PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

PSEB 12th Class Economics 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक सुधारों से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
नई आर्थिक नीति का अर्थ बताओ।
उत्तर-
भारत में 1991 से किए गए आर्थिक सुधारों को नई आर्थिक नीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
उदारीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उदारीकरण का अर्थ है उद्योगों तथा व्यापार को परका की अनावश्यक पाबन्दियों से मुक्त करके अधिक प्रतियोगी बनाना।

प्रश्न 3.
निजीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का संचालन तथा मालकी निजी क्षेत्र को परिवर्तित करने की क्रिया को निजीकरण कहा जाता है।

प्रश्न 4.
विश्वीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विश्वीकरण का अर्थ है अर्थव्यवस्था का बाकी देशों से बिना रुकावट सम्बन्धी उत्पादन, व्यापार तथा वित्त सम्बन्धी आदान-प्रदान स्थापित करना।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

प्रश्न 5.
नई आर्थिक नीति के पक्ष में कोई एक तर्क दें।
उत्तर-
नई आर्थिक नीति द्वारा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करके विकसित देशों के समान आर्थिक विकास किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
नई आर्थिक नीति के विपक्ष में कोई एक तर्क दीजिए।
उत्तर-
नई आर्थिक नीति से विदेशी पूंजी तथा तकनीक पर निर्भरता बढ़ जाएगी। इससे उन्नत देशों को अधिक लाभ होगा।

प्रश्न 7.
आर्थिक सुधारों की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
भारत में राजकोषीय घाटा निरन्तर बढ़ रहा है।

प्रश्न 8.
राजकोषीय घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय घाटा कुल व्यय तथा कुल आय मनफी ऋण का अन्तर होता है।

प्रश्न 9.
विश्व व्यापार संगठन (W.T.0.) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में विश्वीकरण के विकास के लिए बनाई गई संस्था को विश्व व्यापार संगठन कहा जाता है।

प्रश्न 10.
भारत में आर्थिक सुधारों अथवा नई आर्थिक नीति की आवश्यकता क्यों थी ?
उत्तर-

  • भारत में राजकोषीय घाटा अधिक हो गया था।
  • भुगतान सन्तुलन प्रतिकूल हो गया था।
  • विदेशी मुद्रा कोष कम हो गया था।

प्रश्न 11.
भारत में आर्थिक सुधारों की आवश्यकता थी क्योंकि
(a) भारत में राजकोषीय घाटा अधिक हो गया था।
(b) भुगतान सन्तुलन लगातार प्रतिकूल हो गया था।
(c) विदेशी मुद्रा कोष में बहुत कमी आ गई थी।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
नई आर्थिक नीति में उद्योग और व्यापार के लिए लाइसेंस के स्थान पर ……………. की नीति अपनाई है।
उत्तर-
उदारीकरण।

प्रश्न 13.
नई आर्थिक नीति में कोटा प्रणाली के स्थान पर . ………….. की नीति अपनाई गई।
उत्तर-
निजीकरण।

प्रश्न 14.
नई आर्थिक नीति में परमिट प्रणाली के स्थान पर ………….. नीति अपनाई गई।
उत्तर-
वैश्वीकरण।

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प्रश्न 15.
नई आर्थिक नीति अथवा आर्थिक सुधारों में किस नीति को अपनाया गया ?
(a) उदारीकरण
(b) निजीकरण
(c) वैश्वीकरण
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 16.
पहली पीढ़ी (First Generation) के सुधारों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह सुधार जो प्रशासनिक मशीनरी द्वारा साधारण रूप में चलाए जाते हैं और इन सम्बन्धी विधानक कारवाई की ज़रूरत नहीं होती।

प्रश्न 17.
दूसरी पीढ़ी (Second Generation) के सुधारों से क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
वह सुधार जिनके लिए विधानक (कानूनी) कारवाई की आवश्यकता होती है उनको दूसरी पीढ़ी के सुधार कहा जाता है।

प्रश्न 18.
आर्थिक सुधारों का ऋणात्मक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
आर्थिक सुधारों से विदेशी निवेश और तकनीक पर निर्भरता बढ़ जाती है। .

प्रश्न 19.
भारत में आर्थिक सुधारों का पहला चरण कब प्रारम्भ हुआ ?
(a) 1951
(b) 1971
(c) 1991
(d) 2011.
उत्तर-
(c) 1991.

प्रश्न 20.
भारत में आर्थिक सुधारों का दूसरा चरण कब प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर-
1999 में।

प्रश्न 21.
विश्व व्यापार संगठन (WTO) गैट (GATT) का उत्तराधिकारी है।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नई आर्थिक नीति (1991) क्यों आवश्यक हुई ?
उत्तर-
भारत में 1991 में आर्थिक सुधार की आवश्यकता इन कारणों से पड़ी-

  1. भारत में भुगतान सन्तुलन प्रतिकूल था, जिस कारण विदेशी ऋण का भार बढ़ गया था।
  2. भारत में आर्थिक संकट था। राजकोषीय घाटा बहुत बढ़ गया था।
  3. इराक की जंग के कारण तेल की कीमतें तथा साधारण कीमत स्तर निरन्तर बढ़ गया था।
  4. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र असफल हो गया था। बहुत से सार्वजनिक उद्योगों में हानि हो रही थी।

प्रश्न 2.
निजीकरण पर नोट लिखो।
उत्तर-
नई आर्थिक नीति की एक विशेषता यह है कि निजीकरण का विस्तार किया गया है। सरकार द्वारा चलाए जाने वाले उद्योगों को निजी क्षेत्र में परिवर्तित किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित उपाय किए गए –
(1) सार्वजनिक क्षेत्र में 17 उद्योगों की जगह पर 4 उद्योग

  • सुरक्षा औज़ार
  • एटोमिक शक्ति
  • खाने
  • रेलवे सुरक्षित किए गए हैं। शेष सभी उद्योग निजी क्षेत्र के लिए खुले हैं।

(2) सार्वजनिक क्षेत्र की वर्तमान इकाइयों के शेयर निजी क्षेत्र में बेचे जाएंगे।
(3) अब वित्तीय संस्थाओं तथा उद्योगों में निजी निवेश किया जा सकेगा। इससे निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 45% से बढ़कर 55% हो जाएगी।

प्रश्न 3.
विनिवेश से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की बिक्री को विनिवेश कहा जाता है। आरम्भ में सरकार ने बीमार इकाइयां, जिन उद्योगों में हानि होती थी, उनको बेचने का निर्णय लिया। परन्तु धीरे-धीरे उद्योगों की कार्यकुशलता में वृद्धि करने के लिए बहुत-से अन्य उद्योगों का विनिवेश करना आरम्भ किया। इस प्रकार की प्रक्रिया आजकल चल रही है।

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प्रश्न 4.
वैश्वीकरण पर नोट लिखो।
उत्तर-
नई आर्थिक नीति की एक विशेषता अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण का अर्थ है एक अर्थव्यवस्था का शेष विश्व के देशों से उत्पादन, व्यापार तथा वित्तीय सम्बन्ध स्थापित करना तथा विदेशी व्यापार पर लगे प्रतिबन्ध हटाना। भारत में खुलेपन की नीति के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए हैं-

  1. विदेशी निवेशक अब भारतीय कम्पनियों में 51% से 100% तक निवेश कर सकते हैं।
  2. व्यापार पर लगे प्रतिबन्ध 5 वर्षों में हटा दिए गए।
  3. विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए, विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड की स्थापना की गई है।

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation-W.T.O.) क्या है?
उत्तर-
विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) की स्थापना 1 जून, 1995 में की गई। यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि करने तथा वैश्वीकरण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए स्थापित किया गया है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य व्यापार पर लगाए जाने वाले करों में कमी तथा अन्य रुकावटों को दूर करके अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में मुकाबले की स्थिति उत्पन्न करना है जिससे विश्वभर के लोगों को लाभ प्राप्त हो सके। यह संस्था गैट (GATT) की उत्तराधिकारी है। विश्व व्यापार संगठन ने बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार से सम्बन्धित व्यापार तथा निवेश को शामिल करके अपने कार्य क्षेत्र को विशाल किया है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुख्य आर्थिक सुधारों से क्या अभिप्राय है?
अथवा
नई आर्थिक नीति के अंश बताओ।
उत्तर-
भारत में जुलाई, 1991 से लागू किए विभिन्न नीति सम्बन्धों, उपायों तथा नीतियों से है, जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था में उत्पादकता तथा कुशलता में वृद्धि करके प्रतियोगी वातावरण तैयार करना है। इस नीति के अंश निम्नलिखित हैं –

  • देश में उद्योगों तथा व्यापार के लिए प्रचलित लाइसेंस नीति की जगह उदारीकरण की नीति को लागू करना।
  • उद्योगों में कोटा प्रणाली की जगह पर निजीकरण की नीति को लागू करना।
  • विदेशी नीति में परमिट की जगह पर वैश्वीकरण की नीति को लागू करना।

प्रश्न 2.
भारत में नई आर्थिक नीति उदारीकरण वाली है। इस सम्बन्ध में उठाए गए पग बताओ।
उत्तर-
भारत में नई आर्थिक नीति में अर्थव्यवस्था को सरकार के सीधे तथा भौतिक कन्ट्रोल से मुक्त किया गया है। इसको उदारीकरण (Liberalisation) वाली नीति कहा जाता है। इस सम्बन्धी निम्नलिखित पग उठाए गए हैं –

  1. ‘नई औद्योगिक नीति’ में उदारवादी नीति को अपनाया गया है, जिसकी घोषणा जुलाई, 1991 में की गई। सिगरेट, सुरक्षा, औज़ार, खतरनाक रसायन, दवाइयां, औद्योगिक ऊर्जा तथा शराब, इन 6 उद्योगों को छोड़कर शेष किसी उद्योग के लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं।
  2. अब एम० आर० टी० पी० (एकाधिकार तथा व्यापार रोक कानून) की धारणा को समाप्त किया गया है। अब किसी फ़र्म को निवेश सम्बन्धी निर्णय लेते समय सरकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं।
  3. लघु पैमाने के उद्योगों की निवेश सीमा एक करोड़ रु० की गई।
  4. मशीनों के आयात की स्वतन्त्रता दी गई।
  5. उच्च तकनीक वाले कम्प्यूटर तथा उपकरण के आयात की छूट दी गई।

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प्रश्न 3.
नई आर्थिक नीति के उद्देश्य लिखो।
उत्तर-

  • आर्थिक विकास की दर में तीव्रता से वृद्धि।
  • औद्योगिक क्षेत्र में प्रतियोगिता को प्रोत्साहित करना।
  • निजी क्षेत्र द्वारा प्रतियोगिता से सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यकुशलता में वृद्धि।
  • राजकोषीय घाटे में कमी तथा मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण।
  • आर्थिक समानता में कमी।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत की नई आर्थिक नीति की विशेषताएं बताओ। (Explain the features of New Economic Policy of India.)
उत्तर-
नई आर्थिक नीति की मुख्य विशेषताएं अनलिखित हैं-
1. उदारीकरण (Liberalisation)-नई आर्थिक नीति की प्रथम विशेषता उदारीकरण की नीति का अपनाना है। उदारीकरण से अभिप्राय उद्योगों तथा व्यापार को सरकार की अनावश्यक पाबंदियों से मुक्त करवाना है, जिस व्यापार उदारीकरण से कोरिया, सिंगापुर इत्यादि अल्पविकसित देशों ने आर्थिक विकास किया है, उसी तरह भारत भी आर्थिक विकास कर सकता है। इस उद्देश्य के लिए 6 उद्योगों को छोड़कर शेष उद्योगों के लिए लाइसेंस लेने की नीति समाप्त की गई। नई नीति में पंजीकरण (Registration) योजनाएं समाप्त की गई हैं।

2. निजीकरण (Privatisation)-जो उद्योग प्रथम सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित थे, उनको निजी क्षेत्र के लिए छीनने की नीति को निजीकरण की नीति कहा जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र की असफलता को देखते हुए सरकार ने निजीकरण को आंशिक अथवा पूर्ण रूप में अपनाया है, इस नीति को (U Turn) का नाम दिया गया है अर्थात् सार्वजनिक उद्योगों का निजीकरण करना।

3. वैश्वीकरण (Globalisation)-एक देश का दूसरे देशों से मुक्त व्यापार, पूंजी आदान-प्रदान तथा मनुष्यों की गतिशीलता को वैश्वीकरण कहा जाता है। इसका उद्देश्य विदेशी पूंजी का प्रयोग करके विश्व अर्थव्यवस्था को शक्तिशाली बनाना है। विदेशी व्यापार को उत्साहित करके विदेशी निवेश में वृद्धि करना तथा मानवीय पूंजी का एक देश से दूसरे देशों में प्रयोग करना, वैश्वीकरण मनुष्य का मुख्य उद्देश्य है।

4. राजकोषीय सुधार (Fiscal Reforms)-राजकोषीय सुधार भी नई आर्थिक नीति की विशेषता है। इस नीति में सरकार अपनी आय में वृद्धि करके व्यय में कमी करने का यत्न करेगी ताकि देश में उत्पादन तथा आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव न पड़े। इस उद्देश्य के लिए कर प्रणाली में सुधार किए गए हैं। आयातनिर्यात कर घटाए गए हैं। उत्पादन कर में कमी की गई है।

5. मौद्रिक सुधार (Monetary Reforms)-भारत में नई आर्थिक नीति अनुसार मौद्रिक नीति में परिवर्तन किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य कीमत स्तर को स्थिर रखना है। सरकार ने इस उद्देश्य के लिए नरसिंगम कमेटी ने मौद्रिक सुधारों के लिए सिफ़ारिशें कीं, जिनको लागू किया गया है। इस उद्देश्य के लिए नकद रिज़र्व अनुपात (C.R.R.) को घटाकर 5% किया गया है। ब्याज की दर, मांग तथा पूर्ति अनुसार निश्चित की जाएगी। बैंकों को कार्य करने की स्वतन्त्रता दी गई है।

6. सार्वजनिक क्षेत्र नीति (Public Sector Policy)-सार्वजनिक क्षेत्र को भारत की स्वतन्त्रता के समय आर्थिक विकास का महत्त्वपूर्ण साधन माना गया था। परन्तु सार्वजनिक क्षेत्र में असफलता के कारण अब सरकार ने 6 उद्योगों को इस क्षेत्र के लिए रिज़र्व रखा है, बाकी के उद्योग निजी क्षेत्र को बेच दिए जाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के बहुत से उद्योगों का विनिवेश कर दिया जाएगा। इस क्षेत्र के शेयर वित्तीय संस्थाओं, साधारण लोगों तथा श्रमिकों को बेचे जाएंगे।

प्रश्न 2.
भारत की नई आर्थिक नीति के पक्ष में तर्क दो। (Give arguments in favour of New Economic Policy of India.)
उत्तर-
नई आर्थिक नीति में जो सुधार किए गए हैं, उसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं –
1. आर्थिक विकास की दर में वृद्धि-भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् 1951 से 1991 तक आर्थिक विकास की दर में वृद्धि 3.6% वार्षिक थी, जबकि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि 1.4% थी। 1991: 2009 तक विकास दर 7.2% वार्षिक हो गई। इससे स्पष्ट है कि आर्थिक सुधारों के कारण आर्थिक विकास में वृद्धि हुई है। 2017-18 में विकास दर 7.4% प्राप्त की गई।

2. औद्योगिक क्षेत्र की प्रतियोगिता में वृद्धि-औद्योगिक क्षेत्र की प्रतियोगिता में वृद्धि के लिए भी आर्थिक सुधार आवश्यक हैं। भारत के उद्योगों में उत्पादन लागत अधिक होने के कारण इनको सुरक्षा प्रदान की गई। इससे उद्योगों में मुकाबला करने की शक्ति बहुत घट गई। परिणामस्वरूप भारत का विदेशी व्यापार 1951 में विश्व व्यापार का 2% हिस्सा था, यह 1991 में घटकर 0.5 प्रतिशत रह गया। 2017-18 में भारत में विदेशी व्यापार 1.6% हो गया है। इसलिए आर्थिक सुधारों की आवश्यकता थी।

3. गरीबी तथा असमानता में कमी-भारत में गरीबी, असमानता तथा बेरोज़गारी की समस्या को योजनाओं द्वारा दूर नहीं किया जा सका। नई नीति द्वारा मानवीय साधनों का विकास करके रोज़गार तथा उत्पादन में वृद्धि करके लोगों की गरीबी को दूर करना भी इसका उद्देश्य है।

4. राजकोषीय घाटे तथा मुद्रास्फीति में कमी-भारत में राजकोषीय घाटा 1990-91 में 8.5% हो गया था। इससे देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो गई। सरकार को आन्तरिक तथा बाहरी ऋण लेना पड़ा। नई नीति द्वारा राजकोषीय घाटे पर काबू पाकर मुद्रा स्फीति में कमी सम्भव होगी।

5. सार्वजनिक उद्यमों की कार्यकुशलता में वृद्धि-सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में कार्यकुशलता तथा उत्पादकता में बहुत कमी है। नई आर्थिक नीति से सार्वजनिक क्षेत्र के दोष दूर करके इनकी कार्यकुशलता में वृद्धि की जाएगी। इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक उद्यमों की प्रतियोगिता शक्ति बढ़ जाएगी।

प्रश्न 3.
भारत की नई आर्थिक नीति के विपक्ष में तर्क दीजिए। (Give arguments Against New Economic Policy of India.)
उत्तर-
नई आर्थिक नीति के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क देकर इसकी आलोचना की गई है –

  1. कृषि को कम महत्त्व-भारत में नई आर्थिक नीति में उद्योगों के विकास की ओर अधिक ध्यान दिया गया है। कृषि उत्पादन क्षेत्र के विकास की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। भारत में कृषि के विकास के बिना आर्थिक विकास प्राप्त नहीं किया जा सकता।
  2. विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का दबाव-भारत में खुले बाज़ार की नीति को अपनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.) तथा विश्व बैंक (World Bank) ने उदारीकरण की नीति अपनाने के लिए दबाव पाया, जिस कारण यह नीति अपनाई गई। भारत को इन संस्थाओं से ऋण प्राप्त होता है। इसलिए नई आर्थिक नीति अपनाई गई।
  3. विदेशी ऋण तथा तकनीक पर अधिक निर्भरता-नई आर्थिक नीति की आलोचना में कहा जाता है कि विदेशी ऋण पर भारत की निर्भरता बढ़ गई है। विदेशी तकनीक का आयात अनिवार्य हो गया है, क्योंकि भारत में उद्योगों की प्रतियोगिता शक्ति को आधुनिक तकनीकों के बगैर बढ़ाया नहीं जा सकता। विदेशी ऋण तथा तकनीकों पर निर्भरता देश के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
  4. निजीकरण को अधिक महत्त्व-निजीकरण की नीति को नई आर्थिक नीति में आवश्यकता से अधिक महत्त्व दिया गया है। सार्वजनिक क्षेत्र में रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान किए जाते थे। निजीकरण द्वारा एकाधिकारी शक्तियों का विकास होगा, जिस द्वारा लोगों का शोषण किया जाएगा। बेरोज़गारी, काला धन, भ्रष्टाचार, श्रमिक शोषण, धन असमानता इत्यादि की बुराइयां उत्पन्न हो जाएंगी।
  5. अनिवार्य वस्तुओं की कमी-नई आर्थिक नीति द्वारा आरामदायक तथा विलास वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होगी। स्कूटर, कारें, टेलीविज़न इत्यादि वस्तुओं की पैदावार बढ़ जाएगी, परन्तु अनिवार्य उपभोक्ता वस्तुएं तथा सामाजिक भलाई के लिए पैदावार में कमी आएगी। इससे गरीब लोगों के कष्ट में वृद्धि होगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

प्रश्न 4.
भारत की नई आर्थिक नीति (1991) की विशेषताएं बताओ। (Explain the main features of New Economic Policy of India.)
उत्तर-
भारत में 1991 में नई आर्थिक नीति अनुसार उदारीकरण की नीति अपनाई गई। इस उद्देश्य के लिए भारत सरकार ने 24 जुलाई, 1991 को नई औद्योगिक नीति की घोषणा की। इस नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. लाइसेंस की समाप्ति-उद्योगों को राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रतियोगी बनाने के लिए 6 उद्योगों को छोड़कर बाकी उद्योगों को स्थापित करने के लिए लाइसेंस समाप्त किया गया।
भारत में-

      • शराब
      • सिगरेट
      • सुरक्षा उपकरण

(4) ख़तरनाक रसायन तथा (5) दवाइयों को छोड़कर शेष उद्योगों को लाइसेंस देने की आवश्यकता नहीं।

2. पंजीकरण की समाप्ति-नई औद्योगिक नीति के अनुसार नए उद्योग स्थापित करने अथवा उद्योगों में उत्पादन के विस्तार के लिए सरकारी आज्ञा की कोई आवश्यकता नहीं। सरकार को केवल सूचना ही देनी पड़ेगी।

3. सार्वजनिक क्षेत्र का संकुचन-सार्वजनिक क्षेत्र के लिए कुल 8 उद्योग सुरक्षित रखे गए हैं, जैसे कि परमाणु ऊर्जा, रेलवे, खानें, सैनिक साजो सामान इत्यादि, शेष सभी क्षेत्र में धीरे-धीरे निजी क्षेत्र को उत्पादन के अधिकार दिए जाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के शेयर साधारण जनता तथा श्रमिकों में बेचकर इन उद्योगों की कार्यकुशलता में वृद्धि की जाएगी।

4. विदेशी पूंजी-नई नीति में विदेशी पूंजी निवेश सीमा 40% से बढ़ाकर 51% कर दी गई है। इस सम्बन्ध में विदेशी मुद्रा नियमन कानून (FERA) में आवश्यक संशोधन किया जाएगा। विदेशी पूंजी सम्बन्धी देश का केन्द्रीय बैंक, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया, पूरी नज़र रखेगा।

5. बोर्डों का गठन-विदेशी पूंजी के सम्बन्ध में चुने हुए क्षेत्रों में निवेश करने के लिए विशेष अधिकार प्राप्त बोर्डों की स्थापना की गई है। यह बोर्ड बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से बातचीत करके पूंजी लगाने के लिए अनिवार्य पग उठाएगा।

6. लघु उद्योगों को सुरक्षा-नई नीति में लघु उद्योगों की निवेश सीमा एक करोड़ रु० की गई है। इन उद्योगों द्वारा कुछ वस्तुओं के उत्पादन को सुरक्षित रखा जाएगा; जिनका उत्पादन बड़े उद्योग नहीं कर सकेंगे।

7. एकाधिकारी कानून से छूट- एकाधिकारी कानून के अधीन आने वाली कम्पनियों को भारी छूट दी गई है। अब निवेश की सीमा समाप्त की गई है। उद्यमी बिना परमिट नए उद्योग स्थापित कर सकेंगे। इस नीति में लाइसेंस की समाप्ति तथा एकाधिकारी कम्पनियों पर रोक हटा ली गई है। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी पूंजी को उत्साहित करके देश के उद्योगों का विकास करना है।

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) पर नोट लिखो। भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्व व्यापार संगठन का प्रभाव स्पष्ट करो।
(Write a note on World Trade Organization (W.T.O.). Explain the effects of World Trade Organization on Indian Economy.)
उत्तर-
विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation-W.T.O.) की स्थापना 1 जून, 1995 को हुई। यह अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, जोकि गैट (GATT) की बैठकों के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आया है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात-निर्यात में आने वाली रुकावटों को दूर करके, विदेशी निवेश के अवसरों में वृद्धि करना, व्यापार सम्बन्धी बुद्धिजीवी संपदा अधिकार (TRIPS) तथा व्यापार सम्बन्धित निवेश उपायों (TRIMS) का विस्तार करना है। इस संगठन के मुख्य उद्देश्य हैं-

  • वस्तुओं को मुक्त प्रवाह की आज्ञा देने के लिए रुकावटें दूर करना।
  • पूंजी के मुक्त प्रवाह के लिए प्रेरक वातावरण तैयार करके निवेश में वृद्धि करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतियोगिता की स्थिति उत्पन्न करके उपभोक्ताओं को कम लागत पर वस्तुएं उपलब्ध करवाना।
  • विश्व के विभिन्न देशों को विश्व व्यापार में बुद्धिजीवी सम्पदा तथा व्यापार सम्बन्धित निवेश के लिए अधिक अवसर प्रदान करना।

विश्व व्यापार संगठन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव-
(Effects of World Trade Organisation on Indian Economy)
A. अनुकूल प्रभाव (Favourable Effects)

  1. निर्यात प्रोत्साहन-विश्व व्यापार संगठन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निर्यात के अधिक अवसर प्रदान करेगा। इससे भारत का विदेशी व्यापार, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अधिक योगदान डाल सकेगा।
  2. विकसित देशों की कोटा प्रणाली की समाप्ति-विश्व व्यापार संगठन द्वारा विकसित देशों द्वारा अपनाई जाने वाली कोटा प्रणाली को समाप्त किया जाएगा। इससे भारत के कपड़े के निर्यात में वृद्धि होगी।
  3. कृषि को विकसित देशों द्वारा कम सहायता-विश्व व्यापार संगठन की शर्ते लागू होने से विकसित देश कृषि क्षेत्र को कम सहायता प्रदान कर सकेंगे। इससे भारत में से कृषि पदार्थों के निर्यात में वृद्धि होगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

B. प्रतिकूल प्रभाव (Unfavourable Effects) –

  1. श्रम बाज़ार प्रति पक्षपात-विश्व व्यापार संगठन द्वारा पूंजी बाज़ार की ओर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, जबकि श्रम बाज़ार से पक्षपात की नीति अपनाई जा रही है। संगठन अनुसार पूंजी का निवेश एक देश द्वारा दूसरे देशों में बिना रुकावट किया जा सकता है। परन्तु श्रम बाज़ार में ऐसी स्वतन्त्रता नहीं होगी। इससे भारत जैसे कम विकसित देशों को हानि होगी।
  2. लघु पैमाने के उद्योगों पर बुरा प्रभाव-विश्व व्यापार संगठन बड़े पैमाने के उद्योगों तथा लघु पैमाने के उद्योगों में भिन्नता नहीं करता। इस कारण लघु पैमाने के उद्योगों को न सिर्फ देश में बड़े पैमाने के उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से प्रतियोगिता करनी पड़ेगी, बल्कि विदेशी उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का मुकाबला भी करना पड़ेगा। इससे अगरबत्ती, आइसक्रीम, मिनरल वाटर इत्यादि उद्योग नष्ट हो जाएंगे।
  3. विकसित देशों के दोहरे मापदण्ड-अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि विकसित देशों द्वारा दोहरे मापदण्ड अपनाए जाते हैं। एक ओर अमेरिका अपने किसानों को बहुत अधिक सब्सिडी देता है। भारत से निर्यात कपड़ों पर बहुत अधिक कर लगाया जाता है। भारत से निर्यात दुशालें, रसायन, सिले-सिलाए कपड़े इत्यादि पर पाबंदी लगाई जाती है, क्योंकि ये वस्तुएं बच्चों द्वारा उत्पादित की जा सकती हैं। इसी तरह जापान से निर्यात किए जाने वाले लोहा तथा इस्पात पर पाबन्दी लगाई हुई है। इस प्रकार के दोहरे मापदण्डों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

PSEB 12th Class Economics भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
घरेलू उद्योगों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
घरेलू उद्योग वह उद्योग होता है जो कि एक परिवार के सदस्यों द्वारा कम पूंजी से लगाया जाता है।

प्रश्न 2.
लघु उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर-
लघु उद्योग वे उद्योग हैं जिनमें एक करोड़ रुपए तक की पूंजी निवेश की गई हो।

प्रश्न 3.
औद्योगीकरण की कोई एक समस्या का वर्णन करें।
उत्तर-
बड़े घरानों का विकास-भारत में औद्योगिक क्षेत्र में कुछ घराने तीव्रता से विकसित हो रहे हैं।

प्रश्न 4.
नई औद्योगिक नीति में उदारवादी नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत की नई औद्योगिक नीति 1991 में सरकार ने उदारवादी नीति (Liberal Policy) अपनाई है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 5.
औद्योगिक विकास के लिए कोई एक सुझाव दें।
उत्तर-
औद्योगिक विकास के लिए सरकार को आधारभूत सुविधाओं में वृद्धि करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
भारत में घरेलू तथा छोटे उद्योगों के महत्त्व पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
इन उद्योगों द्वारा रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान किए जाते हैं।

प्रश्न 7.
छोटे पैमाने के उद्योगों की कठिनाइयां बताएं।
उत्तर-
घरेलू तथा छोटे उद्योगों में उत्पादन लागत अधिक आती है इसलिए बड़े उद्योगों से मुकाबला करना कठिन होता है।

प्रश्न 8.
भारत की 1991 की औद्योगिक नीति की कोई दो मुख्य विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  • सार्वजनिक क्षेत्र में केवल चार उद्योग सुरक्षित रखे गए हैं।
  • लाइसेंस प्राप्त करने की नीति का त्याग किया गया है।

प्रश्न 9.
किसी देश में उद्योगों की स्थापना में क्रान्तिकारी परिवर्तन को …………….. कहते हैं।
उत्तर-
औद्योगिक विकास।

प्रश्न 10.
परम्परागत वस्तुओं की पैदावार परम्परागत विधि से करने को ………………. उद्योग कहते हैं।
(a) छोटे उद्योग
(b) घरेलू उद्योग
(c) बड़े पैमाने के उद्योग
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) घरेलू उद्योग।

प्रश्न 11.
भारत में नई औद्योगिक नीति 1991 को ………………. नीति कहा जाता है।
उत्तर-
उदारवादी नीति।

प्रश्न 12.
बारहवीं योजना में औद्योगिक विकास का वार्षिक टीचा …………… प्रतिशत रखा गया है।
(a) 8%
(b) 9%
(c) 12%
(d) 14%.
उत्तर-
(b) 9%.

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प्रश्न 13. विभिन्न सिद्धान्त एवं क्रियाएं जो देश के औद्योगीकरण के लिए बनाए जाते हैं उनको ………… कहा जाता है।
(a) आर्थिक विकास
(b) औद्योगिक विकास
(c) औद्योगिक लाइसेंसिंग
(d) उपरोक्त में से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) औद्योगिक विकास।

प्रश्न 14.
भारत में नई औद्योगिक नीति सन् …………………… में बनाई गई।
(a) 1956
(b) 1980
(c) 1991
(d) 2012.
उत्तर-
(c) 1991.

प्रश्न 15.
सन् 1991 में 6 उद्योगों को छोड़कर बाकी सभी उद्योगों के लिए लाइसेंस समाप्त कर दिया गया |
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
नई औद्योगिक नीति अनुसार विदेशी पूंजी निवेश की सीमा बढ़ा कर 51 प्रतिशत कर दी गई है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए पूंजी की कोई कमी नहीं है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 18.
नई औद्योगिक नीति में निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 19.
भारत में औद्योगिक विकास की कोई एक समस्या बताएँ।
उत्तर-
भारत में आधारभूत उद्योगों का कम विकास हुआ है।

प्रश्न 20.
घरेलू तथा अल्प उद्योगों के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
घरेलू तथा अल्प पैमाने के उद्योग श्रम के गहन होने के कारण इन द्वारा रोज़गार प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 21.
भारत में नई औद्योगिक नीति कब बनाई गई ?
(a) 1971
(b) 1981
(c) 1991
(d) 2001.
उत्तर-
(c) 1991.

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में उद्योगों के महत्त्व सम्बन्धी कोई दो बिन्दु बताएँ।
उत्तर-
भारत में औद्योगीकरण का विशेष महत्त्व है। उद्योगों के विकास द्वारा राष्ट्रीय आय, उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि कर भारतीय अर्थ-व्यवस्था की विकास दर को बढ़ाया जा सकता है। उद्योगों का महत्त्व इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. रोज़गार में वृद्धि-औद्योगिक विकास द्वारा रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है। भारत में भिन्न-भिन्न योजनाओं में रोज़गार की वृद्धि के लिए रखे गए लक्ष्य प्राप्त नहीं हुए इस कारण बेरोज़गारी में बहुत वृद्धि हुई है। 2019-20 में उद्योग द्वारा 125 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान किया गया है। 2022 तक 200 मिलियन लोगों को रोजगार देने का अनुमान है।
  2. आर्थिक विकास- भारत के आर्थिक विकास की दर तीव्र करने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण |

प्रश्न 2.
भारत की 12वीं योजना में भारत के औद्योगिक ढांचे का वर्णन करें।
उत्तर-
बारहवीं योजना में उद्योग (Industries in 12th Plan)-बारहवीं योजना (2012-17) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 12% से 14% रखा गया है। इस योजना में 200 मिलियन लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है।

प्रश्न 3.
भारत की नई औद्योगिक नीति (1991) के गुण बताएं।
उत्तर-
नई औद्योगिक नीति के गुण (Merits)-

  • नई नीति से उद्योगों की कुशलता में वृद्धि होगी।
  • देश में विदेशी तकनीकों के प्रयोग के कारण उत्पादन में वृद्धि होगी।
  • यह नीति उदारवादी नीति है जिसमें निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है।
  • भारतीय उद्योगों को विदेशी उद्योगों से प्रतियोगिता करने के समर्थ बनाने का यत्न किया गया है।
  • घरेलू तथा छोटे उद्योगों को अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है तथा मज़दूरों के कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाए गए हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय उद्योगों की कोई दो समस्याएं बताएं।
उत्तर-
1. कम प्राप्तियां (Less Achievements) भारत की भिन्न-भिन्न योजनाओं में विकास दर के लक्ष्य हमेशा अधिक रखे गए हैं। प्रत्येक योजना में 8% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया परन्तु वास्तव में 5.6% विकास दर प्राप्त की गई है। इसलिए निर्धारित लक्ष्यों तथा प्राप्तियों में बहुत अन्तर पाया जाता है।

2. बीमार उद्योग (Industrial Sickness)-भारत के रिज़र्व बैंक ने व्यापारिक बैंकों से जो सूचना प्राप्त की है उसके अनुसार 31 मार्च, 2020 तक 2,40,000 बीमार औद्योगिक इकाइयां थीं। 2020 में छोटे पैमाने के उद्योगों की बीमार इकाइयों की संख्या 1,00,000 थी। इस प्रकार बीमार इकाइयों की संख्या में वृद्धि होने के कारण औद्योगिक विकास नहीं हो रहा है।

प्रश्न 5.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए कोई दो सुझाव दें।
उत्तर-

  1. आधुनिकीकरण (Modernisation)-भारत में उद्योगों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। इस लक्ष्य के लिए नई मशीनों तथा औज़ारों का निर्माण करना चाहिए ताकि उद्योगों में उत्पादन लागत कम हो सके।
  2. मूलभूत सुविधाएं (Basic Facilities)- उद्योगों के विकास के लिए मूलभूत सुविधाएं जैसे कि कच्चा माल, साख सहूलियतें, करों में राहत तथा लघु उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शक्ति, कोयला, यातायात के साधन, सड़कें, रेलों का विकास करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 6.
भारत ने लाइसेंसिंग नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति (Industrial Lincensing Policy)-स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने सन् 1951 में एक एक्ट ‘औद्योगिक विकास एवं नियमन’ पास किया जिसके अनुसार प्रत्येक उद्योग को सरकार से अनुमति लेकर ही औद्योगिक उत्पादन करने का हक होता था। बिना सरकार की अनुमति और बिना लाइसेंस कोई भी व्यक्ति उद्योग स्थापित नहीं कर सकता था। उद्योग कहां स्थापित किया जाए, कौन-सी वस्तु का उत्पादन किया जाए और उस वस्तु का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए, इन बातों के लिए लाइसेंस लेना ज़रूरी था। सरकार की इस नीति को औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति कहा जाता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में औद्योगीकरण के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में औद्योगीकरण का विशेष महत्त्व है। उद्योगों के विकास द्वारा राष्ट्रीय आय, उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि कर भारतीय अर्थ-व्यवस्था की विकास दर को बढ़ाया जा सकता है। उद्योगों का महत्त्व इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. रोज़गार में वृद्धि-औद्योगिक विकास द्वारा रोजगार में वृद्धि की जा सकती है। भारत में भिन्न-भिन्न योजनाओं में रोज़गार की वृद्धि के लिए रखे गए लक्ष्य प्राप्त नहीं हुए इस कारण बेरोजगारी में बहुत वृद्धि हुई है। 2019-20 में उद्योग द्वारा 160 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान किया गया है। 2022 तक 200 मिलियन लोगों को रोज़गार देने का अनुमान है।

2. आर्थिक विकास-भारत के आर्थिक विकास की दर तीव्र करने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण |

3. साधनों का उचित प्रयोग-भारत में प्राकृतिक साधन लोहा, कोयला, मैंगनीज़ तथा मानवीय साधन बहुत अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसका उचित प्रयोग करने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण है।

4. विदेशी व्यापार-भारत द्वारा विदेशों को निर्यात कम मात्रा में किया जाता है तथा आयात अधिक होने के कारण भुगतान सन्तुलन भारत के प्रतिकूल रहता है। औद्योगीकरण द्वारा विदेशी व्यापार में वृद्धि करके भुगतान सन्तुलन को अनुकूल किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
भारत की योजनाओं में औद्योगिक विकास दर पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत एक विकासशील देश है। इससे 1991 की औद्योगिक नीति से पूर्व सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया था परन्तु अब निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है जिस कारण भारत में भिन्नभिन्न योजनाओं में विकास दर इस प्रकार रही है-
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इससे ज्ञात होता है कि भारत में उद्योगों की विकास दर 10% से कम रही है। देश के आर्थिक विकास में वृद्धि करने के लिए विकास दर में और वृद्धि करने की आवश्यकता है। वर्ष 2012-17 में औद्योगिक विकास दर का लक्ष्य 9% रखा गया है। 2020-21 में 9.4% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य है।

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प्रश्न 3.
भारत में औद्योगिक विकास की मन्द गति के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
भारत में औद्योगिक विकास की मन्द गति के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –

  1. आधारभूत उद्योगों का कम विकास-प्रत्येक देश का आर्थिक विकास आधारभूत उद्योगों के विकास पर निर्भर करता है। यद्यपि भारत में मशीनें, लोहा तथा इस्पात, सीमेंट इत्यादि बनाने के उद्योग स्थापित किए गए हैं परन्तु देश की आवश्यकताओं को देखते हुए इनका कम विकास हुआ है।
  2. पूंजी की कमी-उद्योगों के विकास के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है। भारत में अधिक लोग निर्धन हैं इसलिए लोगों की बचत कम है। बचत द्वारा ही पूंजी निर्माण किया जाता है। पूंजी की कमी के कारण उद्योगों की गति मन्द है।
  3. शक्ति की कमी-उद्योगों के विकास के लिए शक्ति साधनों की आवश्यकता होती है। भारत में शक्ति के तीन साधन विद्युत्, कोयला तथा तेल हैं। भारत में कोयला काफ़ी मात्रा में मिलता है परन्तु यह घटिया किस्म का होने के कारण आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करता। कोयले की खाने बिहार तथा बंगाल में केन्द्रित हैं इसलिए अन्य क्षेत्रों को कोयला भेजने की लागत बढ़ जाती है। इस कारण उद्योगों के विकास की गति मन्द है।
  4. क्षेत्र असमानता-भारत में अधिकतर उद्योग कुछ क्षेत्रों जैसे कि महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु में केन्द्रित हो गए हैं। कुछ राज्य जैसे कि पंजाब, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान उद्योगों के पक्ष से पिछड़े हुए राज्य हैं। क्षेत्रीय असमानता होने के कारण भी उद्योगों के विकास की गति मन्द है।

प्रश्न 4.
भारत में औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए चार सुझाव दें।
उत्तर-
भारत में उद्योग पिछड़ी हुई स्थिति में हैं। उद्योगों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-

