PSEB 11th Class History Solutions Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न-
जीते हुए प्रदेशों की व्यवस्था के सन्दर्भ में महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति के उत्थान और विजयों की चर्चा करें।
उत्तर-
1792 ई० में महाराजा रणजीत सिंह के पिता महा सिंह की मृत्यु हो गई। महाराजा रणजीत सिंह उस समय अवयस्क था। इसीलिए शुकरचकिया मिसल की बागडोर 1796 ई० तक उसकी माता राज कौर तथा दीवान लखपत राय के हाथों में रही। 1796 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की सास सदा कौर ने भी इस मिसल के शासन प्रबन्ध में महत्त्वपूर्ण भाग लिया। परन्तु 1797 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने शासन का सारा कार्यभार स्वयं सम्भाल लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने जिस समय शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली तब उसके अधीन गुजरांवाला, वज़ीराबाद, पिंड दादन खां और कुछ अन्य गांव थे। परन्तु कुछ ही समय में उसने लगभग सारे पंजाब पर अधिकार कर लिया। उसकी विजयों का वर्णन इस प्रकार है

शक्ति का उत्थान एवं विजयें-

1. लाहोर तथा सिक्ख-मुस्लिम संघ पर विजय-महाराजा रणजीत सिंह ने सबसे पहले लाहौर पर विजय प्राप्त की। उस समय लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सातारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसलिए उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। महाराजा रणजीत सिंह ने शीघ्र ही विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। इस युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह विजयी रहा और उसने लाहौर पर अधिकार कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह की इस विजय को देखकर आस-पास के सिक्ख तथा मुस्लिम शासक भयभीत हो उठे। अतः उन्होंने संगठित होकर महाराजा रणजीत सिंह से लड़ने का निश्चय किया और उसके विरुद्ध एक शक्तिशाली संघ बना लिया। महाराजा रणजीत सिंह अपने इन शत्रुओं का सामना करने के लिए लाहौर से आगे बढ़ा। 1803 ई० में भसीन नामक स्थान पर युद्ध होना था परन्तु शत्रु सेनाओं के सेनापति गुलाब सिंह भंगी की मृत्यु हो जाने से युद्ध न हुआ और बिना किसी खून खराबे के महाराजा रणजीत सिंह विजयी रहा।

2. सिक्ख मिसलें, कसूर, कांगड़ा और मुल्तान पर विजय-अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथों में थी। अवसर पाकर महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। माई सुक्खां उसका अधिक समय तक सामना न कर सकी। इसी प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर को भी अपने राज्य में मिला लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने अब स्वतन्त्र सिक्ख मिसलों की ओर अपना ध्यान दिया। उसने मिसलों के नेताओं को युद्ध में पराजित करके उनकी मिसलों पर अधिकार कर लिया। 1807 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने कसूर के शासक कुतुबुद्दीन को हराकर इस प्रदेश पर भी अपना अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् उसने कांगड़ा के राजा की गोरखों के विरुद्ध सहायता करके उससे काँगड़ा का प्रदेश प्राप्त कर लिया। 1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सेनापति मिसर दीवान चन्द तथा अपने बड़े पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हजार सैनिक मुल्तान पर आक्रमण करने के लिए भेजे ! वहां घमासान युद्ध हुआ जिसमें मुल्तान का नवाब मारा गया और मुल्तान पर सिक्खों का अधिकार हो गया।

3. कश्मीर, डेरा गाज़ी खां, डेरा इस्माइल खां, मानकेरा तथा पेशावर पर विजय-1819 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक सेना कश्मीर विजय के लिए भेजी। कश्मीर का गवर्नर जाबर खाँ सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा। परन्तु सुपान नामक स्थान पर उसकी करारी हार हुई। 1820 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा गाजी खां पर विजय प्राप्त करने के लिए जमांदार खुशहाल सिंह के नेतृत्व में सेना भेजी। उसने वहाँ के शासक जमान खां को पराजित करके डेरा गाजी खां पर अपना अधिकार कर लिया। 1821 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा इस्माइल खां तथा मानकेरा के नवाब अहमद खां के विरुद्ध चढ़ाई की! अहमद खां को महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। 1834 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर पर आक्रमण किया परन्तु उसे भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आखिर पेशावर जीत लिया गया और सिक्ख राज्य में मिला लिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने हरि सिंह नलवा को पेशावर का गवर्नर नियुक्त किया। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने अनेक विजयें प्राप्त करके अपनी छोटी-सी मिस्ल को एक विशाल राज्य का रूप दे दिया। उसका राज्य उत्तर में लद्दाख तथा उत्तर-पश्चिम में सुलेमान को पहाड़ियों तक विस्तृत था। दक्षिण-पूर्व में उसके राज्य की सीमाएं सतलुज नदी को छूती थीं। दक्षिण-पश्चिम में शिकारपुर उसके राज्य की सीमा थी।

विजित प्रदेशों की व्यवस्था-

1. विजित प्रदेशों के प्रति अच्छी नीति-महाराजा रणजीत सिंह ने विजित प्रदेशों के प्रति लगभग एक-जैसी नीति अपनाई। कुछ प्रदेशों के सिक्ख, मुसलमान तथा हिन्दू शासकों को केवल महाराजा की अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा गया और उन्हें अपने-अपने प्रदेश का शासक बना रहने दिया गया। ये महाराजा को वार्षिक कर और आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता देते थे। जिन शासकों के राज्य छीन लिए गए उनमें से अनेक को यह छूट दी गई कि वे महाराज की नौकरी करके जागीरें प्राप्त कर लें। बहुत-से शासकों ने महाराजा की इस शर्त को स्वीकार कर लिया। जिन शासकों ने यह शर्त स्वकर न की उन्हें भी उनकी स्थिति के अनुसार छोटी-छोटी जागीरें दे दी गईं। यह ढंग महाराजा रणजीत सिंह ने सभी शासकों के प्रति अपनाया चाहे कोई सिक्ख था, हिन्दू था या मुसलमान। इस प्रकार महाराजा को विजित प्रदेशों में शान्ति बनाए रखने में काफ़ी सहायता मिली। इन प्रदेशों से महाराजा को अनेक योग्य व्यक्तियों की सेवाएं प्राप्त हुईं।

2. शक्ति का प्रयोग-कुछ विजित प्रदेशों में महाराजा रणजीत सिंह ने शक्ति का प्रयोग किया। पहले तो यह प्रयास किया गया कि स्थानीय जमींदार महाराजा की अधीनता स्वीकार करके अपने-अपने प्रदेशों का शासन प्रबन्ध चलाते रहें। कुछ ज़मींदारों ने तो इसे स्वीकार कर लिया गया। परन्तु जहां कहीं लोगों ने या उनके नेताओं ने विरोध न छोड़ा वहां कठोरता से काम लिया गया। ऐसे प्रदेशों में किले बना कर सैनिक रख दिये गए। सरकारी कामों के लिए स्थानीय कर्मचारी नियुक्त किए गए। इस प्रकार विजित प्रदेशों में लगभग पहले वाला शासन प्रबन्ध ही चलता रहा। लगान निर्धारित करने और इसे वसूल करने का ढंग भी पहले जैसा ही रहा।

