PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 25 सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 25 सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 25 सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती

PSEB 12th Class Economics सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
सहकारी समितियों का कृषि में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सहकारी समितियों द्वारा ग्रामीण विकास संभव है।

प्रश्न 2.
सरकारी समितियाँ ………….. में सहायक होती है।
उत्तर-
ग्रामीण विकास।

प्रश्न 3.
कृषि में विभिन्नता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक प्रकार की उपज के स्थान पर विभिन्न फसलों की बिजाई को कृषि में विभिन्नता कहते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 25 सहकारिता, कृषि में विभिन्नता और जैविक खेती

प्रश्न 4.
सहज कृषि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सहज कृषि (Organic Agriculture) का अर्थ है पुरातन ढंगों से कृषि करके उत्पादन करना।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सहकारी समितियों का कृषि में महत्त्व स्पष्ट करें।
उत्तर-
सहकारी समितियाँ बहुत छोटे तथा मध्यम वर्ग के किसानों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं। यदि छोटे किसान अपने छोटे-छोटे कृषि के टुकड़ों को सहकारिता की सहायता से इकट्ठा करते तो उन पर आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार उनकी आय में बहुत वृद्धि की जा सकती है। प्रम: कृषि में विभिन्नता के दो लाभ बताएं।
उत्तर-
कृषि में विभिन्नता के बहुत से लाभ हैं। दो मुख्य लाभ इस प्रकार हैं

  • द्वारा छोटे और मध्यम वर्ग के किसानों की आय में बहुत वृद्धि की जा सकती है।
  • निषि आधुनिक रासायनिक खाद के स्थान पर पुरातन गोबर खाद डालकर जैविक कृषि को अपनाया जा सकता है।

आज कल बहुत से लोग रासायनिक खाद के कारण बीमारी का शिकार हो रहे हैं इसलिए लोग लेविक अनाज, फल और सब्जियां खरीदना पसंद करते हैं जिससे जीवन स्तर में वृद्धि होगी।

प्रश्न 3.
सहज कृषि के लाभ बताएं।
उत्तर-
आधुनिक खादों के कारण ब्लड प्रैशर, मधुमेह और कई तरह की बीमारियां नज़र आ रही हैं। इसलिए लोगों का रुझान सहज कृषि (Organic Agriculture) की तरफ बढ़ रहा है। इसमें गोबर द्वारा पुरातन ढंग से कृषि की जाती है। जिससे न केवल मनुष्य के जीवन में सुधार होता है और इसके साथ-साथ धरती की उपजाऊ शक्ति में भी परिवर्तन होता है। इसलिए सहज कृषि आजकल प्रचलित हो रही है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न-
भारत में कृषि में विभिन्नता की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
भारत में अनाज की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 1966 में हरित क्रांति द्वारा अनाज वृद्धि पर जोर दिया गया। इससे रासायनिक खादों का अति अधिक प्रयोग किया गया। उत्पादन तो बढ़ गया परन्तु इससे न केवल भूमि की उपरी सतह पर बुरा प्रभाव पड़ा बल्कि भूमि के नीचे जल भी प्रदूषित हो गया। अधिक उद्योग स्थापित होने के कारण नदियों का जल प्रदूषित हो गया और अधिक रासायनिक खाद के कारण धरती के नीचे का जल भी प्रदूषित हो गया है। इस प्रकार पीने के पीने का संकट उत्पन्न हो गया है। इसलिए न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में कृषि में विभिन्नता की ओर ध्यान दिया जा रहा है।

कृषि में विभिन्नता का अर्थ है कि एक प्रकार की फसल लगातार बीजने के स्थान पर दूसरी प्रकार की फसलों की बिजाई करना। जैसे कि गेहूँ और चावल की कृषि के स्थान पर दालों, फल, सब्जियों आदि को सहज ढंग से बीज कर जैविक अनाज पैदा करना। जैविक अनाज की कीमत भी अधिक मिलती है और यह मनुष्य के स्वास्थ्य को भी ठीक रखते हैं। इसलिए आजकल लोग सहज कृषि की तरफ अधिक ध्यान दे रहे हैं।

