Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 8 अशिक्षित का हृदय Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 अशिक्षित का हृदय
Hindi Guide for Class 10 PSEB अशिक्षित का हृदय Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
बूढ़े मनोहर सिंह का नीम का पेड़ किसके पास गिरवी था?
उत्तर:
बूढ़े मनोहर सिंह का नीम का पेड़ ठाकुर शिवपाल सिंह के पास गिरवी था।
प्रश्न 2.
ठाकुर शिवपाल सिंह रुपये न लौटाए जाने पर किस बात की धमकी देता है?
उत्तर:
ठाकुर शिवपाल सिंह रुपये न लौटाए जाने पर नीम का पेड़ काटने की धमकी देता है।
प्रश्न 3.
मनोहर सिंह ने रुपये लौटाने की मोहलत कब तक की माँगी थी?
उत्तर:
मनोहर सिंह ने रुपये लौटाने के लिए एक सप्ताह की मोहलत मांगी थी।
प्रश्न 4.
नीम का वृक्ष किसके हाथ का लगाया हुआ था?
उत्तर:
नीम का वृक्ष बूढ़े मनोहर सिंह के पिता के हाथ का लगाया हुआ था।
प्रश्न 5.
तेजा सिंह कौन था?
उत्तर:
तेजा सिंह 15-16 साल का बालक था। वह गाँव के एक प्रतिष्ठित किसान का बेटा था।
प्रश्न 6.
ठाकुर शिवपाल सिंह का कर्ज़ अदा हो जाने के बाद मनोहर सिंह ने अपने नीम के पेड़ के विषय में क्या निर्णय लिया?
उत्तर:
मनोहर सिंह ने अपने नीम के पेड़ के विषय में निर्णय लिया कि वह अपना नीम का पेड़ नहीं कटने देगा और वह पेड़ अब तेजा सिंह का होगा।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन या चार पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
मनोहर सिंह ने अपने नीम के पेड़ को गिरवी क्यों रखा ?
उत्तर:
एक वर्ष पूर्व मनोहर सिंह को खेती कराने की सनक सवार हुई थी। अत: ठाकुर शिवपाल सिंह से कुछ भूमि लगान पर लेकर खेती कराई पर वर्षा न होने के कारण सब चौपट हो गया। ठाकुर शिवपाल सिंह को लगान न पहुँचा। मनोहर सिंह को जो पेंशन मिलती थी, उससे उसका अपना ही निर्वाह होता था। ठाकुर शिवपाल सिंह को लगान न मिला। अतः उसने मनोहर सिंह का नीम का पेड़ गिरवी रख लिया। यह नीम का पेड़ मनोहर को बहुत प्रिय था यह उसे अपने भाई के समान ही प्यारा था।
प्रश्न 2.
ठाकुर शिवपाल सिंह नीम के पेड़ पर अपना अधिकार क्यों जताते हैं?
उत्तर:
डेढ़ वर्ष पूर्व मनोहर सिंह ने ठाकुर शिवपाल से खेती करने के लिए रुपया उधार लिया था। हाथ तंग होने के कारण वह अभी तक उसे चुका नहीं पाया था। न ही ब्याज ही दे पाया था। इसलिए एक दिन शिवपाल सिंह ने अपना लगान उगाहने के लिए तकाज़ा किया। मनोहर सिंह की नियत में कुछ फर्क न था। रुपये उसके पास थे ही नहीं। उसने ठाकुर सिंह को एक सप्ताह में रुपए लौटा देने का वायदा किया पर रुपयों का प्रबन्ध न हो सका। ठाकुर शिवपाल सिंह अपने 25 रुपयों के बदले पेड़ कटवा लेना चाहता था क्योंकि आज वे उस पर अपना अधिकार जताते थे पर मनोहर सिंह पेड़ को कटते हुए नहीं देख सकता था।
प्रश्न 3.
मनोहर सिंह ठाकुर शिवपाल सिंह अपने नीम के वृक्ष के लिए क्या आश्वासन चाहता था?
उत्तर:
मनोहर सिंह ठाकुर शिवपाल को जब ऋण का रुपया न चुका पाया तो उसने उससे कहा कि उसके पास उसका नीम का पेड़ तो गिरवी है। इसलिए उसके रुपये का कोई जोखिम नहीं। वह पेड़ कम-से-कम 25 से तीस रुपये का तो होगा। उधार चुका न पाने के कारण वह पेड़ उनका होगा लेकिन वह उनसे आश्वासन चाहता था कि वे उसे कटवायेंगे नहीं।
प्रश्न 4.
नीम के वृक्ष के साथ मनोहर सिंह का इतना लगाव क्यों था?
उत्तर:
नीम का वृक्ष मनोहर सिंह के घर के बाहर लगा हुआ था। यह पेड़ उसके पिता के हाथ का लगाया हुआ था। इसके साथ उसका बचपन बीता था। वह पेड़ उसे उसके पिता की धरोहर था उसके लिए वह अपने पिता की यादगार मानता था। वह पेड़ की शीतल छाया में सुख का अनुभव करता था। वह रह-रह कर पेड़ के उपकारों का स्मरण करता है। वह पेड़ उसे बहुत प्रिय था। उसके कट जाने की कल्पना मात्र से उसका हृदय काँप उठता था। इस पेड़ के उसके परिवार पर अत्यधिक उपकार थे। यह पेड़ उसे तथा उसके परिवार को दातुन तथा छाया प्रदान करता था। पेड़ के इसी उपकारी रूप के कारण मनोहर सिंह को उससे इतना अधिक लगाव था।
प्रश्न 5.
मनोहर सिंह ने अपना पेड़ बचाने के लिए क्या उपाय किया?