3. सुदृढ़ सेना का संगठन-महाराजा रणजीत सिंह को शक्तिशाली सेना के महत्त्व का पूरा ज्ञान था। वह जानता र क सेना को शक्तिशाली बनाए बिना राज्य को सुदृढ़ बनाना असम्भव है। इसलिए महाराजा ने अपनी सेना की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेज़ कम्पनी से भागे हुए सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया। सैनिकों को यूरोपियन ढंग से संगठित करने के लिए सेना में यूरोपीय अफसरों को भी नौकरी दी गई। उनकी सहायता से पैदल तथा घुड़सवार सेना और तोपखाने को मनबूत बनाया गया। पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी नामक इकाइयां बनाई गई। इसके अतिक्ति महाराजा प्रतिदिन अपनी सेना का स्वयं निरीक्षण करता था। उसने सेना में हुलिया और दाग की प्रथा भी अपनाई ताकि सैनिक अधिकारियों तथा जागीरदारों के अधीन निश्चित संख्या में सैनिक तथा घोड़े प्रशिक्षण पाते रहें। सेना को अच्छे शस्त्र जुटाने के लिए कुछ कारखाने स्थापित किए गए जिनमें तोपें, बन्दूकें तथा अन्य हथियार बनाए जाते थे। महाराजा की इस सुदृढ़ सेना से साम्राज्य भी सुदृढ़ हुआ।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
(i) रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ ?
(ii) उसके पिता का नाम क्या था?
उत्तर-
(i) रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 को हुआ।
(ii) उसके पिता का नाम सरदार महा सिंह था।

प्रश्न 2.
महताब कौर कौन थी ?
उत्तर-
महताब कौर रणजीत सिंह की पत्नी थी।

प्रश्न 3.
‘तिकड़ी की सरपरस्ती’ का काल किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
यह वह काल था (1792 ई० से 1797 ई० तक) जब शुकरचकिया मिसल की बागडोर रणजीत सिंह की सास सदा कौर, माता राज कौर तथा दीवान लखपतराय के हाथों में रही।

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प्रश्न 4.
लाहौर के नागरिकों ने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण क्यों दिया ?
उत्तर-
क्योंकि लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे।

प्रश्न 5.
भसीन के युद्ध में रणजीत सिंह के खिलाफ कौन-कौन से सरदार थे ?
उत्तर-
भसीन की लड़ाई में रणजीत सिंह के विरुद्ध जस्सा सिंह रामगढ़िया, गुलाब सिंह भंगी, साहब सिंह भंगी तथा जोध सिंह नामक सरदार थे।

प्रश्न 6.
अमृतसर तथा लोहगढ़ पर रणजीत सिंह ने क्यों आक्रमण किया ?
उत्तर-
क्योंकि अमृतसर सिक्खों की धार्मिक राजधानी बन चुका था तथा लोहगढ़ का अपना विशेष सैनिक महत्त्व था।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) महाराजा रणजीत सिंह ने ………… ई० में अपनी सास …………. की सहायता से लाहौर को जीता।
(ii) महाराजा रणजीत सिंह ने 1809 ई० में ………… के साथ अमृतसर की संधि की।
(iii) सरदार खुशहाल सिंह महाराजा रणजीत सिंह के अधीन …………के पद पर आसीन था।
(iv) महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु ………….. ई० में हुई।
(v) ………….. ई० में पंजाब/लाहौर राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया गया।
उत्तर-
(i) 1799, सदा कौर
(ii) अंग्रेजों
(iii) ड्योढ़ीदार
(iv) 1839
(v) 1849.

3. सही गलत कथन

(i) अमृतसर की संधि (1809) के समय अंग्रेज़ों का वक़ील चार्ल्स मेटकॉफ था। –(✓)
(ii) 1831 में महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेज़ गवर्नर लार्ड डल्हौज़ी से भेंट हुई। –(✗)
(iii) 1830 ई० में अंग्रेजों ने सिंध तथा सतलुज पार के इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के विस्तार में सहायता दी। –(✗)
(iv) महाराजा रणजीत सिंह ने सभी धर्मों के लोगों को संरक्षण दिया। –(✓)
(v) महाराजा रणजीत सिंह के अधीन कानूनगो तथा मुकद्दम कारदार की सहायता करते थे। –(✓)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिंक के बीच भेंट (1831 ई०) हुई ?
(A) रोपड़ में
(B) अमृतसर में
(C) लाहौर में
(D) सरहिंद में।
उत्तर-
(A) रोपड़ में

प्रश्न (ii)
महाराजा रणजीत सिंह के कहां के शासक के साथ राजनीतिक संबंध नहीं थे ?
(A) नेपाल
(B) बीजापुर
(C) राजस्थान
(D) कश्मीर।
उत्तर-
(B) बीजापुर

प्रश्न (iii)
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन निम्न मुग़ल प्रांत का बहुत-सा भाग शामिल था
(A) कश्मीर
(B) लाहौर
(C) मुलतान
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न (iv)
महाराजा रणजीत सिंह का विदेश मंत्री था
(A) दीवान मिसर चंद
(B) हरि सिंह नलवा
(C) फ़कीर अजीजुद्दीन
(D) शेर सिंह
उत्तर-
(C) फ़कीर अजीजुद्दीन

प्रश्न (v)
लाहौर राज्य का अंतिम सिख शासक था
(A) खड़क सिंह
(B) दलीप सिंह
(C) शेर सिंह
(D) जोरावर सिंह।
उत्तर-
(B) दलीप सिंह

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की जानकारी के बारे में स्रोतों के चार प्रकारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की जानकारी के बारे में चार स्रोत हैं : सोहन लाल सूरी का उमदा-उत्-तवारीख, गणेशदास वढेरा की चार बागे पंजाब, यूरोपीय यात्रियों के वृत्तान्त तथा खालसा दरबार के रिकार्ड।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार तथा उसकी कृति का नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार का नाम सोहन लाल सूरी था। उसकी कृति का नाम उमदा-उत्तवारीख था।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ तथा वह किसका पुत्र था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, 1780 ई० को हुआ। वह सरदार महा सिंह का पुत्र था।

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह किस वर्ष गद्दी पर बैठा और उस समय उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह 1792 ई० में गद्दी पर बैठा। उस समय उसकी राजधानी गुजरांवाला थी।

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प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्यकाल के आरम्भ में कौन-से अफ़गान शासक ने किन वर्षों के बीच में पंजाब पर आक्रमण किए ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्यकाल के आरम्भ में जमानशाह ने पंजाब पर 1796 से 1798 के बीच में आक्रमण किए।

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर की विजय कब और किसकी सहायता से प्राप्त की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर की विजय 7 जुलाई, 1799 ई० को रानी सदा कौर की सहायता से प्राप्त की।

प्रश्न 7.
भसीन में किन दो शासकों ने महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध गठजोड़ किया तथा महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर किनसे जीता ?
उत्तर-
भसीन में भंगी शासकों तथा कसूर के पठानों ने महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध गठजोड़ किया। महाराजा रणजीत सिंह ने भंगियों से अमृतसर जीता।

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प्रश्न 8.
अमृतसर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने किन चार सिक्ख शासकों के इलाके जीते ?
उत्तर-
अमृतसर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात के साहिब सिंह भंगी, चिनियोट के जस्सा सिंह दूल्लू, अकालगढ़ के दल सिंह तथा स्यालकोट के जीवन सिंह के इलाके जीते।