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IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सहकारी समितियों का ग्रामीण विकास में महत्त्व स्पष्ट करें। (Explain the Role of Co-operatives in Rural development.)
उत्तर-
ग्रामीण विकास में सहकारी समितियों का योगदान महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर गया है। भारत में किसान के पास ज़मीन कम हो रही है, छोटे-छोटे टुकड़े हो गए हैं जिन पर कृषि करना लाभदायक नहीं रहा है। इसलिए किसान का गुजारा इन छोटे आकार के खेतों पर कृषि करके निर्वाह मुश्किल से हो रहा है। किसान को कृषि करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है और उस उधार की वापसी बहुत कठिन हो रही है। इसलिए सहकारी समितियों की सहायता से ही छोटे किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं और इससे कृषि करने के ढंग में सुधार हो सकता है।
सहकारी समितियों का कृषि में योगदान इस प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. यदि किसान अपने छोटे-छोटे जमीन के टुकड़ों पर कृषि के स्थान पर सहकारी खेती करना शुरू कर दे तो इससे बड़े पैमाने पर आधुनिक मशीनों का प्रयोग करके ऊपज में वृद्धि की जा सकती है।
  2. कृषि में जो उपज पैदा होती है उस को बाज़ार में बेचने के स्थान पर तैयार सामान बनाकर बेचा जा सकता है-जैसे कि गेहूँ के स्थान पर आटा बेचा जा सकता है। फल बेचने के स्थान पर जूस बना कर बेच सकते हैं। सरसों के स्थान पर सरसों का तेल बना कर बेचा जा सकता है। इससे किसान की आय में वृद्धि हो जाएगी।
  3. कृषि में उपज के मण्डीकरण में भी सुधार हो सकता है। छोटे किसान अपनी उपज बाजार में तुरन्त बेच के लिए मजबूर होते हैं। सहकारी समितियों द्वारा अनाज का भण्डार किया जा सकता है। जब कीमत में वृद्धि हो तब उसको बेच कर अधिक दाम प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए भारत में NAFED राष्ट्रीय कृषि बिक्री फैडरेशन बनाई गई है।
  4. कृषि के लिए आधुनिक औजारों का प्रयोग करके ऑर्गेनिक फसलें तैयार की जा सकती हैं। आजकल ऑर्गेनिक उपज की मांग बढ़ रही है जिसके द्वारा किसानों की आय में बहुत वृद्धि की संभावना है जो कि सहकारिता द्वारा ही संभव है।
  5. छोटे किसानों को उधार प्राप्त करने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है। सहकारी समितियां बैंकों से आसानी से उधार लेकर कृषि कार्य पूर्ण कर सकती हैं। इससे सहकारी समिति के प्रत्येक सदस्य को लाभ प्राप्त हो सकता है।

इस क्षेत्र में NABARD का योगदान बहुत ही अच्छा है। कृषि में सहकारी समितियां बनाने के लिए लोगों को उत्साहित किया जा रहा है इसके फलस्वरूप भारत में KRIBCO और KD Milk Producers Co-operative समितियों की स्थापना हुई है। इस तरफ किसानों को और ध्यान देने की जरूरत है।

सहकारी समितियों का ग्रामीण विकास में योगदान (Role of Co-operatives in Rural Development) – भारत में कृषि ग्रामीण जीवन की आय और रोजगार का मुख्य स्रोत है। ग्रामीण जीवन के सुधार के लिए सहकारी समितियां महत्त्वपूर्ण योगदान डालती हैं। इस का वर्णन निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है –

  1. रोज़गार का स्रोत (Source of Employment)-गांवों में 65% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। गांवों के लोग कृषि, मछलीपालन, जंगलात और पशुधन द्वारा अपनी जीविका का प्रबन्ध करते हैं। सीमान्त किसान के लिए सहकारी समितियाँ रोजगार का स्रोत बन जाती हैं।
  2. आधुनिक कृषि तकनीक का प्रयोग (Use of Modern Cultivation Techniques) कृषि में अच्छी खाद, अच्छे बीज, औजार, भंडारण, यातायात आदि सहूलतों में सहकारी समितियों द्वारा वृद्धि की जाती है। इससे आय में वृद्धि होती है।
  3. धारणीय अर्थव्यवस्था (Sustainable Economy)-कृषि में हर काम में सहकारी समितियाँ सहायता करती हैं। जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है और इससे धारणीय विकास किया जा सकता है।
  4. वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि (Increase in Supply of Goods)-सहकारी समितियाँ ग्रामीण क्षेत्र में बहुत सी सेवाएं प्रदान करती हैं। गाँव में लोगों के पास वित्तीय साधन कम होते हैं इसलिए यह समितियां लोगों को शिक्षा, ऋण, नई तकनीकों की जानकारी देकर उनकी आय में वृद्धि करती है क्योंकि वह वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि करते हैं।
  5. ऋण की सुविधा (Credit Facilities)-ग्रामीण जीवन में लोगों को हर काम के लिए ऋण की जरूरत पड़ती है। फसल बीजने से लेकर कटाई तक पैसे की आवश्यकता होती है। वह सहकारी समितियों के सहयोग से प्राप्त किया जा सकता है।

सहकारी समितियों के प्रकार (Types of Co-operative Societies) सहकारी समितियों के विभिन्न प्रकार इस प्रकार हैं –

