Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 1 पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव
SST Guide for Class 9 PSEB पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव Textbook Questions and Answers
(क) बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक मुस्लिम समाज के कौन-से वर्ग में आते थे ?
(क) उच्च वर्ग
(ख) मध्य वर्ग
(ग) निम्न वर्ग
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) मध्य वर्ग
प्रश्न 2.
देवी दुर्गा की पूजा करने वालों को क्या कहा जाता था ?
(क) वैष्णव
(ख) शैव
(ग) शाक्त
(घ) सुन्नी।
उत्तर-
(ग) शाक्त
प्रश्न 3.
जज़िया क्या है ?
(क) धर्म
(ख) धार्मिक कर
(ग) प्रथा
(घ) गहना।
उत्तर-
(ख) धार्मिक कर
प्रश्न 4.
उलमा कौन थे ?
(क) मजदूर
(ख) हिंदू धार्मिक नेतां
(ग) मुस्लिम धार्मिक नेता
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) मुस्लिम धार्मिक नेता
प्रश्न 5.
सच्चा सौदा की घटना कहाँ घटी ?
(क) चूहड़काने
(ख) राय भोय
(ग) हरिद्वार
(घ) सैय्यदपुर।
उत्तर-
(क) चूहड़काने
(ख) रिक्त स्थान भरें:
- मुसलमानों के सुन्नी और ………….. दो मुख्य संप्रदाय थे।
- …………… को मानने वाले लोग विष्णु की पूजा करते थे।
- श्री गुरु नानक देव जी के जीवन का उद्देश्य …………….. का कल्याण था।
- श्री गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में ….. ……………… का संदेश दिया।
- सुल्तानपुर में रहते हुए गुरु जी रोज़ ……………. नदी में स्नान करने जाते थे।
उत्तर-
- शिया
- वैष्णव मत
- सारी मनुष्य जाति/सरबत
- नाम जपो, किरत करो और बौटकर छको
- वेई
(ग) सही मिलान करें :
1. पानीपत का पहला युद्ध – (क) चूहड़काना
2. सच्चा सौदा – (ख) 1526 ई०
3. गुरु अंगद देव जी – (ग) तलवंडी रायभोय
4. गुरु नानक देव जी का जन्म – (घ) भाई लहणा।
उत्तर-
- 1526 ई०
- चहडकाना
- भाई लहणा
- तलवडा रायभा
(घ) अंतर बताओ :
प्रश्न 1.
1. मुस्लिम उच्च वर्ग और मुस्लिम मध्यम वर्ग
2. वैष्णव मत और शैव मत।
उत्तर-
- मुस्लिम उच्च वर्ग और मुस्लिम मध्यम वर्ग
- मुस्लिम उच्च वर्ग-इस वर्ग में बड़े-बड़े सरदार, इक्तादार, उलेमा, सैय्यद आदि की गणना होती थी। सरदार राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें ‘खान’, ‘मलिक’, ‘अमीर’ आदि कहा जाता था। इक्तादार एक प्रकार के जागीरदार थे। सभी सरदारों का जीवन प्रायः भोग-विलास में डूबा हुआ था। वे महलों अथवा बड़े-बड़े भवनों में निवास करते थे। वे सुरा, सुंदरी और संगीत में खोये रहते थे। उलेमा लोगों का समाज में बड़ा आदर था।
- मुस्लिम मध्यम वर्ग-मध्यम वर्ग में कृषक, व्यापारी, सैनिक तथा छोटे-छोटे सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे। मुसलमान विद्वानों तथा लेखकों की गणना भी इसी श्रेणी में की जाती थी। इस श्रेणी के मुसलमानों का जीवन-स्तर निम्न था।
- वैष्णव मत और शैव मत।
- वैष्णव मत-वैष्णव मत को मानने वाले लोग विष्णु और उसके अवतारों राम, कृष्ण आदि की पूजा करते थे। ये लोग शुद्ध शाकाहारी थे।
- शैव मत-शैव मत को मानने वाले लोग शिवजी की आराधना करते थे। इनमें गोरख पंथी, नाथ नंथी और कनफटे जोगी शामिल थे। ये अधिकतर संन्यासी थे।
अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
लोधी वंश का अंतिम शासक कौन था ?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी।
प्रश्न 2.
बाबर को पंजाब पर हमला करने के लिए किसने निमंत्रण भेजा ?
उत्तर-
बाबर को दौलत खां लोधी ने पंजाब पर हमला करने का निमंत्रण भेजा।
प्रश्न 3.
लोधीकाल में किन धार्मिक नेताओं को राजनीतिक संरक्षण मिलता था ?
उत्तर-
लोधीकाल में मुस्लिम कुलीन वर्ग के उलमा और सूफी शेखों को राजनीतिक संरक्षण मिलता था।
प्रश्न 4.
जजिया कर क्या था ?
उत्तर-
जज़िया एक प्रकार का धार्मिक कर था जो मुग़ल शासक गैर-मुस्लिम लोगों से एकत्रित करते थे। इसके बदले वे उनकी रक्षा की जिम्मेवारी लेते थे।
प्रश्न 5.
तीर्थ यात्रा कर के बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
तीर्थ यात्रा कर ग़ैर-मुसलमानों से लिया जाता था। यह कर लोग अपने धार्मिक स्थानों की यात्रा करने के लिए देते थे।
प्रश्न 6.
पानीपत की पहली लड़ाई कब और किसके बीच हुई ?
उत्तर–
पानीपत की पहली लड़ाई 1526 ई० में बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच हुई।
प्रश्न 7.
मुस्लिम धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय कौन-से थे ?
उत्तर-
सुन्नी और शिया।
प्रश्न 8.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में राय भोय की तलवंडी (ज़िला शेखूपुरा, पाकिस्तान) में हुआ। अब इस स्थान को श्री ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 9.
श्री गुरु नानक देव जी के माता-पिता का नाम बताओ।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी की माता का नाम तृप्ता जी और पिता का नाम मेहता कालू जी था।
प्रश्न 10.
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा रचित किन्हीं दो प्रमुख बाणियों के नाम बताओ।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी ने जपुजी साहिब, वार माझ, वार मल्हार आदि बाणियों की रचना की।
प्रश्न 11.
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा की यात्राओं को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा की गई यात्राओं को उदासियां कहा जाता है।
लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
16वीं शताब्दी के आरंभ से स्त्रियों की स्थिति पर नोट लिखो।
उत्तर-
16वीं शताब्दी के आरंभ में समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। उसे हीन और पुरुषों से नीचा समझा जाता था। घर में उनकी दशा एक दासी के समान थी। उन्हें घर की चार दीवारी में रखा जाता था और सदा पुरुषों के अधीन रहना पड़ता था। कुछ राजपूत कबीले ऐसे भी थे जो कन्या को दुःख का कारण मानते थे और पैदा होते ही उसका वध कर देते थे। मुस्लिम समाज में भी स्त्री की दशा शोचनीय थी। वह मन बहलाव का साधन मात्र ही समझी जाती थी। उन्हें पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं था।
प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी ने शिक्षा कहां से प्राप्त की ? नोट लिखो।
उत्तर-
बचपन से ही श्री गुरु नानक देव जी दयावान् थे। दीन-दुःखियों, को देखकर उनका मन पिघल जाता था। 7 वर्ष की आयु में उन्हें गोपाल पंडित की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। परन्तु पंडित जी उन्हें संतुष्ट न कर सके। तत्पश्चात् उन्हें पंडित बृज लाल के पास पढ़ने के लिए भेजा गया। वहां गुरु जी ने ‘ओ३म्’ शब्द का वास्तविक अर्थ बताकर पंडित जी को अचम्भे में डाल दिया। सिक्ख परंपरा के अनुसार उन्हें अरबी और फारसी पढ़ने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास भी भेजा गया।
प्रश्न 3.
श्री गुरु नानक देव जी के जीवन से संबंधित सच्चा सौदा घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी के पिता जी ने गुरु जी का ध्यान सांसारिक कार्यों में लगाने के लिए 20 रुपये देकर ‘चूहड़काने’ नगर में व्यापार करने के लिए भेजा था। परंतु मार्ग में गुरु जी को कुछ साधु मिल गए जो भूखे थे। अतः गुरु जी ने ये रुपए संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी ने किन रीति-रिवाजों का खंडन किया ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब का विचार था कि बाहरी कर्मकांडों में सच्ची धार्मिक श्रद्धा-भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं। इसलिए गुरु साहिब ने कर्मकांडों का खंडन किया। ये बातें थीं-वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा और मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों से जुड़े व्यर्थ के संस्कार, विधियां और रीति-रिवाज । गुरु नानक देव जी ने जोगियों की पद्धति को भी अस्वीकार कर दिया। इसके दो मुख्य कारण थे-जोगियों द्वारा परमात्मा के प्रति व्यवहार में श्रद्धा-भक्ति का अभाव और अपने मठवासी जीवन में सामाजिक दायित्व से विमुखता। गुरु नानक देव जी ने वैष्णव भक्ति को भी अस्वीकार नहीं किया और अपनी विचारधारा में अवतारवाद को भी कोई स्थान नहीं दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मुल्ला लोगों के विश्वासों, प्रथाओं तथा व्यवहारों का खंडन किया।
प्रश्न 5.
