PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

PSEB 9th Class Home Science Guide सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी एक सहायक सफाईकारक पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
कपड़े धोने वाला सोडा।

प्रश्न 2.
साबुन बनाने के लिए जरूरी पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर-
साबुन बनाने के लिए चर्बी तथा खार आवश्यक पदार्थ हैं। नारियल, महुए, सरसों, जैतून का तेल, सूअर की चर्बी आदि चर्बी के रूप में प्रयोग किये जा सकते हैं। जबकि खार कास्टिक सोडा अथवा पोटाश से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 3.
साबुन बनाने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
उत्तर-
साबुन बनाने की दो विधियाँ हैं-(i) गर्म तथा (ii) ठण्डी विधि।

प्रश्न 4.
वस्त्रों में कड़ापन क्यों लाया जाता है?
उत्तर-

  1. वस्त्रों में ऐंठन लाने से यह मुलायम हो जाते हैं तथा इनमें चमक आ जाती है।
  2. मैल भी वस्त्र के ऊपर ही रह जाती है जिस कारण कपड़े को धोना आसान हो जाता
  3. वस्त्र में जान पड़ जाती है। देखने में मज़बूत लगता है।

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प्रश्न 5.
वस्त्रों से दाग उतारने वाले पदार्थों को मुख्य रूप से कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है

  1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच-इससे ऑक्सीजन निकलकर धब्बे को रंग रहित कर देती है। हाइड्रोजन पराऑक्साइड, सोडियम परबोरेट आदि ऐसे पदार्थ हैं।
  2. रिड्यूसिंग एजेंट-यह पदार्थ धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर उसे रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट तथा सोडियम हाइड्रोसल्फेट ऐसे पदार्थ हैं।

प्रश्न 6.
साबुन और साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ में क्या अन्तर है?
उत्तर-

साबुन साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ
(1) साबुन प्राकृतिक तेलों जैसे नारियल, जैतून, सरसों आदि अथवा चर्बी जैसे सूभर की चर्बी आदि से बनता है। (1) साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ शोधक रासायनिक पदार्थों से बनता है।
(2) साबुन का प्रयोग भारी पानी में नहीं किया जा सकता। (2) इनका प्रयोग भारी पानी में भी किया जा सकता है।
(3) साबुन को जब कपड़े पर रगड़ा जाता है तो सफ़ेद-सी झाग बनती है। (3) इनमें कई बार सफ़ेद झाग नहीं बनती।

प्रश्न 7.
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ हैं-नील तथा टीनोपॉल अथवा रानीपॉल।
नील-नील दो प्रकार के होते हैं-

  1. पानी में घुलनशील तथा
  2. पानी में अघुलनशील नील। इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील पहली प्रकार के नील हैं। यह पानी के नीचे बैठ जाते हैं। इन्हें अच्छी तरह से मलना पड़ता है।
    एनीलिन दूसरी तरह के नील हैं। यह पानी में घुल जाते हैं।
    टीनोपॉल-यह भी सफ़ेद वस्त्रों को और सफ़ेद तथा चमकदार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 8.
ठण्डी विधि द्वारा कौन-कौन सी वस्तुओं से साबुन कैसे तैयार किया जा सकता है? इसकी क्या हानियां हैं?
उत्तर-
ठण्डी विधि द्वारा साबुन तैयार करने के लिए निम्नलिखित सामान लोकास्टिक सोडा अथवा पोटाश-250 ग्राम महुआ अथवा नारियल तेल-1 लीटर पानी- 3/4 किलोग्राम मैदा- 250 ग्राम।
किसी मिट्टी के बर्तन में कास्टिक सोडा तथा पानी को मिलाकर 2 घण्डे तक रख दो। तेल तथा मैदे को अच्छी तरह घोल लो तथा फिर इसमें सोडे का घोल धीरे-धीरे डालो तथा मिलाते रहो। पैदा हुई गर्मी से साबुन तैयार हो जाएगा। इसको किसी सांचे में डालकर सुखा लो तथा चक्कियां काट लो।
हानियां-साबुन में अतिरिक्त खार तथा तेल और ग्लिसरॉल आदि साबुन में रह जाते हैं। अधिक खार वाले साबुन कपड़ों को हानि पहुँचाते हैं।

प्रश्न 9.
साबुन किन-किन किस्मों में मिलता है?
उत्तर-
साबुन निम्नलिखित किस्मों में मिलता है

  1. साबुन की चक्की-साबुन चक्की के रूप में प्रायः मिल जाता है। चक्की को गीले वस्त्र पर रगड़कर इसका प्रयोग किया जाता है।
  2. साबुन का पाऊडर-यह साबुन तथा सोडियम कार्बोनेट का बना होता है। इसको गर्म पानी में घोलकर कपड़े धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें सफ़ेद-सफ़ेद सूती वस्त्रों को अच्छी तरह साफ़ किया जाता है।
  3. साबुन का चूरा-यह बन्द पैकटों में मिलता है। इसको पानी में उबालकर सूती वस्त्र कुछ देर भिगो कर रखने के पश्चात् इसमें धोया जाता है। रोगियों के वस्त्रों को भी । कीटाणु रहित करने के लिए साबुन के उबलते घोल का प्रयोग किया जाता है।
  4. साबुन की लेस-एक हिस्सा साबुन का चूरा लेकर पाँच हिस्से पानी डालकर तब तक उबालो जब तक लेस-सी तैयार न हो जाये। इसको ठण्डा होने पर बोतलों में डालकर रख लो तथा ज़रूरत पड़ने पर पानी डालकर धोने के लिए इसे प्रयोग किया जा सकता है।

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प्रश्न 10.
अच्छे साबुन की पहचान क्या है?
उत्तर-

  1. साबुन हल्के पीले रंग का होना चाहिए। गहरे रंग के साबुन में मिलावट भी हो सकती है।
  2. साबुन हाथ लगाने पर थोड़ा कठोर होना चाहिए। अधिक नर्म साबुन में ज़रूरत से अधिक पानी हो सकता है जो केवल भार बढ़ाने के लिए ही होता है।
  3. हाथ लगाने पर अधिक कठोर तथा सूखा नहीं होना चाहिए। कुछ घटिया किस्म के साबुनों में भार बढ़ाने वाले पाऊडर डाले होते हैं जो वस्त्र धोने में सहायक नहीं होते।
  4. अच्छा साबुन स्टोर करने पर, पहले की तरह रहता है, जबकि घटिया साबुनों पर स्टोर करने पर सफ़ेद पाऊडर-सा बन जाता है। इनमें आवश्यकता से अधिक खार होती है जोकि वस्त्र को खराब भी कर सकती है।
  5. अच्छा साबुन जुबान पर लगाने से ठीक स्वाद देता है जबकि मिलावट वाला साबुन जुबान पर लगाने से तीखा तथा कड़वा स्वाद देता है।

प्रश्न 11.
साबुन रहित प्राकृतिक सफ़ाईकारी पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर-
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-रीठे तथा शिकाकाई। इनकी फलियों को सुखा कर स्टोर कर लिया जाता है।

  1. रीठा-रीठों की बाहरी छील के रस में वस्त्र साफ़ करने की शक्ति होती है। रीठों की छील उतारकर पीस लो तथा 250 ग्राम छील को कुछ घण्टे के लिए एक लिटर पानी में भिगो कर रखो तथा फिर इन्हें उबालो वस्त्र तथा ठण्डा करके छानकर बोतलों में भरकर रखा जा सकता है। इसके प्रयोग से ऊनी, रेशमी वस्त्र ही नहीं अपितु सोने, चांदी के आभूषण भी साफ़ किये जा सकते हैं।
  2. शिकाकाई-इसका भी रीठों की तरह घोल बना लिया जाता है। इससे कपड़े निखरते ही नहीं अपितु उनमें चमक भी आ जाती है। इससे सिर भी धोया जा सकता है।

प्रश्न 12.
साबुन रहित रासायनिक सफ़ाईकारी पदार्थों से आप क्या समझते हो ? इनके क्या लाभ हैं?
उत्तर-
साबुन प्राकृतिक तेल अथवा चर्बी से बनते हैं जबकि रासायनिक सफ़ाईकारी शोधक रासायनिक पदार्थों से बनते हैं। यह चक्की, पाऊडर तथा तरल के रूप में उपलब्ध हो सकते हैं।
लाभ-

  1. इनका प्रयोग हर तरह के सूती, रेशमी, ऊनी तथा बनावटी रेशों के लिए किया जा सकता है।
  2. इनका प्रयोग गर्म, ठण्डे, हल्के अथवा भारी सभी प्रकार के पानी में किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
साबुन और अन्य साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थों के अतिरिक्त वस्त्रों की । धुलाई के लिए कौन-से सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं?
उत्तर-
सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ निम्नलिखित हैं

  1. वस्त्र धोने वाला सोडा-इसको सफ़ेद सूती वस्त्रों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। परन्तु रंगदार सूती वस्त्रों का रंग हल्का पड़ जाता है तथा रेशे कमजोर हो जाते हैं।
    यह रवेदार होता है तथा उबलते पानी में तुरन्त घुल जाता है। इससे सफ़ाई की प्रक्रिया में वृद्धि होती है। इसका प्रयोग भारी पानी को हल्का करने के लिए, चिकनाहट साफ़ करने तथा दाग़ उतारने के लिए किया जाता है।
  2. बोरैक्स (सुहागा)-इसका प्रयोग सफ़ेद सूती वस्त्रों के पीलेपन को दूर करने के लिए तथा चाय, कॉफी, फल, सब्जियों आदि के दाग उतारने के लिए किया जाता है। इसके हल्के घोल में मैले वस्त्र भिगोकर रखने पर उनकी मैल उगल आती है। इससे वस्त्रों में ऐंठन भी लाई जाती है।
  3. अमोनिया- इसका प्रयोग रेशमी तथा ऊनी कपड़ों से चिकनाहट के दाग दूर करने के लिए किया जाता है।
  4. एसिटिक एसिड-रेशमी वस्त्र को इसके घोल में खंगालने से इनमें चमक आ जाती है। इसका प्रयोग वस्त्रों से अतिरिक्त नील का प्रभाव कम करने के लिए भी किया जाता है। रेशमी, ऊनी वस्त्र की रंगाई के समय भी इसका प्रयोग किया जाता है।
  5. ऑग्जैलिक एसिड-इसका प्रयोग छार की बनी चटाइयों, टोकरियों तथा टोपियों आदि को साफ़ करने के लिए किया जाता है। स्याही, जंग, दवाई आदि के दाग उतारने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 14.
वस्त्रों से दागों का रंगकाट करने के लिए क्या प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
कपड़ों से दागों का रंगकाट करने के लिए ब्लीचों का प्रयोग होता है। ये दो प्रकार के होते हैं।

  1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच-जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है, इसकी ऑक्सीजन धब्बे से क्रिया करके इसको रंग रहित कर देती है तथा दाग उतर जाता है। प्राकृतिक धूप, हवा तथा नमी, पोटाशियम परमैंगनेट, हाइड्रोजन पराक्साइड, सोडियम परबोरेट, हाइपोक्लोराइड आदि ऐसे रंग काट हैं।
  2. रिड्यूसिंग ब्लीच-जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है तो यह धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर इसको रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट, सोडियम हाइड्रोसल्फाइट ऐसे ही रंग काट हैं। ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों पर इनका प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
    परन्तु तेज़ रंग काट से वस्त्र खराब भी हो जाते हैं।

प्रश्न 15.
वस्त्रों को नील क्यों दिया जाता है?
उत्तर-
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों पर बार-बार धोने से पीलापन-सा आ जाता है। इसको दूर करने के लिए वस्त्रों को नील दिया जाता है तथा वस्त्र की सफ़ेदी बनी रहती है।

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प्रश्न 16.
नील की मुख्य कौन-कौन सी किस्में हैं?
उत्तर-
नील मुख्यतः दो प्रकार का होता है

  1. पानी मैं अघुलनशील नील-इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील ऐसे नील हैं। इसके कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं, इसलिए वस्त्रों को देने से पहले नील वाले पानी में अच्छी तरह हिलाना पड़ता है।
  2. पानी में घुलनशील नील-इनको पानी में थोड़ी मात्रा में घोलना पड़ता है तथा इससे वस्त्र पर थोड़ा नीला रंग आ जाता है। इस तरह वस्त्र का पीलापन दूर हो जाता है। एनीलिन नील ऐसा ही नील है।

प्रश्न 17.
नील देते समय ध्यान में रखने योग्य बातें कौन-सी हैं?
उत्तर-

  1. नील सफ़ेद वस्त्रों को देना चाहिए रंगीन कपड़ों को नहीं।
  2. यदि नील पानी में अघुलनशील हो तो पानी को हिलाते रहना चाहिए नहीं तो वस्त्रों पर नील के धब्बे से पड़ जाएंगे।
  3. नील के धब्बे दूर करने के लिए वस्त्र को सिरके वाले पानी में खंगाल लेना चाहिए। (4) नील दिए वस्त्रों को धूप में सुखाने पर उनमें और भी सफ़ेदी आ जाती है।

प्रश्न 18.
नील देते समय धब्बे क्यों पड़ जाते हैं? यदि धब्बे पड़ जायें तो क्या करना चाहिए?
उत्तर-
अघुलनशील नील के कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं तथा इस तरह वस्त्रों को नील देने से वस्त्रों पर कई बार नील के धब्बे पड़ जाते हैं। जब नील के धब्बे पड़ जाएं तो वस्त्र को सिरके के घोल में खंगाल लेना चाहिए।

प्रश्न 19.
वस्त्रों में कड़ापन लाने के लिए किन वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है

  1. मैदा अथवा अरारोट-इसको पानी में घोलकर गर्म किया जाता है।
  2. चावलों का पानी-चावलों को पानी में उबालने के पश्चात् बचे पानी जिसको छाछ कहते हैं का प्रयोग वस्त्र में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  3. आलू-आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. गूंद-गूंद को पीसकर गर्म पानी में घोल लिया जाता है तथा घोल को पतले वस्त्र में छान लिया जाता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, लेसों तथा वैल के वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  5. बोरैक्स (सुहागा)-आधे लीटर पानी में दो बड़े चम्मच सुहागा घोल कर लेसों पर इसका प्रयोग किया जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 20.
वस्त्रों की धुलाई के लिए कौन-कौन से पदार्थ प्रयोग में लाए जा सकते हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 21.
किस प्रकार के वस्त्रों को सफ़ेद करने की आवश्यकता पड़ती है? वस्त्रों में कड़ापन किन पदार्थों के द्वारा लाया जा सकता है?
उत्तर-
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों को बार-बार धोने पर इन पर पीलापन सा आ जाता है। इनका यह पीलापन दूर करने के लिए नील देना पड़ता है।

वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है

  1. मैदा अथवा अरारोट-इसको पानी में घोलकर गर्म किया जाता है।
  2. चावलों का पानी-चावलों को पानी में उबालने के पश्चात् बचे पानी जिसको छाछ कहते हैं का प्रयोग वस्त्र में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  3. आलू-आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. गूंद-गूंद को पीसकर गर्म पानी में घोल लिया जाता है तथा घोल को पतले वस्त्र में छान लिया जाता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, लेसों तथा वैल के वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  5. बोरैक्स (सुहागा)-आधे लीटर पानी में दो बड़े चम्मच सुहागा घोल कर लेसों पर इसका प्रयोग किया जाता है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. साबुन वसा तथा …………………. के मिश्रण से बनता है।
  2. ………………. के बाहरी छिलके के रस में वस्त्रों को साफ़ करने की शक्ति होती है।
  3. अच्छा साबुन जीभ पर लगाने से ……………….. स्वाद देता है।
  4. सोडियम हाइपोक्लोराइट को …………………. पानी कहते हैं।
  5. सोडियम परबोरेट …………….. काट पदार्थ है।

उत्तर-

  1. क्षार,
  2. रीठों,
  3. ठीक,
  4. जैवले,
  5. आक्सीडाइजिंग।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
एक रिडयूसिंग काट पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
सोडियम बाइसल्फाइट।

प्रश्न 2.
पानी में अघुलनशील नील का नाम लिखें।
उत्तर-
इण्डिगो।

प्रश्न 3.
गोंद का प्रयोग किस कपड़े में कड़ापन लाने के लिए किया जा सकता
उत्तर-
वायल के वस्त्रों में।

प्रश्न 4.
रासायनिक साबुन रहित सफाईकारी पदार्थों में से कोई एक नाम बताएं।
उत्तर-
शिकाकाई।

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ठीक/ग़लत बताएं

  1. साबुन बनाने की दो विधियां हैं-गर्म तथा ठण्डी।
  2. हाइड्रोजन पराक्साइड, रिड्यूसिंग ब्लीच है।
  3. साबुन बनाने के लिए चर्बी तथा क्षार आवश्यक पदार्थ हैं।
  4. कपड़ों में अकड़ाव लाने वाले पदार्थ हैं – मैदा, अरारोट, चावलों का पानी आदि।
  5. सफेद कपड़ों को धुलने के बाद नील दिया जाता है।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ग़लत
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ है
(A) रीठा
(B) शिकाकाई
(C) दोनों ठीक
(D) दोनों ग़लत।
उत्तर-
(C) दोनों ठीक

प्रश्न 2.
पानी में घुलनशील नील नहीं है
(A) इंडीगो
(B) अल्ट्रामैरीन
(C) परशियन नील
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

प्रश्न 3.
कपड़ों में अकड़ाव लाने वाले पदार्थ हैं
(A) चावलों का पानी
(B) गोंद
(C) मैदा
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

प्रश्न 4.
पानी में घुलनशील नील है
(A) एनीलीन
(B) इंडीगो
(C) अल्ट्रामैरीन
(D) परशियन नील।
उत्तर-
(A) एनीलीन

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साबुन बनाने की गर्म विधि के बारे बताओ।
उत्तर-
तेल को गर्म करके धीरे-धीरे इसमें कास्टिक सोडा डाला जाता है। इस मिश्रण को गर्म किया जाता है। इस तरह चर्बी अम्ल तथा ग्लिसरीन में बदल जाती है। फिर उसमें नमक डाला जाता है, इससे साबुन ऊपर आ जाता है तथा ग्लिसरीन, अतिरिक्त खार तथा नमक नीचे चले जाते हैं । साबुन में सुगन्ध तथा रंग ठण्डा होने पर मिलाये जाते हैं तथा चक्कियां काट ली जाती हैं।

प्रश्न 2.
कपड़ों को नील कैसे दिया जाता है?
उत्तर-
नील देते समय वस्त्र को धोकर साफ़ पानी से निकाल लेना चाहिए। नील को किसी पतले वस्त्र में पोटली बनाकर पानी में खंगालना चाहिए। वस्त्र को अच्छी तरह निचोड़कर तथा बिखेरकर नील वाले पानी में डालो तथा बाद में वस्त्र को धूप में सुखाओ।

प्रश्न 3.
वस्त्रों की सफ़ाई करने के लिए कौन-कौन से पदार्थों का प्रयोग किया जाता है? नाम बताओ।
उत्तर-
वस्त्रों की सफ़ाई करने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है साबुन, रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ (जैसे निरमा, रिन, लिसापोल आदि), कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरैक्स, एसिटिक एसिड, ऑग्ज़ैलिक एसिड, ब्लीच, नील, रानीपॉल आदि।

प्रश्न 4.
ठण्डी विधि से साबुन बनाने का लाभ लिखें।
उत्तर-
ठण्डी विधि के लाभ

  1. इसमें मेहनत अधिक नहीं लगती।
  2. साबुन भी जल्दी बन जाता है।
  3. यह एक सस्ती विधि है।

सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ PSEB 9th Class Home Science Notes

  • साबुन चर्बी तथा खार के मिश्रण हैं।
  • साबुन दो विधियों से तैयार किया जा सकता है-ठण्डी विधि तथा गर्म विधि।
  • साबुन कई तरह के मिलते हैं-साबुन की चक्की, साबुन का चूरा, साबुन का पाऊडर, साबुन की लेस।
  • साबुन रहित सफाईकारी पदार्थ हैं-रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ।
  • सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरेक्स, एसिटिक एसिड, ऑम्जैलिक एसिड।
  • रंग काट दो तरह के होते हैं-ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच तथा रिड्यूसिंग ब्लीच।
  • नील, टीनोपाल आदि का प्रयोग कपड़ों को सफ़ेद रखने के लिए किया जाता है।
  • नील दो तरह के होते हैं-घुलनशील तथा अघुलनशील पदार्थ।
  • कपड़ों में ऐंठन अथवा अकड़न लाने वाले पदार्थ हैं-मैदा अथवा अरारोट, चावलों का पानी, आलू , गोंद, बोरैक्स।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

SST Guide for Class 9 PSEB मानव-संसाधन Textbook Questions and Answers

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें:

(i) भारत का विश्व में जनसंख्या के आकार के अनुसार …….. स्थान है।
(ii) अशिक्षित लोग समाज में परिसम्पत्ति की अपेक्षा ………….. बन जाते हैं।
(iii) देश की जनसंख्या का आकार, इसकी कार्यकुशलता, शैक्षिक योग्यता उत्पादकता आदि ………………… कहलाते हैं।
(iv) …………. क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों का उपयोग करके उत्पादन क्रियाएं की जाती है।
(v) ……… क्रियाएं वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन में सहायक होती हैं।

उत्तर-

  1. दूसरे
  2. दायित्व
  3. मानव संसाधन
  4.  प्राथमिक
  5. आर्थिक।

बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1. कृषि अर्थव्यवस्था किस क्षेत्र की उदाहरण है ?
(अ) प्राथमिक
(आ) सेवाएां
(इ) गौण।
उत्तर-
(अ) प्राथमिक

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प्रश्न 2.
कृषि क्षेत्र में 5 से 7 मास लोग बेकार रहते है, इस बेकारी को क्या कहते हैं ?
(अ) छिपी बेरोज़गारी
(आ) मौसमी बेरोज़गारी
(इ) शिक्षित बेरोज़गारी।
उत्तर-
(आ) मौसमी बेरोज़गारी

प्रश्न 3.
भारत में जनसंख्या की कार्यशीलता की आयु की सीमा क्या है ?
(अ) 15 वर्ष से 59 वर्ष तक
(आ) 18 वर्ष से 58 वर्ष तक
(इ) 16 वर्ष से 60 वर्ष तक।
उत्तर-
(अ) 15 वर्ष से 59 वर्ष तक

प्रश्न 4.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या है ?
(अ) 1210.19 मिलियन
(आ) 130 मिलियन
(इ) 121.19 मिलियन।
उत्तर-
(अ) 1210.19 मिलियन

सही/गलत :

  1. एक गृहिणी का अपने गृह में कार्य करना एक आर्थिक क्रिया है।
  2. नगर में अधिक छिपी हुई बेरोज़गारी होती है।
  3. मानव पूंजी में निवेश करने से देश विकसित होता है।
  4. अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक देश की जनसंख्या का स्वस्थ होना ज़रूरी है।
  5. सन् 1951 से 2011 तक भारत की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है।

उत्तर-

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दो प्राकृतिक साधनों के नाम बनाएं।
उत्तर-
दो प्राकृतिक साधन निम्न हैं1. वायु 2. खनिज।

प्रश्न 2.
जर्मनी एवं जापान जैसे देशों ने तीव्र गति से आर्थिक विकास कैसे किया ?
उत्तर-
जर्मनी तथा जापान जैसे देशों में मानव पूंजी निर्माण में निवेश करके तीव्र आर्थिक विकास किया है।

प्रश्न 3.
आर्थिक क्रियाएं क्या हैं ?
उत्तर-
आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जो धन कमाने के उद्देश्य से की जाती हैं।

प्रश्न 4.
गुरुप्रीत तथा मनदीप द्वारा की गई दो आर्थिक क्रियाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गुरुप्रीत खेत में काम करता है तथा मनदीप को एक निजी बस्ती में रोजगार मिल गया है।

प्रश्न 5.
गौण-क्षेत्र की कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर-
गौण-क्षेत्र के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. चीनी का गन्ने से निर्माण।
  2. कपास से कपड़े का निर्माण ।

प्रश्न 6.
गैर आर्थिक (अनार्थिक) क्रियाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गैर आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जो धन कमाने के उद्देश्य से नहीं की जाती हैं।

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प्रश्न 7.
जनसंख्या की गुणवत्ता के दो निर्धारकों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. अच्छी शिक्षा
  2. लोगों का अच्छा स्वास्थ्य।

प्रश्न 8.
सर्वाधिक साक्षर राज्य का नाम क्या है ?
उत्तर-
केरल।

प्रश्न 9.
6 से 14 वर्ष तक के आयु वर्ग के सभी बच्चों को एलीमैंटरी शिक्षा प्रदान करने के लिए उठाए गए कदम का नाम बताएं।
उत्तर-
सर्व शिक्षा अभियान।

प्रश्न 10.
भारत में जनसंख्या की कार्यशीलता आयु की सीमा क्या है ?
उत्तर-
15-59 वर्ष।

प्रश्न 11.
भारत सरकार द्वारा रोज़गार अवसर प्रदान करने के लिए उठाए गए दो कार्यक्रमों का नाम बताएं।
उत्तर-

  1. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना।
    संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना।

(स्व) लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव संसाधन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश की जनसंख्या का वह भाग जो कुशलता, शिक्षा उत्पादकता तथा स्वास्थ्य से संपन्न होता है उसे मानव संसाधन कहते हैं। मानव संसाधन एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधनों को अधिक उपयोगी बना देता है। एक देश जिसमें शिक्षित तथा प्रशिक्षित व्यक्ति अधिक संख्या में हों उनकी उत्पादकता अधिक होती है।

प्रश्न 2.
मानव संसाधन किस प्रकार भूमि व भौतिक पूंजी जैसे अन्य साधनों से श्रेष्ठ है ?
उत्तर-
मानव संसाधन अन्य साधनों जैसे भूमि व भौतिक पूंजी से इसलिए उत्तम है क्योंकि यह अन्य साधन स्वयं नियोजित नहीं हो सकते। मानव संसाधन ही इन साधनों का प्रयोग करता है। इस तरह बड़ी जनसंख्या एक दायित्व नहीं है। इन्हें मानवीय पूंजी में निवेश करके संपत्ति में बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए शिक्षा व स्वास्थ्य पर किया गया व्यय लोगों को प्रशिक्षित व शिक्षित तथा स्वस्थ बनाता है जिससे आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके देश का विकास किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
आर्थिक व अनार्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है।
उत्तर-
इनमें भेद निम्न हैं-

आर्थिक क्रियाएं अनार्थिक क्रियाएं
1. आर्थिक क्रियाएं अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं का प्रवाह करती हैं। 1. अनार्थिक क्रियाओं से वस्तुओं व सेवाओं का कोई  प्रवाह अर्थव्यवस्था में नहीं होता।
2. जब आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ है अर्थव्यवस्था प्रगति में है। 2. अनार्थिक क्रियाओं में होने वाली कोई भी वृद्धि अर्थव्यवस्था की प्रगति की निर्धारक नहीं है।
3. आर्थिक क्रियाओं से वास्तविक व राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। 3. अनार्थिक क्रियाओं में से कोई राष्ट्रीय आय व वास्तविक आय में वृद्धि नहीं होती।

 

प्रश्न 4.
मानव पूंजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
शिक्षा मानव पूंजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है-

  1. शिक्षा आर्थिक तथा सामाजिक विकास का मुख्य साधन है।
  2. शिक्षा विज्ञान और तकनीक के विकास में सहायता करती है।
  3. शिक्षा श्रमिकों की कार्यकुशलता को बढ़ाती है।
  4. शिक्षा लोगों की मानसिक क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता करता है।
  5. शिक्षा राष्ट्रीय आय को बढ़ाती है। प्राकृतिक गुणवत्ता को बढ़ाती है और प्राथमिक कुशलता में वृद्धि करती है।

प्रश्न 5.
भारत सरकार द्वारा शिक्षा के प्रसार के लिए कौन-से कदम उठाए गए हैं।
उत्तर-
भारत सरकार ने निम्न कदम उठाए हैं :

  1. शिक्षा संस्थानों का निर्माण किया जा रहा है।
  2. प्राथमिक विद्यालयों को लगभग 5,00,000 गांवों में खोला गया है।
  3. ‘सर्व शिक्षा अभियान’ सभी को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करवाने की सिफ़ारिश करती है जो 6-14 वर्ष के सभी बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देती है।
  4. बच्चों के पौष्टिक स्तर को बढ़ाने के लिए ‘मिड-डे-मील’ योजना शुरू की गई है।
  5. सभी जिलों में नवोदय विद्यालय खोले गए हैं।

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प्रश्न 6.
बेरोज़गारी शब्द की व्याख्या करें। देश की बेरोज़गारी दर को निर्धारित करते समय किस वर्ग के लोगों को सम्मिलित नहीं किया जाता ?
उत्तर-
बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें वह व्यक्ति जो प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने को तैयार होता है पर उसे काम नहीं मिलता है। किसी देश में कार्यशील जनसंख्या वह जनसंख्या होती है जो 15-59 वर्ष की आयु के बीच होती है। 15 से कम आयु के बच्चों और 59 से अधिक आयु के वृद्ध यदि काम ढूंढ़ते भी हैं तो उन्हें बेरोज़गार नहीं कहा जाता।

प्रश्न 7.
भारत में बेरोजगारी के दो कारण बताएं।
उत्तर-
कारण (Causes)-

  1. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population)-भारत में बेरोज़गारी का मुख्य कारण जनसंख्या में होने वाली वृद्धि है। जनसंख्या बढ़ने से देश को संपत्ति का एक बड़ा भाग इस जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने में खर्च हो जाता है और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के लिए कम साधन बचते हैं।
  2. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली (Defected Education System) सरकार ने लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए कई कॉलेजों और स्कूलों की स्थापना की है जिसमें आज करोड़ों छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। परंतु उनको रोज़गार नहीं मिलता जिसका मुख्य कारण दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली का होना है।

प्रश्न 8.
छिपी बेरोज़गारी व मौसमी बेरोज़गारी में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-

छिपी बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी
1. नगरीय क्षेत्र बेरोज़गारी का वह प्रश्न है जिसमें श्रमिक कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर ये वास्तव में होते नहीं हैं। 1. यह बेरोज़गारी का वह प्रकार है जिसमें श्रमिक कुछ  विशेष मौसम में ही कार्य प्राप्त करते हैं।
2. यह प्रायः कषि क्षेत्र में पायी जाती है। 2. वह प्रायः कृषि संबंधी उद्योगों में पायी जाती है।
3. यह प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। 3. वह ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में पायी जाती है।

 

प्रश्न 9.
नगरीय क्षेत्र में शिक्षित बेकारी में तीव्र गति से क्यों वृद्धि हो रही है ?
उत्तर-
शिक्षित बेरोज़गारी शहरी बेरोज़गारी का उदाहरण हैं। यह शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक पाई जाती है। शहरों में तीव्र गति से खुलने वाले स्कूल व शैक्षिक संस्थानों से शिक्षित बेरोज़गारी को बढ़ाया है क्योंकि रोज़गार का स्तर इतना नहीं बढ़ा है जितनी विद्यालयों की संख्या बढ़ी है।

प्रश्न 10.
बेरोज़गार लोग समाज के लिए परिसम्पत्ति की अपेक्षा बोझ (देनदारी) क्यों बन जाते हैं। स्पष्ट करो।
उत्तर-
बेरोजगार व्यक्ति एक देश के लिए संपत्ति के स्थान पर दायित्व होता है क्योंकि इससे मानव शक्ति संसाधनों का दुरुपयोग होता है। बेरोज़गारी गरीबी को बढ़ाता है। इससे निराशा की स्थिति उत्पन्न होती है। बेरोज़गार लोग कार्यशील जनसंख्या पर निर्भर रहते हैं।

प्रश्न 11.
अशिक्षित व कमज़ोर स्वास्थ्य वाले लोग अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-
जनसंख्या की गुणवत्ता किसी देश की संवृद्धि का निर्धारण करती है। शिक्षित जनसंख्या देश के लिए संपत्ति होती है तथा अस्वस्थ लोग अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व होता है। किसी देश की संवृद्धि के लिए शिक्षित जनसंख्या एक महत्त्वपूर्ण आगत है। यह आधुनिकीकरण तथा सामर्थ्य को बढ़ाता है। शिक्षित व्यक्ति न केवल अपनी व्यक्तिगत संवृद्धि को मानव-संसाधन बढ़ाता है बल्कि समुदाय की भी संवृद्धि बढ़ाता है। जबकि दूसरी ओर अस्वस्थता वह स्थिति है जिसमें लोग शारीरिक व बौद्धिक रूप से ठीक नहीं होते हैं।

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अन्य अभ्यास के प्रश्न

क्रिया-1

अपने गांव अथवा अपनी कॉलोनी में जाकर मालूम करें कि:
(i) भिन्न-भिन्न घरों की औरतें गृहकार्य करती हैं अथवा बाहर कार्य करने जाती है ?
(ii) उनका कार्य आर्थिक क्रिया में आता है अथवा गैर आर्थिक क्रिया में ?
(iii) आर्थिक व गैर-आर्थिक क्रियाओं के दो-दो उदाहरण दें।
(iv) आपके घर में आपकी माता जी द्वारा किया गया कार्य आर्थिक अथवा गैर-आर्थिक क्रिया में किस के अंतर्गत आता
उत्तर-

  1. मेरे गांव में अधिकतर महिलाएं अपने घरों में ही कार्य करती हैं। कुछ महिलाएं बाहर काम करने भी जाती हैं। जो दफ्तरों में दूसरे घरों में साफ़-सफाई के लिए भी जाती हैं।
  2. जो महिलाएं अपने घरों में घरेलू कार्य कर रही हैं जैसे खाना बनाना, साफ सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना, पशुओं को चारा डालना आदि सभी क्रियाएं गैर आर्थिक क्रियाएं ही हैं। दूसरी ओर जो महिलाएं दफ्तरों में कार्य कर रही हैं तथा दूसरों के घरों में काम कर रही हैं वे क्रियाएं आर्थिक क्रियाएं हैं।
  3. आर्थिक क्रिया के उदाहरण-
    • राज द्वारा एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में कार्य करना
    • डॉक्टर द्वारा अस्पताल में रोगियों की देखभाल करना।
      गैर-आर्थिक क्रिया के उदाहरण-

      •  गृहिणी द्वारा किया गया घरेलू कार्य
      • एक अध्यापक द्वारा अपने बच्चे को घर में पढ़ाना।
      • मेरी माता जी एक अध्यापिका हैं। उनका कार्य आर्थिक क्रिया में आता है।

क्रिया-2

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन 1
जनगणना वर्ष के आंकड़े
ग्राफ 2.1 भारत में साक्षरता दर

ग्राफ 2.1 का अध्ययन कीजिए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(i) क्या वर्ष 1951 से 2011 तक व्यक्तियों की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है ?
(ii) भारत ने किस वर्ष 50% की साक्षरता दर को पार किया ?
(iii) किस वर्ष भारत की साक्षरता दर सर्वाधिक रही ?
(iv) महिलाओं की साक्षरता दर किस वर्ष अधिकतम है ?
(v) अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए। भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की साक्षरता दर कम क्यों है ?
उत्तर-

  1. हाँ वर्ष 1951 से 2011 तक साक्षरता-दर लगातार बढ़ी है जो कि ग्राफ 2.1 से स्पष्ट है।
  2. वर्ष 2001 में भारत में साक्षरता दर 50% से पार हुई थी।
  3. वर्ष 2011 में भारत की साक्षरता-दर सबसे अधिक है।
  4. वर्ष 2011 में महिलाओं की साक्षरता-दर सबसे अधिक है।
  5. भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की साक्षरता-दर इसलिए कम है क्योंकि लोग लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को स्कूल कम भेजते हैं। लड़कियों को ये घरेलू कार्यों में लगा देते हैं।

क्रिया-3

तालिका 2.2. भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार स्वास्थ्य सुविधाएं
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन 2

आइए चर्चा करें:

सारणी 2.2 को पढ़िए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) वर्ष 1951 से 2010 तक डिसपैंसरी व अस्पतालों की संख्या में कितनी वृद्धि है।
(ii) वर्ष 2001 से 2013 तक चिकित्सकों की संख्या में कितनी वृद्धि हुई।
(iii) वर्ष 1981 से 2013 तक स्वास्थ्य संस्थाओं में बैडों की संख्या कितनी वृद्धि हुई।
(iv) अपने गांव अथवा निकटवर्ती गांव की डिसपैंसरी में जाकर मालूम कीजिए तथा ज्ञात कीजिए कि इनमें कौन-सी सुविधाएं दी जा रही हैं तथा किन की आवश्यकता अधिक है ?
उत्तर-

  1. तालिका 2.2 से स्पष्ट है कि वर्ष 1951 से 2010 तक औषधालयों व अस्पतालों की संख्या बढ़ी नहीं है। अर्थात् कुछ वर्षों में बढ़ी है तथा कुछ में कम हुई है।
  2. हाँ, वर्ष 2001 से 2016 तक डॉक्टरों की संख्या बढ़ी है।
  3. हाँ, वर्ष 1981-2016 तक बिस्तरों की संख्या बढ़ी है।
  4. नज़दीक के औषधालय का दौरा करने से ज्ञात हुआ कि वहाँ स्टॉफ की कमी थी। यहाँ तक कि वहाँ डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं था। केवल एक थर्मासिस्ट व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। अन्य सुविधाएं ठीक थीं।

PSEB 9th Class Social Science Guide मानव-संसाधन Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें :

  1. जनसंख्या के आकार में चीन विश्व में ……… स्थान पर है।
  2. अस्वस्थ लोग समाज के लिए ………. होते हैं न कि एक परिसंपत्ति।
  3. जापान ने …………… संसाधनों में निवेश किया है।
  4. गृहणी द्वारा किया गया घरेलू कार्य एक …………… क्रिया है।
  5. वर्ष 2011 में भारत में …………. राज्य की साक्षरता दर सबसे कम थी।
  6. 2011 जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर ………… प्रतिशत है।

उत्तर-

  1. पहला
  2. दायित्व
  3. मानव
  4. गैर-आर्थिक
  5. बिहार
  6. 74.

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर हो सकती है ? …
(क) दायित्व
(ख) परिसंपत्ति
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) उपरोक्त दोनों

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प्रश्न 2.
मानव पूंजी निर्माण किस में निवेश से होता है ?
(क) शिक्षा
(ख) चिकित्सा
(ग) प्रशिक्षण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारत में मानव पूंजी निर्माण को दर्शाता है-
(क) हरित क्रांति
(ख) सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) मज़दूर क्रांति।
उत्तर-
(ख) सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति

प्रश्न 4.
शीला द्वारा अपने घर में खाना बनाना, कपड़े धोना, बर्तन साफ करना आदि कौन-सी क्रिया है ?
(क) आर्थिक
(ख) ग़ैर-आर्थिक
(ग) धन क्रिया
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) ग़ैर-आर्थिक

प्रश्न 5.
कृषि, वानिकी व पशुपालन कौन-से क्षेत्रक के अंतर्गत आते हैं ?
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) प्राथमिक

प्रश्न 6.
उत्खनन और विनिर्माण किस क्षेत्रक में आते हैं ?
(क) द्वितीयक
(ख) तृतीयक
(ग) प्राथमिक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) द्वितीयक

प्रश्न 7.
व्यापार, परिवहन, संचार व बैंकिंग सेवाएं आदि कौन-से क्षेत्रक में आती हैं ?
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) तृतीयक

प्रश्न 8.
भारत में जीवन प्रत्याशा कितने वर्ष है ?
(क) 66
(ख) 70
(ग) 55
(घ) 75.8.
उत्तर-
(घ) 75.8.

