PSEB 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता

→ पृथ्वी पर लगभग 10 मिलियन सजीवों की जातियां पायी जाती हैं। परंतु इनके 1/3 भाग की ही अभी तक पहचान हो चुकी है।

→ सभी सजीव संरचना, आकार तथा जीने के ढंग अनुसार एक-दूसरे से भिन्न होते हैं।

→ सजीवों की विभिन्नता या विविधता का अध्ययन करने के लिए उनके समूह बनाना, उनके विकास के संबंधों को स्थापित करना तथा प्रत्येक सजीव को जैविक नाम देना आसान होता है।

→ ‘वर्गीकी’ (Taxonomy) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें जीवों के वर्गीकरण तथा उनके विकास संबंधों का अध्ययन किया जाता है।

→ वर्गीकरण में जीवधारियों को उनके संबंधों के आधार पर विभिन्न समूहों में विभाजित किया जाता है।

→ लिनियस को वर्गीकी का जनक कहा जाता है। उसने नामकरण की द्विनाम पद्धति विकसित की तथा जीवों को दो जगतों में विभाजित किया।

→ लिनियस द्विविपद पद्यति के अनुसार सभी जीवों को वैज्ञानिक नाम दिए जाते हैं। प्रत्येक जंतु तथा पौधे को दो नाम दिए गए हैं। एक प्रजाती (Genus) का नाम तथा दूसरा जाति (Species) का नाम। प्रजाती नाम वंश का नाम होता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता

→ जगत् फाइलम, क्लास, आर्डर, फैमिली, वंश तथा जाति वर्गीकरण की विभिन्न श्रेणियां हैं।

→ पादप जगत् को क्रिप्टोगैमिया (Cryptogams) या फैनिरोगैमिया (Phanerogams) में विभाजित किया गया है। क्रिप्टोगैमिया में फाइलम थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा तथा टैरिडोफाइटा रखे गए।

→ पुष्पी पादप फाइलम स्पर्मेटोफाइटा (Phylum Spermatophyta) में शामिल किए गए।

→ जंतु जगत् (Animalia) में बहुकोशिकीय मेटाजोन शामिल हैं। इनमें श्रम विभाजन होता है। इनमें कुछ परजीवी भी होते हैं।

→ अरीढ़धारी (Invertibrates) जंतुओं को फाइलम प्रोटोजोआ, पोरीफेरा, सीलेंट्रेटा, प्लैटीहैलमिन्थीज, नीमेटोडा आर्थोपोडा, एनीलीडा, मोलस्का, एकाइनोडर्मेटा तथा हेमीकार्डेटा संघों में बांटा गया है।

→ प्रोटोजोआ का आकार निश्चित अथवा अनिश्चित होता है। ये स्वतंत्र जल में पाए जाते हैं तथा ये एक | कोशिकीय सूक्ष्मदर्शीय जंतु हैं।

→ पोरीफेरा बहुकोशिकीय जंतु हैं तथा इनकी देहभित्ति दो स्तरों की बनी होती है।

→ कार्डेट मत्स्य, उभयचर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी में विभाजित किए गए हैं।

→ थैलोफाइटा में शैवाल तथा कवक शामिल हैं। शैवालों में क्लोरोफिल होता है तथा ये आत्मपोषी होते हैं। शैवाल एक कोशिकीय तथा बहुकोशिकीय होते हैं। इनकी कोशिका भित्ति सेल्यूलोज की बनी हुई होती है।

→ कवकों में पर्णहरित नहीं होता तथा ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते। ये परजीवी, मृतोपजीवी अथवा विषमपोषी होते हैं। इनकी कोशिका भित्ति काइटन अथवा कवक सेल्यूलोज अथवा दोनों की बनी हुई होती है।

→ लाइकेन कवक तथा शैवाल के परस्पर सहयोग से बनने वाले सहजीवी पौधे हैं। ये पौधों जैसे प्रतीत होती हैं।

→ एम्ब्रियोफाइटा में ब्रोयाफाइटा तथा ट्रेकियोफाइटा शामिल हैं। ट्रेकियोफाइटा को तीन वर्गों-फिलीसिनी, जिम्नोस्पर्मी तथा एंजियोस्पर्मी में बांटा गया है।

→ वर्गीकरण पद्धति (Systematics)-सजीवों की किस्मों, सजीवों की विभिन्नता तथा उनमें परस्पर विकास संबंधों के अध्ययन को वर्गीकरण पद्धति कहते हैं।

→ वर्गीकी (Taxonomy)-यह जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें जीवों का वर्गीकरण किया जाता है।

→ स्पीशीज (Species)-निकट संबंध व संरचना वाले जीवों का समूह जो परस्पर लैंगिक जनन करके जनन में सक्षम संतानों को जन्म दे, उसे स्पीशीज कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता

→ निषेचन (Fertilization)-नर तथा मादा युग्मकों के संलयन की क्रिया को निषेचन कहते हैं।

→ वर्गीकरण (Classification)-संबंधों के आधार पर जीवों को समूहों में विकसित करने की पद्धति को वर्गीकरण कहते हैं।

→ दविनाम नामकरण (Binomial Nomenclature)-जंतुओं तथा पौधों को दो शब्दों जीन्स तथा स्पीशीज में नाम देने की पद्धति को दविनाम नामकरण कहते हैं।

→ द्विबीज पत्री (Dicotyledonous)-दो बीज पत्रों वाले आवृत बीजों को द्विबीज पत्री कहते हैं।

→ बीजांड (Ovule)-वह संरचना जिसमें पौधों में मादा गैमिटोफाइट होता है, उसे बीजांड कहते हैं।

→ गेमिटोफाइट (Gametophyte)-पौधों की अगुणित युग्मक उत्पन्न करने वाली अवस्था गेमिटोफाइट कहलाती है।

→ एक वर्षी (Annuals)-ऐसे पौधे जिनका जीवन चक्र एक-ही मौसम में पूरा हो, उन्हें एक वर्षी पौधे कहते हैं।

→ माइसीलियस (Mycelium)-कवक तंतुओं का जाल जो कवक का बीज भाग होता है, उसे माइसीलियस कहते हैं।

→ हाइफी (Hyphae)-कवक के वे तंतु जो एक या एक-से-अधिक कोशिकाओं के बने होते हैं, उन्हें हाइफी कहते हैं।

→ मृतोपजीवी (Saprophytes)-ऐसा जीव जो गली-सड़ी वस्तुओं से अपना भोजन प्राप्त करता है, उसे मृतोपजीवी कहते हैं।

→ नोटोकार्ड (Notochord)-यह एक ऐसी ठोस, बेलनाकार, छड़नुमा संरचना है जो वेक्युलेटिड कोशिकाओं की बनी हुई होती है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

→ एक समान कार्य करने वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक (Tissue) कहा जाता है। ऊतक में एक ही प्रकार की कोशिकाएं भी हो सकती हैं एवं भिन्न-भिन्न प्रकार की कोशिकाएं भी हो सकती हैं। ये ऊतक मिश्रित कोशिकाओं के भी हो सकते हैं।

→ ऊतकों के अध्ययन को हिस्टोलोजी (Histology) कहते हैं।

→ विभिन्न प्रकार के ऊतक मिलकर अंग (Organ) बनाते हैं जिसका एक विशेष कार्य होता है।

→ विभिन्न अंग मिलकर अंग-प्रणाली (Organ System) बनाते हैं।

→ उच्च पौधों और जंतुओं में विभिन्न प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं जो विशेष तथा विभिन्न कार्य संपन्न करते हैं।

→ पादप ऊतकों को दो समूहों में बांटा जा सकता है-

  1. विभाज्योतकी ऊतक (Meristematic tissue),
  2. स्थायी ऊतक (Permanent tissue)।

→ विभाज्योतकी ऊतक पौधों के वर्धी प्रदेशों में पाए जाते हैं। इनमें लगातार विभाजन होता रहता है। इनकी कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता होती है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

→ विभाज्योतकी ऊतक की कोशिकाएं समान होती हैं। ये गोलाकार, अंडाकार, बहुभुजी तथा आयताकार आकृति की होती हैं।

→ विभाज्योतकी ऊतक में लगातार कई कोशिकाओं का निर्माण होता रहता है।

→ कोशिका विभाजन के तल के आधार पर विभाज्योतकी ऊतक दो प्रकार के होते हैं-

  1. प्राथमिक विभाज्योतकी (Primary meristem)
  2. द्वितीयक विभाज्योतकी (Secondary meristem)।

→ स्थिति के आधार पर विभाज्योतकी ऊतक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

  1. शीर्षस्थ विभाज्योतकी ऊतक (Apical meristem)
  2. अंतर्वेशी विभाज्योतकी ऊतक (Intercalary meristem)
  3. पार्श्व विभाज्योतकी ऊतक (Lateral meristem)।

→ स्थायी ऊतकों में विभाजन नहीं होता तथा यह उन कोशिकाओं के बने होते हैं जिनमें विभाजित होने की क्षमता नष्ट हो जाती है।

→ स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते हैं-

  1. साधारण ऊतक (Simple tissue),
  2. जटिल ऊतक (Complex tissue)।

→ साधारण ऊतक एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बनते हैं। इनकी संरचना तथा कार्य समान होते हैं। कोशिका भित्ति की संरचना के आधार पर इन्हें निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. मृदुतक (Parenchyma)
  2. स्थूलकोण (Collenchyma)
  3. दृढ़ोत्तक (Sclerenchyma)।

→ जटिल ऊतक विभिन्न आकार तथा माप की कोशिकाओं से मिलकर बनते हैं। ये जाइलम तथा फ्लोएम हैं।

