Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar samas समास Exercise Questions and Answers, Notes.
PSEB 10th Class Hindi Grammar समास
1. निम्नलिखित पदों में समास कीजिए:
उत्तर:
मनगढंत, जेबखर्च, धर्मभ्रष्ट, कर्तव्यनिष्ठा, देशप्रेम, लखपति, आरामकुर्सी, सर्वप्रिय, परीक्षाकेंद्र, पापमुक्त।
बाढ़ से पीड़ित, युद्ध के लिए अभ्यास, भूख से मरा, जन्म से रोगी, भारत का रत्न, राजा की कुमारी, आँखों से देखी, मृत्यु का दंड, नगर में वास, पैदल चलने के लिए पथ।
प्रश्न 1.
राजपुरुष समस्तपद का विग्रह है राजा का पुरुष (सही या गलत में उत्तर दीजिए)
उत्तर:
सही
प्रश्न 2.
प्रधानाध्यापक समस्तपद का विग्रह है प्रधान अध्यापक (हाँ या नहीं में उत्तर दीजिए।)
उत्तर:
नहीं
प्रश्न 3.
श्वेतांबर तत्पुरुष समास है (सही या गलत में उत्तर दीजिए)
उत्तर:
गलत
प्रश्न 4.
परीक्षाभवन कर्मधारय समास है (हाँ या नहीं में उत्तर दीजिए)
उत्तर:
गलत
निम्नलिखित बहुविकल्पी प्रश्नों में से एक सही विकल्प चुनकर लिखिए-
प्रश्न 5.
तत्पुरुष समास है-
(क) धर्मशाला
(ख) नरसिंह
(ग) प्रतिदिन
(घ) पंजाब।
उत्तर:
(क) धर्मशाला
प्रश्न 6.
कर्मधारय समास है
(क) रसभरी
(ख) नीलकमल
(ग) त्रिदेव
(घ) गजानन।
उत्तर:
(ख) नीलकमल
प्रश्न 7.
गौशाला का विग्रह होगा
(क) गौ की शाला
(ख) गौ और शाला
(ग) गौ के लिए शाला
(घ) गौ रहन शाला।
उत्तर:
(ग) गौ के लिए शाला
प्रश्न 8.
महादेव का विग्रह होगा
(क) महान् है देव
(ख) महान् है जो देव
(ग) महान् देव
(घ) महादेव जो है।
उत्तर:
(ख) महान् है जो देव
प्रश्न 9.
कर्मधारय समास है
(क) धर्माधर्म
(ख) चंद्रमुख
(ग) सेनापति
(घ) लोकसभा।
उत्तर:
(ख) चंद्रमुख
प्रश्न 10.
तत्पुरुष समास है
(क) वनवास
(ख) बैलगाड़ी
(ग) पंचतंत्र
(घ) माता-पिता।
उत्तर:
(क) वनवास।
1. निम्नलिखित समस्त पद (समास) का विग्रह कीजिए
गौशाला
अथवा
निम्नलिखित विग्रह का समस्त पद (समास) बनाइए
जेब के लिए खर्च।
उत्तर:
गौशाला = गौ के लिए शाला
अथवा
जेब के लिए खर्च = जेब खर्च।
2. निम्नलिखित समस्त पद का विग्रह कीजिएसेनापति
अथवा
निम्नलिखित विग्रह का समस्त पद (समास) बनाइए
घोड़ों की दौड़।
उत्तर:
सेनापति = सेना का पति
अथवा
घोड़ों की दौड़ = घुड़दौड़।
3. निम्नलिखित समस्त पद का विग्रह कीजिएघनश्याम
अथवा
निम्नलिखित विग्रह का समस्त पद (समास) बनाइए
दान में वीर।
उत्तर:
घनश्याम = घन के समान श्याम
अथवा
दान में वीर = दानवीर।
वर्ष
विग्रहपद को समस्त पद में बदलिए-
कर्म में निष्ठा, राष्ट्र का भवन
उत्तर:
कर्म में निष्ठा = कर्मनिष्ठा
राष्ट्र का भवन = राष्ट्रपति भवन।
समस्तपद का विग्रहपद बदलिए-
बाढ़ + पीड़ित, भुख + मरा
उत्तर:
बाढ़ + पीड़ित = बाढ़ से पीड़ित
भुख + मरा = भुख से मरा।
विग्रहपद को समस्तपद में बदलिए-
गंगा में स्नान, रसोई के लिए घर
उत्तर:
गंगा में स्नान = गंगास्नान
रसोई के लिए घर = रसोईघर।
प्रश्न 1.
