PSEB 10th Class Hindi Solutions Chapter 2 पदावली

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 2 पदावली Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 पदावली

Hindi Guide for Class 10 PSEB पदावली Textbook Questions and Answers

(क) विषय बोध

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए

प्रश्न 1.
श्री कृष्ण ने कौन-सा पर्वत धारण किया था?
उत्तर:
श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था।

प्रश्न 2.
मीरा किसे अपने नयनों में बसाना चाहती है?
उत्तर:
मीरा नंद के पुत्र श्रीकृष्ण को अपने नयनों में बसाना चाहती है।

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प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण ने किस प्रकार का मुकुट और कुंडल धारण किए हैं ?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने मोर पंखों का मुकुट और मकर की आकृति के कुंडल धारण किए हुए हैं।

प्रश्न 4.
मीरा किसे देखकर प्रसन्न हुई और किसे देखकर दुःखी हुई ?
उत्तर:
मीरा भक्तों को देखकर प्रसन्न हुई और सांसारिक माया-मोह में फंसे हुए लोगों को देख कर दुःखी हुई।

प्रश्न 5.
संतों की संगति में रहकर मीरा ने क्या छोड़ दिया ?
उत्तर:
संतों की संगति में रहकर मीरा ने कुल की मर्यादा तथा लोकलाज को छोड़ दिया था।

प्रश्न 6.
मीरा अपने आँसुओं के जल से किस बेल को सींच रही है?
उत्तर:
मीरा अपने आँसुओं के जल से श्रीकृष्ण के प्रति अपने हृदय में विद्यमान प्रेम रूपी बेल को सींच रही है।

प्रश्न 7.
पदावली के दूसरे पद में मीराबाई गिरिधर से क्या चाहती है ?
उत्तर:
मीराबाई ने गिरिधर को अपने पति के रूप में स्वीकार कर उनसे चाहा है कि केवल वे ही उसका अब उद्धार कर सकते हैं। वह उनकी शरण को सदा के लिए पाना चाहती है।

II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

(क) बसौ मेरे नैनन में नंद लाल।
मोहनि मूरति साँवरी सूरति नैना बनै विसाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल अरुण तिलक दिये भाल।
अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नुपूर शब्द रसाल।
मीरा प्रभु सन्तन सुखदाई भक्त बछल गोपाल॥
उत्तर:
कवयित्री अपनी कामना व्यक्त करते हुए कहती है कि हे नंद के पुत्र श्री कृष्ण, आप मेरे नेत्रों में निवास करने की कृपा करो। आपकी मोहित करने वाली आकृति तथा सांवले रंग की सूरत है। आपके नेत्र बहुत बड़े-बड़े हैं। आप ने मोर के पंखों का मुकुट सिर पर और कानों में मकर की आकृति के कुंडल धारण किए हुए हैं। आपके माथे पर लाल रंग का तिलक सुशोभित हो रहा है। आप के होठों पर अमृत समान मधुर स्वर रस की वर्षा करने वाली बाँसुरी तथा हृदय पर वैजंती माला विराजमान है। छोटी-छोटी घंटियाँ आप की कमर पर बंधी हुई हैं तथा पैरों में घुघरू बंधे हैं जिनकी मधुर गुंजार सुनाई दे रही है। मीरा के प्रभु संतों को सुख प्रदान करते हैं तथा अपन भक्तों की सदा रक्षा करते हैं।

