Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 13 पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत निर्धारण: सन्तुलन कीमत Textbook Exercise Questions, and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 13 पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत निर्धारण : सन्तुलन कीमत
PSEB 11th Class Economics पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत निर्धारण : सन्तुलन कीमत Textbook Questions and Answers
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
सन्तुलन कीमत की परिभाषा दीजिए।
अथवा
सन्तुलन कीमत का अर्थ बताओ।
उत्तर-
जहां बाज़ार मांग तथा बाज़ार पूर्ति एक-दूसरे के समान होते हैं; उस कीमत को सन्तुलन कीमत कहा जाता
प्रश्न 2.
वस्तु की अधिक मांग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
बाज़ार में एक निश्चित कीमत के स्तर पर वस्तु की मांग, वस्तु की पूर्ति से अधिक होती है तो इसको अधिक मांग (Excess Demand) की स्थिति कहा जाता है।
प्रश्न 3.
वस्तु की अधिक पूर्ति का अर्थ बताओ।
उत्तर-
वस्तु की अधिक पूर्ति उस स्थिति को कहा जाता है, जब निश्चित कीमत पर वस्तु की पूर्ति, वस्तु की मांग से अधिक होती है।
प्रश्न 4.
बाज़ार सन्तुलन (Market Equilibrium) को स्पष्ट करो।
उत्तर-
बाज़ार सन्तुलन उत्पादन के उस स्तर को कहा जाता है, जहां कि वस्तु की मांग तथा वस्तु की पूर्ति एक-दूसरे के समान होती है। इस स्थिति में अधिक मांग शून्य तथा अधिक पूर्ति शून्य की स्थिति पाई जाती है।
प्रश्न 5.
सन्तुलन की धारणा को बाज़ार मांग तथा पूर्ति अनुसूची द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर-
सन्तुलन कीमत बाज़ार मांग तथा बाज़ार पूर्ति द्वारा निर्धारित होती हैसूची पत्र अनुसार ₹ 3 सन्तुलन कीमत है, जो कि बाज़ार मांग तथा बाज़ार पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है।
प्रश्न 6.
सन्तुलन कीमत कैसे निर्धारित होती है ?
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में वस्तु की कीमत कैसे निर्धारित होती है? रेखाचित्र द्वारा दिखाओ।
उत्तर-
जिस स्थान पर मांग तथा पूर्ति द्वारा सन्तुलन प्राप्त होता है। इसको बाज़ार सन्तुलन (Market Equilibrium). कहा जाता है। कीमत निश्चित होती है, इसको सन्तुलन कीमत कहा जाता है। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में वस्तु की कीमत निर्धारित होती है।
प्रश्न 7.
केन्द्र के बजट 2002-03 में चाय पर उत्पादन कर (Excise Duty) ₹ 2 रु० प्रति किलो से घटाकर ₹ 1 प्रति किलोग्राम किया गया। शेष बातें समान रहें, इसका चाय की कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-
जब चाय पर उत्पादन (Excise Duty) ₹ 2 से घटाकर ₹ 1 प्रति किलो की जाती है तथा शेष बातें समान रहती हैं। इससे चाय की पूर्ति में वृद्धि होगी तथा चाय की कीमत कम हो जाएगी।
प्रश्न 8.
कीमत यन्त्र पर प्रत्यक्ष हस्तक्षेप तथा अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर-
- प्रत्यक्ष हस्तक्षेप (Direct Intervention)-जब सरकार वस्तुओं की कम-से-कम कीमत अथवा न्यूनतम उत्साहित कीमत निर्धारित करती है तो कीमत यन्त्र पर इसको प्रत्यक्ष हस्तक्षेप कहा जाता है।
- अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप (Indirect Intervention)-जब सरकार वस्तु के उत्पादन पर कर (Excise Duty) लगा देती है तो इसको कीमत यन्त्र पर अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप कहा जाता है।
प्रश्न 9.
इससे आपका क्या अभिप्राय है? (a) कीमत नियन्त्रण (b) न्यूनतम उत्साहित कीमत।
उत्तर-
- कीमत नियन्त्रण (Control Price) जब वस्तु की कीमत सन्तुलन कीमत से कम निर्धारित की जाती है ताकि निर्धन वर्ग के लोग भी अनिवार्य वस्तुएं गेहूं, चावल इत्यादि की खरीद कर सकें तो इसको कीमत नियन्त्रण कहते हैं।
- न्यूनतम उत्साहित कीमत (Support Price)-जब वस्तु की कीमत सन्तुलन कीमत से अधिक निर्धारित की जाती है ताकि फसल आने पर गेहूं, चावल की पूर्ति बढ़ने के कारण कीमत कम न हो जाएं तो उस कीमत को न्यूनतम उत्साहित कीमत (Support Price) कहा जाता है।
प्रश्न 10.
मान लो चीनी पर कीमत नियन्त्रण समाप्त किया जाता है, शेष बातें समान रहें। इसका चीनी की कीमत तथा उपभोग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-
जब चीनी पर कीमत नियन्त्रण समाप्त किया जाता है तो शेष बातें समान रहें, चीनी की कीमत में वृद्धि होगी तथा कीमत नियन्त्रण से जो पहले कीमत थी, उसके समान कीमत हो जाएगी परन्तु इससे चीनी के उपभोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
प्रश्न 11.
मांग में वृद्धि अथवा कमी से सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
सन्तुलन कीमत मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। जब वस्तु की मांग में वृद्धि होती है तो सन्तुलन कीमत बढ़ जाती है। इसके विपरीत जब मांग में कमी होती है तो कीमत कम हो जाती है।
प्रश्न 12.
पूर्ति में वृद्धि अथवा कमी से कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
वस्तु की मांग तथा पूर्ति द्वारा बाज़ार सन्तुलन स्थापित होता है तो सन्तुलन कीमत निर्धारित हो जाती है। जब पूर्ति में वृद्धि होती है तो वस्तु की कीमत कम हो जाती है तथा पूर्ति में कमी होने से वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है।
प्रश्न 13.
किसी वस्तु की कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है; जब वस्तु की मांग में वृद्धि, पूर्ति में वृद्धि से अधिक होती है?
उत्तर-
वस्तु की कीमत मांग तथा पूर्ति में समानता द्वारा निर्धारित होती है। जब मांग में वृद्धि, पूर्ति में वृद्धि से अधिक होती है तो उस स्थिति में कीमत में वृद्धि होगी, परन्तु अन्य बातें समान रहनी चाहिए।
प्रश्न 14.
