Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 24 कृषि उपज का मण्डीकरण Textbook Exercise Questions, and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 24 कृषि उपज का मण्डीकरण
PSEB 12th Class Economics कृषि उपज का मण्डीकरण Textbook Questions and Answers
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
कृषि उत्पादन मण्डीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कृषि उत्पादन मण्डीकरण से अभिप्राय कृषि उत्पादन उपज की बिक्री तथा खरीददारों को एकत्रित करना होता है।
प्रश्न 2. नियमित मण्डी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियमित मण्डी कानून अधीन आरम्भ की जाती है, जोकि एक वस्तु अथवा वस्तुओं के समुच्चय के लिए बनाई जाती है। इसका संचालन मार्किट कमेटी द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 3.
नियमित मण्डी का मुख्य उद्देश्य बताओ।
उत्तर-
नियमित मण्डी का उद्देश्य कृषि उपज की भ्रष्ट बुराइयों को दूर करके किसानों के हितों की रक्षा करना होता है। किसानों से प्राप्त किए अधिक व्ययों पर रोक लगाई जाती है।
प्रश्न 4.
भारत में नियमित मण्डियों की स्थिति का वर्णन करो।
उत्तर-
1951 में 200 नियमित मण्डियां स्थापित की गई थीं। 2020-21 में नियमित मण्डियों की संख्या 29000 हो गई है।
प्रश्न 5.
कृषि मण्डीकरण के सम्बन्ध में मॉडल एक्ट 2003 की कोई एक मुख्य विशेषता बताओ।
उत्तर-
किसानों, स्थानिक अधिकारियों तथा अन्य लोगों को नई मण्डियां स्थापित करने की आज्ञा दी गई है।
प्रश्न 6.
भारत में कृषि उत्पादन उपज के भण्डार की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
सन् 2019 तक भारत में 211 मिलियन मीट्रिक टन अनाज के भण्डार की सुविधाएं उपलब्ध थीं।
प्रश्न 7.
जब कृषक अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के पश्चात् उपज को बाज़ार में बिक्री के लिए तैयार हो जाता है तो उसको ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
बिक्री योग्य आधिक्य (Marketable Surplus)।
प्रश्न 8.
भारत में …………………….. मिलियन टन अनाज भण्डारण की योग्यता है।
उत्तर-
162 मिलियन मीट्रिक टन।
प्रश्न 9.
भारत में अनाज भण्डार के गोदाम ………….. हैं।
(a) अधिक
(b) सन्तोषजनक
(c) कम
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) कम।
प्रश्न 10.
भारत में सन् 2019 में ………………… नियमित मण्डियां गांव तथा शहरों में काम करती हैं।
उत्तर-
शहरों में 8511 और गांवों में 20808 मण्डियां हैं।
प्रश्न 11.
भारत में कृषि उपज की न्यूनतम समर्थन कीमत कृषि लागत तथा कीमत कमीशन द्वारा निर्धारण होती है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 12.
सन्तोषजनक कृषि उपज की बिक्री के लिए उचित शर्त ………. है।
(a) साहूकार से छुटकारा
(b) सौदेबाज़ी की अधिक शक्ति
(c) मध्यस्थों का अन्त
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 13.
भारत में कृषि उपज की बिक्री की मुख्य समस्याएँ ………… हैं।
(a) संगठन की गैर-मौजूदगी
(b) बिचौलियों की अधिक संख्या
(c) ग्रेडिंग की गैर-मौजूदगी
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 14.
सहकारी मण्डीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सहकारी मण्डीकरण का अर्थ आपसी लाभ प्राप्ति और मण्डीकरण की समस्याओं का हल करने के लिए आपसी सहयोग देना है।
प्रश्न 15.
भारत में कृषि उपज की बिक्री के लिए उचित कदम उठाये गए हैं ?
उत्तर
-सही।
II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की समस्याओं को स्पष्ट करो।
उत्तर –
भारत में कृषि उपज के मण्डीकरण की समस्याएं इस प्रकार हैं –
- अपर्याप्त माल गोदाम-किसानों के पास माल गोदाम अपर्याप्त मात्रा में हैं। इसलिए किसानों की उपज का 10% से 20% हिस्सा नष्ट हो जाता है।
- साख सुविधाओं की कमी-किसान को अपनी उपज बहुत कम कीमत पर बेचनी पड़ती है। किसानm ऋण में रहता है, इसलिए फसल की कटाई के तुरन्त पश्चात् वह अपनी उपज साहूकार के पास बेचने के लिए मजबूर हो जाता है।
प्रश्न 2.
भारत में नियमित मण्डियों की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
भारत में नियमित मण्डियों का उद्देश्य किसानों के साथ होने वाले शोषण को समाप्त करना है। भारत में नियमित मण्डियों की स्थापना कृषि उपज मण्डीकरण एक्ट 1951 के अनुसार की गई। 31 मार्च, 2019 तक भारत में 8511 मण्डियां थीं और 20868 मण्डियाँ फसल के आने पर काम करती हैं। नियमित मण्डियों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
- नियमित मण्डियों का संचालन मार्किट कमेटियों द्वारा किया जाता है जिसमें राज्य सरकार के कर्मचारी, ज़िला बोर्ड, व्यापारी, कमीशन एजेन्ट तथा किसानों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
- मार्किट कमेटी मण्डी में प्राप्त किए व्यय को निर्धारित करती है। यह भी निश्चित किया जाता है कि कितना व्यय खरीददार तथा कितना बेचने वाले को सहन करना पड़ेगा।
प्रश्न 3.