प्रश्न 9.
भारत में अशोधित जन्म-दर प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे कितनी है ?
(क) 26.1
(ख) 28.2
(ग) 20.4
(घ) 35.1.
उत्तर-
(क) 26.1

प्रश्न 10.
भारत में मृत्यु-दर प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे कितनी है ?
(क) 9.8
(ख) 8.7
(ग) 11.9
(घ) 25.1.
उत्तर-
(ख) 8.7

प्रश्न 11.
2001 में भारत में साक्षरता-दर कितने प्रतिशत थी ?
(क) 65
(ख) 75
(ग) 60
घ) 63.
उत्तर-
(क) 65

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प्रश्न 12.
2001 में ग्रामीण क्षेत्र में कौन-सी बेरोज़गारी पायी जाती है ?
(क) मौसमी
(ख) प्रच्छन्न बेरोज़गारी।
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) ऐच्छिक बेरोज़गारी।
उत्तर-
(ग) उपरोक्त दोनों

प्रश्न 13.
नगरीय क्षेत्रों में कौन-सी बेरोज़गारी अधिकांशतः पायी जाती है ?
(क) मौसमी
(ख) ऐच्छिक
(ग) प्रच्छन्न
(घ) शिक्षित।
उत्तर-
(घ) शिक्षित।

प्रश्न 14.
श्रमिकों का गांव से शहरों की ओर काम की तलाश में जाना क्या कहलाता है ?
(क) प्रवास
(ख) आवास
(ग) खोज
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) प्रवास

प्रश्न 15.
देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि किसके निवेश से होती है ?
(क) भूमि में
(ख) भौतिक पूंजी में
(ग) मानव पूंजी में
(घ) उपरोक्त सभी में।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी में।

प्रश्न 16.
इनमें से कौन प्राथमिक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिमय
(ग) संचार
(घ) व्यापार।
उत्तर-
(क) कृषि

प्रश्न 17.
इनमें से कौन द्वितीयक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिर्माण
(ग) संचार
(घ) बैंकिंग।
उत्तर-
(ख) विनिर्माण

प्रश्न 18.
इनमें से कौन तृतीयक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिर्माण
(ग) बैंकिंग
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) बैंकिंग

प्रश्न 19.
आर्थिक क्रियाएं कितने प्रकार की होती हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(ख) दो

प्रश्न 20.
किस वर्ष भारत में साक्षरता-दर सबसे अधिक थी ?
(क) 2001
(ख) 1991
(ग) 2000
(घ) 1981.
उत्तर-
(क) 2001

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प्रश्न 21.
किस प्रकार के लोग समाज के लिए दायित्व होते हैं ?
(क) शिक्षित
(ख) स्वस्थ
(ग) अस्वस्थ
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अस्वस्थ

प्रश्न 22.
भारत में सर्व शिक्षा अभियान कब लागू किया गया ?
(क) 2008
(ख) 2010
(ग) 2007
(घ) 2005.
उत्तर-
(ख) 2010

प्रश्न 23.
इनमें से किस देश ने मानव संसाधन पर अधिक मात्रा में निवेश किया है?
(क) पाकिस्तान
(ख) चीन
(ग) भारत
(घ) जापान।
उत्तर-
(घ) जापान।

प्रश्न 24.
इनमें से कौन एक बाज़ार क्रिया है?
(क) एक शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना।
(ख) एक शिक्षक द्वारा अपने बच्चे को पढ़ाना।
(ग) एक कृषक द्वारा स्वयं उपभोग के लिए सब्जियां उगना।
(घ) एक माता द्वारा बच्चों की देखभाल करना।
उत्तर-
(क) एक शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना।

सही/गलत :

  1. शिक्षित व स्वस्थ जनसंख्या दायित्व होती है।
  2. 2011 जनगणना के अनुसार पुरुषों की साक्षरता दर 82.10 प्रतिशत है।
  3. ‘ भारत में वर्ष 1983 से 2011 तक औसत बेरोज़गारी दर 9 प्रतिशत रही है।
  4. गुणवत्ता वाली जनसंख्या अच्छी शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर निर्भर नहीं करती है।
  5. खनन तथा वानिकी द्वितीय क्षेत्र की क्रियाएं हैं।

उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. गलत।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या मानव पूंजी में कब बदलती है ?
उत्तर-
जब शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूंजी में बदल जाती है।

प्रश्न 2.
मानव पूंजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा विकसित किया जाता है तो उसे मानव पूंजी निर्माण कहते हैं।

प्रश्न 3.
मानव पूंजी निर्माण के भारत को दो लाभ बताएं।
उत्तर-
मानव पूंजी निर्माण से भारत में हरित क्रांति आई है जिससे खाद्यान्नों की उत्पादकता में कई गुणा वृद्धि हुई है। मानव पूंजी निर्माण से ही भारत में सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांति एक आश्चर्यजनक उदाहरण है।

प्रश्न 4.
जापान कैसे विकसित देश बना ?
उत्तर-
जापान ने मानव संसाधन पर निवेश किया है। उनके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। वे अब अपने देश के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों का आयात कर लेते हैं।

प्रश्न 5.
क्या 1951 से जनसंख्या की साक्षरता-दर बढ़ी है ?
उत्तर-
हां, साक्षरता-दर 1951 के 18 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 65 प्रतिशत हो गई है।

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प्रश्न 6.
कोई देश विकसित कैसे बन सकता है ?
उत्तर-
कोई भी देश लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश से विकसित बन सकता है।

प्रश्न 7.
भारत में जीवन प्रत्याशा कितनी है ?
उत्तर-
यह वर्ष 2017 में 75.8 वर्ष थी।

प्रश्न 8.
बेरोज़गारी क्या होती है ?
उत्तर-
बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सकते।

प्रश्न 9.
जन्म-दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जन्म-दर से अभिप्राय प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं, उससे है।

प्रश्न 10.
मृत्यु-दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर–
प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने लोगों की मृत्यु होती है वही मृत्यु-दर कहलाती है।

प्रश्न 11.
बेरोज़गारी क्या है ?
उत्तर-
एक स्थिति जिसमें श्रमिक बाज़ार में प्रचलित मज़दूरी पर काम करने को तैयार हैं पर उन्हें काम नहीं मिलता है।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आय क्या होती है ?
उत्तर-
यह एक देश द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं का कुल योग होता है।

प्रश्न 13.
सर्व शिक्षा अभियान क्या है ?
उत्तर-
यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें 6-14 वर्ष के सभी आयु वर्ग के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 14.
कार्य बल संख्या में किस वर्ग की जनसंख्या को शामिल किया गया है ?
उत्तर-
कार्य बल जनसंख्या में 15 से 59 वर्ष के व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 15.
किसी कार्य को करने के लिए पांच व्यक्ति चाहिए पर उसमें 8 व्यक्ति लगे हैं। इसे कौन-सी बेरोज़गारी कहा जाएगा?
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी।

प्रश्न 16.
मौसमी बेरोज़गारी क्या है ?
उत्तर-
इस तरह की बेरोज़गारी में व्यक्ति वर्ष के कुछ विशेष महीनों में कार्य प्राप्त कर पाते हैं।

प्रश्न 17.
इनमें से कौन-से तत्त्व मानव के विकास के गुणों को बढ़ाते हैं ?
उत्तर-
शिक्षा तकनीकी एवं स्वास्थ्य।

प्रश्न 18.
तृतीयक कार्य क्षेत्र से संबंधित दो कार्य क्षेत्र बताएं।
उत्तर-

  1. परिवहन
  2. बैंकिंग।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या की गुणवत्ता की व्याख्या करें।
उत्तर-
जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता-दर, जीवन-प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वाराप्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है। यह अंततः देश की संवृद्धि-दर निर्धारित करती है। अस्वस्थ व निरक्षर जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर बोझ होती है तथा स्वस्थ व साक्षर जनसंख्या परिसंपत्तियां होती हैं।

प्रश्न 2.
शिक्षा के महत्त्व की व्याख्या करें।
उत्तर-
शिक्षा का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. शिक्षा अच्छी नौकरी और अच्छे वेतन के रूप में फल देती है।
  2. यह विकास के लिए महत्त्वपूर्ण आगत है।
  3. इससे जीवन के मूल्य विकसित होते हैं।
  4. यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है।
  5. यह प्रशासन की कार्य-क्षमता बढ़ाती है।

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प्रश्न 3.
बेरोज़गारी के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
बेरोज़गारी के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं

  1. बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं, बेरोज़गारी के कारण बोझ में बदल जाते हैं।
  2. इससे युवकों में निराशा और हताशा की भावना बढ़ती है।
  3. बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती है।
  4. इससे समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  5. किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का अधिकतर प्रभाव पड़ता है। इसमें वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था का सूचक है।

प्रश्न 4.
छिपी बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
छिपी बेरोज़गारी या प्रच्छन्न बेरोज़गारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं, उनके पास भूमि होती है, जहां उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में पांच लोगों की आवश्यकता है लेकिन उसमें आठ लोग होते हैं। इनमें तीन अतिरिक्त हैं। अगर तीन लोगों को हटा दिया जाए तो खेत की उत्पादकता में कोई कमी नहीं आएगी। खेत में पांच लोगों के काम की आवश्यकता है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से नियोजित हैं।

प्रश्न 5.
मौसमी बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी तब होती है, जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं। वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बुआई, कटाई और गहाई होती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।

प्रश्न 6.
शिक्षित बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
शहरी क्षेत्रों के मामले में शिक्षित बेरोज़गारी एक सामान्य परिघटना बन गई है। मैट्रिक स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री धारी अनेक युवक रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की तुलना में स्नातक युवकों में बेरोज़गारी अधिक तेजी से बढ़ी है। एक विरोधाभासी जनशक्ति स्थिति सामने आई है कि कुछ विशेष श्रेणियों में जनशक्ति के आधिक्य के साथ ही कुछ अन्य श्रेणियों में जनशक्ति की कमी विद्यमान है।

प्रश्न 7.
बाज़ार व गैर-बाज़ार क्रियाओं का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक भुगतान किया जाता है। इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु सेवाओं का उत्पादन शामिल है। गैर-बाज़ार क्रियाओं से अभिप्राय स्व- उपभोग के लिए उत्पादन है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।

प्रश्न 8.
जनसंख्या एक मानवीय साधन है, व्याख्या करें।
उत्तर-
यह विशाल जनसंख्या का एक सकारात्मक पहलू है जिसे प्रायः उस वक्त अनदेखा कर दिया जाता है जब हम इसके नकारात्मक पहलू को देखते हैं अर्थात् भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक जनसंख्या की पहुंच की समस्याओं पर विचार करते समय। जब इस विद्यमान मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा विकसित किया जाता है, तब हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं।

प्रश्न 9.
द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रों में कौन-सी क्रियाएँ की जानी हैं ?
उत्तर-
द्वितीयक क्षेत्रों में उत्खनन और विनिर्माण शामिल है, जबकि तृतीयक क्षेत्र में परिवहन, बैंकिंग, संचार, बीमा, व्यापार, शिक्षा आदि किए जाते हैं।

प्रश्न 10.
आर्थिक क्रियाएं क्या होती हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर-
आर्थिक क्रियाएं वह क्रियाएं होती हैं जिनके फलस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। ये क्रियाएं राष्ट्रीय आय में मूल्य वर्धन करते हैं। आर्थिक क्रियाएं दो प्रकार की होती हैं।-
1. बाज़ार क्रियाएं
2. गैर-बाज़ार क्रियाएं।।

  1. बाज़ार क्रियाएं-बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है।
  2. गैर-बाज़ार क्रियाएं-इसमें स्व-उपभोग के लिए उत्पादन क्रियाओं को शामिल किया जाता है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।

प्रश्न 11.
बाज़ार क्रियाओं व गैर-बाज़ार क्रियाओं में भेद करें।
उत्तर-
बाज़ार क्रियाओं व गैर-बाज़ार क्रियाओं में निम्नलिखित अंतर हैं-

बाज़ार क्रियाएं गैर-बाज़ार क्रियाएं
1. बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई सेवाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। 1. गैर-बाज़ार क्रियाओं में स्व: उपभोग के लिए उत्पादन किया जाता है।
2. इसमें वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन सरकारी सेवाओं के साथ किया जाता है। 2. इसमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण एवं अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।
3. इसके मुख्य उदाहरण, शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना, खनन का कार्य इत्यादि हैं। 3. प्राथमिक उत्पादों का उपभोग व अचल संपत्तियों का स्वलेखा आदि इसके उदाहरण हैं।

 

प्रश्न 12.
1. ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाने वाली दो प्रकार की बेरोज़गारियां कौन-सी हैं ?
2. उन चार कारणों को बताएं जिन पर संख्या की गुणवत्ता निर्भर करती है।
3. कौन-सा क्षेत्रक (प्राथमिक क्षेत्रक में ) अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक जनशक्ति को नियोजित करता है?
उत्तर-

1.

  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी तथा
  • मौसमी बेरोज़गारी या ग्रामीण क्षेत्रों में पाए जाने वाली दो मुख्य बेरोज़गारियां हैं।

2.

  • स्वास्थ्य
  • जीवन प्रत्याशा
  • शिक्षा
  • कार्यकुशलता।

3.कृषि क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जो अर्थव्यवस्था में अधिकतर जनशक्ति को नियोजित करता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 13.
1. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो प्राथमिक क्षेत्र में की जाती हैं।
2. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो तृतीय क्षेत्र में की जाती हैं।
3. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो द्वितीय क्षेत्र में की जाती हैं।
उत्तर-
1.

  • मत्सय पालन
  • खनन

2.

  • बैंकिंग
  • बीमा

3.

  • उल्ख नन
  • विनिर्माण।

प्रश्न 14.
1. ऐसे चार तत्व बताएं जो मानव संसाधन की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं ?
2. उत्पादन के चार संसाधनों के नाम बताएं।
उत्तर-
1.

  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • तकनीकी
  • प्रशिक्षण।

2.

  • भूमि
  • पूंजी
  • श्रम
  • उद्यमी।

प्रश्न 15.
सर्व शिक्षा अभियान क्या है?
उत्तर-
सर्व शिक्षा अभियान 6-14 वर्ष आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को वर्ष 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। राज्यों, स्थानीय सरकारों और प्राथमिक शिक्षा सार्वभौमिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समुदाय की सहभागिता के साथ केंद्रीय सरकार की एक समयबद्ध पहल है।

प्रश्न 16.
1. कृषि क्षेत्र में कौन-सी बेरोज़गारियां पाई जाती हैं ?
2. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का अर्थ बताएं।
उत्तर-

  1. प्रच्छन्न व मौसमी बेरोज़गारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।
  2. प्रच्छन्न बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें लोग कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वे होते नहीं हैं।

प्रश्न 17.
मानव पूंजी में किया जाने वाला निवेश बाद में बदलकर भौतिक पूंजी में किए गए निवेश का रूप धारण कर लेता है। व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. मानव पूंजी श्रमिकों की उत्पादकता को बढ़ाता है।
  2. मानव पूंजी श्रमिकों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है।
  3. स्वस्थ, शिक्षित व प्रशिक्षित व्यक्ति उत्पादन के साधनों का कुशल प्रयोग कर सकते हैं।
  4. एक देश मानव संसाधनों का निर्यात करके विदेशी विनिमय प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 18.
इन सभी कार्यों को प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक समूहों में बांटे।
बैंकिंग, बीमा, डेयरी, उत्खनन, खनन, संचार, शिक्षा, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, कृषि, विनिर्माण, वानिकी, पर्यटन तथा व्यापार।
उत्तर-

प्राथमिक क्षेत्र द्वितीयक क्षेत्र तृतीयक क्षेत्र
1. डेयरी 1. उत्खनन 1. बैंकिंग
2. खनन 2. विनिर्माण 2. बीमा
3. मत्स्य पालन 3. संचार
4. मुर्गी पालन 4. शिक्षा
5. कृषि 5. पर्यटन
6. वानिकी 6. व्यापार।

 

प्रश्न 19.
शिक्षा के क्षेत्र में दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-
शिक्षा के क्षेत्र में दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. दसवीं योजना अंत तक उच्च शिक्षा में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में वर्तमान 6 प्रतिशत से 9 प्रतिशत तक की वृद्ध करने का प्रयास किया गया है।
  2. यह रणनीति पहुंच में वृद्धि, गुणवत्ता, राज्यों के लिए विशेष पाठ्यक्रम में परिवर्तन को स्वीकार करना, व्यवसायीकरण तथा सूचना प्रौद्योगिकों के उपयोग का जाल बिछाने पर केंद्रित है।
  3. दसवीं योजना दूरस्थ शिक्षा, संचार प्रौद्योगिकी की शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केंद्रित है।

प्रश्न 20.
बेरोज़गारी क्या है? भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकार क्या हैं ?
उत्तर-
बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें श्रमिक मज़दूरी की वर्तमान दर पर काम करने को तैयार होते हैं पर उन्हें काम नहीं मिलता है।
बेरोज़गारी के प्रकार-

  1. मौसमी बेरोजगारी
  2. शिक्षित बेरोज़गारी
  3. प्रच्छन्न बेरोज़गारी
  4. संरचनात्मक बेरोज़गारी
  5. तकनीकी बेरोज़गारी।

प्रश्न 21.
ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाने वाली दो प्रकार की मुख्य बेरोज़गारी क्या है ? इसके लिए मुख्य चार कारण बताएं।
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी व प्रच्छन्न बेरोज़गारी ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाने वाली मुख्य बेरोज़गारियां हैं। कारण-

  1. कृषि क्षेत्र में विविधता की कमी।
  2. पूंजी की कमी।
  3. अति जनसंख्या के कारण बड़े परिवार।
  4. लघु व कुटीर उद्योग का अल्पविकास।

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प्रश्न 22.
प्रच्छन्न बेरोज़गारी व शिक्षित बेरोज़गारी में अंतर करें।
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी व शिक्षित बेरोज़गारी में निम्नलिखित अंतर हैं :

प्रच्छन्न बेरोजगारी शिक्षित बेरोजगारी
1. प्रच्छन्न बेरोज़गारी वह बेरोज़गारी है जिसमें व्यक्ति कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वह होते नहीं हैं। 1. शिक्षित बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति शिक्षित होते हैं पर उनके पास रोज़गार नहीं होता है।
2. यह प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। 2. यह प्रायः शहरी क्षेत्रों में पायी जाती है।

 

प्रश्न 23.
तीनों क्षेत्रकों में रोज़गार की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. प्राथमिक क्षेत्रक-भारत में, प्राथमिक क्षेत्रक में अर्थव्यवस्था की अधिकतर जनसंख्या नियोजित है। परंतु इसमें प्रच्छन्न बेरोज़गारी विद्यमान है। इसमें अब और अधिक व्यक्ति नियोजित करने की क्षमता नहीं है। इसलिए बाकी श्रमिक द्वितीयक व ततीयक क्षेत्रों की ओर जा रहे हैं।
  2. द्वितीयक क्षेत्रक-द्वितीयक क्षेत्रक में लघु स्तरीय विनिर्माण भी अधिक व्यक्तियों को रोज़गार प्रदान करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में और अधिक व्यक्तियों को नियोजित करने के लिए गांवों में कुटीर उद्योगों की स्थापना की जानी चाहिए।
  3. तृतीयक क्षेत्रक-तृतीयक क्षेत्र भारत में से बेरोज़गारी को दूर करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक है।

प्रश्न 24.
मौसमी बेरोज़गारी क्या होती है? इस बेरोज़गारी के लिए उत्तरदायी मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी तब होती है जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं।
कारण-

  1. कृषि की विविधता में कमी।।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं कुटीर उद्योगों की कमी।
  3. कृषि के व्यापारीकरण का अभाव।

प्रश्न 25.
प्रच्छन्न बेरोज़गारी क्या है? उदाहरण सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते है। उनके पास भूखंड होता है, जहाँ उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में पांच लोगों की आवश्यकता होती है लेकिन उसमें आठ लोग लगे होते हैं। इसमें तीन लोग अतिरिक्त हैं। ये तीनों इसी खेत पर काम करते हैं जिस पर पांच लोग काम करते हैं। इन तीनों द्वारा किया गया अंशदान पांच लोगों द्वारा किए गए योगदान में कोई बढ़ोत्तरी नहीं करता। यदि तीन लोगों को हटा दिया जाए तो उत्पादकता में कोई कमी नहीं आयेगी। खेत में पांच लोगों के काम की आवश्यकता होती है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से नियोजित होते हैं।

प्रश्न 26.
मानवीय पूंजी उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्यों हैं ? तीन कारण दें।
उत्तर-
मानवीय पूंजी उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन निम्नलिखित कारणों से हैं-

  1. कुछ उत्पादन क्रियाओं में ज़रूरी कार्यों को करने के लिए बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे कर्मियों की ज़रूरत होती है।
  2. बहुत-सी क्रियाओं में शारीरिक कार्य करने वाले श्रमिकों की ज़रूरत होती है।
  3. केवल मानवीय पूंजी में ही उद्यमवृत्ति का गुण पाया जाता है।

प्रश्न 27.
जापान जैसे देश कैसे धनी व विकसित बने ? तीन कारणों से व्याख्या करें।
उत्तर-
जापान जैसे देश के धनी व विकसित बनने के तीन कारणों की व्याख्या निम्नलिखित है-

  1. उन्होंने लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश किया है।
  2. उन लोगों ने भूमि और पूंजी जैसे अन्य संसाधनों का कुशल उपयोग किया है।
  3. इन लोगों ने जो कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की, उसी से ये देश धनी व विकसित बने हैं।

प्रश्न 28.
भारत में स्वास्थ्य स्तर की स्थिति की व्याख्या करें।
उत्तर-
किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। अस्वस्थ लोग किसी संगठन के लिए बोझ बन जाते हैं। वास्तव में, स्वास्थ्य अपना कल्याण करने का एक अपरिहार्य आधार है। इसलिए जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी देश की प्राथमिकता होती है। हमारी राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य भी जनसंख्या के अल्प सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पोष्टिक सेवा तक इनकी पहुंच को बेहतर बनाना है। पिछले पांच दशकों में भारत ने सरकारी और निजी क्षेत्रों में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक सेवाओं के लिए आपेक्षित एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारित संरचना और जनशक्ति का निर्माण किया है।

प्रश्न 29.
बेरोज़गारी क्या है ? इसके मुख्य प्रभाव क्या होते हैं ?
उत्तर-
बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सके। प्रभाव-बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं, बेरोज़गारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं, युवकों में निराशा और हताशा की भावना होती है। लोगों के पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती। शिक्षित लोगों के साथ जो कार्य करने के इच्छुक हैं और सार्थक रोजगार प्राप्त करने में असमर्थ हैं, यह एक बड़ा सामाजिक अपव्यय है। बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती है। किसी व्यक्ति और साथ-ही साथ समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 30.
मानव पूंजी निर्माण क्या है ? मानव पूंजी संसाधन अन्य संसाधनों से भिन्न कैसे हैं ?
उत्तर-
मानव पूंजी निर्माण से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति उपलब्ध करवाना और उनकी संख्या में वृद्धि करना है जो शिक्षित, कुशल तथा अनुभव संपन्न हों, जो एक देश के आर्थिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है। व्यक्तियों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं, उनकी जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, शिशु मृत्यु-दर में कमी करके और उनको तकनीकी ज्ञान देकर उन्हें मानव पूंजी बनाया जा सकता है। मानव पूंजी संसाधन भूमि व भौतिक पूंजी जैसे अन्य संसाधनों से भिन्न है क्योंकि मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूंजी जैसे अन्य संसाधनों का प्रयोग कर सकता है। अन्य साधन अपने आप उपयोगी नहीं हो सकते।

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प्रश्न 31.
1. सकल राष्ट्रीय उत्पादक क्या होता है?
2. जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं है, फिर भी वे विकसित देश कैसे हैं ? कारण बताएं।
उत्तर-

  1. सकल राष्ट्रीय उत्पादन एक देश के निवासियों के द्वारा एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादक का मूल्य है।
    • जापान देश ने मानव संसाधन पर भारी निवेश किया है।
    • उन्होंने लोगों में विशेष रूप से उनकी शिक्षा व स्वास्थ्य पर निवेश किया।
    • शिक्षित व स्वस्थ व्यक्ति भूमि व पूंजी जैसे साधनों का अधिक कुशल उपयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 32.
किसी देश के लिए उसकी जनसंख्या के स्वास्थ्य के स्तर में सुधार करना मुख्य पहल होती है। कारण बताएं।
उत्तर-

  1. अच्छा स्वास्थ्य श्रमिकों की निपुणता को बढ़ाता है।
  2. एक अस्वस्थ श्रमिक देश के लिए दायित्व होता है।
  3. स्वस्थ नागरिक उत्पादन का मूलभूत संसाधन होता है।
  4. किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है।

प्रश्न 33.
किस प्रकार अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का अहितकर प्रभाव पड़ता है? चार बिंदुओं पर इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर-

  1. बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं। बेरोज़गारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं।
  2. युवकों में इससे निराशा और हताशा की भावना होती है क्योंकि इनके पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती।
  3. बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है।
  4. कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती जाती है जिससे समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 34.
भारतीय अर्थव्यवस्था में द्वितीयक क्षेत्र के महत्त्व के बिंदु बताइए।
उत्तर-
इसके महत्त्व के निम्न बिंदु हैं-

  1. इस क्षेत्रक में विनिर्माण के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को अन्य वस्तुओं में बदला जाता है।
  2. सभी औद्योगिक क्रियाएं इस क्षेत्र में होती हैं।
  3. इस क्षेत्र की क्रियाएं प्राथमिक व तृतीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती है।
  4. इस क्षेत्र के उत्पादन से अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता संभव होती है।

प्रश्न 35.
औपचारिक व अनौपचारिक क्षेत्र में तुलना करें।
उत्तर-
इनमें अंतर निम्न बिंदुओं द्वारा दर्शाया जा सकता है-

औपचारिक क्षेत्र अनौपचारिक क्षेत्र
1. इस क्षेत्र में 10 या 10 से अधिक व्यक्ति नियोजित होते हैं। 1. इसमें 10 से कम व्यक्ति या कई बार एक भी व्यक्ति नियोजित नहीं होता है।
2. इसमें श्रम बल का बहुत कम प्रतिशत लगभग 7 प्रतिशत नियोजित होता है। 2. इसमें श्रम बल का बहुत अधिक भाग लगभग 93 प्रतिशत नियोजित होता है।
3. इसमें श्रमिक सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करते हैं। 3. इसमें श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्राप्त नहीं होते हैं।
4. इसमें संवृद्धि के बढ़ने से रोज़गार भी बढ़ता है। 4. इसमें संवृद्धि के बढ़ने से रोज़गार कम होता है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में मानव पूंजी निर्माण में क्या समस्याएँ हैं ? समझाइए।
उत्तर-
भारत में मानव पूंजी निर्माण में निम्न समस्याएँ हैं

  1. निर्धनता (Poverty)-भारत के अधिकतर लोग निर्धन हैं जो प्राथमिक स्तर की शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं जुटाने में भी असफल हैं। अतः निर्धनता मानव पूंजी निर्माण की एक मुख्य समस्या है।
  2. अनपढ़ता (Illeteracy)-भारत के अधिकतर लोग निरक्षर हैं जिससे वह शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के लाभ को नहीं समझ पाते हैं और मानव पूंजी निर्माण में सहयोग नहीं देते हैं।
  3. सीमित क्षेत्रों में ज्ञान (Knowledge in Limited Area)—मानव पूंजी का ज्ञान कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। अभी बहुत-से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ इसका अर्थ भी पता नहीं है।
  4. स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का अभाव (Lack of Medical Facilities)-भारत में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित हैं। सभी क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण सभी लोग शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं।
  5. शिक्षा संबंधी सुविधाओं का अभाव (Lack of Educational Facilities)-भारत में शिक्षा संबंधी सुविधाएं भी कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। अभी तक कुछ क्षेत्रों में तो प्राथमिक स्तर की भी शिक्षा उपलब्ध नहीं है। अत: यह भी मानवीय पूंजी निर्माण की एक मुख्य समस्या है।
  6. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in population)-देश में जनसंख्या में हो रही तीव्र वृद्धि से मानव पूंजी निर्माण में हमेशा बाधा आती रही है।

प्रश्न 2.
मानवीय पूंजी की आर्थिक विकास में भूमिका बताइए।
उत्तर-
मानवीय पूंजी निम्न तरह से आर्थिक विकास में सहायक होती है-

  1. श्रम की कार्यकुशलता (Efficiency of Labour)—मानवीय पूंजी श्रमिकों की कार्यकुशलता को बढ़ाने में सहायक होती है और कुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान करके उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है जो आर्थिक विकास के लिए अति आवश्यक है।
  2. प्रशिक्षण तथा तकनीकी ज्ञान (Training and Technical Knowledge)-मानवीय श्रम बनने के लिए लोगों में प्रशिक्षण तथा तकनीकी ज्ञान का होना बहुत आवश्यक है। प्रशिक्षित श्रमिक ही अपने कार्य को अधिक तीव्रता, अधिक मात्रा और अधिक कुशलता से कर सकते हैं जो आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
  3. व्यवसाय का बढ़ता हुआ आकार (Large Size of Business)-व्यवसाय के बढ़ते हुए आकार के कारण अधिकतर यंत्रीकरण किया गया है जो केवल प्रशिक्षित श्रमिकों द्वारा संचालित किए जा सकते हैं और उत्पादन में सहायक होते हैं।
  4. उत्पादन लागत में कमी (Decrease in Production Cost) यदि उत्पादन प्रशिक्षित श्रमिकों द्वारा किया जाता है तो उत्पादन अधिक होता है और उत्पादन लागत कम आती है जिससे उद्यमियों के लाभ बढ़ते हैं और उन्हें व्यवसाय में और अधिक निवेश की प्रेरणा मिलती है।
  5. औद्योगीकरण का आधार (Bases of Industrialisation)-अल्पविकसित देशों में औद्योगीकरण का आधार रखने के लिए मानव पूंजी निर्माण में निवेश करना आवश्यक है। क्योंकि अधिकतर मानवीय पूंजी होने से औद्योगीकरण का विस्तार होगा।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

SST Guide for Class 9 PSEB पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
सूती कपड़ा किससे बनता है ?
(क) कपास
(ख) जानवरों की खाल
(ग) रेशम के कीड़े
(घ) ऊन।
उत्तर-
(क) कपास

प्रश्न 2.
बनावटी रेशे का विचार सबसे पहले किस वैज्ञानिक ने दिया ?
(क) मेरी क्यूरी
(ख) राबर्ट हुक्क
(ग) लुइस सुबाब
(घ) लार्ड कर्जन।
उत्तर-(ख) राबर्ट हुक्क

प्रश्न 3.
कौन-सी शताब्दी में यूरोप के लोग अपने सामाजिक स्तर, वर्ग अथवा लिंग के अनुसार कपड़े पहनते थे ?
(क) 15वीं
(ख) 16वीं
(ग) 17वीं
(घ) 18वीं।
उत्तर-(घ) 18वीं।

प्रश्न 4.
किस देश के व्यापारियों ने भारत की छींट का आयात शुरू किया ?
(क) चीन
(ख) इंग्लैंड
(ग) इटली
(घ) फ्रांस।
उत्तर-(ख) इंग्लैंड

(ख) रिक्त स्थान भरें :

  1. पुरातत्व वैज्ञानिकों को ………… के नज़दीक हाथी दांत की बनी हुई सुइयाँ प्राप्त हुईं।
  2.  रेशम का कीड़ा प्रायः ………. के वृक्षों पर पाला जाता है।
  3. ……….. वस्त्रों के अवशेष मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता से मिले हैं।
  4. औद्योगिक क्रांति का आरंभ ……………. महाद्वीप में हुआ था।
  5. स्वदेशी आंदोलन ……….. ई० में आरंभ हुआ।

उत्तर-

  1. कोस्तोनकी (रूस)
  2. शहतूत
  3. ऊनी
  4. यूरोप
  5. 1905

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

(ग) सही मिलान करो :

1. बंगाल का विभाजन – रविंद्रनाथ टैगोर
2. रेशमी कपड़ा – चीन
3. राष्ट्रीय गान – 1789 ई०
4. फ्रांसीसी क्रांति – महात्मा गांधी
5. स्वदेशी लहर – लार्ड कर्जन।
उत्तर-

  1. लार्ड कर्जन
  2. चीन
  3. रविंद्रनाथ टैगोर
  4. 1789 ई०
  5. महात्मा गांधी।

(घ) अंतर स्पष्ट करो :

प्रश्न 1.
1. ऊनी कपड़ा और रेशमी कपड़ा
2. सूती कपड़ा और कृत्रिम रेशों से बना कपड़ा।
उत्तर-
1. ऊनी कपड़ा और रेशमी कपड़ा ऊनी कपड़ा
ऊन से बनता है। ऊन वास्तव में एक रेशेदार प्रोटीन है, जो विशेष प्रकार की चमड़ी की कोशिकाओं से बनती है। ऊन भेड़, बकरी, याक, खरगोश आदि जानवरों से भी प्राप्त की जाती है। मैरिनो नामक भेड़ों की ऊन सबसे उत्तम मानी जाती है। मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता में ऊनी वस्त्रों के अवशेष मिले हैं। इससे मालूम होता है कि उस समय के लोग भी ऊनी कपड़े पहनते थे।

रेशमी कपड़ा-
रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच तैयार करता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई। भारत में भी हज़ारों वर्षों से रेशमी कपड़े का प्रयोग किया जा रहा है।

2. सूती कपड़ा और कृत्रिम रेशों से बना कपड़ा
सूती कपड़ा-
सूती कपड़ा कपास से बनाया जाता है। भारत में लोग सदियों से सूती वस्त्र पहनते आ रहे हैं। कपास और सूती वस्त्रों के प्रयोग के ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में कपास और सूती कपड़े के प्रयोग के बारे में प्रमाण मिले हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में भी कपास के विषय में चर्चा की गई है।

कृत्रिम (बनावटी) रेशे से बने कपड़े-
कृत्रिम रेशे बनाने का विचार सबसे पहले एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक राबर्ट हुक्क (Robert Hook) के मन में आया। इसके बारे में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने भी लिखा। परंतु सन् 1842 ई० में अंग्रेज़ी वैज्ञानिक लुइस सुबाब ने बनावटी रेशों से कपड़े तैयार करने की एक मशीन तैयार की। कृत्रिम रेशों को तैयार करने के लिए शहतूत, एल्कोहल, रबड़, मनक्का, चर्बी और कुछ अन्य वनस्पतियां प्रयोग में लाई जाती हैं। नायलोन, पोलिस्टर और रेयान मुख्य कृत्रिम रेशे हैं। पोलिस्टर और सूत से बना कपड़ा टेरीकाट भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। आजकल अधिकतर लोग कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों का ही उपयोग करते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आदिकाल में मनुष्य शरीर ढकने के लिए किसका प्रयोग करता था ?
उत्तर-
आदिकाल में मनुष्य शरीर ढकने के लिए पत्तों, वृक्षों की छाल और जानवरों की खाल का प्रयोग करता था।

प्रश्न 2.
कपड़े कितनी तरह के रेशों से बनते हैं ?
उत्तर-
कपड़े चार तरह के रेशों से बनते हैं-सूती, ऊनी, रेशमी तथा कृत्रिम।

प्रश्न 3.
किस किस्म की भेड़ों की ऊन सबसे बढ़िया होती है ?
उत्तर-
मैरिनो।

प्रश्न 4.
स्त्रियों ने सबसे पहले किस देश में पहनावे की आज़ादी संबंधी आवाज़ उठाई ?
उत्तर-
फ्रांस।

प्रश्न 5.
इंग्लैंड औद्योगिक क्रांति से पहले सूती कपड़ा किस देश से आयात करता था ?
उत्तर-
भारत से।

प्रश्न 6.
खादी लहर चलाने वाले प्रमुख भारतीय नेता का नाम बताओ।
उत्तर-
महात्मा गांधी।

प्रश्न 7.
नामधारी संप्रदाय के लोग किस रंग के कपड़े पहनते हैं ?
उत्तर-
सफेद।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य को पहनावे की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
उत्तर-
पहनावा व्यक्ति की बौद्धिक, मानसिक व आर्थिक स्थिति का प्रतीक है। पहनावे का प्रयोग केवल तन ढकने के लिए ही नहीं किया जाता, बल्कि इसके द्वारा मनुष्य की सभ्यता, सामाजिक स्तर आदि का भी पता चलता है। इसलिए मनुष्य को पहनावे की ज़रूरत पड़ी।

प्रश्न 2.
रेशमी कपड़ा कैसे तैयार होता है ?
उत्तर-
रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। यह कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच बना लेता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई।

प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रांति का मनुष्य के पहनावे पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
18वीं-19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का मनुष्य के पहनावे पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े :

  1. सूती कपड़े का उत्पादन बहुत अधिक बढ़ गया। अतः लोग मशीनों से बना सूती कपड़ा पहनने लगे।
  2. बनावटी रेशों से वस्त्र बनाने की तकनीक विकसित होने के बाद बड़ी संख्या में लोग कृत्रिम रेशों से बनाए गए वस्त्र पहनने लगे। इसका कारण यह था कि ये वस्त्र बहुत हल्के होते थे और इन्हें धोना भी आसान था परिणामस्वरूप भारीभरकम वस्त्र धीरे-धीरे विलुप्त होने लगे।
  3. वस्त्र सस्ते हो गए। फलस्वरूप कम वस्त्र पहनने वाले लोग भी अधिक से अधिक वस्त्रों का प्रयोग करने लगे।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

प्रश्न 4.
स्त्रियों के पहरावे पर महायुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
महायुद्धों के परिणामस्वरूप महिलाओं के पहरावे में निम्नलिखित परिवर्तन आये-

  1. आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का त्याग–अनेक महिलाओं ने आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का त्याग कर दिया। फलस्वरूप सामाजिक बंधन टूट गए और उच्च वर्ग की महिलाएं अन्य वर्गों की महिलाओं के समान दिखाई देने लगीं।
  2. छोटे वस्त्र-प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान व्यावहारिक आवश्यकताओं के कारण वस्त्र छोटे हो गए। 1917 ई० तक ब्रिटेन में 70 हजार महिलाएं गोला-बारूद के कारखानों में काम करने लगी थी। कामगार महिलाएं ब्लाउज़, पतलून के अतिरिक्त स्कार्फ पहनती थीं जिसे बाद में खाकी ओवरआल और टोपी में बदल दिया गया। स्कर्ट की लंबाई कम हो गई। शीघ्र ही पतलून पश्चिमी महिलाओं की पोशाक का अनिवार्य अंग बन गई जिससे उन्हें चलनेफिरने में अधिक आसानी हो गई।
  3. वस्त्रों के रंग तथा बालों के आकार में परिवर्तन-भड़कीले रंगों का स्थान सादा रंगों ने लिया। अनेक महिलाओं ने सुविधा के लिए अपने बाल छोटे करवा लिए।
  4. सादा वस्त्र तथा खेलकूद-बीसवीं शताब्दी के आरंभ में बच्चे नए स्कूलों में सादा वस्त्रों पर बल देने और हारश्रृंगार को निरुत्साहित करने लगे। व्यायाम और खेलकूद लड़कियों के पाठ्यक्रम का अंग बन गए। खेल के समय लड़कियों को ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता थी जिससे उनकी गति में बाधा न पड़े। जब वे काम पर जाती थीं तो वे आरामदेह और सुविधाजनक वस्त्र पहनती थीं।

प्रश्न 5.
स्वदेशी आंदोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संकेत-इसके लिए दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न का प्रश्न क्रमांक 4 पढ़ें।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय पोशाक तैयार करने से संबंधित किए गए यत्नों का संक्षेप वर्णन करो।
उत्तर-
19वीं शताब्दी के अंत में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। राष्ट्र की सांकेतिक पहचान के लिए राष्ट्रीय पोशाक पर विचार किया जाने लगा। भारत के विभिन्न भागों में उच्च वर्गों में स्त्री-पुरुषों ने स्वयं ही वस्त्रों के नए-नए प्रयोग करने आरंभ कर दिए। 1870 के दशक में बंगाल के टैगोर परिवार ने भारत के स्त्री तथा पुरुषों की राष्ट्रीय पोशाक के डिजाइन के प्रयोग आरंभ किए। रविंद्रनाथ टैगोर ने सुझाव दिया कि भारतीय तथा यूरोपीय वस्त्रों को मिलाने के स्थान पर हिंदू तथा मुस्लिम वस्त्रों के डिजाइनों को आपस में मिलाया जाए। इस प्रकार बटनों वाले एक लंबे कोट (अचकन) को भारतीय पुरुषों के लिए आदर्श पोशाक माना गया।

भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की परंपराओं को ध्यान में रखकर भी एक वेशभूषा तैयार करने का प्रयास किया गया। 1870 के दशक के अंत में सतेंद्रनाथ टैगोर की पत्नी ज्ञानदानंदिनी टैगोर ने राष्ट्रीय पोशाक तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने साड़ी पहनने के लिए पारसी स्टाइल को अपनाया। इसमें साड़ी को बाएं कंधे पर पिन किया जाता था। साड़ी के साथ मिलते-जुलते ब्लाउज तथा जूते पहने जाते थे। जल्दी ही इसे ब्रह्म समाज की स्त्रियों ने अपना लिया। अतः इसे ब्रालिका साड़ी के नाम से जाना जाने लगा। शीघ्र ही यह शैली महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के ब्रह्म-समाजियों तथा गैरब्रह्मसमाजियों में प्रचलित हो गई।

प्रश्न 7.
पंजाबी महिलाओं के पहनावे पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब अंग्रेजी शासन के अधीन (1849 ई०) सबसे बाद में आया। इसलिए पंजाब के लोगों विशेषकर महिलाओं के कपड़ों पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव बहुत ही कम दिखाई दिया। पंजाब मुख्य रूप से अपनी परंपरागत ग्रामीण संस्कृति से जुड़ा रहा और यहां की महिलाएं परंपरागत वेशभूषा ही अपनाती रहीं। सलवार, कुर्ता और दुपट्टा
ही पंजाबी महिलाओं की पहचान बनी रही। विवाह के अवसर पर वे रंगबिरंगे वस्त्र तथा भारी आभूषण पहनती थीं। लड़कियां विवाह के अवसर पर फुलकारी निकालती थीं। दुपट्टों को गोटा लगा कर आकर्षक बनाया जाता था। सूटों पर कढ़ाई भी की जाती थी। शहरी औरतें साड़ी और ब्लाउज़ भी पहनती थीं। सर्दियों में स्वेटर, कोटी और स्कीवी पहनने का रिवाज था।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़ों में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न रेशों का वर्णन करें।
उत्तर-
नए-नए रेशों के आविष्कार के कारण लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के रेशों से बने कपड़े पहनने लगे। मौसम. सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक प्रभावों के कारण लोगों के पहनावे में निरंतर परिवर्तन आता रहा है जोकि आज भी जारी है।
पहनावे के इतिहास के लिए अलग-अलग तरह के रेशों के बारे में जानना ज़रूरी है, इनका वर्णन इस प्रकार है-

  1. सूती कपड़ा-सूती कपड़ा कपास से बनाया जाता है। भारत में लोग सदियों से सूती वस्त्र पहनते आ रहे हैं। कपास और सूती वस्त्रों के प्रयोग के ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में से भी कपास और सूती कपड़े के प्रयोग के बारे में प्रमाण मिले हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में भी कपास के विषय में चर्चा की गई है।
  2. ऊनी कपड़ा-ऊन वास्तव में एक रेशेदार प्रोटीन है, जो विशेष प्रकार की चमड़ी की कोशिकाओं से बनती है। ऊन भेड़, बकरी, याक, खरगोश आदि जानवरों से भी प्राप्त की जाती है। मैरिनो नामक भेड़ों की ऊन सबसे उत्तम मानी जाती है। मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता में ऊनी वस्त्रों के अवशेष मिले हैं। इससे मालूम होता है कि उस समय के लोग भी ऊनी कपड़े पहनते थे।
  3. रेशमी कपड़ा-रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच तैयार करता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई। भारत में भी रेशमी कपड़े का प्रयोग हज़ारों वर्षों से किया जा रहा है।
  4. कृत्रिम रेशे से बना कपड़ा-कृत्रिम रेशे बनाने का विचार सबसे पहले एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक राबर्ट हुक्क (Robert Hook) के मन में आया। इसके बारे में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने भी लिखा। परन्तु सन् 1842 ई० में अंग्रेज़ी वैज्ञानिक लुइस सुबाब ने बनावटी रेशों से कपड़े तैयार करने की एक मशीन तैयार की। कृत्रिम रेशों को तैयार करने के लिए शहतूत, एल्कोहल, रबड़, मनक्का, चर्बी और कुछ अन्य वनस्पतियां प्रयोग में लाई जाती हैं। नायलोन, पोलिस्टर ओर रेयान मुख्य कृत्रिम रेशे हैं। पोलिस्टर और सूत से बना कपड़ा टैरीकाट भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। आजकल अधिकतर लोग कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों का उपयोग करते हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रांति ने साधारण लोगों के पहनावे पर क्या प्रभाव डाला ? वर्णन करें।
उत्तर-
18वीं-19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति ने समस्त विश्व के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक ढांचे पर अपना गहरा प्रभाव डाला। इससे लोगों के विचारों तथा जीवन-शैली में परिवर्तन आया, परिणामस्वरूप लोगों के पहनावे में भी परिवर्तन आया।
कपड़े का उत्पादन मशीनों से होने के कारण कपड़ा सस्ता हो गया और वह बाज़ार में अधिक मात्रा में आ गया। यह मशीनी कपड़ा होने के कारण अलग-अलग डिज़ाइनों में आ गया। इसलिए लोगों के पास पोशाकों की संख्या में वृद्धि हो गई। संक्षेप में आम लोगों के पहनावे पर औद्योगिक क्रांति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े।

  1. रंग-बिरंगे वस्त्रों का प्रचलन–18वीं शताब्दी में यूरोप के लोग अपने सामाजिक स्तर, वर्ग अथवा लिंग के अनुरूप कपड़े पहनते थे। पुरुषों व स्त्रियों के पहनावें में बहुत अंतर था। महिलाएं पहनावे में स्कर्ट और ऊंची एड़ी वाले जूते पहनती थीं। पुरुष पहनावे में नैक्टाई का प्रयोग करते थे। समाज के उच्च वर्ग का पहनावा आम लोगों से अलग होता
    था परंतु 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति ने कुलीन वर्ग के लोगों के विशेष अधिकारों को समाप्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप सभी वर्गों के लोग भी अपनी इच्छा के अनुसार रंग-बिरंगे कपड़े पहनने लगे। फ्रांस के लोग स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में लाल टोपी पहनते थे। इस प्रकार आम लोगों द्वारा रंग-बिरंगे कपड़े पहनने का प्रचलन पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया।

2. स्त्रियों के पहनावे में परिवर्तन-

  1. फ्रांसीसी क्रांति व फिजूल-खर्च रोकने संबंधी कानूनों से पहनावे में किए सुधारों को स्त्रियों ने स्वीकार नहीं किया। 1830 ई० में इंग्लैंड में कुछ महिला-संस्थाओं ने स्त्रियों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग शुरू कर दी। जैसे ही सफरेज आंदोलन का प्रसार हुआ, तो अमेरिका की 13 ब्रिटिश बस्तियों में पहनावा-सुधार आंदोलन शुरू हुआ।
  2. प्रैस व साहित्य ने तंग कपड़े पहनने के कारण नवयुवतियों को होने वाली बीमारियों के बारे में बताया उनका मानना था कि तंग पहनावे से शरीर का विकास, मेरूदंड में विकार व रक्त संचार प्रभावित होता है। इसलिए बहुत सारे महिला-संगठनों ने सरकार से लड़कियों की शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पोशाकों में सुधारों की माँग की।
  3. अमेरिका में भी कई महिला-संगठनों ने स्त्रियों के लिए पारंपरिक पोशाक की निंदा की। कई महिला-संस्थाओं ने लंबे गाउन की अपेक्षा स्त्रियों के लिए सुविधाजनक परिधान पहनने की मांग की क्योंकि यदि स्त्रियों की पोशाक आरामदायक होगी, तभी वे आसानी से काम कर सकेंगी।
  4. 1870 ई० में दो संस्थाएं ‘नेशनल वूमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ और ‘अमेरिकन वुमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ ने मिलकर स्त्रियों के पहनावे में सुधार करने के लिए आंदोलन आरंभ किया। रूढ़िवादी विचारधारा के लोगों के कारण यह आंदोलन असफल रहा। फिर भी स्त्रियों की सुंदरता और पहनावे के नमूनों में परिवर्तन होना आरंभ हो गया।