किसी वस्तु की कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है, जब वस्तु की मांग में वृद्धि पूर्ति में वृद्धि से कम होती है?
उत्तर-
दूसरी बातें समान रहें तो वस्तु की मांग में वृद्धि जब पूर्ति में वृद्धि से कम होती है तो पूर्ति अधिक बढ़ने के कारण वस्तु की कीमत घटने की प्रवृत्ति रखती है।
प्रश्न 15.
जब मांग तथा पूर्ति समान अनुपात में अधिक अथवा कम हो जाती है तो कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
जब मांग तथा पूर्ति समान अनुपात पर बढ़ जाती है अथवा समान अनुपात पर कम हो जाती है तो ऐसी स्थिति में वस्तु की कीमत समान रहती है।
प्रश्न 16.
सन्तुलन कीमत में समय के महत्त्व से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
प्रो० मार्शल ने सन्तुलन कीमत में मांग तथा पूर्ति में कौन-सा महत्त्वपूर्ण तत्त्व होता है, इसको स्पष्ट करने के लिए समय के महत्त्व को स्पष्ट किया है। उन्होंने समय को तीन भागों में विभाजित किया-
- बाज़ार समय
- अल्पकाल
- दीर्घकाल।
प्रश्न 17.
बाज़ार समय क्या है?
उत्तर-
बाज़ार समय बहुत कम-सा समय होता है, जिसमें वस्तु की पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता, मांग बढ़ जाए तो कीमत बढ़ जाती है तथा मांग कम हो जाए तो कीमत कम हो जाती है। पूर्ति स्थिर रहती है।
प्रश्न 18.
अल्पकाल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
अल्पकाल इतना कम समय होता है, जिसमें नई फ़र्ने उद्योग में शामिल नहीं हो सकतीं तथा न ही पुरानी फ़र्मे उद्योग को छोड़ सकती हैं। इसी समय में पुरानी मशीनों से अधिक समय लेकर पूर्ति में वृद्धि की जा सकती है।
प्रश्न 19.
दीर्घकाल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
दीर्घकाल इतना लम्बा समय होता है, जिसमें नई फ़मैं उद्योग में शामिल हो सकती हैं तथा वस्तु की पूर्ति को साधनों में परिवर्तन से बढ़ाया जा सकता है अथवा घटाया जा सकता है। इस प्रकार पूर्ति का योगदान अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
प्रश्न 20.
उद्योग का आर्थिक व्यावहारिक (Viable) होने से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उद्योग के आर्थिक व्यावहारिक होने से अभिप्राय है कि वस्तु की मांग तथा पूर्ति एक दूसरे को किसी-नकिसी बिन्दु पर अवश्य काटती हैं तथा सन्तुलन की स्थिति स्थापित हो जाती है।
प्रश्न 21.
उद्योग के आर्थिक अव्यावहारिक (Nonviable) होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उद्योग के आर्थिक तौर पर अव्यावहारिक होने से अभिप्राय है कि पूर्ति मांग से ऊपर होती है तथा यह दोनों एक-दूसरे को काटती नहीं हैं।
प्रश्न 22.
जब स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है तो इससे उपभोग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
किसी वस्तु X के स्थानापन्न वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो इस स्थिति में X वस्तु की मांग में वृद्धि हो जाएगी तथा मांग वक्र दाईं ओर को खिसक जाएगा।
प्रश्न 23.
जब पूरक वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है तो इससे वस्तु के उपभोग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
जब पूरक वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है, जैसे कि कार की कीमत में वृद्धि होती है तो पूरक वस्तु पेट्रोल की मांग कम हो जाती है।
प्रश्न 24.
जब आगतें (Inputs) की कीमत बढ़ जाती है तो वस्तु की खरीद मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
जब आगतें (Inputs) कीमत बढ़ जाती है तो वस्तु की लागत में वृद्धि होती है। लागत के बढ़ने से कीमत बढ़ जाती है। इसलिए खरीदी गई मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा कम मात्रा खरीदी जाती है।
प्रश्न 25.
जब लागत घटाने वाली तकनीक का प्रयोग होता है, इससे बाज़ार कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
जब लागत घटाने वाली तकनीक का प्रयोग होता है तो लागत घटने से कीमत कम हो जाती है तथा वस्तु की खरीदी गई मात्रा में वृद्धि होती है
प्रश्न 26.
जब उत्पादन कर में वृद्धि होती है तो बाज़ार कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
जब उत्पादन कर लगता है अथवा बढ़ाया जाता है तो वस्तु की कीमत बढ़ जाती है, इससे वस्तु की खरीदी गई मात्रा कम हो जाएगी।
प्रश्न 27.
मांग में वृद्धि से कीमत में वृद्धि कब होती है, जब वस्तु की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता?
उत्तर-
जब पूर्ति पूर्ण अलोचशील अर्थात् OY के समानांतर होती है तो मांग में वृद्धि होने से कीमत में वृद्धि होगी, परन्तु वस्तु की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता।
प्रश्न 28.
नियन्त्रण कीमत तथा सन्तुलन कीमत में क्या संबंध होता है?
उत्तर-
सरकार द्वारा नियन्त्रण कीमत आवश्यक वस्तुओं की स्थिति में निर्धारित की जाती है जो कि सन्तुलन कीमत से कम होती है। इस कीमत पर निर्धन लोग सरलता से आवश्यक वस्तुएं खरीद सकते हैं।
प्रश्न 29.
न्यूनतम समर्थन कीमत तथा सन्तुलन कीमत में क्या संबंध है?
उत्तर-
न्यूनतम समर्थन कीमत वह कीमत है जो कि किसानों की उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए निर्धारित की जाती है, जो कि सन्तुलन कीमत से अधिक होती है।
प्रश्न 30.
समर्थन कीमत से अधिक पूर्ति की समस्या क्यों उत्पन्न होती है?
उत्तर-
समर्थन कीमत हमेशा सन्तुलन कीमत से ऊपर निश्चित की जाती है। इस स्थिति में वस्तु की पूर्ति मांग से अधिक होती है। इसलिए अधिक पूर्ति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 31.
जब पूर्ति बढ़ती अथवा कम होती है तो किस स्थिति में कीमत स्थिर रहेगी ?
उत्तर-
जब पूर्ति और माँग एक ही अनुपात में बढ़ जाती है अथवा कम होती है तो कीमत स्थिर रहेगी।
प्रश्न 32.
