PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

PSEB 12th Class Economics उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोग फलन का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को ही उपभोग फलन कहते हैं।

प्रश्न 2.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कुल उपभोग में परिवर्तन और कुल आय में परिवर्तन के अनुपात को व्यक्त करती है।
अर्थात्
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प्रश्न 3.
औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-समग्र उपभोग व्यय को समग्र आय से विभाजित करने पर जो भागफल आता है, उसको औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
अर्थात्
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प्रश्न 4.
बचत फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बचत फलन बचत और आय के सम्बन्ध को व्यक्त करता है।

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प्रश्न 5.
औसत बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समग्र बचत को समग्र आय से विभाजित करने पर जो भजनफल आता है उसे औसत बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
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प्रश्न 6.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय में परिवर्तन से बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
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प्रश्न 7.
बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक अनुसूची जिसमें बचत और आय के सम्बन्ध को प्रकट किया जाता है, उस अनुसूची को बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

प्रश्न 8.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का माप कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का माप करने के लिए उपभोग में परिवर्तन को आय में परिवर्तन से बांट दिया जाता है।
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प्रश्न 9.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति आय के स्तर पर क्या प्रभाव डालती है ?
उत्तर-
जितनी सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति अधिक होगी आय में उतनी अधिक वृद्धि होगी।

प्रश्न 10.
क्या औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक हो सकती है ? यदि हाँ तो कब ऐसा होता है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) ऋणात्मक हो सकती है जब APC > 1. ऐसा तब होता है जब उपभोग (C) आय (Y) से अधिक हो।

प्रश्न 11. सीमान्त बचत प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-सी
मान्त बचत प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का योग इकाई के बराबर होता है। अर्थात् (MPS + MPC = 1)|

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प्रश्न 12.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य क्या होगा यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति शून्य (Zero) होती है।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई (1) के बराबर होगा।

प्रश्न 13.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य क्या हो सकता है ?
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य इकाई (1) के बराबर हो सकता है।

प्रश्न 14.
औसत बचत प्रवृत्ति और औसत उपभोग प्रवृत्ति में से किस का मूल्य इकाई से अधिक हो सकता है और कब ?
उत्तर-
APC का मूल्य इकाई से अधिक हो सकता है जब उपभोग, आय से अधिक होता है (C > Y).

प्रश्न 15.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य कितना हो सकता है ?
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य इकाई (1) के बराबर हो सकता है।

प्रश्न 16.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई (1) से अधिक क्यों नहीं होता ?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि उपभोग में परिवर्तन, आय में परिवर्तन से अधिक नहीं हो सकता।

प्रश्न 17.
यदि MPC = 0.8 है तो MPS कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1 MPS
= 1 – 0.8 = 0.2 उत्तर

प्रश्न 18.
यदि MPS = 0.75 है तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
MPC + 0.75 = 1
MPC = 1 – 0.75 = 0.25 उत्तर

प्रश्न 19.
यदि खर्चयोग आय (Disposable Income) 1000 करोड़ रुपए है और उपभोग व्यय 750 करोड़ रुपए है तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
APS = \(\frac{S}{Y}=\frac{250(1000-750)}{1000}=\frac{1}{4}\)  = 0.25 or 25%.

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प्रश्न 20.
यदि MPS = 1 तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
1 – MPS = 1-1 = 0(Zero)

प्रश्न 21.
नियोजन बचत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजन बचत (Planned or Ex-ante) का अर्थ जितनी बचत करने की लोग इच्छा रखते हैं।

प्रश्न 22.
वास्तविक बचत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक बचत (Actual or Ex-Post) का अर्थ जितनी बचत लोगों द्वारा की जाती है।

प्रश्न 23.
क्या वास्तविक बचत और नियोजन बचत बराबर हो सकती है ?
उत्तर-
बराबर हो भी सकती है परन्तु ज़रूरी नहीं बराबर ही हो।

प्रश्न 24.
APC और APS में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
APC + APS = 1

प्रश्न 25.
उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक सूचीपत्र जिसमें उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को प्रकट किया जाता है उस सूचीपत्र को उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

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प्रश्न 26.
अल्पकालीन उपभोग प्रवृत्ति का सूत्र लिखिए।
उत्तर-
C = a + by
C = अल्पकालीन उपभोग
a = स्वतन्त्र उपभोग
b = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
Y = आय।

प्रश्न 27. ‘
दीर्घकालीन उपभोग प्रवृत्ति का सूत्र लिखिए।
उत्तर-
C = by
समें C = दीर्घकालीन उपभोग
b = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
Y = आय।

प्रश्न 28.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मान कितना होता है ?
उत्तर-
MPC का मान 0 से 1 के बीच में होता है।

प्रश्न 29.
यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है तो औसत बचत प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
APC + APS = 1
0.65 + APS = 1
ADS = 1 – 0.65 = 0.35 उत्तर

प्रश्न 30.
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) =…………………………..
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति APC = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 6

प्रश्न 31.
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) =……………………..
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति (AFC) = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 7

प्रश्न 32.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = …………………………..
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) =PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 8

प्रश्न 33.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = ………..
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 9

प्रश्न 34.
यदि MPC = , है तो MPS कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC = MPS = 1
\(\frac{1}{2}\) + MPS = 1
MPS = 1- \(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{2}\) उत्तर

प्रश्न 35.
क्या औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक हो सकती है ? यदि हाँ तो ऐसा कब होता है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) ऋणात्मक हो सकती है जब APC>1 ऐसा तब होता है जब उपभोग (C) आय (Y) से अधिक हो।

प्रश्न 36.
यदि MPC = 0.8 है तो MPS कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1
MPS 1- 0.8 = 0.2 उत्तर

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प्रश्न 37.
यदि MPS = 0.8 है तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
MPC + 0.3 = 1
MPS = 1 – 0.3 = 0.7 उत्तर

प्रश्न 38.
यदि खर्चयोग आय (Disposable Income) ₹ 1000 करोड़ हैं। और उपभोग व्यय ₹750 करोड़ हैं तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
APS = \(\frac{250(1000-750)}{1000}=\frac{1}{4}\) = 0.25 Or 25%

प्रश्न 39.
यदि MPS = 1 तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPS + MPC = 1
MPC = 1 – MPS
= 1-1 = 0 (शून्य)

प्रश्न 40.
APC और APS में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
APC + APS = 1

प्रश्न 41.
उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ देश में कुल उपभोग से होता है ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 42.
\(\frac{\Delta \mathbf{C}}{\Delta \mathbf{Y}}\) = MPC
उत्तर-
सही।

प्रश्न 43.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य कितना हो सकता है ?
(a) शून्य (0)
(b) 1
(c) 2
(d) 10,000.
उत्तर-
(b) 1.

प्रश्न 44.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का न्यूनतम मूल्य कितना हो सकता है ?
उत्तर-
(a) शून्य (0)
(b) 1
(c) \(\frac{1}{2}\)
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) शून्य (0)।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें पारिवारिक क्षेत्र (Household Sector) तथा फ़र्मे (Firms) अथवा उत्पादन क्षेत्र होता है। इसलिए कुल मांग में उपभोग तथा निवेश को शामिल किया जाता है। इसमें सरकारी क्षेत्र तथा शेष विश्व क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 2.
पूर्ण रोज़गार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार उस स्थिति को कहा जाता है, जिसमें वह श्रमिक जो वर्तमान प्रचलित मज़दूरी की दर पर कार्य करना चाहते हैं तथा उनको बिना देरी से कार्य प्राप्त हो जाता है। पूर्ण रोज़गार में अनइच्छित बेरोज़गारी का अभाव होता है ।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को उपभोग फलन कहते हैं। इसे निम्न सूत्र द्वारा दिखाया जा सकता है–
C = f cy
अर्थात् Consumption in the function of National Income.
उपभोग प्रवृत्ति एक अनुसूची पत्र होता है जिसमें आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग की स्थिति को दिखाया जाता है। उपभोग प्रवृत्ति को एक सूचीपत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
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सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 1 में दिखाया है कि जब लोगों की आय सिफर (Zero) होती है तो भी लोग ₹ 50 करोड़ उपभोग पर खर्च करते हैं। यह पैसे लोग उधार लेकर अथवा पुरानी बचत को खर्च करके पूरा करते हैं। आय ₹ 100 करोड़ पर उपभोग व्यय 100 करोड़ है। इसके पश्चात् जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है उपभोग में भी वृद्धि होती है, परन्तु उपभोग में वृद्धि कम दर से होती है। रेखाचित्र में CC उपभोग प्रवृत्ति वक्र है।

प्रश्न 2.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ? इनमें से किस का मूल्य एक से अधिक हो सकता है और कब ?
उत्तर-
किसी भी आय के स्तर पर उपभोग और आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं। इसका माप निम्नलिखित अनुसार किया जाता है
APC = \(\frac{C}{Y}\)
APC प्रत्येक आय स्तर पर औसत उपभोग और आय के सम्बन्ध को दर्शाता है।
आय में वृद्धि होने से उपभोग में जो वृद्धि होती है उन वृद्धियों के सम्बन्ध को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
MPC = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 11
जैसा कि आय यदि ₹ 100 करोड़ से बह कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है और उपभोग ₹ 60 करोड़ से बढ़कर ₹ 65 करोड़ हो जाता है तो आय में वृद्धि 10 करोड़ होने से उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ हुई है तो-
MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) or 50%
इन दोनों का मूल्य एक से अधिक हो सकता है जब वर्तमान उपभोग वर्तमान आय से अधिक हो।

प्रश्न 3.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति का अर्थ बताइए। क्या औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है ?
अथवा
इनमें से किसका मूल्य ऋणात्मक हो सकता है ?
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति-सीमान्त बचत प्रवृत्ति बचत फलन की ढाल होती है। यह आय में वृद्धि के कारण बचत में हो रही वृद्धि को दर्शाती है।
MPS = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}\)
औसत बचत प्रवृत्ति-औसत बचत प्रवृत्ति किसी भी आय के स्तर पर बचत और आय का अनुपात है।
APS = \(\frac{S}{Y}\)
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) दोनों का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है जब वर्तमान उपभोग वर्तमान आय से अधिक होता है।

प्रश्न 4.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति में क्या सम्बन्ध है ? क्या औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है ? यदि हां तो कब ?
उत्तर-
(i) औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)-प्रत्येक आय के स्तर पर औसत उपभोग, प्रवृत्ति उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को दर्शाती है।
(ii) औसत बचत प्रवृत्ति (APS)-औसत बचत प्रवृत्ति प्रत्येक आय के स्तर पर बचत और आय का अनुपात होती है।
APC + APS = 1
औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है जब वर्तमान उपभोग, वर्तमान आय से अधिक हो।

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प्रश्न 5.
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग फलन, उपभोग व्यय और आय के सम्बन्ध को व्यक्त करता है। उपभोग व्यय, आय का फलन है [C = f (y)] अर्थात् आय पर निर्भर करता है। आय में वृद्धि होने से उपभोग व्यय में वृद्धि होती है, परन्तु उपभोग में वृद्धि आय में वृद्धि से कम होती है और उपभोग व्यय शून्य नहीं होता। अर्थशास्त्र में उपभोग फलन को केन्ज़ की सबसे बढ़ी धारणा माना जाता है। इस धारणा पर अर्थशास्त्रियों ने बहुत अधिक खोज की है।

प्रश्न 6.
केन्ज़ के मनोवैज्ञानिक उपभोग के नियम की व्याख्या करें।
उत्तर-
केन्ज़ ने अपनी पुस्तक में उपभोग के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिक नियम का निर्माण किया, जिसको उपभोग का आधार पूर्वक नियम (Psychological Law or Fundamental Law of Consumption) भी कहा जाता है। इस नियम में केन्ज़ ने तीन धारणाओं को स्पष्ट करने की चेष्टा की है –

  • जब किसी देश में लोगों की आय बढ़ती है तो उपभोग में ज़रूर वृद्धि होती है। परन्तु उपभोग में वृद्धि कम दर पर होती है |
    C <Y.
  • जब लोगों की आय में वृद्धि होती है तो इसका कुछ अंश उपभोग पर व्यय किया जाता है और कुछ अंश बचत के रूप में रखा जाता है|
    Y = C + S.
  • जब लोगों की आय में वृद्धि होती है तो उपभोग व्यय और बचत दोनों में वृद्धि होती है। ये तीनों धारणाएं अन्तर्सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 7.
अधिक उपभोग प्रवृत्ति एक गुण है जबकि अधिक बचत प्रवृत्ति नहीं है। व्याख्या करें।
उत्तर-
अधिक उपभोग प्रवृत्ति एक गुण है क्योंकि अधिक उपभोग व्यय करने से लोगों की आय में वृद्धि होती है। इसलिए उपभोग प्रवृत्ति एक गुण है जोकि देश में आय तथा रोजगार में वृद्धि करती है। बचत एक व्यक्ति के लिए अच्छी होती है परन्तु अधिक बचत प्रवृत्ति अच्छी नहीं होती। यदि देश में बचत अधिक की जाती है तो इससे उपभोग व्यय कम हो जाता है। एक व्यक्ति का व्यय दूसरे व्यक्ति की आय होती है। इसलिए दूसरे लोगों की आय कम हो जाती है। देश में उत्पादन कम होने लगता है और मन्दीकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस लिए अधिक बचत प्रवत्ति गुण नहीं अभिशाप बन जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति अथवा उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ? उपभोग प्रवृत्ति की किस्में बताएँ।
(What is meant by Consumption section of Propensity to Consume ? Explain the types of Propensity to Consume.)
उत्तर-
उपभोग फलन को उपभोग प्रवृत्ति भी कहा जाता है। कुल उपभोग तथा उपभोग प्रवृत्ति में अन्तर होता है। जब एक उपभोगी देश में ₹ 100 करोड़ में से ₹ 60 करोड़ उपभोग पर खर्च किए जाते हैं तो इसको औसत उपभोग कहा जाता है। जैसे कि 50 = 60% औसत उपभोग है। उपभोग फलन राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उपभोग के क्रियात्मक सम्बन्ध को प्रकट करती है। इसलिए इस धारणा को निम्नलिखित समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
C = f (Y) (उपभोग, आय का फलन है)

साधारणत: उपभोग फलन एक सूची-पत्र होता है जिसमें राष्ट्रीय आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को स्पष्ट किया जाता है। इस सूची-पत्र को उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए उपभोग प्रवृत्ति को एक सूची-पत्र तथा रेखा-चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

उपभोग फलन तालिका
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उपभोग प्रवृत्ति-उपभोग फलन तालिका में स्पष्ट किया है कि जब आय 0 है तो 20 करोड़ | ”
Y=(C+S) रुपए उपभोग पर खर्च है। आय में वृद्धि ₹ 50, 100, 150, 200, 250 करोड़ होती है तो उपभोग में वृद्धि ₹ 20, 60, 100, 140, 180, 220 करोड़ है।

जब E/ Ac b=4C आय 100 करोड़ रुपए हैं तो उपभोग भी ₹ 100 करोड़ है। इसके बाद जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती | है, बचत में भी वृद्धि होती है। इस सूची-पत्र को उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

बचत प्रवृत्ति-जब राष्ट्रीय आय 0 है तो बचत (-) 20 करोड़ है। आय 100 करोड़ पर उपभोग ₹ 100 करोड़ हैं। इसके पश्चात् राष्ट्रीय आय बढ़ने से बचत में वृद्धि होती है। रेखा को बचत प्रवृत्ति कहा जाता है।
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उपभोग प्रवृत्ति की किस्में (Types of Propensity to Consume)-केन्ज़ ने उपभोग प्रवृत्ति की दो किस्मों को स्पष्ट किया है
(A) औसत उपभोग प्रवृत्ति (Average Propensity to Consume)-एक देश के लोग अपनी आय में से कितने पैसे उपभोग पर खर्च करते हैं। इन दोनों तत्त्वों के सम्बन्ध को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ है और उपभोग पर ₹ 60 करोड़ खर्च किए जाते हैं। राष्ट्रीय उपभोग को राष्ट्रीय आय पर बाँट दिया जाए तो औसत उपभोग प्रवृत्ति प्राप्त हो जाती है।
APC = \(\frac{C}{Y}=\frac{60}{100}\) = ਧਾ 0.6 ਧਾ 60%

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रेखाचित्र 3 में दिखाया है कि जब आय ₹ 100 करोड़ है तो उपभोग खर्च 60 करोड़ है। उपभोग प्रवृत्ति CC रेखा पर A बिन्दु औसत उपभोग प्रवृत्ति 60% प्रकट करता है।
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(B) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume)-जब किसी देश में राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में भी वृद्धि हो जाती है, जब हम इन वृद्धियों के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हैं तो उसको सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए एक देश में राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है और उपभोग ₹ 60 करोड़ से बढ़कर ₹ 65 करोड़ हो जाता है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 10 करोड़ है तथा राष्ट्रीय उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ है। इन वृद्धियों के सम्बन्ध को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) = 0.5 Or 50%
रेखाचित्र 4 में दिखाया गया है कि जब राष्ट्रीय आय 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है तो उपभोग 60 करोड़ से बढ़कर ₹ 65 करोड़ हो जाता है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 10 करोड़ होने के कारण उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ है। इन वृद्धियों के सम्बन्ध को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) = 0.5 ਧਾ 50%
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प्रश्न 2.
बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ? औसत बचत प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति की धारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-
आय और बचत के सम्बन्ध को बचत प्रवृत्ति कहते हैं। [S = f(y)] अर्थात् बचत आय का फलन है। आय के बढ़ने से बचत भी बढ़ती है और आय के कम होने से बचत कम हो जाती है। केन्ज़ ने अपने मनोवैज्ञानिक नियम में यह बताया है कि जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में वृद्धि तो होती है परन्तु उपभोग में वृद्धि कम अनुपात में होती है और बचत अधिक अनुपात में बढ़ती है। यदि हम साधारण रूप में देखें तो बचत प्रवृत्ति को समझने के लिए सीधी रेखा अंकित चित्र द्वारा आसानी से दिखा सकते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 16PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 17
सूची पत्र में दिखाया गया है कि जब लोग बेरोजगार होते हैं और उनकी आय शून्य होती है तो भी उपभोग पर व्यय किया जाता है जोकि ₹ 50 करोड़ दिखाया गया है। इसलिए बचत ऋणात्मक (₹ -50 करोड़) दिखाई गई है। जब आय ₹ 100 करोड़ हो जाती है तो उपभोग भी बढ़कर ₹ 100 करोड़ हो जाता है और बचत शून्य हो जाती है। इसके पश्चात् जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है बचत में भी वृद्धि होती है। इसको रेखाचित्र 5 द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। जब आय शून्य है तो उपभोग ₹ 50 करोड़ किया जाता है और बचत ऋणात्मक है। जब आय बढ़कर ₹ 100 करोड़ हो जाती है तो उपभोग भी ₹ 100 करोड़ हो जाता है और बचत शून्य हो जाती है। इसके पश्चात् आय के बढ़ने से बचत बढ़ती है : – SS वक्र को बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

बचत फलन दो प्रकार का होता है –
1. औसत बचत प्रवृत्ति (Average Propensity to Save)-बचत और आय के अनुपात को औसत बचत प्रवृत्ति कहा जाता है। जैसा कि यदि आय ₹ 100 करोड़ है और लोग ₹ 20 करोड़ बचत करते हैं तो औसत बचत प्रवृत्ति
APS = \(\frac{S}{Y}=\frac{20}{100}=\frac{1}{5}\) Or 20%

रेखाचित्र 6. में दिखाया है कि आय 100 करोड़ रुपए है और बचत ₹ 20 करोड़ की जाती है तो बिन्दु A पर
APS = \(\frac{S}{Y}=\frac{20}{100} \) or 20%
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2. सीमान्त बचत प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Save)-जब आय में वृद्धि होती है तो बचत में भी वृद्धि होती है। बचत में वृद्धि और आय में वृद्धि के अनुपात को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते हैं। जैसा कि आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है और बचत ₹ 20 करोड़ से बढ़कर ₹ 25 करोड़ हो जाती है। आय में वृद्धि 10 करोड़ होने से बचत में वृद्धि ₹5 करोड़ है। इस प्रकार
MPS = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) \( Or 50%

रेखाचित्र 7 में दिखाया है कि आय में वृद्धि ₹ 10 करोड़ है और उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ है तो
MPS = [latex]\frac{\Delta S}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) Or 50%
APC + APS = 1
MPC + MPS = 1
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प्रश्न 3.
उपभोग प्रवृत्ति तथा बचत प्रवृत्ति के निर्धारक तत्त्व बताएं।
(Explain the Factors determining Propensity to Consume or Propensity to Save.)
उत्तर-
आय के बिना उपभोग प्रवृत्ति तथा बचत प्रवृत्ति बहुत से तत्त्वों पर निर्भर करती है। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण तत्त्व इस प्रकार हैं –

  1. आय का वितरण (Distribution of Income)-आय का वितरण एक देश के लोगों की उपभोग प्रवृत्ति को प्रभावित करता है। इससे बचत प्रवृत्ति पर भी प्रभाव पड़ता है। हम जानते हैं कि अमीर लोगों की उपभोग प्रवृत्ति कम होती है जबकि ग़रीब लोग अपनी आय का अधिक भाग उपभोग पर व्यय करते हैं और उनकी उपभोग प्रवृत्ति अधिक होती है। यदि आय का समान वितरण कर दिया जाए तो ग़रीब लोग और अमीर लोग उपभोग पर अधिक खर्च करेंगे, इसलिए उपभोग प्रवृत्ति अधिक हो जाएगी और बचत प्रवृत्ति कम हो जाएगी।
  2. धन का वितरण (Distribution of Income)-आय की भांति यदि धन का समान वितरण कर दिया जाये तो इससे उपभोग प्रवृत्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और बचत प्रवृत्ति कम हो जाएगी।
  3. उधार की प्राप्ति (Availability of Credit)-साख की सुविधा प्राप्त होने से उपभोग प्रवृत्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति को कार पर खर्च करना हो तो एकदम भुगतान करना मुश्किल होता है, परन्तु यदि उधार प्राप्त हो जाता है और कार का भुगतान किश्तों में किया जाना हो तो लोग ज़्यादा कारें खरीदने लग जाते हैं और उपभोग प्रवृत्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
  4. ब्याज की दर (Rate of Interest)-बाज़ार में प्रचलित ब्याज की दर भी उपभोग प्रवृत्ति पर असर डालती है। यदि ब्याज की दर कम हो तो लोग उधार लेकर वस्तु खरीद लेते हैं और उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होती है और बचत प्रवृत्ति कम हो जाएगी। इसके विपरीत ब्याज की दर अधिक है तो उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है।
  5. भविष्य की संभावनाएं (Future Expectation)-वर्तमान का उपभोग भविष्य की संभावनाओं पर निर्भर करता है। यदि भविष्य में कीमतें बढ़ने की संभावना हो तो वर्तमान में उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाएगी और लोग वस्तुओं पर अधिक खर्च करेंगे। यदि भविष्य में कीमत कम होने की संभावना हो तो वर्तमान में उपभोग प्रवृत्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  6. सरकार की नीति (Government Policy)-सरकार की नीति भी उपभोग प्रवृत्ति पर प्रभाव डालती है। यदि सरकार प्रत्यक्ष कर अधिक लगाती है तो लोगों की व्यय करने की शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है इससे बचत प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
  7. जीवन स्तर (Standard of Living)-यदि जीवन स्तर में तेजी से वृद्धि होती है तो लोग अपनी आय को बचत में रखने के स्थान पर खर्च करना चाहेंगे क्योंकि लोग अच्छा जीवन व्यतीत करना पसन्द करते हैं और आय का अधिक भाग खर्च करते हैं।

प्रश्न 4.
निवेश से क्या अभिप्राय है ? प्रेरित निवेश तथा स्वतन्त्र निवेश में क्या अन्तर है ? निवेश के मुख्य निर्धारक तत्त्व बताएं।
(What is meant by Investment ? Distinguish between Induced Investment & Autonomous Investment. Explain the main determinents of Investment.)
उत्तर-
निवेश का अर्थ (Meaning of Investment)-निवेश का अर्थ उस खर्च से होता है जिस द्वारा पूँजीगत पदार्थों का निर्माण होता है। जैसे कि कारखानों, मशीनों, औज़ारों में वृद्धि की जाती है। जिससे देश में रोज़गार में वृद्धि होती है। उसको निवेश कहते हैं। यदि पुराने मकान, दुकान, मशीन पर खर्च किया जाता है तो इसे वित्तीय निवेश कहते हैं। परन्तु जब नए मकान, दुकान या मशीन पर खर्च किया जाता है तो इसको वास्तविक निवेश कहते हैं। केन्ज़ के अनुसार निवेश से हमारा अभिप्राय वास्तविक निवेश से होता है। वित्तीय निवेश से नहीं होता।

निवेश की किस्में (Types of Investment)-प्रेरित निवेश तथा स्वचालित निवेश (Induced Investment and Autonomous Investment)
प्रेरित निवेश-यह आय तथा लाभ में होने वाले परिवर्तनों से प्रेरणा प्राप्त करता है। आय अथवा लाभ के बढ़ने की सम्भावना से यह बढ़ता है तथा इनमें कमी होने से यह कम हो जाता है। यह निवेश लाभ या आय सापेक्ष होता है। प्रेरित निवेश प्रायः निजी क्षेत्र (Private Sector) में किया जाता है। रेखाचित्र 8 द्वारा प्रेरित निवेश को स्पष्ट किया जा सकता है। इस रेखाचित्र में OX अक्ष पर आय तथा OY अक्ष पर निवेश प्रकट किया है। निवेश II, रेखा नीचे से ऊपर की ओर उठ रही है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 20

इससे सिद्ध होता है कि आय के बढ़ने पर निवेश बढ़ रहा है। कुरीहारा के अनुसार, आय के बहुत कम स्तर पर निवेश ऋणात्मक (Negative) हो सकता है। II, रेखा के OX से नीचे होने से यही प्रकट होता है। स्वचालित निवेश-यह निवेश आय-प्रेरित नहीं होता। इस प्रकार का निवेश आय में होने वाले परिवर्तन के आधार पर नहीं किया जाता। स्वचालित निवेश से अभिप्राय उस निवेश से है जो नई तकनीकों, नये आविष्कारों को लागू करने के लिए किया जाता है।

यह निवेश मन्दी तथा बेरोज़गारी को दूर करने तथा नये साधनों का रेखाचित्र 8 विकास करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार का निवेश देश की आर्थिक उन्नति तथा सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस प्रकार का निवेश प्रायः सरकार द्वारा किया जाता है। रेखाचित्र द्वारा स्वतन्त्र निवेश की धारणा को स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र 9 में II, स्वचालित निवेश वक्र है। यह OX अक्ष से समानान्तर एक सीधी रेखा (Horizontal Straight Line) है। इससे सिद्ध होता है कि आय के बढ़ने या कम होने पर निवेश में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। निवेश OI के बराबर होगा। केन्ज़ के अपने रोज़गार सिद्धान्त में मुख्यतः इस प्रकार के निवेश का प्रतिपादन किया है।PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 21

निवेश के निर्धारक तत्त्व
(Determinants of Investment)

निवेश-प्रेरणा को निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं-
1. पूँजी की सीमान्त कुशलता (Marginal Efficiency of Capital)-यदि ब्याज की दर में कोई भी परिवर्तन न हो तो पूँजी की सीमान्त उत्पादकता जितनी अधिक होगी उतनी ही निवेश की मात्रा अधिक होगी।

2. ब्याज दर (Rate of Interest)-दूसरी ओर, यदि पूँजी की सीमान्त उत्पादकता में परिवर्तन हो तो ब्याज की दर जितनी कम होगी उतना ही निवेश अधिक मात्रा में होगा।

3. तकनीकी विकास तथा नये आविष्कार (Technological Growth and Innovation)-कीज़र के अनुसार तकनीकी परिवर्तन एक बड़ी सीमा तक निवेश प्रेरणा को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए पिछले कई वर्षों से कृषि तथा उद्योगों में श्रम-बचाऊ (Labour-Saving) या पूँजी-बचाऊ (Capital Saving) मशीनों के बनने से इन क्षेत्रों में काफ़ी निवेश बढ़ा है। इसी प्रकार नये आविष्कारों का जैसे टैरीलीन के कपड़े, स्कूटर, टेलीविज़न, ए० सी०, रैफ्रीजिरेटर आदि ने भी निवेश के स्तर को ऊंचा उठाने में सहायता दी है। संक्षेप में प्रो० मैक्कोलन के अनुसार, “नये आविष्कारों की बढ़ती हुई तेज़ रफ्तार निवेश को बहुत प्रेरणा देती है।”

4. बनाए रखने और चालू रखने वाली लागते (Maintenance and Operation Costs)-निवेश करते समय लाभ की सम्भावना इस बात पर भी निर्भर करती है कि मशीनों आदि पर क्या खर्च आया है और उन्हें चालू हालत में रखने के लिए अनुमानित लागतें क्या हैं। यदि ये तागतें ऊंची हैं तो शुद्ध लाभ कम होगा और इससे निवेश स्तर में कमी होगी और यदि ये लागतें नीची हैं तो शुद्ध लाभ बढ़ने से निवेश स्तर में वृद्धि होगी।

5. सरकारी नीतियाँ (Government Policies)-निजी निवेश का निर्णय लेते हुए सरकार की कर (Tax) नीति का भी ध्यान रखना पड़ता है। कर व्यापारिक लागतों का ही एक भाग होते हैं और यदि ये कर अधिक हों तो लाभ की सम्भावना कम हो जाने से निवेश स्तर भी कम हो जाएगा। परन्तु यदि कर कम होंगे तो निवेश-प्रेरणा को प्रोत्साहन मिलेगा।

6. पूँजीगत वस्तुओं का वर्तमान स्टॉक (The Present Stack of Capital Gooks किसी उद्योग में पूँजी पदार्थों का वर्तमान स्टॉक अतिरिक्त निवेश से अनुमानित लाभ को प्रभावित करता है। यदि किसी उद्योग में उत्पादन सुविधाओं, तैयार माल आदि का पहले से ही कम स्टॉक है तो उद्योग में अतिरिक्त निवेश में क्षेत्र बढ़ जाएगा।

7. व्यावसायिक सम्भावनाएं (Bussiness Expectations)- निवेश इस बात पर भी निर्भर करता है कि भविष्य में कितना लाभ होगा। यदि भविष्य में अधिक लाभ होने की आशा होती है तो अधिक निवेश किया जाता है। इस प्रकार तेज़ी की आशंकाएं निवेश पर अच्छा प्रभाव डालती हैं।

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V. संख्यात्मक प्रश्न
(Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आय तथा उपभोग अनुसूची से औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) ज्ञात करें।

आय (₹ करोड़) 0 100 200 300 400
उपभोग (₹ करोड़) 40 100 150 180 200

उत्तर
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 22

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सूचीपत्र में औसत बचत प्रवृत्ति (APS) तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का माप करें।

आय (₹ करोड़) 0 100 200 300 400 500
उपभोग (₹ करोड़) 20 100 180 260 340 420

उत्तर-
आय तथा उपभोग के अन्तर से बचत का माप किया जा सकता है तथा फिर औसत वचत प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का माप कर सकते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 23

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 24
उत्तर-

  • वर्ष के प्रारम्भ में APC = \( \frac{\mathrm{C}}{\mathrm{Y}}=\frac{4000}{10000}\) = 0.4.
  • वर्ष के अन्त में APC = \(\frac{C}{Y}=\frac{5000}{15000}\) = 0.33
  • सीमान्त उपभोग प्रवत्ति (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{1000}{5000}\) = 0.2 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 4.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करो –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 25
उत्तर-
यदि प्रारम्भिक आय 400 रु० तथा प्रारम्भिक खर्च 340 रुपए है तो

प्रश्न 5.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें –
आय का स्तर । उपभोग खर्च
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 27
उत्तर-
यदि प्रारम्भिक आय तथा उपभोग = 0 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 28
उत्तर-
यदि प्रारम्भिक आय = 100 और उपभोग = ₹ 100 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 30

प्रश्न 6.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 31
उत्तर-
I–यदि प्रारम्भिक आय तथा उपभोग खर्च = 0 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 32
उत्तर-
II……यदि प्रारम्भिक आय = 300 तथा उपभोग = ₹ 280 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 34

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 7.
(a) यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.3 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी ?
(b) यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
MPS = 0.3 MPC = ?
(a) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1 – MPS
= 1 – 0.3
= 0.7 उत्तर
(b) सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.8
= 0.2 उत्तर

प्रश्न 8.
यदि राष्ट्रीय आय ₹ 100 है तो उपभोग ₹ 50 है। राष्ट्रीय आय बढ़कर ₹ 150 हो जाती है तो उपभोग बढ़कर ₹ 75 हो जाता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर
MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}\)
आय में परिवर्तन (AY) = 150 – 100 = ₹ 50
उपभोग में परिवर्तन (AC) = 75 – 50 = ₹ 25
सीमान्त उपभोग में परिवर्तन (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{25}{50}\) = 0.5
सीमान्त बचत प्रवृत्ति = 1 – MPC
= 1 – 0.5 = 0.5 उत्तर

प्रश्न 9.
आय ₹ 100 से बढ़कर ₹ 200 हो जाती है। उपभोग खर्च ₹ 75 से बढ़कर ₹ 140 हो जाता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा बचत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
आय में परिवर्तन (ΔY) = 200 – 100 = ₹ 100
उपभोग में परिवर्तन (ΔC) = 140 – 75 = ₹ 65
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{65}{100}\) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवत्ति (MPS) = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}\) 1 – MPC
= 1 – 0.65
= ₹ 0.35 उत्तर

प्रश्न 10.
यदि उपभोग खर्च ₹ 1000 है, उपभोग खर्च ₹ 750 है तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
आय ₹ 1000 उपभोग खर्च = 750
बचत = आय – उपभोग = 1000 – 750 = ₹ 250
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 35
= 0.25 उत्तर

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है। सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.65
= 0.35 उत्तर

प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.25
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1 – MPS
= 1 – 0.25
= 0.75 उत्तर

प्रश्न 13.
यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है तो औसत बचत प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) = 0.75
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) = 1 – APC
= 1 – 0.75
= 0.25 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 14.
यदि APC 0.55 है तो APS कितनी होगी ?
उत्तर
APC + APS = 1
0.55 + APS = 1
APS = 1-0.55
= 0.45 उत्तर

प्रश्न 15.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 2400 करोड़ तथा उपभोग का स्तर ₹ 1600 करोड़ है तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 2400 करोड़
उपभोग व्यय = ₹ 1600 करोड़
बचत = 2400 – 1600 = ₹ 800 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 36
= \(\frac{1}{3}\) =33.3% उत्तर

प्रश्न 16.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1200 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹800 करोड़ हो तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर
व्यय योग्य आय = ₹ 1200 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 800 करोड़
बचत = 1200 – 800 = ₹ 400 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 37
= \(\frac{1}{3}\) = 33.3% उत्तर

प्रश्न 17.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 3600 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹ 2400 करोड़ हो तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 3600 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 2400 करोड़
बचत = 3600 – 2400 = ₹ 1200 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 38
= \(\frac{1}{3}\) = 33.3% उत्तर

प्रश्न 18.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1200 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹ 800 करोड़ हो तो औसत उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 1200 करोड
उपभोग का स्तर = ₹ 800 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 39
= 69.6% उत्तर

प्रश्न 19.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1800 करोड़ तथा उपभोग का स्तर ₹ 1200 करोड़ हो तो औसत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 1800 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 1200 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 40
= 69.6% उत्तर

प्रश्न 20.
व्यय योग्य आय = ₹ 2400 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹ 1600 करोड़ हो तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यय योग व्यय = ₹ 2400 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 1600 करोड़
बचत = 2400 – 1600 = ₹ 800 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 41
= 33.3% उत्तर

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय ₹ 200 करोड़ है और सीमान्त उपभोग प्रवृति (MPC) 0.75 हैं। यदि ₹ 450 करोड़ का निवेश किया जाता है तो कुल राष्ट्रीय आय कितनी होगी ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय = ₹ 200 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृति (MPC) = 0.75
निवेश = ₹ 450 करोड़
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}\) = \(\frac{1}{.25} \times 100\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि (ΔY) = निवेश x गुणक
= 450 x 4
= ₹ 1800 करोड़
कुल राष्ट्रीय आय = राष्ट्रीय आय + राष्ट्रीय आय में वृद्धि
= 200 + 1800 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਦੇਣ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the contribution of Guru Nanak Dev Ji to Sikhism.)
ਉੱਤਰ-
15ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਹਾਲਤ ਬੜੀ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ । ਉਹ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਭਾਰੀ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਧਰਮ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਬਾਹਰੀ ਦਿਖਾਵਾ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ ਸੀ । ਲੋਕ ਅਗਿਆਨਤਾ ਦੇ ਹਨੇਰੇ ਵਿੱਚ ਭਟਕ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਖ਼ਰਾਬ ਸੀ। ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਨਵੀਂ ਜਾਗ੍ਰਿਤੀ ਲਿਆਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਿੱਸਿਆਂ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਨ, ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ, ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਅਧਿਕਾਰ ਦੇਣ ਬਾਰੇ, ਸੱਚਾ ਤੇ ਪਵਿੱਤਰ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਛੱਡਣ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ।

ਗੁਰੂ ਜੀ ਜਿੱਥੇ ਵੀ ਗਏ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਰਾਹੀਂ ਲੋਕਾਂ ‘ਤੇ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਇਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਅਨਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਆਵਾਜ਼ ਉਠਾਈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਜਿਊਂਦਿਆਂ ਹੀ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਭਾਈਚਾਰਾ ਹੋਂਦ ਵਿੱਚ ਆ ਚੁੱਕਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ (ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ) ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਬੜੀ ਮਹੱਤਵਪੁਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੇ ਕੀ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ ? (What do you mean by Udasis ? What were the aims of Guru Nanak Dev Ji’s Udasis ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੇ ਕੀ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ ? (What were the aims of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਤੋਂ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਅਗਿਆਨਤਾ ਅਤੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਉਹ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਪੂਜਾ ਅਤੇ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਿੰਦੂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਧਰਮ ਦੇ ਅਸਲੀ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਕੇ ਆਪਣੇ ਮਾਰਗ ਤੋਂ ਭਟਕ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਪੁਜਾਰੀ ਵਰਗ ਜਿਸ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕੰਮ ਭਟਕੇ ਹੋਏ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਠੀਕ ਮਾਰਗ ਵਿਖਾਉਣਾ ਸੀ, ਉਹ ਆਪ ਹੀ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟ ਹੋ ਚੁੱਕਿਆ ਸੀ। ਜਦ ਧਰਮ ਦੇ ਠੇਕੇਦਾਰ ਆਪ ਹੀ ਹਨ੍ਹੇਰੇ ਵਿੱਚ ਭਟਕ ਰਹੇ ਹੋਣ ਤਾਂ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਾਰੇ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਲਗਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਅਣਗਿਣਤ ਦੇਵੀ-ਦੇਵਤਿਆਂ, ਕਬਰਾਂ, ਰੁੱਖਾਂ, ਸੱਪਾਂ ਅਤੇ ਪੱਥਰਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਪੂਜਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਧਰਮ ਦੀ ਸੱਚੀ ਭਾਵਨਾ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਾਤਾਂ ਅਤੇ ਉਪ-ਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇੱਕ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕ ਦੂਜੀ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨਹੀਂ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਅਗਿਆਨਤਾ ਦੇ ਹਨੇਰੇ ਵਿੱਚ ਭਟਕ ਰਹੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਰੌਸ਼ਨੀ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮਾਰਗ ਦੱਸਣ ਲਈ ਆਪਣੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the main Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਕਿਸੇ ਛੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of any six important Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
ਉੱਤਰ-
1. ਸੈਦਪੁਰ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੇ ਪਹੁੰਚਣ ‘ਤੇ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਇੱਕ ਬ੍ਰਹਮ ਭੋਜ ’ਤੇ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ ਪਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਇੱਕ ਗ਼ਰੀਬ ਤਰਖਾਣ ਭਾਈ ਲਾਲੋ ਦੇ ਘਰ ਠਹਿਰੇ । ਜਦੋਂ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਨੇ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਤੋਂ ਪੁੱਛਿਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਦੇ ਭੋਜ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਲਾਲੋ ਦੀ ਸੁੱਕੀ ਰੋਟੀ ਲੈ ਕੇ ਜ਼ੋਰ ਦੀ ਘੱਟਿਆ । ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਦੇ ਭੋਜ ਵਿੱਚੋਂ ਲਹੂ ਅਤੇ ਲਾਲੋ ਦੀ ਰੋਟੀ ਵਿੱਚੋਂ ਦੁੱਧ ਨਿਕਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਦਸਾਂ ਨਹੁੰਆਂ ਦੀ ਕਿਰਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

2. ਤਾਲੰਬਾ – ਤਾਲੰਬਾ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਸੱਜਣ ਠੱਗ ਨਾਲ ਹੋਈ । ਉਸ ਨੇ ਯਾਤਰੀਆਂ ਲਈ ਆਪਣੀ ਹਵੇਲੀ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮੰਦਰ ਅਤੇ ਮਸਜਿਦ ਬਣਾਈ ਹੋਈ ਸੀ । ਉਹ ਦਿਨ ਵੇਲੇ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰੀਆਂ ਦੀ ਖੂਬ ਸੇਵਾ ਕਰਦਾ ਪਰ ਰਾਤ ਵੇਲੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲੁੱਟ ਕੇ ਖੂਹ ਵਿੱਚ ਸੁੱਟ ਦਿੰਦਾ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਮਰਦਾਨਾ ਨਾਲ ਵੀ ਕੁਝ ਅਜਿਹਾ ਹੀ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਪਰ ਰਾਤ ਸਮੇਂ ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਬਾਣੀ ਪੜੀ ਤਾਂ ਸੱਜਣ ਠੱਗ ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਚਰਨੀਂ ਪੈ ਗਿਆ | ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

3. ਗੋਰਖਮਤਾ – ਹਰਿਦੁਆਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਗੋਰਖਮਤਾ ਪਹੁੰਚੇ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਸਿੱਧ ਜੋਗੀਆਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਕੰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁੰਦਰਾਂ ਪਾਉਣ, ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਸੁਆਹ ਮਲਣ, ਸੰਖ ਵਜਾਉਣ ਨਾਲ ਜਾਂ ਸਿਰ ਮੁੰਡਵਾ ਦੇਣ ਨਾਲ ਮੁਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ | ਮੁਕਤੀ ਤਾਂ ਆਤਮਾ ਦੀ ਸ਼ੁੱਧੀ ਨਾਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਜੋਗੀ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਗੋਰਖਮਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਨਾਨਕਮਤਾ ਪੈ ਗਿਆ ।

4. ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਵਾਪਸੀ ਯਾਤਰਾ ਸਮੇਂ ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ ਵਿਖੇ ਠਹਿਰੇ । ਇੱਥੇ ਇੱਕ ਹੰਕਾਰੀ ਫ਼ਕੀਰ ਵਲੀ ਕੰਧਾਰੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਪੱਥਰ ਪਹਾੜੀ ਤੋਂ ਹੇਠਾਂ ਵੱਲ ਨੂੰ ਸੁੱਟਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪੰਜੇ ਨਾਲ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸਥਾਨ ਨੂੰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਪੰਜਾ ਸਾਹਿਬ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

5. ਮੱਕਾ – ਮੁੱਕਾ ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਜਨਮ ਸਥਾਨ ਹੈ । ਸਿੱਖ ਪਰੰਪਰਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜਦੋਂ ਮੱਕੇ ਪਹੁੰਚੇ ਤਾਂ ਉਹ ਕਾਅਬੇ ਵੱਲ ਪੈਰ ਕਰਕੇ ਸੌਂ ਗਏ । ਜਦੋਂ ਕਾਜ਼ੀ ਰੁਕਨੁੱਦੀਨ ਨੇ ਇਹ ਵੇਖਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁੱਸੇ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਅੱਲ੍ਹਾ ਸਰਬਵਿਆਪਕ ਹੈ ।

6. ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ – ਆਸਾਮ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਉੜੀਸਾ ਵਿੱਚ ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ ਪਹੁੰਚੇ | ਪੰਡਤਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਜਗਨਨਾਥ ਦੇਵਤੇ ਦੀ ਆਰਤੀ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਉਸ ਪਰਮ ਪਿਤਾ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਆਰਤੀ ਕੁਦਰਤ ਹਰ ਸਮੇਂ ਕਰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the First Udasi of Guru Nanak Dev Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1499 ਈ. ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਯਾਤਰਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਸਮੇਂ ਭਾਈ ਮਰਦਾਨਾ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਰਿਹਾ ।

1. ਸੈਦਪੁਰ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੇ ਪਹੁੰਚਣ ‘ਤੇ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਇੱਕ ਬ੍ਰਮ ਭੋਜ ਤੇ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ ਪਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਇੱਕ ਗਰੀਬ ਤਰਖਾਣ ਭਾਈ ਲਾਲੋ ਦੇ ਘਰ ਠਹਿਰੇ । ਜਦੋਂ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਤੋਂ ਪੁੱਛਿਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਦੇ ਭੋਜ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਲਾਲੋ ਦੀ ਸੁੱਕੀ ਰੋਟੀ ਲੈ ਕੇ ਜ਼ੋਰ ਦੀ ਘੁੱਟਿਆ । ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਦੇ ਭੋਜ ਵਿੱਚੋਂ ਲਹੂ ਅਤੇ ਲਾਲੋ ਦੀ ਰੋਟੀ ਵਿੱਚੋਂ ਦੁੱਧ ਨਿਕਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਦਸਾਂ ਨਹੁੰਆਂ ਦੀ ਕਿਰਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

2. ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸੂਰਜ ਗ੍ਰਹਿਣ ਦੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਪਹੁੰਚੇ । ਇਸ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਬਾਹਮਣ ਅਤੇ ਸਾਧੂ ਇਕੱਠੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਬਾਹਮਣਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਫ਼ਜ਼ਲ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ‘ਤੇ ਝਗੜਾ ਕਰਨ ਦੀ ਬਜਾਇ ਆਪਣੀ ਆਤਮਾ ਨੂੰ ਪਵਿੱਤਰ ਰੱਖਣ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਲੋਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਬਣ ਗਏ ।

3. ਗੋਰਖਮਤਾ-ਹਰਿਦੁਆਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਗੋਰਖਮਤਾ ਪਹੁੰਚੇ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਸਿੱਧ ਜੋਗੀਆਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਕੰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁੰਦਰਾਂ ਪਾਉਣ, ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਸੁਆਹ ਮਲਣ, ਸੰਖ ਵਜਾਉਣ ਨਾਲ ਜਾਂ ਸਿਰ ਮੁੰਡਵਾ ਦੇਣ ਨਾਲ ਮੁਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ । ਮੁਕਤੀ ਤਾਂ ਆਤਮਾ ਦੀ ਸ਼ੁੱਧੀ ਨਾਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਜੋਗੀ ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਗੋਰਖਮਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਨਾਨਕਮਤਾ ਪੈ ਗਿਆ ।

4. ਕਾਮਰੂਪ – ਧੁਬਰੀ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਕਾਮਰੂਪ (ਆਸਾਮ) ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੋਂ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਾਦੂਗਰਨੀ ਨੂਰਸ਼ਾਹੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੁਸਨ ਦੇ ਜਾਦੂ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਭਰਮਾਉਣ ਦਾ ਅਸਫਲ ਯਤਨ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਦਾ ਅਸਲ ਮਨੋਰਥ ਦੱਸਿਆ ।

5. ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ – ਆਸਾਮ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਉੜੀਸਾ ਵਿੱਚ ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ ਪਹੁੰਚੇ । ਪੰਡਤਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਜਗਨਨਾਥ ਦੇਵਤੇ ਦੀ ਆਰਤੀ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਉਸ ਪਰਮ ਪਿਤਾ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਆਰਤੀ ਕੁਦਰਤ ਹਰ ਸਮੇਂ ਕਰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।

6. ਲੰਕਾ – ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਲੰਕਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਵੀ ਕੀਤੀ । ਲੰਕਾਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸ਼ਿਵਨਾਥ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲ ਕੇ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਬਣ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਦੂਜੀ ਉਦਾਸੀ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the Second Udasi of Guru Nanak Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1513 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਦੂਸਰੀ ਉਦਾਸੀ ਉੱਤਰ ਵੱਲ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਿੰਨ ਸਾਲ ਲੱਗੇ । ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਗਏ-

  • ਪਹਾੜੀ ਰਿਆਸਤਾਂ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਦੂਸਰੀ ਉਦਾਸੀ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਮੰਡੀ, ਰਿਵਾਲਸਰ, ਜਵਾਲਾਮੁੱਖੀ, ਕਾਂਗੜਾ, ਬੈਜਨਾਥ ਅਤੇ ਕੁੱਲੂ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਲੋਕ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਬਣ ਗਏ ।
  • ਕੈਲਾਸ਼ ਪਰਬਤ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਤਿੱਬਤ ਤੋਂ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਕੈਲਾਸ਼ ਪਰਬਤ ਪਹੁੰਚੇ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਇੱਥੇ ਪਹੁੰਚਣ ‘ਤੇ ਸਿੱਧ ਬੜੇ ਹੈਰਾਨ ਹੋਏ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚੋਂ ਸੱਚ ਅਲੋਪ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰ ਪਾਸੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਤੇ ਝੂਠ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦਾ ਮਾਰਗ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਲੱਦਾਖ – ਕੈਲਾਸ਼ ਪਰਬਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਲੱਦਾਖ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ ।
  • ਕਸ਼ਮੀਰ – ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਮ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਪੰਡਤ ਬ੍ਰਹਮ ਦਾਸ ਨਾਲ ਕਾਫ਼ੀ ਲੰਬਾ ਧਾਰਮਿਕ ਵਾਦ-ਵਿਵਾਦ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਮੁਕਤੀ ਖ਼ਾਲੀ ਵੇਦਾਂ ਅਤੇ ਰਾਮਾਇਣ ਆਦਿ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ‘ਤੇ ਅਮਲ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।
  • ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ – ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਵਾਪਸੀ ਯਾਤਰਾ ਸਮੇਂ ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ ਵਿਖੇ ਠਹਿਰੇ । ਇੱਥੇ ਇੱਕ ਹੰਕਾਰੀ ਫ਼ਕੀਰ ਵਲੀ ਕੰਧਾਰੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਪੱਥਰ ਪਹਾੜੀ ਤੋਂ ਹੇਠਾਂ ਵੱਲ ਨੂੰ ਸੁੱਟਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪੰਜੇ ਨਾਲ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸਥਾਨ ਨੂੰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਪੰਜਾ ਸਾਹਿਬ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਸਿਆਲਕੋਟ – ਸਿਆਲਕੋਟ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਇੱਕ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੰਤ ਹਮ ਸ ਨਾਲ ਲਿਆ ਸੀ । ਪਰ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਤੋਂ ਇੰਨਾ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣਾ ਨਿਰਣਾ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਘਟਨਾ ਦਾ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ‘ਤੇ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

ਪਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਤੀਜੀ ਉਦਾਸੀ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਉ । (Give a brief account of the Third Udasi of Guru Nanak Dev Ji .)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1517 ਈ. ਦੇ ਆਖੀਰ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਤੀਸਰੀ ਉਦਾਸੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਪੱਛਮੀ ਏਸ਼ੀਆ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵੱਲ ਗਏ । ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕੀਤੀ-

  • ਮੁਲਤਾਨ – ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਾਉੱਦੀਨ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋਈ । ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਾਉੱਦੀਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ।
  • ਮੱਕਾ – ਮੁੱਕਾ ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਜਨਮ ਸਥਾਨ ਹੈ । ਸਿੱਖ ਪਰੰਪਰਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜਦੋਂ ਮੱਕੇ ਪਹੁੰਚੇ ਤਾਂ ਉਹ ਕਾਅਬੇ ਵੱਲ ਪੈਰ ਕਰਕੇ ਸੌਂ ਗਏ । ਜਦੋਂ ਕਾਜ਼ੀ ਰੁਕਨੁੱਦੀਨ ਨੇ ਇਹ ਵੇਖਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁੱਸੇ ਹੋਇਆ । ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜਦੋਂ ਕਾਜ਼ੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪੈਰ ਫੜ ਕੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਘੁਮਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੇ ਤਾਂ ਮਹਿਰਾਬ ਵੀ ਉਸ ਪਾਸੇ ਘੁੰਮਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਬੜੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਅੱਲ੍ਹਾ ਸਰਬਵਿਆਪਕ ਹੈ ।
  • ਮਦੀਨਾ – ਮੱਕੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਮਦੀਨਾ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਇੱਥੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਇਮਾਮ ਆਜਿਮ ਨਾਲ ਵਿਚਾਰ-ਵਟਾਂਦਰਾ ਹੋਇਆ ।
  • ਬਗ਼ਦਾਦ – ਬਗਦਾਦ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਿਲੋਲ ਨਾਲ ਹੋਈ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਣੀ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਬਣ ਗਿਆ ।
  • ਸੈਦਪੁਰ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜਦੋਂ 1520 ਈ. ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਸੈਦਪੁਰ ਪਹੁੰਚੇ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉੱਥੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕੈਦੀਆਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਵੀ ਸਨ । ਜਦੋਂ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਇਹ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸੰਤ ਹਨ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸਗੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ ਕੈਦੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਪਿਸ਼ਾਵਰ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਆਪਣੀ ਤੀਸਰੀ ਉਦਾਸੀ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਵੀ ਗਏ । ਇੱਥੇ ਉਹ ਜੋਗੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਧਰਮ ਦਾ ਅਸਲੀ ਮਾਰਗ ਸਮਝਾਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the teachings of Guru Nanak Dev Ji ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
ਉੱਤਰ-

  • ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਸਰੂਪ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਬਾਰ-ਬਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਏਕਤਾ ਉੱਪਰ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਹੀ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਸਰਵ-ਸ਼ਕਤੀਮਾਨ ਹੈ ।
  • ਮਾਇਆ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮਾਇਆ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਹੈ । ਮਨਮੁਖ ਵਿਅਕਤੀ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸੰਸਾਰੀ ਵਸਤਾਂ ਜਿਵੇਂ-ਧਨ-ਦੌਲਤ, ਉੱਚਾ ਅਹੁਦਾ, ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ, ਸੋਹਣੀ ਨਾਰ, ਪੁੱਤਰ ਆਦਿ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਨੂੰ ਮਾਇਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਮਾਇਆ ਕਾਰਨ ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤੋਂ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਵਾਗੌਣ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
  • ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਖੰਡਨ – ਉਸ ਸਮੇਂ ਦਾ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਨਾ ਕੇਵਲ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਜਾਤਾਂ ਬਲਕਿ ਅਨੇਕਾਂ ਹੋਰ ਉਪਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉੱਚ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕ ਨੀਵੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ੁਲਮ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਬਹੁਤ ਫੈਲ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਇਸਤਰੀਆਂ ਨਾਲ ਮਾੜੇ ਸਲੂਕ ਦਾ ਖੰਡਨ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅਣਗਿਣਤ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰੀ ਦੇ ਹੱਕਾਂ ਲਈ ਆਵਾਜ਼ ਉਠਾਈ ।
  • ਗੁਰੂ ਦਾ ਮਹੱਤਵ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਝਦੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੁ ਮੁਕਤੀ ਤਕ ਲੈ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਅਸਲੀ ਪੌੜੀ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਹਨੇਰੇ (ਅਗਿਆਨਤਾ) ਤੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ (ਗਿਆਨ ਵੱਲ ਲਿਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਸੱਚੇ ਗੁਰੂ ਦਾ ਮਿਲਣਾ ਕੋਈ ਆਸਾਨ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਨਦਰਿ (ਮਿਹਰ) ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ।
  • ਹੁਕਮ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਹੁਕਮ ਜਾਂ ਭਾਣੇ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਹੁਕਮ ਕਾਰਨ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਸੁਖ-ਦੁੱਖ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਜਿਹੜਾ ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ, ਉਹ ਦਰ-ਦਰ ਦੀਆਂ ਠੋਕਰਾਂ ਖਾਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਸੰਬੰਧੀ ਕੀ ਵਿਚਾਰ ਸਨ ? (What was Guru Nanak’s concept of God ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਸਰੂਪ ਸੰਬੰਧੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹਨ-

  • ਪਰਮਾਤਮਾ ਇੱਕ ਹੈ – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਲਿਖਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਇੱਕ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਹੀ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਰਚਨਾ, ਉਸ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਦੇਵੀ-ਦੇਵਤੇ ਸੈਂਕੜੇ ਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਹਨ ਪਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਇੱਕ ਹੈ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ ਕਈ ਨਾਂਵਾਂ ਜਿਵੇਂ ਹਰੀ, ਗੋਪਾਲ, ਅੱਲ੍ਹਾ, ਖ਼ੁਦਾ, ਰਾਮ ਤੇ ਸਾਹਿਬ ਆਦਿ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਨਿਰਗੁਣ ਅਤੇ ਸਗੁਣ-ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਦੋ ਰੂਪ ਹਨ ਉਹ ਨਿਰਗੁਣ ਵੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਗੁਣ ਵੀ । ਪਹਿਲਾਂ ਜਦੋਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਨਿਰਗੁਣ ਸਰੂਪ ਸੀ । ਫਿਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਰਚਨਾ ਰਾਹੀਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਆਪਣਾ ਰੂਪਮਾਨ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਸਗੁਣ ਸਰੂਪ ਹੈ ।
  • ਰਚਣਹਾਰ, ਪਾਲਣਹਾਰ ਅਤੇ ਨਾਸ਼ਵਾਨ-ਪਰਮਾਤਮਾ ਹੀ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਦਾ ਰਚਣਹਾਰ, ਪਾਲਣਹਾਰ ਅਤੇ ਨਾਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਜਦ ਮਨ ਵਿੱਚ ਆਇਆ, ਉਸ ਨੇ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਹ ਹੀ ਇਸ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਜਦ ਚਾਹੇ ਇਸ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
  • ਸਰਵ-ਸ਼ਕਤੀਮਾਨ-ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਸਰਵ-ਸ਼ਕਤੀਮਾਨ ਹੈ ।ਉਹ ਜੋ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਦੀ ਮਰਜ਼ੀ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ । ਜੇ ਪਰਮਤਾਮਾ ਚਾਹੇ ਤਾਂ ਉਹ ਭਿਖਾਰੀ ਨੂੰ ਵੀ ਤਖ਼ਤ ‘ਤੇ ਬਿਠਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਰਾਜੇ ਨੂੰ ਭਿਖਾਰੀ ਬਣਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
  • ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ-ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੁਆਰਾ ਰਚੀ ਹੋਈ ਦੁਨੀਆ ਨਾਸ਼ਵਾਨ ਹੈ । ਇਹ ਅਸਥਿਰ ਹੈ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ । ਉਹ ਆਵਾਗੌਣ ਤੇ ਮੌਤ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੈ ।
  • ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ-ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਹੈ ।ਉਸ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰਨਾ ਨਾ ਮੁਮਕਿਨ ਹੈ । ਉਹ ਕੀ ਦੇਖਦਾ ਅਤੇ ਸੁਣਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦਾ ਗਿਆਨ ਕਿੰਨਾ ਹੈ, ਉਹ ਕਿੰਨਾ ਦਿਆਲ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਤੋਹਫ਼ਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਵਰਣਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਪਰਮਾਤਮਾ ਆਪ ਹੀ ਜਾਣਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਕਿੰਨਾ ਮਹਾਨ ਹੈ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਹੋਰ ਦੇਵੀ-ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੀ ਪ੍ਰਸ਼ੰਸਾ ਕਰਨਾ ਇੱਕ ਮੂਰਖਤਾ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਹੈ । ਇਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਅੱਗੇ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਸੂਰਜ ਅੱਗੇ ਇੱਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਤਾਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮਾਇਆ ਦਾ ਸੰਕਲਪ ਕੀ ਹੈ ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮਾਇਆ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਹੈ । ਮਨਮੁਖ ਆਦਮੀ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸੰਸਾਰੀ ਵਸਤਾਂ ਜਿਵੇਂ ਧਨ-ਦੌਲਤ, ਉੱਚਾ ਅਹੁਦਾ, ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ, ਸੋਹਣੀ ਨਾਰ, ਪੁੱਤਰ ਆਦਿ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਨੂੰ ਮਾਇਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ | ਮਨਮੁਖ ਵਿਅਕਤੀ ਰਚਨਹਾਰ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਰਚਨਾ ਦੇ ਅੰਤਰ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਸਮਝ ਸਕਦਾ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਸੱਪਣੀ, ਮਾਇਆ ਸਮਤਾ ਮੋਹਿਣੀ, ਮਾਇਆ ਮੋਹ, ਤ੍ਰਿਕੁਟੀ ਅਤੇ ਸੂਹਾ ਰੰਗ ਆਦਿ ਦੇ ਨਾਵਾਂ ਨਾਲ ਸੱਦਿਆ ਹੈ । ਮਾਇਆ ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਹ ਇੰਨਾ ਪਿਆਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਸ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਦੇ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦੀ (ਮਾਇਆ ਕਾਰਨ ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤੋਂ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਵਾਗੌਣ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਸੋਨਾ-ਚਾਂਦੀ ਆਦਿ ਇਕੱਠਾ ਕਰਕੇ ਸੋਚਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਦੁਨੀਆਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਵਿਅਕਤੀ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ ਪਰ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਉਹ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਲਈ ਜ਼ਹਿਰ ਇਕੱਠਾ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹ ਦੁਵਿਧਾ ਵਿੱਚ ਫਸ ਕੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਮਾਇਆ ਮਨੁੱਖ ਦੀਆਂ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਸੋਮਾ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਉਸ ਦੇ ਦੁੱਖਾਂ ਦਾ ਸੋਮਾ ਹੈ । ਜੋ ਵਿਅਕਤੀ ਮਾਇਆ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਸਥਾਨ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the importance of ‘Guru’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ‘ਗੁਰੂ’ ਸੰਬੰਧੀ ਕੀ ਵਿੱਚਾਰ ਸਨ ? (What was the concept of ‘Guru’ of Guru Nanak Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਮੰਨਦੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੂ ਮੁਕਤੀ ਤਕ ਲੈ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਅਸਲੀ ਪੌੜੀ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹੀ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਤੇ ਹਉਮੈ ਦੇ ਰੋਗ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਹੀ ਨਾਮ ਤੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਅਰਾਧਨਾ ਦੁਆਰਾ ਭਗਤੀ ਦੇ ਮਾਰਗ ਉੱਤੇ ਚੱਲਣ ਦਾ ਢੰਗ ਦੱਸਦਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਬਿਨਾਂ ਭਗਤੀ ਤੇ ਗਿਆਨ ਸੰਭਵ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਗੁਰੂ ਬਿਨਾਂ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਹਰ ਪਾਸੇ ਹਨ੍ਹੇਰਾ ਹੀ ਹਨ੍ਹੇਰਾ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹੀ ਹਨੇਰੇ ਅਗਿਆਨਤਾ ਤੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ (ਗਿਆਨ ਵੱਲ ਲਿਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਹਰੇਕ ਅਸੰਭਵ ਕੰਮ ਨੂੰ ਸੰਭਵ ਬਣਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਦੇ ਮਿਲਣ ਨਾਲ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਜੀਵਨ-ਧਾਰਾ ਬਦਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਉਹ ਸਦਾ ਨਿਰਵੈਰ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਦੋਸਤ ਅਤੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਉਸ ਲਈ ਇੱਕ ਹਨ । ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਦੁਸ਼ਮਣ ਵੀ ਉਸ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਵਿੱਚ ਆ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਉਸ ਨੂੰ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਸੱਚੇ ਗੁਰੂ ਦਾ ਮਿਲਣਾ ਕੋਈ ਆਸਾਨ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਨਦਰਿ (ਮਿਹਰ) ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ । ਇਹ ਗੱਲ ਇੱਥੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਰਣਨਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਭਾਵ ਕਿਸੇ ਮਨੁੱਖੀ ਗੁਰੂ ਤੋਂ ਨਹੀਂ ਹੈ | ਸੱਚਾ ਗੁਰੂ ਤਾਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਆਪ ਹੈ ਜੋ ਸ਼ਬਦ ਰਾਹੀਂ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਨਾਮ ਜਪੋ, ਕਿਰਤ ਕਰੋ ਅਤੇ ਵੰਡ ਛਕੋ ‘ ਸਿੱਖ ਜੀਵਨ ਜਾਚ ਦਾ ਆਧਾਰ ਹੈ । ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (“Remembering Divine Name, Do the honest labour and Sharing with the Needy’ are the basis of the Sikh way of life. Discuss.)
ਉੱਤਰ-
‘ਨਾਮ ਜਪੋ, ਕਿਰਤ ਕਰੋ ਅਤੇ ਵੰਡ ਛਕੋ’ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਬੁਨਿਆਦੀ ਸਿਧਾਂਤ ਹਨ ।

1.ਨਾਮ ਜਪੋ – ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਵਿੱਚ ਨਾਮ ਜਪਣ ਜਾਂ ਸਿਮਰਨ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਗੁਰਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਨਾਲ ਜਿੱਥੇ ਮਨ ਦੇ ਵਿਕਾਰ ਦੂਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਉੱਥੇ ਇਹ ਨਿਰਮਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸਾਰੇ ਦੁੱਖਾਂ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸਾਰੇ ਕਾਰਜ ਸਹਿਜ ਸੁਭਾਵਿਕ ਹੀ ਹੁੰਦੇ ਚਲੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਆਪ ਉਸ ਦੇ ਸਾਰੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣਾ ਵਿਅਰਥ ਹੈ।

2. ਕਿਰਤ ਕਰੋ – ਕਿਰਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਹੱਕ ਦੀ ਕਮਾਈ ਕਰਨਾ । ਕਿਰਤ ਕਰਨਾ ਅਤਿ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਇਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਹੁਕਮ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸੰਸਾਰ ਦਾ ਹਰ ਜੀਵ-ਜੰਤੁ ਕਿਰਤ ਕਰ ਕੇ ਆਪਣਾ ਪੇਟ ਪਾਲ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਕਿਰਤ ਕਰਨੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿਉਂ ਜੋ ਉਹ ਸਾਰੇ ਜੀਵਾਂ ਦਾ ਸਰਦਾਰ ਹੈ । ਜੋ ਵਿਅਕਤੀ ਕਿਰਤ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਉਹ ਆਪਣੇ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਰਿਸ਼ਟ-ਪੁਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਰੱਖ ਸਕਦਾ । ਅਜਿਹਾ ਵਿਅਕਤੀ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਗੁਨਾਹ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

3. ਵੰਡ ਛਕੋ – ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਵੰਡ ਛਕਣ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਮਹੱਤਵ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ । ਵੰਡ ਛਕਣ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਲੋੜਵੰਦਾਂ ਨੂੰ ਵੰਡਣਾ । ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਖਾ ਕੇ ਪਿੱਛੋਂ ਵੰਡਣ ਦੀ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਵੰਡ ਕੇ ਪਿੱਛੋਂ ਖਾਣ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਦੂਸਰਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣਾ ਭਰਾ-ਭੈਣ ਸਮਝਣ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਵੰਡਣ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਫੁਰਮਾਉਂਦੇ ਹਨ,

ਘਾਲਿ ਖਾਇ ਕਿਛੁ ਹਥਹੁ ਦੇਇ ॥
ਨਾਨਕ ਰਾਹੁ ਪਛਾਣਹਿ ਸੇਇ ॥

ਦਾਨ ਦੇਣਾ ਜਾਂ ਵੰਡ ਕੇ ਖਾਣਾ ਉਹੀ ਯੋਗ ਤੇ ਸਫਲ ਹੈ ਜੋ ਮਿਹਨਤ ਦੀ ਕਮਾਈ ਕਰ ਕੇ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ । ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿਚ ਦਸਵੰਧ ਦੇਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਭਾਵ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਆਪਣੀ ਕਮਾਈ ਦਾ ਦਸਵਾਂ ਹਿੱਸਾ ਲੋਕ ਭਲਾਈ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ‘ਤੇ ਖ਼ਰਚ ਕਰਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਇਸਤਰੀ ਜਾਤੀ ਸੰਬੰਧੀ ਕੀ ਵਿਚਾਰ ਸਨ ? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about women ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਦਰਜਾ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅਣਗਿਣਤ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਜਿਵੇਂ ਬਾਲ ਵਿਆਹ, ਬਹੁ-ਵਿਆਹ, ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ, ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਅਤੇ ਤਲਾਕ ਪ੍ਰਥਾ ਆਦਿ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦਾ ਆਦਰ ਸਤਿਕਾਰ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਇੱਕ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਮੁਹਿੰਮ ਚਲਾਈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬਾਲ ਵਿਆਹ, ਬਹੁ-ਵਿਆਹ, ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਅਤੇ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਆਦਿ ਦਾ ਘੋਰ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ । ਉਹ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਦੇ ਹਾਮੀ ਸਨ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਕਦੇ ਵੀ ਕਿਸੇ ਇਸਤਰੀ ਨੂੰ ਜੋ ਕਿ ਮਹਾਨ ਸਮਰਾਟਾਂ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦਿੰਦੀ ਹੈ, ਮਾੜਾ ਨਹੀਂ ਕਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ । ਉਹ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਅਰਥ ਅਤੇ ਮਹੱਤਵ ਕੀ ਸਨ ? (What was the social meaning and significance of Guru Nanak Dev Ji’s message ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਅਰਥ ਬੜੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਹਰੇਕ ਲਈ ਸੀ । ਕੋਈ ਵੀ ਇਸਤਰੀ-ਪੁਰਸ਼ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਦਰਸਾਏ ਗਏ ਮਾਰਗ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮੁਕਤੀ ਦਾ ਮਾਰਗ ਸਭ ਲਈ ਖੁੱਲ੍ਹਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮਾਨਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ( ਸਮਾਜਿਕ ਸਮਾਨਤਾ ਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣ ਲਈ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ (ਲੰਗਰ) ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਚਲਾਈਆਂ | ਲੰਗਰ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਸਮੇਂ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਦਾ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਅਨਿਆਂ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਤੇ ਫੈਲੇ ਹੋਏ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਦੀ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਨਿਖੇਧੀ ਕੀਤੀ । ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰੀ ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਵੀ ਆਲੋਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਸਰੂਪ ਦੇਣ ਦਾ ਉਪਰਾਲਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਕਵੀ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤਕਾਰ ਸਨ । ਇਸ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (Guru Nanak Dev Ji was a great poet and musician. Explain.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨਾ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਧਾਰਮਿਕ ਮਹਾਂਪੁਰਖ ਹੀ ਸਨ ਸਗੋਂ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਕਵੀ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤਕਾਰ ਵੀ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਇੰਨੀਆਂ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦੀਆਂ ਹਨ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਦੀਆਂ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਵਿਸ਼ਵ ਪੱਧਰ ਦੇ ਸਾਹਿਤ ਵਿੱਚ ਵੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਹਨ । ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਅੰਕਿਤ ਆਪ ਜੀ ਦੇ 976 ਸ਼ਬਦ ਆਪ ਦੇ ਮਹਾਨ ਕਵੀ ਹੋਣ ਦਾ ਪ੍ਰਤੱਖ ਪ੍ਰਮਾਣ ਹਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਕੁਦਰਤ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸੋਹਣੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਉਪਮਾਵਾਂ ਅਤੇ ਅਲੰਕਾਰਾਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਉੱਚ ਪੱਧਰੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਬੜੇ ਸੰਖੇਪ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਬੜੀਆਂ ਡੂੰਘੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਹਿ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀਆਂ ਇਹ ਕਵਿਤਾਵਾਂ ਪੰਜਾਬੀ ਸਾਹਿਤ ਨੂੰ ਅਨਮੋਲ ਦੇਣ ਹਨ ! ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਪਹਿਲੇ ਅਜਿਹੇ ਸੁਧਾਰਕ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਲੋਕਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਲਈ ਸੰਗੀਤ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ।ਉਹ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਰਾਗਾਂ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕੀਰਤਨ ਸੁਣ ਕੇ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਪਾਪੀ ਵੀ ਚਰਨੀਂ ਪੈ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਨਾਲੋਂ ਕਿਵੇਂ ਵੱਖਰੀਆਂ ਸਨ ? (How far were the teachings of Guru Nanak different from the Bhakti reformers ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਤੋਂ ਕਈ ਪੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਵੱਖਰੀਆਂ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਿਰੰਕਾਰ ਹੈ । ਉਹ ਕਦੇ ਵੀ ਮਨੁੱਖੀ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ । ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਨੇ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਅਤੇ ਰਾਮ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਅਵਤਾਰ ਦੱਸਿਆ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਦੇ ਸਖ਼ਤ ਖਿਲਾਫ਼ ਸਨ ਜਦਕਿ ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਦਾ ਇਸ ਵਿੱਚ ਪੂਰਨ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਕੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹੋਂਦ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਹਿਸਥ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕ ਹਿਸਥ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਦੱਸਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਜਾਤਪਾਤ ਦੇ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਹਰ ਕੋਈ ਪੁਰਸ਼, ਇਸਤਰੀ ਜਾਂ ਬੱਚੇ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਨੇ ਅਜਿਹੀ ਕਿਸੇ ਸੰਸਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਨੂੰ ਪਵਿੱਤਰ ਭਾਸ਼ਾ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਆਮ ਭਾਸ਼ਾ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ । ਬਹੁਤੇ ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਨੂੰ ਪਵਿੱਤਰ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਦਰਜਾ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਅਖ਼ੀਰਲੇ 18 ਵਰੇ ਕਿੱਥੇ ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ ? . (How and where did Guru Nanak Dev Ji spend last 18 years of his life ?)
ਉੱਤਰ-
1521 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਰਾਵੀ ਦਰਿਆ ਦੇ ਕਿਨਾਰੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ (ਭਾਵ ਈਸ਼ਵਰ ਦਾ ਨਗਰ ਨਾਂ ਦੇ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਜੀਵਨ ਦੇ ਆਖ਼ਰੀ 18 ਸਾਲ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ ।ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਸੰਗਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਸ ਇਕੱਠ ਤੋਂ ਸੀ ਜੋ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣਨ ਲਈ ਜੁੜਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਹਰ ਇਸਤਰੀ-ਪੁਰਸ਼ ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਅਕਾਲ-ਪੁਰਖ ਦੇ ਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਗਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਕਤਾਰ ਵਿੱਚ ਬੈਠ ਕੇ ਲੰਗਰ ਛਕਣਾ । ਲੰਗਰ ਵਿੱਚ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਜਾਂ ਧਰਮ ਆਦਿ ਦਾ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇੱਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ 976 ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਇਹ ਕੰਮ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਅਤਿਅੰਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ। ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਬਾਣੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ, ਵਾਰ ਮਾਝ, ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ, ਸਿਧ ਗੋਸ਼ਟਿ, ਵਾਰ ਮਲਾਰ, ਬਾਰਾਹ ਮਾਹ ਅਤੇ ਪੱਟੀ ਆਦਿ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ (Life of Guru Nanak Dev Ji).

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of life of Guru Nanak Dev Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਮੋਢੀ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਗਣਨਾ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਮਹਾਂਪੁਰਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਅਗਿਆਨਤਾ ਦੇ ਹਨੇਰੇ ਵਿੱਚ ਭਟਕ ਰਹੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਨੂੰ ਗਿਆਨ ਦਾ ਰਸਤਾ ਦਿਖਾਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਾਮ-ਜੱਪਣ ਅਤੇ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜੀ ਦੇ ਮਹਾਨ ਜੀਵਨ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ (Birth and Parentage) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 15 ਅਪਰੈਲ, 1469 ਈ. ਨੂੰ ਪੂਰਨਮਾਸ਼ੀ ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਰਾਇ ਭੋਇ ਦੀ ਤਲਵੰਡੀ ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਸਥਾਨ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੇ ਸ਼ੇਖੁਪੁਰਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਹੈ । ਇਸ ਪਵਿੱਤਰ ਸਥਾਨ ਨੂੰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਅਤੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਇੱਕ ਭੈਣ ਸੀ ਜਿਸ ਦਾ ਨਾਂ ਬੇਬੇ ਨਾਨਕੀ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਅਨੇਕਾਂ ਚਮਤਕਾਰ ਹੋਏ । ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਲਿਖਦੇ ਹਨ,

ਸਤਿਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਗਟਿਆ ਮਿਟੀ ਧੁੰਧ ਜਗਿ ਚਾਨਣ ਹੋਆ ॥
ਜਿਉ ਕਰ ਸੂਰਜ ਨਿਕਲਿਆ ਤਾਰੇ ਛਪਿ ਅੰਧੇਰੁ ਪਲੋਆ ॥

2. ਬਚਪਨ ਤੇ ਸਿੱਖਿਆ (Childhood and Education) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਬੜੇ ਗੰਭੀਰ ਅਤੇ ਵਿਚਾਰਸ਼ੀਲ ਸੁਭਾਅ ਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਝੁਕਾਅ ਖੇਡਾਂ ਵੱਲ ਘੱਟ ਅਤੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਵੱਲ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਜਦੋਂ ਸੱਤ ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਹੋਏ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੰਡਤ ਗੋਪਾਲ ਦੀ ਪਾਠਸ਼ਾਲਾ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੀ ਅਤੇ ਗਣਿਤ ਦੀ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਪੰਡਤ ਬ੍ਰਿਜਨਾਥ ਤੋਂ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਅਤੇ ਮੌਲਵੀ ਕੁਤਬਦੀਨ ਤੋਂ ਫ਼ਾਰਸੀ ਅਤੇ ਅਰਬੀ ਦਾ ਗਿਆਨ ਹਾਸਲ ਕੀਤਾ । ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ 9 ਵਰਿਆਂ ਦੇ ਹੋਏ ਤਾਂ ਪੁਰੋਹਿਤ ਹਰਦਿਆਲ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜਨੇਊ ਪਹਿਨਾਉਣ ਲਈ ਬੁਲਾਇਆ । ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਾਫ਼ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਸਿਰਫ ਦਇਆ, ਸੰਤੋਖ, ਜਤ ਅਤੇ ਸਤ ਦਾ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਹੀ ਜਨੇਊ ਪਾਉਣਗੇ ਜਿਹੜਾ ਨਾ ਟੁੱਟੇ, ਨਾ ਸੜੇ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਮੈਲਾ ਹੋ ਸਕੇ ।

3. ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕਿੱਤਿਆਂ ਵਿੱਚ (In Various Occupations) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਗਨ ਵੇਖ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਕਾਰ-ਵਿਹਾਰ ਵਿੱਚ ਲਗਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ | ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਮੱਝਾਂ ਚਰਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਸੌਂਪਿਆ ਗਿਆ | ਪਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਕੋਈ ਦਿਲਚਸਪੀ ਨਾ ਵਿਖਾਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਹੁਣ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਵਪਾਰ ਦੇ ਕਿੱਤੇ ਵਿੱਚ ਲਗਾਉਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ 20 ਰੁਪਏ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਮੰਡੀ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ । ਰਸਤੇ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਭੁੱਖੇ ਸਾਧੂਆਂ ਦਾ ਇੱਕ ਟੋਲਾ ਮਿਲਿਆ | ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਰੇ ਰੁਪਏ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਧੂਆਂ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਕਰਾਉਣ ‘ਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਿੱਤੇ ਅਤੇ ਖ਼ਾਲੀ ਹੱਥ ਘਰ ਵਾਪਸ ਆ ਗਏ । ਇਹ ਘਟਨਾ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ‘ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

4. ਵਿਆਹ (Marriage) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਬਟਾਲਾ ਨਿਵਾਸੀ ਮੂਲਚੰਦ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ ਸੁਲੱਖਣੀ ਜੀ ਨਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਆਪ ਜੀ ਦੀ ਉਮਰ 14 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਸੀ । ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਘਰ ਦੋ ਪੁੱਤਰਾਂ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਅਤੇ ਲਖਮੀ ਦਾਸ ਨੇ ਜਨਮ ਲਿਆ ।

5. ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀ (Service at Sultanpur Lodhi) – ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ 20 ਵਰਿਆਂ ਦੇ ਹੋਏ ਤਾਂ ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ਵਿਖੇ ਆਪਣੇ ਜਵਾਈ ਜੈ ਰਾਮ ਕੋਲ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਿਫ਼ਾਰਿਸ਼ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਮੋਦੀਖ਼ਾਨੇ ਅੰਨ ਭੰਡਾਰ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀ ਮਿਲ ਗਈ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਕੰਮ ਬੜੀ ਯੋਗਤਾ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ।

6. ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀ (Enlightenment) – ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਸਵੇਰੇ ਬੇਈਂ ਨਦੀ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਲਈ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਇੱਕ ਦਿਨ ਉਹ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਗਏ ਅਤੇ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਅਲੋਪ ਰਹੇ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੱਚੇ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਹੋਈ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਉਮਰ 30 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਸੀ । ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ “ਨਾ ਕੋ ਹਿੰਦੂ ਅਤੇ ਨਾ ਕੋ ਮੁਸਲਮਾਨ” ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਕਹੇ ।

7. ਉਦਾਸੀਆਂ (Travels) – 1499 ਈ. ਵਿੱਚ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਨੂੰ ਉਦਾਸੀਆਂ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਅਗਿਆਨਤਾ ਅਤੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਸੀ ਅਤੇ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਤੇ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉੱਤਰ ਵਿੱਚ ਕੈਲਾਸ਼ ਪਰਬਤ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਦੱਖਣ ਵਿੱਚ ਰਾਮੇਸ਼ਵਰਮ ਤਕ ਅਤੇ ਪੱਛਮ ਵਿੱਚ ਪਾਕਪਟਨ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੂਰਬ ਵਿੱਚ ਆਸਾਮ ਤਕ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਭਾਰਤ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਮੱਕਾ, ਮਦੀਨਾ, ਬਗਦਾਦ ਅਤੇ ਲੰਕਾ ਵੀ ਗਏ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਬਾਰੇ ਸਾਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੰਕੇਤ ਮਿਲਦੇ ਹਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਲਗਭਗ 21 ਵਰੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਬਿਤਾਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੇ ਅੰਧਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਦੂਰ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ਲ ਹੋਏ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੇ ਚੱਕਰ ਨੂੰ ਚਾਰ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲਾਇਆ ।

8. ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਨਿਵਾਸ (Settled at Kartarpur) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1521 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਾਵੀ ਦਰਿਆ ਦੇ ਕਿਨਾਰੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਨਾਂ ਦੇ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਜੀਵਨ ਦੇ ਆਖ਼ਰੀ 18 ਸਾਲ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ 976 ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਇਹ ਕੰਮ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਇੱਕ ਮੀਲ ਪੱਥਰ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਬਾਣੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਜਪੁਜੀ, ਵਾਰ ਮਾਝ, ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ, ਸਿੱਧ ਗੋਸ਼ਟਿ, ਵਾਰ ਮਹਾਰ, ਬਾਰਹਮਾਹ ਅਤੇ ਪੱਟੀ ਆਦਿ ਹਨ ।

9. ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ (Nomination of the Successor) – 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਨਾਰੀਅਲ ਤੇ ਪੰਜ ਪੈਸੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਅੱਗੇ ਰੱਖ ਕੇ ਆਪਣਾ ਸੀਸ ਨਿਵਾਇਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਬਣੇ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਬੂਟਾ ਲਗਾਇਆ ਜੋ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇੱਕ ਘਣੇ ਰੁੱਖ ਦਾ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰ ਗਿਆ ਸੀ । ਡਾਕਟਰ ਹਰੀ ਰਾਮ ਗੁਪਤਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਦੂਰਦਰਸ਼ਿਤਾ ਵਾਲਾ ਕੰਮ ਸੀ ।”

10. ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣਾ (Immersed in Eternal Light-ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ 22 ਸਤੰਬਰ, 1539 ਈ. ਨੂੰ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ (Udasis of Guru Nanak Dev JI)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਕੀ ਸੀ ? (Describe the Udasis of Guru Nanak Dev Ji. What was the aim of these Udasis ?)
ਜਾਂ
ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What is meant by Udasis ? Give a brief account of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕੀ ਉਦੇਸ਼ ਸੀ ? (Briefly discuss the travels of Guru Nanak Dev Ji. What was their aim ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ (ਯਾਤਰਾਵਾਂ) ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । [Give an account of the Udasis (travels) of Guru Nanak Dev Ji.]
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਸਮਾਜ ‘ਤੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ? (Describe briefly the Udasis of Guru Nanak Dev Ji. What was their impact on society ?)
ਉੱਤਰ-
1499 ਈ. ਵਿੱਚ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਲੰਬੀ ਯਾਤਰਾ ਲਈ ਨਿਕਲ ਪਏ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਲਗਭਗ 21 ਵਰੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਨੂੰ ਉਦਾਸੀਆਂ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਘਰ-ਬਾਰ ਤਿਆਗ ਕੇ ਇੱਕ ਉਦਾਸੀ ਵਾਂਗ ਘੁੰਮਦੇ ਫਿਰਦੇ ਰਹੇ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਲ ਕਿੰਨੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ | ਆਧੁਨਿਕ ਖੋਜਾਂ ਨੇ ਇਹ ਸਿੱਧ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਤਿੰਨ ਸੀ ।
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ 1

ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ (Objects of the Udasis)

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਅਗਿਆਨਤਾ ਅਤੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਿੰਦੂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਧਰਮ ਦੇ ਮਾਰਗ ਤੋਂ ਭਟਕ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਹਿੰਦੂ ਬਾਹਮਣ ਅਤੇ ਜੋਗੀ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਭਟਕੇ ਹੋਏ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਠੀਕ ਮਾਰਗ ਵਿਖਾਉਣਾ ਸੀ ਉਹ ਆਪ ਹੀ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟ ਅਤੇ ਆਚਰਣਹੀਨ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਅਣਗਿਣਤ ਦੇਵੀ-ਦੇਵਤਿਆਂ, ਕਬਰਾਂ, ਰੁੱਖਾਂ, ਸੱਪਾਂ ਅਤੇ ਪੱਥਰਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਪੂਜਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਆਗੂ ਵੀ ਚਰਿੱਤਰਹੀਣ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਸਨ ਉਸ ਸਮੇਂ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਮੁਸਲਮਾਨ ਭੋਗ-ਵਿਲਾਸੀ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਾਤਾਂ ਅਤੇ ਉਪ-ਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇੱਕ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕ ਦੂਜੀ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਅਗਿਆਨਤਾ ਵਿੱਚ ਭਟਕ ਰਹੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਰੌਸ਼ਨੀ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮਾਰਗ ਦੱਸਣ ਲਈ ਆਪਣੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾ: ਐੱਸ. ਐੱਸ. ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਇਸ ਮਹਾਂਪੁਰਖ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮਿਸ਼ਨ ਨੂੰ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਤਕ ਸੀਮਿਤ ਨਹੀਂ ਰੱਖਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਸਾਰੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੀ ਜਾਗ੍ਰਿਤੀ ਲਈ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ।”

ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ (First Udasi)

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1499 ਈ. ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਯਾਤਰਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਸਮੇਂ ਭਾਈ ਮਰਦਾਨਾ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਰਿਹਾ । ਇਸ ਯਾਤਰਾ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 12 ਸਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਉਹ ਪੂਰਬ ਤੋਂ ਦੱਖਣ ਵੱਲ ਗਏ ।ਇਸ ਯਾਤਰਾ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕੀਤੀ-

1. ਸੈਦਪੁਰ (Saidpur) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦਪੁਰ (ਐਮਨਾਬਾਦ) ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੇ ਪਹੁੰਚਣ ‘ਤੇ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਬ੍ਰਹਮ ਭੋਜ ‘ਤੇ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ ਪਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਇੱਕ ਗ਼ਰੀਬ ਤਰਖਾਣ ਭਾਈ ਲਾਲੋ ਦੇ ਘਰ ਠਹਿਰੇ । ਜਦੋਂ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਤੋਂ ਪੁੱਛਿਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਦੇ ਭੋਜ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਲਾਲੋ ਦੀ ਸੁੱਕੀ ਰੋਟੀ ਲੈ ਕੇ ਜ਼ੋਰ ਦੀ ਘੁੱਟਿਆ । ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਦੇ ਭੋਜ ਵਿੱਚੋਂ ਲਹੂ ਅਤੇ ਲਾਲੋ ਦੀ ਰੋਟੀ ਵਿੱਚੋਂ ਦੁੱਧ ਨਿਕਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਦਸਾਂ ਨਹੁੰਆਂ ਦੀ ਕਿਰਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

2. ਤਾਲੰਬਾ (Talumba) – ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਤਾਲੰਬਾ ਵਿਖੇ ਸੱਜਣ ਠੱਗ ਨਾਲ ਹੋਈ । ਉਸ ਨੇ ਯਾਤਰੀਆਂ ਲਈ ਆਪਣੀ ਹਵੇਲੀ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮੰਦਰ ਅਤੇ ਮਸਜਿਦ ਬਣਾਈ ਹੋਈ ਸੀ । ਉਹ ਦਿਨ ਵੇਲੇ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰੀਆਂ ਦੀ ਖੂਬ ਸੇਵਾ ਕਰਦਾ ਪਰ ਰਾਤ ਵੇਲੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲੁੱਟ ਕੇ ਖੂਹ ਵਿੱਚ ਸੁੱਟ ਦਿੰਦਾ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਮਰਦਾਨਾ ਨਾਲ ਵੀ ਕੁਝ ਅਜਿਹਾ ਹੀ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਪਰ ਰਾਤ ਸਮੇਂ ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਬਾਣੀ ਪੜ੍ਹੀ ਤਾਂ ਸੱਜਣ ਠੱਗ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਚਰਨੀਂ ਪੈ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਘਟਨਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸੱਜਣ ਠੱਗ ਨੇ ਆਪਣਾ ਬਾਕੀ ਜੀਵਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਬਤੀਤ ਕੀਤਾ । ਕੇ. ਐੱਸ. ਦੁੱਗਲ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
” ਸੱਜਣ ਦੀ ਸਰਾਂ ਜੋ ਕਿ ਇੱਕ ਕਤਲਗਾਹ ਸੀ, ਇੱਕ ਧਰਮਸ਼ਾਲਾ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲ ਹੋ ਗਈ ।”

3. ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ (Kurukshetra) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸੂਰਜ ਗ੍ਰਹਿਣ ਦੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਪਹੁੰਚੇ । ਇਸ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਅਤੇ ਸਾਧੂ ਇਕੱਠੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਬਾਹਮਣਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਸਾਦਾ ਅਤੇ ਪਵਿੱਤਰ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਲੋਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਬਣ ਗਏ ।