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प्रश्न 3.
भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान पहनावे में हुए परिवर्तनों का वर्णन करो।
उत्तर-
औपनिवेशिक शासन के दौरान जब पश्चिमी वस्त्र शैली भारत में आई तो अनेक पुरुषों ने इन वस्त्रों को अपना लिया। इसके विपरीत स्त्रियां परंपरागत कपड़े ही पहनती रहीं।
कारण-

  1. भारत का पारसी समुदाय काफ़ी धनी था। वे लोग पश्चिमी संस्कृति से भी प्रभावित थे। अत: सबसे पहले पारसी लोगों ने ही पश्चिमी वस्त्रों को अपनाया। भद्रपुरुष दिखाई देने के लिए उन्होंने बिना कालर के लंबे कोट, बूट और छड़ी को अपनी पोशाक का अंग बना लिया।
  2. कुछ पुरुषों ने पश्चिमी वस्त्रों को आधुनिकता का प्रतीक समझ कर अपनाया।
  3. भारत के जो लोग मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई बन गये थे, उन्होंने भी पश्चिमी वस्त्र पहनने शुरू कर दिए।
  4. कुछ बंगाली बाबू कार्यालयों में पश्चिमी वस्त्र पहनते थे, जबकि घर में आकर अपनी परंपरागत पोशाक धारण कर लेते थे।

इतना होने के बावजूद ग्रामीण समाज में पुरुषों तथा स्त्रियों के पहरावे में कोई विशेष अंतर नहीं आया। केवल मशीनों से बना कपड़ा सुंदर तथा सस्ता होने के कारण अधिक प्रयोग किया जाने लगा। इसके अतिरिक्त भारतीय पहरावे तथा पश्चिमी पहरावे के बीच टकराव की घटनाएं भी सामने आईं। परंतु जातिगत नियमों में बंधा भारतीय ग्रामीण समुदाय पश्चिमी पोशाक-शैली से दूर ही रहा।
समाज में स्त्रियों की स्थिति-इससे पता चलता है कि समाज पुरुष-प्रधान था जिसमें नारी स्वतंत्र नहीं थी। उसका कार्य घर की चार दीवारी तक ही सीमित था। वह नौकरी पेशा नहीं थी।

प्रश्न 4.
भारतीय लोगों के पहनावे पर स्वदेशी आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
1905 ई० में अंग्रेज़ी सरकार ने बंगाल का विभाजन कर दिया। इसे बंग-भंग भी कहा जाता है। स्वदेशी आंदोलन बंग-भंग के विरोध में चला। बहिष्कार भी स्वदेशी आंदोलन का एक अंग था। यह राजनीतिक विरोध कम, परंतु कपड़ों से जुड़ा विरोध अधिक था। लोगों ने इंग्लैंड से आने वाले कपड़े को पहनने से इंकार कर दिया और देश में ही बने कपड़े को पहल दी। गांधी जी द्वारा प्रचलित खादी स्वदेशी पोशाक की पहचान बन गई। विदेशी कपड़े की जगह-जगह होली जलाई गई और विदेशी कपड़े की दुकानों पर धरने दिए।
वास्तव में विदेशी संस्कृति से जुड़ी प्रत्येक वस्तु का त्याग करके स्वदेशी माल अपनाया गया। इस आंदोलन ने ग्रामीणों को रोज़गार प्रदान किया और वहां के कपड़ा उद्योग में नई जान डाली। इसलिए ग्रामीण समुदाय अपनी परम्परागत वस्त्रशैली से ही जुड़ा रहा। बहुत से लोगों ने खादी को भी अपनाया। परंतु खादी बहुत अधिक महंगी होने के कारण बहुत कम स्त्रियों ने इसे अपनाया। गरीबी के कारण वे कई गज़ लम्बी साड़ी के लिए महंगी-खादी नहीं खरीद पाती थीं।

प्रश्न 5.
पंजाबी लोगों के पहनावे संबंधी अपने विचार लिखो।
उत्तर-
पंजाबी महिलाओं का पहनावा-इसके लिए लघु उत्तरों वाले प्रश्नों में क्रमांक 7 पढ़ें पुरुषों का पहनावा-पंजाबी पुरुषों का पहनावा कोई अपवाद नहीं था। वे भी विदेशी पहनावे के प्रभाव से लगभग अछूते ही रहे। क्योंकि पंजाब कृषि प्रधान प्रदेश रहा है इसीलिए यहां के पुरुषों का पहनावा परंपरागत किसानों जैसा रहा। वे कुर्ता, चादरा पहनते थे और सिर पर पगड़ी पहनते थे। कुछ पंजाबी किसान सिर पर पगड़ी के स्थान पर परना (साफ़ा) भी लपेट लेते थे। पुरुष मावा लगी तुरेदार पगड़ी बड़े गर्व से पहनते थे। आज कुछ पुरुष पगड़ी के नीचे फिफ्टी भी बांधते हैं। यह कम लंबाई की एक छोटी पगड़ी होती है। विवाह-शादी के अवसर पर लाल गुलाबी अथवा सिंदूरी रंग की पगड़ी बांधी जाती थी। शोक के समय वे सफ़ेद अथवा हल्के रंग की पगड़ी बांधते थे। निहंग सिंहों तथा नामधारी संप्रदाय के लोगों का अपना अलग पहनावा है। उदाहरण के लिए नामधारी लोग सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं। धीरेधीरे कुर्ते-चादरे की जगह कुर्ते-पायजामे ने ले ली।
अब पंजाबी पहनावे का रूप और भी बदल रहा है। आज पढ़े-लिखे तथा नौकरी पेशा लोग कमीज़ तथा पेंट (पतलून) का प्रयोग करने लगे हैं। पुरुषों के पहनावे में भी विविधता आ रही है। वे मुख्य रूप से पंजाबी जूती और बूट आदि पहनते हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide पहनावे का सामाजिक इतिहास Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
मध्यकालीन फ्रांस में वस्त्रों के प्रयोग का आधार था
(क) लोगों की आय
(ख) लोगों का स्वास्थ्य
(ग) सामाजिक स्तर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) सामाजिक स्तर

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प्रश्न 2.
मध्यकालीन फ्रांस में निम्न वर्ग के लिए जिस चीज़ का प्रयोग वर्जित था
(क) विशेष कपड़े
(ख) मादक द्रव्य (शराब)
(ग) विशेष भोजन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
फ्रांस में वस्त्रों का जो रंग देशभक्त नागरिक का प्रतीक नहीं था
(क) नीला
(ख) पीला
(ग) सफ़ेद
(घ) लाल।
उत्तर-
(ख) पीला

प्रश्न 4.
फ्रांस में स्वतंत्रता को दर्शाती थी
(क) लाल टोपी
(ख) काली टोपी
(ग) सफ़ेद पतलून
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) लाल टोपी

प्रश्न 5.
वस्त्रों की सादगी किस भावना की प्रतीक थी ?
(क) स्वतंत्रता
(ख) समानता
(ग) बंधुत्व
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) समानता

प्रश्न 6.
फ्रांस में व्यय-नियामक कानून (संपचुअरी कानून) समाप्त किए
(क) फ्रांसीसी क्रांति ने
(ख) राजतंत्र ने
(ग) सामंतों ने
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) फ्रांसीसी क्रांति ने

प्रश्न 7.
विक्टोरियन इंग्लैंड में उस स्त्री को आदर्श स्त्री माना जाता था जो
(क) लंबी तथा मोटी हो
(ख) छोटे कद की तथा भारी हो
(ग) पीड़ा और कष्ट सहन कर सके
(घ) पूरी तरह वस्त्रों से ढकी हो।
उत्तर-
(ग) पीड़ा और कष्ट सहन कर सके

प्रश्न 8.
इंग्लैंड में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए (सफ्रेज) आंदोलन चला
(क) 1800 के दशक में
(ख) 1810 के दशक में
(ग) 1820 के दशक में
(घ) 1830 के दशक में।
उत्तर-
(घ) 1830 के दशक में।

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प्रश्न 9.
इंग्लैंड में वूलन टोपी पहनना कानूनन अनिवार्य क्यों था?
(क) पवित्र दिनों के महत्त्व के लिए
(ख) उच्च वर्ग की शान के लिए
(ग) वूलन उद्योग के संरक्षण के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) वूलन उद्योग के संरक्षण के लिए

प्रश्न 10.
विक्टोरियन इंग्लैंड की स्त्रियों में जिस गुण का विकास बचपन से ही कर दिया जाता था
(क) विनम्रता
(ख) कर्त्तव्यपरायणता
(ग) आज्ञाकारिता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
विक्टोरियन इंग्लैंड के पुरुषों में निम्न गुण की अपेक्षा की जाती थी
(क) निर्भीकता
(ख) स्वतंत्रता
(ग) गंभीरता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
वस्त्रों को ढीले-ढाले डिज़ाइन में बदलने वाली पहली महिला श्रीमती अमेलिया बलूमर (Mrs. Amelia Bloomer) का संबंध था
(क) अमेरिका
(ख) जापान
(ग) भारत
(घ) रूस।
उत्तर-
(क) अमेरिका

प्रश्न 13.
1600 ई० के बाद इंग्लैंड की महिलाओं को जो सस्ता व अच्छा कपड़ा मिला वह था
(क) इंग्लैंड की मलमल
(ख) भारत की छींट
(ग) भारत की मलमल
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) भारत की छींट

प्रश्न 14.
इंग्लैंड से सूती कपड़े का निर्यात आरंभ हुआ
(क) औद्योगिक क्रांति के बाद
(ख) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद
(ग) 18वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी के अंत में।
उत्तर-
(क) औद्योगिक क्रांति के बाद

प्रश्न 15.
स्कर्ट के आकार में एकाएक परिवर्तन आया
(क) 1915 ई० में
(ख) 1947 ई० में
(ग) 1917 ई० में
(घ) 1942 ई० में।
उत्तर-
(क) 1915 ई० में

प्रश्न 16.
भारत में पश्चिमी वस्त्रों को अपनाया गया
(क) 20वीं शताब्दी में
(ख) 16वीं शताब्दी में
(ग) 19वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी में।
उत्तर-
(ग) 19वीं शताब्दी में

प्रश्न 17.
भारत में पश्चिमी वस्त्र शैली को सर्वप्रथम अपनाया
(क) मुसलमानों ने
(ख) पारसियों ने
(ग) हिंदुओं ने
(घ) ईसाइयों ने।
उत्तर-
(ख) पारसियों ने

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प्रश्न 18.
विक्टोरियन इंग्लैंड में लड़कियों को बचपन से ही सख्त फीतों में बँधे कपड़ों अर्थात् स्टेज़ में कसकर क्यों बाँधा जाता था ?
(क) क्योंकि इन कपड़ों में लड़कियां सुंदर लगती थीं।
(ख) क्योंकि ऐसे वस्त्र पहनने वाली लड़कियां फैशनेबल मानी जाती थीं
(ग) क्योंकि यह विश्वास किया जाता था कि एक आदर्श नारी को पीड़ा और कष्ट सहन करने चाहिएं
(घ) क्योंकि नारी आज़ादी से घूम-फिर न सके और घर पर ही रहे।
उत्तर-
(ग) क्योंकि यह विश्वास किया जाता था कि एक आदर्श नारी को पीड़ा और कष्ट सहन करने चाहिएं

प्रश्न 19.
खादी का संबंध निम्न में से किससे है ?
(क) भारत में बनने वाला सूती वस्त्र
(ख) भारत में बनी छींट
(ग) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा
(घ) भारत में बना मशीनी कपड़ा।
उत्तर-
(ग) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा

प्रश्न 20.
महात्मा गांधी ने हाथ से कती हुई खादी पहनने को बढ़ावा दिया क्योंकि
(क) यह आयातित वस्त्रों से सस्ती थी
(ख) इससे भारतीय मिल-मालिकों को लाभ होता
(ग) यह आत्मनिर्भरता का लक्षण था
(घ) वह रेशम के कीड़े मारने के विरुद्ध थे।
उत्तर-
(ग) यह आत्मनिर्भरता का लक्षण था

प्रश्न 21.
गोलाबारूद की फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाओं के लिए कैसा कपड़ा पहनना व्यावहारिक नहीं था?
(क) ओवर ऑल और टोपियां
(ख) पैंट और ब्लाउज़
(ग) छोटे स्कर्ट और स्कार्फ
(घ) लहराते गाउन और कार्सेट्स।
उत्तर-
(घ) लहराते गाउन और कार्सेट्स।

प्रश्न 22.
‘पादुका सम्मान’ नियम किस गवर्नर-जनरल के समय अधिक सख़्त हुआ ?
(क) लॉर्ड वेलज़ेली
(ख) लॉर्ड विलियम बेंटिंक
(ग) लॉर्ड डल्हौज़ी
(घ) लॉर्ड लिटन।
उत्तर-
(ग) लॉर्ड डल्हौज़ी

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प्रश्न 23.
हिंदुस्तानियों से मिलने पर ब्रिटिश अफ़सर कब अपमानित महसूस करते थे ?
(क) जब हिंदुस्तानी अपना जूता नहीं उतारते थे
(ख) जब हिंदुस्तानी अपनी पगड़ी नहीं उतारते थे
(ग) जब हिंदुस्तानी हैट पहने होते थे
(घ) जब हिंदुस्तानी उन्हें अपना हैट उतारने को कहते थे।
उत्तर-
(ख) जब हिंदुस्तानी अपनी पगड़ी नहीं उतारते थे

II. रिक्त स्थान भरो:

  1. फ्रांस में … …….. स्वतंत्रता को दर्शाती थी।
  2. फ्रांस में व्यय-नियायक कानून (संपचुअरी कानून) का संबंध …………… से है।
  3. ………………. के दशक में इंग्लैंड में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए (सफ्रेज) आंदोलन चला।
  4. …………. वस्त्रों को ढीले-ढाले डिज़ाइन में बदलने वाली पहली अमरीकी महिला थी।
  5. भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सबसे पहले …………….. समुदाय ने अपनाया।

उत्तर-

  1. लाल टोपी
  2. पहनावे
  3. 18304.
  4. श्रामता अमालया बलमर
  5. पारसा।

III. सही मिलान करो

(क) – (ख)
1. महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकार – (i) घुटनों से ऊपर पतलून पहनने वाले लोग।
2. वूलन टोपी – (ii) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा।
3. भारत की छींट – (iii) सफ्रेज आंदोलन।
4. खादी – (iv) इंग्लैंड में वूलन उद्योग संरक्षण।
5. सेन्स क्लोट्टीज़ – (v) सस्ता तथा अच्छा कपड़ा।

उत्तर-

  1. सफेज आंदोलन
  2. इंग्लैंड में वूलन उद्योग संरक्षण
  3. सस्ता तथा अच्छा कपडा
  4. हाथ से कते सूत से बना मोटा कपडा
  5. घुटनों से ऊपर पतलून पहनने वाले लोग।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

प्रश्न 1.
इंग्लैंड में कुछ विशेष दिनों में ऊनी टोपी पहनना अनिवार्य क्यों कर दिया गया?
उत्तर-
अपने ऊनी उद्योग के संरक्षण के लिए।

प्रश्न 2.
वस्त्रों संबंधी नियम के समाप्त होने के बाद भी यूरोप के विभिन्न वर्गों में वेशभूषा संबंधी अंतर समाप्त क्यों न हो सका?
उत्तर-
निर्धन लोग अमीरों जैसे वस्त्र नहीं पहन सकते थे।

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प्रश्न 3.
जेकोबिन क्लब्ज़ के सदस्य स्वयं को क्या कहते थे?
उत्तर-
सेन्स क्लोट्टीज़ (Sans Culottes)।

प्रश्न 4.
सेन्स क्लोट्टीज़ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर-
घुटनों से ऊपर रहने वाली पतलून पहनने वाले लोग।

प्रश्न 5.
विक्टोरिया काल की स्त्रियों को सुंदर बनाने में किस बात की भूमिका रही?
उत्तर-
उनकी तंग वेशभूषा की।

प्रश्न 6.
इंग्लैंड में ‘रेशनल ड्रैस सोसायटी’ की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
1881 में।

प्रश्न 7.
एक अमरीकी ‘वस्त्र सुधारक’ का नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीमती अमेलिया ब्लूमर (Mrs. Amelia Bloomer)।

प्रश्न 8.
किस विश्व विख्यात घटना ने स्त्रियों के वस्त्रों में मूल परिवर्तन ला दिया?
उत्तर-
प्रथम विश्व युद्ध ने।

प्रश्न 9.
भारत के साथ व्यापार के परिणामस्वरूप कौन-सा भारतीय कपड़ा इंग्लैंड की स्त्रियों में लोकप्रिय हुआ?
उत्तर-
छींट।

प्रश्न 10.
कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों की कोई दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. धोने में आसान,
  2. संभाल करना आसान।

प्रश्न 11.
भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सबसे पहले किस समुदाय ने अपनाया?
उत्तर-
पारसी।

प्रश्न 12.
ट्रावनकोर में दासता का अंत कब हुआ?
उत्तर-
1855 ई० में।

प्रश्न 13.
भारत में पगड़ी किस बात की प्रतीक मानी जाती थी?
उत्तर-
सम्मान की।

प्रश्न 14.
भारत में राष्ट्रीय वस्त्र के रूप में किस वस्त्र को सबसे अच्छा माना गया ?
उत्तर-
अचकन (बटनों वाला एक लंबा कोट)।

प्रश्न 15.
स्वदेशी आंदोलन किस बात के विरोध में चला?
उत्तर-
1905 के बंगाल-विभाजन के विरोध में।

प्रश्न 16.
बंगाल का विभाजन किसने किया?
उत्तर-
लॉर्ड कर्जन ने।

प्रश्न 17.
स्वदेशी आंदोलन में किस बात पर विशेष बल दिया गया?
उत्तर-
अपने देश में बने माल के प्रयोग पर।

प्रश्न 18.
महात्मा गांधी ने किस प्रकार के वस्त्र के प्रयोग पर बल दिया?
उत्तर-
खादी पर।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस के सम्प्चुअरी (Sumptuary) कानून क्या थे ?
उत्तर-
लगभग 1294 से लेकर 1789 की फ्रांसीसी क्रांति तक फ्रांस के लोगों को सम्प्चुअरी कानूनों का पालन करना पड़ता था। इन कानूनों द्वारा समाज के निम्न वर्ग के व्यवहार को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। इनके अनुसार-

  1. निम्न वर्ग के लोग कुछ विशेष प्रकार के वस्त्रों तथा विशेष प्रकार के भोजन का प्रयोग नहीं कर सकते थे।
  2. उनके लिए मादक द्रव्यों के प्रयोग की मनाही थी।
  3. उनके लिए कुछ विशेष क्षेत्रों में शिकार करना भी वर्जित था।

वास्तव में ये कानून लोगों के सामाजिक स्तर को दर्शाने के लिए बनाए गए थे। उदाहरण के लिए अरमाइन (ermine) फर, रेशम, मखमल, जरी जैसी कीमती वस्तुओं का प्रयोग केवल राजवंश के लोग ही कर सकते थे। अन्य वर्गों के लोग इस सामग्री का प्रयोग नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 2.
यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो फर्क बताइए।
उत्तर-

  1. यूरोपीय ड्रेस कोड (पोशाक संहिता) में तंग वस्त्रों को महत्त्व दिया जाता था ताकि चुस्ती बनी रहे। इसके विपरीत भारतीय ड्रेस कोड में ढीले-ढाले वस्त्रों का अधिक महत्त्व था। उदाहरण के लिए यूरोपीय लोग कसी हुई पतलून पहनते थे। परंतु भारतीय धोती अथवा पायजामा पहनते थे।
  2. यूरोपीय ड्रेस कोड में स्त्रियों के वस्त्र ऐसे होते थे जो उनकी शारीरिक बनावट को आकर्षक बनाएं। उदाहरण के लिए इंग्लैंड की महिलाएं अपनी कमर को सीधा रखने तथा पतला बनाने के लिए कमर पर एक तंग पेटी पहनती थीं। वे एक तंग अधोवस्त्र का प्रयोग भी करती थीं। इसके विपरीत भारतीय महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्र पहन कर अपनी सुंदरता बढ़ाती थीं। वे प्रायः रंगदार साड़ियां प्रयोग करती थीं।

प्रश्न 3.
1805 ई० में अंग्रेज अफसर बेंजामिन हाइन ने बंगलोर में बनने वाली चीज़ों की एक सूची बनाई थी, जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे :

  • अलग-अलग किस्म और नाम वाले जनाना कपड़े
  • मोटी छींट
  • मखमल
  • रेशमी कपड़े

बताइए कि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इनमें से कौन-कौन से किस्म के कपड़े प्रयोग से बाहर चले गए होंगे और क्यों ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी के आरंभ में मलमल का प्रयोग बंद हो गया होगा। इसका कारण यह है कि इस समय तक इंग्लैंड के कारखानों में बना सूती कपड़ा भारत के बाजारों में बिकने लगा था। यह कपड़ा देखने में सुंदर, हल्का तथा सस्ता था। अतः भारतीयों ने मलमल के स्थान पर इस कपड़े का प्रयोग करना आरंभ कर दिया था।

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प्रश्न 4.
विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गांधी ‘राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील’ से ज़्यादा कुछ नहीं हैं और (अधनंगे फकीर का दिखावा) कर रहे हैं।
चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गांधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर-
गांधी जी की छवि एक महात्मा के रूप में उभर रही थी। वह भारतीयों में अधिक-से-अधिक लोकप्रिय होते जा रहे थे। फलस्वरूप राष्ट्रीय आंदोलन दिन-प्रतिदिन सबल होता जा रहा था। विंस्टन चर्चिल यह बात सहन नहीं कर पा रहे थे। इसलिए उन्होंने उक्त टिप्पणी की।
महात्मा गांधी की पोशाक पवित्रता, सादगी तथा निर्धनता की प्रतीक थी। अधिकांश भारतीय जनता के भी यही लक्षण थे। अतः ऐसा लगता था जैसे महात्मा गांधी के रूप में पूरा राष्ट्र ब्रिटिश साम्राज्यवाद को चुनौती दे रहा हो।

प्रश्न 5.
सम्प्चुअरी (Sumptuary laws) कानूनों द्वारा उत्पन्न असमानताओं पर फ्रांसीसी क्रांति का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति ने सम्प्चुअरी कानूनों (Sumptuary laws) द्वारा उत्पन्न सभी असमानताओं को समाप्त कर दिया। इसके बाद पुरुष और स्त्रियां दोनों ही खुले और आरामदेह वस्त्र पहनने लगे। फ्रांस के रंग-नीला, सफेद और लाल लोकप्रिय हो गए क्योंकि ये देशभक्त नागरिक के प्रतीक चिह्न थे। अन्य राजनीतिक प्रतीक भी अपने वेश-भूषा के अंग बन गए। इनमें स्वतंत्रता की लाल टोपी, लंबी पतलून और टोपी पर लगने वाला क्रांति का बैज (Cockade) शामिल थे। वस्त्रों की सादगी समानता की भावना को व्यक्त करती थी।

प्रश्न 6.
वस्त्रों की शैली पुरुषों तथा स्त्रियों के बीच अंतर पर बल देती थी। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
पुरुषों और स्त्रियों के वस्त्रों के फैशन में अंतर था। विक्टोरिया कालीन स्त्रियों को बचपन से ही विनीत, आज्ञाकारी, विनम्र और कर्तव्यपारायण बनने के लिए तैयार किया जाता था। उसी को आदर्श महिला माना जाता था जो कष्ट और पीड़ा सहन करने की क्षमता रखती हो। पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे गंभीर, शक्तिशाली, स्वतंत्र
और आक्रामक हों जबकि स्त्रियां, विनम्र, चंचल, नाजुक तथा आज्ञाकारी हों। वस्त्रों के मानकों में इन आदर्शों की झलक मिलती थी। बचपन से ही लड़कियों को तंग वस्त्र पहनाए जाते थे। इसका उद्देश्य उनके शारीरिक विकास को नियंत्रित करना था। जब लड़कियाँ थोड़ी बड़ी होती तो उन्हें तंग कारसैट्स (Corsets) पहनने पड़ते थे। तंग कपड़े पहने पतली कमर वाली स्त्रियों को आकर्षक एवं शालीन माना जाता था। इस प्रकार विक्टोरिया कालीन पहरावे ने चंचल एवं आज्ञाकारी महिला की छवि उभारने में भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
यूरोप की बहुत-सी स्त्रियां नारीत्व के आदर्शों में विश्वास रखती थीं। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
इसमें कोई संदेह नहीं कि बहुत-सी महिलाएं नारीत्व के आदर्शों में विश्वास रखती थीं। ये आदर्श उस वायु में थे जिसमें वे सांस लेती थीं, उस साहित्य में थे जो वे पढ़ती थीं और उस शिक्षा में थे जो वह स्कूल और घर में ग्रहण करती थीं। बचपन से ही वे यह विश्वास लेकर बड़ी होती थीं कि पतली कमर होना नारी धर्म है। महिला के लिए पीड़ा सहन करना अनिवार्य था। आकर्षक और नारी सुलभ लगने के लिए वे कोरसैट्ट (Corset) पहनती थीं। कोरसै? उनके शरीर को जो यातना तथा पीड़ा पहुंचाता था, उसे वे स्वाभाविक रूप से सहन करती थीं।

प्रश्न 8.
महिला-मैगज़ीनों के अनुसार तंग वस्त्र तथा ब्रीफ़ (Corsets) महिलाओं को क्या हानि पहुँचाते हैं ? इस संबंध में डॉक्टरों का क्या कहना था ?
उत्तर-
कई महिला मैगज़ीनों ने महिलाओं को तंग कपड़ों तथा ब्रीफ़ (Corsets) से होने वाली हानियों के बारे में लिखा। ये हानियां निम्नलिखित थीं-

  1. तंग पोशाक और कोरसैट्स (Corsets) छोटी लड़कियों को विकृत. तथा रोगी बनाती हैं।
  2. ऐसे वस्त्र शारीरिक विकास और रक्त संचार में बाधा डालते हैं।
  3. ऐसे वस्त्रों से मांसपेशियां (muscles) अविकसित रह जाती हैं और रीढ़ की हड्डी में झुकाव आ जाता है।
    डॉक्टरों का कहना था कि महिलाओं को अत्यधिक कमज़ोरी और प्रायः मूर्छित हो जाने की शिकायत रहती है। उनका शरीर निढाल रहता है।

प्रश्न 9.
अमेरिका के पूर्वी तट पर बसे गोरों ने महिलाओं की पारंपरिक पोशाक की किन बातों के कारण आलोचना की ?
उत्तर-
अमेरिका के पूर्वी तट पर बसे गोरों ने महिलाओं की पारंपरिक पोशाक की कई बातों के कारण आलोचना की। उनका कहना था कि

  1. लंबी स्कर्ट झाड़ का काम करती है और इसमें धूल तथा गंदगी इकट्ठी हो जाती है। इससे बीमारी पैदा होती है।
  2. यह स्कर्ट भारी और विशाल है। इसे संभालना कठिन है। 3. यह चलने फिरने में रुकावट डालती है। अत: यह महिलाओं के लिए काम करके रोज़ी कमाने में बाधक है।
    उनका कहना था कि वेशभूषा में सुधार महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाएगा। यदि वस्त्र आरामदेह और सुविधाजनक हों तो महिलाएं काम कर सकती हैं, अपनी रोज़ी कमा सकती हैं और स्वतंत्र भी हो सकती हैं।

प्रश्न 10.
ब्रिटेन में हुई औद्योगिक क्रांति भारत के वस्त्र उद्योग के पतन का कारण कैसे बनी ?
उत्तर-
ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति से पहले भारत के हाथ से बने सूती वस्त्र की संसार भर में जबरदस्त मांग थी। 17वीं शताब्दी में पूरे विश्व के सूती वस्त्र का एक चौथाई भाग भारत में ही बनता था। 18वीं शताब्दी में अकेले बंगाल में दस लाख बुनकर थे। परंतु ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति ने कताई और बुनाई का मशीनीकरण कर दिया। अत: भारत की कपास कच्चे माल के रूप में ब्रिटेन में जाने लगी और वहां पर बना मशीनी माल भारत आने लगा। भारत में बना कपड़ा इसका मुकाबला न कर सका जिससे उसकी मांग घटने लगी। फलस्वरूप भारत के बुनकर बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गये और मुर्शिदाबाद, मछलीपट्टनम तथा सूरत जैसे सूती वस्त्र केंद्रों का पतन हो गया।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गांधी जी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा ?
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उत्तर-
गांधी जी पूरे देश को खादी पहनाना चाहते थे। परंतु उनका यह विचार कुछ ही वर्गों तक सीमित रहा। अन्य वर्गों को खादी से कोई लगाव नहीं था। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. कई लोगों को गांधी जी की भांति अर्द्धनग्न रहना पसंद नहीं था। वे एकमात्र लंगोट पहनना सभ्यता के विरुद्ध समझते थे। उन्हें इसमें लाज भी आती थी।
  2. खादी महंगी थी और देश के अधिकतर लोग निर्धन थे। कुछ स्त्रियां नौ-नौ गज़ की साड़ियां पहनती थीं। उनके लिए खादी की साड़ियां पहन पाना संभव नहीं था।
  3. जो लोग पश्चिमी वस्त्रों के प्रति आकर्षित हुए थे, उन्होंने भी खादी पहनने से इंकार कर दिया।
  4. देश का मुस्लिम समुदाय अपनी परंपरागत वेशभूषा बदलने को तैयार नहीं था।

प्रश्न 2.
अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में पोशाक शैलियों तथा उनमें प्रयोग होने वाली सामग्री में निम्नलिखित कारणों से परिवर्तन आए-

  1. फ्रांसीसी क्रांति ने संप्चुअरी कानूनों को समाप्त कर दिया।
  2. राजतंत्र तथा शासक वर्ग के विशेषाधिकार समाप्त हो गए।
  3. फ्रांस के रंग-लाल, नीला तथा सफ़ेद-देशभक्ति के प्रतीक बन गए अर्थात् इन रंगों के वस्त्र लोकप्रिय होने लगे।
  4. समानता को महत्त्व देने के लिए लोग साधारण वस्त्र पहनने लगे।
  5. लोगों की वस्त्रों के प्रति रुचियां भिन्न-भिन्न थीं।
  6. स्त्रियों में सौंदर्य की भावना ने वस्त्रों में बदलाव ला दिया।
  7. लोगों की आर्थिक दशा ने भी वस्त्रों में अंतर ला दिया।

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प्रश्न 3.
अमेरिका में 1870 के दशक में महिला वेशभूषा में सुधार के लिए चलाए गए अभियान की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1870 के दशक में नेशनल वुमन सफ्रेज ऐसोसिएशन (National Women Suffrage Association) और अमेरिकन वुमन सफ्रेज ऐसोसिएशन (American Suffrage Association) ने महिला वेशभूषा में सुधार का अभियान चलाया। पहले संगठन की मुखिया स्टेंटन (Stanton) तथा दूसरे संगठन की मुखिया लूसी स्टोन (Lucy Stone) थीं। उन्होंने नारा लगाया वेशभूषा को सरल एवं सादा बनाओ, स्कर्ट का आकार छोटा करो और कारसैट्स (Corsets) का प्रयोग बंद करो। इस प्रकार अटलांटिक के दोनों ओर वेश-भूषा में विवेकपूर्ण सुधार का अभियान चल पड़ा। परंतु सुधारक सामाजिक मूल्यों को शीघ्र ही बदलने में सफल न हो पाये। उन्हें उपहास तथा आलोचना का सामना करना पड़ा। रूढ़िवादियों ने हर स्थान पर परिवर्तन का विरोध किया। उन्हें शिकायत थी कि जिन महिलाओं ने पारंपरिक पहनावा त्याग दिया है, वे सुंदर नहीं लगतीं। उनका नारीत्व और चेहरे की चमक समाप्त हो गई है। निरंतर आक्षेपों का सामना होने के कारण बहुत-सी महिला सुधारकों ने पुनः पारंपरिक वेश-भूषा को अपना लिया।
कुछ भी हो उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देने लगे। विभिन्न दबावों के कारण सुंदरता के आदर्शों और वेशभूषा की शैली दोनों में बदलाव आ गया। लोग उन सुधारकों के विचारों को स्वीकार करने लगे जिनका उन्होंने पहले उपहास उड़ाया था। नए युग के साथ नई मान्यताओं का सूत्रपात हुआ।

प्रश्न 4.
17वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक ब्रिटेन में वस्त्रों में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी दीजिए। . .
उत्तर-
17वीं शताब्दी से पहले ब्रिटेन की अति साधारण महिलाओं के पास फलैक्स, लिनन तथा ऊन के बने बहुत ही कम वस्त्र होते थे। इनकी धुलाई भी कठिन थी।
भारतीय छींट-1600 के बाद भारत के साथ व्यापार के कारण भारत की सस्ती, सुंदर तथा आसान रख-रखाव वाली भारतीय छींट इंग्लैंड (ब्रिटेन) पहुंचने लगी। अनेक यूरोपीय महिलाएं इसे आसानी से खरीद सकती थीं और पहले से अधिक वस्त्र जुटा सकती थीं।

औद्योगिक क्रांति और सूती कपड़ा-उन्नीसवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के समय बड़े पैमाने पर सूती वस्त्रों का उत्पादन होने लगा। वह भारत सहित विश्व के अनेक भागों को सूती वस्त्रों का निर्यात भी करने लगा। इस प्रकार सूती कपड़ा बहुत बड़े वर्ग को आसानी से उपलब्ध होने लगा। 20वीं शताब्दी के आरंभ तक कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों ने वस्त्रों को और अधिक सस्ता कर दिया। इनकी धुलाई और संभाल भी अधिक आसान थी। वस्त्रों के भार तथा लंबाई में परिवर्तन-1870 के दशक के अंतिम वर्षों में भारी भीतरी वस्त्रों का धीरे-धीरे त्याग कर दिया गया। अब वस्त्र पहले से अधिक हल्के, अधिक छोटे और अधिक सादे हो गए। फिर भी 1914 तक वस्त्रों की लंबाई में कमी नहीं आई। परंतु 1915 तक स्कर्ट की लंबाई एकाएक कम हो गई। अब यह घुटनों तक पहुंच गई।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों की भारतीय पगड़ी तथा भारतीयों की अंग्रेजों के टोप के प्रति क्या प्रतिक्रिया थी और क्यों?
उत्तर-
भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में कुछ विशेष वस्त्र विरोधाभासी संदेश देते हैं। इस प्रकार की घटनाएं संशय और विरोध पैदा करती हैं। ब्रिटिश भारत में भी वस्त्रों का बदलाव इन विरोधों से होकर निकला। उदाहरण के लिए हम पगड़ी और टोप को लेते हैं। जब यूरोपीय व्यापारियों ने भारत आना आरंभ किया तो उनकी पहचान उनके टोप से की जाने लगी। दूसरी ओर भारतीयों की पहचान उनकी पगड़ी थी। ये दोनों पहनावे न केवल देखने में भिन्न थे, बल्कि ये अलगअलग बातों के सूचक भी थे। भारतीयों की पगड़ी सिर को केवल धूप से ही नहीं बचाती थी बल्कि यह उनके आत्मसम्मान का चिह्न भी थी। बहुत से भारतीय अपनी क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय पहचान दर्शाने के लिए जान बूझ कर भी पगड़ी पहनते थे। इसके विपरीत पाश्चात्य परंपरा में टोप को सामाजिक दृष्टि से उच्च व्यक्ति के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए उतारा जाता था। इस परंपरावादी भिन्नताओं ने संशय की स्थिति उत्पन्न कर दी। जब कोई भारतीय किसी अंग्रेज़ अधिकारी से मिलने जाता था और अपनी पगड़ी नहीं उतारता था तो वह अधिकारी स्वयं को अपमानित महसूस करता था।

प्रश्न 6.
1862 में ‘जूता सभ्याचार’ (पादुका सम्मान) संबंधी मामले का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीयों को अंग्रेज़ी अदालतों में जूता पहन कर जाने की अनुमति नहीं थी। 1862 ई० में सूरत की अदालत में जूता सभ्याचार संबंधी एक प्रमुख मामला आया। सूरत की फ़ौजदारी अदालत में मनोकजी कोवासजी एंटी (Manockjee Cowasjee Entee) नामक व्यक्ति ने जिला जज के सामने जूता उतारकर जाने से मना कर दिया था। जज ने उन्हें जूता उतारने के लिए बाध्य किया, क्योंकि बड़ों का सम्मान करना भारतीयों की परंपरा थी। परंतु मनोकजी अपनी बात पर अड़े रहे। उन्हें अदालत में जाने से रोक दिया गया। अतः उन्होंने विरोध स्वरूप एक पत्र मुंबई (बंबई) के गवर्नर को लिखा।

अंग्रेज़ों ने दबाव देकर कहा कि क्योंकि भारतीय किसी पवित्र स्थान अथवा घर में जूता उतार कर प्रवेश करते हैं, इसलिए वे अदालत में भी जूता उतार कर प्रवेश करें। इसके विरोध में भारतीयों ने प्रत्युत्तर में कहा कि पवित्र स्थान तथा घर में जूता उतार कर जाने के पीछे दो विभिन्न अवधारणाएं हैं। प्रथम इससे मिट्टी और गंदगी की समस्या जुड़ी है। सड़क पर चलते समय जूतों को मिट्टी लग जाती है। इस मिट्टी को सफ़ाई वाले स्थानों पर नहीं जाने दिया जा सकता था। दूसरे, वे चमड़े के जूते को अशुद्ध और उसके नीचे की गंदगी को प्रदूषण फैलाने वाला मानते हैं। इसके अतिरिक्त, अदालत जैसा सार्वजनिक स्थान आखिर घर तो नहीं है। परंतु इस विवाद का कोई हल न निकला। अदालत में जूता पहनने की अनुमति मिलने में बहुत से वर्ष लग गए।

प्रश्न 7.
भारत में चले स्वदेशी आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
स्वदेशी आंदोलन 1905 के बंग-भंग के विरोध में चला। भले ही इसके पीछे राष्ट्रीय भावना काम कर रही थी तो भी इसके पीछे मुख्य रूप से पहनावे की ही राजनीति थी।
पहले तो लोगों से अपील की गई कि वे सभी प्रकार के विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करें और माचिस तथा सिगरेट जैसी चीज़ों को बनाने के लिए अपने उद्योग लगाएं। जन आंदोलन में शामिल लोगों ने शपथ ली कि वे औपनिवेशिक राज का अंत करके ही दम लेंगे। खादी का प्रयोग देशभक्ति का प्रतीक बन गया। महिलाओं से अनुरोध किया गया कि वे रेशमी कपड़े तथा काँच की चूड़ियां फेंक दें और शंख की चूड़ियां पहनें। हथकरघे पर बने मोटे कपड़े को लोकप्रिय बनाने के लिए गीत गाए गए तथा कविताएं रची गईं।

वेशभूषा में बदलाव की बात उच्च वर्ग के लोगों को अधिक भायी क्योंकि साधनहीन ग़रीबों के लिए नई चीजें खरीद पाना मुश्किल था। लगभग पंद्रह साल के बाद उच्च वर्ग के लोग भी फिर से यूरोपीय पोशाक पहनने लगे। इसका कारण यह था कि भारतीय बाजारों में भरी पड़ी सस्ती ब्रिटिश वस्तुओं को चुनौती देना लगभग असंभव था। इन सीमाओं के बावजूद स्वदेशी के प्रयोग ने महात्मा गांधी को यह सीख अवश्य दी कि ब्रिटिश राज के विरुद्ध प्रतीकात्मक लड़ाई में कपड़े की कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

प्रश्न 8.
वस्त्रों के साथ गांधी जी के प्रयोगों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गांधी जी ने समय के साथ-साथ अपने पहनावे को भी बदला। एक गुजराती बनिया परिवार में जन्म लेने के कारण बचपन में वह कमीज़ के साथ धोती अथवा पायजामा पहनते थे और कभी-कभी कोट भी। लंदन में उन्होंने पश्चिमी सूट अपनाया। भारत में वापिस आने पर उन्होंने पश्चिमी सूट के साथ पगड़ी पहनी।
शीघ्र ही गांधी जी ने सोचा कि ठोस राजनीतिक दबाव के लिए पहनावे को अनोखे ढंग से अपनाना उचित होगा। 1913 में डर्बन में गांधी जी ने सिर के बाल कटवा लिए और धोती कुर्ता पहन कर भारतीय कोयला मज़दूरों के साथ विरोध करने के लिए खड़े हो गए। 1915 ई० में भारत वापसी पर उन्होंने काठियावाड़ी किसान का रूप धारण कर लिया। अंततः 1921 में उन्होंने अपने शरीर पर केवल एक छोटी सी धोती धारण कर ली। गांधी जी इन पहनावों को जीवन भर नहीं अपनाना चाहते थे। वह तो केवल एक या दो महीने के लिए ही किसी भी पहनावे को प्रयोग के रूप में अपनाते थे। परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपने पहनावे को ग़रीबों के पहनावे का रूप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अन्य वेशभूषाओं का त्याग कर दिया और जीवन भर एक छोटी सी धोती पहने रखी। इस वस्त्र के माध्यम से वह भारत के साधारण व्यक्ति की छवि पूरे विश्व में दिखाने में सफल रहे और भारत-राष्ट्र का प्रतीक बन गये।
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PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

Punjab State Board PSEB 9th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 4 प्राथमिक सहायता

PSEB 9th Class Physical Education Guide प्राथमिक सहायता Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायता के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
डॉक्टरी सहायता के मिलने से पहले जो रोगी या घायल की चिकित्सा की जाती है, उसे प्राथमिक सहायता (First Aid) कहते हैं।

प्रश्न 2.
फ्रैक्चर का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
किसी हड्डी के टूटने या उसमें दरार पड़ जाने को फ्रैक्चर कहा जाता है।

प्रश्न 3.
बेहोशी क्या है ?
उत्तर-
बेहोशी का अर्थ है चेतना का खोना।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 4.
विद्युत् का झटका क्या है ?
उत्तर-
विद्युत् की नंगी तार जिसमें धारा प्रवाहित हो रही हो, के अचानक हाथ से लगने से जो झटका लगता है।

प्रश्न 5.
फ्रैक्चर की किन्हीं दो किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) सरल फ्रैक्चर (2) बहुखण्ड फ्रैक्चर ।

प्रश्न 6.
जटिल फ्रैक्चर अधिक हानिकारक होता है। ठीक अथवा ग़लत?
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 7.
दबी हुई फ्रैक्चर का नुकसान नहीं होता ? ठीक अथवा ग़लत ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 8.
बेहोशी के कोई दो चिन्ह लिखें।
उत्तर-

  1. रोगी की नब्ज़ धीरे-धीरे चलती है
  2. त्वचा ठण्डी हो जाती है।

प्रश्न 9.
जोड़ का उतरना क्या होता है ?
उत्तर-
हड्डी का जोड़ वाले स्थान से खिसकना, जोड़ उतरना (Dislocation) कहलाता

प्रश्न 10.
पट्टे के तनाव अथवा मोच में अन्तर होता है ?
उत्तर-
हां, अन्तर होता है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायता के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about First Aid ?)
उत्तर-
हमारे दैनिक जीवन में प्रायः दुर्घनाएं तो होती रहती हैं। स्कूल जाते समय साइकिल से टक्कर, खेल के मैदान में चोट लग जाना आदि। प्रायः घटना स्थल पर डॉक्टर उपस्थित नहीं होता। डॉक्टर के पहुंचने से पहले रोगी या घायल को जो सहायता दी जाती है, उसे प्राथमिक सहायता (First Aid) कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता के क्या नियम हैं ?
(Describe the various rules of First Aid ?)
उत्तर-
प्राथमिक सहायता के मुख्य नियम इस प्रकार हैं –

