PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 14 हस्तशिल्प तथा उद्योग

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 14 हस्तशिल्प तथा उद्योग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 14 हस्तशिल्प तथा उद्योग

SST Guide for Class 8 PSEB हस्तशिल्प तथा उद्योग Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखें :

प्रश्न 1.
भारत के लघु (छोटे) उद्योगों के पतन के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. इन उद्योगों के मुख्य संरक्षक देशी रियासतों के राजा, उनके परिवार के सदस्य तथा उनके अधिकारी और कर्मचारी थे। जब देशी रियासतों की समाप्ति शुरू हो गई तो पुराने उद्योगों को स्वाभाविक रूप से धक्का लगा।
  2. भारत के लघु उद्योगों में बनी वस्तुएं नई श्रेणी के लोगों को पसन्द नहीं थीं। वे अंग्रेज़ों के प्रभाव में थे। अत: इन्हें यूरोप की वस्तुएं भारत की वस्तुओं की अपेक्षा अधिक अच्छी लगती थीं।

प्रश्न 2.
भारत के लघु उद्योगों के द्वारा तैयार की गई वस्तुओं का मूल्य अधिक क्यों होता था ? .
उत्तर-
भारत के लघु उद्योगों द्वारा तैयार की गई वस्तुओं का मूल्य इसलिए अधिक होता था, क्योंकि इन्हें तैयार करने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ता था।

प्रश्न 3.
भारत में सूती कपड़े का प्रथम उद्योग कब तथा कहां स्थापित हुआ ?
उत्तर-
भारत में सूती कपड़े का प्रथम उद्योग (कारखाना) 1853 ई० में मुम्बई में स्थापित हुआ।

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प्रश्न 4.
भारत में पहला पटसन उद्योग कब तथा कहां लगाया गया ?
उत्तर-
भारत में पहला पटसन उद्योग 1854 ई० में सीरमपुर (बंगाल) में लगाया गया।

प्रश्न 5.
भारत में कॉफी का पहला बाग कब तथा कहां लगाया गया ?
उत्तर-
भारत में कॉफी का पहला बाग 1840 ई० में दक्षिण भारत में लगाया गया।

प्रश्न 6.
चाय का पहला बाग कब तथा कहां लगाया गया ?
उत्तर-
चाय का पहला बाग़ 1852 ई० में असम में लगाया गया।

प्रश्न 7.
19वीं सदी में लघु उद्योगों के पतन के बारे में लिखें।
उत्तर-
भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना से पहले भारत के गांव आत्म-निर्भर थे। गांवों के लोग जैसे कि लोहार, जुलाहे, किसान, बढ़ई, चर्मकार, कुम्हार आदि मिलकर गांव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वस्तुएं तैयार कर लेते थे। उनकी दस्तकारियां या लघु उद्योग उनकी आय के साधन होते थे। परन्तु अंग्रेज़ी शासन की स्थापना होने के कारण गांवों के लोग भी अंग्रेज़ी कारखानों में तैयार की गई वस्तुओं का उपयोग करने लगे क्योंकि वे बढ़िया एवं सस्ती होती थीं। अतः भारत के नगरों एवं गांवों के लघु उद्योगों का पतन होने लगा और कारीगर (शिल्पकार) बेकार हो गये।

प्रश्न 8.
आधुनिक भारतीय उद्योगों के महत्त्व के बारे में लिखें।
उत्तर-
भारत में आधुनिक उद्योगों के विकास से आर्थिक एवं सामाजिक जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। इसके परिणामस्वरूप समाज में दो श्रेणियों का जन्म हुआ-पूंजीपति तथा मज़दूर। पूंजीपति मजदूरों का अधिक-से-अधिक शोषण करने लगे। वे मजदूरों से अधिक-से-अधिक काम ले कर कम-से-कम पैसे देते थे। अत: सरकार ने मजदूरों की दशा सुधारने के लिए फैक्टरी-एक्ट पास किये। औद्योगिक विकास होने के कारण कई नये नगरों का निर्माण भी हुआ। ये नगर आधुनिक जीवन एवं संस्कृति के केन्द्र बने।

प्रश्न 9.
नील उद्योग पर नोट लिखें।
उत्तर-
अंग्रेजों को इंग्लैंड में अपने कपड़ा उद्योग के लिए नील की आवश्यकता थी। अतः उन्होंने भारत में नील की खेती को बढ़ावा दिया। इसका आरम्भ 18वीं शताब्दी के अन्त में बिहार तथा बंगाल में हुआ। नील के अधिकतर बड़े-बड़े बाग यूरोप वालों ने लगाए, जहां भारतीयों को काम पर लगाया गया। 1825 में नील की खेती के अधीन 35 लाख बीघा भूमि थी। परन्तु 1879 ई० में नकली नील तैयार होने के कारण नील की खेती में कमी आने लगी। परिणामस्वरूप 1915 ई० तक नील की खेती के अधीन केवल 3-4 लाख बीघा जमीन ही रह गई।

प्रश्न 10.
कोयले की खानों पर नोट लिखें।
उत्तर-
भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित सभी नये कारखाने कोयले से चलते थे। रेलों के लिए भी कोयला चाहिए था। इसलिए कोयला खानों में से कोयला निकालने की ओर विशेष ध्यान दिया गया। 1854 ई० में बंगाल के रानीगंज जिले में कोयले की केवल 2 खानें थीं। परन्तु 1880 तक इनकी संख्या 56 तथा 1885 तक 123 हो गई।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:

1. देशी रियासतों के राजा महाराजा …………. उद्योगों द्वारा तैयार की गई वस्तुओं का प्रयोग करते थे।
2. नई पीढ़ी के लोग लघु उद्योगों द्वारा तैयार किए गए माल को ………… नहीं करते थे।
3. सभी नए कारखाने ……………. से चलते थे।
उत्तर-

  1. लघु
  2. पसंद
  3. कोयले।।

III. प्रत्येक वाक्य के सामने ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाएं:

1. भारतीय नगरों एवं गांवों के लघु उद्योगों के पतन से कारीगर बेकार हो गए। – (✓)
2. इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति 19वीं सदी में आई। – (✗)
3. मशीनों द्वारा तैयार की गई वस्तुओं का दाम अधिक होता था। – (✗)
4. 18वीं सदी में भारत का कच्चा माल इंग्लैंड जाने लगा। – (✓)

IV. सही जोड़े बनाएं :

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 14 हस्तशिल्प तथा उद्योग 1
उत्तर-

  1. टी (चाय) कंपनी
  2. सेरमपुर (बंगाल)
  3. रानीगंज।

PSEB 8th Class Social Science Guide हस्तशिल्प तथा उद्योग Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
कॉफी का पहला बाग़ कब लगाया गया ?
(i) 1834 ई०
(ii) 1839 ई०
(iii) 1840 ई०
(iv) 1854 ई०।
उत्तर-
1840 ई०

प्रश्न 2.
भारत में नील उद्योग कहां से शुरू हुआ ?
(i) बिहार तथा बंगाल
(ii) कर्नाटक तथा तमिलनाडु
(iii) पंजाब तथा हरियाणा
(iv) मध्य भारत।
उत्तर-
बिहार तथा बंगाल

प्रश्न 3.
भारत में पटसन उद्योग का पहला कारखाना कब लगाया गया ?
(i) 1820 ई०
(ii) 1824 ई०
(iii) 1834 ई०
(iv) 1854 ई०।
उत्तर-
1854 ई० ।

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अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजी शासन की स्थापना से पहले आर्थिक दृष्टि से गांवों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर-
अंग्रेजी शासन की स्थापना से पहले गांव आर्थिक दृष्टि से आत्म-निर्भर थे।

प्रश्न 2.
भारतीय दस्तकारों द्वारा बनी वस्तुएं मशीनों द्वारा बनी वस्तुओं का मुकाबला क्यों न कर सकीं ?
उत्तर-
भारतीय दस्तकारों द्वारा बनी वस्तुएं मशीनों द्वारा बनी वस्तुओं का मुकाबला इसलिए न कर सकी क्योंकि मशीनी वस्तुएं साफ़ तथा सुन्दर होने के साथ-साथ सस्ती भी थीं।

प्रश्न 3.
नई श्रेणी के लोगों को भारत के लघु उद्योगों द्वारा बनी वस्तुएं क्यों पसन्द नहीं थीं ?
उत्तर-
क्योंकि वे पश्चिमी-सभ्यता के प्रभाव में थे।

प्रश्न 4.
पटसन उद्योग में क्या-क्या वस्तुएं बनाई जाती थीं ?
उत्तर-
टाट तथा बोरियां।

प्रश्न 5.
भारत के कॉफी उद्योग को हानि क्यों पहंची ?
उत्तर-
भारत की कॉफी का मुकाबला ब्राज़ील की कॉफी से था जो बहुत अच्छी थी। इसलिए भारत के कॉफी उद्योग को हानि पहुंची।

प्रश्न 6.
भारत में अंग्रेज़ी काल में विकसित किन्हीं छः आधुनिक उद्योगों के नाम बताओ।
उत्तर-

  • सूती कपड़ा उद्योग
  • पटसन उद्योग
  • कोयला उद्योग
  • नील उद्योग
  • चाय
  • कॉफी।

प्रश्न 7.
फैक्टरी एक्ट क्यों पास किए गए ?
उत्तर-
फैक्टरी एक्ट मज़दूरों की दशा सुधारने के लिए पास किए गए।

प्रश्न 8.
आदि मानव अपने आप को गर्म रखने के लिए किस चीज़ से बने वस्त्र पहनता था ?
उत्तर-
पशुओं की खाल से बने वस्त्र।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में कपड़ा बुनने का विकास कैसे हुआ ? खुदाइयों से कपड़े की बुनाई के बारे में क्या प्रमाण मिले हैं ?
उत्तर-
आदि मानव अपने आप को गर्म रखने के लिए पशुओं की खाल से बने कपड़े पहनता था। कताई एवं बुनाई . की खोज इसके बहुत समय पश्चात् हुई थी। ऐसा माना जाता है कि भारत में जुलाहों ने कपड़ा तैयार करने के लिए सबसे पहले घास के रेशों का उपयोग किया था। तत्पश्चात् उन्होंने इस पर नमूने बनाने और करघे पर धागों का उपयोग करना सीखा। समय बीतने पर रेशों और नमूनों में और अधिक सुधार हुआ।

प्रमाण-प्राचीन वस्तुओं का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाइयों से सूत की कताई तथा रंगदार सूती कपड़े के अवशेष मिले हैं। इस के अतिरिक्त उन्हें कश्मीर में कई स्थानों की खुदाई से चरखे, दरियां आदि प्राप्त हुए हैं। इनसे संकेत मिलता है कि लगभग 4,000 साल.पूर्व लोग कपड़ा बुनना जानते थे।

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प्रश्न 2.
भारत में कपड़ा उद्योग का पतन क्यों हुआ ? इसे नया जीवन कैसे मिला ?
उत्तर-
भारतीय कपड़े संसार-भर में प्रसिद्ध थे। यूरोप के व्यापारी कपड़े एवं मसालों का व्यापार करने के लिए ही भारत में आये थे। उन्होंने भारत में सूती कपड़े के कारखाने लगाए थे। इन उद्योगों में साधारण हथकरघों की अपेक्षा अधिक कपड़े का उत्पादन किया जाता था। परन्तु इंग्लैंड में औद्योगिक क्रान्ति आने के कारण भारत में कपड़ा-व्यापार का पतन आरम्भ हो गया। परन्तु 20वीं शताब्दी में महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में भारत में फिर से हाथ से बुने सूती एवं – रेशमी कपड़े तैयार किये जाने लगे, जिससे भारतीय कपड़ा-उद्योग पुनः अस्तित्व में आया।
सरकार की नई आर्थिक नीति से भी कपड़ा-उद्योग ने पहले से कहीं अधिक उन्नति की। सरकार ने कपड़े का आयात-निर्यात करने के लिए बहुत-सी सुविधाएं प्रदान की।

प्रश्न 3.
अंग्रेज़ी काल में भारत में पटसन उद्योग पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
पटसन उद्योग में मुख्य रूप से टाट तथा बोरियां बनाई जाती थीं। इस उद्योग पर यूरोप के लोगों का अधिकार था। इस उद्योग का पहला कारखाना 1854 ई० में सीरमपुर (बंगाल) में लगाया गया। इसके बाद भी पटसन उद्योग के अधिकतर कारखाने बंगाल में ही लगाये गए। 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक इन कारखानों की संख्या 36 हो गई थी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में लघु उद्योगों के पतन के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत में लघु-उद्योगों के पतन के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

1. भारत की देशी रियासतों की समाप्ति-अंग्रेजों ने बहुत-सी भारतीय रियासतों को समाप्त कर दिया था। इस कारण लघु उद्योगों को बहुत हानि पहुंची क्योंकि इन रियासतों के राजा-महाराजा तथा उनके परिवार के सदस्य लघु उद्योगों द्वारा तैयार की गई वस्तुओं का उपयोग करते थे।

2. भारतीय लघु उद्योगों द्वारा तैयार वस्तुओं का महंगा होना-भारतीय लघु उद्योगों द्वारा तैयार की गई वस्तुओं का मूल्य अधिक होता था, क्योंकि उन्हें तैयार करने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ता था। दूसरी ओर मशीनों द्वारा तैयार की गई वस्तुओं का मूल्य कम होता था। अत: लोग लघु उद्योगों द्वारा तैयार की गई वस्तुओं को नहीं खरीदते थे। परिणामस्वरूप भारतीय लघु उद्योगों का पतन आरम्भ हो गया।

3. मशीनी वस्तुओं की सुन्दरता-इंग्लैंड के कारखानों में मशीनों द्वारा तैयार वस्तुएं भारत के लघु उद्योगों द्वारा तैयार वस्तुओं की अपेक्षा अधिक साफ तथा सुन्दर होती थीं। अतः भारतीय लोग मशीनों द्वारा तैयार वस्तुओं को अधिक पसन्द करते थे। यह बात भारत के लघु उद्योगों के पतन का कारण बनी।

4. नई श्रेणी के लोगों की रुचि-नई श्रेणी के लोगों पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव था। दूसरे, मशीनों द्वारा तैयार वस्तुएं बहुत साफ और सुन्दर होती थीं। अतः नई पीढ़ी के लोग लघु उद्योगों द्वारा तैयार वस्तुओं को पसन्द नहीं करते थे।

5. भारत से कच्चा माल इंग्लैंड भेजना-18वीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति आई। इसके कारण वहां बहुत बड़े-बड़े कारखाने स्थापित किये गये। इन कारखानों में माल तैयार करने के लिए कच्चे माल की बहुत आवश्यकता थी, जिसे इंग्लैंड का कच्चा माल पूरा न कर सका। इस कारण भारत का कच्चा माल इंग्लैंड भेजा जाने लगा। इससे भारतीय कारीगरों के पास कच्चे माल की कमी हो गई। फलस्वरूप देश के लघु उद्योग पिछड़ गये।

प्रश्न 2.
प्रमुख आधुनिक भारतीय उद्योगों का वर्णन करें।
उत्तर-
अंग्रेजी शासन के समय भारत में बहुत-से नये उद्योगों की स्थापना हुई जिनमें प्रमुख उद्योग निम्नलिखित थे
1. सूती कपड़ा उद्योग-भारत में सूती कपड़े का पहला उद्योग (कारखाना) 1853 ई० में मुम्बई में लगाया गया। इसके पश्चात् 1877 ई० में कपास उगाने वाले बहुत से क्षेत्रों जैसे कि अहमदाबाद, नागपुर आदि में कपड़ा मिलें स्थापित की गईं। 1879 ई० तक भारत में लगभग 59 सूती कपड़ा मिलें स्थापित की जा चुकी थीं। जिनमें लगभग 43,000 लोग काम करते थे। 1905 ई० में कपड़ा मिलों की संख्या 206 हो गई थी। इनमें लगभग 1,96,000 मजदूर काम करते थे।

2. पटसन का उद्योग-पटसन का उद्योग बोरियां तथा टाट बनाने का काम करता था। इस उद्योग पर यूरोप के लोगों का अधिकार था। इस उद्योग का पहला कारखाना 1854 ई० में सैरमपुर अथवा सीरमपुर (बंगाल) में खोला गया। इसके बाद भी पटसन उद्योग के सबसे अधिक कारखाने बंगाल प्रान्त में ही खोले गये। 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक इन कारखानों की संख्या 36 हो गई थी।

3. कोयले की खानें-भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित सभी नये कारखाने कोयले से चलते थे। रेलों के लिए भी कोयला चाहिए था। इसलिए कोयला खानों में से कोयला निकालने की ओर विशेष ध्यान दिया गया। 1854 ई० में बंगाल के रानीगंज जिले में कोयले की केवल 2 खानें थीं। परन्तु 1880 तक इनकी संख्या 56 तथा 1885 तक 123 हो गई।

4. नील उद्योग-अंग्रेजों को इंग्लैंड में अपने कपड़ा उद्योग के लिए नील की आवश्यकता थी। अत: उन्होंने भारत में नील की खेती को बढ़ावा दिया। इसका आरम्भ 18वीं शताब्दी के अन्त में बिहार तथा बंगाल में हुआ। नील के अधिकतर बड़े-बड़े बाग यूरोप वालों ने लगाए, जहां भारतीयों को काम पर लगाया गया। 1825 में नील की खेती के अधीन 35 लाख बीघा भूमि थी। परन्तु 1879 ई० में नकली नील तैयार होने के कारण नील की खेती में कमी आने लगी। परिणामस्वरूप 1915 ई० तक नील की खेती के अधीन केवल 3-4 लाख बीघा जमीन ही रह गई।

5. चाय-1834 ई० में असम में एक कम्पनी की स्थापना की गई। 1852 ई० में अंग्रेजों ने असम में चाय का पहला बाग लगाया। 1920 ई० तक चाय की खेती लगभग 7 लाख एकड़ भूमि में होने लगी। उस समय 34 करोड़ पाऊंड मूल्य की चाय भारत से बाहर के देशों में भेजी जाती थी। तत्पश्चात् कांगड़ा तथा नीलगिरि की पहाड़ियों में भी चाय के बाग लगाए गए।

6. कॉफी-कॉफी का पहला बाग़ 1840 ई० में दक्षिण भारत में लगाया गया। तत्पश्चात् मैसूर, कुर्ग, नीलगिरि और मालाबार क्षेत्रों में भी कॉफी के बाग लगाये गये। ब्राज़ील की कॉफी के साथ इसका मुकाबला होने के कारण इस उद्योग को बहुत हानि पहुंची।

7. अन्य उद्योग-19वीं शताब्दी के अन्त से लेकर 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक बहुत से नये कारखाने स्थापित किये गये। इनमें लोहा-इस्पात, चीनी, कागज, दियासलाई बनाने और चमड़ा रंगने के कारखाने प्रमुख थे।

PSEB 8th Class Welcome Life Book Solutions Guide in Punjabi English Medium

Punjab State Board Syllabus PSEB 8th Class Welcome Life Book Solutions Guide Pdf in English Medium and Punjabi Medium are part of PSEB Solutions for Class 8.

PSEB 8th Class Welcome Life Guide | Welcome Life Guide for Class 8 PSEB

Welcome Life Guide for Class 8 PSEB | PSEB 8th Class Welcome Life Book Solutions

PSEB 8th Class Welcome Life Book Solutions Guide in Hindi Medium

PSEB 8th Class Welcome Life Structure of Question Paper

कक्षा – आठवीं (पंजाब)
स्वागत ज़िन्दगी

समय : 2 घंटे

लिखित : 50
सी.सी.ई. : 10
प्रयोगी : 40
कुल अंक : 100

प्रश्न-पत्र की रूप-रेखा

1. सभी प्रश्न करने अनिवार्य होंगे।
2. प्रश्न-पत्र चार भागों में बंटा होगा। प्रत्येक भाग सारे पाठ्यक्रम पर आधारित होगा।
भाग – क में प्रश्न नं. 1 (i – xv) में 15 बहु-विकल्पीय प्रश्न होंगे। प्रत्येक प्रश्न एक अंक का होगा। (15 × 1 = 15)

भाग – ख में प्रश्न नं. 2 – 11 तक 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न (जैसे कि एक शब्द से एक वाक्य वाले प्रश्न/रिक्त स्थान भरना/सही-गलत बताना) होंगे। प्रत्येक प्रश्न एक अंक का होगा। (10 × 1 = 10)

भाग – ग में प्रश्न नं. 12 – 16 तक 5 छोटे उत्तरों वाले प्रश्न होंगे। प्रत्येक प्रश्न दो अंकों का होगा। (5 × 2 = 10)

भाग – घ में प्रश्न नं. 17 के दो भाग होंगे। भाग (i) में 2 काल्पनिक (Hypothetical) स्थिति पर आधारित प्रश्न होंगे तथा भाग (ii) में 1 वास्तविक जीवन से जुड़ी समस्या को हल करने से सम्बन्धित प्रश्न होगा। प्रत्येक प्रश्न पांच अंकों का होगा। सभी प्रश्नों में आन्तरिक छूट होगी। (3 × 5 = 15)

प्रश्न-पत्र की बनावट

भाग प्रश्नों की किस्म अंकों का विभाजन
भाग – क 15 बहुविकल्पी प्रश्न 15 × 1 = 15 अंक
भाग – ख 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न (एक शब्द से एक वाक्य वाले प्रश्न/रिक्त स्थान भरें/सही-ग़लत बताना) 10 × 1 = 10 अंक
भाग – ग 5 छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (20-25 शब्दों में) (5 × 2 = 10 अंक)
भाग – घ (i) 2 (तीन में से) काल्पनिक परिस्थिति के आधार पर प्रश्न 5 × 2 = 10 अंक
(ii) 1 (दो में से) वास्तविक जीवन से जुड़ी समस्या को हल करने से सम्बन्धित प्रश्न 1 × 5 = 5 अंक
कुल 50 अंक

प्रयोगी परीक्षा का अंक विभाजन : 40 अंक

  • प्रोजेक्ट/एक्टीविटी वर्क : 10 अंक
  • विद्यार्थी का सामाजिक योगदान : 10 अंक
  • स्थिति आधारित मौखिक परीक्षा : 10 अंक
  • पाठ्य-पुस्तक पर आधारित क्रिया : 10 अंक

पाठ्यक्रम

  • पाठ 1 शरीर की सफ़ाई
  • पाठ 2 स्व: नियंत्रण
  • पाठ 3 बुजुर्गों से प्रेम तथा धन्यवाद
  • पाठ 4 हमारी कीमती ज़िन्दगी की सुरक्षा
  • पाठ 5 पशुओं के प्रति नैतिकता
  • पाठ 6 निर्णय लेना
  • पाठ 7 खेल भावना
  • पाठ 8 स्कूल तथा सार्वजनिक सम्पत्तियों का सम्मान
  • पाठ 9 लिंग समानता

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

Punjab State Board PSEB 8th Class Punjabi Book Solutions Punjabi Rachana ਲੇਖ-ਰਚਨਾ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 8th Class Punjabi Rachana ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿਚ ਲੇਖ ਕਿਵੇਂ ਲਿਖੀਏ ? :

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿਚ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਚਾਰ ਜਾਂ ਪੰਜ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਸੇ ਇਕ ਵਿਸ਼ੇ ਉੱਪਰ ਲੇਖ ਲਿਖਣ ਲਈ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇਗਾ ।
ਲੇਖ ਲਿਖਣ ਲਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਦਾ ਧਿਆਨ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ-
1. ਗਿਆਨ ਅਤੇ ਵਿਚਾਰ :
ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿਚ ਲੇਖ ਲਿਖਣਾ ਆਰੰਭ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਇਹ ਦੇਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਪੇਪਰ ਵਿਚ ਜਿਹੜੇ ਵਿਸ਼ੇ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਗਿਆਨ ਤੇ ਵਾਕਫ਼ੀ ਕਿਸ ਬਾਰੇ ਹੈ । ਉਹ ਜਿਸ ਵਿਸ਼ੇ ਬਾਰੇ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਵਿਚਾਰ ਪੇਸ਼ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੋਵੇ, ਉਸ ਨੂੰ ਉਸੇ ਵਿਸ਼ੇ ਉੱਤੇ ਹੀ ਲੇਖ ਲਿਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗਿਆਨ ਤੇ ਵਾਕਫ਼ੀ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨ ਲਈ ਆਮ ਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਪੁਸਤਕਾਂ, ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ, ਰਸਾਲੇ ਤੇ ਲੇਖਾਂ ਦੀਆਂ ਪੁਸਤਕਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਪੜ੍ਹਦੇ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

2. ਲਿਖਣ ਦਾ ਢੰਗ :
ਲੇਖ ਲਿਖਣ ਦਾ ਉਹੋ ਢੰਗ ਹੀ ਚੰਗਾ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਦਾ ਧਿਆਨ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਹੋਵੇ-

(ੳ) ਆਦਿ, ਮੱਧ ਤੇ ਅੰਤ :
ਲੇਖ ਦਾ ਆਦਿ (ਆਰੰਭ) ਵਿਸ਼ੇ ਸੰਬੰਧੀ ਸੰਖੇਪ ਜਿਹੀ ਤੇ ਭਾਵਪੂਰਤ ਜਾਣਕਾਰੀ ਨਾਲ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਲੇਖ ਦੀ ‘ਪ੍ਰਸਤਾਵਨਾ” ਜਾਂ “ਭੂਮਿਕਾ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਲੇਖ ਦਾ ਆਰੰਭ ਚੰਗਾ ਕਰ ਲਵੇ, ਤਾਂ ਸਮਝੋ ਅੱਧਾ ਲੇਖ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ।

ਲੇਖ ਦੇ ਮੱਧ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪੱਖਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਲੇਖ ਦਾ ਇਹ ਭਾਗ ਆਰੰਭ ਤੇ ਅੰਤ ਨਾਲੋਂ ਵੱਡਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਲੇਖ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਸਮੁੱਚੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸਿੱਟਾ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਲੇਖ ਦਾ ਇਹ ਭਾਗ ਬਹੁਤ ਹੀ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

(ਅ) ਲੜੀਬੱਧਤਾ ;
ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਲੇਖ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਨੂੰ ਲੜੀਬੱਧ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪੇਸ਼ ਕਰੇ। ਉਸ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਉਗੜ-ਦੁਗੜੇ ਤੇ ਬੇ-ਤਰਤੀਬੇ ਨਹੀਂ ਹੋਣੇ ਚਾਹੀਦੇ । ਭਾਵ ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ ਦੇ ਲਾਭ ਤੇ ਹਾਨੀਆਂ ਲਿਖਦੇ ਸਮੇਂ ਇਹ ਨਹੀਂ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਕਿ ਕਦੇ ਉਸ ਦਾ ਲਾਭ ਲਿਖਿਆ ਜਾਵੇ ਤੇ ਕਦੀ ਹਾਨੀ, ਸਗੋਂ ਲਾਭ ਇਕ ਲੜੀ ਵਿਚ ਲਿਖਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਤੇ ਹਾਨੀਆਂ ਦੂਜੀ ਲੜੀ ਵਿਚ । ਫਿਰ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਲਾਭ ਪਹਿਲਾਂ ਲਿਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਛੋਟਾ ਲਾਭ ਮਗਰੋਂ ।

(ੲ) ਬੋਲੀ ਤੇ ਸ਼ਬਦ ਚੋਣ :
ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਲੇਖ ਸਰਲ ਅਤੇ ਸੌਖੀ ਬੋਲੀ ਵਿਚ ਲਿਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੇ ਭਾਵਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਢੁੱਕਵੇਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨੂੰ ਚੁਣ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

(ਸ) ਵਾਕ ਤੇ ਪੈਰੇ-ਲੇਖ ਛੋਟੇ ; ਛੋਟੇ ਤੇ ਭਾਵ-ਪੂਰਤ ਵਾਕਾਂ ਨਾਲ ਲਿਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਜਿੱਥੋਂ ਨਵਾਂ ਵਿਚਾਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਵੇ, ਉੱਥੋਂ ਨਵਾਂ ਪੈਰਾ ਬਣਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

(ਹ) ਹਵਾਲੇ ਤੇ ਟੂਕਾਂ : ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਬਣਾਉਣ ਤੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਲਈ ਮਹਾਂਪੁਰਖਾਂ ਦੇ ਕਥਨਾਂ ਤੇ ਕਵਿਤਾ ਦੀਆਂ ਸਤਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

(ਕ) ਸ਼ਬਦ-ਜੋੜ ਤੇ ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ : ਲੇਖ ਲਿਖਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਸ਼ਬਦ-ਜੋੜਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ-ਪੂਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਠੀਕ-ਠੀਕ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ !

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

1. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ

ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਗਟਿਆ, ਮਿਟੀ ਧੁੰਧ ਜਗਿ ਚਾਨਣ ਹੋਆ ॥
ਜਿਉ ਕਰਿ ਸੂਰਜੁ ਨਿਕਲਿਆ, ਤਾਰੇ ਛਪਿ ਅੰਧੇਰ ਪਲੋਆ ॥ (ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ)

ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ :
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖਧਰਮ ਦੇ ਮੋਢੀ ਸਨ । ਆਪ ਦਾ ਜਨਮ ਪਿਤਾ15 ਅਪਰੈਲ, 1469 ਈ: ਨੂੰ ਰਾਏ ਭੋਇੰ ਦੀ ਤਲਵੰਡੀ (ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ, ਪਾਕਿਸਤਾਨ) ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ ।ਉਂਝ ਆਪ ਦਾ ਜਨਮ-ਦਿਨ ਕੱਤਕ ਦੀ ਪੂਰਨਮਾਸ਼ੀ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਦੀ ਰਵਾਇਤ ਹੈ । ਆਪ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਸੀ । ਆਪ ਦੀ ਮਾਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਜੀ ਸੀ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਸਮਕਾਲੀ ਹਾਲਤ-ਵਿੱਦਿਆ-ਸੱਚਾਸੌਦਾ-ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਵਿਚ-ਵੇਈਂ ਵੇਸ਼-ਚਾਰ ਉਦਾਸੀਆਂ-ਸਰਬ-ਸਾਂਝੇ ਗੁਰੂ-ਬਾਣੀ-ਨਿਡਰ ਦੇਸ਼-ਭਗਤ-ਹਿਸਤੀ-ਅੰਤਿਮ ਸਮਾਂ ॥)

ਸਮਕਾਲੀ ਹਾਲਤ :
ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਆਪ ਸੰਸਾਰ ਵਿਚ ਆਏ, ਉਸ ਸਮੇਂ ਹਰ ਪਾਸੇ ਜਬਰਜ਼ੁਲਮ ਹੋ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਰਾਜੇ ਬਘਿਆੜਾਂ ਦਾ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰ ਚੁੱਕੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਅਮੀਰ-ਵਜ਼ੀਰ ਕੁੱਤਿਆਂ ਦਾ ਰੂਪ ਧਾਰ ਕੇ ਜਨਤਾ ਦਾ ਲਹੂ ਪੀ ਰਹੇ ਸਨ । ਧਰਮ ਵਿਚ ਪਾਖੰਡ ਤੇ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਉਚ-ਨੀਚ ਤੇ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦਾ ਜ਼ੋਰ ਸੀ । ਇਸ ਅਵਸਥਾ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਆਪ ਦੀ ਬਾਣੀ ਵਿਚ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ
ਕਲਿ ਕਾਤੀ ਰਾਜੇ ਕਾਸਾਈ ਧਰਮੁ ਪੰਖ ਕਰਿ ਉਡਰਿਆ ।
ਕੂੜ ਅਮਾਵਸ ਸਚੁ ਚੰਦਰਮਾ ਦੀਸੈ ਨਾਹੀਂ ਕਹਿ ਚੜਿਆ ।

ਵਿੱਦਿਆ : ਸੱਤ ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਆਪ ਨੂੰ ਪਾਂਧੇ ਕੋਲ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ । ਆਪ ਨੇ ਪਾਂਧੇ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰ ਦੱਸ ਕੇ ਨਿਹਾਲ ਕੀਤਾ ।

ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ :
ਜਵਾਨ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਆਪ ਦਾ ਮਨ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦੀ ਇੱਛਾ ਦੇ ਉਲਟ ਘਰ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਨਾ ਲੱਗਾ । ਇਕ ਵਾਰ ਆਪ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਆਪ ਨੂੰ 20 ਰੁਪਏ ਦੇ ਕੇ ਕੋਈ ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜਿਆ, ਪਰ ਆਪ ਉਹ 20 ਰੁਪਏ ਸੰਤਾਂ-ਸਾਧਾਂ ਦੇ ਭੋਜਨ ਉੱਤੇ ਖ਼ਰਚ ਕਰ ਆਏ । ਇਸ ਗੱਲ ਕਰਕੇ ਪਿਤਾ ਕਾਲੁ ਆਪ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਗੁੱਸੇ ਹੋਏ ।

ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਵਿਚ :
ਪੁੱਤਰ ਨੂੰ ਘਰ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਤੇ ਵਪਾਰ ਵਿਚ ਦਿਲਚਸਪੀ ਨਾ ਲੈਂਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਅੰਤ ਪਿਤਾ ਕਾਲੂ ਨੇ ਆਪ ਨੂੰ ਆਪ ਦੀ ਭੈਣ ਬੇਬੇ ਨਾਨਕੀ ਕੋਲ ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ । ਇੱਥੇ ਆਪ ਨੇ ਨਵਾਬ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਦਾ ਮੋਦੀਖ਼ਾਨਾ ਚਲਾਇਆ ।

ਵੇਈਂ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ :
ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਵਿਚ ਹੀ ਇਕ ਦਿਨ ਆਪ ਵੇਈਂ ਨਦੀ ਵਿਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਗਏ ਤੇ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਅਲੋਪ ਰਹੇ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਆਪ ਨੂੰ ਨਿਰੰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਸੰਸਾਰ ਦਾ ਕਲਿਆਣ ਕਰਨ ਦਾ ਸੁਨੇਹਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ । ਆਪ ਨੇ ਨਾਅਰਾ ਦਿੱਤਾ, “ਨਾ ਕੋਈ ਹਿੰਦੂ, ਨਾ ਮੁਸਲਮਾਨ ।

ਚਾਰ ਉਦਾਸੀਆਂ :
ਇਸ ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ ਆਪ ਨੇ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਤਾਰਨ ਲਈ ਪੁਰਬ, ਦੱਖਣ, ਉੱਤਰ ਤੇ ਪੱਛਮ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਉਦਾਸੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਤੇ ਸੰਸਾਰ ਨੂੰ ਸੱਚ ਦਾ ਉਪਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਹੀ ਆਪ ਨੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ (ਪਾਕਿਸਤਾਨ) ਵਸਾਇਆ ।

ਸਰਬ-ਸਾਂਝੇ ਗੁਰੂ :
ਗੁਰੁ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਜੀਵਨ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਕਰਾਮਾਤਾਂ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹਨ । ਆਪ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਹਰ ਇਕ ਦੇ ਮਨ ਉੱਪਰ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ । ਆਪ ‘ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਗੁਰੂ ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਪੀਰ’ ਕਹਾਏ । ਆਪ ਨੇ ਭੇਖ, ਪਾਖੰਡ ਤੇ ਕਰਮ-ਕਾਂਡ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ ਤੇ ਨੇਕ ਅਮਲਾਂ ਅਤੇ ਉੱਚੇ ਆਚਰਨ ਉੱਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ । ਆਪ ਨੇ ਇਸਤਰੀ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਉੱਚਾ ਦਰਜਾ ਦਿੰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ-
ਸੋ ਕਿਉ ਮੰਦਾ ਆਖੀਐ, ਜਿਤੁ ਜੰਮੇ ਰਾਜਾਨੁ ॥

ਮਹਾਨ ਕਵੀ ਤੇ ਸੰਗੀਤਕਾਰ :
ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਇਕ ਮਹਾਨ ਕਵੀ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤਕਾਰ ਸਨ । ਆਪ ਦੀ ਬਾਣੀ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੁ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਦਰਜ ਹੈ । ‘ਜਪੁਜੀ’ ਤੇ ‘ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ’ ਆਪ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਬਾਣੀਆਂ ਹਨ ।

ਨਿਡਰ ਦੇਸ਼-ਭਗਤ :
ਆਪ ਇਕ ਨਿਡਰ ਦੇਸ਼-ਭਗਤ ਸਨ । ਆਪ ਨੇ ਬਾਬਰ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਬੜੀ ਨਿਡਰਤਾ ਨਾਲ ਅਵਾਜ਼ ਉਠਾਈ ਤੇ ਰੱਬ ਨੂੰ ਇਸ ਦਾ ਉਲਾਹਮਾ ਦਿੰਦੇ ਹੋਏ ਕਿਹਾ-
“ਏਤੀ ਮਾਰ ਪਈ ਕੁਰਲਾਣੈ, ਤੈਂ ਕੀ ਦਰਦੁ ਨ ਆਇਆ ।

ਹਿਸਤ ਜੀਵਨ : ਆਪ ਹਿਸਤੀ ਸਨ । ਆਪ ਦੇ ਘਰ ਦੋ ਸਪੁੱਤਰ ਬਾਬਾ ਸ੍ਰੀ ਚੰਦ ਤੇ ਬਾਬਾ ਲਖਮੀ ਦਾਸ ਹੋਏ । ਆਪ ਨੇ ਗ੍ਰਹਿਸਤ ਧਰਮ ਨੂੰ ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਨਾਲੋਂ ਉੱਤਮ ਦੱਸਿਆ ।

ਅੰਤਿਮ ਸਮਾਂ :
ਆਪ ਨੇ ਆਪਣਾ ਅੰਤਿਮ ਸਮਾਂ ਕਰਤਾਰਪੁਰ (ਪਾਕਿਸਤਾਨ) ਵਿਚ ਗੁਜ਼ਾਰਿਆ । ਇੱਥੇ ਆਪ ਨੇ ਸਤਿਸੰਗ ਤੇ ਸਾਂਝੇ ਲੰਗਰ ਦਾ ਪਰਵਾਹ ਚਲਾਇਆ । ਇੱਥੇ ਹੀ ਆਪ ਨੇ ਆਪਣੀ ਗੱਦੀ ਦਾ ਵਾਰਸ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਨੂੰ ਚੁਣਿਆ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਸੁਸ਼ੋਭਿਤ ਕੀਤਾ । 22 ਸਤੰਬਰ, 1539 ਈ: ਨੂੰ ਆਪ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਖੇ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

2. ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ

ਦਸਵੇਂ ਗੁਰੂ ਤੇ ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀ :
ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਦਸਵੇਂ ਗੁਰੂ ਹੋਏ ਹਨ । ਆਪ ਸੰਤ-ਸਿਪਾਹੀ ਸਨ ! ਆਪ ਨੇ ਜ਼ੁਲਮ ਦਾ । ਨਾਸ਼ ਕਰਨ ਲਈ ਭਗਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ । ਵਰਤੋਂ ਨੂੰ ਜਾਇਜ਼ ਦੱਸਿਆ ! ਆਪ ਨੇ ਦੱਬੇ ਕੁਚਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਤਲਵਾਰ ਤੇ ਦੇ- ਧਾਰਾ ਖੰਡਾ ਫੜਾਇਆ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਗਿੱਦੜਾਂ । ਤੋਂ ਸ਼ੇਰ ਬਣਾਇਆ । ਆਪ ਮਹਾਨ ਕਵੀ, ਬਹਾਦਰ ਜਰਨੈਲ ਤੇ ਦੁਖੀਆਂ ਦੇ ਦੁੱਖ ਦੂਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸਨ । ਆਪ ਦੇ ਵਿਅਕਤਿੱਤਵ ਦੀ ਮਹਿਮਾ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਕਵੀ ਗੁਰਦਾਸ ਸਿੰਘ ਲਿਖਦਾ ਹੈ-
ਵਾਹੁ ਪ੍ਰਗਟਿਉ ਮਰਦ ਅਗੰਮੜਾ ਵਰਿਆਮ ਇਕੇਲਾ ।
ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਆਪੇ ਗੁਰੂ ਚੇਲਾ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਦਸਵੇਂ ਗੁਰੂ ਤੇ ਸੰਤ-ਸਿਪਾਹੀ-ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ-ਬਚਪਨ-ਪਿਤਾ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ-ਸਿੱਖ ਕੌਮ ਨੂੰ ਇਕ-ਮੁੱਠ ਕਰਨਾ- ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਸਾਜਨਾ-ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨਾਲ ਯੁੱਧ-ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ-ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣਾ ॥)

ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ : ਪਿਤਾ ; ਆਪ ਦਾ ਜਨਮ 1666 ਈ: ਵਿਚ ਪਟਨਾ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਮਾਤਾ ਗੁਜਰੀ ਜੀ ਦੀ ਕੁੱਖੋਂ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਆਪ ਦੇ ਪਿਤਾ ਸਨ ।

ਮੁੱਢਲਾ ਜੀਵਨ :
ਬਾਲ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮੁੱਢਲੇ 4 ਸਾਲ ਪਟਨੇ ਵਿਚ ਬਿਤਾਏ ! ਆਪ ਆਪਣੇ ਹਾਣੀਆਂ ਨਾਲ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਚੋਜ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਆਪ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਬਣਾ ਕੇ ਇਕ ਦੂਸਰੇ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਨਕਲੀ ਲੜਾਈਆਂ ਕਰਦੇ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

ਆਨੰਦਪੁਰ ਆਉਣਾ : 1672 ਈ: ਵਿਚ ਆਪ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਪਟਨੇ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਆਨੰਦਪੁਰ ਆ ਗਏ । ਇੱਥ ਆਪ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸ਼ਸਤਰ ਵਿੱਦਿਆ ਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿੱਦਿਆ ਦਿੱਤੀ ।

ਪਿਤਾ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ :
ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਨੇ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਅੱਤ ਚੁੱਕੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਹਿੰਦੂ ਜਨਤਾ ਉਸ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਤੰਗ ਆਈ ਹੋਈ ਸੀ । ਕਸ਼ਮੀਰੀ ਨੂੰ ਦੁਖੀ ਹੋ ਕੇ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕੋਲ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਆਏ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਆਪ ਕੇਵਲ 9 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਸਨ । ਆਪ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕੁਰਬਾਨੀ ਦੇਣ ਲਈ ਦਿੱਲੀ ਭੇਜਿਆ ।

ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਸਾਜਨਾ :
ਪਿਤਾ ਜੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ ਆਪ ਨੇ ਸਿੱਖ ਕੌਮ ਨੂੰ ਇਕ-ਮੁੱਠ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਸ਼ਸਤਰ ਵਿੱਦਿਆ ਦੇਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ । 1699 ਈ: ਵਿਚ ਵਿਸਾਖੀ ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਆਪ ਨੇ ਆਨੰਦਪੁਰ ਵਿਚ ਇਕ ਭਾਰੀ ਇਕੱਠ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਦੀਵਾਨ ਵਿਚ ਪੰਜ ਵਾਰ ਇਕ-ਇਕ ਸਿਰ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ। ਪੰਜ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਮੰਗ ਪੂਰੀ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਛਕਾਇਆ ਅਤੇ ‘ਪੰਜ ਪਿਆਰਿਆਂ ਦੀ ਪਦਵੀ ਦਿੱਤੀ । ਪਿੱਛੋਂ ਆਪ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਤੋਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਛਕਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਪ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖੀ ਤੇ ਕਿਹਾ-
ਸਵਾ ਲਾਖ ਸੇ ਏਕ ਲੜਾਊਂ!
ਤਬੈ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਨਾਮ ਕਹਾਊਂ ।

ਲੜਾਈਆਂ ਤੇ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ :
ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਤੇ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨਾਲ ਕਈ ਲੜਾਈਆਂ ਲੜਨੀਆਂ ਪਈਆਂ । ਆਪ ਦੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨੂੰ ਹਰ ਥਾਂ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਦੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਇਹਨਾਂ ਲੜਾਈਆਂ ਸਮੇਂ ਆਪ ਨੂੰ ਆਨੰਦਪੁਰ ਛੱਡਣਾ ਪਿਆ । ਆਪ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲੋਂ ਵਿਛੜ ਗਏ । ਆਪ ਦੇ ਦੋ ਛੋਟੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਨੂੰ ਸਰਹੰਦ ਦੇ ਨਵਾਬ ਨੇ ਨੀਹਾਂ ਵਿਚ ਚਿਣਵਾ ਦਿੱਤਾ । ਮਾਤਾ ਗੁਜਰੀ ਜੀ ਨੇ ਕੈਦ ਵਿਚ ਜਾਨ ਦੇ ਦਿੱਤੀ । ਦੋ ਵੱਡੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦੇ ਚਮਕੌਰ ਦੀ ਜੰਗ ਵਿਚ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ । ਇੰਨਾ ਕੁੱਝ ਹੋਣ ਤੇ ਵੀ ਆਪ ਨੇ ਹੌਂਸਲਾ ਨਾ ਛੱਡਿਆ । ਆਪ ਸਾਰੀ ਸਿੱਖ ਕੌਮ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਪਰਿਵਾਰ ਸਮਝਦੇ ਸਨ ਆਪ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਇਹਨਾਂ ਸਤਰਾਂ ਵਿਚ ਅੰਕਿਤ ਹੈ-
ਦੇਹਿ ਸ਼ਿਵਾ ਬਰ ਮੋਹਿ ਇਹੈ ਸ਼ੁਭ ਕਰਮਨ ਤੇ ਕਬਹੂੰ ਨਾ ਟਰੋਂ ॥
ਨਾ ਡਰੋਂ ਅਰੁ ਸੋ ਜਬ ਜਾਇ ਲਰੋਂ ਨਿਸਚੈ ਕਰਿ ਅਪਨੀ ਜੀਤ ਕਰੋਂ ॥
ਅਰ ਸਿਖਹੁ ਅਪਨੇ ਹੀ ਮਨ ਕਉ ਇਹ ਲਾਲਚ ਹਉਂ ਗੁਨ ਤਉ ਉਚਰੋਂ।
ਜਬ ਆਬ ਕੀ ਅਉਧ ਨਿਦਾਨ ਬਨੈ ਅਤਿ ਹੀ ਰਣ ਮੈਂ ਤਬ ਜੂਝ ਮਰੋਂ।

ਅੰਤਿਮ ਸਮਾਂ :
ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਪਿੱਛੋਂ ਆਪ ਨੰਦੇੜ (ਦੱਖਣ) ਪੁੱਜੇ । ਇੱਥੇ ਆਪ ਨੇ ਬੰਦਾ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਸਿੱਖ ਕੌਮ ਦਾ ਆਗੂ ਥਾਪ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਵਲ ਭੇਜਿਆ 1708 ਈ: ਵਿਚ ਆਪ ਇੱਥੇ ਹੀ ਜੋਤੀਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

3. ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ

ਰਾਸ਼ਟਰ-ਪਿਤਾ :
ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਭਾਰਤ ਦੇ ਰਾਸ਼ਟਰ-ਪਿਤਾ ਹਨ | ਆਪ ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਲਈ ਘੋਲ ਕੀਤਾ | ਆਪ ਅਹਿੰਸਾ ਦੇ ਅਵਤਾਰ ਸਨ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਰਾਸ਼ਟਰ-ਪਿਤਾ-ਜਨਮ ‘ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ-ਵਿੱਦਿਆ-ਵਕਾਲਤ-ਦੱਖਣੀ ਅਫ਼ਰੀਕਾ ਵਿਚ-ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ-ਅਛੂਤ-ਉੱਧਾਰ-ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੇ ਆਗੂ ॥)

ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ :
ਆਪ ਦਾ ਜਨਮ 2 ਅਕਤੂਬਰ, 1869 ਈ: ਨੂੰ ਪੋਰਬੰਦਰ (ਕਾਠੀਆਵਾੜ) ਗੁਜਰਾਤ ਵਿਚ ਹੋਇਆ । ਆਪ ਦਾ ਪੂਰਾ ਨਾਂ ਮੋਹਨ ਦਾਸ ਕਰਮ ਚੰਦ ਗਾਂਧੀ ਸੀ । ਆਪ ਦੇ ਪਿਤਾ ਕਰਮ ਚੰਦ ਪੋਰਬੰਦਰ ਦੀ ਰਾਜਕੋਟ ਰਿਆਸਤ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਰਹੇ ਸਨ । ਆਪ ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਹੀ ਬੜੇ ਸਾਦੇ ਤੇ ਕੋਮਲ ਸੁਭਾ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ । ਆਪ ਸਦਾ ਸੱਚ ਬੋਲਦੇ ਸਨ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦਾ ਪਾਲਣ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਵਿੱਦਿਆ : ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬੀ. ਏ. ਦੀ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਪਾਸ ਕਰ ਕੇ ਆਪ ਨੇ ਵਲਾਇਤ ਤੋਂ ਬੈਰਿਸਟਰੀ ਦੀ ਡਿਗਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ।

ਵਕਾਲਤ : ਵਲਾਇਤ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਆ ਕੇ ਆਪ ਨੇ ਵਕਾਲਤ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ! ਪਰ ਇਸ ਕੰਮ ਵਿਚ ਆਪ ਨੂੰ ਕੋਈ ਖ਼ਾਸ ਸਫਲਤਾ ਨਾ ਹੋਈ ਕਿਉਂਕਿ ਆਪ ਝੂਠ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਦੂਰ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਆਪ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਦਿੱਤਾ ।

ਦੱਖਣੀ ਅਫ਼ਰੀਕਾ ਵਿਚ :
1893 ਈ: ਵਿਚ ਆਪ ਇਕ ਮੁਕੱਦਮੇ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਦੱਖਣੀ ਅਫ਼ਰੀਕਾ ਗਏ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਦੱਖਣੀ ਅਫ਼ਰੀਕਾ ਵਿਚ ਰਹਿ ਰਹੇ ਭਾਰਤੀਆਂ ਨੂੰ ਬੜੀ ਘਿਣਾ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦੇ ਸਨ । ਆਪ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਕ-ਮੁੱਠ ਕਰ ਕੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਘੋਲ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਤੇ ਕਾਫ਼ੀ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ।

ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੇ ਆਗੂ ਬਣਨਾ :
ਭਾਰਤ ਆ ਕੇ ਆਪ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅਜ਼ਾਦ ਕਰਾਉਣ ਦਾ ਨਿਸਚਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਆਪ ਨੇ ਕਾਂਗਰਸ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਵਾਗ-ਡੋਰ ਸੰਭਾਲ ਕੇ ਘੋਲ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਆਪ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ 31 ਦਸੰਬਰ, 1929 ਈ: ਨੂੰ ਕਾਂਗਰਸ ਨੇ ਪੂਰਨ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਆਪ ਕਈ ਵਾਰ ਜੇਲ੍ਹ ਵੀ ਗਏ । 1930 ਈ: ਵਿਚ ਆਪ ਨੇ ਲੂਣ ਦਾ ਸਤਿਆਗ੍ਰਹਿ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਆਪ ਦਾ ਡਾਂਡੀ ਮਾਰਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ।

1942 ਈ: ਵਿਚ ਆਪ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ‘ਭਾਰਤ ਛੱਡੋ’ ਲਹਿਰ ਚਲਾਈ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਆਪ ਸਮੇਤ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕਾਂਗਰਸੀ ਆਗੂਆਂ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਆਪ ਹਿੰਸਾ ਦੇ ਸਖ਼ਤ ਵਿਰੋਧੀ ਸਨ । ਆਪ ਨੇ ਸਭ ਲਹਿਰਾਂ ਸ਼ਾਂਤ ਰਹਿ ਕੇ ਚਲਾਈਆਂ । ਆਪ ਦੇ ਅਹਿੰਸਾਮਈ ਅੰਦੋਲਨ ਦੀ ਲੋਕ-ਪ੍ਰਿਅਤਾ ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਇਹਨਾਂ ਲੋਕ-ਗੀਤਾਂ ਵਿਚੋਂ ਵੀ ਪ੍ਰਗਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ-
(ਉ) ਦੇਹ ਚਰਖੇ ਨੂੰ ਗੇੜਾ, ਲੋੜ ਨਹੀਂ ਤੋਪਾਂ ਦੀ ।
(ਅ) ਤੇਰੇ ਬੰਬਾਂ ਨੂੰ ਚੱਲਣ ਨਹੀਂ ਦੇਣਾ, ਗਾਂਧੀ ਦੇ ਚਰਖੇ ਨੇ ॥
(ੲ) ਖੱਟਣ ਗਿਆ ਸੀ, ਕਮਾਉਣ ਗਿਆ ਸੀ,
ਖੱਟ-ਖੱਟ ਕੇ ਲਿਆਂਦੀ ਜਾਂਦੀ ।
ਗੋਰੇ ਸਾਰੇ ਨੱਸ ਜਾਣਗੇ, ਰਾਜ ਕਰੇਗਾ ਗਾਂਧੀ ।

ਭਾਰਤੀ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ :
ਅੰਤ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ 15 ਅਗਸਤ, 1947 ਈ: ਨੂੰ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਅਜ਼ਾਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਵੰਡ ਹੋਈ ਤੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਬਣਿਆ, ਜਿਸ ਤੇ ਆਪ ਖ਼ੁਸ਼ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਹੋਏ ਫ਼ਿਰਕੂ ਫ਼ਸਾਦਾਂ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਆਪ ਬਹੁਤ ਦੁਖੀ ਹੋਏ । | ਅਛੂਤ-ਉੱਧਾਰ-ਆਪ ਅਛੂਤ-ਉੱਧਾਰ ਦੇ ਬਹੁਤ ਹਾਮੀ ਸੀ ਅਤੇ ਆਪ ਨੇ ਜਾਤ-ਪਾਤ ਤੇ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦੇ ਭੇਦ-ਭਾਵ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਸਿਰਤੋੜ ਯਤਨ ਕੀਤੇ ।

ਸ਼ਹੀਦੀ :
30 ਜਨਵਰੀ, 1948 ਈ: ਦੀ ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਜਦੋਂ ਆਪ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ ਤੋਂ ਪਰਤ ਰਹੇ ਸਨ, ਤਾਂ ਇਕ ਸਿਰਫਿਰੇ ਨੌਜਵਾਨ ਨੱਥੂ ਰਾਮ ਗੌਡਸੇ ਨੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੋਲੀਆਂ ਨਾਲ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦਾ ਪੁੰਜ ਹਿੰਸਾ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਕੇ ਸਾਥੋਂ ਸਦਾ ਲਈ ਵਿਛੜ ਗਿਆ ਪਰ ਜਾਂਦਾ ਹੋਇਆ ਸਾਡੇ ਲਈ ਪਿਆਰ, ਏਕਤਾ ਤੇ ਸਾਂਝੀਵਾਲਤਾ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਛੱਡ ਗਿਆ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

4. ਪੰਡਿਤ ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ

ਜਨਨੀ ਜਨੇ ਤਾਂ ਭਗਤ ਜਨ,
ਯਾ ਦਾਤਾ ਯਾ ਸੂਰ ।
ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਜਨਨੀ ਬਾਂਝ ਰਹਹਿ,
ਕਾਹੇ ਗਵਾਵੈ ਨੂਰ । (ਕਬੀਰ)

ਮਹਾਨ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ : ਪੰਡਿਤ ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਅਜ਼ਾਦ ਭਾਰਤ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸਨ । ਆਪ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਲਈ ਬਹੁਤ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਆਪ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਉੱਘੇ ਆਗੂ ਸਨ । ਦੇਸ਼-ਭਗਤੀ ਦਾ ਜਜ਼ਬਾ ਆਪ ਨੂੰ ਵਿਰਸੇ ਵਿਚ ਮਿਲਿਆ ਸੀ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਮਹਾਨ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ-ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ-ਵਿੱਦਿਆ-ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਲਹਿਰ ਵਿਚ ਕੁੱਦਣਾ-ਅਜ਼ਾਦ ਭਾਰਤ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ-ਭਾਰਤ ਦੀ ਨਵ-ਉਸਾਰੀ-ਅਮਨ ਦਾ ਦੇਵਤਾ-ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਪਿਆਰ-ਮਹਾਨ ਲੇਖਕ-ਚਲਾਣਾ ॥)

ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ :
ਪੰਡਿਤ ਨਹਿਰੂ ਦਾ ਜਨਮ 14 ਨਵੰਬਰ, 1889 ਈ: ਨੂੰ ਅਲਾਹਾਬਾਦ ਵਿਚ ਉੱਘੇ ਵਕੀਲ ਤੇ ਦੇਸ਼-ਭਗਤ ਪੰਡਿਤ ਮੋਤੀ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਦੇ ਘਰ ਹੋਇਆ । ਨਹਿਰੂ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਬਹੁਤ ਅਮੀਰ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਆਪ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਬੜੇ ਸੁੱਖਾਂ ਵਿਚ ਹੋਈ ।

ਵਿੱਦਿਆ : ਆਪ ਨੇ ਮੁੱਢਲੀ ਵਿੱਦਿਆ ਘਰ ਵਿਚ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉੱਚੀ ਵਿੱਦਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਇੰਗਲੈਂਡ ਗਏ । ਇੱਥੋਂ ਆਪ ਨੇ ਬੈਰਿਸਟਰੀ ਦੀ ਡਿਗਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ।

ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਲਹਿਰ ਵਿਚ ਕੁੱਦਣਾ :
ਇੰਗਲੈਂਡ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਵਾਪਸ ਪਰਤ ਕੇ ਆਪ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣ ਲੱਗੇ ।1920 ਈ: ਵਿਚ ਜਦੋਂ ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਨੇ ਨਾ-ਮਿਲਵਰਤਨ ਲਹਿਰ ਚਲਾਈ, ਤਾਂ ਨਹਿਰੁ ਜੀ ਨੇ ਪਰਿਵਾਰ ਸਮੇਤ ਇਸ ਲਹਿਰ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ 1930 ਈ: ਵਿਚ ਪੰਡਿਤ ਨਹਿਰੁ ਕਾਂਗਰਸ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਚੁਣੇ ਗਏ । ਕਾਂਗਰਸ ਨੇ ਪੰਡਿਤ ਨਹਿਰੂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਦੇਸ਼ ਲਈ ਪੂਰਨ ਅਜ਼ਾਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦਾ ਮਤਾ ਪਾਸ ਕੀਤਾ । ਆਪ ਕਈ ਵਾਰ ਜੇਲ਼ ਵੀ ਗਏ । ਆਪ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚ ਹੀ ਸਨ ਕਿ ਆਪ ਦੀ ਪਤਨੀ ਸ੍ਰੀਮਤੀ ਕਮਲਾ ਦੇਵੀ ਚਲਾਣਾ ਕਰ ਗਈ ।

ਅਜ਼ਾਦ ਭਾਰਤ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ : ਅੰਤ 15 ਅਗਸਤ, 1947 ਈ: ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋ ਗਿਆ । ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੋ ਟੋਟੇ ਹੋ ਗਏ । ਆਪ ਅਜ਼ਾਦ ਭਾਰਤ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਬਣੇ ।

ਭਾਰਤ ਦੀ ਨਵ-ਉਸਾਰੀ :
ਪੰਡਿਤ ਨਹਿਰੂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਸਦੀਆਂ ਦੀ ਗੁਲਾਮੀ ਦੇ ਲਿਤਾੜੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਨਵ-ਉਸਾਰੀ ਦਾ ਕੰਮ ਆਰੰਭ ਹੋਇਆ । ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਹਰ ਪੱਖੋਂ ਨਵਾਂ ਰੂਪ ਦੇਣ ਤੇ ਦੇਸ਼-ਵਾਸੀਆਂ ਦੀ ਤਕਦੀਰ ਬਦਲਣ ਲਈ ਆਪ ਨੇ ਦਿਨ-ਰਾਤ ਇਕ ਕਰ ਕੇ ਕੰਮ ਕੀਤਾ । ਪੰਜ-ਸਾਲਾ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਬਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਤੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਉੱਨਤੀ ਦੇ ਕੰਮ ਆਰੰਭ ਹੋਏ ।

ਅਮਨ ਦਾ ਦੇਵਤਾ :
ਆਪ ਨੇ ਨਿਰਪੱਖ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਨੀਤੀ ਨਾਲ ਹਰ ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਵਧਾਈ । ਆਪ ਜੰਗ ਦੇ ਵਿਰੋਧੀ ਅਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੇ ਪੁਜਾਰੀ ਸਨ । ਆਪ ਨੇ ਸੰਸਾਰ ਵਿਚ ਅਮਨ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਪੰਚ-ਸ਼ੀਲ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ।

ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਪਿਆਰ :
ਪੰਡਿਤ ਨਹਿਰੂ ਦੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਦੇਸ਼-ਵਾਸੀਆਂ ਪ੍ਰਤੀ ਅਥਾਹ ਪਿਆਰ ਸੀ । ਉਹ ਮਨੁੱਖਾਂ ਨਾਲ ਕੀ, ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕਿਣਕੇ-ਕਿਣਕੇ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਬੱਚੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ‘ਚਾਚਾ ਨਹਿਰੁ ਆਖ ਕੇ ਪੁਕਾਰਦੇ ਸਨ । ਪੰਡਿਤ ਨਹਿਰੂ ਦਾ ਜਨਮ-ਦਿਨ, 14 ਨਵੰਬਰ, ‘ਬਾਲ ਦਿਵਸ’ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਮਹਾਨ ਲੇਖਕ :
ਪੰਡਿਤ ਨਹਿਰੂ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਮਹਾਨ ਆਗੂ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਇਕ ਉੱਚੇ ਦਰਜੇ ਦੇ ਲਿਖਾਰੀ ਵੀ ਸਨ । ‘ਪਿਤਾ ਵਲੋਂ ਧੀ ਨੂੰ ਚਿੱਠੀਆਂ’, ‘ਆਤਮ-ਕਥਾ’ ਤੇ ‘ਭਾਰਤ ਦੀ ਖੋਜ` ਆਪ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਰਚਨਾਵਾਂ ਹਨ ।

ਚਲਾਣਾ-ਭਾਰਤ :
ਵਾਸੀਆਂ ਦਾ ਇਹ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਨੇਤਾ 27 ਮਈ, 1964 ਈ: ਨੂੰ ਦਿਲ ਦੀ ਧੜਕਣ ਬੰਦ ਹੋਣ ਨਾਲ ਅੱਖਾਂ ਮੀਟ ਗਿਆ । ਆਪ ਦੀ ਮੌਤ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਸੁਣ ਕੇ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਉੱਤੇ ਸੋਗ ਦੇ ਬੱਦਲ ਛਾ ਗਏ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਭਾਰਤ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦਾ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਂਡ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਗਿਆ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

5. ਸ਼ਹੀਦ ਸ: ਭਗਤ ਸਿੰਘ

ਭਾਰਤ ਦਾ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਭਰਪੂਰ ਇਤਿਹਾਸ :
ਭਾਰਤ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇਸ਼- ਭਗਤੀ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੈ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਦੇ ਕਾਇਮ ਹੋਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ, ਸ਼ਿਵਾ ਜੀ ਤੇ ਰਾਣਾ ਪ੍ਰਤਾਪ ਵਰਗਿਆਂ ਦੇ ਦੇਸ਼-ਭਗਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨਾਮਿਆਂ ਨੂੰ ਕੌਣ ਭੁਲਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ? ਜਦੋਂ ਦੇਸ਼ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ, , ਤਾਂ 1857 ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 1947 ਈ: ਤਕ ਦੇਸ਼ਭਗਤਾਂ ਨੇ ਲਗਾਤਾਰ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਸ: ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਵੀ ਉਹਨਾਂ ਸਿਰਲੱਥ ਸੂਰਮਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਸੀ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਭਾਰਤ ਦਾ ਦੇਸ਼-ਭਗਤਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਇਤਿਹਾਸ-ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ-ਜਲਿਆਂ ਵਾਲੇ ਬਾਗ਼ ਦੇ ਦੁਖਾਂਤ ਦਾ ਅਸਰ-ਨੌਜਵਾਨ ਭਾਰਤ ਸਭਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ-ਸਾਂਡਰਸ ਦਾ ਕਤਲ-ਅਸੈਂਬਲੀ ਵਿਚ ਬੰਬ-ਮਕੱਦਮਾ ਤੇ ਫਾਂਸੀ-ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵਿਰੋਧੀ ਘੋਲ ਦਾ ਤੇਜ਼ ਹੋਣਾ )

ਜਨਮ ਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ :
ਸ: ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪਿਤਾ ਸ: ਕਿਸ਼ਨ ਸਿੰਘ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਉੱਘੇ ਲੀਡਰ ਸਨ । ‘ਪਗੜੀ ਸੰਭਾਲ ਜੱਟਾ’ ਲਹਿਰ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਆਗੂ ਸ: ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜਲਾਵਤਨ ਉਸ ਦਾ ਚਾਚਾ ਸੀ । ਸ: ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਜਨਮ 28 ਸਤੰਬਰ, 1907 ਈ: ਨੂੰ ਚੱਕ ਨੰਬਰ 105, ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਲਾਇਲਪੁਰ (ਪਾਕਿਸਤਾਨ) ਵਿਚ ਹੋਇਆ । ਖਟਕੜ ਕਲਾਂ (ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ) ਉਸ ਦਾ ਜੱਦੀ ਪਿੰਡ ਸੀ ।

ਜਲ੍ਹਿਆਂ ਵਾਲੇ ਬਾਗ਼ ਦੇ ਦੁਖਾਂਤ ਦਾ ਅਸਰ :
ਬਚਪਨ ਵਿਚ ਜਲ੍ਹਿਆਂ ਵਾਲੇ ਬਾਗ਼ ਦੇ ਖੂਨੀ ਕਾਂਡ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਅਸਰ ਪਾਇਆ ਤੇ ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਲਈ ਨਫ਼ਰਤ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਈ ।

ਨੌਜਵਾਨ ਭਾਰਤ ਸਭਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ :
ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਲਹਿਰ ਤੇ ਨਾ-ਮਿਲਵਰਤਨ ਲਹਿਰ ਸਮੇਂ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੈਸ਼ਨਲ ਕਾਲਜ, ਲਾਹੌਰ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਦਾ ਸੀ । 1925 ਈ: ਵਿਚ ਭਗਤ ਸਿੰਘ, ਸੁਖਦੇਵ, ਭਗਵਤੀ ਚਰਨ ਤੇ ਧਨਵੰਤੀ ਆਦਿ ਨੇ ਨੌਜਵਾਨ ਭਾਰਤ ਸਭਾ ਬਣਾਈ ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਘੋਲ ਆਰੰਭ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਸਾਂਡਰਸ ਦਾ ਕਤਲ :
ਫਿਰ ਸ. ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਕਾਤਲ ਮਿ: ਸਕਾਟ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਸਕਾਟ ਦੀ ਥਾਂ ਸਾਂਡਰਸ ਮੋਟਰ ਸਾਈਕਲ ਉੱਤੇ ਘਰ ਨੂੰ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਰਾਜਗੁਰੂ ਤੇ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਗੋਲੀਆਂ ਨਾਲ ਉਹ ਚਿੱਤ ਹੋ ਗਿਆ । ਉਹ ਗੋਲੀਆਂ ਚਲਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਕਾਲਜ ਵਿਚੋਂ ਬਚ ਕੇ ਨਿਕਲ ਗਏ ।

ਅਸੈਂਬਲੀ ਵਿਚ ਬੰਬ :
8 ਅਪਰੈਲ, 1929 ਈ: ਨੂੰ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਬੀ. ਕੇ. ਦੱਤ ਨੇ ਦਿੱਲੀ ਦੀ ਵੱਡੀ ਅਸੈਂਬਲੀ ਵਿਚ ਧਮਾਕੇ ਵਾਲੇ ਦੋ ਬੰਬ ਸੁੱਟੇ । ਸਭ ਪਾਸੇ ਜਾਨ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਭਗਦੜ ਮਚ ਗਈ । ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਦੱਤ ਉੱਥੋਂ ਭੱਜੇ ਨਾ, ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਇਨਕਲਾਬ ਦੇ ਨਾਅਰੇ ਲਾਉਂਦਿਆਂ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰੀ ਦੇ ਦਿੱਤੀ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਅਸੈਂਬਲੀ ਵਿਚ ਬੰਬ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਲਈ ਨਹੀਂ ਸਨ ਸੁੱਟੇ, ਸਗੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਕੰਨ ਖੋਲ੍ਹਣ ਲਈ ਸੁੱਟੇ ਸਨ ।

ਮੁਕੱਦਮਾ ਤੇ ਫਾਂਸੀ :
ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਮੁਕੱਦਮੇ ਦਾ ਡਰਾਮਾ ਰਚ ਕੇ ਬੰਬ ਸੁੱਟਣ ਦੇ ਦੋਸ਼ ਵਿਚ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਬੀ. ਕੇ. ਦੱਤ ਨੂੰ ਉਮਰ ਕੈਦ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ਤੇ ਸਾਂਡਰਸ ਦੇ ਕਤਲ ਦੇ ਮੁਕੱਦਮੇ ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਬਣਾਈ ਸਪੈਸ਼ਲ ਅਦਾਲਤ ਨੇ ਭਗਤ ਸਿੰਘ, ਸੁਖਦੇਵ ਤੇ ਰਾਜਗੁਰੂ ਨੂੰ ਫਾਂਸੀ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਸੁਣਾਈ । ਆਪ ਨੇ ਮੁਕੱਦਮੇ ਸਮੇਂ ਬੜੀ ਨਿਡਰਤਾ ਦਾ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤਾ ਤੇ ਆਮ ਕਰ ਕੇ ਆਪ ਗਾਇਆ ਕਰਦੇ ਸਨ :

ਸਰਫ਼ਰੋਸ਼ੀ ਕੀ ਤਮੰਨਾ ਅਬ ਹਮਾਰੇ ਦਿਲ ਮੇਂ ਹੈ ।
ਦੇਖਨਾ ਹੈ ਜ਼ੋਰ ਕਿਤਨਾ ਬਾਜ਼ੂਏ ਕਾਤਿਲ ਮੇਂ ਹੈ ।

ਇਸ ਸਮੇਂ ਲੋਕ ਬੜੇ ਜੋਸ਼ ਵਿਚ ਸਨ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਡਰਦਿਆਂ 23 ਮਾਰਚ, 1931 ਈ: ਨੂੰ ਰਾਤ ਵੇਲੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਫਾਂਸੀ ਲਾਇਆ ਤੇ ਲਾਸ਼ਾਂ ਵਾਰਸਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਪਿਛਲੇ ਪਾਸਿਓਂ ਚੋਰ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਥਾਣੀ ਕੱਢ ਕੇ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਲੈ ਗਏ । ਤਿੰਨਾਂ ਦੀ ਇਕੱਠੀ ਚਿਖਾ ਬਣਾ ਕੇ ਤੇ ਮਿੱਟੀ ਦਾ ਤੇਲ ਪਾ ਕੇ ਅੱਗ ਲਾ ਦਿੱਤੀ । ਅੱਧ-ਸੜੀਆਂ ਲਾਸ਼ਾਂ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਦਰਿਆ ਸਤਲੁਜ ਵਿਚ ਰੋੜ ਦਿੱਤੀਆਂ ।

ਅੰਗਰੇਜ਼-ਵਿਰੋਧੀ ਘੋਲ ਦਾ ਹੋਰ ਤੇਜ਼ ਹੋਣਾ :
ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਦੀ ਇਸ ਕੁਰਬਾਨੀ ਨੇ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਜਗਾ ਦਿੱਤਾ ਤੇ ਲੋਕ ਅਜ਼ਾਦੀ ਲੈਣ ਲਈ ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕੱਢਣ ਲਈ ਹੋਰ ਵੀ ਜ਼ੋਰ ਨਾਲ ਘੋਲ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ਉਸ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਦਿਆਂ ਹੀ ਪੰਜਾਬੀ ਦਾ ਕਵੀ ਗੁਰਮੁਖ ਸਿੰਘ ਮੁਸਾਫ਼ਰ ਉਸ ਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ ਭੇਟ ਕਰਦਾ ਹੈ-

ਚਮਕਦਾਰ ਚੰਨਾ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਦਿਆ, ਭਾਰਤ ਮਾਂ ਦੇ ਤਾਰਿਆ ਭਗਤ ਸਿੰਘਾ !
ਦਹੀਂ ਤੇਲ ਦੇ ਨਾਲ ਸੁਆਰ ਵਟਣਾ, ਲਿਆ ਮਲ ਕੁਆਰਿਆ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ।
ਲਾੜੀ ਮੌਤ ਦੇ ਨਾਲ ਵਿਆਹ ਕੀਤਾ, ਵਾਹ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਲਾੜਿਆ ਭਗਤ ਸਿੰਘਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

6. ਦੀਵਾਲੀ

ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਤਿਉ ਹਾਰ-ਭਾਰਤ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਦਾ ਦੇਸ਼ ਹੈ । ਕੁੱਝ ਤਿਉਹਾਰ ਸਾਡੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਵਿਰਸੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹਨ ਅਤੇ ਕੁੱਝ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਰਸੇ ਨਾਲ । ਕਈਆਂ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਰੱਤਾਂ ਨਾਲ ਹੈ, ਕਈਆਂ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨਾਲ ਅਤੇ ਕਈਆਂ ਦਾ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਅਤੇ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨਾਲ ਹੈ । ਦੀਵਾਲੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਹਰ ਸਾਲ ਮਨਾਇਆ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਇਕ ਅਜਿਹਾ ਹੀ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਭਾਰਤ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਵਿਰਸੇ ਨਾਲ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਤਿਉਹਾਰ ਘਰਾਂ ਦੀ ਸਫ਼ਾਈ-ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਿਛੋਕੜ-ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਚਾ ਤੇ ਉਮਾਹ-ਦੀਪਮਾਲਾ ਤੇ ਆਤਸ਼ਬਾਜ਼ੀ-ਲੱਛਮੀ ਦੀ ਪੂਜਾ-ਪਵਿੱਤਰ ਰੱਖਣ ਦੀ ਲੋੜ ॥

ਘਰਾਂ ਦੀ ਸਫ਼ਾਈ :
ਦੀਵਾਲੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਚੜ੍ਹਦੇ ਸਿਆਲ ਵਿਚ ਕੱਤਕ ਦੀ ਮੱਸਿਆ ਨੂੰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਘਰਾਂ ਦੀ ਸਫ਼ਾਈ ਆਰੰਭ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਮਕਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਫ਼ੈਦੀ ਤੇ ਰੰਗ ਕਰਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਿਛੋਕੜ :
ਇਸ ਤਿਉਹਾਰ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਉਸ ਦਿਨ ਨਾਲ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮ ਚੰਦਰ ਜੀ 14 ਸਾਲਾਂ ਦਾ ਬਨਵਾਸ ਕੱਟ ਕੇ ਤੇ ਰਾਵਣ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ ਵਾਪਸ ਅਯੁੱਧਿਆ ਪਰਤੇ ਸਨ । ਉਸ ਦਿਨ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਦੀਪਮਾਲਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ਤੇ ਉਸ ਦਿਨ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਅੱਜ ਵੀ ਇਹ ਤਿਉਹਾਰ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਿਨ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਨਾਲ ਵੀ ਹੈ । ਇਸ ਦਿਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਛੇਵੇਂ ਗੁਰੂ ਹਰਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਜਹਾਂਗੀਰ ਦੀ ਨਜ਼ਰਬੰਦੀ ਤੋਂ ਰਿਹਾ ਹੋ ਕੇ ਆਏ ਸਨ ! ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਦੀਵਾਲੀ ਦੇਖਣ-ਯੋਗ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਲਈ ਇਹ ਅਖਾਣ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ-
ਦਾਲ ਰੋਟੀ ਘਰ ਦੀ, ਦੀਵਾਲੀ ਅੰਬਰਸਰ ਦੀ ।

ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਚਾ ਤੇ ਉਮਾਹ :
ਦੀਵਾਲੀ ਦੇ ਦਿਨ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਬੜਾ ਚਾ ਤੇ ਉਮਾਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਬਜ਼ਾਰ ਸਜੇ-ਫ਼ਬੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਪਟਾਕਿਆਂ, ਮਠਿਆਈਆਂ ਤੇ ਖਿਡੌਣਿਆਂ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਸਜੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਲੋਕ ਪਟਾਕੇ, ਮਠਿਆਈਆਂ, ਖਿਡੌਣੇ ਤੇ ਸਜਾਵਟ ਦਾ ਸਮਾਨ ਖ਼ਰੀਦਦੇ ਹਨ । ਬੱਚੇ ਨਵੇਂ ਕੱਪੜੇ ਪਾਈ ਪਟਾਕੇ ਚਲਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਦੀਪਮਾਲਾ ਤੇ ਆਤਸ਼ਬਾਜ਼ੀ :
ਹਨੇਰਾ ਹੋਣ ਤੇ ਲੋਕ ਆਪਣੇ-ਆਪਣੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਦੀਪਮਾਲਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਕੋਈ ਦੀਵੇ ਜਗਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਮੋਮਬੱਤੀਆਂ ਅਤੇ ਕੋਈ ਬਿਜਲੀ ਦੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗੇ ਲਾਟੂ ਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗੇ ਬਲਬਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜੀਆਂ । ਚਾਰ-ਚੁਫੇਰਾ ਚਾਨਣ ਨਾਲ ਭਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਲੋਕ ਮੰਦਰਾਂ ਅਤੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਵਿਚ ਰੌਸ਼ਨੀ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਮੱਥਾ ਟੇਕਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਚਾਰੇ ਪਾਸਿਓਂ ਪਟਾਕੇ ਚੱਲਣ ਦੀਆਂ ਅਵਾਜ਼ਾਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਅਸਮਾਨਾਂ ਵਲ ਚੜ ਰਹੀਆਂ ਆਤਸ਼ਬਾਜ਼ੀਆਂ ਤੇ ਹਵਾਈਆਂ ਹਨੇਰੇ ਵਿਚ ਰੰਗ-ਬਰੰਗੇ ਚੰਗਿਆੜੇ ਕੱਢ ਕੇ ਤੇ ਅੱਗ ਦੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗੇ ਫੁੱਲਾਂ ਦੀ ਵਰਖਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਵਾਤਾਵਰਨ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਹੀ ਦਿਲ-ਖਿੱਚਵਾਂ ਬਣਾ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਲੱਛਮੀ ਦੀ ਪੂਜਾ :
ਇਸ ਰਾਤ ਲੋਕ ਭਾਂਤ-ਭਾਂਤ ਦੀਆਂ ਮਠਿਆਈਆਂ ਤੇ ਹੋਰ ਮਨ-ਭਾਉਂਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਖਾਂਦੇ ਹਨ । ਸਾਰੀ ਰਾਤ ਲੱਛਮੀ ਦੀ ਪੂਜਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਲੋਕ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਖੁੱਲ੍ਹੇ ਰੱਖਦੇ ਹਨ, ਤਾਂ ਜੋ ਲੱਛਮੀ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਘਰ ਆ ਸਕੇ ।

ਪਵਿੱਤਰ ਰੱਖਣ ਦੀ ਲੋੜ :
ਦੀਵਾਲੀ ਦੀ ਰਾਤ ਨੂੰ ਕਈ ਲੋਕ ਸ਼ਰਾਬਾਂ ਪੀਂਦੇ, ਜੂਆ ਖੇਡਦੇ ਤੇ ਟੂਣੇ ਆਦਿ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਬਹੁਤ ਬੁਰੀ ਗੱਲ ਹੈ ।ਇਹ ਗੱਲਾਂ ਨਾ ਨੈਤਿਕ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਚੰਗੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਤੌਰ ‘ਤੇ । ਸਾਨੂੰ ਇਹਨਾਂ ਬੁਰਾਈਆਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਯਤਨ ਕਰਨੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਤੇ ਦੀਵਾਲੀ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰ ਨੂੰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪਵਿੱਤਰ ਬਣਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

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7. ਦੁਸਹਿਰਾ

ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਤਿਉਹਾਰ-ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਤੇ ਮੇਲਿਆਂ ਦਾ ਦੇਸ਼ ਹੈ । ਦੁਸਹਿਰਾ ਭਾਰਤ ਦਾ ਇਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਪੁਰਾਣਾ ਤੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਦੀਵਾਲੀ ਤੋਂ 20 ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇ ਖਾ- ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਤਿਉਹਾਰ-ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਿਛੋਕੜ-ਰਾਮ ਲੀਲ੍ਹਾ-ਰਾਵਣ ਦਾ ਪੁਤਲਾ ਸਾੜਨ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼-ਮਠਿਆਈਆਂ ਖ਼ਰੀਦਣਾ-ਮਹਾਨਤਾ ॥

ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਿਛੋਕੜ :
ਦੁਸਹਿਰੇ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਵੀ ਦੀਵਾਲੀ ਵਾਂਗ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮ ਚੰਦਰ ਜੀ ਨਾਲ ਹੈ। ਇਸ ਦਿਨ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮ ਚੰਦਰ ਨੇ ਲੰਕਾ ਦੇ ਰਾਜੇ ਰਾਵਣ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ ਆਪਣੀ ਪਤਨੀ ਸੀਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਮੁੜ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਦਿਨ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਹਰ ਸਾਲ ਇਹ ਤਿਉਹਾਰ ਬੜੀ ਧੂਮ-ਧਾਮ ਨਾਲ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਰਾਮ-ਲੀਲ੍ਹਾ :
ਦੁਸਹਿਰੇ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਨੌਂ ਨਰਾਤੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਸਾਡੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਥਾਂ-ਥਾਂ ਰਾਮ-ਲੀਲ੍ਹਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਲੋਕ ਬੜੇ ਉਮਾਹ ਨਾਲ ਅੱਧੀ-ਅੱਧੀ ਰਾਤ ਤਕ ਰਾਮ-ਲੀਲ੍ਹਾ ਵੇਖਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਲੋਕ ਰਾਮ-ਬਨਵਾਸ, ਭਰਤ-ਮਿਲਾਪ, ਸੀਤਾ-ਹਰਨ, ਹਨੂੰਮਾਨ ਦੇ ਲੰਕਾ ਸਾੜਨ ਅਤੇ ਲਛਮਣ-ਮੁਰਛਾ ਆਦਿ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਬੜੀ ਦਿਲਚਸਪੀ ਨਾਲ ਦੇਖਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਦਿਨ ਸਮੇਂ ਬਜ਼ਾਰਾਂ ਵਿਚ ਰਾਮ-ਲੀਲ੍ਹਾ ਦੀਆਂ ਝਾਕੀਆਂ ਵੀ ਨਿਕਲਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਰਾਵਣ ਨੂੰ ਸਾੜਨ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ :
ਦਸਵੀਂ ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਕਿਸੇ ਖੁੱਲ੍ਹੇ ਥਾਂ ਵਿਚ ਰਾਵਣ, ਮੇਘਨਾਦ ਅਤੇ ਕੁੰਭਕਰਨ ਦੇ ਬਾਂਸਾਂ ਤੇ ਕਾਗਜ਼ ਦੇ ਬਣੇ ਪੁਤਲੇ ਗੱਡ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਆਲੇਦੁਆਲੇ ਮਠਿਆਈਆਂ ਤੇ ਖਿਡੌਣਿਆਂ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਸਜ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਦੂਰ-ਨੇੜੇ ਦੇ ਲੋਕ ਰਾਵਣ ਨੂੰ ਸਾੜਨ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਦੇਖਣ ਲਈ ਟੁੱਟ ਪੈਂਦੇ ਹਨ । ਲੋਕ ਪੰਡਾਲ ਵਿਚ ਚਲ ਰਹੀ ਆਤਸ਼ਬਾਜ਼ੀ ਤੇ ਠਾਹ-ਠਾਹ ਚਲਦੇ ਪਟਾਕਿਆਂ ਦਾ ਆਨੰਦ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਰਾਮ ਲੀਲਾ ਦੀ ਅੰਤਿਮ ਝਾਕੀ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਰਾਵਣ, ਸ੍ਰੀ ਰਾਮਚੰਦਰ ਹੱਥੋਂ ਮਾਰਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਹੁਣ ਸੁਰਜ ਛਿਪਣ ਵਾਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਰਾਵਣ ਸਮੇਤ ਸਾਰੇ ਪੁਤਲਿਆਂ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਹਫ਼ੜਾ-ਦਫ਼ੜੀ ਮਚ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਘਰਾਂ ਵਲ ਚਲ ਪੈਂਦੇ ਹਨ । ਕਈ ਲੋਕ ਰਾਵਣ ਦੇ ਪੁਤਲੇ ਦੇ ਅੱਧ-ਜਲੇ ਬਾਂਸ ਵੀ ਚੁੱਕ ਕੇ ਨਾਲ ਲੈ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਮਠਿਆਈਆਂ ਖ਼ਰੀਦਣਾ :
ਵਾਪਸੀ ਤੇ ਲੋਕ ਬਜ਼ਾਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘਦੇ ਹੋਏ ਮਠਿਆਈ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਦੁਆਲੇ ਭੀੜਾਂ ਪਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਭਾਂਤ-ਭਾਂਤ ਦੀ ਮਠਿਆਈ ਖ਼ਰੀਦ ਕੇ ਘਰਾਂ ਨੂੰ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਫਿਰ ਰਾਤੀਂ ਖਾ ਪੀ ਕੇ ਸੌਂਦੇ ਹਨ ।

ਮਹਾਨਤਾ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੁਸਹਿਰਾ ਬੜਾ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਤੇ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ । ਇਹ ਭਾਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਆਪਣੇ ਧਾਰਮਿਕ ਤੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਵਿਰਸੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸਤਿਕਾਰ ਨੂੰ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

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8. ਵਿਸਾਖੀ ਦਾ ਅੱਖੀਂ ਡਿੱਠਾ ਮੇਲਾ
ਜਾਂ
ਕਿਸੇ ਪੇਂਡੂ ਮੇਲੇ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼

ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੇਲੇ-ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰੁੱਤਾਂ, ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਉਤਸਵਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮੇਲੇ ਲਗਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਹ ਪੰਜਾਬੀ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਵਿਚ ਬੜੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਤੇ ਰੰਗੀਨੀ ਪੈਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਇੰਨੇ ਹਰਮਨ-
ਪਿਆਰੇ ਹਨ ਕਿ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖਣ ਦਾ ਚਾ ਲੋਕ-ਗੀਤਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਅੰਕਿਤ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-
(ਉ) ਮੇਰਾ ਕੱਲੀ ਦਾ ਜੀ ਨਹੀਂ ਲਗਦਾ, ਵੇ ਲੈ ਚਲ ਮੇਲੇ ਨੂੰ ।
(ਅ) ਚਲ ਚਲੀਏ ਜਰਗ ਦੇ ਮੇਲੇ, ਮੁੰਡਾ ਤੇਰਾ ਮੈਂ ਚੁੱਕ ਲਊਂ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੇਲੇ-ਹਾੜੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ-ਮੇਲਾ ਦੇਖਣ ਜਾਣਾ-ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਿਛੋਕੜ-ਮੇਲੇ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼- ਮਠਿਆਈਆਂ, ਖਿਡੌਣੇ, ਤਮਾਸ਼ੇ-ਭੰਗੜਾ ਤੇ ਮੈਚ-ਲੜਾਈ ਤੇ ਵਾਪਸੀ )

ਹਾੜ੍ਹੀ ਪੱਕਣ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ :
ਵਿਸਾਖੀ ਦਾ ਮੇਲਾ ਹਰ ਸਾਲ 13 ਅਪਰੈਲ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਥਾਂ-ਥਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਤਿਉਹਾਰ ਹਾੜੀ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਪੱਕਣ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਮੇਲਾ ਦੇਖਣ ਜਾਣਾ :
ਸਾਡੇ ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਦੋ ਕੁ ਮੀਲ ਦੀ ਵਿੱਥ ਤੇ ਵਿਸਾਖੀ ਦਾ ਮੇਲਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ । ਐਤਕੀਂ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨਾਲ ਮੇਲਾ ਵੇਖਣ ਲਈ ਗਿਆ । ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਬੱਚੇ, ਬੁੱਢੇ ਤੇ ਨੌਜਵਾਨ ਮੇਲਾ ਵੇਖਣ ਲਈ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਨਵੇਂ ਕੱਪੜੇ ਪਾਏ ਹੋਏ ਸਨ । ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਕੁੱਝ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਣਕ ਦੀ ਵਾਢੀ ਦਾ ਸ਼ਗਨ ਕਰਦਿਆਂ ਵੀ ਦੇਖਿਆ । ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਪੀਲੀਆਂ ਕਣਕਾਂ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਹੀਆਂ ਸਨ, ਜਿਵੇਂ ਖੇਤਾਂ ਵਿਚ ਸੋਨਾ ਵਿਛਿਆ ਹੋਵੇ ।

ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਿਛੋਕੜ :
ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਵਿਸਾਖੀ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਇਕ ਪੁਰਾਣਾ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ । ਆਮ ਕਰਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਹਾੜ੍ਹੀ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਦੇ ਪੱਕਣ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅੱਜ ਇਸ ਤਿਉਹਾਰ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਮਹਾਨ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨਾਲ ਜੁੜ ਚੁੱਕਾ ਹੈ । ਇਸ ਮਹਾਨ ਦਿਨ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਸਾਜਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਇਸੇ ਦਿਨ ਹੀ ਜ਼ਾਲਮ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜਨਰਲ ਡਾਇਰ ਨੇ ਜਲ੍ਹਿਆਂ ਵਾਲਾ ਬਾਗ਼ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਚ ਨਿਹੱਥੇ ਲੋਕਾਂ ਉੱਪਰ ਗੋਲੀ ਚਲਾਈ ਸੀ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ ।

ਮੇਲੇ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ :
ਇਹ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦਿਆਂ ਹੀ ਅਸੀਂ ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਪਹੁੰਚ ਗਏ । ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਵਾਜੇ ਵੱਜਣ, ਢੋਲ ਖੜਕਣ, ਪੰਘੂੜਿਆਂ ਦੇ ਚੀਕਣ ਤੇ ਕੁੱਝ ਲਾਉਡ-ਸਪੀਕਰਾਂ ਦੀ ਅਵਾਜ਼ ਸੁਣਾਈ ਦੇ ਰਹੀ ਸੀ । ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਭੀੜ-ਭੜੱਕਾ ਅਤੇ ਰੌਲਾ-ਰੱਪਾ ਸੀ । ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਮਠਿਆਈਆਂ, ਖਿਡੌਣਿਆਂ ਤੇ ਹੋਰ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਸਜੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ । ਅਸੀਂ ਮਠਿਆਈ ਦੀ ਇਕ ਦੁਕਾਨ ਉੱਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਤੱਤੀਆਂ-ਤੱਤੀਆਂ ਜਲੇਬੀਆਂ ਖਾਧੀਆਂ । ਸਾਡੇ ਨੇੜੇ ਹੀ ਕੁੱਝ ਬੰਦੇ ਮਠਿਆਈਆਂ ਤੇ ਪਕੌੜੇ ਆਦਿ ਖਾ ਰਹੇ ਸਨ ।

ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਨਜ਼ਾਰੇ :
ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਬੱਚੇ ਤੇ ਕੁੜੀਆਂ ਪੰਘੂੜੇ ਝੂਟ ਰਹੇ ਸਨ । ਮੈਂ ਵੀ ਪੰਘੂੜੇ ਵਿਚ ਝੂਟੇ ਲਏ ਤੇ ਫਿਰ ਜਾਦੂਗਰ ਦੇ ਖੇਲ਼ ਦੇਖੇ । ਜਾਦੂਗਰ ਨੇ ਸੌ ਦਾ ਨੋਟ ਸਾੜ ਕੇ ਮੁੜ ਉਸੇ ਨੰਬਰ ਦਾ ਨੋਟ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ । ਫਿਰ ਉਸ ਨੇ ਤਾਸ਼ ਦੇ ਕਈ ਖੇਲ ਦਿਖਾਏ ।

ਇਹਨਾਂ ਨਜ਼ਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਦੇਖਦਿਆਂ ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਵੀ ਧਨੀ ਰਾਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਦੀਆਂ ਵਿਸਾਖੀ ਦੇ ਮੇਲੇ ਦੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਨੂੰ ਬਿਆਨ ਕਰਦੀਆਂ ਇਹ ਸਤਰਾਂ ਮੇਰੇ ਕੰਨਾਂ ਵਿਚ ਗੂੰਜਣ ਲੱਗੀਆਂ-

ਥਾਂਈਂ-ਥਾਂਈਂ ਖੇਡਾਂ ਤੇ ਪੰਘੂੜੇ ਆਏ ਨੇ ।
ਜੋਗੀਆਂ, ਮਦਾਰੀਆਂ ਤਮਾਸ਼ੇ ਲਾਏ ਨੇ ।
ਵੰਝਲੀ, ਲੰਗੋਜ਼ਾ, ਕਾਂਟੋ, ਤੂੰਬਾ ਵੱਜਦੇ ।
ਛਿੰਝ ਵਿਚ ਸੂਰੇ ਪਹਿਲਵਾਨ ਗੱਜਦੇ ।
ਕੱਠਾ ਹੋ ਕੇ ਆਇਆ ਰੌਲਾ ਸਾਰੇ ਜੱਗ ਦਾ ।
ਭੀੜ ਵਿਚ ਮੋਢੇ ਨਾਲ ਮੋਢਾ ਵੱਜਦਾ ।
ਕੋਹਾਂ ਵਿਚ ਮੇਲੇ , ਨੇ ਜ਼ਮੀਨ ਮੱਲੀ ਏ ।
ਚੱਲ ਨੀ ਪਰੇਮੀਏ, ਵਿਸਾਖੀ ਚੱਲੀਏ ।

ਭੰਗੜਾ ਤੇ ਮੈਚ :
ਅਸੀਂ ਥਾਂ-ਥਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਭੰਗੜਾ ਪਾਉਂਦੇ, ਬੜ੍ਹਕਾਂ ਮਾਰਦੇ ਤੇ ਬੋਲੀਆਂ ਪਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਦੇਖਿਆ । ਜਿਉਂ-ਜਿਉਂ ਦਿਨ ਬੀਤ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਮੇਲੇ ਦੀ ਭੀੜ ਵਧਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ । ਇਕ ਪਾਸੇ ਅਸੀਂ ਫੁੱਟਬਾਲ ਦਾ ਮੈਚ ਵੀ ਦੇਖਿਆ ।

ਲੜਾਈ ਤੇ ਵਾਪਸੀ :
ਇੰਨੇ ਨੂੰ ਸੂਰਜ ਛਿਪ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਇਕ ਪਾਸੇ ਬੜੀ ਖੁੱਪ ਜਿਹੀ ਪੈ ਗਈ । ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਜਲਦੀ ਨਾਲ ਮੇਲੇ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲਣ ਦੀ ਕੀਤੀ । ਨੇੜੇ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਤੋਂ ਅਸੀਂ ਕਾਹਲੀ-ਕਾਹਲੀ ਘਰਦਿਆਂ ਲਈ ਮਠਿਆਈ ਖ਼ਰੀਦੀ ਅਤੇ ਪਿੰਡ ਦਾ ਰਸਤਾ ਫੜ ਲਿਆ । ਕਾਫ਼ੀ ਹਨੇਰੇ ਹੋਏ ਅਸੀਂ ਘਰ ਪਹੁੰਚੇ ।

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9. ਲੋਹੜੀ

ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਦਾ ਦੇਸ਼-ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਜੀਵਨ ਮੇਲਿਆਂ ਅਤੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੈ । ਸਾਲੇ ਵਿਚ ਸ਼ਾਇਦ ਹੀ ਕੋਈ ਅਜਿਹਾ ਮਹੀਨਾ ਹੋਵੇਗਾ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਨਾਂ ਕੋਈ ਤਿਉਹਾਰੇ ਨਾਂ ਆਉਂਦਾ ਹੋਵੇ । ਲੋਹੜੀ ਵੀ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਇਕ ਖ਼ੁਸ਼ੀਆਂ ਭਰਿਆਂ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ, ਜੋ ਜਨਵਰੀ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਮਾਘੀ ਤੋਂ ਇਕ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ | ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਲੈੱਖਾਂ-ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਦੀ ਦੇਸ਼-ਲੋਹੜੀ ਸ਼ਬਦ-ਪਰੰਪਰਾਂ-ਲੋਕ-ਕਬਾ-ਫ਼ੈਸਲੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ-ਲੋਹੜੀ ਮੰਗਣਾਂ-ਭੈਣਾਂ ਲਈ ਲੋਹੜੀ-ਮੁੰਡੇ ਦੇ ਜਨਮ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ )

ਲੋਹੜੀ ਸ਼ਬਦੇ :
ਲੋਹੜੀ ਸ਼ਬਦ ਤਿਲ + ਰੋੜੀ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਬਣਿਆ ਹੈ, ਜੋ ਸਮਾਂ ਪਾ ਕੇ ‘ਤਿਲੋੜੀ ਤੇ ਫਿਰ “ਲੋਹੜੀ ਬਣਿਆਂ ਹੈ । ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਇਸ ਨੂੰ “ਲੋਹੀ’ ਜਾਂ ‘ਲੋਈ ਵੀ ‘ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

‘ਪਰੰਪਰਾਂ :
ਲੋਹੜੀ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰ ਦੀ ਪਰੰਪਰਾ ਬਹੁਤ ਪੁਰਾਣੀ ਹੈ । ਵੈਦਿਕ ਕਾਲ ਵਿਚ ਹੀ ਰਿਸ਼ੀ ਲੋਕ ਦੇਵਤਿਆਂ ਨੂੰ ਖੁਸ਼ ਕਰਨ ਲਈ ਹਵਨ ਕਰਦੇ ਸੋਨੇ । ਇਸ ਧਾਰਮਿਕ ਕੰਮ ਵਿਚ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਬੰਦੇ ਹੋਵਨ ਵਿਚ ਓ, ਸ਼ਹਿਦ, ਤਿਲੇ ਅਤੇ ਗੁੜੇ ਆਦਿ ਪਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਇਸੇ ਤਿਉਹਾਰੇ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਕਥਾਵਾਂ ਵੀ ਜੋੜੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਕ ਕਥਾ ਅਨੁਸਾਰ ਲੋਹੜੀ ਦੇਵੀ ਨੇ ਇਕ ਅੱਤਿਆਚਾਰੀ ਰਾਕਸ਼ੇ ਨੂੰ ਮਾਰਿਆ ਤੇ ਉਸੇ ਦੇਵੀ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਇਹ ਤਿਉਹਾਰ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਿਉਹਾਰ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਪੌਰਾਣਿਕ ਕਥਾ ‘ਸਤੀ-ਦਹਿਨ’ ਨਾਲ ਵੀ ਜੋੜਿਆਂ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਲੋਕ-ਕਥਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ :
ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਇਸ ਨਾਲ ਇਕ ਹੋਰ ਲੋਕ-ਕਥਾ ਵੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ, ਜੋ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹੈ ।ਕਿਸੇ ਗ਼ਰੀਬ ਬਾਹਮਣੇ ਦੀ ਸੁੰਦਰੀ ਨਾਂ ਦੀ ਧੀ ਸੀ । ਬਾਹਮਣ ਨੇ ਉਸ ਦੀ ਕੁੜਮਾਈ ਇਕ ਥਾਂ ਪੱਕੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ, ਪਰੰਤੂ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਦੁਸ਼ਟ ਹਾਕਮ ਨੇ ਕੁੜੀ ਦੀ ਸੁੰਦਰਤਾਂ ਬਾਰੇ ਸੁਣ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਠਾਣ ਲਈ । ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਉੜੀ ਦੇ ਬਾਪ ਨੇ ਮੁੰਡੇ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਕੁੜੀ ਨੂੰ ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਆਪਣੇ ਘਰ ਲੈ ਜਾਣ, ਪਰ ਮੁੰਡੇ ਵਾਲੇ ਡੱਰੇ , ਗਏ । ਜਦੋਂ ਕੁੜੀ ਦੇ ਬਾਪ ਨਿਰਾਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਵਾਪਸ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਤਾਂ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਉਸ ਨੂੰ ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਡਾਕੂ ਮਿਲਿਆਂ । ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਦੀ ਰਾਮ-ਕਹਾਣੀ ਸੁਣ ਕੇ ਉਸ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਮੱਦਦ ਕਰਨ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਧੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਧੀ ਬਣਾ ਕੇ ਵਿਆਹੁਣ ਦਾ ਭਰੋਸਾ ਦਿੱਤਾ । ਉਹ ਮੁੰਡੇ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਘਰ ਗਿਆ ਤੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਸਾਰੇ ਬੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲ ਕੇ ਉਸ ਨੇ ਰਾਤ ਵੇਲੇ ਜੰਗਲ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਲੈ ਕੇ ਕੁੜੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸ਼ੀਬੀਬ ਬਾਹਮਣੇ ਦੀ ਧੀ ਕੱਪੜੇ ਵਿਆਹ ਸੀਮੇਂ ਵੀ ਫਟੇ-ਪੁਰਾਣੇ ਨੇ । ਦੁੱਲੇ ਭੱਟੀ ਦੇ ਕੋਲ ਉਸੇ ਸਮੇਂ ਕੇਵਲ ਸ਼ੱਕ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਉਹ ਸ਼ੱਕ ਸੀ ਕੁੜੀ ਦੀ ਝੋਲੀ ਵਿਚ ਸ਼ਗਨ ਵਜੋਂ ਪਾਈ । ਮਗਰੋਂ ਇਸ ਘਟਨਾ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਇਹ ਤਿਉ: ਅੱਰੀ ਬਾਲ਼ ਕੇ ਮਨਾਇਆ ਜਾਣ ਲੱਗਾਂ ।

ਫ਼ਸਲੋ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ :
ਇ॥ ਤਿਉਹਾ’ ਦੇ ੬॥: ਲਾਲ ਵੀ ਹੈ ਤੋਂ ਪੁੱਜ ਚੁੱਕੀ ਸਰਦੀ ਦੀ ਰੁੱਤ ਨਾਲ ਵੀ ਹੈ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਕਿਸਾਨ ਦੇ ਖੇਤ ਕਣਕ, ਛੋਲਿਆਂ ਤੇ ਸਰੋਂ ਨਾਲ ਲਹਿਲਹਾ ਰਹੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਸਰਦੀ ਦੀ ਰੁੱਤ ਆਪਣੇ ਜੋਬਨ ਤੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇਸ ਸਮੇਂ ਪੂਣੀਆਂ ਬਾਲ ਕੇ ਪਾਲੇ ਨੂੰ ਸਾੜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸੱਚਮੁੱਚ ਹੀ ਇਸ ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ ਪਾਲਾ ਘਟਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਲ਼ੋਹੜੀ ਮੰਗਣਾ :
ਲੋਹੜੀ ਦਾ ਦਿਨ ਆਉਣ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਗਲੀਆਂ ਵਿਚ ਮੁੰਡਿਆਂ-ਕੁੜੀਆਂ ਦੀਆਂ ਢਾਣੀਆਂ ਗੀਤ-ਗਾਉਂਦੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਲੋਹੜੀ ਮੰਗਦੀਆਂ ਫਿਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਕੋਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦਾਣੇ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਗੁੜ, ਕੋਈ ਪਾਥੀਆਂ ਅਤੇ ਕੋਈ ਪੈਸੇ । ਲੋਹੜੀ ਮੰਗਣ ਵਾਲੀਆਂ ਟੋਲੀਆਂ ਦੇ ਗਲੀਆਂ ਵਿਚ ਗੀਤ ਗੂੰਜਦੇ ਹਨ

ਸੁੰਦਰ, ਮੁੰਦਰੀਏ ਹੋ,
ਤੇਰਾ ਕੌਣ ਵਿਚਾਰਾ ? ਹੋ ।
ਦੁੱਲਾ ਭੱਟੀ ਵਾਲਾ, ਹੋ ।
ਦੁੱਲੇ ਦੀ ਧੀ ਵਿਆਹੀ, ਹੋ ।
ਸੇਰ ਸ਼ੱਕਰ ਪਾਈ, ਹੈ ।
ਕੁੜੀ ਦਾ ਬੁਖਾ ਪਾਵਾ, ਹੋ ।
ਜੀਵੇ ਕੁੜੀ ਦਾ ਚਾਚਾ, ਹੋ ।
ਲੰਬੜਦਾਰ ਸਦਾਏ, ਹੋ ।
ਗਿਣ ਗਿਣ ਪੌਲੇ ਲਾਏ, ਹੋ।
ਇਕ ਪੋਲਾ ਰਹਿ ਗਿਆ, ਸਿਪਾਹੀ ਫੜ ਕੇ ਲੈ ਗਿਆ ।

ਡੇਣਾਂ ਈ ਸੋਹੜੀ : ਇਸ ਦਿਨ ਭਰਾ ਭੈਣ ਲਈ ਲੋਹੜੀ ਲੈ ਕੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਪਿੰਨੀਆਂ ਤੇ ਖਾਣ-ਪੀਣ ਦੇ ਹੋਰ ਸਮਾਨ ਮਤ ਕੋਈ ਹੋਰ ਸੁਗਾਤ ਵੀ ਭੈਣ ਦੇ ਘਰ ਪੁਚਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਸ਼ੰਡੇ ਦੇ ਜਮ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ :
ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਬੀਤੇ ਸਾਲ ਵਿਚ ਮੁੰਡੇ ਨੇ ਜਨਮ ਲਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਘਰ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਇਸ ਘ ਦੀਆਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਸਾਰੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿਚ ਮੁੰਡੇ ਦੀ ਲੋਹੜੀ ਵੰਡਦੀਆਂ ਨੇ, ਜਿਮ ਵਿਚ ਗੁੜ, ਮੂੰਗਫ਼ਲੀ ਤੇ ਰਿਉੜੀਆਂ ਆਦਿ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਉਮਰ ਵਿਚ ਲੋਹੜੀ ਮੰਗਣ ਵਾਲੇ ਮੁੰਡਿਆਂ-ਕੁੜੀਆਂ ਦੇ ਗੀਤਾਂ ਦੀਆਂ ਰੌਣਥਾਂ ਲੱਗੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਰਾਤ ਵੇਲੇ ਵੱਡੇ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰੌਣਕਾਂ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਖੁੱਲ੍ਹੇ ਵਿਹੜੇ ਵਿਚ ਲੱਕੜਾਂ ਤੇ ਪਾਥੀਆਂ ਇਕੱਠੀਆਂ ਕਰ ਕੇ ਵੱਡੀ ਧੂਣੀ ਲਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਕਈ ਇਸਤਰੀਆਂ ਘਰ ਵਿਚ ਮੁੰਡਾ ਹੋਣ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਧੂਣੀ ਵਿਚ ਚਰਖਾ ਵੀ ਬਾਲ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸਤਰੀਆਂ ਤੇ ਮਰਦ ਰਾਤ ਦੇਰ ਤਕ ਧੂਣੀ ਸੈਕਦੇ ਹੋਏ ਰਿਉੜੀਆਂ, ਮੂੰਗਫਲੀ, ਭੁੱਗਾ ਆਦਿ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਧੂਣੀ ਵਿਚ ਤਿਲਚੌਲੀ ਆਦਿ ਸੁੱਟਦੇ ਹਨ | ਅੱਧੀ ਰਾਤ ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ ਧੂਣੀ ਦੀ ਅੱਗ ਦੇ ਠੰਢੀ ਪੈਣ ਤਕ ਇਹ ਮਹਿਫ਼ਲ ਲੱਗੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

10. ਬਸੰਤ ਰੁੱਤ

ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੀ ਰੁੱਤ-ਭਾਰਤ ਰੁੱਤਾਂ ਦਾ ਦੇਸ਼ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਆਪਣੀ-ਆਪਣੀ ਵਾਰੀ ਨਾਲ ਛੇ ਰੁੱਤਾਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਰੁੱਤਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬਸੰਤ ਸਭ ਤੋਂ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੀ ਰੁੱਤ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਲੋਕ ਪਾਲੇ ਨਾਲ ਕੰਬ ਰਹੇ ਤੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਬਸੰਤ ਉੱਤੇ ਲੱਗੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਕਿ ਕਦੋਂ ਬਸੰਤ ਦਾ ਦਿਨ ਆਵੇ ਤੇ ਪਾਲੇ ਦੇ ਜਾਣ ਦਾ ਯਕੀਨ ਬਣੇ । ਬਸੰਤ ਰੁੱਤ ਆਉਣ ਤੇ ਲੋਕ ਸੁਖ ਦਾ ਸਾਹ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਹਰ ਕੋਈ ਸਮਝਦਾ ਹੈ ਕਿ ਹੁਣ ਖੁੱਲੀ, ਨਿੱਘੀ ਤੇ ਹਰ ਇਕ ਨੂੰ ਨਵਾਂ ਰੂਪ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਰੁੱਤ ਆ ਗਈ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ-
ਆਈ ਬਸੰਤ ਤੇ ਪਾਲਾ ਉਡੰਤ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੀ ਰੁੱਤ-ਪੰਚਮੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ-ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਮਹਾਨਤਾ-ਸੁਹਾਵਣੀ ਰੱਤ ਤੇ ਕੁਦਰਤੀ ਸੁੰਦਰਤਾ-ਸਿਹਤ ਲਈ ਗੁਣਕਾਰੀ !)

ਪੰਚਮੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ :
ਬਸੰਤ ਪੰਚਮੀਂ ਦਾ ਸਵਾਗਤ ਕਰਨ ਲਈ ਥਾਂ-ਥਾਂ ‘ਤੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮਾਗਮ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦਿਨ ਮੇਲੇ ਲਗਦੇ ਹਨ । ਖਿਡੌਣਿਆਂ ਤੇ ਮਠਿਆਈਆਂ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਸਜਦੀਆਂ ਹਨ । ਲੋਕ ਬਸੰਤੀ ਰੰਗ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਘਰ-ਘਰ ਬਸੰਤੀ ਹਲਵਾ, ਚਾਵਲ ਅਤੇ ਕੇਸਰੀ ਰੰਗ ਦੀ ਖੀਰ ਬਣਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਬੱਚੇ ਅਤੇ ਜਵਾਨ ਪਤੰਗਬਾਜ਼ੀ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਪੀਲੇ ਰੰਗ ਦੇ ਪਤੰਗਾਂ ਨੂੰ ਰੰਗ-ਬਰੰਗੀਆਂ ਡੋਰਾਂ ਨਾਲ ਅਕਾਸ਼ ਵਿਚ ਉਡਾ ਕੇ ਆਪਣਾ ਮਨ ਬਹਿਲਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਮੇਲਿਆਂ ਵਿਚ ਪਹਿਲਵਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਸ਼ਤੀਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਖੇਡਾਂਤਮਾਸ਼ਿਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਬੱਚੇ ਤੇ ਕੁੜੀਆਂ ਪੰਘੂੜੇ ਝਟਦੇ ਹਨ ।

ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਮਹਾਨਤਾ :
ਇਸ ਦਿਨ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਬਾਲ ਹਕੀਕਤ ਰਾਏ ਧਰਮੀ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਨਾਲ ਵੀ ਹੈ । ਇਸ ਦਿਨ ਉਸ ਵੀਰ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਧਰਮ ਵਿਚ ਪੱਕਾ ਰਹਿਣ ਕਰਕੇ ਮੌਤ ਦੇ ਘਾਟ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।

ਸੁਹਾਵਣੀ ਰੁੱਤ ਤੇ ਕੁਦਰਤੀ ਸੁੰਦਰਤਾ :
ਇਹ ਰੁੱਤ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੁਹਾਵਣੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਨਾ ਸਰਦ ਰੁੱਤ ਦਾ ਪਾਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਨਾ ਗਰਮ ਰੁੱਤ ਦੀ ਗਰਮੀ, ਸਗੋਂ ਇਹ ਰੁੱਤ ਨਿੱਘੀ ਤੇ ਮਨਭਾਉਣੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਜੀਵਾਂ-ਜੰਤੂਆਂ ਅਤੇ ਪੌਦਿਆਂ ਵਿਚ ਨਵੇਂ ਜੀਵਨ ਦਾ ਸੰਚਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਦਰੱਖ਼ਤਾਂ ਤੇ ਛੋਟੇ ਬੂਟਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤੇ, ਜੋ ਕਿ ਸਰਦੀ ਦੇ ਕੱਕਰਾਂ ਨੇ ਝਾੜ ਦਿੱਤੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਮੁੜ ਹਰੇ ਭਰੇ ਹੋਣ ਲਗਦੇ ਹਨ । ਸਰੋਂ ਦੇ ਬਸੰਤੀ ਰੰਗ ਦੇ ਫੁੱਲਾਂ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਹੋਇਆ ਆਲਾ-ਦੁਆਲਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲਗਦਾ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਕੁਦਰਤ ਪੀਲੇ ਗਹਿਣੇ ਪਹਿਨ ਕੇ ਬਸੰਤ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਮਨਾ ਰਹੀ ਹੋਵੇ । ਭੌਰੇ, ਸ਼ਹਿਦ ਦੀਆਂ ਮੱਖੀਆਂ ਤੇ ਤਿਤਲੀਆਂ ਫੁੱਲਾਂ ਉੱਪਰ ਉਡਾਰੀਆਂ ਮਾਰਦੀਆਂ ਤੇ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਨੱਚਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਅੰਬਾਂ ‘ਤੇ ਬੂਰ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਨਿੱਕੀਆਂ-ਨਿੱਕੀਆਂ ਅੰਬੀਆਂ ਤੁਰ ਪੈਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਕੋਇਲ ਦੀ ਕੂ-ਕੂ ਸੁਣ ਕੇ ਹਰ ਇਕ ਦੇ ਮਨ ਨੂੰ ਮਸਤੀ ਚੜ੍ਹਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਹਾੜ੍ਹੀ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਨਿੱਸਰ ਰਹੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਹਰ ਪਾਸਾ ਹਰਾ ਭਰਾ ਤੇ ਫੁੱਲਾਂ ਨਾਲ ਲੱਦਿਆ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਹਰ ਕਿਸੇ ਦਾ ਮਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਇਸ਼ਖਸ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਬਾਹਰ ਜਾ ਕੇ ਆਪਣਾ ਮਨ ਪਸੰਨ ਕਰੇ । ਇਸ ਸੁੰਦਰ ਰੁੱਤ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਚਿਤਰਨ ਕਰਦਿਆਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਵੀ ਧਨੀ ਰਾਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਲਿਖਦਾ ਹੈ-

ਕੱਕਰਾਂ ਨੇ ਲੁੱਟ ਪੁੱਟ, ਨੰਗ ਕਰ ਛੱਡੇ ਰੁੱਖ, ਹੋ ਗਏ ਨਿਹਾਲ ਅੱਜ, ਪੁੰਗਰ ਕੇ ਡਾਲੀਆਂ ।
ਡਾਲੀਆਂ ਕਚਾਹ ਵਾਂਗ, ਕੁਲੀਆਂ ਨੂੰ ਜਿੰਦ ਪਈ, ਆਲ੍ਹਣੇ ਦੇ ਬੋਟਾਂ ਵਾਂਗ, ਖੰਭੀਆਂ ਉਛਾਲੀਆਂ ।
ਬਾਗਾਂ ਵਿਚ ਬੂਟਿਆਂ ਨੇ, ਡੋਡੀਆਂ ਉਡਾਰੀਆਂ ਨੇ, ਮਿੱਠੀ-ਮਿੱਠੀ ਪੌਣ ਆ ਕੇ, ਸੁੱਤੀਆਂ ਉਠਾਲੀਆਂ ।
ਖਿੜ-ਖਿੜ ਹੱਸਦੀਆਂ ਵਸਿਆ, ਜਹਾਨ ਦੇਖ, ਗੁੱਟੇ ਉੱਤੇ ਕੇਸਰ, ਗੁਲਾਬ ਉੱਤੇ ਲਾਲੀਆਂ ।

ਸਿਹਤ ਲਈ ਗੁਣਕਾਰੀ :
ਇਹ ਰੁੱਤ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸਿਹਤ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਬੜੀ ਢੁੱਕਵੀਂ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਸਾਨੂੰ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸਵੇਰੇ ਸੈਰ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਕਸਰਤ ਕਰਨੀ ਅਤੇ ਸਿਹਤ-ਵਧਾਊ ਭੋਜਨ ਖਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

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11. ਗਰਮੀ ਦੀ ਰੁੱਤ

ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਰੁੱਤਾਂ :
ਪੰਜਾਬ ਬਹੁਰੰਗੀਆਂ ਰੁੱਤਾਂ ਦਾ ਦੇਸ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਮੌਸਮ ਕਈ ਰੰਗ ਦਿਖਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਅਤਿ ਦੀ ਸਰਦੀ ਵੀ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਅੱਤ ਦੀ ਗਰਮੀ ਵੀ । ਗਰਮੀ ਸਰਦੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਬਰਸਾਤ, । ਪੱਤਝੜ ਤੇ ਬਸੰਤ ਇੱਥੋਂ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਰੁੱਤਾਂ ਹਨ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਰੁੱਤਾਂ-ਗਰਮੀ ਦੇ ਮਹੀਨੇ-ਰੱਤ, ਮੌਸਮ ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ-ਪਸ਼ੂਆਂ ਦਾ ਹਾਲ-ਮੀਂਹ ਦੀ ਮੰਗ-ਰੋਗ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼)

ਗਰਮੀ ਦੇ ਮਹੀਨੇ :
ਗਰਮੀ ਦੀ ਰੁੱਤ ਦਾ ਆਰੰਭ ਬਸੰਤ ਰੁੱਤ ਦੇ ਬੀਤਣ ਨਾਲ ਹੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਜੇਠ-ਹਾੜ੍ਹ ਅਰਥਾਤ ਮਈ-ਜੂਨ ਗਰਮੀ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਮੰਨੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਹੀਨਿਆਂ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਅਤਿ ਦੀ ਗਰਮੀ ਪੈਂਦੀ ਹੈ । ਸੂਰਜ ਅਸਮਾਨ ਵਿਚ ਸਿਖਰ ਉੱਤੇ ਪੁੱਜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਅੱਗ ਵਰਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਜੇਠ ਦੀ ਗਰਮੀ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਪੰਜਾਬੀ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਵੀ ਧਨੀ ਰਾਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਲਿਖਦਾ ਹੈ :

ਸਿਖਰ ਦੁਪਹਿਰੇ ਜੇਠ ਦੀ, ਵਰੁਨ ਪਏ ਅੰਗਿਆਰ ॥
ਲੋਆਂ ਵਾਓ ਵਰੋਲਿਆਂ, ਰਾਹੀ ਲਏ ਖਲ੍ਹਾਰ ।
ਲੋਹ ਤਪੇ ਜਿਉਂ ਪ੍ਰਵੀ, ਭਖ ਲਵਣ ਅਸਮਾਨ ।
ਪਸ਼ੂਆਂ ਜੀਭਾਂ ਸੁੱਟੀਆਂ, ਪੰਛੀ ਭੁੱਜਦੇ ਜਾਣ ।

ਅਸਲ ਵਿਚ ਗਰਮੀ ਦੀ ਰੁੱਤ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਐਕਟ ਵਿਸਾਖ ਅਰਥਾਤ ਅਪਰੈਲ ਦੇ ਅੱਧ ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ { ਮਈ-ਜੂਨ ਵਿਚ ਇਹ ਸਿਖਰ ਉੱਤੇ ਪੁੱਜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਧੁੱਪ, ਗਰਮੀ, ਹਨੇਰੀ ਤੇ ਲੂ ਇਸ ਦੇ ਪਾਤਰ ਹਨ । ਜੁਲਾਈ-ਅਗਸਤ ਵਿਚ ਮੀਂਹ ਪੈਣ ਨਾਲ ਗਰਮੀ ਘਟਣ ਲਗਦੀ ਹੈ ਤੇ ਸਤੰਬਰ ਵਿਚ ਇਸ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਰੁੱਤ, ਮੌਸਮ ਤੇ ਭਾਵ : ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਦਿਨ ਵੱਡੇ ਤੇ ਰਾਤਾਂ ਛੋਟੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

12. ਵਰਪਾ ਰੁਁਤ
ਜਾਂ
ਬਰਸਾਤ ਦੀ ਰੂਁਤ

ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਰੁੱਤਾਂ :
ਬਦਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਇੱਥੇ ਮਾਝੇ ਵਿਚ । ਵਰਖਾ ਰੁੱਤ ਦਾ ਵਾਤਾਵਰਨ ਛੇ ਰੁੱਤਾਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਰੁੱਤਾਂ ਨੂੰ ਬਸੰਤ ਰੁੱਤ, ਪਣੀ ਥਾਂ ਬਹੁਤ ਹੀ ਘੱਤਵਪੂ
ਹਨ, ਪਰੰਤੂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਵਧੇਰੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੀਆਂ ਰੁੱਤਾਂ ਬਸੰਤ ਰੁੱਤੇ ਤੇ ਵਰਖਾ ਰੁੱਤੇ ਹਨ ।

ਰੂਪ-ਰੇਖਾ : ਗੁਰਬਾਣੀ ਵਿਚ ਜ਼ਿਕਰ ਮਹੱਤਵ ॥

ਵੇਖਾਂ ਉੱਤੇ ਜਾਂ ਵਾਤਾਵਨ :

ਵੇਰੇਖਾ ਰੁੱਤ ਦਾ ਆਰੰਭ ਜੂਨ ਮਹੀਨੇ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਬੀਰਮੀ ਦੀ ਰੁੱਤ ਆਪਣੈ ਸਿਖਰ ‘ਤੇ ਪੁੱਜ ਚੁੱਕੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ; ਸੂਰਜ ਅਸਮਾਨੇ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਵੇ ਰਿਹਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਧਰਤੀ ਭੱਠੀ ਵਾਰੀ ਤਪ ਹੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਬੰਦੇ ਤਾਂ ਕੀ, ਸਗੋਂ ਚੇਤੀ ਦੇ ਸਾਰੇ ਜੀਵ ਤੇ ਪਸ਼ੂ-ਪੰਛੀ ਬੀਰਮੀ ਤੋਂ ਤੌਬੀ ਆਏ ਮੀਂਹ ਦੀ ਮੰਚੀ ਕਰੇ ਰਹੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਜੂਨ ਮੈਹੀਨੇ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਵੇਦੀ ਨੂੰ ਇਕ ਦਮ ਠੰਢੀ ਹਵਾਂ ਵਿਚ ਬਦਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਅਸਮਾਨ ਉੱਪਰ ਬੱਦਲ ਘਨਘੋਚਾਂ ਪਾਉਣ ਲੱਗੇ ਪੈਂਦੇ ਹਨ । ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਣਮਿਣੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਫਿਰ ਮੋਹਲੇਧਾਰ ਮੀਂਹ ਆਰੰਭ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਘੜੀਆਂ ਵਿਚ ਹੀ ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਜਲਬੋਲੇ ਹੋਇਆਂ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਹੋਏ ਰੋਜ਼ ਅਸਮਾਨ ਉੱਪਰ ਬੱਦਲ ਮੰਡਲਾਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੈ ਹਨ । ਦਿਨ ਨੂੰ ਸੂਰਜ ਤੇ ਰਾਤ ਨੂੰ ਚੰਦੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਲੁਕਣ-ਮੀਟੀ ਖੇਡਦਾ ਹੈ । ਮੀਂਹ ਦੀ ਕੋਈ ਵੇਲੇ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ । ਮਾੜਾ ਜਿਹਾ ਹੱਥੋੜੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਬੱਸ ਉੱਥੇ ਪਲਾਂ ਮਗਰੋਂ ਹੀ ਬੱਦਲ ਰੀੜਗੜਾਹਟੋ ਪਾਉਣ ਲੱਗਦੀ ਹੈ । ਮੀਂਹ ਪੈਣ ਨਾਲ ਬਨਸਪਤੀ ਹਰੀ-ਭਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਅੰਬ ਤੇ ਜਾਮਨੂੰ ਉਸੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਬੋਇਲ ਦੀ ਕੂ-ਕੂ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਛੱਪੜਾਂ, ਟੋਭਿਆਂ ਦੇ ਕੰਢਿਆਂ ਉੱਪਰ ਛੱਡ ਕੈਂ-ਕੈਂ ਕਰੇਨ ਲੋਚੀਦੇ ਹਨ । ਮੱਛਰਾਂ ਤੇ ਮੱਖੀਆਂ ਦੀ ਭੁਰਮਾਉ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਸੱਪੇ, ਅਲੂਏਂ ਤੇ ਹੋਰੇ ਅਨੰਬਾਂ ਪੂਰੇ ਦੇ ਕੀੜੇ-ਪਤੰਗੇ, ਘੁਮਿਆ ਤੇ ਚੀਚ ਵਹੁਟੀਆਂ ਘੁੰਮਣ ਲੱਗਦੀਆਂ ਹਨ । ਖੱਬਲ ਘਾਹ ਦੀਆਂ ਹਰੀਆਂ ਤਿੜਾਂ ਤੇ ਅਨੇਕਾਂ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਹੋਏ ਹਰੇ ਪੌਦਿਆਂ ਨਾਲ ਧੋਤੀ ਕੱਜੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਸਾਉਣ ਭਾਦੋਂ ਦੇ ਦੋ ਮੈਹੀਨੇ ਅਜਿਹੀ ਲਭਾਉਣੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਪਸਰਿਆਂ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਕੁੜੀਆਂ ਬੀਸ਼ੀ ਵਿਚ ਪੀਂਘਾਂ ਝੂਟਦੀਆਂ ਹਨ, ਤੀਆਂ ਲੱਗਦੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਗਿੱਧੇ ਮਚਦੇ ਹਨ । ਪੰਜਾਬੀ ਸੱਭਿਆਚਾਰੇ ਤੇ ਇਸੇ ਕੁਦਰਤੀ ਵਾਤਾਵਰਨ ਦੀ ਚਿਤਨੇ ਧਨੀ ਰਾਮ ਚਾਤ੍ਰਿਥੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਕਵਿਤਾ ਵਿਚ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕੀਤੀ ਹੈ-

ਸਾਉਣੇ ਮਾਂ ਭੈੜੀਆਂ ਚੀਰੇਮੀ ਝੜੇ ਸੁੱਟੀ,
ਧਰਤੀ ਪੰਚੀ ਟਹਿਕੀਆਂ ਛੱਲੀਆਂ ਨੇ ।
ਰਾਹ ਰੋਕ ਲਏ ਛੱਪੜਾਂ ਦੋਭਿਆਂ ਨੇ,
ਨਦੀ ਦਾਲਿਆਂ ਚੂ ਚੂੰਘਾਲੀਆਂ ਲੈ ।

ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਅਧਾਰ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ਪਾਣੀ ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਅਧਾਰ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਇਹੋ ਪਾਣੀ ਹੀ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿਚ ਰਚ ਕੇ ਸਾਰਾ ਸਾਲ ਖੂਹਾਂ, ਨਲਕਿਆਂ ਤੇ ਟਿਊਬਵੈੱਲਾਂ ਰਾਹੀਂ ਖੇਤਾਂ, ਮਨੁੱਖਾਂ ਤੇ ਜੀਵਾਂ ਦੀ ਪਾਣੀ ਦੀ ਲੋੜ ਪੂਰੀ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਜੇ ਵਰਖਾ ਨਾ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਸੂਰਜ ਦੀ ਗਰਮੀ ਨਾਲ ਸਭ ਕੁੱਝ ਸੁੱਕ ਜਾਵੇ ਤੇ ਧਰਤੀ ਤੋਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਵੇ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਅੱਡੀਆਂ ਰਗੜ-ਰਗੜ ਕੇ ਮੀਂਹ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ-
ਰੱਬਾ ਰੱਬਾ ਮੀਂਹ ਵਰਾ, ਸਾਡੀ ਕੋਠੀ ਦਾਣੇ ਪਾ ।

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13. ਸਰਦੀ ਦੀ ਰੁੱਤ

ਬਹੁ-ਰੁੱਤਾ ਦੇਸ-ਪੰਜਾਬ ਇਕ ਬਹੁ-ਰੁੱਤਾ ਦੇਸ ਹੈ । ਇੱਕ ਸਾਲ ਵਿਚ ਇੱਥੇ ਛੇ ਰੁੱਤਾਂ-ਗਰਮ ਰੁੱਤ, ਵਰਖਾ ਰੁੱਤ, ਸਰਦ ਰੁੱਤ, ਪੱਤਝੜ ਦਾ ਭਰਨਾ-ਸਰਦੀ ਰੁੱਤ, ਸ਼ੀਤ ਰੁੱਤ ਤੇ ਬਸੰਤ ਰੁੱਤ ਚੱਕਰ ਲਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਰਦੀ ਦੀ ਰੁੱਤ ਅਰਥਾਤ ਪਾਲਾ ਵਰਖਾ ਰੁੱਤ ਦੇ ਖ਼ਤਮ ਹੋਣ ਨਾਲ ਅਰਥਾਤ 15 ਸਤੰਬਰ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਅੱਸੂ ਦਾ ਦੇਸੀ ਮਹੀਨਾ ਚੜ੍ਹਨ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਆਰੰਭ ਹੋਇਆ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਫਿਰ ਇਹ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਵਧਦਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ :
‘ਅੱਸੂ ਪਾਲਾ ਜੰਮਿਆ, ਕੱਤੇ ਵੱਡਾ ਹੋ ।
ਮੱਘਰ ਫ਼ੌਜਾਂ ਚੜੀਆਂ ਤੇ ਪੋਹ ਲੜਾਈ ਹੋ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਬਹੁ-ਰੁੱਤਾ ਦੇਸ-ਸਰਦੀ ਦਾ ਆਰੰਭ-ਸਰਦੀ ਦਾ ਅਸਰ-ਅੰਤ ॥ )

ਸਰਦੀ ਦਾ ਆਰੰਭ :
ਉਂਝ ਅੱਸੂ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਅਰਥਾਤ ਸਤੰਬਰ ਅੱਧ ਤੋਂ ਅਕਤੂਬਰ ਅੱਧ ਤਕ ਦਿਨੇ ਖੂਬ ਧੁੱਪ ਪੈਂਦੀ ਹੈ, ਪਰ ਰਾਤ ਨੂੰ ਸਰਦੀ ਹੋਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਰਾਤ ਨੂੰ ਬਾਹਰ ਡਾਹੀਆਂ ਮੰਜੀਆਂ ਜਾਂ ਤਾਂ ਖਿੱਚ ਕੇ ਬਰਾਂਡਿਆਂ ਹੇਠਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਪੈਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਜਾਂ ਉੱਪਰ ਮੋਟਾ ਖੇਸ ਜਾਂ ਕੰਬਲ ਲੈਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

ਅੱਧ ਅਕਤੂਬਰ ਤੋਂ ਅੱਧ ਨਵੰਬਰ ਅਰਥਾਤ ਕੱਤਕ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਸੂਰਜ ਕਾਫ਼ੀ ਥੱਲੇ ਚਲਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ; ਦਿਨੇ ਗਰਮੀ ਘਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਸਵੇਰੇ ਸ਼ਾਮ ਸਰਦੀ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਣ ਲਗਦੀ ਹੈ । ਰਾਤ ਨੂੰ ਮੰਜੀਆਂ ਅੰਦਰ ਡਹਿਣ ਲੱਗ ਪੈਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਲੋਕ ਅਜਿਹੇ ਕੱਪੜੇ ਪਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸਾਰਾ ਸਰੀਰ ਢੱਕਿਆ ਰਹੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਪੰਜਾਬੀ ਲੋਕ ਨਵਰਾਤਰਿਆਂ, ਦੁਸਹਿਰੇ ਤੇ ਦੀਵਾਲੀ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ-ਦਿਨ ਦਾ ਗੁਰਪੁਰਬ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਦੀਵਾਲੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਅਸਲ ਵਿਚ ਕਮਰਿਆਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਵੜਨ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਦੀਵਾਲੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਮਰਿਆਂ ਦੀ ਸਫ਼ਾਈ ਕਰ ਕੇ ਸਫ਼ੈਦੀ ਤੇ ਰੰਗ-ਰੋਗਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਰਾਤ ਨੂੰ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਰੌਸ਼ਨੀ ਛੋਟੇ ਹੋਏ ਦਿਨਾਂ ਕਾਰਨ ਰੌਸ਼ਨੀ ਨੂੰ ਲੰਮੀ ਰਾਤ ਤਕ ਜਗਾਏ ਰੱਖਣ ਦਾ ਚਿੰਨ੍ਹ ਹੈ ਅਤੇ ਮਠਿਆਈ ਸਿਆਲ ਵਿਚ ਖਾਧੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਪੌਸ਼ਟਿਕ ਖ਼ੁਰਾਕ ਦਾ ਚਿੰਨ੍ਹ ਹੈ ।

ਸਰਦੀ ਦਾ ਭਰਨਾ :
ਅੱਧ ਨਵੰਬਰ ਤੋਂ ਅੱਧ ਦਸੰਬਰ ਅਰਥਾਤ ਮੱਘਰ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਸਰਦੀ ਨੂੰ ਜਵਾਨੀ ਚੜ੍ਹਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਲੋਕ ਰਾਤ ਨੂੰ ਅੰਦਰ ਹੀ ਸੌਣ ਲਗ ਪੈਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਨਹਾਉਣ ਲਈ ਨਿੱਘੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਲੋੜ ਅਨੁਭਵ ਕਰਨ ਲਗਦੇ ਹਨ ।

ਦਸੰਬਰ ਤੋਂ ਅੱਧ ਜਨਵਰੀ ਅਰਥਾਤ ਪੋਹ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਦੌਰਾਨ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਸਰਦੀ ਆਪਣੇ ਪੂਰੇ ਜੋਬਨ ‘ਤੇ ਪੁੱਜ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਖ਼ੁਸ਼ਕ ਸਰਦੀ ਕਾਰਨ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਜ਼ਲਾ-ਜ਼ੁਕਾਮ, ਫਲੁ, ਖਾਂਸੀ, ਦਮਾ ਤੇ ਨਮੁਨੀਆਂ ਆਦਿ ਘੇਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਗਰਮ ਕੱਪੜੇ ਤੇ ਨਿੱਘੇ ਘਰ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਬਚਾਓ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ । ਡਾਕਟਰਾਂ ਦੀ ਚਾਂਦੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਅਸਮਾਨ ਵਿਚ ਬੱਦਲ ਬਣਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ , ਕਿਣਮਿਣ ਹੋਣ ਲਗਦੀ ਹੈ ਤੇ ਠੰਢ ਖ਼ੁਸ਼ਕ ਤੋਂ ਸਿੱਲ੍ਹੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਸੂਰਜ ਕਿਧਰੇ ਗੁਆਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਇਕ ਦੋ ਧੁੱਪਾਂ ਲੱਗ ਜਾਣ, ਤਾਂ ਸਵੇਰੇ ਸਵੇਰੇ ਸੰਘਣੀ ਧੁੰਦ ਪੈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਜਿਹੜੀ ਕਈ ਵਾਰੀ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਹੀ ਸੂਰਜ ਨੂੰ ਦੱਬੀ ਰੱਖਦੀ ਹੈ । ਲਗਾਤਾਰ ਸਖ਼ਤ ਠੰਢ ਤੋਂ ਬਚਾ ਲਈ ਲੋਕ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗਰਮ ਕੱਪੜਿਆਂ, ਖੇਸੀਆਂ ਜਾਂ ਕੰਬਲਾਂ ਦੀਆਂ ਬੁੱਕਲਾਂ ਨਾਲ ਢੱਕ ਕੇ ਰੱਖਦੇ ਹਨ । ਗ਼ਰੀਬ ਲੋਕ ਧੁਣੀਆਂ ਤਪਾ ਕੇ ਜਾਂ ਅੰਗੀਠੀਆਂ ਮਘਾ ਕੇ ਅਤੇ ਅਮੀਰ ਲੋਕ ਹੀਟਰਾਂ ਨਾਲ ਅੱਗ ਸੇਕਦੇ ਤੇ ਕਮਰੇ ਨਿੱਘੇ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਸਰਦੀ ਦਾ ਅਸਰ :
ਬਿਮਾਰ ਤੇ ਬੁੱਢੇ ਤਾਂ ਆਮ ਕਰਕੇ ਰਜਾਈਆਂ ਵਿਚ ਹੀ ਰਹਿਣਾ ਪਸੰਦ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਪਾਲੇ ਨੂੰ ‘ਜਵਾਨਾਂ ਦਾ ਸਾਲਾ ਤੇ ਬੁੱਢਿਆਂ ਦਾ ਜਵਾਈ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਕਦੇ ਧੁੱਪ ਨਿਕਲਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਹ ਜ਼ਰਾ ਤੇਜ਼ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਸੂਰਜ ਜ਼ਰਾ ਉੱਚਾ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਵੈਸੇ ਬਹੁਤਾ ਪਾਲਾ ਹਵਾ ਦੇ ਵਗਣ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਸਰਦੀ ਦੇ ਅਸਰ ਤੋਂ ਬਚਾ ਲਈ ਲੋਕ ਆਪਣੀ ਵਿੱਤ ਅਨੁਸਾਰ ਮੂੰਗਫਲੀ, ਰਿਉੜੀਆਂ, ਭੁੱਗਾ, ਗੁੜ, ਬਦਾਮ, ਅਖ਼ਰੋਟ, ਸੌਗੀ, ਨਿਉਜ਼ੇ ਆਦਿ ਖਾਂਦੇ ਹਨ । ਮੱਕੀ ਦੀ ਰੋਟੀ, ਸਾਗ, ਸ਼ੱਕਰ-ਓ, ਪਰੌਂਠੇ ਤੇ ਦੇਸੀ ਘਿਓ ਦੀਆਂ ਪਿੰਨੀਆਂ ਆਮ ਕਰਕੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਖ਼ੁਰਾਕ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਆਂਡਿਆਂ ਤੇ ਸ਼ਰਾਬ ਦੇ ਰੇਟ ਚੜ੍ਹ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਅੰਤ :
ਅੱਧ ਜਨਵਰੀ ਵਿਚ ਪੋਹ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਮਹੀਨੇ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਲੋਹੜੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਇਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਾਲੇ ਨੂੰ ਸਾੜਨ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਹੀ ਹੈ । ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਮਾਘ ਦਾ ਮਹੀਨਾ ਚੜ੍ਹ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਸਰਦੀ ਘਟਦੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਜਨਵਰੀ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਬਸੰਤ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਕਿ ਪਾਲੇ ਦੇ ਖ਼ਾਤਮੇ ਦਾ ਸੂਚਕ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ; ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ :
ਆਈ ਬਸੰਤ ਪਾਲਾ ਉਡੰਤ’।

ਇਸ ਤਰਾਂ ਫ਼ਰਵਰੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਅਰਥਾਤ ਅੱਧ ਮਾਘ ਵਿਚ ਧੁੱਪਾਂ ਤੇਜ਼ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਪਰ “ਅੱਧ ਮਾਂਹ ਤੇ ਕੰਬਲ ਬਾਂਹ’ ਅਨੁਸਾਰ ਠੰਢ ਤੋਂ ਬਚਾਓ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਅੱਧ ਫ਼ਰਵਰੀ ਤੋਂ ਅੱਧ ਮਾਰਚ ਅਰਥਾਤ ਫੱਗਣ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ “ਫੱਗਣ ਵਾਉ ਵਗਣ ਕਾਰਨ ਸਰਦੀ ਦੀ ਹੋਂਦ ਕਾਇਮ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਪਰ ਅੱਧ ਮਾਰਚ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਚੇਤ ਦੇ ਚੜ੍ਹਨ ਨਾਲ ਸਰਦੀ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਬਸੰਤ ਰੁੱਤ ਪੂਰੇ ਜੋਬਨ ‘ਤੇ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਚੁਫ਼ੇਰੇ ਰੁੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਟਹਿਣੀਆਂ ਕੁਲੇ-ਕੁਲੇ ਪੱਤਿਆਂ ਨਾਲ ਹਰੀਆਂ-ਭਰੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਰੋਂ ਦੇ ਫੁੱਲ ਖੇਤਾਂ ਵਿਚ ਸੋਨਾ ਖਿਲਾਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਹਵਾ ਮਹਿਕਾਂ ਨਾਲ ਭਰ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

14, ਅੱਤ ਸਰਦੀ ਦਾ ਇਕ ਦਿਨ

ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸਰਦ ਰੁੱਤ-ਉੱਤਰੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਦਸੰਬਰ ਤੇ ਜਨਵਰੀ ਸਰਦੀ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਹਨ । ਉਂਝ ਤਾਂ ਇਹਨਾਂ ਮਹੀਨਿਆਂ ਵਿਚ ਲਗਾਤਾਰ ਖੂਬ ਸਰਦੀ ਪੈਂਦੀ ਹੈ, ਪਰ ਕਿਸੇ ਕਿਸੇ ਦਿਨ ਤਾਂ ਸਾਰੀ ਦਿਹਾੜੀ ਠੰਢ ਨਾਲ ਕੰਬਦਿਆਂ ਹੀ ਬੀਤਦੀ ਹੈ । ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਅੱਤ ਸਰਦੀ ਦਾ ਦਿਨ ਬੀਤੇ ਸਾਲ 30 ਦਸੰਬਰ ਦਾ ਸੀ ।

ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸਰਦੀ ਦੀ ਰੁੱਤ-30 ਦਸੰਬਰ ਦੀ ਸਰਦੀ-ਸਕੂਲ ਦੇ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਸਰਦੀ, ਧੁੰਦ ਤੇ ਧੂਣੀਆਂ-ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਹਾਜ਼ਰੀ ਦਾ ਘੱਟ ਹੋਣਾ-ਫਿਰਦੇ ਹੋਏ ਘਰ ਵਾਪਸੀ-ਅੱਗ ਸੇਕਣੀ ਤੇ ਗਰਮ ਚੀਜ਼ਾਂ ਖਾਣੀਆਂ-ਮੌਤਾਂ ਤੇ ਰਿਕਾਰਡ ਤੋੜ ਸਰਦੀ ਦੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ॥

30 ਦਸੰਬਰ ਦੀ ਸਰਦੀ :
ਇਸ ਦਿਨ ਸਵੇਰੇ-ਸਵੇਰੇ ਹੀ ਕਾਫ਼ੀ ਠੰਢ ਸੀ ਤੇ ਮੈਨੂੰ ਰਜ਼ਾਈ ਵਿਚ ਹੀ ਇਕ ਕੰਬਣੀ ਜਿਹੀ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋ ਰਹੀ ਸੀ । ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਪਿੱਛੋਂ ਦਿਨ ਚੜ੍ਹ ਗਿਆ । ਮੈਂ ਕੰਬਲ ਉੱਪਰ ਲੈ ਕੇ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਿਆ, ਤਾਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਬਾਹਰ ਸੰਘਣੀ ਧੁੰਦ ਪਈ ਹੋਈ ਸੀ ਤੇ ਹਵਾ ਵਿਚਲੀ ਨਮੀ ਪਾਣੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਡਿਗ ਰਹੀ ਸੀ, ਜਿਵੇਂ ਮੀਂਹ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ ।ਉਸ ਦਿਨ ਮੇਰਾ ਦਿਲ ਨਹਾਉਣ ਨੂੰ ਨਾ ਕੀਤਾ ਤੇ ਮੈਂ ਮੁੰਹ-ਹੱਥ ਧੋ ਕੇ ਅੰਗੀਠੀ ਕੋਲ ਆ ਬੈਠਾ ।

ਸਕੂਲ ਦੇ ਰਸਤੇ ਦਾ ਨਜ਼ਾਰਾ :
ਮੇਰੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਇਕ ਸਵੈਟਰ, ਕਮੀਜ਼ ਦੇ ਹੇਠ ਤੇ ਇਕ ਉੱਪਰ ਪੁਆਇਆ ਅਤੇ ਉਸ ਤੋਂ ਉੱਪਰ ਕੋਟ ਪੁਆ ਕੇ ਉਸ ਦੇ ਬਟਨ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬੰਦ ਕਰਵਾ ਕੇ ਸਕੂਲ ਤੋਰਿਆ । ਮੈਂ ਹੱਥਾਂ ਉੱਤੇ ਗਰਮ ਦਸਤਾਨੇ ਤੇ ਗਲ ਵਿਚ ਮਫ਼ਲਰ ਪਾਇਆ ਤੇ ਘਰੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਿਆ । ਬਾਹੂਰ ਸੰਘਣੀ ਧੁੰਦ ਕਾਰਨ ਪੰਜ-ਛੇ ਫੁੱਟ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਰਸਤਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ । ਮੈਂ ਆਪਣਾ ਸਾਈਕਲ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਚਲਾ ਰਿਹਾ ਸਾਂ । ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਸੜਕ ਉੱਤੇ ਲੋਕ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਸਨ ਤੇ ਲੰਘਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕਾਰਾਂ, ਬੱਸਾਂ ਤੇ ਟਰੱਕਾਂ ਆਦਿ ਦੀਆਂ ਬੱਤੀਆਂ ਜਗ ਰਹੀਆਂ ਸਨ । ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਰਫ਼ਤਾਰ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਸੀ । ਮੈਂ ਅਸਮਾਨ ਵਲ ਝਾਤੀ ਮਾਰ ਕੇ ਦੇਖਿਆ, ਤਾਂ ਸੂਰਜ ਦਾ ਕਿਧਰੇ ਨਾਂ-ਨਿਸ਼ਾਨ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਿਹਾ । ਜਿਉਂ-ਜਿਉਂ ਦਿਨ ਚੜ੍ਹ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਧੁੰਦ ਸੰਘਣੀ ਹੁੰਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ । ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਮੈਂ ਕਈ ਲੋਕ ਧੂਣੀਆਂ ਦੁਆਲੇ ਬੈਠੇ ਦੇਖੇ ।.

ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਘੱਟ ਹਾਜ਼ਰੀ :
ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਸਕੂਲ ਪੁੱਜਾ, ਤਾਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਹਾਜ਼ਰੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਸੀ । ਕਲਾਸ ਵਿਚ ਠੰਢ ਨਾਂਲ ਆਕੜੇ ਸਾਡੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਪੈਂਨ ਫੜ ਕੇ ਲਿਖਣ ਦੀ ਤਾਕਤ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਾਰੀ ਦਿਹਾੜੀ ਅਸੀਂ ਧੁੰਦ ਦੇ ਘਟਣ ਦੀ ਉਡੀਕ ਕਰਦੇ ਰਹੇ, ਪਰ ਅਜਿਹਾ ਨਾ ਹੋਇਆ ।

ਫਿਰਦੇ ਹੋਏ ਘਰ ਵਾਪਸੀ :
ਅੰਤ ਚਾਰ ਵਜੇ ਸਾਨੂੰ ਸਕੂਲੋਂ ਛੁੱਟੀ ਹੋਈ ਤੇ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨਾਲ ਝਿਰਦਾ ਹੋਇਆ ਘਰ ਵਲ ਚਲ ਪਿਆ । ਮੈਂ ਸਿੱਧਾ ਰਸੋਈ ਵਿਚ ਪੁੱਜਾ ਤੇ ਅੰਗੀਠੀ ਕੋਲ ਬੈਠ ਕੇ ਅੱਗ ਸੇਕਣ ਲੱਗਾ । ਮੈਂ ਰੋਟੀ ਖਾਧੀ ਤੇ ਫਿਰ ਗਰਮ-ਗਰਮ ਚਾਹ ਪੀਤੀ । ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਹੀ ਅਸੀਂ ਮੁੰਗਲੀ, ਰਿਉੜੀਆਂ ਤੇ ਭੁੱਗਾ ਮੰਗਵਾਇਆਂ ਅਤੇ ਅੰਗੀਠੀ ਦੁਆਲੇ ਬੈਠ ਕੇ ਖਾਣ ਲੱਗੇ । ਹੁਣੇ ਹਨੇਰਾ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਸੀ ਤੇ ਧੁੰਦ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਸੰਘਣੀ ਹੋ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਰਾਤ ਦੇ ਨੌਂ ਵਜੇ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਸੌਂ ਗਏ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

15. ਬਰਸਾਤ ਦਾ ਇਕ ਦਿਨ

ਮੀਂਹ ਦੇ ਪਾਬੰਬ :
ਬੀਤੀ ਜੁਲਾਈ ਵਿਚ ਇਕ ਤੇ ਸਖ਼ਤ ਗਰਮੀ ਹਰੇ ਮੈਨੂੰ ਅੱਧੀ ਕੁ ਰਾਤ ।

ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਘੱਟ ਹਾਜ਼ਰੀ-ਇੰਨੇ ਨੂੰ ਮੈਂ ਸਕੂਲ ਪੁੱਜਾ । ਇੱਥੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਭਿੱਜੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਜਦੋਂ ਸਕੂਲ ਲੱਗਣ ਦੀ ਘੰਟੀ ਵੱਜੀ, ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਕਲਾਸਾਂ ਵਿਚ ਹਾਜ਼ਰੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਸੀ । ਬਾਹਰ ਮੀਂਹ ਹੋਰ ਤੇਜ਼ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਸੀ ।

ਸਕੂਲੋਂ ਵਾਪਸੀ ਸਮੇਂ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ :
ਦੁਪਹਿਰ ਨੂੰ ਮੀਂਹ ਰੁਕ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਧਰ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਵੀ ਛੁੱਟੀ ਹੋ ਗਈ । ਕਾਹਲੀ-ਕਾਹਲੀ ਸਕੂਲੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਦਿਆਂ ਮੇਰੇ ਮਿੱਤਰ ਸੁਰਿੰਦਰ ਦਾ ਇਕ ਥਾਂ ਚਿੱਕੜ ਉੱਪਰੋਂ ਪੈਰ ਤਿਲ੍ਹਕ ਗਿਆ ਤੇ ਉਹ ਡਿਗ ਪਿਆ । ਉਸ ਦੇ ਸੱਟ ਤਾਂ ਥੋੜ੍ਹੀ ਲੱਗੀ, ਪਰ ਉਸ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਲਿੱਬੜ ਗਏ । ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਕੋਠਿਆਂ ਉੱਪਰ ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਮੋਰੀਆਂ ਆਦਿ ਬੰਦ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਤੋਂ ਦੋ ਕੁ ਫ਼ਰਲਾਂਗ ਅੱਗੇ ਆ ਕੇ ਅਸੀਂ ਮੀਂਹ ਨਾਲ ਡਿਗੀ ਹੋਈ ਇਕ ਕੰਧ ਦੇਖੀ, ਜਿਸ ਦੀਆਂ ਇੱਟਾਂ ਤੇ ਮਿੱਟੀ ਨੇ ਸੜਕ ਨੂੰ ਰੋਕਿਆ। ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਕ ਥਾਂ ਬੱਚੇ ਗਾ ਰਹੇ ਸਨ
ਰੱਬਾ ਰੱਬਾ ਮੀਂਹ ਵਸਾ, ਸਾਡੀ ਕੋਠੀ ਦਾਣੇ ਪਾ ।
ਕਾਲੀਆਂ ਇੱਟਾਂ ਕਾਲੇ ਰੋੜ, ਮੀਂਹ ਵਸਾ ਦੇ ਜ਼ੋਰੋ ਜ਼ੋਰ ।

ਮੀਂਹ ਦਾ ਫੇਰ ਆਰੰਭ ਹੋਣਾ :
ਮੇਰਾ ਘਰ ਅਜੇ 100 ਕੁ ਮੀਟਰ ਦੂਰ ਸੀ ਕਿ ਕਿਣਮਿਣ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ । ਮੈਂ ਦੌੜ ਕੇ ਆਪਣੇ ਘਰ ਜਾ ਪੁੱਜਾ । ਘਰ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਮੈਂ ਗਿੱਲੇ ਕੱਪੜੇ ਲਾਹੇ ਤੇ ਸੁੱਕੇ ਪਾਏ । ਮੇਰੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਗਰਮ-ਗਰਮ ਚਾਹ ਪਿਲਾਈ ।

ਸੌਣ ਵੇਲੇ ਤਕ ਮੀਂਹ ਦਾ ਪੈਣਾ :
ਇਸ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਮੀਂਹ ਰਾਤ ਸੌਣ ਵੇਲੇ ਤਕ ਪੈਂਦਾ ਰਿਹਾ । ਅੰਤ ਨੂੰ ਮੇਰੇ ਸੁੱਤਿਆਂ ਇਹ ਮੀਂਹ ਕਿਸੇ ਵੇਲੇ ਬੰਦ ਹੋ ਗਿਆ ।

16. ਭਖਵੀਂ ਗਰਮੀ ਦਾ ਇਕ ਦਿਨ

ਗਰਮੀ ਦੀ ਰੁੱਤ :
ਉੱਤਰੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਜੂਨ ਅਤੇ ਜੁਲਾਈ ਸਖ਼ਤ ਗਰਮੀ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਉਂਝ ਤਾਂ ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਮਹੀਨੇ ਖੂਬ ਤਪਦੇ ਹਨ, ਪਰ ਕਿਸੇ-ਕਿਸੇ ਦਿਨ ਤਾਂ ਗਰਮੀ ਦੀ ਅੱਤ ਹੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਅੱਤ ਗਰਮੀ ਦਾ ਦਿਨ ਬੀਤੇ ਸਾਲ 25 ਜੂਨ ਦਾ ਸੀ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਗਰਮੀ ਦੀ ਰੁੱਤ-ਗਰਮੀ ਦਾ ਦਿਨ-ਗਰਮੀ ਦਾ ਵਧਣਾ-ਦੁਪਹਿਰੇ ਬਿਜਲੀ ਦਾ ਬੰਦ ਹੋਣਾ-ਸ਼ਾਮ ਵੇਲੇ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੱਟ-ਰਿਕਾਰਡ ਤੋੜ ਗਰਮੀ ।)

ਗਰਮੀ ਦਾ ਦਿਨ :
ਇਸ ਦਿਨ ਐਤਵਾਰ ਸੀ । ਮੈਨੂੰ ਸਵੇਰੇ ਉੱਠਦਿਆਂ ਹੀ ਗਰਮੀ ਕਾਰਨ ਬੜੀ ਬੇਚੈਨੀ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋ ਰਹੀ ਸੀ । ਮੈਂ ਠੰਢੇ ਪਾਣੀ ਦੀਆਂ ਦੋ ਬਾਲਟੀਆਂ ਭਰੀਆਂ ਤੇ ਰੱਜ ਕੇ ਨਹਾਤਾ । ਮੈਂ ਪੱਖੇ ਦੀ ਹਵਾ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ ਨਾਸ਼ਤਾ ਕੀਤਾ ਤੇ ਫਿਰ ਇਕ ਕਿਤਾਬ ਫੜ ਕੇ ਪੜ੍ਹਨ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਮੇਰੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਤੇ ਛੋਟੀ ਭੈਣ ਵੀ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਪੱਖੇ ਹੇਠ ਆ ਬੈਠੇ ।

ਗਰਮੀ ਦਾ ਵਧਣਾ :
ਹੁਣ ਧੁੱਪ ਚੜ੍ਹ ਗਈ ਤੇ 11 ਕੁ ਵਜੇ ਗਰਮੀ ਕਾਫ਼ੀ ਤੇਜ਼ ਹੋ ਗਈ । ਕਮਰਿਆਂ ਦਾ ਅੰਦਰ, ਬਾਹਰ, ਮੰਜੇ ਤੇ ਬਿਸਤਰੇ, ਸਭ ਕੁੱਝ ਤਪਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ । ਬਾਹਰ ਤਪਦੀ ਧੁੱਪ ਪੈ ਰਹੀ ਸੀ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸੜਕਾਂ ਤੇ ਆਉਣਾ-ਜਾਣਾ ਕਾਫ਼ੀ ਘਟ ਗਿਆ ਸੀ ।

ਗਲੀਆਂ ਵਿਚ ਕੁਲਫ਼ੀਆਂ ਤੇ ਆਈਸ ਕਰੀਮ ਵੇਚਣ ਵਾਲੇ ਹੋਕੇ ਦੇ ਰਹੇ ਸਨ । ਕਦੇ-ਕਦੇ ਸੜਕ ਤੋਂ ਕੋਈ ਸ਼ਕੰਜਵੀ ਜਾਂ ਸੋਡਾ ਵੇਚਣ ਵਾਲਾ ਹੋਕਾ ਦਿੰਦਾ ਹੋਇਆ ਲੰਘਦਾ ਸੀ । ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਬੱਚੇ ਤੇ ਆਦਮੀ-ਤੀਵੀਆਂ ਇਹਨਾਂ ਠੰਢੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਰੀਦ-ਖ਼ਰੀਦ ਕੇ ਖਾ ਰਹੇ ਸਨ । ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਤੇ ਲੱਗ ਰਹੀ ਸੀ ਤੇ ਉਹ ਪਾਣੀ ਪੀ-ਪੀ ਕੇ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਮਿਟਦੀ ।

ਦੁਪਹਿਰੇ ਬਿਜਲੀ ਦਾ ਬੰਦ ਹੋਣਾ :
ਸਾਢੇ ਕੁ ਬਾਰਾਂ ਵਜੇ ਗਰਮੀ ਵਿਚ ਹੋਰ ਵੀ ਤੇਜ਼ੀ ਆਉਣ ਲੱਗੀ ਤੇ ਰਹਿੰਦੀ ਕਸਰ ਬਿਜਲੀ ਦੇ ਬੰਦ ਹੋਣ ਨੇ ਪੂਰੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਬਿਜਲੀ ਬੰਦ ਹੋਣ ਨਾਲ ਸਾਰੇ ਘਰਾਂ ਦੇ ਪੱਖਿਆਂ ਸਮੇਤ ਸਾਡਾ ਪੱਖਾ ਵੀ ਬੰਦ ਹੋ ਗਿਆ । ਬੱਸ ਫਿਰ ਕੀ ਸੀ, ਗਰਮੀ ਨਾਲ ਸਾਡੀਆਂ ਜਾਨਾਂ ਨਿਕਲਣ ਲੱਗੀਆਂ ਅਤੇ ਅਸੀਂ ਕਦੇ ਪੱਖੀਆਂ ਨਾਲ ਹਵਾ ਝਲਦੇ ਸਾਂ, ਕਦੇ ‘ਗੱਤਿਆਂ ਨਾਲ ! ਪਸੀਨੇ ਦੇ ਹੜ ਵਗ ਰਹੇ ਸਨ । ਲੋਕ ਤਾਰ-ਤਾਹ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ! ਛੋਟੇ ਬੱਚੇ ਰੋ ਰਹੇ ਸਨ । ਚਿੜੀਆਂ ਘਰਾਂ ਦੀਆਂ ਛੱਤਾਂ ਵਿਚ ਵੜੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ । ਦੁਪਹਿਰ ਦੀ ਰੋਟੀ ਖਾ ਕੇ ਮੇਰੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿਚ ਨੀਂਦ ਰੜਕਣ ਲੱਗੀ, ਪਰ ਮੁੜਕੇ ਤੇ ਗਰਮੀ ਵਿਚ ਨੀਂਦ ਕਿੱਥੋਂ ? ਤਿੰਨ ਵਜੇ ਬਿਜਲੀ ਵੀ ਆ ਗਈ । ਹੁਣ ਪੱਖਾ ਚੱਲਣ ਨਾਲ ਸਾਡੀ ਜਾਨ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਜਾਨ ਆਈ ।

ਸ਼ਾਮ ਵੇਲੇ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੱਟ : ਪੰਜ ਕੁ ਵਜੇ ਭਾਵੇਂ ਧੁੱਪ ਤਾਂ ਮੱਠੀ ਪੈ ਗਈ ਸੀ, ਪਰ ਵੱਟ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਸੀ । ਇਸ ਵੇਲੇ ਲੋਕ ਘਰੋਂ ਆਪੋ-ਆਪਣੇ ਕੰਮਾਂ ‘ਤੇ ਨਿਕਲ ਪਏ ।

ਰਿਕਾਰਡ ਤੋੜ ਗਰਮੀ :
ਰਾਤ ਨੂੰ ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਮੰਜਿਆਂ ‘ਤੇ ਪਏ, ਤਾਂ ਠੰਢੀ-ਠੰਢੀ ਹਵਾ ਰੁਮਕਣ ਲੱਗੀ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਅਰਾਮ ਨਾਲ ਸੁੱਤੇ । ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਮੈਂ ਸਵੇਰੇ ਉੱਠ ਕੇ ਅਖ਼ਬਾਰ ਪੜੀ, ਤਾਂ ਉਸ ਵਿਚ ਬੀਤੇ ਦਿਨ ਦੀ ਗਰਮੀ ਬਾਰੇ ਮੋਟੇ ਅੱਖਰਾਂ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਦਿਨ ਦਾ ਤਾਪਮਾਨ 48.6° ਸੈਲਸੀਅਸ ਰਿਹਾ ਤੇ ਅਜਿਹੀ ਗਰਮੀ ਪਿਛਲੇ ਤੀਹ ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਪਈ ।

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17. ਮੇਰਾ ਮਨ-ਭਾਉਂਦਾ ਅਧਿਆਪਕ
ਜਾਂ
ਸਾਡੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ
ਜਾਂ
ਸਾਡੇ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ

ਮਨ-ਭਾਉਂਦਾ ਅਧਿਆਪਕ :
ਮੈਂ ਸਰਕਾਰੀਸੀਨੀ ਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦਾ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਹਾਂ । ਉਂਝ ਤਾਂ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਸਾਰੇ ਅਧਿਆਪਕ ਹੀ ਬੜੇ ਸੁਯੋਗ ਤੇ ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ ਹਨ, ਪਰ ਮੇਰਾ ਮਨ-ਭਾਉਂਦਾ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਡਾ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ (ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ) ਹੈ । ਉਹ ਇਕਆਦਰਸ਼ ਅਧਿਆਪਕ ਹਨ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਐੱਮ. ਏ., ਐੱਮ. ਐੱਡ. ਤਕ ਵਿੱਦਿਆ ਹਾਸਲ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਹੈ । ਉਹ ਸਾਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਪੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਮਨ-ਭਾਉਂਦਾ ਅਧਿਆਪਕ-ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਦਾ ਢੰਗ-ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨਾਲ ਪਿਆਰ-ਸੁਚੱਜੇ ਮੁਖੀ ਤੇ ਪ੍ਰਬੰਧਕ-ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ)

ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਦੇ ਢੰਗੇ :
ਉਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਪੜਾਉਣ ਦੇ ਢੰਗ ਹੈ । ਉਹ ਸਾਨੂੰ ਐਤਕੀਂ ਹੀ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਲੱਗੇ ਹਨ, ਪਰ ਜਿੰਨਾ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸਾਡੀ ਕਲਾਸ ਉੱਪਰ ਆਪਣਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਇਆ ਹੈ, ਇਹੋ-ਜਿਹਾਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਉੱਪਰ ਕਦੇ ਕਿਸੇ ਅਧਿਆਪਕ ਦਾ ਘੱਟ ਹੀ ਪਿਆ ਹੈ । ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਹੋਈ ਇਕ-ਇਕ ਚੀਜ਼ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।ਉਹ ਔਖੇ ਪਾਨਾਂ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਉਣ, ਔਖੇ ਸ਼ਬਦ-ਜੋੜਾਂ ਤੇ ਵਾਰੇ ਰਚਨਾ ਨੂੰ ਸਿਖਾਉਣ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਆਕਰਨ ਦੀਆਂ ਹੋਰਨਾਂ ਗੱਲਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਾਉਣ ਲਈ ਬੜੇ ਸੋਚੇਲੇ ਢੰਗਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਫਲਸਰੂਪ ਸਾਡੀ ਕਲਾਸ ਦੇ ਆਰੰਭ ਹੋਣ ਤੋਂ ਦੋ ਮਹੀਨੇ ਦੇ ਅੰਦਰ-ਅੰਦਰੇ ਹੀ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀਆਂ ਸਭ ਮਜ਼ੋਰੀਆਂ ਦੂਰ ਹੋ ਗਈਆਂ ਹਨ ।

ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨਾਲ ਪਿਆਰ :
ਉਹ ਕੇਵਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਸ਼ੇ ਨੂੰ ਹੀ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਦਾ ਗੁਣ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦੇ, ਸਗੋਂ ਉਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਵੀ ਬਹੁਤੇ ਰੱਖਦੇ ਹਨ । ਸ਼ਾਇਦ ਇਹੋ ਹੀ ਕਾਰਨ ਹੈ ਕਿ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਉਹਨਾਂ ਕੋਲੋਂ ਹੋ ਕੇ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਝ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ।ਉਹ ਕਿਸੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਕੋਈ ਚੀਜ਼ ਸਮਝ ਨਾ ਉਣ ‘ਤੇ ਮਾਰਦੇ-ਕੁੱਟਦੇ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਪਿਆਰੇ ਤੇ ਹਮਦਰਦੀ ਨਾਲ ਵਾਰੇ-ਵਾਰੇ ਸਮਝਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇ॥ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਨਾ ਪੜ੍ਹਾਈ ਤੋਂ ਡਰ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਤੈ ਨਾ ਹੀ ਅਧਿਆਪਕ ਤੋਂ ।ਉਹ ਪੂਰੇ ਦਿਲ-ਦਿਮਾਗ਼ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਲ ਧਿਆਨ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਸੁਚੱਜੇ ਮੁਖੀ ਤੇ ਪ੍ਰਬੰਧਕੇ :
ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇਕ ਸੁਚੱਜੇ ਮੁਖੀ ਤੇ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਵਿਚ ਰਹਿਣ ਦੀ ਸਿਖਲਾਈ ਦਿੱਤੀ ਹੈ । ਉਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਸਭ ਕੰਮ ਛੱਡ ਕੇ ਪੜ੍ਹਾਈ ਨੂੰ ਪਹਿਲ ਦੇਣ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਖੇਡਾਂ ਦੀ ਮਹਾਉਤਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਸਪੱਸ਼ਟੇ ਕਰਦੇ ਹਨ ਉਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਸਿਖਾਉਂਦੇ ਹਨ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾਂ ਤੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਪੜ੍ਹਾਈ ਦਿਲ ਲਾ ਕੇ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਸਕੂਲ ਦੀ ਬਿਲਡਿੰਗੇ ਤੇ ਬਗੀਚਿਆਂ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਨਹੀਂ ਪੁਚਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ, ਕਲਾਸਾਂ ਵਿਚੋਂ ਗ਼ੈਰ-ਹਾਜ਼ਰੇ ਨਹੀਂ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਆਦਿ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਪੜਨ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਵੀ ਦਿੱਤੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਆਮ-ਗਿਆਨਿ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਵਧ ਰਿਹਾ ਹੈ ਉਹ ਗ਼ਰੀਬ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੀਸਾਂ ਮਾਫ਼ ਕਰ ਕੇ ਤੇ ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਵਿਚੋਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੇ ਕੇ ਸੇਹਾਇਤਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਹੋਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਈ :
ਉਹ ਸਮੇਂ ਦੇ ਬੜੇ ਪਾਬੰਦ ਹੋਨੇ ।ਉਹ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਸਕੂਲ ਪੁੱਜਦੇ ਹਨ ਤੇ ਪਾਰਥੇਨਾ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਚੰਗੇ ਸਿਹਤਮੰਦ ਸਰੀਰ ਦੇ ਮਾਲਿਕੇ ਹੋਨੇ ।ਉਹ ਬਹੁਤੇ ਮਿੱਠਾ ਬੋਲਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਹੋਰ ਇਕਾਂ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਾਚਾਰੀ ਤੇ ਪਿਆਰੇ ਰੱਖਦੇ ਹਨ । ਸੋਭੂਲੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਅਧਿਆਪਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਆਦਰ-ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਈਮਾਨਦਾਰ ਤੇ ਸੱਚ ਬੋਲਣ ਵਾਲੇ ਹਨ । ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਦੇਖ-ਰੇਖ ਹੇਠ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਹੋਰੇ ਸਾਲੇ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਆਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਉਹ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਇਕ ਆਦਰਸ਼ੇ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਮੰਨੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਉਹ ਕੇਵਲ ਮੇਰੇ ਹੀ ਮਨ-ਭਾਉਂਦੇ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲੇ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਉਹ ਸਕੂਲ ਦੇ ਸਮੁੱਚੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਅਤੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਅਤੇ ਸੋਨਮਾਨਯੋਗੀ ਹਨ ।

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18. ਮੇਰਾ ਪਿਆਰਾ ਸਕੂਲ

ਸਕੂਲ ਦਾ ਨਾਂ ਤੇ ਸਥਿਤੀ :
ਮੇਰੇ ਸਕੂਲ ਦਾ ਨਾਂ : ਸੰਤ ਸਿੰਘ ਸੁਖਾ ਸਿੰਘ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ ਹੈ, ਜੋ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਮਜੀਠਾ ਰੋਡ ਉੱਤੇ ਸਥਿਤ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਨੇੜੇ-ਨੇੜੇ ਹੋਰ ਵੀ ਸਕੂਲ ਸਥਿਤ ਹਨ । ਇਸ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਰਾਮ ਆਸ਼ਰਮ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ ਸਥਿਤ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਸਕੂਲ ਦਾ ਨਾਂ ਤੇ ਸਥਿਤੀ ਇਮਾਰਤ, ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਤੇ ਪ੍ਰਯੋਗਸ਼ਾਲਾਵਾਂ-ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਤੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ-ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਤੇ ਪੜ੍ਹਾਈ-ਬਗੀਚਾ ਤੇ ਖੇਡਾਂ ਦੇ ਮੈਦਾਨ-ਆਦਰਸ਼ ਸਕੂਲ)

ਇਮਾਰਤ, ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਤੇ ਪ੍ਰਯੋਗਸ਼ਾਲਾਵਾਂ :
ਇਸ ਸਕੂਲ ਦੀ ਇਮਾਰਤ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ 25 ਤੋਂ ਵੱਧ ਵੱਡੇ ਕਮਰੇ ਹਨ ਤੇ ਇਕ ਵੱਡਾ ਹਾਲ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਇਕ ਚੰਗੀ ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ 10,000 ਦੇ ਕਰੀਬ ਪੁਸਤਕਾਂ ਹਨ । ਇਸ ਵਿਚ ਸਾਇੰਸ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਲਈ ਹਰ ਪੱਖ ਤੋਂ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਯੋਗਸ਼ਾਲਾਵਾਂ ਬਣੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ ।

ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਅਤੇ ਅਧਿਆਪਕ :
ਇਸ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਲਗਪਗ 1200 ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹਨ । ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਲਈ 35 ਦੇ ਕਰੀਬ ਅਧਿਆਪਕ ਹਨ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ ਬੜੇ ਸੁਯੋਗ ਤੇ ਲਾਇਕ ਹਨ । ਉਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਤੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨਪਿਆਰੇ ਹਨ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀਆਂ ਵਿੱਦਿਅਕ ਸੇਵਾਵਾਂ ਬਦਲੇ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਇਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਤੇ ਪੜ੍ਹਾਈ :
ਇਸ ਸਕੂਲ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਇਸ ਵਿਚ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਹੈ । ਅਧਿਆਪਕ ਅਤੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਸਕੂਲ ਪੁੱਜਦੇ ਹਨ । ਅਧਿਆਪਕ ਪੂਰੀ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਉਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨਾਲ ਨਿੱਜੀ ਸੰਬੰਧ ਪੈਦਾ ਕਰ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਪੜ੍ਹਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਬੜੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਤੇ ਆਪਣੇ-ਆਪਣੇ ਵਿਸ਼ੇ ਵਿਚ ਨਿਪੁੰਨ ਪ੍ਰਤੀਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਮਿਹਨਤ ਦਾ ਹੀ ਸਿੱਟਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਸਕੂਲ ਦੇ 8ਵੀਂ, 10ਵੀਂ ਤੇ 12ਵੀਂ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਹਰ ਸਾਲ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਅੱਠ-ਦਸ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਹਰ ਸਾਲ ਮੈਰਿਟ ਲਿਸਟ ਵਿਚ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਬਗੀਚਾ ਤੇ ਖੇਡਾਂ ਦੇ ਮੈਦਾਨ :
ਇਸ ਸਕੂਲ ਦਾ ਬਗੀਚਾ ਹਰਾ-ਭਰਾ ਤੇ ਫੁੱਲਾਂ ਨਾਲ ਲੱਦਿਆ ਪਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਸਕੂਲ ਦੀ ਬਿਲਡਿੰਗ ਨਵੀਂ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਕਮਰੇ ਖੁੱਲ੍ਹੇ ਤੇ ਹਵਾਦਾਰ ਹਨ । ਇਸ ਸਭੁਲ ਕੋਲ ਹਾਕੀ, ਫੁੱਟਬਾਲ, ਬਾਸਕਟਬਾਲ ਤੇ ਕ੍ਰਿਕਟ ਖੇਡਣ ਲਈ ਖੁੱਲੀਆਂ ਤੇ ਪੱਧਰੀਆਂ ਗੁਰਾਊਂਡਾਂ ਹਨ ।

ਆਦਰਸ਼ ਸਕੂਲ :
ਸਕੂਲ ਦੇ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ ਬੜੀ ਯੋਗਤਾ ਨਾਲ ਸਕੂਲ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਚਲਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਸਵੇਰੇ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਇਕ ਸੰਖੇਪ ਜਿਹਾ ਲੈਕਚਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਇਕ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਨੂੰ ਦੈਨਿਕ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰੀ ਖ਼ਬਰਾਂ ਸੁਣਾ ਕੇ ਸਾਡੇ ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਫਿਰ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀਆਂ ਕਲਾਸਾਂ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਅਰਾਮ ਨਾਲ ਸਾਰੇ ਪੀਰੀਅਡ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹਾਂ । ਪੰਜਵੇਂ ਪੀਰੀਅਡ ਪਿੱਛੋਂ 30 ਮਿੰਟ ਲਈ ਅੱਧੀ ਛੁੱਟੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਪੜ੍ਹਾਈ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਬੜੀ ਸ਼ਾਂਤੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਕੰਮ ਨੂੰ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਚਲਦਾ ਰੱਖਣ ਲਈ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ ਆਪ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਵਰਾਂਡਿਆਂ ਵਿਚ ਚੱਕਰ ਮਾਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਜ਼ੁਰਮਾਨੇ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸ੍ਰੀਰਕ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਸੂਝ ਨੂੰ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਉਸਾਰਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਹਰ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਪਣੇ ਕਰਤੱਵ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਨੈਤਿਕ ਫ਼ਰਜ਼ ਸਮਝ ਕੇ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਮੈਂ ਅਜਿਹੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਹੋ ਕੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤ ਅਨੁਭਵ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ।

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19. ਮੇਰਾ ਮਿੱਤਰ

ਸਾਡਾ ਆਪਸੀ ਪਿਆਰ ;
ਅਰਸ਼ਦੀਪ ਮੇਰਾ ਮਿੱਤਰ ਹੈ। ਉਹ ਮੇਰਾ ਸਹਿਪਾਠੀ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਦੋਵੇਂ ਅੱਠਵੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹਾਂ । ਉਸ ਦਾ ਤੇ ਮੇਰਾ ਰੋਲ ਨੰਬਰ ਅੱਗੇ-ਪਿੱਛੇ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਦੋਵੇਂ ਇਕੋ ਡੈਸਕ ‘ਤੇ ਬੈਠਦੇ ਹਾਂ । ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਉਸ ਦਾ ਘਰ ਮੇਰੀ ਗਲੀ ਵਿਚ ਹੀ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਦੋਵੇਂ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸਮਾਂ ਇਕੱਠੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਰਾਤ ਨੂੰ ਇਕੱਠੇ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹਾਂ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਸਾਡਾ ਆਪਸੀ ਪਿਆਰ-ਨੇਕ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਦਾ ਸਪੁੱਤਰ-ਪੜਾਈ ਵਿਚ ਹੁਸ਼ਿਆਰ-ਫ਼ਜ਼ੂਲ-ਖ਼ਰਚੀ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ-ਆਮ-ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ-ਚੰਗਾ ਖਿਡਾਰੀ-ਵਕਤਾ ਤੇ ਗਾਇਕ-ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਤੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ॥ )

ਨੇਕ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਦਾ ਸਪੁੱਤਰ ;
ਉਸ ਦੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਬਹੁਤ ਨੇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਹਨ । ਉਸ ਦਾ ਪਿਤਾ ਇਕ ਡਾਕਟਰ ਹੈ, ਜੋ ਬਿਮਾਰਾਂ ਦੇ ਦਿਲਾਂ ਦਾ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਹੈ । ਉਸ ਦੀ ਮਾਤਾ ਇਕ ਧਰਮਾਤਮਾ ਇਸਤਰੀ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਘਰ ਵਿਚ ਗਲੀ ਦੇ ਨਿੱਕੇ-ਨਿੱਕੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨਾ, ਪਾਠ ਕਰਨਾ ਤੇ ਸ਼ਬਦ ਗਾਉਣੇ ਸਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਆਪਣੀ ਮਾਤਾ ਦੇ ਗੁਰਬਾਣੀ ਤੇ ਕੀਰਤਨ ਨਾਲ ਪ੍ਰੇਮ ਕਰਕੇ ਮੇਰੇ ਮਿੱਤਰ ਵਿਚ ਵੀ ਇਹ ਗੁਣ ਭਰੇ ਪਏ ਹਨ । ਉਹ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਗਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ।

ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਿਚ ਹੁਸ਼ਿਆਰ :
ਮੇਰਾ ਮਿੱਤਰ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਹੁਸ਼ਿਆਰ ਹੈ । ਉਹ ਹਰ ਸਾਲ ਕਲਾਸ ਵਿਚੋਂ ਅੱਵਲ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਹ ਹਿਸਾਬ ਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਹੀ ਹੁਸ਼ਿਆਰ ਹੈ, ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦਾ ਜ਼ਰਾ ਜਿੰਨਾ ਵੀ ਹੰਕਾਰ ਨਹੀਂ । ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਹੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਿਚ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਉਸ ਕੋਲੋਂ ਪੜ੍ਹਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਕਈ ਗੱਲਾਂ ਪੁੱਛਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ।ਉਹ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਿਚ ਮੇਰੀ ਵੀ ਬਹੁਤ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਫ਼ਜ਼ਲ-ਖ਼ਰਚੀ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ :
ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰਨ ਲਈ ਪੈਸਿਆਂ ਦੀ ਤੰਗੀ ਨਹੀਂ ।ਉਹ ਫ਼ਜ਼ੂਲ-ਖ਼ਰਚੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਜੇਬ-ਖ਼ਰਚ ਵਿਚੋਂ ਬਚਾਏ ਪੈਸਿਆਂ ਨਾਲ ਗਰੀਬ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਵੀ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਆਮ-ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ :
ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਆਮ-ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸ਼ੌਕ ਹੈ ।ਉਹ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਪੜ੍ਹਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਵਾਰ ਉਹ ਰਸਾਲੇ ਤੇ ਆਮ-ਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਪੁਸਤਕਾਂ ਖ਼ਰੀਦ ਕੇ ਆਪ ਵੀ ਪੜ੍ਹਦਾ ਹੈ ਤੇ ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਦੇ ਉਹੋ ਪ੍ਰੋਗ੍ਰਾਮ ਹੀ ਦੇਖਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਆਮ-ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਹੋਣ ।

ਚੰਗਾ ਖਿਡਾਰੀ :
ਸਕੂਲ ਤੋਂ ਘਰ ਆ ਕੇ ਉਹ ਪਹਿਲਾਂ ਸਕੂਲ ਦਾ ਕੰਮ ਮੁਕਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਕਿਤਾਬੀ ਕੀੜਾ ਨਹੀਂ । ਉਹ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਫੁਟਬਾਲ ਖੇਡਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਦੀ ਫੁਟਬਾਲ ਦੀ ਟੀਮ ਦਾ ਕਪਤਾਨ ਹੈ । ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਭਰ ਦੇ ਹੋਏ ਫੁੱਟਬਾਲ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਵਿਚ ਉਹ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਖਿਡਾਰੀ ਮੰਨਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਸ ਬਦਲੇ ਉਸ ਨੂੰ ਵੀ ਇਨਾਮ ਮਿਲਿਆ । ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦਫ਼ਤਰ ਵਿਚ ਪਏ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕੱਪ ਤੇ ਸ਼ੀਲਡਾਂ ਉਸ ਨੇ ਹੀ ਜਿੱਤੀਆਂ ਹਨ ।

ਵਕਤਾ ਤੇ ਗਾਇਕ :
ਉਹ ਇਕ ਚੰਗਾ ਵਕਤਾ (ਬੁਲਾਰਾ) ਵੀ ਹੈ । ਉਸ ਨੇ ਕਈ ਭਾਸ਼ਨ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈ ਕੇ ਇਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਹਨ ਉਹ ਇਕ ਚੰਗਾ ਗਾਇਕ ਵੀ ਹੈ । ਉਸ ਵਰਗੀ ਸੁਰੀਲੀ ਅਵਾਜ਼ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦੀ ਨਹੀਂ । ਉਸ ਨੇ ਕਈ ਕਵਿਤਾ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਵਿਚ ਪਹਿਲੇ ਨੰਬਰ ‘ਤੇ ਰਹਿ ਕੇ ਇਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਹਨ ।

ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਤੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ :
ਉਹ ਇਕ ਨੇਕ ਤੇ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਮਿੱਤਰ ਹੈ ।ਉਸ ਦਾ ਸਰੀਰ ਸੁੰਦਰ ਅਤੇ ਤਕੜਾ ਹੈ ।ਉਹ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਮੇਰੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਮੇਰਾ ਦਿਲੀ ਮਿੱਤਰ ਹੈ । ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਸਾਰੇ ਅਧਿਆਪਕ ਅਤੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ ਉਸ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਇਸ ਮਿੱਤਰ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਮਾਣ ਹੈ ।ਰੱਬ ਕਰੇ, ਉਸ ਨੂੰ ਹਰ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਵੇ !

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

20. ਅੱਖੀਂ ਡਿੱਠਾ ਮੈਚ
ਜਾਂ
ਫੁੱਟਬਾਲ ਦਾ ਮੈਚ

ਸਾਡੀ ਟੀਮ ਦਾ ਮੈਚ ਖੇਡਣ ਜਾਣਾ :
ਐਤਵਾਰ ਦਾ ਦਿਨ ਸੀ । ਪਿਛਲੇ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਤੋਂ ਲਾਇਲਪੁਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ, ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਖੇਡ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਫੁੱਟਬਾਲ ਦੇ ਮੈਚ ਹੋ ਰਹੇਂ ਸਨ । ਫਾਈਨਲ ਮੈਚ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ (ਗੌਰਮਿੰਟ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ, ਟਾਊਨ ਹਾਲ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ) ਦੀ ਟੀਮ ਅਤੇ ਦੁਆਬਾ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ, ਜਲੰਧਰ ਦੀ ਟੀਮ ਵਿਚਕਾਰ ਖੇਡਿਆ ਜਾਣਾ ਸੀ ।

ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਸਾਡੀ ਟੀਮ ਦਾ ਮੈਚ ਖੇਡਣ ਜਾਣਾ-ਖਿਡਾਰੀ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ-ਪਹਿਲੇ ਅੱਧ ਦੀ ਖੇਡ-ਦੂਜੇ ਅੱਧ ਦੀ ਖੇਡ-ਸਾਡੀ ਟੀਮ ਵਲੋਂ ਗੋਲ ਉਤਾਰਨਾ-ਮੈਚ ਜਿੱਤਣਾ ॥

ਖਿਡਾਰੀ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ :
ਸ਼ਾਮ ਦੇ ਚਾਰ ਵਜੇ ਖਿਡਾਰੀ ਖੇਡ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਆ ਗਏ ।ਰੈਫ਼ਰੀ ਨੇ ਠੀਕ ਸਮੇਂ ‘ਤੇ ਵਿਸਲ ਵਜਾਈ ਅਤੇ ਦੋਵੇਂ ਟੀਮਾਂ ਮੈਚ ਖੇਡਣ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਈਆਂ । ਸਾਡੀ ਟੀਮ ਦਾ ਕੈਪਟਨ ਸਰਦੂਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਦੁਆਬਾ ਸਕੂਲ ਦੀ ਟੀਮ ਦਾ ਕੈਪਟਨ ਕਰਮ ਚੰਦ ਸੀ ।ਟਾਸ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਦੀ ਟੀਮ ਨੇ ਜਿੱਤਿਆ । ਸਾਰੇ ਖਿਡਾਰੀ ਖੇਡ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਖਿੰਡ ਗਏ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਪੁਜ਼ੀਸ਼ਨਾਂ ਸੰਭਾਲ ਲਈਆਂ ।

ਪਹਿਲੇ ਅੱਧ ਦੀ ਖੇਡ :
ਰੈਫ਼ਰੀ ਦੀ ਵਿਸਲ ਨਾਲ ਅੱਖ ਫ਼ਰਕਣ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਹੀ ਖੇਡ ਆਰੰਭ ਹੋ ਗਈ । ਮੈਚ ਦੇਖਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 5 ਹਜ਼ਾਰ ਤੋਂ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੀ । ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ 15 ਕੁ ਮਿੰਟ ਸਾਡੀ ਟੀਮ ਖ਼ੂਬ ਅੜੀ ਰਹੀ, ਪਰ ਦੁਆਬਾ ਹਾਈ ਸਕੂਲ ਦੇ ਫਾਰਵਰਡਾਂ ਨੇ ਬਾਲ ਨੂੰ ਸਾਡੇ ਗੋਲਾਂ ਵਲ ਹੀ ਰੱਖਿਆ । ਸਾਡਾ ਬਿੱਲਾ ਰਾਈਟ-ਆਊਟ ਖੇਡਦਾ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਬਾਲ ਉਸ ਕੋਲ ਆਇਆ, ਤਾਂ ਉਹ ਜਲਦੀ ਹੀ ਮੈਦਾਨ ਦੀ ਹੱਦ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਗੋਲਾਂ ਪਾਸ ਪੁੱਜ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਬਾਲ ਕੈਪਟਨ ਸਰਦੂਲ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਹੀ ਸੀ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਫੁੱਲ-ਬੈਕਾਂ ਨੇ ਉਸ ਪਾਸੋਂ ਬਾਲ ਲੈ ਲਿਆ ਤੇ ਇੰਨੀ ਜ਼ੋਰ ਦੀ ਕਿੱਕ ਮਾਰੀ ਕਿ ਬਾਲ ਮੁੜ ਸਾਡੇ ਗੋਲਾਂ ਵਿਚ ਆ ਗਿਆ । ਪਰ ਸਾਡਾ ਗੋਲਕੀਪਰ ਬਹੁਤ ਚੌਕੰਨਾ ਸੀ । ਬਾਲ ਉਸ ਦੇ ਪਾਸ ਪੁੱਜਾ ਹੀ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਰੋਕ ਲਿਆ । ਅਚਾਨਕ ਹੀ ਅੱਧੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਵਿਸਲ ਵੱਜ ਗਈ ।

ਦੂਜੇ ਅੱਧ ਦੀ ਖੇਡ :
ਕੁੱਝ ਮਿੰਟਾਂ ਮਗਰੋਂ ਖੇਡ ਦੂਜੀ ਵਾਰ ਆਰੰਭ ਹੋਈ । ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਖੱਬੇਆਉਟ ਨੇ ਅਜਿਹੀ ਕਿੱਕ ਮਾਰੀ ਕਿ ਬਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਕੈਪਟਨ ਪਾਸ ਪੁੱਜ ਗਿਆ । ਦਰਸ਼ਕਾਂ ਨੇ ਤਾੜੀਆਂ ਵਜਾਈਆਂ । ਅਚਾਨਕ ਹੀ ਬਾਲ ਸਾਡੇ ਫੁੱਲ-ਬੈਕ ਕੋਲੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੋਇਆ ਸਾਡੇ ਗੋਲਾਂ ਕੋਲ ਜਾ ਪੁੱਜਾ । ਗੋਲਚੀ ਦੇ ਬਹੁਤ ਯਤਨ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਵੀ ਸਾਡੇ ਸਿਰ ਇਕ ਗੋਲ ਹੋ ਗਿਆ । ਹੁਣ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਚੜ੍ਹ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਚ ਗਈ ।

ਸਾਡੀ ਟੀਮ ਵਲੋਂ ਗੋਲ ਉਤਾਰਨਾ :
ਸਮਾਂ ਕੇਵਲ 10 ਮਿੰਟ ਹੀ ਰਹਿ ਗਿਆ । ਸਾਡੇ ਕੈਪਟਨ ਨੇ ਬਾਲ਼ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕੱਢ ਕੇ ਰਾਈਟ-ਆਊਟ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਨੁੱਕਰ ਉੱਤੇ ਜਾ ਕੇ ਅਜਿਹੀ ਕਿੱਕ ਮਾਰੀ ਕਿ ਗੋਲ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਮੈਚ ਜਿੱਤਣਾ :
ਇਸ ਵੇਲੇ ਖੇਡ ਬਹੁਤ ਗੁਰਜ਼ੋਸ਼ੀ ਨਾਲ ਖੇਡੀ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ । ਅਚਾਨਕ ਬਾਲ ਸਾਡੇ ਗੋਲਾਂ ਵਿਚ ਪੁੱਜ ਗਿਆ । ਜੇਕਰ ਸਾਡਾ ਗੋਲਚੀ ਚੁਸਤੀ ਨਾ ਦਿਖਾਉਂਦਾ, ਤਾਂ ਗੋਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ । ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਸਾਡੇ ਕੈਪਟਨ ਨੇ ਸੈਂਟਰ ਵਿਚੋਂ ਅਜਿਹੀ ਕਿੱਕ ਮਾਰੀ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਗੋਲਚੀ ਨੇ ਰੋਕ ਤਾਂ ਲਈ, ਪਰੰਤੁ ਬਾਲ ਖਿਸਕ ਕੇ ਗੋਲਾਂ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘ ਗਿਆ । ਰੈਫ਼ਰੀ ਨੇ ਵਿਸਲ ਮਾਰ ਕੇ ਗੋਲ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਕ ਮਿੰਟ ਮਗਰੋਂ ਹੀ ਖੇਡ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਗਈ ਅਸੀਂ ਮੈਚ ਜਿੱਤ ਗਏ । ਇਹ ਮੈਚ ਜਿੱਤ ਕੇ ਅਸੀਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਵਿਚੋਂ ਪਹਿਲੇ ਨੰਬਰ ਤੇ ਰਹੇ।

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21. ਹਾਕੀ ਦਾ ਮੈਚ

ਹਾਕੀ ਦਾ ਫ਼ਾਈਨਲ ਮੈਚ :
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਕੂਲੀ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਰਾਜ-ਪੱਧਰ ਦੇ ਹਾਕੀ ਮੁਕਾਬਲੇ ਇਸ ਸਾਲ ਜਲੰਧਰ ਵਿਚ ਹੋ ਰਹੇ ਸਨ । ਹਾਕੀ ਦਾ ਫ਼ਾਈਨਲ ਮੈਚ ਸਾਈਂ ਦਾਸ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ, ਜਲੰਧਰ ਤੇ । ਗੌਰਮਿੰਟ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ, ਲੁਧਿਆਣਾ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਣਾ ਸੀ । ਸੈਂਕੜੇ ਦਰਸ਼ਕ ਇਹ ਮੈਚ ਦੇਖਣ ਆਏ ਹੋਏ ਸਨ । ਖੇਡ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਦੀ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਜਾਵਟ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ । ਮੈਦਾਨ ਦੀ ਹੱਦ-ਬੰਦੀ ਚੂਨੇ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਮੈਦਾਨ ਦੇ ਚੁਪਾਸੀਂ ਰੰਗਬਰੰਗੀਆਂ ਝੰਡੀਆਂ ਸਜ ਰਹੀਆਂ ਸਨ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਹਾਕੀ ਦਾ ਫ਼ਾਈਨਲ ਮੈਚ-ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਆਉਣਾ-ਰੈਫ਼ਰੀ ਦੀ ਵਿਸ਼ਲ-ਪਹਿਲੇ ਅੱਧ ਦੀ ਖੇਡ ਦਾ ਨਜ਼ਾਰਾ-ਉੱਚੇ ਦਰਜੇ ਦੀ ਖੇਡ-ਅੱਧਾ ਸਮਾਂ-ਦੂਜੇ ਅੱਧ ਦੀ ਖੇਡ-ਮੈਚ ਜਿੱਤਣਾ ॥)

ਖਿਝਾਥੀਆਂ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਆਉਣਾ :
ਇਸ਼ਕ ਉਤਸੁਕਤਾ ਨਾਲੇ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਉਡੀਕ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਹੀ ਸਾਈਂ ਦਾ ਸਕੂਲ ਦੇ ਖਿਡਾਰੀ ਉਸੜੀ ਨਾਲ ਦੌੜਦੇ ਹੋਏ, ਖੇਡਾਂ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਆਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਫ਼ੈਦ ਕਰਾਂ ਤੇ ਬੜੇ ਲਾਲ ਤੇ ਚੰਗੇ ਦੀਆਂ ਕਮੀਜ਼ਾਂ ਪਾਈਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਪੱਛੋਂ ਗੌਰਮਿੰਟ ਸਕੂਲ ਦੇ ਖਿਡਾਰੀ ਵੀ ਆ ਨਿੱਤਰੇ ।ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਹਰੀਆਂ ਮੀਸ਼ਾਂ ਤੇ ਨੀਲੀਆਂ ਨਿੱਕੇਹਾਂ ਪਾਈਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ ।

ਸ਼ੈਰੀ ਦੀ ਵਿਸਲ ਥੋੜੀ ਏਂ ਬਾਅਦ ਬੈਫ਼ਰੀ ਨੇ ਲੈਸੀ ਵਾ ਦਿੱਤੀ । ਦੋਹਾਂ ਟੀਮਾਂ ਦੇ ਕਪੜੀਓ ਰੈਫ਼ਰੀ ਕੋਲ ਪੁੱਜੇ । ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਪਸ ਵਿਚ ਹੱਥ xਇਆ । ਫਿਰ ਦੂਜੀ ਲੰਮੀ ਵਿਸੇਲ ਵੱਜੀ ਤੇ ਖਿਡਾਰੀ ਆਪੋ-ਆਪਣੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਡਟ ਗਏ । ਦੋਹਾਂ ਟੀਮਾਂ ਦੇ ਸੈਂਟਰ ਫ਼ਾਰਵਰਡਾਂ ਨੇ ‘ਬੇਲੀ ਕੀੜੀ ਤੇ ਖੇਡਾਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ ।

ਪਹਿਲੇ ਅੱਧ ਦੀ ਖੁੰਭ ਦੀ ਲੜਾਈਂ ਦੇ ਸੋਨੇ ਦੇ ਛੂਹੋਵੇ ਤਾਂ ਜੋ ਬੇੜਾਂ ਤਾਲ-ਮੇਲ ਦਿਖਾਇਆ । ਉਹ ਛੋਟੇ ਤੇ ਉਸਤੇ ਪਾ ਦਿੰਦੇ ਹੋਏ ਬਾਲ ਨੂੰ ਪਲੋ ਪਲੀ ਵਿਚ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਦੀ ‘ਡੀ’ ਵਿਚ ਲੈ ਗਏ । ਦੇਸ਼ਕ ਹੱਲਾ-ਸ਼ੇਰੀ ਦੇਣ ਲੱਗੇ, ਪਰੰਤੂ ਤੇਜ਼ ਦੌੜਦੇ ਜੈ ਕਿਸ਼ਨ ਦੇ ਪੈਰ ਨਾਲੇ ਗੇਂਦੇ ਲੱਗੇ ਬੀਈ ਤੇ ਰੈਫ਼ਰੀ ਨੇ ਵਾਉਲ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਗੌਰਮਿੰਟ ਸਕੂਲੇ ਨੂੰ ਵੀ ਹਿੱਟੇ ਮਿਲ ਗਈ ਤੇ ਗੇਂਦ ਇਕ ਵਾਰ ਫਿਰ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਆ ਗਈ । ਹੁਣ ਗੌਰਮਿੰਟ ਸਕੂਲ ਤੇਜਪਾਲਿ ਗੇਂਦ ਨੂੰ ਵਿਯੋਧਿਆਂ ਦੀ ਡੀ’ ਵਿਚ ਲੈ ਗਿਆਂ । ਇੱਥੇ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਦਾ ਇਥੇ ਫਾਉਲ ਹੋਣੇ ਬੇਰੁਕੇ ਗੌਰਮਿੰਟ ਸਕੂਲ ਨੂੰ ਸ਼ਾਂਉਟ ਭਾਬਲੇ ਚਿੱਟ ਮਿਲੇ ਬਾਈ । ਹੁਣ ਜਾਪਦਾ ਸੀ ਕਿ ਸਾਈਂ ਦਾ ਸਕੂਲ ਸਿਰ ਗੋਲ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ, ਪਰ ਹਿੱਟੇ ਨੂੰ ਮਿੱਟੇ ਸੋਉਲੇ ਦਾ ਖਿਡਾਰੀ ਚੋਕੇ ਨਾਂ ਸਕਿਆ, ਜਿਥੇ ਕਰਕੇ ਇਹ ਸੰਕੋਏ ਵੀ ਵੇਲੇ ਗਿਆਂ।

ਉੱਚੇ ਪੱਧ ਦੀ. ਖੇਡ :
ਇਸ ਕਾਰੇ ਕਦੇ ਕੋਈ ਝੜਾ ਭਾਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ਤੇ ਕਦੇ ਕੋਈ । ਇਹ ਖੇਡ ਉੱਚੇ ਦਰਜੇ ਦੀ ਸੀ iਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦੀ ਆਪਸ ਵਿਚ ਮਿਲਵੇਨੇ ਸਲਾਘਾਯੋਗੀ ਸੀ । ਸਾਰੇ ਖਿਡਾਰੀ ਬੈਫ਼ਰੀ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦਾ ਪਾਲਣੇ ਨੇ ਏ ਸੋਨੇ ।

ਅੱਧੀ ਸੈਮੀ :
ਅੱਧਾਂ ਸਮਾਂ ਹੋਏ ਤੇ ਕੋਈ ਧਿਚ ਵੀ ਗੋਲ ਨਾਂ ਕੇ ਸਕੀ । ਅੱਧੇ ਸਮੇਂ ਪਿੱਛੋਂ ਖੇਡ ਪੰਜ ਮਿੰਟ ਲਈ ਉਕੀ । ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੇ ਪਾਣੀ ਪੀਤਾ । ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਤੇ ਸੈਨੇਹੀਆਂ ਨੂੰ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦਾ ਉਤਸ਼ਾਹ ਵਧਾਇਆਂ ਤੇ ਖੇਡ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਕੁੱਝ ਚੀਰੇ ਸਮਝਾਏ।

ਦੂਜੇ ਅੱਧ ਦੀ :
ਪੰਜ ਮਿੰਟ ਮਗਰੋਂ ਖੇਡ ਦੁਬਾਰਾ ਆਰੰਭ ਹੋਈ । ਹੁਣ ਦੋਵੇਂ ਧਿਰਾਂ ਬਚੇ ਕੇ ਖੇਡ ਰਹੀਆਂ ਸਨ । ਕੁੱਝ ਦੇਰ ਮਗਰੋਂ ਗੌਰਮਿੰਟ ਸਕੂਲ ਦੇ ਰਾਈਟ ਹਾਫ਼ੇ ਨੇ, ਜੀ ਧਿਰ ਦੀ ਬਚਾਓ ਤਾਉ ਨੂੰ ਤੋੜ ਕੇ ਗੇਂਦ ਬੜੀ ਚੁਸਤੀ ਨਾਲੋਂ ਆਪਣੇ ਸਾਥੀ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ।ਉਸ ਨੇ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਦੀ ਡੀ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਅਜਿਹੀ ਹਿੱਟੇ ਮਾਰੀ ਕਿ ਗੋਲ ਹੋ ਗਿਆਂ ।

ਮੈਚ ਜਿੱਤਣਾ :
ਬੱਸੇ ਵਿਰੇ ਕੀ ਸੀ ? ਕੇ ਤਾੜੀਆਂ ਤੇ ਸੀਟੀਆਂ ਮਾਂਉ ਕੇ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਦੀ ਪ੍ਰਦਾਵਾਂ ਤੇ ਲੱਗੇ । ਰੈਫ਼ਰੀ ਦੀ ਵਿਸਲੇ ਨਾਲ ਖੇਡ ਫਿਰੇ ਆਰੰਭ ਹੋਈ ਸਾਈਂ ਦਾਸੇ ਸੈਕੂਲ ਵੱਲੋ ਗੋਲ ਉਤਾਉਲ ਤੇ ਗੌਰਮਿੰਦੇ ਸੈਕੂਲ ਵਾਲੇ ਗੋਲੇ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਜ਼ੋਰ ਲਾਉਂਦੇ ਨੇ । ਦੇਸੀ ਸੈਕੂਲੇ ਵਾਲੇ ਗੌਲੇ ਨਾਂ ਉਤਾਹਿ ਸਕੇ । ਅੰਤ ਖੇਡੇ ਸਿੰਮੀਪਤੇ ਹੋਣ ਦੀ ਵਿਸੇਲ ਵੱਜ ਗਈ ।

ਸਿੰਮੀਪਤੀ :
ਖੇਡ ਦੀ ਸਮਾਪਤੀ ਉੱਤੇ ਦੇ ਸਕੂਲ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ‘ਹਿੱਪ-ਹਿੱਪ ਹੁਰੇ ਕੀਤੀ ਤੇ ਦੋਹਾਂ ਟੀਮਾਂ ਦੇ ਪੇਨੇ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਗਲੇ ਲੱਗੇ ਕੇ ਮਿਲੇ ।

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22. ਸਿਨਮੇ ਦੇ ਲਾਭ-ਹਾਨੀਆਂ .

ਵਰਤਮਾਨ ਜੀਵਨ ਦਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਅੰਗ :
ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ ਦੇ ਆਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿਨਮਾ ਵਰਤਮਾਨ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਦਾ ਇਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਅੰਗ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅੱਜ ਵੀ ਇਹ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦਾ ਇਕ ਸਸਤਾ ਤੇ ਵਧੀਆ ਸਾਧਨ ਹੈ । ਦਿਨ ਭਰ ਦਾ ਥੱਕਿਆ-ਟੁੱਟਿਆ ਆਦਮੀ ਸਿਨਮੇ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਆਪਣਾ ਸਾਰੇ । ਦਿਨ ਦਾ ਥਕੇਵਾਂ ਲਾਹ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਅੱਜ ਵੀ ਨਵੀਆਂ ਫ਼ਿਲਮਾਂ ਬਹੁਤਾ ਕਰਕੇ ਸਿਨਮਾਘਰ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ ਹੀ ਦੇਖਣੀਆਂ ਪਸੰਦ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਨਹੀਂ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਅਜੇ ਵੀ ਸਿਨਮਾ-ਘਰ ਹੈ ।

(ਰੂਪ ਰੇਖਾ-ਵਰਤਮਾਨ ਜੀਵਨ ਦਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਅੰਗ-ਲਾਭ : ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦਾ ਵਧੀਆ ਸਾਧਨ, ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਾ ਸਾਧਨ-ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਸਾਧਨ-ਵਪਾਰਕ ਲਾਭ-ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਾ ਸਾਧਨ ਹਾਨੀਆਂ: ਆਚਰਨ ਉੱਤੇ ਬੁਰਾ ਅਸਰ-ਅੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਬੁਰਾ ਅਸਰ-ਸਮੇਂ ਦਾ ਨਾਸ਼-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼)

ਲਾਭ : ਸਿਨਮੇ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲਾਭ ਵੀ ਹਨ ਤੇ ਨੁਕਸਾਨ ਵੀ । ਇਸ ਦੇ ਲਾਭ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਹਨ-

ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦਾ ਸਾਧਨ :
ਸਿਨਮੇ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਲਾਭ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦਾ ਸਸਤਾ ਤੇ ਵਧੀਆ ਸਾਧਨ ਹੈ । ਦਿਨ ਭਰ ਦਾ ਥੱਕਾ-ਦੁੱਟਾ ਤੇ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਆਦਮੀ ਥੋੜ੍ਹੇ ਜਿਹੇ ਪੈਸੇ ਖ਼ਰਚ ਕੇ ਢਾਈ-ਤਿੰਨ ਘੰਟੇ ਸਿਨਮੇ ਵਿਚ ਆਪਣਾ ਮਨ ਪਰਚਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਹਲਕਾ-ਫੁਲਕਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਫਿਲਮ ਦਾ ਅਸਲ ਸੁਆਦ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਦੇ ਛੋਟੇ ਪਰਦੇ ਉੱਤੇ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਸਿਨਮਾ-ਘਰ ਦੇ ਵੱਡੇ ਪਰਦੇ ਉੱਤੇ ਹੀ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ।

ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਾ ਸਾਧਨ :
ਸਿਨਮੇ ਦਾ ਦੂਜਾ ਵੱਡਾ ਲਾਭ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਰਾਹੀਂ ਅਸੀਂ ਭਿੰਨਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਾਂ । ਅਸੀਂ ਸਿਨਮਾ-ਘਰ ਵਿਚ ਇਕ ਥਾਂ ਬੈਠ ਕੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਸੁੰਦਰ ਕੁਦਰਤੀ ਨਜ਼ਾਰਿਆਂ, ਦਿੱਲੀ, ਆਗਰਾ, ਅਜੰਤਾ ਤੇ ਏਲੋਰਾ ਵਰਗੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਸਥਾਨਾਂ, ਚਿੜੀਆ-ਘਰਾਂ, ਸਮੁੰਦਰਾਂ, ਦਰਿਆਵਾਂ, ਝੀਲਾਂ ਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਤੇ ਅਜੂਬਿਆਂ ਨੂੰ ਦੇਖ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਬੇਸ਼ੱਕ ਹੁਣ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਤੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਨੇ ਸਿਨਮੇ ਦੇ ਇਸ ਲਾਭ ਨੂੰ ਬਹੁਤਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਨਹੀਂ ਰਹਿਣ ਦਿੱਤਾ ।

ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਸਾਧਨ :
ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਸਿਨਮੇ ਰਾਹੀਂ ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ, ਸਿਹਤ, ‘ ਪਰਿਵਾਰਭਲਾਈ, ਸੁਰੱਖਿਆ ਤੇ ਵਿੱਦਿਆ ਦੇ ਮਹਿਕਮਿਆਂ ਬਾਰੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਤੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਵਿੱਦਿਅਕ ਉੱਨਤੀ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਹਿੱਸਾ ਹੈ ।

ਵਪਾਰਕ ਲਾਭ :
ਸਿਨਮੇ ਤੋਂ ਵਪਾਰੀ ਲੋਕ ਬਹੁਤ ਲਾਭ ਉਠਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਆਪਣੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਸਿਨਮੇ ਰਾਹੀਂ ਮਸ਼ਹੂਰੀ ਕਰ ਕੇ ਲਾਭ ਉਠਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਾ ਸਾਧਨ-ਸਿਨਮੇ ਦਾ ਇਕ ਹੋਰ ਲਾਭ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਮਿਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ।ਫਿਲਮ ਸੱਨਅਤ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੈਂਕੜੇ ਕਲਾਕਾਰ ਜਿੱਥੇ ਧਨ ਨਾਲ ਮਾਲਾ-ਮਾਲ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਸਿਨਮਾ-ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਸੈਂਕੜੇ ਲੋਕ ਕੰਮ ਕਰ ਕੇ ਆਪਣਾ ਪੇਟ ਪਾਲ ਰਹੇ ਹਨ ।

ਘਰ ਦੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਣਾ :
ਅੱਜ ਦੇ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਭਾਵੇਂ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਤੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੇ ਰਾਹੀਂ ਮਨੋਰੰਜਨ ਲਈ ਬਹੁ-ਭਾਂਤੀ ਸਾਮਗਰੀ ਮਿਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਪਰੰਤੂ ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਘਰੋਂ ਬਾਹਰ ਜਾ ਕੇ ਕੁੱਝ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਵਿਚ ਵਿਚਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਹੋਟਲਾਂ ਅਤੇ ਕਲੱਬਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸਿਨਮਾ ਵੀ ਉਸਦੀ ਇਸ ਇੱਛਾ ਨੂੰ ਤ੍ਰਿਪਤ ਕਰਨ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

ਹਾਨੀਆਂ :
ਜਿੱਥੇ ਸਿਨਮੇ ਦੇ ਇੰਨੇ ਲਾਭ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਇਸ ਦੇ ਕੁੱਝ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਨੁਕਸਾਨ ਵੀ ਹਨ-

ਆਚਰਨ ਉੱਤੇ ਬੁਰਾ ਅਸਰ :
ਇਸ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਨੁਕਸਾਨ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਅਸ਼ਲੀਲ ਫ਼ਿਲਮਾਂ ਦਾ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੇ ਆਚਰਨ ਉੱਪਰ ਬਹੁਤ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਨੌਜਵਾਨ ਤੇ ਮੁਟਿਆਰਾਂ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਫੈਸ਼ਨਪ੍ਰਸਤੀ ਵਲ ਪੈ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਇਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਚੰਮ ‘ਤੇ ਮੋਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਅਸਲ ਮੰਤਵ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਸਨੇ ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ਉੱਤੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਫ਼ਿਲਮੀ ਨਮੂਨੇ ਦੇ ਜ਼ੁਰਮ ਕਰਨ ਲਈ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਵੀ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ ਜਦੋਂ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਅਜਿਹੀ ਸਾਮਗਰੀ ਨੂੰ ਕਈ ਰੂਪਾਂ ਵਿਚ ਹਰ ਘਰ ਵਿਚ ਪਰੋਸ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਸਿਨਮੇ ਦਾ ਇਹ ਔਗੁਣ ਬਹੁਤਾ ਗੰਭੀਰ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ ।

ਅੱਖਾਂ ਉੱਪਰ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਤੇ ਸਮੇਂ ਦਾ ਨਾਸ਼ :
ਬਹੁਤਾ ਸਿਨਮਾ ਦੇਖਣ ਨਾਲ ਸਿਨਮੇ ਦੇ ਪਰਦੇ ਉੱਪਰ ਪੈ ਰਹੀ ਤੇਜ਼ ਰੌਸ਼ਨੀ ਦਾ ਮਨੁੱਖੀ ਨਜ਼ਰ ਉੱਪਰ ਵੀ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਬਹੁਤੀਆਂ ਫ਼ਿਲਮਾਂ ਦੇਖਣ ਨਾਲ ਸਮਾਂ ਵੀ ਨਸ਼ਟ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਸਿਨਮੇ ਦਾ ਇਹ ਔਗੁਣ ਵੀ ਅੱਜ-ਕਲ ਘਰਘਰ ਚੱਲ ਕੇ ਟੈਲੀਵਿਯਨਾਂ ਨੇ ਮਹੱਤਵਹੀਨ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਕਿਉਂਕਿ ਸਿਨਮਾ ਤਾਂ ਕੋਈ ਕਦੇ ਕਦੇ ਦੇਖਣ ਜਾਂਦਾ ਹੋਵੇਗਾ, ਪਰ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਆਪਣੀ ਸਕਰੀਨ ਤੇ ਇਨਾਂ ਸਾਰੇ ਔਗੁਣਾ ਸਮੇਤ ਰਾਤਦਿਨ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਚਲਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਅੱਜ ਦੇ ਬੱਚਿਆਂ ਤੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਿਨਮੇ ਜਾਣੋਂ ਰੋਕਣਾ ਸੌਖਾ ਹੈ, ਪਰ ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ ਅੱਗਿਓਂ ਉਠਾਲਣਾ ਔਖਾ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਮੁੱਕਦੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸਿਨਮਾ ਅੱਜ ਵੀ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦਾ ਵਧੀਆ ਤੇ ਸਸਤਾ ਸਾਧਨ ਹੈ, ਪਰ ਇਸ ਵਿਚ ਅਸ਼ਲੀਲਤਾ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਆਉਣ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ । ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਅਸ਼ਲੀਲਤਾ ਉੱਪਰ ਪਾਬੰਦੀ ਲਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਨਾਲ ਹੀ ਬਹੁਤਾ ਸਿਨੇਮਾ ਦੇਖਣਾ ਵੀ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਸਮਾਂ ਤੇ ਆਚਰਨ ਦੋਵੇਂ ਖ਼ਰਾਬ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਫ਼ਿਲਮਾਂ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਸਿਨਮੇ ਰਾਹੀਂ ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਤੇ ਆਪਣਾ ਭਵਿੱਖ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਸੁਨੇਹਾ ਦੇਣ ।

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23. ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਦੇ ਲਾਭ-ਹਾਨੀਆਂ

ਵਰਤਮਾਨ ਜੀਵਨ ਦਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਅੰਗ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਵਰਤਮਾਨ ਜੀਵਨ ਦਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅੰਗ ਹਨ । ਸਵੇਰੇ ਉੱਠਦਿਆਂ ਹੀ ਜਦੋਂ ਤਾਜ਼ੀਆਂ ਤੇ ਗਰਮਾ-ਗਰਮ ਖ਼ਬਰਾਂ ਨਾਲ ਭਰੀ ਅਖ਼ਬਾਰ ਘਰ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਸਭ ਕੁੱਝ ਛੱਡ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਫੜ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਜਦੋਂ ਤਕ ਇਸ ਵਿਚੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਖ਼ਬਰਾਂ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹ ਨਹੀਂ ਲੈਂਦੇ, ਸਾਡਾ ਇਸ ਨੂੰ ਛੱਡਣ ਨੂੰ ਜੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਵਰਤਮਾਨ ਜੀਵਨ ਦਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅੰਗ-ਲਾਭ : ਤਾਜ਼ੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ-ਗਿਆਨ ਦਾ ਸੋਮਾ-ਵਪਾਰਕ ਉੱਨਤੀ-ਆਸ ਦੀ ਕਿਰਨ-ਮਨੋਰੰਜਨ ਦਾ ਸਾਧਨ-ਰੱਦੀ ਵੇਚਣਾ-ਹਾਨੀਆਂ : ਭੜਕਾਉ ਖ਼ਬਰਾਂ ਤੇ ਵਿਚਾਰ-ਅਸ਼ਲੀਲਤਾ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ )

ਲਾਭ : ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲਾਭ ਹਨ, ਜੋ ਕਿ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਹਨ-

ਤਾਂਜ਼ੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਦੀ ਜਾਣਥਾਚੀ :
ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਦੀ ਸਾਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਲਾਭ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਸਵੇਰੇ ਉੱਠਦਿਆਂ ਹੀ ਸਾਨੂੰ ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਦੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਲਿਆ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਅਸੀਂ ਘਰ ਬੈਠੇ ਬਿਠਾਏ ਸੰਥਾਰ ਭਰ ਦੇ ਹਾਲਾਤਾਂ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਾਂ । ਸਾਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਚੀ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਕਿਸੇ ਸਮੱਸਿਆ ਬਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਦੇ ਕੀ ਵਿਚਾਰੇ ਨੇ । ਸਾਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਕਿੱਥੇ ਹੜਤਾਲ ਹੋਈ ਹੈ, ਕਿੱਥੇ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਹੋਏ ਹਨ, ਜਿੱਥੇ ਪੁਲਿ ਲੈ ਨੀ ਜਾਂ ਗੋਲੀ ਚਲਾਈ ਹੈ ਤੇ ਕਿੱਥੇ ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ ਜਾਂ ਹੋਰ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸਰੀਰ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ ਅਦਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੁਚੇਨਾਂ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਲਈ ਵੀ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਦੀ ਹੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਗਿਆਨ ਦਾ ਸੋਮਾਂ :
ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਤੋਂ ਅਸੀਂ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਖੇਤਰਾਂ ਤੇ ਵਿਧਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਅੰਕੜਿਆਂ, ਤੱਥਾਂ, ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਤੇ ਖੋਜਾਂ, ਖੇਡਾਂ, ਵਣਜ-ਵਪਾਰੇ, ਸ੩ ਮਾਰਕਿਟ, ਸਰਕਾਰੀ ਨੀਤੀਆਂ, ਕਾਨੂੰਨਾਂ, ਸਭਿਆਚਾਰ, ਵਿੱਦਿਆ, ਸਿਹਤ, ਕਿੱਤਸਾ ਵਿਗਿਆਨ, ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੇ ਸਾਨਾਂ, ਖੇਤੀ ਦੇ ਬੀਜਾਂ, ਦੇਵਾਈਆਂ ਤੋਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਅਤੇ ਸਾਹਿਤਕ ਰਚਨਾਵਾਂ ਤੇ ਕਲਾ ਕਿਰਤਾਂ ਬਾਰੇ ਲਗਾਤਾਰੇ ਤਾਜ਼ੀ ਤੋਂ ਤਾਜ਼ੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਾਂ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖੀ ਸੂਝੈ ਉਥੇ ਤਿਖੇਰੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਸਭਿਆਚਾਰੇ ਉੱਨਤੀ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਵਪਾਉਕੇ ਉੱਤੀ :
ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾਂ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਵਿਚ ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਵਲੋਂ ਆਪਣੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਬਾਰੇ ਇਸ਼ਤਿਹਾਰੇ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਮੰਗ ਵਧਦੀ ਹੈ, ਜਿਸਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਵਿਚ ਸੁਧਾਰ ਅਤੇ ਤੇਜ਼ੀ ਆਉਂਦੀ ਤੇ ਉਜ਼ਰੇ ਦੇ ਮੌਕੇ ਵਧਦੇ ਹੋਨੇ ।

ਆਸ ਦੀ ਕਿਰਨ :
ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਅਸੀਂ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਰੋਜ਼ਰੇ ਲਈ ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤੇ ਕੋਰੇ ਸੈਕਦੇ ਹਾਂ । ਇਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰੇ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਹਰੇ ਘਰ ਵਿਚ ਰੋਜ਼ ਆਸੇ ਦੀ ਨਵੀਂ ਕਿਰਨ ਲੈ ਕੇ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ । . ਮਨੋਰੰਜਨ ਦਾ ਸਾਧਨ-ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਵਿਚ ਛੱਪੀਆਂ ਕਹਾਣੀਆਂ, ਚੁਟਕਲੇ ਤੇ ਅਨੇਕਾਂ ਦਿਲਚਸਪ ਖ਼ਬਰਾਂ ਸੋਡਾਂ ਕਾਫ਼ੀ ਮਨੌਰੰਜਨ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਹੀ ਅਸੀਂ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦੇ ‘ਚ ਸਾਧਨ: ਫ਼ਿਲਮਾਂ, ਰੇਡੀਓ ਤੇ ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮਾਂ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ।

ਜਾਂਬਿਤੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨਾ :
ਅਖ਼ਬਾਰੀ, ਖ਼ਬਰਾਂ, ਸੂਚਨਾਵਾਂ, ਇਸ਼ਤਿਹਾਰਾਂ, ਸੰਪਾਦਕੀ ਲੇਖਾਂ, ਖੋਜੋ ਭੇਰਪੁਰੇ ਲੇਖਾਂ, ਮੌਕੇ ਉੱਤੇ ਇਕੱਠੇ ਕੀਤੇ ਤੱਥਾਂ, ਵਿਅੰਬੀ-ਲੇਖਾਂ, ਚੋਟੀ ਚੋਭਾਂ ਤੇ ਪੜਚੋਲ ਭਰੀਆਂ ਟਿੱਪਣੀਆਂ ਅਤੇ ਤੱਥਾਂ ਤੇ ਅੰਕੜਿਆਂ ਨੂੰ ਲੋਕਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਆਲੇਦੁਆਲੇ ਦੇ ਕੌਮੀ, ਕੌਮਾਂਤਰੀ, ਰਾਜਸੀ, ਸਮਾਜਿਕ, ਆਰਥਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਤੇ ਸਭਿਆਚਾਉਕੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਬਾਰੇ ਖ਼ੂਬ ਜਾਗਿਤ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ, ਤੇ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਆਲੇਦੁਆਲੇ ਵਿਚੋਂ ਸਾਰਥਕ ਰੋਲ ਅਦਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜਾਂਚਿਤਿ ਹੋਣ ਨਾਲ ਸੋਚੇ, ਪੁਲਿਸ, ਸਿੰਮਾਜ ਵਿਰੋਧੀ ਅਨਸੋਰਾਂ ਤੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰੀ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਸੰਭਲੇ ਕੇ ਚਲਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਾ ਸਾਧਨ :
ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਦੀ ਤਿਆਰੀ, ਖ਼ਬਰਾਂ ਦੀ ਇਕੱਤਰਤਾ ਤੇ ਸੰਪਾਦਨ, ਛਪਾਈ ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਘਰ-ਘਰ ਤਕ ਪੁਚਾਉਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਾਹੀਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਰੱਦੀ ਵੇਚਣਾ :
ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਉੱਪਰ ਖ਼ਰਚੇ ਪੈਸੇ ਫ਼ਜ਼ੂਲ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦੇ ।ਜਿੱਥੇ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਦੇ ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲਾਭ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਕਾਗਜ਼ ਨੂੰ ਰੱਦੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵੇਚ ਕੇ ਕੁੱਝ ਨਾ ਕੁੱਝ ਪੈਸੇ ਵੀ ਵੱਟ ਲਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਹਾਨੀਆਂ : ਭੜਕਾਉ ਖ਼ਬਰਾਂ ਤੇ ਵਿਚਾਰ :
ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਇੰਨੇ ਲਾਭ ਪੁਚਾਉਣ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕਈ ਵਾਰ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਵੀ ਪੁਚਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਭ ਤੋਂ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਗੱਲ ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਭੜਕਾਊ ਖ਼ਬਰਾਂ ਤੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਛਪਣਾ ਹੈ । ਇਹ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਖ਼ਬਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਪਾਲਿਸੀ ਅਨੁਸਾਰ ਵਧਾ-ਚੜ੍ਹਾ ਕੇ ਤੇ ਤੋੜ-ਮਰੋੜ ਕੇ ਛਾਪਦੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਤੇ ਖ਼ਾਸ ਕਰ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਉੱਪਰ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਵਾਰ ਖ਼ੁਦਗਰਜ਼ ਤੇ ਸਵਾਰਥੀ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਚੱਲ ਰਹੀਆਂ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ, ਝੂਠੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਤੇ ਤੱਥ ਛਾਪ ਕੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਾਤਾਵਰਨ ਨੂੰ ਗੰਧਲਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਅਸ਼ਲੀਲਤਾ :
ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਵਿਚ ਅਸ਼ਲੀਲ ਫੋਟੋਆਂ, ਜਾਸੂਸੀ, ਮਨਘੜਤ ਕਹਾਣੀਆਂ ਅਤੇ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਛਪਣਾ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੇ ਆਚਰਨ ‘ਤੇ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਅੰਤ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਕੁੱਝ ਹਾਨੀਆਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਲਈ ਬਹੁਤ ਲਾਭਦਾਇਕ ਹਨ ਅਤੇ ਸਾਨੂੰ ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ-ਪੂਰਾ ਲਾਭ ਉਠਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

24. ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਲਾਭਦਾਇਕ ਕਾਢਾਂ
ਜਾਂ
ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਚਮਤਕਾਰ

ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਯੁਗ-ਬੀਤੀ 20ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ ਵਿਗਿਆਨ ਨੇ ਇੰਨੀ ਉੱਨਤੀ ਕੀਤੀ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਨੇ ਦੁਨੀਆਂ ਦਾ ਚਿਹਰਾ-ਮੁਹਰਾ ਹੀ ਬਦਲ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਅੱਜ 21ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ ਵਿਗਿਆਨ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਪੁਲਾਂਘਾਂ ਪੁੱਟਦਾ ਉੱਨੜੀ ਦੀਆਂ ਸਿਖਰਾਂ ਵਲ ਵਧ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਸਾਡੇ ਪੁਰਾਣੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਇਸ ਦੁਨੀਆ ਵਿਚ ਆਉਣ, ਤਾਂ ਸ਼ਾਇਦ ਉਹ ਇਸ ਨੂੰ ਪਛਾਣ ਹੀ ਨਾ ਸਕਣ ਕਿ ਉਹ ਵੀ ਇਸ ਵਿਚ ਰਹਿ ਕੇ ਗਏ ਹਨ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਯੁਗ-ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਨਵਾਂ ਪਲਟਾ-ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਲਾਭ-ਬਿਜਲੀ ਦੇ ਲਾਭ-ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਮਸ਼ੀਨੀ ਸਾਧਨ-ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਉੱਨਤ ਸਾਧਨ-ਡਾਕਟਰੀ ਸਹਾਇਤਾ ਦਾ ਵਿਕਾਸ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ ॥)

ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਨਵਾਂ ਪਲਟਾ :
ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਨੇ ਸਾਡੇ ਹਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਨਵਾਂ ਪਲਟਾ ਲੈ ਆਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੇ ਸਾਡੇ ਘਰੇਲੂ, ਬਜ਼ਾਰੀ, ਦਫ਼ਤਰੀ ਤੇ ਹਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਬਦਲ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੇ ਜਿੱਥੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਲਾਭਦਾਇਕ ਕਾਢਾਂ ਕੱਢ ਕੇ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਸੁਖ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਇਸ ਨੇ ਐਟਮ ਬੰਬ, ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਬੰਬ ਅਤੇ ਮਿਜ਼ਾਈਲਾਂ ਜਿਹੇ ਤਬਾਹਕੁਨ ਹਥਿਆਰ ਵੀ ਬਣਾਏ ਹਨ ਤੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਨੂੰ ਪਲੀਤ ਕਰ ਕੇ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਮਨੁੱਖ ਸਮੇਤ ਸਮੁੱਚੇ ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦੀ ਹੋਂਦ ਲਈ ਖ਼ਤਰਾ ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਲਾਭ :
ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਮਾਰੁ ਕਾਢਾਂ ਤੇ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਦੇਣਾਂ ਤੇ ਉਲਟ ਇਸਦੀਆਂ ਉਸਾਰੁ ਕਾਢਾਂ ਨੇ ਸਾਡੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਬਹੁਮੁੱਲੇ ਲਾਭ ਪਹੁੰਚਾ ਕੇ ਇਸਨੂੰ ਸੁਖਅਰਾਮ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਵਿਚ ਤੇਜ਼ੀ ਲੈ ਆਂਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਲਾਭ ਸਾਨੂੰ ਘਰ, ਆਵਾਜਾਈ, ਦਫ਼ਤਰ, ਪੜ੍ਹਾਈ, ਡਾਕਟਰੀ ਸਹਾਇਤਾ, ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ, ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਤੇ ਸੰਚਾਰ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਏ ਹਨ ।

ਬਿਜਲੀ ਦੇ ਲਾਭ :
ਸਾਡੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਕਾਢ, ਬਿਜਲੀ ਦਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਡੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਰੌਸ਼ਨੀ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਪੱਖੇ ਚਲਾਉਂਦੀ ਹੈ, ਖਾਣਾ ਬਣਾਉਣ ਵਿਚ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਕੱਪੜੇ ਪ੍ਰੈੱਸ ਕਰਨ ਵਿਚ ਮੱਦਦ ਦਿੰਦੀ ਹੈ, ਗਰਮੀਆਂ ਵਿਚ ਕਮਰਿਆਂ ਨੂੰ ਠੰਢੇ ਕਰਨ ਤੇ ਸਰਦੀਆਂ ਵਿਚ ਕਮਰਿਆਂ ਨੂੰ ਗਰਮ ਕਰਨ ਵਿਚ ਮੱਦਦ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਹੋ ਹੀ ਰੇਡੀਓ, ਕੱਪੜੇ ਧੋਣ ਦੀ ਮਸ਼ੀਨ, ਮਿਕਸਰ, ਜੁਸਰ, ਮਾਈਕਰੋਵੇਵ ਆਦਿ ਚਲਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਇਹੋ ਹੀ ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ, ਰੇਲਾਂ, ਕੰਪਿਊਟਰ ਅਤੇ ਰੋਬੋਟ ਚਲਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਇਹੋ ਹੀ ਕਾਰਖ਼ਾਨੇ ਚਲਾਉਂਦੀ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਕੰਮ ਕਰ ਕੇ ਰੋਜ਼ੀ ਕਮਾਉਂਦੇ ਹਨ ।ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਥੋੜੇ ਸਮੇਂ ਤਕ ਇਸ ਕੰਮ ਲਈ ਪ੍ਰਮਾਣੂ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਵੀ ਆਮ ਹੋ ਜਾਵੇ ! ਸੂਰਜੀ ਸ਼ਕਤੀ ਤੇ ਵਾਯੂ-ਸ਼ਕਤੀ ਇਸ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਦੇਣਾਂ ਹਨ ।

ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਮਸ਼ੀਨੀ ਸਾਧਨ :
ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਦੂਜੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਢ, ਜਿਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਕਰਦੇ ਹਾਂ, ਉਹ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਮਸ਼ੀਨੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਸਕੂਟਰ, ਮੋਟਰ-ਸਾਈਕਲ, ਕਾਰਾਂ, ਮੋਟਰਾਂ, ਗੱਡੀਆਂ, ਟਰੱਕ ਤੇ ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ਼ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ । ਅਸੀਂ ਇਕ ਥਾਂ ਤੋਂ ਦੂਜੀ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਜਾਣ ਲਈ, ਸਕੂਲ ਜਾਣ ਲਈ, ਦਫ਼ਤਰ ਜਾਣ ਲਈ, ਕਿਸੇ ਮਿੱਤਰ ਜਾਂ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਜਾਣ ਲਈ ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਾਂ । ਇਹ ਸਾਨੂੰ ਬਹੁਤੇ ਥੋੜ੍ਹੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਤੇ ਘੱਟ ਖ਼ਰਚ ਵਿਚ ਬੜੇ ਅਰਾਮ ਨਾਲ ਇਕ ਥਾਂ ਤੋਂ ਦੂਜੀ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਪੁਚਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਸਾਡਾ ਵਰਤਮਾਨ ਜੀਵਨ ਇਕ ਘੜੀ ਵੀ ਨਹੀਂ ਚਲ ਸਕਦਾ ।

ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਉੱਨਤ ਸਾਧਨ :
ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਢ ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਟੈਲੀਫ਼ੋਨ, ਤਾਰ, ਵਾਇਰਲੈਂਸ, ਟੈਲੀਪ੍ਰਿੰਟਰ, ਰੇਡੀਓ, ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ, ਫੈਕਸ, ਪੇਜਰ, ਇੰਟਰਨੈੱਟ, ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਤੇ ਉਪਹਿ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹਨ 1 ਟੈਲੀਫ਼ੋਨ, ਮੋਬਾਈਲ ਫ਼ੋਨ, ਤਾਰ, ਵਾਇਰਲੈਂਸ, ਫ਼ੈਕਸ, ਟੈਲੀਟਰ ਤੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਰਾਹੀਂ ਅਸੀਂ ਘਰ ਬੈਠਿਆਂ ਹੀ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤਕ ਸੁਨੇਹੇ ਭੇਜ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਰੇਡੀਓ, ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ, ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਤੇ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਰਾਹੀਂ ਅਸੀਂ ਆਪਣਾ ਮਨ-ਪਰਚਾਵਾ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵੀ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਵਾਕਫ਼ੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

ਉਪਗ੍ਰਹਿਆਂ ਰਾਹੀਂ ਇਕ ਥਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਤੇ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਦੇ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਦਿਖਾਏ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦੇ ਸਾਧਨ :
ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਨੇ ਗ੍ਰਾਮੋਫੋਨ, ਸਿਨਮਾ, ਰੇਡੀਓ, ਅਖਬਾਰਾਂ, ਕੈਸੇਟ ਤੇ ਸੀ.ਡੀ. ਪਲੇਅਰ, ਵੀ.ਡੀ.ਓ. ਗੇਮਾਂ, ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਸੈ-ਚਾਲਿਤ ਖਿਡਾਉਣੇ, ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ ਤੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਆਦਿ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਵਿਕਸਿਤ ਸਾਧਨ ਦਿੱਤੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਹਰ ਉਮਰ ਦਾ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੀ ਕਾਢ :
ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਕਾਢ ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੇ ਅਜੋਕੇ ਯੁਗ ਵਿਚ ਇਨਕਲਾਬ ਲੈ ਆਂਦਾ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਇਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮਨੁੱਖੀ ਦਿਮਾਗ਼ ਹੈ, ਜੋ ਬਹੁਤ ਹੀ ਤੇਜ਼ੀ ਅਤੇ ਸੁਯੋਗਤਾ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖੀ ਦਿਮਾਗ਼ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਉਤਪਾਦਨ ਕੇਂਦਰਾਂ, ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰਿਆਂ, ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਤੇ ਘਰਾਂ, ਗੱਲ ਕੀ ਜੀਵਨ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਕੰਮ-ਕਾਰ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ੀ ਆ ਗਈ ਹੈ । ਇਹ ਵਿਗਿਆਨੀਆਂ, ਡਾਕਟਰਾਂ ਤੇ ਕਲਾਕਾਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਰਾਹੀਂ ਇਸਨੇ ਸਾਰੀ ਦੁਨੀਆਂ ਲਈ ਗਿਆਨ, ਜਾਣਕਾਰੀ ਅਤੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਭੰਡਾਰ ਖੋਲ੍ਹਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਬਹੁਪੱਖੀ ਆਪਸੀ ਸੰਚਾਰ ਵਿਚ ਭਾਰੀ ਤੇਜ਼ੀ ਲੈ ਆਂਦੀ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰੀਕ੍ਰਿਤ ਰੋਬੋਟ ਮਨੁੱਖ ਵਾਂਗ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਔਖੇ ਤੇ ਜ਼ੋਖ਼ਮ ਭਰੇ ਕੰਮ ਲੰਮਾ ਸਮਾਂ ਬਿਨਾਂ ਅੱਕੇ-ਥੱਕੇ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

ਰੋਗ ਤੇ ਦਵਾਈਆਂ :
ਵਿਗਿਆਨ ਨੇ ਮਨੁੱਖੀ ਸਰੀਰ ਦੇ ਰੋਗਾਂ ਨੂੰ ਯੰਤਰਾਂ ਤੇ ਦਵਾਈਆਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਹੱਦ ਤਕ ਕਾਬੂ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ । ਮਨੁੱਖੀ ਸਰੀਰ ਦੀ ਅੰਦਰਲੀ ਸਥਿਤੀ ਦੀ ਜਾਂਚ ਤੇ ਉਸ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਰੋਗਾਣੂਆਂ ਦੀ ਪਛਾਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਅਦਭੁਤ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਤੇ ਔਜ਼ਾਰ ਬਣ ਚੁੱਕੇ ਹਨ । ਰੋਗਾਂ ਉੱਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਨਿੱਤ ਨਵੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਖੋਜੀਆਂ ਤੇ ਪਰਖੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ । ਫਲਸਰੂਪ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸਰੀਰ ਦਾ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੁੱਖਾਂ ਤੋਂ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਛੁਟਕਾਰਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਲੰਮੀ ਉਮਰ ਭੋਗਦਾ ਹੈ । ਵਿਗਿਆਨ ਨੇ ਖਾਦਾਂ ਤੇ ਕੀੜੇਮਾਰ ਦਵਾਈਆਂ ਨਾਲ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਉਪਜ ਵੀ ਵਧਾਈ ਹੈ । ਜੀਵਨ ਦੇ ਲਗਪਗ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲਈ ਨਵੀਂ ਤਕਨੀਕ ਨਾਲ ਬਣੀਆਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਮਿਲ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਸਨੇ ਦੂਰ ਦੇ ਹਿਆਂ ਤੇ ਤਾਰਿਆਂ ਤਕ ਦੀ ਖੋਜ ਕਰ ਕੇ ਮਨੁੱਖੀ ਜਗਿਆਸਾ ਨੂੰ ਵੀ ਖੂਬ ਤ੍ਰਿਪਤ ਕੀਤਾ ਹੈ ।

ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਤੇ ਜਗਿਆਸਾ ਦੀ ਤ੍ਰਿਪਤੀ :
ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਵਿਗਿਆਨ ਨੇ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਵਿਚੋਂ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਦਾ ਬਿਸਤਰਾ ਗੋਲ ਕਰ ਕੇ ਉਸਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਲੀਹਾਂ ਉੱਤੇ ਤੋਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਸਨੇ ਦੂਰ-ਦੁਰ ਦੇ ਗ੍ਰਹਿਆਂ ਤੇ ਤਾਰਿਆਂ ਤਕ ਦੀ ਖੋਜ ਕਰਕੇ ਮਨੁੱਖੀ ਜਗਿਆਸਾ ਨੂੰ ਖੂਬ ਤ੍ਰਿਪਤ ਕੀਤਾ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਦੀ ਸਾਡੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਹਾਨਤਾ ਹੈ ਤੇ ਇਹਨਾਂ ਨੇ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਤੇਜ਼ੀ, ਸੁਖ ਤੇ ਅਰਾਮ ਲਿਆ ਕੇ ਇਸ ਵਿਚ ਰਸ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

25. ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਲਾਭ ਤੇ ਹਾਨੀਆਂ

ਅਤੇ ਕਾਢ :
ਟੈਲੀਵਿਯਨ (ਦਰਦੇਸ਼ਨ) ਆਧੁਨਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਇਕ ਅਦਭੁੱਤੇ ਕਾਂਢ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਰੇਡੀਓ ਅਤੇ ਸਿਨਮਾ ਦੋਹਾਂ ਦੇ ਗੁਣ ਸਮੋਏ ਪਏ ਹਨ । ਅਤੇ ਇਸ ਦਾ ਵਰਤਮਾਨ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਮੌਲਿਕ ਤੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ੇ ਸਥਾਨ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਅਦਭੁੱਤੇ ਕਾਢ-ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਟੈਲੀਵਿਯਨ-ਪਰ-ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ-ਲਾਭ-ਮਨੋਰੰਜਨ, ਵਪਾਰੇ, ਜਾਣਕਾਰੀ ਖ਼ਬਰਾਂ-ਉਸ਼ੇਰੇ-ਹਾਨੀਆਂ !)

ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਟੈਲੀਵਿਯਨੇ ਦਾ ਆਂਚੈਤ :
ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਇਕ ਨੁਮਾਇਸ਼ ਵਿਚ ਆਇਆ ਸੀ । ਅਕਤੂਬਰ, 1959 ਈ: ਵਿਚ ਡਾ: ਰਾਜਿੰਦਰ ਪਸਾਏ ਨੇ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਆਕਾਸ਼ਵਾਣੀ ਦੇ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਵਿਭਾਗੇ ਦਾ ਉਦਘਾਟਨ ਕੀਤਾ । ਫਿਰ ਇਸ ਦੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ।

ਪਸਾਰ :
ਮਗਰੋਂ ਐਪਲ ਤੇ ਇਨਸੈਂਟੇ ਉਪ-ਹਿਆਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਭਾਰਤ ਦੇ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਪ੍ਰਸਾਰਨੇ ਨੂੰ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਦੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ਉੱਤੇ ਭੇਜਣਾ ਸੰਭਵ ਹੋਇਆ ਤੇ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਣ ਲੱਗਾ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਤਾਂ 70-80 ਕੇਬਲ ਟੀ. ਵੀ. ਪ੍ਰਸਾਰਨ ਚੇਲੇ ਹੇ ਹਨ ਤੇ ਪੰਜ ਕੁ ਮੈਟਰੋ ਚੈਨਲ ।.

ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ :
ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਦੇ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਕੇਂਦਰਾਂ ਤੇ ਕੇਬਲ ਪ੍ਰਸਾਰਨਾਂ ਰਾਹੀਂ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਮਨੋਰੰਜਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ-ਫ਼ਿਲਮਾਂ, ਗੀਤ, ਨਾਚ, ਲੜੀਵਾਂਉ ਨਾਟਕ, ਕਹਾਣੀਆਂ, ਕੋਲਾ-ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਮੁਕਾਬਲੇ, ਫੈਸ਼ਨੇ-ਮੁਕਾਬਲੇ, ਖੇਡ-ਮੁਕਾਬਲੇ, ਵਾਪਰ ਰਹੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ, ਹਸਾਉਣੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ, ਸਿਹਤ-ਸੰਬੰਧੀ ਯੋਗ ਆਸਣ ਤੇ ਕੋਰੇਤਾਂ, ਧਾਰਮਿਕ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਤੇ ਸੋਨੇਸਨੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਬਹੁਤੇ ਸਾਰੀ ਸਮੱਗਰੀ ਪੇਸ਼ੇ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ, ਵਿੱਦਿਅਕ ਉੱਨੜੀ ਵਿਚ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ, ਇਸਤਰੀਆਂ ਤੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਮੱਦਦ ਕਰਨ ਵਾਲੇ, ਨਵੇਂ ਉੱਠ ਰਹੇ ਕਲਾਕਾਰਾਂ ਦਾ ਉਤਸ਼ਾਹ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਿ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬਹੁਤੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਹਨ ।

ਲਾਭ : ਟੈਲੀਵਿਯੋਨੇ ਦੇ ਵਰਤਮਾਨ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲਾਭ ਹਨ, ਜੋ ਕਿ ਹੇ ਲਿਖੇ ਹਨ-

ਮਨੋਬੈਨ ਦਾ ਸਾਧਨੇ :
ਉੱਪਰ ਦੱਸੇ ਅਨੁਸਾਰ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਵਰਤਮਾਨ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੀ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਹੈ । ਘਰ ਬੈਠੇ ਹੀ ਅਸੀਂ ਨਵੀਆਂ-ਪਣੀ ਫ਼ਿਲਮਾਂ, ਏਥੇ, ਚਲੈ ਰਹੇ ਮੈਚ, ਭਾਸ਼ਨ, ਮੁਕਾਬਲੇ, ਨਾਚ ਤੇ ਗਾਣੇ ਦੇਖਦੇ ਤੇ ਸੁਣਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਨ ਪਰਚਾਉਂਦੇ ਹਾਂ । ਟੈਲੀਵਿਯੋਨ ਉੱਤੇ ਹਰ ਉਮਰੇ ਹੋਏ ਵੇ ਤੇ ਹੋਰ ਉੱਚੀ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਮਨੋਰੰਜਨ ਦੀ ਮੱਗਰੀ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਜਾਣਕਾਰੀ ਤੇ ਗਿਆਨ ਦਾ ਸੋਮਾ :
ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਦਾ ਅਗਲਾ ਵੱਡਾ ਲਾਭ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਰਾਹੀਂ ਸਾਨੂੰ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਤੇ ਮਸਲਿਆਂ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਰਾਹੀਂ ਸਾਨੂੰ ਗਿਆਨ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਖੋਜਾਂ, ਇਤਿਹਾਸ, ਮਿਥਿਹਾਸ, ਵਣਜ-ਵਪਾਰ, ਵਿੱਦਿਆ, ਕਾਨੂੰਨ, ਚਿਕ੍ਰਿਤਮਾ-ਵਿਗਿਆਨ, ਮਿਹਤ-ਵਿਗਿਆਨ, ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪਕਵਾਨ ਬਣਾਉਣ, ਫੈਸ਼ਨ, ਪਰ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਖਿੱਤਿਆਂ ਵਿਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ, ਜੰਗਲੀ ਪਸ਼ੂਆਂ ਤੇ ਮੁੰਦਰੀ ਜੀਵਾਂ, ਗੁ ਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਹੋਰ ਅਣਦੇਖੀਆਂ ਤੇ ਅਚੰਭੇ ਪੂਰਨ ਕਾਢਾਂ, ਖੋਜਾਂ, ਮਖਾਨਾਂ ਤੇ ਹੋ ਦਾਂ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਮਾੜਾ ਬੌਧਿਕ ਵਿਕਾਸ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਮਨੁੱਖੀ ਜਗਿਆਸਾ ਦੀ ਤ੍ਰਿਪਤੀ ਵੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਲੜੀਵਾਰ ਨਾਟਕਾਂ ਵਿਚਲੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਇੰਨੇ ਨੰਗੇਜ਼ਵਾਦੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਸਾਊ ਲੋਕ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿੱਚ ਬੈਠ ਕੇ ਦੇਖ ਨਹੀਂ ਸਕਦੇ ।

ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਭੜਕਾਉਣਾ :
ਕਈ ਵਾਰੀ ਖ਼ਬਰਾਂ ਦੇ ਚੈਨਲ ਇਕ ਦੂਜੇ ਦਾ ਈਰਖਾ ਭਰਿਆ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਇਸ ਦੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਨੂੰ ਵਧਾ-ਚੜ੍ਹਾ ਕੇ ਤੇ ਉਸ ਉੱਤੇ ਮਨਸੂਈ ਚਾਨਣੀ ਚੜ੍ਹਾ ਕੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਭੜਕਾਉਂਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਈ ਵਾਰੀ ਅਮਨ ਕਾਨੂੰਨ ਦੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਤੋਂ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਰਾਖੀ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਵਿਚ ਉਸਾਰੂ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਮਾਰ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਨਜ਼ਰ ਉੱਤੇ ਅਸਰ-ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਸਕਰੀਨ ਦੀ ਤੇਜ਼ ਰੌਸ਼ਨੀ ਤੇ ( ਰੇਡਿਆਈ ਕਿਰਨਾਂ ਅੱਖਾਂ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਉੱਪਰ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਆਪਸੀ ਮੇਲ :
ਜੋਲ ਦਾ ਘਟਣਾ-ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਉੱਪਰ ਵੀ ਬਹੁਤ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪਾਇਆ ਹੈ । ਲੋਕ ਸ਼ਾਮ ਵੇਲੇ ਇਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਘਰ ਜਾਣਾ ਤੇ ਮਿਲਣਾਗਿਲਣਾ ਛੱਡ ਕੇ ਆਪਣੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਟੈਲੀਵਿਯਨੂੰ ਮੋਹਰੇ ਬੈਠਣਾ ਵਧੇਰੇ ਪਸੰਦ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਜਦੋਂ ਮਿੱਤਰ ਜਾਂ ਗੁਆਂਢੀ ਦੂਸਰੇ ਦੇ ਘਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਰੰਗ ਵਿਚ ਭੰਗ ਪਾਉਣ ਵਾਲਾ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੀ ਚਰਚਾ ਤੋਂ ਅਸੀਂ ਇਸ ਸਿੱਟੇ ‘ਤੇ ਪੁੱਜਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਆਧੁਨਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਇਕ ਅਦਭੁੱਤ ਕਾਢ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਵਰਤਮਾਨ ਸਭਿਆਚਾਰ ਉੱਨਤੀ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ । ਇਹ ਵਰਤਮਾਨ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੇ ਮਨ-ਪਰਚਾਵੇ ਤੇ ਜੀਵਨ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਲੋੜਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰਨ ਦਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਾਧਨ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਤੇ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਇਸ ਨੂੰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਉਸਾਰੂ ਰੋਲ ਅਦਾ ਕਰਨ ਦੇ ਯੋਗ ਬਣਾਉਣ ।’

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

26. ਦੇਸ਼-ਭਗਤੀ
ਜਾਂ
ਦੇਸ਼-ਪਿਆਰ

ਦੇਸ਼-ਪਿਆਰ ਦਾ ਅਰਥ-‘ਦੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ । ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲੋਕਾਂ, ਦੇਸ਼ ਦੀ ਮਿੱਟੀ, ਦੇਸ਼ ਦੇ ਪਹਾੜਾਂ, ਦਰਿਆਵਾਂ, ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਅਤੇ ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ, ਦੇਸ਼ ਦੀ ਹਰ ਪੱਖ ਤੋਂ ਉੱਨਤੀ ਲਈ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਲੋੜ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਦੇਸ਼ . ਉੱਤੋਂ ਆਪਣੀ ਜਾਨ ਵੀ ਕੁਰਬਾਨ ਕਰ ਦੇਣਾ ਆਦਿ ਗੱਲਾਂ ਦੇਸ਼-ਭਗਤੀ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ । ਦੇਸ਼-ਪਿਆਰ ਦੇ ਰੰਗ ਵਿਚ ਰੰਗਿਆ ਹੋਇਆ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਕਿਣਕੇ-ਕਿਣਕੇ ਨੂੰ ਸ਼ਾਹੀ ਮਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੀ ਵੱਧ ਪਿਆਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਅਰਥ-ਕੁਦਰਤੀ ਜਜ਼ਬਾ ਦੇਸ਼-ਭਗਤੀ ਤੇ ਅਜ਼ਾਦੀ-ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਲਈ ਦੇਸ਼-ਭਗਤਾਂ ਦਾ ਘੋਲ-ਭਾਰਤ ਦਾ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਇਤਿਹਾਸ-ਅਜ਼ਾਦ ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਦੇਸ਼-ਭਗਤੀ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ )

ਕੁਦਰਤੀ ਜਜ਼ਬਾ :
ਸਾਡੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਦੇਸ਼-ਪਿਆਰ ਕੁਦਰਤੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਉਤਪੰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜੇ ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਹੈ, ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਵੀ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਹੁੰਦੇ ਹਾਂ । ਜੇਕਰ ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੰਕਟ ਵਿਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੰਕਟ ਵਿਚ ਹੁੰਦੇ ਹਾਂ । ਸਾਡਾ ਦੁੱਖ-ਸੁਖ, ਖ਼ੁਸ਼ੀ-ਗ਼ਮੀ ਸਭ ਕੁੱਝ ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਹੀ ਬੱਝਾ ਪਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਦੇਸ਼-ਪਿਆਰ ਇਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਆਪਣੇ ਘਰ ਨਾਲ ਪਿਆਰ ਹੈ । ਘਰ ਦੇ ਪਿਆਰ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਦੇਸ਼-ਪਿਆਰ ਪੈਦਾ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ । ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਨਿੱਜੀ ਕਰਤੱਵ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿਚ ਹੀ ਉਸ ਦਾ ਭਲਾ ਹੈ ।

ਦੇਸ਼-ਭਗਤੀ ਤੇ ਅਜ਼ਾਦੀ-ਦੇਸ਼-ਪਿਆਰ ਇਕ ਅਜਿਹਾ ਜਜ਼ਬਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੇ ਗੁਲਾਮੀ ਦੀਆਂ ਜ਼ੰਜੀਰਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜ ਕੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਨੂੰ ਅਜ਼ਾਦ ਕਰਵਾਇਆ ਸੀ । ਜਿਸ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ਪਿਆਰ ਨਹੀਂ, ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਗੁਲਾਮੀ ਦੀਆਂ ਜ਼ੰਜੀਰਾਂ ਵਿਚ ਜਕੜਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਦੇਸ਼-ਭਗਤ ਗੁਲਾਮੀ ਦੀਆਂ ਜ਼ੰਜੀਰਾਂ ਕੱਟਣ ਲਈ ਆਪਣਾ ਸੁਖ-ਅਰਾਮ ਤਿਆਗ ਕੇ ਜੰਗ ਵਿਚ ਕੁੱਦ ਪੈਂਦੇ ਹਨ, ਘੋਲ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਕੈਦਾਂ ਕੱਟਦੇ ਹਨ ਤੇ ਜਾਨਾਂ ਵਾਰਦੇ ਹਨ । ਅਜਿਹੇ ਹੀ ਇਕ ਕੁਰਬਾਨੀ ਦੇ ਪੁਤਲੇ ਦੇਸ਼-ਭਗਤ ਦੇ ਭਾਵਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰੋ: ਮੋਹਨ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਸਤਰਾਂ ਵਿਚ ਅੰਕਿਤ ਕੀਤਾ ਹੈ –

ਵਾਗਾਂ ਛੱਡ ਦੇ ਹੰਝੂਆਂ ਵਾਲੀਏ ਨੀ, ਪੈਰ ਧਰਨ ਦੇ ਮੈਨੂੰ ਰਕਾਬ ਉੱਤੇ ।
ਮੇਰੇ ਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਬਣੀ ਏ ਭੀੜ ਭਾਰੀ, ਟੁੱਟ ਪਏ ਨੇ ਵੈਰੀ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ।
ਰੋ ਰੋ ਕੇ ਪਾਣੀ ਨਾ ਫੇਰ ਐਵੇਂ, ਮੇਰੇ ਸੋਹਣੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਆਬ ਉੱਤੇ ।
ਸਰੁ ਵਰਗੀ ਜਵਾਨੀ ਮੈਂ ਫੁਕਣੀ ਏ, ਬਹਿ ਗਏ ਝੁੰਡ ਜੇ ਆ ਕੇ ਗੁਲਾਬ ਉੱਤੇ ।

ਭਾਰਤ ਦਾ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਭਰਿਆ ਇਤਿਹਾਸ :
ਭਾਰਤ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇਸ਼-ਭਗਤਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਪਿਆ ਹੈ । ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਭਾਰਤ ਉੱਪਰ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਬਾਬਰ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦੁਆਰਾ ਭਾਰਤ ਦੀ ਕੀਤੀ ਲੁੱਟ-ਖਸੁੱਟ ਤੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੀ ਬੇ-ਪਤੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਨਿਧੜਕਤਾ ਨਾਲ ਅਵਾਜ਼ ਉਠਾਈ । ਇਸੇ ਤਰਾਂ ਹੀ ਰਾਣਾ ਪ੍ਰਤਾਪ ਤੇ ਸ਼ਿਵਾ ਜੀ ਮਰਹੱਟਾ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਭਰੇ ਘੋਲ, ਦੇਸ਼-ਪਿਆਰ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਹਨ। ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਕੌਮ ਨੂੰ ਕੱਟੜਪੰਥੀ ਹਕੂਮਤ ਦੇ ਜਬਰ ਤੋਂ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ ਦਿੱਤੀ, ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਸਾਜਨਾ ਕੀਤੀ, ਆਪਣੇ ਬੱਚੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਵਾਏ ਅਤੇ ਹੋਰ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਤੇ ਕਸ਼ਟ ਸਹੇ ।ਉਹਨਾਂ ਦੁਆਰਾ ਦੇਸ਼ ਲਈ ਕੀਤੀਆਂ ਇੰਨੀਆਂ ਮਹਾਨ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ, ਹਰਭਜਨ ਸਿੰਘ ਹੁੰਦਲ ਲਿਖਦਾ ਹੈ –

ਕਲਗੀਧਰ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਲਈ ਵਾਰ ਸਭ ਕੁੱਝ,
ਧੂੜੀ ਮੌਤ ਸੀ ਮੁਗ਼ਲ ਅਭਿਮਾਨੀਆਂ ਤੇ ।
ਉਹਦੇ ਬੱਚਿਆਂ ਕਿਹਾ ਸਰਹੰਦ ਅੰਦਰ,
ਜਿਉਂਦੀ ਕੌਮ ਹੈ ਸਦਾ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਤੇ ।

ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਲਈ ਦੇਸ਼-ਭਗਤਾਂ ਦਾ ਘੋਲ-ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਗੁਲਾਮੀ ਵਿਚੋਂ ਛੁਡਾਉਣ ਲਈ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ, ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ ਸਰਾਭਾ, ਬਾਬਾ ਸੋਹਣ ਸਿੰਘ ਭਕਨਾ, ਸ: ਭਗਤ ਸਿੰਘ, ਸਰਦਾਰ ਊਧਮ ਸਿੰਘ ਤੇ ਸੁਭਾਸ਼ ਚੰਦਰ ਬੋਸ ਵਰਗੇ ਮਹਾਨ ਯੋਧਿਆਂ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਭਗਤੀ ਦੇ ਜਜ਼ਬੇ · ਅਧੀਨ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦਾ ਅਜਿਹਾ ਬਿਗਲ ਵਜਾਇਆ ਕਿ ਅੰਤ . 15 ਅਗਸਤ, 1947 ਈ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪੰਜੇ ਵਿਚੋਂ ਛੁਡਾ ਲਿਆਂ ।

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27. ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਬਨਾ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ

ਮੈਂ ਕੁਝ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਨਾਲ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਗਿਆ ਸੀ। ਪਰ ਮੈਨੂੰ ਉਸ ਬਾਰੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਯਾਦ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਉਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੈਂ ਕਈ ਵਾਰ ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਗਿਆ, ਹਾਲ ਹੀ ਵਿਚ ਮੈਂ ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਗਿਆ। ਮੈਨੂੰ ਉਥੋਂ ਇਕ ਦੋਸਤ ਲੈ ਜਾਣਾ ਪਿਆ। ਉਹ ਅਗਸਤ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਐਕਸਪ੍ਰੈਸ ਦੁਆਰਾ ਮੁੰਬਈ ਤੋਂ ਆ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਉਸਨੂੰ ਸਵੇਰੇ 10:55 ਵਜੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਆਉਣਾ ਪਿਆ।

ਮੈਂ ਸਵੇਰੇ 10 ਵਜੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਪਹੁੰਚਿਆ। ਸਟੇਸ਼ਨ ਪੈਕ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਹਰ ਪਾਸੇ ਭੀੜ ਸੀ। ਲੋਕ ਇੱਥੇ ਅਤੇ ਉਥੇ ਆ ਰਹੇ ਸਨ। ਇੱਥੇ ਭਿਖਾਰੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਲੋਕ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਪੋਰਟਰ, ਹੌਕਰ, ਰੇਲਵੇ ਕਰਮਚਾਰੀ, ਯਾਤਰੀ ਅਤੇ ਟੈਕਸੀ ਅਤੇ ਰਿਕਸ਼ਾ ਚਾਲਕ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ। ਰੌਲਾ ਸੱਚਮੁੱਚ ਕੰਨਾਂ ਨੂੰ ਚਿਣ ਰਿਹਾ ਸੀ।

ਮੈਂ ਇੱਕ ਪਲੇਟਫਾਰਮ ਟਿਕਟ ਖਰੀਦਿਆ ਅਤੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਵਿੱਚ ਦਾਖਲ ਹੋਇਆ। ਸਟੇਸ਼ਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹੋਰ ਵੀ ਸ਼ੋਰ ਸੀ। ਉਥੇ ਮੌਜੂਦ ਹਰ ਕੋਈ ਉਸਦੀ ਤਬਾਹੀ ਵਿਚ ਰੁੱਝਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਹਰ ਕੋਈ ਕਾਹਲੀ ਵਿੱਚ ਸੀ। ਇੰਜ ਜਾਪਦਾ ਸੀ ਜਿਵੇਂ ਸਮੁੰਦਰ ਵਿੱਚ ਤੂਫਾਨ ਆ ਗਿਆ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਸਭ ਕੁਝ ਖਿੰਡਾ ਗਿਆ ਸੀ।

ਰੇਲ ਗੱਡੀਆਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ। ਹਾਕਰ ਆਪਣੀ ਆਵਾਜ਼ ਦੀ ਅਧਿਕਤਮ ਹੱਦ ਤੱਕ ਚੀਕ ਰਹੇ ਸਨ। ਗੱਡੀਆਂ ਦੀ ਉੱਚੀ ਆਵਾਜ਼ ਅਤੇ ਸੀਟੀ ਆਵਾਜ਼ ਉਲਝਣ ਪੈਦਾ ਕਰ ਰਹੀ ਸੀ। ਰੇਲ ਗੱਡੀਆਂ ਦੇ ਆਉਣ ਅਤੇ ਰੁਕਣ ਬਾਰੇ ਕਈ ਘੋਸ਼ਣਾਵਾਂ ਸਨ। ਯਾਤਰੀ ਕਾਰ ਨੂੰ ਫੜਨ ਲਈ ਕਾਹਲੇ ਸਨ। ਜਦੋਂਕਿ ਪਹੁੰਚੇ ਯਾਤਰੀ ਕਾਰ ਤੋਂ ਉਤਰਨ ਦੀ ਕਾਹਲੀ ਵਿੱਚ ਸਨ। ਉਥੇ ਬਹੁਤ ਖਿੱਚ ਰਹੀ ਸੀ। ਦਰਬਾਨ ਮੁਸਾਫਰਾਂ ਦਾ ਸਮਾਨ ਲੈ ਕੇ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ।

ਰੇਲਵੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਵੀ ਬਹੁਤ ਰੁੱਝੇ ਹੋਏ ਸਨ। ਸਟੇਸ਼ਨ ਮਾਸਟਰ, ਸਹਾਇਕ ਸਟੇਸ਼ਨ ਮਾਸਟਰ, ਟਿਕਟ ਇੰਸਪੈਕਟਰ, ਚੌਕੀਦਾਰ, ਇੰਜਨ ਡਰਾਈਵਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਾਰੇ ਉਥੇ ਰੁੱਝੇ ਹੋਏ ਸਨ। ਬਾਹਰਲੇ ਫਾਟਕ ‘ਤੇ ਟਿਕਟ-ਇੰਸਪੈਕਟਰ ਬਹੁਤ ਵਿਅਸਤ ਸਨ। ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਕਮਰੇ ਭਰੇ ਹੋਏ ਸਨ। ਚੀਜ਼ਾਂ ਬਾਹਰ ਕੱ । ਬ੍ਰੇਕ ਵੈਨ ਦੇ ਡੱਬੇ ਵਿਚ ਰੱਖੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਸਨ।

ਫਿਰ ਰਾਜਧਾਨੀ ਐਕਸਪ੍ਰੈਸ ਪਲੇਟਫਾਰਮ ਨੰਬਰ ਇੱਕ ‘ਤੇ ਪਹੁੰਚੀ। ਜਦੋਂ ਟ੍ਰੇਨ ਅਜੇ ਚੱਲ ਰਹੀ ਸੀ, ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਦੋਸਤ ਨੂੰ ਡੱਬੇ ਦੇ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਤੇ ਖੜ੍ਹਾ ਦੇਖਿਆ ਅਤੇ ਮੈਂ ਤੁਰੰਤ ਇਸ ਦੇ ਕੋਲ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ।

ਸਿਰੀਲੇ ਨੀਵਾਂ ਹੋਈ :
ਇੰਨੋਂ ਨੂੰ ਲਾਊਡ ਸਿੱਪੀਕਥੇ ਉੱਤੇ ਬੱਡੀ ਦੇ ਆਉਣ ਦੀ ਸੂਚਨਾ ਮਿਲੀ । ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਦੱਸਿਆਂ ਕਿ ਔਹ ਸਿਗਨੇਲ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਗੱਡੀ ਆ ਰਹੀ ਹੈ ।

ਗੱਡੀ ਦਾ ਆਉਣਾ : ਬੱਸ ਦੋ ਕੁ ਮਿੰਟਾਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਗੱਡੀ ਪਲੇਟਫ਼ਾਰਮ ਉੱਤੇ ਆ ਈ ਤੇ ਹੌਲੇ-ਹੌਲੇ ਉਕੇ ਗਈ ।

ਗੱਡੀ ਵਿਚ ਸਵਾਰ ਹੋਣਾ :
ਸਾਡੀ ਡੱਬੀ ਸ਼ੇਰਾਂ ਹੋਰ ਅੱਗੇ ਜਾ ਕੇ ਗਿਆਂ । ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਅਟੈਚੀਕੇਸ ਚੁੱਕ ਕੇ ਤੇ ਮੇਰਾਂ ਹੱਥੇ ਬੇੜ ਕੇ ਵੋਟੀ-ਬਦੇ ਡੱਬੇ ਕੋਲ ਪੁੱਜੇ ਤੇ ਫਿਰ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਦੀ ਭੀੜ ਨੂੰ ਚੀਰਦੇ ਹੋਏ ਡੱਬੇ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਹੋ ਗਏ । ਸਾਡੀਆਂ ਸੀਟਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਜਿਹੋਂ ਸੋਨੇ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਉੱਤੇ ਦੋ ਬੰਦੇ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਬੈਠੇ ਸਨ । ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦੇ ਕਹਿਣ ‘ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸੀਟਾਂ ਖ਼ਾਲੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਅਤੇ ਅਸੀਂ ਬੈਠ ਗਏ । ਇਸ ਤੋਂ ਦੋ-ਤਿੰਨ ਮਿੰਟ ਮਗਰੋਂ ਹੀ ਗੱਡੀ ਚਲ ਪਈ ਤੇ ਮੈਂ ਗੱਡੀ ਦੇ ਸੇਰੇ ਦਾ ਆਨੰਦ ਲੈਣ ਲੱਗੇ ।

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28. ਬੱਸ-ਅੱਛੋਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ

ਗਹਿਮੀ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇੱਥੇ ਅਸੀਂ ਹਰ ਉਮਰ ਦੇ ਮਰਦਾਂ ਤੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਤੇ ਹੁਸ਼ਿਆਰੀ ਨਾਲ ਇਧਰ- ਉਧਰ ਜਾਂਦੇ, ਟਿਕਟਾਂ ਲੈਂਦੇ ਅਤੇ ਬੱਸਾਂ ਵਿੱਚ ਚੜ੍ਹਦੇ ਤੇ ਉਤਰਦੇ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਬੱਚੇ ਵੀ ਬੜੇ ਚਾਅ ਅਤੇ ਉਮੰਗ ਨਾਲ ਭਰੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਬੈਗ ਗਲਾਂ ਵਿਚ ਪਾਏ ਅਤੇ ਅਟੈਚੀਕੇਸ, ਬਰੀਫਕੇਸ ਤੇ ਟਰੰਕ ਆਦਿ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਫੜੀ ਬੱਸਾਂ ਉੱਤੇ ਚੜ੍ਹਨ ਲਈ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਆ ਰਹੇ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦੇ ਹਨ।

ਭਿੰਨ – ਭਿੰਨ ਸ਼ਹਿਰਾਂ, ਕਸਬਿਆਂ ਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਨੂੰ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਬੱਸਾਂ ਵਾਰੀ – ਵਾਰੀ ਆਪਣੇ – ਆਪਣੇ ਪਲੇਟਫਾਰਮ ਉੱਤੇ ਖੜ੍ਹੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਹਰ ਬੱਸ ਦਾ ਕੰਡਕਟਰ ਬਾਹਰ ਇਕ ਕੈਬਨ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ ਜਾਂ ਬੱਸ ਅੱਗੇ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋ ਕੇ ਟਿਕਟਾਂ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਲੋਕ ਲਾਈਨ ਬਣਾ ਕੇ ਟਿਕਟਾਂ ਲੈਂਦੇ ਹਨ। ਸਵਾਰੀਆਂ ਭਾਰੇ ਸਮਾਨ ਨੂੰ ਬੱਸਾਂ ਦੀਆਂ ਛੱਤਾਂ ਉੱਪਰ ਰਖਵਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਜਦੋਂ ਵੀ ਕਿਸੇ ਬੱਸ ਦੇ ਤੁਰਨ ਦਾ ਸਮਾਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕੰਡਕਟਰ ਵਿਸਲ ਵਜਾਉਂਦਾ ਹੈ। ਬੱਸ ਦਾ ਡਰਾਈਵਰ ਸੀਟ ਉੱਪਰ ਬੈਠ ਕੇ ਬੱਸ ਨੂੰ ਤੋਰਦਾ ਹੈ। ਕਈ ਪਿੱਛੇ ਰਹੀਆਂ ਸਵਾਰੀਆਂ ਕਾਹਲੀ – ਕਾਹਲੀ ਉਤਰਦੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਬੱਸ ਅੱਡੇ ਦੇ ਬਾਹਰੋਂ ਟਾਂਗੇ, ਰਿਕਸ਼ੇ ਤੇ ਆਟੋ – ਰਿਕਸ਼ੇ ਲੈ ਕੇ ਆਪਣੇ – ਆਪਣੇ ਟਿਕਾਣਿਆਂ ਨੂੰ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਬੱਸਾਂ ਦੇ ਅੱਡੇ ਉੱਪਰ ਅਖਬਾਰਾਂ ਵੇਚਣ ਵਾਲੇ ਤੇ ਦਵਾਈਆਂ ਆਦਿ ਵੇਚਣ ਵਾਲੇ ਵੀ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦੇ ਹਨ। ਇੱਥੇ ਮੰਗਤਿਆਂ ਦਾ ਬੋਲ – ਬਾਲਾ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇੱਥੇ ਫਲਾਂ ਤੇ ਛੋਲੇ – ਭਟੂਰੇ ਆਦਿ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਕੁੱਝ ਪੁਲਿਸ ਵਾਲੇ ਵੀ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦੇ ਹਨ। ਉਂਞ ਇਹ ਥਾਂ ਭੀੜ, ਭੱਜ – ਦੌੜ ਤੇ ਰੌਲੇ – ਰੱਪੇ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।

ਮੁਸਾਫ਼ਰ ਤੇ ਹੋਰ ਲੋਕ :
ਬੱਸ ਅੱਡੇ ਵਿਚ ਮੁਸਾਫ਼ਰਾਂ ਦੇ ਬੈਠਣ ਲਈ ਬੈਂਚ ਬਣੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਉੱਪਰ ਮੁਸਾਫ਼ਰ ਬੈਠ ਕੇ ਬੱਸਾਂ ਅਤੇ ਮਿੱਤਰਾਂ-ਸੰਬੰਧੀਆਂ ਦੀ ਉਡੀਕ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਉੱਥੇ ਫਲਾਂ, ਚਾਹ ਤੇ ਛੋਲੇ-ਭਟੂਰਿਆਂ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਤੇ ਰੇੜੀਆਂ ਵੀ ਸਨ । ਇਸਤਰੀਆਂ ਤੇ ਮਰਦਾਂ ਲਈ ਵੱਖਰੇ-ਵੱਖਰੇ ਪੇਸ਼ਾਬ-ਘਰਾਂ ਤੇ ਪੀਣ ਦੇ ਪਾਣੀ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸੀ । ਕਿਧਰੇ-ਕਿਧਰੇ ਕੋਈ ਪੁਲਿਸ ਵਾਲਾ ਵੀ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਵਾਲੇ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਵੇਚ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉੱਥੇ ਕੁੱਝ ਵਿਅਕਤੀ ਪਿੰਗਲਵਾੜੇ ਦੀ ਗੋਲਕ ਚੁੱਕੀ ਮਾਇਕ ਸਹਾਇਤਾ ਮੰਗ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਕ ਦੋ ਮੰਗਤੇ ਤੇ ਲੂਲ੍ਹੇ-ਲੰਗੜੇ ਉਂਝ ਵੀ ਮੰਗ ਰਹੇ ਸਨ । ਐੱਨ, ਰੁਮਾਲ, ਟਾਫ਼ੀਆਂ ਤੇ ਹੋਰ ਨਿੱਕ-ਸੁਕ ਵੇਚਣ ਵਾਲੇ ਬੱਸਾਂ ਵਿਚ ਵੜ ਕੇ ਆਪਣਾ ਸਮਾਨ ਵੇਚ ਰਹੇ ਸਨ ।

ਬੱਸਾਂ ਤੇ ਸਵਾਰੀਆਂ :
ਬੱਸਾਂ ਦੇ ਕਾਉਂਟਰਾਂ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ਕੰਡਕਟਰ ਟਿਕਟਾਂ ਦੇ ਰਹੇ ਸਨ । ਜ਼ਨਾਨਾ ਤੇ ਮਰਦਾਨਾ ਸਵਾਰੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਲਾਈਨਾਂ ਬਣਾ ਕੇ ਟਿਕਟਾਂ ਲੈ ਰਹੀਆਂ ਸਨ । ਕਈ ਕੰਡਕਟਰ ਬੱਸਾਂ ਦੇ ਕੋਲ ਖੜ੍ਹੇ ਹੋਕੇ ਦੇ ਕੇ ਸਵਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਸੱਦ ਰਹੇ ਸਨ । ਕਈਆਂ ਬੱਸਾਂ ਦੀਆਂ ਛੱਤਾਂ ਉੱਤੇ ਵੀ ਸਮਾਨ ਚੜ੍ਹਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਕਈ ਬੱਸਾਂ ਬਾਹਰੋਂ ਆ ਰਹੀਆਂ ਸਨ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਸਵਾਰੀਆਂ ਆਪਣੇ ਸਮਾਨ ਚੁੱਕੀ ਹੇਠਾਂ ਉੱਤਰ ਰਹੀਆਂ ਸਨ । ਇੰਨੇ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵਾਲੇ ਕਾਊਂਟਰ ਉੱਤੇ ਬੱਸ ਲੱਗ ਗਈ ! ਮੈਂ ਟਿਕਟ ਲੈਣ ਲਈ ਕਤਾਰ ਵਿਚ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਸਾਥੋਂ ਤੀਜੇ ਕਾਊਂਟਰ ਕੋਲ ਕੁੱਝ ਰੌਲਾ ਜਿਹਾ ਪੈ ਗਿਆ । ਇਕ ਆਦਮੀ ਦੀ ਜੇਬ ਕੱਟੀ ਗਈ ਸੀ, ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਜੇਬ-ਕਤਰੇ ਬਾਰੇ ਕੁੱਝ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਲੱਗਾ ।

ਬੱਸ ਦਾ ਅੱਡੇ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਣਾ :
ਟਿਕਟ ਲੈ ਕੇ ਮੈਂ ਬੱਸ ਵਿਚ ਸਵਾਰ ਹੋ ਗਿਆ ਆਪਣੀ ਸੀਟ ਉੱਤੇ ਜਾ ਬੈਠਾ । ਕੁੱਝ ਮਿੰਟਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਬੱਸ ਭਰ ਗਈ । ਕੰਡਕਟਰ ਨੇ ਬੱਸ ਵਿਚ ਆਉਂਦਿਆਂ ਹੀ ਵਿਸਲ ਵਜਾਈ । ਡਰਾਈਵਰ, ਜੋ ਬੱਸ ਦੇ ਕੋਲ ਹੀ ਖੜਾ ਸੀ, ਅਗਲੀ ਬਾਰੀ ਰਾਹੀਂ ਆਪਣੀ ਸੀਟ ਉੱਤੇ ਬੈਠ ਗਿਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਬੱਸ ਚਲਾ ਦਿੱਤੀ । ਅੱਡੇ ਦੇ ਗੇਟ ਕੋਲ ਬੱਸ ਰੁਕੀ । ਕੰਡਕਟਰ ਨੇ ਅੱਡਾ ਫ਼ੀਸ ਦਿੱਤੀ । ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਸਵਾਰੀਆਂ ਚੜ੍ਹਾਈਆਂ ਤੇ ਵਿਸਲ ਵਜਾ ਕੇ ਬੱਸ ਤੋਰ ਦਿੱਤੀ ।

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29. ਪਹਾੜ ਦੀ ਸੈਰ

ਸੈਰਾਂ ਤੇ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸੈਰਾਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਮਹਾਨਤਾ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਨਾਲ ਉਸ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਈ ਤੇ ਇਮਤਿਹਾਨ ਦੇ ਰੁਝੇਵਿਆਂ ਅਤੇ ਥਕੇਵਿਆਂ ਭਰੇ ਜੀਵਨ ਤੋਂ ਅਰਾਮ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਚੁਸਤੀ ਤੇ ਮਨ ਵਿਚ ਤਾਜ਼ਗੀ ਆਉਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਸ ਦੇ ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਭਾਰੀ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਸੈਰਾਂ ਤੇ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਸੈਰ ਲਈ ਜਾਣਾ-ਜੰਮੂ ਤੋਂ ਸ੍ਰੀਨਗਰ ਤਕ ਪਹਾੜੀ ਸਫ਼ਰ ਦਾ ਨਜ਼ਾਰਾ-ਟਾਂਗਮਰਗ ਤੋਂ ਗੁਲਮਰਗ ਤਕ ਪੈਦਲ ਯਾਤਰਾ-ਹੋਰਨਾਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਸੈਰ)

ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਸੈਰ ਲਈ ਜਾਣਾ :
ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਗਰਮੀਆਂ ਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਵਿਚ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚੋਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦਾ ਇਕ ਗਰੁੱਪ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਸੈਰ ਕਰਨ ਲਈ ਗਿਆ । ਇਸ ਗਰੁੱਪ ਵਿਚ ਮੈਂ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ । ਇਸ ਗਰੁੱਪ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸਾਡੀ ਕਲਾਸ ਦੇ ਇੰਚਾਰਜ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਸਵੇਰੇ-ਸਵੇਰੇ ਜੰਮ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਬੱਸ ਵਿਚ ਬੈਠ ਗਏ । ਅਸੀਂ ਸ਼ਾਮ ਵੇਲੇ ਜੰਮੂ ਪੁੱਜੇ । ਰਾਤ ਇਕ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਵਿਚ ਕੱਟੀ ਤੇ ਸਵੇਰੇ ਅਸੀਂ ਬੱਸ ਵਿਚ ਸਵਾਰ ਹੋ ਕੇ ਸ੍ਰੀਨਗਰ ਵਲ ਚੱਲ ਪਏ ।

ਜੰਮੂ ਤੋਂ ਸ੍ਰੀਨਗਰ ਤਕ ਪਹਾੜੀ ਸਫ਼ਰ ਦਾ ਨਜ਼ਾਰਾ :
ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਪਹਾੜ ਝਾੜੀਆਂ, ਪੌਦਿਆਂ ਤੇ ਰੁੱਖਾਂ ਨਾਲ ਭਰੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਜਿਉਂ-ਜਿਉਂ ਅਸੀਂ ਅੱਗੇ ਵਧਦੇ ਗਏ, ਪਹਾੜ ਉੱਚੇ ਹੁੰਦੇ ਗਏ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਪੱਥਰਾਂ ਦੀ ਮਿਕਦਾਰ ਤੇ ਅਕਾਰ ਵਧਦੇ ਗਏ । ਅੱਗੇ ਜਾ ਕੇ ਚੀਲਾਂ ਤੇ ਦੇਵਦਾਰਾਂ ਨਾਲ ਲੱਦੇ ਪਹਾੜ ਆਏ । ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਪਹਾੜੀ ਝਰਨਿਆਂ ‘ਚੋਂ ਪਾਣੀ ਡਿਗ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਬੱਸ ਉੱਚੀਆਂ-ਨੀਵੀਆਂ ਅਤੇ ਵਲ ਖਾਂਦੀਆਂ ਸੜਕਾਂ ਤੋਂ ਲੰਘਦੀ ਹੋਈ ਅੱਗੇ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ । ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਬਾਰੀ ਵਿਚੋਂ ਦਿਲ-ਖਿੱਚਵੇਂ ਕੁਦਰਤੀ ਨਜ਼ਾਰਿਆਂ ਤੇ ਪਹਾੜੀ ਰਸਤੇ ਦਾ ਆਨੰਦ ਮਾਣ ਰਿਹਾ ਸਾਂ । ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਜਿਉਂ-ਜਿਉਂ ਅੱਗੇ ਵਧਦੇ ਗਏ, ਅਸੀਂ ਮੌਸਮ ਦੇ ਕਈ ਰੰਗ ਦੇਖੇ । ਠੰਢ ਲਗਾਤਾਰ ਵਧਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ । ਰਾਤ ਨੂੰ ਸਵਾ ਸੱਤ ਵਜੇ ਬੱਸ ਸ੍ਰੀਨਗਰ ਪਹੁੰਚੀ । ਬੱਸ ਤੋਂ ਉਤਰ ਕੇ ਅਸੀਂ ਇਕ ਹੋਟਲ ਵਿਚ ਦੋ ਕਮਰੇ ਕਿਰਾਏ ‘ਤੇ ਲੈ ਲਏ ।

ਟਾਂਗਮਰਗ ਤੋਂ ਗੁਲਮਰਗ ਤਕ ਪੈਦਲ ਯਾਤਰਾ :
ਦੂਜੇ ਦਿਨ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਸਾਥੀ ਬੱਸ ਵਿਚ ਸਵਾਰ ਹੋ ਕੇ ਟਾਂਗਮਰਗ ਪਹੁੰਚੇ । ਟਾਂਗਮਰਗ ਪਹਾੜਾਂ ਦੇ ਪੈਰਾਂ ਵਿਚ ਹੈ । ਇੱਥੋਂ ਅਸੀਂ ਗੁਲਮਰਗ ਤੇ ਖਿਲਮਰਗ ਦੀ ਸੈਰ ਕਰਨ ਲਈ ਨਿਕਲੇ । ਇੱਥੋਂ ਗੁਲਮਰਗ ਅੱਠ ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦੂਰ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਗੁਲਮਰਗ ਤਕ ਪੈਦਲ ਤੁਰ ਕੇ ਜਾਣ ਤੇ ਪਹਾੜ ਦੀ ਸੈਰ ਦਾ ਆਨੰਦ ਮਾਣਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਖੁਸ਼ੀ-ਖੁਸ਼ੀ, ਹੱਸਦੇ-ਨੱਚਦੇ, ਗਾਉਂਦੇ ਤੇ ਹੁਸੀਨ ਕੁਦਰਤੀ ਨਜ਼ਾਰਿਆਂ ਦਾ ਆਨੰਦ ਮਾਣਦੇ ਹੋਏ ਆਪਣਾ ਪੰਧ ਮੁਕਾ ਰਹੇ ਸਾਂ । ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਕਈ ਲੋਕ ਘੋੜਿਆਂ ਉੱਪਰ ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਵੀ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਪਹਾੜ ਚੀਲਾਂ, ਸਾਲ ਤੇ ਦੇਵਦਾਰਾਂ ਦੇ ਰੁੱਖਾਂ ਨਾਲ ਭਰੇ ਪਏ ਹਨ ਤੇ ਦਿਉ-ਕੱਦ ਪਹਾੜਾਂ ਉੱਤੇ ਉੱਗੇ ਇਹ ਉੱਚੇ ਦਰੱਖ਼ਤ ਅਸਮਾਨ ਨਾਲ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਪਹਾੜ ਦੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਡੂੰਘੀਆਂ ਪਾਤਾਲਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਦੀਆਂ ਖੱਡਾਂ ਹਨ । ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਕੈਮਰਾ ਸੀ । ਮੈਂ ਕੁੱਝ ਪਹਾੜੀ ਨਜ਼ਾਰਿਆਂ ਦੀਆਂ ਤਸਵੀਰਾਂ ਲਈਆਂ ।

ਗੁਲਮਰਗ ਦਾ ਨਜ਼ਾਰਾ ;
ਥੋੜ੍ਹੀ ਦੇਰ ਮਗਰੋਂ ਅਸੀਂ ਗੁਲਮਰਗ ਪੁੱਜੇ । ਇੱਥੇ ਇਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਫੁੱਲਾਂ ਲੱਦਿਆ ਉੱਚਾ-ਨੀਵਾਂ ਮੈਦਾਨ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਚਸ਼ਮੇ ਵਗਦੇ ਹਨ ਤੇ ਉੱਚੀਆਂ ਚੀਲਾਂ ਤੇ ਦੇਵਦਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਸੰਘਣੀਆਂ ਤੇ ਲੰਮੀਆਂ ਕਤਾਰਾਂ ਨੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਹੀ ਹੁਸੀਨ ਤੇ ਦਿਲ-ਖਿੱਚਵਾਂ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਇਕ ਘੰਟਾ ਇੱਥੇ ਠਹਿਰੇ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਇੱਥੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਹੋਟਲਾਂ, ਘੁੰਮਣ ਲਈ ਸੜਕਾਂ, ਮੋਟਰਾਂ-ਕਾਰਾਂ ਲਈ ਪਾਰਕਾਂ ਬਣਾ ਕੇ ਤੇ ਇੱਥੋਂ ਖਿਲਮਰਗ ਤਕ ਬਰ-ਫੇਰ ਵੀ ਚਾਲੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਪਰ ਹੋਟਲਾਂ ਤੇ ਮਨੁੱਖੀ ਦਖ਼ਲ-ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਨੇ ਇੱਥੋਂ ਦੀ ਕੁਦਰਤੀ ਖੂਬਸੂਰਤੀ ਨੂੰ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਗਾੜ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

ਘੋੜਿਆਂ ਦੀ ਸਵਾਰੀ :
ਗੁਲਮਰਗ ਤੋਂ ਖਿਲਮਰਗ ਤੰਕ ਦਾ ਰਸਤਾ ਉੱਚੇ-ਨੀਵੇਂ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚੋਂ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਗੁਲਮਰਗ ਤੋਂ ਘੋੜਿਆਂ ‘ਤੇ ਬੈਠ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਭਜਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਖਿਲਮਰਗ ਪੁੱਜੇ । ਇਹ ਥਾਂ ਸਮੁੰਦਰ ਤਲ ਤੋਂ 11,000 ਫੁੱਟ ਉੱਚੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇੱਥੇ ਸਾਰਾ ਸਾਲ ਬਰਫ਼ ਜੰਮੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਅਸੀਂ ਬਰਫ਼ ਵਿਚ ਕੁਦਾੜੀਆਂ ਮਾਰਨ ਲੱਗੇ ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਚੁੱਕ-ਚੁੱਕ ਕੇ ਇਕ ਦੂਜੇ ਉੱਤੇ ਸੁੱਟਣ ਲੱਗੇ । ਕੁੱਝ ਸਮਾਂ ਅਸੀਂ ਇੱਥੇ ਠਹਿਰੇ ਤੇ ਫਿਰ ਵਾਪਸ ਗੁਲਮਰਗ ਵਿਚੋਂ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਟਾਂਗਮਰਗ ਪਹੁੰਚੇ । ਰਾਤ ਅਸੀਂ ਮੁੜ ਸ੍ਰੀਨਗਰ ਆ ਠਹਿਰੇ ॥

ਹੋਰਨਾਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ :
ਸ੍ਰੀਨਗਰ, ਟਾਂਗਮਰਗ, ਗੁਲਮਰਗ ਤੇ ਖਿਲਨਮਰਗ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਅਸੀਂ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਹੋਰ ਸੁੰਦਰ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਵੀ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਡਲ ਝੀਲ, ਨਿਸ਼ਾਤ ਬਾਗ਼, ਕੁੱਕੜ ਨਾਗ, ਇੱਛਾਬਲ, ਅਵਾਂਤੀਪੁਰੇ ਦੇ ਖੰਡਰ, ਸੋਨਾਮਰਗ, ਪਹਿਲਗਾਮ ਤੇ ਚੰਦਨਵਾੜੀ ਦੇ ਹੁਸੀਨ ਨਜ਼ਾਰੇ ਦੇਖੇ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਸ ਦਿਨ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਪਹਾੜਾਂ ਦੀ ਸੈਰ ਕਰਨ ਪਿੱਛੋਂ ਅਸੀਂ ਵਾਪਸ ਪਰਤੇ ॥

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

30. ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਸ਼ਹਿਰ-ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ
ਜਾਂ
ਸਾਡਾ ਸ਼ਹਿਰ

ਪੁਰਾਤਨ ਧਾਰਮਿਕ ਸ਼ਹਿਰ-ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ । ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸ਼ਹਿਰ ਹੈ । ਮੈਂ ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ । ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਬਾਰੇ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ-
‘ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸਿਫਤੀ ਦਾ ਘਰ ।
ਇਹ ਇਕ ਪੁਰਾਤਨ ਧਾਰਮਿਕ ਸ਼ਹਿਰ ਹੈ ਪਰ ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਹ ਇਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਵਪਾਰਕ ਕੇਂਦਰ ਵੀ ਹੈ ।

ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਪੁਰਾਤਨ ਧਾਰਮਿਕ ਸ਼ਹਿਰ ਇਤਿਹਾਸ- ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ-ਵਪਾਰ ਦਾ ਕੇਂਦਰ-ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਧਾਰਮਿਕ ਸਥਾਨ-ਜਲ੍ਹਿਆਂ ਵਾਲਾ ਬਾਗ਼-ਨਵੀਨਤਾਵਾਂ । ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦਾ ਅਸਲ ਮਹੱਤਵ ਇੱਥੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਤੀਰਥ ਸ੍ਰੀ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਹੋਣਾ ਹੈ । ਇਹ ਸ਼ਹਿਰ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੀ ਸਰਹੱਦ ਤੋਂ ਕੇਵਲ 24 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਉਰੇ ਪੂਰਬ ਵਲ ਸਥਿਤ ਹੈ ।

ਇਤਿਹਾਸ :
ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਕਾਫ਼ੀ ਪੁਰਾਣਾ ਹੈ । ਪਹਿਲਾ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਆਗਿਆ ਅਨੁਸਾਰ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਸੰਮਤ 1621 (1663 ਈ:) ਵਿਚ ਇਕ ਤਾਲ ਖ਼ੁਦਵਾਇਆ, ਜਿਸਨੂੰ ਮਗਰੋਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੰਪੂਰਨ ਸੰਮਤ 1645 ਵਿਚ ਸੰਪੂਰਨ ਕਰ ਕੇ ਇਸਦਾ ਨਾਂ ਸੰਤੋਖਸਰ ਰੱਖਿਆ । ਸੰਮਤ 1631 (1573 ਈ: ) ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੀ ਆਗਿਆ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਇਕ ਪਿੰਡ ਬੰਨਿਆ ਗਿਆ ਤੇ ਆਪਣੇ ਰਹਿਣ ਲਈ ਮਕਾਨ ਬਣਵਾਏ, ਜੋ ‘ਗੁਰੂ ਕੇ ਮਹਿਲ’ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ ।ਉਸਦੇ ਚੜ੍ਹਦੇ ਪਾਸੇ ਦੁਖ ਭੰਜਨੀ ਬੇਰੀ ਦੇ ਕੋਲ ਸੰਮਤ 1634 ਵਿਚ ਇਕ ਤਾਲ ਖ਼ੁਦਵਾਇਆ, ਜਿਸਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੰਪਰਨ ਕੀਤਾ ਤੇ ਚਾਰੇ ਪਾਸਿਓਂ ਵਪਾਰੀ ਤੇ ਕਿਰਤੀ ਲੋਕ ਵਸਾ ਕੇ ਇਸਦਾ ਨਾਂ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰ ਰੱਖਿਆ ।

ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਉਸਾਰੀ :
ਸੰਮਤ 1643 ਵਿਚ ਸਰੋਵਰ ਨੂੰ ਪੱਕਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕੰਮ ਆਰੰਭ ਹੋਇਆ ਤੇ ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਨਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । 1 ਮਾਘ 1645 ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸ੍ਰੀ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖੀ ਅਤੇ ਇਮਾਰਤ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਸੰਮਤ 1661 ਵਿਚ ਇੱਥੇ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੁ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕੀਤਾ ।

ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਉਤਾਰ-ਚੜ੍ਹਾਅ ਅਤੇ ਦੁਖਾਂਤ ਦੇਖੇ ਹਨ ਪਰੰਤੁ ਇਸਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਇੱਥੇ ਸ੍ਰੀ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਸਭ ਦੀ ਸ਼ਰਧਾ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਘੁੱਗ ਵਸਦਾ ਹੈ ।

ਵਪਾਰ ਦਾ ਕੇਂਦਰ :
ਇੱਥੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਪਾਰੀ ਲੋਕ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਿ ਕੱਪੜੇ ਅਤੇ ਸੋਨੇ ਚਾਂਦੀ ਦੇ ਗਹਿਣਿਆਂ ਦਾ ਵਪਾਰ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਸ਼ਹਿਰ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸੁਆਦਲੇ ਤੇ ਚਟਪਟੇ ਖਾਣਿਆਂ ਲਈ ਬਹੁਤ ਮਸ਼ਹੂਰ ਹੈ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਪਾਪੜ-ਵੜੀਆਂ, ਕੁਲਚੇ ਅਤੇ ਲੱਸੀ ਬਹੁਤ ਮਸ਼ਹੂਰ ਹੈ ।

ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਧਾਰਮਿਕ ਸਥਾਨ :
ਇਸ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਹਿੰਦੂਆਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਧਾਰਮਿਕ ਅਸਥਾਨ ਹਨ । ਸ੍ਰੀ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਇੱਥੋਂ ਦਾ ਹੀ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਦਾ ਸਰਵਉੱਚ ਧਾਰਮਿਕ ਸਥਾਨ ਹੈ, ਜਿਸਦੀ ਇਮਾਰਤ ਉੱਤੇ ਸੋਨਾ ਚੜ੍ਹਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਮੀਰੀ-ਪੀਰੀ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਸੰਤੋਖਸਰ, ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਅਟੱਲ ਸਾਹਿਬ, ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਸ਼ਹੀਦਾਂ, ਕੌਲਸਰ, ਗੁਰੂ ਕੇ ਮਹਿਲ ਤੇ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਥੜ੍ਹਾ ਸਾਹਿਬ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਧਰਮ ਅਸਥਾਨ ਹਨ । ਦੁਰਗਿਆਣਾ ਮੰਦਰ ਤੇ ਸਤਿ ਨਰਾਇਣ ਦਾ ਮੰਦਰ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਧਰਮ ਅਸਥਾਨ ਹਨ । ਇੱਥੇ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦਾ ਤਿਆਰ ਕਰਾਇਆ ਕਿਲ੍ਹਾ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਵੀ ਹੈ ਤੇ ਅਕਾਲੀ ਫੂਲਾ ਸਿੰਘ ਬੁੰਗੇ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਰਾਮਗੜ੍ਹੀਆਂ ਮਿਸਲ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਬੁੰਗੇ ਵੀ ਹਨ ।

ਜਲ੍ਹਿਆਂ ਵਾਲਾ ਬਾਗ :
ਇੱਥੇ ਹੀ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਜਲ੍ਹਿਆਂ ਵਾਲਾ ਬਾਗ਼ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜਨਰਲ ਡਾਇਰ ਨੇ 13 ਅਪਰੈਲ, 1919 ਨੂੰ ਨਿਹੱਥੇ ਦੇਸ਼-ਭਗਤਾਂ ਦੇ ਖੂਨ ਦੀ ਹੋਲੀ ਖੇਡਦਿਆਂ ਸੈਂਕੜਿਆਂ ਨੂੰ ਗੋਲੀਆਂ ਨਾਲ ਭੁੰਨ ਦਿੱਤਾ । ਇੱਥੇ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਇਕ ਮੀਨਾਰ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਵਿੱਦਿਅਕ ਕੇਂਦਰ ਵੀ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਪੁਰਾਤਨ ਆਲੀਸ਼ਾਨ ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲਜ ਸਥਿਤ ਹੈ ਤੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਡਿਗਰੀ ਕਾਲਜ ਵੀ । ਇੱਥੇ ਇਕ ਮੈਡੀਕਲ ਕਾਲਜ ਵੀ ਹੈ ਤੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਵੀ ।

ਇੱਥੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦਾ ਕੰਪਨੀ ਬਾਗ਼ ਵੀ ਹੈ, ਜਿਸਦਾ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਨਾਂ ਨਹਿਰੂ ਬਾਗ਼ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਹੀ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਬਾਰਾਦਰੀ ਵੀ ਹੈ ।

ਨਵੀਨਤਾਵਾਂ :
ਇਹ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਬੇਸ਼ੱਕ ਪੁਰਾਤਨ ਸ਼ਹਿਰ ਹੈ, ਪਰ ਇਹ ਸਾਰੀਆਂ ਨਵੀਨਤਾਵਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੈ । ਇਹ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਨਾਲ ਮਾਝੀ ਉਪਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਹੈ ਤੇ ਇੱਥੋਂ ਦੀ ਬੋਲੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਟਕਸਾਲੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਧੁਰਾ ਹੈ । ਸਮੁੱਚੇ ਤੌਰ ਤੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਤੇ ਵਪਾਰਕ ਮਹੱਤਤਾ ਵਾਲਾ ਸ਼ਹਿਰ ਹੈ ।

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31. ਕਿਸੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਯਾਤਰਾ
ਜਾਂ
ਤਾਜ ਮਹੱਲ

ਯਾਤਰਾ ਦੀ ਲੋੜ-ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਸਥਾਨਾਂ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਦਾ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਜਿੱਥੇ ਤਾਜ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਦੇ ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ । ਮਹੱਲ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼-ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਿਛੋਕੜਹੈ, ਉੱਥੇ ਉਸ ਦਾ ਕਿਤਾਬੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਨਾਲ । ਥੱਕਿਆ ਦਿਮਾਗ਼ ਵੀ ਤਾਜ਼ਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਯਾਤਰਾਦੀ ਲੋੜ-ਤਾਜ ਮਹੱਲ ਦੇਖਣ ਦਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ-ਆਗਰੇ ਪੁੱਜਣਾ-ਕਬਰਾਂ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼-ਵਾਪਸੀ ।)

ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ :
ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਜਦੋਂ ਸਾਡਾ ਸਕੂਲ ਗਰਮੀਆਂ ਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਵਿਚ ਬੰਦ ਹੋਇਆ, ਤਾਂ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਚਾਚਾ ਜੀ ਨਾਲ ਆਗਰੇ ਦਾ ਤਾਜ ਮਹੱਲ ਦੇਖਣ ਗਿਆ ।

ਆਗਰੇ ਪੁੱਜਣਾ :
ਆਗਰੇ ਜਾਣ ਲਈ ਅਸੀਂ ਦੋਵੇਂ ਜਣੇ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ‘ਤੇ ਪਹੁੰਚੇ ਅਤੇ ਗੱਡੀ ਵਿਚ ਸਵਾਰ ਹੋ ਕੇ ਦੂਜੇ ਦਿਨ ਦੁਪਹਿਰ ਨੂੰ ਉੱਥੇ ਪਹੁੰਚ ਗਏ । ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਸੀਂ ਰਾਤ ਨੂੰ ਹੋਟਲ ਵਿਚ ਰਹਿਣ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਤੇ ਫਿਰ ਖਾਣਾ ਖਾਧਾ ।

ਤਾਜ ਮਹੱਲ ਦਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ :
ਰਾਤ ਪਈ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਤਾਜ ਮਹੱਲ ਵੇਖਣ ਲਈ ਚੱਲ ਪਏ । ਤਿੰਨ ਕੁ ਸੌ ਮੀਟਰ ਦਾ ਰਸਤਾ ਸੀ ! ਰਾਤ ਚਾਨਣੀ ਸੀ । ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਸੀਂ ਇਕ ਉੱਚੇ ਅਤੇ ਸੁੰਦਰ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਰਾਹੀਂ ਅੰਦਰ ਦਾਖ਼ਲ ਹੋਏ । ਮੈਨੂੰ ਸਾਹਮਣੇ ਤਾਜ ਮਹੱਲ ਦੀ ਸੁੰਦਰ ਇਮਾਰਤ ਦਿਖਾਈ ਇਹ ਇਕ ਅਜਿਹਾ ਅਜੂਬਾ ਸੀ, ਜਿਵੇਂ ਕੋਈ ਸਵਰਗ ਦੀ ਰਚਨਾ ਹੋਵੇ । ਆਲੇਦੁਆਲੇ ਬਾਗ਼ ਸੀ । ਇਸ ਬਾਗ਼ ਦੀ ਸਤਹ ਤੋਂ ਕੋਈ ਛੇ ਮੀਟਰ ਉੱਚੇ ਸੰਗਮਰਮਰ ਦੇ ਇਕ ਚਬਤਰੇ ਉੱਤੇ ਤਾਜ ਮਹੱਲ ਖੜਾ ਹੈ ।ਦਰਸਕਾਂ ਨੂੰ ਹੇਠਾਂ ਜੁੱਤੀਆਂ ਲਾਹ ਕੇ ਚਬੂਤਰੇ ਉੱਤੇ ਚੜ੍ਹਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਚਬੂਤਰੇ ਦੇ ਦੋਹਾਂ ਕੋਨਿਆਂ ਉੱਪਰ ਚਾਰ ਸੁੰਦਰ ਮੀਨਾਰ ਬਣੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਉੱਪਰ ਚੜਨ ਲਈ ਪੌੜੀਆਂ ਅਤੇ ਛੱਜੇ ਬਣੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਰੌਜ਼ੇ ਦੇ ਅੰਦਰ ਜਾ ਕੇ ਅਸੀਂ ਮੀਨਾਕਾਰੀ ਅਤੇ ਜਾਲੀ ਦਾ ਕੰਮ ਦੇਖ ਕੇ ਅਸ਼-ਅਸ਼ ਕਰ ਉੱਠੇ । ਪਿਛਲੇ ਪਾਸੇ ਜਮਨਾ ਦਰਿਆ ਵਹਿੰਦਾ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਿਹਾ ਸੀ ।

ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਿਛੋਕੜ :
ਇਕ ਗਾਈਡ ਨੇ ਸਾਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਤਾਜ ਮਹੱਲ ਇਕ ਮਕਬਰਾ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਮੁਗ਼ਲ ਸ਼ਹਿਨਸ਼ਾਹ ਸ਼ਾਹ ਜਹਾਨ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਿਆਰੀ ਬੇਗ਼ਮ ਮੁਮਤਾਜ ਮਹੱਲ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਬਣਵਾਇਆ ਸੀ । ਸਾਰੀ ਇਮਾਰਤ ਚਿੱਟੇ ਸੰਗਮਰਮਰ ਦੀ ਬਣੀ ਹੋਈ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ 20 ਹਜ਼ਾਰ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਦਿਨ-ਰਾਤ ਕੰਮ ਕਰ ਕੇ 20 ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ਮੁਕੰਮਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ਤੇ ਇਸ ਉੱਤੇ ਕਈ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਖ਼ਰਚ ਹੋਏ ਸਨ ।

ਕਬਰਾਂ ਦਾ ਵਿਸ਼ :
ਫਿਰ ਅਸੀਂ ਇਕ ਵੱਡੇ ਅੱਠ-ਕੋਨੇ ਕਮਰੇ ਵਿਚ ਮੁਮਤਾਜ਼ ਮਹੱਲ ਤੇ ਸ਼ਾਹ ਜਹਾਨ ਦੀਆਂ ਕਬਰਾਂ ਦੇਖੀਆਂ । ਇੱਥੋਂ ਦੀਆਂ ਕੰਧਾਂ ਤੇ ਗੁੰਬਦ ਦੀ ਮੀਨਾਕਾਰੀ ਅੱਖਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਅਦਭੁਤ ਨਜ਼ਾਰਾ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗੇ ਪੱਥਰ ਸਿਤਾਰਿਆਂ ਵਾਂਗ ਜੜੇ ਹੋਏ ਦੇਖੇ । ਤਾਜ ਮਹੱਲ ਦੀਆਂ ਕੰਧਾਂ ਉੱਪਰ ਕੁਰਾਨ-ਸ਼ਰੀਫ਼ ਦੀਆਂ ਆਇਤਾਂ ਉੱਕਰੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਇਮਾਰਤ ਨੂੰ ਬਣਿਆਂ ਭਾਵੇਂ ਲਗਪਗ ਸਾਢੇ ਤਿੰਨ ਸੌ ਸਾਲ ਹੋ ਗਏ ਹਨ, । ਪਰ ਇਸ ਦੀ ਸੁੰਦਰਤਾ ਵਿਚ ਅਜੇ ਤਕ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪਿਆ । ਕਾਫ਼ੀ ਰਾਤ ਬੀਤਣ ‘ਤੇ ਅਸੀਂ ਵਾਪਸ ਪਰਤੇ ।

ਵਾਪਸੀ : ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਅਸੀਂ ਫ਼ਤਹਿਪੁਰ ਸੀਕਰੀ ਤੇ ਆਗਰੇ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਅਦਭੁਤ ਇਮਾਰਤਾਂ ਦੇਖੀਆਂ ਅਤੇ ਇਕ ਹਫ਼ਤੇ ਪਿੱਛੋਂ ਵਾਪਸ ਆਪਣੇ ਘਰ ਪਹੁੰਚੇ ।

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32. ਸਵੇਰ ਦੀ ਸੈਰ
ਜਾਂ
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵੇਲੇ ਦੀ ਸੈਰ

ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕਸਵੇਰ ਦੀ ਸੈਰ ਹਰ ਉਮਰ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਲਾਭਦਾਇਕ ਹੈ । ਇਹ ਇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਹਲਕੀ ਕਸਰਤ ਹੈ, ਜਿਸ ਦਾ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਬਹੁਮੁੱਲਾ ਲਾਭ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਖੇਡਾਂ ਖੇਡਣ ਜਾਂ ਭਾਰੀ ਕਸਰਤ ਕਰਨ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ, ਉਹਨਾਂ ਲਈ ਸਵੇਰ ਦੀ ਸੈਰ ਕਾਇਆ-ਕਲਪ ਸਾਬਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਮਤਲਬ ਇਹ ਨਹੀਂ ਕਿ ਸਵੇਰ ਦੀ ਸੈਰ ਬਿਮਾਰਾਂ ਤੇ ਕਮਜ਼ੋਰਾਂ ਲਈ ਹੀ ਹੈ,

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਲਾਭ-ਦਾਇਕ-ਸਰੀਰਿਕ ਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਅਰੋਗਤਾ-ਸਰੀਰਿਕ ਮਸ਼ੀਨ ਦੀ ਸੰਭਾਲ-ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਬਚਾ ਤੇ ਸਰੀਰਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਵਾਧਾ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ ॥)

ਸਗੋਂ ਇਹ ਚੰਗੇ ਰਿਸ਼ਟ :
ਪੁਸ਼ਟ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਵੀ ਭਾਰੀ ਮਹਾਨਤਾ ਰੱਖਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸਵੇਰ ਵੇਲੇ ਜੋ ਸ਼ਾਂਤ ਵਾਤਾਵਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਜਿਹੜੀ ਤਾਜ਼ੀ ਹਵਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ, ਉਹ ਨਾ ਖੇਡ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚੋਂ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਅਖਾੜਿਆਂ ਵਿਚੋਂ । ਇਸ ਲਈ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਗ਼ਲਤ ਨਹੀਂ ਕਿ ਭਾਵੇਂ ਕੋਈ ਕਿੰਨਾ ਵੀ ਖੇਡੇ ਤੇ ਕਿੰਨੀ ਵੀ ਕਸਰਤ ਕਰੇ, ਜਿੰਨਾ ਚਿਰ ਉਹ ਘਰੋਂ ਬਾਹਰ ਦੁਰ ਖੇਤਾਂ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਤਾਜ਼ੀ ਹਵਾ ਨਹੀਂ ਫੱਕਦਾ, ਉਸ ਦਾ ਆਪਣੀ ਅਰੋਗਤਾ ਲਈ ਕੀਤਾ ਹਰ ਯਤਨ ਅਧੂਰਾ ਰਹੇਗਾ ।

ਸਰੀਰਿਕ ਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਅਰੋਗਤਾ :
ਸਵੇਰ ਦੀ ਸੈਰ ਸੂਰਜ ਚੜ੍ਹਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ। ਹੈ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਸਾਡੇ ਫੇਫੜਿਆਂ ਨੂੰ ਤਾਜ਼ੀ ਅਤੇ ਸੀਤਲ ਹਵਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ, ਜੋ ਸਾਡੀ ਸਰੀਰਿਕ ਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਅਰੋਗਤਾ ਲਈ ਬਹੁਤ ਹੀ ਲਾਭਦਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਾਡੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਇਕ-ਇਕ ਅੰਗ ਨੂੰ ਲਾਭ ਪਹੁੰਚਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਚੁਸਤੀ ਤੇ ਦਿਮਾਗ਼ ਵਿਚ ਫ਼ਰਤੀ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਅੱਖਾਂ ਦੀ ਰੌਸ਼ਨੀ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਸਰੀਰਿਕ ਮਸ਼ੀਨ ਦੀ ਸੰਭਾਲ :
ਸਾਡਾ ਸਰੀਰ ਇਕ ਮਸ਼ੀਨ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਹੈ । ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਸ਼ੀਨ ਦੀ ਲਗਾਤਾਰ ਦੇਖ-ਭਾਲ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਤੇਲ ਆਦਿ ਦੇਣ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਸੈਰ ਸਾਡੇ ਸਰੀਰ ਲਈ ਤੇਲ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਾਡਾ ਸਰੀਰ ਚੁਸਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਮਨ ਪ੍ਰਸੰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਅਸੀਂ ਵਧੇਰੇ ਹਿੰਮਤ ਤੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੇ ਯੋਗ ਬਣਦੇ ਹਾਂ ।

ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਬਚਾ ਤੇ ਸਰੀਰਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਵਾਧਾ ;
ਸਵੇਰ ਦੀ ਸੈਰ ਨਾਲ ਸਾਡੀ ਉਮਰ ਲੰਮੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਾਡਾ ਸਰੀਰ ਕਈ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਬਚਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਠੀਕ ਢੰਗ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਾਡੀ ਭੁੱਖ ਵਧਦੀ ਤੇ ਪਾਚਨ-ਸ਼ਕਤੀ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਜਿਹੜੇ ਲੋਕ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸੈਰ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ, ਉਹ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਬਿਮਾਰੀ ਦਾ ਸਹਿਜੇ ਹੀ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਇਕ ਭਾਰ ਜਿਹਾ ਮਹਿਸੂਸ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਵਿਚ ਫਸਣ ਨਾਲ ਸਮਾਂ ਵੀ ਨਸ਼ਟ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨੀ ਵੀ ਵਧਦੀ ਹੈ । ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸੈਰ ਨਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਜਾਂ ਤਾਂ ਮੋਟੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜਾਂ ਪੀਲੇ ਭੂਕ ।

ਕਈ ਵਾਰ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਅਜਿਹੇ ਨੁਕਸ ਪੈ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਹੜੇ ਵੱਡੀ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਦੁਆਈ ਨਾਲ ਵੀ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੇ । ਪਰ ਸੈਰ ਅਜਿਹੀ ਚੀਜ਼ ਹੈ ਕਿ ਕਈ ਵਾਰ ਜਿਹੜੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਨਾਲ ਠੀਕ ਨਹੀਂ। ਹੁੰਦੀਆਂ, ਉਹ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸੈਰ ਕਰਨ ਨਾਲ ਠੀਕ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਸੈਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਕੋਈ ਮੁੱਲ ਨਹੀਂ ਲਗਦਾ, ਪਰ ਇਹ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਇੰਨੇ ਫ਼ਾਇਦੇ ਦਿੰਦੀ ਹੈ, ਜੋ ਕੀਮਤੀ ਤੋਂ ਕੀਮਤੀ ਖ਼ੁਰਾਕ ਜਾਂ ਦੁਆਈ ਨਹੀਂ ਦੇ ਸਕਦੀ । ਵਿਦਿਆਰਥੀ, ਜੋ ਕਿ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਕਿਤਾਬਾਂ ਨਾਲ ਮੱਥਾ ਮਾਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਲਈ ਤਾਂ ਇਹ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਇਹ ਉਸ ਦੇ ਦਿਮਾਗ਼ ਦੀ ਥਕਾਵਟ ਲਾਹ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਤਾਜ਼ਗੀ ਬਖ਼ਸ਼ਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਉਸ ਦੀ ਬੁੱਧੀ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਯਾਦ ਕਰਨ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਵਧਦੀ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੀ ਅਰੋਗਤਾ ਲਈ ਅਤੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਰੀਰਿਕ ਅਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਤੋਂ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕੰਮ ਲੈਣ ਲਈ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਨੇਮ ਨਾਲ ਸਵੇਰ ਦੀ ਸੈਰ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

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33. ਪੰਦਰਾਂ ਅਗਸਤ
ਜਾਂ
ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦਿਵਸ (ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ)

ਮਨੁੱਖ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਾ ਚਾਹਵਾਨ-ਹਰ । ਇਕ ਮਨੁੱਖ ਸੁਤੰਤਰ ਜੀਵਨ ਜਿਊਣ ਦਾ ਚਾਹਵਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੀ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਾ ਪੂਰਾ ਆਨੰਦ ਤਾਂ ਹੀ ਮਾਣ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਜੇਕਰ ਉਹ ਸੁਤੰਤਰ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਵਾਸੀ ਹੋਵੇ । ਪਰਾਧੀਨ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਸੁਪਨੇ ਵਿਚ ਵੀ ਸੁਖ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ । ਅਜਿਹੇ ਜੀਵਨ ਨਾਲੋਂ ਮੌਤ ਚੰਗੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਸ਼ੇਖ਼ ਫ਼ਰੀਦ ਜੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਹੈ-
ਬਾਰ ਪਰਾਇਐ ਬੈਸਣਾ ਸਾਂਈ ਮੁਝੈ ਨ ਦੇਹੁ ।
ਜੇ ਤੂੰ ਏਵੇਂ ਰੱਖਸੀ ਜੀਉ ਸਰੀਰਹੁ ਲੇਹੁ ॥

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਮਨੁੱਖ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਾ ਚਾਹਵਾਨ-ਭਾਰਤ ਦੀ ਗੁਲਾਮੀ ਵਿਰੁੱਧ ਸੰਘਰਸ਼-ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ-ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਦੇ ਸਮਾਰੋਹ-ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਫੈਲੀਆਂ ਬੁਰਾਈਆਂ ਦੂਰ ਕਰਨ ਦੀ ਲੋੜ-ਸਾਡਾ ਫ਼ਰਜ਼ ॥)

ਭਾਰਤ ਦੀ ਗੁਲਾਮੀ ਵਿਰੁੱਧ ਸੰਘਰਸ਼ :
ਭਾਰਤ ਲੰਮਾ ਸਮਾਂ ਗੁਲਾਮੀ ਦੀਆਂ ਜ਼ੰਜੀਰਾਂ ਵਿਚ ਜਕੜਿਆ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਲਗਪਗ 1000 ਸਾਲ ਵਿਦੇਸ਼ੀਆਂ ਦੀ ਗੁਲਾਮੀ ਦਾ ਦੁੱਖ ਕੱਟਣਾ ਪਿਆ ਹੈ । ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿਚੋਂ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਹਮਲਾਵਰਾਂ ਦੇ ਜਬਰ-ਜ਼ੁਲਮ ਤੇ ਅਨਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ । ਅਵਾਜ਼ ਉੱਠਦੀ ਰਹੀ ਹੈ ਤੇ ਕੁੱਝ ਰਾਜੇ-ਮਹਾਰਾਜੇ ਤੇ ਲੋਕ-ਆਗੂ ਇਸ ਵਿਰੁੱਧ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਦੇ ਰਹੇ ਹਨ । ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪਠਾਣਾਂ ਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੀ ਗੁਲਾਮੀ ਵਿਰੁੱਧ ਰਾਣਾ ਪ੍ਰਤਾਪ, ਸ਼ਿਵਾ ਜੀ ਤੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਭਰੇ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕੌਣ ਭੁੱਲ. ਸਕਦਾ ਹੈ ?

ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪਠਾਣ ਤੇ ਮੁਗ਼ਲ ਤਾਂ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਆ ਕੇ ਭਾਰਤ-ਵਾਸੀ ਹੀ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਗਏ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਗੁਲਾਮੀ ਦੇ ਦੁੱਖ ਨੂੰ ਬਹੁਤਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਵਿਚ ਹੀ ਮਹਿਸੂਸ ਕੀਤਾ । ਪੰਜਾਬ, ਬੰਗਾਲ ਤੇ ਮਹਾਂਰਾਸ਼ਟਰ ਆਦਿ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸਮੁੱਚੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚੋਂ ਉੱਠੇ ਦੇਸ਼ਭਗਤਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਤੇ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਅਕਹਿ ਕਸ਼ਟ ਸਹਿ ਕੇ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ। ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਨਾਮਧਾਰੀ ਲਹਿਰ, “ਪਗੜੀ ਸੰਭਾਲ ਜੱਟਾ’ ਲਹਿਰ, ਗ਼ਦਰ ਲਹਿਰ, ਕਾਂਗਰਸ ਪਾਰਟੀ, ਬੱਬਰ ਅਕਾਲੀ ਲਹਿਰ, ਨੌਜਵਾਨ ਭਾਰਤ ਸਭਾ, ਅਜ਼ਾਦ । ਹਿੰਦ ਫ਼ੌਜ ਤੇ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਦੇਸ਼-ਭਗਤ ਲਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈ ਰਹੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਬੇਮਿਸਾਲ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ । ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ ਸਰਾਭਾ, ਸ: ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਗੰਗਾਧਰ ਤਿਲਕ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ, ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ, ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ, ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਤੇ ਨੇਤਾ ਜੀ ਸੁਭਾਸ਼ ਚੰਦਰ ਬੋਸ ਆਦਿ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਆਗੂ ਹੋਏ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਾਰੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਵਿਚ ਧੁੰਮਾ ਦਿੱਤਾ-ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸਾਡਾ ਜਮਾਂਦਰੂ ਅਧਿਕਾਰ ਹੈ ਅਤੇ ਅਸੀਂ ਇਸ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਰਹਾਂਗੇ ।

ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ, ਰਾਜਗੁਰੂ ਤੇ ਸੁਖਦੇਵ ਵਰਗੇ ਸੂਰਮੇ ਬੜੇ ਚਾ ਨਾਲ ਗਾਉਂਦੇ
ਸਰ ਫ਼ਰੋਸ਼ੀ ਕੀ ਤਮੰਨਾ ਅਬ ਹਮਾਰੇ ਦਿਲ ਮੇਂ ਹੈ ।
ਦੇਖਨਾ ਹੈ ਜ਼ੋਰ ਕਿਤਨਾ ਬਾਜ਼ੂਏ ਕਾਤਿਲ ਮੇਂ ਹੈ ।

ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ :
ਅੰਤ ਦੇਸ਼-ਭਗਤਾਂ ਦੀਆਂ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਤੇ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਡੁੱਲ੍ਹਿਆ ਖੂਨ ਬਿਰਥਾ ਨਾ ਗਿਆ । 15 ਅਗਸਤ, 1947 ਈ: ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਭਾਰਤ ਛੱਡ ਕੇ ਚਲੇ ਗਏ ਤੇ ਸਮੁੱਚੇ ਭਾਰਤ-ਵਾਸੀਆਂ ਨੂੰ ਅਜ਼ਾਦ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਵਿਚਰਨ ਦਾ ਮੌਕਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ । ਪਰਤੰਤਰਤਾ ਦੀ ਰਾਤ ਬੀਤ ਗਈ ਤੇ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦੀਆਂ ਸੁਨਹਿਰੀ ਕਿਰਨਾਂ ਖਿਲਾਰਦਾ ਸੂਰਜ ਨਿਕਲ ਆਇਆ ।

ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਦੇ ਸਮਾਰੋਹ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ 15 ਅਗਸਤ ਦਾ ਦਿਨ ਸਮੁੱਚੇ ਭਾਰਤ-ਵਾਸੀਆਂ ਲਈ ਗੌਰਵ ਭਰਿਆ ਦਿਨ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਭਰੇ ਤੇ ਖੂਨ-ਰੰਗੇ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਇਕ ਲੰਮੀ ਕਹਾਣੀ ਹੈ । ਹਰ ਸਾਲ ਭਾਰਤ-ਵਾਸੀ ਇਸ ਦਿਨ ਨੂੰ ਇਕ ਤਿਉਹਾਰ ਵਾਂਗ ਬੜੇ ਚਾ ਤੇ ਉਮਾਹ ਨਾਲ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦਿਨ ਸਵੇਰੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਲਾਲ ਕਿਲ੍ਹੇ ਉੱਪਰ ਤਿਰੰਗਾ ਝੰਡਾ ਝੁਲਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਗੀਤ ਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਯੋਧਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀਆਂ ਭੇਟਾ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਕੌਮ ਦੇ ਨਾਂ ਸੰਦੇਸ਼ ਪ੍ਰਸਾਰਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼-ਵਾਸੀ ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ ਉੱਪਰ ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹਨ । ਰਾਜਧਾਨੀ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿਚ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਰਾਜਧਾਨੀਆਂ ਤੇ ਨਗਰਾਂ ਵਿਚ ਇਸ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਪ੍ਰਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ, ਦੂਸਰੇ ਮੰਤਰੀ ਤੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਅਧਿਕਾਰੀ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਮਿੱਥੇ ਥਾਂਵਾਂ ਉੱਪਰ ਤਿਰੰਗਾ ਝੰਡਾ ਲਹਿਰਾਉਣ ਦੀ ਰਸਮ ਅਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ਼ ਫੁੱਲਾਂ ਦੀ ਵਰਖਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਯੋਧਿਆਂ ਤੇ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀਆਂ ਭੇਟ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਮਾਧੀਆਂ ਤੇ ਫੋਟੋਆਂ ਉੱਤੇ ਫੁੱਲਾਂ ਦੇ ਹਾਰ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਫਿਰ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਪੁਲਿਸ ਦੀਆਂ ਟੁਕੜੀਆਂ ਤੇ ਸਕੂਲਾਂ ਦੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਜਲੂਸ ਕੱਢਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਢੋਲ ਤੇ ਨਗਾਰੇ ਵਜਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਲੋਕ ਮਠਿਆਈਆਂ ਵੰਡਦੇ ਹਨ ।

ਦੀਪਮਾਲਾ ਤੇ ਆਤਸ਼ਬਾਜ਼ੀ :
ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਰਾਜਧਾਨੀ ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ, ਦੇਸ਼ਕ ਰਾਜਧਾਨੀਆਂ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਦੀਪਮਾਲਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਆਤਸ਼ਬਾਜ਼ੀ ਚਲਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਸੜਕਾਂ ਤੇ ਬਜ਼ਾਰ ਰੌਸ਼ਨੀਆਂ ਨਾਲ ਡੁੱਲ੍ਹ-ਡੁੱਲ੍ਹ ਪੈਂਦੇ ਹਨ ।

ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਦਿਵਸ ਤੇ ਸਾਡਾ ਫ਼ਰਜ਼ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ 15 ਅਗਸਤ ਦਾ ਦਿਨ ਭਾਰਤ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ । ਭਾਰਤੀਆਂ ਨੂੰ ਇਹ ਦਿਨ ਬੇਅੰਤ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਤੇ ਸੈਂਕੜੇ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਪਿੱਛੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਅੱਜ ਸਾਡਾ ਕਰਤੱਵ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਆਪਣਾ ਤਨ, ਮਨ ਤੇ ਧਨ ਕੁਰਬਾਨ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਰਹੀਏ ਤੇ ਇੱਥੇ ਪਸਰ ਰਹੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਤੇ ਕੱਟੜਵਾਦ ਵਿਰੁੱਧ ਇਕ ਜ਼ੋਰਦਾਰ

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34. ਛੱਬੀ ਜਨਵਰੀ
ਜਾਂ
ਸਾਡਾ ਗਣਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ

ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵ :
26 ਜਨਵਰੀ ਦਾ ਦਿਨ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਤੇ ਅਜ਼ਾਦੀ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਤੇ ਜਲੁਸਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਰੱਖਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦਾ ਅੰਦੋਲਨ ਚਲ । ਰਿਹਾ ਸੀ, ਤਾਂ 31 ਦਸੰਬਰ, 1929 ਈ: ਨੂੰ ਕਾਂਗਰਸ ਪਾਰਟੀ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਹੋਏ ਆਪਣੇ ਸਾਲਾਨਾ ਸਮਾਗਮ ਵਿਚ ਇਕ ਮਤੇ ਰਾਹੀਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਤੋਂ ਪੂਰਨ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਹਰ ਸਾਲ 26 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦਾ ਦਿਨ ਮਨਾਉਣ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ-ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਮੰਗ-ਅਜ਼ਾਦ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਲਾਗੂ ਹੋਣਾ-ਥਾਂ-ਥਾਂ ਸਮਾਗਮ-ਰੌਣਕਾਂ ॥)

ਅਜ਼ਾਦ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਲਾਗੂ ਹੋਣਾ :
ਉਸ ਦਿਨ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋਣ ਤਕ ਇਹ ਦਿਨ ਪੂਰਨ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ । ਅੰਤ 15 ਅਗਸਤ, 1947 ਈ: ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋ ਗਿਆ । ਫਿਰ ਸੁਤੰਤਰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । 26 ਜਨਵਰੀ, 1950 ਈ: ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਲਾਗੂ ਹੋਇਆ, ਜਿਸ ਰਾਹੀਂ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਸੁਤੰਤਰ ਤੇ ਖ਼ੁਦਮੁਖ਼ਤਾਰ ਗਣਤੰਤਰ ਦਾ ਦਰਜਾ ਦਿੰਦਿਆਂ ਇੱਥੇ ਲੋਕ-ਰਾਜ ਕਾਇਮ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਭਾਰਤ-ਵਾਸੀਆਂ ਨੂੰ ਬੋਲਣ, ਲਿਖਣ, ਤੁਰਨਫਿਰਨ, ਜਾਇਦਾਦ ਬਣਾਉਣ ਤੇ ਵੋਟਾਂ ਪਾਉਣ ਦੇ ਬੁਨਿਆਦੀ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿੱਤੇ ਗਏ । ਇਸ ਸੰਵਿਧਾਨ ਅਨੁਸਾਰ ਅੱਜ ਤਕ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਰਾਜ-ਕਾਜ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਸਮਾਗਮ ਤੇ ਰੌਣਕਾਂ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ 26 ਜਨਵਰੀ ਦਾ ਦਿਨ ਭਾਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਬਹੁਤ ਹੀ ਮਹਾਨਤਾ ਭਰਿਆ ਦਿਨ ਹੈ । ਹਰ ਸਾਲ ਸਾਰੇ ਭਾਰਤੀ ਇਸ ਦਿਨ ਨੂੰ ਬੜੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਕ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਜੀ ਰੇਡੀਓ ਤੇ ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ ਤੋਂ ਕੌਮ ਦੇ ਨਾਂ ਆਪਣਾ ਸੁਨੇਹਾ ਪ੍ਰਸਾਰਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦਿਨ ਸਵੇਰੇ ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ ਵਿਚ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਜੀ ਵਿਜੈ ਚੌਂਕ ਵਿਖੇ ਝੰਡਾ ਲਹਿਰਾਉਣ ਮਗਰੋਂ ਤਿੰਨਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਯੂਨਿਟਾਂ ਤੋਂ ਸਲਾਮੀ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਫ਼ੌਜੀ ਸ਼ਕਤੀ ਅਤੇ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਤੇ ਸੱਨਅਤੀ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਤਰੱਕੀ ਦਾ ਭਾਰੀ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਲੋਕ ਦੂਰੋਂ-ਦੂਰੋਂ ਦਿੱਲੀ ਵਿਚ 26 ਜਨਵਰੀ ਦੀਆਂ ਰੌਣਕਾਂ ਦੇਖਣ ਆਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਫ਼ੌਜ, ਪੁਲਿਸ, ਸਕੂਲਾਂ-ਕਾਲਜਾਂ ਦੇ ਮੁੰਡਿਆਂ-ਕੁੜੀਆਂ ਅਤੇ ਸਕਾਊਟਾਂ ਵਲੋਂ ਸਾਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਜਲੂਸ ਕੱਢਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਫ਼ੌਜ ਤੇ ਪੁਲਿਸ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਹਥਿਆਰ ਲੈ ਕੇ ਚਲਦੀ ਹੈ । ਜਲੂਸ ਤੇ ਆਲਾ-ਦੁਆਲਾ ਤਿਰੰਗੇ ਝੰਡਿਆਂ ਨਾਲ ਸਜਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ਼ ਫੁੱਲਾਂ ਦੀ ਵਰਖਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਭਾਰਤ ਦੇ ਕੋਨੇ-ਕੋਨੇ ਵਿਚੋਂ ਲੋਕ-ਨਾਚ ਨੱਚਣ ਵਾਲੀਆਂ ਟੋਲੀਆਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਉਹ ਨੈਸ਼ਨਲ ਸਟੇਡੀਅਮ ਦੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਮੰਚ ਉੱਤੇ ਆਪਣੇ ਨਾਚ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਲੱਖਾਂ ਦਰਸ਼ਕ ਇਹਨਾਂ ਨਾਚਾਂ ਦਾ ਆਨੰਦ ਮਾਣਦੇ ਹਨ । ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਰਾਜਧਾਨੀ ਵਿਚ ਚਹਿਲ-ਪਹਿਲ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਰੌਣਕਾਂ ਵਿਚ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪਾਹੁਣੇ ਵੀ ਭਾਗ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਰਾਤ ਨੂੰ ਆਤਸ਼ਬਾਜ਼ੀ ਤੇ ਪਟਾਕਿਆਂ ਨਾਲ ਇਸ ਦਿਨ ਦੀਆਂ ਖ਼ੁਸ਼ੀਆਂ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਥਾਂ-ਥਾਂ ਸਮਾਗਮ ਅਤੇ ਜਲੂਸ :
ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹੋਰ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਤੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਰਾਜਧਾਨੀਆਂ ਵਿਚ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ, ਮੰਤਰੀ ਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਅਫ਼ਸਰ ਝੰਡਾ ਝੁਲਾਉਣ ਦੀ ਰਸਮ ਅਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਜਹਾਜ਼ ਫੁੱਲਾਂ ਦੀ ਵਰਖਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਸਮਾਗਮਾਂ ਵਿਚ ਲੋਕ ਬੜੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਪੁੱਜਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਵਜ਼ੀਰਾਂ, ਸਰਕਾਰੀ ਅਫ਼ਸਰਾਂ ਤੇ ਹੋਰਨਾਂ ਲੀਡਰਾਂ ਦੇ ਭਾਸ਼ਨ ਵੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਜਨਤਾ ਨੂੰ ਇਸ ਦਿਨ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਕਰਾ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਦੇਸ਼-ਭਗਤੀ ਤੇ ਲੋਕ-ਰਾਜ ਪਤੀ ਸਤਿਕਾਰ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦਿਨ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਜਲੂਸ ਵੀ ਕੱਢੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ 26 ਜਨਵਰੀ ਦਾ ਦਿਨ ਭਾਰਤ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਭਾਰੀ ਮਹੱਤਤਾ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

35. ਮਹਿੰਗਾਈ

ਜਾਣ-ਪਛਾਣ-ਬੀਤੀ ਅੱਧੀ ਸਦੀ ਤੋਂ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਤੋਂ ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਦੇ ਲੋਕ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਹਨ । ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਪਿਛਲੇ ਦਹਾਕਿਆਂ ਵਿਚ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਦੇ , ਵਾਧੇ ਦੀ ਰਫ਼ਤਾਰ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ ਰਹੀ ਹੈ, ਪਰੰਤੁ ਬੀਤੇ ਤਿੰਨ ਕੁ ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਆਮ ਵਰਤੋਂ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮਹਿੰਗਾਈ ਸਾਰੇ ਹੱਦਾਂ ਬੰਨੇ ਤੋੜ ਕੇ ਇਕ ਖੌਫਨਾਕ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰ ਚੁੱਕੀ ਹੈ ! ਅੱਜਕਲ੍ਹ ਤਾਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਭਾ ਸਵੇਰੇ ਕੁੱਝ, ਦੁਪਹਿਰੇ ਕੁੱਝ ਤੇ ਸ਼ਾਮੀ ਕੁੱਝ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । 2008 ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ ਖਾਧ-ਪਦਾਰਥਾਂ, ਲੋਹਾ, ਸੀਮਿੰਟ, ਪੈਟਰੋਲ, ਡੀਜ਼ਲ ਤੇ ਰਸੋਈ ਗੈਸ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਵਿਚ ਅਜਿਹਾ ਭਿਆਨਕ ਵਾਧਾ ਹੋਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਹੈ ਕਿ ਮੰਨੇ-ਪ੍ਰਮੰਨੇ ਅਰਥ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਸਾਡੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਤੇ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਨੇ ਵੀ ਇਹ ਕਹਿੰਦਿਆਂ ਹੱਥ ਖੜ੍ਹੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਹਨ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਮਹਿੰਗਾਈ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਕੋਈ ਜਾਦੂ ਦੀ ਛੜੀ ਜਾਂ ਅਲਾਦੀਨ ਦਾ ਚਿਰਾਗ਼ ਨਹੀਂ । 2009 ਵਿਚ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੀ ਦਰ ਕੁੱਝ ਘਟੀ, ਪਰੰਤੂ 2010-11 ਵਿਚ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੀ ਦਰ ਵਿਚ ਦਿਲਕੰਬਾਉ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਤੇ ਨਿਗੂਣੀ ਮਸਰਾਂ ਦੀ ਦਾਲ ਵੀ 90 ਰੁਪਏ ਕਿਲੋ ਵਿਕਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ

(ਜਾਣ-ਪਛਾਣ-ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਲੱਕ-ਤੋੜਵੀਂ ਸਥਿਤੀ-ਕਾਰਨ-ਉਪਾਅ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ ॥)

ਗਈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾਂ ਹੋਰਨਾਂ ਦਾਲਾਂ, ਚਾਵਲਾਂ, ਆਟਾ, ਖੰਡ, ਦੁੱਧ, ਘਿਓ ਤੇ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਵਿੱਚ ਆਮ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਕਾਬਾਂ ਛੇੜ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਮਾਹਰਾਂ ਨੂੰ ਅਗਲੇ ਨੇੜਲੇ ਸਮੇਂ ਇਸ ਉੱਪਰ ਕਾਬੂ ਪੈਣ ਦੇ ਕੋਈ ਆਸਾਰ ਨਹੀਂ ਦਿਸ ਰਹੇ । ਬੇਸ਼ੱਕ ਸਰਕਾਰ ਇਸ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਸੰਬੰਧੀ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਬਿਆਨ ਦਿੰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਪਰ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦਾ ਦੈਤ ਬੇਕਾਬੂ ਹੈ । ਪੈਟਰੋਲ ਤੇ ਗੈਸ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਆਪ ਤੀਜੇ ਦਿਨ ਵਧਾਉਂਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬੀਤੇ ਦਹਾਕੇ ਵਿਚ ਆਮ ਵਰਤੋਂ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਭਾਅ 300% ਤੋਂ ਵਧ ਚੁੱਕੇ ਹਨ ਤੇ ਮੁਦਰਾ ਪਸਾਰ ਵਿਚ 19 ਵਾਧਾ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ 2019 ਤੱਕ ਇਹੋ ਵਰਤਾਰਾ ਚਲ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਮਹਿੰਗਾਈ ਕਿਸੇ ਸਰਕਾਰ ਤੋਂ ਵੀ ਕਾਬੂ ਨਹੀਂ ਆ ਰਹੀ । ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਅਪਣਾਈਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਵੀ ਮਹਿੰਗਾਈ ਘਟਾਉਣ ਸੰਬੰਧੀ ਬਹੁਤ ਸਾਰਥਕ ਨਤੀਜੇ ਨਹੀਂ ਕੱਢ ਸਕੀਆਂ ।’

ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਲੱਕ :
ਤੋੜਵੀਂ ਸਥਿਤੀ-ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਤੇ ਆਮ ਨਿੱਤ ਵਰਤੋਂ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਵਿਚ ਵਾਧੇ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਘੱਟ ਜਾਂ ਬੱਧੀ ਆਮਦਨੀ ਵਾਲੇ ਆਮ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਉੱਪਰ ਪਿਆ ਹੈ । ਜਿੱਥੇ ਨਿੱਤ ਵਰਤੋਂ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਵਿਚ ਬੀਤੇ ਇਕ ਸਾਲ ਵਿਚ 19% ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਆਮ ਆਦਮੀ ਦੀ ਆਮਦਨ ਵਿਚ ਕੇਵਲ 6% ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਅਧਿਐਨ ਇਹ ਵੀ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਕਿ ਆਉਂਦੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ਵਿਚ ਕੀਮਤਾਂ ਵਿਚ । ਹੋਰ ਵਾਧਾ ਹੋਣ ਦੇ ਆਸਾਰ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਸਰਕਾਰ ਪੈਟਰੋਲ ਤੇ ਡੀਜ਼ਲ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਵਿਚ ਆਏ ਦਿਨ ਵਾਧਾ ਕਰਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ।

ਕਾਰਨ :
ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੇ ਵਾਧੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਅੱਜ ਦੀ ਆਮ ਵਰਤੋਂ ਤੇ ਖਾਧ-ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਮੰਡੀ ਦਾ ਜੋੜ-ਤੋੜ ਦੀ ਸੌਦੇਬਾਜ਼ੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਚਾਲਬਾਜ਼ਾਂ, ਸੱਟੇਬਾਜ਼ਾਂ, ਜੂਏਬਾਜ਼ਾਂ, ਮੁਨਾਫ਼ਾਖ਼ੋਰਾਂ ਤੇ ਜ਼ਖ਼ੀਰੇਬਾਜ਼ਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣਾ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਮਾਰਕਿਟ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ ਚਲਾਉਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸਮਰੱਥਾ ਹੈ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਪੂਰੀ ਮੱਦਦ ਤੇ ਹਮਾਇਤ ਹਾਸਲ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਰਾਜ ਕਰ ਰਹੀ ਪਾਰਟੀ ਨੂੰ ਚੋਣਾਂ ਲੜਨ ਲਈ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਗੱਫ਼ੇ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਮੰਡੀ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਮਾਲ ਖ਼ਰੀਦਣ ਸਮੇਂ ਭਾਅ ਥੱਲੇ ਡੇਗ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਮਗਰੋਂ ਜ਼ਖ਼ੀਰੇਬਾਜ਼ੀ ਕਰ ਕੇ ਅਤੇ ਨਕਲੀ ਸੰਕਟ ਪੈਦਾ ਕਰ ਕੇ ਮਾਲ ਨੂੰ ਕਾਲੇ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਵੇਚ ਕੇ ਖੂਬ ਧਨ ਕਮਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਸਰਕਾਰ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਜਿਣਸ ਜਿੱਥੇ ਚਾਹੁੰਣ ਉੱਥੇ ਵੇਚਣ ਦੀ ਖੁੱਲ੍ਹ ਨਾ ਦੇ ਕੇ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜਿਣਸ ਦੇ ਭਾਅ ਨਿਸਚਿਤ ਕਰਕੇ ਖੁੱਲ੍ਹੇ ਤੌਰ ਤੇ ਕਾਲਾ ਧੰਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲਾਲਚੀ ਮੁਨਾਫ਼ਾਖੋਰਾਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਨਿੱਜੀਕਰਨ, ਤਨਖ਼ਾਹਾਂ ਵਿਚ ਬੇਤਹਾਸ਼ਾ ਵਾਧਾ, ਵਜ਼ੀਰਾਂ ਤੇ ਨੌਕਰਸ਼ਾਹਾਂ ਦੇ ਅੰਨ੍ਹੇ ਖ਼ਰਚ, ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਖ਼ਰਚੀਲੀ ਅਮਰੀਕਨ ਜੀਵਨ-ਸ਼ੈਲੀ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣ ਦੀ ਰੁਚੀ ਦਾ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਣਾ, ਵਿਸ਼ਵ-ਵਿਆਪੀ ਕਾਰੋਬਾਰੀ ਘਰਾਣਿਆਂ ਨੂੰ ਪਰਚੂਨ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਦੀ ਖੁੱਲ ਦੇਣੀ, ਕੰਪਿਊਟਰੀਕਰਨ, ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ, ਐਨ, ਆਈ.ਆਰ. ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਾਪਰਟੀ ਮਾਰਕਿਟ ਵਿਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼, ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਹਰ ਸਾਲ ਘਾਟੇ ਦੇ ਬਜਟ ਪੇਸ਼ ਕਰਨਾ, ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਦਰ ਦਾ ਸਥਿਰ ਨਾ ਰਹਿਣਾ, ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਘਾਟੇ ਦੀ ਵਿੱਤ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਲਈ ਅਪ੍ਰਤੱਖ ਟੈਕਸਾਂ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਕਰਨਾ, ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਲਾਗਤ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੋਣਾ, ਅਬਾਦੀ ਦਾ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਧਣਾ, ਵਿਸ਼ਵ-ਵਿਆਪੀ ਮੁਦਰਾ ਪਸਾਰ, ਮੁਦਰਾ ਪੂਰਤੀ ਵਿਚ ਵਾਧਾ, ਨਿੱਜੀਕਰਨ, ਸਰਵਿਸ ਟੈਕਸਾਂ ਦਾ ਬੋਝ, ਖ਼ਰਾਬ ਮੌਸਮ, ਜਮਾਖੋਰੀ, ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਦੇ ਕਾਲੇ ਧਨ ਦਾ ਬੋਲ-ਬਾਲਾ, ਸਫੀਤੀਕਾਰੀ ਸੰਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦਾ ਵਧਣਾ ਤੇ ਬਹੁਕੌਮੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਤੇ ਪਸਾਰ, ਆਦਿ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੇ ਵੱਡੇ ਕਾਰਨ ਹਨ ।

ਉਪਾਅ :
ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇਕਰ ਉਸ ਨੇ ਮਹਿੰਗਾਈ ਉੱਪਰ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਹ ਪਬਲਿਕ ਸੈਕਟਰ ਵਿਚ ਵਿਕਣ ਵਾਲੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਭਾ ਨਾ ਵਧਾਵੇ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਹੀ ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਸੈਕਟਰ ਨੂੰ ਕੀਮਤਾਂ ਵਧਾਉਣੋਂ ਰੋਕਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਪਰ ਸਰਕਾਰ ਤਾਂ ਸਰਵਿਸ ਟੈਕਸਾਂ ਤੇ ਟੋਲ ਟੈਕਸ ਵਰਗੇ ਅਨੇਕਾਂ ਨਵੇਂ-ਨਵੇਂ ਟੈਕਸ ਲਾ ਕੇ ਤੇ ਨਿੱਤ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਵਾਧੇ ਕਰ ਕੇ ਆਪ ਹਰ ਇਕ ਚੀਜ਼ ਮਹਿੰਗੀ ਕਰਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ । ਨਕਲੀ ਸੰਕਟ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ, ਜਮਾਂਖੋਰਾਂ ਤੇ ਧਨ-ਕੁਬੇਰਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੇ ਜ਼ਮਾਨੇ ਵਿਚ ਇਹੋ ਲੋਕ ਹੀ ਆਪਣੀਆਂ ਲੋਭੀ ਰੁਚੀਆਂ ਕਾਰਨ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸਰਗਰਮ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਇਹੋ ਲੋਕ ਹੀ ਬਾਰਾਂ-ਤੇਰਾਂ ਸੌ ਰੁਪਏ ਕੁਇੰਟਲ ਖ਼ਰੀਦੀ ਕਣਕ ਆਦਿ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਜਮਾਂ ਕਰਕੇ ਆਟਾ ਪੀਹਣ ਤੇ ਮਗਰੋਂ ਅਠਾਰਾਂ ਉੱਨੀ ਸੌ ਰੁਪਏ ਕੁਇੰਟਲ ਵੇਚਦੇ ਹਨ । ਇਹੋ ਹੀ ਖੰਡ ਤੇ ਦਾਲਾਂ ਦੀ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦਾ ਕਾਰਨ ਬਣਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਅਪ੍ਰਤੱਖ ਟੈਕਸ ਘਟਾਉਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ, ਪਰਿਵਾਰ ਨਿਯੋਜਨ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਉਤਪਾਦਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਗੈਰਜ਼ਰੂਰੀ ਸਰਕਾਰੀ ਖ਼ਰਚ ਘੱਟ ਕਰਨੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਜਮਾਂ ਯੋਜਨਾ ਉੱਪਰ ਬਲ ਦੇ ਕੇ ਤੇ ਉੱਚਿਤ ਕੀਮਤਾਂ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਖੋਲ੍ਹ ਕੇ ਹਰ ਚੀਜ਼ ਦਾ ਅਧਿਕਤਮ ਮੁੱਲ ਨਿਸਚਿਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਮੁਦਰਾ ਪਸਾਰ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸਿੱਕੇ ਦਾ ਬੇਤਹਾਸ਼ਾ ਭੰਡਾਰ ਕਰਨ ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਅਮਰੀਕਾ ਬਾਂਡ ਖ਼ਰੀਦਣ ਵਿਚ ਖ਼ਰਚ ਕਰਨ ਦੀ ਬਜਾਏ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸਿੱਕੇ ਦੇ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਵੇਚ ਕੇ ਧਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਸਮੁੱਚੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਇਹੋ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮਹਿੰਗਾਈ ਨੂੰ ਰੋਕ ਪਾਏ ਬਿਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਸੌਖਾ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਲੋਕ-ਰਾਜ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਪੱਕਾ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਲੋਕ-ਰਾਜ ਦੀ ਪਕਿਆਈ ਲਈ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦਾ ਅੰਤ ਜ਼ਰੂਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਵਿਰੁੱਧ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਜਿੱਥੇ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੇ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਅਨਸਰਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਆਪਣੀਆਂ ਵਿੱਤੀ ਤੇ ਵਪਾਰਕ ਨੀਤੀਆਂ ਵਿਚ ਸੁਧਾਰ ਕਰਨ ਦੀ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ ।

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37. ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ

ਜਾਣ-ਪਛਾਣ-ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਦਿਨ ਪ੍ਰਤੀ ਦਿਨ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ, ਪਰ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਇਸ ਦੇ ਵਧਣ ਦੀ ਰਫ਼ਤਾਰ ਸਭ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਤੇਜ਼ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਜੋ ਭਿਆਨਕ ਰੂਪ ਵਰਤਮਾਨ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਇਹੋ ਜਿਹਾ,ਪਹਿਲਾਂ ਕਦੇ ਵੀ ਵੇਖਣ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਸੀ ਆਇਆ । ਅਰਥ-ਵਿਗਿਆਨੀਆਂ ਅਨੁਸਾਰ ਭਾਰਤ ਦੀ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦਾ ਸਰੂਪ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਵਿਕਸਿਤ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਕਾਫ਼ੀ ਭਿੰਨ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਜਾਣ-ਪਛਾਣ-ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ-ਨੌਕਰੀ ਭਾਲਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ-ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੇ ਕਾਰਨ-ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਕਿਵੇਂ ਦੂਰ ਹੋਵੇ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼)

ਵਿਕਸਿਤ ਉਦਯੋਗਿਕ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਚੱਕਰੀ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਹੈ, ਜਦ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਇਸ ਦਾ ਸਰੂਪ ਚਿਰਕਾਲੀਨ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਇਸ ਦੇ ਕਈ ਰੂਪ ਹਨ ; ਜਿਵੇਂ ਮੌਸਮੀ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ, ਛਿਪੀ ਹੋਈ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਤੇ ਅਲਪ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ । ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੇ ਇਹ ਤਿੰਨੇ ਰੁਪ ਭਾਰਤ ਦੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਕਿਸਾਨੀ ਵਿਚ ਮਿਲਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸ਼ਹਿਰੀ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵਿਚ ਉਦਯੋਗਿਕ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਤੇ ਪੜ੍ਹੇ-ਲਿਖੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ :
ਪਹਿਲੀ ਪੰਜ ਸਾਲਾ ਯੋਜਨਾ ਅਰਥਾਤ 1956 ਈ: ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ 53 ਲੱਖ ਆਦਮੀ ਬੇਕਾਰ ਸਨ ਪਰ 1998 ਦੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੇ ਰਿਕਾਰਡ ਵਿਚ 4 ਕਰੋੜ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਰਜਿਸਟਰ ਸਨ । ਸਤੰਬਰ 2002 ਵਿਚ ਇਹ ਗਿਣਤੀ 3 ਕਰੋੜ 45 ਲੱਖ ਰਹਿ ਗਈ, ਪਰ ਇਸ ਦਾ ਮਤਲਬ ਇਹ ਨਹੀਂ ਕਿ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਘਟ ਗਈ ਹੈ । ਬਹੁਤੇ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇ ਸਰਕਾਰੀ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਤੋਂ ਨਿਰਾਸ਼ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਹਨ ਤੇ ਬਹੁਤੇ ਅਜਿਹੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦਾ ਰਾਹ ਵੀ ਪਤਾ ਨਹੀਂ । ਪਿੱਛੇ ਜਿਹੇ ਕਾਰਗਿਲ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਮੇਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿਚ ਫ਼ੌਜੀ ਭਰਤੀ ਲਈ ਲੱਗੀਆਂ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਭੀੜਾਂ ਤੋਂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੇ ਵਿਕਰਾਲ ਰੂਪ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਸਨ । ਪੜੇ-ਲਿਖੇ ਤੇ ਸਿਖਲਾਈ ਪ੍ਰਾਪਤ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਵਿਚੋਂ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੀ ਭਾਲ ਵਿਚ ਧੜਾ-ਧੜ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਲ ਭੱਜ ਰਹੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਸ਼ਾਮਿਲ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਕੁੱਝ ਸਮਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਯੂ. ਪੀ. ਵਿਚ 386 ਅੱਠਵੀਂ ਪਾਸ ਚਪੜਾਸੀ ਭਰਤੀ ਕਰਨ ਲਈ ਪੁੱਜੀਆਂ 23 ਲੱਖ ਅਰਜ਼ੀਆਂ ਤੋਂ ਅਤੇ ਬਠਿੰਡੇ ਵਿਚ 18 ਚਪੜਾਸੀ ਭਰਤੀ ਕਰਨ ਲਈ ਪੁੱਜੀਆਂ 10 ਹਜ਼ਾਰ ਤੋਂ ਵੱਧ ਅਰਜ਼ੀਆਂ ਤੋਂ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੇ ਵਿਕਰਾਲ ਰੂਪ ਦਾ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ 255 ਪੀ. ਐੱਚ. ਡੀ., 2 ਲੱਖ ਤੋਂ ਉੱਪਰ ਗੇਜੂਏਟ ਤੇ ਪੋਸਟ-ਗੇਜੂਏਟ ਸਨ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਿੱਛੇ ਜਿਹੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਸੱਤ ਹਜ਼ਾਰ ਸਿਪਾਹੀ ਭਰਤੀ ਕਰਨ ਲਈ 8 ਲੱਖ ਅਰਜ਼ੀਆਂ ਪੁੱਜੀਆਂ । ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਹੋਏ ਕੇਂਦਰ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ 207 ਦਰਜ਼ੀ, ਮੋਚੀ, ਧੋਬੀ ਆਦਿ ਭਰਤੀ ਕਰਨ ਲਈ ਕੱਢੀਆਂ ਅਸਾਮੀਆਂ ਲਈ 7 ਲੱਖ 70 ਹਜ਼ਾਰ ਅਰਜ਼ੀਆਂ ਆਈਆਂ ਤੇ ਅਰਜ਼ੀਆਂ ਭੇਜਣ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਇੰਜੀਨੀਅਰ, ਐਮ. ਬੀ. ਏ. ਤੇ ਆਈ. ਟੀ. ਸੈਕਟਰ ਦੇ ਗੇਜੂਏਟ ਤੇ ਪੋਸਟ ਗ੍ਰੇਜੁਏਟ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹਨ ।

ਕਾਰਨ :
ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵਿਚ ਵਾਧੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਅਬਾਦੀ ਵਿਚ ਵਿਸਫੋਟਕ ਵਾਧਾ ਹੈ । 1951 ਵਿਚ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਬਾਦੀ ਕੇਵਲ 36 ਕਰੋੜ ਸੀ, ਪਰੰਤੂ ਇਹ 2.5% ਸਾਲਾਨਾ ਦਰ ਨਾਲ ਵਧਦੀ ਅੱਜ 130 ਕਰੋੜ ਨੂੰ ਢੁੱਕ ਚੁੱਕੀ ਹੈ । ਅਬਾਦੀ ਦੇ ਇਸ ਤੇਜ਼ ਵਾਧੇ ਨੇ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਵਿਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਮਿੱਥੇ ਟੀਚੇ ਪੂਰੇ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦਿੱਤੇ । . ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਆਰਥਿਕ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਮੱਧਮ ਰਫ਼ਤਾਰ, ਪਲਾਨਾਂ ਦੀ ਅਸਫਲਤਾ, ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਲ ਲੋੜੀਂਦਾ ਧਿਆਨ ਨਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਣਾ, ਲਘੂ ਤੇ ਕੁਟੀਰ ਉਦਯੋਗਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਅਣਗਹਿਲੀ, ਉਦਯੋਗਿਕ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਨੀਵੀਂ ਦਬ, ਪੁੰਜੀ ਤੇ ਨਿਵੇਸ਼ ਦੀ ਘਾਟ, ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਅਧੂਰੀ ਵਰਤੋਂ, ਦੋਸ਼ਪੂਰਨ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ, ਸੈ-ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਲਈ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਕਮੀ, ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ, ਸਾਂਝੇ ਪਰਿਵਾਰ, ਗ਼ਰੀਬੀ, ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿਚ ਵਾਧਾ, ਕਾਮਿਆਂ ਤੇ ਕਿੱਤਾਕਾਰਾਂ ਵਿਚ ਗਤੀਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਘਾਟ, ਬਾਲਣ ਤੇ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਘਾਟ, ਛਾਂਟੀ ਤੇ ਸਥਾਪਿਤ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਪੂਰੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾ ਕਰਨਾ, ਸਰਕਾਰੀ ਅਦਾਰਿਆਂ ਦਾ ਅੰਨੇਵਾਹ ਨਿੱਜੀਕਰਨ, ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ, ਉਦਯੋਗਿਕ ਆਧੁਨਿਕੀਕਰਨ ਤੇ ਕੰਪਿਊਟਰੀਕਰਨ ਇਸ ਦੇ ਹੋਰ ਕਈ ਕਾਰਨ ਹਨ ।

ਇਹੋ ਹੀ ਕਾਰਨ ਹੈ ਕਿ ਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਦੇ ਮੌਕੇ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਘਟਦੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ । ਅੱਜ ਤੋਂ ਵੀਹ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਜਿੱਥੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਵਿਚ ਵਾਧਾ 2.2 ਸਾਲਾਨਾ ਸੀ ਹੁਣ ਘਟ ਕੇ 1.1% ਸਾਲਾਨਾ ਰਹਿ ਗਿਆ ਹੈ । ਅਰਥਾਤ ਵਰਤਮਾਨ ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਆਰਥਿਕ ਵਿਕਾਸੇ ਹੋਣ ਦੀਆਂ ਟਾਹਰਾਂ ਮਾਰਨ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇ ਮੌਕੇ ਅੱਧੇ ਰਹਿ ਗਏ ਹਨ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦਾ ਖੇਤਰ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਧ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਮੱਠਾ ਹੈ । ਨਾਲ ਹੀ ਖੇਤੀ, ਜਿਸ ਉੱਪਰ 60% ਲੋਕ ਨਿਰਭਰ ਹਨ, ਵੱਡੇ ਸੰਕਟ ਵਿਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰ ਰਹੀ ਹੈ ਤੇ ਲੋਕ ਖੇਤੀ ਦਾ ਧੰਦਾ ਛੱਡਣ ਨੂੰ ਤਰਜੀਹ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ ।

ਉਪਾ :
ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਨਾ ਹਰ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਨੈਤਿਕ ਫ਼ਰਜ਼ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ ਇਰਾਦੇ ਤੇ ਠੋਸ ਕਾਰਵਾਈ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ । ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਅਸੀਂ ਹੇਠ ਕੁੱਝ ਸੁਝਾ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ।

ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀਆਂ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਸਾਰਥਕ ਆਰਥਿਕ ਨੀਤੀ ਦੇ ਰੁੱਸ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿ ਗਈਆਂ ਹਨ ਤੇ ਰਹਿੰਦੀ ਕਸਰ ਕਾਗ਼ਜ਼ੀ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਤੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਨੇ ਪੂਰੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਹੈ । ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਰੂਰੀ ਗੱਲ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਧ ਰਹੀ ਅਬਾਦੀ ਉੱਪਰ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣਾ ਹੈ । ਆਰਥਿਕ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕਿਰਤ-ਪ੍ਰਧਾਨ ਤਕਨੀਕਾਂ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਤੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦਾ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿਕਾਸ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਲਘੂ ਕੁਟੀਰ ਉਦਯੋਗਾਂ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਪੁਖ਼ਤਾ ਕਦਮ ਉਠਾਉਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਵਿੱਦਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਸੁਧਾਰ ਕਰ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰਮੁਖੀ ਬਣਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕਿੱਤਾਕਾਰਾਂ ਤੇ ਕਾਮਿਆਂ ਵਿਚ ਗਤੀਸ਼ੀਲਤਾ ਦੀ ਰੁਚੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨਾ, ਉਦਯੋਗਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਿਤ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਪੂਰਾ ਲਾਭ ਲੈਣਾ, ਉਦਯੋਗਾਂ ਦਾ ਵਿਕੇਂਦਰੀਕਰਨ, ਸ਼ੈ-ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨਾ, ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਬਣੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮਾਂ ਖ਼ਾਸ ਕਰ 18 ਅਗਸਤ, 2005 ਨੂੰ ਸੰਸਦ ਵਿਚ ਪਾਸ ਹੋਏ ‘ਕੌਮੀ ਪੇਂਡੂ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਗਰੰਟੀ ਬਿੱਲ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਲਾਗੂ ਕਰਨਾ ਤੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਕਰਨਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਦੇਸ਼ ਦੀ ਤੇਜ਼ ਆਰਥਿਕ ਉੱਨਤੀ ਲਈ ਬਹੁਮੁਖੀ ਅਤੇ ਤੇਜ਼ ਸਨਅੱਤੀਕਰਨ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇ ਨਵੇਂ ਰਸਤੇ ਖੁੱਲ੍ਹਣਗੇ ਅਤੇ ਪੜ੍ਹਿਆਂ-ਲਿਖਿਆਂ ਤੇ ਨਿਪੁੰਨ ਕਾਰੀਗਰਾਂ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਵੇਗਾ ।

ਪੇਂਡੂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਵਿਚ ਕੰਮ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਖੇਤੀ ਆਧਾਰਿਤ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦਾ ਜਾਲ ਵਿਛਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਕੋਈ ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਫ਼ਰਮ ਫੇਲ੍ਹ ਹੋ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਬੇਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸੰਭਾਲਣ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਲੈਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ, ਪਰ ਸਾਡੀ ਸਰਕਾਰ ਤਾਂ ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਦੇ ਰਸਤੇ ਉੱਤੇ ਤੁਰੀ ਹੋਈ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ । ਨਿੱਜੀ ਵਿੱਦਿਅਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਤੇ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਖੋਲ੍ਹ ਕੇ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਪੈਸੇ ਬਟੋਰੂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਡਿਗਰੀਆਂ ਵੰਡਣ ਦਾ ਕੰਮ ਤਾਂ ਸੌਂਪ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਪਰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਾ ਕੋਈ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨ ਲਈ ਠੋਸ ਕਦਮ ਨਹੀਂ ਚੁੱਕੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਪੜ੍ਹੇ-ਲਿਖੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬਹੁਤੇ ਵਿਹਲੇ ਫਿਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਕਈਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਵਿੱਦਿਅਕ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨੌਕਰੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੀ; ਕਈ ਨਸ਼ਿਆਂ ਵਿਚ ਗਲਤਾਨ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ, ਕੋਈ ਲੁੱਟ-ਮਾਰ ਦੇ ਰਾਹ ਤੁਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਬਾਹਰ ਭੇਜਣ ਵਾਲੇ ਏਜੰਟਾਂ ਦੇ ਢਹੇ ਚੜ੍ਹ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੋਈ ਅੱਤਵਾਦੀ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੀ ਵਿਚਾਰ ਦਾ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਨਿਕਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਬਹੁਤ ਗੰਭੀਰ ਰੂਪ ਅਖ਼ਤਿਆਰ ਕਰ ਚੁੱਕੀ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਇਸ ਦਾ ਫ਼ੌਰੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਹੱਲ ਨਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ, ਤਾਂ ਇਸ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਨਿਕਲ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਦੇ ਹੱਲ ਲਈ ਅਜਿਹੇ ਠੋਸ ਤੇ ਪੁਖ਼ਤਾ ਕਦਮ ਉਠਾਏ, ਜਿਸਦੇ ਸਾਰਥਕ ਨਤੀਜੇ ਨਿਕਲਣ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

38. ਸਾਡਾ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਪੰਛੀ-ਮੋਰ

ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਪੰਛੀ-ਮੋਰ ਸਾਡਾ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਪੰਛੀ ਹੈ । ਇਹ ਸੁੰਦਰਤਾ, ਸ਼ਿਸ਼ਟਤਾ ਅਤੇ ਰਹੱਸ ਦਾ ਚਿੰਨ੍ਹ ਹੈ । ਇਹ ਭਾਰਤ ਵਿਚ 1972 ਵਿਚ ਇਕ ਐਕਟਰ ਰਾਹੀਂ ਇਸਨੂੰ । ਮਾਰਨ ਜਾਂ ਕੈਦ ਕਰ ਕੇ ਰੱਖਣ ਉੱਤੇ ਪੂਰੀ ਪਾਬੰਦੀ ਲਾਈ ਗਈ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਪੰਛੀ-ਸੁੰਦਰ ਪੰਛੀ-ਪੈਲ ਪਾਉਣਾ-ਮੋਰਨੀ-ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਪਸੰਦ-ਮਿੱਤਰ ਪੰਛੀ-ਖੰਭਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ।)

ਇਕ ਸੁੰਦਰ ਪੰਛੀ :
ਮੋਰ ਬੜਾ ਸੁੰਦਰ ਪੰਛੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਸਿਰ ਉੱਪਰ ਸੁੰਦਰ ਕਲਗੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਛੋਟੀ ਜਿਹੀ ਚੁੰਝ ਤੇ ਨੀਲੇ ਰੰਗ ਦੀ ਲੰਮੀ ਧੌਣ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਲੰਮੇ-ਲੰਮੇ ਪਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਪਰਾਂ ਦਾ ਚਮਕੀਲਾ ਰੰਗ, ਨੀਲਾ, ਕਾਲਾ ਤੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਹਰੇਕ ਪਰ ਦੇ ਸਿਰੇ ਉੱਤੇ ਇਹਨਾਂ ਹੀ ਮਿਲੇ-ਜੁਲੇ ਰੰਗਾਂ ਦਾ ਇਕ ਸੁੰਦਰ ਗੋਲ ਜਿਹਾ ਚੱਕਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੇ ਮੋਰ ਮੁਕਟ ਰਾਹੀਂ ਇਸ ਨੂੰ ਗੌਰਵ ਬਖ਼ਸ਼ਿਆ ਹੈ । , ਪੈਲ ਪਾਉਣਾ-ਮੋਰ ਖੇਤਾਂ ਵਿਚ ਜਾਂ ਰੁੱਖਾਂ ਦੀ ਓਟ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਪਰ ਫੈਲਾ ਕੇ ਪੈਲ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਦੇ ਪਰ ਪੱਖੇ ਵਰਗੇ ਲਗਦੇ ਹਨ । ਪੈਲ ਪਾਉਂਦਿਆਂ ਉਹ ਮਸਤੀ ਵਿਚ ਨੱਚਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਬੜਾ ਲੁਭਾਉਣਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਪੈਲ ਪਾਉਂਦੇ ਮੋਰ ਦੇ ਕੋਲ ਜਾਵੋ, ਤਾਂ ਉਹ ਪੈਲ ਪਾਉਣੀ ਬੰਦ ਕਰ ਕੇ ਲੁਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

‘ਮੋਰਨੀ :
ਮੋਰ ਆਪਣੇ ਲੰਮੇ ਤੇ ਭਾਰੇ ਪਰਾਂ ਕਰਕੇ ਲੰਮੀ ਉਡਾਰੀ ਨਹੀਂ ਮਾਰ ਸਕਦਾ । ਮੋਰਨੀ ਦੇ ਪਰ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ । ਮੋਰ-ਮੋਰਨੀ ਨਾਲੋਂ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਵਧੇਰੇ ਸੁੰਦਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੁੱਕੜ-ਕੁਕੜੀ ਨਾਲੋਂ । ਮੋਰ-ਮੋਰਨੀ ਕੁੱਕੜ-ਕੁਕੜੀ ਵਾਂਗ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਲ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ।’

ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਪਸੰਦ :
ਮੋਰ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਨਾਲ ਰਹਿਣਾ ਪਸੰਦ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਪਿੰਜਰੇ ਜਾਂ ਕਮਰੇ ਵਿਚ ਕੈਦ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਨਾਲ ਉਹ ਕੁੱਝ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਮਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਦੀ ਡੀਲ-ਡੌਲ ਤੋਂ ਪਤਾ ਲਗਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸ਼ੈਮਾਨ ਦੀ ਬਹੁਤ ਸੂਝ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਭੱਦੇ ਪੈਰਾਂ ਵਲ ਵੇਖ ਕੇ ਝੂਰਦਾ ਹੈ ।

ਮੋਰ ਆਮ ਕਰਕੇ ਸੰਘਣੇ ਰੁੱਖਾਂ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਫ਼ਸਲਾਂ, ਘਾਹ ਦੇ ਮੈਦਾਨਾਂ ਤੇ ਨਹਿਰ ਦੇ ਕੰਢਿਆਂ ਦੇ ਨੇੜੇ ਤੁਰਨਾ-ਫਿਰਨਾ ਪਸੰਦ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਬੱਦਲਾਂ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਨੱਚਦਾ ਤੇ ਪੈਲਾਂ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਮੀਂਹ ਵਿਚ ਨੱਚ, ਟੱਪ ਅਤੇ ਨਹਾ ਕੇ ਬੜਾ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਮਿੱਤਰ ਪੰਛੀ :
ਮੋਰ ਸਾਡਾ ਮਿੱਤਰ ਪੰਛੀ ਹੈ । ਇਹ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਕੀੜਿਆਂ ਨੂੰ ਖਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਸੱਪ ਦਾ ਬੜਾ ਵੈਰੀ ਹੈ ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਸੱਪ ਮੋਰ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਡਰਦਾ ਹੈ । ਮੋਰ ਦੀ ਅਵਾਜ਼ ਸੁਣ ਕੇ ਸੱਪ ਬਾਹਰ ਨਹੀਂ ਨਿਕਲਦਾ ।

ਖੰਭਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ :
ਮੋਰ ਦੇ ਖੰਭਾਂ ਦੇ ਚੌਰ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜੋ ਮੰਦਰਾਂ, ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਤੇ ਪੁਜਾ-ਸਥਾਨਾਂ ਉੱਤੇ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਮੋਰ ਦੇ ਪਰਾਂ ਦੀ ਹਵਾ ਕਈ ਰੋਗਾਂ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਜੋਗੀ ਤੇ ਮਾਂਦਰੀ ਲੋਕ ਚੌਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਰੋਗ ਨੂੰ ਝਾੜਦੇ ਹਨ । ਕਈ ਚਿਤਰਾਂ ਵਿਚ ਰਾਜੇ-ਰਾਣੀਆਂ ਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਦਾਸ-ਦਾਸੀਆਂ ਮੋਰਾਂ ਦੇ ਖੰਭਾਂ ਦੇ ਚੌਰ ਨਾਲ ਹਵਾ ਝੱਲ ਰਹੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਕਈ ਚਿਰਾਂ ਵਿਚ ਮੋਰ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿਚ ਸੱਪ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਮੋਰ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਜਨ-ਜੀਵਨ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਮੋਰ ਨੂੰ ਸਾਡਾ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਪੰਛੀ ਮੰਨਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਕਰਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਨਹੀਂ । ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਉੱਤੇ ਮਾਣ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

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39. ਸਾਡਾ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਝੰਡਾ-ਤਿਰੰਗਾ

ਇਤਿਹਾਸ :
ਸਾਡਾ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਝੰਡਾ ਤਿਰੰਗਾ ਹੈ । ਇਸਨੂੰ ਇਸਦੀ ਵਰਤਮਾਨ ਸ਼ਕਲ ਵਿਚ 15 ਅਗਸਤ, 1947 ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਅਜ਼ਾਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਤੋਂ 24 ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਭਾਰਤ ਵਿਚ 22 ਜੁਲਾਈ, 1947 ਨੂੰ ਸੰਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਦੀ ਹੋਈ ਐਡਹਾਕ ਮੀਟਿੰਗ ਵਿਚ ਪ੍ਰਵਾਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ 15 ਅਗਸਤ, 1947 ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 26 ਜਨਵਰੀ, 1950 ਭਾਰਤ ਦੇ ਗਣਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਤਕ ਇਸਨੂੰ ਡੋਮੀਨੀਅਨ ਆਫ਼ ਇੰਡੀਆ ਦੇ ਕੌਮੀ ਝੰਡੇ ਵਜੋਂ ਅਪਣਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਹ ਝੰਡਾ ਇੰਡੀਅਨ ਨੈਸ਼ਨਲ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਝੰਡੇ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਸੀ, ਜਿਸਦਾ ਡਿਜ਼ਾਈਨ ਪਿੰਗਾਲੀ ਵੈਨਕਾਇਆ ਨਾਂ ਦੇ ਇਕ ਵਿਦਵਾਨ ਨੇ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਂਞ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਜ਼ਾਦੀ ਲਈ 1913-14 ਵਿਚ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਗ਼ਦਰ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਝੰਡਾ ਵੀ ਤਿੰਨ-ਰੰਗਾ ਹੀ ਸੀ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਇਤਿਹਾਸ-ਰੰਗ-ਲਹਿ-ਰਾਇਆ ਜਾਣਾ-ਕੋਡ-ਸੰਸਾ-ਸਾਰ-ਅੰਸ ।)

ਰੰਗ :
ਇਸ ਝੰਡੇ ਦੇ ਤਿੰਨ ਰੰਗ ਹਨ-ਕੇਸਰੀ, ਚਿੱਟਾ ਤੇ ਹਰਾ । ਇਸਦਾ ਕੇਸਰੀ ਰੰਗ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਪਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਚਿੱਟਾ ਵਿਚਕਾਰ ਤੇ ਹਰਾ ਸਭ ਤੋਂ ਥੱਲੇ । ਚਿੱਟੇ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਉਸਦੀ ਚੌੜਾਈ ਵਿਚ ਨੇਵੀ ਬਲਿਊ ਰੰਗ ਦੇ ਅਸ਼ੋਕ ਚੱਕਰ ਦਾ ਚਿੰਨ੍ਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸਨੂੰ ਸਾਰਨਾਥ ਵਿਚ ਬਣੇ ਅਸ਼ੋਕ ਦੇ ਥੰਮ ਤੋਂ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚਲਾ ਕੇਸਰੀ ਰੰਗ ਕੁਰਬਾਨੀ ਦਾ, ਚਿੱਟਾ ਰੰਗ ਅਮਨ ਦਾ ਤੇ ਹਰਾ ਰੰਗ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲੀ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕ ਹੈ । ਅਸ਼ੋਕ ਚੱਕਰ ਵਿਕਾਸ ਤੇ ਤਰੱਕੀ ਦਾ ਚਿੰਨ੍ਹ ਹੈ । ਇਹ ਝੰਡਾ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਜੰਗੀ ਝੰਡਾ ਵੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਫ਼ੌਜੀ ਕੇਂਦਰਾਂ ਉੱਤੇ ਝੁਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਹੱਥ ਦੇ ਕੁੱਤੇ ਖੱਦਰ ਦਾ ਬਣਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਲਹਿਰਾਇਆ ਜਾਣਾ :
26 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਗਣਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਉੱਤੇ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਇਸਨੂੰ ਝੁਲਾਉਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਤਿੰਨਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਯੂਨਿਟਾਂ ਵਲੋਂ ਇਸਨੂੰ ਸਲਾਮੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । 15 ਅਗਸਤ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਦੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਇਸਨੂੰ ਲਾਲ ਕਿਲ੍ਹੇ ਉੱਤੇ ਝੁਲਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਝੰਡੇ ਨੂੰ ਬੁਲਾਉਣ ਮਗਰੋਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਕੌਮੀ ਗੀਤ ‘ਜਨ ਗਨ ਮਨ….’ ਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਸਭ ਸਾਵਧਾਨ ਹੋ ਕੇ ਖੜੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਕੋਡ :
ਇੰਡੀਅਨ ਫਲੈਗ ਕੋਡ ਦੁਆਰਾ ਇਸ ਝੰਡੇ ਦੀ ਉਚਾਈ ਤੇ ਚੌੜਾਈ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੈ। ‘ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਸਨੂੰ ਝੁਲਾਉਣ ਦੇ ਨਿਯਮ ਅਤੇ ਉਤਾਰਨ ਦੇ ਨਿਯਮ ਵੀ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਹਨ । ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਵੱਡੇ ਨੇਤਾ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਇਸਨੂੰ ਝੁਕਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸੰਸਾ :
ਤਿਰੰਗੇ ਝੰਡੇ ਦੇ ਸਤਿਕਾਰ ਤੇ ਮਹੱਤਤਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕਵੀਆਂ ਨੇ ਗੀਤ ਲਿਖੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-

ਝੰਡਿਆ ਤਿਰੰਗਿਆ ਨਿਰਾਲੀ ਤੇਰੀ ਸ਼ਾਨ ਏ ।
ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਾਸੀਆਂ ਨੂੰ ਤੇਰੇ ਉੱਤੇ ਮਾਣ ਏ ।
ਇਕ ਇਕ ਤਾਰ ਤੇਰੀ ਜਾਪੇ ਮੂੰਹੋਂ ਬੋਲਦੀ ।
ਮੁੱਲ ਹੈ ਅਜ਼ਾਦੀ ਸਦਾ ਲਹੂਆਂ ਨਾਲ ਤੋਲਦੀ ।
ਉੱਚਾ ਸਾਡਾ ਅੰਬਰਾਂ ‘ਤੇ ਝੂਲਦਾ ਨਿਸ਼ਾਨ ਏ ।
ਝੰਡਿਆ ਤਿਰੰਗਿਆ ਨਿਰਾਲੀ ਤੇਰੀ ਸ਼ਾਨ ਏ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਸਾਡਾ ਝੰਡਾ ਮਹਾਨ ਹੈ । ਇਹ ਸਦਾ ਉੱਚਾ ਰਹੇ । ਇਹ ਭਾਰਤ ਵਾਸੀਆਂ ਦੀ ਆਨ-ਸ਼ਾਨ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕ ਹੈ । ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਉੱਪਰ ਮਾਣ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

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40. ਮਨ-ਭਾਉਂਦੇ ਸ਼ੁਗਲ

ਸ਼ੁਗਲ ਤੋਂ ਭਾਵ-ਸ਼ੁਗਲ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਆਪਣੇ ਕਿੱਤੇ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਆਪਣੀ ਦਿਲਚਸਪੀ ਅਨੁਸਾਰ ਵਿਹਲੇ ਸਮੇਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਆਹਰ ਜਾਂ ਰੁਝੇਵੇਂ ਵਿਚ ਗੁਜ਼ਾਰਨਾ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਸ਼ੁਗਲ ਤੋਂ ਭਾਵ-ਪੁਰਾਣੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸ਼ੁਗਲ-ਅਜੋਕੇ ਸ਼ੁਗਲ-ਉਸਾਰੂ ਨਤੀਜੇ-ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜੀਵਨ ਤੇ ਸ਼ੁਗਲੇ ।)

ਜਿੱਥੇ ਕਿੱਤਾ ਜਾਂ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਬੰਦੇ ਦੀ ਰੋਟੀ-ਰੋਜ਼ੀ ਦਾ ਸਾਧਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਸ਼ਰਾਲ ਦਿਲਪਰਚਾਵੇ ਲਈ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣ ਲਈ ਕੋਈ ਬੰਧਨ ਵੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਜਦੋਂ ਜੀ ਕਰੇ ਬੰਦਾ ਇਸ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਉਹ ਕੋਈ ਹੋਰ ਘਰੇਲੂ ਕੰਮ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਜਾਂ ਅਰਾਮ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਆਦਮੀ ਆਪਣੇ ਕਿੱਤੇ ਨੂੰ ਹੀ ਸ਼ਗਲ ਵਾਂਗ ਅਪਣਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਉਸ ਵਿਚੋਂ ਮਾਨਸਿਕ ਸੰਤੁਸ਼ਟੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਫਾਲਤੂ ਸ਼ੁਗਲ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੀ । ਆਪਣੇ ਕਿੱਤਿਆਂ ਦੇ ਮਾਹਰ ਤੇ ਕਲਾਕਾਰ ਲੋਕ ਅਜਿਹੇ ਹੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਸ਼ੁਗਲ ਅਸਲ ਵਿਚ ਆਨੰਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਆਪਣੇ ਕਿੱਤੇ ਵਿਚੋਂ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੋਈ ਹੋਰ ਰੁਝੇਵਾਂ ਜਾਂ ਰਚਨਾਤਮਕ ਕੰਮ ਕਰ ਕੇ ਵੀ । ਅਸਲ ਗੱਲ ਤਾਂ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਵਿਹਲਾ ਨਹੀਂ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਕਿਉਂਕਿ ਵਿਹਲਾ ਮਨ ਸ਼ੈਤਾਨ ਦਾ ਕਾਰਖ਼ਾਨਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । । ਪੁਰਾਣੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸ਼ੁਗਲ-ਪੁਰਾਣੇ ਲੋਕ ਵੀ ਆਪਣੇ ਸ਼ੁਗਲ ਲਈ ਖੇਡਾਂ ਖੇਡਦੇ, ਸ਼ਿਕਾਰ ਖੇਡਦੇ, ਤਿੱਤਰ-ਬਟੇਰੇ ਪਾਲਦੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਕਰਾਉਂਦੇ ‘ਤੇ ਕਈ ਹੋਰ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਖੇਡਾਂ, ਛਾਲਾਂ, ਬੰਦਬਾਜ਼ੀਆਂ, ਬੁਣਤੀਆਂ, ਲੱਕੜੀ ਅਤੇ ਪੱਥਰ ਉੱਤੇ ਨਕਾਸ਼ੀਆਂ, ਗਾਇਕੀਆਂ ਆਦਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ੁਗਲ ਹੀ ਸਨ ।

ਅਜੋਕੇ ਸ਼ੁਗਲ :
ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਵੀ ਬਹੁਤੇ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਵਿਹਲੇ ਸਮੇਂ ਨੂੰ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਸ਼ੁਗਲਾਂ ਵਿਚ ਗੁਜ਼ਾਰਨਾ ਪਸੰਦ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ : ਬਾਗ਼ਬਾਨੀ, ਪੁਸਤਕਾਂ ਪੜ੍ਹਨਾ, ਚਿਤਰਕਾਰੀ, ਫੋਟੋਗ੍ਰਾਫ਼ੀ, ਟਿਕਟਾਂ ਇਕੱਠੀਆਂ ਕਰਨਾ, ਚਿਤਰ ਬਣਾਉਣਾ, ਕਸੀਦੇ ਕੱਢਣਾ, ਪੁਰਾਤਨ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵਸਤਾਂ ਇਕੱਠੀਆਂ ਕਰਨਾ, ਘਰਾਂ ਦੀ ਸਜਾਵਟ ਕਰਨਾ ਆਦਿ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਮਨ ਖੁਸ਼ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਸਰੀਰ ਸਰਗਰਮ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਸਾਨੂੰ ਕਿਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਅਕੇਵਾਂ-ਥਕੇਵਾਂ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । । ਉਸਾਰੂ ਨਤੀਜੇ-ਸ਼ੁਗ਼ਲ ਵਿਚ ਆਦਮੀ ਦਾ ਵਕਤ ਸੋਹਣਾ ਬੀਤ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਆਦਮੀ

ਗਲ :
ਗਲ ਵਿਚ ਹੀ ਇੰਨੀ ਮੁਹਾਰਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ਕਿ ਉਸ ਵਿਚੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਰਥਿਕ ਲਾਭ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਬਾਗਬਾਨੀ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣ ਵਾਲੇ ਸ਼ੁਗਲ ਵਿਚ ਹੀ ਫੁੱਲ-ਬੂਟੇ ਤੇ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਪੈਦਾ ਕਰ ਕੇ ਕੁੱਝ ਨਾ ਕੁੱਝ ਕਮਾਈ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਰਾਕ ਗਾਰਡਨ ਦਾ ਰਚਣਹਾਰ ਨੇਕ ਚੰਦ ਸ਼ੁਗਲ ਵਿਚ ਹੀ ਰੱਦੀ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਤਰ ਕਰ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਜੀਵ ਚਿਤਰਾਂ ਦੇ ਢਾਂਚਿਆਂ ਦਾ ਰੂਪ ਦਿੰਦਾ ਰਿਹਾ ਤੇ ਜਗਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿਅਕਤੀ ਹੋ ਨਿਬੜਿਆ ਹੈ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਟਿਕਟਾਂ ਇਕੱਠੀਆਂ ਕਰਨ ਤੇ ਸਿੱਕੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵੀ । ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਲਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੋ ਨਿਬੜਦੇ ਹਨ ।

ਇਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਚਿਤਰਕਾਰੀ ਤੇ ਕੁੰਭਕਾਰੀ ਆਦਿ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣ ਵਾਲੇ ਵੀ ਆਪਣੀਆਂ ਕਿਰਤਾਂ ਨਾਲ ਚੰਗੇ ਪੈਸੇ ਕਮਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਨਾਚ, ਰਾਗ ਤੇ ਗਾਇਕੀ ਦਾ ਸ਼ੁਗਲ ਵੀ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਉੱਚੀ ਥਾਂ ਦੁਆ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕੁੱਤੇ, ਕੁੱਕੜ, ਬਟੇਰੇ ਤੇ ਤੋਤੇ ਪਾਲਣ ਵਾਲੇ ਵੀ ਜਿੱਥੇ ਆਪਣਾ ਮਨ ਪਰਚਾਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਕਮਾਈ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਪਤੰਗ-ਉਡਾਉਣਾ ਵੀ ਖੂਬ ਦਿਲਚਸਪੀ ਭਰਿਆ ਸ਼ੁਗਲ ਹੈ ।

ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜੀਵਨ ਤੇ ਸ਼ੁਗਲ-ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਸ਼ੁਗਲ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪੜ੍ਹਾਈ ਤੋਂ ਥੱਕੇ ਮਨ ਨੂੰ ਚੈਨ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਾ ਸ਼ੁਗਲ ਆਮ ਕਰਕੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਛੁਪੀ ਕੁਦਰਤੀ ਕਲਾ ਜਾਂ ਰੁਚੀ ਦਾ ਸੰਕੇਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸਨੂੰ ਪਛਾਣ ਕੇ ਉਸਦੇ ਮਾਪਿਆਂ ਤੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਭਵਿੱਖ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

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41. ਰੁੱਖਾਂ ਦੇ ਲਾਭ

ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵ-ਰੁੱਖਾਂ ਦੀ ਸਾਡੇ, ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਹਾਨਤਾ ਹੈ । ਮਨੁੱਖਾਂ ਸਮੇਤ ਜਿੰਨੇ ਜੀਵ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਵਸਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਰੁੱਖਾਂ ਦੇ ਸਹਾਰੇ ਹੀ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਰੁੱਖ ਨਾ ਹੋਣ ਤਾਂ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਪਲ ਲਈ ਵੀ ਜਿਉਣਾ ਔਖਾ ਹੋ ਜਾਵੇ । ਇਹ ਸਾਡੀ ‘ਕੁਲੀ-ਗੁੱਲੀ ਤੇ ਜੁੱਲੀ’ ਦੀਆਂ ਤਿੰਨੇ ਮੁੱਖ ਲੋੜਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਸਾਨੂੰ ਨਾ ਕੇਵਲ ਫਲ ਤੇ ਲੱਕੜੀ ਹੀ ਦਿੰਦੇ ਹਨ, ਸਗੋਂ ਸਾਨੂੰ ਭੋਜਨ ਤੋਂ ਜ਼ਰੂਰੀ ਚੀਜ਼ ਆਕਸੀਜਨ ਦਿੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਬੰਦਾ ਇਕ ਮਿੰਟ ਵੀ ਨਹੀਂ ਕੱਢ ਸਕਦਾ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵ-ਭੋਜਨ ਦਾ ਸਾਧਨ-ਸੁਖ-ਅਰਾਮ ਤੇ ਬਚਾਓ ਦਾ ਸਾਧਨ-ਹਵਾ ਨੂੰ ਸਾਫ਼ ਕਰਨਾ-ਖਾਦ ਦੇ ਦਵਾਈਆਂ ਦਾ ਸਾਧਨ-ਫਲਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ-ਸੁੰਦਰਤਾ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨਾ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼)

ਭੋਜਨ ਦਾ ਸਾਧਨ :
ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਜਿਊਂਦੇ ਰਹਿਣ ਲਈ ਭੋਜਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ । ਭੋਜਨ ਲਈ ਫਲ, ਅੰਨ, ਖੰਡ, ਘਿਓ-ਦੁੱਧ, ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਆਦਿ ਸਭ ਕੁੱਝ ਸਾਨੂੰ ਰੁੱਖਾਂ ਦੀ ਬਦੌਲਤ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਫਲ ਤੇ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਤਾਂ ਰੁੱਖ ਸਿੱਧੇ ਤੌਰ ਤੇ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਪਰੰਤੂ ਭੇਡਾਂ, ਬੱਕਰੀਆਂ ਤੇ ਹੋਰ ਪਸ਼ੂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪੱਤੇ ਖਾ ਕੇ ਹੀ ਸਾਨੂੰ ਦੁੱਧ ਦਿੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਸ ਤੋਂ ਦਹੀਂ, ਲੱਸੀ, ਮੱਖਣ ਤੇ ਪਨੀਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਬਾਕੀ ਖਾਣ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਵੀ ਰੁੱਖਾਂ ਤੇ ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਸ਼ਹਿਤੂਤ ਦੇ ਰੁੱਖਾਂ ਤੇ ਪਲਣ ਵਾਲਾ ਰੇਸ਼ਮ ਦਾ ਕੀੜਾ ਸਾਨੂੰ ਰੇਸ਼ਮ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਤੋਂ ਸਾਡੇ ਲਈ ਕੀਮਤੀ ਕੱਪੜਾ ਬਣਦਾ ਹੈ ।

ਸੁਖ-ਅਰਾਮ ਤੇ ਬਚਾਓ ਦਾ ਸਾਧਨ :
ਸਾਡੇ ਸਿਰਾਂ ਨੂੰ ਢੱਕਣ ਲਈ ਮਕਾਨ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵੀ ਸਾਨੂੰ ਲੱਕੜੀ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਪੈਂਦੀ ਹੈ, ਜੋ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਰੁੱਖਾਂ ਤੋਂ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਸਾਡੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਪਿਆ ਵਧੀਆ ਤੇ ਹੰਢਣਸਾਰ ਫ਼ਰਨੀਚਰ ਵੀ ਰੁੱਖਾਂ ਦੀ ਲੱਕੜੀ ਤੋਂ ਹੀ ਤਿਆਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਧੁੱਪ ਤੇ ਮੀਂਹ ਤੋਂ ਵੀ ਸਾਨੂੰ ਰੁੱਖ ਹੀ ਬਚਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰੁੱਖ ਸਾਨੂੰ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਮੌਸਮਾਂ ਦੇ ਕਹਿਰ ਤੋਂ ਬਚਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਹਵਾ ਨੂੰ ਸਾਫ਼ ਕਰਨਾ :
ਰੁੱਖ ਸਾਡੇ ਸਾਹ ਲੈਣ ਲਈ ਹਵਾ ਨੂੰ ਸਾਫ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਿ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਆਧਾਰ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਰੁੱਖ ਘਟ ਜਾਣ ਜਾਂ ਨਾ ਹੋਣ ਤਾਂ ਅਸ਼ੁੱਧ ਹਵਾ ਨਾਲ ਸਾਡਾ ਸਰੀਰ ਭਿਆਨਕ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਜਾਵੇ ਤੇ ਅੱਡੀਆਂ ਰਗੜ-ਰਗੜ ਕੇ ਮਰੇ । ਇਹ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਸਾਹ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲੀ ਗੰਦੀ ਹਵਾ ਵਿਚੋਂ ਕਾਰਬਨ ਡਾਇਆਕਸਾਈਡ ਨੂੰ ਚੂਸ ਕੇ ਆਕਸੀਜਨ ਛੱਡਦੇ ਹਨ, ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਸਾਹ ਲੈਣ ਤੇ ਜਿਊਣ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਡੇ ਲਈ ਵਰਖਾ ਦਾ ਕਾਰਨ ਵੀ ਬਣਦੇ ਹਨ ਤੇ ਉਪਜਾਊ ਮਿੱਟੀ ਨੂੰ ਰੁੜ੍ਹਨ ਤੋਂ ਵੀ ਬਚਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਖਾਦ ਤੇ ਦਵਾਈਆਂ ਦਾ ਸਾਧਨ :
ਰੁੱਖਾਂ ਦੇ ਪੱਤੇ ਤੇ ਹੋਰ ਹਿੱਸੇ ਗਲ-ਸੜ ਕੇ ਖਾਦ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਿ ਹੋਰਨਾਂ ਪੌਦਿਆਂ ਦੀ ਖ਼ੁਰਾਕ ਬਣਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਅੰਨ, ਸਬਜ਼ੀਆਂ, ਦਾਲਾਂ ਤੇ ਫਲ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਰੁੱਖਾਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ, ਫੁੱਲਾਂ, ਛਿੱਲਾਂ ਤੇ ਜੜਾਂ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਬਣਦੀਆਂ ਹਨ । ਨਿੰਮ, ਪਿੱਪਲ, ਬੋਹੜ, ਸਿਨਕੋਨਾ, ਅਸ਼ੋਕ, ਅਮਲਤਾਸ ਤੇ ਬਿੱਲ ਅਜਿਹੇ ਹੀ ਰੁੱਖ ਹਨ ।

ਫੁੱਲਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ :
ਰੁੱਖ ਸਾਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਵਾਦੀ ਤੇ ਰਸੀਲੇ ਫਲ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੇਲਿਆਂ, ਸੰਤਰਿਆਂ, ਅੰਬਾਂ, ਸੇਬਾਂ, ਅੰਗੂਰਾਂ, ਨਾਸ਼ਪਾਤੀਆਂ, ਨਿੰਬੂਆਂ, ਬਦਾਮਾਂ ਤੇ ਖੁਰਮਾਨੀਆਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਸਾਡਾ ਭੋਜਨ ਬੇਸੁਆਦ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿ ਜਾਵੇ ।

ਸੁੰਦਰਤਾ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨਾ :
ਰੁੱਖ ਸਾਡੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਨੂੰ ਸੁੰਦਰ ਵੀ ਬਣਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਫੁੱਲ ਦਿਲ ਨੂੰ ਖਿੱਚਦੇ ਹਨ ਤੇ ਮਹਿਕਾਂ ਖਿਲਾਰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਫੁੱਲਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਸ਼ਹਿਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਰੁੱਖਾਂ ਦੀ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਹਾਨਤਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਆਧਾਰ ਹਨ । ਸਾਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵੱਢਣਾ ਨਹੀਂ ਚਾਹੀਦਾ ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵੱਧ-ਵੱਧ ਲਾ ਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

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42. ਸਾਡੇ ਪਿੰਡ

ਭਾਰਤ ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਦੇਸ਼-ਭਾਰਤ ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਦੇਸ਼ ਹੈ । ਇਸਦੀ ਬਹੁਤੀ ਅਬਾਦੀ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਵਸਦੀ ਹੈ । ਅੱਜ ਤੋਂ ਪੰਜਾਹ ਕੁ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਸਾਡੇ ਪਿੰਡ ਬਹੁਤ ਪਛੜੇ ਹੋਏ ਸਨ । ਨਾ ਉੱਥੇ ਪੱਕੀਆਂ ਸੜਕਾਂ ਸਨ, ਨਾ , ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਮਸ਼ੀਨੀ ਸਾਧਨ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਬਿਜਲੀ । ਪਰੰਤੂ ਸਾਡੇ ਵਰਤਮਾਨ ਪਿੰਡ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਤੋਂ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੀ ਘੱਟ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਤੇ ਤਾਜ਼ੀ ਹਵਾ ਅਤੇ ਸ਼ੁੱਧ ਦੁੱਧ, ਦਹੀਂ ਤੇ ਅੰਨ ਵਿਚ ਉਹ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਹਨ । ਅੱਜ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਸੜਕਾਂ ਦਾ ਜਾਲ ਵਿਛ ਚੁੱਕਾ ਹੈ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਉੱਤੇ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਹਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਧਨ ਦੌੜਦੇ ਫਿਰਦੇ ਹਨ । ਅੱਜ ਕਾਰਾਂ, ਬੱਸਾਂ, ਸਕੂਟਰ, ਮੋਟਰ ਸਾਈਕਲ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਹਨ । ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਟੈਲੀਫੋਨ ਹਨ ਤੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ । ਡਾਕਟਰੀ ਸਹਾਇਤਾ ਵੀ ਹਰ ਪਿੰਡ ਦੇ ਨੇੜੇ ਹੀ ਮਿਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਭਾਰਤ ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਦੇਸ਼-ਵਿੱਦਿਅਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦਾ ਪਸਾਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਸਹੁਲਤਾਂ-ਸਫ਼ਾਈ-ਪੰਚਾਇਤਾਂ-ਔਰਤਾਂ ਦਾ ਅੱਗੇ ਵਧਣਾ-ਅੰਸ਼ ।)

ਵਿੱਦਿਅਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦਾ ਪਸਾਰ :
ਅੱਜ ਸਾਡੇ ਪਿੰਡ ਵਿੱਦਿਅਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹਨ। ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਇਮਰੀ ਸਕੂਲ, ਮਿਡਲ ਸਕੂਲ, ਹਾਈ ਸਕੂਲ, ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ, ਪਬਲਿਕ ਸਕੂਲ, ਕਾਲਜ ਤੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਕਿੱਤਿਆਂ ਵਿਚ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਮੌਜੂਦ ਹਨ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਅਨਪੜ੍ਹਤਾ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ ਤੇ ਪੜ੍ਹੇ-ਲਿਖੇ ਮੁੰਡੇ ਤੇ ਕੁੜੀਆਂ ਅੱਗੇ ਵਧ ਕੇ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਮਾਰਾਂ ਮਾਰਦੇ ਹੋਏ ਉੱਚੇ ਅਹੁਦੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਕਾਰੋਬਾਰ ਵੀ ਚਲਾਉਣ ਲੱਗੇ ਹਨ ।

ਸਰਕਾਰੀ ਸਹੂਲਤਾਂ :
ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਥਾਂ-ਥਾਂ ਸਿਹਤ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦੇਣ ਵਾਲੀਆਂ ਡਿਸਪੈਂਸਰੀਆਂ ਖੋਲ੍ਹ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹਨ । ਥਾਂ-ਥਾਂ ਸਿਖਲਾਈ ਪ੍ਰਾਪਤ ਡਾਕਟਰ ਆਪਣੇ ਨਿੱਜੀ ਕਲੀਨਿਕ ਖੋਲ੍ਹ ਕੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਡਾਕਟਰੀ ਸਹੂਲਤਾਂ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਸ ਨਾਲ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਰੋਗਾਂ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਲੋਕ ਤੇ ਬੱਚੇ ਅਣਆਈ ਮੌਤ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿਚ ਪੈਣ ਤੋਂ ਬਚ ਗਏ ਹਨ ।

ਸਫ਼ਾਈ :
ਅਜੋਕੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਸਫ਼ਾਈ ਵੀ ਵਧੇਰੇ ਹੈ । ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਫਲੱਸ਼ਾਂ ਬਣਵਾ ਲਈਆਂ ਹਨ ਤੇ ਘਰਾਂ ਦਾ ਪਾਣੀ ਅੰਡਰਗਰਾਉਂਡ ਨਾਲੀਆਂ ਵਿਚ ਜਾਣ ਲੱਗਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਮੱਖੀਆਂ, ਮੱਛਰ ਵੀ ਘੱਟ ਹੋ ਗਏ ਹਨ । ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਜਿੱਥੇ ਗੰਦੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਨਿਕਾਸ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਠੀਕ ਹੋ ਗਏ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਪੀਣ ਲਈ ਵੀ ਸੁਥਰਾ ਪਾਣੀ ਦੇਣ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ ।

ਪੰਚਾਇਤਾਂ :
ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਉਹ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਛੋਟੇ-ਮੋਟੇ ਝਗੜਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਨਿਬੇੜਦੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਪ੍ਰੇਮਪਿਆਰ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਗਲੀਆਂ ਦੀ ਸਫ਼ਾਈ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੇ ਰੌਸ਼ਨੀ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਠੀਕ ਰੱਖਣ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਕਈ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਉਦਯੋਗਿਕ ਇਕਾਈਆਂ ਵੀ ਕਾਇਮ ਹੋਈਆਂ ਹਨ, ਜੋ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇ ਮੌਕੇ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲੀ ਤੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਔਰਤਾਂ ਦਾ ਅੱਗੇ ਵਧਣਾ :
ਪਿੰਡਾਂ ਦੀਆਂ ਔਰਤਾਂ ਹੁਣ ਅਨਪੜ੍ਹ ਨਹੀਂ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਸਿਰਫ਼ ਘਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।ਉਹ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਨੰਗਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਕੇ ਤੇ ਨੌਕਰੀਆਂ ਉੱਤੇ ਲੱਗ ਕੇ ਆਪਣੇ ਪੈਰਾਂ ਉੱਤੇ ਖੜੀਆਂ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਪਿੰਡਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਸਰਲ ਤੇ ਰੰਗੀਨੀਆਂ ਭਰਪੂਰ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਵਸਣ ਵਾਲਾ ਕੁਦਰਤ ਦੀ ਗੋਦੀ ਦਾ ਨਿੱਘ ਮਾਣਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨਾਲੋਂ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਘੱਟ ਹੈ । ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਹੋ ਰਹੀ ਬਹੁਪੱਖੀ ਤਰੱਕੀ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਜਾਪਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਸਮਾਂ ਨੇੜੇ ਹੀ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਪਿੰਡਾਂ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤਾ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਜਾਵੇਗਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

43. ਦਾਜ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ
ਜਾਂ
ਦਾਜ ਦੀ ਲਾਹਨਤ

ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਭਰਿਆ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਫੈਲੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਅਨੇਕਾਂ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਇਸ ਗੌਰਵਸ਼ਾਲੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਮੱਥੇ ਉੱਪਰ ਕਲੰਕ ਹਨ । ਜਾਤ-ਪਾਤ, ਛੂਤ-ਛਾਤ ਅਤੇ ਦਾਜ ਵਰਗੀਆਂ ਕੁਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਕਰ ਕੇ, ਵਿਸ਼ਵ ਦੇ ਉੱਨਤ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸਾਡਾ ਸਿਰ ਸ਼ਰਮ ਨਾਲ ਝੁਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਅਨੇਕਾਂ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਅਤੇ ਆਗੂ ਇਹਨਾਂ ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਦਾ ਯਤਨ ਕਰਦੇ ਰਹੇ ਹਨ, ਪਰ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਵਿਚ ਅਜੇ ਤਕ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕੀ । ਦਾਜ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਤਾਂ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਬਹੁਤ ਹੀ ਭਿਆਨਕ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਕੁਰੀਤੀਆਂ ਭਰਿਆ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ-ਨਵ-ਵਿਆਹੁਤਾ ਕੁੜੀਆਂ ਦੇ ਕਤਲ-ਦਾਜ ਕੀ ਹੈ ?-ਇਕ ਲਾਹਨਤ-ਦੂਰ ਕਰਨ ਦੇ ਉਪਾ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ )

ਨਵ-ਵਿਆਹੁਤਾ ਕੁੜੀਆਂ ਦੇ ਕਤਲ :
ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਦੇ ਵਰਕੇ ਪਲਟੋ, ਤੁਹਾਨੂੰ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਇਕ ਦੋ ਖ਼ਬਰਾਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਪੜ੍ਹਨ ਨੂੰ ਮਿਲਣਗੀਆਂ- ‘ਸੱਸ ਨੇ ਨਵ-ਵਿਆਹੀ ਕੁੜੀ ਨੂੰ ਤੇਲ ਪਾ ਕੇ ਸਾੜ ਦਿੱਤਾ’, ‘ਦਾਜ ਦੇ ਲਾਲਚ ਕਾਰਨ ਬਰਾਤ ਬਰੰਗ ਵਾਪਸ’, ‘ਨਵ-ਵਿਆਹੀ ਕੁੜੀ ਜ਼ਹਿਰ ਖਾ ਕੇ ਮਰ ਗਈ’, ‘ਨਵ-ਵਿਆਹੀ ਨੂੰ ਸਾੜਨ ਦੇ ਦੋਸ਼ ਵਿਚ ਸੱਸ ਤੇ ਨਨਾਣ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ’ ਆਦਿ ।

ਦਾਜ ਹੈ ? :
ਦਾਜ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ, ਵਿਆਹ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ । ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਹ ਪ੍ਰਥਾ ਕਾਫ਼ੀ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਪ੍ਰਤੀਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਵਰਣਨ ਸਾਡੀਆਂ । ਪੁਰਾਤਨ ਲੋਕ-ਕਥਾਵਾਂ ਤੇ ਸਾਹਿਤ ਵਿਚ ਵੀ ਹੈ । ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਲੜਕੀ ਦੇ ਵਿਆਹੀ ਜਾਣ ਮਗਰੋਂ ਉਸਦੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਉਸ ਨੂੰ ਘਰ ਦੇ ਸਮਾਨ ਤੇ ਪਹਿਰਾਵੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਚੀਜ਼ਾਂ ਵੀ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਉਂਝ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਆਪਣੀ ਪੂੰਜੀ ਅਤੇ ਜਾਇਦਾਦ ਵਿਚੋਂ ਲੜਕੀ ਨੂੰ ਦਾਜ ਦੀ ਸੂਰਤ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਭਾਗ ਦੇਣਾ ਆਪਣਾ ਫ਼ਰਜ਼ ਵੀ ਸਮਝਦੇ ਹਨ । ਸਾਡੇ ਲੋਕ ਲੜਕੀ ਦੇ ਖ਼ਾਲੀ ਹੱਥ ਪਤੀ ਦੇ ਘਰ ਜਾਣ ਨੂੰ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦੇ । ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਸਹੁਰੇ ਜਾਂਦੀ ਧੀ ਦੀ ਕੁੱਝ ਆਰਥਿਕ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਨਾ ਆਪਣਾ ਫ਼ਰਜ਼ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ।

ਇਕ ਲਾਹਨਤ :
ਬੇਸ਼ੱਕ ਪੁਰਾਤਨ ਕਾਲ ਵਿਚ ਦਾਜ ਦੀ ਪ੍ਰਥਾ ਇਕ ਚੰਗੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਆਰੰਭ ਹੋਈ ਹੋਵੇਗੀ, ਪਰ ਵਰਤਮਾਨ ਕਾਲ ਵਿਚ ਇਹ ਇਕ ਬੁਰਾਈ ਅਤੇ ਲਾਹਨਤ ਬਣ ਚੁੱਕੀ ਹੈ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਲੜਕੀ ਦੀ ਪ੍ਰੇਸ਼ਟਤਾ ਉਸ ਦੀ ਸ਼ੀਲਤਾ, ਸੁੰਦਰਤਾ ਜਾਂ ਪੜਾਈ ਤੋਂ ਨਹੀਂ ਮਾਪੀ ਜਾਂਦੀ, ਸਗੋਂ ਦਾਜ ਨਾਲ ਮਾਪੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।ਵਰਾਂ ਦੀ ਨੀਲਾਮੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਨਕਦ-ਰਾਸ਼ੀ ਜਾਂ ਸੋਨੇ ਦੀ ਚਮਕ-ਦਮਕ ਨਾਲ ਕੋਈ ਵੀ ਉਸ ਨੂੰ ਖ਼ਰੀਦ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਵਿਆਹ ਮੁੰਡੇ ਦਾ ਕੁੜੀ ਨਾਲ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਚੈੱਕ ਬੁੱਕ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਇਹ ਚਾਲਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਦਾਜ ਨੂੰ ਬੁਰਾਈ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਗਿਣਿਆ ਜਾਣ ਲੱਗਾ ਹੈ ।

ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲਾਲਚੀ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਮੁੰਡੇ ਦੇ ਵਿਆਹ ਸਮੇਂ ਕੁੜੀ ਵਾਲਿਆਂ ਨਾਲ ਨਿਸਚਿਤ ਰਕਮ ਜਾਂ ਸਮਾਨ ਲੈਣ ਦੀ ਗੱਲ ਪੱਕੀ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾਜ ਅਮੀਰਾਂ ਲਈ ਇਕ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵਾ, ਪਰ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਲਈ ਨਿਰੀ ਮੁਸੀਬਤ ਬਣ ਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਕਸੂਰ ਇਕੱਲਾ ਮੁੰਡੇ ਵਾਲਿਆਂ ਦਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, ਸਗੋਂ ਕਾਲੇ ਧਨ ਦੇ ਮਾਲਕ ਅਮੀਰ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਧਨ ਨੂੰ ਕੁੜੀ ਦੇ ਦਾਜ ਤੇ ਵਿਆਹ ਦੀ ‘ਸ਼ਾਨੋ-ਸ਼ੌਕਤ ਉੱਪਰ ਖ਼ਰਚ ਕੇ ਰੋੜ੍ਹ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਦੇਖਾ-ਦੇਖੀ ਗਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਲਹੂ-ਪਸੀਨੇ ਦੀ ਕਮਾਈ ਇਸ ਦੇ ਲੇਖੇ ਲਾਉਣੀ ਪੈਂਦੀ ਹੈ । ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕਰਜ਼ੇ ਲੈਣੇ ਤੇ ਜਾਇਦਾਦਾਂ ਵੇਚਣੀਆਂ ਪੈਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਆਮ ਕਰ ਕੇ ਮਾਪਿਆਂ ਨੂੰ ਪਰਾਏ ਘਰ ਵਿਚ ਜਾ ਰਹੀ ਆਪਣੀ ਧੀ ਦੇ ਸੱਸ-ਸਹੁਰੇ ਤੇ ਪਤੀ ਨੂੰ ਖ਼ੁਸ਼ ਕਰਨ ਲਈ ਬਹੁਤਾ ਦਾਜ ਦੇਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਜੋ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਧੀ ਨਾਲ ਕੋਈ ਬੁਰਾ ਸਲੂਕ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ ।ਉਹਨਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਵੱਡੀ ਸਮੱਸਿਆ ਪਰਾਏ ਘਰ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਧੀ ਨੂੰ ਵਸਾਉਣ ਦੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਇਹ ਬੁਰਾਈ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਸਾਡੀ ਆਰਥਿਕਤਾ ਦੀ ਇਕ ਵੱਡੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਹੈ ।

ਦੂਰ ਕਰਨ ਦੇ ਉਪਾਅ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਸੀਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਦਾਜ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਲਾਹਨਤ ਹੈ, ਜਿਸ ਦੇ ਹੁੰਦਿਆਂ ਨਾ ਸਾਡਾ ਸਮਾਜ ਬੌਧਿਕ ਜਾਂ ਨੈਤਿਕ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵਿਕਸਿਤ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਇਸ ਦੀ ਆਰਥਿਕਤਾ ਵਿਚ ਦਿੜਤਾ ਆ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਾਡੀਆਂ ਇਹ ਗੱਲਾਂ ਥੋਥੀਆਂ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਇਸਤਰੀ ਨੂੰ ਮਰਦ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਦਾ ਦਰਜਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਇਸ ਬੁਰਾਈ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਸਾਡੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਕੁੱਝ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਏ ਹਨ, ਪਰ ਉਹ ਬਹੁਤੇ ਅਸਰਦਾਰ ਸਾਬਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕੇ । ਅਸਲ ਵਿਚ ਕਾਨੂੰਨ ਵੀ ਤਾਂ ਹੀ ਲਾਗੂ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ, ਜੇਕਰ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕੀ ਢਾਂਚਾ ਪੂਰੀ ਇਮਾਨਦਾਰੀ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲਵੇ । ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਸਮਾਜਿਕ ਚੇਤਨਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਪਿੰਡਾਂ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਵਿਆਹ ਸਮੇਂ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਦਿਖਾਵਿਆਂ, ਵੱਡੀਆਂ ਬਰਾਤਾਂ ਤੇ ਦਾਜ ਆਦਿ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।

ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਲੋਕਭਲਾਈ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਲੜਕਿਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਾਪਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਦਾਜ ਦੇ ਲਾਲਚ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਲੜਕੀਆਂ ਨੂੰ ਉੱਥੇ ਵਿਆਹ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਦਾਜ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੋਵੇ ।ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਕੁੱਝ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਨੌਜਵਾਨ ਮੁੰਡੇ ਤੇ ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਣ ਵੀ ਆਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਕੁੜੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿੱਦਿਆ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਸੈ-ਨਿਰਭਰ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਦਾਜ ਦੇ ਲਾਲਚੀ ਸਹੁਰਿਆਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖ ਹੋ ਕੇ ਆਪਣੇ ਪੈਰਾਂ ਤੇ ਖੜੀਆਂ ਹੋ ਸਕਣ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਦਾਜ ਨੂੰ ਗੈਰ-ਕਾਨੂੰਨੀ ਐਲਾਨ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਸੰਚਾਰ-ਸਾਧਨਾਂ ਤੇ ਵਿੱਦਿਆ ਦੁਆਰਾ ਇਸ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਲੋਕ-ਰਾਇ ਪੈਦਾ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਸਮੁੱਚੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਦਾਜ-ਪ੍ਰਥਾ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਲੱਗਾ ਹੋਇਆ ਇਕ ਕੋੜ੍ਹ ਹੈ ।ਇਸ ਦੀ ਹੋਂਦ ਵਿਚ ਸਾਨੂੰ ਸੱਭਿਆ ਮਨੁੱਖ ਕਹਾਉਣ ਦਾ ਕੋਈ ਅਧਿਕਾਰ ਨਹੀਂ । ਜਿਸ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਦੁਲਹਨਾਂ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਦੀ ਥਾਂ ਕਸ਼ਟ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਸੱਚਮੁੱਚ ਹੀ ਅਸੱਭਿਆ ਤੇ ਅਵਿਕਸਿਤ ਸਮਾਜ ਹੈ । ਹੁਣ ਸਮਾਂ ਆ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਇਸ ਕੁਰੀਤੀ ਦੀਆਂ ਜੜ੍ਹਾਂ ਪੁੱਟਣ ਲਈ ਲੱਕ ਬੰਨ੍ਹ ਲਈਏ ।

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44. ਅੱਖੀਂ ਡਿੱਠੇ ਵਿਆਹ ਦਾ ਹਾਲ
ਜਾਂ
ਇਕ ਆਦਰਸ਼ ਵਿਆਹ

ਇਕ ਮਿਸਾਲੀ ਵਿਆਹ :
ਮੇਰੇ ਤਾਏ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਕੁਲਵਿੰਦਰ ਦਾ ਵਿਆਹ ਸਾਦਾ ਤੇ ਆਦਰਸ਼ ਢੰਗ ਨਾਲ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਇਕ ਬਰਾਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ । ਮੈਂ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਾਂ । ਇਸ ਵਿਆਹ ਨੇ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਸਾਦਗੀ ਤੇ ਕਮਖ਼ਰਚੀ ਦੀ ਇਕ ਮਿਸਾਲ ਕਾਇਮ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਰੂਪ ਦੇਣ ਵਿਚ ਬਹੁਤਾ ਹੱਥ ਵਿਆਂਹਦੜ ਮੁੰਡੇ ਤੇ ਕੁੜੀ ਦਾ ਸੀ, ਜੋ ਕਿ ਪੜੇ ਲਿਖੇ ਤੇ ਅਗਾਂਹਵਧੂ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਧਾਰਨੀ ਸਨ ।

(ਰੂਪ ਰੇਖਾ-ਸਾਦਾ ਵਿਆਹ-ਲੜਕੇ ਲੜਕੀ ਦੀ ਪਸੰਦ-ਬਰਾਤ-ਲੜਕੀ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਸਾਦਗੀ-ਆਨੰਦ ਕਾਰਜ ਤੇ ਡੋਲੀ ਦਾ ਤੁਰਨਾ-ਦਾਜ ਤੇ ਫ਼ਜ਼ੂਲ-ਖ਼ਰਚੀ ਰਹਿਤ ਵਿਆਹ )

ਲੜਕੇ-ਲੜਕੀ ਦੀ ਪਸੰਦ :
ਵਿਆਹ ਦੀ ਗੱਲ ਦਸ ਕੁ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਤੈ ਹੋਈ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿਚ ਨਿਰਨਾ ਲੈਣ ਵਾਲੇ ਕੇਵਲ ਲੜਕਾ-ਲੜਕੀ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਸਨ । ਲੜਕੇ ਦੀ ਧਿਰ ਵਲੋਂ ਨਾ ਕੋਈ ਸ਼ਰਤਾਂ ਰੱਖੀਆਂ ਗਈਆਂ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਮੰਗਾਂ । ਦੋਹਾਂ ਧਿਰਾਂ ਨੇ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਦੋਵੇਂ ਮੁੰਡਾ ਤੇ ਕੁੜੀ ਡਾਕਟਰੀ ਪਾਸ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਹੋਰ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਨਹੀਂ 1 ਲੜਕੇਲੜਕੀ ਨੇ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਪਸੰਦ ਕਰ ਲਿਆ । ਜਦੋਂ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਵਿਆਹ ਪੱਕਾ ਕਰਨ ਦੀ ਗੱਲ-ਬਾਤ ਕਰਨ ਲੱਗੇ, ਤਾਂ ਲੜਕੇ ਨੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਹਿ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਵਿਆਹ ਬਿਲਕੁਲ ਸਾਦਾ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਦਾਜ, ਵਿਖਾਵਿਆਂ, ਸਜਾਵਟਾਂ ਤੇ ਹੋਰ ਰਸਮਾਂ ਉੱਪਰ ਖ਼ਰਚ ਨੂੰ ਬਿਲਕੁਲ ਪਸੰਦ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ । ਲੜਕੀ ਨੇ ਵੀ ਉਸ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰੋੜਤਾ ਕੀਤੀ । ਦੋਹਾਂ ਦੇ ਮਾਪੇ ਸਮਝਦਾਰ ਸਨ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਦੋਹਾਂ ਦੀ ਤਜਵੀਜ਼ ਅਨੁਸਾਰ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਸਾਦਾ ਤੇ ਆਦਰਸ਼ਕ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

ਬਰਾਤ :
ਬੱਸ ਇਸ ਫ਼ੈਸਲੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਿਛਲੇ ਐਤਵਾਰ ਇਹ ਵਿਆਹ ਹੋਇਆ । ਜੰਞ ਵਿਚ ਲੜਕੇ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕੁੱਲ ਪੰਜ ਆਦਮੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਲੜਕੇ ਦਾ ਪਿਤਾ, ਚਾਚਾ, ਭਰਾ ਤੇ ਇਕ ਭੈਣ । ਮੈਂ ਲੜਕੇ ਦੇ ਤਾਏ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਬਰਾਤ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ ।

ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਇਕ ਕਾਰ ਵਿਚ ਆਮ ਪ੍ਰਾਹੁਣਿਆਂ ਵਾਂਗ ਗਏ । ਕੇਵਲ ਵਿਆਂਹਦੜ ਦੇ ਗਲ ਵਿਚ ਹਾਰ ਸੀ । ਵਾਜੇ-ਗਾਜੇ ਦਾ ਕੋਈ ਰੌਲਾ-ਰੱਪਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਲੜਕੀ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਘਰ ਕੋਈ ਸਜਾਵਟ ਆਦਿ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕੀਤੀ ਗਈ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਲਾਊਡ ਸਪੀਕਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ।

ਲੜਕੀ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਸਾਦਗੀ ;
ਲੜਕੀ ਵਾਲਿਆਂ ਨੇ ਜੰਵ ਨੂੰ ਗੁਆਂਢੀ ਘਰ ਦੀ ਇਕ ਬੈਠਕ ਵਿਚ ਹੀ ਉਤਾਰ ਲਿਆ । ਸਾਦਾ ਚਾਹ ਪਾਣੀ ਮਗਰੋਂ ਲੜਕੀ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਘਰ ਦੇ ਖੁੱਲ੍ਹੇ ਵਿਹੜੇ ਵਿਚ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਆਨੰਦ ਕਾਰਜ ਦੀ ਰਸਮ ਅਦਾ ਹੋਈ । ਲਾਵਾਂ ਸਮੇਂ ਲੜਕੀ ਬਹੁਤੇ ਕੱਪੜਿਆਂ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਸੀ ਲਪੇਟੀ ਹੋਈ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਉਸ ਨੇ ਘੁੰਡ ਕੱਢਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਆਨੰਦ ਕਾਰਜ ਮਗਰੋਂ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਉੱਠ ਕੇ ਸੰਸਾਰ ਵਿਚ ਵਿਆਹੁਤਾ ਜੀਵਨ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ ਦੱਸਦਿਆਂ ਨਵ-ਵਿਆਹੇ ਜੋੜੇ ਨੂੰ ਸੁਖੀ ਜੀਵਨ ਲਈ ਸ਼ੁਭ-ਇੱਛਾਵਾਂ ਭੇਟ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਕੋਈ ਸਿਹਰਾ ਜਾਂ ਸਿੱਖਿਆ ਨਾ ਪੜ੍ਹੀ ਗਈ ।

ਆਨੰਦ ਕਾਰਜ ਤੇ ਡੋਲੀ ਦਾ ਤੁਰਨਾ :
ਆਨੰਦ ਕਾਰਜ ਮਗਰੋਂ ਲੜਕੀ ਵਾਲਿਆਂ ਨੇ ਜਾਂਈਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਬੈਠਕ ਵਿਚ ਬਿਠਾਇਆ ਤੇ ਫਿਰ ਨਵੀਂ ਵਿਆਹੀ ਜੋੜੀ ਸਮੇਤ ਦੋਹਾਂ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਦੁਪਹਿਰ ਦਾ ਖਾਣਾ ਖਾਧਾ । ਲੜਕੀ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਘਰ ਵੀ ਮੇਲ ਦੀ ਬਹੁਤੀ ਭੀੜ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਖਾਣੇ ਤੋਂ ਅੱਧਾ ਘੰਟਾ ਪਿੱਛੋਂ ਲੜਕੀ ਵਾਲਿਆਂ ਨੇ ਭਿੱਜੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਨਾਲ ਲੜਕੀ ਨੂੰ ਤੋਰ ਦਿੱਤਾ । ਕੋਈ ਮੰਨ-ਮਨੌਤੀਆਂ ਨਾ ਹੋਈਆਂ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕੋਈ ਦਾਜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਨਾ ਸ਼ਰਾਬ ਉੱਡੀ, ਨਾ ਭੰਗੜੇ ਪਾਏ ਗਏ, ਨਾ ਹੀ ਲਾਉਡ ਸਪੀਕਰ ਨੇ ਕੰਨ ਖਾਧੇ ਤੇ ਵਿਆਹ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਕੋਈ ਤਿੰਨੇ ਕੁ ਘੰਟਿਆਂ ਵਿਚ ਹੀ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਗਿਆ ।

ਦਾਜ ਤੇ ਫ਼ਜ਼ੂਲ :
ਖ਼ਰਚੀ ਰਹਿਤ ਵਿਆਹ-ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾਜ-ਦਹੇਜ ਤੇ ਫ਼ਜ਼ਲ-ਖ਼ਰਚੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਰਸਮਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜ ਕੇ ਘੱਟ ਸਮੇਂ ਤੇ ਘੱਟ ਖ਼ਰਚ ਨਾਲ ਹੋਏ ਇਸ ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਮੈਂ ਤਾਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਇਆ ਹੀ, ਨਾਲ ਹੀ ਸਾਡੇ ਇਲਾਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਇਸ ਦੀ ਬੜੀ ਚਰਚਾ ਹੋਈ ॥

ਆਦਰਸ਼ ਵਿਆਹ :
ਇਸ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਇਕ ਆਦਰਸ਼ ਵਿਆਹ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਅਜਿਹੇ ਵਿਆਹਾਂ ਦੀ ਸਾਡੇ ਵਰਤਮਾਨ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਲੋੜ ਹੈ । ਪੜੇ-ਲਿਖੇ ਤੇ ਜਾਗ੍ਰਿਤ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਅਜਿਹੇ ਵਿਆਹ ਕਰਨ ਵਿਚ ਪਹਿਲ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਹੀ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਦਾਜ-ਪ੍ਰਥਾ ਤੇ ਉਸ ਦੀਆਂ ਬੁਰਾਈਆਂ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਮਿਲ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

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45. ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬੱਚਤ

ਵਰਤਮਾਨ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਲੋੜ :
ਬਿਜਲੀ ਦਾ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਹੈ । ਇਹ ਵਰਤਮਾਨ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਇਕ ਬਹੁਮੁੱਲੀ ਕਾਢ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਸਾਡਾ ਜੀਵਨ ਚੱਲਣਾ ਬਹੁਤ ਹੀ ਔਖਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਾਡੇ ਆਮ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਪਈਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਹੀ ਚਲਦੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਵੇਂਬਲਬ, ਟਿਊਬਾਂ, ਪੱਖੇ, ਫਰਿਜ, ਕੈਂਸ, ਕੂਲਰ, ਹੀਟਰ, ਗੀਜ਼ਰ, ਰੇਡੀਓ, ਟੈਲੀਵਿਯਨ, ਟੇਪ ਰਿਕਾਰਡਰ, ਏਅਰ ਕੰਡੀਸ਼ਨਰ, ਕੱਪੜੇ ਧੋਣ ਦੀ ਮਸ਼ੀਨ, ਮਾਈਕਰੋਵੇਵ ਤੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਆਦਿ ! ਫਿਰ ਇਹ ਚੀਜ਼ਾਂ ਉਹਨਾਂ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਵਿਚ ਬਣਦੀਆਂ ਹਨ, ਜੋ ਬਿਜਲੀ ਨਾਲ ਚਲਦੇ ਹਨ । ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸਾਰਾ ਕੰਮ ਵੀ ਬਿਜਲੀ ਨਾਲ ਹੀ ਹੁੰਦਾ। ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਸੀਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਬਿਜਲੀ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਦੀ ਇਕ ਅਤਿ ਜ਼ਰੂਰੀ ਲੋੜ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਵਰਤਮਾਨ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਲੋੜ-ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਵਧ ਰਹੀ ਲੋੜ ਤੇ ਬੁੜ੍ਹ-ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬੱਚਤ ਦੀ ਲੋੜ-ਬਲਬਾਂ, ਟਿਊਬਾਂ ਤੇ ਪੱਖਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ-ਕੂਲਰ, ਹੀਟਰ ਤੇ ਗੀਜ਼ਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ-ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਸਜਾਵਟ-ਬੱਚਤ ਦੇ ਲਾਭ-ਬੱਚਤ ਦੇ ਨਿਯਮ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ ।)

ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਵਧ ਰਹੀ ਲੋੜ ਅਤੇ ਧੂੜ :
ਭਾਰਤ ਇਕ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋ ਰਿਹਾ ਦੇਸ਼ ਹੈ ।ਇਸ ਵਿਚ ਨਿੱਤ ਉਸਾਰੀ ਦੀਆਂ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਬਣਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਲਈ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਲੋੜ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਵਧਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਥੁੜ੍ਹ ਤਾਂ ਹੀ ਪੂਰੀ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ, ਜੇਕਰ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਉਪਜ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ। ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਵੱਧ ਉਪਜ ਕਰਨ ਲਈ ਕਰੋੜਾਂ ਰੁਪਏ ਖ਼ਰਚ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਮਾਂ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸੀਮਿਤ ਸਾਧਨਾਂ ਕਾਰਨ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਉਪਜ ਵਧਾਉਣਾ ਸੰਭਵ ਨਹੀਂ । ਇਸ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਵਰਤੋਂ ਕਰੀਏ ਤੇ ਜਿੱਥੋਂ ਤਕ ਹੋ ਸਕੇ ਇਸ ਦੀ ਬੱਚਤ ਕਰੀਏ । ਸਾਡੇ ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਨਾਲ ਹੀ ਉਦਯੋਗਾਂ ਤੇ ਖੇਤੀ-ਬਾੜੀ ਨੂੰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਬਿਜਲੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਸਕੇਗੀ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਤਰੱਕੀ ਕਰੇਗਾ ਤੇ ਸਾਡਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਉੱਚਾ ਹੋਵੇਗਾ ।

ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬੱਚਤ ਦੀ ਲੋੜ :
ਬਿਜਲੀ ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇਕਰ । ਇਕ ਖ਼ਪਤਕਾਰ ਇਕ ਯੂਨਿਟ ਦੀ ਬੱਚਤ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਸ ਦੀ ਬੱਚਤ ਕੌਮੀ ਪੱਧਰ ਉੱਤੇ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ ਸਵਾ ਯੂਨਿਟ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਬਚਾਈ ਗਈ ਬਿਜਲੀ ਦਾ ਲਾਭ ਭਾਰੀ ਖ਼ਰਚ ਨਾਲ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਬਿਜਲੀ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਕ ਅਨੁਮਾਨ ਅਨੁਸਾਰ ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ 10% ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਘਾਟ ਹੈ । ਇਸ ਘਾਟ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਦਾ ਇਕੋ-ਇਕ ਤਰੀਕਾ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬੱਚਤ ਹੈ । ਸਾਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਵਿਚ ਸੰਜਮ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲਈਏ ।

ਬਲਬਾਂ, ਟਿਊਬਾਂ ਦੇ ਪੱਖਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ :
ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਘਰ ਵਿਚ ਹੋਰਨਾਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਸੰਜਮ ਨਾਲ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਚਾਦਰ ਦੇਖ ਕੇ ਪੈਰ ਪਸਾਰਦੇ ਹਾਂ, ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਾਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਕਮੀ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖ ਕੇ ਇਸ ਦੀ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਮੰਤਵ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਬਲਬਾਂ, ਟਿਊਬਾਂ ਤੇ ਪੱਖਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਓਨੀ ਦੇਰ ਹੀ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ, ਜਿੰਨੀ ਦੇਰ ਸੱਚ-ਮੁੱਚ ਹੀ ਲੋੜ ਹੋਵੇ ! ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਆਮ ਦੇਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਖ਼ਾਲੀ ਪਏ ਕਮਰਿਆਂ ਵਿਚ ਵੀ ਬਲਬ ਜਗ ਰਹੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਵਿਹੜਿਆਂ ਵਿਚ ਦੋ-ਦੋ ਤਿੰਨ-ਤਿੰਨ ਬਲਬ ਜਗ ਰਹੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਆਪਣੀ ਦੁਕਾਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਟਿਊਬਾਂ ਤੇ ਬਲਬ ਜਗਾ ਛੱਡਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਿਜਲੀ ਅੰਨ੍ਹੇਵਾਹ ਖ਼ਰਚੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਸਾਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਲੋੜ ਵੇਲੇ ਹੀ ਬਲਬ ਜਗਾਈਏ ਤੇ ਲੋੜ ਦੇ ਖ਼ਤਮ ਹੁੰਦਿਆਂ ਹੀ ਉਸ ਨੂੰ ਬੰਦ ਕਰ ਦੇਈਏ । ਇਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹੀ ਸਾਨੂੰ ਪੱਖੇ ਦੀ ਲੋੜ ਅਨੁਸਾਰ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਦੁਕਾਨਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਉੱਪਰ ਸੰਜਮ ਲਾਗੂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਕੂਲਰ, ਏਅਰ ਕੰਡੀਸ਼ਨਰ, ਹੀਟਰ ਤੇ ਗੀਜ਼ਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ :
ਸਾਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਕੂਲਰ, ਹੀਟਰ, ਏਅਰ ਕੰਡੀਸ਼ਨਰ, ਜਾਂ ਗੀਜ਼ਰ ਦੀ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਵਰਤੋਂ ਕਰੀਏ । ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਗਰਮੀ ਤੇ ਸਰਦੀ ਦਾ ਟਾਕਰਾ ਕਰਨ ਦੇ ਯੋਗ ਬਣਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਸਹਿਜੇ ਕੀਤੇ ਸਰਦੀਆਂ ਵਿਚ ਹੀਟਰ ਤੇ ਗਰਮੀਆਂ ਵਿਚ ਕੂਲਰ ਜਾਂ ਏਅਰ ਕੰਡੀਸ਼ਨਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾ ਕਰੀਏ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਸਰਦੀਆਂ ਵਿਚ ਬਿਨਾਂ ਪਾਣੀ ਗਰਮ ਕੀਤਿਆਂ ਨਹਾ ਲਈਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੰਜਮ ਨਾਲ ਹੀ ਅਸੀਂ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬੱਚਤ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਪਾ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਸਜਾਵਟ :
ਸਾਨੂੰ ਵਿਆਹਾਂ ਸ਼ਾਦੀਆਂ ਅਤੇ ਤਿਥ-ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਉੱਪਰ ਵੀ ਬਿਜਲੀ ਦੇ ਬਲਬਾਂ ਤੋਂ ਟਿਊਬਾਂ ਦੀ ਸਜਾਵਟ ਘਟਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਬੜੀ ਵੱਡੀ ਫ਼ਜ਼ੂਲ-ਖ਼ਰਚੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਕੇਵਲ ਆਪਣੀ ਨਿੱਜੀ ਆਰਥਿਕਤਾ ਨੂੰ ਹੀ ਨੁਕਸਾਨ ਨਹੀਂ ਪੁਚਾਉਂਦੇ, ਸਗੋਂ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਆਰਥਿਕਤਾ ਵਿਚ ਵੀ ਅਸਥਿਰਤਾ ਪੈਦਾ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ।

ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬੱਚਤ ਦੇ ਲਾਭ ;
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਜੇਕਰ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਸੰਬੰਧੀ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼-ਵਾਸੀ ਸੰਜਮ ਅਤੇ ਸਾਵਧਾਨੀ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲਈਏ, ਤਾਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਕੰਮ ਦਾ ਨੁਕਸਾਨ ਕੀਤਿਆਂ ਅਸੀਂ ਲੱਖਾਂ ਯੂਨਿਟਾਂ ਦੀ ਬੱਚਤ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਜੋ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਪਾਉਣ ਵਾਲੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਅਤੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਕੰਮ ਆ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

ਬੱਚਤ ਦੇ ਨਿਯਮ :
ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬੱਚਤ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਕੁੱਝ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਇਕ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਮਕਾਨਾਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਅਜਿਹੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਅੰਦਰ ਸੂਰਜ ਦੀ ਰੌਸ਼ਨੀ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰ ਸਕੇ । ਦੂਸਰੇ ਸਾਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕਮਰਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਦੀ ਬਜਾਏ, ਜਿੱਥੇ ਤਕ ਹੋ ਸਕੇ ਇੱਕੋ ਕਮਰੇ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਫ਼ਰਿਜ ਦਾ ਦਰਵਾਜ਼ਾ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਖੋਲ੍ਹਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਫ਼ਰਿਜ ਵਿਚ ਰੱਖਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਠੰਢੇ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਰੱਖ ਕੇ ਠੰਢੀਆਂ ਕਰ ਲੈਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਚੌਥੇ ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਘਰ ਵਿਚ ਵਧੀਆ ਕਿਸਮ ਦੇ ਬਿਜਲੀ ਦੇ ਸਮਾਨ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰੀਏ, ਤਾਂ ਵੀ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਖਪਤ ਘੱਟ ਹੈ। ਸਕਦੀ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਸੀਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਬੱਚਤ ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਉੱਦਮ ਨਾਲ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਉਪਰੋਕਤ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਤੇ ਬਿਜਲੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਸਮੇਂ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸੰਜਮ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲੈਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

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46. ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ

ਲੋਕ-ਸਹਾਇਤਾ ਦਾ ਕੇਂਦਰ :
ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ ਅਜਿਹਾ ਸਥਾਨ ਹੈ, ਜਿੱਥੋਂ ਸਾਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰਤ ਸਮੇਂ ਪੁਲਿਸ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ । ਇਕ ਵੱਡੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਅੱਠ-ਦਸ ਜਾਂ ਇਸ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਪਰੰਤੂ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਇਹ ਘੱਟ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਪਿੰਡ ਸਾਂਝੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਇਕ ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਆਮ ਬੋਲੀ ਵਿਚ ਇਸਨੂੰ “ਠਾਣਾ’ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਲੋਕ-ਸਹਾਇਤਾ ਦਾ ਕੇਂਦਰ-ਥਾਣਾ ਮੁਖੀ-ਅਮਨ ਕਾਨੂੰਨ ਦਾ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ-ਭੈਦਾਇਕ ਸਥਾਨ-ਪੁਲਿਸ-ਸਹੁਲਤ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ-ਚਰਿੱਤਰ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ ।

ਥਾਣਾ ਮੁਖੀ :
ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ ਦੇ ਮੁਖੀ ਨੂੰ ਐੱਸ. ਐੱਚ. ਓ. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਆਮ ਕਰਕੇ ਇਨਸਪੈਕਟਰ ਰੈਂਕ ਦਾ ਵਿਅਕਤੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਸਦੇ ਅਧੀਨ ਕੁੱਝ ਸਬ-ਇਨਸਪੈਕਟਰ, ਹੌਲਦਾਰ, ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਪੁਲਿਸ ਦੇ ਸਿਪਾਹੀ ਤੇ ਹੋਮਗਾਰਡ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਅਮਨ ਕਾਨੂੰਨ ਦਾ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ :
ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ ਉੱਥੇ ਮੌਜੂਦ ਪੁਲਿਸ ਆਪਣੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਅਮਨ ਕਾਨੂੰਨ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਉਹ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਜਾਨ-ਮਾਲ ਦੀ ਰਾਖੀ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਚੋਰਾਂ-ਡਾਕੂਆਂ, ਜੇਬ ਕਤਰਿਆਂ ਤੇ ਹੋਰ ਗੈਰ ਕਾਨੂੰਨੀ ਹਰਕਤਾਂ ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਬੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਫੜ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੰਡ ਦੁਆਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਉਸਦਾ ਕੰਮ ਚੋਰੀਆਂ, ਡਾਕਿਆਂ, ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ, ਲੜਾਈ-ਝਗੜਿਆਂ, ਕਤਲਾਂ ਤੇ ਸਮਾਜ-ਵਿਰੋਧੀ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੀ ਜਾਂਚ-ਪੜਤਾਲ ਕਰਨਾ, ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਫੜਨਾ ਤੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਸੁਖ-ਸਹੁਲਤਾਂ ਤੇ ਬੇਖੌਫ਼ੀ ਭਰਿਆ ਮਾਹੌਲ ਪੈਦਾ ਕਰਨਾ ਹੈ । ਉਹ ਸੜਕਾਂ ਉੱਤੇ ਟ੍ਰੈਫਿਕ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵੀ ਕਰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਮੇਲਿਆਂ ਤੇ ਸਮਾਗਮਾਂ ਵਿਚ ਆਵਾਜਾਈ ਤੇ ਭੀੜ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਵਿਚ ਰੱਖਣ ਦਾ ਵੀ । ਭੂਚਾਲਾਂ, ਹੜਾਂ, ਅੱਗ ਲੱਗਣ, ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ ਹੋਣ ਤੇ ਹੋਰ ਸੰਕਟਕਾਲੀਨ ਹਾਲਤਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਪੁਲਿਸ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

ਭੈਦਾਇਕ ਸਥਾਨ :
ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ ਆਮ ਆਦਮੀ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਪੈਦਾ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਭੈ ਦਾ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਕਈ ਵਾਰੀ ਪੈਸੇ ਵਾਲੇ ਤੇ ਰਸੂਖ਼ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਪੁਲਿਸ ਤੋਂ ਆਪਣੀਆਂ ਮਨ-ਮਾਨੀਆਂ ਕਰਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਉਂਝ ਬੁਨਿਆਦੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਪੁਲਿਸ ਦਾ ਕੰਮ ਲੋਕ-ਸੇਵਾ ਹੈ, ਜਿਹੜੀ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕਾਨੂੰਨ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਹਰ ਨਾਗਰਿਕ ਨੂੰ ਅਧਿਕਾਰ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਬੇਝਿਜਕ ਹੋ ਕੇ ਪੁਲਿਸ ਕੋਲ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਜਾਵੇ ।

ਪੁਲਿਸ-ਸਹੂਲਤ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ :
ਹਰ ਇਲਾਕੇ ਵਿਚ ਆਮ ਆਦਮੀ ਪੁਲਿਸ ਸਹਾਇਤਾ ਲੈਣ ਲਈ 100 ਨੰਬਰ ‘ਤੇ ਟੈਲੀਫ਼ੋਨ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਟੈਲੀਫ਼ੋਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਕੇ ਪੁਲਿਸ ਇਕਦਮ ਹਰਕਤ ਵਿਚ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਚੌਕਸੀ ਵਧਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਸੰਬੰਧਿਤ ਥਾਣੇ ਨੂੰ ਕਾਰਵਾਈ ਲਈ ਸੁਚਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕੋਈ ਵੀ ਆਦਮੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸੰਕਟਕਾਲੀਨ, ਗੈਰਕਾਨੂੰਨੀ ਸਥਿਤੀ ਜਾਂ ਸਮਾਜ ਵਿਰੋਧੀ ਅਨਸਰਾਂ ਨਾਲ ਨਿਪਟਣ ਲਈ ਇਸ ਨੰਬਰ ਤੋਂ ਸਹਾਇਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

ਚਰਿੱਤਰ :
ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ ਉੱਤੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਪੁਲਿਸ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੀ ਕੋਈ ਛੁੱਟੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਅਤੇ ਉਹ 24 ਘੰਟੇ ਜਨਤਾ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਹਾਜ਼ਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਆਮ ਸਿਪਾਹੀ ਵੀ ਘੱਟੋ-ਘੱਟ ਦਸਵੀਂ ਪਾਸ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਅਫ਼ਸਰ ਰੈਂਕ ਦੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮ ਕਰੜੀ ਮੁਕਾਬਲੇ ਦੀ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘ ਕੇ ਆਏ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਕਈ ਪੁਲਿਸ ਅਫ਼ਸਰ ਆਪਣੀ ਈਮਾਨਦਾਰੀ ਤੇ ਲੋਕ-ਸੇਵਾ ਕਰਕੇ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਤੋਂ ਪੁਰਸਕਾਰ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਕਿਧਰੇ-ਕਿਧਰੇ ਪੁਲਿਸ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦਾ ਅਕਸ ਧੁੰਦਲਾ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਪਰੰਤੂ ਕਈ ਬਹੁਤ ਸਿਆਣੇ, ਨਿਆਂ-ਪਸੰਦ ਤੇ ਸੱਚਮੱਚ ਲੋਕ-ਸੇਵਾ ਵਿਚ ਜੁੱਟੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਅੰਤ ਵਿਚ ਇਹੋ ਗੱਲ ਹੀ ਕਹੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ਕਿ ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ ਲੋਕ-ਸੇਵਾ ਲਈ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਸਾਨੂੰ ਚੰਗੇ ਨਾਗਰਿਕ ਬਣ ਕੇ ਕਾਨੂੰਨ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਦਿਆਂ ਮੁਜ਼ਰਿਮਾਂ ਤੇ ਸਮਾਜ-ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਪਾਉਣ ਲਈ ਪੁਲਿਸ ਤਕ ਬੇਖੌਫ ਹੋ ਕੇ ਪਹੁੰਚ ਕਰਨੀ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਉਸ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਜਾਂਚ-ਪੜਤਾਲ ਵਿਚ ਸਹਾਇਤਾ ਵੀ ਦੇਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

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47. ਸਾਡੇ ਮੇਲੇ ਤੇ ਤਿਉਹਾਰ

ਮੇਲਿਆਂ ਤੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਦਾ ਦੇਸ :
ਪੰਜਾਬ ਮੇਲਿਆਂ ਤੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਦਾ ਦੇਸ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਸਾਡੇ ਸੱਭਿਆਚਾਰ, ਇਤਿਹਾਸਿਕ ! ਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਰਸੇ ਨਾਲ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕੁੱਝ ਮੇਲੇ ਤੇ ਤਿਉਹਾਰ ਕੌਮੀ ਪੱਧਰ ਦੇ ਹਨ, ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਬੜੀ ਧੂਮ-ਧਾਮ ਨਾਲ ਮਨਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਵਿਸਾਖੀ, ਬਸੰਤ, ਦੁਸਹਿਰਾ, ਜਨਮ ਅਸ਼ਟਮੀ ਤੇ ਰਾਮ ਨੌਮੀ ਦੇ ਮੌਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਲੱਗਣ ਵਾਲੇ ਮੇਲੇ ਕੌਮੀ ਪੱਧਰ ਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਥਾਨਕ ਮੇਲੇ ਵੀ ਲਗਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬਹੁਤੇ ਮੇਲੇ ਧਾਰਮਿਕ ਹਨ, ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਪੀਰਾਂ-ਫ਼ਕੀਰਾਂ ਦੇ ਮਜ਼ਾਰਾਂ, ਦੇਵੀ-ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਤੇ ਮਿਥਿਹਾਸਿਕ ਸਥਾਨਾਂ ਅਤੇ ਗੁਰਧਾਮਾਂ ਤੇ ਲੱਗਦੇ ਹਨ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਮੇਲਿਆਂ ਤੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਦਾ ਦੇਸ ਪੰਜਾਬ-ਕੌਮੀ ਪੱਧਰ ਦੇ ਮੇਲੇ-ਸਥਾਨਿਕ ਮੇਲੇ-ਮਾਲਵੇ ਦੇ ਮੇਲੇ : ਛਪਾਰ ਦਾ ਮੇਲਾ, ਜਰਗ ਦਾ ਮੇਲਾ, ਰੌਸ਼ਨੀਆਂ ਦਾ ਮੇਲਾ, ਹੈਦਰ ਸ਼ੇਖ ਦਾ ਮੇਲਾ, ਮੁਕਤਸਰ ਦਾ ਮੇਲਾ-ਦੁਆਬੇ ਦੇ ਮੇਲੇ : ਬਾਬਾ ਸੋਢਲ ਦਾ ਮੇਲਾ, ਆਨੰਦਪੁਰ ਦਾ ਹੋਲਾ-ਮਹੱਲਾ, ਮਾਝੇ ਦੇ ਮੇਲੇ : ਅਚਲ, ਰਾਮ ਤੀਰਥ, ਸਾਈਂ ਇਲਾਹੀ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਦਰਗਾਹ ਦਾ ਮੇਲਾ ਤੇ ਕੋਠੇ ਦਾ ਮੇਲਾ-ਮਹਾਨਤਾ ।)

ਇਹਨਾਂ ਮੇਲਿਆਂ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਭਾਰੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਬਾਹਰਲੇ ਲੋਕ ਵੀ ਭਾਗ ਲੈਣ ਆਉਂਦੇ ਹਨ। । ਕੌਮੀ ਪੱਧਰ ਦੇ ਮੇਲੇ-ਕੌਮੀ ਪੱਧਰ ਦੇ ਜਿਹੜੇ ਮੇਲੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਲਗਦੇ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਸਮੁੱਚੇ ਪੰਜਾਬੀ ਵਧ-ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਵਿਸਾਖੀ ਦਾ ਮੇਲਾ ਬਹੁਤ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਹੈ । ਇਹ ਮੇਲਾ ਹਾੜੀ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਦੇ ਪੱਕਣ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਥਾਂ-ਥਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਪੰਜਾਬੀ ਜੱਟ ਢੋਲ ਵਜਾਉਂਦੇ ਤੇ ਭੰਗੜਾ ਪਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਇਸ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਤੇ ਦਮਦਮਾ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਲੱਗਣ ਵਾਲੇ ਵਿਸਾਖੀ ਦੇ ਮੇਲੇ ਸਮੁੱਚੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਨ ।ਲੋਕ ਦੂਰੋਂ-ਦੂਰੋਂ ਆ ਕੇ ਇਹਨਾਂ ਮੇਲਿਆਂ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਬਸੰਤ ਦੇ ਮੇਲੇ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਰੁੱਤ ਦੀ ਤਬਦੀਲੀ ਨਾਲ ਹੈ । ਇਸ ਦਿਨ ਹਕੀਕਤ ਰਾਏ ਧਰਮੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਧਰਮ ਵਿਚ ਦਿੜ ਰਹਿਣ ਬਦਲੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।

ਉੱਤਰੀ ਭਾਰਤ ਦੇ ਹੋਰਨਾਂ ਪੁੱਤਾਂ ਵਾਂਗ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਵੀ ਨੌਜਵਾਨ ਪੀਲੀਆਂ ਪੱਗਾਂ ਬੰਨ੍ਹ ਕੇ ਤੇ ਮੁਟਿਆਰਾਂ ਪੀਲੀਆਂ ਚੁੰਨੀਆਂ ਲੈ ਕੇ ਇਸ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੀਆਂ ਹਨ ।ਇਹ ਮੇਲਾ ਥਾਂ-ਥਾਂ ‘ਤੇ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਛੇਹਰਟੇ ਅਤੇ ਪਟਿਆਲੇ ਵਿਚ ਲੱਗਣ ਵਾਲੇ ਬਸੰਤ ਪੰਚਮੀ ਦੇ ਮੇਲੇ ਸਮੁੱਚੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰੇ ਹਨ । ਉੱਤਰੀ ਭਾਰਤ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਤਿਉਹਾਰ ਦੁਸਹਿਰੇ ਦੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਲੱਗਣ ਵਾਲਾ ਮੇਲਾ ਵੀ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਥਾਂ-ਥਾਂ ‘ਤੇ ਬੜੀ ਧੂਮ-ਧਾਮ ਨਾਲ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਲੋਕ ਇਸ ਮੇਲੇ ਨੂੰ ਦੇਖਣ ਲਈ ਦੂਰੋਂ-ਦੂਰੋਂ ਆਉਂਦੇ ਹਨ । ਦਸਵੀਂ ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਜਦੋਂ ਰਾਵਣ ਦੇ ਪੁਤਲੇ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਸ ਮੌਕੇ ਉੱਪਰ ਮੇਲਾ । ਦੇਖਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਚੋਖੀ ਭੀੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਲੋਕ ਬੜੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਤੇ ਚਾ ਨਾਲ ਇਸ ਮੇਲੇ ਦਾ ਆਨੰਦ ਮਾਣਦੇ ਹਨ । ਜਨਮ ਅਸ਼ਟਮੀ ਤੇ ਰਾਮ ਨੌਮੀ ਦੇ ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਵੀ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਹਰ ਧਰਮ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਭਾਗ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ।

ਸਥਾਨਕ ਮੇਲੇ :
ਕੌਮੀ ਪੱਧਰ ਦੇ ਇਹਨਾਂ ਮੇਲਿਆਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਲੱਗਣ ਵਾਲੇ ਸਥਾਨਕ ਮੇਲਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕੁੱਝ ਮੇਲੇ ਤਾਂ ਸਮੁੱਚੇ ਪੰਜਾਬ ਤੇ ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਹਰਲੇ ਪਾਂਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਦਿਲਚਸਪੀ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਵੀ ਬਣਦੇ ਹਨ, ਪਰੰਤੂ ਕੁੱਝ ਮੇਲਿਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਸੀਮਿਤ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਹੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਹੇਠਾਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਲੱਗਣ ਵਾਲੇ ਕੁੱਝ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਮੇਲਿਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਰੂਪ ਵਿਚ ਉਲੇਖ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਮਾਲਵੇ ਦੇ ਮੇਲੇ-ਛਪਾਰ ਦਾ ਮੇਲਾ :
ਮਾਲਵੇ ਦੇ ਮੇਲਿਆਂ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ‘ਛਪਾਰ ਦਾ ਮੇਲਾ’ ਹੈ । ਇਹ ਮੇਲਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਲੁਧਿਆਣਾ ਦੇ ਪਿੰਡ ਛਪਾਰ ਦੀ ਦੱਖਣੀ ਗੁੱਠ ਵਿਚ ਗੁੱਗੇ ਦੀ ਮਾੜੀ ਵਿਖੇ ਭਾਦਰੋਂ ਦੀ ਚਾਨਣੀ ਚੌਦੇ ਨੂੰ ਲੱਗਦਾ ਹੈ । ਲੋਕ ਦੂਰੋਂ-ਦੂਰੋਂ ਮੇਲਾ ਵੇਖਣ ਲਈ ਆਉਂਦੇ ਹਨ । ਕਈ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਉੱਨੀ ਦੇਰ ਤਕ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਖਾਂਦੇ, ਜਿੰਨੀ ਦੇਰ ਉਹ ਗੁੱਗੇ ਦੀ ਮਾੜੀ ਤੇ ਜਾ ਕੇ ਉੱਥੋਂ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਨਾ ਕੱਢ ਲੈਣ । ਇਸ ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਗੱਭਰੂਆਂ ਦੀਆਂ ਢਾਣੀਆਂ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਡਾਂਗਾਂ ਤੇ ਟਕੂਏ ਉਲਾਰਦੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਬੋਲੀਆਂ ਪਾਉਂਦੀਆਂ ਤੇ ਮਸਤੀ ਤੇ ਬੇਪ੍ਰਵਾਹੀ ਵਿਚ ਚਾਂਗਰਾਂ ਮਾਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਆਏ ਲੋਕ ਭਾਂਤ-ਭਾਂਤ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਖਾਂਦੇ, ਪੰਘੂੜੇ ਝੂਟਦੇ ਤੇ ਖੇਡਾਂ ਖੇਡਦੇ ਹਨ ।

ਜਰਗ ਦਾ ਮੇਲਾ :
ਮਾਲਵੇ ਵਿਚ ‘ਜਰਗ ਦਾ ਮੇਲਾ’ ਵੀ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਹ ਮੇਲਾ ਜਰਗ ਨਾਂ ਦੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਮਾਤਾ ਰਾਣੀ ਦੇ ਮੰਦਰ ‘ਤੇ ਲੱਗਦਾ ਹੈ । ਚੇਤ ਤੇ ਨਰਾਤਿਆਂ ਵਿਚ ਮੰਗਲਵਾਰ ਦੀ ਸਵੇਰ ਨੂੰ ਗੁਲਗੁਲੇ ਪਕਾ ਕੇ ਇਕ ਰਾਤ ਰੱਖੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਦੂਜੇ ਦਿਨ ਸਵੇਰੇ ਮਾਤਾ ਰਾਣੀ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਨ ਪਿੱਛੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਖੋਤੇ ਨੂੰ ਪ੍ਰਸ਼ਾਦ ਖੁਆਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਮਗਰੋਂ ਇਹ ਪ੍ਰਸ਼ਾਦ ਹੋਰਨਾਂ ਨੂੰ ਵੰਡਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਮਾਤਾ ਰਾਣੀ ਦੀਆਂ ਭੇਟਾਂ ਗਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਝਿਊਰਾਂ ਨੂੰ ਮਾਤਾ ਰਾਣੀ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਦ ਦੇ ਹੱਕਦਾਰ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਮੇਲੇ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਦਾ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਲੋਕ-ਗੀਤ ਤੋਂ ਵੀ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ-
ਚਲ ਚਲੀਏ ਜਰਗ ਦੇ ਮੇਲੇ,
। ਮੁੰਡਾ ਤੇਰਾ ਮੈਂ ਚੁੱਕ ਲਉਂ ।

ਰੌਸ਼ਨੀਆਂ ਦਾ ਮੇਲਾ :
ਮਾਲਵੇ ਵਿਚ ਜਗਰਾਉਂ ਵਿਚ ਲੱਗਣ ਵਾਲਾ ਰੌਸ਼ਨੀਆਂ ਦਾ ਮੇਲਾ ਵੀ ਬੜਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਹ ਮੇਲਾ 14, 15, 16 ਫੱਗਣ ਨੂੰ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਲੋਕ ਰਾਤ ਨੂੰ ਪੋਨਿਆਂ ਵਾਲੇ ਫ਼ਕੀਰ ਦੇ ਮਜ਼ਾਰ ਦੇ ਦੀਵੇ ਜਗਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਪਹਿਲੇ ਦਿਨ ਇੱਥੇ ਭਗਤ ਚੌਕੀਆਂ ਭਰਦੇ ਹਨ । ਦੂਜੇ ਤੇ ਤੀਜੇ ਦਿਨ ਆਮ ਲੋਕ ਵੀ ਪਹੁੰਚਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਇਸ ਮੇਲੇ ਦੀ ਰੌਣਕ ਕਾਫ਼ੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਲੋਕ ਬੋਲੀਆਂ ਪਾਉਂਦੇ, ਟੱਪੇ ਗਾਉਂਦੇ ਤੇ ਭੰਗੜੇ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ ।ਇੱਥੇ ਖੇਡਾਂ ਤੇ ਤਮਾਸ਼ਿਆਂ ਦਾ ਵੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਹੈਦਰ ਸ਼ੇਖ ਦਾ ਮੇਲਾ :
ਇਹਨਾਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਮਾਲਵੇ ਵਿਚ ਮਲੇਰਕੋਟਲਾ ਵਿਖੇ ਹੈਦਰ ਸ਼ੇਖ ਦੇ ਮਕਬਰੇ ਉੱਪਰ ਲੱਗਣ ਵਾਲਾ ਮੇਲਾ ਬੜਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਹ ਮੇਲਾ ਨਿਮਾਣੀ ਇਕਾਦਸ਼ੀ ਤੋਂ ਇਕ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਆਰੰਭ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਦੋ ਦਿਨ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਲੋਕ ਔਲਾਦ ਦੀ ਦਾਤ ਲੈਣ ਲਈ ਹੈਦਰ ਸ਼ੇਖ ਦੇ ਮਕਬਰੇ ਤੇ ਮੰਨਤਾਂ ਮੰਨਦੇ ਤੇ ਚੌਕੀਆਂ ਭਰਦੇ ਹਨ ।ਇੱਥੇ ਲੋਕ ਕਾਲਾ ਬੱਕਰਾ ਜਾਂ ਕਾਲਾ ਕੁੱਕੜ ਭੇਟ ਚੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਮੁਕਤਸਰ ਦਾ ਮੇਲਾ :
ਇਹਨਾਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਮਾਲਵੇ ਵਿਚ ਮੁਕਤਸਰ ਦਾ ਮੇਲਾ ਵੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਹ 40 ਮੁਕਤਿਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਪਵਿੱਤਰ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਦੇ ਦੁਆਲੇ ਮਾਘੀ ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਲੋਕ ਸ਼ਰਧਾ ਤੇ ਪ੍ਰੇਮ ਨਾਲ ਪੁੱਜਦੇ ਹਨ ।

ਦੁਆਬੇ ਦੇ ਮੇਲੇ-ਬਾਬਾ ਸੋਢਲ ਦਾ ਮੇਲਾ :
ਦੁਆਬੇ ਦੇ ਮੇਲਿਆਂ ਵਿਚ ਜਲੰਧਰ ਵਿਖੇ ਲੱਗਣ ਵਾਲਾ ਬਾਬਾ ਸੋਢਲ ਦਾ ਮੇਲਾ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ।ਇਹ ਮੇਲਾ ਅੱਸੂ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਤੜਕੇ ਤੋਂ ਹੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਦਿਨ ਭਰ ਖ਼ੂਬ ਭਰਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਲੋਕ ਬਾਬੇ ਸੋਢਲ ਦੇ ਮੰਦਰ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਦ ਚੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਤੇ ਮੰਨਤਾਂ ਮੰਨਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਭਾਗ ਲੈਣ ਲਈ ਲੋਕ ਦੂਰੋਂ-ਦੂਰੋਂ ਆਉਂਦੇ ਹਨ । ਅਨੇਕਾਂ ਲੋਕ ਬਾਬੇ ਸੋਢਲ ਦੀਆਂ ਖ਼ੁਸ਼ੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਦਾਨ-ਪੁੰਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਆਨੰਦਪੁਰ ਦਾ ਹੋਲਾ-ਮਹੱਲਾ :
ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਦੁਆਬੇ ਵਿਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਮੇਲਾ ਹੋਲੇ-ਮਹੱਲੇ ਦੇ ਮੌਕੇ ਉੱਤੇ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਲਗਦਾ ਹੈ ।ਇਹ ਮੇਲਾ ਦੇਸ਼ਾਂ-ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਵਸਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਲਈ ਸ਼ਰਧਾ ਤੇ ਦਿਲਚਸਪੀ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਦੁਆਬੇ ਦੇ ਕਸਬੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਦੀ ਵਿਸਾਖੀ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ।

ਮਾਝੇ ਦੇ ਮੇਲੇ-ਅਚਲ ਦਾ ਮੇਲਾ :
ਮਾਝੇ ਦੇ ਮੇਲਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਅਚਲ (ਬਟਾਲੇ ਨੇੜੇ) ਵਿਖੇ ਲੱਗਣ ਵਾਲਾ ਮੇਲਾ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਹ ਮੇਲਾ ਰਾਮ ਨੌਮੀ ਦੇ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਅਚਲ ਵਿਖੇ ਜੋਗੀਆਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਕੇਂਦਰ ਸੀ । ਮੇਲੇ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਇੱਥੋਂ ਦੇ . ਸਰੋਵਰ ਦੇ ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਅਨੇਕਾਂ ਜੋਗੀ ਤੇ ਸੰਨਿਆਸੀ ਆ ਕੇ ਆਪਣੀਆਂ ਧੂਣੀਆਂ ਤਪਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ਉਹ ਕੋਲ ਹੀ ਆਪਣੇ ਤ੍ਰਿਸ਼ੂਲ ਗੱਡ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਉੱਪਰ ਫੁੱਲਾਂ ਦੇ ਹਾਰ ਪਾਏ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਮੇਲੇ ਨੂੰ ਦੇਖਣ ਲਈ ਲੋਕ ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਪੁੱਜਦੇ ਹਨ । · · ਰਾਮ ਤੀਰਥ ਦਾ ਮੇਲਾ-ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਤੋਂ ਬਾਰਾਂ ਕੁ ਮੀਲ ਦੀ ਦੂਰੀ ਤੇ ਰਾਮ ਤੀਰਥ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਤੇ ਲੱਗਣ ਵਾਲਾ ਮੇਲਾ ਵੀ ਬੜਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਸ ਸਥਾਨ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮ ਚੰਦਰ ਜੀ ਦੇ ਨਾਲ ਹੈ ? ਇੱਥੇ ਇਕ ਸਰੋਵਰ ਹੈ, ਜਿਸ ਉੱਤੇ ਇਹ ਮੇਲਾ ਕੱਤਕ ਦੀ ਪੂਰਨਮਾਸ਼ੀ ਨੂੰ ਲਗਦਾ ਹੈ ।

ਸਾਈਂ ਇਲਾਹੀ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਦਰਗਾਹ ਦਾ ਮੇਲਾ :
ਮਾਝੇ ਵਿਚ ਸਾਈਂ ਇਲਾਹੀ ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਦਰਗਾਹ ਉੱਪਰ ਲੱਗਣ ਵਾਲਾ ਮੇਲਾ ਵੀ ਬੜਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਹ ਹਰ ਸਾਲ 20 ਹਾੜ ਨੂੰ ਲੱਗਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਹੋਰਨਾਂ ਦਿਲਚਸਪੀਆਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕੁੱਕੜਾਂ ਤੇ ਬਟੇਰਿਆਂ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇਖਣ-ਯੋਗ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇੱਥੋਂ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਤੋਂ ਆਏ ਕੱਵਾਲ ਵੀ ਚੰਗਾ ਰੰਗ ਬੰਨ੍ਹਦੇ ਹਨ ।

ਛੇਹਰਟੇ ਦੀ ਬਸੰਤ ਪੰਚਮੀ ਤੇ ਕੋਠੇ ਦਾ ਮੇਲਾ ਮਾਝੇ ਦੇ ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਮੇਲੇ ਹਨ ।

ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਸਥਾਨਿਕ ਮੇਲੇ :
ਉੱਪਰ ਅਸੀਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕੁੱਝ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਮੇਲਿਆਂ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਉਂਝ ਤਾਂ ਇਹਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਛੋਟੇ-ਛੋਟੇ ਮੇਲੇ ਹੋਰ ਵੀ ਲਗਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਤਰਨਤਾਰਨ ਵਿਖੇ ਮੱਸਿਆ ਦਾ ਮੇਲਾ, ਸਾਵਣ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਤੀਆਂ ਦਾ ਮੇਲਾ ਆਦਿ ।

ਮਹਾਨਤਾ :
ਇਹਨਾਂ ਮੇਲਿਆਂ ਵਿਚ ਵਪਾਰਕ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਮੰਡੀਆਂ ਲਗਦੀਆਂ ਹਨ । ਕਈ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੀਆਂ ਭਾਰੀਆਂ ਮੰਡੀਆਂ ਲਗਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦੁਰ ਦੇ ਸੰਬੰਧੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਵੀ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਵਾਰ ਮੇਲਿਆਂ ਵਿਚ ਵਿਰੋਧੀ ਟੋਲੀਆਂ ਵਿਚ ਲੜਾਈਆਂ ਵੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਮੁੱਚੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਇੱਥੇ ਆਏ ਲੋਕ ਮਨਭਾਉਂਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਖਾ ਕੇ, ਭੰਗੜੇ ਪਾ ਕੇ ਤੇ ਖੇਡਾਂ-ਤਮਾਸ਼ਿਆਂ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਖੂਬ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਆਪਣੇ ਧਾਰਮਿਕ ਇਸ਼ਟਾਂ ਤੇ ਪੀਰਾਂ ਦੀ ਮੰਨਤ ਕਰ ਕੇ ਆਪਣਾ ਜੀਵਨ ਸਫਲ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਇਹਨਾਂ ਮੇਲਿਆਂ ਦੀ ਪੰਜਾਬੀ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਮਹਾਨਤਾ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

48. ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਵਧ ਰਹੀ ਅਬਾਦੀ
ਜਾਂ
ਵਧਦੀ ਵੱਲੋਂ ਜਨਸੰਖਿਆ) ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ

ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ :
ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਵਧ ਰਹੀ ਅਬਾਦੀ ਨੇ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਇਕ ਬੜੀ ਗੰਭੀਰ ਸਮੱਸਿਆ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਹੈ । ਇਹ ਸਮੱਸਿਆ ਭਾਰਤ, ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਤੇ ਚੀਨ ਵਰਗੇ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋ ਰਹੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਵਧੇਰੇ ਗੰਭੀਰ ਅਤੇ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਹੈ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ-ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਪੈਦਾਇਸ਼ ਘਟਾਉਣ ਦੀ ਲੋੜ-ਅਬਾਦੀ ਦੇ ਵਾਧੇ ਦੇ ਕਾਰਨ-ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਅਬਾਦੀ ਦਾ ਵਾਧਾ-ਆਰਥਿਕ ਹਾਲਤ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ-ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਅਬਾਦੀ ਦੇ ਵਾਧੇ ਦੇ ਕਾਰਨ-ਘਟਾਉਣ ਦੇ ਸਾਧਨ-ਸਾਰ ਅੰਸ਼ )

ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਪੈਦਾਇਸ਼ ਘਟਾਉਣ ਦੀ ਲੋੜ :
ਕੋਈ ਸਮਾਂ ਸੀ, ਜਦੋਂ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਬਹੁਤੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਜਾਂ ਭਰਾਵਾਂ ਵਾਲੇ ਹੋਣਾ ਇਕ ਮਾਣ ਦੀ ਗੱਲ ਸੀ ਅਤੇ ਸੱਤਾਂ ਪੁੱਤਰਾਂ ਵਾਲੀ ਮਾਂ ਨੂੰ ਸਨਮਾਨ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਦੇਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਅਬਾਦੀ ਬਹੁਤ ਥੋੜ੍ਹੀ ਸੀ; ਆਦਮੀ ਦੀਆਂ ਆਮ ਲੋੜਾਂ ਬਹੁਤ ਥੋੜ੍ਹੀਆਂ ਸਨ; ਜੀਵਨ-ਪੱਧਰ ਬਹੁਤ ਨੀਵਾਂ ਸੀ ਤੇ ਧਰਤੀ ਵਿਚੋਂ ਹਰ ਇਕ ਦਾ ਢਿੱਡ ਭਰ ਦੇਣ ਜੋਗੇ ਦਾਣੇ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਸਨ, ਪਰ- ਅੱਜ ਅਬਾਦੀ ਦਾ ਪਸਾਰਾ ਹੱਦਾਂ-ਬੰਨੇ ਟੱਪ ਗਿਆ ਹੈ, ਮਨੁੱਖ ਦੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਵਧ ਗਈਆਂ ਹਨ, ਜੀਵਨ-ਪੱਧਰ ਉੱਚਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ, ਪਰ ਇਸ ਦੇ ਮੁਤਾਬਕ ਮਨੁੱਖ ਦੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਇੰਨੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਉੱਨਤੀ ਨਹੀਂ ਹੋਈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅੱਜ ਦੇ ਜ਼ਮਾਨੇ ਵਿਚ ਬਹੁਤੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਦਾ ਹੋਣਾ ਮਾਣ ਦੀ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ਰਹੀ, ਸਗੋਂ ਬਹੁਤੇ ਧੀਆਂ-ਪੁੱਤਰ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮਾਪਿਆਂ ਨੂੰ ਬੇਸਮਝ ਖ਼ਿਆਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਅਬਾਦੀ ਦੇ ਵਾਧੇ ਦੇ ਕਾਰਨ ;
ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਰਤਮਾਨ ਯੁਗ ਵਿਚ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਤੇ ਸਨਅਤ ਨੇ ਕਾਫ਼ੀ ਵਿਕਾਸ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਦਵਾਈਆਂ ਨੇ ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਨੂੰ ਠੀਕ ਰੱਖਣ ਤੇ ਰੋਗਾਂ ਤੋਂ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਹੈਰਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਾਰਨਾਮੇ ਕਰ ਦਿਖਾਏ ਹਨ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਭਿਆਨਕ ਤੇ ਛੂਤ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਦਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਟੁੱਟਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਨਾਸ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਜਨਮ ਲੈਂਦੇ ਸਮੇਂ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਮੌਤ-ਦਰ ਬਹੁਤ ਘਟ ਗਈ ਹੈ । ਨਾਲ ਹੀ ਖ਼ੁਰਾਕ ਦੀ ਕਿਸਮ ਵਿਚ ਵੀ ਸੁਧਾਰ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਸਾਧਨਾਂ ਨਾਲ ਮੌਤ ਦਰ ਬਹੁਤ ਘਟ ਗਈ ਹੈ । ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਦੇ ਦਸ ਬੱਚੇ ਹੁੰਦੇ ਸਨ, ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਅੱਧੇ ਕੁ ਬਚਪਨ ਵਿਚ ਹੀ ਮਰ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ਤੇ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਬਾਦੀ ਦੇ ਵਧਣ ਦੀ ਰਫ਼ਤਾਰ ਬਹੁਤੀ ਤੇਜ਼ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਪਰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਹਸਪਤਾਲਾਂ ਦੇ ਫੈਲਣ ਤੇ ਤੁਰੰਤ ਡਾਕਟਰੀ ਸਹਾਇਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਬਾਲ-ਮੌਤ ਦੀ ਦਰ ਬਹੁਤ ਘਟ ਗਈ ਹੈ, ਪਰ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਜਨਮ ਦੀ ਦਰ ਵਧ ਗਈ ਹੈ । 2011 ਦੀ ਜਨਗਣਨਾ ਸਰਵੇਖਣ ਅਨੁਸਾਰ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਹਰ ਸਾਲ ਇਕ ਹਜ਼ਾਰ ਦੀ ਆਬਾਦੀ ਪਿੱਛੇ 20.97 ਲਗਪਗ 21 ਬੱਚੇ ਜਨਮ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਪਰੰਤੂ ਮਰਦੇ 7.48 (ਲਗਪਗ 8 ਵਿਅਕਤੀ ਹਨ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਿਛਲੇ ਦਹਾਕਿਆਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਅਬਾਦੀ ਦੇ ਵਧਣ ਦੀ ਰਫ਼ਤਾਰ ਘਟੀ ਹੈ, ਪਰ ਮੌਤ-ਦਰ ਵੀ ਘਟੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਜਨਮ-ਦਰ ਮਰਨਦਰ ਨਾਲੋਂ ਲਗਪਗ ਤਿਗੁਣੀ ਹੈ । ਪਿਛਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਜਨਮ-ਦਰ ਤੇ ਮਰਨ-ਦਰ ਲਗਪਗ ਬਰਾਬਰ ਰਹਿੰਦੀ ਸੀ ਤੇ ਜਦ ਕਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਸੰਤੁਲਨ ਨਹੀਂ ਸੀ ਰਹਿੰਦਾ, ਤਾਂ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਛੂਤ ਦੀ ਮਹਾਂਮਾਰੀ ਆ ਕੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਪਿੰਡ ਤੇ ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਦੇ ਮੁਹੱਲੇ ਸਾਫ਼ ਕਰ ਜਾਂਦੀ ਸੀ, ਪਰ ਵਰਤਮਾਨ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਜਨਮ ਲੈ ਚੁੱਕੇ ਬੱਚੇ, ਨੌਜਵਾਨ ਜਾਂ ਬੁੱਢੇ ਨੂੰ ਦਵਾਈਆਂ ਸਹਿਜੇ ਕੀਤੇ ਮਰਨ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੀਆਂ । ਇਹ ਗੱਲ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਤੇ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । 1850 ਵਿਚ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਅਬਾਦੀ ਇਕ ਅਰਬ ਸੀ । 1925 ਵਿਚ ਇਹ ਦੋ ਅਰਬ ਹੋ ਗਈ ਤੇ 1984 ਵਿਚ 4 ਅਰਬ 40 ਕਰੋੜ ਨੂੰ ਪੁੱਜ ਗਈ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਅਬਾਦੀ 7 ਅਰਬ 40 ਕਰੋੜ ਹੋ ਚੁੱਕੀ ਅਤੇ ਇਸ ਦਾ ਛੇਵਾਂ ਹਿੱਸਾ ਅਬਾਦੀ ਇਕੱਲੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਹੈ । ਯੂ. ਐਨ. ਓ. ਦੇ ਅਨੁਮਾਨ ਅਨੁਸਾਰ ਇਸ ਸਦੀ ਦੇ ਅੰਤ ਤਕ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਅਬਾਦੀ ਸਵਾ 11 ਅਰਬ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ ।

ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਅਬਾਦੀ ਦਾ ਵਾਧਾ :
ਇਸ ਸਮੇਂ ਸੰਸਾਰ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਅਬਾਦੀ ਚੀਨ ਦੀ ਹੈ, ਜੋ ਕਿ ਇਕ ਅਰਬ 40 ਕਰੋੜ ਹੈ, ਪਰ ਉੱਥੇ ਉਸ ਦੇ ਵਾਧੇ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਕਰਨ ਵਿਚ ਉੱਥੋਂ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਕਾਫ਼ੀ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਈ ਹੈ । 2001 ਦੀ ਜਨਗਣਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਬਾਦੀ ਇਕ ਅਰਬ ਤਿੰਨ ਕਰੋੜ ਸੀ, ਜਦ ਕਿ 1947 ਵਿਚ ਇਹ ਕੇਵਲ 34 ਕਰੋੜ ਸੀ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਇਕ ਅਰਬ 30 ਕਰੋੜ ਤੋਂ ਉੱਪਰ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਵਿਚ ਹਰ ਮਿੰਟ ਵਿੱਚ 29 ਬੰਦਿਆਂ ਦਾ ਵਾਧਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਦੇਸ਼ ਦੀ ਆਰਥਿਕਤਾ ਦੀਆਂ ਨੀਹਾਂ ਦਾ ਹਿਲਣਾ :
ਭਾਰਤ ਦੀ ਇੰਨੀ ਵੱਡੀ ਅਬਾਦੀ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਲਈ ਵਰਦਾਨ ਨਹੀਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਕਿਉਂਕਿ ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਇਕ ਗਰੀਬ ਅਤੇ ਅਵਿਕਸਿਤ ਦੇਸ਼ ਹੈ । ਅਬਾਦੀ ਵਿਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਹੋ ਰਿਹਾ ਵਾਧਾ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਆਰਥਿਕਤਾ ਦੀਆਂ ਜੜ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਿਲਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਗਰੀਬੀ, ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ, ਥੁੜ੍ਹ, ਮਹਿੰਗਾਈ, ਅੰਨ-ਸੰਕਟ, ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਨਿੱਤ ਵਰਤੋਂ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦਾ ਨਾ ਮਿਲਣਾ ਆਦਿ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਅਬਾਦੀ ਵਿਚ ਲਗਾਤਾਰ ਵਾਧੇ ਦੀਆਂ ਹੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ ।

ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਅਬਾਦੀ ਦੇ ਵਾਧੇ ਦੇ ਕਾਰਨ :
ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਅਬਾਦੀ ਦੇ ਵਾਧੇ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਗ਼ਰੀਬੀ ਅਤੇ ਅਨਪੜ੍ਹਤਾ ਹੈ । ਭਾਰਤੀ ਲੋਕ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਵਲ ਬਹੁਤ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੇ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਹ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਰੱਬ ਦੀ ਦੇਣ ਸਮਝਦੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਹੈ ਕਿ ਬੱਚੇ ਪੈਦਾ ਕਰਨਾ ਜਾਂ ਨਾ ਕਰਨਾ ਰੱਬ ਦੇ ਹੱਥ ਹੈ, ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਹੱਥ ਨਹੀਂ । ਉਹ ਇਹ ਵੀ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਕਿ ਜਿਸ ਰੱਬ ਨੇ ਬੱਚੇ ਨੂੰ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੇ ਉਸ ਦੀ ਕਿਸਮਤ ਵਿਚ ਲਿਖ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਕਿੱਥੋਂ ਖਾ ਕੇ ਪਲਣਾ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਬੱਚੇ ਰੁਲ-ਖੁਲ ਕੇ ਪਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦੀ ਬਹੁਤਾ ਕਰਕੇ ਕੋਈ ਪਰਵਾਹ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ।

ਗ਼ਰੀਬ ਮਾਪੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਮਦਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨ ਦਾ ਇਕ ਸਾਧਨ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਬੁਢਾਪਾ ਪੈਨਸ਼ਨਾਂ ਤੇ ਸਿਹਤ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦੀ ਅਣਹੋਂਦ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬੁਢਾਪੇ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਦੇ ਵਿਆਹ, ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸ, ਗਰਭ-ਰੋਕੂ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦੀ ਘਾਟ, ਔਰਤਾਂ ਦਾ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰ ਹੋਣਾ, ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਦੇ ਘੁਣ ਦੀ ਖਾਧੀ ਨਾ-ਅਹਿਲ ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਆਦਿ ਸਾਰੇ ਕਾਰਨ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਅਬਾਦੀ ਦੇ ਵਾਧੇ ਵਿਚ ਵਧ-ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਹਿੱਸਾ ਪਾ ਰਹੇ ਹਨ ।

ਅਬਾਦੀ ਘਟਾਉਣ ਦੇ ਸਾਧਨ :
ਸਵਾਲ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਹੱਲ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ । ਇਸ ਦਾ ਉੱਤਰ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸਰਕਾਰ ਪਰਿਵਾਰ ਨਿਯੋਜਨ ਨੂੰ ਪੂਰੇ ਜ਼ੋਰ ਨਾਲ ਅਮਲ ਵਿਚ ਲਿਆਵੇ ਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਵੇ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਸਮਝਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਵਰਤਮਾਨ ਸਨਅਤੀ ਜ਼ਮਾਨੇ ਵਿਚ ਛੋਟਾ ਪਰਿਵਾਰ ਵਧੇਰੇ ਮਹਾਨਤਾ ਰੱਖਦਾ ਹੈ । ਗਰਭ-ਰੋਕੂ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਜਨਮ ਦੀ ਦਰ ਘਟਾਈ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਬੱਚੇ ਦਾ ਜਨਮ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿਚ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿਚ ਹੈ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਪੂਰੀ-ਪੂਰੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਛੋਟੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਕਰਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਮੁੱਕਦੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਭਾਰਤ ਦੀ ਇੰਨੀ ਵੱਡੀ ਅਬਾਦੀ ਨੂੰ ਸੰਭਾਲਣ ਲਈ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਪਾਉਣ ਵਾਲੇ ਕਾਰੋਬਾਰਾਂ ਨੂੰ ਨੇਪਰੇ ਚੜ੍ਹਾਉਣ ਦੀ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕੁਦਰਤੀ ਭੰਡਾਰਾਂ ਨੂੰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਵਰਤੋਂ ਵਿਚ ਲਿਆਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਅਬਾਦੀ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕਣ ਲਈ ਪਰਿਵਾਰ ਨਿਯੋਜਨ ਨੂੰ ਅਸਰ ਭਰੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਲਾਗੂ ਕਰਨਾ ਤੇ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਬਣਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਜੋ ਇਸ ਤੋਂ ਲੋੜੀਂਦੇ ਨਤੀਜੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਸਕਣ !

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

49. ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ
ਜਾਂ
ਵਾਤਾਵਰਨ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਧਰਤੀ ਉੱਪਰ ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦੀ ਮਨੁੱਖਾਂ ਸਮੇਤ ਸਾਰੇ ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦੀ ਹੋਂਦ ਤਦ ਹੀ ਸੰਭਵ ਹੈ, ਜੇਕਰ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਤੱਤਾਂ ਦਾ ਆਪਣਾ ਰੂਪ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਆਪਸੀ ਤਾਲ-ਮੇਲ ਉਸੇ ਸੰਤੁਲਿਤ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਹੀ ਕਾਇਮ ਰਹੇ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਜੀਵਸੰਸਾਰ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦਾ ਪੈਦਾ ਹੋਣਾ ਤੇ ਵਧਣਾ-ਫੁਲਣਾ ਸੰਭਵ ਹੋਇਆ ਸੀ, ਪਰੰਤੂ ਉੱਪਰ ਦੱਸੇ ਅਨੁਸਾਰ ਜਿੱਥੇ ਮਨੁੱਖਾਂ, ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦੇ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਹੋਂਦ ਲਈ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਢੁੱਕਵਾਂ ਵਾਤਾਵਰਨ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਲਈ ਕਰੋੜਾਂ ਸਾਲ ਲੱਗੇ ਸਨ, ਅੱਜ ਦੇ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਪਿਛਲੇ ਸੱਠ-ਸੱਤਰ ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਉਸ ਨੂੰ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਲੀਤ ਕਰ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਤੇ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਸਮੁੱਚੇ ਜੀਵ-ਸੰਸਾਰ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਖ਼ਤਰੇ ਵਿਚ ਪਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ; ਇਸ ਪਲੀਤਣ ਨੂੰ ‘ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਉਸ ਦੀ ਵਧਦੀ ਅਬਾਦੀ, ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਕਾਸ ਤੇ ਪੈਸਾ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਮਨੁੱਖ ਦੀਆਂ ਵਪਾਰਕ ਰੁਚੀਆਂ ਨੇ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਜਿਸ ‘ ਕਰਕੇ ਅੱਜ ਉਸ ਦੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਵਾਲੀ ਧਰਤੀ ਦੀ ਮਿੱਟੀ, ਧਰਤੀ ਦੇ ਹੇਠਲਾ ‘ਤੇ ਉੱਪਰਲਾ ਪਾਣੀ, ਖ਼ੁਰਾਕ, ਹਵਾ ਤੇ ਹੋਰ ਲੋੜੀਂਦੀਆਂ ਊਰਜਾਵਾਂ ਆਦਿ ਸਭ ਕੁੱਝ ਪਲੀਤ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਹੈ । ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਦੇ ਇਸ ਭਿਆਨਕ ਰੂਪ ਨੇ ਤੇ ਇਸਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਵਧ ਰਹੇ ਤਾਪਮਾਨ ਨੇ ਅੱਜ ਧਰਤੀ ਉਤਲੀ ਸਮੁੱਚੀ ਜੈਵਿਕ ਹੋਂਦ ਲਈ ਖ਼ਤਰੇ ਦੀ ਘੰਟੀ ਵਜਾ ਦਿੱਤੀ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਸਾਡਾ ਇਸ ਪ੍ਰਤੀ ਸੁਚੇਤ ਹੋਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਆਓ ਜ਼ਰਾ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪੱਖਾਂ ਬਾਰੇ ਜ਼ਰਾ ਵਿਸਥਾਰ ਨਾਲ ਵਿਚਾਰ ਕਰੀਏ ।

(ਰੂਪ ਰੇਖਾ-ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦੀ ਹੋਂਦ ਤੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ-ਵਾਯੂ-ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਜਲ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਮਿੱਟੀ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਓਜ਼ੋਨ ਵਿਚ ਮਘੋਰੇ, ਧੁਨੀ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ-ਖੁਰਾਕ ਵਿਚ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ-ਖ਼ਬਰਦਾਰ ਹੋਣ ਦੀ ਲੋੜ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼)

ਵਾਯੂ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ :
ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਕਣਾਂ ਅਤੇ ਗੈਸਾਂ ਦਾ ਹਵਾ-ਮੰਡਲ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਹੋਣਾ ਵਾਯੂ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਅੱਜ ਸਾਡੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੀ ਹਵਾ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਮਨੁੱਖ ਸਮੇਤ ਹੋਰ ਸਾਰੇ ਜੀਵ ਅਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਸਾਹ ਲੈਂਦੀ ਹੈ, ਨੂੰ ਕੋਇਲੇ ਦੇ ਧੂਏਂ, ਸੁਆਹ ਤੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਗੈਸਾਂ ਨੂੰ ਹਵਾ ਵਿਚ ਖਿਲਾਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਸਨਅਤੀ ਇਕਾਈਆਂ ਤੇ ਪਾਵਰ ਹਾਉਸਾਂ ਦੀਆਂ ਚਿਮਨੀਆਂ, ਪੈਟਰੋਲ ਤੇ ਡੀਜ਼ਲ ਨਾਲ ਚੱਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਗੱਡੀਆਂ ਤੇ ਮੋਟਰਾਂ-ਕਾਰਾਂ, ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਬਾਲੀ ਜਾਂਦੀ ਲੱਕੜ ਤੇ ਖੇਤਾਂ ਵਿੱਚ ਸਾੜੀ ਜਾਂਦੀ ਪਰਾਲੀ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲਦੇ ਧੂੰਏਂ ਨੇ ਸਲਫ਼ਰ ਡਾਇਆਕਸਾਈਡ, ਕਾਰਬਨ ਮੋਨੋਆਕਸਾਈਡ, ਕਾਰਬਨ ਡਾਇਆਕਸਾਈਡ, ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਸਲਫਾਈਡ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ ਹਾਈਡਰੋਕਾਰਬਨਾਂ ਨਾਲ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਲੀਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਰਹਿੰਦੀ ਕਸਰ ਕੀਟਨਾਸ਼ਕ ਅਤੇ ਨਦੀਨਨਾਸ਼ਕ ਦਵਾਈਆਂ ਨੇ ਪੂਰੀ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਮਨੁੱਖ ਤਾਂ ਕੀ ਧਰਤੀ ਉੱਤਲੇ ਹੋਰ ਜੀਵ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਵੀ ਉੱਭੇ ਸਾਹ ਲੈਣ ਲੱਗੀ ਹੈ । ਹਵਾ ਵਿਚ ਕਾਰਬਨ ਡਾਇਆਕਸਾਈਡ ਦੀ ਵਧੀ ਮਾਤਰਾ ਨੇ ਧਰਤੀ ਉਤਲੀ ਤਪਸ਼ ਨੂੰ ਵਧਾ ਕੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਸਮੁੱਚੇ ਜੀਵ-ਮੰਡਲ ਦੀ ਹੋਂਦ ਲਈ ਭਿਆਨਕ ਖ਼ਤਰਾ ਖੜਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

ਜਲ-ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ :
ਕੇਵਲ ਹਵਾ ਹੀ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਧਰਤੀ ਉਤਲਾ ਪਾਣੀ, ਜੋ ਕਿ ਸਮੁੱਚੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਆਧਾਰ ਹੈ, ਵੀ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜ਼ਹਿਰੀਲਾ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਹੈ । ਅੱਜ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦੇ ਸੀਵਰੇਜ ਦਾ ਸਮੁੱਚਾ ਗੰਦ ਨਦੀਆਂ ਨਾਲਿਆਂ, ਦਰਿਆਵਾਂ ਤੇ ਸਮੁੰਦਰਾਂ ਵਿਚ ਸੁੱਟਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਸਨਅੱਤਾਂ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਜ਼ਹਿਰੀਲਾ ਤਰਲ ਮਾਦਾ ਤੇ ਪਾਣੀ ਦਰਿਆਵਾਂ ਤੇ ਝੀਲਾਂ ਵਿਚ ਸੁੱਟਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜੋ ਅੰਤ ਸਮੁੰਦਰ ਵਿਚ ਜਾ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਸਨਅੱਤਾਂ ਦੇ ਇਸ ਨਿਕਾਸ ਵਿਚ ਆਰਸੈਨਿਕ, ਕੈਡਮੀਅਮ, ਸਿੱਕਾ, ਪਾਰਾ ਤੇ ਸਾਇਆਨਾਈਡ ਆਦਿ ਜ਼ਹਿਰਾਂ ਘੁਲੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਖੇਤਾਂ ਵਿਚ ਪਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਖਾਦਾਂ ਤੇ ਛਿੜਕੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਜ਼ਹਿਰੀਲੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ । ਨੇ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਜ਼ਹਿਰੀਲਾ ਬਣਾ ਕੇ ਪੀਣ ਯੋਗ ਨਹੀਂ ਰਹਿਣ ਦਿੱਤਾ । ਇੱਥੋਂ ਤਕ ਕਿ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਵਿਚ ਫੈਲੀਆਂ ਗੈਸਾਂ ਨੇ ਵਰਖਾ ਦੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਤੇਜ਼ਾਬੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਧਰਤੀ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਤੇ ਦਰਿਆਵਾਂ, ਝੀਲਾਂ ਤੇ ਸਮੁੰਦਰਾਂ ਦੇ ਪਾਣੀ ਘਾਤਕ ਰੂਪ ਵਿਚ ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ ।

ਮਿੱਟੀ-ਪ੍ਰਦੁਸ਼ਣ :
ਹਵਾ ਤੇ ਪਾਣੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਵਰਤਮਾਨ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਮਿੱਟੀ ਵੀ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਿਤ ਹੋ ਚੁੱਕੀ ਹੈ । ਸਨਅੱਤੀ ਅਦਾਰੇ ਲੱਖਾਂ ਟਨ ਠੋਸ ਪਦਾਰਥ ਰੱਦੀ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਕਾਗਜ਼ ਤੇ ਗੁੱਦੇ ਦੀਆਂ ਮਿੱਲਾਂ, ਤੇਲ ਸੋਧਕ ਕਾਰਖ਼ਾਨੇ ਤੇ ਢਲਾਈ ਦੇ ਕਾਰਖ਼ਾਨੇ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਰਸਾਇਣਾਂ ਮਿਲਿਆ ਕਚਰਾ ਤੇ ਸੁਆਹ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਸੁੱਟਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਘਰੇਲੂ ਕੂੜਾ-ਕਰਕਟ, ਪੁਰਾਣੀਆਂ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ, ਟੁੱਟਾ-ਫੁੱਟਾ ਫ਼ਰਨੀਚਰ, ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੇ ਲਿਫ਼ਾਫ਼ੇ, ਬੋਤਲਾਂ, ਲੋਹੇ, ਕੱਚ ਤੇ ਚੀਨੀ ਦਾ ਸਮਾਨ, ਟਾਇਰ ਤੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦਾ ਖਿਲਾਰਾ ਤੇ ਢੇਰ ਭੁ-ਦਿਸ਼ ਦਾ ਹੁਲੀਆ ਵਿਗਾੜ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸੁਹਾਵਣੇ ਦੀ ਥਾਂ ਘਿਨਾਉਣਾ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਨਾਲ ਮਿੱਟੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਿਤ ਵੀ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਧਰਤੀ ਤੋਂ ਜੰਗਲਾਂ ਦੇ ਕੱਟਣ ਨਾਲ ਤੇ ਕਾਰਖਾਨੇ ਲੱਗਣ ਨਾਲ ਕਾਰਬਨ ਡਾਇਆਕਸਾਈਡ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਸਾਵੇ ਘਰ ਦੀ ਪ੍ਰਭਾਵਿਕਤਾ ਵਧਣ ਨਾਲ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਗਰਮੀ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ ਤੇ ਹਵਾ ਵਿਚ ਇਕੱਠੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਜ਼ਹਿਰਾਂ ਦੇ ਬੱਦਲਾਂ ਵਿਚ ਮਿਲਣ ਕਾਰਨ ਤੇਜ਼ਾਬੀ ਮੀਂਹ ਪੈ ਰਹੇ ਹਨ ।

ਜੰਗਲ ਕੱਟੇ ਜਾਣ ਨਾਲ ਜੰਗਲੀ ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਪੰਛੀਆਂ ਦੀਆਂ ਨਸਲਾਂ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ, ‘ਖੋਰ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ । ਜਲ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਮਿੱਟੀ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਤੇ ਜੰਗਲਾਂ ਦੇ ਕੱਟੇ ਜਾਣ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਜੰਗਲੀ ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਲਾਭਦਾਇਕ ਪੰਛੀਆਂ (ਜਿਵੇਂ ਗਿਰਝਾਂ ਦੀਆਂ ਨਸਲਾਂ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ।

ਓਜ਼ੋਨ ਵਿਚ ਮਘੋਰੇ :
ਰੱਦੀ ਹੋਏ ਰਿਫਰੀਜ਼ਰੇਟਰਾਂ ਤੇ ਏਅਰ ਕੰਡੀਸ਼ਨਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲਦੀਆਂ ਗੈਸਾਂ ਕਾਰਨ ਧਰਤੀ ਉੱਪਰ ਕੁਦਰਤ ਵਲੋਂ ਓਜ਼ੋਨ ਗੈਸ ਦਾ ਗਿਲਾਫ, ਜੋ ਕਿ ਧਰਤੀ ਉੱਪਰਲੇ ਮਨੁੱਖਾਂ ਤੇ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਸੂਰਜ ਦੀਆਂ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਪਰਾਬੈਂਗਣੀ ਕਿਰਨਾਂ ਤੋਂ ਬਚਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਵਿਚ ਮਘੋਰੇ ਹੋ ਗਏ ਹਨ ਤੇ ਉਹ ਦਿਨੋ ਦਿਨ ਵਧ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਧਣਾ ਸਮੁੱਚੇ ਜੀਵ-ਸੰਸਾਰ ਲਈ ਬੇਹੱਦ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਹੈ ।

ਧੁਨੀ-ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ :
ਹਵਾ, ਪਾਣੀ ਤੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਦੁਸ਼ਣ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਸ਼ੋਰ ਵੀ ਬਹੁਤ ਵਧਿਆ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ, ਬੰਬ ਵਿਸਫੋਟਾਂ, ਬੁਲ- ਡੋਜ਼ਿੰਗ, ਪੀਸਣ ਤੇ ਨਿਰਮਾਣ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਥਾਂ-ਥਾਂ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਜੈਨਰੇਟਰਾਂ, ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਮੌਕਿਆਂ ਉੱਤੇ ਲੱਗੇ ਡੀ.ਜੇ. ਸਿਸਟਮਾਂ ਤੇ ਲਾਊਡ ਸਪੀਕਰਾਂ ਨੇ ਵੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਧੁਨੀ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਦਾ ਨਾਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੇ ਸਾਡੇ ਆਮ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਸਾਡੇਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਗੜਬੜ ਮਚਾ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਜਿੱਥੇ ਸਾਡੇ ਕੰਨਾਂ ਦੀ ਸੁਣਨਸ਼ਕਤੀ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮਾਨਸਿਕ ਰੋਗ ਤੇ ਤਣਾਓ ਵੀ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ ।

ਰੇਡੀਓ ਐਕਟਿਵ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ :
ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਵਧ ਰਿਹਾ ਰੇਡੀਓ ਐਕਟਿਵ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਜੋ ਕਿ ਪ੍ਰਮਾਣੂ ਹਥਿਆਰਾਂ ਤੇ ਨਿਊਕਲੀਅਰ ਪਾਵਰ ਪਲਾਂਟਾਂ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਲੈੱਕਟਾਨਿਕ ਉਪਕਰਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲਦੀ ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਲਈ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਸਿੱਧ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ ।

ਖ਼ੁਰਾਕ ਵਿਚ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ :
ਹਵਾ, ਪਾਣੀ ਤੇ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਗੰਧਲਾ ਹੋਣ, ਕੀਟਨਾਸ਼ਕ ਦਵਾਈਆਂ ਦੇ ਛਿੜਕਾ ਤੇ ਖਾਦਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਤੇ ਬਹੁਤਾ ਲਾਭ ਲੈਣ ਦੀ ਵਪਾਰੀ ਰੁਚੀ ਨੇ ਸਾਡੀ ਖ਼ੁਰਾਕ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਫਲਾਂ, ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਤੇ ਦੁੱਧ ਨੂੰ ਵੀ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਅਸੀਂ ਸ਼ੁੱਧ ਖਾਣਿਆਂ ਦੀ ਥਾਂ ਜ਼ਹਿਰਾਂ ਮਿਲੇ ਖਾਣੇ ਖਾ ਰਹੇ ਹਾਂ ਤੇ ਨਿਤ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਦੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਰਹੇ ਹਾਂ ।

ਖ਼ਬਰਦਾਰ ਹੋਣ ਦੀ ਲੋੜ :
ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਤੱਥਾਂ ਤੋਂ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣਾਂ ਕਾਰਨ ਮਨੁੱਖਾਂ, ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਲਈ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੇ ਖ਼ਤਰਿਆਂ ਦਾ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੇ ਜਿੱਥੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਆਮ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਜ਼ੁਕਾਮ, ਖੰਘ, ਦਮਾ, ਬੋਲਾਪਨ, ਪੇਟ ਗੈਸ, ਖ਼ੂਨ ਦੇ ਦਬਾਓ, ਸਿਰ ਦਰਦ, ਮਾਨਸਿਕ ਤਣਾਓ, ਉਦਾਸੀ ਤੇ ਮਾਯੂਸੀ ਆਦਿ ਨੂੰ ਵਧਾਇਆ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸਮੁੱਚੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਹੀ ਖ਼ਤਰੇ ਵਿਚ ਪਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਧਰਤੀ ਉੱਤੇ ਮਨੁੱਖ ਸਮੇਤ ਸਾਰੇ ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦਾ ਜੀਵਨ ਸ਼ੁੱਧ ਹਵਾ, ਸ਼ੁੱਧ ਪਾਣੀ, ਸ਼ੁੱਧ ਖ਼ੁਰਾਕ, ਸ਼ੁੱਧ ਮਿੱਟੀ ਤੇ ਅਨੁਕੂਲ ਸੂਰਜੀ ਗਰਮੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਾਇਮ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਸਕਦਾ ਹੈ ਪਰ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਕੁਦਰਤ ਦੀਆਂ ਸੁਗ਼ਾਤਾਂ ਨੂੰ ਵਿਗਾੜ ਕੇ ਆਪਣੀ ਸਮੁੱਚੀ ਹੋਂਦ ਲਈ ਖ਼ਤਰਾ ਪੈਦਾ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ । ਕੁਦਰਤ ਵਿਚ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਇਸ ਦਖ਼ਲ ਨੇ ਕੁਦਰਤ ਦੇ ਵਰਤਾਰੇ ਨੂੰ ਵੀ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਮੌਸਮ ਬੇਯਕੀਨੇ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ । ਕੁਦਰਤੀ ਆਫ਼ਤਾਂ ਦਾ ਰੂਪ ਵਧੇਰੇ ਭਿਆਨਕ ਹੁੰਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਮੁੱਕਦੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਧਰਤੀ ਉੱਪਰ ਆਪਣੀ ਹੋਂਦ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਆਪਣੀ ਵਧਦੀ ਅਬਾਦੀ ਨੂੰ ਰੋਕਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਪਣੀਆਂ ਲਾਲਸਾਵਾਂ ਵਿਚੋਂ ਉਪਜੀਆਂ ਆਪਣੀਆਂ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਕੰਮ ਅਜਿਹਾ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਕੁਦਰਤ ਦਾ ਆਪਣਾ ਸੰਤੁਲਨ ਵਿਗੜਦਾ ਹੋਵੇ ਤੇ ਧਰਤੀ ਉੱਪਰਲਾ ਵਾਤਾਵਰਨ ਪਲੀਤ ਹੁੰਦਾ ਹੋਵੇ (ਅਬਾਦੀ ਘਟਣ ਨਾਲ ਹੀ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ, ਮੋਟਰਾਂ-ਗੱਡੀਆਂ, ਖੇਤੀ ਉਪਕਰਨਾਂ, ਕੀੜੇ-ਮਾਰ ਦਵਾਈਆਂ, ਖਾਦਾਂ ਤੇ ਧੁਨੀ-ਪ੍ਰਦੁਸ਼ਣ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਯੰਤਰਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਘਟੇਗੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਘੱਟ ਹੋਣ ਨਾਲ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਵੀ ਘੱਟ ਹੋਵੇਗਾ । ਨਾਲ ਹੀ ਪ੍ਰਮਾਣੁ-ਬੰਬਾਂ ਤੋਂ ਉਪਜਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜ਼ਹਿਰਾਂ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਖ਼ਾਤਰ ਸੰਸਾਰ-ਅਮਨ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਲਈ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਕਦਮ ਪੁੱਟਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

50. ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਜਾਂ ਸੈੱਲਫੋਨ
ਜਾਂ
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦੀ ਲੋਕ-ਪ੍ਰਿਅਤਾ-ਲਾਭ ਤੇ ਹਾਨੀਆਂ

ਅਮੀਰ-ਗ਼ਰੀਬ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਹੋ ਕਾਰਨ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ ਦੁਨੀਆ ਦੀ 7 ਅਰਬ, 40 ਕਰੋੜ ਅਬਾਦੀ ਵਿਚੋਂ 6 ਅਰਬ ਤੋਂ ਵੱਧ ਲੋਕ ਮੋਬਾਈਲ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਇਸ ਸਮੇਂ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 95 ਕਰੋੜ ਤੋਂ ਉੱਪਰ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ ।

ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਵਿਚ ਵਧਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ :
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦੇ ਖ਼ਪਤਕਾਰਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤੀ ਗਿਣਤੀ ਨੌਜਵਾਨ ਮੁੰਡਿਆਂ-ਕੁੜੀਆਂ ਦੀ ਹੈ । ਬਹੁਤਿਆਂ ਲਈ ਤਾਂ ਮਹਿੰਗੇ ਮੋਬਾਇਲ ਫੋਨ ਇਹ ਆਪਣੀ ਅਮੀਰੀ ਤੇ ਉੱਚੀ ਰਹਿਣੀ-ਬਹਿਣੀ ਦੇ ਦਿਖਾਵੇ ਦਾ ਚਿੰਨ੍ਹ ਹੈ, ਜਿਸਦਾ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਵਿਚ ਉਹ ਮਾਣ ਤੇ ਵਡਿਆਈ ਸਮਝਦੇ ਹਨ । ਉੱਬ ਨੌਜਵਾਨ ਵਰਗ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਹਰ ਪੱਧਰ ਤੇ ਹਰ ਕਿੱਤੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵਿਅਕਤੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇੰਝ ਜਾਪਦਾ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਅੱਜ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨਾਂ ਦੇ ਸਿਰ ਉੱਤੇ ਹੀ ਚਲ ਰਹੀ ਹੋਵੇ ।
ਆਓ ਜ਼ਰਾ ਦੇਖੀਏ ਇਸ ਦੇ ਲਾਭ ਕੀ ਹਨ ?

ਸੰਚਾਰ ਦਾ ਹਰਮਨ :
ਪਿਆਰਾ ਸਾਧਨ-ਉੱਪਰ ਦੱਸੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਲਾਭ ਤਟਫਟ ਸੂਚਨਾ-ਸੰਚਾਰ ਦਾ ਸਾਧਨ ਹੋਣਾ ਹੈ । ਤੁਸੀਂ ਭਾਵੇਂ ਕਿੱਥੇ ਵੀ ਅਤੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਹੋਵੋ, ਇਹ ਨਾ ਕੇਵਲ ਤੁਹਾਡੀ ਗੱਲ ਜਾਂ ਸੰਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਮਿੰਟਾਂ-ਸਕਿੰਟਾਂ ਵਿਚ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਕਿਸੇ ਥਾਂ ਵੀ ‘ਕਿਸੇ ਵੀ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਤੁਹਾਡੇ ਮਿੱਤਰ-ਪਿਆਰੇ, ਸਨੇਹੀਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰ ਜਾਂ ਵਪਾਰਕ ਸੰਬੰਧੀ ਤਕ ਪੁਚਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਉਸ ਦਾ ਉੱਤਰ ਵੀ ਨਾਲੋ-ਨਾਲ ਤੁਹਾਡੇ ਤਕ ਪੁਚਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ।

‘ਆਰਥਿਕ ਉੱਨਤੀ ਦਾ ਸਾਧਨ ;
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦਾ ਦੂਜਾ ਵੱਡਾ ਲਾਭ ਸੂਚਨਾ-ਸੰਚਾਰ ਵਿਚ ਤੇਜ਼ੀ ਆਉਣ ਦਾ ਹੀ ਸਿੱਟਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਜਿੱਥੇ ਸਾਡੇ ਪਰਿਵਾਰਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ, ਆਰਥਿਕ ਤੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਸਾਡੀ ਕਿਰਿਆਤਮਕਤਾ ਨੂੰ ਹੁਲਾਰਾ ਮਿਲਦਾ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਨਾਲ ਹੀ ਵਪਾਰਕ ਤੇ ਆਰਥਿਕ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਉਤਪਾਦਨ, ਖ਼ਰੀਦ-ਫਰੋਖਤ, ਮੰਗਪੁਤੀ, ਦੇਣ-ਲੈਣ, ਭੁਗਤਾਨ ਅਤੇ ਕਾਨੂੰਨ-ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਸੁਧਾਰ ਵਿਚ ਗਤੀ ਆਉਣ ਨਾਲ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਦਰ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲੀ ਵਧਦੀ ਹੈ ਤੇ ਜੀਵਨ-ਪੱਧਰ ਉੱਚਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦਾ ਸਾਧਨ :
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦਾ ਤੀਜਾ ਲਾਭ ਇਸ ਦਾ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦਾ ਸਾਧਨ ਹੋਣਾ ਹੈ ਤੇ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਜੇਬ ਵਿਚ ਹੁੰਦਿਆਂ ਸਾਨੂੰ ਇਕੱਲ ਦਾ ਬਹੁਤਾ ਅਹਿਸਾਸ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਇਸ ਨਾਲ ਜਿੱਥੇ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਇਕੱਲ ਨੂੰ ਤੋੜਨ ਲਈ ਕਿਸੇ ਵੀ ਮਨ-ਭਾਉਂਦੇ ਵਿਅਕਤੀ ਨਾਲ ਗੱਲਾਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਉੱਥੇ ਅਸੀਂ ਇੰਟਰਨੈੱਟ, ਈ, ਮੇਲ, ਫੇਸ ਬੁੱਕ, ਟਵਿੱਟਰ, ਵੱਟ ਸੈਪ, ਐੱਮ. ਪੀ. 3, ਰੇਡੀਓ, ਟੈਲੀਵਿਯਨ, ਕੈਮਰੇ ਤੇ ਵੀ. ਡੀ. ਓ. ਗੇਮਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰ ਕੇ ਆਪਣਾ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵਾ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਤੇ ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵੀ ਵਾਧਾ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਲਾਭ :
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦਾ ਅਗਲਾ ਵੱਡਾ ਲਾਭ ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਹੈ । ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਉਤਪਾਦਕ ਕੰਪਨੀਆਂ ਭਿੰਨ ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਨਵੇਂ-ਨਵੇਂ ਦਿਲ-ਖਿੱਚਵੇਂ ਮਾਡਲਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰਕਿਟ ਵਿਚ ਪਰੋਸ ਕੇ ਤੇ ਇਸ ਸੰਚਾਰ ਸਾਧਨ ਦੀ ਸੇਵਾ ਮੁਹੱਈਆ ਕਰਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਸਕੀਮਾਂ ਤੇ ਪੈਕਿਜਾਂ ਨਾਲ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨਾਂ ਨੂੰ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਖ਼ਰੀਦ-ਸ਼ਕਤੀ ਦੇ ਅਨੁਕੂਲ ਬਣਾਉਂਦੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਖ਼ਪਤਕਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ । ਵਧਾ ਕੇ ਅਰਬਾਂ ਰੁਪਏ ਕਮਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ । ਇਹ ਕੰਪਨੀਆਂ ਇਸ ਧਨ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ । ਪ੍ਰਾਜੈਕਟਾਂ ਵਿਚ ਲਾ ਕੇ ਜਿੱਥੇ ਆਪ ਹੋਰ ਧਨ ਕਮਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਵੀ ਹਿੱਸਾ ਪਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਲੱਖਾਂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰਾਂ ਲਈ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇ ਮੌਕੇ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਜੁਰਮ-ਪੜਤਾਲੀ ਏਜੰਸੀਆਂ ਲਈ ਸਹਾਇਕ :
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦਾ ਲਾਭ ਜੁਰਮਾਂ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਕਰਨ ਵਿਚ ਪੁਲਿਸ ਤੇ ਹੋਰਨਾਂ ਗੁਪਤਚਰ ਏਜੰਸੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਹੋਇਆ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਆਉਣ ਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਕਾਲਾਂ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਰਾਹੀਂ ਪੁਲਿਸ ਤੇ ਗੁਪਤਚਰ ਏਜੰਸੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮੁਜਰਮਾਂ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਦੇ ਲੁਕਵੇਂ ਥਾਂ-ਟਿਕਾਣੇ ਲੱਭ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦੇ ਸਮਰੱਥ ਹੋਈਆਂ ਹਨ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਥਾਂਵਾਂ ਉੱਤੇ ਹੋਏ ਅੱਤਵਾਦੀ ਹਮਲਿਆਂ, ਬੰਬ ਕੇਸਾਂ ਤੇ ਅਗਵਾ ਕਾਂਡਾਂ ਦੀ ਗੁੱਥੀ ਸੁਲਝਾਈ ਜਾ ਸਕੀ ਹੈ । ਫਲਸਰੂਪ ਕਈ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਮੁਜਰਿਮ ਫੜੇ ਜਾਂ ਮਾਰੇ ਜਾ ਸਕੇ ਹਨ

ਮੁੱਠੀ ਵਿਚ ਆਉਣ ਵਾਲਾ ਕੰਪਿਉਟਰ ;
ਅੱਜ ਦੇ ਵਿਕਸਿਤ ਮੋਬਾਇਲ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਤੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਐਪਲੀਕੇਸ਼ਨਾਂ ਦੀ ਸਹੂਲਤ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਇਕ ਬਹੁਤ ਨਾਯਾਬ ਚੀਜ਼ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਅਸੀਂ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੇ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਲਾਭ ਉਠਾ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਇਸ ਉੱਤੇ ਸਾਨੂੰ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਸੋਸ਼ਲ-ਸਾਇਟਾਂ, ਈ-ਮੇਲ, ਜੀ.ਪੀ.ਐੱਸ., ਵੈਬਸਾਈਟਾਂ, ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਤੇ ਰੇਡਿਓ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ, ਗੇਮਾਂ, ਕੈਮਰਾ, ਵੀਡੀਓ ਤੇ ਹਿਸਾਬ-ਕਿਤਾਬ ਦੇ ਸਾਰੇ ਕਾਰਜਕ੍ਰਮ ਤੇ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਣ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹਨ ।

ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਅਤੇ ਰੇਡੀਓ ਦਾ ਪੂਰਕ :
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਐੱਸ. ਐੱਮ. ਐੱਸ. ਦੀ ਸਹੂਲਤ, ਜਿੱਥੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਸੰਚਾਰ ਕਰਨ ਅਤੇ ਆਪਸ ਵਿਚ ਲਤੀਫ਼ੇ ਤੇ ਦਿਲ-ਲਗੀਆਂ ਦੇ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰ ਕੇ ਮਨ ਨੂੰ ਤਣਾਓ-ਮੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਪਦਾਰਥ ਮੁਹੱਈਆ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਵਿਚ ਦਿਖਾਏ ਜਾ ਰਹੇ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਵਿਚ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਕਰ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਅੰਦਰ ਮੁਕਾਬਲੇਬਾਜ਼ੀ ਦੀ ਭਾਵਨਾ, ਆਸ਼ਾਵਾਦ ਤੇ ਜਗਿਆਸਾ ਨੂੰ ਵੀ ਮਘਾਉਂਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਰਸ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕਾਂ, ਖ਼ਾਸ ਕਰ ਕਲਾਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪਦਾਰਥਕ ਲਾਭਾਂ ਦੇ ਨਾਲਨਾਲ ਲੋਕ-ਮਕਬੂਲੀਅਤ ਵੀ ਹਾਸਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲਾਭਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਅਜੋਕੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਨੁਕਸਾਨ ਵੀ ਪੁਚਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਲੇਖਾ-ਜੋਖਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ ।

ਸਮਾਜ ਵਿਰੋਧੀ ਅਨਸਰਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ :
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਨੁਕਸਾਨ ਇਸ ਦਾ ਸਮਾਜ-ਵਿਰੋਧੀ, ਗੁੰਡਾ ਅਨਸਰਾਂ ਤੇ ਕਪਟੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣਾ ਹੈ । ਸੂਚਨਾ ਦਾ ਤੇਜ਼, ਨਿੱਜੀ, ਸਰਲ ਤੇ ਸੌਖਾ ਸਾਧਨ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਇਸ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਵਿਰੋਧੀ ਅਤੇ ਛਲ-ਕਪਟ, ਬਲੈਕ-ਮੇਲ ਤੇ ਧੋਖੇ ਭਰੇ ਕੰਮਾਂ ਨੂੰ ਨੇਪਰੇ ਚਾੜ੍ਹਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਕੋਈ ਵੀ ਵੱਡਾ ਜੁਰਮ ਚੋਰੀ, ਡਾਕਾ, ਅਗਵਾ-ਕਾਂਡ ਜਾਂ ਅੱਤਵਾਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਸਿਰੇ ਨਹੀਂ ਚੜ੍ਹੀ ਹੁੰਦੀ ।

ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਵਿਚ ਅਸ਼ਲੀਲਤਾ ਦਾ ਪਸਾਰ :
ਨੌਜਵਾਨ ਮੁੰਡੇ-ਕੁੜੀਆਂ, ਖ਼ਾਸ ਕਰ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਅਤੇ ਵਿਹਲੜਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਨਹੀਂ ਪਰ ਇਸ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਵਰਤੋਂ ਸਕੂਲਾਂ-ਕਾਲਜਾਂ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਦੇ ਮੁੰਡੇ-ਕੁੜੀਆਂ ਹੀ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਬਾਲਗ਼ ਤੇ ਨਾਬਾਲਗ਼ ਮੁੰਡੇ-ਕੁੜੀਆਂ ਵਲੋਂ ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਜਾਇਜ਼ ਢੰਗ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਾਹੀਂ ਨਾਬਾਲਗਾਂ ਵਿਚ ਨਾ ਕੇਵਲ ਅਸ਼ਲੀਲ ਸਮੱਗਰੀ ਦੇ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ ਚਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿਚ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਉੱਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਾ ਦਿੱਤੀ ਹੈ । ਕਾਲਜਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਕੈਮਰੇ ਵਾਲੇ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਅਤੇ ਐੱਮ. ਐੱਮ. ਐੱਸ. ਦੀ ਲਚਰਤਾ ਭਰੀ ਵਰਤੋਂ ਬਾਰੇ ਖ਼ਬਰਾਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਇੱਥੇ ਇਹ ਗੱਲ ਕਹਿਣੀ ਗ਼ਲਤ ਨਹੀਂ ਕਿ ਇਸ ਦੀ ਸਕੂਲ ਟਾਈਮ ਵਿਚ ਵਰਤੋਂ ਉੱਤੇ ਬਿਲਕੁਲ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਸ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੀ ਸਹੁਲਤ ਨੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਵਿਚ ਅਸ਼ਲੀਲਤਾ, ਨੰਗੇਜ ਤੇ ਅਨੈਤਿਕਤਾ ਨੂੰ ਵਧਾਇਆ। ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

ਸਿਹਤ ਲਈ ਹਾਨੀਕਾਰਕ :
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦਾ ਅਗਲਾ ਵੱਡਾ ਨੁਕਸਾਨ ਸਿਹਤ ਸੰਬੰਧੀ ਹੈ । ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦੇ ਹੈੱਡ-ਸੈਂਟ ਅਤੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਟਾਵਰ ਵਰਗੇ ਐਨਟੀਨਾਂ) ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲਦੀ ਰੇਡੀਓ ਫ੍ਰੀਕਿਉਂਸੀ ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ ਸੰਬੰਧੀ ਹੋਈ ਖੋਜ ਨੇ ਸਰੀਰ ਉੱਤੇ ਪੈਂਦੇ ਇਸ ਦੇ ਬੁਰੇ ਅਸਰਾਂ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕਰਦਿਆਂ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਕੈਂਸਰ, ਲਿਊਕੈਮੀਆਂ, ਖੂਨ ਦਾ ਦਬਾਓ, ਮਾਯੂਸੀ ਤੇ ਆਤਮਘਾਤੀ ਰੁਚੀ ਵਰਗੇ ਲਾਇਲਾਜ ਰੋਗ ਲਗ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਹੈੱਡ-ਸੈੱਟ ਨੂੰ ਸਿਰ ਦੇ ਕੋਲ ਕੰਨ ਨਾਲ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪੈਸੇ ਬਟੋਰੂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦੀ ਲੁੱਟ :
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦਾ ਅਗਲਾ ਵੱਡਾ ਨੁਕਸਾਨ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਦੇ ਨਿੱਤ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋ ਰਹੇ ਨਵੇਂ ਮਾਡਲਾਂ ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਉੱਪਰ ਹੋ ਰਹੇ ਖ਼ਰਚੇ ਦਾ ਬੇਸ਼ੱਕ ਉੱਪਰਲੇ ਤਬਕੇ ਉੱਪਰ ਕੋਈ ਅਸਰ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ, ਪਰੰਤੁ ਹੇਠਲੀ ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਤੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਜੇਬਾਂ ਉੱਪਰ ਬਹੁਤ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਜਿੱਥੇ ਹੈੱਡ-ਸੈੱਟ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਨਵੇਂ-ਨਵੇਂ ਤੇ ਬਹੁਮੰਤਵੀ ਮਾਡਲਾਂ ਨਾਲ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪੁਰਾਣੇ ਮਾਡਲ ਦੇ ਹੈੱਡ-ਸੈੱਟਾਂ ਦੀ ਥਾਂ ਨਵੇਂ ਮਾਡਲ ਖ਼ਰੀਦਣ ਲਈ ਉਕਸਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਸੰਚਾਰ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਨਵੀਆਂ-ਨਵੀਆਂ ਸਕੀਮਾਂ ਤੇ ਪੈਕਿਜਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਤਰ੍ਹਾਂ-ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਰਿੰਗ-ਟੋਨਾਂ ਬਣਾ ਕੇ, ਐੱਸ. ਐੱਮ. ਐੱਸ. ਤੇ ਐੱਮ. ਐੱਮ. ਐੱਸ. ਰਾਹੀਂ ਲੱਚਰ ਤੇ ਅਭੱਦਰ ਲਤੀਫ਼ੇ, ਤਸਵੀਰਾਂ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਛਲਾਊ ਮੁਕਾਬਲੇ ਪਰੋਸ ਕੇ ਤੇ ਖ਼ਪਤਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਕਰੋੜਾਂ ਰੁਪਏ ਬਟੋਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦਾ ਕਪਟ-ਜਾਲ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਕੰਗਾਲ ਤੇ ਕਰਜ਼ਾਈ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਕਈ ਐੱਸ. ਐੱਮ. ਐੱਸ. ਤਾਂ ਇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਜੂਆ ਖਿਡਾਉਣ ਲਈ ਹੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਖ਼ਲਲ :
ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦਾ ਇਕ ਹੋਰ ਵੱਡਾ ਨੁਕਸਾਨ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਜਦੋਂ ਸਭਾ, ਸੰਗਤ, ਕਲਾਸ, ਸਮਾਗਮ ਜਾਂ ਕਾਨਫਰੰਸ ਵਿਚ ਬੈਠੇ ਕਿਸੇ ਬੰਦੇ ਦੀ ਜੇਬ ਵਿਚ ਇਸ ਦੀ ਘੰਟੀ ਵੱਜਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਸਭ ਦਾ ਧਿਆਨ ਉਚਾਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਤਾਂ ਇਹ । ਘੰਟੀਆਂ ਅਰਥਾਤ ਰਿੰਗ-ਟੋਨਾਂ ਗਾਣਿਆਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਬੜੀਆਂ ਅਭੱਦਰ, ਅਪ੍ਰਸੰਗਿਕ ਤੇ ! ਸ਼ਰਮਸਾਰ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ :
ਇਸ ਦਾ ਇਕ ਹੋਰ ਗੰਭੀਰ ਨੁਕਸਾਨ ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਬੇਪਰਵਾਹੀ ਤੇ ਮੂਰਖਤਾ ਕਰਕੇ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਲੋਕ ਕਾਰ, ਸਕੂਟਰ, ਮੋਟਰ ਸਾਈਕਲ ਜਾਂ ਸਾਈਕਲ ਉੱਤੇ ਜਾਂਦਿਆਂ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਮੋਢੇ ਉੱਤੇ ਰੱਖ ਕੇ ਤੇ ਕੰਨ ਹੇਠ ਦਬਾ ਕੇ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਨਾਲ ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ ਹਰ ਵੇਲੇ ਬਣਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । । ਲੋਕ-ਪ੍ਰਿਅਤਾਂ-ਬੇਸ਼ੱਕ ਉੱਪਰ ਅਸੀਂ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦੇ ਫ਼ਾਇਦਿਆਂ ਨਾਲ ਇਸ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਨੁਕਸਾਨ ਵੀ ਗਿਣਾਏ ਹਨ ਪਰ ਇਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਕਿ ਇਹ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ਤੇ ਲੋਕ ਇਸ ਦੇ ਖ਼ਤਰਿਆਂ ਦੀ ਪ੍ਰਵਾਹ ਨਾ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਇਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਤਤਪਰ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

51. ਕੰਪਿਊਟਰ ਦਾ ਯੁਗ

ਅਦਭੁਤ ਤੇ ਲਾਸਾਨੀ ਮਸ਼ੀਨ :
ਕੰਪਿਊਟਰ ਵਰਤਮਾਨ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਇਕ ਅਦਭੁਤ, ਤੇ ਲਾਸਾਨੀ ਦੇਣ ਹੈ । ਇਹ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਮਸ਼ੀਨ ਹੈ । ਜਿਹੜੀ ਸਾਡੇ ਘਰਾਂ, ਦਫ਼ਤਰਾਂ, ਸਕੂਲਾਂ, ਹਸਪਤਾਲਾਂ, ਬੈਂਕਾਂ, ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨਾਂ, ਹਵਾਈ ਅੱਡਿਆਂ, ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਖੋਜ ਤੇ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕੇਂਦਰਾਂ, ਪੁਲਿਸ ਕੇਂਦਰਾਂ, ਫ਼ੌਜ, ਵਿੱਦਿਅਕ ਤੇ ਸੱਨਅਤੀ ਅਦਾਰਿਆਂ ਤੇ ਗਰਾਫ਼ਿਕਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਆਮ ਵਰਤੀ ਜਾਣ ਲੱਗੀ ਹੈ । ਜਿੱਥੇ ਪੈਟਰੋਲ, ਕੋਇਲੇ ਤੇ ਬਿਜਲੀ ਨਾਲ ਚੱਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਨੇ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸਰੀਰਕ ਤਾਕਤ ਵਿਚ ਕਈ ਗੁਣਾ ਵਾਧਾ ਕੀਤਾ ਸੀ, ਉੱਥੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਉਸ ਦੇ ਦਿਮਾਗ਼ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਉਸਦੇ ਗਿਆਨ ਅਤੇ ਜਾਗਰੁਕਤਾ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਸੋਚ ਨੂੰ ਤਿੱਖੀ ਕਰਨ ਲਈ ਤੇਜ਼, ਅਚੁਕ ਤੇ ਬਹੁਪੱਖੀ ਸਾਮੱਗਰੀ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

(ਰੂਪ ਰੇਖਾ-ਅਦਭੁਤ ਤੇ ਲਾਸਾਨੀ-ਸੰਭਾਵਨਾਵਾਂ-ਕੰਪਿਉਟਰ ਕੀ ਹੈ-ਦੇਣ-ਆਮ ਵਰਤੋਂ ਵਿਚ ਆਉਣ ਵਾਲਾ-ਸੰਚਾਰ ਤੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੈੱਟਵਰਕ-ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵ-ਕੰਮ, ਕਾਜ ਦੇ ਸਥਾਨਾਂ ਉੱਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵ-ਸਰਕਾਰੀ ਤੇ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ-ਰੋਬੋਟ-ਰੋਗੀਆਂ ਤੇ ਅਪਾਹਿਜਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ-ਹੋਰ ਖੇਤਰ-ਵਰਤਮਾਨ ਸਦੀ-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ ।)

ਸੰਭਾਵਨਾਵਾਂ :
ਭਾਰਤੀ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੂੰ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕੀਤਿਆਂ ਅਜੇ ਮਸਾਂ ਤਿੰਨ ਕੁ ਦਹਾਕੇ ਹੀ ਹੋਏ ਹਨ, ਪਰੰਤੂ ਇਸ ਨੇ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਥਾਂ ਬਣਾ ਲਈ ਹੈ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਕੇਵਲ ਨੌਜਵਾਨ ਹੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਇਸ ਵਲ ਖਿੱਚੇ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦੇ, ਸਗੋਂ ਬੱਚੇ ਤੇ ਬੁੱਢੇ ਵੀ ਇਸ ਬਾਰੇ ਜਾਣਨ ਲਈ ਤਤਪਰ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਅਜਿਹਾ ਹੋਵੇ ਵੀ ਕਿਉਂ ਨਾ ? ਇਸ ਦੀ ਸਕਰੀਨ ਉੱਤੇ ਤਾਂ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਕ੍ਰਿਸ਼ਮੇ ਹੁੰਦੇ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਤਾਂ ਸਾਡਾ ਸਮੁੱਚਾ ਜੀਵਨ ਹੀ ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੇ ਸਹਾਰੇ ਚਲ ਰਿਹਾ ਦਿਖਾਈ ਦੇਵੇਗਾ ।

ਅੱਜ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਅਜਿਹੀਆਂ ਕੰਪਿਊਟਰੀਕ੍ਰਿਤ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕਰਕੇ ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬਾਥਰੂਮ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਦੇ ਤਾਪਮਾਨ ਦੀ ਚਿੰਤਾ ਕਰਨ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਨਹੀਂ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕੱਪੜੇ ਧੋਣ ਵਾਲੀ ਮਸ਼ੀਨ ਵਿਚ ਕੱਪੜੇ ਪਾਉਣ ਮਗਰੋਂ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਸਾਬਣ ਲਾਉਣ, ਪਾਣੀ ਨਾਲ ਧੋਣ ਅਤੇ ਅੰਤ ਨਚੋੜਨ ਤੇ ਸੁਕਾਉਣ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ।

ਸਗੋਂ ਸਾਰਾ ਕੰਮ ਕੰਪਿਊਟਰੀਕ੍ਰਿਤ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਆਪ ਹੀ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਕੰਪਿਊਟਰੀਕ੍ਰਿਤ ਟੀ. ਵੀ. , ਮਾਈਕਰੋਵੇਵ, – ਓਵਨ ਤੇ ਏ. ਸੀ. ਵੀ ਦੇਖ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਜੋ ਕੰਮ ਖ਼ਤਮ ਹੋਣ ਮਗਰੋਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਤਕ ਸਾਡੇ ਬੈਂਡ-ਰੂਮਾਂ ਵਿਚ ਅਜਿਹਾ ਕੰਪਿਊਟਰੀਕ੍ਰਿਤ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ਕਿ ਸਾਡੇ ਬਿਮਾਰ ਹੋਣ ਤੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਆਪ ਹੀ ਸਰੀਰ ਦੀ ਸਕੈਨ ਕਰੇਗਾ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਸ ਦਾ ਇਲਾਜ ਤੇ ਦਵਾਈ ਵੀ ਦੱਸ ਦੇਵੇਗਾ । ਅੱਜ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਅਜਿਹਾ ਕੰਪਿਊਟਰੀਕ੍ਰਿਤ ਅਲਾਰਮ ਮੌਜੂਦ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਘਰ ਵਿਚ ਲਾਉਣ ਨਾਲ ਉਹ ਪੁਲਿਸ ਸਟੇਸ਼ਨ ਨਾਲ ਜੁੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਤੁਹਾਡੇ ਘਰ ਵਿਚ ਘੁਸੜੇ ਚੋਰ ਨੂੰ ਭੱਜਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਪੁਲਿਸ ਦੇ ਸ਼ਿਕੰਜੇ ਵਿਚ ਜਕੜ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਕੰਪਿਊਟਰ ਕੀ ਹੈ ? :
ਕੰਪਿਊਟਰ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਇਲੈੱਕਟ੍ਰਾਨਿਕ ਮਸ਼ੀਨ ਹੈ, ਜਿਸ ਦੇ ਤਿੰਨ ਭਾਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ-ਆਦਾਨ ਭਾਗ, ਕੇਂਦਰੀ ਭਾਗ ਅਤੇ ਪ੍ਰਦਾਨ ਭਾਗ । ਆਦਾਨ ਭਾਗ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਕੇਂਦਰੀ ਭਾਗ ਨੂੰ ਲੋੜੀਂਦੀ ਸੂਚਨਾ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਉਹ ਕੀ ਕਰੇ ਅਤੇ ਕਿਵੇਂ ਕਰੇ ? ਪ੍ਰਦਾਨ ਭਾਗ ਸਾਨੂੰ ਲੋੜੀਂਦੇ ਨਤੀਜੇ ਕੱਢ ਕੇ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਕੇਂਦਰੀ ਭਾਗ ਨੂੰ ‘ਸੈਂਟਰਲ ਪਰੋਸੈਸਿੰਗ ਯੂਨਿਟ’ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅਸਲ ਵਿਚ ਇਹ ਕੰਪਿਊਟਰ ਦਾ ਦਿਮਾਗ਼ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੀ. ਆਦਾਨ ਇਕਾਈ ਕਾਰਡ ਜਾਂ ਪੇਪਰ ਟੇਪ ਰੀਡਰ, ਚੁੰਬਕੀ ਟੇਪ, ਕੀ-ਬੋਰਡ ਡਿਸਕ, ਫਲਾਪੀ ਡਿਸਕ, ਆਪਟੀਕਲ ਸਕੈਨਰ ਜਾਂ ਪੈੱਨ ਡਰਾਈਵ ਵਿਚੋਂ ਕਿਸੇ ਇਕ ਜਾਂ ਇਕ ਤੋਂ ਬਹੁਤੀਆਂ ਜੁਗਤਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਪ੍ਰਦਾਨ ਇਕਾਈ ਕਾਰਡ ਪੰਚਰ, ਲਾਈਨ ਪ੍ਰਿੰਟਰ, ਟੇਪ ਪੰਚਰ, ਚੁੰਬਕੀ ਡਿਸਕ, ਫਲਾਪੀ ਡਿਸਕ, ਆਪਟੀਕਲ ਸਕੈਨਰ ਜਾਂ ਪੈਂਨ ਡਰਾਈਵ ਵਿਚੋਂ ਕਿਸੇ ਇਕ ਜਾਂ ਇਕ ਤੋਂ ਬਹੁਤੀਆਂ ਜੁਗਤਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

ਸੀ. ਪੀ. ਯੂ. ਦੇ-ਨਿਯੰਤਰਨ ਇਕਾਈ, ਏ, ਐੱਲ. ਯੂ. ਇਕਾਈ ਅਤੇ ਭੰਡਾਰੀਕਰਨ ਇਕਾਈ-ਮੁੱਖ ਹਿੱਸੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਆਦਾਨ ਭਾਗ ਰਾਹੀਂ ਭੇਜੀ ਸੂਚਨਾ ਦੀ ਜਾਂਚ ਕਰ ਕੇ ਸੀ. ਪੀ. ਯੂ. ਲੋੜੀਂਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਿੱਟਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਭਾਗ ਨੂੰ ਭੇਜ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਪ੍ਰਦਾਨ ਭਾਗ ਨਤੀਜੇ ਸਾਨੂੰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੇ ਅੰਗਾਂ ਨੂੰ “ਹਾਰਡ-ਵੇਅਰ’ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਸਮੂਹ, ਜੋ ਕਿਸੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਵਿਚ ਚਲਦਾ ਹੈ, ਨੂੰ “ਸਾਫਟ-ਵੇਅਰ’ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਕੰਪਿਊਟਰ ਦਾ ਵਰਤਮਾਨ ਰੂਪ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਆਪਣੇ ਹਿਸਾਬ-ਕਿਤਾਬ ਦੇ ਕੰਮ ਨੂੰ ਸੌਖਾ ਕਰਨ ਲਈ ਸਦੀਆਂ ਦੀ ਜੱਦੋਜਹਿਦ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਹੋਂਦ ਵਿਚ ਆਇਆ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਚੌਥੀ (1971) ਤੇ ਪੰਜਵੀਂ ਪੀੜੀ । (1980 ਤੋਂ ਅੱਜ ਤਕ ਈ:) ਦੇ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਨਾਲ ਹੈ । ਅਜੋਕੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਦੇ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਵਿਚ ਮਸਨੂਈ ਬੁੱਧੀ ਨੂੰ ਵਿਕਸਿਤ ਕਰਨ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਅਵਾਜ਼ ਦੀ ਪਛਾਣ ਕਰਨ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਹੈ । ਆਸ ਹੈ ਕਿ ਜਲਦੀ ਹੀ ਅਜਿਹੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋ ਜਾਣਗੇ । ਨਿੱਜੀ ਕੰਪਿਊਟਰ 1984 ਵਿਚ ਹੋਂਦ ਵਿਚ ਆਇਆ ਤੇ ਇਸ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਪੰਜਵੀਂ ਪੀੜ੍ਹੀ ਨਾਲ ਹੈ ।

ਅਗਲੀ ਪੀੜੀ ਦੇ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਵਿਚ ਬੋਲਣ, ਸੋਚਣ, ਸਮਝਣ, ਫ਼ੈਸਲਾ ਕਰਨ, ਤਰਕ ਕਰਨ ਅਤੇ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਯੋਗਤਾਵਾਂ ਹੋਣਗੀਆਂ । । ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੀ ਦੇਣ-ਮਨੁੱਖੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਅਜਿਹਾ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਹੋਇਆ । ਕਿਸੇ ਯੰਤਰ ਨੇ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਉੱਨਤੀ ਤੇ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲੀ ਵਿਚ ਇੰਨਾ ਵਧੇਰੇ ਹਿੱਸਾ ਪਾਇਆ ਹੋਵੇ, ਜਿੰਨਾ ਕੰਪਿਉਟਰ ਨੇ ਪਾਇਆ ਹੈ । ਇਹ ਯੰਤਰ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਉੱਤੇ ਆਪਣੀ ਅਮਿਟ ਛਾਪ ਲਾ ਚੁੱਕਾ ਹੈ ।

ਆਮ ਵਰਤੋਂ ਵਿਚ ਆਉਣ ਵਾਲਾ :
ਕੰਪਿਊਟਰ ਅੱਜ ਆਮ ਵਰਤਿਆ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਯੰਤਰ ਹੈ । ਕੰਪਿਉਟਰ ਨੇ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਦਿਮਾਗੀ ਸ਼ਕਤੀ ਵਿਚ ਕਈ ਗੁਣਾ ਵਾਧਾ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਹਿਸਾਬ-ਕਿਤਾਬ ਰੱਖਣ ਵਿਚ, ਸੂਚਨਾਵਾਂ ਅਤੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਇਕੱਠੀ ਕਰਨ ਅਤੇ । ਉਸ ਨੂੰ ਯਾਦ ਰੱਖਣ ਵਿਚ ਸੌ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਯਕੀਨੀ ਅਤੇ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਸੇਵਕ ਹੈ । ਇਹ ਅਣਗਿਣਤ ਕੰਮ ਬਿਨਾਂ ਥਕਾਵਟ ਤੋਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਵੱਡੇ ਉਦਯੋਗਿਕ ਕੇਂਦਰਾਂ ਵਿਚ ਇਹ ਸ਼ੈ-ਚਾਲਕਤਾ, ਅਤੇ ਸ਼ੈ-ਨਿਯੰਤਰਨ ਕਾਰਜਾਂ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਸੰਚਾਰ ਤੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੈੱਟਵਰਕ (ਇੰਟਰਨੈੱਟ) :
ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੈੱਟਵਰਕ ਨੇ ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਵਿਚ ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਤੇਜ਼ੀ ਲੈ ਆਂਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਦਿਨੋ-ਦਿਨ ਹਰਮਨਪਿਆਰਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਸੰਚਾਰ-ਸਾਧਨ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੈੱਟਵਰਕ ਤਿੰਨ ਰੂਪਾਂ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਲੈਨ (LAN), ਮੈਨ (MAN) ਤੇ ਵੈਨ (WAN) ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਲੈਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਲੋਕਲ ਏਰੀਆ ਨੈੱਟਵਰਕ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਇਕ ਕੰਪਨੀ ਜਾਂ ਵੱਡੇ ਅਦਾਰੇ ਵਿਚਲੇ ਸਥਾਨਕ ਸੰਚਾਰ ਲਈ ਥਾਂ-ਥਾਂ ਪਏ ਕੰਪਿਉਟਰ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੁੜੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਮੈਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਮੈਟਰੋਪੋਲੀਟਨ ਨੈੱਟਵਰਕ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਇਕ ਅਦਾਰੇ ਜਾਂ ਕੰਪਨੀ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਤੇ ਸਥਾਨਾਂ ਉੱਤੇ ਸਥਿਤ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਦੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੁੜੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ ਸਾਡੇ । ਦੇਸ਼ ਦੇ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਕਿੰਗ ਕਾਉਂਟਰ ਅਤੇ ਬੈਂਕ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੁੜੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਵੈਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ, ਵਾਈਡ-ਏਰੀਆ ਨੈੱਟਵਰਕ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

ਇਸ ਵਿਚ ਸਾਰੀ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੁੜੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਨੂੰ ‘ਇੰਟਰਨੈੱਟ’ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਵਰਤਮਾਨ ਯੁਗ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ, ਤੇਜ਼, ਅਚੁਕ ਤੇ ਸਹੁਲਤਾਂ ਭਰਿਆ ਸੰਚਾਰ-ਸਾਧਨ ਤੇ ਸਰਬਪੱਖੀ ਗਿਆਨ ਦਾ ਸਮੁੰਦਰ ਹੈ । ਇਸ ਰਾਹੀਂ ਅਸੀਂ ਈ-ਮੇਲ ਉੱਤੇ ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਵਿਚ ਕਿਤੇ ਵੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਲੋਕਾਂ ਤਕ ਆਪਣੇ ਸੁਨੇਹੇ ਪੁਚਾ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਛਪੇ ਹੋਏ ਜਾਂ ਲਿਖੇ ਹੋਏ ਕਾਗਜ਼ਾਂ ਦਾ ਪੁਲੰਦਾ ਵੀ ਸਕੈਨ ਕਰ ਕੇ ਭੇਜ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਵੈਬ-ਸਾਈਟਾਂ ਰਾਹੀਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਨੂੰ ਸਾਰੀ ਦੁਨੀਆ ਵਿਚ ਖਿਲਾਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਜਿਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਵੀ ਚਾਹੀਏ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਕਾਈਪ, ਵਟਸ ਐਪ ਤੇ ਫੇਸ ਟਾਈਮ ਆਦਿ ਰਾਹੀਂ ਤੁਸੀਂ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਥਾਂਵਾਂ ਉੱਤੇ ਬੈਠੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਬੰਦਿਆਂ ਨਾਲ ਗੱਲ-ਬਾਤ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਸਾਰੀਆਂ ਧਿਰਾਂ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਦੀ ਤਸਵੀਰ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਅਗਲੇ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਵੀ ਦੇਖ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਵਿਕਸਿਤ ਸੋਸ਼ਲ ਸਾਈਟਾਂ, ਫੇਸ ਬੁੱਕ, ਵਟਸ ਐੱਪ ਤੇ ਟਵਿਟਰ ਆਦਿ ਰਾਹੀਂ ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੇ ਸੰਬੰਧਾਂ, ਮੇਲ-ਮਿਲਾਪ, ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੇ ਤੱਥਾਂ ਦੇ ਆਦਾਨਪ੍ਰਦਾਨ ਦਾ ਘੇਰਾ ਜਿੰਨਾ ਚਾਹੋ, ਵਧਾ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵ :
ਕੰਪਿਉਟਰ ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਵਿਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦਾ ਹਿਸਾਬ-ਕਿਤਾਬ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਤਨਖ਼ਾਹ ਦਾ ਹਿਸਾਬ ਤੇ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸਟਾਕ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਲੋੜ ਅਨੁਸਾਰ ਮਿੰਟਾਂ ਵਿਚ ਦੇ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਹ ਚਿੱਠੀਆਂ, ਰਿਪੋਰਟਾਂ, ਇਕਰਾਰਨਾਮਿਆਂ ਤੇ ਹੋਰ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਤੇ ਸਟੋਰ ਵੀ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਬੈਂਕ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਾਰੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਤੇ ਅਦਾਇਗੀਆਂ ਆਦਿ ਵੀ ਅਸੀਂ ਘਰ ਬੈਠੇ ਹੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

ਕੰਮ-ਕਾਜ ਦੇ ਸਥਾਨਾਂ ਉੱਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵ :
ਕੰਪਿਊਟਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਬਹੁਤਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਆਮ ਕੰਮਕਾਜ ਦੇ ਸਥਾਨਾਂ ਉੱਤੇ ਪਿਆ ਹੈ । ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਅਤੇ ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਵਿਚ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਨੇ ਵੱਡੇ ਤੇ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਕੰਮਾਂ-ਕਾਜਾਂ ਦਾ ਬੋਝ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਫ਼ੈਕਟਰੀਆਂ ਵਿਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਨਿਯੰਤਰਨ ਤੇ ਨਿਰੀਖਣ ਵਿਚ ਸੁਧਾਰ ਹੋਇਆ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਤਪਾਦਨ ਵਧਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਖ਼ਰੀਦਦਾਰਾਂ ਅਤੇ ਕਾਮਿਆਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

ਸਰਕਾਰੀ ਤੇ ਗੈਰ ਸਰਕਾਰੀ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਉੱਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵ :
ਕੰਪਿਊਟਰ ਨਾਲ ਸਰਕਾਰੀ ਅਤੇ ਗੈਰ ਸਰਕਾਰੀ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਵਿਚ ਉਤਪਾਦਨ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਕਾਫ਼ੀ ਵਧਿਆ ਹੈ। ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਹੋਰ ਖੇਤਰਾਂ, ਖ਼ਾਸ ਕਰ ਕਾਨੂੰਨ, ਇਲਾਜ, ਪੜ੍ਹਾਈ, ਇੰਜੀਨੀਅਰਿੰਗ, ਹਿਸਾਬ-ਕਿਤਾਬ ਰੱਖਣ, ਛਪਾਈ ਤੇ ਵਪਾਰ ਆਦਿ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਵਧੇਰੇ ਉੱਨਤੀ ਵੀ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਭਵ ਹੋਈ ਹੈ ।

ਕੰਪਿਊਟਰ ਸੰਚਾਲਿਤ ਰੋਬੋਟ-ਸ਼ੈ :
ਚਾਲਿਤ ਮਸ਼ੀਨੀ ਯੰਤਰ ਰੋਬੋਟ ਵੀ ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਰੋਬੇਟ-ਬਹੁਤ ਹੀ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਅਤੇ ਔਖੇ ਕੰਮਾਂ ਨੂੰ ਬਿਨਾਂ ਝਿਜਕ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਸੰਚਾਲਿਤ ਛੋਟਾ ਰੋਬੋਟ ਕਾਰ ਵਿਚ ਲਾਏ ਗਏ ਚਾਲਕ ਯੰਤਰਾਂ ਦਾ ਸੰਚਾਲਨ ਪੂਰੀ ਯੋਗਤਾ ਨਾਲ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਕਾਰ ਦਾ ਡਰਾਈਵਰ ਚਾਹੇ ਤਾਂ ਅਰਾਮ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਰੋਬੋਟ ਸੰਚਾਲਿਤ ਕਾਰ ਵਿਚ ਪੈਟਰੋਲ ਦੀ ਖਪਤ ਵੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਕ ਅਜਿਹਾ ਮਸ਼ੀਨੀ-ਸੈਨਿਕ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ, ਜੋ ਕਦੇ ਸੌਦਾ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਇਹ ਸੰਘਣੇ ਜੰਗਲੀ ਤੇ ਉੱਚੇ-ਨੀਵੇਂ ਪਹਾੜੀ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਵੀ ਲੰਘ ਸਕਦਾ ਹੈ !

ਰੋਗੀਆਂ ਤੇ ਅਪਾਹਜਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ :
ਹਸਪਤਾਲਾਂ ਵਿਚ ਕੰਪਿਊਟਰ ਰੋਗੀਆਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਉੱਤੇ ਨਜ਼ਰ ਰੱਖਦਾ ਹੈ । ਦਿਲ ਦੀ ਧੜਕਣ ਵਿਚ ਗੜਬੜ ਪੈਣ ਉੱਤੇ ਜਾਂ ਸਾਹ ਵਿਚ ਦਿੱਕਤ ਹੋਣ ਸਮੇਂ ਇਹ ਝਟਪਟ ਅਲਾਰਮ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਡਿਊਟੀ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਚੇਤੰਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਚੱਲਣ ਵਾਲਾ ਸਕੈਨਿੰਗ ਯੰਤਰ ਸਰੀਰ ਦੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਹਿੱਸਿਆਂ ਦਾ ਫੋਟੋ ਲੈ ਕੇ ਤੇ ਨਿਰੀਖਣ ਕਰਕੇ ਅੰਦਰਲੇ ਵਿਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਤੁਰੰਤ ਡਾਕਟਰ ਅੱਗੇ ਪੇਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਮਾਈਕਰੋ ਕੰਪਿਊਟਰ ਅਪਾਹਜ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਬੜਾ ਸਹਾਇਕ ਸਾਬਤ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦਾ ਸਾਧਨ :
ਕੰਪਿਊਟਰ ਉੱਤੇ ਮੌਜੂਦ ਯੂ-ਟਿਊਬ, ਸੋਸ਼ਲ ਮੀਡੀਆ ਤੇ ਬਿਜਲਈ ਗੇਮਾਂ ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਹਨ । ਇਸ ਉੱਤੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਕੇਂਦਰਾਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਗੱਲ ਕੀ ਕੰਪਿਊਟਰ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਤੋਂ ਹਰ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਰੁਚੀ ਅਨੁਸਾਰ ਮਨੋਰੰਜਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀ ਅਸ਼ਲੀਲ ਭੁਚਲਾਊ ਤੇ ਗੁਮਰਾਹ-ਕਰੂ ਸਾਮਗਰੀ ਵੀ ਮੌਜੂਦ ਹੈ, ਜਿਸ ਤੋਂ ਬਚ ਕੇ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਹੋਰ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਸਹਾਇਤਾ :
ਕੰਪਿਊਟਰ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਿੱਦਿਅਕ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਵੀ ਮੌਜ਼ਦ ਹਨ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਤੁਹਾਨੂੰ ਗਣਿਤ, ਭੌਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨ, ਜੀਵ-ਵਿਗਿਆਨ ਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਆਦਿ ਔਖੇ ਵਿਸ਼ੇ ਵੀ ਸਹਿਜੇ ਹੀ ਸਿਖਾ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਆਰਟ ਕੰਪਨੀਆਂ ਤਸਵੀਰਾਂ, ਡਿਜ਼ਾਇਨਾਂ ਤੇ ਪੈਟਰਨ ਆਦਿ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਕੰਪਿਉਟਰ ਬੈਂਕਾਂ ਤੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਕੰਪਨੀਆਂ ਤੇ ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਵਿਚ ਧਨ ਦੇ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਵਿਚ ਵੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਰੋਲ ਅਦਾ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਔਰਤਾਂ ਘਰਾਂ ਦਾ ‘ ਹਿਸਾਬ-ਕਿਤਾਬ ਰੱਖਣ ਲਈ, ਮਹੀਨੇ ਦਾ ਬਜਟ ਤੇ ਖਾਣਾ-ਪਕਾਉਣ ਦੇ ਢੰਗਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਆਦਿ ਪਰਸਨਲ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਵਿਚ ਭੰਡਾਰ ਕਰ ਕੇ ਲੋੜ ਸਮੇਂ ਵਰਤ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ । ਕਈ ਥਾਈਂ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਖ਼ਰਾਬ ਮੌਸਮ ਜਾਂ ਸਿਹਤ ਦੀ ਖ਼ਰਾਬੀ ਕਾਰਨ ਦਫ਼ਤਰ ਜਾਣ ਦੀ ਥਾਂ ਘਰੀਂ ਬੈਠ ਕੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਉੱਤੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕਰ ਕੇ ਆਪਣੀ ਡਿਊਟੀ ਨਿਭਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ।

21ਵੀਂ ਸਦੀ :
21ਵੀਂ ਸਦੀ ਕੰਪਿਊਟਰ ਦੀ ਸਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਦਿਮਾਗੀ ਅਤੇ ਸਰੀਰਕ ਬੋਝ ਹੋਰ ਘਟ ਜਾਵੇਗਾ । ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਢੰਗ ਹੋਰ ਵੀ ਬਦਲ ਜਾਵੇਗਾ । ਕੰਮ ਲੱਭਣ ਲਈ ਦੂਰ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕਰਨ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀਂ ਪਵੇਗੀ । ਇਸ ਨਾਲ ਕਈ ਥਾਂਈਂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਜ਼ਰੂਰ· ਵਧੀ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਇਹ ਵਧੇਰੇ ਚਿੰਤਾ ਦੀ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

ਨੁਕਸਾਨ :
ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੇ ਜਿੱਥੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲਾਭ ਪੁਚਾਏ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਇਸਦੇ ਕੁੱਝ ਨੁਕਸਾਨ ਵੀ ਸਨ । ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਨੁਕਸਾਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਦੁਰਵਰਤੋਂ ਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਬੱਚੇ ਤੇ ਨੌਜਵਾਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਉੱਤੇ ਗੇਮਾਂ ਖੇਡ ਕੇ ਜਾਂ ਸੋਸ਼ਲ ਸਾਈਟਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਸਮਾਂ ਨਸ਼ਟ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜੇਕਰ ਬੱਚਿਆਂ ਤੇ ਨਬਾਲਗਾਂ ਨੂੰ ਅਸ਼ਲੀਲ ਸਾਮਗਰੀ ਦਾ ਚਸਕਾ ਪੈ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਇਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਦੇ ਉਸਾਰੁ ਰਾਹਾਂ ਤੋਂ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭਟਕਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕੰਪਿਊਟਰ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀ ਭੁਚਲਾਊ ਤੇ ਗੁਮਰਾਹਕੁੰਨ ਸਾਮਗਰੀ ਵੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਦੇ ਜਾਲ ਵਿਚ ਫਸ ਕੇ ਵੀ ਕਈ ਲੋਕ ਸਭ ਕੁੱਝ ਲੁਟਾ ਬੈਠਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੈਕਰ ਤੇ ਸਮਾਜ-ਦੋਖੀ ਅਨਸਰ ਵੀ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਗੁਮਰਾਹ ਕਰਨ ਦੀ ਤਾਕ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਸਾਵਧਾਨ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਰਾ ਕੁੱਝ ਉਦੋਂ ਵਧੇਰੇ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਮੋਬਾਈਲ ਉੱਤੇ ਵੀ ਕੰਪਿਊਟਰ ਵਾਲੀ ਸਾਰੀ ਸਾਮਗਰੀ ਮੌਜੂਦ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਸੋ ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੇ ਦੂਰ-ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ, ਵਿੱਦਿਅਕ ਕਾਰਜਾਂ, ਉਦਯੋਗਿਕ ਵਿਕਾਸ, ਦਿਲ-ਪਰਚਾਵੇ, ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਤੇ ਡਾਕਟਰੀ ਕਾਰਜਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਲਾਭ ਪਹੁੰਚਾਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਭਵਿੱਖ ਵਿਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਹੋਰ ਉੱਨਤੀ ਤੇ ਵਿਕਾਸ ਹੋਣ ਦੀਆਂ ਸੰਭਾਵਨਾਵਾਂ ਹਨ । ਅਮਰੀਕੀ ਵਿਗਿਆਨੀ ਰਾਬਰਟ ਫਰੋਸਟ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਸਦੀ ਵਿਚ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ, ਮਨੁੱਖ ਪੁਲਾੜ ਵਿਚ ਸੈ-ਚਾਲਿਤ ਫ਼ੈਕਟਰੀਆਂ ਚਲਾਉਣ ਦੇ ਕਾਬਲ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ਤੇ ਅਗਲੇ 50 ਤੋਂ 100 ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ਸੂਰਜ-ਮੰਡਲ ਦੀ ਛਾਣ-ਪੀਣ ਕਰ ਕੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਲ੍ਹਿਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਖਣਿਜ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਹੋਰ ਵੀ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ।

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52. ਇੰਟਰਨੈੱਟ

ਜਾਣ-ਪਛਾਣ :
ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉਸ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਨਾਂ ਹੈ, ਜਿਸ ਰਾਹੀਂ ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਦੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਤੇ ਮੋਬਾਇਲ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋਏ ਹਨ ਤੇ ਉਹ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਸੰਦੇਸ਼ ਭੇਜ ਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਸੂਚਨਾ ਦਾ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਵਿਚ ਇਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹ ਫਾਈਬਰ ਆਪਟਿਕ ਫ਼ੋਨ-ਲਾਈਨਾਂ, ਸੈਟੇਲਾਈਟ ਸੰਬੰਧਾਂ ਤੇ ਹੋਰਨਾਂ ਮਾਧਿਅਮਾਂ ਦੁਆਰਾ ਆਪਸ ਵਿਚ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਅਜਿਹਾ ਮਾਧਿਅਮ ਹੈ, ਜਿਸ ਰਾਹੀਂ ਅਸੀਂ ਦੁਨੀਆ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਵੀ ਥਾਂ ਬੈਠੇ ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰਾਂ, ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰਾਂ ਤੇ ਕਾਰੋਬਾਰੀ ਸੰਬੰਧੀਆਂ ਤੇ ਭਾਈਵਾਲਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲਾਂ-ਬਾਤਾਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੂਚਨਾ ਭੇਜ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਜਾਣ-ਪਛਾਣ-ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਕੀ ਹੈ ?-ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਪੀੜ੍ਹੀ-ਦੂਜੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਦਾ ਇੰਟਰਨੈੱਟ-ਸੰਚਾਰ ਸੇਵਾਵਾਂ-ਭਵਿੱਖ਼-ਈ-ਕਾਮਰਸ ਦਾ ਵਿਕਾਸ-ਖ਼ਬਰਦਾਰ ਰਹਿਣ ਦੀ ਲੋੜ-ਸਾਰ ਅੰਸ਼)

ਇਹ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਇਕ ਅਜਿਹਾ ਸਮੁੰਦਰ ਹੈ, ਜਿਹੜਾ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਇਸ ਨੂੰ ਰਿੜਕੋ ਤੇ ਇਸ ਵਿਚੋਂ ਚੌਦਾਂ ਨਹੀਂ ਅਣਗਿਣਤ ਰਤਨ ਕੱਢੋ । ਇਸ ਵਿਚ ਵਣਜ-ਵਪਾਰ ਦੇ ਅਸੀਮਿਤ ਸ਼ੁੱਭ ਮੌਕੇ ਮੌਜੂਦ ਹਨ। ਇਹ ਆਪਣੇ ਕੰਮਾਂ ਲਈ ਸੂਚਨਾ ਦਾ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਿੱਤਾਕਾਰਾਂ ਲਈ ਇਕ ਬਹੁਮੁੱਲੀ ਤੇ ਅਣਮੁੱਕ ਖਾਣ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਸੈਂਕੜੇ ਅਜਿਹੀਆਂ ਲਾਇਬਰੇਰੀਆਂ ਅਤੇ ਆਰਕਾਈਵਾਂ ਤੁਹਾਡੀਆਂ ਉਂਗਲਾਂ ਦੇ ਪੋਟਿਆਂ ਉੱਤੇ ਖੁੱਲ੍ਹ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਲਈ ਇਸ ਵਿਚ ਇਹ ਸੋਧਪੱਤਰਾਂ ਲਈ ਖੋਜ ਤੇ ਵਪਾਰੀਆਂ ਲਈ ਵਪਾਰ ਕਰਨ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਬਹੁਮੁੱਲੇ ਸੋਮੇ ਮੌਜੂਦ ਹਨ ।

ਇਸ ਵਿਚ ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਦੇ ਅਪਹੁੰਚ ਥਾਂਵਾਂ ਦੇ ਨਕਸ਼ੇ, ਦ੍ਰਿਸ਼ ਤੇ ਜੀ.ਪੀ.ਐਸ. ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਯੋਗ ਰਾਹ-ਦਸਰੇ ਮੌਜੂਦ ਹਨ । ਇਸ ਉੱਤੇ ਸੋਸ਼ਲ ਸਾਈਟਾਂ ਉੱਤੇ ਦੋਸਤੀਆਂ ਦਾ ਮੇਲਾ ਲੱਗਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਗਿਆਨ ਤੇ ਵਾਕਫ਼ੀ ਦੇ ਬਗੀਚੇ ਖਿੜੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਸ ਵਿਚ ਉਹ ਸ਼ੈਤਾਨੀ ਸਾਮਗਰੀ ਤੇ ਪਾਤਰ ਵੀ ਛਿਪੇ ਹੋਏ ਹਨ, ਜਿਹੜੇ ਆਪਣੀ ਭੁਚਲਾਉ ਤੇ ਵਿਨਾਸ਼ਕਾਰੀ ਭੂਮਿਕਾ ਅਦਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਜੇਕਰ ਹੋਰ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ, ਤਾਂ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਸਮੇਂ ਦਾ ਨਾਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਤਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਹੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ .. ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਇਹ ਭਵਿੱਖ ਦੀ ਅਜਿਹੀ ਤਕਨਾਲੋਜੀ ਹੈ, ਜਿਹੜੀ ਸਾਡੀ ਤੇ ਸਾਡੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਨਿਸਚੇ ਹੀ ਤੇਜ਼, ਸੁਚੇਤ ਤੇ ਖੂਬਸੂਰਤ ਬਣਾਏਗੀ ।

ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਕੀ ਹੈ ? :
ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ, “ਇਹ ਇਕ ਡਾਟਾ ਸੰਚਾਰ ਸਿਸਟਮ ਹੈ, ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ਉੱਤੇ ਪਏ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੋੜ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਇਕ ਨੈੱਟਵਰਕ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਨੈੱਟਵਰਕ ਲੋਕਲ ਖੇਤਰ (LAN), ਚੌੜੇ ਖੇਤਰ (WAN) ਜਾਂ ਸੰਸਾਰ ਵਿਆਪੀ (www) ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਸਰਲ ਰੂਪ ਨੈੱਟਵਰਕ ਲਈ ਘੱਟੋ-ਘੱਟ ਦੋ ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ, ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਇਕ ਤਾਰ ਨਾਲ ਜਾਂ ਤਾਰ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੁੜ ਕੇ ਸੂਚਨਾ ਦਾ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਪਰੰਤੂ ਇਸ ਦਾ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਰੂਪ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਦਾ ਪਸਾਰ ਵਿਸ਼ਵਵਿਆਪੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਇਹ ਸੇਵਾ ਸਮਾਰਟ ਮੋਬਾਈਲ ਫ਼ੋਨਾਂ ਉੱਤੇ ਵੀ ਉਪਲੱਬਧ ਹੈ ।

ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਪੀੜ੍ਹੀ :
ਆਰੰਭ ਵਿਚ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਬਹੁਤ ਗੁਪਤ ਰੂਪ ਵਿਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਸਿਸਟਮ ਮੁੱਖ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਵਿੱਦਿਅਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਤੇ ਖੋਜ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਹੀ ਜਾਣਿਆ ਅਤੇ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਮੁੱਢਲੀ ਵਰਤੋਂ ਇਲੈੱਕਟ੍ਰਾਨਿਕ ਮੇਲ (E-mail) ਲਈ ਵੀ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਸ ਦੀ ਨਿੱਜੀ ਜਾਂ ਵਣਜ-ਵਪਾਰ ਲਈ ਵਰਤੋਂ ਉੱਤੇ ਰੋਕਾਂ ਲੱਗੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਨੂੰ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

ਦੂਜੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਦਾ ਇੰਟਰਨੈੱਟ :
ਦੂਜੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਦੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦਾ ਆਰੰਭ ਬੀਤੀ ਸਦੀ ਦੇ ਅੰਤਮ ਦਹਾਕੇ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਹੋਇਆ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਗਰੁੱਪਾਂ ਵਿਚ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ, ਪਰ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਵਰਤੋਂ ਦੀ ਅਜੇ ਵੀ ਖੁੱਲ੍ਹ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਹੀ ਅਮਰੀਕਾ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਕੰਪਿਊਟਰ ਸੰਚਾਰ ਸੇਵਾ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਜੋੜਿਆ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਕਰੋੜਾਂ ਨਾਨ-ਤਕਨੀਕੀ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਸੰਚਾਰ ਦਾ ਥਰਥਰਾਹਟ ਭਰਿਆ ਮਜ਼ਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਨੂੰ ਵਪਾਰਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਲਈ ਖੋਲ੍ਹ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਇਹ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ।

ਇਸ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਕੰਪਿਊਟਰ, ਮੋਡਮ, ਟੈਲੀਫ਼ੋਨ ਲਾਈਨ, ਸੰਚਾਰ ਸਾਫ਼ਟਵੇਅਰ ਤੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਸੈੱਟ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਸੰਸਥਾ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਅਕਾਉਂਟ ਨੰਬਰ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਪੈਂਦੀ ਹੈ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਅਕਾਉਂਟ ਨੰਬਰ ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਸੇਵਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਸੰਸਥਾ ਤੋਂ ਨਿਸਚਿਤ ਘੰਟਿਆਂ ਲਈ ਮਿੱਥੀ ਹੋਈ ਰਕਮ ਦੇ ਕੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਹ ਯੂਜ਼ਰ ਨੇਮ (User name) ਦੀ ਮਨਜ਼ੂਰੀ ਵੀ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਅਕਾਊਂਟ ਤੇ ਯੂਜ਼ਰ ਨੇਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਸੇਵਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਸੰਸਥਾ ਦਾ ਮਾਹਿਰ ਸਾਡੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸੰਸਥਾ ਨਾਲ ਜੋੜ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਅਤੇ ਮੋਡਮ ਨੂੰ ਚਾਲੂ ਕਰ ਕੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਸਕਰੀਨ ਉੱਤੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਸੇਵਾ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਨਾਂ ਨੂੰ ਮਾਊਸ ਨਾਲ ਕਲਿਕ ਕਰ ਕੇ ਉਸ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ । ਫਿਰ ਅਸੀਂ ਆਪਣਾ ਯੂਜ਼ਰ ਤੇ ਕੋਡ ਨੰਬਰ, ਜੋ ਕਿ ਗੁਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਨੂੰ ਫੀਡ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਨਾਲ ਜੁੜ ਜਾਂਦੇ ਹਾਂ ।

ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਈ-ਮੇਲ ਭੇਜਣੀ ਜਾਂ ਦੇਖਣੀ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਆਉਟ ਲੁਕ ਐਕਸਪ੍ਰੈੱਸ ਨੂੰ ਕਲਿਕ ਕਰ ਕੇ ਈ-ਮੇਲ ਭੇਜਦੇ ਜਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਾਂ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਐਕਸਪਲੋਰਰ ਨੂੰ ਕਲਿਕ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ, ਜਿਹੜੀ ਜਾਂ ਜਿਸ ਕਿਸਮ ਦੀ ਸੂਚਨਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨੀ ਹੋਵੇ, ਉਸ ਦੇ ਵੈੱਬਸਾਈਟ ਦਾ ਐਡਰੈੱਸ ਫੀਡ ਕਰਦੇ ਹਾਂ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵੈਬਸਾਈਟ ਖੁੱਲ੍ਹ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਤੇ ਅਸੀਂ ਉਸ ਤੋਂ ਲੋੜੀਂਦੀ ਸੂਚਨਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ ।

ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦੇ ਵੈਬਸਾਈਟ ਵੀ ਈ. ਮੇਲ ਦੀ ਸਹੂਲਤ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਤੋਂ ਸੂਚਨਾ ਲੈਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਾਫ਼ਟ ਵੇਅਰ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਗੌਫਰ ਤੇ www ਤੇ ਮੌਸੈਕ ਆਦਿ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਨਾਲ ਜੁੜ ਕੇ ਅਸੀਂ Chat ਜਾਂ ਟੈਲੀਫ਼ੋਨ ਵੀ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਹੋਰ ਕੰਮ ਕਰ ਵੀ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਰਾਹੀਂ ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਵੈੱਬਸਾਈਟ ਤੋਂ ਕੋਈ ਵੀ ਸੂਚਨਾ ਆਪਣੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ‘ਤੇ ਲਿਆ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਜਦੋਂ ਕੰਪਿਊਟਰ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਕੋਈ ਕੰਮ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਉਹ ਉਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਵੀ ਜਾਂ ਸਾਡੇ ਸੁੱਤਿਆਂ ਵੀ, ਉਹ ਕੰਮ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਕੰਪਿਊਟਰ ਤੋਂ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਕੰਮ ਲੈਣਾ ਚਾਹੀਏ, ਤਾਂ ਉਸ ਵਿਚ ਅਜਿਹਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

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ਸੰਚਾਰ ਸੇਵਾਵਾਂ :
ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸੰਚਾਰ ਸੇਵਾਵਾਂ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਹੈ, ਵਿਅਕਤੀ ਤੋਂ ਵਿਅਕਤੀ ਤਕ ਸੰਚਾਰ ਸੇਵਾਵਾਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ
(ਉ) ਈ-ਮੇਲ (E-mail)
(ਅ) ਗੱਲ-ਬਾਤ (Chat)
ਅਤੇ (ੲ) ਟੈਲੀਫ਼ੋਨ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ ।

ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਈ-ਮੇਲ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਜੋ ਕਿ ਕੰਪਿਊਟਰ ਤੇ ਮੋਬਾਈਲ ਦੋਹਾਂ ਉੱਤੇ ਉਪਲੱਬਧ ਹੈ । ਦੂਜੀ ਸੰਚਾਰ ਸੇਵਾ ਹੈ, ਵਿਅਕਤੀ ਤੋਂ ਗਰੁੱਪ ਤਕ । ਇਸ ਵਿਚ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਬੈਠੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਜਾਂ ਗਰੁੱਪਾਂ ਨਾਲ ਆਹਮੋ-ਸਾਹਮਣਾ ਵਿਚਾਰ-ਵਟਾਂਦਰਾ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਈ. ਮੇਲ ਤੇ ਭਿੰਨਭਿੰਨ ਵੈੱਬ-ਸਾਈਟਾਂ ਰਾਹੀਂ ਸੂਚਨਾ ਦਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣਾ ਸ਼ਾਇਦ ਇਸ ਦੀ ਲੋਕ-ਪ੍ਰਿਅਤਾ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਹਰ ਘਰ ਵਿਚ ਆਪਣਾ ਸਥਾਨ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਵਿਸ਼ਵ-ਵਿਆਪੀ ਵੈਬ (WWW) ਇਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸਭ ਪਾਸੇ ਪਸਰਿਆ ਹੋਇਆ ਮਲਟੀਮੀਡੀਆ ਤੇ ਹਾਈਪਰਮੀਡੀਆ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਨ ਸਿਸਟਮ ਹੈ । ਇਹ ਸੰਸਾਰ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਦੋਸਤਾਨਾ ਤੇ ਨਿੱਤ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ਡਾਈਬੇਸ ਹੈ !

ਸੋਸ਼ਲ ਮੀਡੀਆ ਦਾ ਵਿਕਾਸ :
ਅੱਜ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਸੇਵਾ ਜਿੱਥੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਉੱਤੇ ਉਪਲੱਬਧ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਇਹ ਸਾਡੇ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨਾਂ ਉੱਤੇ ਵੀ ਮੌਜੂਦ ਹੈ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਵਿਚ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੇ ਨਵੇਂ ਉਕਾ ਅਤੇ ਤਕਨੀਕਾਂ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀਆਂ ਸੂਚਕ ਹਨ ਕਿ ਭਵਿੱਖ ਵਿਚ ਇਸ ਦਾ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਕਿੰਨਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਰੋਲ ਹੋਵੇਗਾ । ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਖ਼ਬਰਾਂ ਦੀ ਤਟਫਟ ਆਨਲਾਈਨ ਰਿਪੋਰਟਿੰਗ ਜਾਂ ਸਾਖਿਆਤ ਵੈੱਬ-ਕਾਸਟਿੰਗ ਨੇ ਖ਼ਬਰਾਂ ਪੁਚਾਉਣ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਨਵੇਂ ਪਸਾਰ ਖੋਲ੍ਹ ਦਿੱਤੇ ਹਨ ਤੇ ਮਲਟੀਮੀਡੀਆ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦਾ ਇਕ ਅਟੁੱਟ ਹਿੱਸਾ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ । ਸੋਸ਼ਲ ਮੀਡੀਆ ਦੇ ਭਿੰਨਭਿੰਨ ਰੂਪਾਂ-ਫੇਸ-ਬੁੱਕ, ਸਕਾਈਪ, ਟਵਿੱਟਰ, ਮਾਈ ਸਪੇਸ, ਯੂ-ਟਿਊਬ, ਜੀ+ ਤੇ ਵਟਸ-ਐਪ ਦੀ ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਵਿਚ ਕਰੋੜਾਂ ਲੋਕਾਂ ਵੱਲੋਂ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਰਾਹੀਂ ਨਿੱਜੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ ਕੰਮ ਵੀ ਲਏ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ, ਜਿਸ ਤੋਂ ਸਾਡਾ ਸਮਾਜਿਕ, ਰਾਜਸੀ ਤੇ ਆਰਥਿਕ ਜੀਵਨ ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਫਲਸਰੂਪ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਸਥਿਤੀਆਂ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀ ਅਸ਼ਲੀਲ ਤੇ ਸ਼ੈਤਾਨੀ ਸਾਮਗਰੀ ਦਾ ਖਿਲਾਰਾ ਪੈ ਗਿਆ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਭਾਵਾਤਮਕ ਸਾਂਝ ਤੋਂ ਹੀਣਾ, ਅਸਹਿਜ ਤੇ ਤਣਾਓਪੂਰਨ ਬਣਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਈ-ਕਾਮਰਸ ਦਾ ਵਿਕਾਸ :
ਈ-ਕਾਮਰਸ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੀ ਇਕ ਹੋਰ ਹੈਰਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਦੇਣ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਇਸ ਮਾਧਿਅਮ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਦੀ ਖੋਜ ਕਰਨ ਲਈ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕੰਪਨੀਆਂ ਅੱਗੇ ਆ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਉਹ ਸੱਚਮੁੱਚ ਦੇ ਸ਼ੋ-ਰੂਮ ਸਥਾਪਤ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤਕ ਦੁਨੀਆ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਥਾਂ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਮਾਊਸ ਨੂੰ ਕਲਿਕ ਕਰ ਕੇ ਪਹੁੰਚ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਉਸ ਉੱਤੇ ਇਲੈਂਕਟਾਨਿਕ ਕੈਟਾਲਾਗ, ਉਤਪਾਦਨ ਤਸਵੀਰਾਂ, ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਅਤੇ ਹੋਰ ਜਾਣਕਾਰੀ ਨੂੰ ਦੇਖ ਆਪਣੇ ਕੈਡਿਟ ਕਾਰਡ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਕਿਸੇ ਵੀ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਖ਼ਰੀਦਣ ਲਈ ਆਡਰ ਦੇ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਬੈਂਕਾਂ ਵਿਚ ਲੈਣ-ਦੇਣ ਦਾ ਏ. ਟੀ. ਐੱਮ. (ATM) ਇਸੇ ਦਾ ਹੀ ਹਿੱਸਾ ਹੈ । ਇਸ ਸਾਧਨ ਰਾਹੀਂ, ਜਿੱਥੇ ਕਈ ਕੰਪਨੀਆਂ ਨੇ ਇੱਕੋ ਦਿਨ ਵਿਚ ਕਰੋੜਾਂ ਰੁਪਇਆਂ ਦਾ ਸਮਾਨ ਵੇਚਿਆ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਕਈ ਥਾਂਈਂ ਠਗੀਆਂ ਵੀ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ।

ਮੌਸਮ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਤੇ (ਜੀ. ਪੀ. ਐੱਸ ਦੀ ਸਹੂਲਤ) :
ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਰਾਹੀਂ ਸਾਨੂੰ ਸਾਡੇ ਕੰਪਿਊਟਰ, ਲੈਪ-ਟਾਪ ਜਾਂ ਮੋਬਾਈਲ ਉੱਤੇ ਮੌਸਮ, ਆਵਾਜਾਈ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਤੇ ਜੀ. ਪੀ. ਐੱਸ. ਰਾਹੀਂ ਆਪਣੇ ਟਿਕਾਣੇ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਥਾਂ ਜਾਣ ਲਈ ਰਸਤੇ ਦਾ ਨਿਰਦੇਸ਼ਨ ਮੌਜੂਦ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਭੁੱਲਣ-ਭਟਕਣ ਤੇ ਪੁੱਛ-ਗਿੱਛ ਤੋਂ ਬਚ ਕੇ ਅਨਜਾਣੇ ਥਾਂਵਾਂ ਉੱਤੇ ਪਹੁੰਚ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਜਾਂ ਉੱਥੋਂ ਵਿਚਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਆਪਣੇ ਮੋਬਾਈਲ ਉੱਤੇ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਸੱਜਣਾਂ, ਮਿੱਤਰਾਂ, ਵਪਾਰਕ ਭਾਈਵਾਲਾਂ, ਟੀ. ਵੀ. ਚੈਨਲਾਂ ਤੇ ਸੰਸਾਰ ਦੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਜੁੜੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਾਂ ।

ਖ਼ਬਰਦਾਰ ਰਹਿਣ ਦੀ ਲੋੜ :
ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਵੈੱਬਸਾਈਟਾਂ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀ ਗੁਮਰਾਹਕਰੂ, ਭੁਚਲਾਊ ਤੇ ਅਪਰਾਧਿਕ ਸਮੱਗਰੀ ਵੀ ਉਪਲੱਬਧ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਬੱਚਿਆਂ ਤੇ ਨੌਜਵਾਨ ਪੀੜੀ ਨੂੰ ਬਚਾ ਕੇ ਰੱਖਣ ਦੀ ਬਹੁਤ ਲੋੜ ਹੈ। ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਅਨਜਾਣ ਵਿਅਕਤੀ ਨਾਲ ਗੱਲ-ਬਾਤ (Chatting) ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਜਾਂ ਉਸ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਕਦੇ ਵੀ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਨਾਂ, ਪਤਾ, ਫੋਟੋ, ਕੰਮ-ਕਾਰ, ਰੁਚੀਆਂ ਤੇ ਆਦਤਾਂ ਬਾਰੇ ਨਹੀਂ ਦੱਸਣਾ ਚਾਹੀਦਾ, ਕਿਉਂਕਿ ਕਈ ਵਾਰ ਅਗਲੇ ਪਾਸੇ ਬੈਠਾ ਵਿਅਕਤੀ ਅਪਰਾਧੀ ਬਿਰਤੀ ਵਾਲਾ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਉਹ ਵਾਇਰਸ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਨੁਕਸਾਨ-ਪੁਚਾਊ ਸਾਮਗਰੀ ਵੀ ਭੇਜ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਾਨੂੰ ਗੁੰਮਰਾਹ ਕਰਕੇ ਲੁੱਟ-ਪੁੱਟ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਕੰਪਿਊਟਰ ਅੱਗੇ ਲੰਮੀ ਬੈਠਕ ਤੇ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਉੱਤੇ ਗੇਮਾਂ ਦਾ ਚਸਕਾ ਸਰੀਰਕ ਸਰਗਰਮੀ ਨੂੰ ਘਟਾ ਕੇ ਮੋਟਾਪਾ ਵੀ ਵਧਾਉਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਰੋਗ ਵੀ ਪੈਦਾ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਮੋਬਾਈਲ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਦੇ ਨੁਕਸਾਨ ਇਸ ਤੋਂ ਵੀ ਵਧੇਰੇ ਹਨ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਪਸਰ ਜਾਵੇਗਾ ਤੇ ਇਸ ਨਾਲ ਜੀਵਨ ਮੁਕਾਬਲੇ ਤੇ ਤਣਾਓ ਵਧਣ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਤੇਜ਼ੀ, ਸੁਚੇਤਨਤਾ ਤੇ ਸਾਵਧਾਨੀ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਵਿਚ ਸਮੇਂਦਾ ਹੋਇਆ ਵਿਸ਼ਵ-ਭਾਈਚਾਰੇ ਵਿਚ ਏਕਤਾ, ਸਾਂਝ ਤੇ ਮਿਲਵਰਤਣ ਦਾ ਪਸਾਰ ਕਰੇਗਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

53. ਸੜਕ ਸੁਰੱਖਿਆ
ਜਾਂ
ਸੜਕ ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ

ਸੜਕਾਂ ਉਤਲਾ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਸਫ਼ਰ :
ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਸੜਕਾਂ ਉਤਲਾ ਸਫ਼ਰ ਬੇਹੱਦ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਨਾ ਆਮ ਕੋਰ ਟੀਮ ਨਾਲ ਜਾਂ ਫਿਰ ਅਤੇ ਨਾ ਸਰਕਾਰ । ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਵਿਚ ਇੰਨੇ ਲੋਕ ਅੱਤਵਾਦ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਮਰਦੇ, ਜਿੰਨੇ ਸੜਕ ਹਾਦਸਿਆਂ ਵਿਚ ਮਰਦੇ ਹਨ । ਇਕ ਅਨੁਮਾਨ ਅਨੁਸਾਰ 2016 ਵਿਚ ਦੁਨੀਆ ਵਿਚ ਅੱਤਵਾਦ ਹੱਥੋਂ 25,000 ਬੰਦੇ ਮਰੇ, ਪਰੰਤੂ ਇਕੱਲੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਇਸ ਸਾਲ ਹੋਏ 4,80,652 ਹਾਦਸਿਆਂ ਵਿਚ 1,50,785 ਬੰਦੇ ਮਰੇ ਤੇ 4,94,624 ਜ਼ਖ਼ਮੀ ਹੋਏ ।

ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ 84% ਹਾਦਸਿਆਂ ਦਾ ਕਾਰਨ ਚਾਲਕ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਂ ਤਾਂ ਨਸ਼ਾ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ਜਾਂ ਉਹ ਮੋਬਾਈਲਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਾਹਨ ਓਵਰਲੋਡ ਸਨ । ਅੰਕੜੇ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿਚ ਹੋਏ ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਾਦਸਿਆਂ ਵਿਚ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਮਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਔਸਤ ਗਿਣਤੀ 443 ਵਿਅਕਤੀ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਇਕੱਲੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਮਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਔਸਤ ਗਿਣਤੀ 11 ਹੈ । 2013 ਦੀ ਇਕ ਰਿਪੋਰਟ ਅਨੁਸਾਰ ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਵਿਚ ਹਾਦਸਿਆਂ ਕਾਰਨ ਮਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਔਸਤ 12.5 ਮਿਲੀਅਨ ਬੰਦੇ ਹੈ, ਜਦਕਿ ਇਕੱਲੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਇਹ ਪੰਜ ਲੱਖ ਨੂੰ ਜਾ ਚੁੱਕਦੀ ਹੈ । ਯੋਜਨਾ ਕਮਿਸ਼ਨ ਅਨੁਸਾਰ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਹਰ ਸਾਲ 55 ਹਜ਼ਾਰ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਸੜਕ ਹਾਦਸਿਆਂ ਵਿਚ ਵਿਅਰਥ ਚਲੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

(ਰੂਪ-ਰੇਖਾ-ਸੜਕਾਂ ਉਤਲਾ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਸਫ਼ਰ-ਕਾਰਨ-ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ-ਸਰਕਾਰ ਤੇ ਪੁਲਿਸ ਦਾ ਫਰਜ਼-ਸਾਰ-ਅੰਸ਼। )

ਕਾਰਨ :
ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਹੁੰਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੜਕੀ ਹਾਦਸਿਆਂ ਦੇ ਕਈ ਕਾਰਨ ਹਨ । ਇਸਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਨਿੱਜੀਕਰਨ, ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ, ਵਿਸ਼ਵੀਕਰਨ ਤੇ ਵਪਾਰਕ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਕਾਰਨ ਵਾਹਨਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ਵਾਧਾ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਣਸਿੱਖੇ ਡਰਾਈਵਰ ਹਨ । ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਆਮ ਕਰਕੇ ਲੋਕ ਡਰਾਈਵਿੰਗ ਲਾਈਸੈਂਸ ਪਹਿਲਾਂ ਲੈ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਪਰੰਤੂ ਡਰਾਈਵਰੀ ਮਗਰੋਂ ਸਿੱਖਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਉਹ ਵੀ ਕਚਘਰੜ ਡਰਾਈਵਰ ਕੋਲੋਂ, ਜਿਸਨੂੰ ਆਪ ਨਾ ਟ੍ਰੈਫ਼ਿਕ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ ਦਾ ਪਤਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਨਾ ਉਹ ਕਿਸੇ ਨਿਯਮ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਤੇਜ਼ ਸਪੀਡ, ਸੜਕ ਉੱਤੇ ਖੱਬੇ ਹੱਥ ਦੀ ਥਾਂ ਉਲਟੇ ਰੁੱਖ਼ ਚਲਣਾ, ਲਾਲ ਬੱਤੀ ਦਾ ਉਲੰਘਣ, ਸ਼ਰਾਬ ਤੇ ਹੋਰ ਨਸ਼ਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ, ਵਾਹਨ ਚਲਾਉਂਦੇ ਸਮੇਂ ਮੋਬਾਈਲ ਦੀ ਵਰਤੋਂ, ਕੰਨਾਂ ਨੂੰ ਈਅਰ ਫੋਨ ਲਾਉਣਾ, ਉੱਚੀਉੱਚੀ ਸਾਊਂਡ ਸਿਸਟਮ ਵਜਾਉਣਾ, ਅਗਲੇ ਤੋਂ ਇਧਰ-ਉਧਰ ਦੀ ਅੱਗੇ ਲੰਘਣ ਦੀ ਕਾਹਲੀ, ਫੁਕਰੇਬਾਜ਼ੀ, ਰਾਤ ਨੂੰ ਡਿਪਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾ ਕਰਨਾ, ਧੁੰਦ ਤੇ ਧੂੰਧੁੰਦ ਕਾਰਨ ਕੁੱਝ ਨਜ਼ਰ ਨਾ ਆਉਣਾ, ਸੜਕਾਂ ਉੱਤੇ ਟੋਏ ਤੇ ਢੁੱਕਵੇਂ ਇਸ਼ਾਰਿਆਂ ਦੀ ਘਾਟ, ਬੈਲਟ ਨਾ ਲਾਉਣਾ, ਹੈਲਮਟ ਨਾ ਪਹਿਨਣਾ, ਸੜਕਾਂ ਉੱਤੇ ਅਵਾਰਾ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦਾ ਘੁੰਮਣਾ, ਕੁੱਤਿਆਂ ਤੇ ਸਾਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ, ਸੜਕਾਂ ਦੇ ਡਿਵਾਈਡਰਾਂ ਨੂੰ ਅਣ-ਅਧਿਕਾਰਿਤ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਕੱਟ ਕੇ ਰਸਤੇ ਬਣਾਉਣਾ, ਬਿਨਾਂ ਦੇਖੇ ਸੜਕ ਪਾਰ ਕਰਨਾ ਜਾਂ ਕਾਹਲੀ ਵਿਚ ਯੂ ਟਰਨ ਲੈਣਾ, ਬੱਚਿਆਂ ਤੇ ਨਾ-ਬਾਲਗਾਂ ਦਾ ਵਾਹਨ ਚਲਾਉਣਾ, ਟ੍ਰੈਫ਼ਿਕ ਨਿਯਮ ਲਾਗੂ ਕਰ ਰਹੀ ਪੁਲਿਸ ਦੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਸਿਆਸਤ ਦਾ ਦਖ਼ਲ, ਪੁਲਿਸ ਦਾ ਟ੍ਰੈਫ਼ਿਕ ਨੂੰ ਸੁਚਾਰੂ ਕਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਸਿਰਫ਼ ਚਲਾਨ ਕੱਟਣ ਤਕ ਸੀਮਿਤ ਹੋਣਾ, ਸੜਕ ਉੱਤੇ ਚਲਦਿਆਂ ਦੁਜੇ ਦੀ ਹੱਕ-ਮਾਰੀ ਕਰਨੀ ਆਦਿ ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ ਦੇ ਆਮ ਕਾਰਨ ਹਨ ।

ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ :
ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸੜਕ ਹਾਦਸਿਆਂ ਦੇ ਬੇਸ਼ਕ ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਕਾਰਨ ਵੀ ਮੰਨੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ਤੇ ਇਸ ਲਈ ਸਰਕਾਰ ਤੇ ਪ੍ਰੈਕ ਮਹਿਕਮਾ ਤਾਂ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹੈ ਹੀ, ਪਰੰਤੂ ਆਮ ਲੋਕ ਵੀ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਨਹੀਂ । ਇਸ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਸਭ ਨੂੰ ਇਹ ਗੱਲ ਸਮਝ ਲੈਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਕਿ ਸੜਕਾਂ ਉੱਤੇ ਚੱਲਣ ਦੇ ਨਿਯਮ ਪਾਲਣ ਵਿਚ ਸਾਡਾ ਹੀ ਭਲਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਦੀ ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਖ਼ਤਰੇ ਵਿਚ ਪੈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਮੌਤ ਹੋਣੀ, ਗੰਭੀਰ ਸੱਟ ਲੱਗਣੀ, ਕਿਸੇ ਅੰਗ ਦਾ ਭੰਗ ਹੋਣਾ ਜਾਂ ਲੰਮੇ ਸਮੇਂ ਤਕ ਮੰਜੇ ਉੱਤੇ ਪੈਣਾ ਅਤੇ ਹਸਪਤਾਲਾਂ, ਡਾਕਟਰਾਂ ਤੇ ਦਵਾਈਆਂ ਦੇ ਮੂੰਹ ਪੈਸੇ ਦਾ ਉਜੜਨਾ, ਘਰ ਦਾ ਤਬਾਹ ਹੋਣਾ, ਬੱਚਿਆਂ, ਪਤੀ, ਪਤਨੀ ਜਾਂ ਬੁੱਢੇ ਮਾਪਿਆਂ ਦਾ ਦਰਦਰ ਦੀਆਂ ਠੋਕਰਾਂ ਖਾਣ ਜੋਗੇ ਰਹਿ ਜਾਣਾ, ਉਮਰ ਭਰ ਦਾ ਪਛਤਾਵਾ ਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨੀਆਂ ਦਾ ਪੱਲੇ ਪੈਣਾ ਨਿਸਚਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

ਇਸ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਸਭ ਨੂੰ ਅਕਲ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲੈਂਦਿਆਂ ਆਪਣੀ ਨਿੱਜੀ ਸੁਰੱਖਿਆ, ਪਰਿਵਾਰ ਤੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਭਲਾਈ ਲਈ ਟੈਫ਼ਿਕ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਵਿਚ ਰਤਾ ਵੀ ਕੋਤਾਹੀ ਨਹੀਂ ਵਰਤਣੀ ਚਾਹੀਦੀ । ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਭਾਵੇਂ ਕਿੰਨਾ ਵੀ ਅਸਰ-ਰਸੂਖ਼, ਉੱਚਾ ਅਹੁਦਾ ਤੇ ਧਨ ਹੋਵੇ, ਸਾਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੈਫ਼ਿਕ ਨਿਯਮ ਤੋੜਦੇ ਪੁੱਤਰ, ਧੀ ਜਾਂ ਰਿਸ਼ਤੇਦਾਰ ਦੇ ਬਚਾਓ ਲਈ ਸਿਫ਼ਾਰਿਸ਼ ਨਹੀਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ । ਜਿਹੜਾ ਵਿਅਕਤੀ ਪੁਲਿਸ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਟ੍ਰੈਫ਼ਿਕ ਨਿਯਮ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਰੋਕਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੀ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਜਾਂ ਸਕੇ-ਸੰਬੰਧੀਆਂ ਦਾ ਹਿਤ ਨਹੀਂ ਸੋਚਦਾ, ਸਗੋਂ ਫੋਕੀ ਹਉਮੈ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਸਰਕਾਰ ਤੇ ਪੁਲਿਸ ਦਾ ਫ਼ਰਜ਼ :
ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਵੀ ਟ੍ਰੈਫ਼ਿਕ ਨਿਯਮ ਲਾਗੂ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਸੇ ਦਾ ਲਿਹਾਜ਼ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦੀ ਸਿਫ਼ਾਰਿਸ਼ ਨੂੰ ਮੰਨਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਫਾਂਸਪੋਰਟ ਮਹਿਕਮੇ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਘਰ ਬੈਠੇ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਲਾਈਸੈਂਸ ਨਹੀਂ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ । ਲਾਈਸੈਂਸ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਹਰ ਇਕ ਚਾਹਵਾਨ ਲਈ ਸੜਕ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ ਸੰਬੰਧੀ ਟੈਸਟ ਨੂੰ ਪਾਸ ਕਰਨਾ, ਫਿਰ ਸਿਖਲਾਈ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੇ ਡਰਾਈਵਿੰਗ ਦੇ ਵਿਹਾਰਿਕ ਟੈਸਟ ਨੂੰ ਪਾਸ ਕਰਨਾ ਲਾਜ਼ਮੀ ਬਣਾ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਇਹ ਟੈਸਟ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਕਲਾਸ ਵਿਚ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੇ ਪਾਠਕ੍ਰਮ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਹੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ, ਤਾਂ ਹੋਰ ਵੀ ਲਾਭਕਾਰੀ ਸਿੱਧ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹ ਆਪਣੀ ਉਮਰ ਤੇ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇ ਹਿਸਾਬ ਨਾਲ ਛੋਟੇ-ਵੱਡੇ ਵਹੀਕਲਾਂ ਦੇ ਲਾਈਸੈਂਸ ਲੈ ਸਕਣਗੇ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਟ੍ਰੈਫ਼ਿਕ ਨਿਯਮਾਂ ਦਾ ਗਿਆਨ ਵੀ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ।

ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਟ੍ਰੈਫ਼ਿਕ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇਣ ਲਈ ਮਹਿਕਮੇ ਨੂੰ ਅਣਸਿੱਖੇ ਲਾਈਸੈਂਸ-ਧਾਰਕਾਂ ਤੇ ਲਾਈਸੈਂਸ ਲੈਣ ਦੇ ਚਾਹਵਾਨਾਂ ਲਈ ਹਰ ਹਫ਼ਤੇ ਜਾਂ ਦੋ ਹਫ਼ਤੇ ਮਗਰੋਂ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਥਾਂਵਾਂ ਉੱਤੇ ਰਿਫਰੈਸ਼ਰ ਵਰਕਸ਼ਾਪਾਂ ਦਾ ਆਯੋਜਨ ਵੀ ਕਰਦੇ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇੰਨਾ ਕੁੱਝ ਕਰਨ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਟੈਫ਼ਿਕ ਨਿਯਮਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਦਾ ਹੈ ਤੇ ਦੋ-ਤਿੰਨ ਚੇਤਾਵਨੀ ਭਰੇ ਚਲਾਨਾਂ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਜੁਰਮਾਨੇ ਭਰ ਕੇ ਵੀ ਆਪਣੇ ਵਿਹਾਰ ਨੂੰ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ, ਤਾਂ ਉਸਦਾ ਲਾਈਸੈਂਸ ਕੁੱਝ ਮਹੀਨਿਆਂ ਲਈ ਸਸਪੈਂਡ ਕਰ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਫਿਰ ਆਪੇ ਉਸ ਅਕਲ ਦੇ ਅੰਨੇ ਨੂੰ ਕੰਨ ਹੋ ਜਾਣਗੇ ਤੇ ਉਸਦੀ ਹੋਸ਼ ਟਿਕਾਣੇ ਆ ਜਾਵੇਗੀ । ਦੁਨੀਆ ਦਾ ਕੋਈ ਮੁਲਕ ਸਭਿਅਕ ਤੇ ਵਿਕਸਿਤ ਨਹੀਂ ਕਹਾ ਸਕਦਾ, ਜੇਕਰ ਉਸਦੇ ਲੋਕ ਸੜਕ ਉੱਪਰ ਚਲਣ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਤੇ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਦੂਜਿਆਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ।

ਸਾਰ-ਅੰਸ਼ :
ਅੱਜ ਸਮੇਂ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਰਲ ਕੇ ਸੜਕਾਂ ਉੱਤੇ ਹੋ ਰਹੇ ਮੌਤ ਦੇ ਤਾਂਡਵ ਨਾਚ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਗੰਭੀਰ ਹੋਈਏ ਤੇ ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਸੜਕਾਂ ਨੂੰ ਸਭ ਲਈ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਬਣਾਈਏ । ਇਸ ਨਾਲ ਹੀ ਸਾਡੇ ਸਭ ਦੇ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਸਦਾ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਤੇ ਖੇੜੇ ਨੱਚਦੇ ਰਹਿ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਮੁਹਾਵਰਿਆਂ ਦੀ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ਵਰਤੋਂ

Punjab State Board PSEB 8th Class Punjabi Book Solutions Punjabi Grammar Muhavare di Vakam Vika Varatom ਮੁਹਾਵਰਿਆਂ ਦੀ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ਵਰਤੋਂ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 8th Class Punjabi Grammar ਮੁਹਾਵਰਿਆਂ ਦੀ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ਵਰਤੋਂ

1. ਉਂਗਲਾਂ ‘ਤੇ ਨਚਾਉਣਾ (ਵੱਸ ਵਿਚ ਕਰਨਾ) – ਗੀਤਾ ਇੰਨੀ ਚੁਸਤ-ਚਲਾਕ ਹੈ ਕਿ ਆਪਣੀ ਨੂੰਹ ਨੂੰ ਉਂਗਲਾਂ ‘ਤੇ ਨਚਾਉਂਦੀ ਹੈ ।
2. ਉਸਤਾਦੀ ਕਰਨੀ (ਚਲਾਕੀ ਕਰਨੀ) – ਮਹਿੰਦਰ ਬਹੁਤ ਚਲਾਕ ਮੁੰਡਾ ਹੈ । ਉਹ ਹਰ ਇਕ ਨਾਲ ਉਸਤਾਦੀ ਕਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
3. ਉੱਲੂ ਸਿੱਧਾ ਕਰਨਾ (ਆਪਣਾ ਸੁਆਰਥ ਪੂਰਾ ਕਰਨਾ) – ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਆਪੋ-ਧਾਪੀ ਦੇ ਜ਼ਮਾਨੇ ਵਿਚ ਹਰ ਕੋਈ ਆਪਣਾ ਹੀ ਉੱਲੂ ਸਿੱਧਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ।
4. ਉੱਨੀ-ਇੱਕੀ ਦਾ ਫ਼ਰਕ (ਬਹੁਤ ਥੋੜਾ ਜਿਹਾ ਫ਼ਰਕ) – ਦੋਹਾਂ ਭਰਾਵਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਵਿਚ ਉੱਨੀ-ਇੱਕੀ ਦਾ ਹੀ ਫ਼ਰਕ ਹੈ ।ਉਂਝ ਦੋਵੇਂ ਇੱਕੋ ਜਿਹੇ ਲਗਦੇ ਹਨ ।
5. ਉੱਲੂ ਬੋਲਣੇ (ਸੁੰਨ-ਮਸਾਣ ਛਾ ਜਾਣੀ) – ਜਦੋਂ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਬਣਿਆ, ਤਾਂ ਉਜਾੜ ਪੈਣ ਨਾਲ ਕਈ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਉੱਲੂ ਬੋਲਣ ਲੱਗ ਪਏ ।
6. ਉੱਚਾ-ਨੀਵਾਂ ਬੋਲਣਾ (ਨਿਰਾਦਰ ਕਰਨਾ) – ਤੁਹਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਾਪਿਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਉੱਚਾਨੀਵਾਂ ਨਹੀਂ ਬੋਲਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ।
7. ਉੱਸਲਵੱਟੇ ਭੰਨਣੇ (ਪਾਸੇ ਮਾਰਨਾ) – ਅੱਜ ਸਾਰੀ ਰਾਤ ਉੱਸਲਵੱਟੇ ਭੰਨਦਿਆਂ ਹੀ ਬੀਤੀ, . ਰਤਾ ਨੀਂਦ ਨਹੀਂ ਆਈ ।
8. ਅੱਖਾਂ ਵਿਚ ਰੜਕਣਾ (ਭੈੜਾ ਲਗਣਾ) – ਜਦੋਂ ਦੀ ਉਸ ਨੇ ਕਚਹਿਰੀ ਵਿਚ ਮੇਰੇ ਖ਼ਿਲਾਫ ਝੂਠੀ ਗੁਆਹੀ ਦਿੱਤੀ ਹੈ, ਉਹ ਮੇਰੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿਚ ਰੜਕਦਾ ਹੈ ।
9. ਅਸਮਾਨ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਚੁੱਕਣਾ (ਇੰਨਾ ਰੌਲਾ ਪਾਉਣਾ ਕਿ ਕੁੱਝ ਸੁਣਾਈ ਹੀ ਨਾ ਦੇਵੇ) – ਤੁਸੀਂ ਤਾਂ ਆਪਣੀ ਕਾਵਾਂ-ਰੌਲੀ ਨਾਲ ਅਸਮਾਨ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਚੁੱਕਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ, ਦੁਸਰੇ ਦੀ ਕੋਈ ਗੱਲ ਸੁਣਨ ਹੀ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੇ ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਮੁਹਾਵਰਿਆਂ ਦੀ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ਵਰਤੋਂ

