PSEB 9th Class Hindi Solutions Chapter 2 सूरदास के पद

Punjab State Board PSEB 9th Class Hindi Book Solutions Chapter 2 सूरदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Hindi Chapter 2 सूरदास के पद

Hindi Guide for Class 9 PSEB सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

(क) विषय बोध

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए :

प्रश्न 1.
यशोदा श्री कृष्ण को किस प्रकार सुला रही है?
उत्तर:
यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झूला झूलाते हुए, दुलारते हुए, पुचकारते हुए तथा कुछ गाते हुए सुला रही है।

प्रश्न 2.
यशोदा श्रीकृष्ण को दूर क्यों नहीं खेलने जाने देती है?
उत्तर:
यशोदा श्रीकृष्ण को दूर खेलने इसलिए नहीं जाने देती कि कहीं किसी की गाय उन्हें मार न दे।

प्रश्न 3.
यशोदा श्रीकृष्ण को दूध पीने के लिए क्या प्रलोभन देती है ?
उत्तर:
यशोदा श्री कृष्ण को कहती है कि यदि वे दूध पी लेंगे तो उनकी चोटी भी बलराम की चोटी के समान लंबी-मोटी हो जाएगी।

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प्रश्न 4.
श्री कृष्ण यशोदा से क्या खाने की माँग करते हैं ?
उत्तर:
श्रीकृष्ण यशोदा से खाने के लिए माखन-रोटी की माँग करते हैं।

प्रश्न 5.
अंतिम पद में श्रीकृष्ण अपनी माँ से क्या हठ कर रहे हैं ?
उत्तर:
अंतिम पद में श्रीकृष्ण अपनी माँ से गाय चराने जाने की हठ कर रहे हैं। वे अपने हाथों से तोड़ कर फल खाना चाहते हैं।

2. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

प्रश्न 1.
मैया कबहुं बढ़ेगी चोटी।
किती बेर मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूं है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुईं लोटी।
काचो दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी।।
सूरदास चिरजीवौ दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी ।।
उत्तर:
भक्त सूरदास श्रीकृष्ण के बाल रूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि-बालक कृष्ण अपनी माता यशोदा से शिकायत करते हैं कि-माँ मेरी यह चोटी कब बड़ी होगी? दूध पीते हुए मुझे कितना समय हो गया है, लेकिन यह अभी भी वैसी के वैसी छोटी है। माँ तुम तो कहती हो कि मेरी ये चोटी बलराम भैया की चोटी की भाँति मोटी और लंबी हो जाएगी। इसे निकालते हुए, (कंघी करते हुए) गुंथते और नहाते हुए यह नागिन की भाँति धरती पर लोटने लगेगी। अपनी माँ से शिकायत करते हुए वे कहते हैं कि हे मैया ! तुम बार-बार मुझे कच्चा दूध पीने के लिए देती हो, लेकिन माखन रोटी खाने के लिए नहीं देती हो। पद के अंत में भक्त सूरदास कहते हैं कि बलराम और कृष्ण की यह जोड़ी सदा के लिए बनी रहे।

प्रश्न 2.
आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।
बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौँ ।।
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।
तनक तनक पग चलिहौ कैसें, आवत वै है. अंति राति।
प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ।
तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे, रेंगति घामहि मांझ।
तेरी सौं मोहिं घाम न लागत, भुख नहीं कछु नेक।
सूरदास प्रभु कयौ न मानत, पर्यो आपनी टेक।।
उत्तर:
सूरदास जी कहते हैं कि बाल कृष्ण अपनी माँ यशोदा से कहते हैं कि वे आज गाय चराने जाएंगे। इस प्रकार वे वृंदावन के अनेक प्रकार के फल भी अपने हाथ से तोड़ कर खाएँगे। इस पर माता यशोदा उन्हें मना करते हुए कहती हैं कि ऐसी बात मत करो ज़रा अपने को देखो कि तुम अपने छोटे-छोटे कदमों से किस प्रकार चलोगे क्योंकि आते हुए बहुत रात हो जाएगी। सुबह-सुबह गायों को चराने ले जाते हैं तो संध्या के समय घर आते हैं। तुम्हारा कमल जैसा कोमल मुख धूप में भटकने से मुरझा जाएगा। इस पर बाल कृष्ण कहते हैं कि हे माँ ! तुम्हारी कसम मुझे धूप नहीं लगती है और कुछ विशेष भूख भी नहीं है। सूरदास जी कहते हैं कि प्रभु बाल कृष्ण अपनी माता का कहना नहीं मानते और अपनी ज़िद्द अड़े हुए है कि उन्हें गाय चराने जाना है।