प्रश्न 9.
1812 ई० से पहले ब्यास के उस पार महासजा रणजीत सिंह ने किन तीन सिक्ख शासकों के इलाके जीते ?
उत्तर-
1812 ई० से पहले ब्यास के उस पार महाराजा रणजीत सिंह ने बुद्ध सिंह से जालन्धर का इलाका, बघेल सिंह से हरियाणा एवं होशियारपुर का इलाका तथा तारा सिंह डल्लेवालिया से राहों का इलाका जीता।

प्रश्न 10.
आरम्भिक वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह के सहयोगी तीन सिक्ख शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
आरम्भिक वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह के सहयोगी तीन शासक जोध सिंह रामगढ़िया, फतेह सिंह आहलूवालिया तथा रानी सदा कौर थे।

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प्रश्न 11.
महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़ियों तथा सदा कौर के इलाके किन वर्षों में जीते ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़ियों का इलाका 1815 में तथा सदा कौर का इलाका 1821 ई० में जीता।

प्रश्न 12.
फतेह सिंह आहलूवालिया किस वर्ष में कपूरथला छोड़ कर सतलुज के पार चला गया तथा उसने महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता कब स्वीकार कर ली ?
उत्तर-
1826 ई० में फतेह सिंह आहलूवालिया कपूरथला छोड़कर सतलुज के पार चला गया। उसने महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता 1827 ई० में स्वीकार कर ली।

प्रश्न 13.
1806-07 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पार कौन-से चार इलाकों पर अधिकार कर लिया ?
उत्तर-
1806-07 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पार धर्मकोट, बधणी, जगरावां और नारायणगढ़ नामक चार इलाकों पर अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 14.
1806 और 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने जिन सिक्ख राज्यों से खिराज लिया उनमें से चार के नाम बताएं।
उत्तर-
1806 और 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने पटियाला, नाभा, जींद तथा कलसिया नामक राज्यों से खिराज लिया।

प्रश्न 15.
महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ सन्धि कब और कहां की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ 1809 ई० में अमृतसर में सन्धि की।

प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक, मुल्तान, कश्मीर तथा पेशावर की विजयें किन वर्षों में प्राप्त की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक 1813, मुल्तान 1818, कश्मीर 1819 और पेशावर 1823 ई० में विजय किया।

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प्रश्न 17.
सिन्ध नदी के दूसरी ओर पेशावर के अतिरिक्त कौन-से चार इलाकों पर महाराजा रणजीत सिंह का कब्ज़ा हो गया ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने सिन्धु नदी के दूसरी ओर पेशावर के अतिरिक्त झंग, साहीवाल, खुशाब तथा पिंडी भट्टियां के चार इलाकों पर अधिकार किया।

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने लगभग कितनी पहाड़ी रियासतों पर अधिकार कर लिया तथा उनमें से किन्हीं चार के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने 20 से भी अधिक पहाड़ी रियासतों पर अधिकार कर लिया। इनमें से चार इलाकों के नाम कांगड़ा, कुल्लू, जम्मू तथा राजौरी थे।

प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कौन-से चार मुग़ल प्रान्तों का बहुत-सा भाग शामिल था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लाहौर, कश्मीर, मुल्तान तथा काबुल नामक चार मुग़ल प्रान्तों का बहुत-सा भाग शामिल था।

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प्रश्न 20.
यूरोपीय अफसरों की सहायता से महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सेना के कौन-से तीन अंगों को सशक्त । बनाया ?
उत्तर-
उसने यूरोपीय अफसरों की सहायता से सेना के पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना नामक अंगों को सशक्त बनाया।

प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बटालियन, रेजीमैंट तथा बैटरी सेना के कौन-से अंगों से स’ म्बन्धित थीं ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बटालियन पैदल, रेजीमैंट घुड़सवारों तथा बैटरी तोपखाना नाम .क अंगों से सम्बन्धित थी।

प्रश्न 22.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में अफसरों के चार पदों के नाम बताओ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में अफसरों के चार पद थे-कमांडेंट, एडजूटैंट (कुमेदान), मेजर और सूबेदार।

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प्रश्न 23.
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सेना को किन दो रूपों में वेतन देता था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सेना को जागीरों तथा नकदी के रूप में वेतन देता था।

प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय प्रशासन में ड्योढ़ीदार के पद पर कौन-सो दो व्यक्ति रहे थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय प्रशासन में ड्योढ़ीदार के पद पर सरदार खुशहाल सिंह तथा सरदार ध्यान सिंह आसीन रहे।

प्रश्न 25.
मिसर बेलीराम तथा फकीर अजीजद्दीन कौन-से कार्य सम्भालते थे ?
उत्तर-
मिसर बेलीराम खजाने को तथा फकीर अजीजुद्दीन विदेशी मामलों को सम्भालते थे।

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प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के आठ सूबों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के आठ सूबे थे-जालन्धर-दोआब, माझा, कांगड़ा, वजीराबाद, पिण्ड दादन खां, हज़ारा, पेशावर तथा मुल्तान।

प्रश्न 27.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के चार प्रसिद्ध नाज़िम अथवा सूबेदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के चार प्रसिद्ध नाज़िम दीवान सावनमल, सरदार लहणा सिंह मजीठिया, मिसर रूप लाल तथा कर्नल मीहा सिंह थे।

प्रश्न 28.
सूबे की छोटी प्रशासकीय इकाई के दो नाम क्या थे तथा इसके अधिकारी को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
सूबे की छोटी प्रशासनिक इकाई के दो नाम परगना तथा तालुका थे। इनके अधिकारी को कारदार कहते थे।

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प्रश्न 29.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कुछ स्थानों पर तालुका थे। परन्तु गांवों के बीच अन्य दो इकाइयां कौन-सी थीं ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में गांवों के बीच तप्प तथा तोप नामक दो इकाइयां थीं।

प्रश्न 30.
कारदार की सहायता करने वाले दो स्थानीय अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
कारदार की सहायता कानूनगो तथा मुकद्दम करते थे।

प्रश्न 31.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में न्याय देने वाले दो विशेष अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में न्याय देने वाले दो विशेष अधिकारियों के नाम थे-काज़ी तथा अदालती।

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प्रश्न 32.
गांवों में समस्याओं को कौन-सी संस्था किस आधार पर हल करती थी ?
उत्तर-
गांवों में समस्याओं को पंचायत स्थानीय रिवाजों के आधार पर हल करती थी।

प्रश्न 33.
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में किन चार पृष्ठ भूमियों के लोग शामिल थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में जिन चार पृष्ठ भूमियों के लोग शामिल थे वे सिक्ख, क्षत्रिय, ब्राह्मण तथा राजपूत थे।

प्रश्न 34.
महाराजा रणजीत सिंह के दो यूरोपीय अफसरों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दो यूरोपीय अफसर अलारड तथा वेन्तूरा थे।

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प्रश्न 35.
महाराजा रणजीत सिंह के तीन प्रमुख जागीरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के तीन प्रमुख जागीरदारों के नाम सरदार हरिसिंह नलवा, दीवान सावनमल तथा राजा गुलाब सिंह थे।

प्रश्न 36.
शासक वर्ग के सदस्यों को वेतन किस रूप में दिया जाता था तथा वे किन-किन कार्यों में महाराजा की सहायता करते थे ?
उत्तर-
शासक वर्ग के सदस्यों को जागीरों तथा नकदी के रूप में वेतन मिलता था। वे शान्ति स्थापित करने, लगान वसूल करने तथा सेना तैयार रखने में महाराजा की सहायता करते थे।

