This PSEB 10th Class Science Notes Chapter 6 जैव प्रक्रम will help you in revision during exams.
PSEB 10th Class Science Notes Chapter 6 जैव प्रक्रम
याद रखने योग्य बातें (Points to Remember)
→ वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं, जैव प्रक्रम कहलाते हैं।
→ ऊर्जा के स्रोत को हम भोजन तथा शरीर के अंदर लेने के प्रक्रम को पोषण कहते हैं।
→ शरीर के बाहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य स्रोत के विघटन में उसका उपयोग श्वसन कहलाता है।
→ एक कोशी जीवों को भोजन ग्रहण करने, गैसों के आदान-प्रदान और वर्ण्य पदार्थ के निष्कासन के लिए किसी विशेष अंग की आवश्यकता नहीं होती।
→ बहुकोशिकीय जीवों में विभिन्न कार्यों को करने के लिए भिन्न-भिन्न अंग विशिष्टीकृत हो जाते हैं।
→ अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना उत्सर्जन कहलाता है।
→ ऊर्जा का स्रोत भोजन है और जो पदार्थ हम खाते हैं वह भोजन है। सभी जीवों में ऊर्जा तथा पदार्थ की सामान्य आवश्यकता समान है।
→ विषमपोषी ऊतक जीविता के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्वपोषी पर आश्रित होते हैं। जंतु और कवक विषमपोषी जीव हैं।
→ प्रकाश संश्लेषण वह प्रक्रम है जिसमें स्वपोषी बाहर से लिए पदार्थों को ऊर्जा संचित रूप में परिवर्तित कर देता है। ये पदार्थ CO2, तथा जल के रूप में लिए जाते हैं जो सूर्य के प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट में बदल जाते हैं।
→ रंध्र पत्ती की सतह पर सूक्ष्म छिद्र होते हैं। प्रकाश संश्लेषण के लिए गैसों का आदान-प्रदान इन्हीं से होता है।
→ रंध्रों से पर्याप्त मात्रा में जल की भी हानि होती है।
→ प्रकाश संश्लेषण के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है।
→ पौधे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, लोहा और मैग्नीशियम मिट्टी से लेते हैं।
→ एक कोशिक जीवों में भोजन पूरी सतह से लिया जा सकता है।
→ अमीबा कोशिकीय सतह से अंगुली जैसे अस्थायी प्राकार्य से भोजन लेता है।
→ मनुष्य की आहार नली मुँह से गुदा तक फैली एक लंबी नली है।
→ क्षुद्रांत्र आहार नली का सबसे लंबा भाग है।
→ माँस का पाचन सरल है इसलिए बाघ जैसे मांसाहारी की क्षुद्रांत्र छोटी होती है। क्षुद्रांत्र कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का पाचन करती है।
→ वायु की उपस्थिति में होने वाला प्रक्रम वायवीय श्वसन कहलाता है।
→ वायवीय श्वसन में ऊर्जा का उपयोग अवायवीय श्वसन की अपेक्षा बहुत अधिक होता है।
→ अचानक होने वाली क्रिया से हमारी पेशियों में लैक्टिक अम्ल का निर्माण होना जप का कारण हो सकता अनार है।
→ जलीय जंतु जल में विलेय ऑक्सीजन का ही उपयोग करते हैं।
→ जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है इसलिए जलीय जीवों की श्वास दर स्थलीय जीवों की अपेक्षा द्रुत होती है।
→ मानव में, श्वसन वर्णक हीमोग्लोबिन है जो ऑक्सीजन के लिए उच्च बंधुता रखता है।
→ यदि कूपिकाओं की सतह को फैला दिया जाए तो यह लगभग 80 वर्गमीटर क्षेत्र ढांप सकता है।
→ रुधिर एक तरल संयोजी ऊतक है।
→ हृदय एक पेशीय अंग है जो हमारी मुट्ठी के आकार का होता है।
→ हृदय में अलिंद और निलय हिस्से होते हैं। अलिंद की अपेक्षा निलय की पेशीय भित्ति मोटी होती है क्योंकि निलय को पूरे शरीर में रुधिर भेजना होता है।
→ सरीसृपों का हृदय तीन कोष्ठीय और मछलियों में दो कोष्ठीय होता है।
→ सामान्य प्रकुंचन दाब लगभग 120 मि०मी० (पारा) तथा अनुशिथिलन दाब लगभग 80 मि०मी० (पारा) होता है।
→ स्फाईग्मोमैनोमीटर नामक यंत्र से रक्त दाब नापा जाता है।
→ धमनियाँ वे रुधिर वाहिकाएँ हैं जो रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंग तक ले जाती हैं। शिराएँ विभिन्न अंगों से रुधिर एकत्र करके वापस हृदय तक लाती हैं।
→ रक्त स्राव को रोकने के लिए रुधिर में प्लेटलैट्स कोशिकाएँ होती हैं जो पूरे शरीर में भ्रमण करती हैं। वे रक्त स्त्राव के स्थान पर रुधिर का थक्का बनाकर मार्ग अवरुद्ध कर देती हैं।
→ पादप की वायवीय भागों द्वारा वाष्प के रूप में जल की हानि वाष्पोत्सर्जन कहलाती है।
→ प्रकाश संश्लेषण को विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है जो संवहन ऊतक के फ्लोएम भाग से होता है।
→ मानवीय उत्सर्जन तंत्र में एक जोड़ा वृक्क, एक मूत्र वाहिनी, एक मूत्राशय और एक मूत्रमार्ग होता है।
→ वृक्क में नाइट्रोजनी वर्ण्य पदार्थ जैसे यूरिया या यूरिक अम्ल रुधिर से अलग कर लिए जाते हैं।
→ वृक्क में अनेक निस्यंदक एकक होते हैं जिन्हें वृक्काणु (नेफ्रॉन) कहते हैं।
→ वृक्क के अपक्रिय हो जाने की अवस्था में कृत्रिम वृक्क का उपयोग किया जाता है।
→ अपोहन (Dialysis) नाइट्रोजनी अपशिष्ट उत्पादों को रुधिर से निकालने की एक युक्ति है।
→ पौधों से गिरने वाली पत्तियों में भी अपशिष्ट उत्पाद संचित रहते हैं। रेजिन, गोंद आदि भी अपशिष्ट हैं जो पुराने जाइलम में संचित रहते हैं।