4. ਦਿੱਲੀ (Delhi) – ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਮਜਨੂੰ ਦਾ ਟਿੱਲਾ ਵਿਖੇ ਠਹਿਰੇ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੇ ਇੱਥੋਂ ਦੀ ਸੰਗਤ ‘ਤੇ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਇਆ ।

5. ਹਰਿਦੁਆਰ (Haridwar) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜਦੋਂ ਹਰਿਦੁਆਰ ਪਹੁੰਚੇ ਤਾਂ ਇੱਥੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਪੂਰਬ ਵੱਲ ਨੂੰ ਮੂੰਹ ਕਰਕੇ ਸੂਰਜ ਅਤੇ ਪਿੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਵੀ ਦੇ ਰਹੇ ਸਨ | ਅਜਿਹਾ ਵੇਖ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਪੱਛਮ ਵੱਲ ਮੂੰਹ ਕਰਕੇ ਪਾਣੀ ਦੇਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਵੇਖ ਦੇ ਲੋਕ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਪੁੱਛਣ ਲੱਗੇ ਕਿ ਉਹ ਕੀ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ? ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਵਿਖੇ ਆਪਣੇ ਖੇਤਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਹ ਉੱਤਰ ਸੁਣ ਕੇ ਲੋਕ ਹੱਸ ਪਏ ਅਤੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗੇ ਕਿ ਇਹ ਪਾਣੀ ਇੱਥੋਂ 300 ਮੀਲ ਦੂਰ ਸਥਿਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਖੇਤਾਂ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਪਹੁੰਚ ਸਕਦਾ ਹੈ ? ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉੱਤਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਜੇਕਰ ਤੁਹਾਡਾ ਪਾਣੀ ਲੱਖਾਂ ਮੀਲ ਦੂਰ ਸਥਿਤ ਸੂਰਜ ਤਕ ਪਹੁੰਚ ਸਕਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਮੇਰਾ ਪਾਣੀ ਇੰਨੇ ਨੇੜੇ ਸਥਿਤ ਖੇਤਾਂ ਤਕ ਕਿਵੇਂ ਨਹੀਂ ਪਹੁੰਚ ਸਕਦਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਸ ਉੱਤਰ ਤੋਂ ਲੋਕ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਚੇਲੇ ਬਣ ਗਏ ।

6. ਗੋਰਖਮਤਾ (Gorakhnata) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਹਰਿਦੁਆਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੋਰਖਮਤਾ ਪਹੁੰਚੇ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਸਿੱਧ ਜੋਗੀਆਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਕੰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁੰਦਰਾਂ ਪਾਉਣ, ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਸੁਆਹ ਮਲਣ, ਸੰਖ ਵਜਾਉਣ ਨਾਲ ਜਾਂ ਸਿਰ ਮੁੰਡਵਾ ਦੇਣ ਨਾਲ ਮੁਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ । ਮੁਕਤੀ ਤਾਂ ਆਤਮਾ ਦੀ ਸ਼ੁੱਧੀ ਨਾਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਜੋਗੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਗੋਰਖਮਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਨਾਨਕਮਤਾਂ ਪੈ ਗਿਆ ।

7. ਬਨਾਰਸ (Banaras) – ਬਨਾਰਸ ਵੀ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਪੰਡਤ ਚਤਰ ਦਾਸ ਨਾਲ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਲੰਬਾ ਵਾਰਤਾਲਾਪ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਚਤਰ ਦਾਸ ਆਪਣੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਿਆ ।

8. ਕਾਮਰੂਪ (Kamrup) – ਧੁਬਰੀ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਕਾਮਰੂਪ (ਆਸਾਮ) ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੋਂ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਾਦੂਗਰਨੀ ਨੂਰਸ਼ਾਹੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੁਸਨ ਦੇ ਜਾਦੂ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਭਰਮਾਉਣ ਦਾ ਅਸਫਲ ਯਤਨ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਦਾ ਅਸਲ ਮਨੋਰਥ ਦੱਸਿਆ ।

9. ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ (Jagannath Puri) – ਆਸਾਮ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਉੜੀਸਾ ਵਿੱਚ ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ ਪਹੁੰਚੇ । ਪੰਡਤਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਜਗਨਨਾਥ ਦੇਵਤੇ ਦੀ ਆਰਤੀ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਉਸ ਪਰਮ ਪਿਤਾ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਆਰਤੀ ਕੁਦਰਤ ਹਰ ਸਮੇਂ ਕਰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।

10. ਲੰਕਾ (Ceylon) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੱਖਣੀ ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਲੰਕਾ ਪਹੁੰਚੇ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ‘ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਲੰਕਾ ਦਾ ਰਾਜਾ ਸ਼ਿਵਨਾਥ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਬਣ ਗਿਆ ।

11. ਪਾਕਪਟਨ (Pakpattan) – ਲੰਕਾ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਵਾਪਸੀ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੈਵ ਜੀ ਪਾਕਪਟਨ ਠਹਿਰੇ । ਇੱਥੇ ਉਹ ਸ਼ੇਖ਼ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ ਦੀ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ਸ਼ੇਖ ਬ੍ਰਹਮ ਨੂੰ ਮਿਲੇ । ਇਹ ਮੁਲਾਕਾਤ ਦੋਹਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਖੁਸ਼ੀ ਦਾ ਸੋਮਾ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।

ਦੂਜੀ ਉਦਾਸੀ (Second Udasi)

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1513 ਈ. ਦੇ ਅਖ਼ੀਰ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਦੂਸਰੀ ਉਦਾਸੀ ਉੱਤਰ ਵੱਲ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਿੰਨ ਸਾਲ ਲੱਗੇ । ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਜੀ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਗਏ-

  • ਪਹਾੜੀ ਰਿਆਸਤਾਂ (Hilly States) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਮੰਡੀ, ਰਿਵਾਲਸਰ, ਜਵਾਲਾਮੁਖੀ, ਕਾਂਗੜਾ, ਬੈਜਨਾਥ ਅਤੇ ਕੁੱਲੂ ਆਦਿ ਪਹਾੜੀ ਰਿਆਸਤਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਹਾੜੀ ਰਿਆਸਤਾਂ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ ।
  • ਕੈਲਾਸ਼ ਪਰਬਤ (Kailash Parbat) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਤਿੱਬਤ ਤੋਂ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਕੈਲਾਸ਼ ਪਰਬਤ ਪਹੁੰਚੇ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇੱਥੇ ਪਹੁੰਚਣ ‘ਤੇ ਸਿੱਧ ਬੜੇ ਹੈਰਾਨ ਹੋਏ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚੋਂ ਸੱਚ ਅਲੋਪ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰ ਪਾਸੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਤੇ ਝੂਠ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦਾ ਮਾਰਗ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਲੱਦਾਖ (Ladakh) – ਕੈਲਾਸ਼ ਪਰਬਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਲੱਦਾਖ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਗਏ ।
  • ਕਸ਼ਮੀਰ (Kashmir) – ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਮਟਨ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਪੰਡਤ ਬ੍ਰਹਮ ਦਾਸ ਨਾਲ ਕਾਫ਼ੀ ਲੰਬਾ ਧਾਰਮਿਕ ਵਾਦ-ਵਿਵਾਦ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਮੁਕਤੀ ਖ਼ਾਲੀ ਵੇਦਾਂ ਅਤੇ ਰਾਮਾਇਣ ਆਦਿ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ‘ਤੇ ਅਮਲ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।
  • ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ (Hasan Abdal) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਵਾਪਸੀ ਯਾਤਰਾ ਸਮੇਂ ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ ਵਿਖੇ ਠਹਿਰੇ । ਇੱਥੇ ਇੱਕ ਹੰਕਾਰੀ ਫ਼ਕੀਰ ਵਲੀ ਕੰਧਾਰੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਪੱਥਰ ਪਹਾੜੀ ਤੋਂ ਹੇਠਾਂ ਵੱਲ ਨੂੰ ਸੁੱਟਿਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪੰਜੇ ਨਾਲ ਰੋਕ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸਥਾਨ ਨੂੰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਪੰਜਾ ਸਾਹਿਬ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਸਿਆਲਕੋਟ (Sialkot) – ਸਿਆਲਕੋਟ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਇੱਕ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੰਤ ਹਮਜਾ ਗੌਸ ਨਾਲ ਹੋਈ । ਉਸ ਨੇ ਕਿਸੇ ਗੱਲ ਤੋਂ ਨਾਰਾਜ਼ ਹੋ ਕੇ ਆਪਣੀ ਸ਼ਕਤੀ ਰਾਹੀਂ ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਪਰ ਉਹ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਤੋਂ ਇੰਨਾ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣਾ ਨਿਰਣਾ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਘਟਨਾ ਦਾ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ‘ਤੇ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ।

ਤੀਜੀ ਉਦਾਸੀ (Third Udasi)

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1517 ਈ. ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਤੀਸਰੀ ਉਦਾਸੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪੱਛਮੀ ਏਸ਼ੀਆ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵੱਲ ਗਏ । ਇਸ ਉਦਾਸੀ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕੀਤੀ-

  • ਮੁਲਤਾਨ (Multan) – ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਾਉੱਦੀਨ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋਈ । ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਾਉੱਦੀਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ।
  • ਮੱਕਾ (Mecca) – ਮੱਕਾ ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਜਨਮ ਸਥਾਨ ਹੈ । ਸਿੱਖ ਪਰੰਪਰਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜਦੋਂ ਮੱਕੇ ਪਹੁੰਚੇ ਤਾਂ ਉਹ ਕਾਅਬੇ ਵੱਲ ਪੈਰ ਕਰਕੇ ਸੌਂ ਗਏ । ਜਦੋਂ ਕਾਜ਼ੀ ਰੁਕਨੁੱਦੀਨ ਨੇ ਇਹ ਵੇਖਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁੱਸੇ ਹੋਇਆ । ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜਦੋਂ ਕਾਜ਼ੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪੈਰ ਫੜ ਕੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਘੁਮਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੇ ਤਾਂ ਮਹਿਰਾਬ ਵੀ ਉਸ ਪਾਸੇ ਘੁੰਮਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਇਹ ਵੇਖ ਕੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਬੜੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਅੱਲ੍ਹਾ ਸਰਬਵਿਆਪਕ ਹੈ ।
  • ਮਦੀਨਾ (Madina) – ਮੱਕੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਮਹੀਨਾ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਇੱਥੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਇਮਾਮ ਆਜਿਮ ਨਾਲ ਵਿਚਾਰ-ਵਟਾਂਦਰਾ ਹੋਇਆ ।
  • ਬਗ਼ਦਾਦ (Baghdad) – ਬਗ਼ਦਾਦ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਿਲੋਲ ਨਾਲ ਹੋਈ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਬਣ ਗਿਆ ।
  • ਸੈਦਪੁਰ (Saidpur) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜਦੋਂ 1520 ਈ. ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਸੈਦਪੁਰ ਪਹੁੰਚੇ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉੱਥੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕੈਦੀਆਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਵੀ ਸਨ । ਜਦੋਂ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਇਹ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸੰਤ ਹਨ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸਗੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ ਕੈਦੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ (Impact of the Udasis)

ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਦੇ ਬੜੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ । ਉਹ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਜਾਗ੍ਰਿਤੀ ਲਿਆਉਣ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਸਫਲ ਰਹੇ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਰਮ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਬਣ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਹੋਂਦ ਵਿੱਚ ਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਡਾਕਟਰ ਐੱਸ. ਐੱਸ. ਕੋਹਲੀ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,
“ਉਹ (ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਉਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਚਮਤਕਾਰੀ ਸਫਲਤਾ ਮਿਲੀ ।”

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ (Teachings of Guru Nanak Dev Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਪੂਰਵਕ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe in detail the teachings of Guru Nanak Dev Ji.).
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਕਿਹੜੀਆਂ-ਕਿਹੜੀਆਂ ਸਨ ? ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਮਹੱਤਵ ਕੀ ਸੀ ?
(What were the main teachings of Guru Nanak Dev Ji ? What was their social importance ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਮਹੱਤਵ ਕੀ ਸੀ ? (Study the main teachings of Guru Nanak Dev Ji. What was their social significance ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । (Study the main teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the main teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(Decribe the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਬੜੀਆਂ ਸਾਦਾ ਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਵਰਗ, ਜਾਤੀ ਜਾਂ ਪੁੱਤ ਲਈ ਨਹੀਂ ਸਨ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਤਾਂ ਸਾਰੀ ਮਨੁੱਖ ਜਾਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਸਰੂਪ (The Nature of God) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਬਾਰ-ਬਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਏਕਤਾ ਉੱਪਰ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਹੀ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਦੇਵੀ-ਦੇਵਤੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਹਨ ਪਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਇੱਕ ਹੈ । ਉਸ ਨੂੰ ਕਈ ਨਾਂਵਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ-ਹਰੀ, ਗੋਪਾਲ, ਵਾਹਿਗੁਰੂ, ਸਾਹਿਬ, ਅੱਲ੍ਹਾ, ਖ਼ੁਦਾ ਤੇ ਰਾਮ ਆਦਿ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਦੋ ਰੂਪ ਹਨ । ਉਹ ਨਿਰਗੁਣ ਵੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਗੁਣ ਵੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਸਰਵਸ਼ਕਤੀਮਾਨ ਹੈ । ਉਹ ਜੋ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਦੀ ਇੱਛਾ ਵਿਰੁੱਧ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਿਰਾਕਾਰ ਹੈ । ਉਸ ਦਾ ਕੋਈ ਆਕਾਰ ਜਾਂ ਰੰਗ ਰੂਪ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਉਸ ਦਾ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ।

2. ਮਾਇਆ (Maya) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮਾਇਆ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਹੈ । ਮਨਮੁਖ ਵਿਅਕਤੀ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸੰਸਾਰੀ ਵਸਤਾਂ ਜਿਵੇਂ ਧਨ-ਦੌਲਤ, ਉੱਚਾ ਅਹੁਦਾ, ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ, ਸੋਹਣੀ ਨਾਰ, ਪੁੱਤਰ ਆਦਿ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਨੂੰ ਮਾਇਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਮਾਇਆ ਕਾਰਨ ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤੋਂ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਵਾਗੌਣ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

3. ਹਉਮੈ (Haumai) – ਮਨਮੁਖ ਵਿਅਕਤੀ ਵਿੱਚ ਹਉਮੈ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਬੜੀ ਪ੍ਰਬਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਹਉਮੈ ਕਾਰਨ ਉਹ ਸੰਸਾਰ ਦੀਆਂ ਬੁਰਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਮੁਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਆਵਾਗੌਣ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਰ ਫਸ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

4. ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਖੰਡਨ (Condemnation of the Caste System) – ਉਸ ਸਮੇਂ ਦਾ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਨਾ ਕੇਵਲ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਜਾਤਾਂ ਬਲਕਿ ਅਨੇਕਾਂ ਹੋਰ ਉਪ-ਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉੱਚ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕ ਨੀਵੀਆਂ ਜਾਂਤਾਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ੁਲਮ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਬਹੁਤ ਫੈਲ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਦਾ ਖੰਡਨ (Condemnation of Idol Worship) – ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ | ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਪੱਥਰ ਦੀਆਂ ਮੂਰਤੀਆਂ ਬੇਜਾਨ ਹਨ । ਜੇਕਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਡੁੱਬ ਜਾਣਗੀਆਂ । ਜਿਹੜੀਆਂ ਮੂਰਤੀਆਂ ਆਪਣੀ ਰੱਖਿਆ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੀਆਂ, ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਇਸ ਭਵਸਾਗਰ ਤੋਂ ਪਾਰ ਉਤਾਰ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਮੂਰਤੀਆਂ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਨਾ ਫ਼ਜ਼ੂਲ ਹੈ ।

6. ਖੋਖਲੇ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਦਾ ਖੰਡਨ (Condemnation of Empty Rituals) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਖੋਖਲੇ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਮੱਥੇ ਤਿਲਕ ਲਗਾਉਣ, ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਭਸਮ ਮਲਣ, ਕਬਰਾਂ, ਖ਼ਾਨਗਾਹਾਂ, ਸੱਪਾਂ, ਰੁੱਖਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਨ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਮੁਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਉਸ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਧਰਮ ਸੱਚਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦਾ ਅੰਦਰੂਨਾ ਸੱਚਾ ਹੈ ।

7. ਇਸਤਰੀਆਂ ਨਾਲ ਮਾੜੇ ਸਲੂਕ ਦਾ ਖੰਡਨ (Denounced iltreatment with Women) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅਣਗਿਣਤ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਬੁਰਾਈਆਂ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰੀ ਦੇ ਹੱਕਾਂ ਲਈ ਆਵਾਜ਼ ਉਠਾਈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਫਰਮਾਉਂਦੇ ਹਨ, ਸੋ ਕਿਉਂ ਮੰਦਾ ਆਖੀਐ ਜਿਤੁ ਜੰਮੈ ਰਾਜਾਨ ।

8. ਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ (Recitation of Nam) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਤੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਅਰਾਧਨਾ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਦਾ ਉੱਚਤਮ ਰੂਪ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਚਲ ਕੇ ਮਨੁੱਖ ਇਸ ਰੋਗ ਗ੍ਰਸਤ ਜਾਂ ਦੁੱਖਾਂ ਭਰੇ ਸੰਸਾਰ ਤੋਂ ਮੁਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਮਨੁੱਖ ਆਵਾਗੌਣ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਪਵਿੱਤਰ ਮਨ ਅਤੇ ਸੱਚੀ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਡਾਕਟਰ ਦੀਵਾਨ ਸਿੰਘ ਲਿਖਦੇ ਹਨ,
“ਪਾਪਾਂ ਅਤੇ ਬੁਰਾਈਆਂ ਨਾਲ ਸਿਰ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੀ ਮੁਕਤੀ ਲਈ ਸਿਰਫ ਨਾਮ ਹੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੋਮਾ ਅਤੇ ਸ਼ਕਤੀ ਹੈ ।”

9. ਗੁਰੂ ਦਾ ਮਹੱਤਵ (Importance of the Guru) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਝਦੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੂ ਮੁਕਤੀ ਤਕ ਲੈ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਅਸਲੀ ਪੌੜੀ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਹਨੇਰੇ (ਅਗਿਆਨਤਾ) ਤੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ (ਗਿਆਨ) ਵੱਲ ਲਿਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਸੱਚੇ ਗੁਰੂ ਦਾ ਮਿਲਣਾ ਕੋਈ ਆਸਾਨ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਨਦਰਿ (ਮਿਹਰ) ਤੋਂ ਬਗ਼ੈਰ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ।

10. ਹੁਕਮ (Hukam) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਹੁਕਮ ਕਾਰਨ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਸੁੱਖ-ਦੁੱਖ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਗੁਰਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਵਾਹਿਗੁਰ ਦੇ ਹੁਕਮ ਨੂੰ ਮਿੱਠਾ ਕਰਕੇ ਮੰਨਣ ਦੀ ਤਾਕੀਦ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਅਜਿਹਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਮੁਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਭਾਣੇ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ ਉਹ ਦਰ-ਦਰ ਦੀਆਂ ਠੋਕਰਾਂ ਖਾਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

11. ਸੱਚ ਖੰਡ (Sach Khand) – ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਦਾ ਉੱਚਤਮ ਉਦੇਸ਼ ਸੱਚ ਖੰਡ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਹੈ । ਸੱਚ ਖੰਡ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਧਰਮ ਖੰਡ, ਗਿਆਨ ਖੰਡ, ਸਰਮ ਖੰਡ ਅਤੇ ਕਰਮ ਖੰਡ ਵਿਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਸੱਚ ਖੰਡ ਆਖਰੀ ਅਵਸਥਾ ਹੈ । ਸੱਚ ਖੰਡ ਵਿੱਚ ਆਤਮਾ ਪੂਰਨ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਵਿੱਚ ਲੀਨ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਮਹੱਤਵ (Importance of Teachings)

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਭਿੰਨ ਖੇਤਰਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਦਿਸ਼ਾ ਮਿਲੀ । ਉਹ ਫ਼ਜ਼ੂਲ ਦੇ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਨ ਲੱਗੇ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕਰਕੇ, ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਕੇ, ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਦਰਜਾ ਦੇ ਕੇ, ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਕੇ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਸਮਾਜ ਦਾ ਮੁੱਢ ਬੰਨਿਆ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਰਾਹੀਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰੀ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਹਲੁਣਾ ਦਿੱਤਾ | ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾਕਟਰ ਆਈ. ਬੀ. ਬੈਨਰਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦਾ ਸਮਾਂ ਅਗਿਆਨਤਾ ਅਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਮਾਂ ਸੀ ਅਤੇ ਅਸੀਂ ਇਹ ਬਿਨਾਂ ਝਿਜਕ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਸੱਚ ਅਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਸੀ ।”

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਦੇਣ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the contribution of Guru Nanak Dev Ji to Sikhism.)
ਉੱਤਰ-
15ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਲੋਕ ਅਗਿਆਨਤਾ ਦੇ ਹਨੇਰੇ ਵਿੱਚ ਭਟਕ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਖ਼ਰਾਬ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਨਵੀਂ ਜਾਗ੍ਰਿਤੀ ਲਿਆਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਿੱਸਿਆਂ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ (ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ) ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਬੜੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੇ ਕੀ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ ? (What do you mean by Udasis ? What were the aims of Guru Nanak Dev Ji’s Udasis ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੇ ਕੀ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ ?
(What were the aims of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਯੋਗਤਾਵਾਂ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਅਗਿਆਨਤਾ ਅਤੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਪੂਜਾ ਅਤੇ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਕਰਾਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਝੂਠੇ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ, ਕਰਮ-ਕਾਂਡਾਂ ਅਤੇ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਕਿਸੇ ਤਿੰਨ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of any three important Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
ਉੱਤਰ-

  • ਸੈਦਪੁਰ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਦੁਆਰਾ ਪੁੱਛਣ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਮਿਹਨਤ ਦੀ ਕਮਾਈ ਨਾਲ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਬੇਈਮਾਨੀ ਦੇ ਪੈਸਿਆਂ ਨਾਲ ।
  • ਹਰਿਦੁਆਰ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਗੱਲ ਸਮਝਾਈ ਕਿ ਗੰਗਾ ਇਸ਼ਨਾਨ ਨਾਲ ਜਾਂ ਪਿੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇਣ ਨਾਲ ਕੁੱਝ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਇਸ ਲਈ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਅੰਦਰੁਨਾ ਸਾਫ਼ ਹੋਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।
  • ਮੱਕਾ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਸਿੱਧ ਕੀਤਾ ਕਿ ਪਰਮਾਤਮਾ ਹਰ ਜਗ੍ਹਾ ਮੌਜੂਦ ਹੈ । ਉਹ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the teachings of Guru Nanak Dev Ji ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਸਾਰ ਲਿਖੋ । (Write an essence of the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe any three teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਇੱਕ ਹੈ । ਉਹ ਨਿਰਾਕਾਰ ਅਤੇ ਸਰਬਵਿਆਪੀ ਹੈ ।
  2. ਗੁਰੂ ਜੀ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਮੰਨਦੇ ਹਨ ।
  3. ਗੁਰੂ ਜੀ ਕਾਮ, ਕ੍ਰੋਧ, ਲੋਭ, ਮੋਹ ਅਤੇ ਹੰਕਾਰ ਨੂੰ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਪੰਜ ਵੈਰੀ ਦੱਸਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨ ਮਨੁੱਖ ਆਵਾਗੌਣ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
  4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ।
  5. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮਨਮੁੱਖ ਵਿਅਕਤੀ ਵਿੱਚ ਹਉਮੈਂ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਬੜੀ ਪ੍ਰਬਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਸੰਬੰਧੀ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਵਿਚਾਰ ਕੀ ਸਨ ? (What were the three views of Guru Nanak Dev Ji’s concept of God ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਈਸ਼ਵਰ ਸੰਬੰਧੀ ਕੀ ਵਿਚਾਰ ਸਨ ? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about God ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਏਕਤਾ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ।
  2. ਸਿਰਫ਼ ਪਰਮਾਤਮਾ ਹੀ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਦਾ ਰਚਣਹਾਰ, ਪਾਲਣਹਾਰ ਅਤੇ ਨਾਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈ ।
  3. ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਦੋ ਰੂਪ ਹਨ । ਉਹ ਨਿਰਗੁਣ ਵੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਗੁਣ ਵੀ ।
  4. ਪਰਮਾਤਮਾ ਸਰਬ-ਸ਼ਕਤੀਮਾਨ ਹੈ । ਉਸ ਦੀ ਇੱਛਾ ਬਿਨਾਂ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ।
  5. ਉਹ ਆਵਾਗੌਣ ਦੇ ਬੰਧਨਾਂ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਅਤੇ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ? (What type of religious beliefs and rituals were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਅਤੇ ਰਸਮਾਂ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ? (Which prevalent religious beliefs and conventions were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਧਾਰਮਿਕ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਅਤੇ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਵੇਦ, ਸ਼ਾਸਤਰ, ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ, ਤੀਰਥ ਯਾਤਰਾ, ਜੀਵਨ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਵਸਰਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੰਸਕਾਰਾਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ , ਬਾਹਮਣ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਸਮਾਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਮਰਥਕ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜੋਗੀਆਂ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਵੀ ਦੋ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਅਪ੍ਰਵਾਨ ਕੀਤਾ । ਪਹਿਲਾ, ਜੋਗੀਆਂ ਵਿੱਚ ਈਸ਼ਵਰ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸ਼ਰਧਾ ਦੀ ਘਾਟ ਸੀ । ਦੂਸਰਾ, ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਵਤਾਰਵਾਦ ਵਿੱਚ ਵੀ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹਾਕਮ ਬੇਇਨਸਾਫ਼ ਕਿਉਂ ਸਨ ? (According to Guru Nanak Dev Ji why the rulers were unjust ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਉਹ ਹਿੰਦੁਆਂ ਤੋਂ ਜਜ਼ੀਆ ਅਤੇ ਤੀਰਥ ਯਾਤਰਾ ਕਰ ਵਸੂਲਦੇ ਸਨ ।
  2. ਉਹ ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ੁਲਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
  3. ਉਹ ਰਿਸ਼ਵਤ ਲਏ ਬਿਨਾਂ ਇਨਸਾਫ਼ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮਾਇਆ ਦਾ ਸੰਕਲਪ ਕੀ ਸੀ ? ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ ਦਿਓ । (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya ? Explain in brief.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮਾਇਆ ਦਾ ਸੰਕਲਪ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਮੰਨਦੇ ਸਨ ਕਿ ਮਾਇਆ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਹੈ । ਮਨਮੁੱਖ ਆਦਮੀ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸੰਸਾਰੀ ਵਸਤਾਂ; ਜਿਵੇਂ ਧਨ-ਦੌਲਤ, ਉੱਚਾ ਅਹੁਦਾ, ਸੋਹਣੀ ਨਾਰ, ਪੁੱਤਰ ਆਦਿ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਮਾਇਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਮਾਇਆ ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਹ ਇੰਨਾ ਪਿਆਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਸ ਦਾ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਾਥ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੀ । ਮਾਇਆ ਕਾਰਨ ਉਹ ਆਵਾਗੌਣ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ‘ਗੁਰੂ’ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the importance of ‘Guru’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ‘ਗੁਰੂ’ ਸੰਬੰਧੀ ਕੀ ਵਿਚਾਰ ਸਨ ? (What was the concept of ‘Guru’ of Guru Nanak Dev Ji ?) :
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਅਸਲੀ ਪੌੜੀ ਮੰਨਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਹੀ ਮਾਇਆ ਦੇ ਮੋਹ ਤੇ ਹਉਮੈ ਦੇ ਰੋਗ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਹੀ ਨਾਮ ਤੇ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਆਰਾਧਨਾ ਦੁਆਰਾ ਭਗਤੀ ਦੇ ਮਾਰਗ ਉੱਤੇ ਚੱਲਣ ਦਾ ਢੰਗ ਦੱਸਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਬਿਨਾਂ ਭਗਤੀ ਗਿਆਨ ਅਸੰਭਵ ਹਨ । ਗੁਰੂ ਬਿਨਾਂ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਹਰ ਪਾਸੇ ਹਨ੍ਹੇਰਾ ਹੀ ਹਨ੍ਹੇਰਾ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹੀ ਹਨ੍ਹੇਰੇ ਤੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਵੱਲ ਲਿਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਸੱਚਾ ਗੁਰੂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਆਪ ਹੈ ਜੋ ਸ਼ਬਦ ਰਾਹੀਂ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ‘ਨਾਮ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the importance of ‘Nam’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਦੀ ਅਰਾਧਨਾ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਦਾ ਉੱਚਤਮ ਰੂਪ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਕਾਰਨ ਮਨੁੱਖ ਇਸ ਰੋਗ ਗ੍ਰਸਤ ਜਾਂ ਦੁੱਖਾਂ ਭਰੇ ਸੰਸਾਰ ਤੋਂ ਮੁਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਨਾਮ ਸਿਮਰਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸਾਰੇ ਭਰਮ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਾਰੇ ਦੁੱਖਾਂ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਦੀ ਆਤਮਾ ਇੱਕ ਕੰਵਲ ਦੇ ਫੁੱਲ ਵਾਂਗ ਹਮੇਸ਼ਾ ਖਿੜੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣਾ ਫ਼ਜ਼ੂਲ ਹੈ । ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਮਨੁੱਖ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਾਪਾਂ ਅਤੇ ਆਵਾਗੌਣ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਵਿੱਚ ਫਸਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁਕਮ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the importance of Hukam in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਹੁਕਮ ਜਾਂ ਭਾਣੇ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਸਾਰਾ ਸੰਸਾਰ ਉਸ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ ਚਲਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਦੇ ਹੁਕਮ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਜੀਵ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਜਨਮ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਜਾਂ ਉਸ ਦੀ ਮੌਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਉਸ ਨੂੰ ਵਡਿਆਈ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਾਂ ਉਹ ਨੀਚ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਹੁਕਮ ਕਾਰਨ ਹੀ ਉਸ ਨੂੰ ਸੁਖ ਜਾਂ ਦੁੱਖ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਭਾਣੇ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਦਾ ਉਹ ਦਰ-ਦਰ ਦੀਆਂ ਠੋਕਰਾਂ ਖਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਇਸਤਰੀ ਜਾਤੀ ਸੰਬੰਧੀ ਕੀ ਵਿਚਾਰ ਸਨ ? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about women ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਦਰਜਾ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਬਾਲ ਵਿਆਹ, ਬਹੁ-ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਆਦਿ ਦਾ ਘੋਰ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ । ਉਹ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਦੇ ਹਾਮੀ ਸਨ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਅਰਥ ਅਤੇ ਮਹੱਤਵ ਕੀ ਸਨ ? (What was the social meaning and significance of Guru Nanak Dev Ji’s message ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ? (What was the impact of teachings of Guru Nanak Dev Ji on Punjab ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਅਰਥ ਬੜੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਹਰੇਕ ਲਈ ਸੀ । ਕੋਈ ਵੀ ਇਸਤਰੀ-ਪੁਰਸ਼ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਦਰਸਾਏ ਗਏ ਮਾਰਗ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਮੁਕਤੀ ਦਾ ਮਾਰਗ ਸਭ ਲਈ ਖੁੱਲ੍ਹਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮਾਨਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ | ਸਮਾਜਿਕ ਸਮਾਨਤਾ ਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦੇਣ ਲਈ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ (ਲੰਗਰ) ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਚਲਾਈਆਂ । ਲੰਗਰ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਸਮੇਂ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਦਾ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਬਾਰੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਕੀ ਹਨ ? (What are Guru Nanak Dev Ji views on caste system ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਸਮਾਜਿਕ ਅਸਮਾਨਤਾ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਜਾਤੀ ਕਾਰਨ ਅਮੀਰ ਜਾਂ ਗ਼ਰੀਬ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਜਾਤੀ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਕਰਮਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਨਿਬੇੜਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਨੀਵੀਆਂ ਜਾਤੀਆਂ ਅਤੇ ਨਿਮਨ ਵਰਗਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਜੋੜਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਨਾਲੋਂ ਕਿਵੇਂ ਵੱਖਰੀਆਂ ਸਨ ? (How far were the teachings of Guru Nanak Dev Ji different from the Bhakti reformers ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨਿਰੰਕਾਰ ਹੈ । ਉਹ ਕਦੇ ਵੀ ਮਨੁੱਖੀ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ । ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਨੇ ਸ੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਅਤੇ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਅਵਤਾਰ ਦੱਸਿਆ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਦੇ ਸਖ਼ਤ ਖਿਲਾਫ਼ ਸਨ ਜਦਕਿ ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਦਾ ਇਸ ਵਿੱਚ ਪੂਰਨ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਹਿਸਥ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕ ਹਿਸਥ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਦੱਸਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀਆਂ । ਭਗਤੀ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਨੇ ਅਜਿਹੀ ਕਿਸੇ ਸੰਸਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਕਵੀ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤਕਾਰ ਸਨ । ਇਸ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (Guru Nanak Dev Ji was a great poet and musician. Explain.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਧਾਰਮਿਕ ਮਹਾਂਪੁਰਖ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸੰਗੀਤਕਾਰ ਅਤੇ ਕਵੀ ਵੀ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਅੰਕਿਤ ਆਪ ਜੀ ਦੇ 976 ਸ਼ਬਦ ਆਪ ਦੇ ਮਹਾਨ ਕਵੀ ਹੋਣ ਦਾ ਪ੍ਰਤੱਖ ਪ੍ਰਮਾਣ ਹਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਕੁਦਰਤ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦਾ ਗੁਣਗਾਨ ਕੀਤਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਉਪਮਾਵਾਂ ਅਤੇ ਅਲੰਕਾਰਾਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਉੱਚ ਪੱਧਰੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਬੜੇ ਸੰਖੇਪ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਬੜੀਆਂ ਡੂੰਘੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਹਿ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਰਾਗਾਂ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਅਖੀਰਲੇ 18 ਵਰੇ ਕਿੱਥੇ ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ ? (How and where did Guru Nanak Dev Ji spend last 18 years of his life ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਜੀਵਨ ਦੇ ਆਖ਼ਰੀ 18 ਸਾਲ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਸੰਗਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਸ ਇਕੱਠ ਤੋਂ ਸੀ ਜੋ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣਨ ਲਈ ਜੁੜਦੀ ਸੀ । ਪੰਗਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਇੱਕ ਕਤਾਰ ਵਿੱਚ ਬੈਠ ਕੇ ਲੰਗਰ ਛਕਣਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ 976 ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਵੀ ਕੀਤੀ ।

ਵਸਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੰਸਥਾਪਕ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
1469 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਤਲਵੰਡੀ (ਪਾਕਿਸਤਾਨ) ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਥਾਨ ਨੂੰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
‘‘ਸਤਿਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਗਟਿਆ ਮਿਟੀ ਧੁੰਧੁ ਜਗੁ ਚਾਨਣੁ ਹੋਆ” । ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਕਿਸ ਨੇ ਕਹੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਕਿਸ ਜਾਤੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਬੇਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਭੈਣ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬੇਬੇ ਨਾਨਕੀ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਪਤਨੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਕਿਸ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬੀਬੀ ਸੁਲੱਖਣੀ ਜੀ ਨਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ ਕਿੰਨੇ ਰੁਪਇਆਂ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
20 ਰੁਪਇਆਂ ਨਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ਕਿਉਂ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਨੌਕਰੀ ਕਰਨ ਲਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
1499 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਕਹੇ ?
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
“ਨਾ ਕੋ ਹਿੰਦੂ ਨਾ ਕੋ ਮੁਸਲਮਾਨ”।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਉਦੇਸ਼ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਅਗਿਆਨਤਾ ਅਤੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਕਦੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
1499 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਕਿੱਥੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੈਦਪੁਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਜਿਹੜੇ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਚਰਨ ਪਾਏ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਉਦਾਸੀਆਂ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨਾਲ ਕਿਹੜਾ ਸਾਥੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਮਰਦਾਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਭਾਈ ਮਰਦਾਨਾ ਕੀਰਤਨ ਕਰਨ ਸਮੇਂ ਕਿਹੜਾ ਸਾਜ਼ ਵਜਾਉਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਰਬਾਬ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ ਕਿਸ ਦੇ ਘਰ ਠਹਿਰੇ ਸਨ ?
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਚੇਲਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਲਾਲੋ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ (ਐਮਨਾਬਾਦ) ਵਿੱਚ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਦਾ ਭੋਜਨ ਖਾਣ ਤੋਂ ਕਿਉਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਦੀ ਕਮਾਈ ਈਮਾਨਦਾਰੀ ਦੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸੱਜਣ ਠੱਗ ਨੂੰ ਕਿੱਥੇ ਮਿਲੇ ?
ਜਾਂ
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸੱਜਣ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਤਾਲੰਬਾ ਵਿਖੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਸ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਪੱਛਮ ਦਿਸ਼ਾ ਵੱਲ ਆਪਣੇ ਖੇਤਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦਿੱਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਰਿਦੁਆਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪਾਨੀਪਤ ਵਿੱਚ ਕਿਹੜੇ ਸੂਫ਼ੀ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ੈਖ਼ ਤਾਹਿਰ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਉਦਾਸੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੋਰਖਮਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਪਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਾਨਕਮਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
ਨੂਰਸ਼ਾਹੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਮਰੂਪ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਾਦੂਗਰਨੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਉੜੀਸਾ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਮੰਦਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਰਤੀ ਦਾ ਸਹੀ ਅਰਥ ਦੱਸਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੈਲਾਸ਼ ਪਰਬਤ ਦੇ ਸਿੱਧਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਉਪਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਹ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 33.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਲੰਕਾ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਾਸਕ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਿਵਨਾਥ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 34.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਿਸ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਕਾਅਬੇ ਨੂੰ ਘੁਮਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੱਕਾ ਵਿਖੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 35.
ਮੱਕਾ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਕਿਹੜੇ ਕਾਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਾਦ-ਵਿਵਾਦ ਹੋਇਆ ?
ਜਾਂ
ਮੱਕਾ ਵਿਖੇ ਕਿਹੜੇ ਕਾਜ਼ੀ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਤਰਕ ਨਾਲ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਪਰਮਾਤਮਾ ਹਰ ਥਾਂ ਮੌਜੂਦ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਰੁਕਨਉੱਦੀਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 36.
ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ ਨੂੰ ਹੁਣ ਕਿਸ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾ ਸਾਹਿਬ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 37.
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਬਗ਼ਦਾਦ ਵਿਖੇ ਕਿਸ ਸ਼ੇਖ਼ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਿਲੋਲ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 38.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਬਾਬਰ ਨੇ ਕਦੋਂ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1520 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 39.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਮਕਾਲੀਨ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 40.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਬਾਬਰ ਦੇ ਸੈਦਪੁਰ ਹਮਲੇ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਕਿਸ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਾਪ ਦੀ ਜੰਵ ਨਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 41.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸਿੱਖਿਆ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪਰਮਾਤਮਾ ਇੱਕ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 42.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ “ਮਾਇਆ ਦਾ ਸੰਕਲਪ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੰਸਾਰ ਇੱਕ ਮਾਇਆ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 43.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਪੰਜ ਵੈਰੀ ਕੌਣ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਮ, ਕ੍ਰੋਧ, ਲੋਭ, ਮੋਹ ਅਤੇ ਹੰਕਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 44.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੂ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਕੀ ਮਹੱਤਤਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਮੁਕਤੀ ਤਕ ਲੈ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਅਸਲੀ ਪੌੜੀ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 45.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਨਾਮ ਜਪਣ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਇਸ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਆਉਣਾ ਫ਼ਜ਼ੂਲ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 46.
ਮਨਮੁੱਖ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਨਮੁੱਖ ਵਿਅਕਤੀ ਇੰਦਰਿਆਵੀ ਭੁੱਖਾਂ ਨਾਲ ਘਿਰਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 47.
ਆਤਮ-ਸਮਰਪਣ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਉਮੈ ਦਾ ਤਿਆਗ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 48.
ਨਦਰਿ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਮਿਹਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 49.
ਹੁਕਮ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਭਾਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 50.
ਕਿਰਤ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਿਹਨਤ ਅਤੇ ਈਮਾਨਦਾਰੀ ਦੀ ਕਮਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 51.
‘ਅੰਜਨ ਮਾਹਿ ਨਿਰੰਜਨ’ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੰਸਾਰ ਦੀਆਂ ਬੁਰਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਸਾਦਾ ਅਤੇ ਪਵਿੱਤਰ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਨਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 52.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੈਰੋਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀਆਂ ਤਿੰਨ ਗੱਲਾਂ ‘ਤੇ ਚੱਲਣ ਲਈ ਕਿਹਾ ?
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਨਿਚੋੜ ਤਿੰਨ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਬਿਆਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਿਰਤ ਕਰੋ, ਨਾਮ ਜਪੋ ਤੇ ਵੰਡ ਛਕੋ ।

ਪਸ਼ਨ 53.
ਕੀਰਤਨ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 54.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਰਾਵੀ ਦੇ ਕੰਢੇ ਕਿਹੜੇ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਰਤਾਰਪੁਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 55.
ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਸ਼ਹਿਰ !

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 56.
ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹੜੀਆਂ ਦੋ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਕਾਇਮ ਕੀਤੀਆਂ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 57.
ਸੰਗਤ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੰਗਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਸ ਸਮੂਹ ਤੋਂ ਹੈ ਜੋ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ ਸੁਣਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 58.
ਪੰਗਤ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਤਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਬੈਠ ਕੇ ਲੰਗਰ ਛਕਣਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 59.
ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਆਰੰਭ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 60.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਭਗਤਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਇੱਕ ਅੰਤਰ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ ਜਦਕਿ ਭਗਤ ਨਹੀਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 61.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸਮਾਂ ਕਿੱਥੇ ਬਤੀਤ ਕੀਤਾ ?
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਆਖ਼ਰੀ ਸਾਲ ਕਿੱਥੇ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਰਤਾਰਪੁਰ (ਪਾਕਿਸਤਾਨ) ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 62.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
1539 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 63.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਕਿੱਥੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਰਤਾਰਪੁਰ (ਪਾਕਿਸਤਾਨ) ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 64.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 65.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੂੰ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਦਾ ਨਾਂ ਕਿਉਂ ਦਿੱਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਰੀਰ ਦਾ ਅੰਗ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ :-

1. …………………………. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1469 ਈ.)

2. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ………………….. ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ)

3. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਭੈਣ ਦਾ ਨਾਂ …………………………. ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬੇਬੇ ਨਾਨਕੀ)

4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ………………….. ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਜੀ)

5. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ ………………………….. ਰੁਪਇਆਂ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(20)

6. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ …………………… ਦੇ ਮੋਦੀਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ)

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7. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਸਮੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਉਮਰ ……………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(30 ਵਰੇ)

8. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸ਼ਬਦ ਕਹੇ …………………………… ।
ਉੱਤਰ-
(ਨਾ ਕੋ ਹਿੰਦੂ ਅਤੇ ਨਾ ਕੋ ਮੁਸਲਮਾਨ)

9. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ………………..
ਉੱਤਰ-
(ਯਾਤਰਾਵਾਂ)

10. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ……………………. ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(1499)

11. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਸਮੇਂ ……………………….. ਹਮੇਸ਼ਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਭਾਈ ਮਰਦਾਨਾ)

12. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਯਾਤਰਾ ਦੌਰਾਨ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ……………………. ਵਿਖੇ ਗਏ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸੈਦਪੁਰ)

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13. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸੱਜਣ ਠੱਗ ਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ………………………… ਵਿਖੇ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਤਾਲੰਬਾ)

14. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ …………………….. ਵਿਖੇ ਆਪਣੇ ਖੇਤਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦਿੱਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(ਹਰਿਦੁਆਰ)

15. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ………………………….. ਵਿਖੇ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਦੀ ਅਸਲ ਆਰਤੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ !
ਉੱਤਰ-
(ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ)

16. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਧਾਂ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ………………………. ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਕੈਲਾਸ਼ ਪਰਬਤ

17. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮੱਕਾ ਯਾਤਰਾ ਸਮੇਂ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਕਾਜ਼ੀ ਦਾ ਨਾਂ ……………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਰੁਕਨੁੱਦੀਨ)

18. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਆਖਰੀ ਵਰ੍ਹੇ ………………………. ਵਿਖੇ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਕਰਤਾਰਪੁਰ)

19. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ……………………….. ਅਤੇ ……………………..ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸੰਗਤ/ਪੰਗਤ)

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20. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ …………………………… ਪਰਮਾਤਮਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਇਕ)

21. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਅਤੇ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਦਾ ………………………… ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(ਖੰਡਨ)

22. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮਨੁੱਖ ਦੇ …………………………. ਵੈਰੀ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਪੰਜ)

23. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਦਾ ਉੱਚਤਮ ਉਦੇਸ਼ …………………… ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸੱਚ-ਖੰਡ)

24. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ……………………………. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ ਜੋਤ ਸਮਾਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1539 ਈ.)

25. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ……………………. ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ)

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ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :- ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 1469 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

2. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਥਾਨ ਨੂੰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਪੰਜਾ ਸਾਹਿਬ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

3. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਸਭਰਾਈ ਦੇਵੀ ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

5. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਭੈਣ ਦਾ ਨਾਂ ਬੇਬੇ ਨਾਨਕੀ ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

6. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਬੇਦੀ ਜਾਤ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 40 ਰੁਪਇਆਂ ਨਾਲ ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ ਕੀਤਾ
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

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8. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਨਿਵਾਸੀ ਬੀਬੀ ਸੁਲੱਖਣੀ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

9. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਅਤੇ ਲਖਮੀ ਦਾਸ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

10. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਮੋਦੀਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

11. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ‘ਨਾ ਕੋ ਹਿੰਦੂ ਅਤੇ ਨਾ ਕੋ ਮੁਸਲਮਾਨ’ ਨਾਂ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਕਹੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਉਮਰ 35 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

13. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

14. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਸੈਦਪੁਰ ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

15. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋ ਦੇ ਘਰ ਠਹਿਰੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

16. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਵਿਖੇ ਸੱਜਣ ਠੱਗ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

17. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਹਰਿਦੁਆਰ ਵਿਖੇ ਆਪਣੇ ਖੇਤਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

18. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ ਵਿਖੇ ਪੰਡਤਾਂ ਨੂੰ ਅਸਲ ਆਰਤੀ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

19. ਮੱਕਾ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਕਾਅਬੇ ਵੱਲ ਪੈਰ ਕਰ ਕੇ ਸੌਂ ਗਏ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

20. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-ਠੀਕ

21. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

22. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਅਤੇ ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

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23. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਅਧਿਕਾਰ ਦੇਣ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

24. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

25. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੰਸਥਾਪਕ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1459 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1469 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1479 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1489 ਈ. ਵਿੱਚ
ਉੱਤਰ-
(ii) 1469 ਈ. ਵਿੱਚ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਸਥਾਨ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(ii) ਕਰਤਾਰਪੁਰ
(iii) ਤਲਵੰਡੀ
(iv) ਲਾਹੌਰ ਤੋਂ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਤਲਵੰਡੀ

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਜੀ
(ii) ਜੈ ਰਾਮ ਜੀ
(iii) ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ
(iv) ਫੇਰੂਮਲ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਜੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਖੀਵੀ ਜੀ
(ii) ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਜੀ
(iii) ਨਾਨਕੀ ਜੀ
(iv) ਗੁਜਰੀ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਜੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕੌਣ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਭੈਣ ਸੀ ?
(i) ਬੇਬੇ ਨਾਨਕੀ ਜੀ
(ii) ਭਾਨੀ ਜੀ
(iii) ਦਾਨੀ ਜੀ
(iv) ਖੀਵੀ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਬੇਬੇ ਨਾਨਕੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ ਕਿੰਨੇ ਰੁਪਇਆਂ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) 10
(ii) 20
(iii) 30
(iv) 50.
ਉੱਤਰ-
(ii) 20.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਪਤਨੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਗੰਗਾ ਦੇਵੀ ਜੀ
(ii) ਸੁਲੱਖਣੀ ਜੀ
(iii) ਬੀਬੀ ਵੀਰੋ ਜੀ
(iv) ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸੁਲੱਖਣੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿੱਥੇ ਨੌਕਰੀ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਸੀ ?
(i) ਮੁਲਤਾਨ
(ii) ਸੀਤਾਪੁਰ
(iii) ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ
(iv) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਿੱਥੇ ਮੋਦੀਖਾਨੇ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀ ਕੀਤੀ ?
(i) ਲਾਹੌਰ
(ii) ਦਿੱਲੀ
(iii) ਤਲਵੰਡੀ
(iv) ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਉਮਰ ਕਿੰਨੀ ਸੀ ?
(i) 20 ਸਾਲ
(ii) 22 ਸਾਲ
(iii) 26 ਸਾਲ
(iv) 30 ਸਾਲ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 30 ਸਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ
(ii) ਨਾਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ
(iii) ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਉਦਾਸੀ ਕਿੱਥੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ?
(i) ਗੋਰਖਮਤਾ
(ii) ਹਰਿਦੁਆਰ
(iii) ਸੈਦਪੁਰ
(iv) ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸੈਦਪੁਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਸੱਜਣ ਠੱਗ ਨਾਲ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) ਤਾਲੰਬਾ ਵਿਖੇ
(ii) ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ
(iii) ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ
(iv) ਧੂਰੀ ਵਿਖੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਤਾਲੰਬਾ ਵਿਖੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜਾਦੂਗਰਨੀ ਨੂਰਸ਼ਾਹੀ ਨੂੰ ਕਿੱਥੇ ਮਿਲੇ ਸਨ ?
(i) ਗਯਾ
(ii) ਕਾਮਰੂਪ
(iii) ਧੁਬਰੀ
(iv) ਬਨਾਰਸ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਕਾਮਰੂਪ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਕਿਸ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਆਰਤੀ ਕੁਦਰਤ ਹਰ ਸਮੇਂ ਕਰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ?
(i) ਹਰਿਦੁਆਰ
(ii) ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ
(iii) ਬਨਾਰਸ
(iv) ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਜਗਨਨਾਥ ਪੁਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸ੍ਰੀਲੰਕਾ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਰਾਜੇ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ਸਨ ?
(i) ਕ੍ਰਿਸ਼ਨਦੇਵ ਰਾਏ
(ii) ਭੋਲੇਨਾਥ
(iii) ਸ਼ਿਵਨਾਥ
(iv) ਸ਼ੰਕਰਦੇਵ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸ਼ਿਵਨਾਥ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਿਸ ਸਥਾਨ ਨੂੰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਪੰਜਾ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
(i) ਪਾਕਪਟਨ
(ii) ਸਿਆਲਕੋਟ
(iii) ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ
(iv) ਗੋਰਖਮਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਹਸਨ ਅਬਦਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਮੱਕਾ ਵਿਖੇ ਕਿਹੜੇ ਕਾਜ਼ੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਾਅਬੇ ਵੱਲ ਪੈਰ ਕਰਕੇ ਸੌਣ ਤੋਂ ਮਨ੍ਹਾਂ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) ਬਹਾਉੱਦੀਨ
(ii) ਕੁਤਬਉੱਦੀਨ
(iii) ਰੁਕਨੁੱਦੀਨ
(iv) ਬਹਿਲੋਲ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਰੁਕਨੁੱਦੀਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਗ਼ਦਾਦ ਵਿਖੇ ਕਿਸ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋਈ ?
(i) ਸੱਜਣ ਠੱਗ
(ii) ਸ਼ੇਖ ਬਹਿਲੋਲ
(iii) ਬਾਬਰ
(iv) ਚੈਤੰਨਿਆ ਮਹਾਂਪ੍ਰਭੂ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸ਼ੇਖ ਬਹਿਲੋਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਕਦੋਂ ਨਿਵਾਸ ਕੀਤਾ ?
(i) 1519 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1520 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1521 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1522 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1521 ਈ. ਵਿੱਚ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਕੀ ਸਰੂਪ ਹੈ ?
(i) ਉਹ ਸਰਵ-ਸ਼ਕਤੀਮਾਨ ਹੈ
(ii) ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਹੈ
(iii) ਉਹ ਨਿਰਗੁਣ ਅਤੇ ਸਗੁਣ ਹੈ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਹੜੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਮਨਮੁੱਖ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ?
(i) ਉਹ ਮਾਇਆ ਦੇ ਚੱਕਰਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ
(ii) ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਕਰਦਾ ਹੈ
(iii) ਉਸ ਵਿੱਚ ਹਉਮੈ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।
(iv) ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਇੰਦਰਿਆਵੀ ਭੁੱਖਾਂ ਨਾਲ ਘਿਰਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਸ ਦਾ ਖੰਡਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ?
(i) ਪੁਰੋਹਿਤ ਵਰਗ ਦਾ
(ii) ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ
(iii) ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਦਾ
(iv) ਇਸਤਰੀ-ਪੁਰਸ਼ ਬਰਾਬਰੀ ਦਾ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਇਸਤਰੀ-ਪੁਰਸ਼ ਬਰਾਬਰੀ ਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਕਿਹੜਾ ਸਾਧਨ ਅਪਨਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ
ਹੈ ?
(i) ਨਾਮ ਦਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਨਾ
(ii) ਸੱਚੇ ਗੁਰੂ ਨੂੰ ਮਿਲਣਾ
(iii) ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਹੁਕਮ ਮੰਨਣਾ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਕਿੰਨੇ ਵੈਰੀ ਦੱਸੇ ਹਨ ?
(i) ਦੋ .
(ii) ਤਿੰਨ
(iii) ਚਾਰ
(iv) ਪੰਜ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਪੰਜ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਿਸ ਸਿਧਾਂਤ ‘ਤੇ ਚੱਲਣ ਲਈ ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਦੱਸਿਆ ?
(i) ਕਿਰਤ ਕਰਨੀ
(ii) ਨਾਮ ਜਪਣਾ
(iii) ਵੰਡ ਛਕਣਾ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਕੀਰਤਨ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(iii) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਹੜਾ ਤੱਥ ਸਿੱਧ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਸਨ ?
(i) ਨਵੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ
(ii) ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਰੋਧ
(iii) ਮੂਰਤੀ ਪੂਜਾ ਦਾ ਖੰਡਨ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
(i) ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ
(ii) ਭਾਈ ਦੁਰਗਾ ਜੀ
(iii) ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ
(iv) ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
(i) 1519 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1529 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1539 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1549 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਸੰਸਥਾਪਕ ਸਨ । 15ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਧਰਤੀ ‘ਤੇ ਹਰ ਪਾਸੇ ਹਾਹਾਕਾਰ ਮੱਚੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ਸਨ ।ਉਹ ਅਗਿਆਨਤਾ ਦੇ ਹਨੇਰੇ ਵਿੱਚ ਭਟਕ ਰਹੇ ਸਨ । ਹਰ ਪਾਸੇ ਅਧਰਮ, ਝੂਠ ਅਤੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਸੀ । ਲੋਕ ਧਰਮ ਦੀ ਅਸਲੀਅਤ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਇਹ ਸਿਰਫ ਆਡੰਬਰਾਂ ਅਤੇ ਕਰਮਕਾਂਡਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਦਿਖਾਵਾ ਜਿਹਾ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ ਸੀ । ਸ਼ਾਸਕ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਪਰਜਾ ਦੀ ਭਲਾਈ ਕਰਨ ਦੀ ਬਜਾਇ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਜ਼ੁਲਮ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਵਧੇਰੇ ਸਮਾਂ ਰੰਗਰਲੀਆਂ ਵਿੱਚ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਅਗਿਆਨਤਾ ਦੇ ਹਨੇਰੇ ਵਿੱਚ ਭਟਕ ਰਹੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਨੂੰ ਗਿਆਨ ਦਾ ਸੱਚਾ ਮਾਰਗ ਦਿਖਾਇਆ ।

1. ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੰਸਥਾਪਕ ਕੌਣ ਸਨ ?
2. ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਦੀ ਹਾਲਤ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ?
3. ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਸ਼ਾਸਕ ਅਤੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਵਰਗ ਦਾ ਪਰਜਾ ਪ੍ਰਤੀ ਕੀ ਵਤੀਰਾ ਸੀ ?
4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਮਨੁੱਖਤਾ ਨੂੰ ਕਿਹੜਾ ਮਾਰਗ ਦਿਖਾਇਆ ?
5. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਲੋਕ ਧਰਮ ਦੀ ਅਸਲੀਅਤ ਨੂੰ ………………….. ਚੁੱਕੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੰਸਥਾਪਕ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸਨ ।
2. ਉਸ ਸਮੇਂ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ਸਨ ।
3. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਸ਼ਾਸਕ ਅਤੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਵਰਗ ਪਰਜਾ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ੁਲਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਮਨੁੱਖਤਾ ਨੂੰ ਸੱਚ ਅਤੇ ਗਿਆਨ ਦਾ ਮਾਰਗ ਦਿਖਾਇਆ ।
5. ਭੁੱਲ ।

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2. 1499 ਈ. ਵਿੱਚ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਮਾਂ ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ਵਿਖੇ ਨਾ ਠਹਿਰੇ ਅਤੇ ਉਹ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਲੰਬੀ ਯਾਤਰਾ ਲਈ ਨਿਕਲ ਪਏ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਲਗਭਗ 21 ਵਰੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ ! ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬ ਦੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਨੂੰ ਉਦਾਸੀਆਂ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਘਰ-ਬਾਰ ਤਿਆਗ ਕੇ ਇੱਕ ਉਦਾਸੀ ਵਾਂਗ ਘੁੰਮਦੇ ਫਿਰਦੇ ਰਹੇ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਕੁਝ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਪਹਿਲਾ, ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਕੋਈ ਵੇਰਵਾ ਨਹੀਂ ਲਿਖਿਆ । ਦੂਜਾ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਸਾਨੂੰ ਕੋਈ ਸਮਕਾਲੀਨ ਸੋਮਾ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ।

1. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ?
2. ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
3. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਸਾਨੂੰ ਪੇਸ਼ ਆਉਂਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਔਕੜ ਦੱਸੋ ।
4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕਿੱਥੋਂ ਕੀਤੀ ?
5. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 1469 ਈ.
(ii) 1479 ਈ.
(iii) 1489 ਈ.
(iv) 1499 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
1. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ।
2. ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਭਾਵ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ।
3. ਇਨ੍ਹਾਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਸਾਨੂੰ ਕੋਈ ਸਮਕਾਲੀਨ ਸੋਮਾ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ।
4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਸੈਦਪੁਰ ਤੋਂ ਕੀਤੀ ।
5. 1499 ਈ. ।

3. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜਦੋਂ 1520 ਈ. ਦੇ ਆਖੀਰ ਵਿੱਚ ਸੈਦਪੁਰ ਪਹੁੰਚੇ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉੱਥੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਨਿਰਦੋਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸੈਦਪੁਰ ਵਿੱਚ ਭਾਰੀ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕੀਤੀ ਗਈ ਅਤੇ ਘਰਾਂ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਬੇਪਤੀ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਪੁਰਸ਼ਾਂ, ਇਸਤਰੀਆਂ ਅਤੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕੈਦੀਆਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਵੀ ਸਨ । ਜਦੋਂ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਇਹ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸੰਤ ਹਨ ਤਾਂ ਉਹ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਆਪ ਆਇਆ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਤੋਂ ਇੰਨਾ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਨਾ ਸਿਰਫ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਬਲਕਿ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ ਕੈਦੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

1. ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
2. ਬਾਬਰ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ ਕੀ ਕੀਤਾ ?
3. ਕੀ ਬਾਬਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ ਕੈਦ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
4. ਬਾਬਰ ਨੇ ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤੇ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਕੀ ਕਿਹਾ ?
5. ਬਾਬਰ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨਾਲ ਕੀ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ ?
(i) ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬੇਇੱਜਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।
(ii) ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਤਿਕਾਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ
(iii) ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖਿਆ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੂਰ ਤੇ 1520 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
2. ਬਾਬਰ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕੀਤੀ ।
3. ਜੀ ਹਾਂ, ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
4. ਬਾਬਰ ਨੇ ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤੇ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ
ਕੈਦੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦੇ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤੇ ।
5. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬੇਇੱਜਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ

4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਰਾਵੀ ਦਰਿਆ ਦੇ ਕਿਨਾਰੇ 1521 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਰਤਾਰਪੁਰ (ਭਾਵ ਈਸ਼ਵਰ ਦਾ ਨਗਰ) ਨਾਂ ਦੇ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਜੀਵਨ ਦੇ ਆਖ਼ਰੀ 18 ਸਾਲ ਬਤੀਤ ਕੀਤੇ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਸੰਗਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਸ ਇਕੱਠ ਤੋਂ ਸੀ ਜੋ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣਨ ਲਈ ਜੁੜਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਹਰ ਇਸਤਰੀ-ਪੁਰਸ਼ ਨੂੰ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਅਕਾਲਪੁਰਖ ਦੇ ਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਗਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਕਤਾਰ ਵਿੱਚ ਬੈਠ ਕੇ ਲੰਗਰ ਛਕਣਾ । ਲੰਗਰ ਵਿੱਚ ਜਾਤਪਾਤ ਜਾਂ ਧਰਮ ਆਦਿ ਦਾ ਕੋਈ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈਆਂ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ 976 ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਇਹ ਕੰਮ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਅਤਿਅੰਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

1. ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
2. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਕਿਹੜੀਆਂ ਦੋ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ?
3. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿੰਨੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ?
4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਕਿਸੇ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਬਾਣੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
5. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
(i) 1591 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1511 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1521 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1531 ਈ. ਵਿੱਚ !
ਉੱਤਰ-
1. ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਈਸ਼ਵਰ ਦਾ ਨਗਰ ।
2. ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
3. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 976 ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ।
4. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਬਾਣੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਅਤੇ ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ ਹਨ ।
5. 1521 ਈ. ਵਿੱਚ ।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 8 कुल मांग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 8 कुल मांग

PSEB 12th Class Economics कुल मांग Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
‘से’ के बाज़ार नियम की परिभाषा दो।
उत्तर-
जे०बी० से के अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.)

प्रश्न 2.
कुल माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उपभोग निवेश, सरकारी व्यय तथा शुद्ध निर्यात के जोड़ को कुल माँग कहा जाता है।

प्रश्न 3.
कुल माँग के अंश बताएं।
उत्तर-
कुल माँग के अंश हैं-

  • उपभोग व्यय
  • निवेश
  • सरकारी व्यय
  • शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात)
    (AD = C + I + G + X – H)

प्रश्न 4.
कुल माँग के किसी एक अंश को स्पष्ट करें।
उत्तर-
उपभोग व्यय-इसमें परिवारों के उपभोग के लिए की गई माँग को शामिल किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 5.
निवेश से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
स्थिर पूँजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में पूँजीगत पदार्थ जैसे कि मशीनें, कारखाने इत्यादि को शामिल किया जाता है। निवेश को स्थिर पूँजी निर्माण भी कहते हैं।

प्रश्न 6.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र में कुल पूर्ति का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की मूल्य वृद्धि का योग होता है। (AS = C + S)

प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में पारिवारिक उपभोग माँग किस बात पर निर्भर करती है ?
उत्तर–
पारिवारिक उपभोग माँग का स्तर परिवार की आय पर निर्भर करता है।

प्रश्न 8.
प्रभावी माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस बिन्दु पर कुल माँग वक्र, कुल पूर्ति वक्र को काटता है, उस बिन्दु को प्रभावी माँग का बिन्दु कहते हैं।

प्रश्न 9.
कुल पूर्ति का कोई एक अंश बताएं।
उत्तर-
बचत पूर्ति का एक अंश होता है।

प्रश्न 10.
नियोजित निवेश (Planned or Ex-ante) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजित निवेश का अर्थ उस निवेश से है जो देश के लोग निवेश करने की इच्छा करते हैं।

प्रश्न 11.
वास्तविक निवेश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक निवेश (Actual or Ex-Post) वह निवेश है जोकि लोगों द्वारा एक निश्चित अवधि में किया जाता है।

प्रश्न 12.
क्या वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश बराबर होते हैं ?
उत्तर-
वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश सदैव बराबर होते हैं।

प्रश्न 13.
प्रायोजित और वास्तविक निवेश का अन्तर क्या होता है ?
उत्तर-
इसका अन्तर अप्रायोजित निवेश कहलाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 14.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश, बचत से अधिक होती है तो राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का स्तर बढ़ता है।

प्रश्न 15.
यदि वास्तविक बचत, वास्तविक निवेश से अधिक है तो राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय में कमी हो जाती है।

प्रश्न 16.
निवेश माँग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की दर और निवेश माँग के सम्बन्ध को निवेश माँग फलन कहते हैं।

प्रश्न 17.
निवेश की सीमान्त कुशलता (Marginal Efficiency of Investment) को परिभाषित करो। ‘
उत्तर-
एक नया पूँजी पदार्थ लगाने से जो ज़्यादा से ज्यादा आय होने की संभावना है उसको निवेश की सीमान्त कुशलता कहते हैं।

प्रश्न 18.
वास्तविक बचत तथा निवेश सदैव बराबर होते हैं। कैसे ?
उत्तर-
Y = C + S और Y = C + I
∴ C + S = C +I
S = I

प्रश्न 19.
पूर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा कर लेती है किस अर्थशास्त्री का कथन है ?
(a) एडम स्मिथ
(b) मार्शल
(c) रोबिन्ज़
(d) जे० बी से।
उत्तर-
(d) जे० बी से।

प्रश्न 20.
जो निवेश एक देश के लोग करने की इच्छा रखते हैं उसको ……….. कहा जाता है।
(a) वास्तविक निवेश
(b) नियोजित निवेश
(c) सरकारी निवेश
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) नियोजित निवेश।

प्रश्न 21.
जिस बिन्दु पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति बराबर होते हैं उस बिन्दु को ………. का बिन्दु कहा जाता है।
(a) पूर्ण रोज़गार
(b) छुपी बेरोज़गारी
(c) कुल माँग
(d) प्रभावी माँग।
उत्तर-
(d) प्रभावी माँग।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 22.
वह निवेश जो एक देश के लोगों द्वारा निश्चित समय में किया जाता है उसको वास्तविक निवेश कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 23.
नया निवेश करने से जो अधिक से अधिक आय होने की सम्भावना होती है उसको निवेश की सीमान्त कार्य कुशलता कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
नया निवेश करने से जो अधिक से अधिक आय होने की सम्भावना होती है उसको निवेश की सीमान्त उत्पादकता कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 25.
पूर्ण रोज़गार की स्थिति में किसी किस्म की बेरोज़गारी नहीं होती।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 26.
कुल माँग = C + I
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 27.
कुल पूर्ति = C + S
उत्तर-
सही।

प्रश्न 28.
नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश का अन्तर अनियोजित निवेश होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 29.
यदि वास्तविक बचत, वास्तविक निवेश से अधिक हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘से’ के बाज़ार नियम की परिभाषा दो।
उत्तर-
जे० बी० ‘से’ ने 1803 में बाज़ार का नियम दिया, इसको ‘से’ का बाजार नियम कहा जाता है। इस नियम अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी मांग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.) उनके अनुसार पूंजीगत अर्थव्यवस्था में कुल पूर्ति हमेशा कुल मांग के समान होती है।

प्रश्न 2.
कुल मांग के अर्थ बताओ।
उत्तर-
कुल मांग का अर्थ है एक वर्ष में एक देश में वस्तुओं तथा सेवाओं पर किया गया कुल व्यय। इसके मुख्य अंश हैं।

  • उपभोग व्यय
  • निवेश
  • सरकारी व्यय
  • शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात)।

यदि हम इन मदों को जोड़ कर लेते हैं। तो इसको कुल मांग कहा जाता है।
AD = C + I + G + X – M

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 3.
कुल मांग के अंश बताओ। इन में से किसी एक-अंश की व्याख्या करो।
उत्तर-
कुल मांग के अंश हैं:-

  • उपभोग व्यय
  • निवेश
  • सरकारी व्यय
  • शुद्ध निर्यात।

उपभोग व्यय-इसमें परिवारों के उपभोग के लिए की गई मांग को स्पष्ट किया जाता है, जोकि परिवारों की आय पर निर्भर करती है। आय अधिक होने की स्थिति में उपभोग व्यय अधिक होता है।

प्रश्न 4.
निवेश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में पूंजीगत पदार्थ जैसे कि मशीनें, कारखाने, मकान इत्यादि को शामिल किया जाता है। इसको स्थिर पूंजी निर्माण (Fixed Capital Formation) भी कहते हैं। इसमें उत्पादकों के भण्डार में परिवर्तन को भी शामिल किया जाता है।

प्रश्न 5.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र में कुल पूर्ति से क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की मूल्य वृद्धि का योग होता है। इसका अनुमान लगाने के लिए उपभोग तथा बचत का योग किया जाता है। इसको आय का सृजन भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग फलन एक सूची पत्र होता है, जिसमें आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग की विभिन्न मात्राओं को प्रकट किया जाता है। इसलिए एक सूची पत्र जोकि अर्थव्यवस्था में आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को प्रकट करता है, उसको उपभोग फलन कहते हैं। इसको उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) भी कहा जाता है।
C = f (Y)

प्रश्न 7.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति को परिभाषित करो।
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में जब आय में परिवर्तन होने से उपभोग में परिवर्तन होता है तो इनके अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। यदि आय 100 करोड़ से बढ़कर 110 करोड़ हो जाती है तथा उपभोग ₹ 60 करोड़ से 65 करोड़ हो जाता है तो आय में परिवर्तन (110-100) = ₹ 10 करोड़ है तथा उपभोग में परिवर्तन (65-60) = ₹ 5 करोड़ है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 1

प्रश्न 8.
औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल उपभोग तथा कुल आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ है तथा उपभोग पर 60 करोड़ व्यय किए जाते हैं तो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 2

प्रश्न 9.
बचत फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय के विभिन्न स्तर पर लोग कितने-कितने पैसे बचत करते हैं, उसके सूचीपत्र को बचत फलन अथवा बचत प्रवृत्ति कहा जाता है।
S = f (Y)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 10.
औसत बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति किसी देश में आय के निश्चित स्तर पर कुल बचत तथा कुल आय का अनुपात होती है। यदि ₹ 100 करोड़ आय में से ₹ 20 करोड़ बचत की जाती है तो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 3

प्रश्न 11.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश में जब आय में परिवर्तन होता है तो बचत में परिवर्तन हो जाता है। आय में परिवर्तन के कारण बचत में होने वाले परिवर्तन के अनुपात (Ratio) को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहा जाता है। यदि आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है तथा बचत ₹ 20 करोड़ से बढ़कर ₹ 21 करोड़ हो जाती है तो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 4

प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति कितनी होगी, यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है ?,
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का योग इकाई के समान होता है।
MPC + MPS = 1
यदि MPC = 0.8 है तो MPS का माप निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है –
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1
MPS = 1-0.8
MPS = 0.2 Ans

प्रश्न 13.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1000 है तथा उपभोग व्यय ₹ 700 है तो औसत बचत प्रवृत्ति का माप करो।
उत्तर-
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1000 है, जिसमें से ₹ 750 उपभोग व्यय हैं तो बचत 1000-750 = ₹ 250 होगी। औसत बचत प्रवृत्ति बचत पर राष्ट्रीय आय की अनुपात होती है, इसलिए
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 5

प्रश्न 14.
निवेश की सीमान्त कार्यकुशलता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की दर के बिना शेष तत्त्वों के प्रभाव के कारण निवेश की एक अन्य इकाई को लगाने से जितनी उच्चतम प्राप्ति की दर होती है, जिसको देखकर निवेश किया जाता है, उस दर को निवेश की सीमान्त कार्य-कुशलता कहा जाता है।

प्रश्न 15.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है। सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
दिया है : सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.65
= 0. 35 उत्तर

प्रश्न 16.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी।
उत्तर-
दिया है : सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.25
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1- MPS
= 1 – 0.25
= 0.75 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 17.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति में सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति एक समय विशेष पर कुल आय और कुल उपभोग के बीच अनुपातिक सम्बन्ध को व्यक्त करती है जबकि औसत बचत प्रवृत्ति कुल आय और कुल बचत के बीच अनुपातिक सम्बन्ध को प्रकट करती है। इन दोनों का योग इकाई के बराबर होता है।
APC + APS = 1

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कुल मांग से आपका क्या उद्देश्य है ?
अथवा
कुल मांग के अंश बताओ। किसी एक अंश की व्याख्या करो।
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए समूची मांग को कुल मांग कहा जाता है। (Aggregate demand is the total demand for goods and services in the economy.) कीमत स्तर के सम्बन्ध में कुल माँग ऋणात्मक ढलान वाली होती है। कुल माँग वह व्यय है, जोकि एक देश के लोग वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करते हैं। कुल माँग के अंश हैं। AD = C+I+ X – M

  • उपभोग व्यय-इसमें परिवारों तथा सरकार के उपभोग व्यय को शामिल किया जाता है।
  • निवेश व्यय-इसमें मशीनों, फैक्टरियों इत्यादि स्थाई निवेश तथा वर्ष सूची निवेश (Inventory Investment) को शामिल किया जाता है।
  • सरकारी व्यय-सरकार के उपभोग व्यय को शामिल किया जाता है।
  • शुद्ध निर्यात (X – M)-इसमें निर्यात-आयात का मूल्य जोड़ा जाता है। इस प्रकार एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए गए कुल व्यय को जोड़कर कुल माँग का माप किया जाता है।

आय स्तर के सम्बन्ध में-कुल मांग वक्र आय के सम्बन्ध में बाएँ से दाएँ ऊपर को जाती रेखा होती है। रेखाचित्र 1 में कुल माँग वक्र बाएँ से दाएँ ऊपर को जाती रेखा है क्योंकि आय तथा माँग में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 6

प्रश्न 2.
निवेश माँग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश में ब्याज की दर तथा निवेश माँग में सम्बन्ध को निवेश माँग फलन कहा जाता है। निवेश मुख्य तौर पर दो तत्त्वों पर निर्भर करता है-

ब्याज की दर
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता अथवा लाभ होने की सम्भावना।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 8

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 7

  • ब्याज की दर-ब्याज की दर तथा निवेश माँग का विपरीत सम्बन्ध होता है। जैसे ब्याज की दर घटती है तो निवेश माँग में वृद्धि होती है जैसे कि निवेश माँग सूची तथा रेखाचित्र 2 में दिखाया है।
  • लाभ होने की सम्भावना-MEC दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, जोकि निवेश माँग को निर्धारण करता है, जब निवेश में वृद्धि होती है तो लाभ होने की सम्भावना (MEC) घटती जाती है। सन्तुलन उस बिन्दु पर होगा जहां ब्याज की दर तथा लाभ होने की सम्भावना समान हो जाएगी।

प्रश्न 3.
नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश में अन्तर बताओ।
उत्तर-
नियोजित निवेश-किसी अवधि के आरम्भ में देश की फ़र्मों तथा नियोजन निर्माण अधिकारी द्वारा जितना निवेश करने की इच्छा (Desire) होती है, उसको नियोजित निवेश कहा जाता है। वास्तविक निवेश-वास्तविक निवेश वह निवेश है, जोकि नियोजित निवेश तथा अनियोजित निवेश के योग से प्राप्त होता है। इसको वास्तविक निवेश (Realised Investment) कहा जाता है।

नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश में अन्तर-

नियोजित निवेश वास्तविक निवेश
1. नियोजित निवेश किसी अवधि के आरम्भ में निवेश करने की इच्छा होती है। 1. वास्तविक निवेश किसी अवधि के अन्त में वास्तव में किए गए निवेश की मात्रा होती है।
2. उत्पादन के स्तर अनुसार नियोजित निवेश, नियोजित बचतों के समान हो भी सकता है, परन्तु अनिवार्य नहीं कि समान हो। 2. राष्ट्रीय आय के लेखे में वास्तविक निवेश, वास्तविक बचतों के हमेशा समान होता है।
3. जैसे नियोजित निवेश तथा नियोजित बचत समान होते हैं, इस बिन्दु पर आय का स्तर निर्धारण हो जाता है। 3. वास्तविक निवेश का आय स्तर के सन्तुलन से सम्बन्ध नहीं होता।
4. इसमें केवल नियोजित निवेश को शामिल करते है। 4. इसमें नियोजित निवेश तथा अनियोजित निवेश को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 4.
पूर्ण रोज़गार से क्या अभिप्राय है ? पूर्ण रोज़गार में किस प्रकार की बेरोज़गारी हो सकती है ?
अथवा
संघर्षात्मक बेरोज़गारी तथा संरचनात्मक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोजगार से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें वह सभी लोग जो वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम करना चाहते हैं उनको आसानी से काम मिल जाता है। पूर्ण रोज़गार में निम्नलिखित प्रकार की बेरोज़गारी की स्थिति पाई जाती है।

  • ऐच्छिक बेरोज़गारी (Voluntary Unemployment)-यदि कोई मज़दूर वर्तमान मज़दूरी की दर पर रोज़गार उपलब्ध होने पर भी काम करने को तैयार नहीं होता तो इसको ऐच्छिक बेरोज़गारी कहा जाता है।
  • संघर्षात्मक बेरोज़गारी (Frictional Unemployment)-जब बाज़ार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता और मजदूर अस्थायी तौर पर बेरोज़गार हो जाते हैं तो यह अस्थायी बेरोज़गारी संघर्षात्मक बेरोज़गारी कहलाती है। जैसे कि कच्चे माल की कमी, मशीनों की टूट-फूट के कारण बेरोज़गारी हो जाती है तो इसको संघर्षात्मक बेरोज़गारी कहा जाता है।
  • संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structual Unemployment)-जब किसी देश में नई तकनीकों के विकास के कारण पुरानी मशीनें बन्द हो जाती हैं तो नई तकनीकों के अनुसार मज़दूर उपलब्ध नहीं होते। इस प्रकार की बेरोज़गारी को संरचनात्मक बेरोज़गारी कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 5.
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (Marginal Effeciency of Capital) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता का अर्थ किसी मशीन को काम पर लगाने से उससे प्राप्त होने वाली लाभ की सम्भावना से होता है। निवेश दो तत्त्वों पर निर्भर करता है-(i) ब्याज की दर (ii) पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MFC)
I = f (r, MEC)
MEC से अभिप्राय निवेश की एक और इकाई लगाने से उससे प्राप्त होने वाली लाभ की सम्भावना से होता है।

जब ब्याज की दर कम होती है तो लाभ होने की सम्भावना भी कम हो जाती है। इसके दो कारण होते हैं-

  • वस्तुएँ तथा सेवाएँ बढ़ जाती हैं तो इनकी कीमत कम हो जाती है। इससे लाभ कम हो जाता है।
  • उत्पादन के बढ़ने से लागत में वृद्धि हो जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कुल माँग से क्या अभिप्राय है ? कुल माँग के अंश बताएं। कुल माँग फलन को तालिका तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
(What is Aggregate Demand ? Discuss the components of Aggregate Demand. Explain Aggregate Demand Function with the help of a schedule and diagram.)
उत्तर-
कुल माँग से अभिप्राय एक देश में एक वित्तीय वर्ष में की गई वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल माँग से है। (Aggregate demand means the total demand of goods and services in an economy during a accounting year.) कुल माँग मुद्रा की वह मात्रा है जोकि एक देश के सारे उद्यमी मिलकर मज़दूरों की निश्चित संख्या को काम पर लगाते हैं तो उन मज़दूरों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। इन वस्तुओं तथा सेवाओं को बेचने से देश के सभी उद्यमियों को जो आय प्राप्त होने की सम्भावना होती है, उसको कुल माँग कहा जाता है। कुल माँग दो तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  • कुल उपभोग खर्च
  • कुल निवेश खर्च। कुल माँग के अंश (Components of Aggregate Demand)-कुल माँग के मुख्य अंश इस प्रकार हैं –

(a) उपभोग खर्च
(b) निवेश खर्च।

(a) उपभोग खर्च (Consumption Expenditure)-इसमें (a) निजी उपभोग खर्च (C) और सरकारी उपभोग खर्च (G) को शामिल किया जाता है। आय का जो भाग उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, उसको (b) निवेश किया जाता है। इसलिए बन्द अर्थव्यवस्था में कुल माँग का अर्थ उपभोग + निवेश (C + I) से होता है। यदि खुली अर्थव्यवस्था होती है तो एक देश विदेशों को निर्यात (X) करता है तथा आयात (M) की जाती है इसलिए खुली अर्थव्यवस्था में कुल माँग = उपभोग + निवेश + निर्यात – आयात (C + I + X – M) के बराबर होता है। केन्ज़ ने कुल माँग की व्याख्या बन्द अर्थव्यवस्था में की है। इसलिए कुल माँग में उपभोग तथा निवेश को शामिल किया जाता है।

(b) निवेश खर्च (Investment Expenditure)-उपभोग में निवेश खर्च शामिल कर के कुल माँग का माप किया जाता है। (C + I)

कुल माँग फलन (Aggregate Demand Function)- कुल माँग फलन एक सूची पत्र होता है जिसमें आय या रोज़गार के विभिन्न स्तर पर देश के उद्यमियों को कितनी-कितनी आय प्राप्त होने की सम्भावना है उस सूची-पत्र को कुल माँग फलन कहा जाता है। जब आय शून्य (0) होती है तो भी कुछ रकम उपभोग पर ज़रूर खर्च की जाती है। यह रकम उपभोगी पुरानी बचतों को खर्च करके या उधार रकम लेकर पूरी करते हैं। जब उनको आय होती है तो खर्च आय के समान हो जाता है परन्तु जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है तो माँग में भी वृद्धि होती है जोकि आय की वृद्धि से कम होती है। इसे एक सूची-पत्र तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 9

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 10
तालिका में दिखाया है कि जब आय 0 (शून्य) है तो लोग ₹ 150 करोड़ उपभोग पर खर्च करते हैं। जब आय बढ़ जाती है जैसा कि ₹ 100, 200, 300, 400, 500 करोड़ दिखाई है तो कुल माँग ₹ 50, 100, 150, 200, 250, 300 करोड़ है। ₹ 100 करोड़ की आय 100 करोड़ माँग के बराबर हो जाती है। इसके बाद आय में वृद्धि होती है तो कुल माँग में वृद्धि कम दर पर होती है।

रेखाचित्र 3 में 45° पर Y = (C + S) रेखा दिखाई गई है। AD कुल माँग रेखा है, कुल माँग रेखा (AD), OY (45°) रेखा को E बिन्दु पर काटती है। अर्थात् ₹ 100 करोड़ आय, ₹ 100 करोड़ खर्च के समान है। E बिन्दु को कुल माँग का बिन्दु कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 2.
परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा, केन्ज़ की कुल पूर्ति की धारणा से कैसे भिन्न है ?
(How is classical concept of aggregate supply different from Keynesian concept of aggregate supply ?)
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल पूर्ति से है। (Aggregate supply is the total supply of goods and services in an economy.) कुल पूर्ति को भी कीमत स्तर से सम्बन्धित किया जाता है। इस सम्बन्धी दो दृष्टिकोण हैं-
(A) परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा (Classical concept of Aggregate Supply)
(B) केन्ज़ीयन कुल पूर्ति की धारणा (Keynesian concept of Aggregate Supply)

(A) परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा (Classical concept of Aggregate Supply)-परम्परागत अर्थशास्त्रियों का विचार था कि पूँजीगत अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार एक साधारण स्थिति होती है। इस अर्थव्यवस्था में कीमत स्तर की अवस्था चाहे कोई भी हो, देश में कुल उत्पादन स्थिर रहता है। कीमत की वृद्धि अथवा कमी से कुल उत्पादन अथवा कुल पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसलिए कुल पूर्ति रेखा पूर्ण अलोचशील OY रेखा के समानान्तर होती है।

जैसे कि रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र 4 में दिखाया गया है कि कीमत स्तर में परिवर्तन होने से कुल पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता, OQ उत्पादन किया जाता है। इस स्थिति में पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है। परम्परागत ङ्केकुला पूर्ति वक्र AS सीधी रेखा OY के समानान्तर होती है । इसका मुख्य कारण से’ का बाजार नियम है तथा मज़दूरी कीमत लोचशीलता का पाया जाना है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 11

(B) केन्जीयन कुल पूर्ति की धारणा (Keynesian concept of Aggregate Supply)-केन्ज़ की कुल पूर्ति वक्र कीमत स्तर के संदर्भ में पूर्ण लोचशील होती है अर्थात् उत्पादक स्थिर कीमत स्तर पर वस्तुओं की कोई मात्रा का उत्पादन करने के लिए तैयार होते हैं। जब तक पूर्ण रोजगार की स्थिति उत्पन्न नहीं हो जाती। जैसे कि रेखाचित्र में AS वक्र पहले OX रेखा के समानान्तर है जोकि पूर्ण लोचशील है। इसके दो कारण होते हैं।

  • मज़दूरी कीमत स्थिरता (Wage Price Rigidity)
  • मजदूरों की स्थिर सीमान्त उत्पादकता (Constant Marginal Product of Labour) यह विचार परम्परागत विचार के बिल्कुल विपरीत है। पूर्ण रोजगार से पहले मजदूरी स्थिर रहती है तथा मज़दूरी की सीमान्त उत्पादकता स्थिर रहती है, परन्तु जब पूर्ण रोज़गार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसको F बिन्दु द्वारा दिखाया है तो उसके पश्चात् AS वक्र पूर्ण बेलोचशील OY के समान्तर हो जाती है। जैसे कि परम्परागत कुल पूर्ति वक्र है। F बिन्दु के पश्चात् कीमत स्तर में परिवर्तन से उत्पादन OQ स्थिर रहता है। इसको पूर्ण रोज़गार उत्पादन का स्तर कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 12

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 8 ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 8 ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਸਮਾਂ ਕਿਉਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ? (Why is pontificate of Guru Har Rai Ji considered important in the development of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Guru Har Rai Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Guru Har Rai Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ 1645 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1661 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਾਰਜ ਕੀਤੇ-

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ – ਗਰ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੇ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬਖ਼ਸ਼ੀਸ਼ਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਪਹਿਲੀ ਬਖ਼ਸ਼ੀਸ਼ ਭਗਤ ਗੀਰ ਦੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਪੂਰਬੀ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖੀ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕੇਂਦਰ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪਟਨਾ, ਬਰੇਲੀ ਅਤੇ ਰਾਜਗਿਰੀ ਦੇ ਕੇਂਦਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੁਥਰਾ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ, ਭਾਈ ਫੇਰੂ ਨੂੰ ਰਾਜਸਥਾਨ, ਭਾਈ ਨੱਥਾ ਜੀ ਨੂੰ ਢਾਕਾ, ਭਾਈ ਜੋਧ ਜੀ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਆਪ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ਜਿਵੇਂ : ਜਲੰਧਰ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ, ਹਕੀਮਪੁਰ, ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਪਟਿਆਲਾ, ਅੰਬਾਲਾ, ਹਿਸਾਰ ਆਦਿ ਗਏ ।

2. ਫੂਲ ਨੂੰ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ – ਇਕ ਦਿਨ ਕਾਲਾ ਨਾਮੀ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਆਪਣੇ ਭਤੀਜਿਆਂ ਸੰਦਲੀ ਅਤੇ ਫੂਲ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਲਿਆਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਤਰਸਯੋਗ ਹਾਲਤ ਵੇਖਦੇ ਹੋਏ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਇੱਕ ਦਿਨ ਉਹ ਬਹੁਤ ਅਮੀਰ ਬਣਨਗੇ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਇਹ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਸੱਚ ਨਿਕਲੀ । ਫੂਲ ਨੇ ਫੂਲਕੀਆਂ ਰਿਆਸਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

3. ਦਾਰਾ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦਾਰਾ ਸ਼ਿਕੋਹ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਸੀ । ਉਹ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ । ਸੱਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਯਤਨ ਵਿੱਚ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਜ਼ਹਿਰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਬਹੁਤ ਬਿਮਾਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਦਾਰਾ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਮੰਗਿਆ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਅਣਮੋਲ ਜੜੀਆਂਬਟੀਆਂ ਦੇ ਕੇ ਦਾਰਾ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਅਹਿਸਾਨਮੰਦ ਹੋ ਗਿਆ । ਉਹ ਅਕਸਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਆਇਆ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

4. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਬੁਲਾਇਆ ਗਿਆ – ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੂੰ ਸ਼ੱਕ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਸਲੋਕ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹਨ । ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਪੁਸ਼ਟੀ ਕਰਨ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਹਾਜ਼ਰ ਹੋਣ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੂੰ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਕੋਲ ਭੇਜਿਆ । ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦੇ ਕ੍ਰੋਧ ਤੋਂ ਬਚਣ ਲਈ ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੇ ਗੁਰਬਾਣੀ ਦੀ ਗਲਤ ਵਿਆਖਿਆ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਗੁਰਗੱਦੀ ਤੋਂ ਬੇਦਖ਼ਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ਆਪਣੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਨੂੰ ਸੌਂਪ ਦਿੱਤੀ । 6 ਅਕਤੂਬਰ, 1661 ਈ. ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਜੋਤੀਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਧੀਰ ਮਲ ਸੰਬੰਧੀ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note about Dhirmal.)
ਉੱਤਰ-
ਧੀਰ ਮਲ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ ।ਉਹ ਕਾਫ਼ੀ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ਲੈਣ ਦੇ ਯਤਨ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਬਕਾਲਾ ਵਿਖੇ ਜੋ ਵੱਖ-ਵੱਖ 22 ਮੰਜੀਆਂ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋਈਆਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਧੀਰ ਮਲ ਦੀ ਵੀ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਧੀਰ ਮਲ ਨੂੰ ਇਹ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਿੱਖ ਸੰਗਤਾਂ ਨੇ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਗੁਰੂ ਮੰਨ ਲਿਆ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਦੇ ਗੁੱਸੇ ਦੀ ਕੋਈ ਹੱਦ ਨਾ ਰਹੀ । ਉਸ ਨੇ ਸ਼ੀਹ ਨਾਮੀ ਇੱਕ ਮਸੰਦ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ । ਇੱਕ ਦਿਨ ਮੀਂਹ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਗੁੰਡਿਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਮੋਢੇ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਗੋਲੀ ਲੱਗੀ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਹ ਜ਼ਖਮੀ ਹੋ ਗਏ ਪਰ ਉਹ ਸ਼ਾਂਤ ਬਣੇ ਰਹੇ ।