→ जंतु ऊतक को दो समूहों में बांटा गया है-

  1. एककोशिकीय (Unicellular) तथा
  2. बहुकोशिकीय (Multicellular)।

→ बहुकोशिकीय ऊतकों में समान कोशिकाएं समान कार्य करती हैं। ऊतक मिलकर अंग बनाते हैं और विभिन्न अंग मिलकर अंग तंत्र (Organ system) बनाते हैं।

→ जंतुओं में चार प्रकार के प्राथमिक ऊतक पाए जाते हैं-

  1. एपीथिलियमी (Epithelial)
  2. संयोजी (Connective),
  3. पेशीय (Muscular),
  4. तंत्रिका ऊतक (Nervous tissue)।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

→ एपीथीलियमी ऊतक मुख्यतया सुरक्षा प्रदान करता है।

→ पेशी ऊतक संकुचनशील होता है। यह हिल-जुल तथा गति में सहायता करता है।

→ संयोजी ऊतक विभिन्न संरचनाओं को परस्पर जोड़ता है।

→ तंत्रिका ऊतक तंत्रिका संदेशवाहक का कार्य करता है।

→ ऊतक (Tissue)-यह समान उत्पत्ति, संरचना तथा कार्य करने वाली कोशिकाओं का एक समूह होता है।

→ विभाज्योतक ऊतक (Meristematic tissue)-ये पौधों के वर्धी प्रदेशों में पाए जाते हैं। ये कोशिकाओं का ऐसा समूह है जो लगातार विभाजन की दशा में रहता है तथा नई कोशिकाएं उत्पन्न करता है।

→ प्राथमिक विभाज्योतकी (Primary meristem)-इस प्रकार के ऊतकों की कोशिकाएं सदा विभाजित होती रहती हैं। ये ऊतक जड़ों, तनों के शीर्ष, द्विबीजपत्री तनों के संवहन बंडलों में पाए जाते हैं।

→ जाइलम (Xylem)-यह संवहन ऊतक है तथा यह जल का संवहन पौधे के शीर्ष भाग तक करता है।

→ फ्लोएम (Phloem)-यह भी जाइलम की तरह संवहन ऊतक है। यह पत्तियों में निर्मित खाद्य पदार्थों को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है।

→ ट्रेकीड्स (Tracheids)-यह जाइलम ऊतक का एक अंश है जो जल का संवहन करता है। ट्रेकीड्स एककोशीय, लंबे लिगनिन से ढकी हुई नुकीले सिरे वाली कोशिकाएँ हैं।

→ वाहिकाएं (Vessels)-ये मृत संकरी नली के समान रचनाएं होती हैं।

→ चालनी नलिकाएं (Sieve tubes)-ये नलिका सदृश, केंद्रविहीन, महीन भित्ति वाली जीवित कोशिकाएं हैं।

→ सखी कोशिकाएं (Companion cells)-ये महीन भित्ति वाली कोशिकाएं चालनी नलिकाओं से जुड़ी होती हैं। इनमें सभी अवस्थाओं में केंद्रक पाया जाता है।

→ फ्लोएम मृदुतक (Phloem Parenchyma)-ये फ्लोएम में पाई जाने वाली महीन भित्ति वाली बेलनाकार कोशिकाएं हैं।

→ टेंडन (Tendon)-यह ऐसा संयोजी ऊतक है जिसमें लोच नहीं होती। यह पेशी को अस्थि से जोडता है।

→ सारकोलैमा (Sarcolemma)-यह पेशीय कोशिकाओं का बाह्य आवरण है।

→ सारकोप्लाज्म (Sarcoplasm)-यह पेशीय कोशिकाओं का कोशिका द्रव्य है।

→ सारकोमीयर (Sarcomere)-यह पेशीय ऊतक की संकुचन इकाई है।

→ क्लोरेनकाइमा (Chlorenchyma) ये महीन भित्ति वाली कोशिकाएं हैं जिनमें हरित लवण होता है जो प्रकाश-संश्लेषण का कार्य करता है।

→ एक्टिन (Actin)-यह पेशीय कोशिकाओं में पाई जाने वाली प्रोटीन है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

→ अस्थि मज्जा (Bone marrow)-यह लंबी अस्थियों की मज्जा गुहा में पाया जाने वाला ऊतक है जहां पर कणिकाओं का निर्माण होता है।

→ उपास्थि (Cartilage)-यह एक लचीला कंकाल ऊतक है।

→ न्यूरीलैमा (Neurilemma)-यह तंत्रिका ऊतक की एक कोमल झिल्ली है।

→ लिगामेंट (Ligament)-यह संयोजी ऊतक का एक बंध है जो दो अस्थियों को आपस में जोड़ता है।

→ श्वान कोशिकाएं (Schawann cells)-ये तंत्रिका ऊतक की कोशिकाएं हैं जो तंत्रिका तंतु में न्यूरीलैमा आच्छद के नीचे पायी जाती हैं।

→ निसल्लस कण (Nissl’s Granules)-यह दविध्रुवीय और बहुध्रुवीय न्यूरॉन की कोशिका काय में केंद्रक के चारों ओर पाए जाने वाले गोलकाय हैं।

→ श्वान कोशिकाएं (Schavann cells)-यह तंत्रिका ऊतक की कोशिकाएं हैं जो तन्त्रिका तंतु में न्यूरीलैमा आच्छद के नीचे पायी जाती हैं।

→ गहरी ‘ए’ पट्टिकाएं (Dark ‘A’ bands)-यह गहरे रंग की अनुप्रस्थ पट्टियां हैं जो पेशीय ऊतक में पाई जाती हैं।

→ हल्की ‘आई’ पट्टिकाएं (Light I’ bands)-यह एक्टिन तंतुओं से बनने वाली हल्के रंग की अनुप्रस्थ पटियां हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई

→ सभी सजीव जो हमें आस-पास दिखाई देते हैं, जटिल संरचनाएं हैं जो तालमेल वाले असंख्य डिब्बों से बने होते हैं। इन डिब्बों को आमतौर पर कोशिका (Cell) कहा जाता है।

→ सजीव एक या अधिक कोशिकाओं से बने होते हैं। इसलिए सजीवों में कोशिका जीवन की इकाई है।

→ कोशिका सजीवों की संरचना एवं कार्य की सबसे छोटी इकाई है।

→ कोशिका में जनन प्रक्रिया, उत्परिवर्तन त्था उत्तेजना प्रतिक्रिया आदि की योग्यता होती है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जीवन कोशिकाओं द्वारा ही कायम रहता है।

→ राबर्ट हुक ने सर्वप्रथम (1665 ई० में) कोशिकाओं को स्वनिर्मित सूक्ष्मदर्शी द्वारा कॉर्क की पतली काट में देखा। उसने इन खाली कोष्ठकों को कोशिका (Cell) का नाम दिया। इसके पश्चात् एंटनीवोन ल्यूवेनहॉक ने (1674 में) प्रोटोज़ोआ, शुक्राणुओं, जीवाणुओं तथा लाल रक्त कोशिकाओं (Erythrocytes) का अध्ययन किया।

→ जैव संगठन का सबसे उच्च स्तर जीवमंडल है। इसमें संसार के सभी जीवित पदार्थ शामिल हैं।

→ सभी जीवों में समान संगठन होता है। सजीव जगत् में संगठन के विभिन्न स्तर होते हैं। संगठन के विभिन्न स्तरों को निम्नलिखित अनुसार प्रदर्शित किया जा सकता हैपरमाणु → अणु → कोशिका → ऊतक → अंग → अंग तंत्र → जीव

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई

→ राबर्ट हुक ने (1665) में स्वनिर्मित सूक्ष्मदर्शी द्वारा कॉर्क की पतली काट का अध्ययन किया। उसने केवल मृत कोशिकाओं को देखा जो कि कोशिका भित्ति द्वारा घिरी हुई थीं। इनमें केवल वायु भरी हुई थी।

→ इसके पश्चात् 1831 में राबर्ट ब्राऊन ने आर्किड पौधों की कोशिकाओं में केंद्रक की खोज की। परकिंजे ने 1839 में कोशिका के इस जीवित द्रव पदार्थ को जीवद्रव्य (Protoplasm) का नाम दिया।

→ एक कोशिका से पूर्ण शरीर बनता है। कुछ जीव एक कोशिकीय तथा कुछ जीव बहुकोशिकीय होते हैं। जीवाणु एक कोशिकीय जीव हैं। क्लेमाइडोमोनास एक कोशिकीय शैवाल हैं। अमीबा, पैरामीशियम तथा यूग्लीना एक कोशिकीय जीव हैं।

→ उच्च पौधों तथा जंतुओं का शरीर अनेकों कोशिकाओं का बना होता है। इन्हें बहकोशिकीय जीव कहते हैं। हाइड्रा, स्पंज, पुष्पी पादप आदि बहुकोशिकीय जीव हैं। परंतु इन सभी का जीवन एक कोशिका से ही प्रारंभ होता है।

→ कोशिका जीवन की मूल इकाई है। जीव की सभी क्रियाएं जैसे कि जनन, उपापचय, चेतनता, प्रचलन आदि कोशिकाओं द्वारा ही होती हैं।

→ मनुष्य में कोशिकाओं की संख्या एक से 100 अरबों तक होती है। कुछ गेंदनुमा जीवाणु 0.2 से 0.5 माइक्रॉन तक छोटे होते हैं। (1 माइक्रॉन = \(\frac {1}{1000}\) मि० मी०) होता है। कुछ तंत्रिका कोशिकाएं कई फीट तक लंबी होती हैं। कोशिकाओं का माप 5 माइक्रॉन से 30 माइक्रॉन तक होता है।