  • निजी क्षेत्र का विकास- भारत में सार्वजनिक क्षेत्र असफल हो गया है। इसलिए निजी क्षेत्र को उत्साहित करने की आवश्यकता है। सरकार को निजी क्षेत्र के विकास के लिए अधिक सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। इससे निजी पूंजीपति अधिक उद्योग स्थापित करेंगे ताकि उद्योगों का विकास हो सके।
  • साधनों का उचित प्रयोग-भारत में प्राकृतिक साधन काफ़ी मात्रा में पाए जाते हैं। देश के प्राकृतिक साधनों का उचित प्रयोग करके उद्योगों का विकास किया जा सकता है।
  • आधुनिकीकरण तथा तकनीकी विकास-भारत में उत्पादन करने की विधियां पुरातन होने के कारण उद्योग पिछड़े हुए हैं। उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक है कि आधुनिक युग में प्रयोग होने वाली मशीनों का प्रयोग किया जाए। तकनीकी तौर पर विकसित मशीनों के प्रयोग से न केवल उत्पादन लागत कम हो जाती है बल्कि उद्योग प्रतियोगिता करने में समर्थ हो जाते हैं।
  • अवरोध दूर करना-औद्योगिक विकास के लिए आधारभूत ढांचे के मुख्य अवरोधों को दूर करना चाहिए अर्थात् देश में शक्ति, यातायात के साधन, संचार तथा कच्चे माल इत्यादि अवरोधों को दूर किया जाए तो इससे औद्योगिक पिछड़ापन दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
ग्यारहवीं योजना में औद्योगिक विकास पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत में बारहवीं पंचवर्षीय योजना 2012-17 तक बनाई गई। इस योजना में उद्योगों के विकास तथा खनिज पदार्थों पर 196000 करोड़ रुपए खर्च करने के लिए रखे गए थे। ग्यारहवीं योजना में चार क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है। विदेशी पूंजी 75% से 100% तक लगाई जा सकती है। पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है। इस प्रकार भारतीय उद्योगों को प्रतियोगिता के योग्य बनाया जा रहा है। बारहवीं योजना (2012-17) में औद्योगिक विकास दर 12% का लक्ष्य रखा गया है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत की अर्थ-व्यवस्था में उद्योगों के महत्त्व पर टिप्पणी लिखें। (Write a detailed note on the Importance of Industrialization in India.)
उत्तर-
भारत जैसे विकासशील देश के लिए औद्योगीकरण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. रोज़गार में वृद्धि-भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए रोजगार – के नए अवसर उत्पन्न करने के लिए औद्योगीकरण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कृषि से जनसंख्या का बोझ घटाने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण है।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि-अगर हम विश्व के उन्नत देशों को देखते हैं तो आय में अधिक योगदान उद्योगों द्वारा दिया जाता है। भारत में 1950-51 में उद्योगों द्वारा 16% योगदान दिया गया था जो कि अब 2019-20 में बढ़ कर 25% हो गया है। आज भी उद्योगों से कृषि का योगदान महत्त्वपूर्ण है।
  3. पूंजी निर्माण में वृद्धि-पूंजी निर्माण के अतिरिक्त कोई भी देश आर्थिक उन्नति नहीं कर सकता। प्रो० लुईस का विचार था कि कोई देश इतना निर्धन नहीं होता कि राष्ट्रीय आय का 12% भाग पूंजी निर्माण न कर सके। परन्तु उद्योगों के विकास के अतिरिक्त बचत में वृद्धि नहीं हो सकती इसलिए पूंजी निर्माण में वृद्धि करने के लिए औद्योगिक विकास आवश्यक है।
  4. कृषि का विकास-कृषि का विकास औद्योगिक विकास के बिना सम्भव नहीं। उद्योगों में ऐसी मशीनें विकसित की जा सकती हैं जिनसे उत्पादन बढ़ाया जा सके। जब कृषि का उत्पादन बढ़ जाता है तो इससे उद्योगों का विकास होता है। इस प्रकार कृषि का विकास तथा औद्योगिक विकास एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।
  5. विदेशी व्यापार का विकास-उद्योगों के विकास द्वारा विदेशी व्यापार में वृद्धि होती है। उद्योगों में जो वस्तुएं उत्पन्न की जाती हैं इनका निर्यात करके विदेशी पूंजी अर्जित की जा सकती है जो कि देश के आर्थिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होती है।
  6. सन्तुलित आर्थिक विकास- भारत में आर्थिक विकास तीव्र करने के लिए सन्तुलित आर्थिक विकास करने की आवश्यकता है। जब एक देश में कृषि तथा उद्योग एक साथ विकसित होते हैं तो इस को सन्तुलित विकास कहा जाता है। इसलिए भारत में सन्तुलित विकास करके आर्थिक विकास तीव्र गति से प्राप्त किया जा सकता है।
  7. आत्म-निर्भरता- भारत में विदेशों से बहुत-सी वस्तुएं तथा मशीनें आयात की जाती हैं। इसलिए स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत का भुगतान सन्तुलन भारत के प्रतिकूल रहा है। औद्योगिक विकास द्वारा वस्तुओं की अधिक आवश्यकता को पूर्ण किया जा सकता है।
  8. सुरक्षा के लिए लाभदायक-देश की सुरक्षा के लिए औद्योगिक विकास लाभदायक होता है। देश में सुरक्षा सम्बन्धी उपकरणों का विकास करके विदेशों पर निर्भरता कम की जा सकती है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के पश्चात् योजनाओं के दौरान भारत में औद्योगिक विकास के ढांचे का वर्णन करें। (Explain the Industrial development of India after Independence during plan period.)
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के औद्योगिक विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया गया था क्योंकि इंग्लैण्ड के उद्योगों में जो माल तैयार होता था वह भारत की मण्डियों में बेचा जाता था। भारत में से कच्चा माल इंग्लैण्ड को निर्यात किया जाता था। इसलिए स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में औद्योगिक विकास नहीं हुआ, परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक विकास की तरफ ध्यान देना आरम्भ किया गया है। इसलिए भारतीय योजनाओं के दौरान उद्योगों को जिस प्रकार महत्त्व दिया गया है उसका विवरण इस प्रकार से है-
1. प्रथम योजना में उद्योग (Industries in First Plan)-प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में कृषि के विकास की तरफ अधिक ध्यान दिया गया, परन्तु औद्योगिक विकास के लिए विशेष कार्य नहीं किया गया, परन्तु इस योजना में कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग जैसे कि सीमेंट, फैक्टरियां, टेलीफोन, इण्डस्ट्री, चितरंजन लोकोमोटिव वर्कस इत्यादि आरम्भ किए गए। इस योजना में उद्योगों के उत्पादन में 39% वृद्धि हुई है।

2. द्वितीय योजना में उद्योग (Industries in Second Plan)-द्वितीय योजना (1956-61) में उद्योगों के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। यह योजना प्रो० पी० सी० महलानोबिस ने तैयार की थी। 1956 में औद्योगिक नीति की घोषणा की गई। इस योजना काल में सार्वजनिक क्षेत्र में आधारभूत उद्योग स्थापित करने को अधिक महत्त्व दिया गया। लोहा तथा इस्पात के उत्पादन के लिए दुर्गापुर, भिलाई तथा राऊरकेला के स्थान पर उद्योग स्थापित किए गए। नंगल में उर्वरक उद्योग स्थापित किया गया। इस योजना में औद्योगिक उत्पादन की विकास दर 6.6% वार्षिक रही।

3. तृतीय योजना में उद्योग (Industries in Third Plan)-भारत की तृतीय योजना (1961-66) में भारी उद्योग के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। इसका मुख्य लक्ष्य औद्योगिक क्षेत्र में रोज़गार में वृद्धि करना रखा गया ताकि राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो सके। इस योजना में जो उद्योग द्वितीय योजना में स्थापित किए गए थे उनकी योग्यता में वृद्धि की गई। भारत में मशीनों के पुर्जे, स्वास्थ्य से सम्बन्धित उपकरण तथा वैज्ञानिक औजार बनाने के कारखाने लगाए गए। इस योजना में औद्योगिक उत्पादन में 25% वृद्धि की गई।

4. चतुर्थ योजना में उद्योग (Industries in Fourth Plan)-चतुर्थ योजना (1969-74) से तीव्र गति से आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए औद्योगिक विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। भारत में पेट्रोल तथा रासायनिक पदार्थों के विकास के लिए निवेश में वृद्धि की गई। इस योजना काल में औद्योगिक उत्पादन को वार्षिक दर 5% रही।

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5. पांचवीं योजना में उद्योग (Industries in Fifth Plan)-पांचवीं योजना (1974-78) में औद्योगिक विकास में. ६, वार्षिक विकास दर प्राप्त करने के लिए बनाई गई थी। इस योजना में उद्योगों के विकास के लिए सा जनिक क्षेत्र में 39,426 करोड़ रुपए का निवेश किया गया। योजना काल में इस्पात, उर्वरक, खनिज तेल, निर्यात, कपड़ा, चीनी इत्यादि उद्योगों के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया परन्तु औद्योगिक उत्पादन में विकास दर 5.3% रही।

6. छठी योजना में उद्योग (Industries in Sixth Plan)-छठी योजना (1980-85) में नए उद्योग स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया। विशेषतया टेलीफोन तथा इलेक्ट्रोनिक्स उद्योगों की तरफ अधिक ध्यान. दिया गया। इस योजना में औसत वार्षिक विकास दर 5.5% वार्षिक रही।

7. सातवीं योजना में उद्योग (Industries in Seventh Plan)-सातवीं योजना (1985-90) में देश में औद्योगीकरण की नीति जारी रही। इस योजना में बड़े उद्योगों तथा खनिजों के उत्पादन की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। उत्पादन में वृद्धि करने के लिए तकनीक को विकसित करने का कार्य आरम्भ किया गया। देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर उद्योगों को विकसित करने की योजना बनाई गई। विकास सम्भावना वाली सन्राइज इण्डस्ट्री (Sun Rise Industry) की स्थापना की गई। इस योजना काल में औद्योगिक विकास दर 8.5% वार्षिक रही।

8. आठवीं योजना में उद्योग (Industries in 8th Plan).- आठवीं योजना (1992-97) में उद्योगों पर कृषि से अधिक खर्च करने का कार्यक्रम बनाया गया। इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्योगों के विकास के लिए 44.33 करोड़ रुपए खर्च किए गा ! इस निवेश का मुख्य लक्ष्य निजी उद्योगों की उत्पादन शक्ति में वृद्धि करना रखा गया।

9. नौवीं योजना में उद्योग (Industries in 9th Plan)-नौवीं योजना (1997-2002) में उदारीकरण की नीति को अपनाया गया है। नई औद्योगिक नीति के अनुसार उद्योगों में उत्पादन शक्ति को बढ़ाकर शेष विश्व की जस्तुओं से मुकाबला करने के योग्य बनाना है। इसके लिए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता दी है। पूंजी बाज़ार को विशाल बनाया गया है। इस योजना में औद्योगिक विकास दर 5.5% रही।

10. दसवीं योजना में उद्योग (Industries in 10th Plan)-दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002-07 में उदारीकरण व निजीकरण की नीति को अपनाया गया है। इस योजना काल में 8.2% वार्षिक विकास दर प्राप्त की गई है।

11. ग्यारहवीं योजना में उद्योग (Industries in 11th Plan)-ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 15% प्रति वर्ष रखा गया है। ग्यारहवीं योजना में औद्योगिक विकास पर 153600 करोड़ रुपए व्यय किया गया।

12. बारहवीं योजना में उद्योग (Industries in 12th Plan)-बारहवीं योजना (2012-17) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 9% रखा गया है। इस योजना काल में 292098 करोड़ रुपए व्यय किये जाएंगे।

प्रश्न 3.
भारत में घरेलू तथा लघु पैमाने के उद्योगों के महत्त्व की व्याख्या करें। (Explain the importance of cottage and small scale industries in India.)
उत्तर-
माईक्रो, लघु तथा मध्यम उद्योगों की परिभाषा (Definition of Micro, Small and Medium Industries)-भारत में माईक्रो, लघु तथा मध्यम उद्योगों के विकास एक्ट के अनुसार इन उद्योगों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है-वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण ने 2 फरवरी 2020 को बजट में इन उद्योगों की परिभाषा बदल दी है-

निर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector)-

उद्यम श्रेणी प्लांट तथा मशीनरी पर निवेश
माईक्रो उद्यम ₹ 1 करोड़ से अधिक निवेश नहीं होना चाहिए।
लघु उद्यम ₹10 करोड़ से अधिक परन्तु ₹ 50 करोड़ का उत्पादन नहीं होना चाहिए।
मध्यम उद्यम ₹ 10 करोड़ से अधिक परन्तु ₹ 50 करोड़ से अधिक निवेश नहीं होना चाहिए।

भारत में घरेलु तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का महत्त्व बहुत अधिक है। यह उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 8% योगदान डालते हैं। इस उद्योगों द्वारा उत्पादन का 40% भाग निर्यात किया जाता है। भारत में इन उद्योगों की संख्या 26 मिलियन है जिसमें 60 मिलियन मज़दूरों को रोजगार दिया जाता है।

इन उद्योगों के महत्त्व को निम्नलिखित से ज्ञात किया जा सकता है –
1. रोज़गार (Employment)-घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग श्रम गहन होने के कारण रोज़गार में वृद्धि करते हैं। भारत में जनसंख्या बहुत अधिक है। इसलिए बेरोज़गारी की समस्या पाई जाती है। बेरोज़गारी को दूर करने के लिए घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग अधिक योगदान दे सकते हैं। लघु तथा मध्यम वर्ग के उद्योगों द्वारा 7.2 लाख लोगों को रोजगार प्रदान किया जाता है।

2. पूंजी की कम आवश्यकता (Need for Less Capital)-घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों में पूंजी की कम आवश्यकता होती है। इसलिए भारत जैसे निर्धन देश में यह उद्योग विशेष महत्त्व रखते हैं।

3. विदेशी सहायता की आवश्यकता नहीं (No need of Foreign Help)-घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों को स्थापित करने के लिए विदेशी मशीनों तथा आधुनिक तकनीकों की आवश्यकता नहीं होती। घरेलू तकनीक द्वारा ही उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।

4. कृषि पर जनसंख्या का कम बोझ (Less Pressure of Population on Agriculture)-भारत में कृषि पर 70% लोग निर्भर करते हैं। कृषि पर से जनसंख्या का बोझ हटाने के लिए घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास आवश्यक है।

5. आय का समान विभाजन (Equal Distribution of Income)-भारत में आय का असमान विभाजन पाया जाता है। अमीर तथा निर्धन लोगों की आय में अन्तर बहुत अधिक है। आय के समान विभाजन के लिए भी घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास आवश्यक है।

6. उद्योगों का विकेन्द्रीकरण (Decentralisation of Industries)-बड़े पैमाने के उद्योग एक स्थान पर केन्द्रित हो जाते हैं। उद्योगों में विकेन्द्रीकरण के लिए घरेलू तथा छोटे उद्योगों का विकास आवश्यक है।

7. बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए सहायक (Helpful to Large Scale Industries)-छोटे पैमाने के उद्योगों में ऐसी वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है जो कि बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए सहायक हो सके जैसे कि साइकिल बनाने के उद्योगों के लिए छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा हैण्डल, स्टैण्ड, तारें इत्यादि नियमित किए जा सकते हैं।

8. कम औद्योगिक लड़ाई-झगड़े (Less Industrial Disputes)-बड़े पैमाने के उद्योगों से औद्योगिक लड़ाई-झगड़े आरम्भ हो जाते हैं परन्तु छोटे पैमाने पर उत्पादन करने से औद्योगिक झगड़ों की सम्भावना कम हो जाती है।

9. किसानों की आय में वृद्धि (Supplement to Farmer’s Income)-घरेलू उद्योग विशेषतया किसानों द्वारा आरम्भ किए जा सकते हैं। इससे किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 4.
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक नीति की आलोचना सहित व्याख्या करें। (Critically examines the Industrial Policy of India after Independence.)
अथवा
भारत में 1991 की औद्योगिक नीति की व्याख्या करें। (Explain the Industrial Policy of 1991 in India.)
अथवा
भारत की नई औद्योगिक नीति को स्पष्ट करें। (Explain the New Industrial Policy of India.)
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक नीति का निर्माण किया गया। औद्योगिक नीति समय-समय पर परिवर्तित की गई है, जिसका विवरण इस प्रकार है-
1. औद्योगिक नीति 1948 (Industrial Policy of 1948)-भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् अर्थव्यवस्था (Mixed Economy) को अपनाया गया। इसमें औद्योगिक विकास के लिए सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के कार्य क्षेत्र निर्धारित किए गए। उद्योगों को चार क्षेत्रों में विभाजित करके स्पष्ट किया गया।

  • सार्वजनिक क्षेत्र
  • सरकारी तथा निजी क्षेत्र
  • नियमित निजी क्षेत्र
  • निजी तथा सहकारी क्षेत्र में बनाई गई।

2. इस नीति में-

  • सार्वजनिक क्षेत्र में 17 उद्योगों का वर्णन किया गया।
  • सरकारी तथा निजी क्षेत्र में साझे तौर पर चलाने के लिए 12 उद्योग रखे गए।
  • निजी क्षेत्र में शेष उद्योगों को शामिल किया गया। घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों की तरफ विशेष ध्यान दिया गया है।

इस औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया तथा एकाधिकारी शक्तियों को नियन्त्रण में रखा गया।

3. औद्योगिक नीति 1997 (Industrial Policy of 1977)-1977 में जनता सरकार का राज्य स्थापित हुआ। इसलिए उन्होंने 1956 की औद्योगिक नीति में कुछ परिवर्तन किए परन्तु 1980 में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने भी औद्योगिक नीति में परिवर्तन किए। नई औद्योगिक नीति 1991 (New Industrial Policy of 1991)–भारत सरकार ने 24 जुलाई, 1991 को नई औद्योगिक नीति की घोषणा की।

इस नीति की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  1. सरकारी क्षेत्र का संकुचन (Contraction of Public Sector)-नई नीति के अनुसार सरकारी क्षेत्र में सैन्य उपकरण, परमाणु, ऊर्जा, खनन तथा रेल यातायात के चार उद्योग रहेंगे जबकि शेष उद्योग निजी क्षेत्र के लिए आरक्षित किए गए।
  2. लाइसेंस की समाप्ति (Delicensing)-नई औद्योगिक नीति में 18 उद्योग रखे गए जिनके लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता है जैसे कि कोयला, पेट्रोलियम, शराब, चीनी, मोटर, कारें, दवाइयां इत्यादि। इनके अतिरिक्त अन्य उद्योगों में लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है।
  3. विदेशी पूंजी (Foreign Capital)-नई नीति के अनुसार विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 40% से बढ़ा कर 51% की गई है।
  4. बोर्डों का संगठन (Organisation of Boards)-नई नीति के अनुसार विदेशी पूंजी को उत्साहित करने के लिए विशेष बोर्डों का गठन किया जाएगा।
  5. तकनीकी माहिर (Technical Experts)-नई नीति में तकनीकी माहिरों की सहायता लेकर औद्योगिक विकास किया जाएगा।
  6. सरकारी निर्णय (Government Decision)-सरकार ने भारतीय औद्योगिक अर्थव्यवस्था को अफसरशाही नियन्त्रण के चंगुल से बाहर निकालने का फैसला किया विशेषतया सुरक्षा के क्षेत्र तथा अन्य आवश्यक क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र में आरक्षित रखे जाएंगे जबकि अन्य क्षेत्रों में निजी पूंजीपतियों को निवेश करने की छूट दी जाएगी। भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में लगातार हो रही हानि को ध्यान में रख कर नई औद्योगिक नीति उदारवादी नीति बनाई गई है। बारहवीं योजना में विकास दर 89% प्राप्त करने का लक्ष्य है।

नई नीति का मूल्यांकन (Evaluation of New Industrial Policy)गुण (Merits)-

  1. नई नीति से उद्योगों की कुशलता में वृद्धि होगी।
  2. देश में विदेशी तकनीकों के प्रयोग के कारण उत्पादन में वृद्धि होगी।
  3. यह नीति उदारवादी नीति है जिसमें निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है।
  4. भारतीय उद्योगों को विदेशी उद्योगों से प्रतियोगिता करने के समर्थ बनाने का यत्न किया गया है।
  5. घरेलू तथा छोटे उद्योगों को अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है तथा मजदूरों के कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाए गए हैं।

त्रुटियां (Shortcomings)-

  • इससे सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व कम हो गया है।
  • सरकारी कर्मचारियों की निरन्तर छंटनी हो रही है।
  • आर्थिक शक्ति कुछ हाथों में केन्द्रित हो जायेगी तथा एकाधिकारी शक्तियों का निर्माण होगा।
  • विदेशी पूंजी से आर्थिक गुलामी की स्थिति उत्पन्न होगी।
  • इस नीति से सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं की जा सकती तथा पिछड़े क्षेत्रों का विकास नहीं होगा।

प्रश्न 5.
भारत में औद्योगीकरण की मुख्य समस्याओं का वर्णन करें। उद्योगों के विकास के लिए सुझाव दें।
(Explain the main problems of Industrialization in India. Suggest measures for the Industrial development.)
उत्तर –
भारत में औद्योगिक विकास सन्तोषजनक नहीं हुआ। आज भी कृषि क्षेत्र का योगदान राष्ट्रीय आय में अधिक है। औद्योगिक विकास न होने के मुख्य कारण इस क्षेत्र की कुछ समस्याएं हैं जो कि इस प्रकार हैं-

कम प्राप्तियां (Less Achievements)-
भारत की भिन्न-भिन्न योजनाओं में विकास दर के लक्ष्य हमेशा अधिक रखे गए हैं। प्रत्येक योजना में 8% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया परन्तु वास्तव में 5.6% विकास दर प्राप्त की गई है। इसलिए निर्धारित लक्ष्यों तथा प्राप्तियों में बहुत अन्तर पाया जाता है।

  1. बीमार उद्योग (Industrial Sickness)-भारत के रिज़र्व बैंक ने व्यापारिक बैंकों से जो सूचना प्राप्त की है उसके अनुसार 31 मार्च, 2019 तक 2,40,000 बीमार औद्योगिक इकाइयां थीं। 2019 में छोटे पैमाने के उद्योगों की बीमार इकाइयों की संख्या 1,13,178 थी। इस प्रकार बीमार इकाइयों की संख्या में वृद्धि होने के कारण औद्योगिक विकास नहीं हो रहा है।
  2. बड़े घरानों का विकास (Growth of Big Houses)-भारत में टाटा, बिरला, डाल्मिया, श्री राम, मफतलाल जैसे बड़े घरानों के पास सम्पत्ति निरन्तर बढ़ रही है। इस प्रकार देश की आर्थिक शक्ति थोड़े से हाथों में केन्द्रित हो रही है।
  3. विलास वस्तुओं का उत्पादन (Production of Luxury things)-भारत में औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन में अमीर लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं का अधिक उत्पादन किया जाता है जबकि साधारण लोगों द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं में उत्पादन की तरफ ध्यान नहीं दिया गया।
  4. क्षेत्रीय असन्तुलन (Regional Imbalance)-भारत में उद्योग थोड़े से राज्यों में केन्द्रित हो गए हैं जैसे कि महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु राज्य औद्योगिक पक्ष से विकसित हैं जबकि बिहार, उड़ीसा, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश औद्योगिक पक्ष से पिछड़े हुए राज्य हैं।
  5. कम सुविधाएं (Less Facilities)-भारत के उद्योगों को बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जैसे कि विदेशी प्रतियोगिता, विद्युत्, प्राकृतिक साधनों की कमी, प्रशिक्षण के माहिरों की कमी जिसके कारण औद्योगिक क्षेत्रों की उत्पादकता बहुत कम है। परिणामस्वरूप उद्योगों द्वारा लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं की जा सकती।

औद्योगिक (Suggestion for Industrial Growth) –

  • आधुनिकीकरण (Modernisation)-भारत में उद्योगों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। इस लक्ष्य के लिए नई मशीनों तथा औज़ारों का निर्माण करना चाहिए ताकि उद्योगों में उत्पादन लागत कम हो सके।
  • मूलभूत सुविधाएं (Basic Facilities) उद्योगों के विकास के लिए मूलभूत सुविधाएं जैसे कि कच्चा माल, साख सहूलियतें, करों में राहत तथा लघु उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शक्ति, कोयला, यातायात के साधन, सड़कें, रेलों का विकास करने की आवश्यकता है।
  • सरकारी सहायता (Government Assistance) सरकार को औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करना चाहिए। बीमार इकाइयों के सम्बन्ध में उचित नीति अपनानी चाहिए। उत्पादन करने की विधियों में परिवर्तन करके मांग में वृद्धि करनी चाहिए।
  • वस्तुओं का मानकीकरण (Standardisation of Products)-भारत में वस्तुओं के मानकीकरण की आवश्यकता है ताकि विश्व स्तर पर वस्तुओं को प्रतियोगिता करने के योग्य बनाया जा सके। इसके लिए सरकार को नई मण्डियों की खोज करनी चाहिए। वस्तुओं का प्रचार करके मांग में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
  • औद्योगिक केन्द्र (Industrial Centres)-देश में कच्चे माल, विद्युत्, जल, मज़दूरों इत्यादि साधनों को ध्यान में रख कर औद्योगिक केन्द्र स्थापित करने चाहिए, विशेषतया कृषि उद्योगों को गांवों में स्थापित करने की आवश्यकता है। इस प्रकार सरकार को भिन्न-भिन्न प्रकार की सूचना प्रदान करके उद्योगों के विकास की तरफ ध्यान देना चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 6.
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति से क्या अभिप्राय है ? भारत में लाइसेंस नीति के उद्देश्य तथा कार्य कुशलता का मूल्यांकन करें।
(What is meant by Industrial Licensing Policy? Discuss the objectives of this Policy. Evaluate the working of this Policy.)
उत्तर-
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति (Industrial Lincensing Policy) स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने सन् 1951 में एक एक्ट ‘औद्योगिक विकास एवं नियमन’ पास किया जिसके अनुसार प्रत्येक उद्योग को सरकार से अनुमति लेकर ही औद्योगिक उत्पादन करने का हक होता था। बिना सरकार की अनुमति और बिना लाइसेंस कोई भी व्यक्ति उद्योग स्थापित नहीं कर सकता था।

औद्योगिक कहां स्थापित किया जाए, कौन-सी वस्तु का उत्पादन किया जाए- और उस वस्तु का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए, इन बातों के लिए लाइसेंस लेना ज़रूरी था। सरकार की इस नीति को औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति कहा जाता है। औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के उद्देश्य (Objectives of Industrial Lincensing Policy)-औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. निवेश तथा उत्पादन पर नियन्त्रण-औद्योगिक नीति का उद्देश्य भारत में निवेश तथा उत्पादन पर नियन्त्रण रखना था। इस प्रकार विभिन्न योजनाओं में औद्योगिक विकास के लक्ष्यों की पूर्ति सम्भव है।
  2. लघु उद्योगों का विकास-बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास से लघु उद्योगों के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लाइसेंसिंग नीति द्वारा सरकार उन उद्योगों को अनुमति नहीं देती थी जिनके विकास से लघु उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़े।
  3. क्षेत्रीय सन्तुलन-भारत में सभी उद्योग एक स्थान पर केन्द्रित न हो जाए और देश के हर क्षेत्र का विकास हो इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए भी लाइसेंसिंग नीति अनिवार्य भी है।
  4. तकनीकी सुधार-औद्योगिक नीति का उद्देश्य तकनीकी सुधारों को बढ़ावा देना भी है।
  5. विकेन्द्रीयकरण-उद्योगों के विकेन्द्रीयकरण के लिए भी लाइसेंसिंग नीति ज़रूरी थी। इस नीति का एक उद्देश्य उद्योगों का सन्तुलित विकास करना भी है। इसलिए नई औद्योगिक इकाइयां लाभ के लिए, वर्तमान में चल रही औद्योगिक ईकाइयों का पंजीकरण अनिवार्य है। नए उत्पादन बनाने के लिए और उत्पादन का विस्तार करने के लिए भी लाइसेंस लेना अनिवार्य है। यदि उद्यमी औद्योगिक इकाई के स्थान में परिवर्तन करता है तो इस के लिए भी सरकार की अनुमति अनिवार्य है।

लाइसेंसिंग नीति का मूल्यांकन (Evaluation of the Licensing Policy)-भारत में औद्योगिक नीति इस प्रकार रही है-
1. अनिवार्य लाइसेंसिंग-भारत में 1951 की नीति के अनुसार उन उद्योगों के लिए लाइसेंस लेना आवश्यक था जिनकी स्थाई पूंजी 10 लाख रुपए थी। इस सीमा में समय-समय पर परिवर्तन किया गया है। यह सीमा 1970 में एक करोड़, 1990 में 25 करोड़ कर दी गई। 1991 की नई औद्योगिक नीति में सुरक्षा से सम्बन्धित 14 उद्योगों को छोड़कर किसी उद्योग को लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है। 1999 में से 6 उद्योग हैं जिनके लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य है। यह उद्योग है, तम्बाकू उत्पादन, सुरक्षा उपकरण, औद्योगिक विस्फोटक, दवाइयां, खतरनाक रसायन और एरोस्पेस । सरकार की इस नई औद्योगिक नीति को उदारवादी नीति कहा जाता है।

2. एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (M.R.T.P. Act)–भारत सरकार ने एकाधिकार पर नियन्त्रण पाने के लिए एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम बनाया था जिसको 1969 में लागू किया गया। बड़े औद्योगिक गृहों पर नियन्त्रण पाने के लिए इस नियम को लागू किया गया ताकि बड़े घरानों पर प्रतिबन्ध लगाया जा सके। इस नियम को 2002 में समाप्त कर दिया गया है।

3. लघु उद्योगों को संरक्षण-लघु उद्योगों के लिए सरकार ने कई वस्तुओं के उत्पादन को सुरक्षित कर दिया है जिनका उत्पादन बड़े पैमाने के उद्योगों में नहीं किया जा सकता। 2016-17 में लघु उद्योगों के लिए 598 वस्तुएं सुरक्षित की गई हैं।

4. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए संरक्षण-सार्वजनिक क्षेत्र को भारत में पहले अधिक महत्त्व दिया जाता था। अब सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया जाता है। स्वतन्त्रता के पश्चात् सार्वजनिक क्षेत्र के लिए 17 उद्योग सुरक्षित रखे गए थे। इन उद्योगों की संख्या 1991 में कम करके 8 की गई तथा 2004-05 में केवल 3 उद्योग ही सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित है। 31 मार्च, 2016 तक कुल 62 औद्योगिक इकाइयां काम कर रही थीं, जिनमें 5,28,951 करोड़ रुपए का निवेश किया गया था।

सरकार द्वारा सार्वजनिक उद्योगों के अध्ययन के लिए एक बोर्ड की स्थापना की गई। इस बोर्ड द्वारा अक्तूबर 2015 को 62 उद्योगों के पुनर्गठन की सिफ़ारिश की। बोर्ड ने 43 उद्योगों के पुनर्निर्माण (Revival) की मन्जूरी दी और 2 उद्योगों को बन्द करवा दिया। पुनर्निर्माण उद्योगों को 25104 करोड रुपए की सहायता दी। फलस्वरूप 13 उद्योगों द्वारा अधिक उत्पादन करके लाभ प्राप्त किया। भारत में लाइसेंसिंग नीति 1951 में लागू की गई इस नीति में सुधार के लिए समय-समय पर समितियों की स्थापना की गई। 1967 में हजारी समिति तथा 1969 में दत्त समिति में लाइसेंसिंग नीति में सुधार करने के लिए सुझाव दिये। इसके बाद औद्योगिक लाइसेंसिंग में 1991 तक बहुत तबदीली की गई। इन परिवर्तनों का मुख्य उद्देश्य लाइसेंसिंग नीति को सरल बनाना था।

इस प्रकार लाइसेंसिंग नीति में आए परिवर्तन के कारण अब यह नीति उदारवादी नीति में तबदील हो चुकी है। इस कारण देश में उद्योगों के विकास को बढ़ावा मिला है। नई सरकार ने ‘Make in India’ की नीति अपनाई है जिसमें नई क्रियाएं, नया आर्थिक ढांचा, नई मानसिक सोच तथा नए क्षेत्रों के विकास पर बल दिया गया है। वर्ष 2022 तक औद्योगिक क्षेत्र में 25% वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। अब सरकार सार्वजनिक उद्यमों में विनिवेश की नीति अपना रही है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 19 भारत में कृषि

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 19 भारत में कृषि Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 भारत में कृषि

PSEB 12th Class Economics भारत में कृषि Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में कृषि का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
भारत में कृषि का महत्त्वभारत की राष्ट्रीय आय का अधिक भाग कृषि से प्राप्त होता है और कृषि उत्पादन रोज़गार का मुख्य स्रोत है।

प्रश्न 2.
कृषि उत्पादन तथा कृषि उत्पादकता में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
कृषि उत्पादकता में खाद्य उपज जैसे गेहूं इत्यादि और कृषि उत्पादकता द्वारा प्रति हेक्टेयर उत्पादन का माप किया जाता है।

प्रश्न 3.
भूमि सुधारों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भूमि सुधारों से अभिप्राय है

  • ज़मींदारी प्रथा का खात्मा
  • काश्तकारी प्रथा में सुधार
  • चकबंदी
  • भूमि की अधिक-से-अधिक सीमा निर्धारित करना
  • सहकारी खेती।

प्रश्न 4.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के कोई दो कारण बताओ।
उत्तर-

  1. सिंचाई की कमी।
  2. कृषि के पुराने ढंग।

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प्रश्न 5.
किसी खेत में पशुओं तथा फ़सलों के उत्पादन सम्बन्धी कला तथा विज्ञान को ……….. कहते हैं।
(a) अर्थशास्त्र
(b) समाजशास्त्र
(c) कृषि
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) कृषि।

प्रश्न 6.
कृषि उत्पादकता में .. …………. उत्पादन का माप किया जाता है।
(a) कुल उत्पादन
(b) प्रति हेक्टेयर
(c) फसलों के
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) प्रति हेक्टेयर।

प्रश्न 7.
कृषि उत्पादन में ………….. में परिवर्तन का माप किया जाता है।
उत्तर-
उपज।

प्रश्न 8.
भूमि के भू-स्वामी से सम्बन्धित तत्त्वों को ……………. तत्त्व कहा जाता है।
उत्तर-
संस्थागत तत्त्व।

प्रश्न 9.
(1) ज़मींदारी प्रथा की समाप्ति
(2) चक्कबंदी
(3) सहकारी खेती आदि को ……………… सुधार कहा जाता है।
उत्तर-
भूमि सुधार।

प्रश्न 10.
गेहूं, चावल, दालें, आदि फ़सलों को ……………. फ़सलें कहा जाता है।
उत्तर-
खाद्य फ़सलें।

प्रश्न 11.
भारत में वर्ष 2019-20 में 296.65 मिलियन टन अनाज की पैदावार हुई।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 12.
जिस नीति द्वारा उन्नत बीज, रासायनिक खाद, सिंचाई, कृषि, वित्त आदि में सुधार किया गया है उसको नई कृषि नीति कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

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प्रश्न 13.
कृषि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक खेत में फसलों तथा पशुओं की पैदावार को कृषि कहा जाता है।

प्रश्न 14.
कृषि में संस्थागत तत्त्वों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भूमि के आकार और स्वामित्व से सम्बन्धित तत्त्वों को कृषि के संस्थागत तत्त्व कहा जाता है।

प्रश्न 15.
कृषि में तकनीकी तत्त्वों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कृषि में खेतीबाड़ी की विधियों को कृषि के तकनीकी तत्त्व कहा जाता है।

प्रश्न 16.
भारत में कृषि की उत्पादकता के पिछड़ेपन के लिए मुख्य तीन प्रकार के तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
भारत में कृषि उत्पादकता के पिछड़ेपन के लिए मानवीय, संस्थागत और तकनीकी तत्त्व आते हैं।

प्रश्न 17.
नई कृषि नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत में उन्नत बीज, रासायनिक खाद्य, सिंचाई और कृषि सुधारों को कृषि की नई नीति कहा जाता है।

प्रश्न 18.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत में नई कृषि के फलस्वरूप अनाज की वृद्धि को हरित क्रान्ति कहा जाता है।

प्रश्न 19.
भारत में 2019-20 में चावल का उत्पादन 117.47 मिलियन टन और गेहूँ का उत्पादन 106.21 मिलियन टन हुआ।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में कवि की कोई दो समस्याएं बताएं।
उत्तर-
1. कम उत्पादकता (Less Productivity)-भारत में विकसित देशों की तुलना में प्रति श्रमिक उत्पादकता बहुत कम है। भारत में प्रति श्रमिक उत्पादकता 1146 डालर जबकि नार्वे में 97879 डालर है। इसी तरह विभिन्न फसलों का उत्पादन भी बहुत कम है। गेहूं, चावल, कपास, पटसन इत्यादि उपज की पैदावार पश्चिमी देशों से बहुत कम है।

2. कृषि उत्पादन तथा रोज़गार (Agriculture and Employment)-भारत में कृषि रोज़गार का महत्त्वपूर्ण साधन है। 1951 में 97 मिलियन लोगों को रोज़गार कृषि उत्पादन में प्राप्त होता था। 2019-20 में 519 मिलियन लोग (57.9%) कृषि उत्पादन के पेशे में लगे हुए थे। भारत में लगभग दो तिहाई जनसंख्या का कृषि उत्पादन क्षेत्र पर निर्भर रहना, जहां कृषि के महत्त्व का सूचक है, वहां देश के अल्पविकसित होने का प्रमाण है।

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प्रश्न 2.
भारत में कृषि की कोई दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
भारत में कृषि उत्पादन की मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं-
1. कम उत्पादकता- भारत में कृषि उत्पादकता में वृद्धि हो हुई है परंतु विश्व के कई देशों से यह अब भी बहुत कम है। 2019-20 में भारत में गेहूं का उत्पादन 3307 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि इंग्लैंड में 8810 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। चावल को पैदावार भारत में 2659 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जबकि अमेरिका में 686 किलोगाम पनि हेक्टेयर है ! इस्पसे गना लगता है कि भारत की तुलना में प्रत्येक देशों में फसलों की उपज अति है।

2. क्षेत्रीय असमानता–भारतीय ताषि में क्षेत्रीय असमानता बहुत अधिक पाई जाती है। भारत के कई राज्यों जैसे कि हरियाणा, पंजाब, आग प्रदेश, महाराष्ट्र, इत्यादि में अनाज का उत्पादन काफ़ी बढ़ा है। परन्तु कुछ राज्यों जैसे कि बिहार, छतीसगढ़, उड़ीसा इत्यादि में खुराक-अनाज के उत्पादन में बहुत कम वृद्धि हुई है।

प्रश्न 3.
भारत में कृषि की समस्याओं को हल करने के लिए कोई दो सुझाव दें।
उत्तर-

  • जनसंख्या का कम दवाय-कृषि की उन्नति के लिए अनिवार्य है कि भूमि पर जनसंख्या का दबाव कम किया जाए। इसीलिए उद्योगों का विकास अनिवार्य है।
  • मशीनीकरण-कृषि के विकास के लिए नए यन्त्र बनाए जाने चाहिए। इससे उत्पादकता में वृद्धि होगी।

प्रश्न 4.
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् किसी एक भूमि सुधार का वर्णन करें।
उत्तर-
भूमि की उच्चतम सीमा- भूमि की उच्चतम सीमा का अर्थ है कि एक मनुष्य अथवा परिवार अधिक-सेअधिक कितनी कृषि योग्य भूमि का मालिक हो सकता है। यदि किसी मनुष्य अथवा परिवार के पास उच्चतम सीमा से अधिक भूमि है तो भूमि भू-स्वामियों से ले ली जाएगी इसके बदले में मुआवजा दिया जाएगा। यह अधिक प्राप्त भूमि छोटे किसानों, काश्तकारों तथा भूमिहीन कृषि मज़दूरों में विभाजित की जाएगी। इसका मुख्य उद्देश्य देश में भूमि का समान तथा उचित वितरण करके उत्पादन में वृद्धि करना है।

प्रश्न 5.
कृषि की नई नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नई कृषि नीति का अर्थ- भारत में कृषि उत्पादन के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए लॉर्ड फाऊंडेशन की प्रधानगी अधीन एक दल 1959 में अमेरिका से आया। इस दल की सिफारिशों को ध्यान में रखकर जो नीति अपनाई गई उसको नई कृषि नीति कहा जाता है। नई कृषि नीति से अभिप्राय उस नीति से है जिसका उद्देश्य कृषि विकास के नए साधनों, उन्नत बीजों, रासायनिक खाद, सिंचाई, कृषि वित्त, पौधों की सुरक्षा करना तथा किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना है।

प्रश्न 6.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत में नई कृषि नीति के परिणामस्वरूप अनाज में हुई 25% वृद्धि को हरित क्रान्ति का नाम दिया गया है। प्रो० जे० जी० हुगर के शब्दों में, “हरित क्रान्ति शब्द का प्रयोग 1968 में होने वाले आश्चर्यजनक परिवर्तन के लिए किया जाता है, जो भारत में अनाज के उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।” हरित क्रान्ति के मुख्य कारण-

  • सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि,
  • रासायनिक खादों का प्रयोग,
  • उन्नत बीज,
  • बहु-फसली कृषि,
  • आधुनिक कृषि यंत्र,
  • साख सुविधाएं हैं।”

III. लयु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में कृषि के महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
भारत में कृषि बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि 60% जनसंख्या कृषि क्षेत्र पर निर्भर करती है। कृषि के महत्त्व को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. राष्ट्रीय आय-भारत में राष्ट्रीय आय का लगभग आधा भाग कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  2. रोज़गार-भारत में कृषि रोज़गार का मुख्य स्रोत है। सन् 2015 में 60 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या कृषि क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर रही थी।
  3. विदेशी व्यापार–भारत के विदेशी व्यापार में कृषि का बहुत महत्त्व है। कृषि पदार्थों का निर्यात करके विदेशों से मशीनों का आयात किया जाता है।
  4. आर्थिक विकास- भारत की कृषि देश के आर्थिक विकास का आधार है। दशम् योजना में कृषि के विकास पर अधिक जोर दिया गया है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 19 भारत में कृषि

प्रश्न 2.
भारत में कृषि विकास के लिए किए गए प्रयत्नों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि के विकास के लिए बहुत प्रयत्न किए गए हैं।
1. उत्पादकता में वृद्धि-कृषि की उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए नए बीजों का प्रयोग किया गया है। फसलों के ढांचे के रूप में परिवर्तन किया जा रहा है।
2. तकनीकी उपाय-तकनीकी उपायों में-

  • सिंचाई का विस्तार,
  • बहुफसली कृषि
  • खाद्य
  • अधिक उपज देने वाले बीज
  • वैज्ञानिक ढंग से कृषि इत्यादि द्वारा कृषि विकास किया गया है।

3. संस्थागत उपाय-संस्थागत उपायों में

  • ज़मींदारी का खात्मा
  • काश्तकारी प्रथा
  • साख-सुविधाएं
  • बिक्री संबंधी सुधार शामिल हैं।

4. नई कृषि नीति-कृषि के विकास के लिए सरकार ने नई कृषि नीति अपनाई है, इसमें

  • अनुसंधान
  • पूंजी निर्माण
  • बिक्री तथा स्टोरज़
  • जल संरक्षण
  • सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि करना शामिल किए गए हैं।

प्रश्न 3.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है? हरित क्रान्ति के प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत में नई कृषि नीति के परिणामस्वरूप अनाज में हुई 25% वृद्धि को हरित क्रान्ति का नाम दिया गया है। प्रो० जे० जी० हुगर के शब्दों में, “हरित क्रान्ति शब्द का प्रयोग 1968 में होने वाले आश्चर्यजनक परिवर्तन के लिए किया जाता है, जो भारत में अनाज के उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।” हरित क्रान्ति के मुख्य कारण-

  • सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि,
  • रासायनिक खादों का प्रयोग,
  • उन्नत बीज,
  • बहु-फसली कृषि,
  • आधुनिक कृषि यंत्र,
  • साख सुविधाएं हैं।

प्रभाव-हरित क्रांति के मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. हरित क्रांति के फलस्वरूप उत्पादन में बहुत वृद्धि हो गई है।
  2. हरित क्रांति के फलस्वरूप किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
  3. हरित क्रांति से गांवों में रोज़गार बढ़ने की संभावना हो सकती है।
  4. हरित क्रांति के कारण उद्योगों के विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ा है।
  5. भारत में आर्थिक विकास तथा स्थिरता के उद्देश्यों की पूर्ति हो सकी है।
  6. देश में कीमतों के स्तर में कम वृद्धि हुई है।
  7. हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भोज्य पदार्थों के आयात में कमी आई है।

प्रश्न 4.
भारत में दूसरी हरित क्रान्ति के लिए क्या प्रयत्न किये गए?
उत्तर-
भारत में बाहरवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में दूसरी हरित क्रान्ति लाने के लिए निम्नलिखित प्रयत्न किये गए-

  1. सिंचाई सुविधाओं को दो गुणा क्षेत्र में बढ़ाया जाएगा।
  2. वर्षा के पानी से सिंचाई की जाएगी।
  3. बेकार भूमि को खेती योग्य बनाया जाएगा।
  4. खेती प्रति किसानों को अधिक ज्ञान प्रदान किया जाएगा।
  5. साधारण फसलों के स्थान पर फल, फूल की खेती पर अधिक जोर दिया जाएगा।
  6. पशुपालन तथा मछली पालन को अधिक महत्त्व दिया जाएगा।
  7. कृषि मंडीकरण में सुधार करने की आवश्यकता है।
  8. भूमि सुधारों को लागू किया जाएगा।
  9. खोज के काम में तेजी लाई जाएगी।
  10. कृषि उत्पादन में वृद्धि की जाएगी।

ग्यारहवीं योजना का लक्ष्य दूसरी हरित क्रान्ति को प्राप्त करना था।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के कृषि-उत्पादन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
(Explain the main features of Agriculture production in India.)
उत्तर-
कृषि उत्पादन को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। भारत में कुल मज़दूर शक्ति का 65% भाग कृषि उत्पादन में लगा हुआ है। 1950-51 में सकल घरेलू उत्पाद का 55.4% हिस्सा कृषि उत्पादन का योगदान था, जोकि 1990-91 में 30.9% रह गया। 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद का 25% भाग कृषि उत्पादन का योगदान था। 2019-20 में 296.65 मिलियन टन अनाज की पैदावार हुई।