ਮੀਂਹ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਘਰ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਾਰਾ ਸਾਮਾਨ ਲੁੱਟ ਲਿਆ । ਇਸ ਘਟਨਾ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਬੜੇ ਰੋਹ ਵਿੱਚ ਆਏ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੱਖਣ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਿੱਚ ਧੀਰ ਮਲ ਦੇ ਘਰ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਨਾ ਸਿਰਫ ਧੀਰ ਮਲ ਅਤੇ ਸ਼ੀਹ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰਕੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਪਾਸ ਲਿਆਂਦਾ ਸਗੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਲੁੱਟਿਆ ਹੋਇਆ ਸਾਮਾਨ ਵੀ ਵਾਪਸ ਲੈ ਆਂਦਾ । ਧੀਰ ਮਲ ਅਤੇ ਮੀਂਹ ਦੁਆਰਾ ਮਾਫ਼ੀ ਮੰਗਣ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ‘ਬਾਲ’ ਗੁਰੂ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ? (Write a brief note on Guru Harkrishan Ji. Why was he called Bal Guru ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Guru Harkrishan Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦੇ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਵਿਸਥਾਰ ਪੂਰਵਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Explain in detail about Guru Har Krishan Ji) ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰੂਕਾਲ (1661-1664 ਈ.) ਸਮੇਂ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੇ ਜੋ ਵਿਕਾਸ ਕੀਤਾ ਉਸ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆ ਹੈ :-

1. ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਅਯੋਗਤਾ, ਜੋ ਉਸ ਨੇ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿਚ ਗੁਰਬਾਣੀ ਦਾ ਗ਼ਲਤ ਅਰਥ ਕੱਢ ਕੇ ਦਿਖਾਈ ਸੀ, ਦੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰਗੱਦੀ ਤੋਂ ਬੇਦਖ਼ਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ 6 ਅਕਤੂਬਰ, 1661 ਈ. ਨੂੰ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਸੌਂਪ ਦਿੱਤੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦੀ ਉਮਰ ਸਿਰਫ਼ ਪੰਜ ਸਾਲ ਸੀ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਆਪ 1664 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ ।

2. ਰਾਮ ਰਾਏ ਦੀ ਵਿਰੋਧਤਾ – ਰਾਮ ਰਾਏ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਦਾ ਅਸਲ ਹੱਕਦਾਰ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਉਸ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ਤੋਂ ਬੇਦਖ਼ਲ ਕਰ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਜਦੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਗੁਰਗੱਦੀ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਸੌਂਪੀ ਗਈ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਇਹ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਨਾ ਕਰ ਸਕਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਗੱਦੀ ਹਥਿਆਉਣ ਲਈ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਰਚਨੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ।

3. ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਦਿੱਲੀ ਜਾਣਾ – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਲਿਆਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਰਾਜਾ ਜੈ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸੌਂਪਿਆ । ਰਾਜਾ ਜੈ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਦੀਵਾਨ ਪਰਸ ਰਾਮ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਪਾਸ ਭੇਜਿਆ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਅਤੇ ਦਿੱਲੀ ਜਾਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਪਰ ਪਰਸ ਰਾਮ ਦੇ ਇਹ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਕਿ ਦਿੱਲੀ ਦੀਆਂ ਸੰਗਤਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਬੇਤਾਬ ਹਨ, ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਦਿੱਲੀ ਜਾਣਾ ਤਾਂ ਮੰਨ ਲਿਆ ਪਰ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ 1664 ਈ. ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਚਲੇ ਗਏ ਅਤੇ ਰਾਜਾ ਜੈ ਸਿੰਘ ਦੇ ਘਰ ਠਿਕਾਣਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮੰਨ ਗਏ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋਈ ਜਾਂ ਨਹੀਂ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਤਭੇਦ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

4. ਜੋਤੀ – ਜੋਤ ਸਮਾਉਣਾ-ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਵਿਚ ਚੇਚਕ ਅਤੇ ਹੈਜ਼ਾ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬਿਮਾਰਾਂ, ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਅਤੇ ਅਨਾਥਾਂ ਦੀ ਤਨ, ਮਨ ਅਤੇ ਧਨ ਨਾਲ ਅਣਥੱਕ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ ! ਪਰ ਇਸ ਨਾਮੁਰਾਦ ਬਿਮਾਰੀ ਦਾ ਉਹ ਆਪ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਹ ਆਪ 30 ਮਾਰਚ, 1664 ਈ. ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ । ਆਪ ਜੀ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਇੱਥੇ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਬਾਲਾ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ (Guru Har Rai Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about life and achievements of Guru Har Rai Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੱਤਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਗੁਰੂ ਕਾਲ (1645 ਈ. ਤੋਂ 1661 ਈ.) ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਸ਼ਾਂਤੀਕਾਲ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਆਰੰਭਿਕ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਜਨਮ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ (Birth and Parentage) – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 30 ਜਨਵਰੀ, 1630 ਈ. ਨੂੰ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਮ ਬੀਬੀ ਨਿਹਾਲ ਕੌਰ ਸੀ । ਆਪ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪੋਤਰੇ ਅਤੇ ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸਨ ।

2. ਬਚਪਨ ਅਤੇ ਵਿਆਹ (Childhood and Marriage) – ਆਪ ਜੀ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਸੰਤ ਸਭਾ, ਮਿੱਠ ਬੋਲੜੇ ਅਤੇ ਕੋਮਲ ਹਿਰਦੇ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ । ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇੱਕ ਵਾਰ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਬਾਗ਼ ਵਿੱਚ ਸੈਰ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਚੋਲੇ ਨਾਲ ਅੜ ਕੇ ਕੁਝ ਫੁੱਲ ਥੱਲੇ ਡਿੱਗ ਪਏ । ਇਹ ਦੇਖ ਕੇ ਆਪ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਹੰਝੂ ਆ ਗਏ । ਆਪ ਜੀ ਕਿਸੇ ਦਾ ਵੀ ਦੁੱਖ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਜਦੋਂ, ਆਪ ਜੀ ਦਸ ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਹੋਏ ਤਾਂ ਆਪ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਅਨੂਪ ਸ਼ਹਿਰ ਯੂ. ਪੀ.) ਦੇ ਦਇਆ ਰਾਮ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ ਸੁਲੱਖਣੀ ਜੀ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ! ਆਪ ਦੇ ਘਰ ਦੋ ਪੁੱਤਰਾਂ ਰਾਮ ਰਾਏ ਅਤੇ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਨੇ ਜਨਮ ਲਿਆ ।

3. ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ (Assumption of Guruship) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਪੰਜ ਪੁੱਤਰ ਸਨ । ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ, ਅਣੀ ਰਾਏ ਅਤੇ ਬਾਬਾ ਅਟੱਲ ਰਾਏ ਜੀ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਦੇ ਜੀਵਨ ਸਮੇਂ ਹੀ ਅਕਾਲ ਚਲਾਣਾ ਕਰ ਗਏ ਸਨ | ਬਾਕੀ ਦੋਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸੂਰਜ ਮਲ ਜ਼ਰੂਰਤ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੰਸਾਰਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਰੁੱਝੇ ਹੋਏ ਸਨ ਅਤੇ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਬਿਲਕੁਲ ਨਹੀਂ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ਦੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਵਾਰਸ ਥਾਪਿਆ । ਆਪ 8 ਮਾਰਚ, 1645 ਈ. ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਪ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੱਤਵੇਂ ਗੁਰੂ ਬਣੇ ।

4. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of Sikhism under Guru Har Rai Ji) – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ 1645 ਈ. ਤੋਂ 1661 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ । ਆਪ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੇ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬਖ਼ਸ਼ੀਸ਼ਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਪਹਿਲੀ ਬਖ਼ਸ਼ੀਸ਼ ਇੱਕ ਭਗਤ ਗੀਰ ਦੀ ਸੀ ਜਿਸ ਦੀ ਭਗਤੀ ਤੋਂ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਸ ਦਾ ਨਾਂ ਭਗਤ ਭਗਵਾਨ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਪੂਰਬੀ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖੀ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕੇਂਦਰ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪਟਨਾ, ਬਰੇਲੀ ਅਤੇ ਰਾਜਗਿਰੀ ਦੇ ਕੇਂਦਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ । ਦੂਸਰੀ ਬਖ਼ਸ਼ੀਸ਼ ਸੁਥਰਾ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖੀ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਦਿੱਲੀ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ । ਤੀਸਰੀ ਬਖ਼ਸ਼ੀਸ਼ ਭਾਈ ਫੇਰੂ ਦੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਰਾਜਸਥਾਨ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭਾਈ ਨੱਥਾ ਜੀ ਨੂੰ ਢਾਕਾ, ਭਾਈ ਜੋਧ ਜੀ ਨੂੰ ਮੁਲਤਾਨ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਆਪ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ਜਿਵੇਂ : ਜਲੰਧਰ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ, ਹਕੀਮਪੁਰ, ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਪਟਿਆਲਾ, ਅੰਬਾਲਾ, ਹਿਸਾਰ ਆਦਿ ਗਏ ।

5. ਫੂਲ ਨੂੰ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ (Blessings to Phul) – ਇਕ ਦਿਨ ਕਾਲਾ ਨਾਮੀ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਆਪਣੇ ਭਤੀਜਿਆਂ ਸੰਦਲੀ ਅਤੇ ਫੂਲ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਲਿਆਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਤਰਸਯੋਗ ਹਾਲਤ ਵੇਖਦੇ ਹੋਏ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਇੱਕ ਦਿਨ ਉਹ ਬਹੁਤ ਅਮੀਰ ਬਣਨਗੇ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਇਹ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਸੱਚ ਨਿਕਲੀ । ਫੂਲ ਦੀ ਔਲਾਦ ਨੇ ਫੂਲਕੀਆਂ ਰਿਆਸਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

6. ਦਾਰਾ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ (Help to Prince Dara) – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦਾਰਾ ਸ਼ਿਕੋਹ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਸੀ । ਉਹ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ । ਸੱਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਯਤਨ ਵਿੱਚ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਜ਼ਹਿਰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਬਹੁਤ ਬੀਮਾਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਦਾਰਾ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਮੰਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਅਣਮੋਲ ਜੜੀਆਂ ਬੂਟੀਆਂ ਦੇ ਕੇ ਦਾਰਾ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਅਹਿਸਾਨਮੰਦ ਹੋ ਗਿਆ । ਉਹ ਅਕਸਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਆਇਆ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

7. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਬੁਲਾਇਆ ਗਿਆ (Guru Har Rai Sahib was Summoned to Delhi) – ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੂੰ ਸ਼ੱਕ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਸਲੋਕ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹਨ | ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਪੁਸ਼ਟੀ ਕਰਨ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਹਾਜ਼ਰ ਹੋਣ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਰਾਮ ਰਾਇ ਨੂੰ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਕੋਲ ਭੇਜਿਆ | ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ “ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ` ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਪੰਕਤੀ ਵੱਲ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕਰਦਿਆਂ ਉਸ ਤੋਂ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਇਸ ਪੰਕਤੀ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਵਿਰੋਧਤਾ ਕਿਉਂ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਹੈ । ਇਹ ਪੰਕਤੀ ਸੀ,

ਮਿਟੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਕੀ ਪੇੜੈ ਪਈ ਕੁਮਿਆਰ ॥
ਘੜ ਭਾਂਡੇ ਇੱਟਾ ਕੀਆ ਜਲਦੀ ਕਰੇ ਪੁਕਾਰ ॥

ਇਸ ਦਾ ਅਰਥ ਸੀ, ‘ਮੁਸਲਮਾਨ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਘੁਮਿਆਰ ਦੇ ਭੱਠੇ ਵਿੱਚ ਚਲੀ ਜਾਏਗੀ ਜੋ ਉਸ ਤੋਂ ਬਰਤਨ ਤੇ ਇੱਟਾਂ ਬਣਾਏਗਾ । ਜਿਉਂ-ਜਿਉਂ ਉਹ ਜਲੇਗੀ ਤਿਉਂ-ਤਿਉਂ ਮਿੱਟੀ ਚਿੱਲਾਏਗੀ ।’ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦੇ ਕ੍ਰੋਧ ਤੋਂ ਬਚਣ ਲਈ ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਸ ਤੁਕ ਵਿੱਚ ਗਲਤੀ ਨਾਲ ਬੇਈਮਾਨ’ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਥਾਂ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸ਼ਬਦ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਸ ਹੱਤਕ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਗੁਰਗੱਦੀ ਤੋਂ ਬੇਦਖ਼ਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

8. ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ (Nomination of the Successor) – ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਆਪਣੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਨੂੰ ਸੌਂਪ ਦਿੱਤੀ । 6 ਅਕਤੂਬਰ, 1661 ਈ. ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

9. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ (Estimate of the works of Guru Har Rai Ji) – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਹਾਲਾਂਕਿ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਵਡਮੁੱਲਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਆਪ ਜੀ ਨੇ ਮਾਝੇ, ਦੁਆਬੇ ਅਤੇ ਮਾਲਵੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ | ਆਪ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਦੀ ਮਰਿਆਦਾ ਨੂੰ ਜ਼ੋਰ-ਸ਼ੋਰ ਨਾਲ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ । ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਦਵਾਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਭੇਦ-ਭਾਵ ਦੇ ਮੁਫ਼ਤ ਇਲਾਜ ਅਤੇ ਸੇਵਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਪ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ

ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ (Guru Har Krishan Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੋਏ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ ।
(Give a brief account of the development of Sikhism during the pontificate of Guru Har Krishan Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ‘ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ | ਆਪ 1661 ਈ. ਤੋਂ 1664 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ । ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰੂਕਾਲ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੇ ਜੋ ਵਿਕਾਸ ਕੀਤਾ ਉਸ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆ ਹੈ :-

1. ਜਨਮ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ (Birth and Parentage) – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 7 ਜੁਲਾਈ, 1656 ਈ. ਨੂੰ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ । ਆਪ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਸਨ । ਆਪ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਸੁਲੱਖਣੀ ਜੀ ਸੀ । ਰਾਮ ਰਾਏ ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਭਰਾ ਸਨ ।

2. ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ (Assumption of Guruship) – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਅਯੋਗਤਾ ਜੋ ਉਸ ਨੇ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰਬਾਣੀ ਦਾ ਗਲਤ ਅਰਥ ਕੱਢ ਕੇ ਦਿਖਾਈ ਸੀ, ਦੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰਗੱਦੀ ਤੋਂ ਬੇਦਖ਼ਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । 6 ਅਕਤੂਬਰ, 1661 ਈ. ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਗੱਦੀ ਸੌਂਪ ਦਿੱਤੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਮਰ ਸਿਰਫ਼ ਪੰਜ ਸਾਲ ਸੀ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਭਾਵੇਂ ਆਪ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਸਨ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਆਪ ਬੜੀ ਉੱਚ ਕਰਨੀ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅਦੁੱਤੀ ਸੇਵਾ ਭਾਵਨਾ, ਵੱਡਿਆਂ ਪ੍ਰਤੀ ਆਦਰ ਮਾਣ, ਮਿੱਠਾ ਬੋਲਣਾ, ਦੂਜਿਆਂ ਪ੍ਰਤੀ ਹਮਦਰਦੀ ਅਤੇ ਅਟੁੱਟ ਭਗਤੀ ਭਾਵਨਾ ਆਦਿ ਗੁਣ ਕੁੱਟ-ਕੁੱਟ ਕੇ ਭਰੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਗੁਣਾਂ ਸਦਕਾ ਹੀ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਸੌਂਪੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਪ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਬਣੇ । ਆਪ 1664 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ ।

3. ਰਾਮ ਰਾਏ ਦੀ ਵਿਰੋਧਤਾ (Opposition of Ram Raj) – ਰਾਮ ਰਾਏ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਦਾ ਅਸਲ ਹੱਕਦਾਰ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਉਸ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ਤੋਂ ਬੇਦਖ਼ਲ ਕਰ ਚੁੱਕੇ ਸਨ | ਜਦੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਗੁਰਗੱਦੀ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਸੌਂਪੀ ਗਈ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਇਹ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਨਾ ਕਰ ਸਕਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਗੱਦੀ ਹਥਿਆਉਣ ਲਈ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਰਚਨੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਉਸ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਬੇਈਮਾਨ ਅਤੇ ਸੁਆਰਥੀ ਮਸੰਦਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵੱਲ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਸੰਦਾਂ ਦੁਆਰਾ ਉਸ ਨੇ ਇਹ ਘੋਸ਼ਿਤ ਕਰਵਾਇਆ ਕਿ ਅਸਲੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮ ਰਾਏ ਹੈ ਅਤੇ ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਗੁਰੂ ਮੰਨਣ । ਪਰ ਉਹ ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਨਾ ਹੋ ਸਕਿਆ । ਫਿਰ ਉਸ ਨੇ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਕੋਲੋਂ ਮਦਦ ਲੈਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਬੁਲਾਇਆ ਤਾਂ ਕਿ ਦੋਹਾਂ ਧੜਿਆਂ ਦੀ ਗੱਲ ਸੁਣ ਕੇ ਆਪਣਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਦੇ ਸਕੇ ।

4. ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਦਿੱਲੀ ਜਾਣਾ (Guru Sahib’s Visit to Delhi) – ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਲਿਆਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਰਾਜਾ ਜੈ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸੌਂਪਿਆ । ਰਾਜਾ ਜੈ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਦੀਵਾਨ ਪਰਸ ਰਾਮ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਪਾਸ ਭੇਜਿਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਅਤੇ ਦਿੱਲੀ ਜਾਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਰ ਪਰਸ ਰਾਮ ਦੇ ਇਹ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਕਿ ਦਿੱਲੀ ਦੀਆਂ ਸੰਗਤਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਬੇਤਾਬ ਹਨ, ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਦਿੱਲੀ ਜਾਣਾ ਤਾਂ ਮੰਨ ਲਿਆ ਪਰ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਆਪ 1664 ਈ. ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਚਲੇ ਗਏ ਅਤੇ ਰਾਜਾ ਜੈ ਸਿੰਘ ਦੇ ਘਰ ਠਿਕਾਣਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮੰਨ ਗਏ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋਈ ਜਾਂ ਨਹੀਂ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਤਭੇਦ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

5. ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣਾ (Immersed in Eternal Light) – ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਵਿੱਚ ਚੇਚਕ ਅਤੇ ਹੈਜ਼ਾ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੇ ਇੱਥੇ ਬੀਮਾਰਾਂ, ਗਰੀਬਾਂ ਅਤੇ ਅਨਾਥਾਂ ਦੀ ਤਨ, ਮਨ ਅਤੇ ਧਨ ਨਾਲ ਅਣਥੱਕ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ । ਚੇਚਕ ਅਤੇ ਹੈਜ਼ੇ ਦੇ ਸੈਂਕੜੇ ਮਰੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ਼ੀ ਕੀਤਾ । ਪਰ ਇਸ ਨਾਮੁਰਾਦ ਬੀਮਾਰੀ ਦਾ ਉਹ ਆਪ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਗਏ । ਇਹ ਬੀਮਾਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਮਾਰੂ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਉਨਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਗੰਭੀਰ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਨੇ ਸਵਾਲ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕੌਣ ਕਰੇਗਾ ਤਾਂ ਆਪ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਨਾਰੀਅਲ ਮੰਗਵਾਇਆ 1 ਨਾਰੀਅਲ ਅਤੇ ਪੰਜ ਪੈਸੇ ਰੱਖ ਕੇ ਮੱਥਾ ਟੇਕਿਆ ਅਤੇ ‘ਬਾਬਾ ਬਕਾਲਾ’ ਦਾ ਉੱਚਾਰਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਂ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਪ 30 ਮਾਰਚ, 1664 ਈ. ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ । ਆਪ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿੱਚ ਇੱਥੇ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਬਾਲਾ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੋਈ ਢਾਈ ਕੁ ਸਾਲ ਗੁਰਗੱਦੀ ਸੰਭਾਲੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਸਾਰੇ ਫ਼ਰਜ਼ ਸੂਝ-ਬੂਝ ਨਾਲ ਨਿਭਾਏ | ਆਪ ਇੰਨੀ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਵੀ ਤੀਖਣ ਬੁੱਧੀ, ਉੱਚ ਵਿਚਾਰ ਅਤੇ ਅਲੌਕਿਕ ਗਿਆਨ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ ।

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਸਮਾਂ ਕਿਉਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ? (Why is pontificate of Guru Har Rai Ji considered important in the development of Sikhism ?).
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Guru Har Rai Ji.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਹੈ ? (What is the contribution of Guru Har Rai Ji for the development of Sikh religion ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਕਾਰਜਾਂ ਨੂੰ ਸੰਖਿਪਤ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ । (Write in short about the Life and Works of Guru Har Rai Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 30 ਜਨਵਰੀ, 1630 ਈ. ਨੂੰ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ । ਆਪ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਸੰਤ ਸਭਾ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ । ਆਪ ਜੀ 1645 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1661 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਗੁਰੂਕਾਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸ਼ਾਂਤੀਪੂਰਵਕ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸਮਾਂ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਗਏ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਚਾਰਕ ਭੇਜੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਕਾਫ਼ੀ ਪ੍ਰਸਾਰ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਧੀਰ ਮਲ ਸੰਬੰਧੀ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note about Dhirmal.)
ਉੱਤਰ-
ਧੀਰ ਮਲ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਕਾਫ਼ੀ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ਲੈਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਧੀਰ ਮਲ ਨੂੰ ਇਹ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਿੱਖ ਸੰਗਤਾਂ ਨੇ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਗੁਰੂ ਮੰਨ ਲਿਆ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਦੇ ਗੁੱਸੇ ਦੀ ਕੋਈ ਹੱਦ ਨਾ ਰਹੀ । ਉਸ ਨੇ ਸ਼ੀਹ ਨਾਮੀ ਇੱਕ ਮਸੰਦ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ । ਸ਼ੀਹ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਘਰ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਾਰਾ ਸਾਮਾਨ ਲੁੱਟ ਲਿਆ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਧੀਰ ਮਲ ਅਤੇ ਸ਼ੀਹ ਦੁਆਰਾ ਮਾਫ਼ੀ ਮੰਗਣ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ‘ਬਾਲ ਗੁਰੂ’ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ? (Write a brief note on Guru Har krishan Ji. Why was he called Bal Guru ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (Why Guru Har Krishan Ji is called Bal Guru ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Guru Har Krishan Ji.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਸੀ ? (What was the contribution of Guru Har Krishan Ji in the development of Sikhism ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ ।ਉਹ 1661 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਆਪ ਜੀ ਕੇਵਲ ਪੰਜ ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਆਪ ਨੂੰ ‘ਬਾਲ ਗੁਰੂ’ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਭਰਾ ਰਾਮ ਰਾਏ ਦੇ ਉਕਸਾਉਣ ’ਤੇ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਬੁਲਾਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਵਿੱਚ ਚੇਚਕ ਅਤੇ ਹੈਜ਼ਾ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉੱਥੇ ਅਨੇਕਾਂ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਅਤੇ ਮਰੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ । ਉਹ 30 ਮਾਰਚ, 1664 ਈ. ਨੂੰ ਜੋਤੀਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

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ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕਿਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਬਣਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੱਤਵੇਂ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਜਾਂ
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੱਤਵੇਂ ਗੁਰੂ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਕਦੋਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ?
ਉੱਤਰ-
1645 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦਾਰਾ ਸ਼ਿਕੋਹ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਕਾਬਲ ਕਿਸ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਗੋਂਦਾ ਜੀ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਢਾਕਾ ਕਿਸ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਨੱਥਾ ਜੀ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ?
ਉੱਤਰ-
1661 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
7 ਜੁਲਾਈ, 1656 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਬੈਠੇ ?
ਉੱਤਰ-
1661 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਜਾਂ
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂਕਾਲ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
1661 ਈ. ਤੋਂ 1664 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਸ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਰਾਮ ਰਾਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ?
ਉੱਤਰ-
1664 ਈ. 1

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਕਿੱਥੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਦਿੱਲੀ ।

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ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ-

1. ……………………… ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੱਤਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ)

2. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ …………………….. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1630 ਈ. )

3. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ …………………… ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ)

4. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ………………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ)

5. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ………………… ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1645 ਈ. )

6. ……………………. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ)

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7. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ …………………….. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1661 ਈ.)

8. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦਿੱਲੀ ਵਿੱਚ ……………………… ਦੇ ਬੰਗਲੇ ਵਿੱਚ ਠਹਿਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਰਾਜਾ ਜੈ ਸਿੰਘ)

9. …………………….. ਨੂੰ ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੱਤਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

2. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 1630 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

3. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

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4. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਬੀਬੀ ਨਿਹਾਲ ਕੌਰ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ 1661 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

6. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

8. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ 1664 ਈ. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੱਤਵੇਂ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1627 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1628 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1629 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1630 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1630 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ
(ii) ਅਟੱਲ ਰਾਏ ਜੀ
(iii) ਮਨੀ ਰਾਏ ਜੀ
(iv) ਸੂਰਜ ਮਲ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ?
(i) 1635 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1637 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1645 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1655 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1645 ਈ. ਵਿੱਚ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਕਾਰਜਾਂ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ
(ii) ਤਰਨਤਾਰਨ
(iii) ਕਰਤਾਰਪੁਰ
(iv) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦਾਰਾ ਸ਼ਿਕੋਹ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦਾ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ
(ii) ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦਾ ਛੋਟਾ ਪੁੱਤਰ
(iii) ਜਹਾਂਗੀਰ ਦਾ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ
(iv) ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦਾ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦਾ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
(i) ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ
(ii) ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੂੰ
(iii) ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੂੰ
(iv) ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
(i) 1645 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1660 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1661 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1664 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1661 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ।
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ।
(iv) ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1630 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1635 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1636 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1656 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1656 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(ii) ਸ੍ਰੀ ਅਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ
(iii) ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ
(iv) ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ‘ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਕਿਸ ਨੂੰ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
(i) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੂੰ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ
(iv) ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੂੰ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ?
(i) 1645 ਈ. ਵਿੱਚ ।
(ii) 1656 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1661 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1664 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1661 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ?
(i) 1661 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1662 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1663 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1664 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1664 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਕਿੱਥੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
(i) ਦਿੱਲੀ
(ii) ਆਗਰਾ
(iii) ਲਾਹੌਰ
(iv) ਬਕਾਲਾ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਦਿੱਲੀ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ 1645 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1661 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗੁਰਿਆਈ ਦਾ ਸਮਾਂ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦਾ ਕਾਲ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ਜਿਵੇਂ ਜਲੰਧਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ, ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ, ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ, ਪਟਿਆਲਾ, ਅੰਬਾਲਾ, ਕਰਨਾਲ ਅਤੇ ਹਿਸਾਰ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਗਏ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਚਾਰਕ ਭੇਜੇ । ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਇੱਕ ਸ਼ਰਧਾਲੁ ਫੁਲ ਨੂੰ ਇਹ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਸ ਦੀ ਸੰਤਾਨ ਰਾਜ ਕਰੇਗੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਹ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਸੱਚ ਨਿਕਲੀ । ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦਾ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ਦਾਰਾ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦਾ ਬੜਾ ਪ੍ਰੇਮੀ ਸੀ ।

1658 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰ ਯੁੱਧ ਛਿੜ ਪਿਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਦਾਰਾ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ਤੇ ਉਹ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਕੋਲ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਲੈਣ ਲਈ ਆਇਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਸ ਦਾ ਹੌਸਲਾ ਬੁਲੰਦ ਕੀਤਾ । ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਬੁਲਾਇਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਭੇਜਿਆ । ਗੁਰਬਾਣੀ ਦਾ ਗਲਤ ਅਰਥ ਦੱਸਣ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਤੋਂ ਬੇਦਖਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ।

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ਤੇ ਕਦੋਂ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ਸਨ ?
2. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਕਿਹੜੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਗਏ ? ਕਿਸੇ ਦੋ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
3. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਕਿਸ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਨੂੰ ਇਹ ਵਰਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਸ ਦੀ ਸੰਤਾਨ ਰਾਜ ਕਰੇਗੀ ?
4. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
5. ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਦਾਰਾ
(ii) ਸ਼ੁਜਾ
(iii) ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ
(iv) ਮੁਰਾਦੇ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ 1645 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ।
2. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਜਲੰਧਰ ਅਤੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ਗਏ ।
3. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਇਕ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਫੂਲ ਨੂੰ ਇਹ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਸ ਦੀ ਸੰਤਾਨ ਰਾਜ ਕਰੇਗੀ ।
4. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੇ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ।
5. ਦਾਰਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 8 ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ

2. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਸਨ । ਉਹ 1661 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਉਹ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਆਪ ਜੀ ਕੇਵਲ ਪੰਜ ਵਰਿਆਂ ਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਆਪ ਨੂੰ ‘ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਭਰਾ ਰਾਮ ਰਾਏ ਨੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਦਾ ਭਾਰੀ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਦਾ ਅਸਲ ਹੱਕਦਾਰ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਚਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਨਾ ਹੋ ਸਕਿਆ ਤਾਂ . ਉਸ ਨੇ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਤੋਂ ਮਦਦ ਮੰਗੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਬੁਲਾਇਆ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ 1664 ਈ. ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਗਏ । ਇੱਥੇ ਉਹ ਰਾਜਾ ਜੈ ਸਿੰਘ ਦੇ ਘਰ ਠਹਿਰੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਵਿੱਚ ਚੇਚਕ ਅਤੇ ਹੈਜ਼ਾ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬੀਮਾਰਾਂ, ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਅਤੇ ਅਨਾਥਾਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ । ਉਹ ਆਪ ਵੀ ਚੇਚਕ ਕਾਰਨ ਬਹੁਤ ਬੀਮਾਰ ਪੈ ਗਏ ।ਉਹ 30 ਮਾਰਚ, 1664 ਈ. ਨੂੰ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ । ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪ ਦੇ ਮੁੱਖ ‘ਚੋਂ “ਬਾਬਾ ਬਕਾਲਾ’ ਸ਼ਬਦ ਨਿਕਲਿਆ ਜਿਸ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਅਗਲਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਬਾਬਾ ਬਕਾਲਾ ਵਿੱਚ ਹੈ ।

1. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ?
2. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ……………….. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ਸਨ ।
3. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
4. ਰਾਮ ਰਾਏ ਕੌਣ ਸੀ?
5. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੇ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਕਿਹੜੀ ਸੇਵਾ ਨਿਭਾਈ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਅੱਠਵੇਂ ਗੁਰੂ, ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਸਨ ।
2. 1661 ਈ. ।
3. ਕਿਉਂਕਿ ਗੁਰਗੁੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਸਮੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਉਮਰ ਕੇਵਲ ਪੰਜ ਵਰੇ ਸੀ ।
4. ਰਾਮ ਰਾਏ ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ ।
5. ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਦਿੱਲੀ ਵਿੱਚ ਸਨ ਉਸ ਸਮੇਂ ਉੱਥੇ ਚੇਚਕ ਅਤੇ ਹੈਜਾ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਫੈਲੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬੀਮਾਰਾਂ, ਗਰੀਬਾਂ ਅਤੇ ਅਨਾਥਾਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਰੂਪਾਂਤਰਣ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ? (What contribution was made by Guru Hargobind Ji in transformation of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰੂ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe the achievements of Guru Hargobind Ji’s pontificate.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ 1606 ਈ. ਤੋਂ 1645 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ । ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਰੁਪਾਂਤਰਣ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਯੋਗਦਾਨ ਬੜਾ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਸੀ । ਉਹ ਬੜੇ ਰਾਜਸੀ ਠਾਠ-ਬਾਠ ਨਾਲ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਦੀ ਉਪਾਧੀ ਅਤੇ ਮੀਰੀ ਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ । ਮੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਦੁਨਿਆਵੀ ਸੱਤਾ ਦੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਧਾਰਮਿਕ ਸੱਤਾ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਕੋਲੋਂ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਸੈਨਾ ਦਾ ਗਠਨ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋਣ, ਘੋੜੇ ਅਤੇ ਸ਼ਸਤਰ ਭੇਟ ਕਰਨ ਲਈ ਹੁਕਮਨਾਮੇ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ । ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੰਸਾਰਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਧਦੇ ਹੋਏ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕੈਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦਾ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ।

ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਦੋਂ ਤਕ ਰਿਹਾਅ ਹੋਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਦੋਂ ਤਕ ਉੱਥੇ ਕੈਦ 52 ਹੋਰ ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਨਹੀਂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ 52 ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ ਕਿਹਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ | 1628 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । ਉਸ ਬੜੇ ਕੱਟੜ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸੀ । ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਚਾਰ ਲੜਾਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਲਹਿਰਾ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਫਗਵਾੜਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਰਾਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਲਈ ਉਲੇਖਯੋਗ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਜਾਂ ‘ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਕਿਉਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤਾ ? (What were the main causes of adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji?).
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਜਾਂ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣਾ ਪਿਆ-

1. ਮੁਗਲਾਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਨੀਤੀ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲੀ – ਜਹਾਂਗੀਰ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਸੁਹਿਰਦ ਸਨ । ਪਰ 1605 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਣਿਆ ਬਾਦਸ਼ਾਹ, ਜਹਾਂਗੀਰ ਬਹੁਤ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ । ਉਹ ਇਸਲਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਨੂੰ ਪ੍ਰਫੁੱਲਿਤ ਹੁੰਦੇ ਨਹੀਂ ਵੇਖ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਸ ਬਦਲੇ ਹੋਏ ਹਾਲਾਤ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਵੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਉਣੀ ਪਈ ।

2. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ – ਜਹਾਂਗੀਰ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਵੱਧ ਰਹੀ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯਤਾ ਅਸਹਿ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਲਹਿਰ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਉਸ ਨੇ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਸ ਬਹਾਦਤ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਜੇ ਉਹ ਜਿਊਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਸਤਰਧਾਰੀ ਹੋ ਕੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਟੱਕਰ ਲੈਣੀ ਪਵੇਗੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਉਣ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ ।

3. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸੁਨੇਹਾ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਲਈ ਇਹ ਸੁਨੇਹਾ ਭੇਜਿਆ, ਉਸ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼ਸਤਰਾਂ ਨਾਲ ਸੁਸ਼ੋਭਤ ਹੋ ਕੇ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਪੂਰੀ ਯੋਗਤਾ ਅਨੁਸਾਰ ਸੈਨਾ ਰੱਖਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।” ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨੂੰ ਵਿਹਾਰਕ ਰੂਪ ਦੇਣ ਦਾ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਵਲੋਂ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (Explain the features of New Policy adopted by Guru Hargobind Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਵੱਲੋਂ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਕੀ ਸੀ ? ਇਸ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਉ । (What do you know about the New Policy of Guru Hargobind Ji ? Explain its features.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਜਾਂ ਮੀਰੀ-ਪੀਰੀ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the New Policy or Miri-Piri of Guru Hargobind Ji ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ । (Tell the features of New Policy of Guru Hargobind Ji.)
ਉੱਤਰ-
1. ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕਰਨੀਆਂ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਣ ਸਮੇਂ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ । ਮੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਦੁਨਿਆਵੀ ਸੱਤਾ ਦੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਧਾਰਮਿਕ ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਆਪਣੂੰ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਹਥਿਆਰ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ-ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।

2. ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਗਠਨ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਇੱਕ ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋਣ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ 500 ਯੋਧੇ ਆਪ ਜੀ ਦੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋਏ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੱਧ ਕੇ 2500 ਹੋ ਗਈ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਪਠਾਣਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵੱਖਰੀ ਪਲਟਨ ਬਣਾਈ ਗਈ । ਇਸ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰਨੇ – ਗੁਰੂ ਹਰਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਮਸੰਦਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਨਿਰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਮਾਇਆ ਦੀ ਬਜਾਏ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰਨ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਕਿ ਉਹ ਮਸੰਦਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਭੇਟ ਕਰਨ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਸ ਹੁਕਮ ਦਾ ਮਸੰਦਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੁਆਰਾ ਬੜੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਵਧੇਰੇ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋ ਗਈ ।

4. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦਾ ਹੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹਿੱਸਾ ਸੀ । ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਕਰਵਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਤਖ਼ਤ ‘ਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਕਰਤਬ ਦੇਖਦੇ, ਮਸੰਦਾਂ ਤੋਂ ਘੋੜੇ ਅਤੇ ਸ਼ਸਤਰ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ, ਢਾਡੀ ਵੀਰ-ਰਸੀ ਵਾਰਾਂ ਸੁਣਾਉਂਦੇ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਝਗੜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਨਜਿੱਠਦੇ ਸਨ ।

5. ਰਾਜਸੀ ਚਿੰਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣਾ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ‘ਤੇ ਚਲਦੇ ਹੋਏ ਰਾਜਸੀ ਠਾਠ-ਬਾਠ ਨਾਲ ਰਹਿਣ ਲੱਗੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹੁਣ ਸੇਲੀ (ਉੱਨ ਦੀ ਮਾਲਾ) ਦੀ ਥਾਂ ਕਮਰ ਵਿੱਚ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਲਟਕਾਈਆਂ । ਇੱਕ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹੁਣ ਰਾਜਿਆਂ ਵਾਂਗ ਦਸਤਾਰ ਉੱਪਰ ਕਲਗੀ ਸਜਾਉਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ “ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਦੀ ਉਪਾਧੀ ਵੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ ।

6. ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਕਿਲੂਬੰਦੀ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਸਥਾਨ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਇੱਕ ਦੀਵਾਰ ਬਣਵਾ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇੱਥੇ 1609 ਈ. ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ ਗਈ, ਜਿਸ ਦਾ ਨਾਂ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬੁਲੰਦ ਹੋ ਗਏ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਕੀ ਸੀ ? ਇਸ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What was the New Policy of Guru Hargobind Sahib Ji ? What were the causes of adoption of New Policy ?)
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ-

1. ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕਰਨੀਆਂ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਣ ਸਮੇਂ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ । ਮੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਦੁਨਿਆਵੀ ਸੱਤਾ ਦੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਧਾਰਮਿਕ ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਆਪਣੂੰ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਹਥਿਆਰ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ-ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।

2. ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਗਠਨ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਇੱਕ ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋਣ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ 500 ਯੋਧੇ ਆਪ ਜੀ ਦੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋਏ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੱਧ ਕੇ 2500 ਹੋ ਗਈ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਪਠਾਣਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵੱਖਰੀ ਪਲਟਨ ਬਣਾਈ ਗਈ । ਇਸ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰਨੇ – ਗੁਰੂ ਹਰਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਮਸੰਦਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਨਿਰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਮਾਇਆ ਦੀ ਬਜਾਏ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰਨ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਕਿ ਉਹ ਮਸੰਦਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਭੇਟ ਕਰਨ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਸ ਹੁਕਮ ਦਾ ਮਸੰਦਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੁਆਰਾ ਬੜੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਵਧੇਰੇ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋ ਗਈ ।

4. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦਾ ਹੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹਿੱਸਾ ਸੀ । ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਕਰਵਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਤਖ਼ਤ ‘ਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਕਰਤਬ ਦੇਖਦੇ, ਮਸੰਦਾਂ ਤੋਂ ਘੋੜੇ ਅਤੇ ਸ਼ਸਤਰ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ, ਢਾਡੀ ਵੀਰ-ਰਸੀ ਵਾਰਾਂ ਸੁਣਾਉਂਦੇ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਝਗੜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਨਜਿੱਠਦੇ ਸਨ ।

5. ਰਾਜਸੀ ਚਿੰਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣਾ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ‘ਤੇ ਚਲਦੇ ਹੋਏ ਰਾਜਸੀ ਠਾਠ-ਬਾਠ ਨਾਲ ਰਹਿਣ ਲੱਗੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹੁਣ ਸੇਲੀ (ਉੱਨ ਦੀ ਮਾਲਾ) ਦੀ ਥਾਂ ਕਮਰ ਵਿੱਚ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਲਟਕਾਈਆਂ । ਇੱਕ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹੁਣ ਰਾਜਿਆਂ ਵਾਂਗ ਦਸਤਾਰ ਉੱਪਰ ਕਲਗੀ ਸਜਾਉਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ “ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਦੀ ਉਪਾਧੀ ਵੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ ।

6. ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਕਿਲੂਬੰਦੀ – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣੂ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਸਥਾਨ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਇੱਕ ਦੀਵਾਰ ਬਣਵਾ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇੱਥੇ 1609 ਈ. ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ ਗਈ, ਜਿਸ ਦਾ ਨਾਂ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬੁਲੰਦ ਹੋ ਗਏ ।

(ii) ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦੇ ਕਾਰਨ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਜਾਂ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣਾ ਪਿਆ-

1. ਮੁਗਲਾਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਨੀਤੀ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲੀ – ਜਹਾਂਗੀਰ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਸੁਹਿਰਦ ਸਨ । ਪਰ 1605 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਣਿਆ ਬਾਦਸ਼ਾਹ, ਜਹਾਂਗੀਰ ਬਹੁਤ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ । ਉਹ ਇਸਲਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਨੂੰ ਪ੍ਰਫੁੱਲਿਤ ਹੁੰਦੇ ਨਹੀਂ ਵੇਖ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਸ ਬਦਲੇ ਹੋਏ ਹਾਲਾਤ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਵੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਉਣੀ ਪਈ ।

2. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ – ਜਹਾਂਗੀਰ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਵੱਧ ਰਹੀ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯਤਾ ਅਸਹਿ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਲਹਿਰ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਉਸ ਨੇ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਸ ਬਹਾਦਤ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਜੇ ਉਹ ਜਿਊਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਸਤਰਧਾਰੀ ਹੋ ਕੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਟੱਕਰ ਲੈਣੀ ਪਵੇਗੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਉਣ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ ।

3. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸੁਨੇਹਾ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਲਈ ਇਹ ਸੁਨੇਹਾ ਭੇਜਿਆ, ਉਸ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼ਸਤਰਾਂ ਨਾਲ ਸੁਸ਼ੋਭਤ ਹੋ ਕੇ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਪੂਰੀ ਯੋਗਤਾ ਅਨੁਸਾਰ ਸੈਨਾ ਰੱਖਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।” ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨੂੰ ਵਿਹਾਰਕ ਰੂਪ ਦੇਣ ਦਾ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Miri and Piri ?).
ਜਾਂ
ਮੀਰੀ ਤੇ ਪੀਰੀ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? ਇਸ ਦੀ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਮਹੱਤਤਾ ਦੱਸੋ । (What is ‘Miri’ and ‘Piri’ ? Describe its historical importance.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਸਮੇਂ ਬਦਲੇ ਹੋਏ ਹਾਲਾਤਾਂ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ | ਮੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਦੁਨਿਆਵੀ ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ, ਜਦਕਿ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਧਾਰਮਿਕ ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਅੱਗੇ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਪੈਰੋਕਾਰਾਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸੰਸਾਰਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨਗੇ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਆਪਣੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਹਥਿਆਰ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਇਸ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ‘ਤੇ ਬੜਾ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਪਹਿਲਾ, ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਜੋਸ਼ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ । ਦੂਜਾ, ਹੁਣ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਧਰਮ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਹਥਿਆਰ ਚੁੱਕਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਤੀਜਾ, ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਨੀਤੀ ‘ਤੇ ਚਲਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਸਿਰਜਣਾ ਕੀਤੀ । ਚੌਥਾ, ਇਸ ਨੀਤੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਇੱਕ ਲੰਬਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

ਪਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਵਿੱਚ ਕੈਦ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
ਜਾਂ
ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਕਿਉਂ ਬਣਾਇਆ ? (Why did Jahangir arrest Guru Hargobind Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਉਹ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੁਆਰਾ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਕੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤੇ ਗਏ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਕਿਉਂ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ? ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ । ਕੁਝ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਲਈ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਸਾਜ਼ਸ਼ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਉਸ ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ਨਾਲ ਵਿਆਹ ਕਰਨ ਦਾ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰ ਲਿਆ ।

ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਇਸ ਮਤ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਨ ਕਿ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਕਾਰਨ ਕੈਦੀ ਬਣਾਇਆ । ਇਸ ਨੀਤੀ ਦੇ ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਸ਼ੰਕੇ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਏ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਨੇ ਵੀ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਕੰਨ ਭਰੇ ਕਿ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨਾ ਸਮਾਂ ਕੈਦ ਰਹੇ | ਵਧੇਰੇ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ 1606 ਈ. ਤੋਂ 1608 ਈ. ਤਕ ਦੋ ਸਾਲ ਗਵਾਲੀਅਰ ਵਿਖੇ ਕੈਦ ਰਹੇ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸਮਰਾਟ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on relations between Guru Hargobind Ji and Mughal emperor Jahangir.)
ਉੱਤਰ-
1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ ਸਮਰਾਟ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਮੁਗ਼ਲ-ਸਿੱਖ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮੋੜ ਆਇਆ । ਜਹਾਂਗੀਰ ਬੜਾ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ । ਸਿੰਘਾਸਣ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਦੇ ਛੇਤੀ ਪਿੱਛੋਂ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਮੁਗ਼ਲ-ਸਿੱਖ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਤਣਾਉ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਮੁਗ਼ਲ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਨੁਸਾਰ ਕੁਝ ਸੈਨਾ ਵੀ ਰੱਖ ਲਈ । ਜਹਾਂਗੀਰ ਇਹ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਵੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਭੜਕਾਇਆ ।

ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਕੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨਾ ਸਮਾਂ ਕੈਦ ਰਹੇ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ | ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਅਤੇ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕੈਦੀ ਬਣਾਏ 52 ਹੋਰ ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ‘ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ ਕਿਹਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ। ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਅਤੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਵਿਚਾਲੇ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What were the causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?) .
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ (ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ) ਵਿਚਾਲੇ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-

  • ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਇੱਕ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਬਣਵਾਈ ਬਾਉਲੀ ਨੂੰ ਗੰਦਗੀ ਨਾਲ ਭਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸਨ ।
  • ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਸ਼ੇਖ ਮਾਸੁਮ ਨੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਸਖ਼ਤ ਤੋਂ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ।
  • ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਾ ਦੇ ਭਗੌੜਿਆਂ ਨੂੰ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕਈ ਰਾਜਸੀ ਚਿੰਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਧਾਰਨ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ‘ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ’ ਕਹਿਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਭਲਾ ਇਹ ਕਿਵੇਂ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਕਰਦਾ ।
  • ਕੌਲਾਂ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਕਾਜ਼ੀ ਰੁਸਤਮ ਖਾਂ ਦੀ ਧੀ ਸੀ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਣੀ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਵਿੱਚ ਚਲੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਜ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ਭੜਕਾਉਣ ’ਤੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਗਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Sahib and the Mughals.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਇੱਕ ਬਾਜ਼ ਸੀ । ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੁਗਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਆਪਣੇ ਕੁਝ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਨੇੜੇ ਇੱਕ ਜੰਗਲ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਗੁਰੁ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੁਝ ਸਿੱਖ ਵੀ ਉਸੇ ਜੰਗਲ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡ ਰਹੇ ਸਨ । ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡਦੇ ਸਮੇਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਖ਼ਾਸ ਬਾਜ਼ ਜੋ ਉਸ ਨੂੰ ਈਰਾਨ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੇ ਭੇਟ ਕੀਤਾ ਸੀ, ਉੱਡ ਗਿਆ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਇਸ ਬਾਜ਼ ਨੂੰ ਫੜ ਲਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਹ ਬਾਜ਼ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੂੰ ਵਾਪਸ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮੁਖਲਿਸ ਖ਼ਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ 7000 ਸੈਨਿਕ ਭੇਜੇ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮੁਖਲਿਸ ਖ਼ਾਂ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਮੁਗਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਜੜ ਪੈ ਗਈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ ਇਸ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬੁਲੰਦ ਹੋ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੋਈ ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the battle of Lahira fought in the times of Guru Hargobind Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਛੇਤੀ ਮਗਰੋਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਲਹਿਰਾ (ਬਠਿੰਡਾ ਦੇ ਨੇੜੇ ਨਾਮੀ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕਾਰਨ ਦੋ ਘੋੜੇ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦਿਲਬਾਗ ਅਤੇ ਗੁਲਬਾਗ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਜੋ ਕਿ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਨਸਲ ਦੇ ਸਨ ਬਖਤ ਮਲ ਅਤੇ ਤਾਰਾ ਚੰਦ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਮਸੰਦ ਕਾਬਲ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਭੇਟ ਕਰਨ ਲਈ ਲਿਆ ਰਹੇ ਸਨ । ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੇ ਖੋਹ ਲਿਆ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹੀ ਅਸਤਬਲ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਗੱਲ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਇੱਕ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਭਾਈ ਬਿਧੀ ਚੰਦ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਨਾ ਕਰ ਸਕਿਆ ।ਉਹ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਦੋਹਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹੀ ਅਸਤਬਲ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢ ਲਿਆਇਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਕੋਲ ਪਹੁੰਚਾ ਦਿੱਤਾ ।

ਜਦੋਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਘਟਨਾ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਸੁਣੀ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਫੌਰਨ ਲੱਲਾ ਬੇਗ ਅਤੇ ਕਮਰ ਬੇਗ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਫ਼ੌਜ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਭੇਜੀ । ਲਹਿਰਾ ਨਾਮੀ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਬੜੀ ਘਮਸਾਣ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੋਨੋਂ ਸੈਨਾਪਤੀ ਲੱਲਾ ਬੇਗ ਅਤੇ ਕਮਰ ਬੇਗ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਵੀ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਤ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?).
ਉੱਤਰ-
1635 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਤੀਸਰੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ਕਾਰਨ ਹੋਈ ।ਉਹ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਪਠਾਣ ਟੁਕੜੀ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ । ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪਰ ਹੁਣ ਉਹ ਬੜਾ ਘਮੰਡੀ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਇੱਕ ਬਾਜ਼ ਚੁਰਾ ਕੇ ਆਪਣੇ ਜਵਾਈ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪੁੱਛਣ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਉਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਬਾਜ਼ ਬਾਰੇ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਹੈ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਪੈਂਦਾ ਦੇ ਝੂਠ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢ ਦਿੱਤਾ | ਪੈਂਦਾ ਖਾਂ ਨੇ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ।

ਉਹ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਵਿੱਚ ਚਲਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਵਿਰੁੱਧ ਸੈਨਿਕ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਬਹੁਤ ਉਕਸਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ਅਤੇ ਕਾਲੇ ਖਾਂ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸੈਨਾ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੇਜੀ । ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਬੜੀ ਘਮਸਾਣ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦੋ ਪੁੱਤਰਾਂ ਭਾਈ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ਅਤੇ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ। ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਕਾਲੇ ਖਾਂ, ਪੈਂਦਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਕੁਤਬ ਖ਼ਾਂ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਵੀ ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਅੰਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਹੋਰ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਹੋਈਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਤਿਹਾਸਕ ਮਹੱਤਤਾ ਵੀ ਦੱਸੋ । (Write briefly Guru Hargobind’s battles with the Mughals. What is their significance in Sikh History ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁਗਲਾਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਾਲ 1634-35 ਈ. ਵਿੱਚ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ ਹੋਈਆਂ । ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ਹੋਈ । ਇੱਕ ਸ਼ਾਹੀ ਬਾਜ਼ ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਤੱਤਕਾਲੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਬਾਜ਼ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਫੜ ਲਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨੂੰ ਵਾਪਸ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਮੁਖਲਿਸ ਖ਼ਾਂ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸੈਨਾ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਬਹੁਤ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਲੜੇ ਅਤੇ ਅੰਤ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਹਿਰਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕਾਰਨ ਦੋ ਘੋੜੇ ਬਣੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦਿਲਬਾਗ ਅਤੇ ਗੁਲਬਾਗ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਅਤੇ ਮਾਲੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ । 1635 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤੀਸਰੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦੋ ਪੁੱਤਰਾਂ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ਅਤੇ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ।ਇਸੇ ਹੀ ਵਰੇ ਫਗਵਾੜਾ ਵਿਖੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿਚਾਲੇ ਆਖਰੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਆਪਣੇ ਸੀਮਿਤ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ‘ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (Why is Guru Hargobind Ji known as ‘Bandi Chhor Baba’?)
ਉੱਤਰ-
1605 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ ਸਮਰਾਟ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਮੁਗ਼ਲ-ਸਿੱਖ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮੋੜ ਆਇਆ । ਜਹਾਂਗੀਰ ਬੜਾ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ । ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਦੇ ਛੇਤੀ ਪਿੱਛੋਂ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਮੁਗ਼ਲ-ਸਿੱਖ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਤਣਾਓ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਮੁਗ਼ਲ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਨੁਸਾਰ ਕੁਝ ਸੈਨਾ ਵੀ ਰੱਖ ਲਈ । ਜਹਾਂਗੀਰ ਭਲਾ ਇਸ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਸਹਿਣ ਕਰਦਾ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਵੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਕੰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਜ਼ਹਿਰ ਘੋਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਕੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ।

ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨਾਂ ਸਮਾਂ ਕੈਦ ਰਹੇ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ । ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਅਤੇ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ। ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ 52 ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਕੇ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਹ ਰਾਜੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਹੁੰਦਿਆਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਦੁੱਖ-ਤਕਲੀਫ਼ ਦਾ ਕੋਈ ਅਹਿਸਾਸ ਨਾ ਰਿਹਾ । ਪਰ ਜਦੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਇਹ ਰਾਜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਯੋਗ ਦੀ ਕਲਪਨਾ ਮਾਤਰ ਨਾਲ ਹੀ ਤੜਫ ਉੱਠੇ ।

ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਾਜਿਆਂ ਨਾਲ ਕਾਫ਼ੀ ਹਮਦਰਦੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਇਹ ਸੁਨੇਹਾ ਭੇਜਿਆ ਕਿ ਉਹ ਤਦ ਤਕ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚੋਂ ਰਿਹਾਅ ਨਹੀਂ ਹੋਣਗੇ ਜਦੋਂ ਤਕ ਉਸ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਬੰਦੀ 52 ਹੋਰ ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਨਹੀਂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ 52 ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦਾ ਆਦੇਸ਼ ਦੇਣਾ ਪਿਆ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ‘ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਉੱਪਰ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Akal Takht.)
ਜਾਂ
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Explain briefly the importance of building of Akal Takht in Sikh History ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਬਹੁਤ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਸੀ । ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ (ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਗੱਦੀ) ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਕਾਰਜ 1609 ਈ. ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਦੇ ਅੰਦਰ ਇੱਕ 12 ਫੁੱਟ ਉੱਚੇ ਥੜੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਜੋ ਇੱਕ ਤਖ਼ਤ ਸਮਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਨੀਂਹ ਪੱਥਰ ਗੁਰੁ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਰੱਖਿਆ । ਇਸ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਵਿੱਚ ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਅਤੇ ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਖ਼ਤ ‘ਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਸੰਸਾਰਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਇੱਥੇ ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਸ਼ਤੀਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸੈਨਿਕ ਕਰਤੱਬ ਦੇਖਦੇ ਸਨ । ਇੱਥੇ ਹੀ ਉਹ ਮਸੰਦਾਂ ਤੋਂ ਘੋੜੇ ਅਤੇ ਸ਼ਸਤਰ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਜੋਸ਼ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਲਈ ਇੱਥੇ ਢਾਡੀ ਵੀਰ-ਰਸੀ ਵਾਰਾਂ ਸੁਣਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਇੱਥੇ ਬੈਠ ਕੇ ਹੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਝਗੜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਨਜਿੱਠਦੇ ਸਨ । ਇੱਥੇ ਬੈਠ ਕੇ ਹੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਨਾਮ ਵੀ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਵੀ । ਇੱਥੋਂ ਹੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੰਗਤਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਆਪਣਾ ਪਹਿਲਾ ਹੁਕਮਨਾਮਾ ਜਾਰੀ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਘੋੜੇ ਅਤੇ ਹਥਿਆਰ ਭੇਂਟ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਸ ਥਾਂ ਤੋਂ ਹੁਕਮਨਾਮੇ ਜਾਰੀ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਚਲ ਪਈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਕੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਜੀਵਨ ਸ਼ੈਲੀ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਤਬਦੀਲੀ ਲਿਆਂਦੀ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਬਣ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਮੁਗਲ ਸਮਰਾਟ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the relations of Guru Hargobind with the Mughal emperor Shah Jahan.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ 1628 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ-ਸਿੱਖ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਤਣਾਉ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ | ਪਹਿਲਾ, ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਬੜਾ ਕੱਟੜ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸੀ ।ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਬਣਵਾਈ ਬਾਉਲੀ ਨੂੰ ਗੰਦਗੀ ਨਾਲ ਭਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਲੰਗਰ ਲਈ ਬਣਾਈ ਇਮਾਰਤ ਨੂੰ ਮਸਜਿਦ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਦੂਜਾ, ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਕੰਨ ਭਰਨ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਕਸਰ ਬਾਕੀ ਨਹੀਂ ਛੱਡੀ ।ਤੀਸਰਾ, ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਇੱਕ ਸੈਨਾ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਦੁਆਰਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ “ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਕਹਿ ਕੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨਾ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਅੱਖ ਨਹੀਂ ਭਾਉਂਦਾ ਸੀ ।

ਚੌਥਾ, ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਇੱਕ ਕਾਜ਼ੀ ਦੀ ਧੀ ਕੌਲਾਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਚੇਲੀ ਬਣ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਸ ਕਾਜ਼ੀ ਨੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਖ਼ਤ ਕਦਮ ਚੁੱਕਣ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ । 1634-35 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਲਹਿਰਾ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਫਗਵਾੜਾ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਹੋਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਫੈਲ ਗਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(Write a short note on the relations between Guru Hargobind Ji and the Mughal emperors.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਸਮਕਾਲੀਨ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਸਨ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬੜੇ ਕੱਟੜ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਸਨ। 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੁਆਰਾ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਮੁਗਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਦਰਾਰ ਆ ਗਈ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਮਗਰੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕੈਦ ਕਰ ਲਿਆ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਿਉਂ ਕੈਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਕਿੰਨਾ ਸਮਾਂ ਕੈਦ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ ।

ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਕੈਦ ਵਿੱਚੋਂ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਲਏ । 1628 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਮੁਗਲਾਂ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਬੜੇ ਕੱਟੜ ਖ਼ਿਆਲਾਂ ਦਾ ਸੀ ਇਸ ਕਾਰਨ ਇੱਕ ਵਾਰ ਫਿਰ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਪਾੜਾ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ-ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਲਹਿਰਾ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਫਗਵਾੜਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬੁਲੰਦ ਹੋ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ (Lite of Guru Hargobind Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਬਾਰੇ ਵਿਸਤਾਰਪੂਰਵਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a detailed note on the life of Guru Hargobind Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the life of Guru Hargobind Ji.)
ਉੱਤਰ-
1. ਜਨਮ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ (Birth and Parentage) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 14 ਜੂਨ, 1595 ਈ. ਨੂੰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਪਿੰਡ ਵਡਾਲੀ ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਇਕਲੌਤੇ ਪੁੱਤਰ ਸਨ । ਆਪ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਗੰਗਾ ਦੇਵੀ ਜੀ ਸੀ ।

2. ਬਚਪਨ ਅਤੇ ਵਿਆਹ (Childhood and Marriage) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਬੜੇ ਹੋਣਹਾਰ ਸਨ । ਆਪ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬੀ, ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤ ਸਾਹਿਤ ਦਾ ਬੜਾ ਡੂੰਘਾ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਨੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਨਾ ਸਿਰਫ ਧਾਰਮਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਹੀ ਦਿੱਤੀ ਸਗੋਂ ਘੋੜਸਵਾਰੀ ਅਤੇ ਸ਼ਸਤਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਨਿਪੁੰਨ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ । ਵਿਆਹ ਦੇ ਪਿੱਛੋਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਘਰ ਪੰਜ ਪੁੱਤਰਾਂ-ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ, ਅਨੀ ਰਾਏ, ਸੂਰਜ ਮਲ, ਅਟੱਲ ਰਾਏ ਅਤੇ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਤੇ ਇੱਕ ਧੀ-ਬੀਬੀ ਵੀਰੋ ਨੇ ਜਨਮ ਲਿਆ ।

3. ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ (Assumption of Guruship) – 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਜਾਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ, ਜਿੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਦਿੱਤੀ ਸੀ, ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਉਮਰ ਕੇਵਲ 11 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਛੇਵੇਂ ਗੁਰੂ ਬਣੇ । ਉਹ 1606 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1645 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ ।

4. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ (New Policy of Guru Hargobind Ji.) – ਨੋਟ-ਇਸ ਭਾਗ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 2 ਦਾ ਉੱਤਰ ਵੇਖਣ ।

5. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ (Relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals) – ਨੋਟ-ਇਸ ਭਾਗ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 3 ਦਾ ਉੱਤਰ ਵੇਖਣ ।

ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ‘ (New Policy of Guru Hargobind Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਕੀ ਪੜਚੋਲ ਕਰੋ । (Examine the New Policy of Guru Hergobind Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਇਸ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈਆਂ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਰੂਪ ਬਦਲੀ ਸੰਬੰਧੀ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What do you know about the New Policy of Guru Hargobind Ji ? Describe its features and significance towards the transformation of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਇਸ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What do you know about the New Policy of Guru Hargobind Ji ? Explain its main features.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਆਲੋਚਨਾਤਮਕ ਲੇਖ ਲਿਖੋ । (Write a critical note on the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
ਜਾਂ
ਉਨ੍ਹਾਂ ਹਾਲਤਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕਰਕੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਉਣੀ ਪਈ । ਇਸ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਸਨ ?
(Describe the circumstances leading to the adoption of New Policy by Guru Hargobind Ji. What were the main features of this policy ?)
ਜਾਂ
ਮੀਰੀ ਤੇ ਪੀਰੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the main features of Miri and Piri.)
ਜਾਂ
ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤੋਂ ਤੁਹਾਡਾ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What do you understand by Miri and Piri ? Explain its main features.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਮੀਰੀ ਤੇ ਪੀਰੀ ਦੀ ਨੀਤੀ ‘ਤੇ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Discuss the Policy of ‘Miri’ and ‘Piri’ of Guru Hargobind Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਕੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਸਨ ? (What were the features of New Policy of Guru Hargobind Ji ?)
ਜਾਂ
ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? ਇਸ ਦੀਆਂ ਕੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਸਨ ? (What do you mean by Miri and Piri ? What were its features ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਯੁੱਗ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੋਈ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸੰਬੰਧ ਤਣਾਉਪੂਰਨ ਹੋ ਗਏ ਸਨ । ਅਜਿਹੇ ਹਾਲਾਤ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਸਿੱਟਾ ਕੱਢਿਆ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਧਰਮ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਖ਼ਾਤਰ ਸ਼ਸਤਰ ਧਾਰਨ ਕਰਨੇ ਪੈਣਗੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਨ-

1. ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਨੀਤੀ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲੀ (Change in the Religious Policy of the Mughals) – ਜਹਾਂਗੀਰ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਸੁਹਿਰਦ ਸਨ । ਬਾਬਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਪ੍ਰਤੀ ਸਨਮਾਨ ਪ੍ਰਗਟ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਹੁਮਾਯੂੰ ਨੇ ਰਾਜਗੱਦੀ ਦੀ ਮੁੜ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਤੋਂ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ | ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਆਪ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਆ ਕੇ ਲੰਗਰ ਛਕਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ 500 ਬੀਘੇ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾਨ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਸਾਲ ਲਈ ਲਗਾਨ ਵੀ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ | ਪਰ 1605 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਣਿਆ ਬਾਦਸ਼ਾਹ, ਜਹਾਂਗੀਰ ਬਹੁਤ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ । ਉਹ ਇਸਲਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਨੂੰ ਪ੍ਰਫੁੱਲਿਤ ਹੁੰਦੇ ਨਹੀਂ ਵੇਖ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਸ ਬਦਲੇ ਹੋਏ ਹਾਲਾਤ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਵੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਉਣੀ ਪਈ ।

2. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji) – ਜਹਾਂਗੀਰ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਵੱਧ ਰਹੀ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯਤਾ ਅਸਹਿ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਲਹਿਰ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਉਸ ਨੇ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਸ ਸ਼ਹਾਦਤ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਜੇ ਉਹ ਜਿਊਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਸਤਰਧਾਰੀ ਹੋ ਕੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਟੱਕਰ ਲੈਣੀ ਪਵੇਗੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਉਣ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ ।

3. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸੁਨੇਹਾ (Last Message of Guru Arjan Dev Ji) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਲਈ ਇਹ ਸੁਨੇਹਾ ਭੇਜਿਆ, ਉਸ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼ਸਤਰਾਂ ਨਾਲ ਸੁਸ਼ੋਭਤ ਹੋ ਕੇ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਪੂਰੀ ਯੋਗਤਾ ਅਨੁਸਾਰ ਸੈਨਾ ਰੱਖਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨੂੰ ਵਿਹਾਰਿਕ ਰੂਪ ਦੇਣ ਦਾ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕੀਤਾ ।

ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Main Features of the New Policy)

1. ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕਰਨੀਆਂ (Wearing of Miri and Piri Swords) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਣ ਸਮੇਂ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ । ਮੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਦੁਨਿਆਵੀ ਸੱਤਾ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਧਾਰਮਿਕ ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਆਪਣੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਹਥਿਆਰ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਇਸ ਨੀਤੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ‘ਤੇ ਬੜਾ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ।

2. ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਗਠਨ (Organisation of Army) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਸੈਨਾ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋਣ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ 500 ਯੋਧੇ ਆਪ ਜੀ ਦੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਭਰਤੀ ਹੋਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸੌ-ਸੌ ਦੇ ਪੰਜ ਜੱਥਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ । ਹਰੇਕ ਜੱਥਾ ਇੱਕ ਜੱਥੇਦਾਰ ਦੇ ਅਧੀਨ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ 52 ਅੰਗ ਰੱਖਿਅਕ ਵੀ ਭਰਤੀ ਕੀਤੇ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਗੁਰੂ ਸਹਿਬ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੱਧ ਕੇ 2500 ਹੋ ਗਈ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਪਠਾਣਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵੱਖਰੀ ਪਲਟਨ ਬਣਾਈ ਗਈ । ਇਸ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਪੈਂਦਾ ਖਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰਨੇ (Collection of Arms and Horses) – ਗੁਰੂ ਹਰਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਮਸੰਦਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਨਿਰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਮਾਇਆ ਦੀ ਬਜਾਏ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰਨ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਕਿ ਉਹ ਮਸੰਦਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਭੇਟ ਕਰਨ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਸ ਹੁਕਮ ਦਾ ਮਸੰਦਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੁਆਰਾ ਬੜੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਵਧੇਰੇ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋ ਗਈ ।

4. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ (Construction of Akal Takhat Sahib) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦਾ ਹੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹਿੱਸਾ ਸੀ | ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਕਰਵਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਅੰਦਰ ਇੱਕ 12 ਫੁੱਟ ਉੱਚੇ ਥੜੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਜੋ ਇੱਕ ਤਖ਼ਤ ਸਮਾਨ ਸੀ । ਇਸ ਤਖ਼ਤ ‘ਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਕਰਤਬ ਦੇਖਦੇ, ਮਸੰਦਾਂ ਤੋਂ ਘੋੜੇ ਅਤੇ ਸ਼ਸਤਰ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ, ਢਾਡੀ ਵੀਰ-ਰਸੀ ਵਾਰਾਂ ਸੁਣਾਉਂਦੇ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਝਗੜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਨਜਿੱਠਦੇ ਸਨ ।

ਐੱਚ. ਐੱਸ. ਭਾਟੀਆ ਅਤੇ ਐੱਸ. ਆਰ. ਬਖ਼ਸ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪਵਿੱਤਰ ਸੰਸਥਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸਮੁਦਾਇ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ-ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਿੱਚ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ।”1

5. ਰਾਸਜੀ ਚਿੰਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣਾ (Adoption of Royal Symbols) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ‘ਤੇ ਚਲਦੇ ਹੋਏ ਰਾਜਸੀ ਠਾਠ-ਬਾਠ ਨਾਲ ਰਹਿਣ ਲੱਗੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹੁਣ ਸੇਲੀ (ਉੱਨ ਦੀ ਮਾਲਾ) ਦੀ ਥਾਂ ਕਮਰ ਵਿੱਚ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਲਟਕਾਈਆਂ । ਇੱਕ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਦਰਬਾਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹੁਣ ਰਾਜਿਆਂ ਵਾਂਗ ਦਸਤਾਰ ਉੱਪਰ ਕਲਗੀ ਸਜਾਉਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ‘ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਦੀ ਉਪਾਧੀ ਵੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਹੁਣ ਕੀਮਤੀ ਕੱਪੜੇ ਪਹਿਨਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਅੰਗ ਰੱਖਿਅਕਾਂ ਨਾਲ ਚਲਦੇ ਸਨ ।

6. ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਕਿਲ੍ਹੇਬੰਦੀ (Fortification of Amritsar) – ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪਵਿੱਤਰ ਧਾਰਮਿਕ ਸਥਾਨ ਹੀ ਸੀ ਸਗੋਂ ਇਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਿਕ ਸਿਖਲਾਈ ਕੇਂਦਰ ਵੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ 1
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਇੱਕ ਦੀਵਾਰ ਬਣਵਾ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇੱਥੇ ਇੱਕ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਵੀ ਕਰਵਾਈ ਗਈ ਜਿਸ ਦਾ ਨਾਂ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਰੱਖਿਆ। ਗਿਆ |

7. ਗੁਰੁ ਜੀ ਦੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲੀ (Changes in the daily life of the Guru) – ਆਪਣੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕਈ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਆ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਅਬਦੁੱਲਾ ਅਤੇ ਨੱਥਾ ਮਲ ਨੂੰ ਵੀਰ ਰਸੀ ਵਾਰਾਂ ਗਾਉਣ ਲਈ ਭਰਤੀ ਕੀਤਾ । ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੰਗੀਤ ਮੰਡਲੀ ਵੀ ਕਾਇਮ ਕੀਤੀ ਗਈ ਜੋ ਰਾਤ ਨੂੰ ਉੱਚੀ ਆਵਾਜ਼ ਵਿੱਚ ਜੋਸ਼ੀਲੇ ਸ਼ਬਦ ਗਾਉਂਦੀ ਹੋਈ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪ੍ਰਕਰਮਾ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਇਹ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਸਿਰਫ਼ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹਾਦਰੀ ਦਾ ਜ਼ਜਬਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਲਈ ਕੀਤੀਆਂ ਸਨ ।

ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀ ਪੜਚੋਲ (Critical Estimate of the New Policy)

ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ ਤਾਂ ਇਸ ਨੀਤੀ ਨੇ ਕਈ ਸ਼ੰਕੇ ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤੇ । ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀ ਗਲਤ ਪੜਚੋਲ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਪੁਰਾਣੀ ਸਿੱਖ ਮਰਯਾਦਾ ਦਾ ਤਿਆਗ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਚਾਰਕ ਭੇਜੇ । ਜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਤਾਂ ਉਸ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਸਿਰਫ਼ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਜੋਸ਼ ਪੈਦਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਸਮੇਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਬਾਰੇ ਪੈਦਾ ਹੋਏ ਸ਼ੰਕੇ ਦੂਰ ਹੋਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ ਸਨ । ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀ ਸ਼ਲਾਘਾ ਕਰਦੇ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜਿਵੇਂ ਮਣੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸੱਪ ਨੂੰ ਮਾਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਕਸਰੀ ਲੈਣ ਲਈ ਹਿਰਨ ਨੂੰ ਮਾਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

ਗਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਨਾਰੀਅਲ ਨੂੰ ਭੰਨਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਬਾਗ਼ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਕੰਡਿਆਲੀ ਵਾੜ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਠੀਕ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਸਥਾਪਿਤ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਹੁਣ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ। ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਐੱਚ. ਐੱਸ. ਭਾਟੀਆ ਅਤੇ ਐੱਸ. ਆਰ. ਬਖ਼ਸ਼ੀ ਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ,
“ਭਾਵੇਂ ਬਾਹਰੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਅਜਿਹਾ ਲਗਦਾ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਲਈ ਅਲੱਗ ਰਸਤਾ ਅਪਣਾਇਆ, ਪਰ ਇਹ ਮੁੱਖ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਆਦਰਸ਼ਾਂ ’ ਤੇ ਹੀ ਆਧਾਰਿਤ ਸੀ ।” 1

ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ (Importance of the New Policy)

ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਨੀਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ । ਸਿੱਖ ਹੁਣ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣ ਗਏ । ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਸ਼ਸਤਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਵੀ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਏ । ਇਸ ਨੀਤੀ ਦੀ ਅਣਹੋਂਦ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਪਵਿੱਤਰ ਭਾਈਚਾਰਾ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ ਹੁੰਦਾ ਅਤੇ ਜਾਂ ਫਿਰ ਉਹ ਫ਼ਕੀਰਾਂ ਅਤੇ ਸੰਤਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਜਮਾਤ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਜਾਂਦਾ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਸਦਕਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਜੱਟ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਆਪਸੀ ਪਾੜਾ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ । ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਚਾਰ ਯੁੱਧ ਲੜਨੇ ਪਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਮੁਗ਼ਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੇ ਗੌਰਵ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ । ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਕੇ. ਐੱਸ. ਦੁੱਗਲ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,

“ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਯੋਗਦਾਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਮਾਰਗ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਦਿਸ਼ਾ ਦੇਣਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਸੰਤਾਂ ਨੂੰ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਪਰ ਆਪ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਭਗਤ ਰਹੇ ।” 1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ (Guru Hargobind Ji’s Relations with the Mughals)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Describe briefly the relationship of Guru Hargobind Ji with Jahangir and Shah Jahan.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਤੇ ਮੁਗਲ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਉੱਤੇ ਵਿਸਥਾਰਮਈ ਲੇਖ ਲਿਖੋ । (Write a detailed note on relations between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Examine the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ 1606 ਈ. ਤੋਂ 1645 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਰਹੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਗੁਰਿਆਈ ਕਾਲ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ-

ਪਹਿਲਾ ਕਾਲ 1606-27 ਈ. (First Period 1606-27 A.D.)

1.ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਗਵਾਲੀਅਰ ਵਿਖੇ ਕੈਦ (Imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਉਹ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੁਆਰਾ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਕੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤੇ ਗਏ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਕਿਉਂ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ? ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ । ਕੁਝ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਲਈ ਚੰਦੁ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਸਾਜ਼ਸ਼ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਉਸ ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ਨਾਲ ਵਿਆਹ ਕਰਨ ਦਾ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰ . ਲਿਆ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਇਸ ਮਤ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਨ ਕਿ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਕਾਰਨ ਕੈਦੀ ਬਣਾਇਆ । ਇਸ ਨੀਤੀ ਦੇ ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਵਿੱਚ | ਅਨੇਕਾਂ ਸ਼ੰਕੇ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਏ ਸਨ । ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਨੇ ਵੀ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਕੰਨ ਭਰੇ ਕਿ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ।

2. ਕੈਦ ਦੀ ਮਿਆਦ (fferiod of Imprisonment) – ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲੇ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨਾ ਸਮਾਂ ਕੈਦ ਰਹੇ । ਦਾਬਿਸਤਾਨ-ਏ-ਮਜ਼ਾਹਿਬ ਦੇ ਲੇਖਕ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ 12 ਸਾਲ ਕੈਦ ਰਹੇ । ਡਾਕਟਰ ਇੰਦੂ ਭੂਸ਼ਨ ਬੈਨਰਜੀ ਇਹ ਸਮਾਂ ਪੰਜ ਸਾਲ, ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਗੰਡਾ ਸਿੰਘ ਇਹ ਸਮਾਂ ਦੋ ਸਾਲ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਸਾਖੀਕਾਰ ਇਹ ਸਮਾਂ ਚਾਲੀ ਦਿਨ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ਵਧੇਰੇ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ 1606 ਈ. ਤੋਂ 1608 ਈ. ਤਕ ਦੋ ਸਾਲ ਗਵਾਲੀਅਰ ਵਿਖੇ ਕੈਦ ਰਹੇ ।

3. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਰਿਹਾਈ (Release of the Guru Hargobind Ji) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਰਿਹਾਈ ਬਾਰੇ ਵੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਨੇ ਕਈ ਮਤ ਪ੍ਰਗਟ ਕੀਤੇ ਹਨ । ਸਿੱਖ ਸਾਖੀਕਾਰਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਜਹਾਂਗੀਰ ਬੜਾ ਬੇਚੈਨ ਰਹਿਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਸੀ । ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ‘ਤੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਕੁਝ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਹੈ ਕਿ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਇਹ ਫ਼ੈਸਲਾ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ‘ਤੇ ਲਿਆ ਸੀ । ਕੁਝ ਹੋਰਨਾਂ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਅਨੁਸਾਰ ਜਹਾਂਗੀਰ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਬੰਦੀ ਕਾਲ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਗੁਰੁ ਜੀ ਪ੍ਰਤੀ ਇੰਨੀ ਸ਼ਰਧਾ ਵੇਖ ਕੇ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਰਿਹਾਈ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਜਿੱਦ ‘ਤੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਹੀ ਕੈਦ 52 ਹੋਰ ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨਾ ਪਿਆ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ‘ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ’ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ ।

4. ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ (Friendly Relations with Jahangr) – ਛੇਤੀ ਹੀ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਇਹ ਯਕੀਨ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨਿਰਦੋਸ਼ ਸਨ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀਆਂ ਮੁਸੀਬਤਾਂ ਪਿੱਛੇ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦਾ ਵੱਡਾ ਹੱਥ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਦੇਣ ਲਈ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇੱਥੋਂ ਤਕ ਕਿ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਲਈ ਸਾਰਾ ਖ਼ਰਚਾ ਦੇਣ ਦੀ ਪੇਸ਼ਕਸ਼ ਕੀਤੀ ਪਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਗਵਾਲੀਅਰ ਤੋਂ ਰਿਹਾਈ ਦੇ ਬਾਅਦ ਅਤੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਮੌਤ ਤਕ ਜਹਾਂਗੀਰ ਤੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਵਿਚਾਲੇ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ ਬਣੇ ਰਹੇ ।

ਦੂਜਾ ਕਾਲ 1628-35 ਈ. (Second Period 1628–35 A.D.)

