PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

PSEB 12th Class Economics राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
साधन आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
साधन आय से अभिप्राय उत्पादन के साधनों को काम करने के बदले में आय, लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
हस्तान्तरण आय (Transfare Payments) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हस्तान्तरण भुगतान वह भुगतान है जो बिना किसी सेवा प्रदान किए ही दिए जाते हैं। जैसे कि बुढ़ापा पैन्शन, बेरोज़गारी भत्ता, इत्यादि।

प्रश्न 3.
घरेलू साधन आय को परिभाषित करो।
उत्तर-
घरेलू साधन आय एक देश के घरेलू क्षेत्र में उत्पादन के साधनों को काम करने के बदले में जो आय प्राप्त होती है, उसको घरेलू साधन आय कहा जाता है।

प्रश्न 4.
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन (GNPAP) को परिभाषित करो।
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार कीमत के मूल्य को बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को भी शामिल किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 5.
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPL) को परिभाषित करो।
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उत्पादन वस्तुओं तथा सेवाओं के बाज़ार कीमत पर मूल्य के योग को बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है, यदि इसमें से मशीनों की मूल्य घिसावट घटा दी जाए तो इसको बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) कहते हैं।

प्रश्न 6.
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at Factor Cost) को परिभाषित करो।
उत्तर-
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद का अर्थ उत्पादन के साधनों को सेवाएं प्रदान करने के बदले में लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होने वाली आय का योग होता है। इसमें मशीनों की घिसावट का मूल्य भी शामिल होता है।

प्रश्न 7.
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (NNP at Factor Cost) को परिभाषित करो।
अथवा
राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादन के साधनों द्वारा एक वर्ष में जो लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में आय प्राप्त की जाती है, उसके योग में से यदि मशीनों की घिसावट (Depreciation) को घटा दिया जाए तो इसको साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।

प्रश्न 8.
घरेलू साधन आय में क्या शामिल किया जाए जिससे राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाती है ?
उत्तर-
घरेलू साधन उत्पादन देश के निवासियों द्वारा देश की घरेलू सीमा के अन्दर प्राप्त की गई आय होती है। यदि हम इस आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को शामिल कर लेते हैं तो राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 9.
घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक कब होती है ?
उत्तर-
घरेलू साधन आय में उत्पादन के साधनों द्वारा लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ को शामिल किया जाता है। यदि हम घरेलू साधन आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय जोड़ लेते हैं तो इसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। घरेलु साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक होगी, यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 10.
सकल घरेलू उत्पाद, सकल राष्ट्रीय उत्पाद के समान कब होता है ?
उत्तर-
देश की घरेलू सीमा में निवासियों द्वारा एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के योग को सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को शामिल किया जाए तो सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त होता है। सकल घरेलू उत्पाद, सकल राष्ट्रीय उत्पाद के समान होता है, जब विदेशों से प्राप्त साधन आय शून्य होती है।

प्रश्न 11.
घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक कब होती है ?
उत्तर-
जब विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक होती है तो घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक होती है।

प्रश्न 12.
हरे सकल घरेलू उत्पाद (Green GNP) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि से निर्धनता तथा प्रदूषण नहीं फैलता तथा जब सकल राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि प्राकृतिक वातावरण के दुरुपयोग तथा विकास के लाभों का समान वितरण करता है तो इसको अर्थशास्त्री हरे सकल घरेलू उत्पादन (Green GNP) का नाम देते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 13.
कौन सी मदें हैं जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद (G.N.P.) में से बाहर निकाली जाती हैं ?
उत्तर-
निम्नलिखित मदें सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं की जाती :

  • घर की गृहिणी द्वारा घर का काम करना
  • पिता का अपने पुत्र को पढ़ाना
  • गैर-कानूनी क्रियाएं (समगलिंग, जुआ इत्यादि)।

प्रश्न 14.
गैर-बाज़ार क्रियाओं का अर्थ स्पष्ट करो।
उत्तर-
गैर-बाज़ार क्रियाओं में उन सेवाओं को शामिल किया जाता है, जो बाज़ार में बिकने के लिए नहीं आती।

प्रश्न 15.
आराम (Leisure) को सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में शामिल नहीं किया जाता है। कारण बताओ।
उत्तर-
आराम को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि(i) आराम (Leisure) द्वारा आय की सृजना नहीं होती। (ii) ऐसी क्रिया के मूल्य का माप नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 16.
क्या निम्नलिखित क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ? कारण बताओ।
(i) लॉटरी द्वारा ईनाम प्राप्त करना।
(ii) नई कार की खरीद।
उत्तर-
(i) लाटरी द्वारा ईनाम प्राप्त करना-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।
(ii) नई कार की खरीद-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 17.
क्या निम्नलिखित क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ? कारण बताओ।
(i) स्वयं-उपभोग के लिए रखा उत्पादन।
(ii) बुढ़ापा पैन्शन।
उत्तर-
(i) स्वयं उपभोग के लिए रखा उत्पादन- इसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
(ii) बुढ़ापा पैन्शन-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।

प्रश्न 18.
क्या निम्नलिखित आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ?
(i) विदेशी बैंक द्वारा भारत में से प्राप्त आय।
(ii) शेयरों की बिक्री से आय।
उत्तर
(i) विदेशी बैंक द्वारा भारत में से प्राप्त आय-इस बैंक द्वारा प्राप्त आय को भारत की राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह ब्रांच भारत में स्थित है।
(ii) शेयरों की बिक्री से आय-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि शेयरों की बिक्री से वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन नहीं होता।

प्रश्न 19.
राष्ट्रीय आय तथा घरेलू आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
घरेलू आय देश के साधारण निवासियों द्वारा देश की घरेलू सीमा के अन्दर प्राप्त की साधन आय लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ का योग है। यदि हम इस आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन जोड़ लेते हैं तो राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है। राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय|

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 20.
चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय तथा स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
जब राष्ट्रीय आय का माप प्रचलित कीमतों पर किया जाता है तो इसको चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहा जाता है। जब राष्ट्रीय आय का माप स्थिर कीमतों पर किया जाता है तो इसको वास्तविक आय कहा जाता है।

प्रश्न 21.
सकल राष्ट्रीय उत्पादन के बढ़े मूल्य को घटाने से क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
चालू कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन को वास्तविक कीमतों (आधार वर्ष की कीमतों) के मापने को सकल राष्ट्रीय उत्पादन के बढ़े मूल्य को घटाना (GNP deflator) कहा जाता है।
GNP deflator = \(\frac{\text { Nominal GNP }}{\text { Real GNP }} \times 100\)

प्रश्न 22.
परिभाषित करो
(a) मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(b) वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद।
उत्तर-
(a) मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Nominal G.N.P.)-यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद का माप चालू बाज़ार की कीमत पर किया जाता है तो इसको मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।
(b) वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Real GNP)-सकल राष्ट्रीय उत्पाद को स्थिर कीमतों पर मापा जाता है तो इसको वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।

प्रश्न 23.
घिसावट (Depreciation) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
स्थिर पूंजी के उपभोग से क्या अभिप्राय है ? इसके मुख्य अंश बताओ।
उत्तर-
घिसावट को स्थिर पूंजी का उपभोग भी कहा जाता है, जब स्थिर भण्डारों का प्रयोग किया जाता है तो इनके मूल्य की कमी को घिसावट कहा जाता है। घिसावट में-

  • साधारण टूट-फूट पर घिसाई
  • नई तकनीकों के आविष्कार से पुरानी मशीनों का प्रयोग न होना
  • मशीनों का खराब होना शामिल होता है।

प्रश्न 24.
अंतिम वस्तुओं तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में क्या अन्तर होता है ? उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग (Intermediate Goods)- यह वह वस्तुएं होती हैं, जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए अथवा पुनः बिक्री के लिए किया जाता है।
अन्तिम वस्तुएं (Final Goods)-वह वस्तुएं होती हैं जो अन्तिम उपभोग अथवा निवेश के लिए प्रयोग की जाती हैं, जैसे कि होटल वाले के लिए आटा मध्यवर्ती वस्तु है तथा परिवारों के लिए आटा अन्तिम वस्तु है।

प्रश्न 25.
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश के साधारण निवासियों द्वारा एक वर्ष में एक देश में जो साधन आय का योग होता है, उसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। राष्ट्रीय आय में यदि हम शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण शामिल कर लेते हैं तो इसको शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय कहा जाता है।

प्रश्न 26.
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद तथा राष्ट्रीय व्यय योग्य आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
राष्ट्रीय व्यय योग्य आय एक देश के साधारण निवासियों को एक वर्ष में सभी साधनों द्वारा प्राप्त आय होती है, जिसको वह उपभोग अथवा बचत कर सकते हैं। बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में शेष विश्व से अन्य चालू हस्तान्तरण योगकर राष्ट्रीय व्यय योग्य आय प्राप्त होती है।
National Disposable Income = NNP Mp + Other Current Transfers from the rest of the World
अथवा
Gross National Disposable Income = GNP Mp + Other Current Transfers from the rest of the World.

प्रश्न 27.
निजी आय (Private Income) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी क्षेत्र को सभी साधनों द्वारा जो कुल आय प्राप्त होती है, जिसमें चालू हस्तान्तरण आय को भी शामिल किया जाए तो इसके योग को निजी आय कहा जाता है।
प्राइवेट आय =
(i) शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त निजी क्षेत्र की आय + (ii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय + (iii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + (iv) सरकार से प्राप्त चालू हस्तान्तरण +(v) शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण।

प्रश्न 28.
चालू हस्तान्तरण तथा पूंजी हस्तान्तरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  • चालू हस्तान्तरण (Current Transfers)-चालू हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण होती है, जो अदा करने वाले द्वारा चालू आय में से उपभोग व्यय के लिए लोगों को दी जाती है।
  • पूंजी हस्तान्तरण (Capital Transfers)-पूंजी हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण है जो अदा करने वाले द्वारा धन अथवा बचत में से प्राप्त करने वाले के धन अथवा बचत के लिए दी जाती है।

प्रश्न 29.
व्यक्तिगत आय (Personal Income) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यक्तिगत आय वह आय है, जोकि व्यक्तियों द्वारा साधन आय के रूप में अथवा चालू हस्तान्तरण के रूप में सभी साधनों से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 30.
निजी आय तथा व्यक्तिगत आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यक्तिगत आय = निजी आय (-) निगम कर-निगम बचत अथवा निगमों के अनवितरण लाभ। इससे ज्ञात होता है कि निजी आय विशाल धारणा है, जबकि व्यक्तिगत आय इसका भाग है। निजी आय में से निगम कर तथा निगम बचत घटाकर व्यक्तिगत आय प्राप्त की जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 31.
वह नागरिक जो एक देश में रहते हैं और उनके हित उस देश से जुड़े होते हैं, को ……… कहते हैं।
(क) विदेशी नागरिक
(ख) प्रवासी नागरिक
(ग) साधारण नागरिक
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) साधारण नागरिक।

प्रश्न 32.
अप्रत्यक्ष कर और आर्थिक सहायता के अन्तर को …….. कहते हैं।
(क) सकल अप्रत्यक्ष कर
(ख) प्रत्यक्ष कर
(ग) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 33.
उपभोग के लिए अन्तिम वस्तुओं के उपभोग को ………. कहते हैं।
(क) निवेश व्यय
(ख) उपभोग व्यय
(ग) राष्ट्रीय आय
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) उपभोग व्यय।

प्रश्न 34.
अप्रत्यक्ष कर तथा आर्थिक सहायता के अन्तर को …………. कहते हैं।
उत्तर-
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 35.
व्यक्तियों को सभी स्रोतों से असल में प्राप्त आय और हस्तातरण भुगतान के योग को ……….. कहते हैं।
उत्तर-
निजी आय।

प्रश्न 36.
वह भुगतान जो किसी बगैर किसी सेवा के प्रदान किए जाते हैं, को ….. कहते हैं।
उत्तर-
हस्तांतरण भुगतान।

प्रश्न 37.
बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) में है। …….. किया जाए तो बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त होता है।
(क) घिसावट
(ख) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
(ग) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय।

प्रश्न 38.
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) ………… = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP).
उत्तर-
घिसावट।

प्रश्न 39.
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMD)………….. साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC)
उत्तर-
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 40.
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPM) (-) ………….. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) अथवा राष्ट्रीय आय (Material Income)
उत्तर-
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 41.
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPR) (-) ……….. = राष्ट्रीय आय (National Income)
उत्तर-
घिसावट।

प्रश्न 42.
निजी आय (-) निगमकर (-) निगमों को आबंटित लाभ ……….
उत्तर-
व्यक्तिगत आय।

प्रश्न 43.
वह वस्तुएँ जिनका प्रयोग और वस्तुओं के उत्पादन अथवा पुनः बिक्री के लिए किया जाता है को ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएँ।

प्रश्न 44.
वह वस्तुएँ जिनका प्रयोग अन्तिम उपभोग अथवा निवेश के लिए किया जाता है, को …….. कहते हैं।
उत्तर-
अन्तिम वस्तुएँ।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
साधन आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
साधन आय से अभिप्राय उत्पादन के साधनों को काम करने के बदले में आय, लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होती है। उत्पादन प्रक्रिया में सेवाएं प्रदान करने के बदले में प्राप्त होने वाली आय को साधन आय कहा जाता है।

प्रश्न 2.
हस्तान्तरण आय (Transfer Payments) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हस्तान्तरण भुगतान वह भुगतान है जो बिना किसी सेवा प्रदान किए ही दिए जाते हैं। यह एक-तरफा भुगतान होते हैं, जैसे कि बुढ़ापा पैन्शन, बेरोज़गारी भत्ता, इत्यादि।

प्रश्न 3.
घरेलू साधन आय को परिभाषित करो।
उत्तर-
घरेलू साधन आय एक देश के घरेलू क्षेत्र में उत्पादन के साधनों को काम करने के बदले में जो आय प्राप्त होती है, उसको घरेलू साधन आय कहा जाता है।

प्रश्न 4.
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन (GNPL) को परिभाषित करो।
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार कीमत के मूल्य को बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को भी शामिल किया जाता है।

प्रश्न 5.
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPM) को परिभाषित करो।
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उत्पादन वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार मूल्य के योग को बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है, यदि इसमें से मशीनों की मूल्य घिसावट घटा दी जाए तो इसको बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) कहते हैं।
NNPMP = GNPMP – Depreciation

प्रश्न 6.
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at Factor Cost) को परिभाषित करो।
उत्तर-
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद का अर्थ उत्पादन के साधनों को सेवाएं प्रदान करने के बदले में लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होने वाली आय का योग होता है। इसमें मशीनों की घिसावट का मूल्य भी शामिल होता है।

प्रश्न 7.
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (NNP at Factor Cost) को परिभाषित करो।
अथवा
राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादन के साधनों द्वारा एक वर्ष में जो लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में आय प्राप्त की जाती है, उसके योग में से यदि मशीनों की घिसावट (Depreciation) को घटा दिया जाए तो इसको साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।

प्रश्न 8.
घरेलू साधन आय में क्या शामिल किया जाए जिससे राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाए ?
उत्तर-
घरेलू साधन उत्पादन देश के निवासियों द्वारा देश की घरेलू सीमा के अन्दर प्राप्त की गई आय होती है। यदि हम इस आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को शामिल कर लेते हैं तो राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 9.
घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक कब होती है ?
उत्तर-
घरेलू साधन आय में उत्पादन के साधनों द्वारा लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ को शामिल किया जाता है। यदि हम घरेलू साधन आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय जोड़ लेते हैं तो इसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक होगी, यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 10.
क्या निम्नलिखित क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ? कारण बताओ।
(i) लॉटरी द्वारा ईनाम प्राप्त करना।
(ii) नई कार की खरीद।
उत्तर-
(i) लाटरी द्वारा ईनाम प्राप्त करना-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।।
(ii) नई कार की खरीद-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 11.
क्या निम्नलिखित क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ? कारण बताओ।
(i) स्वयं-उपभोग के लिए रखा उत्पादन
(ii) बुढ़ापा पैन्शन।
उत्तर-
(i) स्वयं उपभोग के लिए रखा उत्पादन
(ii) बुढ़ापा पैन्शन-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।

प्रश्न 12.
घिसावट (Depreciation) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
स्थिर पूंजी के उपभोग से क्या अभिप्राय है ? इसके मुख्य अंश बताओ।
उत्तर-
घिसावट को स्थिर पूंजी का उपभोग भी कहा जाता है, जब स्थिर भण्डारों का प्रयोग किया जाता है तो इनके मूल्य की कमी को घिसावट कहा जाता है। घिसावट में-

  • साधारण टूट-फूट पर घिसाई
  • नई तकनीकों के आविष्कार से पुरानी मशीनों का प्रयोग न होना
  • मशीनों का खराब होना शामिल होता है।

प्रश्न 13.
अंतिम वस्तुओं तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में क्या अन्तर होता है ? उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग (Intermediate Goods)-यह वह वस्तुएं होती हैं, जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए अथवा पुनः बिक्री के लिए किया जाता है। अन्तिम वस्तुएं (Final Goods)-वह वस्तुएं होती हैं जो अन्तिम उपभोग अथवा निवेश के लिए प्रयोग की जाती हैं, जैसे कि होटल वाले के लिए आटा मध्यवर्ती वस्तु है तथा परिवारों के लिए आटा अन्तिम वस्तु है।

प्रश्न 14.
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश के साधारण निवासियों द्वारा एक वर्ष में एक देश में जो साधन आय का योग होता है, उसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। राष्ट्रीय आय में यदि हम शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण शामिल कर लेते हैं तो इसको शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय कहा जाता है।

प्रश्न 15.
निजी आय (Private Income) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी क्षेत्र को सभी साधनों द्वारा जो कुल आय प्राप्त होती है, जिसमें चालू हस्तान्तरण आय को भी शामिल किया जाए तो इसके योग को निजी आय कहा जाता है।
प्राइवेट आय = (i) शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त निजी क्षेत्र की आय + (ii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय + (iii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + (iv) सरकार से प्राप्त चालू हस्तान्तरण + (v) शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 16.
चालू हस्तान्तरण तथा पूंजी हस्तान्तरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  • चालू हस्तान्तरण (Current Transfers)-चालू हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण होती है, जो अदा करने वाले द्वारा चालू आय में से उपभोग व्यय के लिए लोगों को दी जाती है।
  • पूंजी हस्तान्तरण (Capital Transfers)-पूंजी हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण है जो अदा करने वाले द्वारा धन अथवा बचत में से प्राप्त करने वाले के धन अथवा बचत के लिए दी जाती है।

प्रश्न 17.
व्यक्तिगत आय (Personal Income) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यक्तिगत आय वह आय है, जोकि व्यक्तियों द्वारा साधन आय के रूप में अथवा चालू हस्तान्तरण के रूप में सभी साधनों से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 18.
निजी आय तथा व्यक्तिगत आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यक्तिगत आय = निजी आय (-) निगम कर-निगम बचत अथवा निगमों के अनवितरण लाभ। इससे ज्ञात होता है कि निजी आय विशाल धारणा है, जबकि व्यक्तिगत आय इसका भाग है। निजी आय में से निगम कर तथा निगम बचत घटाकर व्यक्तिगत आय प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 19.
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय तथा व्यक्तिगत आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय वह आय है जोकि एक देश के व्यक्ति तथा परिवार उपभोग पर व्यय कर सकते हैं अथवा बचत कर सकते हैं। निजी व्यय योग्य आय तथा निजी आय में अन्तर इस प्रकार है व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय-व्यक्तिगत प्रत्यक्ष कर-सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की फीस तथा जुर्माने।

प्रश्न 20.
बाज़ार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पाद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में देश के साधारण निवासियों द्वारा जो अन्तिम वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान की जाती हैं उसके बाज़ार मूल्य को बाज़ार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पाद (GDP at market Price) कहा जाता है।

III. लयु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
साधन आय के अंश बताओ।
उत्तर-
साधन आय के अंश इस प्रकार हैं-

  1. कर्मचारियों का मेहनताना-उद्यमियों द्वारा कर्मचारियों को नकद मज़दूरी तथा वेतन अथवा बोनस में मेहनताना दिया जाता है तथा इन कर्मचारियों के सामाजिक सुरक्षा योजना में पाए गए योगदान को कर्मचारियों का मेहनताना कहते हैं। इसको साधन आय में शामिल किया जाता है।
  2. प्रचालन बेशी-इसमें जायदाद से आय तथा उद्यमवृत्ति से आय को शामिल किया जाता है। इसमें लगान,ब्याज तथा लाभ को शामिल किया जाता है। (लाभ = लाभांश + निगम कर + अवितरित लाभ)
  3. मिश्रित आय–निजी इकाइयों द्वारा प्राप्त लाभ तथा स्वयं नियोजता की आय को मिश्रित आय कहते हैं। इनके जोड़ से साधन आय प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 2.
घरेलू साधन आय के अंश बताओ। राष्ट्रीय आय प्राप्त करने के लिए इसमें क्या शामिल किया जाता है तथा क्यों ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में साधनों की आय के योग को घरेलू साधन आय कहा जाता है। घरेलू साधन आय =
(1) कर्मचारियों का मेहनताना + (2) प्रचालन बेशी + (3) मिश्रित आय।
राष्ट्रीय आय प्राप्त करने के लिए घरेलू साधन आय प्राप्त करने के लिए विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को घरेलू साधन आय में जोड़ा जाता है| राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय = विदेशी शहरों द्वारा एक देश में से प्राप्त की साधन आय–इस देश के साधारण शहरियों द्वारा विदेशों से प्राप्त की गई साधन आय।

प्रश्न 3.
बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद तथा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में अन्तर बताओ।
उत्तर-
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)
(-) घिसावट
(-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
(+) विदेशों से शुद्ध साधन आय।

अन्तर का आधार बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP Market Price) साधन लागत परशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP Factor Cost)
1. घिसावट इसमें स्थित पूंजी की घिसावट शामिल होती है। इसमें घिसावट शामिल नहीं होती।
2. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर इसमें शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर-सबसिडी) शामिल होती है। इसमें शुद्ध अप्रत्यक्ष कर शामिल नहीं होते।
3. विदेशों से शुद्ध साधन आय इसमें विदेशों से शुद्ध साधन आय शामिल नहीं होती। इसमें देश के साधारण निवासियों तथा विदेशियों द्वारा घरेलू क्षेत्र की पैदावार को जोड़ते हैं। इसमें देश के साधारण निवासियों द्वारा घरेलू क्षेत्र अथवा विदेशी क्षेत्र में उत्पादकता को जोड़ते हैं।

प्रश्न 4.
साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद तथा बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में अन्तर बताओ।
उत्तर-
साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP)
(-) घिसावट (+) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
(+) विदेशों से शुद्ध साधन आय

अन्तर का आधार बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC)
1. घिसावट इसमें घिसावट शामिल नहीं होती। इसमें घिसावट शामिल होती है।
2. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर इसमें शुद्ध अप्रत्यक्ष कर शामिल होते | इसमें शुद्ध अप्रत्यक्ष कर शामिल नहीं
होते।
3. विदेशों से शुद्ध साधन आय इसमें विदेशों से शुद्ध साधन आय शामिल होती है। इसमें विदेशों से शुद्ध साधन आय शामिल नहीं होती।

प्रश्न 5.
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य तथा बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NDI) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध साधन आय (NNPMP) + शेष विश्व से चालू हस्तान्तरण
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 1
कुल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GNPL) + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण (Gross National Disposable Income)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 6.
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय तथा राष्ट्रीय व्यय योग्य आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
निजी व्यय योग्य आय तथा राष्ट्रीय व्यय योग्य आय में अन्तर-

व्यक्तिगत व्यय योग्य आय राष्टीय व्यय योग्य आय
1. यह देश के व्यक्तियों तथा परिवारों की व्यय योग्य आय होती है। 1. यह देश की व्यय योग्य आय होती है।
2. व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत उपभोग + व्यक्तिगत बचतें। 2. राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण (उपहार, उपभोगी सामान, फ़ौजी सामान तथा नकद मुद्रा)

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आय तथा निजी आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
राष्ट्रीय आय तथा निजी आय में अन्तर इस प्रकार है-

अन्तर का आधार राष्ट्रीय आय निजी आय
(1) क्षेत्र इसमें सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है। इसमें केवल निजी क्षेत्र से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है।
(2) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज राष्ट्रीय आय में राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज को शामिल नहीं किया जाता। निजी आय में राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज को शामिल किया जाता है।
(3) हस्तान्तरण आय राष्ट्रीय आय में किसी किस्म की हस्तान्तरण आय को शामिल नहीं किया जाता। इसमें केवल साधन आय को जोड़ते हैं। निजी आय में सरकार से प्राप्त चालू हस्तान्तरण तथा शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण को जोड़ते हैं। इसमें साधन आय भी जोड़ी जाती है।

प्रश्न 8.
राष्ट्रीय आय तथा व्यक्तिगत आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-

अन्तर का आधार राष्ट्रीय आय (National Income) व्यक्तिगत आय (Personal Income)
(1) हस्तान्तरण आय राष्ट्रीय आय में केवल साधन आय को शामिल किया जाता है, हस्तान्तरण आय को शामिल नहीं किया जाता। व्यक्तिगत आय में साधन आय तथा हस्तान्तरण आय दोनों को ही शामिल किया जाता है।
(2) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता। इसको व्यक्तिगत आय में शामिल किया जाता है।
(3) निगम कर तथा बचतें निगम कर तथा बचतों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है। निगम कर तथा बचतों को व्यक्तिगत आय में शामिल नहीं किया जाता।
(4) सरकारी क्षेत्र की आय सरकारी क्षेत्र में काम करके उद्योगों से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है। सरकारी क्षेत्र की आय को व्यक्तिगत आय में शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 9.
व्यक्तिगत आय तथा व्यय योग्य आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यक्तिगत आय-व्यक्तियों तथा परिवारों को साधन आय तथा हस्तान्तरण आय के योग को व्यक्तिगत आय कहा जाता है। यह व्यय योग्य आय से विशाल धारणा है। व्यय योग्य आय-जो आय व्यक्तियों तथा परिवारों के पास प्रत्यक्ष निजी कर जैसे कि आय कर तथा हाऊस कर देने के पश्चात् तथा सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की फीस तथा जुर्माने देने के उपरान्त लोगों के पास रह जाती है, उसको व्यय योग्य आय कहा जाता है। व्यय योग्य आय का उपभोग किया जा सकता है अथवा बचत की जा सकती है। व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय-प्रत्यक्ष कर (-) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की फीस तथा जुर्माने।

प्रश्न 10.
वह तीन धारणाएं बताओ जो सकल तथा शुद्ध बाज़ार कीमत तथा साधन लागत, घरेलू तथा राष्ट्रीय धारणाओं में अन्तर स्पष्ट करती है ।
उत्तर-

  1. घिसावट (Depreciation)सकल तथा शुद्ध आय में अन्तर को घिसावट द्वारा स्पष्ट किया जाता है। सकल आय अथवा उत्पाद = शुद्ध आय अथवा उत्पाद + घिसावट
  2. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes) बाज़ार कीमत तथा साधन लागत पर राष्ट्रीय आय की धारणाओं को शुद्ध अप्रत्यक्ष करों द्वारा सम्बन्धित किया जाता है। शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = अप्रत्यक्ष कर-सबसिडी साधन लागत पर आय = बाज़ार कीमत पर आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
  3. विदेशों से शुद्ध साधन आय (Net Factor Income from Abroad)-जब हम घरेलू तथा राष्ट्रीय आय की धारणाओं में अन्तर करते हैं तो विदेशों से शुद्ध साधन आय द्वारा इनमें सम्बन्ध स्थापित होता है। घरेलू आय = राष्ट्रीय आय–विदेशों से शुद्ध साधन आय।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय तथा राष्ट्रीय आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (National Disposable Income) से अभिप्राय उस शुद्ध आय से है जोकि उस देश को खर्च करने के लिए उपलब्ध होती है। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है| राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण राष्ट्रीय आय से अभिप्राय साधन लागत पर शुद्ध घरेलू आय और विदेशों से शुद्ध साधन आय का योग होता है। इस प्रकार राष्ट्रीय प्रयोज्य आय तथा राष्ट्रीय आय में अन्तर इस प्रकार होता है राष्ट्रीय आय = राष्ट्रीय प्रयोज्य आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर-शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण

प्रश्न 12.
सकल प्रयोज्य आय तथा शुद्ध प्रयोज्य आय में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
सकल प्रयोज्य आय वह आय है जोकि देश के निवासियों को सभी स्रोतों से उपभोग तथा बचत के लिए प्राप्त होती है। सकल प्रयोज्य आय में अर्थव्यवस्था की घिसावट लागत शामिल होती है। अर्थव्यवस्था की घिसावट लागत को हम पुनः स्थानापन्न लागत भी कहते हैं। इस प्रकार किसी देश में सकल प्रयोज्य आय उस देश की राष्ट्रीय आय, शुद्ध अप्रत्यक्ष कर तथा बाकी विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण का जोड़ होता है। यदि इसमें से पुनःस्थापन लागत या घिसावट लागत कम कर दी जाए तो इसको शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय कहा जाता है। शुद्ध प्रयोज्य आय = सकल राष्ट्रीय आय-चालू पुनः स्थापन लागत अथवा घिसावट लागत

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय अथवा उत्पादन की विभिन्न धारणाएं कौन-कौन सी हैं ? इनके सम्बन्ध को स्पष्ट करो। (What are the different concepts of National Product or Income ? Show their relationship.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय अथवा उत्पादन की मुख्य धारणाएं निम्नलिखित हैं-

  1. बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)
  2. बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP)
  3. बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP)
  4. बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP)
  5. साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद अथवा घरेलू साधन आय (NDPFC)
  6. साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद अथवा सकल घरेलू आय (GDPFC)
  7. साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद अथवा सकल राष्ट्रीय आय (GNPFC)
  8. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन अथवा राष्ट्रीय आय (NNPFC or National Income)
  9. सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (Gross Disposable National Income)
  10. शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (Net Disposable National Income) इन धारणाओं के बिना राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण धारणाएं इस प्रकार हैं
  11. निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय
  12. निजी आय (Private Income)
  13. व्यक्तिगत आय (Personal Income)
  14. व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) इन धारणाओं के परस्पर सम्बन्ध को एक तालिका द्वारा निम्नलिखित रेखाचित्र 1 अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 3

राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय की धारणाओं का सम्बन्ध इस प्रकार है-

  1. बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) –  तथा सेवाओं का बाज़ार कीमत पर मूल्य।
  2. बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)
  3. बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) घिसावट (Depreciation)
  4. बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) = बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP)- विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)
  5. साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद अथवा शुद्ध घरेलू आय (NDPFC) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP)-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (N.I.T.)
  6. साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद अथवा सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद अथवा शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPFC) + घिसावट (Depreciation)
  7. साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद अथवा सकल राष्ट्रीय आय (GNPFC) = साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद अथवा सकल घरेलू आय (GDPFC) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)
  8. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा शुद्ध राष्ट्रीय आय (NNPFC or National Income) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) – घिसावट (Depreciation)
  9. सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GDNI) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) + शेष विश्व से चालू हस्तान्तरण।
  10. शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NDNI) = सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GDNI) (-) घिसावट (Depreciation)

अथवा व्यक्तियों तथा परिवारों की व्यय योग्य आय का योग इन धारणाओं के बिना कुछ अन्य धारणाएं इस प्रकार हैं, जिनका सम्बन्ध 5वीं धारणा साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPRO) से आरम्भ करते हैं।

  1. निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद-सरकारी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय। 1. गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें 2. विभागीय उद्यमों को सम्पत्ति तथा उद्यम श्रमिक से आय)
  2.  निजी आय (Private Income) = निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय (+) विदेशों से शुद्ध साधन आय (+) सरकारी क्षेत्र से हस्तान्तरण आय (+) शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण (+) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज।
  3. व्यक्तिगत आय (Personal Income) = निजी क्षेत्र-निगम कर-निगम बचतें निगमों के अवितरित लाभ
  4. व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) = व्यक्तिगत आय-व्यक्तिगत प्रत्यक्ष कर सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की प्राप्तियां (फीस तथा जुर्माने)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 2.
निम्नलिखित धारणाओं में अन्तर बताओ
(i) GDPMP and GNPMP
(ii) GDPMP and NNPMP
(iii) GDP at FC and NNP at MP
(iv) GNP at FC and NNP at FC
(v) GDP and NNP
(vi) GNP at FC and GNP at MP
(vii) GNP at MP and NDP at FC
(viii) GDP at MP and NNP at FC.
उत्तर-
राष्ट्रीय आय की धारणाओं का सम्बन्ध-रेखाचित्र 2 अनुसार-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 4
बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)-एक वर्ष में एक देश में देश के साधारण निवासियों द्वारा जो अन्तिम वस्तुएं तथा सेवाएं उत्पादन की जाती हैं, उसके बाज़ार मूल्य को बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। यदि अकेला GDP दिया हो तो इससे अभिप्राय कीमत पर होता है।

बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद में यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (Net Factor Income from abroad (NFYA) को सम्मिलित किया जाए तो बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त हो जाता है। यदि अकेला GNP दिया हो तो यह बाज़ार कीमत पर होता है।

(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन (GNPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) (+) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)

(ii) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) (-) घिसावट (Depreciation)

(iii) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पादन (GDPFC) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) + घिसावट (Depreciation) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes)

(iv) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) = साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at FC) + घिसावट (Depreciation) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)

(v) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) (-) घिसावट (Depreciation)

(vi) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) (+) घिसावट (Depreciation) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)

(vii) साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes)

(viii) साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NFPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) (-) घिसावट (Depreciation) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes)

(ix) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) (-) घिसावट (Depreciation) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)

प्रश्न 3.
भारत की अर्थव्यवस्था के 1982-83 के आंकड़े चालू कीमतों अनुसार दिए गए हैं। इनसे
(i) NNPFC
(ii) NNPMP
(iii) GNPMP
(iv) GDPMP
(v) GNPFC
(vi) NDPMP
(vii) GDPFC ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 5
उत्तर-
बेकरमैन के चित्र रेखाचित्र 2 के अनुसार
(i) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPFC) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) = 1,33,151 + (-) 681 = ₹ 1,32,470 करोड़

(ii) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) = साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (NIT) = 1,32,470 + 19,183 = ₹ 1,51,653 करोड़

(iii) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) + faturala (Depreciation) = 1,51,653 + 11,242 = ₹ 1,62,895 करोड

(iv) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) – विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) = 1,62,895 – (-681) = ₹ 1,63,576 करोड़

(v) साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (N.I.T.) = 1,62,895 – 19,183 = ₹ 1,43,712 करोड़

(vi) बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) घिसावट (Depreciation) = 1,63,576 – 11,242 = ₹ 1,52,334 करोड़

(vii) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPR) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (N.I.T.) = 1,63,576 – 19,183 = ₹ 1,44,393 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा ज्ञात करो।
(a) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)
(b) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 6
उत्तर-
बैकरमैन का चित्र बनाओ –
(a) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) +घिसावट (Depreciation) = 74905 + 4486 = ₹ 79391 करोड़ उत्तर
(b) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (NIT) (+) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) = 74905 – 8344 + (-232) = ₹ 66329 करोड़ उत्तर।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

V. सरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों से शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP) ज्ञात करो
₹ करोड़
(1) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = 97503
(2) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय = (-) 201
(3) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 10,576
(4) स्थिर पूंजी का उपभोग = 5,699
उत्तर-
बेकरमैन का चित्र –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 7
नोट : इस चित्र में D = Depreciation (घिसावट अथवा मूल्य घसाई)
NIT = Net Indirect Taxes (शुद्ध अप्रत्यक्ष कर)
NFYA = Net Factor Income from abroad (विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय)
बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (-) स्थिर पूंजी का उपभोग अथवा घिसावट
= 97503 (-) (-) 201 (-) 5699
= 97503 + 201 – 5699 = ₹ 92005 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 2.
एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था का बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद ₹ 1,20,000 करोड़ है। यदि देश का पूंजी भण्डार ₹ 3,00,000 करोड़ है तथा इसकी वार्षिक घिसावट 20% है। अप्रत्यक्ष कर ₹ 30,000 करोड़ तथा सबसिडी ₹ 15,000 करोड़ है। राष्ट्रीय आय कितनी होगी?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) – मशीनों की घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर ₹ करोड़ बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = 1,20,000
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 8

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आंकड़ों से निजी आय ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 9
उत्तर-
निजी आय (Private Income) = साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (-) गैर विभागीय सरकारी उद्यमों की बचतें (-) सरकारी प्रबन्धकीय उद्यमों को जायदाद तथा उद्यमवृत्ति से आय ” (+) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों से चालू हस्तान्तरण (+) शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण (+) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज निजी आय = 473 – 1 – 9 + 18 + 4 + 28 = ₹ 513 करोड़
नोट-विदेशों से शुद्ध साधन आय, साधन लागत तथा शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में शामिल होती है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों से निजी आय ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 10
उत्तर-
निजी आय = निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय (+) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों से शुद्ध चालू हस्तान्तरण (+) विदेशों से शुद्ध साधन आय + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण निजी आय (Private Income) = 500 + 40 + (-20) + 60 + 50 = ₹ 630 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 11
उत्तर-
निजी आय (Private Income)-राष्ट्रीय आय (-) विभागीय उद्यमों की सम्पत्ति तथा उद्यमवृत्ति से आय (-) गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें + सरकारी क्षेत्र से हस्तान्तरण आय + शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज
(i) निजी आय = 5000 – 70 – 60 + 55 + 25 + 20 = ₹ 4970 करोड़ उत्तर
(ii) व्यक्तिगत आय = निजी आय-निगम कर-निगम बचतें = 4970 – 100 – 200 = ₹ 4670 करोड़ उत्तर
(iii) व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय (-) व्यक्तिगत प्रत्यक्ष कर (-) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की प्राप्तियां व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = 4670 – 20 – 10 = ₹ 4640 करोड उत्तर

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों से व्यक्तिगत आय ज्ञात करोPSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 12
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 13
उत्तर-
व्यक्तिगत आय (Personal Income)-निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + सरकारी क्षेत्र से प्राप्त हस्तान्तरण + शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण – निगम कर – निगमों के अवितरित लाभ व्यक्तिगत आय = 270 + 5 + 10 + 8 – 10 – 2
= ₹ 281 करोड़ उत्तर ।

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत आय (Personal Income) ज्ञात करो यदि
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 14
उत्तर-
व्यक्तिगत आय (Personal Income) =निजी आय (-) निगम कर – निगमों के अवितरित लाभ व्यक्तिगत आय = 300 – 20 – 50 = ₹ 230 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों से व्यक्तिगत व्यय योग्य आय ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 15
उत्तर-
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) = निजी आय (-) निगम कर (-) निगमों की बचतें (-) प्रत्यक्ष कर (-) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की प्राप्तियां व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = 200 – 20 – 30 – 10 – 5 = ₹ 135 करोड़ उत्तर

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों से व्यक्तिगत व्यय योग्य आय ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 16
उत्तर-
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) = निजी आय (-) निगम कर (-) निगमों के अवितरित लाभ (-) प्रत्यक्ष कर (-) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की प्राप्तियां व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = 500 – 20 – 15 -5 – 2 = ₹ 458 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करो :
(a) व्यक्तिगत आय (Personal Income)
(b) व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 17
उत्तर:
(a) व्यक्तिगत आय (Personal Income) = निजी आय (-) निगम कर (-) निगम बचतें व्यक्तिगत आय = 45000 – 1000 – 2000 = ₹ 42000 करोड़
(b) व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) = व्यक्तिगत आय-प्रत्यक्ष कर = 42000 – 300 = ₹ 41700 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आंकड़ों से सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय तथा शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय ज्ञात करें-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 18
उत्तर-

  • सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = राष्ट्रीय आय + शेष विश्व से निवल (शुद्ध) चालू हस्तान्तरण + स्थायी (अचल) पूंजी का उपभोग + निवल शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 2000 + 200 + 100 + 250 = ₹ 2550 करोड़ उत्तर
  • शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय – स्थायी (अचल) पूंजी का उपभोग = 2550 – 100 = ₹ 2450 करोड़ उत्तर

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आंकड़ों से शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NNDI) ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 19
उत्तर-
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NNDI) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण-घिसावट
= 100 (+) 50 (-) 20 = ₹ 130 करोड़ उत्तर

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NNDI) ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 20
उत्तर-
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NIINDI) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर के शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण – स्थिर पूंजी का उपभोग (अथवा घिसावट) NNDI = 800 + 70 + 50 – 60 = ₹ 860 करोड़ उत्तर

प्रश्न 14.
निम्नलिखित आंकड़ों से सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GNDI) ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 21
उत्तर-
सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GNDI) = राष्ट्रीय आय (NNPFC) + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + स्थिर पूंजी का उपभोग + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GNDI) = 2000 + 250 + 100 + 200 = ₹ 2550 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 15.
राष्ट्रीय आय तथा शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NNDI) = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण उदाहरण
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 22
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण
= 1864292 + 202036 + 57821 = ₹ 21,241,49 करोड़ उत्तर
अथवा
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण = 2066328 + 57821
= ₹ 21,24,149 करोड़ उत्तर

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उत्पाद की धारणाओं के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उत्पाद के सम्बन्ध को बेकरमैन के अग्रलिखित चार्ट की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है:-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 23

इसमें

  •  D = घिसावट (Depreciation)
  • NIT = शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes = Indirect Taxes – Subsidies)
  • NFYA = विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
    ↓ जब ऐरो नीचे को जाता है तो घटाओ
    ↑ जब ऐरो ऊपर को जाता है तो जोड़ो
  • शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण (Other Current Transfer from the rest of the World) = (उपहार, उपभोगी वस्तुएं, जंगी सामान, नकदी)

नोट-इस चार्ट की सहायता से राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उत्पादन की धारणाओं का आसानी से माप किया जा सकता है।

प्रश्न 17.
निजी आय तथा व्यक्तिगत आय की धारणाओं के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
निजी आय (Private Income) तथा व्यक्तिगत आय (Personal Income) की धारणाओं के सम्बन्ध को अग्रलिखित चार्ट द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 24
नोट-इस चार्ट की सहायता से निजी आय तथा व्यक्तिगत आय का माप आसानी से किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

PSEB 12th Class Economics आय का चक्रीय प्रवाह Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
आय के चक्रीय प्रवाह से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादन, आय और व्यय के प्रवाह को आय का चक्रीय प्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 2.
एक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के नाम बताओ जिनमें आय का चक्रीय प्रवाह होता है।
उत्तर-

  • उत्पादन क्षेत्र
  • पारिवारिक क्षेत्र
  • वित्तीय क्षेत्र
  • सरकारी क्षेत्र
  • शेष विश्व क्षेत्र।

प्रश्न 3.
बंद अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बंद अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें आयात और निर्यात नहीं किया जाता।

प्रश्न 4.
खुली अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खुली अर्थव्यवस्था, वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें देश द्वारा बाकी विश्व से आयात और निर्यात किया जाता है।

प्रश्न 5.
मौद्रिक प्रवाह से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था में लेन-देन मुद्रा के रूप में किया जाता है तो इसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 6.
वास्तविक प्रवाह से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब अर्थव्यवस्था में लेन-देन वस्तुओं तथा सेवाओं के रूप में किया जाता है तो उसको वास्तविक प्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 7.
आय के चक्रीय प्रवाह का मुख्य सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर-
आय के चक्रीय प्रवाह का मुख्य सिद्धान्त यह है कि विभिन्न क्षेत्रों के भुगतान तथा प्राप्तियां एक-दूसरे के समान होती हैं।

प्रश्न 8.
आय के चक्रीय प्रवाह का कोई एक महत्त्व बताएं।
उत्तर-
आय के चक्रीय प्रवाह से राष्ट्रीय आय में उपभोग, बचत और निवेश का ज्ञान प्राप्त होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

प्रश्न 9.
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस अर्थव्यवस्था में पारिवारिक क्षेत्र और उत्पादन क्षेत्र होते हैं, उसको दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 10.
तीन क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पारिवारिक क्षेत्र और उत्पादन क्षेत्र, वित्तीय क्षेत्र में बचत करते हैं तथा उधार लेते हैं, तो इस अर्थव्यवस्था को तीन क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 11.
चार क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. पारिवारिक क्षेत्र
  2. उत्पादक क्षेत्र
  3. वित्तीय क्षेत्र
  4. सरकारी क्षेत्र।

प्रश्न 12.
वापसी अथवा रिसाव (Leakage) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
परिवार और फ़मैं अपनी आय का जो भाग बचत के रूप में रख लेते हैं, उसको वापसी अथवा रिसाव कहा जाता है।

प्रश्न 13.
समावेश (Injection) की परिभाषा दें।
उत्तर-
परिवार और फ़र्मों द्वारा बचत का जो भाग निवेश किया जाता है उसको समावेश कहा जाता है।

प्रश्न 14.
आय के चक्रीय प्रवाह की तीन अवस्थाओं (Phases) के नाम बताओ।
उत्तर-

  • उत्पादन,
  • आय,
  • व्यय।

प्रश्न 15.
उत्पादन, आय और व्यय को आय का चक्रीय प्रवाह कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
एक अर्थव्यवस्था के पाँच क्षेत्रों के नाम ………….
(1) उत्पादन क्षेत्र
(2) पारिवारिक क्षेत्र
(3) वित्तीय क्षेत्र
(4) सरकारी क्षेत्र
(5) बाकी विश्व क्षेत्र है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
जिस अर्थव्यवस्था में पारिवारिक क्षेत्र और उत्पादन क्षेत्र होते हैं उसको दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 18.
परिवार तथा फ़र्मों की आय का जो भाग बचत के रूप में रख लिया जाता है, उसको ……….. कहते हैं।
(a) पूँजी
(b) रिसाव
(c) भविष्य निधि
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) रिसाव।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

प्रश्न 19.
एक देश में लेन-देन मुद्रा के रूप में किया जाता है, उसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 20.
एक देश में लेन-देन वस्तुओं और सेवाओं के रूप में किया जाता है और उसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 21.
वस्तओं तथा सेवाओं के प्रवाह को ………… …. कहते हैं :
(a) मौद्रिक प्रवाह
(b) आर्थिक प्रवाह
(c) वास्तविक प्रवाह
(d) उपरोक्त में से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) वास्तविक प्रवाह।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आय के चक्रीय प्रवाह से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में मुद्रा आय के चक्रीय रूप में प्रवाह से होता है। एक क्षेत्र का व्यय दूसरे क्षेत्र की आय होती है। दूसरा क्षेत्र आय को अपनी आवश्यकताओं पर व्यय करता है तो शेष क्षेत्रों को आय प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
एक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र बताओ, जिनमें आय का चक्रीय प्रवाह होता है।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार है

  1. उत्पादन क्षेत्र (Production Sector)-यह क्षेत्र वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करता है।
  2. पारिवारिक क्षेत्र (Household Sector)-यह क्षेत्र वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग करता है।
  3. वित्तीय क्षेत्र (Financial Sector)- यह क्षेत्र बचत जमा करता है तथा उधार देता है।
  4. सरकारी क्षेत्र (Government Sector)-यह क्षेत्र कर लगाता है तथा व्यय करता है।
  5. शेष विश्व क्षेत्र (Rest of the World Sector)-यह क्षेत्र आयात तथा निर्यात करता है।

प्रश्न 3.
बन्द अर्थव्यवस्था तथा खुली अर्थव्यवस्था में अन्तर बताओ।
उत्तर–
बन्द अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है, जिसमें आयात तथा निर्यात नहीं किया जाता। खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है, जिसमें विदेशों से वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात किया जाता है तथा विदेशों को वस्तुएं तथा सेवाएं निर्यात की जाती हैं।

प्रश्न 4.
मौद्रिक प्रवाह तथा वास्तविक प्रवाह में अन्तर बताओ।
उत्तर-
जब उत्पादन के साधन कार्य करते हैं तथा उनको लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में आय प्राप्त होती है, जिसको वह साधन अपनी आवश्यकताओं पर व्यय करते हैं तो इससे उत्पादन क्षेत्र को आय प्राप्त होती है, इसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं। वास्तविक प्रवाह (RealFlow) से अभिप्राय पारिवारिक क्षेत्र द्वारा प्रदान की सेवाओं का प्रवाह उत्पादन क्षेत्र की ओर जाता है तथा उत्पादन क्षेत्र को वस्तुओं का प्रवाह पारिवारिक क्षेत्र की ओर जाता है तो इसको वास्तविक प्रवाह कहते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

प्रश्न 5.
भण्डार (Stock) तथा प्रवाह (Flow) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भण्डार वह मात्रा होती है जो निश्चित समय के बिन्दु (Point of Time) पर मापी जाती है। जैसे कि मनुष्य के पास धन अथवा पूंजी का भण्डार। प्रवाह वह मात्रा होती है, जो समय अवधि (Period of Time) में मापी जाती है, जैसे कि परिवार की आय तथा व्यय इत्यादि।

प्रश्न 6.
वास्तविक प्रवाह से क्या अभिप्राय है ? दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में चित्र की सहायता से वास्तविक प्रवाह की व्याख्या करें।
उत्तर-
वास्तविक प्रवाह से अभिप्राय पारिवारिक क्षेत्र द्वारा प्रदान की गई सेवाओं (भूमि श्रम, पूंजी, उद्यम) के बदले में जब उत्पादन क्षेत्र द्वारा वस्तुओं का प्रवाह पारिवारिक क्षेत्र की ओर जाता है तो इसको वास्तविक प्रवाह कहते हैं। इसको रेखाचित्र 1 द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 1

प्रश्न 7.
मौद्रिक प्रवाह से आपका क्या अभिप्राय है ? दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में चित्र की सहायता से मौद्रिक प्रवाह की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
मौद्रिक प्रवाह वह प्रवाह है जिसमें आय तथा व्यय मुद्रा के रूप में किया जाता है। उत्पादन क्षेत्र में फर्मे पारिवारिक क्षेत्र को काम करने के बदले में साधन भुगतान (लगाना, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ) करते हैं। पारिवारिक क्षेत्र इस आय को वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोग पर खर्च कर देते हैं। इसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं। जो कि दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में किया जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 2

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्पादन, आय तथा व्यय के चक्रीय प्रवाह से आपका क्या उद्देश्य है ?
अथवा
आय के चक्रीय प्रवाह से आपका क्या अभिप्राय है ? विभिन्न क्षेत्रों में चक्रीय प्रवाह के लिए किस प्रकार के आंकड़े अनिवार्य हैं ?
अथवा
आय के चक्रीय प्रवाह का क्या अर्थ है ? इससे सम्बन्धित तीन अवस्थाओं (Phases) के नाम बताओ।
उत्तर-
मुद्रा आय के विभिन्न क्षेत्रों में चक्रीय प्रवाह को आय का चक्रीय प्रवाह कहा जाता है। उत्पादन, आय अथवा व्यय के चक्रीय प्रवाह को आय प्रवाह कहा जाता है, जब किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन किया जाता है तो उत्पादन के साधन मिलकर यह उत्पादन करते हैं। इसलिए साधनों को लगान, मज़दूरी, ब्याज के लाभ के रूप में आय प्राप्त होती है। उत्पादन के साधन इस आय को आवश्यकताओं की पूर्ति पर व्यय करते हैं। इससे उत्पादन की वस्तुओं तथा सेवाओं की खपत हो जाती है। मानवीय आवश्यकताओं का कभी अन्त नहीं होता, इसलिए उत्पादन के साधन फिर कार्य करने लग जाते हैं। इस प्रकार उत्पादन, आय तथा व्यय चक्रीय प्रवाह में चलते रहते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 3

प्रश्न 2.
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को स्पष्ट करो।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था में दो क्षेत्र, परिवार क्षेत्र तथा फ़में दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय का प्रवाह (उत्पादन क्षेत्र हैं) परिवार क्षेत्र से उत्पादन के साधन भूमि, श्रम, पूंजी तथा संगठन कार्य करने के लिए फर्मों में जाते हैं। इससे वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन होता है। फ़र्मों द्वारा उत्पादन के साधनों को लगान, मज़दूरी, ब्याज के रूप में भुगतान किया जाता है तथा फ़र्मों को लाभ होता है। उत्पादन के साधन अपनी आय
पारिवारिक क्षेत्र वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करते हैं। इससे फ़र्मों को आय होती है तथा उनकी उत्पादन वस्तुएं बिक जाती हैं। इसको एक रेखाचित्र 4 द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

पारिवारिक क्षेत्र से उत्पादन के साधन भूमि, श्रम, पूँजी, उद्यमी की सेवाएं उत्पादन क्षेत्र को दी जाती हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 4

  • उत्पादन क्षेत्र साधनों को लगान, मज़दूरी, ब्याज का भुगतान करता है तथा फ़र्म को लाभ प्राप्त होता है।
  • पारिवारिक क्षेत्र इस आय को वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करता है।
  • उत्पादन क्षेत्र में से वस्तुएं तथा सेवाएं पारिवारिक क्षेत्र में आ जाती हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आय के चक्रीय प्रवाह से क्या अभिप्राय है ? एक अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को स्पष्ट करो। (What is Circular Flow of Income? Explain the Circular Flow of Income in an Economy.)
अथवा
बन्द अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को स्पष्ट करो। (Explain Circular Flow of Income in Closed Economy.)
उत्तर-
आय के चक्रीय प्रवाह का अर्थ (Meaning of Circular Flow of Income)-आय के चक्रीय प्रवाह को समझने के लिए अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों की जानकारी अनिवार्य होती है। आय की ओर से अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. उत्पादन क्षेत्र-इस क्षेत्र में वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन होता है।
  2. पारिवारिक क्षेत्र-इस क्षेत्र में वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग किया जाता है।
  3. वित्तीय क्षेत्र-इस क्षेत्र में बचत जमा करवाई जाती है तथा उधार दिया जाता है।
  4. सरकारी क्षेत्र-यह क्षेत्र कर लगाता है तथा सहायता प्रदान करता है।
  5. शेष विश्व क्षेत्र-यह क्षेत्र आयात तथा निर्यात से सम्बन्धित होता है।

आय के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आय के चक्र में बहाव की प्रक्रिया को कहा जाता है। (Circular flow of income means the flow of money income in different sectors of an economy.)

आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow Of Income) जब आय तथा उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में अन्तर-निर्भरता को रेखाचित्र द्वारा दिखाया जाता है तो यह आय का चक्रीय प्रवाह है, इसको दो तरह की अर्थव्यवस्था में स्पष्ट किया जा सकता है
(A) बन्द अर्थव्यवस्था (Closed Economy)
(B) खुली अर्थव्यवस्था (Open Economy)।

A. बन्द अर्थव्यवस्था (Closed Economy)-वह अर्थव्यवस्था जिसमें आयात-निर्यात नहीं किया जाता, उसको बन्द अर्थव्यवस्था कहा जाता है।ऐसी अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को निम्नलिखित भागों में विभाजित कर स्पष्ट किया जा सकता है-
1. दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income in two sectors of an Economy)-पहले हम एक ऐसी अर्थव्यवस्था लेते हैं जिसमें दो क्षेत्र

  • उत्पादन क्षेत्र तिम वस्तुए तथा सेवा
  • पारिवारिक क्षेत्र हैं। इस अर्थव्यवस्था में पूरी आय उत्पादन क्षेत्र व्यय की जाती है। बचत नहीं की जाती, कर नहीं पारिवारिक क्षेत्र
    (फ़र्में) लगते, आयात-निर्यात नहीं किया जाता। इस अर्थव्यवस्था में दो प्रवाह हैं

(a) वास्तविक प्रवाह (Real Flow)-साधन सेवाएं, भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यम पारिवारिक क्षेत्र से फ़र्मों में कार्य करते हैं तथा अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग करते हैं। इसको वास्तविक प्रवाह कहा जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 5

(b) मुद्रा प्रवाह (Money Flow)-फ़र्मे साधनों को लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ में भुगतान करती हैं तथा परिवार अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करते हैं। इसको मुद्रा प्रवाह कहा जाता है। रेखाचित्र अनुसार,

  • फ़र्मों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल उत्पादन = पारिवारिक क्षेत्र द्वारा कुल वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग।
  • फ़र्मों द्वारा साधन भुगतान = पारिवारिक क्षेत्र में साधन आय।
  • पारिवारिक क्षेत्र का उपभोग व्यय = पारिवारिक क्षेत्र की आय।
  • फ़र्मे तथा परिवारों का उत्पादन तथा उपभोग का वास्तविक प्रवाह = फ़र्मों तथा परिवारों की आय तथा व्यय का मौद्रिक प्रवाह।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

वित्तीय बाज़ार में आय का चक्रीय प्रवाह-परिवार तथा फ़र्मे अपनी मौद्रिक आय व्यय नहीं करतीं। इसमें से कुछ भाग की बचत की जाती है। यह बचत बैंकों (वित्तीय बाज़ार) में जमा करवाई जाती है। बैंक इस राशि को फ़र्मों तथा परिवारों को उधार दे देते हैं तथा मुद्रा के चक्रीय प्रवाह में कोई फर्क नहीं पड़ता।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं

PSEB 12th Class Economics समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उन सभी चीज़ों को वस्तु कहते हैं जो मानव की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती हैं तथा जिन्हें मानव प्राप्त करना चाहता है।

प्रश्न 2.
सेवाओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सेवाएं अभौतिक वस्तु हैं जिन्हें छुआ, देखा या हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 3.
भौतिक वस्तु कौन-सी वस्तु को कहते हैं ?
उत्तर-
भौतिक वस्तु वह वस्तु है जिसे छुआ जा सकता है, देखा जा सकता है तथा जिसका हस्तान्तरण किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
अभौतिक वस्तुओं का दूसरा नाम बताइये।
उत्तर-
अभौतिक वस्तुओं का दूसरा नाम सेवाएं है जैसे डॉक्टर की सेवा, अध्यापक की सेवा आदि।

प्रश्न 5.
आर्थिक वस्तुएं क्या हैं ?
उत्तर-
आर्थिक वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो सीमित होती हैं, जिनमें उपयोगिता होती है तथा हस्तान्तरणीयता होती है।

प्रश्न 6.
अनार्थिक वस्तुओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
अनार्थिक वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनकी पूर्ति मांग से बहुत अधिक होने के कारण दुर्लभ नहीं होती और निःशुल्क उपलब्ध होती हैं जैसे सूर्य का प्रकाश, हवा आदि।

प्रश्न 7.
आगत (Input) क्या है ?
उत्तर-
उत्पादन-प्रक्रिया की दृष्टि से एक उत्पादकीय फर्म द्वारा जो भी वस्तुएं एवं सेवाएँ खरीदी जाती हैं, उन्हें आगत कहते हैं।

प्रश्न 8.
आर्थिक तथा अनार्थिक वस्तुओं में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
आर्थिक वस्तु के लिए कीमत देनी पड़ती है जबकि अनार्थिक वस्तु के लिए कीमत नहीं देनी पड़ती।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं

प्रश्न 9.
उपभोक्ता वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोक्ता वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उपभोक्ता की आवश्यकता को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करती हैं।

प्रश्न 10.
पूंजीगत वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजीगत वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो अन्य वस्तुओं का उत्पादन करने में सहायक होती हैं।

प्रश्न 11.
गैर टिकाऊ या एक प्रयोग उपभोग वस्तुएं कौन सी हैं ?
उत्तर-
गैर-टिकाऊ या एक प्रयोग उपभोग वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो एक बार उपभोग करने के बाद समाप्त हो जाती हैं।

प्रश्न 12.
एक प्रयोग उपभोग वस्तुओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
चाय, ब्रैड, मक्खन, बिस्कुट आदि ।

प्रश्न 13.
अर्द्ध टिकाऊ उपभोग वस्तुओं की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
अर्द्ध टिकाऊ उपभोग वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका उपभोग प्रायः एक वर्ष की अवधि तक किया जा सकता है जैसे कमीज़, फर्नीचर, परदे, क्राकरी आदि।

प्रश्न 14.
टिकाऊ उपभोग वस्तुओं के तथ्य को उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
टिकाऊ उपभोग वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका उपभोग बार-बार किया जा सकता है जैसे टी०वी०, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि।

प्रश्न 15.
एक प्रयोग पूंजीगत वस्तुएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
एक प्रयोग पूंजीगत वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो उत्पादन की क्रिया में केवल एक बार ही प्रयोग में लाई जा सकती हैं जैसे ईंधन, कच्चा माल आदि।

प्रश्न 16.
टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएं कौन-सी वस्तुएँ हैं ?
उत्तर-
टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका उत्पादन क्रिया में दीर्घकाल के लिए अनेक बार प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 17.
उपभोग वस्तुओं तथा उत्पादक वस्तुओं में भेद का क्या आधार है ?
उत्तर-
इनमें अन्तर का आधार इनके उपभोग का उद्देश्य है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं

प्रश्न 18.
मध्यवर्ती उपभोग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग से अभिप्राय है उत्पादन के लिए गैर टिकाऊ वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रयोग।

प्रश्न 19.
फर्मों का मध्यवर्ती उपभोग क्या है ?
उत्तर-
उद्यमों के मध्यवर्ती उपभोग से अभिप्राय है गैर टिकाऊ वस्तुओं और सेवाओं, विज्ञापन, अनुसन्धान तथा विकास आदि पर किया गया व्यय।

प्रश्न 20.
गैर वित्तीय निगमित उद्यमों के मध्यवर्ती उपभोग के उदाहरण दें।
उत्तर-
कच्चा माल और ईंधन।

प्रश्न 21.
टिकाऊ उत्पादक वस्तुओं की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका उत्पादन क्रिया में दीर्घकाल के लिए अनेक बार प्रयोग किया जाता है जैसे मशीन।

प्रश्न 22.
मध्यवर्ती वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है या जो पुनः बिक्री के लिए खरीदे जाते हैं।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भौतिक तथा अभौतिक पदार्थ किसे कहते हैं ? Distinguish between material and non-material goods.)
उत्तर-
भौतिक तथा अभौतिक पदार्थों में अग्रलिखित अंतर हैं –

भौतिक वस्तुएँ अभौतिक वस्तुएँ
1. इनका भौतिक स्वरूप होता है अर्थात् इन्हें देखा जा सकता है, छुआ जा सकता है। 1. इनका भौतिक स्वरूप नहीं होता।
2. इनके उत्पादन और उपभोग में समय अन्तर होता है। 2. इनका उत्पादन और उपभोग साथ-साथ होता है।
3. इनका संग्रह किया जा सकता है। 3. इनका संग्रह नहीं किया जा सकता ।
4. इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित किया जा सकता
है।
4. इन्हें हस्तान्तरति नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
आर्थिक तथा अनार्थिक वस्तुएँ किसे कहते हैं ? (Distinguish between economic and non economic goods.) उत्तर-
आर्थिक तथा अनार्थिक वस्तुओं में निम्न अन्तर पाया जाता है-

आर्थिक वस्तुएँ अनार्थिक वस्तुएँ
1. इनकी पूर्ति सीमित होती है। 1. इनकी पूर्ति सीमित नहीं होती।
2. इनके लिए कीमत देनी पड़ती है। 2. ये निःशुल्क प्राप्त होती हैं।
3. इनका उत्पादन सीमित साधनों द्वारा किया जाता हैं जैसे हवा और धूप। 3. ये वस्तुएँ प्रकृति द्वारा उपहार स्वरूप प्राप्त होती है।

प्रश्न 3.
एक प्रयोग उपभोग वस्तुओं तथा टिकाऊ उपभोग वस्तुओं पर एक टिप्पणी लिखिए। (Write a note on single use consumer goods and consumer durables.)
उत्तर-
कई वस्तुएं एक ही बार प्रयोग में लाई जा सकती हैं जैसे फल, ईंधन, दूध, आटा, बिजली आदि। इन वस्तुओं का तुष्टिगुण एक बार के प्रयोग से समाप्त हो जाता है। ऐसी वस्तुओं को एकल प्रयोग वस्तुएँ अथवा गैर-टिकाऊ वस्तुएँ कहते हैं। सेवायें भी इसी श्रेणी में आती हैं। इन वस्तुओं की मांग निरन्तर रूप से की जाती रहती है। कई वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें निरन्तर रूप से कई वर्षों तक प्रयोग में लाया जा सकता है जैसे टेलीविज़न, फ्रिज, कार आदि। ऐसी वस्तुएँ टिकाऊ कहलाती हैं।

प्रश्न 4.
मध्यवर्ती वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by intermediate goods ?)
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएं प्रायः गैर टिकाऊ होती हैं। सभी गैर-साधन आगत (non factor inputs) मध्यवर्ती वस्तुएँ होते हैं। गैर साधन आगतों में साधन आगतों (factor inputs) को छोड़कर उत्पादन में काम आने वाले अन्य साधन शामिल हैं। साधन आगत टिकाऊ होते हैं। वर्ष के दौरान खरीदा गया माल भण्डार यदि वर्ष के दौरान प्रयोग में आ जाता है तो यह मध्यवर्ती वस्तु कहलाता है। मध्यवर्ती वस्तुएँ उत्पादन प्रक्रिया में पुनः प्रयोग में आती हैं और इनका सम्बन्ध उपभोग और निवेश के लिए नहीं होता। ये वस्तुएँ उत्पादन परिसीमा के अन्दर होती हैं। मध्यवर्ती वस्तुएँ राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं होतीं, केवल अन्तिम वस्तुओं का मूल्य आंका जाता है।

III. लयु उत्तरीय प्रश्न (Very Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अन्तिम वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ? इसके दो उदाहरण दें। (What do you mean by final goods ? Give two examples of final goods.)
उत्तर-
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका या तो अन्तिम उपभोग के लिए या पूंजी निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है। इनकी पुनः बिक्री नहीं होती। अन्तिम वस्तुएँ उत्पादन परिसीमा से बाहर निकलकर अन्तिम प्रयोग के लिए होती हैं। उदाहरण के लिए सोफा सेट, कपड़ा बनाने की मशीनें, स्कूटर, पंखे आदि अन्तिम वस्तुओं के उदाहरण हैं। अन्तिम वस्तुएँ दो प्रकार की हो सकती हैं-

  1. उपभोक्ता वस्तुएँ (वे अन्तिम वस्तुएँ जो उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को प्रत्यक्षरूप से सन्तुष्ट करती हैं जैसे टेलीविज़न (टिकाऊ वस्तु), कमीज, फर्नीचर (अर्द्ध टिकाऊ वस्तु) और गैर टिकाऊ वस्तुएँ (फल, सब्जी, दूध आदि) तथा
  2. पूंजीगत वस्तुएँ वे अन्तिम वस्तुएँ जो आगे उत्पादन करने के लिए प्रयोग की जाती हैं, पूंजीगत वस्तुएँ कहलाती हैं जैसे कार, ट्रक, इमारतें, वायुयान, मशीनें, सड़कें, पुल आदि।

प्रश्न 2.
उत्पादन के मूल्य तथा मूल्य वृद्धि में अन्तर बताइये। (Explain the difference between value of output and value added.)
उत्तर-
उत्पादक फर्मे एक लेखा वर्ष के दौरान वस्तुओं के उत्पादन के लिए कच्चा-माल (मध्यवर्ती वस्तुएँ) और साधन आगतों (factor inputs) का प्रयोग करती हैं। विभिन्न फर्मे एवं उत्पादन इकाइयां भिन्न-भिन्न वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। इस उत्पादन का मौद्रिक मूल्य, उत्पादन मूल्य (value of output) कहलाता है। उत्पादन मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य भी शामिल होता है। इसलिए यह राष्ट्रीय आय की गणना का आधार नहीं हो सकता क्योंकि यहाँ दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न होती है।

एक लेखा वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य, जिसमें चालू कार्य में शुद्ध वृद्धि और स्व लेखा (own account) पर उत्पादित वस्तुएँ भी शामिल हैं, उत्पादन मूल्य कहलाता है। उत्पादन मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य भी शामिल है जिन्हें उत्पादित फर्म ने अन्य फर्मों से प्राप्त किया। यदि उत्पादन मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य घटा दिया जाये तो उसे मूल्य वृद्धि कहते हैं। उत्पादन मूल्य = फर्म द्वारा बिक्री + माल भण्डार में वृद्धि मूल्य वृद्धि = उत्पादन मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग प्रवाह में योगदान डाला जाता है। राष्ट्रीय आय सम्बन्धी आंकड़े-राष्ट्रीय आय लेखा विधि में अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन, बांट तथा कुल उपभोग सम्बन्धी आंकड़ों की जानकारी दी गई होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं

प्रश्न 3.
बाजार से खरीदे गये रेफ्रिजरेटर के कौन-कौन से उपयोग हो सकते हैं ? (Explain the different uses of Refrigerator.)
उत्तर-
एक उपभोक्ता प्रत्यक्ष रूप से अपनी आवश्यकता सन्तुष्ट करने के लिए फ्रिज खरीदता है तो यह प्रयोग घरेलू प्रयोग होगा। अतः यह उपभोक्ता वस्तु होगी और क्योंकि इसका प्रयोग बार-बार किया जायेगा, अत: यह टिकाऊ वस्तु होगी। सरकार द्वारा सैनिक उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जाने वाला फ्रिज मध्यवर्ती वस्तु (Intermediate good) है। एक होटल द्वारा ठण्डा कोला बेचे जाने के लिए खरीदा फ्रिज पूंजीगत वस्तु है। वे अन्तिम वस्तुएँ जो आगे उत्पादन करने के लिए प्रयोग की जाती हैं, पूंजीगत वस्तुएँ कहलाती हैं। एक दवाई विक्रेता यदि फ्रिज दुकान के लिए खरीदता है तो वह पूंजीगत टिकाऊ वस्तु है।

प्रश्न 4.
मध्यवर्ती उपभोग की मांग को स्पष्ट कीजिये। (Explain the demand for intermediate consumption.)
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग की मांग अर्थव्यवस्था के विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों द्वारा की जाती है। सभी उद्यमी दो प्रकार के आगतों (Inputs) का प्रयोग करके वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं। अर्थात् साधन आगत या प्राथमिक आगत (Factor inputs or primary inputs) तथा गैर साधन आगत या द्वितीयक आगत (Non-factor inputs or secondary inputs)। मध्यवर्ती उपभोग से अभिप्राय है सभी उत्पादक क्षेत्रों तथा सरकार द्वारा उत्पादन के लिए गैरसाधन आगतों का प्रयोग करना।

1.उद्यमियों का मध्यवर्ती उपभोग = उत्पादन में प्रयोग की जाने वाली गैर टिकाऊ वस्तुएँ व सेवायें (Non durable goods and services) + पूंजीगत स्टॉक की मरम्मत तथा रख-रखाव (Repair and maintenance of capital goods) + अनुसंधान तथा विकास पर व्यय (expenditure on research and development) + व्यावसायिक यात्राओं आदि पर व्यय (expenditure on business tours) + अन्य व्यय (परिवारों के मकान, दुकान, गोदाम, कारखानों की इमारतों के रख-रखाव पर व्यय)।

2. सामान्य सरकार का मध्यवर्ती उपभोग (Intermediate Consumption of General Government) = गैर टिकाऊ वस्तुएँ (Non durable goods) + टिकाऊ वस्तुएँ (Durable goods) + मरम्मत एवं रख-रखाव पर खर्च (expenditure on Repair and Maintenance) + विदेशों से उपहार तथा हस्तान्तरण (Gifts and Transfers from foreign governments)- विदेशों से प्राप्त जो वस्तुएँ बिना किसी परिवर्तन के उपभोक्ता परिवारों में वितरित कर दी जाती हैं उन्हें मध्यवर्ती वस्तु नहीं माना जाता। सरकार द्वारा खरीदी गई टिकाऊ तथा गैर टिकाऊ तथा विदेशी सरकारों से प्राप्त वस्तुओं का शुद्ध मूल्य निकालने के लिए उनके क्रय मूल्य से सरकार द्वारा पुरानी वस्तुओं की बिक्री से प्राप्त रकम को घटा दिया जाता है।

प्रश्न 5.
स्व-उपभोग के लिए उत्पादित वस्तुओं के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। (Explain the nature of goods produced for self-consumption.)
उत्तर-
प्रत्येक देश में अनेक उदाहरण ऐसे मिलते हैं जहां उत्पादक उत्पादन का एक भाग अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रखते हैं और परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद जो भी अधिशेष उत्पादन बचता है उसे बाज़ार में बिक्री के लिए भेज दिया जाता है। यह बात केवल वस्तुओं पर ही लागू नहीं होती बल्कि सेवाओं पर भी लागू होती है। पारिवारिक स्नेह या उत्तरदायित्व के कारण जब कोई व्यक्ति अपनी सेवाएं प्रदान करता है तो वे सेवाएं स्व-उपभोग सेवाएं कहलाती हैं।

उदाहरण के लिए गृहिणी परिवार में अनेक बहुमूल्य सेवाएं प्रदान करती है। परिवार के लिए भोजन बनाना, परिवार के सदस्यों के लिए कपड़े सीना, अस्वस्थ होने पर नर्स का कार्य करना, घर में बच्चों को शिक्षा देना, कढ़ाई-बुनाई आदि। यदि ये सेवाएं हम पारिश्रमिक द्वारा प्राप्त करना चाहें तो सम्भवतः प्राप्त न हों क्योंकि हम मुद्रा द्वारा भोजन तो प्राप्त कर सकते हैं परन्तु उस भोजन में जो भाव होता है उसे कहाँ से लाया जाए ? जब तक अध्यापक अपने बच्चे को घर पर पढ़ाता है, नर्स अपने बच्चे की देखभाल करती हैं, एक कलाकार अपने घर के लिए चित्र बनाता है, एक डॉक्टर अपनी पत्नी का इलाज करता है आदि ये सभी स्व-उपभोग सेवाओं के उदाहरण हैं।

एक किसान अपने उपभोग के लिए कुल उत्पादन में से गेहूँ का एक भाग रख लेता है, एक जुलाहा अपने उत्पादन में से घर के लिए कपड़ा बचा लेता है, एक मोची अपने उत्पादन में से जूते अपने लिए रख लेता है, ये सभी स्व-उपभोग के उदाहरण हैं। हम कह सकते हैं कि स्व-उपभोग के लिए उपयोग में लाई गई वस्तुओं तथा सेवाओं का मौद्रिक मूल्यांकन नहीं होता जबकि ये वस्तुएँ और सेवाएं मौद्रिक मूल्य रखती हैं।

प्रश्न 6.
स्टॉक तथा प्रवाह में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
स्टॉक तथा प्रवाह में अन्तरस्टॉकया ।

स्टॉक प्रवाह
1. स्टॉक का माप समय के बिन्दु पर किया जाता 1. प्रवाह का माप समय की अवधि में किया जाता
है।
2. स्टॉक का समय काल नहीं होता। 2. स्टॉक का समय काल होता है जैसे प्रति घण्टा, प्रति महीना आदि।
3. प्रवाह एक परिवर्तनशील धारणा है। 3. स्टॉक एक स्थिर धारणा है।
4. प्रवाह देश में स्टॉक को प्रभावित करता है। 4. स्टॉक देश में प्रवाह को निर्धारित करता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ? विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का वर्णन कीजिए। (What is meant by goods ? Mention the different types of goods.)
उत्तर-
मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। वस्तुएं भौतिक होती हैं तथा सेवाएं अभौतिक होती हैं। पदार्थ वे वस्तुएं हैं जिन्हें मनुष्य प्राप्त करना चाहता है। वे सब वस्तुएँ जो मानव की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती हैं, पदार्थ कहलाती हैं। (Goods are desirable things. All things that satisfy human wants are called goods-Marshall). राष्ट्रीय आय लेखांकन में मनुष्य द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं को कई वर्गों में बांट दिया जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं 1
1. उपभोक्ता वस्तुएं (Consumer Goods)-उपभोक्ता वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उपभोक्ता की आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करती हैं। उपभोक्ता वस्तुएं अन्तिम उपभोग के लिए प्रयोग की जाती हैं। उदाहरण के लिए कमीज़, चाय, पैप्सी, कोला, पैन आदि।

(A) एक प्रयोग वाली उपभोग वस्तुएं (Single Use Consumer Goods)-एक प्रयोग वाली उपभोग वस्तुएं वे जिनका उपभोग केवल एक बार ही किया जाता है अर्थात् जो एक बार उपयोग करने के साथ ही समाप्त हो जाती हैं। जैसे रोटी, चाय, कॉफी, आदि।

(B) टिकाऊ उपभोग वस्तुएं (Durable Consumer Goods)-टिकाऊ वस्तुएँ वे वस्तुए हैं जिनका काफी लम्बे समय तक उपयोग किया जा सकता है। जैसे-रेडियो, कार, स्कूटर, वाशिंग मशीन, टेलीविज़न आदि टिकाऊ उपभोग वस्तुएं हैं।

2. पूंजीगत पदार्थ या उत्पादक वस्तुएं (Capital or Producer’s Goods)-पूंजीगत पदार्थ वे पदार्थ हैं जो वस्तुओं का उत्पादन करने में सहायक होते हैं। ये वस्तुएं प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट नहीं करतीं। पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन के फलस्वरूप पूंजी का निर्माण होता है। पूंजीगत वस्तुओं को भी दो भागों में बांटा जा सकता है।

(A) एक प्रयोग पूंजीगत वस्तुएं (Single use Capital Goods)-एक प्रयोग पूंजीगत उत्पादक वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उत्पादन की एक ही क्रिया में समाप्त हो जाती हैं। जैसे-कच्चा माल।

(B) टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएँ (Durable Capital Goods)-टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उत्पादन क्रिया में दीर्घकाल के लिए अनेक बार प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए मशीनें, यन्त्र, फैक्ट्री, ट्रैक्टर आदि।

प्रश्न 2.
आर्थिक वस्तुओं तथा अनार्थिक वस्तुओं में अन्तर बताइये। (Distinguish between economic goods and non-economic goods.)
उत्तर-
उत्पादन प्रक्रिया के अन्तर्गत अनेक पदार्थों का उत्पादन किया जाता है। इसमें भौतिक तथा अभौतिक पदार्थों को शामिल किया जाता है। भौतिक पदार्थों को वस्तुएं कहते हैं जबकि अभौतिक पदार्थों को सेवायें कहा जाता है। वस्तुओं के उत्पादन तथा उपभोग में समय अन्तर होता है, जबकि सेवाओं के उत्पादन और उपभोग में समय अन्तर नहीं होता।

आर्थिक पदार्थ (Economic Goods)-ये वे पदार्थ हैं जो मानव द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कीमत देकर प्राप्त किए जाते हैं। ऐसी वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए हमें आर्थिक कार्य करने पड़ते हैं जिससे आर्थिक साधनों को प्राप्त किया जा सके। इन्हें प्राप्त करने के लिए या तो मुद्रा अथवा अन्य वस्तुओं का त्याग करना पड़ता है।

अनार्थिक पदार्थ (Non-Economic Goods)-अनार्थिक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो प्रकृति द्वारा निःशुल्क प्राप्त हो जाती हैं। इनके लिए साधनों का त्याग नहीं किया जाता। ये लागतहीन वस्तुएं होती हैं। जैसे-हवा, धूप, रोशनी, रेत आदि। आर्थिक और अनार्थिक वस्तुओं के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती। उदाहरण के लिए गांवों में पानी एक अनार्थिक वस्तु हैं, क्योंकि यह नि:शुल्क प्राप्त होता है परन्तु शहरों में पानी एक आर्थिक वस्तु है, क्योंकि इसके लिए मूल्य चुकाना पड़ता है।

इन दोनों प्रकार के पदार्थों में आधारभूत अन्तर पदार्थ की दुर्लभता (Scarcity) है। यहां दुर्लभता का प्रयोग तुलनात्मक (relative) अर्थों में किया जाता है। इनका सम्बन्ध वस्तुओं की निरपेक्ष (absolute) मात्रा से नहीं है। दुर्लभता का पता करने के लिए हमें मांग या पूर्ति की तुलना करनी पड़ती है। उस वस्तु को दुर्लभ कहते हैं जिसकी मांग, पूर्ति से अधिक हो। जिस वस्तु की मांग पूर्ति से बहुत कम हो वह वस्तु दुर्लभ नहीं होती, जैसे-गन्दे अण्डे, सड़े हुए टमाटर आदि। इसी कारण ये पदार्थ नि:शुल्क प्राप्त होते हैं। कोई वस्तु अथवा सेवा आर्थिक पदार्थ है या नहीं, इसका निर्णय उसके मूल्य पर निर्भर करता है। नि:शुल्क प्राप्त पदार्थ का वर्गीकरण न तो निश्चित है और न ही स्थायी। संसार में विकास के साथ-साथ नि:शुल्क पदार्थों का क्षेत्र कम हो रहा है तथा आर्थिक पदार्थों का क्षेत्र बढ़ रहा है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं

प्रश्न 3.
वस्तुओं एवं सेवाओं के अन्तिम उपभोग का वर्गीकरण कीजिए। (Classify the final consumption of goods and services.) उत्तर-
अन्तिम उपभोग के अनुसार वस्तुओं एवं सेवाओं को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. उपभोक्ता वस्तुएं (Consumer goods)-उपभोक्ता वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उपभोक्ता की आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करती हैं। उपभोक्ता गृहस्थ एवं सामान्य सरकार दोनों ही उपभोक्ता वस्तुओं की मांग करते हैं। उपभोक्ता वस्तु टिकाऊ तथा गैर टिकाऊ हो सकती है। उपभोक्ता गृहस्थों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली उपभोक्ता वस्तुओं में कार, रेफ्रिजरेटर, स्कूटर, टी.वी., वी.सी. आर. वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर आदि को शामिल किया जाता है। अर्द्ध टिकाऊ वस्तुओं (semi durables) में फर्नीचर, पर्दे आदि को शामिल किया जाता है जो सामान्यतः एक वर्ष तक चलते हैं। टिकाऊ वस्तुओं का उपयोग सामान्य सरकार द्वारा भी किया जाता है और ये सामान्य सरकार के अन्तिम उपभोग व्यय में शामिल होती हैं। इसी प्रकार गृहस्थों तथा सामान्य सरकार द्वारा उपभोग की गई गैर-टिकाऊ वस्तुओं में खाद्य पदार्थ,पेय-पदार्थ, दवाइयां, पेट्रोल, पेन्सिल, कागज़, स्याही, साबुन, तेल आदि शामिल होते हैं। ये वस्तुएं भी उनके अन्तिम उपभोग व्यय का हिस्सा होती हैं।

2. मध्यवर्ती वस्तुएं (Intermediate Goods)-मध्यवर्ती वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है या जिनकी पुनः बिक्री की जाती है। सामान्यतः सरकार द्वारा वाहनों, हवाई जहाज़ों, सैनिक सामान के गोदामों, रेफ्रिजरेटर्स आदि का उपभोग मध्यवर्ती वस्तुओं के उपभोग के उदाहरण हैं। इसी प्रकार गैर टिकाऊ वस्तुएं एवं सेवायें जैसे कि स्टेशनरी, कपड़ा, पेट्रोल, तेल आदि जिनका उपयोग निगमित उद्यमों एवं सरकार द्वारा उत्पादन के दौरान किया जाता है, मध्यवर्ती वस्तुएं कहलाती हैं। परन्तु यदि इन्हीं वस्तुओं व सेवाओं का उपभोग यदि गृहस्थों द्वारा किया जाता है तो इन्हें उपभोक्ता वस्तुएँ कहेंगे।

3. पूंजीगत वस्तुएँ (Capital Goods)-भावी उत्पादन के लिए जिन वस्तुओं का उपयोग किया जाता है उन्हें पूंजीगत वस्तुएं कहते हैं। फैक्ट्री की इमारत, मशीनें, प्लांट, उपस्कर, सड़क, बांध, नहरें, हवाई जहाज़, ट्रक आदि टिकाऊ पूंजीगत वस्तुओं के उदाहरण हैं। पूंजीगत वस्तुओं में कच्चे माल के स्टॉक, अर्ध निर्मित वस्तुओं के स्टॉक तथा अन्तिम वस्तुओं के स्टॉक भी शामिल किए जाते हैं। पूंजीगत वस्तुओं का उपभोग अर्थव्यवस्था के केवल उत्पादक क्षेत्र के द्वारा ही किया जाता है। एक वस्तु जो एक श्रेणी के उपभोक्ता के लिए उपभोक्ता वस्तु हैं, दूसरी श्रेणी के लिए मध्यवर्ती वस्तु और तीसरी श्रेणी के उपभोक्ता के लिए पूंजीगत वस्तु कहलाती है। सरकार द्वारा उपभोग की गई सभी मध्यवर्ती वस्तुएँ उसके अन्तिम उपभोग का अंग है।

प्रश्न 4.
पूंजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ? सकल घरेलू पूंजी निर्माण तथा सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण में अन्तर बताइये। (Explain the meaning of capital formation. Distinguish between Gross Domestic capital formation and Gross Domestic fixed capital formation.)
उत्तर-
एक वित्तीय वर्ष में उपभोग की तुलना में उत्पादन के आधिक्य (surplus) को जिसे भविष्य में उत्पादन में प्रयोग किया जाता है, पंजी निर्माण कहते हैं। एक वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण तथा स्टॉक में परिवर्तन के योग को सकल घरेलू पूंजी निर्माण कहते हैं। सकल घरेलू पूंजी निर्माण = सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन। सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण एक वित्तीय वर्ष में नई परिसम्पत्तियों तथा पुरानी भौतिक परिसम्पत्तियों के शुद्ध क्रय का जोड़ है।

सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण = नई परिसम्पत्तियां + पुरानी भौतिक परिसम्पत्तियों का शुद्ध क्रय। नई परिसम्पत्तियों को दो प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है-

  • बाज़ार में उत्पादन इकाइयों से क्रय करके तथा
  • स्वयं के उपभोग के लिए उत्पादन द्वारा। उदाहरण के लिए सरकार पैराशूट बनाने के लिए धागा या कपड़ा निजी उद्यमों से बाज़ार में खरीद सकती है या स्वयं के उपयोग हेतु इसका उत्पादन कर सकती है। नई परिसम्पत्तियों को विदेशों से भी आयात किया जा सकता है। निजी एवं सार्वजनिक उद्यम दोनों ही आयातित परिसम्पत्तियों को प्राप्त कर सकते हैं।

ये परिसम्पत्तियां निम्न हैं

  1. सड़कें एवं पुल
  2. इमारतें,
  3. विनिर्माण क्रिया (Construction Activity)
  4. परिवहन उपस्कर (Transport Equipment) तथा
  5. मशीनें, प्लांट एवं अन्य उपस्कर (Machinery, Plants and other Equipments)।

पुरानी सम्पत्तियों का क्रय-विक्रय (Purchase and sale of old assets)-पुरानी परिसम्पत्तियों के क्रयविक्रय को भी स्थिर घरेलू पूंजी निर्माण में शामिल किया जाता है। तकनीकी परिवर्तनों के साथ अपने उद्यम को समन्वित करने के उद्देश्य से अपनी पुरानी और अप्रचालित भौतिक परिसम्पत्तियों को बेचकर नई परिसम्पत्तियां प्राप्त करते हैं।

स्टॉक में परिवर्तन (Change in Stock or Inventories)-स्टॉक के भौतिक मूल्य में निम्न रूपों में परिवर्तन हो सकते हैं –
(क) उत्पादक गृहस्थों तथा उद्यमों के पास कच्चे माल, अर्द्ध-निर्मित माल तथा निर्मित माल के स्टॉक में परिवर्तन।
(ख) सरकार के स्वामित्व में सामरिक महत्त्व (Strategic importance) के तथा खाद्यान्नों के स्टॉक में परिवर्तन।
(ग) उद्यमों द्वारा बूचड़खानों (Slaughter houses) में काम आने वाले पशुओं के स्टॉक में परिवर्तन। स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक (Closing Stock)-आरम्भिक स्टॉक (Opening Stock)।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

PSEB 12th Class Economics समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध दुर्लभता की स्थिति में चुनाव से होता है।

प्रश्न 2.
चुनाव की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
चुनाव की समस्या दुर्लभता के कारण उत्पन्न होती है।

प्रश्न 3.
दुर्लभता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दुर्लभता वह स्थिति है जिसमें मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं होते।

प्रश्न 4.
पदार्थों की माँग जब पूर्ति से अधिक होती है तो इस स्थिति को क्या कहा जाता है ?
अथवा
सभी आर्थिक समस्याओं की जननी क्या है ?
उत्तर-
दुर्लभता।

प्रश्न 5.
व्यष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र एक गृहस्थी, एक फ़र्म तथा एक उद्योग से सम्बन्धित आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 6.
समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है।

प्रश्न 7.
आर्थिक समस्या से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोगों में से चुनाव करने की समस्या को आर्थिक समस्या कहते हैं।

प्रश्न 8.
एक गृहस्थी की आर्थिक समस्याओं के अध्ययन को कौन-सा अर्थशास्त्र कहा जाता है ?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र।

प्रश्न 9.
सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर चुनाव अथवा साधन के बंटवारे की समस्याओं का अध्ययन किस अर्थशास्त्र में किया जाता है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थ शास्त्र।

प्रश्न 10.
अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार का विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध दुर्लभता के कारण, चयन की समस्या से होता है, जिस द्वारा व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सके।

प्रश्न 11.
दुर्लभता तथा चयन साथ-साथ चलते हैं। कैसे ?
उत्तर-
साधनों की दुर्लभता के वैकल्पिक प्रयोगों के कारण प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज को चयन करना पड़ता है, जिस द्वारा अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त की जा सके, इसलिए दुर्लभता तथा चयन साथ-साथ चलते हैं।

प्रश्न 12.
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है।

प्रश्न 13.
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है ?
उत्तर-
दोनों है।

प्रश्न 14.
आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक कौन हैं ?
उत्तर-
आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक प्रो० एडम स्मिथ हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 15.
व्यष्टि अर्थशास्त्र का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर-
कीमत सिद्धान्त।

प्रश्न 16.
समष्टि अर्थशास्त्र को और क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
रोज़गार सिद्धान्त।

प्रश्न 17.
पूंजीवाद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजीवाद वह आर्थिक प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधन निजी लोगों के हाथ में होते हैं और उत्पादन लाभ प्राप्ति के लिए किया जाता है।

प्रश्न 18.
समाजवाद अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समाजवाद में उत्पादन के साधन सरकार के हाथ में होते हैं और उत्पादन सामाजिक भलाई के उद्देश्य से किया जाता है।

प्रश्न 19.
समष्टि आर्थिक चरों की उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
सकल उत्पादन, कुल निवेश, समग्र रोज़गार आदि समष्टि अर्थशास्त्र के चर हैं।

प्रश्न 20.
व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में भेद स्पष्ट करें।
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र, व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन करता है और समष्टि अर्थशास्त्र सामूहिक इकाइयों का अध्ययन करता है।

प्रश्न 21.
सूती कपड़ा उद्योग का अध्ययन, समष्टि आर्थिक अध्ययन है या व्यष्टि आर्थिक अध्ययन है ?
उत्तर-
सूती कपड़ा उद्योग का अध्ययन व्यष्टि आर्थिक अध्ययन है।

प्रश्न 22.
समष्टि अर्थशास्त्र का चिन्तन कहां केन्द्रित रहता है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र का चिन्तन, आय तथा रोज़गार निर्धारण पर केन्द्रित रहता है।

प्रश्न 23.
समष्टि स्तरीय आर्थिक चिन्तन में अर्थशास्त्रियों की रुचि वास्तव में कब जागृत हुई है ?
उत्तर-
समष्टि स्तरीय आर्थिक चिन्तन में अर्थशास्त्रियों की रुचि वास्तव में केन्जीय क्रान्ति (Keynesian Revolution) के बाद ही जागृत हुई है।

प्रश्न 24.
आर्थिक सिद्धान्त का कौन-सा भाग राष्ट्रीय आय तथा रोजगार की समस्याओं से सम्बन्धित है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र।

प्रश्न 25.
जे० एम० केन्ज़ की महत्त्वपूर्ण पुस्तक का क्या नाम है ? वह कौन-से वर्ष में प्रकाशित हुई ?
उत्तर-
“जनरल थ्यौरी ऑफ एंपलायमैंट इंटरैस्ट एंड मनी’ जोकि 1936 में प्रकाशित हुई।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 26.
विश्व में पहली महामंदी (Great Depression) कब आई थी ?
उत्तर-
पहली महामंदी 1929-30 में आई थी।

प्रश्न 27.
मानवीय आवश्यकताएँ ………… हैं।
(a) सीमित
(b) असीमित
(c) दुर्लभ
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) असीमित।

प्रश्न 28.
अर्थशास्त्र शब्द किस भाषा से लिया गया है ?
(a) फ्रेंच
(b) लैटिन
(c) ग्रीक
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) ग्रीक।

प्रश्न 29.
अर्थशास्त्र के पितामह कौन है ?
(a) मार्शल
(b) रोबिन्ज़
(c) एडम स्मिथ
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) एडम स्मिथ।

प्रश्न 30.
अर्थशास्त्र प्रबन्ध का विज्ञान है ?
(a) सीमित साधन
(b) असीमित आवश्यकताओं
(c) विकल्प प्रयोगों
(d) ऊपर दिये हुए सभी का।
उत्तर-
(d) ऊपर दिये हुए सभी का।

प्रश्न 31. अर्थशास्त्र का विषय ………………
(a) विज्ञान
(b) कला
(c) विज्ञान और कला
(d) न विज्ञान और न कला।
उत्तर-
(c) विज्ञान और कला।

प्रश्न 32.
व्यष्टि अर्थशास्त्र को …………. भी कहा जाता है।
(a) कीमत सिद्धान्त
(b) रोज़गार सिद्धान्त
(c) आय सिद्धान्त
(d) कृषि सिद्धान्त।
उत्तर-
(a) कीमत सिद्धान्त।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 33.
समष्टि अर्थशास्त्र को ………. भी कहा जाता है।
(a) कीमत सिद्धान्त
(b) आर्थिक विकास सिद्धान्त
(c) आय तथा रोजगार सिद्धान्त
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) आय तथा रोजगार सिद्धान्त।

प्रश्न 34.
एक व्यक्ति की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करने को …………. कहा जाता है ।
(a) पारिवारिक अर्थशास्त्र
(b) समष्टि अर्थशास्त्र
(c) व्यष्टि अर्थशास्त्र
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) व्यष्टि अर्थशास्त्र।

प्रश्न 35.
सामूहिक अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित समस्याओं के अध्ययन को …….. अर्थशास्त्र कहा जाता है।
(a) व्यष्टि
(b) समष्टि
(c) अन्तर्राष्ट्रीय
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) समष्टि।

प्रश्न 36.
दुर्लभता से अभिप्राय उस अवस्था से होता है जब साधनों की पूर्ति माँग से कम होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 37.
समष्टि अर्थशास्त्र में एक व्यक्ति की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 38.
अर्थशास्त्र की वह शाखा जिसका सम्बन्ध राष्ट्रीय आय तथा रोजगार से होता है उसको समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं ?
उत्तर-
सही।

प्रश्न 39.
अर्थशास्त्र केवल शुद्ध विज्ञान है ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 40.
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र का नाम रैगनर फरिस्च ने दिया।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 41.
जिस क्रिया में मौद्रिक प्रवाह तथा वास्तविक प्रवाह दोनों होते हैं उसको आर्थिक क्रिया कहते
उत्तर-
सही।

प्रश्न 42.
दुर्लभता और चुनाव साथ-साथ चलते हैं; कैसे ?
उत्तर-
साधनों की दुर्लभता के वैकल्पिक प्रयोगों के कारण दुर्लभता और चुनाव साथ-साथ चलते हैं।

प्रश्न 43.
ग़रीबी तथा दुर्लभता में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
ग़रीबी का अर्थ है बहुत कम वस्तुओं का होना, दुर्लभता का अर्थ है वस्तुओं की मात्रा की तुलना में वस्तुओं की आवश्यकताओं का अधिक होना।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 44.
वह क्रिया जिसका सम्बन्ध दुर्लभ साधनों का प्रयोग करके मनुष्य की इच्छाओं की सन्तुष्टि करना होता है को ……. कहते हैं।
(a) आर्थिक क्रिया
(b) अनार्थिक क्रिया
(c) सोचने की क्रिया
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) आर्थिक क्रिया।

प्रश्न 45.
वह क्रिया जिसका सम्बन्ध बस्तुओं की खरीद-बेच से होता है को ………. कहते हैं।
(a) उपभोग
(b) विनिमय
(c) उत्पादन
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) विनिमय।

प्रश्न 46.
वह अर्थव्यवस्था जिस ऊपर सरकार का लगभग पूर्ण नियन्त्रण होता है को ………अर्थव्यवस्था कहते हैं।
उत्तर-
समाजवादी।

प्रश्न 47.
निम्नलिखित में से कौन-सा आर्थिक प्रणाली का रूप नहीं है ?
(a) लोकतन्त्र
(b) पूंजीवाद
(c) समाजवाद
(d) मिश्रित अर्थव्यवस्था।
उत्तर-
(a) लोकतन्त्र।

प्रश्न 48.
दुर्लभता से संबंधित अर्थशास्त्र की परिभाषा किसने दी ?
उत्तर-
राबिन्ज़ ने।

II. अति लय उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर-
साधारण लोगों में यह धारणा पाई जाती है कि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध रुपये-पैसे (Money) कमाने तथा उसका प्रबन्ध करने से होता है। परन्तु यह धारणा ग़लत है। अर्थशास्त्र का सम्बन्ध दुर्लभता की स्थिति में चुनाव से होता | (Economics is about making choice due to scarcity.)

प्रश्न 2.
व्यष्टि अथवा व्यक्तिगत अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध आर्थिक समस्या की लघु इकाइयों से होता है, जब हम आर्थिक समस्या को छोटेछोटे भागों में विभाजित कर एक-एक भाग का अध्ययन करते हैं तो इस विधि को व्यष्टि आर्थिक विश्लेषण कहा जाता है।

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था तथा उसके समूहों अथवा औसतों का अध्ययन किया जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय, रोज़गार, साधारण कीमत स्तर, कुल उपभोग, कुल बचत इत्यादि सामूहिक समस्याओं का हल किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 4.
व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर एक-एक भाग का अध्ययन किया जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं के समुच्चयों तथा औसतों का विशेष तौर पर अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र के अध्ययन की दो विधियां हैं।

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार का विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध कमी के कारण चयन की समस्या से होता है ताकि व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सके।

प्रश्न 6.
आर्थिक क्रिया से क्या अभिप्राय है ? आर्थिक क्रियाओं का वर्णन करें।
उत्तर-
जिस क्रिया का सम्बन्ध मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दुर्लभ साधनों के उपयोग से होता है उसको आर्थिक क्रिया कहते हैं। इस क्रिया में मुद्रा प्रवाह तथा सेवाओं का प्रवाह होता है। अर्थशास्त्र की मुख्य आर्थिक क्रियाएं हैं-

  • उत्पादन (Production)
  • उपभोग (Consumption)
  • निवेश (Investment)
  • विनिमय (Exchange)
  • वितरण (Distribution)
  • वित्त (Finance).