  • रोगी को हमेशा आरामदायक हालत में रखो।
  • रोगी को हमेशा धैर्य देना चाहिए।
  • रोगी को प्रेम और हमदर्दी देनी चाहिए।
  • यदि खून बह रहा हो तो सबसे पहले खून बन्द करने का प्रबन्ध करना चाहिए।
  • भीड़ को अपने इर्द-गिर्द से दूर कर दो।
  • रोगी के कपड़े इस ढंग से उतारो जिससे उसे कोई तकलीफ़ न हो।
  • उसे तुरन्त डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
  • उतनी देर तक सहायता देते रहना चाहिए जितनी देर तक उसमें प्राण बाकी हैं।
  • यदि सांस रुकता हो तो बनावटी सांस देने का प्रबन्ध करना चाहिए।
  • यदि ज़ख्म छिल गया हो तो उसे साफ़ करके पट्टी बांध दो।
  • दुर्घटना के समय जिस चीज़ की पहले आवश्यकता हो उसे पहले करना चाहिए।
  • रोगी को नशीली चीज़ न दो।
  • हड्डी टूटने की हालत में रोगी को ज्यादा हिलाना-जुलाना नहीं चाहिए।
  • रोगी को हमेशा खुली हवा में रखो।
  • यदि रोगी सड़क पर धूप में पड़ा हो तो उसे ठंडी छांव में पहुंचाना चाहिए।

प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायता क्या होती है ? इसकी हमें क्यों ज़रूरत है ?
(What is First Aid ? Why we need it ?)
उत्तर-
हमारे जीवन में प्रायः दुर्घटनाएं होती रहती हैं। खेल के मैदान में खेलते समय, सड़क पर चलते समय, स्कूल की प्रयोगशाला में काम करते समय, घर में सीढ़ियां चढ़तेउतरते समय, रसोई घर में काम करते हुए या स्नानागृह में स्नान करते समय व्यक्ति किसी भी प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो सकता है। कई बार खेल के मैदान में अनेक दुर्घटनाएं हो जाती हैं। इन दुर्घटनाओं से बचाव के लिए आवश्यक है कि खेल का मैदान न ही अधिक कठोर हो और नन्ही अधिक नर्म। खेल का सामान भी ठीक प्रकार का बना हो और खेल किसी कुशल-प्रबन्धक की देख-रेख में खेली जाए। ऐसे समय यह तो सम्भव नहीं कि डॉक्टर हर जगह मौजूद हो। डॉक्टर के पहुंचने से पहले या डॉक्टर तक ले जाने से पहले उपलब्ध साधनों से दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को जो सहायता दी जाती है, उसे प्राथमिक सहायता कहते हैं।

इस प्रकार डॉक्टरी सहायता के मिलने से पहले जो रोगी या घायल की चिकित्सा की जाती है, उसे प्राथमिक सहायता (First Aid) कहते हैं।
यदि घायल या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक सहायता प्रदान न की जाए तो हो सकता है कि घटना स्थल पर ही दम तोड़ दे।
अन्त में हम यह कह सकते हैं कि प्राथमिक सहायता घायल या रोगी के लिए जीवनरूपी अमृत के समान है। इसलिए प्राथमिक सहायता जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

प्रश्न 4.
हॉकी खेलते समय यदि तुम्हारे घुटने की हड्डी उतर जाए तो आप क्या करोगे ?
(What will you do if you got dislocation of your knee joint while playing Hockey ?)
उत्तर-
यदि हॉकी खेलते समय मेरे घुटने की हड्डी उतर जाये तो मैं इसका इलाज इस प्रकार करूंगा हड्डी को इलास्टिक वाली पट्टी बांधूगा। मैं यह पूरी कोशिश करूंगा कि चोट वाली जगह पर किसी भी प्रकार का भार न पड़े। चोट वाली जगह पर स्लिग डाल लूंगा ताकि हड्डी में हिलजुल न हो।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायक (First Aider) के गुणों और कर्तव्यों का वर्णन करो।
(What are the qualities and duties of First Aider ?)
उत्तर–
प्राथमिक सहायक में निम्नलिखित गुण होने चाहिएं –

  • प्राथमिक सहायक चुस्त तथा समझदार हो।
  • वह शैक्षणिक योग्यता रखता हो।
  • उसमें सहन-शक्ति होनी चाहिए।
  • उसका दूसरों से व्यवहार अच्छा हो।
  • दूसरों से किसी प्रकार का भेद-भाव न करे।
  • प्रत्येक कार्य को तेज़ी से करे।
  • उसका स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए।
  • उसका चरित्र अच्छा हो।
  • उसमें यह शक्ति होनी चाहिए कि कठिन से कठिन कार्य को आसानी से करे।
  • वह ईमानदार होना चाहिए।
  • वह चुस्त होना चाहिए।
  • उसमें योजना बनाने की शक्ति होनी चाहिए।
  • प्राथमिक सहायक सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।
  • वह साहस वाला होना चाहिए।
  • प्राथमिक सहायक सोचने की शक्ति वाला होना चाहिए।

प्राथमिक सहायक के कर्त्तव्य इस प्रकार हैं –

  1. पहला कार्य पहले करना चाहिए।
  2. रोगी को सदैव हौसला देना चाहिए।
  3. जितना शीघ्र हो सके डॉक्टर का प्रबन्ध करना चाहिए।
  4. यदि आवश्यक हो तो रोगी के कपड़े आवश्यकतानुसार उतार देने चाहिएं।
  5. रोगी के प्राण बचाने के लिए अन्तिम श्वास तक सहायता करनी चाहिए।
  6. रोगी को सदैव आराम की दशा में रखें।
  7. रोगी के इर्द-गिर्द शोर न हो।
  8. यदि रक्त बह रहा हो तो रक्त को बन्द करने का प्रबन्ध पहले करना चाहिए।
  9. रोगी को सदैव खुली वायु में रखें।
  10. यदि दुर्घटना बिजली के करंट या गैस से हुई हो तो एक-दम बिजली या गैस बन्द कर दें।

प्रश्न 2.
पट्टे के तनाव से क्या अभिप्राय है ? इसके कारण, चिन्ह तथा उपचार का वर्णन करो।
(What is strain ? Describe its causes, symptoms and treatment.)
उत्तर-
मांसपेशियों के खिंचाव को ही मांसेपशियों का तनाव कहते हैं। ऐसी दशा में मांसपेशियों में सूजन आ जाती है तथा अत्यधिक पीड़ा होती है।
मांसपेशियों में तनाव के कारण (Causes of Strain) मांसपेशियों में तनाव के . कारण निम्नलिखित हैं –

  • शरीर में से पसीने के रूप में पानी का निकास हो जाना।
  • आवश्यकता से अधिक थकावट।
  • शरीर के अंगों का परस्पर समन्वय न होना।
  • खेल के मैदान का अधिक कठोर होना।
  • मांसपेशियों को एक दम हरकत में लाना।
  • शरीर को गर्म (Warm up) न करना।
  • खेल के सामान का ठीक न होना।
  • शरीर की शक्ति का उचित अनुपात में न होना।

चिन्ह (Symptoms)-

  • मांसपेशियों में अचानक खिंचाव सा आ सकता है।
  • मांसपेशियां कमज़ोरी के कारण काम करने के योग्य नहीं रहतीं।
  • चोट लगने के एक दम बाद पीड़ा महसूस होती है।
  • चोट वाली जगह पर गड्डा दिखाई देता है।
  • कभी-कभी चोट वाली जगह के आस-पास की जगह नीले रंग की हो जाती है।
  • चोट वाली जगह नर्म लगती है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

बचाव (Safety Measures) –

  • खेल का मैदान समतल व साफ़-सुथरा होना चाहिए। इसमें कंकर आदि बिखरे नहीं होने चाहिएं।
  • ऊंची तथा लम्बी छलांग के अखाड़े नर्म रखने चाहिएं।
  • खिलाड़ियों को चोटों से बचने के लिए आवश्यक शिक्षा देनी चाहिए।
  • खेल आरम्भ करने से पहले कुछ हल्के व्यायाम करके शरीर को गर्म (Warm up) करना चाहिए।
  • गीले या फिसलन वाले मैदान पर नहीं खेलना चाहिए।
  • खेल का सामान अच्छी प्रकार का होना चाहिए।
  • खिलाड़ियों को परस्पर सद्भावना रखनी चाहिए। खेल कभी क्रोध में आकर नहीं खेलना चाहिए।

इलाज (Treatment)-

  • चोट वाली जगह पर ठंडे पानी की पट्टी या बर्फ़ रखनी चाहिए।
  • चोट वाली जगह पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • चोट वाली जगह के अंग को हिलाना नहीं चाहिए।
  • चोट वाली जगह पर 24 घण्टे पश्चात् सेंक या मालिश करना चाहिए।

प्रश्न 3.
मोच के क्या कारण हैं ? इसकी निशानियों तथा उपचार के बारे में वर्णन करो।
(What is sprain ? Discuss its causes, symptoms and treatment.)
उत्तर-
किसी जोड़ के बन्धनों के फट जाने को मोच कहते हैं।

कारण (Causes)-

  • गीले या फिसलन वाले मैदान में खेलना।
  • मैदान में पड़े कंकर आदि का पांव के नीचे आ जाना।
  • खेल के मैदान में गड्डे आदि का होना।
  • अनजान-खिलाड़ी का गलत ढंग से खेलना।
  • अखाड़ों की ठीक तरह से गोडी न करना।

चिन्ह (Symptoms)-

  • थोड़ी देर के बाद मोच वाली जगह पर सूजन होने लगती है।
  • सूजन वाली जगह पर पीड़ा होने लगती है।
  • मोच वाले भाग की सहन करने, कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।
  • गम्भीर मोच की दशा में जोड़ की ऊपरी त्वचा का रंग नीला हो जाता है।

इलाज (Treatment)-मोच.का इलाज इस प्रकार है-

  • मोच वाले स्थान को अधिक हिलाना नहीं चाहिए।
  • घाव वाले स्थान पर 48 घण्टे तक पानी की पट्टियां रखनी चाहिएं।
  • मोच वाले स्थान पर आठ के आकार की पट्टी बांधनी चाहिए।
  • मोच वाले स्थान पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • यदि हड्डी टूटी हो तो एक्सरे करवाना चाहिए।
  • 48 से 72. घण्टे के पश्चात् ही सेंक देना चाहिए।
  • मोच वाले स्थान को सदैव ध्यान से रखना चाहिए। जहां एक बार मोच आ जाए, दोबारा फिर आ जाती है। (“Once a sprain, always a sprain.”)
  • मोच ठीक होने के पश्चात् ही क्रियाएं करनी चाहिएं।

प्रश्न 4.
जोड़ के उतरने के कारण, चिन्ह तथा इलाज बताओ।
(Write down the causes, symptoms and treatment of dislocation of joints.)
उत्तर-
हड्डी का जोड़ वाले स्थान से खिसकना जोड़ उतरना (Dislocation) कहलाता है।

कारण (Causes)-

  • किसी बाहरी भार के तेज़ी से हड्डी से टकराने से हड्डी अपनी जगह छोड़ देती है।
  • खेल का सामान शारीरिक शक्ति से अधिक भारी होना।
  • खेल के मैदान का असमतल या अधिक कोठर या नर्म होना।
  • खेल में भाग लेने से पहले शरीर को हल्के व्यायामों से गर्म (Warm up) करना।
  • खिलाड़ी का अचानक गिर जाना।

चिन्ह (Symptoms) –

  • चोट वाली जगह बेढंगी सी दिखाई देती है।
  • चोट वाली जगह अपने आप हिल नहीं सकती।
  • चोट वाली जगह पर सूजन आ जाती है।
  • सोट वाली जगह पर पीड़ा होती है।

इलाज (Treatment)—जोड़ के खिसकने के इलाज इस प्रकार हैं –

  •  ह को इलास्टिक वाली पट्टी बांधनी चाहिए।
  • घाव वाले स्थान पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • घ. पाले स्थान पर स्लिग डाल देना चाहिए ताकि हड्डी हिल न सके।
  • जोड़ को अधिक हिलाना नहीं चाहिए।
  • जोड़ को 48 से 72 घण्टे के पश्चात् ही सेंक देना चाहिए।

प्रश्न 5.
हड्डी की टूट या फ्रैक्चर के कारण, चिन्ह तथा इलाज बताओ।
(Mention the causes of Fracture, its symptoms and treatment.)
उत्तर-
हड्डी की टूट के कारण (Causes of Fracture) हड्डी की टूट के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

  • खिलाड़ी का बहुत जोश, खुशी या क्रोध में बेकाबू होकर खेलना।
  • बहुत सख्त या नर्म मैदान में खिलाड़ी का गिरना।
  • असमतल या फिसलने वाले मैदान में खेलना।
  • किसी योग्य और कुशल व्यक्ति की देख-रेख में खेल न खेला जाना।

चिन्ह (Symptoms)-

  • टूट वाली जगह के समीप सूजन हो जाती है।
  • टूट वाली जगह शक्तिहीन हो जाती है।
  • टूट वाली जगह पर पीड़ा होती है।
  • टूट वाली जगह बेढंगी हिल-जुल होती है।
  • अंग कुरुप हो जाता है।
  • हाथ लगा कर हड्डी की टूट का पता लगाया जा सकता है।

इलाज (Treatment)-

  • टूट वाली जगह को हिलाना नहीं चाहिए।
  • रक्त बहने की दशा में पहले रक्त को रोकने का प्रयास करना चाहिए।
  • घाव वाली जगह पर पट्टी बांध देनी चाहिए।
  • घायल को एक्स-रे के लिए ले जाना चाहिए।
  • टूट वाली जगह पर पट्टियों तथा चपटियों का सहारा बांधना चाहिए।
  • घायल को और इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंचाना चाहिए।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 6.
मोच किसे कहते हैं ? इसके लिए प्राथमिक सहायता क्या हो सकती है ?
(What is sprain ? How you will render a first Aid to a person who got Sprain ?)
उत्तर-
मोच (Sprain)—किसी जोड़ के बन्धन (ligaments) का फट जाना मोच (Sprain) कहलाता है। साधारणतया टखने, घुटने, रीढ़ की हड्डी तथा कलाई को मोच आती है।
मोच के प्रकार (Type of Sprain)-मोच निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है—

  • नर्म मोच (Mild Sprain)—इस दशा में मोच की जगह में कुछ कमज़ोरी, सूजन तथा पीड़ा अनुभव होती है।
  • दरमियानी मोच (Mediocre Sprain)—इस दशा में सूजन तथा पीड़ा में वृद्धि हो जाती है।
  • पूर्ण मोच (Complete Sprain)—इस दशा में पीड़ा इतनी अधिक हो जाती है कि सहन नहीं की जा सकती।

प्राथमिक सहायता (First Aid) –

  • जिस जगह पर चोट आई हो वहां ज़रा भी हिल-जुल नहीं होनी चाहिए।
  • चोट वाली जगह पर 48 घण्टे तक ठंडे पानी की पट्टियां रखनी चाहिएं।
  • मोच वाली जगह पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • टखने में मोच आने की दशा में ‘आठ’ के आकार की पट्टी बांधनी चाहिए।
  • मोच वाली जगह पर 48 घण्टे से 72 घण्टे के पश्चात् सेंक देना वा मालिश करनी चाहिए।
  • हड्डी टूटने की आशंका होने पर एक्सरे करवाना चाहिए।
  • मोच ठीक होने के बाद योग क्रियाएं करनी चाहिएं।

प्रश्न 7.
फ्रैक्चर (टूट) की कितनी किस्में हैं ? सबसे खतरनाक टूट कौन-सी है ?
(Describe the types of Fracture ? Which is the most dangerous fracture ?)
उत्तर-
फ्रैक्चर का अर्थ (Meaning of Fracture)-किसी हड्डी के टूटने या उसमें दरार पड़ जाने को फ्रैक्चर कहा जाता है।
फ्रैक्चर के कारण-हड्डियों के टूटने या उसमें दरार पड़ जाने के कई कारण हो सकते हैं। इसमे से सबसे बड़ा कारण किसी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष चोट (Direct of Indirect Injury) हो सकती है।

फ्रैक्चर के प्रकार (Types of Fracture)
1. सरल या बन्द फ्रैक्चर (Simple or Closed Fracture)-जब कोई बाह्य घाव न हो जो टूटी हुई हड्डी तक जाता हो। देखें चित्र।
PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (1)

2. खुला फ्रैक्चर (Compound or Open Fracture)-जब कोई ऐसा घाव हो जो टूटी
PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (2)

हड्डी तक जाता हो अथवा जब हड्डी के टूटे हुए भाग चमड़ी या मांस को चीर कर बाहर निकल आते हैं और कीटाणु फ्रैक्चर वाले स्थान में प्रविष्ट हो जाते हैं। देखें चित्र।

3. जटिल फ्रैक्चर (Complicated Fracture)-हड्डी टूटने के साथ-साथ दिमाग़, फेफड़े, जिगर, गुर्दे पर चोट लगने से जोड़ भी उतर जाता है। एक जटिल फ्रैक्चर सरल या खुला हो सकता है।
इसके अतिरिक्त कई अन्य फैक्चर भी होते हैं जो प्राथमिक चिकित्सक को पता नहीं चलते। इनमें से मुख्य फ्रैक्चरों का विवरण नीचे दिया जाता है

4. बुहखण्ड फ्रैक्चर (Comminuted Fracture)-जब हड्डी कई स्थानों से टूट जाती है। देखो चित्र।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (3)

5. पचड़ी फ्रैक्चर (Impacted Fracture) जब टूटी हड्डियों के सिरे एक-दूसरे में धंस जाते हैं। देखो चित्र।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (4)

6. कच्चा या हरी लकड़ी जैसी फ्रैक्चर (Green Stick Fracture)—ऐसा फ्रैक्चर प्रायः छोटे बच्चों में होता है। उनकी हड्डियां कोमल होती हैं । जब उनकी हड्डी टूट जाती है तो वह पूरी तरह आर-पार निकल कर टेढ़ी हो जाती है या उसमें दराड़ आ जाती है। देखो चित्र।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (5)

7. दबा हुआ फ्रैक्चर (Depressed Fracture)—जब खोपड़ी के ऊपर वाले भाग या उसके आस-पास कहीं हड्डी टूट जाए या अन्दर धंस जाए। देखें चित्र-पचड़ी फ्रैक्चर।। इनमें सबसे खरतनाक टूट या फ्रैक्चर जटिल फ्रैक्चर है। इस टूट के कारण मनुष्य का जीवन संकट में पड़ जाता है। इसलिए यह फ्रैक्चर सबसे भयानक है।

प्रश्न 8.
बेहोशी क्या है ? इसके चिन्हों तथा इलाज के बारे में बताओ।
(What is unconsciousness ? Mention its symptoms and treatment.)
उत्तर-
बेहोशी (Unconsciousness) बेहोशी का अर्थ है चेतना का खोना। चिन्ह (Symptoms) बहोशी के निम्नलिखित लक्षण होते हैं –

  • नब्ज़ धीमी चलती है।
  • त्वचा ठण्डी और चिपचिपी हो जाती है।
  • चेहरा पीला पड़ जाता है।
  • रक्त का दबाव कम हो जाता है।

इलाज (Treatment) –

  • रोगी की नब्ज़ और दिल की धड़कन अच्छी तरह देख लेनी चाहिए।
  • रोगी की जीभ को पिछली ओर खिसकने नहीं देना चाहिए।
  • यदि शरीर के कपड़े तंग हों तो उतार देने चाहिएं।
  • खुली वायु आने देनी चाहिए।
  • दिल पर मालिश करनी चाहिए।
  • सांस की गति कम होने की दशा में कृत्रिम सांस देना चाहिए।
  • रोगी को पूरा होश न आने तक मुंह के द्वारा कुछ खाने के लिए नहीं देना चाहिए।
  • जब तक रोगी होश में न आए उसे पानी या गर्म चीज़ पीने के लिए देनी चाहिए।
  • रोगी को स्पिरिट अमोनिया सुंघा देनी चाहिए। यदि यह न मिल सके तो प्याज़ ही सुंघा देना चाहिए।
  • जिस कारण से बेहोशी हुई हो उसका इलाज करना चाहिए।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 9.
सांप के काटने की अवस्था में रोगी को आप कैसी प्राथमिक सहायता देंगे?
(What First Aid will you render to a patient in case of snake bite ?)
उत्तर-
सांप के काटने की अवस्था में प्राथमिक सहायता
(First Aid in case of Snake-bite) सांप के काटने से व्यक्ति की मृत्यु होने की सम्भावना हो सकती है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को तुरन्त प्राथमिक सहायता दी जानी चाहिए। सांप द्वारा डंसे व्यक्ति को निम्नलिखित विधि द्वारा प्राथमिक सहायता देनी चाहिए –

  • रक्त परिभ्रमण को रोकना (Stopping the circulation of blood) सर्वप्रथम जिस अंग पर सांप ने डंसा है उस अंग में रक्त परिभ्रमण को रोकना चाहिए। इसके लिए हृदय की ओर वाले भाग के ऊपर के भाग को कपड़े के साथ या रस्सी के साथ कस कर बांध देना चाहिए। यह बन्धन पैर या भुजा के गिर्द घुटने या कुहनी के ऊपर बांधना चाहिए। प्रत्येक 10-20 मिनट के पश्चात् इस को आधे मिनट के लिए ढीला छोड़ना चाहिए। .
  • पानी या लाल दवाई से धोना (Washing with water or Potassium per-manganate)-जिस स्थान पर सांप ने डंक मारा हो उस स्थान को पानी या लाल दवाई (Potassium permanganate) के साथ धो लेना चाहिए।
  • कटाव लगाना (To make an incision)-डंक वाले स्थान को चाकू या ब्लेड के साथ 1″ (2.5 सम) लम्बा और 1″ (1.25 सम) गहरा कटाव लगाना चाहिए। चाकू या ब्लेड को पहले कीटाणु रहित कर लेना चाहिए। कटाव लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी बड़ी रक्त नली को कोई हानि न हो।
  • रोगी को घूमने-फिरने न देना (Not allowing the patient to move)-रोगी को घूमने-फिरने न दिया जाए। रोगी के चलने-फिरने से शरीर में विष फैल जाता है।।
  • शरीर को गर्म रखना (Keeping the body warm) रोगी के शरीर को गर्म रखा जाए। उसको पीने के लिए गर्म चाय देनी चाहिए।
  • कृत्रिम श्वास देना (Administering artificial respiration) रोगी का सांस रुकने की दशा में उसको कृत्रिम श्वास देना चाहिए।
  • रोगी को उत्साहित करना (Encouraging the patient)-रोगी को उत्साहित करना चाहिए।
  • डॉक्टर के पास या अस्पताल में पहुंचाना (Taking toadoctor or hospital)रोगी को शीघ्र ही किसी डॉक्टर के पास या अस्पताल में पहुंचाना चाहिए।

प्रश्न 10.
पानी में डूबने पर आप रोगी को कैसी प्राथमिक सहायता देंगे ?
(What First Aid will you render to a patient of drowning ?)
उत्तर-
पानी में डूबने का उपचार
(The Treatment of Drowning)

नहरों, तालाबों और नदियों में कई बार स्नान करते या इनको पार करते समय कई व्यक्ति डूब जाते हैं।
यदि डूबे हुए व्यक्ति को पानी में से निकाल कर प्राथमिक सहायता दी जाए तो उसके जीवन की रक्षा की जा सकती है। पानी में डूबे हुए व्यक्ति को निम्नलिखित विधि से प्राथमिक सहायता देनी चाहिए –

  • पेट में से पानी निकालना (Removing water from the belly)-डूबे हुए व्यक्ति को पानी से बाहर निकालो। फिर उसको पेट के बल घड़े पर लिटा कर उस के पेट में से पानी निकाला जाएगा। घड़ा न मिलने की अवस्था में उसको पेट के बल लिटा कर । उसे कमर से पकड़ कर ऊपर को उछालो। ऐसा करने से उसके पेट में से पानी निकल जाएगा।
  • रोगी को सूखे कपड़े पहनाना (Making the patient wear dry clothes)रोगी को सूखे कपड़े पहनने के लिए दो।

प्रश्न 11.
जले हुए व्यक्ति को आप कैसी प्राथमिक सहायता देंगे ? (What First Aid will you render to a patient in case of burning ?)
उत्तर-
जलना (Burning)-
कारक तथा प्रभाव (Causes and Effects) – कई बार आग, गर्म बर्तनों, रासायनिक पदार्थ, तेज़ाब तथा विद्युत्धारा से व्यक्ति जल जाता है। इस से त्वचा, मांसपेशियां और ऊतक (Tissues) नष्ट हो जाते हैं।
कभी-कभी गर्म चाय, गर्म दूध, गर्म काफी, भाप या तेजाब से घाव (Scalds) हो जाते हैं। त्वचा लाल हो जाती है, जल जाती है या कपड़े शरीर से चिपक जाते हैं। असहनीय दर्द होता है। कभी-कभी व्यक्ति अधिक जलने से मर भी जाता है।

उपचार (Treatment)-

  • जले हुए भाग का ध्यानपूर्वक उपचार करना चाहिए।
  • यदि कपड़ों को आग लग जाए तो भागना नहीं चाहिए। व्यक्ति को लेट जाना चाहिए और करवटें बदलनी चाहिएं।
  • जिस व्यक्ति के कपड़ों को आग लग जाए उसे कम्बल या मोटे कपड़े से ढक देना चाहिए।

प्रश्न 12.
बिजली के झटके से क्या अभिप्राय है ? आप रोगी को कैसी प्राथमिक सहायता देंगे ?
(What do you mean by electric shock ? How will you treat it ?)
उत्तर-
विद्युत् का झटका (Electric Shock)-

विद्युत् की नंगी तार जिसमें धारा प्रवाहित हो रही हो, को अचानक हाथ लगाने से या लग जाने से झटका लगता है। कई बार व्यक्ति तार से चिपक जाता है, परन्तु कई बार दूर जा गिरता है। विद्युत् के झटके के साथ रोगी बेसुध हो जाता है। कई बार शरीर झुलस भी जाता है। यदि किसी कारण (Main Switch) न मिले तो निम्नलिखित ढंग प्रयोग करने चाहिएं –

  • रबड़ के दस्ताने और सूखी लकड़ी का प्रयोग करना (Using the rubber gloves and dry wood) यदि विद्युत् की शक्ति 5 वोल्ट तक हो तो रबड़ के दस्ताने या सूखी लकड़ी का प्रयोग करके व्यक्ति को बचाना चाहिए। इसमें विद्युत् की धारा नहीं गुज़रती। गीली वस्तु या धातु का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • प्लग निकालना (Removing the plug) यदि विद्युत् की तार किसी दूर के स्थान से आ रही है तो प्लग (Plug) निकाल देना चाहिए या फिर तार तोड़ देनी चाहिए।

उपचार (Treatment)-

  • कृत्रिम सांसदेना (Giving artificial respiration)यदि रोगी का सांस बन्द हो तो उसको कृत्रिम सांस देना चाहिए।
  • झुलसे या सड़े अंगों का उपचार (Treatment of Scalded or Burnt part)यदि कोई अंग झुलस या सड़ गया हो तो उसका उपचार करना चाहिए।
  • रोगी को उत्साहित करना (Encouraging the patient) रोगी को उत्साहित करना चाहिए।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्राथमिक सहायता PSEB 9th Class Physical Education Notes

  • प्राथमिक सहायता-डॉक्टर के पास ले जाने से पहले रोगी को जो प्राथमिक सहायता दी जाती है ताकि उसकी जीवन रक्षा हो सके, उसे प्राथमिक सहायता कहते
    हैं।
  • प्राथमिक सहायता की ज़रूरत-अगर दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को प्राथमिक सहायता न दी जाए तो हो सकता है कि उसकी मृत्यु हो जाए। इसलिए प्राथमिक सहायता रोगी के लिए जीवन रूपी अमृत है।
  • पुट्ठों का तनाव-मांसपेशियों के खिंचें जाने को पुट्ठों का तनाव कहते हैं। आवश्यकता से अधिक थकावट और शरीर के अंगों का आपसी तालमेल न होने के कारण पुट्ठों का तनाव हो जाता है।
  • मोच-किसी जोड़ के बन्धन का फट जाना ही मोच है। मोच वाली जगह को हिलाना नहीं चाहिए और 48 घंटों तक सर्द पानी की पट्टियां करनी चाहिएं और उसके बाद उन्हें गर्म करना चाहिए।
  • फ्रैक्चर-हड्डी टूटना फ्रैक्चर होता है।
  • बेहोशी-बेहोशी का अर्थ चेतना गंवाना है। बेहोशी में नब्ज़ धीरे-धीरे चलती है और चमड़ी ठण्डी हो जाती है।
  • फ्रैक्चर की किस्में-फ्रैक्चर, सादी, गुंझलदार, दबी हुई और बहुखण्डीय हो … सकती है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

SST Guide for Class 9 PSEB एक गांव की कहानी Textbook Questions and Answers

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें:

  1. मानव की आवश्यकताएं
  2. …………. जोखिम उठाता है।
  3. ………… उत्पादन का प्राकृतिक साधन है।
  4. एक वर्ष में एक भूखण्ड पर एक से अधिक फसलें पैदा करने को ………. कहते हैं।
  5. जो श्रमिक एक राज्य से दूसरे राज्य में श्रम करने के लिए जाते हैं उन्हें ………….. श्रमिक कहते हैं।
  6.  पंजाब को देश के ……………. के रूप में जाना जाता है।

उत्तर-

  1. असीमित
  2. उद्यमी
  3. भूमि
  4. बहुविविध फसल प्रणाली
  5. प्रवासी श्रमिक
  6. अन्न के कटोरे।

बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
उत्पादन का कौन-सा कारक अचल है ?
(क) भूमि
(ख) श्रम
(ग) पूंजी
(घ) उद्यमी।
उत्तर-
(क) भूमि

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 2.
वह आर्थिक क्रिया जो वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य अथवा उपयोगिता की वृद्धि के साथ जुड़ी हुई है, कहलाती है
(क) उत्पादन
(ख) उपभोक्ता
(ग) वितरण
(घ) उपयोगिता।
उत्तर-
(क) उत्पादन

प्रश्न 3.
कृषि में विशेषकर गेहूँ व धान के उत्पादन में असाधारण वृद्धि को क्या कहते हैं ?
(क) हरित क्रांति
(ख) गेहूं क्रांति
(ग) धान क्रांति
(घ) श्वेत क्रांति।
उत्तर-
(क) हरित क्रांति

प्रश्न 4.
इग्लैंड की मुद्रा कौन-सी है ?
(क) रुपए
(ख) डॉलर
(ग) यान
(घ) पौंड।
उत्तर-
(घ) पौंड।

सही/गलत :

  1. भूमि की पूर्ति सीमित है।
  2. मनुष्य की सीमित आवश्यकताएं असीमित साधनों के साथ पूरी होती हैं।
  3. श्रम की पूर्ति को बढ़ाया एवं घटाया नहीं जा सकता।
  4. उद्यमी जोखिम उठाता है।
  5. मशीन व पशुओं द्वारा करवाया कार्य श्रम है।
  6. बाज़ार में वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाने से उनकी मांग बढ़ जाती है।

उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. ग़लत
  4. सही
  5. ग़लत
  6. ग़लत।

(क) अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन है जो यह बताता है कि किस प्रकार एक मनुष्य अपनी असीमित आवश्यकताओं को सीमित साधनों से पूरा कर सकता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 2.
भारत के गांवों की मुख्य उत्पादन क्रिया कौन-सी है ?
उत्तर-
खेती, भारत के गांवों की मुख्य उत्पादन है।

प्रश्न 3.
गांवों में सिंचाई के दो प्रमुख साधन कौन-से हैं।
उत्तर-

  1. टयूबवैल
  2. नहरें।

प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र में श्रम से क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
अर्थशास्त्र में श्रम का कार्य उन सभी मानवीय प्रयासों से हैं, जो धन कमाने के उद्देश्य से किए जाते हैं। ये प्रयास शारीरिक या बौद्धिक दोनों हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
माँ द्वारा अपने बच्चे को पढ़ाने की क्रिया श्रम है अथवा नहीं ?
उत्तर-
इस कार्य को श्रम नहीं माना जाएगा क्योंकि यह कार्य धन प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं किया गया है।

प्रश्न 6.
श्रमिकों को परिश्रमिक किस रूप में मिलता हैं ?
उत्तर-
श्रमिक अपनी मजदूरी नकद या किस्म के रूप में प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 7.
गांव के लोगों द्वारा की जाने वाली कोई दो गैर कृषि क्रियाएं बताएं।
उत्तर-
गैर कृषि क्रियाएं निम्न हैं1. डेयरी 2. मुर्गीपालन।

प्रश्न 8.
बड़े व लघु किसान कृषि के लिए वांछित पूंजी कहां से प्राप्त करते हैं ?
उत्तर-
बड़े किसान कृषि क्रियाओं के लिए पूंजी अपनी कृषि क्रियाओं से होने वाली बचतों से प्राप्त करते हैं जबकि छोटे किसान बड़े किसानों से ऊंची ब्याज दर पर रकम लेते हैं।

प्रश्न 9.
भूमि की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
भूमि प्रकृति का निःशुल्क उपहार है।

प्रश्न 10.
मज़दूर एक राज्य से दूसरे राज्यों में प्रवास क्यों करते हैं ?
उत्तर-
श्रमिक अपनी आजीविका कमाने के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य को प्रवास करते हैं।

प्रश्न 11.
किसान पराली को क्यों जलाते हैं ?
उत्तर-
धान के अवशिष्ट भाव पराली का कोई निवेष प्रबंध न होने के कारण किसान उस पराली को आग लगाते हैं।

(स्व) लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हम अर्थशास्त्र का अध्यायन क्यों करते हैं ?
उत्तर-
हम अर्थशास्त्र का अध्ययन इसलिए करते हैं क्योंकि यह एक विज्ञान है जो हमें यह बताता है कि किस प्रकार हम अपने सीमित साधनों का प्रयोग करके अपनी असीमित आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। अर्थशास्त्र का अध्ययन करके ही हम अपनी आय को इस प्रकार व्यय कर सकते हैं जिससे हमें अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो।

प्रश्न 2.
आर्थिक क्रिया क्या है ? एक उदाहरण दें।
उत्तर-
आर्थिक क्रिया वह क्रिया है जो एक व्यक्ति द्वारा अपनी असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सीमित साधनों को कम करके की जाती है। इस क्रियाओं को किए जाने का मुख्य उद्देश्य धन प्रकट करना होता है।
उदाहरण-एक शिक्षक द्वारा विद्यालय में पढ़ाना।

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प्रश्न 3.
सिंचाई के लिए टयूबवैल का निरन्तर प्रयोग भूमि के नीचे के जलस्तर को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर-
सिंचाई के लिए टयूबवैल द्वारा पानी के निरंतर प्रयोग किए जाने से भूमिगत जल का स्तर कम होता जा रहा है। पंजाब में भूमिगत जल स्तर का कम होना एक गंभीर समस्या है। पंजाब में हर वर्ष अधिक से अधिक जल का प्रयोग करने हेतु भूमि के नीचे से नीचे स्तर से भी जल निकाला जा रहा है। इस तरह 20 वर्ष के बाद भूमिगत के पूरी तरह कम हो जाने का माप उत्पन्न होने लगा है।

प्रश्न 4.
भूमि के एक ही भाग पर उत्पादन वृद्धि के कोई दो भिन्न ढंग बताएं।
उत्तर-
एक ही भूमि के टुकड़ें पर एक वर्ष में एक से अधिक फसलें एक साथ उगाने से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इसे बहुविविध फसल प्रणाली कहते हैं। भूमि के एक ही टुकड़े पर उत्पादन बढ़ाने की यह एक सामान्य प्रक्रिया है। यह विद्युत टयूवबैल तथा किसानों को विद्युत की लगातार पूर्ति से संभव हो सका है।
दूसरी ओर, एक ही भूमि के टुकड़े पर उत्पादन बढ़ाने का अन्य तरीका आधुनिक विधियों का प्रयोग करना है जैसे उच्च पैदावार वाले बीज, रासायनिक खाद की पर्याप्त मात्रा कीटनाशक आदि।

प्रश्न 5.
बहुफसली विधि से क्या अभिप्राय है ? वर्णन करें।
उत्तर-
एक वर्ष में भूमि के एक टुकड़े पर एक साथ एक से अधिक फसलें उगाने की क्रिया को बहुविविध फसल प्रणाली कहते हैं। यह भूमि के एक ही टुकड़े पर उत्पादन बढ़ाने का साधारण तरीका है। यह विद्युत टयूवबैल तथा किसानों को निरंतर विद्युत की पूर्ति से संभव हो सका है। छोटी-छोटी नहरों से भी किसानों को कृषि के लिए जल उपलब्ध होता रहता है। जिसने वर्ष भर किसानों को कृषि करने के लिए प्रेरित किया है।

प्रश्न 6.
हरित क्रांति से क्या अभिप्राय है ? यह कैसे संभव हुई है ?
उत्तर-
भारत में योजनाओं की अवधि में अपनाए गए कृषि सुधारों के फलस्वरूप 1967-68 में अनाज के उत्पादन में 1966-67 की तुलना में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। किसी एक वर्ष में अनाज के उत्पादन में इतनी अधिक वृद्धि किसी क्रांति से कम नहीं थी। इसलिए इसे हरित क्रांति का नाम दिया गया। हरित क्रांति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली भारी वृद्धि से है जो कृषि की नई नीति को अपनाने के कारण हुई।

प्रश्न 7.
भूमि पर आधुनिक कृषि पद्धति व ट्यूबवैल सिंचाई के कौन-से हानिकारक प्रभाव पड़े हैं ?
उत्तर-
भूमि एक प्राकृतिक संसाधन हैं, आधुनिक कृषि विधियां इसकी उपजाऊ शक्ति को कम कर रही हैं। आधुनिक कृषि विधियों के प्रयोग द्वारा प्रारंभिक स्तर में तो कृषि उत्पादन बढ़ता रहता है परंतु बाद में यह धीरे-धीरे घटता जाता है।
भूमिगत जल का स्तर भी टयूवबैल का अधिक प्रयोग करने से घटता जा रहा है। प्रत्येक वर्ष पंजाब के किसान भूमि को और अधिक नीचे तक खोदते रहते हैं। इन स्थितियों के द्वारा 20 वर्ष के बाद भूमिगत जल के पूरी तरह कम हो जाने का संकट उत्पन्न हो गया है।

प्रश्न 8.
गांव के किसानों में भूमि किस प्रकार वितरित हुई है ?
उत्तर-
इस गांव में दुर्भाग्यवश सभी लोग कृषि योग्य भूमि की पर्याप्त मात्रा न होने के कारण कृषि कार्यों में संलग्न नहीं हैं। लगभग 20 परिवार ऐसे हैं जो अपनी भूमि के स्वामी हैं और 100 परिवार ऐसे हैं जिनके पास कृषि योग्य थोड़ी सी भूमि उपलब्ध है। जबकि 50 परिवार ऐसे भी हैं जिनके पास अपनी कृषि योग्य भूमि नहीं है। यह लोग अन्य लोगों की भूमि पर काम करके अपनी आजीविका कमाते हैं।

प्रश्न 9.
गांव में कृषि के लिए श्रम के कोई दो स्त्रोत बताएं।
उत्तर-
किसानों कृषि कार्यों के लिए श्रम का स्वयं प्रबंध करते हैं। इसके अलावा, कुछ निर्धन परिवार अपनी आजीविका कमाने के लिए बड़े कृषकों की भूमि पर श्रम का कार्य करते हैं। ज़मींदारों की भूमि पर नाम करने के लिए कुछ प्रवासी श्रमिक अन्य राज्यों जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश से भी गांव में आए हैं। इन्हें प्रवासी श्रमिक कहते हैं।

प्रश्न 10.
बड़े व मध्यम वर्गीय किसान कृषि के लिए आवश्यक पूंजी का प्रबंध कैसे करते हैं ?
उत्तर-
मझौले और बड़े किसानों के पास अधिक भूमि होती है अर्थात् उनकी जोतों का आकार काफ़ी बड़ा होता है जिससे वे उत्पादन अधिक करते हैं।
उत्पादन अधिक होने से वे इसे बाज़ार में बेच कर काफी पूंजी प्राप्त कर लेते हैं जिसका प्रयोग वे उत्पादन को आधुनिक विधियों को अपनाने में करते हैं।

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प्रश्न 11.
आर्थिक तथा अनार्थिक क्रिया में अंतर लिखें।
उत्तर-

आर्थिक  क्रियाएं अनार्थिक क्रियाएं
1. आर्थिक क्रियाएं अर्थव्यवस्था में वस्तुओं  व सेवाओं का प्रवाह करती हैं। 1. अनार्थिक क्रियाओं से वस्तुओं व सेवाओं का कोई प्रवाह अर्थव्यवस्था में नहीं होता।
2. जब आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ है कि अर्थव्यवस्था प्रगति 2. अनार्थिक क्रियाओं में होने वाली कोई भी वृद्धि अर्थव्यवस्था की प्रगति का निर्धारक नहीं है। में है।
3. आर्थिक क्रियाओं से वास्तविक व राष्ट्रीय आय व आय में वृद्धि होती है। 3. अनार्थिक क्रियाओं में से कोई राष्ट्रीय व्यक्तिगत आय में वृद्धि नहीं होती है।

प्रश्न 12.
श्रम की मुख विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
श्रम की मुख्य विशेषताएं निम्न हैं-

  1. श्रम उत्पादन का एकमात्र सक्रिय साधन है।
  2. श्रम को पूर्ति घटाई व बढ़ाई जा सकती है।
  3. भारत में श्रम प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
  4. धन कमाने के उद्देश्य से किए गए सभी मानवीय प्रयास श्रम है।
  5. श्रम को खरीदा व बेचा जा सकता है।
  6. श्रम गतिशील है।

प्रश्न 13.
लघु किसान कृषि के लिए वांछित पूंजी का प्रबंध कैसे करते हैं ?
उत्तर-
छोटे किसानों की पूंजी की आवश्यकता बड़े किसानों से भिन्न होती है क्योंकि छोटे किसानों के पास भूमि कम होने के कारण उत्पादन उनके भरण-पोषण के लिए भी कम बैठता है। उन्हें अधिकतम प्राप्त न होने के कारण बचतें नहीं होती। इसलिए खेती के लिए उन्हें पूंजी बड़े किसानों या साहूकारों से उधार लेकर पूरी करनी पड़ती है, जिस पर उन्हें काफी ब्याज चुकाना पड़ता है।

प्रश्न 14.
बड़े किसान अतिरिक्त कृषि उत्पादों को क्या करते हैं ?
उत्तर-
बड़े किसान अपने कृषि उत्पाद को नज़दीक के बाजार में बेचते हैं और बहुत अधिक धन कमा लेते हैं। इस कमाई हुई अतिरिक्त पूंजी का प्रयोग वे छोटे किसानों को ऊंची ब्याज दर पर ऋण देने के लिए करते हैं। इसके अलावा वो इस आधिक्य का प्रयोग अगले कृषि मौसम में उपज उगाने के लिए भी करते हैं और अपनी जमाओं को बढ़ाते हैं।

प्रश्न 15.
भारत के गांवों में कौन-सी गैर-कृषि क्रियाएं की जाती हैं ?
उत्तर-
ग्रामीण क्षेत्र में जो गैर-कृषि कार्य हो रहे हैं वे निम्नलिखित हैं-

  1. पशुपालन द्वारा दुग्ध क्रियाएं।
  2. छोटे-छोटे उद्योग हैं जिसमें आटा चक्कियां, बुनकर उद्योग टोकरियां बनाना, फर्नीचर बनाना, लोहे के औज़ार बनाना आदि शामिल हैं।
  3. दुकानदारी।
  4. यातायात के साधनों का संचालन आदि।