किस स्थिति में कीमत स्थिर रहेगी जब माँग घटती अथवा बढ़ती है ?
उत्तर-
जब माँग बढ़ती अथवा कम होती है और पूर्ति भी उस अनुपात में बढ़ जाती है अथवा कम होती है तो कीमत स्थिर रहेगी।
प्रश्न 33.
सन्तुलन कीमत ………. द्वारा निर्धारण होती है।
(a) फ़र्म
(b) उद्योग
(c) भाईवाली फ़र्म
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) उद्योग।
प्रश्न 34.
जब माँग अधिक होती है तो कीमत में …….. आएगा।
(a) कमी
(b) उछाल
(c) स्थिरता
(d) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) उछाल।
प्रश्न 35.
यदि वस्तु की माँग घटती है तो सन्तुलन कीमत ………. है।
(a) घटती
(b) बढ़ती
(c) सामान्य रहती
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) घटती।
प्रश्न 36.
जब पूर्ति वक्र माँग वक्र के ऊपर होता है और वह एक दूसरे को नहीं काटते तो इसको ….. उद्योग कहा जाता है।
उत्तर-
अव्यावहारिक।
प्रश्न 37.
जब पूर्ति पूर्ण लोचदार होती है माँग के बढ़ने या घटने से सन्तुलन कीमत …….. ।
(a) बढ़ जाती है
(b) घट जाती है
(c) सामान्य रहती है
(d) कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
उत्तर-
(d) कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 38.
जब वस्तु की पूर्ति पूर्ण बेलोचशील होती है माँग के बढ़ने तथा कम होने से सन्तुलन कीमत
(a) बढ़ जाती है अथवा कम होती है
(b) घट जाती है
(c) सामान्य रहती है
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) सामान्य रहती है।
प्रश्न 39.
पूर्ति सामान्य रहती है और माँग के बढ़ने अथवा घटने से कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है।
उत्तर-
कीमत बढ़ अथवा घट जाती है।
प्रश्न 40.
वस्तु की माँग सामान्य रहती है पूर्ति के बढ़ने तथा कम होने से सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
पूर्ति के बढ़ने से कीमत कम हो जाएगी अथवा पूर्ति के बढ़ने से कीमत कम हो जाती है।
प्रश्न 41.
पूर्ति पूर्ण लोचदार है परन्तु माँग के बढ़ने तथा कम होने से कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है।
उत्तर-
कीमत स्थिर रहती है।
प्रश्न 42.
जब माँग पूर्ण बेलोचदार है और पूर्ति में परिवर्तन से कीमत –
(a) बढ़ जाएगी
(b) कम हो जाएगी।
(c) घट अथवा बढ़ जाएगी
(d) कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
उत्तर-
(c) घट अथवा बढ़ जाएगी।
प्रश्न 43.
जब माँग पूर्ति की तुलना में अधिक बढ़ जाती है तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा में ……. होती है।
(a) वृद्धि
(b) कमी
(c) सामान्य
(d) कोई प्रभाव नहीं।
उत्तर-
(a) वृद्धि।
प्रश्न 44.
जब माँग तथा पूर्ति में वृद्धि सामान्य अनुपात में होती है तो कीमत स्थिर होती है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 45.
जब माँग में वृद्धि पूर्ति के वृद्धि की तुलना में अधिक होती है तो कीमत कम होती है।
उत्तर-
ग़लत।
प्रश्न 46. जब पूर्ति में वृद्धि माँग की वृद्धि की तुलना अधिक होती है तो सन्तुलन कीमत घट जाती है।
उत्तर-
सही।
II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
सन्तुलन कीमत की परिभाषा दीजिए।
अथवा
सन्तुलन कीमत का अर्थ बताओ।
उत्तर-
जहां बाज़ार मांग तथा बाज़ार पूर्ति एक-दूसरे के समान होते हैं; उस कीमत को सन्तुलन कीमत कहा जाता है। पूर्ण प्रतियोगिता में यह कीमत मांग तथा पूर्ति द्वारा स्थापित होती है।
प्रश्न 2.
सन्तुलन कीमत कैसे निर्धारित होती है ?
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में वस्तु की कीमत कैसे निर्धारित होती है? रेखाचित्र द्वारा दिखाओ।
उत्तर-
रेखाचित्र 1 में मांग DD तथा पूर्ति SS द्वारा सन्तुलन E बिन्दु पर होता है। इसको बाज़ार सन्तुलन (Market Equilibrium) कहा जाता है। OP कीमत निश्चित होती है, इसको सन्तुलन कीमत कहा जाता है। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में वस्तु की कीमत निर्धारित होती है।
प्रश्न 3.
बाज़ार समय क्या है?
उत्तर-
बाज़ार समय बहुत कम-सा समय होता है, जिसमें वस्तु की पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता, मांग बढ़ जाए तो कीमत बढ़ जाती है तथा मांग कम हो जाए तो कीमत कम हो जाती है। पूर्ति स्थिर रहती है। .
प्रश्न 4.
अल्पकाल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
अल्पकाल इतना कम समय होता है, जिसमें नई फ़र्मे उद्योग में शामिल नहीं हो सकतीं तथा न ही पुरानी फ़र्मे उद्योग को छोड़ सकती हैं। इसी समय में पुरानी मशीनों से अधिक समय लेकर पूर्ति में वृद्धि की जा सकती है।
प्रश्न 5.
दीर्घकाल से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
दीर्घकाल इतना लम्बा समय होता है, जिसमें नई फ़र्ने उद्योग में शामिल हो सकती हैं तथा वस्तु की पूर्ति को साधनों में परिवर्तन से बढ़ाया जा सकता है अथवा घटाया जा सकता है। इस प्रकार पूर्ति का योगदान अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
प्रश्न 6.
उद्योग का आर्थिक व्यावहारिक (Viable) होने से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उद्योग के आर्थिक व्यावहारिक होने से अभिप्राय है कि वस्तु की मांग तथा पूर्ति एक दूसरे को किसी-नकिसी बिन्दु पर अवश्य काटती हैं तथा सन्तुलन की स्थिति स्थापित हो जाती है।
प्रश्न 7.