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(ख) भाषा-बोध

1.नीचे दिए गए सूरदास के पदों में प्रयुक्त ब्रज भाषा के शब्दों के लिए खड़ी बोली हिंदी के शब्द लिखिए

प्रश्न 1.
ब्रज भाषा – खड़ी बोली
के शब्द – हिंदी के शब्द
कुछ – कुछ
तोको – …………………..
कबहुँक – …………………..
किति – …………………..
अरु – …………………..
निंदरिया – …………………..
कान्ह – …………………..
इहिं – …………………..
भुई – …………………..
तुम्हरे – …………………..
उत्तर:
ब्रज भाषा – खड़ी बोली
के शब्द – हिंदी के शब्द
कछु – कुछ
तोको – तुमको
कबहुँक – कभी
किति – कितनी
अरु – और
निंदरिया – नींद
कान्ह – कृष्ण
इहिं – यहाँ
भुई – भूमि
तुम्हरे – तुम्हारे

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2. निम्नलिखित एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए

एकवचन – बहुवचन
पलक – ……………………
नागिन – ……………………
ग्वाला – ……………………
गोपी – ……………………
चोटी – ……………………
उत्तर:
एकवचन – बहुवचन
पलक – पलकें
नागिन – नागिने
ग्वाला – ग्वाले
गोपी – गोपियाँ
चोटी – चोटियाँ
रोटी – रोटियाँ

(ग) पाठेत्तर सक्रियता

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं के चित्र इकट्ठे करके अपनी कॉपी में चिपकाएँ।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर में जाकर श्रीकृष्ण की बाल-लीला से सम्बन्धित झाँकियों का अवलोकन कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिरों में बच्चों द्वारा श्रीकृष्ण की बाल-लीला से सम्बन्धित कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उनमें भाग लीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 4.
जन्माष्टमी के अवसर पर रात को श्रीकृष्ण के जन्म की कथा सुनाई जाती है। वहाँ जाइए और कथा श्रवण कर रसास्वादन कीजिए अथवा टेलीविज़न/इंटरनेट से श्रीकृष्ण की जन्म-कथा को सुनिए/देखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 5.
आप भी बचपन में दूध आदि किसी पदार्थ को नापसंद करते होंगे। आपके माता-पिता आपको यह पदार्थ खिलाने-पिलाने में कितने लाड-प्यार से यत्न करते होंगे। अपने माता-पिता से पूछिए और लिखिए। उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

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(घ) ज्ञान-विस्तार

हिंदी-साहित्य के भक्तिकाल (सन् 1318-1643 तक) की कृष्ण-भक्ति-शाखा के प्रमुख कवि सूरदास माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त कृष्णदास, नन्ददास, रसखान जैसे प्रसिद्ध कवियों तथा कवयित्री मीराबाई ने भी श्रीकृष्ण को आधार बनाकर उत्कृष्ट काव्य की रचना की है। श्रीकृष्ण की भक्ति से ओत-प्रोत रसखान के सवैयों को तो विद्वानों ने सचमुच रस की खान ही कहा है। मीराबाई का हिंदी की कवयित्री में अप्रतिम स्थान है। मीरा द्वारा रचित श्रीकृष्ण-भक्ति के सुन्दर और मधुर गीत जगत प्रसिद्ध हैं।

मीरा :
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो !
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि किरपा अपणायौ!
जन्म-जन्म की पूँजी पाई, जग में सबै खोवायो!
खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन दिन बढ़त सवायौ !
सत की नाव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तरि आयो!
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरखि-हरखि जस गायौ!