भारत में नियमित मण्डियों के लिए सरकार द्वारा उठाए कोई दो कदम बताएं।
उत्तर-
नियमित मण्डियों के लिए सरकार द्वारा उठाए गए पगभारत में सरकार ने नियमित मण्डियों सम्बन्धी निम्नलिखित पग उठाए हैं –
1. मण्डियों का सर्वेक्षण-देश में विभिन्न वस्तुओं की बिक्री के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों पर मण्डियों का सर्वेक्षण किया गया है। सरकार इन मण्डियों में वस्तुओं की कीमतों को प्रकाशित करती है तथा प्रचार किया जाता है।
2. ग्रेडिंग तथा स्तरीकरण-भारत सरकार ने कृषि उत्पादन वस्तुओं की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए एगमार्क की मोहर लगाने का निर्णय किया। एगमार्क की वस्तुएं विश्वसनीय होती हैं, क्योंकि वस्तुओं की गुणवत्ता को परखकर मोहर लगाने का अधिकार दिया जाता है।
III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की समस्याओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-
भारत में कृषि उपज के मण्डीकरण की समस्याएं इस प्रकार हैं –
- अपर्याप्त माल गोदाम-किसानों के पास माल गोदाम अपर्याप्त मात्रा में हैं। इसलिए किसानों की उपज का 10% से 20% हिस्सा नष्ट हो जाता है।
- साख सुविधाओं की कमी-किसान को अपनी उपज बहुत कम कीमत पर बेचनी पड़ती है। किसान ऋण में रहता है, इसलिए फसल की कटाई के तुरन्त पश्चात् वह अपनी उपज साहूकार के पास बेचने के लिए मजबूर हो जाता है।
- यातायात की सुविधाओं की कमी-भारत में यातायात के साधन, रेलों की कमी के कारण, किसान को गांवों में से शहर तक उपज ले जाने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। उसको अधिक लागत सहन करनी पड़ती है तथा मार्ग में ही उसकी उपज का कुछ भाग नष्ट हो जाता है।
- मण्डी में भ्रष्टाचार-भारत का किसान अनपढ़ तथा अज्ञानी है। मण्डी में उसका शोषण किया जाता है। किसान से अधिक कटौतियां प्राप्त की जाती हैं। नापतोल में हेरा-फेरी की जाती है।
प्रश्न 2.
कृषि मण्डियों में कौन-सी सुविधाओं की आवश्यकता है ?
उत्तर-
भारत में कृषि की उपज के मण्डीकरण में निम्नलिखित बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकता है
- किसानों के पास माल गोदाम की उचित सुविधाएं होनी चाहिए।
- किसान के पास फसल को कुछ समय अपने पास रखने की समर्था होनी चाहिए अर्थात् फसल की कटाई के पश्चात् फसल बेचने की जगह पर कुछ समय के लिए किसान अपनी उपज को संभाल कर रख सकें तथा उचित मूल्य पर ही उसकी बिक्री करें।
- किसान को यातायात के लिए सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि वह अपनी उपज गांव में बेचने की जगह पर मण्डियों में उचित कीमत पर उपज बेच सकें।
- बाज़ार सम्बन्धी किसान को पूरी जानकारी प्रदान करनी चाहिए।
- बिचोलों की संख्या को घटाकर उनका कमीशन निर्धारण करना चाहिए।
प्रश्न 3.
भारत में नियमित मण्डियों की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
भारत में नियमित मण्डियों का उद्देश्य किसानों के साथ होने वाले शोषण को समाप्त करना है। भारत में नियमित मण्डियों की स्थापना कृषि उपज मण्डीकरण एक्ट 1951 के अनुसार की गई। 31 मार्च, 2009 तक भारत में 7139 मण्डियां थीं और 20868 मण्डियाँ फसल के आने पर काम करती हैं। नियमित मण्डियों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं –
- नियमित मण्डियों का संचालन मार्किट कमेटियों द्वारा किया जाता है, जिसमें राज्य सरकार के कर्मचारी, ज़िला बोर्ड, व्यापारी, कमीशन एजेन्ट तथा किसानों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
- मार्किट कमेटी मण्डी में प्राप्त किए व्यय को निर्धारण करती है। यह भी निश्चित किया जाता है कि कितना व्यय खरीददार तथा कितना बेचने वाले को सहन करना पड़ेगा।
- नियमित मण्डियों द्वारा किसानों के साथ होने वाले छल-कपट पर नियन्त्रण करना है।
- नियमित मण्डियों द्वारा किसानों को प्राप्त होने वाली आय तथा उपभोक्ताओं द्वारा किए गए व्यय में अन्तर को घटाना है।
- मॉडल एक्ट 2003 अनुसार नियमित मण्डियों में नई सोच उत्पन्न की गई है, जिस द्वारा कई तरह के सुधार किए गए हैं। फसल की बिक्री के समय 20868 मण्डियां गांव में लगाई जाती है जिसके द्वारा किसान अपनी उपज गांव में ही बेच सकता है।
प्रश्न 4.