उद्योग के आर्थिक अव्यावहारिक (Nonviable) होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उद्योग के आर्थिक तौर पर अव्यावहारिक होने से अभिप्राय है कि पूर्ति मांग से ऊपर होती है तथा यह दोनों एक-दूसरे को काटती नहीं हैं।
img
III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
सन्तुलन कीमत से क्या अभिप्राय है? बाज़ार सन्तुलन को मांग तथा पूर्ति सूची तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो
उत्तर-
सन्तुलन कीमत वह कीमत है, जहां कि बाज़ार मांग तथा बाज़ार पूर्ति एक-दूसरे के समान होते हैं। बाज़ार सन्तुलन की स्थिति को सूची पत्र तथा रेखाचित्र 3 द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
सूची पत्र में कीमत तथा मांग का विपरीत सम्बन्ध है, जबकि कीमत तथा पूर्ति का सीधा सम्बन्ध है। जहां बाज़ार मांग = बाजार पूर्ति (3 = 3) हैं, इसको बाज़ार सन्तुलन कहा जाता है, जैसे कि रेखाचित्र 3 में E बिन्दु द्वारा दिखाया गया है। इससे ₹ 3 कीमत निर्धारण हो जाती है, इसको सन्तुलन कीमत (Equilibrium Price) कहते हैं।
प्रश्न 2.
आर्थिक तौर पर व्यावहारिक (Viable) तथा अव्यावहारिक (Non-viable) उद्योगों में क्या अन्तर है? रेखाचित्रों द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
1. व्यावहारिक उद्योग (Viable Industries)व्यावहारिक उद्योग वह उद्योग होते हैं, जिनमें वस्तुओं की मांग तथा पूर्ति एक-दूसरे को किसी निश्चित बिन्दु पर काटती है, उस बिन्दु को बाज़ार सन्तुलन कहते हैं। जहां कि रेखाचित्र 4 में साधारण तौर पर बाजार में उपलब्ध वस्तुओं की कीमत मांग तथा पूर्ति द्वारा सन्तुलन से स्थापित हो जाती है। इन उद्योगों की मांग वक्र पर पूर्ति वक्र एक-दूसरे को किसी बिन्दु पर अवश्य काटती है।
2. अव्यावहारिक उद्योग (Nonviable Industries)जब किसी उद्योग की पूर्ति वक्र, मांग वक्र को नहीं काटती, बल्कि पूर्ति वक्र मांग वक्र से ऊपर होती है तो ऐसी वस्तु का उत्पादन उस अर्थव्यवस्था में नहीं किया जाता। जैसे कि निजी हवाई जहाज़ों की पूर्ति भारत जैसे देशों में ऊंची है तथा मांग कम है। इसलिए निजी | D हवाई जहाज़ों का उद्योग भारत जैसे देशों में अव्यावहारिक है। जब पूर्ति वक्र मांग वक्र से ऊंची होती है तो इस उद्योग को अव्यावहारिक उद्योग कहा जाता है। जैसा कि रेखाचित्र 5 में दिखाया गया है।
प्रश्न 3.
सन्तुलन कीमत कैसे निर्धारित होती है? एक वस्तु की मांग में परिवर्तन का इस पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
सन्तुलन कीमत वह कीमत है, जोकि बाज़ार मांग तथा बाजार पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। जैसे कि रेखाचित्र 6 में DD मांग तथा SS पूर्ति द्वारा सन्तुलन E बिन्दु पर E स्थापित होता है। इसलिए OP कीमत निर्धारण हो जाती है। इसको सन्तुलन कीमत कहा जाता है। यदि शेष बातें समान रहती हैं, वस्तु की मांग बढ़ने से | सन्तुलन कीमत बढ़ जाती है तथा मांग घटने से सन्तुलन कीमत कम हो जाती है, जैसे कि रेखाचित्र 6 में मांग DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है। सन्तुलन कीमत OP से बढ़कर OP2 हो तो सन्तुलन कीमत OP2 रह जाएगी। इस प्रकार मांग की वृद्धि से कीमत बढ़ जाती है तथा मांग की कमी से कीमत कम हो जाती है।
प्रश्न 4.
सन्तुलन कीमत तथा पूर्ति में परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ता है ? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर-
सन्तुलन कीमत वह कीमत है जो बाज़ार मांग तथा बाज़ार पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। शेष बातें समान रहें, जब वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होती है तो सन्तुलन कीमत कम हो जाती है तथा जब वस्तु की पूर्ति में कमी होती है तो सन्तुलन कीमत में वृद्धि होती है। रेखाचित्र 7 में DD मांग तथा SS पूर्ति से सन्तुलन कीमत OP निर्धारित हो जाती है। जब पूर्ति SS से बढ़कर S1S1 हो जाती है तो कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाएगी। इसके विपरीत जब पूर्ति SS से कम होकर S2S2 हो जाती है तो सन्तुलन कीमत OP से बढ़कर OP2 हो जाएगी।
प्रश्न 5.
बाज़ार कीमत तथा विनिमय मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जब
(a) मांग वक्र दाईं ओर खिसक जाती है।
(b) मांग वक्र पूर्ण लोचशील होती है, परन्तु पूर्ति वक्र खिसक जाता है।
(c) जब मांग तथा पूर्ति समान अनुपात में घट जाती है।
उत्तर-
(a) जब मांग वक्र दाईं ओर खिसक जाती है तो इससे वस्तु की. बाज़ार कीमत तथा मात्रा में वृद्धि होती है जैसे कि रेखाचित्र 8 में पूर्ति समान रहती है परन्तु मांग वक्र DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है। इससे कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाएगी।
(b) जब मांग वक्र पूर्ण लोचशील होता है तथा पूर्ति में परिवर्तन होता है तो कीमत OP समान रहेगी, परन्तु पूर्ति SS से बढ़कर S1S1 होती है तो वस्तु की मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है तथा पूर्ति S2S2 कम हो जाती है तो मात्रा OQ2 रह जाएगी। जैसा कि रेखाचित्र 9 में दिखाया गया है।
(c) जब मांग तथा पूर्ति समान अनुपात में कम हो जाते हैं तो कीमत OP समान रहती है, परन्तु वस्तु की मात्रा OQ से कम होकर OQ1 रह जाती है। जैसा कि रेखाचित्र 10 में दिखाया गया है।
प्रश्न 6.
सन्तुलन कीमत से क्या अभिप्राय है? यह स्पष्ट करो कि जब मांग तथा पूर्ति दोनों में वृद्धि समान अनुपात में होती है तो सन्तुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। . उत्तर-
सन्तुलन कीमत वह कीमत है जो बाज़ार मांग तथा बाज़ार पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है, जैसे कि रेखाचित्र 11 में DD मांग तथा SS पूर्ति द्वारा सन्तुलन कीमत OP निर्धारित हो जाती है। यदि मांग तथा पूर्ति में वृद्धि समान अनुपात में दिखाया गया है। मांग DD से बढ़कर D1D1 तथा पूर्ति SS से बढ़कर S1S1 हो जाती है तो सन्तुलन कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता, परन्तु मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाएगी।
प्रश्न 7.