लोधी काल में मुस्लिम मध्य वर्ग पर नोट लिखो।
उत्तर-
लोधी काल में मुस्लिम मध्य वर्ग में कृषक, व्यापारी, सैनिक तथा छोटे-सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे।
मुसलमान विद्वानों तथा लेखकों की गणना भी इसी श्रेणी में की जाती थी। यद्यपि इस श्रेणी के मुसलमानों की संख्या उच्च श्रेणी के लोगों की अपेक्षा अधिक थी, फिर भी इनका जीवन स्तर उच्च श्रेणी जैसा ऊंचा नहीं था। मध्य श्रेणी के मुसलमानों की आर्थिक दशा तथा स्थिति हिंदुओं की तुलना में अवश्य अच्छी थी। उन्हें राज्य की ओर से काफी स्वतंत्रता प्राप्त थी तथा समाज में उनका अच्छा सम्मान था। इस श्रेणी का जीवन-स्तर हिंदुओं की अपेक्षा काफी ऊंचा था।
दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
लोधीकाल में पंजाब में मुसलमानों की सामाजिक स्थिति का वर्णन करो।
उत्तर-
11वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक पंजाब मुस्लिम शासकों के अधीन रहा। इन शासकों के समय में बहुतसे मुसलमान स्थायी रूप से पंजाब में बस गए थे। उन्होंने यहां की स्त्रियों से विवाह कर लिए थे जिनमें वेश्याएं तथा दासियां भी सम्मिलित थीं। पंजाब की बहुत-सी निम्न जातियों के हिंदुओं ने शासकों के भय से तथा सूफियों के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। इस समय बहुत-से मुग़ल तथा ईरानी जाति के लोग भी पंजाब में आ बसे थे। इस प्रकार सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब में मुसलमानों की काफी संख्या थी। उनकी स्थिति हिंदुओं से बहुत अच्छी थी। इसका कारण यह था कि उस समय पंजाब पर मुसलमान शासकों का शासन था। मुसलमानों को उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता था।
(क) मुसलमानों के वर्ग-मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित था-
1. उच्च वर्ग-इस वर्ग में बड़े-बड़े सरदार, इक्तादार, उलेमा, सैय्यद आदि की गणना होती थी। सरदार राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें ‘खान’, ‘मलिक’, ‘अमीर’ आदि कहा जाता था। इक्तादार एक प्रकार के जागीरदार थे। सभी सरकारों के पास अपने सैनिक होते थे और आवश्यकता पड़ने पर वे सुल्तान को सैनिक सेवाएं प्रदान करते थे। उनका दैनिक जीवन प्रायः भोग-विलास का जीवन था। वे महलों अथवा भवनों में निवास करते थे। वे सुरा, सुंदरी और संगीत में खोये रहते थे और ऐश्वर्य के लिए अनेक स्त्रियां रखते थे। उलमा लोगों का समाज में बड़ा आदर था। उन्हें अरबी भाषा तथा कुरान की पूर्ण जानकारी होती थी। यही कारण है कि मुस्लिम शासकों के दरबार में उनका बड़ा महत्त्व था। वे सुल्तान की सुविधा के लिए इस्लामी कानून की व्याख्या करते थे और शरीयत के अनुसार शासन चलाने में सहायता करते थे। अनेक उलेमा राज्य के न्याय कार्यों में लगे हुए थे। वे काजियों के पदों पर आसीन थे और धार्मिक तथा न्यायिक पदों पर काम कर रहे थे।
2. मध्य वर्ग-मध्य वर्ग में कृषक, व्यापारी, सैनिक तथा छोटे-छोटे सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे। मुसलमान विद्वानों तथा लेखकों की गणना भी इसी श्रेणी में की जाती थी। यद्यपि इस श्रेणी के मुसलमानों की संख्या उच्च श्रेणी के लोगों की अपेक्षा अधिक थी। फिर भी इनका जीवन स्तर उच्च श्रेणी जैसा ऊंचा नहीं था। मध्य श्रेणी के मुसलमानों की आर्थिक दशा तथा स्थिति हिंदुओं की तुलना में अवश्य अच्छी थी। इस श्रेणी का जीवन-स्तर हिंदुओं की अपेक्षा काफी ऊंचा था।
3. निम्न वर्ग-निम्न वर्ग में लुहार, बढ़ई, सुनार आदि शिल्पकारों, निजी सेवकों, दास-दासियों आदि की गणना की जाती थी। इस श्रेणी के मुसलमानों का जीवन-स्तर अधिक ऊंचा नहीं था। उन्हें आजीविका कमाने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ता था।
(ख) स्त्रियों की दशा-मुस्लिम समाज में उच्च घरानों की स्त्रियों की दशा कुछ अच्छी थी, परन्तु अन्य वर्गों की स्त्रियों की दशा दयनीय थी। उन्हें बुर्का पहनना पड़ता था और घर की चार दीवारी में ही रहना पड़ता था। उन्हें पढ़नेलिखने और स्वतन्त्रतापूर्वक घूमने का अधिकार नहीं था। अमीर लोग कई-कई पत्नियां रखते थे। तलाक की प्रथा भी प्रचलित थी। घर के मामलों में स्त्री की राय लेना ज़रूरी नहीं समझा जाता था।
प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी के समय सामाजिक एवं धार्मिक अवस्था का वर्णन करें।
उत्तर-
I. सामाजिक अवस्था-सोलहवीं शताब्दी में पंजाब की सामाजिक दशा बड़ी शोचनीय थी। समाज में भेदभाव था। हिंदुओं की अपेक्षा मुसलमानों से अच्छा व्यवहार होता था। शिक्षा का उचित प्रबंध नहीं था। लोगों को फारसी पढ़ने के लिए विवश किया जाता था। स्त्रियों की दशा बड़ी शोचनीय थी। लड़की का जन्म दुर्भाग्य का प्रतीक समझा जाता था। अंधविश्वास और आडंबरों के कारण इस युग के अंधकार में और भी वृद्धि हुई। संक्षेप में सोलहवीं शताब्दी के पंजाब की सामाजिक दशा का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है।
1. मुसलमानों की स्थिति–11वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक पंजाब मुस्लिम शासकों के अधीन रहा। इन शासकों के समय में बहुत-से मुसलमान स्थायी रूप से पंजाब में बस गए थे। उन्होंने यहां की स्त्रियों से विवाह कर लिए थे जिनमें वेश्याएं तथा दासियां भी सम्मिलित थीं। पंजाब के बहुत-से निम्न जातियों के हिंदुओं ने शासकों के भय से तथा सूफियों के प्रभाव में आकर धर्म स्वीकार कर लिया था। इसी समय बहुत-से मुग़ल तथा ईरानी जाति के लोग भी पंजाब में आ बसे थे। इस प्रकार सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब में मुसलमानों की काफी संख्या थी। इनमें से अधिकतर मुसलमान गांवों की अपेक्षा नगरों में रहते थे। सोलहवीं शताब्दी के समाज में मुसलमानों की स्थिति हिंदुओं से बहुत अच्छी थी। इसका कारण यह था कि उस समय पंजाब पर मुसलमान शासकों का शासन था। मुसलमानों को उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता था। लगभग सभी बातों में मुसलमानों का पक्ष लिया जाता था। उच्च श्रेणी के मुसलमानों को विशेषाधिकार भी प्राप्त थे। .
2. मुसलमानों की श्रेणियां-16वीं शताब्दी में मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बंटा हुआ था-
- उच्च श्रेणी-इस श्रेणी में अफगान अमीर, शेख, काज़ी, उलेमा (धार्मिक नेता), बड़े-बड़े जागीरदार इत्यादि शामिल थे। सुल्तान के मंत्री, उच्च सरकारी कर्मचारी तथा सेना के बड़े-बड़े अधिकारी भी इसी श्रेणी में आते थे। ये लोग अपना समय आराम तथा भोग-विलास में व्यतीत करते थे।
- मध्य श्रेणी-इस श्रेणी में छोटे काज़ी, सैनिक, छोटे स्तर के सरकारी कर्मचारी, व्यापारी आदि शामिल थे। उन्हें राज्य की ओर से काफी स्वतंत्रता प्राप्त थी तथा समाज में उनका अच्छा सम्मान था।
- निम्न श्रेणी-इस श्रेणी में दास, घरेलू नौकर तथा हिजड़े शामिल थे। दासों में स्त्रियां भी सम्मिलित थीं। इस श्रेणी के लोगों का जीवन अच्छा नहीं था।
3. हिंदुओं की स्थिति-सोलहवीं शताब्दी के हिंदू समाज की दशा बड़ी ही शोचनीय थी। प्रत्येक हिंदू को शंका की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। उनसे जज़िया तथा तीर्थ यात्रा आदि कर बड़ी कठोरता से वसूल किए जाते थे। उनके रीति-रिवाजों, उत्सवों तथा उनके पहरावे पर भी सरकार ने कई प्रकार की रोक लगा दी थी। हिंदुओं पर भिन्न-भिन्न प्रकार के अत्याचार किए जाते थे ताकि वे तंग आकर इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लें। सिकंदर लोधी ने बोधन (Bodhan) नाम के एक ब्राह्मण को इस्लाम धर्म न स्वीकार करने पर मौत के घाट उतार दिया था। यह भी कहा जाता है-कि सिकंदर लोधी एक बार कुरुक्षेत्र के एक मेले में एकत्रित होने वाले सभी हिंदुओं को मरवा देना चाहता था। परंतु वह हिंदुओं के विद्रोह के डर से ऐसा कर नहीं पाया।
4. स्त्रियों की स्थिति-16वीं शताब्दी को स्त्री का जीवन इस प्रकार था-
- स्त्रियों की दशा-16वीं शताब्दी के आरंभ में समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। उसे अबला, हीन और . पुरुषों से नीचा समझा जाता था। घर में उनकी दशा एक दासी के समान थी। उन्हें सदा पुरुषों के अधीन रहना पड़ता था। कुछ राजपूत कबीले ऐसे भी थे जो कन्या को दुःख का कारण मानते थे और पैदा होते ही उसका वध कर देते थे।
- कुप्रथाएं-समाज में अनेक कुप्रथाएं भी प्रचलित थीं जो स्त्री जाति के विकास के मार्ग में बाधा बनी हुई थीं। इनमें से मुख्य प्रथाएं सती-प्रथा, कन्या-वध, बाल-विवाह, जौहर प्रथा, पर्दा-प्रथा, बहु-पत्नी प्रथा आदि प्रमुख थीं।
- पर्दा प्रथा-पर्दा प्रथा हिंदू तथा मुसलमान दोनों में ही प्रचलित थी। हिंदू स्त्रियों को बूंघट निकालना पड़ता था और मुसलमान स्त्रियां बुर्के में रहती थीं। मुसलमानों में बहु-पत्नी प्रथा ज़ोरों से प्रचलित थी। सुल्तान तथा बड़े सरदार अपने मनोरंजन के लिए सैंकड़ों स्त्रियां रखते थे। स्त्री शिक्षा की ओर बहुत कम ध्यान दिया.जाता था। केवल कुछ उच्च घराने की स्त्रियां ही अपने घर पर शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं। शेष स्त्रियां प्रायः अनपढ़ ही थीं। पंजाब में प्रायः स्त्री के विषय में यह कहावत प्रसिद्ध थी-“घर विच बैठी लक्ख दी, बाहर गई कख दी।”
II. धार्मिक अवस्था-16वीं शताब्दी में हिंदू धर्म पंजाब का प्रमुख धर्म था। वेद, रामायण, महाभारत, उपनिषद, गीता आदि पर आधारित अनेक हिंदू शिक्षाएं प्रचलित थीं। हिंदू धर्म कई संप्रदायों में बंटा हुआ था।
- वैष्णव मत-वैष्णव मत को मानने वाले लोग विष्णु और उसके अवतारों राम, कृष्ण आदि की आराधना करते थे। ये लोग शुद्ध शाकाहारी थे।
- शैव मत-शैव मत को मानने वाले शिवजी के उपासक थे। ये अधिकतर संन्यासी थे। जिनमें गोरखपंथी, नाथपंथी और कनफटे जोगी शामिल थी।
- शाक्त मत-शाक्त मत को मानने वाले लोग काली और दुर्गा की शक्ति के रूप में पूजा करते थे। ये लोग पूजा के लिए जानवरों की बलि भी देते थे।
बहुत सारे लोग जादू-टोनों में विश्वास करते थे। कुछ लोग पितरों व स्थानीय देवताओं जैसे-गूगा पीर और शीतला माता आदि की पूजा करते थे। सभी गैर-मुसलमान हिंदू नहीं थे। इसके इलावा उस समय पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों में बुद्ध और मैदानी भागों में जैन धर्म को मानने वाले लोग भी थे, जोकि अहिंसा में विश्वास रखते थे।
प्रश्न 3.
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा की पहली उदासी (यात्रा) की व्याख्या करें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी अपनी उदासी में भारत की पूर्वी तथा दक्षिणी दिशाओं में गए। यह यात्रा 1499 ई० में आरंभ हुई। उन्होंने अपने प्रसिद्ध शिष्य भाई मरदाना को अपने साथ लिया। मरदाना रबाब बजाने में कुशल था। इस यात्रा के दौरान गुरुजी ने निम्नलिखित स्थानों का भ्रमण किया-
- सैय्यदपुर-एमनाबाद-गुरु साहिब सुल्तानपुर लोधी से चल कर सबसे पहले सैय्यदपुर गए। वहां उन्होंने भाई लालो नामक बढ़ई को अपना श्रद्धालु बनाया। यहाँ उन्होंने मलिक भागों नामक एक अमीर को ईमानदारी का पाठ भी पढ़ाया। उन्होंने उसकी हवेली में ठहरने और वहां भोजन करने से इन्कार कर दिया क्योंकि उसने गरीबों का खून चूस कर धन इकट्ठा किया था। इस प्रकार गुरु जी ने लोगों को भी किरत (मेहनत) करके कमाई करने का संदेश दिया।
- तालुंबा-सैय्यदपुर से गुरु नानक देव जी सुल्तान ज़िला में स्थित तालुंबा नामक स्थान पर पहुंचे। यहां सज्जन नामक एक व्यक्ति रहता था जो बड़ा धर्मात्मा कहलाता था। परंतु वास्तव में वह ठगों का नेता था। गुरु नानक देव जी के प्रभाव में आकर उसने ठगी का धंधा छोड़ धर्म प्रचार की राह अपना ली। तेजा सिंह ने ठीक ही कहा है कि गुरु जी की अपार कृपा से “अपराध की गुफ़ा ईश्वर की उपासना का मंदिर बन गई।” (“The criminal’s den became a temple for God worship.”)