रसखान :
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।।
पाहन हौं तो वही गिरी को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धास।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं नित कलिंदी कूल कदंब की डारन ।।

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PSEB 9th Class Hindi Guide सूरदास के पद Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
यशोदा माता श्री कृष्ण को पालने (झूले) में झुलाती हुई क्या-क्या करती है ?
उत्तर:
यशोदा माता श्री कृष्ण को पालने में झुलाते हुए उन्हें दुलारती है; पुचकारती है। उसके मन में जो कुछ भी आता है वह उसे गाती है। वह नींद को श्री कृष्ण के पास जल्दी-जल्दी आने के लिए बुलाती है।

प्रश्न 2.
यशोदा माता श्री कृष्ण को सुलाते समय अपनी सखियों से किस प्रकार बात करती है ?
उत्तर:
यशोदा माता श्री कृष्ण को सुलाते समय अपनी सखियों से बिना बोले कुछ केवल इशारों से बात करती है; कुछ बातें समझाती है।

प्रश्न 3.
यशोदा माता इशारों से अपनी सखियों को क्या बताती है ?
उत्तर:
यशोदा माता इशारों से अपनी सखियों को बताती है कि कृष्ण अब सोने ही वाले हैं। वह उन्हें सुलाने के बाद उनके के पास आ जाएगी।

प्रश्न 4.
वह कौन-सा सुख था जो ऋषि-मुनियों को न मिल यशोदा माता को ही मिला था ?
उत्तर:
श्री कृष्ण ने मानव रूप में धरती पर जन्म लिया था। माँ के रूप में उनका पालन-पोषण करने का जो सुख तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियों को नहीं मिला था वह यशोदा माता को मिला था।

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प्रश्न 5.
यशोदा माता बाल कृष्ण को क्या-क्या नहीं करने के लिए कहती है ?
उत्तर:
यशोदा माता बाल कृष्ण को पुकारते हुए कहती है कि खेलने के लिए घर से दूर न जाए ताकि कहीं किसी की गाय उसे अपने सींग न मार दे।

प्रश्न 6.
श्री कृष्ण की सुंदरता को देखकर गाँव में क्या-क्या प्रतिक्रिया होती है ?
उत्तर:
श्री कृष्ण की सुंदरता को देख कर सभी गोप-गोपियाँ आश्चर्य व्यक्त करते हैं। वे प्रसन्न होते हैं और घरघर में बधाइयाँ दी जाती हैं।

प्रश्न 7.
श्री कृष्ण अपनी माँ से अपनी चोटी की लंबाई से संबंधित क्या शिकायत करते हैं ?
उत्तर:
श्री कृष्ण अपनी माँ से अपनी चोटी की लंबाई से संबंधित शिकायत करते हैं कि उसकी लंबाई छोटी है। वह बलराम की चोटी जैसी लंबी-मोटी नहीं है। वह उसे लंबा करने के लिए कितनी बार दूध पी चुके हैं पर फिर भी बढ़ती ही नहीं।

प्रश्न 8.
यशोदा माता को कृष्ण को गौवें चराने के लिए जाने से क्या-क्या कह कर रोकती हैं ?
उत्तर:
यशोदा माता श्री कृष्ण से कहती है कि वे अभी बहुत छोटे हैं। वे अपने छोटे-छोटे कदमों से जंगल में नहीं जा पाएंगे। गौएं चराने का काम कठिन होता है। सुबह जाकर शाम को घर वापस लौटना होता है। तेज धूप कष्ट देती है। धूप में इधर-उधर भटकने से उनका कमल-सा चेहरा मुरझा जाएगा।

एक शब्द/एक पंक्ति में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
बालक कृष्ण को सोया हुआ जान कर यशोदा कैसे बातें करती है?
उत्तर:
इशारों से।

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प्रश्न 2.
सोते-सोते जब बालक कृष्ण अकुला उठते हैं तो यशोदा क्या करती है?
उत्तर:
यशोदा मधुर स्वर में गाने लगती है।

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण माता यशोदा से किसके बढ़ने के लिए पूछते हैं ?
उत्तर:
अपनी चोटी के।

प्रश्न 4.
गाय चराने कब जाना पड़ता है ?
उत्तर:
प्रात:काल के समय।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 5.
बालक कृष्ण गाय चराने जाने की जिद्द पर अड़े हुए हैं।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 6.
यशोदा बालक कृष्ण को दूर खेलने जाने देती है।
उत्तर:
नहीं।

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सही-गलत में उत्तर दीजिए

प्रश्न 7.
बालक कृष्ण की चोटी बहुत लम्बी और मोटी है।
उत्तर:
गलत।

प्रश्न 8.
बालक कृष्ण को गाय चराते हुए धूप और भूख नहीं लगती।
उत्तर:
सही।

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 9.
इहिं अंतर ……… उठे हरि, ……. मधुरै गावै।
उत्तर:
इहिं अंतर अकुलाई उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।