भारत की कृषि उत्पादन की कुछ मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
1. कम उत्पादकता (Less Productivity)-भारत में विकसित देशों की तुलना में प्रति श्रमिक उत्पादकता बहुत कम है। भारत में प्रति श्रमिक उत्पादकता 1146 डालर जबकि नार्वे में 97879 डालर है। इसी तरह विभिन्न फसलों का उत्पादन भी बहुत कम है। गेहूं, चावल, कपास पटसन इत्यादि उपज की पैदावार पश्चिमी देशों से बहुत कम है।

2. कृषि उत्पादन तथा रोज़गार (Agriculture and Employment) भारत में कृषि रोज़गार का महत्त्वपूर्ण साधन है। 1951 में 97 मिलियन लोगों को रोज़गार कृषि उत्पादन में प्राप्त होता था। 2019-20 में 57.9% लोग कृषि उत्पादन के पेशे में लगे हुए थे। भारत में लगभग दो तिहाई जनसंख्या का कृषि उत्पादन क्षेत्र पर निर्भर रहना, जहां कृषि के महत्त्व का सूचक है, वहां देश के अल्पविकसित होने का प्रमाण है।

3. कृषि उत्पादन तथा उद्योग (Agriculture and Industry)-भारत जैसे अल्पविकसित देश में आर्थिक विकास की आरम्भिक स्थिति में कृषि का औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इससे उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है। कृषि के विकास से लोगों की आय बढ़ जाती है। इसीलिए औद्योगिक वस्तुओं की मांग में वृद्धि होती है।

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4. वर्षा पर अधिक निर्भरता (More Dependence on Rains)-भारत में कृषि उत्पादन प्रकृति पर अधिक निर्भर करती है। भारत में कुल भूमि का 70% हिस्सा वर्षा पर निर्भर करता है। यदि भारत में वर्षा नहीं पड़ती तो कोई फसल नहीं होती, क्योंकि पानी नहीं होता।

5. अर्द्ध व्यापारिक कृषि (Semi-Commercial Farming)—भारत में न तो कृषि जीवन निर्वाह के लिए की जाती है तथा न ही पूर्ण तौर पर व्यापारिक फ़सलों की बिजाई की जाती है। वास्तव में कृषि उत्पादन इन दोनों का मिश्रण है, जिसको अर्द्ध व्यापारिक कहा जाता है।

6. छोटे तथा सीमांत किसान (Small and Marginal Farmers)-देश में अधिकतर किसान छोटे तथा सीमांत हैं। इसका अभिप्राय है कि किसानों के पास भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े हैं, जिन पर जीवन निर्वाह के लिए कृषि की जाती है। बहुत-से किसानों के पास अपनी भूमि नहीं है, वह दूसरे किसानों से भूमि किराए पर लेकर कृषि करते हैं।

7. आन्तरिक व्यापार (Internal Trade)-भारत में 90% लोग अपन – 7765% हिस्सा अनाज, चाय, चीनी, दालें, दूध इत्यादि पर खर्च करते हैं। भारत जैसे अल्पविकसित देशों में कृषि का अधिक महत्त्व है।

8. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade)-बहुत-सी कृषि आधारित वस्तुएं जैसे कि चाय, चीनी, मसाले, तम्बाकू, तेलों के बीज निर्यात किए जाते हैं। इससे विदेशी मुद्रा प्राप्त की जाती है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में कृषि पैदावार में 4% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। इस योजनाकाल में कृषि पर 1,34,636 करोड़ रुपए व्यय किए गए। 2020-21 में कृषि क्षेत्र में 3.4% वृद्धि की संभावना है।

प्रश्न 2.
भारत में कृषि उत्पादन की मुख्य समस्याओं का वर्णन करो। इन समस्याओं के हल के लिए सुझाव दीजिए।
(Explain the main problems of Agriculture Production in India. Suggest measures to solve the problems.)
अथवा
भारत के कृषि उत्पादन के पिछड़ेपन के कारण बताओ। पिछड़ेपन को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए।
(Discuss the main causes of backwardness of Agricultural Productivity. Suggest measures to remove the backwardness.)
उत्तर-
भारत में कृषि उत्पादन की मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं
1. कम उत्पादकता-भारत में कृषि उत्पादकता में वृद्धि तो हुई है परंतु विश्व के कई देशों से यह अब भी बहुत कम है। 2019-20 में भारत में गेहूं का उत्पादन 3509 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि इंग्लैंड में 8810 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। चावल की पैदावार भारत में 2659 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जबकि स्पेन में 6323 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इससे पता लगता है कि भारत की तुलना में प्रत्येक देशों में फसलों की उपज अधिक है।

2. क्षेत्रीय असमानता-भारतीय कृषि में क्षेत्रीय असमानता बहुत अधिक पाई जाती है। भारत के कई राज्यों जैसे कि हरियाणा, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र इत्यादि में अनाज का उत्पादन काफ़ी बढ़ा है। परन्तु कुछ राज्यों जैसे कि बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा इत्यादि में खुराक-अनाज के उत्पादन में बहुत कम वृद्धि हुई

3. संस्थागत तत्त्व-भारत में कृषि उत्पादन कम होने का एक कारण संस्थागत तत्त्व है। इसका एक मुख्य कारण भू-माल की प्रणाली (Land Tenure System) रही है। चाहे स्वतन्त्रता के पश्चात् ज़मींदारी प्रथा को खत्म कर दिया गया है, परंतु भू-मालिक आज भी मनमानी करते हैं। दूसरा, खेतों का छोटा आकार (Small size of farms) भी भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का कारण है। भारत में खेतों का औसत आकार लगभग 2.3 हेक्टेयर है।

4. भूमि पर जनसंख्या का भार-कृषि के पिछड़ेपन का एक मुख्य कारण है हमारे देश में कृषि पर बहुत अधिक लोग निर्भर करते हैं। भारत में सामाजिक वातावरण भी कृषि के लिए रुकावट है। भारतीय किसान अनपढ़ तथा अज्ञानी हैं, इसलिए नई तकनीकों का प्रयोग आसानी से खेतों पर लागू नहीं कर सकता।

5. कृषि के पुराने ढंग-भारत में कृषि करने का ढंग पुराना है। आज भी पुराने कृषि यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। ट्रैक्टर तथा आधुनिक कृषि यन्त्रों का कम प्रयोग होता है। अधिक ऊपज वाले बीजों का भी कम प्रयोग किया जाता है। कृषि उत्पादन की वृद्धि के लिए खाद्य का अधिक महत्त्व है, परन्तु भारत के किसान उचित मात्रा में खाद्य का प्रयोग भी नहीं कर सकते।

6. तकनीकी तत्त्व-तकनीकी तत्त्वों में सिंचाई की कम सुविधा, मानसून का जुआ, मिट्टी के दोष, कमज़ोर पशु, पुराने यन्त्रों का प्रयोग, फसलों की बीमारियाँ, दोषपूर्वक बिक्री प्रथा, साख-सुविधाओं की कमी इत्यादि शामिल हैं।

समस्याओं का समाधान अथवा कृषि उत्पादन के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए सुझाव –

  • जनसंख्या का कम दबाव-कृषि की उन्नति के लिए अनिवार्य है कि भूमि पर जनसंख्या का दबाव कम किया जाए। इसीलिए उद्योगों का विकास अनिवार्य है।
  • मशीनीकरण-कृषि के विकास के लिए नए यन्त्र बनाए जाने चाहिए। इससे उत्पादकता में वृद्धि होगी।
  • सिंचाई सुविधाएं-सबसे अधिक ध्यान सिंचाई की सुविधाओं में वृद्धि करने की ओर देना चाहिए इससे आधुनिक खाद्य, अच्छे बीज तथा वैज्ञानिक कृषि सम्भव होगी।
  • वित्त सुविधाएं-किसानों को सस्ते ब्याज पर काफ़ी मात्रा में धन मिलना चाहिए। व्यापारिक बैंकों को गांवों में अधिक-से-अधिक शाखाएं खोलनी चाहिए।
  • भूमि सुधार-भारत में कृषि की उन्नति के लिए अनिवार्य है कि भूमि सुधार किए जाएं। काश्तकारी का लगान निश्चित होना चाहिए। यदि किसान लगान देते रहें, उनको बेदखल नहीं किया जाना चाहिए।
  • कृषि मण्डीकरण-कृषि मण्डीकरण में अन्य सुधार करने की आवश्यकता है। किसानों को उनकी फ़सल की उचित कीमत दिलाने के प्रयत्न करने चाहिए। शिक्षा प्रसार, छोटे किसानों को सहायता, योग प्रशासन, नई तकनीक का प्रयोग इत्यादि बहुत-से उपायों से कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने की समस्याओं का हल किया जा सकता है। इसके फलस्वरूप कृषि पैदावार 2019-20 में 296.65 मिलियन टन हुआ है।

प्रश्न 3.
भारत में स्वतन्त्रता के बाद होने वाले मुख्य भूमि सुधारों का वर्णन करो। भूमि सुधारों की धीमी गति के कारण तथा सफलता के लिए सुझाव दीजिए।
(Explain the main Land Reforms undertaken after the independence in India. Discuss the causes of slow progress and suggest measures for the success of Land Reforms.)
उत्तर-
कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए संस्थागत तत्त्वों (Institutional factors) का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। प्रो० मिर्डल अनुसार, “मनुष्य तथा भूमि में पाए जाने वाले नियोजित तथा संस्थागत पुनर्गठन को भूमि सुधार कहा जाता है” भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् निम्नलिखित भूमि सुधार किए गए-
1. ज़मींदारी प्रथा का अन्त-ब्रिटिश शासन दौरान ज़मींदारी प्रथा आरम्भ की गई थी। इसमें भूमि का स्वामी ज़मींदार होता था। वह किसानों को लगान पर भूमि काश्त करने के लिए देता था। 1950 में सबसे पहले बिहार में तथा बाद में सारे भारत में कानून पास किया गया, जिस अनुसार ज़मींदारी प्रथा का अन्त किया गया है। ज़मींदारी प्रथा में काश्तकारों का शोषण किया जाता था। ज़मींदारी प्रथा का खात्मा देश के भूमि सुधारों में पहला विशेष पग है।

2. काश्तकारी प्रथा में सुधार-जब कोई कृषि भूमि का मालिक स्वयं कृषि नहीं करता, बल्कि दूसरे मनुष्य को लगान पर जोतने के लिए भूमि दे देता है तो उस मनुष्य को काश्तकार (Tenant) कहते हैं। इस प्रथा को काश्तकारी प्रथा कहा जाता है। भारत में लगभग 40% भूमि इस प्रथा के अन्तर्गत है। इस सम्बन्ध में सुधार करने के लिए स्वतन्त्रता के पश्चात् कानून पास किए गए हैं। इस द्वारा लगान को निर्धारित किया गया है तथा काश्त अधिकारों की सुरक्षा सम्बन्धी कानून पास किए गए हैं। इसके परिणामस्वरूप भूमि उपज में वृद्धि हुई है।

3. भूमि की उच्चतम सीमा-भूमि की उच्चतम सीमा का अर्थ है एक मनुष्य अथवा परिवार अधिक-से अधिक कितनी कृषि योग्य भूमि का मालिक हो सकता है। यदि किसी मनुष्य अथवा परिवार के पास उच्चतम सीमा से अधिक भूमि है तो भूमि भू-स्वामियों से ले ली जाएगी इसके बदले में मुआवजा दिया जाएगा। यह अधिक प्राप्त भूमि छोटे किसानों, काश्तकारों तथा भूमिहीन कृषि मजदूरों में विभाजित की जाएगी। इसका मुख्य उद्देश्य देश में भूमि का समान तथा उचित वितरण करके उत्पादन में वृद्धि करना है।

4. चकबन्दी-भारत में किसानों के खेत छोटे-छोटे तथा इधर-उधर बिखरे हुए हैं। जब तक खेतों का आकार उचित नहीं होगा भूमि तथा अन्य साधनों का उचित प्रयोग नहीं किया जा सकता। छोटे-छोटे खेतों को एक बड़े खेत में बदलने को चकबन्दी कहा जाता है। पंजाब तथा हरियाणा में चकबन्दी का काम पूरा हो चुका है। शेष राज्यों में यह कार्य तेजी से चल रहा है।

5. सहकारी कृषि-सहकारी कृषि वह कृषि है जिसमें प्रत्येक किसान का अपनी भूमि पर पूरा हक होता है, परन्तु कृषि सामूहिक रूप से की जाती है। परन्तु भारत में सहकारी कृषि में सफलता प्राप्त नहीं हुई, क्योंकि किसान अपनी भूमि की साझ का प्रयोग करना पसन्द नहीं करते।। भूमि के सम्बन्ध में मिलकियत, उपज, काश्तकारों के अधिकारों सम्बन्धी रिकार्ड रखने के लिए कम्प्यूटर का 26 राज्यों में प्रयोग किया जा रहा है।

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भूमि सुधारों की धीमी गति के कारण-भारत में भूमि सुधारों की धीमी गति के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. भूमि सुधारों की नीति को धीरे-धीरे तथा बिना तालमेल के लागू किया गया।
  2. राजनीतिक इच्छा की कमी के कारण भूमि सुधारों की प्रगति धीमी रही।
  3. विभिन्न राज्यों में भूमि सुधार सम्बन्धी कानूनों का भिन्न-भिन्न होना।
  4. भूमि सुधार सम्बन्धी कानून दोषपूर्ण होने के कारण मुकद्दमेबाजी होती है।
  5. भूमि सुधारों की प्रभावपूर्ण अमल की कमी।

भूमि सुधारों की सफलता के लिए सुझाव-भूमि सुधारों की सफलता के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-

  • भूमि सम्बन्धी नए रिकार्ड तैयार किए जाएं।
  • भूमि सुधार सम्बन्धी कानून सरल तथा स्पष्ट होने चाहिए।
  • भूमि सुधारों में मुकद्दमे का फैसला करने के लिए विशेष अदालतों द्वारा कम समय में फैसले किए जाएं।
  • भूमि सुधारों सम्बन्धी गांवों के लोगों को पूरी तरह प्रचार द्वारा जानकारी दी जाए।
  • उच्चतम सीमा के कानून में दोष दूर करके एकत्रित की भूमि को तुरन्त काश्तकारों में विभाजित किया जाए।
  • भूमि सुधारों के कारण जिन किसानों को भूमि प्राप्त होती है, उनको वित्त की सुविधा देनी चाहिए ताकि भूमि का उचित प्रयोग किया जा सके।

प्रश्न 4.
नई कृषि नीति से क्या अभिप्राय है? नई कृषि नीति की विशेषताओं तथा प्राप्तियों का वर्णन कीजिए।
(What is New Agricultural Strategy ? Discuss the main features and achievement of New Agricultural Strategy.)
उत्तर-
नई कृषि नीति का अर्थ-भारत में कृषि उत्पादन के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए लॉर्ड फाऊंडेशन की प्रधानगी अधीन एक दल 1959 में अमेरिका से आया। इस दल की सिफारिशों को ध्यान में रखकर जो नीति अपनाई गई उसको नई कृषि नीति कहा जाता है। नई कृषि नीति से अभिप्राय उस नीति से है जिसका उद्देश्य कृषि विकास के नए साधनों, उन्नत बीजों, रासायनिक खाद, सिंचाई, कृषि वित्त, पौधों की सुरक्षा करना तथा किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना है। विशेषताएं-नई कृषि नीति की मुख्य विशेषताएं हैं-

  1. नई कृषि तकनीक को अपनाया गया है।
  2. देश के चुने हुए भागों में उन्नत बीज, सिंचाई, रासायनिक खाद का प्रयोग करना।
  3. एक से अधिक फसलों की पैदावार करना।
  4. ग्रामीण विकास के सभी कार्यों में तालमेल करना।
  5. कृषि पदार्थों की उचित कीमत का निर्धारण करना।

भारत में नई कृषि नीति 17 जिलों में आरम्भ की गई। पंजाब में लुधियाना जिले में घनी कृषि जिला कार्यक्रम अपनाया गया है। नई कषि नीति की प्राप्तियां (Achievements of New Agricultural Strategy)-

1. खाद्य पदार्थों की उपज में वृद्धि-कृषि विकास की नई नीति से उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप 1966 में हरित क्रान्ति आ गई। अनाज का उत्पादन 1951 में 62 मिलियन टन था। 2017-18 में अनाज का उत्पादन 284.83 मिलियन टन हो गया।

2. प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में वृद्धि-कृषि वृद्धि की नई नीति के परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है। 1970-71 में गेहूँ का उत्पादन 23.8 मिलियन टन था। 2016-17 गेहूँ का उत्पादन 97.4 मिलियन टन हो गया।

3. दूसरे किसानों से प्रेरणा-कृषि की नई नीति की सफलता से इस प्रोग्राम के बाहर के क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को भी उन्नत बीजों, कीड़ेमार दवाइयों तथा खाद्यों का प्रयोग करने की प्रेरणा मिली है। किसान के दृष्टिकोण में परिवर्तन-नई कृषि नीति के परिणामस्वरूप किसानों की कृषि सम्बन्धी दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है तथा किसान की सामाजिक, आर्थिक तथा संस्थागत सोच बदल गई है।

5. वर्ष में एक से अधिक फ़सलें-नई कृषि नीति लागू होने के कारण किसान वर्ष में एक से अधिक फ़सलें प्राप्त करने लगे हैं। किसानों की आय तथा जीवन स्तर में वृद्धि हुई है।

6. अनाज में आत्म-निर्भरता-नई कृषि नीति लागू होने से कृषि उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। इसलिए भारत में किसान आत्म-निर्भरता होने में सफल हुए हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या की अनाज सम्बन्धी आवश्यकताओं को देश में से ही पूरा किया जाता है।

7. औद्योगिक विकास-नई कृषि नीति के परिणामस्वरूप अनाज का आयात नहीं किया जाएगा। इससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी। उसका इस्तेमाल उद्योगों के विकास के लिए सम्भव होगा।

8. इंद्रधनुष क्रान्ति-राष्ट्रीय कृषि नीति 2015 में इंद्रधनुष क्रान्ति लाने का लक्ष्य रखा गया है। इन्द्रधनुष जैसे कृषि उत्पादन पैदावार में 4% वार्षिक वृद्धि (हरित क्रान्ति) दूध की पैदावार में वृद्धि (सफेद क्रान्ति) मछली पालन उद्योग का विकास (नीली क्रान्ति) करने का लक्ष्य रखा गया है। यह मुख्यतया नई कृषि नीति का परिणाम है।

9. न्यूनतम सुरक्षित मूल्य-वर्ष 2020-21 में गेहूँ की सुरक्षित कीमत ₹ 1975 प्रति क्विंटल तथा चावल की कीमत ₹ 1860 प्रति क्विंटल और कपास ₹ 4600 प्रति क्विंटल निर्धारण की गई है। दिल्ली-यूपी सीमा पर किसानों के प्रदर्शन के बाद केन्द्र सरकार ने रबी की उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) इस प्रकार बढ़ा दिया है-

अनाज MSP
1. गेहूँ 1975
2. सरसों 7520
3. चना 4800

प्रश्न 5.
भारत में हरित क्रान्ति की कठिनाइयां बताएं। उसमें सुधार के सुझाव दें।
(Discuss the deficulties of Green Revolution in India. Suggest measures for its improvement.)
उत्तर-
कठिनाइयां –
1. केवल गेहूं क्रान्ति-इसमें कोई सन्देह नहीं कि हरित क्रान्ति के अधीन कुछ फसलों का उत्पादन बहुत बढ़ा है परन्तु अधिकतर गेहूं का ही उत्पादन, आधुनिक बीज जैसे कल्याण, सोना सोनालिका, सफ़ेद लर्मा तथा छोण लर्मा आदि के प्रयोग से, बढ़ा है जिसके कारण अधिकतर लोग इसे गेहूं क्रान्ति का नाम देना पसन्द करते हैं। इसी कारण हरित क्रान्ति के अधीन दूसरी फसलों का उत्पादन भी बढ़ाना चाहिए।

2. केवल अनाज की फसलों में ही क्रान्ति-हरित क्रान्ति अनाज की फसलों में ही आई है। ऐसी क्रान्ति व्यापारिक फसलों में भी आनी चाहिए। व्यापारिक फसलों में अभी तक अधिक फसल देने वाले बीज प्रयोग नहीं किये गये हैं । इस कारण यदि इनकी ओर अधिक ध्यान न दिया गया तो व्यापारिक फसलें बहुत धीरे-धीरे उन्नति करेंगी। कई व्यक्तियों को तो इस बात का सन्देह है कि यदि व्यापारिक फसलों का उत्पादन बढ़ाया गया तो कुल उत्पादन बढ़ने के स्थान पर कम हो जाएगा। वह इसलिए कि लोग व्यापारिक फसलों के स्थान पर उपभोक्ता वस्तुएं बीजने लग जायेंगे।

3. केवल बड़े-बड़े किसानों को ही लाभ-इसके अतिरिक्त यह देखने में आया है कि छोटे किसानों को इसका कोई लाभ नहीं हुआ है। लाभ केवल बड़े किसानों को ही पहुंचा है। छोटे किसानों को तो हरित क्रान्ति के कारण हानि ही हुई है क्योंकि कृषि साधनों में वृद्धि के कारण उनकी उत्पादन लागत बहुत बढ़ गई है। इस तरह क्रान्ति के कारण धन के असमान वितरण में वृद्धि हुई है।

4. असन्तुलित विकास-कुछ विशेषज्ञों का विचार है कि यदि हरित क्रान्ति समस्त देश में न लाई गई तो कुछ भाग दूसरे भागों से आगे निकल जायेंगे अर्थात् आर्थिक रूप से उन्नत हो जायेंगे जिसके कारण देश में क्षेत्रीय असन्तुलन की समस्या पैदा हो जाएगी।

5. कृषि आदानों की काले बाज़ार में बिक्री-यह ठीक है कि कृषि आदानों (Inputs) की मांग बहुत बढ़ गई है और उनकी पूर्ति दुर्लभ हो गई है जिसके फलस्वरूप कृषि उत्पादनों की बिक्री काले बाज़ार में ऊंचे दामों पर हो रही है। धनी किसान उन्हें खरीद सकते थे, पर निर्धन किसान उन्हें खरीद नहीं पाते।

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6. पूंजीकृत फार्मों को प्रोत्साहन-हरित क्रान्ति से बड़े-बड़े पूंजीकृत फार्मों को प्रोत्साहन मिल रहा है। बढ़िया खाद का प्रयोग करने में तथा ट्यूबवैल लगाने में काफ़ी मात्रा में धन लगाना पड़ता है। एक निर्धन किसान इसके बारे में कभी सोच भी नहीं सकता। इसका लाभ तो केवल धनी किसानों को ही हो रहा है जो बड़े-बड़े फार्म बना रहे हैं।

7. तालमेल का अभाव-हरित क्रान्ति की रफ्तार इस कारण भी धीमी है क्योंकि विभिन्न संस्थाओं में आपसी तालमेल नहीं है। सरकार तो अधिक बल केवल रासायनिक खाद के उत्पादन पर ही दे रही है। यह ठीक है कि हरित क्रान्ति लाने में खाद का बड़ा महत्त्व है, पर अकेली खाद भी क्या कर सकती है, जब तक किसान के पास पूंजी, मशीनें तथा सिंचाई आदि सुविधाओं का अभाव हो। ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं, खाद प्रदान करने वाली संस्थाओं, बीज प्रदान करने वाली संस्थाओं तथा सिंचाई की सुविधाएं प्रदान करने वाली संस्थाओं में तालमेल नहीं है।

सुझाव-
1. बढ़िया बीजों का खुला प्रयोग-हरित क्रान्ति को अधिक सफल बनाने के लिए देश में ऐसी सुविधाएं होनी चाहिएं जिनके साथ हरित क्रान्ति लानी सम्भव हो जाए। हम जानते हैं कि गेहूं की आधुनिक प्रकार की फसल की तरह दूसरी फसलों में अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। शुष्क भूमि पर अधिक उपज देने वाली फसलों के बीजों का प्रयोग करने के लिए किसानों को प्रेरणा देनी चाहिए।

2. उर्वरकों का खुला प्रयोग-उर्वरकों का प्रयोग बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए। गोबर को खाद के रूप में प्रयोग पर अधिक बल देना चाहिए। रासायनिक खादों की मांग हरित क्रान्ति के साथ बढ़ेगी। इस कारण देश में और कारखाने खाद तैयार करने के लिए लगाने चाहिएं।

3. सिंचाई की सुविधाएं-हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए अधिक बल सिंचाई की सुविधाओं को प्रदान करने पर देना चाहिए। सरकार को छोटे स्तर की सिंचाई योजनाएं बनानी चाहिएं। ट्यूबवैल लगाने के लिए ऋण की सुविधाएं देनी चाहिएं।

4. मशीनों का प्रयोग-हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए अधिक मशीनों का प्रयोग आवश्यक है। इसलिए देश में सस्ती मशीनें बनानी चाहिएं। किसानों को मशीनें खरीदने के लिए ऋण देने चाहिएं। विशेषतया ऐसी मशीनें बनानी चाहिए, जो छोटे किसान भी प्रयोग कर सकें

5. लाभों का समान वितरण-अब तक हुई हरित क्रान्ति से पैदा हुए लाभ सभी धनी किसानों या बड़े किसानों को हुए हैं। छोटे किसानों को तो कृषि साधनों पर व्यय बढ़ने के कारण हानि ही हुई है। सरकार को अनुकूल रणनीति अपनाकर इन लाभों की असमान बांट पर नियन्त्रण रखना चाहिए।

6. अन्य प्रकार की क्रान्तियां-कृषक के उपज क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र जैसे दूध देने वाले पशु पालना, फल पैदा करना आदि में भी क्रान्ति लानी चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 18 आर्थिक नियोजन के उद्देश्य

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 18 आर्थिक नियोजन के उद्देश्य Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 18 आर्थिक नियोजन के उद्देश्य

PSEB 12th Class Economics आर्थिक नियोजन के उद्देश्य Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक नियोजन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आर्थिक नियोजन से अभिप्राय देश के साधनों का प्रयोग राष्ट्रीय प्राथमिकताओं अनुसार करके निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति करना होता है।

प्रश्न 2.
भारत में आर्थिक नियोजन का काल कितना है तथा आर्थिक नियोजन कब आरम्भ किया गया ?
उत्तर-
भारत में रूस के आर्थिक नियोजन की सफलता को देखते हुए पंचवर्षीय योजनाएं आरम्भ की गईं। प्रथम योजना 1951-56 तक बनाई गई।

प्रश्न 3.
भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना 1947 में प्रारम्भ हुई।
उत्तर-
ग़लत।

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प्रश्न 4.
भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना का काल ………… था।
उत्तर-
1951-56.

प्रश्न 5.
इस समय भारत में तेरहवीं योजना चल रही है।
उत्तर-
गलत।

प्रश्न 6.
बारहवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 2012-17 है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 7.
बारहवीं पंचवर्षीय योजना की विकास दर का उद्देश्य 9% वार्षिक रखा गया है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 8.
नियोजन के उद्देश्य से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजन के उद्देश्यों से अभिप्राय दीर्घकाल में प्राप्त करने वाले उद्देश्यों से होता है।

प्रश्न 9.
योजनाओं के उद्देश्यों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
योजनाओं के उद्देश्यों से अभिप्राय अल्पकालीन उद्देश्यों से होता है।

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प्रश्न 10.
भारत का प्रधानमंत्री योजना आयोग का अध्यक्ष होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 11.
भारत में योजना आयोग के स्थान पर …………….. बन गया है।
उत्तर-
नीति आयोग।

प्रश्न 12.
भारत में तेहरवीं पंचवर्षीय योजना 2017-2022 चल रही है।
उत्तर-
गलत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक नियोजन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आर्थिक नियोजन को स्पष्ट करते भारत के योजना आयोग ने कहा, “आर्थिक नियोजन का अर्थ है, राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार साधनों का आर्थिक क्रियाओं में प्रयोग करना।”

प्रश्न 2.
आर्थिक नियोजन के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर-
भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्य-भारत में आर्थिक योजनाओं के उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-आर्थिक योजनाओं का मुख्य उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि कृषि, उद्योग इत्यादि का विकास करके राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना है।
  2. कृषि का विकास-कृषि के विकास में योजनाओं का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है। सन् 1966 से कृषि की तकनीक पर जोर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप हरित क्रान्ति हो सकी है। योजनाओं के काल में भोजन पदार्थों का उत्पादन तीन गुणा बढ़ गया है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 18 आर्थिक नियोजन के उद्देश्य

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में योजना काल तथा प्रत्येक योजना के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के जीवनकाल का वर्णन इस प्रकार है –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 18 आर्थिक नियोजन के उद्देश्य 1
1. प्रथम योजना (1951-56) के मुख्य उद्देश्य-

  • कृषि पैदावार में वृद्धि
  • आय तथा धन का समान वितरण।

2. द्वितीय योजना (1956-61) के मुख्य उद्देश्य-

  • औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि
  • भारी उद्योगों का विकास।

3. तीसरी योजना (1961-66) के मुख्य उद्देश्य-

  • अनाज में आत्मनिर्भरता
  • असमानता को दूर करना।

4. चौथी योजना (1969-74) के मुख्य उद्देश्य-

  • विकास दर में वृद्धि
  • कीमत स्थिरता।

5. पाँचवीं योजना (1974-79) के मुख्य उद्देश्य-

  • गरीबी दूर करना
  • यातायात तथा शक्ति का विकास 1979-80 एकवर्षीय योजना

6. छठी योजना (1980-85) के मुख्य उद्देश्य-

  • ग़रीबों का जीवन स्तर ऊंचा करना
  • असमानता दूर करना।

7. सातवीं योजना (1985-90) के मुख्य उद्देश्य-

  • रोज़गार में वृद्धि
  • कृषि उत्पादन में वृद्धि। 1990-92 एकवर्षीय योजनाएं

8. आठवीं योजना (1992-97) के मुख्य उद्देश्य-

  • मानवीय शक्ति का पूर्ण प्रयोग
  • सर्व शिक्षा अभियान।

9. नौवीं योजना (1997-2002) के मुख्य उद्देश्य-

  • कृषि तथा ग्रामीण विकास
  • जनसंख्या की वृद्धि पर रोक।

10. दशम् योजना (2002-07) के मुख्य उद्देश्य-

  • जीवन स्तर का विकास
  • असमानता को घटाना।

11. ग्यारहवीं योजना (2007-12) के मुख्य उद्देश्य-

  • कृषि तथा ग्रामीण विकास
  • रोज़गार में वृद्धि।

12. 12वीं योजना (2012-17) के मुख्य उद्देश्य-

  • आर्थिक विकास में 9% वार्षिक वृद्धि
  • कृषि में 4% वार्षिक वृद्धि

प्रश्न 2.
भारत में आर्थिक नियोजन के लम्बे समय के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर-
भारत में आर्थिक नियोजन के लम्बे समय के उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
  2. आय तथा धन का समान वितरण
  3. देश में मानवीय शक्ति का पूर्ण उपयोग तथा पूर्ण रोज़गार की स्थिति को प्राप्त करना।

प्रश्न 3.
भारत के आर्थिक नियोजन के अल्पकालीन उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत में आर्थिक नियोजन के अल्पकालीन उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • कृषि पैदावार में वृद्धि
  • औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि
  • अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता
  • कीमत स्थिरता
  • ग़रीबी दूर करना
  • रोज़गार में वृद्धि
  • शिक्षा का प्रसार
  • जनसंख्या पर नियन्त्रण
  • ऊँचा जीवन स्तर।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 18 आर्थिक नियोजन के उद्देश्य

प्रश्न 4.
नीति आयोग पर नोट लिखें।
उत्तर-
नीति आयोग का पूरा नाम भारत परिवर्तन संस्थान [National Institute of Transforming India (NITI)] है। इस संस्था को योजना आयोग के स्थान पर बनाया गया है। जनवरी 2015 को नीति आयोग के बनाने की मंजूरी दी। यह संस्था थिंक टैंक (Think Tank) के रूप में काम करेगी। इस संस्था ने 2017 के पश्चात् काम करना शुरू कर दिया है।

प्रश्न 5.
नीति आयोग और योजना आयोग में अन्तर बताएं।
उत्तर –

अन्तर का आधार योजना आयोग नीति आयोग
1. निर्माण योजना आयोग का निर्माण 1 मार्च, 1950 में किया गया है। नीति आयोग का निर्माण 2015 को किया गया है।
2. कार्य इस का कार्य राज्य सरकारों को फंड वितरण करवाना है। नीति आयोग सुझाव देने वाली संस्था है।
3. राज्य सरकारों का योगदान समिति योगदान था। राज्यों का महत्त्व बढ़ गया है।
4. योजना निर्माण यह योजना का निर्माण करती है। योजना आयोग योजना का निर्माण करता था जिस को राज्य लागू करते थे।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्यों का वर्णन करो। (Explain the main objectives of Economic Planning of India.)
उत्तर-
भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्य-भारत में आर्थिक योजनाओं के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-आर्थिक योजनाओं का मुख्य उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि कृषि, उद्योग इत्यादि का विकास करके राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना है।

2. कृषि का विकास-कृषि के विकास में योजनाओं का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है। सन् 1966 से कृषि की तकनीक पर जोर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप हरित क्रान्ति हो सकी है। योजनाओं के काल में भोजन पदार्थों का उत्पादन तीन गुणा बढ़ गया है।

3. उद्योगों का विकास- भारत में योजनाओं के परिणामस्वरूप बहुत सरलता मिली है। भारत के प्राथमिक तथा पूंजीगत उद्योग बहुत विकसित हुए हैं जैसे कि लोहा तथा इस्पात, मशीनरी, खाद्य रासायनिक उद्योगों ने विकास किया है।

4. जीवन स्तर में वृद्धि-पंचवर्षीय योजनाओं का एक उद्देश्य जीवन स्तर में वृद्धि करना है। देश में लोगों का जीवन स्तर कई बातों पर निर्भर करता है जैसे कि प्रति व्यक्ति आय, कीमतों में स्थिरता, आय का समान वितरण, टी० वी०, फ्रिज, कारें, स्कूटरों, टेलीफोन, इत्यादि की प्राप्ति।।

5. आर्थिक असमानताओं में कमी-भारत में प्रत्येक पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य अमीर तथा निर्धन में अन्तर को कम करना रहा है। आर्थिक असमानता देश में शोषण का प्रतीक होती है। इसलिए अमीर लोगों पर प्रगतिशील कर (Taxes) लगाए जाते हैं तो गरीब लोगों को सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।

6. रोज़गार में वृद्धि योजनाओं का एक उद्देश्य मानवीय शक्ति का अधिक प्रयोग करके रोज़गार में वृद्धि करना है। प्रत्येक योजना में विशेष प्रयत्न किया जाता है कि देश में बेरोजगारों को रोजगार प्रदान किया जाए, जिससे राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि हो सके।

7. आत्मनिर्भरता-पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य देश में कृषि, उद्योग इत्यादि क्षेत्रों को प्राप्त साधनों के अनुसार उत्पादन के संबंध में आत्मनिर्भर बनाना है। तीसरी पंचवर्षीय योजना के पश्चात् आत्मनिर्भरता के उद्देश्य की ओर अधिक ध्यान दिया गया। बारहवीं योजना (2012-17) का मुख्य उद्देश्य निर्यात में वृद्धि करके तथा आंतरिक साधनों की सहायता से आत्मनिर्भरता के उद्देश्य को पूरा रखा गया।

8. आर्थिक स्थिरता-आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए आर्थिक स्थिरता के उद्देश्य की प्राप्ति अनिवार्य होती है। आर्थिक विकास से अभिप्राय है कि देश में अधिक तीव्रता तथा मंदी नहीं आनी चाहिए। कीमतों में बहुत वृद्धि अथवा कमी देश के आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव डालती है। इसलिए योजनाओं में आर्थिक स्थिरता को प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है।

9. बहुपक्षीय विकास-योजनाओं में कृषि, उद्योग, यातायात, व्यापार, बिजली, सिंचाई इत्यादि बहुत-सी उत्पादन क्रियाओं के विकास को महत्त्व दिया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य देश का बहुपक्षीय विकास करना है।

10. सामाजिक कल्याण-भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का एक उद्देश्य सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना है। स्वतन्त्रता के समय भारत गरीबी के कुचक्र में फंसा हुआ था। योजनाओं द्वारा भारत में गरीबी को घटाने के प्रयत्न किए गए हैं ताकि धन तथा आय की असमानता को घटाकर सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जा सके।

योजना आयोग के अनुसार, “भारत में योजनाओं का मुख्य उद्देश्य जनता के जीवन स्तर में वृद्धि करना तथा आर्थिक सम्पन्न जीवन के मौके प्रदान करना है। नियोजन का मुख्य उद्देश्य राष्ट्र के भौतिक, मानवीय तथा पूंजीगत साधनों का प्रभावशाली उपयोग करके वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि करना तथा आय, धन और अवसर की असमानता को दूर करना है।” भारत की प्रति व्यक्ति आय 2014-15 में बढ़कर 88533 रुपए हो गई है। आर्थिक नियोजन के लिए NDA की सरकार ने योजना आयोग (Planning Commission) का नाम बदल कर नीति आयोग (NITI AAYOG) कर दिया है और इसके ढांचे में परिवर्तन किया है।

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प्रश्न 2.
नीति आयोग और योजना आयोग में अन्तर बताएं। (Explain the difference between Niti Aayog and Planning Commission.)
अथवा
नीति आयोग से क्या अभिप्राय है ? नीति आयोग की संरचना तथा उद्देश्य बताएं। (What is Niti Aayog ? Explain the Composition and functions of Niti Aayog.)
उत्तर-
नीति आयोग (Niti Aayog) (National Institute for Transforming India)-नीति आयोग राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान (National Institute for Transforming India) भारत सरकार द्वारा गठित एक नया संस्थान है जिसे योजना आयोग (Planning Commission) के स्थान पर बनाया गया है।

1. जनवरी 2015 को इस नए संस्थान के बारे में जानकारी देने वाला मन्त्रिमण्डल का प्रस्ताव जारी किया गया। यह संस्थान सरकार के थिंक टैंक (Think Tank) के रूप में सेवाएं प्रदान करेगा। यह संस्था निर्देशात्मक एवं गतिशीलता प्रदान करेगा। नीति आयोग, केन्द्र और राज्य स्तरों पर सरकार को प्रमुख कारकों के संबंध में प्रासंगिक महत्त्वपूर्ण एवं तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराएगा। इसमें आर्थिक मोर्चे पर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय आयात, देश के भीतर और अन्य देशों की बेहतरीन पद्धतियों का प्रसार, नए नीतिगत विचारों का समावेश और महत्त्वपूर्ण विषयों पर आधारित समर्थन से सम्बन्धित मामले शामिल होंगे।

नीति आयोग और योजना आयोग में अन्तर (Difference between Niti Aayog and Planning Commission)-15 मार्च 1950 को एक प्रस्ताव के माध्यम से योजना आयोग (Planning Commission) की स्थापना की गई थी। इसके स्थान पर 1 जनवरी 2015 को मन्त्रिमण्डल के प्रस्ताव द्वारा नीति आयोग (Niti Aayog) की स्थापना की गई है। सरकार ने यह कदम राज्य सरकारों, विशेषज्ञों तथा प्रासंगिक संस्थानों सहित सभी हितधारकों से व्यापक विचार-विमर्श के बाद उठाया है। इन दोनों में मुख्य अन्तर इस प्रकार है1. योजना आयोग (Planning Commission) के पास यह शक्ति थी कि वह राज्य सरकारों को फंड प्रदान करता था, परन्तु अब यह शक्ति वित्त मन्त्रालय के पास होगी। नीति आयोग (Niti Aayog) एक सुझाव देने वाली संस्था के रूप में काम करेगी।

2. योजना आयोग (Planning Commission) में राज्य सरकारों का योगदान सीमित होता था। वह वर्ष में एक बार वार्षिक योजना पास करवाने के लिए आते थे। नीति आयोग (Niti Aayog) में राज्य सरकारों की भूमिका बढ़ गई है।

3. योजना आयोग (Planning Commission) जो योजना बनाता है वह उपर से नीचे की ओर लागू की जाती थी। नीति आयोग (Niti Aayog) में गावों से ऊपर की ओर योजना लागू होगी।

4. क्षेत्रीय कौंसिल (Regional Council) का काम नीति आयोग (Niti Aayog) को स्थानिक तथा क्षेत्रीय समस्याओं से अवगत कराना होगा। योजना आयोग (Planning Commission) में इस प्रकार की व्यवस्था नहीं थी।

5. योजना आयोग (Planning Commission) केन्द्रीय योजनाओं का निर्माण करता था परन्तु नीति आयोग (Niti Aayog) किसी योजना का निर्माण नहीं करेगा। इस का मुख्य कार्य निर्धारत प्रोग्राम को ठीक ढंग से संचालन करना होगा। इस प्रकार नीति आयोग एक विमर्श देने वाला संस्थान होगा।

6. नीति आयोग (Niti Aayog) का एक नया कार्य यह होगा कि आर्थिक नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) को महत्त्व देना। योजना आयोग में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी। नीति आयोग की कौंसिल में सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री और केन्द्रीय प्रशासक क्षेत्रों के प्रबन्धकों को शामिल किया गया है।

नीति आयोग की संरचना (Composition of Niti Aayog)- नीति आयोग की संरचना इस प्रकार है-

  1. चेयरपर्सन (Chairperson)-प्रधानमन्त्री।
  2. प्रबन्धकीय कौंसिल (Governing Council)-इस में सभी राज्यों के मुख्यमन्त्री, Union Territories के प्रबन्धक तथा अंडमान निकोबार के विधायक तथा लैफ्टीनेंट गवर्नर शामिल होंगे।
  3. क्षेत्रीय कौंसिलें (Regional Councils)—इसमें क्षेत्र के मुख्यमन्त्री, केन्द्रीय गायक प्रदेशों के लैपटीनैंट गवर्नर होंगे जो कि अन्तर्राज्य तथा अन्तर-क्षेत्रीय समस्याओं के प्रति विचार-विमर्श करेंगे।
  4. प्रबन्धकीय ढांचा (Organizational Framework)-पूरा समय काम करने के लिए नीति आयोग में वाईस चेयरपर्सन, तीन पूरा समय सदस्य, दो अल्प समय सदस्य (जोकि महत्त्वपूर्ण विश्वविद्यालयों, खोज संस्थानों में से होंगे)। चार पद अथवा स्थिति के कारण (Ex-Officio) सदस्य जो केन्द्र सरकार में मन्त्री होंगे, एक मुख्यकार्यकारी अफसर (यह भारत सरकार में सैक्रेटरी के पद पर होगा) जो इसके संचालन और देख-रेख के लिए काम करेगा।
  5. विभिन्न क्षेत्रों के निपुण (Experts of Various fields)-नीति आयोग में कृषि उद्योग, व्यापार आदि विभिन्न क्षेत्रों के निपुण लोगों को शामिल किया जाएगा।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 18 आर्थिक नियोजन के उद्देश्य