सहकारी मार्किट कमेटियों पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत में सहकारी मार्किट कमेटियों की स्थापना 1954 में की गई। सहकारी मार्किट कमेटियाँ किसानों की उपज का उचित मूल्य दिलवाने में सहायता करती हैं। इसके द्वारा किसानों को ऋण की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं ताकि किसान अपनी उपज, कटाई के तुरन्त पश्चात् न बेचें तथा कुछ समय रुककर अच्छी कीमत पर फसल बेच सकें। मार्किट कमेटियों द्वारा किसान की उपज माल गोदाम में रखने की सुविधा प्रदान की जाती है।
किसान को सस्ते मूल्य पर यातायात के साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं। किसानों को ग्रेडिंग तथा मयारीकरण की फसलें बेचने के लिए सहायता की जाती है। विचोलों की जगह पर फसल सीधी ग्राहकों के पास बेचने का प्रबन्ध किया जाता है। इस प्रकार सहकारी मार्किट कमेटियाँ किसानों के लाभ हेतू महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। 2019-20 में 55885 करोड़ रु० की उपज की बिक्री की गई। इन कमेटियों के पास 4.4 मिलियन टन अनाज भण्डार करने के लिए गोदामों की व्यवस्था है।
प्रश्न 5.
भारत में कृषि उपज के मण्डीकरण सम्बन्धी सरकारी नीति पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
भारत में कृषि उपज के मण्डीकरण सम्बन्धी सरकार ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण पग उठाए हैं –
- मार्किट कमेटियों की स्थापना-भारत में मण्डियों को नियमित करने के लिए मार्किट कमेटियों की स्थापना की गई है।
- बाज़ार सम्बन्धी सूचना-भारत में बाज़ार सम्बन्धी सूचना प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण कार्य सरकार द्वारा किया गया है। इस सम्बन्धी रोज़ाना मण्डियों के मूल्य तथा होने वाले परिवर्तन के बारे रेडियो, टी० वी० तथा अखबारों में सूचना दी जाती है।
- वस्तुओं की ग्रेडिंग तथा मयारीकरण-वस्तुओं की ग्रेडिंग तथा मयारीकरण के लिए भी सरकार किसानों की सहायता करती है। सरकार द्वारा वस्तुओं की परख उपरान्त एगमार्क (AGMARK) का सर्टीफिकेट दिया जाता है। इससे अच्छी किस्म की वस्तुओं की बिक्री आसानी से हो जाती है।
- गोदामों की सुविधा-कृषि उपज के भण्डार के लिए सरकार ने गोदामों की सुविधा में प्रशंसनीय वृद्धि की है। सन् 2012 में भारत में 751 लाख टन अनाज के भण्डार के लिए गोदाम थे।
प्रश्न 6.
भारत में अनाज की सरकारी खरीद पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
भारत में 1965 में अनाज की कमी के पश्चात् सरकार ने अनाज का बफर स्टॉक स्थापित करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य के लिए सरकार के पास 2006-07 में 358 लाख टन गेहूँ तथा चावल की खरीद की गई। 2017-20 तक भारत में गेहूँ तथा चावल की बफर कस्वटी (Buffer Norm) 311 लाख टन थी जबकि असल भण्डार 312 लाख टन था।
प्रश्न 7.
भारत में कृषि उपज की कम-से-कम समर्थन मूल्य पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
भारत में कृषि उपज का कम-से-कम समर्थन मूल्य निश्चित किया जाता है, क्योंकि गेहूँ तथा चावल की फसल मण्डियों में आने से अनाज की पूर्ति बढ़ जाती है। इसलिए कीमतों के घटने का डर होता है। पिछले दस वर्षों से गेहूँ तथा चावल की कम-से-कम समर्थन कीमत में काफ़ी वृद्धि हुई है। भारत में एफ० सी० आई० (E.C.I.) द्वारा गेहूँ तथा चावल की खरीद की जाती है तथा इससे प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए बफर स्टॉक स्थापित किया जाता है। 2006-07 में गेहूँ की कम-से-कम समर्थन कीमत (Minimum support price) 360 रु० प्रति क्विटल थी जोकि 2020-21 में 1658 रु० निश्चित की गई। चावल की कम-से-कम समर्थन कीमत 1994-95 में 340 रु० थी जोकि 2020-21 में बढ़ाकर 1868 रु० की गई।
प्रश्न 8.