प्रश्न 16.
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कौन-कौन सी गैर-कृषि क्रियाएं (गतिविधियां) चलाई जा रही है ?
उत्तर-
गैर-कृषि क्रियाओं को कम मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है । वर्तमान में, गांवों में गैर-कृषि क्षेत्र अधिक विस्तृत नहीं हैं। गांवों में प्रत्येक 100 श्रमिकों में से केवल 24 श्रमिक ही गैर-कृषि क्रियाओं में संलग्न हैं। लोग गैर-कृषि क्रियाएं या तो अपनी बचतों से या ऋण लेकर शुरू कर सकते हैं। गांवों को आधुनिक सुविधाएं प्रदान करवा कर जैसे सड़क, बिजली, संचार, यातायात आदि से शहर के साथ जोड़ा जा सकता है तथा गैर-कृषि क्रियाओं को शुरू किया जा सकता है।

प्रश्न 17.
फसलों के अवशिष्ट को खेतों में जलाने से भूमि की गुणवत्ता में पतन क्यों आता है ?
उत्तर-
फसलों के अवशिष्ट को खेतों में जलाने से ज़मीन की उपरी सतह का तापमान बढ़ जाता है, जिस कारण ज़मीन में मिलने वाले सूक्ष्म जीव, बैक्टीरिया, मित्रकीट, फफूंद, पक्षी मौत का शिकार हो जाते हैं। इसके साथ-साथ ज़मीन के लाभदायक तत्त्व और यौगिक भी तापमान में बढ़ौतरी के कारण नष्ट हो जाते हैं, परिणामस्वरूप भूमि की गुणवत्ता में पतन हो जाता है।

अन्य अभ्यास के प्रश्न

गतिविधि-1

अपने निकटतम खेत में जाकर कुछ किसानों से चर्चा कीजिए तथा मालूम करने की कोशिश कीजिए।
प्रश्न 1.
किसान कृषि में परम्परावादी अथवा आधुनिक में किस विधि का प्रयोग कर रहे हैं : व क्यों।
उत्तर-
मेरे पड़ोस के खेतों में जिन किसानों की छोटी जोतें थीं वे खेती की पुरानी विधि का प्रयोग कर रहे हैं तथा जिन किसानों की जोतें बड़ी थीं वे नयी विधि का प्रयोग कर रहे थे। इन विधियों को प्रयोग करने का मुख्य कारण यही था कि जिन किसानों की जोतें छोटे आकार की हैं वे आधुनिक विधियों को प्रयोग करने में कम आय होने के कारण असमर्थ हैं। दूसरी ओर बड़े किसानों की आय अधिक होने के कारण वे आधुनिक विधि का प्रयोग करने में समर्थ हैं।

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प्रश्न 2.
उसके द्वारा सिंचाई के कौन-से स्त्रोत का प्रयोग हो रहा हैं ?
उत्तर-
मेरे गांव में अधिकतर किसान सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर हैं परंतु कुछ बड़े किसान ट्यूवबैल, पंपसैट से भी सिंचाई करते हैं।

प्रश्न 3.
किसानों द्वारा बोई जाने वाली फसलों के प्रकार तथा इन फसलों को बीजने तथा काटने का समय क्या है ?
उत्तर-
मेरे गांव के किसान खरीफ़ तथा रवी दोनों प्रकार की फसलें उगाते हैं। खरीफ मौसम में मक्की, सूरजमुखी तथा चावल उगाते हैं तथा सर्दी से पहले इनकी कटाई हो जाती है। सर्दी में रवी फसल जैसे गेहूं, जौ, चना, सरसों उगाते हैं तथा अप्रैल मास में इनकी कटाई करते हैं।

प्रश्न 4.
किसानों द्वारा प्रयुक्त खादों व कीटनाशक दवाइयों के नाम लिखिए।
उत्तर-
खादों के नाम-

  1. यूरिया (Urea)
  2. वर्मीकंपोस्ट (Vermicompost)
  3. जिप्सम (Gypsum)

कीटनाशक-

  1. Emanection Benzoate
  2. RDX BIO Pesticide
  3. Bitentrin 2.5% Ec
  4. Star one.

गतिविधि-2

प्रश्न 1.
अपने गांव या निकटवर्ती गांव के खेतों में जाकर पता करें कि किसान खेतों में पराली जला रहे हैं या नहीं ? यदि वे ऐसा कर रहे हैं तो उन्हें ऐसा करने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में समझाइए।
उत्तर-
गांव के खेतों में जाने से मालूम हुआ कि किसान अगली फसल की बुआई करने की जल्दी के कारण विशेष रूप से धान की कटाई के बाद व गेहूं की बुआई से पहले अवशेषों को ठिकाने लगाने की व्यवस्था के अभाव में जल्दी हल के लिए वे खेतों में ही खूटी (Stubble) को जला रहे थे। मैंने उन्हें ऐसा करने से होने वाले बुरे परिणामों से अवगत करवाया उन्हें बताया कि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है जो कि वातावरण असंतुलन फैलाता है। इससे भूमि की ऊपरी सतह का तापमान बढ़ जाता है जिसने विभिन्न प्रकार के जीवाणु, कवक, मित्र कीट आदि मर जाते हैं तथा भूमि के आवश्यक तत्वों का नाश होता है।

आइए चर्चा करें:

प्रश्न 1.
लघु स्तर के किसानों को बड़े स्तर के किसानों के खेतों में श्रमिकों की तरह कार्य क्यों करना पड़ता है ?
उत्तर-
उन्हें अपनी आजीविका कमाने के लिए श्रमिक के रूप में काम करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने बड़े किसानों से निर्धनता के कारण ऋण लिए होते हैं जिसकी अदायगी के लिए उन्हें अपने खेतों को भी देना पड़ जाता है।

प्रश्न 2.
क्या कृषि श्रमिकों को पूरे वर्ष के लिए रोजगार उपलब्ध हो जाता है ?
उत्तर-
नहीं, खेतिहर मजदूरों को पूरे वर्ष भर रोज़गार नहीं मिलता। उन्हें दैनिक मज़दूरी आधार पर अथवा किसी विशेष खेती पर होने वाले क्रियाकलाप के दौरान जैसे कटाई या बुआई के समय ही काम मिलता है। वे मौसमी रोज़गार प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 3.
कृषि श्रमिक को अपना पारिश्रमिक किस रूप में मिलता है।
उत्तर-
वे नकदी अथवा प्रकार में भी जैसे अनाज (चावल या गेहूँ) के रूप में भी मज़दूरी प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 4.
प्रवासी श्रमिक किन्हें कहा जाता हैं ?
उत्तर-
जब बड़े किसानों के खेतों में अन्य राज्यों से लोग आकर मजदूरी पर काम करते हैं तो उन्हें प्रवासी मजदूर कहते हैं।

प्रश्न 5.
श्रमिक प्रवास क्यों करते हैं ? अपने अध्यापक महोदय के साथ चर्चा करें।
उत्तर-
श्रमिक इसलिए प्रवास करते हैं क्योंकि उनके स्थान पर आजीविका कमाने के लिए काम उपलब्ध नहीं होता है। हमने अपने गांव में देखा है कि अन्य राज्यों से लोग अपने वहां काम के अभाव से यहां गांव में आते हैं। इन्हें प्रवासी मज़दूर के नाम से जाना जाता है।

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PSEB 9th Class Social Science Guide एक गांव की कहानी Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें:

  1. वे सभी वस्तुएं जो मनुष्य की आवश्यकताओं को संतुष्ट करती हैं, ……. कहलाती हैं।
  2. किसी वस्तु की प्रति इकाई को ………… लागत कहते हैं।
  3. पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय तथा सीमांत आय ……… होती है।
  4. उत्पादन के मुख्य …………. साधन हैं।
  5. ……….. में समरूप वस्तु के बहुत सारे क्रेता और विक्रेता होते हैं।
  6. आर्थिक लगान केवल …………. की सेवाओं के लिए प्राप्त होता है।
  7. दुर्लभता का अर्थ किसी वस्तु अथवा सेवा की पूर्ति का उसकी मांग से ……. होता है।
  8. …………. वह इकाई है जो लाभ प्राप्त करने की दृष्टि से बिक्री के लिए उत्पादन करती है।
  9. …………. वह स्थिति है जिसमें एक बाज़ार में केवल एक ही उत्पादक होता है।
  10. किसी वस्तु की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की शक्ति है।

उत्तर-

  1. पदार्थ
  2. औसत
  3. समान
  4. चार
  5. पूर्ण प्रतियोगिता
  6. भूमि
  7. कम
  8. फर्म :
  9. एकाधिकार
  10. उपयोगिता।।

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
इनमें से कौन मुद्रा का एक कार्य है ?
(क) विनिमय का माध्यम
(ख) मूल्य का मापदंड
(ग) धन का संग्रह
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
इनमें से कौन पदार्थ का प्रकार नहीं हैं ?
(क) भौतिक
(ख) संतुलित
(ग) नाशवान
(घ) टिकाऊ।
उत्तर-
(ख) संतुलित

प्रश्न 3.
इनमें से कौन उद्यमी का पारितोषिक है ?
(क) लाभ
(ख) लगान
(ग) मजदूरी
(घ) ब्याज।
उत्तर-
(क) लाभ

प्रश्न 4.
ब्याज किसकी सेवाओं के बदले में दिया जाता है?
(क) भूमि
(ख) श्रम
(ग) पूंजी
(घ) उद्यमी।
उत्तर-
(ग) पूंजी

प्रश्न 5.
किसी वस्तु की बिक्री करने पर एक फ़र्म को जो राशि प्राप्त होती है उसे कहते हैं ?
(क) आगम
(ख) उपयोगिता
(ग) मांग
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) आगम

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प्रश्न 6.
दुर्लभता का अर्थ किसी वस्तु की पूर्ति का उसकी मांग से होना है-
(क) कम
(ख) अधिक
(ग) समान
(घ) इनमें कोई नहीं।
(ख) उत्पादन की मात्रा
उत्तर-
(क) कम

प्रश्न 7.
औसत आय निकालने का सूत्र क्या है ?
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (1)
(ग) कुल आय × उत्पादन की मात्रा
(घ) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (2)

प्रश्न 8.
इनमें से कौन पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषता है ?
(क) समरूप वस्तु
(ख) समान कीमत
(ग) पूर्ण ज्ञान
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 9.
एक विक्रेता व अधिक क्रेता किस बाज़ार का लक्ष्य है ?
(क) एकाधिकार
(ख) पूर्ण प्रतियोगिता
(ग) अल्पाधिकार
(घ) एकाधिकार प्रतियोगिता।
उत्तर-
(क) एकाधिकार

प्रश्न 10.
इनमें से कौन बाज़ार का एक प्रकार है ?
(क) अल्पाधिकार
(ख) पूर्ण प्रतियोगिता
(ग) एकाधिकार
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

सही/गलत :

  1. U.S.A. की करंसी डॉलर है।
  2. अध्यापक द्वारा घर में अपने बच्चे को पढ़ाना एक आर्थिक क्रिया है।
  3. भूमि की पूर्ति असीमित है।
  4. एक एकड़ 8 कनाल के बराबर होता है।
  5. हमारे देश में कुल खेती योग्य क्षेत्र का केवल 40 प्रतिक्षत क्षेत्र ही सिंचाई योग्य है।
  6. पंजाब पांच नदियों की भमि है।
  7. भूमिगत जल का स्तर पंजाब में बढ़ रहा है।
  8. भारत में लगभग 70% स्त्रोतों का आकार 2 हैक्टेयर से भी कम है।
  9. श्रम को हम बेच अथवा खरीद नहीं सकते हैं।
  10. पूंजी में घिसावट होती है।

उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. ग़लत
  4. सही
  5. सही
  6. सही
  7. ग़लत
  8. सही
  9. ग़लत
  10. सही।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न।।

प्रश्न 1.
उपयोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर-
उपयोगिता किसी वस्तु की वह शक्ति अथवा गुण है जिसके द्वारा हमारी आवश्यकताओं की संतुष्टि होती है।

प्रश्न 2.
सीमांत उपयोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपयोग करने से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती है, उस सीमांत उपयोगिता कहते हैं।

प्रश्न 3.
पदार्थ की परिभाषा दें।
उत्तर-
मार्शल के शब्दों में, “वे सभी वस्तुएं जो मनुष्य की आवश्यकताओं को संतुष्ट करती हैं, अर्थशास्त्र में पदार्थ कहलाती हैं।”

प्रश्न 4.
मध्यवर्ती और अंतिम वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए किया जाता है, जिनकी पुनः बिक्री की जाती है। अंतिम वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उपभोग या निवेश के उद्देश्य से बाज़ार में बिक्री के लिए उपलब्ध

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प्रश्न 5.
पूंजीगत वस्तुओं की परिभाषा दें।
उत्तर-
वे पदार्थ जिनके द्वारा किसी दूसरी वस्तु का उत्पादन होता है, जैसे कच्चा माल, मशीन इत्यादि, पूंजीगत वस्तुएं कहलाती हैं।

प्रश्न 6.
वस्तुओं और सेवाओं में क्या अंतर है ?
उत्तर-
वस्तुओं को देखा, छुआ तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। सेवाओं को देखा, छुआ और हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
धन की परिभाषा दें।
उत्तर-
अर्थशास्त्र में वे सभी वस्तुएं जो विनिमय साध्य हैं, जिनमें उपयोगिता है तथा जो सीमित मात्रा में हैं. धन कहलाती हैं।

प्रश्न 8.
दुर्लभता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दुर्लभता का अर्थ किसी वस्तु अथवा सेवा की पूर्ति का उसकी मांग से कम होता है।

प्रश्न 9.
क्या बी०ए० की डिग्री और व्यवसाय की साख धन है ?
उत्तर-

  1. बी०ए० की डिग्री धन नहीं है क्योंकि यह उपयोगी और दुर्लभ तो है पर हस्तांतरणीय नहीं होती।
  2. व्यवसाय की साख धन है क्योंकि इसमें धन के तीन गुण-उपयोगिता, दुर्लभता तथा विनिमय साध्यता हैं।

प्रश्न 10.
मुद्रा की परिभाषा दें।
उत्तर-
मुद्रा कोई भी वस्तुं हो सकती है जिसको सामान्य रूप से, वस्तुओं के हस्तांतरण में विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है।

प्रश्न 11.
मांग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मांग किसी वस्तु की वह मात्रा है जिसे एक उपभोक्ता समय की एक निश्चित अवधि में, एक निश्चित कीमत पर खरीदने के लिए इच्छुक तथा योग्य है।

प्रश्न 12.
पूर्ति की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु की पूर्ति से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से है जिसको एक विक्रेता एक निश्चित कीमत पर निश्चित समय-अवधि में बेचने के लिए तैयार होता है।

प्रश्न 13.
मौद्रिक लागत की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु का उत्पादन और बिक्री करने के लिए मुद्रा के रूप में जो धन खर्च किया जाता है, उसे उस वस्तु की मौद्रिक लागत कहते हैं।

प्रश्न 14.
सीमांत लागत की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने पर कुल लागत में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत लागत कहते हैं।

प्रश्न 15.
औसत लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी वस्तु की प्रति इकाई को औसत लागत कहते हैं। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा में भाग देने पर औसत लागत निकल आती है।

प्रश्न 16.
आय की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु की बिक्री करने पर एक फ़र्म को जो राशि प्राप्त होती है, उसे फर्म की आय या आगम कहा जाता है।

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प्रश्न 17.
सीमांत आय की परिभाषा दें।
उत्तर-
एक फ़र्म द्वारा अपने उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई बेचने से कुल आगम में जो वृद्धि होती है, उसे सीमांत आगम कहते हैं।

प्रश्न 18.
कीमत की परिभाषा दें।
उत्तर-
किसी वस्तु अथवा सेवा की एक निश्चित गुणवत्ता की एक इकाई प्राप्त करने के लिए दी जाने वाली मुद्रा की राशि को कीमत कहते हैं।

प्रश्न 19.
पूर्ण प्रतियोगिता में सीमांत आय और औसत आय में क्या संबंध होता है ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में चूंकि कीमत (औसत आय) एक समान रहती है, इसलिए औसत आय तथा सीमांत आय दोनों बराबर होती हैं।

प्रश्न 20.
एकाधिकार की स्थिति में सीमांत आगम और औसत आगम में क्या संबंध होता है ?
उत्तर-
एकाधिकार की स्थिति में अधिक उत्पादन बेचने के लिए कीमत (औसत आगम) कम करनी पड़ती है। इसलिए अगर औसत आगम और सीमांत आगम दोनों नीचे की ओर गिर रही होती हैं।

प्रश्न 21.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता वह स्थिति है जिसमें किसी समरूप वस्तु के बहुत सारे क्रेता और विक्रेता होते हैं और वस्तु की कीमत उद्योग द्वारा निर्धारित होती है।

प्रश्न 22.
एकाधिकार की परिभाषा दें।
उत्तर-
एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु या सेवा का केवल एक ही उत्पादक होता है, पर वस्तु का कोई निकटतम प्रतिस्थानापन्न नहीं होता।

प्रश्न 23.
बाज़ार की परिभाषा दें।
उत्तर-
अर्थशास्त्र में बाज़ार का अर्थ किसी विशेष स्थान से नहीं है बल्कि ऐसे क्षेत्र से है जहां क्रेता और विक्रेता में एक-दूसरे से इस प्रकार स्वतंत्र संपर्क हो कि एक ही प्रकार की वस्तु की कीमत की प्रवृत्ति आसानी से एक होने की पाई जाए।

प्रश्न 24.
उत्पादन के साधनों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादन की प्रक्रिया में शामिल होने वाली सेवाओं के स्रोतों को उत्पादन साधन कहा जाता है।

प्रश्न 25.
भूमि की परिभाषा दें।
उत्तर-
भूमि से अभिप्राय केवल ज़मीन की ऊपरी सतह से नहीं है, बल्कि उन सभी पदार्थों और शक्तियों से है जिन्हें प्रकृति, भूमि, पानी, हवा, प्रकाश और गर्मी के रूप में मनुष्य, की सहायता के लिए मुफ़्त प्रदान करती है।

प्रश्न 26.
पूंजी की परिभाषा दें।
उत्तर-
मार्शल के शब्दों में, “प्रकृति के मुफ़्त उपहारों को छोड़कर सब प्रकार की संपत्ति जिससे आय प्राप्त होती है, पूंजी कहलाती है।”

प्रश्न 27.
श्रम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मनुष्य के वे सभी शारीरिक तथा मानसिक कार्य जो धन प्राप्ति के लिए किए जाते हैं, श्रम कहलाते हैं।

प्रश्न 28.
उद्यमी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उद्यमी उत्पादन का वह साधन है जो भूमि, श्रम, पूंजी तथा संगठन को इकट्ठा करता है, आर्थिक निर्णय करता है और जोखिम उठाता है।

प्रश्न 29.
लगान की परंपरागत परिभाषा दें।
उत्तर-
परंपरावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार, “आर्थिक लगान वह लगान है जो सिर्फ़ भूमि की सेवाओं के लिए प्राप्त होता है।”

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प्रश्न 30.
लगान की आधुनिक परिभाषा दें।
उत्तर-
आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, “उत्पादन के प्रत्येक साधन से आर्थिक लगान उत्पन्न होता है जबकि उसकी पूर्ति सीमित हो। किसी साधन की वास्तविक आय और हस्तांतरण आय के अंतर को लगान कहा जाता है।”

प्रश्न 31.
मज़दूरी की परिभाषा दें।
उत्तर-
मजदूरी से अभिप्राय उस भुगतान से है जो सभी प्रकार के मानसिक तथा शारीरिक परिश्रम के लिए दिया जाता है।

प्रश्न 32.
वास्तविक मजदूरी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक मज़दूरी से अभिप्राय वस्तुओं तथा सेवाओं की उस मात्रा से है जो एक श्रमिक अपनी मजदूरी के बदले में प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 33.
नकद मज़दूरी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद मजदूरी मुद्रा की वह मात्रा है जो प्रति घंटा, प्रतिदिन, प्रति सप्ताह, प्रति मास के हिसाब से प्राप्त होती

प्रश्न 34.
ब्याज की परिभाषा दें।
उत्तर-
ब्याज वह कीमत है जो मुद्रा को एक निश्चित समय के लिए प्रयोग करने के लिए ऋणी द्वारा ऋणदाता को दी जाती है।

प्रश्न 35.
कुल ब्याज तथा शुद्ध ब्याज में क्या अंतर है ?
उत्तर-
कुल ब्याज से अभिप्राय उस सारे धन से है जो ऋणी ऋणदाता को देता है जबकि शुद्ध ब्याज कुल ब्याज का वह अंग है जो केवल पूंजी के उपयोग के लिए दिया जाता है।

प्रश्न 36.
लाभ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक उद्यमी अपने व्यवसाय की कुल आय में से कुल लागत को घटाकर जो धनात्मक (-) शेष प्राप्त करता है, उसे लाभ कहते हैं।

प्रश्न 37.
कुल लाभ तथा शुद्ध लाभ में क्या अंतर है ?
उत्तर-
शुद्ध लाभ का अभिप्राय है कुल लाभ तथा आंतरिक लागतों का अंतर जबकि कुल लाभ का अभिप्राय है कुल आय तथा कुल बाहरी लागतों का अंतर।

प्रश्न 38.
कुल लाभ की परिभाषा दें।
उत्तर-
कुल लाभ वह अधिशेष है जो उत्पादन कार्य में उत्पादन के सभी साधनों को उनके परिश्रम का पुरस्कार चुकाने के बाद उद्यमी को प्राप्त होता है।

प्रश्न 39.
शुद्ध लाभ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
शुद्ध लाभ का अनुमान लगाने के लिए कुल लाभ में से आंतरिक.लागतों, घिसावट और बीमा आदि का खर्च . घटा दिया जाता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उपयोगिता की परिभाषा दें। उसकी विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
उपयोगिता की परिभाषा-उपयोगिता किसी वस्तु की वह शक्ति है जिसके द्वारा मनुष्य की आवश्यकताओं की संतुष्टि होती है। उपयोगिता की विशेषताएं

  1. उपयोगिता एक भावगत तथ्य है-उपयोगिता को हम केवल अनुभव कर सकते हैं, उसे स्पर्श अथवा देखा नहीं जा सकता।
  2. उपयोगिता सापेक्षिक है-यह समय, स्थान तथा व्यक्ति के साथ बदल जाती है।
  3. उपयोगिता का लाभदायक होना आवश्यक नहीं है-यह ज़रूरी नहीं कि जिस वस्तु की उपयोगिता है, वह लाभदायक भी हो।
  4. उपयोगिता का नैतिकता के साथ संबंध नहीं है-यह ज़रूरी नहीं कि जो वस्तु उपयोगी है, वह नैतिक दृष्टि से भी ठीक हो।

प्रश्न 2.
कुल उपयोगिता, सीमांत उपयोगिता और औसत उपयोगिता की धारणाओं को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर-

  1. कुल उपयोगिता-किसी वस्तु की विभिन्न मात्राओं के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता की इकाइयों के जोड़ को कुल उपयोगिता कहा जाता है।
  2. सीमांत उपयोगिता-किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपभोग करने से कुल उपयोगिता में जो परिवर्तन आता है, उसे सीमांत उपयोगिता कहते हैं। माना पहला रसगुल्ला खाने से एक व्यक्ति को 15 इंकाई उपयोगिता प्राप्त होती है। दूसरा रसगुल्ला खाने के फलस्वरूप दोनों रसगुल्लों से मिलने वाली कुल उपयोगिता 25 इकाई हो जाती है। अत: 25 – 15 = 10 इकाई सीमांत उपयोगिता है। इस प्रकार प्रारंभिक उपयोगिता 15 इकाई होगी।
  3. औसत उपयोगिता-किसी वस्तु की कुल इकाइयों की कुल उपयोगिता को इकाइयों की मात्रा से विभाजित करने से हमारे पास औसत उपयोगिता आ जाती है। 3 वस्तुओं से 15 उपयोगिता मिलती है तो एक वस्तु की औसत उपयोगिता \(\frac{15}{3}\) = 5 है।

प्रश्न 3.
पदार्थ की परिभाषा दें और उसका वर्गीकरण करें।
उत्तर-
पदार्थ की परिभाषा-मार्शल के शब्दों में, “वे सब पदार्थ जो मनुष्य की आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं, अर्थशास्त्र में पदार्थ कहलाते हैं।”
पदार्थ का वर्गीकरण-

  1. भौतिक पदार्थ-जिन्हें देखा जा सकता है।
  2. अभौतिक पदार्थ या सेवाएं-जिन्हें देखा नहीं जा सकता।
  3. आर्थिक पदार्थ-ये वे पदार्थ हैं जो मूल्य द्वारा प्राप्त किए जाते हैं।
  4. निःशुल्क पदार्थ-वे पदार्थ हैं जो बिना किसी मूल्य के मिल जाते हैं।
  5. उपभोक्ता पदार्थ उपभोक्ता की आवश्यकता को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करते हैं।
  6. उत्पादक पदार्थ-अन्य वस्तुओं का उत्पादन करने में सहायक होते हैं।
  7. नाशवान् पदार्थ-जिनका केवल एक बार ही प्रयोग किया जा सकता है।
  8. टिकाऊ पदार्थ-वे पदार्थ जो काफ़ी समय तक काम में लाए जा सकते हैं।
  9. मध्यवर्ती पदार्थ-मध्यवर्ती पदार्थ वे पदार्थ हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है।
  10. अंतिम पदार्थ-अंतिम पदार्थ वे पदार्थ हैं जो उपभोग या निवेश के उद्देश्य से बाज़ार में बिक्री के लिए उपलब्ध
  11. सार्वजनिक पदार्थ-जिन पदार्थों पर सरकार का स्वामित्व होता है।
  12. निजी पदार्थ-वे पदार्थ जिन पर किसी व्यक्ति का निजी अधिकार होता है।
  13. प्राकृतिक पदार्थ-जो प्रकृति ने लोगों को उपहार के रूप में प्रदान किए हैं।
  14. मानव द्वारा निर्मित पदार्थ-जिनका उत्पादन मानव द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 4.
मुद्रा की परिभाषा दें। मुद्रा के मुख्य कार्य कौन-से हैं ?
उत्तर-
मुद्रा का अर्थ-मुद्रा कोई भी वस्तु हो सकती है जिसको सामान्य रूप से, वस्तुओं के हस्तांतरण में विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है।
मुद्रा के कार्य-

  1. विनिमय का माध्यम-सभी वस्तुएं मुद्रा के द्वारा खरीदी और बेची जाती हैं।
  2. मूल्य का मापदंड-सभी वस्तुओं का मूल्य मुद्रा में ही व्यक्त किया जाता है।
  3. भावी भुगतान का मान-सभी प्रकार के ऋण मुद्रा के रूप में ही लिए और दिए जाते हैं।
  4. धन का संग्रह- मुद्रा के रूप में धन का संग्रह करना सरल हो जाता है।
  5. विनिमय शक्ति का हस्तांतरण-मुद्रा के रूप में धन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से भेजा जा सकता है।

प्रश्न 5.
मांग से क्या अभिप्राय है ? एक तालिका और रेखाचित्र की सहायता से मांग की धारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-
मांग का अर्थ-“मांग किसी वस्तु की वह मात्रा है जिसको एक उपभोक्ता समय की एक निश्चित अवधि में, एक निश्चित कीमत पर खरीदने के लिए इच्छुक और योग्य है।”
मांग तालिका–मांग की धारणा को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

कीमत (₹) मांग की मात्रा (कि० ग्रा०)
1 40
2 30
3 20
4 10

तालिका से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे वस्तु की कीमत बढ़ती जाती है, उसकी मांग कम होती जाती है।
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (3)
मांग वक्र-मांग वक्र वह वक्र है जो मांग और कीमत का संबंध प्रकट करता है। मांग वक्र की सहायता से भी मांग को स्पष्ट किया जा सकता है। जब कीमत ₹ 1 है तो मांग 40 इकाइयां है, जब कीमत ₹4 है तो मांग 10 इकाइयां है। इस प्रकार मांग वक्र का ढलान ऊपर से बाईं ओर तथा नीचे दाईं
ओर होता है जो यह दर्शाता है कि कीमत अधिक होने पर मांग कम होती है और कीमत कम होने पर मांग अधिक होती है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 6.
पूर्ति की परिभाषा दें। एक तालिका और रेखाचित्र द्वारा पूर्ति की धारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-
पूर्ति की परिभाषा-किसी वस्तु की पूर्ति से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से है जिसको एक विक्रेता एक निश्चित समय में किसी कीमत पर बेचने के लिए तैयार होता है।
पूर्ति तालिका-पूर्ति तालिका एक ऐसी तालिका है जिसके द्वारा वस्तु की पूर्ति की मात्रा का उसकी कीमत से संबंध दिखाया जा सकता है।
पूर्ति तालिका-पूर्ति की धारणा को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

कीमत (₹) मांग की मात्रा (कि० ग्रा०)
1 0
2 10
3 20
4 30

तालिका से स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे वस्तु की कीमत बढ़ रही है, उसकी पूर्ति की मात्रा भी बढ़ रही है। इस प्रकार पूर्ति तालिका कीमत और बेची जाने वाली मात्रा के संबंध को दिखाती है।
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (4)
पूर्ति वक्र-पूर्ति वक्र वह वक्र है जो किसी वस्तु की कीमत तथा पूर्ति का संबंध प्रकट करता है। रेखाचित्र में पूर्ति वक्र है जो बाएं से दाएं ऊपर को जा रहा है। SS पूर्ति वक्र के धनात्मक ढलान से ज्ञात होता है कि कीमत के बढ़ने पर पूर्ति बढ़ती है और कीमत के कम होने पर पूर्ति कम होती है।

प्रश्न 7.
लागत की परिभाषा दें। कुल लागत, सीमांत लागत और औसत लागत की धारणाओं की व्याख्या करें।
उत्तर-
लागत की परिभाषा-किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने के लिए उत्पादन के साधनों को जो कुल मौद्रिक भुगतान करना पड़ता है, उसे मौद्रिक उत्पादन लागत कहते हैं।
कुल लागत-किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन पाने के लिए जो धन खर्च करना पड़ता है, उसे कुल लागत कहते हैं।
औसत लागत-किसी वस्तु की प्रति इकाई लागत को औसत लागत कहते हैं। कुल लागत को उत्पादन की मात्रा से भाग देने पर औसत लागत का पता लगता है।
कुल लागत
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (5)
सीमांत लागत-सीमांत लागत कुल लागत में वह परिवर्तन है जो एक वस्तु की एक और इकाई पैदा करने पर खर्च आती है।

प्रश्न 8.
आय की परिभाषा दें। कुल आय, सीमांत आय और औसत आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय की परिभाषा-किसी वस्तु की बिक्री करने पर एक फ़र्म को जो कुल राशि प्राप्त होती है, उसे फ़र्म की आगम (आय) कहा जाता है।
कुल आय-एक फ़र्म द्वारा अपने उत्पादन की एक निश्चित मात्रा बेच कर जो धन प्राप्त होता है, उसे कुल आय कहते हैं।
सीमांत आय–एक फ़र्म द्वारा अपने उत्पादन की एक इकाई अधिक बेचने से कुल आगम में जो वृद्धि होती है, उसको सीमांत आय कहा जाता है।
औसत आय-किसी वस्तु की बिक्री से प्राप्त होने वाली प्रति इकाई आगम औसत आय कहलाती है।
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी (6)

प्रश्न 9.
फ़र्म की परिभाषा दें। एक उत्पादक के रूप में फ़र्म के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
फ़र्म की परिभाषा-फ़र्म उत्पादन की वह इकाई है जो लाभ प्राप्त करने की दृष्टि से बिक्री के लिए उत्पादन करती है।
एक उत्पादक के रूप में फ़र्म के कार्य-उत्पादक के रूप में फ़र्म वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती है और उनकी बिक्री करती है। एक फ़र्म अपना उत्पादन न्यूनतम लागत पर करने का प्रयत्न करती है और वह उसको बेचकर अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहती है। एक उत्पादक के रूप में फ़र्म वास्तव में उद्यमी का ही एक रूप होती है।

प्रश्न 10.
बाजार की परिभाषा दें। बाजार की मख्य विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
बाज़ार की परिभाषा-कूरनो के शब्दों में, “अर्थशास्त्री बाज़ार का अर्थ किसी विशेष स्थान से नहीं लेते जहां वस्तुएं खरीदी या बेची जाती हैं बल्कि उस सारे क्षेत्र से लेते हैं जहां क्रेता और विक्रेता में एक-दूसरे से इस प्रकार स्वतंत्र संपर्क हो कि एक ही प्रकार की वस्तु की कीमत की प्रवृत्ति आसानी और शीघ्रता से एक होने की पाई जाए।”
बाज़ार की मुख्य विशेषताएं-

  1. क्षेत्र-अर्थशास्त्र में ‘बाज़ार’ शब्द से आशय किसी स्थान विशेष से नहीं है बल्कि बाज़ार का बोध उस संपूर्ण क्षेत्र से होता है, जिसमें बेचने वाले और खरीदने वाले फैले होते हैं।
  2. एक वस्तु-अर्थशास्त्र में ‘बाजार’ एक ही वस्तु का माना जाता है; जैसे घी का बाज़ार, फल का बाज़ार इत्यादि।
  3. क्रेता-विक्रेता-क्रेता एवं विक्रेता दोनों ही बाजार के महत्त्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग हैं।
  4. स्वतंत्र प्रतियोगिता-बाज़ार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं में स्वतंत्र रूप से प्रतियोगिता होनी चाहिए।
  5. एक कीमत-जब बाज़ार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं में स्वतंत्र प्रतियोगिता होगी तो इसका परिणाम यह होगा कि वस्तु की कीमत एक समय में एक ही होगी।

प्रश्न 11.
संतुलन की धारणा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
संतुलन का अर्थ-“संतुलन वह अवस्था है, जिसमें विरोधी दिशा में परिवर्तन लाने वाली शक्तियां पूर्ण रूप से एक-दूसरे के बराबर होती हैं अर्थात् परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं पाई जाती।”
उदाहरण के लिए, जब एक फ़र्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होते हैं, उसमें परिवर्तन की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। फ़र्म की इस स्थिति को संतुलन की स्थिति कहा जाएगा।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 12.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा दें। इसकी विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा-पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की वह स्थिति है जिसमें बहुत सारी फ़र्मे होती हैं और वे सभी एक समरूप वस्तु की बिक्री करती हैं। इस अवस्था में फ़र्म कीमत स्वीकार करने वाली होती है न कि निर्धारित करने वाली।
पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं-पूर्ण प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. क्रेताओं और विक्रेताओं की अधिक संख्या
  2. समरूप वस्तुएं
  3. पूर्ण ज्ञान
  4. फ़र्मों का स्वतंत्र प्रवेश व निकास
  5. समान कीमत
  6. साधनों में पूर्ण गतिशीलता।

प्रश्न 13.
एकाधिकार की परिभाषा दें। इसकी विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
एकाधिकार की परिभाषा-एकाधिकार वह स्थिति है जिसमें बाजार में एक वस्तु का केवल एक ही उत्पादक होता है।
एकाधिकार की विशेषताएं-एकाधिकार बाजार की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

  1. एक विक्रेता तथा अधिक क्रेता-एकाधिकार बाज़ार में वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है। वस्तु के क्रेता बहुत अधिक संख्या में होते हैं।
  2. नई फ़र्मे बाज़ार में नहीं आ सकतीं-एकाधिकारी बाज़ार में कोई नई फ़र्म प्रवेश नहीं कर सकती।
  3. निकटतम स्थानापन्न नहीं होता-एकाधिकार बाज़ार में उत्पादित वस्तुओं का कोई निकटतम स्थानापन्न नहीं होता।
  4. कीमत पर नियंत्रण-एकाधिकारी का वस्तु की कीमत पर नियंत्रण होता है।

प्रश्न 14.
आर्थिक क्रियाएं क्या हैं ? उनके मुख्य प्रकार कौन-से हैं ?
उत्तर-
आर्थिक क्रियाओं का अर्थ-आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जिनका संबंध धन के उपभोग, उत्पादन, विनिमय तथा वितरण से होता है। इन क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य धन की प्राप्ति होता है।
आर्थिक क्रियाओं के प्रकार-

  1. उपभोग-उपभोग वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं की उपयोगिता के उपभोग से होता है।
  2. उत्पादन-उत्पादन वह आर्थिक क्रिया है जिसका संबंध वस्तुओं और सेवाओं की उपयोगिता या कीमत में वृद्धि करने से है।
  3. विनिमय-विनिमय वह क्रिया है जिसका संबंध किसी वस्तु के क्रय-विक्रय से है।
  4. वितरण-वितरण का संबंध उत्पादन के साधनों की कीमत अर्थात् भूमि की कीमत (लगान), श्रम की कीमत (मज़दूरी), पूंजी की कीमत (ब्याज) और उद्यमी को प्राप्त होने वाली कीमत (लाभ) के निर्धारण से है।

प्रश्न 15.
आर्थिक और अनार्थिक क्रियाओं में अंतर बताओ।
उत्तर-
यदि कोई क्रिया धन प्राप्त करने के लिए की जाती है तो इस क्रिया को आर्थिक क्रिया कहा जाता है। इसके विपरीत यदि वह ही क्रिया मनोरंजन, धर्म, प्यार, दया, देश-प्रेम, समाज-सेवा, कर्त्तव्य आदि उद्देश्यों के लिए की जाती है तो उसको अनार्थिक क्रिया कहा जायेगा। इस अंतर को एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। माना अर्थशास्त्र के अध्यापक 500 रुपए प्रति माह फीस लेकर आपको एक घंटा घर पर ही अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं तो उनकी यह क्रिया आर्थिक क्रिया कहलाती है। इसके विपरीत यदि वह आपको एक निर्धन विद्यार्थी होने के नाते बिना कोई फीस लिए मुफ्त में अर्थशास्त्र पढाते हैं, तो उनकी यह क्रिया अनार्थिक क्रिया कहलाती है।

प्रश्न 16.
भूमि की परिभाषा दें। इसकी मुख्य विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
भूमि की परिभाषा-अर्थशास्त्र में भूमि के अंतर्गत भूमि की ऊपरी सतह ही नहीं बल्कि पृथ्वी के तल पर, उसके नीचे और उसके ऊपर, प्रकृति द्वारा निःशुल्क प्रदान की जाने वाली सब वस्तुएं सम्मिलित हो जाती हैं, जो धनोत्पादन में मनुष्य की सहायता करती हैं।
भूमि की मुख्य विशेषताएं-

  1. भूमि परिमाण में सीमित है।
  2. भूमि उत्पादन का प्राथमिक साधन है।
  3. भूमि स्थिर है।
  4. भूमि उपजाऊपन की दृष्टि से भिन्नता रखती है।
  5. भूमि अक्षय है।
  6. भूमि का मूल्य स्थिति पर निर्भर करता है।
  7. भूमि प्रकृति की नि:शुल्क देन है।
  8. भूमि उत्पादन का निष्क्रिय साधन है।

प्रश्न 17.
श्रम से क्या अभिप्राय है ? इसकी मुख्य विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
श्रम का अर्थ-साधारण भाषा में श्रम का आशय उस प्रयत्न या चेष्टा से है जो किसी कार्य के संपादन हेतु किया जाता है लेकिन श्रम का यह व्यापक अर्थ अर्थशास्त्र में नहीं लिया जाता। अर्थशास्त्र में किसी प्रतिफल के लिए किया गया मानवीय प्रयत्न, मानसिक या शारीरिक श्रम कहलाता है।
श्रम की मुख्य विशेषताएं-

  1. श्रम एक मानवीय साधन है।
  2. श्रम एक सक्रिय साधन है।
  3. श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है।
  4. श्रम नाशवान होता है।
  5. श्रमिक अपने श्रम को बेचता है अपने आपको नहीं बेचता है।
  6. श्रमिक उत्पादन का साधन और साध्य दोनों है।
  7. श्रमिक की कार्यकुशलता में विभिन्नता पाई जाती है।
  8. श्रम में गतिशीलता होती है।

प्रश्न 18.
पूंजी की परिभाषा दें। इसकी मुख्य विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
पूंजी की परिभाषा–मार्शल के शब्दों में, “प्रकृति प्रदत्त उपहारों के अतिरिक्त पूंजी में सभी प्रकार की संपत्ति शामिल होती है जिससे आय प्राप्त होती है।”
पूंजी की विशेषताएं-

  1. पूंजी उत्पादन का निष्क्रिय साधन है।
  2. पूंजी में उत्पादकता होती है।
  3. पूंजी अत्यधिक गतिशील होती है।
  4. पूंजी श्रम द्वारा उत्पादित होती है।
  5. पूंजी में ह्रास होता है।
  6. पूंजी बचत किए गए धन का एक रूप है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 19.
उद्यमी से क्या अभिप्राय है ? उद्यमी के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
प्रत्येक व्यवसाय में चाहे वह छोटा हो अथवा बड़ा, कुछ-न-कुछ जोखिम अथवा लाभ-हानि की अनिश्चितता अवश्य बनी रहती है। इस जोखिम को सहन करने वाले व्यक्ति को ‘साहसी’ या ‘उद्यमी’ कहा जाता है।
उद्यमी के कार्य-

  1. व्यवसाय का चुनाव करता है।
  2. उत्पादन का पैमाना निर्धारित करता है।
  3. साधनों का अनुकूलतम संयोग प्राप्त करता है।
  4. उत्पादन के स्थान का निर्धारण करता है।
  5. वस्तु का चयन करता है।
  6. वितरण संबंधी कार्य करता है।
  7. जोखिम उठाने का दायित्व उद्यमी पर होता है।

प्रश्न 20.
लगान की धारणा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
साधारण बोलचाल की भाषा में लगान या किराया शब्द का प्रयोग उस भुगतान के लिए किया जाता है जो किसी वस्तु जैसे मकान, दुकान, फर्नीचर, क्राकरी आदि की सेवाओं का उपयोग करने के लिए अथवा उत्पादन के साधनों के रूप में प्रयोग करने के लिए नियमित रूप से एक निश्चित अवधि के लिए दिया जाता है। परंतु अर्थशास्त्र में लगान शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया जाता है। प्रो० कारवर के अनुसार, “भूमि के प्रयोग के लिए दी गई कीमत लगान है।” परंतु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार अर्थशास्त्र में लगान शब्द का प्रयोग उत्पादन के उन साधनों को दिए जाने वाले भुगतान के लिए ही किया जाता है जिनकी पूर्ति बेलोचदार होती है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी साधन की वास्तविक आय तथा हस्तान्तरण आय के अंतर को लगान कहते हैं।

प्रश्न 21.
मज़दूरी की परिभाषा दें। नकद और वास्तविक मजदूरी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मजदूरी की परिभाषा-मजदूरी से अभिप्राय उस भुगतान से है जो सभी प्रकार की मानसिक तथा शारीरिक क्रियाओं के लिए दिया जाता है।
नकद मजदूरी-जो मजदूरी रुपयों के रूप में दी जाती है, उसे नकद मज़दूरी कहते हैं। यह दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक हो सकती है।
वास्तविक मजदूरी-श्रमिक को मुद्रा के अतिरिक्त जो वस्तुएं या सुविधायें प्राप्त होती हैं, उसे असल या वास्तविक मज़दूरी कहते हैं; जैसे—मुफ़्त मकान, पानी, बिजली, चिकित्सा सुविधा, शिक्षा आदि।

प्रश्न 22.
ब्याज की परिभाषा दें। शुद्ध और कुल ब्याज से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की परिभाषा-ब्याज वह कीमत है जो मुद्रा को एक निश्चित समय के लिए प्रयोग करने के लिए ऋणी द्वारा ऋणदाता को दी जाती है।
कुल ब्याज-एक ऋणी द्वारा वास्तव में ऋणदाता को ब्याज के रूप में जो कुल भुगतान किया जाता है, उसको कुल ब्याज कहते हैं।
शुद्ध ब्याज-शुद्ध ब्याज वह धनराशि है जो केवल मुद्रा के प्रयोग के बदले में चुकाई जाती है। चैपमैन के शब्दों में, “शुद्ध ब्याज पूंजी के ऋण के लिए भुगतान है, जबकि कोई जोखिम न हो, कोई असुविधा न हो, (बचत की असुविधा को छोड़कर) और उधार देने वाले के लिए कोई कार्य न हो।”