नीति आयोग के कार्य अथवा उद्देश्य (Functions or Objectives of Niti Aayog) नीति आयोग निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए कार्य करेगा

  1. राज्यों की सक्रिय भागीदारी (Active Involvement of States)-राष्ट्रीय उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, क्षेत्रों और रणनीतियों का एक साझा दृष्टिकोण विकसित करना जिसके द्वारा प्रधानमन्त्री और मुख्यमन्त्रियों को राष्ट्रीय एजेंडा का प्रारूप उपलब्ध कराना है।
  2. सहयोगपूर्ण संघवाद को बढ़ावा देना (Foster Co-operative Federalism)-भारत में सहयोगपूर्ण संघवाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्यों का सहयोग तथा भागीदारी को अधिक महत्त्व देना क्योंकि सशक्त राज्य ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं।
  3. ग्राम स्तर पर योजना (Plan at the Village Level)-ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए तन्त्र विकसित करेगा और इसे उत्तरोत्तर उच्च स्तर तक पहुंचाएगा।
  4. राष्ट्रीय सुरक्षा के अनुसार आर्थिक नीति (Economic Policy according to National Security)नीति आयोग यह सुनिश्चित करेगा कि जो क्षेत्र विशेष रूप से उसे सौंपे गए हैं उनकी आर्थिक कार्य नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को शामिल किया गया है।
  5. निम्न वर्गों पर विशेष ध्यान (More Attention to deprived classes)-उन वर्गों पर विशेष रूप से ध्यान देगा जिन पर आर्थिक विकास से उचित प्रकार से लाभान्वित ना हो पाने का जोखिम होगा।
  6. दीर्घकाल और रणनीतिक नीति (Strategic and Long Term Policy)-दीर्घकाल और रणनीतिक नीति तथा कार्यक्रम का ढांचा तैयार करेगा और पहल करेगा और निगरानी करेगा।
  7. थिंक टैंक (Think Tank) समान विचारधारा वाले और महत्त्वपूर्ण हितधारकों, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय थिंक टैंक और शैक्षिक और नीति अनुसंधान संस्थानों के बीच भागीदारी को प्रोत्साहन देगा।
  8. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग (International Co-operation)-राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों तथा हितधारकों के सहयोग से नए विचारों से उद्यमशीलता सहायक प्रणाली बनाएगा।
  9. अन्तर क्षेत्रीय और अन्तर विभागीय मुद्दों के लिए एक मंच (One Platform for inter-sectoral and inter-departmental issues)-विकास के एजेंडे के कार्यान्वयन में तेजी लाने के क्रम में अन्तर-क्षेत्रीय और अन्तर-विभागीय मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच प्रदान करेगा।
  10. अत्याधुनिक कला संसाधन केन्द्र (Art Resource Centre)-आयोग का एक उद्देश्य यह भी है कि देश में आधुनिक कला संसाधन केन्द्र स्थापित किया जाए जिस की जानकारी विकास से जुड़े सभी लोगों को प्रदान की जाए।
  11. सक्रिय मूल्यांकन (Proper Evaluation)-कार्यक्रमों और उपायों के संचालन का सक्रिय मूल्यांकन और सक्रिय निगरानी की जाएगी।
  12. क्षमता निर्माण पर ज़ोर (Focus on capacity Building)-कार्यक्रमों और नीतियों के संचालन के लिए क्षमता निर्माण पर जोर देना भी नीति आयोग का उद्देश्य है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

PSEB 12th Class Economics स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति क्या थी ?
उत्तर-
डॉ० करम सिंह गिल के अनुसार, “स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक अल्पविकसित, गतिहीन, अर्द्ध-सामन्तवादी, घिसी हुई तथा खण्डित अर्थव्यवस्था थी।”

प्रश्न 2.
अर्थव्यवस्था की संरचना (Structive) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अर्थव्यवस्था की आर्थिक स्थिति का ज्ञान उस अर्थव्यवस्था की संरचना से होता है। अर्थव्यवस्था की संरचना का अर्थ उसको उत्पादन के आधार पर क्षेत्रों में विभाजित करने से होता है।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय कृषि की क्या दशा थी ?
अथवा
स्वतन्त्रता के समय प्राथमिक क्षेत्र की क्या अवस्था थी ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय कृषि देश का प्रमुख व्यवसाय बन गई परन्तु इसकी उत्पादकता इतनी कम थी कि भारत एक निर्धन देश बनकर रह गया।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के समय भारत का संरचनात्मक ढांचा अथवा मुख्य आर्थिक क्रियाएं क्या थी ?
उत्तर-
कृषि का महत्त्व बहुत अधिक था, जबकि उद्योगों का महत्त्व कम या तरश्री क्षेत्र अर्थात् सेवाएं यातायात, संचार, बैंकिंग, व्यापार इत्यादि का राष्ट्रीय आय में हिस्सा बहुत कम था।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता के समय प्राथमिक, द्वितीयक तथा तरश्री क्षेत्र के महत्त्व अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था का संरचनात्मक ढांचा किस तरह का था ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय प्राथमिक क्षेत्र द्वारा 1947 में राष्ट्रीय आय का 58.7% भाग उत्पादन किया गया। द्वितीयक क्षेत्रों द्वारा 14.3 प्रतिशत तथा तरश्री क्षेत्र द्वारा 27 प्रति भाग योगदान पाया गया।

प्रश्न 6.
प्राथमिक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्र में

  • कृषि
  • जंगलात तथा छतरियां बनाना।
  • मछली पालन
  • खाने तथा खनन को शामिल किया जाता है।

इन चार प्रकार की क्रियाओं को प्राथमिक क्षेत्र कहते हैं। स्वतन्त्रता समय 72.7% लोग इस क्षेत्र में लगे हुए थे।

प्रश्न 7.
द्वितीयक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
द्वितीयक क्षेत्र में-

  • निर्माण उद्योग
  • बिजली तथा जल पूर्ति को शामिल किया जाता है।

इस क्षेत्र में स्वतन्त्रता के समय 10% लोग कार्य में लगे हुए थे।

प्रश्न 8.
तरश्री क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
तरश्री क्षेत्र सेवाओं का क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र में-

  • व्यापार
  • संचार
  • यातायात
  • स्टोर सुविधाएं
  • अन्य सेवाओं को शामिल किया जाता है।

स्वतन्त्रता के समय भारत में 2 प्रतिशत लोग तरश्री क्षेत्र में कार्य करते थे।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
प्राथमिक क्षेत्र में उद्योगों को शामिल किया जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 10.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था ………….
(a) अल्पविकसित और गतिहीन
(b) सामन्तवादी और घिसी हुई
(c) खण्डित
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
अर्थव्यवस्था की संरचना में ………………. क्षेत्र शामिल होता है।
(a) प्राथमिक क्षेत्र
(b) गौण क्षेत्र
(c) टरश्री क्षेत्र
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
स्वतन्त्रता के समय भारत में मुख्य पेशा …………. था।
उत्तर-
कृषि।

प्रश्न 13. स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था विकसित अर्थव्यवस्था थी।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 14.
प्राथमिक क्षेत्र में ………. को शामिल किया जाता है।
(a) कृषि
(b) जंगलात तथा छत्तरियाँ बनाना
(c) मछली पालन
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 15.
द्वितीयक क्षेत्र में कृषि को शामिल किया जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 16.
टरश्री क्षेत्र सेवाओं से सम्बन्धित क्षेत्र होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
अल्प-विकसित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें जीवन स्तर नीचा होता है, ग़रीबी है और प्रति व्यक्ति आय कम होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 18.
गतिहीन अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें आय में परिवर्तन की दर में बहुत कम परिवर्तन होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 19.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था न तो पूर्ण सामन्तवादी थी और न ही पूर्ण पूंजीवादी थी बल्कि यह तो अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था थी।
उत्तर-
सही।

II. अति लप उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
1. पिछड़ी हुई, गतिहीन, अल्पविकसित अर्थव्यवस्था-डॉक्टर करम सिंह गिल के अनुसार, स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई, गतिहीन तथा अल्पविकसित अर्थव्यवस्था थी। 1947-48 में प्रति व्यक्ति आय 250 रु० के लगभग थी। ब्रिटिश शासन काल के सौ वर्षों में प्रति व्यक्ति आय की औसत वार्षिक वृद्धि दर 0.5 प्रतिशत के लगभग थी।

2. पिछड़ी हुई खेती-स्वतन्त्रता के समय भारत में 72% जनसंख्या कृषि पर कार्य करती थी। राष्ट्रीय आय का 57% भाग खेती द्वारा प्राप्त किया जाता था। कृषि की उत्पादकता बहुत कम थी। इसके कई कारण थे जैसे कि ज़मींदारी प्रथा, वर्षा पर निर्भरता, कृषि के पुराने ढंग तथा सिंचाई की कम सुविधाएं।

प्रश्न 2.
अल्पविकसित अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था (Underdeveloped Economy) स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था थी। एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होती थी। 1947-48 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 230 रुपये के लगभग थी। देश की अधिकतर जनसंख्या बहुत अधिक निर्धन थी। लोगों को पेट भर भोजन नहीं मिलता था। रहने के लिए मकानों और पहनने के लिए कपड़ों का अभाव था। देश में अधिकतर लोग बेरोज़गार थे।

प्रश्न 3.
अर्द्ध सामन्तवादी अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था (Semi Feudal Economy)-कृषि में पूरी तरह अंग्रेज़ों ने ज़मींदारी प्रथा प्रारंभ करके भूमि के स्वामित्व के अधिकार ज़मींदार को दे दिए। वास्तविक काश्तकार का भूमि पर कोई कानूनी अधिकार नहीं रह गया। स्थायी बन्दोबस्त वाले क्षेत्रों में लगान हमेशा के लिए निश्चित था परन्तु भूमि का किराया बढ़ता जा रहा था। इसलिए काश्तकारों ने भूमि उपकाश्तकारों को लगान पर देनी आरंभ कर दी।

सरकार तथा वास्तविक काश्तकार के बीच बहुत-से बिचौलिए उत्पन्न हो गए। ये बिचौलिए बिना कोई परिश्रम किए किसान से उसके उत्पादन का काफ़ी भाग प्राप्त कर लिया करते थे। किसानों की अवस्था बहुत खराब थी। भारत के जिन भागों में रैयतवाड़ी तथा मेंहलवाड़ी प्रथा थी वहां भी बड़े-बड़े किसानों ने भूमि काश्त के लिए काश्तकारों को दे दी थी। इस प्रकार इन क्षेत्रों सभी बहुत-से बिचौलिए उत्पन्न हो गए थे। इस प्रकार सारे भारत में ही भूमिपति तथा काश्तकार के सामन्तवादी सम्बन्ध पापित हो गए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 4.
स्थिर अर्थव्यवस्था का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
स्थिर अर्थव्यवस्था (Stagnent Economy)-अंग्रेज़ी शासन काल में भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग स्थिरता की अवस्था में थी। प्रति व्यक्ति वार्षिक आय वृद्धि की दर 0.5% थी। जनसंख्या में वृद्धि दर काफ़ी ऊंची थी। समस्यापूर्ण अर्थव्यवस्था-स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था अनेक समस्याओं से घिरी हुई थी-जैसे शरणार्थियों के पुनः विस्थापन की समस्या, निर्धनता की समस्या, ऊँची कीमतों की समस्या, बेरोज़गारी की समस्या, खाद्यान्न की समस्या इत्यादि।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति को स्पष्ट करो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति को डॉक्टर करम सिंह गिल ने निम्नलिखित अनुसार, स्पष्ट किया है-

  1. अल्पविकसित अर्थव्यवस्था-अल्पविकसित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें जीवन स्तर नीचा है, ग़रीबी है, प्रति व्यक्ति आय कम है, आर्थिक विकास की दर नीची है।
  2. गतिहीन अर्थव्यवस्था गतिहीन अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है, जिसमें प्रति व्यक्ति आय की दर में परिवर्तन बहुत कम होता है। भारत में बर्तानवी शासन दौरान प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि लगभग 0.5% वार्षिक दर पर हुई।
  3. अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था-अंग्रेजों ने भारत में जागीरदारी प्रथा द्वारा इसको अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था बना दिया।
  4. घिसी हुई अर्थव्यवस्था-एक अर्थव्यवस्था में साधनों का अधिक प्रयोग होने के कारण उनमें घिसावट तथा टूट-फूट हो जाती है। भारत में साधनों का प्रयोग दूसरे महायुद्ध समय किया गया।
  5. खण्डित अर्थव्यवस्था-स्वतन्त्रता समय भारत के दो भाग हो गए। भारत तथा दूसरा पाकिस्तान। इसको बिखरी हुई अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता समय भारतीय कृषि की क्या दशा थी?
उत्तर-
स्वतन्त्रता समय भारत की कृषि पिछड़ी हुई दशा में थी। 1947 में भारत की केवल 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर कृषि की जाती थी। इससे 527 लाख टन अनाज का उत्पादन किया जाता था। भारत में सिंचाई, बीज, खाद्य, आधुनिक तकनीकें, साख इत्यादि का कम प्रयोग किया जाता था। कृषि का व्यापारीकरण हो गया था अर्थात् कृषि जीवन निर्वाह की जगह पर बाज़ार में बिक्री के लिए की जाती थी। भूमि पर जनसंख्या का बहुत भार था। किसानों पर लगान का भार बहुत अधिक होने के कारण ऋण में फंसे हुए थे। देश की 70% जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय उद्योगों की क्या दशा थी?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारतीय उद्योग पिछड़ी हुई दशा में थे। ब्रिटिश पूंजी की मदद से कुछ उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग स्थापित किए गए। इनमें कपड़ा, उद्योग, चीनी उद्योग, माचिस उद्योग, जूट उद्योग इत्यादि महत्त्वपूर्ण हैं। स्वतन्त्रता के समय कपड़े का उत्पादन 428 करोड़ वर्गमीटर, चीनी का 10 लाख टन तथा सीमेंट का उत्पादन 26 लाख टन हुआ।

कुछ नियति प्रोत्साहन उद्योग स्थापित हो चुके थे, क्योंकि बागान तथा खानों के उद्योगों का विकास किया गया। इन उद्योगों से प्राप्त लाभ बर्तानियों को भेजा जाता था। स्वतन्त्रता समय भारत में 12.5% जनसंख्या उद्योगों में लगी हुई थी। जबकि अमरीका में 32% तथा इंग्लैंड में 42% लोग उद्योगों के कार्य करते थे। अंग्रेज़ी शासन से पहले भारत के कुटीर उद्योग कलात्मक उत्पादन के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध थे, परन्तु अंग्रेज़ी नीति के परिणामस्वरूप उनका पतन हो गया।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था में उत्पादन तथा व्यावसायिक ढांचे की व्याख्या करो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारत में उत्पादन (Output) का विवरण इस प्रकार है-

  1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)-प्रथमिक क्षेत्र द्वारा 1947 में राष्ट्रीय आय में 58.7 प्रतिशत योगदान पाया गया। इस क्षेत्र में कृषि, जंगलात तथा लंठा बनाना, मछली पालन तथा खानों को शामिल किया जाता है। राष्ट्रीय आय में इस क्षेत्र का अधिक योगदान इस बात का प्रतीक है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई थी।
  2. द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector)-स्वतन्त्रता समय द्वितीयक क्षेत्र द्वारा राष्ट्रीय उत्पादन में 14.3% योगदान था। इसमें उद्योग बिजली तथा जल पूर्ति को शामिल किया जाता है।
  3. तरी क्षेत्र (Territary Sector)-इस क्षेत्र में बैंक, बीमा कम्पनियों इत्यादि सेवाओं को शामिल किया जाता है, जिसके द्वारा राष्ट्रीय आय अथवा उत्पादन में 27% योगदान पाया गया। व्यावसायिक वितरण (Occupational Distribution) भारत में 72.7 प्रति जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र में और 10.1 प्रतिशत जनसंख्या सेवा क्षेत्रों में लगी हुई थी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता के समय बर्तानवी राज्य द्वारा बस्तीवादी लूट-खसूट के रूपों का वर्णन करो।
अथवा
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन का मुख्य कारण बताओ।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन का मुख्य कारण देश में अंग्रेजों का लगभग 200 वर्ष का शासन तथा बस्तीवादी लूट-खसूट तथा शोषण था। भारतीय अर्थव्यवस्था की लूट-खसूट तथा शोषण निम्नलिखित अनुसार किया गया-

  1. विदेशी व्यापार द्वारा शोषण-ब्रिटिश सरकार ने विदेशी व्यापार की ऐसी नीति अपनाई, जिस द्वारा कच्चा माल भारत से प्राप्त किया जाता था तथा तैयार माल भारत में बेचा जाता था। इस कारण इंग्लैंड तथा उद्योग विकसित हुए।
  2. हस्तशिल्प तथा लघु उद्योगों का विनाश-अंग्रेज़ी शासन से पहले भारत में हस्तशिल्पकला तथा लघु उद्योग बहुत विकसित थे। अंग्रेजों ने इंग्लैण्ड में बने तैयार माल को कम मूल्य पर बेचकर भारत के हस्तशिल्प तथा लघु उद्योगों का विनाश किया।
  3. लगान का दुरुपयोग- भारत में ज़मींदारी प्रथा आरम्भ की गई। इससे ब्रिटिश शासन को लगान के रूप में बहुत सी राशि प्राप्त हो जाती थी। उसका प्रयोग भारत में किए जाने वाले माल पर खर्च किया गया।
  4. प्रबन्ध पर फिजूलखर्च-अंग्रेजी सरकार ने अंग्रेजों को भारत के प्रशासन तथा सेना पर बहुत खर्च किया। उपनिवेश के रूप में भारत को पहले विश्व युद्ध (1914-18) तथा दूसरे विश्वयुद्ध (1939-45) दोनों में भाग लेना पड़ा तथा भार भी भारत का सहन करना पड़ा। भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन का मुख्य कारण भारत की लूट-खसूट थी, जिसको दादा भाई नौरोजी ने निकास सिद्धान्त का नाम दिया है।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की क्या विशेषताएं थीं?
(What were the features of Indian Economy on the eve of Independence ?)
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ-स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखितानुसार थीं
1. पिछड़ी हुई, गतिहीन, अल्पविकसित अर्थव्यवस्था-डॉक्टर करम सिंह गिल के अनुसार, स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई, गतिहीन तथा अल्पविकसित अर्थव्यवस्था थी। 1947-48 में प्रति व्यक्ति आय 250 रु० के लगभग थी। ब्रिटिश शासन काल के सौ वर्षों में प्रति व्यक्ति आय की औसत वार्षिक वृद्धि दर 0.5 प्रतिशत के लगभग थी।

2. पिछड़ी हुई खेती-स्वतन्त्रता के समय भारत में 72% जनसंख्या कृषि पर कार्य करती थी। राष्ट्रीय आय का 57% भाग खेती द्वारा योगदान पाया जाता था। कृषि की उत्पादकता बहुत कम थी। इसके कई कारण थे जैसे कि ज़मींदारी प्रथा, वर्षा पर निर्भरता, कृषि के पुराने ढंग तथा सिंचाई की कम सुविधाएं।

3. औद्योगिक पिछड़ापन-स्वतन्त्रता के समय औद्योगिक दृष्टिकोण से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत पिछड़ी हुई थी। देश में बुनियादी तथा आधारभूत उद्योगों की कमी थी। देश में उपभोक्ता उद्योग जैसे कि सूती कपड़ा, चीनी, पटसन, सीमेंट इत्यादि मुख्य थे, परन्तु इन उद्योगों में उत्पादन कम किया जाता था।

4. घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का पतन-ब्रिटिश शासन से पहले भारत में घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग विकसित थे, जिन द्वारा कलात्मक वस्तुओं का उत्पादन किया जाता था। इन वस्तुओं की विश्वभर में मांग की जाती थी। अंग्रेजों को बड़े पैमाने पर तैयार सामान भारत में भेजकर भारत के घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों को नष्ट कर दिया।

5. सामाजिक ऊपरी पूंजी का कम विकास-सामाजिक ऊपरी पूंजी का अर्थ रेलवे, यातायात के अन्य साधन, सड़कों, बैंकों इत्यादि के विकास से होता है, उस समय 97500 मील पक्की सड़कें 33.86 मीटर लम्बी रेलवे लाइन थी। बिजली का उत्पादन 20 लाख किलोवाट था तथा सिर्फ 3000 गांवों में बिजली की सुविधा थी। इस प्रकार सामाजिक ऊपरी पूंजी की कमी थी।

6. सीमित विदेशी व्यापार-1947-48 में 792 करोड़ रु० का विदेशी व्यापार किया गया। भारत में से कच्चा माल तथा कृषि पैदावार की वस्तुओं का निर्यात किया जाता था। निर्यातों में सूती कपड़ा, कपास, अनाज, पटसन, चाय इत्यादि वस्तुएं शामिल थीं। भारत का विदेशी व्यापार अनुकूल था। इंग्लैंड तथा राष्ट्र मण्डल के अन्य देशों से भारत मुख्य तौर पर व्यापार करता था।

7. व्यावसायिक रचना-भारत में स्वतन्त्रता के समय 72.7 प्रतिशत जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र 10.1%, द्वितीयक क्षेत्र तथा 17.2% जनसंख्या सेवा क्षेत्रों में कार्य करती थी। इससे पता चलता है कि स्वतन्त्रता के समय कृषि लोगों का मुख्य पेशा था तथा उद्योग कम विकसित थे।

8. उत्पादन संरचना-स्वतन्त्रता के समय भारत में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान 58.7% था। इसमें कृषि, जंगल, मछली पालन तथा खनिज शामिल थे। द्वितीयक क्षेत्र का योगदान 14.3% तथा सेवा क्षेत्र का योगदान 27 प्रतिशत था। इस संरचना से पता चलता है कि प्राथमिक क्षेत्र का योगदान अधिकतम था जोकि भारत के पिछड़ेपन का सूचक है।

9. जनसंख्या की समस्या-स्वतन्त्रता के समय भारत की जनसंख्या लगभग 36 करोड़ थी। देश में 83% जनसंख्या अनपढ़ थी। जन्म दर 40 प्रति हज़ार तथा मृत्यु दर 27 थी। अधिक जन्मदर तथा मृत्युदर पिछडेपन का सचक थी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

10. पूंजी निर्माण की कम दर-स्वतन्त्रता के समय भारत में बचत तथा निवेश दर 7% थी इस कारण भी भारतीय अर्थव्यवस्था आर्थिक तौर पर पिछड़ी हुई थी।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति को स्पष्ट करें। (Discuss the nature of Indian Economy on the eve of Independence.)
उत्तर-
भारत में स्वतन्त्रता के समय अर्थव्यवस्था की हालत का वर्णन करते हुए डॉक्टर करम सिंह गिल ने कहा है, “स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक अल्पविकसित, गतिहीन, अर्द्धसामन्ती अर्थव्यवस्था थी।”
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था 1
1. पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था (Underdeveloped Economy) स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था थी। एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होती थी। 1947-48 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 230 रुपये के लगभग थी। देश की अधिकतर जनसंख्या बहुत अधिक निर्धन थी। लोगों को पेट भर भोजन नहीं मिलता था। रहने के लिए मकानों और पहनने के लिए कपड़ों का अभाव था। देश में अधिकतर लोग बेरोज़गार थे।

2. अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था (Semi Feudal Economy)-कृषि में पूरी तरह अंग्रेजों ने जमींदारी प्रथा प्रारंभ करके भूमि के स्वामित्व के अधिकार ज़मींदार को दे दिए। वास्तविक काश्तकार का भूमि पर कोई कानूनी अधिकार नहीं रह गया। स्थायी बन्दोबस्त वाले क्षेत्रों में लगान हमेशा के लिए निश्चित था परन्तु भूमि का किराया बढ़ता जा रहा था। इसलिए काश्तकारों ने भूमि उपकाश्तकारों को लगान पर देनी आरंभ कर दी। सरकार तथा वास्तविक काश्तकार के बीच बहुत-से बिचौलिए उत्पन्न हो गए।

ये बिचौलिए बिना कोई परिश्रम किए किसान से उसके उत्पादन का काफ़ी भाग प्राप्त कर लिया करते थे। किसानों की अवस्था बहुत खराब थी। भारत के जिन भागों में रैयतवाड़ी तथा महलवाड़ी प्रथा थी वहां भी बड़े-बड़े किसानों ने भूमि काश्त के लिए काश्तकारों को दे दी थी। इस प्रकार इन क्षेत्रों में भी बहुतसे बिचौलिए उत्पन्न हो गए थे। इस प्रकार सारे भारत में ही भूमिपति तथा काश्तकार के सामन्तवादी सम्बन्ध स्थापित हो गए।

3. विच्छेदित अर्थव्यवस्था (Disintegrated Economy)-स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक विच्छेदित अर्थव्यवस्था थी। 1947 में जब ब्रिटिश शासन का अन्त हुआ तो इस देश की अर्थव्यवस्था का भारतीय अर्थव्यवस्था तथा पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में विभाजन कर दिया गया था। विभाजन ने देश की अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया था। अविभाजित भारत का 77 प्रतिशत क्षेत्रफल तथा 81 प्रतिशत जनसंख्या भारत के हिस्से में आई।

इसके विपरीत 23 प्रतिशत क्षेत्रफल तथा 19 प्रतिशत जनसंख्या पाकिस्तान के हिस्से में आई। देश का गेहूं, कपास तथा जूट पैदा करने वाला अधिकतर भाग पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। परन्तु अधिकतर कारखाने भारत के हिस्से में रह गये। विभाजन का एक प्रभाव तो यह हुआ कि कपड़े बनाने वाले कारखाने तो भारत में रह गये, परन्तु कपास पैदा करने वाले पश्चिमी पंजाब तथा सिंध के क्षेत्र पाकिस्तान के हिस्से में आये। जूट के कारखाने कलकत्ता (कोलकाता) में थे परन्तु पटसन पैदा करने वाले खेत पूर्वी बंगाल में थे जो पाकिस्तान का एक भाग बन गया था। इस प्रकार भारत को अपने कारखानों के लिए कच्चा माल आयात करने के लिए पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ा।

4. विहसित अर्थव्यवस्था (Deprecrated Economy) स्वतन्त्रता के अवसर पर भारतीय अर्थव्यवस्था एक विह्रसित अर्थव्यवस्था थी। प्रत्येक अर्थव्यवस्था के साधनों का अधिक प्रयोग करने से उनमें घिसावट तथा टूट-फूट हो जाती है। परन्तु यदि किसी अर्थव्यवस्था के साधनों की घिसावट को दूर करने का कोई प्रबन्ध नहीं किया जाता तो अर्थव्यवस्था में पूंजी निर्माण की मात्रा कम हो जाती है। इसके फलस्वरूप उत्पादन क्षमता भी कम हो जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

ऐसी अर्थव्यवस्था को विह्रसित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। दूसरे महायुद्ध के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था एक विह्रसित अर्थव्यवस्था बन गई थी। महायुद्ध के दौरान मशीनरी तथा अन्य औज़ारों का बहुत अधिक उपयोग किया गया। इसके फलस्वरूप इनमें घिसाई तथा टूट-फूट बहुत अधिक हुई। इन मशीनों को बदलने के लिए नयी मशीनें विदेशों से आयात की जानी थीं क्योंकि भारत में मशीनों का उत्पादन नहीं था। परन्तु युद्ध के कारण विदेशों से मशीनों का आयात करना सम्भव नहीं था, इसलिए भारत से काफ़ी उद्योगों की मशीनें बेकार हो गईं, इन उद्योगों की उत्पादन क्षमता कम हो गई।

5. स्थिर अर्थव्यवस्था (Stagnent Economy)-अंग्रेजी शासन काल में भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग स्थिरता की अवस्था में थी। प्रति व्यक्ति वार्षिक आय वृद्धि की दर 0.5% थी। जनसंख्या में वृद्धि दर काफ़ी ऊंची थी। समस्यापूर्ण अर्थव्यवस्था-स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था अनेक समस्याओं से घिरी हुई थी-जैसे शरणार्थियों के पुनः विस्थापन की समस्या, निर्धनता की समस्या, ऊँची कीमतों की समस्या, बेरोज़गारी की समस्या, खाद्यान्न की समस्या इत्यादि।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

PSEB 12th Class Economics विदेशी विनिमय दर Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
विदेशी विनिमय भण्डार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विदेशी मुद्रा तथा सोने के भण्डार को विदेशी विनिमय कहते हैं।

प्रश्न 2.
विदेशी विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रो० क्राऊथर के शब्दों में, “विदेशी विनिमय दर उस दर का माप है कि एक मुद्रा की इकाई के बदले दूसरी मुद्रा की कितनी इकाइयाँ मिलती हैं।”

प्रश्न 3.
सन्तुलन विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सन्तुलन विनिमय दर दो मुद्राओं में वह विनिमय दर है, जहां पर विदेशी मुद्रा की माँग और विदेशी मुद्रा की पूर्ति एक-दूसरे के बराबर हो जाती है।

प्रश्न 4.
विदेशी मुद्रा बाजार की परिभाषा दें।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है, जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को बेचा-खरीदा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

प्रश्न 5.
विदेशी मुद्रा बाज़ार की भूमिकाएँ बताएँ।
उत्तर-
यह बाज़ार क्रय शक्ति के अंतरण, साख सुविधा और जोखिम से बचाव आदि भूमिकाएं निभाता है।

प्रश्न 6.
विदेशी मुद्रा बाज़ार में सन्तुलन कैसे स्थापित होता है ?
उत्तर-
स्वतन्त्र रूप से उच्चावचन कर रहे मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्राओं की माँग तथा पूर्ति से सन्तुलन स्थापित होता है।

प्रश्न 7.
स्थिर विनिमय दर से क्या भाव है ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर वह दर होती है, जो देश की सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।

प्रश्न 8.
समता मान क्या है ?
उत्तर-
मुद्रा की इकाई में स्वर्ण मान की समानता के आधार पर निर्धारित होने वाली विदेशी विनिमय दर को समता मान कहा जाता है।

प्रश्न 9.
विनिमय दर की ब्रैनवुड प्रणाली से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
1945 में ब्रैनवुड के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.) की स्थापना के साथ हर एक देश की करंसी का मूल्य सोने के रूप में निर्धारण किया गया। इसे स्थिर विनिमय दर प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 10.
I.M.F. द्वारा स्थिर विनिमय दर कब तक प्रचलित रही ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर 1946 से 1971 तक प्रचलित रही।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

प्रश्न 11.
विश्व में 1972 के बाद विनिमय दर कैसे निर्धारण होती है ?
उत्तर-
विनिमय दर 1972 के बाद करंसी की माँग तथा पूर्ति द्वारा विदेशी विनिमय बाज़ार में निर्धारण होती है।

प्रश्न 12.
विदेशी मुद्रा में चालू बाज़ार (Spot Market) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
यदि विदेशी मुद्रा की प्रकृति दैनिक किस्म की हो तो इसको चालू बाज़ार कहते हैं।

प्रश्न 13.
बढ़ोत्तरी बाज़ार से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
यदि विदेशी मुद्रा का भुगतान भविष्य में करना होता है तो इसको बढ़ौत्तरी बाज़ार (Forward Market) कहा जाता है।

प्रश्न 14.
चलत सीमा बन्ध (Crawling Peg) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चलत सीमा बन्ध एक ऐसी स्थिति है, जिसमें देश की करंसी के मूल्य में 1% तक परिवर्तन किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
प्रबन्धित तरल चलिता (Managed Floting) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रबन्धित तरल चलिता ऐसी स्थिति है, जिसमें करंसी का मूल्य नियमों तथा अधिनियमों के अनुसार ही निर्धारण किया जा सकता है और परिवर्तन सीमा नहीं होती।

प्रश्न 16.
NEER (Nominal Effective Exchange Rate) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति का मान प्रभावी विनिमय दर कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

प्रश्न 17.
REER (Real Effective Exchange Rate) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (REER) वास्तविक विनिमय दर होती है। यह प्रचलित कीमतों पर आधारित होती है।

प्रश्न 18.
RER (Real Exchange Rate) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक विनिमय दर (RER) का अर्थ स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर से होता है। इसमें कीमत परिवर्तन के प्रभाव को दूर किया जाता है।

प्रश्न 19.
अवमूल्यन क्या है ?
उत्तर-
सरकार द्वारा अपने देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा के मुकाबले कम करना ही अवमूल्यन होता है।

प्रश्न 20.
वह विनिमय दर जो देश की सरकार द्वारा निर्धारण की जाती है इसको ………….. कहते हैं।
(क) स्थिर विनिमय दर
(ख) परिवर्तनशील विनिमय दर
(ग) अनुमानित विनिमय दर
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) स्थिर विनिमय दर।

प्रश्न 21.
विनिमय दर का सन्तुलन ………………. द्वारा स्थापित होता है।
(क) सरकार
(ख) विश्व बैंक
(ग) केन्द्रीय बैंक
(घ) मांग तथा पूर्ति।
उत्तर-
(घ) मांग तथा पूर्ति।

प्रश्न 22.
विदेशी मुद्रा और सोने के भंडार को विदेशी मुद्रा कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

प्रश्न 23. मुद्रा की एक इकाई में सोने की समानता के आधार पर निर्धारण होने वाली विदेशी विनिमय दर को समता मान कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
जब विदेशी मुद्रा की प्रकृति दैनिक किस्म की हो तो इस को चालू बाज़ार कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 25.
सरकार द्वारा अपने देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा की तुलना में बढ़ाने को अवमूल्यन कहते ङ्केहैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 26.
विनिमय दर से अभिप्राय अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में एक करंसी की बाकी करंसियों के रूप में
(क) कीमत से है
(ख) विनिमय के अनुपात से है
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) वस्तु विनिमय से है।
उत्तर-
(क) कीमत से है।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विदेशी विनिमय दर से क्या भाव है ?
उत्तर-
प्रो० क्राऊघर के शब्दों में, “विनिमय दर इसका माप है कि एक मुद्रा की इकाई के बदले में दूसरी मुद्रा की कितनी और इकाइयां मिलती हैं। विनिमय दर उस दर को कहते हैं जिससे एक देश की करेन्सी की एक इकाई के बदले विदेशी मुद्रा की कितनी और इकाइयां मिल सकती हैं।”

प्रश्न 2.
विदेशी मुद्रा बाज़ार को परिभाषित करो।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जहां भिन्न-भिन्न राष्ट्रों की मुद्रा का व्यापार होता है। हर एक देश अपनी मुद्रा को बेचकर दूसरे देश की मुद्रा की खरीद करता है ताकि विदेशों से वस्तुएं और सेवाएं आयात की जा सकें। जिस बाज़ार में अलग-अलग देशों की मुद्रा का विनिमय किया जाता है उस बाज़ार को विदेशी मुद्रा बाज़ार कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

प्रश्न 3.
सन्तुलन विनिमय दर से क्या भाव है ?
उत्तर-
सन्तुलन विनिमय दर दो मुद्रा में वह विनिमय दर है जहां पर विदेशी मुद्रा की मांग और विदेशी मुद्रा की पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होती है। विनिमय दर वह दर होती है जिससे एक देश की मुद्रा का विनिमय दूसरे देश की मुद्रा के साथ किया जाता है।

प्रश्न 4.
बढ़ौत्तरी बाज़ार (Forward Market) से क्या भाव है ?
उत्तर-
बढ़ौत्तरी बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच की वृद्धि तो आज की जाती है परन्तु खरीद बेच निश्चित पहले निर्धारित समय के बाद की जाती है। इस बाज़ार में भविष्य की विनिमय दर का उल्लेख आज fabell GIII (A forward market is that in which the foreign exchange is promised to be delivered in future.)

प्रश्न 5.
विदेशी मुद्रा के चालू बाज़ार और वृद्धि बाज़ार में अन्तर करो।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा का चालू बाज़ार वह बाज़ार होता है जहां दैनिक स्वभाव की खरीद बेच रोज़ाना की है। बढ़ौत्तरी बाज़ार में समझौता आज किया जाता है। परन्तु विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच भविष्य में निश्चित समय के बाद होती है।

प्रश्न 6.
चलत सीमा बन्ध (Crawling Peg) और पबंदित तरलचलिता (Manged Float) में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
चलत सीमा बन्ध एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें देश की करेन्सी का मूल्य 1% परिवर्तन किया जा सकता है। पबंधित तरलचलिता एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें करेन्सी का मूल्य नियमों तथा अर्धनियमों के अनुसार ही किया जा सकता है तथा परिवर्तन सीमा नहीं होती।

प्रश्न 7.
विदेशी मुद्रा की मांग क्यों की जाती है ?
उत्तर-
विदेशी मुद्रा की मांग निम्नलिखित कारणों से की जाती है-

  • बाकी विश्व से वस्तुएं तथा सेवाएं आयात करने के लिए।
  • बाकी विश्व को अनुदान देने के लिए।
  • बाकी विश्व में निवेश करने के लिए।
  • अन्तर्राष्ट्रीय ऋण का भुगतान करने के लिए।

प्रश्न 8.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के स्त्रोत बताएं।
उत्तर-

  1. घरेलू वस्तुओं की विदेशों में मांग हो तो वस्तुओं का निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  2. विदेशी निवेशकों द्वारा देश में किया गया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
  3. देश के नागरिकों द्वारा विदेशों में काम करके विदेशी मुद्रा का हस्तांतरण।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

प्रश्न 9.
विदेशी विनिमय दर का सन्तुलन कैसे निर्धारित होता है ?
उत्तर-
विदेशी विनिमय दर का सन्तुलन दर को विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति निर्धारण करती है।

प्रश्न 10.
स्थिर विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर वह दर है जो कि देश की सरकार द्वारा निर्धारण की जाती है और विनिमय दर में परिवर्तन भी सरकार द्वारा ही किया जाता है। करेंसी का मूल्य, उसमें छुपी हुई सोने की मात्रा के अनुसार निश्चित किया जाता है।

प्रश्न 11.
लोचशील विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर वह दर है जो कि देश मुद्रा की मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है। जिस बाज़ार में करेंसी की विनिमय दर निर्धारण होती है उस को विनिमय दर बाज़ार कहा जाता है। जिस प्रकार एक वस्तु की कीमत खुले बाज़ार में मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है वैसे ही देश की करेंसी का मूल्य मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होता है।

प्रश्न 12.
स्थिर विनिमय दर तथा लोचशील विनिमय दर में अन्तर बताएं।
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर-स्थिर विनिमय दर वह दर है जो कि किसी देश की सरकार द्वारा निर्धारण की जाती है और इसमें परिवर्तन भी सरकार द्वारा ही किया जाता है। लोचशील विनिमय दर-लोचशील विनिमय दर वह दर है जो कि करेंसी की मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है और इसमें परिवर्तन मांग तथा पूर्ति में तबदीली कारण होता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विदेशी मुद्रा बाजार से क्या भाव है ? विदेशी मुद्रा बाज़ार के मुख्य कार्य बताओ।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विदेशी मुद्रा का व्यापार किया जाता है। हर देश की मुद्रा की विनिमय दर उस मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। विदेशी मुद्रा के मुख्य कार्य-

  1. हस्तांतरण कार्य-विदेशी मुद्रा बाज़ार का मुख्य कार्य भिन्न-भिन्न देशों की करन्सी के व्यापार द्वारा खरीद शक्ति का हस्तांतरण करना होता है।
  2. साख कार्य-विदेशी व्यापार करने के लिए विदेशी मुद्रा के रूप में साख मुद्रा का प्रबन्ध करना ही विदेशी ङ्के मुद्रा का मुख्य कार्य होता है।
  3. जोखिम से बचाव का कार्य-विदेशी मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के जोखिम के बाद का काम ही विदेशी मुद्रा बाज़ार करता है, जहां माँग तथा पूर्ति द्वारा विदेशी मुद्रा का मूल्य निश्चित हो जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

प्रश्न 2.
विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति के चार स्त्रोत बताओ।
अथवा
विदेशी मुद्रा की मांग क्यों की जाती है ? इसकी पूर्ति कैसे होती है ?
उत्तर-
विदेशी मुद्रा की माँग (Demand for Foreign Exchange)

  • विदेशों के साथ आयात तथा निर्यात करने के लिए।
  • विदेशों को तोहफे तथा ग्रांट भेजने के लिए।
  • विदेशों में परिसम्पत्तियां (Assets) खरीदने के लिए।
  • विदेशी मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन के कारण लाभ कमाने के लिए।

विदेशी मुद्रा की पूर्ति (Supply of Foreign Exchange)

  1. विदेशी जब देश की वस्तुओं और सेवाओं की खरीद निर्यात के लिए करते हैं तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति होती
  2. विदेशों द्वारा देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने के साथ विदेशी मुद्रा की पूर्ति होती है।
  3. विदेशी मुद्रा के व्यापारी लाभ कमाने के लिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करते हैं।
  4. देश के नागरिक जो विदेशों में रहते हैं उस परिवार को विदेशी मुद्रा के रूप में पैसे बेचते हैं ताकि विदेशी मुद्रा की पूर्ति हो सके।

प्रश्न 3.
स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ?
अथवा
स्थिर विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर सरकार द्वारा निश्चित की जाती है। विश्व में 1880 से 1914 ई० तक स्वर्ण मान प्रणाली अपनाई जाती थी। इस प्रणाली में विदेशी मुद्रा में विनिमय करने के लिए करन्सी का मूल्य सोने के रूप में मापते थे। हर एक देश की मुद्रा विनिमय मूल्य सोने के मूल्य की तुलना द्वारा किया जाता था।

इस प्रकार सोने को विभिन्न-विभिन्न देशों की करन्सी में एक सांझी इकाई माना जाता था। उदाहरण के तौर पर अगर भारत में 1 ग्राम सोने का मूल्य ₹ 50 है और अमेरिका में सोने का मूल्य 1 डॉलर है तो भारत के रुपये का विनिमय मूल्य 50 होगा। डॉलर के रूप में इस विनिमय प्रणाली को स्वर्ण मान प्रणाली कहा जाता था| दूसरे महायुद्ध के बाद ब्रटनवुड प्रणाली अपनाई गई है जिसमें हर एक मुद्रा का मूल्य अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा सोने के रूप में व्यक्त किया जाता था। हर एक मुद्रा के सोने के मूल्य की तुलना के साथ विनिमय दर निश्चित की जाती है।