उत्तर:
अपना पेड़ बचाने के लिए मनोहर सिंह जितनी कोशिश कर सकता था, वह कर चुका था। उसकी सभी कोशिशें विफल रही थीं। अंत में उसने निश्चय किया कि उसके जीते जी कोई भी पेड़ न काट सकेगा। उसने अपनी तलवार निकाल ली और उसे साफ़ भी कर लिया। अब वह हर समय पेड़ के नीचे ही रहता था। एक दिन जब ठाकुर के मज़दूर पेड़ काटने के लिए आए तो मनोहर सिंह ने उन्हें डरा धमका कर वापस भेज दिया।
प्रश्न 6.
मनोहर सिंह की किस बात से तेजा सिंह प्रभावित हुआ?
उत्तर:
मनोहर सिंह ठाकुर शिवपाल सिंह के कर्ज में दबा हुआ था। वह चाहकर भी उसका ऋण न उतार सका था। तेजा सिंह मनोहर को चाचा कह कर बुलाता था। एक दिन जब मनोहर दुःखी, निराश होकर पेड़ के नीचे बैठा था तब वृद्ध मनोहर सिंह का कष्ट तथा आप बीती सुनकर तेजा को बहुत दुःख हुआ। तेजा ने बड़ी ही विनम्रता से मनोहर को कहा-“दस-पाँच रुपये की बात होती, तो मैं ही कहीं से ला देता।” इतना सुनकर मनोहर बहुत खुश हुआ। उसने आशीर्वाद दिया। मनोहर सिंह की एक पेड़ की रक्षा के लिए मर मिटने के लिए तैयार हो जाने की बात से तेजा सिंह प्रभावित हुआ था।
प्रश्न 7.
तेजा सिंह ने मनोहर सिंह की सहायता किस प्रकार की?
उत्तर:
तेजा सिंह मनोहर सिंह की सहायता करने के लिए 25 रुपये लेकर आया था किन्तु शीघ्र ही पता चला कि उसके रुपये चुराए हुए थे। तब तेजा के पिता ने वे रुपये ले लिए। तब तेजा ने मनोहर सिंह का ऋण चुकाने के लिए अपनी सोने की अंगूठी दी और कहा कि इस पर उसके पिता का हक नहीं था। यह उसे उसकी नानी ने दी थी। तेजा सिंह की इस बात से उसका पिता बहुत प्रभावित हुआ और उसने अँगूठी न देकर 25 रुपये ठाकुर को देकर कर्ज़ चुका दिया।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छ: या सात पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
मनोहर सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
अशिक्षित का हृदय’ कहानी में मनोहर सिंह सर्वाधिक आकर्षक पात्र है। वह कहानी का केन्द्र बिन्दु है। संपूर्ण कहानी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी का शीर्षक भी उसी की ओर लक्ष्य करता है। लेखक का उद्देश्य भी उसी के चरित्र पर प्रकाश डालना है।
मनोहर सिंह की आयु 55 वर्ष के लगभग थी। उसने अपनी जवानी फौज में बिताई थी। अब वह संसार में अकेला था। उसके परिवार का सगा-संबंधी कोई नहीं। गाँव में दो-एक दूर के संबंधी थे, उन्हीं के यहाँ अपना भोजन बनवा लेता था और जैसे-तैसे जीवन की गाड़ी को खींच रहा था। वह कहीं आता जाता नहीं। दिन-रात अपने टूटे-फूटे मकान में पड़ा ईश्वर का भजन करता रहता है।
मनोहर सिंह में स्वाभिमान तथा अहं का भाव एक साथ थे। उसने गाँव के एक प्रतिष्ठित किसान के बेटा तेजा सिंह को बताया था-‘बेटा, मैंने सारी उमर फौज में बिताई है। बड़ी-बड़ी लड़ाई और मैदान देखे हैं। ये बेचारे हैं किस खेत की मूली। आज शरीर में बल होता, तो इनकी मजाल नहीं थी कि मेरे पेड़ के लिए ऐसा कहते। मुँह नोच लेता। मैंने कभी नाक पर मक्खी नहीं बैठने दी। वह बड़े-बड़े साहब-बहादुरों से लड़ पड़ता था। ये बेचारे हैं क्या?
मनोहर सिंह में अहं के साथ विनम्रता का भाव भी था। वह पेड़ देने को तैयार था पर उसे कटवाना नहीं चाहता था। ठाकुर जब अपनी बात पर अड़ गए थे तो मनोहर सिंह स्वयं पर काबू नहीं रख सका था-“बात केवल इतनी है कि मेरे रहते इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता। यह मैं जानता हूँ कि पेड़ आपका है, मगर यह होने पर भी मैं इसे कटता हुआ नहीं देख सकता।”
प्रश्न 2.
तेजा सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
तेजा सिंह पंद्रह-सोलह वर्ष का बालक था। वह संपन्न परिवार से संबंधित था। वह साहसी और समझदार था। वह मनोहर सिंह को चाचा कहकर पुकारता था। जब मनोहर सिंह उसे बताया कि यह नीम का पेड़ उसके पिता ने लगाया था तथा वह इसे भाई की तरह प्यार करता है, इसे किसी हालत में कटने नहीं देगा तो तेजा बड़ा प्रभावित हुआ। उसके पेड़ की रक्षा के लिए वह अपने घर से 25 रुपए चुरा कर लाया था। भेद खुलने पर वह हाथ की अंगूठी, जो उसकी नानी ने दी थी, देकर पेड़ को कटने से बचा लिया था और तेजा सिंह अपने साहस से अपने पिता को ही नहीं सभी उपस्थित लोगों को भी प्रभावित कर दिया था। उसके इसी साहस से प्रभावित होकर मनोहर सिंह सबके सामने यह घोषणा करती थी कि उस नीम के पेड़ पर तेजा का अधिकार होगा।
प्रश्न 3.