समास किसे कहते हैं?
उत्तर:
‘समास’ का शाब्दिक अर्थ है-छोटा करना, पास रखना। परस्पर संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक सार्थक शब्दों के मेल को समास कहते हैं। भाषा में समास का प्रयोग संक्षिप्तता और शैली की सुंदरता के लिए किया जाता है। इसे समस्त पद या ‘सामासिक शब्द’ भी कहते हैं। जब समस्त पद को पृथक्-पृथक किया जाता है तो उसे समास-विग्रह कहते हैं। समास करने पर दो पदों के बीच आने वाली विभक्तियों का लोप हो जाता है और दोनों पद एक-दूसरे के निकट आ जाते हैं। समास रचना में पहले पद को ‘पूर्व पद’ और दूसरे पद को ‘उत्तर पद’ कहा जाता है, जैसे-
समास होने की दशा में जहाँ संधि संभव हो वहाँ नियमानुसार संधि भी हो जाती है।
प्रश्न 2.
समास की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
- हिंदी में समास प्रायः दो शब्दों से बनते हैं। इसके विपरीत संस्कृत में समास अनेक शब्दों से बनते हैं और काफ़ी लंबे-लंबे होते हैं। हिंदी में संभवत: ‘सुत-बित्त-नारी-भवन-परिवारा’ ही सबसे लंबा समास है।
- समास कुछ अपवादों को छोड़कर प्राय: दो सजातीय शब्दों में ही होता है, जैसे-रसोईघर एवं पाठशाला शब्द ही बन सकते हैं। ‘रसोईशाला’ तथा ‘पाठ घर’ नहीं बन सकते।
- सामासिक शब्द या तो मिलाकर लिखे जाते हैं या दोनों के बीच योजक चिह्न लगाकर लिखे जाते हैं, जैसेघरबार, दहीबड़ा अथवा घर-बार, दही-बड़ा आदि।
- किसी शब्द में समास ज्ञात करने के लिए समस्त पद के खंडों को अलग-अलग करना पड़ता है, जिसे विग्रह कहते हैं; जैसे-माँ-बाप’ का विग्रह माँ और बाप तथा ‘गंगा-तट’ का विग्रह गंगा का तट है।
- सामासिक शब्द बनाते समय दोनों शब्दों के बीच की विभक्तियां या योजक आदि अव्यय शब्दों का लोप हो जाता है।
- समास बहुधा वहीं होता है जहां परस्पर संबंध रखने वाली दो या अधिक शब्द मिलकर एक तीसरा सार्थक शब्द बनाते हैं।
- समास के दोनों शब्दों (पदों) को क्रमशः पूर्व पद अर्थात् पहला पद तथा उत्तर पद अर्थात् दूसरा पद कहते हैं, जैसे-‘राम-लक्ष्मण’ शब्द में ‘राम’ पूर्व पद है और ‘लक्ष्मण’ उत्तर पद है।
- सामाजिक शब्दों में पुल्लिग शब्द पहले और स्त्रीलिंग शब्द बाद में आते हैं; जैसे-लोटा-थाली, देखा-देखी, भाई-बहन, दूध-रोटी आदि।
- कभी-कभी विग्रह के आधार पर एक ही शब्द कई समासों का उदाहरण हो जाता है; जैसे-‘पीतांबर का विग्रह यदि “पीत है जो अंबर” करें तो कर्मधारय तथा “पीत हैं अंबर (वस्त्र जिसके) अर्थात् कृष्ण” करें तो बहुब्रीहि होगा।
हिंदी में मुख्य रूप से तीन प्रकार के सामासिक शब्द ही प्रयोग में आते हैं-
- संस्कृत के-यथाशक्ति, पीतांबर, मनसिज, पुरुषोत्तम आदि-
- हिंदी के-अनबन, नील-कमल, बैल-गाड़ी आदि।
- उर्दू-फ़ारसी आदि के-खुशबू, सौदागर, बेशक, लाइलाज आदि। ‘इसके अतिरिक्त हिंदी में रेलवे स्टेशन, बुकिंग, ऑफिस, टिकट, चैकर आदि इंग्लिश शब्द तथा कुछ संकर शब्द भी प्रयोग में आते हैं; जैसे
बस अड्डा, पुलिस चौकी, चकबंदी, गुरुडम, पार्टीबाज आदि।
प्रश्न 3.
