PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

Hindi Guide for Class 11 PSEB बुद्धम शरणम् गच्छामि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘जो किसी भी पंक्ति में शामिल नहीं है’ में कवि ने किन लोगों की ओर इशारा किया है ? उनके लिए कवि ने क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने वर्गहीन-जो न अमीरों में शामिल हैं न ग़रीबों में-की ओर संकेत किया है। कवि प्रार्थना करता है कि सूर्य की रौशनी उनके कीचड़ भरे आँगन में भी उतरे क्योंकि सूर्य की धूप किसी एक की मलकियत नहीं है। उस पर सबका अधिकार है।

प्रश्न 2.
पक्षियों के लिए कवि क्या कामना करता है ?
उत्तर:
कवि प्रार्थना करता है कि आने वाले वर्ष में कोई भी चिड़िया (पक्षी) प्यास के कारण दम न तोड़े। हर पक्षी को अपना जीवन व्यतीत करने के लिए उचित स्थान और उपयुक्त भोजन प्राप्त हो। लोगों के मन में उनके प्रति हिंसा का भाव न हो।

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प्रश्न 3.
सदियों पुरानी हमारी विरासत से जुड़े शब्दों से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कवि का अभिप्राय यह है कि सदियों पुरानी हमारी विरासत से जुड़े ये शब्द से लोगों में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो और बुद्धम् शरणम् गच्छामि का अनहद नाद लोगों के हृदय में एक बार फिर गूंज उठे।

प्रश्न 4.
‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि का अनहद नाद एक बार से प्राणों में गूंजे’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि का आशय यह है कि लोगों के हृदय में अहिंसा की भावना फिर से जागृत हो जाए और वे इस भाव को अपने आचरण में शामिल कर लें।

प्रश्न 5.
इस कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में ‘सब का भला’ करने की प्रार्थना की गई है ताकि मनुष्य, पशु-पक्षी और वनस्पतियाँ खुशियों से भर जाएं। लोगों में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो। लोग फिर बुद्धम् शरणम् गच्छामि का अनहद नाद करें तथा लोगों के हृदय में इसका वास हो।

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PSEB 11th Class Hindi Guide बुद्धम शरणम् गच्छामि Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभाष रस्तोगी का जन्म कब और कहाँ हआ था ?
उत्तर:
सुभाष रस्तोगी का जन्म 17 अक्तूबर 1950 को अम्बाला छावनी में हुआ था!

प्रश्न 2.
‘बुद्धम शरणम् गच्छामि’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
सुभाष रस्तोगी की।

प्रश्न 3.
‘बुद्धम शरणम् गच्छामि’ सुभाष रस्तोगी के किस काव्य संग्रह से ली गई है ?
उत्तर:
समय के सामने।

प्रश्न 4.
कविता में कवि ने क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर:
जो रस वर्ष घटा है वह अगले वर्ष न हो।

प्रश्न 5.
कवि मानव में किस भावना को जगाना चाहता है ?
उत्तर:
वसुदैव कुटुम्बकम की भावना।

प्रश्न 6.
कवि ने कविता में किस अनहद नाद की बात की है ?
उत्तर:
बुद्धम शरणम् गच्छामि।

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प्रश्न 7.
कवि ने पक्षियों के लिए ……….. की है।
उत्तर:
प्रार्थना।

प्रश्न 8.
कवि सभी के लिए ………… माँग रहा है।
उत्तर:
खुशियाँ।

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार धूप किस सी …….. न बने।
उत्तर:
जायदाद।

प्रश्न 10.
कवि के अनुसार बीते वर्ष में …………. आई थी।
उत्तर:
बहत आपदाएँ।

प्रश्न 11.
कवि ईश्वर से मनुष्य को क्या देने की बात करता है ?
उत्तर:
सद्बुद्धि।

प्रश्न 12.
मनुष्य में दूसरे मनुष्य के लिए …………. पनपना चाहिए।
उत्तर:
प्यार, विश्वास एवं त्याग की भावना।