प्रश्न 4.
विदेशी मुद्रा बाजार में सन्तुलन को स्पष्ट करो।
अथवा
विनिमय दर के सन्तुलन को स्पष्ट करो।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार में विनिमय दर उस बिन्दु पर होती है जहां विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति बराबर होती है। रेखाचित्र 1 अनुसार अमेरिका के डॉलर की माँग DD और SS है। सन्तुलन E बिन्दु पर होता है। इसलिए विनिमय दर निर्धारित हो जाती है। अगर विनिमय दर OR1, हो जाए तो रुपये के रूप में डॉलर ज्यादा मात्रा में पैसे देने पड़ेंगे तो डॉलर की माँग R1D1 हो जाएगी। OR पूर्ति R1S1 हो जाएगी। इसलिए विनिमय दर OR1 से कम होकर OR निश्चित हो जाएगी।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर 1
अगर किसी समय विनिमय दर OR1 निश्चित होती है तो पूर्ति R2S2 कम है और माँग R2D2 ज्यादा है। इसलिए विनिमय रेखाचित्र 1 दर बढ़कर OR हो जाएगी। विनिमय दर का सन्तुलन माँग और पूर्ति द्वारा विदेशी मुद्रा बाज़ार में निर्धारित होता है।

प्रश्न 5.
स्थिर विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर देश की सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है और यह वह स्थिर दर रहती है। स्थिर विनिमय दर माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित नहीं होती बल्कि विनिमय दर 1920 से पहले स्वर्णमान प्रणाली द्वारा निर्धारित की जाती थी। इस प्रणाली में हर एक देश की मुद्रा का मूल्य सोने के रूप में परिभाषित किया जाता था। हर देश की मुद्रा के स्वर्ण मुद्रा मूल्य की तुलना करके विनिमय दर निर्धारित की जाती थी। उदाहरण के लिए रुपये का मूल्य = 2 ग्राम सोना और डॉलर का मूल्य 100 ग्राम सोना तो 1 डॉलर = 100/2 = ₹ 50 निर्धारित होता था। ब्रैटनवुड कुछ सुधार करके समान योजक सीमा प्रणाली अपनाई गई।

प्रश्न 6.
लोचशील विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ?
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर किसी देश की माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में हर एक देश की मुद्रा की माँग और पूर्ति उस देश की करंसी के विनिमय मूल्य को निर्धारित करती है।

जैसा कि रेखाचित्र में विदेशी करन्सी की माँग और पर्ति द्वारा सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है। जहां OR विनिमय दर निर्धारित हो जाती है। अगर विदेशी करन्सी की माँग बढ़ जाती है तो विनिमय दर में वृद्धि हो जाएगी अर्थात् विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए ज्यादा देशी मुद्रा देनी पड़ेगी। अगर विदेशी मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है तो विनिमय दर कम हो जाएगी। इससे यह नतीजा प्राप्त होता है कि विदेशी मुद्रा की जितनी माँग बढ़ जाएगी विनिमय मूल्य उतना अधिक हो जाएगा और विदेशी मुद्रा की पूर्ति जितनी ज्यादा होगी विनिमय मूल्य उतना कम हो जाएगा।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर 2

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

प्रश्न 7.
स्थिर विनिमय दर के लाभ और हानियां बताओ।
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर वह दर होती है जोकि देश की सरकार द्वारा निश्चित होती है और इसके मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं-
मुख्य लाभ (Merits)

  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा बाज़ार में स्थिरता स्थापित होती है।
  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि होती है।
  • इसके साथ बड़े पैमाने के उतार-चढ़ाव उत्पन्न नहीं होते।

हानियां (Demerits)-

  • इसके साथ व्यापक रूप में अन्तर्राष्ट्रीय नीतियां रखनी पड़ती हैं क्योंकि मुद्रा सोने में परिवर्तनशील होती है।
  • इसके साथ पूँजी का विदेशों में आना-जाना कम हो जाता है क्योंकि स्वर्ण भण्डार ज़्यादा रुपये पड़ते हैं।
  • यह जोखिम पूँजी को उत्साहित करती है।

प्रश्न 8.
लोचशील विनिमय दर के लाभ और हानियां बताओ।
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर बाज़ार में माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
मुख्य लाभ (Merits)-

  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय नीतियां रखने की कोई जरूरत नहीं पड़ती।
  • इसके साथ पूँजी का निवेश करना आसान होता है।
  • यह जोखिम पूँजी को उत्साहित करती है।

हानियां (Demerits)

  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में अस्थिरता पैदा हो जाती है।
  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • इसके साथ बड़े पैमाने पर उतार-चढ़ाव पैदा होता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्थिर विनिमय दर से क्या भाव है ? स्थिर विनिमय दर कैसे निर्धारित की जाती है ? इसके गुण और . अवगुण बताओ।
(What is Fixed Exchange Rate ? How is fixed exchange rate determined ? Give its merits and demerits ?)
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर का अर्थ (Meaning of Fixed Exchange Rate)-स्थिर विनिमय दर विनिमय की वह दर है जोकि सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। इस प्रणाली में विनिमय दर सरकार निश्चित करती है और यह दर स्थिर होती है। (Fixed Exchange rate is that exchange rate which is fixed by the government and it is fixed) स्थिर विनिमय दर में सरकार अपनी इच्छा अनुसार थोड़ा परिवर्तन कर सकती है।

स्थिर विनिमय दर का निर्धारण (Determination of Fixed Exchange Rate)-इसके निर्धारण के लिए दो प्रणालियां अपनाई गई हैं-
1. स्वर्ण मान प्रणाली (Gold Standard System)-स्थिर विनिमय दर प्रणाली का सम्बन्ध 1880-1914 तक स्वर्ण मान प्रणाली के साथ था। इस प्रणाली में हर एक देश को अपनी करन्सी का मूल्य सोने के रूप में बताना पड़ता था। एक करन्सी का मूल्य दूसरी करन्सी में निर्धारित करने के लिए हर एक करन्सी के सोने के रूप में मूल्य की तुलना दूसरी करन्सी के सोने के रूप में मूल्य के साथ की जाती थी। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर निर्धारित होती थी जिसको विनिमय का टक्साली समता मूल्य (What for value of exchange) कहा जाता था। उदाहरण के लिए भारत के एक रुपये के साथ 100 ग्राम सोना तथा अमेरिका के एक डॉलर के साथ 20 ग्राम सोने का विनिमय किया जा सकता है तो भारत के रुपये का विनिमय मूल्य \(\frac{100}{20}\) = 5 अमेरिकन डॉलर निर्धारित किया जाता था या विनिमय दर 1 : 5 थी।

2. समानयोजक सीमा प्रणाली (Adjustable Peg System)-बैटनवुड प्रणाली (Bretton Wood System) दूसरे महायुद्ध के बाद ब्रैटनवुड के स्थान पर विश्व के देशों ने समानयोजक सीमा प्रणाली को अपनाया था। यह प्रणाली स्थिर विनिमय दर को सोने के रूप में ही परिभाषित करके निश्चित की जाती थी। परन्तु इसमें कुछ समानयोजक या परिवर्तनशील की सम्भावना रखी गई। हर एक करन्सी का मूल्य अमेरिका के डॉलर के रूप में ही परिभाषित किया गया। कोई करन्सी के मूल्य में समानयोजक या तबदीली अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्वीकृति के साथ ही की जा सकती थी।

स्थिर विनिमय दर के लाभ (Merits of Fixed Exchange System)-
1. आर्थिक स्थिरता (Economic Stability)-इस प्रणाली का मुख्य लाभ यह था कि सभी देशों में आर्थिक उतार-चढ़ाव की सम्भावना नहीं होती थी। व्यापारिक चक्रों पर नियन्त्रण करने के लिए यह प्रणाली लाभदायक सिद्ध हुई है। इसके साथ आर्थिक नीतियों का निर्माण अच्छे ढंग के साथ किया जाने लगा।

2. विश्व आधार का विस्तार (Expansion of World Trade)-स्थिर दर के साथ विश्व व्यापार का विस्तार हो गया क्योंकि इस के साथ विनिमय पर अनिश्चित परिवर्तन नहीं होता है। इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उत्साह प्राप्त हो गया।

3. समष्टि नीतियों का तालमेल (Co-ordination of Macro Policies)-स्थिर विनिमय दर समष्टि नीतियों में तालमेल उत्पन्न करने में सहायक हुई है। इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के समझौते ज़्यादा समय तक किये जा सकते हैं। इस प्रकार विश्व अर्थव्यवस्था में विनिमय दर नीतियों में सहायता करती है।

हानियां (Demerits)-स्थिर विनिमय दर के दोष निम्नलिखित हैं-
1. विशाल अन्तर्राष्ट्रीय निधियां (International Reserved)-स्थिर विनिमय प्रणाली का प्रतिपादन करने के लिए अधिक मात्रा में अन्तर्राष्ट्रीय निधियों की ज़रूरत पड़ती थी। हर एक देश को बहुत सारा धन सोने के रूप में सम्भालना पड़ता था क्योंकि देश की करन्सी सीधे या उल्टे रूप में सोने में बदली जा सकती थी।

2. पूँजी की कम गति (Less movement of Capital)—स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय दर को स्थिर रखने के लिए सरकार को सोने के रूप में भण्डार स्थापित करने पड़ते थे। इसलिए पूँजी में गतिशीलता बहुत कम थी। पूँजी का निवेश विदेशों में कम मात्रा में किया जाता था।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

3. साधनों की अनुकूल बांट (Inefficient Resource Allocation)-स्थिर विनिमय दर में साधनों की बांट कुशल ढंग के साथ नहीं की जा सकती थी। उत्पादन के साधनों के उत्तम प्रयोग के लिए हर एक देश में पूँजी की ज़रूरत होती है। पूँजी निर्माण की कम प्राप्ति के कारण साधनों की अनुकूल बाँट सम्भव थी। स्थिर विनिमय दर के साथ जोखिम पूँजी को ही उत्साह प्राप्त नहीं होता। जिन कार्यों में पूँजी लगानी जोखिम का कार्य होता है उनके कार्य में कोई देश पूँजी लगाने को तैयार नहीं होता था क्योंकि विनिमय दर स्थिर रहती थी।

प्रश्न 2.
लोचशील विनिमय दर से क्या भाव है ? लोचशील विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ? इस प्रणाली के गुण और अवगुण बताओ।
(What is Flexible Exchange Rate? How is Flexible Exchange Rate determined? Explain the merits and demerits of this system.)
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर का अर्थ (Meaning of Flexible Exchange Rate)-लोचशील विनिमय दर वह दर होती है जो कि किसी करन्सी की माँग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इस दर का निर्धारित करने के लिए कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता। इस हालत में करन्सी को बाजार में खुला छोड़ दिया जाता है जो कि विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति द्वारा बाज़ार शक्तियां निर्धारित होती हैं। विनिमय दर में लगातार परिवर्तन होता रहता है जहाँ विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है। इसको विनिमय दर की समता दर (Per Rate of Exchange) कहते हैं। इस को सन्तुलन दर भी कहा जाता है।

लोचशील विनिमय दर का निर्धारण (Determination of Flexible Exchange Rate)-प्रो० के० के० कुरीहारा के अनुसार, “मुफ्त विनिमय दर उस जगह पर निश्चित होगी जहां विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाएगी।” लोचशील विनिमय दर दो तत्त्वों द्वारा निर्धारित होती है-
(A) विदेशी मुद्रा की माँग (Demand for Foreign Exchange)-विदेशी मुद्रा का जब भुगतान किया जाता है तो इस महत्त्व के लिए विदेशी मुद्रा की मांग उत्पन्न होती है। एक देश में विदेशी मुद्रा की माँग निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है-

  • विदेशों में वस्तुएं तथा सेवाएं आयात करने के लिए।
  • अन्तर्राष्ट्रीय कर्जे का भुगतान करने के लिए।
  • विश्व के दूसरे देशों में निवेश करने के लिए।
  • बाकी विश्व को तोहफे तथा ग्रांट देने के लिए।
  • विदेशी मुद्रा के सट्टा उद्देश्य के साथ लाभ कमाने के लिए।

अगर हम भारत के रुपये तथा अमेरिका के डॉलर के सम्बन्ध में डॉलर की माँग और विनिमय मूल्य का प्रतिपादन करना चाहते हैं तो विदेशी मुद्रा की माँग और विनिमय मूल्य का उल्ट सम्बन्ध होता है अर्थात् अमेरिका के डॉलर की कीमत जो रुपये के रूप में की जाती है इसका उल्ट सम्बन्ध होता है। इसके लिए जब विनिमय मूल्य कम होता जाता है तो डॉलर की माँग में वृद्धि होती है। इस प्रकार माँग वक्र ऋणात्मक ढलान की तरफ़ होता है।

विदेशी मुद्रा की पूर्ति (Supply of foreign exchange)–विदेशी मुद्रा की प्राप्ति द्वारा इसकी पूर्ति निश्चित होती है। विदेशी मुद्रा की पूर्ति निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  • वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात के साथ अर्थात् जब विदेशी भारत में वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद करते
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ।
  • विदेशी मुद्रा के दलाल या सट्टा खेलने वालों के द्वारा भारत में भेजी गई विदेशी मुद्रा के साथ। ‘
  • विदेशों में काम कर रहे भारतीयों द्वारा देश में भेजी गई बचतों के साथ।
  • विदेशी राजदूत द्वारा भारत में सैर-सपाटे के साथ।

विनिमय दर और विदेशी मुद्रा की पूर्ति का सीधा सम्बन्ध होता है। जब विनिमय दर बढ़ती है तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होती है। जब विनिमय दर कम हो जाती है तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है। इस प्रकार पूर्ति वक्र धनात्मक ढलान वाली हो जाती है।

विनिमय की सन्तुलन दर (Equilibrium Exchange Rate)-विनिमय की सन्तुलन दर उस बिन्दु पर निर्धारित होती है जहां विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं। इसको रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता रेखाचित्र 3 में विनिमय दर निर्धारण को स्पष्ट किया गया है। विदेशी मुद्रा (डॉलर) की माँग तथा पूर्ति को OX रेखा पर और रुपये की तुलना में डॉलर के विनिमय मूल्य को OY रेखा पर दिखाया गया है।

विदेशी मुद्रा की मांग DD और पूर्ति SS एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं। इसके साथ OR विनिमय दर निश्चित हो जाती है। अगर कोई समय विनिमय दर OR1 हो जाती है तो विदेशी मुद्रा की माँग R1d1 कम हो जाएगी और पूर्ति R2S2 बढ़ जाएगी। इसके साथ विनिमय दर कम होकर OR रह जाएगी। इसके विपरीत अगर विनिमय दर कम होकर OR2 रह जाती है तो विदेशी मुद्रा की माँग R2d2 ज़्यादा है और पूर्ति R2S2 कम है। इसलिए विनिमय दर OR2 से बढ़कर OR हो जाएगी। इस प्रकार विनिमय दर विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर 3

लोचशील विनिमय दर के गुण (Merits of Flexible Rate of Exchange)लोचशील विनिमय दर के गुण इस प्रकार हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय निधियों की ज़रूरत न होना-इस प्रणाली में देश के केन्द्रीय बैंक को अन्तर्राष्ट्रीय भंडारे की कोई ज़रूरत नहीं होती।
  2. पूँजी में वृद्धि (More Capital Movement)-लोचशील विनिमय दर प्रणाली में देश विदेशों में पूँजी निवेश करते हैं क्योंकि देश के केन्द्रीय बैंक को अन्तर्राष्ट्रीय नीतियां रखने की ज़रूरत नहीं होती। इसलिए पूँजी गतिशीलता का लाभ सारे देशों को होता है।
  3. व्यापार में वृद्धि (Increase in Trade)-विनिमय प्रणाली में व्यापार पर पाबन्दियां लगाने की ज़रूरत नहीं होती है। हर एक देश स्वतन्त्रता के साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कर सकता है।
  4. साधनों की उत्तम बांट-लोचशील विनिमय दर में देश के साधनों की उत्तम बाँट सम्भव होती है। इसके साथ साधनों की कागज़ सुविधा में वृद्धि होती है और देश के विकास के अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

लोचशील विनिमय दर के दोष (Demerits of Flexible Exchange Rate)-लोचशील विनिमय दर के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं –

  1. विनिमय दर में अस्थिरता (Instability of Exchange Rate)-विनिमय दर में परिवर्तन लोचशील विनिमय दर प्रणाली में निरन्तर होता रहता है। इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में विदेशी मुद्रा की कीमत में अस्थिरता पैदा हो जाती है।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता (Instability in International Trade)-लोचशील विनिमय दर में अस्थिरता होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भी अस्थिरता पाई जाती है। हर एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के राह में रुकावटें खड़ी कर देता है।
  3. समष्टि नीतियों में समस्या (Problems in Macro Policies)-समष्टि आर्थिक नीतियों के निर्माण में बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। विनिमय दर दिन-प्रतिदिन परिवर्तित होती है। इसलिए समय की नीतियों का न्याय करना मुश्किल हो जाता है। अमेरिका के डॉलर, इंग्लैण्ड के पौंड और यूरोप के यूरो को मज़बूत और सख्य करन्सियां कहा जाता है। क्योंकि करन्सी की माँग विश्व भर में है और लोगों का विश्वास अधिक है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

दूसरी तरफ भारत, पाकिस्तान के रुपये और विकासशील देशों की करन्सियों को कमज़ोर तथा नर्म (Weak and Soft) करन्सी कहा जाता है क्योंकि इनकी मांग कम है और इनका मूल्य लगातार कम होने का कारण इनकी विनिमय दर कम है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

PSEB 12th Class Economics भुगतान सन्तुलन Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन एक वर्ष में एक देश का बाकी विश्व के देशों से आर्थिक लेन-देन के लेखांकन का विवरण होता है।

प्रश्न 2.
भुगतान सन्तुलन लेखे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वित्त वर्ष में एक देश द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन के सार को भुगतान सन्तुलन लेखा कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भुगतान शेष खाता सदैव सन्तुलित होता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
भुगतान शेष खाता तकनीकी दृष्टि से सदैव सन्तुलित होता है और इसको दोहरी लेखा पद्धति (Double Entry System) में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें भुगतान तथा प्राप्तियां बराबर होती हैं।

प्रश्न 4.
आर्थिक नीतियों का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य क्या है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन प्राप्त करना।

प्रश्न 5.
व्यापार शेष से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापार शेष में वस्तुओं के निर्यात और आयात का विवरण होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 6.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
व्यापार शेष, भुगतान शेष का अंश है।

प्रश्न 7.
दृश्य मदों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दृश्य मदों में वस्तुओं के लेन-देन का विवरण होता है।

प्रश्न 8.
व्यापार शेष में किस प्रकार की मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
व्यापार शेष में दृश्य मदों के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 9.
भुगतान शेष में अदृश्य मदों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष में अदृश्य मदों में सेवाओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष में किस प्रकार की मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
भुगतान शेष में दृश्य तथा अदृश्य मदों को शामिल किया जाता है।
अथवा
भुगतान शेष में वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 11.
भुगतान सन्तुलन के चालू खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन के चालू खाते में दृश्य मदों, अदृश्य मदों और एक पक्षीय अन्तरण को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 12.
भुगतान सन्तुलन के पूँजी खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश के निवासियों तथा सरकार की परिसम्पत्तियों और देनदारियों के लेन-देन को पूँजी खाते में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 13.
भुगतान शेष में चालू खाते तथा पूँजी खाते के बिना और कौन-कौन सी मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
चालू खाते और पूँजी खाते के बिना भुगतान शेष में सरकारी रिज़र्व सौदे और भूल चूक को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 14.
प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन क्या है ?
उत्तर-
जब किसी देश की देनदारियां उसकी लेनदारियों से कम होती हैं, तो इसको प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन कहते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 15.
व्यापार शेष में ₹ 5000 करोड़ का घाटा है और आयात का मूल्य ₹ 9000 करोड़ है। निर्यात का मूल्य कितना है ?
उत्तर-
निर्यात का मूल्य = ₹ 4000 करोड़ क्योंकि व्यापार शेष निर्यात के मूल्य तथा आयात के मूल्य का अन्तर होता है।

प्रश्न 16.
व्यापार शेष में ₹ 300 करोड़ का घाटा है, निर्यात का मूल्य ₹ 500 करोड़ है। आयात का मूल्य कितना है ?
उत्तर-
आयात का मूल्य ₹ 800 करोड़ होगा क्योंकि व्यापार शेष निर्यात के मूल्य तथा आयात के मूल्य का अन्तर होता है।

प्रश्न 17.
कौन-सी मदें व्यापार शेष का निर्धारण करती है ?
उत्तर-
निर्यात तथा आयात, व्यापार शेष का निर्धारण करते हैं।

प्रश्न 18.
व्यापार शेष में अतिरेक (Surplus) कब होता है ?
उत्तर-
व्यापार शेष अतिरेक (Surplus) तब होता है जब निर्यात, आयात से अधिक हों।

प्रश्न 19.
चालू खाते की चार मदें बताएँ।
उत्तर-
चालू खाते की मदें-

  1. वस्तुओं तथा सेवाओं का निर्यात
  2. वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात
  3. निजी अन्तरण (उपहार) (Private Transfers)
  4. सरकारी अन्तरण (विदेशों से सहायता) (Official Transfers)।

प्रश्न 20.
पूँजी खाते की चार मदें बताएँ।
उत्तर-
पूँजी खाते की मदें-

  • निजी लेन-देन
  • सरकारी लेन-देन
  • अप्रत्यक्ष निवेश
  • पत्राधार निवेश।

प्रश्न 21.
दृश्य मदों में ……………. के लेन-देन का विवरण होता है।
उत्तर-
वस्तुओं।

प्रश्न 22.
अदृश्य मदों में …………. के लेन-देन का विवरण होता है।
उत्तर-
सेवाओं।

प्रश्न 23.
भुगतान सन्तुलन में …………. मदों के निर्यात और आयात को शामिल किया जाता है।
(क) दृश्य मदों
(ख) अदृश्य मदों
(ग) दृश्य और अदृश्य मदों
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) दृश्य और अदृश्य मदों।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 24.
व्यापार संतुलन में दृश्य के निर्यात और आयात को शामिल किया जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 25.
व्यापार सन्तुलन और भुगतान सन्तुलन में कोई अन्तर नहीं होता।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
भुगतान सन्तुलन लेखे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन एक वर्ष में एक देश का बाकी विश्व के देशों से आर्थिक लेन-देन के लेखांकन का विवरण होता है। एक वित्त वर्ष में एक देश द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन के सार को भुगतान शेष लेखा कहा जाता है। यह समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्वपूर्ण अंश है।

प्रश्न 2.
व्यापार शेष से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापार शेष में वस्तुओं के निर्यात तथा आयात के लेन-देन का विवरण होता है। एक देश द्वारा एक वर्ष में निर्यात वस्तुओं तथा आयात वस्तुओं के अन्तर को व्यापार सन्तुलन कहा जाता है। इसको दृश्य मदें (Visible goods) भी कहा जाता है। व्यापार शेष में सेवाओं (अदृश्य मदों) के लेन-देन को शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 3.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर बताएं।
उत्तर-
व्यापार शेष एक वित्त वर्ष में दृश्य मदों (वस्तुओं) के लेन-देन का विवरण होता है जबकि भुगतान सन्तुलन एक वित्त वर्ष में दृश्य मदों (वस्तुओं) के आयात और निर्यात के साथ-साथ अदृश्य मदों (सेवाओं) के आयात-निर्यात को भी शामिल किया जाता है। जहाज़रानी, बीमा बैंकिंग ब्याज, भुगतान, लाभांश, सैलानियों के खर्च को दृश्य मदों में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 4.
भुगतान सन्तुलन की दृश्य तथा अदृश्य मदें क्या हैं ?
उत्तर-
दृश्य मदें (Visible Items)-दृश्य मदों में वस्तुओं के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है। अदृश्य मदें (Invisible Items)—इसमें विदेशों की दी गईं सेवाएं तथा विदेशों से प्राप्त की गई सेवाओं को शामिल किया जाता है। इनको अदृश्य मदें इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका निर्माण धातु से नहीं होता जैसे कि –

  • समुद्री जहाजों की सेवाओं का आयात तथा निर्यात
  • बैंकिंग सेवाओं का आयात तथा निर्यात।

प्रश्न 5.
भुगतान शेष के चालू खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष के चालू खाते का अर्थ है कि अल्पकाल में वस्तुओं के वास्तविक लेन-देन का लेखा-जोखा। इसमें दृश्य तथा अदृश्य दोनों प्रकार की वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 6.
भुगतान शेष के पूंजी खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष के पूंजी खाते का अर्थ है कि अल्पकाल तथा दीर्घकाल में पूंजी के अन्तर प्रवाह तथा बाहरी प्रवाह का लेखा-जोखा। इसमें व्यक्तियों तथा सरकार द्वारा विदेशों से प्राप्त ऋण उधार देना। अनुदान तथा स्वर्ण के आदान-प्रदान को शामिल किया जाता है। यह अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन का लेखा-जोखा होता है।

प्रश्न 7.
प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन का अर्थ बताएं।
उत्तर-
प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन-भुगतान सन्तुलन को प्रतिकूल कहा जाता है जब देश की प्राप्तियां कम होती हैं और देनदारी अधिक होती है इस स्थिति में भुगतान सन्तुलन को बराबर करने के लिए स्वर्ण में भुगतान करना पड़ता है अथवा अल्पकालीन ऋण लेकर सन्तुलन स्थापित करना पड़ता है। इस स्थिति में देश की प्राप्तियां कम होती हैं और भुगतान अधिक होता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है ? भुगतान शेष की दृश्य तथा अदृश्य मदों को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
भुगतान शेष एक वित्त वर्ष में एक देश और शेष विश्व के देशों के साथ लेन-देन का विवरण होता है। इसमें दृश्य (Visible) तथा अदृश्य (Invisible) मदें शामिल होती हैं।
(i) दृश्य मदें (Visible Items)-दृश्य मदों में वस्तुओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है। जब निर्यात वस्तुओं तथा आयात वस्तुओं का चालू लेखा पेश किया जाता है तो इसको व्यापार सन्तुलन कहा जाता है। जैसा कि गेहूँ, कपड़े, लोहे आदि का आयात तथा निर्यात।

(ii) अदृश्य मदें (Invisible Items)-जब एक देश बाकी विश्व के देशों को सेवाएं प्रदान करता है और बाकी विश्व के देशों से सेवाएं प्राप्त की जाती हैं तो इनको अदृश्य मदें कहा जाता है। इसमें सेवाओं के निर्यात और आयात को शामिल किया जाता है। अदृश्य मदों में निम्नलिखित मदों को शामिल किया जाता है –

  1. जहाज़रानी, वस्तु सेवाओं की आयात और निर्यात
  2. बैंकिंग सेवाओं की आयात और निर्यात
  3. बीमा सेवाओं की आयात और निर्यात
  4. ब्याज का भुगतान तथा प्राप्ति
  5. लाभांश के रूप में भुगतान तथा प्राप्ति। ङ्केप्रश्न

2. भुगतान शेष के लेन-देन के वगीकरणण की पाँच श्रेणियों की व्याख्या करें। उत्तर- भुगतान शेष के लेन-देन के वर्गीकरण को मुख्य पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है-

  1. श्रेणी I. वस्तुओं तथा सेवाओं का लेखा-इस श्रेणी में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।
  2. श्रेणी II. एक पक्षीय अन्तरण लेखा-इस खाते में एक देश द्वारा बाकी विश्व को दिए गए उपहार तथा अनुदान और प्राप्त किए अनुदान और उपहार का विवरण होता है।
  3. श्रेणी III. दीर्घकालीन पूँजी लेखा-देश के निवासियों तथा सरकार विदेशी परिसम्पत्तियों की वृद्धि या कमी का विवरण होता है। इसी प्रकार विदेशी निवासियों तथा सरकार के पास इस देश की दीर्घकालिक परिसम्पत्तियों ” की वृद्धि तथा कमी का विवरण होता है।
  4. श्रेणी IV अल्पकालीन निजी पूँजी लेखा-देश के निवासियों के पास निजी विदेशी परिसम्पत्तियों में वृद्धि या कमी का विवरण होता है। इसी प्रकार विदेशी निवासियों के पास इस देश की परिसम्पत्तियों में वृद्धि या कमी का विवरण भी इस खाते में शामिल किया जाता है।
  5. श्रेणी V अल्पकालीन सरकारी पूँजी लेखा-इस देश की सरकार तथा किसी मौद्रिक अधिकारियों द्वारा विदेशी अल्पकालिक परिसम्पत्तियों की मालकी में वृद्धि या कमी के साथ-साथ विदेशी सरकार तथा उनकी एजेन्सियों द्वारा अल्पकालिक परिसम्पत्तियों की वृद्धि तथा कमी का विवरण होता है।

प्रश्न 3.
(a) चालू लेखे
(b) पूँजी लेखे के अंशों (Components) की व्याख्या करें। उत्तर-भुगतान शेष के दो खाते होते हैं-
A. चालू खाता (Current Account) चालू खाते के मुख्य अंश निम्नलिखित हैं –

  • दृश्य मदें-वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात और निर्यात।
  • अदृश्य मदें-सेवाओं का आयात और निर्यात।
  • एक पक्षीय अन्तरण-एक देश द्वारा विदेशों को दिए गए तथा प्राप्त किए उपहार तथा अनुदान।

B. पूँजी खाता (Capital Account)-पूँजी खाते के मुख्य अंश निम्नलिखित हैं –

  • सरकारी सौदे-एक देश द्वारा विदेशों को ऋण देना तथा प्राप्त करना जिस द्वारा परिसम्पत्तियों तथा देनदारियों की स्थिति प्रभावित होती है।
  • निजी सौदे-इस देश के व्यक्तियों द्वारा विदेश में निवेश करना तथा विदेशी व्यक्तियों द्वारा इस देश में निवेश करना शामिल करते हैं।
  • प्रत्यक्ष निवेश-विदेशों में निजी व्यक्तियों द्वारा किया गया निवेश तथा उस निवेश पर नियन्त्रण रखना।
  • पोर्ट फोलियो निवेश-विदेशों में शेयर, बान्ड आदि की खरीद परन्तु इस निवेश पर नियन्त्रण न होना। विदेशी पूँजीपतियों द्वारा इस देश में किया गया पोर्ट फोलियो निवेश भी पूँजी खाते में शामिल किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 4.
भुगतान शेष के चालू खाते से क्या अभिप्राय है ? इस खाते की मुख्य मदों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
भुगतान शेष का चालू खाता वह खाता है जिसमें वस्तुओं, सेवाओं तथा एक पक्षीय अन्तरण का लेखा-जोखा रखा जाता है। मुख्य मदें (Main Components)-

  1. दृश्य मदें (Visible Items) चालू खाते में दृश्य मदों अर्थात् वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है। जब किसी देश की वस्तुओं के आयात तथा निर्यात का विवरण दिया जाता है तो इसको व्यापार शेष कहा जाता है।
  2. अदृश्य मदें (Invisible Items)-इसमें सेवाओं (Services) के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है। इनमें यातायात, संचार, बीमा, बैंकिंग आदि सेवाएं शामिल की जाती हैं।
  3. निवेश आय (Investment Income)-एक देश द्वारा विदेशों में किए गए निवेश से प्राप्त ब्याज तथा लाभ और इनके भुगतान के विवरण को चालू खाते में शामिल किया जाता है।
  4. उपहार तथा ग्रांट (Gifts and Grants) चालू खाते में एक पक्षीय भुगतान जैसा कि उपहार और ग्रांट जो विदेशों से प्राप्त किया गया तथा एक पक्षीय भुगतान जो विदेशों को दिया गया, इसको शामिल किया जाता है।

प्रश्न 5.
भुगतान शेष के पूँजी खाते से क्या अभिप्राय है ? इस खाते की मुख्य मदों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
पूँजी खाते से अभिप्राय उस खाते से है जिसमें एक देश की सरकार तथा निवासियों का शेष विश्व की सरकार तथा निवासियों से सम्बन्ध होता है। इसमें परिसम्पत्तियों तथा देनदारियों में परिवर्तन होता है। पूँजी खाते की मुख्य मदें इस प्रकार हैं-

  • सरकारी सौदे-जब एक देश की सरकार दूसरे देशों की सरकार से ऋण प्राप्त करती है जिस द्वारा परिसम्पत्तियों में परिवर्तन होता है तो इनको सरकारी सौदे कहा जाता है।
  • निजी सौदे-यह गैर-सरकारी सौदे होते हैं जब एक देश के निवासी विदेशों में तथा विदेशी इसमें निवेश करते हैं तो इनको निजी सौदे कहा जाता है। इनको भी पूँजी खाते में शामिल किया जाता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश-जब इस देश के निवासियों द्वारा विदेशों में तथा विदेशी निवासियों द्वारा इस देश में निवेश करके उस पर नियन्त्रण रखा जाता है तो इसको प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहा जाता है।
  • पोर्ट फोलियो निवेश (Port folio Investment)-एक देश के निवासी विदेशों में शेयर्स, बान्ड तथा प्रतिभूतियों की खरीद करते हैं और विदेशियों द्वारा इसमें शेयर्स, बान्ड आदि की खरीद की जाती है तो इसको पोर्ट फोलियो निवेश कहा जाता है। इस निवेश पर निवेशकर्ता का नियन्त्रण नहीं होता।

प्रश्न 6.
भुगतान शेष हमेशा सन्तुलन में होता है। स्पष्ट करें।
अथवा
भुगतान शेष के लेखे को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक देश की प्राप्तियां तथा भुगतान को दोहरी अंकन प्रणाली द्वारा रिकार्ड किया जाता है। दोहरी अंकन प्रणाली में प्राप्तियां तथा देनदारियां हमेशा बराबर होती हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि भुगतान शेष सदैव सन्तुलित रहता है परन्तु व्यावहारिक तौर पर यह असन्तुलित हो सकता है। इसको एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन 1
लेखे की दृष्टि से भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में होता है। जैसा कि प्राप्तियां 300 + 300 + 100 + 300 = ₹ 1000. करोड़ भुगतान 600 + 100 + 80 + 220 == ₹ 1000 करोड़ के बराबर है।

प्रश्न 7.
भुगतान शेष की स्वप्रेरित मदों तथा समायोजक मदों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष को अर्थशास्त्री दो भागों में बांटते हैं-

  • स्वप्रेरित मदें (Autoxomous Items)-स्वप्रेरित मदों का अर्थ उन मदों से होता है जिनका मुख्य उद्देश्य , अधिकतम लाभ कमाना होता है। इनका सम्बन्ध भुगतान शेष में समानता स्थापित करना नहीं होता। इन मदों को रेखा से ऊपर की मदों का नाम भी दिया जाता है।
  • समायोजक मदें (Accomodating Items)-समायोजक मदें वे मदें होती हैं जिनका उद्देश्य लाभ अधिकतम – करना होता है। इनका सम्बन्ध लाभ के धनात्मक तथा ऋणात्मक होने से होता है। समायोजक मदों द्वारा भुगतान शेष में समानता स्थापित की जाती है। इन मदों को रेखा से नीचे की मदें भी कहा जाता है।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष में असन्तुलन से क्या अभिप्राय है ? इसकी किस्मों का वर्णन करें।।
उत्तर-
भुगतान शेष में असन्तुलन दो प्रकार का हो सकता है-घाटे का भुगतान सन्तुलन, बचत का भुगतान सन्तुलन।
1. घाटे का भुगतान सन्तुलन (Deficit Balance of Payments)-जब किसी देश की प्राप्तियां (Receipts) कम होती हैं और देनदारियां (Payments) अधिक होती हैं तो इस स्थिति को घाटे का भुगतान सन्तुलन कहा जाता है। इस स्थिति को प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन (Unfavourable Balance of Payment) की स्थिति भी कहा जाता है। जब देश के निर्यात कम होते हैं और आयात अधिक होते हैं तो देश को सन्तुलन स्थापित करने के लिए ऋण लेना पड़ता है अथवा सोने के रूप में भुगतान करना पड़ता है।

2. बचत का भुगतान शेष (Surplus Balance of Payments)-जब किसी देश की प्राप्तियां (Credits or Receipts) अधिक होती हैं और देनदारियां (Debits or Payments) कम होती हैं तो इस स्थिति को अनुकूल भुगतान शेष (Favourable Balance of Payments) कहा जाता है। जब देश का निर्यात अधिक होता है और आयात कम होता है तो देश को विदेशों से सोना प्राप्त होता है अथवा देश द्वारा विदेशों को अल्पकालिक ऋण दिए जाते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 9.
भुगतान शेष में असन्तुलन के कारण बताओ।
उत्तर-
भुगतान शेष में असन्तुलन के मुख्य कारण इस प्रकार हैं-
A. आर्थिक कारण (Economic Causes)

  • बड़े पैमाने पर विकासवादी खर्च कारण, आयात में बहुत वृद्धि होती है और असन्तुलन पैदा हो जाता है।
  • किसी देश में व्यापार चक्रों के कारण सुस्ती और मन्दीकाल की अवस्था के कारण भुगतान सन्तुलन में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
  • देश में मुद्रा स्फीति के कारण विदेशों से आयात में वृद्धि होती है और असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
    देश में विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं के स्थान पर प्रतिस्थापनों का विकास हो जाता है तो इससे शेष. घाटे में कमी हो
  • जाती है।
  • देश में उत्पादन लागत में कमी कारण भुगतान शेष में परिवर्तन उत्पन्न होता है।

B. राजनीतिक कारण (Political Causes)-जब देश में राजनीतिक स्थिरता नहीं होती तो पूँजी का निकास विदेशों में अधिक होता है और पूँजी का आयात कम हो जाता है तो भुगतान शेष में असन्तुलन पैदा हो जाता है।

C. सामाजिक कारण (Social Causes)-देश में लोगों के स्वाद, फैशन तथा प्राथमिकता में परिवर्तन के कारण भी असन्तुलन पैदा हो सकता है।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष के असन्तुलन को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर-
भुगतान शेष के असन्तुलन को निम्नलिखित विधियों से ठीक किया जा सकता है-

  • निर्यात प्रोत्साहन (Export Promotion)-देश के निर्यात में वृद्धि करने के लिए उद्यमियों तथा निर्यातकर्ता को सहायता प्रदान करनी चाहिए। इस प्रकार भुगतान असन्तुलन ठीक किया जा सकता है!
  • आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)–विदेशों से आयात करने वाला वस्तुओं के स्थान पर देश में ही उन वस्तुओं का उत्पादन करके भुगतान शेष के असन्तुलन को ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार देश की आवश्यकताएं देश में ही पूर्ण हो जाती हैं। आयात पर रोक लगानी चाहिए।
  • अवमूल्यन (Devaluation)-देश की करन्सी का मूल्य विदेशी मुद्रा की तुलना में घटाने को अवमूल्यन कहा जाता है। यह लोचशील विनिमय प्रणाली में सम्भव होता है। इससे निर्यात में वृद्धि होती है।
  • मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Control over Inflation) देश में मुद्रा स्फीति की दर को नियन्त्रण में करके देश की वस्तुओं की माँग विदेशों में बढ़ाई जा सकती है। इससे भुगतान असन्तुलन की स्थिति ठीक हो जाती है।

प्रश्न 11.
भुगतान सन्तुलन तथा राष्ट्रीय आय लेखे में सम्बन्ध स्पष्ट करें। .
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन के खाते में भुगतान और प्राप्तियों को दोहरी अंकन प्रणाली द्वारा स्पष्ट किया जाता है। इसी प्रकार राष्ट्रीय आय के लेखे भी दोहरी अंकन प्रणाली के अनुसार ही बनाए जाते हैं। राष्ट्रीय आय में अन्तिम उपभोग को इस प्रकार स्पष्ट किया जाता है-
Y = C+ I + G + X
इसमें Y = राष्ट्रीय आय, C = वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग, I = निवेश खर्च, X = निर्यात खर्च राष्ट्रीय आय का माप खुली अर्थव्यवस्था में इस प्रकार किया जाता है-
Y = C + S + T + M
इसमें Y = राष्ट्रीय आय, C = उपभोग खर्च, S = बचत, T = करों का भुगतान, M = आयात खर्च।
∴ C+ I + G + X = C+ S + T + M
I+ G+ X = S + T + M
Injections = Leakages
देश में निवेश, सरकारी खर्च तथा निर्यात द्वारा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तथा बचत, कर और आयात द्वारा आय का विकास होता है। इस प्रकार भुगतान सन्तुलन हमेशा सन्तुलन में रहता है।

प्रश्न 12.
भारत में भुगतान सन्तुलन के ढांचे को स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में भुगतान सन्तुलन लेखे में सरकार की प्राप्तियां तथा भुगतान का विवरण होता है। भुगतान सन्तुलन ढांचे में तीन सैक्शन होते हैं-
(i) चालू खाता
(ii) पूँजी खाता
(iii) रिज़र्व प्रयोग अथवा समष्टि भुगतान सन्तुलन।
भारत के भुगतान सन्तुलन ढांचे को 2011-12 के आंकड़ों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –
India’s Balance of Payments : Summary (2011-12)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन 2

Source : Economic Survey 2012-13. इस सूची पत्र से स्पष्ट होता है कि (i) चालू लेखा सन्तुलन (-) 78155 मिलियन डालर था। व्यापार सन्तुलन (-) 189759 मिलियन डालर और अदृश्य मदों से प्राप्ति 111604 मिलियन डालर थी। (ii) पूँजी लेखे में 67755 मिलियन डालर की आय प्राप्त हुई। इस प्रकार (ii) विदेशी मुद्रा के रिज़र्व भण्डार में प्रयोग के लिए 12831 मिलियन डालर की कमी हुई।

प्रश्न 13.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
व्यापार शेष एक देश में वस्तुओं के आयात मूल्य तथा निर्यात मूल्य का अन्तर होता है। भुगतान शेष एक विशाल धारणा है। इसमें व्यापार शेष के साथ-साथ चालू खाते तथा पूँजी खाते के लेन-देन को भी शामिल किया जाता है। इनमें मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं –

व्यापार शेष (Balance of Trade) भुगतान शेष (Balance of Payments)
(1) इसमें वस्तुओं के निर्यात तथा आयात का विवरण होता है। (1) इसमें वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात तथा आयात का विवरण होता है।
(2) इसमें पूँजीगत लेन-देन को शामिल नहीं किया जाता जैसे कि परिसम्पत्तियों की खरीद बेच। (2) इसमें पूँजीगत लेन-देन को शामिल किया जाता है।
(3) यह एक सीमित धारणा है जोकि भुगतान शेष का एक भाग है। (3) यह एक विशाल धारणा है। व्यापार शेष इस धारणा का एक भाग होता है।
(4) व्यापार शेष प्रतिकूल, अनुकूल या सन्तुलन में हो सकता है। (4) भुगतान शेष सदैव बराबर होता है क्योंकि प्राप्तियां तथा भुगतान बराबर होते हैं।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान शेष लेखे से क्या अभिप्राय है ? इसके मुख्य अंशों को स्पष्ट करें।
(What is meant by Balance of Payment Account ? Describe components of Balance of Payment Account.)
अथवा
भुगतान शेष की दृश्य मदों तथा अदृश्य मदों से क्या अभिप्राय है ? उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
(What is meant by Visible and Invisible Items in Balance of Payment Account ? Explain with examples.)
उत्तर-
भुगतान शेष लेखांकन का अर्थ (Meaning of Balance of Payments Account)-भुगतान शेष लेखांकन का अर्थ एक देश का शेष विश्व के साथ आर्थिक लेन-देन के विवरण का लेखा-जोखा होता है। (The B.O.P. account is a summary of international transactions of a country in a financial year.)
भुगतान सन्तुलन को दोहरी अंकन प्रणाली द्वारा स्पष्ट किया जाता है। इसलिए भुगतान शेष लेखांकन का ढांचा इस प्रकार का होता है जिसमें भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में रहता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन 3
भुगतान शेष के मुख्य अंश अथवा तत्त्व (Components) of B.O.P.)
अथवा
भुगतान शेष की दृश्य तथा अदृश्य मदें (Visible and Invisible Items of Balance of Payments)-
भुगतान शेष की मुख्य मदों को ऊपर दिए ढांचे अथवा संरचना में दिखाया गया है। इनको निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. वस्तुओं का निर्यात तथा आयात (दृश्य मदें)[Export and Import of Goods (Visible Items)] वस्तुओं के निर्यात तथा आयात को दृश्य मदें कहा जाता है। ऊपर दिए सूची पत्र 7.1 के अनुसार, वस्तुओं का निर्यात ₹ 300 करोड़ और वस्तुओं का आयात ₹ 600 करोड़ है। इस किस्म के व्यापार को दृश्य मदें कहा जाता है। इन मदों का विवरण कस्टम अधिकारियों द्वारा रखा जाता है।