संधि और समास में क्या अंतर है?
उत्तर:
(i) दो वर्गों के परिवर्तन सहित मेल को संधि कहते हैं, जबकि परस्पर संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक पदों के मेल को समास कहते हैं।
(ii) संधि में समीपवर्ती वर्गों की ध्वनियों में परिवर्तन होता है लेकिन समास में ध्वनियों का परिवर्तन प्रायः कम ही होता है। समास में विभक्तियों का लोप होता है।
(iii) संधि में शब्दगत अर्थ सदा बना रहता है पर सामासिक पदों में मूल अर्थ व्यक्त होता है और कभी-कभी नहीं भी होता।
प्रश्न 4.
समास के कितने भेद हैं?
उत्तर:
समास के प्रमुख रूप से छह भेद होते हैं-
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वंद्व समास
6. बहुव्रीहि समास।
(पाठ्यक्रम में केवल तत्पुरुष और कर्मधारय समास निर्धारित हैं।
1. अव्ययीभाव समास
जिस समास में पहला पद प्रधान हो और समस्त पद अव्यय (क्रिया-विशेषण) का काम करे, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। पुनरुक्ति से बनने वाले समस्त पद भी इसी के अंतर्गत आते हैं। जैसे-
प्रतिदिन = प्रति + दिन,
साफ़-साफ़ = साफ़ + साफ़।
2. तत्पुरुष समास
तत्पुरुष का शाब्दिक अर्थ है (तत् = वह, पुरुष = आदमी) वह (दूसरा) आदमी। इस समास का नाम तत्पुरुष इसी आधार पर पड़ा है, क्योंकि ‘तत्पुरुष समास’ में दूसरा पद प्रधान होता है। जिस समास में दूसरा पद प्रधान होता है और दोनों पदों के बीच प्रथम (कर्ता) तथा अंतिम (संबोधन) कारक के अतिरिक्त शेष किसी भी कारक की विभक्ति का लोप पाया जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-
राजपुरुष = राजा का पुरुष
राहखर्च = राह के लिए खर्च
ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त
वनवास = वन में वास।
तत्पुरुष के सात भेद हैं जिनका परिचय इस प्रकार है-
(क) कर्म तत्पुरुष
जिस तत्पुरुष समास में कर्म कारक की विभक्ति (को) का लोप हो जाता है। जैसे-
ग्रंथकर्ता = ग्रंथ को करने वाला
दुखप्राप्त = दुख को प्राप्त
नरकगत = नरक को गया हुआ
सुख-प्राप्त = सुख को प्राप्त
स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
गगनचुंबी = गगन को चूमने वाला
वनगमन = वन को गमन
रथचालक = रथ को चलाने वाला
यशप्राप्त = यश को प्राप्त
आशातीत = आशा को लाँघ कर गया हुआ
परलोक गमन = परलोक को गमन
मरणासन्न = मरण को पहुँचा हुआ
ग्रामगत = ग्राम को गत (गया हुआ)
जल-पिपासु = जल को पीने की इच्छा वाला
माखनचोर = माखन को चुराने वाला
गृहागत = गृह को आगत (आया हुआ)
गिरहकट = गिरह को काटने वाला
सर्वभक्षी = सबको खानेवाला
(ख) करण तत्पुरुष
जिस तत्पुरुष समास में करण कारक की विभक्ति (द्वारा, से) का लोप हो जाता है। जैसे-
सूररचित = सूर द्वारा रचित
रहीमकृत = रहीम द्वारा कृत
वाग्दत्ता = वाणी द्वारा दत्त
भुखमरा = भूख से मरा