भारत में कृषि उपज के माल गोदामों की भण्डार समर्था का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत में अनाज की जो सरकार द्वारा खरीद की जाती है। इसको सम्भाल कर रखने के लिए माल गोदामों की समर्था इस प्रकार है-
- फूड कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (F.C.I.) भारत में फूड कार्पोरेशन गेहूँ तथा चावल की समर्थन कीमत पर खरीद करती है। 2018 में एफ० सी० आई० 362 लाख टन अनाज भण्डार की समर्था थी।
- केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन (C.W.C.)-केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन भी अनाज के भण्डार की सुविधाएं प्रदान करती हैं। इस संस्था के पास 99 लाख टन अनाज भण्डार की समर्था है।
- राज्य गोदाम कार्पोरेशन (S.W.C.)-भारत में 16 राज्यों में राज्य गोदाम कार्पोरेशन स्थापित किए गए हैं। इन गोदामों में 273 लाख टन अनाज भण्डार की समर्था है।
- सहकारी गोदाम (Co-operative Warehouses)-राष्ट्रीय सहकारी विकास कार्पोरेशन (NCDC) की स्थापना 1963 में की गई। यह कार्पोरेशन सहकारी समितियों द्वारा भण्डार की सुविधाएं प्रदान करती हैं। 2012 में सहकारी गोदामों में 137.2 लाख टन अनाज की समर्था थी।
- ग्रामीण विकास विभाग (Deptt. of Rural Development)-ग्रामीण विकास विभाग द्वारा भी गोदामों की सुविधा में वृद्धि की गई है। 2019 में ग्रामीण विकास विभाग द्वारा 25 लाख टन अनाज भण्डार करने की समर्था थी।
- नाबार्ड अधीन विभिन्न एजेन्सियाँ (Various Agencies through NABARD)-भारत में कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय बैंक (NABARD) द्वारा निजी क्षेत्र (Private Sector) में अनाज के भण्डार के लिए गोदाम स्थापित करने के लिए उत्साहित किया जाता है।
इस संस्था द्वारा विभिन्न एजेन्सियों द्वारा बनाए गए माल गोदामों की समर्था 2018 में 211 मिलियन थी। अन्य एजेन्सियों द्वारा भी 82.1 लाख टन अनाज भण्डार की सुविधा प्रदान की गई है। भारत में वर्ष 2019 में विभिन्न संगठनों द्वारा 751 लाख टन अनाज भण्डार के लिए माल गोदाम की सुविधा थी जो कि देश की ज़रूरतों से कहीं कम हैं। .
V. दीर्य उत्तरीय प्रश्न न मिलन (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की समस्याओं का वर्णन करो। (Explain the problems of Agricultural selecting in India.)
उत्तर-
मण्डीकरण वह क्रिया है, जहां उत्पादक तथा खरीददारों को एक-दूसरे के सम्पर्क में लाया जाता है। उत्पादक, कृषि उपज पैदा करने वाले किसान होते हैं। खरीददारों में उपभोगी अथवा व्यापारी होते हैं। भारत में 70% लोग कृषि उत्पादन का कार्य करते हैं तथा गांवों में रहते हैं। कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण में बहुत दोष हैं।
कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की समस्याएं (Problems of Agricultural Marketing)-
अथवा
कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की असंतोषजनक स्थिति (Unsatisfactory Condition of Agricultural Marketing) भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसकी मुख्य समस्याएं इस प्रकार हैं –
- अपर्याप्त गोदाम सुविधाएं-भारत में कृषि उत्पादन उपज के भण्डार करने के लिए पर्याप्त गोदाम नहीं हैं। गांवों में कच्चे गोदाम हैं, जिनमें उपज का 10% से 20% भाग नष्ट हो जाता है। इसलिए किसान फसल की कटाई के पश्चात् इसको तुरन्त बेच देते हैं। किसानों को उपज का उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता।
- अपर्याप्त यातायात के साधन–भारत में यातायात के साधन भी अपर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। भारत के बहुत से भागों में रेल अथवा पक्की सड़क की सुविधा नहीं है। कुछ साधनों पर कच्ची सड़कें भी नहीं हैं । इसलिए कृषि उत्पादन उपज को घर से मण्डी तक ले जाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यातायात के साधनों पर अधिक व्यय करना पड़ता है तथा बहुत-सी उपज मार्ग में खराब हो जाती है।
- अपर्याप्त साख सुविधाएं-भारत के किसान साख सुविधाओं की कमी के कारण अपनी उपज अनुचित समय, अनुचित लोगों को अनुचित कीमतों पर बेचनी पड़ती है। किसान पर ऋण होने के कारण, उसको अपनी उपज फसल की कटाई के पश्चात् तुरन्त बेचनी पड़ती है। साख सुविधाओं की कमी के कारण वह अपनी फसल को कुछ देर तक सम्भाल कर नहीं रख सकता।
- ग्रेडिंग तथा मयारीकरण का अभाव-भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण की एक समस्या यह है कि वस्तुओं की उचित ग्रेडिंग नहीं की जाती। इस कारण किसानों को उपज की उचित कीमत प्राप्त नहीं होती। खरीददार भी बिना मयारीकरण की वस्तुओं की खरीद करना पसन्द नहीं करते।
- बाज़ार सम्बन्धी सूचना का अभाव-किसान को बाज़ार सम्बन्धी उचित सूचना भी प्राप्त नहीं होती। उनको विभिन्न स्थानों पर उपज की कीमतों, मांग, सरकारी नीति तथा अन्तर्राष्ट्रीय परिवर्तनों का ज्ञान प्राप्त नहीं होता। इसलिए जो सूचना साहूकारों से प्राप्त होती है, वह किसान के पक्ष में नहीं होती।
- संस्थागत मंडियों का अभाव-भारत में कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण का एक दोष यह है कि किसान अपनी उपज व्यक्तिगत तौर पर मण्डी में बेचता है। इसका मुख्य कारण यह है कि देश में सहकारी मण्डी समितियों की कमी पाई जाती है। सरकार द्वारा भी उपज खरीदने का उचित प्रबन्ध नहीं है। यदि देश में संस्थागत मण्डियाँ हों तो किसान को उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो सकता है।
- बिचोलों की अधिक संख्या-कृषि उपज किसान से लेकर अन्तिम उपभोगी तक पहुँचने के लिए बहुत से बिचोले होते हैं। प्रत्येक बिचोले का अपना कमीशन होता है। किसान को उपज की कम कीमत प्राप्त होती है, परन्तु जब वह उपज अन्तिम उपभोगी के पास पहुँचती है तो उसमें दलाल, परचून विक्रेता का कमीशन बढ़ने के कारण, उपज की कीमत बहुत बढ़ जाती है।
- खरीद तथा बिक्री में भ्रष्टाचार-कृषि उत्पादन उपज की गुप्त खरीद तथा बेच, गलत मापतोल के पैमाने, फ़िजूल कटौतियाँ इत्यादि भी कृषि उत्पादन उपज के मण्डीकरण के कुछ अन्य दोष हैं। उपज खरीदने वाले गुप्त रूप में उपज की कीमत निश्चित कर लेते हैं।
इसलिए काश्तकार को अपनी उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता। कई स्थानों पर बाटों की जगह पर पत्थरों को बाटों के रूप में प्रयोग किया जाता है, जिनका भार साधारण बाटों से अधिक होता है। मण्डी फीस के रूप में बहुत सी फ़िजूल कटौतियाँ भी शामिल की जाती हैं। इस प्रकार किसानों का शोषण कई प्रकार से किया जाता है।
प्रश्न 2.