1628 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਮੁਗਲਾਂ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨਕਾਲ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਫਿਰ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿਗੜ ਗਏ-

1. ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਕੱਟੜਤਾ (Shah Jahan’s Fanaticism) – ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਬੜਾ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਕਈ ਮੰਦਰਾਂ ਨੂੰ ਨਸ਼ਟ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਬਣਵਾਈ ਗਈ ਬਾਉਲੀ ਦੀ ਥਾਂ ਇੱਕ ਮਸਜਿਦ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਉਸ ਪ੍ਰਤੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਗੁੱਸਾ ਸੀ ।

2. ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition of Naqashbandis) – ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਲਹਿਰ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਵਾਉਣ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਸੀ । ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਫਿਰ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਨੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਇਆ ! ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੋ ਗਿਆ ।

3. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ (New Policy of Guru Hargobind Ji) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਵਿਗਾੜਨ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀ । ਇਸ ਨੀਤੀ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ‘ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ’ ਕਹਿ ਕੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਇਸ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਮੁਗਲ ਸਾਮਰਾਜ ਲਈ ਇੱਕ ਗੰਭੀਰ ਖ਼ਤਰਾ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕੀਤਾ ।

4. ਕੌਲਾਂ ਦਾ ਮਾਮਲਾ (Kaulans Affair) – ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਕੌਲਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਕਾਰਨ ਤਣਾਉ ਵਿੱਚ ਹੋਰ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ । ਕੌਲਾਂ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਕਾਜ਼ੀ ਰੁਸਤਮ ਖਾਂ ਦੀ ਧੀ ਸੀ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਬੜੇ ਚਾਅ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹਦੀ ਸੀ |।ਕਾਜ਼ੀ ਭਲਾ ਇਹ ਕਿਵੇਂ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਧੀ ‘ਤੇ ਬੜੀਆਂ ਪਾਬੰਦੀਆਂ ਲਗਾ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਕੌਲਾਂ ਤੰਗ ਆ ਕੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਵਿੱਚ ਚਲੀ ਗਈ । ਜਦੋਂ ਕਾਜ਼ੀ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਵਿਰੁੱਧ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਬਹੁਤ ਕੰਨ ਭਰੇ ।

ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles Between the Sikhs and Mughals)

ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ 1634-35 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਲੜਾਈ 1634 ਈ. (Battle of Amritsar 1634 A.D.) – 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ਮੁਗਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਨੇੜੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡਦੇ ਸਮੇਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਖ਼ਾਸ ਬਾਜ਼ ਉੱਡ ਗਿਆ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਇਸ ਬਾਜ਼ ਨੂੰ ਫੜ ਲਿਆ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਬਾਜ਼ ਨੂੰ ਵਾਪਿਸ ਕਰਨ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਦੋਹਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਝੜਪ ਹੋ ਗਈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਗੁੱਸੇ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਤੋਂ ਮੁਖਲਿਸ ਮਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ 7000 ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਟੁਕੜੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੈਂਦਾ ਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ । ਮੁਖਲਿਸ ਖ਼ਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਲੜਦਾ ਹੋਇਆ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਜੜ ਪੈ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵਧ ਗਏ ਇਸ ਲੜਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਪ੍ਰੋਫ਼ੈਸਰ ਹਰਬੰਸ ਸਿੰਘ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ,
“ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਇਹ ਲੜਾਈ ਭਾਵੇਂ ਇੱਕ ਛੋਟੀ ਘਟਨਾ ਸੀ ਪਰ ਇਸ ਦੇ ਦੁਰਗਾਮੀ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ ।”

2. ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 1634 ਈ. (Battle of Lahira 1634 A.D.) – ਛੇਤੀ ਹੀ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਲਹਿਰਾ ਬਠਿੰਡਾ ਦੇ ਨੇੜੇ ਨਾਮੀ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕਾਰਨ ਦੋ ਘੋੜੇ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦਿਲਬਾਗ ਅਤੇ ਗੁਲਬਾਗ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਬਖਤ ਮਲ ਅਤੇ ਤਾਰਾ ਚੰਦ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਮਸੰਦ ਕਾਬਲ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਭੇਂਟ ਕਰਨ ਲਈ ਲਿਆ ਰਹੇ ਸਨ । ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੇ ਖੋਹ ਲਿਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਇੱਕ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਭਾਈ ਬਿਧੀ ਚੰਦ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਦੋਹਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹੀ ਅਸਤਬਲ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢ ਲਿਆਇਆ । ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਗੁੱਸੇ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਫੌਰਨ ਲੱਲਾ ਬੇਗ ਅਤੇ ਕਮਰ ਬੇਗ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਫ਼ੌਜ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਭੇਜੀ । ਲਹਿਰਾ ਨਾਮੀ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਬੜੀ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਦੋਨੋਂ ਸੈਨਾਪਤੀ ਲੱਲਾ ਬੇਗ ਅਤੇ ਕਮਰ ਬੇਗ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਵੀ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ । ਅਖ਼ੀਰ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

3. ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਦੀ ਲੜਾਈ 1635 ਈ. (Battle of Kartarpur 1635 A.D.) – ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤੀਸਰੀ ਲੜਾਈ 1635 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਹੋਈ। ਇਹ ਲੜਾਈ ਪੈਂਦਾ ਖਾਂ ਕਾਰਨ ਹੋਈ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚ ਪਠਾਣ ਟੁਕੜੀ ਦਾ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਇੱਕ ਬਾਜ਼ ਚੁਰਾ ਕੇ ਆਪਣੇ ਜਵਾਈ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪੁੱਛਣ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਜਦੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਪੈਂਦਾ ਦੇ ਝੂਠ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢ ਦਿੱਤਾ । ਪੈਂਦਾ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਰਨ ਚਲਾ ਗਿਆ । ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ਦੇ ਉਕਸਾਉਣ ‘ਤੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ਅਤੇ ਕਾਲੇ ਖਾਂ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸੈਨਾ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੇਜੀ । ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਬੜੀ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੂਰਬੀਰਤਾ ਦੇ ਜੌਹਰ ਦਿਖਾਏ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਲੜਦੇ ਹੋਏ ਕਾਲੇ ਖਾਂ, ਪੈਂਦਾ ਖਾਂ ਅਤੇ ਉਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਕੁਤਬ ਖਾਂ ਮਾਰੇ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਹੋਰ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ ।

4. ਫਗਵਾੜਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 1635 ਈ. (Battle of Phagwara 1635 A.D.) – ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਜੀ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਫਗਵਾੜਾ ਆ ਗਏ। ਇੱਥੇ ਅਹਿਮਦ ਖਾਂ ਦੀ ਕਮਾਨ ਹੇਠ ਕੁਝ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਕਿਉਂਕਿ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੀ ਬਹੁਤ ਥੋੜ੍ਹੀ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਫਗਵਾੜਾ ਵਿਖੇ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਮਾਮਲੀ ਜਿਹੀ ਝੜਪ ਹੋਈ । ਫਗਵਾੜਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਆਖ਼ਰੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।

ਲੜਾਈਆਂ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ (Importance of the Battles)

ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਮੁਗਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤ . ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬੁਲੰਦ ਹੋ ਗਏ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸੀਮਿਤ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਬਲਬੂਤੇ ‘ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਨਾਂ ਜਿੱਤਾਂ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਫੈਲ ਗਈ | ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਗਏ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿਕਾਸ ਹੋਣ ਲੱਗਾ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਪਤਵੰਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਮਹੱਤਵ ਇਨ੍ਹਾਂ ਗੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਕਿੰਨੀਆਂ ਵੱਡੀਆਂ ਸਨ ਬਲਕਿ ਇਸ ਗੱਲ ਵਿੱਚ ਸੀ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹਮਲਾਵਰਾਂ ਦੀ ਗਤੀ ਨੂੰ ਰੋਕਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਚੁਣੌਤੀ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਚੇਤਨਾ ਦਾ ਸੰਚਾਰ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਦੂਸਰਿਆਂ ਲਈ ਇੱਕ ਮਿਸਾਲ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ।’ 1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਰੂਪਾਂਤਰਣ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ? (What contribution was made by Guru Hargobind Sahib in transformation of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰੂ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਸਫ਼ਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ (Briefly describe the achievements of Guru Hargobind Ji’s pontificate.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ 1606 ਈ. ਤੋਂ 1645 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੀਰੀ ਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਜ਼ਾਲਮਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਇੱਕ ਸੈਨਾ ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਲੋਹਗੜ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੰਸਾਰਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ ਲੜੀਆਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਜਾਂ ‘ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀਂ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਕਿਉਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤਾ ? (What were the main causes of adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਕਿਉਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ ? (Why did Guru Hargobind Ji adopt the ‘New Policy’ ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Describe any three causes of adoption of New Policy by Guru Hargobind Ji.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਬੜਾ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ । ਉਹ ਇਸਲਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਨੂੰ ਵੱਧਦਾ ਨਹੀਂ ਵੇਖ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਬਦਲੇ ਹੋਏ ਹਾਲਾਤ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਉਣੀ ਪਈ ।
  2. 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕੀਤਾ ।
  3. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਇਹ ਸੁਨੇਹਾ ਭੇਜਿਆ ਕਿ ਉਹ ਸ਼ਸਤਰ ਧਾਰਨ ਕਰਕੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਨੁਸਾਰ ਸੈਨਾ ਵੀ ਰੱਖੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈਆਂ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main features of Guru Hargobind Ji ‘s New Policy ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਜਾਂ ਮੀਰੀ-ਪੀਰੀ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the New Policy or Miri-Piri of Guru Hargobind Ji ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਕੀ ਸੀ ? ਇਸ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(What was the ‘New Policy’ of Guru Hargobind Ji ? Explain its main features.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਲਿਖੋ । (Write any three features of New Policy of Guru Hargobind Ji.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਬੜੇ ਰਾਜਸੀ ਠਾਠ-ਬਾਠ ਨਾਲ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ ।
  2. ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇੱਕ ਸੈਨਾ ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ।
  3. ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਸਿੱਖ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਧਨ ਦੀ ਥਾਂ ਸ਼ਸਤਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਭੇਟ ਕਰਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Miri and Piri ?)
ਜਾਂ
ਮੀਰੀ ਤੇ ਪੀਰੀ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? ਇਸ ਦੀ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਮਹੱਤਤਾ ਦੱਸੋ । (What is ‘Miri’ and ‘Piri’ ? Describe its historical importance.)
ਜਾਂ
ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? (What is meant by Miri and Piri ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੁੰਦੇ ਸਮੇਂ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ । ਮੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਦੁਨਿਆਵੀ ਅਗਵਾਈ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ, ਜਦਕਿ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਧਾਰਮਿਕ ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਜੋਸ਼ੀਲੀ ਭਾਵਨਾ ਦਾ ਸੰਚਾਰ ਹੋਇਆ । ਦੂਜਾ, ਹੁਣ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਧਰਮ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਹਥਿਆਰ ਚੁੱਕਣ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਤੀਜਾ, ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਨੀਤੀ ‘ਤੇ ਚਲਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਸਿਰਜਨਾ ਕੀਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਵਿੱਚ ਕੈਦ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
ਜਾਂ
ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਕਿਉਂ ਬਣਾਇਆ ? (Why did Jahangir arrest Guru Hargobind Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਉਹ ਮੁਗਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੁਆਰਾ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਕੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲੇ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤੇ ਗਏ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਕਿਉਂ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ? ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ । ਕੁਝ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਲਈ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਸਾਜ਼ਸ਼ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਇਸ ਮਤ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਨ ਕਿ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਕਾਰਨ ਕੈਦੀ ਬਣਾਇਆ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ 1606 ਈ. ਤੋਂ 1608 ਈ. ਤਕ ਦੋ ਸਾਲ ਗਵਾਲੀਅਰ ਵਿਖੇ ਕੈਦ ਰਹੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗਲ ਸਮਰਾਟ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on relations between Guru Hargobind Ji and Mughal emperor Jahangir.)
ਉੱਤਰ-
1605 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਗਲ ਸਮਰਾਟ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਮੁਗਲ-ਸਿੱਖ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮੋੜ ਆਇਆ । ਜਹਾਂਗੀਰ ਬੜਾ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ | ਮੁਗ਼ਲ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਕੇ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਵਿਚਾਲੇ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What were the causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ । (Write any three causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਇੱਕ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਬਣਵਾਈ ਬਾਉਲੀ ਨੂੰ ਗੰਦਗੀ ਨਾਲ ਭਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।
  2. ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਸ਼ੇਖ਼ ਮਾਸੂਮ ਨੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਸਖ਼ਤ ਤੋਂ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ।
  3. ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਾ ਦੇ ਭਗੌੜਿਆਂ ਨੂੰ ਭਰਤੀ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।
  4. ਸਿੱਖ ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ‘ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ’ ਕਹਿਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਗਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals.) .
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਇੱਕ ਬਾਜ਼ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਖ਼ਾਸ ਬਾਜ਼ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਫੜ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮੁਖਲਿਸ ਖ਼ਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ 7000 ਸੈਨਿਕ ਭੇਜੇ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮੁਖਲਿਸ ਖਾਂ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਜੜ ਪੈ ਗਈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਸ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
ਉੱਤਰ-
1635 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ਕਾਰਨ ਹੋਈ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਘਮੰਡੀ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਆਪਣੀ ਫ਼ੌਜ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਪੈਂਦਾ ਖਾਂ ਨੇ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬ ਵਿਰੁੱਧ ਉਕਸਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਸੈਨਾ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੇਜੀ ( ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਬੜੀ ਭਿਆਨਕ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਹੋਈਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਤਿਹਾਸਕ ਮਹੱਤਤਾ ਵੀ ਦੱਸੋ । (Write briefly Guru Hargobind Ji’s battles with the Mughals. What is their significance in Sikh History ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ (ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨਾਲ 1634-35 ਈ. ਵਿੱਚ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ ਹੋਈਆਂ । ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ਹੋਈ । ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਹਿਰਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈ । 1635 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤੀਸਰੀ ਲੜਾਈ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿੱਚ ਹੋਈ । ਇਸੇ ਹੀ ਵਰੇ ਫਗਵਾੜਾ ਵਿਖੇ ਮੁਗਲਾਂ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਵਿਚਾਲੇ ਆਖਰੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਆਪਣੇ ਸੀਮਿਤ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (Why is Guru Hargobind Ji known as Bandi Chhor Baba ?)
ਉੱਤਰ-
ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ 52 ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਕੇ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਹ ਰਾਜੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਜਦੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਲਿਆ ਤਾਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਤਦ ਤਕ ਰਿਹਾਅ ਨਹੀਂ ਹੋਣਗੇ ਜਦ ਤਕ 52 ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਛੱਡਿਆ ਜਾਂਦਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ 52 ਰਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ‘ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ’ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਉੱਪਰ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Akal Takht Sahib.)
ਜਾਂ
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Explain briefly the importance of building of Akal Takht Sahib in Sikh History ?)
ਉੱਤਰ-
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਸੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਦੁਨਿਆਵੀ ਰਹਿਨੁਮਾਈ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖੀ । ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਿਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਕਾਰਜ 1609 ਈ. ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਤਖ਼ਤ ‘ਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਸੈਨਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸਮਰਾਟ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughal emperor Shah Jahan.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਬੜਾ ਕੱਟੜ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਬਣਵਾਈ ਬਾਉਲੀ ਨੂੰ ਗੰਦਗੀ ਨਾਲ ਭਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਦੂਜਾ, ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਇੱਕ ਸੈਨਾ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਦੁਆਰਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ‘ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ’ ਕਹਿ ਕੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨਾ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਅੱਖ ਨਹੀਂ ਭਾਉਂਦਾ ਸੀ । 1634-1635 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਲਹਿਰਾ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਫਗਵਾੜਾ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਹੋਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ |

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Write a short note on the relations between Guru Hargobind Ji and the Mughal emperors.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਸਮਕਾਲੀਨ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਅਤੇ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਸਨ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬੜੇ ਕੱਟੜ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਦੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਕੈਦ ਕਰ ਲਿਆ | ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਲਏ 1634-35 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ-ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਲਹਿਰਾ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਫਗਵਾੜਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਹਿਬ ਸਾਰੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਵੱਸਣ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ? (Why did Guru Hargobind Ji choose to settle down at Kiratpur Sahib ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਵੱਸਣ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਕੀਤਾ-

  1. ਇਹ ਦੇਸ਼ ਮੁਗ਼ਲ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੇ ਸਿੱਧੇ ਅਧਿਕਾਰ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਨਹੀ ਸੀ ।
  2. ਇਹ ਦੇਸ਼ ਸ਼ਿਵਾਲਿਕ ਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਨਾਲ ਘਿਰੇ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਵਧੇਰੇ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਸੀ ।
  3. ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਇੱਥੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨਾਲ ਰਹਿ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਆਪਣਾ ਸਮਾਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਵਿੱਚ ਬਤੀਤ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ ।
  4. ਇਹ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਸਿਖਲਾਈ ਪੱਖੋਂ ਵੀ ਵਧੀਆ ਸੀ ।

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ਵਸਤੂਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਛੇਵੇਂ ਗਰ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂ ਕਾਲ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
1606 ਈ. ਤੋਂ 1645 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਬੈਠੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
1606 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੰਗਾ ਦੇਵੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਬੀਬੀ ਵੀਰੋ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ਕਿਸਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸਨ ?
ਜਾਂ
ਸੂਰਜ ਮਲ ਜੀ ਕਿਸਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਬਾਬਾ ਅਟੱਲ ਰਾਏ ਜੀ ਕਿਸਦੇ ਪੁੱਤਰ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਬਾਬਾ ਅਟੱਲ ਰਾਏ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਕਿੱਥੇ ਸਥਿਤ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਉਣ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ?
ਜਾਂ
ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
‘ਮੀਰੀ’ ਅਤੇ ‘ਪੀਰੀ’ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੀਰੀ ਤੋਂ ਭਾਵ ਦੁਨਿਆਵੀ ਸੱਤਾ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤੋਂ ਭਾਵ ਰੂਹਾਨੀ ਸੱਤਾ ਤੋਂ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿੱਥੇ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਕਦੋਂ ਰੱਖੀ ਗਈ ?
ਉੱਤਰ-
1606 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਈਸ਼ਵਰ ਦੀ ਗੱਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਕਿਸ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਤੱਥ ’ਤੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦਾ ਸੁਮੇਲ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਲੋਹਗੜ ਦਾ ਕਿਲਾ ਕਿਸ ਨੇ ਬਣਵਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿੱਥੇ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਪਠਾਣਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਟੁਕੜੀ ਦਾ ਸੈਨਾਨਾਇਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੈਂਦਾ ਮਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਹੜੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੇ ਬੰਦੀ ਬਣਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿੱਥੇ ਬੰਦੀ ਬਣਾਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
‘ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ’ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਜਾਂ
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਕਿਸੇ ਗੁਰੂ ਨੂੰ ‘ਬੰਦੀ ਛੋੜ’ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿਗੜਨ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦਾ ਧਾਰਮਿਕ ਕੱਟੜਪੁਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਕੌਲਾਂ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਜ਼ੀ ਰੁਸਤਮ ਖਾਂ ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਦਲ ਭੰਜਨ ਗੁਰ ਸੂਰਮਾ ਕਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1634 ਈ.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋ ਘੋੜਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ਜੋ ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕਾਰਨ ਬਣੇ ।
ਉੱਤਰ-
ਦਿਲਬਾਗ ਅਤੇ ਗੁਲਬਾਗ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਗੁਲਬਾਗ ਕਿਸਦਾ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਲਬਾਗ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਭੇਂਟ ਕੀਤੇ ਗਏ ਘੋੜੇ ਦਾ ਨਾਂ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
ਦਿਲਬਾਗ ਕਿਸਦਾ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦਿਲਬਾਗ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਭੇਂਟ ਕੀਤੇ ਗਏ ਘੋੜੇ ਦਾ ਨਾਂ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 33.
ਬਿਧੀ ਚੰਦ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਇੱਕ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 34.
ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
1635 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 35.
ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 36.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕਿਸ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 37.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਆਖਰੀ ਦਸ ਸਾਲ ਕਿੱਥੇ ਬਿਤਾਏ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 38.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
1645 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 39.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਕਿੱਥੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ-

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ………………………….. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1595 ਈ. )

2. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ …………………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ)

3. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ……………………. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੰਗਾ ਦੇਵੀ ਜੀ)

4. ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ………………………….
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ)

5. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ਦਾ ਨਾਂ ……………………. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬੀਬੀ ਵੀਰੋ ਜੀ)

6. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ……………………….. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1606 ਈ.)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

7. ਗੁਰਗੱਦੀ ਮਿਲਣ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਉਮਰ…………………… ਸਾਲ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(11)

8. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ …………………. ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ)

9. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ………………………. ਨੇ ਕਰਵਾਈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ)

10. ………………………. ਵਿੱਚ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(1606 ਈ. )

11. ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ………. ਬਣਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ)

12. . …………………… ਨੂੰ ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ)

13. ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ……………………… ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(1634 ਈ. )

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

14. ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ……………………. ਅਤੇ ……………………….. ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਘੋੜੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਦਿਲਬਾਗ, ਗੁਲਬਾਗ)

15. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ……………………. ਨਾਂ ਦੇ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ

16. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ …………………… ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(1645 ਈ. )

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸੱਤਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

2. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 1595 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

3. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਦਾ ਨਾਂ ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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5. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਧੀ ਦਾ ਨਾਂ ਬੀਬੀ ਵੀਰੋ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

6. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ ਕੀਤਾ !
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

8. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨੀਤੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

9. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਜੀ ਨੇ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਦਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

10. ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਬੰਦੀ ਬਣਾ ਲਿਆ । ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

11. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ’ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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12. ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ 1628 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

13. ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

14. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਨਾਂ ਦੇ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

15. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ 1635 ਈ. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ ਜੋਤ ਸਮਾਏ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਛੇਵੇਂ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਹਰਿਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1590 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1593 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1595 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1597 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1595 ਈ. ਵਿੱਚ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਲਖਸ਼ਮੀ ਦੇਵੀ ਜੀ
(ii) ਗੰਗਾ ਦੇਵੀ ਜੀ
(iii) ਸੁਲੱਖਣੀ ਜੀ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੰਗਾ ਦੇਵੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਬੀਬੀ ਵੀਰੋ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਪਤਨੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ
(iv) ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ ਦੀ ਪਤਨੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ?
(i) 1506 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1556 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1605 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕਿੰਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਉਮਰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਸਮੇਂ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਣ ਵੇਲੇ ਦੀ ਉਮਰ ਨਾਲੋਂ ਘੱਟ ਸੀ ?
(i) ਇੱਕ
(ii) ਦੇ
(iii) ਤਿੰਨ
(iv) ਚਾਰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਇੱਕ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ
(iii) ਗੁਰੁ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੇ
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਦੋਂ ਪੂਰਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) 1606 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1607 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1609 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1611 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1609 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
‘ਬੰਦੀ ਛੋੜ ਬਾਬਾ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
(i) ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ
(ii) ਭਾਈ ਮਨੀ ਸਿੰਘ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
(i) ਫਗਵਾੜਾ
(ii) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ
(iii) ਕਰਤਾਰਪੁਰ
(iv) ਲਹਿਰਾ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਗਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
(i) 1606 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1624 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1630 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੇ ਹੇਠ ਲਿਖੀ ਕਿਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ?
(i) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ
(ii) ਲਹਿਰਾ
(iii) ਕਰਤਾਰਪੁਰ
(iv) ਫਗਵਾੜਾ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਕਰਤਾਰਪੁਰ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਨੌਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਨਾਮ ਕਿਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਈ ਗਈ ਬਹਾਦਰੀ ਕਾਰਨ ਬਦਲ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) ਸ੍ਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸਾਹਿਬ
(ii) ਲਹਿਰਾ
(iii) ਫਗਵਾੜਾ
(iv) ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕਿਸ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
(i) ਕਰਤਾਰਪੁਰ
(ii) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ
(iv) ਤਰਨ ਤਾਰਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਕਿਸ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜੇ ਨੇ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਸ੍ਰੀ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਵਸਾਉਣ ਲਈ ਜ਼ਮੀਨ ਭੇਂਟ ਕੀਤੀ ?
(i) ਕਹਿਲੂਰ ਦਾ ਕਲਿਆਣ ਚੰਦ
(ii) ਬਿਲਾਸਪੁਰ ਦਾ ਦੀਪ ਚੰਦ
(iii) ਬਿਲਾਸਪੁਰ ਦਾ ਭੀਮ ਚੰਦ
(iv) ਕਾਂਗੜਾ ਦਾ ਸੰਸਾਰ ਚੰਦ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਕਹਿਲੂਰ ਦਾ ਕਲਿਆਣ ਚੰਦ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਕਿਹੜਾ ਸਿੱਖ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਸਮਕਾਲੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ?
(i) ਭਾਈ ਨੰਦ ਲਾਲ ਜੀ
(ii) ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀਚੰਦ ਜੀ
(iv) ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਭਾਈ ਨੰਦ ਲਾਲ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
(i) ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੂੰ
(ii) ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੂੰ
(iii) ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੂੰ
(iv) ਗੋਬਿੰਦ ਰਾਏ ਜੀ ਨੂੰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਹਰਿ ਰਾਏ ਜੀ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
(i) 1628 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1635 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1638 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1645 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1645 ਈ. ਵਿੱਚ ।

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Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਣ ਸਮੇਂ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕੀਤਾ | ਮੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਦੁਨਿਆਵੀ ਸੱਤਾ ਦੀ ਪਤੀਕ ਸੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਧਾਰਮਿਕ ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪਤੀਕ, ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਭਾਵ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਅੱਗੋਂ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਆਪਣੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸੰਸਾਰਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮਾਰਗ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨਗੇ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਤਿਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਆਪਣੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਹਥਿਆਰ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜਿੱਥੇ ਦੀਨ-ਦੁਖੀਆਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ‘ਦੇਗ’ ਹੋਵੇਗੀ ਉੱਥੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਯਮਲੋਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਲਈ ‘ਤੇਗ਼’ ਹੋਵੇਗੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਬੈਠੇ ਸਨ ?
2. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹੜੀ ਉਪਾਧੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
3. ਮੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਕਿਹੜੀ ਸੱਤਾ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ ?
4. ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰ …………. ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ ।
5. ਕਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
2. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਸੱਚਾ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਦੀ ਉਪਾਧੀ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ ।
3. ਮੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਦੁਨਿਆਵੀ ਸੱਤਾ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ ।
4. ਧਾਰਮਿਕ ।
5. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।

2. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ । ਬੜੀ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਇਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਸੀ । ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਕਾਰਜ 1609 ਈ. ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ ਇਸ ਦੇ ਅੰਦਰ ਇੱਕ 12 ਫੁੱਟ ਉੱਚੇ ਥੜੇ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਜੋ ਇੱਕ ਤਖ਼ਤ ਸਮਾਨੇ ਸੀ । ਇਸ ਤਖ਼ਤ ‘ਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਸੰਸਾਰਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇੱਥੇ ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਸ਼ਤੀਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸੈਨਿਕ ਕਰਤਬ ਦੇਖਦੇ ਸਨ । ਇੱਥੇ ਹੀ ਉਹ ਮਸੰਦਾਂ ਤੋਂ ਘੋੜੇ ਅਤੇ ਸ਼ਸਤਰ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

1. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
2. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
3. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
4. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਕਿਹੜੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ? ਕੋਈ ਇੱਕ ਲਿਖੋ ।
5. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਦੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ?
(i) 1605 ਈ.
(ii) 1606 ਈ.
(iii) 1607 ਈ.
(iv) 1609 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
1. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਗੱਦੀ ।
2. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
3. ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਸੰਸਾਰਿਕ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਈ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
4. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਇੱਥੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ।
5. 1606 ਈ. ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਰੂਪਾਂਤਰਣ

3. ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਛੇਤੀ ਮਗਰੋਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਲਹਿਰਾ ਨਾਮੀ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕਾਰਨ ਦੋ ਘੋੜੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਜੋ ਕਿ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਨਸਲ ਦੇ ਸਨ ਬਖਤ ਮਲ ਅਤੇ ਤਾਰਾ ਚੰਦ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਮਸੰਦ ਕਾਬਲ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਭੇਟ ਕਰਨ ਲਈ ਲਿਆ ਰਹੇ ਸਨ । ਰਾਹ ਵਿੱਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੇ ਖੋਹ ਲਿਆ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹੀ ਅਸਤਬਲ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਗੱਲ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਇੱਕ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਭਾਈ ਬਿਧੀ ਚੰਦ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਨਾ ਕਰ ਸਕਿਆ । ਉਹ ਭੇਸ ਬਦਲ ਕੇ ਦੋਹਾਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹੀ ਅਸਤਬਲ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢ ਲਿਆਇਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਕੋਲ ਪਹੁੰਚਾ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਘਟਨਾ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਸੁਣੀ ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਗ ਬਬੂਲਾ ਹੋ ਉੱਠਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਫੌਰਨ ਲੱਲਾ ਬੇਗ਼ ਅਤੇ ਕਮਰ ਬੇਗ਼ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਫ਼ੌਜ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਭੇਜੀ । ਬਠਿੰਡਾ ਦੇ ਨੇੜੇ ਲਹਿਰਾ ਨਾਮੀ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਬੜੀ ਭਿਆਨਕ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ।

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
2. ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋ ਘੋੜਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ ਸੀ ।
3. ਕਿਹੜਾ ਸਿੱਖ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸ਼ਾਹੀ ਅਸਤਬਲ ਵਿਚੋਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਲਿਆਇਆ ਸੀ ?
4. ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਦੋ ਸੈਨਾਪਤੀ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ ?
5. ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ……………………. ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 1634 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
2. ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋ ਘੋੜਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦਿਲਬਾਗ ਅਤੇ ਗੁਲਬਾਗ ਸਨ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ ।
3. ਭਾਈ ਬਿਧੀ ਚੰਦ ਜੀ ਉਹ ਸਿੱਖ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸਨ ਜੋ ਸ਼ਾਹੀ ਅਸਤਬਲ ਵਿਚੋਂ ਘੋੜਿਆਂ ਨੂੰ ਕੱਢ ਲਿਆਇਆ ਸੀ ।
4. ਲਹਿਰਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਮਾਰੇ ਗਏ ਦੋ ਸੈਨਾਪਤੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲੱਲਾ ਬੇਗ ਅਤੇ ਕਮਰ ਬੇਗ ਸਨ ।
5. ਨੁਕਸਾਨ ।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 7 बैंकिंग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 7 बैंकिंग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 बैंकिंग

PSEB 12th Class Economics बैंकिंग Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
बैंक से क्या अभिप्राय है ? अथवा बैंक को परिभाषित करो।
उत्तर-
बैंक वह संस्था है जो मुद्रा जमा करवाती है तथा मुद्रा उधार देती है। कैरनकरॉस अनुसार, “बैंक एक वित्तीय विचोला है जो कि ऋण तथा उधार का कार्य करता है।”
(“A Bank is a financial intermediary, a dealer in loans and debts.” -Carincross)

प्रश्न 2.
बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना होता है ताकि उधार दिया जा सके अथवा निवेश किया जा सके।

प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापारिक बैंक वह संस्था है जोकि उधार देने के उद्देश्य से जनता की बचतों को एकत्रित करती है।

प्रश्न 4.
व्यापारिक बैंकों के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • जमा राशि प्राप्त करना
  • उधार देना।

प्रश्न 5.
केन्द्रीय बैंक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में चोटी की संस्था होती है, जोकि देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढाँचे का संचालन करती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 7 बैंकिंग

प्रश्न 6.
केन्द्रीय बैंक के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. करन्सी जारी करना
  2. साख नियन्त्रण।

प्रश्न 7.
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में हाल ही में किए दो सुधार बताओ।
उत्तर-

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विस्तार-श्री एम० नरसिमहम ने 1992 तथा 1998 में आधुनिकीकरण तथा निजीकरण सम्बन्धी विचार दिए तथा कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विस्तार करना चाहिए तथा इनको कार्य में स्वतन्त्रता प्रदान करनी चाहिए।
  • निजी क्षेत्र में नए बैंक-बैंकों को निजी क्षेत्र में कार्य करने की आज्ञा देनी चाहिए। भारत में इस समय 10 बैंक निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।

प्रश्न 8.
जो संस्था लोगों की मुद्रा जमा करती है और मुद्रा उधार देती है को …………… कहते हैं।
(क) केन्द्रीय बैंक
(ख) व्यापारिक बैंक
(ग) आहड़तियां
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) व्यापारिक बैंक।

प्रश्न 9.
जो संस्था देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढांचे का संचालन करती है को …………. कहते हैं।
(क) सरकार
(ख) वित्त मंत्रालय
(ग) केन्द्रीय बैंक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) केन्द्रीय बैंक।

प्रश्न 10.
देश का केन्द्रीय बैंक सरकार का बैंक होता है और करंसी जारी करता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 11.
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना ताकि उधार दिया जा सके।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 12.
करंसी को छापने का काम भारत सरकार करती है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 13.
किस बैंक को करंसी जारी करने का अधिकार है ?
अथवा
देश में सरकार का बैंक कौन सा होता है ?
(क) केन्द्रीय बैंक
(ख) व्यापारिक बैंक
(ग) सहकारी बैंक
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) केन्द्रीय बैंक।

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना होता है ताकि उधार दिया जा सके अथवा निवेश किया जा सके। जो राशि बैंकों में जमा करवाती है, उसको चैक, ड्राफ्ट अथवा आदेश अनुसार वापिस लिया जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि बैंकिंग के दो मुख्य कार्य पैसा जमा करवाना तथा उधार देना है।

प्रश्न 2.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापारिक बैंक वह संस्था है जोकि उधार देने के उद्देश्य से जनता की बचतों को एकत्रित करती है। यह राशि व्यापारियों को निवेश करने के लिए उधार दी जाती है। जमाकर्ता अपनी राशि बैंक में से चैक, ड्राफ्ट अथवा आदेश अनुसार जब मर्जी वापिस कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंकों के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-
व्यापारिक बैंकों के दो महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं

  1. जमा राशि प्राप्त करना-व्यापारिक बैंक लोगों से जमा राशि प्राप्त करते हैं। लोगों की बचतों को एकत्रित करके इनकी सम्भाल करते हैं तथा कुछ ब्याज भी देते हैं।
  2. उधार देना-व्यापारिक बैंक अपने पास जनता की जमा राशि को व्यापारियों तथा उद्यमियों को निवेश करने के लिए उधार देते हैं।

प्रश्न 4.
केन्द्रीय बैंक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में चोटी की संस्था होती है, जोकि देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढाँचे का संचालन करती है। केन्द्रीय बैंक, बैंकों का बैंक तथा सरकार का बैंक होता है। यह संस्था देश में करेन्सी का संचालन करती है तथा अन्तिम ऋणदाता माना जाता है, जोकि बैंकों तथा सरकार को आवश्यकतानुसार उधार देता है।

प्रश्न 5.
केन्द्रीय बैंक के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • करेन्सी जारी करना-केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में करेन्सी, नोट तथा सिक्के जारी करता है। मुद्रा के मूल्य को स्थिर रखने का भी प्रयत्न करता है।
  • साख नियन्त्रण-व्यापारिक बैंक उधार निर्माण करते हैं। केन्द्रीय बैंक देश में व्यापारिक बैंकों के उधार देने पर नियन्त्रण रखता है।

प्रश्न 6.
ई-बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकों के इन्टरनैट द्वारा संचालन को ई-बैंकिंग कहा जाता है।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंक के कोई चार कार्य बताओ।
अथवा
व्यापारिक बैंकों के लाभ बताओ।
उत्तर-
व्यापारिक बैंक के चार मुख्य कार्य हैं

  1. राशि जमा करना तथा उधार देना-व्यापारिक बैंकों का प्राथमिक कार्य जनता की बचतों को जमा करना तथा उस राशि को आगे व्यापारियों को उधार देना होता है। जमा राशि का कुछ हिस्सा नकद रखकर शेष राशि बैंक उधार दे देता है।
  2. एजेन्सी कार्य-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए प्रतिनिधि तौर पर बहुत-से कार्य करते हैं, जैसे कि चैक अथवा ड्राफ्ट दूसरे बैंकों से एकत्रित करना, ग्राहकों की जायदाद का ट्रस्टी दूसरे स्थानों पर पैसे भेजना, किश्तें जमा करवाना इत्यादि एजेन्सी कार्य किए जाते हैं।
  3. विकासवादी कार्य-व्यापारिक बैंक पूंजी निर्माण, उधार देना, ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए उधार देना तथा मौद्रिक नीति को लागू करने में सहयोग देता है।
  4. साधारण सेवाओं के कार्य-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को लेकर सुविधाएं, ट्रैवल्ज़ चैक, यातायात की सुविधाएं इत्यादि सेवाओं के कार्य भी करते हैं। इस प्रकार व्यापारिक बैंक लाभदायक हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय बैंक के कोई चार कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. करन्सी जारी करना-व्यापारिक बैंकों का महत्त्वपूर्ण कार्य देश में करन्सी जारी करना होता है। विश्व के सभी देशों में नोट तथा सिक्के केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी किए जाते हैं।
  2. सरकार का बैंक केन्द्रीय बैंक सरकार का बैंक होता है। सरकार की प्राप्तियां केन्द्रीय बैंक में जमा करवाई जा सकती हैं। यह बैंक सरकार के सभी भुगतान भी करता है। जब सरकार को मुद्रा का संकट सहन करना पडता है तो अल्पकालीन ऋण की सुविधा केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रदान की जाती है।
  3. बैंकों का बैंक-केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों का बैंक भी होता है। व्यापारिक बैंकों को आवश्यक तौर पर जमा खाते की निश्चित प्रतिशत राशि केन्द्रीय बैंक के पास प्रतिभूतियां प्राप्त करके रखनी पड़ती है। जब किसी समय व्यापारिक बैंक को मुश्किल का सामना करना पड़ता है तो केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को अल्पकालीन उधार की सुविधा प्रदान करता है।
  4. उधार नियन्त्रण-केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य उधार नियन्त्रण करना होता है। देश में उधार मुद्रा के प्रसार तथा संकुचन के लिए केन्द्रीय बैंक द्वारा नीति बनाई जाती है। इससे देश में आर्थिक स्थिरता का उद्देश्य पूरा किया जाता है।

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प्रश्न 3.
केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंकों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में अन्तर-प्रो० शेयरज़ (Seyers) ने केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में मुख्य अन्तर इस प्रकार स्पष्ट किए हैं-

अन्तर का आधार केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक
1. मालकी केन्द्रीय बैंक की मालकी तथा संचालन सरकार के अधीन होती है। व्यापारिक बैंक सरकारी अथवा निजी मालकी वाले हो सकते हैं।
2. उद्देश्य केन्द्रीय बैंक का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता। व्यापारिक बैंकों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
3. संख्या देश में केन्द्रीय बैंक एक होता है। व्यापारिक बैंकों की संख्या अधिक होती है।
4. तालमेल केन्द्रीय बैंक का जनता से सीधा तालमेल नहीं होता। व्यापारिक बैंकों का सीधा जनता से तालमेल  होता है।
5. करन्सी केन्द्रीय बैंक देश की करन्सी का निर्माता तथा संचालक होता है। व्यापारिक बैंक नकद करन्सी का निर्माण नहीं करते, बल्कि उधार निर्माण करते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में हाल ही में किए गए कोई चार बैंकिंग सुधार बताओ।
उत्तर-
श्री एम० नरसिहम ने 1991 तथा 1998 में बैंकिंग सुधार करने के लिए निम्नलिखित सिफ़ारिशें की, जिनको सरकार ने तुरन्त लागू किया है।

  1. निजी क्षेत्र में व्यापारिक बैंक-निजी क्षेत्र में व्यापारिक बैंक खोलने की सिफारिश की गई। यह बैंक विदेशों में बसे भारतीयों से पूँजी प्राप्त करके आरम्भ करने के लिए कहा गया। इस समय 10 व्यापारिक बैंक निजी क्षेत्र में चल रहे हैं।
  2. आधुनिकीकरण-व्यापारिक बैंकों में कम्प्यूटर द्वारा खातों का संचालन किया जाता है। देश में कुछ बैंक जिनका कम्प्यूटर द्वारा तालमेल है, अपने ग्राहकों को देश में उस बैंक की किसी शाखा में से पैसे निकलवाने अथवा जमा करवाने की सुविधा प्रदान करते हैं।
  3. व्यापारिक बैंकों की निगरानी-प्रतिभूतियों के घोटाले के पश्चात् केन्द्रीय बैंक ने व्यापारिक बैंकों की निगरानी के लिए एक अलग विभाग स्थापित किया है, जो व्यापारिक बैंकों के ग़लत लेन-देन पर रोक लगाता
  4. वास्तविक स्वायत्तता-व्यापारिक बैंकों के संचालन के लिए वास्तविक स्वायत्तता के लिए विचार कर रहा है। इससे व्यापारिक बैंक अन्य कार्य सुचारु ढंग से कर सकेंगे।

V. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ? व्या शरिक बैंकों के मुख्य कार्य बताओ।
(What is meant by Commercial Banks ? Discuss the main functions of Commercial Banks.)
उत्तर-
व्यापारिक बैंक का अर्थ (Meaning of Commercial Bank) व्यापारिक बैंक वह बैंक है जोकि लाभ कमाने के उद्देश्य के साथ जनता से जमा राशि प्राप्त करते हैं तथा उधार देते हैं। व्यापारिक बैंक एक व्यावसायिक संस्था है जोकि उधार मुद्रा का लेन-देन करती है। प्रो० रीड तथा गिल के अनुसार, ‘पारिक बैंक ऐसी वित्तीय संस्था होती है, जोकि मांग जमा स्वीकार करती है तथा व्यापारिक उधार देती है।” (“A Commercial ial Bank is a financial institution that accepts demand deposits and makes Commercial Leas.” . Keed and

व्यापारिक बैंकों के मुख्य कार्य (Main Functions of Commercial Banks) – स्यापारिक बैंकों के मुख्य कार्य निम्नलिखित अनुसार हैं –
1. जमा राशि प्राप्त करना (Accepting Deposits)- व्यापारिक बैंक ने मोह जना शि प्राप्त करते हैं। यह लोगों की बचतों को एकत्रित करते हैं। इस उद्देश्य के लिए व्यापारिक कलीन प्रकार के खाने बोलते हैं ।

  • चालू जमा खाता (Current Deposit Account) – चाल जाने में जमा राशि को माँग जमा कहा जाता है। इस खाते में से राशि किसी भी समय वैक हार मालवाई जा सकती है परे खाते पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता, बल्कि चालू खाते के प्रबन्ध सम्बन्धी व्यय व्यापारियो साप्त किया जाता है। यह खाते व्यापारिक उद्देश्य के लिए खोले जाते हैं।
  • निश्चितकालीन खाता (Fixed Deposit Account)-इस खाते में निश्चित समय के लिए गशि जमा करवाई जाती है। यह खाता कुछ दिनों का अथवा कुछ वर्षों का हो सकता है। इन खातों में से निश्चित समय के पश्चात् राशि निकलवाई जा सकती है। इस खाते में जमा राशि पर ब्याज की दर साधारण तौर पर अधिक होती है।
  • बचत जमा खाता (Saving Deposit Account)-यह खाते बचतों को एकत्रित करने के लिए खोले जाते हैं। इन खातों में चालू जमा खाते तथा निश्चितकालीन खाते की विशेषताएं होती हैं। इन खातों में से जब मर्जी हो राशि निकलवाई जा सकती है तथा इन खातों पर ब्याज भी दिया जाता है, परन्तु ब्याज की दर निश्चितकालीन खाते से कम होती है।

2. उधार देना (Giving Loans)-व्यापारिक बैंकों में जो राशि जमा हो जाती है, उसको बेकार नहीं रखते, बल्कि इसका कुछ भाग नकदी के रूप में रखकर शेष राशि उधार दे देते हैं। बैंकों द्वारा अग्रलिखित प्रकार के ऋण दिए जाते हैं-

  • नकद उधार (Cash Credit)-नकद रूप में उधार देने वाले उधार लेने वाले ग्राहक की उधार सीमा निश्चित की जाती है। उधार सीमा निश्चित करते समय उधार लेने वाले के भण्डार, सम्पत्ति इत्यादि गिरवी रखकर उधार दिया जाता है। इसमें से जितनी राशि उधार ली जाती है, उस राशि का ब्याज प्राप्त किया जाता है।
  • माँग उधार (Demand Credit)-माँग उधार वह उधार होता है जो कि माँगना तथा वापिस करना आवश्यक होता है। उधार की सभी राशि, उधार लेने वाले के खाते में जमा की जाती है। इसलिए सभी राशि पर ही ब्याज प्राप्त किया जाता है। यह उधार प्रतिभूतियों के दलालों अथवा उन लोगों द्वारा लिया जाता है, जिनकी दिन प्रतिदिन आवश्यकताओं में परिवर्तन होता रहता है।
  • अल्पकाल ऋण (Short Term Loans) अल्पकालीन ऋण साधारण तौर पर निजी ऋण के रूप में होते हैं। यह ऋण कार्यशील पूँजी के लिए दिए जाते हैं। यह ऋण जमानत रखकर दिए जाते हैं। ऐसे ऋण उधार लेने वाले के खाते में जमा किए जाते हैं तथा सारी राशि पर ब्याज़ लगता है। यह ऋण किश्तों में

अथवा एक बार ही वापिस किया जा सकता है।

अन्य कार्य अथवा सुविधाएं (Other Functions or Facilities)-ऊपर दिए दो प्राथमिक कार्यों (Primary Functions) के बिना व्यापारिक बैंकों द्वारा ग्राहकों को कुछ अन्य सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। व्यापारिक बैंकों के यह अन्य कार्य इस प्रकार हैं –

3. ओवर ड्राफ्ट (Over Draft)-बैंकों में चालू खाता रखने वाले ग्राहक बैंक से किए समझौते अनुसार जमा राशि से अधिक राशि निकलवाने की आज्ञा भी लेते हैं। इसको ओवर ड्राफ्ट कहा जाता है, जैसे कि एक व्यापारी के बैंक में ₹ 10 लाख जमा हैं, वह व्यापारी ₹ 15 लाख की राशि निकाल लेता है तो ₹5 लाख को ओवर ड्राफ्ट कहा जाएगा।

4. विनिमय बिलों की कटौती (Discounting Bills of Exchange)-विनिमय बिल एक लिखित होता है, जोकि वस्तुएं प्राप्त करने वाला वस्तुओं के मालिक को लिखकर देता है कि उन वस्तुओं की राशि, कुछ समय पश्चात् दे देगा। उदाहरणस्वरूप X मनुष्य ने Y मनुष्य से वस्तुएं खरीदी परन्तु उसका तुरन्त भुगतान नहीं कर सकता।

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वह मनुष्य Y मनुष्य को विनिमय बिल दे देता है जिसमें वापसी की राशि तथा समय लिखा होता है। यदि Y मनुष्य को पैसे की आवश्यकता पड़ जाती है तो यह मनुष्य बैंक के पास कटौती के लिए विनिमय बिल पेश करता है। बैंक कुछ कमीशन काटकर शेष की राशि Y मनुष्य को दे देता है। जब विनिमय बिल का समय पूरा हो जाता है तो बैंक X मनुष्य से राशि प्राप्त कर लेता है। विनिमय बिलों को हुंडी भी कहा जाता है।

5. बैंक के एजेन्ट के रूप में कार्य (Agency Functions of the Bank)-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए कई तरह से एजेन्ट के रूप में कार्य करता है।

  • मुद्रा का हस्तांतरण (Transfer of Funds)-व्यापारिक बैंक मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने का कार्य भी करते हैं।
  • विभिन्न मदों का एकत्रीकरण तथा भुगतान (Collection and Payment of various Items) बैंक ग्राहकों के लिए फण्ड एकत्रित करते हैं जोकि चैक, ड्राफ्ट, हुंडी इत्यादि के रूप में होते हैं तथा किश्तों का भुगतान भी किया जाता है।
  • भागीदारियों तथा प्रतिभूतियों की खरीद-बेच (Purchase and sale of shares and securities) बैंक भागीदारियों तथा प्रतिभूतियों की खरीद बेच का कार्य भी करते हैं तथा इनको सम्भाल कर रखते हैं।
  • विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच (Purchase and Sale of Foreign Exchange)-बैंक विदेशी मुद्रा की खरीद बेच भी करते हैं। इससे ग्राहकों को सुविधा मिलती है।
  • ट्रस्टी तथा प्रबन्धक (Trustee and Executor) ग्राहकों के निवेदन पर बैंक उनकी जायदाद के ट्रस्टी तथा प्रबन्धक का कार्य भी करते हैं।
  • सन्दर्भ पत्र (Letter of Reference)-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति की सूचना दूसरे व्यापारियों को देते हैं।

6. साधारण उपयोगिता की सेवाएं (General Utility Services)-व्यापारिक बैंक कुछ साधारण उपयोगिताओं की सेवाएं भी प्रदान करते हैं।

  • लॉकर की सुविधाएं (Locker Facilities)-बैंक द्वारा लॉकर की सुविधा दी जाती है, जिसमें ग्राहक कीमती सामान रखते हैं।
  • विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच (Purchase and Sale of Foreign Exchange)-बैंकों द्वारा विदेशी व्यापार के विकास के लिए विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच भी की जाती है।
  • यात्री चैक तथा गिफ्ट चैक (Traveller’s cheques and Gift cheques)-बैंकों द्वारा यात्री चैक तथा गिफ्ट चैक की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • वस्तुओं के यातायात की सहायता (Help in Transport of Goods) वस्तुएं भेजने के लिए व्यापारी, ग्राहकों को माल भेजकर बिलटी बैंक को भेज देते हैं। ग्राहक पैसे देकर बिलटी ले लेते हैं तथा माल प्राप्त करते हैं।
  • नए शेयरों के अनबिकाऊ भाग को खरीदना (Under writing)-नए अनबिकाऊ शेयरों को खरीदने का बैंक विश्वास देते हैं।
  • आय कर की वसूली (Income Tax Receipt)-ग्राहकों से आय कर प्राप्त करके सरकारी खज़ाने में जमा करवाते हैं।

7. उधार निर्माण (Credit Creation)-व्यापारिक बैंक जमा राशि की सहायता से कई गुणा अधिक उधार निर्माण करते हैं। यदि बैंक में ₹ 100 करोड़ की राशि जमा है तथा केन्द्रीय बैंक ने नकद रिज़र्व अनुपात (CRR) 10% निश्चित की है तो उधार गुणक = \(\frac{1}{\mathrm{CRR}}=\frac{1}{10 / 100}=\frac{1 \times 100}{10}\) = 10 होगा अर्थात् ₹ 100 करोड़ से बैंक 10 गुणा अर्थात् ₹ 1000 करोड़ का उधार निर्माण कर सकते हैं।

8. आर्थिक विकास के कार्य (Role of Banks in Economic Development)-व्यापारिक बैंक पूंजी निर्माण, निवेश तथा रोजगार में वृद्धि, ग्रामीण विकास तथा मौद्रिक नीति का संचालन करके आर्थिक विकास में सहायता करते हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय बैंक को परिभाषित करो। केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्य बताओ।
(Define a Central Bank. Explain main functions of a Central Bank.)
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक का अर्थ (Meaning of Central Bank)-केन्द्रीय बैंक देश की सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है, जोकि मौद्रिक प्रणाली का संचालन करता है। यह बैंकिंग प्रणाली को नियन्त्रण में रखकर आर्थिक विकास के लिए उपाय करता है। प्रो० डीकाक के शब्दों में, “केन्द्रीय बैंक ऐसा बैंक है, जो कि देश में मौद्रिक तथा बैंकिंग ढाँचे की चोटी कहा जा सकता है।” (“A Central Bank is the Bank which constitutes the apex of the monetary and banking structure.”-Dekock) प्रो० सैम्यूलसन अनुसार प्रत्येक केन्द्रीय बैंक का एक प्रमुख कार्य है। यह अर्थव्यवस्था, मुद्रा की पूर्ति तथा साख मुद्रा पर नियन्त्रण का कार्य करता है। यह अन्तिम ऋणदाता होता है।

केन्द्रीय बैंक के कार्य (Functions of the Central Bank) केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –
1. करन्सी जारी करना (Issuing of Currency) केन्द्रीय बैंक को करन्सी जारी करने का अधिकार होता है, जो नोट तथा सिक्के केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं। विश्व के सभी देशों में करन्सी छापने का एकाधिकार केन्द्रीय बैंक के पास होता है। भारत में एक रुपये के नोट वित्त मन्त्रालय द्वारा जारी किए जाते हैं, जबकि शेष सभी नोट तथा सिक्के देश का केन्द्रीय बैंक (रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया) जारी करता है।

2. सरकार का बैंक (Banker to the Government)-साधारण तौर पर केन्द्रीय बैंक, केन्द्र तथा राज्य सरकारों को व्यापारिक बैंकों वाली सुविधाएं प्रदान करता है। केन्द्र तथा राज्य सरकारों की मुद्रा लेने देने का कार्य केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर सरकार को अल्पकालीन ऋण की सुविधा भी प्रदान करता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक सभी देशों की सरकारों के बैंकर, एजेन्ट तथा सलाहकार के रूप में कार्य करते हैं।

3. बैंकों का बैंक (Banker’s Bank) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होता है। सभी व्यापारिक बैंकों को कानूनी तौर पर जमा खाते में राशि का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास रखना पड़ता है। इसका मुख्य कारण है कि केन्द्रीय बैंक को व्यापारिक बैंकों की आर्थिक स्थिति का ज्ञान रहता है। देश में उधार निर्माण तथा केन्द्रीय बैंक नियन्त्रण रख सकता है। संकट समय बैंक, केन्द्रीय बैंक से उधार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती तथा दृढ़ता प्रदान करने में सहायक होता है।

4. अन्तिम ऋणदाता (Lender of the Last Resort) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का भी बैंक होता है। व्यापारिक बैंक अपनी अधिक जमा राशि केन्द्रीय बैंक के पास जमा करवाते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर केन्द्रीय बैंक से उधार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली को मज़बूती प्रदान करता है तथा इसको अन्तिम ऋणदाता कहा जाता है। सदस्य बैंकों के गिरवी योग्य बिलों की कटौती करके व्यापारिक बैंकों को अस्थाई वित्तीय सहायता दी जाती है।

5. बैंकों का निरीक्षण (Supervision of Banks) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होने के कारण बैंकिंग प्रणाली का संचालन तथा निरीक्षण करता है। नए बैंकों को लाइसैंस देना, बैंकों की ब्रांचों में विस्तार करने की आज्ञा देना, व्यापारिक बैंकों में परिस्थापन (Liquidation) तथा दूसरे बैंक में एक बैंक का मिलन (Merger) इत्यादि कार्य केन्द्रीय बैंक द्वारा किए जाते हैं।

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6. देश के विदेशी मुद्रा कोष का रक्षक (Custodian of the Foreign exchange reserves of the country)-केन्द्रीय बैंक का महत्त्वपूर्ण कार्य देश के विदेशी मुद्रा कोष की रक्षा करना होता है। देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में स्थिर रखने के लिए केन्द्रीय बैंक सोने तथा विदेशी मुद्रा के भण्डार को
अधिक मात्रा में संचय करके रखता है। इससे भुगतान सन्तुलन को अनुकूल बनाने में सहायता मिलती है।

7. समयशोधन गृह का कार्य (Clearing House Functions)-बैंकों द्वारा दूसरे बैंकों के ग्राहकों के चैक प्राप्त होते हैं तथा दूसरे बैंकों के पास इस बैंक के ग्राहकों के चैक होते हैं। यदि बैंक एक-दूसरे से प्रत्येक चैक का लेन-देन करेंगे तो बहुत समय चाहिए। केन्द्रीय बैंक इस समस्या के हल के लिए समयशोधन गृह के रूप में कार्य करता है। केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रत्येक बैंक का खाता होता है। इसमें प्रत्येक बैंक के प्रतिनिधि प्रतिदिन चैक एक-दूसरे के खातों में जमा करवा देते हैं। इसी तरह नकदी की मांग बहुत कम हो जाती है।

8. साख मुद्रा पर नियन्त्रण (Control over Credit)-वर्तमान युग में केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य उधार मुद्रा पर नियन्त्रण होता है। देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तथा विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उधार मुद्रा का विस्तार तथा संकुचन किया जाता है। इससे देश की कीमत स्तर, रोज़गार, मुद्रा-स्फीति, आय का समान विभाजन तथा स्थिरता इत्यादि उद्देश्यों की पूर्ति होती है। इस कारण नकद मुद्रा तथा साख मुद्रा का संचालन केन्द्रीय बैंक का विशेष कार्य होता है।

9. समंकों का संग्रहण तथा प्रकाशन (Collection and Publication of Data) केन्द्रीय बैंक द्वारा आंकड़े एकत्रित करना तथा प्रकाशन का कार्य भी किया जाता है। समय-समय पर केन्द्रीय बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली, वित्तीय अवस्था, कीमतों की प्रवृत्ति, उधार निर्माण इत्यादि सम्बन्धी समंकों का संग्रहण तथा प्रकाशन करती है। इस द्वारा देश की आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है।

10. अन्य कार्य (Other Functions)-इसके बिना केन्द्रीय बैंक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (I.M.F.) तथा विश्व बैंक से तालमेल रखता है तथा अपने प्रतिनिधि भेजकर विदेशी पूंजी का प्रबन्ध करता है। देश में मुद्रा बाज़ार जिसमें अल्पकाल ऋण दिए जाते हैं, इसका संचालन करता है। कृषि विकास तथा औद्योगिक उन्नति के लिए साख सुविधाएं प्रदान करता है। पुरानी करन्सी वापिस लेकर नोट परिवर्तन का कार्य भी केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक के कार्यों को ध्यान में रखकर इसको चोटी की संस्था (Apex organisation) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में हाल ही में किए गए सुधारों का वर्णन करो। (Explain the receni significant reforms in India Banking System.)
उत्तर-
भारतीय बैंकि प्रणाली में सुधार करने के लिए श्री एम० नरसिहमह ने 17 दिसम्बर, 1991 में अपनी रिपोर्ट पेश की। उस समय के भूतपूर्व वित्त मन्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने आर्थिक नियोजन द्वारा आधुनिकीकरण (Modernisation) तथा निजीकरण (Privatisation) के उद्देश्य को पूरा करने के लिए बैंकिंग प्रणाली में सुधारों पर जोर दिया।

इसके पश्चात् भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जो सुधार किए गए हैं, उनका विवरण इस प्रकार है-
1. सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकों का विकास (Development of Banking in Public Sector)-सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकों का विस्तार किया गया। इस सम्बन्ध में 1969 में 14 बैंकों तथा 1980 में 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इसी समय सार्वजनिक क्षेत्र में 27 बैंक कार्य कर रहे हैं।

2. निजी क्षेत्र में नए बैंक (New Private Sector Banks)-निजी क्षेत्र में बैंक स्थापित करने की आज्ञा दी गई है। इसी समय 10 निजी क्षेत्र में बैंक कार्य कर रहे हैं। इन बैंकों को विदेशों में बसे भारतीयों (N.R.I.) से पूँजी एकत्रित करने की आज्ञा दी गई है। विदेशी भारतीयों से कुल निवेश पूँजी का 40% भाग एकत्रित किया जा सकता है तथा संस्थागत विदेशी संस्थाओं से 20% हिस्सा निवेश में लगवाया जा सकता है।

3. संचालन की स्वतन्त्रता (Freedom of Operation)-शैड्यूल्ड व्यापारिक बैंकों को शाखाएं खोलने की स्वतन्त्रता दी गई है तथा जो शाखाएं ठीक तरह से कार्य नहीं कर रहीं, उनको बन्द करने की आज्ञा भी प्रदान की गई है। बैंकों द्वारा दिए जाने वाले उधार सम्बन्धी भी स्वतन्त्रता दी गई है ताकि बैंकों का संचालन ठीक ढंग से हो सके।

4. क्षेत्रीय बैंक (Local Area Banks)-भारत सरकार ने 1996-97 में क्षेत्रीय बैंकों की स्थापना करने की योजना को स्वीकृति दी। यह बैंक ग्रामीण क्षेत्र के लिए विशेष करके स्थापित किए गए हैं। इन बैंकों में ग्रामीण क्षेत्र में से बचतों को उत्साहित किया जाएगा तथा जमा राशि को ग्रामीण क्षेत्र में ही निवेश किया जाएगा।

5. पूंजी बाज़ार तक पहुँच (Access to Capital Market)-केन्द्रीय सरकार ने बैंकिंग कम्पनी एक्ट में संशोधन करके राष्ट्रीयकृत बैंकों को यह अधिकार दिया है कि पूंजी बाज़ार में जाकर वह पूंजी एकत्रित कर सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए बाज़ार में जनता को भागीदारियां बेची जा सकती हैं, परन्तु इस पूँजी में केन्द्र सरकार का हिस्सा 51% से कम नहीं होना चाहिए।

6. ब्याज दर सम्बन्धी नीति (Policy regarding Interest Rate)-ब्याज दर सम्बन्धी नीति में संशोधन किया गया। प्रथम ब्याज दरों की 20 स्लैबें थीं, जोकि 1994-95 में घटाकर 2 स्लैबें की गई हैं। ब्याज तथा पूँजी उधार देने पर कोई नियन्त्रण नहीं। ₹2 लाख से अधिक उधार पूंजी तथा ब्याज की दर कम रखने के लिए कहा गया है। इससे व्यापारिक बैंक अधिक अथवा कम ब्याज की दर रख सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए जोखिम को ध्यान में रखा जाता है।

7. नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) केन्द्रीय बैंक के पास प्रतिभूतियों के रूप में व्यापारिक बैंकों को जो राशि रखनी पड़ती है, उसको नकद रिज़र्व अनुपात कहा जाता है। प्रथम नकद रिज़र्व अनुपात 10% होती थी। जनवरी 2009 में नकद रिज़र्व अनुपात घटाकर 5% किया गया है। इससे व्यापारिक बैंक अधिक उधार दे सकते हैं।

8. वैधानिक तरल अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) केन्द्रीय बैंक द्वारा वैधानिक तरल अनुपात निश्चित किया जाता, जोकि व्यापारिक बैंक को अपने पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है। 1997 से पहले कानूनी तरल अनुपात 38.5% था, जोकि घटाकर 25% किया गया है। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक अधिक उधार मुद्रा दे सकते हैं तथा व्यापरिक बैंकों की आय बढ़ सकती है।

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9. विवेकपूर्ण प्रणाली (Prudential System)-रिज़र्व बैंक ने देश में विवेकपूर्ण प्रणाली द्वारा बैंक प्रणाली में सुधार करने का प्रयत्न किया है। प्रत्येक बैंक को दिए गए उधार का वर्गीकरण स्पष्ट करना होगा, जिसमें प्रत्येक बैंक अपनी किताबों में बुरे ऋण (Bad Debt) का विवरण देगा। 1992-93 तक दिए गए ऋण में से 30% बुरे ऋण माफ़ करने तथा 1993-94 में शेष के 70 प्रतिशत बुरे ऋण माफ़ करने के लिए ₹ 10,000 करोड़ की राशि प्रदान की गई।

10. व्यापारिक बैंकों की निगरानी (Supervision-or Commercial Banks)-भारत में 1992 में प्रतिभूतियों का घोटाला (Securities Scan) हुआ, जिसमें दिसम्बर, 1993 में रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने अलग निगरानी विभाग स्थापित किया है, जोकि व्यापारिक बैंकों पर निगरानी रखता है, ताकि बैंक जमा राशि का दुरुपयोग न कर सकें। सन् 1998 में वित्त मन्त्रालयों ने श्री एम० नरसिम्हा के नेतृत्व अधीन एक कमेटी की स्थापना की ताकि बैंकिंग प्रणाली में अन्य सुधार किया जा सके।
इस कमेटी ने निम्नलिखित सिफ़ारिशें की |

11. मज़बूत बैंकिंग प्रणाली (Strong Banking System)-भारत में बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए बैंकों की विलीनता (Merger) का सुझाव दिया ताकि देश में बैंक अधिक कुशलता से कार्य कर सकें। 200405 में वित्त मन्त्री पी. चिदम्बरम ने भी इस सुझाव से सहमति प्रकट की है। इससे बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

12. स्थानीय बैंक (Local Banks)-नरसिम्हा कमेटी ने यह सुझाव दिया है कि स्थानीय छोटे बैंक स्थापित किए जाएं ताकि स्थानीय कृषि, छोटे पैमाने के उद्योगों तथा व्यापारियों की आवश्यकता को पूरा किया जा सके।

13. बैंक नियमों सम्बन्धी पुनर्विचार (Review of Banking Laws)-बैंकिंग प्रणाली के बढ़ते योगदान को ध्यान में रखकर बैंक नियमों सम्बन्धी पुनर्विचार करने का सुझाव भी दिया गया है। इस सम्बन्धी RBI एक्ट, SBI एक्ट बैंक राष्ट्रीयकरण सम्बन्धी एक्ट में संशोधन करने की आवश्यकता है।

14. वास्तविक स्वायत्तता (Real Autonomy)-सरकार नियन्त्रण से बैंकों को स्वायत्तता प्राप्त नहीं होती। बैंक के संचालक बोर्ड को वास्तविक स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए।

15. ऋण वसूली (Recovery of Debt)-सरकार ने ऋण वसूली सम्बन्धी 6 विशेष वसूली ट्रिब्यूनल स्थापित किए हैं जोकि बैंगलौर, चेन्नई, कलकत्ता (कोलकाता), नई दिल्ली, जयपुर तथा अहमदाबाद में स्थित हैं। बुरे ऋण की माफ़ी के लिए यह ट्रिब्यूनल सिफ़ारिशें देते हैं।

प्रश्न 4.
आधुनिक बैंकिंग/e-बैंकिंग द्वारा प्राप्त मुख्य सहूलियतों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly main facilities provided by Modern Banking/e-Banking.)
उत्तर-
इन्टरनैट ने समूह विश्व को एक गाँव अथवा शहर का रूप दे दिया है। इसकी सहायता से विश्व की बैंकिंग प्रणाली e-बैंकिंग का रूप धारण कर गई है। विकसित देशों की बैंकिंग प्रणाली का प्रभाव भारत की बैंकिंग प्रणाली पर भी नज़र आ रहा है। भारत की बैंक प्रणाली में इतना सुधार हुआ है कि इसका बहुपक्षीय प्रभाव पड़ा है।

आधुनिक बैंकिंग अथवा e-बैंकिंग द्वारा बहुत-सी सहूलियतें प्रदान की जाती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है –
1. बैंकिंग सेवाओं का कम्प्यूटरीकरण (Computerization of Banking Services)-बैंकिंग प्रणाली का भारत में भी कम्प्यूटरीकरण हो गया है। इससे बैंकों में कार्य करने वाले कर्मचारियों की संख्या में बहुत कमी हो गई है। अब कम गिनती में कर्मचारी कम्प्यूटर की सहायता से सभी काम-काज आसानी से कर लेते हैं। कम्प्यूटरीकरण से सभी खाताधारकों का हिसाब-किताब, ब्याज की गणना शुद्ध और ठीक की जाती है जिसमें गलती की सम्भावना नहीं होती।

2. बैंकिंग आन लाइन (Banking On Line) कम्प्यूटर की सहायता से बैंकिंग आन लाइन की सुविधा प्रदान की जाती है। अब ग्राहक को बैंक में जा कर लेन-देन करने की ज़रूरत नहीं पड़ती बल्कि प्रत्येक बैंक की एक वैबसाइट होती है जिसको खाताधारक खोल कर अपने खाते की जानकारी घर बैठे ही प्राप्त कर सकता है। घर बैठे ही वह बहुत से भुगतान कर सकता है जैसे कि बिजली का बिल, पानी, सीवरेज, टेलीफोन का बिल, घर पर लिए गए ऋण की किश्त, कार की किश्त अथवा और किसी किस्म का भुगतान कर सकता है। इससे न केवल समय की बचत होती है बल्कि लोगों को भौतिक रूप में किसी दफ्तर अथवा बैंक में जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

3. ए.टी.एम. सुविधा (ATM Facility)-ए.टी.एम. (Automatic Teller Machine) की सुविधा ने लोगों के जीवन को और आसान बना दिया है। पहले लोगों को बैंक में निजी रूप में जाकर पैसे का लेन-देन करना पड़ता था। परन्तु ए.टी.एम. की सहायता से किसी भी समय खाताधारक अपने खाते की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकता है। खाताधारक के खाते में शेष कितने पैसे हैं, उनमें से वह कितने पैसे प्राप्त करना चाहता है अथवा खाते में पैसे डालना चाहता है यह सभी कार्य ए.टी.एम. की सहायता से संभव हो गये हैं। यह सुविधा लोगों में प्रिय हो रही है। अब कोई व्यक्ति अपने साथ स्थानीय अथवा दूसरे शहरों में यात्रा के समय नकद पैसे लेकर नहीं चलता बल्कि ज़रूरत के अनुसार किसी भी शहर में पैसे निकलवा सकता है। ए.टी.एम. को डैबिट कार्ड (Debit Card) भी कहते हैं।

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4. आर.टी.जी.एस. सुविधा (RTGS Facility)-आर.टी.जी.एस. (Real Time Gross Settlement) की सुविधा भी e-बैंकिंग द्वारा प्रदान की जाती है। इस सुविधा में कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति अथवा फर्म को भुगतान करना चाहता है तो ड्राफ्ट, चैक अथवा नकद पैसे भेजने की आवश्यकता नहीं है बल्कि जिस व्यक्ति को भुगतान करना चाहता है जो कि देश में किसी स्थान पर रहता है तो उससे उस व्यक्ति अथवा फर्म का खाता क्रमांक और बैंक का कोड नंबर पूछ कर उसमें आर.टी.जी.एस. द्वारा पैसों का भुगतान कर सकता है। इससे बहुत ही कम समय में उस व्यक्ति अथवा फर्म के खाते में पैसे पहुँच जाते हैं और इसमें खर्च भी बहुत कम आता है।

5. मोबाइल सूचना सुविधा (Mobile Information Facility)-आधुनिक e-बैंकिंग द्वारा खाताधारक को मोबाइल पर उसके खाते के लेन-देन की प्रत्येक सुविधा प्रदान की जाती है। इस सुविधा में जब भी कोई खाताधारक अपने खाते में पैसे जमा करवाता है अथवा कोई व्यक्ति उसके खाते में पैसे भेजता है अथवा उस खाते में से किसी व्यक्ति को भुगतान किया जाता है, इसकी सूचना खाताधारक को मोबाइल पर सन्देश के रूप में प्राप्त हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति धोखे से खाताधारक के खाते से पैसे निकलवा लेता है तो इसकी सूचना मोबाइल पर प्राप्त होते ही वह व्यक्ति अपने बैंक को सूचित कर सकता है।

6. डैबिट कार्ड द्वारा भुगतान (Payment with Debit Card) अब किसी काम के लिए व्यक्तियों को नकद पैसे ले जाने की ज़रूरत नहीं बल्कि किसी भी वस्तु की खरीद का भुगतान डैबिट कार्ड द्वारा किया जा सकता है। डैबिट कार्ड द्वारा किसी भी वस्तु का भुगतान इलैक्ट्रिक मशीन द्वारा फौरन दुकानदार के खाते में पहुँच जाता है। इस द्वारा बाज़ार में वस्तुओं और सेवाओं की माँग में वृद्धि हुई है।

7. क्रैडिट कार्ड सुविधा (Credit Card Facility)-आधुनिक बैंकों अथवा e-बैंकिंग द्वारा क्रेडिट कार्ड की सुविधा भी प्रदान की जाती है। बैंक अपने खाताधारकों को उधार सुविधा भी प्रदान करते हैं। इन कार्डों पर ऋण पर वस्तुएं खरीदने की भिन्न-भिन्न शक्ति होती है। इनमें साधारण क्रैडिट कार्ड, सिलवर क्रैडिट कार्ड, गोल्ड क्रैडिट कार्ड पर उधार लेने की भिन्न-भिन्न शक्ति होती है। उधार की गई खरीददारी का भुगतान बैंक को बिना ब्याज 40 दिन के भीतर करना

अनिवार्य होता है अथवा उसके पश्चात् बैंक उस व्यक्ति पर उच्च ब्याज की दर प्राप्त करता है। क्रैडिट कार्ड पर की गई खरीददारी पर बैंक 2% कमीशन लेता है। क्रैडिट कार्ड के धारक की ऋण इतिहास (Credit History) देख कर ही क्रेडिट कार्ड की सीमा में वृद्धि अथवा कमी की जाती है। विश्व में क्रेडिट कार्ड का प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है। इससे व्यापार में बहत वृद्धि होती है।

8. ऋण सुविधाएं (Loan Facilities)-आधुनिक बैंकों द्वारा लोगों को देने वाला ऋण बहुत से कार्यों के लिए दिया जाता है। लोगों को कार, घर अथवा और किसी काम में निवेश करना हो तो बैंक अनेक कार्यों के लिए ऋण देता है। इससे लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होती है। अब लोग आसानी से ऋण लेकर कार, घर अथवा व्यापार में निवेश कर सकते हैं। विद्यार्थियों के लिए भी बैंकों द्वारा शिक्षा के लिए ऋण दिया जाता है। भविष्य में आधुनिक बैंकिंग/e-बैंकिंग द्वारा लोगों को अधिक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। इससे लोगों की व्यापार करने की शक्ति में वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 5.
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया के मुख्य कार्य बताएं। (Discuss the main functions of Reserve Bank of India.)
उत्तर-
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया भारत का केंद्रीय बैंक है। यह देश में मुद्रा का संचालन करता है तथा व्यापारिक बैकों पर नियंत्रण रखता है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 में हुई थी। रिज़र्व बैंक देश के आर्थिक विकास से संबंधित निर्णय लेता है। इसके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-
1. मौद्रिक नीति का निर्माण (Formulation of Monetary Policy)-आर०बी०आई० देश में मौद्रिक नीति का निर्माण करता है। इस नीति के संचालन तथा बदलाव सम्बन्धी सभी निर्णय केंद्रीय बैंक द्वारा लिए जाते हैं।

2. करंसी का प्रकाशन (Issue of Currency)-रिज़र्व बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य करंसी को छाप कर देश में प्रचलित करना होता है। जब करंसी चलने योग्य नहीं रहती तो उसके स्थान पर नई करंसी को छाप कर देश में चलाया जाता है।

3. बैंकों का बैंक (Bankers Bank)-भारत में रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होता है। यह व्यापारिक बैंकों की अधिक जमा रकम को अपने पास जमा करता है और जरूरत पड़ने पर बैंकों को उधार भी देता है। व्यापारिक बैंकों का मुख्य कार्य उधार निर्माण (Credit Creation) द्वारा लाभ प्राप्त करना होता है। इसलिए केंद्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों के उधार निर्माण के लिए नकद राखवीं अनुपात (Cash Reserve Ratio), रैपो रेट (Rapo-Rate) और खुले बाजार की नीति (Open Market Operation) द्वारा उधार पर नियंत्रण रखता है।

4. वित्त प्रणाली की देखभाल (Supervision of Financial System) देश में वित्त प्रणाली की निगरानी करना भी रिज़र्व बैंक का ही कार्य है। इस प्रकार देश में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि का यत्न किया जाता है।

5. सरकार का बैंक (Bank of the Government)-सरकार के वित्तीय निर्णय केंद्रीय बैंक द्वारा ही लिए जाते हैं। सरकार की आय को एकत्रित करना, व्यय करना, उधार देना आदि मुख्य कार्य रिज़र्व बैंक ही करता है।

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6. विदेशी पूंजी का संचालक (Controller of Foreign Exchange)-विदेशी पूँजी का संचालन भी – रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है। विदेशों से जो मुद्रा प्राप्त होती है उसको रिज़र्व बैंक में ही रखा जाता है। विदेशों को विदेशी मुद्रा के रूप में भुगतान भी रिज़र्व बैंक ही करता है।

प्रश्न 6.
रिज़र्व बैंक उधार नियंत्रण कैसे करता है ? (How Does Reserve Bank Control Credit ?)
उत्तर-
रिज़र्व बैंक देश में उधार नियंत्रण करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतू निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग किया जाता है।
1. रैपो रेट (Rapo-Rate)-रैपो रेट वह ब्याज की दर है जो कि व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय प्राप्त की जाती है। जब रैपों रेट कम किया जाता है तो व्यापारिक बैंक भी उधार देने के लिए ब्याज की दर कम कर देते हैं। इससे उधार का प्रसार होता है। यदि रिज़र्व बैंक यह चाहता है कि उधार निर्माण कम हो तो रैपो रेट बढ़ा दिया जाता है। इससे व्यापारिक बैंक भी ब्याज की दर बढ़ा देते हैं और निवेशक कम उधार लेना शुरू कर देते हैं। 27 मार्च, 2020 को रेपो रेट 4.4% था। परन्तु करोना बिमारी फैलने के बाद 17 अप्रैल को रैपो रेट और घटा कर 4% की गई ताकि निवेशक अधिक निवेश करें। यह कम अवधि के लिए होता है। 6 फरवरी, 2021 को मौद्रिक नीति में रैपो रेट 4% ही रखी गई है।

2. रिवर्स रेपो रेट (Reverse Rapo Rate)-जब व्यापारिक बैंक अपना अधिक धन रिज़र्व बैंक के पास रखते हो तो जो ब्याज की दर रिज़र्व बैंक जमा रकम पर देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। व्यापारिक बैंक अधिक उधार बाज़ार में देने के स्थान पर रिज़र्व बैंक को देते हैं क्योंकि वहां धन सुरक्षित होता है। यह भी कम अवधि के लिए होता है। 6 फरवरी, 2021 को मौद्रिक नीति की घोषणा में रिवर्स रेपो रेट 3.35% रखी गई है।

3. सट्रैचुटरी लिकुअड़ रेशो (Stratutory Liquid Ratio)-व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का कुछ भाग तरल रूप सोना, चांदी, नकद और प्रतिभूतियों के रूप में भी रखना होता है, जिसको S.L.R. कहा जाता है। यदि रिज़र्व बैंक SLR में वृद्धि कर देता है तो व्यापारिक बैंकों की उधार शक्ति कम हो जाती है।

4. बैंक दर (Bank Rate)-इसको बट्टा दर (Discount Rate) भी कहा जाता है। यदि व्यापारिक बैंकों को दीर्घकाल के लिए धन की आवश्यकता होती है तो अपनी पहले दर्जे की प्रतिभूतियों को रिज़र्व बैंक के पास गिर्वी रखकर उधार ले सकते हैं। जो ब्याज की दर दीर्घकाल उधार पर ली जाती है उस को बैंक दर कहा जाता है। यदि रिज़र्व बैंक यह चाहता है कि उधार कम प्रचलन हो तो बैंक दर बढ़ा दी जाती है। यदि बैंक दर कम की जाती है तो इससे उधार निर्माण अधिक होता है।

5. नकद राखवी अनुपात (Cash Reserve Ratio) व्यापारिक बैंकों के पास जो बचत जमा होती है उस का एक निश्चित भाग रिज़र्व बैंक के पास नकदी के रूप में रखना ज़रूरी होता है। जिसको नकद राखवीं अनुपात (C.R.R.) कहते हैं। यदि रिज़र्व बैंक उधार निर्माण अधिक करना चाहता है तो नकद राखवीं अनुपात कम कर दी जाती है इससे बैकों के पास अधिक नकदी पहुंच जाती है और अधिक उधार निर्माण होता है।

6. तरल अनुकूलता सहूलत (Liquid Adjustment Facility)-यह विधि 2000 से प्रचलित की गई है। इस विधि के अनुसार रिज़र्व बैंक 5 करोड़ या 5 करोड़ की दर से 10, 15, 20, 25 करोड़ रुपए उधार दे सकता है। यदि बैंक को अचानक नकदी की ज़रूरत होती है। जोकि 15 दिन की सीमित होती है तो तरल अनुकूलता की विधि का प्रयोग किया जाता है।

7. खुले बाज़ार की नीति (Open Market Operation)-जब देश में उधार को नियंत्रण करना होता है तो रिज़र्व बैंक खुले बाजार की नीति का प्रयोग करता है। इस नीति के अनुसार जब बाज़ार में धन अधिक हो जाता है तो रिज़र्व बैंक अपनी प्रतिभूतियाँ खुले बाजार में बेचना शुरू कर देता है। जिस पर अच्छा ब्याज दिया जाता है। लोग रिज़र्व बैंक की प्रतिभूतियां (Securities) खरीद लेते हैं और बाज़ार में धन कम होता है। यदि उधार अधिक करना हो तो प्रतिभूतियां खरीदनी शुरू कर देता है।

8. सीमान्त ज़रूरतें (Marginal Requirements)-इस नीति के अनुसार रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों को आदेश देता है कि निश्चित वस्तुओं को गिर्वी रखकर उधार नहीं दिया जा सकता। जैसा कि गेहूँ, चावल आदि वस्तुओं को गिर्वी रख कर उधार नहीं दिया जा सकता। इस को उधार की सीमान्त शर्ते कहा जाता है।

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9. नैतिक प्रेरणा (Moral Suration)-रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर व्यापारिक बैंकों को निर्देश दिए जाते हैं और प्रेरित किया जाता है कि देश की स्थिति को देखते हुए अधिक उधार दें अथवा न दें। जब देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों को कम उधार देने की प्रेरणा देता है। यदि कोई बैंक रिज़र्व बैंक के आदेश को नहीं मानता तो प्रत्यक्ष क्रिया (Direct Action) की जाती है। जैसा कि 2019 में महाराष्ट्र में पंजाब महाराष्ट्र कोप्रेटिव बैंक पर प्रतिबन्ध लगाया गया और 2020 में यैस बैंक (Yes Bank) पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the political condition of Punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the political condition of Punjab in the beginning of 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬੜੀ ਡਾਵਾਂਡੋਲ ਸੀ । ਲੋਧੀ ਸੁਲਤਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਗਲਤ ਨੀਤੀਆਂ ਵਜੋਂ ਹਰ ਪਾਸੇ ਬਦਅਮਨੀ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਭੋਗ ਵਿਲਾਸ ਵਿੱਚ ਡੁੱਬਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਦਰਬਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜਸ਼ਨ ਮਨਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਸ਼ਨਾਂ ਵਿੱਚ ਨਾਚੀਆਂ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੀਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਸ਼ਰਾਬ ਦੇ ਦੌਰ ਚਲਦੇ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਪਰਜਾ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਦੇਣ ਲਈ ਕਿਸੇ ਕੋਲ ਸਮਾਂ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਮਚਾਰੀ ਭਿਸ਼ਟ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਸਨ ।ਹਰ ਪਾਸੇ ਰਿਸ਼ਵਤ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਸੀ । ਇੱਥੋਂ ਤਕ ਕਿ ਕਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਉਲਮਾ ਵੀ ਰਿਸ਼ਵਤ ਲੈ ਕੇ ਨਿਆਂ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਹਿੰਦੂਆਂ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਲਵਾਰ ਦੇ ਜ਼ੋਰ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਰਾਜ ਦੀ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿਵਸਥਾ ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿ ਗਈ ਸੀ । ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਠਾ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਸੁਤੰਤਰ ਹੋਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ । ਬਾਬਰ ਨੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ 1525 ਈ. ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ 21 ਅਪਰੈਲ, 1526 ਈ. ਨੂੰ ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸੁਲਤਾਨ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ ਵੰਸ਼ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
“16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਅਖਾੜਾ ਸੀ ” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“In the beginning of the 16th century, the Punjab was a cockpit of triangular struggle.” Explain.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the Triangular Struggle of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਅਖਾੜਾ (Cockpit of triangular struggle) ਸੀ । ਇਹ ਤਿਕੋਣਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਰਾਜ ਸੱਤਾ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਕਾਬਲ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਬਾਬਰ, ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸੂਬੇਦਾਰ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਵਿਚਾਲੇ ਚਲ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੁਤੰਤਰ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਨ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਵੇਖ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਜਦੋਂ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ਾਹੀ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਹਾਜ਼ਰ ਹੋਣ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਨੇ ਸੁਲਤਾਨ ਦੇ ਗੁੱਸੇ ਤੋਂ ਬਚਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਭੇਜਿਆ ।ਦਿੱਲੀ ਪੁੱਜਣ ‘ਤੇ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰਕੇ ਕੈਦਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ । ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੈਦਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਭੱਜ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਨੂੰ ਉਸ ਨਾਲ ਦਿੱਲੀ ਵਿੱਚ ਕੀਤੇ ਗਏ ਮਾੜੇ ਵਿਵਹਾਰ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ।ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ | ਬਾਬਰ ਵੀ ਇਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਸ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ। ਉਸ ਨੇ 1525-26 ਈ. ਵਿੱਚ ਨਾ ਕੇਵਲ ਪੰਜਾਬ ਸਗੋਂ ਦਿੱਲੀ ‘ਤੇ ਵੀ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ ਵੰਸ਼ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਕੌਣ ਸੀ ? ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਅਤੇ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਵਿੱਚੱਲੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (Who was Daulat Khan Lodhi ? What were the causes of struggle between Daulat Khan Lodhi and Ibrahim Lodhi ?)
ਜਾਂ
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Daulat Khan Lodhi.)
ਉੱਤਰ-
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ (ਗਵਰਨਰ) ਸੀ । ਉਹ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ 1500 ਈ. ਵਿੱਚ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਅਤੇ ਸੁਲਤਾਨ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਵਿਚਾਲੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਦੌਲਤ ਮਾਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸੁਤੰਤਰ ਸ਼ਾਸਨ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਦੇ ਯਤਨ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਉਸ ਨੇ ਆਲਮ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਜੋ ਕਿ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦਾ ਮਤਰੇਆ ਭਰਾ ਸੀ ਅਤੇ ਜੋ ਦਿੱਲੀ ਦਾ ਤਖ਼ਤ ਹਾਸਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ, ਦੇ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਜਦੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਸੰਬੰਧੀ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹੀ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਹਾਜ਼ਰ ਹੋਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਭੇਜਿਆ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਨੇ ਸੁਲਤਾਨ ਦੇ ਗੁੱਸੇ ਤੋਂ ਬਚਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਦਿੱਲੀ ਪਹੁੰਚਿਆ ਤਾਂ ਸੁਲਤਾਨ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨਾਲ ਮਾੜਾ ਵਿਹਾਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਉਹ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚੋਂ ਭੱਜਣ ਅਤੇ ਵਾਪਸ ਪੰਜਾਬ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨਾਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ਮਾੜੇ ਸਲੂਕ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ।ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਬਾਬਰ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਬਾਬਰ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ 1525 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਰਾ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਬਾਬਰ ਕੌਣ ਸੀ ? ਉਸ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਿਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਅਤੇ ਕਿੰਨੇ ਹਮਲੇ ਕੀਤੇ ? ਇਨਾਂ ਹਮਲਿਆਂ ਦੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ ।
(Who was Babar ? When and how many times did he invade Punjab ? Write briefly about these invasions.)
ਜਾਂ
ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਬਾਬਰ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਮਲਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of Babar’s invasions over Punjab.)
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਰ ਕਾਬਲ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ 1519 ਈ. ਤੋਂ 1526 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਪੰਜ ਹਮਲੇ ਕੀਤੇ । ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਪਹਿਲਾ ਹਮਲਾ 1519 ਈ. ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਬਾਬਰ ਨੇ ਭੇਰਾ ਅਤੇ ਬਾਕੌਰ ਨਾਂ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕੀਤਾ । ਬਾਬਰ ਦੇ ਵਾਪਸ ਜਾਂਦਿਆਂ ਹੀ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਮੁੜ ਇਨ੍ਹਾਂ ਇਲਾਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸੇ ਵਰ੍ਹੇ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਦੂਸਰੀ ਵਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਵਾਰੀ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕੀਤਾ | 1520 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਆਪਣੇ ਤੀਸਰੇ ਹਮਲੇ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਬਾਜੌਰ, ਭਰਾ ਅਤੇ ਸਿਆਲਕੋਟ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿੱਚ ਭਾਰੀ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕੀਤੀ ।

ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਹੋਰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਵੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । 1524 ਈ. ਵਿੱਚ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦੇ ਸੱਦੇ ‘ਤੇ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ’ਤੇ ਚੌਥੀ ਵਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਬਾਬਰ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਔਕੜ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ | ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਬਾਬਰ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੋ ਗਿਆ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਪੰਜਵੀਂ ਵਾਰ ਨਵੰਬਰ, 1525 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਬਾਬਰ ਨੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਾਬਰ ਨੇ 21 ਅਪਰੈਲ, 1526 ਈ. ਨੂੰ ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸੁਲਤਾਨ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਮੁਗਲ ਵੰਸ਼ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

ਪਸ਼ਨ 5.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ’ਤੇ ਕਦੋਂ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ? ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇਸ ਹਮਲੇ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (When did Babar invade Saidpur ? What is its importance in Sikh History ?)
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ’ਤੇ 1520 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਬਾਬਰ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਬਾਬਰ ਨੇ ਗੁੱਸੇ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮਕਾਨਾਂ ਅਤੇ ਮਹੱਲਾਂ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾ ਦਿੱਤੀ । ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਬਦਸਲੂਕੀ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜੋ ਇਸ ਸਮੇਂ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸਨ, ਨੇ ਬਾਬਰ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵੱਲੋਂ ਲੋਕਾਂ ‘ਤੇ ਕੀਤੇ ਗਏ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ‘ਬਾਬਰ ਬਾਣੀ’ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਬਾਬਰ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਵੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਉਸ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਕਿਸੇ ਸੰਤ-ਮਹਾਪੁਰਸ਼ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕੀਤਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਫੌਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਰਿਹਾਈ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ | ਬਾਬਰ ਨੇ ਆਪਣੀ ਆਤਮ-ਕਥਾ ‘ਤਜ਼ਕ-ਏ-ਬਾਬਰੀ’ ਵਿੱਚ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪਤਾ ਹੁੰਦਾ ਕਿ ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹਾ ਮਹਾਤਮਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਕਦੇ ਵੀ ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਨਾ ਕਰਦਾ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਬਾਬਰ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ ਨਿਰਦੋਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਬਾਬਰ ਅਤੇ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਵਿਚਕਾਰ ਯੁੱਧ ਕਿੱਥੇ ਤੇ ਕਿਉਂ ਹੋਇਆ ? (Why and where did the battle take place between Babar and Ibrahim Lodhi ?)
ਜਾਂ
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ‘ਤੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Give a brief account of the First Battle of Panipat.)
ਜਾਂ
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the First Battle of Panipat and its significance.)
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਨਵੰਬਰ, 1525 ਈ. ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਪੰਜਵੀਂ ਵਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਨੇ ਕੁਝ ਚਿਰ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਬਾਬਰ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਾਬਰ ਨੇ ਇੱਕ ਵਾਰ ਫਿਰ ਪੂਰੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਬਾਬਰ ਨੇ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨਾਲ ਦੋ-ਦੋ ਹੱਥ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵੱਲ ਵਧਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਤਾਂ ਉਹ ਆਪਣੇ ਨਾਲ 1 ਲੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਬਾਬਰ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਵੱਲ ਤੁਰ ਪਿਆ । ਬਾਬਰ ਅਧੀਨ ਉਸ ਸਮੇਂ ਲਗਭਗ 20 ਹਜ਼ਾਰ ਸੈਨਿਕ ਸਨ ।21 ਅਪਰੈਲ, 1526 ਈ. ਨੂੰ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ਅਤੇ ਉਹ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚੋਂ ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਖ਼ਾਤਮਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਹੁਣ ਇਹ ਮੁਗ਼ਲ ਵੰਸ਼ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੋ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਕਿਉਂ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ? (What led to the victory of Babar in the First Battle of Panipat ?)
ਜਾਂ
ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the causes of victory of Babar and defeat of the Afghans in India.)
ਉੱਤਰ-
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਲਈ ਕਈ ਕਾਰਨ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸਨ । ਦਿੱਲੀ ਦਾ ਸੁਲਤਾਨ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਆਪਣੇ ਬੁਰੇ ਵਤੀਰੇ ਅਤੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਕਾਰਨ ਆਪਣੇ ਸਰਦਾਰਾਂ ਅਤੇ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬੜਾ ਬਦਨਾਮ ਸੀ ।ਉਹ ਅਜਿਹੇ ਸ਼ਾਸਕ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਪਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵੀ ਬੜੀ ਨਿਰਬਲ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਵਧੇਰੇ ਸੈਨਿਕ ਲੁੱਟ-ਮਾਰ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਇਕੱਠੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲੜਨ ਦੇ ਢੰਗ ਪੁਰਾਣੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਯੋਜਨਾ ਦੀ ਵੀ ਘਾਟ ਸੀ । ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੇ ਪਾਨੀਪਤ ਵਿੱਚ 8 ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਬਾਬਰ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਨਾ ਕਰਕੇ ਭਾਰੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਭੁੱਲ ਕੀਤੀ । ਜੇ ਉਹ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਆ ਪ੍ਰਬੰਧ ਮਜ਼ਬੂਤ ਨਾ ਕਰਨ ਦਿੰਦਾ ਤਾਂ ਸ਼ਾਇਦ ਲੜਾਈ ਦਾ ਸਿੱਟਾ ਕੁਝ ਹੋਰ ਹੀ ਹੋਣਾ ਸੀ | ਬਾਬਰ ਇੱਕ ਯੋਗ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਕਾਫ਼ੀ ਤਜਰਬਾ ਸੀ । ਬਾਬਰ ਦੁਆਰਾ ਤੋਪਖ਼ਾਨੇ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨੇ ਭਾਰੀ ਤਬਾਹੀ ਮਚਾਈ । ਇਬਰਾਹੀਮ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਆਪਣੇ ਤੀਰ ਕਮਾਨਾਂ ਅਤੇ ਤਲਵਾਰਾਂ ਨਾਲ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ਅਤੇ ਬਾਬਰ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਮੁੱਢਲੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Model Test Paper, July 2019) (Explain the social condition of Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦੇ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the social condition of Punjab at the time of birth of Guru Nanak Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਮਾਜ ਦੋ ਮੁੱਖ ਵਰਗਾਂ-ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਅਤੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ । ਉਹ ਰਾਜ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਵਾਂਝਿਆਂ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਹਿੰਦੁਆਂ ’ਤੇ ਇੰਨੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹਿੰਦੂ ਮੁਸਲਮਾਨ ਬਣਨ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਏ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਪੁਸ਼ਾਕਾਂ ਬਹੁਤ ਕੀਮਤੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਰੇਸ਼ਮ ਅਤੇ ਮਖਮਲ ਦੀਆਂ ਬਣੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਅਤੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਪਹਿਰਾਵਾ ਬਿਲਕੁਲ ਸਾਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਸ਼ਿਕਾਰ, ਘੋੜ-ਦੌੜ, ਸ਼ਤਰੰਜ, ਨਾਚ-ਗਾਣੇ, ਸੰਗੀਤ, ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਅਤੇ ਤਾਸ਼ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the social condition of women in Punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਮਾੜੀ ਸੀ । ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦਾ ਦਰਜਾ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨਹੀਂ ਸੀ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਘਰ ਦੀ ਚਾਰਦੀਵਾਰੀ ਅੰਦਰ ਬੰਦ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਲੜਕੀਆਂ ਨੂੰ ਜੰਮਦੇ ਸਾਰ ਹੀ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਕੁੜੀਆਂ ਦਾ ਵਿਆਹ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਬਾਲ ਵਿਆਹ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਵੱਲ ਕੋਈ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਵੀ ਪੂਰੇ ਜ਼ੋਰਾਂ ‘ਤੇ ਸੀ ।ਵਿਧਵਾ ਨੂੰ ਦੁਬਾਰਾ ਵਿਆਹ ਕਰਨ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵੀ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਚੰਗੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵੱਲੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਪਾਬੰਦੀਆਂ ਲਗਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਵੇਸਵਾ ਪ੍ਰਥਾ, ਤਲਾਕ ਪ੍ਰਥਾ ਅਤੇ ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਤਰਸਯੋਗ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉੱਚ ਵਰਗ ਦੀਆਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ ਪਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬਹੁਤ ਥੋੜ੍ਹੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਕਿਹੜੀਆਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ ? (Into which classes were the Muslim society of the Punjab divided and what type of life did they lead in the beginning of the 16th century ?)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give an account of the Muslim classes of Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤਿੰਨ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ-

  • ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ – ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਅਮੀਰ, ਖ਼ਾਨ, ਸ਼ੇਖ਼, ਕਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਉਲਮਾ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕ ਬੜੇ ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਮਹੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਸਮਾਂ ਜਸ਼ਨ ਮਨਾਉਣ ਵਿੱਚ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਲਮਾ ਅਤੇ ਕਾਜ਼ੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਨੇਤਾ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਇਸਲਾਮੀ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣਾ ਸੀ ।
  • ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ – ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਵਪਾਰੀ, ਸੈਨਿਕ, ਕਿਸਾਨ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦੇ ਛੋਟੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਅੰਤਰ ਸੀ । ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਹਿੰਦੁਆਂ ਦੀ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਕਾਫ਼ੀ ਚੰਗਾ ਸੀ ।
  • ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ – ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਦਾਸ, ਕਾਮੇ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਨਿਰਬਾਹ ਲਈ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨੀ ਪੈਂਦੀ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸੁਆਮੀ ਦੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸਹਿਣ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਹਾਲਤ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? What was the condition of Muslims in the society of punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਹਨ-

1. ਸਮਾਜ ਤਿੰਨ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ, ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਅਤੇ ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
(ਉ) ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ – ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਅਮੀਰ, ਖ਼ਾਨ, ਸ਼ੇਖ਼, ਮਲਿਕ, ਇਕਤਾਦਾਰ, ਉਲਮਾ ਅਤੇ ਕਾਜ਼ੀ ਆਦਿ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕ ਬੜਾ ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਬੜੇ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਮਹੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
(ਅ) ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ-ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਸੈਨਿਕ, ਵਪਾਰੀ, ਕਿਸਾਨ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦੇ ਛੋਟੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਵਿੱਚ ਬੜਾ ਅੰਤਰ ਸੀ । ਉਹ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
(ੲ) ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ-ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਦਾਸ-ਦਾਸੀਆਂ, ਨੌਕਰ ਅਤੇ ਕਾਮੇ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੁਆਮੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਬੜੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

2. ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ – ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਚੰਗੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਹ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਪੜੀਆਂ-ਲਿਖੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਬਹੁ-ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਤਲਾਕ-ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਹੋਰ ਤਰਸਯੋਗ ਬਣਾ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ।

3. ਖਾਣ-ਪੀਣ – ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੁਆਦਲੇ ਖਾਣੇ ਖਾਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਜਸ਼ਨਾਂ ਵਿੱਚ ਮੀਟ, ਹਲਵਾ, ਪੂੜੀ ਅਤੇ ਮੱਖਣ ਆਦਿ ਦੀ ਬਹੁਤ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਖਾਣਾ ਸਾਧਾਰਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

4. ਪਹਿਰਾਵਾ – ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਪੁਸ਼ਾਕਾਂ ਬਹੁਤ ਕੀਮਤੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਪੁਸ਼ਾਕਾਂ ਰੇਸ਼ਮ ਅਤੇ ਮਖਮਲ ਦੀਆਂ ਬਣੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕ ਸੂਤੀ ਕੱਪੜੇ ਪਹਿਨਦੇ ਸਨ । ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਕੁੜਤਾ ਅਤੇ ਪਜਾਮਾ ਪਾਉਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸੀ, ਜਦ ਕਿ ਇਸਤਰੀਆਂ ਲੰਬਾ ਬੁਰਕਾ ਪਾਉਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

5. ਸਿੱਖਿਆ – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਕੰਮ ਉਲਮਾ, ਮੁੱਲਾਂ ਤੇ ਮੌਲਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਮਸਜਿਦਾਂ, ਮਕਤਬਿਆਂ ਅਤੇ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਮਸਜਿਦਾਂ ਅਤੇ ਮਕਤਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਜਦਕਿ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਉਚੇਰੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਿੱਖਿਆ ਕੇਂਦਰ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਸਨ ।

6. ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਸਾਧਨ – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਈ ਢੰਗਾਂ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਸ਼ਿਕਾਰ, ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵੇਖਣਾ, ਜਸ਼ਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣਾ ਅਤੇ ਸ਼ਤਰੰਜ ਆਦਿ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਬੜੇ ਜੋਸ਼ ਨਾਲ ਮਨਾਉਂਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the social condition of the Hindus of Punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-

  • ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ – ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਾਤਾਂ ਅਤੇ ਉਪ-ਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚਾ ਸਥਾਨ ਬਾਹਮਣਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਮੁਸਲਿਮ ਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਕਸ਼ੱਤਰੀਆਂ ਨੇ ਨਵੇਂ ਕਿੱਤੇ ਜਿਵੇਂ ਦੁਕਾਨਦਾਰੀ, ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ ਆਦਿ ਅਪਣਾ ਲਏ ਸਨ । ਵੈਸ਼ ਵਪਾਰ ਅਤੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦਾ ਹੀ ਧੰਦਾ ਕਰਦੇ ਰਹੇ । ਸ਼ੂਦਰਾਂ ਨਾਲ ਇਸ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮਾੜਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ।
  • ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ – ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਦਸ਼ਾ ਚੰਗੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਦਰਜਾ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਲੜਕੀਆਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਵੱਲ ਕੋਈ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਿਆਹ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਬੜੀ ਜ਼ੋਰਾਂ ‘ਤੇ ਸੀ । ਵਿਧਵਾ ਨੂੰ ਦੁਬਾਰਾ ਵਿਆਹ ਕਰਨ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਨਹੀਂ ਸੀ ।
  • ਖਾਣ-ਪੀਣ – ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਭੋਜਨ ਸਾਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਹਿੰਦੂ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਭੋਜਨ ਕਣਕ, ਚੌਲ, ਸਬਜ਼ੀਆਂ, ਘਿਉ ਅਤੇ ਦੁੱਧ ਆਦਿ ਤੋਂ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮਾਸ, ਲਸਣ ਅਤੇ ਪਿਆਜ਼ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਗ਼ਰੀਬ ਲੋਕ ਸਾਧਾਰਨ ਰੋਟੀ ਨਾਲ ਲੱਸੀ ਪੀ ਕੇ ਆਪਣਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
  • ਪਹਿਰਾਵਾ – ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਪਹਿਰਾਵਾ ਬੜਾ ਸਾਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਸੂਤੀ ਕੱਪੜੇ ਪਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਪੁਰਸ਼ ਧੋਤੀ ਅਤੇ ਕੁੜਤਾ ਪਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਪਗੜੀ ਵੀ ਬੰਦੇ ਸਨ । ਇਸਤਰੀਆਂ ਸਾੜ੍ਹੀ, ਚੋਲੀ ਅਤੇ ਲਹਿੰਗਾ ਪਾਉਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਗਰੀਬ ਲੋਕ ਚਾਦਰ ਨਾਲ ਹੀ ਆਪਣਾ ਸਰੀਰ ਢੱਕ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ।
  • ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਸਾਧਨ – ਹਿੰਦੂ ਨਾਚ, ਗਾਣੇ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕੀਨ ਸਨ । ਉਹ ਤਾਸ਼ ਅਤੇ ਸ਼ਤਰੰਜ ਵੀ ਖੇਡਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵੇਖ ਕੇ ਅਤੇ ਘੋਲ ਵੇਖ ਕੇ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹਿੰਦੂ ਆਪਣੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਦੁਸਹਿਰਾ, ਦੀਵਾਲੀ, ਹੋਲੀ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਵੀ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ।
  • ਸਿੱਖਿਆ – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਆਪਣੀ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਤੋਂ ਮੰਦਰਾਂ ਅਤੇ ਪਾਠਸ਼ਲਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਉਚੇਰੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਹਿੰਦੁਆਂ ਦਾ ਆਪਣਾ ਕੋਈ ਕੇਂਦਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉੱਚ ਵਰਗ ਦੇ ਹਿੰਦੂ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਉਚੇਰੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the prevalent education in the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਖ਼ਾਸ ਉੱਨਤੀ ਨਹੀਂ ਹੋਈ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਕੰਮ ਉਲਮਾ, ਮੁੱਲਾਂ ਤੇ ਮੌਲਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਮਸਜਿਦਾਂ, ਮਕਤਬਿਆਂ ਅਤੇ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਰਾਜ ਸਰਕਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਨੁਦਾਨ ਦਿੰਦੀ ਸੀ । ਮਸਜਿਦਾਂ ਅਤੇ ਮਕਤਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਜਦਕਿ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਉਚੇਰੀ । ਮਦਰੱਸੇ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਿੱਖਿਆ ਕੇਂਦਰ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜਲੰਧਰ, ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ, ਸਮਾਣਾ, ਨਾਰਨੌਲ, ਬਠਿੰਡਾ, ਸਰਹਿੰਦ, ਸਿਆਲਕੋਟ ਅਤੇ ਕਾਂਗੜਾ ਵੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਸਨ । ਹਿੰਦੂ ਲੋਕ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਤੋਂ ਮੰਦਰਾਂ ਅਤੇ ਪਾਠਸ਼ਾਲਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਉਚੇਰੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਕੋਈ ਕੇਂਦਰ ਨਹੀਂ ਸੀ | ਅਮੀਰ ਵਰਗ ਦੇ ਹਿੰਦੂ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਉਚੇਰੀ ਸਿੱਖਿਆ ਲਈ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਭੇਜ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾਂਹ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਮੁਸਲਮਾਨ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਨਫ਼ਰਤ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਕੀ ਸਨ ? (What were the means of entertainment of the people of Punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਈ ਢੰਗਾਂ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਸ਼ਿਕਾਰ ਕਰਨ, ਚੌਗਾਨ ਖੇਡਣ, ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵੇਖਣ ਅਤੇ ਘੋੜ-ਦੌੜ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕੀਨ ਸਨ । ਉਹ ਜਸ਼ਨਾਂ ਅਤੇ ਮਹਿਫਲਾਂ ਵਿੱਚ ਵੱਧ ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸੰਗੀਤਕਾਰ ਅਤੇ ਨਰਤਕੀਆਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ ਉਹ ਸ਼ਤਰੰਜ ਅਤੇ ਚੌਪੜ ਖੇਡ ਕੇ ਵੀ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਈਦ, ਨੌਰੋਜ ਅਤੇ ਸ਼ਬ-ਏ-ਬਰਾਤ ਆਦਿ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਨੂੰ ਬੜੀ ਧੂਮਧਾਮ ਨਾਲ ਮਨਾਉਂਦੇ ਸਨ । 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਨਾਚ, ਗਾਣੇ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕੀਨ ਸਨ ।ਉਹ ਤਾਸ਼ ਅਤੇ ਸ਼ਤਰੰਜ ਵੀ ਖੇਡਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵੇਖ ਕੇ ਅਤੇ ਘੋਲ ਵੇਖ ਕੇ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹਿੰਦੂ ਆਪਣੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਮਾਲੀ ਹਾਲਤ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the economic condition of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the economic condition of Punjab during the 16th century.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(Briefly mention the economic condition of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਚੰਗੀ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਲ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਜੀਵਨ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

  • ਖੇਤੀਬਾੜੀ – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਬਹੁਤ ਉਪਜਾਉ ਸੀ । ਸਿੰਜਾਈ ਲਈ ਕਿਸਾਨ ਭਾਵੇਂ ਮੁੱਖ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵਰਖਾ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇੱਥੋਂ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਫ਼ਸਲਾਂ ਕਣਕ, ਕਪਾਹ, ਜੌ, ਮੱਕੀ, ਚੌਲ ਅਤੇ ਗੰਨਾ ਸਨ । ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਭਰਪੂਰ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਅੰਨ ਭੰਡਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਦਯੋਗ – ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਦੂਜਾ ਮੁੱਖ ਧੰਦਾ ਉਦਯੋਗ ਸੀ । ਇਹ ਉਦਯੋਗ ਸਰਕਾਰੀ ਵੀ ਸਨ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਵੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਸੁਤੀ, ਊਨੀ ਅਤੇ ਰੇਸ਼ਮੀ ਤਿੰਨਾਂ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਚਮੜਾ, ਸ਼ਸਤਰ, ਭਾਂਡੇ, ਹਾਥੀ ਦੰਦ ਅਤੇ ਖਿਡੌਣੇ ਆਦਿ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਉਦਯੋਗ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ ।
  • ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ – ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕੁਝ ਲੋਕ ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਦਾ ਕਿੱਤਾ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪਾਲੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਮੁੱਖ ਪਸ਼ੂ ਗਊਆਂ, ਬਲਦ, ਮੱਝਾਂ, ਘੋੜੇ, ਖੱਚਰ, ਊਠ, ਭੇਡਾਂ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀਆਂ ਆਦਿ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਸ਼ੂਆਂ ਤੋਂ ਦੁੱਧ, ਉੱਨ ਅਤੇ ਭਾਰ ਢੋਣ ਦਾ ਕੰਮ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਵਪਾਰ – ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਵਪਾਰ ਕਾਫ਼ੀ ਵਿਕਸਿਤ ਸੀ । ਵਪਾਰ ਦਾ ਕੰਮ ਕੁਝ ਖ਼ਾਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਵਪਾਰ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ, ਈਰਾਨ, ਅਰਬ, ਸੀਰੀਆ, ਤਿੱਬਤ, ਭੂਟਾਨ ਅਤੇ ਚੀਨ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਨਾਜ, ਕੱਪੜੇ, ਕਪਾਹ, ਰੇਸ਼ਮ ਅਤੇ ਖੰਡ ਨਿਰਯਾਤ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਘੋੜੇ, ਸ਼ਸਤਰ, ਫਰ, ਕਸਤੂਰੀ ਅਤੇ ਮੇਵੇ ਆਦਿ ਆਯਾਤ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਵਪਾਰਿਕ ਨਗਰ-16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਦੋ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਨਗਰ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਇਲਾਵਾ ਪਿਸ਼ਾਵਰ, ਜਲੰਧਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਅਤੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਹੋਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਨਗਰ ਸਨ ।
  • ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ-ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਅੰਤਰ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਬਹੁਤ ਧਨ ਸੀ । ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀਆਂ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਕੋਲ ਧਨ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਸੀ ਪਰ ਮੁਸਲਮਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਹ ਧਨ ਲੁੱਟ ਕੇ ਲੈ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਸੀ ਪਰ ਹਿੰਦੁ ਆਪਣਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਬੜੀ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਬਹੁਤ ਨੀਵਾਂ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੰਬੰਧੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the agriculture of Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਬਹੁਤ ਉਪਜਾਊ ਸੀ । ਵਾਹੀ ਅਧੀਨ ਹੋਰ ਜ਼ਮੀਨ ਲਿਆਉਣ ਲਈ ਰਾਜ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕ ਵੀ ਬੜੇ ਮਿਹਨਤੀ ਸਨ । ਸਿੰਜਾਈ ਲਈ ਨਹਿਰਾਂ, ਤਲਾਬਾਂ ਅਤੇ ਖੁਹਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰ ਕੇ ਭਾਵੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਸਾਨ ਪੁਰਾਣੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਹੀ ਖੇਤੀ ਕਰਦੇ ਸਨ ਤਾਂ ਵੀ ਇੱਥੇ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਭਰਪੂਰ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਫ਼ਸਲਾਂ ਕਣਕ, ਜੌ, ਮੱਕੀ, ਚੌਲ ਅਤੇ ਗੰਨਾ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਕਪਾਹ, ਬਾਜਰਾ, ਜੁਆਰ, ਸਰੋਂ ਅਤੇ ਕਈ ਕਿਸਮਾਂ ਦੀਆਂ ਦਾਲਾਂ ਵੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਭਰਪੂਰ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਅੰਨ ਭੰਡਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the Punjab’s Industries in the beginning of the 16th century ?)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ ।
(Give an account of the main industries of Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਦੂਜਾ ਮੁੱਖ ਧੰਦਾ ਉਦਯੋਗ ਸੀ । ਇਹ ਉਦਯੋਗ ਸਰਕਾਰੀ ਸਨ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਵੀ । ਸਰਕਾਰੀ ਉਦਯੋਗ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਸਨ ਜਦ ਕਿ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੀ। ਇੱਥੇ ਸੂਤੀ, ਊਨੀ ਅਤੇ ਰੇਸ਼ਮੀ ਤਿੰਨਾਂ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ਕਿਉਂਕਿ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਰੇਸ਼ਮੀ ਕੱਪੜੇ ਦੀ ਬਹੁਤ ਮੰਗ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇਹ ਕੱਪੜਾ ਵਧੇਰੇ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸਮਾਣਾ, ਸੁਨਾਮ, ਸਰਹਿੰਦ, ਦੀਪਾਲਪੁਰ, ਜਲੰਧਰ, ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਇਸ ਉਦਯੋਗ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਸਨ । ਗੁਜਰਾਤ ਅਤੇ ਸਿਆਲਕੋਟ ਵਿੱਚ ਚਿਕਨ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਤਿਆਰ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਮੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਸ਼ੀਟ ਦੇ ਕੱਪੜਿਆਂ ਲਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਨ । ਸਿਆਲਕੋਟ ਵਿੱਚ ਧੋਤੀਆਂ, ਸਾੜੀਆਂ, ਪੱਗਾਂ ਅਤੇ ਵਧੀਆ ਕਢਾਈ ਵਾਲੀਆਂ ਲੂੰਗੀਆਂ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਕਾਂਗੜਾ ਅਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿੱਚ ਗਰਮ ਕੱਪੜੇ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਸਨ । ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਚਮੜਾ, ਸ਼ਸਤਰ, ਭਾਂਡੇ, ਹਾਥੀ ਦੰਦ ਅਤੇ ਖਿਡੌਣੇ ਆਦਿ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਉਦਯੋਗ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਵਪਾਰ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the Trade of Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਵਪਾਰ ਕਾਫ਼ੀ ਵਿਕਸਿਤ ਸੀ ।ਵਪਾਰ ਦਾ ਕੰਮ ਕੁਝ ਖ਼ਾਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀਆਂ ਜਾਤੀਆਂ ਵਪਾਰ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ |ਮਾਲ ਦੀ ਢੋਆ-ਢੁਆਈ ਦਾ ਕੰਮ ਵਣਜਾਰੇ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਵਪਾਰੀ ਚੋਰਾਂਡਾਕੂਆਂ ਦੇ ਡਰ ਕਾਰਨ ਕਾਫ਼ਲਿਆਂ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਵਿੱਚ ਚਲਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਹੁੰਡੀ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਵੀ ਰਿਵਾਜ ਸੀ । ਸ਼ਾਹੂਕਾਰ ਵਿਆਜ ਉੱਤੇ ਪੈਸਾ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਮੇਲਿਆਂ ਅਤੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਸਮੇਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮੰਡੀਆਂ ਲਗਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹੀਆਂ ਮੰਡੀਆਂ ਮੁਲਤਾਨ, ਲਾਹੌਰ, ਜਲੰਧਰ, ਦੀਪਾਲਪੁਰ, ਸਰਹਿੰਦ, ਸੁਨਾਮ ਅਤੇ ਸਮਾਣਾ ਆਦਿ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਡੀਆਂ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਆਪਣੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਖਰੀਦਦੇ ਸਨ । ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੇ ਵਪਾਰ ਲਈ ਵੀ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮੰਡੀਆਂ ਲਗਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਵਪਾਰ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ, ਈਰਾਨ, ਅਰਬ, ਸੀਰੀਆ, ਤਿੱਬਤ, ਭੂਟਾਨ ਅਤੇ ਚੀਨ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਨਾਜ, ਕੱਪੜੇ, ਕਪਾਹ, ਰੇਸ਼ਮ ਅਤੇ ਖੰਡ ਨਿਰਯਾਤ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਘੋੜੇ, ਸ਼ਸਤਰ, ਫਰ, ਕਸਤੂਰੀ ਅਤੇ ਮੇਵੇ ਆਦਿ ਆਯਾਤ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ ? (What was the living standard of people in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਇੱਕੋ ਜਿਹਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਬਹੁਤ ਧਨ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਐਸ਼ਪ੍ਰਸਤੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਬੜੇ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਮਹੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਪੁਸ਼ਾਕਾਂ ਬਹੁਤ ਕੀਮਤੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਉਹ ਵਿਭਿੰਨ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੁਆਦਲੇ ਭੋਜਨ ਖਾਂਦੇ ਸਨ | ਸੂਰਾ ਅਤੇ ਸੁੰਦਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਇੱਕ ਅਨਿੱਖੜਵਾਂ ਅੰਗ ਬਣ ਚੁੱਕਿਆ ਸੀ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰ, ਦਾਸ ਅਤੇ ਦਾਸੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀਆਂ ਉੱਚ-ਸ਼ੇਣੀਆਂ ਦੇ ਕੋਲ ਧਨ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਸੀ ਪਰ ਮੁਸਲਮਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਹ ਧਨ ਲੁੱਟ ਕੇ ਲੈ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਆਪਣਾ ਧਨ ਚੋਰੀ ਛਿਪੇ ਖ਼ਰਚ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਸੀ ਪਰ ਹਿੰਦੁਆਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਹਿੰਦੇ ਆਪਣਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਬੜੀ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਗਰੀਬਾਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਬਹੁਤ ਨੀਵਾਂ ਸੀ ।ਉਹ ਨਾ ਤਾਂ ਚੰਗੇ ਕੱਪੜੇ ਪਾ ਸਕਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਭੋਜਨ ਖਾ ਸਕਦੇ ਸਨ ।

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ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ (Political Condition)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ (16ਵੀਂ ਸ਼ਤਾਬਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ) ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । [Describe the political condition of the Punjab at the time (In the beginning of the 16th century) of Guru Nanak Dev Ji’s birth.]
ਜਾਂ
ਬਾਬਰ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਮਲਿਆਂ ਦੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੰਦੇ ਹੋਏ ਉਸ ਦੀ ਸਫਲਤਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (While describing briefly the invasions of Babur over the Punjab, explain the causes of his success.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਵਸਥਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the Political Condition of the Punjab in the beginning of 16th Century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਮਾੜੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਦਾ ਅਖਾੜਾ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਿੱਲੀ ਸਲਤਨਤ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ । ਇਸ ਉੱਤੇ ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦੇ ਸੁਲਤਾਨਾਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਸੀ । 16ਵੀਂ ਸ਼ਤਾਬਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

ਲੋਧੀਆਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਪੰਜਾਬ (The Punjab under the Lodhis)

1. ਤਤਾਰ ਖਾਂ ਲੋਧੀ (Tatar Khan Lodhi) – 1469 ਈ. ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਸੁਲਤਾਨ ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ ਨੇ ਤਤਾਰ ਖ਼ਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਉਹ ਇਸ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ 1485 ਈ. ਤਕ ਰਿਹਾ। ਉਸ ਨੇ ਬੜੀ ਸਖ਼ਤੀ ਨਾਲ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ 1485 ਈ. ਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ । 1485 ਈ. ਵਿੱਚ ਤਤਾਰ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਸੁਲਤਾਨ ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸੁਲਤਾਨ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦੇ ਨਿਜ਼ਾਮ ਖ਼ਾਂ ਨੂੰ ਤਤਾਰ ਖਾਂ ਦੇ ਵਿਦਰੋਹ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਭੇਜਿਆ । ਤਤਾਰ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨਿਜ਼ਾਮ ਖ਼ਾਂ ਨਾਲ ਲੜਦਾ ਹੋਇਆ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ।

2. ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ (Daulat Khan Lodhi) – ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਤਤਾਰ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ 1500 ਈ. ਵਿੱਚ ਨਵੇਂ ਸੁਲਤਾਨ ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਉਹ ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਤਾਂ ਪੂਰਨ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਰਿਹਾ । ਪਰ ਸੁਲਤਾਨ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸੁਤੰਤਰ ਹੋਣ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਵੇਖਣ ਲੱਗਾ। ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਉਸ ਨੇ ਆਲਮ ਖਾਂ ਲੋਧੀ, ਜੋ ਕਿ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦਾ ਚਾਚਾ ਸੀ, ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਜਦੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਸੰਬੰਧੀ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਪਤਾ ਚਲਿਆ, ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰ ਲਿਆ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਵਾਪਸ ਪੰਜਾਬ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵਿੱਚ ਉਸ ਨਾਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ਮਾੜੇ ਸਲੂਕ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ ।

3. ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ (Condition of Subject) – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਦਾ ਪਰਜਾ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸੀ | ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਮਚਾਰੀ ਕੁਸ਼ਟ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਹਰ ਪਾਸੇ ਰਿਸ਼ਵਤ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਸੀ । ਹਿੰਦੁਆਂ ‘ਤੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵੱਧ ਗਏ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਲਵਾਰ ਦੀ ਨੋਕ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਰ ਪਾਸੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ, ਫਰੇਬ, ਧੋਖਾ ਤੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਵਾਰ ਮਾਝ ਵਿੱਚ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲਿਖਿਆ ਹੈ,

ਕਲ ਕਾਤੀ ਰਾਜੇ ਕਸਾਈ ਧਰਮ ਪੰਖ ਕਰ ਉਡਰਿਆ ॥
ਕੂੜ ਅਮਾਵਸ ਸਚ ਚੰਦਰਮਾ ਦੀਸੈ ਨਾਹੀ ਕਹ ਚੜਿਆ ॥

ਬਾਬਰ ਦੇ ਹਮਲੇ (Invasions of Babur)

1519 ਈ. ਤੋਂ 1526 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ਇੱਕ ਤਿਕੋਣਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਹ ਸੰਘਰਸ਼ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ, ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਅਤੇ ਬਾਬਰ ਵਿਚਾਲੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ । ਬਾਬਰ ਦਾ ਜਨਮ ਮੱਧ ਏਸ਼ੀਆ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਫਰਗਨਾ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਅੰਦੀਜਾਨ ਵਿਖੇ 14 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1483 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉਹ ਤੈਮੁਰ ਵੰਸ਼ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦਾ ਸੀ ।

1. ਬਾਬਰ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਦੋ ਹਮਲੇ (First two Invasions of Babur) – ਬਾਬਰ ਨੇ 1519 ਈ. ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਦੋ ਵਾਰ ਹਮਲੇ ਕੀਤੇ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਹਮਲੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸੀਮਾਂਵਰਤੀ ਇਲਾਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਹੀ ਕੀਤੇ ਗਏ ਸਨ, ਇਸ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

2. ਬਾਬਰ ਦਾ ਤੀਸਰਾ ਹਮਲਾ 1520 ਈ. (Third Invasion of Babur 1520 A.D.) – ਬਾਬਰ ਨੇ 1520 ਈ. ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਤੀਸਰੀ ਵਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਸੈਦਪੁਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਨਿਰਦੋਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬੇਰਹਿਮੀ ਨਾਲ ਲੁੱਟਿਆ ਗਿਆ । ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜੋ ਇਸ ਸਮੇਂ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸਨ, ਨੇ ਬਾਬਰ ਦੇ ਇਸ ਹਮਲੇ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਪਾਪਾਂ ਦੀ ਜੰਝ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬਾਬਰ ਦੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ‘ਬਾਬਰ ਵਾਣੀ ਵਿੱਚ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੀਤਾ,

ਖੁਰਾਸਾਨ ਖਸਮਾਨਾ ਕੀਆ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਡਰਾਇਆ ॥
ਆਪੇ ਦੋਸੁ ਨ ਦੇਈ ਕਰਤਾ, ਜਮੁ ਕਰਿ ਮੁਗਲੁ ਚੜਾਇਆ ॥
ਏਤੀ ਮਾਰ ਪਈ ਕੁਰਲਾਣੈ, ਤੈਂ ਕੀ ਦਰਦ ਨਾ ਆਇਆ ॥

ਬਾਬਰ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਵੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜਦੋਂ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਉਸ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਕਿਸੇ ਸੰਤ-ਮਹਾਂਪੁਰਸ਼ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਫੌਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਰਿਹਾਈ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ।

3. ਬਾਬਰ ਦਾ ਚੌਥਾ ਹਮਲਾ 1524 ਈ. (Fourth Invasion of Babur 1524 A.D.) – ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦੇ ਸੱਦੇ ‘ਤੇ ਬਾਬਰ ਨੇ 1524 ਈ. ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਚੌਥਾ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਹ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਵਿਰੋਧ ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਤਕ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਦੀਪਾਲਪੁਰ ’ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਾਬਰ ਨੇ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ ਬਾਬਰ ਨੇ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ਅਤੇ ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਸੌਂਪਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦੀਆਂ ਉਮੀਦਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਬਾਬਰ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਬਾਬਰ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਹ ਸ਼ਿਵਾਲਿਕ ਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵੱਲ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਬਾਬਰ ਦੇ ਵਾਪਸ ਕਾਬਲ ਜਾਣ ਪਿੱਛੋਂ ਛੇਤੀ ਹੀ ਦੌਲਤ ਖ਼ਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਮੁੜ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

4. ਬਾਬਰ ਦਾ ਪੰਜਵਾਂ ਹਮਲਾ 1525-26 ਈ. (Fifth Invasion of Babur 1525-26 A.D.) – ਬਾਬਰ ਨੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਸਬਕ ਸਿਖਾਉਣ ਲਈ ਨਵੰਬਰ, 1525 ਈ. ਵਿੱਚ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਪੰਜਵੀਂ ਵਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ | ਬਾਬਰ ਦੇ ਆਉਣ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਸੁਣ ਕੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਜ਼ਿਲਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਮਲੋਟ ਦੇ ਕਿਲੇ ਵਿੱਚ ਜਾ ਛੁਪਿਆ । ਬਾਬਰ ਨੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾ ਲਿਆ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਕੁਝ ਚਿਰ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਾਬਰ ਨੇ ਇੱਕ ਵਾਰ ਫਿਰ ਪੂਰੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰ ਲਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਉੱਤਸਾਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਬਾਬਰ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵੱਲ ਵਧਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਤਾਂ ਉਹ ਬਾਬਰ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਵੱਲ ਤੁਰ ਪਿਆ । 21 ਅਪਰੈਲ, 1526 ਈ. ਨੂੰ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲ ਵੰਸ਼ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ ।

5. ਬਾਬਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਦੇ ਕਾਰਨ (Causes of Babur’s Success) – ਬਾਬਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਲਈ ਕਈ ਕਾਰਨ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸਨ । ਪਹਿਲਾਂ, ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਆਪਣੀ ਪਰਜਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਬਦਨਾਮ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਪਰਜਾ ਨੇ ਸੁਲਤਾਨ ਦਾ ਸਾਥ ਨਾ ਦਿੱਤਾ । ਦੂਜਾ, ਉਸ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਬੜੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਸੀ ਅਤੇ ਵਧੇਰੇ ਕਰਕੇ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕਰਦੀ ਸੀ । ਤੀਜਾ, ਬਾਬਰ ਇੱਕ ਯੋਗ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਸੈਨਾ ਨੂੰ ਕਈ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਤਜਰਬਾ ਸੀ । ਚੌਥਾ, ਬਾਬਰ ਕੋਲ ਤੋਪਖ਼ਾਨਾ ਸੀ ਅਤੇ ਇਬਰਾਹੀਮ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਤੀਰ ਕਮਾਨਾਂ ਅਤੇ ਤਲਵਾਰਾਂ ਨਾਲ ਉਸ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ਅਤੇ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ

ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ (Social Condition)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (Discuss the main features of the society of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਅਵਸਥਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the social condition of the Punjab. in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਖ਼ਰਾਬ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਹਿੰਦੂ ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਮੁੱਖ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ | ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਬਹੁ-ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਵੀ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਵਾਂਝਿਆ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ਰ ਅਤੇ ਜਿੰਮੀ ਕਹਿ ਕੇ ਸੱਦਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਰਦਾਂ ਦੀ ਜੁੱਤੀ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਡਾਕਟਰ ਜਸਬੀਰ ਸਿੰਘ ਆਹਲੂਵਾਲੀਆ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,

“ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਜੀ ਨੇ ਅਵਤਾਰ ਧਾਰਨ ਕੀਤਾ, ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਗਤੀਹੀਨ ਅਤੇ ਪਤਿਤ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਸੀ ।”

I. ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Features of the Muslim Society)

16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-
1. ਸਮਾਜ ਤਿੰਨ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ (Society was divided into three Classes) – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ, ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਅਤੇ ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

(ੳ) ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ (The Upper Class) – ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਅਮੀਰ, ਖ਼ਾਨ, ਸ਼ੇਖ਼, ਮਲਿਕ, ਇਕਤਾਦਾਰ, ਉਲਮਾ ਅਤੇ ਕਾਜ਼ੀ ਆਦਿ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕ ਬੜੇ ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਬੜੇ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਮਹੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

(ਅ) ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ (The Middle Class) – ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਸੈਨਿਕ, ਵਪਾਰੀ, ਕਿਸਾਨ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦੇ ਛੋਟੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਵਿੱਚ ਬੜਾ ਅੰਤਰ ਸੀ । ਉਹ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

(ੲ) ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ (The Lower Class-ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਦਾਸ-ਦਾਸੀਆਂ, ਨੌਕਰ ਅਤੇ ਕਾਮੇ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ · । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੁਆਮੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਬੜੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

2. ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ (Position of Women-ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਚੰਗੀ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਉਹ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਪੜ੍ਹੀਆਂ-ਲਿਖੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਬਹੁ-ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਤਲਾਕ-ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਹੋਰ ਤਰਸਯੋਗ ਬਣਾ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ।

3. ਖਾਣ-ਪੀਣ (Diet) – ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੁਆਦਲੇ ਖਾਣੇ ਖਾਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਜਸ਼ਨਾਂ ਵਿੱਚ ਮੀਟ, ਹਲਵਾ, ਪੂੜੀ ਅਤੇ ਮੱਖਣ ਆਦਿ ਦੀ ਬਹੁਤ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਣ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਆਮ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਸ਼ਰਾਬ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਹ ਅਫ਼ੀਮ ਅਤੇ ਭੰਗ ਦੀ ਵੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਖਾਣਾ ਸਾਧਾਰਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

4. ਪਹਿਰਾਵਾ (Dress) – ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਪੁਸ਼ਾਕਾਂ ਬਹੁਤ ਕੀਮਤੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹ ਪੁਸ਼ਾਕਾਂ ਰੇਸ਼ਮ ਅਤੇ ਮਖਮਲ ਦੀਆਂ ਬਣੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕ ਸੂਤੀ ਕੱਪੜੇ ਪਹਿਨਦੇ ਸਨ । ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਕੁੜਤਾ ਅਤੇ ਪਜਾਮਾ ਪਾਉਣ ਦਾ ਰਿਵਾਜ ਸੀ, ਜਦ ਕਿ ਇਸਤਰੀਆਂ ਲੰਬਾ ਬੁਰਕਾ ਪਾਉਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

5. ਸਿੱਖਿਆ (Education) – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਕੰਮ ਉਲਮਾ, ਮੁੱਲਾਂ ਤੇ ਮੌਲਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਮਸਜਿਦਾਂ, ਮਕਤਬਿਆਂ ਅਤੇ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ | ਮਸਜਿਦਾਂ ਅਤੇ ਮਕਤਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਜਦਕਿ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਉਚੇਰੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਿੱਖਿਆ ਕੇਂਦਰ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਸਨ ।

6. ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਸਾਧਨ (Means of Entertainment) – ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਈ ਢੰਗਾਂ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਸ਼ਿਕਾਰ ਕਰਨ, ਚੌਗਾਨ ਖੇਡਣ, ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵੇਖਣ ਅਤੇ ਘੋੜਦੌੜ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕੀਨ ਸਨ । ਉਹ ਸ਼ਤਰੰਜ ਅਤੇ ਚੌਪੜ ਖੇਡ ਕੇ ਵੀ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

II. ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Features of the Hindu Society)

16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਨ-
1. ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ (Caste System) – ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਾਤਾਂ ਅਤੇ ਉਪ-ਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚਾ ਸਥਾਨ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਮੁਸਲਿਮ ਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਾਰਨ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਕਮੀ ਆ ਗਈ ਸੀ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਭਾਵ ਮੁਸਲਿਮ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਰਨ ਹੀ ਕਸ਼ੱਤਰੀਆਂ ਨੇ ਨਵੇਂ ਕਿੱਤੇ ਜਿਵੇਂ ਦੁਕਾਨਦਾਰੀ, ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ ਆਦਿ ਅਪਣਾ ਲਏ ਸਨ । ਵੈਸ਼ ਵਪਾਰ ਅਤੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦਾ ਹੀ ਧੰਦਾ ਕਰਦੇ ਰਹੇ । ਸ਼ੂਦਰਾਂ ਨਾਲ ਇਸ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮਾੜਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਤਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਹੋਰ ਜਾਤਾਂ ਤੇ ਉਪ-ਜਾਤਾਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਇਹ ਜਾਤਾਂ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ ।

2. ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ Position of Women) – ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਦਸ਼ਾ ਬੜੀ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਦਰਜਾ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਲੜਕੀਆਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਵੱਲ ਕੋਈ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਵਿਆਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਬੜੀ ਜ਼ੋਰਾਂ ‘ਤੇ ਸੀ । ਵਿਧਵਾ ਨੂੰ ਦੁਬਾਰਾ ਵਿਆਹ ਕਰਨ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਨਹੀਂ ਸੀ ।

3. ਖਾਣ-ਪੀਣ (Diet) – ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਭੋਜਨ ਸਾਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਹਿੰਦੂ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਭੋਜਨ ਕਣਕ, ਚੌਲ, ਸਬਜ਼ੀਆਂ, ਘਿਉ ਅਤੇ ਦੁੱਧ ਆਦਿ ਤੋਂ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਮਾਸ, ਲਸਣ ਅਤੇ ਪਿਆਜ਼ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਗ਼ਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਭੋਜਨ ਬਹੁਤ ਸਾਧਾਰਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

4. ਪਹਿਰਾਵਾ (Dress) – ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਪਹਿਰਾਵਾ ਬੜਾ ਸਾਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਸੂਤੀ ਕੱਪੜੇ ਪਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਪੁਰਸ਼ ਧੋਤੀ ਅਤੇ ਕੁੜਤਾ ਪਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਪਗੜੀ ਵੀ ਬੰਦੇ ਸਨ । ਇਸਤਰੀਆਂ ਸਾੜ੍ਹੀ, ਚੋਲੀ ਅਤੇ ਲਹਿੰਗਾ ਪਾਉਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਗ਼ਰੀਬ ਲੋਕ ਚਾਦਰ ਨਾਲ ਹੀ ਆਪਣਾ ਸਰੀਰ ਢੱਕ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ।

5. ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਸਾਧਨ (Means of Entertainment) – ਹਿੰਦੂ ਨਾਚ, ਗਾਣੇ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕੀਨ ਸਨ । ਉਹ ਤਾਸ਼ ਅਤੇ ਸ਼ਤਰੰਜ ਵੀ ਖੇਡਦੇ ਸਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵੇਖ ਕੇ ਅਤੇ ਘੋਲ ਵੇਖ ਕੇ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹਿੰਦੂ ਆਪਣੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਦੁਸਹਿਰਾ, ਦੀਵਾਲੀ, ਹੋਲੀ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਵੀ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੇ ਸਨ ।

6. ਸਿੱਖਿਆ (Education) – ਹਿੰਦੂ ਲੋਕ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਤੋਂ ਮੰਦਰਾਂ ਅਤੇ ਪਾਠਸ਼ਾਲਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਉਚੇਰੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਕੋਈ ਕੇਂਦਰ ਨਹੀਂ ਸੀ ।

ਉੱਪਰ ਲਿਖਿਤ ਵੇਰਵੇ ਤੋਂ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਿਮ ਅਤੇ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅਣਗਿਣਤ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਝੂਠ, ਫ਼ਰੇਬ, ਧੋਖਾ ਅਤੇ ਠੱਗੀ ਆਦਿ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਸੀ । ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਚਰਿੱਤਰ ਬਹੁਤ ਡਿੱਗ ਚੁੱਕਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਇਨਸਾਨੀਅਤ ਨਾਂ ਦੀ ਕੋਈ ਚੀਜ਼ ਨਹੀਂ ਸੀ ਰਹੀ । ਡਾਕਟਰ ਏ. ਸੀ. ਬੈਨਰਜੀ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ,

“ਇਹ ਅਨਿਸ਼ਚਿਤਤਾ ਅਤੇ ਹਲਚਲ ਦਾ ਲੰਬਾ ਹਨ੍ਹੇਰਾ ਕਾਲ ਸੀ ਜਿਸ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪਹਿਲੂਆਂ ‘ ਤੇ ਆਪਣੇ ਭੈੜੇ ਦਾਗ ਛੱਡੇ । ”

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the political and social conditions of the Punjab at the time of the birth of Guru Nanak Dev Ji.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਹਾਲਤ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the political and social conditions of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 1 ਅਤੇ 2 ਦਾ ਉੱਤਰ ਸਾਂਝੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖਣ ।

ਆਰਥਿਕ ਸਥਿਤੀ (Economic Condition)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ, ਵਪਾਰ ਅਤੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਸੰਬੰਧੀ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ?
(What do you know about agriculture, trade and industries of Punjab in the beginning of the sixteenth century ?)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਬਿਆਨ ਕਰੋ ।
(Describe the main features of the economic condition of the Punjab in the beginning of the sixteenth century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਚੰਗੀ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਲ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਜੀਵਨ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਇਸ ਤਰਾਂ ਹੈ-
1. ਖੇਤੀਬਾੜੀ (Agriculture) – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਬਹੁਤ ਉਪਜਾਉ ਸੀ । ਸਿੰਜਾਈ ਲਈ ਕਿਸਾਨ ਭਾਵੇਂ ਮੁੱਖ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵਰਖਾ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਨਹਿਰਾਂ, ਤਲਾਬਾਂ ਅਤੇ ਖੁਹਾਂ ਦੀ ਵੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇੱਥੋਂ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਫ਼ਸਲਾਂ ਕਣਕ, ਕਪਾਹ, ਸੌਂ, ਮੱਕੀ, ਚੌਲ ਅਤੇ ਗੰਨਾ ਸਨ । ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਭਰਪੂਰ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਅੰਨ ਭੰਡਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

2. ਉਦਯੋਗ (Industries) – ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਦੂਜਾ ਮੁੱਖ ਧੰਦਾ ਉਦਯੋਗ ਸੀ । ਇਹ ਉਦਯੋਗ ਸਰਕਾਰੀ ਵੀ ਸਨ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਵੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਸੂਤੀ, ਊਨੀ ਅਤੇ ਰੇਸ਼ਮੀ ਤਿੰਨਾਂ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਣਾ, ਸੁਨਾਮ, ਸਰਹਿੰਦ, ਦੀਪਾਲਪੁਰ, ਜਲੰਧਰ, ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਇਸ ਉਦਯੋਗ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਸਨ । ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਚਮੜਾ, ਸ਼ਸਤਰ, ਭਾਂਡੇ, ਹਾਥੀ ਦੰਦ ਅਤੇ ਖਿਡੌਣੇ ਆਦਿ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਉਦਯੋਗ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ ।

3. ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ (Animal Rearing) – ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕੁਝ ਲੋਕ ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਦਾ ਕਿੱਤਾ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪਾਲੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਮੁੱਖ ਪਸ਼ੂ ਗਊਆਂ, ਬਲਦ, ਮੱਝਾਂ, ਘੋੜੇ, ਖੱਚਰ, ਊਠ, ਭੇਡਾਂ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀਆਂ ਆਦਿ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਸ਼ੂਆਂ ਤੋਂ ਦੁੱਧ, ਉੱਨ ਅਤੇ ਭਾਰ ਢੋਣ ਦਾ ਕੰਮ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

4. ਵਪਾਰ (Trade) – ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਵਪਾਰ ਕਾਫ਼ੀ ਵਿਕਸਿਤ ਸੀ । ਵਪਾਰ ਦਾ ਕੰਮ ਕੁਝ ਖ਼ਾਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀਆਂ ਖੱਤਰੀ, ਬਾਣੀਏ, ਮਹਾਜਨ, ਸੂਦ ਅਤੇ ਅਰੋੜੇ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਤੀਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਬੋਹਰਾ ਤੇ ਖੋਜਾ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਜਾਤੀਆਂ ਵਪਾਰ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ । ਮਾਲ ਦੀ ਢੋਆ-ਢੁਆਈ ਦਾ ਕੰਮ ਵਣਜਾਰੇ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਵਪਾਰ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਨਾਲ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ, ਈਰਾਨ, ਅਰਬ, ਸੀਰੀਆ, ਤਿੱਬਤ, ਭੂਟਾਨ ਅਤੇ ਚੀਨ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਨਾਜ, ਕੱਪੜੇ, ਕਪਾਹ, ਰੇਸ਼ਮ ਅਤੇ ਖੰਡ ਨਿਰਯਾਤ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਘੋੜੇ, ਸ਼ਸਤਰ, ਫਰ, ਕਸਤੂਰੀ ਅਤੇ ਮੇਵੇ ਆਦਿ ਆਯਾਤ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

5. ਵਪਾਰਿਕ ਨਗਰ (Commercial Towns) – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਦੋ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਨਗਰ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਿਸ਼ਾਵਰ, ਜਲੰਧਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਲੁਧਿਆਣਾ, ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ, ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ, ਸਰਹਿੰਦ, ਸਿਆਲਕੋਟ, ਕੁੱਲੂ, ਚੰਬਾ ਅਤੇ ਕਾਂਗੜਾ ਵੀ ਵਪਾਰਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨਗਰ ਸਨ ।

6. ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ (Standard of Living) – ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਅੰਤਰ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਬਹੁਤ ਧਨ ਸੀ । ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀਆਂ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਕੋਲ ਧਨ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਸੀ ਪਰ ਮੁਸਲਮਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਹ ਧਨ ਲੁੱਟ ਕੇ ਲੈ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਸੀ ਪਰ ਹਿੰਦੂ ਆਪਣਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਬੜੀ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਬਹੁਤ ਨੀਵਾਂ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸੋਲ੍ਹਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What were the social and economic condition of people of the Punjab in the 16th century ?)
ਜਾਂ
ਸੋਲ੍ਹਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਤੇ ਆਰਥਿਕ ਹਾਲਤ ਬਾਰੇ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What were the social and economic condition of Punjab in the beginning of 16th century ? Discuss it.).
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 2 ਅਤੇ 4 ਦਾ ਉੱਤਰ ਸੰਯੁਕਤ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖਣ ।

ਧਾਰਮਿਕ ਸਥਿਤੀ (Religious Condition)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the religious condition of the people of Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸੂਰ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਦੋ ਮੁੱਖ ਧਰਮ, ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਅਤੇ ਇਸਲਾਮ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਧਰਮ ਅੱਗੇ ਕਈ ਸੰਪਰਦਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਅਤੇ ਜੈਨ ਧਰਮ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਧਰਮਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ (Hinduism-16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਧਰਮ, ਹਿੰਦੁ ਧਰਮ ਸੀ । ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵੇਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਰਾਮਾਇਣ ਅਤੇ ਮਹਾਂਭਾਰਤ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਲ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਬਾਹਮਣਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਸੀ । ਜਨਮ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਮੌਤ ਤਕ ਦੇ ਸਾਰੇ ਸੰਸਕਾਰ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਅਧੂਰੇ ਸਮਝੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸੰਪਰਦਾਵਾਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ-

(ਉ) ਸ਼ੈਵ ਮਤ (Shaivism) – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸ਼ੈਵ ਮਤ ਕਾਫ਼ੀ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਸੀ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕ ਸ਼ਿਵ ਦੇ ਵਧੇਰੇ ਪੁਜਾਰੀ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਥਾਂ-ਥਾਂ ਸ਼ਿਵਾਲੇ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੇ ਸਨ ਜਿੱਥੇ ਸ਼ੈਵ ਮਤ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਸ਼ੈਵ ਮਤ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਵਾਲੇ ਜੋਗੀ ਅਖਵਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਜੋਗੀਆਂ ਦੀ ਮੁੱਖ ਸ਼ਾਖਾ ਨੂੰ ਨਾਥਪੰਥੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੋਰਖਨਾਥ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਜੋਗੀ ਕੰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਛੇਕ ਕਰਵਾ ਕੇ ਵੱਡੀਆਂ-ਵੱਡੀਆਂ ਮੁੰਦਰਾਂ ਪਾਉਂਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਨਫਟੇ ਜੋਗੀ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਜੋਗੀਆਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੇਂਦਰ ਜੇਹਲਮ ਵਿਖੇ ਗੋਰਖਨਾਥ ਦਾ ਟਿੱਲਾ ਸੀ । ਜੋਗੀਆਂ ਨੇ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਦੀਆਂ ਰਸਮਾਂ ਅਤੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ।

(ਅ) ਵੈਸ਼ਨਵ ਮਤ (Vaishnavismਵੈਸ਼ਨਵ ਮਤ ਵੀ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਲੋਕਪ੍ਰਿਅ ਸੀ । ਇਸ ਮਤ ਦੇ ਲੋਕ ਵਿਸ਼ਣੂ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਅਵਤਾਰਾਂ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮ ਅਤੇ ਸ੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ਣੂ ਦੇ ਅਵਤਾਰ ਮੰਨ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਅਤੇ ਸੁੰਦਰ ਮੰਦਰਾਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਸ ਮਤ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਸ਼ਰਾਬ ਅਤੇ ਮੀਟ ਆਦਿ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

(ਸ) ਸ਼ਕਤੀ ਮਤ (Shaktism) – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਕਤੀ ਮਤ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸੀ । ਇਸ ਮਤ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਦੁਰਗਾ, ਕਾਲੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਦੇਵੀਆਂ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਵੀਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਵੀਆਂ ਨੂੰ ਖ਼ੁਸ਼ ਕਰਨ ਲਈ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੀ ਬਲੀ ਚੜਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਵੀਆਂ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਮੰਦਰਾਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਜਵਾਲਾਮੁਖੀ, ਚਿੰਤਪੁਰਨੀ, ਚਾਮੁੰਡਾ ਦੇਵੀ ਅਤੇ ਨੈਣਾ ਦੇਵੀ ਦੇ ਮੰਦਰ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਨ ।

2. ਇਸਲਾਮ (Islam) – ਇਸਲਾਮ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸੱਤਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਮੱਕਾ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਮਾਜਿਕ-ਧਾਰਮਿਕ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਅਤੇ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਹੋ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਦੇ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਸਨ । ਹਿਲਾ, ਭਾਰਤ ‘ਤੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਸੁਲਤਾਨ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸਨ । ਦੂਸਰਾ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਤਲਵਾਰ ਦੀ ਨੋਕ ‘ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਬਣਾਇਆ । ਇਸਲਾਮ ਦੇ ਅਨੁਯਾਈ ਸੰਨੀ ਅਤੇ ਸ਼ੀਆ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਸੰਪਰਦਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਸੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਧੇਰੇ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਕੱਟੜ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਸਨ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਨੇਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਉਲਮਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਇਸਲਾਮੀ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪਵਿੱਤਰ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਹੋਰਨਾਂ ਧਰਮਾਂ ਨੂੰ ਨਫ਼ਰਤ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦੇ ਸਨ ।

3. ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ (Sufism) – ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ ਇਸਲਾਮ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਇੱਕ ਸੰਪਰਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਮਤ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਮਤ 12 ਸਿਲਸਿਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਚਿਸਤੀ ਅਤੇ ਸੁਹਰਾਵਰਦੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਵਧੇਰੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਥਾਨੇਸਰ, ਹਾਂਸੀ, ਨਾਰਨੌਲ ਅਤੇ ਪਾਨੀਪਤ ਸੂਫ਼ੀਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਸਨ । ਇਸ ਮਤ ਦੇ ਲੋਕ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਅੱਲਾਹ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਨਾ ਆਪਣਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਕਰਤੱਵ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਸੰਗੀਤ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਸੂਫ਼ੀਆਂ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਮੇਲ-ਜੋਲ ਰੱਖਣ, ਸੁਲਤਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕੱਟੜ ਨੀਤੀ ਦਾ ਤਿਆਗ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਨ, ਸਾਹਿਤ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤ ਦੀ ਉੱਨਤੀ ਲਈ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

4. ਜੈਨ ਮਤ (Jainism) – ਜੈਨ ਮਤ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਵਪਾਰੀ ਵਰਗ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸੀ । ਇਸ ਮਤ ਦੇ ਲੋਕ 24 ਤੀਰਥੰਕਰਾਂ, ਤਿੰਨ ਰਤਨਾਂ, ਅਹਿੰਸਾ, ਕਰਮ ਸਿਧਾਂਤ ਅਤੇ ਨਿਰਵਾਣ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਈਸ਼ਵਰ ਦੀ ਹੋਂਦ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।

5. ਬੁੱਧ ਮਤ (Buddhism) – 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬੁੱਧ ਮਤ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂ ਮਤ ਦਾ ਹੀ ਇੱਕ ਹਿੱਸਾ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮਹਾਤਮਾ ਬੁੱਧ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ਣੁ ਦਾ ਹੀ ਇੱਕ ਅਵਤਾਰ ਮੰਨਿਆ ਜਾਣ ਲੱਗਾ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਲੋਕ ਇਸ ਮਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਰਚਨਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ ਹੈ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹਿੰਦੂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਦੋਨੋਂ ਧਰਮ ਦੇ ਬਾਹਰੀ ਦਿਖਾਵਿਆਂ ਜਿਵੇਂ ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਭਸਮ ਮਲਣੀ, ਮੱਥੇ ‘ਤੇ ਤਿਲਕ ਲਗਾਉਣਾ, ਕੰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁੰਦਰਾਂ ਪਾਉਣੀਆਂ, ਨਦੀ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨਾ, ਰੋਜ਼ੇ ਰੱਖਣਾ ਅਤੇ ਕਬਰਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਪੂਜਾ ‘ਤੇ ਵਧੇਰੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦੇ ਸਨ | ਧਰਮ ਦੀ ਅਸਲੀਅਤ ਨੂੰ ਲੋਕ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭੁਲਾ ਬੈਠੇ ਸਨ । ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਡਾਕਟਰ ਹਰੀ ਰਾਮ ਗੁਪਤਾ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,

‘‘ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਆਗਮਨ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੋਨੋਂ ਧਰਮ-ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਅਤੇ ਇਸਲਾਮ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰੀ ਅਤੇ ਪਤਿਤ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਵਿੱਤਰਤਾ ਅਤੇ ਗੌਰਵ ਨੂੰ ਗੁਆ ਚੁੱਕੇ ਸਨ ।’’

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਅਵਸਥਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the social and religious condition of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 2 ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 6 ਦਾ ਉੱਤਰ ਸਾਂਝੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਲਿਖਣ ।

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the political condition of Punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the political condition of the Punjab in the beginning of the 16th century.) |
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬੜੀ ਖ਼ਰਾਬ ਸੀ । ਲੋਧੀ ਸੁਲਤਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਗ਼ਲਤ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਇੱਥੇ ਬਦਅਮਨੀ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਭੋਗ-ਵਿਲਾਸ ਵਿੱਚ ਡੁੱਬਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਮਚਾਰੀ, ਕਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਮੁੱਲਾਂ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟ ਅਤੇ ਰਿਸ਼ਵਤਖੋਰ ਹੋ ਗਏ ਸਨ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਹਿੰਦੂਆਂ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਰਾਜ ਦੀ ਸ਼ਾਸਨ ਵਿਵਸਥਾ ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿ ਗਈ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
“16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਅਖਾੜਾ ਸੀ ” ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (“In the beginning of the 16th century, the Punjab was a cockpit of triangular struggle.” Explain.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the triangular struggle of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਜਾਂ
ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the triangular struggle in Punjab ?)
ਜਾਂ
ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ । (Write in brief about the triangular struggle of the Punjab in the beginning of the 16th Century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਅਖਾੜਾ ਸੀ । ਇਹ ਤਿਕੋਣਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਾਬਲ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਬਾਬਰ, ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸੂਬੇਦਾਰ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਵਿਚਾਲੇ ਚਲ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੁਤੰਤਰ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਜਦੋਂ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰਕੇ ਕੈਦਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ । ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੈਦਖ਼ਾਨੇ ਵਿੱਚੋਂ ਭੱਜ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਕੌਣ ਸੀ ? (Who was Daulat Khan Lodhi ?
ਜਾਂ
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Daulat Khan Lodhi.)
ਉੱਤਰ-
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ 1500 ਈ. ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਇਆ ਸੀ ।ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸੁਤੰਤਰ ਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਵੇਖ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਜਦੋਂ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹੀ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਹਾਜ਼ਰ ਹੋਣ ਲਈ ਕਿਹਾ | ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਦਿਲਾਵਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਪਹੁੰਚਦਿਆਂ ਹੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਉਹ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚੋਂ ਭੱਜਣ ਅਤੇ ਵਾਪਸ ਪੰਜਾਬ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਬਾਬਰ ਦੇ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲੇ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ । (Write any three causes of the invasions of Babur over India.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਉਹ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
  2. ਉਹ ਭਾਰਤ ਤੋਂ ਅਪਾਰ ਧਨ ਲੁੱਟਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
  3. ਉਹ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਸਲਾਮ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ’ਤੇ ਕਦੋਂ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ? ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇਸ ਹਮਲੇ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (When did Babur invade Saidpur ? What is its importance in the Sikh History ?)
ਜਾਂ
ਬਾਬਰ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਤੀਸਰੇ ਹਮਲੇ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of Babur’s third invasion over Punjab.)
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ‘ਤੇ 1520 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਬਾਬਰ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਬਾਬਰ ਨੇ ਗੁੱਸੇ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਲੁੱਟਮਾਰ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮਕਾਨਾਂ ਅਤੇ ਮਹੱਲਾਂ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਗਾ ਦਿੱਤੀ । ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਬਦਸਲੂਕੀ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਜੋ ਇਸ ਸਮੇਂ ਸੈਦਪੁਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸਨ, ਨੇ ਬਾਬਰ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵੱਲੋਂ ਲੋਕਾਂ ‘ਤੇ ਕੀਤੇ ਗਏ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ‘ਬਾਬਰ ਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਬਾਬਰ ਅਤੇ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਵਿਚਕਾਰ ਯੁੱਧ ਕਿੱਥੇ ਤੇ ਕਿਉਂ ਹੋਇਆ ? (Why and where did the battle take place between Babur and Ibrahim Lodhi ?)
ਜਾਂ
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the First Battle of Panipat.)
ਜਾਂ
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain in brief the First Battle of Panipat and its significance.)
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਉਤਸਾਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਸੁਲਤਾਨ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਵੱਲ ਰੁਖ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵੱਲ ਵਧਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ । 21 ਅਪਰੈਲ, 1526 ਈ. ਨੂੰ ਦੋਹਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ਅਤੇ ਉਹ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ । ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਇਸ ਨਿਰਣਾਇਕ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚੋਂ ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਖ਼ਾਤਮਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ ਵੰਸ਼ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਕਿਉਂ ਜੇਤੂ ਰਿਹਾ ? ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (What led to the victory of Babur in the First Battle of Panipat ? Write any three causes.)
ਜਾਂ
ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ਦੀ ਜਿੱਤ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(Give a brief account of the causes of victory of Babur and defeat of the Afghans in India.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਦਿੱਲੀ ਦਾ ਸੁਲਤਾਨ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਆਪਣੇ ਬੁਰੇ ਵਤੀਰੇ ਅਤੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਕਾਰਨ ਬੜਾ ਬਦਨਾਮ ਸੀ ।
  2. ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਵੀ ਬੜੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਸੀ ।
  3. ਬਾਬਰ ਇੱਕ ਯੋਗ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੂੰ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਤਜਰਬਾ ਸੀ ।
  4. ਬਾਬਰ ਦੁਆਰਾ ਤੋਪਖ਼ਾਨੇ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨੇ ਭਾਰੀ ਤਬਾਹੀ ਮਚਾਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਸਿੱਟੇ ਲਿਖੋ । (Write the three main results of the First Battle of Panipat.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਗਿਆ ।
  2. ਮੁਗਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋ ਗਈ ।
  3. ਨਵੀਂ ਯੁੱਧ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਆਰੰਭ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਅਵਸਥਾ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the social condition of the Punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦੇ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the social condition of the Punjab at the time of birth of Guru Nanak Dev ji ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਮਾਜ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਅਤੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਾਸ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਵਾਂਝਿਆਂ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਹਿੰਦੂਆਂ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the social condition of women in the Punjab in the beginning of the the 16th century ?)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿੱਚ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe about the condition of women in the Punjab in the beginning of 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨਹੀਂ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਲੜਕੀਆਂ ਨੂੰ ਜੰਮਦੇ ਸਾਰ ਹੀ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਵਿਆਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਵੱਲ ਕੋਈ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਵੀ ਪੂਰੇ ਜ਼ੋਰਾਂ ‘ਤੇ ਸੀ । ਵਿਧਵਾ ‘ਤੇ ਅਨੇਕਾਂ ਪਾਬੰਦੀਆਂ ਲਗਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵੀ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਚੰਗੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵੱਲੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਪਾਬੰਦੀਆਂ ਲਗਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give an account of the Muslim classes of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤਿੰਨ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ-

  • ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ – ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਅਮੀਰ, ਖ਼ਾਨ, ਸ਼ੇਖ਼, ਕਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਉਲਮਾ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕ ਬੜੇ ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
  • ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ – ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਵਪਾਰੀ, ਸੈਨਿਕ, ਕਿਸਾਨ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦੇ ਛੋਟੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਅੰਤਰ ਸੀ ।
  • ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ – ਇਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਦਾਸ, ਕਾਮੇ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਨਿਰਬਾਹ ਲਈ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨੀ ਪੈਂਦੀ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਹਾਲਤ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the condition of the Muslims in the society of the Punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸਮਾਜ ਦੀ ਦਸ਼ਾ ਤੇ ਚਾਨਣਾ ਪਾਓ । (Throw light on the condition of Muslim society of Punjab on the eve of Guru Nanak Dev Ji’s birth.)
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੋਣ ਕਾਰਨ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਬਹੁਤ ਚੰਗੀ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ, ਮੱਧ ਸ਼ੇਣੀ ਅਤੇ ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਅਮੀਰ, ਖ਼ਾਨ, ਸ਼ੇਖ਼ ਅਤੇ ਮਲਿਕ ਆਦਿ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਹ ਬੜੇ ਐਸ਼ੋ-ਆਰਾਮ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਸੈਨਿਕ, ਵਪਾਰੀ, ਕਿਸਾਨ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦੇ ਛੋਟੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਹ ਵੀ ਚੰਗਾ ਜੀਵਨ ਨਿਰਬਾਹ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਦਾਸ-ਦਾਸੀਆਂ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਰੋਜ਼ੀ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨੀ ਪੈਂਦੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the social condition of the Hindus of the Punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਦਾ ਬਹੁ ਵਰਗ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਵਾਂਝਿਆਂ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ਰ ਅਤੇ ਜਿੰਮੀ ਕਹਿ ਕੇ ਸੱਦਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜਜ਼ੀਆ ਅਤੇ ਯਾਤਰਾ ਕਰ ਆਦਿ ਦੇਣੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਾਤਾਂ ਅਤੇ ਉਪਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉੱਚ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕ ਨੀਵੀਂ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the prevalent education in the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਖ਼ਾਸ ਉੱਨਤੀ ਨਹੀਂ ਹੋਈ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਕੰਮ ਉਲ, ਮੁੱਲਾਂ ਤੇ ਮੌਲਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਮਸਜਿਦਾਂ, ਮਕਤਬਿਆਂ ਅਤੇ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ | ਰਾਜ ਸਰਕਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਨੁਦਾਨ ਦਿੰਦੀ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਿੱਖਿਆ ਕੇਂਦਰ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਸਨ ।ਹਿੰਦੂ ਲੋਕ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਤੋਂ ਮੰਦਰਾਂ ਅਤੇ ਪਾਠਸ਼ਾਲਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇੱਥੇ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਬੰਧੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ‘ਤੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the means of entertainment of the people of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਈ ਢੰਗਾਂ ਨਾਲ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਸ਼ਿਕਾਰ ਕਰਨ, ਚੌਗਾਨ ਖੇਡਣ, ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਵੇਖਣ ਅਤੇ ਘੋੜ-ਦੌੜ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕੀਨ ਸਨ । ਉਹ ਜਸ਼ਨਾਂ ਅਤੇ ਮਹਿਫ਼ਲਾਂ ਵਿੱਚ ਵੱਧ-ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸ਼ਤਰੰਜ ਅਤੇ ਚੌਪੜ ਖੇਡ ਕੇ ਵੀ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਈਦ, ਨੌਰੋਜ ਅਤੇ ਸ਼ਬ-ਏ-ਬਰਾਤ ਆਦਿ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਨੂੰ ਬੜੀ ਧੂਮਧਾਮ ਨਾਲ ਮਨਾਉਂਦੇ ਸਨ । 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਨਾਚ, ਗਾਣੇ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕੀਨ ਸਨ । ਉਹ ਤਾਸ਼ ਅਤੇ ਸ਼ਤਰੰਜ ਵੀ ਖੇਡਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਮਾਲੀ ਹਾਲਤ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give a brief account of the economic condition of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਜਾ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly explain the economic condition of the Punjab during the 16th century.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਹਾਲਤ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly mention the economic condition of the Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the economic condition of the Punjab in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕ ਆਰਥਿਕ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਉਪਜਾਊ ਹੋਣ ਕਾਰਨ, ਸਿੰਜਾਈ ਸਹੁਲਤਾਂ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਿਹਨਤੀ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਭਰਪੂਰ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਅੰਨ ਭੰਡਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ | ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਫ਼ਸਲਾਂ ਕਣਕ, ਚੌਲ, ਮੱਕੀ, ਗੰਨਾ ਅਤੇ ਸੌਂ ਸਨ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਦੂਜਾ ਮੁੱਖ ਧੰਦਾ ਉਦਯੋਗ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ, ਚਮੜਾ ਉਦਯੋਗ, ਸ਼ਸਤਰ ਉਦਯੋਗ ਅਤੇ ਲੱਕੜ ਉਦਯੋਗ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਵਪਾਰ ਬਹੁਤ ਵਿਕਸਿਤ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੰਬੰਧੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the agriculture of Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਬਹੁਤ ਉਪਜਾਊ ਸੀ ! ਵਾਹੀ ਅਧੀਨ ਹੋਰ ਜ਼ਮੀਨ ਲਿਆਉਣ ਲਈ ਰਾਜ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕ ਵੀ ਬੜੇ ਮਿਹਨਤੀ ਸਨ । ਸਿੰਜਾਈ ਲਈ ਨਹਿਰਾਂ, ਤਲਾਬਾਂ ਅਤੇ ਖੂਹਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਫ਼ਸਲਾਂ ਕਣਕ, ਜੌ, ਮੱਕੀ, ਚੌਲ ਅਤੇ ਗੰਨਾ ਸਨ । ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਭਰਪੂਰ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਅੰਨ ਭੰਡਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the Punjab’s industries in the beginning of the 16th century ?)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give an account of the main industries of the Punjab in the beginning of 16th century.)
ਉੱਤਰ-
ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਦੂਜਾ ਮੁੱਖ ਧੰਦਾ ਉਦਯੋਗ ਸੀ । ਇਹ ਉਦਯੋਗ ਸਰਕਾਰੀ ਵੀ ਸਨ ਅਤੇ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਵੀ | ਸਰਕਾਰੀ ਉਦਯੋਗ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਸਨ ਜਦ ਕਿ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਸੂਤੀ, ਊਨੀ ਅਤੇ ਰੇਸ਼ਮੀ ਤਿੰਨਾਂ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਚਮੜਾ, ਸ਼ਸਤਰ, ਭਾਂਡੇ, ਹਾਥੀ ਦੰਦ ਅਤੇ ਖਿਡੌਣੇ ਆਦਿ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਉਦਯੋਗ ਵੀ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਵਪਾਰ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the trade of Punjab in the beginning of the 16th century.)
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਵਪਾਰ ਕਾਫ਼ੀ ਵਿਕਸਿਤ ਸੀ । ਮਾਲ ਦੀ ਢੋਆ-ਢੁਆਈ ਦਾ ਕੰਮ ਵਣਜਾਰੇ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮੇਲਿਆਂ ਅਤੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਸਮੇਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮੰਡੀਆਂ ਲਗਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਵਪਾਰ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ, ਈਰਾਨ, ਅਰਬ, ਸੀਰੀਆ, ਤਿੱਬਤ, ਭੂਟਾਨ ਅਤੇ ਚੀਨ ਆਦਿ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅਨਾਜ, ਕੱਪੜੇ, ਕਪਾਹ, ਰੇਸ਼ਮ ਅਤੇ ਖੰਡ ਨਿਰਯਾਤ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਘੋੜੇ, ਸ਼ਸਤਰ, ਫਰ, ਕਸਤੂਰੀ ਅਤੇ ਮੇਵੇ ਆਦਿ ਆਯਾਤ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ ? (What was the living standard of the people in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
ਉਸ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਇੱਕੋ ਜਿਹਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਬਹੁਤ ਧਨ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਐਸ਼ਪ੍ਰਸਤੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਬੜੇ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਮਹੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀਆਂ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਕੋਲ ਧਨ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਸੀ ਪਰ ਮੁਸਲਮਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਹ ਧਨ ਲੱਟ ਕੇ ਲੈ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਸੀ ਪਰ ਹਿੰਦੁਆਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕ ਨਾ ਤਾਂ ਚੰਗੇ ਕੱਪੜੇ ਪਾ ਸਕਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਭੋਜਨ ਖਾ ਸਕਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the religious condition of Hinduism in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਧਰਮ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਸੀ । ਇਹ ਧਰਮ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਧਰਮ ਸੀ । ਇਸ ਧਰਮ ਦੇ ਲੋਕ ਵੇਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਰਾਮਾਇਣ ਅਤੇ ਮਹਾਂਭਾਰਤ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਸਨ । ਉਹ ਅਨੇਕ ਦੇਵੀ-ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੀ ਪੂਜਾ, ਤੀਰਥ ਯਾਤਰਾਵਾਂ, ਨਦੀਆਂ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਪਵਿੱਤਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਬਾਹਮਣਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਬਾਹਮਣਾਂ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕੋਈ ਵੀ ਧਾਰਮਿਕ ਕਾਰਜ ਅਧੂਰਾ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਇਸਲਾਮ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short notë on Islam.)
ਜਾਂ
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇਸਲਾਮ ਦੀ ਦਸ਼ਾ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ? (What was the condition of Islam in the beginning of the 16th century ?)
ਉੱਤਰ-
ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਦੂਸਰਾ ਮੁੱਖ ਧਰਮ ਇਸਲਾਮ ਸੀ । ਇਸ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਸੱਤਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਮੱਕਾ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅਰਬ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਮਾਜਿਕ-ਧਾਰਮਿਕ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਅਤੇ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹਰ ਮੁਸਲਮਾਨ ਨੂੰ ਪੰਜ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ‘ਤੇ ਚਲਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਦੇ ਪੰਜ ਥੰਮ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਉਲਮਾ ਕੌਣ ਸਨ ? ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਸਨ ? (Who were Ulemas ? What were their main functions ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਉਲਮਾ ਇਸਲਾਮ ਦੇ ਵਿਦਵਾਨ ਸਨ ।
  2. ਉਲਮਾ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਨ-
    • ਉਹ ਇਸਲਾਮੀ ਕਾਨੂੰਨ (ਸ਼ਰੀਅਤ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
    • ਉਹ ਸੁਲਤਾਨ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ਿਹਾਦ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
    • ਉਹ ਇਸਲਾਮ ਦੇ ਪਸਾਰ ਲਈ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਤਿਆਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਸੁੰਨੀਆਂ ਬਾਰੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Sunnis.)
ਜਾਂ
ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ । (The Sunni Musalman.)
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਬਹੁ-ਗਿਣਤੀ ਸੁੰਨੀਆਂ ਦੀ ਸੀ । ਦਿੱਲੀ ਸਲਤਨਤ ਦੇ ਸਾਰੇ ਸੁਲਤਾਨ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸੁੰਨੀ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੁੰਨੀਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰੋਤਸਾਹਿਤ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼-ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਕਾਜ਼ੀ ਮੁਫਤੀ ਅਤੇ ਉਲੇਮਾ ਜੋ ਨਿਆਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ਉਹ ਸੁੰਨੀ ਸੰਪਰਦਾ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ । ਸੁੰਨੀ ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਪੈਗੰਬਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਕੁਰਾਨ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪਵਿੱਤਰ ਗ੍ਰੰਥ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਇੱਕ ਅੱਲ੍ਹਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਇਸਲਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਉਹ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਕੱਟੜ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਸ਼ੀਆ ਕੌਣ ਸਨ ? ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Who were the Shias ? Explain.)
ਜਾਂ
ਸ਼ੀਆ । (The Shias.)
ਉੱਤਰ-
ਸੁੰਨੀਆਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦੂਸਰਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਸ਼ੀਆ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਉਹ ਵੀ ਸੁੰਨੀਆਂ ਵਾਂਗ ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਪੈਗੰਬਰ ਮੰਨਦੇ ਸਨ ।ਉਹ ਕੁਰਾਨ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਪਵਿੱਤਰ ਗ੍ਰੰਥ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਇੱਕ ਅੱਲਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਵੀ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਪੰਜ ਨਮਾਜ਼ਾਂ ਪੜ੍ਹਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਵੀ ਰਮਜ਼ਾਨ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਰੋਜ਼ੇ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਵੀ ਮੱਕੇ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਸ਼ੀਆ ਅਤੇ ਸੁੰਨੀਆਂ ਵਿਚਾਲੇ ਕੁਝ ਅੰਤਰ ਪਾਏ ਗਏ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਤਭੇਦਾਂ ਕਾਰਨ ਸੁੰਨੀ ਅਤੇ ਸ਼ੀਆ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਦੇ ਵਿਰੋਧੀ ਹੋ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਲਿਖੋ । (Write the main teachings of Sufism.)
ਉੱਤਰ-
ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ ਇੱਕ ਅੱਲਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਅੱਲ੍ਹਾ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦੀ ਪੂਜਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਅਨੁਸਾਰ ਅੱਲ੍ਹਾ ਸਰਵ-ਸ਼ਕਤੀਮਾਨ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਹਰ ਜਗ੍ਹਾ ਮੌਜੂਦ ਹੈ । ਅੱਲ੍ਹਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਉਹ ਪੀਰ ਜਾਂ ਗੁਰੂ ਦਾ ਹੋਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਸੰਗੀਤ ਵਿੱਚ ਵੀ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ ਨੇ ਕੱਵਾਲੀ ਗਾਉਣ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਚਲਾਈ । ਉਹ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਨੀ ਆਪਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਕਰਤੱਵ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਦੂਸਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

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ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ | (Answer in one Word to one sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਬਾਬਰ ਦੇ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਕੀ ਫ਼ਰਮਾਉਂਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਰ ਪਾਸੇ ਝੂਠ ਅਤੇ ਰਿਸ਼ਵਤ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਦਿੱਲੀ ਉੱਤੇ ਕਿਹੜੇ ਸੁਲਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦਾ ਮੋਢੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ ਦਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕੌਣ ਬਣਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਹ 1489 ਈ. ਤੋਂ 1517 ਈ. ਤੱਕ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੁਲਤਾਨ ਰਿਹਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਕਦੋਂ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1489 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਕਦੋਂ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1517 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦਾ ਅੰਤਿਮ ਸੁਲਤਾਨ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ 1500 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1525 ਈ. ਤਕ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ, ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਅਤੇ ਬਾਬਰ ਵਿਚਕਾਰ ਚੱਲੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਬਾਬਰ ਕਿੱਥੋਂ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਬਾਬਰ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਬਲ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਪਹਿਲਾ ਹਮਲਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
1519 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਭਾਰਤ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ? ਕੋਈ ਇੱਕ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਹ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਬਾਬਰ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਹਮਲੇ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਪਾਪ ਦੀ ਜੰਝ ਬਰਾਤ) ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੈਦਪੁਰ ਹਮਲੇ ਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ‘ ਤੇ ਕਦੋਂ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1520 ਈ. ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ‘ਤੇ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਸ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੇ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਰ ਨੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ? ਉੱਤਰ-21 ਅਪਰੈਲ, 1526 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਕਿੰਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਅਤੇ ਬਾਬਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟਾ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ ਵੰਸ਼ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਬਾਅਦ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਵੰਸ਼ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੁਗ਼ਲ ਵੰਸ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਮਾਜ ਕਿਹੜੇ ਦੋ ਮੁੱਖ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੁਸਲਿਮ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਕਿੰਨੇ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਤਿੰਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਦੀ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਹ ਬਹੁਤ ਐਸ਼ ਦਾ ਜੀਵਨ ਗੁਜ਼ਾਰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਕਿੰਨੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਚਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਹੁਤੀ ਚੰਗੀ ਨਹੀਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਿਮ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਦਾ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਖੇਤੀਬਾੜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਫ਼ਸਲ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਣਕ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਉਦਯੋਗ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ਜਿੱਥੇ ਗਰਮ ਕੱਪੜਾ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 33.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਰਯਾਤ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਸਤਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕੱਪੜਾ ਅਤੇ ਅਨਾਜ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 34.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਵਪਾਰਿਕ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਜਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 35.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਜੋਗੀਆਂ ਦੀ ਮੁੱਖ ਸ਼ਾਖਾ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਾਥ ਪੰਥੀ ਜਾਂ ਗੋਰਖ ਪੰਥੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 36.
ਜੋਗੀ ਕਿਸ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਿਵ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 37.
ਜੋਗੀਆਂ ਨੂੰ ਕਨਫਟੇ ਜੋਗੀ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਉਂਕਿ ਜੋਗੀ ਕੰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਕੁੰਡਲ ਪਾਉਂਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 38.
ਸ਼ੈਵ ਮਤ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਮਤ ਦੇ ਲੋਕ ਸ਼ਿਵ ਜੀ ਦੇ ਪੁਜਾਰੀ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 39.
ਵੈਸ਼ਨਵ ਮਤ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਮਤ ਦੇ ਲੋਕ ਵਿਸ਼ਨੂੰ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਅਵਤਾਰਾਂ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 40.
ਸ਼ਕਤੀ ਮਤ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਮਤ ਦੇ ਲੋਕ ਦੁਰਗਾ, ਕਾਲੀ ਆਦਿ ਦੇਵੀਆਂ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 41.
ਇਸਲਾਮ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 42.
ਇਸਲਾਮ ਕਿੰਨੇ ਥੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੰਜ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 43.
ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਚਿਸ਼ਤੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦੀ ਨੀਂਹ ਕਿਸ ਨੇ ਰੱਖੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ੇਖ਼ ਮੁਈਨਉੱਦੀਨ ਚਿਸ਼ਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 44.
ਸ਼ੇਖ਼ ਮੁਈਨਉੱਦੀਨ ਚਿਸ਼ਤੀ ਨੇ ਚਿਸ਼ਤੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿੱਥੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਜਮੇਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 45.
ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਚਿਸ਼ਤੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨੇਤਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ੇਖ਼ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 46.
ਸੁਹਰਾਵਰਦੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਾਉੱਦੀਨ ਜ਼ਕਰੀਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 47.
ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਾਉੱਦੀਨ ਜ਼ਕਰੀਆ ਨੇ ਸੁਹਰਾਵਰਦੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿੱਥੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੁਲਤਾਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 48.
ਸੂਫ਼ੀਆਂ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸਿਧਾਂਤ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਹ ਕੇਵਲ ਅੱਲਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 49.
ਉਲਮਾ ਕੌਣ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਨੇਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 50.
ਜਜ਼ੀਆ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੈਰ-ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਤੋਂ ਵਸੂਲ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਇੱਕ ਧਾਰਮਿਕ ਕਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 51.
ਭਗਤੀ ਲਹਿਰ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸਿਧਾਂਤ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਹ ਇੱਕ ਪਰਮਾਤਮਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 52.
ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਭਗਤੀ ਲਹਿਰ ਦਾ ਮੋਢੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 53.
ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਧਰਮ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ :

1. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ………………………. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਮਾੜੀ)

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2. ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ ਨੇ ……………………………………… ਵਿੱਚ ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(1451 ਈ.)

3. 1469 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਦਿੱਲੀ ਦਾ ਸੁਲਤਾਨ ………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ)

4. ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ …………………………………. ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1517 ਈ.)

5. ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ……………………………….. ਈ. ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1500)

6. 1519 ਈ. ਤੋਂ 1526 ਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਕਰਨ ਲਈ ………………………….. ਸੰਘਰਸ਼ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਤਿਕੋਣਾ)

7. 1504 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਾਬਰ ………………………………. ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਕਾਬਲ)

8. 1519 ਈ. ਤੋਂ 1526 ਈ. ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ …………………………… ਹਮਲੇ ਕੀਤੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਪੰਜ)

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9. ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ‘ਤੇ ਪਹਿਲਾ ਹਮਲਾ ………………………… ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(1519 ਈ.)

10. ਬਾਬਰ ਨੇ …………………………… ਹਮਲੇ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸੈਦਪੁਰ)

11. ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ………………….. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
(21 ਅਪਰੈਲ, 1526 ਈ.)

12. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ………………………… ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ।
ਉੱਤਰ-
(ਤਿੰਨ)

13. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਉੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ……………………. ਅਤੇ ……………………….. ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਹੌਰ, ਮੁਲਤਾਨ)

14. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ………………………. ਨੂੰ ਪ੍ਰਮੁੱਖਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ)

15. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਦਸ਼ਾ ਚੰਗੀ ………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਨਹੀਂ)

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16. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਹਿੰਦੂ ……………………… ਭੋਜਨ ਖਾਂਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ)

17. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ …………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਖੇਤੀਬਾੜੀ)

18. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਉਦਯੋਗ …………………………. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ)

19. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਗਰਮ ਕੱਪੜਾ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ …………………. ਅਤੇ …………………. ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ, ਕਸ਼ਮੀਰ)

20. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ………………………. ਅਤੇ ………………………. ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਕੇਂਦਰ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਹੌਰ, ਮੁਲਤਾਨ)

21. ……………………….. ਭਗਤੀ ਲਹਿਰ ਦਾ ਮੌਢੀ ਸੀ
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ)

22. ਜੋਗੀ ਮਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ …………………………….. ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੋਰਖਨਾਥ)

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23. ਇਸਲਾਮ ਦਾ ਸੰਸਥਾਪਕ ……………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ)

24. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਚਿਸ਼ਤੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਪ੍ਰਚਾਰਕ ………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ਼ੇਖ਼ ਫ਼ਰੀਦ)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਚੰਗੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

2. ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦਾ ਸੰਸਥਾਪਕ ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

3. ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ 1451 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

4. ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ 1489 ਈ. ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ 1517 ਈ. ਵਿੱਚ ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦਾ ਨਵਾਂ ਸੁਲਤਾਨ ਬਣਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

6. ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ 1469 ਈ. ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

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7. ਬਾਬਰ ਦਾ ਜਨਮ 1494 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

8. ਬਾਬਰ ਨੇ 1504 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਾਬਲ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

9. ਬਾਬਰ ਨੇ ਭਾਰਤ ‘ਤੇ ਪਹਿਲਾ ਹਮਲਾ 1519 ਈ. ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

10. ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ’ਤੇ 1524 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

11. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਬਾਬਰ ਦੇ ਸੈਦਪੁਰ ਦੇ ਹਮਲੇ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਪਾਪ ਦੀ ਜੰਵ ਨਾਲ , ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

12. ਬਾਬਰ ਅਤੇ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਵਿਚਾਲੇ ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 21 ਅਪਰੈਲ, 1526 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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13. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਦੋ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

14. ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਦੀ ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਗਿਣਤੀ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

15. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਨਮਾਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

16. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਿਮ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਦੋ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

17. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਮੁੱਖਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

18. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਕਸ਼ੱਤਰੀਆਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਪੇਸ਼ਾ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਕਰਨਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

19. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਦਸ਼ਾ ਬੜੀ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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20. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

21. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕਣਕ ਦੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

22. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਉਦਯੋਗ ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

23. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਸ਼ਾਲਾਂ ਦੇ ਉਦਯੋਗ ਲਈ ਬੜਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

24. ਗੋਰਖਨਾਥ ਨੇ ਜੋਗੀਆਂ ਦੀ ਨਾਥਪੰਥੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

25. ਇਸਲਾਮ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

26. ਚਿਸ਼ਤੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦੀ ਨੀਂਹ ਖ਼ਵਾਜਾ ਮੁਈਨਉੱਦੀਨ ਚਿਸ਼ਤੀ ਨੇ ਰੱਖੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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27. ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਚਿਸ਼ਤੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਪ੍ਰਚਾਰਕ ਸ਼ੇਖ਼ ਫ਼ਰੀਦ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

28. ਸੁਹਰਾਵਰਦੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦਾ ਸੰਸਥਾਪਕ ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਾਉੱਦੀਨ ਜ਼ਕਰੀਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦਾ ਸੰਸਥਾਪਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ
(ii) ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ
(iii) ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ
(iv) ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ ਕਦੋਂ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਿਆ ਸੀ ?
(i) 1437 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1451 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1489 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1517 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1451 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਾਸਕ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਨਾਂ ਨਿਜ਼ਾਮ ਖਾਂ ਸੀ ?
(i) ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ
(ii) ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ
(iii) ਇਬਰਾਹਿਮ ਲੋਧੀ
(iv) ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਕਦੋਂ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਿਆ ਸੀ ?
(i) 1489 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1516 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1517 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1526 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1517 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ
(ii) ਦਿੱਲੀ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ
(iii) ਅਵਧ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਕਿਸ ਰਾਜ ਦਾ ਸੁਤੰਤਰ ਸ਼ਾਸਕ ਬਣਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
(i) ਮਗਧ
(ii) ਦਿੱਲੀ
(iii) ਪੰਜਾਬ
(iv) ਗੁਜਰਾਤ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਪੰਜਾਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ ਕਦੋਂ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) 1489 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1500 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1517 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1526 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1500 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਤਿਕੋਣੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਵਿੱਚ ਕੌਣ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਸੀ ?
(i) ਬਾਬਰ
(i) ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ
(iii) ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ
(iv) ਆਲਮ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਆਲਮ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਕਿੰਨੇ ਹਮਲੇ ਕੀਤੇ ?
(i) 11
(ii) 5
(iii) 6
(iv) 17.
ਉੱਤਰ-
(ii) 5 .