(ख) मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई।
छोड़ि दई कुल की कानि, कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि, लोक लाज खोई।
अँसुअन जल सींचि सींचि, प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेलि फैल गई, आनंद फल होई।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारौ अब मोही।
उत्तर:
मीरा जी कहती हैं कि मेरा तो सर्वस्व गोवर्धन पर्वत धारी श्रीकृष्ण हैं। उनके अतिरिक्त मेरा किसी से कोई संबंध नहीं। मोर-मुकुट धारण करने वाले श्रीकृष्ण ही मेरे पति हैं। पिता, माता, भाई, सगा-संबंधी इनमें अब मेरा अपना कोई नहीं है। मैंने अपने परिवार की मान-मर्यादा को छोड़ कर उन्हें अपना लिया है। इसलिए मेरा अब कोई क्या कर सकता है अर्थात् मुझे किसी की परवाह नहीं है। मैं लोक-लाज की चिंता छोड़कर संतों के पास बैठती हूँ। मैंने आँसुओं के जल से सींच-सींच कर कृष्ण प्रेम की बेल को बोया है। अभिप्राय यह है कि श्रीकृष्ण के प्रति मीरा के मन की प्रेम रूपी बेल का विकास हो चुका है। अतः अब उसे किसी प्रकार से भी नष्ट नहीं किया जा सकता। मीरा जी कहती हैं कि वे प्रभु भक्त को देख कर तो प्रसन्न होती हैं पर संसार को देखकर रो पड़ती हैं। भाव यह है कि माया-मोह में लिप्त प्राणियों के दयनीय अंत की कल्पना मात्र से मीरा का हृदय दुःख से भर जाता है। मीरा स्वयं को श्रीकृष्ण की दासी मानती हुई उनसे अपने उद्धार की प्रार्थना करती है।

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(ख) भाषा-बोध

निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखें

भाल = ———–
प्रभु = ———–
जगत = ———–
वन। = ———–
उत्तर:
शब्द पर्यायवाची शब्द
भाल – माथा, मस्तक, ललाट, कपाल।
प्रभु – ईश्वर, परमेश्वर, जगदीश, भगवान्।
जगत – संसार, विश्व, भुवन, दुनिया।
वन – विपिन, जंगल, कानन, अटवी।

निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए

कुल = ———–
कूल = ———–
कटि = ———–
कटी। = ———–
उत्तर:
कुल = वंश-श्री राम का जन्म रघुकुल में हुआ था।
कूल = किनारा-यमुना नदी के कूल पर स्नानार्थियों की भीड़ थी।
कटि = कमर-बाल कृष्ण की कटि पर छोटे-छोटे घुघरू बंधे हुए थे।
कटी = फटना-उसकी कमीज़ नीचे से कटी हुई है।

(ग) पाठ्येतर सक्रियता

प्रश्न 1.
मीराबाई द्वारा वर्णित श्रीकृष्ण के बाल रूप का एक चित्र लेकर अपने विद्यालय की भित्ति पत्रिका पर लगाएँ। (विद्यार्थी स्वयं करें।)
उत्तर:
किलकत कान्ह घुटरुवन आवत।
मनिमय कनक नंद के आँगन, मुख प्रतिबिंब पकरिबे धावत।
कबहुँ निरखि हरि आप छाँह को, पकरन को चित चाहत।
किलकि हँसत राजत द्वै द॑तियाँ, पुनि-पुनि तिहि अवगाहत।
कनक-भूमि पर कर-पग-छाया, यह उपमा एक राजत।
प्रति-कर प्रति-पद प्रतिमनि वसुधा, कमल बैठकी साजत।
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति।
अँचरा तर लै ढाँकि ‘सूर’ के प्रभु कौं दूध पियावति। (सूरदास)

प्रश्न 2.
मीराबाई की तरह अन्य कृष्ण भक्त कवियों जैसे सूरदास, रसखान आदि ने श्रीकष्ण के बाल सौंदर्य का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। अपने स्कूल की पुस्तकालय से ऐसे कुछ पद संकलित करें।
उत्तर:
सूरदास और रसखान का एक-एक पद यहाँ दिया जा रहा है। अन्य पद विद्यार्थी स्वयं संकलित करें।
धूर भरे अति शोभित स्याम जू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
डोलन खात फिरै अँगना पग पैंजनी बाजती, पीरी कछोटी॥
वा छवि को रसखानि बिलोकत बारत काम-कला निज कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी॥ (रसखान)

प्रश्न 3.
मीराबाई के पदों की सी०डी०/डी०वी०डी० देखें या इंटरनेट पर इन पदों को सुन कर आनंद लें।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)

प्रश्न 4.
कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर ‘मीरा पद गायन’ प्रतियोगिता का आयोजन करें।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)