प्रश्न 10.
काढ़त गुहत ……… जैहै …… सी भुई लोटी।
उत्तर:
काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन सी भुई लोटी।

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बहुविकल्पी प्रश्नों में से सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 11.
यशोदा श्रीकृष्ण को किसमें सुला रही है-
(क) पालने में
(ख) गोद में
(ग) पलंग पर
(घ) कंधे पर।
उत्तर:
(क) पालने में।

प्रश्न 12.
सोते हुए श्रीकृष्ण क्या फड़काते हैं-
(क) पलक
(ख) अधर
(ग) हाथ
(घ) पाँव।
उत्तर:
(ख) अधर।

प्रश्न 13.
हलधर किसे कहा गया है
(क) कृष्ण को
(ख) नंद को
(ग) बलराम को
(घ) ग्वालों को।
उत्तर:
(ग) बलराम को।

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प्रश्न 14.
बालक कृष्ण क्या नहीं खाना-पीना चाहते-
(क) दूध
(ख) माखन
(ग) रोटी
(घ) माखन-रोटी।
उत्तर:
(क) दूध।

प्रश्न 15.
श्रीकृष्ण गाय चराने कहाँ जाना चाहते हैं-
(क) गोवर्धन
(ख) वृंदावन
(ग) कालिंदी तट
(घ) गोकुल।
उत्तर:
(ख) वृंदावन।

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सूरदास के पद सप्रसंग व्याख्या

1. जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-सोइ कछू गावै।
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोको कान्ह बुलावै।
कबहुँक पलक हरि नूदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन है रहि रहि, करि करि सैन बतावै।
इहिं अंतर अकुलाई उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।
जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ, सो नंद भामिनि पावै॥

शब्दार्थ:
हरि = श्री कृष्ण। पालना = झूला। हलरावै = हिलाती है। मल्हावै = पुचकारती है। निंदरिया = नींद। बेगिहि = शीघ्रता से। तोको = तुझे। अधर = होंठ। मौन = चुप। सैन = संकेत, इशारे। नंद-भामिनि = नन्द की पत्नी, यशोदा।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ से लिया गया है, जिसमें यशोदा माता अपने पुत्र कृष्ण जी को झूले में झुला कर सुलाने का प्रयास कर रही है। कवि ने अत्यन्त मनोहारी ढंग से माता की विभिन्न क्रियाओं को अंकित किया है।

व्याख्या:
सूरदास जी कहते हैं कि यशोदा माता बाल कृष्ण को झूले (पालना) में झुला रही है। वह झूले को हिलाती है, पुत्र को दुलारती है, पुचकारती है और जो कुछ मन में आता है, गाती है। वह गाते हुए कहती है, “ओ री नींद ! तू मेरे लाल के पास आ। तू आकर इसे सुलाती क्यों नहीं है? तुम्हें कब से कन्हैया बुला रहा है।”कृष्ण कभी पलकों को बन्द कर लेते हैं और कभी ओठों को फड़काते हैं। उन्हें सोया हुआ जानकार यशोदा चुप हो जाती है और दूसरों को इशारे से ही कुछ बातें समझाती है। इसी बीच कृष्ण अकुला उठते हैं और यशोदा फिर से मधुर स्वर में गाने लगती है। सूरदास कहते हैं कि नंद की पत्नी यशोदा को जो सुख प्राप्त हो रहा है, वह देवता और मुनियों को भी प्राप्त नहीं होता।

विशेष:

  1. सूर ने अन्धे होते हुए भी छोटे बच्चे के सोने और माँ की वात्सल्यमयी क्रियाओं का सुन्दर अंकन किया है।
  2. अनुप्रास और पुनरुक्ति अलंकार, ब्रजभाषा, वात्सल्य रस का प्रयोग किया गया है।

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2. कहन लागे मोहन मैया मैया।
नंद महर सों बाबा बाबा, अरु हलधर सों भैया।
ऊंचे चढ़ि चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया।
दूरि खेलन जनि जाहु लला रे, मारैगी काहु की गैया।
गोपी ग्वाल करत कौतूहल, घर घर बजति बधैया।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों, चरननि की बलि जैया।

शब्दार्थ:
मोहन = श्री कृष्ण। महर = मुखिया। हलधर = बलराम (श्री कृष्ण के बड़े भाई)। जनि = मत, न। जाहु = जाना। लला रे = हे पुत्र, हे लाल। कौतूहल = आश्चर्य, हैरानी। बधैया = बधाइयाँ। दरस = दर्शन। बलि जैया = निछावर हूँ।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद सूरदास जी द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ में से लिया गया है, जिसमें सूरदास जी ने श्री कृष्ण के बाल-रूप का वर्णन करते हुए उनके बोलने का वर्णन किया है।