→ कोशिकाएं जीवन की संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई हैं। कोशिकाओं की विभिन्न आकृतियां होती हैं। कुछ कोशिकाएं जैसे अमीबा अपने आकार को लगातार बदलती रहती हैं। कोशिकाओं के निम्नलिखित भाग होते हैं-
कोशिका भित्ति (Cell Wall)- यह बाह्य आवरण अजीवित पदार्थ सेल्यूलोज़ की बनी होती है। यह जल के लिए पारगम्य होती है। यह कोशिका को आकार प्रदान करती है। यह कोशिका की सुरक्षा करती है तथा ऊतकों को मजबूत और दृढ़ बनाती है।

कोशिका झिल्ली (Cell Membrane)-पादप कोशिका में कोशिका भित्ति के नीचे तथा जंतु कोशिका में सबसे बाहरी आवरण कोशिका झिल्ली का बना होता है। यह लिपिड, वसा तथा कार्बोहाइड्रेट की बनी हुई होती है।

जीव द्रव्य (Protoplasm)-कोशिका भित्ति और कोशिकीय झिल्ली के नीचे पाए जाने वाले पदार्थ को जीव द्रव्य (Protoplasm) कहते हैं। यह चिपचिपा, अल्प पारदर्शी, गाढ़ा तथा अर्ध ठोस पदार्थ है। इसके दो भाग होते हैं-

  1. कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) तथा
  2. केंद्रक (Nucleus) ।

कोशिका द्रव्य (Cytoplasm)- यह अर्ध तरल जैलीनुमा कोशिका का जीवित भाग है। यह स्वभाव में कोलायडी होता है। यह कोशिका के सभी जैविक कार्य संपन्न करता है।

केंद्रक (Nucleus)- यह कोशिका के केंद्र में पायी जाती है। (इसके चारों ओर अपनी एक झिल्ली होती है।) केंद्रक में केंद्रक द्रव्य, केंद्रिका तथा गुण-सूत्र पाए जाते हैं। गुणसूत्र जीनों के वाहक होते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई

→ केंद्रक के बाहर नलिका रूपी संरचनाएं पाई जाती हैं। जिन्हें अंतः द्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) कहते हैं। कुछ के किनारों पर राइबोसोम होते हैं जो प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करते हैं।

→ गुण-सूत्र जीन के वाहकों कम करते हैं।

→ क्लोरोप्लास्ट केवल पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं। ये प्रकाश संश्लेषण का कार्य करते हैं। जंतु कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट नहीं होते।

→ कोशिकाओं में माइटोकांड्रिया (Mitochondria) पाए जाते हैं। यह भोजन का संपूर्ण ऑक्सीकरण करते हैं जिससे कोशिका को बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है। इसी कारण से इन्हें कोशिका का पावर हाऊस भी कहा जाता है।

→ इसके अतिरिक्त कोशिका में गाल्जीकाय पदार्थ (Golgi bodies), धानियां (Vacuoles), कोशिका रस (Cell Sap), लवण तथा वर्णक (Pigments) भी पाए जाते हैं।

→ जंतु कोशिकाओं तथा जीवाणु कोशिकाओं की सतह पर कुछ बारीक संरचनाएं होती हैं जिन्हें सिलिया (Cilia) कहते हैं।

→ असीमकेंद्री कोशिकाएं (Prokaryotic cells)-इन कोशिकाओं में केंद्रक स्पष्ट नहीं होता। इसे न्यूक्लीओइड (Nucleoid) कहते हैं। केंद्रक कला अनुपस्थित होती है।
उदाहरण – जीवाणु तथा सायनो बैक्टीरिया।

→ समीमकेंद्री कोशिकाएं (Eukaryotic cells)-इनमें केंद्रक स्पष्ट रूप में पाया जाता है जो केंद्रक कला द्वारा घिरा होता है। इनमें कोशिका द्रव्य तथा केंद्रक स्पष्ट होते हैं। उदाहरण-जंतु तथा पादप कोशिकाएं।

→ अंगक (Organelles)-यह सूक्ष्म कोशिका द्रव्यी संरचनाएं हैं जो विभिन्न कार्य संपन्न करती हैं।

→ ल्यूकोप्लास्ट (Leucoplast)-ऐसे रंगहीन लवण जिनमें प्रोटीन, लिपिड तथा मांड का संचय होता हो, उन्हें ल्यूकोप्लास्ट कहते हैं।

→ तारक केंद्र (Centriole)-जंतु कोशिका में पाई जाने वाली बिंदुनुमा संरचना जो कोशिका विभाजन में भाग लेती है, इसे तारक केंद्र कहते हैं।

→ जीन (Genes)-क्रोमोसोमों पर स्थित विशेष इकाइयां, जो गुणों को नियंत्रित करती हैं तथा आनुवंशिकता के लिए उत्तरदायी हैं, उन्हें जीन कहते हैं।

→ लाइसोसोम (Lysosome)-यह एक सूक्ष्म एकहरी झिल्ली युक्त पाचक विकरों से भरी थैलीनुमा संरचना है। इन्हें आत्मघाती थैलियां भी कहते हैं।

→ डी० एन० ए० (D.N.A.)-यह यूकैरियोटिक कोशिकाओं के केंद्रक में पाया जाने वाला एक डीऑक्सी राइबोन्यूकिलिक अम्ल है।

→ आर० एन० ए० (R.N.A.)-यह राइबोन्यूकिलिक अम्ल है जो मुख्य रूप से न्यूकलियो प्रोटीन के एक सूत्र का बना होता है। यह आनुवंशिका सूचना के कोशिका में प्रदर्शन से संबंध रखता है।

→ एस्टर (Aster)-पश्चावस्था के दौरान प्रत्येक कोशिकीय ध्रुव से निकलने वाले सूक्ष्म नलिका रेशे के समूह ।

→ बाइवेलेंट (Bivalent) एक होमोलोगस क्रोमोसोम का जुड़ा हुआ जोड़ा।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 5 जीवन की मौलिक इकाई

→ सैंट्रोमीयर (Centromere)-दो समान क्रोमेटिड का जुड़ने का बिन्दु और क्रोमोसोम का तुर्क रेशे से जुड़ने का स्थान।

→ क्रोमेटिड (Chromatid)-क्रोमोसोम के दो समान लंबाकार अर्ध भागों में से एक।

→ क्रोसिंग ओवर (Crossing Over)-वह प्रक्रिया जिसमें होमोलोगस क्रोमोसोम के असमान क्रोमेटिड के बीच जीनों (Genes) का आदान-प्रदान होता है।

→ क्याज्मा (Chiasma)-क्रोसिंग ओवर के कारण पूर्वावस्था-1 में दो क्रोमेटिड का क्रोसिंग होना।

→ डिप्लोइड (Diploid)-एक जीव जिसमें क्रोमोसोम के दो पूर्ण सैट हों। इसको 2N द्वारा प्रदर्शित करते हैं। यह कायिका कोशिकाओं का लक्षण है।

→ हेप्लोइड (Haploid)-वह जीव अथवा कोशिका जिसमें क्रोमोसोम का एक ही सैट हो। इसको N से भी प्रदर्शित करते हैं। यह युग्मकों का लक्षण है।

→ होमोलोगस क्रोमोसोम (Homologous Chromosome)-क्रोमोसोम का एक समान माप और आकार का जोड़ा जिस पर किसी लक्षाः को नियंत्रित करने वाले जीन (Genes) होते हैं। ऐसे जोड़े का एक सदस्य दोनों जनकों में से किसी एक को प्राप्त होता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 4 परमाणु की संरचना

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 4 परमाणु की संरचना

→ 19वीं शताब्दी तक जे० जे० टॉमसन ने पता लगाया कि परमाणु साधारण तथा अविभाज्य कण नहीं है परंतु इसमें एक अवपरमाणुक कण इलैक्ट्रॉन उपस्थित है।

→ इलैक्ट्रॉन की जानकारी से पहले ई० गोल्डस्टीन ने 1886 में एक नई विकिरण की खोज की जिसका नाम “कैनाल रे” था।

→ कैनाल किरणें धन आवेशित थीं जिनके द्वारा धन आवेशित अवपरमाणुक कण प्रोटॉन का पता लगाया गया।

→ प्रोटॉन का आवेश, इलैक्ट्रॉन के आवेश के बराबर परंतु विपरीत प्रकृति का था। प्रोट्रॉन का द्रव्यमान इलैक्ट्रॉन के द्रव्यमान का 2000 गुणा था।

→ साधारणतः प्रोटॉन को ‘p’ तथा इलैक्ट्रॉन को ‘e’ से प्रदर्शित किया जाता है।

→ प्रोटॉन का आवेश +1 तथा इलैक्ट्रॉन का आवेश -1 माना जाता है।

→ जे० जे० टॉमसन ने सुझाव दिया था कि परमाणु धन आवेशित गोले का बना होता है तथा इलैक्ट्रॉन धन आवेशित गोले में फँसे होते हैं । ऋणात्मक तथा धनात्मक आवेश मात्रा में समान होते हैं, इसलिए परमाणु विद्युतीय रूप से उदासीन होते हैं।

→ अल्फा (α) कण दो आवेशित हीलियम कण \({ }_{2}^{4} \mathrm{He}\) होते हैं तथा वे धन आवेशित होते हैं।

→ रदरफोर्ड के अल्फा कणों के प्रकीर्णन प्रयोग ने परमाणु के न्यूक्लियस की खोज की।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 4 परमाणु की संरचना