- कुरुक्षेत्र-तुलुंबा से गुरु साहिब हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान कुरुक्षेत्र पहुंचे। उस वर्ष वहां सूर्य ग्रहण के अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण, साधु-फ़कीर तथा हिंदू यात्री एकत्रित थे। गुरु जी ने एकत्र लोगों को यह उपदेश दिया कि मनुष्य को बाहरी अथवा शारीरिक पवित्रता की बजाय मन तथा आत्मा की पवित्रता पर बल देना चाहिए।
- पानीपत, दिल्ली तथा हरिद्वार-कुरुक्षेत्र से गुरु जी पानीपत पहुंचे। यहां से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार चले गए। यहां गुरु जी ने लोगों को सूर्य की ओर मुंह करके अपने पूर्वजों को पानी देते देखा। इस अंधविश्वास को दूर करने के लिए गुरु साहिब ने उल्टी ओर पानी देना आरंभ कर दिया। लोगों के पूछने पर गुरु जी ने बताया कि वह पंजाब में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। इस पर गुरु जी ने उनसे यह प्रश्न पूछा कि यदि मेरा पानी कुछ मील दूर नहीं जा सकता तो आप का पानी करोड़ों मील दूर पूर्वजों तक कैसे जा सकता है? इस उत्तर से अनेक लोग प्रभावित हुए।
- गोरखमता (वर्तमान नानकमत्ता)-हरिद्वार के बाद गुरु जी केदारनाथ, बद्रीनाथ, जोशीमठ आदि स्थानों का भ्रमण करते हुए गोरखमता पहुंचे। वहां उन्होंने गोरखनाथ के अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग दिखाया।
- बनारस-गोरखमता से गुरु जी बनारस पहुंचे। यहां उनकी भेंट पंडित चतुरदास से हुई। वह गुरु जी के उपदेशों से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह अपने शिष्यों सहित गुरुजी का अनुयायी बन गया।
- गया-बनारस से चल कर गुरु जी बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान ‘गया’ पहुंचे। यहां उन्होंने बहुत-से लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया और उन्हें अपना श्रद्धालु बनाया। यहां से वह पटना तथा हाजीपुर भी गए तथा लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
- आसाम (कामरूप)-गुरु नानक देव जी बिहार तथा बंगाल होते हुए आसाम पहुंचे। वहां उन्होंने कामरूप की एक जादूगरनी को उपदेश दिया कि सच्ची सुंदरता सच्चरित्र में है।
- ढाका, कटक तथा जगन्नाथपुरी-तत्पश्चात् गुरु जी ढाका पहुंचे। वहां पर उन्होंने विभिन्न धर्मों के नेताओं से मुलाकात की। ढाका से कटक होते हुए गुरु जी उड़ीसा में जगन्नाथपुरी गए। पुरी के मंदिर बहुत-से लोगों को विष्णु जी की मूर्ति पूजा तथा आरती करते देखा। वहां पर गुरु जी ने उपदेश दिया कि मूर्ति पूजा व्यर्थ है क्योंकि प्रकृति की हर चीज़ उसी की आलौकिक आरती करती रहती है। ईश्वर निराकार तथा सर्वव्यापक है।।
- वापसी-वापसी पर गुरु जी कुछ समय के लिए पाकपट्टन पहुंचे। वहां पर उनकी भेंट शेख फरीद के दसवें उत्तराधिकारी शेख ब्रह्म अथवा शेख इब्राहिम के साथ हुई। वह गुरु जी के विचार सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ। 1510 ई० में गुरु साहिब वापिस अपने गांव तलवंडी पहुंचे। उन्होंने भाई मरदाना को भी अपने घर जाने की अनुमति दे दी।
प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं उतनी ही आदर्श थीं जितना कि उनका जीवन। वह कर्म-कांड, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि संकीर्ण विचारों से कोसों दूर थे। उन्हें तो सतनाम से प्रेम था और इसी का संदेश उन्होंने अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक प्राणी को दिया। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है-
- ईश्वर की महिमा अथवा परमात्मा संबंधी विचार-गुरु साहिब ने ईश्वर अथवा परमात्मा सबसे महान् है। उसकी महानता का वर्णन कर पाना असंभव है। उन्होंने परमात्मा की महिमा का बखान अपने निम्नलिखित विचारों द्वारा किया है-
- एक ईश्वर में विश्वास-श्री गुरु नानक देव जी ने इस बात का प्रचार किया कि ईश्वर एक है। वह अवतारवाद को स्वीकार नहीं करते थे। उनके अनुसार संसार का कोई भी देवी-देवता परमात्मा का स्थान नहीं ले सकता।
- ईश्वर निराकार तथा स्वयं-भू है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनके अनुसार परमात्मा स्वयं-भू है। अतः उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जानी चाहिए।
- ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् बताया। उनके अनुसार ईश्वर संसार के कण-कण में विद्यमान है। सारा संसार उसी की शक्ति पर चल रहा है।
- ईश्वर दयालु है-श्री गुरु नानक देव जी का कहना था कि ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है। जो लोग अपने सभी काम ईश्वर पर छोड़ देते हैं, ईश्वर उनके कार्यों को स्वयं करता है।
- ईश्वर चिर-स्थायी है-गुरु जी ने बताया कि ईश्वर चिरस्थायी अर्थात् सदा रहने वाला है। बाकी सब कुछ नश्वर है।
- परमात्मा की दया, मेहर तथा सहायता-गुरु नानक देव जी ने उपदेश दिया कि मनुष्य को परमात्मा की मेहर. दया तथा सहायता पाने के लिए उसका सिमरन करना चाहिए।
- परमात्मा का हुक्म-गुरु नानक देव जी ने उपदेश दिया कि मनुष्य को परमात्मा के हुक्म अथवा मर्जी के अनुसार रहना चाहिए। परमात्मा नहीं है, वह सब झूठ है।
- सतनाम के जाप पर बल-श्री गुरु नानक देव जी ने सतनाम के जाप पर बल दिया। वह कहते थे कि जिस प्रकार शरीर में मैल उतारने के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मन का मैल हटाने के लिए सतनाम का जाप आवश्यक है।
- गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु की बहुत आवश्यकता है। गुरु रूपी जहाज़ में सवार होकर संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। उनका कथन है कि “सच्चे गुरु की सहायता के बिना किसी ने भी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया।” गुरु ही मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।
- कर्म सिद्धांत में विश्वास-गुरु नानक देव जी का विश्वास था कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उनके अनुसार बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए बार-बार जन्म लेना पड़ता है। इसके विपरीत, शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्कर के छूट जाता है और निर्वाण प्राप्त करता है।
- आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल दिया है। उन्होंने इस धारणा को सर्वथा ग़लत सिद्ध कर दिखाया कि संसार माया जाल है और उसका त्याग किए बिना व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। उनके शब्दों में, “अंजन माहि निरंजन रहिए” अर्थात् संसार में रहकर भी मनुष्य को पृथक् और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
- मनुष्य-मात्र के प्रेम में विश्वास-गुरु नानक देव जी रंग-रूप के भेद-भावों में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार एक ईश्वर की संतान होने के नाते सभी मनुष्य भाई-भाई हैं।
- जाति-पाति का खंडन-गुरु नानक देव जी ने जाति-पाति का घोर विरोध किया। उनकी दृष्टि में न कोई हिंद था और न कोई मुसलमान। उनके अनुसार सभी जातियों तथा धर्मों में मौलिक एकता और समानता विद्यमान है।
- समाज सेवा-गुरु नानक देव जी के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वर के प्राणियों से प्रेम नहीं करता, उसे ईश्वर की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। उन्होंने अपने अनुयायियों को नि:स्वार्थ भावना से मानव प्रेम और समाज सेवा करने का उपदेश दिया। ईश्वर के प्रति प्रेम का ही प्रतीक है।
- मूर्ति-पूजा का खंडन-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा का कड़े शब्दों में खंडन किया। उनके अनुसार ईश्वर की मूर्तियां बनाकर पूजा करना व्यर्थ है, क्योंकि ईश्वर अमूर्त तथा निराकार है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर की वास्तविक पूजा उसके नाम का जाप करने और सर्वत्र उसकी उपस्थिति का अनुभव करने में है।
- यज्ञ, बलि तथा व्यर्थ के कर्म-कांडों में अविश्वास-गुरु नानक देव जी ने व्यर्थ के कर्मकांडों का घोर खंडन किया और ईश्वर की प्राप्ति के लिए यज्ञों तथा बलि आदि को व्यर्थ बताया। उनके अनुसार बाहरी दिखावे का प्रभु भक्ति में कोई स्थान नहीं है।
- सर्वोच्च आनंद (सचखंड) की प्राप्ति)-गुरु नानक देव जी के अनुसार जीवन का उद्देश्य सर्वोच्च आनंद की (सचखंड) प्राप्ति है। सर्वोच्च आनंद वह मानसिक स्थिति है जहां मनुष्य सभी चिंताओं तथा कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसके मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता और उसका दुखी हृदय शांत हो जाता है। ऐसी अवस्था में मनुष्य की आत्मा पूरी तरह से परमात्मा में लीन हो जाती है।
- नैतिक जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदर्श जीवन के लिए ये सिद्धांत प्रस्तुत किए
- सदा सत्य बोलना,
- चोरी न करना,
- ईमानदारी से अपना जीवन निर्वाह करना,
- दूसरों की भावनाओं को कभी ठेस न पहुंचना।
सच तो यह है कि गुरु नानक देव जी एक महान् संत और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी मधुर बाणी से लोगों के मन में नम्र भाव उत्पन्न किये। उन्होंने लोगों को सतनाम का जाप करने और एक ही ईश्वर में विश्वास रखने का उपदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने भटके हुए लोगों को जीवन का उचित मार्ग दिखाया।
PSEB 9th Class Social Science Guide पंजाब : भौगोलिक विशेषताएं तथा प्रभाव Important Questions and Answers
बहुविकल्पीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी कहां की रहने वाली थी ?
(क) बटाला की
(ख) अमृतसर की
(ग) भटिंडा की
(घ) कीरतपुर साहिब की।
उत्तर-
(क) बटाला की
प्रश्न 2.
करतारपुर की स्थापना की
(क) गुरु अंगद देव जी ने
(ख) श्री गुरु नानक देव जी ने
(ग) गुरु रामदास जी ने
(घ) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(ख) श्री गुरु नानक देव जी ने
प्रश्न 3.
सज्जन ठग से श्री गुरु नानक देव जी की भेंट कहां हुई ?
(क) पटना में
(ख) सियालकोट में
(ग) तालुंबा में
(घ) करतारपुर में।
उत्तर-
(ग) तालुंबा में
प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की माता जी थीं
(क) सुलखनी जी
(ख) तृप्ता जी
(ग) नानकी जी
(घ) बीबी अमरो जी।
उत्तर-
(ख) तृप्ता जी
प्रश्न 5.
बाबर द्वारा गुरु नानक देव जी को बंदी बनाया गया
(क) सियालकोट में
(ख) कीरतपुर साहिब में
(ग) सैय्यदपुर में
(घ) पाकपट्टन में।
उत्तर-
(ग) सैय्यदपुर में
प्रश्न 6.
बाबर ने 1526 की लड़ाई में हराया
(क) दौलत खां लोधी को
(ख) बहलोल लोधी को
(ग) इब्राहिम लोधी को
(घ) सिकंदर लोधी को।
उत्तर-
(ग) इब्राहिम लोधी को
प्रश्न 7.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ
(क) 1269 ई० में
(ख) 1469 ई० में
(ग) 1526 ई० में
(घ) 1360 ई० में।
उत्तर-
(ख) 1469 ई० में
प्रश्न 8.
तातार खां को पंजाब का निज़ाम किसने बनाया ?
(क) बहलोल लोधी ने ।
(ख) इब्राहिम लोधी ने
(ग) दौलत खां लोधी ने
(घ) सिकंदर लोधी ने।
उत्तर-
(क) बहलोल लोधी ने ।
प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सा लोधी सुल्तान नहीं था ?
(क) बहलोल लोधी
(ख) इब्राहिम लोधी
(ग) दौलत खां लोधी
(घ) सिकंदर लोधी।
उत्तर-
(ग) दौलत खां लोधी
प्रश्न 10.
मुसलमानों का धार्मिक ग्रंथ कौन-सा है ?
(क) शरीयत
(ख) उलेमा
(ग) कुरान
(घ) बशेखायत।
उत्तर-
(ग) कुरान
रिक्त स्थान भरें :
(क)
- बाबर ने पंजाब को ……………… ई० में जीता।
- मुसलमानों की कुरान के अनुसार जीवन-यापन की पद्धति ……………… कहलाती है।
- इब्राहिम लोधी ने …………… लोधी को दंड देने के लिए दिल्ली बुलवाया।
- तातार खां लोधी के बाद ……………… को पंजाब का सूबेदार बनाया गया।
- मुस्लिम अमीरों द्वारा पहनी जाने वाली तुर्रदार पगड़ी को ……………… कहा जाता था। .
- ……………… दौलत खां लोधी का पुत्र था।
उत्तर-
- 1526
- शरीयत
- दौलत खां
- दौलत खां लोधी
- चीरा
- दिलावर खां लोधी।
(ख)
- गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराने को …………….. नामक घटना के नाम से जाना जाता है।
- …………………. गुरु नानक देव जी की पत्नी थीं।
- गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम ……………… तथा ……………… थे।
- गुरु नानक देव जी की ‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’ …………… और ……………. नामक चार ___ बाणियां हैं।
- गुरु नानक जी का जन्म लाहौर के समीप ………….. नामक गांव में हुआ।
- गुरुद्वारा पंजा साहिब ……………… में स्थित है।
उत्तर-
- सच्चा सौदा
- बीबी सुलखनी
- श्रीचंद तथा लक्ष्मी दास (चंद)
- जपुजी साहिब बारह माह
- तलवंडी
- सियालकोट।
सही मिलान करो :
(क) -(ख)
1. तीसरी उदासी – (i) तलवंडी
2. तातार खां – (ii) ज्वालाजी
3. श्री गुरु नानक देव जी की पत्नी सुलखनी – (iii) बहलोल लोधी
4. लोधी वंश का प्रसिद्ध शासक – (iv) बटाला
5. श्री गुरु नानक देव जी का जन्म – (v) सिकंदर लोधी
उत्तर-
- ज्वालाजी
- बहलोल लोधी
- बटाला
- सिकंदर लोधी
- तलवंडी।
अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न
उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :
(I)
प्रश्न 1.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई० को हुआ परन्तु उनका जन्म दिवस कार्तिक की पूर्णिमा (अक्तूबर-नवंबर) को मनाया जाता है।
प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म तलवंडी नामक गांव (आधुनिक पाकिस्तान में) में हुआ था जिसे ननकाना साहिब कहते हैं।
प्रश्न 3.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने कहाँ और कितने समय तक काम किया ?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने दौलत खां लोधी के मोदीखाने (अनाज के भण्डार) में दस वर्ष तक कार्य किया।
प्रश्न 4.