‘अशिक्षित का हृदय’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘अशिक्षित का हृदय’ कहानी एक सोद्देश्य पूर्ण कहानी है। इस कहानी में एक अशिक्षित ग्रामीण मनोहर के निश्छल तथा स्नेहपूर्ण हृदय का चित्रण है। व्यक्ति का व्यक्ति के प्रति अनन्य प्रेम तो अक्सर सुनने को मिलता है। लेकिन एक पेड़ के प्रति प्रेम देखने को कम मिलता है जो इस कहानी में व्यक्त हुआ है। लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब मनुष्य के पास धन-दौलत आती है तो वह मित्रों की सहायता तो दूर सीधे मुँह बात तक नहीं करता। मनोहर की भी सहायता गाँव भर में किसी ने नहीं की।
(ख) भाषा-बोध
I. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए
घर = ————
गंगा = ————
वृक्ष = ————
बेटा। = ————
उत्तर:
शब्द = पर्यायवाची शब्द
घर = भवन, सदन
गंगा = देवनदी, भागीरथी
वृक्ष = पेड़, तरु
बेटा। = सुत, पुत्र।
II. निम्नलिखित शब्दों से विशेषण शब्द बनाइए
सप्ताह = ————
समय = ————
निश्चय = ————
प्रतिष्ठा = ————
स्मरण = ————
अपराध। = ————
उत्तर:
शब्द = विशेषण
सप्ताह = साप्ताहिक
समय = सामयिक
निश्चय = निश्चयात्मक
प्रतिष्ठा = प्रतिष्ठित
स्मरण = स्मरणीय
अपराध = आपराधिक।
III. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर इनका अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
बुढ़ापा बिगाड़ना, सीधे मुँह बात न करना, जान एक कर देना, क्रोध के मारे लाल होना, तीन तेरह बकना, नाक कटवाना, चेहरे का रंग उड़ना।
उत्तर:
- बुढ़ापा बिगाड़ना-वृद्धावस्था में तकलीफ एवं कठिनाइयां आना-बुढ़ापे में यदि अपने बच्चे लड़झगड़ कर अलग हो जाएं तो बुढ़ापा बिगड़ ही जाता है।
- सीधे मुँह बात न करना-ठीक से बात न करना-जब से राहुल अमीर हुआ है तब से वह किसी से सीधे मुँह बात नहीं करता।
- जान एक कर देना-अत्यधिक मेहनत करना-किसान अपने खेत में फसल उगाने के लिए अपनी जान एक कर देते हैं।
- क्रोध के मारे लाल होना-अत्यधिक गुस्सा आना-परीक्षा में जब टिंकू के अच्छे अंक नहीं आए तो उसके पिता क्रोध के मारे लाल हो गए।
- तीन तेरह बकना-बेकार की बातें करना-रमेश के पास जब कुछ कहने को नहीं होता तो वह तीन तेरह बकने लगता है।
- नाक कटवाना-बदनाम करवाना-सोहन ने चोरी करके अपने कुल की नाक कटवा दी।
- चेहरे का रंग उड़ना-सकपका जाना- तेजा सिंह की चोरी का जब पता चला तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
IV. पंजाबी से हिंदी में अनुवाद कीजिए
प्रश्न 1.
ਠਾਕੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਚਲੇ ਜਾਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮਨੋਹਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਤੇਜਾ ਨੂੰ ਬੁਲਾ ਕੇ ਛਾਤੀ ਨਾਲ ਲਾਇਆ ਤੇ ਕਿਹਾਪੁੱਤਰ, ਇਸ ਦਰੱਖ਼ਤ ਨੂੰ ਤੂੰ ਹੀ ਬਚਾਇਆ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਹੁਣ ਮੈਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਮੇਰੇ ਪਿੱਛੋਂ ਤੂੰ ਇਸ ਦਰੱਖਤ ਦੀ ਪੂਰੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰ ਸਕੇਂਗਾ।
उत्तर:
ठाकुर साहब के चले जाने के बाद मनोहर सिंह ने तेजा को बुला कर छाती से लगाया और कहापुत्र, इस पेड़ को तुमने ही बचाया है। इसलिये अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे बाद तुम इस पेड़ की पूरी रक्षा कर सकोगे।
प्रश्न 2.
ਸ਼ਿਵਪਾਲ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਆਦਮੀਆਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ-ਵੇਖਦੇ ਕੀ ਹੋ, ਇਸ ਬੁੱਢੇ ਨੂੰ ਫੜ ਲਓ ਅਤੇ ਦਰੱਖਤ ਕਟਣਾ म वत रिठ।
उत्तर:
शिवपाल सिंह ने अपने आदमियों को कहा-देखते क्या हो, इस बूढ़े को पकड़ लो और पेड़ काटना शुरू कर दो।
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
तेजा सिंह ने मनोहर सिंह की सहायता के लिए रुपये चुराए। इसे आप कहाँ तक उचित मानते हैं?
उत्तर:
तेजा सिंह मनोहर की सहायता करना चाहता था। यह ठीक बात है किंतु सहायता के नाम पर चोरी करना सर्वथा ग़लत है। किसी भी दृष्टिकोण से तेजा सिंह का चोरी करना सही नहीं ठहराया जा सकता। मदद तो और भी किसी तरीके से की जा सकती थी। इसके लिए गाँव वालों से चंदा लिया जा सकता था या फिर वह पिता को सब सच बताकर उनसे भी ले सकता था। अतः चोरी करना सर्वथा ग़लत था।
प्रश्न 2.
पेड़ों का विकास मानव के बिना हो सकता है लेकिन मानव का विकास पेड़ों के बिना संभव नहीं। इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से अपनी कक्षा में स्वयं करें।
प्रश्न 3.