प्रश्न 7.
दुर्लभता और चुनाव अर्थशास्त्र के सार हैं। स्पष्ट करें।
अथवा
चुनाव की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
दुर्लभता के कारण चुनाव होता है। चुनाव से अभिप्राय है निर्णय लेने की प्रक्रिया जिसका सम्बन्ध सीमित साधनों का इस प्रकार से प्रयोग होता है जिससे उपभोगी को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो, उत्पादक को अधिकतम लाभ तथा राष्ट्र का अधिकतम विकास हो। इसलिए दुर्लभता और चुनाव को अलग नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 8.
आर्थिक संगठन या प्रणालियों की किस्मों का वर्णन करो।
उत्तर-
आर्थिक संगठन या प्रणालियां तीन प्रकार की हैं –

  1. पूंजीवाद-इस प्रणाली में लोगों को उपभोग, उत्पादन, विनिमय करने की स्वतन्त्रता होती है। आर्थिक क्रियाओं का संचालन कीमत यंत्र द्वारा होता है।
  2. समाजवाद-इस प्रणाली में उपभोग उत्पादन, विनिमय का संचालन सरकार द्वारा किया जाता है। कीमत सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
  3. मिश्रित अर्थव्यवस्था-इस प्रणाली में कुछ आर्थिक क्रियाएं निजी लोगों द्वारा तथा कुछ आर्थिक क्रियाएं सरकार द्वारा संचालन की जाती हैं। इसमें निजी क्षेत्र तथा सरकारी क्षेत्र मिलकर काम करते हैं। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था पाई जाती है।

प्रश्न 9.
अर्थशास्त्र की प्रकृति स्पष्ट करें।
अथवा
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र की प्रकृति से अभिप्राय है कि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है। अर्थशास्त्र वास्तविक तथा आदर्शात्मक विज्ञान है और कला भी है। अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है क्योंकि इसमें विज्ञान के नियम हैं। अर्थशास्त्र आदर्शात्मक विज्ञान है क्योंकि इसमें हम देखते हैं कि क्या होना चाहिए। अर्थशास्त्र कला है जो इस प्रकार के उपाय और साधन ढूंढता है जिनसे इच्छित लक्ष्य प्राप्त किये जा सकें। अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों ही है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में कोई चार अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर को नीचे दिए सची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र 1

प्रश्न 2.
व्यष्टि अर्थशास्त्र के महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व

  1. अर्थव्यवस्था की कार्यशीलता-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयोग यह समझाना है कि अर्थव्यवस्था कार्य करती है।
  2. आर्थिक नीतियों का निर्माण व्यक्तिगत अर्थशास्त्र आर्थिक नीतियों के निर्माण में भी सहायक होता है। साधनों के उचित विभाजन के लिए पूंजीवादी अर्थव्यवस्था महत्त्वपूर्ण योगदान डालती है।
  3. आर्थिक निर्णय-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र द्वारा आर्थिक निर्णय लिए जाते हैं; जैसे कि एक वस्तु की कीमत का निर्धारण, फ़र्म की लागत तथा लाभ का ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. आर्थिक कल्याण-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण का आधार है। इससे उपभोग तथा उत्पादन की स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है।
  5. भविष्यवाणी-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र द्वारा भविष्यवाणियां की जाती हैं, जैसे कि एक वस्तु की मांग बढ़ जाती है तो उस वस्तु की कीमत बढ़ जाएगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व बताओ।
उत्तर-

  • अर्थव्यवस्था का अध्ययन-समष्टि अर्थशास्त्र से समूची अर्थव्यवस्था का ज्ञान होता है।
  • आर्थिक विकास-समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा एक देश के आर्थिक विकास के निर्धारक तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  • कीमत स्तर का अध्ययन-एक देश में कीमत स्थिरता प्राप्त करना प्रत्येक सरकार का एक उद्देश्य होता है। इसलिए मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति को कैसे कन्ट्रोल में रखा जाए, इसकी जानकारी समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा होती है।
  • आर्थिक नीतियों का निर्माण-समष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से आर्थिक नीतियों का निर्माण किया जाता है, जोकि देश में निर्धनता, बेरोज़गारी, आय का विभाजन इत्यादि समस्याओं के समाधान के लिए महत्त्वपूर्ण होती हैं।
  • भुगतान सन्तुलन-समष्टि अर्थशास्त्र उन तत्त्वों को स्पष्ट करता है, जोकि भुगतान सन्तुलन स्थापित करने में लाभदायक योगदान डालते हैं। इससे समूची अर्थव्यवस्था को सन्तुलन में रखने के लिए सहायता मिलती है।

प्रश्न 4.
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र का वर्णन करें।
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र की मुख्य शाखाओं के नाम बताइए।
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र को निम्नलिखित भागों में बांट कर अध्ययन किया जाता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र 2

  1. राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त (Theory of National Income)-समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय, इसके माप तथा धारणाओं का अध्ययन किया जाता है।
  2. रोज़गार का सिद्धान्त (Theory of Employment)-समष्टि अर्थशास्त्र में रोज़गार निर्धारण तथा बेरोज़गारी की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
  3. मुद्रा का सिद्धान्त (Theory of Money)-मुद्रा का अर्थ, मुद्रा के प्रभाव तथा कार्यों का अध्ययन किया जाता है। इसमें मुद्रा बाज़ार तथा पूँजी बाज़ार के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है।
  4. आर्थिक विकास का सिद्धान्त (Theory of Economic Development)- आर्थिक विकास का अर्थ किसी देश की प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि से होता है। यह भी समष्टि अर्थशास्त्र का एक भाग माना जाता है।
  5. कीमत स्तर का सिद्धान्त (Theory of Price Level)-एक देश में कीमत स्तर बढ़ने के क्या कारण होते हैं तथा मुद्रा स्फीति को कैसे रोका जा सकता है, यह भी समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में शामिल है।
  6. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धान्त (Theory of International Trade)-विभिन्न देशों में होने वाले व्यापार का भी अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आता है।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र क्या है ? इसका क्षेत्र स्पष्ट करो। (What is Economics ? Discuss its Scope.)
उत्तर-
अर्थशास्त्र क्या है? (What is Economics ?)-अर्थशास्त्र दूसरे समाज शास्त्रों से एक नया विज्ञान है। एडम स्मिथ (Adam Smith) को अर्थशास्त्र का पिता माना जाता है; जिन्होंने 1776 में अपनी पुस्तक (Wealth of Nations) लिखी। इसमें उन्होंने कहा ‘अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है।’ परन्तु इस परिभाषा से अर्थशास्त्र बदनाम हो गया। प्रो० मार्शल (Marshall) ने कहा कि अर्थशास्त्र मनुष्यों का विज्ञान है, जिसमें मानवीय भलाई को अधिकतम करने का अध्ययन किया जाता है। प्रो० रोबिन्ज़ (Robbins) ने अर्थशास्त्र की वैज्ञानिक परिभाषा दी। उनके अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है, जिसका सम्बन्ध अधिक आवश्यकताओं तथा वैकल्पिक प्रयोगों वाले सीमित साधनों से होता है। प्रो० सेम्यूलसन (Samulson) के अनुसार अर्थशास्त्र व्यक्तिगत सन्तुष्टि तथा सामाजिक कल्याण से सम्बन्धित है। अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में हम यह कह सकते हैं, “अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार का विज्ञान है,

जिसका सम्बन्ध कमी के कारण चयन की समस्या से होता है ताकि व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सके।” (“Economics is a science of human behaviour which studies problems of choice arising out of scarcity, so the individuals and society can maximise their social welfare.”) अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Economics)-अर्थशास्त्र के क्षेत्र को दो भागों में विभाजित कर स्पष्ट किया जा सकता है1. अर्थशास्त्र की विषय सामग्री (Subject Matter of Economics)-अर्थशास्त्र की विषय सामग्री अर्थव्यवस्था की प्रकृति तथा व्यवहार की व्याख्या से सम्बन्धित है। देश में बेरोज़गारी, कीमत वृद्धि, निर्धनता, असमानता इत्यादि बहुत-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इन समस्याओं को हल करने के लिए दो तरह की विधियों का प्रयोग किया जाता है। व्यक्तिगत आर्थिक विश्लेषण तथा सामूहिक आर्थिक विश्लेषण की सहायता से कीमत नीति, मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति तथा आर्थिक नियोजन आदि का अध्ययन किया जाता है। इसी तरह अर्थशास्त्र का मुख्य विषय आर्थिक समस्याओं की जांच पड़ताल करके इन समस्याओं के हल के लिए सुझाव देना है।

2. अर्थशास्त्र की प्रकृति (Nature of Economics)-अर्थशास्त्र की प्रकृति में हम देखते हैं कि अर्थशास्त्र विज्ञान है अथवा कला।
(i) अर्थशास्त्र विज्ञान है (Economics is a Science)-अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, जबकि फिजिक्स, कैमिस्ट्री आदि प्राकृतिक विज्ञान हैं। अर्थशास्त्र का क्रमवार अध्ययन किया जाता है, इसके वैज्ञानिक नियम हैं तथा ये नियम सर्वव्यापी हैं। इस कारण अर्थशास्त्र विज्ञान है। विज्ञान दो प्रकार के होते
(a) वास्तविक विज्ञान (Positive Science)-वास्तविक विज्ञान का सम्बन्ध क्या है? (What is Positive Science) से होता है। मानवीय आवश्यकताएँ असीमित हैं। आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साधन सीमित हैं। यह वास्तविक सच्चाई है कि साधनों के वैकल्पिक प्रयोग किए जा सकते हैं, जिस कारण चयन की समस्या उत्पन्न होती है। इसलिए अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है।
(b) आदर्शमय विज्ञान (Normative Science)-आदर्शमय विज्ञान वह विज्ञान होता है, जिसका सम्बन्ध “क्या होना चाहिए” (What ought to be) से होता है। अर्थशास्त्र आदर्शमय विज्ञान भी है, क्योंकि इसमें हम देखते हैं कि कीमत में स्थिरता होनी चाहिए। निर्धन लोगों पर कम कर लगाए जाएं। इसलिए अर्थशास्त्र आदर्शमय विज्ञान भी है।

(ii) अर्थशास्त्र कला है (Economics is an Art)-किसी विशेष उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सिद्धान्तिक ज्ञान के व्यावहारिक प्रयोग को कला कहा जाता है। भारत में कीमतें निरन्तर तीव्रता से बढ़ रही हैं। इन कीमतों की वृद्धि को रोकने के लिए सरकार आर्थिक नीति तथा राजकोषीय नीति का प्रयोग करके कीमतों को नियन्त्रण में रखने का प्रयत्न करती है। इससे स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र विज्ञान भी है और कला भी है।

प्रश्न 2.
व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट करो। (Explain the difference between Micro and Macro Economics.)
उत्तर-
व्यक्तिगत अर्थशास्त्र (Micro Economics)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यटि गत आर्थिक समस्याओं से होता है। जैसे कि एक मनुष्य, एक फ़र्म, एक उद्योग अथवा एक बाज़ार की समस्याएँ। सामूहिक अर्थशास्त्र (Macro Economics)-सामूहिक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध अर्थव्यवस्था की आर्थिक समस्याओं से होता है। जैसे कि बेरोज़गारी, राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय उपभोग तथा साधारण कीमत स्तर का अध्ययन सामूहिक अर्थशास्त्र द्वारा किया जाता है। प्रो० शेपीरो के शब्दों में, “सामूहिक अर्थशास्त्र समूची अर्थव्यवस्था की कार्यशीलता से सम्बन्धित होता है।” (Macro Economics deals with the functioning of the economy as a Whole.-Shapiro)

व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर – (Difference between Micro & Macro Economics)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र 3

व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर्निर्भरता (Inter-dependence of Micro and Macro Economics)-
चाहे व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत स्तर पर कमी तथा चयन की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में समूची अर्थव्यवस्था के स्तर पर इन समस्याओं सम्बन्धी अध्ययन करते हैं, परन्तु यह दोनों एकदूसरे पर अन्तर्निर्भर हैं।
1. व्यक्तिगत अर्थशास्त्र सामूहिक अर्थशास्त्र पर निर्भर है (Micro depends on Macro Economics) यदि हम व्यक्तिगत अर्थशास्त्र की किसी आर्थिक समस्या का हल करना चाहते हैं तो सामहिक अर्थशास्त्र के बगैर यह संभव नहीं होता। जैसे कि एक फ़र्म द्वारा वस्तु की कीमत निर्धारण करते समय ध्यान में रखना पड़ेगा कि बाकी की वस्तुओं की कीमतों में कितना परिवर्तन हुआ है। यदि बाकी वस्तुओं की कीमतें दो गुणा बढ़ गई हैं तो फ़र्म अपनी वस्तु की कीमत दो गुणा कर देगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

2. सामूहिक अर्थशास्त्र व्यक्तिगत अर्थशास्त्र पर निर्भर है (Macro depends on Micro Economics) यदि हम राष्ट्रीय आय का माप करना चाहते हैं तो यह सामूहिक अर्थशास्त्र की समस्या है। इस उद्देश्य के लिए देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक की आय का पता किया जाएगा। जब एक मनुष्य की आय का अध्ययन करते हैं तो यह व्यक्तिगत अर्थशास्त्र की समस्या बन जाती है। इस प्रकार यह दोनों विधियाँ एक-दूसरे पर निर्भर हैं। प्रो० सैम्यूलसन ने ठीक कहा है, “व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में कोई अंतर नहीं। दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। आप पूरी तरह शिक्षित नहीं होंगे यदि आपको एक का ज्ञान है तथा दूसरी विधि सम्बन्धी अज्ञानी हों।”

प्रश्न 3.
अर्थशास्त्र के महत्त्व और आर्थिक प्रणाली की किस्मों का वर्णन कीजिये। (Describe the Importance of Economics and types of economic system)
उत्तर-
अर्थशास्त्र का महत्त्व बहुत अधिक हो गया है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. अर्थशास्त्र का अध्ययन-अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जिसका सम्बन्ध एक अर्थवयवस्था में दुर्लभ संसाधनों का इस प्रकार बंटवारा करना है कि समाज को अधिकतम सामाजिक कल्याण पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है।

2. आर्थिक नीतियों का निर्माण-अर्थशास्त्र का महत्त्व आर्थिक नीतियों के निर्माण में भी देखा जा सकता है। देश में क्या उत्पादन किया जाए? कैसे उत्पादन किया जाए ? किसके लिये उत्पादन किया जाए ? वस्तुओं की कितनी कीमत होनी चाहिये। जोकि अर्थशास्त्र की सहायता से निर्माण को जाती हैं।

3. आर्थिक कल्याण में सहायक-अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य एक अर्थव्यवस्था में आर्थिक कल्याण में वृद्धि करने में सहायक होते हैं।

4. आर्थिक प्रबन्ध में सहायक-अर्थशास्त्र विभिन्न फ़र्मों के लिये आर्थिक प्रबन्ध में सहायक होता है। वस्तु की लागत, बिक्री, कीमत आदि प्रबन्धक निर्णय लेने के लिए अर्थशास्त्र सहायक होता है।

5. भविष्यवाणियों में सहायक-अर्थशास्त्र का ज्ञान भविष्यवाणी करने के लिये भी सहायक होता है। देश का उत्पादन देश में ही प्रयोग किया जाए अथवा इसको विदेशों में बेचा जाए। विदेशों में बेचने से लाभ होगा अथवा हानि होगी। अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण के आदर्श की प्राप्ति के लिये भी महत्त्वपूर्ण होता है। अर्थशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसका महत्त्व प्रत्येक क्षेत्र में नज़र आता है और यह प्रत्येक के लिये अनिवार्य है।

आर्थिक प्रणाली की किस्में (Types of Economic Systems)-आर्थिक प्रणाली की मुख्य तीन किस्में हैं –
1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalistic Economy)-अर्थव्यवस्था वह प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधन-भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन-निजी लोगों के अधिकार में होते हैं और उत्पादन लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। इस अर्थव्यवस्था में सभी मुख्य आर्थिक निर्णय लोगों द्वारा लिए जाते हैं और जो बिना सरकारी हस्तक्षेप के बाज़ारी दशाओं द्वारा निर्धारित और नियन्त्रित किये जाते हैं। बाज़ारी दशाओं से हमारा अभिप्राय पदार्थों, सेवाओं की मांग व पूर्ति की दशाओं, उनकी कीमतों व उत्पादन लागतों, लाभ व हानि आदि से है। ये बाज़ारी दशाएं कीमत प्रणाली को जन्म देती हैं जिनके संकेत पर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था संचालित होती है।

2. समाजवादी अर्थवयवस्था (Socialistic Economy)-समाजवाद से अभिप्राय है उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व, सरकार द्वारा नियोजन तथा आय का पुनर्वितरण । अर्थात् समाजवाद वह आर्थिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साथन समाज के अधिकार में होते हैं और जिसमें धन का उत्पादन, थोड़े से व्यक्तियों के निजी लाभ के लिए नहीं बल्कि सामाजिक भलाई के विचार से किया जाता है। बाजार में कीमतें सरकार द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं।

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)-मिश्रित अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था होती है जिसमें कुछ आर्थिक निर्णय पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की भांति लोगों द्वारा निजी लाभ के लिये जाते हैं और कुछ आर्थिक निर्णय समाजवादी अर्थव्यवस्था की भांति राज्य द्वारा लिए जाते हैं। इसमें पूँजीवादी तथा समाजवादी आर्थिक प्रणाली, दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था के लक्षण पाए जाते हैं। इस प्रकार इस अर्थव्यवस्था को पूँजीवाद और समाजवाद के बीच सुनहरी रास्ता (Mixed Mean) कहा जाता है।

प्रश्न 4.
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व बताएँ। (Explain the Importance of Macro Economics.)
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व (Importance of Macro Economics)-समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जाता है –
1. अर्थव्यवस्था का अध्ययन (Study of Economy)-समष्टि अर्थशास्त्र से समूची अर्थव्यवस्था की कार्यप्रणाली का ज्ञान प्राप्त होता है।

2. राष्ट्रीय आय का अध्ययन (Study of National Income)-राष्ट्रीय आय से ही विभिन्न देशों की आर्थिक स्थितियों की तुलना की जा सकती है। इसलिए समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा राष्ट्रीय आय का अध्ययन करके विश्व में एक देश की आर्थिक प्रगति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

3. आर्थिक नीतियों का निर्माण (Formulation of Economic Policies)-समष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से आर्थिक नीतियों का निर्माण किया जाता है जोकि देश में निर्धनता, बेरोज़गारी, आय का विभाजन इत्यादि समस्याओं का हल करने के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।

4. कीमत स्तर का अध्ययन (Study of Price Level)-एक देश में कीमत स्थिरता प्राप्त करना प्रत्येक सरकार का एक उद्देश्य होता है, इसलिए मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति को कैसे कन्ट्रोल में रखा जाए, इसकी जानकारी समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा प्राप्त होती है।

5. भुगतान सन्तुलन (Balance of Payment)-समष्टि अर्थशास्त्र उन तत्त्वों को स्पष्ट करता है जोकि भुगतान सन्तुलन स्थापित करने में लाभदायक योगदान डालते हैं।

6. व्यापार चक्रों का अध्ययन (Study of Trade Cycles).-व्यापार चक्र अर्थव्यवस्था बुरा प्रभाव डालते हैं। इनका अध्ययन भी समष्टि अर्थशास्त्र में ही सम्भव है।

7. आर्थिक विकास (Economic Development)-आर्थिक विकास प्राप्त करना प्रत्येक देश का मुख्य लक्ष्य बन गया है। इस महत्त्व के लिए आर्थिक नीतियों का निर्माण करके आर्थिक विकास तेज़ी से प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ बताएँ। (Explain the Limitations of Macro Economics.)
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ (Limitations of Macro Economics)-समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
1. समष्टि विरोधाभास (Macro Paradoxes)-समष्टि अर्थशास्त्र का सबसे बड़ा दोष यह है कि व्यक्तिगत निष्कर्ष जब समूहों में लागू किए जाते हैं तो वह गलत सिद्ध होते हैं। इसे ही समष्टि विरोधाभास कहते हैं। कीमतों में वृद्धि अमीर लोगों के लिए इतनी कष्टमय नहीं होती जितनी के गरीब लोगों के लिए होती है।

2. समष्टि अर्थशास्त्र की अवास्तविक मान्यताएँ (Unrealistic Assumptions of Macro Economics) समष्टि अर्थशास्त्र की पाँच मुख्य मान्यताएँ हैं-

  • अल्पकाल
  • बंद अर्थव्यवस्था
  • पूर्ण प्रतियोगिता
  • अल्परोज़गार सन्तुलन
  • मुद्रा संचय का कार्य भी करती है।

यह मान्यताएँ अर्थव्यवस्था के सभी समूहों पर लागू नहीं होती क्योंकि अर्थव्यवस्था में सभी समूह एक समान होते और उनमें विभिन्नता भी पाई जाती है।

3. गलत नीतियाँ (Wrong Policies)- समष्टि अर्थव्यवस्था के अध्ययन से कई बार हम इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं कि अर्थव्यवस्था में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है । इसलिए आर्थिक नीति में किसी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार बहुत-सी नीतियाँ गलत बनाई जा सकती हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

4. माप में कठिनाई (Difficulty in Measurement)-समष्टि अर्थशास्त्र की एक सीमा यह भी है कि इसके चरों जैसा कि कुल उपभोग, कुल निवेश, कुल आय आदि का माप करना आसान नहीं होता।

5. व्यक्तिगत इकाइयों पर निर्भर (Dependence on Individual Units)-समष्टि अर्थशास्त्र के बहुत-से नतीजे व्यक्तिगत इकाइयों पर आधारित होते हैं, परन्तु वह ठीक नहीं। जो नतीजे व्यक्तियों पर लागू होते हैं, ज़रूरी नहीं कि वह समूहों पर भी ठीक लागू हों। इसको संरचना का भुलेखा (Fallacy of Composition) भी कहा जाता है।

PSEB 12th Class History Map Questions

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Map Questions Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 12th Class History Map Questions

ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles of Guru Gobind Singh Ji:)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਪੂਰਵ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਅਤੇ ਉੱਤਰ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four places of battles of the Pre-Khalsa and Post-Khalsa period of Guru Gobind Singh.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਿਕ | ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four important places of Guru Gobind Singh Ji’s battles.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the battles as shown in the map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four important places where the battles of Guru Gobind Singh Ji were fought.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ-
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of Guru Gobind Singh Ji’s battles.
(b) Explain in about 20-25 words each the places given in the map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of the battles of Guru Gobind Singh Ji.
(b) Explain these places in about 20-25 words on each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict four places of the battles of Sri Guru Gobind Singh Ji.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the places of the battles shown in the map.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਲੜਨਾ ਪਿਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਪੁਰਵ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

I. ਪੂਰਵ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles of Pre-Khalsa Period)

1. ਭੰਗਾਣੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 1688 ਈ. (Battle of Bhangani 1688 A.D.) – ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਕਹਿਲੂਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਭੀਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਸ੍ਰੀਨਗਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਫ਼ਤਿਹ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਇੱਕ ਗਠਜੋੜ ਤਿਆਰ ਕਰ ਲਿਆ । 22 ਸਤੰਬਰ, 1688 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ ਭੰਗਾਣੀ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਢੋਰਾ ਦੇ ਪੀਰ ਬੁੱਧੂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਮੇਤ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਜੋਸ਼ ਅੱਗੇ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜੇ ਨਾ ਟਿਕ ਸਕੇ । ਉਹ ਮੈਦਾਨ ਛੱਡ ਕੇ ਭੱਜਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ।

2. ਨਾਦੌਣ ਦੀ ਲੜਾਈ 1690 ਈ. (Battle of Nadaun 1690 A.D.) – ਭੰਗਾਣੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਕਰ ਲਈ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨੂੰ ਸਾਲਾਨਾ ਖਿਰਾਜ ਕਰ ਭੇਜਣਾ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਆਲਿਫ਼ ਖ਼ਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਫ਼ੌਜ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੇਜੀ ਗਈ । ਉਸ ਨੇ 20 ਮਾਰਚ, 1690 ਈ. ਨੂੰ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਭੀਮ ਚੰਦ ਦੀ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਨਾਦੌਨ ਵਿਖੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਭੀਮ ਚੰਦ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸਾਂਝੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ | ਆਲਿਫ਼ ਖ਼ਾਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਨੱਸਣਾ ਪਿਆ |
PSEB 12th Class History Map Questions 1
II. ਉੱਤਰ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles of Post-Khalsa Period)

3. ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 1701 ਈ. (First Battle of Sri Anandpur Sahib 1701 A.D.) – 1699 ਈ. ਵਿੱਚ ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਸਿਰਜਨਾ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲੱਗੇ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਇਸ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਕਹਿਰ ਦੇ ਰਾਜਾ ਭੀਮ ਚੰਦ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਖ਼ਾਲੀ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਭੀਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਾਥੀ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ 1701 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿਲੇ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਰ ਸਫਲਤਾ ਨਾ ਮਿਲਣ ਕਾਰਨ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨਾਲ ਸੰਧੀ ਕਰ ਲਈ ।

4. ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ 1704 ਈ. (Second Battle of Sri Anandpur Sahib 1704 A.D.) – ਪਹਾੜੀ ਰਾਜੇ ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਤੋਂ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦੇ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ 1704 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ‘ਤੇ ਦੁਸਰੀ ਵਾਰ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਅੰਦਰੋਂ ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਘੇਰਾ ਲੰਬਾ ਹੋ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਅੰਦਰ ਰਸਦ ਥੁੜਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਕੁਝ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚੋਂ ਭੱਜ ਨਿਕਲਣ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ 40 ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਕੇ ਚਲੇ ਗਏ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਫਲਤਾ ਨਾ ਮਿਲਦੀ ਵੇਖ ਕੇ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਚਾਲ ਚੱਲੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਝੂਠੀਆਂ ਕਸਮਾਂ ਖਾ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਇਹ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜੇਕਰ ਉਹ ਕਿਲ੍ਹਾ ਛੱਡ ਦੇਣ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇਗਾ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਕਿਲ੍ਹਾ ਛੱਡਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ।

5. ਸ਼ਾਹੀ ਟਿੱਬੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 1704 ਈ. (Battle of Shahi Tibbi 1704 A.D.) – ਜਿਵੇਂ ਹੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਖ਼ਾਲੀ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਟੁੱਟ ਪਈਆਂ । ਸਿੱਟੇ ਵੱਜੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਗਦੜ ਮਚ ਗਈ । ਸ਼ਾਹੀ ਟਿੱਬੀ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਉਧੈ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ 50 ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਅੰਤ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਪਾ ਗਏ ।

6. ਚਮਕੌਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਲੜਾਈ 1704 ਈ. (Battle of Chamkaur Sahib 1704 A.D.) – ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਆਪਣੇ 40 ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ 21 ਦਸੰਬਰ, 1704 ਈ. ਨੂੰ ਚਮਕੌਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਗੜ੍ਹੀ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੇ 22 ਦਸੰਬਰ, 1704 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾ ਲਿਆ । ਇੱਥੇ ਬੜੀ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਵੱਡੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਜੁਝਾਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਉਹ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ਕਿ ਮੁਗ਼ਲ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ । ਉਹ ਅੰਤ ਲੜਦੇ-ਲੜਦੇ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ । ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਇੱਥੋਂ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋ ਗਏ ।

7. ਖਿਦਰਾਣਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 1705 ਈ. (Battle of Khidrana 1705 A.D.) – 29 ਦਸੰਬਰ, 1705 ਈ. ਨੂੰ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੇ ਖਿਦਰਾਣਾ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਅਦੁੱਤੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ 40 ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਜੋ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਗਏ ਹਨ, ਨੇ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀਆਂ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਮਹਾਂ ਸਿੰਘ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੁਕਤੀ ਦਾ ਵਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਖਿਦਰਾਣਾ ਦਾ ਨਾਂ ਸ੍ਰੀ ਮੁਕਤਸਰ ਸਾਹਿਬ ਪੈ ਗਿਆ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਆਖਰੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਮਹਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ (Important Battles of Banda Singh Bahadur)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
(ੳ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਕਾਰਨਾਮਿਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four places of military exploits of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places of battles shown in the map.
ਜਾਂ
(ੳ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, fill places of four important battles of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places shown in the map.
ਜਾਂ
(ਉ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of the battles ‘ of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places shown in the map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of military exploits of Banda Singh Bahadur.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict the four battle places of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places of the battle shown in the map.
ਉੱਤਰ-
ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ 1709 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਤੋਂ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਲੈ ਕੇ ਨੰਦੇੜ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਲਈ ਰਵਾਨਾ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਸਬਕ ਸਿਖਾਇਆ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦਿਨੇ ਤਾਰੇ ਨਜ਼ਰ ਆ ਗਏ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ :-

1. ਸੋਨੀਪਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ (Attack on Sonepat) – ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਨਵੰਬਰ, 1709 ਈ. ਵਿੱਚ 500 ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਸੋਨੀਪਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ | ਸੋਨੀਪਤ ਦਾ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਬਿਨਾਂ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤੇ ਦਿੱਲੀ ਵੱਲ ਭੱਜ ਗਿਆ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ।

2. ਸਮਾਣਾ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Samana) – ਸਮਾਣਾ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੂੰ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਛੋਟੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਜੱਲਾਦ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਸਮਾਣਾ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਿੱਤ ਸੀ ।

3. ਕਪੂਰੀ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Kapuri) – ਕਪੂਰੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਕਦਮਉੱਦੀਨ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਕਪੂਰੀ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਕਦਮਉੱਦੀਨ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੇ ਘਾਟ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਪੂਰੀ ’ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਗਈ ।

4. ਸਢੋਰਾ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Sadhaura) – ਸਢੌਰਾ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਉਸਮਾਨ ਖ਼ਾ ਬੜਾ ਜ਼ਾਲਮ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਪੀਰ ਬੁੱਧੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਇਸ ਲਈ ਤਸੀਹੇ ਦੇ ਕੇ ਕਤਲ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੇ ਭੰਗਾਣੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਸਢੋਰਾ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਇਸ ਸਥਾਨ ਦਾ ਨਾਂ ਕਤਲਗੜੀ ਪੈ ਗਿਆ ।

5. ਸਰਹਿੰਦ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Sirhind) – ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਛੋਟੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਜ਼ੋਰਾਵਰ ਸਿੰਘ ਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕੰਧ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿੰਦਾ ਚਿਣਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ 12 ਮਈ, 1710 ਈ. ਨੂੰ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਚੱਪੜਚਿੜੀ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਵਾਧੂ ਆਹੂ ਲਾਹੇ । ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਯਮਲੋਕ ਪਹੁੰਚਾ ਕੇ ਉਸ ਦੀ ਲਾਸ਼ ਨੂੰ ਦਰੱਖ਼ਤ ਨਾਲ ਲਟਕਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ।

6. ਰਾਹੋਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Rahon) – ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਸ਼ਮਸ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ਿਹਾਦ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਤੋਂ ਸਹਾਇਤਾ ਮੰਗੀ | ਅਕਤੂਬਰ, 1710 ਈ.
PSEB 12th Class History Map Questions 2
ਵਿੱਚ ਰਾਹੋਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਅਤੇ ਸ਼ਮਸ ਖ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਸਾਰੇ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

7. ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ’ਤੇ ਹਮਲਾ Attack of Mughals on Lohgarh) – ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਹਾਦਰ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਮੁਨੀਮ ਖ਼ਾਂ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਵਿਖੇ ਅਚਾਨਕ ਘੇਰ ਲਿਆ । ਕੁਝ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚੋਂ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮੁਗ਼ਲ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ ।

8. ਗੁਰਦਾਸ ਨੰਗਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Gurdas Nangal) – ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ 1715 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਹਿਰਾਮਪੁਰ, ਬਟਾਲਾ ਤੇ ਕਲਾਨੌਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਦੁਬਾਰਾ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ‘ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਵੇਂ ਬਣੇ ਸੂਬੇਦਾਰ ਅਬਦੁਸ ਸਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਗੁਰਦਾਸ ਨੰਗਲ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਅਚਾਨਕ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੁਨੀ ਚੰਦ ਦੀ ਹਵੇਲੀ ਵਿੱਚ ਘਿਰ ਗਿਆ । ਇਹ ਘੇਰਾ 8 ਮਹੀਨਿਆਂ ਤਕ ਚਲਦਾ ਰਿਹਾ । ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਮੰਨਣੀ ਪਈ । 9 ਜੂਨ, 1716 ਈ. ਨੂੰ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ (Kingdom of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੀ ਹਰੇਕ ਲੜਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four important places of battles of Maharaja Ranjit Singh.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words on each battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਕੋਈ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places where Maharaja Ranjit Singh fought battles.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab, show four places of the battles of Maharaja Ranjit Singh.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
PSEB 12th Class History Map Questions 3
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict the four places of battles of Maharaja Ranjit Singh.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words eacg on the places of the battles shown in the map.
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੇਤੁ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ (1797-1839) ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਇਸ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਜਿੱਤਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1799 ਈ. (Conquest of Lahore 1799 A.D.) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲੀ ਜਿੱਤ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਤਿੰਨ ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰਾਂ-ਸਾਹਿਬ ਸਿੰਘ, ਮੋਹਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਚੇਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਕਾਰਨ ਇੱਥੋਂ ਦੀ ਪਰਜਾ ਬੜੀ ਦੁਖੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ 7 ਜੁਲਾਈ, 1799 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

2. ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1805 ਈ. (Conquest of Amritsar 1805 A.D.) – ਧਾਰਮਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੱਕਾ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਕੇਂਦਰ ਵੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ । ਬਣਨ ਲਈ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ । 1805 ਈ. ਨੂੰ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਕੇ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਮਾਈ ਸੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

3. ਕਸੂਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1807 ਈ. (Conquest of Kasur 1807 A.D.) – ਕਸੂਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਕੁਤਬ-ਉਦ-ਦੀਨ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਅਧੀਨਤਾ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ 1807 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਸੂਰ ’ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਕੁਤਬ-ਉਦ-ਦੀਨ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਸੂਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

4. ਕਾਂਗੜਾ ਦੀ ਜਿੱਤ 1809 ਈ. (Conquest of Kangra 1809 A.D.) – 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਾਂਗੜਾ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਸੰਸਾਰ ਚੰਦ ਕਟੋਚ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਗੋਰਖਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਹਾਇਤਾ ਮੰਗੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਦਲੇ ਉਸ ਨੇ ਕਾਂਗੜਾ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਦੇਣ ਦਾ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਗੋਰਖਿਆਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ | ਪਰ ਹੁਣ ਸੰਸਾਰ ਚੰਦ ਨੇ ਕਿਲਾ ਦੇਣ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਟਾਲ-ਮਟੋਲ ਕੀਤੀ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਅਨੁਰੋਧ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਨੇ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਕਿਲ੍ਹਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ 1818 ਈ. (Conguest of Multan 1818 A.D.) – ਮੁਲਤਾਨ ਸ਼ਹਿਰ ਵਪਾਰਿਕ ਅਤੇ ਭੁਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 7 ਵਾਰ ਹਮਲੇ ਕੀਤੇ । ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਮੁਜੱਫਰ ਖ਼ਾਂ ਹਰ ਵਾਰੀ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਨਜ਼ਰਾਨਾ ਦੇ ਕੇ ਟਾਲ ਦਿੰਦਾ ਰਿਹਾ । 1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਦੇ ਅਧੀਨ ਭੇਜੀ । ਘਮਸਾਨ ਦੇ ਯੁੱਧ ਮਗਰੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

6. ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1819 ਈ. (Conquest of Kashmir 1819 A.D.) – ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਘਾਟੀ ਆਪਣੀ ਸੁੰਦਰਤਾ ਅਤੇ ਵਪਾਰ ਕਾਰਨ ਬੜੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੀ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਜ਼ਬਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

7. ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1834 ਈ. (Conquest of Peshawar 1834 A.D.) – ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । 1823 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਵਜ਼ੀਰ ਮੁਹੰਮਦ ਆਜ਼ਿਮ ਸ਼ਾਂ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਰਾ ਕੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ (First Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four places of the First Anglo-Sikh War.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the above.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) Show any four places of First Anglo Sikh War on the given map of Punjab.
(b) Write in about 20-25 words each about the spots shown on map.
ਜਾਂ
(ੳ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab, show four places of First Anglo Sikh War.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict four places of First Anglo Sikh War.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the places of the battles shown in the map.
PSEB 12th Class History Map Questions 4
ਉੱਤਰ-
1845-46 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਯੁੱਧ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਿਆ ਗਿਆ-

1. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Mudki) – ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਤੋਂ 20 ਮੀਲ ਦੀ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਮੁਦਕੀ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਅਹਿਸਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨਾ ਕੋਈ ਸੌਖਾ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

2. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ferozeshah) – 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਵਿਖੇ ਦੁਸਰੀ ਲੜਾਈ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਜਾਂਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਪਰ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਮੁੜ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ ।

3. ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Baddowal) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤੀਜੀ ਲੜਾਈ ਲੁਧਿਆਣਾ ਤੋਂ 18 ਮੀਲ ਦੂਰ ਬੱਦੋਵਾਲ ਵਿਖੇ 21 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸਰਦਾਰ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਮਜੀਠੀਆ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਛੱਡਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ ।

4. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Aliwal) – ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਬੱਦੋਵਾਲ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ 28 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਅਲੀਵਾਲ ਵਿਖੇ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Sobraon) – ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਿਮ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਗੱਦਾਰ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਜੋ ਅੰਦਰ ਖਾਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਰਲੇ ਹੋਏ ਸਨ, ਮੌਕਾ ਵੇਖ ਕੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਨੱਸ ਗਏ । ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਉਹ ਜੌਹਰ ਦਿਖਾਏ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਆ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਤ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ (Second Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
(ਓ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਉੱਤੇ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the places of Second Anglo-Sikh War.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦੂਜੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) Show four places of Second Anglo Sikh War on the given outline map of Punjab.
(b) Write in about 20-25 words on each about the spots shown in map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab, show the four places of Second Anglo Sikh War.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers fill the places of battles of the Second Anglo Sikh War.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words on each the places of the battles shown in the map.
PSEB 12th Class History Map Questions 5
ਉੱਤਰ-
1848-49 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੂਸਰਾ ਯੁੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਯੁੱਧ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ਸੀ-

1. ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ramnagar) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਰਾਮਨਗਰ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ | ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਅਤੇ ਮਾਲੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ।

2. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Chillianwala) – ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ 132 ਸੈਨਿਕ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਦੀ ਥਾਂ ਸਰ ਚਾਰਲਸ ਨੇਪੀਅਰ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਸਰਵਉੱਚ ਕਮਾਂਡਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Multan) – ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਜਨਰਲ ਵਿਸ਼ ਅਧੀਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾਇਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਵੀ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨਾਲ ਆ ਰਲਿਆ ਸੀ । ਜਨਰਲ ਵਿਸ਼ ਨੇ ਚਲਾਕੀ ਨਾਲ ਜਾਅਲੀ ਚਿੱਠੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਵਿਚਾਲੇ ਫੁੱਟ ਪੁਆ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ । ਇਕੱਲਾ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕਿਆ ਅਤੇ ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅੱਗੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਇਸ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਮੁੜ ਵੱਧ ਗਏ ।

4. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Gujarat) – ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਆਖਰੀ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ ‘ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਗੋਲਾ-ਬਾਰੂਦ ਛੇਤੀ ਹੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ 3,000 ਤੋਂ 5,000 ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ । 10 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਜਨਰਲ ਗਿਲਬਰਟ ਅੱਗੇ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ ।

29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਨਾਲ ਉਸਾਰੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਦੁਖਮਈ ਅੰਤ ਹੋਇਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਛੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain in brief the six causes of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੁਜੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What were the causes of Second Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਛੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸਨ ? (What were the six main causes for Second Anglo-Sikh War ?) ਉੱਤਰ-
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ – ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਇੱਛਾ – ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋ ਗਈ ਸੀ, ਪਰ ਇਸ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੌਂਸਲੇ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਹੋਏ ਸਨ ।ਇਸ ਹਾਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾਵਾਂ ਵੱਲੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ‘ਤੇ ਪੂਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਹ ਇੱਛਾ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀ ।

2. ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਅਸੰਤੁਸ਼ਟ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ। ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਬਣਾਏ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੰਧੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ ਹੋਰ ਯੁੱਧ ਲੜਨਾ ਪੈਣਾ ਸੀ ।

3. ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਅਸੰਤੋਸ਼ – ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਪੈਦਲ ਤੇ 12,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਰੋਸ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ।

4. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਸਖ਼ਤ ਸਲੂਕ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਜੋ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਵਹਾਰ ਕੀਤਾ, ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਫੈਲੇ ਰੋਸ ਨੂੰ ਹੋਰ ਭੜਕਾ ਦਿੱਤਾ । ਉਹ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

5. ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੇ 20 ਅਪਰੈਲ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੂ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ਦੇ ਕਤਲਾਂ ਦੀ ਝੂਠੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਖੂਨ ਖੌਲਣ ਲੱਗਾ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

6. ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਨੀਤੀ – 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਬਣਿਆ ਸੀ ।ਉਹ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਸੀ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਭਾਲ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਹ ਮੌਕਾ ਉਸ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਨੇ ਦਿੱਤਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the revolt of Diwan Mool Raj.)
ਜਾਂ
ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸੰਬੰਧੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the revolt of Diwan Mool Raj of Multan.)
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਲਗਭਗ 13\(\frac{1}{2}\) ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਵਜੋਂ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਹ ਰਕਮ ਵਧਾ ਕੇ ਲਗਭਗ 20 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਪਰ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਦਾ ਤੀਜਾ ਹਿੱਸਾ ਉਸ ਕੋਲੋਂ ਲੈ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਗਵਰਨਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ | ਮਾਰਚ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਨਵੇਂ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਫਰੈਡਰਿਕ ਹਰੀ ਨੇ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਐਗਨਿਯੂ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ।

ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਵਿਰੋਧ ਦੇ 19 ਅਪਰੈਲ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀਆਂ ਚਾਬੀਆਂ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਪਰ 20 ਅਪਰੈਲ ਨੂੰ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਦੋਨੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦਾ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਮਲਰਾਜ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਕੀਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਸ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਉਸ ਨੂੰ ਫੈਲਣ ਦਿੱਤਾ ਤਾਂ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹਾਨਾ ਮਿਲ ਸਕੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the revolt of Chattar Singh of Hazara ?)
ਉੱਤਰ-
ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਲੜਕੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਮੰਗੀ ਹੋਈ ਸੀ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਰਿਸ਼ਤੇ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਤਾਕਤ ਵੱਧ ਜਾਣੀ ਸੀ । ਇਹ ਤਾਕਤ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪਣ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਰੋੜਾ ਅਟਕਾ ਸਕਦੀ ਸੀ : ਕੈਪਟਨ ਐਬਟ ਜਿਸ ਨੂੰ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਲਾਹਕਾਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ, ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰਨ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਤਿਆਰ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਭੜਕਾਏ ਗਏ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ 6 ਅਗਸਤ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼ਗਾਹ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਰਨਲ ਕੈਨੋਰਾ ਨੂੰ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ।

ਕਰਨਲ ਕੈਨੋਰਾ ਜੋ ਕੈਪਟਨ ਐਬਟ ਨਾਲ ਮਿਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ, ਨੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਿਸਤੌਲ ਨਾਲ ਗੋਲੀਆਂ ਚਲਾ ਕੇ ਦੋ ਸਿੱਖ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਇੱਕ ਸਿੱਖ ਸਿਪਾਹੀ ਨੇ ਅੱਗੇ ਵੱਧ ਕੇ ਆਪਣੀ ਤਲਵਾਰ ਨਾਲ ਕੈਨੋਰਾ ਦਾ ਕੰਮ ਤਮਾਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਇਸ ਘਟਨਾ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਐਬਟ ਨੂੰ ਪਹੁੰਚੀ ਤਾਂ ਉਹ ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਖ਼ੂਨ ਉਬਲ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗਾਵਤ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the battle of Chillianwala.)
ਉੱਤਰ-
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਜੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਵਧੇਰੇ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਪਹੁੰਚਣ ਦੀ ਉਡੀਕ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਇਹ ਸੂਚਨਾ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲਿਆ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਅਜਿਹਾ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਭਾਰੀ ਖ਼ਤਰਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਹਿਉਗ ਗਫ਼ ਨੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪਹੁੰਚਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਵਿਖੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਬੋਲ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਘਮਸਾਣ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਇੰਨਾ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ਕਿ ਇੰਗਲੈਂਡ ਵਿੱਚ ਵੀ ਹਾਹਾਕਾਰ ਮਚ ਗਈ ।ਇਸ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਹਾਰ ਕਾਰਨ ਸੈਨਾਪਤੀ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਦੇ ਸਨਮਾਨ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਧੱਕਾ ਲੱਗਿਆ। ਉਸ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਚਾਰਲਸ ਨੇਪੀਅਰ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਨਵਾਂ ਸੈਨਾਪਤੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਕੇ ਭਾਰਤ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਹੋਈ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? (What is the importance of the battle of Gujarat in the Second Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਆਖਰੀ ਅਤੇ ਫੈਸਲਾਕੁੰਨ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 40,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਚਤਰ ਸਿੰਘ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ। ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਲਗਭਗ 68,000 ਸੀ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਦੋਹਾਂ ਪੱਖਾਂ ਵੱਲੋਂ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਬੜੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਗੋਲਾ-ਬਾਰੂਦ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਅੰਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ।

ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਗਦੜ ਮਚ ਗਈ । ਚਤਰ ਸਿੰਘ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਰਾਵਲਪਿੰਡੀ ਵੱਲ ਦੌੜ ਗਏ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪਿੱਛਾ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ 10 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਬਾਕੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ 14 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅੱਗੇ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ? (What were the results of the Second Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਦੂਸਰੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । (Study in brief the results of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਜੀ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਲੜਾਈ ਦੇ ਕੋਈ ਛੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਲਿਖੋ । (Explain the any six effects of Second Anglo-Sikh War.) ਉੱਤਰ-
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬੜੇ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

  • ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਅੰਤ – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਨਿਕਲਿਆ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖਾਤਮਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਆਖਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।
  • ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ – ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਮਗਰੋਂ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਵੀ ਨਿਸ਼ਸਤਰ ਕਰ ਕੇ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਧੰਦੇ ਵਿੱਚ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਕੁਝ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਭਾਰਤੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।
  • ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲੇ ਦੀ ਸਜ਼ਾ – ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸਜ਼ਾ ਨੂੰ ਕਾਲੇਪਾਣੀ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਪਰ ਉਸ ਦੀ 11 ਅਗਸਤ, 1851 ਈ. ਨੂੰ ਕਲਕੱਤੇ (ਕੋਲਕਾਤਾ) ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ । ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਉਸ ਦੀ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।
  • ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਅਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ (ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀਆਂ ਜੇਲ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । 1854 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਪੰਜਾਬ ਲਈ ਨਵਾਂ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ – ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਬੋਰਡ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ 1849 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1853 ਈ. ਤਕ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੁਧਾਰਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ 1857 ਈ. ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ।
  • ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਵਾਲਾ ਸਲੂਕ – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਟਿਆਲਾ, ਨਾਭਾ, ਜੀਂਦ, ਮਲੇਰਕੋਟਲਾ, ਫ਼ਰੀਦਕੋਟ ਅਤੇ ਕਪੂਰਥਲਾ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖੀ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕੀ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ? ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ ? (Was it proper for Lord Dalhousie to annex Punjab to the British empire ? Give arguments in support of your answer.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੰਯੋਜਨ ਨਿਆਂਸੰਗਤ ਸੀ ? ਆਪਣੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Was the annexation of Punjab by Lord Dalhousie justified ? Give reasons in your favour.)
ਜਾਂ
“ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਇੱਕ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ ।” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“Annexation of Punjab was a violent breach of trust.” Explain.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੰਯੋਜਨ ਨਿਆਂ ਸੰਗਤ ਸੀ ? ਇਸ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਛੇ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਉ । (Was the annexation of Punjab justified ? Give six reasons for it.)
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਨਿਆਂਸੰਗਤ ਨਹੀਂ ਸੀ ।

1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ਗਿਆ – ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਹੋਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ। ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖੋਹ ਲਏ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਅਤੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਬਗ਼ਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗ਼ਾਵਤ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ ।

2. ਬਗ਼ਾਵਤ ਨੂੰ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਨਾ ਦਬਾਇਆ ਗਿਆ – ਜਦੋਂ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿਚ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅੱਗ ਭੜਕੀ ਤਾਂ ਉਸ ‘ਤੇ ਛੇਤੀ ਹੀ ਕਾਬੂ ਪਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਅੱਠ ਮਹੀਨਿਆਂ ਤਕ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਫੈਲਣ ਦੇਣ ਪਿੱਛੇ ਇਕ ਡੂੰਘੀ ਰਾਜਸੀ ਚਾਲ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵੱਡੀ ਸੈਨਿਕ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹਾਨਾ ਮਿਲ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

3. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਕੇਵਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ, ਜਿਹੜੀਆਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਨਿਰਾ ਝੂਠ ਹੀ ਹੈ ।

4. ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਪੂਰਨ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ – ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਤਾਂ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋਣ ਤਕ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਵਫ਼ਾਦਾਰੀ ਨਾਲ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਰਿਹਾ | ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਦੇ ਰਹੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਬਗ਼ਾਵਤਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਸਹਿਯੋਗ ਵੀ ਦਿੱਤਾ

5. ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪਰ ਇਸ ਕਥਨ ਵਿੱਚ ਜ਼ਰਾ ਵੀ ਸੱਚਾਈ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕੇਵਲ ਮੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਬਹੁਤੀ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਅਤੇ ਲੋਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ।

6. ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ – ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਇੱਕ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ । 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਿਗੜ ਰਹੇ ਹਾਲਾਤਾਂ ਲਈ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੋਸ਼ੀ ਠਹਿਰਾਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੇ ਇਸ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਛੇ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ ਕਿ ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ । (Give any six arguments in favour of Dalhousie’s annexation of the Punjab to the British empire.)
ਜਾਂ
ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ੇ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Give arguments in favour of Dalhousie’s policy of the annexation of Punjab.)
ਉੱਤਰ-
1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ ਹੈ । ਸਿੱਖ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੇ ਇਹ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦੇਣਗੇ । ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਅਸ਼ਾਂਤੀ ਅਤੇ ਵਿਦਰੋਹ ਫੈਲਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ । ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੀ ਬਗ਼ਾਵਤ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਜਾਤੀ ਦੀ ਬਗਾਵਤ ਦੱਸਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਗੜ ਰਹੇ ਹਾਲਾਤ ‘ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ ।

2. ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਚੰਗਾ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਨਾ ਰਹਿਣਾ – ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਇਕ ਲਾਭਦਾਇਕ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਸਿੱਧ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਬਿਟਿਸ਼ ਰਾਜ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵੱਲੋਂ ਕਿਸੇ ਖ਼ਤਰੇ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਪਵੇਗਾ । ਪਰੰਤੂ ਉਸ ਦਾ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਗਲਤ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦੋਸਤੀ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਿਆ ।

3. ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਅਦਾਇਗੀ ਨਾ ਕਰਨਾ – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਕਿ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਦੇਣਾ ਸੀ । ਪਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਇੱਕ ਪਾਈ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ।

4. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨਾ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸੀ – ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤ ਮਗਰੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਆਰਥਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਕੋਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਪਾਂਤ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਦੋ ਸਾਲ ਰਹਿਣ ਪਿੱਛੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਇਹ ਰਾਜ ਕਈ ਪੱਖਾਂ ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪਣ ਦਾ ਪੱਕਾ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

5. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ – ਇਹ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਤਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿਰੁੱਧ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਕਰਦੇ ਰਹਿਣਾ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੂਜੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿਚ ਵੀ ਪੈ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਿਆ ।

6. ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਚੰਗਾ – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਦਲੀਲ ਇਹ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਅਜਿਹਾ ਕਰ ਕੇ ਉਸ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਚੰਗਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ । ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫ਼ੈਲੀ ਬਦਅਮਨੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕੀਤਾ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੁਧਾਰਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸੁੱਖ ਦਾ ਸਾਹ ਲਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Maharaja Dalip Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਉਹ 15 ਸਤੰਬਰ, 1843 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਨਵਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਸ ਦੀ ਉਮਰ ਕੇਵਲ 5 ਸਾਲ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਦਾ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਜ ਦਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਹੀਰਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦਾ ਨਵਾਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਭਾਵੇਂ ਉਹ ਬੜਾ ਸਿਆਣਾ ਸੀ ਪਰ ਉਸ ਨੇ ਪੰਡਤ ਜੱਲਾ ਨੂੰ ਮੁਸ਼ੀਰ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਕੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਾਰਾਜ਼ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।

1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੀਰਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕਤਲ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਜਵਾਹਰ ਸਿੰਘ ਰਾਜ ਦਾ ਨਵਾਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਬਣਿਆ ਪਰ ਉਹ ਬੜਾ ਹਠੀ ਅਤੇ ਅਯੋਗ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਸਤੰਬਰ, 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ਕੰਵਰ ਪਿਸ਼ੌਰਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕਤਲ ਕਾਰਨ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਪਹਿਲੇ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਦੇਖਣਾ ਪਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ! 22 ਅਕਤੂਬਰ, 1893 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪੈਰਿਸ ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਜਾਂ ਜਿੰਦ ਕੌਰ ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Maharani Jindan or Jind Kaur.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Maharani Jindan ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ, ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਰਾਣੀ ਸੀ । ਜਦੋਂ 15 ਸਤੰਬਰ, 1843 ਈ. ਨੂੰ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਨਵਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਦਾ ਸਰਪਸਤ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਪੰਜਾਬ ਰਾਜ ਨੂੰ ਆਜ਼ਾਦ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਰੜਕਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ ਹੋਈ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਖੋਹ ਲਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਡੇਢ ਲੱਖ ਰੁਪਿਆ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਨਿਯਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਅਗਸਤ, 1847 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਰਾਣੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਖੂਪੁਰਾ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਨਜ਼ਰਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਮਈ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲਾ ਦੇ ਕੇ ਬਨਾਰਸ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਅਪਰੈਲ, 1849 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਨੇਪਾਲ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋ ਗਈ । 1861 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਇੰਗਲੈਂਡ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਆਇਆ ਤਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਲਈ ਨੇਪਾਲ ਤੋਂ ਆਈ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇੰਗਲੈਂਡ ਲੈ ਗਿਆ ।ਇੱਥੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠੇ ਨਾ ਰਹਿਣ ਦਿੱਤਾ | ਅੰਤ 1 ਅਗਸਤ, 1863 ਈ. ਨੂੰ ਉਹ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਤੋਂ ਚਲ ਵਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Bhai Maharaj Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੌਰੰਗਾਬਾਦ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਤ ਭਾਈ ਬੀਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚੇਲੇ ਸਨ । 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਭਾਈ ਬੀਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪਿੰਡ-ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਜਾ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੰਪੱਤੀ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰਾਉਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ 10,000 ਰੁਪਏ ਇਨਾਮ ਦੇਣ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨਿਡਰ ਹੋ ਕੇ ਆਪਣਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਦੇ ਰਹੇ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ, ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕੀਤਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ।

ਉਹ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੁਆਰਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅੱਗੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟਣ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਅਜਿਹਾ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਉਹ ਜੰਮੂ ਚਲੇ ਗਏ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਕਾਬਲ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ 3 ਜਨਵਰੀ, 1850 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦੀ ਇੱਕ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ । ਇਸ ਯੋਜਨਾ ਬਾਰੇ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਪਤਾ ਚਲ ਗਿਆਂ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਨੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 28 ਦਸੰਬਰ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਕਲਕੱਤਾ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਕਰਨ (Causes of the Second Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਉਨ੍ਹਾਂ ਪਰਿਸਥਿਤੀਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕਰਕੇ ਦੂਜਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਿੱਥੋਂ ਤਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸਨ ? (Discuss the circumstances leading to the Second Anglo-Sikh War. How far were the British responsible for it ?)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main causes of the Second Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਨਾਂ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (Explain important causes of the Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ । (Write the reasons of Second Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਹਾਰ ਅਤੇ ਥੋਪੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁੱਸਾ ਹੋਰ ਭੜਕ ਉੱਠਿਆ । ਇਸ ਦਾ ਨਤੀਜਾ ਦੁਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਇੱਛਾ (Sikh desir to avenge their defeat in the First Anglo-Sikh War) – ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋ ਗਈ ਸੀ, ਪਰ ਇਸ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਹੋਏ ਸਨ । ਇਸ ਹਾਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾਵਾਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ‘ਤੇ ਪੂਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਹ ਤੀਵਰ ਇੱਛਾ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀ ।

2. ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬੀ ਅਸੰਤੁਸ਼ਟ (Punjabis were dissatisfied with the Treaties of Lahore and Bhairowal) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੰਧੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ਵਰਗੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਉਪਜਾਉ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ | ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਬਣਾਏ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ ਹੋਰ ਯੁੱਧ ਲੜਨਾ ਪੈਣਾ ਸੀ ।

3. ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਰੋਸ (Resentment among the Sikh Soldiers) – ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਪੈਦਲ ਤੇ 12,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਰੋਸ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ।

4. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਸਖ਼ਤ ਸਲੂਕ (Harsh Treatment with. Maharani Jindan) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਜੋ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਵਹਾਰ ਕੀਤਾ ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਫੈਲੇ ਰੋਸ ਨੂੰ ਹੋਰ ਭੜਕਾ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਨਾਬਾਲਗ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਮੰਨਿਆ ਸੀ । ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਖੋਹ ਲਈਆਂ । 1847 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਖੂਪੁਰਾ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਨਜ਼ਰਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲਾ ਦੇ ਕੇ ਬਨਾਰਸ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਗਈ ਬਦਸਲੂਕੀ ਕਾਰਨ ਸਾਰੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਗੁੱਸੇ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੌੜ ਗਈ ।

5. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Diwan Moolraj) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ | ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਗ਼ਲਤ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦਸੰਬਰ 1847 ਈ. ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਦਾਰ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਮੁਲਰਾਜ ਤੋਂ ਚਾਰਜ ਲੈਣ ਲਈ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਾਲ ਭੇਜੇ ਗਏ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੁ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ‘ਤੇ ਕੁਝ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ 20 ਅਪਰੈਲ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਤਲ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਖੂਨ ਖੌਲਣ ਲੱਗਾ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਅਜਿਹੇ ਹੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ 1
ਵਿੱਚ ਸੀ । ਉਹ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਵਿਦਰੋਹ ਜ਼ਿਆਦਾ ਭੜਕ ਜਾਏ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਮੌਕਾ ਮਿਲ ਜਾਏ । ਡਾਕਟਰ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਉਹ ਚੰਗਿਆੜੀ ਜਿਸ ਨੇ ਭਾਂਬੜ ਬਾਲਿਆ ਅਤੇ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੁਤੰਤਰ ਰਾਜ ਸੜ ਕੇ ਸੁਆਹ ਹੋ ਗਿਆ, ਮੁਲਤਾਨ ਤੋਂ ਉੱਠੀ ਸੀ ।’’ 1

6. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Chattar Singh) – ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਇੱਕ ਸਿਪਾਹੀ ਨੇ ਇੱਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕੈਨੋਰਾ ਦਾ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ’ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗਾਵਤ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਚਾਰ-ਚੁਫ਼ੇਰੇ ਬਗਾਵਤ ਦੀ ਅੱਗ ਫੈਲ ਗਈ ।

7. ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Sher Singh) – ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਵਿਰੁੱਧ ਕੀਤੀ ਗਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਬਦਸਲੂਕੀ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਵੀ 14 ਸਤੰਬਰ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਅਪੀਲ ‘ਤੇ ਕਈ ਸਿੱਖ ਉਸ ਦੇ ਝੰਡੇ ਅਧੀਨ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ ।

8. ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਨੀਤੀ (Policy of Lord Dalhousie) – ਜਨਵਰੀ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਲੈਪਸ ਦੀ ਨੀਤੀ ਰਾਹੀਂ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ | ਕੇਵਲ ਪੰਜਾਬ ਹੀ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਰਾਜ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਹਾਲੇ ਤਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਕਿਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਹ ਮੌਕਾ ਉਸ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲਿਆ ।

ਜਦੋਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅੱਗ ਭੜਕਦੀ ਨਜ਼ਰ ਆਈ ਤਾਂ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨ-ਚੀਫ਼ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ 16 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ ਲੈ ਕੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਦਰਿਆ ਚਨਾਬ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ (Events of the War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਏ ਦੂਜੇ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss in brief the events of the Second Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਚਲਾਕ ਨੀਤੀਆਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਹੋਰ ਯੁੱਧ ਦੇ ਨੇੜੇ ਲਿਆ ਖੜਾ ਕੀਤਾ | ਮਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਭੇਜਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਦੂਜਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਘਟਨਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-

1. ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ramnagar) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਰਾਮਨਗਰ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ | ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਉਸ ਅਧੀਨ 20,000 ਸੈਨਿਕ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਅਧੀਨ 15,000 ਸੈਨਿਕ ਸਨ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਾ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗ ਗਿਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨਾ ਆਸਾਨ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

2. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Chillianwala) – ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਹ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਇਹ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਮੇਤ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਪਹੁੰਚ ਰਿਹਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ 13 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬਹੁਤ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੇ 695 ਸੈਨਿਕ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ 132 ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ 4 ਤੋਪਾਂ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਆ ਗਈਆਂ । ਸੀਤਾ ਰਾਮ ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਜਦੋਂ ਦਾ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕੀਤਾ ਸੀ ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਇਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਭੈੜੀ ਹਾਰ ਸੀ ।’’ 1

ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹੋਏ ਭਾਰੀ ਵਿਨਾਸ਼ ਕਾਰਨ ਇੰਗਲੈਂਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਹਾਹਾਕਾਰ ਮਚ ਗਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਬਦਲ ਕੇ ਸਰ ਚਾਰਲਸ ਨੇਪੀਅਰ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Multan) – ਮੁਲਤਾਨ ਵਿਖੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਉਸ ਨਾਲ ਆ ਰਲਿਆ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਚਾਲ ਚੱਲੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਅਲੀ ਚਿੱਠੀਆਂ ਲਿਖ ਕੇ ਮਲਰਾਜ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਵਿਚਕਾਰ ਗ਼ਲਤ-ਫਹਿਮੀ ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ । ਦਸੰਬਰ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਰਨਲ ਵਿਸ਼ ਨੇ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾ ਲਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸੁੱਟਿਆ ਇੱਕ ਗੋਲਾ ਅੰਦਰ ਪਏ ਬਾਰੂਦ ’ਤੇ ਆਣ ਡਿੱਗਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਬਹੁਤ ਸਾਰਾ ਬਾਰੂਦ ਨਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਮਲਰਾਜ ਦੇ 500 ਸੈਨਿਕ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਇਸ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਕਾਰਨ ਮੁਲਰਾਜ ਲਈ ਮੁਕਾਬਲੇ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਣਾ ਬੜਾ ਔਖਾ ਹੋ ਗਿਆ ! ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅੱਗੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਇਸ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜੋ ਹੱਤਕ ਹੋਈ ਸੀ, ਉਸ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਪੂਰਤੀ ਹੋ ਗਈ ।

4. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Gujarat) – ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਿੰਘ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਆ ਗਏ । ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ, 3,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਭੇਜੀ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਕੁਲ ਫ਼ੌਜ 40,000 ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਹੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਕੋਲ 68,000 ਸੈਨਿਕ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਦੋਹਾਂ ਪਾਸਿਆਂ ਤੋਂ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਇਹ ਲੜਾਈ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ‘ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈਂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ।

ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਬਾਰੂਦ ਛੇਤੀ ਮੁੱਕ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦਾ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ 3,000 ਤੋਂ 5,000 ਤਕ ਸੈਨਿਕ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਭਗਦੜ ਮੱਚ ਗਈ । 10 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਵਲਪਿੰਡੀ ਦੇ ਨੇੜੇ ਜਨਰਲ ਗਿਲਬਰਟ ਅੱਗੇ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ ।
ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਪਤਵੰਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਗੌਰਵਮਈ ਸਾਮਰਾਜ `ਤੇ ਪਰਦਾ ਪੈ ਗਿਆ ।’’ 2

ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ (Consequences of the War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss the main results of the Second Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬੜੇ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਅੰਤ (End of the Empire of Maharaja Ranjit Singh) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਨਿਕਲਿਆ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖ਼ਾਤਮਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਆਖਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਛੱਡ ਕੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹਿੱਸੇ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜਾਇਦਾਦ ’ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋ ਗਿਆ | ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੋਹਿਨੂਰ ਹੀਰਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਰਾਣੀ ਵਿਕਟੋਰੀਆ ਨੂੰ ਭੇਂਟ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਦੇ ਬਾਅਦ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇੰਗਲੈਂਡ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । 1893 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੈਰਿਸ ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

2. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ (Sikh Army was Disbanded) – ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਮਗਰੋਂ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਵੀ ਨਿਸ਼ਸਤਰ ਕਰ ਕੇ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਧੰਦੇ ਵਿੱਚ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਕੁਝ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਭਾਰਤੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

3. ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲੇ ਦੀ ਸਜ਼ਾ (Banishment of Diwan Moolraj and Bhai Maharaj Singh) – ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸਜ਼ਾ ਨੂੰ ਕਾਲੇਪਾਣੀ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਪਰ ਉਸ ਦੀ 11 ਅਗਸਤ, 1851 ਨੂੰ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ | ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਇਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਉਸ ਦੀ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

4. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ (Punishment to Chattar Singh and Sher Singh) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਇਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀਆਂ ਜੇਲ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । 1854 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਪੰਜਾਬ ਲਈ ਨਵਾਂ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ (New Administration for the Punjab) – ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਬੋਰਡ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ 1849 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1853 ਈ. ਤਕ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਢਾਂਚੇ ਵਿੱਚ ਕਈ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਨਿਸ਼ਸਤਰੀਕਰਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸਸਤਾ ਅਤੇ ਛੇਤੀ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸੜਕਾਂ ਅਤੇ ਨਹਿਰਾਂ ਦਾ ਜਾਲ ਵਿਛਾਇਆ ਗਿਆ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਸਮਾਪਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਯਤਨ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪੱਛਮੀ ਢੰਗ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੁਧਾਰਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ 1857 ਈ. ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ ।

6. ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਵਾਲਾ ਸਲੂਕ (Friendly attitude towards Princely States of the Punjab) – ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਟਿਆਲਾ, ਨਾਭਾ, ਜੀਂਦ, ਮਲੇਰਕੋਟਲਾ, ਫ਼ਰੀਦਕੋਟ ਅਤੇ ਕਪੂਰਥਲਾ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖੀ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਏ ਦੁਸਰੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Discuss the causes and results of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ-ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਅਤੇ ਪਰਿਣਾਮਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What were the causes and results of the 2nd Anglo-Sikh War ? Explain.)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਹਾਰ ਅਤੇ ਥੋਪੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁੱਸਾ ਹੋਰ ਭੜਕ ਉੱਠਿਆ । ਇਸ ਦਾ ਨਤੀਜਾ ਦੁਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਇੱਛਾ (Sikh desir to avenge their defeat in the First Anglo-Sikh War) – ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋ ਗਈ ਸੀ, ਪਰ ਇਸ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਹੋਏ ਸਨ । ਇਸ ਹਾਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾਵਾਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ‘ਤੇ ਪੂਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਹ ਤੀਵਰ ਇੱਛਾ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀ ।

2. ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬੀ ਅਸੰਤੁਸ਼ਟ (Punjabis were dissatisfied with the Treaties of Lahore and Bhairowal) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਧੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੰਧੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ਵਰਗੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਉਪਜਾਉ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ | ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਬਣਾਏ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ ਹੋਰ ਯੁੱਧ ਲੜਨਾ ਪੈਣਾ ਸੀ ।

3. ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਰੋਸ (Resentment among the Sikh Soldiers) – ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਪੈਦਲ ਤੇ 12,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਰੋਸ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ।

4. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਸਖ਼ਤ ਸਲੂਕ (Harsh Treatment with. Maharani Jindan) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਜੋ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਵਿਵਹਾਰ ਕੀਤਾ ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਫੈਲੇ ਰੋਸ ਨੂੰ ਹੋਰ ਭੜਕਾ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਨਾਬਾਲਗ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਮੰਨਿਆ ਸੀ । ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਣੀ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਖੋਹ ਲਈਆਂ । 1847 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਖੂਪੁਰਾ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਨਜ਼ਰਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲਾ ਦੇ ਕੇ ਬਨਾਰਸ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਗਈ ਬਦਸਲੂਕੀ ਕਾਰਨ ਸਾਰੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਗੁੱਸੇ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੌੜ ਗਈ ।

5. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Diwan Moolraj) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ | ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਗ਼ਲਤ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦਸੰਬਰ 1847 ਈ. ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਦਾਰ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਮੁਲਰਾਜ ਤੋਂ ਚਾਰਜ ਲੈਣ ਲਈ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਾਲ ਭੇਜੇ ਗਏ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੁ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ‘ਤੇ ਕੁਝ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ 20 ਅਪਰੈਲ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਤਲ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਖੂਨ ਖੌਲਣ ਲੱਗਾ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਅਜਿਹੇ ਹੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ 1
ਵਿੱਚ ਸੀ । ਉਹ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਵਿਦਰੋਹ ਜ਼ਿਆਦਾ ਭੜਕ ਜਾਏ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਮੌਕਾ ਮਿਲ ਜਾਏ । ਡਾਕਟਰ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਉਹ ਚੰਗਿਆੜੀ ਜਿਸ ਨੇ ਭਾਂਬੜ ਬਾਲਿਆ ਅਤੇ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੁਤੰਤਰ ਰਾਜ ਸੜ ਕੇ ਸੁਆਹ ਹੋ ਗਿਆ, ਮੁਲਤਾਨ ਤੋਂ ਉੱਠੀ ਸੀ ।’’ 1

6. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Chattar Singh) – ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਇੱਕ ਸਿਪਾਹੀ ਨੇ ਇੱਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕੈਨੋਰਾ ਦਾ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ’ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗਾਵਤ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਚਾਰ-ਚੁਫ਼ੇਰੇ ਬਗਾਵਤ ਦੀ ਅੱਗ ਫੈਲ ਗਈ ।

7. ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ (Revolt of Sher Singh) – ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਵਿਰੁੱਧ ਕੀਤੀ ਗਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਬਦਸਲੂਕੀ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਵੀ 14 ਸਤੰਬਰ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਅਪੀਲ ‘ਤੇ ਕਈ ਸਿੱਖ ਉਸ ਦੇ ਝੰਡੇ ਅਧੀਨ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ ।

8. ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਨੀਤੀ (Policy of Lord Dalhousie) – ਜਨਵਰੀ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਲੈਪਸ ਦੀ ਨੀਤੀ ਰਾਹੀਂ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ | ਕੇਵਲ ਪੰਜਾਬ ਹੀ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਰਾਜ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਹਾਲੇ ਤਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਕਿਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਹ ਮੌਕਾ ਉਸ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲਿਆ ।

ਜਦੋਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅੱਗ ਭੜਕਦੀ ਨਜ਼ਰ ਆਈ ਤਾਂ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨ-ਚੀਫ਼ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ 16 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ ਲੈ ਕੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਦਰਿਆ ਚਨਾਬ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ ।

ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬੜੇ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਅੰਤ (End of the Empire of Maharaja Ranjit Singh) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਨਿਕਲਿਆ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖ਼ਾਤਮਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਆਖਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਛੱਡ ਕੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹਿੱਸੇ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜਾਇਦਾਦ ’ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋ ਗਿਆ | ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੋਹਿਨੂਰ ਹੀਰਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਰਾਣੀ ਵਿਕਟੋਰੀਆ ਨੂੰ ਭੇਂਟ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਦੇ ਬਾਅਦ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇੰਗਲੈਂਡ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । 1893 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੈਰਿਸ ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

2. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ (Sikh Army was Disbanded) – ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਮਗਰੋਂ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਵੀ ਨਿਸ਼ਸਤਰ ਕਰ ਕੇ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਧੰਦੇ ਵਿੱਚ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਕੁਝ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਭਾਰਤੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

3. ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲੇ ਦੀ ਸਜ਼ਾ (Banishment of Diwan Moolraj and Bhai Maharaj Singh) – ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸਜ਼ਾ ਨੂੰ ਕਾਲੇਪਾਣੀ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਪਰ ਉਸ ਦੀ 11 ਅਗਸਤ, 1851 ਨੂੰ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ | ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਇਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਉਸ ਦੀ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

4. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ (Punishment to Chattar Singh and Sher Singh) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਇਲਾਹਾਬਾਦ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤੇ ਕੋਲਕਾਤਾ) ਦੀਆਂ ਜੇਲ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । 1854 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਪੰਜਾਬ ਲਈ ਨਵਾਂ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ (New Administration for the Punjab) – ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਬੋਰਡ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ 1849 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1853 ਈ. ਤਕ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਢਾਂਚੇ ਵਿੱਚ ਕਈ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਨਿਸ਼ਸਤਰੀਕਰਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸਸਤਾ ਅਤੇ ਛੇਤੀ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸੜਕਾਂ ਅਤੇ ਨਹਿਰਾਂ ਦਾ ਜਾਲ ਵਿਛਾਇਆ ਗਿਆ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਸਮਾਪਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਯਤਨ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪੱਛਮੀ ਢੰਗ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੁਧਾਰਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ 1857 ਈ. ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ ।

6. ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਵਾਲਾ ਸਲੂਕ (Friendly attitude towards Princely States of the Punjab) – ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਟਿਆਲਾ, ਨਾਭਾ, ਜੀਂਦ, ਮਲੇਰਕੋਟਲਾ, ਫ਼ਰੀਦਕੋਟ ਅਤੇ ਕਪੂਰਥਲਾ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖੀ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ (Annexation of the Punjab)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
“ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀਂ” । ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (“Annexation of Punjab was a violent breach of trust.” Discuss.)
ਜਾਂ
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਿਲਯ ਦਾ ਆਲੋਚਨਾਤਮਕ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Examine critically Lord Dalhousie’s annexation of Punjab.)
ਜਾਂ
‘‘ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਰਾਹੀਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਸਿਧਾਂਤਹੀਨ ਅਤੇ ਅਣਉੱਚਿਤ ਸੀ ।” ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਇਸ ਕਥਨ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹੋ ? ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (“The annexation of Punjab by Lord Dalhousie to the British Empire was unprincipled and unjustified.” Do you agree to this view ? Give arguments in your favour.)
ਉੱਤਰ-
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਬਣ ਕੇ ਆਇਆ ਸੀ । ਉਹ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸਾਰੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਵੀ ਉਸ ਦੀ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਨੀਤੀ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ । 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਲਾਹੌਰ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਹੌਰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਤੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਝੰਡੇ ਨੂੰ ਉਤਾਰਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਝੰਡੇ ਨੂੰ ਲਹਿਰਾਇਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਹੋ ਗਿਆ ।

I. ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਮਿਲਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ (Arguments in favour of Dalhousie’s Policy of Annexation)

ਡਬਲਿਊ. ਡਬਲਿਉ. ਹੰਟਰ, ਮਾਰਸ਼ਮੈਨ ਅਤੇ ਐੱਮ. ਐੱਸ. ਲਤੀਫ ਆਦਿ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਨੇ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ (Sikhs had broken their Promises) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ ਹੈ । ਸਿੱਖ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੇ ਇਹ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦੇਣਗੇ | ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਅਸ਼ਾਂਤੀ ਅਤੇ ਵਿਦਰੋਹ ਫੈਲਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ । ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦੀ ਬਗ਼ਾਵਤ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਜਾਤੀ ਦੀ ਬਗਾਵਤ ਦੱਸਿਆ । ਉਸ ਅਨੁਸਾਰ ਇਹ ਬਗਾਵਤ ਦੁਬਾਰਾ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨ ਲਈ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਕੇ ਮੁਲਰਾਜ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਗੜ ਰਹੇ ਹਾਲਾਤ ‘ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ,
“ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਪੱਕਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੀ ਕਾਰਵਾਈ ਸਮੇਂ ਅਨੁਸਾਰ, ਨਿਆਂਪੂਰਨ ਅਤੇ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ ।’’ 1

2. ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਚੰਗਾ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਨਾ ਰਹਿਣਾ (Punjab remained no more a useful Buffer State) – ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਇੱਕ ਲਾਭਦਾਇਕ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਸਿੱਧ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰਾਜ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵੱਲੋਂ ਕਿਸੇ ਖ਼ਤਰੇ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਪਵੇਗਾ | ਪਰੰਤੂ ਉਸ ਦਾ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਗ਼ਲਤ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦੋਸਤੀ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਿਆ ।

3. ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਅਦਾਇਗੀ ਨਾ ਕਰਨਾ (Non-payment of the Loans) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਕਿ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਦੇਣਾ ਸੀ । ਪਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਇੱਕ ਪਾਈ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ।

4. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨਾ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸੀ (It was advantageous to annex Punjab) – ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤ ਮਗਰੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਆਰਥਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਕੋਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਪ੍ਰਾਂਤ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਦੋ ਸਾਲ ਰਹਿਣ ਪਿੱਛੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਇਹ ਰਾਜ ਕਈ ਪੱਖਾਂ ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪਣ ਦਾ ਪੱਕਾ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

5. ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ (Advantageous for the people of Punjab) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਵਰਦਾਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਅੱਡਾ ਬਣ ਚੁੱਕਿਆ ਸੀ । ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾ ਕੇ ਚੋਰਾਂ, ਡਾਕੂਆਂ ਅਤੇ ਠੱਗਾਂ ਨੇ ਆਪਣਾ ਧੰਦਾ ਜ਼ੋਰਾਂ ‘ਤੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਕੇ ਇੱਥੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਮੁੜ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਪੁਲਿਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਤੇ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਕੁਸ਼ਲ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਤੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸੜਕਾਂ ਅਤੇ ਨਹਿਰਾਂ ਦਾ ਜਾਲ ਵਿਛਾਇਆ ਗਿਆ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪੱਛਮੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

6. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ (Annexation of the Punjab was Inevitable)-ਇਹ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਤਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿਰੁੱਧ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਕਰਦੇ ਰਹਿਣਾ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੂਜੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪੈ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਿਆ ।

II. ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਮਿਲਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਦਲੀਲਾਂ (Arguments against Dalhousie’s Policy of Annexation)

ਈਵਾਨਜ਼ ਬੈਂਲ, ਜਗਮੋਹਨ ਮਹਾਜਨ, ਗੰਡਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਖੁਸ਼ਵੰਤ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦੁਆਰਾ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਏ ਜਾਣ ਵਿਰੁੱਧ ਅੱਗੇ ਲਿਖੀਆਂ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ-

1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ਗਿਆ (Sikhs were provoked to Revolt) – ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਹੋਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ । ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਖੋਹ ਲਏ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਦੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ‘ਤੇ ਮਾੜਾ ਅਸਰ ਪਿਆ। ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਵਧੇਰੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਅਤੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ ।

2. ਬਗਾਵਤ ਨੂੰ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਨਾ ਦਬਾਇਆ ਗਿਆ (Revolt was not suppressed in Time) – ਜਦੋਂ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਅੱਗ ਭੜਕੀ ਤਾਂ ਉਸ ’ਤੇ ਛੇਤੀ ਹੀ ਕਾਬੂ ਪਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ | ਅੱਠ ਮਹੀਨਿਆਂ ਤਕ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਫੈਲਣ ਦੇਣ ਪਿੱਛੇ ਇੱਕ ਡੂੰਘੀ ਰਾਜਸੀ ਚਾਲ ਸੀ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਚਤਰ ਸਿੰਘ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵੱਡੀ ਸੈਨਿਕ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹਾਨਾ ਮਿਲ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

3. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ (British had not fulfilled the terms of the Treaty) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਕੇਵਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ, ਜਿਹੜੀਆਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਨ ।ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਹ ਸ਼ਰਤ ਮੰਨੀ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚੋਂ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਲੈਣਗੇ । ਜਦੋਂ ਇਹ ਸਮਾਂ ਆਇਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਇਸ ਸਮੇਂ ਨੂੰ ਵਧਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਨਿਰਾ ਝੂਠ ਹੀ ਹੈ ।

4. ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਪੂਰਨ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੱਤਾ (Lahore Darbar gave full cooperation in fulfilling the terms of the Treaty) – ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਤਾਂ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋਣ ਤਕ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਵਫ਼ਾਦਾਰੀ ਨਾਲ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਰਿਹਾ | ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਦੇ ਰਹੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਬਗਾਵਤਾਂ ਦੀ ਨਿੰਦਿਆ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬਗਾਵਤਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਸਹਿਯੋਗ ਵੀ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਕਰਜ਼ੇ ਬਾਰੇ ਅਸਲੀਅਤ (Facts about Loan) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਲਗਾਇਆ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਕਿ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦੀ ਇੱਕ ਪਾਈ ਵੀ ਵਾਪਸ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਤੱਥਾਂ ਦੇ ਬਿਲਕੁਲ ਉਲਟ ਸੀ। ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੀ ਸੀ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ 13,56,837 ਰੁਪਏ ਦੇ ਮੁੱਲ ਦਾ ਸੋਨਾ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਜੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਆਪਣਾ ਸਾਰਾ ਕਰਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਮੋੜਿਆ ਤਾਂ ਇਸ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਉੱਤੇ ਆਉਂਦੀ ਸੀ ।

6. ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ (The whole Sikh Army and the People did not Revolt) – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪਰ ਇਸ ਕਥਨ ਵਿੱਚ ਜ਼ਰਾ ਵੀ ਸੱਚਾਈ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕੇਵਲ ਮੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਹੋਇਆ ਸੀ | ਬਹੁਤੀ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਅਤੇ ਲੋਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਹੇ ।

7. ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ (Annexation of the Punjab was a Breach of Trust) – ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਾਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਲੈ ਲਿਆ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅਮਨ-ਅਮਾਨ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵੀ ਰੱਖ ਲਈ ਸੀ । ਅਜਿਹੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਬਗ਼ਾਵਤ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਦੀ ਸੀ । ਜੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬਗਾਵਤਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਨਾਕਾਮ ਰਿਹਾ ਤਾਂ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਹੀ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਕਸੂਰਾਂ ਲਈ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਦੇਣਾ ਇੱਕ ਬੇਇਨਸਾਫ਼ੀ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਸੀ । ਇਹ ਇੱਕ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਹੋਰ ਕੀ ਸੀ ।
ਉੱਪਰ ਲਿਖਿਤ ਵੇਰਵੇ ਤੋਂ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਨੈਤਿਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਨਾਜਾਇਜ਼ ਸੀ । ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਮੇਜਰ ਈਵਾਨਜ਼ ਬੈੱਲ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,
“ਇਹ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਜਿੱਤ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਸੀ ।” 1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain in brief the causes of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe major causes of the Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸਨ ? (What were the three main causes for Second Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਿੱਖ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  2. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨਾਲ ਜੋ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ, ਉਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।
  3. ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।
  4. ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਛੇਤੀ ਤੋਂ ਛੇਤੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
  5. ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੇ ਬਲਦੀ ‘ਤੇ ਤੇਲ ਪਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the revolt of Diwan Mool Raj.)
ਜਾਂ
ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਸੰਬੰਧੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the revolt of Diwan Mool Raj of Multan.)
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੂੰ 1844 ਈ. ਨੂੰ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਤੋਂ ਵਸੂਲ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਸਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਬਹੁਤ ਵਧਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਨਵੇਂ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਐਗਨਿਯੁ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਤਲ ਦਾ ਝੂਠਾ ਇਲਜ਼ਾਮ ਮੂਲਰਾਜ ’ਤੇ ਪਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the revolt of Chattar Singh of Hazara ?)
ਉੱਤਰ-
ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ । ਕੈਪਟਨ ਐਬਟ ਦੁਆਰਾ ਭੜਕਾਏ ਗਏ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ 6 ਅਗਸਤ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼ਗਾਹ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਰਨਲ ਕੈਨੋਰਾ ਨੂੰ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ! ਕਰਨਲ ਕੈਨੋਰਾ ਨੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਕੈਪਟਨ ਐਬਟ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਖੂਨ ਉਬਲ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ। (Write a note on the battle of Chillianwala.)
ਜਾਂ
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the battle of Chillianwala ?)
ਉੱਤਰ-
ਚਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਜੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ, ਨੂੰ ਇਹ ਸੂਚਨਾ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਨੇ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪਹੁੰਚਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਵਿਖੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਬੋਲ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਹੋਈ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? (What was the importance of the battle of Gujarat in the Second Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਆਖਰੀ ਅਤੇ ਫੈਸਲਾਕੁੰਨ ਲੜਾਈ ਸੀ ।ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 40,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਚਤਰ ਸਿੰਘ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਲਗਪਗ 68,000 ਸੀ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ? (What were the results of Second Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain any three effects of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਨਤੀਜੇ ਦੱਸੋ । (Explain any three results of Second Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? (What were the results of Second Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਨਿਕਲਿਆ ਕਿ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।
  2. ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਅੰਤਿਮ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 50,000 ਪੌਂਡ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਦੇ ਕੇ ਗੱਦੀਓਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।
  3. ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।
  4. ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲੇ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  5. ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਬੋਰਡ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕੀ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ? ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Was it proper of Lord Dalhousie to annex Punjab to the British Empire ? Give arguments in support of your answer.)
ਜਾਂ
“ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਇੱਕ ਘੋਰ ਵਿਸ਼ਵਾਘਾਤ ਸੀ ।” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“Annexation of Punjab was a violent breach of trust.” Explain.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੰਯੋਜਨ ਨਿਆਂ ਸੰਗਤ ਸੀ ? ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Was the annexation of Punjab justified ? Give reasons.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੰਯੋਜਨ ਨਿਆਂ ਸੰਗਤ ਸੀ ? ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Was the annexation of Punjab justified ? Give reasons.)
ਉੱਤਰ-
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੀ ਉੱਚਿਤ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਖੋਹ ਲਏ । ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਰੋਸ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਵਿਦਰੋਹ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ਤਾਂ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਬਹਾਨਾ ਬਣਾ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਕਬਜ਼ੇ ਵਿੱਚ ਕਰ ਸਕਣ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੇ ਇਸ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ ਕਿ ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ । (Give arguments in favour of Dalhousie’s annexation of the Punjab to the British empire.)
ਜਾਂ
ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ੇ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Give arguments in favour of Dalhousie’s policy of the annexation of Punjab.)
ਜਾਂ
ਕੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਉੱਚਿਤ ਸੀ ? ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Was the annexation of Punjab justified ? Give reasons.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ ਸੀ ।
  2. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
  3. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਇਸ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ ।
  4. ਪੰਜਾਬ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਲਈ ਇੱਕ ਖ਼ਤਰਾ ਬਣ ਸਕਦਾ ਸੀ ।
  5. ਪੰਜਾਬ ’ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Maharaja Dalip Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਉਹ 15 ਸਤੰਬਰ, ‘ 1843 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਨਵਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਪਰ ਉਹ ਗੱਦਾਰ ਨਿਕਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਪਹਿਲੇ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਦੇਖਣਾ ਪਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ । 22 ਅਕਤੂਬਰ, 1893 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪੈਰਿਸ ਵਿਖੇ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਜਾਂ ਜਿੰਦ ਕੌਰ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Maharani Jindan or Jind Kaur.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Maharani Jindan ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ, ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਰਾਣੀ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ 15 ਸਤੰਬਰ, 1843 ਈ. ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਵੇਂ ਨਿਯੁਕਤ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਖੋਹ ਲਿਆ ਸੀ । ਅਪਰੈਲ, 1849 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਨੇਪਾਲ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋ ਗਈ । ਅੰਤ 1 ਅਗਸਤ, 1863 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਇੰਗਲੈਂਡ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਅਲਵਿਦਾ ਕਹਿ ਗਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Bhai Maharaj Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਨੌਰੰਗਾਬਾਦ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਤ ਭਾਈ ਬੀਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚੇਲੇ ਸਨ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਜ, ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਿੰਘਾਪੁਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ 5 ਜੁਲਾਈ, 1856 ਈ. ਨੂੰ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
1848-49 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ (ਜਿੰਦ ਕੌਰ) ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਗਵਰਨਰ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੁਆਰਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਸੂਲ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸਾਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਦੀ ਰਕਮ ਕਾਫ਼ੀ ਵਧਾ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸਾਵਨ ਮਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਪਿਤਾ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਜ਼ਾਰਾ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਸਰਦਾਰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗਾਵਤ ਦਾ ਝੰਡਾ ਕਿਉਂ ਬੁਲੰਦ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਉਸਦੇ ਪਿਤਾ ਨਾਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ਦੁਰਵਿਹਾਰ ਦੇ ਕਾਰਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਹ ਨੌਰੰਗਾਬਾਦ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਤ ਸਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਿਸ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ?
ਜਾਂ
ਕਿਸ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੇ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਆਖਰੀ ਲੜਾਈ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਲੜੀ ਗਈ ਉਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ਜਿਹੜੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਕਦੋਂ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ?
ਜਾਂ
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਕਦੋਂ ਮਿਲਾਇਆ ਗਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਦਲੀਲ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਵਿਰੁੱਧ ਦਿੱਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਦਲੀਲ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਬਗਾਵਤ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਹ ਨੌਰੰਗਾਬਾਦ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਤ ਭਾਈ ਬੀਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਚੇਲਾ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1856 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੰਘਾਪੁਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸਿੱਖ ਸ਼ਾਸਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਅੰਤਿਮ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੈਰਿਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1893 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1863 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਪਤਨ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਨਿਕਲੇ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ :

1. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ …………………… ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(1848-49)

2. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਜਨਰਲ …………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ)

3. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ …………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ)

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਦਾ ਨਾਂ ……………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ)

5. 1844 ਈ. ਵਿੱਚ …………………………. ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

6. ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ………………………… ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਹਜ਼ਾਰਾ)

7. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਨਾਂ ……………………… ਦੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਰਾਮਨਗਰ)

8. ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ …………………………. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ.)

9. ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ …………………………. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.)

10. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ………………………… ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਤੋਪਾਂ)

11. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ………………………….. ਨੂੰ ਮਿਲਾਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ.)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਦੁਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ 1848-49 ਈ. ਵਿੱਚ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

2. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

3. ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

6. ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

7. ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ 12 ਨਵੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

8. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

9. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

10. ਦੁਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

11. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

12. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ 29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

13. ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸਦੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਵਾਗਡੋਰ ਸੰਭਾਲੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

14. ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਆਖਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

15. ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਅੰਤਿਮ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ?
(i) 1844-45 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1845-46 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1847-48 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1848-49 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1848-49 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਲਾਰਡ ਲਿਟਨ
(ii) ਲਾਰਡ ਰਿਪਨ
(iii) ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ
(iv) ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੁਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ
(iv) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ ਦੀ ਭੈਣ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪਤਨੀ
(iv) ਰਾਜਾ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਗੁਜਰਾਤ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ
(ii) ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ
(iii) ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ
(iv) ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ
ਉੱਤਰ-
(ii) ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਦੋਂ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) 1844 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1845 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1846 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਕਿੱਥੋਂ ਦਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੀ ?
(i) ਹਜ਼ਾਰਾ
(ii) ਮੁਲਤਾਨ
(iii) ਕਸ਼ਮੀਰ
(iv) ਪਿਸ਼ਾਵਰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਹਜ਼ਾਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਿਸ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ
(ii) ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iii) ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iv) ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 12 ਨਵੰਬਰ, 1846 ਈ.
(ii) 15 ਨਵੰਬਰ, 1847 ਈ.
(iii) 17 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ.
(iv) 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
(i) 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ.
(ii) 3 ਜਨਵਰੀ, 1848 ਈ.
(iii) 10 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(iv) 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਖ਼ਤਮ ਹੋਇਆ ?
(i) 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(ii) 23 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(ii) 24 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(iv) 25 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(i) 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਿਸ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਖ਼ਤਮ ਹੋਇਆ ?
ਜਾਂ
ਉਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ਜਿਹੜੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ‘ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ?
(i) ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ
(ii) ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iii) ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iv) ਚਿਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ.
(ii) 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(iii) 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ.
(iv) 21 ਫਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 21 ਫਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਕਦੋਂ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) 1849 ਈ.
(ii) 1850 ਈ.
(iii) 1848 ਈ.
(iv) 1947 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(i) 1849 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸਿੱਖ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ
(iv) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 1857 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1893 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1849 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1892 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1893 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) ਪੰਜਾਬ
(ii) 1893 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) ਨੇਪਾਲ
(iv) ਲੰਡਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1893 ਈ. ਵਿੱਚ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਨੂੰ ਆਰੰਭ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਮੁਲਤਾਨ ਸਿੱਖ-ਰਾਜ ਦਾ ਇੱਕ ਸੂਬਾ ਸੀ । 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਨਾਜ਼ਿਮ (ਗਵਰਨਰ) ਸਾਵਨ ਮਲ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਸੂਬੇ ਦੁਆਰਾ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਸਾਲਾਨਾ ਲਗਾਨ 13,47,000 ਰੁਪਏ ਤੋਂ ਵਧਾ ਕੇ 19,71,500 ਰੁਪਏ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 1846 ਈ. ਵਿੱਚ ਇਸ ਨੂੰ ਵਧਾ ਕੇ 30 ਲੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਵਿਕਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕੁਝ ਜ਼ਰੂਰੀ ਵਸਤਾਂ ਤੋਂ ਕਰ ਹਟਾ ਲਿਆ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ 1/3 ਹਿੱਸਾ ਵੀ ਵਾਪਸ ਲੈ ਲਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਵਧਿਆ ਹੋਇਆ ਲਗਾਨ ਨਹੀਂ ਦੇ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਉਸ ਨੇ ਬਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕਈ ਵਾਰ ਕਿਹਾ ਪਰ ਉਹ ਨਾ ਮੰਨੀ । ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਦਸੰਬਰ, 1847 ਈ. ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਮਾਰਚ, 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਨਵੇਂ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਸਰਦਾਰ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਮੂਲਰਾਜ ਤੋਂ ਚਾਰਜ ਲੈਣ ਲਈ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਾਲ ਦੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫਸਰਾਂ ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੂ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ । ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਚੰਗਾ ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ 19 ਅਪਰੈਲ ਨੂੰ ਮੁਲਰਾਜ ਨੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀਆਂ ਚਾਬੀਆਂ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ | ਪਰ ਅਗਲੇ ਦਿਨ 20 ਅਪਰੈਲ ਨੂੰ ਮੂਲਰਾਜ ਦੇ ਕੁਝ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਦੋਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫਸਰਾਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਮੁਲਰਾਜ ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ ।

1. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
2. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਕਾਰਨ ਕਰਕੇ ਆਪਣਾ ਅਸਤੀਫ਼ਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ?
3. 1848 ਈ. ਵਿੱਚ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਕਿਸ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਦੋ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੇ ਕਤਲ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ’ਤੇ ਪਾਈ ?

5. ਫ਼ਰੈਡਰਿਕ ਕਰੀ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ …………………. ਦੇ ਸਿਰ ਪਾਈ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਨੂੰ 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
2. ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
3. ਸਰਦਾਰ ਕਾਹਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।
4. ਵੈਨਸ ਐਗਨਿਯੂ ਅਤੇ ਐਂਡਰਸਨ ।
5. ਮੁਲਰਾਜੇ ।

2. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਦਾ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਕੋਲ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਫ਼ੌਜ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਵਧੇਰੇ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਪਹੁੰਚਣ ਦੀ ਉਡੀਕ ਕਰਨ ਲੱਗਾ । ਜਦੋਂ ਗਫ਼ ਨੂੰ ਇਹ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਮੇਤ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਪਹੁੰਚ ਰਿਹਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ 13 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬਹੁਤ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਤਬਾਹੀ ਮਚਾ ਦਿੱਤੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ 695 ਸੈਨਿਕ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ 132 ਅਫ਼ਸਰ ਸਨ, ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਾਰੇ ਗਏ ਅਤੇ 1651 ਹੋਰ ਸੈਨਿਕ ਜ਼ਖ਼ਮੀ ਹੋਏ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ 4 ਤੋਪਾਂ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਆ ਗਈਆਂ ।

1. ਦੁਸਰੇ-ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
2. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
3. ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ?
4. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ?
5. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ ?
(i) 132
(ii) 142
(iii) 695
(iv) 1651.
ਉੱਤਰ-
1. ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।
2. ਇਹ ਲੜਾਈ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
3. ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਹਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸਰਦਾਰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ ।
4. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।
5. 132.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 23 ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ, ਸਿੱਟੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਿਲਾਉਣਾ

3. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਆਣ ਮਿਲੇ ਸਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ । ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਵੀ ਗੁਜਰਾਤ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਅਕਰਮ ਖਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ 3,000 ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਭੇਜੀ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਫ਼ੌਜ 40,000 ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਅਜੇ ਵੀ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗ ਹੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਸਰ ਚਾਰਲਸ ਨੇਪੀਅਰ ਅਜੇ ਭਾਰਤ ਨਹੀਂ ਪੁੱਜਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਕੋਲ 68,000 ਸੈਨਿਕ ਸਨ ।

ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਦੋਹਾਂ ਪਾਸਿਆਂ ਤੋਂ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਇਹ ਲੜਾਈ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ‘ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਸਵੇਰੇ 7.30 ਵਜੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਬਾਰੂਦ ਛੇਤੀ ਮੁੱਕ ਗਿਆ । ਜਦੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਤਲਵਾਰਾਂ ਕੱਢ ਲਈਆਂ ਪਰ ਉਹ ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਿੰਨਾ ਕੁ ਚਿਰ ਕਰਦੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦਾ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ।

1. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ …………………… ਲੜਾਈ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।
2. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
3. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕੌਣ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ?
4. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
5. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕੌਣ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਨਿਰਣਾਇਕ ।
2. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ।
3. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ।
4. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਇਸ ਕਰਕੇ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਦੋਹਾਂ ਪਾਸਿਆਂ ਤੋਂ ਭਾਰੀ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।
5. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਬਾਰੇ ਲਿਖੋ । (Write the causes of the First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਛੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸਨ ? (What were the six main causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਛੇ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Briefly describe the six main causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss the causes responsible for the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ – ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਾਫ਼ੀ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਵੇਖ ਰਹੇ ਸਨ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਰਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਦੇ ਪਾਰ ਵੱਲ ਵਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । 1835-36 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1835 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜੀ ਛਾਉਣੀ ਕਾਇਮ ਕਰ ਲਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਨੂੰ ਟਾਲਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

2. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਬਦਅਮਨੀ – ਜੂਨ, 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬਦਅਮਨੀ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ । ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਦੌਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । 1839 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1845 ਈ. ਦੇ 6 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ 5 ਸਰਕਾਰਾਂ ਬਦਲੀਆਂ । ਡੋਗਰਿਆਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਨੂੰ ਬਰਬਾਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਸੁਨਹਿਰੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

3. ਪਹਿਲੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ (1839-42 ਈ. ) ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਭਾਰੀ ਵਿਨਾਸ਼ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਮੁੜ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵੱਲ ਆਪਣਾ ਰੁਖ ਕੀਤਾ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਹੁਤ ਡਾਵਾਂਡੋਲ ਸੀ ।

4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ – ਸਿੰਧ ਦਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ, ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤਣਾਉ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

5. ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ – ਨਵੰਬਰ, 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਮਿਸਟਰ ਕਲਾਰਕ ਦੀ ਥਾਂ ਲੁਧਿਆਣੇ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਕੱਟੜ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।

6. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰਿਆਂ – ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਸੰਭਾਲਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਢੰਗ ਨਾਲ ਜੰਗੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਚਾਰੇ ਪਾਸਿਉਂ ਘੇਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਨੇ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਵਿਸਫੋਟਕ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the battle of Mudki.)
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 5,500 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਹਰਾ ਦੇਣਗੇ, ਪਰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਹਫੜਾ-ਦਫੜੀ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਘਬਰਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਤਾਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਮਰਵਾਉਣ ਆਇਆ ਸੀ, ਪਰ ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਪਾਸਾ ਪੁੱਠਾ ਪੈਂਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਕੁਝ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਖ ਫੇਰ ਵੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦੇ ਰਹੇ । ਪਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਅਤੇ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀ ਕਾਰਨ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਇਹ ਜਿੱਤ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਮਹਿੰਗੀ ਪਈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਯੋਧਾ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the battle of Ferozshah or Pherushaher ?)
ਉੱਤਰ-
21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂਸ਼ਹਿਰ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 17 ਹਜ਼ਾਰ ਸੀ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ 69 ਤੋਪਾਂ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਜਾਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 25-30 ਹਜ਼ਾਰ ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ 100 ਤੋਪਾਂ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਗੱਦਾਰ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ। ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਆ ਗਈ ।ਉਹ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ਰਤ ਸਿੱਖਾਂ ਅੱਗੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟਣ ਬਾਰੇ ਸੋਚਣ ਲੱਗੇ । ਪਰ ਕਿਸਮਤ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਸੀ ।22 ਦਸੰਬਰ ਨੂੰ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਅੰਤ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the battle of Sobraon.)
ਉੱਤਰ-
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਿਮ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਹ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮੁਕੰਮਲ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਉਗ ਗਫ਼, ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਅਤੇ ਹੋਰ ਕਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਰਨੈਲ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਗੱਦਾਰਾਂ ਨੇ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ।ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਦੰਦ ਖੱਟੇ ਕੀਤੇ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਭੱਜ ਨਿਕਲੇ ਤੇ ਜਾਂਦੇ-ਜਾਂਦੇ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ‘ਤੇ ਬਣਾਏ ਕਿਸ਼ਤੀਆਂ ਦੇ ਪੁਲ ਨੂੰ ਵੀ ਤੋੜ ਗਏ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਅੰਤ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ (9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ.) ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । [Write a brief note on the Treaty of Lahore (9th March, 1846).]
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਕਾਰ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇੱਕ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਇਹ ਸੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਮਸ਼ਹੂਰ ਹੈ । ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਇਹ ਸਨ :-

  • ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਆਪਣੇ ਤੇ ਆਪਣੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  • ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਤੇ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਾਰੇ ਮੈਦਾਨੀ ਤੇ ਪਹਾੜੀ ਇਲਾਕੇ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
  • ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ।
  • ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਘਟਾ ਕੇ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  • ਜਦ ਕਦੇ ਲੋੜ ਪਵੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਰੁਕਾਵਟ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਦੀ ਲੰਘ ਸਕਣਗੀਆਂ ।
  • ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਇਕਰਾਰ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮਨਜ਼ੂਰੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼, ਯੂਰਪੀਅਨ ਜਾਂ ਅਮਰੀਕਨ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਰੱਖੇਗਾ ।
  • ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਂਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਸੰਬੰਧੀ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the Treaty of Bhairowal ?)
ਜਾਂ
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the Treaty of Bhairowal.)
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਸੰਧੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਾਲੇ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਪਰਿਵਾਰ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰਕੇ ਉਸ ਦੀ 1 ਲੱਖ ਰੁ: ਪੈਨਸ਼ਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਇੱਕ ਅੱਠ ਮੈਂਬਰੀ ਕੌਂਸਲ ਬਣਾਈ ਗਈ ।ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਅਤੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਰੱਖਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੇ ਖ਼ਰਚ ਲਈ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁ: ਸਾਲਾਨਾ ਲਗਾਨ ਦੇਣਾ ਮੰਨਿਆ ।ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬਾਲਗ ਹੋਣ ਤਕ ਭਾਵ 4 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਤਕ ਲਾਗੂ ਰਹਿਣੀਆਂ ਸਨ । ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭਾਵੇਂ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ਕਤੀਹੀਨ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣ ਗਏ ਸਨ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਕੇਵਲ ਨਾਂ-ਮਾਤਰ ਹੀ ਰਹਿ ਗਿਆ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? (What were the results of First Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ? (What were the effects of First Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ । ਇਹ ਯੁੱਧ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਖ਼ਤਮ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ :-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਆਪਣੇ ਤੇ ਆਪਣੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  2. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ।
  3. ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਘਟਾ ਕੇ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ 20,000 ਤਕ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ 12,000 ਤਕ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  4. ਜਦ ਕਦੇ ਲੋੜ ਪਵੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਰੁਕਾਵਟ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਦੀ ਲੰਘ ਸਕਣਗੀਆਂ ।
  5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।

16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਹ ਨਿਰਣਾ ਲਿਆ ਗਿਆ ਕਿ :

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰੇਗੀ ।
  2. ਜਦ ਤਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨਾਬਾਲਗ ਰਹੇਗਾ (ਭਾਵ ਸਤੰਬਰ 1853 ਈ. ਤਕ) ਰਾਜ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਅੱਠ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਕੌਂਸਲ ਆਫ਼ ਰੀਜੈਂਸੀ ਦੁਆਰਾ ਚਲਾਇਆ ਜਾਏਗਾ ।
  3. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ-ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਹੋਇਆ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ 1. ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਮਿਲੇਗੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Sham Singh Attariwala.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਇੱਕ ਅਣਖੀਲੇ ਯੋਧੇ ਸਨ । ਉਹ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਅਟਾਰੀ ਪਿੰਡ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿਤਾ ਸਰਦਾਰ ਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚ ਸਨ । 18 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋ ਗਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਅਨੇਕਾਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਬਦਅਮਨੀ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪਣ ਦੀਆਂ ਚਾਲਾਂ ਕਾਰਨ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਦੇ ਦਿਲ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਠੇਸ ਪਹੁੰਚੀ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਵੀ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ।

ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਜੋ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ਅਤੇ ਜੋ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲੇ ਹੋਏ ਸਨ ਅਚਾਨਕ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਤੋਂ ਨੱਸ ਤੁਰੇ । ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਤੋਂ ਬਗ਼ੈਰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਘਾਬਰ ਉੱਠੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਬਿਖਰਨ ਲੱਗ ਪਈ । ਅਜਿਹੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅੱਗੇ ਆਏ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਲਲਕਾਰਿਆ ਤੇ ਕਿਹਾ, “ਜਿੱਤੋ ਜਾਂ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਜਾਓ ।” ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧੂਹ ਲਈਆਂ ਤੇ ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਦੇ ਜੈਕਾਰੇ ਗਜਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਵੈਰੀ ‘ਤੇ ਟੁੱਟ ਪਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਗਾਜਰ-ਮੂਲੀਆਂ ਵਾਂਗ ਕੱਟ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇਖ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵੀ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ ਸਨ । ਅੰਤ ਉਹ ਲੜਦੇ-ਲੜਦੇ ਸ਼ਹੀਦੀ ਪਾ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਪਿੱਛੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ? (Why the British did not annex the Punjab to their empire after the First AngloSikh War ?)
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭਾਵੇਂ ਸਭਰਾਉਂ ਦੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਪਰ ਹਾਲੇ ਵੀ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਕਈ ਹਜ਼ਾਰ ਸੈਨਿਕ ਆਪਣੇ ਅਸਲੇ ਸਮੇਤ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਮੌਜੂਦ ਸਨ । ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਇਸ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਤਾਂ ਇਹ ਸੈਨਿਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦਾ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਬਣ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਨਾ ਕਰਨ ਦਾ ਦੂਜਾ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਹੇ । ਜੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਤਾਂ ਉਸ ਦੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਤਕ ਵੱਧ ਜਾਣੀਆਂ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਕਈ ਨਵੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਣੀਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨਾਲ ਨਜਿੱਠਣ ਲਈ ਅਜੇ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਤੀਸਰਾ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਹੇਠ ਰੱਖਣ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰੱਖਣਾ ਪੈਣਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖ਼ਰਚੇ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਵਾਧਾ ਹੋ ਜਾਣਾ ਸੀ । ਚੌਥਾ, ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਪ੍ਰਾਂਤ ਆਰਥਿਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਿੱਧ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ।ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਥਾਂ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਸੋਮਾ ਸਮਝਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Mention main causes of the Sikhs’ defeat in the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-

  • ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ਜਦ ਕਿ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਵਜੋਂ ਕੰਮ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਨੇਤਾ ਆਪਣੇ ਸੁਆਰਥਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਜਾ ਰਲੇ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਤਾਂ ਭਾਵੇਂ ਇਸ ਪੂਰੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਬੜੀ ਬਹਾਦਰੀ ਅਤੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਲੜੇ ਪਰ ਨੇਤਾਵਾਂ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਡੁੱਬੀ ।
  • ਆਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ।
  • ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਜਿਹੜੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਅਫ਼ਸਰ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਗਏ ਸਨ ਉਹ ਅੰਦਰਖਾਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲੇ ਹੋਏ ਸਨ ਉਹ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਭੇਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਦਿੰਦੇ ਰਹੇ ।
  • ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੁਨੀਆ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਤਾਕਤ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਕੁਦਰਤੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਧਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਨ ।
  • ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਬੜਾ ਤਜਰਬਾ ਸੀ ।ਉਹ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਪੂਰੀ ਈਮਾਨਦਾਰੀ ਅਤੇ ਲਗਨ ਨਾਲ ਲੜੇ । ਅਜਿਹੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਣੀ ਲਾਜ਼ਮੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ (Causes of First Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the causes of the First Anglo-Sikh War between British and Sikhs.).
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What were the causes of First Anglo-Sikh War ?)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the causes of First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਘੇਰਾਓ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਣ-ਬੁੱਝ ਕੇ ਅਜਿਹੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਅਪਣਾਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਅੰਤ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ (British Policy of Encircling the Punjab) – ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਾਫ਼ੀ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਵੇਖ ਰਹੇ ਸਨ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਰਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਦੇ ਪਾਰ ਵੱਲ ਵਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । 1835-36 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1835 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜੀ ਛਾਉਣੀ ਕਾਇਮ ਕਰ ਲਈ ਸੀ । ਇਸੇ ਸਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੰਧ ਵੱਲ ਵੱਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪ ਕਰਨਾ ਹੁਣ ਕੁਝ ਹੀ ਦਿਨਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਰਹਿ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਨੂੰ ਟਾਲਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

2. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਬਦਅਮਨੀ (Anarchy in the Punjab) – ਜੂਨ, 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬਦਅਮਨੀ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ । ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਦੌਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । 1839 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1845 ਈ. ਦੇ 6 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ 5 ਸਰਕਾਰਾਂ ਬਦਲੀਆਂ । ਡੋਗਰਿਆਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਾਜ਼ਸਾਂ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਨੂੰ ਬਰਬਾਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਸੁਨਹਿਰੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

3. ਪਹਿਲੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ (Defeat of the British in the First Afghan War) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ (1839-42 ਈ.) ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਭਾਰੀ ਵਿਨਾਸ਼ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਆਪਣੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਹਾਰ ਦੀ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਧੋਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਜਿੱਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਹੀ ਮਿਲ ਸਕਦੀ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਹੁਤ ਡਾਵਾਂਡੋਲ ਸੀ ।

4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਮਿਲਾਉਣਾ (Annexation of Sind by the British) – ਸਿੰਧ ਦਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ, ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤਣਾਉ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰੀਆਂ (Military preparations by the Britishers-1844) – ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਸੰਭਾਲਣ ਮਗਰੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਜੰਗੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਨੇ ਕਰਨਲ ਰਿਚਮੋਂਡ ਦੀ ਥਾਂ ਲੜਾਕੂ ਸੁਭਾਅ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਉੱਤਰਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਲਾਰਡ ਗਫ਼ ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨਚੀਫ਼ ਸੀ ਨੇ ਅੰਬਾਲੇ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਹੈਡਕੁਆਰਟਰ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਲਿਆ । ਮਾਰਚ, 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਭਾਗਾਂ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਸੈਨਿਕ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ, ਲੁਧਿਆਣਾ ਅਤੇ ਅੰਬਾਲਾ ਭੇਜੇ ਗਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੋ ਗਈ ।

6. ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ (Appointment of Major Broadfoot) – ਨਵੰਬਰ, 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਮਿਸਟਰ ਕਲਾਰਕ ਦੀ ਥਾਂ ਲੁਧਿਆਣੇ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਕੱਟੜ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸੀ । ਉਹ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਲੈ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਰਹੱਦ ‘ਤੇ ਆਇਆ ਸੀ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ । ਡਾਕਟਰ ਫ਼ੌਜਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਿੱਚ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਵਜੋਂ ਨਿਯੁਕਤੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਗਿਣੀ-ਮਿਥੀ ਚਾਲ ਸੀ ਜਿਹੜੀ ਪੰਜਾਬ ਨਾਲ ਛੇਤੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਰੱਖ ਕੇ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।” 1
ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।

7. ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲੋਂ ਲੜਾਈ ਲਈ ਉਕਸਾਹਟ (Incitement for War by Lal Singh and Teja Singh) – ਜਵਾਹਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਨਵਾਂ ਵਜ਼ੀਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਭਰਾ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਅੰਦਰ ਖਾਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਉਹ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇਸ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਲੜਵਾ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ | ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਹੀ ਉਹ ਆਪਣੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਕਾਇਮ ਰਹਿ ਸਕਣਗੇ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਭੜਕਾਉਣ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੇ 11 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕੀਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਉਡੀਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ 13 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਯੁੱਧ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਖੇਤਰਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ (Events and Results of the War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਘਟਨਾਵਾਂ ਕਿਹੜੀਆਂ ਸਨ ? ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What were the main events of the First Anglo-Sikh War ? Briefly explain the consequences of this War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । (Study the events and results of the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਚਾਲਾਕ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ 11 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸੇ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਾੜ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਅਤੇ 13 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਯੁੱਧ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੁਰਗਾਮੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ । ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

(ਉ) ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ, (Events of the War)

1. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Mudki) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 5,500 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਅਜਿਹਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਜੜ ਪੈ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਕੁਝ ਸੈਨਿਕ ਲੈ ਕੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਸੀਤਾ ਰਾਮ ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਇਸ ਵੱਧ ਰਹੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨੂੰ ਗਲਤ ਸਾਬਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨਾ ਕੋਈ ਔਖਾ ਕੰਮ ਨਹੀ ਹੈ ।” 1

2. ਫਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ferozeshah) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੂਸਰੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਖੇ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊ ਗਫ਼, ਜਾਂਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ਕਿ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਆ ਗਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ਰਤ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟਣ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਠੀਕ ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਗੱਦਾਰੀ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਰਣਭੂਮੀ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤੀ ਹੋਈ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਹਾਰ ਗਈ । ਜਨਰਲ ਹੈਵਲਾਕ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ,
“ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਲੜਾਈ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਹਿਲਾ ਦੇਵੇਗੀ ।” 1

3. ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Baddowal) – ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ 10,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਤੋਂ 18 ਮੀਲ ਦੂਰ ਸਥਿਤ ਬੱਦੋਵਾਲ ਪੁੱਜਾ । 21 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਬੜੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਲੜੇ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਥਿਆਰ ਅਤੇ ਖ਼ੁਰਾਕ ਸਾਮਗਰੀ ਵੀ ਲੁੱਟ ਲਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਹਾਰ ਕੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵੱਲ ਨੱਸ ਗਏ ।

4. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Aliwal) – ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਅਲੀਵਾਲ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ | ਅਲੀਵਾਲ ਵਿਖੇ ਸਿੱਖ ਹਾਲੇ ਆਪਣੇ ਮੋਰਚੇ ਲਗਾ ਰਹੇ ਸਨ ਕਿ ਅਚਾਨਕ 28 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਅਧੀਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ।

5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Sobraon) – 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ 30,000 ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਸਭਰਾਉਂ ਪੁੱਜ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁਲ ਗਿਣਤੀ 15,000 ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਐਨ ਇਸੇ ਵੇਲੇ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਬਣਾਈ ਯੋਜਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨੋਂ ਨੱਸ ਤੁਰੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਖਿੰਡਰਨ ਲੱਗ ਪਈ । ਅਜਿਹੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅੱਗੇ ਆਏ । ਉਸ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇਖ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵੀ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ ਸਨ | ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਟੁੱਟ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਤ ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ | ਐੱਚ. ਐੱਸ. ਭਾਟੀਆ ਅਤੇ ਐੱਸ. ਆਰ. ਬਖ਼ਸ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹਰੇਕ ਪੱਖੋਂ ਨਿਰਣਾਇਕ ਸੀ ।” 2

(ਅ) ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ (Results of the War)

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਕਾਰ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ ।

ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ (Treaty of Lahore)

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਦਾ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣੀ ਰਹੇਗੀ ।
  2. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  3. ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਤੇ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਾਰੇ ਮੈਦਾਨੀ ਤੇ ਪਹਾੜੀ ਇਲਾਕੇ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜ਼ਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਇੰਨੀ ਰਕਮ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਨਹੀ ਮਿਲ ਸਕਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਇੱਕ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੇ ਬਦਲੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤੇ ।
  5. ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੀ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  6. ਜਦ ਕਦੇ ਲੋੜ ਪਵੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਰੁਕਾਵਟ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਦੀ ਲੰਘ ਸਕਣਗੀਆਂ ।
  7. ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਇਕਰਾਰ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮਨਜ਼ੂਰੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼, ਯੂਰਪੀਅਨ ਜਾਂ ਅਮਰੀਕਨ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਰੱਖੇਗਾ ।
  8. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  9. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦਖ਼ਲ ਨਹੀਂ ਦੇਵੇਗੀ ਪਰ ਜਿੱਥੇ ਕਿਤੇ ਜ਼ਰੂਰੀ : ਹੋਇਆ ਉੱਥੇ ਲੋੜੀਂਦੀ ਸਲਾਹ ਦੇਵੇਗੀ ।
  10. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਆਗਿਆ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਵਿੱਚ ਅਦਲਾ-ਬਦਲੀ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗੀ ।

ਸਹਾਇਕ ਸੰਧੀ (Supplementary Treaty)

ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਭਾਵ 11 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇਸ ਸੰਧੀ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਸਹਾਇਕ ਸ਼ਰਤਾਂ ਜੋੜੀਆਂ ਗਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਦੀ ਲੋੜੀਂਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ 1846 ਈ. ਦੇ ਅੰਤ ਤਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਸੈਨਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਰਹੇਗੀ ।
  2. ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇਗਾ । ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰੇਗੀ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਸਾਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਦੇਵੇਗੀ ।
  3. ਦੋਨੋਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਮੁਕਰਰ ਕਰਨ ਲਈ ਛੇਤੀ ਹੀ ਆਪਣੇ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨਗੀਆਂ ।

ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ (Treaty of Bhairowal)

ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਸੰਧੀ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਸੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰੇਗੀ ।
  2. ਜਦ ਤਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨਾਬਾਲਿਗ ਰਹੇਗਾ ਰਾਜ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਅੱਠ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਕੌਂਸਲ ਆਫ਼ ਰੀਜੈਂਸੀ ਦੁਆਰਾ ਚਲਾਇਆ ਜਾਏਗਾ ।
  3. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ-ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਹੋਇਆ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਮਿਲੇਗੀ ।
  4. ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਰਹੇਗੀ !
  5. ਜੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਰਾਜਧਾਨੀ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝੇ ਤਾਂ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਿਕ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਜਾਂ ਸੈਨਿਕ ਛਾਉਣੀ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਸਕਣਗੇ ।
  6. ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਦੇ ਖ਼ਰਚ ਲਈ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਹਰ ਸਾਲ ਦੇਵੇਗਾ ।
  7. ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬਾਲਿਗ ਹੋਣ ਤਕ ਅਰਥਾਤ 4 ਸਤੰਬਰ, 1854 ਈ. ਤਕ ਲਾਗੂ ਰਹਿਣਗੀਆਂ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੇਖਕ ਡਾਕਟਰ ਜੀ. ਐੱਸ. ਛਾਬੜਾ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ,
    “ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਮੌਤ ਦੀ ਘੰਟੀ ਵਜਾ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਇਸ ਸੰਧੀ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਅਸਲ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।” 1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ Causes and Results of the First Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ ਦੱਸੋ । (Discuss the causes and results of the First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਅਤੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe the causes and the results of the First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the causes and results of the First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? (What were the causes of the First Anglo-Sikh War ? What were the consequences of this war ?
ਉੱਤਰ-

  1. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।
  2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਸਥਿਰਤਾ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਆਪਣੀ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  4. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਲੜਵਾ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  5. 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਨੇ ਬਲਦੀ ‘ਤੇ ਤੇਲ ਪਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ।

ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਹਰਾ ਦੇਣਗੇ, ਪਰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਹਫੜਾ-ਦਫੜੀ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ, ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss in brief the causes, events and results of the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਘੇਰਾਓ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਣ-ਬੁੱਝ ਕੇ ਅਜਿਹੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਅਪਣਾਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਅੰਤ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ (British Policy of Encircling the Punjab) – ਅੰਗਰੇਜ਼ ਕਾਫ਼ੀ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਵੇਖ ਰਹੇ ਸਨ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਰਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਦੇ ਪਾਰ ਵੱਲ ਵਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । 1835-36 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1835 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜੀ ਛਾਉਣੀ ਕਾਇਮ ਕਰ ਲਈ ਸੀ । ਇਸੇ ਸਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੰਧ ਵੱਲ ਵੱਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਹੜੱਪ ਕਰਨਾ ਹੁਣ ਕੁਝ ਹੀ ਦਿਨਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਰਹਿ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਨੂੰ ਟਾਲਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

2. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਬਦਅਮਨੀ (Anarchy in the Punjab) – ਜੂਨ, 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬਦਅਮਨੀ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ । ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਦੌਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । 1839 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1845 ਈ. ਦੇ 6 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ 5 ਸਰਕਾਰਾਂ ਬਦਲੀਆਂ । ਡੋਗਰਿਆਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਾਜ਼ਸਾਂ ਰਾਹੀਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਨੂੰ ਬਰਬਾਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਸੁਨਹਿਰੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

3. ਪਹਿਲੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ (Defeat of the British in the First Afghan War) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ (1839-42 ਈ.) ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਭਾਰੀ ਵਿਨਾਸ਼ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਆਪਣੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਹਾਰ ਦੀ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਧੋਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਜਿੱਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਹੀ ਮਿਲ ਸਕਦੀ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਹੁਤ ਡਾਵਾਂਡੋਲ ਸੀ ।

4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਮਿਲਾਉਣਾ (Annexation of Sind by the British) – ਸਿੰਧ ਦਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ, ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤਣਾਉ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰੀਆਂ (Military preparations by the Britishers-1844) – ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਸੰਭਾਲਣ ਮਗਰੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਜੰਗੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਨੇ ਕਰਨਲ ਰਿਚਮੋਂਡ ਦੀ ਥਾਂ ਲੜਾਕੂ ਸੁਭਾਅ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਉੱਤਰਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਲਾਰਡ ਗਫ਼ ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨਚੀਫ਼ ਸੀ ਨੇ ਅੰਬਾਲੇ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਹੈਡਕੁਆਰਟਰ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਲਿਆ । ਮਾਰਚ, 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਭਾਗਾਂ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਸੈਨਿਕ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ, ਲੁਧਿਆਣਾ ਅਤੇ ਅੰਬਾਲਾ ਭੇਜੇ ਗਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਜੰਗ ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੋ ਗਈ ।

6. ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ (Appointment of Major Broadfoot) – ਨਵੰਬਰ, 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੂੰ ਮਿਸਟਰ ਕਲਾਰਕ ਦੀ ਥਾਂ ਲੁਧਿਆਣੇ ਦਾ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਕੱਟੜ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸੀ । ਉਹ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਲੈ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਰਹੱਦ ‘ਤੇ ਆਇਆ ਸੀ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ । ਡਾਕਟਰ ਫ਼ੌਜਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਿੱਚ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਏਜੰਟ ਵਜੋਂ ਨਿਯੁਕਤੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਗਿਣੀ-ਮਿਥੀ ਚਾਲ ਸੀ ਜਿਹੜੀ ਪੰਜਾਬ ਨਾਲ ਛੇਤੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਰੱਖ ਕੇ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।” 1
ਬਰਾਡਫੁਟ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।

7. ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲੋਂ ਲੜਾਈ ਲਈ ਉਕਸਾਹਟ (Incitement for War by Lal Singh and Teja Singh) – ਜਵਾਹਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਨਵਾਂ ਵਜ਼ੀਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਭਰਾ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਅੰਦਰ ਖਾਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਉਹ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇਸ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਲੜਵਾ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ | ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਹੀ ਉਹ ਆਪਣੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਕਾਇਮ ਰਹਿ ਸਕਣਗੇ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਭੜਕਾਉਣ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੇ 11 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕੀਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਉਡੀਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ 13 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਯੁੱਧ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਖੇਤਰਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਚਾਲਾਕ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ 11 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸੇ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਾੜ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਦੋਸ਼ ਲਗਾਇਆ ਅਤੇ 13 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਯੁੱਧ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੁਰਗਾਮੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ । ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਟਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

(ਉ) ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ, (Events of the War)

1. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Mudki) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 5,500 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਅਜਿਹਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਜੜ ਪੈ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਕੁਝ ਸੈਨਿਕ ਲੈ ਕੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਸੀਤਾ ਰਾਮ ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਇਸ ਵੱਧ ਰਹੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨੂੰ ਗਲਤ ਸਾਬਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨਾ ਕੋਈ ਔਖਾ ਕੰਮ ਨਹੀ ਹੈ ।” 1

2. ਫਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ferozeshah) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੂਸਰੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਖੇ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊ ਗਫ਼, ਜਾਂਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ਕਿ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਆ ਗਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ਰਤ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟਣ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਠੀਕ ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਗੱਦਾਰੀ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਰਣਭੂਮੀ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤੀ ਹੋਈ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਹਾਰ ਗਈ । ਜਨਰਲ ਹੈਵਲਾਕ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ,
“ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਲੜਾਈ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਹਿਲਾ ਦੇਵੇਗੀ ।” 1

3. ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Baddowal) – ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ 10,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਤੋਂ 18 ਮੀਲ ਦੂਰ ਸਥਿਤ ਬੱਦੋਵਾਲ ਪੁੱਜਾ । 21 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਬੜੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਲੜੇ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਥਿਆਰ ਅਤੇ ਖ਼ੁਰਾਕ ਸਾਮਗਰੀ ਵੀ ਲੁੱਟ ਲਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਹਾਰ ਕੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵੱਲ ਨੱਸ ਗਏ ।

4. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Aliwal) – ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਅਲੀਵਾਲ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ | ਅਲੀਵਾਲ ਵਿਖੇ ਸਿੱਖ ਹਾਲੇ ਆਪਣੇ ਮੋਰਚੇ ਲਗਾ ਰਹੇ ਸਨ ਕਿ ਅਚਾਨਕ 28 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਅਧੀਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ।

5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Sobraon) – 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ 30,000 ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਸਭਰਾਉਂ ਪੁੱਜ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁਲ ਗਿਣਤੀ 15,000 ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਐਨ ਇਸੇ ਵੇਲੇ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਬਣਾਈ ਯੋਜਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨੋਂ ਨੱਸ ਤੁਰੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਖਿੰਡਰਨ ਲੱਗ ਪਈ । ਅਜਿਹੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅੱਗੇ ਆਏ । ਉਸ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇਖ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵੀ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ ਸਨ | ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਟੁੱਟ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਤ ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ | ਐੱਚ. ਐੱਸ. ਭਾਟੀਆ ਅਤੇ ਐੱਸ. ਆਰ. ਬਖ਼ਸ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹਰੇਕ ਪੱਖੋਂ ਨਿਰਣਾਇਕ ਸੀ ।” 2

(ਅ) ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ (Results of the War)

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਕਾਰ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ ।

ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ (Treaty of Lahore)

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਦਾ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਮਿੱਤਰਤਾ ਬਣੀ ਰਹੇਗੀ ।
  2. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  3. ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਤੇ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਾਰੇ ਮੈਦਾਨੀ ਤੇ ਪਹਾੜੀ ਇਲਾਕੇ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜ਼ਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਇੰਨੀ ਰਕਮ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਨਹੀ ਮਿਲ ਸਕਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਇੱਕ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੇ ਬਦਲੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤੇ ।
  5. ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੀ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 20,000 ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 12,000 ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।
  6. ਜਦ ਕਦੇ ਲੋੜ ਪਵੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਰੁਕਾਵਟ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਦੀ ਲੰਘ ਸਕਣਗੀਆਂ ।
  7. ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਇਕਰਾਰ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮਨਜ਼ੂਰੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼, ਯੂਰਪੀਅਨ ਜਾਂ ਅਮਰੀਕਨ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਰੱਖੇਗਾ ।
  8. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  9. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦਖ਼ਲ ਨਹੀਂ ਦੇਵੇਗੀ ਪਰ ਜਿੱਥੇ ਕਿਤੇ ਜ਼ਰੂਰੀ : ਹੋਇਆ ਉੱਥੇ ਲੋੜੀਂਦੀ ਸਲਾਹ ਦੇਵੇਗੀ ।
  10. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਆਗਿਆ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਵਿੱਚ ਅਦਲਾ-ਬਦਲੀ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗੀ ।

ਸਹਾਇਕ ਸੰਧੀ (Supplementary Treaty)

ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਭਾਵ 11 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇਸ ਸੰਧੀ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਸਹਾਇਕ ਸ਼ਰਤਾਂ ਜੋੜੀਆਂ ਗਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਦੀ ਲੋੜੀਂਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ 1846 ਈ. ਦੇ ਅੰਤ ਤਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਕਾਫ਼ੀ ਸੈਨਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਰਹੇਗੀ ।
  2. ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇਗਾ । ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰੇਗੀ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਸਾਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਦੇਵੇਗੀ ।
  3. ਦੋਨੋਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਮੁਕਰਰ ਕਰਨ ਲਈ ਛੇਤੀ ਹੀ ਆਪਣੇ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨਗੀਆਂ ।

ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ (Treaty of Bhairowal)

ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਨਾਲ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਸੰਧੀ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਸੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  1. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰੇਗੀ ।
  2. ਜਦ ਤਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨਾਬਾਲਿਗ ਰਹੇਗਾ ਰਾਜ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਅੱਠ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਕੌਂਸਲ ਆਫ਼ ਰੀਜੈਂਸੀ ਦੁਆਰਾ ਚਲਾਇਆ ਜਾਏਗਾ ।
  3. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ-ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਹੋਇਆ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਮਿਲੇਗੀ ।
  4. ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਰਹੇਗੀ !
  5. ਜੇ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਰਾਜਧਾਨੀ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝੇ ਤਾਂ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਿਕ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਜਾਂ ਸੈਨਿਕ ਛਾਉਣੀ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਸਕਣਗੇ ।
  6. ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਦੇ ਖ਼ਰਚ ਲਈ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ 22 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਹਰ ਸਾਲ ਦੇਵੇਗਾ ।
  7. ਇਸ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬਾਲਿਗ ਹੋਣ ਤਕ ਅਰਥਾਤ 4 ਸਤੰਬਰ, 1854 ਈ. ਤਕ ਲਾਗੂ ਰਹਿਣਗੀਆਂ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੇਖਕ ਡਾਕਟਰ ਜੀ. ਐੱਸ. ਛਾਬੜਾ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ,
    “ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਮੌਤ ਦੀ ਘੰਟੀ ਵਜਾ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਇਸ ਸੰਧੀ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਅਸਲ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।” 1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨਾਂ ਦੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief description of the main causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਨਾਂ ਬਾਰੇ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Describe the three main causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Briefly describe the three causes of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss the causes responsible for the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਘੇਰਾ ਪਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।
  2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਸਥਿਰਤਾ ਫੈਲ ਗਈ ਸੀ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਆਪਣੀ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  4. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਲੜਵਾ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  5. 1844 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਨੇ ਬਲਦੀ ‘ਤੇ ਤੇਲ ਪਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the battle of Mudki.)
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਦਕੀ ਵਿਖੇ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਹਰਾ ਦੇਣਗੇ, ਪਰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਹਫੜਾ-ਦਫੜੀ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੁਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the battle of Ferozshah or Pherushahar ?)
ਉੱਤਰ-
-ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੁਸ਼ਹਿਰ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਜਾਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ | ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਗੱਦਾਰ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਅੰਤ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the battle of Sobraon.)
ਉੱਤਰ-
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਿਮ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫੌਜ਼ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ | ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਚੰਗੇ ਦੰਦ ਖੱਟੇ ਕੀਤੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਸੰਬੰਧੀ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the Treaty of Lahore ?)
ਉੱਤਰ-
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਕਾਰ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਇਹ ਸਨ-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਆਪਣੇ ਤੇ ਆਪਣੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ ।
  2. ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਤੇ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਾਰੇ ਇਲਾਕੇ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਸੰਬੰਧੀ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the Treaty of Bhairowal ?)
ਜਾਂ
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Treaty of Bhairowal.)
ਜਾਂ
ਭੈਰੋਵਾਲ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤਾਂ ਲਿਖੋ । (Write the main clauses of the Treaty of Bhairowal.)
ਉੱਤਰ-
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚਾਲੇ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਇੱਕ ਅੱਠ ਮੈਂਬਰੀ ਕੌਂਸਲ ਬਣਾਈ ਗਈ । ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿਵਸਥਾ ਤੋਂ ਅਲੱਗ ਕਰਕੇ ਉਸ ਦੀ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਨਿਸਚਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਅਤੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਇੱਕ ਬਿਟਿਸ਼ ਸੈਨਾ ਰੱਖਣ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਰਾਹੀਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ਕਤੀਹੀਨ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।

ਪਸ਼ਨ 7.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । (Study in brief the results of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give in brief the results of First Anglo-Sikh War.)
ਜਾਂ
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ? (What were the results of the First Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਸਭ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਛੱਡਣਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  2. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਹਰਜਾਨੇ ਵਜੋਂ 1.50 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਭਾਰੀ ਰਕਮ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਇੱਕ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰੇਗੀ ।
  5. ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ-ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਸਾਲਾਨਾ ਪੈਨਸ਼ਨ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Sham Singh Attariwala.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਇੱਕ ਅਣਖੀਲੇ ਯੋਧੇ ਸਨ । 18 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਵੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋ ਗਏ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਵੀ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਜੋ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ਅਚਾਨਕ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਨੱਸ । ਤੁਰੇ । ਅਜਿਹੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਅੱਗੇ ਆਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਲਲਕਾਰਿਆ ਤੇ ਕਿਹਾ, “ਜਿੱਤੋ ਜਾਂ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਜਾਓ” ਅੰਤ ਉਹ ਲੜਦੇ-ਲੜਦੇ ਸ਼ਹੀਦੀ ਪਾ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਪਿੱਛੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ? (Why the British did not annex the Punjab to their empire after the First Anglo-Sikh War ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਇਸ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਤਾਂ ਇਹ ਸੈਨਿਕ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦਾ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਬਣ ਸਕਦੇ ਹਨ ।
  2. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਮੱਧਵਰਤੀ ਰਾਜ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਰਹੇ ।
  3. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਹੇਠ ਰੱਖਣ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰੱਖਣਾ ਪੈਣਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖ਼ਰਚੇ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਵਾਧਾ ਹੋ ਜਾਣਾ ਸੀ ।
  4. ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਪ੍ਰਾਂਤ ਆਰਥਿਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਲਈ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਿੱਧ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ।
  5. ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਬਜਾਏ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਸੋਮਾ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Mention five causes of the Sikhs’ defeat in the First Anglo-Sikh War.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਸੀ ।
  2. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਜਿਹੜੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਅਫ਼ਸਰ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਸਨ ਉਹ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਭੇਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ।
  3. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦੀ ਤਾਕਤ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।
  4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸਾਧਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਨ ।
  5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਬੜਾ ਤਜਰਬਾ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਵਸਤੂਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਕਿਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਕਦੋਂ ਤਕ ਰਾਜ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
1843 ਈ. ਤੋਂ 1849 ਈ. ਤਕ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਪਹਿਲੇ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

ਪਸ਼ਨ 4.
ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ?
ਜਾਂ
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
ਜਾਂ
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
1845-46 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ !.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਚਾਰੇ ਪਾਸਿਉਂ ਘੇਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
8 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੁਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਕਿਹੜਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨੇਤਾ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਲੜਦਾ ਹੋਇਆ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਿਹੜੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਕਿਹੜੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
9 ਮਾਰਚ , 1846 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
16 ਦਸੰਬਰ , 1846 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਇੱਕ ਬਿਟਿਸ਼ ਰੈਜ਼ੀਡੈਂਟ ਕਰੇਗਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਕਿਸ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਨੇਤਾ ਗੱਦਾਰ ਸਨ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ –

1. 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ………………………… ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਖੜਕ ਸਿੰਘ)

2. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ……………………… ਵਿੱਚ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1843 ਈ.)

3. ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ………………………. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1845-46 ਈ.)

4. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ …………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ)

5. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ……………………. ਸੀ
ਉੱਤਰ-
(ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

6. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਲ ਸਿੰਘ)

7. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸਰਵ-ਉੱਚ ਕਮਾਂਡਰ ……………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗ਼ਫ)

8. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ……………………. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.)

9. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ………………………… ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.)

10. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ …………………….. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ.)

11. ਪਹਿਲੇ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦਾ ਅੰਤ …………………….. ਦੀ ਲੜਾਈ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸਭਰਾਉਂ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

12. ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ……………………. ਦੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਹੌਰ)

13. ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ …………………….. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ.)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ 1947 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

2. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

3. ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਐਲਨਬਰੋ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗਵਰਨਰ ਜਨਰਲ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨ-ਚੀਫ਼ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

6. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

8. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

9. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

10. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

11. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

12. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਜੇਤੂ ਰਹੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

13. ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

14. ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

15. ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪਹਿਲੇ ਜਾਂ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ
(iv) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ
(ii) ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ
(iii) ਲਾਰਡ ਰਿਪਨ
(iv) ਲਾਰਡ ਡਫ਼ਰਿਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਕਦੋਂ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ?
(i) 183940 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1841-42 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 184344 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1845-46 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1845-46 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਅਹੁੱਦੇ ‘ਤੇ ਸੀ ?
(i) ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ
(ii) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ
(iii) ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ
(iv) ਦੀਵਾਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਸੈਨਾਪਤੀ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ
(iii) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ
(iv) ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਕਦੋਂ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ?
(i) 1842 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1843 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1844 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1845 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗਵਰਨਰ ਜਨਰਲ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤੀ ?
(i) 1848 ਈ.
(ii) 1849 ਈ.
(iii) 1865 ਈ.
(iv) 1845 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਪਹਿਲੇ ਜਾਂ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਕਮਾਂਡਰ-ਇਨ-ਚੀਫ਼ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਲਾਰਡ ਹਿਊ ਗਫ਼
(ii) ਲਾਰਡ ਡਫ਼ਰਨ
(iii) ਮੇਜਰ ਬਰਾਡਫੁਟ
(iv) ਰਾਬਰਟ ਕਸਟ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਲਾਰਡ ਹਿਊ ਗਫ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) 12 ਦਸੰਬਰ, 1844 ਈ.
(ii) 12 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(iii) 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(iv) 18 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(ii) 19 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(iii) 20 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(iv) 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ.
(ii) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ.
(iii) 15 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ.
(iv) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1847 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਕਿਹੜੀ ਸੰਧੀ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ?
(i) ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ
(ii) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ
(iii) ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ
(iv) ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1845 ਈ.
(ii) 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ.
(iii) 7 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ.
(iv) 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਕਿਸ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ?
(i) ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(ii) ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(iii) ਹੀਰਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(iv) ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 9 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ.
(ii) 11 ਮਾਰਚ, 1846 ਈ.
(iii) 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ.
(iv) 26 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 16 ਦਸੰਬਰ, 1846 ਈ. ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. 1842 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਰਡ ਆਕਲੈਂਡ ਦੀ ਥਾਂ ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੀ ਹਾਰ ਨਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹੋਈ ਬਦਨਾਮੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਇਲਾਕਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਸਿੰਧ ਦੇ ਅਮੀਰ ਭਾਵੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪੱਕੇ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਸਨ, ਪਰ ਐਲਨਬਰੋ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਝੂਠੇ ਇਲਜ਼ਾਮ ਲਗਾ ਕੇ ਸਿੰਧ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਾਈ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖ ਸਿੰਧ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਕੁੜੱਤਣ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਈ ।

1. ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਕੌਣ ਸੀ?
2. ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਕਦੋਂ ਬਣਿਆ ?
(i) 1812 ਈ.
(ii) 1822 ਈ.
(iii) 1832 ਈ.
(iv) 1842 ਈ. ।
3. ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਿਉਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ?
4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਕਦੋਂ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ?
5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ੇ ਦਾ ਕੀ ਸਿੱਟਾ ਨਿਕਲਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਲਾਰਡ ਐਲਨਬਰੋ ਭਾਰਤ ਦਾ ਗਵਰਨਰ-ਜਨਰਲ ਸੀ ।
2. 1842 ਈ. ।
3. ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੰਧ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ ।
4. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ 1843 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।
5. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੰਧ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ੇ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਤਨਾਅ ਆ ਗਿਆ ।

2. ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੂਸਰੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਜਾਂ ਫੇਰੂ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਖੇ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਹ ਸਥਾਨ ਮੁਦਕੀ ਤੋਂ 10 ਮੀਲ ਦੇ ਫਾਸਲੇ ‘ਤੇ ਸਥਿਤ ਹੈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ ਇਸ ਲੜਾਈ ਲਈ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਤਿਆਰ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ, ਅੰਬਾਲਾ ਅਤੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਤੋਂ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਬੁਲਾ ਲਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 17,000 ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਬੜੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਅਤੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਜਾਂਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 25,000 ਤੋਂ 30,000 ਦੇ ਲਗਭਗ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ

ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਪੂਰਾ ਯਕੀਨ ਸੀ ਕਿ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਉਹ ਇਸ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਜਿੱਤ ਲੈਣਗੇ । ਪਰ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾਏ ਕਿ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਡਾਵਾਂਡੋਲ ਹੁੰਦਾ ਨਜ਼ਰ ਆਇਆ ।

1. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
2. ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕੌਣ ਸੀ?
3. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਿਸਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
4. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ …………………….. ਸੀ ।
5. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
2. ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ।
3. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
4. 17,000.
5. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 22 ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ : ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਟੇ

3. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।ਇਹ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ 30,000 ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਸਭਰਾਉਂ ਪੁੱਜ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮੋਰਚੇ ਤਿਆਰ ਕਰਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਸਨ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਜੋ ਕਿ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ਮਿੰਟ-ਮਿੰਟ ਦੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਹੁੰਚਾ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਵੀ ਚੰਗੀ ਤਿਆਰੀ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁੱਲ ਗਿਣਤੀ 15,000 ਸੀ । ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਜਵਾਬੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਾਰਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਪਿੱਛੇ ਹਟਣਾ ਪਿਆ | ਐਨ ਇਸੇ ਵੇਲੇ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਬਣਾਈ ਯੋਜਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਪਹਿਲਾਂ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫਿਰ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਮੈਦਾਨੋਂ ਨੱਸ ਤੁਰੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨੱਸਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਬਾਰਦ ਨਾਲ ਭਰੀਆਂ ਬੇੜੀਆਂ ਡੁਬੋ ਦਿੱਤੀਆਂ ਅਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਬੇੜੀਆਂ ਦੇ ਬਣੇ ਪੁਲ ਨੂੰ ਵੀ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ।

1. ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਕਿਹੜੀ ਲੜਾਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ?
2. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
3. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ …………………….. ਅਤੇ …………………….. ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
4. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ?
5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਸਿੱਖ ਆਗੂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲੇ-ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ-ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਲੜੀ ਗਈ ਅੰਤਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।
2. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
3. ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ।
4. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ।
5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਆਪਣੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਕਿਵੇਂ ਵਰਣਨ ਕਰੋਗੇ ? (How do you describe about Maharaja Ranjit Singh as a man ?)
ਜਾਂ
ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Ranjit Singh as a Man ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਬਾਰੇ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Write about the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਭਾਵੇਂ ਅਨਪੜ੍ਹ ਸੀ ਪਰ ਉਹ ਬੜੀ ਤੀਖਣ ਬੁੱਧੀ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਭੂਗੋਲਿਕ ਸਥਿਤੀ ਜ਼ਬਾਨੀ ਯਾਦ ਸੀ ।ਉਹ ਜਿਸ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਾਰ ਵੇਖ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ਉਸ ਨੂੰ ਕਈ ਸਾਲਾਂ ਮਗਰੋਂ ਵੀ ਪਛਾਣ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ! ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਬੜਾ ਦਿਆਲੂ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨਾਲ ਕਦੇ ਵੀ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਵਰਤਾਓ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਦੇ ਵੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੱਚੇ ਸੇਵਕ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ ਅਤੇ ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ ਨਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕੇ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਵੱਲ ਵਤੀਰਾ ਬੜਾ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰਿਆ ਸੀ । ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਬਰਾਬਰੀ ਵਾਲਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੀ | ਮਹਾਰਾਜਾ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦਿਲ ਖੋਲ੍ਹ ਕੇ ਦਾਨ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਛੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the six features of Maharaja Ranjit Singh as a Man ?)
ਉੱਤਰ-

  • ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ ਬਹੁਤੀ ਖਿੱਚ ਭਰਪੂਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕੱਦ ਦਰਮਿਆਨਾ ਅਤੇ ਜਿਸਮ ਪਤਲਾ ਸੀ | ਬਚਪਨ ਵਿੱਚ ਚੇਚਕ ਨਿਕਲ ਆਉਣ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦੀ ਇੱਕ ਅੱਖ ਵੀ ਮਾਰੀ ਗਈ ਸੀ । ਪਰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਵਿਅਕਤਿੱਤਵ ਵਿੱਚ ਇੰਨੀ ਖਿੱਚ ਸੀ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਮਿਲਣ ਵਾਲਾ ਵਿਅਕਤੀ ਉਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਬਿਨਾਂ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਸਕਦਾ ਸੀ ।
  • ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਵੇਰ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਰਾਤ ਦੇਰ ਤਕ ਰਾਜ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਰੁੱਝਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਵੱਡੇ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਕੰਮ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਛੋਟੇ ਤੋਂ ਛੋਟੇ ਕੰਮ ਵੱਲ ਨਿੱਜੀ ਧਿਆਨ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।
  • ਸਾਹਸੀ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸਾਹਸੀ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ ਵਿਅਕਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਯੁੱਧਾਂ ਵਿੱਚ ਜਾਣ, ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡਣ, ਤਲਵਾਰ ਚਲਾਉਣ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰੀ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕ ਸੀ । ਉਹ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵੀ ਬਿਲਕੁਲ ਘਬਰਾਉਂਦਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਹੋ ਕੇ ਲੜਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਿਆਲੂ ਸੁਭਾਅ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਦਿਆਲਤਾ ਕਾਰਨ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨਾਲ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਵਰਤਾਓ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਹ ਗ਼ਰੀਬਾਂ, ਦੁਖੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ।
  • ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ‘ਤੇ ਅਟੱਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਅਤੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ‘ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਜੀ’ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
  • ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਸਰਪ੍ਰਸਤ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪ ਭਾਵੇਂ ਅਨਪੜ੍ਹ ਸੀ ਪਰ ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਲਈ ਅਨੇਕਾਂ ਸਕੂਲ ਖੋਲੇ । ਆਪ ਨੇ ਫ਼ਾਰਸੀ, ਅਰਬੀ, ਹਿੰਦੀ ਅਤੇ ਗੁਰਮੁਖੀ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਅਨੁਦਾਨ ਅਤੇ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਦਿਆਲੂ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ । ਕਿਵੇਂ ? (Maharaja Ranjit Singh was a kind ruler. How ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਦਿਆਲਤਾ ਕਾਰਨ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਿੱਖ ਮਿਸਲਦਾਰਾਂ, ਰਾਜਪੂਤ ਰਾਜਿਆਂ, . ਪਠਾਣ ਹਾਕਮਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਬਾਦਸ਼ਾਹਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ-ਇੱਕ ਕਰਕੇ ਜਿੱਤਿਆ । ਕਮਾਲ ਦੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨਾਲ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਵਰਤਾਓ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਕਾਬਲ ਤੇ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜੋ ਤਾਜਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਬਣਦੇ ਰਹੇ, ਨਾ ਕੇਵਲ ਆਪਣੇ ਨਜ਼ਦੀਕੀ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਅਤੇ ਦਾਅਵੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਖੂਨ ਨਾਲ ਖੇਡਦੇ ਰਹੇ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਾਰਸਾਂ ਨੂੰ ਗਲੀ ਬਾਜ਼ਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਭੀਖ ਮੰਗਿਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਦਰ-ਬ-ਦਰ ਰੁਲਣ ਲਈ ਛੱਡਦੇ ਰਹੇ । ਅਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਇਸ ਸ਼ਾਸਕ ਨੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੂੰ ਮੈਦਾਨੇ ਜੰਗ ਵਿੱਚ ਹਰਾਇਆ ਨਾ ਕੇਵਲ ਗਲਵੱਕੜੀ ਲਾਇਆ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਔਲਾਦ ਨੂੰ ਵੀ ਜਾਗੀਰਾਂ ਤੇ ਖਿਲਅਤਾਂ ਨਾਲ ਨਿਵਾਜਿਆ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਉਹ ਗ਼ਰੀਬਾਂ, ਦੁਖੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਦਿਆਲਤਾ ਦੀਆਂ ਕਈ ਕਹਾਣੀਆਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Maharaja Ranjit Singh was a devoted follower of Sikhism. Give arguments in your favour.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ‘ਤੇ ਅਟੱਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਇੱਕ ਕਲਗੀ ਆਪਣੇ ਤੋਸ਼ੇਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਸੀ ਜਿਸ ਦੀ ਛੋਹ ਨੂੰ ਉਹ ਆਪਣੇ ਲਈ ਬੜਾ ਵਡਭਾਗਾ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਮਿਹਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤਾਂ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਉਹ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਜਾ ਕੇ ਭਾਰੀ ਚੜ੍ਹਾਵਾ ਚੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।

ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਖਵਾਉਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ‘ਸਿੰਘ ਸਾਹਿਬ’ ਅਖਵਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ ‘ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ’ ਅਤੇ ‘ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ‘ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ “ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕਾ ਖ਼ਾਲਸਾ ਅਤੇ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕੀ ਫ਼ਤਹਿ’ ਦਾ ਜੈਕਾਰਾ ਲਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸਰਕਾਰੀ ਕਾਰਜ ਲਈ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਸਹੁੰ ਚੁਕਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਬਣਵਾਈਆਂ ਅਤੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਵੱਡੀਆਂ-ਵੱਡੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਉਹ ਤਨੋ ਮਨੋ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੱਚੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਧਰਮ-ਨਿਰਪੇਖ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ । ਕਿਵੇਂ ? (Maharaja Ranjit Singh was a secular ruler. How ?)
ਉੱਤਰ-
ਭਾਵੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਧਾਰਮਿਕ ਪੱਖਪਾਤ ਅਤੇ ਫਿਰਕੂਪੁਣੇ ਤੋਂ ਕੋਹਾਂ ਦੂਰ ਸੀ । ਉਹ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸੀ ਕਿ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਚਿਰਸਥਾਈ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਲਈ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਨਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਡੋਗਰੇ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ ।

ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਫਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਮੁਸਲਮਾਨ, ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ, ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀਦਾਸ ਅਤੇ ਸੈਨਾਪਤੀ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਹਿੰਦੂ ਸਨ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ, ਕੋਰਟ, ਗਾਰਡਨਰ ਆਦਿ ਯੂਰਪੀਅਨ ਸਨ । ਦਾਨ ਦੇਣ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਿਸੇ ਧਰਮ ਦੇ ਨਾਲ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂ ਮੰਦਰਾਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਿਮ ਮਸੀਤਾਂ ਅਤੇ ਮਕਬਰਿਆਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਧਨ ਦਿੱਤਾ ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉਲੇਖ ਕਰੋ । (Describe Maharaja Ranjit Singh as an administrator.)
ਜਾਂ
ਇੱਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Maharaja Ranjit Singh as an administrator ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਯੋਗ ਅਤੇ ਈਮਾਨਦਾਰ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਚੰਗੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਵੱਡੇ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਮੌਜਾ ਜਾਂ ਪਿੰਡ ਸੀ ।ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਕਦੇ ਦਖ਼ਲਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪਰਜਾ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਕਦੇ ਅੱਖੋਂ ਉਹਲੇ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਰਾਜ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਯਤਨ ਕਰਨ । ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਕਸਰ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਰਾਜ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕਰਿਆ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਜਾ ਬੜੀ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
“ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਅਤੇ ਜੇਤੂ ਸੀ ।” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“Maharaja Ranjit Singh was a great general and conqueror.” Explain.)
ਜਾਂ
“ਇੱਕ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਜਰਨੈਲ” ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Ranjit Singh as a Soldier and a General ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸਮੇਂ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਜਿੰਨੀਆਂ ਵੀ ਲੜਾਈਆਂ ਲੜੀਆਂ, ਉਸ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਨਹੀਂ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਉਹ ਭਾਰੀ ਤੋਂ ਭਾਰੀ ਔਕੜ ਆਉਣ ‘ਤੇ ਵੀ ਕਦੇ ਘਬਰਾਉਂਦੇ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਭਲਾਈ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਵੀ ਮਹਾਰਾਜੇ ਲਈ ਆਪਣੀ ਜਾਨ ਕੁਰਬਾਨ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੇਤੁ ਵੀ ਸੀ । 1797 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਦੀ ਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਅਧੀਨ ਬਹੁਤ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਇਲਾਕਾ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰੀ ਸਦਕਾ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ।

ਲਾਹੌਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਕਸੂਰ, ਸਿਆਲਕੋਟ, ਕਾਂਗੜਾ, ਗੁਜਰਾਤ, ਜੰਮੂ, ਅਟਕ, ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਰਗੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਇਲਾਕਿਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਈ ਭਿਆਨਕ ਲੜਾਈਆਂ ਲੜਨੀਆਂ ਪਈਆਂ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਉੱਤਰ ਵਿੱਚ ਲੱਦਾਖ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ਤਕ ਅਤੇ ਪੂਰਬ ਵਿੱਚ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੱਛਮ ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਤਕ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ “ਸ਼ੇਰੇ ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (Why is Maharaja Ranjit Singh called Sher-i-Punjab ?)
ਜਾਂ
ਤੁਸੀਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਸਥਾਨ ਦਿਉਗੇ ? ਉਸ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰੇ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (What place would you assign in history to Ranjit Singh ? Why is he called Sher-iPunjab ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਭਾਰਤ ਬਲਿਕ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਮਹਾਨ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਮੁਗਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ, ਮਰਾਠਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸ਼ਿਵਾਜੀ, ਮਿਸਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਮਹਿਮਤ ਅਲੀ ਅਤੇ ਫ਼ਰਾਂਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨੈਪੋਲੀਅਨ ਆਦਿ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਨਿਰਪੱਖ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਵੱਧ ਸਨ । ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਾ ਉਸ ਦੇ ਕੋਲ ਸਿਰਫ਼ ਨਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ ! ਪਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇ ਨਾਲ ਇਸ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਨੂੰ ਸਾਕਾਰ ਕੀਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਹੀ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਪਰਜਾ ਦੇ ਦੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਲਸਮਾਨ, ਯੂਰੋਪੀਅਨ ਆਦਿ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਉੱਚੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸਹਿਨਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸੂਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਨਿਆ । ਉਹ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਦਾਨੀ ਵੀ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਵਿਸਥਾਰ ਲਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਵੀ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅੱਜ ਵੀ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ‘ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ’ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਗੌਰਵਮਈ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਚਰਿੱਤਰ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ haracter and Personality of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰਪੂਰਵਕ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain in detail the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe Ranjit Singh as a man.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ ਕਰੋ । (Give a character estimate of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ, ਇੱਕ ਜਰਨੈਲ, ਇੱਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ ਅਤੇ ਇੱਕ ਰਾਜਨੀਤੀਵਾਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ , ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Discuss Maharaja Ranjit Singh as a man, a general, a ruler and a diplomat.)
ਜਾਂ
ਤੁਸੀਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਥਾਂ ਦਿਉਗੇ ? ਉਸ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (What place would you assign to Ranjit Singh in the history ? Why is he called Sher-i-Punjab ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸਗੋਂ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਮਹਾਨ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਉਹ ਬਹੁਪੱਖੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਨੂੰ ਠੀਕ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸ਼ੇਰੇ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

(ਉ) ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ (As a Man)

1. ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ (Appearance) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ ਬਹੁਤੀ ਖਿੱਚ ਭਰਪੂਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕੱਦ ਦਰਮਿਆਨਾ ਅਤੇ ਜਿਸਮ ਪਤਲਾ ਸੀ । ਬਚਪਨ ਵਿੱਚ ਚੇਚਕ ਨਿਕਲ ਆਉਣ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦੀ ਇੱਕ ਅੱਖ ਵੀ ਮਾਰੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਵਿੱਚ ਇੰਨੀ ਖਿੱਚ ਸੀ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਮਿਲਣ ਵਾਲਾ ਵਿਅਕਤੀ ਉਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਬਿਨਾਂ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਚਿਹਰੇ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਖ਼ਾਸ ਕਿਸਮ ਦਾ ਤੇਜ ਅਤੇ ਜਲਾਲ ਟਪਕਦਾ ਸੀ ।

2. ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ (Hardworking and Active) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਸੀ । ਉਹ ਇਸ ਗੱਲ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਕਿ ਵੱਡੇ ਆਦਮੀਆਂ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਮਿਹਨਤੀ ਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਵੇਰ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਰਾਤ ਦੇਰ ਤਕ ਰਾਜ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਰੁੱਝਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਵੱਡੇ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਕੰਮ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਛੋਟੇ ਤੋਂ ਛੋਟੇ ਕੰਮ ਵੱਲ ਨਿਜੀ ਧਿਆਨ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।

3. ਸਾਹਸੀ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ (Courageous and Brave) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸਾਹਸੀ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰ ਵਿਅਕਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਯੁੱਧਾਂ ਵਿੱਚ ਜਾਣ, ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡਣ, ਤਲਵਾਰ ਚਲਾਉਣ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰੀ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਛੋਟੇ ਹੁੰਦਿਆਂ ਹੀ ਹਸ਼ਮਤ ਖ਼ਾਂ ਚੱਠਾ ਦਾ ਸਿਰ ਵੱਢ ਕੇ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦਾ ਸਬੂਤ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਹ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵੀ ਬਿਲਕੁਲ ਘਬਰਾਉਂਦਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਹੋ ਕੇ ਲੜਦਾ ਸੀ ।