किस घटना को ‘सच्चा सौदा’ का नाम दिया गया है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार करने के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन-कराना।
प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की पत्नी कहां की रहने वाली थीं ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी बटाला (जिला गुरदासपुर) की रहने वाली थीं।।
प्रश्न 6.
(i) गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या शब्द कहे तथा
(ii) उनका क्या भाव था ?
उत्तर-
- गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद ये शब्द कहे-‘न कोई हिंदू न कोई मुसलमान।’
- इसका भाव था कि हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के मार्ग से भटक चुके हैं।
प्रश्न 7.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने किसके पास क्या काम किया ?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने वहां के फ़ौजदार दौलत खां लोधी के अधीन मोदी खाने में भंडारी का काम किया।
प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी की चार बाणियों के नाम लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां हैं-वार मल्हार’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’ तथा ‘बारह माहा’।
प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी ने कुरुक्षेत्र में क्या उपदेश दिए ?
उत्तर-
कुरुक्षेत्र में गुरु जी ने यह उपदेश दिया कि मनुष्य को अपनी शारीरिक पवित्रता की बजाय अपने मन तथा आत्मा की पवित्रता पर बल देना चाहिए।
प्रश्न 10.
गुरु नानक साहिब की बनारस यात्रा के बारे में लिखिए।
उत्तर-
बनारस में गुरु जी की भेंट पंडित चतुरदास से हुई जो गुरु जी के उपदेशों से बहुत प्रभावित हुआ और गुरु जी का शिष्य बन गया।
प्रश्न 11.
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने सिद्धों तथा योगियों को क्या उपदेश दिया ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने उन्हें उपदेश दिया कि शरीर पर राख मलने, हाथ में डंडा पकड़ने, सिर मुंडाने, संसार त्यागने जैसे व्यर्थ के आडंबरों से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा कैसा है ? कोई चार विचार लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक तथा सर्वोच्च है।
प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी कैसा जनेऊ पहनना चाहते थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी सद्गुणों के धागे से बना जनेऊ पहनना चाहते थे।
प्रश्न 14.
‘सच्चा सौदा’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
सच्चा सौदा से भाव है-पवित्र व्यापार जो गुरु नानक साहिब ने अपने 20 रुपए से साधु-संतों को रोटी खिला कर किया था।
प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर क्यों भेजा गया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को उनकी बहन नानकी तथा जीजा जैराम जी के पास इसलिए भेजा गया ताकि वह कोई कारोबार कर सकें।
प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरंभ कहां किया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरंभ करतारपुर में किया।
प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरंभ किन दो संस्थाओं द्वारा किया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने इसका श्री गणेश संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाओं द्वारा किया।
प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में की।
प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य अंध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।
प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी द्वारा मक्का में काबे की ओर पांव करके सोने का विरोध किसने किया ?
उत्तर-
काज़ी रुकनुद्दीन ने।
(II)
प्रश्न 1.
सिक्ख धर्म के संस्थापक अथवा सिक्खों के पहले गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।
प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की माता जी का नाम क्या था ?
उत्तर-
तृप्ता जी।
प्रश्न 3.
गुरुद्वारा पंजा साहिब कहां स्थित है ?
उत्तर-
सियालकोट में।
प्रश्न 4.
तीसरी उदासी में गुरु नानक देव जी के एक साथी का नाम बताओ।
उत्तर-
मरदाना/हस्सू लुहार।
प्रश्न 5.
बाबर ने किस स्थान पर गुरु नानक देव जी को बंदी बनाया ?
उत्तर-
सैय्यदपुर।
प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने अपनी किस रचना में बाबर के सैय्यदपुर पर आक्रमण की निंदा की है ?
उत्तर-
बाबरबाणी में।
प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 साल कहां व्यतीत किए ?
उत्तर-
करतारपुर (पाकिस्तान) में।
प्रश्न 8.
परमात्मा के बारे में गुरु नानक देव जी के विचारों का सार उनकी किस रचना में मिलता है ?
उत्तर-
जपुजी साहिब में।
प्रश्न 9.
लंगर प्रथा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सभी लोगों द्वारा बिना किसी भेदभाव के एक स्थान पर बैठ कर भोजन करना।
प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत कब समाए ?
उत्तर-
22 सितंबर, 15391
प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
उनकी शिक्षाओं के प्रभाव से मूर्ति पूजा तथा अनेक देवी-देवताओं की पूजा कम हुई और लोग एक ईश्वर की उपासना करने लगे।
अथवा
उनकी शिक्षाओं से हिंदू तथा मुसलमान अपने धार्मिक भेद-भाव भूल कर एक-दूसरे के समीप आए।
प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी ने बाबर के किस हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने बाबर के भारत पर तीसरे हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है।
प्रश्न 13.
करतारपुर की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर-
करतारपुर की स्थापना 1521 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की।
प्रश्न 14.
करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि कहां से प्राप्त हुई ?
उत्तर-
इसके लिए दीवान करोड़ीमल खत्री नामक एक व्यक्ति ने भूमि भेंट में दी थी।
प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग से भेंट कहां हुई ?
उत्तर-
सज्जन ठग से मुरु नानक देव जी की भेंट तुलुंबा में हुई।
प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग की भेंट का सज्जन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
गुरु जी के संपर्क में आकर सज्जन ने बुरे कर्म छोड़ दिए और वह गुरु जी की शिक्षाओं का प्रचार करने लगा।
प्रश्न 17.
गोरखमता का नाम नानकमता कैसे पड़ा ?
उत्तर-
गोरखमता में गुरु नानक देव जी द्वारा नाथ योगियों को जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझाने के कारण।
प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी के अंतिम वर्ष कहां व्यतीत हुए ?
उत्तर-
गुरु जी के अंतिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए।
प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी की कोई एक शिक्षा लिखो।
उत्तर-
ईश्वर एक है और हमें केवल उसी की पूजा करनी चाहिए।
अथवा
ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक है।
प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी विचार क्या थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयं-भू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, दयालु तथा महान् है।
(III)
प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी को पढ़ने के लिए किसके पास भेजा गया ?
उत्तर-
पंडित गोपाल के पास।
प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी द्वारा 20 रुपये से साधु-संतों को भोजन खिलाने की घटना को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर-
सच्चा सौदा।
प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीचंद और लखमी दास (चंद)।
प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कब हुई ?
उत्तर-
1499 ई० में।
प्रश्न 5.
पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी (रबाबी) कौन थे ?
उत्तर-
भाई मरदाना।
प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के प्रताप से किस स्थान का नाम ‘नानकमता’ पड़ा ?
उत्तर-
गोरखमता।
प्रश्न 7.
अपनी दूसरी उदासी में गुरु नानक देव जी कहां गए ?
उत्तर-
दक्षिणी भारत में।
प्रश्न 8.
‘धुबरी’ नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात किस से हुई ?
उत्तर-
संत शंकर देव से।
प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी कब आरंभ की ?
उत्तर-
1515 ई० में।
प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर एक जादूगरनी को उपदेश दिया ?
उत्तर-
कामरूप।
प्रश्न 11.
बहलोल खां लोधी कौन था ?
उत्तर-
बहलोल खां लोधी दिल्ली का सुल्तान (1450-1489) था।
प्रश्न 12.
इब्राहिम लोधी का कोई एक गुण बताइए।
उत्तर-
इब्राहिम लोधी एक वीर सिपाही तथा काफ़ी सीमा तक सफल जरनैल था।
प्रश्न 13.
इब्राहिम लोधी के कोई दो अवगुण बताइए।
उत्तर-
इब्राहिम लोधी अयोग्य, हठी तथा घमंडी था।
प्रश्न 14.
बाबर ने पंजाब पर अपना अधिकार कब किया ?
उत्तर-
बाबर ने पंजाब पर 21 अप्रैल, 1526 को अधिकार किया।
प्रश्न 15.
मुस्लिम समाज कौन-कौन सी श्रेणियों में बंटा हुआ था ?
उत्तर-
15वीं शताब्दी के अंत में मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों में बंटा हुआ था-
- उलेमा तथा सैय्यद,
- मध्य श्रेणी तथा
- गुलाम अथवा दास।
प्रश्न 16.
आलम खां ने बाबर से जो संधि की, उसके विषय में लिखिए।
उत्तर-
संधि के अनुसार यह तय हुआ किबाबर आलम खां को दिल्ली का राज्य प्राप्त करने के लिए सैन्य सहायता देगा।
अथवा
आलम खां पंजाब के सभी इलाकों पर कानूनी तौर पर बाबर का अधिकार स्वीकार होगा।
प्रश्न 17.
उलेमा कौन थे ?
उत्तर-
उलेमा मुस्लिम धार्मिक वर्ग के नेता थे जो अरबी तथा धार्मिक साहित्य के विद्वान् थे।
प्रश्न 18.
मुस्लिम तथा हिंदू समाज के भोजन में क्या फ़र्क था ?
उत्तर-
मुस्लिम समाज में अमीरों, सरदारों, सैय्यदों, शेखों, मुल्लाओं तथा काजी लोगों का भोजन बहुत तैलीय (घी वाला) होता था, जबकि हिंदुओं का भोजन सादा तथा वैष्णो (शाकाहारी) होता था।
प्रश्न 19.
सैय्यद कौन थे ?
उत्तर-
सैय्यद अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री बीबी फातिमा की संतान मानते थे।
प्रश्न 20.
मुस्लिम-मध्य श्रेणी में कौन-कौन शामिल था ?
उत्तर-
मुस्लिम मध्य श्रेणी में सरकारी कर्मचारी, सिपाही, व्यापारी तथा किसान शामिल थे।
(IV)
प्रश्न 1.
मुसलमान स्त्रियों के पहरावे का वर्णन करो।
उत्तर-
मुसलमा स्त्रियां जंपर, घाघरा तथा पायजामा पहनती थीं और बुर्के का प्रयोग करती थीं।
प्रश्न 2.
मुसलमानों के मनोरंजन के साधनों का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम सरदारों तथा अमीरों के मनोरंजन के मुख्य साधन चौगान, घुड़सवारी, घुड़दौड़ आदि थे, जबकि ‘चौपड़’ का खेल अमीर तथा ग़रीब दोनों में प्रचलित था।
प्रश्न 3.
हिंदुओं के अंधविश्वास व अज्ञानता का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब में हिंदू देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि देते थे और जादू टोने, तावीज़ तथा करामातों में विश्वास रखते थे।
प्रश्न 4.
इब्राहिम लोधी के अधीन पंजाब की राजनीतिक दशा कैसी थी ?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब का गवर्नर दौलत खां लोधी काबुल के शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित करके षड्यंत्र रच रहा था।
प्रश्न 5.
इब्राहिम लोधी ने दौलत खां लोधी को दिल्ली क्यों बुलवाया ?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी ने दौलत खां लोधी को दंड देने के लिए दिल्ली बुलवाया।
प्रश्न 6.
तातार खां को पंजाब का निज़ाम किसने बनाया ?
उत्तर-
बहलोल लोधी को।
प्रश्न 7.
लोधी-वंश का सबसे प्रसिद्ध बादशाह किसे माना जाता है ?
उत्तर-
सिकंदर लोधी को।
प्रश्न 8.
तातार खां के बाद पंजाब का सूबेदार कौन बना ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी।
प्रश्न 9.
दौलत खां लोधी के छोटे पुत्र का नाम बताओ।
उत्तर-
दिलावर खां लोधी।
प्रश्न 10.
बाबर ने 1519 के अपने पंजाब आक्रमण में किन स्थानों पर अपना अधिकार किया. ?
उत्तर-
बजौर तथा भेरा पर। प्रश्न 11. बाबर का लाहौर पर कब्जा कब हुआ ?
अथवा
बाबर ने पंजाब को कब जीता ? उत्तर-1524 ई०।
प्रश्न 12.
पानीपत की पहली लड़ाई (21 अप्रैल, 1526) किसके बीच हुई ?
उत्तर-
बाबर तथा इब्राहिम लोधी के बीच।
प्रश्न 13.
स्वयं को हज़रत मुहम्मद की सुपुत्री बीबी फातिमा की संतान कौन मानता था ?
उत्तर-
सैय्यद।
प्रश्न 14.
मुस्लिम समाज में न्याय संबंधी कार्य कौन करते थे ?
उत्तर-
काजी।
प्रश्न 15.