व्याख्या:
सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण अब कुछ बड़े हो गये हैं। अब वे यशोदा माता को मैया-मैया कहने लगे हैं तथा ग्वालों के मुखिया नंद जी को बाबा-बाबा और बड़े भाई बलराम जी को भैया-भैया कहने लगे हैं। बालक कृष्ण को बाहर खेलने के लिए जाता हुआ देखकर यशोदा माता घर की छत के ऊपर चढ़ कर श्री कृष्ण का नाम लेकर पुकारती हुई कहती हैं कि हे लाल ! दूर खेलने मत जाओ। तुम्हें किसी की गाय मार देगी। सूरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के रूप सौंदर्य पर गोप-गोपियाँ सभी आश्चर्य करते हैं; प्रसन्न होते हैं और घर-घर में बधाइयाँ दी जाती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि हे प्रभु, तुम्हारे दर्शन के लिए, मैं तुम्हारे चरणों पर बलिहारी जाता हूँ।

विशेष:

  1. बालक कृष्ण द्वारा बोलना प्रारम्भ करने का स्वाभाविक वात्सल्य रस चित्रण है।
  2. ब्रज भाषा, संवादात्मकता वात्सल्य रस, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है।

3. मैया कबहुँ बढ़ेगी चोटी।
किती बेर मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यों, हवै है लांबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुईं लोटी।
काचो दूध पियावति पचि पचि, देति न माखन रोटी।
सूरदास चिरजीवी दोउ भैया, हरि हलधर की जोटी।

शब्दार्थ:
कबहुँ = कब। पियत = पी लिया है। अजहूँ = अब भी। बल = बलराम। बेनी = चोटी। काढ़त = खोलते हुए। गुहत = चोटी बनाते हुए। भुईं = धरती। पचि-पचि = बार-बार। हरि-हलधर = कृष्ण-बलराम।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ से अवतरित है। यहाँ सूरदास ने कृष्ण के बाल-सुलभ रूप का अनोखा वर्णन करते हुए कृष्ण द्वारा यशोदा को उलाहना देने की बात की है।

व्याख्या:
भक्त सूरदास श्रीकृष्ण के बाल रूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि-बालक कृष्ण अपनी माता यशोदा से शिकायत करते हैं कि-माँ मेरी यह चोटी कब बड़ी होगी? दूध पीते हुए मुझे कितना समय हो गया है, लेकिन यह अभी भी वैसी के वैसी छोटी है। माँ तुम तो कहती हो कि मेरी ये चोटी बलराम भैया की चोटी की भाँति मोटी और लंबी हो जाएगी। इसे निकालते हुए, (कंघी करते हुए) गुंथते और नहाते हुए यह नागिन की भाँति धरती पर लोटने लगेगी। अपनी माँ से शिकायत करते हुए वे कहते हैं कि हे मैया ! तुम बार-बार मुझे कच्चा दूध पीने के लिए देती हो, लेकिन माखन रोटी खाने के लिए नहीं देती हो। पद के अंत में भक्त सूरदास कहते हैं कि बलराम और कृष्ण की यह जोड़ी सदा के लिए बनी रहे।

विशेष:

  1. सूरदास ने बाल कृष्ण द्वारा मैया यशोदा को शिकायत करने का स्वाभाविक वर्णन किया है।
  2. पद में गेयता, अनुप्रास, उपमा तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं। ब्रज भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है।

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4. आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।
बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौं।
ऐसी बात कहौ जनि बारे, देखौ अपनी भांति।
तनक तनक पग चलिहौ कैसें, आवत हवै है अति राति।
प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ।
तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे, रेंगति घामहिं मांझ।
तेरी सौं मोहिं घाम न लागत, भूख नहीं कछु नेक।
सूरदास प्रभु कहयौ न मानत, पर्यो आपनी टेक॥

शब्दार्थ:
चरावन = चरवाने के लिए। जैहौं = जाऊँगा। कर = हाथ। खेहौं = खाऊँगा। जनि = मत। बारे = बालक। चलिहौ = चलोगे। घामहि = धूप। सौं = कसम। टेक = हठ।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ से लिया गया है जिसमें कवि ने बाल कृष्ण की गौ चराने की जिद्द तथा माता यशोदा का उन्हें रोकने का वर्णन किया है।