→ ई० रदरफोर्ड को रेडियो एक्टिवता पर अपने योगदान तथा सोने की पत्री द्वारा परमाणु के नाभिक की खोज के लिए नोबल पुरस्कार मिला।

→ अपने प्रयोगों के आधार पर रदरफोर्ड ने परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया जिसके अनुसार परमाणु का केंद्र धन आवेशित होता है जिसे नाभिक कहते हैं। परमाणु का सारा द्रव्यमान इस भाग में उपस्थित होता है। नाभिक के चारों ओर इलैक्ट्रॉन निश्चित आर्बिट (पथों) में चक्कर लगाते हैं।

→ नील बोहर द्वारा दिया गया परमाणु मॉडल अधिक सफल था। उन्होंने सुझाव दिया कि इलैक्ट्रॉन न्यूक्लियस के चारों ओर तथा निश्चित ऊर्जा के साथ विभिन्न शैलों (कोशों) में बँटे होते हैं। यदि परमाणु का बाह्यतम कोश भर जाता है तो परमाणु स्थिर हो जाता है।

→ जे० चैडविक ने परमाणु के अंदर तीसरे अवपरमाणुक कण न्यूट्रॉन की खोज की। परमाणु के तीन अवपरमाणुक कण-प्रोटॉन, इलैक्ट्रॉन तथा न्यूट्रॉन होते हैं। प्रोटॉन धन आवेशित, इलैक्ट्रॉन ऋण आवेशित तथा न्यूट्रॉन अनावेशित कण हैं । इलैक्ट्रॉन का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान का \(\frac{1}{1873}\) गुना होता है। प्रत्येक प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन का द्रव्यमान इकाई माना गया है।

→ परमाणु कोशों (शैलों) के अंदर से बाहर की ओर क्रमागत नाम K, L, M, N दिये गए हैं।

→ किसी तत्व की परमाणु संख्या उसके न्यूक्लियस में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है।

→ परमाणु की द्रव्यमान संख्या उसके न्यूक्लियस में उपस्थित न्यूक्लिऑन (प्रोटान + न्यूट्रॉन) की संख्या के बराबर होती है।

→ समस्थानिक एक ही तत्व के परमाणु हैं जिनकी द्रव्यमान संख्या भिन्न-भिन्न होती है।

→ विभिन्न तत्वों के परमाणु जिनकी द्रव्यमान संख्या बराबर हो परंतु परमाणु संख्या भिन्न-भिन्न हो, समभारिक कहलाते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 3 परमाणु एवं अणु

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 3 परमाणु एवं अणु

→ पदार्थ की विभाजिता के मत के बारे में भारत में लगभग 500 ई० पूर्व विचार पेश किया गया था।

→ भारतीय दार्शनिक महर्षि कणाद ने यह विचार दिया कि पदार्थ का विभाजन करने से छोटे-छोटे कण प्राप्त होंगे जिन्हें एक सीमा के पश्चात् और अधिक विभाजित नहीं किया जा सकेगा। इस अविभाज्य सूक्ष्म कण को परमाणु का नाम दिया गया।

→ भारतीय दार्शनिक पकुधा कात्यायाम ने कहा कि ये सूक्ष्मतम कण प्रायः संयुक्त रूप में मिलते हैं जो पदार्थों को विभिन्न रूप प्रदान करते हैं।

→ ग्रीक दार्शनिक डैमोक्रिटस तथा ल्यूसिपिस ने सुझाव दिया कि पदार्थों को यदि विभाजित करते जायें तो एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी जब कणों को और अधिक विभाजित नहीं किया जा सकेगा।

→ 18वीं शताब्दी के अंत तक वैज्ञानिकों ने तत्वों तथा यौगिकों में अंतर को समझा कि तत्व किस प्रकार तथा क्यों संयोजन करते हैं।

→ एल० लवाइज़िए ने रासायनिक संयोजन के दो महत्त्वपूर्ण नियमों को स्थापित किया।

→ द्रव्यमान संरक्षण नियम के अनुसार किसी रासायनिक अभिक्रिया में द्रव्यमान का न तो सृजन होता है और न ही विनाश।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 3 परमाणु एवं अणु

→ लवाइज़िए तथा अन्य वैज्ञानिकों ने बताया कि कोई भी यौगिक दो या दो से अधिक तत्वों से निर्मित होता है। इस प्रकार प्राप्त यौगिक में इन तत्वों का अनुपात स्थिर होता है। भले ही उसे किसी स्थान से प्राप्त किया गया हो अथवा किसी ने भी इसे क्यों न बनाया हो। इसे निश्चित (स्थिर) अनुपात नियम कहा जाता है।

→ जॉन डॉल्टन ने पदार्थों के स्वभाव के बारे में आधारभूत सिद्धांत प्रस्तुत किया। डॉल्टन ने पदार्थों की विभाजिता का विचार दिया। डॉल्टन का यह सिद्धांत रासायनिक संयोजन के नियमों पर आधारित था।

→ डॉल्टन के परमाणु सिद्धांत के अनुसार सभी पदार्थ भले ही तत्व, यौगिक या मिश्रण हों, अविभाज्य सूक्ष्मतम कणों से बने होते हैं जिन्हें परमाणु कहते हैं। यह सिद्धांत, द्रव्यमान संरक्षण नियम तथा निश्चित अनुपात नियम पर आधारित था।

→ सभी पदार्थों की रचनात्मक इकाई परमाणु है। परमाणु अत्यंत सूक्ष्म कण होते हैं जिन्हें हम अपनी नंगी आंखों से नहीं देख सकते।

→ परमाणु के अर्धव्यास को नैनोमीटर (nm) में मापा जाता है।
1 nm = 10-9 m
109 nm = 1 m

→ संकेत, तत्व के एक परमाणु को प्रदर्शित करता है। बर्जिलियस ने तत्वों के ऐसे संकेत का सुझाव रखा जो उन तत्वों को एक या दो अक्षरों से प्रदर्शित करता था। किसी तत्व के संकेत को पहले बड़े अक्षर से तथा दूसरे छोटे अक्षर से लिखा जाता है।

→ किसी तत्व के सापेक्षिक परमाणु द्रव्यमान को उसके परमाणुओं के मध्यमान द्रव्यमान का कार्बन-12 परमाणु के द्रव्यमान के \(\frac{1}{12}\) वें भाग के अनुपात से परिभाषित किया जाता है। आरंभ में इसे a.m.u. द्वारा संक्षेप में लिखा जाता था परंतु आजकल IUPAC के नई सिफारिशों पर इसे ‘u’ द्वारा प्रदर्शित करते हैं।

→ अणु ऐसे दो या दो से अधिक परमाणुओं का समूह होता है जो परस्पर रासायनिक बंधन द्वारा जुड़े होते हैं। अणु को किसी तत्व या यौगिक के सूक्ष्मतम कण के रूप में परिभाषित कर सकते हैं जो स्वतंत्र रूप में अस्तित्व रख सकता है तथा जो उस यौगिक के सभी गुणों को दर्शाता है।

→ किसी तत्व का अणु एक ही प्रकार के परमाणुओं द्वारा रचित होता है।

→ किसी अणु की बनावट में प्रयोग किए गए परमाणुओं की संख्या को परमाणुकता (atomicity) कहते हैं।

→ भिन्न-भिन्न तत्वों के परमाणु एक निश्चित अनुपात में परस्पर जुड़कर यौगिक के अणु बनाते हैं।

→ धातु तथा अधातु युक्त यौगिक आवेशित कणों से बने हुए होते हैं जिन्हें आयन (Ion) कहते हैं। इन कणों पर धन या ऋण आवेश होता है । ऋण आवेशित कण को ऋण आयन तथा धन आवेशित कण को धन आयन कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 3 परमाणु एवं अणु

→ परमाणुओं के समूह जिस पर नेट (परिणामी) आवेश उपस्थित हो उसे वह परमाणवीय आयन (Polyatomicion) कहते हैं।

→ किसी यौगिक का रासायनिक सूत्र उसमें सभी घटक तत्वों तथा संयोग करने वाले तत्वों के परमाणुओं की संख्या प्रदर्शित करता है।

→ परमाणुओं का वह समूह जो आयन की भांति व्यवहार करता है। उसे बहु-परमाणवीय आयन कहते हैं। उन पर एक निश्चित मात्रा में आवेश होता है।

→ आण्वीय यौगिकों के रासायनिक सूत्र प्रत्येक तत्व की संयोजकता द्वारा निर्धारित होते हैं।

→ आयनी यौगिकों में प्रत्येक आयन पर आवेश की संख्या द्वारा यौगिकों के रासायनिक सूत्र प्राप्त होते हैं।

→ किसी तत्व की संयोजन क्षमता उस तत्व की संयोजकता कहलाती है।

→ किसी पदार्थ का सूत्र इकाई द्रव्यमान उसमें उपस्थित परमाणुओं के द्रव्यमानों का योग होता है।

→ किसी स्पीशीज़ (परमाणु, अणु, आयन अथवा कण) के एक मोल में पदार्थ की मात्रा वह संख्या है जो ग्राम में उसके परमाणु अथवा आण्वीय द्रव्यमान के बराबर होती है।

→ किसी पदार्थ के एक मोल में कणों (परमाणु, अणु अथवा आयन) की संख्या निश्चित होती है जिसका मान 6.022 x 1023 होता है। इसे आवोगाद्रो संख्या (Avogadro Number) कहते हैं।