यह कहानी प्रकृति के साथ मानव के भावात्मक संबंध को प्रकट करती हुई एक मार्मिक कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य स्वभाव से ही स्वार्थी प्राणी है। अपने लोभ-लालच की प्रकृति के कारण प्रकृति के विनाश में जुटा हुआ है। वह अन्य जीव-जंतुओं की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान है इसलिए वह केवल अपनी सुख-सुविधाओं के बारे में सोचता है। अधिक लोग प्रकृति के साथ भावात्मक संबंध जोड़ने की जगह अपने स्वार्थों को महत्व देते हैं। यह कहानी मानव के भावात्मक संबंधों को उजागर करने वाली एक मार्मिक कहानी है जो पेड़ों के कटाव का विरोध करती है। मनोहर सिंह नीम के पेड़ को अपना मानते हुए उसके लिए लड़ने-मरने के लिए तैयार हो जाता है तो तेजा सिंह उसकी रक्षा के लिए अपने सोने की अंगूठी देने को तैयार हो गया था। यदि वे दोनों अपनी आवश्यकता को इस प्रकार प्रकट न करते तो नीम का पेड़ अवश्य काट दिया जाता। निश्चित रूप से यह कहानी प्रकृति के साथ मानव की भावात्मकता से जुड़ी हुई मार्मिक कहानी है।
(घ) पाठ्येतर सक्रियता
प्रश्न 1.
वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ-जैसे नारे चार्ट पर लिखकर कक्षा में लगाइए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
अपने स्कूल या आस-पड़ोस में पौधारोपण कीजिए और उसकी देखभाल कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 3.
नीम के पेड़ के क्या-क्या लाभ हैं? इस बारे में इंटरनेट से या पुस्तकों से जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने ज्ञान के द्वारा स्वयं करें।
प्रश्न 4.
5 जून को पर्यावरण दिवस में सक्रिय रूप से भाग लीजिए।
उत्तर:
अध्यापक और विद्यालय की सहायता से पर्यावरण दिवस मनाइए और उसमें सक्रिय रूप से भाग लीजिए।
प्रश्न 5.
विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों के चित्रों की एलबम तैयार कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 6.
इस कहानी को अध्यापक की सहायता से एकांकी रूपांतरित करके मंचित कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं अध्यापक की सहायता लेकर इसका मंचन करें।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
नीम पर लोकोक्तियाँ
एक करेला दूजा नीम चढ़ा-रमेश पहले से ही शराबी था, अब जुआ भी खेलने लगा है, इसी को कहते हैं एक करेला दूजा नीम चढ़ा।
नीम हकीम खतरा जान-सतनाम कौर के कहने से झाड़ा-फूंकी छोड़ कर किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज करा क्योंकि नीम हकीम खतरा जान होता है, अच्छा डॉक्टर ही तेरी बिमारी ठीक करेगा।-
- नीम न मीठा होय खाओ गुड-घी से- सोहन सिंह कितना ही समझा लो वह अपनी अकड़ से बाज़ नहीं आएगा क्योंकि नीम न मीठा होय खाओ गुड़-घी से।
- नीम के कीड़े को नीम ही अच्छा लगता है-रावण जैसी आसुरी प्रवृत्ति वाले को विभीषण की सीख नहीं, मेघनाद का कथन ही अच्छा लगा क्योंकि नीम के कीड़े को नीम ही अच्छा लगता है।
- नीम का फल निमकौड़ी-जो किसी के लिए गड्डे खोदता है, वह स्वयं भी उसी में जा गिरता है क्योंकि नीम का फल निमकौड़ी ही होता है।
- नीम गुण बत्तीस, हर्र गुण छत्तीस-राघव के मुकाबले राम अधिक समझदार तथा ईमानदार कर्मचारी हैं, इसीलिए कहते हैं कि नीम गुण बत्तीस तो हर्र गुण छत्तीस।
- नीम का पेड़ एक सदाबहार पेड़ हैं, जो 15 से 40 मीटर तक ऊँचा हो जाता है। इसके पत्ते, टहनियाँ, बीज, फल, छाल, तेल, जड़ आदि सभी विभिन्न रोगों में लाभकारी माने जाते हैं। इससे त्वचा, मलेरिया, मधुमेय हृदय, कैंसर आदि से संबंधित बीमारियों में लाभ होता है।
PSEB 10th Class Hindi Guide अशिक्षित का हृदय Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
मनोहर सिंह कौन था?
उत्तर:
मनोहर सिंह एक ग्रामीण व्यक्ति था। उसने अपना यौवन काल फौज में व्यतीत किया था।
प्रश्न 2.
नीम का पेड़ किसने और कब लगाया था?
उत्तर:
नीम का पेड़ मनोहर के पिता ने बचपन में लगाया था।
प्रश्न 3.
एक वर्ष बीत जाने के बाद मनोहर को रुपया अदा करने के लिए कितना समय दिया गया?
उत्तर:
एक वर्ष बीत जाने के बाद मनोहर को रुपया चुकाने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया।
प्रश्न 4.
मनोहर को पेड़ से लगाव क्यों था?
उत्तर:
मनोहर ने पेड़ के साथ अपना बचपन बिताया था। वह उसे अपने भाई की तरह मानता था। इसलिए उसका पेड़ के प्रति लगाव था।
प्रश्न 5.
मनोहर के पिता का देहांत हुए कितने वर्ष बीत चुके थे?
उत्तर:
मनोहर के पिता का देहांत हुए चालीस वर्ष बीत चुके थे।
प्रश्न 6.
तेजा के मन में मनोहर के प्रति सहानुभूति कब जागी ?
उत्तर:
तेजा ने जब मनोहर सिंह से पेड़ के महत्त्व तथा पेड़ की कहानी को सुना तो उसके हृदय में मनोहर के लिए सहानुभूति जागी।
प्रश्न 7.
शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह को कितने दिन बाद बुलवाया?
उत्तर:
शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह को आठवें दिन दोपहर के समय बुलवाया था।
प्रश्न 8.
दोपहर ढलने के बाद कितने आदमी क्या लेकर आते हुए दिखाई दिए?