मुस्लिम समाज में सबसे निचले दर्जे पर कौन था ?
उत्तर-
गुलाम।
प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी से पहले हिंदुओं को क्या समझा जाता था ?
उत्तर-
जिम्मी।
प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी से पहले हिंदुओं पर लगा एक धार्मिक कर बताइए।
उत्तर-जज़िया।
प्रश्न 18.
‘सती’ की कुप्रथा किस जाति में प्रचलित थी ?
उत्तर-
हिंदुओं में।
प्रश्न 19.
मुस्लिम अमीरों द्वारा पहनी जाने वाली तुर्रेदार पगड़ी को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
चीरा
प्रश्न 20.
दौलत खां लोधी ने दिल्ली के सुल्तान के पास अपने पुत्र दिलावर खां को क्यों भेजा ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी भांप गया कि सुल्तान उसे दंड देना चाहता है।
प्रश्न 21.
दौलत खां लोधी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए क्यों बुलाया ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी की शक्ति का अंत करके स्वयं पंजाब का स्वतंत्र शासक बनना चाहता था।
प्रश्न 22.
दौलत खां लोधी बाबर के विरुद्ध क्यों हुआ ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी को विश्वास था कि विजय के पश्चात् बाबर उसे सारे पंजाब का गवर्नर बना देगा जबकि बाबर ने उसे केवल जालंधर का ही शासन सौंपा तो वह बाबर के विरुद्ध हो गया।
प्रश्न 23.
दौलत खां लोधी ने बाबर का सामना कब किया ?
उत्तर-
बाबर द्वारा भारत पर, पांचवें आक्रमण के समय दौलत खां लोधी ने उसका सामना किया।
प्रश्न 24.
बाबर के पंजाब पर पांचवें आक्रमण का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर-
इस लड़ाई में दौलत खां लोधी पराजित हुआ और सारे पंजाब पर बाबर का अधिकार हो गया।
प्रश्न 25.
16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक दशा के विषय में गुरु नानक देव जी के विचारों पर एक वाक्य लिखो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी लिखते हैं-
“राजा शेर है तथा मुकद्दम कुत्ते हैं जो दिन-रात प्रजा का शोषण करने में लगे रहते हैं।” अर्थात् शासक वर्ग अत्याचारी है।
लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
गुरु नानक साहिब की जनेऊ की रस्म का वर्णन करो।
उत्तर-
अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल रही थी कि उन्हें जनेऊ पहनाने का निश्चय किया गया। इसके लिए रविवार का दिन निश्चित हुआ। सभी सगे संबंधी इकट्ठे हुए और ब्राह्मणों को बुलाया गया। प्रारंभिक मंत्र पढ़ने के पश्चात् पंडित हरदयाल ने गुरु नानक देव जी को अपने सामने बिठाया और उन्हें जनेऊ पहनने के लिए कहा। परंतु उन्होंने इसे पहनने से साफ़ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने शरीर के लिए नहीं बल्कि आत्मा के लिए एक स्थायी जनेऊ चाहिए। मुझे ऐसा जनेऊ चाहिए जो सूत के धागे से नहीं बल्कि सद्गुणों के धागे से बना हो।
प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी ने अपने प्रारंभिक जीवन में क्या-क्या व्यवसाय अपनाए ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब जी पढ़ाई तथा अन्य सांसारिक विषयों की उपेक्षा करने लगे थे। उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिंतन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा, परंतु गुरु जी ने ये रुपये साधु-संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के परमात्मा संबंधी विचारों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के परमात्मा संबंधी विचारों का वर्णन इस प्रकार है-
- परमात्मा एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को बताया है कि परमात्मा एक है। उसे बांटा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ओंकार का संदेश दिया।
- परमात्मा निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को निराकार बताया और कहा कि परमात्मा का कोई आकार व रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार परमात्मा स्वयंभू तथा अकालमूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बना कर पूजा नहीं की जा सकती।
- परमात्मा सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया। उनके अनुसार वह सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मंदिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बंद नहीं रखा जा सकता।
- परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है। वह अद्वितीय है। उसकी महिमा तथा महानता का पार नहीं पाया जा सकता।
- परमात्मा दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों पर दया तथा मेहर करता है और उनकी सहायता करता है।
प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी पहली उदासी (यात्रा) के समय कौन-कौन से स्थानों पर गए ?
उत्तर-
अपनी पहली उदासी के समय गुरु नानक साहिब निम्नलिखित स्थानों पर गए-
- सुल्तानपुर से चलकर वह सैय्यदपुर गए जहां उन्होंने भाई लालो को अपना शिष्य बनाया।
- तत्पश्चात् गुरु साहिब तालुंबा (सज्जन ठग के यहां), कुरुक्षेत्र तथा पानीपत गए। इन स्थानों पर उन्होंने लोगों को शुभ कर्म करने की प्रेरणा दी।
- पानीपत से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार गए। इन स्थानों पर उन्होंने अंध-विश्वासों का खंडन किया।
- इसके पश्चात् गुरु साहिब ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोरखमता, बनारस, पटना, हाजीपुर, धुबरी, कामरूप, शिलांग, ढाका, जगन्नाथपुरी आदि कई स्थानों का भ्रमण किया।
प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी दूसरी उदासी (यात्रा) के समय कहां-कहां गए ?
उत्तर-
- श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी 1510 ई० में आरम्भ की। इस दौरान उन्होंने मालवा के संतों तथा माऊंट आबू के जैन मुनियों से मुलाकात की। वे पुष्कर भी गए।
- इसके बाद गुरु साहिब ने हैदराबाद, नन्देड़, कटक, गंटूर, गोलकुंडा, मद्रास, कांचीपुरम तथा रामेश्वरम् के तीर्थ स्थान की यात्रा की।
- गुरु जी समुद्री मार्ग से श्रीलंका गए, जहां लंका का राजा शिवनाथ तथा कई अन्य लोग उनकी बाणी से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए।
- अपनी वापिसी यात्रा में गुरु जी त्रिवेन्द्रम, श्री रंगापटनम, सोमनाथ, द्वारका, बहावलपुर, मुल्तान आदि स्थानों से होते हुए 1515 ई० को अपने गांव तलवंडी पहुंचे। यहां से वे सुल्तानपुर गए।
प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी (यात्रा) के महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताओ।
उत्तर-
सुल्तानपुर लोधी में कुछ समय रहने के बाद गुरु जी ने 1515 ई० से लेकर 1517 ई० तक अपनी तीसरी उदासी की। इस उदासी में भाई मरदाना भी उनके साथ थे। आरम्भ में हस्सू लुहार तथा सीहां छींबे ने भी उनका साथ दिया। इस उदासी के दौरान गुरु जी निम्नलिखित स्थानों पर गए
- मुकाम पीर बुढ्नशाह, तिब्बत, नेपाल, गोरखमत्ता अथवा नानकमत्ता।
- बिलासपुर, मंडी, सुकेत, ज्वालाजी, कांगड़ा, कुल्लू आदि पहाड़ी इलाके।
- कश्मीर घाटी में कैलाश पर्वत, लद्दाख, कारगिल, अमरनाथ, आनंतनाग, बारामूला आदि।
प्रश्न 7.
श्री गुरु नानक देव जी की चौथी उदासी का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। .
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी चौथी उदासी 1517 ई० से 1521 ई० तक भाई मरदाना जी को साथ लेकर की। इस उदासी के दौरान उन्होंने पश्चिम एशिया के देशों की यात्रा की। वह मुल्तान, उच्च, मक्का, मदीना, बगदाद, कंधार, काबुल, जलालाबाद, पेशावर, सैय्यदपुर आदि स्थानों पर गए। इस यात्रा में उन्होंने मुसलमान हाज़ियों वाली नीली वेशभूषा धारण की हुई थी।
प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी द्वारा करतारपुर में बिताए गए जीवन का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
1521 ई० के लगभग गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे एक नया नगर बसाया। इस नगर का नाम ‘करतारपुर’ अर्थात् ईश्वर का नगर था। गुरु जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष परिवार के अन्य सदस्यों के साथ यहीं पर व्यतीत किये। कार्य-
- इस काल में गुरु नानक देव जी ने अपने सभी उपदेशों को निश्चित रूप दिया और ‘वार मल्हार’ और ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’, ‘पट्टी’, ‘ओंकार’, ‘बारहमाहा’ आदि बाणियों की रचना की
- करतारपुर में उन्होंने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ (लंगर) की संस्था का विकास किया।
- कुछ समय पश्चात् अपने जीवन का अंत निकट आते देख उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। भाई लहना जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे जो गुरु अंगद देव जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
प्रश्न 9.
गुरु नानक साहिब की यात्राओं अथवा उदासियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने अपने संदेश के प्रसार के लिए कुछ यात्राएं कीं। उनकी यात्राओं को उदासियां भी कहा जाता है। इन यात्राओं को चार हिस्सों अथवा उदासियों में बांटा जाता है। यह समझा जाता है कि इस दौरान गुरु नानक देव साहिब ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पश्चिम में पाकपट्टन से लेकर पूर्व में असम तक की यात्रा की थी। वे संभवत्: भारत से बाहर श्रीलंका, मक्का, मदीना तथा बग़दाद भी गये थे। उनके जीवन के लगभग 20-21 वर्ष ‘उदासियों’ में गुजरे। अपनी सुदूर ‘उदासियों’ में गुरु साहिब विभिन्न धार्मिक विश्वासों वाले अनेक लोगों के संपर्क में आए। ये लोग भांति-भांति की संस्कार विधियों और रस्मों का पालन करते थे। गुरु नानक साहिब ने इन सभी को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।
प्रश्न 10.
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ क्या थे ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका संदेश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्री-पुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेद-भाव नहीं था। इस प्रकार वर्ण व्यवस्था के जटिल बंधन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। गुरु साहिब ने अपने आपको जनसाधारण के साथ संबंधित किया। इसी कारण उन्होंने अपने समय के शासन में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा ज़ोरदार खंडन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।
प्रश्न 11.
श्री गुरु नानक देव जी की किन्हीं पांच शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने लोगों को ये शिक्षाएं दीं-
- ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापी है।
- जाति-पाति का भेदभाव मात्र दिखावा है। अमीर-गरीब, ब्राह्मण, शूद्र सभी सामान हैं।
- शुद्ध आचरण मनुष्य को महान् बनाता है।
- परमात्मा का सिमरन सच्चे मन से करना चाहिए।
- गुरु नानक देव जी ने सच्चे गुरु को महान् बताया। उनका विश्वास था कि प्रभु को प्राप्त करने के लिए सच्चे गुरु का होना आवश्यक है।
- मनुष्य को सदा नेक कमाई खानी चाहिए।
प्रश्न 12.
सिकंदर लोधी की धार्मिक नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार सिकंदर लोधी एक न्यायप्रिय, बुद्धिमान् तथा प्रजा हितैषी शासक था। परंतु डॉ० इंदु भूषण बैनर्जी इस मत के विरुद्ध हैं। उनका कथन है कि सिकंदर लोधी की न्यायप्रियता अपने वर्ग (मुसलमान वर्ग) तक ही सीमित थी। उसने अपनी हिंदू प्रजा के प्रति अत्याचार और असहनशीलता की नीति का परिचय दिया। उसने हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया और उनके मंदिरों को गिरवाया। हजारों की संख्या में हिंदू सिकंदर लोधी के अत्याचारों का शिकार हुए।
प्रश्न 13.
इब्राहिम लोधी के समय हुए विद्रोहों का वर्णन करो।
उत्तर-
इब्राहिम लोधी के समय में निम्नलिखित दो मुख्य विद्रोह हुए
- पठानों का विद्रोह-इब्राहिम लोधी ने स्वतंत्र स्वभाव के पठानों को अनुशासित करने का प्रयास किया। पठान इसे सहन न कर सके। इसलिए उन्होंने विद्रोह कर दिया। इब्राहिम लोधी इस बग़ावत को दबाने में असफल रहा।
- पंजाब में दौलत खां लोधी का विद्रोह-पंजाब का सूबेदार दौलत खां लोधी था। वह इब्राहिम लोधी के कठोर, घमंडी तथा शक्की स्वभाव से दुखी था। इसलिए उसने स्वयं को स्वतंत्र करने का निर्णय कर लिया और वह दिल्ली के सुल्तान के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा। उसने अफ़गान शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए भी आमंत्रित किया।
प्रश्न 14.
दिलावर खां लोधी दिल्ली क्यों गया ? इब्राहिम लोधी ने उसके साथ क्या बर्ताव किया ?