→ किसी तत्व के परमाणुओं के एकमोल का द्रव्यमान जिसे मोलर द्रव्यमान कहते हैं। परमाणुओं के मोलर द्रव्यमान को ग्राम परमाणु द्रव्यमान भी कहते हैं।

→ 6.022 x 1023 आवोगाद्रो स्थिर अंक है जो 12 g में उपस्थित कार्बन-12 के परमाणुओं की संख्या है।

→ परमाणुओं के अंदर परमाणु कक्षों को अंदर से बाहर की ओर K, L, M …….के नाम दिए गए हैं।

→ परमाणु की संयोजन क्षमता (शक्ति) को संयोजकता कहते हैं।

→ किसी तत्व की परमाणु संख्या उसके परमाणु के न्यूक्लियस में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है।

→ परमाणु के न्यूक्लियस में उपस्थित अवपरमाणुक कणों-प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन के योग को न्यूक्लिऑन कहा जाता है।

→ किसी तत्व के परमाणु जिनकी द्रव्यमान संख्या भिन्न-भिन्न हो, तत्व के समस्थानिक कहलाते हैं।

→ विभिन्न तत्वों के परमाणु जिनकी द्रव्यमान संख्या समान हो परंतु परमाणु संख्या भिन्न-भिन्न हो समभारिक कहलाते हैं।

→ परमाणु (Atom)-किसी तत्व का वह सूक्ष्मतम कण जिसमें उस तत्व के सभी गुण विद्यमान हों, परमाणु कहलाता है। यह स्वतंत्र रूप से विचर भी सकता है और नहीं भी।

→ अणु (Molecule)-पदार्थ का वह छोटे से छोटा कण जो स्वतंत्रपूर्वक विचर सकता है और उस कण में संबंधित तत्व या यौगिक के सभी गुण हों, अणु कहलाता है। यह परमाणुओं से मिलकर बना होता है।

→ द्रव्यमान का संरक्षण नियम (Law of conservation of Mass)-द्रव्यमान संरक्षण नियम के अनुसार किसी रासायनिक प्रतिक्रिया में द्रव्यमान न तो बनाया जा सकता है और न ही विनाश किया जा सकता है।
अथवा
किसी रासायनिक अभिक्रिया में क्रिया करने वाले पदार्थों का कुल द्रव्यमान, क्रिया के बाद बनने वाले पदार्थों का द्रव्यमान बराबर रहता है।

→ स्थिर अनुपात नियम (Law of Definite Proportion)-किसी भी यौगिक में तत्व सदा एक निश्चित द्रव्यमान के अनुपात में उपस्थित होते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 3 परमाणु एवं अणु

→ संकेत (Symbol)-यह किसी तत्व के परमाणु को छोटे रूप में व्यक्त करता है। साधारणतया संकेत तत्वों के अंग्रेज़ी के एक या दो अक्षरों से बने होते हैं। संकेत का पहला अक्षर सदा बड़ा तथा दूसरा अक्षर छोटा लिखा जाता है।

→ परमाणु द्रव्यमान (Atomic mass)-कार्बन के एक परमाणु के भार के \(\frac{1}{12}\) भाग से किसी तत्व का एक परमाणु जितने गुणा भारी होता है, वह भार उस तत्व का परमाणु द्रव्यमान कहलाता है जबकि एक कार्बन परमाणु का भार 12 लिया गया है।

→ परमाणु द्रव्यमान इकाई (Atomic mass unit)-कार्बन (C-12) के एक परमाणु के किसी विशेष समस्थानिक के द्रव्यमान के \(\frac{1}{12}\) को परमाणु द्रव्यमान मात्रक (u) कहते हैं।

→ आयन (Ion)-धातु या अधातु युक्त यौगिक जिन आवेशित कणों से बने हुए होते हैं, उन्हें आयन कहते हैं। इन पर धन या ऋण आवेश होता है। धन आवेशित कण को धनायन तथा ऋण आवेशित कण को ऋणायन कहते हैं।

→ बहुपरमाणुक आयन (Polyatomic lon)-परमाणुओं के समूह जिन पर नेट आवेश उपस्थित हों उसे बहुपरमाणुक आयन कहते हैं।

→ रासायनिक सूत्र (Chemical Formula)-किसी यौगिक का रासायनिक सूत्र उसके संघटक का प्रतीकात्मक निरूपण होता है।

→ मोल (Mole)-मोल किसी पदार्थ का वह द्रव्यमान है जिसमें 12 g कार्बन (C-12) के परमाणु के समान कण होते हैं। वे कण परमाणु, अणु या आयन के रूप में हो सकते हैं। किसी पदार्थ के 6.023 × 1023 कणों को एक मोल कहते हैं। अथवा किसी स्पीशीज़ (परमाणु, अणु, आयन या कण) के एक मोल में पदार्थ की मात्रा वह संख्या है जो ग्राम में उसके आण्विक द्रव्यमान के बराबर होती है।

→ आवोगाद्रो संख्या (Arogadro’s Number)-किसी पदार्थ के एक मोल में कणों (परमाणु, अणु या आयन) की संख्या निश्चित होती है जिसका मान 6.022 × 1023 होता है। इसे आवोगाद्रो स्थिर अंक (Avogadro Number) कहते हैं। इसे N से प्रदर्शित किया जाता है।

→ मोलर द्रव्यमान (Molar Mass)-किसी तत्व के परमाणुओं के एक मोल के द्रव्यमान को मोलर द्रव्यमान कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

→ किसी शुद्ध पदार्थ में एक ही प्रकार के कण होते हैं।

→ मिश्रण एक या एक से अधिक शुद्ध तत्वों या यौगिकों के मिलने से बनता है।

→ किसी तत्व को दूसरे पदार्थ से भौतिक प्रक्रम से पृथक् नहीं किया जा सकता।

→ पदार्थ का स्रोत कोई भी हो उसके अभिलाक्षणिक गुण एक समान होते हैं।

→ मिश्रण अनेक प्रकार के होते हैं। समांगी मिश्रण पृथक्-पृथक् संघटन रख सकते हैं। जिन मिश्रणों के अंश भौतिक दृष्टि से पृथक होते हैं उन्हें विषमांगी मिश्रण कहते हैं।

→ विलयन दो या दो से अधिक पदार्थों का समांगी मिश्रण है।

→ मिश्र धातु, ठोस विलयन है जो वायु गैसीय विलयन है।

→ मिश्र धातुएं धातुओं के समांगी मिश्रण हैं जिन्हें भौतिक क्रियाओं से अवयवों में पृथक् नहीं किया जा सकता।

→ विलयन को विलायक और विलेय में बांटा जाता है।

→ विलयन का एक घटक जो दूसरे घटक को विलयन में मिलाता है उसे विलायक कहते हैं। इसकी मात्रा दूसरे से अधिक होती है।

→ विलयन का वह घटक जो विलायक में घुला होता है उसे विलेय कहते हैं। यह प्रायः कम मात्रा में होता है।

→ वायु गैसों का विलयन है। चीनी और जल एवं तरल घोल में ठोस का उदाहरण है। आयोडीन और एलकोहल की विलयन टिंक्चर आयोडीन है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

→ वात युक्त पेय पदार्थ तरल विलयन में गैस के रूप में हैं।

→ विलयन समांगी मिश्रण हैं जिनके कण व्यास में 1nm (10-9m) से भी छोटे होते हैं।

→ विलयन में मौजूद विलेय पदार्थ की मात्रा के आधार पर इसे तनु, सांद्र या संतृप्त घोल कहते हैं।

→ किसी निश्चित तापमान पर पृथक्-पृथक् पदार्थों की विलयन क्षमता पृथक्-पृथक् होती है।

→ निलंबन एक विषमांगी मिश्रण है जिसमें विलेय पदार्थ कण घुलते नहीं बल्कि माध्यम की समृष्टि में निलंबित रहते हैं।

→ निलंबित कण 100 nm (10-7m) से बड़े होते हैं। कोलाइड के कण विलयन में समान रूप से फैले होते हैं।

→ प्रकाश की किरण का फैलाना टिंडल प्रभाव कहलाता है।

→ कोलाइड के कणों का आकार 1 nm से 100 nm के बीच होता है जो आंखों से दिखाई नहीं देते।

→ यह छानने से अलग नहीं किए जा सकते पर अपकेंद्रीकरण तकनीक से अलग-अलग किए जा सकते हैं।

→ विलायक से विलय पदार्थ को वाष्पीकरण विधि से पृथक् कर सकते हैं।

→ दूध में से क्रीम का पृथक्करण अपकेंद्रीय यंत्र से करते हैं।

→ अमोनियम क्लोराइड, कपूर, नेपथालीन और एंथ्रासीन आदि को ऊर्ध्व पातित किया जा सकता है।

→ मिश्रण से घटकों को पृथक् करने की विधि को क्रोमैटोग्राफ़ी कहते हैं।

→ आसवन का प्रयोग ऐसे मिश्रण को पृथक करने में किया जाता है जिसमें घटकों के क्वथनांकों के बीच काफ़ी अंतर होता है।

→ वायु से विभिन्न गैसों तथा पेट्रोलियम उत्पादों से उनके विभिन्न घटकों का पृथक्करण प्रभाजी आसवन से क्रिस्टलीकरण विधि का प्रयोग ठोस पदार्थों को शुद्ध करने में किया जाता है।

→ किस्टलीकरण विधि साधारण वाष्पीकरण विधि से अच्छी होती है।

→ रंग, कठोरता, दृढ़ता, बहाव, घनत्व, द्रवनांक और क्वथनांक को भौतिक गुण कहा जाता है।