10. ਅੱਖਾਂ ਚੁਰਾਉਣਾ (ਸ਼ਰਮਿੰਦਗੀ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਨੀ) – ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਉਸ ਦੀਆਂ ਕਰਤੂਤਾਂ ਦਾ ਭਾਂਡਾ ਭੰਨ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਤਾਂ ਉਹ ਵੀ ਉੱਥੇ ਨੀਵੀਂ ਪਾ ਕੇ ਬੈਠਾ ਸੀ, ਪਰ ਮੇਰੇ ਵਲ ਅੱਖਾਂ ਚੁਰਾ ਕੇ ਜ਼ਰੂਰ ਦੇਖ ਲੈਂਦਾ ਸੀ ।
11. ਅੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਬਿਠਾਉਣਾ (ਆਦਰ-ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਨਾ) – ਪੰਜਾਬੀ ਲੋਕ ਘਰ ਆਏਂ ਪ੍ਰਾਹੁਣੇ ਨੂੰ ਅੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਬਿਠਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ।
12. ਅੰਗੂਠਾ ਦਿਖਾਉਣਾ (ਇਨਕਾਰ ਕਰਨਾ, ਸਾਥ ਛੱਡ ਦੇਣਾ) – ਮਤਲਬੀ ਮਿੱਤਰ ਔਖੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਅੰਗੂਠਾ ਦਿਖਾ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
13. ਅੰਗ ਪਾਲਣਾ (ਸਾਥ ਦੇਣਾ) – ਸਾਨੂੰ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਸਮੇਂ ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰਾਂ ਦਾ ਅੰਗ ਪਾਲਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
14. ਅਕਲ ਦਾ ਵੈਰੀ (ਮੂਰਖ) – ਸੁਰਜੀਤ ਤਾਂ ਅਕਲ ਦਾ ਵੈਰੀ ਹੈ, ਕਦੇ ਕੋਈ ਸਮਝਦਾਰੀ ਦੀ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ।
15. ਅੱਖਾਂ ਮੀਟ ਜਾਣਾ (ਮਰ ਜਾਣਾ) – ਕਲ੍ਹ ਜਸਬੀਰ ਦੇ ਬਾਬਾ ਜੀ ਲੰਮੀ ਬਿਮਾਰੀ ਪਿੱਛੋਂ ਅੱਖਾਂ ਮੀਟ ਗਏ ।
16. ਅੱਖਾਂ ਵਿਚ ਘੱਟਾ ਪਾਉਣਾ (ਧੋਖਾ ਦੇਣਾ) – ਠੱਗਾਂ ਨੇ ਉਸ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿਚ ਘੱਟਾ ਪਾ ਕੇ ਉਸ ਤੋਂ 50,000 ਰੁਪਏ ਠਗ ਲਏ ।
17. ਅੱਖਾਂ ਫੇਰ ਲੈਣਾ (ਮਿੱਤਰਤਾ ਛੱਡ ਦੇਣੀ) – ਤੂੰ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਬੰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਅੱਜ ਆਪਣੇ ਸਮਝੀ ਬੈਠਾ ਹੈਂ, ਇਹ ਤੈਨੂੰ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਵਿਚ ਫਸਾ ਕੇ ਆਪ ਅੱਖਾਂ ਫੇਰ ਲੈਣਗੇ ।
18. ਅੱਡੀ ਚੋਟੀ ਦਾ ਜ਼ੋਰ ਲਾਉਣਾ (ਪੂਰਾ ਜ਼ੋਰ ਲਾਉਣਾ) – ਕੁਲਵਿੰਦਰ ਨੇ ਡੀ. ਐੱਸ. ਪੀ. ਭਰਤੀ ਹੋਣ ਲਈ ਅੱਡੀ ਚੋਟੀ ਦਾ ਜ਼ੋਰ ਲਾਇਆ, ਪਰ ਗੱਲ ਨਾ ਬਣੀ ।
19. ਅਲਖ ਮੁਕਾਉਣੀ (ਜਾਨੋ ਮਾਰ ਦੇਣਾ) – ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸੰਧਾਵਾਲੀਏ ਨੇ ਤਲਵਾਰ ਦੇ ਇੱਕੋ ਵਾਰ ਨਾਲ ਰਾਜੇ ਧਿਆਨ ਸਿੰਘ ਦੀ ਅਲਖ ਮੁਕਾ ਦਿੱਤੀ ।
20. ਇਕ ਅੱਖ ਨਾਲ ਦੇਖਣਾ (ਸਭ ਨੂੰ ਇੱਕੋ ਜਿਹਾ ਸਮਝਣਾ) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਹਿੰਦੂਆਂ, ਸਿੱਖਾਂ ਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਅੱਖ ਨਾਲ ਦੇਖਦਾ ਸੀ ।
21. ਈਦ ਦਾ ਚੰਦ ਹੋਣਾ (ਬਹੁਤ ਦੇਰ ਬਾਅਦ ਮਿਲਣਾ) – ਮਨਜੀਤ ਤੂੰ ਤਾਂ ਈਦ ਦਾ ਚੰਦ ਹੋ ਗਿਆ ਏ ।
22. ਈਨ ਮੰਨਣੀ (ਹਾਰ ਮੰਨਣੀ) – ਸ਼ਿਵਾ ਜੀ ਨੇ ਔਰੰਗਜ਼ੇਬ ਦੀ ਈਨ ਨਾ ਮੰਨੀ ।
23. ਇੱਟ ਨਾਲ ਇੱਟ ਖੜਕਾਉਣੀ ; ਇੱਟ-ਇੱਟ ਕਰਨਾ (ਤਬਾਹ ਕਰ ਦੇਣਾ) – ਨਾਦਰਸ਼ਾਹ ਨੇ ਦਿੱਲੀ ਦੀ ਇੱਟ ਨਾਲ ਇੱਟ ਖੜਕਾ ਦਿੱਤੀ ।
24. ਇਕ-ਮੁੱਠ ਹੋਣਾ (ਏਕਤਾ ਹੋ ਜਾਣੀ) – ਸਾਨੂੰ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਹਮਲੇ ਦਾ ਟਾਕਰਾ ਇਕ-ਮੁੱਠ ਹੋ ਕੇ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
25. ਇੱਟ ਕੁੱਤੇ ਦਾ ਵੈਰ (ਪੱਕਾ ਵੈਰ, ਬਹੁਤੀ ਦੁਸ਼ਮਣੀ) – ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਦੋਹਾਂ ਗੁਆਂਢੀਆਂ ਵਿਚ ਬਥੇਰਾ ਪਿਆਰ ਸੀ ਪਰ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਇੱਟ ਕੁੱਤੇ ਦਾ ਵੈਰ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਮੁਹਾਵਰਿਆਂ ਦੀ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ਵਰਤੋਂ

26. ਸਿਰ ‘ਤੇ ਪੈਣੀ (ਕੋਈ ਔਕੜ ਆ ਪੈਣੀ) – ਰਮੇਸ਼ ਦੇ ਪਿਤਾ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਘਰ ਦੀ ਸਾਰੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਉਸ ਦੇ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਪੈ ਗਈ ।
27. ਸਿਰੋਂ ਪਾਣੀ ਲੰਘਣਾ (ਹੱਦ ਹੋ ਜਾਣੀ) – ਮੈਂ ਤੇਰੀਆਂ ਵਧੀਕੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਹੀਆਂ ਹਨ, ਪਰ ਹੁਣ ਸਿਰੋਂ ਪਾਣੀ ਲੰਘ ਚੁੱਕਾ ਹੈ, ਮੈਂ ਹੋਰ ਨਹੀਂ ਸਹਿ ਸਕਦਾ ।
28. ਸਿਰ ਧੜ ਦੀ ਬਾਜ਼ੀ ਲਾਉਣਾ (ਮੌਤ ਦੀ ਪਰਵਾਹ ਨਾ ਕਰਨੀ) – ਸਭਰਾਵਾਂ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਸਿਰ ਧੜ ਦੀ ਬਾਜ਼ੀ ਲਾ ਕੇ ਲੜੀ।
29. ਸੱਤੀਂ ਕੱਪੜੀਂ ਅੱਗ ਲੱਗਣੀ (ਬਹੁਤ ਗੁੱਸੇ ਵਿਚ ਆਉਣਾ) – ਉਸ ਦੀ ਝੂਠੀ ਤੁਹਮਤ ਸੁਣ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਸੱਤੀਂ ਕੱਪੜੀਂ ਅੱਗ ਲੱਗ ਗਈ ।
30. ਸਰ ਕਰਨਾ (ਜਿੱਤ ਲੈਣਾ) – ਬਾਬਰ ਨੇ 1526 ਈ: ਵਿਚ ਪਾਣੀਪਤ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਨੂੰ ਸਰ ‘ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
31. ਸਿਰ ਪੈਰ ਨਾ ਹੋਣਾ (ਗੱਲ ਦੀ ਸਮਝ ਨਾ ਪੈਣੀ) – ਉਸ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਸਿਰ-ਪੈਰ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੇਰੇ ਪੱਲੇ ਕੁੱਝ ਨਾ ਪਿਆ ।
32. ਸਿਰ ਫੇਰਨਾ (ਇਨਕਾਰ ਕਰਨਾ) – ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਉਸ ਤੋਂ ਪੰਜ ਸੌ ਰੁਪਏ ਉਧਾਰ ਮੰਗੇ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਸਿਰ ਫੇਰ ਦਿੱਤਾ ।
33. ਹੱਥੀਂ ਛਾਂਵਾਂ ਕਰਨੀਆਂ (ਆਓ-ਭਗਤ ਕਰਨੀ) – ਪੰਜਾਬੀ ਲੋਕ ਘਰ ਆਏ ਪ੍ਰਾਹੁਣੇ ਨੂੰ ਹੱਥੀਂ ਛਾਂਵਾਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
34. ਹੱਥ ਤੰਗ ਹੋਣਾ (ਗਰੀਬੀ ਆ ਜਾਣੀ) – ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੇ ਜ਼ਮਾਨੇ ਵਿਚ ਹਰ ਨੌਕਰੀ ਪੇਸ਼ਾ ਆਦਮੀ ਦਾ ਹੱਥ ਤੰਗ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਨਾਲ ਚਲਦਾ ਹੈ ।
35. ਹੱਥ-ਪੈਰ ਮਾਰਨਾ (ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਨੀ) – ਉਸ ਨੇ ਵਿਦੇਸ਼ ਜਾਣ ਲਈ ਬਥੇਰੇ ਹੱਥ-ਪੈਰ . ਮਾਰੇ, ਪਰ ਗੱਲ ਨਾ ਬਣੀ ।
36. ਹਰਨ ਹੋ ਜਾਣਾ (ਦੌੜ ਜਾਣਾ) – ਸਕੂਲੋਂ ਛੁੱਟੀ ਹੁੰਦਿਆਂ ਹੀ ਬੱਚੇ ਘਰਾਂ ਨੂੰ ਹਰਨ ਹੋ ਗਏ ।
37. ਹੱਥ ਅੱਡਣਾ (ਮੰਗਣਾ) – ਪੰਜਾਬੀ ਮਿਹਨਤ ਦੀ ਕਮਾਈ ਖਾਂਦੇ ਹਨ, ਕਿਸੇ ਅੱਗੇ ਹੱਥ ਨਹੀਂ ਅੱਡਦੇ ।
38. ਹੱਥ ਵਟਾਉਣਾ (ਮੱਦਦ ਕਰਨਾ) – ਦਰਾਣੀ-ਜਠਾਨੀ ਘਰ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਦਾ ਖੂਬ ਹੱਥ ਵਟਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ।
39. ਹੱਥ ਪੀਲੇ ਕਰਨੇ (ਵਿਆਹ ਕਰਨਾ) – 20 ਨਵੰਬਰ, 2008 ਨੂੰ ਦਲਜੀਤ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਹੱਥ ਪੀਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
40. ਕੰਨ ਕੁਨੇ (ਠੱਗ ਲੈਣਾ) – ਉਹ ਬਨਾਰਸੀ ਠੱਗ ਹੈ, ਉਸ ਤੋਂ ਬਚ ਕੇ ਰਹਿਣਾ । ਉਹ ਤਾਂ ਚੰਗੇ-ਭਲੇ ਸਿਆਣੇ ਦੇ ਕੰਨ ਕੁਤਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ।
41. ਕੰਨੀ ਕਤਰਾਉਣਾ (ਪਰੇ-ਪਰੇ ਰਹਿਣਾ) – ਜਸਵੰਤ ਔਖੇ ਕੰਮ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਕੰਨੀ ਕਤਰਾਉਂਦਾ ਹੈ ।
42. ਕਲਮ ਦਾ ਧਨੀ (ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਲਿਖਾਰੀ) – ਲਾਲਾ ਧਨੀ ਰਾਮ ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਕਲਮ ਦਾ ਧਨੀ ਸੀ ।
43. ਕੰਨਾਂ ਨੂੰ ਹੱਥ ਲਾਉਣਾ (ਤੋਬਾ ਕਰਨੀ) – ਸ਼ਾਮ ਚੋਰੀ ਕਰਦਾ ਫੜਿਆ ਗਿਆ ਤੇ ਪਿੰਡ ਵਾਲਿਆਂ ਨੇ ਕੁੱਟ-ਕੁੱਟ ਕੇ ਉਸ ਦੇ ਕੰਨਾਂ ਨੂੰ ਹੱਥ ਲੁਆ ਦਿੱਤੇ ।
44. ਕੰਨਾਂ ਦਾ ਕੱਚਾ ਹੋਣਾ (ਲਾਈ-ਲੱਗ ਹੋਣਾ) – ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਕੰਨਾਂ ਦਾ ਕੱਚਾ ਨਹੀਂ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ, ਸਗੋਂ ਕਿਸੇ ਦੇ ਮੂੰਹੋਂ ਸੁਣੀ ਗੱਲ ਸੱਚ ਮੰਨਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਆਪ ਗੱਲ ਦੀ ਤਹਿ ਤਕ ਪੁੱਜ ਕੇ ਕੋਈ ਕਦਮ ਚੁੱਕਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
45. ਕੰਨਾਂ ‘ਤੇ ਜੂੰ ਨਾ ਸਰਕਣੀ (ਕੋਈ ਅਸਰ ਨਾ ਕਰਨਾ) – ਮੇਰੀਆਂ ਨਸੀਹਤਾਂ ਨਾਲ ਉਸ ਦੇ ਕੰਨਾਂ ‘ਤੇ ਜੂੰ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸਰਕੀ ।

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46, ਖਿਚੜੀ ਪਕਾਉਣਾ (ਲਕ ਕੇ ਕਿਸੇ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਲਾਹ ਕਰਨੀ) – ਕਲ ਦੋਹਾਂ ਮਿੱਤਰਾਂ ਨੇ ਇਕੱਲੇ ਅੰਦਰ ਬਹਿ ਕੇ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕੀ ਖਿਚੜੀ ਪਕਾਈ ਕਿ ਅੱਜ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਜੀਤੇ ਦਾ ਸਿਰ ਲਾਹ ਦਿੱਤਾ ।
47. ਖੂਨ ਖੌਲਣਾ (ਜੋਸ਼ ਆ ਜਾਣਾ) – ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮ ਦੇਖ ਕੇ ਸਿੱਖ ਕੌਮ ਦਾ ਖੂਨ ਖੋਲਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ ।
48. ਖਿੱਲੀ ਉਡਾਉਣਾ (ਮਖੌਲ ਉਡਾਉਣਾ) – ਕੁੱਝ ਮਨ-ਚਲੇ ਨੌਜਵਾਨ ਇਕ ਅਪਾਹਜ ਦੀ ਖਿੱਲੀ ਉਡਾ ਰਹੇ ਸਨ ।
49. ਖੰਡ ਖੀਰ ਹੋਣਾ (ਇਕਮਿਕ ਹੋਣਾ) – ਅਸੀਂ ਤਾਏ-ਚਾਚੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਪੁੱਤਰ ਖੰਡ-ਖੀਰ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਾਂ ।
50. ਖ਼ਾਰ ਖਾਣੀ (ਈਰਖਾ ਕਰਨੀ) – ਮੇਰੇ ਕਾਰੋਬਾਰ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਦੇਖ ਕੇ ਉਹ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਬੜੀ ਖ਼ਾਰ ਖਾਂਦਾ ਹੈ ।
51. ਖੁੰਬ ਠੱਪਣੀ (ਆਕੜ ਭੰਨਣੀ) – ਮੈਂ ਉਸ ਨੂੰ ਖ਼ਰੀਆਂ-ਖ਼ਰੀਆਂ ਸੁਣਾ ਕੇ ਉਸ ਦੀ ਖੂਬਖੁੰਬ ਠੱਪੀ ।
52. ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੋ ਜਾਣਾ (ਆਪੋ ਵਿਚ ਪਾ ਕੇ ਤਬਾਹ ਹੋ ਜਾਣਾ) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਮਗਰੋਂ ਸਿੱਖ ਰਾਜ ਘਰੇਲੁ ਬੁਰਛਾਗਰਦੀ ਕਾਰਨ ਖੇਰੂੰ-ਖੇਰੂੰ ਹੋ ਗਿਆ ।
53. ਗਲ ਪਿਆ ਢੋਲ ਵਜਾਉਣਾ (ਕੋਈ ਐਸਾ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਜਾਣਾ, ਜੋ ਬੇਸੁਆਦਾ ਹੋਵੇ) – ਮੇਰਾ ਇਹ ਕੰਮ ਕਰਨ ਨੂੰ ਜੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ, ਐਵੇਂ ਗਲ ਪਿਆ ਢੋਲ ਵਜਾਉਣਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ ।
54. ਗਲਾ ਭਰ ਆਉਣਾ (ਰੋਣ ਆ ਜਾਣਾ) – ਜਦ ਮੇਰੇ ਵੱਡੇ ਵੀਰ ਜੀ ਵਿਦੇਸ਼ ਜਾਣ ਲਈ ਸਾਥੋਂ ਵਿਛੜਨ ਲੱਗੇ, ਤਾਂ ਮੇਰਾ ਗਲਾ ਭਰ ਆਇਆ ।
55. ਗਲ ਪੈਣਾ (ਲੜਨ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਹੋ ਜਾਣਾ) – ਮੈਂ ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਕੁੱਝ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਿਹਾ, ਉਹ ਐਵੇਂ ਹੀ ਮੇਰੇ ਗਲ ਪੈ ਗਿਆ ।
56. ਗੋਦੜੀ ਦਾ ਲਾਲ (ਗੁੱਝਾ ਗੁਣਵਾਨ) – ਇਸ ਰਿਕਸ਼ੇ ਵਾਲੀ ਦਾ ਮੁੰਡਾ ਤਾਂ ਗੋਦੜੀ ਦਾ ਲਾਲ ਨਿਕਲਿਆ, ਜੋ ਆਈ. ਏ. ਐੱਸ. ਦੀ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਪਾਸ ਕਰ ਗਿਆ ।
57. ਗੁੱਡੀ ਚੜ੍ਹਨਾ (ਤੇਜ ਪਰਤਾਪ ਬਹੁਤ ਵਧਣਾ) – ਦੂਜੀ ਸੰਸਾਰ ਜੰਗ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਗੁੱਡੀ ਬਹੁਤ ਚੜ੍ਹੀ ਹੋਈ ਸੀ ।
58. ਘਿਓ ਦੇ ਦੀਵੇ ਬਾਲਣਾ (ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਮਨਾਉਣੀਆਂ) – ਲਾਟਰੀ ਨਿਕਲਣ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਅਸਾਂ ਘਰ ਵਿਚ ਘਿਓ ਦੇ ਦੀਵੇ ਬਾਲੇ ।
59. ਘੋੜੇ ਵੇਚ ਕੇ ਸੌਣਾ (ਬੇਫ਼ਿਕਰ ਹੋਣਾ) – ਦੇਖ, ਮਨਜੀਤ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਘੋੜੇ ਵੇਚ ਕੇ ਸੁੱਤਾ ਪਿਆ ਹੈ, ਗਿਆਰਾਂ ਵੱਜ ਗਏ ਹਨ, ਅਜੇ ਤਕ ਉੱਠਿਆ ਹੀ ਨਹੀਂ ।
60. ਘਰ ਕਰਨਾ (ਦਿਲ ਵਿਚ ਬੈਠ ਜਾਣਾ) – ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਮੇਰੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਘਰ ਕਰ ਗਈ ।
61. ਚਾਂਦੀ ਦੀ ਜੁੱਤੀ ਮਾਰਨੀ (ਵੱਢੀ ਦੇ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰਾਉਣਾ) – ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਬਹੁਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਚ ਕਲਰਕਾਂ ਦੇ ਚਾਂਦੀ ਦੀ ਜੁੱਤੀ ਮਾਰ ਕੇ ਹੀ ਕੰਮ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
62. ਚਰਨ ਧੋ ਕੇ ਪੀਣਾ (ਬਹੁਤ ਆਦਰ ਕਰਨਾ) – ਸਤਿੰਦਰ ਆਪਣੀ ਚੰਗੀ ਸੱਸ ਦੇ ਚਰਨ ਧੋ ਕੇ ਪੀਂਦੀ ਹੈ ।
63. ਛੱਕੇ ਛੁਡਾਉਣੇ (ਭਾਜੜ ਪਾ ਦੇਣੀ) – ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਮੁਦਕੀ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਛੱਕੇ ਛੁਡਾ ਦਿੱਤੇ ।

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64. ਚਾਦਰ ਦੇਖ ਕੇ ਪੈਰ ਪਸਾਰਨੇ (ਆਮਦਨ ਅਨੁਸਾਰ ਖ਼ਰਚ ਕਰਨਾ) – ਤੁਹਾਨੂੰ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚੋਂ ਸਮਾਨ ਖ਼ਰੀਦਦੇ ਸਮੇਂ ਚਾਦਰ ਦੇਖ ਕੇ ਪੈਰ ਪਸਾਰਨੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਤੇ ਫ਼ਜ਼ੂਲ ਖ਼ਰਚ ਤੋਂ ਬਚਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
65. ਛਾਤੀ ਨਾਲ ਲਾਉਣਾ (ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ) – ਕੁਲਦੀਪ ਨੂੰ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿਚੋਂ ਫ਼ਸਟ ਰਿਹਾ ਜਾਣ ਕੇ ਮਾਂ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਛਾਤੀ ਨਾਲ ਲਾ ਲਿਆ ।
66. ਛਿੱਲ ਲਾਹੁਣੀ (ਲੁੱਟ ਲੈਣਾ) – ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਮਨ-ਮਰਜ਼ੀ ਦੇ ਭਾ ਲਾ ਕੇ ਗਾਹਕਾਂ ਦੀ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਛਿੱਲ ਲਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
67. ਜਾਨ ‘ਤੇ ਖੇਡਣਾ (ਜਾਨ ਵਾਰ ਦੇਣੀ) – ਧਰਮ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਿੰਘ ਆਪਣੀ ਜਾਨ ‘ਤੇ ਖੇਡ ਗਏ ।
68. ਜ਼ਬਾਨ ਦੇਣੀ (ਇਕਰਾਰ ਕਰਨਾ) – ਮੈਂ ਜੇ ਜ਼ਬਾਨ ਦੇ ਦਿੱਤੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਮੇਰੇ ਲਈ ਉਸ ਤੋਂ ਫਿਰਨਾ ਬਹੁਤ ਔਖਾ ਹੈ ।
69. ਜ਼ਬਾਨ ਫੇਰ ਲੈਣੀ (ਮੁੱਕਰ ਜਾਣਾ) – ਤੂੰ ਝੱਟ-ਪੱਟ ਹੀ ਆਪਣੀ ਜ਼ਬਾਨ ਫੇਰ ਲੈਂਦਾ ਏਂ, ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਹੀ ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ ।
70.ਜਾਨ ਤਲੀ ‘ਤੇ ਧਰਨੀ (ਜਾਨ ਨੂੰ ਖ਼ਤਰੇ ਵਿਚ ਪਾਉਣਾ) – ਸਿੰਘਾਂ ਨੇ ਜਾਨ ਤਲੀ ‘ਤੇ ਧਰ ਕੇ ਸ੍ਰੀ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕੀਤੀ ।
71.ਟਕੇ ਵਰਗਾ ਜਵਾਬ ਦੇਣਾ (ਸਿੱਧੀ ਨਾਂਹ ਕਰਨੀ) – ਜਦ ਮੈਂ ਪਿਆਰੇ ਤੋਂ ਉਸ ਦੀ ਕਿਤਾਬ ਮੰਗੀ, ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਟਕੇ ਵਰਗਾ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ।
72. ਟੱਸ ਤੋਂ ਮੱਸ ਨਾ ਹੋਣਾ (ਰਤਾ ਪਰਵਾਹ ਨਾ ਕਰਨੀ) – ਮਾਂ-ਬਾਪ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਮਝਾਉਂਦੇ ਹਨ, ਪਰ ਉਹ ਟੱਸ ਤੋਂ ਮੱਸ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ।
73. ਟਾਲ-ਮਟੋਲ ਕਰਨਾ (ਬਹਾਨੇ ਬਣਾਉਣੇ) – ਰਾਮ ! ਜੇ ਤੂੰ ਕਿਤਾਬ ਦੇਣੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਦੇਹ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਐਵੇਂ ਫ਼ਜ਼ਲ ਟਾਲ-ਮਟੋਲ ਨਾ ਕਰ ।
74. ਠੰਢੀਆਂ ਛਾਵਾਂ ਮਾਨਣਾ (ਸੁਖ ਮਾਨਣਾ) – ਪਿਤਾ ਨੇ ਆਪਣੀ ਧੀ ਨੂੰ ਸਹੁਰੇ ਘਰ ਤੋਰਨ ਲੱਗਿਆਂ ਕਿਹਾ, “ ਆਪਣੇ ਘਰ ਠੰਢੀਆਂ ਛਾਵਾਂ ਮਾਣੇ।’
75. ਡਕਾਰ ਜਾਣਾ (ਹਜ਼ਮ ਕਰ ਜਾਣਾ) – ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਸਿਆਸੀ ਲੀਡਰ ਤੇ ਠੇਕੇਦਾਰ ਮਿਲ ਕੇ ਕੌਮ ਦੇ ਕਰੋੜਾਂ ਰੁਪਏ ਡਕਾਰ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
76. ਢਿੱਡ ਵਿੱਚ ਚੂਹੇ ਨੱਚਣਾ (ਬਹੁਤ ਭੁੱਖ ਲੱਗਣੀ) – ਢਿੱਡ ਵਿੱਚ ਚੂਹੇ ਨੱਚਦੇ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਬੱਚੇ ਬੇਸਬਰੀ ਨਾਲ ਅੱਧੀ ਛੁੱਟੀ ਦੀ ਉਡੀਕ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
77. ਢੇਰੀ (ਢਿੱਗੀ) ਢਾਹੁਣੀ (ਦਿਲ ਛੱਡ ਦੇਣਾ) – ਤੁਹਾਨੂੰ ਕਿਸੇ ਅਸਫਲਤਾ ਤੋਂ ਨਿਰਾਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਢੇਰੀ (ਢਿੱਗੀ) ਨਹੀਂ ਢਾਹੁਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ।
78. ਤੱਤੀ ਵਾ ਨਾ ਲੱਗਣੀ (ਕੋਈ ਦੁੱਖ ਨਾਂ ਹੋਣਾ) – ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਹੱਥ ਹੋਵੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤੱਤੀ ‘ਵਾ ਨਹੀਂ ਲਗਦੀ ।

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79.ਤੀਰ ਹੋ ਜਾਣਾ (ਦੌੜ ਜਾਣਾ) – ਜਦ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਛਾਪਾ ਮਾਰਿਆ, ਤਾਂ ਸਭ ਜੁਆਰੀਏ ਤੀਰ ਹੋ ਗਏ, ਇਕ ਵੀ ਹੱਥ ਨਾ ਆਇਆ ।
80. ਤਾਹ ਨਿਕਲਣਾ (ਅਚਾਨਕ ਡਰ ਜਾਣਾ) – ਆਪਣੇ ਕਮਰੇ ਵਿਚ ਸੱਪ ਨੂੰ ਦੇਖ ਮੇਰਾ ਤਾਹ ਨਿਕਲ ਗਿਆ ।
81.ਤਖ਼ਤਾ ਉਲਟਾਉਣਾ (ਇਨਕਲਾਬ ਲਿਆਉਣਾ) – ਗ਼ਦਰ ਪਾਰਟੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਦਾ ਤਖ਼ਤਾ ਉਲਟਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਸੀ ।
82. ਤੂਤੀ ਬੋਲਣੀ (ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਹੋਣੀ) – ਅੱਜ-ਕੱਲ੍ਹ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿਚ ਐੱਮ.ਬੀ.ਡੀ. ਦੀਆਂ ਪੁਸਤਕਾਂ ਦੀ ਤੂਤੀ ਬੋਲਦੀ ਹੈ ।
83. ਬੁੱਕ ਕੇ ਚੱਟਣਾ (ਕੀਤੇ ਇਕਰਾਰ ਤੋਂ ਮੁੱਕਰ ਜਾਣਾ) – ਬੁੱਕ ਕੇ ਚੱਟਣਾ ਇੱਜ਼ਤ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਕੰਮ ਨਹੀਂ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਬੰਦੇ ਦਾ ਇਤਬਾਰ ਜਾਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
84. ਥਰ-ਥਰ ਕੰਬਣਾ (ਬਹੁਤ ਡਰ ਜਾਣਾ) – ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਜੁਆਰੀਏ ਥਰ-ਥਰ ਕੰਬਣ ਲੱਗ ਪਏ ।
85. ਦਿਨ ਫਿਰਨੇ (ਭਾਗ ਜਾਗਣੇ) – ਉਸ ਦੇ ਘਰ ਵਿਚ ਬੜੀ ਗ਼ਰੀਬੀ ਸੀ, ਪਰ ਜਦੋਂ ਦਾ ਉਸਦਾ ਮੁੰਡਾ ਕੈਨੇਡਾ ਗਿਆ ਹੈ, ਉਦੋਂ ਤੋਂ ਹੀ ਉਸਦੇ ਦਿਨ ਫਿਰ ਗਏ ਹਨ ।
86. ਦੰਦ ਪੀਹਣੇ (ਗੁੱਸੇ ਵਿਚ ਆਉਣਾ) – ਜਦ ਉਸ ਨੇ ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਗਾਲਾਂ ਕੱਢੀਆਂ, ਤਾਂ ਉਹ ਗੁੱਸੇ ਵਿਚ ਦੰਦ ਪੀਹਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ।
87. ਦੰਦ ਖੱਟੇ ਕਰਨੇ (ਹਰਾ ਦੇਣਾ) – ਭਾਰਤੀ ਸੈਨਾ ਨੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨੀ ਸੈਨਾ ਦੇ ਦੰਦ ਖੱਟੇ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ।
88. ਧੱਕਾ ਕਰਨਾ (ਅਨਿਆਂ ਕਰਨਾ) – ਪੰਚਾਇਤ ਦਾ ਕੰਮ ਕਿਸੇਂ ਨਾਲ ਧੱਕਾ ਕਰਨਾ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਸਭ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਦੇਣਾ ਹੈ। ।
89. ਧੌਲਿਆਂ ਦੀ ਲਾਜ ਰੱਖਣੀ (ਬਿਰਧ ਜਾਣ ਕੇ ਲਿਹਾਜ਼ ਕਰਨਾ) – ਮਾਪਿਆਂ ਨੇ ਪੁੱਤਰ ਨੂੰ ਦੁਖੀ ਹੋ ਕੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਭੈੜੇ ਕੰਮ ਛੱਡ ਦੇਵੇ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਧੌਲਿਆਂ ਦੀ ਲਾਜ ਰੱਖੇ। ।
90. ਨੱਕ ਚਾੜ੍ਹਨਾ (ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਪਸੰਦ ਨਾ ਕਰਨਾ) – ਬਲਵਿੰਦਰ ਨੇ ਨੱਕ ਚੜ੍ਹਾਉਂਦਿਆਂ ਕਿਹਾ, “ਇਸ ਖ਼ੀਰ ਵਿਚ ਮਿੱਠਾ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਹੈ।
91. ਨੱਕ ਰਗੜਨਾ (ਤਰਲੇ ਕਰਨਾ) – ਕੁਲਵਿੰਦਰ ਨਕਲ ਮਾਰਦਾ ਫੜਿਆ ਗਿਆ ਤੇ ਉਹ ਸੁਪਰਿੰਡੈਂਟ ਅੱਗੇ ਨੱਕ ਰਗੜ ਕੇ ਛੁੱਟਾ ।
92. ਪਿੱਠ ਠੋਕਣਾ (ਹੱਲਾ-ਸ਼ੇਰੀ ਦੇਣਾ) – ਚੀਨ ਭਾਰਤ ਵਿਰੁੱਧ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੀ ਹਰ ਵੇਲੇ ਪਿੱਠ ਠੋਕਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
93. ਪੁੱਠੀਆਂ ਛਾਲਾਂ ਮਾਰਨਾ (ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ ਹੋਣਾ) – ਉਸ ਦਾ ਅਮਰੀਕਾ ਦਾ ਵੀਜ਼ਾ ਲੱਗ ਗਿਆ ਤੇ ਉਹ ਪੁੱਠੀਆਂ ਛਾਲਾਂ ਮਾਰਨ ਲੱਗਾ ।
94. ਪਾਜ ਖੁੱਲ੍ਹ ਜਾਣਾ (ਭੇਦ ਖੁੱਲ੍ਹ ਜਾਣਾ) – ਕਿਰਾਏਦਾਰ ਨੇ ਮਾਲਕ ਮਕਾਨ ਦੇ ਘਰੇਲੂ ਝਗੜੇ ਦਾ ਪਾਜ ਖੋਲ੍ਹ ਦਿੱਤਾ ।
95. ਪੈਰਾਂ ਹੇਠੋਂ ਜ਼ਮੀਨ ਖਿਸਕਣਾ (ਘਬਰਾ ਜਾਣਾ) – ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਨਵ-ਵਿਆਹੀ ਸੀਤਾ ਦੇ ਪਤੀ ਦੀ ਮੌਤ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਸੁਣੀ, ਤਾਂ ਮੇਰੇ ਪੈਰਾਂ ਹੇਠੋਂ ਜ਼ਮੀਨ ਖਿਸਕ ਗਈ ।

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96, ਪਾਪੜ ਵੇਲਣਾ (ਵਾਹ ਲਾਉਣੀ) – ਜਸਬੀਰ ਨੂੰ ਅਜੇ ਤਕ ਨੌਕਰੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲੀ ਤੇ ਉਹ ਰੋਟੀ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਕਈ ਪਾਪੜ ਵੇਲਦਾ ਹੈ ।
97.ਫੁੱਲੇ ਨਾ ਸਮਾਉਣਾ (ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋਣਾ) – ਜਦੋਂ ਸੰਦੀਪ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਉਸ ਦੇ ਮਾਮਾ ਜੀ ਅੱਜ ਅਮਰੀਕਾ ਤੋਂ ਆ ਰਹੇ ਹਨ, ਤਾਂ ਉਹ ਖੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਫੁੱਲੀ ਨਾ ਸਮਾਈ।
98. ਫਿੱਕੇ ਪੈਣਾ (ਸ਼ਰਮਿੰਦੇ ਹੋਣਾ) – ਜਦੋਂ ਉਹ ਦੂਜੀ ਵਾਰੀ ਚੋਰੀ ਕਰਦਾ ਫੜਿਆ ਗਿਆ, ਤਾਂ ਉਹ ਸਾਰਿਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਫਿੱਕਾ ਪੈ ਗਿਆ ।
99. ਫੁੱਟੀ ਅੱਖ ਨਾ ਭਾਉਣਾ (ਬਿਲਕੁਲ ਹੀ ਚੰਗਾ ਨਾ ਲੱਗਣਾ) – ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਫੁੱਟੀ ਅੱਖ ਨਹੀਂ ਭਾਉਂਦੀ ।
100. ਬਾਂਹ ਭੱਜਣੀ (ਭਰਾ ਦਾ ਮਰ ਜਾਣਾ) – ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਭਰਾ ਦੇ ਮਰਨ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਸੁਣ ਕੇ ਉਸ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਮੇਰੀ ਤਾਂ ਅੱਜ ਬਾਂਹ ਭੱਜ ਗਈ ।”
101. ਬੁੱਕਲ ਵਿਚ ਮੂੰਹ ਦੇਣਾ (ਸ਼ਰਮਿੰਦਾ ਹੋਣਾ) – ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਭਰੀ ਪੰਚਾਇਤ ਵਿਚ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਦੀਆਂ ਕਰਤੂਤਾਂ ਦਾ ਭਾਂਡਾ ਭੰਨਿਆ, ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਬੁੱਕਲ ਵਿਚ ਮੂੰਹ ਦੇ ਲਿਆ ।
102. ਭੰਡੀ ਕਰਨੀ (ਬੁਰਾਈ ਕਰਨੀ) – ਜੋਤੀ ਹਮੇਸ਼ਾ ਗਲੀ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਦਰਾਣੀ ਦੀ ਭੰਡੀ ਕਰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।
103. ਮੁੱਠੀ ਗਰਮ ਕਰਨੀ (ਵਿੱਢੀ ਦੇਣੀ) – ਇੱਥੇ ਤਾਂ ਛੋਟੇ ਤੋਂ ਛੋਟਾ ਕੰਮ ਕਰਾਉਣ ਲਈ ਸਰਕਾਰੀ ਕਲਰਕਾਂ ਦੀ ਮੁੱਠੀ ਗਰਮ ਕਰਨੀ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ।
104. ਮੈਦਾਨ ਮਾਰਨਾ (ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਣੀ) – ਮਹਾਰਾਜੇ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਘੇਰ ਕੇ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਲਹੁ-ਵੀਟਵੀਂ ਲੜਾਈ ਕੀਤੀ ਤੇ ਆਖ਼ਰ ਮੈਦਾਨ ਮਾਰ ਹੀ ਲਿਆ ।
105. ਮੂੰਹ ਦੀ ਖਾਣੀ (ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਾਰ ਖਾਣੀ) – ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਨੇ ਜਦੋਂ ਵੀ ਭਾਰਤ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੇ ਮੂੰਹ ਦੀ ਖਾਧੀ ਹੈ ।
106. ਮੱਖਣ ਵਿਚੋਂ ਵਾਲ ਵਾਂਗੂ ਕੱਢਣਾ (ਅਸਾਨੀ ਨਾਲ ਦੂਰ ਕਰ ਦੇਣਾ) – ਸਿਆਸੀ ਲੀਡਰ ਆਪਣੇ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਪਾਰਟੀ ਵਿਚੋਂ ਮੱਖਣ ਵਿਚੋਂ ਵਾਲ ਵਾਂਗੂੰ ਕੱਢ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ।
107. ਯੱਕੜ ਮਾਰਨੇ (ਗੱਪਾਂ ਮਾਰਨੀਆਂ) – ਬਲਜੀਤ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਵਿਹਲਿਆਂ ਦੀ ਢਾਣੀ ਵਿਚ ਬਹਿ ਕੇ ਯੱਕੜ ਮਾਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
108. ਰੰਗ ਉਡ ਜਾਣਾ (ਘਬਰਾ ਜਾਣਾ) – ਫੇਲ੍ਹ ਹੋਣ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਸੁਣ ਕੇ ਬਿੱਲੂ ਦਾ ਰੰਗ ਉਡ ਗਿਆ।
109. ਰਾਈ ਦਾ ਪਹਾੜ ਬਣਾਉਣਾ (ਸਧਾਰਨ ਗੱਲ ਵਧਾ-ਚੜ੍ਹਾ ਕੇ ਕਰਨੀ) – ਮੀਨਾ ਤਾਂ ਰਾਈ ਦਾ ਪਹਾੜ ਬਣਾ ਲੈਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਐਵੇਂ ਨਰਾਜ਼ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

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110. ਰਫੂ ਚੱਕਰ ਹੋ ਜਾਣਾ (ਦੌੜ ਜਾਣਾ) – ਜੇਬ-ਕਤਰਾ ਉਸ ਦੀ ਜੇਬ ਕੱਟ ਕੇ ਰਫੂ ਚੱਕਰ ਹੋ ਗਿਆ ।
111. ਲੜ ਫੜਨਾ (ਸਹਾਰਾ ਦੇਣਾ) – ਦੁਖੀ ਹੋਏ ਕਸ਼ਮੀਰੀ ਪੰਡਤਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਦਾ ਲੜ ਫੜਿਆ ।
112. ਲਹੂ ਪੰਘਰਨਾ (ਪਿਆਰ ਜਾਗਣਾ) – ਆਪਣਾ ਲਹੂ ਕਦੀ ਨਾ ਕਦੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਪੰਘਰਦਾ ਹੈ ।
113. ਹੂ ਸੁੱਕਣਾ (ਫ਼ਿਕਰ ਹੋਣਾ) – ਜਦੋਂ ਰਾਮ ਦਾ ਇਮਤਿਹਾਨ ਨੇੜੇ ਆਇਆ, ਤਾਂ ਉਸ ਦਾ ਲਹੂ ਸੁੱਕਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ ।
114. ਵਾਲ ਵਿੰਗਾ ਨਾ ਹੋਣਾ (ਕੁੱਝ ਨਾ ਵਿਗੜਨਾ) – ਜਿਸ ਉੱਪਰ ਰੱਬ ਦੀ ਮਿਹਰ ਹੋਵੇ, ਉਸ ਦਾ ਵਾਲ ਵਿੰਗਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ।
115. ਵੇਲੇ ਨੂੰ ਰੋਣਾ (ਸਮਾਂ ਗੁਆ ਕੇ ਪਛਤਾਉਣਾ)-ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਕਹਿੰਦੀ ਹਾਂ ਕਿ ਕੰਮ ਦੀ ਇਹੋ ਹੀ ਉਮਰ ਹੈ ,ਪਰ ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਗੱਲ ਮੰਨਦਾ ਹੀ ਨਹੀਂ । ਯਾਦ ਰੱਖ, ਵੇਲੇ ਨੂੰ ਰੋਵੇਂਗਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਹੱਲ ਕੀਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

Punjab State Board PSEB 8th Class Punjabi Book Solutions Punjabi Grammar Kujha hor hala kiti prasan ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਹੱਲ ਕੀਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 8th Class Punjabi Grammar ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਹੱਲ ਕੀਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾਓ –
(ਉ) ਫੇਰ ਤੂੰ ਏਡੇ ਮਹਿੰਗੇ ਕਾਲੀਨ ਦੀ ਸੁਗਾਤ ਕਿਉਂ ਲਿਆਈਓ
(ਅ) ਪਰ ਮੈਂ ਤਾਂ ਸਰਦਾਰ ਸਾਹਿਬ ਬੜੀ ਗ਼ਰੀਬ ਹਾਂ ਮਾਂ ਪਿਓ ਦੋਵੇਂ ਰੋਗੀ ਹਨ ਸਾਰਿਆਂ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਹਾਂ ਤੇ ਛੇ ਹੋਰ ਨਿੱਕੇ ਭੈਣ ਭਰਾ ਹਨ :
(ੲ) ਤੂੰ ਅਜੇ ਤਕ ਗਿਆ ਨਹੀਂ ਵਿਹੜੇ ਵਿਚੋਂ ਬਾਪੂ ਕੜਕ ਕੇ ਬੋਲਿਆ
(ਸ) ਪੈਰੀਂ ਪੈਨੀਆਂ ਬੇਬੇ ਆਖਦੀ ਹੋਈ ਸਤਵੰਤ ਬੁੜੀ ਦੇ ਪੈਰਾਂ ਵਲ ਝੁਕੀ ਬੁੱਢ ਸੁਹਾਗਣ ਦੇਹ ਨਰੋਈ ਰੱਬ ਤੈਨੂੰ ਬੱਚਾ ਦੇਵੇ ਬੁੜੀ ਨੇ ਮਮਤਾ ਦੀ ਮੂਰਤ ਬਣ ਕੇ ਆਇਆ ।
(ਹ) ਹਾਏ ਕਿੰਨੇ ਸੋਹਣੇ ਫੁੱਲ ਲੱਗੇ ਹਨ ਇਕ ਕੁੜੀ ਨੇ ਦੂਜੀ ਨੂੰ ਆਖਿਆ
(ਕ) ਮੈਂ ਉਡੀਕਾਂ ਤੈਨੂੰ ਬੱਸ ਅੱਡੇ ਉੱਤੇ ਰਮਿੰਦਰ ਨੇ ਪੁੱਛਿਆ ਨਹੀਂ ਮੈਂ ਆਪੇ ਆਹੂੰ ਸਤਿੰਦਰ ਦਾ ਉੱਤਰ ਸੀ
(ਖ) ਤੁਸੀਂ ਏਨੀ ਮਿਹਨਤ ਨਾ ਕਰਿਆ ਕਰੋ ਪਿਤਾ ਜੀ ਕੁਝ ਆਰਾਮ ਕਰ ਲਿਆ ਕਰੋ ਮੋਹਣੀ ਨੇ ਕਿਹਾ
(ਗ) ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਹੈ ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਮੁੰਡਿਆਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਵੰਡ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਾਡੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ਸੁੰਦਰ ਨੇ ਮਾਸਟਰ ਜੀ ਤੋਂ ਪੁੱਛਿਆ ਲਾਹੌਰ ਧਰਤੀ ਦਾ ਬਹਿਸ਼ਤ ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਅੱਛਾ ਜੀ ਰਾਮ ਨੇ ਕਿਹਾ

(ਘ) ਅੱਛਾ ਤਾਂ ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ ਬੁਲਾਇਆ ਸੀ ਮੈਂ ਸੋਚਾਂ ਖ਼ਬਰੇ ਕੌਣ ਏ ਮੋਤੀ ਨੇ ਜੋਤੀ ਨੂੰ ਕਿਹਾ
ਉੱਤਰ :
(ਉ) “ਫੇਰ ਤੂੰ ਏਡੇ ਮਹਿੰਗੇ ਕਾਲੀਨ ਦੀ ਸੁਗਾਤ ਕਿਉਂ ਲਿਆਈਓਂ ?”
(ਅ) “ਪਰ ਮੈਂ ਤਾਂ, ਸਰਦਾਰ ਸਾਹਿਬ, ਬੜੀ ਗ਼ਰੀਬ ਹਾਂ | ਮਾਂ ਪਿਓ ਦੋਵੇਂ ਰੋਗੀ ਹਨ ! ਸਾਰਿਆਂ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਹਾਂ ਤੇ ਛੇ ਹੋਰ ਨਿੱਕੇ ਭੈਣ ਭਰਾ ਹਨ ।”
(ੲ) ‘ਤੂੰ ਅਜੇ ਤਕ ਗਿਆ ਨਹੀਂ ।” ਵਿਹੜੇ ਵਿਚੋਂ ਬਾਪੂ ਕੜਕ ਕੇ ਬੋਲਿਆ |
(ਸ) “ਪੈਰੀਂ ਪੈਨੀਆਂ ਬੇਬੇ !” ਆਖਦੀ ਹੋਈ ਸਤਵੰਤ ਬੁੜੀ ਦੇ ਪੈਰਾਂ ਵਲ ਝੁਕੀ । “ਬੁੱਢਸੁਹਾਗਣ ! ਦੇਹ ਨਰੋਈ ! ਰੱਬ ਤੈਨੂੰ ਬੱਚਾ ਦੇਵੇ !” ਬੁੜੀ ਨੇ ਮਮਤਾ ਦੀ ਮੂਰਤ ਬਣ ਕੇ ਆਖਿਆ ।
(ਹ) “ਹਾਏ ! ਕਿੰਨੇ ਸੋਹਣੇ ਫੁੱਲ ਲੱਗੇ ਹਨ !” ਇਕ ਕੁੜੀ ਨੇ ਦੂਜੀ ਨੂੰ ਆਖਿਆ ।
(ਕ) “ਮੈਂ ਉਡੀਕਾਂ ਤੈਨੂੰ ਬੱਸ ਅੱਡੇ ਉੱਤੇ ?” ਰਮਿੰਦਰ ਨੇ ਪੁੱਛਿਆ । “ਨਹੀਂ ਮੈਂ ਆਪੇ ਆਜੂ।” ਸਤਿੰਦਰ ਦਾ ਉੱਤਰ ਸੀ ।
(ਖ) “ਤੁਸੀਂ ਏਨੀ ਮਿਹਨਤ ਨਾ ਕਰਿਆ ਕਰੋ ਪਿਤਾ ਜੀ, ਕੁਝ ਆਰਾਮ ਕਰ ਲਿਆ ਕਰੋ ।’’ ਮੋਹਣੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ।
(ਗ) “ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਹੈ ।” ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਮੁੰਡਿਆਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ । ‘ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਵੰਡ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਾਡੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਕਿਹੜੀ ਸੀ ?” ਸੁੰਦਰ ਨੇ ਮਾਸਟਰ ਜੀ ਤੋਂ ਪੁੱਛਿਆ । ਲਾਹੌਰ ਧਰਤੀ ਦਾ ਬਹਿਸ਼ਤ ।” ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਦੱਸਿਆ । “ਅੱਛਾ ਜੀ !” ਰਾਮ ਨੇ ਕਿਹਾ ।
(ਘ) “ਅੱਛਾ ! ਤਾਂ ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ ਬੁਲਾਇਆ ਸੀ ! ਮੈਂ ਸੋਚਾਂ, ਖ਼ਬਰੇ ਕੌਣ ਏ ?” ਮੋਤੀ ਨੇ ਜੋਤੀ ਨੂੰ ਕਿਹਾ

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਹੱਲ ਕੀਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੈਰੇ ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾ ਕੇ ਦੁਬਾਰਾ ਲਿਖੋ-
ਬੱਚਿਓ ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਆਖਿਆ ਤੁਸੀਂ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹਿਆ ਕਰੋ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਤੁਸੀਂ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿਚੋਂ ਪਾਸ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਨਸੀਹਤਾਂ ਦੇਣ ਪਿੱਛੋਂ ਉਹਨਾਂ ਪੁੱਛਿਆ ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੇ ਕਹੇ ਤੇ ਚਲੋਗੇ ਉਹਨਾਂ ਉੱਤਰ ਦਿੱਤਾ ਹਾਂ ਜੀ ਅਸੀਂ ਜ਼ਰੂਰ ਤੁਹਾਡਾ ਹੁਕਮ ਮੰਨਾਂਗੇ ਸ਼ਾਬਾਸ਼ ਮੈਨੂੰ ਤੁਹਾਥੋਂ ਇਹੋ ਹੀ ਆਸ ਸੀ ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਖੁਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਕਿਹਾ ।
ਉੱਤਰ :
ਬੱਚਿਓ,” ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਆਖਿਆ, “ਤੁਸੀਂ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹਿਆ ਕਰੋ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਤੁਸੀਂ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿਚੋਂ ਪਾਸ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੇ ।’’ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਨਸੀਹਤਾਂ ਦੇਣ ਪਿੱਛੋਂ ਉਹਨਾਂ ਪੁੱਛਿਆ, “ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੇ ਕਹੇ ਤੇ ਚਲੋਗੇ ?” ਉਹਨਾਂ ਉੱਤਰ ਦਿੱਤਾ, “ਹਾਂ ਜੀ, ਅਸੀਂ ਜ਼ਰੂਰ ਤੁਹਾਡਾ ਹੁਕਮ ਮੰਨਾਂਗੇ ।” “ਸ਼ਾਬਾਸ਼ ! ਮੈਨੂੰ ਤੁਹਾਥੋਂ ਇਹੋ ਹੀ ਆਸ ਸੀ, ” ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਖੁਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਕਿਹਾ |

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾਓ
ਕਿਉਂ ਕਾਕਾ ਦੁੱਧ ਪੀਏਂਗਾ ਮਾਂ ਨੇ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਪੁੱਛਿਆ ਰਵਿੰਦਰ ਨੇ ਉੱਤਰ ਦਿੱਤਾ ਨਹੀਂ ਮਾਤਾ ਜੀ ਅੱਜ ਮੇਰੀ ਤਬੀਅਤ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਕਿਉਂ ਕੀ ਗੱਲ ਏ ਮਾਂ ਨੇ ਚਿੰਤਾਤੁਰ ਹੋ ਕੇ ਪੁੱਛਿਆ ਰਵਿੰਦਰ ਨੇ ਆਖਿਆ ਮੇਰੇ ਢਿੱਡ ਵਿਚ ਥੋੜਾ ਥੋੜਾ ਦਰਦ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਇਸ ਲਈ ਕੁਝ ਖਾਣ ਪੀਣ ਨੂੰ ਦਿਲ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ।
ਉੱਤਰ :
“ਕਿਉਂ ਕਾਕਾ, ਦੁੱਧ ਪੀਏਂਗਾ ?” ਮਾਂ ਨੇ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਪੁੱਛਿਆ : ਰਵਿੰਦਰ ਨੇ ਉੱਤਰ ਦਿੱਤਾ, “ਨਹੀਂ, ਮਾਤਾ ਜੀ, ਅੱਜ ਮੇਰੀ ਤਬੀਅਤ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ।” “ਕਿਉਂ ਕੀ ਗੱਲ ਏ ?” ਮਾਂ ਨੇ ਚਿੰਤਾਤੁਰ ਹੋ ਕੇ ਪੁੱਛਿਆ । ਰਵਿੰਦਰ ਨੇ ਆਖਿਆ, “ਮੇਰੇ ਢਿੱਡ ਵਿਚ ਥੋੜ੍ਹਾ-ਥੋੜ੍ਹਾ ਦਰਦ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਕੁਝ ਖਾਣ ਪੀਣ ਨੂੰ ਦਿਲ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ।”

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾ ਕੇ ਲਿਖੋ
ਬੈਰੇ ਨੇ ਉਸ ਕੋਲ ਆ ਕੇ ਪੁੱਛਿਆ ਕੀ ਚਾਹੀਦੈ ਪਾਣੀ ਬਿਰਜੂ ਦੇ ਸੁੱਕੇ ਬੁੱਲ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਮਸਾਂ , ਨਿਕਲਿਆ ਹੋਰ ਬੈਰੇ ਨੇ ਪੁੱਛਿਆ ਬਿਰਜੂ ਦੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਆਇਆ ਕਿ ਖਾਣ ਲਈ ਵੀ ਕੁਝ ਮੰਗ ਲਵੇ ਪਰ ਉਹ ਮੰਗਵਾਉਣ ਦੀ ਹਿੰਮਤ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਕੋਲ ਪੈਸੇ ਨਹੀਂ ਸਨ ਅਖੀਰ ਉਸ ਨੇ ਕਿਹਾ ਬੱਸ ਪਾਣੀ ਹੀ ਤਦ ਬੈਰੇ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਝਿੜਕ ਕੇ ਕਿਹਾ ਦੌੜ ਜਾ ਏਥੋਂ ਕੱਲਾ ਪਾਣੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲੇਗਾ
ਉੱਤਰ :
ਬੈਰੇ ਨੇ ਉਸ ਕੋਲ ਆ ਕੇ ਪੁੱਛਿਆ, “ਕੀ ਚਾਹੀਦੈ ?” “ਪਾਣੀ ।” ਬਿਰਜੂ ਦੇ ਸੁੱਕੇ ਬੁੱਲਾਂ ਵਿਚੋਂ ਮਸਾਂ ਨਿਕਲਿਆ । ਹੋਰ ?” ਬੈਰੋ ਨੇ ਪੁੱਛਿਆ । ਬਿਰਜੂ ਦੇ ਦਿਲ ਵਿਚ ਆਇਆ ਕਿ ਖਾਣ ਲਈ ਵੀ ਕੁਝ ਮੰਗ ਲਵੇ, ਪਰ ਉਹ ਮੰਗਵਾਉਣ ਦੀ ਹਿੰਮਤ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਿਆ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਕੋਲ ਪੈਸੇ ਨਹੀਂ ਸਨ | ਅਖੀਰ ਉਸ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਬੱਸ ਪਾਣੀ ਹੀ ।’’ ਤਦ ਬੈਰੇ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਝਿੜਕ ਕੇ ਕਿਹਾ, “ਦੌੜ ਜਾਂ ਏਥੋਂ, ਕੱਲਾ ਪਾਣੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲੇਗਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਹੱਲ ਕੀਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾਓ-
ਕੋਈ ਨਾ ਪੁੱਤ ਆਪਾਂ ਥੋੜ੍ਹੇ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਗੱਗੂ ਆਪਣੇ ਘਰ ਲੈ ਚਲਾਂਗੇ ਮਾਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਨਹੀਂ ਮੈਂ ਤਾਂ ਗੱਗੂ ਨੂੰ ਹੁਣੇ ਲਿਜਾਣਾ ਦੇਖ ਦਲੀਪੇ ਨੇ ਮੇਰੇ ਗੱਗੂ ਦਾ ਬੁਰਾ ਹਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਦਲੀਪੇ ਨੇ ਮੇਰੇ ਗੱਗੂ ਦਾ ਨੱਕ ਕਿਉਂ ਪਾੜਿਆ
ਉੱਤਰ :
“ਕੋਈ ਨਾ ਪੁੱਤਰ, ਆਪਾਂ ਥੋੜੇ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਗੱਗ ਆਪਣੇ ਘਰ ਲੈ ਚਲਾਂਗੇ ।” ਮਾਂ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਨਹੀਂ, ਮੈਂ, ਤਾਂ ਗੱਗੂ ਨੂੰ ਹੁਣੇ ਲਿਜਾਣਾ ।ਦੇਖ, ਦਲੀਪੇ ਨੇ ਮੇਰੇ ਗੱਗੂ ਦਾ ਬੁਰਾ ਹਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਦਲੀਪੇ ਨੇ ਮੇਰੇ ਗੱਗ ਦਾ ਨੱਕ ਕਿਉਂ ਪਾੜਿਆ ?”

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾਓ-
ਲੈ ਤੈਨੂੰ ਕੀ ਹੁੰਦੈ ਦਾਦੀ ਤੂੰ ਤਾਂ ਚੰਗੀ-ਭਲੀ ਐਂ ਉਸ ਆਖਿਆ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦਾ ਕਾਹਨੂੰ ਕੰਮ ਛਡਾਉਣਾ ਏਂ ਤੇ ਬੇਬੇ ਇਉਂ ਹੀ ਕਹਿੰਦੀ ਸੀ ਕਾਰਡ ਤਾਂ ਮੈਂ ਪਾਇਆ ਨਹੀਂ
ਉੱਤਰ :
‘ਲੈ ਤੈਨੂੰ ਕੀ ਹੁੰਦੈ ਦਾਦੀ ? ਤੂੰ ਤਾਂ ਚੰਗੀ-ਭਲੀ ਐਂ।” ਉਸ ਆਖਿਆ ‘‘ਪਿਤਾ · ਜੀ ਦਾ ਕਾਹਨੂੰ ਕੰਮ ਛਡਾਉਣਾ ਏਂ ? ਤੇ ਬੇਬੇ ਇਉਂ ਹੀ ਕਹਿੰਦੀ ਸੀ । ਕਾਰਡ ਤਾਂ ਮੈਂ ਪਾਇਆ ਨਹੀਂ ।’’

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾਓ-
ਤੇ ਕੁੜੇ ਉੱਠ ਕੇ ਰੋਟੀ ਟੁੱਕ ਦਾ ਆਹਰ ਕਰ । ਮੁੰਡਾ ਵੱਡੇ ਵੇਲੇ ਦਾ ਭੁੱਖਾ-ਭਾਣਾ ਹੋਵੇਗਾ ਭੂਆ ਨੇ ਇਹ ਕਹਿ ਕੇ ਨੂੰਹ ਨੂੰ ਰਸੋਈ ਵੱਲ ਨਸਾਇਆ ਮੈਂ ਬਥੇਰੀ ਨਾਂਹ ਨੁੱਕਰ ਕੀਤੀ ਪਰ ਉੱਥੇ ਸੁਣਾਈ ਕਾਹਨੂੰ ਹੋਣੀ ਸੀ
ਉੱਤਰ :
‘‘ਤੇ ਕੁੜੇ ਉੱਠ ਕੇ ਰੋਟੀ-ਟੁੱਕ ਦਾ ਆਹਰ ਕਰ । ਮੁੰਡਾ ਵੱਡੇ ਵੇਲੇ ਦਾ ਭੁੱਖਾ-ਭਾਣਾ ਹੋਵੇਗਾ ।” ਭੁਆ ਨੇ ਇਹ ਕਹਿ ਕੇ ਨੂੰਹ ਨੂੰ ਰਸੋਈ ਵੱਲ ਨਸਾਇਆ | ਮੈਂ ਬਥੇਰੀ ਨਾਂਹ-ਨੁੱਕਰ ਕੀਤੀ, ਪਰ ਉੱਥੇ ਸੁਣਾਈ ਕਾਹਨੂੰ ਹੋਣੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾਓ-
ਭੂਆ ਅੱਗੇ ਮੈਂ ਬਥੇਰੇ ਵਾਸਤੇ ਪਾਵਾਂ ਭੂਆ ਜੀ ਮੈਨੂੰ ਇੱਕ ਗਰਾਹੀ ਦੀ ਵੀ ਭੁੱਖ ਨਹੀਂ ਮੈਂ ਅੱਗੇ ਹੀ ਜੰਝ ਦੀ ਰੋਟੀ ਖਾਣ ਕਰਕੇ ਔਖਾ ਹਾਂ ਪਰ ਬਿਨਾਂ ਮੇਰੀ ਗੱਲ ਵਲ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਿਆਂ ਭੂਆ ਆਪਣੀਆਂ ਹੀ ਵਾਹੀ ਜਾਵੇ ਭਲਾ ਕਾਕਾ ਇਹ ਹੈ ਕੀ ਏ ਹੌਲੇ ਹੌਲੇ ਤੇ ਫੁਲਕੇ ਨੇ ਖਾ ਲੈ ਖਾ ਲੈ ਮਾਂ ਸਦਕੇ |
ਉੱਤਰ :
ਆ ਅੱਗੇ ਮੈਂ ਬਥੇਰੇ ਵਾਸਤੇ ਪਾਵਾਂ, ‘ਭੂਆ ਜੀ, ਮੈਨੂੰ ਇੱਕ ਗਰਾਹੀ ਦੀ ਵੀ ਭੁੱਖ ਨਹੀਂ । ਮੈਂ ਅੱਗੇ ਹੀ ਜੰਵ ਦੀ ਰੋਟੀ ਖਾਣ ਕਰਕੇ ਔਖਾ ਹਾਂ, ਪਰ ਬਿਨਾਂ ਮੇਰੀ ਗੱਲ ਵਲ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਿਆਂ ਭੂਆ ਆਪਣੀਆਂ ਹੀ ਵਾਹੀ ਜਾਵੇ, ‘‘ਭਲਾ ਕਾਕਾ, ਇਹ ਹੈ ਕੀ ਏ ? ਹੌਲੇਹੌਲੇ ਤੇ ਫੁਲਕੇ ਨੇ । ਖਾ ਲੈ, ਖਾ ਲੈ ਮਾਂ ਸਦਕੇ ।”

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾਓਸੁਣਦਿਆਂ ਸਾਰ ਭੂਆ ਬੋਲ ਉੱਠੀ ਬੱਸ ਲੱਗ ਗਈ ਅੱਗ ਹੁਣ ਸਾਰੇ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਓਹੀਓ ਦੁੱਧ ਜਿਹਨੂੰ ਕੁੱਤੇ ਨਹੀਂ ਕਬੂਲਦੇ ਅੱਜ ਕਾਲ ਪੈ ਗਿਆ ਏ ਮੁੰਡਾ ਆਖੇਗਾ ਕਿ ਕਿਹੇ ਚੰਦਰੇ ਘਰ ਆ ਵੜਿਆਂ ਵਾਂ ਜੋ ਦੁੱਧ ਦੀ ਛਿੱਟ ਵੀ ਨਹੀਂ ਜੁੜਦੀ ।
ਉੱਤਰ :
ਸੁਣਦਿਆਂ ਸਾਰ ਭੂਆ ਬੋਲ ਉੱਠੀ, “ਬੱਸ ! ਲੱਗ ਗਈ ਅੱਗ ਹੁਣ ਸਾਰੇ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ! ਓਹੀਓ ਦੁੱਧ, ਜਿਹਨੂੰ ਕੁੱਤੇ ਨਹੀਂ ਕਬੂਲਦੇ, ਅੱਜ ਕਾਲ ਪੈ ਗਿਆ ਏ । ਮੁੰਡਾ ਆਖੇਗਾ ਕਿ ਕਿਹੇ ਚੰਦਰੇ ਘਰ ਆ ਵੜਿਆ ਵਾਂ, ਜੋ ਦੁੱਧ ਦੀ ਛਿੱਟ ਵੀ ਨਹੀਂ ਜੁੜਦੀ ।”

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਹੱਲ ਕੀਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾਓ-
ਉਹੋ ਕਹਿ ਕੇ ਮੈਂ ਛੰਨਾ ਭੁੱਜਿਓਂ ਚੁੱਕਿਆ ਤੇ ਭਰਜਾਈ ਨੇ ਝੱਟ ਮੇਰੇ ਹੱਥੋਂ ਫੜ ਲਿਆ ਕੀ ਹੋਇਆ ਕੁੜੇ ਕਹਿੰਦੀ ਹੋਈ ਭੂਆ ਆਪਣੀ ਡੰਗੋਰੀ ਖੜਕਾਉਂਦੀ ਮੇਰੇ ਪਾਸ ਆ ਪੁੱਜੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਦੁੱਧ ਡੁੱਲ੍ਹ ਗਿਆ ਏ ਨੂੰਹ ਨੇ ਸ਼ਰਮਿੰਦਗੀ ਭਰੀ ਅਵਾਜ਼ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ
ਉੱਤਰ :
“ਉਹੋ !” ਕਹਿ ਕੇ ਮੈਂ ਛੰਨਾ ਜਿਓਂ ਚੁੱਕਿਆ ਤੇ ਭਰਜਾਈ ਨੇ ਝੱਟ ਮੇਰੇ ਹੱਥੋਂ ਫੜ ਲਿਆ ।
“ਕੀ ਹੋਇਆ, ਕੁੜੇ ?” ਕਹਿੰਦੀ ਹੋਈ ਭੂਆ ਆਪਣੀ ਡੰਗੋਰੀ ਖੜਕਾਉਂਦੀ ਮੇਰੇ ਪਾਸ ਆ ਪੁੱਜੀ।”
“ਕੁਝ ਨਹੀਂ, ਦੁੱਧ ਡੁੱਲ੍ਹ ਗਿਆ ਏ ।” ਨੂੰਹ ਨੇ ਸ਼ਰਮਿੰਦਗੀ ਭਰੀ ਅਵਾਜ਼ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਚਿੱਠੀ-ਪੱਤਰ

Punjab State Board PSEB 8th Class Punjabi Book Solutions Punjabi Rachana ਚਿੱਠੀ-ਪੱਤਰ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 8th Class Punjabi Rachana ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

ਚਿੱਠੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖਣ ਲਈ ਕੁੱਝ ਜ਼ਰੂਰੀ ਗੱਲਾਂ

(ਉ) ਚਿੱਠੀ ਵਿਚ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਲਿਖੋ, ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਤੁਸੀਂ ਆਮ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਹੋ ਕਿਉਂਕਿ ਚਿੱਠੀ ਇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਗੱਲ-ਬਾਤ ਹੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
(ਅ) ਜਿਹੜੇ ਆਪਣੇ ਬਹੁਤ ਨਜ਼ਦੀਕੀ ਹੋਣ, ਉਹਨਾਂ ਲਈ ਅਪਣੱਤ ਵਾਲੇ ਭਾਵਾਂ ਨਾਲ ਭਰੀ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੋ, ਪਰ ਅਜਨਬੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਪਰਾਏ ਨਾ ਸਮਝੋ, ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਕੁੱਝ ਨਾ ਕੁੱਝ ਅਪਣੱਤ ਪੈਦਾ ਕਰੋ ।
(ੲ) ਚਿੱਠੀ ਵਿਚਲੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਨੂੰ ਲਿਖਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਉਸ ਦਾ ਠੀਕ ਤੇ ਢੁੱਕਵੇਂ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਆਰੰਭ ਕਰੋ ।
(ਸ) ਜੋ ਕੁੱਝ ਤੁਸੀਂ ਕਹਿਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ, ਉਸ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਰੂਪ ਵਿਚ ਲਿਖੋ ਅਤੇ ਇਧਰ-ਉਧਰ ਦੀਆਂ ਫ਼ਜ਼ੂਲ ਗੱਲਾਂ ਲਿਖਣ ਤੋਂ ਪਰਹੇਜ਼ ਕਰੋ ।
(ਹ) ਚਿੱਠੀ ਲਿਖਦਿਆਂ ਪਿਆਰ, ਹਮਦਰਦੀ ਤੇ ਨਰਮੀ ਦਾ ਪੱਲਾ ਨਾ ਛੱਡੋ ਤੇ ਕੌੜੀਆਂ, ਕਾਟਵੀਆਂ, ਚੁੱਭਵੀਆਂ, ਵਿਅੰਗ-ਭਰੀਆਂ ਤੇ ਅਗਲੇ ਦੀ ਹੇਠੀ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਨਾ ਲਿਖੋ ।
(ਕ) ਚਿੱਠੀ ਦੀ ਬੋਲੀ ਸਰਲ ਅਤੇ ਸੌਖੀ ਰੱਖੋ । ਅਜਿਹੇ ਸ਼ਬਦ ਨਾ ਵਰਤੋ, ਜਿਹੜੇ ਔਖੇ ਤੇ ਰੜਕਵੇਂ ਹੋਣ ਅਤੇ ਤੁਹਾਡੇ ਪਾਠਕ ਦੀ ਸਮਝ ਵਿਚ ਨਾ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਹੋਣ ।ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵੀ ਠੀਕ-ਠੀਕ ਵਰਤੋਂ ਕਰੋ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਕਈ ਵਾਰ ਤੁਹਾਡੇ ਵਾਕਾਂ ਦੇ ਅਰਥ ਹੋਰ ਦੇ ਹੋਰ ਨਿਕਲ ਜਾਣਗੇ ।
(ਖ) ਚਿੱਠੀ ਉੱਤੇ ਤਾਰੀਖ਼ (ਮਿਤੀ) ਲਿਖਣੀ ਨਾ ਭੁੱਲੋ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

ਚਿੱਠੀ-ਪੱਤਰ ਦਾ ਢਾਂਚਾ

ਚਿੱਠੀ ਦੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਛੇ ਭਾਗ ਮੰਨੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ-

1. ਆਰੰਭ :
ਚਿੱਠੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿਚ ਲੇਖਕ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਪਤਾ ਅਤੇ ਤਾਰੀਖ਼ ਲਿਖਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਚਿੱਠੀ ਦੇ ਸਿਖਰ ਉੱਤੇ ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ ਲਿਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-

77, ਮਾਡਲ ਟਾਊਨ,
ਜਲੰਧਰ ਸ਼ਹਿਰ ।
10 ਜਨਵਰੀ, 20….

2. ਸੰਬੋਧਨੀ ਸ਼ਬਦ :
ਚਿੱਠੀ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿਚ ਉੱਪਰ ਦੱਸੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਤਾ ਲਿਖਣ ਪਿੱਛੋਂ ਉਸ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਯੋਗ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੋਵੇ ।ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਲਈ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਪਤੇ ਤੋਂ ਹੇਠਾਂ ਖੱਬੇ ਪਾਸੇ ਲਿਖਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ; ਜਿਵੇਂ-
(ਉ) ਪਿਆਰੇ ਵੀਰ ਜੀ
(ਅ) ਪਿਆਰੇ ਸਤਵਿੰਦਰ
(ੲ) ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ ਮਾਤਾ ਜੀ

3. ਵਿਸ਼ਾ :
ਇਹ ਚਿੱਠੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਭਾਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿਚ ਸਾਫ਼-ਸੁਥਰੇ ਤੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਢੰਗ ਨਾਲ ਉਹ ਗੱਲਾਂ ਲਿਖ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਜੋ ਲੇਖਕ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਲਿਖਣੀਆਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਰਾ ਭਾਗ ਪੈਰੇ ਬਣਾ ਕੇ ਲਿਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਆਪਸ ਵਿਚ ਸੰਬੰਧ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਕ ਪੈਰੇ ਵਿਚ ਇੱਕੋ ਗੱਲ ਹੀ ਮੁਕਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

4. ਸੰਬੰਧ :
ਪ੍ਰਗਟਾਊ ਸ਼ਬਦ-ਵਿਸ਼ਾ ਮੁੱਕਣ ‘ਤੇ ਲੇਖਕ ਆਪਣੇ ਪਾਠਕ ਪਾਸੋਂ ਛੁੱਟੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਉਸ ਨਾਲ ਆਪਣਾ ਸੰਬੰਧ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਹੇਠ ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ ਕੁੱਝ ਸ਼ਬਦ ਲਿਖਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ

(ੳ) ਆਪ ਦਾ ਪਿਆਰਾ ਸਪੁੱਤਰ,
(ਅ ਤੇਰਾ ਵੱਡਾ ਵੀਰ,
(ੲ) ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ

5. ਸਹੀ ਜਾਂ ਦਸਖ਼ਤ :
ਚਿੱਠੀ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਲੇਖਕ ਆਪਣੇ ਸੰਬੰਧ-ਪ੍ਰਗਟਾਉ ਸ਼ਬਦ ਲਿਖਣ ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ ਇਹਨਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੇ ਹੇਠਾਂ ਆਪਣੇ ਦਸਖ਼ਤ ਕਰਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-

(ੳ) ਆਪ ਦੀ ਪਿਆਰੀ ਸਪੁੱਤਰੀ,
ਸੋਨੂੰ
(ਆ) ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਅਮਰਦੀਪ ਸਿੰਘ ॥

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

6. ਬਾਹਰਲਾ ਪਤਾ-ਪੋਸਟ ਕਾਰਡ ਦੇ ਇਕ ਸਫ਼ੇ ਉੱਤੇ ਖ਼ਾਨੇ ਵਿਚ ਜਾਂ ਲਿਫ਼ਾਫੇ ਦੇ ਬਾਹਰਲੇ ਪਾਸੇ ਉਸ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਪਤਾ ਲਿਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੀ ਗਈ ਹੋਵੇ । ਇਹ ਪਤਾ ਬਹੁਤ ਸਾਫ਼-ਸੁਥਰਾ ਅਤੇ ਪੜ੍ਹਨ-ਯੋਗ ਲਿਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਹੀ ਤੁਹਾਡੀ ਚਿੱਠੀ ਠੀਕ ਟਿਕਾਣੇ ‘ਤੇ ਪਹੁੰਚ ਸਕੇਗੀ ; ਜਿਵੇਂ-

ਸ: ਗਿਆਨ ਸਿੰਘ,
2225, ਸੈਕਟਰ 22 ਬੀ,
ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ।

ਜ਼ਰੂਰੀ ਨੋਟ :
ਅਰਜ਼ੀਆਂ, ਬਿਨੈ-ਪੱਤਰਾਂ ਜਾਂ ਦਰਖ਼ਾਸਤਾਂ ਦਾ ਆਰੰਭ ਕੁੱਝ ਵੱਖਰੇ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਖਬੇ ਪਾਸੇ ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ’ ਜਾਂ ‘ਸੇਵਾ ਵਿਚ ਸ਼ਬਦ ਲਿਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਫਿਰ ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ, ਤਿੰਨ ਕੁ ਸਤਰਾਂ ਵਿਚ ਉਸ ਅਫ਼ਸਰ ਜਾਂ ਮੁਖੀ ਦਾ ਪਤਾ ਲਿਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਲ ਬਿਨੈ-ਪੱਤਰ ਲਿਖਣਾ ਹੋਵੇ ; ਦੇਖੋ ਨਮੂਨਾ-

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਸਾਹਿਬ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ,
ਜਲੰਧਰ ।

ਆਪਣਾ ਪਤਾ ਤੇ ਤਾਰੀਖ਼ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਲਿਖੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ , ਜਿਵੇਂ-

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਹਰਚਰਨ ਸਿੰਘ,
5144, ਸੈੱਲ ਟਾਊਨ,
ਜਲੰਧਰ ।

ਮਿਤੀ : 6 ਦਸੰਬਰ, 20….

ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਵਪਾਰਕ ਚਿੱਠੀਆਂ ਦੇ ਆਰੰਭ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਆਮ ਚਿੱਠੀ ਵਾਂਗ ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ ਆਪਣਾ ਪਤਾ ਲਿਖ ਕੇ ਫਿਰ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰਾਂ ਵਾਂਗ “ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ’ ਲਿਖਣ ਪਿੱਛੋਂ ਫ਼ਰਮ ਦਾ ਪਤਾ ਲਿਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅਜਿਹੀ ਚਿੱਠੀ ਵਿਚ ਤਾਰੀਖ਼ ਆਪਣੇ ਪਤੇ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਲਿਖ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਹੇਠਾਂ ਕੇਵਲ ਆਪਣਾ ਨਾਂ ਹੀ ਲਿਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ; ਦੇਖੋ ਨਮੂਨਾ-

1775, ਸ਼ਹੀਦ ਊਧਮ ਸਿੰਘ ਨਗਰ,
ਜਲੰਧਰ
25 ਦਸੰਬਰ, 20..

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ
ਮੈਸਰਜ਼ ਮਲਹੋਤਰਾ ਬੁੱਕ ਡਿਪੋ,
ਐੱਮ. ਬੀ. ਡੀ. ਹਾਊਸ,
ਰੇਲਵੇ ਰੋਡ,
ਜਲੰਧਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,
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……………………………………………………………..
……………………………………………………………..

ਚਿੱਠੀਆਂ ਅਤੇ ਬਿਨੈ-ਪੱਤਰਾਂ ਦੇ ਸੰਬੋਧਨੀ ਤੇ ਅੰਤਮ ਸ਼ਬਦ

ਕਿਸ ਵਲੋਂ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨਾ ਹੈ ? (ਸੰਬੋਧਨੀ ਸ਼ਬਦ) ਚਿੱਠੀ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਕੀ ਲਿਖਣਾ ਹੈ ? (ਅੰਤਮ ਸ਼ਬਦ)
1. ਮਾਤਾ ਜੀ ਵਲ (ੳ) ਪੂਜਨੀਕ ਮਾਤਾ ਜੀ, (ੳ) ਆਪ ਦਾ ਸਪੁੱਤਰ, (ਜਾਂ ਸਪੁੱਤਰੀ)
(ਅ) ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ ਮਾਤਾ ਜੀ, (ਅ) ਆਪ ਦਾ ਪਿਆਰਾ ਪੁੱਤਰ,
(ਜਾਂ ਪੁੱਤਰੀ)
(ੲ) ਪਿਆਰੇ ਮਾਤਾ ਜੀ,
2. ਪਿਤਾ ਜੀ ਵਲ (ਉ) ਪੂਜਨੀਕ ਪਿਤਾ ਜੀ, (ੳ) ਆਪ ਦਾ ਪਿਆਰਾ ਪੁੱਤਰ,

(ਜਾਂ ਪੁੱਤਰੀ)

(ਅ) ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ ਪਿਤਾ ਜੀ, (ਅ) ਆਪ ਦਾ ਪਿਆਰਾ ਪੁੱਤਰ, (ਜਾਂ ਪੁੱਤਰੀ)
(ੲ) ਪਿਆਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ,
3. ਮਾਮੇ ਵਲ ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ (ਜਾਂ ਪਿਆਰੇ) ਮਾਮਾ ਜੀ, ਆਪ ਦਾ ਪਿਆਰਾ ਭਣੇਵਾਂ,
4. ਚਾਚੇ ਜਾਂ ਤਾਏ ਵਲ ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ (ਜਾਂ ਪਿਆਰੇ) ਚਾਚਾ ਜੀ, ਤਾਇਆ ਜੀ, ਆਪ ਦਾ ਪਿਆਰਾ ਭਤੀਜਾ,
5. ਛੋਟੇ ਭਰਾ ਵਲ ਪਿਆਰੇ ਬਲਵੀਰ, (ਉ) ਤੇਰਾ ਵੀਰ,
(ਅ) ਤੇਰਾ ਵੱਡਾ ਵੀਰ
6. ਛੋਟੀ ਭੈਣ ਵਲ ਪਿਆਰੀ ਕਮਲਜੀਤ, (ਉ) ਤੇਰਾ ਵੀਰ,
(ਅ) ਤੇਰਾ ਵੱਡਾ ਵੀਰ,
7. ਵੱਡੇ ਵੀਰ ਵਲ ਪਿਆਰੇ ਵੀਰ ਜੀ, (ੳ) ਆਪ ਦਾ ਛੋਟਾ ਵੀਰ,
(ਅ) ਤੁਹਾਡਾ ਛੋਟਾ ਵੀਰ,
8. ਵੱਡੀ ਭੈਣ ਵਲ ਪਿਆਰੇ ਭੈਣ ਜੀ, (ੳ) ਆਪ ਦਾ ਛੋਟਾ ਵੀਰ,
(ਅ) ਤੁਹਾਡਾ ਵੀਰ,
9. ਮਿੱਤਰ ਵਲ ਪਿਆਰੇ ਗਿਆਨ,
ਮਿੱਠੇ ਤੇ ਨਿੱਘੇ ਸੁਖਵਿੰਦਰ,
(ਉ) ਤੇਰਾ ਮਿੱਤਰ,
10. ਸਹੇਲੀ ਵਲ ਪਿਆਰੀ ਹਰਪ੍ਰੀਤ,
ਮੇਰੀ ਪਿਆਰੀ ਹਰਪ੍ਰੀਤ,
(ੳ) ਤੁਹਾਡੀ ਸਹੇਲੀ,
(ਅ) ਤੇਰੀ ਸਭ ਕੁੱਝ,
11. ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਵਲ ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ, ਆਪ ਦਾ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
12. ਕਿਸੇ ਦੁਕਾਨਦਾਰ, ਵਪਾਰੀ ਜਾਂ ਪੁਸਤਕਾਂ ਵੇਚਣ ਵਾਲੇ ਵਲ ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ, (ੳ) ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
(ਅ) ਆਪ ਦਾ ਸ਼ੁਭ-ਚਿੰਤਕ,
13. ਕਿਸੇ ਓਪਰੇ ਬੰਦੇ ਵਲ (ੳ) ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ, ਆਪ ਦਾ ਸ਼ੁਭ-ਚਿੰਤਕ,
(ਅ) ਸ੍ਰੀਮਤੀ ਜੀ,

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

(ਉ) ਚਿੱਠੀਆਂ ਦੇ ਨਮੂਨੇ

1. ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖ ਕੇ ਦੱਸੋ ਕਿ ਤੁਹਾਡੇ ਇਮਤਿਹਾਨ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਤੁਹਾਡੇ ਪਿਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਸ: ਅਮਨਦੀਪ ਸਿੰਘ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ 8022, ਨਿਊ ਜਵਾਹਰ ਨਗਰ, ਜਲੰਧਰ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਗੌਰਮਿੰਟ ਮਾਡਲ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਲੁਧਿਆਣਾ ॥
28 ਫ਼ਰਵਰੀ, 20…

ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ ਪਿਤਾ ਜੀ,

ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ।

ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਹੋਏ ਮੈਨੂੰ ਆਪ ਦੀ ਚਿੱਠੀ ਮਿਲੀ, ਪਰ ਮੈਂ ਉਸ ਦਾ ਜਵਾਬ ਇਸ ਕਰਕੇ ਨਹੀਂ ਦੇ ਸਕਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਮੇਰੇ ਇਮਤਿਹਾਨ ਹੋ ਰਹੇ ਸਨ ।

ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੀ ਚਿੱਠੀ ਵਿਚ ਮੈਨੂੰ ਮੇਰੇ ਪੇਪਰਾਂ ਬਾਰੇ ਪੁੱਛਿਆ ਹੈ । ਐਤਕੀਂ ਸਾਨੂੰ ਪੇਪਰ ਕੁੱਝ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਆਏ ਸਨ, ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਮੇਰੇ ਸਾਰੇ ਪੇਪਰ ਕਾਫ਼ੀ ਚੰਗੇ ਹੋ ਗਏ ਹਨ । ਸਮਾਜਿਕ ਦਾ ਪੇਪਰ ਕੁੱਝ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਸੀ, ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਮੇਰਾ ਇਹ ਪੇਪਰ ਚੰਗਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਤੁਹਾਨੂੰ ਇਹ ਤਾਂ ਪਤਾ ਹੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਨੂੰ ਹਿਸਾਬ ਘੱਟ ਆਉਂਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਮੈਨੂੰ ਉਮੀਦ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਇਸ ਵਿਚੋਂ ਵੀ 100 ਵਿਚੋਂ 65 ਨੰਬਰ ਜ਼ਰੂਰ ਲੈ ਲਵਾਂਗਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਦਾ ਪੇਪਰ ਵੀ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਸੀ, ਪਰ ਚੰਗੀ ਕਿਸਮਤ ਨਾਲ ਉਸ ਵਿਚ ਉਹੀ
ਲੇਖ ਤੇ ਕਹਾਣੀ ਆਏ, ਜਿਹੜੇ ਮੈਂ ਇਕ ਰਾਤ ਪਹਿਲਾਂ ਯਾਦ ਕੀਤੇ ਸਨ । ਮੇਰਾ ਪੰਜਾਬੀ ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਚ ਅਨੁਵਾਦ ਸਾਰਾ ਠੀਕ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ।

ਇਹੋ ਜਿਹੇ ਪੇਪਰ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਮੈਨੂੰ ਉਮੀਦ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੀ ਜੇ ਫ਼ਸਟ ਨਹੀਂ, ਤਾਂ ਸੈਕਿੰਡ ਡਿਵੀਜ਼ਨ ਜ਼ਰੂਰ ਆ ਜਾਵੇਗੀ । ਹੁਣ ਮੈਨੂੰ ਨਤੀਜੇ ਦਾ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਹੈ । ਮੇਰਾ ਰੋਲ ਨੰਬਰ 486 ਹੈ । ਹੋਰ ਕੋਈ ਫ਼ਿਕਰ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ । ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਨਮਸਕਾਰ ॥

ਤੁਹਾਡਾ ਸਪੁੱਤਰ,
ਹਰਿੰਦਰਪਾਲ ਸਿੰਘ ॥

ਟਿਕਟ
ਸ: ਅਮਨਦੀਪ ਸਿੰਘ,
8022, ਨਿਊ ਜਵਾਹਰ ਨਗਰ,
ਜਲੰਧਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

2. ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਇਕ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੋ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਛੋਟੇ ਭਰਾ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਬਾਰੇ ਲਿਖਿਆ ਹੋਵੇ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਆਰੀਆ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਨਵਾਂ ਸ਼ਹਿਰ ।
ਸਤੰਬਰ 22, 20…..

ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ ਪਿਤਾ ਜੀ,

ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ।

ਮੈਂ ਆਪ ਨੂੰ ਇਕ ਪੱਤਰ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਲਿਖ ਚੁੱਕਾ ਹਾਂ, ਪਰ ਆਪ ਵਲੋਂ, ਉਸ ਦਾ ਉੱਤਰ ਨਹੀਂ ਆਇਆ । ਜਿਸ ਦਿਨ ਤੁਹਾਡੀ ਪਿਛਲੀ ਚਿੱਠੀ ਮਿਲੀ ਸੀ, ਬਲਜੀਤ ਨੂੰ ਉਸ ਦਿਨ ਤੋਂ ਹੀ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ ਬੁਖਾਰ ਚੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ਤੇ 10 ਦਿਨ ਬੀਤ ਜਾਣ ‘ਤੇ ਵੀ ਅਜੇ ਤਕ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪਿਆ | ਡਾ: ਮਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਉਸ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਮਿਆਦੀ ਬੁਖ਼ਾਰ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਦੋ ਜਾਂ ਤਿੰਨ ਹਫ਼ਤਿਆਂ ਪਿੱਛੋਂ ਉਤਰੇਗਾ ।ਉਹਨਾਂ ਬਲਜੀਤ ਦਾ ਮੰਜੇ ਤੋਂ ਉੱਠਣਾ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਖਾਣ ਲਈ ਤਰਲ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ! ਡਾਕਟਰ ਸਾਹਿਬ ਸਵੇਰੇ-ਸ਼ਾਮ ਘਰ ਆ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਵੇਖ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਦੂਜੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰਾ ਇਮਤਿਹਾਨ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਮੇਰੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦਾ ਬਹੁਤ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਛੁੱਟੀ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਅਤੇ ਹਿਸਾਬ ਦੀਆਂ ਕਲਾਸਾਂ ਇਕ-ਇਕ ਘੰਟਾ ਲਗਦੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਮੈਂ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਮੈਂ ਇਹ ਘਾਟਾ ਕਦੇ ਵੀ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਾਂਗਾ | ਘਰ ਵਿਚ ਮਾਤਾ ਜੀ ਇਕੱਲੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਥੱਕ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਨਾਲ ਹੀ ਉਹ ਬਲਜੀਤ ਦੀ ਸੰਭਾਲ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਉਹ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਕਹਿ ਰਹੇ ਸਨ ਕਿ ਇਹ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਹੋਵੇ, ਜੇਕਰ ਆਪ ਜਲਦੀ ਘਰ ਆ ਜਾਓ ।

ਬਲਜੀਤ ਵੀ ਆਪ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਯਾਦ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਸ਼ਾਇਦ ਤੁਹਾਡੇ ਆਉਣ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਉਸ ਦੇ ਜਲਦੀ ਰਾਜ਼ੀ ਹੋਣ ਵਿਚ ਸਹਾਈ ਹੋਵੇ । ਮੈਨੂੰ ਪੂਰੀ ਆਸ ਹੈ ਕਿ ਆਪ ਜਲਦੀ ਹੀ ਛੁੱਟੀ ਲੈ ਕੇ ਘਰ ਆ ਜਾਓਗੇ । ਮਾਤਾ ਜੀ, ਬਲਜੀਤ ਤੇ ਪੱਪੂ ਵਲੋਂ ਆਪ ਨੂੰ ਨਮਸਕਾਰ ।

ਆਪ ਦਾ ਸਪੁੱਤਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: …….

ਟਿਕਟ
ਸ: ਬਖ਼ਸ਼ੀਸ਼ ਸਿੰਘ,
ਐੱਸ. ਡੀ. ਓ.
ਪੰਜਾਬ ਰਾਜ ਬਿਜਲੀ ਬੋਰਡ,
ਫਗਵਾੜਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

3. ਇਕ ਚਿੱਠੀ ਦੁਆਰਾ ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ/ਸਹੇਲੀ ਨੂੰ ਦੱਸੋ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਗਰਮੀਆਂ ਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਕਿਵੇਂ ਬਤੀਤ ਕੀਤੀਆਂ ਹਨ ।

2606ਬਾਗ਼ ਬਾਹਰੀਆਂ,
ਕਪੂਰਥਲਾ ਰੋਡ,
ਜਲੰਧਰ।
21 ਜੁਲਾਈ, 20….

ਪਿਆਰੀ ਨਮੋਲ,

ਮਿੱਠੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ।

ਮੈਂ ਅੱਜ ਹੀ ਕੁੱਲੂ ਮਨਾਲੀ ਦੀ ਸੈਰ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ 20 ਦਿਨਾਂ ਪਿੱਛੋਂ ਘਰ ਪੁੱਜੀ ਹਾਂ ਅਤੇ ਤੈਨੂੰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖ ਰਹੀ ਹਾਂ | ਐਤਕੀਂ ਜਦੋਂ 21 ਜੂਨ ਨੂੰ ਸਾਡਾ ਸਕੂਲ ਗਰਮੀਆਂ ਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਲਈ ਬੰਦ ਹੋਇਆ ਸੀ, ਤਾਂ ਮੈਂ ਸਕੂਲ ਵਲੋਂ ਮਿਲਿਆ ਛੁੱਟੀਆਂ ਦਾ ਕੰਮ 8 ਕੁ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਮੁਕਾ ਲਿਆ । ਫਿਰ ਮੇਰੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੀ ਤਜਵੀਜ਼ ਅਨੁਸਾਰ ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਗਰਮੀਆਂ ਦੇ ਦਿਨ ਪਹਾੜਾਂ ਵਿਚ ਕੱਟਣ ਦੀ ਸਲਾਹ ਬਣਾ ਲਈ । 30 ਜੂਨ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਬੱਸ ਵਿਚ ਸਵਾਰ ਹੋ ਕੇ ਮਨਾਲੀ ਲਈ ਚੱਲ ਪਏ । ਬੱਸ ਜਲੰਧਰੋਂ ਚੱਲ ਕੇ ਕੀਰਤਪੁਰ ਪੁੱਜੀ ਤੇ ਫਿਰ ਕੁੱਲੂ ਮਨਾਲੀ ਦੇ ਪਹਾੜੀ ਰਾਹ ਉੱਪਰ ਤੁਰ ਪਈ । ਮੈਂ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਉੱਚੇ ਪਹਾੜਾਂ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘਦੇ ਵਿੰਗ-ਵਲੇਵੇਂ ਖਾਂਦੇ ਰਸਤੇ ਦਾ ਬੜਾ ਆਨੰਦ ਮਾਣਿਆ | ਸ਼ਾਮ ਵੇਲੇ ਅਸੀਂ ਕੁੱਲ ਪੁੱਜ ਗਏ । ਰਾਤ ਅਸੀਂ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਵਿਚ ਜਾ ਟਿਕੇ । ਮੈਨੂੰ ਕੁੱਲੂ ਦਾ ਕੁਦਰਤੀ ਵਾਤਾਵਰਨ ਬੜਾ ਮਨਮੋਹਕ ਪ੍ਰਤੀਤ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਸ਼ਹਿਰ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆ ਦੇ ਕੰਢੇ ਵਸਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਅਸੀਂ ਮਨਾਲੀ ਲਈ ਚਲ ਪਏ । ਸਾਡੀ ਬੱਸ ਦਰਿਆ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਬਣੀ ਸੜਕ ਉੱਤੋਂ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ । ਦੁਪਹਿਰੇ ਅਸੀਂ ਮਨਾਲੀ ਜਾ ਪੁੱਜੇ । ਇਹ ਬਿਆਸ ਦਰਿਆ ਦੇ ਕੰਢੇ ਉੱਪਰ ਸਥਿਤ ਇਕ ਰਮਣੀਕ ਸਥਾਨ ਹੈ | ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਗਰਮੀ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਪਿੱਛੇ ਰਹਿ ਗਈ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਸਾਹਮਣੇ ਬਰਫ਼ਾਂ ਲੱਦੇ ਰੋਹਤਾਂਗ ਦੱਰੇ ਦੇ ਪਹਾੜ ਚਾਂਦੀ ਵਾਂਗ ਚਮਕਦੇ ਦਿਸਦੇ ਹਨ । ਅਸੀਂ ਇੱਥੇ ਹੋਟਲ ਵਿਚ ਇਕ ਕਮਰਾ ਕਿਰਾਏ ‘ਤੇ ਲੈ ਲਿਆ । ਹਰ ਰੋਜ਼ ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਪਾਸੇ ਸੈਰ ਲਈ ਨਿਕਲਦੇ | ਸ਼ਾਮ ਵੇਲੇ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਰੌਣਕ ਹੁੰਦੀ ।ਇੱਥੋਂ ਅਸੀਂ ਦੱਰਾ ਰੋਹਤਾਂਗ ਦੇਖਣ ਵੀ ਗਏ, ਜਿੱਥੇ ਕਿ ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਬਰਫ਼ ਹੀ ਬਰਫ਼ ਸੀ । ਪਹਾੜ ਬੜੇ ਡਰਾਉਣੇ ਸਨ । ਇਕ ਦਿਨ ਅਸੀਂ ਕੁੱਲੂ ਦੀ ਪੁਰਾਤਨ ਰਾਜਧਾਨੀ ਨਗਰ ਨੂੰ ਵੇਖਣ ਲਈ ਗਏ । ਇੱਥੇ ਅਸੀਂ ਪੁਰਾਣੇ ਮੰਦਰ, ਰਾਜੇ ਦਾ ਪੁਰਾਣਾ ਮਹਿਲ ਤੇ ਹੋਰ ਸਥਾਨ ਦੇਖੇ ਇੱਥੇ ਸੇਬਾਂ, ਚੈਰੀ ਤੇ ਆਲੂ ਬੁਖ਼ਾਰਿਆਂ ਦੇ ਫਲਾਂ ਨਾਲ ਲੱਦੇ ਹੋਏ ਬਾਗ ਸਨ ।ਫਿਰ ਅਸੀਂ ਮਨੀਕਰਨ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਇਤਿਹਾਸਕ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਵੀ ਗਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਗਰਮੀਆਂ ਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਵਿਚ ਪਹਾੜਾਂ ਦੀ ਸੈਰ ਦਾ ਬਹੁਤ ਆਨੰਦ ਮਾਣਿਆ । ਮੇਰਾ ਦਿਲ ਕਰਦਾ ਸੀ ਕਿ ਜੇ ਤੂੰ ਵੀ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਹੁੰਦੀ, ਤਾਂ ਬੜਾ ਆਨੰਦ ਆਉਂਦਾ । ਹੁਣ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਕਦੋਂ ਆ ਰਹੀ ਹੈਂ ? ਨਵਨੀਤ ਤੇ ਅਰਸ਼ਦੀਪ ਵੀ ਤੈਨੂੰ : ਬਹੁਤ ਯਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਤੇਰੀ ਸਹੇਲੀ,
ਸੰਦੀਪ !

ਟਿਕਟ
ਅਮੋਲ ਗਿੱਲ,
…….. ਸਕੂਲ,
ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ :

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4. ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਨੂੰ ਇਕ ਹਮਦਰਦੀ ਭਰੀ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੋ, ਜਿਹੜਾ ਹਸਪਤਾਲ ਵਿਚ ਜ਼ਖ਼ਮੀ ਪਿਆ ਹੈ ।

ਸਾਈਂ ਦਾਸ ਐਂਗ: ਸੰ: ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਜਲੰਧਰ ।
ਦਸੰਬਰ, 16, 20….

ਪਿਆਰੇ ਹਰਜਿੰਦਰ,

ਮਿੱਠੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ।

ਕੱਲ੍ਹ ਮੈਨੂੰ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਤੇਰਾ ਛੋਟਾ ਭਰਾ ਮਿਲਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਇਕ ਕਾਰ ਦੁਰਘਟਨਾ ਵਿਚ ਤੈਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸੱਟਾਂ ਲੱਗੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਤੂੰ ਹਸਪਤਾਲ ਵਿਚ ਪਿਆ ਹੈਂ । ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਮੇਰੇ ਪੈਰਾਂ ਹੇਠੋਂ ਜ਼ਮੀਨ ਨਿਕਲ ਗਈ ! ਤੇਰੇ ਭਰਾ ਨੇ ਜਦੋਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸੱਟਾਂ ਬਹੁਤੀਆਂ ਗੰਭੀਰ ਨਹੀਂ, ਤਾਂ ਕਿਤੇ ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਵਿਚ ਜਾਨ ਆਈ ।ਉਸ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਤੇਰੀ ਖੱਬੀ ਬਾਂਹ ਅਤੇ ਖੱਬੀ ਲੱਤ ਨੂੰ ਕੁੱਝ ਨੁਕਸਾਨ ਪਹੁੰਚਿਆ ਹੈ । ਮੈਂ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦਾ ਸ਼ੁਕਰ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਤੇਰਾ ਬਚਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੇ ਤੇਰੇ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਮਿਹਰ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਇਹ ਸਲਾਹ ਦਿਆਂਗਾ ਕਿ ਤੂੰ ਆਪਣੀ ਸਿਹਤ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਲਈ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਰਾਮ ਕਰ ਤੇ ਇਲਾਜ ਕਰਾ । ਡਾਕਟਰ ਜਿਹੜੀ ਦੁਆਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਉਹੀ ਖਾਹ, ਤਾਂ ਜੋ ਤੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਵਾਲੀ ਸਿਹਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕੇਂ ।

ਮੈਂ ਕੁੱਝ ਦਿਨਾਂ ਤੱਕ ਤੈਨੂੰ ਮਿਲਣ ਲਈ ਆਵਾਂਗਾ ਤੇ ਤੈਨੂੰ ਕੁੱਝ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦਿਆਂਗਾ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਤੇਰਾ ਦਿਲ ਲੱਗਾ ਰਹੇਗਾ । ਤੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਿਕਰ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ, ਦੁੱਖ-ਸੁਖ ਤਾਂ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਆਉਂਦੇ ਹੀ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਲੋੜ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਲਿਖ ਦੇਣਾ । ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਮਿਹਰ ਨਾਲ ਤੂੰ ਜਲਦੀ ਹੀ ਠੀਕ ਹੋ ਜਾਵੇਂਗਾ । ‘ ਮੇਰੇ ਵਲੋਂ ਅੰਕਲ ਤੇ ਆਂਟੀ ਨੂੰ ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ।

ਤੇਰਾ ਮਿੱਤਰ,
ਰੋਲ ਨੰਬਰ 22211.

ਟਿਕਟ
ਹਰਜਿੰਦਰ ਸਿੰਘ,
ਸਪੁੱਤਰ ਸ: ਹਰਸ਼ਰਨ ਸਿੰਘ,
240, ਮਾਡਲ ਟਾਊਨ,
ਲੁਧਿਆਣਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

5. ਤੁਹਾਡਾ ਮਿੱਤਰ ਹਸਪਤਾਲ ਵਿਚ ਬਿਮਾਰ ਪਿਆ ਹੈ । ਉਸ ਨੂੰ ਹਮਦਰਦੀ ਭਰਿਆ ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

(ਨੋਟ-ਇਹ ਚਿੱਠੀ ਉੱਪਰ ਦਿੱਤੀ ਚਿੱਠੀ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਪ ਹੀ ਲਿਖ ਸਕਦੇ ਹਨ )

6. ਆਪਣੀ ਵੱਡੀ ਭੈਣ ਨੂੰ ਇਕ ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ । ਉਸ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਮਨਾਏ ਗਏ ਸੁਤੰਤਰਤਾ (ਅਜ਼ਾਦੀ) ਦਿਵਸ ਦੇ ਸਮਾਰੋਹ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਰਣਧੀਰ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਕਪੂਰਥਲਾ ।
16 ਅਗਸਤ, 20….

ਪਿਆਰੇ ਭੈਣ ਜੀ,

ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ।

ਆਪ ਜਾਣਦੇ ਹੀ ਹੋ ਕਿ ਪੰਦਰਾਂ ਅਗਸਤ ਭਾਰਤ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ-ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦਾ ਦਿਨ ਹੈ । ਇਹ ਦਿਨ ਸਾਡੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਹਰ ਸਾਲ ਵਾਂਗ ਐਤਕੀਂ ਵੀ ਧੂਮ-ਧਾਮ ਨਾਲ ਮਨਾਇਆ ਗਿਆ ।

ਐਤਕੀਂ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਬਜ਼ਾਰਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਰੌਣਕ ਸੀ । ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਇਕ ਵੱਡੇ ਪਾਰਕ ਵਿਚ ਸਵੇਰੇ 8 ਵਜੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਨੇ ਕੌਮੀ ਝੰਡਾ ਲਹਿਰਾਉਣ ਦੀ ਰਸਮ ਅਦਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਗੀਤ ਗਾਇਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਵਿਚ ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਖੜੇ ਹੋ ਕੇ ਭਾਗ ਲਿਆ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ਼ਾਂ ਨੇ ਅਕਾਸ਼ ਵਿਚੋਂ ਫੁੱਲਾਂ ਦੀ ਵਰਖਾ ਕੀਤੀ ਤੇ ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਤਾੜੀਆਂ ਦੀ ਗੂੰਜ ਵਿਚ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਝੰਡੇ ਦਾ ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਤੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪਾਰਟੀਆਂ ਦੇ ਰਾਜਸੀ ਨੇਤਾਵਾਂ ਨੇ ਭਾਸ਼ਨ ਦਿੱਤੇ ਅਤੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਇਕ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਭਰਿਆ ਘੋਲ ਘੁਲ ਕੇ 15 ਅਗਸਤ, 1947 ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਪੰਜੇ ਵਿਚੋਂ ਅਜ਼ਾਦ ਹੋਇਆ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਭਾਸ਼ਨ ਵਿਚ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦੀ ਲਹਿਰ ਉੱਪਰ ਚਾਨਣਾ ਪਾਇਆ ਤੇ ਇਸ ਵਿਚ ਆਹੂਤੀਆਂ ਪਾਉਣ ਵਾਲੇ ਦੇਸ਼-ਭਗਤਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀਆਂ ਭੇਟ ਕੀਤੀਆਂ । ਲੋਕ ਬੜੇ ਚਾ ਤੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਇਹਨਾਂ ਨੇਤਾਵਾਂ ਦੇ ਭਾਸ਼ਨ ਸੁਣ ਰਹੇ ਸਨ ।

ਦੁਪਹਿਰੇ 12 ਵਜੇ ਇਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਜਲੂਸ ਨਿਕਲਿਆ | ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਬੈਂਡ-ਵਾਜੇ ਵਾਲੇ ਪੀ. ਏ. ਪੀ. ਦੇ ਜਵਾਨ ਸਨ, ਪਿੱਛੇ ਘੋੜ-ਸਵਾਰ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਮਗਰ ਪੈਦਲ ਸਿਪਾਹੀ ਸਨ । ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਮਗਰ ਸੈਂਕੜਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਸਕੂਲਾਂ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਪਣੀ-ਆਪਣੀ ਯੂਨੀਫ਼ਾਰਮ ਪਾਈ ਕਤਾਰਾਂ ਬਣਾ ਕੇ ਬਜ਼ਾਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘ ਰਹੇ ਸਨ । ਰਾਤ ਨੂੰ ਇਸੇ ਖੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਦੀਪਮਾਲਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਤੇ ਆਤਸ਼ਬਾਜ਼ੀ ਚਲਾਈ ਗਈ ।

ਮੈਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਅਗਲੇ ਸਾਲ ਇਸ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਸ਼ਹਿਰ ਆਓ ਤੇ ਇਸ ਮੌਕੇ ਦਾ ਆਨੰਦ ਮਾਣੋ ॥

ਆਪ ਦਾ ਛੋਟਾ ਵੀਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: ……

ਟਿਕਟ
ਸ੍ਰੀਮਤੀ ਕੁਲਵੰਤ ਕੌਰ,
ਪਿੰਡ ਤੇ ਡਾ: ਨੰਦਾ ਚੌਰ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

7. ਤੁਸੀਂ ਹੋਸਟਲ ਵਿਚ ਰਹਿ ਰਹੇ ਹੋ | ਆਪਣੀ ਛੋਟੀ ਭੈਣ ਨੂੰ ਟੀ. ਵੀ. ਘੱਟ ਦੇਖਣ ਲਈ ਪਰ ਪੜ੍ਹਾਈ ਤੇ ਖੇਡਾਂ ਵਿਚ ਦਿਲਚਸਪੀ ਲੈਣ ਲਈ ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਕਮਰਾ ਨੰ: 24,
ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲ ਹੋਸਟਲ,
ਜਲੰਧਰ ।

ਪਿਆਰੀ ਸੁਖਜੀਤ,

ਸ਼ੁੱਭ ਇੱਛਾਵਾਂ ।

ਮੈਨੂੰ ਅੱਜ ਹੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੀ ਚਿੱਠੀ ਮਿਲੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਤੂੰ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਲ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਧਿਆਨ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਪਰ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਚਾਰ-ਚਾਰ ਘੰਟੇ ਬੈਠੀ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਦੇਖਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਨਾਲ ਹੀ ਉਹਨਾਂ ਮੈਨੂੰ ਤੇਰੇ ਦਸੰਬਰ ਟੈਸਟਾਂ ਵਿਚੋਂ ਸਾਰੇ ਮਜ਼ਮੂਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਫੇਲ੍ਹ ਹੋਣ ਬਾਰੇ ਵੀ ਪਤਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਇਹ ਵੀ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਤੇਰੀ ਭੁੱਖ ਵੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਗਈ ਤੇ ਸਿਹਤ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੀ । ਮੈਨੂੰ ਤੇਰੇ ਬਾਰੇ ਇਹ ਗੱਲਾਂ ਜਾਣ ਕੇ ਬਹੁਤ ਦੁੱਖ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਕੀ ਤੈਨੂੰ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਬਹੁਤਾ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਦੇਖਣਾ ਬਹੁਤ ਨੁਕਸਾਨਦਾਇਕ ਹੈ ? ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਉੱਤੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਇਸਦੇ ਅੱਗੇ ਲਗਾਤਾਰ ਬੈਠਣ ਨਾਲ ਸਰੀਰ ਹਿੱਲ-ਜੁਲ ਤੇ ਕਸਰਤ ਤੋਂ ਵੀ ਵਾਂਝਾ ਰਹਿ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਭੁੱਖ ਘਟਦੀ ਹੈ ਤੇ ਸਿਹਤ ਖ਼ਰਾਬ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਸਕਰੀਨ ਦੀ ਤੇਜ਼ ਰੌਸ਼ਨੀ ਅੱਖਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਖ਼ਰਾਬ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦਾ . ਸਮਾਂ ਵੀ ਬਰਬਾਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਸਿਹਤ ਵੀ ਖ਼ਰਾਬ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਜਿਹੜਾ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜਾਂ ਵਿਦਿਆਰਥਣ ਸਮਾਂ ਨਸ਼ਟ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਦਾ ਘਾਟਾ ਕਦੇ ਵੀ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ । ਸਿਹਤ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋਣ ਨਾਲ ਸਰੀਰ ਦੀ ਚੁਸਤੀ, ਪੜ੍ਹਨ ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਐਤਕੀ ਤੇਰੇ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿਚ ਫ਼ੇਲ੍ਹ ਹੋਣ ਦਾ ਕਾਰਨ ਵੀ ਤੇਰਾ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਅੱਗੇ ਲਗਾਤਾਰ ਬੈਠੀ ਰਹਿਣਾ ਹੀ ਹੈ ।

ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਇਹ ਬੜੇ ਜ਼ੋਰ ਨਾਲ ਚਿਤਾਵਨੀ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਤੈਨੂੰ ਘਰਦਿਆਂ ਦੀ ਖੁਸ਼ੀ ਤੇ ਆਪਣੇ ਭਵਿੱਖ ਦਾ ਧਿਆਨ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਜ਼ਿਆਦਾ ਟੈਲੀਵਿਯਨ ਦੇਖਣ ਦੀ ਆਦਤ ਦਾ ਤਿਆਗ ਕਰ ਕੇ ਰਾਤ-ਦਿਨ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਿਚ ਜੁੱਟਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਇਕ ਘੰਟਾ ਖੇਡਣ ਲਈ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਤੇਰਾ ਵੱਡਾ ਵੀਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: …….. .

ਟਿਕਟ
ਸੁਖਜੀਤ ਕੌਰ,
1220, ਮਾਡਲ ਟਾਊਨ,
ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

8. ਤੁਹਾਡਾ ਭਰਾ ਖੇਡਾਂ ਵਿਚ ਦਿਲਚਸਪੀ ਰੱਖਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਿਚ ਨਹੀਂ, ਉਸ ਨੂੰ ਇਕ ਚਿੱਠੀ ਰਾਹੀਂ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਨਾ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
…. ਸਕੂਲ,
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।
15 ਜਨਵਰੀ, 20….

ਪਿਆਰੇ ਜਸਵਿੰਦਰ,

ਸ਼ੁੱਭ ਇੱਛਾਵਾਂ ।

ਮੈਨੂੰ ਅੱਜ ਹੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੀ ਚਿੱਠੀ ਮਿਲੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਉਹਨਾਂ ਲਿਖਿਆ ਹੈ, ਤੂੰ ਹਰ ਵੇਲੇ ਖੇਡਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਮਸਤ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈਂ ਤੇ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਲ ਬਿਲਕੁਲ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦਾ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਦਸੰਬਰ ਟੈਸਟਾਂ ਵਿਚੋਂ ਸਾਰੇ ਮਜ਼ਮੂਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਫੇਲ੍ਹ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ। ਮੈਨੂੰ ਤੇਰੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਲੋਂ ਇਸ ਲਾਪਰਵਾਹੀ ਨੂੰ ਜਾਣ ਕੇ ਬਹੁਤ ਦੁੱਖ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਤੈਨੂੰ ਪਤਾ ਹੈ ਕਿ ਤੇਰਾ ਸਾਲਾਨਾ ਇਮਤਿਹਾਨ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਤੈਨੂੰ ਹੁਣ ਖੇਡਾਂ ਵਿਚ ਸਮਾਂ ਖ਼ਰਾਬ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ | ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੀ ਚਿੱਠੀ ਅਨੁਸਾਰ ਜਿਹੜੀਆਂ ਖੇਡਾਂ-ਤਾਸ਼ ਤੇ ਵੀ. ਡੀ. ਓ. ਗੇਮਾਂ ਤੂੰ ਖੇਡਦਾ ਹੈ, ਇਹ ਨਿਰਾ ਸਮਾਂ ਖ਼ਰਾਬ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਨਾਲ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਕੋਈ ਲਾਭ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ, ਤੈਨੂੰ ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਇਕ-ਦਮ ਤਿਆਗ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਮੈਂ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਕਿ ਖੇਡਾਂ ਦੀ ਵੀ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਹਾਨਤਾ ਹੈ, ਪਰ ਇਹ ਖੇਡਾਂ ਹਾਕੀ, ਫੁੱਟਬਾਲ, ਕ੍ਰਿਕਟ, ਬੈਡਮਿੰਟਨ, ਵਾਲੀਵਾਲ ਜਾਂ ਕਬੱਡੀ ਆਦਿ ਹਨ, ਜੋਕਰ ਤੇਰਾ ਦਿਲ ਚਾਹੇ, ਤਾਂ ਤੂੰ ਇਹਨਾਂ ਖੇਡਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਸੇ ਇਕ ਵਿਚ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਘੰਟਾ ਡੇਢ ਘੰਟਾ ਭਾਗ ਲੈ ਸਕਦਾ ਹੈਂ । ਇਸ ਨਾਲ ਤੇਰੇ ਕਿਤਾਬੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਨਾਲ ਥੱਕੇ ਦਿਮਾਗ਼ ਨੂੰ ਤਾਜ਼ਗੀ ਮਿਲੇਗੀ । ਤੈਨੂੰ ਯਾਦ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਕ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ

ਆਪਣੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦਾ ਨੁਕਸਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਕੋਈ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ । ਤੈਨੂੰ ਇਹ ਨਹੀਂ ਭੁੱਲਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ “ਖੇਡਾਂ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਲਈ ਹਨ, ਨਾ ਕਿ ਜੀਵਨ ਖੇਡਾਂ ਲਈ ।’ ਇਸ ਲਈ ਤੈਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਲ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਧਿਆਨ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਖੇਡਣ ਲਈ ਉਸੇ ਸਮੇਂ ਹੀ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਤੇਰਾ ਦਿਮਾਗ਼ ਪੜ੍ਹ-ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਥੱਕ ਚੁੱਕਾ ਹੋਵੇ । ਇਸ ਨਾਲ ਤੇਰੀ ਸਿਹਤ ਵੀ ਠੀਕ ਰਹੇਗੀ ਤੇ ਤੇਰੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵੀ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਚਲਦੀ ਰਹੇਗੀ ।

ਆਸ ਹੈ ਕਿ ਤੂੰ ਮੇਰੀਆਂ ਨਸੀਹਤਾਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖੇਂਗਾ ਤੇ ਅੱਗੋਂ ਮੈਨੂੰ ਮਾਤਾ ਜੀ ਵਲੋਂ ਤੇਰੇ ਵਿਰੁੱਧ ਕੋਈ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਨਹੀਂ ਮਿਲੇਗੀ ।

ਤੇਰਾ ਵੱਡਾ ਵੀਰ,
ਗੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ !

ਟਿਕਟ
ਜਸਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ,
ਰੋਲ ਨੰ: 88, VII A,
ਸਰਕਾਰੀ ਹਾਈ ਸਕੂਲ,
ਕੋਹਾ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

9. ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਭੈਣ ਦੇ ਵਿਆਹ ‘ਤੇ ਆਉਣ ਲਈ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੋ ਕਿ ਉਹ ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਆਵੇ ਤੇ ਤਿਆਰੀ ਵਿਚ ਹੱਥ ਵਟਾਵੇ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਗੌਰਮਿੰਟ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਗੜ੍ਹਸ਼ੰਕਰ !
ਫ਼ਰਵਰੀ 8, 20…….

ਪਿਆਰੇ ਗਿਆਨਜੋਤ,

ਆਪ ਨੂੰ ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਬੜੀ ਖੁਸ਼ੀ ਹੋਵੇਗੀ ਕਿ ਮੇਰੀ ਵੱਡੀ ਭੈਣ ਸੁਰਿੰਦਰ ਦਾ ਸ਼ੁੱਭ ਆਨੰਦ ਕਾਰਜ 23 ਫ਼ਰਵਰੀ, 20………ਨੂੰ ਹੋਣਾ ਨਿਯਤ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਜੰਞ 23 ਫ਼ਰਵਰੀ ਨੂੰ ਸਵੇਰੇ ਅੱਠ ਵਜੇ ਗੜ੍ਹਸ਼ੰਕਰ ਆਵੇਗੀ ਤੇ ਇਸੇ ਦਿਨ ਨੂੰ ਵਿਆਹ ਦਾ ਬਾਕੀ ਸਾਰਾ ਕੰਮ ਭੁਗਤਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ । ਜੰਞ ਦੇ ਪਹੁੰਚਣ ਸਮੇਂ ਉਸ ਦੀ ਆਓ-ਭਗਤ ਤੇ ਹੋਰ ਸਾਰੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪ੍ਰਾਹੁਣਿਆਂ ਦੀ ਸੰਭਾਲ ਤੇ ਵਿਆਹ ਸੰਬੰਧੀ ਹੋਰ ਸਮਾਨ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ । ਤੁਸੀਂ ਜਾਣਦੇ ਹੀ ਹੋ ਕਿ ਸਾਡੇ ਘਰ ਵਿਚ ਇਸ ਸਮੇਂ ਮੇਰੇ ਅਤੇ ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਹੋਰ ਕੋਈ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਆਦਮੀ ਨਹੀਂ । ਪਿਤਾ ਜੀ ਬਿਮਾਰੀ ਕਾਰਨ ਭੱਜ-ਦੌੜ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਹ ਸਾਰਾ ਕੰਮ ਆਪ ਵਰਗੇ ਮਿੱਤਰਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਹੀ ਸਿਰੇ ਚੜ੍ਹਨਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਲਈ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਆਪ ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਚਾਰ ਕੁ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਪਹੁੰਚਣ ਦੀ ਖੇਚਲ ਕਰੋ, ਤਾਂ ਜੋ ਤੁਹਾਡੀ ਸਲਾਹ ਤੇ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਸਾਰਾ ਕੰਮ ਨੇਪਰੇ ਚੜ੍ਹਾਇਆ ਜਾ ਸਕੇ । ਮਾਤਾ ਜੀ ਤੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਵੀ ਆਪ ਨੂੰ ਪਹੁੰਚਣ ਦੀ ਤਾਕੀਦ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਉਮੀਦ ਹੈ ਕਿ ਆਪ ਚਿੱਠੀ ਮਿਲਦੇ ਸਾਰ ਹੀ ਮੈਨੂੰ ਉੱਤਰ ਦਿਉਗੇ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਕਦੋਂ ਪਹੁੰਚ ਰਹੇ ਹੋ ? ਆਪ ਦੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਤੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਣਾਮ ।

ਆਪ ਦਾ ਮਿੱਤਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: ………

ਟਿਕਟ
ਗਿਆਨਜੋਤ ਸਿੰਘ,
69 ਡੀ, ਪਾਂਡਵ ਨਗਰ,
ਪੜਪੜ-ਗੰਜ ਰੋਡ,
ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ ॥

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

10. ਆਪਣੀ ਸਹੇਲੀ/ਮਿੱਤਰ ਨੂੰ ਇਕ ਪੱਤਰ ਰਾਹੀਂ ਗਰਮੀਆਂ ਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਇਕੱਠੇ ਬਤੀਤ ਕਰਨ ਦਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਲਿਖੋ ।
ਜਾਂ
ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ/ਸਹੇਲੀ ਨੂੰ ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ਕਿ ਛੁੱਟੀਆਂ ਕਿਵੇਂ ਬਤੀਤ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਣ ।

ਪੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਗੌਰਮਿੰਟ ਗਰਲਜ਼ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਜਲੰਧਰ |
ਜੂਨ 26, 20…….