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ’ਤੇ ਪਹਿਲਾ ਹਮਲਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤਾ ?
(i) 1509 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1519 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1520 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1524 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1519 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ’ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) 1519 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1520 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1524 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1526 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1520 ਈ. ਵਿੱਚ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਬਾਬਰ ਨੇ ਸੈਦਪੁਰ ‘ਤੇ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਕਿਹੜੇ ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਬਾਬਰ ਅਤੇ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਵਿਚਾਲੇ ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
(i) 1519 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1525 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1526 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1556 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1526 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਪਾਨੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਕਿਸਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ?
(i) ਬਾਬਰ ਦੀ
(ii) ਮਹਾਰਾਣਾ ਪ੍ਰਤਾਪ ਦੀ
(iii) ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੀ
(iv) ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਆਲਮ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਕਿਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ ?
(i) ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ
(ii) ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ
(iii) ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ
(iv) ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਕਿੰਨੇ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਦੋ
(ii) ਤਿੰਨ
(iii) ਚਾਰ
(iv) ਪੰਜ
ਉੱਤਰ-
(ii) ਤਿੰਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਦੀ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੌਣ ਸ਼ਾਮਲ
ਨਹੀਂ ਸੀ ?
(i) ਮਲਿਕ
(ii) ਸ਼ੇਖ਼
(iii) ਇਕਤਾਰ
(iv) ਵਪਾਰੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਵਪਾਰੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਦੀ ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਕੌਣ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ ?
(i) ਵਪਾਰੀ
(ii) ਸੈਨਿਕ
(iii) ਕਿਸਾਨ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਦੀ ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੌਣ ਸ਼ਾਮਲ ਨਹੀਂ ਸੀ ?
(i) ਕਾਜ਼ੀ
(ii) ਨੌਕਰ
(iii) ਦਾਸ
(iv) ਮਜ਼ਦੂਰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਕਾਜ਼ੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਸਰਹਿੰਦ
(ii) ਜਲੰਧਰ
(iii) ਪੇਸ਼ਾਵਰ
(iv) ਲਾਹੌਰ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਲਾਹੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਿੱਤਾ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਵਪਾਰ
(ii) ਖੇਤੀਬਾੜੀ
(iii) ਉਦਯੋਗ
(iv) ਪਸ਼ੂ-ਪਾਲਣ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਖੇਤੀਬਾੜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਫ਼ਸਲ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?
(i) ਕਣਕ
(ii) ਚੌਲ
(iii) ਰੀਨਾ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਉਦਯੋਗ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਚਮੜਾ ਉਦਯੋਗ
(ii) ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ
(iii) ਸ਼ਸਤਰ ਉਦਯੋਗ
(iv) ਹਾਥੀ ਦੰਦ ਉਦਯੋਗ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਹੜਾ ਗਰਮ ਕੱਪੜਾ ਉਦਯੋਗ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਨਹੀਂ ਸੀ ?
(i) ਜਲੰਧਰ
(ii) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ
(iii) ਕਸ਼ਮੀਰ
(iv) ਕਾਂਗੜਾ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਜਲੰਧਰ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 3 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਕੇਂਦਰ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਲਾਹੌਰ
(ii) ਲੁਧਿਆਣਾ
(iii) ਜਲੰਧਰ
(iv) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਲਾਹੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਧਰਮ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਇਸਲਾਮ
(ii) ਹਿੰਦੁ
(iii) ਈਸਾਈ
(iv) ਸਿੱਖ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਹਿੰਦੁ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਜੋਗੀਆਂ ਦੀ ਨਾਥਪੰਥੀ ਸ਼ਾਖਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
(i) ਗੋਰਖਨਾਥ
(ii) ਸ਼ਿਵਨਾਥ
(iii) ਮਹਾਤਮਾ ਬੁੱਧ
(iv) ਸਵਾਮੀ ਮਹਾਂਵੀਰ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੋਰਖਨਾਥ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਪੁਰਾਣਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਨੂੰ ਦੇ ਕਿੰਨੇ ਅਵਤਾਰਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ?
(i) 5
(ii) 10
(iii) 24
(iv) 25.
ਉੱਤਰ-
(iii) 24.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਹੜਾ ਮਤ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਨਹੀਂ ਸੀ ?
(i) ਸ਼ੈਵ ਮਤ
(ii) ਵੈਸ਼ਨਵ ਮਤ
(iii) ਸ਼ਕਤੀ ਮਤ
(iv) ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
ਇਸਲਾਮ ਦਾ ਸੰਸਥਾਪਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਅਬੂ ਬਕਰ
(ii) ਉਮਰ
(iii) ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਅਲੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਇਸਲਾਮ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) ਪੰਜਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ
(ii) ਛੇਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ
(iii) ਸੱਤਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ
(iv) ਅੱਠਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸੱਤਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
ਇਸਲਾਮ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਖਲੀਫ਼ਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਅਲੀ
(ii) ਅਬੂ ਬਕਰ
(iii) ਉਮਰ
(iv) ਉਥਮਾਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਅਬੂ ਬਕਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 33.
ਸੂਫ਼ੀ ਸ਼ੇਖਾਂ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
(i) ਪੀਰ
(ii) ਦਰਗਾਹ
(iii) ਤਸਵੁਫ਼
(iv) ਸਿਲਸਿਲਾ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਤਸਵੁਫ਼ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 34.
ਚਿਸ਼ਤੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦਾ ਸੰਸਥਾਪਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਖ਼ਵਾਜ਼ਾ ਮੁਈਨਉੱਦੀਨ ਚਿਸ਼ਤੀ
(ii) ਸ਼ੇਖ਼ ਬਹਾਉੱਦੀਨ ਜ਼ਕਰੀਆ
(iii) ਸ਼ੇਖ਼ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ .
(iv) ਸ਼ੇਖ਼ ਨਿਜ਼ਾਮਉੱਦੀਨ ਔਲੀਆ
ਉੱਤਰ-
(i) ਖ਼ਵਾਜ਼ਾ ਮੁਈਨਉੱਦੀਨ ਚਿਸ਼ਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 35.
ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਚਿਸ਼ਤੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਪ੍ਰਚਾਰਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਸ਼ੇਖ਼ ਨਿਜ਼ਾਮਉੱਦੀਨ ਔਲੀਆ
(ii) ਸ਼ੇਖ਼ ਫ਼ਰੀਦ
(iii) ਸ਼ੇਖ਼ ਕੁਤਬਉੱਦੀਨ ਬਖਤਿਆਰ ਕਾਕੀ
(iv) ਖਵਾਜ਼ਾ ਮੁਈਨਉੱਦੀਨ ਚਿਸ਼ਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸ਼ੇਖ਼ ਫ਼ਰੀਦ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 36.
ਸੂਫ਼ੀਆਂ ਦੇ ਸੁਹਰਾਵਰਦੀ ਸਿਲਸਿਲੇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿੱਥੇ ਹੋਈ ?
(i) ਲਾਹੌਰ
(ii) ਅਜਮੇਰ
(iii) ਆਗਰਾਂ
(iv) ਮੁਲਤਾਨ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਮੁਲਤਾਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 37.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਸਨੇ ਕੱਵਾਲੀ ਗਾਉਣ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ?
(i) ਇਸਲਾਮ ਨੇ
(ii) ਸੂਫ਼ੀਆਂ ਨੇ
(iii) ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੇ
(iv) ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸੂਫ਼ੀਆਂ ਨੇ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਬਹਿਲੋਲ ਲੋਧੀ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ 1489 ਈ. ਵਿੱਚ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਤਖ਼ਤ ਉੱਤੇ ਬੈਠਿਆ । ਉਸ ਨੇ 1517 ਈ. ਤਕ ਸ਼ਾਸਨ ਕੀਤਾ । ਮੁਸਲਿਮ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਵਿੱਚ ਉਹ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਨਿਆਂ-ਪਸੰਦ ਅਤੇ ਦਿਆਲੂ ਸੁਲਤਾਨ ਸੀ | ਪਰ ਉਸ ਦੀ ਨਿਆਂ-ਪ੍ਰਿਯਤਾ ਅਤੇ ਦਿਆਲਤਾ ਸਿਰਫ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਤਕ ਹੀ ਸੀਮਿਤ ਸੀ । ਉਹ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਤੁਗਲਕ ਅਤੇ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਵਾਂਗ ਇੱਕ ਕੱਟੜ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ ! ਉਹ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਬੜੀ ਨਫ਼ਰਤ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਪ੍ਰਤੀ ਬੜੀ ਕਠੋਰ ਅਤੇ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ । ਉਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਕਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਮੰਦਰਾਂ ਨੂੰ ਤਹਿਸ-ਨਹਿਸ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਥਾਂ ਮਸਜਿਦਾਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ । ਉਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਜਮਨਾ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਦੀ ਮਨਾਹੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਉਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਬੋਧਨ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਨੂੰ ਇਸ ਲਈ ਮੌਤ ਦੇ ਘਾਟ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ ।

1. ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਕੌਣ ਸੀ?
2. ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਕਦੋਂ ਸਿੰਘਾਸਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਿਆ ਸੀ ?
(i) 1485 ਈ.
(ii) 1486 ਈ.
(iii) 1487 ਈ.
(iv) 1489 ਈ. ।
3. ਮੁਸਲਿਮ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਨੂੰ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੁਲਤਾਨ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ?
4. ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਪ੍ਰਤੀ ਕਿਹੜਾ ਕਦਮ ਚੁੱਕਿਆ ?
5. ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਨੇ ਬੋਧਨ ਬਾਹਮਣ ਨੂੰ ਕਿਉਂ ਮੌਤ ਦੇ ਘਾਟ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਦਿੱਲੀ ਦਾ ਸੁਲਤਾਨ ਸੀ ।
2. 1489 ਈ. ।
3. ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਨਿਆਂ ਪਸੰਦ ਅਤੇ ਦਿਆਲੂ ਸੁਲਤਾਨ ।
4. ਉਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਇਸਲਾਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ।
5. ਉਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਨੂੰ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਚੰਗਾ ਕਿਹਾ ਸੀ ।

2. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਜਸ਼ਨਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾਂ ਸਮਾਂ ਬਤੀਤ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਅਜਿਹੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਪਰਜਾ ਵੱਲ ਕਿਸੇ ਦਾ ਧਿਆਨ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਮਚਾਰੀ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਹਰ ਪਾਸੇ ਰਿਸ਼ਵਤ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਸੀ । ਸੁਲਤਾਨ ਤਾਂ ਸੁਲਤਾਨ, ਕਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਉਲਮਾ ਵੀ ਰਿਸ਼ਵਤ ਲੈ ਕੇ ਨਿਆਂ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਹਿੰਦੂਆਂ ‘ਤੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵੱਧ ਗਏ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਲਵਾਰ ਦੀ ਨੋਕ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

1. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਸੀ ?
2. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦਾ ਆਚਰਨ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ ?
3. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਸੁਲਤਾਨ, ਕਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਉਲਮਾਂ ਨਿਆਂ ਕਿਵੇਂ ਕਰਦੇ ਸਨ ?
4. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਹਿੰਦੂਆਂ ਪ੍ਰਤੀ ਕੀ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ?
5. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ……………………. ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਸਮਾਂ ਬਤੀਤ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ, ਪਰਜਾ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ ।
2. ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਮਚਾਰੀ ਬਹੁਤ ਭਿਸ਼ਟ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਸਨ ।
3. ਉਸ ਸਮੇਂ ਸੁਲਤਾਨੀ, ਕਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਉਲਮਾ ਰਿਸ਼ਵਤ ਲੈ ਕੇ ਨਿਆਂ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
4. ਉਸ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਵੱਲੋਂ ਹਿੰਦੂਆਂ ਤੇ ਬਹੁਤ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।
5. ਜਸ਼ਨਾਂ ।

3. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ ਵੀ ਬਹੁਤ ਖ਼ਰਾਬ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਹਿੰਦੂ ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਮੁੱਖ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸ਼ਾਸਕ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੇ ਉੱਚ ਅਹੁਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਲਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਹਿੰਦੂ ਜੋ ਕਿ ਵੱਸੋਂ ਦੇ ਵਧੇਰੇ ਭਾਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ, ਨੂੰ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਵਾਂਝਿਆਂ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ਰ ਅਤੇ ਜਿੰਮੀ ਕਹਿ ਕੇ ਸੱਦਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਜਜ਼ੀਆ ਅਤੇ ਯਾਤਰਾ ਕਰ ਆਦਿ ਬੜੀ ਸਖ਼ਤੀ ਨਾਲ ਵਸੂਲ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਮੁਸਲਮਾਨ ਹਿੰਦੂਆਂ ‘ਤੇ ਏਨੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਅਨੇਕਾਂ ਹਿੰਦੂ ਮੁਸਲਮਾਨ ਬਣਨ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਏ ਸਨ ।

1. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਦਸ਼ਾ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਖ਼ਰਾਬ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ? 1
2. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਕਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਵਾਂਝਿਆ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ?
3. ਕਾਫ਼ਰ ਕੌਣ ਸਨ?
4. ਜਜ਼ੀਆ ਕੀ ਸੀ?
5. ਮੁਸਲਮਾਨ …………………….. ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਕਿਉਂਕਿ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ ।
2. ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ।
3. ਗੈਰ-ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
4. ਜਜ਼ੀਆ ਹਿੰਦੁਆਂ ਤੋਂ ਲਿਆ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਇੱਕ ਕਰ ਸੀ ।
5. ਸ਼ਾਸਕ ।

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4. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਖ਼ਾਸ ਉੱਨਤੀ ਨਹੀਂ ਹੋਈ ਸੀ । ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਕੰਮ ਉਮਾ, ਮੁੱਲਾਂ ਤੇ ਮੌਲਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਮਸਜਿਦਾਂ, ਮਕਤਬਿਆਂ ਅਤੇ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਰਾਜ ਸਰਕਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਨੁਦਾਨ ਦਿੰਦੀ ਸੀ । ਮਸਜਿਦਾਂ ਅਤੇ ਮਕਤਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਜਦਕਿ ਮਦਰੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਉਚੇਰੀ । ਮਦਰੱਸੇ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਿੱਖਿਆਂ ਕੇਂਦਰ ਲਾਹੌਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਸਨ ।

1. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਉੱਨਤੀ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਹੋਈ ਸੀ ?
2. ਕੀ ਮੌਲਵੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ?
3. ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਕਿੱਥੇ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ?
4. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਲਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇੱਕ ਕੇਂਦਰ ਦਾ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
5. ਮਦਰੱਸੇ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ……………………….. ਵਿੱਚ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦੀ ਜਿੰਮੇਵਾਰੀ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।
2. ਹਾਂ, ਮੌਲਵੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
3. ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਮੁੱਢਲੀ ਸਿੱਖਿਆ ਮਸਜਿਦਾਂ ਅਤੇ ਮਕਤਬਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।
4. 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕੇਂਦਰ ਲਾਹੌਰ ਸੀ ।
5. ਸ਼ਹਿਰਾਂ ।

5. ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਸੀ । ਸੂਫ਼ੀ ਨੇਤਾ ਸ਼ੇਖ਼ ਜਾਂ ਪੀਰ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਇੱਕ ਅੱਲਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਅੱਲਾਂ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦੀ ਪੂਜਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਅੱਲ੍ਹਾ ਸਰਬ ਸ਼ਕਤੀਮਾਨ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਹਰ ਜਗ੍ਹਾ ਮੌਜੂਦ ਹੈ । ਅੱਲ੍ਹਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਉਹ ਪ੍ਰੇਮ ਭਾਵਨਾ ਉੱਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਧਰਮ ਦੇ ਬਾਹਰੀ ਦਿਖਾਵਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਅੱਲਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਉਹ ਪੀਰ ਜਾਂ ਗੁਰੂ ਦਾ ਹੋਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ।ਉਹ ਸੰਗੀਤ ਵਿੱਚ ਵੀ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਕੱਵਾਲੀ ਗਾਉਣ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਚਲਾਈ । ਉਹ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਨੀ ਆਪਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਕਰਤੱਵ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਹ ਦੂਸਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

1. ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ ਕਿਸ ਧਰਮ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੀ ?
2. ਸੂਫ਼ੀ ਸ਼ੇਖ ਹੋਰ ਕਿਸ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ?
3. ਸੂਫ਼ੀ ਸ਼ੇਖਾਂ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨੂੰ ਕੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
4. ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਸਿਧਾਤ ਲਿਖੋ ।
5. ਅੱਲਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸੁਫ਼ੀ ਕਿਸ ਦਾ ਹੋਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ?
(i) ਪੀਰ
(ii) ਕੱਵਾਲੀ
(iii) ਦਰਗਾਹ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਸੂਫ਼ੀ ਮਤ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੀ ।
2. ਸੂਫ਼ੀ ਸ਼ੇਖ ‘ਪੀਰ’ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਜਾਣੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।
3. ਸੂਫ਼ੀ ਸ਼ੇਖਾਂ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨੂੰ ਤਸਵੁਫ਼ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।
4. ਉਹ ਇੱਕ ਅੱਲ੍ਹਾ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦੇ ਹਨ ।
5. ਪੀਰ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀਆਂ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ? (What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji after he ascended the Gurgaddi ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕਿਹੜੀਆਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ? (What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji after his accession to Gurgaddi ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਅਨੇਕਾਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਦਾ ਵਿਰੋਧ – ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਜਾਂ ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਵੱਡਾ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਤੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਆਪਣਾ ਹੱਕ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਸੁਆਰਥੀ ਸੁਭਾਓ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਾਨ ਵਿੱਚ ਦਰਬਚਨ ਬੋਲੇ ।ਉਸ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲ ਕਰਮਚਾਰੀ ਸੁਲਹੀ ਖਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਅਕਬਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣ ਦਾ ਹਰ ਸੰਭਵ ਯਤਨ ਕੀਤਾ ।

2. ਕੱਟੜ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ – ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕੱਟੜ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਵੀ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਹ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵੱਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੇ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਗਏ । ਕੱਟੜਪੰਥੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ ਸਰਹਿੰਦ ਵਿਖੇ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ ਲਹਿਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਲਹਿਰ ਦਾ ਨੇਤਾ ਸ਼ੇਖ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ ਸੀ । 1605 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਗੀਰ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ ।ਉਹ ਬੜੇ ਕੱਟੜ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸੀ । ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਲੋੜੀਂਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਮਨ ਬਣਾ ਲਿਆ ।

3. ਪੁਜਾਰੀ ਵਰਗ ਦਾ ਵਿਰੋਧ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪੁਜਾਰੀ ਵਰਗ ਭਾਵ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਵੀ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਾਰਨ ਬਾਹਮਣਾਂ ਦਾ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਭਾਵ ਬਹੁਤ ਘੱਟਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਦੋਂ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਪਾਸ ਇਹ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕੀਤੀ ਕਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਲਿਖਿਆ ਹੈ । ਪੜਤਾਲ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਅਕਬਰ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਗ੍ਰੰਥ ਤਾਂ ਪੂਜਣ ਦੇ ਯੋਗ ਹੈ ।

4. ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦਾ ਵਿਰੋਧ-ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਜੋ ਕਿ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ਸੀ, ਆਪਣੀ ਲੜਕੀ ਲਈ ਕਿਸੇ ਯੋਗ ਵਰ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੇ ਆਦਮੀਆਂ ਨੇ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਨਾਲ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਝਾਅ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਅਪਸ਼ਬਦ ਕਹੇ | ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਤਨੀ ਦੇ ਮਜਬੂਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਇਹ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਪਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਰਿਸ਼ਤਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਾਨੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ? (What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਛੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਚਾਨਣਾ ਪਾਓ । (Throw a brief light on six important achievements of Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਵੱਲੋਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਪਾਏ ਯੋਗਦਾਨ ਬਾਰੇ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Describe the contribution of Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂਕਾਲ 1581 ਈ. ਤੋਂ 1606 ਈ. ਤਕ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਅਨੇਕਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ ਕੀਤੇ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸੀ । ਇਸ ਦੀ ਨੀਂਹ 13 ਜਨਵਰੀ, 1588 ਈ. ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਨੇ ਰੱਖੀ ਸੀ । 1601 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਇੱਕ ਮੀਲ ਪੱਥਰ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

2. ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ – 1590 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮਾਝੇ ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਤੋਂ 24 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦੱਖਣ ਵੱਲ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਸਰੋਵਰ ਵੀ ਖੁਦਵਾਇਆ ਗਿਆ । ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਸਰੋਵਰ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਯਾਤਰੂ ਇਸ ਭਵ ਸਾਗਰ ਤੋਂ ਤਰ ਜਾਵੇਗਾ ।

3. ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦਪੁਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ – 1593 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਲੰਧਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਈਸ਼ਵਰ ਦਾ ਸ਼ਹਿਰ । 1595 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਜਨਮ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵਿੱਚ ਬਿਆਸ ਨਦੀ ਦੇ ਕੰਢੇ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦਪੁਰ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

4. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ – ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ੱਕ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਮਹਾਨ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਵਾਧੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਲੰਗਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵਿਕਾਸ ਕਾਰਜਾਂ ਵਾਸਤੇ ਮਾਇਆ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਹਰੇਕ ਸਿੱਖ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦਸਵੰਧ (ਦਸਵਾਂ ਹਿੱਸਾ) ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਭੇਟ ਕਰੇ । ਇਸ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮਸੰਦ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ । ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਸੰਭਵ ਹੋ ਸਕਿਆ ।

5. ਆਦਿ ਗੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ – ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਸੀ । ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਲਿਖਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ 1604 ਈ. ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ, ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ, ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ, ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਬਾਣੀ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਵਿੱਚ ਕਈ ਭਗਤਾਂ, ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤਾਂ ਤੇ ਭੱਟਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਬਾਣੀ ਵੀ ਦਰਜ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਇਸ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਈ ਗਈ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ।

6. ਘੋੜਿਆਂ ਦੇ ਵਪਾਰ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਆਰਥਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਬਣਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅਰਬ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਘੋੜਿਆਂ ਦਾ ਵਪਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਉਤਸ਼ਾਹ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਦੇ ਦੂਰਗਾਮੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਰਾਹੀਂ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ । (Describe briefly the importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Harmandir Sahib.)
ਜਾਂ
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਅਤੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
ਉੱਤਰ-
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਵਿਚਕਾਰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਦੀ ਨੀਂਹ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਤੋਂ 13 ਜਨਵਰੀ, 1588 ਈ. ਨੂੰ ਰਖਵਾਈ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਕੁਝ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਇਹ ਸੁਝਾਅ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਮਾਰਤ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਨਾਲੋਂ ਉੱਚੀ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਪਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜੋ ਨੀਵਾਂ ਹੋਵੇਗਾ ਉਹ ਹੀ ਉੱਚਾ ਕਹਾਉਣ ਦੇ ਯੋਗ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਲਈ ਇਸ ਦੀ ਇਮਾਰਤ ਹੋਰਨਾਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਨਾਲੋਂ ਨੀਵੀਂ ਰੱਖੀ ਗਈ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਦੀਆਂ ਚਾਰੇ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਵੱਲ ਇੱਕ-ਇੱਕ ਦਰਵਾਜ਼ਾ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਭਾਵ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸੰਸਾਰ ਦੀਆਂ ਚਾਰੇ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਤੋਂ ਲੋਕ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਜਾਂ ਹੋਰ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਇੱਥੇ ਆ ਸਕਦੇ ਸਨ । 1601 ਈ. ਵਿੱਚ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਦਾ ਕਾਰਜ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ | ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਾਨ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਉਚਾਰਿਆ,
ਡਿਠੇ ਸਭੇ ਥਾਵ ਨਹੀਂ ਤੁਧ ਜੇਹਿਆ ॥

ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ 68 ਤੀਰਥ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾਂ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਫਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਵੇਗਾ । ਜੇ ਕੋਈ ਯਾਤਰੂ ਸੱਚੀ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰੇਗਾ ਉਸ ਨੂੰ ਇਸ ਭਵਸਾਗਰ ਤੋਂ ਮੁਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਵੇਗੀ । ਇਸ ਦਾ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ‘ਤੇ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ । ਉਹ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਇੱਥੇ ਪੁੱਜਣ ਲੱਗ ਪਏ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਵਿੱਚ ਬੜੀ ਸਹਾਇਤਾ ਮਿਲੀ । 16 ਅਗਸਤ, 1604 ਈ. ਨੂੰ ਇੱਥੇ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ ਥਾਪਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਸੇਵਾ, ਸਿਮਰਨ ਅਤੇ ਸਾਂਝੀਵਾਲਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕ ਬਣ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਸੰਦ ਵਿਵਸਥਾ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Masand System and its importance.)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਸੰਗਠਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Examine the organisation and development of Masand System.)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Masand System ?)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Examine the organisation and development of Masand System.)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਕਿਸ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ? ਇਸ ਦੇ ਕੀ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ ? (Who started Masand System ? What were its aims ?)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on ‘Masand System’.)
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੇ ਬੜਾ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਵਿਭਿੰਨ ਪੱਖਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਇਤਿਹਾਸ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਤੋਂ ਭਾਵ – ਮਸੰਦ ਸ਼ਬਦ ਫ਼ਾਰਸੀ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਮਸਨਦ ਤੋਂ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਮਸਨਦ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਉੱਚ ਸਥਾਨ ਕਿਉਂਕਿ ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀਆਂ ਨੂੰ ਉੱਚੇ ਆਸਣ ‘ਤੇ ਬਿਠਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਸੰਦ ਕਿਹਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ ਪਿਆ ।

2. ਆਰੰਭ – ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਆਰੰਭ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ਇਸ ਬਾਰੇ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਹੈ ਕਿ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਆਰੰਭ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਮਸੰਦਾਂ ਨੂੰ ਰਾਮਦਾਸੀਏ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਬਹੁਤੇ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਹੈ ਕਿ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਆਰੰਭ ਤਾਂ ਭਾਵੇਂ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤਾ ਸੀ ਪਰ ਇਸ ਦਾ ਅਸਲ ਵਿਕਾਸ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੋਇਆ ।

3. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਲੋੜ – ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਆਬਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਅਤੇ ਇੱਥੇ ਆਰੰਭ ਕੀਤੇ ਗਏ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਅਤੇ ਸੰਤੋਖਸਰ ਨਾਂ ਦੇ ਸਰੋਵਰਾਂ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਲਈ ਮਾਇਆ ਦੀ ਲੋੜ ਪਈ । ਦੂਸਰਾ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਸਮੇਂ ਤਕ ਸਿੱਖ ਸੰਗਤ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਧ ਗਈ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਵੱਡੀ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਲੰਗਰ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਲਈ ਵੀ ਮਾਇਆ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ । ਤੀਸਰਾ, ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਯੋਜਨਾਬੱਧ ਢੰਗ ਨਾਲ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇ ।

4. ਮਸੰਦਾਂ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ – ਮਸੰਦ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਜੋ ਬੜਾ ਸਾਦਾ ਅਤੇ ਪਵਿੱਤਰ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਬੜਾ ਸਤਿਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਗੁਜ਼ਾਰੇ ਲਈ ਕਿਰਤ ਕਮਾਈ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਘਰ ਲਈ ਇਕੱਠੀ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਮਾਇਆ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਪੈਸਾ ਲੈਣਾ ਵੀ ਪਾਪ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਮਸੰਦਾਂ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਜੱਦੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

5. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਮਹੱਤਵ – ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਆਰੰਭ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਬੜੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਅਦਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਾਰ ਸੰਭਵ ਹੋ ਸਕਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਏ । ਦੂਸਰਾ, ਇਸ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦੀ ਆਮਦਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੋ ਗਈ । ਤੀਸਰਾ, ਆਮਦਨ ਵਿੱਚ ਵਾਧੇ ਕਾਰਨ ਲੰਗਰ ਸੰਸਥਾ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਚੰਗੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਿਆ । ਚੌਥਾ, ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਵੀ ਬੜੀ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਅਤੇ ਮਹੱਤਵ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ ।
[Write a note on the compilation and importance of Adi Granth (Guru Granth Sahib Ji).]
ਜਾਂ
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਦੀ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly explain the significance of Adi Granth Sahib Ji.)
ਜਾਂ
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ `ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on the Adi Granth Sahib Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਜਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਸੀ ।

1. ਸੰਕਲਨ ਦੀ ਲੋੜ – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਲਈ ਕਈ ਕਾਰਨ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸਨ । ਪਹਿਲਾ, ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਰਹਿਨੁਮਾਈ ਦੇ ਲਈ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ । ਦੂਸਰਾ, ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਭਰਾ ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਰਚਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਬਾਣੀ ਕਹਿ ਕੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਬਾਣੀ ਸ਼ੁੱਧ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅੰਕਿਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਤੀਸਰਾ, ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਸੱਚੀ ਬਾਣੀ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

2. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਦਾ ਕੰਮ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਰਾਮਸਰ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਬਾਣੀ ਲਿਖਵਾਉਂਦੇ ਗਏ ਅਤੇ ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਇਸ ਨੂੰ ਲਿਖਦੇ ਗਏ । ਇਹ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਅਗਸਤ 1604 ਈ. ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ 16 ਅਗਸਤ, 1604 ਈ. ਨੂੰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ ਥਾਪਿਆ ਗਿਆ ।

3. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਯੋਗਦਾਨ ਦੇਣ ਵਾਲੇ – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਗੰਥ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਯੋਗਦਾਨ ਦੇਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆ ਹੈ-
(ਉ) ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ 976, ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ 62, ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ 907, ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ 679 ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ 2216 ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਹਨ । ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਦੇ 116 ਸ਼ਬਦ ਅਤੇ ਸ਼ਲੋਕ (59 ਸ਼ਬਦ ਅਤੇ 57 ਸ਼ਲੋਕ) ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ।

(ਅ) ਭਗਤ ਤੇ ਸੰਤ – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ 15 ਹਿੰਦੂ ਭਗਤਾਂ ਤੇ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤਾਂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਅੰਕਿਤ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਪਮੁੱਖ ਭਗਤਾਂ ਤੇ ਸੰਤਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਇਹ ਹਨ-ਕਬੀਰ ਜੀ, ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ, ਨਾਮਦੇਵ ਜੀ, ਗੁਰੂ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀ, ਧੰਨਾ ਜੀ, ਰਾਮਾਨੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਜੈਦੇਵ ਜੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਭਗਤ ਕਬੀਰ ਜੀ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ 541 ਸ਼ਬਦ ਹਨ ।

(ੲ) ਭੱਟ – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ 11 ਭੱਟਾਂ ਦੇ 123 ਸਵੱਯੇ ਵੀ ਅੰਕਿਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ । ਕੁਝ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਭੱਟਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਇਹ ਹਨ-ਕਲ੍ਹਸਹਾਰ ਜੀ, ਨਲ ਜੀ, ਬਲ ਜੀ, ਭਿਖਾ ਜੀ ਤੇ ਹਰਬੰਸ ਜੀ ।

4. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਮਹੱਤਵ – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੇ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਦੇ ਹਰੇਕ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਅਗਵਾਈ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤੇ ਹਨ । ਇਸ ਦੀ ਬਾਣੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਏਕਤਾ ਅਤੇ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੰਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note a Prithi Chand.)
ਜਾਂ
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਕੌਣ ਸੀ ? ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ? (Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਜਾਂ ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਮੀਣਾ ਸੰਪਰਦਾਇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ਉਹ ਬੜਾ ਸੁਆਰਥੀ ਅਤੇ ਲਾਲਚੀ ਸੁਭਾਅ ਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਸੌਂਪਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਸੌਂਪੀ । ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਤਿਲਮਿਲਾ ਉੱਠਿਆ ।ਉਹ ਤਾਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸੁਪਨੇ ਲੈ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਖੁੱਲ੍ਹ ਕੇ ਵਿਰੋਧ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਤਦ ਤਕ ਚੈਨ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਬੈਠੇਗਾ ਜਦ ਤਕ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਨਹੀਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ।

ਉਸ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਮੇਹਰਬਾਨ ਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰ ਮਿਲੇਗੀ ਪਰ ਜਦੋਂ ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਘਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਉਸ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਉਮੀਦਾਂ ‘ਤੇ ਪਾਣੀ ਫਿਰ ਗਿਆ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਜਾਨੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਮੁਗਲ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਵਿਰੁੱਧ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਰਚਣੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਉਸ ਦੀਆਂ ਇਹ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀਆਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਕੌਣ ਸੀ ? ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
ਜਾਂ
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Chandu Shah.)
ਉੱਤਰ-
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ਸੀ ।ਉਹ ਆਪਣੀ ਲੜਕੀ ਲਈ ਕਿਸੇ ਯੋਗ ਵਰ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਚੰਦ ਸ਼ਾਹ ਦੇ ਸਲਾਹਕਾਰਾਂ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਲੜਕੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਲੜਕੇ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਨਾਲ ਕਰਨ ਦੀ ਸਲਾਹ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਨਾਲ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਤਿਲਮਿਲਾ ਉੱਠਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਸ਼ਬਦ ਕਹੇ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਪਤਨੀ ਦੁਆਰਾ ਮਜਬੂਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਉਹ ਇਹ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਿਆ ।

ਉਸ ਨੇ ਇਸ ਰਿਸ਼ਤੇ ਨੂੰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਸ਼ਗਨ ਭੇਜਿਆ ! ਕਿਉਂਕਿ ਹੁਣ ਤਕ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੁਆਰਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਬਾਰੇ ਕਹੇ ਗਏ ਅਪਮਾਨ ਭਰੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦਾ ਪਤਾ ਲੱਗ ਚੁੱਕਿਆ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਸ਼ਗਨ ਨੂੰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਇਆ ।ਇਸ ਦਾ ਜਹਾਂਗੀਰ ‘ਤੇ ਲੋੜੀਂਦਾ ਅਸਰ ਹੋਇਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਛੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । (Mention six main causes for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly explain the causes responsible for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰਾਂ ਹੈ-

1. ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਕੱਟੜਤਾ – ਜਹਾਂਗੀਰ ਬੜਾ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਇਹ ਕੱਟੜਤਾ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀ । ਉਹ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਕਦੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦਿਨ-ਬ-ਦਿਨ ਵੱਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ ।

2. ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਵਿਕਾਸ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਵਧਦੀ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯਤਾ ਦਾ ਵੀ ਯੋਗਦਾਨ ਹੈ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ, ਤਰਨ ਤਾਰਨ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦਪੁਰ ਆਦਿ ਨਗਰਾਂ ਅਤੇ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਹੁੰਦਾ ਚਲਾ ਗਿਆ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਹਾਇਤਾ ਮਿਲੀ । ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਲਈ ਇਹ ਗੱਲ ਅਸਹਿ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕੀਤਾ ।

3. ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਦੀ ਦੁਸ਼ਮਣੀ – ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਬੜਾ ਲਾਲਚੀ ਅਤੇ ਖ਼ੁਦਗਰਜ਼ ਇਨਸਾਨ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲੀ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਨਾਰਾਜ਼ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਰਚਣੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਹੋਰ ਨਫ਼ਰਤ ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।

4. ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਦੁਸ਼ਮਣੀ – ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਲੜਕੀ ਲਈ ਕਿਸੇ ਯੋਗ ਵਰ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਦਾ ਨਾਂ ਸੁਝਾਇਆ ਗਿਆ । ਇਸ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਾਨ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਸ਼ਬਦ ਕਹੇ | ਪਰ ਪਤਨੀ ਦੁਆਰਾ ਮਜਬੂਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਉਹ ਇਹ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਸ ਰਿਸ਼ਤੇ ਨੂੰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬੇਇੱਜ਼ਤੀ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਕੰਨ ਭਰਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਮਨ ਬਣਾਇਆ ।

5. ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ – ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਇਸ ਲਹਿਰ ਦਾ ਨੇਤਾ ਸ਼ੇਖ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ ਸੀ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵੱਧਦੇ ਹੋਏ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਲਈ ਭੜਕਾਇਆ ।

6. ਖੁਸਰੋ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਖੁਸਰੋ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਦਾ ਫੌਰੀ ਕਾਰਨ ਬਣਿਆ । ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਖੁਸਰੋ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਖੁਸਰੋ ਦੇ ਮੱਥੇ ‘ਤੇ ਤਿਲਕ ਲਗਾਇਆ ਅਤੇ ਕੁਝ ਲੋੜੀਂਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਵੀ ਕੀਤੀ । ਜਦੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਗਵਰਨਰ, ਮੁਰਤਜਾ ਮਾਂ ਨੂੰ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਵੇ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the role of Naqashbandis in the martyrdom of Guru Arjan Sahib.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਵੱਡਾ ਹੱਥ ਸੀ । ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ ਕੱਟੜਪੰਥੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਇੱਕ ਲਹਿਰ ਸੀ । ਇਸ ਲਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੇਂਦਰ ਸਰਹਿੰਦ ਵਿਖੇ ਸੀ । ਇਹ ਲਹਿਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਧਦੇ ਹੋਏ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਬੌਖਲਾ ਉੱਠੀ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਲਹਿਰ ਇਸਲਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਨੂੰ ਪ੍ਰਫੁੱਲਿਤ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੀ ਸੀ । ਸ਼ੇਖ਼ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ ਜੋ ਉਸ ਸਮੇਂ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਨੇਤਾ ਸੀ, ਬਹੁਤ ਕੱਟੜ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਮੁਗ਼ਲ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਅਸਰ ਰਸੂਖ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜੇਕਰ ਸਮਾਂ ਰਹਿੰਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮਨ ਨਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਤਾਂ ਇਸ ਦਾ ਇਸਲਾਮ ਉੱਤੇ ਤਬਾਹਕੁੰਨ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਵੇਗਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਫੌਰੀ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸੀ ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Arjan Sahib.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਖੁਸਰੋ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਦਾ ਫੌਰੀ ਕਾਰਨ ਬਣਿਆ । ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਖੁਸਰੋ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ ।ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਵਿਰੁੱਧ ਰਾਜਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਖੁਸਰੋ ਨੂੰ ਫੜਨ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਉਹ ਭੱਜ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਆ ਗਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਖੁਸਰੋ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚਿਆ । ਅਕਬਰ ਦਾ ਪੋਤਰਾ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਤੇ ਜਿਸ ਦੇ ਸਿੱਖ ਗੁਰੂਆਂ ਨਾਲ ਬੜੇ ਚੰਗੇ ਸੰਬੰਧ ਸਨ ਇਹ ਕੁਦਰਤੀ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਉਸ ਨਾਲ ਹਮਦਰਦੀ ਕਰਦੇ । ਨਾਲੇ ਗੁਰੂ ਘਰ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਕੋਈ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਦੇਣ ਦੀ ਅਰਦਾਸ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਖੁਸਰੋ ਦੇ ਮੱਥੇ ‘ਤੇ ਤਿਲਕ ਲਗਾਇਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਕਾਬਲ ਜਾਣ ਲਈ ਕੁਝ ਲੋੜੀਂਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਵੀ ਕੀਤੀ । ਜਦੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕਾ ਮਿਲ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਮੁਰਤਜਾ ਮਾਂ ਨੂੰ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਵੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਘੋਰ ਤਸੀਹੇ ਦੇ ਕੇ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜਾਇਦਾਦ ਜ਼ਬਤ ਕਰ ਲਈ ਜਾਵੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਲਿਖੋ । (Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe the importance of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮੋੜ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।ਇਸ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ-

1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ’ਤੇ ਬੜਾ ਡੂੰਘਾ ਅਸਰ ਪਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ । ਇੱਥੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਥਿਆਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਸਿਖਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣ ਕੇ ਉਭਰਨ ਲੱਗੇ ।

2. ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਇਹ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ਕਿ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਵਿਰੁੱਧ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦਾ ਹੋਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਇੱਕ ਹੋਣ ਲੱਗੇ ।

3. ਸਿੱਖਾਂ ਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸੰਬੰਧ ਸੁਹਿਰਦ ਸਨ । ਪਰ ਹੁਣ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਪੂਰਨ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਚੁੱਕਾ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਤੋਂ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਹੋਣਾ ਬੰਦ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿੱਚਾਲੇ ਆਪਸੀ ਪਾੜਾ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

4. ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ‘ਕ ਦੌਰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ, ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਿੱਖ ਨੇਤਾਵਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ
ਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਸਾਹਮਣਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਤਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਦਾ ਸੋਮਾ ਬਣ ਗਈ ।

5. ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੀ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯਤਾ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯ ਹੋ ਗਿਆ | ਇਸ ਘਟਨਾ ਨਾਲ ਨਾ ਸਿਰਫ ਹਿੰਦੁ, ਸਗੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਲਈ ਅਥਾਹ ਪ੍ਰੇਮ ਅਤੇ ਭਗਤੀ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਈ । ਉਹ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਯੁੱਗ ਦਾ ਆਰੰਭ ਕੀਤਾ ।

6. ਸੁਤੰਤਰ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਇਹ ਪ੍ਰਣ ਕੀਤਾ ਕਿ ਜਦੋਂ ਤਕ ਉਹ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਅੰਤ ਨਹੀਂ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਉਹ ਸੁੱਖ ਦਾ ਸਾਹ ਨਹੀਂ ਲੈਣਗੇ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸ਼ਸਤਰ ਚੁੱਕ ਲਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਖ਼ੀਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸੁਤੰਤਰ ਰਾਜ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਸਾਕਾਰ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਔਕੜਾਂ (Early Career and Ditficultles of Guru Arjan Dev Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮੁੱਢਲੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਦੇ ਸਮੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀਆਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ?
(Describe briefly the early life of Guru Arjan Dev Ji. What difficulties he had to face at the time of his accession to Guruship ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪੰਜਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਗੁਰੂਕਾਲ 1581 ਈ. ਤੋਂ 1606 ਈ. ਤਕ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰੂਕਾਲ ਵਿੱਚ ਜਿੱਥੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਅਦੁੱਤਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ, ਉੱਥੇ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਯੁੱਗ ਦਾ ਆਰੰਭ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਮੁੱਢਲੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

I. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਜੀਵਨ (Early Career of Guru Arjan Dev Ji)

1. ਜਨਮ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ (Birth and Parentage) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 15 ਅਪਰੈਲ, 1563 ਈ. ਨੂੰ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਆਪ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਸਨ ਅਤੇ ਸੋਢੀ ਜਾਤ ਦੇ ਖੱਤਰੀ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਆਪ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਸੀ ।

2. ਬਚਪਨ ਅਤੇ ਵਿਆਹ (Childhood and Marriage) – ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਸਭ ਦੇ, ਖ਼ਾਸ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਨਾਨਾ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਬਹੁਤ ਲਾਡਲੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਵਾਰ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਕੀਤੀ ਕਿ, “ਇਹ ਮੇਰਾ ਦੋਹਤਾ ਬਾਣੀ ਕਾ ਬੋਹਿਥਾ ਹੋਵੇਗਾ ।” ਅਰਥਾਤ ਮੇਰਾ ਇਹ ਦੋਹਤਾ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਕਿਸ਼ਤੀ ਬਣੇਗਾ ਜੋ ਮਨੁੱਖਤਾ ਨੂੰ ਸੰਸਾਰ ਰੂਪੀ ਮਹਾਂਸਾਗਰ ਤੋਂ ਪਾਰ ਉਤਾਰੇਗੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਹ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਸੱਚੀ ਨਿਕਲੀ । ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਹੀ ਬੜੇ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਅਤੇ ਨਾਨਾ ਜੀ ਤੋਂ ਗੁਰਬਾਣੀ ਸੰਬੰਧੀ ਕਾਫ਼ੀ ਗਿਆਨ ਹਾਸਲ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਆਪ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਮਉ ਪਿੰਡ ਦੇ ਨਿਵਾਸੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਚੰਦ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ ਗੰਗਾ ਦੇਵੀ ਜੀ ਨਾਲ ਹੋਇਆ । 1595 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਘਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ।

3. ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ (Assumption of Guruship) – ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਤਿੰਨ ਪੁੱਤਰ ਸਨ | ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਬੜਾ ਬੇਈਮਾਨ ਤੇ ਸੁਆਰਥੀ ਸੀ । ਦੂਜਾ ਪੁੱਤਰ ਮਹਾਂਦੇਵ ਬੈਰਾਗੀ ਸੁਭਾਅ ਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਸੰਸਾਰਿਕ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਰੁਚੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਤੀਜੇ ਅਤੇ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਭਗਤੀ, ਸੇਵਾ ਅਤੇ ਨਿਮਰਤਾ ਆਦਿ ਗੁਣ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਨ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ 1581 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪੰਜਵੇਂ ਗੁਰੂ ਬਣੇ ।

II. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਔਕੜਾਂ (Difficulties of Guru Arjan Dev Ji)

ਗੁਰਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਅਨੇਕਾਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition of Prithi Chand) – ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਜਾਂ ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਮੀਣਾ ਸੰਪਰਦਾਇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਉਹ ਵੱਡਾ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਤੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਆਪਣਾ ਹੱਕ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਸੁਆਰਥੀ ਸੁਭਾਓ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਾਨ ਵਿੱਚ ਦੁਰਬਚਨ ਬੋਲੇ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਸਮੇਂ ਇਹ ਅਫਵਾਹ ਫੈਲਾ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਹਿਰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਜਾਇਦਾਦ ਵੀ ਲੈ ਲਈ । ਉਸ ਨੇ ਲੰਗਰ ਲਈ ਆਈ ਮਾਇਆ ਵੀ ਹੜੱਪਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਜਦੋਂ 1595 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਘਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਇਸ ਬਾਲਕ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦੇ ਕਈ ਯਤਨ ਕੀਤੇ । ਉਸ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲ ਕਰਮਚਾਰੀ ਸੁਲਹੀ ਖਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਅਕਬਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣ ਦਾ ਹਰ ਸੰਭਵ ਯਤਨ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਕਸਰ ਬਾਕੀ ਨਾ ਛੱਡੀ ।

2. ਕੱਟੜ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition of Orthodox Muslims) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕੱਟੜ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਵੀ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਹ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵੱਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੇ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਗਏ । ਕੱਟੜਪੰਥੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਧਰਮ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਸਰਹਿੰਦ ਵਿਖੇ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ ਲਹਿਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਲਹਿਰ ਦਾ ਨੇਤਾ ਸ਼ੇਖ਼ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ ਸੀ । 1605 ਈ. ਵਿੱਚ ਜਹਾਂਗੀਰ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਨਵਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਣਿਆ । ਉਹ ਬੜੇ ਕੱਟੜ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸੀ । ਨਕਸ਼ਬਾਦੀਆਂ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਲੋੜੀਂਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਮਨ ਬਣਾ ਲਿਆ ।

3. ਬਾਹਮਣਾਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition of Brahmans) – ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਪੁਜਾਰੀ ਵਰਗ ਭਾਵ ਬਾਹਮਣਾਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਵੀ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਾਰਨ ਬਾਹਮਣਾਂ ਦਾ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਭਾਵ ਬਹੁਤ ਘੱਟਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਬਾਹਮਣਾਂ ਦੇ ਬਿਨਾਂ ਹੀ ਆਪਣੇ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜ ਮਨਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਦੋਂ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਬ੍ਰਾਹਮਣਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਪਾਸ ਇਹ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕੀਤੀ ਕਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਲਿਖਿਆ ਹੈ । ਪੜਤਾਲ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਅਕਬਰ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਗੰਥ ਤਾਂ ਪੂਜਣ ਦੇ ਯੋਗ ਹੈ ।

4. ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition of Chandu Shah) – ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਜੋ ਕਿ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ਸੀ, ਆਪਣੀ ਲੜਕੀ ਲਈ ਕਿਸੇ ਯੋਗ ਵਰ ਵੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੇ ਆਦਮੀਆਂ ਨੇ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਨਾਲ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਝਾਅ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਅਪਸ਼ਬਦ ਕਹੇ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਉਹ ਆਪਣੀ ਪਤਨੀ ਦੇ ਮਜਬੂਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਇਹ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਸਮੇਂ ਤਕ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੁਆਰਾ ਕਹੇ ਗਏ ਗੁਰੂ ਜੀ ਪ੍ਰਤੀ ਨਿਰਾਦਰੀ ਭਰੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚਲ ਗਿਆ ਸੀ, ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਇਹ ਰਿਸ਼ਤਾ ਮਨਜ਼ੂਰ ਨਾ ਕਰਨ ਲਈ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਰਿਸ਼ਤਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਹੁਣ ਚੰਦੂ ਇੱਕ ਲੱਖ ਰੁਪਿਆ ਲੈ ਕੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਕੋਲ ਪਹੁੰਚਿਆ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਦਾਜ ਦਾ ਲਾਲਚ ਦੇਣ ਲੱਗਾ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਹਾ, “ਮੇਰੇ ਸ਼ਬਦ ਪੱਥਰ ‘ਤੇ ਲਕੀਰ ਹਨ । ਜੇ ਤੂੰ ਸਾਰੀ ਦੁਨੀਆਂ ਵੀ ਦਾਜ ਵਿੱਚ ਦੇ ਦੇਵੇਂ ਤਾਂ ਵੀ ਮੇਰਾ ਲੜਕਾ ਤੇਰੀ ਲੜਕੀ ਨਾਲ ਸ਼ਾਦੀ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗਾ ।” ਇਸ ਕਾਰਨ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਾਨੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of Sikhism under Guru Arjan Dev Ji).

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ? (What was Guru Arjan Dev Ji’s Contribution in the evolution of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਲਈ ਕੀਤੇ ਸੰਗਠਨਾਤਮਕ ਕੰਮਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the various organisational works done by Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਵਿਭਿੰਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give an account of various achievements of Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the organisation and development of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Discuss the contribution of Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂਕਾਲ 1581 ਈ. ਤੋਂ 1606 ਈ. ਤਕ ਸੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਯੁੱਗ ਦਾ ਆਰੰਭ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਅਨੇਕਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ ਕੀਤੇ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਮਹਾਨ ਕੰਮਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ 1

1. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ (Construction of Harmandir Sahib) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸੀ । ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਕਰਾਏ ਗਏ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਵਾਇਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਹਰਿਮੰਦਰ ਈਸ਼ਵਰ ਦਾ ਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਇਆ । ਇਸ ਦੀ ਨੀਂਹ 13 ਜਨਵਰੀ, 1588 ਈ. ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਨੇ ਰੱਖੀ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸੁਝਾਅ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਮਾਰਤ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੀਆਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਤੋਂ ਉੱਚੀ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਪਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜੋ ਨੀਵਾਂ ਹੋਵੇਗਾ ਉਹ ਹੀ ਉੱਚਾ ਕਹਾਉਣ ਦੇ ਯੋਗ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਲਈ ਇਸ ਦੀ ਇਮਾਰਤ ਹੋਰਨਾਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਨਾਲੋਂ ਨੀਵੀਂ ਰੱਖੀ ਗਈ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਇਸ ਦੀਆਂ ਚਾਰੇ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਵੱਲ ਬਣਵਾਇਆ ਗਿਆ ਇੱਕ-ਇੱਕ ਦਰਵਾਜ਼ਾ ਹੈ ਇਸ ਦਾ ਭਾਵ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸੰਸਾਰ ਦੀਆਂ ਚਾਰੇ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਤੋਂ ਲੋਕ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਇੱਥੇ ਆ ਸਕਦੇ ਹਨ | 1601 ਈ. ਨੂੰ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ ।

ਇਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਨੂੰ ਹਿੰਦੁਆਂ ਦੇ 68 ਤੀਰਥ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਫਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਵੇਗਾ । ਸਿੱਖ ਉੱਥੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਲੱਗੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਛੇਤੀ ਹੀ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤੀਰਥ ਅਸਥਾਨ ਬਣ ਗਿਆ । ਸਿੱਧ ਲੇਖਕ ਜੀ. ਐੱਸ. ਤਾਲਿਬ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਇਸ ਮੰਦਰ ਅਤੇ ਸਰੋਵਰ ਦਾ ਸਿੱਖਾਂ ਲਈ ਉਹੀ ਸਥਾਨ ਹੈ ਜੋ ਮੱਕੇ ਦਾ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਲਈ, ਜੇਰੂਸਲੇਮ ਦਾ ਯਹੂਦੀਆਂ ਅਤੇ ਈਸਾਈਆਂ ਲਈ ਅਤੇ ਬੋਧ ਗਯਾ ਦਾ ਬੋਧੀਆਂ ਲਈ ’’ 1

2. ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ (Foundation of Tarn Taran) – 1590 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਮਾਝੇ ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਤੋਂ 24 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦੱਖਣ ਵੱਲ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਸਰੋਵਰ ਵੀ ਖੁਦਵਾਇਆ ਗਿਆ | ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਸਰੋਵਰ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਯਾਤਰੂ ਇਸ ਭਵ ਸਾਗਰ ਤੋਂ ਤਰ ਜਾਵੇਗਾ । ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਛੇਤੀ ਹੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਹੋਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਬਣ ਗਿਆ । ਇਸ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਸਦਕਾ ਮਾਝੇ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਜੱਟਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਲਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਬਹੁਮੁੱਲੀ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ ।

3. ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦਪੁਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ (Foundation of Kartarpur and Hargobindpur) – 1593 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਜਲੰਧਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ “ਈਸ਼ਵਰ ਦਾ ਸ਼ਹਿਰ । ਇਹ ਸ਼ਹਿਰ ਬਿਆਸ ਅਤੇ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਦਰਮਿਆਨ ਸਥਿਤ ਹੈ । ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਗੰਗਸਰ ਨਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਸਰੋਵਰ ਵੀ ਬਣਵਾਇਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੇਂਦਰ ਬਣ ਗਿਆ । 1595 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਜਨਮ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵਿੱਚ ਬਿਆਸ ਨਦੀ ਦੇ ਠੰਢੇ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦਪੁਰ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

4. ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ (Construction of a Baoli at Lahore) – ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਸਿੱਖ ਸੰਗਤਾਂ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ‘ਤੇ ਲਾਹੌਰ ਗਏ । ਇੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਡੱਬੀ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਵਾਇਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਸ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਇੱਕ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਮਿਲ ਗਿਆ ।

5. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of Masand System) – ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ੱਕ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮਹਾਨ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਮਸੰਦ ਫ਼ਾਰਸੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ‘ਮਸਨਦ ਤੋਂ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜਿਸਦਾ ਸ਼ਾਬਦਿਕ ਅਰਥ ਹੈ “ਉੱਚਾ ਸਥਾਨ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀ ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਉੱਚੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਸੰਦ ਕਿਹਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਵਾਧੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਲੰਗਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵਿਕਾਸ ਕਾਰਜਾਂ ਵਾਸਤੇ ਮਾਇਆ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਹਰੇਕ ਸਿੱਖ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦਸਵੰਧ ਦਸਵਾਂ ਹਿੱਸਾ) ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਭੇਟ ਕਰੇ ।

ਇਸ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮਸੰਦ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ । ਇਹ ਮਸੰਦ ਆਪਣੇ ਇਲਾਕੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖੀ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਮਾਇਆ ਵੀ ਇਕੱਠੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਇਸ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਵਿਸਾਖੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਲੀ ਦੇ ਮੌਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਕੋਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਸੰਭਵ ਹੋ ਸਕਿਆ । ਦੂਜਾ ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦੀ ਆਮਦਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੋ ਗਈ ।

6. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ (Compilation of Adi Granth Sahib Ji) – ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਗੁਰੂਆਂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਅਸਲ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅੰਕਿਤ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵੱਖਰਾ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥ ਦੇਣਾ ਸੀ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਦਾ ਕਾਰਜ ਰਾਮਸਰ ਨਾਂ ਦੇ ਸਰੋਵਰ ਦੇ ਕੰਢੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਲਿਖਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ 1604 ਈ. ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ ।

ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ, ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ, ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ, ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਬਾਣੀ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਵਿੱਚ ਕਈ ਭਗਤਾਂ, ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤਾਂ ਤੇ ਭੱਟਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਬਾਣੀ ਵੀ ਦਰਜ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਈ ਗਈ ਅਤੇ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਦਰਜਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ | ਇਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਜਾਗ੍ਰਿਤੀ ਲਿਆਉਣ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਾਰੇ ਬਹੁਮੁੱਲੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਡਾਕਟਰ ਹਰੀ ਰਾਮ ਗੁਪਤਾ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ,
‘‘ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ।’’

7. ਘੋੜਿਆਂ ਦਾ ਵਪਾਰ (Trade of Horses) – ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਤਰੱਕੀ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਆਰਥਿਕ ਤਰੱਕੀ ਵੀ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅਰਬ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਘੋੜਿਆਂ ਦਾ ਵਪਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ਉਤਸ਼ਾਹ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਦੇ ਤਿੰਨ ਲਾਭ ਹੋਏ । ਪਹਿਲਾ, ਸਿੱਖ ਚੰਗੇ ਵਪਾਰੀ ਸਿੱਧ ਹੋਏ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ ਸੁਧਰ ਗਈ । ਦੂਸਰਾ, ਉਹ ਚੰਗੇ ਘੋੜਸਵਾਰ ਬਣ ਗਏ । ਤੀਸਰਾ, ਇਸ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਇਸ ਵਹਿਮ ‘ਤੇ ਕਰਾਰੀ ਸੱਟ ਮਾਰੀ ਕਿ ਸਮੁੰਦਰ ਪਾਰ ਕਰਨ ਨਾਲ ਹੀ ਕਿਸੇ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਧਰਮ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

8. ਅਕਬਰ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ (Friendly relations with Akbar) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਵਿਚਾਲੇ ਦੋਸਤਾਨਾ ਸੰਬੰਧ ਰਹੇ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਪ੍ਰਿਥੀਆ, ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ, ਬਾਹਮਣਾਂ ਅਤੇ ਕੱਟੜ ਪੰਥੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ ਅਕਬਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ, ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਚਾਲਾਂ ਬੇਕਾਰ ਗਈਆਂ । ਕਈ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ ਅਕਬਰ ਨੂੰ ਇਹ ਕਹਿ ਕੇ ਭੜਕਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਕਿ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਇਸਲਾਮ ਵਿਰੋਧੀ ਗੱਲਾਂ ਲਿਖੀਆਂ ਹਨ । ਪਰ ਅਕਬਰ ਇਸ ਗੰਥ ਨੂੰ ਪੂਜਣਯੋਗ ਮੰਨਦਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਅਕਬਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਲੋਗਾਨ ਵਿੱਚ 10% ਦੀ ਕਮੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਜਿੱਥੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ, ਉੱਥੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਸਹਾਇਤਾ ਮਿਲੀ ।

9. ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ (Nomination of the successor) – ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਹੋ ਕੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਣ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜ ਰੱਖਣ ਦਾ ਵੀ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਨਾ ਕੇਵਲ ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੀ ਪਰੰਪਰਾ ਨੂੰ ਹੀ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ, ਸਗੋਂ ਇਸ ਦੇ ਸਰੂਪ ਨੂੰ ਵੀ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ।

10. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੀਆਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ (Estimate of Guru Arjan Sahibs Achievements) – ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ, ਕਿ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ, ਤਰਨ ਤਾਰਨ, ਹਰਿਗੋਬਿੰਦਪੁਰ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ, ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਦਿਸ਼ਾ ਮਿਲੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਇਹ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸੰਗਠਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉਭਰ ਕੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ।
ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਹਰਬੰਸ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ,
“ਪੰਜਵੇਂ ਗੁਰੂ, ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦ੍ਰਿੜ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ।” 1
ਇੱਕ ਹੋਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਜੀ. ਐੱਸ. ਮਨਸੁਖਾਨੀ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਜੀ ਦੇ ਗੁਰੂਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ।” 2

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮੁੱਢਲੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨੂੰ ਕੀ ਦੇਣ ਹੈ ? (Give an account of the early career of Guru Arjan Dev Ji. What was his contribution to Sikhism ?)
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 1 ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 2 ਦੇ ਉੱਤਰ ਸੰਯੁਕਤ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਦੇਣ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ (Adi Granth Sahib Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਮਹੱਤਵ ਸੰਬੰਧੀ ਇੱਕ ਵਿਸਥਾਰ ਪੂਰਵਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a detailed note on the compilation and historic importance of Adi Granth Sahib Ji.)
ਜਾਂ
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ, ਭਾਸ਼ਾ, ਵਿਸ਼ਾ-ਵਸਤੂ ਅਤੇ ਮਹੱਤਵ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਆਲੋਚਨਾਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a critical note on compilation, language, contents and significance of the Adi Granth Sahib Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਜਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਇਸ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਪ੍ਰਤੀ ਉਹੀ ਸ਼ਰਧਾ ਹੈ ਜੋ ਬਾਈਬਲ ਲਈ ਈਸਾਈਆਂ, ਕੁਰਾਨ ਲਈ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗੀਤਾ ਦੇ ਲਈ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਹੈ । ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਸਾਰੀ ਮਨੁੱਖ ਜਾਤੀ ਲਈ ਇੱਕ ਚਾਨਣ ਮੁਨਾਰਾ ਹੈ ।

1. ਸੰਕਲਨ ਦੀ ਲੋੜ (Need for its Compilation) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਲਈ ਕਈ ਕਾਰਨ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸਨ । ਪਹਿਲਾ, ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਰਹਿਨੁਮਾਈ ਦੇ ਲਈ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ । ਦੂਸਰਾ, ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਭਰਾ ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਰਚਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਬਾਣੀ ਕਹਿ ਕੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਬਾਣੀ ਸ਼ੁੱਧ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅੰਕਿਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਤੀਸਰਾ, ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਸੱਚੀ ਬਾਣੀ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

2. ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ (Collection of Hymns) – ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਲਈ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਰੋਤਾਂ ਤੋਂ ਬਾਣੀ ਇਕੱਠੀ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ, ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਪੁੱਤਰ ਬਾਬਾ ਮੋਹਨ ਜੀ ਪਾਸ ਪਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਆਪ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਤੋਂ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਨੰਗੇ ਪੈਰੀਂ ਗਏ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਨਿਮਰਤਾ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਬਾਬਾ ਮੋਹਨ ਜੀ ਨੇ ਸਾਰੀ ਬਾਣੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਕੋਲ ਹੀ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਹਿੰਦੂ ਭਗਤਾਂ ਤੇ ਮੁਸਲਿਮ ਸੰਤਾਂ ਦੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਤੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਗੁਰੂਆਂ ਦੀ ਸਹੀ ਬਾਣੀ ਮੰਗੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸੋਮਿਆਂ ਤੋਂ ਬਾਣੀ ਦਾ ਸੰਗ੍ਰਹਿ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ (Compilation of Adi Granth Sahib Ji) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਦਾ ਕੰਮ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਰਾਮਸਰ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਬਾਣੀ ਲਿਖਵਾਉਂਦੇ ਗਏ ਅਤੇ ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਇਸ ਨੂੰ ਲਿਖਦੇ ਗਏ । ਇਹ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਅਗਸਤ, 1604 ਈ. ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ ਥਾਪਿਆ ਗਿਆ ।

4. ਆਦਿ ਰੀਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਯੋਗਦਾਨ ਦੇਣ ਵਾਲੇ (The Contributors of the Adi Granth Sahib Ji) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਗੰਥ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਯੋਗਦਾਨ ਦੇਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆ ਹੈ-

(ੳ) ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ (Sikh Gurus) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ 976, ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ 62, ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ 907, ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ 679 ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ 2216 ਸ਼ਬਦ ਅੰਕਿਤ ਹਨ । ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਦੇ 116 ਸ਼ਬਦ ਅਤੇ ਸ਼ਲੋਕ (59 ਸ਼ਬਦ ਅਤੇ 57 ਸ਼ਲੋਕ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਦਰਜਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

(ਅ) ਭਗਤ ’ਤੇ ਸੰਤ (Bhagats and Saints) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ 15 ਹਿੰਦੂ ਭਗਤਾਂ ਤੇ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤਾਂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਅੰਕਿਤ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਭਗਤਾਂ ਤੇ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਇਹ ਹਨ-ਭਗਤ ਕਬੀਰ ਜੀ, ਸ਼ੇਖ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ, ਭਗਤ ਨਾਮਦੇਵ ਜੀ, ਭਗਤ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀ, ਭਗਤ ਧੰਨਾ ਜੀ, ਭਗਤ ਰਾਮਾਨੰਦ ਜੀ ਅਤੇ ਭਗਤ ਜੈਦੇਵ ਜੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਭਗਤ ਕਬੀਰ ਜੀ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ 541 ਸ਼ਬਦ ਹਨ ।

(ੲ) ਭੱਟ (Bhatts) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ 11 ਭੱਟਾਂ ਦੇ 123 ਸਵੱਯੇ ਵੀ ਅੰਕਿਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ । ਕੁਝ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਭੱਟਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਇਹ ਹਨ-ਕਲ੍ਹਸਹਾਰ ਜੀ, ਨਲ ਜੀ, ਬਲ ਜੀ, ਭਿਖਾ ਜੀ ਤੇ ਹਰਬੰਸ ਜੀ ।

5. ਬਾਣੀ ਦੀ ਤਰਤੀਬ (Arrangement of the Matter) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਦਰਜ ਕੀਤੀ ਗਈ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਤਿੰਨ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਪਹਿਲੇ ਹਿੱਸੇ ਵਿੱਚ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ, ਰਹਰਾਸਿ ਸਾਹਿਬ ਅਤੇ ਸੋਹਿਲਾ ਆਉਂਦੇ ਹਨ । ਦੂਸਰੇ ਭਾਗ ਵਿੱਚ ਵਰਣਿਤ ਬਾਣੀ ਨੂੰ 31 ਰਾਗਾਂ ਅਨੁਸਾਰ 31 ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਸਾਰੇ ਹੀ ਗੁਰੂਆਂ ਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ‘ਨਾਨਕ’ ਦਾ ਨਾਂ ਵਰਤਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਤਰ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਲਾ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਤੀਸਰੇ ਭਾਗ ਵਿੱਚ ਭੱਟਾਂ ਦੇ ਸਵੈਯੇ, ਸਿੱਖ ਗੁਰੂਆਂ ਅਤੇ ਭਗਤਾਂ ਦੇ ਉਹ ਸਲੋਕ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਵੰਡਿਆ ਜਾ ਸਕਿਆ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ‘ਮੁੰਦਾਵਣੀ’ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਸਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਸਮਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਕੁੱਲ 1430 ਅੰਗ (ਸਫ਼ੇ) ਹਨ ।

6. ਵਿਸ਼ਾ (Subject) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਭਗਤੀ, ਨਾਮ ਜਾਪ, ਸੱਚ ਖੰਡ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਸੰਬੰਧੀ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਵਿੱਚ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੀ ਭਲਾਈ, ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਏਕਤਾ ਅਤੇ ਵਿਸ਼ਵ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਸੁਨੇਹਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ।

7. ਭਾਸ਼ਾ (Language) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਵਿੱਚ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਵਿੱਚ ਪੰਜਾਬੀ, ਹਿੰਦੀ, ਮਰਾਠੀ, ਗੁਜਰਾਤੀ, ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਅਤੇ ਫ਼ਾਰਸੀ ਆਦਿ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਵੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ ।

ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਮਹੱਤਵ (Significance of Adi Granth Sahib Ji)

ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੇ ਮਨੁੱਖੀ ਸਮੁਦਾਇ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਦੇ ਹਰੇਕ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਅਗਵਾਈ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤੇ ਹਨ । ਇਸ ਦੀ ਬਾਣੀ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਏਕਤਾ ਅਤੇ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੰਦੀ ਹੈ ।

1. ਸਿੱਖਾਂ ਲਈ ਮਹੱਤਤਾ (Importance for the Sikhs) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਾਨ ਹੈ । ਹਰ ਸਿੱਖ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬੀੜ ਨੂੰ ਬੜੇ ਆਦਰ ਤੇ ਸਤਿਕਾਰ ਸਹਿਤ ਉੱਚ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਰੇਸ਼ਮੀ ਰੁਮਾਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਲਪੇਟ ਕੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਿੱਖ ਸੰਗਤਾਂ ਇਸ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਬੜੇ ਸਤਿਕਾਰ ਨਾਲ ਮੱਥਾ ਟੇਕ ਕੇ ਬੈਠਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਜਨਮ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਮੌਤ ਤਕ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਰਸਮਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਹ ਗੰਥ ਅੱਜ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਹੈ । ਡਾਕਟਰ ਵਜ਼ੀਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸਿੱਖਾਂ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਕੀਮਤੀ ਤੋਹਫ਼ਾ ਸੀ ” 1

2. ਸਾਂਝੀਵਾਲਤਾ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ (Message of Brotherhood) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਜਾਤਪਾਤ, ਊਚ-ਨੀਚ, ਧਰਮ ਜਾਂ ਕੌਮ ਦੇ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਬਾਣੀ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ | ਅਜਿਹਾ ਕਰਕੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਾਰੀ ਮਨੁੱਖ ਜਾਤੀ ਨੂੰ ਸਾਂਝੀਵਾਲਤਾ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

3. ਸਾਹਿਤਕ ਮਹੱਤਤਾ (Literary Importance) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਸਾਹਿਤਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਇੱਕ ਉੱਚਕੋਟੀ ਦਾ ਗ੍ਰੰਥ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਸੁੰਦਰ ਉਪਮਾਵਾਂ ਅਤੇ ਅਲੰਕਾਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ | ਪੰਜਾਬੀ ਦਾ ਜੋ ਉੱਤਮ ਰੂਪ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ਉਸ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਬਾਅਦ ਦੇ ਲਿਖਾਰੀ ਵੀ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕੇ ।

4. ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਮਹੱਤਤਾ (Historical Importance) – ਜੇਕਰ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਮਹੱਤਵ ਦੇ ਪੱਖੋਂ ਦੇਖੀਏ ਤਾਂ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਦੇ ਡੂੰਘੇ ਅਧਿਐਨ ਤੋਂ ਅਸੀਂ 15ਵੀਂ ਤੋਂ 17ਵੀਂ ਸਦੀਆਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ ਬਾਰੇ ਬੜੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਾਂ । ਬਾਬਰ ਦੇ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦੁਰਦਸ਼ਾ ਦਾ ਅੱਖੀਂ ਡਿੱਠਾ ਹਾਲ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਬਾਬਰ ਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਸਮਾਜਿਕ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਨੀਵਾਂ ਦਰਜਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ । ਵਿਧਵਾ ਇਸਤਰੀ ਦਾ ਬਹੁਤ ਨਿਰਾਦਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਾਤਾਂ ਅਤੇ ਉਪਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਤੇ ਵਪਾਰ ਸੰਬੰਧੀ ਵੀ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਰੌਸ਼ਨੀ ਪਾਈ ਗਈ ਹੈ । ਡਾਕਟਰ ਡੀ. ਐੱਸ. ਢਿੱਲੋਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਇਸ ਦਾ (ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਘਟਨਾ ਹੈ ।” 2

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? ਇਸ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ? What were the significance of this martyrdom ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹਾਲਾਤਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the circumstances responsible for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? ਇਸ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ? What was its importance ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ? (Examine the circumstances leading to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the significance of his martyrdom ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਮਹੱਤਵ ਦੱਸੋ । (Discuss the causes and importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What were the causes of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਬਹੁਤ ਹੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘਟਨਾ ਹੈ । ਇਸ ਘਟਨਾ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਯੁੱਗ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੋਈ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਅਤੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

I. ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨ (Causes of Martyrdom)

1. ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਕੱਟੜਤਾ (Fanaticism of the Jahangir) – ਜਹਾਂਗੀਰ ਬੜਾ ਕੱਟੜ ਸੁੰਨੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਇਹ ਕੱਟੜਤਾ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣੀ । ਉਹ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਕਦੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦਿਨ-ਬ-ਦਿਨ ਵੱਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਸੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕੇ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਆਤਮ-ਕਥਾ ਤੁਜ਼ਕ-ਏ-ਜਹਾਂਗੀਰੀ ਵਿੱਚ ਸਪੱਸ਼ਟ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ।

2. ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of Sikh Panth) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਵਧਦੀ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯਤਾ ਦਾ ਵੀ ਯੋਗਦਾਨ ਹੈ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ, ਤਰਨ ਤਾਰਨ, ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਅਤੇ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦਪੁਰ ਆਦਿ ਨਗਰਾਂ ਅਤੇ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਹੁੰਦਾ ਚਲਾ ਗਿਆ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਹਾਇਤਾ ਮਿਲੀ । ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਲਈ ਇਹ ਗੱਲ ਅਸਹਿ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਦਾ ਨਿਰਣਾ ਕੀਤਾ ।

3. ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਦੀ ਦੁਸ਼ਮਣੀ (Enmity of Prithi Chand) – ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ । ਉਹ ਬੜਾ ਲਾਲਚੀ ਅਤੇ ਖ਼ੁਦਗਰਜ਼ ਇਨਸਾਨ ਸੀ । ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲੀ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਨਾਰਾਜ਼ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਤਦ ਤਕ ਚੈਨ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਬੈਠੇ ਜਦ ਤਕ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀ । ਉਸ ਨੇ ਮਸੰਦਾਂ ਦੁਆਰਾ ਗੁਰੂ ਘਰ ਦੇ ਲੰਗਰ ਲਈ ਲਿਆਂਦੀ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਹੜੱਪਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਰਚਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਬਾਣੀ ਕਹਿ ਕੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਰਚਣੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਜ਼ਸ਼ਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਹੋਰ ਨਫ਼ਰਤ ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।

4. ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਦੁਸ਼ਮਣੀ (Enmity of Chandu Shah) – ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਲੜਕੀ ਲਈ ਕਿਸੇ ਯੋਗ ਵਰ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਦਾ ਨਾਂ ਸੁਝਾਇਆ ਗਿਆ । ਇਸ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਾਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਸ਼ਬਦ ਕਹੇ । ਪਰ ਪਤਨੀ ਦੁਆਰਾ ਮਜਬੂਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਉਹ ਇਹ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਦੁਆਰਾ ਕਹੇ ਗਏ ਅਪਮਾਨ ਭਰੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦਾ ਪਤਾ ਲੱਗ ਚੁੱਕਿਆ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਸ਼ਗਨ ਨੂੰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ’ਤੇ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਆਪਣੀ ਬੇਇੱਜ਼ਤੀ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਕੰਨ ਭਰਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ । ਜਹਾਂਗੀਰ ’ਤੇ ਇਸ ਦਾ ਅਸਰ ਹੋਇਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਮਨ ਬਣਾਇਆ ।

5. ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition of Naqashbandis) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਵੀ ਵੱਡਾ ਹੱਥ ਸੀ । ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ ਕੱਟੜਪੰਥੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਲਹਿਰ ਸੀ । ਇਸ ਲਹਿਰ ਦੇ ਪਮੁੱਖ ਨੇਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਸ਼ੇਖ਼ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ ਸੀ । ਇਹ ਲਹਿਰ ਇਸਲਾਮ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਨੂੰ ਪ੍ਰਫੁੱਲਿਤ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਸਹਿਣ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੀ ਸੀ । ਸ਼ੇਖ਼ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ ਦਾ ਮੁਗਲ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਅਸਰ ਰਸੂਖ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲਈ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ।

6. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਕਲਨ (Compilation of Adi Granth Sahib) – ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਵੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਬਣਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਸ ਗੰਥ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਇਸਲਾਮ ਵਿਰੋਧੀ ਗੱਲਾਂ ਲਿਖੀਆਂ ਹਨ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਗ੍ਰੰਥ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਵੀ ਅਜਿਹੀ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ਲਿਖੀ ਗਈ ਜੋ ਕਿਸੇ ਵੀ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੋਵੇ । ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਹਜ਼ਰਤ ਮੁਹੰਮਦ ਸਾਹਿਬ ਬਾਰੇ ਵੀ ਕੁਝ ਲਿਖਣ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਅਜਿਹਾ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ,, ਜਹਾਂਗੀਰ ਲਈ ਇਹ ਗੱਲ ਅਸਹਿ ਸੀ ।

7. ਖੁਸਰੋ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ (Help of Khusrau) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਖੁਸਰੋ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਦਾ ਫੌਰੀ ਕਾਰਨ ਬਣਿਆ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਖੁਸਰੋ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਅਸਫਲ ਵਿਦਰੋਹ ਦੇ ਬਾਅਦ ਭੱਜ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਖੁਸਰੋ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚਿਆ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਖੁਸਰੋ ਦੇ ਮੱਥੇ ‘ਤੇ ਤਿਲਕ ਲਗਾਇਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਕਾਬਲ ਜਾਣ ਲਈ ਕੁਝ ਲੋੜੀਂਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਵੀ ਕੀਤੀ । ਜਦੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਗਵਰਨਰ, ਮੁਰਤਜਾ ਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਵੇ ।

II. ਸ਼ਹਾਦਤ ਕਿਵੇਂ ਹੋਈ ? (How was Guru Martyred ?)

ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਹੁਕਮ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ 24 ਮਈ, 1606 ਈ. ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਕੇ ਲਾਹੌਰ ਲਿਆਂਦਾ । ਗਿਆ । ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੇ ਬਦਲੇ 2 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਜੁਰਮਾਨਾ ਦੇਣ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਜੁਰਮਾਨਾ ਦੇਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮੁਗ਼ਲ ਜ਼ਾਲਮਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਤੱਤੀ ਲੋਹ ਉੱਤੇ ਬਿਠਾਇਆ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਉੱਤੇ ਗਰਮ ਰੇਤ ਦੇ ਕੜਛੇ ਪਾਏ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤਸੀਹਿਆਂ ਨੂੰ ਰੱਬ ਦਾ ਭਾਣਾ ਸਮਝ ਕੇ ਇਹ ਕਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਆਪਣੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਦੇ ਦਿੱਤੀ,

ਤੇਰਾ ਕੀਆ ਮੀਠਾ ਲਾਗੈ ॥
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਾਨਕੁ ਮਾਂਗੈ ॥

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ 30 ਮਈ, 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ ।

II. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ (Importance of the Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)

ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮੋੜ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ-
1. ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ (New Policy of Guru Hargobind Ji) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ‘ਤੇ ਬੜਾ ਡੂੰਘਾ ਅਸਰ ਪਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਰਵਾਈ । ਇੱਥੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਥਿਆਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਸਿਖਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ ਬਣ ਕੇ ਉਭਰਨ ਲੱਗੇ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਕੇ. ਐੱਸ. ਦੁੱਗਲ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਨੇ ਸਮੱਸਿਆ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਰਾਜਨੀਤੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਦਿਸ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ।”

2. ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ (Unity among the Sikhs) – ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਇਹ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ਕਿ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਵਿਰੁੱਧ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦਾ ਹੋਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਹ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਇੱਕ ਹੋਣ ਲੱਗੇ ।

3. ਸਿੱਖਾਂ ਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ (Change in the relationship between Mughals and the Sikhs) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸੰਬੰਧ ਸੁਹਿਰਦ ਸਨ । ਪਰ ਹੁਣ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਪੂਰਨ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਚੁੱਕਾ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁਗਲਾਂ ਤੋਂ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਮੁਗਲਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਹੋਣਾ ਪਸੰਦ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਇਸ ਤਰਾਂ , ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਆਪਸੀ ਪਾੜਾ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

4. ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ (Persecution of the Sikhs) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ । ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੂੰ ਗਵਾਲੀਅਰ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚ ਕੈਦੀ ਬਣਾ ਕੇ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਲੜਾਈਆਂ ਲੜਨੀਆਂ ਪਈਆਂ । 1675 ਈ. ਵਿੱਚ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ‘ਤੇ ਘੋਰ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕੀਤੇ ਗਏ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ, ਬੰਦਾ ਬਹਾਦਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਿੱਖ ਨੇਤਾਵਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਮੁਗ਼ਲ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਸਾਹਮਣਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਹੱਸਦੇ-ਹੱਸਦੇ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ।

5. ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੀ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯਤਾ (Popularity of Sikhism) – ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਘਟਨਾ ਨਾਲ ਨਾ ਸਿਰਫ ਹਿੰਦੂ ਸਗੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਲਈ ਅਥਾਹ ਪ੍ਰੇਮ ਅਤੇ ਭਗਤੀ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਈ । ਉਹ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਯੁੱਗ ਦਾ ਆਰੰਭ ਕੀਤਾ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾਕਟਰ ਜੀ. ਐੱਸ. ਮਨਸੁਖਾਨੀ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ,
“ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮੋੜ ਸੀ ।” 1

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀਆਂ ਕਠਿਨਾਈਆਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ? (What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji after he ascended the Gurgaddi ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਬਣਨ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀਆਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ? ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji when he became the Guru ? Explain briefly.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਵੱਡੇ ਭਰਾ ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਉਹ ਵੱਡਾ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਤੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਆਪਣਾ ਹੱਕ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣ ਦਾ ਵੀ ਹਰ ਸੰਭਵ ਯਤਨ ਕੀਤਾ । ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕੱਟੜ ਮੁਸਲਮਾਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵੱਧਦੇ ਹੋਏ ਪ੍ਰਭਾਵ ਤੋਂ ਘਬਰਾ ਰਹੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਕੰਨ ਭਰੇ । ਚੰਦੁ ਸ਼ਾਹ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਲੜਕੀ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਪੁੱਤਰ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਨਾਲ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ਕਰਕੇ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਾਨੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ? (What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸੰਗਠਨਾਤਮਕ ਕੰਮਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the organizational works of Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Describe briefly the contribution of Guru Arjan Dev Ji in the development of Sikhism.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿੱਚ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰ ਕੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਦਿੱਤਾ ।
  2. ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਵਾਇਆ ।
  3. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਤੇ ਮਹੱਤਵ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ । (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਰਾਹੀਂ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ । (Describe briefly the importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Harmandir Sahib.)
ਜਾਂ
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਅਤੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
ਉੱਤਰ-
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਥਾਂ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪੰਜਵੇਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਦੀ ਨੀਂਹ 1588 ਈ. ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਤੋਂ ਰਖਵਾਈ ਸੀ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਈਸ਼ਵਰ ਦਾ ਮੰਦਰ ਘਰ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਮਾਰਤ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਤੋਂ ਨੀਵੀਂ ਰਖਵਾਈ ਕਿਉਂਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜੋ ਨੀਵਾਂ ਹੋਵੇਗਾ ਉਹ ਹੀ ਉੱਚਾ ਕਹਾਉਣ ਦਾ ਯੋਗ ਹੋਵੇਗਾ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪਵਿੱਤਰ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਬਣ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਸੰਦ ਵਿਵਸਥਾ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(Write a short note on Masand system and its importance.)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਸੰਗਠਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Examine the organisation and development of Masand system.)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਬਿਆਨ ਕਰੋ । (What do you know about Masand system ? Explain.)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Write a brief description of the Masand system.)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਕਿਸ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ? ਇਸ ਦੇ ਕੀ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ ? (Who started Masand system ? What were its aims ?)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Masand system.)
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? (What do you mean by Masand System ?)
ਉੱਤਰ-
ਮਸੰਦ ਫ਼ਾਰਸੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ‘ਮਸਨਦ’ ਤੋਂ ਬਣਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ‘ਉੱਚਾ ਸਥਾਨ’ । ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਅਸਲ ਵਿਕਾਸ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਹਰੇਕ ਸਿੱਖ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦਸਵੰਧ (ਦਸਵਾਂ ਹਿੱਸਾ) ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਭੇਟ ਕਰੇ । ਮਸੰਦਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਇਸੇ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਇਹ ਮਸੰਦ ਮਾਇਆ ਇਕੱਠੀ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਵੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮੀਲ ਪੱਥਰ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਮਸੰਦਾਂ ਦੇ ਕੀ ਕੰਮ ਸਨ ? (What were the functions of the Masands ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਮਸੰਦ ਆਪਣੇ ਇਲਾਕੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
  2. ਉਹ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਕਾਰਜਾਂ ਵਾਸਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਦਸਵੰਧ ਆਮਦਨੀ ਦਾ ਦਸਵਾਂ ਹਿੱਸਾ) ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
  3. ਮਸੰਦ ਹਰ ਵਰੇ ਇਕੱਠੀ ਹੋਈ ਮਾਇਆ ਨੂੰ ਵਿਸਾਖੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਲੀ ਦੇ ਮੌਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਕੋਲ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ਆ ਕੇ ਜਮਾਂ ਕਰਵਾਉਂਦੇ ਸਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਤਰਨ ਤਾਰਨ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ਅਤੇ ਇਸ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਵੀ ਦੱਸੋ । (Write a short note on Tarn Taran and its importance.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ 1590 ਈ. ਵਿੱਚ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਸਰੋਵਰ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਵੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਈ ਗਈ । ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਸਰੋਵਰ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਯਾਤਰੂ ਇਸ ਭਵ ਸਾਗਰ ਤੋਂ ਤਰ ਜਾਵੇਗਾ । ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਛੇਤੀ ਹੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਹੋਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਬਣ ਗਿਆ । ਇਸ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਸਦਕਾ ਮਾਝੇ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਜੱਟਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਲਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜੱਟਾਂ ਨੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਬਹੁਮੁੱਲੀ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਅਤੇ ਮਹੱਤਵ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ । (Write a note on the compilation and importance of Adi Granth Sahib.)
ਜਾਂ
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਮਹੱਤਵ ਦੀ ਸੰਖੇਪ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ । (Briefly explain the historical significance of Adi Granth Sahib.)
ਜਾਂ
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the Adi Granth Sahib.)
ਉੱਤਰ-
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ ਸੀ । ਇਸ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਗੁਰੂਆਂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਥਾਂ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਕਾਰਜ ਰਾਮਸਰ ਵਿਖੇ ਆਰੰਭਿਆ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਲਿਖਣ ਦਾ ਕੰਮ ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਪੰਜ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ, ਕੁਝ ਹੋਰ ਭਗਤਾਂ ਤੇ ਸੰਤਾਂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਦਾ ਸੰਕਲਨ 1604 ਈ. ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਵੀ ਇਸ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the significance of Adi Granth Sahib ?)
ਜਾਂ
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the importance of Adi Granth Sahib.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵੱਖਰੇ ਪਵਿੱਤਰ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਹੋਈ ।
  2. ਇਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਚੇਤਨਾ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ।
  3. ਇਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਾਰੀ ਮਨੁੱਖਤਾ ਨੂੰ ਸਾਂਝੀਵਾਲਤਾ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ।
  4. ਇਸ ਵਿੱਚ ਕਿਰਤ ਕਰਨ, ਨਾਮ ਜਪਣ ਤੇ ਵੰਡ ਛੱਕਣ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ।
  5. ਇਹ 15ਵੀਂ ਤੋਂ 17ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਬਾਰੇ ਸਾਡਾ ਇੱਕ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਸੋਮਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Prithi Chand.)
ਜਾਂ
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਕੌਣ ਸੀ ? ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ? (Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਮੀਣਾ ਸੰਪਰਦਾਇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਉਹ ਬੜਾ ਸੁਆਰਥੀ ਸੁਭਾਅ ਦਾ ਸੀ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਸੌਂਪੀ । ਇਸ ’ਤੇ ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਤਿਲਮਿਲਾ ਉੱਠਿਆ । ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਖੁੱਲ੍ਹ ਕੇ ਵਿਰੋਧ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਹ ਇਹ ਆਸ ਲਾਈ ਬੈਠਾ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਮੇਹਰਬਾਨ ਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰ ਮਿਲੇਗੀ ਪਰ ਜਦੋਂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ, ਤਾਂ ਉਸ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਉਮੀਦਾਂ ‘ਤੇ ਪਾਣੀ ਫਿਰ ਗਿਆ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਾਨੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਕੌਣ ਸੀ ? ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
ਜਾਂ
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ? (Why Chandu Shah opposed Guru Arjan Dev Ji ?)
ਜਾਂ
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Chandu Shah.)
ਉੱਤਰ-
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਲੜਕੀ ਲਈ ਕਿਸੇ ਯੋਗ ਵਰ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਸਲਾਹਕਾਰਾਂ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਲੜਕੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਲੜਕੇ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਨਾਲ ਕਰਨ ਦੀ ਸਲਾਹ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ’ਤੇ ਚੰਦੂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਾਨ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਅਪਮਾਨਜਨਕ ਸ਼ਬਦ ਕਹੇ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਉਹ ਰਿਸ਼ਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ਗਨ ਭੇਜਿਆ ਜੋ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਲੈਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਇਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । ( Mention three main causes for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
मां
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕਿਸੇ ਤਿੰਨ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly explain any three causes responsible for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸਨ ? (What were any three causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਜਹਾਂਗੀਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵੱਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸੀ ।
  2. ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਕੱਟੜ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਗਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਸ ਦੀ ਲੜਕੀ ਦਾ ਰਿਸ਼ਤਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।
  3. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਹੱਥ ਸੀ ।
  4. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਖੁਸਰੋ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸਹਾਇਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਫੌਰੀ ਕਾਰਨ ਬਣਿਆ |

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the role of Naqashbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦੀ ਕੀ ਭੂਮਿਕਾ ਸੀ ? (What was the role of Naqashbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev. Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਵਿੱਚ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਵੱਡਾ ਹੱਥ ਸੀ । ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ ਕੱਟੜਪੰਥੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਇੱਕ ਲਹਿਰ ਸੀ । ਸ਼ੇਖ਼ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ ਜੋ ਉਸ ਸਮੇਂ ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਨੇਤਾ ਸੀ, ਬਹੁਤ ਕੱਟੜ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਮੁਗ਼ਲ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਅਸਰ ਰਸੂਖ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੜਕਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਨਿਸਚਾ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਪ੍ਰਤੀ ਵੈਰ ਭਾਵਨਾ ਦਾ ਕੀ ਕਾਰਨ ਸੀ ? (Why was Jahangir hostile to Guru Arjan Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਜਹਾਂਗੀਰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵੱਧਦੇ ਹੋਏ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ ਸੀ ।
  2. ਕੁੱਝ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨੂੰ ਅਪਨਾਉਣ ਕਾਰਨ ਵੀ ਉਸ ਦਾ ਖੂਨ ਖੌਲ ਰਿਹਾ ਸੀ ।
  3. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਬਾਗੀ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦੇ ਖੁਸਰੋ ਦੀ ਮਦਦ ਕਾਰਨ ਜਹਾਂਗੀਰ ਭੜਕ ਉੱਠਿਆ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਫੌਰੀ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸੀ ? (What was the immediate cause of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਖੁਸਰੋ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹਾਦਤ ਦਾ ਫੌਰੀ ਕਾਰਨ ਬਣਿਆ । ਸ਼ਹਿਜ਼ਾਦਾ ਖੁਸਰੋ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਵਿਰੁੱਧ ਰਾਜਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਦਰੋਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਵਿਖੇ ਪਹੁੰਚਿਆ । ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਖੁਸਰੋ ਦੇ ਮੱਥੇ ‘ਤੇ ਤਿਲਕ ਲਗਾਇਆ । ਜਦੋਂ ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੂੰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚੱਲਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕਾ ਮਿਲ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਲਿਖੋ । (Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly describe the importance of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
मां
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੱਸੋ । (Write down the impact of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
मां
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the significance of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਕਾਰਨ ਸ਼ਾਂਤੀ ਨਾਲ ਰਹਿ ਰਹੇ ਸਿੱਖ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਹੁਣ ਸ਼ਸਤਰ ਚੁੱਕਣੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹਨ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕਰ ਲਈਆਂ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਮਿੱਤਰਤਾ-ਪੂਰਵਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਇੱਕ ਲੰਬੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੋਈ । ਇਸ ਸ਼ਹੀਦੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

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ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪੰਜਵੇਂ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
1563 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਕਦੋਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਕਦੋਂ ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ ?
ਜੋ
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂ ਕਾਲ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
1581 ਈ. ਤੋਂ 1606 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਿਉਂ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਦਾ ਅਸਲ ਹੱਕਦਾਰ ਸਮਝਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੀਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਮਿਹਰਬਾਨ ਦੇ ਪਿਤਾ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
‘ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਘਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕਰਵਾਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨੀਂਹ ਪੱਥਰ ਕਿਸ ਨੇ ਰੱਖਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1588 ਈ. ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕਦੋਂ ਪੂਰੀ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
1601 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿੰਨੇ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਰੱਖੇ ਗਏ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਚਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਕਿਉਂ ਰੱਖੇ ਗਏ ?
ਜਾਂ
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਚਾਰ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਕਿਸ ਉਦੇਸ਼ ਦਾ ਸੰਕੇਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਮੰਦਰ ਚਾਰੇ ਜਾਤੀਆਂ ਅਤੇ ਚਾਰੇ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਤੋਂ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਖੁੱਲਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਸਰੋਵਰ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਵਿਅਕਤੀ ਇਸ ਭਵਸਾਗਰ ਤੋਂ ਤਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਨਗਰ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਨੇ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਮਸੰਦ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਉੱਚਾ ਸਥਾਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਦਸਵੰਧ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਦਸਵੰਧ ਤੋਂ ਭਾਵ ਦਸਵੇਂ ਹਿੱਸੇ ਤੋਂ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਸਿੱਖ ਮਸੰਦਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਕਦੋਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1604 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕਿਸ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਪਾਦਨ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਲਿਖਣ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਸ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਦੋਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
16 ਅਗਸਤ, 1604 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸ਼ਬਦ ਕਿਸ ਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿੰਨੇ ਸ਼ਬਦ ਲਿਖੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
2216.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨੇ ਭਗਤਾਂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
15.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 33.
ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਭਗਤ ਦਾ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ਜਿਸ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਗਤ ਕਬੀਰ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 34.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਕੁੱਲ ਕਿੰਨੇ ਰਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
31 ਰਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 35.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸਫ਼ਿਆਂ (ਅੰਗਾਂ) ਦੀ ਕੁੱਲ ਗਿਣਤੀ ਦੱਸੋ
ਉੱਤਰ-
1430.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 36.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਲਿਪੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰਮੁੱਖੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 37.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਕੇਂਦਰੀ ਧਾਰਮਿਕ ਪੁਸਤਕ (ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ) ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਜਾਂ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 38.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਕਿਸ ਬਾਣੀ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 39.
ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਕਦੋਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਵੇਰ ਵੇਲੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 40.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਾਰੀ ਮਨੁੱਖ ਜਾਤੀ ਲਈ ਸਾਂਝੀਵਾਲਤਾ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 41.
ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 42.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਧਾਰਮਿਕ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ (ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ) ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 43.
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 44.
ਸ਼ੇਖ਼ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ ਸੰਪਰਦਾਇ ਦਾ ਨੇਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 45.
ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਖੁਸਰੋ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 46.
ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਜਾਂ
ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਦੇ ਸਰਤਾਜ ਕਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 47.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਕਿਸ ਮੁਗਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਹਾਂਗੀਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 48.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਕਦੋਂ ਹੋਈ ?
मां
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਕਦੋਂ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਏ ?
ਉੱਤਰ-
30 ਮਈ, 1606 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 49.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿੱਥੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 50.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਪ੍ਰਭਾਵ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਸ਼ਹੀਦੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਜਜ਼ਬਾਤ ਭੜਕ ਉੱਠੇ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ-

1. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ……………………… ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਪੰਜਵੇਂ)

2. ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ …………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ)

3. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ……………………. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ)

4. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਦਾ ਨਾਂ ………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ)

5. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ………………… ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1581 ਈ.)

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6. ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਨੇ …………………….. ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਮੀਣਾ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਦੀ)

7. ਸ਼ੇਖ਼ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹੰਦੀ ਨੇ ……………………. ਲਹਿਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ)

8. ਨਕਸ਼ਬੰਦੀਆਂ ਨੇ ਆਪਣਾ ਮੁੱਖ ਕੇਂਦਰ ……………………. ਵਿਖੇ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸਰਹਿੰਦ)

9. ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ …………………….. ਦਾ ਦੀਵਾਨ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਹੌਰ)

10. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ……………….. ਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ)

11. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨੀਂਹ ਪੱਥਰ ……….. ….. ਨੇ ਰੱਖਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਮੀਆਂ ਮੀਰ)

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12. ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ……………………. ਨੇ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ)

13. ………………………… ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਵਾਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ)

14. ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਪਾਦਨ …………………….. ਨੇ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ)

15. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਲਿਖਣ ਦਾ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ …………………… ਵਿੱਚ ਸੰਪੂਰਨ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1604 ਈ.)

16. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ …………………… ਨੂੰ ਥਾਪਿਆ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ)

17. ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਆਤਮ-ਕਥਾ ਦਾ ਨਾਂ ………………….. ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
(ਤੁਜ਼ਕ-ਏ-ਜਹਾਂਗੀਰੀ)

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18. ਦਾਰਾ ਸ਼ਿਕੋਹ ਦੇ ਪਿਤਾ ਦਾ ਨਾਂ …………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਜਹਾਂਗੀਰ)

19. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ……………………. ਵਿੱਚ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1606 ਈ.)

20. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ……………………… ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਲਾਹੌਰ)

21. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ………………………. ਨੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(ਜਹਾਂਗੀਰ)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-.

1. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪੰਜਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

2. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 15 ਅਪ੍ਰੈਲ, 1563 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

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3. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਦੇਵੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

4. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਪੁੱਤਰ ਦਾ ਨਾਂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਮੀਣਾ ਸੰਪਰਦਾਇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

6. ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਦੋਸਤ ਬਣ ਗਿਆ.
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

7. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

8. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ 1688 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਰੰਭ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

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9. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨੀਂਹ ਪੱਥਰ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਨੇ ਰੱਖਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

10. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

11. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਕਲਨ 1604 ਈ. ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

12. ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਨੇ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਲਿਖਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

13. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

14. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ 33 ਰਾਗਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

15. ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਕੁੱਲ 1430 ਪੰਨੇ (ਅੰਗ) ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

16. ਗੁਰੁ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਛੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਬਾਣੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

17. ਤੁਜ਼ਕ-ਏ-ਜਹਾਂਗੀਰੀ ਦਾ ਲੇਖਕ ਬਾਬਰ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

18. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-ਠੀਕ

19. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ ਤੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

20. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪੰਜਵੇਂ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਹਰਿਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) 1539 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1560 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1563 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1574 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1563 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ
(ii) ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਤਰਨ ਤਾਰਨ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ
(iv) ਹਰੀਦਾਸ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ
(ii) ਬੀਬੀ ਅਮਰੋ ਜੀ
(iii) ਬੀਬੀ ਅਨੋਖੀ ਜੀ
(iv) ਬੀਬੀ ਦਾਨੀ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਨੇ ਕਿਸ ਸੰਪਰਦਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
(i) ਮੀਣਾ
(ii) ਉਦਾਸੀ
(iii) ਹਰਜਸ
(iv) ਨਿਰੰਜਨਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮੀਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਿਹਰਬਾਨ ਕਿਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ
(ii) ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਦਾ
(iii) ਭਾਈ ਮੋਹਨ ਜੀ ਦਾ
(iv) ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਦਾ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਕਦੋਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ?
(i) 1580 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1581 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1585 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1586 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1581 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ ਲਹਿਰ ਦਾ ਹੈਡਕੁਆਟਰ ਕਿੱਥੇ ਸੀ ?
(t) ਮਾਲੇਰਕੋਟਲਾ
(ii) ਲੁਧਿਆਣਾ
(iii) ਜਲੰਧਰ
(iv) ਸਰਹਿੰਦ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਸਰਹਿੰਦ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਨਕਸ਼ਬੰਦੀ ਲਹਿਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਨੇਤਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਕਾਜ਼ੀ ਨੂਰ ਮੁਹੰਮਦ
(ii) ਸ਼ੇਖ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ
(iii) ਮੀਆਂ ਮੀਰ
(iv) ਅਤਾ ਮੁਹੰਮਦ ਖ਼ਾਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸ਼ੇਖ ਅਹਿਮਦ ਸਰਹਿੰਦੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਚੰਦੂ ਸ਼ਾਹ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ
(ii) ਜਲੰਧਰ ਦਾ ਫ਼ੌਜਦਾਰ
(iii) ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ
(iv) ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਦੀਵਾਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਕਦੋਂ ਰੱਖੀ ਸੀ ?
(i) 1581 ਈ. ਵਿੱਚ ।
(ii) 1585 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1587 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1588 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1588 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਕਿਸ ਨੇ ਰੱਖੀ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਬਾਬਾ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ ਨੇ
(iii) ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਨੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਦਾ ਕਾਰਜ ਕਿੱਥੇ ਆਰੰਭ ਕੀਤਾ ?
(i) ਰਾਮਸਰ
(ii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਬਾਬਾ ਬਕਾਲਾ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਰਾਮਸਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਲਿਖਣ ਦਾ ਕਾਰਜ ਕਿਸ ਨੂੰ ਸੌਂਪਿਆ ?
(i) ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਨੂੰ
(ii) ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ
(iii) ਭਾਈ ਮੋਹਕਮ ਚੰਦ ਨੂੰ
(iv) ਭਾਈ ਮਨੀ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੂੰ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਕਦੋਂ ਪੂਰਾ ਹੋਇਆ ?
(i) 1600 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1601 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1602 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1604 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1604 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ?
(i) ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ
(ii) ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ
(iv), ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1602 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1604 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1605 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) 1604 ਈ. ਵਿੱਚ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਪਹਿਲਾ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ
(ii) ਭਾਈ ਮਨੀ ਸਿੰਘ ਜੀ
(iii) ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ
(iv) ਬਾਬਾ ਦੀਪ ਸਿੰਘ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਗ੍ਰੰਥੀ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ
(ii) ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਭਾਈ ਬਾਲਾ ਜੀ
(iv) ਭਾਈ ਮੰਝ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਵਿੱਚ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਕਿੰਨੇ ਰਾਗਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ?
(i) 10
(ii) 15
(iii) 21
(iv) 31.
ਉੱਤਰ-
(iv) 31.