नियमित मण्डियों से क्या अभिप्राय है? भारत में नियमित मण्डियों के विकास के लिए सरकार द्वारा किए गए यत्नों को स्पष्ट करो।
(What do you mean by regulated Market ? Discuss the steps taken by the Government of India regarding Regulated Markets.)
उत्तर-
नियमित मण्डी किसी नियम को आधारित करके एक वस्तु अथवा वस्तुओं के समूह के लिए बनाई जाती है। ऐसी मण्डी का प्रबन्ध मार्किट कमेटी (Market Committee) द्वारा किया जाता है। मार्किट कमेटी में राज्य सरकार, जिला बोर्ड, व्यापारी कमीशन एजेन्ट तथा किसानों के प्रतिनिधि होते हैं। यह कमेटी सरकार द्वारा निश्चित समय के लिए नियुक्त की जाती है जोकि मण्डी का प्रबन्ध करती है। मार्किट कमेटी द्वारा कमीशन तथा कटौतियाँ निर्धारित की जाती हैं। नियमित मण्डी का मुख्य उद्देश्य बाजार में भ्रष्टाचार को दूर करके किसानों के हितों की रक्षा करना होता है। इस उद्देश्य के लिए सभी राज्यों में कानून पास किए गए हैं। 1951 में नियमित मण्डियों की संख्या 200 थी, जोकि 31 मार्च, 2012 को बढ़कर 7139 हो गई है। इनके बिना समय-समय पर गांवों में जो मण्डियां लगाई जाती हैं, उनकी संख्या 20868 है।
नियमित मण्डियों की विशेषताएँ–नियमित मण्डियों को सरकार ने स्वतन्त्रता के पश्चात् स्थापित किया है। नियमित मण्डी का मुख्य उद्देश्य किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलवाना है। उत्पादक तथा उपभोगी में कीमत के अन्तर को घटाना है। व्यापारी तथा कमीशन एजेंटों द्वारा प्राप्त किए जाने वाले कमीशन को नियमित करना है। इस सम्बन्ध में केन्द्र सरकार ने 2003 में मॉडल एक्ट पास किया, जिसकी मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं –
- मॉडल एकट 2003 अनुसार किसानों तथा स्थानिक अधिकारियों को आज्ञा दी गई है कि वह किसी क्षेत्र में नई मण्डी स्थापित कर सकते हैं।
- किसानों के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि अपनी उपज निश्चित नियमित मण्डी में ही बेचें।
- ऐसे खरीद केन्द्र स्थापित किए गए हैं, जहां पर किसान तथा उपभोगी प्रत्यक्ष तौर पर मण्डी में खरीद, बेच कर सकते हैं।
- कृषि उत्पादन मण्डियों के विकास तथा प्रबन्ध के लिए सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र में भ्रातृभाव को उत्साहित किया गया है।
- नाशवान वस्तुएं जैसे कि सब्जियां, प्याज, फल तथा फूलों इत्यादि के लिए विशेष मण्डियां स्थापित की गई हैं।
- ठेकेदारी काश्तकार के सम्बन्ध में नए नियम बनाए गए हैं।
सहकारी मण्डियाँ (Co-operative Marketing)-भारत में 1954 में सहकारी मण्डीकरण समितियों की स्थापना की गई। सहकारी मार्किटिंग समितियों में इसके सदस्य अपनी अधिक उपज सोसाइटी को बेचते हैं। यदि वह अपनी उपज नहीं बेचना चाहते तो सोसाइटी के पास रखकर उधार प्राप्त करते हैं, जब उनको उपज का उचित मूल्य प्राप्त होता है तो उस समय उपज बेची जा सकती है। सहकारी मार्किट समितियों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हुई है। 1960-61 में इन समितियों द्वारा 169 करोड़ रु० कृषि उत्पादन उपज बेची गई, जोकि 2019-20 में 35 हज़ार करोड़ रु० हो गई। यह समितियां पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश में अधिक प्रचलित हैं। नियमित मण्डियों के लिए सरकार द्वारा उठाए गए पगभारत में सरकार ने नियमित मण्डियों सम्बन्धी निम्नलिखित पग उठाए हैं –
- मण्डियों का सर्वेक्षण-देश में विभिन्न वस्तुओं की बिक्री के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों पर मण्डियों का सर्वेक्षण किया गया है। सरकार इन मण्डियों में वस्तुओं की कीमतों को प्रकाशित करती है तथा प्रचार किया जाता है।