ਪਿਆਰੀ ਹਰਿੰਦਰ,

ਐਤਕੀਂ ਗਰਮੀਆਂ ਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਵਿਚ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਸ਼ਿਮਲੇ ਜਾਣ ਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਇਕ ਤਾਂ ਜਲੰਧਰ ਦੀ ਸਖ਼ਤ ਗਰਮੀ ਤੋਂ ਬਚ ਜਾਵਾਂਗੇ ਅਤੇ ਦੁਸਰਾ ਪਾਣੀ ਬਦਲ ਜਾਵੇਗਾ, ਜੋ ਕਿ ਸਿਹਤ ਲਈ ਬਹੁਤ ਹੀ ਗੁਣਕਾਰੀ ਹੈ । ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਮੇਰੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਤੇ ਮੇਰੀ ਭੈਣ ਨਵਨੀਤ ਵੀ ਜਾਣ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਈਆਂ ਹਨ । ਅਸੀਂ ਜੁਲਾਈ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਹਫ਼ਤੇ ਇੱਥੋਂ ਚਲ ਪਵਾਂਗੇ ।

ਸ਼ਿਮਲੇ ਅਸੀਂ ਇੰਟਰਨੈੱਟ ‘ਤੇ ਇਕ ਹੋਟਲ ਵਿਚ ਕਮਰਾ ਬੁੱਕ ਕਰਾ ਲਿਆ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਉੱਥੇ ਪਹਾੜਾਂ ਦੀ ਸੈਰ ਕਰ ਕੇ ਬਹੁਤ ਆਨੰਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਾਂਗੇ ਅਤੇ 25 ਜੁਲਾਈ ਨੂੰ ਵਾਪਸ ਆ ਜਾਵਾਂਗੇ ।

ਜੇਕਰ ਤੂੰ ਵੀ ਸਾਡੇ ਨਾਲ ਚੱਲੇਂ, ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਆਨੰਦ ਆਵੇਗਾ । ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਤੋਂ ਆਗਿਆ ਲੈ ਕੇ ਜੁਲਾਈ ਦੀ ਪਹਿਲੀ-ਦੂਜੀ ਤਾਰੀਖ਼ ਨੂੰ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਪੁੱਜ ਜਾ, ਤਾਂ ਜੋ ਅਸੀਂ ਇਕੱਠੇ ਸ਼ਿਮਲੇ ਜਾ ਕੇ ਗਰਮੀਆਂ ਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਗੁਜ਼ਾਰ ਸਕੀਏ ਤੇ ਪਹਾੜੀ ਇਲਾਕੇ ਦੀ ਸੈਰ ਦਾ ਆਨੰਦ ਮਾਣ ਸਕੀਏ । ਸ਼ਿਮਲੇ ਜਾਣ ਲਈ ਘਰੋਂ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਕਾਰ ਵਿਚ ਹੀ ਚੱਲਾਂਗੇ ।

ਤੇਰੀ ਸਹੇਲੀ,
ਪ੍ਰਭਜੋਤ ॥

ਟਿਕਟ
ਹਰਿੰਦਰ ਕੌਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: 80, ਅੱਠਵੀਂ ਸੀ,
ਖ਼ਾਲਸਾ ਗਰਲਜ਼ ਹਾਈ ਸਕੂਲ,
ਨੂਰਮਹਿਲ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

11. ਤੁਹਾਡਾ ਮਿੱਤਰ ਜਾਂ ਛੋਟਾ ਭਰਾ) ਅੱਠਵੀਂ ਵਿਚੋਂ ਫੇਲ੍ਹ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਹ ਪੜ੍ਹਾਈ ਛੱਡ ਦੇਣੀ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਨੂੰ ਇਕ ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ, ਜਿਸ ਰਾਹੀਂ ਉਸ ਨੂੰ ਹੌਸਲਾ ਦਿੰਦੇ ਹੋਏ ਪੜਾਈ ਜਾਰੀ ਰੱਖਣ ਲਈ ਕਹੋ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਗੌਰਮਿੰਟ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਸਮਰਾਲਾ |
11 ਜੂਨ, 20……

ਪਿਆਰੇ ਸਰਦੂਲ,

ਅੱਜ ਹੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੀ ਚਿੱਠੀ ਆਈ ਤੇ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਤੂੰ ਇਸ ਵਾਰ ਅੱਠਵੀਂ ਵਿਚੋਂ ਫੇਲ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਤੂੰ ਅੱਗੋਂ ਪੜ੍ਹਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਮੈਨੂੰ ਤੇਰੇ ਫੇਲ੍ਹ ਹੋਣ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਸੁਣ ਕੇ ਦੁੱਖ ਤਾਂ ਹੋਣਾ ਹੀ ਸੀ, ਪਰੰਤੂ ਇਸ ਤੋਂ ਵੱਧ ਦੁੱਖ ਮੈਨੂੰ ਤੇਰੀ ਨਿਰਾਸਤਾ ਬਾਰੇ ਜਾਣ ਕੇ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

ਮੇਰੇ ਮਿੱਤਰ ! ਫੇਲ-ਪਾਸ ਹੋਣਾ ਤਾਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਇਕ ਨਿਯਮ ਹੈ ਆਦਮੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਸੈਂਕੜੇ ਕੰਮ ਆਰੰਭ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਕਈ ਵਾਰੀ ਫੇਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਜੇਕਰ ਉਹ ਨਿਰਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਹੋ ਕੇ ਢੇਰੀ ਢਾਹ ਦੇਵੇ, ਤਾਂ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਬਣਦਾ । ਇਸ ਲਈ ਤੈਨੂੰ ਹਿੰਮਤ ਨਹੀਂ ਹਾਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ, ਸਗੋਂ ਦ੍ਰਿੜ ਨਿਸਚਾ ਕਰ ਕੇ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦੇ ਮਗਰ ਪੈ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਮਨੁੱਖ ਪੱਕਾ ਇਰਾਦਾ ਕਰ ਲਵੇ, ਤਾਂ ਸਭ ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਅਸਾਨ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਜੇਕਰ ਤੂੰ ਫੇਲ੍ਹ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈਂ, ਤਾਂ ਇਸ ਵਿਚ ਤੇਰਾ ਕੋਈ ਦੋਸ਼ ਨਹੀਂ | ਅਸਲ ਵਿਚ ਸਾਡੀਆਂ ਪੀਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਢੰਗ ਹੀ ਨਾਕਸ ਹੈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਕਿਸੇ ਦੀ ਯੋਗਤਾ ਦਾ ਸਹੀ ਅਨੁਮਾਨ ਨਹੀਂ ਲਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਮੌਕਾ ਚਾਨਸ ਬਹੁਤ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਯਾਦ ਕੀਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਆ ਜਾਣ, ਤਾਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਪਾਸ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਫੇਲ਼ । ਇਸ ਲਈ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਤੇਰੇ ਯਾਦ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨਾ ਆਏ ਹੋਣ ਜਾਂ ਨੰਬਰ ਲਾਉਣ ਵੇਲੇ ਪ੍ਰੀਖਿਅਕ ਤੋਂ ਤੇਰੇ ਨਾਲ ਇਨਸਾਫ਼ ਨਾ ਹੋਇਆ ਹੋਵੇ । ਕੁੱਝ ਹੀ ਹੋਵੇ ਤੈਨੂੰ ਹੌਂਸਲਾ ਬਿਲਕੁਲ ਨਹੀਂ ਹਾਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ । ਇਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਸਿਆਣਪ ਨਹੀਂ ।

ਅਗਲਾ ਇਮਤਿਹਾਨ ਕੋਈ ਦੂਰ ਨਹੀਂ । ਜੇਕਰ ਕਿਸਮਤ ਨੇ ਤੇਰਾ ਸਾਥ ਪਹਿਲਾਂ ਨਹੀਂ ? ਦਿੱਤਾ, ਤਾਂ ਮੈਨੂੰ ਯਕੀਨ ਹੈ ਕਿ ਅੱਗੋਂ ਜ਼ਰੂਰ ਦੇਵੇਗੀ । ਤੂੰ ਹੌਸਲਾ ਕਰ ਕੇ ਆਉਂਦੀ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਕਰ ਕੇ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ । ਮੈਂ ਆਸ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਤੂੰ ਮੇਰੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਚੰਗੇ ਮਿੱਤਰ ਦੀ ਸਲਾਹ ਸਮਝ ਕੇ ਅਪਣਾਏਂਗਾ ਤੇ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨ ਵਿਚ ਜੁੱਟ ਜਾਵੇਂਗਾ ।

ਤੇਰਾ ਮਿੱਤਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: 181.

ਟਿਕਟ
ਸਰਦੂਲ ਸਿੰਘ,
ਸਪੁੱਤਰ ਬਖ਼ਸ਼ੀਸ਼ ਸਿੰਘ,
ਪਿੰਡ ਤੇ ਡਾ: ਗੀਗਨੋਵਾਲ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

12. ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਨੂੰ, ਜੋ ਕਿ ਅੱਠਵੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿਚੋਂ ਪਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ, ਨੂੰ ਇਕ ਵਧਾਈ ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਸਰਕਾਰੀ ਮਿਡਲ ਸਕੂਲ,
ਪਿੰਡ ਅਗਮਪੁਰ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਰੋਪੜ !
ਜੂਨ 16, 20…..

ਪਿਆਰੇ ਨਰੇਸ਼,

ਨਮਸਤੇ !

ਅੱਜ ਹੀ ਚਾਚਾ ਜੀ ਦੀ ਚਿੱਠੀ ਮਿਲੀ, ਜਿਸ ਵਿਚੋਂ ਇਹ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਬਹੁਤ ਹੀ ਖੁਸ਼ੀ ਹੋਈ ਕਿ ਤੂੰ ਅੱਠਵੀਂ ਦੀ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਪਾਸ ਕਰ ਲਈ ਹੈ । ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਕਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਵਧਾਈ ਭੇਜਾਂ ? ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੀ ਖੁਸ਼ੀ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ਬਦ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੇ । ਸਾਡੇ ਘਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੈਂਬਰ ਤੇਰੇ ਪਾਸ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋਏ ਹਨ । ਤੈਨੂੰ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਵੀ ਕਿਉਂ ਨਾ ਹੁੰਦੀ । ਤੂੰ ਮਿਹਨਤ ਕਰਦਿਆਂ ਰਾਤ-ਦਿਨ ਇਕ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਨਾਲ ਹੀ ਤੇਰੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਨੇ ਵੀ ਬਹੁਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰਾਈ ਸੀ ।

ਆਪਣੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਨੂੰ ਮੇਰੇ ਵਲੋਂ ਵਧਾਈ ਦੇਣੀ । ਮੈਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਖੁਸ਼ੀ ਦੀ ਸ਼ਾਇਦ ਕਲਪਨਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ । ਤੇਰੇ ਵਰਗੇ ਮਿਹਨਤੀ ਅਤੇ ਆਗਿਆਕਾਰ ਸਪੁੱਤਰ ਉੱਤੇ ਹਰ ਇਕ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਨੂੰ ਮਾਣ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ ਲਿਖ ਕਿ ਆਪਣੇ ਪਾਸ ਹੋਣ ਦੀ ਪਾਰਟੀ ਕਦੋਂ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈਂ ? ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਕਦੋਂ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈਂ? ਮੈਂ ਹਰ ਵੇਲੇ ਤੇਰੀ ਉਡੀਕ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ।

ਤੇਰਾ ਮਿੱਤਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: …….

ਟਿਕਟ
ਨਰੇਸ਼ ਕੁਮਾਰ,
ਸਪੁੱਤਰ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮ ਲਾਲ,
ਪਿੰਡ ਤੇ ਡਾ: ਖਹਿਰਾ ਮਾਝਾ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

13. ਤੁਹਾਡੇ ਚਾਚਾ ਜੀ (ਮਾਮਾ ਜੀ) ਨੇ ਤੁਹਾਡੇ ਜਨਮ-ਦਿਨ ‘ਤੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਇਕ ਗੁੱਟ-ਘੜੀ ਭੇਜੀ ਹੈ । ਇਕ ਚਿੱਠੀ ਰਾਹੀਂ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਤੋਹਫ਼ੇ ਦੇ ਗੁਣ ਤੇ ਲਾਭ ਦੱਸਦੇ ਹੋਏ, ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ ਕਰੋ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਪਬਲਿਕ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਰੋਪੜ ।
14 ਜਨਵਰੀ, 20……

ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ ਚਾਚਾ ਜੀ,

ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ।

“ ਮੈਨੂੰ ਆਪ ਦੁਆਰਾ ਮੇਰੇ ਜਨਮ-ਦਿਨ ਉੱਤੇ ਤੋਹਫ਼ੇ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਭੇਜੀ ਗੁੱਟ-ਘੜੀ ਮਿਲ ਗਈ ਹੈ । ਮੈਨੂੰ ਆਪ ਦੇ ਭੇਜੇ ਹੋਏ ਇਸ ਤੋਹਫ਼ੇ ਦੀ ਤਾਰੀਫ਼ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ਬਦ ਨਹੀਂ ਲੱਭਦੇ । ਮੈਨੂੰ ਘੜੀ ਦੀ ਬਹੁਤ ਹੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਆਪ ਵਲੋਂ ਭੇਜੀ ਹੋਈ ਇਹ ਸੁੰਦਰ ਘੜੀ ਦੇਖੀ, ਤਾਂ ਮੇਰਾ ਮਨ ਨੱਚ ਉੱਠਿਆ । ਫਿਰ ਮੈਨੂੰ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਸਮਾਂ ਵੇਖਣ ਲਈ ਹੀ ਘੜੀ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਸੀ, ਪਰ ਇਹ ਤਾਂ ਦਿਨ, ਤਾਰੀਖ਼ ਤੇ ਮਹੀਨੇ ਵੀ ਦੱਸਦੀ ਹੈ । ਮੇਰੇ ਚਾਚਾ ਜੀ ! ਤੁਸੀਂ ਕਿੰਨੇ ਚੰਗੇ ਹੋ, ਜੋ ਆਪਣੇ ਭਤੀਜੇ ਦਾ ਇੰਨਾ ਖ਼ਿਆਲ ਰੱਖਦੇ ਹੋ ।

ਮੇਰੇ ਇਮਤਿਹਾਨ ਨੇੜੇ ਆ ਰਹੇ ਹਨ । ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਟਾਈਮ ਦੇਖਣ ਲਈ ਕੋਈ ਘੜੀ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਪਰ ਆਪ ਦੀ ਭੇਜੀ ਹੋਈ ਘੜੀ ਨੇ ਮੇਰੀ ਬੜੇ ਮੌਕੇ ਸਿਰ ਜ਼ਰੂਰਤ ਪੂਰੀ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਜਿਸ ਦਿਨ ਦੀ ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਮਿਲੀ ਹੈ, ਮੇਰਾ ਜੀਵਨ ਬੜਾ ਹੀ ਨਿਯਮ-ਬੱਧ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਮੈਂ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਸੌਂਦਾ, ਜਾਗਦਾ, ਪੜਦਾ ਤੇ ਖੇਡਦਾ ਹਾਂ । ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਨਿਯਮਬੱਧ ਕੰਮ ਕਰ ਕੇ ਮੈਂ ਦਿਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕੰਮ ਮੁਕਾ ਲੈਂਦਾ ਹਾਂ, ਜਦੋਂ ਕਿ ਅੱਗੇ ਮੈਨੂੰ ਸਮੇਂ ਦਾ ਕੁੱਝ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਲਗਦਾ ਕਿ ਕਿਸ ਕੰਮ ਉੱਤੇ ਮੈਂ ਕਿੰਨਾ ਸਮਾਂ ਖ਼ਰਚ ਕੀਤਾ ਹੈ ।

ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਜਨਮ-ਦਿਨ ‘ਤੇ ਆਪ ਦੀ ਬੜੀ ਉਡੀਕ ਕੀਤੀ । ਅਸੀਂ ਉਸ ਦਿਨ ਇਕ ਛੋਟੀ ਜਿਹੀ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵੀ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਮੈਂ ਆਪ ਦੀ ਭੇਜੀ ਹੋਈ ਘੜੀ ਆਪਣੇ ਦੋਸਤਾਂ ਨੂੰ ਦਿਖਾਈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਦੀ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਸੰਸਾ ਕੀਤੀ ।

ਮੈਨੂੰ ਉਮੀਦ ਹੈ ਕਿ ਭਵਿੱਖ ਵਿਚ ਆਪ ਦੇ ਭੇਜੇ ਹੋਏ ਤੋਹਫ਼ੇ ਮੇਰੇ ਲਈ ਇਸ ਘੜੀ ਵਾਂਗ ਹੀ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੇ ਰਹਿਣਗੇ ।

ਚਾਚੀ ਜੀ ਨੂੰ ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਤੇ ਸੋਨੂੰ ਨੂੰ ਸ਼ੁੱਭ ਇੱਛਾਵਾਂ ।

ਆਪ ਦਾ ਭਤੀਜਾ,
ਰੋਲ ਨੰ: …….

ਟਿਕਟ
ਸ : ਗੁਰਸੇਵਕ ਸਿੰਘ,
ਸਰਕਾਰੀ ਠੇਕੇਦਾਰ,
3210, ਮੁਹੱਲਾ ਇਸਲਾਮ ਗੰਜ,
ਜਲੰਧਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

14. ਆਪਣੇ ਮਕਾਨ ਮਾਲਕ ਨੂੰ ਮਕਾਨ ਮੁਰੰਮਤ ਤੇ ਰੰਗ-ਰੋਗਨ ਕਰਾਉਣ ਲਈ ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਏ. ਐੱਸ. ਆਰ. ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਦੁਰਾਹਾ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਲੁਧਿਆਣਾ |
ਜੂਨ 18, 20…….

ਸੀਮਾਨ ਜੀ,

ਮੈਂ ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਦੋ-ਤਿੰਨ ਪੱਤਰ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਲਿਖ ਚੁੱਕਾ ਹਾਂ, ਪਰ ਅੱਜ ਤਕ ਆਪ ‘ ਵਲੋਂ ਕੋਈ ਉੱਤਰ ਨਹੀਂ ਮਿਲਿਆ। ਇਸ ਪੱਤਰ ਰਾਹੀਂ ਮੈਂ ਆਪ ਦਾ ਧਿਆਨ ਫਿਰ ਆਪ ਦੇ | ਮਕਾਨ ਦੀ ਖ਼ਸਤਾ ਹਾਲਤ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਵਲ ਦਿਵਾ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ।

ਜਿਸ ਮਕਾਨ ਵਿਚ ਮੈਂ ਰਹਿ ਰਿਹਾ ਹਾਂ, ਉਸ ਦੀ ਤੁਰੰਤ ਮੁਰੰਮਤ ਕਰਾਉਣ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ । ਉਸ ਦੀ ਵਿਗੜੀ ਹੋਈ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਆਪ ਆ ਕੇ ਦੇਖ ਸਕਦੇ ਹੋ । ਮਕਾਨ ਦੀਆਂ ਛੱਤਾਂ ਦੀ ਸੀਮਿੰਟ ਨਾਲ ਮੁਰੰਮਤ ਕਰਨ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ । ਪਿਛਲੇ ਹਫ਼ਤੇ ਜਦੋਂ ਮੀਂਹ ਪਿਆ, ਤਾਂ ਵੱਡਾ ਕਮਰਾ ਚੋਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਸੀ । ਅੱਗੋਂ ਬਰਸਾਤ ਵੀ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਆ ਰਹੀ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਮਕਾਨ ਦੀ | ਮੁਰੰਮਤ ਹੋ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਹੈ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਬਰਸਾਤ ਵਿਚ ਅਰਾਮ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਸਕਦੇ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਆਪ ਦੇ ਮਕਾਨ ਦੇ ਵਧੇਰੇ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਣ ਦਾ ਵੀ ਡਰ ਹੈ ।

ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਰੌਸ਼ਨਦਾਨਾਂ ਦੇ ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਟੁੱਟੇ ਪਏ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਚਿੜੀਆਂ ਤੇ ਕਬੂਤਰ ਅੰਦਰ ਆ ਕੇ ਗੰਦ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਵਰਖਾ ਸਮੇਂ ਛਰਾਟਾ ਅੰਦਰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਬੂਹੇ ਵੀ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬੰਦ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ । ਕੰਧਾਂ ਉੱਤੇ ਰੰਗ ਹੋਇਆਂ ਕਾਫ਼ੀ ਸਮਾਂ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਹੈ । ਕੰਧਾਂ ਉੱਤੋਂ | ਲਗਾਤਾਰ ਕੱਲਰ ਡਿਗਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਥਾਂ-ਥਾਂ ਤੋਂ ਪਲੱਸਤਰ ਦੇ ਲੇ ਲੱਥ ਚੁੱਕੇ ਹਨ, ਜੋ ਬਹੁਤ ਹੀ ਭੈੜੇ ਲੱਗ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਹੋ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਚੰਗੀ ਗੱਲ ਹੈ । ਉਮੀਦ ਹੈ ਕਿ ਆਪ ਇਸ ਪਾਸੇ ਬਹੁਤ ਜਲਦੀ ਧਿਆਨ ਦਿਉਗੇ ਤੇ ਮੈਨੂੰ ਫਿਰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖਣ ਲਈ ਜਾਂ ਕੋਈ ਹੋਰ ਕਦਮ ਚੁੱਕਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਨਹੀਂ ਕਰੋਗੇ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: …………

ਟਿਕਟ
ਸੀ ਮੋਹਨ ਲਾਲ,
ਕਰਿਆਨਾ ਫ਼ਰੋਸ਼,
ਸਾਬਣ ਬਜ਼ਾਰ,
ਲੁਧਿਆਣਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

15. ਕਿਸੇ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੇ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਨੂੰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੋ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਕਿਤਾਬਾਂ ਮੰਗਾਉਣ ਲਈ ਆਰਡਰ ਭੇਜੋ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਗੌਰਮਿੰਟ ਗਰਲਜ਼ ਹਾਈ ਸਕੂਲ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਰੋਪੜ !
28 ਅਪਰੈਲ, 20…….

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਮੈਸਰਜ਼ ਮਲਹੋਤਰਾ ਬੁੱਕ ਡਿੱਪੋ,
ਐੱਮ. ਬੀ. ਡੀ. ਹਾਊਸ,
ਰੇਲਵੇ ਰੋਡ,
ਜਲੰਧਰ |

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਮੈਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਜਲਦੀ ਤੋਂ ਜਲਦੀ ਵੀ. ਪੀ. ਪੀ. ਕਰ ਕੇ ਭੇਜ ਦਿਓ । ਕਿਤਾਬਾਂ ਦਾ ਐਡੀਸ਼ਨ ਨਵਾਂ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਜਿਲਦਾਂ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ । ਛਪਾਈ ਸਾਫ਼-ਸੁਥਰੀ ਹੋਵੇ । ਕੀਮਤ ਵੀ ਵਾਜਬ ਹੀ ਲਗਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਲੋੜੀਂਦਾ ਕਮਿਸ਼ਨ ਕੱਟ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ।

ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੀ ਸੂਚੀ
1. ਐੱਮ. ਬੀ. ਡੀ. ਪੰਜਾਬੀ ਗਾਈਡ                                (ਅੱਠਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ)                    1 ਪੁਸਤਕ
2. ਐੱਮ. ਬੀ. ਡੀ. ਰਣਿਤ                                               ”        ”                          ”     ”
3. ਐੱਮ. ਬੀ. ਡੀ. ਇੰਗਲਿਸ਼ ਟੈਸਟ ਪੇਪਰ                           ”        ”                          ”     ”
4. ਐੱਮ. ਬੀ. ਡੀ. ਹਿੰਦੀ ਗਾਈਡ                                       ”       ”                          ”     ”

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: ………..

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

16. ਤੁਹਾਡੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿਚ ਸਫ਼ਾਈ ਤੇ ਰੋਸ਼ਨੀ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਗੰਦੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਨਿਕਾਸ ਦਾ ਕੋਈ ਚੰਗਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਦੇ ਸੁਧਾਰ ਲਈ ਆਪਣੇ ਸ਼ਹਿਰ ਦੀ | ਨਗਰ-ਨਿਗਮ ਦੇ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਨੂੰ ਬਿਨੈ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਅਗਰ ਨਗਰ,
ਲੁਧਿਆਣਾ |
18 ਅਗਸਤ, 20….

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਸਾਹਿਬ,
ਨਗਰ ਨਿਗਮ,
ਲੁਧਿਆਣਾ |

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਆਪ ਦਾ ਧਿਆਨ ਆਪਣੇ ਮਹੱਲੇ ਅਗਰ ਨਗਰ ਵਿਚ ਸਫ਼ਾਈ ਤੇ ‘ | ਰੋਸ਼ਨੀ ਦੀ ਮੰਦੀ ਹਾਲਤ ਤੇ ਗੰਦੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਨਿਕਾਸ ਦਾ ਯੋਗ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾ ਹੋਣ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਵਲ ਦੁਆਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਾਂ । ਸਾਡੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿਚ ਗਲੀਆਂ ਦੀ ਸਫ਼ਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਜਿਹੜੇ ਨਿਗਮ ਜਾਂ ਕਮੇਟੀ/ਪੰਚਾਇਤ ਵਲੋਂ ਸਫ਼ਾਈ ਕਰਮਚਾਰੀ ਲਾਏ ਹੋਏ ਹਨ, ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਹੀਂ ਨਿਭਾਉਂਦੇ । ਇਕ ਤਾਂ ਉਹ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸਫ਼ਾਈ ਕਰਨ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੇ ; ਦੂਸਰੇ | ਉਹ ਜਦੋਂ ਸਫ਼ਾਈ ਕਰਨ ਆਉਂਦੇ ਵੀ ਹਨ, ਤਾਂ ਕੂੜੇ ਦੀਆਂ ਢੇਰੀਆਂ ਗਲੀਆਂ ਵਿਚ ਹੀ ਲਾ ।

ਕੇ ਚਲੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਕੂੜਾ ਮੁੜ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਗਲੀਆਂ ਵਿਚ ਹੀ ਖਿਲਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਗਲੀਆਂ ਵਿਚ ਲੱਗੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਬਲਬ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਹਨ ਤੇ ਰਾਤ ਨੂੰ ਇੱਥੇ ਆਮ ਕਰਕੇ ਹਨੇਰਾ ਹੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਚੋਰੀ ਦੀਆਂ ਵਾਰਦਾਤਾਂ ਤੇ ਔਰਤਾਂ ਨਾਲ ਜ਼ਿਆਦਤੀ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਵਾਪਰਦੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸੀਵਰੇਜ਼ ਦੇ | ਪਾਣੀ ਦਾ ਨਿਕਾਸ ਵੀ ਠੀਕ ਨਹੀਂ । ਸੀਵਰੇਜ਼ ਆਮ ਕਰਕੇ ਕਿਤੋਂ ਨਾ ਕਿਤੋਂ ਬੰਦ ਹੀ ਹੋਇਆ । ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਗਲੀ ਨੰ: 12 ਤੇ 13 ਵਿਚ ਤਾਂ ਆਮ ਕਰਕੇ ਪਾਣੀ ਭਰਿਆ ਹੀ – ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਰਤਾ ਜਿੰਨੀ ਬਰਸਾਤ ਹੋ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਪਾਣੀ ਘਰਾਂ ਵਿਚ ਵੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸੀਵਰੇਜ਼ ਤੇ ਬਰਸਾਤ ਦਾ ਪਾਣੀ ਨੀਵੇਂ ਖਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਵਿਚ ਜਮਾਂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਕਿ ਲਗਾਤਾਰ ਬਦਬੂ ਵੀ ਛੱਡਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਮੱਖੀਆਂ ਤੇ ਮੱਛਰਾਂ ਦੇ ਪਲਣ ਦਾ ਸਥਾਨ ਵੀ ਬਣਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿਚ ਮੱਖੀਆਂ ਤੇ ਮੱਛਰਾਂ ਦੀ ਭਰਮਾਰ ਹੋਈ ਪਈ ਹੈ । ਥਾਂ-ਥਾਂ ਪਾਣੀ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿਚ ਟੂਟੀਆਂ ਦਾ ਪਾਣੀ ਗੰਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਯਰਕਾਨ ਤੇ ਦਸਤਾ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਵੀ ਫੈਲ ਗਈਆਂ ਹਨ । ਦੋ ਕੇਸ ਹੈਜ਼ੇ ‘ ਦੇ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਹਨ । ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਮਲੇਰੀਏ ਨਾਲ ਬਿਮਾਰ ਪਏ ਹਨ ।

ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਸਾਡੇ ਮੁਹੱਲੇ ਦੇ ਲੋਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਨਰਕੀ ਜੀਵਨ ਗੁਜ਼ਾਰ ਰਹੇ ਹਨ । ਇੱਥੇ ਸਫ਼ਾਈ ਤੇ ਰੌਸ਼ਨੀ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਸੁਧਾਰਨ ਤੇ ਗੰਦੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਨਿਕਾਸ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਠੀਕ ਕਰਨ | ਲਈ ਤੁਰੰਤ ਕਦਮ ਚੁੱਕਣ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਆਪ ਨਿੱਜੀ ਤੌਰ ਤੇ ਸਾਡੇ ਮੁਹੱਲੇ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕਰੋ ਤੇ ਸਾਰੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਜਾਇਜ਼ਾ ਲਵੋ ।

ਅਸੀਂ ਆਸ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਜਲਦੀ ਹੀ ਸਾਡੇ ਮੁਹੱਲੇ ਦੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਜਲਦੀ ਤੋਂ ਜਲਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰੇਗੀ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪਦੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਪਾਤਰ,
ਸੁਖਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਤੇ ਹੋਰ ਮਹੱਲਾ ਨਿਵਾਸੀ ।

ਨੋਟ – ਸਫ਼ਾਈ ਤੇ ਰੌਸ਼ਨੀ ਤੇ ਗੰਦੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਨਿਕਾਸ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨ ਲਈ ਪੱਤਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਮਿਊਨਿਸਿਪਲ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ, ਨਗਰ ਨਿਯਮ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ, ਬਲਾਕ ਅਫ਼ਸਰ, ਪੰਚਾਇਤ ਅਫ਼ਸਰ ਜਾਂ ਪਿੰਡ ਦੇ ਸਰਪੰਚ ਨੂੰ ਵੀ ਲਿਖਣ ਲਈ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।ਵਿਦਿਆਰਥੀ ‘ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਤੇ ਨੂੰ ਲਿਖ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

17. ਆਪਣੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਮਨਾਏ ਸਾਲਾਨਾ ਸਮਾਗਮ ਦਾ ਹਾਲ ਲਿਖੋ ।

ਖ਼ਾਲਸਾ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਗੁਰਾਇਆ।
16 ਫਰਵਰੀ, 20…

ਪਿਆਰੇ ਮਾਤਾ ਜੀ,

ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ।

ਇਸ ਸਾਲ 14 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਸਾਲਾਨਾ ਇਨਾਮ ਵੰਡ ਸਮਾਗਮ ਦਾ ਆਯੋਜਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਫੁੱਟਬਾਲ ਦੀ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਗਰਾਊਂਡ ਵਿਚ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਗਰਾਊਂਡ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਿਆਨੇ ਲਾਏ ਗਏ ਤੇ ਸਾਫ਼-ਸੁਥਰੀਆਂ ਦਰੀਆਂ ਵਿਛਾ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਉੱਪਰ ਦਰਸ਼ਕਾਂ ਦੇ ਬੈਠਣ ਲਈ ਕੁਰਸੀਆਂ ਰੱਖੀਆਂ ਗਈਆਂ । ਸਾਹਮਣੇ ਸੁੰਦਰ ਪਰਦਿਆਂ ਨਾਲ ਸ਼ਿੰਗਾਰੀ ਹੋਈ ਸਟੇਜ ਬਣਾਈ ਗਈ । ਸਾਰੇ ਪੰਡਾਲ ਨੂੰ ਸੁੰਦਰ ਝੰਡੀਆਂ ਤੇ ਫੁੱਲਾਂ ਨਾਲ ਸਜਾਇਆ ਗਿਆ | ਪੰਡਾਲ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਹੋਣ ਦੇ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਇਕ ਸੁੰਦਰ ਗੇਟ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਤੇ ਸਾਰੇ ਸਕੂਲ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਜਾਇਆ ਗਿਆ ।

ਇਸ ਸਮਾਗਮ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਡੀ. ਪੀ. ਆਈ. ਸ: ਜਗਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤੀ । ਉਹ 11 ਵਜੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਪੁੱਜ ਗਏ । ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਹੋਰਨਾਂ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਸਮੇਤ ਗੇਟ ਉੱਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਗਲ ਵਿਚ ਫੁੱਲਾਂ ਦੇ ਹਾਰ ਪਾਏ ਗਏ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਸਕੂਲ ਦੇ ਬੈਂਡ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਮਾਣ ਵਿਚ ਮਿੱਠੀ ਧੁਨ ਵਜਾਈ । ਫਿਰ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਆਉਂਦਿਆਂ ਹੀ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਸਾਰੇ ਸਕੂਲ ਦਾ ਮੁਆਇਨਾ ਕੀਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਸਕੂਲ ਦੀ ਲਾਇਬ੍ਰੇਰੀ ਨੂੰ ਵੀ ਦੇਖਿਆ ਫਿਰ ਜਲਦੀ ਹੀ ਉਹ ਪੰਡਾਲ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਹੋ ਗਏ । ਸਾਰੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਤੇ ਦਰਸ਼ਕਾਂ ਨੇ ਖੜੇ ਹੋ ਕੇ ਤਾੜੀਆਂ ਵਜਾਉਂਦਿਆਂ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ | ਪ੍ਰਧਾਨ ਸਾਹਿਬ, ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ ਤੇ ਹੋਰ ਅਧਿਆਪਕ ਅਤੇ ਮਹਿਮਾਨ ਸਟੇਜ ਉੱਪਰ ਲੱਗੀਆਂ ਕੁਰਸੀਆਂ ਉੱਪਰ ਬੈਠ ਗਏ ।

ਸਮਾਗਮ ਦਾ ਆਰੰਭ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਸ਼ਬਦ “ਦੇਹ ਸ਼ਿਵਾ ਬਰ ਮੋਹਿ ਇਹੈ’ ਨਾਲ ਹੋਇਆ । ਫਿਰ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਉੱਠ ਕੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ‘ਜੀ ਆਇਆਂ ਕਹਿੰਦਿਆਂ ਸਕੂਲ ਦੀ ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਪੜੀ ਤੇ ਸਕੂਲ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਤੋਂ ਸਰੋਤਿਆਂ ਨੂੰ ਜਾਣੂ ਕਰਾਇਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ ਕੁੱਝ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਗੀਤ ਗਾਏ । ਇਕ ਦੋ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਮੋਨੋ-ਐਕਟਿੰਗ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ । ਇਕ ਸਕਿੱਟ ਵੀ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਦਰਸ਼ਕਾਂ ਨੇ ਕਲਾਕਾਰਾਂ ਦੇ ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਲਾਹਿਆ ।

ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਸਾਡੇ ਵਾਈਸ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ, ਜੋ ਕਿ ਸਟੇਜ ਸਕੱਤਰ ਸਨ, ਨੇ ਉੱਠ ਕੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜੀ ਨੂੰ ਇਨਾਮ ਵੰਡਣ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ । ਵਾਈਸ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਵਿਚ ਪਹਿਲਾ, ਦੂਜਾ ਤੇ ਤੀਜਾ ਦਰਜਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ, ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਖਿਡਾਰੀਆਂ, ਗਾਇਕਾਂ ਤੇ ਬੁਲਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਵਾਰੋ-ਵਾਰੀ ਬੁਲਾ ਰਹੇ। | ਸੰਨ । ਸਭ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜੀ ਦੇ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਨਾਲ ‘ਇਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਕੋਈ ਅੱਧਾ ਘੰਟਾ ਇਹ ਦਿਲਚਸਪ ਕਾਰਵਾਈ ਚਲਦੀ ਰਹੀ ।

ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਭਾਸ਼ਨ ਵਿਚ ਸਕੂਲ ਦੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਦੀ ਪ੍ਰਸੰਸਾ ਕਰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਇਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਵਧਾਈ ਦਿੱਤੀ । ਸਕੂਲ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਚੰਗੇ ਨਾਗਰਿਕ ਬਣਨ, ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਨ, ਸਮਾਜ ਸੇਵਾ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਰੱਖਣ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਤੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਨ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ।

ਪ੍ਰਧਾਨ ਜੀ ਦੇ ਭਾਸ਼ਨ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜੀ ਤੇ ਬਾਹਰੋਂ ਆਏ ਸਭ ਮਹਿਮਾਨਾਂ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ ਤੇ ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਦੀ ਛੁੱਟੀ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਸਾਰੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਤਾੜੀਆਂ ਮਾਰਨ ਲੱਗ ਪਏ । ਸਮਾਗਮ ਦਾ ਅੰਤ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਗੀਤ ਨਾਲ ਹੋਇਆ । | ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜੀ ਨਾਲ ਸਾਰੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ, ਮਹਿਮਾਨਾਂ ਤੇ ਇਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਚਾਹ ਪਾਰਟੀ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਸਾਲਾਨਾ ਸਮਾਗਮ ਦਾ ਇਹ ਦਿਨ ਬੜਾ ਖ਼ੁਸ਼ੀਆਂ, ਚਾ ਤੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਭਰਿਆ ਸੀ ।

ਆਪ ਦਾ ਪਿਆਰਾ ਸਪੁੱਤਰ,
ਕੁਲਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ,

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

18. ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਨੂੰ ਪੱਤਰ ਲਿਖ ਕੇ ਆਪਣੇ ਹੋਸਟਲ ਦੀ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ ।

ਕਮਰਾ ਨੰ: 221,
ਖ਼ਾਲਸਾ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ ਹੋਸਟਲ,
…….. ਸ਼ਹਿਰ ।

ਪਿਆਰੇ ਹਰਿੰਦਰ,

ਤੈਨੂੰ ਪਤਾ ਹੈ ਕਿ ਅੱਠਵੀਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਲਈ ਮੈਂ ਜਦੋਂ ਦਾ ਸ਼ਹਿਰ ਆਇਆ ਹਾਂ, ਸਕੂਲ ਦੇ ਹੋਸਟਲ ਵਿਚ ਹੀ ਰਹਿ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਹੋਸਟਲ ਵਿਚ 50 ਕੁ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਹੋਰ ਵੀ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਕ-ਇਕ ਕਮਰੇ ਵਿਚ ਦੋ-ਦੋ ਮੁੰਡੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਬੈਂਡ, ਮੇਜ਼, ਕੁਰਸੀ, ਕੱਪੜਿਆਂ ਲਈ ਅਲਮਾਰੀ ਆਦਿ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਨ । ਹਰ ਇਕ ਕਮਰੇ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਇਕ ਬਾਥਰੂਮ ਵੀ ਹੈ । ਇਹ ਹੋਸਟਲੋਂ ਸਵੇਰੇ 8 ਵਜੇ ਤੋਂ ਰਾਤ ਦੇ 7 ਵਜੇ ਤਕ ਖੁੱਲ੍ਹਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਹੋਸਟਲ ਸਕੂਲ ਦੀ ਚਾਰ-ਦੀਵਾਰੀ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹੀ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਮ ਕਰਕੇ ਸਕੂਲ . ਵਿਚ ਜਾਂ ਹੋਸਟਲ ਵਿਚ ਹੀ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਨੇ ਬਾਹਰ ਜਾਣਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਮੁੰਡੇ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਹੋਸਟਲ ਵਾਰਡਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਨਾਲ ਕੇਵਲ ਦੋ ਘੰਟੇ ਹੀ ਬਾਹਰ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਪਰ ਉਸਨੂੰ ਹਰ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮ ਦੇ 7 ਵਜੇ ਤਕ ਵਾਪਸ ਹੋਸਟਲ ਵਿਚ ਆਉਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

ਹੋਸਟਲ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹੀ ਮੈਂਸ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਸਾਡੇ ਸਾਰਿਆਂ ਲਈ ਰੋਟੀ ਤਿਆਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਅਸੀਂ ਸਵੇਰੇ 7 ਤੋਂ 8 ਵਜੇ ਦੇ ਵਿਚ ਨਾਸ਼ਤਾ ਖਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਹੋਸਟਲ ਦਾ ਖਾਣਾ ਘਰ ਵਰਗਾ ਸੁਆਦ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, ਪਰ ਕੀ ਕਰੀਏ ਜੋ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ਖਾਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਫਿਰ ਦੁਪਹਿਰੇ ਅਸੀਂ ਛੁੱਟੀ ਵੇਲੇ ਸਾਰੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਖਾਣਾ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਫਿਰ ਰਾਤ ਨੂੰ 7 ਤੋਂ 8 ਵਜੇ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ।

ਕਈ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਟਿਊਸ਼ਨਾਂ ਵੀ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹਨ ਤੇ ਅਧਿਆਪਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹੋਸਟਲ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹੀ ਸਕੂਲ ਦੇ ਕਿਸੇ ਕਮਰੇ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ ਪੜ੍ਹਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ | ਸਕੂਲ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਖ਼ਤਮ ਹੋਣ ਮਗਰੋਂ ਹੋਸਟਲ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਗਰਾਉਂਡਾਂ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਖੇਡਾਂ ਵੀ ਖੇਡਦੇ ਹਨ ਤੇ ਕਈ ਸਵਿਮਿੰਗ ਪੂਲ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਕੋਚ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਹੇਠ ਤਾਰੀਆਂ ਵੀ ਲਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਹੋਸਟਲ ਵਿਚ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਬੜੇ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਵਿਚ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੋਈ ਅਣਸੁਖਾਵੀਂ ਘਟਨਾ ਨਹੀਂ ਵਾਪਰਨ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ।

ਬੇਸ਼ੱਕ ਇੱਥੇ ਸਾਨੂੰ ਸਾਰੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਹਨ ਪਰੰਤੂ ਫਿਰ ਵੀ ਘਰ ਦੀ ਯਾਦ ਸਤਾਉਂਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਅੱਜ ਮੇਰਾ ਮਨ ਜ਼ਰਾ ਉਦਾਸ ਸੀ ਤੇ ਮੇਰਾ ਦਿਲ ਕੀਤਾ ਕਿ ਤੇਰੇ ਨਾਲ ਕੁੱਝ ਵਿਚਾਰ ਸਾਂਝੇ ਕਰਾਂ ।

ਤੇਰਾ ਮਿੱਤਰ,
ਹਰਮਨਪ੍ਰੀਤ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

19. ਆਪਣੀ ਸਹੇਲੀ/ਮਿੱਤਰ ਨੂੰ ਭਾਖੜਾ ਡੈਮ ਦੀ ਸੈਰ ਦਾ ਹਾਲ ਲਿਖੋ, ਜੋ ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਹੈ ?

ਪਿੱਪਲਾਂ ਵਾਲਾ ।
27 ਜੂਨ, 20…….,

ਪਿਆਰੇ ਸੁਪ੍ਰੀਤ,

ਬੀਤੇ 24 ਜੂਨ ਨੂੰ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਤੋਂ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ 10 ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦਾ ਇਕ ਗਰੁੱਪ ਭਾਖੜਾ ਡੈਮ ਦੀ ਸੈਰ ਕਰਨ ਲਈ ਗਿਆ | ਅਸੀਂ ਇਕ ਸਕਾਰਪੀਓ ਗੱਡੀ ਕਿਰਾਏ ਉੱਤੇ ਲਈ ਤੇ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਤੋਂ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਪਹਾੜੀ ਸੜਕ ਉੱਪਰ ਪੈ ਗਏ ਤੇ ਦੋ ਕੁ ਘੰਟਿਆਂ ਵਿਚ ਨੰਗਲ ਪਾਰ ਕਰ ਗਏ । ਕੁੱਝ ਦੁਰ ਅੱਗੇ ਜਾ ਕੇ ਸਾਨੂੰ ਭਾਖੜਾ ਡੈਮ ਦੂਰੋਂ ਦਿਸਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਅਖੀਰ ਅਸੀਂ ਹਰੇ-ਭਰੇ ਉਸ ਥਾਂ ਉੱਤੇ ਪਹੁੰਚ ਗਏ, ਜਿੱਥੇ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਉੱਤੇ ਇਹ ਬੰਨ੍ਹ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਸਕਿਉਰਿਟੀ ਵਾਲਿਆਂ ਨੇ ਸਾਨੂੰ ਚੈੱਕ ਕੀਤਾ ਤੇ ਅੱਗੇ ਜਾਣ ਦਿੱਤਾ ।

ਡੈਮ ਦੇ ਉੱਤੇ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ ਨੇ ਸਾਨੂੰ ਦੱਸਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਕਿ ਇਹ ਏਸ਼ੀਆ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚਾ ਬੰਨ੍ਹ ਹੈ ਤੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬਣਿਆ ਇਹ ਇੰਨਾ ਪੱਕਾ ਬੰਨ੍ਹ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਉੱਪਰ ਭੂਚਾਲ, ਹੜ੍ਹ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਤੋੜ-ਫੋੜ ਦਾ ਅਸਰ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ । ਇਹ ਸਮੁੰਦਰ ਦੇ ਤਲ ਤੋਂ 225.55 ਮੀਟਰ ਉੱਚਾ ਹੈ । ਇਸਦੀ ਲੰਬਾਈ 518 ਮੀ: ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਉੱਤੇ ਬਣੀ ਸੜਕ ਦੀ ਚੌੜਾਈ 304.84 ਮੀਟਰ ਹੈ । ਇਸਦੇ ਪਰਲੇ ਪਾਸੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਪਿੰਡਾਂ ਨੂੰ ਉਜਾੜ ਕੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਇਕ ਵੱਡੀ ਝੀਲ ਬਣਾਈ ਗਈ ਹੈ । ਜਿਸ ਵਿਚ 96210 ਲੱਖ ਕਿਊਬਿਕ ਮੀਟਰ ਪਾਣੀ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਝੀਲ ਦਾ ਨਾਂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਾਗਰ ਹੈ | ਜੇਕਰ ਇਹ ਬੰਨ੍ਹ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਟੁੱਟ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਇਹ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ, ਪੰਜਾਬ, ਹਰਿਆਣੇ ਤੇ . ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਕੁੱਝ ਹਿੱਸੇ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰੋੜ੍ਹ ਸਕਦਾ ਹੈ | ਸਾਡੇ ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ ਜਦੋਂ ਇਹ ਦੱਸ ਰਹੇ ਸਨ ਤੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਝੀਲ ਵਲ ਦੇਖ ਕੇ ਸਾਡਾ ਮਨ ਹੈਰਾਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਸੀ ।

ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਇਸ ਬੰਨ੍ਹ ਦਾ ਉਦਘਾਟਨ ਕਰਨ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਨੇ ਇਸਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦੇ ਪੁਨਰ-ਉਥਾਨ ਦਾ ਮੰਦਰ” ਕਿਹਾ ਸੀ ।

ਅਸੀਂ ਫਿਰ ਤੁਰ ਕੇ ਇਸ ਡੈਮ ਨੂੰ ਵੇਖ ਰਹੇ ਸਾਂ | ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਹੋਰ ਯਾਤਰੀ ਵੀ ਉੱਥੇ ਆਏ ਹੋਏ ਸਨ । ਕਈ ਪਿਕਨਿਕ ਮਨਾ ਰਹੇ ਸਨ । ਕੁੱਝ ਕਿਸ਼ਤੀਆਂ ਵਿਚ ਸੈਰ ਵੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ।

ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਇਸਦਾ ਕੰਟਰੋਲ ਭਾਖੜਾ ਮੈਨਜਮੈਂਟ ਬੋਰਡ ਕੋਲ ਹੈ । ਇਸ ਬੰਨ ਨਾਲ ਦਰਿਆ ਦੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਰੋਕ ਕੇ ਮੈਦਾਨੀ ਤੇ ਰੇਗਸਤਾਨੀ ਇਲਾਕੇ ਨੂੰ ਸਿੰਜਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਨਹਿਰਾਂ ਕੱਢੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਟਰਬਾਈਨਾਂ ਚਲਾ ਕੇ ਬਿਜਲੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਭਾਰਤ ਅੰਨ ਦੀ ਲੋੜ ਵਿਚ ਸ਼ੈ-ਨਿਰਭਰ ਹੋਇਆ ਹੈ ਤੇ ਬਿਜਲੀ ਨਾਲ ਸ਼ਹਿਰ ਤੇ ਪਿੰਡ ਜਗਮਗਾ ਉੱਠੇ ਹਨ ਤੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਨੂੰ ਖੂਬ ਹੁਲਾਰਾ ਮਿਲਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਘੰਟੇ ਉੱਥੇ ਗੁਜ਼ਾਰਨ ਮਗਰੋਂ ਅਸੀਂ ਵਾਪਸ ਪਰਤ ਆਏ ।

ਤੇਰਾ ਮਿੱਤਰ,
ਹਰਨੇਕ ਸਿੰਘ

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

20. ਆਪਣੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਬਾਰੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖਦੇ ਹੋਏ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਘਰ ਜਲਦੀ ਪਰਤ ਆਉਣ ਦੀ ਸਲਾਹ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਭਵਨ,
ਪ੍ਰੇਮ ਆਸ਼ਰਮ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।
ਨਵੰਬਰ, 12, 20…….

ਸਤਿਕਾਰਯੋਗ ਪਿਤਾ ਜੀ,

ਆਦਰ ਭਰੀ ਨਮਸਕਾਰ ।

ਮੈਂ ਆਪ ਨੂੰ ਇਕ ਚਿੱਠੀ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਲਿਖ ਚੁੱਕਾ ਹਾਂ, ਪਰ ਆਪ ਵਲੋਂ ਉਸ ਦਾ ਕੋਈ ਉੱਤਰ ਨਹੀਂ ਆਇਆ । ਮੈਂ ਅੱਜ ਤੁਹਾਡੀ ਚਿੱਠੀ ਉਡੀਕੇ ਬਿਨਾਂ ਹੀ ਆਪ ਨੂੰ ਇਕ ਹੋਰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖ ਰਿਹਾ ਹਾਂ । ਸਮਾਚਾਰ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਪਹਿਲੀ ਨਵੰਬਰ ਤੋਂ ਤੇਜ਼ ਬੁਖ਼ਾਰ ਚੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ਤੇ ਅੱਜ 10 ਦਿਨ ਬੀਤ ਜਾਣ ‘ਤੇ ਵੀ ਕੋਈ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਪਿਆ | ਸਵੇਰ ਵੇਲੇ ਬੁਖ਼ਾਰ ਜ਼ਰਾ ਘੱਟ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਸ਼ਾਮ ਵੇਲੇ 104.5° ਤਕ ਪੁੱਜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਡਾ: ਅਮਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਇਲਾਜ ਕਰ ਰਹੇਂ ਹਨ । ਡਾਕਟਰ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ਕਿ ਮਾਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਮਿਆਦੀ ਬੁਖ਼ਾਰ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਪੂਰੇ ਦੋ ਜਾਂ ਤਿੰਨ ਹਫਤਿਆਂ ਪਿੱਛੋਂ ਉਤਰੇਗਾ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਮੰਜੇ ਤੋਂ ਉੱਠਣਾ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਖਾਣ ਲਈ ਕੇਵਲ ਤਰਲ ਚੀਜ਼ਾਂ, ਮੁਸੱਮੀਆਂ ਦਾ ਰਸ ਤੇ ਦੁੱਧ-ਚਾਹ ਆਦਿ ਹੀ ਦਿੱਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ | ਡਾਕਟਰ ਸਾਹਿਬ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਘਰ ਆ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਦੂਜੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰਾ ਅਤੇ ਭੈਣ ਸੰਗੀਤਾ ਦਾ ਇਮਤਿਹਾਨ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਸਾਡੀ ਦੋਹਾਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦਾ ਬਹੁਤ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਛੁੱਟੀ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਇਕ-ਇਕ ਘੰਟਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਅਤੇ ਹਿਸਾਬ ਦੀਆਂ ਕਲਾਸਾਂ ਲਗਦੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਮੈਂ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਕਾਰਨ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੰਗੀਤਾ ਨੂੰ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਘਰ ਰਹਿਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਉਹ ਉਸ ਦਿਨ ਦੀ ਸਕੂਲ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕੀ । ਉਸ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ । ਉਸ ਨੇ ਵੀ ਐਤਕੀਂ ਬੋਰਡ ਦਾ ਇਮਤਿਹਾਨ ਦੇਣਾ ਹੈ । ਮਾਤਾ ਜੀ ਮੈਨੂੰ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਕਹਿ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੂੰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖ ਕਿ ਉਹ ਛੁੱਟੀ ਲੈ ਕੇ ਘਰ ਆ ਜਾਣ |ਸਾਡੀ ਦੋਹਾਂ ਭੈਣ-ਭਰਾ ਦੀ ਵੀ ਇਹੋ ਇੱਛਾ ਹੈ । ਸੋ ਤੁਸੀਂ ਇਹ ਚਿੱਠੀ ਪੜਦੇ ਸਾਰ ਛੁੱਟੀ ਲੈ ਕੇ ਦੋ-ਤਿੰਨ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਘਰ ਪੁੱਜ ਜਾਵੋ । ਮਾਤਾ ਜੀ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤਾ ਵਲੋਂ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਨਮਸਕਾਰ !

ਆਪ ਦਾ ਸਪੁੱਤਰ,
ਕੁਲਦੀਪ ਕੁਮਾਰ

ਟਿਕਟ
ਸ੍ਰੀ ਸੁਰਿੰਦਰ ਕੁਮਾਰ,
6210, ਸੈਕਟਰ 18 ਏ,
ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ॥

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

21. ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ ਜਾਂ ਸਹੇਲੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਗਣਤੰਤਰ ਦਿਵਸ ਮਨਾਏ ਜਾਣ ਸੰਬੰਧੀ ਇਕ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੋ ।

……….ਸਕੂਲ,
ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।
28 ਜਨਵਰੀ, 20….

ਪਿਆਰੀ ਹਰਪ੍ਰੀਤ,

ਪਰਸੋਂ ਛੱਬੀ ਜਨਵਰੀ ਦਾ ਦਿਨ ਸੀ । ਤੈਨੂੰ ਪਤਾ ਹੀ ਹੈ ਇਸ ਦਿਨ 1950 ਵਿਚ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਹਰ ਸਾਲ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿਚ ਗਣਤੰਤਰ ਦਿਵਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਹਰ ਸਾਲ ਵਾਂਗ ਐਤਕੀਂ ਵੀ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਇਹ ਦਿਨ ਬੜੇ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਾਲ ਮਨਾਇਆ ਗਿਆ । ਸਵੇਰੇ ਸਾਢੇ 8 ਵਜੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਸਿੱਖਿਆ ਅਫ਼ਸਰ ਨੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਝੰਡਾ ਲਹਿਰਾਉਣ ਦੀ ਰਸਮ ਅਦਾ ਕੀਤੀ । ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਗੀਤ ‘ਜਨ ਗਨ ਮਨ……’ ਗਾਇਆ ਗਿਆ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਸਾਵਧਾਨ ਖੜ੍ਹੇ ਹੋ ਕੇ ਭਾਗ ਲਿਆ ।

ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਸਾਰੇ ਅਧਿਆਪਕ ਮੁੱਖ ਮਹਿਮਾਨਾਂ ਸਮੇਤ ਕੁਰਸੀਆਂ ਉੱਤੇ ਬੈਠ ਗਏ ਤੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸਾਹਮਣੇ ਦਰੀਆਂ ਉੱਪਰ । ਦੇਸ਼ ਦੀ ਗਣਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਤੇ ਅਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਸੰਬੰਧੀ ਕੁੱਝ ਭਾਸ਼ਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਸੰਬੰਧੀ ਵੀ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ । ਕੁੱਝ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਭਗਤੀ ਦੇ ਗੀਤ ਗਾਏ । ਕੁੜੀਆਂ ਨੇ ਗਿੱਧਾ ਤੇ ਮੁੰਡਿਆਂ ਨੇ ਭੰਗੜਾ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਿਸ਼ਿਆਂ, ਖੇਡਾਂ ਤੇ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਇਨਾਮ ਵੀ ਦਿੱਤੇ ਗਏ । ਅੰਤ ਵਿਚ । ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮੁੱਖ ਮਹਿਮਾਨਾਂ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਸਕੂਲ ਵਲੋਂ ਸਾਰੇ ਮਹਿਮਾਨਾਂ, ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਤੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਵਿਚ ਲੱਡੂ ਵੰਡੇ ਗਏ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ।

ਤੇਰੀ ਸਹੇਲੀ,
ਅੰਮ੍ਰਿਤਪਾਲ ॥

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

22. ਆਪਣੇ ਮਿੱਤਰ/ਸਹੇਲੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰੀਤੀ-ਭੋਜਨ ਲਈ ਸੱਦਾ-ਪੱਤਰ ਭੇਜੋ ।

1212 ਸੈਕਟਰ 22 C,
ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ।
27 ਦਸੰਬਰ, 20 …..

ਪਿਆਰੇ ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ,

ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲੇ ।

ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਘਰ ਵਿਚ ਛੋਟੇ ਭਰਾ ਸੁਰਿੰਦਰ ਦੇ ਪੰਜਵੇਂ ਜਨਮ-ਦਿਨ ਦੀ ਖੁਸ਼ੀ ਵਿਚ 27 ਦਸੰਬਰ ਨੂੰ ਅਖੰਡ ਪਾਠ ਰੱਖਣਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਦਾ ਭੋਗ 29 ਦਸੰਬਰ ਦਿਨ ਐਤਵਾਰ ਸਵੇਰੇ 11 ਵਜੇ ਪਵੇਗਾ । ਭੋਗ ਉਪਰੰਤ ਪ੍ਰੀਤੀ-ਭੋਜਨ ਹੋਵੇਗਾ ।

ਅਜਿਹੇ ਮੌਕੇ ਆਪ ਜਿਹੇ ਮਿੱਤਰਾਂ ਦੀ ਹਾਜ਼ਰੀ ਨਾਲ ਹੀ ਸੋਭਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਆਪ ਆਪਣੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਸਹਿਤ ਦਰਸ਼ਨ ਦੇਣ ਦੀ ਕਿਰਪਾਲਤਾ ਕਰਨੀ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਤੇਰਾ ਮਿੱਤਰ,
ਗੁਰਬੀਰ ਸਿੰਘ ॥

ਟਿਕਟ
ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ,
811, ਸੈਕਟਰ 21A,
ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

23. ਆਪਣੀ ਸਹੇਲੀ/ਮਿੱਤਰ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸਦੇ ਹੋਏ ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਹੋਣ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰੋ ।

2828, ਮਾਡਲ ਟਾਊਨ,
ਲੁਧਿਆਣਾ ।
2 ਅਪਰੈਲ 20 …..

ਪਿਆਰੇ ਗੁਰਜੀਤ,

ਮਿੱਠੀਆਂ ਯਾਦਾਂ,

ਅੱਜ ਹੀ ਮਾਤਾ ਜੀ ਦੀ ਚਿੱਠੀ ਤੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਤੂੰ ਸੱਤਵੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿਚੋਂ ਚੰਗਾ ਡ ਲੈ ਕੇ ਪਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ। ਅੱਗੋਂ ਮੈਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਵਾਲਾ ਸਕੂਲ ਛੱਡ ਕੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਮੇਰੇ ਵਾਲੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਹੋ ਜਾਹ । ਇਸ ਨਾਲ ਇਕ ਤਾਂ ਆਪਾਂ ਦੋਵੇਂ ਦੋਸਤ +2 ਤਕ ਇੱਕੋ ਸਕੂਲ ਵਿੱਚ ਇਕੱਠੇ ਪੜ ਸਕਾਂਗੇ । ਦੂਜਾ ਇੱਥੋਂ ਦਾ ਸਟਾਫ਼ ਤੇਰੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲ ਨਾਲੋਂ ਬਹੁਤ ਮਿਹਨਤੀ ਤੇ ਤਜ਼ਰਬੇਕਾਰ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਪੜ੍ਹਾਈ ਬਹੁਤ ਚੰਗੀ ਹੈ । ਜਿਹੜਾ ਤੂੰ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈਂ ਕਿ ਤੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਚ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੈਂ, ਤੇਰੀ ਇਹ ਸਾਰੀ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦੋ-ਤਿੰਨ ਮਹੀਨਿਆਂ ਵਿਚ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ । ਇੱਥੇ ਹਿਸਾਬ, ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਅਤੇ ਸਧਾਰਨ ਵਿਗਿਆਨ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਵਾਲੇ ਅਧਿਆਪਕ ਵੀ ਬਹੁਤ ਸਿਆਣੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਹਰ ਇਕ ਚੀਜ਼ ਫਟਾਫਟ ਸਮਝ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਲਾਏਬਰੇਰੀ ਤੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਖੇਡ-ਮੈਦਾਨਾਂ ਤੇ ਖੇਡ ਸਿਖਲਾਈ ਦਾ ਵੀ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਸਵੀਮਿੰਗ ਪੂਲ ਵੀ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਅਸੀਂ ਤੈਰਨਾ ਸਿਖਾਂਗੇ ਤੇ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਭਾਗ ਲਵਾਂਗੇ । ਮੇਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਹੈ ਕਿ ਇੱਥੇ ਆ ਕੇ ਤੇਰਾ ਦਿਲ ਬਹੁਤ ਲੱਗੇਗਾ ਤੇ ਪੜ੍ਹਾਈ ਵਿਚ ਹੀ ਤੇਰੀ ਹਰ ਪਾਸਿਉਂ ਤਰੱਕੀ ਹੋਵੇਗੀ ।

ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇਕਰ ਤੇਰਾ ਹੋਸਟਲ ਵਿਚ ਰਹਿਣ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨਾ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਤੂੰ ਸਾਡੇ ਘਰ ਹੀ ਰਹਿ ਕੇ ਆਪਣੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈਂ । ਮੇਰਾ ਖ਼ਿਆਲ ਹੈ ਕਿ ਤੈਨੂੰ ਮੇਰੀ ਸਲਾਹ ਪਸੰਦ ਆਈ ਹੋਵੇਗੀ ਤੇ ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਘਰ ਸਲਾਹ ਬਣਾ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਜਲਦੀ ਪਤਾ ਦੇਵੇਂਗਾ । ਜਲਦੀ ਉੱਤਰ ਦੀ ਉਡੀਕ ਵਿੱਚ ।

ਤੇਰਾ ਮਿੱਤਰ,
ਹਰਮੀਤ ।

ਪਤਾ
ਗੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ
ਪੁੱਤਰ ਕਰਮਜੀਤ ਸਿੰਘ
ਪਿੰਡ ਤੇ ਡਾ: ਮੁੰਡੀਆਂ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।

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(ਅ) ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ

24. ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰੀ ਕੰਮ ਦੀ ਛੁੱਟੀ ਲੈਣ ਲਈ ਇਕ ਬੇਨਤੀਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ,
…………. ਸਕੂਲ,
ਪਿੰਡ ………….,
ਜ਼ਿਲਾ………… ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਨੂੰ ਘਰ ਵਿਚ ਇਕ ਜ਼ਰੂਰੀ ਕੰਮ ਪੈ ਗਿਆ ਹੈ : ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੈਂ ਅੱਜ ਸਕੂਲ ਨਹੀਂ ਆ ਸਕਦਾ । ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਇਕ ਦਿਨ ਦੀ ਛੁੱਟੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ । ਮੈਂ ਆਪ ਦਾ ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦੀ ਹੋਵਾਂਗਾ ।

ਆਪ ਦਾ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
…………. ਸਿੰਘ,
ਰੋਲ ਨੰ: ……

ਮਿਤੀ : 23 ਜਨਵਰੀ, 20………

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25. ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜਾਂ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਨੂੰ ਬਿਮਾਰੀ ਦੀ ਛੁੱਟੀ ਲੈਣ ਲਈ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ,
ਪਬਲਿਕ ਹਾਈ ਸਕੂਲ,
ਨਸਰਾਲਾ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਨੂੰ ਬੁਖ਼ਾਰ ਚੜ੍ਹਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਡਾਕਟਰ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਦੋ ਦਿਨ ਅਰਾਮ ਕਰਨ ਦੀ ਸਲਾਹ ਦਿੱਤੀ ਹੈ । ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਮੈਨੂੰ 12 ਅਤੇ 13 ਜਨਵਰੀ ਦੀ ਛੁੱਟੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ । ਮੈਂ ਆਪ ਦਾ ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦੀ ਹੋਵਾਂਗਾ ।

ਆਪ ਦਾ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ,
ਰੋਲ ਨੰ: 48.

ਮਿਤੀ : 12 ਜਨਵਰੀ, 20……..

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26. ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜਾਂ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਗ਼ਰੀਬੀ ਦੀ ਹਾਲਤ ਦੱਸ ਕੇ ਫ਼ੀਸ ਮੁਆਫ਼ ਕਰਾਉਣ ਲਈ ਅਰਜ਼ੀ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ,
ਸਰਕਾਰੀ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਸੈਕਟਰ ਨੰਬਰ 1, ਤਲਵਾੜਾ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਆਪ ਦੇ ਸਕੂਲ ਵਿਖੇ ਅੱਠਵੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਦਾ ਹਾਂ । ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਇਕ ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਫ਼ੈਕਟਰੀ ਵਿਚ ਚਪੜਾਸੀ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਤਨਖ਼ਾਹ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਘਰ ਦਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਬਹੁਤ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਨਾਲ ਚੱਲਦਾ ਹੈ । ਮੇਰੇ ਚਾਰ ਛੋਟੇ ਭੈਣ-ਭਰਾ ਹੋਰ ਵੀ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਆਪ ਮੇਰੀ ਫ਼ੀਸ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿਓ । ਮੈਂ ਆਪ ਜੀ ਦੀ ਇਸ ਮਿਹਰਬਾਨੀ ਦਾ ਬਹੁਤ ਰਿਣੀ ਹੋਵਾਂਗਾ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
ਰੋਲ ਨੰ: 87,
ਅੱਠਵੀਂ ਏ ।

ਮਿਤੀ : 16 ਅਪਰੈਲ, 20……

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27.ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜਾਂ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵੱਡੇ ਭਰਾ ਦੇ ਵਿਆਹ ਉੱਤੇ ਇਕ ਹਫ਼ਤੇ ਦੀਆਂ ਛੁੱਟੀਆਂ ਲੈਣ ਲਈ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ,
ਸਰਕਾਰੀ ਹਾਈ ਸਕੂਲ,
ਧਰਮਪੁਰ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੇ ਵੱਡੇ ਭਰਾ ਦਾ ਵਿਆਹ ਇਸ ਮਹੀਨੇ ਦੀ 22 ਤਾਰੀਖ਼ ਨੂੰ ਹੋਣਾ ਨਿਯਤ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ, ਜੋ ਕਿ ਮੁੰਬਈ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਕਿਸੇ ਕਾਰਨ ਅਜੇ ਤਕ ਘਰ ਨਹੀਂ ਪਹੁੰਚ ਸਕੇ ।ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਕੇਵਲ ਪੰਜ ਦਿਨ ਹੀ ਰਹਿ ਗਏ ਹਨ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਮੇਰੇ ਘਰ ਵਾਲੇ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਮੈਂ ਵਿਆਹ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਹੱਥ ਵਟਾਵਾਂ ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੈਨੂੰ 17 ਜਨਵਰੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 23 ਜਨਵਰੀ ਤਕ ਛੁੱਟੀਆਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ । ਮੈਂ ਆਪ ਦਾ ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦੀ ਹੋਵਾਂਗਾ ।

ਆਪ ਦਾ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
ਰੋਲ ਨੰ: 44,
ਅੱਠਵੀਂ ਏ ।

ਮਿਤੀ : 16 ਜਨਵਰੀ, 20……

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

28. ਤੁਸੀਂ ਸਰਕਾਰੀ ਐਲੀਮੈਂਟਰੀ ਸਕੂਲ, ਕਿਸ਼ਨਗੜ੍ਹ, ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹੋ । ਤੁਹਾਡੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦੀ ਬਦਲੀ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਿਚ ਹੋ ਗਈ ਹੈ । ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੀ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕਾ ਜਾਂ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਨੂੰ ਸਕੂਲ ਛੱਡਣ ਦਾ ਸਰਟੀਫਿਕੇਟ ਲੈਣ ਲਈ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਪਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬਾ,
ਸਰਕਾਰੀ ਐਲੀਮੈਂਟਰੀ ਸਕੂਲ,
ਕਿਸ਼ਨਗੜ੍ਹ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ ।

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਆਪ ਦੇ ਸਕੂਲ ਵਿਖੇ ਅੱਠਵੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਦੀ ਹਾਂ । ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਇੱਥੇ ਪੀ. ਡਬਲਯੂ. ਡੀ. ਵਿਚ ਨੌਕਰੀ ਕਰਦੇ ਸਨ, ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅਚਾਨਕ ਦੋਰਾਹਾ, ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਲੁਧਿਆਣਾ ਦੀ ਬਦਲੀ ਹੋ ਗਈ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਮੇਰਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਜਾਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੇਰਾ ਆਪ ਦੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਾਈ ਜਾਰੀ ਰੱਖਣਾ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੈ ।

ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਸਕੂਲ ਛੱਡਣ ਦਾ ਸਰਟੀਫ਼ਿਕੇਟ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਜੋ ਮੈਂ ਲੁਧਿਆਣੇ ਜਾ ਕੇ ਆਪਣੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਬੇ-ਫ਼ਿਕਰ ਹੋ ਕੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਸਕਾਂ । ਮੈਂ ਆਪ ਦੀ ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦੀ ਹੋਵਾਂਗੀ ।

ਆਪ ਦੀ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
ਰੋਲ ਨੰ: 234,
ਅੱਠਵੀਂ ਬੀ ।

ਮਿਤੀ : 26 ਨਵੰਬਰ, 20…..

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

29. ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜਾਂ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ) ਨੂੰ ਚਰਿੱਤਰ ਸਰਟੀਫ਼ਿਕੇਟ (ਪ੍ਰਮਾਣਪੱਤਰ) ਲੈਣ ਲਈ ਬਿਨੈ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬ,
ਸਰਕਾਰੀ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਦੀਨਾ ਨਗਰ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਇਕ ਸਰਕਾਰੀ ਦਫ਼ਤਰ ਵਿਚ ਚਪੜਾਸੀ ਭਰਤੀ ਹੋਣ ਲਈ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਭੇਜਣਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਨਾਲ ਅੱਠਵੀਂ ਦੇ ਸਰਟੀਫ਼ਿਕੇਟ ਦੇ ਨਾਲ ਸਕੂਲ ਦਾ ਚਰਿੱਤਰ ਸਰਟੀਫ਼ਿਕੇਟ ਵੀ ਨੱਥੀ ਕਰਨਾ ਹੈ । ਮੈਂ ਆਪ ਦੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚੋਂ ਅਪਰੈਲ, 20….. ਵਿਚ ਅੱਠਵੀਂ ਪਾਸ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਆਪ ਮੈਨੂੰ ਮੇਰਾ ਚਰਿੱਤਰ-ਸਰਟੀਫ਼ਿਕੇਟ ਪ੍ਰਮਾਣ-ਪੱਤਰ) ਦੇ ਦੇਵੋ 1 ਮੈਂ ਆਪ ਦਾ ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦੀ ਹੋਵਾਂਗਾ ।

ਆਪ ਦਾ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
ਗੁਰਮੀਤ ਸਿੰਘ,
ਸਪੁੱਤਰ ਸ: ਜਗਤ ਸਿੰਘ,
…….. ਮੁਹੱਲਾ,
ਦੀਨਾਨਗਰ ।

ਮਿਤੀ : 18 ਦਸੰਬਰ, 20…..

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

30. ਤੁਸੀਂ ਖ਼ਾਲਸਾ ਹਾਈ ਸਕੂਲ ਅਭੈਪੁਰ ਵਿਚ ਅੱਠਵੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹੋ । ਸਕੂਲ ਤੋਂ ਦਸ ਦਿਨ ਲਗਾਤਾਰ ਗੈਰਹਾਜ਼ਰ ਰਹਿਣ ਕਰਕੇ ਤੁਹਾਡਾ ਨਾਂ ਸਕੂਲ ਦੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿਚੋਂ ਕੱਟ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ । ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਨਾਂ ਦੁਬਾਰਾ ਦਾਖ਼ਲਾ ਲੈਣ ਲਈ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ,
……… ਖ਼ਾਲਸਾ ਹਾਈ ਸਕੂਲ,
……… ਅਭੈਪੂਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਪਿਛਲੇ ਦਿਨੀਂ 9 ਅਗਸਤ ਤੋਂ 17 ਅਗਸਤ, 20….. ਤਕ ਮਲੇਰੀਏ ਨਾਲ ਬਿਮਾਰ ਪਿਆ ਰਿਹਾ ਹਾਂ । ਮੇਰੇ ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਕੋਈ ਹੋਰ ਮੁੰਡਾ ਸਕੂਲ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ । ਘਰ ਵਿਚ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਮੇਰੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਦਾਦੀ ਜੀ ਦੇ ਸਿਵਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਮੈਂ ਸਕੂਲ ਛੁੱਟੀ ਲਈ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਨਾ ਭੇਜ ਸਕਿਆ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਸਾਡੀ ਕਲਾਸ ਦੇ ਇੰਚਾਰਜ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮੇਰਾ ਨਾਂ ਰਾਜਿਸਟਰ ਵਿਚੋਂ ਕੱਟ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਮੈਂ ਇਸ ਚਿੱਠੀ ਦੇ ਨਾਲ ਡਾਕਟਰ ਸਾਹਿਬ ਵਲੋਂ ਜਾਰੀ ਕੀਤਾ ਡਾਕਟਰੀ-ਸਰਟੀਫ਼ਿਕੇਟ ਵੀ ਨੱਥੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ । ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਫ਼ੀਸ ਜਾਂ ਜੁਰਮਾਨੇ ਤੋਂ ਮੁੜ ਦਾਖ਼ਲਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
ਰੋਲ ਨੰ: …….
ਅੱਠਵੀਂ ਏ ।

ਮਿਤੀ : 2 ਸਤੰਬਰ, 20……

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31. ਸਕੂਲ ਮੁਖੀ ਨੂੰ ਐੱਨ. ਸੀ. ਸੀ., ਸਕਾਊਟ ਜਾਂ ਗਰਲ ਗਾਈਡ ਟੀਮ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਲਈ ਬਿਨੈ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ,

ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ,
ਸਰਕਾਰੀ ਮਿਡਲ ਸਕੂਲ,
ਬੁਲੋਵਾਲ ।

ਸੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੀ ਐੱਨ. ਸੀ. ਸੀ./ਸਕਾਊਟ ਟੀਮ।ਗਰਲ ਗਾਈਡ ਟੀਮ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ/ਚਾਹੁੰਦੀ ਹਾਂ । ਕਿਰਪਾ ਕਰਕੇ ਮੈਨੂੰ ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਆਗਿਆ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ, ਮੈਂ ਆਪ ਦਾ ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦੀ ਹੋਵਾਂਗਾਂ/ਹੋਵਾਂਗੀ ।

ਆਪ ਦਾ/ਆਪ ਦੀ ਆਗਿਆਕਾਰ,
ਉ. ਅ.ਬ.

ਮਿਤੀ : 18 ਸਤੰਬਰ, 20 ……

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

32. ਤੁਸੀਂ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਨਗਰ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਹੋ । ਤੁਹਾਡੇ ਮੁਹੱਲੇ ਦਾ ਡਾਕੀਆ ਡਾਕ ਦੀ ਵੰਡ ਠੀਕ ਢੰਗ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ।ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਪੋਸਟ ਮਾਸਟਰ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਡਾਕੀਏ ਦੀ ਲਾਪਰਵਾਹੀ ਵਿਰੁੱਧ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕਰੋ ।

27, ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਨਗਰ,
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।
ਮਿਤੀ : 15 ਦਸੰਬਰ, 20…

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਪੋਸਟ ਮਾਸਟਰ ਸਾਹਿਬ,
ਜਨਰਲ ਪੋਸਟ ਆਫਿਸ,
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ।

ਸੀਮਾਨ ਜੀ,

ਮੈਂ ਆਪ ਅੱਗੇ ਇਸ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ-ਪੱਤਰ ਰਾਹੀਂ ਆਪਣੇ ਮੁਹੱਲੇ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਨਗਰ ਦੇ ਡਾਕੀਏ ਸ਼ਾਮ ਲਾਲ ਦੀ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ । ਮੈਂ ਉਸ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਵਾਰੀ ਕਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਿਭਾਵੇ ਪਰ ਉਸ ਦੇ ਕੰਨਾਂ ਉੱਤੇ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਸਰਕਦੀ ॥ ਅੱਕ ਕੇ ਮੈਂ ਆਪ ਅੱਗੇ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ਉਹ ਸਾਡੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿਚ ਕਦੇ ਵੀ ਡਾਕ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਨਹੀਂ ਵੰਡਦਾ । ਕਈ ਵਾਰ ਤਾਂ ਉਹ ਦੋ-ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਦੀ ਡਾਕ ਇਕੱਠੀ ਹੀ ਵੰਡਦਾ ਹੈ । · ਕਈ ਵਾਰ ਉਹ ਚਿੱਠੀਆਂ ਇਧਰ-ਉਧਰ ਗ਼ਲਤ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਦੇ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਬਣਦੀ ਹੈ । ਪਰਸੋਂ ਮੈਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਲਈ ਇੰਟਰਵਿਉ ਦੀ ਇਕ ਚਿੱਠੀ ਆਈ ਸੀ, ਜੋ ਕਿ ਮੈਨੂੰ ਦੋ ਦਿਨ ਲੇਟ ਮਿਲੀ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਇੰਟਰਵਿਊ ਨਾ ਦੇ ਸਕਿਆ । ਮੈਂ ਇਹ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਆਪਣੇ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਭਲੇ ਲਈ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ । ਮੇਰਾ ਇਸ ਡਾਕੀਏ ਨਾਲ ਕੋਈ ਨਿੱਜੀ ਵੈਰ ਨਹੀਂ ।
ਮੈਂ ਆਸ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਆਪ ਮੇਰੇ ਇਸ ਪੱਤਰ ਵਲ ਧਿਆਨ ਦੇ ਕੇ ਇਸ ਡਾਕੀਏਂ ਨੂੰ ਤਾੜਨਾ ਕਰੋਗੇ ਕਿ ਉਹ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪਤੇ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਡਾਕ ਦੀ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਵੰਡ ਕਰਿਆ ਕਰੇ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਹਰਦੀਪ ਸਿੰਘ ॥

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

33. ਤੁਹਾਡਾ ਸਾਈਕਲ ਗੁਆਚ ਗਿਆ ਹੈ । ਤੁਸੀਂ ਉਸ ਦੀ ਥਾਣੇ ਵਿਚ ਰਿਪੋਰਟ ਲਿਖਾਉਣ ਲਈ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਐੱਸ. ਐੱਚ. ਓ. ਸਾਹਿਬ,
ਚੌਕੀ ਨੰਬਰ 3,
…………. ਸ਼ਹਿਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ ਸਵੇਰੇ ਮੇਰਾ ਸਾਈਕਲ ਮ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਉਸ ਦੀ ਭਾਲ ਕਰਨ ਵਿਚ ਆਪ ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਦਿਓ । । ਮੈਂ ਅੱਜ ਸਵੇਰੇ 11 ਵਜੇ ਪੰਜਾਬ ਨੈਸ਼ਨਲ ਬੈਂਕ ਵਿਚੋਂ ਰੁਪਏ ਕਢਵਾਉਣ ਲਈ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸਾਈਕਲ ਨੂੰ ਜਿੰਦਰਾ ਲਾ ਕੇ ਬਾਹਰ ਖੜਾ ਕਰ ਗਿਆ ਸਾਂ । ਪਰ ਜਦੋਂ ਮੈਂ 11-30 ਤੇ ਬਾਹਰ ਆਇਆ, ਤਾਂ ਉੱਥੇ ਸਾਈਕਲ ਨਾ ਦੇਖ ਕੇ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਿਆ । ਮੈਂ ਸਮਝ ਗਿਆ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਸਾਈਕਲ-ਚੋਰ ਚੁੱਕ ਕੇ ਲੈ ਗਿਆ ਹੈ ।

ਮੇਰਾ ਸਾਈਕਲ ਰਾਬਨ-ਹੁੱਡ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਦਾ ਨੰਬਰ A-334066 ਹੈ । ਮੈਂ ਇਸ ਸਾਈਕਲ ਨੂੰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਸਾਈਕਲ ਸਟੋਰ, ਜਲੰਧਰ ਤੋਂ ਮਾਰਚ, 20……. ਵਿਚ ਖ਼ਰੀਦਿਆ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਰਸੀਦ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਚੇਨ-ਕਵਰ ਉੱਤੇ ਮੇਰਾ ਨਾਂ ਲਿਖਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਉਚਾਈ 22 ਇੰਚ ਅਤੇ ਰੰਗ ਹਰਾ ਹੈ । ਮੈਂ ਸਾਈਕਲ ਦੀ ਸੂਹ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ 100 ਰੁਪਏ ਇਨਾਮ ਦੇਣ ਲਈ ਵੀ ਤਿਆਰ ਹਾਂ । । ਮੈਂ ਆਸ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਆਪ ਆਪਣੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਹੁਕਮ ਦੇ ਕੇ ਮੇਰਾ ਸਾਈਕਲ ਲਭਾਉਣ ਵਿਚ ਪੂਰੀ-ਪੂਰੀ ਮੱਦਦ ਕਰੋਗੇ । ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਹਰਜੀਤ ਸਿੰਘ,
ਮਾਡਲ ਟਾਊਨ,
…… ਸ਼ਹਿਰ ।

ਮਿਤੀ : 30 ਦਸੰਬਰ, 20… ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

34. ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੀ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕਾ (ਜਾਂ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਨੂੰ ਜੁਰਮਾਨੇ ਦੀ ਮੁਆਫ਼ੀ ਲਈ ਇਕ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਾਹਿਬਾ,
ਸਰਕਾਰੀ ਗਰਲਜ਼ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਤੀ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਅੱਠਵੀਂ ਜਮਾਤ ਦੀ ਵਿਦਿਆਰਥਣ ਹਾਂ । ਪਿਛਲੇ ਮਹੀਨੇ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਹੋਈ ਪ੍ਰੀਖਿਆ ਵਿਚ ਹਿਸਾਬ ਦਾ ਪਰਚਾ ਨਾ ਦੇ ਸਕਣ ਕਰਕੇ ਮੈਨੂੰ ਪੰਜ ਰੁਪਏ ਜੁਰਮਾਨਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਅਸਲ ਵਿਚ ਮੈਂ ਉਸ ਦਿਨ ਬਹੁਤ ਬਿਮਾਰ ਸਾਂ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੈਂ ਪਰਚਾ ਨਹੀਂ ਸਾਂ ਦੇ ਸਕੀ । ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਦੀ ਆਮਦਨ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਹੈ, ਜੋ ਮੇਰੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦਾ ਖ਼ਰਚ ਬੜੀ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਨਾਲ ਚਲਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਮੇਰਾ ਇਹ ਜੁਰਮਾਨਾ ਮੁਆਫ਼ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ । ਮੈਂ ਆਪ ਦੀ ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦੀ ਹੋਵਾਂਗੀ ।

ਆਪ ਦੀ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
ਕੁਲਦੀਪ ਕੌਰ,
ਰੋਲ ਨੰ: 172,
ਅੱਠਵੀਂ ਸੀ ।

ਮਿਤੀ: 18 ਜਨਵਰੀ, 20 ……

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

35. ਸਕੂਲ ਵਿਚੋਂ ਗੈਰਹਾਜ਼ਰ ਰਹਿਣ ਕਰਕੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਜੁਰਮਾਨਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ, ਇਸ ਦੀ ਮੁਆਫ਼ੀ ਲਈ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਨੂੰ ਇਕ ਬਿਨੈ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ :
ਨੋਟ-ਪਿੱਛੇ ਲਿਖੇ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਹੀ ਲਿਖੋ ।

36. ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੀ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕਾ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸੈਕਸ਼ਨ ਬਦਲਣ ਲਈ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕਾ ਜੀ,
ਸਰਕਾਰੀ ਗਰਲਜ਼ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਕਪੂਰਥਲਾ ।

ਸੀਮਤੀ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੀ ਵੱਡੀ ਭੈਣ ਸੰਦੀਪ, ਰੋਲ ਨੰ: 60 ਅਤੇ ਮੈਂ ਦੋਵੇਂ ਅੱਠਵੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿਚ ਪੜਦੀਆਂ ਹਾਂ, ਪਰੰਤੂ ਉਸ ਦਾ ਸੈਕਸ਼ਨ ‘ਸੀ ਹੈ ਅਤੇ ਮੇਰਾ ‘ਬੀ’ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਕੁੱਝ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਦੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਸਾਂਝੀਆਂ ਹਨ, ਪਰ ਸੈਕਸ਼ਨ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਅਸੀਂ ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਲਾਭ ਨਹੀਂ ਉਠਾ ਸਕਦੀਆਂ । ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਆਪ ਮੈਨੂੰ ਸੈਕਸ਼ਨ ‘ਸੀਂ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਦੇਵੋ । ਮੈਂ ਆਪ ਦੀ ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦੀ ਹੋਵਾਂਗੀ ।

ਆਪ ਦੀ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
ਨਵਨੀਤ,
ਰੋਲ ਨੰ: 61,
ਅੱਠਵੀਂ ‘ਬੀ’ !

ਮਿਤੀ : 26 ਅਪਰੈਲ, 20…..

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

37. ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਸਪੋਰਟ ਅਫ਼ਸਰ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਸ਼ਹਿਰ ਤਕ ਬੱਸ ਸੇਵਾ ਦੇ ਸੁਧਾਰ ਲਈ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਪਿੰਡ ਕਾਲੂਵਾਹਰ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ ।
8 ਦਸੰਬਰ, 20……

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਟ੍ਰਾਂਸਪੋਰਟ ਅਫ਼ਸਰ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ,
ਜਲੰਧਰ ।

ਵਿਸ਼ਾ-ਪਿੰਡ ਤੋਂ ਸ਼ਹਿਰ ਤਕ ਬੱਸ ਸੇਵਾ ਸੁਧਾਰਨ ਬਾਰੇ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਜਲੰਧਰ ਤੋਂ ਬੁਆਲ ਨੂੰ ਰੋਡਵੇਜ਼ ਦੀ ਜੋ ਲੋਕਲ ਬੱਸ ਚਲਦੀ ਹੈ, ਉਸ ਦਾ ਸਾਡੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਸਟਾਪ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਜਦੋਂ ਇੱਥੇ ਕਿਸੇ ਸਵਾਰੀ ਨੇ ਨਾ ਉਤਰਨਾ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਬੱਸ ਡਰਾਈਵਰ ਇੱਥੇ ਬੱਸ ਰੋਕਦਾ ਨਹੀਂ, ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਇੱਥੇ ਬੱਸ ਦੀ ਉਡੀਕ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮੁਸਾਫਰਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਪਰੇਸ਼ਾਨੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਆਪ ਇਸ ਮਾਮਲੇ ਵਲ ਧਿਆਨ ਦਿਓ ਤੇ ਡਰਾਈਵਰ ਤੇ ਕੰਡਕਟਰ ਨੂੰ ਇੱਥੇ ਹਰ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਬੱਸ ਰੋਕਣ ਦੀ ਹਦਾਇਤ ਕਰੋ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਸ ਬੱਸ ਦੀਆਂ ਸੀਟਾਂ ਪਾਟੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ ਤੇ ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਟੁੱਟੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਇਸ ਪਾਸੇ ਕੋਈ ਚੰਗੀ ਬੱਸ ਭੇਜਣ ਦਾ ਵੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
………… ਸਿੰਘ,
…….. ਸਰਪੰਚ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

38. ਤੁਹਾਡਾ ਨਾਂ ਬਬਲੀਨ ਹੈ । ਤੁਸੀਂ ਅੱਠਵੀਂ ਦੇ ਮਨੀਟਰ ਹੋ । ਤੁਹਾਡੀ ਸ਼ੇਣੀ ਚਿੜੀਆਘਰ ਦੇ ਸੈਰ-ਸਪਾਟੇ ‘ ਤੇ ਜਾਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ ਤੋਂ ਆਗਿਆ ਲੈਣ ਲਈ ਬਿਨੈ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ ,

ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ,
…………. ਸਕੂਲ,
………… ਸ਼ਹਿਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ 22 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਛੱਤ-ਬੀੜ ਚਿੜੀਆਘਰ ਦੀ ਸੈਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ।ਇਸ ਦਿਨ ਐਤਵਾਰ ਹੋਵੇਗਾ । ਆਪ ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਦਿਨ ਇਹ ਚਿੜੀਆ-ਘਰ ਦੇਖਣ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦੇਵੋ । ਆਪ ਦੀ ਆਗਿਆ ਮਿਲਣ ‘ਤੇ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਹਰ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਤੋਂ ਦੋ-ਦੋ ਸੌ ਰੁਪਏ ਇਕੱਤਰ ਕਰਾਂਗੇ ਤੇ ਇਕ ਬੱਸ ਕਿਰਾਏ ਉੱਤੇ ਲਵਾਂਗੇ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਆਪ ਕਿਸੇ ਅਧਿਆਪਕ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਡਿਊਟੀ ਲਾ ਦੇਵੋ, ਜੋ ਕਿ ਸਾਡੀ ਯੋਗ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਤੇ ਸਾਨੂੰ ਚਿੜੀਆ-ਘਰ ਦਿਖਾ ਕੇ ਲਿਆਉਣ । ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਇਹ ਬੇਨਤੀ ਵੀ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਆਪ ਸਕੂਲ ਦੇ ਫੰਡ ਵਿਚੋਂ ਵੀ ਸਾਡੀ ਇਸ ਸੈਰ ਦੇ ਖ਼ਰਚ ਲਈ ਕੁੱਝ ਰਕਮ ਮਨਜ਼ੂਰ ਕਰੋ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦੀ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
ਬਬਲੀਨ ਕੌਰ,
ਮਨੀਟਰ,
ਅੱਠਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ॥

ਮਿਤੀ : 12 ਨਵੰਬਰ, 20…..

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

39. ਤੁਸੀਂ ਸਰਕਾਰੀ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ ਸਰਸੀਣੀ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਹੋ । ਤੁਹਾਡੇ ਨੇੜੇ ਦੇ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ, ਬਾਜੇਵਾਲ ਵਿਚ ਜ਼ਿਲੇ ਦੇ ਫੁੱਟਬਾਲ ਮੈਚ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ । ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਨੂੰ ਮੈਚ ਵੇਖਣ ਜਾਣ ਦੀ ਆਗਿਆ ਲੈਣ ਲਈ ਬਿਨੈ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ,
ਸਰਕਾਰੀ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ,
ਸਰਸੀਣੀ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ ਚੌਥੇ ਪੀਰੀਅਡ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ, ਬਾਜੇਵਾਲ ਦੀ ਗਰਾਉਂਡ ਵਿਚ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਤੇ ਡੀ.ਏ.ਵੀ. ਸੀਨੀਅਰ ਸੈਕੰਡਰੀ ਸਕੂਲ ਦੀਆਂ ਟੀਮਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਫੁੱਟਬਾਲ ਦਾ ਮੈਚ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਸਾਡੀ ਸਾਰੀ ਜਮਾਤ ਇਸ ਮੈਚ ਨੂੰ ਦੇਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਸਾਡੀ ਜਮਾਤ ਦੇ ਦੋ ਖਿਡਾਰੀ ਖੇਡ ਰਹੇ ਹਨ ।ਸਾਨੂੰ ਪੂਰੀ ਉਮੀਦ ਹੈ ਕਿ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪੱਧਰ ਉੱਤੇ ਹੋ ਰਹੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੈਚਾਂ ਵਿਚ ਸਾਡੀ ਟੀਮ ਜ਼ਰੂਰ ਜੇਤੂ ਰਹੇਗੀ । ਜੇਕਰ ਆਪ ਸਾਡੀ ਸਾਰੀ ਜਮਾਤ ਨੂੰ ਇਹ ਮੈਚ ਦੇਖਣ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦੇ ਦੇਵੋ, ਤਾਂ ਆਪ ਦੀ ਬਹੁਤ ਮਿਹਰਬਾਨੀ ਹੋਵੇਗੀ । ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਮਨਿੰਦਰ ਸਿੰਘ,
ਮਨੀਟਰ,
ਅੱਠਵੀਂ ਜਮਾਤ ।

ਮਿਤੀ : 5 ਦਸੰਬਰ, 20…..

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

40, ਸੰਪਾਦਕ, ਮੈਗਜ਼ੀਨ ਸੈਕਸ਼ਨ, ਪੰਜਾਬ ਸਕੂਲ ਸਿੱਖਿਆ ਬੋਰਡ ਵਲੋਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਲਈ ਛਪਦੇ ਰਸਾਲੇ ਮੰਗਵਾਉਣ ਲਈ ਇਕ ਬੇਨਤੀ ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

2202 ਆਦਰਸ਼ ਨਗਰ,
ਜਲੰਧਰ ।
12 ਸਤੰਬਰ, 20……….

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਸੰਪਾਦਕ, ਮੈਗਜ਼ੀਨ ਸੈਕਸ਼ਨ,
ਪੰਜਾਬ ਸਕੂਲ ਸਿੱਖਿਆ ਬੋਰਡ,
ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਾ ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਗਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਆਪ ਵਲੋਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਲਈ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਰਸਾਲੇ ‘ਪੰਖੜੀਆਂ ਅਤੇ ‘ਪਾਇਮਰੀ ਸਿੱਖਿਆ ਨੂੰ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੀ ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਵਿਚ ਨਿਯਮਿਤ ਤੌਰ ਤੇ ਪੜ੍ਹਦਾ ਹਾਂ । ਇਹ ਰਸਾਲੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ, ਜਾਣਕਾਰੀ ਵਧਾਉਣ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਰਚਨਾਤਮਕ ਰੁਚੀਆਂ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਹਨ । ਮੈਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਘਰ ਵਿਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੇਰੇ ਹੋਰ ਭੈਣ-ਭਰਾ ਤੇ ਗੁਆਂਢੀ ਬੱਚੇ ਵੀ ਪੜ੍ਹਨ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਆਪ ਮੇਰੇ ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਪਤੇ ਉੱਤੇ ਇਹ ਰਸਾਲੇ ਇਕ ਸਾਲ ਲਈ ਭੇਜਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿਓ । ਮੈਂ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਇਨਾਂ ਦੇ ਚੰਦੇ ਦਾ ਬੈਂਕ ਡਰਾਫ਼ਟ ਨੰ: PQ 1628196 ਮਿਤੀ 12 ਸਤੰਬਰ, 20….. ਪੰਜਾਬ ਐਂਡ ਸਿੰਧ ਬੈਂਕ ਤੋਂ ਬਣਵਾ ਕੇ ਇਸ ਪੱਤਰ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਭੇਜ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ॥

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41. ਆਪਣੇ ਸਕੂਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਨੂੰ ਸਕੂਲ ਦੀ ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਵਿਚ ਬਾਲ-ਰਸਾਲੇ ਤੇ ਅਖ਼ਬਾਰਾਂ ਮੰਗਵਾਉਣ ਲਈ ਇਕ ਬੇਨਤੀ-ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਜੀ,
………….. ਸਕੂਲ,
…. ਸ਼ਹਿਰ ।

ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਦੀ ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਵਿਚ ਨਾ ਤਾਂ ਕੋਈ ਬਾਲ ਰਸਾਲਾ ਮੰਗਵਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਨਾ ਹੀ ਪੰਜਾਬੀ ਦੀ ਕੋਈ ਅਖ਼ਬਾਰ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਆਪ ਜੀ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਆਪ ਇਸ ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਵਿਚ ‘ਚੰਦਾ ਮਾਮਾ’, ‘ਪੰਖੜੀਆਂ` ਆਦਿ ਰਸਾਲੇ ਤੇ ‘ਅਜੀਤ ਅਖ਼ਬਾਰ ਜ਼ਰੂਰ ਮੰਗਵਾਓ । ਇਸ ਦਾ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਲਾਭ ਹੋਵੇਗਾ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਆਗਿਆਕਾਰੀ,
……….. ਸਿੰਘ,
ਮਨੀਟਰ
ਰੋਲ ਨੰ: 21,
ਅੱਠਵੀਂ ਜਮਾਤ !

ਮਿਤੀ : 21 ਨਵੰਬਰ, 20……

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

42. ਆਪਣੇ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਡਾਕਖ਼ਾਨੇ ਦੇ ਪੋਸਟ ਮਾਸਟਰ ਨੂੰ ਇਕ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖ ਕੇ ਆਪਣੇ ਬਦਲੇ ਹੋਏ ਪਤੇ ਦੀ ਸੂਚਨਾ ਦਿਓ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਪੋਸਟ ਮਾਸਟਰ ਸਾਹਿਬ,
ਰੇਲਵੇ ਰੋਡ,
ਜਲੰਧਰ ।

ਸ੍ਰੀ ਮਾਨ ਜੀ,

ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਕਿਰਾਏ ਦਾ ਮਕਾਨ ਛੱਡ ਕੇ ਆਪਣੇ ਮਕਾਨ ਵਿਚ ਚਲਾ ਗਿਆ । ਹਾਂ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੇਰਾ ਸਾਰਾ ਚਿੱਠੀ-ਪੱਤਰ ਮੈਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪਤੇ ਉੱਤੇ ਭੇਜਿਆ ਜਾਵੇ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
…………… ਸਿੰਘ,
ਜੀ. ਟੀ. ਰੋਡ,
ਜਲੰਧਰ ।

ਮਿਤੀ : 28 ਜਨਵਰੀ, 20……

ਨਵਾਂ ਪਤਾ
………. ਸਿੰਘ,
208, ਮਾਡਲ ਟਾਊਨ,
ਜਲੰਧਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

43. ਆਪਣੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਸਿਹਤ ਅਫ਼ਸਰ ਨੂੰ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖੋ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਲਿਖੋ ਕਿ ਤੁਹਾਡੇ ਇਲਾਕੇ ਵਿਚ ਮਲੇਰੀਆ/ਡੇਂਗੂ ਫੈਲਣ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਦਾ ਛੇਤੀ ਉਪਰਾਲਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਸਿਹਤ ਅਫ਼ਸਰ ਸਾਹਿਬ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ,
ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।

ਸ੍ਰੀ ਮਾਨ ਜੀ,

ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡੇ ਪਿੰਡ ਬੁੱਲੋਵਾਲ ਵਿਚ ਪਿਛਲੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਪਈ ਬਰਸਾਤ ਕਾਰਨ ਟੋਇਆਂ ਵਿਚ ਥਾਂ-ਥਾਂ ਪਾਣੀ ਖੜਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਥਾਂ-ਥਾਂ ਕੂੜੇ ਦੇ ਢੇਰ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਨਾਲੀਆਂ ਵਿਚੋਂ ਪਾਣੀ ਦਾ ਨਿਕਾਸ ਵੀ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਹੀਂ ਹੋ ਰਿਹਾ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਗੰਦੇ ਪਾਣੀ ਨਾਲ ਗਲੀਆਂ ਵੀ ਭਰੀਆਂ ਪਈਆਂ ਹਨ । ਫਲਸਰੂਪ ਮੱਛਰ ਬਹੁਤ ਵਧ ਗਿਆ ਹੈ । ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਮਲੇਰੀਏ/ਡੇਂਗੂ ਕਾਰਨ ਕਈ ਬੰਦੇ ਬਿਮਾਰ ਪੈ ਗਏ ਹਨ । ਇਸ ਛੂਤ ਰੋਗ ਦੇ ਹੋਰ ਫੈਲਣ ਦਾ ਖ਼ਤਰਾ ਵਧ ਗਿਆ ਹੈ ।

ਇਸ ਲਈ ਆਪਣੇ ਅਮਲੇ ਨੂੰ ਹਦਾਇਤ ਦੇ ਕੇ ਮੱਛਰ ਮਾਰਨ ਵਾਲੀ ਦੁਆਈ ਪਾਣੀ ਦੇ ਟੋਇਆਂ ਵਿਚ ਪੁਆਉ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉੱਡਦੇ ਮੱਛਰਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਲਈ ਦੁਆਈ ਦਾ ਛਿੜਕਾ ਕਰਵਾਓ, ਤਾਂ ਜੋ ਮਲੇਰੀਏ/ਡੇਂਗੂ ਨੂੰ ਵਧਣ ਤੋਂ ਰੋਕਿਆ ਜਾ ਸਕੇ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਅਗਾਊਂ ਦਵਾਈਆਂ ਵੀ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਸੁਦੇਸ਼ ਕੁਮਾਰ,
ਬੁੱਲੋਵਾਲ ।
30 ਸਤੰਬਰ, 20……..

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

44. ਆਪਣੇ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਡਾਕਖ਼ਾਨੇ ਦੇ ਪੋਸਟ ਮਾਸਟਰ ਨੂੰ ਇਕ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖ ਕੇ ਆਪਣੇ ਬਦਲੇ ਹੋਏ ਪਤੇ ਦੀ ਸੂਚਨਾ ਦਿਓ ।

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਪੋਸਟ ਮਾਸਟਰ ਸਾਹਿਬ,
ਪੁਰਾਣੀ ਰੇਲਵੇ ਰੋਡ,
ਜਲੰਧਰ ।

ਸ੍ਰੀ ਮਾਨ ਜੀ, ਸਨਿਮਰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਕਿਰਾਏ ਦਾ ਮਕਾਨ ਛੱਡ ਕੇ ਆਪਣੇ ਮਕਾਨ ਵਿਚ ਚਲਾ ਗਿਆ। ਹਾਂ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੇਰਾ ਸਾਰਾ ਚਿੱਠੀ-ਪੱਤਰ ਮੈਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪਤੇ ਉੱਤੇ ਭੇਜਿਆ ਜਾਵੇ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
………. ਸਿੰਘ ॥

ਮਿਤੀ 28 ਜਨਵਰੀ, 20……

ਨਵਾਂ ਪਤਾ
………. ਸਿੰਘ,
2208, ਮਾਡਲ ਟਾਊਨ,
ਜਲੰਧਰ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਲੇਖ-ਰਚਨਾ

45. ਤੁਹਾਡਾ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਗੁੰਮ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਲਿਖਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਬਾਣੇ ਦੇ ਐੱਸ. ਐੱਚ. ਓ. ਨੂੰ ਇਕ ਪੱਤਰ ਲਿਖੋ ।

1186 ਅਮਨ ਨਗਰ,
ਜਲੰਧਰ ।
18 ਸਤੰਬਰ, 20…….

ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ

ਐੱਸ.ਐੱਚ.ਓ. ਸਾਹਿਬ,
ਚੌਕੀ ਨੰ: 8,
ਜਲੰਧਰ ।

ਵਿਸ਼ਾ-ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਦੇ ਗੁਆਚ ਜਾਣ ਸੰਬੰਧੀ ॥ ਸ੍ਰੀਮਾਨ ਜੀ,

ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰਾ ਮੋਬਾਈਲ ਫੋਨ ਸੈਮਸੰਗ ਗਲੈਕਸੀ GXS1113i, ਜਿਸ ਵਿਚ ਏਅਰਟੈੱਲ ਕੰਪਨੀ ਦਾ ਸਿਮ ਕਾਰਡ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਦਾ ਨੰਬਰ 9141213861 ਹੈ, ਮੇਰੀ ਜੇਬ ਵਿਚੋਂ ਕਿਧਰੇ ਡਿਗ ਪੈਣ ਕਰ ਕੇ ਗੁਆਚ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਬੰਧੀ ਰਿਪੋਰਟ ਲਿਖ ਕੇ ਅਗਲੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਜੋ ਮੈਨੂੰ ਕੰਪਨੀ ਤੋਂ ਇਸ ਨੰਬਰ ਦਾ ਸਿਮ ਕਾਰਡ ਜਲਦੀ ਤੋਂ ਜਲਦੀ ਮਿਲ ਸਕੇ ।

ਧੰਨਵਾਦ ਸਹਿਤ ।

ਆਪ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ-ਪਾਤਰ,
ਉ. ਅ. ਬ.

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਕਹਾਣੀ-ਰਚਨਾ

Punjab State Board PSEB 8th Class Punjabi Book Solutions Punjabi Rachana ਕਹਾਣੀ-ਰਚਨਾ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 8th Class Punjabi Rachana ਕਹਾਣੀ-ਰਚਨਾ

1. ਕਾਂ ਅਤੇ ਲੂੰਬੜੀ
ਜਾਂ
ਚਲਾਕ ਲੂੰਬੜੀ

ਇਕ ਵਾਰੀ ਇਕ ਲੂੰਬੜੀ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਭੁੱਖ ਲੱਗੀ । ਉਹ ਕੋਈ ਖਾਣ ਵਾਲੀ ਚੀਜ਼ ਲੱਭਣ ਲਈ ਇਧਰ-ਉਧਰ ਘੁੰਮੀ, ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਕੁੱਝ ਨਾ ਮਿਲਿਆ । ਅੰਤ ਉਹ ਦਰੱਖ਼ਤਾਂ ਦੇ ਇਕ ਬੁੰਡ ਹੇਠ ਪਹੁੰਚੀ । ਉਹ ਬਹੁਤ ਥੱਕੀ ਹੋਈ ਸੀ ਤੇ ਉਹ ਦਰੱਖ਼ਤਾਂ ਦੀ ਸੰਘਣੀ ਛਾਂ ਹੇਠਾਂ ਲੰਮੀ . ਪੈ ਗਈ ।

ਇੰਨੇ ਨੂੰ ਲੰਬੜੀ ਨੇ ਉੱਪਰ ਵਲ ਧਿਆਨ ਮਾਰਿਆ । ਦਰੱਖ਼ਤ ਦੀ ਇਕ ਟਹਿਣੀ ਉੱਤੇ ਉਸ ਨੇ ਇਕ ਕਾਂ ਦੇਖਿਆ, ਜਿਸ ਦੀ ਚੁੰਝ ਵਿਚ ਪਨੀਰ ਦਾ ਇਕ ਟੁਕੜਾ ਸੀ । ਇਹ ਦੇਖ ਕੇ ਉਸ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਭਰ ਆਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਕਾਂ ਕੋਲੋਂ ਪਨੀਰ ਦਾ ਟੁਕੜਾ ਖੋਹਣ ਦਾ ਇਕ ਢੰਗ ਕੱਢ ਲਿਆ ।

ਉਸ ਨੇ ਬੜੀ ਚਾਲਾਕੀ ਤੇ ਪਿਆਰ ਭਰੀ ਅਵਾਜ਼ ਨਾਲ ਕਾਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ, “ਤੂੰ ਬਹੁਤ ਹੀ ਮਨਮੋਹਣਾ ਪੰਛੀ ਹੈਂ । ਤੇਰੀ ਅਵਾਜ਼ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੁਰੀਲੀ ਹੈ । ਮੇਰਾ ਜੀ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਤੇਰਾ ਇਕ ਮਿੱਠਾ ਗੀਤ ਸੁਣਾਂ । ਕਿਰਪਾ ਕਰ ਕੇ ਮੈਨੂੰ ਗਾ ਕੇ ਸੁਣਾ ।” ਕਾਂ ਲੂੰਬੜੀ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ਾਮਦ ਵਿਚ ਆ ਕੇ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਨਾਲ ਫੁੱਲ ਗਿਆ । ਜਿਉਂ ਹੀ ਉਸ ਨੇ ਗਾਉਣ ਲਈ ਮੂੰਹ ਖੋਲਿਆ, ਤਾਂ ਪਨੀਰ ਦਾ ਟੁਕੜਾ ਉਸ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿਚੋਂ ਹੇਠਾਂ ਡਿਗ ਪਿਆ । ਲੂੰਬੜੀ ਪਨੀਰ ਦੇ ਟੁਕੜੇ ਨੂੰ ਝੱਟ-ਪੱਟ ਖਾ ਕੇ ਆਪਣੇ ਰਾਹ ਤੁਰਦੀ ਬਣੀ ਤੇ ਕਾਂ ਉਸ ਵਲ ਦੇਖਦਾ ਹੀ ਰਹਿ ਗਿਆ ।

ਸਿੱਖਿਆ : ਖੁਸ਼ਾਮਦ ਤੋਂ ਬਚੋ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਕਹਾਣੀ-ਰਚਨਾ

2. ਤਿਹਾਇਆ ਕਾਂ

ਇਕ ਵਾਰੀ ਇਕ ਕਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਤੇਹ ਲੱਗੀ । ਉਹ ਪਾਣੀ ਦੀ ਭਾਲ ਵਿਚ ਇਧਰ-ਉਧਰ ਉੱਡਿਆ । ਅੰਤ ਉਹ ਇਕ ਬਗੀਚੇ ਵਿਚ ਪੁੱਜਾ । ਉਸ ਨੇ ਪਾਣੀ ਦਾ ਇਕ ਘੜਾ ਦੇਖਿਆ । ਉਹ ਘੜੇ ਦੇ ਮੂੰਹ ਉੱਤੇ ਜਾ ਬੈਠਾ । ਉਸ ਨੇ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਘੜੇ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਥੋੜ੍ਹਾ ਹੈ । ਉਸ ਦੀ ਚੁੰਝ ਪਾਣੀ ਤਕ ਨਹੀਂ ਸੀ ਪਹੁੰਚਦੀ । ਉਸ ਨੇ ਘੜੇ ਨੂੰ ਉਲਟਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ, ਪਰ ਉਹ ਅਸਫਲ ਰਿਹਾ ।

ਉਹ ਕਾਂ ਬਹੁਤ ਸਿਆਣਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਘੜੇ ਦੇ ਨੇੜੇ ਕੁੱਝ ਰੋੜੇ ਤੇ ਠੀਕਰੀਆਂ ਦੇਖੀਆਂ । ਉਸ ਨੂੰ ਇਕ ਢੰਗ ਸੁੱਝਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਠੀਕਰੀਆਂ ਤੇ ਰੋੜੇ ਚੁੱਕ ਕੇ ਘੜੇ ਵਿਚ ਪਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਘੜਾ ਰੋੜਿਆਂ ਅਤੇ ਠੀਕਰੀਆਂ ਨਾਲ ਭਰਨ ਲੱਗਾ ਤੇ ਉਸ ਵਿਚਲਾ ਪਾਣੀ ਉੱਪਰ ਆ ਗਿਆ । ਕਾਂ ਨੇ ਰੱਜ ਕੇ ਪਾਣੀ ਪੀਤਾ ਅਤੇ ਉੱਡ ਗਿਆ ।

ਸਿੱਖਿਆ : ਜਿੱਥੇ ਚਾਹ ਉੱਥੇ ਰਾਹ ।

3. ਦਰਜ਼ੀ ਅਤੇ ਹਾਥੀ

ਇਕ ਰਾਜੇ ਕੋਲ ਇਕ ਹਾਥੀ ਸੀ । ਹਾਥੀ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਨਦੀ ਵਿਚ ਨਹਾਉਣ ਲਈ ਜਾਂਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਦਰਿਆ ਦੇ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਇਕ ਬਜ਼ਾਰ ਆਉਂਦਾ ਸੀ । ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਇਕ ਦਰਜ਼ੀ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਸੀ । ਦਰਿਆ ਨੂੰ ਜਾਂਦਾ ਹੋਇਆ ਹਾਥੀ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਦਰਜ਼ੀ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਕੋਲ ਰੁਕ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਦਰਜ਼ੀ ਇਕ ਨਰਮ ਦਿਲ ਆਦਮੀ ਸੀ । ਉਹ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਹਾਥੀ ਨੂੰ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਚੀਜ਼ ਖਾਣ ਨੂੰ ਦਿੰਦਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਾਥੀ ਅਤੇ ਦਰਜ਼ੀ ਆਪਸ ਵਿਚ ਮਿੱਤਰ ਬਣ ਗਏ ।

ਇਕ ਦਿਨ ਦਰਜ਼ੀ ਘਰੋਂ ਆਪਣੀ ਪਤਨੀ ਨਾਲ ਲੜ ਕੇ ਆਇਆ ਸੀ । ਉਸ ਦਾ ਮਨ । ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਇਸੇ ਵੇਲੇ ਹਾਥੀ ਵੀ ਉੱਥੇ ਆ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੰਡ ਦੁਕਾਨ ਦੇ ਅੰਦਰ ਕੀਤੀ ਦਰਜ਼ੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਕੁੱਝ ਵੀ ਖਾਣ ਲਈ ਨਾ ਦਿੱਤਾ, ਸਗੋਂ ਉਸ ਦੀ ਸੁੰਡ ਵਿਚ ਸੂਈ ਚੋਭ ਦਿੱਤੀ ।

ਹਾਥੀ ਨੂੰ ਦਰਜ਼ੀ ਦੀ ਇਸ ਕਰਤੂਤ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਗੁੱਸਾ ਆਇਆ । ਉਹ ਦਰਿਆ ‘ਤੇ ਪੁੱਜਾ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੁੰਡ ਵਿਚ ਚਿੱਕੜ ਵਾਲਾ ਪਾਣੀ ਭਰ ਲਿਆ । ਵਾਪਸੀ ‘ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਸਾਰਾ ਚਿੱਕੜ ਲਿਆ ਕੇ ਦਰਜ਼ੀ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਵਿਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ। ਦਰਜ਼ੀ ਦੇ ਸਾਰੇ ਕੱਪੜੇ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਗਏ । ਉਹ ਡਰਦਾ ਦੁਕਾਨ ਛੱਡ ਕੇ ਦੌੜ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਾਥੀ ਨੇ ਆਪਣਾ ਬਦਲਾ ਲੈ ਲਿਆ ।

ਸਿੱਟਾ : ਜਿਹਾ ਕਰੋਗੇ ਤਿਹਾ ਭਰੋਗੇ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਕਹਾਣੀ-ਰਚਨਾ

4. ਲੇਲਾ ਤੇ ਬਘਿਆੜ

ਇਕ ਵਾਰੀ ਇਕ ਬਿਘਆੜ ਇਕ ਨਦੀ ਦੇ ਕੰਢੇ ਉੱਤੇ ਪਾਣੀ ਪੀ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਨਿਵਾਣ ਵਲ ਉਸਨੇ ਇਕ ਲੇਲੇ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਪੀਂਦਿਆਂ ਦੇਖਿਆ । ਉਸਦਾ ਦਿਲ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਲੇਲੇ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ ਖਾ ਲਵੇ । ਉਹ ਮਨ ਵਿਚ ਉਸਨੂੰ ਖਾਣ ਦੇ ਬਹਾਨੇ ਸੋਚਣ ਲੱਗਾ । ਉਸਨੇ ਲੇਲੇ ਨੂੰ ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਉਸਦੇ ਪੀਣ ਵਾਲੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਗੰਧਲਾ ਕਿਉਂ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਲੇਲੇ ਨੇ ਡਰ ਕੇ ਨਿਮਰਤਾ ਨਾਲ ਕਿਹਾ, “ਮਹਾਰਾਜ, ਪਾਣੀ ਤਾਂ ਤੁਹਾਡੇ ਵਲੋਂ ਮੇਰੀ ਵੱਲ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੈਂ ਤੁਹਾਡੇ ਪੀਣ ਵਾਲੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਗੰਧਲਾ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹਾਂ ?”