उत्तर-
दिलावर खां लोधी अपने पिता की ओर से आरोपों की सफ़ाई देने के लिए दिल्ली गया। इब्राहिम लोधी ने दिलावर खां को खूब डराया धमकाया। उसने उसे यह भी बताने का प्रयास किया कि विद्रोही को क्या दंड दिया जा सकता है। उसने उसे उन यातनाओं के दृश्य दिखाए जो विद्रोही लोगों को दी जाती थीं और फिर उसे बंदी बना लिया। परंतु वह किसी-न-किसी तरह जेल से भाग निकला। लाहौर पहुंचने पर उसने अपने पिता को दिल्ली में हुई सारी बातें सुनाईं। दौलत खां समझ गया कि इब्राहिम लोधी उससे दो-दो हाथ अवश्य करेगा।
प्रश्न 15.
बाबर के सैय्यदपुर के आक्रमण का वर्णन करो।
उत्तर-
सियालकोट को जीतने के बाद बाबर सैय्यदपुर (ऐमनाबाद) की ओर बढ़ा। वहां की रक्षक सेना ने बाबर की घुड़सेना का डटकर सामना किया। फिर भी अंत में बाबर की जीत हुई। शेष बची हुई रक्षक सेना को कत्ल कर दिया गया। सैय्यदपुर की जनता के साथ भी निर्दयतापूर्ण व्यवहार किया गया। कई लोगों को दास बना लिया गया। गुरु नानक देव जी ने इन अत्याचारों का वर्णन ‘बाबर वाणी’ में किया है।
प्रश्न 16.
बाबर के 1524 ई० के हमले का हाल लिखो।
उत्तर-
1524 ई० में बाबर ने भारत पर चौथी बार आक्रमण किया। इब्राहिम लोधी के चाचा आलम खां ने बाबर से प्रार्थना की थी कि वह दिल्ली का सिंहासन पाने में उसकी सहायता करे। पंजाब के सूबेदार दौलत खां ने भी बाबर से सहायता के लिए प्रार्थना की थी। अतः बाबर भेरा होते हुए लाहौर के निकट पहुंच गया। यहां उसे पता चला कि दिल्ली की सेना ने दौलत खाँ को मार भगाया है। बाबर ने दिल्ली की सेना से दौलत खां लोधी की पराजय का बदला तो ले लिया, परंतु दीपालपुर में दौलत खां तथा बाबर के बीच मतभेद पैदा हो गया। दौलत खां को आशा थी कि विजयी होकर बाबर उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त करेगा, परंतु बाबर ने उसे केवल जालंधर और सुल्तानपुर के ही प्रदेश सौंपे। दौलत खां ईर्ष्या की आग में जलने लगा। वह पहाड़ियों में भाग गया ताकि तैयारी करके बाबर से बदला ले सके। स्थिति को देखते हुए बाबर ने दीपालपुर का प्रदेश आलम खां को सौंप दिया और स्वयं और अधिक तैयारी के लिए काबुल लौट गया।
प्रश्न 17.
आलम खां ने पंजाब को हथियाने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए ?
उत्तर-
अपने चौथे अभियान में बाबर ने आलम खां को दीपालपुर का प्रदेश सौंपा था। अब वह पूरे पंजाब को हथियाना चाहता था। परंतु दौलत खां लोधी ने उसे पराजित करके उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया। अब वह पुनः बाबर की शरण में जा पहुंचा। उसने बाबर के साथ एक संधि की। इसके अनुसार उसने बाबर को दिल्ली का राज्य प्राप्त करने में सहायता देने का वचन दिया। उसने यह भी विश्वास दिलाया कि पंजाब का प्रदेश प्राप्त होने पर वह वहां पर बाबर के कानूनी अधिकार को स्वीकार करेगा। परंतु उसका यह प्रयास भी असफल रहा। अंत में उसने इब्राहिम लोधी (दिल्ली का सुल्तान) के विरुद्ध दौलत खां लोधी की सहायता की। परंतु यहां भी उसे पराजय का सामना करना पड़ा और उसकी पंजाब को हथियाने की योजनाएं मिट्टी में मिल गईं।
प्रश्न 18.
पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोधी तथा बाबर की फ़ौज की योजना का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोधी की सेना संख्या में एक लाख थी। इसे चार भागों में बांटा गया था-
- आगे रहने वाली सैनिक टुकड़ी,
- केंद्रीय सेना,
- दाईं ओर की सेना तथा
- बाईं ओर की सेना। सेना के आमे लगभग 5000 हाथी थे।
बाबर ने अपनी सेना के आगे 700 बैलगाड़ियां खड़ी की हुई थीं। इन बैलगाड़ियों को चमड़े की रस्सियों से बांध दिया गया था। बैलगाड़ियों के पीछे तोपखाना था। तोपों के पीछे अगुआ सैनिक टुकड़ी तथा केंद्रीय सेना थी। दाएं था बाएं तुलुगमा पार्टियां थीं। सबसे पीछे बहुत-सी घुड़सवार सेना तैनात थी जो छिपी हुई थी।
प्रश्न 19.
अमीरों तथा सरदारों के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर-
अमीर तथा सरदार ऊंची श्रेणी के लोग थे। इनको ऊंची पदवी और खिताब प्राप्त थे। सरदारों को ‘इक्ता’ अर्थात् इलाका दिया जाता था जहां से वे भूमिकर वसूल करते थे। इस धन को वह अपनी इच्छा से व्यय करते थे।
सरदार सदा लड़ाइयों में ही व्यस्त रहते थे। वे सदा स्वयं को दिल्ली सरकार से स्वतंत्र करने की सोच में रहते थे। स्थानीय प्रबंध की ओर वे कोई ध्यान नहीं देते थे। धनी होने के कारण ये लोग ऐश्वर्य प्रिय तथा दुराचारी थे। ये बड़ीबड़ी हवेलियों में रहते थे और कई-कई विवाह करवाते थे। उनके पास कई पुरुष तथा स्त्रियां दासों के रूप में रहती थीं।
प्रश्न 20.
मुसलमानों के धार्मिक नेताओं के बारे में लिखें।
उत्तर-
मुसलमानों के धार्मिक नेता दो उप-श्रेणियों में बंटे हुए थे। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
- उलेमा-उलेमा धार्मिक वर्ग के नेता थे। इनको अरबी तथा धार्मिक साहित्य का ज्ञान प्राप्त था।
- सैय्यद-उलेमाओं के अतिरिक्त एक श्रेणी सैय्यदों की थी। वे अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री बीबी फातिमा की संतान मानते थे। समाज में इन का बहुत आदर मान था।
इन दोनों को मुस्लिम समाज में प्रचलित कानूनों का भी पूरा ज्ञान था।
प्रश्न 21.
गुलाम श्रेणी का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
- गुलामों का मुस्लिम समाज में सबसे नीचा स्थान था। इनमें हाथ से काम करने वाले लोग (बुनकर, कुम्हार, मज़दूर) तथा हिजड़े सम्मिलित थे। युद्ध बंदियों को भी गुलाम बनाया जाता था। कुछ गुलाम अन्य देशों से भी लाये जाते थे।
- गुलाम हिजड़ों को बेग़मों की सेवा के लिए रनिवासों (हरम) में रखा जाता था।
- गुलाम स्त्रियां अमीरों तथा सरदारों के मन-बहलाव का साधन होती थीं। इनको भर-पेट खाना मिल जाता था। उनकी सामाजिक अवस्था उनके मालिकों के स्वभाव पर निर्भर करती थी।
- गुलाम अपनी चतुराई से तथा बहादुरी दिखाकर ऊंचे पद प्राप्त कर सकते थे अथवा गुलामी से छुटकारा पा सकते
- गुलामों को खरीदा बेचा जा सकता था।
प्रश्न 22.
मुसलमान लोग क्या खाते-पीते थे ?
उत्तर-
उच्च वर्ग के लोगों का भोजन-मुस्लिम समाज में अमीरों, सरदारों, सैय्यदों, शेखों, मुल्लाओं तथा काज़ियों का भोजन बहुत घी वाला होता था। उनके भोजन में मिर्च मसालों की अधिक मात्रा होती थी। ‘पुलाव तथा कोरमा’ उनका मन-पसंद भोजन था। मीठे में हलवा तथा शरबत का प्रचलन था। उच्च वर्ग के मुसलमानों में नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना साधारण बात थी।
साधारण लोगों का भोजन-साधारण मुसलमान मांसाहारी थे। गेहूं की रोटी तथा भुना हुआ मांस उनका रोज़ का भोजन था। यह भोजन बाजारों में पका पकाया भी मिल जाता था। हाथ से काम करने वाले मुसलमान खाने के साथ लस्सी (छाछ) पीना पसंद करते थे।
प्रश्न 23.
मुसलमानों के पहरावे के बारे में लिखिए।
उत्तर-
- उच्च वर्गीय मुसलमानों का पहनावा भड़कीला तथा बहुमूल्य होता था। उनके वस्त्र रेशमी तथा बढ़िया सूत के बने होते थे। अमीर लोग तुर्रेदार पगड़ी पहनते थे। पगड़ी को ‘चीरा’ भी कहा जाता था।
- शाही गुलाम (दास) कमरबंद पहनते थे। वे अपनी जेब में रूमाल रखते थे और पैरों में लाल जूता पहनते थे। उनके सिर पर साधारण सी पगड़ी होती थी।
- धार्मिक श्रेणी के लोग मुलायम सूती वस्त्र पहनते थे। उनकी पगड़ी सात गज़ लंबी होती थी। पगड़ी का पल्ला उनकी पीठ पर लटकता रहता था। सूफ़ी लोग खुला चोगा पहनते थे।
- साधारण लोगों का मुख्य पहनावा कमीज़ तथा पायजामा था। वे जूते और जुराबें भी पहनते थे।
- मुसलमान औरतें जंपर, घाघरा तथा उनके नीचे तंग पायजामा पहनती थीं।
प्रश्न 24.
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन इस प्रकार है-
- महिलाओं को समाज में कोई सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं था।
- अमीरों तथा सरदारों की हवेलियों में स्त्रियों को हरम में रखा जाता था। इनकी सेवा के लिए दासियां तथा रखैलें रखी जाती थीं।
- समाज में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी। परंतु ग्रामीण मुसलमानों में पर्दे की प्रथा सख्त नहीं थी।
- साधारण परिवारों में स्त्रियों के रहने के लिए अलग स्थान बना होता था। उसे ‘ज़नान खाना’ कहा जाता था। यहां से स्त्रियां बुर्का पहन कर ही बाहर निकल सकती थीं।
प्रश्न 25.
गुरु नानक साहिब के काल से पहले की जाति-पाति अवस्था के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के काल से पहले का हिंदू समाज विभिन्न श्रेणियों अथवा जातियों में बंटा हुआ था। ये जातियां थीं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। इन जातियों के अतिरिक्त अन्य भी कई उपजातियां उत्पन्न हो चुकी थीं।
- ब्राह्मण-ब्राह्मण समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य भूल कर स्वार्थी बन गए थे। वे उस समय के शासकों की चापलूसी करके अपनी श्रेणी को बचाने के प्रयास में रहते थे। साधारण लोगों पर ब्राह्मणों का प्रभाव बहुत अधिक था। वे ब्राह्मणों के कारण अनेक अंधविश्वासों में फंसे हुए थे।
- वैश्य तथा क्षत्रिय-वैश्यों तथा क्षत्रियों की दशा ठीक थी।
- शूद्र-शूद्रों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्हें अछूत समझ कर उनसे घृणा की जाती थी। हिंदुओं की जातियों तथा उप-जातियों में आपसी संबंध कम ही थे। उनके रीति-रिवाज भी भिन्न-भिन्न थे।
प्रश्न 26.
सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक दशा की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब का राजनीतिक वातावरण बड़ा शोचनीय चित्र प्रस्तुत करता है। उन दिनों यह प्रदेश लाहौर प्रांत के नाम से जाना जाता था और यह दिल्ली सल्तनत का अंग था। इस काल में दिल्ली के सभी सुल्तान (सिकंदर लोधी, इब्राहिम लोधी) निरंकुश थे। उनके अधीन पंजाब में राजनीतिक अराजकता फैली हुई थी। सारा प्रवेश षड्यंत्रों का अखाड़ा बना हुआ था। पूरे पंजाब में अन्याय का नंगा नाच हो रहा था। शासक वर्ग भोग विलास में मग्न था। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारी हो चुके थे और वे अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करते थे। इन परिस्थितियों में उनसे न्याय की आशा करना व्यर्थ था। गुरु नानक देव जी ने कहा था कि न्याय दुनिया से उड़ गया है। भाई गुरुदास ने भी इस समय में पंजाब में फैले भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का वर्णन किया है।
प्रश्न 27.
16वीं शताब्दी के आरंभ में इब्राहिम लोधी तथा दौलत खां लोधी के बीच होने वाले संघर्ष का क्या कारण था ? इब्राहिम लोधी से निपटने के लिए दौलत खां ने क्या किया ?