→ अंत: रूपांतरण की अवस्था एक भौतिक परिवर्तन है।

→ रासायनिक परिवर्तन पदार्थ के रासायनिक गुणधर्मों में परिवर्तन लाता है।

→ रॉबर्ट बायल ने सबसे पहले 1661 में तत्व शब्द का प्रयोग किया था।

→ तत्व पदार्थ का वह मूल रूप है जिसे रासायनिक प्रतिक्रिया से छोटे पदार्थों के टुकड़ों में बांटा नहीं जा सकता।

→ तत्वों को धातु, अधातु और उपधातु भागों में बांटा जाता है।

→ पारा धातु होते हुए भी कमरे के तापमान पर द्रव है।

→ उपधातु, सदा धातु और अधातु के बीच गुणों को प्रकट करते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

→ शुद्ध पदार्थ तत्व या यौगिक हो सकते हैं।

→ शुद्ध पदार्थ (Pure Substance)-वह पदार्थ जिसमें एक ही प्रकार के अणु उपस्थित हों, उसे शुद्ध पदार्थ कहते हैं; जैसे-सोना, चांदी आदि।

→ मिश्रण (Mixture)-वह पदार्थ जिसमें एक से अधिक संघटक उपस्थित हों, उसे मिश्रण कहते हैं। इन पदार्थों का अनुपात भिन्न-भिन्न होता है।

→ पृथक्करण (Separation)-मिश्रण के भिन्न-भिन्न अवयवों (अंशों) को अलग करने की विधि को पृथक्करण कहते हैं।

→ हाथ से बीनना (Hand Picking)-अनाज तथा दालों में से पत्थर तथा कंकड़ आदि निकालने की विधि को हाथ से बीनना कहा जाता है।

→ निथारना (Decantation)-तलछटीकरण और विलायक को अलग करने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विधि को निथारना कहते हैं। इस विधि द्वारा विलायक को धीरे से अलग कर लिया जाता है।

→ पृथक्कारी कीप (Separating funnel)-दो द्रवों के मिश्रण को अलग करने के लिए जिस कीप का प्रयोग किया जाता है, उसे पृथक्कारी कीप कहते हैं।

→ क्रिस्टल (Crystal)-ठोस पदार्थ के कण जोकि ज्यामितीय आकार के हों, उन्हें क्रिस्टल कहते हैं।

→ आसवन (Distillation)-यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी सहायता से किसी विलयन में से शुद्ध पदार्थ प्राप्त किया जाता है।

→ ऊर्ध्वपातन (Sublimation)-वह प्रक्रिया जिसमें कोई ठोस गर्म करने पर द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना सीधे ही वाष्पों में परिवर्तित हो जाए, उसे ऊर्ध्वपातन कहते हैं।

→ यौगिक (Compound)-एक से अधिक प्रकार के परमाणुओं के परस्पर संयोग से बने पदार्थों को यौगिक कहते हैं।

→ विलायक (Solvent)-वह पदार्थ जो किसी अन्य पदार्थ (विलेय) को अपने में घोलता है, विलायक कहलाता है। विलयन में इसकी अधिक मात्रा होती है।

→ विलेय (Solute)-वह पदार्थ जो विलायक में घुलता है, विलेय कहलाता है।

→ विलयन (Solution)-दो या दो से अधिक पदार्थों का समरूप मिश्रण विलयन कहलाता है।

→ संतृप्त विलयन (Saturated Solution)-वह विलयन जिसमें एक निश्चित तापमान पर और अधिक विलेय पदार्थ नहीं घुल सकता, संतृप्त विलयन कहलाता है।

→ असंतृप्त विलयन (Unsaturated Solution)-वह विलयन जिसमें एक निश्चित तापमान पर और अधिक विलयन घुल सकता है, असंतृप्त विलयन कहलाता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

→ निलंबन (Suspension)-यह वह विषम मिश्रण है जिसमें ठोस पदार्थ के कण पूरे विलायक में बिना घुले फैले हुए होते हैं।

→ कोलायड (Colloid)-कोलायड वह विलयन है जिसमें विलेय के पदार्थों के कणों का आकार 10-7 सें०मी० और 10-5 सें०मी० के बीच होता है।

→ विलेयता (Solubility)-किसी विशेष ताप तथा दाब पर किसी भी विलायक की 100 ग्राम मात्रा में अधिक से अधिक जितना विलेय घोला जा सके, उसे उस विलेय की उस विलेय में दिए गए ताप तथा दाब पर विलेयता (घुलनशीलता) कहते हैं।

→ समांगी (Homogeneous) मिश्रण-वह मिश्रण जिसके गुण तथा संरचना प्रत्येक अवस्था में समरूप हो उसे समांगी कहते हैं।

→ विषमांगी (Heterogeneous)-वह मिश्रण जिसके अंशों के गुण एक-दूसरे से भिन्न हों, उसे विषमांगी मिश्रण कहते हैं।

→ टिंडल प्रभाव (Tyndal Effect)-कोलाइडल द्रवों से प्रकाश की किरणों का पार गुजरते समय बिखर जाना टिंडल प्रभाव कहलाता है।

→ मिश्र धातु (Alloy)-धातुओं के समांगी मिश्रण को मिश्र धातु कहते हैं, जिसे भौतिक क्रिया द्वारा अवयवों में पृथक् नहीं किया जा सकता।

→ क्रोमैटोग्राफ़ी (Chromatography)-यह एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग उन विलेय पदार्थों को पृथक् करने में होता है जो एक ही तरह के विलायक में घुले होते हैं।

→ क्रिस्टलीकरण (Crystalisation)-क्रिस्टलीकरण वह विधि है जिसके द्वारा क्रिस्टल के रूप में शुद्ध ठोस को विलयन से पृथक् किया जाता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

→ संपूर्ण विश्व की ये सभी वस्तुएँ, जो स्थान घेरती हैं, अर्थात् जिनमें आयतन तथा द्रव्यमान होता है, पदार्थ कहलाती हैं।

→ भारतीय दार्शनिकों ने पदार्थ को पाँच मूल तत्वों में बांटा था। इन्हें पंचतत्व कहा गया। ये हैं-वायु, पृथ्वी, अग्नि, जल, आकाश।

→ आधुनिक वैज्ञानिक पदार्थ को भौतिक और रासायनिक प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

→ पदार्थ बहुत छोटे कणों से बनते हैं। पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होते हैं।

→ पदार्थ के कण निरंतर गतिशील होते हैं। उनमें गतिज ऊर्जा होती है।

→ तापमान बढ़ने से कणों की गति तेज़ हो जाती है।

→ पदार्थों के कणों का स्वतः मिलना विसरण कहलाता है।

→ पदार्थ के कण एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

→ पदार्थ की तीन अवस्थाएँ हैं-ठोस, द्रव और गैस हैं।

→ ठोस का निश्चित आकार, स्पष्ट सीमाएं और स्थिर आयतन होता है।

→ द्रव का आयतन निश्चित होता है पर आकार नहीं। ये दृढ़ नहीं होते परंतु तरल होते हैं। इसके कण स्वतंत्र अवस्था में गति करते हैं।

→ ठोस और द्रव की तुलना में गैसों की संपीड्यता काफ़ी अधिक होती है। LPG और CNG को इसी गुण के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान तक सिलैंडरों में संपीडित कर भेजा जाता है।

→ गैसों में विसरण बहुत तीव्रता से होता है।

→ गैसीय अवस्था में कणों की गति अनियमित और अत्यधिक तीव्र होती है जिस कारण गैस का दबाव बनता है।

→ जिस तापमान पर ठोस पिघल कर द्रव बन जाता है उसे उसका गलनांक कहते हैं।

→ वायुमंडलीय दाब पर एक किलो ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जितनी उष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा कहते हैं।

→ वायुमंडलीय दाब पर वह तापमान जिस पर द्रव उबलने लगता है उसे क्वथनांक कहते हैं।

→ क्वथनांक समष्टि गुण है जिसमें सभी कणों को इतनी ऊर्जा मिल जाती है कि वे वाष्पकणों में बदल सकें।

→ जल का क्वथनांक 373K (100°C = 273 + 100 = 373 K) है।

→ तापमान बदल कर पदार्थ को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में बदल सकते हैं।

→ द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना ठोस अवस्था से सीधे गैस और वापस ठोस में बदलने की क्रिया ऊर्ध्वपातन कहलाती है।

→ दाब के बढ़ने और तापमान के घटने से गैस द्रव में बदल सकती है।

→ ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को शुष्क बर्फ (Dry Ice) कहते हैं।

→ समुद्र की सतह पर वायुमंडलीय दाब एक ऐटमॉसफीयर होता है। इसे सामान्य दाब कहते हैं।

→ क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव को वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।

→ सतह बढ़ाने, तापमान में वृद्धि, आर्द्रता की कमी और हवा की गति में वृद्धि से वाष्पन की दर प्रभावित वाष्पीकरण से ठंडक पैदा होती है।

→ पदार्थ (Matter)-विश्व की प्रत्येक वस्तु जिस भी सामग्री से बनती है, जो स्थान घेरती है और जिस का द्रव्यमान होता है उसे पदार्थ कहते हैं।

→ पंचतत्व (Panch Tatva)-भारत के प्राचीन दार्शनिकों ने जिन पाँच तत्वों से पदार्थ को निर्मित माना है उसे पंचतत्व कहते हैं। ये पंचतत्व हैं : वायु, पृथ्वी, अग्नि, जल और आकाश।