(घ) ज्ञान-विस्तार

मीरा श्रीकृष्ण के प्रेम में दीवानी भक्तिन कही जाती है। वह उन्हें ‘गिरिधर,’ ‘गोपाल’ आदि नामों से पुकारती थी। श्री कृष्ण को गिरिधर इसलिए कहते हैं क्योंकि उन्होंने इंद्र के प्रकोप से वृंदावन के लोगों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को छतरी के समान अपनी उंगली पर धारण कर लिया था और वृंदावनवासियों को घनघोर वर्षा से बचाया था। वे ‘गोपाल’ इसलिए कहलाते हैं क्योंकि वे गौओं को चराया करते थे।

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PSEB 10th Class Hindi Guide पदावली Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण की आकृति तथा वर्ण कैसा है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की मन को मोहित करने वाली आकृति तथा सांवले वर्ण की शारीरिक छवि है।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के माथे की शोभा में वृद्धि किस से हो रही है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण के माथे की शोभा में वृद्धि उनके माथे पर लगे हुए लाल रंग के तिलक से हो रही है।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण की कौन-सी ध्वनि मन को आकर्षित करती है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की कमर में छोटी-छोटी घंटियाँ बँधी हुई हैं तथा पाँवों में छोटे-छोटे घुघरू बंधे हैं, जिनसे निकलने वाली ध्वनि मन को आकर्षित करती है।

प्रश्न 4.
मीरा ने किसे अपना पति कहा है/
उत्तर:
मीरा ने मोर पंखों का मुकुट धारण करने वाले श्रीकृष्ण को अपना पति कहा है।

प्रश्न 5.
‘तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई ‘ से मीरा का क्या आशय है?
उत्तर:
मीरा का मानना है कि अब इस संसार में श्रीकृष्ण के अतिरिक्त उसका अपना कोई पिता, माता, भाई-बंधु नहीं

प्रश्न 6.
मीरा की प्रेम बेलि पर कैसा फल लगा है?
उत्तर:
मीरा की प्रेम-बेलि पर श्रीकृष्ण से मिलन रूपी आनंद का फल लगा है।

प्रश्न 7.
मीरा ने श्रीकृष्ण की कैसी छवि को अपने मन में कल्पित किया था ?
उत्तर:
मीरा ने अपने मन में कल्पित किया था कि श्रीकृष्ण अपार शोभावान थे। उनकी छवि शोभा से युक्त थी। उनका सांवला रंग था। उनकी आँखें अति संदर और बड़ी-बड़ी थीं। उनके सिर पर मोर-मुकुट शोभा देता था। कानों में कुंडल और माथे पर लाल रंग का तिलक अपार शोभा देता था। उनके होठों पर बाँसुरी अति सुंदर लगती है। वैजन्ती माला उनकी छाती की शोभा बढ़ाती है।

प्रश्न 8.
मीराबाई ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने कैसे भावों को अभिव्यक्त किया था ?
उत्तर:
मीरा ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था कि श्रीकृष्ण ही उसके स्वामी थे। उनके अतिरिक्त कोई भी दूसरा उसका नहीं था। वे ही उसके पति थे। उन्हीं के कारण उसने अपने सारे सांसारिक रिश्ते-नाते त्याग दिए थे। उन्हीं के लिए उसने सभी सामाजिक और दुनियादारी के बंधन सदा के लिए छोड़ दिए थे। उसने अपने आँसुओं से ही अपने प्रेम को पोषित किया था।

एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा ने किसे अपना पति माना है ?
उत्तर:
मीरा ने सिर पर मोर के पंख का मुकुट धारण करने वाले श्रीकृष्ण को अपना पति माना है।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण की कमर में क्या बंधा हुआ है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण की कमर में छोटी-छोटी घंटियाँ बंधी हुई हैं।

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प्रश्न 3.
मीरा ने किनके साथ बैठकर लोक लाज गँवा दी थी?
उत्तर:
मीरा ने संतों के साथ बैठकर लोक लाज गँवा दी थी।

प्रश्न 4.
मीरा श्रीकृष्ण को कहां बसाना चाहती है?
उत्तर:
मीरा श्रीकृष्ण को अपने नेत्रों में बसाना चाहती है।

नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
‘श्रीकृष्ण का वर्ण कैसा है
(क) गौर
(ख) सांवला
(ग) सुनहरा
(घ) आसमानी।
उत्तर:
(ख) साँवला

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण ने कैसे कुंडल पहने हुए हैं
(क) मत्स्याकृत
(ख) सर्पाकृत
(ग) मकराकृत
(घ) वृत्ताकृत।
उत्तर:
(ग) मकराकृत

प्रश्न 3.
मीरा ने किस जल से प्रेम बेल बोई है
(क) गंगाजल
(ख) आँसुओं का जल
(ग) यमुना जल
(घ) घट जल।
उत्तर:
(ख) आँसुओं का जल

एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न

प्रश्न 1.
अधर ……….. मुरली राजति।
उत्तर:
सुधा रस

प्रश्न 2.
मेरे तो ………. गोपाल।
उत्तर:
गिरिधर

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प्रश्न 3.
भगत देखि ………… भई, जगत ……….. रोई।
उत्तर:
राजी, देखि

प्रश्न 4.
मीरा ने किसे छोड़ दिया था ? (एक शब्द में उत्तर दें।)
उत्तर:
कुल की कानि को

प्रश्न 5.
मीरा ने कहा मेरे पिता-माता-भाई-सगे-संबंधी सब अपने हैं। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
नहीं

प्रश्न 6.
श्रीकृष्ण के नेत्र विशाल हैं। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
हाँ

प्रश्न 7.
मीरा की प्रेम बेल अब फैल गई है। (सही या गलत में उत्तर दें)
उत्तर:
सही

प्रश्न 8.
मीरा गिरधर को तारने के लिए कह रही है। (सही या गलत में उत्तर दें)
उत्तर:
सही।

पदावली पदों की सप्रसंग व्याख्या

1. बसौ मेरे नैनन में नन्द लाल।
मोहनि मूरति साँवरी सूरति नैना बनै विसाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल अरुण तिलक दिये भाल।
अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नुपूर शब्द रसाल।
मीरा प्रभु सन्तन सुखदाई भक्त बछल गोपाल॥

शब्दार्थ:
बसौ = निवास करो। नैनन = नेत्र। नन्दलाल = नंद के पुत्र श्रीकृष्ण। मोहनि = मोहित करने वाली, आकर्षित करने वाली। मूरति = आकृति। साँवरी = सांवले रंग की। विसाल = बड़े-बड़े, विशाल। मकराकृत = मकर की आकृति के। अरुण = लाल भाल = माथा। अधर = होंठ। सुधारस = अमृत रस। मुरली = बांसुरी। राजति = सुशोभित होना। उर = हृदय। छुद्र = छोटी। कटि = कमर। नुपूर =घुघरू। रसाल = मीठा, मोहक, मधुर। बछल = रक्षक, वत्सल।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद मीराबाई द्वारा रचित पदावली से लिया गया है। इस पद में कवयित्री ने बाल कृष्ण की मनोहारी छवि का वर्णन करते हुए उसे अपने नेत्रों में बसाने का वर्णन किया है।

व्याख्या:
कवयित्री अपनी कामना व्यक्त करते हुए कहती है कि हे नंद के पुत्र श्री कृष्ण, आप मेरे नेत्रों में निवास करने की कृपा करो। आपकी मोहित करने वाली आकृति तथा सांवले रंग की सूरत है। आपके नेत्र बहुत बड़े-बड़े हैं। आप ने मोर के पंखों का मुकुट सिर पर और कानों में मकर की आकृति के कुंडल धारण किए हुए हैं। आपके माथे पर लाल रंग का तिलक सुशोभित हो रहा है। आप के होठों पर अमृत समान मधुर स्वर रस की वर्षा करने वाली बाँसुरी तथा हृदय पर वैजंती माला विराजमान है। छोटी-छोटी घंटियाँ आप की कमर पर बंधी हुई हैं तथा पैरों में घुघरू बंधे हैं जिनकी मधुर गुंजार सुनाई दे रही है। मीरा के प्रभु संतों को सुख प्रदान करते हैं तथा अपन भक्तों की सदा रक्षा करते हैं।