उत्तर:
दोपहर ढलने के बाद दो-चार आदमी कुलहाड़ियाँ लेकर आते दिखाए दिए।
प्रश्न 9.
मनोहर सिंह ने अपनी आपबीती किसे कह सुनाई थी?
उत्तर:
मनोहर सिंह ने तेजा को अपनी आपबीती कह सुनाई थी।
प्रश्न 10.
कहानी के अंत में मनोहर सिंह ने क्या घोषणा की?
उत्तर:
कहानी के अंत में मनोहर सिंह ने कहा कि भाइयो, मैं तुम सबके सामने यह पेड़ तेजा सिंह को देता हूँ।
प्रश्न 11.
‘अशिक्षित का हृदय’ कहानी के आधार पर ठाकुर शिवपाल सिंह के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ठाकुर शिवपाल सिंह ‘अशिक्षित का हृदय’ कहानी में एक शोषक ज़मींदार के रूप में हमारे सामने आता है। वह ऋण देकर उसे कठोरता से वसूल करता है। वह मानवीय सहानुभूति से वंचित है। मनोहर सिंह से रुपये न मिलने पर वह उसका पेड़ कटवाकर उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाना चाहता है। यही नहीं वह रुपये स्वीकार करने से भी इन्कार करता है। ठाकुर शिवपाल गुस्सैल, स्वार्थी और लालची प्रवृत्ति का व्यक्त है। लेखक ने ठाकुर के माध्यम से उन ज़मींदारों की शोषण प्रवृत्ति का यथार्थ चित्रण किया है जो किसानों के प्रति कठोर व्यवहार करते हैं और उनको नीचा दिखाने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं।
प्रश्न 12.
ठाकुर साहब रुपये लेकर चुपचाप क्यों चले गए थे?
उत्तर:
ठाकुर सिंह को विश्वास हो गया था कि मनोहर सिंह को कहीं से भी रुपए नहीं मिलेंगे। इसलिए उसने भरी सभा में रुपए लेकर पेड़ न कटवाने की बात कह दी थी। जब तेजा के पिता ने 25 रुपए ठाकुर की ओर बढ़ा दिये तो ठाकुर के चेहरे का रंग उड़ गया। उन्होंने तो केवल सभा में उदारता का परिचय देने के लिए रुपए लेने की बात कर दी थी। लेकिन अब पेड़ कटवाने के पक्ष में उनके पास कोई तर्क नहीं था। अतः वे खामोश बने रहे। उन्होंने पच्चीसतीस आदमियों के सामने रुपए स्वीकार कर पेड़ छोड़ने की बात कह दी थी। अत: अब कही हुई बात से पीछे हटना कठिन था। अत: वे रुपए लेकर चुपचाप घर की ओर चल दिए।
प्रश्न 13.
मनोहर सिंह तेजा सिंह को पेड़ को प्रति अपने लगाव के बारे में क्या बताता है?
उत्तर:
मनोहर सिंह तेजा को लक्ष्य कर कहता है, बेटा ! यह बात स्वीकार करो कि इस पेड़ के कट जाने का मुझे बड़ा दुःख होगा। मेरा बुढ़ापा जायेगा अर्थात् मेरे जीवन में दुःख और निराशा छा जायेगी। बुढ़ापा वैसे ही कष्टपूर्ण होता है पर पेड़ का अभाव इसे असहनीय बना देगा। अभी तक मेरा जीवन सुखमय व्यतीत हो रहा था। निश्चित होकर जीवन व्यतीत कर रहा था। जो कुछ भी मिलता, उसे खाकर संतोष का अनुभव करता। किसी प्रकार का सांसारिक मोह मुझे नहीं था। ईश्वर का भजन-पूजन कर अपना समय व्यतीत कर रहा था पर अब अगर पेड़ कट गया तो मुझे बहुत दु:ख होगा।
प्रश्न 14.
मनोहर सिंह अपना नीम का पेड़ क्यों काटने नहीं दे रहा था?
उत्तर:
मनोहर सिंह के घर के द्वार पर लगा नीम का पेड़ बहुत पुराना था। यह पेड़ इसके पिता के द्वारा लगाया गया था। उसे वह अपने बड़े भाई के समान मानता था। बरसों इस पर खेला और उसकी मीठी निबौलियाँ खाई थीं। पेड़ कटने पर उसे अपना बुढ़ापा बिगड़ते लगता था। इसलिए वह किसी सूरत में भी उस पेड़ को काटने देना नहीं चाहता था।
प्रश्न 15.
मनोहर सिंह ने तेजा के बापू के बारे में उससे क्या कहा?
उत्तर:
तेजा सिंह गाँव के एक प्रतिष्ठित किसान का बेटा था। उसने जब ऋण के रुपयों की बात अपने पिता से करने को कहा तो मनोहर सिंह ने कहा, वह अब बड़ा आदमी हो गया है, गरीबों की बात क्यों सुनने लगा। किंतु एक जमाना था जब सारा-सारा दिन मेरे द्वार पर पड़ा रहता था। घर में जब भी कोई लड़ाई होती मेरे पास भाग आता। वही अब मुझसे सीधे मुँह बात भी नहीं करता। सब समय की बात है।
प्रश्न 16.
मनोहर सिंह ने तेजा सिंह को नीम का पेड़ क्यों दे दिया था?
उत्तर:
तेजा सिंह ने अपनी सोने की अंगूठी देकर मनोहर सिंह का ऋण चुकाने की कोशिश की थी। यह देखकर मनोहर सिंह को विश्वास हो गया कि उसके पीछे वह उस पेड़ की पूरी रक्षा कर सकेगा। इसी कारण मनोहर सिंह ने वह नीम का पेड़ तेजा सिंह को दे दिया।
प्रश्न 17.