- ग्रेडिंग तथा मयारीकरण-भारत सरकार ने कृषि उत्पादन वस्तुओं की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए एगमार्क की मोहर लगाने का निर्णय किया। एगमार्क की वस्तुएं विश्वसनीय होती हैं, क्योंकि वस्तुओं की गुणवत्ता को परखकर मोहर लगाने का अधिकार दिया जाता है।
- नियमित मण्डियों की स्थापना-भारत सरकार ने 31 मार्च, 2020 तक 55885 कृषि उत्पादन मण्डियों की स्थापना की है, जोकि नियमों की पालना करके कृषि उत्पादन वस्तुओं की खरीद बेच करती हैं। इस समय कृषि उत्पादन उपज का 80% हिस्सा नियमित मण्डियों में बेचा जाता है। 20868 मण्डियाँ फसल आने के समय काम करती हैं।
- गोदाम की सुविधाएं-किसानों की उपज को सम्भालने के लिए गोदाम स्थापित किए गए हैं। 1951 में केन्द्रीय वेयर हाऊसिंग कार्पोरेशन की स्थापना की गई, जिस द्वारा देश में 751 लाख टन अनाज रखने की व्यवस्था की गई है।
- सहकारी मार्किटिंग समितियों की स्थापना-भारत में सहकारी मण्डीकरण समितियां स्थापित की गई हैं, जोकि कृषि उत्पादन उपज की बिक्री के साथ-साथ उधार की सुविधाएं भी प्रदान करती हैं।
- कृषि उत्पादन वस्तुओं का निर्यात-सरकार ने कृषि उत्पादन वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि करने के लिए विशेष बोर्डों की स्थापना की है। 2009-10 में 31500 करोड़ रु० की वस्तुओं का विदेशों को निर्यात किया गया। नई विदेशी नीति (2012-17) में कृषि उत्पादन उपज के निर्यात में वृद्धि करने के लिए कृषि निर्यात जोन बनाए गए हैं।
- कृषि उत्पादन मण्डीकरण सुधार–भारत सरकार ने जोन 2002 में कृषि उत्पादन मण्डीकरण सुधार के लिए टास्क फोरस (Task Force) की स्थापना की जिसमें किसानों द्वारा उपज को प्रत्यक्ष तौर पर बेचना, भविष्य के लिए समझौते करने, गोदामों में माल रखने की सुविधा तथा आधुनिक तकनीकों की जानकारी प्रदान करना शामिल है।
प्रश्न 3.
भारत में सरकार द्वारा कृषि उत्पादन उपज की प्राप्ति तथा कीमत नीति को स्पष्ट करो। (Explain the Procurement and Price Policy of Agricultural Produce in India.)
उत्तर-
कृषि उत्पादन उपज की कीमत निर्धारण करना महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस द्वारा किसानों की आय निश्चित होती है। अनाज खरीदने वाले भी उपज की कीमत से प्रभावित होते हैं। इसलिए कृषि उत्पादन उपज की कीमतें तथा प्राप्ति महत्त्वपूर्ण समस्या है। कृषि उत्पादन उपज की कीमत नीति-भारत जैसे देश में कृषि उत्पादन उपज की कीमत को निर्धारित करना महत्त्वपूर्ण समस्या है। कृषि उत्पादन आगतों (Inputs) की कीमतें निरन्तर बढ़ रही हैं। इसलिए कृषि उत्पादन उपज की कीमतों में वृद्धि करना अनिवार्य हो जाता है, परन्तु भारत में अधिक लोग निर्धन होने के कारण अनाज खरीदने की सामर्थ्य नहीं रखते, इसलिए अनाज की अधिक कीमतें निश्चित करना सम्भव नहीं।
अनाज की कीमतों में निरन्तर परिवर्तन होते हैं। इसलिए मुख्य तौर पर कीमतों में परिवर्तनों के दो कारण होते हैं-
1. मांग पक्ष-
- कृषि उत्पादन उपज की मांग में निरन्तर वृद्धि हो रही है, क्योंकि भारत में जनसंख्या तीव्रता से बढ़ रही है।
- उद्योगों का विकास होने के कारण कृषि उत्पादन उपज की मांग कच्चे माल के तौर पर अधिक रही है।
- कृषि उत्पादन उपज से वस्तुओं का निर्माण करके निर्यात किया जाता है। इसलिए मांग में वृद्धि हो रही है।
2. पूर्ति पक्ष-
कृषि उत्पादन के पूर्ति पक्ष में निरन्तर वृद्धि हो रही है। भारत में हरित क्रान्ति के पश्चात् वस्तुओं की उपज तथा उत्पादकता दोनों में ही वृद्धि हुई है। कुछ राज्यों पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में कृषि उत्पादन उपज में बहुत वृद्धि हुई है, जबकि बहुत से राज्यों में उत्पादकता कम है। कीमत स्थिरता की नीति-कृषि उत्पादन उपज की कीमतों को स्थिर रखा जाए अथवा दूसरी वस्तुओं की कीमतों के अनुसार बढ़ने दिया जाए, यह महत्त्वपूर्ण समस्या है।