हस्तलिखित = हस्त से लिखित
कष्टसाध्य = कष्ट से साध्य
तुलसीकृत = तुलसी से कृत
मदांध = मद से अंधा
बाणबिद्ध = बाण से बिदु
दुखार्त = दुख से आर्त्त
वज्र-हत = वज्र से हत
मनमाना = मन से माना हुआ
ईश्वर प्रदत्त = ईश्वर से प्रदत्त
रेखांकित = रेखा से अंकित
मनगढंत। = मन से गढ़ी हुई
कीर्ति-युक्त = कीर्ति से युक्त
कपड़छन = कपड़े से छना हुआ
अनुभवजन्य = अनुभव से जन्य
शोकाकुल = शोक से आकुल
गुण-युक्त = गुण से युक्त
प्रेमातुर = प्रेम से आतुर
जन्म-रोगी = जन्म से रोगी
दयार्द्र = दया से आर्द्र
भयाकुल = भय से आकुल
अकाल पीड़ित = अकाल से पीड़ित
गुरुदत्त = गुरु द्वारा दत्त
गुरुकृत = गुरु द्वारा कृत
मुँह-माँगा = मुँह से माँगा
दुख-संतप्त = दुख से संतप्त
बिहारी रचित = बिहारी द्वारा रचित
शापग्रस्त = शाप से ग्रास्त
रसभरी = रस से भरी
(ग) संप्रदान तत्पुरुष
जिस तत्पुरुष समास में संप्रदान कारक की विभक्ति (के लिए) का लोप हो जाता है। जैसे-
देवबलि = देव के लिए बलि
मालगोदाम = माल के लिए गोदाम
प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
गौशाला = गौ के लिए शाला
देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
ठकुरसुहाती = ठाकुर को सुहाती
कृष्णार्पण = कृष्ण के लिए अर्पण
आरामकुरसी = आराम के लिए कुरसी
यज्ञ-शाला = यज्ञ के लिए शाला
परीक्षाभवन = परीक्षा के लिए भवन
विद्यालय = विद्या के लिए आलय
धर्मशाला = धर्म के लिए शाला
स्वतंत्रता आंदोलन = स्वतंत्रता के लिए आंदोलन
औषधालय = औषधि के लिए आलय
क्रीडाक्षेत्र = क्रीड़ा के लिए क्षेत्र
गुरु दक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
राहखर्च = राह के लिए खर्च
हवन-सामग्री = हवन के लिए सामग्री
रसोईघर = रसोई के लिए घर
रोकड़ बही = रोकड़ के लिए बही
मार्गव्यय = मार्ग के लिए व्यय
हथकड़ी = हाथों के लिए कड़ी
युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि
मालगाड़ी = माल के लिए गाड़ी
राज्यलिप्सा = राज्य के लिए लिप्सा
पाठशाला = पाठ के लिए शाला
डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
देशार्पण = देश के लिए अर्पण
जेबखर्च = जेब के लिए खर्च
विद्यागृह – विद्या के लिए गृह
सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
(घ) अपादान तत्पुरुष
जिस तत्पुरुष समास में अपादान कारक की विभक्ति (से) का लोप हो जाता है। अर्थात् जहाँ अलग होने का भाव हो उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-
पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
आकाश पतित = आकाश से पतित
शोकाकुल = शोक से आकुल
मार्गभ्रष्ट = मार्ग से भ्रष्ट
पदच्युत = पद से च्युत
देशनिकाला = देश से निकालना
ऋणमुक्त = ऋण से मुक्त
कामचोर = काम से जी चुराने वाला
देश निर्वासित – देश से निर्वासित