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਸ ਲਿਪੀ ਵਿੱਚ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ?
(i) ਹਿੰਦੀ
(ii) ਫ਼ਾਰਸੀ
(iii) ਮਰਾਠੀ
(iv) ਗੁਰਮੁੱਖੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਗੁਰਮੁੱਖੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਕਿਸ ਭਗਤ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਬਾਣੀ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਦਰਜ ਨਹੀਂ ਹੈ ?
(i) ਭਗਤ ਧੰਨਾ ਜੀ
(ii) ਭਗਤ ਨਾਮਦੇਵ ਜੀ
(iii) ਭਗਤ ਸਧਨਾ ਜੀ
(iv) ਮੀਰਾਂ ਬਾਈ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਮੀਰਾਂ ਬਾਈ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ
(ii) ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਣੀ ਲਿਖਣ ਵਾਲੇ
(iii) ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ
(iv) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
(i) ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ
(ii) ਦਸਮ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ
(iii) ਜ਼ਫ਼ਰਨਾਮਾ
(iv) ਰਹਿਤਨਾਮਾ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਕੇਂਦਰੀ ਧਾਰਮਿਕ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
(i) ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ
(ii) ਸੀਸ ਗੰਜ
(iii) ਰਕਾਬ ਗੰਜ
(iv) ਕੇਸਗੜ੍ਹ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਬਿਆਸ ਨਦੀ ਦੇ ਕੰਢੇ ਕਿਹੜਾ ਨਗਰ ਵਸਾਇਆ ?
(i) ਸ੍ਰੀ ਹਰਗੋਬਿੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(ii) ਤਰਨਤਾਰਨ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਸ੍ਰੀ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਸ੍ਰੀ ਹਰਗੋਬਿੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਆਤਮਕਥਾ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਤੁਜ਼ਕ-ਏ-ਬਾਬਰੀ ,
(ii) ਤੁਜ਼ਕ-ਏ-ਜਹਾਂਗੀਰੀ
(iii) ਜਹਾਂਗੀਰਨਾਮਾ
(iv) ਆਲਮਗੀਰਨਾਮਾ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਤੁਜ਼ਕ-ਏ-ਜਹਾਂਗੀਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਸ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) ਜਹਾਂਗੀਰ
(ii) ਬਾਬਰ
(iii) ਸ਼ਾਹਜਹਾਂ
(iv) ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਜਹਾਂਗੀਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿੱਥੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) ਦਿੱਲੀ
(ii) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ
(iii) ਲਾਹੌਰ
(iv) ਮੁਲਤਾਨ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਲਾਹੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
(i) 1604 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1605 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1606 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1609 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1606 ਈ. ਵਿੱਚ ।

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Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਆਰੰਭ ਕਰਵਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਜ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਮੁਕੰਮਲ ਕਰਵਾਇਆ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਇਆ । ਇਸ ਦੀ ਨੀਂਹ 1588 ਈ. ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਨੇ ਰੱਖੀ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਇਹ ਸੁਝਾਅ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇਮਾਰਤ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਨਾਲੋਂ ਉੱਚੀ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਪਰ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜੋ ਨੀਵਾਂ ਹੋਵੇਗਾ ਉਹ ਹੀ ਉੱਚਾ ਕਹਾਉਣ ਦੇ ਯੋਗ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਲਈ ਇਸ ਦੀ ਇਮਾਰਤ ਹੋਰਨਾਂ ਇਮਾਰਤਾਂ ਨਾਲੋਂ ਨੀਵੀਂ ਰੱਖੀ ਗਈ । ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਦੀਆਂ ਚਾਰੇ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਵੱਲ ਇੱਕਇੱਕ ਦਰਵਾਜ਼ਾ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ ।

1. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
2. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਕਿਸਨੇ ਰੱਖੀ ਸੀ ?
3. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ …………………. ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਗਈ ਸੀ ।
4. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਲਈ ਕਿੰਨੇ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਰੱਖੇ ਗਏ ਸੀ ?
5. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
2. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੂਫ਼ੀ ਸੰਤ ਮੀਆਂ ਮੀਰ ਜੀ ਨੇ ਰੱਖੀ ਸੀ ।
3. 1588 ਈ. ।
4. ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਲਈ ਚਾਰ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਰੱਖੇ ਗਏ ਸੀ ।
5. ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਮਿਲਿਆ ।

2. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮਹਾਨ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਮਸੰਦ ਫ਼ਾਰਸੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ‘ਮਸਨਦ’ ਤੋਂ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਦਾ ਸ਼ਾਬਦਿਕ ਅਰਥ ਹੈ ‘ਉੱਚਾ ਸਥਾਨ’ । ਕਿਉਂਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀ ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਉੱਚੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਬੈਠਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਸੰਦ ਕਿਹਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਧ ਗਈ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲੰਗਰ ਵਾਸਤੇ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵਿਕਾਸ ਕਾਰਜਾਂ ਵਾਸਤੇ ਮਾਇਆ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਹਰੇਕ ਸਿੱਖ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਵਿੱਚੋਂ ਦਸਵੰਧ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਭੇਟ ਕਰੇ ।

1. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
2. ਮਸੰਦ ਕਿਸ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਸ਼ਬਦ ਹੈ ?
3. ਦਸਵੰਧ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ?
4. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ?
5. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੋਇਆ ?
(i) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
2. ਮਸੰਦ ਫ਼ਾਰਸੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਸ਼ਬਦ ਹੈ ।
3. ਦਸਵੰਧ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਆਮਦਨੀ ਦਾ ਦੱਸਵਾਂ ਹਿੱਸਾ ।
4. ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸੰਭਵ ਹੋ ਸਕਿਆ ।
5. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ

3. ਜਹਾਂਗੀਰ ਨੇ ਆਪਣੀ ਆਤਮ-ਕਥਾ ਵਿੱਚ ਸਪੱਸ਼ਟ ਲਿਖਿਆ ਹੈ-
‘‘ਦਰਿਆ ਬਿਆਸ ਦੇ ਕੰਢੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਅਰਜਨ ਨਾਮੀ ਹਿੰਦੂ, ਪੀਰ ਜਾਂ ਸ਼ੇਖ਼ ਦੇ ਲਿਬਾਸ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਤੌਰ-ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਰਲ ਸੁਭਾਅ ਵਾਲੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੂਰਖ ਤੇ ਬੇਸਮਝ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਉੱਤੇ ਆਪਣੇ ਡੋਰੇ ਪਾ ਰੱਖੇ ਸਨ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੀਰ ਅਤੇ ਵਲੀ ਹੋਣ ਦਾ ਉੱਚਾ ਡੰਕਾ ਵਜਾਇਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਲੋਕ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ | ਸਭ ਪਾਸਿਆਂ ਤੋਂ ਭੋਲੇ ਅਤੇ ਅਣਜਾਣ ਲੋਕ ਉਸ ਪਾਸ ਆ ਕੇ ਆਪਣੀ ਪੂਰਨ ਸ਼ਰਧਾ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਤਿੰਨ-ਚਾਰ ਪੁਸ਼ਤਾਂ ਤੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਹ ਦੁਕਾਨ ਗਰਮ ਰੱਖੀ ਸੀ । ਕਿੰਨੇ ਚਿਰਾਂ ਤੋਂ ਮੇਰੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਇਹ ਖ਼ਿਆਲ ਆਉਂਦਾ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਝੂਠ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਨੂੰ ਬੰਦ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਜਾਂ ਫਿਰ ਉਸ ਨੂੰ ਇਸਲਾਮ ਵਿੱਚ ਲੈ ਆਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।”

1. ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਆਤਮ-ਕਥਾ ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
2. ਜਹਾਂਗੀਰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਕਿਉਂ ਸੀ ?
3. ਜਹਾਂਗੀਰ ਕਿਸ ਨੂੰ ਝੂਠ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ?
4. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ?
5. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ………………………. ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਆਤਮ-ਕਥਾ ਦਾ ਨਾਂ ਤੁਜ਼ਕ-ਏ-ਜਹਾਂਗੀਰੀ ਸੀ ।
2. ਉਹ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵੱਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਨੂੰ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਨੂੰ ਤਿਆਰ
ਨਹੀਂ ਸੀ ।
3. ਜਹਾਂਗੀਰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਨੂੰ ਝੂਠ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
4. ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ 30 ਮਈ, 1606 ਈ. ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
5. ਲਾਹੌਰ ।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

PSEB 12th Class Economics मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते हैं ?
अथवा
वस्तु विनिमय अर्थव्यवस्था की परिभाषा दीजिए। उत्तर-वस्तु विनिमय प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाता है।

प्रश्न 2.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है अथवा मुद्रा को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर-
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके साथ ही यह वस्तुओं के मूल्य तथा मूल्य के भण्डार का कार्य भी करती है।

प्रश्न 3.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ मुद्रा के कुल भण्डार से होता है, जोकि किसी देश के लोगों के पास निश्चित होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 4.
विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के कार्य को स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का प्राथमिक कार्य विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग है। एक किसान गेहूँ बेचकर मुद्रा प्राप्त कर लेता है तथा बाज़ार में मुद्रा से कपड़ा, बूट, चीनी, साबुन इत्यादि वस्तुएं खरीद सकता है। इस प्रकार दो वस्तुओं के सुमेल की समस्या हल हो गई है।

प्रश्न 5.
मुद्रा, “मूल्य के माप” का कार्य करती है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य वस्तुओं के मूल्य का माप करना होता है। मुद्रा द्वारा सभी वस्तुओं के मूल्य का माप किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
मुद्रा के कार्य को ‘पछेते भुगतान के म्यार’ के रूप में स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा के रूप में उधार दिया जाता है तो मुद्रा के रूप में इसकी वापसी हो जाती है। इस उद्देश्य के लिए ब्याज दिया जाता है ताकि उधार देने वाले को कोई हानि न हो।

प्रश्न 7.
भारत में वैधानिक मुद्रा का क्या नाम है ?
उत्तर-
भारत में वैधानिक मुद्रा का नाम रुपया है।

प्रश्न 8.
मुद्रा M, के घटक बताइए।
उत्तर-
M1 = C + D + 0
M1 = करन्सी (C) + मांग जमा (O) + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि (O)

प्रश्न 9.
मुद्रा M2 के घटक बताएँ।
उत्तर-
M2 = M1 + Deposits with Post office Savings (Except NSC)
M2 = C + D + 0 + D P.O.S. = करन्सी + माँग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + डाकघरों में बचत जमा (NSC के बगैर)

प्रश्न 10.
मुद्रा M3 के घटक बताएं।
उत्तर-
M3 = M1 + T.D of Banks
= C + D + O + TDB
= करन्सी + मांग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + बैंकों के पास जमा समय अवधी राशि।

प्रश्न 11.
मुद्रा M4 से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
M4 = D.P.O.S
M4 = C + D + O + TDB. + DPOS
= करन्सी + मांग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + बैंकों के पास जमा समय अवधी राशि + डाकघरों में बचत जमा |

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 12.
भारत में रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा आपूर्ति के कौन-कौन से समग्र तैयार किये जाते हैं ?
उत्तर-
M1, M2 , M3, और M4, तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 13.
मुद्रा आपूर्ति का अर्थ बताएं।
उत्तर-
समस्त मुद्रा की मात्रा को मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं जिसमें सिक्के, नोट तथा बैंक मुद्रा शामिल होती है।

प्रश्न 14.
उच्च शक्ति मुद्रा (High Powered Money) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उच्च शक्ति मुद्रा लोगों के पास नकदी तथा समय अवधि जमा राशि होती है।

प्रश्न 15.
निकट मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निकट मुद्रा प्रतिभूतियां तथा हिस्सेदारियां होती हैं, जिन को सुविधा से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 16.
वह समाप्तियाँ जिन को सुविधा से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है , को ……….. कहते हैं।
(क) मुद्रा समाप्तियाँ
(ख) अचल समप्तियाँ
(ग) साख निर्माण का आधार
(घ) निकट मुद्रा।
उत्तर-
(घ) निकट मुद्रा।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से कौन-सा मुद्रा का आकस्मिक कार्य है ?
(क) विनिमय का माध्यम
(ख) मूल्य का भण्डार
(ग) साख निर्माण का आधार
(घ) मूल्य का हस्तांतरण।
उत्तर-
(ग) साख निर्माण का आधार।

प्रश्न 18.
एक अर्थव्यवस्था जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाता है, को ………….. कहते हैं।
(क) विनिमय प्रणाली
(ख) वस्तुओं के लिए वस्तुओं की प्रणाली
(ग) वस्तु विनिमय प्रणाली
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) वस्तु विनिमय प्रणाली।

प्रश्न 19.
उधार मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उधार मुद्रा वह मुद्रा है जो कि वर्तमान में प्राप्त करके भविष्यकाल में ब्याज समेत अदा करने का वचन होता है।

प्रश्न 20.
निकट मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निकट मुद्रा उन वस्तुओं को कहा जाता है जिनको सरलता से मुद्रा के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में से मुद्रा के गौण कार्य कौन-कौन से हैं ?
(क) भंडार का साधन
(ख) कर्जे का साधन
(ग) एक स्थान से दूसरे स्थान हस्तांतरण का साधन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 22.
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ सभी मुद्रा की मात्रा से होता है जिसमें सिक्के, नोट और बैंक मुद्रा शामिल होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 23.
M1 = ………
उत्तर-
M1 = C + D + O

प्रश्न 24.
M2 = …..
उत्तर-
M2 = C + D + O + DPOS

प्रश्न 25.
M3 = ……….
उत्तर-
M3 = C + D + O + TDB

प्रश्न 26.
M4 = …….
उत्तर-
M4 = C + D + O+ TDB + DPOS.

प्रश्न 27.
उस वस्तु का नाम बताएं जिसको विनिमय के रूप में स्वीकार किया जाता है।
(a) मुद्रा
(b) पैट्रोल
(c) धातु
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) मुद्रा।

प्रश्न 28.
आपस में आवश्यकताओं की सन्तुष्टि को ……….. कहते हैं।
(a) वस्तु विनिमय प्रणाली
(b) विनिमय का साधन
(c) मांग का दोहरा संयोग
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) मांग का दोहरा संयोग।

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प्रश्न 29.
उच्च बलयुक्त मुंद्रा (High Powered Money) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोगों के पास नगद मुद्रा तथा बैकों के पास नकद कोष को उच्च बलयुक्त मुद्रा करते हैं।

प्रश्न 30.
विमुद्रीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
देश में पुरानी करन्सी के स्थान पर नई करन्सी के लागू करने को विमुद्रीकरण कहते हैं।

प्रश्न 31.
अवमूल्यन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
देश की करन्सी का मूल्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में कम करने को अवमूल्यन कहते हैं।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है अथवा मुद्रा को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर-
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके साथ ही यह वस्तुओं के मूल्य तथा मूल्य के भण्डार का कार्य भी करती है। मुद्रा को सरकार की स्वीकृति होती है जिसको कोई मनुष्य स्वीकार करने से इन्कार नहीं कर सकता।

प्रश्न 2.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ मुद्रा के कुल भण्डार से होता है, जोकि किसी देश के लोगों के पास निश्चित होती है। मुद्रा की पूर्ति के सम्बन्ध में दो बातें महत्त्वपूर्ण होती हैं-

  • मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक धारणा है जिसका सम्बन्ध निश्चित समय से है |
  • मुद्रा की पूर्ति का अर्थ लोगों के पास मुद्रा के भण्डार से होता है।

प्रश्न 3.
मुद्रा, “मूल्य के माप” का कार्य करती है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य वस्तुओं के मूल्य का माप करना होता है। मुद्रा द्वारा सभी वस्तुओं के मूल्य का माप किया जा सकता है। देश में जो वस्तुएं उत्पादन की जाती हैं, उनके नाप-तोल विभिन्न होते हैं। गेहूँ क्विटलों में, कपड़ा मीटरों में, दूध लीटरों में मापते हैं। परन्तु इन वस्तुओं का मूल्य मुद्रा में मापते हैं तो भिन्न-भिन्न नाप-तोल की समस्या हल हो जाती है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली के मुख्य दोष क्या हैं ?
उत्तर-
वस्तु विनिमय प्रणाली के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं-
1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या-आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से अभिप्राय है कि एक मनुष्य की वस्तु दूसरे मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करे तथा दूसरे मनुष्य की वस्तु पहले मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करे। परन्तु इस तरह की अवस्था मुश्किल से उत्पन्न होती थी।

2. मूल्य की राभान इकाई का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का माप करना मुश्किल होता था। एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु की कितनी मात्रा दी जाए, इस सम्बन्धी कोई निश्चित पैमाना नहीं था। यदि बाज़ार में 1000 वस्तुएं तथा सेवाएं हैं तो प्रत्येक वस्तु का मूल्य 999 वस्तुओं की तुलना में बताना कठिन होता था।

3. भविष्य में किए जाने वाले भुगतान की प्रणाली का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में भविष्य के भुगतान करने के लिए उचित प्रणाली नहीं थी यदि एक मनुष्य एक गाय तथा एक भैंस उधार दे देता था तो उसकी वापसी उसी रूप में मुश्किल हुआ करती थी, क्योंकि वस्तु गुणवत्ता (Quality) में अन्तर पड़ जाता था।

4. मूल्य भण्डार प्रणाली का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में कोई ऐसी विधि नहीं थी, जिस द्वारा वस्तुओं का भण्डार किया जा सके। यदि वस्तुओं को गेहूँ, चावल अथवा पशुओं इत्यादि के रूप में भण्डार किया जाता था तो इनका मूल्य बहुत जल्दी कम हो जाता था, क्योंकि वस्तुएं खराब हो जाती थीं।

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प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को दूर करने के लिए मुद्रा का प्रयोग कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को निम्नलिखित अनुसार दूर किया जा सकता है –

  1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या का हल-मुद्रा के प्रयोग से आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या हल हो जाती है। उत्पादक अपनी वस्तु बाज़ार में बेचकर मुद्रा प्राप्त करते हैं। इस मुद्रा से दूसरी अनिवार्य वस्तुओं की खरीद की जा सकती है।
  2. मूल्य निर्धारण की समस्या का हल-वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का मूल्य निर्धारण करने की समस्या का हल मुद्रा द्वारा हो गया है। मुद्रा वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य का मापदण्ड है।
  3. धन को संग्रहित करने की समस्या का हल-मुद्रा के रूप में धन का संग्रह आसानी से किया जा सकता है। मुद्रा को बैंकों में जमा करवा दिया जाए तो चोरी का कोई डर नहीं रहता तथा इस राशि पर ब्याज भी प्राप्त होता है।
  4. उधार लेने-देने की समस्या का हल-मुद्रा द्वारा उधार लेना-देना आसान हो गया है। उधार देने के कारण यदि मुद्रा का मूल्य कीमतों के बढ़ने से कुछ कम हो जाता है तो ब्याज द्वारा उस हानि की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 3.
मुद्रा का वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
मुद्रा का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है-

  • मुद्रा का मूल्य मुद्रा के रूप में
  • मुद्रा का मूल्य वस्तु के रूप में।

मुद्रा के वर्गीकरण को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. पूर्ण काय मुद्रा (Full bodied money)-पूर्ण काय मुद्रा वह मुद्रा है जिसका अंकित मूल्य तथा उस सिक्के द्वारा लगी हुई धातु का मूल्य समान होता है जैसे कि भारत में स्वतन्त्रता से पहले रुपया 11/12 शुद्ध चांदी का बना हुआ था, उसको पूर्ण काय मुद्रा कहा जाता था।

2. प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा (Representative full bodied Money)-प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा साधारण तौर पर काग़ज़ की बनी हुई होती है। इस प्रकार की मुद्रा का अपना न तो कोई मूल्य होता है, परन्तु इस मुद्रा को छापते समय उस मूल्य का सोना अथवा चांदी सरकार ख़जाने में रख लेती है।

3. उधार मुद्रा (Credit Money)-उधार मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसका मुद्रा के रूप में मूल्य अधिक होता है जबकि उस वस्तु का मूल्य कम होता है जिस द्वारा उधार मुद्रा का निर्माण किया जाता है। परन्तु उधार मुद्रा अधिक मूल्य कैसे प्राप्त करती है ? ऐसा इस कारण होता है कि जिस वस्तु का उधार मुद्रा निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है वह वस्तु बाज़ार में कुल वस्तु की पूर्ति का कुछ अंश होता है। जैसे कि किसी सिक्के को पिघला दिया जाए तो उसमें लगी धातु का मूल्य सिक्के पर लिखे मूल्य से कम होगा, उधार मुद्रा के मुख्य रूप में इस प्रकार हो सकते हैं-

  • संकेतक सिक्के-सभी सिक्के ₹ 5, ₹ 2 ₹ 1, 50 पैसे इत्यादि संकेतक सिक्के हैं।
  • प्रतिनिधि संकेतक सिक्के-यह साधारण तौर पर कागज़ के नोट होते हैं।
  • केन्द्रीय बैंक के प्रामिसरी नोटों का प्रचलन-यह कागजीय नोट केन्द्रीय बैंकों द्वारा प्रचलित किए जाते हैं, जिस पर लिखा होता है, “मैं धारक को ₹ 100 अदा करने का वचन देता हूँ।”
  • बैंकों की मांग जमा-बैंकों में जमा पैसों को चैक द्वारा निकलवाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
मुद्रा की पूर्ति के मुख्य घटक बताएं।
अथवा
मुद्रा के घटकों (Components) की व्याख्या करें।
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति के मुख्य घटक इस प्रकार हैं-
1. M1 = (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंक की मांग जमा
2. M2 (i) जनता के पास नकद करंसी + बैंक की मांग जमा + (iii) डाकखानों के बचत खाते में जमा
3. M3 (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंकों की मांग जमा + (iii) बैंकों की अवधि जमा (Time Deposit) ।
4. M4 = (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंकों के पास मांग जमा + (iii) बैंकों के पास अवधि जमा + (iv) डाकखानों की कुल जमा (राष्ट्रीय बचत सर्टीफिकेटस को छोड़ कर)।

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प्रश्न 5.
मुद्रा के प्राथमिक कार्य बताओ।
उत्तर-
प्रो० किनले के अनुसार मुद्रा के प्राथमिक कार्य इस प्रकार हैं –
1. विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)-मुद्रा का मुख्य कार्य वस्तुओं में विनिमय करना होता है जैसा कि एक किसान के पास गेहूँ है उस को वह किसान बाज़ार में बेच कर मुद्रा प्राप्त करता है तथा उस मुद्रा से बाकी ज़रूरतों को पूरा करता है इस प्रकार मुद्रा विनिमय का माध्यम है।

2. मूल्य का माप (Measure of Value)- मुद्रा की सहायता से हम वस्तुओं के मूल्य का माप करते हैं जैसा कि गेहूँ की कीमत ₹ 1120 प्रति क्विटल है। इस प्रकार प्रत्येक वस्तु की कीमत मुद्रा के रूप में माप सकते हैं।

प्रश्न 6.
मुद्रा के गौत्र अथवा द्वितीयक कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर-
मुद्रा के द्वितीयक कार्य इस प्रकार हैं –
1. मूल्य का भण्डार (Store of Value)-मुद्रा के रूप में मूल्य संचय किया जाता है। मुद्रा का मूल्य स्थिर रहता है तथा इस को स्वीकार किया जाता है । इसलिए मुद्रा का प्रयोग करके मूल्य का भण्डार किया जा सकता

2. स्थगित भुगतानों का मान (Standard of Deferred Payments)-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना सम्भव है। मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान किया जा सकता है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन बहुत कम होता है। जिस की भरपाई ब्याज द्वारा की जा सकती है।

3. मूल्य का हस्तांतरण (Transfer of Value)- मुद्रा से धन का हस्तांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से किया जा सकता है। मनुष्य अपनी जायदाद, मकान, दुकान, ज़मीन एक स्थान पर बेच कर मुद्रा प्राप्त कर सकता है और इस मुद्रा से किसी और स्थान पर खरीद सकता है।

प्रश्न 7.
मुद्रा के आकस्मिक कार्यों की व्याख्या करो।
उत्तर-
मुद्रा के आकस्मिक कार्य इस प्रकार हैं-
1. राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार (Basis of Distribution of National Income)-राष्ट्रीय आय, उत्पादन के साधनों के बीच वितरण की जाती है। उत्पादन के साधन भूमि, श्रम, पूंजी और संगठन का मेहनताना लगान, मज़दूरी, ब्याज और लाभ का माप मुद्रा द्वारा किया जाता है। इस प्रकार मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार है।

2. साख निर्माण का आधार (Basis of Credit Creation)-व्यापारिक बैंकों में जो राशि जमा होती है उस द्वारा बैंक कई गुणा अधिक साख निर्माण करते हैं। इस प्रकार स्तख निर्माण का कार्य मुद्रा की सहायता से ही संभव हुआ है।

3. अधिकतम सन्तुष्टि का आधार (Basis of Maximum Satisfaction)-उपभोगी अपनी सीमित आय से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहता है। उसको अपनी मुद्रा भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार से व्यय करनी चाहिए कि प्रत्येक वस्तु से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता एक-दूसरे के बराबर हो। इस प्रकार उपभोगी को अधिक्तम सन्तुष्टि प्राप्त होगी।

4. भुगतान की गारंटी (Guarantee of Solvency)-मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान की गारंटी दी जा सकती है। बैंक में मुद्रा जमा करवा दी जाए तो बैंक भविष्य में भुगतान की गारंटी दे देता है।

प्रश्न 8.
उच्च शक्ति योग्य मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? इसे उच्च शक्ति योग्य मुद्रा क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
उच्च शक्ति योग्य मुद्रा आधुनिक युग में मुद्रा की पूर्ति का मुख्य निर्धारक माना जाता है। उच्च शक्ति मुद्रा देश में व्यापारिक बैंकों में मौद्रिक भंडार और जनता के पास नकदी (सिक्के अथवा नोट) का जोड़ होता है उच्च शक्ति मुद्रा आधार है जोकि बैंक जमा के रूप में व्यक्त किया जाता है और मुद्रा की पूर्ति का निर्माण करता है। इसको उच्च शक्ति योग्य मुद्रा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस द्वारा वस्तुओं और सेवाओं में तबादला बहुत जल्दी और आसानी से होता है। इस द्वारा उधार मुद्रा का निर्माण भी किया जाता है। व्यापारिक बैंकों की उधार देने की शक्ति में वृद्धि से मुद्रा की पूर्ति निर्धारण करती है।

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प्रश्न 9.
मुद्रा और निकट मुद्रा में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
मुद्रा और निकट मुद्रा में अन्तर –

अंतर का आधार मुद्रा निकट मुद्रा
1. मुद्रा के अंश मुद्रा में नोट सिक्के तथा बैंक की माँग जमा को शामिल किया जाता है। निकट मुद्रा में ट्रेजरी बिल विनिमय बिल, बान्ड सरकारी प्रतिभूतियाँ और बैंकों की निश्चित कालीन जमा राशि आदि को शामिल किया जाता है।
2. तरलता मुद्रा में अधिक तरलता होती है। निकट मुद्रा में कम तरलता होती है।
3. कानूनी तथा साधारण स्वीकृति मुद्रा को कानूनी तथा साधारण स्वीकृति होती है। निकट मुद्रा को कानूनी तथा साधारण स्वीकृति नहीं होती।
4. आय मुद्रा से आय की प्राप्ति नहीं होती। निकट मुद्रा से आय की प्राप्ति हो ती है।
5. प्रयोग मुद्रा का प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं, से विनिमय के लिए किया जाता है। निकट मुद्रा को पहले मुद्रा में तबदील किया जाता है और बाद में विनिमय किया जाता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलें बताओ। वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर करने के लिए मुद्रा कैसे सहायक हुई है ?
(State the inconveniences of barter exchange. How does money help in removing the drawbacks of barter system ?)
उत्तर-
जब किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रयोग न किया जाए तथा वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाए तो इस प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा जाता है। इसको C-C (Commodity-Commodity) अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। वस्तु विनिमय की मुश्किलें (Inconveniences or Difficulties or Drawbacks of Barter Exchange) वस्तु विनिमय की मुश्किलें निम्नलिखित अनुसार हैं –
1. आवश्यकताओं के दोहरे मेल की कमी (Lack of Double Co-incidence of Wants)-खरीददारों तथा बेचने वालों की आवश्यकताओं की साथ-साथ पूर्ति को आवश्यकताओं का दोहरा मेल कहा जाता है। विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे मेल की कमी होती है। उदाहरणस्वरूप एक किसान के पास गेहूँ है। इसके बदले में वह कपड़ा प्राप्त करना चाहता है। वह जुलाहे के पास जाकर कपड़े की मांग करता है, परन्तु जुलाहे को गेहूँ की आवश्यकता नहीं, बल्कि उसको जूते अनिवार्य हैं। इसलिए किसान को पहले गेहूँ देकर जूते प्राप्त करने पड़ेंगे तथा फिर वह कपड़े की आवश्यकता को पूरा कर सकता है। इस प्रकार वस्तु विनिमय में दोहरे मेल की कमी के कारण मुश्किल का सामना करना पड़ता है।

2. मूल्य के माप की काठिनाई (Difficulty in easure of Value)-विनिमय प्रणाली में वस्तुओं के मूल्य के माप की कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वस्तुओं का मूल्य वस्तुओं के रूप में निश्चित किया जाए तो बहुत अधिक विनिमय मूल्य याद रखने पड़ते हैं। मान लो अर्थव्यवस्था में 1000 वस्तुएँ हैं तो प्रत्येक वस्तु के 999 मूल्य याद रखने आसान नहीं होते, बल्कि बहुत कठिन होते हैं।

3. भविष्य के भुगतानों में मुश्किलें (Difficulty in Future Payments)-भविष्य भुगतानों में मुश्किल का अर्थ है कि ठेके के भुगतानों (Contractual Payments) में कठिनाई। यदि वस्तु के रूप में भुगतान किया जाता है तो उसी रूप में वस्तु की वापसी करनी मुश्किल होती थी। गाय के रूप में उधार दिया जाता है तो उसी तरह की गाय वापिस करनी मुश्किल होती है। वस्तुओं की गुणवत्ता (Quality) में अन्तर पड़ जाता है।

4. मूल्य-संचय में कठिनाई (Difficulty in Store of Value)-वस्तु विनिमय प्रणाली में धन को एकत्रित करना मुश्किल होता है। वस्तुओं के रूप में धन को अधिक समय के लिए भण्डार नहीं किया जा सकता। यदि पशुओं के रूप में धन संचय किया जाता है तो पशुओं के बीमार पड़ने की स्थिति में धन जल्दी नष्ट हो जाता था। गेहूँ, चावल, इत्यादि के रूप में धन जल्दी नष्ट हो जाता है।

5. धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की कठिनाई (Difficulty in Transport of Wealth) वस्तु विनिमय प्रणाली में धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना मुश्किल होता है। किसी मनुष्य के पास मकान अथवा ज़मीन है तो इस प्रकार के धन के दूसरे स्थानों पर ले जाने की कठिनाई आती है। वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलें दूर करने के लिए मुद्रा का योगदान (Role or Importance of money in removing drawbacks of barter system)-आधुनिक युग में मुद्रा का योगदान महत्त्वपूर्ण है। मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान डाला है।

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इससे वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर किया गया है –

  1. आवश्यकताओं के दोहरे मेल की समस्या का हल-मुद्रा के भाव में आने से आवश्यकताओं के दोहरे मेल की समस्या का हल हो गया है। मुद्रा की सहायता से वस्तुओं का विनिमय आसानी से किया जाता है।
  2. वस्तुओं के मूल्य का माप-मुद्रा के विकास से वस्तुओं के मूल्य का माप आसान हो गया है। प्रत्येक वस्तु का मूल्य मात्रा के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।
  3. मूल्य संचय की कठिनाई का हल-वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य संचय करना मुश्किल था। मुद्रा के निर्माण से मूल्य संचय करना आसान हो गया है।
  4. उधार लेने-देने में आसानी-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना आसान हो गया है। मुद्रा के रूप में उधार का भविष्य में भुगतान किया जा सकता है।
  5. व्यापार में आसानी-मुद्रा की सहायता से व्यापार करने में आसानी हो गई है।
  6. अधिकतम सन्तुष्टि-उपभोगी द्वारा मुद्रा की सहायता से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त की जा सकती है।
  7. आर्थिक समस्याओं का हल-मुद्रा से मुद्रा स्फीति, मुद्रा अस्फीति, मन्दीकाल इत्यादि आर्थिक समस्याओं का हल किया जा सकता है। मार्शल के शब्दों में, “मुद्रा धुरा है, जिसके इर्द-गिर्द आर्थिक विज्ञान घूमता है।”
    (“Money is the hub around which economic science clusters.”)

प्रश्न 2.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है? मुद्रा के विकास को स्पष्ट करो। मुद्रा के मुख्य कार्यों की व्याख्या करो। (What is money ? Explain the Evolution of money. Discuss the functions of money.)
अथवा
मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा के प्राथमिक, गौण तथा आकस्मिक कार्यों की व्याख्या करें।
(What is Money ? Discuss the primary, secondary and contingent functions of money.)
उत्तर-
मुद्रा का अर्थ (Meaning of Money)-मुद्रा की परिभाषा निम्नलिखित भागों में विभाजित करके दी जा सकती है –

  1. मुद्रा की कानूनी परिभाषा (Legal Definition of Money)-मुद्रा कोई भी ऐसी वस्तु होती है, जिसको कानूनी तौर पर विनिमय के रूप में सरकार द्वारा घोषित किया जाता है। ऐसी मुद्रा के पीछे सरकारी आदेश होता है, जिस कारण कोई मनुष्य इस मुद्रा को स्वीकार करने से इन्कार नहीं कर सकता।
  2. मुद्रा की क्रियात्मक परिभाषा (Functional Definition of Money)-मुद्रा कोई भी वस्तु हो सकती है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है तथा यह मूल्य के माप तथा मूल्य के संचय करने का कार्य भी करती है।
  3. मुद्रा की संकुचित परिभाषा (Narrow Definition of Money)-मुद्रा की संकुचित परिभाषा में मुद्रा की क्रियात्मक परिभाषा को शामिल किया जाता है। इस परिभाषा में मुद्रा के कार्य
  • विनिमय का साधन
  • मूल्य का माप
  • मूल्य का संचय करना
  • भविष्य भुगतान का आधार के रूप में लिया जाता है।

4. मुद्रा की विस्तृत परिभाषा (Broad Definition of Money)-मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में करन्सी नोट, सिक्के, बैंकों में मांग जमा, अवधि जमां, डाकखानों में जमा, जिसको कम समय के नोटिस पर प्राप्त किया जा सकता है तथा निकट मुद्रा परिसम्पत्तियों जैसे कि भागीदारियां, ब्रांड, प्रतिभूतियां इत्यादि को शामिल किया जाता है।

मुद्रा का विकास (Evolution of Money) वस्तु विनिमय बाज़ार की मुश्किलों को दूर करने के लिए मनुष्य ने मुद्रा का विकास किया। मुद्रा निम्नलिखित पड़ावों में से गुजर कर वर्तमान रूप में आई है-

  1. वस्तु मुद्रा-आरम्भ में वस्तुएं जैसे कि गेहूँ, दाल, चावल इत्यादि का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया गया।
  2. धातु मुद्रा-पश्चात् में कुछ धातुओं जैसे कि लोहा, तांबा, चांदी, सोना इत्यादि ने मुद्रा का रूप धारण किया।
  3. कागजी मुद्रा-कागज़ी मुद्रा को पहले चीन में तथा फिर शेष विश्व में मुद्रा के रूप में प्रयोग किया गया। आज- कल कागज़ी मुद्रा प्रत्येक देश में प्रचलित है।
  4. बैंक मुद्रा-धीरे-धीरे बैंकों के विस्तार से चैक, ड्राफ्ट तथा इलैक्ट्रॉनिक मुद्रा (A.T.M.) प्रचलित हो गई है।

मुद्रा के मुख्य कार्य (Main Functions of Money)-मुद्रा के कार्यों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(A) मुद्रा के प्राथमिक कार्य (Primary Functions of Money)-मुद्रा के दो मुख्य कार्य हैं –

  • विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)-मुद्रा वस्तुओं के विनिमय के लिए माध्यम के रूप में प्रयोग की जाती है। मुद्रा का यह महत्त्वपूर्ण कार्य है।
  • मूल्य का माप (Measure of Value)-वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है। यह लेखे की इकाई है, जैसे कि गेहूं का मूल्य ₹ 700 क्विटल है।

(B) मुद्रा के द्वितीयक कार्य (Secondary Functions of Money) – मुद्रा के तीन द्वितीयक कार्य हैं3. मूल्य का भण्डार (Store of Value)-मुद्रा के रूप में मूल्य संचय किया जा सकता है। इसका मूल्य स्थिर रहता है तथा इसको साधारण तौर पर स्वीकार किया जा सकता है।

4. स्थगित भुगतानों का मान (Standard of Deferred Payments)-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना सम्भव होता है। इसका भुगतान भविष्य में किया जा सकता है, क्योंकि इसके मूल्य में परिवर्तन नहीं होता तथा यह प्रयोग करने योग्य होती है।

5. मूल्य का हस्तांतरण (Transfer of Value)-मुद्रा से धन का हस्तांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से किया जा सकता है। मनुष्य अपनी जायदाद, मकान, दुकान, जमीन एक स्थान पर बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा दूसरे स्थान पर खरीद सकता है।

(C) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent Functions of Money)-मुद्रा के आकस्मिक कार्य इस प्रकार हैं –

6. आय के वितरण का आधार (Basis of Distribution of National Income)-मुद्रा की सहायता से राष्ट्रीय आय का माप किया जा सकता है। राष्ट्रीय आय उत्पादन के साधनों में लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में विभाजित की जाती है। इसलिए मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार है।

7. उधार निर्माण का आधार (Basis of Credit Creation)-व्यापारिक बैंक, जमा मुद्रा की सहायता से उधार निर्माण करने में सफल होते हैं।

8. अधिकतम सन्तुष्टि का आधार (Basis of Maximum Satisfaction) उपभोगी अपनी सीमित मुद्रा की सहायता से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त कर सकता है। इस उद्देश्य के लिए समसीमान्त तुष्टिगुण का नियम सहायक होता है।

9. पूंजी को तरलता प्रदान करती है (Provides Liquidity to Capital)—मुद्रा में यह गुण है कि इसको साधारण तौर पर स्वीकार किया जाता है। इसलिए मुद्रा, पूंजी को तरलता प्रदान करती है।

10. भुगतान की गारण्टी (Guarantee of Solvency)-मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान की गारण्टी दी जा सकती है। बैंक में मुद्रा जमा करवा दी जाए तो बैंक आपके भविष्य के भुगतान की गारण्टी दे देता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 3.
मुद्रा एक अच्छा सेवक तथा बुरा स्वामी है। स्पष्ट करें।
(Money is a good servant but a bad master. Explain.)
अथवा
मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा के गुण तथा अवगुण बताएँ।
(What is Money ? Give Merits and Demerits of Money.)
उत्तर-
प्रो० कराऊथर के अनुसार, “वह वस्तु जिसे लोग वस्तुओं की खरीद बेच और ऋण के रूप में स्वीकार करते हैं उसको मुद्रा कहते हैं।” मुद्रा वह तरल पदार्थ है जो एक देश में बटांदरे के रूप में पाए जाते हैं। मुद्रा के लाभ तथा मुद्रा एक अच्छा स्वामी है (Merits of Money or Money is a Good Servant)मुद्रा एक अच्छा स्वामी है इस का मुद्रा से प्राप्त होने वाले लाभों से ज्ञात होता है।

  1. मुद्रा और आर्थिक विकास (Money & Economic Growth)- मुद्रा एक ऐसा आधार है जिस के ऊपर आर्थिक विकास की इमारत बनती है।
  2. उपभोक्ताओं को लाभ (Advantage to the Consumers)- मुद्रा उपभोक्ताओं के लिए लाभदायिक होती है। उपभोगी अपनी सीमित आय से मुद्रा द्वारा अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करते हैं।
  3. उत्पादकों को लाभ (Advantage to the Producers)- मुद्रा की सहायता से उत्पादक तथा बिक्री की क्रियाओं का संचालन होता है, जिस द्वारा उत्पादक अधिकतम लाभ प्राप्त करता है। बढ़े पैमाने पर उत्पादन मुद्रा की सहायता से ही संभव हो सका है।
  4. विनिमय में लाभ (Advantage in Exchange)-मुद्रा की सहायता से वस्तु बटांदरा प्रणाली के दोषों को दूर करके कीमत निर्धाण करना आसान हो गया है। इस द्वारा उत्पादन के साधनों का मेहनताना निर्धाण करना आसान हो गया है।
  5. विभाजन में लाभदायिक (Advantage in Distribution)-मुद्रा द्वारा उत्पादन के साधनों, भूमि, श्रम, पूँजी तथा संगठन का मेहनताना निर्धारण करना आसान हो पाया है। इस द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भी संभव हो गया है।
  6. पूँजी निर्माण (Capital Formuation)-मुद्रा द्वारा आसानी से बचत की जा सकती है। इस बचत को निवेश करके पूँजी निर्माण किया जा सकता है। मुद्रा द्वारा नये उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं और मानवीय पूँजी का विकास होता है। मुद्रा के अवगुण अथवा मुद्रा
  7. बुरा स्वामी है (Demerits of Money or Money is a Bad Master)-मुद्रा से अच्छी तरह से संचालन न किया जाए तो बहुत-सी बुराइयां पैदा हो जाती हैं। इसलिए मुद्रा को बुरा स्वामी कहा जाता है।

इस के मुख्य दोष इस प्रकार हैं –

  • मुद्रा के मूल्य में अस्थिरता (Instability in Value of Money)-मुद्रा के फैलने से इस के मूल्य में कमी हो जाती है और मुद्रा की खरीद शक्ति कम हो जाती है।
  • आय का असामान्य वितरण (Unequal distribution of Income)-मुद्रा द्वारा आय के असामान्य वितरण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अमीर लोग और अमीर हो जाते हैं और ग़रीब ज्यादा ग़रीब हो जाते हैं।
  • व्यापारिक चक्र (Trade Cycle)-पूँजीवाद देशों में मुद्रा के कारण व्यापारिक चक्रों की समस्या उत्पन्न हो जाती है । तेजीकाल तथा मंदीकाल की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। मंदीकाल में बेरोज़गारी फैल जाती है।
  • ऋण में वृद्धि (Increase in Debt)- मुद्रा के कारण लोगों पर ऋण का भार तेजी से बढ़ रहा है। ऋण की प्राप्ति आसानी से होने के कारण लोग गैर आवश्यक वस्तुओं पर व्यय करते हैं। इस से फ़जूल खर्चों में वृद्धि होती है।
  • बुरा स्वामी (Bad Master)-यदि मुद्रा पर ठीक ढंग से काबू न पाया जाए तो इससे भ्रष्टाचार, मुद्रा स्फीति काला धन और शोषण की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इस से तंग आकर लोग आन्दोलन करते हैं और देश में अराजकता फैल जाती है।

प्रश्न 4.
विमुद्रीकरण से क्या अभिप्राय है ? भारत में 8 नवम्बर, 2016 को किए गए विमुद्रीकरण को स्पष्ट करें। इसके लाभ एवं हानियां बताएं।
(What is meant by Demonetisation ? Explain the demonetisation of 8th November, 2016 in India. Explain its advantages and dis-advantages.)
उत्तर-
1. विमुद्रीकरण क्या है ? (What is demonetisation ?)—जब सरकार पुरानी मुद्रा को कानूनी तौर पर बन्द कर देती है और नई मुद्रा लाने की घोषणा करती है तो इसे विमुद्रीकरण (demonetisation) कहते हैं। इसके बाद पुरानी मुद्रा अथवा नोटों की कोई कीमत नहीं रह जाती। सरकार द्वारा पुराने नोटों को बैंकों से बदलने के लिए लोगों को समय दिया जाता है ताकि वह पुराने नोटों को नए नोटों में बदल सकें।

2. विमुद्रीकरण क्यों किया जाता है ? (Why demonetisation ?) काला धन, भ्रष्टाचार, नकली नोट और आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सरकारें विमुद्रीकरण का फैसला लेती हैं। अवैध गतिविधियों में लोग नोटों को अपने पास नकदी के रूप में ही रखते हैं। इस प्रकार विमुद्रीकरण से सीधे उन पर चोट होती है। कई बार नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिए भी नोटबन्दी की जाती है। मोदी सरकार को भी उम्मीद है कि नोटबन्दी के चलते काले धन, नकली नोट और आतंकवाद पर अंकुश लगेगा। नोटबन्दी के कारण भारत में आम आदमी को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

3. भारत में विमुद्रीकरण (Demonetisation in India)-भारत में 8 नवम्बर, 2016 को रात 8 बजे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबन्दी की घोषणा कर दी। इस घोषणा में ₹ 500 और ₹ 1000 के नोटों को रात 12 बजे के बाद कानूनी मुद्रा (Legal Tender) न होने का ऐलान किया गया। इसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियन्त्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था। इससे पहले भारत में दो बार विमुद्रीकरण किया गया था। 1946 में ₹ 1000 और ₹ 10,000 के नोटों को वापस ले लिया गया था और 1954 में भारत सरकार ने ₹ 1000, ₹ 5,000 और ₹ 10,000 के नए नोट शुरू किए। दूसरी बार 1978 में ₹ 1000, ₹ 5000 और ₹ 10,000 के नोटों का विमुद्रीकरण किया गया ताकि काले धन पर अंकुश लगाया जा सके।

28 अक्तूबर, 2016 को भारत में ₹ 17.77 लाख करोड़ मुद्रा प्रचलित थी, जिसमें से 86% ₹ 500 और ₹ 1000 के नोट थे। देश में जाली नकदी में लगातार वृद्धि हो रही थी जिसको भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया था। इस कारण पुराने नोटों को खत्म करने का निर्णय लिया गया। इसके स्थान पर ₹ 500 और ₹ 2000 के नए नोट चालू किए गए। ₹ 500 के नोट का आकार 66 मि० मीटर x 150 मि० मीटर है। नोट के पीछे लाल किले की तस्वीर और स्वच्छ भारत अभियान का लोगो भी है। इन नोटों को महात्मा गांधी न्यू सीरीज़ ऑफ नोट्स का नाम दिया गया है। ₹ 2000 का नोट गुलाबी रंग का है। इसके पीछे की ओर मंगलयान की तस्वीर है। 25 अगस्त, 2017 से ₹ 200 का नोट भी बाजार में आ गया है। नोट के सीरियल नम्बरों का फोंट साइज़ बदला गया है।

4. विमुद्रीकरण में नोट बदलने की विधि (Procedure for Exchange of Notes in demonetisation)भारत में 8 नवम्बर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा के पश्चात् 30 दिसम्बर, 2016 तक बैंकों से नोट बदलने की प्रक्रिया चली। इसके बाद पुराने नोट बदलने का कार्य केवल R.B.I. द्वारा ही किया जाएगा।

नोट बदलने के नियम इस प्रकार ङ्केरखे गए –

  • ATM से एक दिन में ₹ 2500 तक निकाल सकते हैं।
  • एक दिन में ग्राहक बैंक से ₹ 24000 से ज्यादा नहीं निकाल सकता और एक हफ्ते के बाद ही बैंक से ₹ 24000 दोबारा निकाले जा सकते हैं।
  • एक दिन में कोई भी व्यक्ति ₹ 2000 तक के नोट बदल सकता है।
  • कोई भी व्यक्ति अपने निजी बैंक खाते में जितना चाहे पैसा जमा करवा सकता है। ₹ 2,50,000 तक जमा की गई रकम का जवाब नहीं मांगा जाएगा। इससे ज्यादा जमा रकम के बारे में आयकर विभाग जांच करेगा।
  • ई-बैंकिंग लेन-देन पर कोई भी रोक नहीं है और कोई व्यक्ति आर०टी०जी०एस०, एन०ई०एफ०टी०, आई०एम०पी०एल०, पे०टी०एम०, मोबाईल बैंकिंग आदि के ज़रिए जितने चाहे पैसे किसी दूसरे को दे सकता है।

5. विमुद्रीकरण के लाभ (Advantages of Demonetisation) –

1. काले धन पर प्रहार-विमुद्रीकरण की सबसे करारी चोट काले धन पर पड़ी है। अनुमान लगाया जाता है कि भारत में लगभग ₹ 3 लाख करोड़ काले धन के रूप में छुपा कर रखे गए थे। इन रुपयों का हवाला कारोबार, तस्करी, आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों में धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा था। कश्मीर में जारी हिंसा में भी काला धन मुख्य भूमिका निभा रहा था। देश की राजनीति में भी काले धन का मुद्दा काफ़ी समय से चर्चा में था। इसलिए विमुद्रीकरण से काले धन पर पूर्ण तो नहीं आंशिक रूप में रोक ज़रूर लगेगी।

2. आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों पर प्रहार-विमुद्रीकरण द्वारा आतंकवाद, नक्सली समूहों, नशे के व्यापारियों और गैर-कानूनी गतिविधियों को करारा आघात पहुंचा है। इसका प्रभाव कश्मीर में खास तौर पर देखने को मिल रहा है। इन आपराधिक गतिविधियों के लिए इकट्ठे किए गए नोट कागज़ के टुकड़े बन गए हैं और इनकी गतिविधियां ठप्प हो गई हैं।

3. काला धन्धा करने वालों पर प्रहार-देश में जो व्यापारी काला धन्धा करते थे और इससे प्राप्त काले धन को नकदी के रूप में अपने पास रखते थे उन पर भी विमुद्रीकरण से करारी चोट की गई है। काले धन्धे में लगे लोग तथा भ्रष्ट लोग, ग़रीब लोगों का सहारा ले रहे हैं ताकि काले धन को सफेद किया जा सके।

4. अर्थ-व्यवस्था में वृद्धि-विमुद्रीकरण से अर्थव्यवस्था में वृद्धि होने की संभावना है। विमुद्रीकरण से सरकारी खाते में लगभग ₹ 3 लाख करोड़ आएंगे और ₹ 70,000 करोड़ विभिन्न करों से आने की उम्मीद है। इसका प्रभाव अल्पकाल में नहीं बल्कि दीर्घकाल में ज़रूर नज़र आएगा। इस रकम के आने से सरकार आधारभूत ढांचे में निवेश करेगी जिससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होगी।

5. कर द्वारा आय में वृद्धि-सरकार ने विमुद्रीकरण से पहले और विमुद्रीकरण के दौरान काले धन को छिपाकर रखने वाले लोगों को काला धन घोषित करने को कहा और बिना पैनलटी के कर जमा करने की छूट दी। बाद में पैनलटी के साथ कर जमा करने को कहा। इससे सरकार की कर आय में 14.5% वृद्धि हो चुकी है।

6. रोज़गार में वृद्धि-विमुद्रीकरण के बाद सरकार की मुद्रा योजना को बल मिलेगा। सरकार की योजनाओं को बैंकों से सहयोग नहीं मिल रहा था इसलिए सरकार के पास नकदी का संकट था, परन्तु अब बैंकों में नकदी का प्रवाह बढ़ा है जिस कारण औद्योगिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं और रोज़गार में वृद्धि होगी।

7. ब्याज दर में कमी-विमुद्रीकरण के बाद काले धन के एक बड़े भाग को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में लाया जाएगा। इससे बैंकों के पास जमा राशि में बढ़ोत्तरी होगी जिससे ब्याज दरों में कमी आएगी। इससे लोग व्यापार में निवेश करेंगे और मकानों की बिक्री बढ़ने की सम्भावना है।

8. नकद लेन-देन में कमी-विमुद्रीकरण के बाद अर्थव्यवस्था कैशलेस अर्थव्यवस्था (Cashless Economy) की तरफ बढ़ रही है। सरकार नकद लेन-देन पर रोक लगा रही है ताकि काले धन से लेन-देन खत्म हो सके। नकद लेन-देन को सरकार नि:उत्साहित कर रही है।

9. लोक कल्याणकारी योजनाएं-विमुद्रीकरण द्वारा सरकार के पास जैसे-जैसे धन की प्राप्ति होती है लोक कल्याणकारी योजनाओं में निवेश में वृद्धि की जाएगी। 2022 तक सरकार प्रत्येक का अपना घर का लक्ष्य लिए हुए है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

6. विमद्रीकरण की हानियां (Dis-advantages of demonetisation) –

1. विमुद्रीकरण से देश की जी०डी०पी० (GDP) पर सुस्ती आने की सम्भावना है परन्तु यह अल्पकाल के लिए होगा और दीर्घकाल में इसमें वृद्धि ही होगी।

2. विमुद्रीकरण से पर्यटन उद्योग को धक्का लगा है। भारत आने वाले पर्यटकों ने अपना दौरा रद्द कर दिया क्योंकि नकद पैसा निकलवाने में मुश्किल का सामना करना पड़ता था। विमुद्रीकरण लम्बे समय में लाभदायक ही सिद्ध होगी। नोटबन्दी के बारे में रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट 30 अगस्त, 2017 को प्रकाशित हुई है जिसमें यह कहा गया है कि नोटबन्दी में ₹ 1000 और ₹ 500 के 99% नोट वापिस आ गए हैं। 8 नवम्बर, 2017 को ₹ 1000 और ₹ 500 के ₹ 15.44 लाख करोड़ के नोट चलन में थे। 30 जून, 2017 को ₹ 15.28 करोड़ के नोट वापिस आ गए। सरकार के नोटबंदी पर ₹ 21 हजार करोड़ खर्च हुए और ₹ 16.5 करोड़ के नोट वापिस नहीं आए।

प्रश्न 5.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा की पूर्ति के प्रभाव स्पष्ट करें।
(What is meant by Supply of Money ? Discuss the effects of the Supply of Money ?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति एक अर्थव्यवस्था में करंसी के समस्त भंडार को कहा जाता है। इसमें निश्चित समय पर प्रचलत मौद्रिक भंडार भी शामिल होते हैं। मुद्रा में नकद मुद्रा, सिक्के और बचत खातों में रकम को शामिल किया जाता है समष्टि अर्थशास्त्र को समझने के लिए मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। अर्थशास्त्रियों का विचार है कि मुद्रा की पूर्ति, नीति निर्माण के लिए अति आवश्यक होती है। सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की सफलता के लिए मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। देश में मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। देश में मुद्रा की पूर्ति, कीमत के स्तर, मुद्रा स्फीति और व्यापारिक चक्र देश के व्यापार पर प्रभाव डालते हैं। मुद्रा पूर्ति को मुद्रा स्टाक (Money stock) भी कहा जाता है।

मुद्रा पूर्ति का माप (Measurement of Supply of Money)-मुद्रा की पूर्ति (Ms) के बहुत से रूप होते हैं। जैसे कि –

  1. M0 = देश में मुद्रा की कुल पूर्ति को Mo कहा जाता है जिसमें हर प्रकार की मुद्रा शामिल होती है।
  2. M1 = (Narrow Money) = (CC + DD + Other Deposits) इसमें देश के करंसी नोटों (C.C.) को शामिल किया जाता है। इस के इलावा इसमें मांग जमा (Demand Deposits (D.D.) को भी शामिल करते हैं। बैंकों में और प्रकार के खातों जैसे कि चालू खाते में जमा (Current Deposits) को भी शामिल किया जाता है।
  3. M2 = (M1 + Saving Deposits of Post-Office Savings) यदि हम M1 = CC + DD + Other Deposits of the banks) के साथ डाकखानों में बचत खाते में जमा राशि को शामिल कर लेते हैं तो इसको M2 कहा जाता है।

M3 = Broad Money = (M1 + Time Deposits of Banks)
विशाल मुद्रा में हम M1 = CC + Cash Currency) + DD + Other deposits of Bank (Current Deposits) के साथ यदि बैकों में समय अवधि जमा को शामिल कर लेते हैं तो इसको M3 का नाम दिया जाता है।
M4 = (Wide Measure) = M3 + Post Office saving deposits)
M3 = में हमने (CC + DD + Other deposits) को शामिल करके इसमें बैंकों में समय अवधि जमा (Time Deposits) को भी शामिल किया था। यदि इसमें डाकखानों में जमा बचत खातों में जमा रकम को जोड़ लिया जाए तो इसको M4 का नाम दिया जाता है।

अर्थव्यवस्था पर मुद्रा की पूर्ति के प्रभाव (Effects of Supply of Money on the Economy)-मुद्रा की पूर्ति अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती है। जब मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है तो इससे ब्याज की दर (Rate of Interest) कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप निवेश में वृद्धि होती है। लोगों की मौद्रिक आय बढ़ने से व्यय में भी वृद्धि होती है। उत्पादन बढ़ने लगता है और रोज़गार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

इसके विपरीत यदि मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है तो इस का अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मुद्रा की कम पूर्ति के कारण व्यापारिक चक्र पैदा होते हैं जैसे कि सुस्ती और मंदीकाल (Depression) की स्थिति पैदा हो जाती है। मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि की जाए तो पुनरुत्थान (Recovery) और तेजीकाल (Boom) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार मुद्रा की पूर्ति से देश में आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

Long Answer Type Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਵੱਲੋਂ ਪਾਏ ਗਏ ਯੋਗਦਾਨ ਬਾਰੇ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Give description about Guru Angad Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀ-ਕੀ ਕੰਮ ਕੀਤੇ ? (What did Guru Angad Dev Ji do for the development of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਛੇ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ । (Write six achievements of Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਕਾਰਜਾਂ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ ਕਰੋ । (Form an estimate of the works of Guru Angad Dev Ji for the spread of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Guru Angad Dev Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦੂਜੇ ਗੁਰੂ ਬਣੇ ਉਹ 1552 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀਤੇ-

1. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ – ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਉਣਾ-ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾ ਕੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵੱਲ ਪਹਿਲਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਦਮ ਚੁੱਕਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਨਿਖਾਰ ਲਿਆਂਦਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਇਸ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਸਮਝਣਾ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਆਸਾਨ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿੱਦਿਆ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਵੀ ਹੋਣ ਲੱਗਾ ।

2. ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ-ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸਿਹਰਾ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਲੰਗਰ ਦਾ ਸਾਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਧਰਮ ਪਤਨੀ ਮਾਤਾ ਖੀਵੀ ਜੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਲੰਗਰ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਵਿਅਕਤੀ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਊਚ-ਨੀਚ, ਜਾਤ-ਪਾਤ ਦੇ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਛਕਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਸਹਿਯੋਗ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਵਧੀ ।

3. ਸੰਗਤ ਦਾ ਸੰਗਠਨ – ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸਥਾਪਿਤ ਸੰਗਤ ਸੰਸਥਾ ਨੂੰ ਵੀ ਸੰਗਠਿਤ ਕੀਤਾ | ਸੰਗਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਬੈਠਣਾ । ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕ-ਇਸਤਰੀ ਅਤੇ ਪੁਰਸ਼ ਹਿੱਸਾ ਲੈ ਸਕਦੇ ਸਨ ।ਇਹ ਸੰਗਤ ਸਵੇਰੇ ਸ਼ਾਮ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣਨ ਲਈ ਇਕੱਠੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਨਾ-ਬਰਾਬਰੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

4. ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਖੰਡ – ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਪੁੱਤਰ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਹ ਮਤ ਸੰਨਿਆਸ ਜਾਂ ਤਿਆਗ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦਾ ਸੀ | ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਦੇਣ ਲੱਗ ਪਏ ਸਨ । ਇੱਥੋਂ ਤਕ ਕਿ ਇਹ ਖ਼ਤਰਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਕਿਤੇ ਸਿੱਖ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਕੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨਾ ਅਪਣਾ ਲੈਣ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਕਰੜਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰ ਕੇ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦੀ ਵੱਖਰੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ ।

5. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ-1546 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨੇੜੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਨਗਰ ਛੇਤੀ ਹੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਬਣ ਗਿਆ ।

6. ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਾਮਜ਼ਦਗੀ-ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਕੰਮ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਾਮਜ਼ਦ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਇੱਕ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਚੋਣ ਕੀਤੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਉਣ ਵਿੱਚ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ? (What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to improve Gurumukhi script ?)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਨੂੰ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ?
(What impact did the popularisation of Gurmukhi by Guru Angad Dev Ji leave on the growth of Sikhism ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾ ਕੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵੱਲ ਪਹਿਲਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਦਮ ਚੁੱਕਿਆ | ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਦੀ ਕਾਢ ਕਿਸ ਨੇ ਕੱਢੀ ? ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਮਤਭੇਦ ਹੈ । ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੋਂਦ ਵਿੱਚ ਆ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਲੰਡੇ ਲਿਪੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਕੋਈ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਬੜੀ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਭੁਲੇਖੇ ਵਿੱਚ ਪੈ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਨਿਖਾਰ ਲਿਆਂਦਾ । ਹੁਣ ਇਸ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਸਮਝਣਾ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਵੀ ਬੜਾ ਆਸਾਨ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ।

ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਇਸ ਲਿਪੀ ਵਿੱਚ ਹੋਈ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਦਾ ਨਾਂ ਗੁਰਮੁੱਖੀ (ਭਾਵ ਗੁਰੂਆਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲੀ ਹੋਈ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੁ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਆਪਣੇ ਕਰਤੱਵ ਦੀ ਯਾਦ ਕਰਵਾਉਂਦੀ ਰਹੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਲਿਪੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਵੱਖਰੀ ਪਹਿਚਾਣ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿੱਦਿਆ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਹੋਣ ਲੱਗਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਲਿਪੀ ਦੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਬਾਹਮਣ ਵਰਗ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਨੂੰ ਹੀ ਧਰਮ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਮੰਨਦੇ ਸਨ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਅਤਿਅੰਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on the importance of Sangat and Pangat.)
ਜਾਂ
ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Sangat and Pangat ?)
ਉੱਤਰ-
1. ਸੰਗਤ – ਸੰਗਤ ਸੰਸਥਾ ਤੋਂ ਭਾਵ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਸੀ । ਇਹ ਸੰਗਤ ਸਵੇਰੇ ਸ਼ਾਮ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣਨ ਲਈ ਇਕੱਠੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਗਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ। ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸੰਗਠਿਤ ਕੀਤਾ । ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਵੀ ਇਸਤਰੀ ਜਾਂ ਪੁਰਸ਼ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਜਾਂ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਸੰਗਤ ਨੂੰ ਰੱਬ ਦਾ ਰੂਪ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਕਾਇਆ ਪਲਟ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਉਸ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਮਨੋਕਾਮਨਾਵਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ ।ਉਹ ਭਵਸਾਗਰ ਤੋਂ ਪਾਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਨਿਰਸੰਦੇਹ ਇਹ ਸੰਸਥਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਅਤਿਅੰਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।

2. ਪੰਗਤ – ਪੰਗਤ (ਲੰਗਰ) ਸੰਸਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ । ਪਹਿਲੇ ਪੰਗਤ ਤੇ ਪਿੱਛੇ ਸੰਗਤ ਦਾ ਨਾਅਰਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ | ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਹਰੀਪੁਰ ਦੇ ਰਾਜੇ ਨੇ ਵੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਲੰਗਰ ਛਕਿਆ ਸੀ ਲੰਗਰ ਹਰ ਧਰਮ ਅਤੇ ਜਾਤੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਖੁੱਲਾ ਸੀ । ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਯੋਗਦਾਨ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਅਤੇ ਛੂਆ-ਛੂਤ ਦੀਆਂ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਪਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਵੀ ਬੜੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰਗੱਦੀ ਸੰਭਾਲਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁੱਢਲੇ ਸਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀਆਂ-ਕਿਹੜੀਆਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ? (What problems did Guru Amar Das Ji face in the early years of his pontificate ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰਗੱਦੀ ਸੰਭਾਲਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁੱਢਲੇ ਸਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ।
1. ਦਾਸੂ ਅਤੇ ਦਾਤੂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂਕਾਲ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦਾਸੂ ਅਤੇ ਦਾਤੂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਅਸਲੀ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਖ ਸੰਗਤਾਂ ਨੇ ਦਾਤੂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਗੁਰੂ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦਾਸੁ ਨੇ ਵੀ ਮਾਤਾ ਖੀਵੀ ਜੀ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਆਪਣਾ ਵਿਰੋਧ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

2. ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਦਾ ਵਿਰੋਧ – ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਪੁੱਤਰ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਹੱਕ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਸਮਰਥਕ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਅਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹਤਾ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲੈਂਦੇ ਹੋਏ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਉਲਟ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਦਲੀਲਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ ।

3. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ-ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਵੇਖ ਕੇ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਤੰਗ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸਾਮਾਨ ਚੋਰੀ ਕਰ ਲੈਂਦੇ । ਉਹ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆ ਤੋਂ ਪਾਣੀ ਭਰ ਕੇ ਲਿਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਘੜੇ ਪੱਥਰ ਮਾਰ ਕੇ ਤੋੜ ਦਿੰਦੇ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਂਤ ਰਹਿਣ ਦਾ ਉਪਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ।

4. ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਮਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਮਤ ਵਿੱਚ ਊਚ-ਨੀਚ ਦਾ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵੱਖਰਾ ਤੀਰਥ ਅਸਥਾਨ ਵੀ ਮਿਲ ਗਿਆ ਸੀ । ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਉੱਚ ਜਾਤੀਆਂ ਦੇ ਹਿੰਦੂ ਇਹ ਗੱਲ ਸਹਿਣ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਪਾਸ ਇਹ ਝੂਠੀ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕੀਤੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਜੀ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵਿਰੋਧੀ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਅਕਬਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਨਿਰਦੋਸ਼ ਕਰਾਰ ਦਿੱਤਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਦਿਓ । (Give an account of the development of Sikhism under Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਛੇ ਮੁੱਖ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Write down the six services done by Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਵੱਡਮੁੱਲੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕਰੋ । (Model Test Paper) (Explain the contribution of Guru Amar Das Ji for the development of Sikhism.)
मां
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਕਾਰਜਾਂ ਦੇ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about the works of Guru Amar Das Ji for the spread of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । (Study the contribution of Guru Amar Das Ji to the growth of Sikhism.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ 1552 ਈ. ਤੋਂ 1574 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਰਹੇ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਲਈ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਕੰਮ ਕੀਤੇ ।
1. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵੱਲ ਪਹਿਲਾ ਮਹਾਨ ਕੰਮ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਇਸ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ 1552 ਈ. ਤੋਂ 1559 ਈ. ਤਕ ਚਲਿਆ । ਇਸ ਬਾਉਲੀ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ 84 ਪੌੜੀਆਂ ਬਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ । ਬਾਉਲੀ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਮਿਲ ਗਿਆ ।

2. ਲੰਗਰ ਸੰਸਥਾ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸਥਾਪਿਤ ਲੰਗਰ ਸੰਸਥਾ ਦਾ ਹੋਰ ਵਿਸਥਾਰ ਕੀਤਾ | ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਯਾਤਰੁ ਲੰਗਰ ਛਕੇ ਬਿਨਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ । ਇਸ ਲੰਗਰ ਵਿੱਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ ਅਤੇ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਮਿਲ ਕੇ ਖਾਣਾ ਖਾਂਦੇ ਸਨ ।ਲੰਗਰ ਸੰਸਥਾ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਬੜੀ ਸਹਾਇੱਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਨਾਲ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਬੜਾ ਧੱਕਾ ਲੱਗਾ ।

3. ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ – ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਲਈ ਹਰ ਸਿੱਖ ਤਕ ਨਿੱਜੀ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚਣਾ ਸੰਭਵ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਉਪਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਦੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਦੇ ਲਈ 22 ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਾਈਂ ਫੈਲ ਗਈ ।

4. ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਖੰਡਨ – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦੀ ਹੋਂਦ ਲਈ ਖ਼ਤਰਾ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਏ ਸਨ । ਅਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਸਿੱਖ ਮਤ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨਾਲੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਵੱਖਰਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਲੋਪ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਚਾ ਲਿਆ ।

5. ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰ – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ, ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ, ਬਾਲ ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਵਿਧਵਾ ਵਿਆਹ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕੀਤਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਜਨਮ, ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਮਰਨ ਦੇ ਮੌਕਿਆਂ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰਸਮਾਂ ਬਣਾਈਆਂ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਆਦਰਸ਼ ਸਮਾਜ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ।

6. ਬਾਣੀ ਦਾ ਸੰਗ੍ਰਹਿ-ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਇੱਕ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਗਰ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪ 907 ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਨਾਲ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਦਾ ਆਧਾਰ ਤਿਆਰ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਉਲੀ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the importance of the construction of the Baoli of Goindwal Sahib in Sikh History ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵੱਲ ਪਹਿਲਾ ਮਹਾਨ ਕੰਮ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਇਸ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ 1552 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਇਹ 1559 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਕੰਮਲ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨ ਪਿੱਛੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ । ਪਹਿਲਾ, ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵੱਖਰਾ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਦੇਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਤਾਂ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂ ਮਤ ਤੋਂ ਵੱਖਰਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇ । ਦੂਜਾ, ਉਹ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਪਾਣੀ ਸੰਬੰਧੀ ਔਕੜ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਬਾਉਲੀ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ 84 ਪੌੜੀਆਂ ਬਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਪੂਰਾ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਜੋ ਕੋਈ ਯਾਤਰੂ ਹਰ ਪੌੜੀ ‘ਤੇ ਸੱਚੇ ਮਨ ਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਕਰੇਗਾ ਅਤੇ ਪਾਠ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਾਉਲੀ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰੇਗਾ ਉਹ 84 ਲੱਖ ਜੂਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ।

ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵੱਲ ਇੱਕ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਮਿਲ ਗਿਆ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਜਾਣ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਨਹੀਂ ਰਹੀ ਸੀ । ਦੂਸਰਾ, ਬਾਉਲੀ ਕਾਰਨ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸਾਫ਼ ਪੀਣ ਵਾਲੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਦੂਰ ਹੋ ਗਈ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕ ਦਰਿਆ ਬਿਆਸ ਤੋਂ ਪਾਣੀ ਲੈਂਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਪਾਣੀ ਬਰਸਾਤ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਗੰਦਾ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਪੀਣ ਦੇ ਯੋਗ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਪਹੁੰਚਣ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤੱਕ ਫੈਲ ਗਈ ।ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੁਆਰਾ ਬਾਉਲੀ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਕਰਕੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਇੱਕ ਤਕੜਾ ਧੱਕਾ ਲੱਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly throw light on social reforms of Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਕੋਈ ਛੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe any six social reforms of Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (Why is Guru Amar Das called a Social Reformer ?)
ਜਾਂ
ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Guru Amar Das Ji as a social reformer.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

  • ਜਾਤੀ ਭੇਦਭਾਵ ਅਤੇ ਛੂਤ – ਛਾਤ ਦਾ ਖੰਡਨ-ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਅਤੇ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦੀਆਂ ਕੁਰੀਤਿਆਂ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਗਤਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਜੋ ਕੋਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਪੰਗਤ ਵਿੱਚ ਲੰਗਰ ਛਕਣਾ ਪਵੇਗਾ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ।
  • ਜੰਮਦੀਆਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦਾ ਖੰਡਨ – ਉਸ ਸਮੇਂ ਕੁੜੀਆਂ ਦੇ ਜਨਮ ਨੂੰ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਕੁਝ ਲੋਕ ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਜਨਮ ਲੈਂਦੇ ਸਾਰ ਹੀ ਮਾਰ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਕੁਰੀਤੀ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜੋ ਵਿਅਕਤੀ ਅਜਿਹਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਹ ਘੋਰ ਪਾਪ ਦਾ ਭਾਗੀ ਬਣੇਗਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਅਪਰਾਧ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹਿਣ ਦਾ ਉਪਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਬਾਲ-ਵਿਆਹ ਦਾ ਖੰਡਨ-ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਲੜਕੀਆਂ ਦਾ ਵਿਆਹ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਬਾਲ-ਵਿਆਹ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ।
  • ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਖੰਡਨ-ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੁਰੀਤਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਸਭ ਤੋਂ ਨਫ਼ਰਤ ਯੋਗ ਕਰੀਤੀ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਅਣਮਨੁੱਖੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਇਸਤਰੀ ਦੇ ਪਤੀ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਜਬਰਨ ਪਤੀ ਦੀ ਚਿਤਾ ਨਾਲ ਜਿਉਂਦੇ ਜਲਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਚਲੀ ਆ ਰਹੀ ਇਸ ਕੁਰੀਤੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਇੱਕ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਮੁਹਿੰਮ ਚਲਾਈ ।
  • ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਖੰਡਨ-ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਧ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਹ ਪ੍ਰਥਾ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੇ ਸਰੀਰਕ ਅਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਆਲੋਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਸੰਗਤ ਜਾਂ ਲੰਗਰ ਵਿੱਚ ਸੇਵਾ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਈ ਵੀ ਇਸਤਰੀ ਪਰਦਾ ਨਾ ਕਰੇ ।
  • ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਦਾ ਖੰਡਨ-ਉਸ ਸਮੇਂ ਕੁੱਝ ਲੋਕ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਏ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਦੀ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਨਿਖੇਧੀ ਕੀਤੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਕੀ ਸੀ ? ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਇਸ ਨੇ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ? (What was the Manji System ? How did it contribute to the development of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਮੰਜੀ ਵਿਵਸਥਾ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Manji System ?)
ਜਾਂ
ਮੰਜੀ ਵਿਵਸਥਾ ਉੱਪਰ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Manji System.)
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ । ਇਸ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਮੋਢੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਸਨ । ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਆਰੰਭ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਲੋੜ – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਨਿਰੰਤਰ ਯਤਨਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜਾਦੂਈ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦੇ ਕਾਰਨ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਗਏ ਸਨ । ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਈ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਫੈਲੇ ਹੋਏ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਲਈ ਨਿੱਜੀ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣਾ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਦੂਸਰਾ, ਇਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਬਹੁਤ ਬਿਰਧ ਹੋ ਗਏ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਦੀ ਲੋੜ ਮਹਿਸੂਸ ਕੀਤੀ ।

2. ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਤੋਂ ਭਾਵ-ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਆਪਣੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਉਪਦੇਸ਼ ਦਿੰਦੇ ਸਮੇਂ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਮੰਜੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਨੂੰ ਮੰਜਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਬਾਕੀ ਸਿੱਖ ਜ਼ਮੀਨ ਜਾਂ ਦਰੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ ਸੁਣਦੇ ਸਨ | ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ 22 ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੁਖੀ ਮੰਜੀਦਾਰ ਕਹਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਮੰਜੀਦਾਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਪ੍ਰਤੀ ਆਪਣਾ ਸਨਮਾਨ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ ਇੱਕ ਛੋਟੀ ਮੰਜੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੰਸਥਾ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਕਹਾਉਣ ਲੱਗੀ ।

3. ਮੰਜੀਦਾਰ ਦੇ ਕੰਮ-ਮੰਜੀਦਾਰ ਆਪਣੇ ਅਧੀਨ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧਤਾ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਅਨੇਕਾਂ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਸੀ ।

  • ਉਹ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਸੰਗਤ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਧਾਰਮਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਭਾਸ਼ਾ ਪੜ੍ਹਾਉਂਦਾ ਸੀ ।
  • ਉਹ ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਸੰਗਤਾਂ ਨਾਲ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਘੱਟੋ-ਘੱਟ ਇੱਕ ਵਾਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਆਉਂਦੇ ਸਨ ।

4. ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਮਹੱਤਵ-ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਸੰਗਠਨ ਵਿੱਚ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ | ਮੰਜੀਦਾਰਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲੱਗੇ । ਇਸ ਦੇ ਦੂਰਰਸੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ! ਮੰਜੀਦਾਰ ਧਰਮ ਪ੍ਰਚਾਰ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸੰਗਤ ਕੋਲੋਂ ਲੰਗਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਕਾਰਜਾਂ ਲਈ ਮਾਇਆ ਵੀ ਇਕੱਠੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਮਾਇਆ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਕਾਰਜਾਂ ਉੱਤੇ ਖ਼ਰਚ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੀ ਲੋਕਪ੍ਰਿਅਤਾ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਕਿਹੋ ਜਿਹੇ ਸੰਬੰਧ ਸਨ ? (What type of relations did Guru Amar Das Ji have with the Mughals ?)
ਜਾਂ
ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਵਿਚਾਲੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਉਲੇਖ ਕਰੋ । (Describe the relations between Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
ਮੁਗਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਵਿਚਕਾਰ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਉਲੇਖ ਕਰੋ । (Explain the relations between the Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਬਹੁਤ ਚੰਗੇ ਸਨ ਉਸ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਅਰਦਾਸ ਸਦਕਾ ਅਕਬਰ ਨੂੰ ਚਿਤੌੜ ਦੀ ਮੁਹਿੰਮ ਵਿੱਚ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸ਼ੁਕਰਾਨਾ ਕਰਨ ਲਈ ਅਕਬਰ 1568 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਆਇਆ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਰਯਾਦਾ ਅਨੁਸਾਰ ਬਾਕੀ ਸੰਗਤ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਲੰਗਰ ਛਕਿਆ ।ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਅਤੇ ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ।ਉਸ ਨੇ ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਕੁਝ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਦੀ ਪੇਸ਼ਕਸ਼ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਜਾਗੀਰ ਲੈਣ ਤੋਂ ਇਸ ਲਈ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਖ ਲੰਗਰ ਲਈ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਅਕਬਰ ਦੀ ਇਸ ਯਾਤਰਾ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਬਹੁਤ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਫੈਲ ਗਈ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਗਏ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਛੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨਾਂ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Give the six important contributions of Guru Ram Das Ji in the development of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਪ੍ਰਤੀ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਸੀ ? (What was the contribution of Guru Ram Das Ji to Sikh religion ?)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the contribution of Guru Ram Das Ji to the development of Sikhism.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂਕਾਲ 1574 ਈ. ਤੋਂ 1581 ਈ. ਤਕ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗੁਰਿਆਈ ਦਾ ਸਮਾਂ ਬਹੁਤ ਥੋੜਾ ਸੀ ਫਿਰ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਸੰਗਠਨ ਵਿੱਚ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

1. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਦੇਣ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਜਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 1577 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ । ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਆਬਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧੰਦਿਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ 52 ਵਪਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵਸਾਇਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਪਾਰੀਆਂ ਨੇ ਜਿਹੜਾ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਸਾਇਆ ਉਹ “ਗੁਰੂ ਕਾ ਬਾਜ਼ਾਰ’ ਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੱਕਾ ਮਿਲ ਗਿਆ । ਇਹ ਛੇਤੀ ਹੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਧਰਮ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਬਣ ਗਿਆ ।

2. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਆਰੰਭ – ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਅੰਮਿਤਸਰ ਅਤੇ ਸੰਤੋਖਸਰ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਸਰੋਵਰਾਂ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਲਈ ਮਾਇਆ ਦੀ ਲੋੜ ਪਈ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧਾਂ ਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਭੇਜਿਆ ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰ ਸਕਣ ਅਤੇ ਸੰਗਤਾਂ ਤੋਂ ਮਾਇਆ ਇਕੱਠੀ ਕਰ ਸਕਣ । ਇਹ ਸੰਸਥਾ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦਾ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਪ੍ਰਚਾਰ ਹੋਇਆ ।

3. ਉਦਾਸੀਆਂ ਨਾਲ ਸਮਝੌਤਾ – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਕਾਲ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘਟਨਾ ਉਦਾਸੀਆਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਸੀ । ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਮੋਢੀ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਆਏ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨਿਮਰਤਾ ਤੋਂ ਇੰਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਉਸ ਦਿਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ | ਇਹ ਸਮਝੌਤਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

4. ਕੁਝ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਬਾਣੀ ਦੀ ਰਚਨਾ (679 ਸ਼ਬਦ) ਕਰਨਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਚਾਰ ਲਾਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਵਿਆਹ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਚਲੀਆਂ ਆ ਰਹੀਆਂ ਸੰਗਤ, ਪੰਗਤ ਤੇ ਮੰਜੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਜਿਵੇਂ-ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ, ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ, ਬਾਲ ਵਿਵਾਹ ਆਦਿ ਦਾ ਵੀ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ।

5. ਅਕਬਰ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ ਕਾਇਮ ਰਹੇ । ਅਕਬਰ ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਮਿਲਿਆ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਇੱਕ ਸਾਲ ਲਈ ਲਗਾਨ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਵਿੱਚ ਹੋਰ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

6. ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ 1581 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਕੇ ਇੱਕ ਹੋਰ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਕਾਰਜ ਜਾਰੀ ਰਿਹਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? [What is the importance of the foundation of Ramdaspura (Amritsar) in Sikh history ?]
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਦੇਣ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਜਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਗੁਰਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਆਪ ਇੱਥੇ ਆ ਗਏ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ 1577 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਆਬਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧੰਦਿਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ 52 ਵਪਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵਸਾਇਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਪਾਰੀਆਂ ਨੇ ਜਿਹੜਾ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਸਾਇਆ ਉਹ ‘ਗੁਰੂ ਕਾ ਬਾਜ਼ਾਰ’ ਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਇਹ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਕੇਂਦਰ ਬਣ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਦੋ ਸਰੋਵਰਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਅਤੇ ਸੰਤੋਖਸਰ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਬਣਾਇਆ । ਪਹਿਲਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਦਾ ਕੰਮ ਆਰੰਭਿਆ ਗਿਆ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਹੀ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦਾ ਨਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਪੈ ਗਿਆ । ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਰੱਖਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵੱਖਰਾ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਮਿਲ ਗਿਆ ਜਿਹੜਾ ਛੇਤੀ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਧਰਮ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੇਂਦਰ ਬਣ ਗਿਆ । ਇਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੱਕਾ ਕਿਹਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਏਕਤਾ ਅਤੇ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਾ ਵੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਬਣ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਉਦਾਸੀ ਮਤ ’ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Udasi Sect.)
ਜਾਂ
ਉਦਾਸੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Udasi System ?)
ਜਾਂ
ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ‘ ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Baba Sri Chand Ji.)
ਉੱਤਰ-
1. ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ – ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਪੁੱਤਰ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਹ ਮਤ ਸੰਨਿਆਸ ਜਾਂ ਤਿਆਗ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ਜਦਕਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਹਿਸਥ ਜੀਵਨ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਬਾਕੀ ਸਾਰੇ ਸਿਧਾਂਤ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲਦੇ ਸਨ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਦੇਣ ਲੱਗ ਪਏ ਸਨ । ਅਜਿਹੇ ਹਾਲਾਤ ਵਿੱਚ ਇਹ ਖ਼ਤਰਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਕਿਤੇ ਸਿੱਖ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਕੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨਾ ਅਪਣਾ ਲੈਣ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਇੱਕ ਤਕੜੇ ਅਤੇ ਤੁਰੰਤ ਨਿਰਣੇ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ ।

2. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ – ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਕਰੜਾ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਤੋਂ ਉਲਟ ਹਨ ਅਤੇ ਜਿਹੜਾ ਸਿੱਖ ਇਸ ਮਤ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਉਹ ਸੱਚਾ ਸਿੱਖ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ।

3. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਸਮਝਾਉਣ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਕਸਰ ਬਾਕੀ ਨਾ ਛੱਡੀ ਕਿ ਸਿੱਖ ਮਤ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨਾਲੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਵੱਖਰਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਸੰਬੰਧ ਤੋੜ ਲਏ ।

4. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਗੁਰਿਆਈ ਕਾਲ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘਟਨਾ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਸਮਝੌਤਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਮੋਢੀ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਆਏ । ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨਿਮਰਤਾ ਤੋਂ ਇੰਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਉਸ ਦਿਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਨਾ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਉਦਾਸੀਆਂ ਨਾਲ ਇਹ ਸਮਝੌਤਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਲਈ ਬੜਾ ਲਾਹੇਵੰਦ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਨਾਲ ਇੱਕ ਤਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਉਦਾਸੀਆਂ ਵਿਚਕਾਰ ਚਲਿਆ ਆ ਰਿਹਾ ਆਪਸੀ ਤਣਾਅ ਦੂਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਦੂਜਾ, ਉਦਾਸੀਆਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੂਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Essay Type Questions)
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਜੀਵਨ (Early Career of Guru Angad Dev Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮੁੱਢਲੇ ਜੀਵਨ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What do you know about the early career of Guru Angad Dev Ji ? Explain briefly.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਜਾਂ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦੂਸਰੇ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਗੁਰੂ ਕਾਲ 1539 ਈ. ਤੋਂ 1552 ਈ. ਤਕ ਰਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਮੁੱਢਲੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

1. ਜਨਮ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ (Birth and Parentage) – ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਨਾਂ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜਨਮ 31 ਮਾਰਚ, 1504 ਈ. ਨੂੰ ਮੱਤੇ ਦੀ ਸਰਾਏ ਨਾਮੀ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ । ਆਪ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਫੇਰੂਮਲ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਖੱਤਰੀ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਸਭਰਾਈ ਦੇਵੀ ਜੀ ਸੀ ।ਉਹ ਬੜੀ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਾਲੀ ਇਸਤਰੀ ਸੀ । ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ’ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਕਾਫ਼ੀ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ।

2. ਬਚਪਨ ਅਤੇ ਵਿਆਹ (Childhood and Marriage) – ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਜਦੋਂ ਜਵਾਨ ਹੋਏ ਤਾਂ ਉਹ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦੇ ਕੰਮ ਵਿੱਚ ਹੱਥ ਵਟਾਉਣ ਲੱਗੇ 15 ਵਰਿਆਂ ਦੇ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਿਆਹ ਉਸ ਪਿੰਡ ਦੇ ਨਿਵਾਸੀ ਸ੍ਰੀ ਦੇਵੀ ਚੰਦ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ ਬੀਬੀ ਖੀਵੀ ਨਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਆਪ ਦੇ ਘਰ ਦੋ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦਾਤੂ ਅਤੇ ਦਾਸੁ ਅਤੇ ਦੋ ਪੁੱਤਰੀਆਂ ਬੀਬੀ ਅਮਰੋ ਅਤੇ ਬੀਬੀ ਅਨੋਖੀ ਨੇ ਜਨਮ ਲਿਆ | 1526 ਈ. ਬਾਬਰ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ’ਤੇ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਫੇਰੂਮਲ ਜੀ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਨਾਮੀ ਪਿੰਡ ਵਿਖੇ ਆ ਗਏ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਫੇਰੂਮਲ ਜੀ ਅਕਾਲ ਚਲਾਣਾ ਕਰ ਗਏ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਦੇ ਮੋਢਿਆਂ ‘ਤੇ ਆ ਪਈ ।

3. ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣੇ (Lehna Ji became the disciple of Guru Nanak Dev Ji) – ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੁਰਗਾ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੇ ਭਗਤ ਸਨ । ਉਹ ਹਰ ਸਾਲ ਆਪਣੇ ਭਗਤਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਜੱਥਾ ਲੈ ਕੇ ਜਵਾਲਾਮੁਖੀ (ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਕਾਂਗੜਾ) ਦੇਵੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਇੱਕ ਦਿਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਭਾਈ ਜੋਧਾ ਜੀ ਦੇ ਮੁੱਖੋਂ ‘ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਿਆਂ । ਇਹ ਪਾਠ ਸੁਣ ਕੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਇੰਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਦਾ ਪੱਕਾ ਫੈਸਲਾ ਕਰ ਲਿਆ | ਅਗਲੇ ਵਰੇ ਜਦੋਂ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਜਵਾਲਾਮੁਖੀ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਲਈ ਨਿਕਲੇ ਤਾਂ ਉਹ ਰਸਤੇ ਵਿੱਚ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਰੁਕੇ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਮਹਾਨ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਅਤੇ ਮਿੱਠੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਸੁਣ ਕੇ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣਨ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਚਰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਆਪਣਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

4. ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ (Assumption of Guruship) – ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੇ ਪੂਰਨ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ । ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਦੀ ਸੱਚੀ ਭਗਤੀ ਅਤੇ ਅਥਾਹ ਪਿਆਰ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਪੁਰਦ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇੱਕ ਨਾਰੀਅਲ ਤੇ ਪੰਜ ਪੈਸੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਅੱਗੇ ਰੱਖ ਕੇ ਆਪਣਾ ਸੀਸ ਨਿਵਾਇਆ | ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ | ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੂੰ ਅੰਗਦ ਦਾ ਨਾਂ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਹ ਘਟਨਾ 7 ਸਤੰਬਰ, 1539 ਈ. ਦੀ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਇੱਕ ਅਤਿ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘਟਨਾ ਮੰਨੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਲਹਿਰ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਿਸਚਿਤ ਦਿਸ਼ਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ ਅਤੇ ਇਸ ਦਾ ਆਧਾਰ ਮਜ਼ਬੂਰ ਹੋਇਆ । ਜੀ. ਸੀ. ਨਾਰੰਗ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ,
“ਜੇਕਰ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਹੀ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਜਾਂਦੇ ਤਾਂ ਅੱਜ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨਹੀਂ ਹੋਣਾ ਸੀ ।”