प्रश्न 13.
पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी लोग ………….. न हो।
उत्तर:
बेघर।

प्रश्न 14.
कवि मानव जीवन में फिर से क्या देखना चाहता है?
उत्तर:
बीती हुई खुशियों को।

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प्रश्न 15.
कवि वनस्पतियों के लिए क्या प्रार्थना करता है ?
उत्तर:
खूब फले-फूलें।

प्रश्न 16.
मनुष्य भटकना छोड़कर …………. प्राप्त करे।
उत्तर:
अपनी मंज़िल।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सुभाष रस्तोगी किस कविता के प्रसिद्ध कवि हैं ?
(क) समकालीन
(ख) भक्ति
(ग) प्राचीन
(घ) आधुनिक।
उत्तर:
(क) समकालीन

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प्रश्न 2.
‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ कविता के लेखक कौन हैं?
(क) सुभाष रस्तोगी
(ख) दुष्यन्त कुमार
(ग) सुभाष भारती
(घ) उषा आर० शर्मा।
उत्तर:
(क) सुभाष रस्तोगी

प्रश्न 3.
बुद्धम् शरणम् गच्छामि किस विधा की रचना है ?
(क) कविता
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक।
उत्तर:
(क) कविता

प्रश्न 4.
कवि मानव में किस भावना को जगाना चाहता है ?
(क) प्रेम
(ख) विरह
(ग) वसुदैव कुटुम्बकम
(घ) देव।
उत्तर:
(ग) वसुदैव कुटुम्बकम ।

बुद्धम् शरणम् गच्छामि सपसंग व्याख्या

1. यही प्रार्थना है
कि इस बरस हुआ जो
वह अगले बरस न हो!
धूप-
किसी एक की मिलकियत न बने
सूरज-
उनके कीच-भरे आँगन में भी उतरे
जो किसी भी पंक्ति में
शामिल नहीं हैं
हर खेत को पानी
हर हाथ को काम मिले
झोपरपट्टी में भी
पीपल की बन्दनवार सजे
यही प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मिलकियत = जागीर, जायदाद, वह चीज़ जिस पर मालकाना हक हो। बन्दनवार = सजावटी दरवाज़े।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री सुभाष रस्तोगी के काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने सब की भलाई की कामना करते हुए लोगों में आपसी प्रेम-प्यार और भाईचारे की भावना जागृत होने की प्रार्थना की है।

व्याख्या :
कवि प्रार्थना करते हुए कहता है कि इस वर्ष जैसा हुआ वैसा अगले वर्ष न हो। धूप किसी की जायदाद न बने और सूरज भी उन लोगों के कीचड़ भरे आंगन में खिले जो किसी भी वर्ग में शामिल नहीं है। हर खेत को पानी मिले, हर हाथ को काम मिले न कोई भूखा-प्यासा रहे न कोई बेरोज़गार। झोंपड़पट्टी में भी सजावटी दरवाज़े सजें ; वहाँ भी पीपल की वंदन वार रूपी पवित्रता और शोभा बनी रहे। वहां भी खुशियां छा जाएं यही प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ वह अगले वर्ष में न हो।

विशेष :

  1. कवि सभी के लिए खुशियाँ माँग रहा है।
  2. कवि कहता है कि इस वर्ष सभी भेद-भाव भुलाकर, अमीर-गरीब की दीवार हटाकर ईश्वर सभी को खुशियाँ दें।
  3. भाषा सहज तथा सरल है।
  4. तत्सम, फ़ारसी शब्दों का प्रयोग है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।

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2. कोई चिरैया
प्यास से दम न तोड़े
हर पंथी को छाँव
हर पाँव को ठाँव मिले
घुप्प अँधेरे में
कोई कंदील जले
और सब-कुछ रोशन हो जाये
समय का बायस्कोप
इस बरस तो कम-से-कम
हत्या, आगज़नी और बलात्कार
अकाल
प्रकृति के ताण्डव
और आदमी को
आदमी का निवाला बनने के दृश्य
न दिखाये
यही प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे

कठिन शब्दों के अर्थ :
चिरैया = चिड़िया। ठाँव = ठिकाना। कंदील = दीप, लालटेन। बायस्कोप = परदे पर चलते-फिरते चित्र दिखाने वाला एक यन्त्र। आगजनी = आग लगाना। ताण्डव = विनाश। निवाला = ग्रास।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सुभाष रस्तोगी के काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से लिया गया है। कवि सभी प्राणियों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है कि यह वर्ष पिछले वर्ष की अपेक्षा अच्छा गुजरे।

व्याख्या :
कवि मनुष्यों की ही नहीं सब प्राणियों की भलाई की प्रार्थना करते हुए कहता है कि मेरी यह प्रार्थना है कि कोई भी चिड़िया प्यास के कारण दम न तोड़े। प्रत्येक मुसाफ़िर को छाया मिले और हर पाँव को ठिकाना मिले; उसे अपनी मंजिल की प्राप्ति हो। घुप्प अन्धेरे में कोई शोभा से युक्त दीप जले और जिससे समय का बायस्कोप रोशन हो जाए। इस वर्ष तो कम-से-कम हत्या, आग लगाने और बलात्कार की घटना न घटे और यह बायस्कोप प्रकृति के विनाशकारी रूप तथा आदमी को आदमी का ग्रास बनने के दृश्य न दिखाये। यही प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ वह अगले वर्ष में न हो।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि बीते वर्ष में बहुत प्राकृतिक आपदाएं आई हैं जिसमें बहुत नुकसान उठाना पड़ा है। परन्तु इस वर्ष ऐसा कुछ न हो।
  2. कवि ईश्वर से मनुष्य को भी सद्बुद्धि देने की बात करता है जिससे वह बुराइयों, आतंकी सोच से दूर रहे।
  3. भाषा सरल तथा सहज है।
  4. तत्सम, फ़ारसी और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।
  5. उपमा, अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

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3. इस बरस तो
आदमी-
विश्वास
प्रार्थना
भलाई
अहिंसा
तप-त्याग
सहिष्णुता
और वसुधैव कुटुम्बकम् जैसे
सदियों पुरानी हमारी विरासत से जुड़े शब्द
कम-से-कम
नई सदी में तो
हमारे आचरण में फिर से लौटें
और बुद्धम शरणम् गच्छामि का अनहद नाद
एक बार फिर से
प्राणों में गूंजे
यही प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे।

कठिन शब्दों के अर्थ :
सहिष्णुता = सहनशीलता। वसुधैव कुटुम्बकम् = सारा विश्व एक परिवार है। विरासत = उत्तराधिकार में मिलने वाला माल, विरसा, मीरास। अनहद नाद = योगियों को सुनाई देने वाली आन्तरिक ध्वनि-ओइम।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इनमें कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि चारों ओर वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो।

व्याख्या :
कवि प्रार्थना करते हुए कहता है कि इस वर्ष तो आदमी में विश्वास, प्रार्थना, भलाई, अहिंसा, तप-त्याग, सहनशीलता और सारा विश्व एक परिवार हो की भावना जागृत हो। जैसे सैंकड़ों वर्ष पुरानी हमारी विरासत से जुड़े शब्द नई सदी में तो कम-से-कम हमारे आचरण में लौट आएं और ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि (मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ।) का अनहद नाद (योगियों को सुनाई देने वाली आन्तरिक ध्वनि जैसे ‘ओ३म्’)। एक बार फिर प्राणों में गूंज उठे। मेरी यही प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ अगले वर्ष न हो।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि मनुष्य में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो।
  2. मनुष्य में दूसरे मनुष्य के लिए प्यार, विश्वास, त्याग की भावना पनपे। जिससे वह अच्छे समाज का निर्माण कर सके।
  3. भाषा सहज और सरल है।
  4. तत्सम प्रधान शब्दावली है।
  5. उपमा अलंकार है।

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4. नई सदी में तो धरती
कम-से-कम
हमारे कपट-तन्त्र से कलंकित न होवे
धरती के सुजलाम् सुफलाम्
और शस्यश्यामलाम् होने के पुराने दिन
फिर से लौटें

कठिन शब्दों के अर्थ :
सुजलाम् = जल से परिपूर्ण। सुफलाम् = फलों से भरपूर । शस्यश्यामलाम् = फसल से भरपूर।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बद्धम शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इनमें कवि पुराने दिनों को याद करते हुए उनके वर्तमान में फिर से आने की प्रार्थना करता है

व्याख्या :
कवि नई सदी में धरती के पुराने दिन लौट आने की प्रार्थना करते हुए कहता है कि कम-से-कम नई सदी में धरती हमारे छल-कपट से कलंकित, दूषित न हो उसके वही पुराने दिन सुजलाम (जल से परिपूर्ण), सुफलाम् (फलों से भरपूर) और शस्यश्यामलम् (फसल से भरपूर) होने के दिन लौट आवें अर्थात् चारों ओर खुशहाली छा जाए।

विशेष :

  1. कवि बीती हुई खुशियों को मानव जीवन में फिर से देखना चाहता है।
  2. कवि धरती को पाप मुक्त करना चाहता है जिससे फिर से धरती हरी-भरी हो जाए।
  3. भाषा सरल तथा सहज है तत्सम प्रधान शब्दावली है।
  4. अनुप्रास और उपमा अलंकार है।

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5. यही प्रार्थना है
कि पिछले बरस की तरह
इस बरस
हज़ारों लोग बेघर न हों
और आदमज़ात की
कौड़ियों सरीखी बेजान आँखों के
पेड़ों पर चिपकने के दृश्य
काल-देवता
अगले बरस न दिखाये
अन्न के दाने-दाने को/आदमी न तरसे

कठिन शब्दों के अर्थ :
आदमज़ात = मनुष्य जाति। काल-देवता = समय का देवता!

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी के काव्य-संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि इस वर्ष सभी लोग अपने घरों में रहे और उन्हें भर पेट भोजन मिलें। . व्याख्या-कवि प्रार्थना करता हुए कहता है कि पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी हज़ारों लोग बेघर न हों और मनुष्यों की कौड़ियों जैसी बेजान आँखों के पेड़ों पर चिपकने के दृश्य न दिखाई दें अर्थात् बेघर होने से उनकी सपनों से भरी आँखें बेजान होकर एक ही दिशा में देखने लगती हैं। हे समय के देवता अगले वर्ष न दिखाना कि अन्न के दानेदाने को आदमी तरस रहे हैं। सभी को भरपेट भोजन मिलें।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि बीते वर्षों की तरह इस वर्ष लोग अपने घरों से बेघर न हो। बेघर होने पर लोगों के घर-सम्बन्धी सपने टूट जाने पर वे एक लाश के समान हो जाते हैं।
  2. इस वर्ष सभी लोगों को खाने के लिए भोजन मिले। भाषा सरल है। तत्सम, फारसी, और अरबी शब्दावली है। रूपक, पुनरुक्ति अलंकार विद्यमान है।

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6. वनस्पतियाँ
खूब फले-फूलें
नई सदी में/सब
खुशियों के हिंडोले में झूलें
सुबह-
मंगलगान-सी जीवन में उतरे
और साँझ-
सबकी सलामती की दुआ माँगती हुई
हर अँधियारे कोने में
उजाले का एक अन्तरीप रचे
और हर थके पाँव को
मंज़िल मिले
यह प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे !

कठिन शब्दों के अर्थ :
हिंडोले = झूले। सलामती = सुरक्षा । दुआ = प्रार्थना। अन्तरीप = भूमि का नुकीला भाग जो समुद्र में दूर तक चला गया हो। .