विशेष:

  1. कवयित्री ने श्रीकृष्ण के बालरूप को संतों के लिए सुखदायी तथा भक्तों की रक्षा करने वाला मानते हुए उन्हें इसी रूप में अपने नेत्रों में बसने की कामना व्यक्त की है।
  2. भाषा सहज, सरस, भावपूर्ण राजस्थानी शब्दों से युक्त है। अनुप्रास अलंकार तथा गेयता का गुण विद्यमान है।

2. मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई।
छोड़ि दई कुल की कानि, कहा करै कोई।
संतन ढिग बैठि बैठि, लोक लाज खोई।
अँसुअन जल सींचि सींचि, प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेलि फैल गई, आनंद फल होई।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारौ अब मोही।

शब्दार्थ:
गिरिधर = गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले श्रीकृष्ण। दूसरो = अन्य। जाके = जिसके। पति = स्वामी, पति। छांडि = त्यागना, छोड़ना। दई = दी। कानि = मर्यादा। कहा = क्या। करिहै = करेगा। ढिग = पास, निकट। सींचि = सींचना। आणंद = आनंद। राजी = प्रसन्न। जगति = संसार। तारो = उद्धार करना, मुक्ति देना।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद मीराबाई की पदावली से अवतरित किया गया है। इसमें कवयित्री ने भगवान् श्रीकृष्ण को अपने पति रूप में मानकर उनके प्रति अपनी अनन्य भक्ति भावना का परिचय दिया है।

व्याख्या:
मीरा जी कहती हैं कि मेरा तो सर्वस्व गोवर्धन पर्वत धारी श्रीकृष्ण हैं। उनके अतिरिक्त मेरा किसी से कोई संबंध नहीं। मोर-मुकुट धारण करने वाले श्रीकृष्ण ही मेरे पति हैं। पिता, माता, भाई, सगा-संबंधी इनमें अब मेरा अपना कोई नहीं है। मैंने अपने परिवार की मान-मर्यादा को छोड़ कर उन्हें अपना लिया है। इसलिए मेरा अब कोई क्या कर सकता है अर्थात् मुझे किसी की परवाह नहीं है। मैं लोक-लाज की चिंता छोड़कर संतों के पास बैठती हूँ। मैंने आँसुओं के जल से सींच-सींच कर कृष्ण प्रेम की बेल को बोया है। अभिप्राय यह है कि श्रीकृष्ण के प्रति मीरा के मन की प्रेम रूपी बेल का विकास हो चुका है। अतः अब उसे किसी प्रकार से भी नष्ट नहीं किया जा सकता। मीरा जी कहती हैं कि वे प्रभु भक्त को देख कर तो प्रसन्न होती हैं पर संसार को देखकर रो पड़ती हैं। भाव यह है कि माया-मोह में लिप्त प्राणियों के दयनीय अंत की कल्पना मात्र से मीरा का हृदय दुःख से भर जाता है। मीरा स्वयं को श्रीकृष्ण की दासी मानती हुई उनसे अपने उद्धार की प्रार्थना करती है।

विशेष:

  1. मीरा श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित है। उन्हें वह अपने पति रूप में मानती है। वह उनसे अपने उद्धार की प्रार्थना करती है।
  2. ब्रज मिश्रित राजस्थानी भाषा का प्रयोग है। अनुप्रास अलंकार है।