प्रश्न 23.
लाभ की धारणा से क्या अभिप्राय है ? कुल और शुद्ध लाभ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लाभ का अर्थ-साहसी को जोखिम के बदले में जो कुछ मिलता है, वह लाभ कहलाता है अर्थात् राष्ट्रीय आय का वह भाग जो किसी साहसी को अपने साहस के कारण प्राप्त होता है, उसे लाभ कहते हैं। कुल आय में से यदि कुल खर्च निकाल दिया जाए तो जो शेष बचे, उसे लाभ कहते हैं।
कुल लाभ-कुल आगम में से यदि हम उत्पादन की स्पष्ट लागतें घटा दें तो जो अतिरेक बचता है, उसे कुल लाभ कहा जाता है।
कुल लाभ = कुल आगम – स्पष्ट लागत
शुद्ध लाभ-यदि कुल आगम में से स्पष्ट और अस्पष्ट दोनों लागतें घटा दें तो जो अतिरेक बचता है, उसे शुद्ध लाभ कहा जाता है।
शुद्ध लाभ = कुल आगम – (स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागत)

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
बाज़ार किसे कहते हैं ? बाज़ार के वर्गीकरण के मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
बाज़ार का अर्थ-बाज़ार वह सम्पूर्ण क्षेत्र होता है जहां क्रेता और विक्रेता सम्पर्क में आते हैं।
बाज़ार के वर्गीकरण का आधार-बाज़ार का विस्तृत रूप से निम्नलिखित भागों में वर्गीकरण किया जाता है। जैसे-

  1. पूर्ण प्रतियोगी
  2. एकाधिकार
  3. एकाधिकारी प्रतियोगिता।

इस वर्गीकरण के मुख्य आधार निम्नलिखित हैं-

  1. क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या-यदि बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत है तो वह पूर्ण प्रतियोगी अथवा एकाधिकारी प्रतियोगिता का बाज़ार होता है। यदि बाज़ार में वस्तु का केवल एक विक्रेता हो और क्रेताओं की संख्या अधिक हो तो वह एकाधिकारी बाज़ार होगा। यदि बाज़ार में वस्तु के थोड़े विक्रेता हों तो वह अल्पाधिकारी बाज़ार होगा।
  2. वस्तु की प्रकृति-यदि बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तु एकसमान है तो वह पूर्ण प्रतियोगी बाज़ार की स्थिति होगी और इसके विपरीत वस्तु की विभिन्नता एकाधिकारी प्रतियोगिता का आधार माना जाता है।
  3. कीमत नियन्त्रण की डिग्री-बाज़ार में बेची जाने वाली वस्तु की कीमत पर यदि फ़र्म का पूर्ण नियन्त्रण हो तो वह एकाधिकारी होगा। आंशिक नियन्त्रण हो तो एकाधिकारी प्रतियोगिता होगी। शून्य नियन्त्रण पर पूर्ण प्रतियोगिता होती है।
  4. बाज़ार का ज्ञान-यदि क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाज़ार की स्थितियों का पूर्ण ज्ञान हो तो पूर्ण प्रतियोगिता होगी। इसके विपरीत अपूर्ण ज्ञान एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषता है।
  5. साधनों की गतिशीलता- पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में उत्पादन साधनों की गतिशीलता पूर्ण होती है परन्तु बाज़ार के अन्य प्रकारों में साधनों की गतिशीलता सामान्य नहीं होती।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 1 एक गांव की कहानी

प्रश्न 2.
मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं ?
उत्तर-
मुद्रा के निम्नलिखित कार्य हैं

  1. विनिमय का माध्यम-मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य विनिमय का माध्यम है। इसका अभिप्राय यह है कि मुद्रा के रूप में एक व्यक्ति अपनी वस्तुओं को बेचता है तथा दूसरी वस्तुओं को खरीदता है। मुद्रा क्रय तथा विक्रय दोनों में ही एक मध्यस्थ का कार्य करती है। मुद्रा को विनिमय के माध्यम के रूप में लोग सामान्य रूप से स्वीकार करते हैं। इसलिए मुद्रा के द्वारा लोग अपनी इच्छा से विभिन्न वस्तुएं खरीद सकते हैं।
  2. मूल्य की इकाई-मुद्रा का दूसरा कार्य वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को मापना है। मुद्रा लेखे की इकाई के रूप में मूल्य का माप करती है। लेखे की इकाई से अभिप्राय यह है कि प्रत्येक वस्तु तथा सेवा का मूल्य मुद्रा के रूप में मापा जाता है।
  3. स्थगित भुगतानों का मान-जिन लेन-देनों का भुगतान तत्काल न करके भविष्य के लिए स्थगित कर दिया जाता है, उन्हें स्थगित भुगतान कहा जाता है। मुद्रा के फलस्वरूप स्थगित भुगतान सरल हो जाता है।
  4. मूल्य का संचय-मुद्रा मूल्य के संचय के रूप में कार्य करती है। मुद्रा के मूल्य संचय का अर्थ है धन का संचय। इससे अभिप्राय यह है कि मुद्रा को वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए खर्च करने का तुरन्त कोई विचार नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आय का कुछ भाग भविष्य के लिए बचाता है। इसे ही मूल्य का संचय कहा जाता है।
  5. मूल्य का हस्तान्तरण-मुद्रा के कारण मूल्य का हस्तांतरण सुविधाजनक बन गया है। आज इस युग में लोगों की आवश्यकताएं बढ़ गई हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूर-दूर से वस्तुएं खरीदी जाती हैं। मुद्रा में तरलता तथा सामान्य स्वीकृति का गुण होने के कारण इसका एक स्थान से दूसरे स्थान पर हस्तान्तरण आसान हो जाता है।
  6. साख निर्माण का आधार-आज लगभग सभी देशों में चेक, ड्राफ्ट, विनिमय-पत्र इत्यादि साख-पत्रों का प्रयोग किया जाता है। इन साख-पत्रों का आधार मुद्रा ही है। लोग अपनी आय में से कुछ राशि बैंकों में जमा करवाते हैं। इस जमा राशि के आधार पर ही बैंक साख का निर्माण करते हैं।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

Punjab State Board PSEB 9th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

PSEB 9th Class Physical Education Guide नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किन्हीं दो नशीली वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. शराब
  2. हशीश।

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुएं किन दो क्रियाओं पर अधिक प्रभाव डालती हैं ?
उत्तर-

  1. पाचन क्रिया पर
  2. खेलने की शक्ति पर।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

प्रश्न 3.
नशीली वस्तुओं के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर-

  1. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  2. मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।

प्रश्न 4.
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों पर कोई दो बुरे प्रभाव लिखें।
उत्तर-

  1. लापरवाई तथा बेफिक्री।
  2. खेल भावना का अन्त।

प्रश्न 5.
खेल में हार नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 6.
शराब का असर पहले दिमाग पर होता है। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 7.
तम्बाकू खाने से या पीने से नज़र कमजोर हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 8.
तम्बाकू से कैंसर की बीमारी का डर बढ़ता है अथवा कम होता है ?
उत्तर-
डर बढ़ जाता है।

प्रश्न 9.
तम्बाकू के प्रयोग से खांसी नहीं लगती और टी० बी० भी नहीं हो सकती। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 10.
नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है। सही अथवा ग़लत ।
उत्तर-
सही।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुओं की सूची बनाएं और यह भी बताएं कि नशीली वस्तुएं पाचन क्रिया और सोचने की शक्ति पर कैसे प्रभाव डालती हैं?
(Prepare a list of intoxicants and describe how these intoxicants affect on digestion and memory or thinking of a person ?)
उत्तर-
मादक पदार्थ ऐसे नशीले पदार्थ हैं जिनके सेवन से किसी-न-किसी प्रकार की उत्तेजना या शिथिलता आ जाती है। मनुष्य के स्नायु संस्थान पर सभी किस्म के मादक पदार्थों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे कई प्रकार के विचार, कल्पनाएं तथा भावनाएं पैदा होती हैं। इससे व्यक्ति में घबराहट, गुस्सा और व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने से व्यक्ति का अपने व्यवहार और शरीर पर नियन्त्रण नहीं रहता। नशीली वस्तुएं निम्नलिखित हैं –

  1. शराब
  2. अफीम
  3. तम्बाकू
  4. भांग
  5. हशीश
  6. चरस
  7. कोकीन
  8. एलडरविन।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

पाचन क्रिया पर प्रभाव (Effects on Digestion)- नशीली वस्तुओं का पाचन क्रिया पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इनमें अम्लीय अंश बहुत अधिक होते हैं। इन अंशों के कारण आमाशय की कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है और कई प्रकार के पेट के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

सोचने की शक्ति पर प्रभाव (Effects on Thinking) नशीली वस्तुओं के प्रयोग से व्यक्ति अच्छी तरह बोल नहीं सकता और वह बोलने के स्थान पर तुतलाने लगता है। वह अपने पर नियन्त्रण नहीं रख सकता। वह खेल में आई अच्छी स्थितियों के विषय में सोच नहीं सकता और न ही ऐसी स्थितियों से लाभ उठा सकता है।

प्रश्न 2.
खेल में हार नशीली वस्तुएं के प्रयोग के कारण हो सकती है, कैसे ?
(Intoxicants cause defeat in sports. How ?)
उत्तर-

  1. नशे में खेलते समय खिलाड़ी बहुत-से ऐसे काम कर जाता है जिससे टीम हार जाती है।
  2. नशे में खिलाड़ी विरोधी टीम की चालें नहीं समझ सकता और अपनी टीम के लिए पराजय का कारण बनता है।
  3. यदि किसी खिलाड़ी को नशे में खेलते हुए पकड़ लिया जाए तो उसे खेल में से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि उसे इनाम मिलना है तो नहीं दिया जाता। इस प्रकार उसकी विजय पराजय में बदल जाती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुएं क्या हैं ? इनके दोषों का वर्णन करो। (What are intoxicants ? Discuss their harms.)
उत्तर-
मनुष्य प्राचीन काल से ही नशीली वस्तुओं का प्रयोग करता आ रहा है। उसका विश्वास था कि इनके प्रयोग से रोग दूर होते हैं तथा मन ताजा होता है। परन्तु बाद में इनके कुप्रभाव भी देखने में आये हैं। आज के वैज्ञानिक युग में अनेक नई-नई नशीली वस्तुओं का आविष्कार हुआ है जिसके कारण क्रीड़ा जगत् दुविधा में पड़ गया है। इन नशीली वस्तुओं के सेवन से भले ही कुछ समय के लिए अधिक काम लिया जा सकता है, परन्तु नशे और अधिक काम से मानव रोग का शिकार हो कर मृत्यु को प्राप्त करता है। इन घातक नशों में से कुछ नशे तो कोढ़ के रोग से भी बुरे हैं। शराब, तम्बाकू, अफीम, भांग, हशीश, एडरनलिन तथा निकोटीन ऐसी नशीली वस्तुएं हैं जिनका सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है।

प्रत्येक व्यक्ति अपने मनोरंजन के लिए किसी-न-किसी खेल में भाग लेता है। वह अपने साथियों तथा पड़ोसियों के साथ मेल-मिलाप तथा सद्भावना की भावना रखता है। इसके विपरीत एक नशे का गुलाम व्यक्ति दूसरों की सहायता करना तो दूर रहा, अपना बुरा-भला भी नहीं सोच सकता। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए बोझ होता है। वह दूसरों के लिए सिरदर्दी बन जाता है। वह न केवल अपने जीवन को दुःखद बनाता है, बल्कि अपने परिवार और सम्बन्धियों के जीवन को भी नरक बना देता है। सच तो यह कि नशीली वस्तुओं का सेवन स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। इससे ज्ञान शक्ति, पाचन शक्ति, दिल, रक्त, फेफड़े आदि से सम्बन्धित अनेक रोग लग जाते हैं।
नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना खिलाड़ियों के लिए ठीक नहीं होता।

नशीली वस्तुओं के दोष-जो खिलाड़ी नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं उनके दोष निम्नलिखित हैं –

  • चेहरा पीला पड़ जाता है।
  • कदम लड़खड़ाते हैं।
  • मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।
  • खेल का मैदान लड़ाई का मैदान बना जाता है।
  • पाचन शक्ति खराब हो जाती है।
  • तेजाबी अंश आमाशय की शक्ति को कम करते हैं।
  • पेट में कई प्रकार के रोग लग जाते हैं।
  • पेशियों के काम करने की शक्ति कम हो जाती है।
  • खेल के मैदान में खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता।
  • कैंसर और दमे की बीमारियां लग जाती हैं।
  • खिलाड़ियों की स्मरण-शक्ति कम हो जाती है।
  • नशे में डूबे खिलाड़ी खेल की परिवर्तित अवस्थाओं को नहीं समझ सकते और अपनी टीम की पराजय का कारण बन जाते हैं।
  • नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है।
  • उसके शरीर में समन्वय नहीं होता।
  • नशे वाले खिलाड़ी के पैरों का तापमान सामान्य व्यक्ति के तापमान से 1.8°C सैंटीग्रेड कम होता है।

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों तथा खेल पर बुरे प्रभावों के बारे में जानकारी दो।
(Mention the adverse effects of intoxicants on the players and their performance.)
उत्तर-
नशीली वस्तुओं के सेवन का खिलाड़ियों तथा खेल पर बुरा प्रभाव पड़ता है जो इस प्रकार है –

1. शारीरिक समन्वय एवं स्फूर्ति का अभाव (Loss of Co-ordination and Alertness)-नशे करने वाले खिलाड़ी में शारीरिक तालमेल तथा स्फूर्ति नहीं रहती। अच्छे खेल के लिये इनका होना बहुत ज़रूरी है। हॉकी, फुटबाल, वालीबाल आदि ऐसी खेलें हैं।

2. मन के सन्तुलन और एकाग्रचित्त का अभाव (Loss of Balance and Concentration) किसी खिलाड़ी की मामूली सी सुस्ती खेल का पासा पलट देती है। इतना ही नहीं, नशे में धुत खिलाड़ी एकाग्रचित्त नहीं हो सकता। इसलिए वह खेल के दौरान ऐसी गलतियां कर देता है जिसके फलस्वरूप उसकी टीम को पराजय का मुंह देखना पड़ता है।

3. लापरवाही तथा बेफिक्री (Carelessness) नशे में ग्रस्त खिलाड़ी बहुत लापरवाह और बेफिक्र होता है। वह अपनी शक्ति तथा दक्षता का उचित अनुमान नहीं लगा सकता। कई बार जोश में आकर वह ऐसी चोट खा जाता है जिससे उसे आयु पर्यन्त पछताना पड़ता है।

4. खेल भावना का अन्त (Lack of Sportsmanship) नशे में रहने से खिलाड़ी की खेल भावना का अन्त हो जाता है। नशा करने वाले खिलाड़ी की स्थिति अर्द्ध बेहोशी की होती है। उसके मन का सन्तुलन बिगड़ जाता है। वह खेल में अपनी ही हांकता है और साथी खिलाड़ी की कोई बात नहीं सुनता।

5. सोचने का अभाव (Lack of Thinking)-वह रैफरी या अम्पायर के उचित निर्णयों के प्रति असन्तोष व्यक्त करता है। सहनशीलता की शक्ति की कमी हो जाती है। अतः वह इस तरह करता है।

6. नियमों की अवहेलना (Breaking of Rules)—वह खेल के नियमों की अवहेलना करता है।

7.मैदान का लड़ाई का अखाड़ा बन जाना (Playfield Becomes Battlefield)नशे में रहने वाला खिलाड़ी खेल के मैदान को लड़ाई का अखाड़ा बना देता है।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी ने खेल के दौरान नशीली वस्तुओं के प्रयोग पर पाबन्दी लगा दी है। यदि खेल के दौरान कोई खिलाड़ी नशे की दशा में पकड़ा जाता है तो उसका जीता हुआ इनाम वापस ले लिया जाता है। इसलिए खिलाड़ियों को चाहिए कि वे स्वयं को हर प्रकार की नशीली वस्तुओं के सेवन से दूर रखें और सर्वोत्तम खेल का प्रदर्शन करके अपने और अपने देश के नाम को चार चांद लगायें।

प्रश्न 3.
शराब का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? शराब की हानियां लिखें।
(What are the effects of Alcohol on our body? Discuss harms of alcohol.)
उत्तर-
शराब का सेहत पर प्रभाव (Effect of Alcohol on Health) शराब एक नशीला तरल पदार्थ है। शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बाज़ार में बेचने से पहले प्रत्येक शराब की बोतल पर यह लिखना ज़रूरी है। फिर भी बहुत-से लोगों को इस की लत (आदत) लगी हुई है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर को कई तरह के रोग लग जाते हैं। फेफड़े कमज़ोर हो जाते हैं और व्यक्ति की आयु घट जाती है। ये शरीर के सभी अंगों पर बुरा प्रभाव डालती है। पहले तो व्यक्ति शराब को पीता है। कुछ समय पीने के बाद शराब आदमी को पीने लग जाती है। भाव शराब शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाने लगा जाती है।

शराब पीने के नुकसान निम्नलिखित हैं –

  1. शराब का असर पहले दिमाग़ पर होता है। नाड़ी प्रबन्ध बिगड़ जाता है और दिमाग कमज़ोर हो जाता है। मनुष्य के सोचने की शक्ति घट जाती है।
  2. शरीर में गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।
  3. शराब पीने से पाचन रस कम पैदा होना शुरू हो जाता है जिससे पेट खराब रहने लग जाता है।
  4. श्वास की गति तेज़ और सांस की अन्य बीमारियां लग जाती हैं।
  5. शराब पीने से रक्त की नाड़ियां फूल जाती हैं। दिल को अधिक काम करना पड़ता है और दिल के दौरे का डर बना रहता।
  6. लगातार शराब पीने से मांसपेशियों की शक्ति घट जाती है। शरीर बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य नहीं रहता।
  7. आविष्कारों से पता लगा है कि शराब पीने वाला मनुष्य शराब न पीने वाले व्यक्ति से काम कम करता है। शराब पीने वाले व्यक्ति को बीमारियां भी जल्दी लगती हैं।
  8. शराब से घर, स्वास्थ्य, पैसा आदि बर्बाद होता है और यह एक सामाजिक बुराई है।

प्रश्न 4.
सिगरेट या तम्बाकू का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? तम्बाकू की हानियां लिखें।
(What is the effect of cigarettes and tobacco on our body ? What are the harms of smoking ?)
उत्तर-
तम्बाकू से स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effect of Smoking on Health)हमारे देश में तम्बाकू पीना-खाना एक बहुत बुरी आदत बन चुका है। तम्बाकू पीने के अलग-अलग ढंग हैं, जैसे बीड़ी, सिगरेट पीना, सिगार पीना, हुक्का पीना, चिल्म पीना आदि। इस तरह खाने के ढंग भी अलग हैं जैसे तम्बाकू चूने में मिला कर सीधे मुंह में रख कर खाना, या रगने में रख कर खाना, या गले में रख कर खाना आदि। तम्बाकू में खतरनाक ज़हर निकोटीन (Nicotine) होता है। इसके अलावा कार्बन डाइऑक्साइड आदि भी होता है। निकोटीन का बुरा प्रभाव सिर पर पड़ता है जिससे सिर चकराने लग जाता है और फिर दिल पर प्रभाव करता है।

तम्बाकू के नुकसान इस तरह हैं –

  1. तम्बाकू खाने या पीने से नज़र कमजोर हो जाती है।
  2. इससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। दिल का रोग लग जाता है जो कि मृत्यु का कारण बना सकता है।
  3. आविष्कारों से पता लगा है कि तम्बाकू पीने या खाने से रक्त की नाड़ियां सिकुड़ जाती हैं।
  4. तम्बाकू शरीर के तन्तुओं को उत्तेजित रखता है, जिससे नींद नहीं आती और नींद न आने की बीमारी लग सकती है।
  5. तम्बाकू के प्रयोग से पेट खराब रहने लग जाता है।
  6. तम्बाकू के प्रयोग से खांसी लग जाती है जिससे फेफड़ों को टी० बी० होने का खतरा बढ़ जाता है।
  7. तम्बाकू से कैंसर की बीमारी का डर बढ़ जाता है। विशेषकर छाती का कैंसरऔर गले का कैंसर।
  8. तम्बाकू के प्रयोग से खुराक नली, मुंह के कैंसर का डर भी रहता है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 3 नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव

नशीली वस्तुओं का खेल योग्यता पर बुरा प्रभाव PSEB 9th Class Physical Education Notes

  • अध्याय की संक्षेप रूपरेखा (Brief Outline of the Chapter)
  • नशीली वस्तुएं-शराब, तम्बाकू, अफीम, भंग, चरस, हशीश, कोकीन, आदि नशीली वस्तुएं होती हैं।
  • नशीली वस्तुओं से हानियां-मानसिक सन्तुलन और पाचन क्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कार्यक्षमता कम हो जाती है और बहुत तरह के रोग लग जाते हैं।
  • खिलाड़ियों के खेल पर नशीली वस्तुओं का प्रभाव-शारीरिक तालमेल और फुर्ती कम हो जाती है। मन में बेचैनी और मन की एकाग्रता कम हो जाती है। बेफिक्री और खेल भावना का अन्त नशीली वस्तुओं के कारण हो जाता है।
  • नशीली वस्तुओं द्वारा खेल में हार-नशे से खिलाड़ी खेल में बहुत गलतियां करता है और विरोधी खिलाड़ी की चालों को नहीं समझ पाता जिससे उसकी हार हो जाती है।
  • शराब के शरीर पर प्रभाव-शराब द्वारा नाड़ी प्रणाली और गुर्दो को रोग लग जाता है। इससे सांस के और दूसरे रोग लग जाते हैं।
  • तम्बाकू के शरीर पर प्रभाव-तम्बाकू खाने से हृदय, सांस और कैंसर के रोग हो जाते हैं। पेट खराब हो जाता है और दमा आदि रोग हो जाते हैं।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप

Punjab State Board PSEB 9th Class Physical Education Book Solutions Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप

PSEB 9th Class Physical Education Guide खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेलों के कोई दो लाभ लिखो।
उत्तर-

  1. स्वास्थ्य प्रदान करती हैं
  2. सुडौल शरीर।

प्रश्न 2.
एक स्पोर्ट्समैन कैसा व्यवहार करता है ? दो पंक्तियां लिखो।
उत्तर-

  1. पराजय को बड़ी शान से स्वीकार करे।
  2. प्रत्येक टीम को बराबर समझता हो।

प्रश्न 3.
खिलाड़ी के कोई दो गुण लिखें।
उत्तर-

  1. सहयोग की भावना
  2. सहनशीलता।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप

प्रश्न 4.
विजय-पराजय को समान समझने की भावना को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
खिलाड़ी का गुण।

प्रश्न 5.
आज्ञा देने और मानने की योग्यता किस प्रकार आती है ?
उत्तर-
खेलों में भाग लेने से।

प्रश्न 6.
आत्मविश्वास की भावना और उत्तरदायित्व की भावना खिलाड़ी को क्या बनाती है ?
उत्तर-
अच्छा सामाजिक प्राणी।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
एक स्पोर्ट्समैन के लिए कौन-सी व्यवहार प्रणाली स्वीकृत है ? (What system of behaviour is accepted by a sportsman ?)
उत्तर-
स्पोर्ट्समैन के लिए व्यवहार प्रणाली (System of behaviour for a sportsman) विश्व के सारे खिलाड़ी (स्पोर्ट्समैन) निम्नलिखित प्रणाली को मानते हैं और इसी के अनुसार व्यवहार करना अपना परम कर्त्तव्य मानते हैं। इसके अनुसार व्यवहार प्रणाली की मुख्य बातें इस प्रकार हैं –

  1. अधिकारियों के निर्णय ठीक और अन्तिम होते हैं।
  2. खेलों के नियम वास्तव में अच्छे पुरुषों की सन्धि होते हैं।
  3. टीमों के लिए जान तोड़ कर साफ़-सुथरा खेलना ही सब से बड़ा आश्वासन है।
  4. पराजय को बड़ी शान से लो।
  5. जीत को बड़े सहज ढंग से स्वीकार करो।
  6. दूसरों के अच्छे गुणों का सम्मान करने से मान मिलता है।
  7. पराजय या बुरे खेल के लिए बहाने ढूंढ़ना ठीक नहीं।
  8. किसी राष्ट्र या टीम को उसके व्यवहार के अनुसार सम्मान दिया जाता है।
  9. बाहर से आई हुई टीमों का सम्मान होना चाहिए।
  10. प्रत्येक टीम को बराबर समझा जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
दर्शक किस प्रकार अच्छे स्पोर्ट्समैन बन सकते हैं ? (How can the spectators become good sportsmen ?)
उत्तर-
दर्शकों में अच्छे स्पोर्ट्समैन बनने के लिए निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है –

  1. वे अच्छे खेल की प्रशंसा और उसको उत्साहित करने में बाधा न बनें।
  2. यदि निर्णायक उनकी इच्छा के विरुद्ध निर्णय दे दे तो उसके विरुद्ध बुरे शब्दों का प्रयोग न करें।
  3. वे जिस टीम का पक्ष ले रहे हों यदि वह कमजोर है या अयोग्य है तो उसकी जीत देखना न चाहें क्योंकि खेल में अच्छी टीम ही विजय की पात्र है।
  4. वे अपने साथी दर्शकों से केवल इसलिए न झगड़ें क्योंकि वे विरोधी टीम का समर्थन करते हैं।
  5. वे जिस टीम का पक्ष ले रहे हैं यदि वह हार रही है तो अभद्र व्यवहार का प्रदर्शन न करें जैसे खेल के मैदान में कूड़ा-कर्कट, पत्थर आदि फेंक कर खेल रुकवाना ताकि खेल में हार-जीत का फैसला ही न हो।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेलों के लाभों या गुणों का वर्णन करें। (Describe the Values of Sports.)
उत्तर-
खेलों के गुण (Values of Sports)-खेलों में व्यक्ति का आकर्षण उनके गुणों के कारण है। आजकल खेलों पर अधिक बल दिए जाने के निम्नलिखित कारण हैं-

1. स्वास्थ्य प्रदान करती हैं (Sound Health)-स्वास्थ्य एक अमूल्य देन है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है । स्वस्थ व्यक्ति से दारिद्रय, आलस्य तथा थकावट कोसों दूर रहती है। खेलें स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। खिलाड़ी के भागने दौड़ने तथा उछलने-कूदने से शरीर के सभी अंग हरकत करते हैं। दिल, फेफड़े, पाचक अंग आदि सारे अंग सुचारु रूप से कार्य करने लगते हैं। मांसपेशियों में ताकत और लचक बढ़ जाती है। जोड़ भी लचकदार हो जाते हैं और शरीर स्फूर्तिवान हो जाता है। इस प्रकार खेलों से स्वास्थ्य में सुधार होता है।

2. सुडौल शरीर (Sound Body)-खेलों में भाग लेते हुए खिलाड़ी को भागना पड़ता है, उछलना पड़ता है, कूदना पड़ता है, जिससे उसका शरीर सुडौल हो जाता है। कद ऊंचा हो जाता है। शरीर पर कपड़े खूब सजते हैं, जिससे उसके व्यक्तित्व को चार चांद लग जाते हैं। मांसपेशियों और सूक्ष्म नाड़ियों का तालमेल भी खेलों द्वारा ही पैदा होता है। इससे खिलाड़ी की चाल-ढाल आकर्षक हो जाती है । इस प्रकार खेलें व्यक्ति का रूप निखारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करती हैं।

3. संवेगों का सन्तुलन (Full Control on Emotions)—संवेगों का सन्तुलन सफल जीवन के लिए अत्यावश्यक है। यदि इन पर नियन्त्रण न रखा जाए तो क्रोध, उदासी तथा घमण्ड मनुष्य को चक्कर में डाल कर उसके व्यक्तित्व को नष्ट कर देते हैं। खेलें मनुष्य का मन जीवन की उलझनों से परे हटाती हैं, उसका मन प्रसन्न करती हैं तथा उसे संवेगों पर काबू पाने में सफल बनाती हैं। इस दिशा में खेलों द्वारा उत्पन्न स्पोर्ट्समैनशिप की भावना काफ़ी सहायक सिद्ध होती है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप

4. सतर्क बुद्धि का विकास (Development of Sound Reason)—मनुष्य को जीवन में कदम-कदम पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं को सुलझाने के लिए सतर्क बुद्धि का विकास खेलों के द्वारा ही हो सकता है। खेल के समय खिलाड़ी को प्रत्येक पल किसी-न-किसी समस्या का सामना करना पड़ता है । अड़चन या समस्या को उसी समय शीघ्रातिशीघ्र हल करना पड़ता है। हल ढूंढने में तनिक देरी हो जाने पर सारे खेल का पासा उल्ट सकता है। इस प्रकार के वातावरण में प्रत्येक खिलाड़ी हर समय किसी-न-किसी समस्या के समाधान में लगा रहता है। उसे अपनी समस्याओं को स्वयं हल करने का अवसर मिलता रहता है। इस तरह उस में सतर्क बुद्धि का विकास होता है।

5. चरित्र का विकास (Development of Character)-चरित्रवान् व्यक्ति का सब जगह सम्मान होता है। वह लोभ-लालच में नहीं फंसता। खेल के समय विजयपराजय के लिए खिलाड़ियों को कई बार प्रलोभन दिए जाते हैं। अच्छा खिलाड़ी भूलकर भी इस जाल में नहीं फंसता तथा अपने विरोधी पक्ष के हाथों नहीं बिकता। यदि कोई खिलाड़ी भूल कर लालच में आकर अपने पक्ष से विश्वासघात करता है तो खिलाड़ियों तथा दर्शकों की नज़र में गिर जाता है। ऐसा खिलाड़ी बाद में पछताता है। एक अच्छा खिलाड़ी कभी भी छल-कपट का सहारा नहीं लेता। खेल के दर्शकों के सम्मुख होने तथा रैफरी के निरीक्षण में होने के कारण प्रत्येक खिलाड़ी कम-से-कम फाऊल खेलने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार खेलें मनुष्य में कई चारित्रिक गुणों का विकास करती हैं।

6. इच्छा शक्ति प्रबल करती हैं (Development of Strong Wil-power) – खेलें इच्छा शक्ति को प्रबल करती हैं। परिणामस्वरूप खिलाड़ी अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दत्तचित्त होकर प्रयत्न करते हैं और भावी जीवन में सफलता उनके कदम चूमती है। खेलों में खिलाड़ी एक-चित्त होकर खेलता है। उसके सम्मुख उसका उद्देश्य जीत प्राप्त करना होता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह अपनी सारी शक्ति लगा देता है और प्रायः सफल भी हो जाता है। जीवन के श्रेयों की प्राप्ति ही उसके लिए यही आदत बन जाती है। इस प्रकार खेलें इच्छा शक्ति को प्रबल करती हैं।

7. भ्रातृत्व की भावना का विकास (Development of Brotherhood) खेलों द्वारा भ्रातृत्व की भावना का विकास होता है। इसका कारण यह है कि खिलाड़ी सदैव ग्रुपों में खेलता है तथा ग्रुप के नियम के अनुसार व्यवहार करता है। यदि उसकी कोई आदत ग्रुप आदत के अनुकूल नहीं होती तो उसे उसका त्याग करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त ग्रुप में खेलने वालों का एक-दूसरे पर प्रभाव पड़ता है। उनका एक-दूसरे से प्रेम-पूर्ण तथा भाइयों जैसा व्यवहार हो जाता है। इस प्रकार उनका जीवन भ्रातृत्व के आदर्शों के अनुसार ढल जाता है तथा समाज में वे सम्मान प्राप्त करते हैं।

8. आत्म-अभिव्यक्ति (Self-expression)-खेलें व्यक्तियों को आत्म-अभिव्यक्ति अर्थात् स्वयं को खुल कर प्रकट करने के अवसर प्रदान करती हैं। खेल के मैदान में खिलाड़ी खुल कर अपने गुणों तथा कौशल को दर्शकों के समक्ष प्रकट करता है। इस गुण का विकास केवल क्रीड़ा-क्षेत्र में ही सम्भव है, अन्यत्र नहीं।

9. नेतृत्व (Leadership) खेलों का अच्छा नेतृत्व करने वाले में नेतृत्व के गुणों का विकास हो जाता है। एक अच्छा नेता अपने देश के नाम को चार चांद लगा देता है। इसके विपरीत एक बुरा अथवा अयोग्य नेता देश की नाव को मंझदार में फंसा देता है। खेल के मैदान से ही हमें अनुशासनबद्ध, आत्म-संयमी, आत्म-त्यागी तथा मिलजुलकर देश के लिए सर्वस्व बलिदान करने वाले सैनिक व अफसर प्राप्त होते हैं। इसीलिए तो ड्यूक ऑफ़ विलिंगटन ने नेपोलियन को वाटरलू (Waterloo) की लड़ाई में परास्त करने के बाद कहा, “वाटरलू की लड़ाई ऐटन तथा हैरो के क्रीड़ा-क्षेत्र में जीती गई।” (“The Battle of Waterloo was won at the playing-fields of Eton and Harrow.”)

10. फालतू समय का प्रयोग (Proper Use of Leisure Time) दिन भर काम करने के पश्चात् भी काफ़ी समय बच जाता है। इसलिए आज की मुख्य समस्या है कि इस फालतू समय का किस प्रकार प्रयोग किया जाए ? यदि हम इस फालतू समय का सदुपयोग न करेंगे तो इस समय में शरारतें ही सूझेंगी क्योंकि एक बेकार आदमी का दिमाग़ शैतान का घर होता है। इस फालतू समय को ठीक ढंग से गुज़ारने के लिए खेलें हमारी सहायता करती हैं। खेलों में भाग लेकर न केवल फालतू समय का ही उचित प्रयोग होता है वरन् इसके साथ शारीरिक विकास भी होता है।

11. जातीय भेदभाव मिटता है और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ता है (Free from Casteism and Development of International Understanding) खेलें जातीय भेदभाव को मिटाती हैं जो कि देश की प्रगति में बहुत बड़ी बाधा होता है। प्रत्येक टीम में विभिन्न जातियों के खिलाड़ी होते हैं। उनके एक साथ मिलने-जुलने तथा टीम के लिए एक जान होकर संघर्ष करने की भावना के कारण जात-पात की दीवारें गिर जाती हैं और उनका जीवन विशाल दृष्टिकोण वाला हो जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में एक देश के खिलाड़ी दूसरे देशों के खिलाड़ियों से खेलते हैं तथा उनसे मिलते-जुलते हैं। इससे उनमें मैत्री की भावना बढ़ जाती है। अतः खेलें अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में भी सहायक होती हैं।

12. प्रतियोगिता तथा सहयोग की भावना (Spririt of Competition and Cooperation)-प्रतियोगिता ही प्रगति का आधार है और सहयोग महान् उपलब्धियों का साधन है। प्रतियोगिता तथा सहयोग की भावनाएं प्रत्येक मनुष्य में होती हैं। इनके विकास द्वारा ही समुदाय, समाज तथा देश प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। इन भावनाओं का विकास खेलों द्वारा ही होता है। हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट आदि खेलों की टीमों में खूब मुकाबला होता है। मैच जीतने के लिए टीमें ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देती हैं, परन्तु मैच जीतने के लिए सभी खिलाड़ियों के सहयोग की भी आवश्यकता होती है क्योंकि किसी भी एक खिलाड़ी के प्रयत्नों से मैच नहीं जीता जा सकता। अत: प्रतियोगिता तथा सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए खेलें बहुत उपयोगी हैं।

13. अनुशासन की भावना (Spirit of Discipline)-खेल का मैदान एक ऐसा स्थान है जहां खिलाड़ी अनुशासन में रहते हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। हम कह सकते हैं कि खेलों द्वारा व्यक्ति या खिलाड़ी खेल के नियमों के अनुशासन में रह कर अनुशासन में रहने का आदी हो जाता है। इस प्रकार हमें अनुशासन खेलों द्वारा प्राप्त होता है।

14. सहनशीलता (Tolerance) खेलों द्वारा खिलाड़ियों के मन में सहनशीलता पैदा होती है, क्योंकि खेलों द्वारा हम एक-दूसरे के विचार सुनते हैं और अपने विचार उन्हें बताते हैं। हम में मेल-मिलाप बढ़ता है और सहनशीलता की भावना पैदा होती है।

15. अच्छी नागरिकता (Good Citizenship) खेलों द्वारा खिलाड़ियों में एक अच्छे नागरिक के गुण पैदा होते हैं क्योंकि खिलाड़ी आपस में मिल कर खेलते हैं। नियमों, कर्त्तव्यों, अनुशासन में रहना आदि गुणों के कारण खिलाड़ी अच्छे नागरिक बन जाते हैं।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि खेलें व्यक्ति में सहयोग, भ्रातृत्व, नेतृत्व, समन्वय आदि सद्गुणों का विकास करती हैं और उसे अच्छे नागरिक बनने में सहायता प्रदान करती हैं।

प्रश्न 2.
स्पोर्ट्समैनशिप से क्या अभिप्राय है ? एक स्पोर्ट्समैन में कौन-कौन से गुण होने चाहिएं ?
(What do you understand by Sportsmanship ? What should be the qualities of a good Sportsman ?)
उत्तर-
स्पोर्ट्समैनशिप का अर्थ (Meaning of Sportsmanship)—जहां भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी के अनेक शब्द अच्छी तरह से अपना लिए गए हैं, वहीं स्पोर्ट्समैनशिप और स्पोर्ट्समैन भी खेलों के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण शब्द हैं। स्पोर्ट्समैनशिप (Sportsmanship) एक अच्छे खिलाड़ी की वह भावना या वह विशेषता है, या ऐसे कहें कि वह स्पिरिट है जिसके आधार पर कोई भी खिलाड़ी खेल के मैदान में आरम्भ से लेकर अन्त तक बड़ी योग्यता से भाग लेता है। स्पोर्ट्समैनिशप अच्छे गुणों का वह समूह है, जिनका होना एक खिलाड़ी के लिए जरूरी समझा जाता है। जैसे कि एक खिलाड़ी के लिए जरूरी है कि वह शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से भरपूर, अनुशासनबद्ध, अच्छा सहयोगी, चुस्त और अपनी टीम के कैप्टन की आज्ञा का पालन करने वाला हो। वास्तव में इस तरह के गुणों का समूह ही स्पोर्ट्समैनशिप कहलाता है।

स्पोट्र्समैनशिपया खिलाड़ी के गुण (Qualities of Sportsman) -एक स्पोर्ट्समैन या खिलाड़ी में निम्नलिखित गुणों का होना ज़रूरी है-

1. अनुशासन की भावना (Spirit of Discipline)-स्पोर्ट्समैन का सबसे बड़ा और मुख्य गुण है नियम से अनुशासन में बन्धकर कार्य करना। वास्तविक स्पोर्ट्समैन वही कहा जा सकता है जो खेल आदि के सारे नियमों का पालन बड़े अच्छे ढंग से करे और अनुशासनबद्ध हो ।

2. सहनशीलता (Tolerance)-सहनशीलता स्पोर्ट्समैनशिप के गुणों में एक बहत ही महत्त्वपूर्ण गुण है। खेल में कई प्रकार के अवसर आते हैं। अपनी विजय प्राप्त होने से बहुत प्रसन्नता होती है और पराजित हो जाने से उदासी के बादल घेर लेते हैं। परन्तु स्पोर्ट्समैन वही है, जो विजयी होने पर भी पराजित टीम या खिलाड़ी को प्रसन्नता से उत्साहित करे और स्वयं पराजित हो जाने पर भी विजयी को पूर्ण सम्मान के साथ बधाई दे।

3. सहयोग की भावना (Spirit of Co-operation)-स्पोर्ट्समैन में तीसरा गुण सहयोग की भावना का होना है। खेल के मैदान में यह सहयोग की भावना ही है जो टीम के विभिन्न खिलाड़ियों को इकट्ठे रखती है और वे एक होकर अपनी विजय के लिए संघर्ष करते हैं। दूसरे शब्दों में, स्पोर्ट्समैन अपने कोच, कैप्टन, खिलाड़ियों और विरोधी टीम के साथ सहयोग की भावना रखता है। ___4. विजय-पराजय को समान समझने की भावना (No Difference between Defeat or Victory) खेल में हर एक अच्छा खिलाड़ी विजय प्राप्त करने की अनथक चेष्टा करता है और उसके लिए प्रत्येक सम्भव ढंग प्रयुक्त करता है। परन्तु उसे स्पोर्ट्समैन तभी कहा जा सकता है जब वह केवल विजय के उद्देश्य के साथ न खेले बल्कि उसका उद्देश्य अच्छे खेल का प्रदर्शन करना हो। यदि इसी मध्य सफलता उसके पग चूमती है तो उसे पागल होकर विरोधी टीम या खिलाड़ी का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए और यदि उसे पराजय का सामना करना पड़ता है तो उसे उत्साहहीन नहीं होना चाहिए। वह खेल में विजयी होने पर भी पराजित खिलाड़ियों को हीन समझने की बजाये अपने समान समझता है।

खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप PSEB 9th Class Physical Education Notes 1
चित्र-स्पोर्ट्समैन विजयी होते हुए पराजित खिलाड़ियों को समान समझते हुए

5. आज्ञा देने और मानने की योग्यता (Ability of Obedience and Order)स्पोर्ट्समैन के लिए इस ज़रूरी है कि आज्ञा देने और आज्ञा मानने की योग्यता रखता हो। कई बार यह देखा गया है कि खिलाड़ी कुछ कारणों से आपे से बाहर होकर स्वयं को ठीक समझ कर खेल में अपने कैप्टन की आज्ञा का पालन नहीं करते और मनमानी करने लगते हैं। वे सच्चे अर्थों में स्पोर्ट्समैन नहीं होते हैं।

6. त्याग की भावना (Spirit of Sacrifice)-स्पोर्ट्समैन में त्याग की भावना बहुत ज़रूरी है। एक टीम में खिलाड़ी केवल अपने लिए नहीं खेलता बल्कि उसका मुख्य उद्देश्य समस्त टीम को विजय दिलाने का होता है। इससे प्रकट होता है कि खिलाड़ी निजी हित को त्याग देता है। बस यही स्पोर्ट्समैन का एक साथ महत्त्वपूर्ण गुण है। एक दूसरे पक्ष से भी एक स्पोर्ट्समैन अपने लिए तो खेलता ही है, साथ-साथ अपने स्कूल, प्रान्त, क्षेत्र और समस्त राष्ट्र के लिए भी वह अपनी विजय का श्रेय अपने राष्ट्र और अपने देश को देता है।

7. भ्रातृत्व की भावना (Spirit of Brotherhood) स्पोर्ट्समैन का यह गुण भी कोई कम महत्त्व नहीं रखता। एक स्पोर्ट्समैन खेल में जाति-पाति, धर्म, रंग, सभ्यता और संस्कृति आदि को एक ओर रखकर प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा ही व्यवहार करता

8. प्रतियोगिता की भावना (Spirit of Competition) एक अच्छे स्पोर्ट्समैन में प्रतियोगिता की भावना का होना भी आवश्यक है । इसी भावना से प्रेरित होकर वह खेल के मैदान में अन्य खिलाड़ियों से बाज़ी ले जाने के लिए ऐडी-चोटी का जोर लगा देता है। वास्तव में सारी प्रगति का रहस्य प्रतियोगिता की भावना में ही छुपा हुआ है, परन्तु यह हर प्रकार के द्वेष से मुक्त होनी चाहिए।

9. समय पर कार्य करने की भावना (Spirit of Punctuality) स्पोर्ट्समैन किसी भी खेल में समय का पूर्ण सम्मान करते हुए प्रत्येक अवसर का पूर्ण लाभ उठाता है।
खेल में एक-एक सैकिण्ड महत्त्वपूर्ण होता है। ज़रा-सी असावधानी विजय को पराजय में और सावधानी पराजय को विजय में परिवर्तित कर देती है।

10. चुस्त और फुर्तीले रहने की भावना (Spirit of Active and Alertness)स्पोर्ट्समैन प्रत्येक खेल में हर समय चुस्ती और फुर्तीलेपन से ही कार्य करता है। वह किसी भी अवसर को अपने हाथ से जाने नहीं देता।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 2 खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप

11. आत्म-विश्वास की भावना (Spirit of Self-Confidence)-वास्तव में आत्म-विश्वास स्पोर्ट्समैन का महत्त्वपूर्ण गुण है। बिना आत्म-विश्वास के खेलना सम्भव नहीं है। खेल में प्रत्येक खिलाड़ी को अपनी योग्यता पर विश्वास होता है और वह प्रत्येक कार्य बहुत धैर्य और विश्वास से करता है। 1974 में तेहरान में हुई सातवीं एशियाई खेलों में जापान का सबसे अधिक स्वर्ण, रजत तथा कांस्य पदक प्राप्त कर प्रथम स्थान प्राप्त करने का एकमात्र कारण जापानी खिलाड़ियों का आत्म-विश्वास था। 1978 में बैंकाक में एशियाई खेलों में जापानियों ने पहला स्थान ही प्राप्त किया। इसी प्रकार ही जापान ने 1982 की नौवीं एशियाई खेलों में, जो दिल्ली में हुई थीं, प्रथम स्थान प्राप्त

किया और अपने आत्म-विश्वास को स्थिर रखा है। स्पोर्ट्समैन सदैव प्रसन्न, सन्तुष्ट, शान्त और स्वस्थ दिखाई देता है जिससे उसका आत्म-विश्वास प्रकट होता है।

12. उत्तरदायित्व की भावना (Spirit of Responsibility)-स्पोर्ट्समैन के लिए यह ज़रूरी है कि उसमें उत्तरदायित्व की भावना हो। खिलाड़ी को कभी गैर-उत्तरदायित्व से या लापरवाही से काम नहीं करना चाहिए। उसकी ज़रा-सी एक गलती से टीम हार सकती है। इसलिए खिलाड़ी को उत्तरदायित्व को सम्मुख रखकर खेलना चाहिए।

13. नये नियमों की जानकारी (Knowledge of New Rules)-स्पोर्ट्समैन को नये-नये नियमों की जानकारी होनी चाहिए। हर वर्ष खेलों के लिए नए कानून और नियम बनाए जाते हैं। स्पोर्ट्समैन को इनकी जानकारी होनी आवश्यक है।
संक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि स्पोर्ट्समैन एक इकाई नहीं, अपितु कई अच्छे तत्त्वों से मिलकर बना एक गुलदस्ता है तथा एक स्पोर्ट्समैन में अनुशासन, सहनशीलता, आत्म-विश्वास, त्याग, सहयोग आदि के गुणों का होना अत्यावश्यक है।

खेलों के गुण तथा स्पोर्ट्समैनशिप PSEB 9th Class Physical Education Notes

  • खेलों के गुण-शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक विकास, सहयोग की भावना और सहनशीलता खेलों द्वारा हमें मिलती है।
  • स्पोर्ट्समैनशिप–यह उन सभी अच्छे गुणों का सुमेल है जिसका खिलाड़ी में होना आवश्यक माना जाता है।
  • खिलाड़ी में अनुशासन की भावना, स्वस्थ और मानसिक रूप में प्रफुल्लित, अच्छा सहयोगी और चुस्ती आदि गुण उसमें विराजमान होने चाहिए।
  • स्पोर्ट्समैन एक दूत-स्पोर्ट्समैन अन्तर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है और विदेश में ऐसा कोई काम नहीं करता जिससे अपने देश का नुकसान हो।
  • स्पोर्ट्समैन का व्यवहार–प्रत्येक टीम को एक जैसा समझता है और अपनी पराजय को शान से स्वीकार करता है।
  • खेलों से लाभ-शरीर स्वस्थ रहता है और रोगों से छुटकारा मिलता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

PSEB 9th Class Home Science Guide भोजन के कार्य और पोषण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भोजन से आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
शरीर को नीरोग तथा स्वस्थ रखने वाला कोई भी ठोस, तरल अथवा अर्द्ध-ठोस पदार्थ जिसको शरीर द्वारा निगला, पचाया तथा शोषित किया जाता है, को भोजन कहते हैं।

प्रश्न 2.
पौष्टिक तत्त्वों से आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
शरीर की वृद्धि के लिए, ऊर्जा प्रदान करने के लिए तथा शरीर में चलती रासायनिक क्रियाओं को नियन्त्रण में रखने के लिए तथा शरीर के हर सैल की बनावट, रचना के लिए जिन तत्त्वों की ज़रूरत होती है, को पौष्टिक तत्त्व कहते हैं।

प्रश्न 3.
भोजन में कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्व होते हैं ?
उत्तर-
भोजन में पानी, प्रोटीन, चर्बी, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा खनिज आदि पौष्टिक तत्त्व होते हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

प्रश्न 4.
हड्डियों में कौन-से खनिज पदार्थ अधिक होते हैं ?
उत्तर-
हड्डियों में कैल्शियम तथा फॉस्फोरस खनिज पदार्थ होते हैं। दूध, राजमांह, मेथी, मछली आदि में इनकी काफ़ी मात्रा होती है।

प्रश्न 5.
विटामिन को रक्षक तत्त्व क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
एन्जाइम शारीरिक तापमान पर ही जोड़-तोड़ क्रियाएं करवाते हैं। इन एन्जाइमों के संश्लेषण तथा क्रियाशीलता के लिए विटामिन तथा खनिज पदार्थ आवश्यक होते हैं। यह बीमारियों से भी शरीर को बचाते हैं। इसलिए विटामिन को रक्षक तत्त्व कहा जाता है।

प्रश्न 6.
शरीर में कितने प्रतिशत खनिज पदार्थ होते हैं ?
उत्तर-
शरीर में 4% खनिज पदार्थ होते हैं। यह हैं-कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटाशियम, सोडियम, क्लोरीन, आयोडीन, सल्फर, तांबा, जिंक, कोबाल्ट, मैंग्नीज़, लोहा तथा मोलिब्डेनम आदि।

प्रश्न 7.
भोजन की ऊर्जा कैसे मापी जाती है ?
उत्तर-
शरीर को कई काम करने पड़ते हैं जैसे-खाने का पाचन, दिल का धड़कना, सांस लेना, दिमाग का हर समय काम करना, भागना-दौड़ना आदि। इन सभी कामों के लिए शरीर को ऊर्जा की ज़रूरत होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है।
ऊर्जा को किलो कैलोरी में मापा जाता है परन्तु पोषण विज्ञान में इसे कैलोरी ही कहा जाता है।

प्रश्न 8.
1 ग्राम प्रोटीन तथा 1 ग्राम वसा में कितनी कैलोरी होती है ?
उत्तर-
एक किलोग्राम पानी के तापमान में एक डिग्री सैल्सियस की वृद्धि करने के लिए जितने ताप की ज़रूरत होती है, उसे कैलोरी कहा जाता है।
एक ग्राम चर्बी में 9 कैलोरी तथा एक ग्राम प्रोटीन में 4 कैलोरी ऊर्जा होती है।

प्रश्न 9.
भोजन का शरीर में सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कौन-सा है ?
उत्तर-
भोजन के कार्य हैं-शरीर को ऊर्जा प्रदान करना, शरीर की वृद्धि तथा टूटेफूटे तन्तुओं की मरम्मत, शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण, रोगों से बचाव, तापमान सन्तुलित रखना आदि। __ शरीर को ऊर्जा प्रदान करना भोजन का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है। वास्तव में अन्य सभी कार्य ऊर्जा के कारण ही होते हैं।

प्रश्न 10.
भोजन का मनोवैज्ञानिक कार्य कौन-सा है ?
उत्तर-
अच्छे भोजन से मानसिक सन्तुष्टि मिलती है। जब मन खुश हो तो भोजन अच्छा लगता है तथा खाने को भी मन करता है तथा जब कोई चिन्ता हो तो वही भोजन बुरा लगता है। कई बार बच्चे को अच्छा काम करने जैसे अच्छे नम्बर आदि प्राप्त किये हों तो इनाम के रूप में आइसक्रीम अथवा पेस्ट्री आदि दी जाती है। इससे बच्चे को मानसिक सन्तुष्टि तथा खुशी प्राप्त होती है तथा इसी तरह दण्ड के रूप में इन चीजों की मनाही की जाती है। इस तरह भोजन मानसिक स्वास्थ्य ठीक रखने का कार्य भी करता है।

प्रश्न 11.
भोजन का सामाजिक महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
भोजन का सामाजिक महत्त्व-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए वह अपने सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करता है। इन सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए भोजन भी एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसको अनेकों खुशी के मौकों पर परोसा जाता है तथा इसके अतिरिक्त किसी को घर पर बुलाना जैसे किसी नए पड़ोसी अथवा नव-विवाहित जोड़े को खाने पर बुलाकर उनसे मेल-जोल बढ़ाया जाता है। संयुक्त भोजन एक ऐसा वातावरण बना देता है जिसमें सभी आपसी भेदभाव भुलाकर इकट्ठे बैठते हैं। धार्मिक उत्सवों पर लंगर अथवा प्रसाद देने की प्रथा (रीति) भी भाइचारे की भावना पैदा करती है। इसी तरह किसी व्यक्ति को स्वागत का अनुभव करवाने के लिए अथवा रुखस्त करते समय भी उसे बढ़िया भोजन द्वारा सम्मानित किया जाता है।

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प्रश्न 12.
शारीरिक रूप में स्वस्थ व्यक्ति की क्या पहचान है ?
उत्तर-
शारीरिक रूप में स्वस्थ व्यक्ति वह होता है जिसका –

  1. सुडौल शरीर होता है।
  2. भार आयु तथा कद के अनुसार होता है।
  3. वृद्धि पूर्ण होती है।
  4. चमड़ी साफ़ तथा आंखें चमकदार होती हैं।
  5. सांस में से बदबू नहीं आती।
  6. बाल चमकदार तथा बढ़िया बनावट वाले होते हैं।
  7. शरीर के सभी अंग ठीक काम करते हैं।
  8. भूख तथा नींद भी ठीक होती है।

प्रश्न 13.
रेशे (फोक) का हमारे शरीर में क्या कार्य है ?
उत्तर-
रेशे के कार्य –
रेशे शरीर से मल को बाहर निकालने में मदद करते हैं।

प्रश्न 14.
भोजन के कार्य के अनुसार भोजन का वर्गीकरण कैसे करोगे ?
उत्तर-
कार्य के अनुसार भोजन का वर्गीकरण-शरीर में कार्य के अनुसार भोजन को तीन मुख्य समूहों में बांटा गया है –

  1. ऊर्जा देने वाला भोजन-इसमें कार्बोहाइड्रेट्स तथा चर्बी पौष्टिक तत्त्व होते हैं।
  2. शरीर की बनावट के लिए भोजन-इसमें प्रोटीन होते हैं।
  3. रक्षक भोजन-इसमें खनिज पदार्थ तथा विटामिन होते हैं।

प्रश्न 15.
ऐसे दो भोजन पदार्थों के नाम बताओ जिनमें प्रोटीन अधिक होती है ?
उत्तर-
सोयाबीन, मांह साबुत, बकरे का मांस, पनीर, बादाम, मूंग, मसर, खोया, मछली आदि में अधिक मात्रा में प्रोटीन होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 16.
भोजन, पौष्टिक तत्त्व और पोषण विज्ञान के बारे बताओ।
उत्तर-
भोजन-भोजन मनुष्य की प्राथमिक ज़रूरतों में सबसे महत्त्वपूर्ण ज़रूरत है। वह पदार्थ जिन्हें खाने से शरीर को ऊर्जा तथा शक्ति मिलती है, उन्हें भोजन कहा जाता है। यह पदार्थ ठोस, अर्द्ध-ठोस तथा तरल रूप में भी हो सकते हैं। भोजन जीवित प्राणियों के शरीर के लिए ईंधन (Fuel) का कार्य करता है। भोजन ऊर्जा तथा शक्ति प्रदान करने के साथ-साथ शरीर की वृद्धि में भी सहायक होता है। इससे ही खून का निर्माण होता है। इसलिए मनुष्य का भोजन ऐसा होना चाहिए जिसमें शरीर की तंदरुस्ती के लिए सभी अनिवार्य तत्त्व मौजूद हों।

पौष्टिक तत्त्व-पौष्टिक तत्त्व भोजन का एक अंग हैं। यह विभिन्न रासायनिक तत्त्वों का मिश्रण होते हैं। इनकी शरीर को काफ़ी मात्रा में ज़रूरत होती है। यह रासायनिक तत्त्व हमारे शरीर में पाचन क्रिया में पाचन रसों द्वारा साधारण रूप में तबदील हो जाते हैं। यह तत्त्व पचने के पश्चात् आवश्यकतानुसार सभी अंगों में पहुंचकर उन्हें पोषण देते हैं।
निम्नलिखित विभिन्न पौष्टिक तत्त्व हैं –

  1. प्रोटीन (Protein)
  2. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates)
  3. चर्बी (Fats)
  4. विटामिन (Vitamins)
  5. खनिज लवण (Minerals)
  6. पानी (Water)
  7. रुक्षांश (Roughage)।

पोषण विज्ञान-पोषण विज्ञान से हमें पता चलता है कि पौष्टिक तत्त्व कौन-से भोजन पदार्थों से मिल सकते हैं तथा सामान्य मिलने वाले तथा सस्ते भोजन पदार्थों से इन्हें कैसे प्राप्त किया जा सकता है ताकि पौष्टिक तत्त्वों की कमी से होने वाली बीमारियों से बच जा सके।

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प्रश्न 17.
पोषण सम्बन्धी विज्ञान से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर-
पोषण विज्ञान हमें बताता है कि ठीक स्वास्थ्य के लिए कौन-से पौष्टिक तत्त्वों की शरीर को कितनी मात्रा में ज़रूरत है तथा कहां से प्राप्त होते हैं।

  1. कौन-से खाद्य पदार्थों से पौष्टिक तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं।
  2. इनकी कमी से शरीर पर क्या बुरा प्रभाव होगा।
  3. इन तत्त्वों की लगभग तथा कितने अनुपात में शरीर को ज़रूरत है।
  4. इस ज्ञान के आधार पर भोजन सम्बन्धी अच्छी आदतें कैसे बनानी हैं।

प्रश्न 18.
शरीर की वृद्धि और विकास के लिए भोजन के किन पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं के संयोजन में पुराने तथा घिसे हुए तन्तु टूटते रहते हैं। टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत भोजन करता है। भोजन शरीर में नष्ट हुए तन्तुओं के स्थान पर नए तन्तु भी बनाता है। इस कार्य के लिए प्रोटीन, खनिज तथा पानी आवश्यक तत्त्व हैं। यह तत्त्व हमें दूध तथा दूध से बनी चीजें, मूंगफली, दालें, हरी सब्जियां, मांस, मछली आदि से प्राप्त होते हैं। मानवीय शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं का ही बना हुआ है। जैसे जैसे आयु बढ़ती है शरीर में नए तन्तु लगातार बनते रहते हैं जो शरीर की वृद्धि तथा विकास करते हैं। नए तन्तुओं के निर्माण के लिए भोजन पदार्थों की विशेष ज़रूरत होती है। इसलिए प्रोटीन युक्त भोजन पदार्थ आवश्यक होते हैं।

प्रश्न 19.
ऊर्जा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
शरीर को शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करना-जैसे मशीन को कार्य करने के लिए शक्ति की ज़रूरत है जो बिजली, कोयले अथवा पेट्रोल से प्राप्त की जाती है वैसे ही मानवीय शरीर को जीवित रहने तथा कार्य करने के लिए शक्ति की ज़रूरत पड़ती है जो भोजन से प्राप्त की जाती है। शरीर की विभिन्न प्रतिक्रियाओं के लिए शक्ति आवश्यक है जो भोजन ही प्रदान करता है। भोजन हमारे शरीर में ईंधन की तरह जल कर ऊर्जा पैदा करता है। पर यह शरीर की गर्मी को स्थिर रखता है ताकि शरीर का तापमान अधिक बड़े तथा घटे नहीं।

शरीर के लिए आवश्यक शक्ति का अधिकतर भाग कार्बोज़ तथा चर्बी वाले भोजन पदार्थों से प्राप्त होता है। कार्बोहाइड्रेट हमें स्टार्च, शर्करा तथा सैलूलोज़ से प्राप्त होते हैं। वनस्पति, मक्खन, घी, तेल, मेवे तथा चर्बी युक्त खाने वाले पदार्थ ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। प्रोटीन से भी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। पर यह बहुत महंगा स्रोत होता है। ऊर्जा को कैलोरी में मापा जाता है। विभिन्न पौष्टिक तत्त्वों से प्राप्त कैलोरी की मात्रा इस तरह है –

(i) 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट – 4 कैलोरी
(ii) 1 ग्राम चर्बी – 9 कैलोरी
(iii) 1 ग्राम प्रोटीन – 4 कैलोरी

विभिन्न कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए ऊर्जा की ज़रूरत अलग-अलग होती है। जैसे कि मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की ऊर्जा की ज़रूरत एक शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति की ऊर्जा से कम होती है। इसी तरह विभिन्न शारीरिक दशाओं में भी ऊर्जा की ज़रूरत बदल जाती है। जैसे कि बच्चा पैदा करने वाली औरत अथवा दूध पिलाने वाली मां को अधिक ऊर्जा की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 20.
भोजन के शारीरिक कार्य कौन-से हैं ? किसी दो के बारे लिखें।
उत्तर-
भोजन के कार्य हैं-शरीर को ऊर्जा प्रदान करना, शरीर की वृद्धि तथा टूटेफूटे तन्तुओं की मरम्मत, शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण, रोगों से बचाव, तापमान सन्तुलित रखना आदि।

(i) शरीर को नीरोग रखना-भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है तथा यह शक्ति मनुष्य को रोगों से संघर्ष करने के योग्य बनाती है। भोजन में कई पदार्थ कच्चे ही खाए जाते हैं। इनमें ऐसे पौष्टिक तत्त्व होते हैं जो शरीर की रक्षा करते हैं। इन्हें सुरक्षात्मक भोजन तत्त्व कहा जाता है। यह तत्त्व विशेषकर खनिज, लवण तथा विटामिनों से प्राप्त होते हैं। यदि भोजन में इनमें से एक अथवा एक से अधिक तत्त्वों की कमी हो जाये तो स्वास्थ्य खराब हो जाता है तथा शरीर बीमारी का शिकार हो जाता है। यह तत्त्व फल, सब्जियां, दूध, मांस, कलेजी तथा मछली से प्राप्त होता है।

(ii) शारीरिक प्रक्रियाओं को नियमित करना-बढ़िया भोजन अच्छी सेहत के लिए बहुत आवश्यक है। शरीर की आन्तरिक क्रियाएं जैसे रक्त प्रवाह, श्वास क्रिया, पाचन शक्ति, शरीर के तापमान को स्थिर रखना आदि को नियमित रखने के लिए भोजन की ज़रूरत होती है। यदि यह आन्तरिक क्रियाएं नियमित न रहें तो हमारा शरीर अनेकों रोगों से पीड़ित हो सकता है। कार्बोज़ के अतिरिक्त अनेकों पौष्टिक तत्त्व मिलकर शारीरिक प्रक्रियाओं को नियमित करते हैं।
चर्बी युक्त पदार्थों में आवश्यक चर्बी अम्ल (Fatty acid), प्रोटीन, विटामिन, खनिज तथा पानी आदि यह कार्य करते हैं।

प्रश्न 21.
भोजन शारीरिक कार्य के अतिरिक्त हमारे शरीर में अन्य कौन-कौन से कार्य करता है ?
उत्तर-
मनोवैज्ञानिक कार्य-शारीरिक कार्यों के अतिरिक्त भोजन मनोवैज्ञानिक कार्य भी करता है। इसके द्वारा कई भावनात्मक ज़रूरतों की पूर्ति होती है। भोजन के पौष्टिक होने के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि वह पूर्ण सन्तुष्टि प्रदान करे। इसके अतिरिक्त घर में जब गृहिणी परिवार अथवा मेहमानों को बढ़िया भोजन परोसती है तो परिणामस्वरूप वह उसकी प्रशंसा करते हैं तथा गृहिणी को प्रशंसा से आनन्द प्राप्त होता है जो उसके मानसिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है।

सामाजिक तथा धार्मिक कार्य-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए वह अपने सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करता है। इन सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए भोजन भी एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसको अनेकों खुशी के अवसरों पर परोसा जाता है तथा इसके अतिरिक्त किसी को घर पर बुलाना जैसे किसी नए पड़ोसी अथवा नवविवाहित जोड़े को खाने पर बुलाकर उनसे मेल-जोल बढ़ाया जाता है। धार्मिक उत्सवों पर लंगर अथवा प्रसाद देने की प्रथा (रीति) भी भाईचारे की भावना पैदा करती है। इसी तरह किसी व्यक्ति को स्वागत का अनुभव करवाने के लिए अथवा रुखस्त करते समय भी उसे बढ़िया भोजन द्वारा सम्मानित किया जाता है। संयुक्त भोजन एक ऐसा वातावरण बना देता है जिसमें सभी आपसी भेदभाव भुला कर इकट्ठे बैठते हैं।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 22.
हमारे शरीर के लिए कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्व आवश्यक हैं ? जल और रेशे हमारे शरीर में क्या कार्य करते हैं ? ।
उत्तर-
निम्नलिखित विभिन्न पौष्टिक तत्त्व आवश्यक हैं –

  1. प्रोटीन (Protein)
  2. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates)
  3. चर्बी (Fats)
  4. विटामिन (Vitamins)
  5. खनिज लवण (Minerals)
  6. पानी (Water)
  7. रुक्षांश (Roughage)|

पानी-पानी में कोई कैलोरी नहीं होती पर शरीर की लगभग सभी प्रक्रियाओं में पानी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पानी के बिना हम थोड़े दिन भी जीवित नहीं रह सकते। यह शरीर के सभी तरल पदार्थों में होता है। रक्त में 90% पानी होता है। पाचक रसों में भी काफ़ी मात्रा पानी की ही होती है। इस तरह पानी विभिन्न पदार्थों को शरीर में एक से दूसरे स्थान पर ले जाने में सहायक है जैसे कि हार्मोन्ज़ भोजन के पाचन के पश्चात् पदार्थ तथा बाहर निकलने वाले पदार्थों को एक से दूसरे स्थान पर ले जाना आदि। पानी शरीर की बनावट तथा शरीर का तापमान नियमित रखने में भी आवश्यक है।

पानी को हम पानी के रूप अथवा पेय पदार्थ अथवा अन्य भोजन पदार्थों द्वारा प्राप्त करते हैं।

रुक्षांश-रुक्षांश भोजन का ऐसा हिस्सा है जो हमारी पाचन प्रणाली में पचाया नहीं जा सकता। यह पौधों से मिलने वाले भोजन पदार्थ जैसे फल, सब्जियां तथा अनाजों में होता है। यह शरीर में से मल को बाहर निकालने में सहायता करता है।

प्रश्न 23.
भोजन हमारे शरीर में क्या-क्या कार्य करता है ?
उत्तर-
भोजन के कार्य हैं-शरीर को ऊर्जा प्रदान करना, शरीर की वृद्धि तथा टूटेफूटे तन्तुओं की मरम्मत, शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण, रोगों से बचाव, तापमान सन्तुलित रखना आदि।

1. शरीर को नीरोग रखना-भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है तथा यह शक्ति मनुष्य को रोगों से संघर्ष करने के योग्य बनाती है। भोजन में कई पदार्थ कच्चे ही खाए जाते हैं। इनमें ऐसे पौष्टिक तत्त्व होते हैं जो शरीर की रक्षा करते हैं। इन्हें सुरक्षात्मक भोजन तत्त्व कहा जाता है। यह तत्त्व विशेषकर खनिज, लवण तथा विटामिनों से प्राप्त होते हैं। यदि भोजन में इनमें से एक अथवा एक से अधिक तत्त्वों की कमी हो जाये तो स्वास्थ्य खराब हो जाता है तथा शरीर बीमारी का शिकार हो जाता है। यह तत्त्व फल, सब्जियां, दूध, मांस, कलेजी तथा मछली से प्राप्त होता है।

2. शारीरिक क्रियाओं को नियमित करना-बढ़िया भोजन अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। शरीर की आन्तरिक क्रियाएं जैसे रक्त प्रवाह, श्वास क्रिया, पाचन शक्ति, शरीर के तापमान को स्थिर रखना आदि को नियमित रखने के लिए भोजन की ज़रूरत होती है। यदि यह आन्तरिक क्रियाएं नियमित न रहें तो हमारा शरीर अनेकों रोगों से पीड़ित हो सकता है। कार्बोज़ के अतिरिक्त अनेकों पौष्टिक तत्त्व मिलकर शारीरिक प्रक्रियाओं को नियमित करते हैं।
चर्बी युक्त पदार्थों में आवश्यक चर्बी अम्ल (Fatty acid), प्रोटीन, विटामिन, खनिज तथा पानी आदि यह कार्य करते हैं।

3. शारीरिक कोशिकाओं का निर्माण करना तथा तन्तुओं की मरम्मत-करना विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं के संयोजन में पुराने तथा घिसे हुए तन्तु टूटते रहते हैं। टूटीफूटी कोशिकाओं की मरम्मत भोजन करता है। भोजन शरीर में नष्ट हुए तन्तुओं के स्थान पर नए तन्तु भी बनाता है। इस कार्य के लिए प्रोटीन, खनिज तथा पानी आवश्यक तत्त्व हैं। यह तत्त्व हमें दूध से बनी चीज़ों, मूंगफली, दालें, हरी सब्जियों, मांस, मछली आदि से प्राप्त होते हैं। मानवीय शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं का ही बना हुआ है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है शरीर में नए तन्तु लगातार बनते रहते हैं जो शरीर की वृद्धि तथा विकास करते हैं। नए तन्तुओं के निर्माण के लिए भोजन पदार्थों की विशेष ज़रूरत होती है। इसलिए प्रोटीन युक्त भोजन पदार्थ आवश्यक होते हैं।

4. शरीर को शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करना-जैसे मशीन को कार्य करने के लिए शक्ति की ज़रूरत है जो बिजली, कोयले अथवा पेटोल से प्राप्त की जाती है वैसे ही मानवीय शरीर को जीवित रहने तथा कार्य करने के लिए शक्ति की ज़रूरत पड़ती है जो भोजन से प्राप्त की जाती है। शरीर की विभिन्न प्रतिक्रियाओं के लिए शक्ति आवश्यक है जो भोजन ही प्रदान करता है। भोजन हमारे शरीर में ईंधन की तरह जल कर ऊर्जा पैदा करता है। पर यह शरीर की गर्मी को स्थिर रखता है ताकि शरीर का तापमान अधिक बढ़े तथा घटे नहीं।

शरीर के लिए आवश्यक शक्ति का अधिकतर भाग कार्बोज़ तथा चर्बी वाले भोजन पदार्थों से प्राप्त होता है। कार्बोहाइड्रेट हमें स्टार्च, शर्करा, तथा सैलूलोज़ से प्राप्त होते हैं। वनस्पति, मक्खन, घी, तेल, मेवे तथा चर्बी युक्त खाने वाले पदार्थ ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। प्रोटीन से भी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। पर यह बहुत महंगा स्रोत होता है। ऊर्जा के ताप को कैलोरी में मापा जाता है। विभिन्न पौष्टिक तत्त्वों से प्राप्त कैलोरी की मात्रा इस तरह है –

(i) 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट – 4 कैलोरी
(ii) 1 ग्राम चर्बी – 9 कैलोरी
(iii) 1 ग्राम प्रोटीन – 4 कैलोरी।

विभिन्न कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए ऊर्जा की ज़रूरत अलग-अलग होती है। जैसे कि मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की ऊर्जा की ज़रूरत एक शारीरिक कार्य करने वाले व्यक्ति की ऊर्जा से कम होती है। इसी तरह विभिन्न शारीरिक दशाओं में भी ऊर्जा की ज़रूरत बदल जाती है। जैसे कि बच्चा पैदा करने वाली औरत अथवा दूध पिलाने वाली मां को अधिक ऊर्जा की ज़रूरत होती है।

5. शरीर का तापमान संतुलित करना-प्रत्येक मौसम में हमारे शरीर का तापमान नियमित रहता है। गर्मियों में हमें पसीना आता है। पसीना सूखने पर वाष्पीकरण से ठण्ड पैदा होती है जिससे शरीर का तापमान नियमित रहता है। विभिन्न स्थितियों में भिन्न-भिन्न ढंगों से क्रिया करने का संकेत दिमाग से आता है जिसके लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा यह ऊर्जा हमें भोजन से ही प्राप्त होती है। पानी शरीर का तापमान नियमित रखने के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

6. मनोवैज्ञानिक कार्य-शारीरिक कार्यों के अतिरिक्त भोजन मनोवैज्ञानिक कार्य भी करता है। इसके द्वारा कई भावनात्मक ज़रूरतों की पूर्ति होती है। भोजन के पौष्टिक होने के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि वह पूर्ण सन्तुष्टि प्रदान करे। इसके अतिरिक्त घर में जब गृहिणी परिवार अथवा मेहमानों को बढ़िया भोजन परोसती है तो परिणामस्वरूप वह उसकी प्रशंसा करते हैं तथा गृहिणी को प्रशंसा से आनन्द प्राप्त होता है जो उसके आन्तरिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है।

7. सामाजिक तथा धार्मिक कार्य-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए वह अपने सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करता है। इन सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए भोजन भी एक साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसको अनेकों खुशी के अवसरों पर परोसा जाता है तथा इसके अतिरिक्त किसी को घर पर बुलाना जैसे किसी नए पड़ोसी अथवा नव-विवाहित जोड़े को खाने पर बुलाकर उनसे मेल-जोल बढ़ाया जाता है। धार्मिक उत्सवों पर लंगर अथवा प्रसाद देने की प्रथा (रीति) भी भाईचारे की भावना पैदा करती है। इसी तरह किसी व्यक्ति को स्वागत का अनुभव करवाने के लिए अथवा रुखस्त करते समय भी उसे बढ़िया भोजन द्वारा सम्मानित किया जाता है। संयुक्त भोजन एक ऐसा वातावरण बना देता है जिसमें सभी आपसी भेदभाव भुलाकर इकट्ठे बैठते हैं।

प्रश्न 24.
भोजन के शारीरिक कार्य क्या हैं ? और इनके लिए किन-किन पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता है ?
उत्तर-
भोजन के शारीरिक कार्य-

भोजन समूह पौष्टिक तत्त्व कार्य
1. ऊर्जा देने वाले भोजन

(i) अनाज तथा जड़ वाली सब्जियां।

(ii) शक्कर तथा गुड़, तेल, घी तथा मक्खन।

कार्बोहाइड्रेट तथा चर्बी ऊर्जा प्रदान करना
2. शरीर की बनावट तथा वृद्धि के लिए भोजन

(i) दूध तथा दूध से बने पदार्थ

(ii) मांस, मछली तथा अण्डे

(iii) दालें तथा

(iv) सूखे मेवे।

प्रोटीन शरीर की वृद्धि तथा टूटे फूटे तन्तुओं की मरम्मत करने के लिए
3. रक्षक भोजन

(i) पीले तथा संतरी रंग के फल

(ii) हरी सब्जियां

(iii) अन्य फल तथा सब्ज़ियां।

विटामिन तथा खनिज पदार्थ बीमारियों से शरीर की रक्षा करना तथा शारीरिक क्रियाओं को कण्ट्रोल करना।

Home Science Guide for Class 9 PSEB भोजन के कार्य और पोषण Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें

  1. शरीर में ………………… प्रतिशत खनिज पदार्थ होते हैं।
  2. पानी शरीर के ……………. को नियमित करता है।
  3. ऊर्जा को ……………….. में मापा जाता है।
  4. रक्त में …………………. पानी होता है।
  5. राइबोफ्लेबिन ……………… में घुलनशील है।

उत्तर-

  1. 4%
  2. तापमान
  3. किलो कैलोरी
  4. 90%
  5. पानी।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
एक 65 किलोग्राम भार वाले पुरुष के शरीर में कितना प्रोटीन होता है ?
उत्तर-
11 किलोग्राम।

प्रश्न 2.
हमारे शरीर में कितने प्रतिशत जल है ?
उत्तर-
70%

प्रश्न 3.
कार्बोज़ तथा वसा का क्या कार्य है ?
उत्तर-
ऊर्जा प्रदान करना।

प्रश्न 4.
वसा में घुलनशील एक विटामिन बताएं।
उत्तर-
विटामिन ए।

प्रश्न 5.
विटामिन तथा खनिज पदार्थों को कैसे तत्त्व कहा जाता है ?
उत्तर-
रक्षक तत्त्व।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. हमारे शरीर में 70% पानी होता है।
  2. विटामिन बी (B) पानी में अघुलनशील है।
  3. दूध में प्रोटीन, विटामिन तथा कैल्शियम होता है।
  4. पानी से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है।
  5. प्रोटीन शरीर की मुरम्मत करने के काम आता है।
  6. खनिज पदार्थ तथा विटामिन रक्षक भोजन है।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ग़लत
  3. ठीक
  4. ग़लत,
  5. ठीक
  6. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वस्थ व्यक्ति के लिए ठीक तथ्य नहीं हैं –
(A) शरीर सुडौल होता है
(B) भूख तथा नींद कम होती है
(C) भार, आयु तथा लम्बाई अनुसार होता है
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(B) भूख तथा नींद कम होती है

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य हैं –
(A) शरीर में 4% खनिज पदार्थ होते हैं
(B) एक ग्राम चर्बी में 9 कैलोरी ऊर्जा होती है
(C) सोयाबीन में अधिक प्रोटीन होता है
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
शरीर में ………………….. तथा रक्त में ………………….. पानी होता है –
(A) 70%, 90%
(B) 90%, 70%
(C) 100%, 100%
(D) 70%, 20%.
उत्तर-
(D) 70%, 20%

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एस्कीमो आदि की मुख्य खुराक क्या है ?
उत्तर-
इनकी मुख्य खुराक मांस, मछली तथा अण्डा है।

प्रश्न 2.
यदि ठीक भोजन न खाया जाये तो इसका हमारे शरीर पर क्या प्रभाव होगा ?
उत्तर-
भोजन तथा स्वास्थ्य का सीधा सम्बन्ध है। यदि ठीक भोजन न खाया जाये तो हमारे शरीर की रोगाणुओं से लड़ने की शक्ति में कमी आ जाती है जिस कारण हमें कोई भी बीमारी आसानी से हो सकती है। शरीर की कार्य करने की क्षमता भी कम हो जाती है।

प्रश्न 3.
दूध के पौष्टिक गुणों के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
दूध में प्रोटीन, विटामिन तथा कैल्शियम होता है जिस कारण इसमें पौष्टिक गुण होते हैं।

प्रश्न 4.
भोजन किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
जिस खाद्य पदार्थ को खाने से शरीर को ऊर्जा तथा शक्ति मिलती है, उसे भोज कहा जाता है।

प्रश्न 5.
पौष्टिक तत्त्व क्या हैं ?
उत्तर-
भोजन के रासायनिक तत्त्वों के मिश्रण को पौष्टिक तत्त्व कहा जाता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

प्रश्न 6.
कौन-से भोजन पदार्थों से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है ?
उत्तर-
घी, तेल, मेवे, दालों तथा चर्बी युक्त पदार्थों से शरीर को ऊर्जा मिलती है।

प्रश्न 7.
शरीर के निर्माण के लिए कौन-से भोजन पदार्थ आवश्यक हैं ?
उत्तर-
दूध तथा दूध से बने पदार्थ, साबुत दालें, मांस, अण्डे आदि।

प्रश्न 8.
कौन-से भोजन पदार्थ शरीर को सुरक्षित रखते हैं ?
उत्तर-
फल, सब्जियां तथा पानी शरीर को सुरक्षित रखते हैं।

प्रश्न 9.
शरीर के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, चर्बी, विटामिन, खनिज पदार्थ, रुक्षांश तथा पानी आवश्य पौष्टिक तत्त्व हैं।

प्रश्न 10.
पोषण क्या होता है ?
उत्तर-
यह एक ऐसी परिस्थिति है जो शरीर को विकसित करती है तथा बनाये रखती है।

प्रश्न 11.
भोजन शरीर के लिए क्या कार्य करता है ?
उत्तर-

  1. शारीरिक क्रियाओं को चालू तथा नीरोग रखता है।
  2. मनोवैज्ञानिक कार्य।
  3. सामाजिक कार्य।

प्रश्न 12.
शरीर में ऊर्जा कैसे पैदा होती है ?
उत्तर-
शरीर में ऊर्जा कार्बन यौगिकों के ऑक्सीकरण से पैदा होती है।

प्रश्न 13.
कौन-से पौष्टिक तत्त्वों से ऊर्जा पैदा होती है ?
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी तथा प्रोटीन से ऊर्जा पैदा होती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

प्रश्न 14.
शरीर में कौन-से तत्त्व कम मात्रा में आवश्यक हैं ?
उत्तर-
कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, विटामिन आदि शरीर को कम मात्रा में आवश्यक हैं।

प्रश्न 15.
एक 65 किलो के पुरुष के शरीर में पानी, प्रोटीन, कैल्शियम, तांबा तथ थाइयोमिन की कितनी मात्रा होती है ?
उत्तर-
पानी – 40 किलोग्राम
प्रोटीन – 11 किलोग्राम
कैल्शियम – 1200 ग्राम
तांबा – 100-150 मिलिग्राम
थाइयोमिन – 25 मिलिग्राम।

प्रश्न 16.
65 किलो के पुरुष के शरीर में चर्बी, लोहा, आयोडीन तथा विटामिन सी कितनी मात्रा में होते हैं ?
उत्तर-
चर्बी – 9 किलोग्राम
लोहा — 3-4 ग्राम
आयोडीन – 25-50 मिलिग्राम
विटामिन सी – 5 ग्राम।

प्रश्न 17.
हमारे शरीर में पानी की मात्रा कितनी होती है ?
उत्तर-
हमारे शरीर में पानी 70% होता है।

प्रश्न 18.
रक्त बनाने के लिए कौन-से तत्त्वों की ज़रूरत होती है ?
उत्तर-
रक्त बनाने के लिए लोहा तथा प्रोटीन की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 19.
गर्मियों में शरीर का तापमान कैसे नियमित रहता है ?
उत्तर-
गर्मियों में पसीना आता है तथा पसीने के वाष्पीकरण से ठण्डक पैदा होती है। इससे शरीर का तापमान नियमित रहता है।

प्रश्न 20.
सर्दियों में शरीर का तापमान कैसे नियमित रहता है ?
उत्तर-
सर्दियों में शरीर द्वारा काफ़ी ऊर्जा पैदा की जाती है जिससे शरीर का तापमान नियमित रहता है।

प्रश्न 21.
मानसिक पक्ष से कौन-सा व्यक्ति ठीक होता है ?
उत्तर-
मानसिक पक्ष से वह व्यक्ति ठीक होता है जिसे –

  1. अपने गुणों तथा अवगुणों के बारे में पता हो।
  2. जो चिंता अथवा किसी प्रकार के तनाव से मुक्त हो।
  3. जो चौकस तथा फुर्तीला हो।
  4. जो समझदार तथा सीखने वाला हो।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

प्रश्न 22.
सामाजिक रूप में सन्तुष्ट व्यक्ति कौन होता है ?
उत्तर–
सामाजिक रूप में सन्तुष्ट व्यक्ति वह होता है –

  1. जो अपने इर्द-गिर्द के लोगों को साथ लेकर चलता है।
  2. जो अच्छे तौर तरीके तथा शिष्टाचार अपनाता है।
  3. जो दूसरों की मदद करने में खुशी महसूस करता है।
  4. जो समाज तथा परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेवारी समझता है।

प्रश्न 23.
विटामिन कितनी प्रकार के होते हैं, विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर-
विटामिन दो तरह के होते हैं –
(i) पानी में घलनशील विटामिन ‘सी’ तथा ‘बी’ ग्रप के विटामिन जैसे कि थायामिन. राइबोफ्लेबिन, निकोटिनिक अम्ल, पिरडॉक्सिन, फौलिक अम्ल तथा विटामिन बी,, पानी में घुलनशील हैं।
(ii) चर्बी में घुलनशील विटामिन-विटामिन ‘ए’, ‘डी’ तथा ‘के’ चर्बी में घुलनशील हैं।

प्रश्न 24.
सबसे अधिक प्रोटीन, चर्बी, खनिज पदार्थ, कार्बोज़, कैल्शियम तथा लोहा, ऊर्जा कौन-से भोजन पदार्थों में होते हैं ?
उत्तर-
प्रोटीन – सोयाबीन (43.2 ग्राम)
चर्बी – मक्खन (81 ग्राम)
खनिज पदार्थ – सोयाबीन (4.6 ग्राम)
कार्बोज़ – गुड़ (95 ग्राम)
कैल्शियम – खोया (956 मिलिग्राम)
लोहा – सरसों (16.3 मिलिग्राम)
ऊर्जा – मक्खन (किलो कैलोरी)
यह मात्रा 100 ग्राम भोजन पदार्थ के लिए है।

प्रश्न 25.
पानी का शरीर में कार्य बतायें।
उत्तर–
पानी के कार्य –
(i) पानी विभिन्न पदार्थों को शरीर में एक से दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य करता है।
(ii) पानी शरीर के तापमान को नियमित करता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 7 भोजन के कार्य और पोषण

भोजन के कार्य और पोषण PSEB 9th Class Home Science Notes

  • सभी जीवित प्राणियों को भोजन की ज़रूरत होती है।
  • पोषण विज्ञान से हमें यह पता चलता है कि कौन-से भोजन पदार्थों में कौन-से पौष्टिक तत्त्व होते हैं।
  • शरीर में ऊर्जा कार्बन यौगिकों से पैदा होती है।
  • डण्डी को नीरोग तथा स्वस्थ रखने वाला कोई भी ठोस, तरल अथवा अर्द्ध-ठोस खाद्य पदार्थ जिसको शरीर द्वारा निगला, पचाया तथा शोषित किया जाता है, को भोजन कहते हैं।
  • भोजन के शारीरिक काम हैं-शरीर को ऊर्जा देना, शरीर की वृद्धि, टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत, शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण, रोगों से बचाव, शरीर का तापमान नियमित करना आदि।
  • भोजन मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा धार्मिक कार्य भी करता है।
  • पौष्टिक तत्त्व वह रासायनिक पदार्थ हैं जो हमें भोजन से मिलते हैं तथा शरीर की विभिन्न जोड़-तोड़ क्रियाओं के लिए ऊर्जा का साधन हैं तथा शरीर के सैलों की रचना तथा बनावट के लिए ज़रूरी हैं।
  • पौष्टिक तत्त्व हैं-प्रोटीन, चर्बी, खनिज पदार्थ, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा पानी।
  • पोषण विज्ञान में ऊर्जा को कैलोरी में मापा जाता है।
  • 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा चर्बी में बारी-बारी 4,4 तथा 9 कैलोरी ऊर्जा होती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

PSEB 9th Class Home Science Guide बाल विकास का अर्थ और महत्त्व Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक जीवन में बाल विकास का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
बाल विकास की आज के जीवन में बहुत महत्ता है। इसमें बच्चों में मिलने वाली व्यक्तिगत भिन्नताओं, उनके साधारण, असाधारण व्यवहार तथा बच्चे पर वातावरण के प्रभाव को जानने की कोशिश की जाती है।

प्रश्न 2.
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत आपको किस के बारे में शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत मिलने वाली शिक्षा

  1. बच्चों की प्रवृत्ति को समझने के लिए
  2. बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को समझने के लिए
  3. बच्चे के विकास बारे जानकारी
  4. बच्चे के लिए बढ़िया वातावरण पैदा करना
  5. बच्चों के व्यवहार को कन्ट्रोल करने के लिए
  6. बच्चों का मार्ग दर्शन
  7. पारिवारिक जीवन को खुशियों भरा बनाने के लिए

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 3.
किन-किन कारणों के कारण बच्चों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो सकता?
उत्तर-
बच्चों का विकास कई कारणों से ठीक तरह नहीं होता जैसे