उत्तर-
दौलत खां लोधी इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब का गवर्नर था। कहने को तो वह दिल्ली के सुल्तान के अधीन था, परंतु वास्तव में वह एक स्वतंत्र शासक के रूप में कार्य कर रहा था। उसने इब्राहिम लोधी के चाचा आलम खां लोधी को दिल्ली की राजगद्दी दिलाने में सहायता देने का वचन देकर उसे अपनी ओर गांठ लिया। इब्राहिम लोधी को जब दौलत खां के षड्यंत्रों की सूचना मिली तो उसने दौलत खाँ को दिल्ली बुलाया। परंतु दौलत खां ने स्वयं जाने की बजाए अपने पुत्र दिलावर खां को भेज दिया। दिल्ली पहुंचने पर सुल्तान ने दिलावर खां को बंदी बना लिया। कुछ ही समय के पश्चात् दिलावर खां जेल से भाग निकला और अपने पिता के पास लाहौर जा पहुंचा। दौलत खां ने इब्राहिम लोधी के इस व्यवहार का बदला लेने के लिए बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया।
प्रश्न 28.
बाबर तथा दौलत खां में होने वाले संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए दौलत खां लोधी ने ही आमंत्रित किया था। उसे आशा थी कि विजयी होकर बाबर उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त करेगा। परंतु बाबर ने उसे केवल जालंधर और सुल्तानपुर के ही प्रदेश सौंपे। अतः उसने बाबर के विरुद्ध विद्रोह का झंडा फहरा दिया। शीघ्र ही दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ गया जिसमें दौलत खां और उसका पुत्र गाजी खां पराजित हुए। इसके बाद बाबर वापस काबुल लौट गया। उसके वापस लौटते ही दौलत खाँ ने बाबर के प्रतिनिधि आलम खां को मार भगाया और स्वयं पुन: सारे पंजाब का शासक बन बैठा। आलम खां की प्रार्थना पर बाबर ने 1525 ई० में पंजाब में पुन: आक्रमण किया। दौलत खां लोधी पराजित हुआ और पहाड़ों में जा छिपा।
प्रश्न 29.
बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच संघर्ष का वर्णन कीजिए।
अथवा
पानीपत की पहली लड़ाई का वर्णन कीजिए। पंजाब के इतिहास में इसका क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
बाबर दौलत खां को हरा कर दिल्ली की ओर बढ़ा। दूसरी ओर इब्राहिम लोधी भी एक विशाल सेना के साथ शत्रु का सामना करने के लिए दिल्ली से चल पड़ा। 21 अप्रैल, 1526 ई० के दिन पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हो गई। इब्राहिम लोधी पराजित हुआ और रणक्षेत्र में ही मारा गया। बाबर अपनी विजयी सेना सहित दिल्ली पहुंच गया और उसने वहां अपनी विजय पताका फहराई। यह भारत में दिल्ली सल्तनत का अंत और मुग़ल सत्ता का श्रीगणेश था। इस प्रकार पानीपत की लड़ाई ने न केवल पंजाब का बल्कि सारे भारत के भाग्य का निर्णय कर दिया।
प्रश्न 30.
सोलहवीं शताब्दी के पंजाब में हिंदुओं की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के हिंदू समाज की दशा बड़ी ही शोचनीय थी । प्रत्येक हिंदू को शंका की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। उनसे जज़िया तथा तीर्थ यात्रा आदि कर बड़ी कठोरता से वसूल किए जाते थे। उनके रीति-रिवाजों, उत्सवों तथा उनके पहरावे पर भी सरकार ने कई प्रकार की रोक लगा दी थी। हिंदुओं पर भिन्न-भिन्न प्रकार के अत्याचार किए जाते थे ताकि वे तंग आकर इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लें। सिकंदर लोधी ने बोधन (Bodhan) नाम के एक ब्राह्मण को इस्लाम धर्म न स्वीकार करने पर मौत के घाट उतार दिया था।
प्रश्न 31. 16वीं शताब्दी में पंजाब में मुस्लिम समाज के विभिन्न वर्गों का वर्णन करें।
उत्तर-16वीं शताब्दी में मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बंटा हुआ था
- उच्च श्रेणी-इस श्रेणी में अफगान अमीर, शेख, काजी, उलेमा (धार्मिक नेता), बड़े-बड़े जागीरदार इत्यादि शामिल थे। सुल्तान के मंत्री, उच्च सरकारी कर्मचारी तथा सेना के बड़े-बड़े अधिकारी भी इसी श्रेणी में आते थे। ये लोग अपना समय आराम तथा भोग-विलास में व्यतीत करते थे।
- मध्य श्रेणी-इस श्रेणी में छोटे काजी, सैनिक, छोटे स्तर के सरकारी कर्मचारी, व्यापारी आदि शामिल थे। उन्हें राज्य की ओर से काफ़ी स्वतंत्रता प्राप्त थी तथा समाज में उनका अच्छा सम्मान था।
- निम्न श्रेणी-इस श्रेणी में दास, घरेलू नौकर तथा हिजड़े शामिल थे। दासों में स्त्रियां भी सम्मिलित थीं। इस श्रेणी के लोगों का जीवन अच्छा नहीं था।
दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के बचपन (जीवन) के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
जन्म तथा माता-पिता-श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को हुआ। उनके पिता का नाम मेहता कालू जी तथा माता का नाम तृप्ता जी था। । बाल्यकाल तथा शिक्षा-बालक नानक को 7 वर्ष की आयु में गोपाल पंडित की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। वहां दो वर्षों तक उन्होंने देवनागरी तथा गणित की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्हें पंडित बृज लाल के पास संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा गया। वहां गुरु जी ने ‘ओ३म्’ शब्द का वास्तविक अर्थ बताकर पंडित जी को चकित कर दिया। सिक्ख परंपरा के अनुसार उन्हें अरबी तथा फ़ारसी पढ़ने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास भी भेजा गया।
जनेऊ की रस्म-अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल ही रही थी कि उनके माता-पिता ने सनातनी रीतिरिवाजों के अनुसार उन्हें जनेऊ पहनाना चाहा। परंतु गुरु साहिब ने जनेऊ पहनने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सूत के बने धागे के जनेऊ की नहीं, बल्कि सद्गुणों के धागे से बने जनेऊ की आवश्यकता है।
विभिन्न व्यवसाय-पढ़ाई में गुरु नानक देव जी की रुचि न देख कर उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिंतन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपये देकर व्यापार करने भेजा, परंतु गुरु जी ने ये रुपये संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
विवाह-अपने पुत्र की सांसारिक विषयों में रुचि पैदा करने के लिये मेहता कालू जी ने उनका विवाह बटाला के खत्री मूलराज की सुपुत्री सुलखनी से कर दिया। इस समय गुरु जी की आयु केवल 15 वर्ष की थी। उनके यहां श्री चंद श्री गुरु नानक देव जी तथा समकालीन समाज और लखमी दास (चंद) नामक दो पुत्र भी पैदा हुए। मेहता कालू जी ने गुरु जी को नौकरी के लिए सुल्तानपुर लोधी भेज दिया। वहां उन्हें नवाब दौलत खां के अनाज घर में नौकरी मिल गई। वहां उन्होंने ईमानदारी से काम किया। फिर भी उनके विरुद्ध नवाब से शिकायत की गई। परंतु जब जांच-पड़ताल की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक था।
ज्ञान-प्राप्ति-गुरु जी प्रतिदिन प्रात:काल ‘काली वेई’ नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वहां वह कुछ समय प्रभु चिंतन भी करते थे। एक प्रात: जब वह स्नान करने गए तो निरंतर तीन दिन तक अदृश्य रहे। इसी चिंतन की मस्ती में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब वह जीवन के रहस्य को भली-भांति समझ गए। उस समय उनकी आयु 30 वर्ष की थी। शीघ्र ही उन्होंने अपना प्रचार कार्य आरंभ कर दिया। उनकी सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गये।
प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब के सुल्तानपुर लोधी में बिताए गए समय का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1486-87 ई० में गुरु साहिब को उनके पिता मेहता कालू जी ने स्थान बदलने के लिए सुल्तानपुर लोधी में भेज दिया। वहां वह अपने बहनोई (बीबी नानकी के पति) जैराम के पास रहने लगे।
मोदीखाने में नौकरी-गुरु जी को फ़ारसी तथा गणित का ज्ञान तो था। इसलिए उन्हें जैराम की सिफ़ारिश पर सुल्तानपुर लोधी के फ़ौजदार दौलत खां के सरकारी मोदीखाने (अनाज का भंडार) में भंडारी की नौकरी मिल गई। वहां वह अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते रहे। फिर भी उनके विरुद्ध शिकायत की गई। शिकायत में कहा गया कि वह अनाज को साधु-संतों में लुटा रहे हैं। परंतु जब मोदीखाने की जांच की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक निकला।
गृहस्थ जीवन तथा प्रभु सिमरण-कुछ समय पश्चात् गुरु नानक साहिब ने अपनी पत्नी को भी सुल्तानपुर में ही बुला लिया। वह वहां सादा तथा पवित्र गृहस्थ जीवन बिताने लगे। प्रतिदिन सुबह वह नगर के साथ बहती हुए वेई नदी में स्नान करते, परमात्मा के नाम का स्मरण करते तथा आय का कुछ भाग ज़रूरतमंदों को सहायता के लिए देते थे।
ज्ञान-प्राप्ति-जन्म साखी के अनुसार एक दिन गुरु नानक साहिब प्रतिदिन की तरह वेई नदी पर स्नान करने गए। परंतु वह तीन दिन तक घर वापस न पहुंचे। गुरु नानक देव जी ने वे तीन दिन गंभीर चिंतन में बिताए। इसी बीच उन्होंने अपने आत्मिक ज्ञान को अंतिम रूप देकर उसके प्रचार के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् जब गुरु जी घर वापस पहुंचे तो वे चुप थे। जब उन्हें बोलने के लिए विवश किया गया तो उन्होंने केवल ये शब्द कहे’न कोई हिंदू न कोई मुसलमान।’ लोगों ने गुरु साहिब से इस वाक्य का अर्थ पूछा। गुरु साहिब ने इसका अर्थ बताते हुए कहा कि हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही अपने-अपने धर्म के सिद्धांतों को भूल चुके हैं। इन शब्दों का अर्थ यह भी था कि हिंदुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं है। वे एक समान हैं। उन्होंने इन्हीं महत्त्वपूर्ण शब्दों से अपने संदेश का प्रचार आरंभ किया। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर लंबी यात्राएं आरंभ कर दी।
प्रश्न 3.
गुरु नानक साहिब की उदासियों (यात्राओं) का वर्णन कीजिए।’
उत्तर-
ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी ने अपने दिव्य ज्ञान से संसार को आलौकिक करने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और एक फ़कीर के रूप में भ्रमण के लिए निकल पड़े। इन लंबी यात्राओं में गुरु नानक देव जी को लगभग 21-22 वर्ष लगे। उनकी इन्हीं यात्राओं को सिक्ख इतिहासकारों ने उदासियों का नाम दिया है।
उदासियों का उद्देश्य-गुरु नानक देव जी की उदासियों का मुख्य उद्देश्य पथ-विचलित मानवता को जीवन का वास्तविक मार्ग दिखाना था। इसके अतिरिक्त व्यर्थ के रीति-रिवाजों तथा कर्मकांडों का खंडन करना और सतनाम के जाप का प्रचार करना भी उनकी यात्राओं का उद्देश्य था।
गुरु नानक देव जी की उदासियां-गुरु नानक देव जी की उदासियों को चार भागों में बांटा जा सकता है जिनका वर्णन इस प्रकार है
पहली उदासी-अपनी पहली उदासी के समय गुरु नानक साहिब निम्नलिखित स्थानों पर गए-
- सुल्तानपुर से चलकर वह सैय्यदपुर गए जहां उन्होंने भाई लालो को अपना श्रद्धालु बनाया।
- तत्पश्चात् गुरु साहिब तुलुंबा (सज्जन ठग के यहां), कुरुक्षेत्र तथा पानीपत गए। इन स्थानों पर उन्होंने लोगों को शुभ कर्म करने की प्रेरणा दी।
- पानीपत से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार गए। इन स्थानों पर उन्होंने अंधविश्वासों का खंडन किया।
- इसके पश्चात् गुरु साहिब ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोरखमता, बनारस, पटना, हाजीपुर, धुबरी, कामरूप, शिलांग, ढाका, जगन्नाथपुरी आदि कई स्थानों का भ्रमण किया।
दूसरी उदासी-
- श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी 1510 ई० में आरम्भ की। इस दौरान उन्होंने मालवा के संतों तथा माऊंट आबू के जैन मुनियों से मुलाकात की। वे पुष्कर भी गए।
- इसके बाद गुरु साहिब ने उज्जैन, हैदराबाद, नन्देड़, कटक, गोलकुंडा, गंटूर, मद्रास, कांचीपुरम तथा रामेश्वरम् के तीर्थ स्थान की यात्रा की।
- गुरु जी समुद्री मार्ग से श्रीलंका गए जहां लंका का राजा शिवनाभ तथा कई अन्य लोग उनकी बाणी से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए।
- अपनी वापसी यात्रा में गुरु जी त्रिवेन्द्रम, श्री रंगापटनम, सोमनाथ, द्वारका, बहावलपुर, मुल्तान आदि स्थानों से होते हुए 1515 ई. को अपने गांव तलवड़ी पहुंचे। यहां से वे सुल्तानपुर गए।
तीसरी उदासी-सुल्तानपुर लोधी में कुछ समय रहने के बाद गुरु जी ने 1515 ई० से लेकर 1517 ई० तक अपनी तीसरी उदासी की। इस उदासी में भाई मरदाना भी उनके साथ थे। इस उदासी में हस्सू लुहार तथा सीहा छींबे ने भी उनका साथ दिया। इस उदासी के दौरान गुरु जी निम्नलिखित स्थानों पर गए-
- मुकाम पीर बुढ्नशाह, तिब्बत, नेपाल, गोरखमत्ता अथवा नानकमत्ता।
- बिलासपुर, मंडी, सुकेत, ज्वालाजी, कांगड़ा, कुल्लू आदि पहाड़ी इलाके।
- कश्मीर घाटी में कैलाश पर्वत, लद्दाख, कारगिल, अमरनाथ, आनंतनाग, बारामूला आदि।
चौथी उदासी-श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी चौथी उदासी 1517 ई० से 1521 ई० तक भाई मरदाना जी को साथ लेकर की। इस उदासी के दौरान उन्होंने पश्चिम एशिया के देशों की यात्रा की। वह मुल्तान, उच्च, मक्का, मदीना, बगदाद, कंधार, काबुल, जलालाबाद, पेशावर, सैय्यदपुर आदि स्थानों पर गए। इस यात्रा में उन्होंने मुसलमान हाज़ियों वाली नीली वेशभूषा धारण र्की हुई थी।
प्रश्न 4.