जब मांग पूर्ण लोचशील अथवा पूर्ण अलोचशील होती है तो पूर्ति में परिवर्तन का सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है ? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर
1. रेखाचित्र 12 (i) में मांग पूर्ण लोचशील DD दिखाई गई है जो कि ox के समानान्तर है। पूर्ति SS से बढ़कर S1S1 हो जाती है अथवा कम होकर S2S2 रह जाती है तो सन्तुलन कीमत OP स्थिर रहती है, जबकि मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 अथवा घटकर OQ2 रह जाती है।
2. रेखाचित्र 12.(ii) में मांग पूर्ण लोचशील दिखाई गई है, यदि पूर्ति SS से बढ़कर S1S1 हो जाती है तो सन्तुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तथा यदि पूर्ति SS से घटकर S2S2 हो जाती है तो सन्तुलन कीमत बढ़कर OP से OP2 हो जाएगी।
प्रश्न 8.
जब पूर्ति पूर्ण लोचशील अथवा पूर्ण अलोचशील होती है तथा मांग में परिवर्तन होता है तो इसका सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
जब पूर्ति लोचशील अथवा पूर्ण अलोचशील होती है तथा मांग में परिवर्तन से सन्तुलन कीमत पर प्रभाव को रेखाचित्र 13 द्वारा स्पष्ट करते हैं-
1. रेखाचित्र 13 (i) में पूर्ति SS पूर्ण लोचशील है। मांग DD से बढ़कर D1D1 अथवा कम होकर D2D2 रह जाती है तो सन्तुलन कीमत OP स्थिर रहती है।
2. रेखाचित्र 13 (ii) में पूर्ति SS पूर्ण अलोचशील है। मांग DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है तो सन्तुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाएगी। यदि मांग कम होकर D2D2 रह जाती है तो सन्तुलन कीमत OP2 रह जाती है।
प्रश्न 9.
आय में वृद्धि से वस्तु की सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
अथवा
जब किसी वस्तु की माँग पूर्ति से अधिक होती है तो कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
जब आय में वृद्धि होती है तो मांग में वृद्धि हो जाएगी। यदि पूर्ति समान रहती है तो सन्तुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाएगी। ऐसा साधारण वस्तुओं की स्थिति में होता है, जैसा कि रेखाचित्र 14 में दिखाया गया है।
प्रश्न 10.
भयानक अकाल के परिणामस्वरूप गेहूं का उत्पादन बहुत घट जाता है। इससे बाज़ार में गेहं की कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
जब भयानक अकाल के कारण गेहूं का उत्पादन बहुत कम हो जाता है तो इससे अभिप्राय है कि गेहूं की पूर्ति कम हो जाती है, जब कि मांग में कोई परिवर्तन नहीं होता। इससे गेंहू की कीमत में वृद्धि होगी। जैसे कि रेखाचित्र 15 में कीमत OP से बढ़कर OP1 दिखाई गई है।
प्रश्न 11.
मान लो जीनज़ पैंटों की मांग बढ़ जाती है, परन्तु कपास की कीमत में वृद्धि होने से उसी समय जीनज़ पैंटों की पूर्ति कम हो जाती है। इसका जीनज़ की कीमत तथा बेची गई मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
जीनज़ पैंटों की मांग में वृद्धि होती है, परन्तु जीनज़ पैंटों की पूर्ति कम हो जाती है तो इससे जीनज़ की कीमत में बहुत वृद्धि होगी, जैसे कि मांग बढ़कर DD से D1D1 होती है, परन्तु पूर्ति SS से कम होकर S1S1 रह जाती है, इससे कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाए, जबकि जीनज़ की मात्रा OQ से कम होकर OQ1 रह जाती है।
प्रश्न 12.
चीन टेलीफोन के यन्त्र बनाने वाला बड़ा निर्माता है। यह हाल ही में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बन गया है। इससे अभिप्राय है कि यह अपनी वस्तुएं भारत जैसे देशों को बेच सकता है। मान लो यह भारत को टेलीफोन यन्त्र निर्यात करने लगता है
(a) इससे भारत में टेलीफोन कीमत तथा बेची गई मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(b) मान लो टेलीफोन वस्तुओं की मांग अधिक लोचशील है तो इससे भारत के कुल व्यय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-
(a) जब चीन भारत को टेलीफोन यन्त्र (Telephone instruments) बड़ी मात्रा में निर्यात करेगा तो इसका प्रभाव यह पड़ेगा कि टेलीफोन यन्त्रों की कीमत भारत में घट जाएगी। इससे टेलीफोन यन्त्रों की बेची गई मात्रा में बहुत अधिक वृद्धि होगी।
(b) भारत में यदि टेलीफोन से सम्बन्धित वस्तुओं की मांग अधिक लोचशील है तो कीमत में कमी होने के कारण इनकी मांग में बहुत वृद्धि होगी तथा भारत का कुल व्यय टेलीफोन यन्त्रों पर बहुत बढ़ जाएगा।
प्रश्न 13.
श्रीमती रामगोपाल अनुसार अर्थशास्त्री विपरीत बातें करते हैं, जब कीमत घटती है तो मांग बढ़ती है, परन्तु जब मांग बढ़ती है तो कीमत बढ़ती है। ठीक अथवा गलत सिद्ध करो। रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
श्रीमती रामगोपाल के कथन के दो भाग हैं।
1. जब कीमत घटती है तो मांग में वृद्धि होती हैप्रथम कथन में कहा गया है कि जब कीमत कम हो जाती है तो मांग में वृद्धि होती है। इस स्थिति में एक मांग वक्र पर मांग बढ़ जाती है। जब किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है रेखाचित्र 17 में जब कीमत OP से मांग OQ है। कीमत कम होकर OP1 हो जाती है तो मांग बढ़कर OQ2 हो जाती है। इसको मांग का विस्तार (Extension in Demand) कहा जाता है।
2. मांग में वृद्धि होती है, जब कीमत बढ़ जाती हैकथन का दूसरा भाग भी ठीक है, जब भी मांग में वृद्धि होती है तो कीमत में वृद्धि हो जाती है। जैसे कि रेखाचित्र 18 अनुसार जब कीमत OP है तो मांग OQ मात्रा की जाती है। मांग DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है तो कीमत में वृद्धि होगी, जैसे कि मांग OQ से बढ़कर OQ1 होती है तो कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है। इसको मांग की वृद्धि (Increase in Demand) कहा जाता है।
प्रश्न 14.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मांग वक्र पर परिवर्तन अथवा मांग वक्र में परिवर्तन के रूप में दीजिए।
(a) सन् 2001 में सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पीने पर पाबन्दी लगाई थी। इसका सिगरेट की औसत कीमत तथा बेची गई मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ने की सम्भावना है?