→ विसरण (Diffusion)-दो विभिन्न पदार्थों के कणों का स्वतः मिला विसरण कहलाता है।

→ ठोस (Solid)-वे पदार्थ जिन का निश्चित आकार, स्पष्ट सीमा, स्थिर आयतन होता है, उन्हें ठोस कहते हैं। बल लगाने पर ये टूट सकते हैं पर इनका आकार नहीं बदलता।

→ द्रव (Liquid)-वे तरल पदार्थ जिनका निश्चित आयतन होता है पर कोई निश्चित आकार नहीं होता और उसी बर्तन का आकार ले लेते हैं जिसमें रखे जाते हैं, उन्हें द्रव कहते हैं।

→ गैस (Gas)-अति दबाव को सहन कर सकने वाला वह पदार्थ है जो किसी भी आकार के बर्तन में उसी रूप को प्राप्त कर सकता है।

→ घनत्व (Density)-किसी तत्व के द्रव्यमान प्रति इकाई आयतन को घनत्व कहते हैं।

→ गलनांक (Melting Point)-जिस तापमान पर ठोस पिघल कर द्रव बन जाता है, वह इसका गलनांक कहलाता है।

→ संगलन (Fusion)-ठोस से ‘द्रव अवस्था में परिवर्तन को संगलन कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

→ जमना (Solidification/Freezing)-द्रव अवस्था से ठोस अवस्था में परिवर्तन को जमना कहते हैं।

→ उर्ध्वपातन (Sublimation)-जब कोई ठोस पदार्थ द्रव में परिवर्तित हुए बिना गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जाता है या गैसीय अवस्था से ठोस में आ जाता है, तो उसे उर्ध्वपातन कहते हैं।

→ गुप्त गलन ऊर्जा (Latent Heat of Melting)-ऊष्मा की वह मात्रा है जो पदार्थ के पुंज को बिना ताप वृद्धि के ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में बदलने के लिए अभीष्ट होती है। बर्फ़ भी गुप्त ऊष्मा 80 Cal g-1 या 80 k Cal kg-1 होती है।

→ गुप्त वाष्पन ऊष्मा (Latent Heat of vaporisation)-किसी पदार्थ की गुप्त वाष्पन ऊष्मा, ऊष्मा की वह मात्रा है जो पदार्थ की इकाई पुंज को बिना ताप वृद्धि के द्रव अवस्था से गैस अवस्था में बदलने के लिए अभीष्ट होती है। भाप की गुप्त ऊष्मा 540 Cal/g या 540 k Cal / kg है।

→ संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Fusion)-वायुमंडलीय दाब पर 1 किलो ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा कहते

→ क्वथनांक (Boiling Point)-वायुमंडलीय दाब पर वह निश्चित तापमान जिस पर द्रव उबलने लगता है, उसे उसका क्वथनांक कहते हैं।

→ वाष्पीकरण (Evaporation)-हर ताप पर किसी द्रव का खुली सतह से वाष्प में बदलना वाष्पीकरण कहलाता है।

→ शुष्क बर्फ (Dry Ice)-ठोस कार्बन डाइऑक्साइड के शुष्क रूप को शुष्क बर्फ कहते हैं।

→ हिमांक (Freezing Point)-जिस निश्चित तापमान पर कोई द्रव अपनी अवस्था को ठोस में बदलना आरंभ करता है उसे हिमांक कहते हैं।

→ द्रवित पेट्रोलियम गैस (Liquified Petroleum Gas, L.P.G.)-उच्च दाब पर ब्यूटेन को संपीडित करके ईंधन के रूप में प्रयुक्त की जाने वाली गैस को द्रवित पेट्रोलियम गैस कहते हैं।

→ संपीड़ित प्राकृतिक गैस (Compressed Natural Gas, CNG)-उच्च दाब पर प्राकृतिक गैस को संपीडित करके वाहनों को चलाने हेतु ईंधन के रूप में प्राप्त की जाने वाली गैस को संपीडित प्राकृतिक गैस कहते हैं।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 18 वायु तथा जल का प्रदूषण

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PSEB 8th Class Science Notes Chapter 18 वायु तथा जल का प्रदूषण

→ वायु, पानी और मृदा में जैविक, भौतिक, रासायनिक लक्ष्णों में अवांछित परिवर्तनों को प्रदूषण (Pollution) कहते हैं।

→ वे पदार्थ जो वायु, पानी और मृदा का प्रदूषण फैलाने में उत्तरदायी हैं, प्रदूषक (Pollutants) कहलाते हैं।

→ प्रदूषण की किस्में वायु प्रदूषण, जल-संदूषण, मृदा-प्रदूषण।

→ वायु प्रदूषण-वायु में ठोस कणों, गैसों और अन्य प्रदूषकों की उपस्थिति, जिससे मानव, जीव-जंतु, वनस्पति, इमारतों और अन्य दूसरी वस्तुओं को नुकसान पहुँचे वायु प्रदूषण (Air Pollution) कहलाता है।

→ जल संदूषण-जल में जैविक, अजैविक, रासायनिक पदार्थ अथवा जल की गर्मी कारण जल की गुणवत्ता कम होने से स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होने को जल संदूषण (Water Pollution) कहते हैं।

→ भारत में, विशेषकर गाँवों में संदूषित जल गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न करने में उत्तरदायी है।

→ ओज़ोन ह्रास (Ozone depletion) से UV विकिरणें पृथ्वी पर पहुँच कर त्वचा कैंसर, आँखों की क्षति और प्रतिरक्षी तंत्र को नुकसान पहुँचा रही हैं।

→ अम्ल वर्षा, वायु प्रदूषण के कारण होती है।

→ विश्व उष्णन, वायुमंडल में CO2 की मात्रा में हुई वृद्धि कारण पृथ्वी के तापमान में धीमी वृद्धि है।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 18 वायु तथा जल का प्रदूषण

→ विश्व उष्णन (Global Warming) को ईंधनों के जलाने को कम करके और अधिक वन लगाकर नियंत्रित किया जा सकता है।

→ उद्योग प्रदूषण फैलाते हैं, परंतु इस प्रदूषण का उपचार और नियंत्रण किया जा सकता है।

→ वायुमंडल का CO2 द्वारा गर्मी को शोषित करने से गर्म होना, पौधा-घर प्रभाव (Green House Effect) कहलाता है।

→ वायुमंडल की मुख्य गैसें ऑक्सीजन और नाइट्रोजन हैं।

→ वायु में विभिन्न गैसें-नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, आर्गन, हीलियम, क्रिपटॉन और जीनॉन, जल वाष्प हैं।

→ वायु में 78% नाइट्रोजन और 21% ऑक्सीजन है।

→ वायु प्रदूषण (Air Pollution)- वातावरण में उन पदार्थों का मिलना, जिनसे मानव के स्वास्थ्य और जीवन पर दुष्प्रभाव पड़े, वायु प्रदूषण कहलाता है । वायु प्रदूषण पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव डालता है।

→ मिलावट (Contamination)-ज़हरीले पदार्थों और सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति, जिससे मानव में रोग और असुविधा उत्पन्न होती है।

→ प्रदूषक (Pollutants)-वायु, जल, भूमि में अवांछनीय पदार्थों के मिलने से, वातावरण की गुणवत्ता में परिवर्तन लाते हैं।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 16 प्रकाश

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PSEB 8th Class Science Notes Chapter 16 प्रकाश

→ प्रकाश, ऊर्जा का एक रूप है।

→ प्रकाश, सरल रेखा में गमन करता है।

→ प्रकाश हमें वस्तुएँ देखने में सहायक है।

→ जब वस्तुओं से परावर्तित प्रकाश हमारी आँखों में पड़ता है तो हम वस्तुएँ देख पाते हैं।

→ जो पिंड स्वयं का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं, दीप्त (Luminous) पिंड कहलाते हैं।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 16 प्रकाश

→ जो पिंड स्वयं का प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते, परंतु दूसरी वस्तुओं के प्रकाश में चमकते हैं, अदीप्त पिंड (Non-luminous) कहलाते हैं।

→ पॉलिश किया हुआ अथवा चमकदार पृष्ठ प्रकाश परावर्तित करता है।

→ एक दर्पण अपने ऊपर पड़ने वाले प्रकाश की दिशा को परावर्तित कर देता है।

→ प्रकाश परावर्तन में आपतित कोण, सदैव परावर्तित कोण के बराबर होता है।

→ आपतित किरण, आपतन बिंदु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण, सभी एक तल में होते हैं।

→ एक-दूसरे से किसी कोण पर रखे दर्पण द्वारा अनेक प्रतिबिंब प्राप्त किए जा सकते हैं।

→ जब प्रकाश किरण प्रिज्म में से गुज़रती है, तो विक्षेपित होती है और फलस्वरूप सफेद प्रकाश किरण सात रंगों में विभाजित हो जाती है।

→ सूर्य के प्रकाश के स्पैक्ट्रम में सात रंग-बैंगनी, नील, नीला, हरा, पीला, केसरी और लाल हैं। इन्हें अंग्रेजी शब्द VIBGYOR से स्मरण किया जा सकता है। VIBGYOR (Violet. Indigo. Blue. Green, Yellow, Orange, Red).

→ इंद्रधनुष, विक्षेपण को दर्शाने वाली एक प्राकृतिक परिघटना है !