‘अशिक्षित का हृदय’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कहानी का शीर्षक प्रायः कहानी के मूलभाव तथा उद्देश्य का सूचक होता है। प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘अशिक्षित का हृदय’ है और इस कहानी में लेखक ने एक ग्रामीण व्यक्ति की सहृदयता पर प्रकाश डाला है। मनोहर सिंह अपने पिता द्वारा लगाए गए नीम के पेड़ की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की आहति देने के लिए तैयार है। पेड़ के प्रति स्नेह, उसकी रक्षा तथा उसकी उपकार भावना का संबंध हृदय से है। इसलिए शीर्षक उपयुक्त तथा सार्थक है। शीर्षक सरल तथा जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला भी है। पाठक को यह शीर्षक कभी भूलता नहीं।
प्रश्न 18.
‘अशिक्षित का हृदय’ कहानी में सबसे अच्छा चरित्र-चित्रण किसका है और क्यों?
उत्तर:
कौशिक जी ने अपनी कहानियों के अंतर्गत विभिन्न मानव-मनोवृत्तियों का चित्रण करने के लिए विविध प्रकार के चरित्रों का चयन किया है। पात्रों के स्वभाव, व्यवहार प्रकृति एवं प्रवृत्तियों का चित्रण कौशिक कहानियों की उल्लेखनीय विशेषता है। प्रस्तुत कहानी में पात्रों की संख्या पर्याप्त है पर प्रमुखता केवल तीन पात्रों को प्राप्त हुई है(1) मनोहर सिंह (2) तेजा सिंह (3) ठाकुर शिवपाल सिंह। इनमें भी मनोहर सिंह का चरित्र अधिक आकर्षक है क्योंकि लेखक का लक्ष्य उसी के चरित्र को उजागर करना है। शेष पात्र भी उसी के चरित्र को उभारने में सहायक हैं। वह परिश्रमी, वचन का पक्का, ईमानदार, साहसी, रिश्ते-नातों को निभाने वाला, प्रकृति प्रेमी और स्पष्टवादी स्वभाव का व्यक्ति था। उसमें छल-कपट कदापि नहीं था। वही कहानी का मुख्य पात्र था। सारी कहानी उसी के चरित्र से जुड़ी हुई है। उसी का चरित्र कहानी का आरंभ और अंत है।
प्रश्न 19.
अशिक्षित का हृदय’ कहानी किस प्रकार की है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘अशिक्षित का हृदय’ श्री विश्वंभरनाथ ‘कौशिक’ के द्वारा रचित एक भावात्मक तथा चरित्र प्रधान कहानी है, जिसमें एक अशिक्षित ग्रामीण की भावुकता का मार्मिक चित्रण हुआ है। इस कहानी में नैतिकता और आदर्शवादिता की प्रधानता रही है। इसमें स्वाभाविकता के साथ-साथ व्यावहारिकता भी विद्यमान है। जहाँ आदमी की अभिव्यक्ति है, वहाँ यथार्थ की भी अभिव्यक्ति है। इस में कलात्मकता का भी सुंदर निर्वाह है।
प्रश्न 20.
अशिक्षित का हृदय कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कौशिक जी की कहानियों की भाषा प्रायः सरल, वातावरण, परिस्थिति तथा पात्र के व्यक्तित्व के अनुकूल होती है। उनकी भाषा में कहीं भी क्लिष्टता नहीं। भाषा बोलचाल के निकट है। यथा-
ठाकुर-अच्छा, अब ठीक-ठीक बताओ कि रुपये कब तक दे दोगे ? मनोहर कुछ देर सोचकर बोला-एक सप्ताह में अवश्य दे दूंगा।
संवादों में संक्षिप्तता और नाटकीयता का गुण भी विद्यमान है। संवाद मनोहर सिंह के अंतर्द्वद्व को व्यक्त करने में भी सहायक हैं।
एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मनोहर सिंह कैसा जीवन जीने वाला व्यक्ति है?
उत्तर:
मनोहर सिंह साधारण जीवन जीने वाला व्यक्ति है।
प्रश्न 2.
मनोहर सिंह नीम के वृक्ष को बचाने के लिए क्या प्रण करता है?
उत्तर:
मनोहर सिंह अपनी जान देकर भी नीम के वृक्ष को बचाने का प्रण करता है।
प्रश्न 3.
ऋण का पाप कैसे कटता है?
उत्तर:
ऋण का पाप ऋण चुका देने से कटता है।
प्रश्न 4.
मनोहर सिंह के पिता का देहान्त हुए कितने वर्ष हो गए थे?
उत्तर:
मनोहर सिंह के पिता का देहान्त हुए चालीस वर्ष हो गए थे।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें
प्रश्न 1.
डेढ़ साल का ब्याज मिलाकर कुल कितने रुपए मनोहर सिंह ने ठाकुर को देने थे?
(क) बीस
(ख) बाईस
(ग) पच्चीस
(घ) तीस।
उत्तर:
(ख) बाईस
प्रश्न 2.
मनोहर सिंह की आयु लगभग कितने वर्ष की है
(क) 50
(ख) 55
(ग) 60
(घ) 65।
उत्तर:
(ख) 55
प्रश्न 3.
ठाकुर शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह को ऋण लौटाने के लिए कितने दिनों का समय दिया था?
(क) एक सप्ताह
(ख) एक माह
(ग) एक पखवाड़ा
(घ) दस दिन।
उत्तर:
(क) एक सप्ताह
एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न
प्रश्न 1.
तेजा सिंह गाँव के किस प्रतिष्ठित व्यक्ति का बेटा था? (एक शब्द में उत्तर दें)
उत्तर:
किसान
प्रश्न 2.
आठवें दिन तक मनोहर सिंह रुपयों का प्रबंध नहीं कर सका। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
हाँ
प्रश्न 3.
वे मज़दूर बुड्ढे की ललकार सुन और तलवार देखकर भी नहीं भागे। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
नहीं
प्रश्न 4.