(b) नई खोजों से पेट्रोल तथा डीजल की कीमत घटने की सम्भावना है। इसका नई कारों के बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
(c) वातावरण सम्बन्धी नए नियमों अनुसार दवाइयां बनाने के उद्योगों को वातावरण अनुकूल तकनीक का प्रयोग करने के लिए कहा जाता है। जिससे पहले से कम रसायन वातावरण में शामिल होते हैं। इससे दवाइयों की कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर-
(a) सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पीने की पाबन्दी लगाने से सिगरेट की मांग में कमी होगी। इससे सिगरेट की औसत कीमत कम हो जाएगी तथा मांग की मात्रा भी कम हो जाएगी।
(b) जब नई खोजों से पेट्रोल तथा डीजल की कीमत में कमी होती है तो इससे कारों की मांग बढ़ जाएगी, क्योंकि पेट्रोल तथा डीज़ल सस्ते हो जाते हैं।
(c) जब दवाइयों के निर्माण में महंगी तकनीक का प्रयोग किया जाता है, जिससे वातावरण प्रदूषित न हो तो दवाइयों की कीमत बढ़ जाएगी, क्योंकि दवाइयों की पूर्ति कम हो जाएगी।
प्रश्न 15.
रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो कि कीमत नियन्त्रण प्रणाली में राशन तथा काले बाज़ार कैसे उत्पन्न हो . जाते हैं?
उत्तर-
जब सरकार कीमत नियन्त्रण प्रणाली का प्रयोग करके सन्तुलन कीमत से कीमत कम निर्धारण कर देती है तो इस स्थिति में वस्तु की मांग अधिक हो जाती है तथा पूर्ति कम होती है। जैसे कि रेखाचित्र 19 में मांग DD तथा पूर्ति SS द्वारा सन्तुलन कीमत OP है। यदि सरकार नियन्त्रित कीमत OP1 निर्धारण कर देती है तो इस कीमत पर P1S1 = OQ1 सन्तुलन कीमत पूर्ति है, परन्तु मांग P1d1 = OQ1 है। इस स्थिति में सरकार को अधिक मांग की पूर्ति के लिए राशन नीति की सहायता नियन्त्रित कीमत लेनी पड़ती है। परन्तु सन्तुलन कीमत बहुत अधिक होने के कारण वह वस्तु काले बाज़ार (Black market) में अधिक मूल्य पर बेची जाती है। इस प्रकार राशन तथा काला बाजार, नियन्त्रित कीमत के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 16.
अकाल के ‘खाद्य उपलब्धता घटने’ (Food Availability Decline) सिद्धान्त को स्पष्ट करो। रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
मांग तथा पूर्ति के सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप देने के लिए प्रो० ए० के० सेन खाद्य उपलब्धता घटने (FAD) सिद्धान्त दिया। प्रो० सेन अनुसार प्राकृतिक आपदाओं के कारण चावल का उत्पादन किसी क्षेत्र में बहुत कम हो जाता है। दूसरे क्षेत्रों में से चावल लाने से यातायात के साधनों की लागत अधिक होने के कारण, चावल की कीमत बहुत बढ़ जाती है तथा उस कीमत पर लोग चावल खरीद नहीं सकते। इसलिए अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तथा भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस सिद्धान्त को रेखाचित्र 20 द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र 20 में A, B तथा C तीन परिवारों की मांग को दिखाया है। तीन परिवारों A + B + C की मांग को चौथे भाग में दिखाया है। परिवार A बहुत गरीब है, B परिवार C से गरीब है तथा C परिवार अमीर है। जब कीमत OP1 है तो केवल C परिवार ही चावल खरीद सकता है। OP1 कीमत पर B तथा C परिवार अनाज खरीद सकते हैं परन्तु A परिवार नहीं खरीद सकता। यदि कीमत OP2 निश्चित होती है तो परिवार A तथा B अनाज नहीं खरीद सकते तथा भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसको खाद्य उपलब्धता घटने का सिद्धान्त कहा जाता है।
प्रश्न 17.
कीमत प्रणाली के गुण तथा दोष बताओ।
अथवा
प्रतियोगी बाज़ार में उपभोक्ता तथा उत्पादकों के निर्णयों में तालमेल कैसे होता है?
उत्तर–
प्रतियोगी बाज़ार में उपभोक्ता तथा उत्पादकों में निर्णयों के तालमेल के कारण कीमत निर्धारण होती है। कीमत प्रणाली के गुण तथा दोष निम्नलिखित हैं-
गुण (Merits)-
- कीमत प्रणाली द्वारा उपभोक्ताओं तथा उत्पादकताओं में तालमेल होने के उपरान्त एक सन्तुलन कीमत स्थापित होती हैं जहां दोनों ही अपने आपको सन्तुष्ट महसूस करते हैं।
- कीमत प्रणाली द्वारा एक अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्याएं क्या, कैसे तथा किस लिए उत्पादन किया जाए, इसका हल किया जाता है।
दोष (Demerits)-
- कीमत प्रणाली द्वारा सामाजिक कल्याण प्राप्त नहीं किया जा सकता, जैसे कि प्रो० ए० के० सेन ने अनाज उपलब्धता घटने के सिद्धान्त द्वारा अकाल की स्थिति का वर्णन किया है।
- कीमत प्रणाली में किसी देश में वातावरण के सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं देता। अधिक लागत से उत्पादन नहीं किया जाता।
- कीमत प्रणाली द्वारा अमीर तथा गरीब में अन्तर बढ़ जाता है।
प्रश्न 18.