ਬਘਿਆੜ ਨਿੱਠ ਜਿਹਾ ਹੋ ਗਿਆ ਪਰ ਉਹ ਲੇਲੇ ਨੂੰ ਹੱਥੋਂ ਨਹੀਂ ਸੀ ਜਾਣ ਦੇਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ । ਉਸਨੇ ਉਸਨੂੰ ਕਿਹਾ, “ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਗਾਲਾਂ ਕਿਉਂ ਕੱਢੀਆਂ ਸਨ ?” ਲੇਲੇ ਨੇ ਫਿਰ ਨਿਮਰਤਾ ਨਾਲ ਕਿਹਾ, ‘‘ਮਹਾਰਾਜ, ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਤਾਂ ਮੈਂ ਜੰਮਿਆਂ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ” ਹੁਣ ਬਘਿਆੜ ਕੋਲ ਕੋਈ ਚਾਰਾ ਨਾ ਰਿਹਾ ਤੇ ਗੁੱਸੇ ਨਾਲ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ, “ਜੇਕਰ ਉਦੋਂ ਤੂੰ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਤਾਂ ਤੇਰਾ ਪਿਓ-ਦਾਦਾ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਤੂੰ ਕਸੂਰਵਾਰ ਹੈਂ।” ਇਹ ਕਹਿ ਕੇ ਉਸਨੇ ਝਪਟਾ ਮਾਰਿਆ ਤੇ ਉਸਨੂੰ ਪਾੜ ਕੇ ਖਾ ਗਿਆ ।

ਸਿੱਖਿਆ : ਡਾਢੇ ਦਾ ਸੱਤੀਂ ਵੀਹੀਂ ਸੌ ।
ਜਾਂ
ਜ਼ੁਲਮ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਬਹਾਨਾ ਲੱਭ ਹੀ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ।

5. ਏਕਤਾ ਵਿਚ ਬਲ ਹੈ
ਜਾਂ
ਕਿਸਾਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ

ਇਕ ਵਾਰੀ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਕਿਸੇ ਥਾਂ ਇਕ ਬੁੱਢਾ ਕਿਸਾਨ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਚਾਰ ਪੁੱਤਰ ਸਨ । ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਆਪਸ ਵਿਚ ਲੜਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਕਿਸਾਨ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਵਾਰੀ ਸਮਝਾਇਆ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਪਿਆਰ ਅਤੇ ਏਕਤਾ ਨਾਲ ਰਿਹਾ ਕਰਨ, ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਉੱਪਰ ਪਿਤਾ ਦੀਆਂ ਨਸੀਹਤਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਅਸਰ ਨਹੀਂ ਸੀ ਹੁੰਦਾ ।

ਇਕ ਵਾਰੀ ਉਹ ਬੁੱਢਾ ਕਿਸਾਨ ਬਿਮਾਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਲੜਾਈ-ਝਗੜੇ ਦਾ ਬਹੁਤ ਫ਼ਿਕਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੀ ਸਮਝ ਨਾਲ ਇਕ ਢੰਗ ਕੱਢਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਪਤਲੀਆਂ-ਪਤਲੀਆਂ ਲੱਕੜਾਂ ਦਾ ਇਕ ਬੰਡਲ ਮੰਗਾਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਬੰਡਲ ਵਿਚੋਂ ਇਕ-ਇਕ ਸੋਟੀ ਕੱਢ ਕੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਚੌਹਾਂ ਪੁੱਤਰਾਂ ਨੇ ਇਕ-ਇਕ ਲੱਕੜੀ ਬੜੀ ਸੌਖ ਨਾਲ ਤੋੜ ਦਿੱਤੀ । ਫਿਰ ਕਿਸਾਨ ਨੇ ਸਾਰਾ ਬੰਡਲ ਘੁੱਟ ਕੇ ਬੰਨਿਆ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਦੇ ਕੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਕੱਲਾ-ਇਕੱਲਾ ਇਸ ਸਾਰੇ ਬੰਡਲ ਨੂੰ ਤੋੜੇ । ਕੋਈ ਵੀ ਪੁੱਤਰ ਉਸ ਬੰਨੇ ਹੋਏ ਬੰਡਲ ਨੂੰ ਨਾ ਤੋੜ ਸਕਿਆ । ਕਿਸਾਨ ਨੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਉਹ ਇਹਨਾਂ ਪਤਲੀਆਂ-ਪਤਲੀਆਂ ਲੱਕੜੀਆਂ ਤੋਂ ਸਿੱਖਿਆ ਲੈਣ । ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈ-ਝਗੜਾ ਕਰ ਕੇ ਇਕੱਲੇ-ਇਕੱਲੇ ਰਹਿਣ ਦੀ ਥਾਂ ਮਿਲ ਕੇ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਤਾਕਤ ਬਹੁਤ ਹੋਵੇਗੀ । ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਨੇ ਪਿਤਾ ਨੂੰ ਰਲ-ਮਿਲ ਕੇ ਰਹਿਣ ਦਾ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ ।

ਸਿੱਖਿਆ : ਏਕਤਾ ਵਿਚ ਬਲ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਕਹਾਣੀ-ਰਚਨਾ

6. ਈਮਾਨਦਾਰੀ ਸਭ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਨੀਤੀ ਹੈ
ਜਾਂ
ਈਮਾਨਦਾਰੀ ਦਾ ਫਲ ਮਿੱਠਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ

ਇਕ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਇਕ ਗ਼ਰੀਬ ਲੱਕੜਹਾਰਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਬਹੁਤ ਈਮਾਨਦਾਰ ਸੀ । ਉਹ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਜੰਗਲ ਵਿਚ ਲੱਕੜਾਂ ਕੱਟਣ ਲਈ ਜਾਂਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਕ ਦਿਨ ਉਹ ਜੰਗਲ ਵਿਚ ਨਦੀ ਦੇ ਕੰਢੇ ਉੱਤੇ ਪੁੱਜਾ ਅਤੇ ਇਕ ਦਰੱਖ਼ਤ ਨੂੰ ਕੱਟਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਅਜੇ ਉਸ ਨੇ ਦਰੱਖ਼ਤ ਦੇ ਮੁੱਢ ਵਿਚ ਪੰਜ-ਸੱਤ ਕੁਹਾੜੇ ਹੀ ਮਾਰੇ ਸਨ ਕਿ ਉਸ ਦਾ ਕੁਹਾੜਾ ਹੱਥੋਂ ਛੁੱਟ ਕੇ · ਨਦੀ ਵਿਚ ਡਿਗ ਪਿਆ ।

ਨਦੀ ਦਾ ਪਾਣੀ ਬਹੁਤ ਡੂੰਘਾ ਸੀ । ਲੱਕੜਹਾਰੇ ਨੂੰ ਤਰਨਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਆਉਂਦਾ । ਉਹ ਬਹੁਤ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਹੋਇਆ, ਪਰ ਕਰ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਸੀ ਸਕਦਾ । ਉਹ ਬੈਠ ਕੇ ਰੋਣ ਲਗ ਪਿਆ । ਇੰਨੇ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦਾ ਦੇਵਤਾ ਉਸਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਪ੍ਰਗਟ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਲੱਕੜਹਾਰੇ ਨੂੰ ਰੋਣ ਦਾ ਕਾਰਨ ਪੁੱਛਿਆ । ਵਿਚਾਰੇ ਲੱਕੜਹਾਰੇ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸਾਰੀ ਦੁੱਖ ਭਰੀ ਕਹਾਣੀ ਸੁਣਾਈ । ਦੇਵਤੇ ਨੇ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਚੁੱਭੀ ਮਾਰੀ ਅਤੇ ਇਕ ਸੋਨੇ ਦਾ ਕੁਹਾੜਾ ਕੱਢ ਲਿਆਂਦਾ । ਲੱਕੜਹਾਰੇ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਹ ਉਸ ਦਾ ਕੁਹਾੜਾ ਨਹੀਂ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਇਹ ਨਹੀਂ ਲਵੇਗਾ । ਦੇਵਤੇ ਨੇ ਫਿਰ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਚੁੱਭੀ ਮਾਰੀ ਤੇ ਇਕ ਚਾਂਦੀ ਦਾ ਕੁਹਾੜਾ ਕੱਢ ਲਿਆਂਦਾ । ਲੱਕੜਹਾਰੇ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਹ ਵੀ ਉਸ ਦਾ ਕੁਹਾੜਾ ਨਹੀਂ, ਉਸ ਦਾ ਕੁਹਾੜਾ ਲੋਹੇ ਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਚਾਂਦੀ ਦਾ ਕੁਹਾੜਾ ਨਹੀਂ ਲਵੇਗਾ । ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਦੇਵਤੇ ਨੇ ਤੀਜੀ ਵਾਰੀ । ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਚੁੱਭੀ ਮਾਰੀ ਅਤੇ ਲੋਹੇ ਦਾ ਕੁਹਾੜਾ ਕੱਢ ਲਿਆਂਦਾ । ਲੱਕੜਹਾਰਾ ਆਪਣਾ ਕੁਹਾੜਾ ਦੇਖ ਕੇ ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋਇਆ ਤੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ, “ਇਹ ਹੀ ਮੇਰਾ ਕੁਹਾੜਾ ਹੈ । ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਦੇ ਦੇਵੋ ।” ਲੱਕੜਹਾਰੇ ਦੀ ਈਮਾਨਦਾਰੀ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਪਾਣੀ ਦਾ ਦੇਵਤਾ ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਲੱਕੜਹਾਰੇ ਨੂੰ ਬਾਕੀ ਦੋਨੋਂ ਕੁਹਾੜੇ ਵੀ ਇਨਾਮ ਵਜੋਂ ਦੇ ਦਿੱਤੇ ।

7. ਸੋਨੇ ਦੇ ਆਂਡੇ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਮੁਰਗੀ
ਜਾਂ
ਲਾਲਚ ਬੁਰੀ ਬਲਾ ਹੈ

ਇਕ ਆਦਮੀ ਕੋਲ ਇਕ ਬੜੀ ਅਦਭੁਤ ਮੁਰਗੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਉਹ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸੋਨੇ ਦਾ ਇਕ ਆਂਡਾ ਦਿੰਦੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਉਹ ਆਦਮੀ ਉਹਨਾਂ ਆਂਡਿਆਂ ਨੂੰ ਵੇਚ-ਵੇਚ ਕੇ ਥੋੜੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਹੀ ਬਹੁਤ ਅਮੀਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਪਰੰਤੂ ਉਹ ਬਹੁਤ ਲਾਲਚੀ ਆਦਮੀ ਸੀ । ਉਹ ਮੁਰਗੀ ਦੇ ਇਕ ਆਂਡੇ ਨਾਲ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਹ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ਕਿ ਝਟਪਟ ਕਾਰਾਂ, ਕੋਠੀਆਂ ਤੇ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਬਣ ਜਾਵੇ । ਉਹ ਰਾਤ-ਦਿਨ ਧਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਬਾਰੇ ਤਰੀਕੇ ਸੋਚਦਾ ਰਹਿੰਦਾ । ਪਰੰਤੁ ਮੁਰਖ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਉਹ ਧਨ ਕਮਾਉਣ ਦੇ ਢੰਗ ਤਰੀਕੇ ਨਹੀਂ ਸੀ ਸੋਚ ਸਕਦਾ ।

ਇਕ ਦਿਨ ਉਸ ਨੇ ਸੋਚਿਆ ਕਿ ਕਿਉਂ ਨਾ ਉਹ ਮੁਰਗੀ ਦਾ ਢਿੱਡ ਚੀਰ ਕੇ ਉਸ ਵਿਚੋਂ ਸੋਨੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਆਂਡੇ ਇੱਕੋ ਵਾਰੀ ਹੀ ਕੱਢ ਲਵੇ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਉਹ ਇੱਕੋ ਦਿਨ ਵਿਚ ਹੀ ਬੇਹੱਦ ਅਮੀਰ ਬਣ ਜਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਆਰਾਮ ਤੇ ਮਾਣ ਦਾ ਜੀਵਨ ਜੀਵੇਗਾ । ਉਸ ਨੇ ਇਕ ਤੇਜ਼ ਛੁਰੀ ਚੁੱਕੀ ਅਤੇ ਮੁਰਗੀ ਦੇ ਮਗਰ ਦੌੜ ਪਿਆ । ਛੇਤੀ ਹੀ ਮੁਰਗੀ ਉਸ ਦੇ ਹੱਥ ਆ ਗਈ । ਉਸ ਨੇ ਇਕ-ਦਮ ਛੁਰੀ ਮਾਰ ਕੇ ਉਸ ਦਾ ਢਿੱਡ ਪਾੜ ਦਿੱਤਾ । ਪਰੰਤੂ ਉਸ ਨੂੰ ਢਿੱਡ ਵਿਚੋਂ ਸਿਵਾਏ ਖ਼ੂਨ ਦੇ ਹੋਰ ਕੁੱਝ ਵੀ ਨਾ ਮਿਲਿਆ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਹੀ ਮੁਰਗੀ ਮਰ ਗਈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹ ਮੁਰਖ ਲਾਲਚ ਵਿਚ ਫਸ ਕੇ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਸੋਨੇ ਦੇ ਆਂਡੇ ਤੋਂ ਹੱਥ ਧੋ ਬੈਠਾ ।

ਸਿੱਖਿਆ : ਲਾਲਚ ਬੁਰੀ ਬਲਾ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਕਹਾਣੀ-ਰਚਨਾ

8. ਚੂਹੇ ਅਤੇ ਬਿੱਲੀ
ਜਾਂ
ਕਹਿਣਾ ਸੌਖਾ ਹੈ ਪਰ ਕਰਨਾ ਔਖਾ

ਇਕ ਘਰ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਚੂਹੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਘਰ ਦੇ ਮਾਲਕ ਨੇ ਬਿੱਲੀ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਸੀ, ਜੋ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਚੂਹੇ ਮਾਰ ਕੇ ਖਾ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਚੁਹੇ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਤੰਗ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਈ-ਕਈ ਦਿਨ ਭੁੱਖਣ-ਭਾਣੇ ਖੁੱਡਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹੀ ਰਹਿਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ । ਇਕ ਦਿਨ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇਸ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਹੱਲ ਲੱਭਣ ਲਈ ਆਪਣੀ ਮੀਟਿੰਗ ਕੀਤੀ । ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਮੀਟਿੰਗ ਵਿਚ ਬਿੱਲੀ ਤੋਂ ਬਚਣ ਲਈ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਿਚਾਰ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ ਗਏ, ਪਰ ਉਹ ਕੋਈ ਫ਼ੈਸਲਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ ।

ਅੰਤ ਵਿਚ ਨੌਜਵਾਨ ਚੂਹੇ ਨੇ ਇਕ ਨਵਾਂ ਢੰਗ ਕੱਢਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਬਿੱਲੀ ਦੇ ਗਲ ਵਿਚ ਟੱਲੀ ਬੰਨ੍ਹ ਦੇਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਬਿੱਲੀ ਸਾਡੇ ਵਲ ਆਇਆ ਕਰੇਗੀ, ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਟੱਲੀ ਦੇ ਖੜਕਣ ਨਾਲ ਉਸ ਦੇ ਆਉਣ ਦਾ ਪਤਾ ਲੱਗ ਜਾਇਆ ਕਰੇਗਾ । ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਇਸ ਤਰੀਕੇ ਦੀ ਪ੍ਰਸੰਸਾ ਕੀਤੀ । ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਹੀ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਬੁੱਢਾ ਚੁਹਾ ਬੋਲਿਆ, “ਪਰ ਬਿੱਲੀ ਦੇ ਗਲ ਟੱਲੀ ਕੌਣ ਬੰਨੇਗਾ ?”

ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਸਾਰੇ ਚੂਹੇ ਚੁੱਪ ਹੋ ਗਏ । ਉਹ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਲ ਵੇਖਣ ਲੱਗ ਪਏ । ਕੋਈ ਵੀ ਬਿੱਲੀ ਦੇ ਗਲ ਵਿਚ ਟੱਲੀ ਬੰਨ੍ਹਣ ਲਈ ਅੱਗੇ ਨਾ ਆਇਆ ।

ਸਿੱਖਿਆ : ‘ਕਹਿਣਾ ਸੌਖਾ ਹੈ, ਪਰ ਕਰਨਾ ਔਖਾ ।’

9. ਬਾਂਦਰ ਤੇ ਮਗਰਮੱਛ

ਇਕ ਦਰਿਆ ਦੇ ਕੰਢੇ ਉੱਤੇ ਜਾਮਣ ਦਾ ਇਕ ਭਾਰਾ ਦਰੱਖ਼ਤ ਸੀ । ਉਸਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਕਾਲੀਆਂ ਸ਼ਾਹ ਜਾਮਣਾਂ ਲੱਗੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ । ਉਸ ਦਰੱਖ਼ਤ ਉੱਤੇ ਇਕ ਬਾਂਦਰ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ, ਜੋ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਰੱਜ-ਰੱਜ ਨੇ ਜਾਮਣਾਂ ਖਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਕ ਦਿਨ ਇਕ ਮਗਰਮੱਛ ਦਰਿਆ ਹੇਠ ਤੁਰਦਾ-ਤੁਰਦਾ ਜਾਮਣ ਦੇ ਰੁੱਖ ਹੇਠ ਆ ਗਿਆ ਤੇ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲ ਕੇ ਧੁੱਪ ਸੇਕਣ ਲੱਗਾ। ਇੰਨੇ ਨੂੰ ਉਸਦੀ ਨਜ਼ਰ ਬਾਂਦਰ ਉੱਤੇ ਪਈ, ਜੋ ਕਿ ਜਾਮਣ ਦੇ ਦਰੱਖ਼ਤ ਉੱਤੇ ਜਾਮਣਾਂ ਖਾਂਦਾ ਤੇ ਟਪੂਸੀਆਂ ਮਾਰਦਾ ਸੀ । ਮਗਰਮੱਛ ਵੀ ਲਲਚਾਈਆਂ ਅੱਖਾਂ ਨਾਲ ਉਸ ਵਲ ਵੇਖਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਬਾਂਦਰ ਨੇ ਉਸ ਵਲ ਕੁੱਝ ਜਾਮਣਾਂ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੀਆਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਖਾ ਕੇ ਉਹ ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ . ਹੋਇਆ । ਉਸਨੇ ਕੁੱਝ ਜਾਮਣਾਂ ਆਪਣੀ ਘਰ ਵਾਲੀ ਲਈ ਵੀ ਰੱਖ ਲਈਆਂ !

ਬਾਂਦਰ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਉਹ ਜਾਮਣਾਂ ਲੈ ਕੇ ਘਰ ਵਲ ਚਲ ਪਿਆ । ਘਰ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਉਸਨੇ ਮਗਰਮੱਛਣੀ ਨੂੰ ਜਾਮਣਾਂ ਖੁਆਈਆਂ ਤੇ ਉਹ ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋਈ । ਹੁਣ ਮਗਰਮੱਛ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਜਾਮਣ ਦੇ ਰੁੱਖ ਹੇਠ ਆ ਜਾਂਦਾ ਤੇ ਬਾਂਦਰ ਉਸਦੇ ਖਾਣ ਲਈ ਜਾਮਣਾਂ ਸੁੱਟਦਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਦੀ ਖੂਬ ਦੋਸਤੀ ਪੈ ਗਈ ।

ਮਗਰਮੱਛ ਕੁੱਝ ਜਾਮਣਾਂ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਲਿਜਾ ਕੇ ਆਪਣੀ ਘਰਵਾਲੀ ਨੂੰ ਦਿੰਦਾ ਸੀ ਤੇ ਉਹ ਖਾ ਕੇ ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੁੰਦੀ ਸੀ। ਉਸਨੂੰ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਇਆ ਕਿ ਜਿਹੜਾ ਬਾਂਦਰ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਇੰਨੀਆਂ ਸੁਆਦੀ ਜਾਮਣਾਂ ਖਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਸਦਾ ਕਲੇਜਾ ਵੀ ਜ਼ਰੂਰ ਬਹੁਤ ਸੁਆਦ ਹੋਵੇਗਾ । ਉਹ ਮਗਰਮੱਛ ਦੇ ਖਹਿੜੇ ਪਈ ਰਹਿੰਦੀ ਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਦੋਸਤ ਨੂੰ ਘਰ ਲਿਆਵੇ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਉਸਦਾ ਕਲੇਜਾ ਖਾਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਮਗਰਮੱਛ ਆਪਣੇ ਦੋਸਤ ਨਾਲ ਧੋਖਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਰਨਾ ‘ਚਾਹੁੰਦਾ ਪਰ ਘਰ ਵਾਲੀ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜ਼ਿਦੇ ਪਈ ਹੋਈ ਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਦੋਸਤ ਨੂੰ ਘਰ ਲੈ ਕੇ ਆਵੇ ।

ਹਾਰ ਕੇ ਮਗਰਮੱਛ ਨੇ ਬਾਂਦਰ ਨੂੰ ਘਰ ਲਿਆਉਣ ਦਾ ਇਰਾਦਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਉਹ ਜਾਮਣ ਹੇਠ ਪੁੱਜਾ ਤੇ ਬਾਂਦਰ ਦੀਆਂ ਸੁੱਟੀਆਂ ਜਾਮਣਾਂ ਖਾਣ ਮਗਰੋਂ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ, “ਦੋਸਤਾ, ਤੂੰ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਮੈਨੂੰ ਮਿੱਠੀਆਂ ਜਾਮਣਾਂ ਖੁਆਉਂਦਾ ਹੈਂ ਤੇ ਮੇਰੀ ਘਰ ਵਾਲੀ ਵੀ ਖਾਂਦੀ ਹੈ ।ਉਹ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਸਾਡੇ ਘਰ ਚਲੇਂ, ਤਾਂ ਜੋ ਤੇਰਾ ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਅਦਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇ ।”

ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਬਾਂਦਰ ਝੱਟ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਮਗਰਮੱਛ ਨੇ ਉਸਨੂੰ ਆਪਣੀ ਪਿੱਠ ਤੇ ਬਿਠਾ ਲਿਆ ਤੇ ਦਰਿਆ ਵਿਚ ਤਰਦਾ ਹੋਇਆ ਆਪਣੇ ਘਰ ਵਲ ਚਲ ਪਿਆ । ਅੱਧ ਕੁ ਵਿਚ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਮਗਰਮੱਛ ਨੇ ਬਾਂਦਰ ਨੂੰ ਅਸਲ ਗੱਲ ਦੱਸੀ ਤੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ ਕਿ ਉਸਦੀ ਘਰ ਵਾਲੀ ਉਸਦਾ ਕਲੇਜਾ ਖਾਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਉਸਨੂੰ ਆਪਣੇ ਘਰ ਲਿਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਬਾਂਦਰ ਬੜਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰ ਸੀ । ਉਹ ਮਗਰਮੱਛ ਦੀ ਗੱਲ ਸੁਣ ਕੇ ਹੱਸਿਆ ਤੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ, “ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਦੱਸਿਆ । ਮੈਨੂੰ ਤੇਰੀ ਗੱਲ ਸੁਣ ਕੇ ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਹੋਈ ਹੈ ਪਰ ਮੈਂ ਆਪਣਾ ਕਲੇਜਾ ਤਾਂ ਜਾਮਣ ਦੇ ਦਰੱਖ਼ਤ ਉੱਤੇ ਹੀ ਛੱਡ ਆਇਆ ਹਾਂ । ਕਲੇਜਾ ਲੈਣ ਲਈ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਵਾਪਸ ਜਾਣਾ ਪਵੇਗਾ ।” ਜੇਕਰ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਕਲੇਜਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ਤਾਂ ਭਾਬੀ ਖਾਵੇਗੀ ਕੀ ।”

ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਮਗਰਮੱਛ ਮੁੜ ਉਸਨੂੰ ਜਾਮਣ ਦੇ ਦਰੱਖ਼ਤ ਕੋਲ ਲੈ ਆਇਆ । ਬਾਂਦਰ ਟਪੂਸੀ ਮਾਰ ਕੇ ਜਾਮਣ ਉੱਤੇ ਜਾ ਚੜਿਆ ਤੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ, “ਤੂੰ ਚੰਗਾ ਦੋਸਤ ਹੈਂ! ਜੋ ਮੇਰੀ ਜਾਨ ਲੈਣੀ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈਂ । ਤੇਰੇ ਵਰਗੇ ਦੋਸਤ ਤੋਂ ਤਾਂ ਰੱਬ ਬਚਾਵੇ !” ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਮਗਰਮੱਛ ਸ਼ਰਮਿੰਦਾ ਜਿਹਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਘਰ ਵਾਲੀ ਦੀ ਗੱਲ ਮੰਨ ਕੇ ਪਛਤਾ ਰਿਹਾ ਸੀ !

ਸਿੱਖਿਆ : ਸੁਆਰਥੀ ਮਿੱਤਰਾਂ ਤੋਂ ਬਚੋ !

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਕਹਾਣੀ-ਰਚਨਾ

10. ਦੋ ਆਲਸੀ ਮਿੱਤਰ

ਇਕ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਦੋ ਨੌਜਵਾਨ ਮਿੱਤਰ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਦੋਵੇਂ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੁਸਤ ਤੇ ਆਲਸੀ ਸਨ । ਉਹ ਕੋਈ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਸਨ ਕਰਦੇ । ਇਕ ਦਿਨ ਉਹ ਕਿਸੇ ਕਾਰਨ ਸ਼ਹਿਰ ਨੂੰ ਤੁਰ ਪਏ। ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਧੁੱਪ ਬਹੁਤ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਇਕ ਸੰਘਣੀ ਛਾਂ ਵਾਲੀ ਬੇਰੀ ਹੇਠ ਲੰਮੇ ਪੈ ਗਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਲੰਮੇ ਪਿਆ ਦੇਖਿਆ ਕੇ ਕਿ ਬੇਰੀ ਉੱਤੇ ਲਾਲ-ਲਾਲ ਬੇਰ ਲੱਗੇ ਹੋਏ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਭਰ ਆਇਆ ।

ਲੰਮਾ ਪਿਆ-ਪਿਆ ਇਕ ਮਿੱਤਰ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਤੇ ਦੂਜਾ ਪਹਿਲੇ ਨੂੰ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ ਕਿ ਉਹ ਬੇਰੀ ਉੱਤੇ ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਬੇਰ ਲਾਹਵੇ । ਆਲਸੀ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਦੋਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕੋਈ ਵੀ ਨਾ ਉੱਠਿਆ ਤੇ ਉਹ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਏ ਰਹੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਆਪਣੇ-ਆਪਣੇ ਮੂੰਹ ਅੱਡੇ ਤੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗੇ, ‘ਲਾਲ-ਲਾਲ ਬੇਰੋ, ਸਾਨੂੰ ਬੋਰੀ ਉੱਤੇ ਚੜ੍ਹਨਾ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ, ਤੁਸੀਂ ਆਪ ਹੀ ਸਾਡੇ ਮੂੰਹਾਂ ਵਿਚ ਡਿਗ ਪਵੋ ” ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਮੁੰਹ ਅੱਡ ਕੇ ਪਏ ਰਹੇ ।

ਸ਼ਾਮ ਤਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿਚ ਬੇਰ ਤਾਂ ਕੋਈ ਨਾ ਡਿਗਿਆ, ਪਰ ਪੰਛੀਆਂ ਦੀਆਂ ਵਿੱਠਾਂ ਜ਼ਰੂਰ ਡਿਗਦੀਆਂ ਰਹੀਆਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੁੰਹ ਬਹੁਤ ਗੰਦੇ ਹੋ ਗਏ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੂੰਹਾਂ ਉੱਤੇ ਮੱਖੀਆਂ ਬੈਠਣ ਲੱਗੀਆਂ ਪਰੰਤੂ ਉਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਉਡਾਉਣ ਦੀ ਹਿੰਮਤ ਨਹੀਂ ਸਨ ਕਰ ਰਹੇ ।

ਇੰਨੇ ਨੂੰ ਇਕ ਘੋੜ-ਸਵਾਰ ਉੱਧਰੋਂ ਲੰਘਿਆ । ਉਹ ਘੋੜੇ ਤੋਂ ਉੱਤਰਿਆ ਤੇ ਉਸਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਉਹ ਮੂੰਹ ਅੱਡ ਕੇ ਕਿਉਂ ਪਏ ਹਨ ? ਇਕ ਮਿੱਤਰ ਨੇ ਉੱਤਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਨਾਲ ਦਾ ਉਸਦਾ ਮਿੱਤਰ ਬਹੁਤ ਸੁਸਤ ਹੈ । ਉਹ ਉਸ ਲਈ ਬੇਰੀ ਤੋਂ ਬੇਰ ਲਾਹ ਕੇ ਨਹੀਂ ਲਿਆਉਂਦਾ । ਦੂਜਾ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ ਕਿ ਉਸਦੇ ਨਾਲ ਦਾ ਦੋਸਤ ਉਸ ਤੋਂ ਵੀ ਵਧੇਰੇ ਸੁਸਤ ਹੈ । ਉਹ ਉਸਦੇ ਮੁੰਹ ਤੋਂ ਮੱਖੀਆਂ ਨਹੀਂ ਉਡਾਉਂਦਾ ।

ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਘੋੜ-ਸਵਾਰ ਨੂੰ ਸਾਰੀ ਗੱਲ ਸਮਝ ਆ ਗਈ । ਉਹ ਸਮਝ ਗਿਆ ਕਿ ਦੋਵੇਂ ਮਿੱਤਰ ਆਲਸੀ ਤੇ ਸੁਸਤ ਹਨ ।ਉਸਨੇ ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਖੂਬ ਕੁਟਾਪਾ ਚਾੜਿਆ ਤੇ ਬੇਰੀ ਉੱਤੇ ਚੜ੍ਹਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਕੁੱਟ ਤੋਂ ਡਰਦੇ ਦੋਵੇਂ ਬੇਰੀ ਉੱਤੇ ਚੜ੍ਹ ਗਏ ਤੇ ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ ਨਾਲ ਬੇਰ ਤੋੜਕੇ ਖਾਣ ਲੱਗੇ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਢਿੱਡ ਭਰ ਕੇ ਮਿੱਠੇ ਬੇਰ ਖਾਧੇ ਤੇ ਜਦੋਂ ਉਹ ਹੇਠਾਂ ਉੱਤਰੇ, ਤਾਂ ਘੋੜ ਸਵਾਰ ਜਾ ਚੁੱਕਾ ਸੀ ।

ਸਿੱਖਿਆ : ਆਲਸ ਜਾਂ ਸੁਸਤੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਬਿਮਾਰੀ ਹੈ ।

11. ਸਿਆਣਾ ਕਾਂ

ਇਕ ਰਾਜੇ ਦਾ ਬਹੁਤ ਸੋਹਣਾ ਬਾਗ਼ ਸੀ, ਜਿਸਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਇਕ ਵੱਡਾ ਤਲਾਬ ਸੀ ਰਾਜੇ ਦਾ ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਬਾਗ਼ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਸੀ ਤੇ ਕੁੱਝ ਸਮਾਂ ਸੈਰ-ਸਪਾਟਾ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਉਹ ਕੱਪੜੇ ਲਾਹ ਕੇ ਸਰੋਵਰ ਵਿਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

ਉਸ ਤਲਾਬ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਦੂਰ ਇਕ ਪੁਰਾਣਾ ਬੋਹੜ ਦਾ ਦਰੱਖ਼ਤ ਸੀ । ਉਸ ਉੱਤੇ ਇਕ ਕਾਂ ਅਤੇ ਕਾਉਣੀ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਬੋਹੜ ਦੀ ਇਕ, ਖੋੜ੍ਹ ਵਿਚ ਇਕ ਵੱਡਾ ਸੱਪ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਵੀ ਕਾਉਣੀ ਆਂਡੇ ਦਿੰਦੀ, ਤਾਂ ਸੱਪ ਅੱਖ ਬਚਾ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੀ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਕਾਂ ਅਤੇ ਕਾਉਣੀ ਇਸ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਦੁਖੀ ਸਨ, ਪਰੰਤੂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਪਾਉਣ ਦਾ ਕੋਈ ਰਾਹ ਨਹੀਂ ਸੀ ਲੱਭਦਾ !

ਇਕ ਦਿਨ ਕਾਂ ਨੇ ਇਕ ਤਰੀਕਾ ਸੋਚਿਆ । ਜਦੋਂ ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਬਾਗ਼ ਦੀ ਸੈਰ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਤਲਾਬ ਵਿਚ ਨੁਹਾਉਣ ਲਈ ਆਇਆ, ਤਾਂ ਉਸਨੇ ਆਪਣੇ ਕੱਪੜੇ ਲਾਹ ਕੇ ਤਲਾਬ ਦੇ ਕੰਢੇ ਉੱਤੇ ਰੱਖੇ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਆਪਣੇ ਗਲੋਂ ਲਾਹ ਕੇ ਸੋਨੇ ਦਾ ਹਾਰ ਵੀ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ।

ਜਦੋਂ ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਨਹਾ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਤਾਂ ਕਾਂ ਨੇ ਹਾਰ ਆਪਣੀ ਚੁੰਝ ਵਿਚ ਚੁੱਕ ਲਿਆ ਤੇ ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ ਉੱਡਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਨੇ ਉਸਨੂੰ ਹਾਰ ਚੁੱਕਦਿਆਂ ਦੇਖ ਲਿਆ ਤੇ ਆਪਣੇ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੂੰ ਉਸਦੇ ਮਗਰ ਲਾ ਦਿੱਤਾ । ਕਾਂ ਨੇ ਬੋਹੜ ਦੇ ਦਰੱਖ਼ਤ ਕੋਲ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਹਾਰ ਸੱਪ ਦੀ ਖੋੜ੍ਹ ਵਿਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ । ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਡਾਂਗ ਨਾਲ ਖੋੜ੍ਹ ਵਿਚੋਂ ਹਾਰ ਕੱਢਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਪਰੰਤੁ ਆਪਣੇ ਲਈ ਖ਼ਤਰਾ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਦੇਖ ਕੇ ਸੱਪ ਬਾਹਰ ਆ ਗਿਆ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਸੱਪ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਤੇ ਹਾਰ ਖੋੜ੍ਹ ਵਿਚੋਂ ਕੱਢ ਲਿਆ । ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਹਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਕੇ ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ ਹੋਇਆ । ਕਾਂ ਤੇ ਕਾਉਣੀ ਇਹ ਸਭ ਕੁੱਝ ਦੇਖ ਰਹੇ ਸਨ । ਉਹ ਸੱਪ ਨੂੰ ਮਰਿਆ ਦੇਖ ਕੇ ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋਏ । ਹੁਣ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਂਡਿਆਂ ਨੂੰ ਕੋਈ ਖ਼ਤਰਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕਾਂ ਨੇ ਸਿਆਣਪ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਨੂੰ ਮਾਰ ਮੁਕਾ ਲਿਆ ਤੇ ਦੋਵੇਂ ਸੁਖੀ-ਸੁਖੀ ਰਹਿਣ ਲੱਗੇ ।

ਸਿੱਖਿਆ : ਮੁਸੀਬਤ ਸਮੇਂ ਸਿਆਣਪ ਹੀ ਕੰਮ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ।
ਜਾਂ
ਸਾਨੂੰ ਮੁਸੀਬਤ ਵਿਚ ਘਬਰਾਉਣਾ ਨਹੀਂ ਚਾਹੀਦਾ, ਸਗੋਂ ਸਿਆਣਪ ਤੋਂ ਕੰਮ ਲੈਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

PSEB 8th Class Punjabi ਰਚਨਾ ਕਹਾਣੀ-ਰਚਨਾ

12. ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਤੇ ਕੱਛੂਕੁੰਮਾ
ਜਾਂ
ਸਹਿਜ ਪੱਕੇ ਸੋ ਮੀਠਾ ਹੋਏ

ਇਕ ਜੰਗਲ ਵਿਚ ਇਕ ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਦੇ ਘਰ ਦੇ ਨੇੜੇ ਹੀ ਇਕ ਛੱਪੜ ਵਿਚ ਇਕ ਕੱਛੂਕੁੰਮਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਤੇਜ਼ ਚਾਲ ਉੱਤੇ ਬੜਾ ਮਾਣ ਸੀ । ਉਹ ਕੱਛੂਕੁੰਮੇ ਦੀ ਹੌਲੀ ਚਾਲ ਦਾ ਬੜਾ ਮਖੌਲ ਉਡਾਉਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਕੱਛੂਕੰਮੇ ਨੂੰ ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਦਾ ਇਹ ਮਖੌਲ ਬਹੁਤ ਬੁਰਾ ਲਗਦਾ ਸੀ । ਇਕ ਦਿਨ ਉਸ ਨੇ ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਦੌੜ ਵਿਚ ਉਸ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰ ਕੇ ਵੇਖੇ । ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਨੇ ਇਹ ਗੱਲ ਝਟਪਟ ਮੰਨ ਲਈ ।

ਦੋਵੇਂ ਦੌੜ ਲਾਉਣ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ ਗਏ । ਦੋਹਾਂ ਨੇ ਜਿੱਥੇ ਪਹੁੰਚਣਾ ਸੀ, ਉਹ ਥਾਂ ਮਿੱਥ ਲਈ ਗਈ । ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ ਦੌੜਿਆ । ਉਹ ਕੱਛੂਕੁੰਮੇ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਪਿੱਛੇ ਛੱਡ ਗਿਆ । ਕਾਫ਼ੀ ਅੱਗੇ ਜਾ ਕੇ ਉਸਨੇ ਆਰਾਮ ਕਰਨਾ ਚਾਹਿਆ । ਉਸ ਦਾ ਖ਼ਿਆਲ ਸੀ ਕਿ ਸੁਸਤ ਚਾਲ ਵਾਲਾ ਕੱਛੁਕੁੰਮਾ ਉਸ ਨਾਲੋਂ ਕਦੇ ਵੀ ਅੱਗੇ ਨਹੀਂ ਲੰਘ ਸਕਦਾ । ਉਹ ਇਕ ਦਰੱਖ਼ਤ ਦੀ ਸੰਘਣੀ ਛਾਂ ਹੇਠ ਲੇਟ ਗਿਆ ਅਤੇ ਘੂਕ ਨੀਂਦੇ ਸੌਂ ਗਿਆ ।

ਕੱਛੁਕੁੰਮੇ ਨੇ ਆਪਣੀ ਦੌੜ ਜਾਰੀ ਰੱਖੀ । ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਉਸ ਨੇ ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਨੂੰ ਸੁੱਤਾ ਪਿਆ ਦੇਖਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਆਰਾਮ ਨਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਅੱਗੇ ਚਲਦਾ ਗਿਆ ।

ਤਿਕਾਲਾਂ ਪੈਣ ‘ਤੇ ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਸੁੱਤਾ ਉੱਠਿਆ । ਉਹ ਤੇਜ਼ ਦੌੜਿਆ ਅਤੇ ਝਟ-ਪਟ ਨਿਸ਼ਾਨੇ ਉੱਤੇ ਪੁੱਜ ਗਿਆ, ਪਰ ਕੱਛੂਕੁੰਮਾ ਉਸ ਤੋਂ ਵੀ ਪਹਿਲਾਂ ਉੱਥੇ ਪੁੱਜ ਚੁੱਕਾ ਸੀ । ਕੱਛੂਕੁੰਮਾ ਦੌੜ ਜਿੱਤ ਗਿਆ ਅਤੇ ਖ਼ਰਗੋਸ਼ ਬਹੁਤ ਸ਼ਰਮਿੰਦਾ ਹੋਇਆ ।

ਸਿੱਖਿਆ : ਸਹਿਜ ਪੱਕੇ ਸੋ ਮੀਠਾ ਹੋਏ ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ

Punjab State Board PSEB 8th Class Punjabi Book Solutions Punjabi Grammar Vishram Chin ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 8th Class Punjabi Grammar ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ

‘ਵਿਸਰਾਮ’ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ “ਠਹਿਰਾਓ’ । ‘ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ’ ਉਹ ਚਿੰਨ੍ਹ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਹੜੇ ਲਿਖਤ ਵਿਚ ਠਹਿਰਾਓ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਜ ਲਿਖਤ ਵਿਚ ਸਪੱਸ਼ਟਤਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਚਿੰਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ
1. ਡੰਡੀ-(।) :
ਇਹ ਚਿੰਨ੍ਹ ਵਾਕ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਪੂਰਨ ਠਹਿਰਾਓ ਨੂੰ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-
(ੳ) ਇਹ ਮੇਰੀ ਪੁਸਤਕ ਹੈ ।
(ਅ) ਮੈਂ ਸਕੂਲ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ ।

2. ਪ੍ਰਸ਼ਨਿਕ ਚਿੰਨ-(?) :
ਇਹ ਚਿੰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਪੁਰਨ ਵਾਕਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਕੋਈ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਪੁੱਛਿਆ ਗਿਆ ਹੋਵੇ ; ਜਿਵੇਂ-
(ਉ) ਤੂੰ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਪੁੱਜਾ ?
(ਅ) ਕੀ ਤੂੰ ਘਰ ਵਿਚ ਹੀ ਰਹੇਂਗਾ ?

3. ਵਿਸਮਿਕ ਚਿੰਨ੍ਹ-(!) :
ਇਸ ਚਿੰਨ੍ਹ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨ ਲਈ, ਖ਼ੁਸ਼ੀ, ਗ਼ਮੀ ਤੇ ਹੈਰਾਨੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਾਕ-ਅੰਸ਼ਾਂ ਤੇ ਵਾਕਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-
ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨ ਸਮੇਂ-ਓਇ ਕਾਕਾ ! ਇਧਰ ਆ !
ਹੈਰਾਨੀ, ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਤੇ ਗ਼ਮੀ ਭਰੇ ਵਾਕ-ਅੰਸ਼ਾਂ ਤੇ ਵਾਕਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ; ਜਿਵੇਂ-
(ਉ) ਸ਼ਾਬਾਸ਼ ! ਕਾਸ਼ !
(ਅ) ਵਾਹ ! ਕਮਾਲ ਹੋ ਗਿਆ !
(ੲ) ਹੈਂ! ਤੂੰ ਫ਼ੇਲ੍ਹ ਹੋ ਗਿਐਂ!
(ਸ) ਹਾਏ !

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ

4. ਕਾਮਾ-(,) :
(ੳ) ਜਦ ਕਿਸੇ ਵਾਕ ਦਾ ਕਰਤਾ ਲੰਮਾ ਹੋਵੇ ਤੇ ਉਹ ਇਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਵਾਕ ਬਣ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਉਸ ਦੇ ਅਖ਼ੀਰ ਵਿਚ ਕਾਮਾ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-
ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਰੇੜੀ ਵਾਲਿਆਂ ਦਾ ਰੌਲਾ-ਰੱਪਾ, ਸਭ ਦਾ ਸਿਰ ਖਾ ਰਿਹਾ ਸੀ ।

(ਅ) ਜਦੋਂ ਮਿਸ਼ਰਤ ਵਾਕ ਵਿਚ ਪ੍ਰਧਾਨ ਉਪਵਾਕ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਣ ਉਪਵਾਕ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੁਵੱਲੀ ਕਾਮੇ ਲਾਏ ਹਨ , ਜਿਵੇਂ-
ਉਹ ਲੜਕੀ, ਜਿਹੜੀ ਕੱਲ੍ਹ ਬਿਮਾਰ ਹੋ ਗਈ ਸੀ, ਅੱਜ ਸਕੂਲ ਨਹੀਂ ਆਈ ।

(ੲ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ਅਨੁਕਰਮੀ ਸ਼ਬਦ ਵਰਤੇ ਗਏ ਹੋਣ, ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਤੇ ਮਗਰੋਂ ਕਾਮੇ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-
ਖਾਣਾ ਖਾ ਕੇ, ਹੱਥ ਧੋ ਕੇ, ਕੁੱਝ ਚਿਰ ਅਰਾਮ ਕਰ ਕੇ, ਸਾਰੇ ਪ੍ਰਾਹੁਣੇ ਚਲੇ ਗਏ ।

(ਸ) ਜਦੋਂ ਵਾਕ ਵਿਚ “ਕੀ’, ‘ਕਿਉਂਕਿ’, ‘ਤਾਂ ਜੋ, ਆਦਿ ਯੋਜਕ ਨਾ ਹੋਣ, ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਕਾਮਾ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-
ਸਭ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣਦੇ ਹਨ, ਹਰ ਥਾਂ ਸੱਚਾਈ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

(ਹ) ਜਦੋਂ ਮਿਸ਼ਰਤ ਵਾਕ ਵਿਚ ਪ੍ਰਧਾਨ ਉਪਵਾਕ ਨੂੰ ਕਿਰਿਆ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਣ ਉਪਵਾਕ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਕਾਮੇ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-
ਜੇ ਕਿਰਨ ਮਿਹਨਤ ਕਰਦੀ, ਤਾਂ ਪਾਸ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ।

(ਕ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਵੱਡੇ ਵਾਕ ਦੇ ਉਪਵਾਕ ‘ਤਾਹੀਓਂ, “ਇਸ ਲਈ, “ਸ’ ਅਤੇ ‘ਫਿਰ ਵੀ, ਆਦਿ ਯੋਜਕਾਂ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋਣ, ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਿਖੇੜਨ ਲਈ ਕਾਮੇ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-
ਹਰਜਿੰਦਰ ਧੋਖੇਬਾਜ਼ ਹੈ, ਤਾਹੀਓਂ ਤਾਂ ਮੈਂ ਉਸ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦਾ ।

(ਖ) ਕਈ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾ ਮੈਂ ਇਹ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ ਸੀ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਸਿਰੇ ਚੜ੍ਹਾਉਣ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ਸੀ, ਪਰੰਤੂ ਮੈਨੂੰ ਲੋੜੀਂਦੀ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਸੀ ਹੋਈ ।

(ਗ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ਇਕੋ-ਜਿਹੇ ਵਾਕ-ਅੰਸ਼ ਜਾਂ ਉਪਵਾਕ ਹੋਣ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਕੋਈ ਯੋਜਕ ਨਾ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਹਰ ਵਾਕੰਸ਼ ਜਾਂ ਉਪਵਾਕ ਦੇ ਮਗਰੋਂ ਕਾਮਾ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-
ਰਾਮ ਦਾ ਘਰ 20 ਫੁੱਟ ਲੰਮਾ, 12 ਫੁੱਟ ਚੌੜਾ ਤੇ 150 ਫੁੱਟ ਉੱਚਾ ਹੈ ।

(ਘ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੇ ਜੋੜੇ ਵਰਤੇ ਜਾਣ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਕੋਈ ਯੋਜਕ ਨਾ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਹਰ ਜੋੜੇ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਕਾਮਾ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-
ਭਾਰਤੀ ਸੰਵਿਧਾਨ ਵਿਚ ਉਚ-ਨੀਚ, ਜਾਤ-ਪਾਤ ਅਤੇ ਅਮੀਰ-ਗ਼ਰੀਬ ਦਾ ਭੇਦ-ਭਾਵ ਨਹੀਂ ।

(ਙ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਨਾਉਂ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਣ ਹੋਣ, ਤਾਂ ਅਖ਼ੀਰਲੇ ਦੋਹਾਂ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਕਾਮੇ ਦੀ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਜਾਂ ‘ਅਤੇ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-
‘ਸੁਦੇਸ਼ ਕੁਮਾਰ ਬਲੈਕੀਆ, ਬੇਈਮਾਨ, ਜੂਏਬਾਜ਼, ਸ਼ਰਾਬੀ, ਦੜੇਬਾਜ਼ ਅਤੇ ਮਿੱਤਰਮਾਰ ਹੈ ।

(ਚ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਉਪਵਾਕ ਨੂੰ ਪੁੱਠੇ ਕਾਮਿਆਂ ਵਿਚ ਲਿਖਣਾ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਪੁੱਠੇ ਕਾਮੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਾਮਾ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-
ਸੁਰਜੀਤ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਮੈਂ ਫ਼ਸਟ ਡਿਵੀਜ਼ਨ ਵਿਚ ਪਾਸ ਹੋ ਕੇ ਦਿਖਾਵਾਂਗਾ ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ

5. ਬਿੰਦੀ ਕਾਮਾ (;) :
ਬਿੰਦੀ ਕਾਮਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਲੱਗਦਾ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਵਾਕ ਵਿਚ ਕਾਮੇ ਨਾਲੋਂ ਵਧੇਰੇ ਠਹਿਰਾਓ ਹੋਵੇ, ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ-
(ਉ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਗੱਲ ਨੂੰ ਸਮਝਾਉਣ ਲਈ ਉਦਾਹਰਨ ਦੇਣੀ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਸ਼ਬਦ “ਜਿਵੇਂ ਜਾਂ ‘ਜਿਹਾ ਕਿ ਆਦਿ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਚਿੰਨ੍ਹ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-ਵਿਅਕਤੀਆਂ, ਸਥਾਨਾਂ, ਪਸ਼ੂਆਂ ਜਾਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇ ਨਾਂਵਾਂ ਨੂੰ ਨਾਉਂ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-
ਕੁਲਜੀਤ, ਮੇਜ਼, ਕੁੱਕੜ ਅਤੇ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ।

(ਅ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ਅਜਿਹੇ ਉਪਵਾਕ ਹੋਣ, ਜਿਹੜੇ ਹੋਣ ਵੀ ਰੇ, ਪਰ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵੀ ਹੋਣ, ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵੱਖਰੇ-ਵੱਖਰੇ ਕਰਨ ਲਈ ਇਹ ਚਿੰਨ੍ਹ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-
ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਕਾਮਯਾਬੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰੋ ; ਮਿਹਨਤ ਕਰਨ ਨਾਲ ਅਦੁੱਤੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ; ਖ਼ੁਸ਼ੀ ਸਫਲਤਾ ਦੀ ਨਿਸ਼ਾਨੀ ਹੈ ।

6. ਦੁਬਿੰਦੀ (:) :
(ਉ) ਜਿਸ ਸਮੇਂ ਕਿਸੇ ਸ਼ਬਦ ਦੇ ਅੱਖਰ ਪੂਰੇ ਨਾ ਲਿਖਣੇ ਹੋਣ, ਤਾਂ ਦੁਬਿੰਦੀ ਵਰਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-ਸ: (ਸਿਰਦਾਰ), ਪ੍ਰੋ: (ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ) ।

(ਅ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ਦੋ ਹਿੱਸੇ ਹੋਣ, ਪਹਿਲਾ ਹਿੱਸਾ ਜਾਂ ਪਹਿਲਾ ਵਾਕ ਆਪਣੇ ਆਪ ਵਿਚ ਪੂਰਾ ਦਿਖਾਈ ਦੇਵੇ ਤੇ ਦੂਜਾ ਵਾਕ ਪਹਿਲੇ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰਦਾ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਬਿੰਦੀ ਲਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-‘ਪੰਡਿਤ ਨਹਿਰੂ ਇਕ ਸਫਲ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਤੇ ਕਾਂਗਰਸੀ ਆਗੂ ਸਨ ; ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਆਗੂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਟਿਕ ਨਹੀਂ ਸਨ ਸਕਦੇ ।

7. ਡੈਸ਼ (_) :
(ਉ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ਕੋਈ ਵਾਧੂ ਗੱਲ ਆਖਣੀ ਹੋਵੇ ; ਜਿਵੇਂ-ਮੇਰੇ ਖ਼ਿਆਲ ਅਨੁਸਾਰ ਥੋੜ੍ਹਾ ਗਹੁ ਨਾਲ ਸੁਣਨਾ-ਤੇਰੀ ਲਾਪਰਵਾਹੀ ਹੀ ਤੇਰੀ ਅਸਫਲਤਾ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹੈ ।

(ਅ) ਨਾਟਕੀ ਵਾਰਤਾਲਾਪ ਸਮੇਂ-
ਪਰਮਿੰਦਰ-ਨੀਂ ਤੂੰ ਬਹੁਤ ਮਜ਼ਾਕ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਈ ਏਂ ।
ਕਿਰਨ-ਆਹੋ, ਤੂੰ ਕਿਹੜੀ ਘੱਟ ਏਂ ।

(ਈ) ਥਥਲਾਉਣ ਜਾਂ ਅਧੂਰੀ ਗੱਲ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ।
ਮੈਂ-ਮ-ਮੈਂ-ਅੱਜ, ਸ-ਸਕੂਲ ਨਹੀਂ ਗਿਆ ।

8. ਦੁਬਿੰਦੀ ਡੈਬ (:-)
(ੳ) ਦੁਕਾਨ ਤੇ ਜਾਓ ‘ਤੇ ਇਹ ਚੀਜ਼ਾਂ ਲੈ ਆਓ :- ਸ਼ੱਕਰ, ਆਟਾ, ਲੂਣ, ਹਲਦੀ ਤੇ ਗੁੜ ।
(ਅ) ਚੀਜ਼ਾਂ, ਥਾਂਵਾਂ ਤੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂਵਾਂ ਨੂੰ ਨਾਂਵ ਆਖਦੇ ਹਨ ; ਜਿਵੇਂ :- ਮੋਹਨ, ਘਰ, ਜਲੰਧਰ ਤੇ ਕੁਰਸੀ ।
(ਈ) ਇਸ ਚਿੰਨ੍ਹ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ, ਉਦਾਹਰਨ ਜਾਂ ਟੂਕ ਦੇਣ ਸਮੇਂ ਵੀ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ:-
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਫ਼ਾਰਸੀ ਸ਼ਬਦਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਰੂਪਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-ਕਾਗਦ, ਕਾਦੀਆਂ, ਰਜ਼ਾ, ਹੁਕਮ, ਸ਼ਾਇਰ, ਕਲਮ ਆਦਿ ।

9. ਪੁੱਠੇ ਕਾਮੇ (” “) :
ਪੁੱਠੇ ਕਾਮੇ ਦੋ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ : ਇਕਹਿਰੇ ਤੇ ਦੋਹਰੇ ।
(ਉ) ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਦੀ ਕਹੀ ਹੋਈ ਗੱਲ ਨੂੰ ਜਿਉਂ ਦਾ ਤਿਉਂ ਲਿਖਿਆ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਉਹ ਦੋਹਰੇ ਪੱਠੇ ਕਾਮਿਆਂ ਵਿਚ ਲਿਖੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-ਹਰਜੀਤ ਨੇ ਗੁਰਦੀਪ ਨੂੰ ਕਿਹਾ, “ਮੈਂ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਤੁਹਾਡੀ ਮੱਦਦ ਕਰਾਂਗਾ ।”

(ਅ) ਕਿਸੇਂ ਉਪਨਾਮ, ਸ਼ਬਦ, ਜਾਂ ਰਚਨਾ ਵਲ ਖ਼ਾਸ ਧਿਆਨ ਦੁਆਉਣ ਲਈ ਇਕਹਿਰੇ ਪੁੱਠੇ ਕਾਮੇ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ , ਜਿਵੇਂ-
ਇਹ ਸਤਰਾਂ ‘ਪੰਜਾਬੀ ਕਵਿਤਾ ਦੀ ਵੰਨਗੀ’ ਪੁਸਤਕ ਵਿਚ ਦਰਜ ਧਨੀ ਰਾਮ ‘ਚਾਤ੍ਰਿਕ` ਦੀ ਲਿਖੀ ਹੋਈ ਕਵਿਤਾ ‘ਸੁਰਗੀ ਜੀਊੜੇ’ ਵਿਚੋਂ ਲਈਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ ।

10. ਬੈਕਟ (),[] :
(ੳ) ਨਾਟਕਾਂ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਪਾਤਰ ਦਾ ਹੁਲੀਆ ਜਾਂ ਉਸ ਦੇ ਦਿਲ ਦੇ ਭਾਵ ਸਮਝਾਉਣ ਲਈ , ਜਿਵੇਂ-
ਸੀ-(ਦੁਹੱਥੜ ਮਾਰ ਕੇ) ਹਾਏ ! ਮੈਂ ਲੁੱਟੀ ਗਈ ।
(ਅ) ਵਾਕ ਵਿਚ ਆਏ ਕਿਸੇ ਸ਼ਬਦ ਦੇ ਅਰਥ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਲਈ ; ਜਿਵੇਂ-
ਇਹ ਏ. ਆਈ. ਆਰ. (ਆਲ ਇੰਡੀਆ ਰੇਡੀਓ) ਦੀ ਬਿਲਡਿੰਗ ਹੈ ।

11. ਜੋੜਨੀ (-) :
ਜਦੋਂ ਕੋਈ ਵਾਕ ਲਿਖਦੇ ਸਮੇਂ ਸਤਰ ਦੇ ਅਖ਼ੀਰ ਵਿਚ ਸ਼ਬਦ ਪੂਰਾ ਨਾ ਆਉਂਦਾ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਤੋੜ ਕੇ ਦੂਜੀ ਸਤਰ ਵਿਚ ਲਿਆਉਣ ਲਈ ਜੋੜਨੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ-
(ਉ) ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਲੋਂ ਪੁੱਜੀ ਸਹਾ-
ਇਤਾ ਬੜੇ ਕੰਮ ਆਈ ।

(ਅ) ਸਮਾਸ ਬਣਾਉਂਦੇ ਸਮੇਂ ; ਜਿਵੇਂ-
ਲੋਕ-ਸਭਾ, ਰਾਜ-ਸਭਾ, ਜੰਗ-ਬੰਦੀ ਆਦਿ ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ

12. ਬਿੰਦੀ (.) :
(ਉ) ਅੰਕਾਂ ਨਾਲ ; ਜਿਵੇਂ-1. 2. 3. 4
(ਅ) ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨੂੰ ਸੰਖੇਪ ਰੂਪ ਵਿਚ ਲਿਖਣ ਲਈ ; ਜਿਵੇਂ-ਐੱਮ. ਏ., ਐੱਮ. ਐੱਲ. ਏ., ਐੱਸ. ਪੀ. ।

13. ਛੁਟ ਮਰੋੜੀ (‘) :
ਇਹ ਚਿੰਨ੍ਹ ਕਿਸੇ ਸ਼ਬਦ ਦੇ ਛੱਡੇ ਹੋਏ ਅੱਖਰ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ| ’ਚੋਂ = ਵਿਚੋਂ ।’ਤੇ = ਉੱਤੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਸ਼ਾਬਦਿਕ ਰੂਪ ਵਿਚ ਲਿਖੇ ਗਏ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਬਰੈਕਟ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਿਖੋ
(ਉ) ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਚਿੰਨ੍ਹ ()
(ਅ) ਪੁੱਠੇ ਕਾਮੇ ()
(ਈ) ਡੈਸ਼ ()
(ਸ) ਵਿਸਮਿਕ ()
(ਹ) ਜੋੜਨੀ ()
(ਕ) ਛੁੱਟ ਮਰੋੜੀ ()
(ਖ) ਬਿੰਦੀ ਕਾਮਾ ()।
ਉੱਤਰ :
(ੳ) ਪ੍ਰਸ਼ਨਿਕ ਚਿੰਨ੍ਹ (?)
(ਅ) ਪੁੱਠੇ ਕਾਮੇ (” “)
(ਇ) ਡੈਸ਼ (_)
(ਸ) ਵਿਸਮਿਕ (!))
(ਹ) ਜੋੜਨੀ (-)
(ਕ) ਛੁੱਟ ਮਰੋੜੀ (‘)
(ਖ) ਬਿੰਦੀ ਕਾਮਾ (;) ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਗਾਓ
(ਉ) ਨੀਰੂ ਨੇ ਨੀਲੂ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ ਕੀ ਸਾਨੂੰ ਕੰਪਿਊਟਰ ਸਿੱਖਣ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ :
(ਅ) ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਸਦਾ ਸੱਚ ਬੋਲੋ ਕਦੀ ਝੂਠ ਨਾ ਬੋਲੋ
(ਇ) ਮੇਰੇ ਜੁਮੈਟਰੀ ਬਾਕਸ ਵਿਚ ਦੋ ਪੈੱਨ ਇੱਕ ਪੈਂਨਸਿਲ ਇੱਕ ਰਬੜ ਅਤੇ ਇੱਕ ਫੁੱਟਾ ਹੈ
(ਸ) ਸ਼ਾਬਾਸ਼ੇ ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਉਮੀਦ ਮੁਤਾਬਿਕ ਨੰਬਰ ਲਏ ਹਨ ਨੇਹਾ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ , ਕਿਹਾ
(ਹ) ਅਜੋਕੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਵਹਿਮਾਂ ਭਰਮਾਂ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਪੈਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਜਿਵੇਂ-ਬਿੱਲੀ ਦਾ ਰੋਣਾ ਕਾਲੀ ਬਿੱਲੀ ਦਾ ਰਸਤਾ ਕੱਟਣਾ ਛਿੱਕ ਮਾਰਨਾ ਅਤੇ ਪਿੱਛੋਂ ਆਵਾਜ਼ ਦੇਣਾ ਆਦਿ ।
ਉੱਤਰ :
(ੳ) ਨੀਰੂ ਨੇ ਨੀਲੂ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ, “ਕੀ ਸਾਨੂੰ ਕੰਪਿਊਟਰ ਸਿੱਖਣ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ?”
(ਅ) ਅਧਿਆਪਕ ਨੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ, ‘ਸਦਾ ਸੱਚ ਬੋਲੋ ; ਕਦੀ ਝੁਠ ਨਾ ਬੋਲੋ।”
(ਇ) ਮੇਰੇ ਜੁਮੈਟਰੀ ਬਾਕਸ ਵਿਚ ਦੋ ਪੈੱਨ, ਇੱਕ ਪੈਂਨਸਿਲ, ਇੱਕ ਰਬੜ ਅਤੇ ਇੱਕ ਫੁੱਟਾ ਹੈ ।
(ਸ) “ਸ਼ਾਬਾਸ਼ੇ ! ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਉਮੀਦ ਮੁਤਾਬਿਕ ਨੰਬਰ ਲਏ ਹਨ ।” ਨੇਹਾ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ।
(ਹ) ਅਜੋਕੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਵਹਿਮਾਂ-ਭਰਮਾਂ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਪੈਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ; ਜਿਵੇਂਬਿੱਲੀ ਦਾ ਰੋਣਾ, ਕਾਲੀ ਬਿੱਲੀ ਦਾ ਰਸਤਾ ਕੱਟਣਾ, ਛਿੱਕ ਮਾਰਨਾ ਅਤੇ ਪਿੱਛੋਂ ਆਵਾਜ਼ ਦੇਣਾ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਵਿਸਰਾਮ ਚਿੰਨ੍ਹ ਲਾ ਕੇ ਲਿਖੋ
ਸਮਝ ਗਿਆ ਸਮਝ ਗਿਆ ਡਾਕਟਰ ਨੇ ਕਿਹਾ ਤੁਹਾਡੇ ਅੰਦਰ ਵਿਟਾਮਿਨ ਬੀ ਦੀ ਕਮੀ ਹੈ ਤੁਸੀਂ ਬੀ ਕੰਪਲੈਕਸ ਦੀਆਂ ਗੋਲੀਆਂ ਖਾਓ
ਉੱਤਰ :
‘”ਸਮਝ ਗਿਆ, ਸਮਝ ਗਿਆ ।'” ਡਾਕਟਰ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਤੁਹਾਡੇ ਅੰਦਰ ਵਿਟਾਮਿਨ ਬੀ ਦੀ ਕਮੀ ਹੈ । ਤੁਸੀਂ ਬੀ ਕੰਪਲੈਕਸ ਦੀਆਂ ਗੋਲੀਆਂ ਖਾਓ ।”

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਪੜਨਾਂਵ

Punjab State Board PSEB 8th Class Punjabi Book Solutions Punjabi Grammar Padnav ਪੜਨਾਂਵ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 8th Class Punjabi Grammar ਪੜਨਾਂਵ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪੜਨਾਂਵ ਕਿਸ ਨੂੰ ਆਖਦੇ ਹਨ ? ਇਸ ਦੇ ਕਿੰਨੇ ਭੇਦ ਹਨ ? ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦੇ ਕੇ ਸਮਝਾਓ ।
ਜਾਂ
ਪੜਨਾਂਵ ਕਿਸ ਨੂੰ ਆਖਦੇ ਹਨ ? ਇਸਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਕਿਹੜੀਆਂ-ਕਿਹੜੀਆਂ ਹਨ ? ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦੇ ਕੇ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ :
ਵਾਕ ਵਿਚ ਜਿਹੜਾ ਸ਼ਬਦ ਕਿਸੇ ਨਾਂਵ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਵਰਤਿਆ ਜਾਵੇ, ਉਹ ਪੜਨਾਂਵ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-ਮੈਂ, ਅਸੀਂ, ਸਾਡਾ, ਤੂੰ, ਤੁਸੀਂ, ਤੁਹਾਡਾ, ਇਹ, ਉਹ, ਆਪ ਆਦਿ ।

ਪੜਨਾਂਵ ਛੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ-
1. ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ :
ਜਿਹੇ ਪੜਨਾਂਵ ਕੇਵਲ ਕਿਸੇ ਪੁਰਖ ਦੀ ਥਾਂ ਹੀ ਵਰਤੇ ਜਾਣ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ “ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ” ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-
ਮੈਂ, ਅਸੀਂ, ਤੂੰ, ਤੁਸੀਂ, ਉਹ ਆਦਿ ।
ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ
(ੳ) ਉੱਤਮ (ਪਹਿਲਾ) ਪੁਰਖ : ਵਾਕ ਵਿਚ ਗੱਲ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਉੱਤਮ ਪੁਰਖ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-ਮੈਂ, ਮੈਥੋਂ, ਮੇਰਾ, ਮੈਨੂੰ, ਅਸੀਂ, ਸਾਨੂੰ, ਸਾਡਾ, ਸਾਡੇ, ਸਾਡੀ, ਸਾਡੀਆਂ, ਸਾਥੋਂ ਆਦਿ ।

(ਅ) ਮੱਧਮ (ਦੂਜਾ) ਪੁਰਖ : ਵਾਕ ਵਿਚ ਜਿਸ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਉਹ “ਮੱਧਮ ਪੁਰਖ’ ਹੁੰਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-ਤੂੰ, ਤੁਸੀਂ, ਤੁਹਾਡਾ, ਤੁਹਾਡੇ, ਤੁਹਾਡੀ, ਤੁਹਾਡੀਆਂ, ਤੈਨੂੰ ਤੁਹਾਨੂੰ, ਤੇਰਾ, ਤੇਰੇ, ਤੁਹਾਥੋਂ ਆਦਿ ।
ਅਨਯ (ਤੀਜਾ) ਪੁਰਖ-ਵਾਕ ਵਿਚ ਜਿਸ ਬਾਰੇ ਗੱਲ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਉਸ ਨੂੰ ‘ਅਨਯ ਪੁਰਖ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-ਉਹ, ਇਹ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਆਦਿ ।

2. ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ :
ਜਿਹੜਾ ਪੜਨਾਂਵ ਕਰਤਾ ਦੀ ਥਾਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਵੇ, ਜਾਂ ਕਰਤਾ ਦੇ ਨਾਲ ਆ ਕੇ ਉਸ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਦੱਸੇ, ਉਸ ਨੂੰ “ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ” ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੀ ਕਿਸਮਤ ‘ਆਪ’ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ । (ਅ) ਮੈਂ ‘ਆਪ’ ਉੱਥੇ ਗਿਆ ।

ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਪਹਿਲੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ‘ਆਪ’ ਪੜਨਾਂਵ ਕਰਤਾ ‘ਮਨੁੱਖ’ ਦੀ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਵਰਤਿਆ ਗਿਆ ਹੈ, ਪਰ ਦੂਜੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ‘ਆਪ’ ਪੜਨਾਂਵ ‘ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਹ ‘ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹੈ ।

ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ‘ਆਪ’ ਸ਼ਬਦ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ | ਅਸੀਂ ਆਦਰ ਵਜੋਂ ‘ਤੂੰ ਦੀ ਥਾਂ ‘ਤੁਸੀਂ ਜਾਂ ‘ਆਪ’ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਾਂ, ਤਾਂ ‘ਆਪ’ ਸ਼ਬਦ ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ‘ਆਪ’ ਸ਼ਬਦ ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਇਹ ਇਕ-ਵਚਨ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਬਹੁ-ਵਚਨ ਵੀ ।ਇਸ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਇਹ ਤਿੰਨਾਂ ਹੀ ਪੁਰਖਾਂ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਜਿਸ ਨਾਂਵ ਜਾਂ ਪੜਨਾਂਵ ਦੀ ਥਾਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਉਸੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ
“ਉਹ ਮੈਨੂੰ ‘ਆਪ’ ਮਿਲਣ ਲਈ ਆਇਆ ।

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਪੜਨਾਂਵ

3. ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ :
ਜਿਹੜਾ ਸ਼ਬਦ ਪੜਨਾਂਵ ਹੁੰਦਾ ਹੋਇਆ ਵੀ ਯੋਜਕ ਵਾਂਗ ਵਾਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੋੜਨ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰੇ, ਉਸ ਨੂੰ ‘ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ’ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-
(ੳ) ‘ਰਾਮ ਉਸੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਦਾ ਨਾਂ ਹੈ, ਜਿਹੜਾ ਕਲਾਸ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਰੌਲਾ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ ।
(ਅ) ‘ਉਹ, ਜੋ ਆਪਸ ਵਿਚ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਸੁਖੀ ਵਸਦੇ ਹਨ ।
(ੲ) ‘ਸੁਰਿੰਦਰ, ਜਿਸ ਨੇ ਸੁਰਜੀਤ ਨੂੰ ਮਾਰਿਆ ਸੀ, ਦੌੜ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ‘ਜਿਹੜਾ’, ‘ਜੋ’ ਅਤੇ ‘ਜਿਸ ਆਦਿ ਸ਼ਬਦ ਯੋਜਕਾਂ ਵਾਂਗ ਵਾਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੋੜਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਹ ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹਨ ।

ਕਈ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ‘ਜੋ’ ਅਤੇ ‘ਜਿਹੜਾ’ ਦੇ ਨਾਲ ‘ਸੋ’ ਅਤੇ ‘ਉਹ’ ਪੜਨਾਂਵ ਵੀ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-ਜਿਹੜੇ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸੈਰ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਕਦੇ ਰੋਗੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ । ਇਸ ਵਾਕ ਵਿਚ ‘ਜਿਹੜੇ ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹਨ, ਪਰ ‘ਉਹ’ ਪੜਨਾਂਵ ਵਾਕਾਂ ਨੂੰ ਜੋੜਦੇ ਨਹੀਂ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਸ ਨੂੰ “ਅਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

4. ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ :
ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਪੜਨਾਂਵ ਵੀ ਹੋਣ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਰਾਹੀਂ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਵੀ ਪੁੱਛਿਆ ਜਾਵੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ “ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ’ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-(ੳ) ‘ਇੱਥੋਂ ਕੀ ਲੈਣਾ ਹੈ ? (ਅ ‘ਸਲੇਟ ਕਿਸ ਨੇ ਤੋੜੀ ਹੈ ?’ (ਬ ‘ਕੌਣ ਰੌਲਾ ਪਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ?’ (ਸ) “ਕਿਹੜਾ ਇਹ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ?’ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ‘ਕੀ’, ‘ਕਿਸ’, ‘ਕੌਣ’ ਅਤੇ ‘ਕਿਹੜਾ’ ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹਨ ।

5. ਨਿਸ਼ਚੇਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ :
ਜਿਹੜੇ ਪੜਨਾਂਵ ਕਿਸੇ ਦੂਰ ਜਾਂ ਨੇੜੇ ਦੀ ਦਿਸਦੀ ਚੀਜ਼ ਵਲ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕਰ ਕੇ ਉਸ ਦੇ ਨਾਂ ਦੀ ਥਾਂ ਤੇ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਿਸ਼ਚੇਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-
(ੳ) “ਉਹ ਗੀਤ ਗਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ।
(ਆ) “ਔਹ ਕੀ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ ।
(ੲ) ‘ਇਹ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਾਰਾ ਕੰਮ ਉਸ ਨੇ ਵਿਗਾੜਿਆ ਹੈ ।
(ਸ) ‘ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਸਮੇਂ ਆਹ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਾਕਾਂ “ਉਹ” , “ਔਹ “ਇਹ’ ‘ਉਸ’, ‘ਆਹ’ ਨਿਸਚੇਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹਨ ।

6. ਅਨਿਸਚਿਤ ਅਨਿਸਚੇਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ :
ਜੋ ਪੜਨਾਂਵ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਦਾ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਤਾਂ ਦੱਸੇ, ਪਰ ਉਸ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨਾ ਦੱਸੇ, ਉਸ ਨੂੰ ‘ਅਨਿਸਚਿਤ ਪੜਨਾਂਵ’ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-
(ਉ) ‘ਸਾਰੇ ਗੀਤ ਗਾ ਰਹੇ ਹਨ ।’
(ਅ) ‘ਸਰਬੱਤ ਦਾ ਭਲਾ ਮੰਗੋ ।
(ੲ)‘ਇੱਥੇ ਕਈ ਆਉਂਦੇ ਹਨ, ਪਰ ਕਰਦੇ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ।’
(ਸ) ‘ਬਾਜ਼ੇ ਬੜੇ ਬੇਵਕੂਫ਼ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ‘ਸਾਰੇ’, ‘ਸਰਬੱਤ’, ‘ਕਈ’, ‘ਕੁੱਝ’ ਅਤੇ ‘ਬਾਜ਼’ ਅਨਿਸਚਿਤ ਪੜਨਾਂਵ ਹਨ ।
ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੜਨਾਵਾਂ ਵਿਚੋਂ ‘ਸਭ’, ‘ਸਾਰੇ’, ‘ਅਨੇਕਾਂ’, ‘ਸਰਬੱਤ` ਅਤੇ ਉਹ ਸਾਰੇ ਪੜਨਾਂਵ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਲਾਂ () ਆਉਂਦੀ ਹੈ, ਸਦਾ ਹੀ ਬਹੁ-ਵਚਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਕਈ ਪੜਨਾਂਵ ਦੋਹਾਂ ਵਚਨਾਂ ਵਿਚ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-
(ਉ) ਕੋਈ ਗੀਤ ਗਾਏਗਾ । (ਇਕ-ਵਚਨ)
(ਅ) ਕੋਈ ਗੀਤ ਗਾਉਣਗੇ । (ਬਹੁ-ਵਚਨ)

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਕਿੰਨੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ :
ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ :
ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਪੜਨਾਂਵ ਵੀ ਹੋਣ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਰਾਹੀਂ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਵੀ ਪੁੱਛਿਆ ਜਾਵੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ “ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ’ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-
(ੳ) ‘ਇੱਥੋਂ ਕੀ ਲੈਣਾ ਹੈ ?
(ਅ) ‘ਸਲੇਟ ਕਿਸ ਨੇ ਤੋੜੀ ਹੈ ?’
(ੲ) ‘ਕੌਣ ਰੌਲਾ ਪਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ?’
(ਸ) “ਕਿਹੜਾ ਇਹ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦਾ ਸੀ ?’ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ‘ਕੀ’, ‘ਕਿਸ’, ‘ਕੌਣ’ ਅਤੇ ‘ਕਿਹੜਾ’ ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਕਿਸ ਨੂੰ ਆਖਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ :
ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ :
ਜਿਹੜਾ ਪੜਨਾਂਵ ਕਰਤਾ ਦੀ ਥਾਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਵੇ, ਜਾਂ ਕਰਤਾ ਦੇ ਨਾਲ ਆ ਕੇ ਉਸ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਦੱਸੇ, ਉਸ ਨੂੰ “ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ” ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੀ ਕਿਸਮਤ ‘ਆਪ’ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ । (ਅ) ਮੈਂ ‘ਆਪ’ ਉੱਥੇ ਗਿਆ ।

ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਪਹਿਲੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ‘ਆਪ’ ਪੜਨਾਂਵ ਕਰਤਾ ‘ਮਨੁੱਖ’ ਦੀ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਵਰਤਿਆ ਗਿਆ ਹੈ, ਪਰ ਦੂਜੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ‘ਆਪ’ ਪੜਨਾਂਵ ‘ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਹ ‘ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹੈ ।

ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ‘ਆਪ’ ਸ਼ਬਦ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ | ਅਸੀਂ ਆਦਰ ਵਜੋਂ ‘ਤੂੰ ਦੀ ਥਾਂ ‘ਤੁਸੀਂ ਜਾਂ ‘ਆਪ’ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਾਂ, ਤਾਂ ‘ਆਪ’ ਸ਼ਬਦ ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ‘ਆਪ’ ਸ਼ਬਦ ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਇਹ ਇਕ-ਵਚਨ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਬਹੁ-ਵਚਨ ਵੀ ।ਇਸ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਇਹ ਤਿੰਨਾਂ ਹੀ ਪੁਰਖਾਂ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਜਿਸ ਨਾਂਵ ਜਾਂ ਪੜਨਾਂਵ ਦੀ ਥਾਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਉਸੇ ਵਾਕ ਵਿਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ
“ਉਹ ਮੈਨੂੰ ‘ਆਪ’ ਮਿਲਣ ਲਈ ਆਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਦੀਆਂ ਕੋਈ ਦੋ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ :
ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ :
ਜਿਹੜਾ ਸ਼ਬਦ ਪੜਨਾਂਵ ਹੁੰਦਾ ਹੋਇਆ ਵੀ ਯੋਜਕ ਵਾਂਗ ਵਾਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੋੜਨ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰੇ, ਉਸ ਨੂੰ ‘ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ’ ਆਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ; ਜਿਵੇਂ-
(ੳ) ‘ਰਾਮ ਉਸੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਦਾ ਨਾਂ ਹੈ, ਜਿਹੜਾ ਕਲਾਸ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਰੌਲਾ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ ।
(ਅ) ‘ਉਹ, ਜੋ ਆਪਸ ਵਿਚ ਪਿਆਰ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਸੁਖੀ ਵਸਦੇ ਹਨ ।
(ੲ) ‘ਸੁਰਿੰਦਰ, ਜਿਸ ਨੇ ਸੁਰਜੀਤ ਨੂੰ ਮਾਰਿਆ ਸੀ, ਦੌੜ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ‘ਜਿਹੜਾ’, ‘ਜੋ’ ਅਤੇ ‘ਜਿਸ ਆਦਿ ਸ਼ਬਦ ਯੋਜਕਾਂ ਵਾਂਗ ਵਾਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਸ ਵਿਚ ਜੋੜਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਹ ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪੜਨਾਂਵਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕਿਸਮ ਲਿਖੋ-
(ੳ) ਮੈਂ, ਅਸੀਂ
(ਅ) ਕਿਸ ਨੇ, ਕਿਹੜਾ
(ਬ) ਉਹ, ਇਹ
(ਸ) ਤੁਹਾਡਾ, ਤੁਹਾਨੂੰ
(ਹ) ਕੌਣ, ਕਿਹੜਾ
(ਕ) ਆਪ, ਆਪਸ
(ਖ) ਜੋ, ਸੋ
(ਗ) ਜਿਹੜੇ
(ਘ) ਕਈ, ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ
(ਛ) ਅਹੁ, ਆਹ ।
ਉੱਤਰ :
(ੳ) ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ
(ਅ) ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ
(ਇ) ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ
(ਸ) ਪੁਰਖਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ
(ਹ) ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ
(ਕ) ਨਿੱਜਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ
(ਖ) ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ
(ਗ) ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ
(ਘ) ਅਨਿਸਚੇਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ
(ਛ) ਨਿਸਚੇਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ।

ਪਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਪੜਨਾਂਵ ਚੁਣੋ ਤੇ ਸਾਹਮਣੇ ਲਿਖੋ-
(ਉ) ਮਿਰਚ, ਫੁੱਲ, ਦਿੱਲੀ, ਆਪ
(ਅ) ਕੌਣ, ਲੜਕੀ, ਕੱਪੜਾ, ਸਾਡੇ
(ਇ) ਜਲੰਧਰ, ਜਿਹੜਾ, ਮੈਂ, ਅਸੀਂ
(ਸ) ਕਿਸ ਨੇ, ਗੀਤ, ਵਿਸ਼ਾਲ, ਹੈ
(ਹ) ਘਰ, ਮੇਰਾ, ਉਹ, ਗਿਆ
ਉੱਤਰ :
(ੳ) ਆਪ
(ਅ) ਕੌਣ, ਸਾਡੇ
(ਈ) ਮੈਂ, ਜਿਹੜਾ, ਅਸੀਂ,
(ਸ) ਕਿਸਨੇ
(ਹ) ਮੇਰਾ, ਉਹ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚੋਂ ਪੜਨਾਂਵ ਚੁਣੋ ਤੇ ਸਾਹਮਣੇ ਲਿਖੋ-
(ੳ) ਉਸ ਦਾ ਭਰਾ ਬੜਾ ਬੇਈਮਾਨ ਹੈ ।
(ਅ) ਤੁਹਾਨੂੰ ਆਪ ਇਹ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਸੀ ।
(ਈ) ਕੌਣ-ਕੌਣ ਜਮਾਤ ਵਿਚ ਹਾਜ਼ਰ ਨਹੀਂ ਸਨ ।
(ਸ) ਕਈ ਲੋਕ ਘਰ ਨੂੰ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ ।
(ਹ) ਜੋ ਕਰੇਗਾ ਸੋ ਭਰੇਗਾ ।
(ਕ) ਤੁਹਾਡੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਕੀ ਕਰਦੇ ਸਨ ?
(ਖ) ਅਹਿ ਕਿਸ ਦਾ ਪੈਂਨ ਹੈ ?
(ਗ) ਗਰੀਬ ਨਾਲ ਕੋਈ-ਕੋਈ ਹਮਦਰਦੀ ਕਰਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ :
(ੳ) ਉਸ
(ਅ) ਤੁਹਾਨੂੰ, ਆਪ,
(ਈ) ਕੌਣ-ਕੌਣ
(ਸ) ਕੋਈ (ਨੋਟ-ਇਹ ਪੜਨਾਂਵ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਪੜਨਾਵੀਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਣ ਹੈ, ਜੇਕਰ ਇਸ ਨਾਲ ‘ਲੋਕ ਸ਼ਬਦ ਨਾ ਲੱਗਾ ਹੋਵੇ , ਤਾਂ ਇਹ ਪੜਨਾਂਵ ਹੋਵੇਗਾ
(ਹ) ਜੋ, ਸੋ,
(ਕ) ਕੀ
(ਖ) ਅਹਿ, ਕਿਸ
(ਗ) ਕੋਈ-ਕੋਈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ-
(ੳ) ਜਿਹੜੇ ਪੁਰਖ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ ……… ਪੁਰਖ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
(ਅ) ਜਿਸ ਪੁਰਖ ਬਾਰੇ ਗੱਲ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ ……… ਪੁਰਖ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
(ਇ) ਨਾਂਵ ਦੀ ਥਾਂ ਵਰਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸ਼ਬਦ ……… ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।
(ਸ) : ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਯੋਜਕਾਂ ਵਾਂਗ ਦੋ ਵਾਕਾਂ ਨੂੰ ਜੋੜਨ ……… ਪੜਨਾਂਵ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ :
(ੳ) ਮੱਧਮ
(ਅ) ਅਨਯ
(ਇ) ਪੜਨਾਂਵ
(ਸ) ਸੰਬੰਧਵਾਚਕ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚੋਂ ਠੀਕ ਵਾਕਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ (✓) ਤੇ ਗ਼ਲਤ ਵਾਕਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ (✗) ਦਾ ਨਿਸ਼ਾਨ ਲਗਾਓ

(ਉ) ਗੱਲ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਪੁਰਖ ਉੱਤਮ ਪੁਰਖ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
(ਅ) ਜੋ ਸ਼ਬਦ ਕਿਸੇ ਵਿਅਕਤੀ, ਵਸਤੂ, ਜਗਾ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸਣ, ਪੜਨਾਂਵ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।
(ੲ) ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਨਾਂਵ ਦੀ ਥਾਂ ਆ ਕੇ ਕੋਈ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਪੁੱਛਣ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ”, ਪੜਨਾਂਵ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
(ਸ) ਪੜਨਾਂਵ ਪੰਜ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
(ਹ) ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਯੋਜਕ ਵਾਂਗ ਵਾਕਾਂ ਨੂੰ ਜੋੜਨ, ਉਹ ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ :
(ਉ) ਗੱਲ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਪੁਰਖ ਉੱਤਮ ਪੁਰਖ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । (✓)
(ਅ) ਜੋ ਸ਼ਬਦ ਕਿਸੇ ਵਿਅਕਤੀ, ਵਸਤੂ, ਜਗਾ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸਣ, ਪੜਨਾਂਵ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ । (✗)
(ੲ) ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਨਾਂਵ ਦੀ ਥਾਂ ਆ ਕੇ ਕੋਈ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਪੁੱਛਣ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ”, ਪੜਨਾਂਵ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । (✓)
(ਸ) ਪੜਨਾਂਵ ਪੰਜ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । (✗)
(ਹ) ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਬਦ ਯੋਜਕ ਵਾਂਗ ਵਾਕਾਂ ਨੂੰ ਜੋੜਨ, ਉਹ ਪ੍ਰਸ਼ਨਵਾਚਕ ਪੜਨਾਂਵ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । (✗)

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਅਖਾਣ

Punjab State Board PSEB 8th Class Punjabi Book Solutions Punjabi Grammar Akhan ਅਖਾਣ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 8th Class Punjabi Grammar ਅਖਾਣ

1. ਉਹ ਕਿਹੜੀ ਗਲੀ ਜਿੱਥੇ ਭਾਗੋ ਨਹੀਂ ਖਲੀ (ਹਰ ਥਾਂ ਖੜਪੈਂਚ ਬਣਿਆ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਆਦਮੀ) :

‘ਉਹ ਕਿਹੜੀ ਗਲੀ ਜਿੱਥੇ ਭਾਗੋ ਨਹੀਂ ਖਲੀ ਦੇ ਕਹਿਣ ਅਨੁਸਾਰ ਰਾਮ ਸਿੰਘ ਪਿੰਡ ਦੇ ਹਰ ਮਸਲੇ ਵਿਚ ਪ੍ਰਧਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ-ਭਾਵੇਂ ਕੋਈ ਧਾਰਮਿਕ ਦੀਵਾਨ ਹੋਵੇ, ਭਾਵੇਂ ਕੋਈ ਪੰਚਾਇਤ ਦਾ ਮਸਲਾ, ਭਾਵੇਂ ਕਿਸੇ ਦਾ ਘਰੇਲੂ ਝਗੜਾ ਹੋਵੇ, ਭਾਵੇਂ ਵੋਟਾਂ ਮੰਗਣ ਵਾਲਿਆਂ ਨਾਲ ਘੁੰਮਣਾ ਹੋਵੇ, ਤੁਸੀਂ ਉਸ ਨੂੰ ਹਰ ਥਾਂ ਚੌਧਰੀ ਬਣਿਆ ਦੇਖ ਸਕਦੇ ਹੋ ।

2. ਉਹ ਦਿਨ ਡੁੱਬਾ, ਜਦ ਘੋੜੀ ਚੜ੍ਹਿਆ ਕੁੱਬਾ (ਜਿਹੜਾ ਬੰਦਾ ਆਪਣੇ ਜੋਗਾ ਹੀ ਨਹੀਂ, ਉਸ ਨੇ ਹੋਰ ਕਿਸੇ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀ ਸੰਵਾਰਨਾ) :

ਜਦੋਂ ਕੁਲਜੀਤ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਪਿੰਡ ਦੇ ਸਰਪੰਚ ਨੇ ਕਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਐਂਡ ਸਿੰਧ ਬੈਂਕ ਵਿਚ ਨੌਕਰੀ ‘ਤੇ ਲੁਆ ਦੇਵੇਗਾ, ਤਾਂ ਮੈਂ ਹੱਸ ਕੇ ਕਿਹਾ, “ਉਹ ਦਿਨ ਡੱਬਾ, ਜਦ ਘੋੜੀ ਚੜਿਆ ਕੁੱਬਾ । ਜੇਕਰ ਉਸ ਦੀ ਇੰਨੀ, ਚਲਦੀ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਉਸ ਦਾ ਆਪਣਾ ਪੁੱਤਰ ਬੀ. ਏ. ਪਾਸ ਕਰ ਕੇ ਕਿਉਂ ਵਿਹਲਾ ਫਿਰੇ ? ਉਹ ਬੱਸ ਗੱਲਾਂ ਕਰਨ ਜੋਗਾ ਹੀ ਹੈ, ਕਰਨ ਜੋਗਾ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ।

3. ਉਲਟੀ ਵਾੜ ਖੇਤ ਨੂੰ ਖਾਏ (ਰਖਵਾਲੇ ਦਾ ਹੀ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਪੁਚਾਉਣਾ) :

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਰਾਜੇ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਹਿਲਕਾਰ ਪਰਜਾ ਨੂੰ ਲੁੱਟ ਰਹੇ ਸਨ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਉੱਤੇ ਜ਼ੁਲਮ ਢਾਹ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਹ ਗੱਲ ਤਾਂ ‘ਉਲਟੀ ਵਾੜ ਖੇਤ ਨੂੰ ਖਾਏ’ ਵਾਲੀ ਸੀ ।

4. ਅਕਲ ਦਾ ਅੰਨ੍ਹਾਂ ਤੇ ਗੰਢ ਦਾ ਪੂਰਾ (ਜਿਹੜਾ ਬੰਦਾ ਹੋਵੇ ਮੂਰਖ ਪਰ ਉਸ ਕੋਲ ਧਨ ਬਹੁਤਾ ਹੋਵੇ) :

ਸੁਦੇਸ਼ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਸਦਾ ਅਜਿਹੇ ਮੁੰਡੇ ਨਾਲ ਵਿਆਹ ਹੋਵੇ, ਜੋ ‘ਅਕਲ ਦਾ ਅੰਨਾ ਤੇ ਗੰਢ ਦਾ ਪੂਰਾ’ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਉਸਦੇ ਪੈਸੇ ਉੱਤੇ ਐਸ਼ ਕਰੇ ਪਰ ਉਸਦੀ ਰੋਕ-ਟੋਕ ਕੋਈ ਨਾ ਹੋਵੇ ।

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5. ਇਕ ਇਕ ਤੇ ਦੋ ਗਿਆਰਾਂ (ਏਕਤਾ ਨਾਲ ਤਾਕਤ ਵਧ ਜਾਂਦੀ ਹੈ) :

ਪਹਿਲਾਂ ਮੈਂ ਜਦੋਂ ਇਕੱਲਾ ਸਾਂ, ਤਾਂ ਇਸ ਓਪਰੀ ਥਾਂ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਡਰਦਾ ਹੀ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ, ਪਰ ਜਦੋਂ ਤੋਂ ਮੇਰਾ ਮਿੱਤਰ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਆ ਕੇ ਰਹਿਣ ਲੱਗਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਮੈਂ ਬੇਖੌਫ਼ ਹੋ ਗਿਆ ਹਾਂ । ਸੱਚ ਕਿਹਾ ਹੈ, “ਇਕ ਇਕ ਤੇ ਦੋ ਗਿਆਰਾਂ ।

6. ਇਕ ਅਨਾਰ ਸੌ ਬਿਮਾਰ (ਚੀਜ਼ ਥੋੜੀ ਹੋਣੀ, ਪਰ ਲੋੜਵੰਦ ਬਹੁਤੇ ਹੋਣ) :

ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਇਕ ਕੋਟ ਫ਼ਾਲਤੂ ਸੀ । ਮੇਰਾ ਛੋਟਾ ਭਰਾ ਕਹਿ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਮੈਨੂੰ ਦੇ ਦਿਓ ਤੇ ਵੱਡਾ ਕਹਿ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਮੈਨੂੰ ਦੇ ਦਿਓ । ਇਕ ਦਿਨ ਮੇਰੇ ਨੌਕਰ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਇਹ ਕੋਟ ਮੈਨੂੰ ਦੇ ਦਿਓ। ਮੈਂ ਠੰਢ ਨਾਲ ਮਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ ।” ਮੈਂ ਕਿਹਾ, ‘ਇਹ ਤਾਂ ਉਹ ਗੱਲ ਹੈ, ਅਖੇ ‘ਇਕ ਅਨਾਰ ਸੌ ਬਿਮਾਰ ”

7. ਈਦ ਪਿੱਛੋਂ ਤੰਬਾ ਫੂਕਣਾ (ਲੋੜ ਦਾ ਸਮਾਂ ਲੰਘ ਜਾਣ ਮਗਰੋਂ ਮਿਲੀ ਚੀਜ਼ ਦਾ ਕੋਈ ਫ਼ਾਇਦਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ) :

ਜਦੋਂ ਆਪਣੀ ਧੀ ਦੇ ਵਿਆਹ ਉੱਤੇ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਇਕ ਮਿੱਤਰ ਤੋਂ 50,000 ਰੁਪਏ ਉਧਾਰ ਮੰਗੇ, ਤਾਂ ਉਸਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਇਕ ਮਹੀਨੇ ਤਕ ਦੇਵੇਗਾ । ਮੈਂ ਉਸਨੂੰ ਕਿਹਾ, ਵਿਆਹ ਤਾਂ ਦਸਾਂ ਦਿਨਾਂ ਨੂੰ ਹੈ । ਮੈਂ “ਈਦ ਪਿੱਛੋਂ ਤੰਬਾ ਫੁਕਣਾ ?’ ਜੇਕਰ ਤੂੰ ਦੇ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਹੁਣੇ ਦੇਹ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦੇਹ ।”

8. ਸੱਦੀ ਨਾ ਬੁਲਾਈ, ਮੈਂ ਲਾੜੇ ਦੀ ਤਾਈ (ਬਦੋਬਦੀ ਕਿਸੇ ਦੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਦਖ਼ਲ ਦੇਣਾ) :

ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਉਸ ਨੂੰ ਖਾਹ-ਮਖ਼ਾਹ ਆਪਣੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਦਖ਼ਲ ਦਿੰਦਿਆਂ ਦੇਖਿਆ, ਤਾਂ ਮੈਂ ਉਸ ਨੂੰ ਗੁੱਸੇ ਵਿਚ ਕਿਹਾ, “ਭਾਈ ਤੂੰ ਇੱਥੋਂ ਜਾਹ, ਤੂੰ ਐਵੇਂ ਸਾਡੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਰੁਕਾਵਟ ਪਾ ਰਿਹਾ ਹੈਂ ? ਅਖੇ ‘ਸੱਦੀ ਨਾ ਬੁਲਾਈ, ਮੈਂ ਲਾੜੇ ਦੀ ਤਾਈ ।”

9. ਗਰੀਬਾਂ ਰੱਖੇ ਰੋਜ਼ੇ ਦਿਨ ਵੱਡੇ ਆਏ (ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਗਰੀਬ ਦੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਵਿਘਨ ਪਵੇ, ਤਾਂ ਇਹ ਅਖਾਣ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ) :

ਜਦੋਂ ਬੰਤਾ ਇਧਰੋਂ-ਉਧਰੋਂ ਪੈਸੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰ ਕੇ ਮਕਾਨ ਬਣਾਉਣ ਲੱਗਾ, ਤਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇੱਟਾਂ ਮਹਿੰਗੀਆਂ ਹੋ ਗਈਆਂ ਤੇ ਫਿਰ ਸੀਮਿੰਟ, ਫਿਰ ਸਰੀਏ ਨੂੰ ਅੱਗ ਲੱਗ ਗਈ । ਵਿਚਾਰਾ ਔਖਾ-ਸੌਖਾ ਇਹ ਖ਼ਰਚ ਪੂਰੇ ਕਰ ਹੀ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਉਸਦੀ ਪਤਨੀ ਬਿਮਾਰ ਹੋ ਕੇ ਹਸਪਤਾਲ ਜਾ ਪਹੁੰਚੀ । ਖ਼ਰਚੇ ਤੋਂ ਦੁਖੀ ਹੋਇਆ ਬੰਤਾ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ, “ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਰੱਖੇ ਰੋਜ਼ੇ, ਦਿਨ ਵੱਡੇ ਆਏ ।”

10. ਢੱਗੀ ਨਾ ਵੱਛੀ ਤੇ ਨੀਂਦਰ ਆਵੇ ਅੱਛੀ (ਜਿਸ ਦੇ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਕੋਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਨਾ ਹੋਵੇ, ਉਹ ਸੁਖੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ) :

ਯਾਰ, ਜੁਗਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਵਲ ਦੇਖ । ਵਿਚਾਰਾ 5 ਧੀਆਂ ਦੇ ਵਿਆਹ ਕਰਦਾ-ਕਰਦਾ ਅੰਤਾਂ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾਈ ਹੋ ਗਿਆ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਸਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਵੀ ਵਿਕ ਗਈ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਲਹਿਣੇਦਾਰ ਉਸਨੂੰ ਤੋੜ-ਤੋੜ ਖਾਣ ਲੱਗੇ । ਅੱਜ ਉਹ ਬੇਹੱਦ ਪਰੇਸ਼ਾਨ ਤੇ ਦੁਖੀ ਹੈ, । ਪਰ ਆਪਾਂ ਵਲ ਦੇਖ । ਅਸੀਂ ਵਿਆਹ ਹੀ ਨਹੀਂ ਕਰਾਇਆ, ਨਾ ਘਰ, ਨਾ ਪਤਨੀ ਤੇ ਨਾ ਬੱਚੇ । ਆਪਾਂ ਨੂੰ ਕੋਈ ਫ਼ਿਕਰ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, “ਢੱਗੀ ਨਾ ਵੱਛੀ, ਨੀਂਦਰ ਆਵੇ ਅੱਛੀ ।” ਸਿਰਾਣੇ ਬਾਂਹ ਦੇ ਕੇ ਬੇਫ਼ਿਕਰ ਹੋ ਕੇ ਸੌਂਵੀਂਦਾ ਹੈ ।

11. ਡਿਗੀ ਖੋਤੇ ਤੋਂ ਗੁੱਸਾ ਘੁਮਿਆਰ ‘ਤੇ (ਕਿਸੇ ਦਾ ਗੁੱਸਾ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ’ਤੇ ਕੱਢਣਾ) :

ਜਦੋਂ ਉਹ ਅਫ਼ਸਰੁ ਤੋਂ ਗਾਲਾਂ ਖਾ ਕੇ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਅਕਾਰਨ ਹੀ ਲੜਨ ਲੱਗ ਪਿਆ, ਤਾਂ ਮੈਂ ਕਿਹਾ, ‘‘ਚੁੱਪ ਕਰ ਉਏ, ਡਿਗੀ ਖੋਤੇ ਤੋਂ ਗੁੱਸਾ ਘੁਮਿਆਰ ‘ਤੇ, ਜੇ ਬਹੁਤਾ ਬੋਲਿਆ, ਤਾਂ ਮੇਰੇ ਕੋਲੋਂ ਵੀ ਖਾ ਲਵੇਂਗਾ ।”

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12, ਦਾਲ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਕਾਲਾ ਹੋਣਾ (ਮਾਮਲੇ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਹੇਰਾ-ਫੇਰੀ ਹੋਣ ਦਾ ਸ਼ੱਕ ਹੋਣਾ) :

ਜਦੋਂ ਸੰਤਾ ਸਿੰਘ ਆਪਣੇ ਘਰ ਚੋਰੀ ਹੋਣ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਦੇਣ ਥਾਣੇ ਗਿਆ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਇਸ ਵਿਚ ਗੁਆਂਢੀ ਦਾ ਹੱਥ ਹੋਣ ਬਾਰੇ ਦੱਸਣ ਲੱਗਾ, ਤਾਂ ਉਸਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਤੋਂ ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਦਾਲ ਵਿਚ ਕਾਲਾ ਹੋਣ ਦਾ ਸ਼ੱਕ ਪਿਆ । ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਉਸਨੂੰ ਹੀ ਥਾਣੇ ਬਿਠਾ ਕੇ ਜ਼ਰਾ ਸਖ਼ਤੀ ਨਾਲ ਪੁੱਛ-ਗਿੱਛ ਕੀਤੀ, ਤਾਂ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਉਹ ਗੁਆਂਢੀ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਲਾਗਤਬਾਜ਼ੀ ਕਾਰਨ ਚੋਰੀ ਦੇ ਦੋਸ਼ ਵਿਚ ਝੂਠਾ ਫ਼ਸਾਉਣ ਲਈ ਰਿਪੋਰਟ ਲਿਖਾਉਣ ਗਿਆ ਸੀ ।

13. ਘਰ ਦਾ ਭੇਤੀ ਲੰਕਾ ਢਾਵੇ (ਭੇਤੀ ਆਦਮੀ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ) :

ਆਪਣੇ ਭਾਈਵਾਲ ਨਾਲ ਝਗੜਾ ਹੋਣ ਮਗਰੋਂ ਜਦੋਂ ਸਮਗਲਰ ਰਾਮੇ ਦੇ ਪਾਸੋਂ ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਮਾਲ ਫੜਿਆ ਗਿਆ, ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਘਰ ਦਾ ਭੇਤੀ ਲੰਕਾ ਢਾਵੇ । ਇਹ ਸਾਰਾ ਕਾਰਾ ਮੇਰੇ ਭਾਈਵਾਲ ਦਾ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਇਸ ਦਾ ਭੇਤ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ।”

14. ਘਰ ਦੀ ਮੁਰਗੀ ਦਾਲ ਬਰਾਬਰ (ਘਰ ਦੀ ਬਣਾਈ ਮਹਿੰਗੀ ਚੀਜ਼ ਵੀ ਸਸਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ) :

ਮਹਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪਤਨੀ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਆਪਣੀ ਕੁੜੀ ਦੇ ਵਿਆਹ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਮਹਿੰਗੇ ਭਾਅ ਦਾ ਸੋਨਾ ਖ਼ਰੀਦਣ ਲਈ ਬਜ਼ਾਰ ਜਾਣ ਦੀ ਕੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਤੂੰ ਆਪਣੇ ਗਹਿਣਿਆਂ ਨਾਲ ਹੀ ਕੰਮ ਸਾਰ ਲੈ { ਅਖੇ, “ਘਰ ਦੀ ਮੁਰਗੀ ਦਾਲ ਬਰਾਬਰ ।

15. ਉੱਦਮ ਅੱਗੇ ਲੱਛਮੀ ਪੱਖੇ ਅੱਗੇ ਪੌਣ (ਜਦੋਂ ਇਹ ਦੱਸਣਾ ਹੋਵੇ ਕਿ ਉੱਦਮ ਤੇ ਮਿਹਨਤ ਕੀਤਿਆਂ ਧਨ ਤੇ ਸਫਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਦੋਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ) :

ਭਾਈ ਜੇਕਰ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਸਫਲ ਹੋਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ, ਤੇ ਧਨ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ, ਤਾਂ ਰਾਤ-ਦਿਨ ਮਿਹਨਤ ਕਰੋ । ਸਿਆਣੇ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, “ਉੱਦਮ ਅੱਗੇ ਲੱਛਮੀ ਪੱਖੇ ਅੱਗੇ ਪੌਣ ।

16. ਅਸਮਾਨ ਤੋਂ ਡਿਗੀ ਖਜੂਰ ‘ਤੇ ਅਟਕੀ (ਇਕ ਮੁਸੀਬਤ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਪਾਉਂਦਾ ਹੋਇਆ ਜਦੋਂ ਕੋਈ ਵਿਅਕਤੀ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਮੁਸੀਬਤ ਵਿਚ ਫਸ ਜਾਏ, ਉਂਦੋਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨਅਮਰੀਕ ਮਾਤਾ) :

ਪਿਤਾ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਬੀ. ਏ. ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਨੂੰ ਛੱਡ ਬੈਠਾ । ਫਿਰ ਉਹ ਏਜੰਟਾਂ ਦੇ ਚੱਕਰ ਵਿਚ ਫਸ ਕੇ ਬਾਹਰ ਜਾਣ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰਨ ਲੱਗਾ । ਦੋ-ਤਿੰਨ ਵਾਰੀ ਉਹ ਏਜੰਟਾਂ ਨਾਲ ਮੁੰਬਈ ਤਕ ਜਾ ਕੇ ਮੁੜ ਆਇਆ ਹੈ ਪਰ ਵਿਦੇਸ਼ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਿਆ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਉਹ ਅਜੇ ਤਕ ਕਿਸੇ ਸਿਰੇ ਨਹੀਂ ਲੱਗਾ, ਸਗੋਂ ਉਸ ਦੀ ਉਹ ਗੱਲ ਹੈ, ਅਸਮਾਨ ਤੋਂ ਡਿਗੀ ਖ਼ਜੂਰ ’ਤੇ ਅਟਕੀ । ਪੜ੍ਹਾਈ ਕਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ, ਤਾਂ ਉਹ ਅੱਜ ਤਕ ਬੀ. ਏ. ਪਾਸ ਕਰ ਜਾਂਦਾ ।

17. ਗਿੱਦੜ ਦਾਖ ਨਾ ਅੱਪੜੇ ਆਖੇ ਬੂਹ ਕੌੜੀ (ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਆਪਣੇ ਵਿਚ ਨਾ ਹੋਣੀ, ਪਰ ਦੋਸ਼ ਦੂਜਿਆਂ ਸਿਰ ਦੇਣਾ) :

ਗੁਰਮੀਤ ਨੂੰ ਘਰੋਂ ਖ਼ਰਚਣ ਲਈ ਇਕ ਪੈਸਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ, ਪਰੰਤੂ ਉਹ ਫ਼ਿਲਮਾਂ ਦੇਖਣ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਉਸ ਕੋਲ ਪੈਸੇ ਹੋਣ, ਤਾਂ ਉਹ ਟਿਕਟ ਖ਼ਰੀਦੇ ਅਤੇ ਫ਼ਿਲਮ ਦੇਖੇ । ਉਸ ਦੀ ਤਾਂ ਉਹ ਗੱਲ ਹੈ, ਅਖੇ, ਗਿੱਦੜ ਦਾਖ ਨਾ ਅੱਪੜੇ, ਆਖੇ ਥੁਹ ਕੌੜੀ ।

18. ਹਾਥੀ ਲੰਘ ਗਿਆ ਪੂਛ ਰਹਿ ਗਈ (ਜਦੋਂ ਕੰਮ ਦਾ ਵੱਡਾ ਤੇ ਔਖਾ ਹਿੱਸਾ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਵੇ, ਪਰ ਥੋੜਾ ਜਿਹਾ ਕੰਮ ਰਹਿ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ) :

“ਅੱਜ ਮੇਰੇ ਸਾਰੇ ਔਖੇ-ਔਖੇ ਪੇਪਰ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਏ ਹਨ । ਹੁਣ ਤਾਂ ਇਕ ਸੌਖਾ ਜਿਹਾ ਸਰੀਰਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਪ੍ਰੈਕਟੀਕਲ ਹੀ ਰਹਿ ਗਿਆ ਹੈ । ਬੱਸ ‘ਹਾਥੀ ਲੰਘ ਗਿਆ, ਪੁਛ ਰਹਿ ਗਈ ।

19. ਕੁੱਛੜ ਕੁੜੀ, ਸ਼ਹਿਰ ਢੰਡੋਰਾ/ਕੁੱਛੜ ਕੁੜੀ ਗਰਾਂ ਹੋਕਾ (ਕਿਸੇ ਬੌਦਲੇ ਹੋਏ ਦਾ ਆਪਣੇ ਕੋਲ ਜਾਂ ਘਰ ਵਿਚ ਪਈ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਏਧਰ-ਓਧਰ ਲੱਭਣਾ) :

ਉਹ ਇਕ ਘੰਟੇ ਤੋਂ ਆਪਣਾ ਪੈਂਨ ਲੱਭ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਪਰ ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਉਸਦੀ ਭਾਲ ਤੋਂ ਤੰਗ ਆ ਕੇ ਉਸ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਮਾਰਿਆ, ਤਾਂ ਮੈਨੂੰ ਪੈਂਨ ਉਸ ਦੀ ਜੇਬ ਨਾਲ ਹੀ ਦਿਸ ਪਿਆ । ਮੈਂ ਕਿਹਾ, “‘ਤੇਰੀ ਤਾਂ ਉਹ ਗੱਲ ਹੈ, ‘ਕੁੱਛੜ ਕੁੜੀ, ਸ਼ਹਿਰ ਢੰਡੋਰਾ।”

PSEB 8th Class Punjabi Vyakaran ਅਖਾਣ

20. ਖਵਾਜੇ ਦਾ ਗਵਾਹ ਡੱਡੂ (ਜਦੋਂ ਝੂਠੇ ਦੀ ਗਵਾਹੀ ਝੂਠਾ ਹੀ ਦੇਵੇ) :

ਜਦੋਂ ਸਮਗਲਰ ਛਿੰਦੇ ਨੇ ਬੰਤੇ ਚੋਰ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿਚ ਗੱਲ ਕੀਤੀ, ਤਾਂ ਥਾਣੇਦਾਰ ਨੇ ਕਿਹਾ, ਚੁੱਪ ਰਹਿ ਉਇ ਛਿੱਦਿਆ ! “ਖਵਾਜੇ ਦਾ ਗਵਾਹ ਡੱਡੂ, ਤੇਰੇ ਕਹੇ ਇਹ ਛੁੱਟ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ ।

21. ਗੰਗਾ ਗਏ ਤਾਂ ਗੰਗਾ ਰਾਮ, ਜਮਨਾ ਗਏ ਤਾਂ ਜਮਨਾ ਦਾਸ (ਮੌਕੇ ਅਨੁਸਾਰ ਬਦਲ ਜਾਣਾ) :

ਪਹਿਲਾਂ ਜਦੋਂ ਉਹ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਵਿਚ ਸੀ, ਤਾਂ ਉਹ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਦੇ ਗੁਣ ਗਾਉਂਦਾ ਸੀ । ਫਿਰ ਉਹ ਜਨ-ਸੰਘੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਖ਼ੁਸ਼ਾਮਦ ਕਰਨ ਲੱਗਾ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਉਹ ਖੱਦਰ ਪਾ ਕੇ ਕਾਂਗਰਸੀ ਲੀਡਰਾਂ ਦੇ ਮਗਰ ਫਿਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ਉਸ ਦੀ ਤਾਂ ਉਹ ਗੱਲ ਹੈ “ਗੰਗਾ ਗਏ ਤਾਂ ਗੰਗਾ ਰਾਮ, ਜਮਨਾ ਗਏ, ਤਾਂ ਜਮਨਾ ਦਾਸ ।’

22. ਕੁੱਤੇ ਦਾ ਕੁੱਤਾ ਵੈਰੀ (ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਆਪਸੀ ਵੈਰ ਕੁਦਰਤੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ) :

ਇਕ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਨੂੰ ਦੁਜੇ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਦੀ ਨਿੰਦਿਆ ਕਰਦਿਆਂ ਸੁਣ ਕੇ ਮੈਂ ਕਿਹਾ, “ਕੁੱਤੇ ਦਾ ਕੁੱਤਾ ਵੈਰੀ । ਇਕ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਦੁਜੇ ਦਾ ਕੰਮ-ਕਾਰ ਦੇਖ ਕੇ ਜਰ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ ।

23. ਕਾਹਲੀ ਅੱਗੇ ਟੋਏ, ਕਾਹਲੇ ਕੰਮ ਕਦੇ ਨਾ ਹੋਏ (ਕਾਹਲੀ ਕਰਨ ਨਾਲ ਕੰਮ ਵਿਗੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ) :

ਉਸ ਨੇ ਬੱਸ ਫੜਨ ਲਈ ਕਾਹਲੀ-ਕਾਹਲੀ ਸਕੂਟਰ ਚਲਾਇਆ ਅਤੇ ਰਾਹ ਵਿਚ ਇਕ ਦੁਰਘਟਨਾ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਕੇ ਬਾਂਹ ਤੁੜਵਾ ਬੈਠਾ ਤੇ ਹਸਪਤਾਲ ਜਾ ਪਿਆ । ਸਿਆਣਿਆਂ ਨੇ ਠੀਕ ਹੀ ਕਿਹਾ ਹੈ, “ਕਾਹਲੀ ਅੱਗੇ ਟੋਏ, ਕਾਹਲੇ ਕੰਮ ਕਦੇ ਨਾ ਹੋਏ ।

24. ਵਾਹ ਕਰਮਾਂ ਦਿਆ ਬਲੀਆ ਰਿਧੀ ਖੀਰ ਤੇ ਹੋ ਗਿਆ ਦਲੀਆ (ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਦੇ ਲਾਭ ਲਈ ਕੀਤੇ ਕੰਮਾਂ ਦਾ ਸਿੱਟਾ ਘਾਟੇ ਵਿਚ ਨਿਕਲੇ ਤਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ) :

ਕਿਰਪਾਲ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰ ਸੀ । ਉਸਨੇ ਆਪਣੀ ਪਤਨੀ ਦੇ ਗਹਿਣੇ ਆਦਿ ਵੇਚ ਕੇ ਕਿਸੇ ਏਜੰਟ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਡੁਬੱਈ ਜਾਂਣ ਦਾ ਬੰਦੋਬਸਤ ਕਰ ਲਿਆ, ਪਰ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਉਸ ਦਾ ਜਹਾਜ਼ ਦੁਰਘਟਨਾ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਗਿਆ । ਉਸਦੀ ਜਾਨ ਤਾਂ ਬਚ ਗਈ, ਪਰ ਉਸਦੀ ਇਕ ਬਾਂਹ ਤੇ ਇਕ ਲੱਤ ਕੱਟੀ ਗਈ ।ਉਸਦੀ ਦੁੱਖ ਭਰੀ ਕਹਾਣੀ ਸੁਣ ਕੇ ਮੈਂ ਕਿਹਾ, “ਵਾਹ ਕਰਮਾਂ ਦਿਆ ਬਲੀਆ ਰਿਧੀ ਖੀਰ ਤੇ ਹੋ ਗਿਆ ਦਲੀਆ ”

25, ਭਲਾ ਹੋਇਆ ਮੇਰਾ ਚਰਖਾ ਟੁੱਟਾ, ਜਿੰਦ ਅਜਾਥੋਂ ਛੁੱਟੀ (ਭਲਾ ਹੋਇਆ ਕਿ ਮੇਰੀ ਮੌਤ ਆ ਗਈ ਹੈ, ਇਸ ਨਾਲ ਮੇਰਾ ਦੁੱਖਾਂ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ) :

ਹੜ੍ਹ ਆਏ ਜ਼ਮੀਨ ਰੁੜ੍ਹ ਗਈ, ਬਾਲ-ਬੱਚੇ ਭੁੱਖ ਦੇ ਦੁੱਖੋਂ ਆਤੁਰ ਹੋਏ ਮਰ ਗਏ । ਵਿਚਾਰਾ ਬਹੁਤ ਦੁਖੀ ਸੀ । ਕਲ੍ਹ ਉਸਦੀ ਵੀ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ । ਚਲੋ ਚੰਗਾ ਹੋਇਆ ! ਅਖੇ, ‘ਭਲਾ ਹੋਇਆ ਮੇਰਾ ਚਰਖਾ ਟੁੱਟਾ, ਜਿੰਦ ਅਜਾਥੋਂ ਛੁੱਟੀ ।

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26. ਮੱਖਣ ਖਾਂਦਿਆਂ ਦੰਦ ਘਸਦੇ ਨੇ ਤਾਂ ਘਸਣ ਦਿਓ (ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਸੁਖ ਵੀ ਦੁਖਦਾਈ ਲੱਗੇ, ਤਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ) :

ਮਨਜੀਤ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਘਰ ਦੇ ਨੇੜੇ ਹੀ ਨੌਕਰੀ ਮਿਲ ਗਈ ਪਰ ਉਹ ਇਸ ਗੱਲ ਤੋਂ ਔਖਾ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ‘ਤੇ ਜਾਣ ਲਈ ਸਵੇਰੇ ਤੜਕੇ ਉੱਠਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਉੜੀ, ਚਿੜ-ਚਿੜ ਤੋਂ ਤੰਗ ਆ ਕੇ ਉਸ ਦੇ ਬਾਪੂ ਨੇ ਖਿਝ ਕੇ ਕਿਹਾ, “ਮੱਖਣ ਖਾਂਦਿਆਂ ਦੰਦ ਘਸਦੇ ਨੇ, ਤਾਂ ਘਸਣ ਦਿਓ ।”

27. ਰਾਣੀ ਆਪਣੇ ਪੈਰ ਧੋਦੀ ਗੋਲੀ ਨਹੀਂ ਕਹਾਉਂਦੀ (ਆਪਣੇ ਘਰ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਮਾੜਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ) :

ਮੈਂ ਜਦੋਂ ਆਪਣੀ ਧੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਕੋਠੀ ਦੇ ਗੇਟ ਦੇ ਬਾਹਰ ਸੜਕ ਉੱਤੇ ਝਾਤੁ । ਮਾਰਨ ਤੋਂ ਝਿਜਕਦੀ ਦੇਖਿਆ, ਤਾਂ ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਆਪਣੇ ਘਰ ਦੇ ਗੇਟ ਅੱਗਿਓਂ ਸੜਕ ਸਾਫ਼ ਕਰਨੀ, ਕੋਈ ਮਾੜੀ ਗੱਲ ਨਹੀਂ, । ਸਿਆਣੇ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, “ਰਾਣੀ ਆਪਣੇ ਪੈਰ ਧੋਦੀ ਗੋਲੀ ਨਹੀਂ ਕਹਾਉਂਦੀ ।

28. ਲਾਗੀਆਂ ਤਾਂ ਲਾਗ ਲੈਣਾ, ਭਾਵੇਂ ਜਾਂਦੀ ਰੰਡੀ ਹੋ ਜਾਵੇ (ਮਿਹਨਤੀ ਨੇ ਤਾਂ ਮਿਹਨਤ ਦੇ ਪੈਸੇ ਲੈਣੇ ਹੀ ਹਨ, ਤਿਆਰ ਹੋਈ ਚੀਜ਼ ਭਾਵੇ ਕਿਸੇ ਦੇ ਕੰਮ ਆਵੇ ਜਾਂ ਨਾ) :

ਸੁਰਜੀਤ ਨੇ ਕਿਸ਼ਤਾਂ ਉੱਪਰ ਸਾਈਕਲ ਲਿਆ । ਅਜੇ ਉਸ ਨੇ ਦੋ ਕਿਸ਼ਤਾਂ ਹੀ ਤਾਰੀਆਂ ਸਨ ਕਿ ਉਸ ਦਾ ਸਾਈਕਲ ਚੋਰੀ ਹੋ ਗਿਆ । ਜਦੋਂ ਉਸ ਨੇ ਕਿਸ਼ਤ ਲੈਣ ਆਏ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਨੂੰ ਅਗਲੀਆਂ ਕਿਸ਼ਤਾਂ ਦੇਣ ਤੋਂ ਨਾਂਹ-ਨੁੱਕਰ ਕੀਤੀ, ਤਾਂ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਨੇ ਕਿਹਾ, “ਲਾਗੀਆਂ ਤਾਂ ਲਾਗ ਲੈਣਾ, ਭਾਵੇਂ ਜਾਂਦੀ ਰੰਡੀ ਹੋ ਜਾਵੇ ।

29. ਲਿਖੇ ਮੂਸਾ, ਪਤੇ ਖ਼ੁਦਾ (ਲਿਖਾਈ ਦਾ ਸਾਫ਼ ਤੇ ਪੜ੍ਹਨ ਯੋਗ ਨਾ ਹੋਣਾ) :

ਜਦੋਂ ਉਸਦੀ ਲਿਖੀ ਚਿੱਠੀ ਉਸਦੀ ਲਿਖਤ ਠੀਕ ਨਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਮੈਥੋਂ ਪੜੀ ਨਾ ਗਈ, ਤਾਂ ਮੈਂ ਕਿਹਾ, “ਲਿਖੇ ਮੂਸਾ, ਪੜ੍ਹੇ ਖ਼ੁਦਾ ।”

30. ਵਿੱਦਿਆ ਵਿਚਾਰੀ ਤਾਂ ਪਰਉਪਕਾਰੀ (ਵਿੱਦਿਆ ਨੇਕੀ ਅਤੇ ਉਪਕਾਰ ਸਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈ ) :

ਹੈੱਡਮਾਸਟਰ ਨੇ ਦਸਵੀਂ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿਦਾਇਗੀ ਭਾਸ਼ਨ ਦਿੰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਥਨ ਹੈ, “ਵਿੱਦਿਆ ਵਿਚਾਰੀ, ਤਾਂ ਪਰਉਪਕਾਰੀ । ਇਸ ਅਨੁਸਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵਿੱਦਿਆ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਨੇਕੀ ਤੇ ਪਰਉਪਕਾਰ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਨੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ।

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31. ਵਾਦੜੀਆਂ ਸਜਾਦੜੀਆਂ ਨਿਭਣ ਸਿਰਾਂ ਦੇ ਨਾਲ (ਪੱਕੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਆਦਤਾਂ ਛੇਤੀ ਨਹੀਂ ਬਦਲਦੀਆਂ) :

ਤੁਹਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ਵਲ ਪੂਰਾ-ਪੂਰਾ ਧਿਆਨ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਬੁਰੀ ਆਦਤ ਪੈ ਗਈ, ਤਾਂ ਉਸ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ ਪਾਉਣਾ ਮੁਸ਼ਕਲ ਹੋਵੇਗਾ । ਸਿਆਣਿਆਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਹੈ, ‘ਵਾਦੜੀਆਂ ਸਜਾਦੜੀਆਂ ਨਿਭਣ ਸਿਰਾਂ ਦੇ ਨਾਲ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਬੁਰੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ਤੋਂ ਬਚਾ ਕੇ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।