4. ਅਨਪੜ੍ਹ ਪਰ ਸਿਆਣਾ (Illiterate but Intelligent) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਿੱਚ ਦਿਲਚਸਪੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਅਨਪੜ੍ਹ ਹੀ ਰਿਹਾ । ਅਨਪੜ੍ਹ ਹੋਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਉਹ ਬਹੁਤ ਤੀਖਣ ਬੁੱਧੀ ਅਤੇ ਅਦਭੁਤ ਯਾਦ ਸ਼ਕਤੀ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਭੂਗੋਲਿਕ ਸਥਿਤੀ ਜ਼ਬਾਨੀ ਯਾਦ ਸੀ । ਉਹ ਜਿਸ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਾਰ ਦੇਖ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ਉਸ ਨੂੰ ਕਈ ਸਾਲਾਂ ਮਗਰੋਂ ਵੀ ਪਛਾਣ ਲੈਂਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਇੰਨੀ ਸੀ ਕਿ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਆਏ ਯਾਤਰੀ ਵੀ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

5. ਦਿਆਲੂ ਸੁਭਾਅ (Kind Hearted) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਦਿਆਲਤਾ ਕਾਰਨ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨਾਲ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਵਰਤਾਓ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਇਸ ਸ਼ਾਸਕ ਨੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੂੰ ਮੈਦਾਨੇ ਜੰਗ ਵਿੱਚ ਹਰਾਇਆ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਕੇਵਲ ਗਲਵੱਕੜੀ ਲਾਇਆ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਔਲਾਦ ਨੂੰ ਵੀ ਜਾਗੀਰਾਂ ਤੇ ਖਿਲਅਤਾਂ ਨਾਲ ਨਿਵਾਜਿਆ । ਉਹ ਗ਼ਰੀਬਾਂ, ਦੁਖੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਦਿਆਲਤਾ ਦੀਆਂ ਕਈ ਕਹਾਣੀਆਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ । ਉੱਘੇ ਲੇਖਕ ਫ਼ਕੀਰ ਸੱਯਦੇ ਵਹੀਦਉੱਦੀਨ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਲੋਕ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੀ ਤਸਵੀਰ ਇੱਕ ਜੇਤੂ ਨਾਇਕ ਜਾਂ ਇੱਕ ਬਲਵਾਨ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨਾਲੋਂ ਇੱਕ ਦਿਆਲੂ ਪਿਤਾਮਾ ਵਜੋਂ ਵਧੇਰੇ ਉਕਰਿਤ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਤਿੰਨੇ ਗੁਣ ਸਨ, ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਦਿਆਲਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਆਨ-ਸ਼ਾਨ ਤੇ ਰਾਜ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਪਿੱਛੇ ਛੱਡ ਆਈ ਹੈ ਅਤੇ ਅਜੇ ਤਕ ਜੀਵਿਤ ਹੈ ”1

6. ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ (A devoted follower of Sikhism) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ‘ਤੇ ਅਟੱਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਜਾ ਕੇ ਭਾਰੀ ਚੜ੍ਹਾਵਾ ਚੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਅਤੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਜੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ ‘ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ’ ਅਤੇ ‘ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ‘ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਬਣਵਾਈਆਂ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਗੁੰਬਦ ਉੱਤੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਕੰਮ ਕਰਵਾਇਆ । ਸੰਖੇਪ . ਵਿੱਚ ਉਹ ਤਨੋਂ-ਮਨੋਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੱਚੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸਨ ।

7. ਸਹਿਣਸ਼ੀਲ (Tolerant) – ਭਾਵੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਪੰਥ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਧਾਰਮਿਕ ਪੱਖਪਾਤ ਅਤੇ ਫਿਰਕੂਪੁਣੇ ਤੋਂ ਕੋਹਾਂ ਦੂਰ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਡੋਗਰੇ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਮੁਸਲਮਾਨ, ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ ਅਤੇ ਸੈਨਾਪਤੀ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਹਿੰਦੂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਰਸਮਾਂਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੀ । ਡਾਕਟਰ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਜਾਂ ਮੱਧਕਾਲੀਨ ਭਾਰਤੀ ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਕੋਈ ਵੀ ਸ਼ਾਸਕ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਬਰਾਬਰੀ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ।”

(ਅ) ਇੱਕ ਜਰਨੈਲ ਅਤੇ ਜੇਤੂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ (As a General and a Conqueror)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲਾਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਜਿੰਨੀਆਂ ਵੀ ਲੜਾਈਆਂ ਲੜੀਆਂ ਉਸ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵਿੱਚ ਵੀ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਨਹੀਂ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਉਹ ਵੱਡੀ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਔਕੜ ਆਉਣ ‘ਤੇ ਵੀ ਕਦੇ ਘਬਰਾਉਂਦਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ 1823 ਈ. ਵਿੱਚ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਖ਼ਾਲਸਾ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੌਸਲੇਂ ਛੱਡ ਦਿੱਤੇ । ਅਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੌੜ ਕੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਪਹੁੰਚਿਆ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਜੋਸ਼ ਭਰਿਆ ।

ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੇਤੂ ਵੀ ਸੀ । 1797 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਦੀ ਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਅਧੀਨ ਬਹੁਤ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਇਲਾਕਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰੀ ਸਦਕਾ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਕਸੂਰ, ਸਿਆਲਕੋਟ, ਕਾਂਗੜਾ, ਗੁਜਰਾਤ, ਜੰਮੂ, ਅਟਕ, ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਰਗੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਉੱਤਰ ਵਿੱਚ ਲੱਦਾਖ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ਤਕ ਅਤੇ ਪੂਰਬ ਵਿੱਚ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੱਛਮ ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਤਕ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾਕਟਰ ਗੰਡਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, ‘‘ਉਹ (ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ) ਭਾਰਤ ਦੇ ਮਹਾਨ ਨਾਇਕਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ ।” 2

(ੲ) ਇੱਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ (As An Administrator)

ਇਸ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਯੋਗ ਅਤੇ ਈਮਾਨਦਾਰ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਵੱਡੇ ਸਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਮੌਜਾ ਜਾਂ ਪਿੰਡ ਸੀ । ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਕਸਰ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਰਾਜ ਦੇ ਵਿਭਿੰਨ ਹਿੱਸਿਆਂ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕਰਿਆ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਜਾ ਬੜੀ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਵੀ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸੀ ਕਿ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਹੋਣਾ ਅਤਿ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਉਹ ਪਹਿਲਾ ਭਾਰਤੀ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ਜਿਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਯੂਰਪੀਅਨ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਨੇ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਤੋਪਖ਼ਾਨੇ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਨਿਜੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਆਪ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਹੁਲੀਆ ਰੱਖਣ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਦਾਗਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਸੈਨਿਕਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਪੂਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਡਾਕਟਰ ਐੱਚ. ਆਰ. ਗੁਪਤਾ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ, ‘‘ਉਹ ਭਾਰਤੀ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਚੰਗੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ ।’’1

(ਸ) ਇੱਕ ਰਾਜਨੀਤੀਵੇਤਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ (As a Diplomat)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਸਫਲ ਰਾਜਨੀਤੀਵਾਨ ਸੀ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਮਿਸਲ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਕਮਜ਼ੋਰ ਮਿਸਲਾਂ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਧ ਗਈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ-ਇੱਕ ਕਰਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਮਿਸਲਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਉਹ ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾਉਂਦਾ ਸੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਜ਼ਾਰੇ ਲਈ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੇ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੀ ਕੂਟਨੀਤੀ ਸਦਕਾ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਤੋਂ ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲਾ ਬਿਨਾਂ ਲੜੇ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ 1835 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਆਇਆ ਤਾਂ ਮਹਾਂਰਾਜੇ ਨੇ ਅਜਿਹੀ ਚਾਲ ਚਲੀ ਕਿ ਉਹ ਬਿਨਾਂ ਲੜੇ ਹੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦੌੜ ਗਿਆ ।

1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਡੂੰਘੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ ਅਤੇ ਦੂਰਦਰਸ਼ਤਾ ਦੀ ਨਿਸ਼ਾਨੀ ਸੀ । ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਸੰਬੰਧੀ ਨੀਤੀ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਡੂੰਘੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ । ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਨਾ ਕਰਨਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਿਆਣਪ ਦਾ ਇੱਕ ਹੋਰ ਸਬੂਤ ਸੀ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾਕਟਰ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, ‘‘ਕੂਟਨੀਤੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣਾ ਕੋਈ ਆਸਾਨ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਸੀ ।” 2

(ਹ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਉਸ ਦਾ ਸਥਾਨ (His Place in the History of the Punjab)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾ ਸਿਰਫ ਭਾਰਤ ਬਲਕਿ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਮਹਾਨ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ, ਮਰਾਠਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸ਼ਿਵਾਜੀ, ਮਿਸਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਮਹਿਮਤ ਅਲੀ ਅਤੇ ਫ਼ਰਾਂਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨੈਪੋਲੀਅਨ ਆਦਿ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਨਿਰਪੱਖ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਵੱਧ ਸਨ । ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਾ ਉਸ ਦੇ ਕੋਲ ਸਿਰਫ ਨਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ । ਪਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇ ਨਾਲ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਨੂੰ ਸਾਕਾਰ ਕੀਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਹੀ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਪਰਜਾ ਦੇ ਦੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਯੂਰਪੀਅਨ ਆਦਿ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਉੱਚੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸਹਿਨਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸੂਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਨ੍ਹਿਆ । ਉਹ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਦਾਨੀ ਵੀ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਵਿਸਥਾਰ ਲਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਵੀ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅੱਜ ਵੀ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ’ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ ।ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਗੌਰਵਮਈ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ ।
ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਡਾਕਟਰ ਐੱਚ. ਆਰ. ਗੁਪਤਾ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,
“ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ, ਯੋਧਾ, ਜਰਨੈਲ, ਜੇਤੂ, ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ, ਹਾਕਮ ਅਤੇ ਰਾਜਨੀਤੀਵੇਤਾ ਵਜੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਮਹਾਨ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਵਿੱਚ ਉੱਚ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ ।”

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਕਿਵੇਂ ਵਰਣਨ ਕਰੋਗੇ ? (How do you describe about Maharaja Ranjit Singh as a Man ?)
ਜਾਂ
ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Ranjit Singh as a Man ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਬਾਰੇ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Write about the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਚਰਿੱਤਰ ਤੇ ਮੁੱਖ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦੀਆਂ ਤਿੰਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Mention the three characteristics of the character and personality of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਭਾਵੇਂ ਅਨਪੜ੍ਹ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਕੁਦਰਤ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਅਦੁੱਤੀ ਯਾਦ ਸ਼ਕਤੀ ਅਤੇ ਹੌਸਲੇ ਦਾ ਵਰਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਬੜਾ ਦਿਆਲੂ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਦੇ ਵੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਧਰਮ ਦੇ ਸੱਚੇ ਸੇਵਕ ਸਨ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਵੱਲ ਵਤੀਰਾ ਬੜਾ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰਿਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਦਿਆਲੂ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ । ਕਿਵੇਂ ? (Maharaja Ranjit Singh was a kind ruler. How ?)
ਉੱਤਰ-ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਦਿਆਲਤਾ ਕਾਰਨ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੂੰ ਮੈਦਾਨੇ ਜੰਗ ਵਿੱਚ ਹਰਾਇਆ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜਾਗੀਰਾਂ ਤੇ ਖਿਲਅਤਾਂ ਨਾਲ ਨਿਵਾਜਿਆ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਉਹ ਗ਼ਰੀਬਾਂ, ਦੁਖੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਦਿਆਲਤਾ ਦੀਆਂ ਕਈ ਕਹਾਣੀਆਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਦਲੀਲਾਂ ਦਿਓ । (Maharaja Ranjit Singh was a devoted follower of Sikhism. Give arguments in your favour.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਆਪਣੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਮਿਹਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਖਵਾਉਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ‘ਸਿੰਘ ਸਾਹਿਬ ਅਖਵਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ ‘ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ’ ਅਤੇ ‘ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਬਣਵਾਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਧਰਮ-ਨਿਰਪੇਖ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ । ਕਿਵੇਂ ? (Maharaja Ranjit Singh was a secular ruler. How ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਭਾਵੇਂ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਨਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਡੋਗਰੇ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉਲੇਖ ਕਰੋ । (Describe Maharaja Ranjit Singh as an administrator.)
ਜਾਂ
ਇਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Maharaja Ranjit Singh as an administrator ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੇਤੂ, ਸਗੋਂ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਚੰਗੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਯੋਗ ਅਤੇ ਇਮਾਨਦਾਰ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ | ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਮੌਜਾ ਜਾਂ ਪਿੰਡ ਸੀ । ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਰਾਜ ਦਾ ਦੌਰਾ ਵੀ ਕਰਿਆ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਵਿਸਤਾਰ ਲਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਵੀ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
“ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਅਤੇ ਜੇਤੂ ਸੀ ।” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“Maharaja Ranjit Singh was a great general and conqueror.” Explain.)
ਜਾਂ
ਇੱਕ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਜਰਨੈਲ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Ranjit Singh as a Soldier and a General ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸੈਨਾਪਤੀ ਅਤੇ ਜੇਤੂ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਬਹਾਦਰੀ ਸਦਕਾ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਸਿਆਲਕੋਟ, ਗੁਜਰਾਤ, ਜੰਮੂ, ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਰਗੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਲਾਕੇ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੇ ਸਨ | ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਉਸ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਉੱਤਰ ਵਿੱਚ ਲੱਦਾਖ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਕਾਰਪੁਰ ਤਕ ਅਤੇ ਪੂਰਬ ਵਿੱਚ ਸਤਲੁਜ ਨਦੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੱਛਮ ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਤਕ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (Why Maharaja Ranjit Singh is called Sher-i-Punjab ?)
ਜਾਂ
ਤੁਸੀਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਸਥਾਨ ਦਿਉਗੇ ? ਉਸ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (What place would you assign in History to Ranjit Singh ? Why is he called Sher-iPunjab ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਸਫਲ ਜੇਤੂ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਕੁਸ਼ਲ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਪਤੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ ਹੋਈ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਬਣਾਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਕਰਕੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਚਾਈ ਰੱਖਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਗੁਣਾਂ ਕਾਰਨ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ’ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਬੜਾ ਦਿਆਲੂ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਿਸ ਘੋੜੇ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਲਗਾਉ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲੈਲੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਪੈਰੋਕਾਰ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮਾਣ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਹਿੰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿ ਕੇ ਬੁਲਾਉਂਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
‘ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਕੁਕਰ’ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
‘ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਜੀ’।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਇੱਕ ਗੈਰ-ਸਿੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼-ਉੱਦ-ਦੀਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਦਰਬਾਰੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸੋਹਣ ਲਾਲ ਸੂਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸੈਨਾ ਨਾਇਕ ਕਿਉਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਸਫਲ ਕੂਟਨੀਤੀਵਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮਾਣ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਨਾ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਸਿਆਣਪ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਅਤੇ ਉੱਚ ਕੋਟੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਨੂੰ ਪਾਰਸ ਕਿਉਂ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ਦਾ ਬਹੁਤ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ –

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਸੂਰਤ ………………….. ਨਹੀਂ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਖਿੱਚ ਭਰਪੂਰ)

2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ………………………. ਨਾਂ ਦੇ ਘੋੜੇ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲੈਲੀ)

3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ………………………. ਸਮਝਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਕੁਕਰ)

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ …………. ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ……………………. ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਜੀ)

6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸ਼ਰਾਬ ਦੇ ਬਹੁਤ ……………………….. ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ੌਕੀਨ)

7. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ …………………… ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲੈਲੀ ਨਾਂ ਦੇ ਘੋੜੇ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਕੁਕਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸ਼ਰਾਬ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

7. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਮਹਾਨ ਜੇਤੂ ਸੀ ਸਗੋਂ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

8. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਅੱਜ ਵੀ ਲੋਕ ਸ਼ੇਰ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਸੀ ?
(i) ਉਹ ਬੜਾ ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀਲਾ ਸੀ
(ii) ਉਸ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਬਹੁਤ ਦਿਆਲੂ ਸੀ
(iii) ਉਹ ਅਨਪੜ ਪਰ ਸਿਆਣਾ ਸੀ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਿਸ ਘੋੜੇ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਸੀ ?
(i) ਲੈਲੀ
(ii) ਸੈਲੀ
(iii) ਚੇਤਕ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਲੈਲੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿ ਕੇ ਬੁਲਾਉਂਦੇ ਸਨ ?
(i) ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਆਮ.
(ii) ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਸ
(iii) ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ‘ਤੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ ?
(i) ਫ਼ਤਿਹ ਧਰਮ
(ii) ਅਕਾਲ ਸਹਾਏ
(iii) ਫ਼ਤਿਹ ਦਰਸ਼ਨ
(iv) ਨਾਨਕ ਸਹਾਏ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਅਕਾਲ ਸਹਾਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਤੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਸਨ ?
(i) ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ
(ii) ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ
(iii) ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ
(iv) ਤੇਗ਼ ਸਹਾਇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 21 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਚਰਣ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿਦਵਾਨ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਸੋਹਣ ਲਾਲ ਸੁਰੀ
(ii) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼-ਉੱਦ-ਦੀਨ
(iii) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(iv) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਸੋਹਣ ਲਾਲ ਸੁਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰੇ-ਏ-ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(ii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(iii) ਮਹਾਰਾਜਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ
(iv) ਮਹਾਰਾਜਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ‘ਤੇ ਅਟੱਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਇੱਕ ਕਲਗੀ ਆਪਣੇ ਤੋਸ਼ੇਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਸੀ ਜਿਸ ਦੀ ਛੋਹ ਨੂੰ ਉਹ ਆਪਣੇ ਲਈ ਬੜਾ ਵਡਭਾਗਾ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਮਿਹਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤਾਂ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਉਹ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਜਾ ਕੇ ਭਾਰੀ ਚੜ੍ਹਾਵਾ ਚੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ‘ਕੂਕਰ’ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਅਤੇ ਦਰਬਾਰ ਨੂੰ ‘ਦਰਬਾਰ ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਜੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਖਵਾਉਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ‘ਸਿੰਘ ਸਾਹਿਬ’ ਅਖਵਾਉਂਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ ‘ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ’ ਅਤੇ ‘ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ‘ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ’ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਅਟਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਕੋਈ ਇੱਕ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦਿਉ ।
2. ‘ਕੂਕਰ’ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ?
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ ?
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿੱਕਿਆਂ ‘ਤੇ …………………….. ਤੇ …………………… ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਉਹ ਆਪਣਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਅਰਦਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
2. ਕੁਕਰ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਦਾਸ ਜਾਂ ਨੌਕਰ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ-ਏ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਮੋਹਰ ਉੱਤੇ ‘ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ’ ਸ਼ਬਦ ਉਕਰੇ ਹੋਏ ਸਨ ।
5. ਨਾਨਕ ਸਹਾਇ, ਗੋਬਿੰਦ ਸਹਾਇ ।

2. ਭਾਵੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਕਾਰ ਭਰੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਧਾਰਮਿਕ ਪੱਖਪਾਤ ਅਤੇ ਫਿਰਕੂਪੁਣੇ ਤੋਂ ਕੋਹਾਂ ਦੂਰ ਸੀ । ਉਹ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸੀ ਕਿ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਚਿਰਸਥਾਈ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਲਈ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਨਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀਆਂ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ਤੇ ਸਿੱਖ, ਹਿੰਦੂ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਡੋਗਰੇ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਮੁਸਲਮਾਨ, ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ, ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀਦਾਸ ਅਤੇ ਸੈਨਾਪਤੀ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਹਿੰਦੂ ਸਨ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ, ਕੋਰਟ, ਗਾਰਡਨਰ ਆਦਿ ਯੂਰਪੀਅਨ ਸਨ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ? ਕਿਵੇਂ ?
2. ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
4. ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀਦਾਸ ਕੌਣ ਸੀ ?
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ………………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਉਹ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
2. ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਡੋਗਰਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਸੀ ।
4. ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀਦਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
5. ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਰੂਪ-ਰੇਖਾ ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Give an outline of central administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਧੁਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਅਸੀਮ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਤੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਕਾਨੂੰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ, ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਅਤੇ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਨਾਂ ਦੇ ਮੰਤਰੀ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨਣਾ ਜਾਂ ਨਾ ਮੰਨਣਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਰਜ਼ੀ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਆਪਣੇ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨ ਲੈਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ 12 ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲ, ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ, ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਖਵਾਜਿਬ ਅਤੇ ਦਫ਼ਤਰ-ਏਰੋਜ਼ਨਾਮਚਾ-ਏ-ਇਖਰਾਜਾਤ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the position of Maharaja in Central Administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਸਰੂਪ ਕੀ ਸੀ ? (Explain the nature of administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁਖੀ ਸੀ । ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਸੋਮਾ ਸੀ । ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਅੰਦਰੂਨੀ ਅਤੇ ਬਾਹਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੁਆਰਾ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਮੰਤਰੀਆਂ, ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸੈਨਿਕ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀਆਂ ਨਿਯੁਕਤੀਆਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।ਉਹ ਜਦ ਚਾਹੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।ਉਹ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ਤੇ ਰਾਜ ਦੀ ਸਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਉਸ ਦੇ ਇਸ਼ਾਰੇ ‘ਤੇ ਚਲਦੀ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁੱਖ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਵੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਮੁੰਹ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਕੋਈ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਉਸ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸ਼ਾਸਕ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਜਾਂ ਸੰਧੀ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰਨ ਦਾ ਪੂਰਨ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ‘ਤੇ ਕਰ ਲਗਾਉਣ ਜਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਹਟਾਉਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਕਿਸੇ ਤਾਨਾਸ਼ਾਹ ਨਾਲੋਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਦੇ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੀ ਦੁਰਵਰਤੋਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਵਿੱਚ ਹੀ ਆਪਣੀ ਭਲਾਈ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਅਜਿਹੇ ਮਹਾਨ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਦੀਆਂ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ ? (How was the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕੀ ਸੀ ? (What was the position of Nazim in Province during the times of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਕੁਸ਼ਲ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਤਾਂ ਜਾਂ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਸਨ-ਸੁਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ, ਸੂਬਾ-ਏ-ਮੁਲਤਾਨ, ਸੁਬਾ-ਏ-ਕਸ਼ਮੀਰ, ਸੂਬਾ-ਏ-ਪਿਸ਼ਾਵਰ । ਸੁਬੇ ਜਾਂ ਪਾਂਤ ਦਾ ਮੁਖੀਆ ਨਾਜ਼ਿਮ ਕਹਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਅਹੁਦਾ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਿਸ਼ਵਾਸਯੋਗ, ਸਮਝਦਾਰ, ਈਮਾਨਦਾਰ ਅਤੇ ਅਨੁਭਵ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਹੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਅਨੇਕਾਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ ।

  • ਉਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਜ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਅਤੇ ਕਾਨੂੰਨ ਵਿਵਸਥਾ ਬਣਾ ਕੇ ਰੱਖਣਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਜ਼ਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕਰਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਫੈਸਲਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਬੇਨਤੀਆਂ ਸੁਣਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਸ ਦੇ ਅਧੀਨ ਕੁੱਝ ਸੈਨਾ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਕਈ ਵਾਰ ਛੋਟੇ-ਮੋਟੇ ਅਭਿਯਾਨਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵੀ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਲਗਾਨ ਸਮੇਂ ਤੇ ਕੇਂਦਰੀ ਖ਼ਜਾਨੇ ਵਿੱਚ ਜਮਾਂ ਕਰਾਉਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਜ਼ਰੂਰਤ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਕੇਂਦਰ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ ਵੀ ਭੇਜਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਪੁੱਤ ਦਾ ਚੱਕਰ ਲਗਾ ਕੇ ਇਹ ਪਤਾ ਲਗਾਉਂਦਾ ਸੀ ਕੀ ਪਰਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਖੁਸ਼ ਹੈ ਕਿ ਨਹੀਂ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੇ ਕੋਲ ਅਸੀਮ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਸਨ ਪਰੰਤੂ ਉਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਸੰਬੰਧਿਤ ਕੋਈ ਵੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਫ਼ੈਸਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਤੋਂ ਆਗਿਆ ਲੈਣੀ ਪੈਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਖ਼ੁਦ ਅਤੇ ਕੇਂਦਰੀ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੇ ਕਾਰਜਾਂ ਦਾ

ਨਿਰੀਖਣ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਨਾ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਚੰਗੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਮਿਲਦੀਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਉਹ ਬਹੁਤ ਸ਼ਾਨ ਨਾਲ ਵੱਡੇ ਮਹੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Wrte a note on local administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What do you know about the local administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਅੱਗੇ ਲਿਖੀਆਂ ਹਨ-

1. ਪਰਗਨਿਆਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ – ਹਰ ਸੂਬੇ ਜਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਕਈ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕਾਰਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨਾ, ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਵਾਉਣਾ, ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ, ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮੇ ਸੁਣਨਾ ਸੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਦੇ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਵਾਂਗ ਸਨ । ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਮੁਕੱਦਮ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

2. ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ – ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੌਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਛੋਟੇ-ਮੋਟੇ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਲੋਕ ਪੰਚਾਇਤ ਦਾ ਬੜਾ ਮਾਣ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਟਵਾਰੀ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਚੌਧਰੀ ਲਗਾਨ ਉਗਰਾਹੁਣ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪਿੰਡ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਦਖਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

3. ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ, ਮੁਹੱਲੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ, ਵਪਾਰ ਤੇ ਉਦਯੋਗ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਨਾਪ-ਤੋਲ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨਾ ਆਦਿ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਕੀ ਸਥਿਤੀ ਸੀ ? (What was the position of Kardar during the times of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹਰ ਸੂਬੇ ਜਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਕਈ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕਾਰਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਨਿਭਾਉਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰ ਕੇ ਕੇਂਦਰੀ ਖਜ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਪਰਗਨੇ ਦੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਪੂਰਾ ਹਿਸਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਹਰ ਕਿਸਮ ਦੇ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਵੀ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਕਾਰਦਾਰ ਆਪਣੇ ਇਲਾਕੇ ਦਾ ਆਬਕਾਰੀ ਅਤੇ ਸੀਮਾ ਕਰ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਰਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਉਸ ਦਾ ਕਰਤੱਵ ਸੀ ।

ਉਹ ਕਰ ਨਾ ਦੇਣ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਵੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਲੋਕ ਭਲਾਈ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਰਸੂਖ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲਦਾ-ਜੁਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਵਾਪਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਇੱਕ ਲੇਖਾਕਾਰ ਵਜੋਂ ਵੀ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਬਣੇ ਹੋਏ ਸਰਕਾਰੀ ਅਨਾਜ ਭੰਡਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨਾਜ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਵੀ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the administration of city of Lahore during the times of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਹ ਪਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਹਰ ਮੁਹੱਲਾ ਇੱਕ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਆਪਣੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ । ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ, ਮੁਹੱਲੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ, ਵਪਾਰ ਤੇ ਉਦਯੋਗ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਨਾਪ-ਤੋਲ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨੀ ਆਦਿ ਸਨ । ਉਹ ਦੋਸ਼ੀ ਲੋਕਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਲੋੜੀਂਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਵੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈਆਂ ਬਾਰੇ ਚਾਨਣਾ ਪਾਓ । (Describe main features of Maharaja Ranjit Singh’s land revenue administration.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਬਾਰੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the economic administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਵੱਲ ਆਪਣਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ-

  • ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਸਰਕਾਰ ਫ਼ਸਲ ਕੱਟਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਆਪਣਾ ਲਗਾਨ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਖ਼ਰਚੀਲੀ ਸੀ ।ਦੂਜਾ, ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨੀ ਸੰਬੰਧੀ ਪਹਿਲਾਂ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ ।
  • ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – 1824 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਈ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੀਤਾ ।ਇਸ ਅਧੀਨ ਲਗਾਨ ਖੜੀ ਫ਼ਸਲ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਲਗਾਨ ਨਕਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਵੱਧ ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ 3 ਤੋਂ 6 ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
  • ਬਿਘਾ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਬਿਘੇ ਦੀ ਉਪਜ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਹਲ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਇੱਕੋ ਜੋੜੀ ਦੁਆਰਾ ਜਿੰਨੀ ਭੁਮੀ ‘ਤੇ ਹਲ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ, ਉਸ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਖੂਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਨੁਸਾਰ ਇੱਕ ਖੁਹ ਜਿੰਨੀ ਜ਼ਮੀਨ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸਕਦਾ ਸੀ, ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਦੀ ਉਪਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਅਨਾਜ ਅਤੇ ਨਕਦ ਦੋਹਾਂ ਰੂਪਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕਾਰਦਾਰ, ਮੁਕੱਦਮ, ਪਟਵਾਰੀ, ਕਾਨੂੰਗੋ ਅਤੇ ਚੌਧਰੀ ਸਨ । ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੀ ਸੀ । ਜਿਹੜੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਉਪਜ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ, ਉੱਥੇ ਲਗਾਨ 50% ਸੀ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਉਪਜ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਸੀ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਤੇ ਤੋਂ ਤੇ ਤਕ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the chief features of Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਰਾਜ ਦੇ ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਅਸੈਨਿਕ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ, ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ, ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਅਤੇ ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਜਾਂ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਥਾਈ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਜਾਂ ਅਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਏਜੰਟ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਕੇਵਲ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ਸਗੋਂ ਉਹ ਨਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਵੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਭਰਤੀ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਕੁਝ ਦੋਸ਼ ਤਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਸਨ ਪਰ ਇਹ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Discuss the main features of the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਾਧਾਰਨ ਸੀ । ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਆਖਰੀ ਫ਼ੈਸਲਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਜ ਭਰ ਵਿੱਚ ਕਈ ਅਦਾਲਤਾਂ ਕਾਇਮ ਕੀਤੀਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਦਾ ਨਾਂ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਸੀ । ਇਹ ਨਾਜ਼ਿਮ ਅਤੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲਾਂ ਸੁਣਦੀ ਸੀ । ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਅਤੇ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਨੂੰ ਸੁਣਦੀਆਂ ਸਨ । ਨਿਆਂ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖ਼ਾਸ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਦਾਲਤੀ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਕਸਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵੀ ਕਾਇਮ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਨਿਆਂ ਲਈ ਮੁਸਲਮਾਨ ਅਤੇ ਗ਼ੈਰ-ਮੁਸਲਮਾਨ ਲੋਕ ਜਾ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਸਥਾਨਿਕ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਸਖ਼ਤ ਨਹੀਂ ਸਨ | ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਤੋਂ ਜੁਰਮਾਨਾ ਵਸੂਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਅਪਰਾਧ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਹੱਥ, ਪੈਰ, ਨੱਕ ਆਦਿ ਕੱਟ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਫ਼ੌਜੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main features of Maharaja Ranjit Singh’s military administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਕੀ ਸੁਧਾਰ ਕੀਤੇ ? (What reforms were introduced by Ranjit Singh to improve his military administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸੈਨਾ ’ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the military of Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਨ-

  • ਰਚਨਾ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਰਗਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਲੋਕ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ, ਰਾਜਪੁਤ, ਬਾਹਮਣ, ਖੱਤਰੀ, ਗੋਰਖੇ ਅਤੇ ਪੂਰਬੀ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।
  • ਭਰਤੀ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਬਿਲਕੁਲ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਮਰਜ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਕੇਵਲ ਰਿਸ਼ਟ-ਪੁਸ਼ਟ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀ ਭਰਤੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕੇਵਲ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉੱਚ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਭਰੋਸੇਯੋਗ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਅਫ਼ਸਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਤਨਖ਼ਾਹ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਜਾਂ ਤਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਜਾਂ ਜਿਣਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦੇਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ।
  • ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਕਾਬਲੀਅਤ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ ਦੇਣ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਿਸੇ ਸੈਨਿਕ ਨਾਲ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਜਾਂ ਧਰਮ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਇਨਾਮ ਅਤੇ ਖ਼ਿਤਾਬ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਹਰ ਸਾਲ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਸੇਵਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਬਾਹਦਰੀ ਵਿਖਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੱਖਾਂ ਰੁਪਏ ਇਨਾਮ ਅਤੇ ਉੱਚੇ ਖਿਤਾਬ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।
  • ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜਾ ਸਖ਼ਤ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਕਾਇਮ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਸੰਗਠਨ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਉੱਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the Fauj-i-Khas of Maharaja Ranjit Singh’s army.)
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅੰਗ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ‘ਮਾਡਲ ਬ੍ਰਿਗੇਡ’ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਪੈਦਲ ਫ਼ੌਜ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਬਟਾਲੀਅਨਾਂ, ਘੋੜਸਵਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਰਜਮੈਂਟਾਂ ਅਤੇ 24 ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਯੂਰਪੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਰੜੀ ਸਿਖਲਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜੇ ਚੋਣਵੇਂ ਸੈਨਿਕ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਗਏ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਵੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਕਿਸਮ ਦੇ ਸਨ । ਇਸੇ ਲਈ ਇਸ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਆਪਣਾ ਵੱਖਰਾ ਝੰਡਾ ਅਤੇ ਚਿੰਨ੍ਹ ਸਨ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਬਹੁਤ ਅਨੁਸ਼ਾਸਿਤ ਸੀ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਕਠਿਨ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਭੇਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਕਾਰਜਕੁਸ਼ਲਤਾ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਅਫ਼ਸਰ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ ਸਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇ-ਕਵਾਇਦ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? (What do you mean by Fauj-i-Be-Qawaid of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇ-ਕਵਾਇਦ ਉਹ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਚਾਰਾਂ ਭਾਗਾਂ
(i) ਘੋੜ-ਚੜੇ
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲੂਜਾਤ
(iii) ਅਕਾਲੀ ਅਤੇ
(iv) ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਸੀ ।ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਘੋੜ-ਚੜੇ – ਘੋੜ-ਚੜੇ ਬੇ-ਕਵਾਇਦ ਸੈਨਾ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭਾਗ ਸੀ । ਇਹ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਸਨ-

  • ਘੋੜ੍ਹ-ਚੜ੍ਹੇ ਖ਼ਾਸ – ਇਸ ਵਿੱਚ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰੀਆਂ ਦੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਅਤੇ ਉੱਚ ਖ਼ਾਨਦਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵਿਅਕਤੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।
  • ਮਿਸਲਦਾਰ – ਇਸ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ਜਿਹੜੇ ਮਿਸਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸੈਨਿਕ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਸਨ । ਘੋੜ-ਚੜ੍ਹੇ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚ ਮਿਸਲਦਾਰਾਂ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਘੱਟ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲੜਨ ਦਾ ਢੰਗ ਪੁਰਾਣਾ ਸੀ । 1838-39 ਈ. ਵਿੱਚ ਘੋੜ-ਚੜਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 10,795 ਸੀ ।

2. ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲ੍ਹਜਾਤ – ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਕੋਲ ਇੱਕ ਵੱਖਰੀ ਫ਼ੌਜ ਸੀ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲੂਜਾਤ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਹਰੇਕ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕਿਲ੍ਹਾਜਾਤ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਅਨੁਸਾਰ ਵੱਖੋਵੱਖਰੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਕਮਾਨ ਅਫ਼ਸਰ ਨੂੰ ਕਿਲ੍ਹੇਦਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

3. ਅਕਾਲੀ – ਅਕਾਲੀ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਭਿਆਨਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਭੇਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਹੋ ਕੇ ਘੁੰਮਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਸਿਖਲਾਈ ਜਾਂ ਪਰੇਡ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ । ਉਹ ਧਰਮ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 3,000 ਦੇ ਕਰੀਬ ਸੀ । ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅਕਾਲੀ ਸਾਧੂ ਸਿੰਘ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨੇਤਾ ਸਨ ।

4. ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਫ਼ੌਜ – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ‘ਤੇ ਇਹ ਸ਼ਰਤ ਲਗਾਈ ਗਈ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਲੋੜ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਦੇਣ । ਇਸ ਲਈ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਰਾਜ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਪੈਦਲ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕ ਰੱਖਦੇ ਸਨ | ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਨਿਰੀਖਣ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਰਜਾ ਵੱਲ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਵਤੀਰਾ ਸੀ ? (What was Ranjit Singh’s attitude towards his subjects ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਰਜਾ ਵੱਲ ਵਤੀਰਾ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੇ ਹਿਤਾਂ ਨੂੰ ਕਦੇ ਅੱਖੋਂ ਉਹਲੇ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਯਤਨ ਕਰਨ | ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਅਕਸਰ ਰਾਜ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ। ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਭਾਰੀ ਅਕਾਲ ਪੈ ਗਿਆ ਸੀ ਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਖੱਚਰਾਂ ’ਤੇ ਅਨਾਜ ਲੱਦ ਕੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਭੇਜਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨਾ ਕੇਵਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਬਲਕਿ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤੀ ਵੀ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲਗਾਨ ਮੁਕਤ ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਦਾਨ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਜਾ ਬੜੀ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਪਏ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the effects of Ranjit Singh’s rule on the life of the people.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ।ਉਸ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸੁੱਖ ਦਾ ਸਾਹ ਲਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤਕ ਮੁਗ਼ਲ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੂਬੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਘੋਰ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਾਰੀਆਂ ਅਣਮਨੁੱਖੀ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਕਿਸੇ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਨਾਗਰਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵੱਲ ਵੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਏ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਖੇਤੀ, ਉਦਯੋਗ ਅਤੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹ ਦੇਣ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਉਪਰਾਲੇ ਕੀਤੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਪਰਜਾ ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਭਾਵੇਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪੱਕਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸੀ ਪਰ ਉਸ ਨੇ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ । ਅੱਜ ਵੀ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਗੌਰਵਮਈ ਸ਼ਾਸਨ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਾਗਰਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ (Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Discuss about the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ‘ਤੇ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Discuss the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਵਿਸਤਾਰਪੂਰਵਕ ਦੱਸੋ । (Explain the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ, ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਅਤੇ ਸਥਾਨਿਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Describe the salient features of Maharaja Ranjit Singh’s Central, Provincial and Local Administration.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਸਹਿਤ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain in detail the Central and Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh.).
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕੇਂਦਰੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the Central and Provincial Administrative System of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
(Give a detailed description of Maharaja Ranjit Singh’s Provincial and Local Government.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰਪੂਰਵਕ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe in detail the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੋਤੁ ਸੀ ਸਗੋਂ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਜਾਂ ਨਾਗਰਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-

1. ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Central Administration)

(ਉ) ਮਹਾਰਾਜਾ (The Maharaja) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਾਰੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਧੁਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਮੰਤਰੀਆਂ, ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸੈਨਿਕ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀਆਂ ਨਿਯੁਕਤੀਆਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਜਦ ਚਾਹੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਉਸ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੋਂ ਹਟਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁੱਖ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਮੁਖ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਪਰਜਾ ਲਈ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਕੋਈ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਉਸ ਦੇ ਹੁਕਮ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਦਾ ਹੌਸਲਾ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਵੀ ਸੀ ਤੇ ਰਾਜ ਦੀ ਸਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਉਸ ਦੇ ਇਸ਼ਾਰੇ ‘ਤੇ ਚਲਦੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਯੁੱਧ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰਨ ਜਾਂ ਸੰਧੀ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ‘ਤੇ ਨਵੇਂ ਕਰ ਲਗਾ ਸਕਦਾ ਜਾਂ ਪੁਰਾਣੇ ਕਰਾਂ ਨੂੰ ਘੱਟ ਜਾਂ ਮਾਫ਼ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਕਿਸੇ ਤਾਨਾਸ਼ਾਹ ਨਾਲੋਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਸਨ | ਪਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਦੇ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੀ ਦੁਰਵਰਤੋਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

(ਅ) ਮੰਤਰੀ (The Ministers-ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਇੱਕ ਮੰਤਰੀ ਪਰਿਸ਼ਦ ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਸਿਰਫ਼ ਯੋਗ ਅਤੇ ਇਮਾਨਦਾਰ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਮੰਤਰੀ ਆਪੋ-ਆਪਣੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਸੰਬੰਧੀ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਸਲਾਹ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਮੰਨਣਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ।

1. ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ (Prime Minister) – ਕੇਂਦਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੂਸਰਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਸਲਾਹ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਗੈਰ-ਹਾਜ਼ਰੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਦੀ ਨੁਮਾਇੰਦਗੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ ਪੱਤਰ ਉਸ ਦੇ ਰਾਹੀਂ ਹੀ ਮਹਾਰਾਜੇ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਦੇਰ ਤਕ ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਨਿਯੁਕਤ ਰਿਹਾ ।

2. ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ (Foreign Minister) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਵੀ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਉਹ ਵਿਦੇਸ਼ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਦੂਸਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਅਤੇ ਸੁਲ੍ਹਾ ਸੰਬੰਧੀ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਬਾਰੇ ਸਲਾਹ ਦੇਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਆਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਚਿੱਠੀਆਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਸੁਣਾਉਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ ਅਨੁਸਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਚਿੱਠੀਆਂ ਦਾ ਜਵਾਬ ਭੇਜਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼-ਉਦ-ਦੀਨ ਲੱਗਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

3. ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ (Finance Minister) – ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਮੰਤਰੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਪੂਰਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ ਸੀ | ਸਾਰੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਦੇ ਖ਼ਰਚਿਆਂ ਆਦਿ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਾਰੇ ਕਾਗਜ਼ ਪੜਤਾਲ ਲਈ ਪਹਿਲਾਂ ਦੀਵਾਨ ਕੋਲ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ, ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾ ਨਾਥ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਸਨ ।

4. ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ (Commander-in-Chief) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਆਪ ਹੀ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਆਦਮੀਆਂ ਨੂੰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਯੁੱਧ ਸਮੇਂ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ ਸੀ । ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ, ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਅਤੇ ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸਨ ।

5. ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ (Deorhiwala) – ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਸ਼ਾਹੀ ਰਾਜ ਘਰਾਣੇ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਆਗਿਆ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕੋਈ ਆਦਮੀ ਮਹੱਲਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੇ ਮਹੱਲਾਂ ਲਈ ਪਹਿਰੇਦਾਰਾਂ ਦਾ ਵੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਹ ਜਲੂਸਾਂ ਦਾ ਵੀ ਉੱਚਿਤ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ਸੀ ।

(ੲ) ਕੇਂਦਰੀ ਵਿਭਾਗ ਜਾਂ ਦਫ਼ਤਰ (Central Departments or Daftars) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਹੂਲਤ ਲਈ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਲਈ ਵਿਭਾਗਾਂ ਜਾਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਦੇ ਬਾਰੇ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ । ਡਾਕਟਰ ਜੀ. ਐੱਲ. ਚੋਪੜਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 15, ਡਾਕਟਰ ਐੱਨ. ਕੇ. ਸਿਨਹਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ 12 ਅਤੇ ਸੀਤਾਰਾਮ ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ 7 ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਮੁੱਖ ਦਫ਼ਤਰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-

  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲੇ (Daftar-i-Abwab-ul-Mal) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਰਾਜ ਦੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸੋਮਿਆਂ ਤੋਂ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਲੇਖਾ-ਜੋਖਾ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਮਾਲ (Daftar-i-Mal) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪਰਗਨਿਆਂ ਅਤੇ ਤਾਲੁਕਿਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਭੁਮੀ ਲਗਾਨ ਦਾ ਹਿਸਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਵਹਾਤ (Daftar-i-Wajuhat) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੀ ਫ਼ੀਸ ਅਤੇ ਅਫ਼ੀਮ, ਭੰਗ ਅਤੇ ਹੋਰ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ‘ਤੇ ਲੱਗੇ ਆਬਕਾਰੀ ਕਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਹਿਸਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ (Daftar-i-Taujihat) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਸ਼ਾਹੀ ਘਰਾਣੇ ਦੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਮਵਾਜਿਬ (Daftar-i-Mawajib) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਸਿਵਿਲ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਦਾ ਲੇਖਾ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
  • ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਰੋਜ਼ਨਾਮਚਾ-ਇਖਜ਼ਾਤ (Daftar-i-Roznamcha-i-Ikhrazat) – ਇਹ ਦਫ਼ਤਰ ਰਾਜ ਦੀ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।

I. ਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ : (Provincial Administration)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਵਧੇਰੇ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਲਈ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੂਬਿਆਂ ਜਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਇਹ ਸਨ-

  1. ਸੂਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ,
  2. ਸੂਬਾ-ਏ-ਮੁਲਤਾਨ,
  3. ਸੂਬਾਏ-ਕਸ਼ਮੀਰ,
  4. ਸੂਬਾ-ਏ-ਪਿਸ਼ਾਵਰ ।

ਨਾਜ਼ਿਮ ਸੁਬੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਨਾਜ਼ਿਮ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਜ਼ਿਲਿਆਂ ਦੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਵੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਪਾਸ ਅਸੀਮ ਅਧਿਕਾਰ ਸਨ, ਪਰ ਉਹ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਦੁਰਵਰਤੋਂ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਜਦ ਚਾਹੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਮੇਂ-

  1. ਸਰਦਾਰ ਲਹਿਣਾ ਸਿੰਘ ਮਜੀਠੀਆ
  2. ਮਿਸਰ ਰੂਪ ਲਾਲ
  3. ਦੀਵਾਨ ਸਾਵਨ ਮਲ
  4. ਕਰਨੈਲ ਮੀਹਾਂ ਸਿੰਘ
  5. ਅਵੀਤਾਬਿਲ ਨਾਜ਼ਿਮ ਸਨ ।

III. ਸਥਾਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ (Local Administration)

(ਉ) ਪਰਗਨਿਆਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Administration of the Parganas) – ਹਰ ਸੂਬੇ ਜਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਕਈ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਗਨੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕਾਰਦਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਕਾਰਦਾਰ ਦਾ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਧਾ ਸੰਬੰਧ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਨਿਭਾਉਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨਾ, ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਵਾਉਣਾ, ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ, ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮੇ ਸੁਣਨਾ ਸੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਦੇ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਵਾਂਗ ਸਨ । ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਕਾਨੂੰਨ ਅਤੇ ਮੁਕੱਦਮ ਨਾਂ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

(ਅ) ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ (Village Administration) – ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੌਜ਼ਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤ ਚਲਾਉਂਦੀ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਲੋਕ ਪੰਚਾਇਤ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਰੂਪ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਫੈਸਲਿਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਟਵਾਰੀ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਚੌਧਰੀ ਲਗਾਨ ਉਗਰਾਹੁਣ ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮੁਕੱਦਮ ਪਿੰਡ ਦਾ ਮੁੱਖੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਕੜੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪਿੰਡ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਦਖ਼ਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

(ੲ) ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ (Administration of the City of Lahore) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ । ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ, ਮੁਹੱਲੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ, ਵਪਾਰ ਤੇ ਉਦਯੋਗ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਨਾਪ-ਤੋਲ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨੀ ਆਦਿ ਸਨ । ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਹਰ ਮੁਹੱਲਾ ਇੱਕ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਆਪਣੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

IV. ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Land Revenue Administration)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਵੱਲ ਆਪਣਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ-

  • ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bataj System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਸਰਕਾਰ ਫ਼ਸਲ ਕੱਟਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਆਪਣਾ ਲਗਾਨ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਖ਼ਰਚੀਲੀ ਸੀ । ਦੂਜਾ, ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨੀ ਸੰਬੰਧੀ ਪਹਿਲਾਂ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ ।
  • ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Kankut System – 1824 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਈ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕਨਕਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਅਧੀਨ ਲਗਾਨ ਖੜ੍ਹੀ ਫ਼ਸਲ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਲਗਾਨ ਨਕਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bidding System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਵੱਧ ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ 3 ਤੋਂ 6 ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
  • ਬਿਘਾ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bigha System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਬਿਘੇ ਦੀ ਉਪਜ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਹਲ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Plough System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਇੱਕੋ ਜੋੜੀ ਦੁਆਰਾ ਜਿੰਨੀ ਭੂਮੀ ‘ਤੇ ਹਲ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਖੂਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Well System) -ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਨੁਸਾਰ ਇੱਕ ਖੂਹ ਜਿੰਨੀ ਜ਼ਮੀਨ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸਕਦਾ ਸੀ ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਦੀ ਉਪਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਅਨਾਜ ਅਤੇ ਨਕਦ ਦੋਹਾਂ ਰੂਪਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕਾਰਦਾਰ, ਮੁਕੱਦਮ, ਪਟਵਾਰੀ, ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਚੌਧਰੀ ਸਨ । ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੀ ਸੀ । ਜਿਹੜੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਉਪਜ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ ਉੱਥੇ ਲਗਾਨ 50% ਸੀ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਉਪਜ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ \(\frac{2}{5}\)ਤੋਂ \(\frac{1}{3}\)ਤਕ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ ।

V. ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ (Judicial Administration)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਾਧਾਰਨ ਸੀ । ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਰੀਤੀਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਆਖਿਰੀ ਫ਼ੈਸਲਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਜ ਭਰ ਵਿੱਚ ਕਈ ਅਦਾਲਤਾਂ ਕਾਇਮ ਕੀਤੀਆਂ ਸਨ ।

ਮਹਾਰਾਜੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਦਾ ਨਾਂ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਸੀ । ਇਹ ਨਾਜ਼ਿਮ ਅਤੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲਾਂ ਸੁਣਦੀ ਸੀ । ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਅਤੇ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਨੂੰ ਸੁਣਦੀਆਂ ਸਨ । ਨਿਆਂ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖ਼ਾਸ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਦਾਲਤੀ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਕਸਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵੀ ਕਾਇਮ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਨਿਆਂ ਲਈ ਮੁਸਲਮਾਨ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਮੁਸਲਮਾਨ ਲੋਕ ਜਾ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਸਥਾਨਿਕ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਸਖ਼ਤ ਨਹੀਂ ਸਨ | ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਤੋਂ ਜੁਰਮਾਨਾ ਵਸੂਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਅਪਰਾਧ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਹੱਥ, ਪੈਰ, ਨੱਕ ਆਦਿ ਕੱਟ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ | ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿੱਤੀ ਪ੍ਰਬੰਧ (Financial Administration of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ। (Discuss the salient features of Maharaja Ranjit Singh’s Financial Administration.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਬਾਰੇ ਵਿਸਥਾਰ ਸਹਿਤ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the Financial System of Maharaja Ranjit Singh in detail.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਭੂ-ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । P.S.E.B. (Sept. 1990) (Discuss the Land Revenue System of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਹਰੇਕ ਰਾਜ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸ਼ਾਸਨ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਧਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਅਜਿਹਾ ਧਨ ਇੱਕ ਯੋਜਨਾਬੱਧ ਵਿੱਤੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਰਾਹੀਂ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਦੀ ਕੋਈ ਨਿਯਮਿਤ ਵਿਵਸਥਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਸੀ । 1808 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵਿੱਤੀ ਢਾਂਚੇ ਵਿੱਚ ਸੁਧਾਰ ਲਿਆਉਣ ਲਈ ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਵਿੱਤ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Land Revenue Administration) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸੀ | ਰਾਜ ਦੀ ਕੁਲ ਸਾਲਾਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਤਿੰਨ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਆਮਦਨ ਵਿੱਚੋਂ ਲਗਭਗ ਦੋ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਭੂਮੀ ਦੇ ਲਗਾਨ ਵਜੋਂ ਇਕੱਠੇ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ-

  • ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Batai System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਫ਼ਸਲ ਕੱਟਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਰਕਾਰ ਆਪਣਾ ਲਗਾਨ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਖ਼ਰਚੀਲੀ ਸੀ । ਦੂਜਾ, ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨੀ ਸੰਬੰਧੀ ਪਹਿਲਾਂ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ ।
  • ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Kankut System) – 1824 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਈ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਅਧੀਨ ਲਗਾਨ ਖੜ੍ਹੀ ਫ਼ਸਲ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਲਗਾਨ ਨਕਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bidding System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਵੱਧ ਬੋਲੀ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ 3 ਤੋਂ 6 ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
  • ਬਿਘਾ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Bigha System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਬਿਘੇ ਦੀ ਉਪਜ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਹਲ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Plough System) – ਇਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਧੀਨ ਬਲਦਾਂ ਦੀ ਇੱਕੋ ਜੋੜੀ ਦੁਆਰਾ ਜਿੰਨੀ ਭੂਮੀ ‘ਤੇ ਹਲ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਖੂਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ (Well System) – ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਅਨੁਸਾਰ ਇੱਕ ਖੂਹ ਜਿੰਨੀ ਜ਼ਮੀਨ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸਕਦਾ ਸੀ ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਦੀ ਉਪਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਅਨਾਜ ਅਤੇ ਨਕਦ ਦੋਹਾਂ ਰੂਪਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕਾਰਦਾਰ, ਮੁਕੱਦਮ, ਪਟਵਾਰੀ, ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਚੌਧਰੀ ਸਨ | ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੀ ਸੀ । ਜਿਹੜੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਉਪਜ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ ਉੱਥੇ ਲਗਾਨ 50% ਸੀ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਉਪਜ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ \(\frac{2}{5}\)
ਤੋਂ \(\frac{1}{3}\) ਤਕ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ | ਅਸੀਂ ਡਾਕਟਰ ਬੀ. ਜੇ. ਹਸਰਤ ਦੇ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,
“ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਦਿਆਲਤਾਪੂਰਨ ਸੀ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਬਹੁਤ ਅੱਤਿਆਚਾਰੀ, ਪਰ ਇਹ ਵਿਹਾਰਿਕ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਸੀ ।”

2. ਸਰਕਾਰੀ ਆਮਦਨ ਦੇ ਹੋਰ ਸਾਧਨ (Other Sources of Government Income) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਹੋਰ ਮੁੱਖ ਸਾਧਨਾਂ ਤੋਂ ਵੀ ਆਮਦਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ-

(ਉ) ਚੰਗੀ ਕਰ (Custom Duties) – ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਦੂਜਾ ਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਚੰਗੀ ਕਰ ਸੀ | ਹਰ ਵਸਤੁ ਉੱਤੇ ਚੰਗੀ ਲਗਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਜਿਸ ਤੋਂ ਲਗਭਗ 17 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਆਮਦਨ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।

(ਅ) ਨਜ਼ਰਾਨਾ (Nazrana) – ਨਜ਼ਰਾਨਾ ਵੀ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਸੀ । ਇਹ ਰਾਜ ਦੇ ਵੱਡੇਵੱਡੇ ਦਰਬਾਰੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਲੋਕ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਮੌਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਤੋਹਫ਼ਿਆਂ ਵੱਜੋਂ ਭੇਂਟ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

(ੲ) ਜ਼ਬਤੀ (Zabti) – ਜ਼ਬਤੀ ਤੋਂ ਰਾਜ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਆਮਦਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਦੀ ਸੰਪੱਤੀ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ‘ਤੇ ਬਾਅਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਹੋਰਨਾਂ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਧਨ ਬਦਲੇ ਵੰਡ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

(ਸ) ਅਦਾਲਤਾਂ ਤੋਂ ਆਮਦਨ (Income from Judiciary) – ਅਦਾਲਤੀ ਆਮਦਨ ਵੀ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਇੱਕ ਚੰਗਾ ਸਾਧਨ ਸੀ । ਦੋਸ਼ੀ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਤੋਂ ਸਰਕਾਰ ਜੁਰਮਾਨਾ ਵਸੂਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਨਿਰਦੋਸ਼ ਸਾਬਤ ਹੋਏ · ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਤੋਂ ਸਰਕਾਰ ਸ਼ੁਕਰਾਨਾ ਵਸੂਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

(ਹ) ਆਬਕਾਰੀ (Excise) – ਆਬਕਾਰੀ ਕਰ ਅਫ਼ੀਮ, ਭੰਗ, ਸ਼ਰਾਬ ਤੇ ਹੋਰ ਨਸ਼ੇ ਵਾਲੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਲਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

(ਕ) ਲੂਣ ਤੋਂ ਆਮਦਨ (Income from Salt) – ਕੇਵਲ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਖਾਣਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਲੂਣ ਕੱਢਣ ਅਤੇ ਵੇਚਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਵੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੁਝ ਆਮਦਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।

(ਖ) ਅਬਵਾਬ (Abwabs) – ਅਬਵਾਬ ਉਹ ਕਰ ਸਨ ਜੋ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਉਗਰਾਹੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਦਾ 5% ਤੋਂ 15% ਹਿੱਸਾ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

(ਗ) ਕਿੱਤਾ ਕਰ (Professional Tax) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕਿੱਤੇ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ‘ਤੇ ਕਿੱਤਾ ਕਰ ਲਗਾਇਆ ਸੀ । ਇਹ ਕਰ ਵਪਾਰੀਆਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਰੁਪਏ ਤੋਂ ਦੋ ਰੁਪਏ ਪ੍ਰਤੀ ਵਿਅਕਤੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

3. ਖ਼ਰਚ (Expenditure-ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਰਕਾਰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ, ਜੰਗੀ ਸਾਮਾਨ ਤਿਆਰ ਕਰਨ, ਰਾਜ ਦੇ ਦਰਬਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਿਵਿਲ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਦੇਣ, ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉੱਨਤ ਕਰਨ, ਸਰਕਾਰੀ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ, ਧਰਮ ਅਰਥ ਕੰਮਾਂ ਲਈ ਅਤੇ ਇਨਾਮਾਂ ਆਦਿ ਉੱਤੇ ਖ਼ਰਚ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ (Jagirdarl System of Maharaja Ranjit Singh).