गुरु नानक साहिब के ईश्वर के बारे में विचारों का वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर का गुणगान गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मंत्र है। ईश्वर के विषय में उन्होंने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किए हैं-
- ईश्वर एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को ‘एक ओंकार’ का संदेश दिया। यही उनकी शिक्षाओं का मूल मंत्र था। उन्होंने लोगों को बताया कि ईश्वर एक है और उसे बांटा नहीं जा सकता। इसलिए गुरु नानक देव जी ने अवतारवाद को स्वीकार नहीं किया। गोकुलचंद नारंग का कथन है कि गुरु नानक साहिब के विचार में, “ईश्वर विष्णु , शिव, कृष्ण और राम से बहुत बड़ा है और वह इन सबको पैदा करने वाला है।”
- ईश्वर निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनका कहना था कि ईश्वर का कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। वह स्वयंभू, अकाल अगम्य तथा अकाल मूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जा सकती।
- ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया है। उनके अनुसार ईश्वर सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मंदिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बंद नहीं रखा जा सकता। तभी तो वह कहते हैं
“दूजा काहे सिमरिए, जन्मे ते मर जाए।
एको सिमरो नानका जो जल थल रिहा समाय।”
- ईश्वर दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की अवश्य सहायता करता है। वह उनके हृदय में निवास करता है। जो लोग अपने आपको ईश्वर के प्रति समर्पित कर देते हैं, उनके सुख-दुःख का ध्यान ईश्वर स्वयं रखता है। वह अपनी असीमित दया से उन्हें आनंदित करता रहता है।
- ईश्वर महान् तथा सर्वोच्च है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सबसे महान् और सर्वोच्च है। मनुष्य के लिए उसकी महानता का वर्णन करना कठिन ही नहीं, अपितु असंभव है। अपनी महानता का रहस्य स्वयं ईश्वर ही जानता है। इस विषय में नानक जी लिखते हैं, “नानक वडा आखीए आपै जाणै आप।” अनेक लोगों ने ईश्वर की महानता का बखान करने का प्रयास किया है, परंतु कोई भी उसकी सर्वोच्चता को नहीं छू सका।
- ईश्वर की आज्ञा का महत्त्व-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में ईश्वर की आज्ञा अथवा हुक्म का बहुत महत्त्व है। उनके अनुसार सृष्टि का प्रत्येक कार्य उसी (ईश्वर) के हुक्म से होता है। अतः हमें उसके हुक्म को ‘मिट्ठा भाणा’ समझकर स्वीकार कर लेना चाहिए।
प्रश्न 5.
एक शिक्षक तथा सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी का वर्णन करो।
उत्तर-
I. महान् शिक्षक के रूप में
1. सत्य के प्रचारक-गुरु नानक देव जी एक महान् शिक्षक थे। कहते हैं कि लगभग 30 वर्ष की आयु में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके पश्चात् उन्होंने देश-विदेश में सच्चे ज्ञान का प्रचार किया। उन्होंने ईश्वर के संदेश को पंजाब के कोने-कोने में फैलाने का प्रयत्न किया। प्रत्येक स्थान पर उनके व्यक्तित्व तथा बाणी का लोगों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। गुरु नानक देव जी ने लोगों को मोह-माया, स्वार्थ तथा लोभ को छोड़ने की शिक्षा दी और उन्हें आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा दी।
गुरु नानक देव जी के उपदेश देने का ढंग बहुत ही अच्छा था। वह लोगों को बड़ी सरल भाषा में उपदेश देते थे। वह न तो गूढ दर्शन का प्रचार करते थे और न ही किसी प्रकार के वाद-विवाद में पड़ते थे। वह जिन सिद्धांतों पर स्वयं चलते थे उन्हीं का लोगों में प्रचार भी करते थे।
2. सब के गुरु-गुरु नानक देव जी के उपदेश किसी विशेष संप्रदाय, स्थान अथवा लोगों तक सीमित नहीं थे, अपितु उनकी शिक्षाएं तो सारे संसार के लिए थीं। इस विषय में प्रोफैसर करतार सिंह के शब्द भी उल्लेखनीय हैं। वह लिखते हैं-“उनकी (गुरु नानक देव जी) शिक्षा किसी विशेष काल के लिए नहीं थी। उनका दैवी उपदेश सदा अमर रहेगा। उनके उपदेश इतने विशाल तथा बौद्धिकतापूर्ण थे कि आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा भी उन पर टीका टिप्पणी नहीं कर सकती।” उनकी शिक्षाओं का उद्देश्य मानव-कल्याण था। वास्तव में, मानवता की भलाई के लिए ही उन्होंने चीन, तिब्बत, अरब आदि देशों की कठिन यात्राएं कीं।
II. सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में
गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी। टाइनबी (Toynbee) जैसा इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं है। वह लिखता है कि सिक्ख धर्म हिंदू तथा इस्लाम धर्म के सिद्धांतों का मिश्रण मात्र था, परंतु टाइनबी का यह विचार ठीक नहीं है। गुरु जी के उपदेशों में बहुत-से मौलिक सिद्धांत ऐसे भी थे जो न तो हिंदू धर्म से लिए गए थे और न ही इस्लाम धर्म से। उदाहरणतया, गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ की संस्थाओं को स्थापित किया। इसके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी ने अपने किसी भी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी न बना कर भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ऐसा करके गुरु जी ने गुरु संस्था को एक विशेष रूप दिया और अपने इन कार्यों से उन्होंने सिक्ख धर्म की नींव रखी।
प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक अवस्था का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी से पहले (16वीं शताब्दी के आरंभ में ) पंजाब की राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी। यह प्रदेश उन दिनों लाहौर प्रांत के नाम से प्रसिद्ध था और दिल्ली सल्तनत का अंग था। परंतु दिल्ली सल्तनत की शान अब जाती रही थी। इसलिये केंद्रीय सत्ता की कमी के कारण पंजाब के शासन में शिथिलता आ गई थी। संक्षेप में, 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब के राजनीतिक जीवन की झांकी इस प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है
- निरंकुश शासन-उस समय पंजाब में निरंकुश शासन था। इस काल में दिल्ली के सभी सुल्तान (सिकंदर लोधी, इब्राहिम लोधी) निरंकुश थे। राज्य की सभी शक्तियां उन्हीं के हाथों में केंद्रित थीं। उनकी इच्छा ही कानून था। ऐसे निरंकुश शासक के अधीन प्रजा के अधिकारों की कल्पना करना भी व्यर्थ था।
- राजनीतिक अराजकता-लोधी शासकों के अधीन सारा देश षड्यंत्रों का अखाड़ा बना हुआ था। सिकंदर लोधी के शासन काल के अंतिम वर्षों में सारे देश में विद्रोह होने लगे। इब्राहिम लोधी के काल में तो इन विद्रोहों ने और भी भयंकर रूप धारण कर लिया। उसके सरदार तथा दरबारी उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे थे। प्रांतीय शासक या तो अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के प्रयास में थे या फिर सल्तनत के अन्य दावेदारों का पक्ष ले रहे थे। परंतु वे जानते थे कि पंजाब पर अधिकार किए बिना कोई भी व्यक्ति दिल्ली का सिंहासन नहीं पा सकता था। अतः सभी सूबेदारों की दृष्टि पंजाब पर ही टिकी हुई थी। फलस्वरूप सारा पंजाब अराजकता की लपेट में आ गया।
- अन्याय का नंगा नाच-16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब में अन्याय का नंगा नाच हो रहा था। शासक वर्ग भोग-विलास में मग्न था। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारी हो चुके थे तथा अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते थे। इन परिस्थितियों में उनसे न्याय की आशा करना व्यर्थ था। गुरु नानक देव जी ने कहा था, “न्याय दुनिया से उड़ गया है।” वह आगे कहते हैं, “कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो रिश्वत लेता या देता न हो। शासक भी तभी न्याय देता है जब उसकी मुट्ठी गर्म कर दी जाए।”
- युद्ध-इस काल में पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना हुआ था। सभी पंजाब पर अपना अधिकार जमा कर दिल्ली की सत्ता हथियाने के प्रयास में थे। सरदारों, सूबेदारों तथा दरबारियों के षड्यंत्रों तथा महत्त्वाकांक्षाओं ने अनेक युद्धों को जन्म दिया। इस समय इब्राहिम लोधी और दौलत खां में संघर्ष चला। यहां बाबर ने आक्रमण आरंभ किए।
प्रश्न 7.
बाबर की पंजाब पर विजय का वर्णन करो।
उतार-
बाबर की पंजाब विजय पानीपत की पहली लड़ाई का परिणाम थी। यह लड़ाई 1526 ई० में बाबर तथा दिल्ल के सुल्तान इब्राहिम लोधी के बीच हुई। इसमें बाबर विजयी रहा और पंजाब पर उसका अधिकार हो गया।
बाबर का आक्रमण-नवंबर, 1525 ई० में बाबर 12000 सैनिकों सहित काबुल से पंजाब की ओर बढ़ा। मार्ग में दौलत खां लोधी को पराजित करता हुआ वह दिल्ली की ओर बढ़ा। दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोधी एक लाख सेना लेकर उसके विरुद्ध उत्तर पश्चिम की ओर निकल पड़ा। उसकी सेना चार भागों में बंटी हुई थी-आगे रहने वाली सैनिक टुकड़ी, केंद्रीय सेना, दाईं ओर की सैनिक टुकड़ी तथा बाईं ओर की सैनिक टुकड़ी। सेना के आगे लगभग 5000 हाथी थे। दोनों पक्षों की सेनाओं का पानीपत के मैदान में सामना हुआ।
युद्ध का आरंभ-पहले आठ दिन तक किसी ओर से भी कोई आक्रमण नहीं हुआ। परंतु 21 अप्रैल, 1526 ई० की प्रातः इब्राहिम लोधी की सेना ने बाबर पर आक्रमण कर दिया। बाबर के तोपचियों ने भी लोधी सेना पर गोले बरसाने आरंभ कर दिए। बाबर की तुलुगमा सेना ने आगे बढ़कर शत्रु को घेर लिया । बाबर की सेना के दाएं तथा बाएं पक्ष आगे बढ़े और उन्होंने ज़बरदस्त आक्रमण किया। इब्राहिम लोधी की सेनाएं चारों ओर से घिर गईं। वे न तो आगे बढ़ सकती थीं और न पीछे हट सकती थीं। इसी बीच इब्राहिम लोधी के हाथी घायल होकर पीछे की ओर दौड़े और उन्होंने अपने ही सैनिकों को कुचल डाला। देखते ही देखते पानीपत के मैदान में लाशों के ढेर लग गए। दोपहर तक युद्ध समाप्त हो गया। इब्राहिम लोधी हज़ारों लाशों के मध्य मृतक पाया गया। बाबर को पंजाब पर पूर्ण विजय प्राप्त हुई।