  1. बच्चों को विरासत से ही कुछ कमियां मिली हों जैसे-बच्चा मंद बुद्धि हो सकता है, अंगहीन हो सकता है।
  2. बच्चे में अच्छे गुण होने के बावजूद उसको अच्छा वातावरण न मिल सकने के कारण भी उसके विकास में रुकावट डाल सकता है।
  3. कई बार घरेलू झगड़े भी बच्चे के विकास में रुकावट डालते हैं।
  4. बच्चे की रुचि से विपरीत उससे ज़बरदस्ती कोई कार्य करवाना। जैसे किसी बच्चे को गाने-बजाने का शौक है तो उसे ज़बरदस्ती खेलने को कहा जाए।
  5. बचपन में बच्चे को माता-पिता का प्यार तथा देख-रेख न मिल सकना।

प्रश्न 4.
बाल विकास से आप क्या समझते हो?
उत्तर–
बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है। इसमें गर्भ अवस्था से लेकर बालिग होने तक की सम्पूर्ण वृद्धि तथा विकास का अध्ययन करते हैं। इनमें शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक तथा मनोवैज्ञानिक वृद्धि तथा विकास शामिल हैं। इसके अतिरिक्त बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा वातावरण का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
पारिवारिक सम्बन्धों का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
मनुष्य का बच्चा अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं के लिए अपने आस-पास के लोगों पर अधिक समय के लिए निर्भर रहता है। बच्चे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परिवार होता है। इन ज़रूरतों को किस तरह पूरा किया जाता है इसका बच्चे के व्यक्तित्व पर प्रभाव होता है तथा इसका बड़े होकर पारिवारिक रिश्तों पर भी प्रभाव पड़ता है।
मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि हम इस समाज में ही विचरते हैं, इसलिए हमारे पारिवारिक रिश्ते तथा परिवार से बाहर के रिश्ते हमारे जीवन की खुशी का आधार होते हैं। इस तरह बच्चे के विकास में पारिवारिक सम्बन्ध काफ़ी महत्त्व रखते हैं।

प्रश्न 6.
परिवार की खुशी बच्चों के भविष्य के साथ कैसे जुड़ी हुई है?
उत्तर–
प्रत्येक परिवार की खुशी, उम्मीद तथा भविष्य बच्चों से जुड़ा होता है। बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं तथा परिवार में बच्चे यदि शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ हों तो परिवार के लिए खुशी का कारण बनते हैं। परिवार खुश हो तो बच्चों के विकास के लिए सहायक रहता है। यदि परिवार में लड़ाई-झगड़े हों अथवा परिवार आर्थिक पक्ष से तंग हो तो इन बातों का बच्चों के भविष्य पर बुरा प्रभाव होता है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB बाल विकास का अर्थ और महत्त्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. बाल विकास की शिक्षा से हमें वंश तथा ……….. सम्बन्धी जानकारी मिलती है।
  2. मानव शिशु बाकी प्राणियों के बच्चों में सबसे ……………….. होता है।
  3. व्यक्तियों के …………………. को ही समाज नहीं कहा जा सकता।

उत्तर-

  1. वातावरण,
  2. निर्बल,
  3. समुदाय।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
बच्चे के पालन-पोषण का मूल उत्तरदायित्व किसका है?
उत्तर-
माता-पिता का।

प्रश्न 2.
बाल विकास किस का अध्ययन है?
उत्तर-
बच्चों की वृद्धि तथा विकास।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

ठीक/ग़लत बताएं

  1. बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान का आपस में गहरा संबंध है।
  2. बच्चे के विकास पर आस-पास के वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
  3. घरेलू झगड़े बच्चे के विकास पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
  4. बच्चे के पालन-पोषण की प्राथमिक जिम्मेवारी उसके मां-बाप की होती है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ठीक तथ्य हैं
(A) बचपन में बच्चे को माता-पिता का प्यार तथा देख-रेख न मिलने के कारण विकास अच्छी प्रकार नहीं होता।
(B) बच्चे के व्यवहार तथा रुचियों पर वातावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
(C) प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तित्व की जड़ें उसके बचपन में होती हैं।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य हैं
(A) बच्चे की रुचि के विपरीत उससे जबरदस्ती कोई कार्य करवाने से विकास ठीक नहीं होता।
(B) परिवार की आर्थिक तंगी का प्रभाव बच्चे के विकास पर पड़ता है।
(C) मानव शिशु अन्य प्राणियों के बच्चों में सबसे कमज़ोर होता है।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक जीवन में बाल विकास का क्या महत्त्व है?
उत्तर-

  1. बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान की सबसे बड़ी देन है। इससे हमें पता चला है कि साधारणतः एक बच्चे से एक अवस्था में क्या आशा रखी जाए। यदि कोई बच्चा इस आशा से बाहर जाए तो उसकी ओर हमें विशेष ध्यान देना होगा।
  2. बाल विकास की पढ़ाई से हमें बच्चों की जरूरतों सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। हम बच्चे के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझ कर उसका पालन-पोषण कर सकते हैं जिससे उसका बहुपक्षीय विकास अच्छे ढंग से हो सके।
  3. बाल विकास के अध्ययन से हमें यह जानकारी मिलती है कि साधारण बच्चों से भिन्न बच्चों को किस तरह का वातावरण प्रदान करें कि वह हीन भावना का शिकार न हो जाए। जैसे शारीरिक अथवा मानसिक तौर पर विकलांग बच्चे, मन्द बुद्धि वाले बच्चे अपनी शारीरिक तथा मानसिक कमजोरियों से ऊपर उठकर अपना बहुपक्षीय विकास कर सकें।
  4. बाल विकास पढ़ने से हमें वंश तथा वातावरण सम्बन्धी जानकारी भी मिलती है। एक-दो ऐसे महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जो बच्चे के विकास में बहुत योगदान डालते हैं। वंश से हमें बच्चे के उन गुणों के बारे पता चलता है जो बच्चों को अपने माता-पिता से जन्म से ही मिले होते हैं तथा जिन्हें बदला नहीं जा सकता जैसे नैन-नक्श, कद-काठ, बुद्धि आदि। बच्चे के इर्द-गिर्द को वातावरण कहा जाता है जैसे भोजन, अध्यापक, किताबें, खेलें, मौसम आदि। वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता है। अच्छा वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व को उभारने में मदद करता है।

प्रश्न 2.
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत आपको किस के बारे में शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
बाल विकास के अध्ययन में बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा इर्द-गिर्द का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।
प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तित्व की जड़ें उसके बचपन में होती हैं। आजकल मनोवैज्ञानिक तथा समाज वैज्ञानिक किसी मनुष्य के व्यवहार को समझने के लिए उसके बचपन के हालातों की जांच-पड़ताल करते हैं। समाज वैज्ञानिक यह बात सिद्ध कर चुके हैं कि वे बच्चे जिन्हें बचपन में प्यार नहीं मिलता बड़े होकर अपराधों की ओर रुचित होते हैं।

  1. बच्चों की प्रवृत्ति को समझने के लिए-बाल विकास के अध्ययन से हम विभिन्न स्तरों पर बच्चों के व्यवहार तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों से अवगत होते हैं। एक बच्चा विकास की विभिन्न स्थितियों से किस तरह गुज़रता है इसका पता बाल विकास के अध्ययन द्वारा ही चलता है।
  2. बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को समझने के लिए-बाल विकास अध्ययन बच्चे के व्यक्तिगत विकास, उसके चरित्र निर्माण का अध्ययन करता है। ऐसे कौन-से तथ्य हैं जो भिन्न-भिन्न आयु के पड़ावों पर बच्चे के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं तथा बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में रुकावट डालने वाले कौन-से तत्त्व हैं, बाल विकास इनकी खोज करने के पश्चात् बच्चे की मदद करता है।
  3. बच्चे के विकास बारे जानकारी-गर्भ धारण से लेकर बालिग होने तक के शारीरिक विकास का अध्ययन बाल विकास का मुख्य भाग है। बाल विकास अध्ययन की मदद से बच्चे के शारीरिक विकास की रुकावटों तथा कारणों को अच्छी तरह समझ सकते हैं । बाल विकास बच्चे की शारीरिक विकास से सम्बन्धित समस्याओं को समझने में भी हमारी सहायता करता है।
  4. बच्चे के लिए बढ़िया वातावरण पैदा करना-बच्चे के व्यवहार तथा रुचियों पर वातावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। बाल विकास के अध्ययन से वातावरण के बच्चे पर पड़ रहे बुरे प्रभावों का पता चलता है। बच्चे के व्यक्तित्व के बढ़िया विकास के लिए बढ़िया वातावरण उत्पन्न करने सम्बन्धी मां-बाप तथा अध्यापकों को सहायता मिलती है।
  5. बच्चों के व्यवहार को कन्ट्रोल करने के लिए-बच्चे का व्यवहार हर समय एक जैसा नहीं होता। बच्चे के व्यवहार से सम्बन्धित समस्याओं जैसे बिस्तर गीला करना, अंगूठा चूसना, डरना, झूठ बोलना आदि का कोई-न-कोई मनोवैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। बाल विकास अध्ययन की सहायता से इन समस्याओं के कारणों को समझा तथा हल किया जा सकता है।
  6. बच्चों का मार्ग दर्शन-माता-पिता समय-समय पर बच्चों की रहनुमाई करते हैं। परन्तु आज-कल पढ़े-लिखे मां-बाप मार्ग-दर्शन विशेषज्ञों से बच्चों का मार्ग दर्शन करवाते हैं। यह मार्ग दर्शन विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा उसकी रुचियां, छुपी हुई क्षमता तथा झुकाव का पता लगाकर बच्चों का मनोवैज्ञानिक मार्ग-दर्शन करते हैं।
  7. पारिवारिक जीवन को खुशियों भरा बनाने के लिए-बच्चे हर घर का भविष्य होते हैं। इसलिए उनका पालन-पोषण ऐसे वातावरण में होना चाहिए जो उनकी वृद्धि तथा विकास में सहायक हो। बाल विकास अध्ययन द्वारा हमें ऐसे वातावरण की जानकारी मिलती है। एक बढ़िया वातावरण में ही पारिवारिक प्रसन्नता, शान्ति उत्पन्न होती है। पीछे किए वर्णन से यह पता चलता है कि बाल विकास विज्ञान एक बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है जिसकी सहायता से हम बच्चों के शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक विकास से सम्बन्धित अनेकों पहलुओं से अवगत होते हैं। बच्चों के बचपन को खुशियों भरा बनाने के लिए यह विज्ञान बहुत लाभदायक है। खुशियों भरे बचपन वाले बच्चे ही भविष्य में स्वस्थ तथा प्रसन्न समाज रचेंगे। इस महत्त्वपूर्ण कार्य में बाल विकास विज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

बाल विकास का अर्थ और महत्त्व PSEB 9th Class Home Science Notes

  1. शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ बच्चे ही देश का भविष्य हैं।
  2. बच्चे के पालन-पोषण की प्रारम्भिक ज़िम्मेदारी उसके मां-बाप की होती है।
  3. बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है।
  4. बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान का आपस में गहरा सम्बन्ध है।
  5. मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
  6. सभी रिश्ते तथा सम्बन्ध मिलकर हमारे जीवन को आरामदायक बनाते हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 10 मनुष्य के विकास के पड़ाव

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 10 मनुष्य के विकास के पड़ाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 10 मनुष्य के विकास के पड़ाव

PSEB 9th Class Home Science Guide मनुष्य के विकास के पड़ाव Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य के विकास के कितने पड़ाव होते हैं? नाम बताओ।
उत्तर-
मानवीय विकास के निम्नलिखित पड़ाव हैं —

  1. बचपन
  2. किशोरावस्था
  3. बालिग
  4. बुढ़ापा।

प्रश्न 2.
बचपन को कितनी अवस्थाओं में बांटा जा सकता है?
उत्तर-बचपन को निम्नलिखित अवस्थाओं में बांटा जाता है–

  1. जन्म से दो वर्ष तक
  2. दो से तीन वर्ष तक
  3. तीन से छः वर्ष का बच्चा
  4. छ: से किशोरावस्था तक।

प्रश्न 3.
कितने महीने का बच्चा बिना सहारे खड़ा होने लगता है?
उत्तर-
9 माह का बच्चा बिना सहारे के खड़ा होने लगता है।

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प्रश्न 4.
किस उमर में बच्चे का शारीरिक विकास बहुत तेज़ गति से होता है?
उत्तर-
2 से 3 वर्ष के बच्चे की शारीरिक तौर पर वृद्धि तेज़ी से होती है। शारीरिक विकास के साथ ही उसका सामाजिक विकास इस समय बड़ी तेजी से होता है।

प्रश्न 5.
कितनी आयु का बच्चा कानूनी रूप से वयस्क समझा जाता है?
उत्तर-
पहले 21 वर्ष के बच्चे को बालिग समझा जाता था परन्तु अब 18 वर्ष के बच्चे को बालिग समझा जाता है जबकि 20 वर्ष की आयु तक उसका शारीरिक विकास होता रहता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 6.
किशोरावस्था के दौरान लड़कों में किस प्रकार के परिवर्तन आते हैं?
उत्तर-

  1. किशोरावस्था में लड़कों की दाड़ी तथा मूंछ फूटनी आरम्भ हो जाती है।
  2. उनकी टांगें-बांहें अधिक लम्बी हो जाती हैं तथा आवाज़ फटती है। उनके लिए यह अनोखी बात होती है।
  3. उनके गले की हड्डी बाहर को उभर आती है।
  4. लड़के स्वयं को बड़ा समझने लगते हैं तथा उनसे माता-पिता की ओर से लगाई गई पाबन्दियां बर्दाश्त नहीं होती।
  5. वह कभी बड़ों की तरह तथा कभी बच्चों की तरह बर्ताव करने लगते हैं।
  6. किशोरावस्था में लड़के अधिक भावुक हो जाते हैं।
  7. अपने शरीर में आए जिस्मानी परिवर्तनों के बारे उनमें जानने की इच्छा पैदा होती है।

प्रश्न 7.
किशोरावस्था के दौरान माता-पिता के उनके बच्चों के प्रति क्या कर्त्तव्य हैं?
उत्तर-

  1. बच्चों को लिंग शिक्षा सम्बन्धी पूरी जानकारी देनी चाहिए। बच्चों को एड्स जैसी जानलेवा बीमारी तथा नशों के बुरे परिणामों के बारे में भी जानकारी देनी चाहिए।
  2. किशोर बच्चों से माता-पिता के मित्रों वाले सम्बन्ध होने बहुत आवश्यक हैं ताकि बच्चा बिना परेशानी अपनी शारीरिक तथा मानसिक परेशानी उनके साथ साझी कर सके तथा मां-बाप द्वारा दिये सुझावों का पालन कर सके।
  3. मां-बाप तथा अध्यापकों को किशोरों से अपना व्यवहार एक जैसा रखना चाहिए। किसी हालत में उन्हें छोटा तथा कभी बड़ा कहकर उनके मन में उलझन पैदा नहीं करनी चाहिए। इस तरह उसे यह समझ नहीं आता कि वह वास्तव में बड़ा हो गया है या अभी छोटा ही है।
  4. माता-पिता को भी इस अवस्था में अपने बच्चे के प्रति पूर्ण विश्वास वाला तथा हिम्मत वाला व्यवहार करना चाहिए ताकि उनका सर्वपक्षीय विकास ठीक ढंग से हो सके।
    अपनी ऊर्जा (शक्ति) खर्च करने के लिए कई प्रकार की रुचियों में रुझाने के लिए समय मिलना चाहिए जैसे खेल-कूद, कहानी पढ़ना, गाना-बजाना आदि।

प्रश्न 8.
प्रौढ़ावस्था में मनुष्य के सामाजिक कर्त्तव्य क्या होते हैं?
उत्तर-

  1. मनुष्य इस आयु में सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करता है।
  2. मनुष्य उचित व्यवसाय का चुनाव करता है तथा अपने जीवन साथी का चुनाव करके घर बसा लेता है।
  3. बच्चे पालता है, दुनियादारी निभाता है, माता-पिता, छोटे बहन-भाइयों तथा अन्य रिश्तेदारों की जिम्मेवारी सम्भालता है।

प्रश्न 9.
बच्चा और बूढ़ा एक समान क्यों कहा जाता है? संक्षेप में लिखो।
उत्तर-
वृद्धावस्था में मनुष्य का शरीर कमजोर हो जाता है। उसके लिए चलना, फिरना, उठना, बैठना कठिन हो जाता है। आँखों से दिखाई देना तथा कानों से सुनना कम हो जाता है। ज्ञानेन्द्रियां अपना कार्य करना बन्द कर देती हैं। कई रंगों की पहचान नहीं कर सकते तथा कइयों को अंधराता हो जाता है।
इस तरह वृद्धों को विशेष देखभाल की ज़रूरत पड़ती है। जैसे छोटे बच्चों को होती है। इसीलिए बच्चे तथा वृद्ध को एक जैसा कहा जाता है।

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प्रश्न 10.
स्कूल बच्चे के सामाजिक और मानसिक विकास में सहायक होता है। कैसे?
उत्तर-
स्कूल में बच्चे अपने साथियों से पढ़ना तथा खेलना तथा कई बार बोलना भी सीखते हैं। इस तरह उनमें सहयोग की भावना पैदा होती है। बच्चा जब अपने स्कूल का कार्य करता है तो उसमें ज़िम्मेदारी का बीज बो दिया जाता है। जब वह अध्यापक का कहना मानता है तो उसमें बड़ों के प्रति आदर की भावना पैदा होती है।
बच्चा स्कूल में अपने साथियों से कई नियम सीखता है तथा कई अच्छी आदतें सीखता है जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व को उभारने में सहायक हो सकती हैं।

प्रश्न 11.
किशोरावस्था में लड़के और लड़कियों में होने वाले परिवर्तनों का तुलनात्मक वर्णन करो।
उत्तर-

किशोर लड़के किशोर लड़कियां
(1) इस आयु में लड़कों की दाढ़ी तथा आने लगती हैं। (1) लड़कियों को माहवारी आने लगती मूंछे है।
(2) उनका शरीर बेढंगा (टांगें, बाजू लम्बी होने होना) हो जाता है तथा आवाज़ फटने लगती है। (2) इनके विभिन्न अंगों पर चर्बी जमा लगती है तथा कई आन्तरिक बदलाव जैसे दिल तथा फेफड़ों के आकार में वृद्धि होती है।
(3) इस आयु में लड़कों को खेल, पढ़ाई, कम्प्यूटर, समाज सेवा आदि सीखने पर जोर देना चाहिए। (3) लड़कियों को पढ़ाई, कढ़ाई, कम्प्यूटर, स्वैटर बुनना, संगीत, पेंटिंग आदि ज़ोर सीखने पर देना चाहिए।

प्रश्न 12.
प्रारम्भिक वर्षों में माता-पिता बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में किस प्रकार योगदान डालते हैं?
उत्तर-
बच्चे के व्यक्तित्व को बनाने में माता-पिता का बड़ा योगदान होता है क्योंकि बच्चा जब अभी छोटा ही होता है तभी माता-पिता की भूमिका उसकी ज़िन्दगी में आरम्भ हो जाती है। बच्चे के प्रारम्भिक वर्षों में बच्चे को भरपूर प्यार देना, उस द्वारा किये प्रश्नों के उत्तर देना, बच्चे को कहानियां सुनाना आदि से बच्चे का व्यक्तित्व उभरता है तथा माता-पिता इसमें काफ़ी सहायक होते हैं।

प्रश्न 13.
बच्चों को टीके लगवाने क्यों ज़रूरी हैं ? बच्चों को कौन-से टीके किस आयु में लगवाने चाहिएं? और क्यों?
उत्तर-
बच्चों को कई खतरनाक जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए उन्हें टीके लगाये जाते हैं। इन टीकों का सिलसिला जन्म के पश्चात् आरम्भ हो जाता है। बच्चों को 2 वर्ष की आयु तक चेचक, डिप्थीरिया, खांसी, टिटनस, पोलियो, हेपेटाइटस, बी०सी०जी० तथा टी०बी० आदि के टीके लगवाये जाते हैं। छ: वर्ष में बच्चों को कई टीकों की बूस्टर डोज़ भी दी जाती है।

प्रश्न 14.
बच्चे में 3 से 6 वर्ष की आयु तक होने वाले विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
इस आयु में बच्चे की शारीरिक वृद्धि तेजी से होती है तथा उसकी भूख कम हो जाती है। वह अपना कार्य स्वयं करना चाहता है।
बच्चे को रंगों तथा आकारों का ज्ञान हो जाता है तथा उसकी रुचि ड्राईंग, पेंटिंग, ब्लॉक्स से खेलने तथा कहानियां सुनने की ओर अधिक हो जाती है।
बच्चा इस आयु में प्रत्येक बात की नकल करने लग जाता है।

प्रश्न 15.
दो से तीन वर्ष के बच्चे में होने वाले भावनात्मक विकास सम्बन्धी जानकारी दो।
उत्तर-
इस आयु के दौरान बच्चा मां की सभी बातें नहीं मानना चाहता। ज़बरदस्ती करने पर वह ऊंची आवाज़ में रोता है, ज़मीन पर लोटता है, तथा हाथ-पैर मारने लगता है। कई बार वह खाना-पीना भी छोड़ देता है। माता-पिता को ऐसी हालत में चाहिए कि उसको न डांटें परन्तु जब वह शांत हो जाए तो उसे प्यार से समझाना चाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 16.
किशोरावस्था के दौरान लिंग शिक्षा देना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
किशोरावस्था आने पर बच्चों के शरीर में कई तरह के परिवर्तन आते हैं। उनके प्रजनन अंगों का विकास होता है। लड़कियों को माहवारी आने लगती है। शरीर के विभिन्न अंगों पर चर्बी जमा होनी आरम्भ हो जाती है। किशोरावस्था में बच्चे में विरोधी लिंग के प्रति आकर्षण पैदा हो जाता है। बच्चों को इन सभी परिवर्तनों की जानकारी नहीं होती तथा वह यह जानकारी अपने दोस्तों-मित्रों से हासिल करने की कोशिश करते हैं अथवा ग़लत किताबें पढ़ते हैं तथा अपने मन में ग़लत धारणाएं बना लेते हैं। वैसे तो हमारे समाज में लड़केलड़कियों के मिलने के अवसर कम ही होते हैं परन्तु कई बार यदि उन्हें इकट्ठे रहने का मौका मिल जाये तो इसके ग़लत परिणाम भी निकल सकते हैं।
इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि किशोरों को माता-पिता तथा अध्यापक अच्छी तरह लिंग शिक्षा प्रदान करें। उनके साथ स्वयं मित्रों वाला व्यवहार करें तथा उनकी समस्याओं को समझें तथा सुलझाएं ताकि उन्हें ग़लत संगति में जाने से रोका जा सके। उन्हें एड्स जैसी भयानक बीमारी की भी जानकारी देनी चाहिए।

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प्रश्न 17.
बच्चों से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखने से उनमें कौन-से सद्गुण विकसित होते हैं? विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर-
बच्चे के व्यक्तित्व तथा भावनात्मक विकास में माता-पिता के प्यार तथा मित्रतापूर्वक व्यवहार की बड़ी महत्ता है। माता-पिता के प्यार से बच्चे को यह विश्वास हो जाता है कि उसकी प्राथमिक ज़रूरतें उसके माता-पिता पूरी करेंगे। माता-पिता की ओर से बच्चे द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देने पर बच्चे का दिमागी विकास होता है। उसे स्वयं पर विश्वास होने लगता है। माता-पिता द्वारा बच्चे को कहानियां सुनाने पर उसका मानसिक विकास होता है। कई बार बच्चा मां का कहना नहीं मानना चाहता तथा ज़बरदस्ती करने पर गुस्सा होता है। ऊँची आवाज़ में रोता है, हाथ-पैर मारता है तथा ज़मीन पर लोटने लग जाता है। ऐसी हालत में बच्चे को डांटना नहीं चाहिए तथा शांत होने पर उसे प्यार से माता-पिता द्वारा समझाया जाना चाहिए कि वह ऐसे ग़लत करता है। इस तरह बच्चे को पता चल जाता है कि माता-पिता उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद करते हैं।

बच्चे से दोस्ताना व्यवहार रखने पर बच्चों को अपनी समस्याओं का हल ढूँढने के लिए ग़लत रास्तों पर नहीं चलना पड़ता अपितु उनमें यह विश्वास पैदा होता है कि माता-पिता उसे सही मार्ग बताएंगे।

वह ग़लत संगति से बच जाता है। उसमें अच्छी रुचियां जैसे ड्राईंग, पेंटिंग, संगीत. अच्छी किताबें पढ़ना आदि पैदा होती हैं। वह अपनी शक्ति का प्रयोग अच्छे कार्यों में करता है। इस तरह वह एक अच्छा व्यक्तित्व बन कर उभरता है।

प्रश्न 18.
वृद्धावस्था में पैसे के साथ प्यार क्यों बढ़ जाता है?
उत्तर-
वृद्धावस्था मनुष्य की ज़िन्दगी का अन्तिम पड़ाव होता है। इस पड़ाव पर पहुंच कर अलग-अलग मानवों पर अलग-अलग प्रभाव होता है। कई तो अभी भी ऐसे हँसमुख तथा स्वस्थ रहते हैं तथा कई हर समय यही सोचते हैं कि वह बूढ़े हो गये हैं, अब उन्हें और भी कई बीमारियां लग जाएंगी तथा वह और भी बूढ़े हो जाते हैं। इस उम्र में कमजोरी तो आती है जोकि मानसिक तथा शारीरिक दोनों तरह की होती है। कइयों की नेत्र ज्योति घट जाती है। कई बार ज्ञानेन्द्रियां कमजोर हो जाती हैं। दाँत टूट जाते हैं। शरीर काम नहीं कर सकता : कइयों की रंगों को पहचानने की शक्ति कम हो जाती है तथा कइयों को अंधराता हो जाता है। परन्तु ऐसी हालत में भी मनुष्य यह चाहता है कि वह आर्थिक पक्ष से रिश्तेदारों का मोहताज न हो, उसके पास अपने पैसे हों तथा उसकी स्वतन्त्रता को कोई फर्क न पड़े। धन तो अब वह कमा नहीं सकता इसलिए वह प्रत्येक पैसे को खर्च करते समय कई बार सोचता है। इस तरह वृद्धावस्था में धन के प्रति उसका मोह बढ़ जाता है। वृद्धावस्था में नींद भी कम आती है, कानों से कम सुनाई देता है। सांसारिक वस्तुओं से प्यार कम हो जाता है तथा परमात्मा की ओर ध्यान बढ़ जाता है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB मनुष्य के विकास के पड़ाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें-

  1. प्रौढ़ावस्था के . ……………… पड़ाव हैं।
  2. महीने का बच्चा स्वयं खड़ा हो सकता है।
  3. ……………… वर्ष के बच्चे बालिग हो जाते हैं।
  4. छः वर्ष में बच्चों को …………………. डोज़ भी दी जाती है।
  5. ………………… वर्ष में बच्चा सीढ़ियां चढ़-उतर सकता है।

उत्तर-

  1. दो,
  2. 10,
  3. 18,
  4. टीकों की बूस्टर,
  5. दो।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
कितने माह का बच्चा बिना सहारे के बैठ सकता है?
उत्तर-
9 माह का।

प्रश्न 2.
प्रौढ़ावस्था की पहली अवस्था कब तक होती है?
उत्तर-
40 वर्ष तक।

प्रश्न 3.
कितनी आयु में लड़कियों के फेफड़ों की वृद्धि पूर्ण हो जाती है?
उत्तर-
17 वर्ष।

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प्रश्न 4.
औरतों में माहवारी किस आयु में बंद हो जाती है?
उत्तर-
45 से 50 वर्ष।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियां चढ़-उतर सकता है।
  2. वृद्ध अवस्था का प्रभाव सभी पर एक जैसा होता है।
  3. स्कूल में बच्चे का मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है।
  4. 9 महीने का बच्चा सहारे के बिना खड़ा हो सकता है।
  5. 6 वर्ष का होने पर बच्चे को कई टीकों के बूस्टर डोज़ दिए जाते हैं।
  6. किशोर अवस्था में लड़कों की दाड़ी तथा मूंछ निकलनी शुरू हो जाती है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ग़लत,
  3. ठीक,
  4. ठीक,
  5. ठीक,
  6. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कितनी देर का बच्चा स्वयं उठ कर खड़ा हो सकता है –
(A) 6 माह का
(B) 1 वर्ष का
(C) 3 महीने का
(D) 8 महीने का।
उत्तर-
(B) 1 वर्ष का

प्रश्न 2.
कानूनी रूप में बच्चा कितनी आयु में वयस्क हो जाता है –
(A) 15 वर्ष
(B) 20 वर्ष
(C) 18 वर्ष
(D) 25 वर्ष।
उत्तर-
(C) 18 वर्ष

प्रश्न 3.
कौन-सा तथ्य ठीक है –
(A) किशोरावस्था में लड़के अधिक भावुक हो जाते हैं।
(B) बच्चे तथा वृद्ध को एक समान कहा जाता है।
(C) किशोर अवस्था को तूफानी तथा दबाव वाली अवस्था माना गया है।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जन्म से दो वर्ष तक के बच्चे में सामाजिक तथा भावनात्मक विकास के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
इस आयु का बच्चा जिन आवाज़ों को सुनता है, उनका मतलब समझने की कोशिश करता है। वह प्यार तथा क्रोध की आवाज़ को समझता है। वह अपने आस-पास के लोगों को पहचानना आरम्भ कर देता है। जब बच्चे को अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा पूरा लाड़-प्यार मिलता है तथा उसकी प्राथमिक आवश्यकताएं पूरी की जाती हैं तो उसे विश्वास हो जाता है कि उसकी ज़रूरतें उसके माता-पिता पूरी करेंगे। उसका इस तरह भावनात्मक तथा सामाजिक विकास आरम्भ हो जाता है।

प्रश्न 2.
दो से तीन वर्ष के बच्चे के विकास बारे तम क्या जानते हो?
उत्तर-
शारीरिक विकास-2 से 3 वर्ष के बच्चे की शारीरिक तौर पर वृद्धि तेज़ी से होती है। शारीरिक विकास के साथ ही उसका सामाजिक विकास इस समय बड़ी तेजी से होता है। __मानसिक विकास-इस आयु का बच्चा नई चीजें सीखने की कोशिश करता है। वह पहले से अधिक बातें समझना आरम्भ कर देता है। वह अपने आस-पास के बारे में कई प्रकार के प्रश्न पूछता है। इस समय माता-पिता का कर्तव्य है कि वह बच्चे के प्रश्नों के उत्तर ज़रूर दें। बच्चे को प्यार से पास बिठा कर कहानियां सुनाने से उसका मानसिक विकास होता है।

सामाजिक विकास-इस आय में बच्चे को दूसरे बच्चों की मौजूदगी का अहसास होने लग जाता है। अपनी मां के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों से भी प्यार करने लगता है। अब वह अपने कार्य जैसे भोजन करना, कपड़े पहनना, नहाना, बुट पालिश करना आदि स्वयं ही करना चाहता है।
भावनात्मक विकास-इस आयु में बच्चा मां की सभी बातें नहीं मानना चाहता। ज़बरदस्ती करने पर वह ऊँची आवाज़ में रोता, हाथ-पैर मारता तथा ज़मीन पर लेटने लगता है। कई-कई बार खाना-पीना भी छोड़ देता है। गुस्से की अवस्था में बच्चे को डांटना नहीं चाहिए तथा जब वह शांत हो जाये तो प्यार से उसे समझाना चाहिए। इस तरह बच्चे में मातापिता के प्रति प्यार तथा विश्वास की भावना पैदा होती है तथा उसे यह अहसास होने लगता है कि उसके माता-पिता उससे किस तरह के व्यवहार की उम्मीद रखते हैं।

प्रश्न 3.
तीन से छः वर्ष के बच्चे के विकास के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
शारीरिक विकास- इस आयु में बच्चे की वृद्धि तेज़ी से होती है परन्तु उसको भूख कम लगती है। वह परिवार के बड़े सदस्यों के साथ बैठकर वही भोजन खाना चाहता है जो वे खाते हैं। बच्चे के शारीरिक विकास के लिए बच्चे की खुराक में दूध, अण्डा, पनीर तथा अन्य प्रोटीन वाले भोजन पदार्थ अधिक मात्रा में शामिल करने चाहिएं। बच्चा धीरे-धीरे अपना कार्य करने लगता है तथा उसे जहां तक हो सके अपने काम स्वयं करने देने चाहिएं। इस तरह वह आत्म-निर्भर बनता है।
मानसिक विकास- इस आयु के बच्चे में ड्राईंग, पेंटिंग, ब्लॉक्स से खेलना तथा कहानियां सुनने आदि में रुचि पैदा होती है। उसे रंगों तथा आकारों का भी ज्ञान हो जाता है।
सामाजिक तथा भावनात्मक विकास-बच्चा जब दूसरे बच्चों से मिलता-जुलता है उसमें सहयोग की भावना पैदा होती है। बच्चा इस आयु में प्रत्येक बात की नकल करता है इसलिए जहां तक हो सके उसके सामने कोई ऐसी बात न करो जिसका उसके मन पर बुरा प्रभाव पड़े जैसे सिग्रेट पीना।

प्रश्न 4.
किशोरावस्था में लड़कियों में आने वाले परिवर्तनों के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. इस आयु में लड़कियों को माहवारी आने लगती है। क्योंकि उन्हें इसके कारण का पता नहीं होता, कई बार वे घबरा जाती हैं।
  2. इस आयु में लड़कियां अधिक समझदार हो जाती हैं तथा कई बार पढ़ाई में भी तेज़ हो जाती हैं।
  3. इस आयु में लड़कियां जल्दी भावुक हो जाती हैं। कई बार छोटी-सी बात पर रोने लगती हैं। उदास तथा नाराज़ भी रहने लगती हैं।
  4. वह अपनी आलोचना नहीं सहन कर सकतीं तथा शीघ्र रुष्ट हो जाती हैं।
  5. इस आयु में जागते ही सपने देखना आरम्भ कर देती हैं।

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प्रश्न 5.
किशोरावस्था क्या है तथा इसमें होने वाले विकास के बारे में बताओ।
उत्तर-
जब लड़कों की मस फूटती है तथा लड़कियों को माहवारी आने लगती है, इसको किशोरावस्था कहते हैं। यह एक ऐसा पड़ाव है जब बच्चा न तो बच्चों में गिना जाता है न ही बालिगों में। उसमें शारीरिक परिवर्तन आने के साथ-साथ बच्चे की ज़िम्मेदारियां, फर्ज़ तथा दूसरों से रिश्तों में भी परिवर्तन आता है।
इसके दो भाग होते हैं-प्राथमिक तथा बाद की किशोरावस्था।

शारीरिक विकास-इस आयु में शारीरिक परिवर्तनों की गति कम हो जाती है तथा प्रजनन अंगों का विकास होता है। इस पड़ाव पर लड़कियां अपना कद पूरा कर लेती हैं तथा शरीर के विभिन्न अंगों पर चर्बी जमा होनी आरम्भ हो जाती है। बाह्य परिवर्तनों के साथ-साथ शरीर में कुछ आन्तरिक परिवर्तन भी होते हैं जैसे पाचन प्रणाली में पेट का आकार लम्बा हो जाता है तथा आंतों की लम्बाई तथा चौड़ाई भी बढ़ती है। पेट तथा आंतों की मांसपेशियां मज़बूत हो जाती हैं। जिगर का भार भी बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त किशोरावस्था में दिल की वृद्धि भी तेजी से होती है। 17,18 वर्ष की आयु तक इसका भार जन्म के भार से 12 गुणा बढ़ जाता है। श्वास प्रणाली में 17 वर्ष की आयु में लड़कियों के फेफड़ों की वृद्धि पूर्ण हो जाती है। इस आयु में प्रजनन अंगों तथा उनसे सम्बन्धित गलैंड्स का भी तेजी से विकास होता है तथा अपना कार्य करना आरम्भ कर देता हैं।

भावनात्मक तथा मानसिक विकास-कई मनोवैज्ञानिक किशोरावस्था को तूफानी तथा दबाव (Storm and Stress) वाली अवस्था मानते हैं। इसमें भावनाएं बड़ी तीव्र तथा बेकाबू हो जाती हैं परन्तु जैसे-जैसे आयु बढ़ती है भावनात्मक व्यवहार में परिवर्तन आता है। इस आयु में बच्चे को बच्चे की तरह समझने से भी वह गुस्सा मनाते हैं। वह अपना गुस्सा चुप रह कर अथवा ऊँची आवाज़ में नाराज़ करने वाली की आलोचना करते हैं। इसके अतिरिक्त जो बच्चे उससे पढ़ाई में अथवा व्यवहार के तौर पर बढ़िया हों उनके प्रति ईर्ष्यालु हो जाते हैं। परन्तु धीरे-धीरे इन सभी भावनाओं पर बच्चा काबू पाना सीखता है। वह सभी के सामने अपना क्रोध ज़ाहिर नहीं कर सकता। पूरे भावनात्मक विकास वाला बच्चा अपने व्यवहार को स्थिर रखता है। इस अवस्था के दौरान बच्चे की सामाजिक दिलचस्पी तथा व्यवहार पर हम उमर मित्रों का अधिक प्रभाव पड़ता है। इस अवस्था में बच्चे की मनोरंजक, शैक्षणिक, धार्मिक तथा फैशन प्रति नई रुचियां विकसित होती हैं । किशोरावस्था में बच्चे में विपरीत लिंग प्रति आकर्षण भी पैदा हो जाता है तथा वह इस कम्पनी में आनन्द महसूस करता है। इस अवस्था का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि बच्चों का व पारिवारिक रिश्तों प्रति लगाव कम होना आरम्भ हो जाता है। बच्चा अपने व्यक्तित्व तथा अस्तित्व प्रति अधिक चेतन हो जाता है। सामाजिक वातावरण के अनुसार बच्चा अपने व्यक्तित्व के विकास तथा अस्तित्व जताने की कोशिश करता है परन्तु कई बार घर के हालात तथा आर्थिक कारण उसके उद्देश्यों की पूर्ति में रुकावट बन जाते हैं। इन परिस्थितियों में कई बार बच्चा हार जाने तथा घटियापन के अहसास का शिकार हो जाता है तथा बच्चे का व्यवहार साधारण नहीं रहता तथा व्यक्तित्व के विकास प्रक्रिया में बिगाड़ पैदा हो जाता है।

प्रश्न 6.
बुढ़ापे की क्या खास विशेषताएं हैं?
उत्तर-
बुढ़ापे की कुछ विशेषताएं हैं जो इसे मानवीय ज़िन्दगी की एक विलक्षण अवस्था बनाती हैं। इस आयु में शारीरिक तथा मानसिक कमज़ोरी आने लगती है इस आयु में बुजुर्गों की पाचन शक्ति, चलना-फिरना, बीमारियां सहने की शक्ति, सुनने तथा देखने की शक्ति घट जाती है। इसके साथ बालों का सफ़ेद होना, चमड़ी पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। बुर्जुगों की शारीरिक तथा मानसिक परिवर्तन उनके सामाजिक तथा पारिवारिक जीवन (Adjustment) को प्रभावित करती हैं। इन परिवर्तनों का बुजुर्गों की बाह्य दिखावट, कपड़े पहनने, मनोरंजन, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है।
इस आयु में मनुष्य सामाजिक ज़िम्मेदारी से धीरे-धीरे पीछे हटता जाता है तथा उसकी धार्मिक गतिविधियों में वृद्धि होती है। इस आयु में व्यक्ति को बहुत सारी बीमारियां भी आ घेरती हैं जिनसे छुटकारा पाने के लिए उसकी निर्भरता परिवार पर बढ़ जाती है । इस अवस्था में परिवार के सदस्यों का बुजुर्गों प्रति व्यवहार बुजुर्गों के लिए खुशी अथवा उदासी का कारण बनता है। बुजुर्गों में एकांकीपन, परिवार पर बोझ, सामाजिक सम्मान घटने का अहसास मानसिक परेशानी का कारण बन जाता है।
जीवन के अन्तिम पड़ाव पर पहुंचते हुए बुजुर्ग सभी प्राथमिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिए एक छोटे बच्चे की तरह पूर्णतः परिवार पर निर्भर हो जाता है। इस अवस्था दौरान कई बार बुजुर्गों में बच्चों वाली आदतें उत्पन्न हो जाती हैं।

प्रश्न 7.
जन्म से दो वर्ष तक होने वाले शारीरिक विकास के पड़ावों का वर्णन करो।
उत्तर-
जन्म से दो वर्ष के दौरान होने वाले शारीरिक विकास निम्नलिखित अनुसार हैं

  1. 6 हफ्ते की आयु तक बच्चा मुस्कुराता है तथा किसी रंगीन वस्तु की ओर टिकटिकी लगाकर देखता है।
  2. 3 महीने की आयु तक बच्चा चलती-फिरती वस्तु से अपनी आँखों को घुमाने लगता है।
  3. 6 महीने का बच्चा सहारे से तथा 8 महीने का बच्चा बिना सहारे के बैठ सकता है। (4) 9 महीने का बच्चा सहारे के बिना खड़ा हो सकता है।
  4. 10 महीने का बच्चा स्वयं खड़ा हो सकता है तथा सरल, सीधे शब्द जैसे-काका, पापा, मामा, टाटा आदि बोल सकता है।
  5. 1 वर्ष का बच्चा स्वयं उठकर खड़ा हो सकता है तथा उंगली पकड़कर अथवा स्वयं चलने लगता है।
  6. 11 वर्ष का बच्चा बिना किसी सहारे के चल सकता है तथा 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियों पर चढ़ सकता है।

प्रश्न 8.
बच्चों को टीकों की बूस्टर दवा कब दिलाई जाती है?
उत्तर-
छ: वर्ष का होने पर बच्चे को कई टीकों के बूस्टर डोज़ दिए जाते हैं ताकि उन्हें कई जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सके।

मनुष्य के विकास के पड़ाव PSEB 9th Class Home Science Notes

  • मानवीय जीवन का आरम्भ बच्चे के मां के गर्भ में आने से होता है।
  • मानवीय विकास के विभिन्न पड़ाव होते हैं जैसे ; बचपन, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था तथा वृद्धावस्था।
  • बच्चा जन्म से लेकर दो वर्ष तक बेचारा-सा तथा दूसरों पर निर्भर होता है।
  • 12 वर्ष का बच्चा स्वयं चल सकता है तथा 2 वर्ष में बच्चा सीढ़ियां चढ़-उतर सकता है।
  • दो वर्ष के बच्चों को कई प्रकार की बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाए जाते हैं।
  • दो से तीन वर्ष का बच्चा नई चीजें सीखने की कोशिश करता है।
  • छ: वर्ष तक बच्चे की,खाने, पीने, सोने, टट्टी-पेशाब तथा शारीरिक सफ़ाई की आदतें पक्की हो जाती हैं।
  • स्कूल में बच्चे का मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है।
  • जब लड़कों की मस फूटती है तथा लड़कियों को माहवारी आने लग जाती है तो इस आयु को किशोसवस्था कहते हैं।
  • किशोरों के माता-पिता का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने बच्चों को लिंग शिक्षा सही ढंग से दें।
  • इस आयु में बच्चे स्वयं को बालिग समझने लगते हैं।
  • पहले बच्चे कानूनी तौर पर 21 वर्ष की आयु पर बालिग हो जाते थे तथा अब 18 वर्ष की आयु के बच्चे को कानूनी तौर पर बालिग करार दे दिया जाता है।
  • प्रौढ़ावस्था के दो पड़ाव हैं। 40 वर्ष तक पहली तथा 40 से 60 वर्ष की पिछली प्रौढ़ावस्था।
  • 45 से 50 वर्ष की आयु में औरतों को माहवारी बन्द हो जाती है।
  • वृद्धावस्था के प्रत्येक व्यक्ति पर अलग-अलग प्रभाव होता है।
  • वृद्धावस्था में नींद कम आती है तथा दाँत खराब होने के कारण भोजन ठीक तरह नहीं खाया जा सकता।