पूर्ति में वृद्धि और माँग में कमी का कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
जब किसी वस्तु की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है और उस वस्तु की माँग में कमी हो जाती है तो इससे वस्तु की कीमत बहुत कम हो जाती है। रेखा चित्र 21 में मौलिक माँग DD और पूर्ति SS द्वारा की कीमत OP निर्धारण होती है। पूर्ति बढ़ कर S1S1 और माँग कम हो कर D1D1 रह जाती है तो नया सन्तुलन E द्वारा OP1 निर्धारण हो जाती है जो कि OP से बहुत कम है।
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
सन्तुलन कीमत क्या है ? पूर्ण प्रतियोगिता में सन्तुलन कीमत कैसे निधारित होती है? (What is Equilibrium Price ? How is Equilibrium Price determined ?)
अथवा
बाज़ार के सन्तुलन को मांग तथा पूर्ति अनुसूची तथा रेखाचित्र द्वारा दिखाओ। (Show the determination of market equilibrium with the help of demand and supply schedules & diagram.)
उत्तर–
सन्तुलन कीमत (Equilibrium Price) वह कीमत होती है, जिस पर बाज़ार में वस्तु की मांग, वस्तु की पूर्ति के समान होती है। (The Equilibrium price is the price at which the quantity demanded is equal to quantity supplied) सन्तुलन कीमत पर सभी खरीददार अपनी मांग को पूरा कर लेते हैं तथा बेचने वाले वस्तु की उतनी मात्रा बेचने में सफल हो जाते हैं, जितनी वह बेचना चाहते हैं तो इस स्थिति को बाजार सन्तुलन (Market Equilibrium) कहा जाता है।
सन्तुलन कीमत का निर्माण (Determination of Equilibrium Price)-पूर्ण प्रतियोगिता एक ऐसा बाज़ार होता है, जिसमें-
- खरीददारों तथा बेचने वालों की बड़ी संख्या होती है।
- समरूप वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।
- फ़र्मों के प्रवेश तथा छोड़ने की स्वतन्त्रता होती है।
- उत्पादन के साधनों में पूर्ण गतिशीलता पाई जाती है।
- सभी बाज़ार में वस्तु की एक कीमत निर्धारित होती है।
ऐसे बाज़ार में कीमत निर्धारण को स्पष्ट करते हुए प्रो० मार्शल ने कहा, “जैसे कैंची के दो ब्लेड कागज़ काटने के लिए आवश्यक होते हैं, उसी तरह मांग तथा पूर्ति दोनों सन्तुलन कीमत निर्धारण करने के लिए अनिवार्य है।”
- बाज़ार मांग (Market Demand)-बाज़ार मांग से अभिप्राय मांग की उस मात्रा से होता है, जो कि बाज़ार में सभी खरीददारों द्वारा की जाती है। वस्तु की कीमत तथा बाज़ार मांग का परस्पर विपरीत सम्बन्ध होता है।
- बाज़ार पूर्ति (Market Supply) किसी वस्तु की वह मात्रा जो कि बाज़ार में सभी फ़र्मे बेचने के लिए तैयार होती हैं, उसको बाजार पूर्ति कहा जाता है। वस्तु की कीमत तथा बाजार पूर्ति का परस्पर में सीधा सम्बन्ध होता है।
बाजार अनुसूची तथा रेखाचित्र द्वारा सन्तुलन कीमत की व्याख्या–पूर्ण प्रतियोगिता में बाज़ार मांग तथा बाज़ार पूर्ति के सन्तुलन द्वारा सन्तुलन कीमत निर्धारित होती है। जिस बिन्दु पर बाज़ार मांग तथा बाज़ार पूर्ति एक-दूसरे के समान हो जाते हैं तो उससे सन्तुलन कीमत निर्धारण हो जाती है, इसको बाज़ार अनुसूची द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
बाज़ार मांग तथा पूर्ति अनुसूची में स्पष्ट किया है कि जब रसगुल्ले की कीमत ₹ 5 प्रति है तो मांग रसगुल्ले की, की जाती है, जब कीमत में कमी होती है तो रसगुल्ले की मांग बढ़ती जाती है। दूसरी ओर पूर्ति तथा कीमत का सीधा सम्बन्ध है। जब रसगुल्ले की कीमत घटती है तो पूर्ति में कमी होती है। मांग तथा पूर्ति का सन्तुलन ₹ 3 की स्थिति में होता है। इसकी कीमत पर 3, 3 रसगुल्लों की मांग तथा पूर्ति समान है। इसलिए ₹ 3 को सन्तुलन कीमत कहा जाता है। 3, 3 मांग तथा पूर्ति को बाज़ार सन्तुलन कहते हैं। रेखाचित्र 22 में DD मांग तथा SS पूर्ति वक्र दिखाए गए हैं। E बिन्दु पर रसगुल्ले की मांग तथा पूर्ति समान है। इसलिए ₹ 3 को सन्तुलन कीमत कहा जाता है।
अधिक पूर्ति (Excess Supply)-जब कीमत ₹ 4 है तो खरीददार रसगुल्लों की कम मांग करते हैं तथा बेचने वाले अधिक रसगुल्ले बेचने को तैयार हैं। इसलिए AB अधिक पूर्ति की स्थिति है। पूर्ण प्रतियोगिता के कारण बेचने वाले रसगुल्ले की कीमत घटाकर लेने के लिए तैयार हो जाते हैं तथा कीमत कम (↓) हो जाएगी।
अधिक मांग (Excess Demand) यदि कीमत ₹ 3 से कम है, जैसे कि ₹ 2 प्रति रसगुल्ला है तो मांग अधिक होगी तथा बेचने वाले कम रसगुल्ले बेचने को तैयार होंगे। इसलिए खरीददारों में मुकाबला होगा तथा खरीददार अधिक कीमत देने के लिए तैयार हो जाते हैं तथा कीमत बढ़ (↑) जाती हैं। इस प्रकार सभी बाज़ार में उद्योग द्वारा वस्तु की मांग तथा पूर्ति द्वारा कीमत निर्धारित होती है। यह कीमत एक फ़र्म द्वारा निर्धारण नहीं होती, जो कीमत उद्योग में निर्धारण होती है, उसको प्रत्येक फ़र्मे स्वीकार करती हैं।
प्रश्न 2.
मांग तथा पूर्ति में खिसकाव (परिवर्तन) द्वारा सन्तुलन कीमत पर प्रभाव को रेखाचित्रों द्वारा स्पष्ट करो। (Explain the effects of shifts in demand and supply on Equilibrium Price.)
अथवा
मांग तथा पूर्ति के खिसकने से सन्तुलन कीमत तथा उत्पादन पर प्रभाव को स्पष्ट करो। (Explain the effect shifts in demand and supply on Equilibrium Price and Production.)