यदि कीमतों में वृद्धि दूसरी उपभोगी वस्तुओं की कीमतों अनुसार की जाती है तो देश में लागत वृद्धि मुद्रा स्फीति उत्पन्न हो जाएगी। उपभोगी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकेंगे। यदि वस्तुओं को कम रखने का यत्न किया जाता है तो उत्पादक निरुत्साहित हो जाते हैं।
किसान अपनी लागत भी पूरी नहीं कर सकेंगे तो कृषि उत्पादन में उनकी रुचि कम हो जाती है। इसलिए उचित कीमत नीति निर्धारित करने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए –
- कीमत स्तर इस प्रकार निश्चित किया जाए ताकि किसान उत्पादन करने के लिए उत्साहित हों। तकनीक तथा आधुनिक ढंगों का प्रयोग किया जा सके।
- कृषि उत्पादन उपज की कीमतों का प्रभाव अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों पर देखना चाहिए । जब कृषि उत्पादन उपज को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है तो बाकी वस्तुओं की कीमतें बढ़ने की सम्भावना होगी, जिससे मुद्रा स्फीति उत्पन्न हो सकती है।
- कृषि उत्पादन क्षेत्र तथा गैर-कृषि उत्पादन क्षेत्र में कीमतों के सन्तुलन रखने की आवश्यकता है। जैसे कि रासायनिक खादों, कीड़ेमार दवाइयों, बिजली, कपड़ा इत्यादि वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से कृषि उत्पादन उपज की कीमतों में वृद्धि भी अनिवार्य होगी। इस उद्देश्य के लिए भारत सरकार ने देश में कृषि उत्पादन, लागत तथा कीमत कमीशन की स्थापना 1965 में की।
इस कमीशन को पहले कृषि उत्पादन कीमत कमीशन कहा जाता था। यह कमीशन कृषि उत्पादन में प्रयोग किए जाने वाले कच्चे माल की कीमतों को ध्यान में रखकर विभिन्न फसलों की कीमत निर्धारित करता है।
इसको न्यूनतम समर्थन कीमत (Minimum Support Price) कहा जाता है। इसको सरकारी प्राप्ति कीमत (Procurement Price) भी कहते हैं। प्राप्ति कीमत वह कीमत होती है, जिस पर देश की सरकार बाज़ार में आई उपज की खरीद करती है। इस कमीशन द्वारा डिपुओं पर दी जाने वाली चीनी, गेहूँ, चावल इत्यादि की कीमत भी निर्धारण की जाती है। कृषि उत्पादन उपज की सरकारी खरीद-भारत में कृषि मानसून हवाओं पर निर्भर है। इसलिए कृषि उत्पादन उपज अनिश्चित होने के कारण 1965-66 में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
इसलिए सरकार ने अनाज भण्डार (Buffer stock) बनाने का निर्णय किया। इस नीति अधीन सरकार ने 1965 में कृषि उत्पादन लागतों तथा कीमतों कमीशन की स्थापना की, जोकि कृषि उत्पादन उपज की कम-से-कम समर्थन कीमत निश्चित करता है, जिसको प्राप्ति कीमत (Procurement Price) कहा जाता है । कम-से-कम समर्थन कीमत फसल को बीजते समय बताई जाती है ताकि किसान उस कीमत अनुसार फसल बीज सकें। देश में डिपुओं पर कम कीमत पर बेची जाने वाली वस्तुओं की कीमत भी कमीशन द्वारा निश्चित की जाती है। सरकार द्वारा कृषि उत्पादन उपज की खरीद करके अनाज का भण्डार बनाया जाता है ताकि मुश्किल समय प्रयोग किया जा सके।
भारत में फूड कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा अनाज खरीदा जाता है। कृषि उपज की कीमतों में उचित वृद्धि की गई है, चाहे किसान को उपज का उचित मूल्य प्राप्त नहीं होता, परन्तु अनाज की पैदावार बढ़ने के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। उपभोक्ताओं को भी इस नीति का लाभ प्राप्त हुआ है। उनको अनाज उचित कीमतों पर प्राप्त हो जाता है। कृषि उत्पादन उपज की कीमतों को वैज्ञानिक बनाने की आवश्यकता है, इसलिए इस समस्या को मांग तथा लागत पक्ष से देखना आवश्यक है। समर्थन कीमत पर उचित वृद्धि करके किसान की आर्थिक स्थिति में सुधार करना चाहिए, जबकि देश के निर्धन लोगों तथा मजदूरों को वितरण प्रणाली द्वारा कम कीमतों पर अनाज खरीदने की सुविधा देनी चाहिए।
प्रश्न 4.
भारत में कृषि उत्पादन उपज के लिए माल गोदामों की सुविधा को स्पष्ट करो। (Explain the Warehousing facilities for Agriculture Produce in India.)