आकाशवाणी = आकाश से आगत वाणी
बंधनमुक्त = बंधन से मुक्त
धर्मपतित = धर्म से पतित
धर्म विमुख = धर्म से विमुख
लक्ष्यभ्रष्ट = लक्ष्य से भ्रष्ट
मदोन्मत्त = मद से उन्मत्त
जन्मांध = जन्म से अंधा
बलहीन = बल से हीन
धनहीन = धन से हीन।
शोक-मुक्त = शोक से मुक्त
विद्याविहीन = विद्या से विहीन
राज्य निकासी = राज्य से निकासी
(ङ) संबंध तत्पुरुष
जिस तत्पुरुष समास में संबंध कारक की विभक्ति (का, के, की) का लोप हो जाता है, उसे संबंध तत्पुरुष कहते हैं। जैसे-
देशवासी = देश का वासी
आज्ञानुसार = आज्ञा के अनुसार
जीवनसाथी = जीवन का साथी
भ्रातृस्नेह = भ्रातृ का स्नेह
भूदान = भू का दान
राजमाता = राजा की माता
पुस्तकालय = पुस्तक का आलय
परनिंदा = पर (दूसरों) की निंदा
अमृतधारा = अमृत की धारा
गंगाजल = गंगा का जल
राजनीतिज्ञ = राजनीति का ज्ञाता
भारतरत्न = भारत का रत्न
करोडपति = करोडों का पति
मृत्युदंड = मृत्यु का दंड
दिनचर्या = दिन की चर्या
राजसभा = राजा की सभा
जलप्रवाह = जल का प्रवाह
लोकसभा = लोक की सभा
मृगशावक = मृग का शावक
चायबागान = चाय के बगीचे
वज्रपात = वज्र का पात
वाचस्पति = वाचः (वाणी) का पति
घुड़दौड़ = घोड़ों की दौड़
विद्याभ्यासी = विद्या का अभ्यासी
लखपति = लाखों (रुपये) का पति
रामाश्रय = राम का आश्रय
राजरानी = राजा की रानी
अछूतोद्वार = अछूतों का उद्धार
काव्य-सौंदर्य = काव्य का सौंदर्य
वधू-प्रवेश = वधू का प्रवेश
स्वाधीनता संग्राम = स्वाधीनता का संग्राम
लेखन-शैली = लेखन की शैली
स्वार्थ सिद्धि = स्वार्थ की सिद्धि
सरताज = सर का ताज।
परहित = दूसरे का हित
ग्रामदेवी = ग्राम की देवी
उषाकाल = उषा का काल / समय
नक्षत्र-मंडल = नक्षत्र का मंडल
सेवाधर्म = सेवा का धर्म
इच्छानुसार = इच्छा के अनुसार
धर्माचार्य = धर्म का आचार्य
बौद्ध विहार = बौद्धों का विहार
महिषकुल = महिष का कुल
सेनानायक = सेना का नायक
देवस्थान = देव का स्थान
ब्राह्मण पुत्र = ब्राह्मण का पुत्र
अमचूर = आम का चूर
विचाराधीन = विचार के अधीन
बैलगाड़ी = बैलों की गाड़ी
देवालय = देवों का आलय
वनमानुष = वन का मानुष
लक्ष्मीपति = लक्ष्मी का पति
दीनानाथ = दीनों के नाथ
रामानुज = राम का अनुज
रामकहानी = राम की कहानी
पराधीन = पर (अन्य) का अधीन
रेलकुली = रेल का कुली
सेनापति = सेना का पति
पितृगृह = पिता का घर
पवनपुत्र = पवन का पुत्र
राष्ट्रपति = राष्ट्र का पति
राजकुमार = राजा का कुमार
(च) अधिकरण तत्पुरुष
जिस तत्पुरुष समास में अधिकरण कारक की विभक्ति (में, पर) का लोप हो जाता है। जैसे-
कार्यकुशल = कार्य में कुशल
जगबीती = जग पर बीती
डिब्बाबंद = डिब्बे में बंद
धर्मवीर = धर्म में वीर
पुरुषोत्तम = पुरुषों में उत्तम
विद्याप्रवीण = विद्या में प्रवीण
सिरदर्द = सिर में दर्द
देशाटन = देशों में अटन