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इसमें कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि मनुष्य, पशु-पक्षी और वनस्पति सभी को खुशियाँ मिलें।

व्याख्या :
कवि प्रार्थना करते हुए कहता है कि नई सदी में सभी वनस्पतियाँ खूब फले-फूलें और सभी खुशियों के झूले में झूलें। सबके लिए सुबह मंगलगान-सी जीवन में उतरे और संध्या सबकी सुरक्षा की प्रार्थना करती हुई आए। प्रत्येक अन्धेरे कोने में उजाले का एक टापू रचा जाए। प्रत्येक थके हुए पाँव को मंजिल मिले। यह प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ वह अगले वर्ष में न हो।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि इस वर्ष चारों ओर खुशी का वातावरण हो। कहीं भी दुःख का सवेरा नहीं होना चाहिए।
  2. प्रत्येक मुसाफिर अर्थात् मनुष्य भटकना छोड़कर अपनी मंजिल प्राप्त करे। भाषा सरल है। तत्सम, फ़ारसी तथा अरबी शब्दावली का प्रयोग किया गया है। उपमा, अनुप्रास अलंकार विद्यमान है।

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बुद्धम् शरणम् गच्छामि Summary

बुद्धम् शरणम् गच्छामि जीवन-परिचय

सुभाष रस्तोगी समकालीन कविता के एक जाने-माने कवि हैं। इनका जन्म 17 अक्टूबर, सन् 1950 ई० को अम्बाला छावनी में हुआ। इन्होंने हिन्दी में एम० ए० तथा पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की है। इनकी कविता के साथ-साथ साहित्य की अन्य विधाओं जैसे कहानी, उपन्यास, जीवनी तथा साक्षात्कार आदि में भी इनकी अच्छी पकड़ है। इनकी मुख्य रचनाएं तथा अन्य उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं काव्य संग्रह-टूटा हुआ आदमी और जीवन छला गया, अग्नि देश, वक्त की साजिश, कत्ल सूरज का, बयान मौसम का, अपना-अपना सच, तपते हुए दिनों के बीच, कठिन दिनों में, अंधेरे में रोशन होती चीजें।

कहानी संग्रह-ठहरी हुई जिंदगी, एक लड़ाई-चुपचाप। उपन्यास-काँच घर, टूटे सपने। साक्षात्कार-संवाद निरंतर। जीवनी-क्रांतिकारी भगतसिंह, रवीन्द्रनाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अमर क्रांतिकारी सुखदेव।

उन्हें ‘कत्ल सूरज का’ के लिए 1980-81 में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा, तपते हुए दिनों के बीच 1987-88 में, बयान मौसम का 1991-92 में तथा 1994-95 में क्रांतिकारी भगतसिंह (जीवनी) के लिए प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में कहानियों तथा कविताओं पर एम० फिल० हेतु शोधकार्य सम्पन्न किया। आजकल ये भारत सरकार के एक कार्यालय में सेवारत तथा स्वतंत्र लेखन कार्य में लगे हुए हैं तथा साहित्य की सेवा कर रहे हैं।

बुद्धम् शरणम् गच्छामि कविता का सार

‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ कविता सुभाष रस्तोगी द्वारा रचित ‘समय के सामने’ कविता संग्रह में ली गई है। इस कविता में कवि ने प्रार्थना की है कि इस वर्ष मानव के जीवन में जो घटा है वह अगले वर्ष नहीं चाहिए। प्रत्येक को सभी प्रकार की सुविधाएं मिलनी चाहिए जैसे रोज़गार, अनाज, सभी की सलामती, खेतों में हरियाली तथा खुशी मिलें। अगले वर्ष लोगों के जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार दूर होकर, ज्ञान-रूपी प्रकाश फैले। कवि ने पक्षियों के लिए भी प्रार्थना की है कि उन्हें भी कहीं न कहीं ठिकाना मिलें। लोगों में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो और बुद्धम् शरणम् गच्छामि अनहद नाद एक बार फिर से लोगों के हृदय में गूंजे।

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