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पदावली Summary

पदावली कवयित्री परिचय

मीराबाई कृष्ण भक्तिकालीन कवियों में प्रमुख स्थान रखती हैं। उनका काव्य हृदय का काव्य है जिसमें कोमल भावधारा का स्वाभाविक प्रवाह है। उनका जन्म गाँव कुड़की, जोधपुर (राजस्थान) के राव रत्न सिंह राठौर के घर सन् 1498 ई० में हुआ था। शैशवावस्था में ही माता की मृत्यु हो जाने के कारण उनका पालन-पोषण दादा ने किया। दादा की वैष्णव भक्ति ने मीरा को भी प्रभावित किया। मीरा का विवाह मेवाड़ के राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। विवाह के कुछ समय पश्चात् ही उनके पति की मृत्यु हो गई। मीरा को संसार से विरक्ति हो गई। वे कृष्ण की उपासना में मग्न रहने लगीं। वे मंदिरों में कृष्ण की मूर्ति के आगे नाचतीं और साधु-संगति में अपना समय व्यतीत करतीं। उनके इस प्रकार के आचरणों से रुष्ट होकर उनके देवर ने उन्हें मारने के अनेक प्रयत्न किए, परंतु प्रभु-भक्ति में लीन रहने वाली मीरा का बाल भी बांका न हुआ। अपने परिवार के बुरे व्यवहार से तंग आकर मीरा वृंदावन और फिर द्वारिका चली गई थी। वहीं उन्होंने अपनी देह त्याग दी थी। उनकी मृत्यु सन् 1573 ई० में मानी जाती है।

रचनाएँ-मीरा की निम्नलिखित रचनाएँ हैं-
नरसी जी का मायरा, गीत गोबिंद की टीका, राग गोविंद, राग सोरठा के पद आदि। विद्वानों के अनुसार, ‘पदावली’ ही उनकी प्रामाणिक रचना है।

मीरा प्रमुख रूप से भक्त गीतकार हैं। उनके पदों में भक्त हृदय की पुकार है। सरसता, मधुरता एवं मौलिकता की दृष्टि से उनके पद बेजोड़ हैं। माधुर्य भाव की भक्ति के कारण इनके काव्य में श्रृंगार रस के दोनों पक्षों संयोग एवं वियोग का सुंदर चित्रण हुआ है। इनके काव्य में प्रकृति-चित्रण के सुंदर चित्र भी मिलते हैं। वेदना-भाव के मिश्रण ने इन चित्रों को बहुत मार्मिक बना दिया है।

मीरा की भाषा में ब्रज और राजस्थानी शब्दों की प्रमुखता है लेकिन उसमें पंजाबी, गुजराती आदि के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। इनके काव्य में भावों को अधिक महत्त्व दिया गया है। इन्होंने भावों के अनुकूल सरल, सरस और भावपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया है। राजस्थानी के शब्दों की प्रमुखता दिखाई देती है। राजस्थान के भक्तों में तो इनका स्थान सर्वोपरि है।

पदावली पदावली का सार

पाठ्य-पुस्तक में मीराबाई के दो पद संकलित हैं। पहले पद में कवयित्री ने नंदलाल, बालक कृष्ण की मनमोहक छवि को अपने नेत्रों में बसाने की कामना करते हुए उनकी सांवली सूरत, बड़ी-बड़ी आँखों, मोर के पंखों के मुकुट, मकर की आकृति के कुंडलों तथा माथे पर लगे तिलक की प्रशंसा की है। उनके होंठों पर मधुर स्वर उत्पन्न करने वाली मुरली तथा हृदय पर वैजंती माला विराजमान है। उनकी कमर पर छोटी-छोटी घंटियाँ तथा पैरों में घुघरू बंधे हैं, जिनका मधुर स्वर वातावरण में गूंज रहा है। मीरा के प्रभु का यह रूप संतों को सुख देने वाला तथा भक्तों की रक्षा करने वाला है।

दूसरे पद में कवयित्री श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानते हुए कहती हैं कि उसका उनके अतिरिक्त किसी अन्य से कोई संबंध नहीं है। मोर मुकुट धारी ही उसके स्वामी हैं। उसने कुल की मर्यादा का त्याग कर दिया है, इसलिए अब उसे किसी की कोई चिंता नहीं है। वह लोकलाज छोड़कर संतों के साथ विचरण कर रही है। उसने अपने आँसुओं से कृष्ण प्रेम की बेल को बोया है, जो अब खूब फैल गई है, जिस पर आनंद रूपी फल लग गए हैं। वह प्रभ भक्ति से प्रसन्न है तथा सांसारिक माया-मोह के बंधनों को देखकर रोती है। वह अपने आराध्य से अपनी मुक्ति की प्रार्थना करती है।

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