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ‘ਤੇ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Discuss about the Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਸਿੱਖ ਮਿਸਲਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸੀ ਪਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਰੂਪ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-

ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ (Kinds of Jagirs)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ-

1. ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ (Service Jagirs) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ । ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਅਤੇ ਸਿਵਲ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੋਹਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ | ਸਾਰੀਆਂ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਭਾਵੇਂ ਉਹ ਸੈਨਿਕ ਸਨ ਜਾਂ ਅਸੈਨਿਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਤਕ ਰੱਖੀਆਂ ਜਾ ਸਕਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਘਟਾਇਆ ਜਾਂ ਵਧਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਬਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

(ੳ) ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਾਂ (Military Jagirs) – ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਾਂ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਕੁਝ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਘੋੜਸਵਾਰ ਰੱਖਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀਆਂ ਨਿਜੀ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਉੱਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਖ਼ਰਚਿਆਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਧਿਆਨ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਕਿ ਹਰ ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਘੋੜਸਵਾਰ ਜ਼ਰੂਰ ਰੱਖੇ । ਇਸ ਲਈ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਘੋੜਸਵਾਰਾਂ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਜਿਹੜੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੇ ਘੱਟ ਘੋੜਸਵਾਰ ਰੱਖੇ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । 1830 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਦਾਗਣ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

(ਅ) ਸਿਵਿਲ ਜਾਗੀਰਾਂ (Civil Jagirs) – ਸਿਵਿਲ ਜਾਗੀਰਾਂ ਰਾਜ ਦੇ ਸਿਵਿਲ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦੇ ਬਦਲੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਸਿਵਿਲ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕੋਈ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਘੋੜਸਵਾਰ ਨਹੀਂ ਰੱਖਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਸਿਵਿਲ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੀ ।

2. ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ (Inam Jagirs) – ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਜਾਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਾਰਨਾਮਿਆਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਇਨਾਮ ਵਜੋਂ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜੱਦੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ ।

3. ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ (Subsistence Jagirs) – ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਗੁਜ਼ਾਰੇ ਲਈ ਦਿੰਦਾ ਸੀ | ਅਜਿਹੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਿਸੇ ਸੇਵਾ ਦੀ ਆਸ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ, ਹਾਰੇ ਹੋਏ ਹਾਕਮਾਂ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਸ਼ਰਿਤਾਂ ਅਤੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਆਸ਼ਰਿਤਾਂ ਨੂੰ ਗੁਜ਼ਾਰੇ ਲਈ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ | ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਾਂਗ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜਾਂਦੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ ।

4. ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ (Watan Jagirs) – ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਪੱਟੀਦਾਰ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਿਸੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਿੱਖ ਮਿਸਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਚੱਲੀਆਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਜੱਦੀ (Hereditary) ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵੜਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ ਪਰ ਉਸ ਨੇ ਕੁਝ ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਘੋੜਸਵਾਰ ਰੱਖਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

5. ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ (Dharamarth Jagirs) – ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਜਿਵੇਂ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ, ਮੰਦਰਾਂ ਅਤੇ ਮਸਜਿਦਾਂ ਜਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੀ ਆਮਦਨ ਯਾਤਰੀਆਂ ਦੀ ਰਿਹਾਇਸ਼, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲਈ ਲੰਗਰ ਅਤੇ ਪਵਿੱਤਰ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਉੱਤੇ ਖ਼ਰਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਪੱਕੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Other Features of the Jagirdari System)

1. ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਆਕਾਰ (Size of the Jagirs) – ਸਾਰੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਭਾਵੇਂ ਉਹ ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ਦੇ ਆਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਅੰਤਰ ਸੀ, ਪਰ ਇਹ ਅੰਤਰ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰ ਇੱਕ ਪਿੰਡ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਜਾਂ ਉਸ ਦਾ ਕੋਈ ਹਿੱਸਾ ਜਾਂ ਕੁਝ ਏਕੜ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਸਾਰੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਸਮਾਨ ਵੱਡੀਆਂ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦੀਆਂ ਸਨ ।

2. ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ (Administration of the Jagirs) – ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜਾਂ ਤਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਜਾਂ ਅਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਆਪਣੇ ਏਜੰਟਾਂ ਦੇ ਰਾਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਛੋਟੀਆਂ-ਛੋਟੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਤਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਜਾਂ ਉਸ ਦੀ ਗੈਰ-ਹਾਜ਼ਰੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਈ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਇਕੱਲਿਆਂ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਉਹ ਮੁਖਤਾਰਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਜਾਂ ਉਸ ਦੇ ਏਜੰਟ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਨਿਯਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਲਗਾਨ ਆਪਣੀ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਅਧੀਨ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਿਸਾਨ ਜਾਂ ਕਾਮੇ ਉਸ ਤੋਂ ਨਾਰਾਜ਼ ਨਾ ਹੋਣ ।

3. ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮ (Duties of Jagirdars) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਨਾ ਸਿਰਫ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ਸਗੋਂ ਉਸ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਨਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਬਹਾਦਰ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਛੋਟੀਆਂ-ਮੋਟੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਵੀ ਦੇ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਬਕਾਇਆ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸੌਂਪ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਕੁਝ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਕੂਟਨੀਤਿਕ ਮਿਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਕੁਝ ਹੋਰਨਾਂ ਨੂੰ ਬਾਹਰੋਂ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਸਵਾਗਤ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਸੌਂਪੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ ।

ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਗੁਣ (Merits of the Jagirdari System)

1. ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੇ ਝੰਜਟ ਤੋਂ ਮੁਕਤ (Free from the burden of Collecting Revenue) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਸਰਕਾਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੇ ਝੰਜਟ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।

2. ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਤਿਆਰ ਹੋਣਾ (A large force was Prepared) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਿਹੜੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਸੈਨਿਕ ਰੱਖਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਵੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਲੋੜ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਭੇਜਦੇ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਦਕਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

3. ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਤਾ (Help in the Administration) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਨਾ ਸਿਰਫ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ਸਗੋਂ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸਾਰੇ ਨਿਆਂਇਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਨਜਿੱਠਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਨਜ਼ਰਾਨਾ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਵੀ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਉਹ ਛੋਟੀਆਂ-ਮੋਟੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

4. ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਰੰਕੁਸ਼ਤਾ ’ਤੇ ਰੋਕ (Restriction on the despotism of Ranjit Singh) – ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਅਸੀਮਿਤ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਉੱਤੇ ਰੋਕ ਲਗਾਉਣ ਦਾ ਵੀ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪਣਾ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਵਿੱਚ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਮਨਮਰਜ਼ੀ ਦਾ ਰਾਜ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੀ ਖੁਸ਼ੀ ਦਾ ਵੀ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ।

ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਔਗੁਣ (Demerits of the Jagirdari System)

1. ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦਾ ਅਭਾਵ (Lack of unity in the Army) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਕੋਲ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ ਭਰਤੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਹਰ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਅਧੀਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਸਿਖਲਾਈ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਤਾਲਮੇਲ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਹ ਸੈਨਿਕ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਬਜਾਏ ਆਪਣੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਧੇਰੇ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

2. ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ (Exploitation of Peasants) – ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਜਾਗੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਭਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਕਿਸਾਨਾਂ ਤੋਂ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਵੱਡੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਅਕਸਰ ਠੇਕੇਦਾਰਾਂ ਕੋਲੋਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਰਕਮ ਲੈ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦੇ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਠੇਕੇਦਾਰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਮੁਨਾਫ਼ਾ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

3. ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ (Jagirdars used to lead a Luxurious Life) – ਕਿਉਂਕਿ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਬਹੁਤ ਅਮੀਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਮਹੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰੰਗ-ਰਲੀਆਂ ਅਤੇ ਜਸ਼ਨ ਮਨਾਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਦਾ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਇਹ ਵੀ ਸੀ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ਪਿੱਛੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਜ਼ਬਤ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰਾਜ ਦੇ ਬਹੁਮੁੱਲੇ ਧਨ ਨੂੰ ਵਿਅਰਥ ਹੀ ਗੁਆ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

4. ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀਆਂ ਲਈ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ (Jagirdari System proved harmful to the successors of Ranjit Singh) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਸੌਂਪੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ । ਆਪਣੇ ਜਿਊਂਦੇ ਜੀ ਤਾਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨਿਯੰਤਰਨ ਹੇਠ ਰੱਖਿਆ ਪਰ ਉਸ ਦੀ ਮੌਤ ਪਿੱਛੋਂ ਉਸ ਦੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਵਾਰਸਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਉਹ ਕਾਬੂ ਹੇਠ ਨਾ ਰਹੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਰਾਜ ਵਿਰੁੱਧ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਗੱਲ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਲਈ ਬੜੀ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । | ਭਾਵੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕੁਝ ਦੋਸ਼ ਸਨ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਬੜੀ ਸਫਲ ਰਹੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ (Judicial Administration of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ ਕਰੋ । (Make an assessment of the judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਵਿਸਥਾਰ ਨਾਲ ਲਿਖੋ । (What do you know about the Judicial Administration of Maharaja Ranjit Singh ? Explain in detail.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਸਾਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਫ਼ੈਸਲੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-

1. ਅਦਾਲਤਾਂ (Courts) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਰਜਾ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀਆਂ ਸਨ-

  • ਪੰਚਾਇਤ (Panchayat) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੰਚਾਇਤ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਪਰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਦਾਲਤ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਵਿੱਚ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਪੰਜ ਮੈਂਬਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡ ਦੇ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦੀ ਸੁਣਵਾਈ ਪੰਚਾਇਤ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਸਰਕਾਰ ਪੰਚਾਇਤ ਦੇ ਕੰਮ-ਕਾਜ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਦਖ਼ਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ।
  • ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Qazi’s Court) – ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।
  • ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Jagirdars Court) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਲਗਾਉਂਦੇ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਦੋਹਾਂ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।
  • ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Kardar’s Court) – ਕਾਰਦਾਰ ਪਰਗਨੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੀ ਸੁਣਵਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
  • ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Nazim’s Court) – ਹਰ ਸੂਬੇ ਵਿੱਚ ਨਿਆਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨਾਜ਼ਿਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਅਦਾਲਤੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Adalti’s Court) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵੱਡੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਜਿਵੇਂ ਲਾਹੌਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ, ਮੁਲਤਾਨ, ਜਲੰਧਰ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਲਈ ਅਦਾਲਤੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਹ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੀ ਸੁਣਵਾਈ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਆਪਣਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ।
  • ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ (Adalat-i-Ala) – ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਸਥਾਪਿਤ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਤੋਂ ਥੱਲੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਸੀ । ਇਸ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਕਾਰਦਾਰ ਅਤੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲਾਂ ਸੁਣੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਸ ਅਦਾਲਤ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਅਪੀਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਸੀ ।
  • ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਅਦਾਲਤ (Maharaja’s Court) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਅੰਤਿਮ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਫਰਿਆਦੀ ਨਿਆਂ ਲੈਣ ਲਈ ਸਿੱਧਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੋਲ ਫਰਿਆਦ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਾਰਦਾਰਾਂ, ਨਾਜ਼ਿਮਾਂ ਅਤੇ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵੀ ਅਪੀਲਾਂ ਸੁਣਦਾ ਸੀ । ਸਿਰਫ਼ ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੂੰ ਹੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦੇਣ ਜਾਂ ਸਜ਼ਾ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਜਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਮੁਆਫ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ।

2. ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੇ ਢੰਗ (Working of the Courts) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੀ ਕਾਰਜ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸਾਦਾ ਅਤੇ ਵਿਹਾਰਿਕ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਲੈਣ ਲਈ ਲੋਕ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਦਾਲਤ ਵਿੱਚ ਜਾ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਜਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਆਪਣੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਸੁਣਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਲੋਕ ਇਨ੍ਹਾਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਮਹਾਰਾਜੇ ਕੋਲ ਅਪੀਲ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ ।

3. ਸਜ਼ਾਵਾਂ (Punishments) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦੇਣ ਦੇ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਸੀ | ਮੌਤ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਕਿਸੇ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਬਹੁਤੇ ਅਪਰਾਧਾਂ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜੁਰਮਾਨਾ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਅੰਗ ਕੱਟਣ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਵੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਸਜ਼ਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਜੋ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਅਪਰਾਧ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ ।

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀ ਪੜਚੋਲ (Estimate of Maharaja Ranjit Singh’s Judicial System)

(ੳ) ਔਗੁਣ (Demeritsi)

  • ਨਿਆਂ ਨੂੰ ਵੇਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ (Justice was Sold) – ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਨਿਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਇੱਕ ਸਾਧਨ ਬਣਾਇਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਧਨ ਦੇ ਕੇ ਸਜ਼ਾ ਤੋਂ ਬਚਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।
  • ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਸਨ (Courts rights were not Clear) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਠੀਕ ਨਿਆਂ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ।
  • ਕੋਈ ਲਿਖਤੀ ਕਾਨੂੰਨ ਨਹੀਂ ਸੀ (No writtten Laws) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਨੂੰਨ ਲਿਖਤੀ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਕਈ ਵਾਰੀ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਕਰ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

(ਅ) ਗੁਣ (Merits )

  • ਨਿਆਂ ਨੂੰ ਵੇਚਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦਾ ਸੀ (Justice was not Sold) – ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਨੇ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਿਆਂ ਨੂੰ ਵੇਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਛੇਤੀ ਅਤੇ ਸਸਤਾ ਨਿਆਂ (Fast and Cheap Justice) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਗੁਣ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਛੇਤੀ ਅਤੇ ਸਸਤਾ ਨਿਆਂ ਮਿਲਦਾ ਸੀ ।
  • ਕਾਨੂੰਨ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਸਨ (Laws were based on Conventions) – ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਆਪਣੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਲੋਕ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਸਮਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
  • ਨਿਆਂਧੀਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਸਖ਼ਤ ਨਿਗਰਾਨੀ (Strict watch over Judges) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਸਖ਼ਤ ਨਿਗਰਾਨੀ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਿਆਂ ਕਰਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ Military Administration of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰਪੂਰਵਕ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe in detail the military system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਗੁਣ ਅਤੇ ਔਗੁਣ ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Describe the merits and demerits of the Military Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the Military Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Describe the salient features of the military administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਬੜੀ ਦੋਸ਼ਪੂਰਨ ਸੀ । ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਤਾਂ ਕੋਈ ਪਰੇਡ ਕਰਵਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਕਿਸਮ ਦੀ ਕੋਈ ਸਿਖਲਾਈ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਦਾਗਣ ਦਾ ਕੋਈ ਰਿਵਾਜ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸੈਨਿਕ ਯੁੱਧ ਵੱਲ ਘੱਟ ਅਤੇ ਲੁੱਟਮਾਰ ਵੱਲ ਵਧੇਰੇ ਧਿਆਨ ਦਿੰਦੇ ਸਨ | ਅਜਿਹੀ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਸਹੀ ਅਰਥਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਫ਼ੌਜ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਦੇਖ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੁਪਨੇ ਨੂੰ ਸਾਕਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਅਨੁਸ਼ਾਸਿਤ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਲੋੜ ਮਹਿਸੂਸ ਕੀਤੀ । ਇਸੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਆਧੁਨਿਕੀਕਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤੀ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀਅਨ ਦੋਹਾਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਦਾ ਬੜੇ ਸੁਚੱਜੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸੁਮੇਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਵੰਡ (Division of Army)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਦੋ ਭਾਗਾਂ-
(i) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਈਨ (ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ) ਅਤੇ
(ii) ਫ਼ੌਜਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ (ਅਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ) ਵਿੱਚ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਭਾਗਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ (Fauj-i-Ain)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਤਿੰਨ ਹਿੱਸੇ ਸਨ-
(i) ਪਿਆਦਾ ਜਾਂ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ
(ii) ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਅਤੇ
(iii) ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ।

1. ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ (Infantry) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨਕਾਲ ਵਿੱਚ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦੀ ਭਰਤੀ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ ਜੋ 1805 ਈ. ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਸੀ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਅੰਤ ਤਕ ਜਾਰੀ ਰਿਹਾ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾਂ-ਮਾਤਰ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਨਫ਼ਰਤ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਪਠਾਣਾਂ ਅਤੇ ਗੋਰਖਿਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ । 1822 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਚੰਗੇਰੀ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । 1838-39 ਈ. ਵਿੱਚ ਇਸ ਸੈਨਾ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 26,617 ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

2. ਘੋੜਸਵਾਰ (Cavalry) – ਅਨੁਸ਼ਾਸਿਤ ਸੈਨਾ ਦਾ ਭਾਗ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਵੀ ਭਰਤੀ ਨਾ ਹੋਏ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਪਠਾਣ, ਰਾਜਪੂਤ ਅਤੇ ਡੋਗਰਿਆਂ ਆਦਿ ਨੂੰ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਪਰ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਸਿੱਖ ਵੀ ਇਸ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋ ਗਏ । 1822 ਈ. ਵਿੱਚ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਛੇਤੀ ਹੀ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਕਾਫ਼ੀ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਬਣ ਗਈ । 1838-39 ਈ. ਵਿੱਚ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 4090 ਸੀ ।

3. ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ (Artillery) – ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅੰਗ ਸੀ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦਾ ਹੀ ਇੱਕ ਅੰਗ ਸੀ । 1810 ਈ. ਵਿੱਚ ਤੋਪਖ਼ਾਨੇ ਦਾ ਵੱਖਰਾ ਵਿਭਾਗ ਖੋਲ੍ਹਿਆ ਗਿਆ | ਯੂਰਪੀ ਢੰਗ ਦੀ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ ਅਤੇ ਗਾਰਡਨਰ ਨੂੰ ਇਸ ਵਿਭਾਗ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਇਸ ਵਿਭਾਗ ਨੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਉੱਨਤੀ ਕਰ ਲਈ ਸੀ । ਇਸ ਵਿਭਾਗ ਨੂੰ ਚਾਰ ਭਾਗਾਂ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਅਸਪੀ, ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਫੀਲੀ, ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਗਾਵੀ ਅਤੇ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਤਰੀ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ।

ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਫੀਲੀ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਭਾਰੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਸਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਾਥੀਆਂ ਨਾਲ ਖਿੱਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਤੋਪਖ਼ਾਨਾਏ-ਸ਼ੁਤਰੀ ਵਿੱਚ ਉਹ ਤੋਪਾਂ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਊਠਾਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਅਸ਼ ਵਿੱਚ ਉਹ ਤੋਪਾਂ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਘੋੜਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਗਾਵੀ ਵਿੱਚ ਉਹ ਤੋਪਾਂ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬਲਦਾਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ (Fauj-i-Khas)

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅੰਗ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਪੈਦਲ ਫ਼ੌਜ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਬਟਾਲੀਅਨਾਂ, ਘੋੜਸਵਾਰ ਫ਼ੌਜ ਦੀਆਂ ਦੋ ਰਜਮੈਂਟਾਂ ਅਤੇ 24 ਤੋਪਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਯੂਰਪੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਰੜੀ ਸਿਖਲਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜੇ ਚੋਣਵੇਂ ਸੈਨਿਕ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਗਏ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਵੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਕਿਸਮ ਦੇ ਸਨ । ਇਸੇ ਲਈ ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਆਪਣਾ ਵੱਖਰਾ ਝੰਡਾ ਅਤੇ ਚਿੰਨ੍ਹ ਸਨ ।

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ (Fauj-i-Be-Qawaid)

ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ਉਹ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਚਾਰਾਂ ਭਾਗਾਂ
(i) ਘੋੜ-ਚੜੇ
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲਾਜਾਤ
(iii) ਅਕਾਲੀ ਅਤੇ
(iv) ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਘੋੜਚੜੇ (Ghur-Charas) – ਘੋੜਚੜੇ ਬੇਕਵਾਇਦ ਸੈਨਾ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭਾਗ ਸੀ । ਇਹ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਸਨ-
(i) ਘੋੜਚੜੇ ਖ਼ਾਸ-ਇਸ ਵਿੱਚ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰੀਆਂ ਦੇ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਅਤੇ ਉੱਚ ਖ਼ਾਨਦਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵਿਅਕਤੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।
(ii) ਮਿਸਲਦਾਰ-ਇਸ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ਜਿਹੜੇ ਮਿਸਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸੈਨਿਕ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਸਨ । ਘੋੜਚੜੇ ਖ਼ਾਸ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚ ਮਿਸਲਦਾਰਾਂ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਘੱਟ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲੜਨ ਦਾ ਢੰਗ ਪੁਰਾਣਾ ਸੀ । 1838-39 ਈ. ਵਿੱਚ ਘੋੜਚੜਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 10,795 ਸੀ ।

2. ਫੌਜ-ਏ-ਕਿਲੂਜਾਤ (Fauj-i-Kilajat) – ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਕੋਲ ਇੱਕ ਵੱਖਰੀ ਫ਼ੌਜ ਸੀ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਕਿਲਾਜਾਤ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਹਰੇਕ ਕਿਲੇ ਵਿੱਚ ਕਿਲਾਜਾਤ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਅਨੁਸਾਰ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਕਿਲੇ ਦੇ ਕਮਾਨ ਅਫ਼ਸਰ ਨੂੰ ਕਿਲੇਦਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

3. ਅਕਾਲੀ (Akalis) – ਅਕਾਲੀ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਭਿਆਨਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਭੇਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਹੋ ਕੇ ਘੁੰਮਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਸਿਖਲਾਈ ਜਾਂ ਪਰੇਡ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ ।ਉਹ ਧਰਮ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 3,000 ਦੇ ਕਰੀਬ ਸੀ । ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅਕਾਲੀ ਸਾਧੂ ਸਿੰਘ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨੇਤਾ ਸਨ ।

4. ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਫੌਜ (Jagirdari Fau) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ‘ਤੇ ਇਹ ਸ਼ਰਤ ਲਗਾਈ ਗਈ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਲੋੜ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਦੇਣ । ਇਸ ਲਈ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਰਾਜ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਪੈਦਲ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਨਿਰੀਖਣ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Other Features)

  • ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁਲ ਗਿਣਤੀ (Total Strength of the Army) – ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਨ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਕੁਲ ਗਿਣਤੀ 75,000 ਤੋਂ 1,00,000 ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਸੀ ।
  • ਰਚਨਾ (Composition) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਰਗਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਲੋਕ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ, ਰਾਜਪੂਤ, ਬ੍ਰਾਹਮਣ, ਖੱਤਰੀ, ਮੁਸਲਮਾਨ, ਗੋਰਖੇ ਅਤੇ ਪੂਰਬੀਆਂ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।
  • ਭਰਤੀ (Recruitment) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਬਿਲਕੁਲ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਮਰਜ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ ਸੀ । ਕੇਵਲ ਸਿਹਤਵੰਦ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀ ਭਰਤੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕੇਵਲ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਸੀ ।
  • ਤਨਖ਼ਾਹ (Pay) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਜਾਂ ਤਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਾਂ ਜਿਣਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦੇਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ।
  • ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ (Promotions) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਕਾਬਲੀਅਤ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਪਦ ਉੱਨਤੀਆਂ ਦੇਣ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਕਿਸੇ ਸੈਨਿਕ ਨਾਲ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਜਾਂ ਧਰਮ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਇਨਾਮ ਅਤੇ ਖਿਤਾਬ (Rewards and Honours) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਹਰ ਸਾਲ ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਸੇਵਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹਾਦਰੀ ਵਿਖਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੱਖਾਂ ਰੁਪਏ ਇਨਾਮ ਅਤੇ ਉੱਚੇ ਖਿਤਾਬ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।
  • ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ (Discipline) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜਾ ਸਖ਼ਤ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਕਾਇਮ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਉੱਪਰ ਦਿੱਤੇ ਵੇਰਵਿਆਂ ਤੋਂ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਕੁਸ਼ਲ ਸੈਨਾ ਦੀ · ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਸਚ-ਮੁੱਚ ਹੀ ਉਸ ਦੀ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸਫਲਤਾ ਸੀ । ਜਨਰਲ ਸਰ ਚਾਰਲਸ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਆਰਥਰ ਡੀ. ਇਨਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ, .
‘‘ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਜਿਹੜੀਆਂ ਸੈਨਾਵਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕੁਸ਼ਲ ਸੀ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਔਖਾ ਸੀ ।’’1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਰੂਪ-ਰੇਖਾ ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Give an outline of Central Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਸੀਮ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ। ਉਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ’ਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਕਾਨੂੰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ, ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਅਤੇ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨਣਾ ਜਾਂ ਨਾ ਮੰਨਣਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮਰਜ਼ੀ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਕੁਝ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the position of Maharaja in Central Administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਸਰੂਪ ਕੀ ਸੀ ? (What was the nature of Administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁਖੀ ਸੀ । ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਸੋਮਾ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਮੰਤਰੀਆਂ, ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸੈਨਿਕ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੀਆਂ ਨਿਯੁਕਤੀਆਂ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ਤੇ ਰਾਜ ਦੀ ਸਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਉਸ ਦੇ ਇਸ਼ਾਰੇ ‘ਤੇ ਚਲਦੀ ਸੀ । ਉਹ ਰਾਜ ਦਾ ਮੁੱਖ ਨਿਆਂਧੀਸ਼ ਵੀ ਸੀ ਤੇ ਉਸ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸ਼ਾਸਕ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਜਾਂ ਸੰਧੀ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕਰਨ ਦਾ ਪੂਰਨ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਾਂਤਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ ? (How was the Provincial Administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕੀ ਸੀ ? (What was the position of Nazim in Province during the times of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਚਾਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੂਬਿਆਂ-

  1. ਸੂਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ,
  2. ਸੂਬਾਏ-ਮੁਲਤਾਨ,
  3. ਸੂਬਾ-ਏ-ਕਸ਼ਮੀਰ,
  4. ਸੂਬਾ-ਏ-ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

ਹਰੇਕ ਸੂਬਾ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਾਤ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕਰੋ । (Analyse the local administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What do you know about the local administration of Maharaja Ranjit Singh ? Explain.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਨੂੰ ਪਰਗਨਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਗਨੇ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ । ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨਾ, ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਵਾਉਣਾ, ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮੇ ਸੁਣਨਾ ਸੀ । ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਮੁਕੱਦਮ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਜਾਂ ਮੌਜਾ ਸੀ । ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਕੀ ਸਥਿਤੀ ਸੀ ? (What was the position of Kardar during the times of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕੰਮ ਲਿਖੋ । (Write any three works of Kardar during the times of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕਾਰਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰ ਕੇ ਕੇਂਦਰੀ ਖ਼ਜ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਪਰਗਨੇ ਦੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਪੂਰਾ ਹਿਸਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਹਰ ਕਿਸਮ ਦੇ ਦੀਵਾਨੀ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਕੰਮ ਲਿਖੋ । (Write functions of Kotwal during the times of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ ।
  2. ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ ।
  3. ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨਾ ।
  4. ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the administration of city of Lahore during the times of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ ? (How was the administration of the city of Lahore during the time of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਹਰ ਮੁਹੱਲਾ ਇੱਕ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹੱਲੇਦਾਰ ਆਪਣੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਲਗਾਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈਆਂ ਬਾਰੇ ਚਾਨਣਾ ਪਾਓ । (Describe main features of Maharaja Ranjit Singh’s land revenue administration.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਬਾਰੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the economic administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਲਈ ਬਟਾਈ, ਕਨਕੂਤ, ਘਾ, ਹਲ ਅਤੇ ਖੁਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਕਾਰਦਾਰ, ਮੁਕੱਦਮ, ਪਟਵਾਰੀ, ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਅਤੇ ਚੌਧਰੀ ਸਨ । ਲਗਾਨ ਨਕਦ ਜਾਂ ਅਨਾਜ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਲਗਾਨ ਭੂਮੀ ਦੀ ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the chief features of Jagirdari system of Maharaja Ranjit Singh ?).
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਰਾਜ ਦੇ ਉੱਚ ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਅਸੈਨਿਕ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ, ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ, ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਅਤੇ ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਜਾਂ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਆਪ ਜਾਂ ਅਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਏਜੰਟ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main features of the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ’ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀਆਂ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਲਿਖੋ । (Write any three features of the Judicial system of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਾਧਾਰਨ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰੀਤੀਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਅੰਤਿਮ ਫੈਸਲਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣ ਦੇ ਲਈ ਰਾਜ ਭਰ ਵਿੱਚ ਕਈ ਅਦਾਲਤਾਂ ਕਾਇਮ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ | ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਕਸਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਨਿਆਂ ਲਈ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਦਾਲਤੀ ਨਾਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਫ਼ਸਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਸਖ਼ਤ ਨਹੀਂ ਸਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਫ਼ੌਜੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main features of Ranjit Singh’s military administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਕੀ ਸੁਧਾਰ ਕੀਤੇ ? (What reforms were introduced by Ranjit Singh to improve his military administration ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the military of Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਫ਼ੌਜੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe any three features of the military administration of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main features of Maharaja Ranjit Singh’s military administration ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about military administration of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੈਨਾਂ ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਯੂਰਪੀ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਨੂੰ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਹੁਲੀਆ ਰੱਖਣ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਦਾਗ਼ਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਹਥਿਆਰ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਕਾਰਖ਼ਾਨੇ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਿੱਜੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਜੰਗ ਵਿੱਚ ਬਹਾਦਰੀ ਦਿਖਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਇਨਾਮ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਾਗੀਦਾਰੀ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਵੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਸੰਗਠਨ ਵਿੱਚ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਉੱਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on the Fauj-i-Khas of Maharaja Ranjit Singh’s army.)
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਅੰਗ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਜਨਰਲ ਵੈਰਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਯੂਰਪੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਰੜੀ ਸਿਖਲਾਈ ਅਧੀਨ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਬੜੇ ਚੋਣਵੇਂ ਸੈਨਿਕ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਵੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਕਿਸਮ ਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਆਪਣਾ ਵੱਖਰਾ ਝੰਡਾ ਅਤੇ ਚਿੰਨ੍ਹ ਸਨ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਬਹੁਤ ਅਨੁਸ਼ਾਸਿਤ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਰਜਾ ਪ੍ਰਤੀ ਵਤੀਰਾ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੀ ? (What was Ranjit Singh’s attitude towards his subjects ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ਪ੍ਰਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਵਤੀਰਾ ਸੀ ? (What was the Maharaja Ranjit Singh’s attitude towards his people ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਰਜਾ ਵੱਲ ਵਤੀਰਾ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਰਾਜ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਯਤਨ ਕਰਨ । ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਅਕਸਰ ਰਾਜ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨਾ ਕੇਵਲ ਸਿੱਖਾਂ ਬਲਕਿ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤੀ ਵੀ ਕੀਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਪਏ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the effects of Ranjit Singh’s rule on the life of the people.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ । ਉਸ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸੁੱਖ ਦਾ ਸਾਹ ਲਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤਕ ਮੁਗਲ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੂਬੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਘੋਰ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਧੁਰਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਉਦੇਸ਼ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਅੰਦਰੂਨੀ ਅਤੇ ਬਾਹਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਰਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਬਾਰੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਸਲਾਹ ਦੇਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼-ਉਦ-ਦੀਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ ਦੂਸਰੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਅਤੇ ਸੰਧੀ ਸੰਬੰਧੀ ਸਲਾਹ ਦੇਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੌਣ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹੀ ਰਾਜ ਘਰਾਣੇ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਬਣਾਏ ਗਏ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ ਕਿੰਨੇ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਚਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨੇ 14.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਸੂਬੇ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸੂਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦੇ ਮੁਖੀ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਮਿਸਰ ਰੂਪ ਲਾਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕੰਮ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਪਰਗਨਾ ਦੇ ਸਰਵੋਚ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਰਦਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸ਼ਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕੌਣ ਕਰਦਾ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਹੜੇ ਅਧਿਕਾਰੀ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੋਤਵਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਕੋਤਵਾਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਕਾਨੂੰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੌਜਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਤੋਂ ਤੁਹਾਡਾ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਨੁਸਾਰ ਲਗਾਨ ਫ਼ਸਲ ਕੱਟਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਤੋਂ ਤੁਹਾਡਾ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਨਕੂਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਨੁਸਾਰ ਲਗਾਨ ਖੜ੍ਹੀ ਫ਼ਸਲ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਚੁੰਗੀ ਕਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਰਾਜ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦੇ ਬਦਲੇ ਜਾਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ ਕੀ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਜਗੀਰਦਾਰ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਉਹ ਜਾਗੀਰਾਂ ਸਨ ਜੋ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਈਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ ਕਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੇਵਾਵਾਂ ਬਦਲੇ ਜਾਂ ਬਹਾਦਰੀ ਦਿਖਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਤੋਹਫ਼ਿਆਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਜ਼ਰਾਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 33.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਅਦਾਲਤ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 34.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਕਿਹੜੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 35.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਦੋਸ਼ ਦੱਸੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 36.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਕੀਤੇ ਗਏ ਸੁਧਾਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਇੱਕ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਪੱਛਮੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸਿਖਲਾਈ ਦਿੱਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 37.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਕਿਹੜੇ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 38.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਕਦੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
1805 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 39.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ਕਿੰਨੇ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਚਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 40.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 41.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦਾ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਕਿਸ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 42.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹਾਥੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਫੀਲੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 43.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਊਠਾਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਸ਼ੁਤਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 44.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਘੋੜਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਅਸਪੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 45.
ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਉਹ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 46.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸੈਨਾ ਦੇ ਦੋ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਯੂਰਪੀਅਨ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਜਾਂ
ਲਾਹੌਰ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਕਿਸੇ ਦੋ ਯੂਰਪੀਅਨ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਯੂਰਪੀ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਸੇ ਦੋ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਅਤੇ ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :- ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ……………………. ਰਾਜ ਦਾ ਮੁਖੀਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਮਹਾਰਾਜਾ)

2. ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ …………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ)

3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਨਾਂ ………………………. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ)

4. ………………………. ਅਤੇ ………………….. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ, ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾ ਰਾਮ)

5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ)

6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਮੇਂ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ …………………… ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਜਮਾਂਦਾਰ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

7. ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ……………………….. ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਹੀ ਰਾਜ ਘਰਾਨੇ)

8. ……………………… ਵੱਲੋਂ ਰਾਜ ਦੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਰੋਜਨਾਮਚਾ-ਏ-ਇਖਰਾਜ਼ਾਤ)

9. ………………….. ਵੱਲੋਂ ਰਾਜ ਦੀ ਬਹੁਮੁੱਲੀ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਸ਼ਾਖ਼ਾਨਾ)

10. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ …………………….. ਸੁਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਚਾਰ)

11. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ……………………….. ਸੁਬੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਨਾਜ਼ਿਮ)

12. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਰਦਾਰ ………………………. ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਪਰਗਨਾ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

13. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ……………………….. ਪਿੰਡ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਪਟਵਾਰੀ)

14. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ………. ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਕੋਤਵਾਲ)

15. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੋਤਵਾਲ ……………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼)

16. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ……………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ)

17. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਗਾਨ ਦੀ ………………………… ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬਟਾਈ)

18. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ………………………… ਵਾਰੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ
ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦੇ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

19. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ……………… ਜਗੀਰਾਂ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸੇਵਾ)

20. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ……………………….. ਜਗੀਰਾਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਧਰਮਾਰਥ)

21. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਨੂੰ ……………………. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ)

22. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ……………………. ਵਿਖੇ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਹੌਰ)

23. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਆਮਤੌਰ ‘ਤੇ ……………………………. ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਜੁਰਮਾਨਾ)

24. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ……………………… ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਫ਼ੌਜ ਏ-ਆਇਨ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

25. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ ਨੂੰ ………………………… ਵਿੱਚ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(1822 ਈ.)

26. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸਮੇਂ ਹਾਥੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਖਿੱਚੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਨੂੰ ………………….. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ-ਏ-ਫੀਲੀ)

27. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ …………………….. ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ)

28. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦਾ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਜਨਰਲ …………………….. ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼)

29. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਦੀ ਉਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਨਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ਨੂੰ ………………….. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਅੰਦਰੂਨੀ ਅਤੇ ਬਾਹਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਨਾਂ ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

3. ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

4. ਦੀਵਾਨ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਨੂੰ ਦੀਵਾਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

6. ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

8. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

9. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲ ਦੁਆਰਾ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਲੇਖਾ-ਜੋਖਾ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ !
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

10. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਰੋਜ਼ਾਨਾਮਚਾ-ਏ-ਇਖਰਾਜਾਤ ਦੁਆਰਾ ਰਾਜ ਦੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

11. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਵੰਡ ਚਾਰ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

12. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕਾਰਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

13. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

14. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

15. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾ ਰਾਮ ਨੇ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

16. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

17. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਬਟਾਈ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਚੱਲਿਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

18. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਤਿੰਨ ਵਾਰ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

19. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੇਵਾ ਜਗੀਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

20. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

21. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਗੀਰਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ |
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

22. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

23. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹਰ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

24. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹਰ ਪਰਗਨੇ ਵਿੱਚ ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

25. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

26. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ੀ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਦਾ ਸੁਮੇਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

27. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

28. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਜਨਰਲ ਵੈੱਤਰਾ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

29. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਦੇ ਤੋਪਖ਼ਾਨੇ ਦੀ ਸਿਖਲਾਈ ਲਈ ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

30. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ਉਹ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਧੁਰਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ
(ii) ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ
(iii) ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ
(iv) ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਾਰਾਜਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ
(ii) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(iii) ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾਨਾਥ
(iv) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜੀਜਉੱਦੀਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ
(ii) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(iii) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ
(iv) ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੌਣ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ?
(i) ਦੀਵਾਨ ਭਵਾਨੀ ਦਾਸ
(ii) ਦੀਵਾਨ ਗੰਗਾ ਰਾਮ
(iii) ਦੀਵਾਨ ਦੀਨਾ ਨਾਥ
(iv) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੌਣ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ?
(i) ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ
(ii) ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ
(iii) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਘਰਾਣੇ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕੌਣ ਕਰਦਾ ਸੀ ?
(i) ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ
(ii) ਕਾਰਦਾਰ
(iii) ਸੂਬੇਦਾਰ
(iv) ਕੋਤਵਾਲ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੌਣ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ?
(i) ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ
(ii) ਸੰਗਤ ਸਿੰਘ
(iii) ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ,
(iv) ਜੱਸਾ ਸਿੰਘ ਰਾਮਗੜ੍ਹੀਆ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਜਮਾਂਦਾਰ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਕਿੰਨੇ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) 12
(ii) 14
(iii) 4
(iv) 9.
ਉੱਤਰ-
(iii) 4.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦਾ ਮੁਖੀਆ ਕੀ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਸੂਬੇਦਾਰ
(ii) ਕਾਰਦਾਰ
(iii) ਨਾਜ਼ਿਮ
(iv) ਕੋਤਵਾਲ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਨਾਜ਼ਿਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਗਨੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਰਗਨੇ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ?
(i) ਨਾਜ਼ਿਮ
(ii) ਸੂਬੇਦਾਰ
(iii) ਕਾਰਦਾਰ
(iv) ਕੋਤਵਾਲ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਕਾਰਦਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖੀ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
(i) ਸੂਬੇਦਾਰ
(ii) ਕਾਰਦਾਰ
(iii) ਕੋਤਵਾਲ
(iv) ਪਟਵਾਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਕੋਤਵਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਕੋਤਵਾਲ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ (ਕੋਤਵਾਲ) ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(ii) ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਸਿੰਘ
(iii) ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼
(iv) ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਦੇ ਮੁਖੀ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਪਰਗਨਾ
(ii) ਮੌਜ਼ਾ
(iii) ਕਾਰਦਾਰ
(iv) ਨਾਜ਼ਿਮ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਮੌਜ਼ਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਆਮਦਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ
(ii) ਚੰਗੀ ਕਰ
(iii) ਨਜ਼ਰਾਨਾ
(iv) ਜ਼ਬਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਹੜੀ ਜਾਗੀਰ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ
(ii) ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ
(iii) ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ
(iv) ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸੇਵਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਾਗੀਰਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਵਤਨ ਜਾਗੀਰਾਂ
(ii) ਇਨਾਮ ਜਾਗੀਰਾਂ
(iii) ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ
(iv) ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਜਾਗੀਰਾਂ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਧਰਮਾਰਥ ਜਾਗੀਰਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਅਦਾਲਤ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
(i) ਪੰਚਾਇਤ
(ii) ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ
(iii) ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ
(iv) ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਪੰਚਾਇਤ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਤੋਂ ਥੱਲੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਅਦਾਲਤ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
(i) ਨਾਜ਼ਿਮ ਦੀ ਅਦਾਲਤ
(ii) ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ
(iii) ਅਦਾਲਤੀ ਦੀ ਅਦਾਲਤ
(iv) ਕਾਰਦਾਰ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਤੋਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਅਦਾਲਤ-ਏ-ਆਲਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਕਰਕੇ ਕਿਹੜੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ?
(i) ਮੌਤ ਦੀ
(ii) ਜੁਰਮਾਨਾ
(iii) ਅੰਗ ਕੱਟਣਾ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਜੁਰਮਾਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਵਿੱਚ ਕੀ ਦੋਸ਼ ਸੀ ?
(i) ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਸੀ
(ii) ਪੈਦਲ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਘਟੀਆ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ
(iii) ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਕਦ ਤਨਖ਼ਾਹ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨਿਯਮਿਤ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
(i) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ
(iii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼
(ii) ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ
(iii) ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ
(iv) ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਕਿਸ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ ?
(i) ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼
(ii) ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ
(iii) ਕਰਨਲ ਗਾਰਡਨਰ
(iv) ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਉਸ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ਜੋ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਸੀ ?
(i) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਖ਼ਾਸ
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ
(iii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਆਇਨ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਫ਼ੌਜ-ਏ-ਬੇਕਵਾਇਦ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਧੁਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਅਸੀਮ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਤੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹਰ ਸ਼ਬਦ ਕਾਨੂੰਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿਚ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਕਈ ਮੰਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ, ਮੁੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਅਤੇ ਡਿਉੜੀਵਾਲਾ ਨਾਂ ਦੇ ਮੰਤਰੀ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨਣਾ ਜਾਂ ਨਾ ਮੰਨਣਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜੀ ਮਰਜ਼ੀ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਕੁਸ਼ਲਤਾ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਆਪਣੇ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਲਾਹ ਨੂੰ ਮੰਨ ਲੈਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ 12 ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਭਾਗਾਂ) ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਅਬਵਾਬ-ਉਲ-ਮਾਲ, ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ, ਦਫ਼ਤਰ-ਏਮਵਾਜ਼ਿਬ ਅਤੇ ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਰੋਜ਼ਨਾਮਚਾ-ਏ-ਇਖਰਾਜਾਤ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਨਿਸਚਿਤ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਸੀ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਧੁਰਾ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ
(ii) ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ
(iii) ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ
(iv) ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖਭਾਲ ਲਈ ਕਿੰਨੇ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ?
5. ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ ਦਾ ਕੀ ਕੰਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਧੁਰਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਰਾਜਾ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਸੀ ।
3. ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖਭਾਲ ਲਈ 12 ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ।
5. ਦਫ਼ਤਰ-ਏ-ਤੋਜਿਹਾਤ ਸ਼ਾਹੀ ਘਰਾਣੇ ਦਾ ਹਿਸਾਬ-ਕਿਤਾਬ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।

2. ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਚੰਗੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਵੱਡੇ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸੂਬੇ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਣ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਨਾਜ਼ਿਮ (ਗਵਰਨਰ) ਦੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਨਾਜ਼ਿਮ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਫ਼ੌਜਦਾਰੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨੀ ਮੁਕੱਦਮਿਆਂ ਦੇ ਫੈਸਲੇ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਭੂਮੀ ਦਾ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਕਾਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਵੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਾਜ਼ਿਮ ਕੋਲ ਅਸੀਮ ਅਧਿਕਾਰ ਸਨ, ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਾਂਤ ਬਾਰੇ ਕੋਈ ਵੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਫੈਸਲਾ ਲੈਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਪ੍ਰਵਾਨਗੀ ਲੈਣੀ ਪੈਂਦੀ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਜਦ ਚਾਹੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਕਿੰਨੇ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕਿਸੇ ਦੋ ਸੂਬਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦਾ ਮੁਖੀ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
4. ਨਾਜ਼ਿਮ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਲਿਖੋ ।
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਜਦ ਚਾਹੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਨੂੰ ………………………….. ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਚਾਰ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦੋ ਸੂਬਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਸਬਾ-ਏ-ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਸੂਬਾ-ਏ-ਕਸ਼ਮੀਰ ਸਨ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸੂਬੇ ਦਾ ਮੁਖੀ ਨਾਜ਼ਿਮ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
4. ਉਹ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ।
5. ਤਬਦੀਲ ।

3. ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਸੀ । ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਚਾਇਤ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਛੋਟੇ-ਮੋਟੇ ਝਗੜਿਆਂ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਲੋਕ ਪੰਚਾਇਤ ਦਾ ਬੜਾ ਮਾਣ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਫੈਸਲਿਆਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਟਵਾਰੀ ਪਿੰਡ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਚੌਧਰੀ ਲਗਾਨ ਉਗਰਾਹੁਣ ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਮੁਕੱਦਮ ਲੰਬੜਦਾਰ) ਪਿੰਡ ਦਾ ਮੁਖੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਇੱਕ ਕੜੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਚੌਕੀਦਾਰ ਪਿੰਡ ਦਾ ਪਹਿਰੇਦਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਪਿੰਡ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਦਖਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਕਿਹੜੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਿਸ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਕੱਦਮ ਕੌਣ ਸੀ ?
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਕੌਣ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ?
(i) ਮੁਕੱਦਮ
(ii) ਚੌਧਰੀ
(iii) ਪਟਵਾਰੀ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਇਕਾਈ ਪਿੰਡ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਮੌਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।
3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪਿੰਡ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪੰਚਾਇਤ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
4. ਮੁਕੱਦਮ ਪਿੰਡ ਦਾ ਮੁਖੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
5. ਪਟਵਾਰੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 20 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਿਵਿਲ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਹਰ ਮੁਹੱਲਾ ਇੱਕ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਆਪਣੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ‘ਕੋਤਵਾਲ’ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣਾ, ਮੁਹੱਲੇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨਾ, ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਰੱਖਣਾ, ਵਪਾਰ ਤੇ ਉਦਯੋਗ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਨਾਪ-ਤੋਲ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨੀ ਆਦਿ ਸਨ । ਉਹ ਦੋਸ਼ੀ ਲੋਕਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਲੋੜੀਂਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੌਣ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ?
3. ਕੋਤਵਾਲ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਦੱਸੋ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਹੱਲੇ ਦਾ ਮੁਖੀ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ……………………… ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੋਰਨਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲਾਹੌਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕੋਤਵਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਤਵਾਲ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਇਮਾਮ ਬਖ਼ਸ਼ ਨਿਯੁਕਤ ਸੀ ।
3. ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣਾ ।
4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਹੱਲੇ ਦਾ ਮੁਖੀ ਮੁਹੱਲੇਦਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
5. ਲਾਹੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਲਈ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
(i) ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ
(ii) ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ
(iii) ਜਨਰਲ ਕੋਰਟ
(iv) ਜਨਰਲ ਇਲਾਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਜਨਰਲ ਅਲਾਰਡ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ ‘ ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ? ਇਸ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਵੀ ਦੱਸੋ । (How did Maharaja Ranjit Singh conquer Attock ? What was its significance ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਅਟਕ ਉੱਤੇ ਜਿੱਤ ਅਤੇ ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(Give a brief account of the Maharaja Ranjit Singh’s conquest of Attock and the battle of Hazro.)
ਉੱਤਰ-
ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇੱਥੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਗਵਰਨਰ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖਾਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਸੀ । ਕਹਿਣ ਨੂੰ ਤਾਂ ਉਹ ਕਾਬਲ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ, ਪਰ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸੁਤੰਤਰ ਤੌਰ `ਤੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਕਾਬਲ ਦੇ ਵਜ਼ੀਰ ਫ਼ਤਹਿ ਮਾਂ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਉਸ ਦੇ ਭਰਾ ਅੱਤਾ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਤਾਂ ਉਹ ਘਬਰਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੂੰ ਇਹ ਪੱਕਾ ਯਕੀਨ ਸੀ ਕਿ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਦਾ ਅਗਲਾ ਹਮਲਾ ਅਟਕ ‘ਤੇ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦੀ ਸਾਲਾਨਾ ਜਾਗੀਰ ਦੇ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ ।

ਉਸ ਨੇ ਅਟਕ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨਾਲ ਅਟਕ ਵੱਲ ਕੂਚ ਕੀਤਾ । 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਘਮਸਾਣ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਹ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਜਿੱਥੇ ਅਟਕ ’ਤੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪੱਕਾ ਹੋ ਗਿਆ ਉੱਥੇ ਉਸ ਦੀ ਸ਼ੋਹਰਤ ਵੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਫੈਲ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਜਾਂ ਛੱਛ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Write a brief note on the battle of Hazro or Haidru or Chachh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਾਰਚ, 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਤੋਂ ਇੱਕ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਇਹ ਕਿਲ੍ਹਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ ਉਹ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਭਾਰੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਲੈ ਕੇ ਅਟਕ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜਿਹਾਦ ਦਾ ਨਾਅਰਾ ਲਗਾਇਆ | ਫ਼ਤਹਿ ਸ਼ਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਕਾਬਲ ਤੋਂ ਵੀ ਕੁਝ ਸੈਨਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਭੇਜੀ ਗਈ ।ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਅਟਕ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸੈਨਾ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸ: ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ, ਸ: ਜੋਧ ਸਿੰਘ ਰਾਮਗੜੀਆ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਭੇਜੀ । 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਜਾਂ ਛੱਛ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਘਮਸਾਣ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਜਿੱਥੇ ਅਟਕ ’ਤੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪੱਕਾ ਹੋ ਗਿਆ ਉੱਥੇ ਉਸ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਕਾਫ਼ੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਫੈਲ ਗਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Give a brief account of Shah Shuja’s relations with Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Shah Shuja.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ 1803 ਈ. ਤੋਂ 1809 ਈ. ਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ । ਉਹ ਬੜਾ ਅਯੋਗ ਸ਼ਾਸਕ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਰਾਜਗੱਦੀ ਛੱਡ ਕੇ ਦੌੜ ਗਿਆ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੁਬੇਦਾਰ ਅੱਤਾਂ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਹਿੰਮ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਵਾ ਕੇ ਲਾਹੌਰ ਲੈ ਆਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਦਲੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਜਾਹ ਦੀ ਪਤਨੀ ਵਫ਼ਾ ਬੇਗ਼ਮ ਤੋਂ ਸੰਸਾਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੋਹਿਨੂਰ ਹੀਰਾ ਪਾਪਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ।

1833 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਰਾਜਗੱਦੀ ਨੂੰ ਮੁੜ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਇੱਕ ਸੰਧੀ ਕੀਤੀ ਪਰ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਯਤਨਾਂ ਵਿੱਚ ਸਫਲਤਾ ਨਾ ਮਿਲੀ । 26 ਜੂਨ, 1838 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ, ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਤਿੰਨ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਤਾਂ ਬਣ ਗਿਆ ਪਰ ਛੇਤੀ ਹੀ ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਹੋ ਗਿਆ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the relations between Maharaja Ranjit Singh and Dost Mohammad.).
ਉੱਤਰ-
ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ 1826 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ-ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਧਦੇ ਹੋਏ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਕਦੇ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਕਾਰਨ ਦੋਹਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਆਪਸੀ ਪਾੜਾ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ਸੀ 1833 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਸਾਬਕਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾ ਕੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 6 ਮਈ, 1834 ਈ. ਨੂੰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਮੁੜ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਾ ਹੋਈ । 1837 ਈ. ਵਿੱਚ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਅਕਬਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵੱਲ ਭੇਜੀ । ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਭਿਅੰਕਰ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਪਰ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਜੇਤੂ ਰਹੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨੇ ਮੁੜ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵੱਲ ਰੁਖ ਨਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Syed Ahmed.)
ਜਾਂ
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਦੇ ਧਰਮ ਯੁੱਧ ਉੱਪਰ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the ”Zihad’ [Religious War) of Syed Ahmed.)
ਉੱਤਰ-
1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਅਟਕ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਮਚਾਈ ਰੱਖਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਬਰੇਲੀ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ, “ਅਲਾਹ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਜਿੱਤਣ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਹੈ ।” ਉਸ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਅਨੇਕ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸਰਦਾਰ ਉਸ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ । ਥੋੜ੍ਹੇ ਹੀ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਸੈਨਾ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਲਈ ਇੱਕ ਵੰਗਾਰ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦੁ ਵਿਖੇ ਅਤੇ ਫਿਰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ਪਰ ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤੀ ਨਾਲ ਉਹ ਦੋਨੋਂ ਵਾਰੀ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਾਰਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਆਪਣਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ | ਅੰਤ 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦੂਰ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Battle of Jamraud.)
ਉੱਤਰ-
ਕਾਬਲ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਚੁੱਪ ਨਾ ਬੈਠਿਆ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਹੋਏ ਆਪਣੇ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਵੀ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਸਥਿਤੀ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਰੁੱਝੇ ਹੋਏ ਸਨ 1 ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਵਾਇਆ । ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿੱਚ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਮੁਹੰਮਦ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਸ਼ਮਸ-ਉਦ-ਦੀਨ ਦੇ ਅਧੀਨ 20,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਰਦਾਰ ਮਹਾਂ ਸਿੰਘ ਨੇ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਆਪਣੇ ਕੇਵਲ 600 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਸਖ਼ਤ ਬੀਮਾਰ ਪਿਆ ਸੀ ।

ਜਦੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਬਾਰੇ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਤਾਂ ਉਹ ਸ਼ੇਰ ਵਾਂਗ ਗਰਜਦਾ ਆਪਣੇ 10,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਜਮਰੌਦ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਵਾ ਦਿੱਤੇ । ਅਚਾਨਕ ਦੋ ਗੋਲੇ ਲੱਗ ਜਾਣ ਕਾਰਨ 30 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ | ਇਸ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ‘ਤੇ ਇੰਨਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਗਿੱਦੜਾਂ ਵਾਂਗ ਕਾਬਲ ਵਾਪਸ ਦੌੜ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖ ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਹਾਨ ਜਰਨੈਲ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਦੀ ਮੌਤ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਈ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਹੰਝੂ ਵਹਿੰਦੇ ਰਹੇ । ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਦੁਬਾਰਾ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਯਤਨ ਨਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਲੈਣਾ ਅਸੰਭਵ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Akali Phula Singh.)
ਜਾਂ
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the achievements of Akali Phula Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਫੌਲਾਦੀ ਥੰਮ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਨੀਹਾਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀਆਂ ਸੀਮਾਵਾਂ ਦੇ ਵਿਸਥਾਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਆਪ ਦੀ ਲਾਸਾਨੀ ਸੂਰਬੀਰਤਾ, ਨਿਡਰਤਾ, ਪੰਥਕ ਪਿਆਰ ਅਤੇ ਉੱਚੇ ਆਚਰਨ ਕਾਰਨ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । 1807 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਕਾਰਨ ਕਸੁਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ । ਇਸੇ ਹੀ ਵਰੇ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਝੰਗ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕੀਤਾ । ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਸਦਕਾ ਹੀ 1816 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ, ਭੱਖਰ ਅਤੇ ਬਹਾਵਲਪੁਰ ਦੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨ ਹਾਕਮਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕੀਆਂ ਬਗ਼ਾਵਤਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਿਆ ਜਾ ਸਕਿਆ ।

1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ। ਇਸੇ ਹੀ ਵਰ੍ਹੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਸੇਵਾਵਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀਆਂ । 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਸਮੇਂ ਵੀ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਨਾਲ ਸਨ ।ਉਹ 14 ਮਾਰਚ, 1823 ਈ. ਨੂੰ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਵਿਖੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਹੋਈ ਇੱਕ ਭਿਆਨਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੇ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਰਾਖੇ ਸਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Hari Singh Nalwa.)
ਜਾਂ
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਕੌਣ ਸੀ ? ਉਸ ਦੇ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (Who was Hari Singh Nalwa? What do you know about him ?)
ਉੱਤਰ-
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਅਤੇ ਨਿਡਰ ਜਰਨੈਲ ਸੀ । ਘੋੜਸਵਾਰੀ, ਤਲਵਾਰ-ਬਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਨਿਸ਼ਾਨੇਬਾਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਸ ਦਾ ਕੋਈ ਸਾਨੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਹ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਯੋਧਾ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਇੱਕ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵੀ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਉਹ ਉੱਨਤੀ ਦੀਆਂ ਮੰਜ਼ਿਲਾਂ ਤੈਅ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਸੈਨਾਪਤੀ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ। ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ ਸ਼ੇਰ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਜਿਸ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਲਵਾ ਦੇ ਖਿਤਾਬ ਨਾਲ ਸਨਮਾਨਿਆ । ਉਹ ਏਨਾ ਬਹਾਦਰ ਸੀ ਕਿ ਦੁਸ਼ਮਣ ਵੀ ਉਸ ਤੋਂ ਥਰ-ਥਰ ਕੰਬਦੇ ਸਨ ।

ਉਸ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਅਤੇ ਹਰ ਮੁਹਿੰਮ ਵਿੱਚ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ । ਉਹ 1820-21 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ 1834 ਈ. ਤੋਂ 1837 ਈ. ਤਕ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਨਾਜ਼ਿਮ (ਗਵਰਨਰ) ਰਹੇ । ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀ ਸਗੋਂ ਅਨੇਕਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੁਧਾਰ ਵੀ ਲਾਗੂ ਕੀਤੇ । ਉਹ 30 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਮੌਤ ਨਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਸਦਮਾ ਪਹੁੰਚਿਆ ਤੇ ਉਹ ਕਈ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਰੋਂਦਾ ਰਿਹਾ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਰਾਜ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਵਿਸਥਾਰ ਵਿੱਚ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ ।
(Describe the main features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾਂਤ ਖੇਤਰ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Explain the features of North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ, ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਡੇਰਾ ਗਾਜ਼ੀ ਖ਼ਾਂ, ਡੇਰਾ ਇਸਮਾਈਲ ਖਾਂ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਆਦਿ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਕੇ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਿਆਣਪ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲੈਂਦਿਆਂ ਕਦੇ ਵੀ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਯਤਨ ਨਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਕਈ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਕੋਈ ਨਵੀਂ ਸਿਰਦਰਦੀ ਮੁੱਲ ਨਹੀਂ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ।ਉਸ ਨੇ ਕਈ ਨਵੇਂ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ ਅਤੇ ਕਈ ਪੁਰਾਣੇ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਵਾਇਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ ਬੜੀ ਸਿੱਖਿਅਤ ਸੈਨਾ ਰੱਖੀ ਗਈ । ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਚਲਦੇ-ਫਿਰਦੇ ਦਸਤੇ ਕਾਇਮ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਬੜੀ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਨਾਲ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ । ਕਬਾਇਲੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਬੇਲੋੜੀ ਦਖਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਸੈਨਿਕ ਗਵਰਨਰਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the significance of Noth-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਦੂਰ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ, ਕੂਟਨੀਤੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਯੋਗਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸਫਲਤਾ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲ ਕੇ ਉੱਥੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਅਤੇ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਿਆ । ਉਹ ਫਜੂਲ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦਖਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉੱਥੇ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ । ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ਗਏ । ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਨਾ ਕੇਵਲ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਹੋਏ ਸਗੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਵੀ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਉਤਸ਼ਾਹ ਮਿਲਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਤੋਂ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਰਿਹਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਸਫਲ ਰਹੀ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ (Ranjit Singh’s Relations with Afghanistan)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe Maharaja Ranjit Singh’s relations with the Afghans.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਪੜਾਵਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the main stages of relations of Maharaja Ranjit Singh with Afghanistan.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਚਾਰ ਪੜਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ-
(ੳ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪੜਾਅ 1797-1812 ਈ.,
(ਅ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਦੂਜਾ ਪੜਾਅ 1813-1834 ਈ.,
(ੲ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਤੀਜਾ ਪੜਾਅ 1834-1837 ਈ.
(ਸ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਚੌਥਾ ਪੜਾਅ 1838-1839 ਈ. ।

(ੳ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪੜਾਅ 1797-1812 ਈ. (First Stage of Sikh-Afghan Relations 1797-1812 A.D.)

1. ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ (Ranjit Singh and Shah Zaman) – ਜਦੋਂ 1797 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਦੀ ਵਾਗਡੋਰ ਸੰਭਾਲੀ ਉਸ ਸਮੇਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਸੀ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਜੱਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ‘ਤੇ ਉਸ ਦੇ ਦਾਦੇ ਅਹਿਮਦ ਸ਼ਾਹ ਅਬਦਾਲੀ ਨੇ 1752 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਬਜ਼ਾ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੇ 27 ਨਵੰਬਰ, 1798 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਦਾ ਬਿਨਾਂ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਛੱਡ ਕੇ ਨੱਸ ਗਏ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕਾਰਨ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੂੰ ਕਾਬਲ ਜਾਣਾ ਪਿਆ । ਇਸ ’ਤੇ ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੇ ਜਨਵਰੀ 1799 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਮੁੜ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ 7 ਜੁਲਾਈ, 1799 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਦੀਆਂ 12 ਜਾਂ 15 ਤੋਪਾਂ ਜੋ ਦਰਿਆ ਜੇਹਲਮ ਵਿੱਚ ਡਿੱਗ ਪਈਆਂ ਸਨ ਕਢਵਾ ਕੇ ਕਾਬਲ ਭੇਜੀਆਂ । ਇਸ ਤੋਂ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕੀਤੇ ਗਏ ਕਬਜ਼ੇ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।

2. ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਸਥਿਰਤਾ (Political Instability in Afghanistan) – 1800 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਾਬਲ ਵਿੱਚ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਖ਼ਾਨਾਜੰਗੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ । ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । 1803 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮਦ ਤੋਂ ਗੱਦੀ ਹਥਿਆ ਲਈ ।ਉਹ ਬੜਾ ਅਯੋਗ ਸ਼ਾਸਕ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਅਰਾਜਕਤਾ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕਾ ਵੇਖ ਕੇ ਅਟਕ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਮੁਲਤਾਨ ਤੇ ਡੇਰਾਜਾਤ ਆਦਿ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੁਬੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਕਾਬਲ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਪੂਰਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾਇਆ ਅਤੇ ਕਸੂਰ, ਝੰਗ, ਖੁਸ਼ਾਬ ਅਤੇ ਸਾਹੀਵਾਲ ਨਾਂ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

(ਅ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਦੂਜਾ ਪੜਾਅ 1813-1834 ਈ. (Second Stage of Sikh-Afghan Relations 1813-1834 A.D.)

1813 ਈ. ਤੋਂ 1834 ਈ. ਤਕ ਦਾ ਕਾਲ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਅਤਿ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਲ ਹੈ । ਇਸ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਇੱਕ ਲੰਬਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਚਲਦਾ ਰਿਹਾ । ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਵਿੱਚ ਅੰਤ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ।

1. ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ 1813 ਈ. (Alliance between Ranjit Singh and Fateh Khan 1813 A.D. – 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨ ਵਜ਼ੀਰ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਜਿੱਤਣ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵੀ ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਦੀਆਂ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ 18 ਅਪਰੈਲ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਰੋਹਤਾਸਗੜ੍ਹ ਵਿਖੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਸਮਝੌਤੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਦੀਆਂ ਸਾਂਝੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸ਼ੇਰਗੜ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੱਤਾ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਆਪਣੇ ਵਾਅਦੇ ਤੋਂ ਮੁਕਰ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਨਾ ਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਕੋਈ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਲੁੱਟ ਦੇ ਮਾਲ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਹਿੱਸਾ ।

2. ਅਟਕ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ 1813 ਈ. (Occupation of Attock 1813 A.D.) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਧੋਖੇ ਕਾਰਨ ਉਸ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਦੀ ਕੁਟਨੀਤੀ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅਟਕ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖਾਂ ਨੇ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਦੇ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅਟਕ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢਣ ਲਈ ਤੁਰ ਪਿਆ । 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ਤਹਿ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਹ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

3. ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1819 ਈ. (Conguest of Kashmir 1819 A.D.) – ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ | ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਜੇਤੂ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਕਸ਼ਮੀਰ ਵੱਲ ਭੇਜੀ ਗਈ । ਇਹ ਫ਼ੌਜ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਜ਼ਬਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣ ਅਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਰਹੀ । ਇਸ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਹੋਰ ਕਰਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ।

4. ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 1823 ਈ. (Battle of Naushehra 1823 A.D.) – ਛੇਤੀ ਹੀ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਦੇ ਭਰਾ ਆਜ਼ਿਮ ਨੇ ਅਜੂਬ ਖਾਂ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਇਆ ਅਤੇ ਆਪ ਉਸ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ ਬਣ ਗਿਆ । ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਬਦਅਮਨੀ ਦਾ ਲਾਭ ਉੱਠਾ ਕੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਅਧੀਨਤਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਈ । ਆਜ਼ਿਮ ਸ਼ਾਂ ਇਹ ਕਦੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ 14 ਮਾਰਚ, 1823 ਈ. ਨੂੰ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਜਾਂ ਟਿੱਬਾ ਟੇਹਰੀ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਹੋਈ। ਇਹ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਭਿਅੰਕਰ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤੀ । ਡਾਕਟਰ ਬੀ. ਜੇ. ਹਜਰਤ ਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿਚ,
“ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਵਿਖੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਨੇ ਸਿੰਧ ਨਦੀ ਦੇ ਪਰਲੇ ਪਾਸੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਸਰਵ-ਉੱਚਤਾ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।” 1

5. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਦਾ ਵਿਦਰੋਹ 1827-31 ਈ. (Revolt of Sayyed Ahmad 1827-31 A.D.1827) – ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਅਟਕ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਮਚਾਈ ਰੱਖਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ, “ਅੱਲਾਹ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਹੈ ।” ਉਸ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸਰਦਾਰ ਉਸ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ । ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦੁ ਵਿਖੇ ਅਤੇ ਫਿਰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ਪਰ ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤੀ ਨਾਲ ਉਹ ਦੋਨੋਂ ਵਾਰੀ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਅੰਤ ਮਈ 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦੂਰ ਹੋਈ ।

6. ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨਾਲ ਸੰਧੀ 1833 ਈ. (Treaty with Shah Shujah 1833 A.D.) – 12 ਮਾਰਚ, 1833 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਇਸ ਅਨੁਸਾਰ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਸਿੰਧ ਦਰਿਆ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤੇ ਗਏ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਉਸ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਦੇ ਬਦਲੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਨ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਤਾ ਕੀਤੀ ।

7. ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਉਣਾ 1834 ਈ. (Annexation of Peshawar to Lahore Kingdom 1834 A.D.) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ | ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਨੌਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ, ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਅਤੇ ਜਨਰਲ ਵੈਂਤੂਰਾ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫੌਜ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਭੇਜੀ । 6 ਮਈ, 1834 ਈ. ਨੂੰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੂੰ ਉੱਥੋਂ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

(ੲ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਤੀਜਾ ਪੜਾਅ 18341837 ਈ. (Third Stage of Sikh-Afghan Relations 1834-1837 A.D.)

1. ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਦੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਾਪਸ ਲੈਣ ਦੇ ਯਤਨ 1835 ਈ. (Efforts to recapture Peshawar by Dost Muhammad Khan 1835 A.D.) – 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਤਾਂ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਲਾਲ ਪੀਲਾ ਹੋ ਗਿਆ | ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨ ਕਬੀਲੇ ਉਸ ਦੇ ਝੰਡੇ ਅਧੀਨ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਭਰਾ ਸੁਲਤਾਨ ਮੁਹੰਮਦ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਰਲਾ ਲਿਆ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਅਤੇ ਹਰਲਾਨ ਨੂੰ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਾਬਲ ਭੇਜਿਆ । ਇਸ ਮਿਸ਼ਨ ਦਾ ਇੱਕ ਹੋਰ ਉਦੇਸ਼ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਅਤੇ ਸੁਲਤਾਨ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਫੁੱਟ ਪਵਾਉਣਾ ਸੀ । ਇਹ ਮਿਸ਼ਨ ਆਪਣੇ ਉਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਰਿਹਾ । ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਨੇੜੇ ਜਦੋਂ ਦੋਵੇਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਪਹੁੰਚੀਆਂ ਤਾਂ ਸੁਲਤਾਨ ਮੁਹੰਮਦ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨਾਲ ਜਾ ਰਲਿਆ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਬਿਨਾਂ ਲੜੇ ਹੀ 11 ਮਈ, 1835 ਈ. ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਮੇਤ ਵਾਪਸ ਕਾਬਲ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਲੜੇ ਹੀ ਇੱਕ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ।

2. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ 1837 ਈ. (Battle of Jamraud 1837 A.D.) – ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਇਆ | ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਦੀ ਇਸ ਕਾਰਵਾਈ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਮੁਹੰਮਦ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਸ਼ਮਸਉੱਦੀਨ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਭੇਜੀ ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ਪਰ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਅਜਿਹੀ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੁਪਨੇ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕਦੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਨਾਂ ਨਾ ਲਿਆ ।

(ਸ) ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਚੌਥਾ ਪੜਾਅ 1838-39 ਈ. (Fourth Stage of Sikh-Afghan Relations 1838-39 A.D.)

ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਚੌਥੇ ਅਤੇ ਅੰਤਿਮ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਤਬਦੀਲੀ ਆਈ । ਹੁਣ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵੀ ਇਸ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਗਏ ਸਨ ।
ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ 1838 ਈ. (Tripartite Treaty 1838 A.D.-1837 ਈ. ਵਿੱਚ ਰੁਸ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਏਸ਼ੀਆ ਵੱਲ ਵੱਧ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਰੂਸ ਦੇ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਕਿਸੇ ਸੰਭਾਵਿਤ ਹਮਲੇ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਲਈ ਗੱਲਬਾਤ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਗੱਲਬਾਤ ਕਿਸੇ ਸਿਰੇ ਨਾ ਚੜ ਸਕੀ । ਹੁਣ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵੀ ਇਸ ਸਮਝੌਤੇ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ 26 ਜੂਨ, 1838 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ, ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ ।

ਤੂੰ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਇਹ ਸਨ-

  • ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ ।
  • ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਜਿੱਤੇ ਗਏ ਸਾਰੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਇਲਾਕਿਆਂ ਉੱਤੇ ਉਸ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਮੰਨ ਲਿਆ ।
  • ਸਿੰਧ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦਰਮਿਆਨ ਜਿਹੜੇ ਫ਼ੈਸਲੇ ਹੋਣਗੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਦਾ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਆਗਿਆ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਸ਼ਕਤੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਕਾਇਮ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗਾ ।
  • ਇਕ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਦੁਸ਼ਮਣ ਦੂਜੇ ਦੋ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦਾ ਵੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸਮਝਿਆ ਜਾਵੇਗਾ ।
  • ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਤਖ਼ਤ ਉੱਤੇ ਬਿਠਾਉਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ 5,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਮਦਦ ਕਰੇਗਾ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਇਸ ਬਦਲੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੂੰ 2 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦੇਵੇਗਾ ।

ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਜਨਵਰੀ, 1839 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਸਾਂਝੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਹਾਲੇ ਇਹ ਕਾਰਵਾਈ ਜਾਰੀ ਸੀ ਕਿ 27 ਜੂਨ, 1839 ਈ. ਨੂੰ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਤੋਂ ਚਲ ਵਸਿਆ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਿੱਖ-ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਲੜਾ ਭਾਰੀ ਰਿਹਾ । ਉਸ ਨੇ ਅਜਿੱਤ ਕਹੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਫ਼ੈਸਲਾਕੁੰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਹਰਾਇਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਵਿੱਚ ਵੀ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਵਿੱਚ (North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Discuss the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾਂਤ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕਰੋ । ਇਸ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? (Examine the main features of the North-West frontier Policy of Ranjit Singh. What was its significance ?)
ਜਾਂ
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਨੀਤੀ ਦੀ ਆਲੋਚਨਾਤਮਕ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । ਉਸ ਦੀ ਇਹ ਨੀਤੀ ਕਿਸ ਹੱਦ ਤਕ ਸਫਲ ਰਹੀ ?
(Critically examine the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh. To what extent was his policy successful ?)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (Explain the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਹਾਕਮਾਂ ਲਈ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਇੱਕ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦਾ ਕਾਰਨ ਬਣੀ ਰਹੀ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਪਾਸੇ ਤੋਂ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਹਮਲਾਵਰ ਪੰਜਾਬ ਤੇ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਤਬਾਹੀ ਮਚਾਉਂਦੇ ਰਹੇ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਬੜੇ ਹੀ ਖੰਖਾਰ ਕਬੀਲੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਸੁਭਾਅ ਤੋਂ ਹੀ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਵਿਰੋਧੀ ਸਨ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਰਾਜਸੀ ਸੂਝਬੂਝ ਅਤੇ ਕੂਟਨੀਤੀ ਰਾਹੀਂ ਨਾ ਕੇਵਲ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਬੀਲਿਆਂ ਉੱਤੇ ਹੀ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਅਧੀਨਤਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਵੀ ਮਜਬੂਰ ਕੀਤਾ ।

I. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Main Features of the North-West Frontier Policy)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-
1. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ (Conquests of North-Western Territories) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਦੇ ਦੋ ਪੜਾਅ ਸਨ । ਉਸ ਨੇ ਅਟਕ, ਮੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦਰਿਆ ਸਿੰਧ ਦੇ ਪਾਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ 1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ, 1820 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਹਾਵਲਪੁਰ ਅਤੇ 1821 ਈ. ਵਿੱਚ ਡੇਰਾ ਇਸਮਾਈਲ ਖ਼ਾਂ ਤੇ ਮਨਕੇਰਾ ਨਾਂ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਿਆਣਪ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲੈਂਦਿਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸਾਲਾਨਾ ਖਿਰਾਜ ਦੇ ਬਦਲੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੀ ਰਹਿਣ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । 1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਤਕ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਡੇਰਾ ਗਾਜ਼ੀ ਖ਼ਾਂ, 1832 ਈ. ਵਿੱਚ ਟੌਕ, 1833 ਈ. ਵਿੱਚ ਬੰਨੂੰ, 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਅਤੇ 1836 ਈ. ਵਿੱਚ ਡੇਰਾ ਇਸਮਾਈਲ ਖਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।

2. ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਨਾ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ (Decision of not conquering Afghanistan) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਸੂਝਵਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕਦੇ ਕੋਈ ਯਤਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੂੰ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਪਹਿਲਾਂ ਬੜੀਆਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਉਹ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਲਈ ਕੋਈ ਨਵੀਂ ਸਿਰਦਰਦੀ ਮੁੱਲ ਨਹੀਂ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਸ਼ਾਇਦ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਮੌਕੇ ਉੱਤੇ ਹੀ ਉਸ ਨੇ ਗੰਭੀਰਤਾ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਬਾਰੇ ਸੋਚਿਆ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵੇ ਦੀ ਮੌਤ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਪਿੱਛੋਂ ਜਦੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦਾ ਗੁੱਸਾ ਉਤਰ ਗਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦੇ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰ ਨੂੰ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜੂਨ, 1838· ਈ. ਵਿੱਚ ਤੈ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉਹ ਇਸ ਸੰਧੀ ਵਿੱਚ ਇਸ ਲਈ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਇਆ ਸੀ ਤਾਂ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵੱਲੋਂ ਉਸ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਨਾ ਪਹੁੰਚੇ ।

3. ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦੇ ਯਤਨ (Efforts to crush the Tribes) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਧੀਨ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨ ਕਬੀਲੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਪੇਸ਼ਾ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਉਹ ਕਦੇ ਵੀ ਕਿਸੇ ਦੇ ਅਧੀਨ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਸਕਦੇ ਸਨ । 1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਇਆ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਕਈ ਸੈਨਿਕੇ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਭੇਜੀਆਂ | ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦਾ ਹੋਇਆ ਆਪਣੇ 500 ਸਾਥੀਆਂ ਸਮੇਤ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੂੰ ਉੱਥੋਂ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਬੜੀ ਸਖ਼ਤ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ ।

4. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਸੁਰੱਖਿਆ ਦੇ ਕਾਰਜ (Measures for the defence of the North-West Frontiers) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ । ਉਸ ਨੇ ਕਈ ਨਵੇਂ ਕਿਲਿਆਂ ਜਿਵੇਂ ਅਟਕ, ਖੈਰਾਬਾਦ, ਜਹਾਂਗੀਰਾ, ਜਮਰੌਦ ਅਤੇ ਫ਼ਤਹਿਗੜ ਨਾਂ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੁਰਾਣੇ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਿੱਖਿਅਤ ਸੈਨਾ ਰੱਖੀ ਗਈ । ਚਲਦੇ-ਫਿਰਦੇ ਸੈਨਿਕ ਦਸਤੇ ਕਾਇਮ ਕੀਤੇ ਗਏ, ਇਹ ਖਰੂਦੀ ਕਬੀਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਦੇ ਸ਼ਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਸਤਿਆਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਕਬੀਲਿਆਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਇੰਨਾ ਆਤੰਕ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਬਗਾਵਤ ਕਰਨੀ ਭੁੱਲ ਗਏ ।

5. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ (Administration of the North-West Frontier Territories) – ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਹੇਠ ਰੱਖਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜੇ ਨੇ ਸੈਨਿਕ ਗਵਰਨਰਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਤਬਦੀਲੀ ਨਹੀਂ ਲਿਆਂਦੀ | ਪੁਰਾਣੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਅਤੇ ਰਸਮਾਂ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਹਰੇਕ ਖ਼ਾਂ (ਕਬੀਲੇ ਦਾ ਨੇਤਾ) ਆਪਣੇ ਕਬੀਲੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਕਰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸਰਵ-ਉੱਚਤਾ ਨੂੰ ਮੰਨਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਲਗਾਨ ਸੰਬੰਧੀ ਮੰਗਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਵਜ਼ਾ ਕਬਾਇਲੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦਖ਼ਲ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਨਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਖੂਹ ਖੁਦਵਾਏ ਗਏ ਭੂਮੀ ਲਗਾਨ ਦੀਆਂ ਦਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਕਮੀ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਯਤਨਾਂ ਵਜੋਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਭਰੋਸਾ ਜਿੱਤਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਗੜਬੜੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਕਠੋਰ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ਗਏ ।

II. ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਮਹੱਤਵ (Importance of N.W.F. Policy)

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਸਫਲ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਹ ਸਚਮੁੱਚ ਹੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਮਹਾਨ ਉਪਲੱਬਧੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲ ਕੇ ਉੱਥੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ਗਏ ! ਲਗਾਨ ਦੀ ਦਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਬਹੁਤ ਕਮੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਨਾ ਕੇਵਲ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਹੋਏ ਸਗੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਵੀ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਉਤਸ਼ਾਹ ਮਿਲਿਆ | ਡਾਕਟਰ ਜੀ. ਐੱਸ. ਨਈਅਰ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ, ‘ “ਅਨੰਗਪਾਲੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਤੋਂ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਹਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਰੋਕਿਆ ਅਤੇ ਕਬਾਇਲੀਆਂ ‘ ਤੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਿਆ ।” 1

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਜਾਂ ਛੱਛ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Write a brief note on the battle of Hazro or Haidru or Chachh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਾਰਚ, 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਟਕ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਤੋਂ ਇੱਕ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਕਿਲਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ । ਉਹ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਭਾਰੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਲੈ ਕੇ ਅਟਕ ਵੱਲ ਚਲ ਪਿਆ 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਜਾਂ ਛੱਛ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਮਾਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Give a brief account of Shah Shuja’s relations with Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ਜਾਹ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Shah Shuja.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹ ਸੁਜਾਹ 1803 ਈ. ਤੋਂ 1809 ਈ. ਤਕ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਰਿਹਾ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਨੇ ਉਸ ਤੋਂ ਗੱਦੀ ਖੋਹ ਲਈ । ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੂਬੇਦਾਰ ਅੱਤਾ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਨੇ 1812 ਈ. ਵਿਚ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ। 26 ਜੂਨ, 1838 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ, ਸ਼ਾਹ ਸੁਜਾਹ ਅਤੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਤਿੰਨ ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ । ਇਸ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਪਰ ਇਹ ਸਫਲ ਨਾ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the relations between Maharaja Ranjit Singh and Dost Mohammad.)
ਉੱਤਰ-
ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ 1826 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਿਆ ਸੀ ।ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵੱਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਤੋਂ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 6 ਮਈ, 1834 ਈ. ਨੂੰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ 1837 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਅਕਬਰ ਖਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਭੇਜੀ । ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਭਿਅੰਕਰ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਪਰ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਜੇਤੂ ਰਹੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਨੇ ਮੁੜ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵੱਲ ਰੁੱਖ ਨਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Sayyed Ahmed.).
ਜਾਂ
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਦੇ ਧਰਮ ਯੁੱਧ ਉੱਪਰ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the ‘Jihad’ (Religious War) of Sayyed Ahmed.)
ਉੱਤਰ-
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ 1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਟਕ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬੁਲੰਦ ਰੱਖਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਬਰੇਲੀ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ, “ਅੱਲਾਹ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਜਿੱਤਣ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਹੈ ।” ਉਸ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨ ਉਸ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ । ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਸੈਨਾ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰ ਲਈ । 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Battle of Jamraud.)
ਉੱਤਰ-
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਵਾਇਆ ਸੀ । ਇਹ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਵੰਗਾਰ ਸੀ। ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਅਕਬਰ ਖ਼ਾਂ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਜਮਰੌਦ ਵੱਲ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾ ਲਿਆ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਪਰ ਅਚਾਨਕ ਦੋ ਗੋਲੀਆਂ ਨਾਲ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵੇ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨੂੰ 30 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰ ਜਾਣ ਮੰਗਰੋਂ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਮੁੜ ਜਿੱਤਣ ਦਾ ਕਦੇ ਸੁਪਨਾ ਨਾ ਲਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Akali Phula Singh.)
ਜਾਂ
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the achievements of Akali Phula Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੀਆਂ ਨੀਂਹਾਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀਆਂ ਸੀਮਾਵਾਂ ਦੇ ਵਿਸਥਾਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । 1807 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਅਕਾਲੀ ਫੁਲਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਕਾਰਨ ਕਸੂਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ 1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਸਮੇਂ ਵੀ ਉਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਸਨ । ਉਹ 14 ਮਾਰਚ, 1823 ਈ. ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਹੋਈ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਭਿਆਨਕ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Hari Singh Nalwa.).
ਜਾਂ
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਕੌਣ ਸੀ ? ਉਸ ਦੇ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (Who was Hari Singh Nalwa ? What do you know about him ?)
ਜਾਂ
ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on. Sardar Hari Singh Nalwa.).
ਉੱਤਰ-
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਮਹਾਨ ਯੋਧਾ ਅਤੇ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸਨ । ਉਸ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ | ਉਹ 1820-21 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਅਤੇ 1834 ਈ. ਤੋਂ 1837 ਈ. ਤਕ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਨਾਜ਼ਿਮ ਰਹੇ । ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਾਂਤਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੁਧਾਰ ਲਾਗੂ ਕੀਤੇ । ਉਹ 30 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾਂਤ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਬਾਰੇ ਲਿਖੋ । (Write down main features of the North-West Frontier Policy of Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Describe main features of North-West Froniter Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਜਾਂ
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ । (Write down the three main features of the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh.)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਕਈ ਨਵੇਂ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਵਾਇਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਅਤ ਸੈਨਾ ਰੱਖੀ ਗਈ । ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਚਲਦੇ-ਫਿਰਦੇ ਦਸਤੇ ਕਾਇਮ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰਸਮਾਂ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ । ਕਬਾਇਲੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਬੇਲੋੜੀ ਦਖ਼ਲਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਸ਼ਾਸਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਲਈ ਸੈਨਿਕ ਗਵਰਨਰਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the significance of the North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਕੂਟਨੀਤੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਯੋਗਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਮਾਣ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਵਿਦਰੋਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲ ਕੇ ਉੱਥੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਉੱਥੇ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਯਤਨ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਤੋਂ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਰਿਹਾ ।

ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ I (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਸਮੇਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹ ਸੁਜਾਹ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਕਿਸੇ ਦੋ ਬਰਕਜ਼ਾਈ ਭਰਾਵਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਅਤੇ ਯਾਰ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਕਬਜ਼ਾ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
27 ਨਵੰਬਰ, 1798 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ 1798 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਸਮੇਂ ਕਿਸ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਤਿੰਨ ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰਾਂ ਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਫ਼ਤਿਹ ਮਾਂ ‘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੁਦੇ ਦੇ ਵਜ਼ੀਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣੌਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1813 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਕਸ਼ਮੀਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਰੋਹਤਾਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਸੱਟ ਲੱਗੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1819 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
14 ਮਾਰਚ, 1823 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਆਜ਼ਮ ਖਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਨਰੈਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਅਕਾਲੀ ਨੇਤਾ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਕਿਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਲੜਦਾ ਹੋਇਆ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ?
मां
ਉਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਉੱਤਰ-ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਖਲੀਫ਼ਾ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਕਦੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
1834 ਈ. 1

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਿਸ ਨੂੰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ? ਉੱਤਰ-
1837 ਈ.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਰਨੈਲ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਤਿੰਨ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
26 ਜੂਨ, 1838 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਤਿੰਨ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸ਼ਰਤ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਸੰਬੰਧੀ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉੱਤਰ-
ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਨਾਲ ਨਜਿੱਠਣ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕਦੇ ਕੋਈ ਯਤਨ ਨਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਖੂੰਖਾਰ ਕਬੀਲੇ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਯੂਸਫ਼ਜ਼ਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੱਸੋ । ਉੱਤਰ-ਇਸ ਕਾਰਨ
ਉੱਤਰ-
ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋਈ ।..

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ-

1. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਸਮੇਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ …………………. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ)

2. 1800 ਈ. ਵਿੱਚ ……………………………. ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ)

3. 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ……………………… ਵਿਖੇ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਰੋਹਤਾਸ)

4. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਤੋਂ ………………………….. ਦਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(ਅਟਕ)

5. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ …………………………. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(1823 ਈ.)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ……………………… ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(1834 ਈ.).

7. 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ……………………. ਵਿਚਾਲੇ ਤੂੰ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜ਼ਾਹ)

8. ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਦੀ ਮੌਤ ………………….. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(1837 ਈ.)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

2. ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ 1805 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

3. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ਰੋਹਤਾਸ ਵਿਖੇ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

5. 1818 ਈ.ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

6. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. 1820 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੂੰ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਨਵਾਂ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

8. ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੂੰ ਜਫ਼ਰਜੰਗ ਦਾ ਖਿਤਾਬ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

9. ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 14 ਮਾਰਚ, 1828 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

10. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

11. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ 1838 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

12. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਨੂੰ ਹੱਲ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਸਫਲ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਪਰ
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਦੋਂ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ?
(i) 1796 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1797 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1798 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1799 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1798 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ
(ii) ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ
(iii) ਈਰਾਨ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਕਸ਼ਮੀਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1803 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1805 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1809 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1813 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਰੋਹਤਾਸ ਵਿਖੇ
(ii) ਰੋਹਤਾਂਗ ਵਿਖੇ
(iii) ਸੁਪੀਨ ਵਿਖੇ
(iv) ਹਜਰੋ ਵਿਖੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਰੋਹਤਾਸ ਵਿਖੇ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਕਦੋਂ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) 1813 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1815 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1819 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1823 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1823 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) ਅਟਕ ਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ
(ii) ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ
(iii) ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੇ ਮੁਲਤਾਨ
(iv) ਮੁਲਤਾਨ ਤੇ ਅਟਕ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਅਟਕ ਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਦੋਂ ਵਿਦਰੋਹ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) 1823 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1825 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1827 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1827 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) 1823 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1831 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1834 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1837 ਈ. ਵਿੱਚ,
ਉੱਤਰ-
(ii) 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਕਿਸ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ
(ii) ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iii) ਹਜਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ
(iv) ਸੁਪੀਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਤੂੰ-ਪੱਖੀ ਸੰਧੀ ਅਨੁਸਾਰ ਕਿਸ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਾਏ ਜਾਣ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ?
(i) ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ
(ii) ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ
(iii) ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ
(iv) ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. 1800 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਾਬਲ ਵਿੱਚ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਖਾਨਾਜੰਗੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ । ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਮਾਨ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਕੇਵਲ ਤਿੰਨ ਵਰਿਆਂ (1800-03 ਈ. ) ਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ । 1803 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੇ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਤੋਂ ਗੱਦੀ ਹਥਿਆ ਲਈ । ਉਸ ਨੇ 1809 ਈ. ਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ ।ਉਹ ਬੜਾ ਅਯੋਗ ਸ਼ਾਸਕ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਵਿੱਚ ਅਰਾਜਕਤਾ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਹ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕਾ ਵੇਖ ਕੇ ਅਟਕ, ਕਸ਼ਮੀਰ, ਮੁਲਤਾਨ ਤੇ ਡੇਰਾਜਾਤ ਆਦਿ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸੂਬੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਕਾਬਲ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਪੂਰਾ ਲਾਭ ਉਠਾਇਆ ਅਤੇ ਕਸੂਰ, ਝੰਗ, ਖੁਸ਼ਾਬ ਅਤੇ ਸਾਹੀਵਾਲ ਨਾਂ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਥਾਂ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਦੋਬਾਰਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਰਾਜਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਨੂੰ ਫ਼ਤਿਹ ਮਾਂ ਨੇ ਹਰ ਸੰਭਵ ਸਹਾਇਤਾ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਨੇ ਆਪਣਾ ਵਜ਼ੀਰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ) ਨਿਯੁਕਤ ਕਰ ਲਿਆ ।

1. ……………………….. ਵਿੱਚ ਕਾਬਲ ਵਿੱਚ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਖਾਨਾਜੰਗੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।
2. ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਕਦੋਂ ਬਣਿਆ ?
3. ਸ਼ਾਹ ਸੁਜ਼ਾਹ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ?
4. ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਕੌਣ ਸੀ?
5. ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1. 1800 ਈ. ।
2. ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ 1800 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ ਸੀ ।
3. ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਇੱਕ ਅਯੋਗ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ।
4. ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਸ਼ਾਹ ਮੁਹੰਮਦ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ ਸੀ ।
5. ਸ਼ਾਹ ਸ਼ੁਜਾਹ ਨੂੰ 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।

2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਧੋਖੇ ਕਾਰਨ ਉਸ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਫੌਰਨ ਫ਼ਕੀਰ ਅਜ਼ੀਜ਼ਉੱਦੀਨ ਨੂੰ ਅਟਕ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ । ਅਟਕ ਸ਼ਾਸਕ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ 1 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਦੇ ਬਦਲੇ ਅਟਕ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਪਬੰਧ ਆਪਣੇ ਭਰਾ ਆਜ਼ਿਮ ਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸੌਂਪਿਆ ਅਤੇ ਆਪ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸੈਨਾ ਲੈ ਕੇ ਅਟਕ ਵਿਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢਣ ਲਈ ਤੁਰ ਪਿਆ । 13 ਜੁਲਾਈ, 1813 ਈ. ਨੂੰ ਹਜ਼ਰੋ ਜਾਂ ਹੈਦਰੋ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਹ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਧੱਕਾ ਲੱਗਿਆ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਮਾਣ-ਸਨਮਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

1. ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਕੌਣ ਸੀ?
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਟਕ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
3. ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
4. ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 1811 ਈ.
(ii) 1812 ਈ.
(iii) 1813 ਈ.
(iv) 1814 ਈ. ।
5. ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕੌਣ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਫ਼ਤਿਹ ਖਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਸ਼ਾਹ ਮਹਿਮੂਦ ਦਾ ਵਜ਼ੀਰ ਸੀ ।
2. ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਟਕ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਜਹਾਂਦਾਦ ਖ਼ਾਂ ਸੀ ।
3. ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਸੀ ।
4. 1813 ਈ. ।
5. ਹਜ਼ਰੋ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

3. 1827 ਈ. ਤੋਂ 1831 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਧਾਰਮਿਕ ਨੇਤਾ ਨੇ ਅਟਕ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਮਚਾਈ ਰੱਖਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਬਰੇਲੀ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ, ‘ਅੱਲਾਹ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਜਿੱਤਣ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਹੈ । ਉਸ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਅਫ਼ਗਾਨ ਸਰਦਾਰ ਉਸ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ । ਥੋੜ੍ਹੇ ਹੀ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਸੈਨਾ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰ ਲਈ । ਇਹ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਲਈ ਇੱਕ ਵੰਗਾਰ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦੂ ਵਿਖੇ ਅਤੇ ਫਿਰ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ਪਰ ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤੀ ਨਾਲ ਉਹ ਦੋਨੋਂ ਵਾਰੀ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਾਰਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਆਪਣਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ । ਅੰਤ ਮਈ, 1831 ਈ. ਵਿੱਚ ਉਹ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਸਿਰਦਰਦੀ ਦੂਰ ਹੋਈ ।

1. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕੌਣ ਸੀ?
2. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕਿੱਥੋਂ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ ?
3. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀਆਂ ਦੋ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ?
4. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕਿੱਥੇ ਅਤੇ ਕਿਸ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
5. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਕਦੋਂ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) 1813 ਈ.
(ii) 1821 ਈ.
(iii) 1827 ਈ.
iv) 1831 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
1. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਧਾਰਮਿਕ ਨੇਤਾ ਸੀ ।
2. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਬਰੇਲੀ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਸੀ ।
3. ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਨੂੰ ਸੈਦੂ ਅਤੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਹਰਾਇਆ ਸੀ ।
4. ਸੱਯਦ ਅਹਿਮਦ ਬਾਲਾਕੋਟ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ।
5. 1831 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 19 ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਨੀਤੀ

4. ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਹੱਥੋਂ ਹੋਏ ਆਪਣੇ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖ ਵੀ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਇਆ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਦੀ ਇਸ ਕਾਰਵਾਈ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਮੁਹੰਮਦ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਸ਼ਮਸਦੀਨ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ 20,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ਨੂੰ ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵਿਖੇ ਸਖ਼ਤ ਬੀਮਾਰ ਪਿਆ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੇ ਇਸ ਹਮਲੇ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੇ 10,000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਜਮਰੌਦ ਵਿਖੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ਪਰ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਅਫ਼ਗਾਨ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹੀ ਤਬਾਹੀ ਮਚਾਈ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁੜ ਕਦੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵੱਲ ਆਪਣਾ ਮੂੰਹ ਨਾ ਕੀਤਾ ।

1. ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਂ ਕੌਣ ਸੀ ?
2. ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਨੇ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
3. ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ……………………….. ਨੂੰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।
4. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਕਿਹੜਾ ਜਰਨੈਲ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ?
5. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕੌਣ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਦੋਸਤ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ।
2. ਜਮਰੌਦ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸਰਦਾਰ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਨੇ ਕੀਤਾ ।
3. 28 ਅਪਰੈਲ, 1837 ਈ. ।
4. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਜਰਨੈਲ ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
5. ਜਮਰੌਦ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ਸਨ ।