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of Sikhism under Guru Angad Dev Ji)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਆਰੰਭਿਕ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਹੈ ? ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (What is the contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism ? Explain.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਆਰੰਭਿਕ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਸੀ ? (What was the contribution of Guru Angad Dev Ji to the early developmnent of Sikhism ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦੂਜੇ ਗੁਰੂ ਬਣੇ ।ਉਹ 1552 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ । ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ਸਨ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਕਈ ਖ਼ਤਰੇ, ਮੌਜੂਦ ਸਨ | ਪਹਿਲਾ ਸਿੱਖ ਪੈਰੋਕਾਰਾਂ ਦੀ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਲੀਨ ਹੋ ਜਾਣ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ ਸੀ । ਦੁਜਾ ਖ਼ਤਰਾ ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਸੀ । ਇਸ ਮਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਪੁੱਤਰ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦੇ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਯਤਨਾਂ ਸਦਕਾ ਨਾ ਸਿਰਫ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਮੌਜੂਦ ਇਨ੍ਹਾਂ ਖ਼ਤਰਿਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਦੂਰ ਕੀਤਾ, ਸਗੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤੀ ਵੀ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਜੋ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ਉਸ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ :-

1. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਉਣਾ (Popularisation of Gurmukhi) – ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾ ਕੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵੱਲ ਪਹਿਲਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਦਮ ਚੁੱਕਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਨਿਖਾਰ ਲਿਆਂਦਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਇਸ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਸਮਝਣਾ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਆਸਾਨ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਇਸ ਲਿਪੀ ਵਿੱਚ ਹੋਈ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਦਾ ਨਾਂ ਗੁਰਮੁੱਖੀ (ਭਾਵ ਗੁਰੂਆਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲੀ ਹੋਈ) ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੇ ਪਤੀ ਆਪਣੇ ਕਰਤੱਵ ਦੀ ਯਾਦ ਕਰਵਾਉਂਦੀ ਰਹੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਲਿਪੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਵੱਖਰੀ ਪਹਿਚਾਣ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿੱਦਿਆ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਵੀ ਹੋਣ ਲੱਗਾ । ਐੱਚ. ਐੱਸ. ਭਾਟੀਆ ਅਤੇ ਐੱਸ. ਆਰ. ਬਕਸ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ,

‘‘ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵੱਖਰੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਅਨੁਭਵ ਕਰਾਇਆ ਕਿ ਉਹ ਵੱਖ ਲੋਕ ਹਨ ।’’ 2

2. ਬਾਣੀ ਦਾ ਸੰਗ੍ਰਹਿ (Collection of Hymns) – ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਦੂਜਾ ਮਹਾਨ ਕੰਮ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਇਹ ਬਾਣੀ ਇੱਕ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਨਾ ਹੋ ਕੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਖਿਲਰੀ ਪਈ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸਿੱਖ ਭਾਈ ਬਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਬੁਲਾ ਕੇ ਭਾਈ ਪੈੜਾ ਮੋਖਾ ਜੀ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਜੀਵਨ ਸੰਬੰਧੀ ਇੱਕ ਜਨਮ ਸਾਖੀ ਲਿਖਵਾਈ । ਇਸ ਜਨਮ ਸਾਖੀ ਨੂੰ ਭਾਈ ਬਾਲੇ ਦੀ ਜਨਮ ਸਾਖੀ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕੁਝ ਵਿਦਵਾਨ ਇਸ ਤੱਥ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਨਹੀਂ ਹਨ ਕਿ ਭਾਈ ਬਾਲਾ ਜੀ ਦੀ ਜਨਮ ਸਾਖੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਵੇਲੇ ਲਿਖੀ ਗਈ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੇ ਆਪ ‘ਨਾਨਕ’ ਦੇ ਨਾਂ ਹੇਠ ਬਾਣੀ ਰਚੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਬਾਣੀ ਦੇ ਅਸਲ ਰੂਪ ਨੂੰ ਵਿਗੜਨ ਤੋਂ ਬਚਾਇਆ । ਦੂਸਰਾ, ਇਸ ਨੇ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਲਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਆਧਾਰ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ।

3. ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ (Expansion of Langar System) – ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸਿਹਰਾ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਲੰਗਰ ਦਾ ਸਾਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਧਰਮ ਪਤਨੀ ਬੀਬੀ ਖੀਵੀ ਜੀ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਲੰਗਰ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਵਿਅਕਤੀ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਊਚ-ਨੀਚ, ਜਾਤ-ਪਾਤ ਦੇ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਛਕਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਸਹਿਯੋਗ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਵਧੀ । ਇਸ ਨੇ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਫੈਲੀ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ‘ਤੇ ਕਰੜਾ ਵਾਰ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚੱਲਿਤ ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਨਾ-ਬਰਾਬਰੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਾਈਂ ਫੈਲ ਗਈ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਹਰਬੰਸ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ,
“ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਲਿਆਉਣ ਵਿੱਚ ਇਹ (ਲੰਗਰ) ਸੰਸਥਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਾਧਨ ਸਿੱਧ ਹੋਈ ।” 1

4. ਸੰਗਤ ਦਾ ਸੰਗਠਨ (Organisation of Sangat) – ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸਥਾਪਿਤ ਸੰਗਤ ਸੰਸਥਾ ਨੂੰ ਵੀ ਸੰਗਠਿਤ ਕੀਤਾ । ਸੰਗਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੀ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਬੈਠਣਾ 1 ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਲੋਕ-ਇਸਤਰੀ ਅਤੇ ਪੁਰਸ਼-ਹਿੱਸਾ ਲੈ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਸੰਗਤ ਸਵੇਰੇ ਸ਼ਾਮ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣਨ ਲਈ ਇਕੱਠੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਨਾ-ਬਰਾਬਰੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਖੰਡਨ (Denunciation of the Udasi Sect) – ਉਦਾਸੀ ਮਤੇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਪੁੱਤਰ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਹ ਮਤ ਸੰਨਿਆਸ ਜਾਂ ਤਿਆਗ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਦੇਣ ਲੱਗ ਪਏ ਸਨ । ਇੱਥੋਂ ਤਕ ਕਿ ਇਹ ਖ਼ਤਰਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਕਿਤੇ ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਕੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨਾ ਅਪਣਾ ਲੈਣ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਕਰੜਾ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਉਲਟ ਹਨ ਅਤੇ ਜਿਹੜਾ ਸਿੱਖ ਇਸ ਮਤ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਉਹ ਸੱਚਾ ਸਿੱਖ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦੀ ਵੱਖਰੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਿਆ ।

6. ਸਰੀਰਕ ਸਿੱਖਿਆ (Physical Training) – ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਇਹ ਮੰਨਦੇ ਸਨ ਕਿ ਜਿਵੇਂ ਆਤਮਿਕ ਉੱਨਤੀ ਲਈ ਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਕਰਨਾ ਅਤਿ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਠੀਕ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਰੀਰਕ ਤੰਦਰੁਸਤੀ ਲਈ ਕਸਰਤ ਕਰਨਾ ਵੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਅਖਾੜਾ ਬਣਵਾਇਆ । ਇੱਥੇ ਸਿੱਖ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਸਵੇਰੇ ਕੁਸ਼ਤੀਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਰੀਰਕ ਕਸਰਤਾਂ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

7.ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ (Foundation of Goindwal Sahib) – 1546 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨੇੜੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਹ ਨਗਰ ਛੇਤੀ ਹੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਬਣ ਗਿਆ ।

8. ਹੁਮਾਯੂੰ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ (Meeting with Humayun) – ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਹੁਮਾਯੂੰ ਸ਼ੇਰਸ਼ਾਹ ਸੂਰੀ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਹਾਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਪਹੁੰਚਿਆ । ਉਹ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਪਾਸੋਂ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਲੈਣ ਲਈ ਗਿਆ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਸਮਾਧੀ ਵਿੱਚ ਲੀਨ ਸਨ । ਹੁਮਾਯੂ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਬੇਇੱਜ਼ਤੀ ਸਮਝ ਕੇ ਤਲਵਾਰ ਕੱਢ ਲਈ । ਉਸੇ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਅੱਖ ਖੋਲ੍ਹੀ ਤੇ ਹੁਮਾਯੂੰ ਨੂੰ ਆਖਿਆ ਕਿ ਇਹ ਤਲਵਾਰ ਜਿਹੜੀ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ‘ਤੇ ਵਰਤਣ ਲੱਗਾ ਹੈਂ ਉਹ ਤਲਵਾਰ ਸ਼ੇਰਸ਼ਾਹ ਸੂਰੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਦੇ ਸਮੇਂ ਕਿੱਥੇ ਸੀ । ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਸੁਣ ਕੇ ਹੁਮਾਯੂੰ ਅਤਿਅੰਤ ਸ਼ਰਮਿੰਦਾ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਤੋਂ ਮੁਆਫ਼ੀ ਮੰਗੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਹੁਮਾਯੂੰ ਨੂੰ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਦਿੰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਤੈਨੂੰ ਕੁਝ ਸਮਾਂ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਰਾਜਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਵੇਗੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਇਹ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਸੱਚੀ ਨਿਕਲੀ । ਇਸ ਮੁਲਾਕਾਤ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੋਸਤਾਨਾ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ
ਹੋਏ ।

9. ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ (Nomination of the Successor) – ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹਾਨ ਕੰਮ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਾਫ਼ੀ ਸੋਚ ਅਤੇ ਪਰਖ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇਸ ਉੱਚੇ ਅਹੁਦੇ ਲਈ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਚੋਣ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅੱਗੇ ਇੱਕ ਨਾਰੀਅਲ ਅਤੇ ਪੰਜ ਪੈਸੇ ਰੱਖ ਕੇ ਆਪਣਾ ਸੀਸ ਨਿਵਾਇਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਏ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ 29 ਮਾਰਚ, 1552 ਈ. ਨੂੰ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

10. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ (Estimate of Guru Angad Dev Ji’s Achievements) – ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਬੜਾ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਕੇ, ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਇਕੱਠੀ ਕਰ ਕੇ, ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਕਰ ਕੇ, ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਕੇ, ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰ ਕੇ ਅਤੇ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰ ਕੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀ ਨੀਂਹ ਨੂੰ ਹੋਰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਕੇ. ਐੱਸ. ਦੁੱਗਲ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ,
“ਇਹ ਹੈਰਾਨੀ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਥੋੜ੍ਹੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਿੰਨੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਈ ।” 1
ਇੱਕ ਹੋਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਐੱਸ. ਐੱਸ. ਜੌਹਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰਕਾਲ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਮੋੜ ਸੀ ।” 2

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the brief the life and achievements of Guru Angad Dev Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ ।
(Discuss the life and contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
ਨੋਟ :-ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 1 ਅਤੇ 2 ਦਾ ਉੱਤਰ ਸੰਯੁਕਤ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖਣ ।

ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਔਕੜਾਂ (Early Career and Difficulties of Guru Amar Das JI)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਆਰੰਭਿਕ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Give a brief account of the early career and difficulties of Guru Amar Das Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਆਰੰਭਿਕ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-
1.ਜਨਮ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ (Birth and Parentage) – ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ, ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 5 ਮਈ, 1479 ਈ. ਨੂੰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਪਿੰਡ ਬਾਸਰਕੇ ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ । ਆਪ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਤੇਜ ਭਾਨ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਕਾਫ਼ੀ ਅਮੀਰ ਸਨ । ਉਹ ਭੱਲਾ ਜਾਤੀ ਦੇ ਖੱਤਰੀ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੇ ਨਾਂ ਬਾਰੇ ਕੋਈ ਨਿਸਚਿਤ ਜਾਣਕਾਰੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੀ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਨਾਂ ਸੁਲੱਖਣੀ, ਰੂਪ ਕੌਰ, ਬਖਤ ਕੌਰ ਅਤੇ ਲਕਸ਼ਮੀ ਆਦਿ ਦੱਸੇ ਗਏ ਹਨ ।

2. ਬਚਪਨ ਅਤੇ ਵਿਆਹ (Childhood and Marriage) – ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਸਨ | ਆਪ ਜੀ ਨੇ ਵੱਡੇ ਹੋ ਕੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੰਮ ਸੰਭਾਲ ਲਿਆ । ਕਿਉਂਕਿ ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਵਿਸ਼ਣੂ ਦੇ ਪੁਜਾਰੀ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਆਪ ਵੀ ਵੈਸ਼ਨਵ ਮਤ ਦੇ ਅਨੁਯਾਈ ਬਣ ਗਏ । 24 ਸਾਲਾਂ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਆਪ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਦੇਵੀ ਚੰਦ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ ਮਨਸਾ ਦੇਵੀ ਨਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ | ਆਪ ਦੇ ਘਰ ਦੋ ਪੁੱਤਰਾਂ ਬਾਬਾ ਮੋਹਨ ਅਤੇ ਬਾਬਾ ਮੋਹਰੀ ਅਤੇ ਦੋ ਧੀਆਂ ਬੀਬੀ ਦਾਨੀ ਅਤੇ ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਨੇ ਜਨਮ ਲਿਆ ।

3. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸਿੱਖ ਬਣਨਾ (To become Guru Angad Sahib’s Disciple) – ਇਕ ਵਾਰ ਜਦੋਂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਹਰਿਦੁਆਰ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਤੋਂ ਵਾਪਸ ਆ ਰਹੇ ਸਨ ਤਾਂ ਉਹ ਰਸਤੇ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਸਾਧੂ ਨੂੰ ਮਿਲੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਨੇ ਇਕੱਠੇ ਭੋਜਨ ਕੀਤਾ | ਭੋਜਨ ਛੱਕਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਸਾਧੂ ਨੇ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਤੋਂ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਹੈ ? ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਉੱਤਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਗੁਰੁ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਉਸ ਸਾਧੂ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਮੈਂ ਕਿਸ ਨਿਗੁਰੇ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਭੋਜਨ ਛੱਕ ਕੇ ਪਾਪ ਕੀਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣਾ ਜਨਮ ਭਿਸ਼ਟ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ । ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰਾਸ਼ਚਿਤ ਵਜੋਂ ਮੁੜ ਜਾ ਕੇ ਗੰਗਾ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨਾ ਪਵੇਗਾ ।” ਇਸ ਦਾ ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਮਨ ‘ਤੇ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ਤੇ ਆਪ ਨੇ ਗੁਰੂ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਪੱਕਾ ਨਿਸ਼ਚਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇੱਕ ਦਿਨ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਬੀਬੀ ਅਮਰੋ ਦੇ ਮੂੰਹੋਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਸੁਣੀ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਇਸ ਲਈ ਆਪ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਇੱਕ ਦਿਨ ਉਹ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਗਏ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਬਣ ਰਏ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਉਮਰ 62 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਸੀ ।

4. ਗੁਰਿਆਈ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ (Assumption of Guruship) – ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਹੀ ਰਹਿ ਕੇ 11 ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਅਣਥੱਕ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ | ਆਪ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਇਸ਼ਨਾਨ ਲਈ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆ ਤੋਂ ਜੋ ਉੱਥੋਂ ਤਿੰਨ ਮੀਲ ਦੇ ਫ਼ਾਸਲੇ ‘ਤੇ ਸੀ ਪਾਣੀ ਦਾ ਘੜਾ ਆਪਣੇ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਚੁੱਕ ਕੇ ਲਿਆਉਂਦੇ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਘਰ ਵਿੱਚ ਆਈਆਂ ਸੰਗਤਾਂ ਦੀ ਤਨੋਂ ਮਨੋਂ ਸੇਵਾ ਕਰਦੇ । 1552 ਈ. ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਵਾਂਗ ਬਿਆਸ ਤੋਂ ਪਾਣੀ ਲੈ ਕੇ ਵਾਪਸ ਮੁੜ ਰਹੇ ਸਨ | ਹਨ੍ਹੇਰਾ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਠੁਡਾ ਲੱਗਾ ਤੇ ਉਹ ਡਿੱਗ ਪਏ । ਨਾਲ ਹੀ ਇੱਕ ਜੁਲਾਹੇ ਦਾ ਘਰ ਸੀ । ਖੜਾਕ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਸੁਣ ਕੇ ਜੁਲਾਹਾ ਉੱਠ ਪਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਕੌਣ ਹੈ ? ਜੁਲਾਹੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਹ ਜ਼ਰੂਰ ਅਮਰੂ ਨਿਥਾਵਾਂ ਹੋਣਾ ਹੈ । ਹੌਲੀਹੌਲੀ ਇਹ ਗੱਲ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਤਕ ਪਹੁੰਚੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬਚਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਅੱਜ ਤੋਂ ਅਮਰਦਾਸ ਨਿਥਾਵਾਂ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ਸਗੋਂ ਨਿਥਾਵਿਆਂ ਨੂੰ ਥਾਂ ਦੇਵੇਗਾ 16 ਮਾਰਚ, 1552 ਈ. ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅੱਗੇ ਇੱਕ ਨਾਰੀਅਲ ਤੇ ਪੰਜ ਪੈਸੇ ਰੱਖ ਕੇ ਆਪਣਾ ਸੀਸ ਨਿਵਾਇਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ 73 ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ ਬਣੇ ।

ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਢਲੀਆਂ ਔਕੜਾਂ (Early Difficulties of Guru Amar Das Ji)

ਗੁਰਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਹੁਕਮ ਨਾਲ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਆ ਗਏ। ਇੱਥੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਦਾਸੂ ਅਤੇ ਦਾਤੂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition of Dassu and Dattu) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂਕਾਲ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦਾਸੂ ਅਤੇ ਦਾਤੂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਅਸਲੀ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ । ਦਾਤੂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਕਲ਼ ਤੇ ਸਾਡੇ ਘਰ ਦਾ ਪਾਣੀ ਭਰਨ ਵਾਲਾ ਅੱਜ ਗੁਰੂ ਕਿਵੇਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇੱਕ ਦਿਨ ਦਾਤੂ ਨੇ ਗੁੱਸੇ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਜਾ ਕੇ ਭਰੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਫੁੱਡਾ ਮਾਰਿਆ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਹ ਗੱਦੀ ਤੋਂ ਹੇਠਾਂ ਆਣ ਡਿੱਗੇ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਨਿਮਰਤਾ ਨਾਲ ਦਾਤ ਤੋਂ ਖਿਮਾ ਮੰਗੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਜੀ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਬਾਸਰਕੇ ਚਲੇ ਗਏ । ਸਿੱਖ ਸੰਗਤਾਂ ਨੇ ਦਾਤੂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਗੁਰੂ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਅੰਤ ਨਿਰਾਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਉਹ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਾਪਸ ਚਲਾ ਗਿਆ | ਭਾਈ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸੰਗਤਾਂ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਮੁੜ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਆ ਗਏ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦਾਸੁ ਨੇ ਵੀ ਮਾਤਾ ਖੀਵੀ ਜੀ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਆਪਣਾ ਵਿਰੋਧ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

2. ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition of Baba Sri Chand) – ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਪੁੱਤਰ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਹੱਕ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਇਸ ਲਈ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪ ਸੌਂਪੀ ਸੀ । ਪਰ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਪਿੱਛੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਦੀ ਗੱਦੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ | ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਸਮਰਥਕ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਅਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਦਿਤਾ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲੈਂਦੇ ਹੋਏ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਉਲਟ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਦਲੀਲਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਉਦਾਸੀ ਮੱਤ ਤੋਂ ਸਦਾ ਲਈ ਨਿਖੇੜ ਦਿੱਤਾ ।

3. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition by the Muslims of Goindwal Sahib) – ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਵੇਖ ਕੇ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਤੰਗ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ! ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸਾਮਾਨ ਚੋਰੀ ਕਰ ਲੈਂਦੇ । ਉਹ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆ ਤੋਂ ਪਾਣੀ ਭਰ ਕੇ ਲਿਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਘੜੇ ਪੱਥਰ ਮਾਰ ਕੇ ਤੋੜ ਦਿੰਦੇ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਂਤ ਰਹਿਣ ਦਾ ਉਪਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਵਿਅਕਤੀ ਆ ਗਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਯਮਲੋਕ ਪਹੁੰਚਾ ਦਿੱਤਾ । ਲੋਕ ਇਹ ਸੋਚਣ ਲੱਗ ਪਏ ਕਿ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਵੱਲੋਂ ਇਹ ਸਜ਼ਾ ਮਿਲੀ ਹੈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਿੱਖੀ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੋਰ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

4. ਹਿੰਦੂਆਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ (Opposition by the Hindus) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਮਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਮਤ ਵਿੱਚ ਊਚ-ਨੀਚ ਦਾ ਵਿਤਕਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲੰਗਰ ਵਿੱਚ ਸਾਰੇ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਭੋਜਨ ਛਕਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵੱਖਰਾ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਵੀ ਮਿਲ ਗਿਆ ਸੀ । ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਉੱਚ ਜਾਤੀਆਂ ਦੇ ਹਿੰਦੂ ਇਹ ਗੱਲ ਸਹਿਣ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਪਾਸ ਇਹ ਝੂਠੀ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕੀਤੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਜੀ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵਿਰੋਧੀ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਸ ਇਲਜ਼ਾਮ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨ ਲਈ ਅਕਬਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦਰਬਾਰ ਵਿੱਚ ਬੁਲਾਇਆ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ । ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅਕਬਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਨਿਰਦੋਸ਼ ਕਰਾਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਲਹਿਰ ਨੂੰ ਹੋਰ ਉਤਸ਼ਾਹ ਮਿਲਿਆ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੀ ਉੱਨਤੀ (Development of Sikhism under Guru Amar Das JI)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the contribution of Guru Amar Das Ji for the development of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀ-ਕੀ ਕਾਰਜ ਕੀਤੇ ? (What were the measures taken by Guru Amar Das Ji for the consolidation and expansion of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(Describe the services rendered by Guru Amar Das Ji for the development of Sikh Religion.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ? (What were the contribution of Guru Amardas Ji in the development of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਲਈ ਕੀਤੇ ਗਏ ਕੰਮਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(Describe in brief the organisational development and spread of Sikhism by Guru Amar Das Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ, ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ 1552 ਈ. ਤੋਂ 1574 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਰਹੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਤੋਂ ਗੁਜ਼ਰਨਾ ਪਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਅਜੇ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੰਗਠਿਤ ਅਤੇ ਵਿਕਸਿਤ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਸੰਗਠਿਤ ਅਤੇ ਵਿਕਸਿਤ ਰੂਪ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਅਨੇਕਾਂ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

1. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ (Construction of the Baoli at Goindwal Sahib) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵੱਲ ਪਹਿਲਾ ਮਹਾਨ ਕੰਮ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਇਸ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ 1552 ਈ. ਤੋਂ 1559 ਈ. ਤਕ ਚਲਿਆ । ਇਸ ਬਾਉਲੀ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ 84 ਪੌੜੀਆਂ ਬਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਜੋ ਕੋਈ ਯਾਤਰੁ ਹਰ ਪੌੜੀ ‘ਤੇ ਸੱਚੇ ਮਨ ਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਕਰੇਗਾ ਅਤੇ ਪਾਠ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਾਉਲੀ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰੇਗਾ, ਤਾਂ ਉਹ 84 ਲੱਖ ਜੂਨਾਂ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ | ਬਾਉਲੀ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਮਿਲ ਗਿਆ । ਲੋਕ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਆਉਣ ਲੱਗੇ । ਹੁਣ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਿੰਦੁਆਂ ਦੇ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਜਾਣ ਦੀ ਲੋੜ ਨਾ ਰਹੀ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਉੱਥੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਵੀ ਹੱਲ ਹੋ ਗਈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹ ਮਿਲਿਆ । ਐੱਚ. ਐੱਸ. ਭਾਟੀਆ ਅਤੇ ਐੱਸ. ਆਰ. ਬਕਸ਼ੀ ਦੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ,
“ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰਗੱਦੀ ਕਾਲ, ਸਿੱਖ ਅੰਦੋਲਨ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮੋੜ ਪ੍ਰਮਾਣਿਤ ਹੋਇਆ ।” 1

2. ਲੰਗਰ ਸੰਸਥਾ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ (Expansion of Langar Institution) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸਥਾਪਿਤ ਲੰਗਰ ਸੰਸਥਾ ਦਾ ਹੋਰ ਵਿਸਥਾਰ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਯਾਤਰ ਲੰਗਰ ਛਕੇ ਬਿਨਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ | ਪਹਿਲੇ ਪੰਗਤ ਤੇ ਪਿੱਛੇ ਸੰਗਤ ਦਾ ਨਾਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੋਂ ਤਕ ਕਿ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਹਰੀਪੁਰ ਦੇ ਰਾਜੇ ਨੇ ਵੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪੰਗਤ ਵਿੱਚ ਲੰਗਰ ਛਕਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਲੰਗਰ ਵਿੱਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ ਅਤੇ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਮਿਲ ਕੇ ਖਾਣਾ ਖਾਂਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਇਹ ਲੰਗਰ ਰਾਤ ਦੇਰ ਤਕ ਚਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਲੰਗਰ ਸੰਸਥਾ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਬੜੀ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਨਾਲ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਬੜਾ ਧੱਕਾ ਲੱਗਾ । ਇਸ ਨੇ ਨੀਵੀਆਂ ਜਾਤੀਆਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਮਾਣ ਬਖ਼ਸ਼ਿਆ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ । ਡਾਕਟਰ ਫ਼ੌਜਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਇਸ (ਲੰਗਰ) ਸੰਸਥਾ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਡੂੰਘੀ ਸੱਟ ਮਾਰੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਏਕਤਾ ਲਈ ਰਸਤਾ ਸਾਫ਼ ਕੀਤਾ ” 2

3. ਬਾਣੀ ਦਾ ਸੰਹਿ (Collection of Hymns) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਅਗਲਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪ 907 ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਨਾਲ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸੰਕਲਨ ਲਈ ਆਧਾਰ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਿਆ ।

4. ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ (Manji System) – ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ। ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਲਈ ਹਰ ਸਿੱਖ ਤਕ ਨਿੱਜੀ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚਣਾ ਸੰਭਵ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਉਪਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਦੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਦੇ ਲਈ 22 ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਇੱਕੋ ਸਮੇਂ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਸਮੇਂ ‘ਤੇ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਹਰ ਮੰਜੀ ਦੇ ਮੁਖੀ ਨੂੰ ਮੰਜੀਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਮੰਜੀਦਾਰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਕਿਉਂਕਿ ਮੰਜੀਦਾਰ ਮੰਜੀ ‘ਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਧਾਰਮਿਕ ਉਪਦੇਸ਼ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਇਹ ਪ੍ਰਥਾ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਾਈਂ ਫੈਲ ਗਈ । ਡਾਕਟਰ ਡੀ. ਐੱਸ. ਢਿੱਲੋਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਸਾਰ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।” 3

5. ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਖੰਡਨ (Denunciation of the Udasi Sect) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦੀ ਹੋਂਦ ਲਈ ਖ਼ਤਰਾ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਏ ਸਨ । ਅਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਬੜੇ ਹੌਸਲੇ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਸਿੱਖ ਮਤ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨਾਲੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਵੱਖਰਾ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਸਿੱਖ ਮਤ ਗ੍ਰਹਿਸਥ ਮਾਰਗ ਅਪਨਾਉਣ ਅਤੇ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਰਹਿ ਕੇ ਕਿਰਤ ਕਰਨ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਆਪਣੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਭੱਜ ਕੇ ਮੁਕਤੀ ਦੀ ਭਾਲ ਵਿੱਚ ਜੰਗਲਾਂ ਵਿੱਚ ਮਾਰੇਮਾਰੇ ਫਿਰਨ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਆਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਸੰਬੰਧ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਤੋੜ ਲਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਲੋਪ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਚਾ ਲਿਆ ।

6. ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰ (Social Reforms) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਜਾਤੀ ਬੰਧਨ ਕਠੋਰ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰ ਚੁੱਕਾ ਸੀ । ਨੀਵੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ’ਤੇ ਬੜੇ ਜ਼ੁਲਮ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ | ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਤੀ ਦਾ ਹੰਕਾਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਨੂੰ ਮੁਰਖ ਅਤੇ ਗੰਵਾਰ ਦੱਸਿਆ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵੀ ਡਟ ਕੇ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਅਨੁਸਾਰ ਜੇ ਕਿਸੇ ਇਸਤਰੀ ਦੇ ਪਤੀ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਤਾਂ ਉਸ ਇਸਤਰੀ ਨੂੰ ਵੀ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਉਸ ਦੇ ਪਤੀ ਦੀ ਚਿਤਾ ਨਾਲ ਜ਼ਿੰਦਾ ਜਲਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ,

ਸਤੀਆ ਇਹ ਨਾ ਆਖੀਅਨ ਜੋ ਮੜੀਆਂ ਲਗ ਜਲੰਨਿ ॥
ਸਤੀਆ ਸੋਈ ਨਾਨਕਾ, ਜੋ ਬਿਰਹਾ ਚੋਟ ਮਰੰਨਿ ॥

ਭਾਵ ਉਨ੍ਹਾਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸਤੀ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਜੋ ਪਤੀ ਦੀ ਚਿਤਾ ਵਿੱਚ ਸੜ ਕੇ ਮਰ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਅਸਲ ਸਤੀਆਂ ਉਹ ਹਨ ਜੋ ਪਤੀ ਦੇ ਵਿਛੋੜੇ ਨੂੰ ਨਾ ਸਹਾਰਦੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਵਿਛੋੜੇ ਦੀ ਚੋਟ ਨਾਲ ਮਰਨ ।

ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਬਾਲ ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਵਿਧਵਾ ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਅੰਤਰਜਾਤੀ ਵਿਆਹ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਦੀ ਵੀ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਮਨਾਹੀ ਕੀਤੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਜਨਮ, ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਮਰਨ ਦੇ ਮੌਕਿਆਂ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰਸਮਾਂ ਬਣਾਈਆਂ । ਇਹ ਰਸਮਾਂ ਬਿਲਕੁਲ ਸਾਦੀਆਂ ਸਨ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇੱਕ ਆਦਰਸ਼ ਸਮਾਜ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ।

7. ਅਕਬਰ ਦਾ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਆਉਣਾ (Akbar’s visit to Goindwal Sahib) – ਮੁਗ਼ਲ ਸਮਰਾਟ ਅਕਬਰ 1568 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਆਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਾਰੀ ਸੰਗਤ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਲੰਗਰ ਛਕਿਆ ।ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਅਤੇ ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਕੁਝ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਦੀ ਪੇਸ਼ਕਸ਼ ਕੀਤੀ ਪਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਜਾਗੀਰ ਨੂੰ ਲੈਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਅਕਬਰ ਦੀ ਇਸ ਯਾਤਰਾ ਦਾ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਮਨਾਂ ‘ਤੇ ਬੜਾ ਡੂੰਘਾ ਅਸਰ ਪਿਆ । ਉਹ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲੱਗੇ ! ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਧੇਰੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਹੋ ਗਿਆ ।

8. ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ (Nomination of the Successor) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ 1574 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਜਵਾਈ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਦੀ ਨਿਮਰਤਾ ਅਤੇ ਸੇਵਾਭਾਵ, ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਨਾ ਸਿਰਫ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਹੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ, ਸਗੋਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਘਰਾਣੇ ਵਿੱਚ ਹੀ ਰਹਿਣ ਦਾ ਵੀ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਦਿੱਤਾ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ 1 ਸਤੰਬਰ, 1574 ਈ. ਨੂੰ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

9. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ (Estimate of Guru Amar Das Ji’s Achievements) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਯੋਗ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਵਿਕਾਸ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਕੇ, ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਕਰਕੇ, ਆਪਣੇ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਗੁਰੂਆਂ ਦੀ ਬਾਣੀ ਇਕੱਠੀ ਕਰਕੇ, ਸਮਾਜਿਕ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਕੇ ਅਤੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕਰਕੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮੀਲ-ਪੱਥਰ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਸੰਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ) 1 ਇੱਕ ਹੋਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾਕਟਰ ਡੀ. ਐੱਸ. ਢਿੱਲੋਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ’’ 2

ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰ (Social Reforms of Guru Amar Das JI) 

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦੀ ਪੜਚੋਲ ਕਰੋ । (Examine the social reforms of the Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
“ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਸਨ” ਦੱਸੋ । (“Guru Amar Das Ji was a great social reformer.” Discuss.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਰਚਨਾ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਰੂਪ ਦੇਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਤਤਕਾਲੀਨ ਸਮਾਜ ਦੇ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਨਿਯਮਾਂ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਤਾਂ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰਾ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋਵੇ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਜਾਤੀ ਭੇਦਭਾਵ ਅਤੇ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦਾ ਖੰਡਨ (Denunciation of Caste Distinctions and Untouchabilities) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਅਤੇ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦੀਆਂ ਕੁਰੀਤਿਆਂ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜਾਤ ਦੇ ਘਮੰਡ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮੂਰਖ ਅਤੇ ਗੰਵਾਰ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਗਤਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਜੋ ਕੋਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਪੰਗਤ ਵਿੱਚ ਲੰਗਰ ਛਕਣਾ ਪਵੇਗਾ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਕੁਝ ਖੂਹ ਪੁਟਵਾਏ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਖੂਹਾਂ ਤੋਂ ਹਰ ਜਾਤ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਭਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ।

2. ਲੜਕੀਆਂ ਦੇ ਕਤਲ ਦਾ ਖੰਡਨ (Denunciation of Female Infanticide) – ਉਸ ਸਮੇਂ ਲੜਕੀਆਂ ਦੇ ਜਨਮ ਨੂੰ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲੜਕੀਆਂ ਨੂੰ ਜਨਮ ਲੈਂਦੇ ਸਾਰ ਹੀ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਕੁਰੀਤੀ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜੋ ਵਿਅਕਤੀ ਅਜਿਹਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਹ ਘੋਰ ਪਾਪ ਦਾ ਭਾਗੀ ਬਣੇਗਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਅਪਰਾਧ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹਿਣ ਦਾ ਉਪਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ।

3. ਬਾਲ-ਵਿਆਹ ਦਾ ਖੰਡਨ (Denunciation of Child Marriage) – ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਲੜਕੀਆਂ ਦਾ ਵਿਆਹ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲੈਂਤ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਬਾਲ-ਵਿਆਹ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ।

4. ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਖੰਡਨ (Denunciation of Sati System) – ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੁਰੀਤਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਸਭ ਤੋਂ ਨਫ਼ਰਤ ਯੋਗ ਕੁਰੀਤੀ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਅਣਮਨੁੱਖੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਇਸਤਰੀ ਦੇ ਪਤੀ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਜਬਰਨ ਪਤੀ ਦੀ ਚਿਤਾ ਨਾਲ ਜਿਊਂਦੇ ਜਲਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਚਲੀ ਆ ਰਹੀ ਇਸ ਕੁਰੀਤੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਇੱਕ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਮੁਹਿੰਮ ਚਲਾਈ । ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ-

ਸਤੀਆ ਇਹ ਨਾ ਆਖੀਅਨ ਜੋ ਮੜੀਆਂ ਲਗ ਜਲੰਨਿ ॥
‘ਸਤੀਆ ਸੇਈ ਨਾਨਕਾ, ਜੋ ਬਿਰਹਾ ਚੋਟਿ ਮਰੰਨਿ ॥

ਭਾਵ ਉਸ ਇਸਤਰੀ ਨੂੰ ਸਤੀ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਜੋ ਪਤੀ ਦੀ ਚਿਤਾ ਵਿੱਚ ਜਲ ਕੇ ਮਰ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਸਤੀ ਤਾਂ ਉਹ ਹੈ ਜੋ ਆਪਣੇ ਪਤੀ ਦੇ ਵਿਯੋਗ ਦੇ ਦੁੱਖ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਣ ਤਿਆਗ ਦੇਵੇ ।

5. ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਖੰਡਨ (Denunciation of Purdah System) – ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਧ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਹ ਪ੍ਰਥਾ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੇ ਸਰੀਰਕ ਅਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵੱਡੀ ਰੁਕਾਵਟ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਆਲੋਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਹ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਸੰਗਤ ਜਾਂ ਲੰਗਰ ਵਿੱਚ ਸੇਵਾ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਕੋਈ ਵੀ ਇਸਤਰੀ ਪਰਦਾ ਨਾ ਕਰੇ ।

6. ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਮਨਾਹੀ (Prohibition of Intoxicants) – ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਰਾਬ ਅਤੇ ਹੋਰ ਨਸ਼ੀਲੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਮਾਜ ਦਾ ਦਿਨ-ਪ੍ਰਤੀਦਿਨ ਨੈਤਿਕ ਪਤਨ ਹੁੰਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਸ਼ਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਂਦਾ ਹੈ ਉਸ ਦੀ ਬੁੱਧੀ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਪਰਾਏ ਦਾ ਫ਼ਰਕ ਭੁੱਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਅਜਿਹੀ ਝੂਠੀ ਸ਼ਰਾਬ ਨਹੀਂ ਪੀਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਹ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਜਾਵੇ ।

7. ਵਿਧਵਾ ਵਿਆਹ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ (Favoured Widow Marriage) – ਜੋ ਇਸਤਰੀਆਂ ਸਤੀ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਚ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਦਾ ਵਿਧਵਾ ਦਾ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵੱਲੋਂ ਵਿਧਵਾ ਦੇ ਵਿਆਹ ‘ਤੇ ਰੋਕ ਲੱਗੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਵਿਧਵਾ ਦਾ ਜੀਵਨ ਨਰਕ ਸਮਾਨ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਅਫ਼ਸੋਸਨਾਕ ਦੱਸਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਵਿਧਵਾ ਦਾ ਪੂਰਾ ਸਨਮਾਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਬਾਲਵਿਧਵਾ ਦੇ ਦੋਬਾਰਾ ਵਿਆਹ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ।

8. ਜਨਮ, ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਮੌਤ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਨਵੇਂ ਨਿਯਮ (New Ceremonies related to Birth, Marriage and Death) – ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਜਨਮ ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਮੌਤ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਜੋ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਸਨ ਉਹ ਬਹੁਤ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੌਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਖ਼ਾਸ ਨਿਯਮ ਬਣਾਏ । ਇਹ ਨਿਯਮ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਰਲ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਜਨਮ, ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਹੋਰ ਮੌਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਗਾਉਣ ਲਈ ਆਨੰਦੁ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ 40 ਪੌੜੀਆਂ ਹਨ, ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਵਿਆਹ ਸਮੇਂ ਲਾਵਾਂ ਦੀ ਨਵੀਂ ਪ੍ਰਥਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਗਈ ।

9. ਤਿਉਹਾਰ ਮਨਾਉਣ ਦੇ ਨਵੇਂ ਢੰਗ (New mode of celebrating Festivals) – ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸਾਖੀ, ਮਾਘੀ ਅਤੇ ਦੀਵਾਲੀ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਨੂੰ ਨਵੇਂ ਢੰਗ ਨਾਲ ਮਨਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤਿੰਨੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਦੇ ਮੌਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਸਿੱਖ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਪਹੁੰਚਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਇਹ ਕਦਮ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਵਿੱਚ ਬੜਾ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾਕਟਰ ਬੀ. ਐੱਸ. ਨਿੱਝਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
‘‘ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਆਰੰਭ ਕੀਤੇ ਗਏ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਮੋੜ ਲਿਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਮਝੇ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।”1 .

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the life and achievements of Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੁੰਦੇ ਸਮੇਂ ਕਿਹੜੀਆਂ-ਕਿਹੜੀਆਂ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ? ਸਿੱਖ ਮਤ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਵਿਸਥਾਰ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਚੁੱਕੇ ਗਏ ਕਦਮਾਂ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ ।
(What were the difficulties faced by Guru Amar Das Ji at the time of his accession ? Discuss the steps taken by him to consolidate and expand Sikhism.)
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 5 ਅਤੇ 6 ਦਾ ਉੱਤਰ ਸੰਯੁਕਤ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖਣ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
1539 ਈ. ਤੋਂ 1574 ਈ. ਤਕ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ । (Discuss the development of Sikhism from 1539 A.D. to 1574 A.D.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
(Describe the contribution of Guru Angad Dev Ji and Guru Amar Das Ji in the developement of Sikhism.)
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 2 ਅਤੇ 5 ਦਾ ਉੱਤਰ ਸੰਯੁਕਤ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖਣ ।

ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਸਫਲਤਾਵਾਂ (Lite and Achievements of Guru Ram Das JI)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਤੇ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe the life and achievements of Guru Ram Das Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Write a detailed note on the development of Sikhism Under Guru Ram Das Ji.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਹੈ ? (What was the Contribution of Guru Ram Das Ji in the development of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਹੈ ? (What was the Contribution of Guru Ram Das Ji to the development of Sikh history ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਚੌਥੇ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਉਹ 1574 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1581 ਈ. ਤਕ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਰਹੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਗੁਰੂ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਤਰੱਕੀ ਹੋਈ । ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਆਰੰਭਿਕ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਜੀਵਨ (Early Career of Guru Ram Das Ji)

1. ਜਨਮ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ (Birth and Parentage) – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 4 ਸਤੰਬਰ, 1534 ਈ. ਨੂੰ ਚੂਨਾ ਮੰਡੀ, ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਆਪ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਹਰੀਦਾਸ ਅਤੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦਇਆ ਕੌਰ ਸੀ । ਉਹ ਸੋਢੀ ਜਾਤ ਦੇ ਖੱਤਰੀ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।

2. ਬਚਪਨ ਅਤੇ ਵਿਆਹ (Childhood and Marriage-ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਸਨ । ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਆਪ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੇ ਆਪ ਨੂੰ ਘੁੰਗਣੀਆਂ (ਉਬਲੇ ਹੋਏ ਛੋਲੇ) ਵੇਚ ਕੇ ਕੁਝ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਬਾਹਰ ਜਾਂਦੇ ਸਮੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਭੁੱਖੇ ਸਾਧੂ ਮਿਲ ਗਏ । ਜੇਠਾ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਰੇ ਛੋਲੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਭੁੱਖੇ ਸਾਧੂਆਂ ਨੂੰ ਖਵਾ ਦਿੱਤੇ ਅਤੇ ਆਪ ਖਾਲੀ ਹੱਥ ਵਾਪਸ ਆ ਗਏ । ਆਪ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸਮੇਂ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਇੱਕ ਵਾਰ ਆਪ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸਿੱਖ ਜੱਥੇ ਨਾਲ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਜਾਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਮਿਲਿਆ । ਇੱਥੇ ਆਪ ਜੀ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਦਾ ਇੰਨਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿੱਖ ਬਣ ਗਏ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਦੀ ਭਗਤੀ ਅਤੇ ਗੁਣਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ 1553 ਈ. ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਛੋਟੀ ਲੜਕੀ ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਦੇ ਘਰ ਤਿੰਨ ਲੜਕੇ ਪੈਦਾ ਹੋਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ (ਪ੍ਰਿਥੀਆ), ਮਹਾਂਦੇਵ ਅਤੇ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਸਨ ।

3. ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ (Assumption of Guruship) – ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਹੀ ਰਹੇ ਅਤੇ ਪਹਿਲਾਂ ਵਾਂਗ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਸੇਵਾ ਵਿੱਚ ਜੁਟੇ ਰਹੇ । ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਦੀ ਨਿਸ਼ਕਾਮ ਸੇਵਾ, ਨਿਮਰਤਾ ਅਤੇ ਮਿੱਠੇ ਸੁਭਾਅ ਨੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਮਨ ਮੋਹ ਲਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ 1 ਸਤੰਬਰ, 1574 ਈ. ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਨੂੰ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਕਿਹਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਚੌਥੇ ਗੁਰੂ ਬਣੇ ।

ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji )

ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂਕਾਲ 1574 ਈ. ਤੋਂ 1581 ਈ. ਤਕ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗੁਰਿਆਈ ਦਾ ਸਮਾਂ ਬਹੁਤ ਥੋੜਾ ਸੀ ਫਿਰ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਸੰਗਠਨ ਵਿੱਚ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

1. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ (Foundation of Ramdaspura) – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਦੇਣ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਜਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 1577 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਈ । ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਆਬਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧੰਦਿਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ 52 ਵਪਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵਸਾਇਆਂ’। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਪਾਰੀਆਂ ਨੇ ਜਿਹੜਾ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਸਾਇਆ ਉਹ ‘ਗੁਰੂ ਕਾ ਬਾਜ਼ਾਰ ਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਦੋ ਸਰੋਵਰਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਅਤੇ ਸੰਤੋਖਸਰ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਬਣਾਇਆ । ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਦੀ ਦੇਖ-ਰੇਖ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਹੀ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦਾ ਨਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਪੈ ਗਿਆ । ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੱਕਾ ਮਿਲ ਗਿਆ । ਇਹ ਛੇਤੀ ਹੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਧਰਮ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਬਣ ਗਿਆ ।

2. ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਆਰੰਭ (Introduction of Masand system) – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਅਤੇ ਸੰਤੋਖਸਰ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਸਰੋਵਰਾਂ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਲਈ ਮਾਇਆ ਦੀ ਲੋੜ ਪਈ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧਾਂ ਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਭੇਜਿਆ ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰ ਸਕਣ ਅਤੇ ਸੰਗਤਾਂ ਤੋਂ ਮਾਇਆ ਇਕੱਠੀ ਕਰ ਸਕਣ । ਇਹ ਸੰਸਥਾ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦਾ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਪ੍ਰਚਾਰ ਹੋਇਆ | ਐੱਸ. ਐੱਸ. ਗਾਂਧੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ,
“ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ” ।

3. ਉਦਾਸੀਆਂ ਨਾਲ ਸਮਝੌਤਾ (Reconciliation with the Udasis) – ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਕਾਲ ਦੀ ਇੱਕ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘਟਨਾ ਉਦਾਸੀਆਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਸੀ । ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਮੋਢੀ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਆਏ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨਿਮਰਤਾ ਤੋਂ ਇੰਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਉਸ ਦਿਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਸਮਝੌਤਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

4. ਕੁਝ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ (Some other Important Works) – ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਬਾਣੀ ਦੀ ਰਚਨਾ 679 ਸ਼ਬਦ) ਕਰਨਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਚਾਰ ਲਾਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਵਿਆਹ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਉਤਸਾਹਿਤ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਚਲੀਆਂ ਆ ਰਹੀਆਂ ਸੰਗਤ, ਪੰਗਤ ਤੇ ਮੰਜੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਜਿਵੇਂ-ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ, ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ, ਬਾਲ ਵਿਵਾਹ ਆਦਿ ਦਾ ਵੀ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ।

5. ਅਕਬਰ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ (Friendly Relations with Akbar) – ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ ਕਾਇਮ ਰਹੇ । ਅਕਬਰ ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਮਿਲਿਆ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਇੱਕ ਸਾਲ ਲਈ ਲਗਾਨ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਧੀ ਵਿੱਚ ਹੋਰ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

6. ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਨਾਮਜ਼ਦਗੀ (Nomination of the successor) – 1581 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੇ ਪੁੱਤਰ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਾਮਜ਼ਦ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਪ੍ਰਿਥੀਆ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਕਰਤੂਤਾਂ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਾਰਾਜ਼ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਦੂਸਰੇ ਪੁੱਤਰ ਮਹਾਂਦੇਵ ਨੂੰ ਸੰਸਾਰਿਕ ਕੰਮਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਦਿਲਚਸਪੀ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਹਰ ਪੱਖ ਤੋਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ਦੇ ਯੋਗ ਸਨ । ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ 1 ਸਤੰਬਰ, 1581 ਈ. ਨੂੰ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

7. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀਆਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ (Estimate of Guru Ram Das Ji’s Achievements) – ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਆਪਣੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਸਰੂਪ ਦੇਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋਏ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਅਤੇ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਨਾਲ, ਉਦਾਸੀਆਂ ਨਾਲ ਸਮਝੌਤਾ ਕਰ ਕੇ, ਆਪਣੀ ਬਾਣੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕਰ ਕੇ, ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕਰ ਕੇ, ਸੰਗਤ, ਪੰਗਤ ਅਤੇ ਮੰਜੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖ ਕੇ ਅਤੇ ਅਕਬਰ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਕੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੀ ਨੀਂਹ ਨੂੰ ਹੋਰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕੀਤਾ । ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਡਾ: ਡੀ.ਐੱਸ. ਢਿੱਲੋਂ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹਾਂ,
‘‘ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਲਗਭਗ 7 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਗੁਰੂਕਾਲ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ ਢਾਂਚਾ ਅਤੇ ਦਿਸ਼ਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤੀ ।”

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
1539 ਈ. ਤੋਂ 1581 ਈ. ਤਕ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe briefly the development of Sikhism from 1539 to 1581 A.D.)
ਉੱਤਰ-
ਨੋਟ-ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 2, 5, ਅਤੇ 9 ਦੇਖਣ ।

ਸੰਖੇਪ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀ-ਕੀ ਕੰਮ ਕੀਤੇ ? (What did Guru Angad Dev Ji do for the development of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਕਾਰਜਾਂ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ ਕਰੋ । (Form an estimate of the works of Guru Angad Dev Ji for the spread of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਜ ਦੱਸੋ । (Mention any three achievements of Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੇਂਦਰ ਬਣਾਇਆ ।
  2. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਨਿਖਾਰ ਦਿੱਤਾ ।
  3. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ ।
  4. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੈਰੋਕਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸਖ਼ਤ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ ।
  5. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਤੋਂ ਵੱਖ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।
  6. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਉਣ ਵਿੱਚ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ?
(What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to improve Gurmukhi script ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਪਾਇਆ ? (What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to popularise Gurumukhi script ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਸੰਸ਼ੋਧਿਤ ਕਰ ਕੇ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਰੂਪ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਇਸ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਸਮਝਣਾ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਬੜਾ ਆਸਾਨ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗੰਥਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਹੋਈ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਦੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਬਾਹਮਣ ਵਰਗ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਨੂੰ ਹੀ ਧਰਮ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਮੰਨਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਦੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਮਤ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਵਿੱਚ ਬੜੀ ਸਹਾਇਤਾ ਮਿਲੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੀਤਾ ? (How did Guru Angad Dev Ji denounce the Udasi sect ?)
ਉੱਤਰ-
ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਪੁੱਤਰ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਹ ਮਤ ਸੰਨਿਆਸ ਜਾਂ ਤਿਆਗ ਦੇ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ਜਦਕਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਹਿਸਥ ਜੀਵਨ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਬਾਕੀ ਸਾਰੇ ਸਿਧਾਂਤ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਦੇਣ ਲੱਗ ਪਏ ਸਨ । ਅਜਿਹੇ ਹਾਲਾਤ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਕਰੜਾ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ਕਿ ਜਿਹੜਾ ਸਿੱਖ ਇਸ ਮਤ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਉਹ ਸੱਚਾ ਸਿੱਖ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਹੁਮਾਯੂੰ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ ਮੁਲਾਕਾਤ ਦੀ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ । (Give a brief account of the meeting between Guru Angad Dev Ji and Humayun.)
ਉੱਤਰ-
1540 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਹੁਮਾਯੂੰ ਨੂੰ ਸ਼ੇਰਸ਼ਾਹ ਸੂਰੀ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਕਨੌਜ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ਸੀ । ਇਸ ਹਾਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਹ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਪਾਸੋਂ ਆਸ਼ੀਰਵਾਦ ਲੈਣ ਲਈ ਪਹੁੰਚਿਆ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਸਮਾਧੀ ਵਿੱਚ ਇੰਨੇ ਲੀਨ ਸਨ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅੱਖ ਖੋਲ ਕੇ ਨਾ ਦੇਖਿਆ । ਹੁਮਾਯੂ ਨੇ ਗੁੱਸੇ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਆਪਣੀ ਤਲਵਾਰ ਮਿਆਨ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢ ਲਈ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਅੱਖ ਖੋਲ੍ਹੀ ਤੇ ਹੁਮਾਯੂੰ ਨੂੰ ਆਖਿਆ ਕਿ ਇਹ ਤਲਵਾਰ ਸ਼ੇਰਸ਼ਾਹ ਸੂਰੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਦਿਆਂ ਸਮੇਂ ਕਿੱਥੇ ਸੀ । ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਸੁਣ ਕੇ ਹੁਮਾਯੂੰ ਅਤਿਅੰਤ ਸ਼ਰਮਿੰਦਾ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਤੋਂ ਮੁਆਫ਼ੀ ਮੰਗ ਲਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸੰਗਤ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Sangat ?)
ਉੱਤਰ-
ਸੰਗਤ ਸੰਸਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਸੰਗਤ ਸੰਸਥਾ ਤੋਂ ਭਾਵ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਬੈਠਣ ਤੋਂ ਸੀ । ਇਹ ਸੰਗਤ ਸਵੇਰ-ਸ਼ਾਮ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣਨ ਅਤੇ ਸਤਿਨਾਮ ਦਾ ਜਾਪ ਕਰਨ ਲਈ ਇਕੱਠੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸੰਗਠਿਤ ਕੀਤਾ । ਸੰਗਤ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਵੀ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਜਾਂ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਤਕਰੇ ਦੇ ਆ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਸੰਗਤ ਨੂੰ ਰੱਬ ਦਾ ਰੂਪ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਪੰਗਤ ਜਾਂ ਲੰਗਰ ਤੋਂ ਤੁਹਾਡਾ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? (What do you mean by Pangat or Langar ?)
ਜਾਂ
ਪੰਗਤ ਜਾਂ ਲੰਗਰ ਵਿਵਸਥਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Pangat or Langar.)
ਜਾਂ
ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਥਾ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Langar System ?)
ਉੱਤਰ-ਪੰਗਤ (ਲੰਗਰ) ਸੰਸਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਵੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਸ ਅਧੀਨ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਅਤੇ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਭੇਦਭਾਵ ਦੇ ਇੱਕ ਥਾਂ ਬੈਠ ਕੇ ਲੰਗਰ ਛਕਦੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਅਤੇ ਅਸਮਾਨਤਾ ਦੀਆਂ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਪਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਵੀ ਬੜੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕੀਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ‘ਤੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Sangat and Pangat.)
ਜਾਂ
ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਤੋਂ ਤੁਹਾਡਾ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? (What do you mean by Sangat and Pangat ?)
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੰ: 5 ਅਤੇ 6 ਦਾ ਉੱਤਰ ਸਾਂਝੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖਣ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰਗੱਦੀ ਸੰਭਾਲਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁੱਢਲੇ ਸਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਹੜੀਆਂ-ਕਿਹੜੀਆਂ ਔਕੜਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ ?
(What problems did Guru Amar Das Ji face in the early years of his pontificate ?)
ਉੱਤਰ-

  • ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਣ ਸਮੇਂ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦਾਤੂ ਅਤੇ ਦਾਸੂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਪੁੱਤਰ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਤੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਜਤਾਇਆ |
  • ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਵੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਹੱਕ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਵੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।
  • ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਈਰਖਾ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਢੰਗਾਂ ਨਾਲ ਤੰਗ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਸਿੱਖ ਮਤ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦੱਸੋ । (Give the contribution of Guru Amar Das Ji for the development of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Write down the three services done by Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਕਾਰਜਾਂ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ ਕਰੋ । (Form an estimate of the works of Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਕਾਰਜ ਦੱਸੋ । (Write any three works of Guru Amar Das Ji for the spread of Sikhism.)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੋ । (Study the contribution of Guru Amar Das Ji to the growth of Sikhism.)
ਉੱਤਰ-

  1. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਇਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਬਣ ਗਿਆ ।
  2. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਲੰਗਰ ਸੰਸਥਾ ਦਾ ਵਧੇਰੇ ਵਿਸਥਾਰ ਕੀਤਾ ।
  3. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
  4. ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖ ਮਤ ਨੂੰ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਤੋਂ ਵੱਖ ਰੱਖ ਕੇ ਅਲੋਪ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਚਾ ਲਿਆ ।
  5. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਬੁਰਾਈਆਂ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਉਲੀ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? (What is the importance of the construction of the Baoli of Goindwal Sahib in the Sikh History ?)
ਜਾਂ
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਸਿੱਖੀ ਦਾ ਧੁਰਾ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? (Why is Goindwal Sahib called the centre of Sikhism ?)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵੱਲ ਪਹਿਲਾ ਮਹਾਨ ਕੰਮ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਇਸ ਪਵਿੱਤਰ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ 1552 ਈ. ਤੋਂ 1559 ਈ. ਤਕ ਚਲਿਆ । ਇਸ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨ ਪਿੱਛੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ | ਪਹਿਲਾ, ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਿੰਦੁਆਂ ਤੋਂ ਵੱਖਰਾ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਦੇਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਦੂਜਾ, ਉਹ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਪਾਣੀ ਸੰਬੰਧੀ ਔਕੜ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਬਾਉਲੀ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਮਿਲ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Briefly throw light on social reforms of Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Describe social reforms of Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਕਿਉਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? 08, July 09, (Why is Guru Amar Das Ji called a social reformer ?)
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਕਿਹੜੇ ਕਾਰਨਾਂ ਲਈ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਵਜੋਂ ਜਾਣੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ? (Why is Guru Amar Das Ji called a social reformer ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ ।
  2. ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਬਾਲ ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵੀ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ ।
  3. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਬੜੇ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਨਿੰਦਿਆ ਕੀਤੀ ।
  4. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ ।
  5. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਜਨਮ, ਵਿਆਹ ਅਤੇ ਮਰਨ ਦੇ ਮੌਕਿਆਂ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰਸਮਾਂ ਬਣਾਈਆਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਇਸਤਰੀ ਜਾਤੀ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਕਿਹੜੇ ਸੁਧਾਰ ਕੀਤੇ ? (What reforms were made by Guru Amar Das Ji for the welfare of women ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਜੰਮਦੀਆਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ ।
  2. ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਬਾਲ ਵਿਆਹ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । (iii) ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ ।
  3. ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਵੀ ਨਿੰਦਾ ਕੀਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਕੀ ਸੀ ? ਸਿੱ” ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਇਸ ਨੇ ਕੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ? (What was the Manji System ? How did it contribute to the development of Sikhism ?)
ਜਾਂ
ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਬਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ? (What do you know about Manji system ?)
ਜਾਂ
ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a note on Manji System.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਇੱਕ ਹੋਰ ਮਹਾਨ ਕਾਰਜ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ ਇੰਨੀ ਵੱਧ ਗਈ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਜੀ ਲਈ ਹਰੇਕ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣਾ ਅਸੰਭਵ ਸੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਆਪਣੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਦੇ ਲਈ 22 ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਹਰ ਮੰਜੀ ਦੇ ਮੁਖੀ ਨੂੰ ਮੰਜੀਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਮੰਜੀਦਾਰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਮਾਇਆ ਇਕੱਠੀ ਕਰ ਕੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਮੰਜੀਦਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਕੰਮ ਕੀ ਸਨ ? (What were the main functions of the Manjidar ?)
ਉੱਤਰ-

  1. ਉਹ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  2. ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਸੰਗਤ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਦਾ ਸੀ ।
  3. ਉਹ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਧਾਰਮਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਸਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਕਿਹੋ ਜਿਹੇ ਸੰਬੰਧ ਸਨ ? (What type of relations did Guru Amar Das Ji have with the Mughals ?)
ਜਾਂ
ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਵਿਚਾਲੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਉਲੇਖ ਕਰੋ । (Describe the relations between Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
ਜਾਂ
ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਵਿਚਕਾਰ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਉਲੇਖ, ਕਰੋ । (Explain the relations between the Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਮਿੱਤਰਤਾਪੂਰਨ ਸਨ । ਮੁਗਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ 1568 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਆਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਰਯਾਦਾ ਅਨੁਸਾਰ ਲੰਗਰ ਛਕਿਆ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਅਤੇ ਲੰਗਰ ਪਬੰਧ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਲੰਗਰ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਕੁਝ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਜਾਗੀਰ ਗੁਰੁ ਜੀ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ ਦੇ ਨਾਂ ਲਗਾ ਦਿੱਤੀ । ਅਕਬਰ ਦੀ ਇਸ ਯਾਤਰਾ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਧੀ ਬਹੁਤ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਫੈਲ ਗਈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਵਧਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਪ੍ਰਤੀ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਸੀ ? (What was the contribution of Guru Ram Das Ji to Sikh religion ?)
ਜਾਂ
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਯੋਗਦਾਨ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ । (Explain the contribution of Guru Ram Das Ji to the development of Sikhism.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂ ਕਾਲ 1574 ਈ. ਤੋਂ 1581 ਈ. ਤਕ ਰਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ (ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ) ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇੱਥੇ ਦੋ ਸਰੋਵਰਾਂ ਅੰਮਿਤਸਰ ਅਤੇ ਸੰਤੋਖਸਰ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਆਰੰਭਿਆ | ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਮਾਇਆ ਇਕੱਠੀ ਕਰਨ ਲਈ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਉਦਾਸੀਆਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਮਤਭੇਦਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸੰਗਤ ਤੇ ਪੰਗਤ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਜਾਰੀ ਰੱਖਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ (ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ) ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ? [What is the importance of the foundation of Ramdaspura (Amritsar) in Sikh History ?]
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਦੇਣ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਜਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਗੁਰਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਆਪ ਇੱਥੇ ਆ ਗਏ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ 1577 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਆਬਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਵੱਖਵੱਖ ਧੰਦਿਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ 52 ਵਪਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵਸਾਇਆ । ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਰੱਖਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵੱਖਰਾ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਮਿਲ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a short note on Udasi sect.)
ਜਾਂ
ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਸਿਧਾਂਤ ਲਿਖੋ । (Discuss the three principles of Udasi Sect.)
ਜਾਂ
ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on Baba Sri Chand Ji.)
ਉੱਤਰ-
ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵੱਡੇ ਪੁੱਤਰ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਹ ਮਤ ਤਿਆਗ ਅਤੇ ਵੈਰਾਗ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਯੋਗ ਅਤੇ ਕੁਦਰਤੀ ਪੂਜਾ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਵੀ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਰੱਖਦਾ ਸੀ । ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿੱਖ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਦੇ ਜੀਵਨ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਏ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਸੱਚਾ ਸਿੱਖ ਉਦਾਸੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ । ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋ ਗਿਆ ।

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ਵਸਤੂਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)
ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਇੱਕ ਵਾਕ ਵਿੱਚ ਉੱਤਰ (Answer in one Word to one Sentence)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦੂਜੇ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
1504 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੱਤੇ ਦੀ ਸਰਾਇ (ਸ੍ਰੀ ਮੁਕਤਸਰ ਸਾਹਿਬ) ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਭਰਾਈ ਦੇਵੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਫੇਰੂਮਲ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਕਦੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
1539 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦਾ ਨਾਂ ਕਿਸ ਨੇ ਦਿੱਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਕਿਸ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਬੀਬੀ ਖੀਵੀ ਜੀ ਨਾਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਦਾਤੂ ਅਤੇ ਦਾਸੂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਪੁੱਤਰੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਬੀਬੀ ਅਮਰੋ ਅਤੇ ਬੀਬੀ ਅਨੋਖੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਧਾਰਮਿਕ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਲੋਕਪ੍ਰਿਯ ਬਣਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਰੱਖੀ ?
ਜਾਂ
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਕਦੋਂ ਰੱਖੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1546 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦੱਸੋ ।
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਲਈ ਕੀ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਸੰਸਥਾਪਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਤੋਂ ਤੁਹਾਡਾ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਵਿੱਚ ਸੰਨਿਆਸੀ ਜੀਵਨ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਕਿਹੜਾ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਮਿਲਣ ਆਇਆ ?
ਜਾਂ
ਕਿਹੜਾ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਆਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਹੁਮਾਯੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਹੁਮਾਯੂੰ ਨੇ ਕਿਹੜੇ ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਲਿਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
1479 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਾਸਰਕੇ ਵਿਖੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੁਲੱਖਣੀ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਤੇਜਭਾਨ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਕਿਸ ਜਾਤੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਭੁੱਲਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਸਪੁੱਤਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਬਾਬਾ ਮੋਹਰੀ ਜੀ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸਪੁੱਤਰ ਸਨ ?
ਜਾਂ
ਬਾਬਾ ਮੋਹਨ ਸਿੰਘ ਜੀ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਪੁੱਤਰ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਬਾਬਾ ਮੋਹਰੀ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਪੁੱਤਰ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਉਮਰ ਕਿੰਨੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
73 ਵਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ?
ਉੱਤਰ-
1552 ਈ. ਵਿੱਚ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂਕਾਲ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
1552 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1574 ਈ. ਤੱਕ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 33.
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਪਵਿੱਤਰ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
3552 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 34.
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਉਲੀ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨੀਆਂ ਪੌੜੀਆਂ ਬਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
84.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 35.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਸਫਲਤਾ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 36.
ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 37.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕਿੰਨੀਆਂ ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
22 ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 38.
ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਮਤ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 39.
ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਕੀ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਸਿੱਖ ਮਤ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 40.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕਿੰਨੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
907 ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 41.
ਅਨੰਦੁ ਸਾਹਿਬ ਬਾਣੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 42.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਾਜਿਕ ਸੁਧਾਰ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 43.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਸਤੇ ਕਿਹੜਾ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਆਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਕਬਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 44.
ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਕਦੋਂ ਆਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
1568 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 45.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕਿਸ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 46.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ?
ਉੱਤਰ-
1574 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 47.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਚੌਥੇ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 48.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਗੁਰੂ ਕਾਲ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1574 ਈ. ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1581 ਈ. ਤਕ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 49.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
1534 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 50.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 51.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਦਇਆ ਕੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 52.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਰੀਦਾਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 53.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਕਿਸ ਜਾਤੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੋਢੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 54.
ਸੋਢੀ ਸੁਲਤਾਨ ਕਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 55.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਕਿਸ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਪਤਨੀ ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 56.
ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਪਤਨੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 57.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਕੀ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ, ਮਹਾਂਦੇਵ ਅਤੇ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 58.
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 59.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਕਦੋਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ?
ਉੱਤਰ-
1574 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 60.
ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਕਾਰਜ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਜਾਂ
ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਫਲਤਾ ਦਾ ਉਲੇਖ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 61.
ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1577 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 62.
ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਕਿਸ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 63.
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 64.
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਨੀਂਹ ਕਦੋਂ ਰੱਖੀ ਗਈ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
1577 ਈ. ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 65.
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 66.
ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਉਦਾਸੀਆਂ ਵਿਚਕਾਰ ਸਮਝੌਤਾ ਕਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 67.
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਕਿਸ ਨੇ ਚਲਾਈ ਸੀ ?
ਜਾਂ
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 68.
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਕੀ ਸਨ ? ਕੋਈ ਇੱਕ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 69.
‘ਚਾਰ ਲਾਵਾਂ’ ਦਾ ਉਚਾਰਨ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 70.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕਿੰਨੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ?
ਉੱਤਰ-
679 ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 71.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
1581 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 72.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਕੌਣ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।

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ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ (Fill in the Blanks)

ਨੋਟ :-ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ :

1. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦੂਸਰੇ ਗੁਰੂ ……………………… ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ)

2. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਨਾਂ …………………….. ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ)

3. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ………………………. ਨੂੰ ਹੋਇਆ |
ਉੱਤਰ-
(1504 ਈ.)

4. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ……………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਫੇਰੂਮਲ)

5. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ …………………… ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1539 ਈ.)

6. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ …………………….. ਨੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ)

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7. …………………………… ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੇ ਸੰਸਥਾਪਕ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ)

8. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ……………………. ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(1546 ਈ.)

9. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ………………… ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1552 ਈ.)

10. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ …………………… ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ)

11. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ …………………… ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(1479 ਈ.)

12. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ………………………. ਜਾਤੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਭੱਲਾ)

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13. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ……………………… ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1552 ਈ.)

14. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ………………. ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ ਬਣੇ ।
ਉੱਤਰ-
(73 ਵਰਿਆਂ)

15. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ………………….. ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਵਾਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ)

16. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ …………………. ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(1552 ਈ.)

17. ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ………………………….. ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ)

18. ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ……………………… ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਆਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਅਕਬਰ)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

19. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ …………………….. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1574 ਈ.)

20.. ………………….. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਚੌਥੇ ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ)

21. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਨਾਂ ………………….. ਸੀ
ਉੱਤਰ-
(ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ)

22. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ……………………… ਜਾਤੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸੋਢੀ)

23. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ …………………… ਨਾਲ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ)

24. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ………………………. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
(1574 ਈ.)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

25. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ………………………. ਵਿੱਚ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(1577 ਈ.)

26. ………………………… ਨੇ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ)

ਠੀਕ ਜਾਂ ਗਲਤ (True or False)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

1. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੁ ਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

2. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਨਾਂ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਸੀ !
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

3. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਤੇਜ ਭਾਨ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

4. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਸਭਰਾਈ ਦੇਵੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

5. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਬੀਬੀ ਖੀਵੀ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

6. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦੂਜੇ ਗੁਰੂ ਬਣੇ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

7. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਫ਼ਾਰਸੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

8. ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

9. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋਈ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਲਤ

10. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

11. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

12. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 1479 ਈ. ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

13. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਤੇਜ ਭਾਨ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

14. ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ਦਾ ਨਾਂ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

15. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ 1552 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

16. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

17. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

18. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

19. ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਚੌਥੇ ਗੁਰੂ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

20. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਨਾਂ ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

21. ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਸੋਢੀ ਜਾਤ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

22. ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਪਤਨੀ ਦਾ ਨਾਂ ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

23. ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ 1574 ਈ. ਨੂੰ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

24. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 1577 ਈ. ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਗਈ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

25. ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

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26. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਉਦਾਸੀਆਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

27. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਚਾਰ ਲਾਵਾਂ ਰਾਹੀਂ ਵਿਆਹ ਕਰਨ ਦੀ ਮਰਿਆਦਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

28. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ 1581 ਈ. ਵਿੱਚ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਠੀਕ

ਬਹੁਪੱਖੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Multiple Choice Questions)

ਨੋਟ :-ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਠੀਕ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ-

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦੂਜੇ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1469 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1479 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1501 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1504 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1504 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ?
(i) ਮੱਤੇ ਦੀ ਸਰਾਇ
(i) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਹਰੀਕੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਮੱਤੇ ਦੀ ਸਰਾਇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦਾ ਜਨਮ ਸਥਾਨ ਆਧੁਨਿਕ ਭਾਰਤੀ ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਸ੍ਰੀ ਮੁਕਤਸਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਹੈ ?
(i) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ
(ii) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(iv) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ
(ii) ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ
(iii) ਭਾਈ ਗੁਰਦਿੱਤਾ ਜੀ
(iv) ਭਾਈ ਦਾਸੁ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਤਿਆਗ ਮਲ ਜੀ
(ii) ਫੇਰੂਮਲ ਜੀ
(iii) ਤੇਜ ਭਾਨ ਜੀ
(iv) ਮਿਹਰਬਾਨ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਫੇਰੂਮਲ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਲਕਸ਼ਮੀ ਦੇਵੀ ਜੀ।
(ii) ਸਭਰਾਈ ਦੇਵੀ ਜੀ
(iii) ਮਨਸਾ ਦੇਵੀ ਜੀ
(iv) ਸੁਭਾਗ ਦੇਵੀ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸਭਰਾਈ ਦੇਵੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਪਤਨੀ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਬੀਬੀ ਖੀਵੀ ਜੀ
(ii) ਬੀਬੀ ਨਾਨਕੀ ਜੀ
(iii) ਬੀਬੀ ਅਮਰੋ ਜੀ
(iv) ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਬੀਬੀ ਖੀਵੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮਾਤਾ ਖੀਵੀ ਜੀ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸੁਪਤਨੀ
(ii) ਦਾਸੁ ਜੀ ਤੇ ਦਾਤੂ ਜੀ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ
(iii) ਬੀਬੀ ਅਮਰੋ ਜੀ ਤੇ ਬੀਬੀ ਅਨੋਖੀ ਜੀ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ
(iv) ਸਾਰੇ ਹੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਸਾਰੇ ਹੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਕਦੋਂ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ?
(i) 1529 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1538 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1539 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1552 ਈ. ਵਿੱਚ
ਉੱਤਰ-
(iii) 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਕਿਹੜਾ ਸਥਾਨ ਸੀ ?
(i) ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ
(ii) ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਇਆ ?
(i) ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(iii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਉਦਾਸੀ ਮਤ ਦਾ ਸੰਸਥਾਪਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ
(ii) ਬਾਬਾ ਲਖਮੀ ਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਬਾਬਾ ਮੋਹਨ ਜੀ
(iv) ਬਾਬਾ ਮੋਹਰੀ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕਿਸ ਨਗਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
(i) ਕਰਤਾਰਪੁਰ
(ii) ਤਰਨਤਾਰਨ
(iii) ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਕਿਹੜਾ ਮੁਗਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਆਇਆ ਸੀ ?
(i) ਬਾਬਰ
(ii) ਹੁਮਾਯੂੰ
(iii) ਅਕਬਰ
(iv) ਜਹਾਂਗੀਰ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਹੁਮਾਯੂੰ

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਸ਼ੇਰਸ਼ਾਹ ਸੂਰੀ ਨੇ ਹੁਮਾਯੂੰ ਨੂੰ ਕਿਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ?
(i) ਪਾਣੀਪਤ
(ii) ਤਰਾਇਣ
(iii) ਦਿੱਲੀ
(iv) ਕਨੌਜ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਕਨੌਜ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ?
(i) 1550 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1551 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1552 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1554 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1552 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਸਰੇ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1458 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1465 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1469 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1479 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1479 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਿੱਥੇ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ
(ii) ਹਰੀਕੇ
(iii) ਬਾਸਰਕੇ
(iv) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਬਾਸਰਕੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਤੇਜਭਾਨ ਭੱਲਾ
(ii) ਮਿਹਰਬਾਨ
(iii) ਮੋਹਨ ਦਾਸ
(iv) ਫੇਰੂਮਲ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਤੇਜਭਾਨ ਭੱਲਾ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ।
(ii) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 23.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਬੈਠੇ ?
(i) 1539 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1550 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1551 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1552 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1552 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 24.
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(iii) ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 25.
ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਕਿੱਥੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤੇ ?
(i) ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ
(ii) ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਬਾਸਰਕੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 26.
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਉਲੀ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨੀਆਂ ਪੌੜੀਆਂ ਬਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ ?
(i) 62
(ii) 72
(iii) 73
(iv) 84.
ਉੱਤਰ-
(iv) 84.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 27.
ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਕਦੋਂ ਪੂਰਾ ਹੋਇਆ ?
(i) 1546 ਈ.
(ii) 1552 ਈ.
(iii) 1559 ਈ.
(iv) 1567 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1559 ਈ. ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 28.
ਅਨੰਦੁ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(iii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 29.
ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(iii) ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 30.
‘ਅਨੰਦੁ ਸਾਹਿਬ’ ਬਾਣੀ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨੀਆਂ ਪੌੜੀਆਂ ਹਨ ?
(i) 84
(ii) 35
(iii) 36
(iv) 40.
ਉੱਤਰ-
(iv) 40.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 31.
ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ
(ii) ਲੰਗਰ ਲਈ ਰਸਦ ਇਕੱਤਰ ਕਰਨੀ
(iii) ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨਾ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 32.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੁੱਲ ਕਿੰਨੀਆਂ ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ?
(i) 20
(ii) 24
(iii) 26
(iv) 22.
ਉੱਤਰ-
(iv) 22.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 33.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਸ ਕੁਰੀਤੀ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
(i) ਬਾਲ ਵਿਆਹ
(ii) ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ
(iii) ਪਰਦਾ ਪ੍ਰਥਾ
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 34.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀਆਂ ਧਾਰਮਿਕ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਕਿਹੜਾ ਸੀ ?
(i) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ
(ii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ
(iii) ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਲਾਹੌਰ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 35.
ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
(i) 1552 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1564 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1568 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1574 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1574 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 36.
ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਚੌਥੇ ਗੁਰੂ ਕੌਣ ਸਨ ?
(i) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਹਰਿਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 37.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਕਦੋਂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) 1479 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1524 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1534 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1539 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) 1534 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 38.
ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
(i) ਭਾਈ ਬਾਲਾ ਜੀ
(ii) ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ
(iii) ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ
(iv) ਭਾਈ ਮਰਦਾਨਾ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਭਾਈ ਜੇਠਾ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 39.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਹਰੀਦਾਸ
(ii) ਅਮਰਦਾਸ
(iii) ਤੇਜਭਾਨ
(iv) ਫੇਰੂਮਲ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਹਰੀਦਾਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 40.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕੀ ਨਾਂ ਸੀ ?
(i) ਦਇਆ ਕੌਰ ਜੀ
(ii) ਰੂਪ ਕੌਰ ਜੀ
(iii) ਸੁਲੱਖਣੀ ਜੀ
(iv) ਲਖਸ਼ਮੀ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਦਇਆ ਕੌਰ ਜੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 41.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਕਿਹੜੀ ਜਾਤੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ?
(i) ਬੇਦੀ
(ii) ਭੱਲਾ
(iii) ਸੋਢੀ
(iv) ਸੇਠੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਸੋਢੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 42.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਕਿਸ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਬੀਬੀ ਦਾਨੀ ਜੀ
(ii) ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ
(iii) ਬੀਬੀ ਅਮਰੋ ਜੀ
(iv) ਬੀਬੀ ਅਨੋਖੀ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਬੀਬੀ ਭਾਨੀ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 43.
ਪ੍ਰਿਥੀ ਚੰਦ ਕੌਣ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ
(iii) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਪੁੱਤਰ
(iv) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਭਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 44.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਗੁਰਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਕਦੋਂ ਬਿਰਾਜਮਾਨ ਹੋਏ ?
(i) 1534 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1552 ਈ. ਵਿੱਚ .
(iii) 1554 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1574 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1574 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 45.
ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਜਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(iii) ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 46.
‘ਰਾਮਦਾਸਪੁ’ ਨਗਰ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਵਸਾਇਆ ?
(i) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ
(ii) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ
(iv) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 47.
ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਨੀਂਹ ਕਦੋਂ ਰੱਖੀ ਸੀ ?
(i) 1574 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1575 ਈ. ਵਿੱਚ
(iii) 1576 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1577 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1577 ਈ. ਵਿੱਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 48.
ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 49.
ਕਿਸ ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੇ ਸਮੇਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ
(ii) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ
(iii) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ
(iv) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 50.
ਚਾਰ ਲਾਵਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ?
(i) ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ
(ii) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।
(iii) ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ
(iv) ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਨੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 51.
ਕਿਹੜਾ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਆਇਆ ਸੀ ?
(i) ਬਾਬਰ
(ii) ਹੁਮਾਯੂੰ
(iii) ਅਕਬਰ
(iv) ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ।
ਉੱਤਰ-
(iii) ਅਕਬਰ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 52.
ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਕਬਰ ਦੀ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨਾਲ ਜਿੱਥੇ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋਈ ?
(i) ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ।
(ii) ਲਾਹੌਰ
(iii) ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ
(iv) ਦਿੱਲੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ii) ਲਾਹੌਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 53.
ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਕਦੋਂ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਏ ਸਨ ?
(i) 1565 ਈ. ਵਿੱਚ
(ii) 1571 ਈ. ਵਿੱਚ ।
(iii) 1575 ਈ. ਵਿੱਚ
(iv) 1581 ਈ. ਵਿੱਚ ।
ਉੱਤਰ-
(iv) 1581 ਈ. ਵਿੱਚ ।

Source Based Questions
ਨੋਟ-ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰਿਆਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-

1. ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹਰ ਸਾਲ ਆਪਣੇ ਭਗਤਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਜੱਥਾ ਲੈ ਕੇ ਜਵਾਲਾਮੁਖੀ (ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਕਾਂਗੜਾ) ਦੇਵੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਜਿਸ ਸੱਚ ਦੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਲਾਸ਼ ਸੀ ਉਸ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਨਾ ਹੋ ਸਕੀ । ਇੱਕ ਦਿਨ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਇੱਕ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਸਿੱਖ ਦੇ ਮੁੱਖੋਂ ‘ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ’ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਿਆ । ਇਹ ਪਾਠ ਸੁਣ ਕੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਇੰਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਦਾ ਪੱਕਾ ਫੈਸਲਾ ਕਰ ਲਿਆ | ਅਗਲੇ ਵਰ੍ਹੇ ਜਦੋਂ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਆਪਣੇ ਜੱਥੇ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਜਵਾਲਾਮੁਖੀ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਲਈ ਨਿਕਲੇ ਤਾਂ ਉਹ ਰਸਤੇ ਵਿੱਚ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਰੁਕੇ । ਉਹ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਮਹਾਨ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਅਤੇ ਮਿੱਠੀ ਬਾਣੀ ਨੂੰ ਸੁਣ ਕੇ ਇੰਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਮਹਿਸੂਸ ਕੀਤਾ ਕਿ ਜਿਸ ਮੰਜ਼ਿਲ ਦੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵਰਿਆਂ ਤੋਂ ਤਲਾਸ਼ ਸੀ ਅੱਜ ਉਹ ਮੰਜ਼ਿਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਹੈ ।

1. ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਸ ਦੇਵੀ ਦੇ ਭਗਤ ਸਨ ?
2. ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੇ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਕਿਸ ਦੇ ਮੁੱਖੋਂ ‘ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਿਆ ?
3. “ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣ ਕੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੇ ਕੀ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ?
4. ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਕਿਉਂ ਬਣੇ ?
5. ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿੱਥੇ ਮਿਲੇ ਸਨ ?
(i) ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ
(ii) ਜਵਾਲਾਮੁਖੀ ਵਿਖੇ
(iii) ਕੀਰਤਪੁਰ ਵਿਖੇ
(iv) ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਖੇ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਭਗਤ ਬਣਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇਵੀ ਦੁਰਗਾ ਦੇ ਭਗਤ ਸਨ ।
2. ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੇ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਭਾਈ ਜੋਧਾ ਜੀ ਦੇ ਮੁੱਖੋਂ ‘ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਿਆ ।
3. ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ` ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣ ਕੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ।
4. ਉਹ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਅਤੇ ਬਾਣੀ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ।
5. ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ।

2. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੋਂਦ ਵਿੱਚ ਆ ਚੁੱਕੀ ਸੀ, ਪਰ ਇਸ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਕੋਈ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਬੜੀ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਭੁਲੇਖੇ ਵਿੱਚ ਪੈ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਨਿਖਾਰ ਲਿਆਂਦਾ । ਹੁਣ ਇਸ ਲਿਪੀ ਨੂੰ ਸਮਝਣਾ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਵੀ ਬੜਾ ਆਸਾਨ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਇਸ ਲਿਪੀ ਵਿੱਚ ਹੋਈ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਦਾ ਨਾਂ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਆਪਣੇ ਕਰਤੱਵ ਦੀ ਯਾਦ ਕਰਵਾਉਂਦੀ ਰਹੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਲਿਪੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਵੱਖਰੀ ਪਹਿਚਾਣ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਲਿਪੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿੱਦਿਆ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਹੋਣ ਲੱਗਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਲਿਪੀ ਦੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਬਾਹਮਣ ਵਰਗ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਨੂੰ ਹੀ ਧਰਮ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਮੰਨਦੇ ਸਨ ।

1. ਕਿਸ ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬਾਨ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ ਕੀਤਾ ?
2. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਹੜੀ ਲਿਪੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ ਸੀ ?
3. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
4. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ?
5. ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ……………………. ਲਿਪੀ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ ਕੀਤਾ ।
2. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਲਿਪੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਲੰਡੇ ਮਹਾਜਨੀ ਲਿਪੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ ਸੀ ।
3. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਗੁਰੂਆਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਤੋਂ ਨਿਕਲੀ ਹੋਈ ।
4. ਇਸ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਾਰਨ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਵਰਗ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਸੱਟ ਵਜੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਸਿਰਫ਼ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਨੂੰ ਹੀ ਪਵਿੱਤਰ ਭਾਸ਼ਾ ਮੰਨਦੇ ਸਨ ।
5. ਗੁਰਮੁੱਖੀ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

3. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ 1552 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਇਹ 1559 ਈ. ਵਿੱਚ ਮੁਕੰਮਲ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਸ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨ ਪਿੱਛੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ । ਪਹਿਲਾ, ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵੱਖਰਾ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਦੇਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਤਾਂ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂ ਮਤ ਤੋਂ ਵੱਖਰਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇ । ਦੂਜਾ, ਉਹ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਪਾਣੀ ਸੰਬੰਧੀ ਔਕੜ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਬਾਉਲੀ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ 84 ਪੌੜੀਆਂ ਬਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਪੂਰਾ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਹ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਜੋ ਕੋਈ ਯਾਤਰੂ ਹਰ ਪੌੜੀ ‘ਤੇ ਸੱਚੇ ਮਨ ਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਜਪੁਜੀ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਕਰੇਗਾ ਅਤੇ ਪਾਠ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਾਉਲੀ ਵਿੱਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰੇਗਾ ਉਹ 84 ਲੱਖ ਜੂਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ । ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵੱਲ ਇੱਕ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

1. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤਾ ਸੀ ?
2. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਕਦੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ?
(i) 1552 ਈ.
(ii) 1559 ਈ.
(iii) 1562 ਈ.
(iv) 1569 ਈ. ।
3. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਨੂੰ ਕੁੱਲ ਕਿੰਨਾ ਸਮਾਂ ਲੱਗਿਆ ?
4. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਉਲੀ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ ਕੁੱਲ ਕਿੰਨੀਆਂ ਪੌੜੀਆਂ ਬਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ ?
5. ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਲਈ ਕਿਵੇਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
1. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤਾ ।
2. 1552 ਈ. ।
3. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਬਾਉਲੀ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਕਾਰਜ ਨੂੰ ਕੁੱਲ 7 ਵਰੇ ਲੱਗੇ ।
4. ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬਾਉਲੀ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਲਈ ਕੁੱਲ 84 ਪੌੜੀਆਂ ਬਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸਨ ।
5. ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਉਤਸ਼ਾਹ ਮਿਲਿਆ ।

4. ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਲਈ ਹਰ ਸਿੱਖ ਤਕ ਨਿਜੀ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚਣਾ ਸੰਭਵ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਉਪਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਦੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਦੇ ਲਈ 22 ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਹਰ ਮੰਜੀ ਦੇ ਮੁਖੀ ਨੂੰ ਮੰਜੀਦਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਮੰਜੀਦਾਰ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਕੇਵਲ ਬਹੁਤ ਹੀ ਕਰਨੀ ਪਵਿੱਤਰ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਾਲੇ) ਵਾਲੇ ਸਿੱਖ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਮੰਜੀਦਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਖੇਤਰ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਇਲਾਕੇ ਤਕ ਸੀਮਿਤ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਥਾਂ ਵੀ ਜਾ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਇਹ ਮੰਜੀਦਾਰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਮਾਇਆ ਇਕੱਠੀ ਕਰਕੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦੇ ਸਨ ।.
1. ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸ ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬਾਨ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
2. ਕੁੱਲ ਕਿੰਨੀਆਂ ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ?
3. ਮੰਜੀ ਦਾ ਮੁੱਖੀ ਕੌਣ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ?
4. ਮੰਜੀਦਾਰ ਦਾ ਕੋਈ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਕੰਮ ਲਿਖੋ ।
5. ਮੰਜੀਦਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਖੇਤਰ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ……………….. ਤਕ ਸੀਮਿਤ ਨਹੀਂ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਮੰਜੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
2. ਕੁੱਲ 22 ਮੰਜੀਆਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ‘
3. ਮੰਜੀ ਦਾ ਮੁੱਖੀ ਮੰਜੀਦਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।
4. ਉਹ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ।
5. ਇਲਾਕੇ ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਵਿਕਾਸ

5. ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਦੇਣ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਗੁਰਗੱਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਆਪ ਇੱਥੇ ਆ ਗਏ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ 1577 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਆਬਾਦ ਕਰਨ ਲਈ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧੰਦਿਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ 52 ਹੋਰ ਵਪਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵਸਾਇਆ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਇਹ ਇੱਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਕੇਂਦਰ ਬਣ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਦੋ ਸਰੋਵਰਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਅਤੇ ਸੰਤੋਖਸਰ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਬਣਾਇਆ । ਪਹਿਲਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸਰੋਵਰ ਦੀ ਖੁਦਵਾਈ ਦਾ ਕੰਮ ਆਰੰਭਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਕੰਮ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਲਈ ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਨੂੰ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਹੀ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦਾ ਨਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਪੈ ਗਿਆ ।

1. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਕੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਿਸ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ?
2. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਨੂੰ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਗਿਆ ?
3. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਵਪਾਰੀਆਂ ਲਈ ਬਣਾਏ ਗਏ ਬਾਜ਼ਾਰ ਦਾ ਨਾਂ ਕੀ ਸੀ ?
4. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਸੀ ?
5. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਦੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ?
(i) 1571 ਈ.
(ii) 1573 ਈ.
(iii) 1575 ਈ.
(iv) 1577 ਈ. ।
ਉੱਤਰ-
1. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੁ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।
2. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਨੂੰ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਗਿਆ ।
3. ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਵਪਾਰੀਆਂ ਲਈ ਬਣਾਏ ਗਏ ਬਾਜ਼ਾਰਾਂ ਦਾ ਨਾਂ “ਗੁਰੂ ਕਾ ਬਾਜ਼ਾਰ` ਸੀ ।
4. ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪਵਿੱਤਰ ਤੀਰਥ ਸਥਾਨ ਮਿਲਿਆ ।
5. 1577 ਈ. ।