व्याख्या:
सूरदास जी कहते हैं कि बाल कृष्ण अपनी माँ यशोदा से कहते हैं कि वे आज गाय चराने जाएंगे। इस प्रकार वे वृंदावन के अनेक प्रकार के फल भी अपने हाथ से तोड़ कर खाएँगे। इस पर माता यशोदा उन्हें मना करते हुए कहती हैं कि ऐसी बात मत करो ज़रा अपने को देखो कि तुम अपने छोटे-छोटे कदमों से किस प्रकार चलोगे क्योंकि आते हुए बहुत रात हो जाएगी। सुबह-सुबह गायों को चराने ले जाते हैं तो संध्या के समय घर आते हैं। तुम्हारा कमल जैसा कोमल मुख धूप में भटकने से मुरझा जाएगा। इस पर बाल कृष्ण कहते हैं कि हे माँ ! तुम्हारी कसम मुझे धूप नहीं लगती है और कुछ विशेष भूख भी नहीं है। सूरदास जी कहते हैं कि प्रभु बाल कृष्ण अपनी माता का कहना नहीं मानते और अपनी ज़िद्द अड़े हुए है कि उन्हें गाय चराने जाना है।

विशेष:

  1. कवि ने बाल हठ का सजीव वर्णन किया है। कृष्ण भी अपनी हठ पर अड़े हुए हैं।
  2. ब्रज भाषा, गेयता, संवादात्मकता, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास तथा उपमा अलंकार का प्रयोग सराहनीय है।

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सूरदास के पद Summary

सूरदास के पद कवि परिचय।

जीवन परिचय:
मध्यकालीन सगुणोपासक एवं कृष्णभक्त कवि सूरदास जी का जन्म सन् 1478 ई० में दिल्ली के निकट सीही ग्राम में एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुछ विद्वान् इन्हें जन्म से ही अन्धा मानते हैं तो कुछ मानते हैं कि यह किसी कारणवश बाद में अन्धे हो गए लेकिन इसका कोई भी साक्ष्य नहीं मिलता। सूरदास जी महाप्रभु वल्लभाचार्य जी द्वारा वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित हुए और उन्हीं की प्रेरणा से ब्रज में श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन करने लगे। इनका देहांत सन् 1583 ई० में मथुरा के निकट पारसौली नामक गाँव में हृया था।

रचनाएँ:
सूरदास जी रचित तीन रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली और साहित्य लहर। हैं। सूरसागर की रचना श्रीमद्भागवत पुराण के आधार पर की गई है। इनका काव्य ब्रजभाषा में रचित, गीतात्मक, माधुर्य गुण से युक्त तथा अलंकारपूर्ण है। . विशेषताएँ-इनके काव्य में श्रृंगार और वात्सल्य का बहुत सहज और स्वाभाविक चित्रण प्राप्त होता है। शृंगार के वियोग पक्ष में इन्होंने गोपियों के कृष्ण के विरह के संतप्त हृदय का मार्मिक चित्रण किया है। श्रीकृष्ण लीलाओं में इनकी बाललीलाओं का वर्णन बेजोड़ है। सूरदास जी की भक्ति भावना सख्य भाव की है।

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सूरदास के पद पदों का सार

सूरदास के इन पदों में वात्सल्य रस का मोहक चित्रण किया गया है। पहले पद में यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झूला झुलाकर और लोरी देकर सुला रही है। श्रीकृष्ण कभी पलकें मूंद लेते हैं तो कभी व्याकुल हो उठ जाते हैं। यशोदा उन्हें लोरी गा कर फिर से सुला देती है। दूसरे पद में यशोदा श्रीकृष्ण को दूर खेलने जाने के लिए मना करती है। तीसरे पद में माँ यशोदा श्रीकृष्ण को चोटी बढ़ने का लालच देकर बहाने से दूध पिलाती है परंतु श्रीकृष्ण चोटी न बढ़ने से चिंतित हो कर माखन रोटी खाने के लिए देने के लिए कहते हैं। चौथे पद में श्रीकृष्ण माँ से गायें चराने जाने के लिए हठ करते हैं। परन्तु उनकी बाल-अवस्था देखकर यशोदा उन्हें जाने से रोकना चाहती है।

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