दानवीर = दान (देने) में वीर
वनवास = वन में वास
कविशिरोमणि = कवियों में शिरोमणि
कविश्रेष्ठ = कवियों में श्रेष्ठ
आत्मविश्वास = आत्म (स्वयं) पर विश्वास
आनंदमग्न = आनंद में मग्न
आपबीती = अपने पर बीती
गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश
घुड़सवार = घोड़े पर सवार
शरणागत = शरण में आगत
कानाफूसी = कानों में फुसफुसाहट
हरफनमौला = हरफ़न में मौला
कलाप्रवीण = कला में प्रवीण
युद्धवीर = युद्ध में वीर
शोकमग्न = शोक में मग्न
नरोत्तम . = नरों में उत्तम
नगरवास = नगर में वास
लोकप्रिय = लोक में प्रिय
सर्वश्रेष्ठ = सर्व / सभी में श्रेष्ठ
जलमग्न = जल में मग्न
कुलश्रेष्ठ = कुल में श्रेष्ठ
ग्रामवास = ग्राम में वास
ध्यानमग्न = ध्यान में मग्न
कर्मवीर . = कर्म में वीर
(घ) मध्यमपद लोपी तत्पुरुष समास
जिस तत्पुरुष समास में विभक्ति चिह्न के अतिरिक्त कुछ मध्य के पद भी लुप्त हो जाते हैं उसे मध्यमपद लोपी तत्पुरुष समास कहते हैं-
पैदलपथ = पैदल चलने वालों के लिए पथ
बैलगाड़ी = बैलों के द्वारा खींची जाने वाली गाड़ी
सवारी गाड़ी = सवारियों को ले जाने वाली गाड़ी
आत्मानंद = आत्मा को आनंद देने वाला
मधुमक्खी = मधु एकत्र करने वाली मक्खी
शौर्यचक्र = शौर्य के लिए मिलने वाला चक्र
वायुयान = वायु में चलने वाला यान
जलयान = जल में चलने वाला यान
मालगाड़ी = माल ढोने वाली गाड़ी
अश्रुगैस = आँसू लाने वाली गैस
परमवीर चक्र = परमवीर को मिलने वाला चक्र
विजयरथ = विजय दिलाने वाला रथ।
इनके अतिरिक्त तत्पुरुष के तीन अन्य भेद और भी माने जाते हैं-
(i) नञ् तत्पुरुष निषेध या अभाव के अर्थ में किसी शब्द से पूर्व ‘अ’ या ‘अन्’ लगाने से जो समास बनता है, उसे नञ् तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-
अहित = न हित
अपूर्ण = न पूर्ण
असंभव = न संभव
अनुदार = न उदार
अनाश्रित = न आश्रित
अनिष्ट = न इष्ट
अनाचार = न आचार
नास्तिक = न आस्तिक
अन्याय = न न्याय
अज्ञान = न ज्ञान
अनादि = न आदि
अकर्मण्य = न कर्मण्य
अनंत = न अंत
अनाथ = न नाथ
अयोग्य = न योग्य
अमर = न मर
अनश्वर = न नश्वर
अनादर = न आदर
अनदेखी = न देखी
अनहोनी = न होनी
अधीर = न धीर
अजर = न जर
अनिच्छा = न इच्छा
अनसुनी = न सुनी
अपरिचित = न परिचित
नीरस = न रस
अनर्थ = न अर्थ
अनजान = न जान
अनावश्यक = न आवश्यक
अज्ञात = न ज्ञात
अभाव = न भाव
अशिष्ट = न शिष्ट
अस्थिर = न स्थिर
अनुपस्थित = न उपस्थित
अजन्मा = न जन्मा
अधर्म = न धर्म
विशेष-
(क) प्रायः संस्कृत शब्दों में जिस शब्द के आदि में व्यंजन होता है, तो ‘न’ समास में उस शब्द से पूर्व ‘अ’ जुड़ता है और यदि शब्द के आदि में स्वर होता है, तो उससे पूर्व ‘अन्’ जुड़ता है। जैसे-
अन् + अन्य = अनन्य
अन् + उत्तीर्ण = अनुत्तीर्ण
अ + वांछित = अवांछित
अ + स्थिर = अस्थिर।
