ ਪੱਤਰ ਉਸ ਦੇ ਰਾਹੀਂ ਹੀ ਮਹਾਰਾਜੇ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਦੇਰ ਤਕ ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਨਿਯੁਕਤ ਰਿਹਾ ।

2. ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ (Foreign Minister) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਵੀ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਉਹ ਵਿਦੇਸ਼ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਦੂਸਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਅਤੇ ਸੁਲ੍ਹਾ ਸੰਬੰਧੀ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਬਾਰੇ ਸਲਾਹ ਦੇਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਆਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਚਿੱਠੀਆਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਸੁਣਾਉਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ ਅਨੁਸਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਚਿੱਠੀਆਂ ਦਾ ਜਵਾਬ ਭੇਜਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼-ਉਦ-ਦੀਨ ਲੱਗਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

3. ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ (Finance Minister) – ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਮੰਤਰੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਪੂਰਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ ਸੀ | ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੇ ਖ਼ਰਚਿਆਂ ਆਦਿ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਾਰੇ ਕਾਗਜ਼ ਪੜਤਾਲ ਲਈ ਪਹਿਲਾਂ ਦੀਵਾਨ ਕੋਲ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ, ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾ ਨਾਥ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਸਨ ।

4. ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ (Commander-in-Chief) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਆਪ ਹੀ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਆਦਮੀਆਂ ਨੂੰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ ਸੀ । ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ, ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਅਤੇ ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸਨ ।

5. ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ (Deorhiwala) – ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਸ਼ਾਹੀ ਰਾਜ ਘਰਾਣੇ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਆਗਿਆ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕੋਈ ਆਦਮੀ ਮਹੱਲਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੇ ਮਹੱਲਾਂ ਲਈ ਪਹਿਰੇਦਾਰਾਂ ਦਾ ਵੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਹ ਜਲੂਸਾਂ ਦਾ ਵੀ ਉੱਚਿਤ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ਸੀ ।

(ੲ) ਕੇਂਦਰੀ ਵਿਭਾਗ ਜਾਂ ਦਫ਼ਤਰ (Central Departments or Daftars) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਹੂਲਤ ਲਈ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਲਈ ਵਿਭਾਗਾਂ ਜਾਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਦੇ ਬਾਰੇ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ । ਡਾਕਟਰ ਜੀ. ਐੱਲ. ਚੋਪੜਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 15, ਡਾਕਟਰ ਐੱਨ. ਕੇ. ਸਿਨਹਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ 12 ਅਤੇ ਸੀਤਾਰਾਮ ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ 7 ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਮੁੱਖ ਦਫ਼ਤਰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-

  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲੇ (Daftar-i-Abwab-ul-Mal) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਰਾਜ ਦੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸੋਮਿਆਂ ਤੋਂ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਲੇਖਾ-ਜੋਖਾ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਮਾਲ (Daftar-i-Mal) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪਰਗਨਿਆਂ ਅਤੇ ਤਾਲੁਕਿਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਭੁਮੀ ਲਗਾਨ ਦਾ ਹਿਸਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਵਹਾਤ (Daftar-i-Wajuhat) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੀ ਫ਼ੀਸ ਅਤੇ ਅਫ਼ੀਮ, ਭੰਗ ਅਤੇ ਹੋਰ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ‘ਤੇ ਲੱਗੇ ਆਬਕਾਰੀ ਕਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਹਿਸਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ (Daftar-i-Taujihat) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਸ਼ਾਹੀ ਘਰਾਣੇ ਦੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਮਵਾਜਿਬ (Daftar-i-Mawajib) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਸਿਵਿਲ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਦਾ ਲੇਖਾ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਰੋਜ਼ਨਾਮਚਾ-ਇਖਜ਼ਾਤ (Daftar-i-Roznamcha-i-Ikhrazat) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਰਾਜ ਦੀ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।

I. ਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ : (Provincial Administration)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਵਧੇਰੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਲਈ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੂਬਿਆਂ ਜਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਇਹ ਸਨ-

  1. ਸੂਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ,
  2. ਸੂਬਾ-ਏ-ਮੁਲਤਾਨ,
  3. ਸੂਬਾਏ-ਕਸ਼ਮੀਰ,
  4. ਸੂਬਾ-ਏ-ਪਿਸ਼ਾਵਰ ।

ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੁਬੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਨਾਜ਼ਿਮ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਜ਼ਿਲਿਆਂ ਦੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਵੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਪਾਸ ਅਸੀਮ ਅਧਿਕਾਰ ਸਨ, ਪਰ ਉਹ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਦੁਰਵਰਤੋਂ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਜਦ ਚਾਹੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਮੇਂ-

  1. ਸਰਦਾਰ ਲਹਿਣਾ ਸਿੰਘ ਮਜੀਠੀਆ
  2. ਮਿਸਰ ਰੂਪ ਲਾਲ
  3. ਦੀਵਾਨ ਸਾਵਨ ਮਲ
  4. ਕਰਨੈਲ ਮੀਹਾਂ ਸਿੰਘ
  5. ਅਵੀਤਾਬਿਲ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸਨ ।

III. ਸਥਾਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ (Local Administration)

(ਉ) ਪਰਗਨਿਆਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Administration of the Parganas) – ਹਰ ਸੂਬੇ ਜਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਕਈ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਗਨੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕਾਰਦਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਕਾਰਦਾਰ ਦਾ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਧਾ ਸੰਬੰਧ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਨਿਭਾਉਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨਾ, ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਵਾਉਣਾ, ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ, ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮੇ ਸੁਣਨਾ ਸੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਦੇ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਵਾਂਗ ਸਨ । ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਕਾਨੂੰਨ ਅਤੇ ਮੁਕੱਦਮ ਨਾਂ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

(ਅ) ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ (Village Administration) – ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੌਜ਼ਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤ ਚਲਾਉਂਦੀ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਲੋਕ ਪੰਚਾਇਤ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਰੂਪ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਫੈਸਲਿਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਟਵਾਰੀ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਚੌਧਰੀ ਲਗਾਨ ਉਗਰਾਹੁਣ ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮੁਕੱਦਮ ਪਿੰਡ ਦਾ ਮੁੱਖੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਕੜੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪਿੰਡ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਦਖ਼ਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

(ੲ) ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ (Administration of the City of Lahore) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ । ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ, ਮੁਹੱਲੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ, ਵਪਾਰ ਤੇ ਉਦਯੋਗ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਨਾਪ-ਤੋਲ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨੀ ਆਦਿ ਸਨ । ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਹਰ ਮੁਹੱਲਾ ਇੱਕ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਆਪਣੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

IV. ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Land Revenue Administration)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਵੱਲ ਆਪਣਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ-

  • ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bataj System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਸਰਕਾਰ ਫ਼ਸਲ ਕੱਟਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਆਪਣਾ ਲਗਾਨ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਖ਼ਰਚੀਲੀ ਸੀ । ਦੂਜਾ, ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨੀ ਸੰਬੰਧੀ ਪਹਿਲਾਂ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ ।
  • ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Kankut System – 1824 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਈ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕਨਕਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਅਧੀਨ ਲਗਾਨ ਖੜ੍ਹੀ ਫ਼ਸਲ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਲਗਾਨ ਨਕਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bidding System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਵੱਧ ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ 3 ਤੋਂ 6 ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
  • ਬਿਘਾ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bigha System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਬਿਘੇ ਦੀ ਉਪਜ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਹਲ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Plough System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਇੱਕੋ ਜੋੜੀ ਦੁਆਰਾ ਜਿੰਨੀ ਭੂਮੀ ‘ਤੇ ਹਲ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਖੂਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Well System) -ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਨੁਸਾਰ ਇੱਕ ਖੂਹ ਜਿੰਨੀ ਜ਼ਮੀਨ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸਕਦਾ ਸੀ ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਦੀ ਉਪਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਅਨਾਜ ਅਤੇ ਨਕਦ ਦੋਹਾਂ ਰੂਪਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕਾਰਦਾਰ, ਮੁਕੱਦਮ, ਪਟਵਾਰੀ, ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਚੌਧਰੀ ਸਨ । ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੀ ਸੀ । ਜਿਹੜੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਉਪਜ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ ਉੱਥੇ ਲਗਾਨ 50% ਸੀ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਉਪਜ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ \(\frac{2}{5}\)ਤੋਂ \(\frac{1}{3}\)ਤਕ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ ।

V. ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ (Judicial Administration)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਾਧਾਰਨ ਸੀ । ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਰੀਤੀਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਆਖਿਰੀ ਫ਼ੈਸਲਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਜ ਭਰ ਵਿੱਚ ਕਈ ਅਦਾਲਤਾਂ ਕਾਇਮ ਕੀਤੀਆਂ ਸਨ ।

ਮਹਾਰਾਜੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਦਾ ਨਾਂ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਸੀ । ਇਹ ਨਾਜ਼ਿਮ ਅਤੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲਾਂ ਸੁਣਦੀ ਸੀ । ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਅਤੇ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਨੂੰ ਸੁਣਦੀਆਂ ਸਨ । ਨਿਆਂ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖ਼ਾਸ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਦਾਲਤੀ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਕਸਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵੀ ਕਾਇਮ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਨਿਆਂ ਲਈ ਮੁਸਲਮਾਨ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਮੁਸਲਮਾਨ ਲੋਕ ਜਾ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਸਥਾਨਿਕ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਸਖ਼ਤ ਨਹੀਂ ਸਨ | ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਤੋਂ ਜੁਰਮਾਨਾ ਵਸੂਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਅਪਰਾਧ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਹੱਥ, ਪੈਰ, ਨੱਕ ਆਦਿ ਕੱਟ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ | ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਸੀ ।

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ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿੱਤੀ ਪ੍ਰਬੰਧ (Financial Administration of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ। (Discuss the salient features of Maharaja Ranjit Singh’s Financial Administration.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਬਾਰੇ ਵਿਸਥਾਰ ਸਹਿਤ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the Financial System of Maharaja Ranjit Singh in detail.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਭੂ-ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । P.S.E.B. (Sept. 1990) (Discuss the Land Revenue System of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਹਰੇਕ ਰਾਜ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸ਼ਾਸਨ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਧਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਅਜਿਹਾ ਧਨ ਇੱਕ ਯੋਜਨਾਬੱਧ ਵਿੱਤੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਰਾਹੀਂ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਦੀ ਕੋਈ ਨਿਯਮਿਤ ਵਿਵਸਥਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਸੀ । 1808 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵਿੱਤੀ ਢਾਂਚੇ ਵਿੱਚ ਸੁਧਾਰ ਲਿਆਉਣ ਲਈ ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਵਿੱਤ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Land Revenue Administration) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸੀ | ਰਾਜ ਦੀ ਕੁਲ ਸਾਲਾਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਤਿੰਨ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਆਮਦਨ ਵਿੱਚੋਂ ਲਗਭਗ ਦੋ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਭੂਮੀ ਦੇ ਲਗਾਨ ਵਜੋਂ ਇਕੱਠੇ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ-

  • ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Batai System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਫ਼ਸਲ ਕੱਟਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਰਕਾਰ ਆਪਣਾ ਲਗਾਨ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਖ਼ਰਚੀਲੀ ਸੀ । ਦੂਜਾ, ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨੀ ਸੰਬੰਧੀ ਪਹਿਲਾਂ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ ।
  • ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Kankut System) – 1824 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਈ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਅਧੀਨ ਲਗਾਨ ਖੜ੍ਹੀ ਫ਼ਸਲ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਲਗਾਨ ਨਕਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bidding System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਵੱਧ ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ 3 ਤੋਂ 6 ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
  • ਬਿਘਾ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bigha System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਬਿਘੇ ਦੀ ਉਪਜ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਹਲ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Plough System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਇੱਕੋ ਜੋੜੀ ਦੁਆਰਾ ਜਿੰਨੀ ਭੂਮੀ ‘ਤੇ ਹਲ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਖੂਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Well System) – ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਅਨੁਸਾਰ ਇੱਕ ਖੂਹ ਜਿੰਨੀ ਜ਼ਮੀਨ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸਕਦਾ ਸੀ ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਦੀ ਉਪਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਅਨਾਜ ਅਤੇ ਨਕਦ ਦੋਹਾਂ ਰੂਪਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕਾਰਦਾਰ, ਮੁਕੱਦਮ, ਪਟਵਾਰੀ, ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਚੌਧਰੀ ਸਨ | ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੀ ਸੀ । ਜਿਹੜੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਉਪਜ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ ਉੱਥੇ ਲਗਾਨ 50% ਸੀ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਉਪਜ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ \(\frac{2}{5}\)
ਤੋਂ \(\frac{1}{3}\) ਤਕ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ | ਅਸੀਂ ਡਾਕਟਰ ਬੀ. ਜੇ. ਹਸਰਤ ਦੇ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,
“ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਦਿਆਲਤਾਪੂਰਨ ਸੀ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਬਹੁਤ ਅੱਤਿਆਚਾਰੀ, ਪਰ ਇਹ ਵਿਹਾਰਿਕ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਸੀ ।”

2. ਸਰਕਾਰੀ ਆਮਦਨ ਦੇ ਹੋਰ ਸਾਧਨ (Other Sources of Government Income) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਹੋਰ ਮੁੱਖ ਸਾਧਨਾਂ ਤੋਂ ਵੀ ਆਮਦਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ-