→ मानव नेत्र, एक ज्ञानेंद्री है, जो वस्तुओं को देखने में सहायक है।

→ मानव नेत्र में एक उत्तल लेंस होता है, जिसकी फोकस दूरी सिलियरी पेशियों द्वारा नियंत्रित की जाती है।

→ परावर्तन, नियमित तथा विसरित हो सकता है।

→ अंध-बिंदु में दो प्रकार की तंत्रिका कोशिकाएँ शंकु (cones) और शलाकाएँ (rods) पाई जाती हैं।

→ चाक्षुणी अक्षमता से पीड़ितों के लिए दो प्रकार के संसाधन होते हैं-अप्रकाशिक (Non-optical) और प्रकाशिक (Optical)।

→ ब्रैल पद्धति, चाक्षुष विकृति युक्त व्यक्तियों के लिए, एक सर्वाधिक लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण साधन है।

→ प्रकाश का परावर्तन (Reflection of Light)-जब प्रकाश किरण किसी दर्पण अथवा पॉलिश की हुई सतह पर पड़ती है, तो वह माध्यम के परिवर्तन हुए बिना उसी माध्यम में किसी विशेष दिशा में वापिस आ जाती है। प्रकाश के मार्ग में आए परिवर्तन की क्रिया को प्रकाश का परावर्तन कहा जाता है।

→ पर्दा (Screen)-श्वेत शीट अथवा पृष्ठ, जिस पर प्रतिबिंब बनता है।

→ नियमित परावर्तन (Regular Reflection)-पॉलिश पृष्ठ से हुआ परावर्तन ।

→ प्रकाश का फैलना (Scattering of Light)-प्रकाश किरणों का सभी दिशाओं में परावर्तन।

→ विसरित परावर्तन (Diffused Reflection)-प्रकाश किरणों का खुरदरे पृष्ठ से परावर्तन।

→ आपतित किरण (Incident Ray)-प्रकाश के स्रोत से दर्पण पृष्ठ पर गिरने वाली प्रकाश किरण।

→ केलाइडोस्कोप (Kaleiodeoscope)-बहुमुखी परावर्तन पर आधारित यंत्र, जिससे विभिन्न डिज़ाइन बनाए जाते हैं।

→ दर्पण (Mirror)-समतल और पॉलिश पृष्ठ।

→ अभिलंब (Normal) आपतन बिंदु पर लंबवत् रूप में खींची रेखा।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 16 प्रकाश

→ प्रकाश का स्रोत (Source of Light)-एक ऐसा पिंड, जो प्रकाश उत्सर्जित करता है।

→ वास्तविक प्रतिबिंब (Red Image)-प्रतिबिंब, जो आपतित किरणों का परावर्तन के बाद वास्तव रूप से मिलने से बनता है।

→ आभासी प्रतिबिंब (Virtual Image)-प्रतिबिंब, जिसमें आपतित किरणें परावर्तन के बाद मिलती नहीं, परंतु मिलती हुई प्रतीत होती हैं।

→ आपतन कोण (Angle of Incidence)-आपतित किरण और अभिलंब के बीच का कोण।

→ परिवर्तित कोण (Angle of Reflection)-परिवर्तित किरण और अभिलंब के बीच का कोण।

→ अनुकूलन शक्ति (Power of Accomodation)-हमारी आँख सभी दूर और निकट पड़ी वस्तुओं को देख सकती है। आँख की इस विशेषता को जिसके द्वारा आँख अपने लेंस की शक्ति को परिवर्तित करके भिन्न-भिन्न दूरी पर पड़ी वस्तुओं को देख सकती है, अनुकूलन शक्ति कहा जाता है।

→ दृष्टि की न्यूनतम दूरी (Least Distance of Distinct Vision)-दूरस्थ बिंदु और निकट बिंदु के मध्य के ऐसा बिंदु जहां पर वस्तु को रखने से वस्तु बिलकुल स्पष्ट दिखाई देती है, स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहा जाता है। सामान्य दृष्टि के लिए स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेमी० है।

→ दृष्टि-स्थिरता (Persistence of Vision)-जब किसी वस्तु का आँख के रेटिना पर प्रतिबिंब बनता है, तो वस्तु को हटा देने के बाद इस प्रतिबिंब का प्रभाव कुछ समय के लिए बना रहता है। इस प्रभाव को दृष्टि स्थिरता कहा जाता है।

→ दूर-दृष्टि दोष (Long Sightedness or Hypermotropia)-इस दोष के व्यक्ति को दूर स्थित वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं, परंतु समीप की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देतीं। इसका कारण यह है कि समीप स्थित वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना के पीछे बनता है। इसे उत्तल लेंस से ठीक किया जाता है।

→ प्रकाश का विक्षेपण (Dispersion of Light)-प्रकाश किरण का सात रंगों में विभाजित होना।

→ निकट दृष्टि दोष (Near Sightedness or Myopia)-इस दोष के व्यक्ति को निकट स्थित वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखाई देती हैं, परंतु दूर स्थित वस्तुएँ नहीं दिखाई देतीं, क्योंकि दूरस्थ वस्तुओं का प्रतिबिंब रेटिना के आगे बनता है। इसे अवतल लेंस से ठीक किया जाता है।

→ रंगों की पहचान (Perception of Colour)-मानव नेत्र में शंकु और शल्काएँ हैं, जो प्रकाश संवेदी हैं। शंकु रंगों के प्रति संवेदक होते हैं।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 15 कुछ प्राकृतिक परिघटनाएँ

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PSEB 8th Class Science Notes Chapter 15 कुछ प्राकृतिक परिघटनाएँ

→ प्राचीन काल में आकाश में उत्पन्न हुई चिंगारियों को भगवान् का क्रोध समझा जाता था।

→ सन् 1752 में बैंजामिन फ्रेंकलिन ने दर्शाया, कि तड़ित और वस्त्रों से उत्पन्न चिंगारी वास्तव में एक ही परिघटना है।

→ आकाश में तड़ित अथवा चिंगारियों के लिए विद्युत् उत्तरदायी है।

→ कुछ पदार्थों में रगड़ के द्वारा आवेशन होता है।

→ किसी पदार्थ से, समान पदार्थों को रगड़ने से उन पर उत्पन्न हुआ आवेश भी समान ही होता है।

→ सजातीय आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।

→ विभिन्न पदार्थों पर आवेश भी विभिन्न होते हैं, जब उन्हें समान या विभिन्न पदार्थों से रगड़ा जाता है।

→ विजातीय आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।

→ आवेश दो प्रकार के हैं-

  1. धनावेश और
  2. ऋणावेश।

→ रगड़ने पर उत्पन्न विद्युत् आवेश स्थैतिक होते हैं।

→ स्थैतिक आवेश स्थिर रहते हैं अर्थात् गति नहीं करते।

→ गति कर रहे आवेश को विद्युत् धारा कहते हैं।

→ भूसंपर्कण विधि द्वारा आवेशित वस्तु में उपस्थित आवेश को पृथ्वी में भेजा जाता है।

→ विद्युत् विसर्जन होता है, जब

  1. दो बादल एक दूसरे के निकट आते हैं
  2. बादल, पृथ्वी के निकट आते हैं
  3. बादल और मानव शरीर निकट आते हैं।

→ बादल पर ऋण आवेश होते हैं। जब यह धन आवेशित बादलों के समीप आते हैं तो प्रकाश की चमकीली धारियों और ध्वनि के रूप में ऊर्जा की बड़ी मात्रा विसर्जित होती है।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 15 कुछ प्राकृतिक परिघटनाएँ

→ तड़ित एवं झंझा (Thunder Storm) के समय मकान, भवन और एक बंद वाहन सुरक्षित स्थान है।

→ भवनों को तड़ित से सुरक्षित रखने वाला यंत्र तड़ित चालक (Lightning Conductor) है।

→ तूफान, तड़ित झंझा, चक्रवात, कुछ प्राकृतिक परिघटनाएँ हैं. जिनसे जनजीवन और संपत्ति को क्षति होती है।

→ भूकंप भी एक प्राकृतिक परिघटना है।

→ तड़ित झंझा, चक्रवात आदि की भविष्यवाणी हो सकती है, परंतु भूकंपों के बारे में भविष्यवाणी नहीं हो सकती।

→ भूकंप, पृथ्वी का झटका है।

→ भूकंप से बाढ़, भूस्खलन, सुनामी आते हैं।

→ भूकंपलेखी उपकरण से भूकंपी तरंगें रिकार्ड की जाती हैं।

→ भूकंप की प्रबलता रिक्टर पैमाने पर व्यक्त की जाती है।

→ भूकंपी क्षेत्रों में मिट्टी और लकड़ी से बने नियमित भवन बनाने चाहिएं।

→ स्थैतिक विद्युत् (Static Electricity)-रगड़ने (घर्षण) से उत्पन्न हुए आवेश को स्थैतिक विद्युत् कहते हैं।

→ भूसंपर्कण (Earthing)-मानव शरीर द्वारा आवेशों को पृथ्वी में पहुंचाना भूसंपर्कण कहलाता है।

→ विद्युत् विसर्जन (Electric Discharge)-बादलों द्वारा प्रकाश और ध्वनि उत्पन्न करने की प्रक्रिया विद्युत् विसर्जन कहलाती है।

→ तड़ित झंझा (Thunder Storm)-वर्षा के दिन, आकाश में एक ऊँची ध्वनि का सुनाई देना, तड़ित झंझा कहलाता है।

→ तड़ित (Lightning)-दो बादलों अथवा बादलों और पृथ्वी के बीच घर्षण के कारण उत्पन्न उज्ज्वल चिंगारी, जो आकाश में फैलती है, तड़ित कहलाती है।

→ भूकंप (Earthquake)-पृथ्वी की ऊपरी सतह में गहराई की गड़बड़ के कारण आए भूस्पंदों को भूकंप कहते हैं।

→ तड़ित चालक (Electric Conductor)-एक युक्ति, जो भवनों को तड़ित से सुरक्षा प्रदान करती है।