(ख) किंतु उक्त नियम प्रायः तत्सम शब्दों पर ही लागू होता है, हिंदी शब्दों पर नहीं। हिंदी में सर्वत्र ऐसा नहीं होता। जैसे-
अन + चाहा = अनचाहा
अ + काज = अकाज
अन + होनी = अनहोनी
अन + बन = अनबन
अ + न्याय = अन्याय
अन + देखा = अनदेखा
अ + टूट = अटूट
अ + सुंदर = असुंदर।
(ग) हिंदी और संस्कृत शब्दों के अतिरिक्त ‘गैर’ और ‘ना’ वाले शब्द भी ‘नन्’ तत्पुरुष के अंतर्गत आ जाते हैं। जैसे-
नागवार = नापसंद
गैरहाजिर = नाबालिग
नालायक = गैरवाज़िब
(ii) अलुक् तत्पुरुष
जिस तत्पुरुष समास में पहले पद की विभक्ति का लोप नहीं होता, उसे ‘अलुक्’ समास कहते हैं। जैसे-
मनसिज = मन में उत्पन्न
युधिष्ठिर = युद्ध में स्थिर
वाचस्पति = वाणी का पति
धनंजय = धन को जय करने वाला
विश्वंभर = विश्व को भरने वाला
खेचर = आकाश में विचरने वाला
(iii) उपपद तत्पुरुष
जिस तत्पुरुष समास का स्वतंत्र रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता, ऐसे सामासिक शब्दों को ‘उपपद’ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-जलज = जल + ज (‘ज’ का अर्थ उत्पन्न अर्थात पैदा होने वाला है, पर इस शब्द का अलग से प्रयोग नहीं किया जा सकता है।)
तटस्थ तट + स्थ
गृहस्थ = गृह + स्थ
पंकज = पंक + ज
जलद = जल + द
कृतघ्न = कृत + घ्न
उरग = उर + ग
तिलचट्टा = तिल + चट्टा
लकड़फोड़ = लकड़ + फोड़
बटमार = बट + मार
घरघुसा = घर + घुसा
पनडुब्बी = पन + डुब्बी
घुड़चढ़ी = घुड़ + चढ़ी
कलमतराश = कलम + तराश
सौदागर = सौदा + गर
गरीबनवाज़ = गरीब + नवाज़
चोबदार = चोब + दार।
3. कर्मधारय समास
जिस समास के दोनों पदों के बीच विशेष्य-विशेषण अथवा उपमेय-उपमान का संबंध हो और दोनों पदों में एक ही कारक (कर्ता कारक) की विभक्ति आए, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। जैसे-
अंधकूप = अंधा है जो कूप
प्रधानाध्यापक = प्रधान है जो अध्यापक
अश्रु गैस = अश्रु को लाने वाली गैस
लाल टोपी = लाल है जो टोपी
परमानंद = परम है जो आनंद
श्वेतांबर = श्वेत है जो अंबर
समास सद्धर्म = सत् है जो धर्म
नरसिंह = सिंह रूपी नर
प्राणप्रिय = प्राणों के समान प्रिय
भुजदंड = दंड के समान भुजा
स्त्रीरत्न = स्त्री रूपी रत्न
ग्रंथ रत्न = ग्रंथ रूपी रत्न
नीलकमल = नीला है जो कमल
चंद्रमुख = चंद्र के समान है जो मुख
लालमिर्च = लाल है जो मिर्च
पुरुषसिंह = सिंह के समान है जो पुरुष
पुरुषोत्तम = पुरुषों में है जो उत्तम
नीलकंठ = नीला है जो कंठ
महाराजा = महान है जो राजा
महादेव = महान है जो देव
सज्जन = सत् (अच्छा) है जो जन
बुद्धिबल = बुद्धिरूपी बल
भलामानस = भला है जो मानस (मनुष्य)।
गुरुदेव = गुरु रूपी देव
सद्गुण = सद् (अच्छे) हैं जो गुण
करपल्लव = पल्लव रूपी कर
शुभागमन = शुभ है जो आगमन
कमलनयन = कमल के समान नयन