(ਉ) ਚੰਗੀ ਕਰ (Custom Duties) – ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਦੂਜਾ ਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਚੰਗੀ ਕਰ ਸੀ | ਹਰ ਵਸਤੁ ਉੱਤੇ ਚੰਗੀ ਲਗਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਜਿਸ ਤੋਂ ਲਗਭਗ 17 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਆਮਦਨ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।

(ਅ) ਨਜ਼ਰਾਨਾ (Nazrana) – ਨਜ਼ਰਾਨਾ ਵੀ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਸੀ । ਇਹ ਰਾਜ ਦੇ ਵੱਡੇਵੱਡੇ ਦਰਬਾਰੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਮੌਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਤੋਹਫ਼ਿਆਂ ਵੱਜੋਂ ਭੇਂਟ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

(ੲ) ਜ਼ਬਤੀ (Zabti) – ਜ਼ਬਤੀ ਤੋਂ ਰਾਜ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਆਮਦਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਦੀ ਸੰਪੱਤੀ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ‘ਤੇ ਬਾਅਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਹੋਰਨਾਂ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਧਨ ਬਦਲੇ ਵੰਡ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

(ਸ) ਅਦਾਲਤਾਂ ਤੋਂ ਆਮਦਨ (Income from Judiciary) – ਅਦਾਲਤੀ ਆਮਦਨ ਵੀ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਇੱਕ ਚੰਗਾ ਸਾਧਨ ਸੀ । ਦੋਸ਼ੀ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਤੋਂ ਸਰਕਾਰ ਜੁਰਮਾਨਾ ਵਸੂਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਨਿਰਦੋਸ਼ ਸਾਬਤ ਹੋਏ · ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਤੋਂ ਸਰਕਾਰ ਸ਼ੁਕਰਾਨਾ ਵਸੂਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

(ਹ) ਆਬਕਾਰੀ (Excise) – ਆਬਕਾਰੀ ਕਰ ਅਫ਼ੀਮ, ਭੰਗ, ਸ਼ਰਾਬ ਤੇ ਹੋਰ ਨਸ਼ੇ ਵਾਲੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਲਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

(ਕ) ਲੂਣ ਤੋਂ ਆਮਦਨ (Income from Salt) – ਕੇਵਲ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਖਾਣਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਲੂਣ ਕੱਢਣ ਅਤੇ ਵੇਚਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਵੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੁਝ ਆਮਦਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।

(ਖ) ਅਬਵਾਬ (Abwabs) – ਅਬਵਾਬ ਉਹ ਕਰ ਸਨ ਜੋ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਉਗਰਾਹੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਦਾ 5% ਤੋਂ 15% ਹਿੱਸਾ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

(ਗ) ਕਿੱਤਾ ਕਰ (Professional Tax) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕਿੱਤੇ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ‘ਤੇ ਕਿੱਤਾ ਕਰ ਲਗਾਇਆ ਸੀ । ਇਹ ਕਰ ਵਪਾਰੀਆਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਰੁਪਏ ਤੋਂ ਦੋ ਰੁਪਏ ਪ੍ਰਤੀ ਵਿਅਕਤੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

3. ਖ਼ਰਚ (Expenditure-ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਰਕਾਰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ, ਜੰਗੀ ਸਾਮਾਨ ਤਿਆਰ ਕਰਨ, ਰਾਜ ਦੇ ਦਰਬਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਿਵਿਲ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਦੇਣ, ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉੱਨਤ ਕਰਨ, ਸਰਕਾਰੀ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ, ਧਰਮ ਅਰਥ ਕੰਮਾਂ ਲਈ ਅਤੇ ਇਨਾਮਾਂ ਆਦਿ ਉੱਤੇ ਖ਼ਰਚ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

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ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ (Jagirdarl System of Maharaja Ranjit Singh).

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ‘ਤੇ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Discuss about the Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਸਿੱਖ ਮਿਸਲਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸੀ ਪਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਰੂਪ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-

ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ (Kinds of Jagirs)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ-

1. ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ (Service Jagirs) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ । ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਅਤੇ ਸਿਵਲ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੋਹਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ | ਸਾਰੀਆਂ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਭਾਵੇਂ ਉਹ ਸੈਨਿਕ ਸਨ ਜਾਂ ਅਸੈਨਿਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਤਕ ਰੱਖੀਆਂ ਜਾ ਸਕਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਘਟਾਇਆ ਜਾਂ ਵਧਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਬਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

(ੳ) ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਾਂ (Military Jagirs) – ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਾਂ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਕੁਝ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਘੋੜਸਵਾਰ ਰੱਖਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀਆਂ ਨਿਜੀ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਉੱਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਖ਼ਰਚਿਆਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਧਿਆਨ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਕਿ ਹਰ ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਘੋੜਸਵਾਰ ਜ਼ਰੂਰ ਰੱਖੇ । ਇਸ ਲਈ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਘੋੜਸਵਾਰਾਂ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਜਿਹੜੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੇ ਘੱਟ ਘੋੜਸਵਾਰ ਰੱਖੇ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । 1830 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਦਾਗਣ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

(ਅ) ਸਿਵਿਲ ਜਾਗੀਰਾਂ (Civil Jagirs) – ਸਿਵਿਲ ਜਾਗੀਰਾਂ ਰਾਜ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦੇ ਬਦਲੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਸਿਵਿਲ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕੋਈ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਘੋੜਸਵਾਰ ਨਹੀਂ ਰੱਖਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਸਿਵਿਲ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੀ ।

2. ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ (Inam Jagirs) – ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਜਾਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਾਰਨਾਮਿਆਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਇਨਾਮ ਵਜੋਂ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜੱਦੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ ।

3. ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ (Subsistence Jagirs) – ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਗੁਜ਼ਾਰੇ ਲਈ ਦਿੰਦਾ ਸੀ | ਅਜਿਹੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਿਸੇ ਸੇਵਾ ਦੀ ਆਸ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ, ਹਾਰੇ ਹੋਏ ਹਾਕਮਾਂ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਸ਼ਰਿਤਾਂ ਅਤੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਆਸ਼ਰਿਤਾਂ ਨੂੰ ਗੁਜ਼ਾਰੇ ਲਈ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ | ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਾਂਗ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜਾਂਦੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ ।

4. ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ (Watan Jagirs) – ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਪੱਟੀਦਾਰ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਿਸੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਿੱਖ ਮਿਸਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਚੱਲੀਆਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਜੱਦੀ (Hereditary) ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵੜਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ ਪਰ ਉਸ ਨੇ ਕੁਝ ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਘੋੜਸਵਾਰ ਰੱਖਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

5. ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ (Dharamarth Jagirs) – ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਜਿਵੇਂ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ, ਮੰਦਰਾਂ ਅਤੇ ਮਸਜਿਦਾਂ ਜਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੀ ਆਮਦਨ ਯਾਤਰੀਆਂ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲਈ ਲੰਗਰ ਅਤੇ ਪਵਿੱਤਰ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਉੱਤੇ ਖ਼ਰਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਪੱਕੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Other Features of the Jagirdari System)

1. ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਆਕਾਰ (Size of the Jagirs) – ਸਾਰੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਭਾਵੇਂ ਉਹ ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ਦੇ ਆਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਅੰਤਰ ਸੀ, ਪਰ ਇਹ ਅੰਤਰ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰ ਇੱਕ ਪਿੰਡ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਜਾਂ ਉਸ ਦਾ ਕੋਈ ਹਿੱਸਾ ਜਾਂ ਕੁਝ ਏਕੜ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਸਾਰੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਸਮਾਨ ਵੱਡੀਆਂ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦੀਆਂ ਸਨ ।

2. ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ (Administration of the Jagirs) – ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜਾਂ ਤਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਜਾਂ ਅਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਆਪਣੇ ਏਜੰਟਾਂ ਦੇ ਰਾਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਛੋਟੀਆਂ-ਛੋਟੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਤਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਜਾਂ ਉਸ ਦੀ ਗੈਰ-ਹਾਜ਼ਰੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਈ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਇਕੱਲਿਆਂ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਉਹ ਮੁਖਤਾਰਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਜਾਂ ਉਸ ਦੇ ਏਜੰਟ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਨਿਯਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਲਗਾਨ ਆਪਣੀ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਅਧੀਨ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਿਸਾਨ ਜਾਂ ਕਾਮੇ ਉਸ ਤੋਂ ਨਾਰਾਜ਼ ਨਾ ਹੋਣ ।

3. ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮ (Duties of Jagirdars) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਨਾ ਸਿਰਫ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ਸਗੋਂ ਉਸ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਨਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਬਹਾਦਰ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਛੋਟੀਆਂ-ਮੋਟੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਵੀ ਦੇ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਬਕਾਇਆ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸੌਂਪ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਕੁਝ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਕੂਟਨੀਤਿਕ ਮਿਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਕੁਝ ਹੋਰਨਾਂ ਨੂੰ ਬਾਹਰੋਂ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਸਵਾਗਤ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਸੌਂਪੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ ।

ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਗੁਣ (Merits of the Jagirdari System)

1. ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੇ ਝੰਜਟ ਤੋਂ ਮੁਕਤ (Free from the burden of Collecting Revenue) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਸਰਕਾਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੇ ਝੰਜਟ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।

2. ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਤਿਆਰ ਹੋਣਾ (A large force was Prepared) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਿਹੜੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਸੈਨਿਕ ਰੱਖਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਵੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਲੋੜ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਭੇਜਦੇ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਦਕਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

3. ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਤਾ (Help in the Administration) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਨਾ ਸਿਰਫ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ਸਗੋਂ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸਾਰੇ ਨਿਆਂਇਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਨਜਿੱਠਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਨਜ਼ਰਾਨਾ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਵੀ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਉਹ ਛੋਟੀਆਂ-ਮੋਟੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

4. ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਰੰਕੁਸ਼ਤਾ ’ਤੇ ਰੋਕ (Restriction on the despotism of Ranjit Singh) – ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਅਸੀਮਿਤ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਉੱਤੇ ਰੋਕ ਲਗਾਉਣ ਦਾ ਵੀ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪਣਾ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਵਿੱਚ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਮਨਮਰਜ਼ੀ ਦਾ ਰਾਜ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਖੁਸ਼ੀ ਦਾ ਵੀ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ।

ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਔਗੁਣ (Demerits of the Jagirdari System)

1. ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦਾ ਅਭਾਵ (Lack of unity in the Army) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਕੋਲ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ ਭਰਤੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਹਰ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਅਧੀਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਸਿਖਲਾਈ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਤਾਲਮੇਲ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਹ ਸੈਨਿਕ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਬਜਾਏ ਆਪਣੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਧੇਰੇ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

2. ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ (Exploitation of Peasants) – ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਭਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਕਿਸਾਨਾਂ ਤੋਂ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਵੱਡੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਅਕਸਰ ਠੇਕੇਦਾਰਾਂ ਕੋਲੋਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਰਕਮ ਲੈ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦੇ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਠੇਕੇਦਾਰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਮੁਨਾਫ਼ਾ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

3. ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ (Jagirdars used to lead a Luxurious Life) – ਕਿਉਂਕਿ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਬਹੁਤ ਅਮੀਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਮਹੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰੰਗ-ਰਲੀਆਂ ਅਤੇ ਜਸ਼ਨ ਮਨਾਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਦਾ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਇਹ ਵੀ ਸੀ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ਪਿੱਛੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਜ਼ਬਤ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰਾਜ ਦੇ ਬਹੁਮੁੱਲੇ ਧਨ ਨੂੰ ਵਿਅਰਥ ਹੀ ਗੁਆ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

4. ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਲਈ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ (Jagirdari System proved harmful to the successors of Ranjit Singh) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਸੌਂਪੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ । ਆਪਣੇ ਜਿਊਂਦੇ ਜੀ ਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨਿਯੰਤਰਨ ਹੇਠ ਰੱਖਿਆ ਪਰ ਉਸ ਦੀ ਮੌਤ ਪਿੱਛੋਂ ਉਸ ਦੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਵਾਰਸਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਉਹ ਕਾਬੂ ਹੇਠ ਨਾ ਰਹੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਰਾਜ ਵਿਰੁੱਧ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਗੱਲ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਲਈ ਬੜੀ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । | ਭਾਵੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕੁਝ ਦੋਸ਼ ਸਨ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਬੜੀ ਸਫਲ ਰਹੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ (Judicial Administration of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ ਕਰੋ । (Make an assessment of the judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਵਿਸਥਾਰ ਨਾਲ ਲਿਖੋ । (What do you know about the Judicial Administration of Maharaja Ranjit Singh ? Explain in detail.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਸਾਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਫ਼ੈਸਲੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-

1. ਅਦਾਲਤਾਂ (Courts) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਰਜਾ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀਆਂ ਸਨ-

  • ਪੰਚਾਇਤ (Panchayat) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੰਚਾਇਤ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਪਰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਦਾਲਤ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਵਿੱਚ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਪੰਜ ਮੈਂਬਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡ ਦੇ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦੀ ਸੁਣਵਾਈ ਪੰਚਾਇਤ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਸਰਕਾਰ ਪੰਚਾਇਤ ਦੇ ਕੰਮ-ਕਾਜ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਦਖ਼ਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ।
  • ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Qazi’s Court) – ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।
  • ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Jagirdars Court) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਲਗਾਉਂਦੇ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਦੋਹਾਂ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।
  • ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Kardar’s Court) – ਕਾਰਦਾਰ ਪਰਗਨੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੀ ਸੁਣਵਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
  • ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Nazim’s Court) – ਹਰ ਸੂਬੇ ਵਿੱਚ ਨਿਆਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨਾਜ਼ਿਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਅਦਾਲਤੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Adalti’s Court) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵੱਡੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਜਿਵੇਂ ਲਾਹੌਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ, ਮੁਲਤਾਨ, ਜਲੰਧਰ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਲਈ ਅਦਾਲਤੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਹ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੀ ਸੁਣਵਾਈ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਆਪਣਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ।
  • ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ (Adalat-i-Ala) – ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਸਥਾਪਿਤ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਤੋਂ ਥੱਲੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਸੀ । ਇਸ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰ ਅਤੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲਾਂ ਸੁਣੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਸ ਅਦਾਲਤ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਸੀ ।
  • ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Maharaja’s Court) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਅੰਤਿਮ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਫਰਿਆਦੀ ਨਿਆਂ ਲੈਣ ਲਈ ਸਿੱਧਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੋਲ ਫਰਿਆਦ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਾਰਦਾਰਾਂ, ਨਾਜ਼ਿਮਾਂ ਅਤੇ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵੀ ਅਪੀਲਾਂ ਸੁਣਦਾ ਸੀ । ਸਿਰਫ਼ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੂੰ ਹੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦੇਣ ਜਾਂ ਸਜ਼ਾ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਜਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਮੁਆਫ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ।

2. ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੇ ਢੰਗ (Working of the Courts) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੀ ਕਾਰਜ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸਾਦਾ ਅਤੇ ਵਿਹਾਰਿਕ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਲੈਣ ਲਈ ਲੋਕ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਜਾ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਜਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਆਪਣੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਸੁਣਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਲੋਕ ਇਨ੍ਹਾਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਮਹਾਰਾਜੇ ਕੋਲ ਅਪੀਲ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ ।

3. ਸਜ਼ਾਵਾਂ (Punishments) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦੇਣ ਦੇ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਸੀ | ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਕਿਸੇ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਬਹੁਤੇ ਅਪਰਾਧਾਂ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜੁਰਮਾਨਾ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਅੰਗ ਕੱਟਣ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਵੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਸਜ਼ਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਜੋ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਅਪਰਾਧ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ ।

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀ ਪੜਚੋਲ (Estimate of Maharaja Ranjit Singh’s Judicial System)

(ੳ) ਔਗੁਣ (Demeritsi)

  • ਨਿਆਂ ਨੂੰ ਵੇਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ (Justice was Sold) – ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਨਿਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਇੱਕ ਸਾਧਨ ਬਣਾਇਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਧਨ ਦੇ ਕੇ ਸਜ਼ਾ ਤੋਂ ਬਚਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।
  • ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਸਨ (Courts rights were not Clear) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਠੀਕ ਨਿਆਂ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ।
  • ਕੋਈ ਲਿਖਤੀ ਕਾਨੂੰਨ ਨਹੀਂ ਸੀ (No writtten Laws) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਕਈ ਵਾਰੀ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਕਰ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

(ਅ) ਗੁਣ (Merits )

  • ਨਿਆਂ ਨੂੰ ਵੇਚਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦਾ ਸੀ (Justice was not Sold) – ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਨੇ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਿਆਂ ਨੂੰ ਵੇਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਛੇਤੀ ਅਤੇ ਸਸਤਾ ਨਿਆਂ (Fast and Cheap Justice) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਗੁਣ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਛੇਤੀ ਅਤੇ ਸਸਤਾ ਨਿਆਂ ਮਿਲਦਾ ਸੀ ।
  • ਕਾਨੂੰਨ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਸਨ (Laws were based on Conventions) – ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਆਪਣੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਲੋਕ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਸਮਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
  • ਨਿਆਂਧੀਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਸਖ਼ਤ ਨਿਗਰਾਨੀ (Strict watch over Judges) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਸਖ਼ਤ ਨਿਗਰਾਨੀ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਿਆਂ ਕਰਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ Military Administration of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰਪੂਰਵਕ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe in detail the military system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਗੁਣ ਅਤੇ ਔਗੁਣ ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Describe the merits and demerits of the Military Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the Military Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Describe the salient features of the military administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਦੋਸ਼ਪੂਰਨ ਸੀ । ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਤਾਂ ਕੋਈ ਪਰੇਡ ਕਰਵਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਕਿਸਮ ਦੀ ਕੋਈ ਸਿਖਲਾਈ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਦਾਗਣ ਦਾ ਕੋਈ ਰਿਵਾਜ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸੈਨਿਕ ਯੁੱਧ ਵੱਲ ਘੱਟ ਅਤੇ ਲੁੱਟਮਾਰ ਵੱਲ ਵਧੇਰੇ ਧਿਆਨ ਦਿੰਦੇ ਸਨ | ਅਜਿਹੀ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਸਹੀ ਅਰਥਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਫ਼ੌਜ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਦੇਖ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੁਪਨੇ ਨੂੰ ਸਾਕਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਅਨੁਸ਼ਾਸਿਤ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਲੋੜ ਮਹਿਸੂਸ ਕੀਤੀ । ਇਸੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਆਧੁਨਿਕੀਕਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤੀ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਦੋਹਾਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਦਾ ਬੜੇ ਸੁਚੱਜੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸੁਮੇਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਵੰਡ (Division of Army)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਦੋ ਭਾਗਾਂ-
(i) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਈਨ (ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ) ਅਤੇ
(ii) ਫ਼ੌਜਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ (ਅਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ) ਵਿੱਚ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਭਾਗਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ (Fauj-i-Ain)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਤਿੰਨ ਹਿੱਸੇ ਸਨ-
(i) ਪਿਆਦਾ ਜਾਂ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ
(ii) ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਅਤੇ
(iii) ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ।

1. ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ (Infantry) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨਕਾਲ ਵਿੱਚ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੀ ਭਰਤੀ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ ਜੋ 1805 ਈ. ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਸੀ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਅੰਤ ਤਕ ਜਾਰੀ ਰਿਹਾ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾਂ-ਮਾਤਰ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਨਫ਼ਰਤ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਪਠਾਣਾਂ ਅਤੇ ਗੋਰਖਿਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ । 1822 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਚੰਗੇਰੀ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । 1838-39 ਈ. ਵਿੱਚ ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 26,617 ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

2. ਘੋੜਸਵਾਰ (Cavalry) – ਅਨੁਸ਼ਾਸਿਤ ਸੈਨਾ ਦਾ ਭਾਗ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਵੀ ਭਰਤੀ ਨਾ ਹੋਏ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਠਾਣ, ਰਾਜਪੂਤ ਅਤੇ ਡੋਗਰਿਆਂ ਆਦਿ ਨੂੰ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਪਰ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਸਿੱਖ ਵੀ ਇਸ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋ ਗਏ । 1822 ਈ. ਵਿੱਚ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਛੇਤੀ ਹੀ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਬਣ ਗਈ । 1838-39 ਈ. ਵਿੱਚ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 4090 ਸੀ ।

3. ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ (Artillery) – ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅੰਗ ਸੀ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦਾ ਹੀ ਇੱਕ ਅੰਗ ਸੀ । 1810 ਈ. ਵਿੱਚ ਤੋਪਖ਼ਾਨੇ ਦਾ ਵੱਖਰਾ ਵਿਭਾਗ ਖੋਲ੍ਹਿਆ ਗਿਆ | ਯੂਰਪੀ ਢੰਗ ਦੀ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ ਅਤੇ ਗਾਰਡਨਰ ਨੂੰ ਇਸ ਵਿਭਾਗ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਇਸ ਵਿਭਾਗ ਨੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਉੱਨਤੀ ਕਰ ਲਈ ਸੀ । ਇਸ ਵਿਭਾਗ ਨੂੰ ਚਾਰ ਭਾਗਾਂ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਅਸਪੀ, ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਫੀਲੀ, ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਗਾਵੀ ਅਤੇ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਤਰੀ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ।

ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਫੀਲੀ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਭਾਰੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਸਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਾਥੀਆਂ ਨਾਲ ਖਿੱਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਤੋਪਖ਼ਾਨਾਏ-ਸ਼ੁਤਰੀ ਵਿੱਚ ਉਹ ਤੋਪਾਂ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਊਠਾਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਅਸ਼ ਵਿੱਚ ਉਹ ਤੋਪਾਂ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਘੋੜਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਗਾਵੀ ਵਿੱਚ ਉਹ ਤੋਪਾਂ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬਲਦਾਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ (Fauj-i-Khas)

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅੰਗ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਪੈਦਲ ਫ਼ੌਜ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਬਟਾਲੀਅਨਾਂ, ਘੋੜਸਵਾਰ ਫ਼ੌਜ ਦੀਆਂ ਦੋ ਰਜਮੈਂਟਾਂ ਅਤੇ 24 ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਯੂਰਪੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਰੜੀ ਸਿਖਲਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜੇ ਚੋਣਵੇਂ ਸੈਨਿਕ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਗਏ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਵੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਕਿਸਮ ਦੇ ਸਨ । ਇਸੇ ਲਈ ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਆਪਣਾ ਵੱਖਰਾ ਝੰਡਾ ਅਤੇ ਚਿੰਨ੍ਹ ਸਨ ।

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ (Fauj-i-Be-Qawaid)

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ਉਹ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਚਾਰਾਂ ਭਾਗਾਂ
(i) ਘੋੜ-ਚੜੇ
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲਾਜਾਤ
(iii) ਅਕਾਲੀ ਅਤੇ
(iv) ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਘੋੜਚੜੇ (Ghur-Charas) – ਘੋੜਚੜੇ ਬੇਕਵਾਇਦ ਸੈਨਾ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭਾਗ ਸੀ । ਇਹ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਸਨ-
(i) ਘੋੜਚੜੇ ਖ਼ਾਸ-ਇਸ ਵਿੱਚ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰੀਆਂ ਦੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਅਤੇ ਉੱਚ ਖ਼ਾਨਦਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵਿਅਕਤੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।
(ii) ਮਿਸਲਦਾਰ-ਇਸ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ਜਿਹੜੇ ਮਿਸਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸੈਨਿਕ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਸਨ । ਘੋੜਚੜੇ ਖ਼ਾਸ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚ ਮਿਸਲਦਾਰਾਂ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਘੱਟ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲੜਨ ਦਾ ਢੰਗ ਪੁਰਾਣਾ ਸੀ । 1838-39 ਈ. ਵਿੱਚ ਘੋੜਚੜਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 10,795 ਸੀ ।

2. ਫੌਜ-ਏ-ਕਿਲੂਜਾਤ (Fauj-i-Kilajat) – ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਕੋਲ ਇੱਕ ਵੱਖਰੀ ਫ਼ੌਜ ਸੀ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲਾਜਾਤ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਹਰੇਕ ਕਿਲੇ ਵਿੱਚ ਕਿਲਾਜਾਤ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਅਨੁਸਾਰ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਕਿਲੇ ਦੇ ਕਮਾਨ ਅਫ਼ਸਰ ਨੂੰ ਕਿਲੇਦਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

3. ਅਕਾਲੀ (Akalis) – ਅਕਾਲੀ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਭਿਆਨਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਭੇਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਹੋ ਕੇ ਘੁੰਮਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਸਿਖਲਾਈ ਜਾਂ ਪਰੇਡ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ ।ਉਹ ਧਰਮ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 3,000 ਦੇ ਕਰੀਬ ਸੀ । ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅਕਾਲੀ ਸਾਧੂ ਸਿੰਘ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨੇਤਾ ਸਨ ।

4. ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਫੌਜ (Jagirdari Fau) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ‘ਤੇ ਇਹ ਸ਼ਰਤ ਲਗਾਈ ਗਈ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਲੋੜ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਦੇਣ । ਇਸ ਲਈ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਰਾਜ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਪੈਦਲ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਨਿਰੀਖਣ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Other Features)

  • ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁਲ ਗਿਣਤੀ (Total Strength of the Army) – ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਨ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁਲ ਗਿਣਤੀ 75,000 ਤੋਂ 1,00,000 ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਸੀ ।
  • ਰਚਨਾ (Composition) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਰਗਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਲੋਕ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ, ਰਾਜਪੂਤ, ਬ੍ਰਾਹਮਣ, ਖੱਤਰੀ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਗੋਰਖੇ ਅਤੇ ਪੂਰਬੀਆਂ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।
  • ਭਰਤੀ (Recruitment) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਬਿਲਕੁਲ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਮਰਜ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ ਸੀ । ਕੇਵਲ ਸਿਹਤਵੰਦ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀ ਭਰਤੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕੇਵਲ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀ ।
  • ਤਨਖ਼ਾਹ (Pay) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਜਾਂ ਤਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਾਂ ਜਿਣਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦੇਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ।
  • ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ (Promotions) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਕਾਬਲੀਅਤ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ ਦੇਣ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਿਸੇ ਸੈਨਿਕ ਨਾਲ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਜਾਂ ਧਰਮ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਇਨਾਮ ਅਤੇ ਖਿਤਾਬ (Rewards and Honours) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਹਰ ਸਾਲ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਸੇਵਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹਾਦਰੀ ਵਿਖਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੱਖਾਂ ਰੁਪਏ ਇਨਾਮ ਅਤੇ ਉੱਚੇ ਖਿਤਾਬ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।
  • ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ (Discipline) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜਾ ਸਖ਼ਤ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਕਾਇਮ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਉੱਪਰ ਦਿੱਤੇ ਵੇਰਵਿਆਂ ਤੋਂ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲ ਸੈਨਾ ਦੀ · ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਸਚ-ਮੁੱਚ ਹੀ ਉਸ ਦੀ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸਫਲਤਾ ਸੀ । ਜਨਰਲ ਸਰ ਚਾਰਲਸ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਆਰਥਰ ਡੀ. ਇਨਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ, .
‘‘ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਜਿਹੜੀਆਂ ਸੈਨਾਵਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕੁਸ਼ਲ ਸੀ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਔਖਾ ਸੀ ।’’1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਰੂਪ-ਰੇਖਾ ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Give an outline of Central Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਸੀਮ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ। ਉਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ’ਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਕਾਨੂੰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ, ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਅਤੇ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨਣਾ ਜਾਂ ਨਾ ਮੰਨਣਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਰਜ਼ੀ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਕੁਝ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the position of Maharaja in Central Administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਸਰੂਪ ਕੀ ਸੀ ? (What was the nature of Administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁਖੀ ਸੀ । ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਸੋਮਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਮੰਤਰੀਆਂ, ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸੈਨਿਕ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀਆਂ ਨਿਯੁਕਤੀਆਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ਤੇ ਰਾਜ ਦੀ ਸਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਉਸ ਦੇ ਇਸ਼ਾਰੇ ‘ਤੇ ਚਲਦੀ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁੱਖ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਵੀ ਸੀ ਤੇ ਉਸ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸ਼ਾਸਕ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਜਾਂ ਸੰਧੀ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰਨ ਦਾ ਪੂਰਨ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ ? (How was the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕੀ ਸੀ ? (What was the position of Nazim in Province during the times of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਚਾਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੂਬਿਆਂ-

  1. ਸੂਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ,
  2. ਸੂਬਾਏ-ਮੁਲਤਾਨ,
  3. ਸੂਬਾ-ਏ-ਕਸ਼ਮੀਰ,
  4. ਸੂਬਾ-ਏ-ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

ਹਰੇਕ ਸੂਬਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਾਤ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕਰੋ । (Analyse the local administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What do you know about the local administration of Maharaja Ranjit Singh ? Explain.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਨੂੰ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਗਨੇ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ । ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨਾ, ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਵਾਉਣਾ, ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮੇ ਸੁਣਨਾ ਸੀ । ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਮੁਕੱਦਮ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਜਾਂ ਮੌਜਾ ਸੀ । ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਕੀ ਸਥਿਤੀ ਸੀ ? (What was the position of Kardar during the times of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕੰਮ ਲਿਖੋ । (Write any three works of Kardar during the times of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕਾਰਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰ ਕੇ ਕੇਂਦਰੀ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਪਰਗਨੇ ਦੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਪੂਰਾ ਹਿਸਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਹਰ ਕਿਸਮ ਦੇ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਕੰਮ ਲਿਖੋ । (Write functions of Kotwal during the times of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ ।
  2. ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ ।
  3. ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨਾ ।
  4. ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the administration of city of Lahore during the times of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ ? (How was the administration of the city of Lahore during the time of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਹਰ ਮੁਹੱਲਾ ਇੱਕ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹੱਲੇਦਾਰ ਆਪਣੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈਆਂ ਬਾਰੇ ਚਾਨਣਾ ਪਾਓ । (Describe main features of Maharaja Ranjit Singh’s land revenue administration.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਬਾਰੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the economic administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਲਈ ਬਟਾਈ, ਕਨਕੂਤ, ਘਾ, ਹਲ ਅਤੇ ਖੁਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਕਾਰਦਾਰ, ਮੁਕੱਦਮ, ਪਟਵਾਰੀ, ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਚੌਧਰੀ ਸਨ । ਲਗਾਨ ਨਕਦ ਜਾਂ ਅਨਾਜ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਭੂਮੀ ਦੀ ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the chief features of Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh ?).
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਰਾਜ ਦੇ ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਅਸੈਨਿਕ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ, ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ, ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਅਤੇ ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਜਾਂ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਜਾਂ ਅਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਏਜੰਟ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main features of the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਲਿਖੋ । (Write any three features of the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਾਧਾਰਨ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰੀਤੀਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਅੰਤਿਮ ਫੈਸਲਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਦੇ ਲਈ ਰਾਜ ਭਰ ਵਿੱਚ ਕਈ ਅਦਾਲਤਾਂ ਕਾਇਮ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ | ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਕਸਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਲਈ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਦਾਲਤੀ ਨਾਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਫ਼ਸਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਸਖ਼ਤ ਨਹੀਂ ਸਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਫ਼ੌਜੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main features of Ranjit Singh’s military administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਕੀ ਸੁਧਾਰ ਕੀਤੇ ? (What reforms were introduced by Ranjit Singh to improve his military administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the military of Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਫ਼ੌਜੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe any three features of the military administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main features of Maharaja Ranjit Singh’s military administration ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about military administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾਂ ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਯੂਰਪੀ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਨੂੰ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਹੁਲੀਆ ਰੱਖਣ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਦਾਗ਼ਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਹਥਿਆਰ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਕਾਰਖ਼ਾਨੇ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਿੱਜੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਜੰਗ ਵਿੱਚ ਬਹਾਦਰੀ ਦਿਖਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਇਨਾਮ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਾਗੀਦਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਵੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਸੰਗਠਨ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਉੱਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the Fauj-i-Khas of Maharaja Ranjit Singh’s army.)
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅੰਗ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਜਨਰਲ ਵੈਰਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਯੂਰਪੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਰੜੀ ਸਿਖਲਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜੇ ਚੋਣਵੇਂ ਸੈਨਿਕ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਵੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਕਿਸਮ ਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਆਪਣਾ ਵੱਖਰਾ ਝੰਡਾ ਅਤੇ ਚਿੰਨ੍ਹ ਸਨ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਬਹੁਤ ਅਨੁਸ਼ਾਸਿਤ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਰਜਾ ਪ੍ਰਤੀ ਵਤੀਰਾ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੀ ? (What was Ranjit Singh’s attitude towards his subjects ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ਪ੍ਰਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਵਤੀਰਾ ਸੀ ? (What was the Maharaja Ranjit Singh’s attitude towards his people ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਰਜਾ ਵੱਲ ਵਤੀਰਾ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਯਤਨ ਕਰਨ । ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਅਕਸਰ ਰਾਜ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨਾ ਕੇਵਲ ਸਿੱਖਾਂ ਬਲਕਿ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤੀ ਵੀ ਕੀਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਪਏ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the effects of Ranjit Singh’s rule on the life of the people.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ । ਉਸ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸੁੱਖ ਦਾ ਸਾਹ ਲਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤਕ ਮੁਗਲ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੂਬੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਘੋਰ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ ।

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ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਧੁਰਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਉਦੇਸ਼ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਅੰਦਰੂਨੀ ਅਤੇ ਬਾਹਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਬਾਰੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਸਲਾਹ ਦੇਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼-ਉਦ-ਦੀਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਦੂਸਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਅਤੇ ਸੰਧੀ ਸੰਬੰਧੀ ਸਲਾਹ ਦੇਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੌਣ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹੀ ਰਾਜ ਘਰਾਣੇ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਬਣਾਏ ਗਏ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਕਿੰਨੇ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਚਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨੇ 14.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਸੂਬੇ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸੂਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦੇ ਮੁਖੀ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਮਿਸਰ ਰੂਪ ਲਾਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕੰਮ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਪਰਗਨਾ ਦੇ ਸਰਵੋਚ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਰਦਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸ਼ਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕੌਣ ਕਰਦਾ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਹੜੇ ਅਧਿਕਾਰੀ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੋਤਵਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਕੋਤਵਾਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਕਾਨੂੰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੌਜਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਤੋਂ ਤੁਹਾਡਾ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਨੁਸਾਰ ਲਗਾਨ ਫ਼ਸਲ ਕੱਟਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਤੋਂ ਤੁਹਾਡਾ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਨੁਸਾਰ ਲਗਾਨ ਖੜ੍ਹੀ ਫ਼ਸਲ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਚੁੰਗੀ ਕਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਰਾਜ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦੇ ਬਦਲੇ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਕੀ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਜਗੀਰਦਾਰ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜੋ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਈਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ ਕਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੇਵਾਵਾਂ ਬਦਲੇ ਜਾਂ ਬਹਾਦਰੀ ਦਿਖਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਤੋਹਫ਼ਿਆਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਜ਼ਰਾਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 33.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਅਦਾਲਤ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 34.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਕਿਹੜੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 35.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਦੋਸ਼ ਦੱਸੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 36.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਕੀਤੇ ਗਏ ਸੁਧਾਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਇੱਕ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਪੱਛਮੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸਿਖਲਾਈ ਦਿੱਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 37.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਕਿਹੜੇ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 38.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਕਦੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
1805 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 39.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ਕਿੰਨੇ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਚਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 40.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 41.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦਾ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਕਿਸ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 42.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹਾਥੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਫੀਲੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 43.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਊਠਾਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਸ਼ੁਤਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 44.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਘੋੜਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਅਸਪੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 45.
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਉਹ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 46.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸੈਨਾ ਦੇ ਦੋ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਯੂਰਪੀਅਨ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਜਾਂ
ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਕਿਸੇ ਦੋ ਯੂਰਪੀਅਨ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਯੂਰਪੀ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਸੇ ਦੋ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਅਤੇ ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ ।

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ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :- ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ……………………. ਰਾਜ ਦਾ ਮੁਖੀਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਮਹਾਰਾਜਾ)

2. ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ …………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ)

3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਨਾਂ ………………………. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ)

4. ………………………. ਅਤੇ ………………….. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ, ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾ ਰਾਮ)

5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ)

6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਮੇਂ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ …………………… ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਜਮਾਂਦਾਰ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ)

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7. ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ……………………….. ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਹੀ ਰਾਜ ਘਰਾਨੇ)

8. ……………………… ਵੱਲੋਂ ਰਾਜ ਦੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਰੋਜਨਾਮਚਾ-ਏ-ਇਖਰਾਜ਼ਾਤ)

9. ………………….. ਵੱਲੋਂ ਰਾਜ ਦੀ ਬਹੁਮੁੱਲੀ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਸ਼ਾਖ਼ਾਨਾ)

10. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ …………………….. ਸੁਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਚਾਰ)

11. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ……………………….. ਸੁਬੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਨਾਜ਼ਿਮ)

12. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ………………………. ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਪਰਗਨਾ)

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13. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ……………………….. ਪਿੰਡ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਪਟਵਾਰੀ)

14. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ………. ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਕੋਤਵਾਲ)

15. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੋਤਵਾਲ ……………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼)

16. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ……………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ)

17. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਦੀ ………………………… ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬਟਾਈ)

18. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ………………………… ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ
ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦੇ)

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19. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ……………… ਜਗੀਰਾਂ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸੇਵਾ)

20. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ……………………….. ਜਗੀਰਾਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਧਰਮਾਰਥ)

21. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਨੂੰ ……………………. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ)

22. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ……………………. ਵਿਖੇ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਹੌਰ)

23. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਆਮਤੌਰ ‘ਤੇ ……………………………. ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਜੁਰਮਾਨਾ)

24. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ……………………… ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਫ਼ੌਜ ਏ-ਆਇਨ)

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25. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ ਨੂੰ ………………………… ਵਿੱਚ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(1822 ਈ.)

26. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਮੇਂ ਹਾਥੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ………………….. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਫੀਲੀ)

27. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ …………………….. ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ)

28. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦਾ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਜਨਰਲ …………………….. ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼)

29. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਦੀ ਉਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਨਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ਨੂੰ ………………….. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਅੰਦਰੂਨੀ ਅਤੇ ਬਾਹਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਨਾਂ ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

3. ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

4. ਦੀਵਾਨ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

6. ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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8. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

9. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲ ਦੁਆਰਾ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਲੇਖਾ-ਜੋਖਾ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ !
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

10. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਰੋਜ਼ਾਨਾਮਚਾ-ਏ-ਇਖਰਾਜਾਤ ਦੁਆਰਾ ਰਾਜ ਦੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

11. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਵੰਡ ਚਾਰ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

12. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕਾਰਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

13. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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14. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

15. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾ ਰਾਮ ਨੇ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

16. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

17. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਚੱਲਿਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

18. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਤਿੰਨ ਵਾਰ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

19. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੇਵਾ ਜਗੀਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

20. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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21. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ |
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

22. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

23. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹਰ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

24. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹਰ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

25. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

26. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ੀ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਦਾ ਸੁਮੇਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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27. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

28. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਜਨਰਲ ਵੈੱਤਰਾ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

29. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦੇ ਤੋਪਖ਼ਾਨੇ ਦੀ ਸਿਖਲਾਈ ਲਈ ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

30. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ਉਹ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਧੁਰਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ
(ii) ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ
(iii) ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ
(iv) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ
(ii) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(iii) ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾਨਾਥ
(iv) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜੀਜਉੱਦੀਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ
(ii) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(iii) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ
(iv) ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੌਣ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ?
(i) ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ
(ii) ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾ ਰਾਮ
(iii) ਦੀਵਾਨ ਦੀਨਾ ਨਾਥ
(iv) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੌਣ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ?
(i) ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ
(ii) ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ
(iii) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਘਰਾਣੇ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕੌਣ ਕਰਦਾ ਸੀ ?
(i) ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ
(ii) ਕਾਰਦਾਰ
(iii) ਸੂਬੇਦਾਰ
(iv) ਕੋਤਵਾਲ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੌਣ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ?
(i) ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ
(ii) ਸੰਗਤ ਸਿੰਘ
(iii) ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ,
(iv) ਜੱਸਾ ਸਿੰਘ ਰਾਮਗੜ੍ਹੀਆ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਕਿੰਨੇ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) 12
(ii) 14
(iii) 4
(iv) 9.
ਉੱਤਰ-
(iii) 4.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦਾ ਮੁਖੀਆ ਕੀ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਸੂਬੇਦਾਰ
(ii) ਕਾਰਦਾਰ
(iii) ਨਾਜ਼ਿਮ
(iv) ਕੋਤਵਾਲ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਗਨੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
(i) ਨਾਜ਼ਿਮ
(ii) ਸੂਬੇਦਾਰ
(iii) ਕਾਰਦਾਰ
(iv) ਕੋਤਵਾਲ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਕਾਰਦਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖੀ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
(i) ਸੂਬੇਦਾਰ
(ii) ਕਾਰਦਾਰ
(iii) ਕੋਤਵਾਲ
(iv) ਪਟਵਾਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਕੋਤਵਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਕੋਤਵਾਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ (ਕੋਤਵਾਲ) ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(ii) ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ
(iii) ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼
(iv) ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਦੇ ਮੁਖੀ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਪਰਗਨਾ
(ii) ਮੌਜ਼ਾ
(iii) ਕਾਰਦਾਰ
(iv) ਨਾਜ਼ਿਮ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਮੌਜ਼ਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ
(ii) ਚੰਗੀ ਕਰ
(iii) ਨਜ਼ਰਾਨਾ
(iv) ਜ਼ਬਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਹੜੀ ਜਾਗੀਰ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ
(ii) ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ
(iii) ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ
(iv) ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ
(ii) ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ
(iii) ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ
(iv) ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਅਦਾਲਤ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
(i) ਪੰਚਾਇਤ
(ii) ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ
(iii) ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ
(iv) ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਪੰਚਾਇਤ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਤੋਂ ਥੱਲੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
(i) ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਅਦਾਲਤ
(ii) ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ
(iii) ਅਦਾਲਤੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ
(iv) ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਤੋਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਕਰਕੇ ਕਿਹੜੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ?
(i) ਮੌਤ ਦੀ
(ii) ਜੁਰਮਾਨਾ
(iii) ਅੰਗ ਕੱਟਣਾ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਜੁਰਮਾਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਵਿੱਚ ਕੀ ਦੋਸ਼ ਸੀ ?
(i) ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਸੀ
(ii) ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਘਟੀਆ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ
(iii) ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ
(iii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼
(ii) ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ
(iii) ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ
(iv) ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਕਿਸ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ ?
(i) ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼
(ii) ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ
(iii) ਕਰਨਲ ਗਾਰਡਨਰ
(iv) ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਉਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ?
(i) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ
(iii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਧੁਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਅਸੀਮ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਤੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਕਾਨੂੰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿਚ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ, ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਅਤੇ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਨਾਂ ਦੇ ਮੰਤਰੀ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨਣਾ ਜਾਂ ਨਾ ਮੰਨਣਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜੀ ਮਰਜ਼ੀ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਆਪਣੇ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨ ਲੈਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ 12 ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਭਾਗਾਂ) ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲ, ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ, ਦਫ਼ਤਰ-ਏਮਵਾਜ਼ਿਬ ਅਤੇ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਰੋਜ਼ਨਾਮਚਾ-ਏ-ਇਖਰਾਜਾਤ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਨਿਸਚਿਤ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਸੀ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਧੁਰਾ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(ii) ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ
(iii) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ
(iv) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖਭਾਲ ਲਈ ਕਿੰਨੇ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ?
5. ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ ਦਾ ਕੀ ਕੰਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਧੁਰਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
3. ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖਭਾਲ ਲਈ 12 ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।
5. ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ ਸ਼ਾਹੀ ਘਰਾਣੇ ਦਾ ਹਿਸਾਬ-ਕਿਤਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।

2. ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਚੰਗੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਵੱਡੇ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸੂਬੇ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਨਾਜ਼ਿਮ (ਗਵਰਨਰ) ਦੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਨਾਜ਼ਿਮ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਵੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਕੋਲ ਅਸੀਮ ਅਧਿਕਾਰ ਸਨ, ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਾਂਤ ਬਾਰੇ ਕੋਈ ਵੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਫੈਸਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਪ੍ਰਵਾਨਗੀ ਲੈਣੀ ਪੈਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਜਦ ਚਾਹੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਕਿੰਨੇ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕਿਸੇ ਦੋ ਸੂਬਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦਾ ਮੁਖੀ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
4. ਨਾਜ਼ਿਮ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਲਿਖੋ ।
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਜਦ ਚਾਹੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ………………………….. ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦੋ ਸੂਬਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਸਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਸੂਬਾ-ਏ-ਕਸ਼ਮੀਰ ਸਨ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦਾ ਮੁਖੀ ਨਾਜ਼ਿਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
4. ਉਹ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ।
5. ਤਬਦੀਲ ।

3. ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਸੀ । ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਛੋਟੇ-ਮੋਟੇ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਲੋਕ ਪੰਚਾਇਤ ਦਾ ਬੜਾ ਮਾਣ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਫੈਸਲਿਆਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਟਵਾਰੀ ਪਿੰਡ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਚੌਧਰੀ ਲਗਾਨ ਉਗਰਾਹੁਣ ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮੁਕੱਦਮ ਲੰਬੜਦਾਰ) ਪਿੰਡ ਦਾ ਮੁਖੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਇੱਕ ਕੜੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਚੌਕੀਦਾਰ ਪਿੰਡ ਦਾ ਪਹਿਰੇਦਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪਿੰਡ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਦਖਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਕਿਹੜੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਸ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਕੱਦਮ ਕੌਣ ਸੀ ?
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਕੌਣ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ?
(i) ਮੁਕੱਦਮ
(ii) ਚੌਧਰੀ
(iii) ਪਟਵਾਰੀ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਮੌਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
4. ਮੁਕੱਦਮ ਪਿੰਡ ਦਾ ਮੁਖੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
5. ਪਟਵਾਰੀ ।

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4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਹਰ ਮੁਹੱਲਾ ਇੱਕ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਆਪਣੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ਕੋਤਵਾਲ’ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ, ਮੁਹੱਲੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ, ਵਪਾਰ ਤੇ ਉਦਯੋਗ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਨਾਪ-ਤੋਲ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨੀ ਆਦਿ ਸਨ । ਉਹ ਦੋਸ਼ੀ ਲੋਕਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਲੋੜੀਂਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੌਣ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ?
3. ਕੋਤਵਾਲ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਦੱਸੋ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਹੱਲੇ ਦਾ ਮੁਖੀ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ……………………… ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
3. ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਹੱਲੇ ਦਾ ਮੁਖੀ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
5. ਲਾਹੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
(i) ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ
(ii) ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ
(iii) ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ
(iv) ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ ‘ ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ? ਇਸ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਵੀ ਦੱਸੋ । (How did Maharaja Ranjit Singh conquer Attock ? What was its significance ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਅਟਕ ਉੱਤੇ ਜਿੱਤ ਅਤੇ ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(Give a brief account of the Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Attock and the battle of Hazro.)
ਉੱਤਰ-
ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇੱਥੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਗਵਰਨਰ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖਾਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਸੀ । ਕਹਿਣ ਨੂੰ ਤਾਂ ਉਹ ਕਾਬਲ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ, ਪਰ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸੁਤੰਤਰ ਤੌਰ `ਤੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਕਾਬਲ ਦੇ ਵਜ਼ੀਰ ਫ਼ਤਹਿ ਮਾਂ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਉਸ ਦੇ ਭਰਾ ਅੱਤਾ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਤਾਂ ਉਹ ਘਬਰਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੂੰ ਇਹ ਪੱਕਾ ਯਕੀਨ ਸੀ ਕਿ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਦਾ ਅਗਲਾ ਹਮਲਾ ਅਟਕ ‘ਤੇ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦੀ ਸਾਲਾਨਾ ਜਾਗੀਰ ਦੇ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ ।

ਉਸ ਨੇ ਅਟਕ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨਾਲ ਅਟਕ ਵੱਲ ਕੂਚ ਕੀਤਾ । 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਘਮਸਾਣ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਹ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਜਿੱਥੇ ਅਟਕ ’ਤੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪੱਕਾ ਹੋ ਗਿਆ ਉੱਥੇ ਉਸ ਦੀ ਸ਼ੋਹਰਤ ਵੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਫੈਲ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਜਾਂ ਛੱਛ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Write a brief note on the battle of Hazro or Haidru or Chachh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਾਰਚ, 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਤੋਂ ਇੱਕ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਇਹ ਕਿਲ੍ਹਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ ਉਹ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਭਾਰੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਲੈ ਕੇ ਅਟਕ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜਿਹਾਦ ਦਾ ਨਾਅਰਾ ਲਗਾਇਆ | ਫ਼ਤਹਿ ਸ਼ਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਕਾਬਲ ਤੋਂ ਵੀ ਕੁਝ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਭੇਜੀ ਗਈ ।ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਅਟਕ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸੈਨਾ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸ: ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ, ਸ: ਜੋਧ ਸਿੰਘ ਰਾਮਗੜੀਆ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਭੇਜੀ । 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਜਾਂ ਛੱਛ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਘਮਸਾਣ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਜਿੱਥੇ ਅਟਕ ’ਤੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪੱਕਾ ਹੋ ਗਿਆ ਉੱਥੇ ਉਸ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਕਾਫ਼ੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਫੈਲ ਗਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Give a brief account of Shah Shuja’s relations with Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Shah Shuja.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ 1803 ਈ. ਤੋਂ 1809 ਈ. ਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ । ਉਹ ਬੜਾ ਅਯੋਗ ਸ਼ਾਸਕ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਰਾਜਗੱਦੀ ਛੱਡ ਕੇ ਦੌੜ ਗਿਆ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੁਬੇਦਾਰ ਅੱਤਾਂ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਹਿੰਮ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਵਾ ਕੇ ਲਾਹੌਰ ਲੈ ਆਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਦਲੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਜਾਹ ਦੀ ਪਤਨੀ ਵਫ਼ਾ ਬੇਗ਼ਮ ਤੋਂ ਸੰਸਾਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੋਹਿਨੂਰ ਹੀਰਾ ਪਾਪਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ।

1833 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਰਾਜਗੱਦੀ ਨੂੰ ਮੁੜ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਇੱਕ ਸੰਧੀ ਕੀਤੀ ਪਰ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਯਤਨਾਂ ਵਿੱਚ ਸਫਲਤਾ ਨਾ ਮਿਲੀ । 26 ਜੂਨ, 1838 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ, ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਤਿੰਨ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਤਾਂ ਬਣ ਗਿਆ ਪਰ ਛੇਤੀ ਹੀ ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਹੋ ਗਿਆ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the relations between Maharaja Ranjit Singh and Dost Mohammad.).
ਉੱਤਰ-
ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ 1826 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ-ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਧਦੇ ਹੋਏ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਕਦੇ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਕਾਰਨ ਦੋਹਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਆਪਸੀ ਪਾੜਾ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ਸੀ 1833 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਸਾਬਕਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾ ਕੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 6 ਮਈ, 1834 ਈ. ਨੂੰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਮੁੜ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਾ ਹੋਈ । 1837 ਈ. ਵਿੱਚ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਅਕਬਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵੱਲ ਭੇਜੀ । ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਭਿਅੰਕਰ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਪਰ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਜੇਤੂ ਰਹੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨੇ ਮੁੜ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵੱਲ ਰੁਖ ਨਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Syed Ahmed.)
ਜਾਂ
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਦੇ ਧਰਮ ਯੁੱਧ ਉੱਪਰ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the ”Zihad’ [Religious War) of Syed Ahmed.)
ਉੱਤਰ-
1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਅਟਕ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਮਚਾਈ ਰੱਖਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਬਰੇਲੀ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ, “ਅਲਾਹ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਜਿੱਤਣ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਹੈ ।” ਉਸ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਅਨੇਕ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸਰਦਾਰ ਉਸ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ । ਥੋੜ੍ਹੇ ਹੀ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਸੈਨਾ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਲਈ ਇੱਕ ਵੰਗਾਰ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦੁ ਵਿਖੇ ਅਤੇ ਫਿਰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ਪਰ ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤੀ ਨਾਲ ਉਹ ਦੋਨੋਂ ਵਾਰੀ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਾਰਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਆਪਣਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ | ਅੰਤ 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦੂਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Battle of Jamraud.)
ਉੱਤਰ-
ਕਾਬਲ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਚੁੱਪ ਨਾ ਬੈਠਿਆ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਹੋਏ ਆਪਣੇ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਵੀ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਸਥਿਤੀ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਰੁੱਝੇ ਹੋਏ ਸਨ 1 ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਵਾਇਆ । ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿੱਚ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਮੁਹੰਮਦ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਸ਼ਮਸ-ਉਦ-ਦੀਨ ਦੇ ਅਧੀਨ 20,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਰਦਾਰ ਮਹਾਂ ਸਿੰਘ ਨੇ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਆਪਣੇ ਕੇਵਲ 600 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਸਖ਼ਤ ਬੀਮਾਰ ਪਿਆ ਸੀ ।

ਜਦੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਬਾਰੇ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਤਾਂ ਉਹ ਸ਼ੇਰ ਵਾਂਗ ਗਰਜਦਾ ਆਪਣੇ 10,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਜਮਰੌਦ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾ ਦਿੱਤੇ । ਅਚਾਨਕ ਦੋ ਗੋਲੇ ਲੱਗ ਜਾਣ ਕਾਰਨ 30 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ | ਇਸ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ‘ਤੇ ਇੰਨਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਗਿੱਦੜਾਂ ਵਾਂਗ ਕਾਬਲ ਵਾਪਸ ਦੌੜ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖ ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਦੀ ਮੌਤ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਈ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਹੰਝੂ ਵਹਿੰਦੇ ਰਹੇ । ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਦੁਬਾਰਾ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਯਤਨ ਨਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਲੈਣਾ ਅਸੰਭਵ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Akali Phula Singh.)
ਜਾਂ
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the achievements of Akali Phula Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਫੌਲਾਦੀ ਥੰਮ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਨੀਹਾਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀਆਂ ਸੀਮਾਵਾਂ ਦੇ ਵਿਸਥਾਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਆਪ ਦੀ ਲਾਸਾਨੀ ਸੂਰਬੀਰਤਾ, ਨਿਡਰਤਾ, ਪੰਥਕ ਪਿਆਰ ਅਤੇ ਉੱਚੇ ਆਚਰਨ ਕਾਰਨ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । 1807 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਕਾਰਨ ਕਸੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਇਸੇ ਹੀ ਵਰੇ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਝੰਗ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕੀਤਾ । ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਸਦਕਾ ਹੀ 1816 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ, ਭੱਖਰ ਅਤੇ ਬਹਾਵਲਪੁਰ ਦੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨ ਹਾਕਮਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕੀਆਂ ਬਗ਼ਾਵਤਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਿਆ ਜਾ ਸਕਿਆ ।

1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ। ਇਸੇ ਹੀ ਵਰ੍ਹੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਸੇਵਾਵਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀਆਂ । 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਸਮੇਂ ਵੀ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਨਾਲ ਸਨ ।ਉਹ 14 ਮਾਰਚ, 1823 ਈ. ਨੂੰ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਵਿਖੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਹੋਈ ਇੱਕ ਭਿਆਨਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਰਾਖੇ ਸਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Hari Singh Nalwa.)
ਜਾਂ
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਕੌਣ ਸੀ ? ਉਸ ਦੇ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (Who was Hari Singh Nalwa? What do you know about him ?)
ਉੱਤਰ-
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਅਤੇ ਨਿਡਰ ਜਰਨੈਲ ਸੀ । ਘੋੜਸਵਾਰੀ, ਤਲਵਾਰ-ਬਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਨਿਸ਼ਾਨੇਬਾਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਸ ਦਾ ਕੋਈ ਸਾਨੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਹ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਯੋਧਾ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਉਹ ਉੱਨਤੀ ਦੀਆਂ ਮੰਜ਼ਿਲਾਂ ਤੈਅ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ। ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ ਸ਼ੇਰ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਜਿਸ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਲਵਾ ਦੇ ਖਿਤਾਬ ਨਾਲ ਸਨਮਾਨਿਆ । ਉਹ ਏਨਾ ਬਹਾਦਰ ਸੀ ਕਿ ਦੁਸ਼ਮਣ ਵੀ ਉਸ ਤੋਂ ਥਰ-ਥਰ ਕੰਬਦੇ ਸਨ ।

ਉਸ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਅਤੇ ਹਰ ਮੁਹਿੰਮ ਵਿੱਚ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ । ਉਹ 1820-21 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ 1834 ਈ. ਤੋਂ 1837 ਈ. ਤਕ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਨਾਜ਼ਿਮ (ਗਵਰਨਰ) ਰਹੇ । ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀ ਸਗੋਂ ਅਨੇਕਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੁਧਾਰ ਵੀ ਲਾਗੂ ਕੀਤੇ । ਉਹ 30 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਮੌਤ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਸਦਮਾ ਪਹੁੰਚਿਆ ਤੇ ਉਹ ਕਈ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਰੋਂਦਾ ਰਿਹਾ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਵਿਸਥਾਰ ਵਿੱਚ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ ।
(Describe the main features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾਂਤ ਖੇਤਰ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Explain the features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ, ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਡੇਰਾ ਗਾਜ਼ੀ ਖ਼ਾਂ, ਡੇਰਾ ਇਸਮਾਈਲ ਖਾਂ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਆਦਿ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਕੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਿਆਣਪ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲੈਂਦਿਆਂ ਕਦੇ ਵੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਯਤਨ ਨਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਕਈ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਕੋਈ ਨਵੀਂ ਸਿਰਦਰਦੀ ਮੁੱਲ ਨਹੀਂ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ।ਉਸ ਨੇ ਕਈ ਨਵੇਂ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ ਅਤੇ ਕਈ ਪੁਰਾਣੇ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਵਾਇਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ ਬੜੀ ਸਿੱਖਿਅਤ ਸੈਨਾ ਰੱਖੀ ਗਈ । ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਚਲਦੇ-ਫਿਰਦੇ ਦਸਤੇ ਕਾਇਮ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬੜੀ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਨਾਲ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ । ਕਬਾਇਲੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਬੇਲੋੜੀ ਦਖਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਸੈਨਿਕ ਗਵਰਨਰਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the significance of Noth-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਦੂਰ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ, ਕੂਟਨੀਤੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਯੋਗਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸਫਲਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲ ਕੇ ਉੱਥੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਅਤੇ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਿਆ । ਉਹ ਫਜੂਲ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦਖਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉੱਥੇ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ । ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ਗਏ । ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਨਾ ਕੇਵਲ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਹੋਏ ਸਗੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਵੀ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਉਤਸ਼ਾਹ ਮਿਲਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਤੋਂ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਰਿਹਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਸਫਲ ਰਹੀ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ (Ranjit Singh’s Relations with Afghanistan)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe Maharaja Ranjit Singh’s relations with the Afghans.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਪੜਾਵਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the main stages of relations of Maharaja Ranjit Singh with Afghanistan.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਚਾਰ ਪੜਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ-
(ੳ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪੜਾਅ 1797-1812 ਈ.,
(ਅ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਦੂਜਾ ਪੜਾਅ 1813-1834 ਈ.,
(ੲ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਤੀਜਾ ਪੜਾਅ 1834-1837 ਈ.
(ਸ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਚੌਥਾ ਪੜਾਅ 1838-1839 ਈ. ।

(ੳ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪੜਾਅ 1797-1812 ਈ. (First Stage of Sikh-Afghan Relations 1797-1812 A.D.)

1. ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ (Ranjit Singh and Shah Zaman) – ਜਦੋਂ 1797 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਦੀ ਵਾਗਡੋਰ ਸੰਭਾਲੀ ਉਸ ਸਮੇਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਸੀ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਜੱਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ‘ਤੇ ਉਸ ਦੇ ਦਾਦੇ ਅਹਿਮਦ ਸ਼ਾਹ ਅਬਦਾਲੀ ਨੇ 1752 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਬਜ਼ਾ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੇ 27 ਨਵੰਬਰ, 1798 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਦਾ ਬਿਨਾਂ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਛੱਡ ਕੇ ਨੱਸ ਗਏ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕਾਰਨ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੂੰ ਕਾਬਲ ਜਾਣਾ ਪਿਆ । ਇਸ ’ਤੇ ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੇ ਜਨਵਰੀ 1799 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਮੁੜ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ 7 ਜੁਲਾਈ, 1799 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਦੀਆਂ 12 ਜਾਂ 15 ਤੋਪਾਂ ਜੋ ਦਰਿਆ ਜੇਹਲਮ ਵਿੱਚ ਡਿੱਗ ਪਈਆਂ ਸਨ ਕਢਵਾ ਕੇ ਕਾਬਲ ਭੇਜੀਆਂ । ਇਸ ਤੋਂ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕੀਤੇ ਗਏ ਕਬਜ਼ੇ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।

2. ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਸਥਿਰਤਾ (Political Instability in Afghanistan) – 1800 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਾਬਲ ਵਿੱਚ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਖ਼ਾਨਾਜੰਗੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ । ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । 1803 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮਦ ਤੋਂ ਗੱਦੀ ਹਥਿਆ ਲਈ ।ਉਹ ਬੜਾ ਅਯੋਗ ਸ਼ਾਸਕ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਅਰਾਜਕਤਾ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕਾ ਵੇਖ ਕੇ ਅਟਕ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਮੁਲਤਾਨ ਤੇ ਡੇਰਾਜਾਤ ਆਦਿ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੁਬੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਕਾਬਲ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਪੂਰਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾਇਆ ਅਤੇ ਕਸੂਰ, ਝੰਗ, ਖੁਸ਼ਾਬ ਅਤੇ ਸਾਹੀਵਾਲ ਨਾਂ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

(ਅ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਦੂਜਾ ਪੜਾਅ 1813-1834 ਈ. (Second Stage of Sikh-Afghan Relations 1813-1834 A.D.)

1813 ਈ. ਤੋਂ 1834 ਈ. ਤਕ ਦਾ ਕਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਅਤਿ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਲ ਹੈ । ਇਸ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਇੱਕ ਲੰਬਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਚਲਦਾ ਰਿਹਾ । ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਵਿੱਚ ਅੰਤ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ।

1. ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ 1813 ਈ. (Alliance between Ranjit Singh and Fateh Khan 1813 A.D. – 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨ ਵਜ਼ੀਰ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਜਿੱਤਣ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵੀ ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਦੀਆਂ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ 18 ਅਪਰੈਲ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਰੋਹਤਾਸਗੜ੍ਹ ਵਿਖੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਸਮਝੌਤੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਦੀਆਂ ਸਾਂਝੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸ਼ੇਰਗੜ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੱਤਾ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਆਪਣੇ ਵਾਅਦੇ ਤੋਂ ਮੁਕਰ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਨਾ ਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਕੋਈ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਲੁੱਟ ਦੇ ਮਾਲ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਹਿੱਸਾ ।

2. ਅਟਕ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ 1813 ਈ. (Occupation of Attock 1813 A.D.) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਧੋਖੇ ਕਾਰਨ ਉਸ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਕੁਟਨੀਤੀ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅਟਕ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖਾਂ ਨੇ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਦੇ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅਟਕ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢਣ ਲਈ ਤੁਰ ਪਿਆ । 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਹ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

3. ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1819 ਈ. (Conguest of Kashmir 1819 A.D.) – ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ | ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਜੇਤੂ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਕਸ਼ਮੀਰ ਵੱਲ ਭੇਜੀ ਗਈ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਜ਼ਬਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣ ਅਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਰਹੀ । ਇਸ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਹੋਰ ਕਰਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ।

4. ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 1823 ਈ. (Battle of Naushehra 1823 A.D.) – ਛੇਤੀ ਹੀ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਦੇ ਭਰਾ ਆਜ਼ਿਮ ਨੇ ਅਜੂਬ ਖਾਂ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਇਆ ਅਤੇ ਆਪ ਉਸ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ ਬਣ ਗਿਆ । ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਬਦਅਮਨੀ ਦਾ ਲਾਭ ਉੱਠਾ ਕੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਅਧੀਨਤਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਈ । ਆਜ਼ਿਮ ਸ਼ਾਂ ਇਹ ਕਦੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ 14 ਮਾਰਚ, 1823 ਈ. ਨੂੰ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਜਾਂ ਟਿੱਬਾ ਟੇਹਰੀ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਹੋਈ। ਇਹ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਭਿਅੰਕਰ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤੀ । ਡਾਕਟਰ ਬੀ. ਜੇ. ਹਜਰਤ ਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿਚ,
“ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਵਿਖੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨਦੀ ਦੇ ਪਰਲੇ ਪਾਸੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਸਰਵ-ਉੱਚਤਾ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।” 1

5. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ 1827-31 ਈ. (Revolt of Sayyed Ahmad 1827-31 A.D.1827) – ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਅਟਕ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਮਚਾਈ ਰੱਖਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ, “ਅੱਲਾਹ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਹੈ ।” ਉਸ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸਰਦਾਰ ਉਸ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ । ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦੁ ਵਿਖੇ ਅਤੇ ਫਿਰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ਪਰ ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤੀ ਨਾਲ ਉਹ ਦੋਨੋਂ ਵਾਰੀ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਅੰਤ ਮਈ 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦੂਰ ਹੋਈ ।

6. ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨਾਲ ਸੰਧੀ 1833 ਈ. (Treaty with Shah Shujah 1833 A.D.) – 12 ਮਾਰਚ, 1833 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਇਸ ਅਨੁਸਾਰ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਸਿੰਧ ਦਰਿਆ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤੇ ਗਏ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਉਸ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਦੇ ਬਦਲੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਨ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਤਾ ਕੀਤੀ ।

7. ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ 1834 ਈ. (Annexation of Peshawar to Lahore Kingdom 1834 A.D.) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ | ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਨੌਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ, ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਅਤੇ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫੌਜ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਭੇਜੀ । 6 ਮਈ, 1834 ਈ. ਨੂੰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੂੰ ਉੱਥੋਂ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

(ੲ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਤੀਜਾ ਪੜਾਅ 18341837 ਈ. (Third Stage of Sikh-Afghan Relations 1834-1837 A.D.)

1. ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਦੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਾਪਸ ਲੈਣ ਦੇ ਯਤਨ 1835 ਈ. (Efforts to recapture Peshawar by Dost Muhammad Khan 1835 A.D.) – 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਤਾਂ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਲਾਲ ਪੀਲਾ ਹੋ ਗਿਆ | ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨ ਕਬੀਲੇ ਉਸ ਦੇ ਝੰਡੇ ਅਧੀਨ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਭਰਾ ਸੁਲਤਾਨ ਮੁਹੰਮਦ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਰਲਾ ਲਿਆ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਅਤੇ ਹਰਲਾਨ ਨੂੰ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਾਬਲ ਭੇਜਿਆ । ਇਸ ਮਿਸ਼ਨ ਦਾ ਇੱਕ ਹੋਰ ਉਦੇਸ਼ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਅਤੇ ਸੁਲਤਾਨ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਫੁੱਟ ਪਵਾਉਣਾ ਸੀ । ਇਹ ਮਿਸ਼ਨ ਆਪਣੇ ਉਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਰਿਹਾ । ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਨੇੜੇ ਜਦੋਂ ਦੋਵੇਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਪਹੁੰਚੀਆਂ ਤਾਂ ਸੁਲਤਾਨ ਮੁਹੰਮਦ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨਾਲ ਜਾ ਰਲਿਆ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਬਿਨਾਂ ਲੜੇ ਹੀ 11 ਮਈ, 1835 ਈ. ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਮੇਤ ਵਾਪਸ ਕਾਬਲ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਲੜੇ ਹੀ ਇੱਕ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ।

2. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ 1837 ਈ. (Battle of Jamraud 1837 A.D.) – ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਇਆ | ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਦੀ ਇਸ ਕਾਰਵਾਈ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਮੁਹੰਮਦ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਸ਼ਮਸਉੱਦੀਨ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਭੇਜੀ ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ਪਰ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਅਜਿਹੀ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੁਪਨੇ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕਦੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਨਾਂ ਨਾ ਲਿਆ ।

(ਸ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਚੌਥਾ ਪੜਾਅ 1838-39 ਈ. (Fourth Stage of Sikh-Afghan Relations 1838-39 A.D.)

ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਚੌਥੇ ਅਤੇ ਅੰਤਿਮ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਤਬਦੀਲੀ ਆਈ । ਹੁਣ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵੀ ਇਸ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਗਏ ਸਨ ।
ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ 1838 ਈ. (Tripartite Treaty 1838 A.D.-1837 ਈ. ਵਿੱਚ ਰੁਸ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਏਸ਼ੀਆ ਵੱਲ ਵੱਧ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਰੂਸ ਦੇ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਕਿਸੇ ਸੰਭਾਵਿਤ ਹਮਲੇ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਲਈ ਗੱਲਬਾਤ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਗੱਲਬਾਤ ਕਿਸੇ ਸਿਰੇ ਨਾ ਚੜ ਸਕੀ । ਹੁਣ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵੀ ਇਸ ਸਮਝੌਤੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ 26 ਜੂਨ, 1838 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ, ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ ।

ਤੂੰ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਇਹ ਸਨ-

  • ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ ।
  • ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਜਿੱਤੇ ਗਏ ਸਾਰੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਇਲਾਕਿਆਂ ਉੱਤੇ ਉਸ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਮੰਨ ਲਿਆ ।
  • ਸਿੰਧ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦਰਮਿਆਨ ਜਿਹੜੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਹੋਣਗੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਦਾ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਆਗਿਆ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਸ਼ਕਤੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਕਾਇਮ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗਾ ।
  • ਇਕ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਦੁਸ਼ਮਣ ਦੂਜੇ ਦੋ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦਾ ਵੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸਮਝਿਆ ਜਾਵੇਗਾ ।
  • ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਤਖ਼ਤ ਉੱਤੇ ਬਿਠਾਉਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ 5,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਮਦਦ ਕਰੇਗਾ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਇਸ ਬਦਲੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ 2 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦੇਵੇਗਾ ।

ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਜਨਵਰੀ, 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਸਾਂਝੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਹਾਲੇ ਇਹ ਕਾਰਵਾਈ ਜਾਰੀ ਸੀ ਕਿ 27 ਜੂਨ, 1839 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਤੋਂ ਚਲ ਵਸਿਆ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਲੜਾ ਭਾਰੀ ਰਿਹਾ । ਉਸ ਨੇ ਅਜਿੱਤ ਕਹੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਫ਼ੈਸਲਾਕੁੰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਹਰਾਇਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਵਿੱਚ ਵੀ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਵਿੱਚ (North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾਂਤ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕਰੋ । ਇਸ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? (Examine the main features of the North-West frontier Policy of Ranjit Singh. What was its significance ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਨੀਤੀ ਦੀ ਆਲੋਚਨਾਤਮਕ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । ਉਸ ਦੀ ਇਹ ਨੀਤੀ ਕਿਸ ਹੱਦ ਤਕ ਸਫਲ ਰਹੀ ?
(Critically examine the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh. To what extent was his policy successful ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (Explain the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਹਾਕਮਾਂ ਲਈ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਇੱਕ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦਾ ਕਾਰਨ ਬਣੀ ਰਹੀ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਪਾਸੇ ਤੋਂ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਹਮਲਾਵਰ ਪੰਜਾਬ ਤੇ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਤਬਾਹੀ ਮਚਾਉਂਦੇ ਰਹੇ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਬੜੇ ਹੀ ਖੰਖਾਰ ਕਬੀਲੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਸੁਭਾਅ ਤੋਂ ਹੀ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਵਿਰੋਧੀ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਰਾਜਸੀ ਸੂਝਬੂਝ ਅਤੇ ਕੂਟਨੀਤੀ ਰਾਹੀਂ ਨਾ ਕੇਵਲ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਬੀਲਿਆਂ ਉੱਤੇ ਹੀ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਅਧੀਨਤਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਵੀ ਮਜਬੂਰ ਕੀਤਾ ।

I. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Main Features of the North-West Frontier Policy)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-
1. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ (Conquests of North-Western Territories) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਦੇ ਦੋ ਪੜਾਅ ਸਨ । ਉਸ ਨੇ ਅਟਕ, ਮੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦਰਿਆ ਸਿੰਧ ਦੇ ਪਾਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ 1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ, 1820 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਹਾਵਲਪੁਰ ਅਤੇ 1821 ਈ. ਵਿੱਚ ਡੇਰਾ ਇਸਮਾਈਲ ਖ਼ਾਂ ਤੇ ਮਨਕੇਰਾ ਨਾਂ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਿਆਣਪ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲੈਂਦਿਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸਾਲਾਨਾ ਖਿਰਾਜ ਦੇ ਬਦਲੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੀ ਰਹਿਣ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । 1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਤਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਡੇਰਾ ਗਾਜ਼ੀ ਖ਼ਾਂ, 1832 ਈ. ਵਿੱਚ ਟੌਕ, 1833 ਈ. ਵਿੱਚ ਬੰਨੂੰ, 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਅਤੇ 1836 ਈ. ਵਿੱਚ ਡੇਰਾ ਇਸਮਾਈਲ ਖਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।

2. ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਨਾ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ (Decision of not conquering Afghanistan) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਸੂਝਵਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕਦੇ ਕੋਈ ਯਤਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੂੰ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਪਹਿਲਾਂ ਬੜੀਆਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਉਹ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਲਈ ਕੋਈ ਨਵੀਂ ਸਿਰਦਰਦੀ ਮੁੱਲ ਨਹੀਂ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਸ਼ਾਇਦ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਮੌਕੇ ਉੱਤੇ ਹੀ ਉਸ ਨੇ ਗੰਭੀਰਤਾ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਬਾਰੇ ਸੋਚਿਆ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵੇ ਦੀ ਮੌਤ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਪਿੱਛੋਂ ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਗੁੱਸਾ ਉਤਰ ਗਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦੇ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰ ਨੂੰ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜੂਨ, 1838· ਈ. ਵਿੱਚ ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉਹ ਇਸ ਸੰਧੀ ਵਿੱਚ ਇਸ ਲਈ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਇਆ ਸੀ ਤਾਂ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਉਸ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਨਾ ਪਹੁੰਚੇ ।

3. ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦੇ ਯਤਨ (Efforts to crush the Tribes) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਧੀਨ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨ ਕਬੀਲੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਪੇਸ਼ਾ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਉਹ ਕਦੇ ਵੀ ਕਿਸੇ ਦੇ ਅਧੀਨ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਸਕਦੇ ਸਨ । 1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਇਆ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਕਈ ਸੈਨਿਕੇ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਭੇਜੀਆਂ | ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦਾ ਹੋਇਆ ਆਪਣੇ 500 ਸਾਥੀਆਂ ਸਮੇਤ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੂੰ ਉੱਥੋਂ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਬੜੀ ਸਖ਼ਤ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ ।

4. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਸੁਰੱਖਿਆ ਦੇ ਕਾਰਜ (Measures for the defence of the North-West Frontiers) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ । ਉਸ ਨੇ ਕਈ ਨਵੇਂ ਕਿਲਿਆਂ ਜਿਵੇਂ ਅਟਕ, ਖੈਰਾਬਾਦ, ਜਹਾਂਗੀਰਾ, ਜਮਰੌਦ ਅਤੇ ਫ਼ਤਹਿਗੜ ਨਾਂ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੁਰਾਣੇ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਿੱਖਿਅਤ ਸੈਨਾ ਰੱਖੀ ਗਈ । ਚਲਦੇ-ਫਿਰਦੇ ਸੈਨਿਕ ਦਸਤੇ ਕਾਇਮ ਕੀਤੇ ਗਏ, ਇਹ ਖਰੂਦੀ ਕਬੀਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਦੇ ਸ਼ਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਸਤਿਆਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਕਬੀਲਿਆਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਇੰਨਾ ਆਤੰਕ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਬਗਾਵਤ ਕਰਨੀ ਭੁੱਲ ਗਏ ।

5. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Administration of the North-West Frontier Territories) – ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਹੇਠ ਰੱਖਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸੈਨਿਕ ਗਵਰਨਰਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਤਬਦੀਲੀ ਨਹੀਂ ਲਿਆਂਦੀ | ਪੁਰਾਣੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਅਤੇ ਰਸਮਾਂ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਹਰੇਕ ਖ਼ਾਂ (ਕਬੀਲੇ ਦਾ ਨੇਤਾ) ਆਪਣੇ ਕਬੀਲੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਕਰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸਰਵ-ਉੱਚਤਾ ਨੂੰ ਮੰਨਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਲਗਾਨ ਸੰਬੰਧੀ ਮੰਗਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਵਜ਼ਾ ਕਬਾਇਲੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦਖ਼ਲ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਨਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਖੂਹ ਖੁਦਵਾਏ ਗਏ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਦੀਆਂ ਦਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਕਮੀ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਯਤਨਾਂ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਭਰੋਸਾ ਜਿੱਤਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਗੜਬੜੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਕਠੋਰ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ਗਏ ।

II. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਮਹੱਤਵ (Importance of N.W.F. Policy)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਸਫਲ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਹ ਸਚਮੁੱਚ ਹੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਮਹਾਨ ਉਪਲੱਬਧੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲ ਕੇ ਉੱਥੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ਗਏ ! ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਨਾ ਕੇਵਲ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਹੋਏ ਸਗੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਵੀ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਉਤਸ਼ਾਹ ਮਿਲਿਆ | ਡਾਕਟਰ ਜੀ. ਐੱਸ. ਨਈਅਰ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ, ‘ “ਅਨੰਗਪਾਲੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਤੋਂ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਹਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਰੋਕਿਆ ਅਤੇ ਕਬਾਇਲੀਆਂ ‘ ਤੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਿਆ ।” 1

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਜਾਂ ਛੱਛ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Write a brief note on the battle of Hazro or Haidru or Chachh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਾਰਚ, 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਤੋਂ ਇੱਕ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ । ਉਹ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਭਾਰੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਲੈ ਕੇ ਅਟਕ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਜਾਂ ਛੱਛ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਮਾਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Give a brief account of Shah Shuja’s relations with Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ਜਾਹ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Shah Shuja.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹ ਸੁਜਾਹ 1803 ਈ. ਤੋਂ 1809 ਈ. ਤਕ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਰਿਹਾ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਨੇ ਉਸ ਤੋਂ ਗੱਦੀ ਖੋਹ ਲਈ । ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੂਬੇਦਾਰ ਅੱਤਾ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਨੇ 1812 ਈ. ਵਿਚ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ। 26 ਜੂਨ, 1838 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ, ਸ਼ਾਹ ਸੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਤਿੰਨ ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਪਰ ਇਹ ਸਫਲ ਨਾ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the relations between Maharaja Ranjit Singh and Dost Mohammad.)
ਉੱਤਰ-
ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ 1826 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਿਆ ਸੀ ।ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵੱਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਤੋਂ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 6 ਮਈ, 1834 ਈ. ਨੂੰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ 1837 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਅਕਬਰ ਖਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਭੇਜੀ । ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਭਿਅੰਕਰ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਪਰ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਜੇਤੂ ਰਹੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨੇ ਮੁੜ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵੱਲ ਰੁੱਖ ਨਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Sayyed Ahmed.).
ਜਾਂ
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਦੇ ਧਰਮ ਯੁੱਧ ਉੱਪਰ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the ‘Jihad’ (Religious War) of Sayyed Ahmed.)
ਉੱਤਰ-
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ 1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਟਕ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਰੱਖਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਬਰੇਲੀ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ, “ਅੱਲਾਹ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਜਿੱਤਣ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਹੈ ।” ਉਸ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨ ਉਸ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ । ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਸੈਨਾ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰ ਲਈ । 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Battle of Jamraud.)
ਉੱਤਰ-
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਵਾਇਆ ਸੀ । ਇਹ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਵੰਗਾਰ ਸੀ। ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਅਕਬਰ ਖ਼ਾਂ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਜਮਰੌਦ ਵੱਲ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾ ਲਿਆ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਪਰ ਅਚਾਨਕ ਦੋ ਗੋਲੀਆਂ ਨਾਲ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵੇ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨੂੰ 30 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਜਾਣ ਮੰਗਰੋਂ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਮੁੜ ਜਿੱਤਣ ਦਾ ਕਦੇ ਸੁਪਨਾ ਨਾ ਲਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Akali Phula Singh.)
ਜਾਂ
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the achievements of Akali Phula Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਨੀਂਹਾਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀਆਂ ਸੀਮਾਵਾਂ ਦੇ ਵਿਸਥਾਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । 1807 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਕਾਲੀ ਫੁਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਕਾਰਨ ਕਸੂਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ 1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਸਮੇਂ ਵੀ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਸਨ । ਉਹ 14 ਮਾਰਚ, 1823 ਈ. ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਹੋਈ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਭਿਆਨਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Hari Singh Nalwa.).
ਜਾਂ
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਕੌਣ ਸੀ ? ਉਸ ਦੇ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (Who was Hari Singh Nalwa ? What do you know about him ?)
ਜਾਂ
ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on. Sardar Hari Singh Nalwa.).
ਉੱਤਰ-
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਮਹਾਨ ਯੋਧਾ ਅਤੇ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸਨ । ਉਸ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ | ਉਹ 1820-21 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ 1834 ਈ. ਤੋਂ 1837 ਈ. ਤਕ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਰਹੇ । ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੁਧਾਰ ਲਾਗੂ ਕੀਤੇ । ਉਹ 30 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾਂਤ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਬਾਰੇ ਲਿਖੋ । (Write down main features of the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Describe main features of North-West Froniter Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ । (Write down the three main features of the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਕਈ ਨਵੇਂ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਵਾਇਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਅਤ ਸੈਨਾ ਰੱਖੀ ਗਈ । ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਚਲਦੇ-ਫਿਰਦੇ ਦਸਤੇ ਕਾਇਮ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ । ਕਬਾਇਲੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਬੇਲੋੜੀ ਦਖ਼ਲਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਸੈਨਿਕ ਗਵਰਨਰਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the significance of the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਕੂਟਨੀਤੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਯੋਗਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲ ਕੇ ਉੱਥੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਉੱਥੇ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਯਤਨ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਤੋਂ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਰਿਹਾ ।

ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ I (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਸਮੇਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹ ਸੁਜਾਹ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਕਿਸੇ ਦੋ ਬਰਕਜ਼ਾਈ ਭਰਾਵਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਅਤੇ ਯਾਰ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਕਬਜ਼ਾ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
27 ਨਵੰਬਰ, 1798 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ 1798 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਸਮੇਂ ਕਿਸ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਤਿੰਨ ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਫ਼ਤਿਹ ਮਾਂ ‘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੁਦੇ ਦੇ ਵਜ਼ੀਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣੌਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1813 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਕਸ਼ਮੀਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਰੋਹਤਾਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਸੱਟ ਲੱਗੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1819 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
14 ਮਾਰਚ, 1823 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਆਜ਼ਮ ਖਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਨਰੈਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਅਕਾਲੀ ਨੇਤਾ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਕਿਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਲੜਦਾ ਹੋਇਆ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ?
मां
ਉਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਉੱਤਰ-ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਖਲੀਫ਼ਾ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਕਦੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
1834 ਈ. 1

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਿਸ ਨੂੰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ? ਉੱਤਰ-
1837 ਈ.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਰਨੈਲ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਤਿੰਨ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
26 ਜੂਨ, 1838 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਤਿੰਨ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਸੰਬੰਧੀ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉੱਤਰ-
ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨਾਲ ਨਜਿੱਠਣ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕਦੇ ਕੋਈ ਯਤਨ ਨਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਖੂੰਖਾਰ ਕਬੀਲੇ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਯੂਸਫ਼ਜ਼ਈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੱਸੋ । ਉੱਤਰ-ਇਸ ਕਾਰਨ
ਉੱਤਰ-
ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋਈ ।..

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਸਮੇਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ …………………. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ)

2. 1800 ਈ. ਵਿੱਚ ……………………………. ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ)

3. 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ……………………… ਵਿਖੇ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਰੋਹਤਾਸ)

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਤੋਂ ………………………….. ਦਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(ਅਟਕ)

5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ …………………………. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(1823 ਈ.)

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6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ……………………… ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(1834 ਈ.).

7. 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ……………………. ਵਿਚਾਲੇ ਤੂੰ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜ਼ਾਹ)

8. ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਦੀ ਮੌਤ ………………….. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(1837 ਈ.)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

2. ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ 1805 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਰੋਹਤਾਸ ਵਿਖੇ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

5. 1818 ਈ.ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. 1820 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੂੰ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

8. ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੂੰ ਜਫ਼ਰਜੰਗ ਦਾ ਖਿਤਾਬ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

9. ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 14 ਮਾਰਚ, 1828 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

10. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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11. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

12. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਨੂੰ ਹੱਲ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਸਫਲ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਪਰ
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਦੋਂ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ?
(i) 1796 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1797 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1798 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1799 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1798 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ
(ii) ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ
(iii) ਈਰਾਨ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਕਸ਼ਮੀਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1803 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1805 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1809 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਰੋਹਤਾਸ ਵਿਖੇ
(ii) ਰੋਹਤਾਂਗ ਵਿਖੇ
(iii) ਸੁਪੀਨ ਵਿਖੇ
(iv) ਹਜਰੋ ਵਿਖੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਰੋਹਤਾਸ ਵਿਖੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਕਦੋਂ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) 1813 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1815 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1819 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1823 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1823 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) ਅਟਕ ਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ
(ii) ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ
(iii) ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੇ ਮੁਲਤਾਨ
(iv) ਮੁਲਤਾਨ ਤੇ ਅਟਕ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਅਟਕ ਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਦੋਂ ਵਿਦਰੋਹ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) 1823 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1825 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1827 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1827 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) 1823 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1831 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1834 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1837 ਈ. ਵਿੱਚ,
ਉੱਤਰ-
(ii) 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਕਿਸ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ
(ii) ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iii) ਹਜਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iv) ਸੁਪੀਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਤੂੰ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਕਿਸ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਏ ਜਾਣ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ?
(i) ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ
(ii) ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ
(iii) ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ
(iv) ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. 1800 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਾਬਲ ਵਿੱਚ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਖਾਨਾਜੰਗੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ । ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਕੇਵਲ ਤਿੰਨ ਵਰਿਆਂ (1800-03 ਈ. ) ਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ । 1803 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਤੋਂ ਗੱਦੀ ਹਥਿਆ ਲਈ । ਉਸ ਨੇ 1809 ਈ. ਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ ।ਉਹ ਬੜਾ ਅਯੋਗ ਸ਼ਾਸਕ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਅਰਾਜਕਤਾ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕਾ ਵੇਖ ਕੇ ਅਟਕ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਮੁਲਤਾਨ ਤੇ ਡੇਰਾਜਾਤ ਆਦਿ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੂਬੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਕਾਬਲ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਪੂਰਾ ਲਾਭ ਉਠਾਇਆ ਅਤੇ ਕਸੂਰ, ਝੰਗ, ਖੁਸ਼ਾਬ ਅਤੇ ਸਾਹੀਵਾਲ ਨਾਂ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਥਾਂ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਦੋਬਾਰਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਰਾਜਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਨੂੰ ਫ਼ਤਿਹ ਮਾਂ ਨੇ ਹਰ ਸੰਭਵ ਸਹਾਇਤਾ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਨੇ ਆਪਣਾ ਵਜ਼ੀਰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ) ਨਿਯੁਕਤ ਕਰ ਲਿਆ ।

1. ……………………….. ਵਿੱਚ ਕਾਬਲ ਵਿੱਚ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਖਾਨਾਜੰਗੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।
2. ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਕਦੋਂ ਬਣਿਆ ?
3. ਸ਼ਾਹ ਸੁਜ਼ਾਹ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ?
4. ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਕੌਣ ਸੀ?
5. ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1. 1800 ਈ. ।
2. ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ 1800 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ ਸੀ ।
3. ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਇੱਕ ਅਯੋਗ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ।
4. ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਸ਼ਾਹ ਮੁਹੰਮਦ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ ਸੀ ।
5. ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।

2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਧੋਖੇ ਕਾਰਨ ਉਸ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਫੌਰਨ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਨੂੰ ਅਟਕ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ । ਅਟਕ ਸ਼ਾਸਕ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਦੇ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪਬੰਧ ਆਪਣੇ ਭਰਾ ਆਜ਼ਿਮ ਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸੌਂਪਿਆ ਅਤੇ ਆਪ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸੈਨਾ ਲੈ ਕੇ ਅਟਕ ਵਿਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢਣ ਲਈ ਤੁਰ ਪਿਆ । 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਹ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਧੱਕਾ ਲੱਗਿਆ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

1. ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਕੌਣ ਸੀ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਟਕ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
3. ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
4. ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 1811 ਈ.
(ii) 1812 ਈ.
(iii) 1813 ਈ.
(iv) 1814 ਈ. ।
5. ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕੌਣ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਟਕ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਸੀ ।
3. ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਸੀ ।
4. 1813 ਈ. ।
5. ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

3. 1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਧਾਰਮਿਕ ਨੇਤਾ ਨੇ ਅਟਕ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਮਚਾਈ ਰੱਖਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਬਰੇਲੀ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ, ‘ਅੱਲਾਹ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਜਿੱਤਣ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਹੈ । ਉਸ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸਰਦਾਰ ਉਸ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ । ਥੋੜ੍ਹੇ ਹੀ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਸੈਨਾ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਲਈ ਇੱਕ ਵੰਗਾਰ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦੂ ਵਿਖੇ ਅਤੇ ਫਿਰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ਪਰ ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤੀ ਨਾਲ ਉਹ ਦੋਨੋਂ ਵਾਰੀ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਾਰਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਆਪਣਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ । ਅੰਤ ਮਈ, 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦੂਰ ਹੋਈ ।

1. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕੌਣ ਸੀ?
2. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕਿੱਥੋਂ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ ?
3. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀਆਂ ਦੋ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ?
4. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕਿੱਥੇ ਅਤੇ ਕਿਸ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
5. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕਦੋਂ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) 1813 ਈ.
(ii) 1821 ਈ.
(iii) 1827 ਈ.
iv) 1831 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
1. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਧਾਰਮਿਕ ਨੇਤਾ ਸੀ ।
2. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਬਰੇਲੀ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ ।
3. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੂੰ ਸੈਦੂ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ।
4. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ।
5. 1831 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

4. ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਹੱਥੋਂ ਹੋਏ ਆਪਣੇ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਵੀ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਇਆ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਦੀ ਇਸ ਕਾਰਵਾਈ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਮੁਹੰਮਦ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਸ਼ਮਸਦੀਨ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ 20,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਸਖ਼ਤ ਬੀਮਾਰ ਪਿਆ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਇਸ ਹਮਲੇ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੇ 10,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ਪਰ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹੀ ਤਬਾਹੀ ਮਚਾਈ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁੜ ਕਦੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵੱਲ ਆਪਣਾ ਮੂੰਹ ਨਾ ਕੀਤਾ ।

1. ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਕੌਣ ਸੀ ?
2. ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਨੇ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
3. ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ……………………….. ਨੂੰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।
4. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਕਿਹੜਾ ਜਰਨੈਲ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ?
5. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕੌਣ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ।
2. ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਕੀਤਾ ।
3. 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ।
4. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਜਰਨੈਲ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
5. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ਸਨ ।