2. सेवाओं का निर्यात तथा आयात (अदृश्य मदें) [Export and Import of Services (Invisible Items)]-हर एक देश विदेशों की सेवाएं प्रदान करता है और विदेशों से सेवाएं आयात की जाती हैं। सेवाओं के आदान-प्रदान को अदृश्य मदें कहा जाता है। सेवाओं में मुख्य रूप से निम्नलिखित मदों से आय को शामिल किया जाता है।

  • जहाज़रानी, बैंकिंग तथा बीमा (Shipping, Banking and Insurance) हर एक देश विदेशों को जहाज़रानी, बैंकिंग तथा बीमा की सेवाएं प्रदान करता है और बाकी विश्व के देशों से यह सेवाएं प्राप्त की जाती हैं। इनको अदृश्य मदें कहा जाता है।
  • टूरिज्म से आय (Income from Tourism)-टूरिज्म से आय को भी अदृश्य निर्यात कहा जाता है।
  • ब्याज तथा लाभांश (Interest and Dividends)-अदृश्य मदों में एक देश के निवासियों द्वारा निवेश करने से प्राप्त ब्याज तथा लाभांश को भी सेवाओं के निर्यात में शामिल किया जाता है। इस प्रकार सेवाओं के निर्यात तथा आयात द्वारा अदृश्य मदों से शुद्ध प्राप्त आय को भुगतान सन्तुलन में शामिल किया जाता है। इनको अदृश्य मदें (Invisible Items) कहा जाता है।

3. एक पक्षीय अन्तरण (Unilateral Transfers)-एक पक्षीय अन्तरण का अर्थ है एक देश द्वारा विश्व के शेष देशों को उपहार (Gifts), सहायता (Donations) आदि भेजना तथा बाकी विश्व के देशों से उपहार सहायता विदेशी धन प्राप्त करता है। जब विदेशों से उपहार या सहायता प्राप्त की जाती है तो इसके बदले में वर्तमान अथवा भविष्य में कोई भुगतान नहीं करना पड़ता। ये प्राप्तियां तथा भुगतान देश की सरकार तथा निजी नागरिकों द्वारा लिए या दिए जाते हैं।

4. पूँजीगत प्राप्तियां तथा भुगतान (Capital Receipts and Payments)-पूँजीगत प्राप्तियों में निवेश आय जैसा कि लगान, व्याज, लाभ और मज़दूरी के रूप में विश्व के शेष देशों से प्राप्त की जाती है। इसको पूँजीगत प्राप्ति में शामिल किया जाता है। इस प्रकार पूँजीगत भुगतान में लगान, ब्याज, लाभ और मजदूरी के रूप में बाकी विश्व के देशों को किए गए भुगतान को पूंजीगत भुगतान में शामिल किया जाता है। इनको भुगतान सन्तुलन लेखे में प्राप्तियां तथा भुगतान के रूप में लिखा जाता है। इनमें ऋण, निवेश, परिसम्पत्तियों की बिक्री, सोना चांदी तथा विदेशी मुद्रा के भण्डार को शामिल किया जाता है। भारत में भुगतान शेष के लेन-देन के वर्गीकरण को भागों में बांटा जाता है-

  • वस्तुओं तथा सेवा का खाता (Goods and Services Account)
  • एक पक्षीय अन्रण खाता (Unilateral Transfers Account)
  • दीर्घकालिक पूँजी खाता (Long Term Capital Account)
  • अल्पकालिक निजी पूँजी खाता (Short Term Private Capital Account)
  • अल्पकालिक सरकारी पूँजी खाता (Short Term Official Capital Account)

प्रश्न 2.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है ? भुगतान शेष के प्रतिकूल होने के कारण बताएं। भुगतान शेष के असन्तुलन को ठीक करने के उपाय बताएं।
(What is meant by B.O.P. ? Discuss the Causes of adverse B.O.P. Suggest measures to correct dis-equilibrium in B.O.P.)
उत्तर-
भुगतान शेष एक देश का बाकी विश्व के देशों से निश्चित समय में अन्य देशों से आदान-प्रदान का विवरण होता है। हर एक देश विदेशों को वस्तुएं तथा सेवाएं भेजता है जिससे उस देश को आय प्राप्त होती है। वस्तुएं तथा सेवाएं मंगवाने से उस देश को भुगतान करना पड़ता है। भुगतान शेष वस्तुएं, सेवाएं तथा हर प्रकार के पूँजी आदान-प्रदान को शामिल करता है। सी० पी० किंडलबरजर के अनुसार, “एक देश का भुगतान शेष उस देश के निवासियों और विदेशी निवासियों के अन्तर्गत आर्थिक लेन-देन का विधिपूर्वक लेखा जोखा होता है।’ (The balance of payment of country is a systematic record of all economic transactions between its residents and residents of foreign countries.” C.P. Kindle-berger
भुगतान शेष = शुद्ध व्यापार शेष + शुद्ध सेवाओं में सन्तुलन + शुद्ध एक पक्षीय भुगतान + शुद्ध पूँजीगत लेखा सन्तुलन। व्यापार शेष (B.O.T.), भुगतान सन्तुलन का एक भाग होता है।

असन्तुलित भुगतान शेष के कारण (Causes of Disequilibrium in Balance of Payments)-
भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में होता है परन्तु जब भुगतान शेष घाटे वाला (Deficit) अथवा बचत वाला (Surplus) होता है तो इसको पूँजी लेखे की सहायता से सन्तुलन में किया जाता है। जब हम भुगतान शेष में असन्तुलन की बात करते हैं तो इसका सम्बन्ध चालू खाते (Current Account) से होता है। भुगतान सन्तुलन के असन्तुलित होने के मुख्य कारण निम्नलिखित होते हैं-

1. आर्थिक तत्त्व (Economic Factors) –

  • अधिक विकासवादी खर्च (Huge Development Expenditure)-जब देश की सरकार देश के आर्थिक विकास पर बहुत अधिक खर्च करती है तो इस स्थिति में विदेशों से मशीनें और औज़ार आयात किए जाते हैं। इस कारण भुगतान शेष में घाटे का असन्तुलन पैदा हो जाता है।
  • व्यापारिक चक्र (Trade Cycles)-सुस्ती तथा मन्दी के कारण देश में सरकार को अधिक खर्च करना । पड़ता है। इसके फलस्वरूप घाटे वाला असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। तेज़ीकाल के समय सरकार अधिक निर्यात करके विदेशी मुद्रा कमाती है। इससे बचत वाला असन्तुलन उत्पन्न होता है।
  • मुद्रा स्फीति (Inflation)-देश में मुद्रा स्फीति के कारण वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। देश के निर्यात कम हो जाते हैं और आयात बढ़ जाते हैं। इसलिए घाटे वाला असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
  • आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)-आयात प्रतिस्थापन का अर्थ है विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं का देश में ही उत्पादन करना। इस उद्देश्य के लिए विदेशों से नई मशीनें आयात की जाती हैं और भुगतान शेष घाटे वाला हो जाता है।
  • उत्पादन लागत में परिवर्तन (Change in Cost of Production)—जब तकनीक का विकास होता है तो इससे उत्पादन लागत में परिवर्तन हो जाता है। लागत कम होने से निर्यात में वृद्धि होती है और भुगतान शेष में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

2. राजनीतिक तत्त्व (Political Factors)-

  • राजनीतिक अस्थिरता (Political Instability)-जब किसी देश में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति होती है तो इससे पूँजी का विकास होता है और पूंजी का प्रवेश कम होने से घाटे के असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • आयात कर में कमी (Reduction in Import duty)-जब देश की सरकार, आयात कर में कमी करती है तो इस कारण आयात में वृद्धि होती है और घाटे वाला असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

3. सामाजिक तत्त्व (Social Factors) –

  • स्वाद तथा फैशन में परिवर्तन (Changes in Tastes and Fashion)-जब किसी देश के लोगों के स्वाद, फैशन तथा प्राथमिकताओं में परिवर्तन होता है तो इसके परिणामस्वरूप आयात और निर्यात में परिवर्तन हो जाता है। इससे भी असन्तुलन उत्पन्न होता है।
  • जनसंख्या में वृद्धि (Population Growth)-जब एक देश में जनसंख्या में वृद्धि तेजी से होती है जो इससे वस्तुओं तथा सेवाओं की मांग में वृद्धि हो जाती है। परिणामस्वरूप भुगतान शेष में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

भुगतान शेष के असन्तुलन को ठीक करने के उपाय (Measures to Correct dis-equilibrium in B.O.P.) –
भुगतान शेष को निम्नलिखित विधियों से ठीक किया जा सकता है –

  1. निर्यात प्रोत्साहन (Export Promotion)-जब किसी देश में भुगतान शेष घाटे वाला होता है तो उस स्थिति में निर्यात में वृद्धि हो सके। इस प्रकार घाटे वाला असन्तुलन ठीक हो सकता है।
  2. आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)-सरकार को आयात की जाने वाली वस्तुओं के स्थान पर देश में ही उन वस्तुओं का उत्पादन करना चाहिए। इससे आयात मूल्य में कमी हो जाएंगी और भुगतान शेष का असन्तुलन ठीक हो जाएगा।
  3. विदेशी मुद्रा पर नियन्त्रण (Exchange Control)-सरकार को विदेशी मुद्रा पर नियन्त्रण रखना चाहिए। निर्यात करने वाले उद्यमियों की विदेशी मुद्रा में आय को केन्द्रीय बैंक में जमा करवाना चाहिए और अधिक · महत्त्वपूर्ण आयात पर ही विदेशी मुद्रा को खर्च करना चाहिए। इससे भी भुगतान शेष में सुधार हो सकता है।
  4. मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation of Currency)-एक देश को घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन करना चाहिए। अवमूल्यन का अर्थ है किसी देश की मुद्रा का मूल्य दूसरे देशों की मुद्रा की तुलना में कम करना होता है। इससे विदेशी लोग इस देश की वस्तुओं तथा सेवाओं की अधिक खरीददारी करते हैं। इससे भुगतान असन्तुलन ठीक हो जाता है। परन्तु यह स्थिर विनिमय दर प्रणाली में ही सम्भव होता है।

5. मुद्रा की मूल्य कमी (Depreciation of Currency)-देश की मुद्रा की ख़रीद शक्ति को कम करने की प्रक्रिया को मुद्रा की मूल्य कमी कहा जाता है। यह परिवर्तनशील विनिमय दर प्रणाली में सम्भव होता है। यहां पर विनिमय दर माँग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इससे निर्यात को प्रोत्साहन प्राप्त होता है और आयात कम हो जाता है।

6. मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Control Over Inflation)-जब किसी देश के कीमत स्तर में वृद्धि होती है तो उस देश की वस्तुओं की माँग विदेशों में कम हो जाती है, इसलिए स्फीति के स्तर को कम करके निर्यात में वृद्धि करनी चाहिए। इससे भुगतान असन्तुलन ठीक हो जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

v. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
व्यापार का घाटा ₹ 5000 करोड़ है। आयात का मूल्य ₹ 9000 करोड़ है तो निर्यात का मूल्य ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यापार का घाटा = ₹5000 करोड़, आयात
= ₹ 9000 करोड़ व्यापार का घाटा = निर्यात – आयात
= (-) 5000 = निर्यात –9000
= (-) 5000 + 9000 = निर्यात
निर्यात = ₹4000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
व्यापार शेष का घाटा ₹ 300 करोड़ है। निर्यात का मूल्य ₹ 500 करोड़ है। आयात का मूल्य ज्ञात करो।
उत्तर-
व्यापार शेष का घाटा = ₹ 300 करोड़, निर्यात = ₹ 500 करोड़
व्यापार शेष का घाटा = निर्यात – आयात
(-) 300 = 500 – आयात
आयात = 500 + 300
= ₹ 800 करोड़ उत्तर

प्रश्न 3.
एक देश का निर्यात ₹ 10,000 करोड़ है। आयात ₹ 12,000 करोड़ है। व्यापार शेष ज्ञात करो।
उत्तर –
व्यापार शेष = निर्यात – आयात
= 10,000 – 12,000
= (-) ₹ 2000 करोड़
व्यापार शेष का घाटा = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 4.
एक देश का आयात मूल्य ₹ 70050 करोड़ है। निर्यात मूल्य ₹ 85025 करोड़ है। व्यापार सन्तुलन ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
= 85025 – 70050 = ₹ 14975 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
यदि व्यापार बाकी (-) ₹600 करोड़ है और निर्यात की कीमत ₹ 500 करोड़ है तो आयत की कीमत पता कीजिए।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात – आयात
-600 = 500 – आयात – 600 – 500 = – आयात
-1100 = – आयात
आयात की कीमत = ₹ 1100 करोड़ उत्तर

प्रश्न 6.
यदि व्यापार बाकी (-) ₹ 900 करोड़ है और निर्यात की कीमत ₹600 करोड़ है तो आयात की कीमत पता कीजिए।
उत्तर –
व्यापार बाकी = निर्यात की कीमत – आयात की कीमत
– 900 = 600 – आयात की कीमत
– 900 – 600 = – आयात की कीमत
– 1500 = – आयात की कीमत
आयात की कीमत = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 7.
यदि व्यापार बाकी (-) ₹ 1000 करोड़ है और निर्यात की कीमत ₹ 600 करोड़ है तो आयात की कीमत पता कीजिए।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात की कीमत – आयात की कीमत
(-) 1000 = 600 – आयात की कीमत
– 1000 – 600 = – आयात की कीमत
– 1600 = – आयात की कीमत
आयात की कीमत = ₹ 1600 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
यदि व्यापार बाकी ₹ 800 करोड़ का घाटा दर्शाता है। निर्यात की कीमत ₹ 900 करोड़ है तो आयात की कीमत ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात – आयात
– 800 = 900 – आयात
– 800 – 900 = – आयात
– 1700 = – आयात
आयात = ₹ 1700 करोड़ उत्तर

प्रश्न 9.
यदि व्यापार बाकी ₹ 1600 करोड़ का घाटा दर्शाता है। निर्यात की कीमत ₹ 1800 करोड़ है तो आयात की कीमत पता करें।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात – आयात
– 1600 = 1800 – आयात
– 1600 – 1800 = – आयात
– 3400 = – आयात
आयात = ₹ 3400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
व्यापार शेष ₹ 1200 करोड़ का घाटा दर्शाता है। यदि निर्यात की कीमत ₹ 1100 करोड़ है तो आयात की कीमत पता करें।
उत्तर-
व्यापार शेष = निर्यात – आयात
– 1200 = 1100 – आयात
– 1200 – 1100 = – आयात
– 2300 = – आयात
आयात = ₹ 2300 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 11.
जब निर्यातों का मूल्य आयातों के मूल्य से ……….. होता है तो व्यापार शेष पक्ष का होगा।
उत्तर-
अधिक।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 12.
जब निर्यातों का मूल्य आयातों के मूल्य से ………… होता है तो व्यापार शेष प्रतिकूल होगा।
उत्तर-
कम।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

PSEB 12th Class Economics सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बजट एक वित्तीय वर्ष दौरान सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 2.
बजट के कोई दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर-

  • संसाधनों का पुनः वितरण
  • आय तथा धन का समान वितरण।

प्रश्न 3.
बजट के मुख्य अंश बताओ।
अथवा
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में अन्तर बताओ।
उत्तर-
बजट के मुख्य दो अंश होते हैं-

  1. राजस्व बजट-इसमें आय प्राप्तियां तथा आय व्यय को शामिल किया जाता है, जोकि सरकार को भिन्न-भिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है।
  2. पूंजीगत बजट-इसमें पूंजीगत प्राप्तियां तथा पूंजीगत व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 4.
आय मदें क्या हैं ?
उत्तर-
आय मदों से अभिप्राय सरकार को प्राप्त होने वाली सब साधनों से आय से होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 5.
सरकारी आय के मुख्य अंश बताओ।
उत्तर-
सरकारी आय के मुख्य दो अंश होते हैं

  • कर प्राप्तियां
  • गैर-कर प्राप्तियां।

प्रश्न 6.
कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कर एक कानूनो भुगतान है जोकि एक देश के निवासी सरकार को अदा करते हैं ताकि सरकार संयुक्त उद्देश्यों की पूर्ति कर सके।

प्रश्न 7.
कर आय को परिभाषित करो।
उत्तर-
कर आय- कर आय एक अनिवार्य भुगतान होता है, जोकि एक देश के लोग सरकार को अदा करते हैं।

प्रश्न 8.
गैर कर आप से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गैर कर आय-और-कर आय अनिवार्य भुगतान नहीं है। यह आय लोगों को वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान करके प्राप्त की जाती है। गैर-कर आय तथा लाभ का सीधा सम्बन्ध होता है, जैसे कि ब्याज द्वारा आय, लाभ तथा लाभांश।

प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जोकि बदली नहीं किया जा सकता। जितने मनुष्यों पर कर . लगाया जाता है, उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 10.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष कर-अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जिसका भार बदली किया जा सकता है, जैसे कि बिक्री कर। यह कर दुकानदारों पर लगता है, परन्तु इसका भार ग्राहकों को सहन करना पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 11.
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर की दो-दो उदाहरणे दीजिए।
उत्तर-
(i) प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर जिन मनुष्यों पर लगता है, उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है, जैसे कि

  • आय कर
  • निगम कर।

(ii) अप्रत्यक्ष कर-यह कर वस्तुओं तथा सेवाओं पर लगता है तथा इस कर का भार बदली किया जा सकता है जैसे कि

  • बिक्री कर
  • उत्पादन कर।

प्रश्न 12.
प्रगतिशील कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रगतिशील कर वह कर है जिसमें आय बढ़ने के साथ कर की दर बढ़ जाती है।

प्रश्न 13.
प्रतिगामी कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रतिगामी कर वह कर है जिनमें आय बढ़ने के साथ कर की दर कम हो जाती है।

प्रश्न 14.
आनुपातिक कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आनुपातिक कर वह कर है जिसमें आय बढ़ने से कर की दर समान रहती है।

प्रश्न 15.
कर, पूंजी प्राप्ति क्यों नहीं है ?
उत्तर-
कर इसलिए पूंजी प्राप्ति नहीं है क्योंकि इससे न तो सरकार की देनदारी में वृद्धि होती है तथा न ही सरकार के भण्डार में कमी होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 16.
ऋण की वापसी को पूंजी प्राप्ति क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति से अभिप्राय वह प्राप्तियां हैं जोकि देनदारी में वृद्धि करती हैं अथवा परिसम्पत्तियों में कमी करती हैं।

प्रश्न 17.
पूंजी प्राप्तियों में कौन-सी मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्तियों में मुख्य तौर पर-

  1. सरकार द्वारा प्राप्त किए गए उधार
  2. सार्वजनिक उद्यमों अथवा परिसम्पत्तियों के विनिवेश द्वारा आय
  3. सरकार द्वारा जो ऋण दिया गया था, उस ऋण की वापसी इत्यादि पूंजी प्राप्तियां हैं।

प्रश्न 18.
उधार को पूंजी प्राप्तियां क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति वे प्राप्तियां होती हैं जोकि

  • सरकार की देनदारी में वृद्धि करती हैं
  • इनसे सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी होती है। इसलिए उधार को पूंजी प्राप्ति कहा जाता है।

प्रश्न 19.
सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
सार्वजनिक व्यय को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था 1

प्रश्न 20.
राजस्व व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजस्व व्यय-राजस्व व्यय वह व्यय है जो सरकार की देनदारियों में कमी नहीं करते तथा न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं, जैसे कि ब्याज का भुगतान तथा आर्थिक सहायता कानून तथा व्यवस्था पर व्यय इत्यादि।

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प्रश्न 21.
पूंजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजीगत व्यय-पूंजीगत व्यय वह व्यय है, जो सरकार की देनदारियों में कमी करते हैं तथा सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं, जैसे कि सरकारी भवनों का निर्माण अथवा ऋण की वापसी, सड़कें तथा डैमों का निर्माण।

प्रश्न 22.
नियोजन व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजन व्यय-देश द्वारा तैयार की गई वार्षिक योजना अनुसार जो व्यय किया जाता है, उसको योजना व्यय कहा जाता है।

प्रश्न 23.
गैर-नियोजन व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गैर-नियोजन व्यय-सरकार द्वारा तैयार की गई वार्षिक योजना के बिना सरकार द्वारा जो अन्य व्यय किया जाता है उसको गैर-नियोजन व्यय कहा जाता है।

प्रश्न 24.
ब्याज के भुगतान को राजस्व व्यय क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
ब्याज के भुगतान को राजस्व व्यय कहा जाता है, क्योंकि इससे ब्याज देने वाले की देनदारी में कमी नहीं होती, क्योंकि मूलधन का भार उस पर रहता है।

प्रश्न 25.
सबसिडी को राजस्व व्यय क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
सरकार विभिन्न उद्यमियों तथा विभिन्न वर्ग के लोगों को सबसिडी के रूप में सहायता करती है। इसको राजस्व व्यय कहा जाता है।

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प्रश्न 26.
विकासवादी व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विकासवादी व्यय वह व्यय होता है, जिसका सम्बन्ध देश के आर्थिक विकास से होता है।

प्रश्न 27.
गैर-विकासशील व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
और-विकासशील व्यय वह व्यय है जो सरकार देश में गैर-विकासशील परन्तु अनिवार्य कार्यों पर व्यय करती है।

प्रश्न 28.
बजट घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार का कुल अनुमानित व्यय सरकार की कुल वार्षिक प्राप्तियों से अधिक है तो इसको बजट का घाटा कहा जाता है।

प्रश्न 29.
राजकोषीय घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार के कुल व्यय में से यदि राजस्व प्राप्तियों तथा ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियों को बगैर उधार के घटा दिया जाए तो शेष राशि को राजकोषीय घाटा कहा जाता है।
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के) |
अथवा
राजकोषीय घाटा = उधार तथा अन्य देनदारियां

प्रश्न 30.
प्राथमिक घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक घाटे से अभिप्राय है राजकोषीय घाटे में से यदि ब्याज भुगतान को घटा दिया जाए तो शेष राशि को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान|

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प्रश्न 31.
राजस्व घाटे तथा राजकोषीय घाटे में अंतर बताओ।
उत्तर

  • राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां
  • राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के)

प्रश्न 32.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सरकार का अनुमानित व्यय अधिक होता है तथा अनुमानित प्राप्तियां कम होती हैं तो ऐसे बजट को घाटे का बजट कहा जाता है।

प्रश्न 33.
सन्तुलित बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ऐसा बजट जिसमें सरकार का अनुमानित व्यय सरकार की अनुमानित आय के समान होता है तो ऐसे बजट को सन्तुलित बजट कहा जाता है।

प्रश्न 34.
वृद्धि के बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह बजट जिसमें सरकार की आय, सरकार के व्यय से अधिक होती है, ऐसे बजट को वृद्धि का बजट कहा जाता है।

प्रश्न 35.
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था दो तरह से की जाती है-

  • उधार (Borrowing)
  • नई करन्सी छापकर (Printing New Currency)।

प्रश्न 36.
जब आय में वृद्धि के कारण कर की दर में वृद्धि होती है तो इसको ………….. कहते हैं।
(क) आनुपातिक कर
(ख) प्रगतिशील कर
(ग) मूल्य वृद्धि कर
(घ) विशिष्ट कर।
उत्तर-
(ख) प्रगतिशील कर।

प्रश्न 37.
जब आय में परिवर्तन होने से कर की दल में तबदीली नहीं होती तो उस कर को ……….. कहते
(क) प्रगतिशील कर
(ख) आनुपातिक कर
(ग) विशिष्ट कर
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) आनुपातिक कर।

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प्रश्न 38.
जब वह कर जिस का भुगतान उस व्यक्ति को करना पड़ता है जिस पर यह कर लगाया जाता है तो इसको ………….. कहते हैं।
(क) अप्रत्यक्ष कर
(ख) प्रत्यक्ष कर
(ग) मूल्य वृद्धि कर
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(क) अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 39.
पूँजीगत बजट किसको कहते हैं ?
उत्तर-
सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों और पूँजीगत व्यय के विवरण को पूँजीगत बजट कहते हैं।

प्रश्न 40.
राजस्व बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजस्व बजट वह बजट है जिसमें राजस्व प्राप्तियों तथा राजस्व व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 41.
निम्नलिखित में से कौन सा प्रत्यक्ष कर है?
(a) बिक्री कर
(b) वैट
(c) आय कर
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) आय कर।

प्रश्न 42.
निम्नलिखित में से कौन सा अप्रत्यक्ष कर है?
(a) सम्पत्ति कर
(b) आबकारी कर
(c) आय कर
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) आबकारी कर।

प्रश्न 43.
जब राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है तो इस स्थिति को ………………….. कहते हैं।
(a) राजकोषीय घाटा
(b) राजस्व घाटा
(c) राजस्व व्यय
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) राजस्व घाटा।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 44.
यदि आयात की कीमत निर्यात की कीमत से अधिक हो तो देश का व्यापार बाकी ……….. होता
(a) प्रतिकूल
(b) सन्तुलित
(c) दोनों
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) प्रतिकूल।

प्रश्न 45.
जब कुल व्यय कुल प्राप्तियों से अधिक हो तो इस हालत को ………. कहते हैं।
(a) राजस्व घाटा
(b) राजकोषीय घाटा
(c) बजट घाटा
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(c) बजट घाटा।

प्रश्न 46.
मूल्य वृद्धि कर (VAT) से क्या अभिप्राय है।
उत्तर–
प्रत्येक फर्म द्वारा वस्तु और सेवा की लागत से अधिक निर्धारित कीमत अर्थात् मूल्य वृद्धि पर लगाए गए कर को मूल्य वृद्धि कर कहते हैं।

प्रश्न 47.
सरकारी बजट एक निजी वर्ष में सरकार की ………. आय और व्यय का विवरण है।
उत्तर-
अनुमानित।

प्रश्न 48.
इन में से कौन सा प्रत्यक्ष कर है ?
(a) आय कर
(b) बिक्री कर
(c) वैट
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) आय कर।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बजट एक वित्तीय वर्ष दौरान सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है। भारत में सरकारी बजट फरवरी महीने के आखिरी दिन संसद् में पेश किया जाता है। यह बजट सरकार को 1 अप्रैल से 31 मार्च तक के समय की आय तथा व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 2.
बजट के कोई दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर-

  1. संसाधनों का पुनः वितरण-सरकारी बजट का मुख्य उद्देश्य संसाधनों का वितरण इस प्रकार करने से होता है ताकि आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जा सके।
  2. आय तथा धन का समान वितरण-सरकारी बजट देश में आय तथा धन का समान वितरण करने का स होता है।

प्रश्न 3.
बजट के मुख्य अंश बताओ।
अथवा
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में अन्तर बताओ।
उत्तर-
बजट के मुख्य दो अंश होते हैं –

  • राजस्व बजट- इसमें आय प्राप्तियां तथा आय व्यय को शामिल किया जाता है, जोकि सरकार को भिन्न भिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है।
  • पूंजीगत बजट-इसमें पूंजीगत प्राप्तियां तथा पूंजीगत व्यय का विवरण होता है।

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प्रश्न 4.
कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कर एक अनिवार्य भुगतान है जोकि एक देश के निवासी सरकार को अदा करते हैं ताकि सरकार संयुक्त उद्देश्यों की पूर्ति कर सके। कर देकर किसी सेवा की मांग नहीं की जा सकती। कर का भुगतान कानूनी तौर पर अनिवार्य होता है। कर न देने वाले मनुष्य अथवा संस्था को सज़ा भी हो सकती है।

प्रश्न 5.
कर तथा गैर-कर आय को परिभाषित करो।
उत्तर-

  • कर आय-कर आय एक अनिवार्य भुगतान होता है, जोकि एक देश के लोग सरकार को अदा करते हैं। कर देने तथा लाभ का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता, जैसे कि आय कर, बिक्री कर इत्यादि।
  • गैर-कर आय-गैर-कर आय अनिवार्य भुगतान नहीं है। यह आय लोगों को वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान करके प्राप्त की जाती है। गैर-कर आय तथा लाभ का सीधा सम्बन्ध होता है, जैसे कि ब्याज द्वारा आय, लाभ तथा लाभांश।

प्रश्न 6.
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  1. प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जोकि बदली नहीं किया जा सकता। जितने मनुष्यों पर कर लगाया जाता है, उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है।
  2. अप्रत्यक्ष कर–अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जिसका भार बदली किया जा सकता है, जैसे कि बिक्री कर। यह कर दुकानदारों पर लगता है, परन्तु इसका भार ग्राहकों को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 7.
कर, पूंजी प्राप्ति क्यों नहीं है ?
उत्तर-
कर इसलिए पूंजी प्राप्ति नहीं है क्योंकि इससे न तो सरकार की देनदारी में वृद्धि होती है तथा न ही सरकार के भण्डार में कमी होती है। पंजी प्राप्ति से सरकार की देनदारी अधिक होती है तथा भण्डार में कमी होती है, परन्तु कर से पूंजी प्राप्ति की दो विशेषताएं लागू नहीं होती।

प्रश्न 8.
ऋण की वापसी को पूंजी प्राप्ति क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति से अभिप्राय वह प्राप्तियां हैं जोकि देनदारी में वृद्धि करती हैं अथवा परिसम्पत्तियों में कमी करती हैं। सरकार द्वारा दिया गया ऋण, सरकार की परिसम्पत्ति होती है। जब ऋण की वापसी होती है तो सरकारी परिसम्पत्तियों में कमी होती है। इसलिए इसको पूंजी प्राप्ति कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पूंजी प्राप्तियों में कौन-सी मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्तियों में मुख्य तौर पर-

  1. सरकार द्वारा प्राप्त किए गए उधार
  2. सार्वजनिक उद्यमों अथवा परिसम्पत्तियों के विनिवेश द्वारा आय
  3. सरकार द्वारा जो ऋण दिया गया था, उस ऋण की वापसी इत्यादि पूंजी प्राप्तियां हैं। पूंजी प्राप्तियों से सरकार की देनदारी बढ़ती है अथवा सरकारी परिसम्पत्तियों में कमी होती है।

प्रश्न 10.
उधार को पूंजी प्राप्तियां क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति वे प्राप्तियां होती हैं जोकि-

  • सरकार की देनदारी में वृद्धि करती हैं
  • इनसे सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी होती है।

जब सरकार देश में से अथवा विदेशों में से उधार प्राप्त करती है तो इससे सरकार की देनदारी बढ़ जाती है क्योंकि प्राप्त किए उधार को ब्याज समेत करने की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है। इसलिए उधार को पूंजी प्राप्ति कहा जाता है।

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प्रश्न 11.
सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
सार्वजनिक व्यय को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था 2

प्रश्न 12.
राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय की दो-दो उदाहरणे दीजिए।
उत्तर-

  • राजस्व व्यय-राजस्व व्यय वह व्यय है जो सरकार की देनदारियों में कमी नहीं करते तथा न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं। जैसे कि ब्याज का भुगतान तथा आर्थिक सहायता कानून तथा व्यवस्था पर व्यय इत्यादि।
  • पूंजीगत व्यय-पूंजीगत व्यय वह व्यय है, जो सरकार की देनदारियों में कमी करते हैं तथा सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं। जैसे कि सरकारी भवनों का निर्माण अथवा ऋण की वापसी, सड़कें तथा डैमों का निर्माण।

प्रश्न 13.
बजट घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार वित्तीय वर्ष के लिए वार्षिक बजट का निर्माण करती है। इसमें वर्ष की अनुमानित प्राप्तियों तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है। यदि सरकार का कुल अनुमानित व्यय सरकार की कुल वार्षिक प्राप्तियों से अधिक है तो इसको बजट का घाटा कहा जाता है।

प्रश्न 14.
राजकोषीय घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार के कुल व्यय में से यदि राजस्व प्राप्तियों तथा ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियों को बगैर उधार के घटा दिया जाए तो शेष राशि को राजकोषीय घाटा कहा जाता है।
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के)
अथवा
राजकोषीय घाटा = उधार तथा अन्य देनदारियां

प्रश्न 15.
प्राथमिक घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक घाटे से अभिप्राय है राजकोषीय घाटे में से यदि ब्याज भुगतान को घटा दिया जाए तो शेष राशि को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान

प्रश्न 16.
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था दो तरह से की जाती है-

  • उधार (Borrowing)-घाटे के बजट को पूरा करने के लिए सरकार बाज़ार में जनता, व्यापारिक बैंकों अथवा केन्द्रीय बैंक से उधार लेती है।
  • नई करेन्सी छापकर (Printing New Currency)-घाटे के बजट की पूर्ति यदि उधार द्वारा न हो तो सरकार नई करेन्सी छापकर घाटे के बजट की पूर्ति करती है।

प्रश्न 17.
सरकारी व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकारी व्यय का अर्थ (Meaning of Public Expenditure)-सरकारी व्यय से अभिप्राय एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा किए गए आनुपातिक व्यय से होता है। सार्वजनिक व्यय द्वारा सरकार लोगों की आर्थिक तथा सामाजिक भलाई में वृद्धि करने का प्रयत्न करती है। इससे आर्थिक उतार-चढ़ाव पर नियन्त्रण किया जाता है। देश के आर्थिक विकास में तेजी लाने के उद्देश्य की पूर्ति की जाती है। इसलिए सरकारी व्यय राष्ट्रीय हित के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा किए गए व्यय से होता है जोकि एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा व्यय किया जाता है।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बजट के कोई चार उद्देश्य बताओ।
उत्तर-
सरकार की वार्षिक वित्तीय अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय के विवरण को बजट कहा जाता है। सरकारी बजट के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. संसाधनों का पुन:वितरण-सरकारी बजट का उद्देश्य देश के संसाधनों का वितरण इस प्रकार करने से होता है, आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण प्राप्त करना भी होता है।
  2. आय तथा धन का समान वितरण-बजट का उद्देश्य देश में आय तथा धन का समान वितरण करना होता है। इससे देश में अमीर तथा गरीब का अन्तर कम हो जाता है।
  3. आर्थिक स्थिरता-बजट का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता प्राप्त करना भी होता है। इससे मन्दीकाल तथा तेज़ीकाल की अवस्थाओं को नियन्त्रण में किया जाता है।
  4. निर्धनता तथा बेरोज़गारी को दूर करना-बजट द्वारा निर्धनता तथा बेरोजगारी को घटाने के उद्देश्य की पूर्ति भी की जाती है। इससे निर्धनता की समस्या का हल किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में क्या अन्तर होता है ?
उत्तर-
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में अन्तर –

अंतर का आधार राजस्व बजट पूंजीगत बजट
1. प्राप्तियां राजस्व बजट में राजस्व प्राप्तियों का विवरण होता है। पूंजीगत बजट में पूंजीगत प्राप्तियों का विवरण होता है।
2. व्यय राजस्व बजट में राजस्व व्यय का विवरण होता है। पूंजीगत बजट में पूंजीगत व्यय का विवरण होता है।
3. देनदारियां राजस्व प्राप्तियों से सरकार पर कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती। कर द्वारा प्राप्त आय से कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती तथा राजस्व व्यय सरकार की देनदारी को कम नहीं करते। पूंजीगत प्राप्ति से सरकार पर देनदारी उत्पन्न होती है। उधार लेने से देनदारी उत्पन्न होती है तथा पूंजीगत व्यय सरकार की देनदारी को कम करते हैं।
4. परिसम्पत्तियां राजस्व प्राप्ति से सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी नहीं होती, राजस्व व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं होता है। पूंजीगत प्राप्तियों से सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी नहीं होती, पूंजीगत व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में अन्तर –

अन्तरका आधार प्रत्यक्ष कर अप्रत्यक्ष कर
1. कर लाभ तथा कर भार प्रत्यक्ष कर जिस मनुष्य पर लगाया जाता है, कर का भार भी उसी मनुष्य को सहन करना पड़ता है, जैसे कि आयकर। अप्रत्यक्ष कर एक मनुष्य पर लगाया जाता है, कर का भार किसी अन्य मनुष्य को सहन करना पड़ता है, जैसे कि बिक्री कर।
2. कर बदली प्रत्यक्ष कर की बदली (shifting) नहीं की जा सकती। अप्रत्यक्ष कर की बदली (shifting) की जा सकती है।
3. कर की दर प्रत्यक्ष कर साधारण तौर पर प्रगतिशील होते हैं। आय में वृद्धि होने से कर की दर बढ़ती जाती है। अप्रत्यक्ष कर साधारण तौर पर आनुपातिक होते हैं। आय अधिक अथवा कम होने की स्थिति में कर की दर समान रहती है।
4. वास्तविक भार प्रत्यक्ष कर का वास्तविक भार अमीर लोगों से अधिक होता है। अप्रत्यक्ष कर का वास्तविक भार गरीब लोगों से अधिक होता है।

प्रश्न 4.
प्रगतिशील कर, आनुपातिक कर तथा प्रतिगामी कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  1. प्रगतिशील कर-प्रगतिशील कर वह कर होता है, जिसमें आय के बढ़ने से कर की दर बढ़ती जाती है। इस कर का भार गरीबों पर बहुत कम तथा अमीर लोगों पर अधिक होता है। प्रत्यक्ष कर साधारण तौर पर प्रगतिशील कर होते हैं।
  2. आनुपातिक कर-आनुपातिक कर वह कर होता है, जिसमें आय के बढ़ने अथवा घटने से कर की दर समान रहती है, जैसे कि बिक्री कर में कर की दर समान होती है। इस कर का वास्तविक भार गरीब लोगों पर अधिक होता है।
  3. प्रतिगामी कर-प्रतिगामी कर वह कर है जिसमें आय के बढ़ने से कर की दर घटती जाती है। ऐसे कर का भार अमीर लोगों पर कम तथा निर्धन लोगों पर अधिक होता है। इन करों को एक चार्ट की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।

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प्रश्न 5.
राजस्व प्राप्तियां तथा पूंजीगत प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है ? इनमें अन्तर स्पष्ट करो।
अथवा
किस आधार पर राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों के बीच सरकारी बजट में अन्तर किया जा सकता है ?
उत्तर-
1. राजस्व प्राप्तियां-राजस्व प्राप्तियां वे प्राप्तियां होती हैं, जिनसे सरकार की देनदारियाँ उत्पन्न नहीं होती तथा न ही परिसम्पत्तियों (Assets) में कमी होती है। इसके दो अंश हैं-

  • कर प्राप्तियां जैसे कि आय कर, निगम कर, बिक्री कर इत्यादि
  • गैर-कर प्राप्तियां जैसे कि ब्याज, लाभ, लाभांश तथा विदेशी सहायता इत्यादि।

2. पूंजीगत प्राप्तियां-पूंजीगत प्राप्तियां वे प्राप्तियां होती हैं, जिनसे सरकार की देनदारियां उत्पन्न होती हैं तथा परिसम्पत्तियों में कमी होती है, जैसे कि उधार (Borrowings) तथा ऋण की प्राप्ति, विनिवेश द्वारा प्राप्तियां इत्यादि। राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों में अन्तर राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों में मुख्य तौर पर यह अन्तर होता है कि राजस्व प्राप्तियों से सरकार की देनदारियां उत्पन्न नहीं होतीं। सरकार की परिसम्पत्तियों में भी कोई कमी नहीं होती। दूसरी ओर पूंजीगत प्राप्तियों से सरकार की देनदारियों में वृद्धि होती है तथा परिसम्पत्तियों में कमी हो जाती है।

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प्रश्न 6.
राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है ? इनमें अन्तर को स्पष्ट करो।
अथवा
किस आधार पर राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय के बीच सरकारी बजट में अन्तर किया जा सकता है ?
उत्तर-

  1. राजस्व व्यय-राजस्व व्यय वे व्यय होता है, जिस द्वारा न तो देनदारियों में कमी होती है तथा न ही परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है। उदाहरणस्वरूप सरकार का अनुशासन पर व्यय, कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने पर व्यय, सेना पर व्यय।
  2. पूंजीगत व्यय-पूंजीगत व्यय वह व्यय होता है, जिस द्वारा सरकार की देनदारियों में कमी होती है तथा परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है। उदाहरणस्वरूप, सड़कें, नहरें, डैम, बिजली इत्यादि का निर्माण अथवा सार्वजनिक ऋण की वापसी। राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय में अन्तर-राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय में मुख्य अन्तर यह होता है कि राजस्व व्यय द्वारा देनदारियों में कमी नहीं होती तथा न ही परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है। दूसरी ओर पूंजीगत व्यय में सरकार की देनदारियों में कमी होती है तथा परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 7.
विकासशील तथा गैर-विकासशील व्यय में अन्तर बताओ।
उत्तर-

  • विकासशील व्यय-विकासशील व्यय सरकार का वह व्यय होता है, जिस द्वारा देश का आर्थिक तथा सामाजिक विकास होता है, जैसे कि कृषि, उद्योगों, सेहत, शिक्षा, ग्रामीण विकास तथा भलाई इत्यादि पर किए गए व्यय को विकासशील व्यय कहा जाता है। विकासशील व्यय में अन्य मदें रेलें, डाकखाने, तार तथा संचार विभाग इत्यादि को भी शामिल किया जाता है।
  • गैर-विकासशील व्यय-गैर-विकासशील व्यय में सरकार द्वारा सेवाओं पर किए गए व्यय को शामिल किया जाता है, जैसे कि पुलिस, सुरक्षा, न्यायपालिका, अनुशासन, सहायता, कर एकत्रित करने के व्यय इत्यादि को शामिल किया जाता है। विकासशील तथा गैर-विकासशील व्यय में अन्तर-विकासशील तथा गैर-विकासशील व्यय में मुख्य अन्तर यह है कि विकासशील व्यय से राष्ट्रीय आय तथा उत्पादन में प्रत्यक्ष तौर पर वृद्धि होती है। इससे सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि होती है। दूसरी ओर गैर-विकासशील व्यय सरकार द्वारा साधारण सेवाएं प्रदान करने पर व्यय किया जाता है। इस व्यय से राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि प्रत्यक्ष तौर पर नहीं होती। यह केवल विकास की वृद्धि में सहायक तत्त्व होता है।