प्रश्न 37.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लगान देने का ढंग प्रायः कौन चुनते थे तथा कृषकों को कर्ज किन वस्तुओं के लिए दिया जाता था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लगान देने का ढंग प्रायः कृषक स्वयं चुनते थे। उन्हें बीज और औजार खरीदने के लिए ऋण दिया जाता था।

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प्रश्न 38.
महाराजा रणजीत सिंह से संरक्षण किन धर्मों के लोगों को तथा किस रूप में मिला ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने हिन्दुओं, सिक्खों तथा मुसलमानों को संरक्षण दिया। वह इन धर्मों के धार्मिक स्थानों को लगान मुक्त भूमि दान में देता था।

प्रश्न 39.
महाराजा रणजीत सिंह के किन चार समकालीन शासकों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के अंग्रेजों तथा अफ़गानिस्तान, नेपाल और राजस्थान के शासकों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध थे।

प्रश्न 40.
अमृतसर की सन्धि के समय अंग्रेजों का वकील कौन था ? इस सन्धि द्वारा किस क्षेत्र पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया ?
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि के समय अंग्रेज़ों का वकील चार्ल्स मेटकॉफ था। इस सन्धि द्वारा अंग्रेज़ों का सतलुज पार के क्षेत्र पर अधिकार हो गया।

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प्रश्न 41.
महाराजा रणजीत सिंह कौन-से अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल से कब और कहाँ मिला ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक से 1831 में रोपड़ नामक स्थान पर मिला। .

प्रश्न 42.
1830 के पश्चात् अंग्रेजों ने किन दो इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का विकास रोका ?
उत्तर-
1830 के पश्चात् अंग्रेजों ने सिन्ध तथा सतलुज पार के इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का विकास रोका।

प्रश्न 43.
महाराजा रणजीत सिंह के तीन उत्तराधिकारियों के तथा उनमें से किसी एक की मां का नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के तीन उत्तराधिकारी महाराजा खड़क सिंह, महाराजा शेर सिंह तथा महाराजा दलीप सिंह थे। महाराजा दलीप सिंह की मां का नाम महारानी जिन्दा था।

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प्रश्न 44.
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु कब हुई तथा लाहौर राज्य का अन्त कब हुआ ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु 1839 ई० में हुई और लाहौर राज्य का अन्त 1849 ई० में हुआ।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह ने जीते हुए इलाकों की व्यवस्था कैसे की ?
उत्तर-
जीते हुए सभी इलाकों के प्रति महाराजा रणजीत सिंह की नीति लगभग समान थी। पराजित शासक चाहे वह हिन्द, सिक्ख या मुसलमान हो, को सामन्त के रूप में उसके इलाके में रहने दिया गया। उन्हें महाराजा को खिराज देना पड़ता था। उन्हें आवश्यकता पड़ने पर सेना भी देनी पड़ती थी। कुछ शासकों को यह स्वतन्त्रता दी गई कि वे महाराजा के अधीन नौकरी कर लें और जागीर ले लें। जिन्होंने यह शर्त स्वीकार नहीं की, उनको भी उनके स्तर के अनुसार निर्वाह के लिए छोटी-छोटी. जागीरें दे दी गईं। इसके परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह को जीते हुए इलाकों में शान्ति स्थापित रखने में सहयोग भी .. मिला और उसे श्रेष्ठ व्यक्तियों की सेवा प्राप्त हुई।

सच तो यह है कि जीते हुए इलाकों में महाराजा ने शक्ति और मेल-मिलाप दोनों का प्रयोग किया। स्थानीय ज़मींदारों को प्रबन्ध में प्राथमिकता दी गई। परन्तु जहां कहीं लोगों ने या नेताओं ने उनका विरोध किया, वहां सख्ती से भी काम लिया गया। जीते हुए इलाकों में किले बनवा कर किलेदार नियुक्त किए गए। सरकारी कार्यों के लिए स्थानीय कर्मचारी वहीं रहने दिए गए। इस प्रकार विजित प्रदेशों का लगभग पहले वाला प्रबन्ध जारी रहा। लगान को निश्चित करने और उगाहने के ढंग भी पहले वाले ही रहने दिए गए।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के सैनिक प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर-
महाराजा महाराजा रणजीत सिंह ने सेना के संगठन की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेजी कम्पनी की सेना को छोड़कर आए सिपाहियों को अपनी सेना में रखा। सेना को यूरोपीय ढंग से संगठित किया गया। इसके लिए यूरोपीय अफसरों को नियुक्त किया गया। उनकी सहायता से पैदल, घुड़सवार सेना और तोपखाने को सशक्त बनाया गया। सेना के विभिन्न अंगों के संगठन के लिए पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी स्थापित करने की प्रथा चलाई गई। इनके अधिकारियों में भी कमान्डेन्ट (कुमेदान) ऐड्जूटैन्ट, मेजर और सूबेदार नियुक्त किए गए। समय बीतने पर कई सैनिक टुकड़ियों को मिला करे एक ‘जनरल’ के अधीन रखा जाने लगा। प्रत्येक टुकड़ी के साथ बेलदार, मिस्त्री, घड़याली और टहलिया आदि भी होते थे। सेना का निरीक्षण स्वयं महाराजा करता था। चेहरा नवीसी और घोड़े दागने की प्रथा भी आरम्भ की गई ताकि सैनिक अधिकारी और जागीरदार निश्चित संख्या से कम घोड़े और सिपाही न रख सकें। महाराजा ने तोपें, बन्दूकें और अन्य शस्त्र बनाने के लिए कारखाने स्थापित किए। इनमें पंजाबी और कई अनुभवी यूरोपीय लोग बारूद तैयार करते थे।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में किस पृष्ठ भूमि के लोग थे तथा उनके महाराजा के साथ किस तरह के सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
महाराजा महाराजा रणजीत सिंह ने अनेक अधीनस्थ राजाओं को अपना भागीदार बनाकर शासक वर्ग का अंग बना लिया। इन राजाओं के जागीरदारों को भी प्रशासनिक प्रबन्ध में सम्मिलित किया गया। इनके अतिरिक्त महाराजा ने कई नए व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार छोटे-बड़े पदों पर नियुक्त किया। ऐसे जागीरदारों की सामाजिक पृष्ठ भूमि भिन्नभिन्न थी। उनमें कई जाट सिक्ख थे तथा कई खत्री थे। इनमें ब्राह्मण, राजपूत, पठानों और सैय्यदों के अतिरिक्त कई पूर्वी हिन्दोस्तानी और यूरोपीय लोगों को भी इस श्रेणी में जगह दी गई। उदाहरण के लिए जमांदार खुशहाल सिंह और अलारड तथा वेन्तूरा के नाम लिए जा सकते हैं। महाराजा के प्रमुख जागीरदारों में उल्लेखनीय सरदार हरिसिंह नलवा, दीवान सावनमल, राजा गुलाब सिंह, राजा ध्यान सिंह, फकीर अजीजुद्दीन और शेख गुलाम मुइउद्दीन थे। यह सारा शासक वर्ग शासन कार्यों में महाराजा का भागीदार था।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह का प्रजा के प्रति कैसा व्यवहार था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक प्रजापालक शासक था। उसने अपने नाज़िमों और कारदारों को यह आदेश दे रखा था कि वे प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करें और उनकी भलाई का ध्यान रखें। कृषकों के अधिकारों का विशेष ध्यान रखा जाता था। कई स्थानों पर लगान की दर भी घटा दी गई। लगान देने का ढंग प्रायः कृषक स्वयं चुनते थे। लाहौर दरबार उन्हें बीज और औज़ार आदि खरीदने के लिए ऋण भी देता था। प्रजा राजा से सीधे सम्बन्ध स्थापित कर सकती थी। जब भी महाराजा राज्य के किसी प्रदेश का भ्रमण करता तो वह कृषकों से उनके सुख-दुःख के बारे में पूछा करता था। अत्याचारी नाज़ियों या कारदारों की बदली कर दी जाती थी। कई बार उन पर जुर्माने भी किए जाते थे।

महाराजा महाराजा रणजीत सिंह का संरक्षण केवल सिक्खों तक सीमित नहीं था बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इससे प्रभावित थे। लगान की कुल आय का जितना भाग धर्मार्थ के लिए महाराजा ने दिया, उतना शायद मुग़लों के समय में भी नहीं दिया गया था। महाराजा की ओर से करवाई गई हरमंदर साहिब की सेवा की गवाही आज भी हरमंदर साहिब के द्वार पर सोने के पत्र पर उभरी हुई मिलती है। निःसन्देह महाराजा उदार स्वभाव का व्यक्ति था।

प्रश्न 5.
अमृतसर की सन्धि किन परिस्थितियों में हुई ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने 1806 ई० के पश्चात् सतलुज पार के प्रदेशों को जीतना आरम्भ कर दिया। इससे अंग्रेजों को चिन्ता होने लगी कि कहीं महाराजा का राज्य दिल्ली तक न फैल जाए। वे स्वयं भी सतलुज और यमुना के बीच के इलाकों पर अपना अधिकार करना चाहते थे। अतः महाराजा की शक्ति पर रोक लगाने के लिए उन्होंने चार्ल्स मैटकॉफ को अपना वकील बनाकर महाराजा के पास भेजा। उसने सुझाव दिया कि सतलुज नदी को महाराजा की पूर्वी सीमा मान लिया जाए। अंग्रेजों की यह इच्छा थी कि सतलुज-यमुना के मध्य के सभी शासक महाराजा की बजाए अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर लें। महाराजा को यह सुझाव पसन्द तो नहीं था परन्तु उसे अंग्रेजों की शक्ति का पूरा पता था। उसे यह भी ज्ञान था कि इस सुझाव के लाभ क्या हैं। वास्तव में अंग्रेज़ उसे सतलुज के उत्तर-पश्चिम के प्रदेश का एकमात्र स्वतन्त्र शासक मानने को तैयार थे। अन्त में महाराजा ने इस बात को स्वीकार कर लिया और सेना सतलुज के इस ओर बुला ली। इन परिस्थितियों में 25 अप्रैल, 1809 को अमृतसर में एक नियमित सन्धि पर हस्ताक्षर हुए।

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प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना कैसे की ? –
उत्तर-
रणजीत सिंह ने 1792 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली। 19 वर्ष की आयु में उसको अफ़गानिस्तान के शासक शाहजमान ने लाहौर का गवर्नर बना दिया और उसे राजा की उपाधि दी। इस तरह महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति काफ़ी बढ़ गई। 1802 ई० में उसने अमृतसर पर अधिकार कर लिया। अगले चार-पांच वर्षों में उसने छ: मिसलों को अपने अधिकार में ले लिया। फिर उसने सतलुज और यमुना नदी के मध्य सरहिन्द की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया, परन्तु अंग्रेजों ने उसे उस ओर न बढ़ने दिया। 1809 ई० में उसने अंग्रेजों से सन्धि (अमृतसर की सन्धि) कर ली। सन्धि के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पश्चिम में स्थित इलाकों में अपने राज्य का विस्तार करना आरम्भ कर दिया। शीघ्र ही उसने मुल्तान (1818), कश्मीर (1819), बन्नू, डेराजात और पेशावर पर अधिकार कर लिया। इस तरह महाराजा रणजीत सिंह एक विशाल राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब का शासन बड़े अच्छे ढंग से चलाया। केन्द्रीय शासन का मुखिया वह स्वयं था। वास्तव में वह निरंकुश शासक था परन्तु उसे प्रजा की भलाई का पूर्ण ध्यान रहता था। उसने अपनी सहायता के लिए मन्त्री नियुक्त किए हुए थे। राजा ध्यान सिंह उसका प्रधानमन्त्री था और फकीर अजीजुद्दीन उसका बहुत बड़ा सलाहकार और विदेश मन्त्री था। अपने राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने सारे राज्य को चार मुख्य प्रान्तों में बांटा हुआ था। इन प्रान्तों के नाम थे-लाहौर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर। महाराजा रणजीत सिंह की न्याय प्रणाली बड़ी साधारण थी। दण्ड अधिक कठोर नहीं थे। अपराधी को प्रायः जुर्माना ही किया जाता था। राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि कर ही था। आय कर उपज का 1/2 और 1/3 भाग लिया जाता था। महाराजा रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना का संगठन किया। इसमें घुड़सवार, पैदल और तोपखाना सम्मिलित थे। दीवान मोहकम चन्द प्रधान सेनापति था। सेनापति को यूरोपीय सैनिकों को भान्ति ट्रेनिंग दी जाती थी। वेंतुरा उसकी सेना में एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी सैनिक अधिकारी था।

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प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह को ‘शेरे पंजाब’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक सफल विजेता व कुशल शासक था। उसने पंजाब को एक दृढ़ शासन प्रदान किया। उसने सिक्खों को एक सूत्र में पिरो दिया। उसके राज्य में प्रजा सुखी तथा समृद्ध थी। महाराजा रणजीत सिंह कट्टर धर्मी नहीं था। उसके दरबार में सिक्ख, मुसलमान आदि सभी धर्मों के लोग थे। सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। वह बड़ा दूरदर्शी था। उसने जीवन भर अंग्रेजों से मित्रता बनाए रखी। इस तरह उसने राज्य को शक्तिशाली अंग्रेजों से सुरक्षित रखा। इन्हीं गुणों के कारण महाराजा रणजीत सिंह की गणना इतिहास के महान् शासकों में की जाती है और उसे ‘शेरे पंजाब’ के नाम से याद किया जाता है।

प्रश्न 9.
अमृतसर की सन्धि कब हुई ? इसका महत्त्व भी बताओ।
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के साथ 1809 ई० की सन्धि के बारे में लिखो।
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि 25 अप्रैल, 1809 ई० को अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच हुई। यह सन्धि अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस सन्धि से सिक्खों का एकमात्र शासक बनने के लिए महाराजा रणजीत सिंह का अपना सपना टूट गया। वह मालवा की रियासतों पर कभी अधिकार नहीं कर सकता था। अमृतसर की सन्धि ने महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति, सम्मान तथा पद को भी गहरा आघात पहुँचाया। इस सन्धि ने अंग्रेजी राज्य की सीमा को यमुना से बढ़ा कर सतलुज नदी तक पहुंचा दिया। महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की सीमा के इतने समीप पहुंच जाने के कारण अंग्रेजी सरकार महाराजा की विदेश नीति तथा सैनिक गतिविधियों पर अब अधिक कड़ी नजर रख सकती थी। इस सन्धि से महाराजा को कुछ लाभ भी हुए। इसके फलस्वरूप पंजाब का शिशु राज्य नष्ट होने से बच गया और उसने उत्तर-पश्चिम में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाया।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुल्तान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुल्तान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन इस प्रकार है-

1. लाहौर की विजय-लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसीलिए उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। महाराजा रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। अकेला चेत सिंह ही महाराजा रणजीत सिंह का सामना करता रहा, परन्तु वह भी पराजित हुआ। इस प्रकार 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर महाराजा रणजीत सिंह के अधिकार में आ गया।

2. अमृतसर की विजय अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथ में थी। महाराजा रणजीत सिंह ने माई सुक्खां को सन्देश भेजा कि वह अमृतसर स्थित लोहगढ़ का दुर्ग तथा प्रसिद्ध ज़मज़मा तोप उसके हवाले कर दे। परन्तु माई सुक्खां ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया और माई सुक्खां को पराजित करके अमृतसर को अपने राज्य में मिला लिया।

3. अटक विजय-1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह तथा काबुल के वज़ीर फतेह खां के बीच एक समझौता हुआ। इसके अनुसार महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए 12 हज़ार सैनिक फतेह खां की सहायता के लिए भेजने और इसके बदले फतेह खां ने उसे जीते हुए प्रदेश तथा वहां से प्राप्त किए धन का तीसरा भाग देने का वचन दिया। इसके अतिरिक्त महाराजा रणजीत सिंह ने फतेह खां को अटक विजय में और फतेह खां ने महाराजा रणजीत सिंह को मुल्तान विजय में सहायता देने का वचन भी दिया। दोनों की सम्मिलित सेनाओं ने मिलकर कश्मीर पर आसानी से विजय प्राप्त कर ली। परन्तु फतेह खां ने अपने वचन का पालन न किया। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने अटक के शासक को एक लाख रुपये वार्षिक आय की जागीर देकर अटक का प्रदेश ले लिया। फतेहखां इसे सहन न कर सका। उसने शीघ्र ही अटक पर चढ़ाई कर दी। अटक के पास हज़रो के स्थान पर सिक्खों और अफ़गानों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे।

4. मुल्तान विजय-मुल्तान उस समय व्यापारिक और सैनिक दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। 1818 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान पर छः आक्रमण किए, परन्तु हर बार वहां का पठान शासक मुजफ्फर खां महाराजा रणजीत सिंह को भारी नज़राना देकर पीछा छुड़ा लेता था। 1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान को सिक्ख राज्य में मिलाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसने मिसर दीवान चन्द तथा अपने पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हजार सैनिक भेजे। सिक्ख सेना ने मुल्तान के किले पर घेरा डाल दिया। मुज़फ्फर खां ने किले से सिक्ख सेना का सामना किया, परन्तु अन्त में वह मारा गया और मुल्तान सिक्खों के अधिकार में आ गया।

5. कश्मीर विजय-अफ़गानिस्तान के वज़ीर फतेह खां ने कश्मीर विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह को उसका हिस्सा नहीं दिया था। अत: अब महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए रामदयाल के अधीन एक सेना भेजी। इस युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह स्वयं भी रामदयाल के साथ गया, परन्तु सिक्खों को सफलता न मिल सकी। 1819 ई० में उसने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर सेना भेजी। कश्मीर का नया गवर्नर जाबर खां सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा, परन्तु सुपान के स्थान पर उसकी करारी हार हुई।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय नागरिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करें।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय शासन का वर्णन इस प्रकार है

1. महाराजा-महाराजा रणजीत सिंह केन्द्रीय शासन का मुखिया था। उसकी शक्तियां असीम थीं। फिर भी वह तानाशाह नहीं था। सरकार महाराजा रणजीत सिंह के नाम से नहीं बल्कि ‘खालसा’ के नाम से काम करती थी। उसके सिक्कों पर ‘नानक सहाय’ और ‘गोबिन्द सहाय’ लिखा था। पांच प्यारे शक्ति में उससे ऊपर थे।

2. वजीर तथा केन्द्रीय विभाग-शासन कार्यों में महाराजा को सहायता तथा परामर्श देने के लिए प्रधानमन्त्री तथा कई वजीर थे। उसका सबसे प्रसिद्ध प्रधानमन्त्री राजा ध्यान सिंह डोगरा था। वित्त तथा विदेशी मामलों को छोड़कर शेष सभी विभाग उसकी देख-रेख में चलते थे। विदेश मन्त्री-महाराजा का विदेश मन्त्री फकीर अज़ीजुद्दीन था। महाराजा का गुप्त सलाहकार भी वही था। गृह मन्त्री-गृह मन्त्री (ड्योढ़ीवाला) का कार्य शाही महल के लिए आवश्यक वस्तुओं का प्रबन्ध करना था। इस पद पर जमांदार खुशहाल सिंह काफ़ी समय तक रहा। वित्त मन्त्री-वित्त मन्त्री को ‘दीवान’ कहा जाता था। युद्ध मन्त्रीदीवान मोहकम चन्द, मिसर दीवान चन्द तथा हरिसिंह नलवा युद्ध में सेना का संचालन करते थे। केन्द्रीय शासन के प्रमुख विभाग थे-दफ्तर-ए-अबवाब-उल-माल, दफ्तर-ए-मुआजिब, दफ्तर-ए-तौजिहात, दफ्तर-ए-तोपखाना, दफ्तर-ए-रोजनामचा, दफ्तर-ए-अखराजात आदि।

3. न्याय प्रणाली-न्याय का सबसे बड़ा अधिकारी महाराजा था। राज्य के सभी बड़े मुकद्दमों का निर्णय वह स्वयं करता था। उचित न्याय करना वह अपना कर्त्तव्य समझता था। उसकी अपनी विशेष अदालत थी। महाराजा की अदालत के नीचे लाहौर नगर का उच्च न्यायालय था। इस अदालत को ‘अदालत-ए-आला’ कहते थे। इसके अतिरिक्त अमृतसर और पेशावर में दो विशेष अदालतें थीं। दैनिक न्याय का कार्य प्रान्त तथा जिले के अधिकारी करते थे।

4. भूमि-कर प्रणाली तथा आय के अन्य साधन-महाराजा रणजीत सिंह के समय राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि-कर था। भूमि-कर एकत्रित करने के लिए पहले बटाई प्रणाली प्रचलित थी। इसके अनुसार भूमि-कर उपज का आधा लेकर सरकारी गोदामों में जमा कर दिया जाता था। बाद में कनकूत प्रणाली चलाई गई। इस प्रणाली के अनुसार खड़ी फसलों पर ही भूमि-कर नियत कर दिया जाता था। राज्य के कई भागों में बोली प्रणाली भी प्रचलित थी। इस प्रणाली के अनुसार अधिक-से-अधिक बोली देने वाले को भूमि-कर इकट्ठा करने का अधिकार मिल जाता था। उसे निश्चित राशि कोष में जमा करनी पड़ती थी।

भूमि-कर फसलों की किस्मों के अनुसार ही सरकार का भाग – से – तक निश्चित होता था। भूमि-कर के अतिरिक्त प्रजा से चुंगी-कर, बिक्री-कर तथा व्यावसायिक-कर भी वसल किया जाता था। बिक्री-कर, जर्माना, शुकराना, ज़ब्ती तथा ठेकों से प्राप्त करों से सरकार को अच्छी आय प्राप्त हो जाती थी।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के सैनिक प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना तीन भागों में बंटी हुई थी-पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना। .

(क) पैदल सेना-महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पैदल सेना, सेना का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। पैदल सेना बटालियनों में बंटी हुई थी। प्रत्येक बटालियन में 800 सैनिक होते थे और इसका मुखिया एक कमाण्डर होता था। इसकी सहायता के लिए एक मेजर-जनरल हुआ करता था। प्रत्येक बटालियन 8 कम्पनियों में बंटी हुई थी और प्रत्येक कम्पनी के चार भाग होते थे। प्रत्येक भाग में 25 सैनिक होते थे। ‘कम्पनी’ हवलदार के अधीन होती थी। हवलदार की सहायता के लिए नायक होता था। पैदल सिपाहियों को ड्रम की धुन पर चलना पड़ता था। उनके कमाण्ड की भाषा फ्रांसीसी थी। नियमित परेड के अतिरिक्त दशहरे के दिन अमृतसर में एक आम परेड होती थी। इसका निरीक्षण महाराजा स्वयं करता था। इसका प्रशिक्षक जनरल वेन्तुरा था।

(ख) घुड़सवार-महाराजा रणजीत सिंह की घुड़सवार सेना तीन भागों में बंटी हुई थी। नियमित घुड़सवार सेना में चुने हुए सिपाही और चुने हुए घोड़े होते थे। इसको यूरोपियन ढंग से ट्रेनिंग दी जाती थी। इसकी कमान फ्रांसीसी जरनैल एलार्ड के हाथ में थी। घुड़सवार सेना का दूसरा अंग घुड़-चढ़े सेना थी। इसको किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता था। तीसरे अंग में जागीरदारों की घुड़सवार सेना शामिल थी। ये सैनिक जागीरदारों के अधीन होते थे। आवश्यकता के समय वे महाराजा की ओर से युद्ध में भाग लेते थे। महाराजा के पास कुछ अनियमित रैजीमेंट भी थी जिनमें चुने हुए युवक थे जो सदा मरने-मारने के लिए तैयार रहते थे।

(ग) तोपखाना तथा शस्त्र-निर्माण-उसका तोपखाना चार भागों में बंटा हुआ था-

  • तोपखाना फिल्ली
  • तोपखाना शुतरी
  • तोपखाना अश्वी
  • तोपखाना गावी। महाराजा के पास कुल मिलाकर 76 तोपें थीं। तोपखाने का काम कोर्ट गार्डिनर जैसे यूरोपीय अधिकारियों को सौंपा गया था। महाराजा ने शस्त्र बनाने के लिए कई कारखाने खोले हुए थे। लाहौर, मुल्तान, जम्मू और श्रीनगर में शस्त्र बनाने का काम किया जाता था।

महाराजा रणजीत सिंह की सेना का साधारण विश्लेषण-
(i) फौज-ए-किलात-महाराजा रणजीत सिंह की सेना में 10,800 सैनिक ऐसे भी थे जो फौज-ए-किलात के नाम से प्रसिद्ध थे। इन्हें मुल्तान, पेशावर, कांगड़ा तथा अटक के किलों में रखा जाता था। किलों में रहने वाले सैनिकों को 6 रु० मासिक वेतन तथा जमांदार को 12 रु० मासिक वेतन मिलता था।

(ii) फौज-ए-खास-पूरी तरह प्रशिक्षित तथा समीपवर्ती इलाकों में लड़ने वाली इस सेना का कमाण्डर जनरल वेन्तुरा था। इस ब्रिगेड में 3000 पैदल सैनिक, 1500 नियमित घुड़सवार, लगभग 1000 तोपची और 34 तोपें थीं।

(iii) फौज-ए-आइनराज्य के अधीन इस नियमित सेना में तीन अंग शामिल थे। 1830 में इस सेना की कुल संख्या लगभग 38,000 थी जिसमें 30,000 पैदल, 5,000 घुड़सवार और 3,000 तोपची थे।

(iv) फौज-ए-बेकवायद-इस सेना में अकाली जागीरंदारों के सैनिक तथा अन्य सभी प्रकार के सैनिक रखे जाते थे।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के सम्बन्धों ( 1809-1839 ई०) का वर्णन कीजिए।
अथवा
1809 से 1827 ई० तक अंग्रेज़-सिख संबंधों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
1828 के बाद अंग्रेज-सिख संबंधों में तनाव क्यों आया ? त्रिदलीय 1839 इन संबंधों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
25 अप्रैल, 1809 ई० में अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच अमृतसर की सन्धि हुई। इस सन्धि ने भले ही सिक्खों एवं अंग्रेजों के बीच सशस्त्र टक्कर की सम्भावना को समाप्त कर दिया था, तो भी यह सन्धि दोनों शक्तियों के मन में एक-दूसरे के प्रति सन्देह तथा भय की भावनाओं का अन्त न कर सकी। इस सन्धि के पश्चात् 1839 ई० तक अंग्रेज़-सिक्ख सम्बन्धों को निम्नलिखित चरणों में से गुज़रना पड़ा-

1. अविश्वास तथा सन्देह काल-1809 से 1811 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज सरकार दोनों ही एकदूसरे को अविश्वास तथा सन्देह की दृष्टि से देखते रहे। प्रत्येक ने अपने विरोधी की सैनिक तथा कूटनीतिक चालों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए गुप्तचर छोड़ रखे थे।

2. 1812-1822 ई० तक अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के सम्बन्ध-1812 से 1822 ई० तक अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच आपसी सहयोग तथा मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बने रहे। 1815 ई० में गोरखा वकील महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता मांगने आया तो महाराजा ने साफ़ इन्कार कर दिया। महाराज ने प्रथम अंग्रेज़-नेपाल युद्ध (1814-1815 ई०) में अंग्रेजों की सहायता करके अपनी मित्रता का प्रमाण दिया। इसी प्रकार 1821 ई० में जब आपा साहिब का प्रतिनिधि महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता मांगने आया तो महाराजा ने उसे भी साफ इन्कार कर दिया। दूसरी ओर अंग्रेज सरकार ने भी सतलुज के उत्तर-पश्चिम में महाराजा रणजीत सिंह के हितों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न किया।

3. वन्दनी गांव का प्रश्न-1808 ई० के अपने सतलुज अभियान के समय वन्दनी प्रदेश महाराजा रणजीत सिंह ने 12000 रुपये के बदले अपनी सास रानी सदा कौर को दे दिया था। परन्तु 1820 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सदा कौर को कारावास में डालकर वन्दनी पर पुनः अधिकार कर लिया। रानी सदा कौर ने अंग्रेजों से सहायता की मांग की। लुधियाना के अंग्रेज़ प्रतिनिधि ने ब्रिटिश सैनिकों की एक टुकड़ी भेजकर महाराजा की सेना को वन्दनी से निकाल दिया। महाराजा ने गवर्नर-जनरल से रोष प्रकट किया। अत: 1823 ई० में गवर्नर-जनरल ने वन्दनी पर फिर से महाराजा रणजीत सिंह का आधिपत्य स्वीकार कर लिया।

4. पुनः मैत्री-महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने का भरसक प्रयत्न किया। भरतपुर के सरदार ने महाराजा को 1,50,000 रुपए प्रतिदिन देने का प्रलोभन भी दिया और प्रार्थना की कि वह 20,000 सैनिकों से उसकी सहायता करे। परन्तु महाराजा ने उसे सहायता देने से इन्कार कर दिया। 1826 ई० में महाराजा रणजीत सिंह बीमार पड़ गया। उसकी प्रार्थना पर अंग्रेज़ सरकार ने डॉ० मूरे (Dr. Murray) को इलाज के लिए लाहौर भेजा। फलस्वरूप दोनों पक्षों में कुछ समय तक पुनः मैत्री बनी रही।