नीलांबर = नीला है जो अंबर
कनकलता = कनक की-सी लता
महाविद्यालय = महान है जो विद्यालय
मृगनयन = मृग के नयन के समान नयन
कालापानी = काला है जो पानी
कुसुमकोमल = कुसुम के समान कोमल
चरणकमल = कमल रूपी चरण
सिंहनाद = सिंह के नाद के समान नाद
प्राणप्रिय = प्राणों के समान प्रिय जन्मांतर
अंतर = (अन्य) जन्म
वज्रदेह = वज्र के समान देह
नराधम = अधम है जो नर
विद्याधन = विद्या रूपी धन
दीनदयालु = दीनों पर है जो
दयालु = देहलता देह रूपी लता
मुनिवर = मुनियों में है जो श्रेष्ठ
घनश्याम = घन के समान श्याम
मानवोचित = मानवों के लिए है जो उचित
कालीमिर्च = काली है जो मिर्च
पुरुषरत्न = पुरुषों में है जो रत्न
महारानी = महान है जो रानी
घृतान्न = घृत में मिला हुआ अन्न
नीलगाय = नीली है जो गाय
पर्णशाला = पर्ण (पत्तों से) निर्मित शाला
करकमल = कमल के समान कर
छायातरु = छाया प्रधान तरु
मुखचंद्र = मुख रूपी चंद्र
वनमानुष = वन में निवास करने वाला मानुष
देहलता = देह रूपी लता
गुरुभाई = गुरु के संबंध से भाई
भवसागर = भव रूपी सागर
बैलगाड़ी = बैलों से खींची जाने वाली गाड़ी
पीतांबर = पीत है जो अंबर
दहीबड़ा = दही में डूबा हुआ बड़ा
मालगाड़ी = माल ले जाने वाली गाड़ी
जेबघड़ी = जेब में रखी जाने वाली घड़ी
गुडंबा = गुड़ से पकाया हुआ आम
पनचक्की = पानी से चलने वाली चक्की
4. द्विगु समास
जिस समास में पहला पद संख्यावाचक (गिनती बनाने वाला) हो, दोनों पदों के बीच विशेषण-विशेष्य संबंध हो और समस्त पद समूह या समाहार का ज्ञान कराए, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे-
अष्टसिद्धि = आठ सिद्धियों का समाहार
चवन्नी = चार आनों का समाहार
दोराहा = दो राहों का समाहार
द्विगु = दो गौओं का समाहार
पंचतंत्र = पंच तंत्रों का समाहार
पंजाब = पाँच आबों का समाहार
5. द्वंद्व समास
जिस समस्त पद के दोनों पद प्रधान हों तथा विग्रह (अलग-अलग) करने पर दोनों पदों के बीच ‘और’, ‘तथा’, ‘अथवा’, ‘या’ योजक शब्द लगें उसे द्वंद्व समास कहते हैं। जैसे-
अन्न-जल = अन्न और जल
अंदर-बाहर = अंदर और बाहर
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
नदी-नाले = नदी और नाले
धर्माधर्म = धर्म और अधर्म
रुपया-पैसा = रुपया और पैसा
6. बहुव्रीहि समास
जिस समाज का कोई भी पद प्रदान नहीं होता और दोनों पद मिलकर किसी अन्य शब्द (संज्ञा) के विशेषण होते हैं, उसे ‘बहुव्रीहि समास’ कहते हैं। जैसे-
चक्रधर = चक्र को धारण करने वाला अर्थात् विष्णु
गजानन = गज के समान आनन (मुख) है जिसका अर्थात् गणेश
बारहसिंगा = बारह हैं सींग जिसके ऐसा मृग विशेष
पीतांबर = पीत (पीले) अंबर (वस्त्र) हैं जिसके अर्थात् ‘कृष्ण’
चंद्रशेखर = चंद्र है शेखर (मस्तक) पर जिसके अर्थात् ‘शिव’
नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव