Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम
Hindi Guide for Class 11 PSEB बुद्धम शरणम् गच्छामि Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘हम तुम’ कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में एक बेटी के माँ से प्यार की कथा कही गई है। विवाह हो जाने पर भी बेटी को अपनी माँ की स्नेहमयी मूर्ति की याद आती रहती है। वह यह याद करती है कि किस तरह वह अपनी माँ के आँचल में सुरक्षित रह कर बड़ी हुई है। किस प्रकार उसने हंसी-खुशी अपना बचपन बिताया है। उसकी माँ ने उसे हर मुसीबत से बचाया है। बड़ी होने पर एक अच्छा घर दिया है अर्थात् उसका विवाह किया है। वह आज भी अपनी माँ के प्यार भरे स्पर्श को याद करती है तथा उसकी गोद में सोना चाहती है।
प्रश्न 2.
कवयित्री ने अपने आपको किसकी प्रतिच्छाया कहा है और क्यों ?
उत्तर:
कवयित्री ने अपने आपको अपनी माँ की प्रतिच्छाया कहा है क्योंकि वह उसी के मूल से जन्मी थी। हर बेटी अपनी माँ का प्रतिरूप होती है। वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो जाए। वह माँ का आंचल नहीं छोड़ना चाहती।
प्रश्न 3.
कवयित्री आज भी अपनी माँ की गोद में क्यों सोना चाहती है ?
उत्तर:
कवयित्री आज भी अपनी माता की गोद में सोना चाहती है । क्योंकि जो सुख बेटी को अपनी माँ की गोद में सोकर मिलता है वह संसार में और कहीं नहीं मिलता। माँ की गोद में आकर वह सब कुछ भूल जाती है। इसलिए वह माँ की गोद में सोना चाहती है।
प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता में भावों की उदात्तता और तीव्रता है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में भाव तत्व की प्रधानता होने के कारण पाठकों का कवयित्री की भावना से सीधा तादातम्य स्थापित हो जाता है। कवयित्री ने पूरी कविता में बेटी द्वारा मातृभक्ति की अभिव्यक्ति बड़े अनूठे ढंग से प्रदान की है। एक बेटी सदैव माँ को प्रतिच्छाया होती है। इसलिए वह विवाह के बाद भी अपनी माँ के स्नेह को याद करती है और उसकी गोद में सिर रखकर सोने की इच्छा रखती है।
PSEB 11th Class Hindi Guide बुद्धम शरणम् गच्छामि Important Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘उषा आर० शर्मा’ का जन्म कब हुआ ?
उत्तर:
24 मार्च, 1953 में।
प्रश्न 2.
‘पिघलती साँकलें’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
उषा आर० शर्मा।
प्रश्न 3.
‘पिघलती साँकलें’ कविता में कवयित्री ने किसके लिए प्रेरित किया है ?
उत्तर:
रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़कर नवयुग के निर्माण के लिए।
प्रश्न 4.
मनुष्य को जागृत करने के लिए कवयित्री क्या करना चाहती है ?
उत्तर:
समाज में नई विस्फोटक क्रांति लाना चाहती है।
प्रश्न 5.
नई दुनिया में लोग कैसे रहेंगे ?
उत्तर:
मिलकर।
प्रश्न 6.
पुरानी परम्पराओं में बँधे मनुष्य के लिए कवयित्री क्या कहती है ?
उत्तर:
परमाणु विस्फोट करने को।
प्रश्न 7.
परमाणु विस्फोट के धमाके से ………… हिल जाए।
उत्तर:
धरती।
प्रश्न 8.
कवयित्री मानव को किससे मुक्त करवाना चाहती है ?
उत्तर:
पुरानी परम्पराओं से।
प्रश्न 9.
जब कोई रोक नहीं होगी तब मानव की ………. बदल जाएगी।
उत्तर:
प्रकृति।
प्रश्न 10.
मनुष्य को कब बदलना चाहिए ?
उत्तर:
युग परिवर्तन के साथ।
प्रश्न 11.
नवयुग के आगमन पर क्या आवश्यक है ?
उत्तर:
परिवर्तन।
प्रश्न 12.
मुंडेरों पर किसके बैठने की बात कही गई हैं ?
उत्तर:
कौए।
प्रश्न 13.
व्यस्तता की बेड़ियों में बँधा होने के कारण मानव के पास किस चीज़ के लिए समय नहीं हैं ?
उत्तर:
आत्म मंथन।
प्रश्न 14.
‘तुम-हम’ कविता की रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
उषा आर० शर्मा।
प्रश्न 15.
मनुष्य की सोच कब बदलेगी ?
उत्तर:
क्रांति आने पर।
प्रश्न 16.
बेटी अपनी माँ की क्या होती है ?
उत्तर:
परछाई।
प्रश्न 17.
बेटी किसे कभी नहीं भूलती ?
उत्तर:
अपनी माँ, उसकी गोद, ममता तथा घर को।
प्रश्न 18.
बेटी का अपना घर कब होता है ?
उत्तर:
विवाह के बाद।
प्रश्न 19.
आज भी बेटी की क्या इच्छा है ?
उत्तर:
बचपन की भाँति माँ की गोद में छिप जाए।
प्रश्न 20.
पुत्री की माँ क्या सपना देखती है ?
उत्तर:
पुत्री के विवाह का।
बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कवयित्री का जन्म किस परिवार में हुआ था ?
(क) सैनिक
(ख) देशभक्त
(ग) किसान
(घ) वीर।
उत्तर:
(क) सैनिक
प्रश्न 2.
‘पिघलती साँकले’ कविता में कवयित्री किसके निर्माण के लिए प्रेरित करती है ?
(क) आधुनिक युग के
(ख) नवयुग के
(ग) प्राचीन युग के
(घ) धर्मयुग के ।
उत्तर:
(ख) नवयुग के
प्रश्न 3.
इस कविता में कवयित्री किन परंपराओं को तोड़ना चाहती है ?
(क) प्राचीन
(ख) रूढ़िवादी
(ग) प्राचीन और रूढ़िवादी
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) प्राचीन और रूढ़िवादी
प्रश्न 4.
नवयुग के आगमन हेतु क्या आवश्यक है ?
(क) परिवर्तन
(ख) अपरिवर्तन
(ग) नियम
(घ) नीति।
उत्तर:
(क) परिवर्तन।
पिघलती साँकलें सप्रसंग व्याख्या
1.व्यस्तताओं की बेड़ियों
में बंधे
इन्सानों के पास
समय कहाँ है
आत्म-मंथन के लिए
कुण्डली मारे
सुषुप्त शेषनाग की
कौन करे निंद्रा भंग
मुंडेरों पर बैठे
कागों की चहकन
नहीं है पर्याप्त।
कठिन शब्दों के अर्थ :
आत्ममंथन-अंत:करण के अनेक भावों पर विचार करना। सुषुप्त = सोये हुए। चहकन = प्रसन्नता। पर्याप्त = काफ़ी।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘पिघलती साँकलें’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने प्राचीन एवं रूढ़िवादी परम्पराओं के पिघलने की बात कही है क्योंकि
नवयुग के आगमन पर परिवर्तन ज़रूरी है।
व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि आज मनुष्य इतना व्यस्त हो गया है कि उसके पास, व्यस्तता की बेड़ियों में बंधा होने पर आत्ममंथन के लिए समय ही नहीं है। वह चाहकर भी सोचने-समझने के लिए समय नहीं निकाल पाती। नवयुग के आगमन पर परिवर्तन जरूरी है। परन्तु मनुष्य को कुण्डली मारे शेषनाग की तरह उसकी निद्रा कौन भंग करे, उसके लिए मुंडेरों पर बैठे कौओं का चहचहाना, काँव-काँव करना ही काफ़ी नहीं होगा बल्कि इसके लिए क्रान्ति करनी होगी। कुछ नया करना होगा।
विशेष :
- कवयित्री का भाव यह है कि मनुष्य को युग परिवर्तन के साथ बदलना चाहिए। कौवों की आवाज़ को ‘चहकना’ कह कर कवयित्री ने व्यंग्य किया है।
- मनुष्य को जगाने के लिए अर्थात् उन्हें उनके अधिकार और दायित्व याद दिलाने के लिए कौओं की चहकन ही पर्याप्त नहीं है। उसके लिए क्रांति चाहिए।
- भाषा सरल एवं सहज है।
- तत्सम शब्दों की अधिकता है।
2. आवश्यकता है
किसी मर्मभेदी
परमाणु विस्फोट की
जिसके हंगामे मात्र से
आलोड़ित हो जाए
सारा ब्रह्मांड।
तब स्वयं ही
पिघल जाएंगी
गुस्ताख सांकलें
नहीं रहेगा कहीं
कोई प्रतिबंध।
कठिन शब्दों के अर्थ :
मर्मभेदी = किसी नाजुक (कोमल) स्थान को छेदने वाला। विस्फोट = धमाका। हंगामा = शोर। आलोड़ित होना = हिल जाना। ब्रह्मांड = संपूर्ण सृष्टि। गुस्ताख = ढीठ, बेअदब । प्रतिबंध = रोक। सांकले = जंजीरें।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘पिघलती साँकलें’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री पुरानी परम्पराओं में बंधे मनुष्य को नवयुग के लिए जागृत करने के लिए एक परमाणु विस्फोट के लिए कहती है
व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि प्राचीन परम्पराओं और रूढ़ियों को बदलने के लिए किसी मर्मभेदी परमाणु धमाके की ज़रूरत है। ऐसा धमाका जिसके शोर से सारी सृष्टि हिल जाए। तब अपने आप परम्परा एवं रूढ़ियों की ये ढीठ जंजीरें पिघल जाएँगी। तब कोई, किसी किस्म की रोक नहीं रहेगी अर्थात् मनुष्य की प्रकृति बदल जाएगी। वह भी नवयुग के साथ चलना सीख जाएगा।
विशेष :
- कवयित्री मनुष्य को पुरानी परम्पराओं से मुक्त करवाना चाहती है। मनुष्य को जागृत करने के लिए वह समाज में नई विस्फोटक क्रांति लाना चाहती है।
- भाषा परिपक्व तथा आलंकारिक है।
- तत्सम शब्दावली के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग है।
3. इत्मिनान रखो
तब पहचानेगा
इन्सान
इन्सान को
उदय होगा
एक नया सूर्य
और करेंगे
हम पदार्पण
एक नई दुनिया में।
कठिन शब्दों के अर्थ :
इत्मिनान = भरोसा। पदार्पण = कदम रखना।
प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘पिघलती साँकलें’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री मानव-चेतना जागृत होने पर नए सवेरे के होने का वर्णन करती हैं।
व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि दुनिया को हिलाकर रख देने वाला धमाका होने पर इस बात का भरोसा रखो कि तब मानव मानव को पहचानेगा, उसमें मानवीय भाव जागृत होंगे। तब एक नया सूर्य उदय होगा और हम एक नई दुनिया में कदम रखेंगे। सभी मनुष्य समान रूप से नई दुनिया में मिलकर रहेंगे।
विशेष :
- कवयित्री का भाव यह है कि क्रांति आने पर मनुष्य की सोच बदलेगी।
- नई सोच के साथ मनुष्य आपसी भेदभाव को भुलाकर सबको समान समझने लगेगा।
- भाषा परिपक्व तथा आलंकारिक है।
- तत्सम शब्दावली के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग है।
- अनुप्रास अलंकार है।
तुम-हम सप्रसंग व्याख्या
1. तुम्हारे मूल से उपजी
तुम्हारी प्रतिच्छाया
-मैं
बढ़ी, पली और
कब जवान हो गई
मुझे पता ही न चला।
तुम मेरा छतनारा
दरख्त रहीं-
जिसकी छाँव तले
मैं कलोल करती
कब सयानी हो गई
मुझे पता ही न चला।
कठिन शब्दों के अर्थ :
प्रतिच्छाया = प्रतिरूप, प्रतिबिम्ब, प्रतिभा। छतनारा = जिस वृक्ष की शाखाएँ छत की तरह दूर-दूर तक फैली हों। कलोल = उछल-कूद, शरारतें।
प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम-हम’ में से लिया गया है। इसमें कवयित्री ने अपनी मातृ-भक्ति अनूठे ढंग से प्रस्तुत की है।
व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे माँ! मैं तुम्हारे मूल से ही जन्मी हूँ और तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ। तुम्हारी गोद में मैं पली बढ़ी हुई और कब जवान हो गई इसका मुझे पता ही न चला कि मैं तुम्हारी छाया हूँ।
कवयित्री कहती है कि तुम मेरा छतनारा वृक्ष बन कर रही जिसकी छाया तले मैं शरारतें करती फिरती थीं। कब मैं सयानी हो गई इसका मुझे पता ही न चला। तुम्हारी छाया में मैं कब बड़ी हो गई मुझे पता नहीं चला।
विशेष :
- कवयित्री का भाव यह है कि बेटी माँ का रूप होती है। वह उसकी छाया में सुरक्षित रहती है।
- माँ बेटी के लिए वह वृक्ष है जिसमें वह पल कर बड़ी होती है।
- भाषा अत्यंत सरल तथा सहज है।
- तत्सम और फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग है।
- अनुप्रास अलंकार है।
2. तुम्हारे पंखों ने दी
सदा गरमाहट मुझे
और बचाये रखा
हर मुसीबत से
कब बदल गए
मेरे रोयें पंखों में
मुझे पता ही न चला।
कठिन शब्दों के अर्थ : रोयें = नर्म-नर्म बाल।
प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा रचित कविता ‘तुम-हम’ में से ली गई हैं। इनमें कवयित्री माँ की तुलना उस पक्षी से करती है जो अपने चूजों को बड़े प्यार से बड़ा करती है।
व्याख्या :
कवयित्री अपनी माँ की तुलना एक पक्षी से करती हुई कहती है कि तुम्हारे पंखों ने मुझे सदा गरमाहट दी और अपने पंखों की ओट देकर तुमने मुझे हर मुसीबत से बचाए रखा। इसी दौरान मेरे शरीर नर्म-नर्म बाल रोयें, कब पंखों में बदल गए। मैं बड़ी हो गई मुझे पता ही न चला।
विशेष :
- माँ कोई भी हो वह अपने बच्चों की सदैव रक्षा करती है।
- माँ की बाँहों में बच्चे कब बड़े हो जाते हैं, पता भी नहीं चलता।
- भाषा अत्यन्त सरल है।
- तत्सम तथा फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग है।
3. एक दिन
तुमने
मेरा अलग
एक सुन्दर-सा
घौंसला
बना दिया
मैं उसमें
कैसे रम गई
मुझे पता ही न चला।
कठिन शब्दों के अर्थ :
घौंसला = घर। रम गई = लीन हो गई, मस्त हो गई।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम हम’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री माँ द्वारा उसके बड़े होने पर विवाह करने का वर्णन करती है।
व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे माँ! एक दिन तुमने मेरा अलग सुन्दर–सा घर बना दिया। मेरी शादी कर दी। मैं उस नए घर में कैसे रम गई प्रसन्नता में भर कर लीन हो गई मुझे पता ही न चला। बेटी के बड़े होने पर माँ उसकी शादी कर देती है तथा उसे ससुराल को अपना घर मानकर उसमें रमने की शिक्षा देती है।
विशेष :
- कवयित्री का भाव यह है कि प्रत्येक माँ अपनी बेटी के विवाह का सपना देखती है।
- माँ यह चाहती है कि उसकी बेटी का भी अपना घर हो जिसमें उसके लिए प्रत्येक खुशियाँ मिलें। बेटी कब ससुराल में घुल मिल जाती है उसे पता भी नहीं चलता।
- भाषा अत्यन्त सरल है।
- उपमा अलंकार है।
4. पर मन अब भी
उड़-उड़ जाता है
पुराने घौंसले में
और मैं महसूस
करती रहती हूँ
सदैव तुम्हारे
स्नेहिल स्पर्श को।
कठिन शब्दों के अर्थ : स्नेहिल स्पर्श = प्यार भरा स्पर्श।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम-हम’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री एक विवाहित बेटी का माँ के प्रति प्यार प्रकट करती है।
व्याख्या :
कवयित्री अपने मायके के घर को याद करती हुई कहती है कि विवाह हो जाने पर एक सुन्दर-सा घर मिल जाने पर मेरा मन अब भी पुराने घर, मायके की ओर उड़-उड़ जाता है। मुझे मायके की बहुत याद आती है और मैं सदा, हे माँ तुम्हारे प्यार भरे स्पर्श को महसूस करती हूँ। ससुराल में रहते हुए भी मुझे अपनी माँ की बहुत याद आती है।
विशेष :
- कवयित्री का भाव यह है कि विवाह के बाद भी बेटी अपनी माँ के घर से जुड़ी रहती है।
- ससुराल में रम जाने के बाद भी बेटी माँ के प्यार भरे स्पर्श को सदैव याद रखती है।
- भाषा अत्यन्त सरल है।
- तत्सम शब्दावली है।
- अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग है।
5. तुम फैलाए रखो
यूँ ही
अपना आँचल
आसमान की तरह
जिसे मैं
जब चाहे
ओढ़ लूँ
और
थक-मांद कर
आऊँ तुम्हारी आगोश में
तो बालों में
फेरती हुई
अपनी उँगलियाँ
तुम सुला लेना
मुझे अपनी गोद में।
कठिन शब्दों के अर्थ : आगोश = गोद।
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम-हम’ से ली गई हैं इन पंक्तियों में कवयित्री अपनी माँ की गोद में सोने की बात करती है।
व्याख्या :
कवयित्री अपनी माँ से प्रार्थना करते हुए कहती है कि हे माँ! तुम अपने आंचल को आसमान की तरह इसी तरह फैलाए रखना कि जिसे मैं जब चाहूं ओढ़ लूं और जब कभी थक-हार कर तुम्हारी गोद में आऊँ तो तुम मेरे बालों में उँगलियां फेरते हुए मुझे अपनी गोद में सुला लेना। बेटी शादी के बाद भी माँ की गोद को छोड़ना नहीं चाहती। वह सदैव अपनी माँ की गोद का स्पर्श पाना चाहती है।
विशेष :
- कवयित्री का भाव यह है कि जीवन के हर मोड़ पर सुख-दुख में हर बेटी अपनी माँ को याद करती है तथा उसकी गोद में सिर रखकर सब कुछ भुला देना चाहती है।
- माँ का आँचल बेटी के लिए प्यार और सुरक्षा का कवच है।
- भाषा अत्यन्त सरल है।
- तत्सम और फ़ारसी शब्दावली है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- ‘थक-मांद’ में समासात्मक शैली का प्रयोग है।
पिघलती साँकलें, तुम-हम Summary
जीवन-परिचय
श्रीमती उषा आर० शर्मा स्वतंत्र भारत की उदीयमान हिन्दी कवयित्रियों में से एक हैं। इनका जन्म मुम्बई में 24 मार्च, सन् 1953 में एक सैनिक परिवार में हुआ। पिता का सेना में होने के कारण बार-बार तबादला होता था इसलिए इनकी पढ़ाई विभिन्न प्रांतों में हुई। विद्यार्थी जीवन से ही इन्हें संगीत, नाटक तथा प्रकृति से प्रेम था। इन्होंने प्रभाकर के उपरान्त दर्शन शास्त्र तथा लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर स्तर की परीक्षा विशिष्टता के साथ उत्तीर्ण की। इनका भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की प्रतियोगिता में चयन हुआ। इन्होंने अपना कार्य बड़ी कर्मठता से किया। परन्तु संवेदनशील मन के कारण इन्होंने लेखन कार्य आरम्भ किया। इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जीवन में मानवीय संत्रास, यंत्रणा घातों-प्रतिघातों को एक सशक्त अभिव्यक्ति दी है। इनकी रचनाएँ एक वर्ग आकाश (कविता संग्रह 1999)। पिघलती साँकलें (कविता संग्रह 1999) भोजपत्रों के बीच (एक कविता संग्रह) तथा ‘क्यों न कहूँ’ कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। ‘भोज पत्रों के बीच’ भाषा विभाग पंजाब द्वारा पुरस्कृत हुई। इनके लेखन के लिए पंजाब हिन्दी साहित्य द्वारा ‘वीरेन्द्र सारस्वत सम्मान’ आपको सम्मानित किया गया। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित पंजाब की आधुनिक हिन्दी कविता में इनकी सात कविताएँ प्रकाशित हैं।
पिघलती साँकलें कविता का सार
‘पिघलती साँकलें’ की कवयित्री श्रीमती उषा आर० शर्मा है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री मनुष्य को प्राचीन और रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़कर नवयुग के निर्माण के लिए प्रेरित कर रही है। मनुष्य को पुरानी मान्यताओं से बाहर निकालने के लिए कौओं की आवाज़ ही पर्याप्त नहीं है अपितु एक ऐसे धमाके की आवश्यकता है जिससे मानव मानव पहचान कर एक नई दुनिया का निर्माण करेगा। उस दुनिया में सब मिलकर रहेंगे।
तुम-हम कविता का सार
‘तुम-हम’ कविता की कवयित्री श्रीमती उषा आर० शर्मा हैं। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने एक बेटी के द्वारा मातृ-भक्ति को बहुत ही अनूठे ढंग से अभिव्यक्त किया है। बेटी सदैव अपनी माँ की परछाई होती है। वह अपनी माँ की ममता, गोद और घर को कभी नहीं भूलती। विवाह के बाद बेटी का अपना घर हो जाता है जहाँ पर सभी काम वह बड़े ही अच्छे ढंग से पूरे करती है, परन्तु वह अपनी माँ की गोद को नहीं भूल पाती। आज भी उसकी इच्छा है कि वह बचपन की तरह माँ की गोद में छिप जाए और माँ उसे हर मुसीबत से बचाकर बाँहों में समेट ले। बेटी बड़ी होकर भी माँ की गोद से बाहर निकलना ही नहीं चाहती।