उत्तर-
भारत में कृषि उत्पादन उपज के भण्डार की समस्या बहुत समय से चली आ रही है। भण्डार सुविधाओं की कमी के कारण बहुत-सा अनाज नष्ट हो जाता है। इसलिए 1954 में सर्व भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण कमेटी (All India Rural Credit Survey Committee) की सिफारिशों के अनुसार
- केन्द्रीय स्तर
- राज्य स्तर
- ग्रामीण स्तर पर गोदाम की सुविधाएं प्रदान करने का कार्य आरम्भ किया गया।
इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय सहकारी विकास तथा माल गोदाम बोर्ड (1956) तथा केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन (1957) में स्थापित किए गए। इसके पश्चात् सभी राज्यों में राज्य गोदाम कार्पोरेशनों की स्थापना की गई।
इस समय सार्वजनिक क्षेत्र में तीन एजेन्सियाँ हैं, जोकि बड़े पैमाने पर गोदाम स्थापित करती हैं-
- फूड कापैरेशन आँफ इंडिया (Food Corporation of India-F.C.I.)
- केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन (Central Warehousing Corporation-C.W.C.)
- राज्य गोदाम कार्पोरेशन (State Warehousing Corporation-S.W.C.)
फूड कार्पोरेशन ऑफ़ इण्डिया (F.C.I.) के अपने गोदाम हैं तथा बाकी की सरकारी तथा निजी संस्थाओं से गोदाम किराए पर लेती हैं। इसकी कुल समर्था लगभग 32.05 मिलियन मीट्रिक टन है।
केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन (C.W.C.) का मुख्य कार्य उचित स्थानों पर ज़मीन खरीद कर गोदामों का निर्माण करना है। इस कार्पोरेशन के पास 470 माल गोदाम हैं जिनकी समर्था 10.7 मिलियन मीट्रिक टन है। राज्य गोदाम कार्पोरेशन (S.W.C.) भी उचित स्थानों पर गोदाम निर्माण करके अनाज भण्डार की सुविधाएं प्रदान करती हैं। इसके पास लगभग 2000 गोदाम हैं, जिनकी भण्डार समर्था 21.29 मिलियन मीट्रिक टन है। इसके अतिरिक्त सहकारी समितियाँ ग्रामीण क्षेत्र (Rural Areas) में अनाज, खाद, बीज इत्यादि रखने की सुविधा प्रदान की जाती है। 2019-20 में सहकारी समितियों की भण्डार समर्था 154 लाख टन थी। इसके बिना देश में 3200 कोल्ड स्टोर बनाए गए हैं, जिनमें सब्जियां, फल, मीट, मछलियाँ रखने की सुविधा प्रदान की जाती हैं। कोल्ड स्टोरों की समर्था 80 लाख टन है।
केन्द्रीय क्षेत्र द्वारा ग्रामीण गोदाम निर्माण योजना-ग्रामीण क्षेत्रों में वैज्ञानिक ढंग से स्टोर बनाने के लिए 2001 में सरकार ने केन्द्रीय क्षेत्र योजना अधीन गांवों में गोदाम बनाने की योजना आरम्भ की है। इस योजना अधीन निजी तथा सहकारी क्षेत्र में गोदाम बनाने वालों को सहायता दी जाती है। 2019-20 में बैंकों द्वारा 4850 स्टोर बनाने के लिए 1300 करोड़ रु० के निवेश की मंजूरी दी गई। इस योजना का विस्तार 2013-14 तक किया गया है। इन गोदामों के गाँवों में स्थापित होने से किसान अपनी उपज गोदामों में रखकर बैंकों से उधार प्राप्त कर सकते हैं। इससे उनको अपनी उपज फसल की कटाई के तुरन्त पश्चात् बेचनी नहीं पड़ेगी। वह अपनी मर्जी से अच्छी कीमत पर उपज बेच सकेंगे।
भारत में माल गोदामों की वर्तमान स्थिति-भारत में ग्यारहवीं तथा बारहवीं योजना में ग्रामों में माल गोदामों के निर्माण पर अधिक जोर दिया गया। सहकारी क्षेत्र में 100 गोदाम बनाए गए। पश्चात् में ग्रामीण गोदाम योजना (Rural Godown Scheme) आरम्भ की गई, जिसमें 200 से 100 टन की समर्था के गोदाम गांवों में स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया। क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय तथा राज्य गोदाम कार्पोरेशनें काम कर रही हैं। इनके बिना निजी क्षेत्र में 10 लाख टन समर्था के गोदामों का निर्माण किया गया है। कृषि उत्पादन तथा ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय बैंक (NABARD) भी विभिन्न एजेन्सियों द्वारा गोदामों के विस्तार का कार्य कर रहा है। भारत में 2019-20 में विभिन्न संस्थाओं द्वारा गोदामों में कुल समर्था 758.46 मिलियन मीट्रिक टन थी, जिसका विवरण अग्रलिखित है
देश में फूड कार्पोरेशन ऑफ़ इण्डिया द्वारा नियमित गोदामों की सपथ 74 35 मिलियन पाटेक : है। केन्द्रीय गोदाम कार्पोरेशन की समर्था, राज्य गोदाम कार्पोरेशन को समर्था तथा सहकारी सामों की समय 30.68 मीट्रिक टन है। निजी क्षेत्र की समर्था 2040 मीट्रिक टन है। इस प्रकार भारत में कुल समय 58 मिलियन मोट्रिक लाख टन है, जोकि संतोषजनक नहीं है। 2 फरवरी 2020 में वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वर्तमान में गोगों की माप 21 मिलियन sq.ft. से बढ़ाकर 2023 तक मिलियन sq.ft. करने का लक्ष्य है। इस उद्देश्य के लिए ₹ 2.99 करोड़ की राशि गोदामों के विस्तार के लिए मंजूर की गई है।