5. सम्बन्धों में पुनः बिगाड़-1828 से 1839 ई० तक लाहौर के शासक तथा ब्रिटिश सरकार में पारस्परिक सम्बन्ध दिनप्रतिदिन तनावपूर्ण होते चले गए। इस समय में निम्नलिखित घटनाओं ने दोनों में तनाव पैदा किया

(i) महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति-पिछले दस वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान, कश्मीर, डेराजात तथा पेशावर इत्यादि को विजय करके अपनी शक्ति विशेष रूप से बढ़ा ली थी। अंग्रेज़ सरकार महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति से ईर्ष्या करने लगी थी। अतः अंग्रेज सरकार ने एक ओर तो लाहौर राज्य को विभिन्न दिशाओं से ‘घेरा डालने की नीति’ को अपनाना आरम्भ कर दिया, परन्तु दूसरी ओर वे महाराजा के साथ अपनी मित्रता का दिखावा करते रहे।

(ii) सिन्ध का प्रश्न-महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के पारस्परिक सम्बन्धों में मतभेद तथा कटुता उत्पन्न करने वाली समस्याओं में सिन्ध की समस्या का विशेष स्थान है। यह प्रान्त लाहौर राज्य की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर स्थित होने के कारण काफ़ी सैनिक महत्त्व रखता था। महाराजा रणजीत सिंह के लिए आवश्यक था कि वह इसे अपने अधिकार में ले कर अपने राज्य की विदेशी आक्रमणों से रक्षा करे।

अंग्रेज़ सरकार भी सिन्ध तथा शिकारपुर के व्यापारिक महत्त्व को भली-भान्ति समझती थी। अतः वह यह नहीं चाहती थी कि यह प्रदेश महाराजा रणजीत सिंह के हाथ लगे। 1831 ई० में अंग्रेज़ सरकार ने अपने एक नाविक बर्नज (Burmes) को व्यापारिक सन्धि के लिए अमीरों के पास भेजा। उन्होंने इसी मिशन के हाथ महाराजा रणजीत सिंह के लिए उपहार भी भेज दिया ताकि यह अंग्रेजों की आन्तरिक आकांक्षाओं को भांप न सके। भले ही इस मिशन का स्वभाव प्रत्यक्ष रूप से मैत्रीपूर्ण था तथापि इसने महाराजा रणजीत सिंह के मन में अंग्रेजों की सिन्ध नीति के विषय में सन्देह उत्पन्न कर दिया।

(iii) महाराजा रणजीत सिंह तथा विलियम बैंटिंक की रोपड़ में भेंट-गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक महाराजा रणजीत सिंह के मन में उत्पन्न हुए सन्देह को भली-भान्ति जानता था। इधर रूस द्वारा भारतीय आक्रमण के समाचार भी जोरों से फैल रहे थे। अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल यह नहीं चाहता था कि इस संकट के समय उनके महाराजा के साथ सम्बन्ध बिगड़ जाएं। अतः उसने अक्तूबर, 1831 ई० में रोपड़ के स्थान पर महाराजा से भेंट की। परन्तु दूसरी ओर उसने पोण्टिञ्जर को सिन्ध के अमीरों के साथ एक व्यापारिक सन्धि करने के लिए सिन्ध भेज दिया।

पोण्टिञ्जर के प्रयत्नों से अंग्रेजों तथा सिन्ध के अमीरों के बीच में एक महत्त्वपूर्ण सन्धि हो गई। इसका पता चलने पर महाराजा रणजीत सिंह को बहुत दुःख हुआ।

(iv) शिकारपुर का प्रश्न-शिकारपुर के प्रश्न पर भी महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों में आपसी तनाव काफ़ी बढ़ गया। महाराजा रणजीत सिंह 1832 ई० से शिकारपुर को अपने आधिपत्य में लाने के लिए एक उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा में था। यह अवसर उसे माजरी कबीले के लोगों द्वारा लाहौर राज्य के सीमान्त प्रदेशों पर किये जाने वाले आक्रमणों से मिला। महाराजा रणजीत सिंह ने माजरी आक्रमणों के लिए सिन्ध के अमीरों को दोषी ठहरा कर शिकारपुर को हड़पने का प्रयत्न किया। परन्तु अंग्रेजों ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया।

(v) फिरोज़पुर का प्रश्न-अंग्रेजों के आपसी सम्बन्धों के इतिहास में फिरोज़पुर के प्रश्न का विशेष महत्त्व है। भले ही महाराजा रणजीत सिंह का फिरोजपुर पर अधिकार उचित तथा न्याय संगत था, तो भी अंग्रेजों ने उसे अधिकार न करने दिया। अंग्रेज़ सरकार ने 1835 ई० में फिरोज़पुर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया और तीन वर्ष बाद उसे अपनी स्थायी सैनिक छावनी बना लिया। परन्तु महाराजा को इस बार भी गुस्सा पी कर रह जाना पड़ा।

(vi) त्रिदलीय सन्धि-1837 ई० में रूस एशिया की ओर बढ़ने लगा था। अंग्रेजों को यह भय हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण न कर दे। अतः उन्होंने अफ़गानिस्तान के साथ मित्रता स्थापित करनी चाही। अंग्रेजों ने कैप्टन बर्नज़ (Burnes) को काबुल भेजा ताकि वह वहां के अमीर दोस्त मुहम्मद के साथ मित्रता व सन्धि की बातचीत कर सके। दोस्त मुहम्मद ने अंग्रेजों के साथ इस शर्त पर समझौता करना स्वीकार किया कि अंग्रेज़ बदले में महाराजा रणजीत सिंह से पेशावर का प्रदेश लेकर उसे सौंप दें। परन्तु अंग्रेज़ों के लिए महाराजा रणजीत सिंह की मित्रता आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण थी। इसलिए उन्होंने दोस्त मुहम्मद की इस शर्त को न माना। उधर दोस्त मुहम्मद रूस के साथ गठजोड़ करने लगा। अंग्रेजों के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी। उन्होंने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा के साथ एक समझौता किया। इस समझौते में महाराजा रणजीत सिंह को भी शामिल किया गया। यह समझौता तीन दलों में होने के कारण त्रिदलीय सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है।

महाराजा रणजीत सिंह ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर तो कर दिए परन्तु उसने सन्धि की एक महत्त्वपूर्ण धारा पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। वह यह थी कि, “अंग्रेज़ों की सेनाएं पंजाब से होकर काबुल पर आक्रमण कर सकती हैं।” परन्तु उसे भय था कि अंग्रेज़ अवश्य ही इस धारा का उल्लंघन करेंगे। अत: उसने अपने शासन काल के अन्तिम वर्षों में अंग्रेजों के विरुद्ध कई कदम उठाने का प्रयत्न किया। अत: 1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई।

सच तो यह है कि 1809 ई० से 1839 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों से अपनी मित्रता बनाए रखने की नीति को अपनाया। उसने यह निश्चय कर रखा था कि वह अंग्रेजों से युद्ध नहीं करेगा भले ही इसके लिए उसे बड़े-से-बड़ा बलिदान भी क्यों न करना पड़े।

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