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में किसी वस्तु की सन्तुलन कीमत, मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। जहां बाज़ार मांग तथा बाजार पूर्ति समान होते हैं, उससे सन्तुलन कीमत निश्चित हो जाती है। अब हम मांग तथा पूर्ति में परिवर्तन (खिसकाव) द्वारा सन्तुलन कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव को तीन भागों में विभाजित कर स्पष्ट करते हैं-
- मांग का खिसकाव (Shifts in demand)
- पूर्ति का खिसकाव (Shifts in supply)
- मांग तथा पूर्ति का साथ-साथ खिसकाव (Simultaneous shifts in demand & supply)
1. मांग का खिसकाव (Shifts in demand) अथवा मांग की वृद्धि अथवा कमी (Increase or decrease in demand)-मांग का खिसकाव (Shifting) दो तरह से हो सकता है-
(i) मांग में वृद्धि (Increase in demand)-मांग का दाईं ओर खिसकाव) यदि पूर्ति SS स्थिर रहती है तथा मांग DD से सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है तो OP सन्तुलन कीमत है। यदि मांग DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है तो कीमत OP1 निर्धारित हो जाएगी तथा वस्तु की मात्रा OQ1 खरीदी जाएगी। इस प्रकार मांग की वृद्धि से कीमत तथा मात्रा दोनों ही बढ़ जाते हैं।
(ii) मांग में कमी (Decrease in demand)-(मांग का बाईं ओर खिसकाव) यदि मांग DD से घटकर D2D2 रह जाती है तथा पूर्ति SS समान रहती है तो सन्तुलन E से बदलकर E2 पर हो जाएगा तथा कीमत घटकर OP2 हो जाएगी। इस स्थिति में वस्तु की मांग कम होकर OQ2 रह जाती है। इस प्रकार मांग की कमी से कीमत तथा मात्रा दोनों कम हो जाते हैं।
.
2. पूर्ति का खिसकाव (Shifts in Supply) अथवा पूर्ति की वृद्धि अथवा कमी (Increase or decrease in supply)-पूर्ति का खिसकाव (Shifting) दो प्रकार का हो सकता है-
(i) पूर्ति में वृद्धि (Increase in Supply)-(पूर्ति का दाईं ओर खिसकाव) यदि मांग DD स्थिर रहती है, पूर्ति SS होने की स्थिति में सन्तुलन E बिन्दु द्वारा सन्तुलन कीमत OP निर्धारित होती है। यदि पूर्ति की वृद्धि होती है तो पूर्ति वक्र S1S1 हो जाती है, इससे वस्तु की मात्रा OQ से OQ1 बढ़ जाएगी परन्तु कीमत OP से OP1 कम हो जाती है। इस प्रकार पूर्ति तथा मात्रा का सीधा सम्बन्ध तथा पूर्ति तथा कीमत का विपरीत प्रभाव पड़ता है।
(ii) पूर्ति में कमी (Decrease in supply) (पूर्ति का बाईं ओर खिसकाव) यदि मांग में परिवर्तन नहीं होता, परन्तु पूर्ति SS से कम होकर S1S1 हो जाती है तो पूर्ति की कमी से वस्तु की मात्रा OQ से घटकर OQ2 रह जाती है, परन्तु कीमत OP से बढ़कर OP2 हो जाएगी। इस प्रकार पूर्ति के बढ़ने से वस्तु की अधिक मात्रा बेची जाती है. परन्त पूर्ति बढ़ने से कीमत पर विपरीत प्रभाव होता है अर्थात् कीमत घट जाती है।
(iii) मांग तथा पूर्ति में साथ-साथ परिवर्तन (Simultaneous shifts in Demand & Supply)-मांग तथा पूर्ति में साथ-साथ परिवर्तन तीन तरह से हो सकता है(a) मांग तथा पूर्ति में समान अनुपात में वृद्धि (Increase in demand & supply in the same proportion)—यदि मांग तथा पूर्ति दोनों दाईं ओर एक ही अनुपात में खिसक जाती है तो इस स्थिति में कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता, परन्तु वस्तु की मात्रा में वृद्धि हो जाएगी, जैसे कि रेखाचित्र 25 में दिखाया है कि मांग DD से बढ़कर D1D1 हो जाती है तथा पूर्ति SS से बढ़कर S1S1 हो जाती है। मांग तथा पूर्ति में वृद्धि समान अनुपात पर होती है तो सन्तुलन कीमत OP स्थिर रहती है।
(b) यदि मांग में वृद्धि अधिक अनुपात में होती है (If demand increases in a larger proportion)-
मान लो मांग तथा पूर्ति दोनों में वृद्धि होती है, परन्तु पूर्ति की तुलना मांग में वृद्धि का अनुपात अधिक है तो इस स्थिति में कीमत के बढ़ने की प्रवृत्ति होती है। रेखाचित्र 26 में मांग में वृद्धि DD से D1D1 अधिक मात्रा में होती है, पूर्ति में वृद्धि SS से S1S1 मांग की तुलना में कम है। इसलिए सन्तुलन कीमत OP से OP1 निर्धारित हो जाती
(c) यदि पूर्ति में वृद्धि अधिक अनुपात में होती है (If supply increases in a larger proportion) यदि मांग तथा पूर्ति दोनों में वृद्धि होती है, परन्तु मांग में वृद्धि से पूर्ति में वृद्धि का अनुपात अधिक है तो इस स्थिति में कीमत घटने की प्रवृत्ति होगी। रेखाचित्र 27 में मांग तथा पूर्ति द्वारा सन्तुलन कीमत OP निर्धारित होती है तथा बाज़ार सन्तुलन E बिन्दु पर दिखाया गया है। मांग DD से D1D1 कम अनुपात में बढ़ती है, परन्तु पूर्ति SS से S1S1 अधिक अनुपात पर बढ़ती है। इससे कीमत OP1 हो जाएगी अर्थात् कीमत घटने की प्रवृत्ति होगी।
यदि मांग तथा पूर्ति कम हो जाते हैं तथा ऊपर दी व्याख्या के विपरीत परिवर्तन होता है-
- मांग तथा पूर्ति में समान अनुपात में कमी होने से सन्तुलन, कीमत समान रहती है।
- मांग में कमी, पूर्ति की कमी से अधिक अनुपात पर होती है तो सन्तुलन कीमत घटने की प्रवृत्ति रखती है।
- पूर्ति में कमी मांग की कमी से अधिक अनुपात पर होती है तो सन्तुलन कीमत बढ़ने की प्रवृत्ति रखती है।