प्रश्न 8.
राजकोषीय घाटे का अर्थ तथा महत्त्व स्पष्ट करो।
उत्तर-
राजकोषीय घाटा किसी देश में कुल व्यय में से राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों (बगैर उधार के) के योग को घटाने से प्राप्त होता है।
Fiscal Deficit = Total Expenditure – (Revenue Receipts + Capital Receipts excluding Borrowings)
इसमें महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राजकोषीय घाटे में हम उधार को लेखे-जोखे में नहीं लेते जो कि पूंजीगत प्राप्तियों का हिस्सा होता है। सरकार की कुल प्राप्तियों में राजस्व प्राप्तियों तथा गैर उधार पूंजीगत प्राप्तियों को शामिल किया जाता है। गैर उधार पूंजीगत प्राप्तियों में ऋण की वापसी तथा विनिवेश से आय को जोड़ते हैं। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि
Fiscal Deficit = Borrowings Requirements of the Government
महत्त्व-राजकोषीय घाटा एक देश की सरकार की वित्तीय वर्ष में उधार आवश्यकताओं को स्पष्ट करता है। (Significance or Implications)

प्रश्न 9.
राजस्व घाटे से क्या अभिप्राय है ? राजस्व घाटे के महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
राजस्व घाटे से अभिप्राय सरकार के कुल राजस्व व्यय तथा कुल राजस्व प्राप्तियों का अन्तर होता है।
Revenue Deficit =Total Revenue Expenditure – Total Revenue Receipts
उदाहरणस्वरूप भारत सरकार के वार्षिक बजट 2005-06 में कुल राजस्व व्यय ₹ 446512 करोड़ तथा कुल राजस्व प्राप्तियां ₹ 351200

करोड़ थीं। इस प्रकार राजस्व घाटा ₹ 95312 करोड़ हैं। महत्त्व (Significance or Implications) –

  • बचतों में कमी-राजस्व घाटे सरकार की बचतों में कमी को प्रकट करता है। इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार को उधार लेना पड़ता है अथवा भण्डारों की बिक्री करनी पड़ती है।
  • मुद्रा स्फीति-सरकार द्वारा प्राप्त किया उधार उपभोग व्यय के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसलिए देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रश्न 10. योजना खर्च और गैर-योजना खर्च में अन्तर स्पष्ट करें।

उत्तर-योजना खर्च (Plan Expenditure)-यह खर्च योजना आयोग की स्वीकृति से सरकार व्यय करती है। योजना आयोग, योजना काल के लिए खर्च करने के निश्चित निर्देश जारी करता है। इसमें केन्द्र सरकार की योजनाओं का विवरण होता है, राज्य तथा केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का विवरण भी होता है।

गैर-योजना खर्च (Non Plan Expenditure)-और-योजना खर्च वह व्यय है जोकि योजना के व्यय के बिना कार्य की पूर्ति करता है गैर-योजना खर्च, योजना खर्च के बगैर शेष सभी प्रकार के खर्च होते हैं।

प्रश्न 11.
घाटे की वित्त पूर्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घाटे की वित्त पूर्ति कैसे की जाती है। इसके मुख्य ढंग इस प्रकार हैं-

  1. मुद्रा विस्तार (Monetary Expansion)-इस ढंग अनुसार सरकार घाटे (Deficit) को पूरा करने के लिए घाटे की राशि के समान नए नोट छाप लेती है। इस विधि में देश की सरकार खज़ाना बिल केन्द्रीय बैंक को देकर उसके बदले में नकद मुद्रा प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार घाटे को पूरा किया जा सकता है।
  2. जनता से उधार (Borrowing from the Public)-घाटे की वित्त पूर्ति का दूसरा महत्त्वपूर्ण ढंग सरकार लोगों से उधार प्राप्त कर लेती है। बाज़ार में सरकार लोगों को उधार देने के लिए कहती है तो लोग सरकार की प्रतिभूतियां ब्रांड इत्यादि खरीद लेते हैं। इनको बाज़ार ऋण कहा जाता है।

प्रश्न 12.
कर की परिभाषा दें। कर की विभिन्न किस्में बताएँ।
उत्तर-
कर का अर्थ-कर कानूनी तौर पर लाज़मी भुगतान है जो कि देश की सरकार द्वारा लोगों की आय अथवा जायदाद पर लगाया जाता है। यह कंपनियों के उत्पादन पर भी लगता है, परन्तु इसके बदले में लाभ प्रदान करना अनिवार्य नहीं होता।

कर की किस्में (Types of Taxes)
1. प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर-

  • प्रत्यक्ष कर वह कर होते हैं जो कि जिन व्यक्तियों पर लगाए जाते हैं कर का भार भी उन व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है। यह कर और व्यक्तियों अथवा संस्थाओं पर बदली नहीं किये जा सकते।
  • अप्रत्यक्ष कर वह कर हैं जो एक व्यक्ति पर लगाए जाते हैं, परन्तु उनका भार किसी और व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है।

2. प्रगतिशील, आनुपातिक और प्रतिगामी कर-

  • प्रगतिशील कर वह कर है जिनमें आय में वृद्धि से कर की दर में वृद्धि होती है।
  • आनुपातिक कर वह कर है जिन में आय में वृद्धि होने से कर की दर में कोई वृद्धि नहीं होती अथवा कर की दर सामान्य रहती है।
  • प्रतिगामी कर वह कर है जिन में आय में वृद्धि से कर की दर कम होने लगती है।

3. मूल्य वृद्धि और वज़न अनुसार कर –

  • मूल्य वृद्धि कर वह कर है जिन में वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने से, मूल्य वृद्धि की राशि पर लगाए जाते हैं।
  • वज़न अनुसार कर वह कर है जो कि वस्तुओं के नाप-तोल पर लगाए जाते हैं।

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प्रश्न 13.
राजस्व प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है? राजस्व प्राप्तियों के अंशों की व्याख्या करें।
उत्तर-
बजट प्राप्तियों का अर्थ (Meaning of Budget Receipts)-किसी वित्तीय वर्ष सरकार को प्राप्त होने वाली अनुमानित आय जोकि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, उसे बजट प्राप्तियां कहा जाता है। बजट प्राप्तियों के दो स्रोत हैं-
(1) राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)-राजस्व प्राप्तियों की दो विशेषताएं होती हैं

  • इन प्राप्तियों से सरकार की कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती।
  • इन प्राप्तियों से सरकारी भण्डारों में कोई कमी उत्पन्न नहीं होती। राजस्व प्राप्तियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

1. कर प्राप्तियां (Tax Receipts)-सरकार द्वारा लगाए गए करों द्वारा जो आय प्राप्त होती है, उसको कर प्राप्तियां कहा जाता है। कर (Tax) एक अनिवार्य भुगतान होता है जोकि एक देश के निवासी बिना किसी प्रतिफल की आशा से अदा करते हैं। कर की विशेषताएं हैं-

  • यह अनिवार्य भुगतान होता है।
  • कर तथा लाभ में कोई-सीधा सम्बन्ध नहीं होता।
  • कर लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है।
  • कर के पीछे कानून व्यवस्था होती है।
  • कर देना, व्यक्ति की निजी ज़िम्मेदारी होती है।

2. गैर कर प्राप्तियां (Non Tax Receipts) यह सरकार की वह प्राप्तियां हैं जो गैर कर साधनों से होती हैं। इन प्राप्तियों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं।

  • लाभ तथा लाभांश ।
  • फीस तथा जुर्माने।
  • विशेष कर
  • ब्याज
  • ग्रांट और तोहफे।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न माम। (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सरकारी बजट से क्या अभिप्राय है ? बजट के मुख्य उद्देश्य तथा अंश बताओ। (What is Government Budget ? Explain its main objectives and components.)
उत्तर-
सरकारी बजट का अर्थ (Meaning of Government Budget)-सरकारी बजट वार्षिक आय तथा व्यय का विवरण है जो आने वाले वर्ष के अनुमानों को प्रकट करता है। (“The budget is an annual statement of the estimated receipts and expenditures of the government over the fiscal year.”)
भारत में वार्षिक बजट 1 अप्रैल से अगले वर्ष 31 मार्च तक बनाया जाता है। बजट में पिछले वर्ष की प्राप्तियों का विवरण भी होता है, परन्तु आने वाले वर्ष में रखे गए उद्देश्यों की पूर्ति के लिए साधनों के प्रयोग सम्बन्धी नीति का निर्माण किया जाता है। इसमें आगामी वर्ष की सम्भावित आय तथा व्यय का विवरण होता है। बजट की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • सरकारी बजट सरकार की आय तथा व्यय का विवरण होता है।
  • बजट आने वाले वर्ष के अनुमानों से सम्बन्धित होता है।
  • सरकार कुछ उद्देश्यों को सामने रखकर बजट का निर्माण करती है।
  • अनुमानित आय तथा व्यय को प्रकट किया जाता है।
  • सरकारी बजट को सरकार की स्वीकृति लेनी अनिवार्य होती है। .

सरकारी बजट के उद्देश्य (Objectives of Government Budget)-सरकार बजट का निर्माण करते समय कुछ उद्देश्यों को ध्यान में रखती है। बजट के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखितानुसार हैं-
1. संसाधनों का पुनःवितरण (Reallocation of Resources)-सरकारी बजट का उद्देश्य देश के संसाधनों का वितरण इस प्रकार करने से होता है, जिससे आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण भी प्राप्त किया जा सके। इसलिए आर्थिक विकास के उद्देश्य को पूरा करने के साथ-साथ सरकार यह भी ध्यान रखती है कि लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि हो।

2. आय तथा धन का समान वितरण (Equal distribution of Income and Wealth)-बजट द्वारा सरकार, आय तथा धन का समान वितरण का प्रयत्न करती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अमीर लोगों पर अधिक कर लगाए जाते हैं तथा गरीब लोगों को सहायता प्रदान करके उनकी आय में वृद्धि करने के प्रयत्न लिए जाते हैं। भारत में आर्थिक नियोजन का यह मुख्य उद्देश्य रहा है।

3. आर्थिक स्थिरता (Economic Stability)-सरकार व्यापारिक चक्रों (Trade Cycles) को नियन्त्रण करने का प्रयत्न करती है। अर्थव्यवस्था में मन्दीकाल तथा तेज़ीकाल की अवस्थाओं पर नियन्त्रण करके असन्तुलन स्थापित करने के प्रयत्न किए जाते हैं। बजट में करों की दर में परिवर्तन इस प्रकार किया जाता है, जिससे देश में आर्थिक स्थिरता स्थापित की जा सके।

4.निर्धनता तथा बेरोज़गारी को दूर करना (Eradication of Poverty and Unemployment)-भारत जैसे देशों में निर्धनता तथा बेरोज़गारी नज़र आती है। इसका मुख्य कारण देश में तीव्रता से बढ़ रही जनसंख्या होती है। बजट में ऐसी नीतियों का निर्माण किया जाता है, जिससे निर्धनता तथा बेरोज़गारी की समस्या का हल किया जा सके।

5. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबन्ध (Management of Public Entreprises) सरकार ऐसे उद्यम आरम्भ करती है, जिनमें प्राकृतिक एकाधिकारी (Natural Monopoly) हो। प्राकृतिक एकाधिकारी में बड़े पैमाने पर कार्य किया जाता है। इससे पैमाने की बचतें प्राप्त होती हैं। इससे उत्पादन लागत कम आती है। इसीलिए सरकार रेलवे, बिजली, डाकखाने इत्यादि उद्योगों में निवेश करके लोगों की सामाजिक भलाई में वृद्धि करने का प्रयत्न भी करती है।

बजट का प्रभाव (Impact of the Budget)-अर्थव्यवस्था के तीन स्तरों (Levels) पर बजट का प्रभाव पड़ता है-
1. कुल राजकोषीय अनुशासन (Aggregate Fiscal Discipline)—सरकार को व्यय का विवरण तैयार करते समय अपनी आय को ध्यान में रखना चाहिए। यदि सरकार अपनी आय से अधिक व्यय करती है तो घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाएगी। इससे देश में कीमत स्तर तीव्रता से बढ़ जाता है।

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2. संसाधनों का वितरण (Allocation of Resources)-सामाजिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर __संसाधनों का वितरण करना चाहिए। बजट का प्रभाव संसाधनों के वितरण के स्तर पर भी डालता है।

3. सरकारी सेवाएँ (Government Services)-सरकारी सेवाओं द्वारा भी अर्थव्यवस्था को बजट प्रभावित करता है। सरकार द्वारा प्रभावी तथा कुशल नीति का निर्माण करना चाहिए, जिस द्वारा सरकारी सेवाएं अच्छी तरह प्रदान की जा सकें तथा अर्थव्यवस्था में सामाजिक भलाई में वृद्धि हो। इस उद्देश्य के लिए सड़कें, नहरें, शिक्षा, सेहत सुविधाएं अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती हैं।

बजट के अंश (Components of the Budget) बजट को दो भागों में बांटा जा सकता है –
1. राजस्व बजट (Revenue Budget)
2. पूंजीगत बजट (Capital Budget)

1. राजस्व बजट (Revenue Budget)-राजस्व जट में प्राप्तियों तथा आय, व्यय का विवरण होता है। यह आय सरकार को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है तथा उस आय के व्यय का विवरण होता है।
2. पूंजीगत बजट (Capital Budget)-पूंजीगत बजट में पूंजीगत प्राप्तियों तथा दीर्घकाल के व्यय का विवरण होता है। इस प्रकार बजट की रचना के दो अंश होते हैं
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प्रश्न 2.
बजट प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है ? सरकारी प्राप्तियों को आय प्राप्तियों तथा पूँजीगत प्राप्तियों में किस आधार तथा वर्गों में वितरण किया जाता है ?
(What do you understand Budget Receipts ? What is the basis of classifying Government Receipts into Revenue Receipts and Capital Receipts ?)
अथवा
आय प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है ? आय प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों के अंश बताओ।
(What are Revenue Receipts and Capital Receipts ? Explain the components of Revenue Receipts and Capital Receipts.)
उत्तर-
बजट प्राप्तियों का अर्थ (Meaning of Budget Receipts)-किसी वित्तीय वर्ष सरकार को प्राप्त होने वाली अनुमानित आय जोकि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, उसे बजट प्राप्तियां कहा जाता है। बजट प्राप्तियां दो प्रकार की होती हैं-
1. राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)
2. पूंजीगत प्राप्तियां (Capital Receipts)
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राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)-राजस्व प्राप्तियों की दो विशेषताएं होती हैं

  • इन प्राप्तियों से सरकार की कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती।
  • इन प्राप्तियों से सरकारी भण्डारों में कोई कमी उत्पन्न नहीं होती।

राजस्व प्राप्तियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
1. कर प्राप्तियां (Tax Receipts)—सरकार द्वारा लगाए गए करों द्वारा जो आय प्राप्त होती है, उसको कर प्राप्तियां कहा जाता है। कर (Tax) एक अनिवार्य भुगतान होता है जोकि एक देश के निवासी बिना किसी प्रतिफल की आशा से अदा करते हैं।

कर की विशेषताएं हैं –

  • यह अनिवार्य भुगतान होता है।
  • कर तथा लाभ में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता।
  • कर लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है।
  • कर के पीछे कानूनी व्यवस्था होती है।
  • कर देना, व्यक्ति की निजी ज़िम्मेदारी होती है।

कर की किस्में (Types of Taxes)
(a) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर (Direct and Indirect Taxes)

  • प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह कर है जोकि जिन मनुष्यों पर लगाए जाते हैं, कर का भार भी उन मनुष्यों को ही सहन करना पड़ता है जैसे कि आय कर, जायदाद कर इत्यादि।
  • अप्रत्यक्ष कर-अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो लगाए तो एक मनुष्य पर जाते हैं, परन्तु इनका भार पूर्ण अथवा आंशिक तौर पर दूसरे मनुष्यों पर पाया जा सकता है।

(b) प्रगतिशील, आनुपातिक तथा प्रतिगामी कर (Progressive, Proportional and Regressive Tax)

  • प्रगतिशील कर-प्रगतिशील कर वह कर है, जिनमें आय के बढ़ने से कर की दर बढ़ती जाती है, जैसे कि एक लाख रुपये आय वाले को 5% तथा 2 लाख आय वाले व्यक्ति को 10% कर देना पड़े तो यह प्रगतिशील कर है।
  • आनुपातिक कर में आय के बढ़ने से कर की दर समान रहती है।
  • प्रतिगामी कर में आय के बढ़ने से कर की दर घटती जाती है।

(c) मूल्य वृद्धि तथा वज़न अनुसार कर (Advalorem and Specific Tax)

  • मूल्य वृद्धि कर (Value Added Tax)—वह कर है जोकि वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने से मूल्य वृद्धि की राशि पर लगाए जाते हैं।
  • वज़न अनुसार कर-वस्तुओं के नाप-तोल पर लगते हैं।

2. गैर-कर राजस्व प्राप्तियां (Non Tax Revenue Receipts)-यह सरकार की आय की वे प्राप्तियां हैं जोकि गैर-कर साधनों से होती हैं, इन प्राप्तियों के मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं-
(i) लाभ तथा लाभांश (Profits and Dividends) सरकार ने बहुत से उद्यम जैसे कि बैंक, बीमा कम्पनियां, रेलवे, बिजली पूर्ति इत्यादि स्थापित किए हैं। इनको सार्वजनिक उद्यम कहा जाता है। सरकार को उद्यमों से लाभ प्राप्त होता है। सरकार द्वारा किए गए निवेश पर लाभांश भी मिलता है।

(ii) फ़ीस तथा जुर्माने (Fees and Fines)-सरकार द्वारा प्रदान की सेवाओं के बदले में फ़ीस प्राप्त की जाती है, जैसे कि स्कूलों, अस्पतालों, कचहरी इत्यादि में सुविधा देने के लिए सरकार फ़ीस प्राप्त करती है। कानून भंग करने वाले लोगों पर जुर्माने लगाए जाते हैं, जोकि सरकार की आय का स्रोत होता है।

(iii) विशेष कर (Special Assessment)—सरकार द्वारा सड़कों, पार्क इत्यादि सुविधाएं प्रदान करने से इस क्षेत्र की जायदाद का मूल्य बढ़ जाता है तो सरकार विकास व्यय कर के एवज़ में विशेष कर लगाती है तो इसको विशेष कर कहा जाता है, जोकि सरकार की आय का स्रोत होती है।

(iv) ब्याज (Interest)-सरकार द्वारा दिए ऋण का ब्याज सरकार की आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है।

(v) ग्रान्ट तथा उपहार (Grants and Gifts) सरकार विदेशों से सहायता ग्रान्ट तथा उपहार प्राप्त करती है जोकि गैर कर राजस्व प्राप्ति होती है।

3. पूंजी प्राप्तियां (Capital Receipts)-पूँजी प्राप्तियों से

(i) सरकार की देनदारी उत्पन्न होती है।
(ii) सरकार की परिसम्पत्तियों (भण्डारों) में कमी होती है।

प्रमुख पूंजी प्राप्तियां इस प्रकार हैं –

  • छोटी बचतें (Small Savings)-सरकार डाकखानों में छोटी बचतें, G.P.F., N.S.S., किसान विकास पत्र इत्यादि के रूप में पंजी प्राप्त करती है।
  • उधार (Borrowings)-सरकार देश से उधार लेती है तथा विदेशी सरकारों अथवा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं I.M.F., विश्व बैंक इत्यादि से उधार प्राप्त करती है। ऐसा राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए किया जाता है।
  • ऋण की वसूली (Recovery of Loans) केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों, सार्वजनिक उद्यमों तथा विदेशों को दिए गए ऋण की वसूली द्वारा भी पूँजी प्राप्ति का स्रोत है।
  • विनिवेश (Dis-Investment) सार्वजनिक उद्यम जिनमें सरकार को हानि होती है उनके बिक्री द्वारा प्राप्त होने वाली आय को विनिवेश कहा जाता है। यह भी पूंजी प्राप्ति का एक स्रोत है।

प्रश्न 3.
सरकारी व्यय से क्या अभिप्राय है ? सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण स्पष्ट करो। (What is meant by Government Expenditure. Explain its Classification.)
अथवा
राजस्व तथा पूंजीगत व्यय, योजना तथा गैर-योजना व्यय, विकास तथा गैर-विकास व्यय में अन्तर स्पष्ट करो। (Distinguish between Revenue and Capital Expenditure, Plan and Non-Plan Expenditure, Development and non-development expenditure.)
उत्तर-
सरकारी व्यय का अर्थ (Meaning of Public Expenditure)-सरकारी व्यय से अभिप्राय एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा किए गए आनुपातिक व्यय से होता है। सार्वजनिक व्यय द्वारा सरकार लोगों की आर्थिक तथा सामाजिक भलाई में वृद्धि करने का प्रयत्न करती है। इससे आर्थिक उतार-चढ़ाव पर नियन्त्रण किया जाता है। देश के आर्थिक विकास में तेजी लाने के उद्देश्य की पूर्ति की जाती है। इसलिए सरकारी व्यय राष्ट्रीय हित के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा किए गए व्यय से होता है जो कि एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा व्यय किया जाता है।

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सरकारी व्यय का वर्गीकरण (Classification of Government Expenditure)-सरकारी व्यय का वर्गीकरण तीन भागों में किया जाता है
1. राजस्व तथा पूंजीगत व्यय (Revenue and Capital Expenditure)
2. योजना तथा गैर-योजना व्यय (Plan and Non-plan Expenditure)
3. विकासवादी तथा गैर विकासवादी व्यय (Development and Non-development Expenditure)

1. राजस्व तथा पूंजीगत व्यय (Revenue and Capital Expenditure)
(a) राजस्व व्यय (Revenue Expenditure)-राजस्व व्यय की दो विशेषताएं होती हैं

  • यह व्यय सरकार के लिए परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं करते
  • इस प्रकार के व्यय से सरकार की देनदारी में कमी नहीं होती। राजस्व व्यय सरकार की उपभोगी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। यह व्यय सरकारी विभागों के संचालन, कर्मचारियों के वेतन, पैंशन इत्यादि पर व्यय किया जाता है

(b) पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure)-पूंजीगत व्यय से

  • सरकार परिसम्पत्तियों का निर्माण करती है।
  • यह सरकार की देनदारी में कमी करते हैं। ऐसे व्यय से अर्थव्यवस्था के भण्डार में वृद्धि होती है तथा सरकार की देनदारियों में कमी करता है। सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष में किए गए व्यय जिसके द्वारा नहरें, सड़कें, रेलों इत्यादि का निर्माण होता है, उनको पूंजीगत व्यय कहा जाता है।

2. योजना तथा गैर-योजना व्यय (Plan and Non-Plan Expenditure)-भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ चलाई जाती हैं। ग्यारहवीं योजना 1 अप्रैल, 2007 से आरम्भ होकर 31 मार्च, 2012 तक चलीं। अब बारहवीं योजना चल रही है जो 31 मार्च, 2017 को पूरी होगी। प्रत्येक वर्ष योजना का निर्माण करते समय कुछ व्यय का अनुमान लगाया जाता है, जबकि कुछ व्यय गैर-नियोजित होता है।

(a) योजना व्यय (Plan Expenditure)-योजना का निर्माण करते समय रखे गए उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक वर्ष में सरकार द्वारा जो व्यय बजट में निर्धारित किया जाता है, उसको योजना व्यय कहा जाता है। वर्तमान नियोजन अधीन विकासवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जो व्यय सम्बन्धी सुझाव पेश किए जाते हैं, उनको योजना व्यय कहा जाता है। इसमें उपभोग तथा निवेश सम्बन्धी व्यय शामिल होते हैं, जिनको विभिन्न क्षेत्रों, कृषि, उद्योग, यातायात इत्यादि का विकास किया जाता है।

(b) गैर-योजना व्यय (Non-Plan Expenditure)-और-योजना व्यय वह व्यय है, जोकि योजना में व्यय के बिना अन्य कार्य की पूर्ति पर व्यय किया जाता है। गैर-योजना व्यय, योजना व्यय के बगैर शेष सभी व्यय होते हैं। (Non-Plan Expenditure is the expenditure other than the plan expenditure) सरकार को कुछ व्यय सुरक्षा, कानून तथा व्यवस्था अनुदान इत्यादि के रूप में करना पड़ता है, जिससे जनता को सामाजिक सुविधाएं प्रदान की जा सकें। ऐसे व्ययों को गैर-योजना व्यय कहा जाता है।

3. विकास तथा गैर-विकासशील व्यय (Development and Non-Development Expenditure)-
(a) विकास व्यय (Development Expenditure)-देश के आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए सरकार द्वारा किए गए व्यय को विकास व्यय कहा जाता है। इसमें ग्रामीण, शहरी, कृषि, उद्योगों, सड़कें, नहरें, बिजली, पानी, सेहत सुविधाएँ तथा शिक्षा इत्यादि पर किया गया व्यय शामिल होता है। इसमें रेलें, डाकखानों तथा व्यापारिक उद्यमों के विकास के लिए किया गया व्यय भी शामिल किया जाता है।

(b) गैर-विकासशील व्यय (Non-Development Expenditure)-इसमें सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली साधारण सुविधाओं पर व्यय शामिल होता है, जैसे कि प्रशासन, सेना, पुलिस, ऋण का ब्याज़, बुढ़ापा पेंशन इत्यादि पर किया जाने वाला व्यय शामिल होता है। करों को एकत्रित करने पर व्यय भी गैर
विकासशील व्यय होता है।

सार्वजनिक व्यय का महत्त्व (Importance of Public Expenditure)-वर्तमान में सार्वजनिक व्यय का महत्त्व बढ़ गया है, क्योंकि –

  • सरकार के कार्यों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। प्रत्येक राज्य कल्याण के कार्यों में भाग लेता है, इसलिए सार्वजनिक व्यय महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • आर्थिक विकास की वृद्धि के लिए भी सरकारी व्यय महत्त्वपूर्ण होता है। इससे आर्थिक विकास की दर बढ़ जाती है।
  • आर्थिक भलाई के कार्यों में वृद्धि होने के कारण सरकार सड़कें, बिजली, बुढ़ापा पेंशन, सेहत सुविधाएं प्रदान करती हैं।
  • व्यापारिक चक्रों को नियन्त्रण करने के लिए भी सरकारी व्यय का योगदान अधिक है।
  • आय तथा धन के समान वितरण के उद्देश्य की पूर्ति भी सरकारी व्यय से की जाती है।

प्रश्न 4.
सन्तुलित, वृद्धि तथा घाटे के बजट को स्पष्ट करो। इनके गुण तथा अवगुण बताओ। (Explain balanced, deficit or deficit Budgets. Give their relative merits and demerits.)
अथवा
सन्तुलित तथा असन्तुलित बजट में तुलना करो। इनके गुण तथा अवगुण बताओ। (Compare a balanced and unbalanced Budget. Give their merits and demerits.)
उत्तर-
बजट सरकार की वार्षिक अनुमानित प्राप्तियों तथा व्यय का विवरण होता है। (Budget is defined as an annual statement of the estimated receipts and expenditure of the government during a fiscal year)

बजट तीन प्रकार का होता है।

Estimates
1. Revenue = Expenditure Balanced Budget
2. Revenue > Expenditure Surplus Budget
3. Revenue < Expenditure Deficit Budget

1. सन्तुलित बजट (Balanced Budget)-एक सरकारी बजट को सन्तुलित बजट कहा जाता है यदि सरकार की राजस्व तथा पूंजीगत प्राप्तियां, सरकार के राजस्व तथा पूंजीगत व्यय के समान हों। प्राचीन काल में सन्तुलित बजट को अच्छा बजट माना जाता था। जैसे कि अर्थशास्त्र के पिता एड्म स्मिथ (Adam Smith) ने कहा था, “सरकारी व्यय, सरकारी आय से अधिक नहीं होना चाहिए” सरकार जनता के पैसे का प्रयोग अच्छी तरह नहीं कर सकती। व्यक्ति अपनी आय का प्रयोग निजी तौर पर अच्छी तरह कर सकते हैं। इसलिए परम्परागत अर्थशास्त्री सन्तुलित बजट के पक्ष में थे।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

गुण (Merits)-

  • फिजूल व्यय (Wasteful Expenditure)-सरकार द्वारा जो व्यय किया जाता है, उसमें फिजूल व्यय की सम्भावना अधिक होती है। इसलिए फिजूल व्यय से बचने के लिए सन्तुलित बजट अच्छा होता है।
  • वित्तीय स्थिरता (Financial Stability)-सन्तुलित बजट से वित्तीय स्थिरता प्राप्त होती है। वित्तीय साधनों की प्राप्ति पर अधिक ज़ोर नहीं दिया जाता। अवगुण (Demerits)

(i) व्यापारिक चक्रों के लिए अनुचित (Unsuitable for Trade cycles)-व्यापारिक चक्रों के लिए सन्तुलित बजट उचित नहीं क्योंकि मन्दीकाल तथा तेज़ीकाल का हल सन्तुलित बजट द्वारा नहीं किया जा सकता।

(ii) आर्थिक विकास के लिए अनुचित (Unsuitable for Economic Development) अल्प-विकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए सन्तुलित बजट उचित नहीं होता। आर्थिक विकास के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। जब सरकार की प्राप्तियां सरकार के अनुमानित व्यय से अधिक अथवा कम होती हैं तो इस स्थिति को असन्तुलित बजट (Unbalanced Budget) कहते हैं।

असन्तुलित बजट दो प्रकार का हो सकता है
(i) बचत का बजट (Surplus Budget) तथा
(ii) घाटे का बजट (Deficit Budget)

2. बचत का बजट (Surplus Budget)-बचत का बजट वह बजट होता है, जिसमें सरकार की अनुमानित आय सरकार के अनुमानित व्यय से अधिक होती है। इससे अभिप्राय है कि सरकार करों द्वारा अर्थव्यवस्था में से अधिक मुद्रा प्राप्त कर रही है तथा सरकार व्यय द्वारा अर्थव्यवस्था में कम मुद्रा भेज रही है। ऐसी स्थिति में लोगों की मांग कम हो जाएगी तथा मुद्रा स्फीति पर रोक लग जाती है। जब सरकार लोगों की मांग को घटाना चाहती है तो बचत का बजट बनाया जाता है।

गुण (Merits)

  • मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Control over Inflation)-यदि देश में कीमत स्तर में तीव्रता से वृद्धि होती है तो बचत के बजट द्वारा मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।
  • मांग में कमी (Decrease in Demand)-जब देश में मुद्रा स्फीति का कारण मांग में वृद्धि होता है तो मांग में कमी करने के लिए बचत का बजट लाभदायक सिद्ध होता है।

अवगुण (Demerits)

  • मन्दीकाल (Depression) यदि बचत का बजट दीर्घ समय के लिए अपनाया जाता है तो इससे अर्थव्यवस्था में मन्दीकाल की स्थिति उत्पन्न होने का डर उत्पन्न हो जाता है।
  • बेरोज़गारी (Unemployment)-मांग की कमी के कारण देश में बेरोज़गारी फैल जाती है। इसलिए बचत का बजट अन्य कई आर्थिक समस्याओं को जन्म देता है।

3. घाटे का बजट (Deficit Budget)-घाटे का बजट वह बजट है जिसमें सरकार की अनुमानित आय सरकार के अनुमानित व्यय से कम होती है अथवा हम कह सकते हैं कि सरकार का व्यय, सरकार की आय से अधिक हो जाता है तो इसी तरह के बजट को घाटे का बजट कहा जाता है। 1929-30 में अमेरिका में महामन्दी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। अमेरिका अमीर देश था। वस्तुओं की पूर्ति अधिक थी, परन्तु मांग कम होने के कारण कीमतें तथा लाभ कम हो गए। उत्पादन घटने से बेरोजगारी फैल गई तो प्रो० जे० एम० केन्ज़ ने घाटे के बजट को अपनाने की सिफारिश की थी। आजकल घाटे का बजट अल्प-विकसित देशों में भी अपनाया जाता है।

गुण (Merits)

  • आर्थिक विकास (Economic Growth) अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास की गति तीव्र करने के लिए घाटे का बजट अच्छा होता है।
  • आर्थिक भलाई (Economic Welfare)-सरकार लोगों की आर्थिक भलाई में वृद्धि करना चाहती है तो घाटे के बजट द्वारा भलाई कार्यों पर अधिक व्यय किया जा सकता है।

अवगुण (Demerits)-

  1. फिजूल व्यय (Wasteful Expenditure)-घाटे के बजट द्वारा सरकार द्वारा फिजूल व्यय किया जाता है, इससे देश में भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।
  2. मुद्रा स्फीति (Inflation)-घाटे के बजट द्वारा देश में कीमतों का स्तर तीव्रता से बढ़ने लगता है। कीमतों की वृद्धि से आर्थिक तथा राजनीतिक संकट उत्पन्न होता है।

प्रश्न 5.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है ? घाटे के बजट की किस्में बताओ। इनका माप कैसे किया जाता है ?
(What is meant by Budget Deficit? Explain the types of Budget deficit. How can these be measured ?)
अथवा
राजस्व घाटे, राजकोषीय घाटे तथा प्राथमिक घाटे से क्या अभिप्राय है ? इसके माप को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
(What is meant by Revenue Deficit, Fiscal Deficit and Primary Deficit ? Explain the measurement of these deficits with the help of an example.)
उत्तर–
बजट घाटे से सम्बन्धित चार धारणाएं हैं-

  1. बजट घाटा
  2. राजस्व घाटा
  3. राजकोषीय घाटा
  4. प्राथमिक घाटा।

इनकी व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है-

1. बजट घाटा (Budget Deficit)-जब सरकार का कुल व्यय अधिक होता है तथा कुल प्राप्तियां कम होती हैं तो इस प्रकार के बजट को घाटे का बजट कहा जाता है। इसमें एक ओर सरकार के कुल व्यय में से राजस्व प्राप्तियां तथा पूंजीगत प्राप्तियों को घटा दिया जाता है तो इनके अन्तर को बजट घाटा कहा जाता है। बजट घाटा कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय) (-) कुल प्राप्तियां (राजस्व प्राप्तियां + पूंजी प्राप्तियां) इसलिए बजट घाटा सरकार की कुल व्यय तथा कुल प्राप्तियों का अंतर होता है। (Budget deficit is the excess of government expenditures over the receipts) बजट घाटे को भारत सरकार के 2003-04 के बजट अनुमानों के आंकड़ों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
Budget Deficit of Centre, State & Union territory. Govt’s as per 2004-05
Budgetary Estimates

No. Item ₹ (in crores)
1. Total outlay (Expenditure) 902287
2. Current Revenue 655618
3.Gap (1-2) 246669
4. Net Capital Receipts 241587
5. Overall Budget Deficit (3-4) 5082

Source: Economic Survey 2005-06

भारत सरकार के बजट 2004-05 अनुसार बजट घाटा ₹ 5082 करोड़ था। कुल व्यय में से कुल प्राप्तियां घटाने से बजट घाटा प्राप्त होता है। कुल प्राप्तियों में चालू आय तथा शुद्ध पूंजी प्राप्तियां शामिल की जाती हैं।

2. राजस्व घाटा (Revenue Deficit)-राजस्व घाटे का सम्बन्ध सरकार के अधिक राजस्व व्यय तथा राजस्व प्राप्तियों के अन्तर से होता है। (The revenue deficit is the excess of government’s revenue expenditure over revenue receipts.) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां (Revenue Deficit = Revenue Expenditure – Revenue Receipts) जब किसी देश में राजस्व घाटा होता है तो इसकी पूर्ति पूंजी प्राप्तियों के रूप में उधार लेकर की जाती है जब उधार इस घाटे को पूरा किया जाता है तो सरकार की देनदारी बढ़ जाती है।

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महत्त्व अथवा निहित तत्त्व (Importance or Implications)-

  1. मुद्रा स्फीति (Inflation)-राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए उधार प्राप्त किया जाता है। इसलिए देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  2. बचतों में कमी (Dis-savings)-सरकार राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए भण्डारों की तथा परिसम्पत्तियों की बिक्री करती है। इससे भण्डारों की कमी हो जाती है।
  3. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)-राजकोषीय घाटे का अर्थ सरकार के राजस्व तथा पूंजीगत व्यय तथा उधार को छोड़कर राजस्व तथा पूंजीगत प्राप्तियों से होता है। (Fiscal deficit is the excess of total expenditure over the seem of revenue receipts and capital receipts excluding borrowings during a year)

जब सरकार का कुल व्यय कहते हैं तो इसमें राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय शामिल होता है तथा कुल प्राप्तियों में राजस्व प्राप्तियां + पूंजीगत प्राप्ति होती है, पर उधार को छोड़ दिया जाता है।
Fiscal deficit = Total Budget Expenditure – Total Budget Receipts other than borrowings
राजकोषीय घाटा = कुल बजट व्यय – उधार के बिना कुल बजट प्राप्तियाँ उधार पूंजीगत प्राप्तियों का हिस्सा होता है, परन्तु राजकोषीय घाटे में हम राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-उधार पूंजीगत प्राप्तियों को शामिल करते हैं।

महत्त्व अथवा निहित तत्त्व (Importance or Implications) –

  1. मुद्रा स्फीति (Inflation) राजकोषीय घाटे का अधिक होना मुद्रा स्फीति का सूचक होता है।
  2. ऋण में अधिक भार (More Burden of Debt)-ऋण तथा ऋण का ब्याज अधिक हो जाता है। इसलिए राजकोषीय घाटे से देश की देनदारी बढ़ जाती है।
  3. विदेशी निर्भरता (Foreign Dependence)-राजकोषीय घाटा अधिक होने से विदेशी ऋण का भार बढ़ जाता है। इसलिए विदेशी निर्भरता बढ़ जाती है।
  4. प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)—प्राथमिक घाटा, राजकोषीय घाटे तथा ब्याज भुगतान का अन्तर होता है।

प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान Primary Deficit = Fiscal Deficit – Interest Payments
महत्त्व अथवा छिपे तत्त्व (Importance or Implications) राजकोषीय घाटे में सरकार की उधार आवश्यकताओं तथा ब्याज भुगतान की जानकारी प्राप्त होती है, परन्तु प्राथमिक घाटे में सरकार को व्यय पूरा करने के लिए कितना उधार अनिवार्य है, इसकी जानकारी प्राप्त होती है, पर ब्याज भुगतान को इसमें छोड़ दिया जाता है।

राजस्व घाटे, राजकोषीय घाटे तथा प्राथमिक घाटे का उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण
भारत सरकार का 2005-06 (बजट अनुसार) प्राप्तियां तथा व्यय

₹ करोड़
1. राजस्व प्राप्तियां = 351200
2. राजस्व व्यय = 446512
3. राजस्व घाटा (2-1) = 95312
4. पूंजीगत प्राप्तियां = 163144
5. पूंजीगत व्यय = 67832
6. कुल व्यय (2+5) = 514344
7. ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियां = 12000
8. राजकोषीय घाटा (6-7-1) = 151144
9. ब्याज भुगतान = 133945
10. प्राथमिक घाटा (8-9) = 17199

Source : Economic Survey 2005-06
पीछे दी सूचना अनुसार

  1. राजस्व घाटा = राजस्व व्यय-राजस्व प्राप्तियां = 351200 – 44612 = ₹ 95312 करोड़
  2. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियां – राजस्व प्राप्तियां = 514344 – 12000 – 351200 = ₹ 151144 करोड़
  3. प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान = 151144 – 133945 = ₹ 17199 करोड़

V. संरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों के अनुसार –
बजट घाटे का माप करो।

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 50,000
(ii) कुल प्राप्तियां 48,000

उत्तर-
बजट घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां
= 50000 – 48000 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर बजट घाटे का माप करो-

मदें ₹ करोड़
(i) राजस्व प्राप्तियाँ 80,000
(ii) पूंजीगत प्राप्तियां 45,000
(iii) राजस्व व्यय 10,000
(iv) पूंजीगत व्यय 40,000

उत्तर-
बजट घाटा = (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय)- (राजस्व प्राप्तियां + पूंजीगत प्राप्तियां)
= (10,0000 + 40,000) — (80,000 + 45000) = 1,40,000 – 1,25000
= ₹ 15,000 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर राजस्व घाटे का माप करो

मदें ₹ करोड़
(i) राजस्व प्राप्तियां 45,000
(ii) राजस्व व्यय 75,000

उत्तर-
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां
= 75000 – 45000
= ₹30.000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा राजकोषीय घाटे का माप करो –

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 50,000
(ii) कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के) 40,000

उत्तर –
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के)
= 50,000 – 40,000 = ₹ 10,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
राजकोषीय घाटा बताओ।

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 90,000
(ii) राजस्व प्राप्तियां 50,000
(iii) पूंजीगत प्राप्तियां (बगैर उधार के) 22,000

उत्तर –
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – राजस्व प्राप्तियां – पूंजीगत प्राप्तियां (बगैर उधार के)
= 90,000 – 50000 = 22,000
= ₹ 18,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 6.
राजकोषीय घाटा ज्ञात करो –

मदें ₹ करोड़
(i) उधार तथा अन्य प्राप्तियां 151144
(ii) ब्याज भुगतान 133945
(iii) ऋण वसूली 12000

उत्तर-
राजकोषीय घाटा = उधार तथा अन्य प्राप्तियाँ
= ₹ 151144 करोड़ उत्तर

प्रश्न 7.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करोमदें

मदें ₹ करोड़
(i) राजकोषीय घाटा 10,000
(ii) ब्याज भुगतान 4.000

उत्तर –
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान = 10,000 – 4000 = ₹ 6,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करें –

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 90,000
(ii) कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के) 70,000
(iii) सरकार द्वारा व्याज का भुगतान 10,000

उत्तर-
प्राथमिक घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ (बगैर व्याज के) – सरकार द्वारा व्याज का भुगतान = 90,000 – 70,000 – 10,000 = ₹ 10,000 करोड़ उत्तर

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प्रश्न 9.
सरकार द्वारा ब्याज भुगतान ज्ञात करें –

मदें ₹ करोड़
(i) राजकोषीय घाटा 50,000
(ii) प्राथमिक घाटा 41,000

उत्तर-
सरकार द्वारा ब्याज का भुगतान  = राजकोषीय घाटा (-) प्राथमिक घाटा।
= 50,000 – 41,000 = ₹ 9,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
सरकार के बजट में प्राथमिक घाटा ₹ 4400 करोड़ रुपए है ब्याज भुगतान पर खर्च ₹ 400 करोड़ है, राजकोषीय घाटा ज्ञात करें-
उत्तर-
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 4400 + 400 = ₹ 4800 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

PSEB 12th Class Economics अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है।

प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-

  • कर
  • सार्वजनिक ऋण
  • घाटे की वित्त व्यवस्था।

(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-

  • सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
  • सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
  • देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
  • आर्थिक सहायता

प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।

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प्रश्न 4.
अभावी मांग में वृद्धि के लिए राजकोषीय नीति के कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए कोई एक राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में कमी-अभावी मांग की वृद्धि के लिए, करों में कमी करनी चाहिए। इससे मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल में कमी होगी।

प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।

प्रश्न 6.
मौद्रिक नीति के कोई एक उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  • बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता
  • खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना।

प्रश्न 7.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।

प्रश्न 8.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है।

प्रश्न 9.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है।

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प्रश्न 10.
उधार की सीमान्त शर्ते (Marginal Requirements of Laws) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उधार की सीमान्त शर्तों का अर्थ है उधार लेने के लिए गिरवी रखी जाने वाली वस्तु का प्रचलित कीमत तथा दिए जाने वाले ऋण की मात्रा का अन्तर होता है।

प्रश्न 11.
सस्ती मुद्रा नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सस्ती मुद्रा नीति वह स्थिति होती है, जिसमें लोगों को कम ब्याज की दर पर आसानी से मुद्रा प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 12.
महंगी मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
महंगी मौद्रिक नीति वह स्थिति होती है, जिसमें ब्याज की दर अधिक होती है तथा आसानी से ऋण प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस नीति का उद्देश्य लोगों के व्यय को घटाना होता है ताकि मुद्रा स्फीति की समस्या का हल किया जा सके।

प्रश्न 13.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर वह कर होते हैं जोकि जिन मनुष्यों पर लगाए जाते हैं, उन मनुष्यों को ही कर का भार सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो लगाया एक मनुष्य पर जाता है, परन्तु उसका भार किसी अन्य मनुष्य को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 15.
वह कर जो जिन व्यक्तियों पर लगाए जाते हैं उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है को …………….. कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) प्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 16.
वह कर जो लगाए एक व्यक्ति पर जाते हैं परन्तु कर का भार और व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है को ………………… कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) प्रतिगामी कर।
उत्तर-
(ख) अप्रत्यक्ष कर।

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प्रश्न 17.
व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं
(क) खुशहाली,
(ख) सुस्ति,
(ग) मन्दी,
(घ)……. हैं।
उत्तर-
पूर्ण चेतना।

प्रश्न 18.
वह दर जो केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय प्राप्त करता है को कहते हैं।
उत्तर-
बैंक दर।

प्रश्न 19.
घाटे की वित्त व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सरकार उदार मुद्रा लेकर अथवा नए नोट छुपा कर सार्वजनिक व्यय करती है तो इस को घाटे की वित्त व्यवस्था कहते हैं।

प्रश्न 20.
किसी व्यापारिक बैंक की जमा राशि का वह न्यूनतम भाग जो केन्द्रीय बैंक के पास जमा रखना पड़ता है को ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
न्यूनतम नकद निधि अनुपात।

प्रश्न 21.
वह नीति जिस द्वारा देश की सरकार और केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए मुद्रा और ब्याज दर को नियंत्रित करते हैं को …………. कहते हैं।
उत्तर-
मौद्रिक नीति।

प्रश्न 22.
निश्चित उद्देश्यों को प्राप्ति करने के लिए आमदन, व्यय और ऋण संबंधी नीति को ……………. कहते हैं।
(क) मौद्रिक नीति
(ख) राजकोषीय नीति
(ग) वित्त नीति
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) राजकोषीय नीति।

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प्रश्न 23.
मंदीकाल और तेज़ीकाल की स्थिति को व्यापारिक चक्र कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
देश का केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय जो ब्याज की दर प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है। यह नीति अधिक मांग तथा अभावी मांग की समस्याओं का हल करने के लिए अपनाई जाती है। इसलिए सरकार के निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आमदन (कर) तथा व्यय नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-

  • कर
  • सार्वजनिक ऋण
  • घाटे की वित्त व्यवस्था

(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-

  • सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
  • सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
  • देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
  • आर्थिक सहायता।

प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-

  1. करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।
  2. सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सेहत, शिक्षा तथा आर्थिक सहायता के रूप में दी जाने वाली सहायता तथा कम व्यय करना चाहिए। इससे स्फीतिक अन्तर कम हो जाता है।

प्रश्न 4.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा –
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति के कोई दो उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  • बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता है। बैंक दर के बढ़ने से ब्याज की दर बढ़ जाती है तथा उधार निर्माण कम हो जाता है।
  • खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना। जब साख निर्माण करना होता है तो केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदता है।

प्रश्न 6.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-

  1. बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।
  2. खुले बाज़ार की नीति-खुले बाज़ार में सरकार प्रतिभूतियाँ बेचती है। इसे लोग बैंकों में से पैसे लेकर केन्द्रीय बैंक की प्रतिभूतियाँ खरीद लेते हैं तथा स्फीतिक अन्तर तथा अधिक मांग कम हो जाती है।

प्रश्न 7.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-

  • बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है। ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार मुद्रा की मांग में वृद्धि होती है।
  • खुले बाज़ार की नीति-केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ खरीदता है। इससे अर्थव्यवस्था की कार्य शक्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है। नकद रिज़र्व अनुपात देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा निश्चित किया जाता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक चक्रों से क्या अभिप्राय है ? व्यापारिक चक्रों की मुख्य अवस्थाएं बताओ। ..
अथवा
चक्रीय परिवर्तनों की अवस्थाओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यापारिक चक्र एक अर्थव्यवस्था में अच्छे समय तथा बुरे समय की स्थिति में होता है। अभावी मांग तथा अधिक मांग के परिणामस्वरूप किसी देश में आमदन, उत्पादन तथा रोज़गार में जो उतार-चढ़ाव आते हैं, उनको चक्रीय परिवर्तन अथवा व्यापारिक चक्र कहते हैं। व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं होती हैं।

  1. प्रथम अवस्था (खुशहाली)-इस स्थिति में आमदन, रोज़गार, व्यय, बचत, निवेश, लाभ में वृद्धि होती है।
  2. द्वितीय अवस्था (सुस्ती)-कुछ उद्योगों में आय रोज़गार उत्पादन घटता है, जिसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों में पड़ता है।
  3. तीसरी अवस्था (मन्दी)-इस स्थिति में आमदन तथा रोज़गार बहुत कम हो जाते हैं तथा बुरी स्थिति होती है।
  4. चौथी अवस्था (पुनः चेतना)-इस स्थिति में रोज़गार बढ़ने लगता है तथा आर्थिक गति में वृद्धि होने लगती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय 1

प्रश्न 2.
सरकारी क्षेत्र से अर्थव्यवस्था ( अधिक मांग की समस्या) पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
सरकारी क्षेत्र का महत्त्व प्रो० केन्ज़ ने स्पष्ट किया था। जब सरकार व्यय करती है तो इससे अभावी मांग को दूर किया जा सकता है तथा कर लगाकर सरकार अधिक मांग की समस्या का हल करती है। सरकार के योगदान के कारण अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –

  1. कर (Taxes)-सरकार लोगों पर कर लगाती है। प्रत्यक्ष कर लगाने से लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाती है तथा अप्रत्यक्ष करों से लोगों की खरीद शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार करों में वृद्धि तथा कमी करके सरकार अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या का हल करती है।
  2. सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure)-सरकार द्वारा जो आय प्राप्त की जाती है, इसको लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है। सरकार द्वारा लोक निर्माण कार्यों, सड़कों, नहरों, पुलों इत्यादि पर व्यय किया जाता है तथा सरकार हस्तांतरण भुगतान, बुढ़ापा पैन्शन इत्यादि देती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति पर वृद्धि होती है।
  3. सार्वजनिक ऋण (Public Debt)-जब देश में अधिक मांग की स्थिति होती है तो सरकार लोगों से ऋण लेती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है।
  4. घाटे की वित्त व्यवस्था (Deficit Financing) अभावी मांग के समय सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था का प्रयोग करती है। इससे लोगों की मौद्रिक आय में वृद्धि होती है तथा मांग बढ़ जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 3.
उधार नियन्त्रण के विभिन्न ढंगों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
बैंक दर नीति तथा खुले बाज़ार की नीति उधार की उपलब्धता को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिसमें-

  • मुद्रा की पूर्ति
  • मुद्रा की लागत (ब्याज की दर) तथा
  • मुद्रा की उपलब्धता उधार (नियन्त्रण) द्वारा आवश्यक उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है।

मौद्रिक नीति के मुख्य औज़ार निम्नलिखित अनुसार हैं –

  1. बैंक दर (Bank Rate)-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त करता है।
  2. खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)-इस नीति में देश का केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों की खरीद-बेच करता है। जब प्रतिभूतियां बेची जाती हैं तो लोगों के पास पैसा केन्द्रीय बैंक के पास चला जाता है तथा लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है। व्यापारिक बैंकों की उधार देने की शक्ति भी कम हो जाती है।
  3. नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को अपने पास जमा राशि का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास नकद रखना पड़ता है, जिसको नकद रिज़र्व अनुपात कहते हैं। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जाता है तथा नकद रिज़र्व अनुपात घटाकर उधार बढ़ाया जाता है।
  4. तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को जमा राशि का कुछ भाग अपने पास नकद रखना पड़ता है, जिसको तरलता अनुपात कहा जाता है। इसमें वृद्धि करके उधार निर्माण को घटाया जाता है।
  5. सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirement) केन्द्रीय बैंक द्वारा दिए जाने वाले उधार की कटौती निर्धारण की जाती है। ₹ 100 की वस्तु गहने रखकर बैंक ₹ 80 का उधार दे सकते हैं तो 100 – 80 = ₹ 20 अथवा 20% सीमान्त आवश्यकता होगी। इसमें परिवर्तन करके उधार को प्रभावित किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति में सार्वजनिक व्यय तथा आय द्वारा (i) अधिक मांग (ii) अभावी मांग को कैसे नियन्त्रित किया जाता है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ सरकार की आय तथा व्यय की नीति से होता है। प्रो० डाल्टन के अनुसार, “सरकार के निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, व्यय तथा उधार सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं।” इस नीति से अधिक मांग तथा अभावी मांग की स्थिति का हल किया जाता है।
1. अधिक मांग दौरान राजकोषीय नीति-

  • कर नीति-करों में वृद्धि करनी चाहिए ताकि लोगों की मांग में कमी हो सके।
  • व्यय नीति-सरकार को सार्वजनिक कार्यों, भलाई कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान पर कम व्यय करना चाहिए।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था-ऐसे समय घाटे की वित्त व्यवस्था को घटाकर मुद्रा की पूर्ति में कमी करनी चाहिए।
  • ऋण नीति-सरकार को लोगों से उधार लेना चाहिए जिससे मांग में कमी हो जाएगी।

2. अभावी मांग दौरान राजकोषीय नीति –

  • करों में कमी-अभावी मांग (Deficient Demand) समय सरकार को कर घटा देने चाहिए इससे लोगों की मांग में वृद्धि हो जाती है।
  • व्यय में वृद्धि-अभावी मांग समय सरकार को व्यय अधिक करना चाहिए।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाकर मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करनी चाहिए।
  • सार्वजनिक ऋण की वापसी-सरकार को ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि हो जाएगी।

प्रश्न 5.
अधिक मांग से क्या अभिप्राय है ? अधिक मांग को ठीक करने के लिए दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जोकि पूर्ण रोज़गार की स्थिति में कुल पूर्ति से कुल मांग की वृद्धि के कारण उत्पन्न होती है। इस स्थिति में कुल मांग का स्तर पूर्ण रोज़गार के लिए कुल पूर्ति से अधिक हो जाता है। इस स्थिति को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति के दो उपाय निम्नलिखित अनुसार हैं-

  1. करों में वृद्धि-ऐसे समय जब अधिक मांग की स्थिति होती है, सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए। नए कर लगाने चाहिए तथा पुराने करों की दर में वृद्धि करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप देश के लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाएगी तथा मांग में कमी होने से अधिक मांग की समस्या का हल हो जाएगा।
  2. सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को अधिक मांग की समस्या का हल करने के लिए सार्वजनिक व्यय में कमी करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप लोगों की आय कम हो जाएगी। लोगों की मांग में कमी होगी।

प्रश्न 6.
अधिक मांग तथा अभावी मांग का हल कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
अधिक मांग (Excess Demand)-यह ऐसी स्थिति है जोकि पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से अधिक मांग को प्रकट करती है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-
1. राजकोषीय नीति-

  • सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए
  • सार्वजनिक व्यय को सार्वजनिक कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान के रूप में घटा देना चाहिए
  • सार्वजनिक ऋण अधिक लेना चाहिए।

2. मौद्रिक नीति-

  • बैंक दर में वृद्धि करके ब्याज की दर बढ़ानी चाहिए ताकि उधार निर्माण कम हों।
  • खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ बेचनी चाहिए।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए।
  • उधार की सीमान्त शतों में वृद्धि करनी चाहिए।

अभावी मांग (Deficient Demand)-यह स्थिति ऐसी होती हैं, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इसका हल इस प्रकार करना चाहिए –
1. राजकोषीय नीति- इसका प्रयोग अधिक मांग के विपरीत करना चाहिए-

  • कर घटाने चाहिए
  • सार्वजनिक व्यय बढ़ाना चाहिए
  • ऋण की वापसी करनी चाहिए।

2. मौद्रिक नीति-

  • बैंक दर घटानी चाहिए
  • खुले बाजार में प्रतिभूतियां खरीदनी चाहिए
  • नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए
  • उधार की शर्ते नरम करनी चाहिए।

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प्रश्न 7.
कोई चार उपाय बताओ जिनके द्वारा अभावी मांग की स्थिति को ठीक किया जा सकता है ?
अथवा
अस्फीतिक अन्तर का हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अभावी मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इस स्थिति को अस्फीतिक अन्तर कहा जाता है। इसका हल करने के लिए चार उपाय इस प्रकार हैं-

  1. करों में कमी-प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों में कमी करनी चाहिए । इससे लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होगी।
  2. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर अधिक व्यय करना चाहिए। सरकार को निवेश में वृद्धि करके रोजगार बढ़ाना चाहिए ।
  3. बैंक दर में कमी-सरकार को बैंक दर घटानी चाहिए। इससे ब्याज़ की दर घट जाती है तथा लोग अधिक उधार लेते हैं। इससे मांग में वृद्धि होती है।
  4. नकद रिज़र्व अनुपात में कमी-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक, अधिक उधार देने में सफल होते हैं तथा मांग में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
कोई चार उपाय बताओ, जिसके द्वारा अधिक मांग की समस्या का हल किया जा सकता है ?
अथवा
स्फीतिक अन्तर को हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग अधिक होती है। इस स्थिति को स्फीतिक अन्तर की स्थिति कहा जाता है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-

  • करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर बढ़ाने चाहिए।
  • सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सार्वजनिक कार्यों सड़कों, नहरों, बिजली इत्यादि पर व्यय कम करना चाहिए।
  • बैंक दर में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक को उधार देते समय जो ब्याज प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं। इसमें वृद्धि करनी चाहिए।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए। इससे व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं तथा मांग में कमी हो जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न । (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग के समय राजकोषीय नीति को स्पष्ट करो।
(What is Fiscal Policy ? Discuss the instruments of Fiscal Policy. Explain Fiscal Policy during deficient and Excess Demand.)
अथवा
राजकोषीय नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तर तथा स्फीतिक अन्तर का हल कैसे किया जाता है ?
(How is the problem of Deflationary Gap and the Inflationary Gap be solved with Fiscal Policy ?)
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ (Meaning of Fiscal Policy)-एक देश में निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सरकार की आय, व्यय तथा ऋण सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है। इसलिए राजकोषीय नीति सरकार की आय तथा व्यय की नीति होती है, जिस द्वारा अभावी मांग अथवा अधिक मांग की समस्याओं का हल किया जाता है।

राजकोषीय नीति के औज़ार (Instruments of Fiscal Policy)-राजकोषीय नीति के औज़ारों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
(A) सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार (Instrument related to Government Expenditure)सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं

  • सार्वजनिक निर्माण के कार्य जैसे कि सड़कें, नहरें, पुल इत्यादि का निर्माण करवाना।
  • लोक सेवाएं जैसे कि शिक्षा, सेहत, बुढ़ापे में सहायता इत्यादि पर व्यय।
  • उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने के लिए सबसिडी देना।
  • देश की आन्तरिक तथा बाहरी सुरक्षा पर व्यय करना।

(B) सरकारी आय से सम्बन्धित औज़ार (Instruments related to Public Revenue)-इस सम्बन्ध में मुख्य औज़ार निम्नलिखित हैं

  • कर-प्रत्येक देश की सरकार की आय का मुख्य स्रोत कर होते हैं। सरकार प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर लगाती है।
  • उधार-सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए लोगों से उधार भी लेती है।
  • बजट नीति-सरकार द्वारा व्यय को पूरा करने के लिए घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाती है।

अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग तथा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति इस प्रकार की अपनानी चाहिए –

  1. करों में कमी-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए करों में कमी की जाए तो मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल समाप्त हो जाएगा।
  2. सरकारी व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर व्यय बढ़ा देना चाहिए। इससे लोगों की आय में वृद्धि होगी तथा मांग बढ़ जाएगी।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनानी चाहिए। इससे कुल मांग में वृद्धि होगी।
  4. सार्वजनिक ऋण-सरकार को नया ऋण नहीं लेना चाहिए, बल्कि पुराने ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि की जा सकती है।

अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Excess Demand & Inflationary Gap)-अधिक मांग तथा मुद्रा स्फीति समय सरकार को निम्नलिखित अनुसार राजकोषीय नीति अपनानी चाहिए-

  1. करों में वृद्धि-सरकार को लोगों पर कर अधिक लगाने चाहिए। इससे लोगों की मांग में कमी हो जाएगी।
  2. सरकारी व्यय में कमी-सरकार को मुद्रा स्फीति समय अपना व्यय घटा देना चाहिए।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था में कमी-सरकार को ऐसी स्थिति में घाटे की वित्त व्यवस्था को अपनाना नहीं चाहिए।
  4. सार्वजनिक ऋण-सरकार को लोगों से अधिक ऋण लेना चाहिए ताकि अधिक मांग में कमी आए तथा स्फीतिक अन्तर समाप्त हो सके।

प्रश्न 2.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ? मौद्रिक नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या को हल करने के लिए मौद्रिक नीति के योगदान को स्पष्ट करो।
(What is Monetary Policy ? Explain the instruments of Monetary Policy. How can Monetary Policy be used during Excess Demand & Deficient Demand ?)
अथवा
मौद्रिक नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तराल तथा स्फीति अन्तराल का हल कैसे किया जा सकता है ?
(How can the problem of Deflationary Gap & Inflationary Gap be solved with Monetary Policy ?)
उत्तर-
मौद्रिक नीति का अर्थ (Meaning of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिस द्वारा एक देश की सरकार केन्द्रीय बैंक द्वारा

  • मुद्रा की पूर्ति
  • मुद्रा की लागत अथवा ब्याज की दर तथा
  • मुद्रा की उपलब्धि द्वारा स्थिरता प्राप्त करने का प्रयत्न करती है।

मौद्रिक नीति के औज़ार (Instruments of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति के औज़ारों का वर्गीकरण अग्रलिखित अनुसार किया जा सकता है
(A) मात्रात्मक औजार (Quantitative Instruments) मौद्रिक नीति के मात्रात्मक औज़ार वे औज़ार हैं, जिन के द्वारा उधार मुद्रा को नियन्त्रित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए केन्द्रीय बैंक निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग करता है-
1. बैंक दर (Bank Rate)- बैंक दर वह दर होती है, जोकि केन्द्रीय बैंक द्वारा व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त की जाती है। बैंक दर बढ़ने से देश में ब्याज दर बढ़ जाती है। इसलिए उधार मुद्रा की मांग कम हो जाती है। जब केन्द्रीय बैंक द्वारा बैंक दर घटा दी जाती है तो बाज़ार में ब्याज की दर कम हो जाएगी तथा उधार मुद्रा विस्तार हो जाता है।

2. खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)- उधार मिया के लिए केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों (Securities) की खरीद बेच करता है। जब केन्द्रीय प्रतिभूतियाँ बेचता है तो लोग केन्द्र की प्रतिभूतियां खरीद लेते हैं तथा व्यापारिक बैंकों को उधार देन को शक्ति का ही जागो है। अब केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदने लगता है तो बाज़ार में पैसे चले जाते हैं, इससे ज्यादा का अधिक उधार देने लगते

3. न्यूनतम नकद रिज़र्व अनुपात (Minimum Cash Reserve Ratio)- नाना नकद रिजाव अनुपात वह दर होती है, जो कि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का कुछ ‘हे ? बैंक के पास नत्र के रूप में रखना आवश्यक होता है। यदि रिज़र्व अनुपात 10% से बढ़ाकर मा. काया जाता है तो व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं। पहले वह ₹ 100 में से ₹ 90 परन्तु अन् मारो

4. तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-प्रत्येक व्यापारिक बैंक को अपनी जमा छ प्रतिशत हिस्सा अपने पास नकदी अथवा प्रतिभूतियों के रूप में रखना अनिवार्य होता है। इसको तरलता अनुपात कहा जाता है। जब केन्द्रीय बैंक तरलता अनुपात में वृद्धि कर देता है तो उधार मुद्रा का कम निर्माण होता है।

(B) गुणात्मक औज़ार (Quantitative Instruments)-यह औज़ार विशेष प्रकार के उधार को नियंत्रित करते हैं
1. सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirements)-जब उधार लेते समय किसी वस्तु को गिरवी रखा
जाता है, उसको गिरवी रखकर कितना उधार दिया जाता है। इसके अन्तर को सीमान्त आवश्यकता कहा जाता है, जैसे कि ₹ 100 की वस्तु गिरवी रखकर ₹ 80 का उधार प्राप्त हुआ तो उधार की सीमान्त आवश्यकता 20% है। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जा सकता है।

2. उधार का राशन (Rationing of Credit) केन्द्रीय बैंक स्टेट के लिए उधार दी जाने वाली राशि का कोटा निर्धारण कर देता है, इसको उधार का राशन कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

3. नैतिक दबाव (Moral Pressure) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों पर दबाव डालकर अधिक अथवा कम देने के लिए निवेदन करता है जोकि व्यापारिक बैंकों के लिए आदेश होता है।

अस्फीतिक अन्तर अथवा अभावी मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय निम्नलिखित अनुसार मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-

  • बैंक दर घटा दी जाती है। इससे ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार निर्माण में वृद्धि होती है।
  • खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों की खरीद करता है। लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होती है।
  • नकद रिज़र्व अनुपात को घटा दिया जाता है, इससे व्यापारिक बैंक अधिक उधार देने लगते हैं।
  • तरलता अनुपात को घटाया जाता है, व्यापारिक बैंक की उधार देने की शक्ति बढ़ जाती है।
  • उधार की सीमान्त शर्ते नर्म की जाती हैं।
  • उधार अधिक देने के लिए नैतिक प्रभाव का प्रयोग किया जाता है।

इस नीति को सस्ती मौद्रिक नीति (Cheap Monetary Policy) कहा जाता है। स्फीतिक अन्तराल अथवा अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Excess Demand or Inflationary Gap)-मुद्रा स्फीति अथवा अधिक मांग के समय निम्नलिखित मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-

  • बैंक दर बढ़ा दी जाती है। इससे ब्याज की दर बढ़ जाती है।
  • खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचने लगता है।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि की जाती है। व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं।
  • तरलता अनुपात में वृद्धि की जाती है। बैंक कम उधार देने लगते हैं।
  • सीमान्त शर्ते सख्त की जाती हैं।
  • उधार का राशन किया जाता है। इस नीति को महंगी मौद्रिक नीति (Dear Monetary Policy) कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 11 निवेश गुणक Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 निवेश गुणक

PSEB 12th Class Economics निवेश गुणक Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको गुणक कहते हैं। जैसे कि निवेश में 10 करोड़ रु० की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में ₹ 30 करोड़ की वृद्धि हो जाती है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 1

प्रश्न 2.
निवेश गुणक का सूत्र बताएँ।
उत्तर-
निवेश गुणक का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 2
उदाहरण के लिए निवेश 2 करोड़ करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 4 करोड़ हो जाती है तो गुणक इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 3

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है गुणक का आकार इस प्रक
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}\) = 2

प्रश्न 4. गुणक (K) = ——- .
उत्तर-
गुणक K = \(\frac{\Delta \mathrm{y}}{\Delta \mathrm{I}}\)|

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 5. यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है तो गुणक का आकार ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{\frac{1}{1}}{2}=\frac{1 \times 2}{1}\) = 2

प्रश्न 6.
गुणक दोधारी तलवार है जो राष्ट्रीय आय में तेज़ी से वृद्धि करती है अथवा कमी करती है ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 7.
यदि MPC = 1 है तो गुणक का आकार ———– होगा।
उत्तर-
(a) शुन्य (0)
(b) 1
(c) अनंत
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) अनंत।

प्रश्न 8.
यदि राष्ट्रीय आय में वृद्धि 4 करोड़ रुपये और निवेश में वृद्धि 2 करोड़ रुपये है तो गुणक ज्ञात करें।
उत्तर-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 4

प्रश्न 9.
यदि MPS = \(\frac{1}{4}\) है गुणक का आकार ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)

प्रश्न 10.
जितनी सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) कम होगी गुणक का प्रभाव उतना ही कम होता है।
उत्तर-
गलत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको गुणक कहते हैं। जैसे कि निवेश में ₹ 10 करोड़ की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में ₹ 30 करोड़ की वृद्धि हो जाती है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 5

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 2.
निवेश गुणक का सूत्र बताएँ। ‘
उत्तर-
निवेश गुणक का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 6
उदाहरण के लिए निवेश 2 करोड़ करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 4 करोड़ हो जाती है तो गुणक इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 7

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
K = \(\frac{1}{1-M P C}\)
यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2\)

III. लघु उत्तरीय प्रश्न | (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक की धारणा को स्पष्ट करो। यह सीमान्त बचत प्रवृत्ति से कैसे सम्बन्धित है ?
अथवा
गुणक से क्या अभिप्राय है ? गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
निवेश गुणक का अर्थ है, निवेश में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि की अनुपात (The rate of change in Income due to change in investment)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\mathrm{MPC}}\)
इसमें K =गुणक, ΔY = आय में परिवर्तन, ΔI = निवेश में परिवर्तन, MPC = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति, MPS = सीमान्त बचत प्रवृत्ति
Example : यदि ΔI = 100 करोड़, MPC = \(\frac{3}{4}\) , MPS = 1- \(\frac{3}{4}\) = \(\frac{1}{4}\)= तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि को स्पष्ट करो।

K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{3}{4}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)
अथवा
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)
यदि हमें MPC अथवा MPS का पता हो तो गुणक का आकार माप सकते हैं
∴ K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) अथवा K. ΔI = ΔY = 4 x 10 = 40 करोड़ रुपए।

(i) स्पष्ट है कि MPC का पता हो तो K का आकार माप सकते हैं। जितनी MPC अधिक होगी, गुणक का आकार उतना बड़ा होगा। K तथा MPC का सीधा सम्बन्ध होता है।
(ii) MPS जितनी अधिक होगी गुणक का आकार उतना कम होगा अर्थात् K तथा MPS का विपरीत सम्बन्ध होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 2.
एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो कि निवेश वृद्धि आय स्तर में वृद्धि को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि महत्त्वपूर्ण होती है, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि कई गुणा अधिक हो जाती है। इसका कारण गुणक की धारणा का लागू होना होता है। गुणक की धारणा अधिक हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि अधिक होगी। परन्तु गुणक की धारणा स्वयं सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करती है। यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) अधिक होती है तो गुणक का प्रभाव अधिक होगा। मान लो एक देश में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति MPC = \(\frac{1}{2}\) = 0.5 है तथा निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपये की जाती है। निवेश की वृद्धि राष्ट्रीय आय में कितनी वृद्धि करेगी, इसको निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट करते हैं-
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=K \times \Delta I=\Delta Y\)
अथवा
ΔY= \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \times \Delta \mathrm{I}\) (∵ K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \))
ΔY = \(\frac{1}{1-0.5} \times 100=\frac{1}{\frac{1}{2}} \times 100\)
100 x 2 = ₹ 200 करोड़ उत्तर
निवेश की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि गुणक के आकार अनुसार हो जाती है।

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में ₹ 1000 करोड़ की वृद्धि की जाती है। यदि MPC = 0.75 है तो आय तथा बचत में वृद्धि का पता करो।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\)
ΔY = K. ΔI
= 4 x 1000 = 4000 करोड़

MPS = 1 – MPC
= 1 – 0.75 = 0.25
बचत में वृद्धि = AY x MPS
= 4000 x 0.25 = ₹ 1000 करोड़ उत्तर

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
निवेश गुणक की परिभाषा दीजिए। इसका सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या सम्बन्ध है ? निवेश गुणक की कार्यकुशलता को स्पष्ट करो।।
(What is Multiplier ? How is it related to MPC ? Explain the working of Investment multiplier.)
उत्तर-
निवेश गुणक का अर्थ (Meaning of Multiplier)-इस धारणा का अर्थशास्त्र में केन्ज़ ने प्रयोग किया। निवेश गुणक की धारणा निवेश में परिवर्तन होने से आय में होने वाले परिवर्तन के सम्बन्ध को प्रकट करती है। जब निवेश में वृद्धि की जाती है तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको निवेश गुणक कहा जाता है। (The rate of change in Income due to change in investment is called Multiplier) इसका अनुमान इस प्रकार लगाया जाता है-
Κ. ΔΙ = ΔΥ
अथवा
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
इसमें K = गुणक, ΔY = आय में परिवर्तन, ΔI = निवेश में परिवर्तन। उदाहरणस्वरूप सरकार द्वारा 50 करोड़ रु० निवेश किया जाता है। इससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि 100 करोड़ रु० हो जाती है तो
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{100}{50}\) = 2

गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध (Relationship between K and M.P.C.)-गुणक का मूल्य सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति द्वारा निर्धारण होता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना ही बड़ा होता है तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जितनी कम होगी, गुणक का आकार उतना कम होगा। इनके सम्बन्ध को एक समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
अथवा
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{Y}-\Delta \mathrm{C}}\)
[∵ Y = C+S
ΔY = ΔC + ΔS
ΔS = ΔI
∴ ΔY = ΔC+ΔI
ΔY – ΔC = ΔI]

दाईं ओर की समीकरण को ΔY से विभाजित करने से
K = \(\frac{\Delta Y / \Delta Y}{\Delta Y / \Delta Y-\Delta C / \Delta Y}=\frac{1}{1-\Delta C / \Delta Y}=\frac{1}{1-M P C}\)
अथवा
K= \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
∵ (MPS = 1 – MPC)

उदाहरणस्वरूप-

  • यदि MPC शून्य है- यदि MPC शून्य है तो MPS = 1 होगी तथा गुणक का आकार इकाई के समान होगा अथवा आय में वृद्धि निवेश से एक गुणा होगी।
  • यदि MPC एक है- यदि MPC एक के समान है तो आय में वृद्धि बहुत अधिक गुणा होगी। परन्तु MPC न तो शून्य होती है तथा न ही एक के समान होती है। यह 0 से अधिक तथा 1 से कम होती है।
  • यदि MPC शून्य से अधिक तथा एक से कम है-MPC जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना अधिक होता है।

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MPC = \(\frac{1}{2} \) = तो K = 2, MPC =\(\frac{9}{10} \) तो K = 10.
गुणक की कार्यकुशलता (Working of Multiplier)-गुणक की कार्यकुशलता को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैंयदि
Y = ₹ 100 करोड़, Y1 = ₹ 200 करोड़, I = ₹ 10 करोड़,
I1 = ₹ 30 करोड़ तो गुणक का पता करो।
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\mathrm{MPS}}\)
ΔY = (Y1 – Y) = 200 – 100 = 100
ΔI = (I1 – I) = 30 -10 = 20
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{100}{20}\) = 5

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जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना अधिक होगा। MPC जब अधिक होगी तो MPS कम होती है। इसलिए MPS तथा गुणक का विपरीत सम्बन्ध होता है। जब सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) कम होती है तो गुणक का प्रभाव अधिक होता है। रेखाचित्र 1 अनुसार मौलिक सन्तुलन E बिन्दु पर है तथा राष्ट्रीय आय OY है। निवेश में वृद्धि ΔI होने से राष्ट्रीय अन्य OY से बढ़कर OY1 हो जाती है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय में वृद्धि YY1 है इसे गुणक की Forward Working कहते हैं। यदि निवेश ΔI कम हो जाता है तो राष्ट्रीय आय YY2 कम हो जाती है इसे गुणक की Backward working कहते हैं।
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V. संरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
यदि गुणक का मूल्य 3 है और एक अर्थव्यवस्था में ₹ 100 करोड़ का निवेश किया जाए तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि कितनी होगी ?
उत्तर-
गुणक के सूत्र अनुसार
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
3 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{100}\) = 3 × 100 = ΔY
∴ ΔY = ₹ 300 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
गुणक का मूल्य, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। इनका आपस में सीधा सम्बन्ध होता है।
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
यदि
MPC = \(\frac{1}{2}\) तो K = \(\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2\)
MPC = \(\frac{4}{5}\) तो K = \(\frac{1}{1-\frac{4}{5}}=\frac{1}{\frac{1}{5}}=\frac{1 \times 5}{1} \) = 5

स्पष्ट है कि MPC जितनी अधिक होती है, गुणक का आकार उतना ही बड़ा होता है। MPC जितनी कम होती है, गुणक का मूल्य उतना कम होता है।

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का सम्बन्ध विपरीत होता है-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
यदि
MPS = \(\frac{1}{3}\) तो K = \(\frac{1}{\frac{1}{3}}=\frac{1 \times 3}{1}\) = 3
यदि MPS = \(\frac{1}{10}\) तो K = \(\frac{1}{\frac{1}{10}}=\frac{1 \times 10}{1}\) = 10
स्पष्ट है कि सीमान्त बचत प्रवृत्ति जितनी कम होती है गुणक का आकार उतना अधिक होता है तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) जितनी अधिक होती है, गुणक का आकार उतना कम होता है। इनका परस्पर में विपरीत सम्बन्ध होता है।

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प्रश्न 4.
यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो गुणक का आकार (मूल्य ) क्या होगा ?
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
= \(\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 10 करोड़ होती है तथा परिणामस्वरूप आय में वृद्धि ₹ 50 करोड़ हो जाती है। गुणक का मूल्य क्या होगा ?
उत्तर-
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प्रश्न 6.
यदि MPC = 0.8 है, निवेश में परिवर्तन ₹ 1000 है तो आय में परिवर्तन का पता करो।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{\frac{2}{10}}=\frac{1 \times 10}{2}=5\)
आय में परिवर्तन Κ X ΔΙ
= 5 x 1000
= ₹ 5000 उत्तर

प्रश्न 7.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 10,000 है, परिणामस्वरूप आय में वृद्धि ₹ 40,000 है तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{40,000}{10,000} \) = 4
अथवा
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\) अथवा MPS = \(\frac{1}{K}=\frac{1}{4}\)
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = \(\frac{1}{4}\) or 0.25 उत्तर

प्रश्न 8.
यदि MPC = 0.75 है तो गुणक का मूल्य बताओ।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
= \(1 \times \frac{100}{25}\) = 4

प्रश्न 9.
यदि एक अर्थव्यवस्था में MPC = 0.75 है, निवेश व्यय में वृद्धि ₹ 500 करोड़ होती है। कुल आय में वृद्धि बताओ तथा उपभोग व्यय ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75} \frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}\) = 4
आय में वृद्धि = ΔI x K
= 500 x 4 = ₹ 2000 करोड़
उपभोग व्यय = 2000 x 0.75 = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
निवेश में ₹ 20 करोड़ की वृद्धि के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 100 करोड़ हो जाती है। MPC ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{100}{20}\) = 5
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
5 = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
5 (1 – MPC) = 1
5 – 5 MPC = 1
5 – 1 = 5 MPC
4 = 5MPC
MPC = \(\frac{4}{5}\) = 0.8 उत्तर

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। ₹ 500 करोड़ की निवेश में वृद्धि की जाती है। उपभोग व्यय तथा आय में कुल वृद्धि की गणना करें।
उत्तर-
K= \(\frac{1\cdot}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{\frac{2}{10}}=\frac{10}{12}=5\)
K = \(\frac{\Delta y}{\Delta \mathrm{I}}\)
∴ 5 = \(\frac{\Delta y}{500}\)
ΔΙx K
आय में वृद्धि (Δy) = 500 x 5 = ₹ 2500 करोड़
उपभोग में वृद्धि (ΔC) = Δy x MPC
= 2500 x 0.8
= 2500 x \(\frac{8}{10}\) = ₹ 2000 करोड उत्तर

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प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में वास्तविक आय ₹ 500 करोड़ है, जबकि पूर्ण रोज़गार पर राष्ट्रीय आय ₹ 800 करोड़ है। यदि MPC = 0.75 है तो कितना निवेश बढ़ाया जाए कि पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त हो जाए ?
उत्तर-
वास्तविक आय = ₹ 500 करोड़
पूर्ण रोज़गार पर आय = ₹ 800 करोड़
आय में अनिवार्य वृद्धि = 800 – 500 = ₹ 300 करोड़
M.P.C. = 0.75
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) =4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) अथवा ΔI = \(\frac{\Delta Y}{K}=\frac{300}{4}\) = ₹ 75 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 13.
यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। निवेश खर्च में वृद्धि 500 करोड़ रुपये की जाती है। आमदन और उपभोग में वृद्धि का माप करो ।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.75. ΔI = ₹ 500 करोड़
गुणक
= \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{100}{25}\)
= 4
(i) आमदन में वृद्धि
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\), K × ΔI = ΔY
ΔΥ = 4 × 500 = ₹ 2000 करोड़

(ii) उपभोग खर्च में वृद्धि = MPC ×ΔY = 0.75 × 2000 = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 14.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश खर्च की वृद्धि ₹ 700 करोड़ है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.9 है। आमदन और उपभोग खर्च में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर –
ΔI = ₹ 700 करोड़, MPC = 0.9
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{.1}\) = 10
(i) आमदन में वृद्धि = KΔI = 10 x 700 = ₹ 7000 करोड़
(ii) उपभोग खर्च में वृद्धि = ΔY x MPC = 7000 x 0.9 = ₹ 6300 करोड़ उत्तर

प्रश्न 15.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि ₹ 600 करोड़ है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है। आमदन में वृद्धि और उपभोग खर्च में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर-
ΔI = 600, MPC = 0.6
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{\frac{1}{4}}{\frac{4}{10}}=\frac{10}{4} \) = 2.5
(i) आमदन में वृद्धि (ΔY) = K x ΔI = 2.5 x 600 = ₹ 1500 करोड़
(ii) उपभोग में वृद्धि (ΔC) = ΔY x MPC = 1500 x 0.6 = ₹ 900 करोड़ उत्तर

प्रश्न 16.
यदि MPC = 0 है तो गुणक पता करें।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0}=\frac{1}{1}\) = 1 उत्तर

प्रश्न 17.
यदि MPS = 0 है तो गुणक का आकार बताओ।
उत्तर-
MPC = 1 – MPS = 1 – 0 = 1
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-1}=\frac{1}{0}\) = ∞(Infinity)
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0}\) = ∞ (Infinity)

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प्रश्न 18.
यदि गुणक 5 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति और सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPS}}\) = 5 = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}\)
∴ MPS = \(\frac{1}{5}\) = 0.2
और MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 19.
यदि MPS = 0.2 है और राष्ट्रीय आमदन में वृद्धि ₹ 100 करोड़ करनी हो तो निवेश में वृद्धि कितनी करनी चाहिए ?
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.2}=\frac{\frac{1}{2}}{\frac{10}{10}}=\frac{10}{2}\) = 5
और
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = K x ΔI = ΔY = 5 x ΔI = 100
ΔI = \(\frac{100}{5}\) = ₹ 20 करोड़ उत्तर

प्रश्न 20.
यदि MPC = 0.75 है और राष्ट्रीय आमदन में वृद्धि ₹ 2000 करोड़ करनी हो तो कितना निवेश करने की ज़रूरत है ?
उत्तर-
K=\(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\Delta\mathrm{Y}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{\frac{1}{25}}{\frac{25}{100}}=\frac{100}{25} \)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) या KΔI = ΔY
= 4 x ΔI = 2000 = ΔI = \(\frac{2000}{4}\) = ₹ 500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में ₹ 200 करोड़ का अतिरिक्त निवेश होने पर यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{1}{2}\) हो तो कितनी अतिरिक्त आय का सृजन होगा ?
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2 \)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
2 = \(\frac{\Delta Y}{200}\) = 400 = BY
ΔY = ₹400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 22.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि निवेश में ₹ 500 करोड़ की वृद्धि की जाए तो आय में कितनी वृद्धि होगी ?
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = 4
= \(\frac{\Delta Y}{500}\) = 4 x 500 = ΔY
ΔY = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

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प्रश्न 23.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.95 है। निवेश में ₹ 100 करोड़ की वृद्धि होने पर आय में वृद्धि ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.95}=\frac{1}{0.05}=\frac{1}{\frac{5}{100}}=\frac{1 \times 100}{5}\) = 20
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
= 20 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{100}\) = 20 x 100 ΔY
∴ ΔY = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 24.
यदि एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवत्ति \( \frac{3}{4}\) में है और निवेश में ₹ 500 करोड़ की वृद्धि की जाती है तो आय में वृद्धि ज्ञात करो।
उत्तर –
दिया है MPC = \( \frac{3}{4}\)
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{3}{4}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}\) = 4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = 4 = \(\frac{\Delta Y}{500}\)
ΔY = 500 x 4 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 25.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.4 है ।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}=\frac{1}{0.4}=\frac{1}{\frac{0.4}{10}}=\frac{1 \times 10}{1}\) = 2.5 उत्तर

प्रश्न 26.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.5 है ।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}=\frac{1}{0.5}=\frac{1}{\frac{0.5}{10}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2 \) उत्तर

प्रश्न 27.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.8 है ।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.8}=\frac{1}{\frac{8}{10}}=\frac{1 \times 10}{8}\) = 1.25

प्रश्न 28.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश ₹ 300 करोड़ की वृद्धि होती है यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तो आय तथा उपभोग में वृद्धि कर ज्ञात करें।
उत्तर-
निवेश में वृद्धि (Δ I) = ₹ 300 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC = 0.6)
गुणक = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{10}{4}\) = 2.5

गुणाक के सूत्र अनुसार-
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
= 2.5 = \(\frac{\Delta Y}{300}\)
= 750 = (ΔY)
आय में वृद्धि (ΔY) = ₹ 750 करोड़ उत्तर
उपभोग व्यय में वृद्धि (Δ C)ΔY x MPC = 750 x 0.6 = ₹ 450 करोड़ उत्तर

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प्रश्न 29.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 900 करोड़ की होती है यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तो राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर-
निवेश में वृद्धि (ΔI) = ₹ 900 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.6
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{10}{4}\) = 2.5

गुणक के सुत्र अनुसार
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\)
2.5 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{900}\)
= 2.5 x 900 = AY
2250 = ΔY
आय में वृद्धि ΔY = ₹ 250 करोड़
उपभोग व्यय में वृद्धि (ΔC) = ΔY x MPC
= 2250 x 0.6
= ₹ 1350 करोड़ उत्तर