शिवपाल सिंह पुलिस तथा बंदूकधारियों को लेकर पहुँचे। (सही या गलत लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत
प्रश्न 5.
तेजा सिंह ने अपनी अंगूठी शिवपाल सिंह को दी। (सही या गलत लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
सही
प्रश्न 6.
ये अँगूठी मुझे मेरी ……… ने दी थी।
उत्तर:
नानी
प्रश्न 7.
बेटा, इस …………. को तूने ही बचाया।
उत्तर:
पेड़
प्रश्न 8.
ठाकुर साहब के ……….. का रंग उड़ गया।
उत्तर:
चेहरे।
अशिक्षित का हृदय कठिन शब्दों के अर्थ
चिरंजीव = दीर्घ जीवी। विनीत = विनम्र । कद्र = इज़्ज़त संभाल। उत्तराधिकारी = बाद में संभालने वाला। जोखिम = खतरा। सठिया जाना = साठ वर्ष का हो जाना, बुड्ढा होना। ऋण = कर्ज़। अन्नदाता = भोजन का प्रबंध करने वाला। वसूलना = किसी से कुछ हक से लेना। हताश = निराश। पेंशन = नौकरी के बाद मिलने वाली धन राशि। सींचना = पानी देना। स्मरण = याद। निबोली = नीम का छोटा फल। अनावृष्टि = वर्षा का अभाव, सूखा। लठबंध = लठैत। सिरहाने = सिर की तरफ। मियाद = समय। सदैव = हमेशा। ऊल-जलूल = ऊट-पटांग। वच = बच। प्रतिष्ठित = सम्मान प्राप्त। कीर्ति = मान-सम्मान, यश। टुकुर-टुकुर = रह-रह कर, ललचाई नज़र से देखना। गिरवी = किसी के पास कोई चीज़ किसी शर्त पर रखना।
अशिक्षित का हृदय Summary
अशिक्षित का हृदय लेखक परिचय
बहुमुखी प्रतिभा संपन्न श्री विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ का जन्म सन् 1890 ई० में तत्कालीन पंजाब प्रांत के अंबाला जिले में हुआ था। इन्हें हिंदी, उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म, साधना का गहनता से अध्ययन किया था। इन्होंने कानपुर से मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त की थी। संगीत तथा फोटोग्राफी में भी इनकी अत्यधिक रुचि थी। इनका देहावसान सन् 1944 ई० में हो गया था। कौशिक जी मूलरूप से कहानीकार थे। उन्होंने आदर्शवादिता और भावुकता से परिपूर्ण कहानियां लिखी थीं।
रचनाएँ – विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ एक महान् साहित्य सेवक थे। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से अनेक साहित्यिक विधाओं का विकास किया। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
कहानी संग्रह – मणिमाला, चित्रशाला
पत्र-संग्रह – दूबे जी की डायरी
उपन्यास – माँ, भिखारिणी।
विश्वंभरनाथ शर्मा आधुनिक साहित्य के एक श्रेष्ठ साहित्यकार थे। हिंदी भाषा के गद्य के क्षेत्र में उनका योगदान महान् है। इनका गद्य-साहित्य समाज केंद्रित है। इन्होंने अपने गद्य-साहित्य में समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण किया। इन्होंने समाज के सुख-दुःख, गरीबी, शोषण आदि का यथार्थ वर्णन किया है। इनका सारा जीवन साहित्य-सेवा में तथा समाज-उद्धार करने में लगा रहा।
अशिक्षित का हृदय कहानी का सार
‘अशिक्षित का हृदय’ कहानी के लेखक श्री विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ हैं। इस कहानी में लेखक ने एक अशिक्षित ग्रामीण के हृदय में निहित सच्चे प्रेम की झलक प्रस्तुत की है।
मनोहर सिंह नाम का एक ग्रामीण व्यक्ति था। उसने अपना यौवन काल फौज में व्यतीत किया था। अब वह अकेला रहता था। गाँव में दूर के एक-दो रिश्तेदार अवश्य थे, उन्हीं के यहां अपना भोजन बना लेता था। उसका कहीं आनाजाना नहीं था। अपने टूटे-फूटे मकान में रहता था और ईश्वर भजन किया करता था।
एक वर्ष पूर्व उसके मन में खेती कराने की इच्छा पैदा हुई थी। अतः उसने ठाकुर शिवपाल सिंह से कुछ भूमि लगान पर लेकर खेती कराई भी थी पर वर्षा न होने के कारण कुछ पैदावार न हुई। ठाकुर शिवपाल सिंह को लगान न दिया जा सका। उसे जो सरकार से पेंशन मिलती थी, वह उस पर खर्च हो जाती थी। अतः कुछ बचत न थी।
ठाकुर शिवपाल सिंह ऋण की रकम वापस लेने में कुछ कठोर हो जाया करता था। अंत में जब ठाकुर साहब को लगान न मिला तो उन्होंने मनोहर सिंह का नीम का पेड़ गिरवी रख लिया। मनोहर सिंह की झोंपड़ी के द्वार पर लगा यह पेड़ बहुत पुराना था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि इसे मनोहर सिंह के पिता ने लगवाया था।
एक दिन ठाकुर शिवपाल सिंह अपना ऋण वापस लेने के लिये मनोहर सिंह के द्वार पर आ पहुँचा। मनोहर सिंह ने विनम्र भाव से कहा कि अभी रुपये उसके पास नहीं थे। फिर रुपयों को कोई खतरा नहीं था क्योंकि उसका नीम का पेड़ गिरवी रखा हुआ था। ठाकुर शिवपाल सिंह ने कहा कि डेढ़ साल का ब्याज मिलाकर कुल 25 रुपये बनते थे। वे रुपये अदा कर दो अन्यथा इसके बदले पेड़ कटवा लिया जायेगा। मनोहर सिंह घबराकर बोला कि पेड़ को कटवाया न जाए। ऋण अदा न होने पर वह पेड़ ठाकुर शिवपाल सिंह का हो जाएगा। ठाकुर ने मनोहर सिंह की बात नहीं मानी और कहा-“हमारा जो जी चाहेगा करेंगे। तुम्हें फिर कुछ कहने का अधिकार नहीं रहेगा।”
मनोहर सिंह को रुपया अदा करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया था। उसने रुपया चुका देने की हर संभव कोशिश की। बहुत दौड़-धूप की पर किसी ने भी रुपए नहीं दिए। वह पेड़ की शीतल छाया में लेटा हुआ पेड़ के उपकारों का स्मरण कर रहा था। वह पेड़ उसे बहुत प्रिय था। उसके कट जाने की कल्पना मात्र से उसका हृदय काँप उठता था। वह उठकर बैठ गया और वृक्ष की ओर मुँह करके बोला-“यदि संसार में किसी ने मेरा साथ दिया है तो तूने। यदि संसार में किसी ने नि:स्वार्थ भाव से मेरी सेवा की है तो तूने। ……. पिता कहा करते थे-बेटा मनोहर, यह मेरे हाथ की निशानी है। इससे जब-जब तुझे और तेरे बाल-बच्चों को सुख पहुँचेगा तब-तब मेरी याद आएगी। पिता का देहांत हुए चालीस वर्ष व्यतीत हो गए……. इस संसार में तू ही एक पुराना मित्र है। तुझे वह दुष्ट काटना चाहता है।” हाँ, काटेगा क्यों नहीं। देखू कैसे काटता है।”
मनोहर सिंह अपने विचारों में डूबा हुआ बड़बड़ा ही रहा था कि उसी समय तेजा नाम का एक पंद्रह-सोलह वर्ष का लड़का आया। उसने आते ही मनोहर से पूछा कि वह किससे बातें कर रहा था। मनोहर सिंह ने तेजा को आप बीती कह सुनाई। तेजा बालक था इसलिए वह मनोहर सिंह की गंभीरता का अनुमान न लगा सका लेकिन जब उसे पेड़ की कहानी तथा उसके महत्त्व का पता चला तो उसके हृदय में मनोहर सिंह के प्रति सहानुभूति जागी। तेजा सिंह के लिए 25 रुपये की रकम बहुत बड़ी थी। दस-पाँच रुपये की बात होती तो वह कहीं से ला देता। मनोहर सिंह तेजा सिंह की सहानुभूति पाकर प्रभावित हो गया। उसने उसे आशीर्वाद दिया।
एक सप्ताह बीत गया। मनोहर सिंह रुपये अदा नहीं कर सका। आठवें दिन दोपहर के समय शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह को बुलवाया। मनोहर सिंह तलवार बग़ल में दबाए अकड़ता हुआ ठाकुर साहब के सामने आ पहुँचा। ठाकुर साहब ने कहा कि अब पेड़ उनका था। अतः उसे कटवाने का अधिकार भी उनका था। मनोहर सिंह पेड़ न कटवाने का अनुरोध करता रहा। पर ठाकुर साहब के कान पर तक न रेंगी। मनोहर सिंह भी आकर अपने पेड़ के नीचे चारपाई बिछाकर बैठ गया।
दोपहर ढलने पर दो-चार आदमी कुल्हाड़ियाँ लेकर आते दिखाई दिए। मनोहर सिंह ने तलवार निकाल ली और कहा-“संभल कर आगे बढ़ना। जो किसी ने भी पेड़ में कुल्हाड़ी लगाई, तो उसकी जान और अपनी जान एक कर दूंगा।” मज़दूर भाग खड़े हुए। शिवपाल सिंह घटना से परिचित होते ही दो लठबंद आदमियों तथा मज़दूरों के साथ वहाँ पहुँचे। मनोहर सिंह तथा ठाकुर शिवपाल सिंह में वाद-विवाद हुआ। मनोहर सिंह ने क्रोध से चुनौती भरे स्वर में कहा”ठाकुर साहब, जो आप सच्चे ठाकुर हैं, तो इस पेड़ को कटवा ले, जो मैं ठाकुर हूँगा, तो इसे न कटने दूंगा।” इसी समय तेजा सिंह ने मनोहर सिंह को रुपये लाकर दिये।
अब ठाकुर साहब पेड़ कटवाने की जिद्द पूरी करना चाहते थे। अतः उन्होंने रुपये लेने से इन्कार कर दिया। इसी बीच गाँव के लोग इकट्ठे हो गए। गाँव के लोगों के साथ तेजा सिंह का पिता भी आया था। जब उसे पता चला कि रुपये तेजा सिंह ने दिए थे और वह ये रुपये चुराकर लाया था। मनोहर सिंह ने रुपये लौटा दिए। शिवपाल सिंह को पता लग गया था कि मनोहर सिंह रुपये नहीं दे सकता। अतः उन्होंने कहा कि अगर मनोहर सिंह रुपए अभी दे दे तो वह स्वीकार कर लेंगे।
तेजा सिंह आगे बढ़ा और उसने अपनी अंगूठी ठाकुर साहब की तरफ बढ़ाते हुए कहा कि ‘यह एक तोले की है। इस पर बापू का कोई अधिकार नहीं क्योंकि यह मुझे अपनी नानी से प्राप्त हुई है।’ तेजा सिंह की इस भावना को देखकर उसके पिता आगे बढ़े और ठाकुर साहब को पच्चीस रुपये दे दिये।
ठाकुर साहब के चले जाने के बाद मनोहर सिंह ने तेजा को छाती से लगा लिया और सबके सामने कहा-भाइयो। मैं तुम सबके सामने यह पेड़ तेजा सिंह को देता हूँ। तेजा को छोड़कर इस पर किसी का कोई अधिकार न रहेगा।