  • उपभोक्ता सहकारी समितियाँ (Consumer Co-operative Societies) सहकारी समितियाँ गांवों में लोगों को प्रत्यक्ष रूप से आवश्यक वस्तुएँ, बीज, खादें, उपभोगी वस्तुएं, उत्पादकों से प्रत्यक्ष तौर पर खरीदकर प्रदान करती हैं। इससे मध्यस्थों का लाभ समाप्त हो जाता है और कम कीमत पर उपभोक्ता वस्तुएं मिल जाती
  • उत्पादक सहकारी समितियाँ (Producer Co-operative Societies)-सीमान्त तथा लघु किसानों के लिए सहकारी समितियाँ लाभदायक सिद्ध होती है, उत्पादन के लिए औज़ार, मशीनें, कच्चा माल आदि इन समितियों द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • मंडीकरण सहकारी समितियाँ (Marketing Co-operative Societies)-सीमान्त तथा लघु किसानों की उपज की बिक्री के लिए सहकारी समितियाँ लाभदायक होती हैं। किसानों को उपज की बिक्री में बहुत सी मुश्किलें सहन करनी पड़ती हैं जिनके लिए यह समितियाँ सहायता करती हैं।
  • सहकारी ऋण समितियाँ (Co-operative Credit Societies)-किसानों को ऋण की सहूलत प्रदान करने में भी सहकारी समितियाँ सहयोग करती हैं। यह समितियाँ अपने सदस्यों से उनकी बचत को इकट्ठा करती हैं और दूसरे सदस्यों को उधार देती हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों की समस्याएं (Problems faced by Co-operative Societies in Rural Areas) सहकारी समितियों की मुख्य समस्याएं इस प्रकार हैं –

  1. असन्तोषजनक फंड (Insufficient Funds)-सहकारी समितियों के पास जो फंड होते हैं वह संतोषजनक नहीं होते हैं। जब इन समितियों के पास फंड की कमी होती है तो वे अपने सदस्यों को उधार नहीं दे पातीं। इस कारण बहुत सी समितियां असफल हो जाती हैं।
  2. केवल कृषि ऋण (Agricultural Loans Only)ये समितियाँ किसानों की हर प्रकार की वित्तीय जरूरतें पूरी नहीं करती। यह केवल कृषि ऋण ही प्रदान करती हैं। इसलिए किसान इन समितियों से पूरा लाभ प्राप्त नहीं कर पाते।
  3. राजनीतिक दखल (Political Intrusion)-सहकारी समितियाँ किसी न किसी राजनीतिक दल द्वारा प्रभावित होती हैं। राजनीतिक नेता अपने पक्ष के लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और दूसरे पक्ष के लोगों को ऋण देते समय बहुत सी शर्ते लगा देते हैं। इस कारण सभी लोग इन समितियों से पूरा लाभ नहीं उठा पाते।
  4. निजी हित (Personal Interests)-बहुत से सहकारी समितियों के सदस्य निजी हित को ध्यान में रखते हैं। वे सभी सदस्यों के हितों का ध्यान नहीं रखते। इससे गरीब सदस्यों को ऋण लेने में तकलीफ होती है और ये समितियाँ असफल हो जाती हैं।

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प्रश्न 2.
कृषि में विविधीकरण के महत्व को स्पष्ट करें। (Explain the role of Diversification in Agriculture.)
उत्तर-
विविधीकरण का अर्थ (Meaning of Diverssification)-विविधीकरण का अर्थ है कि कृषि में कम मूल्य की फसलों के स्थान पर अधिक मूल्य वाली फसलों को उगाना अथवा अधिक आय देने वाले काम को शुरू करना। इससे डेयरी (Dairy), पोल्ट्री (Poultary), बागवानी (Horticulture) और मछली पालन (Pisciculture) क्षेत्र में पुरानी फसलों के स्थान पर इन क्षेत्रों को अपनाने को विविधीकरण कहा जाता है। एक फसल (गेहूँ अथवा चावल) के स्थान पर विभिन्न प्रकार की अलग-अलग फसलों की बीजाई करके आय में वृद्धि करना कृषि में विविधीकरण कहलाता है।

भारत में विविधीकरण का अर्थ स्पष्ट करते हुए अराधना सिंह ने कहा, “विविधीकरण का अर्थ एक फसल के स्थान पर अधिक फसलों का उत्पादन करना है जिससे आय में वृद्धि हो।” (Diversification means shift from the regional dominance of one crop to regional production of a number of crops for enhancing the income of the farmers.” Aradhna Singh)
विविधीकरण की आवश्यकता (Need for Diversification)-विविधीकरण करने की आवश्यकता क्यों है इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं –

  1. उपभोक्ता माँग में परिवर्तन (Changing Consumer Demand)-विकासशील देशों में लोगों की माँग में अधिक परिवर्तन हो रहा है। पहले लोग एक ही अनाज को आहार में प्रयोग करते थे। परन्तु अब आहार में मीट, अण्डे, और दूध, मक्खन, पनीर आदि वस्तुओं ने स्थान ले लिया है। इसलिए उपभोक्ता माँग में परिवर्तन आने से विविधीकरण की आवश्यकता है।
  2. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population) विश्व की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। अब विश्व की जनसंख्या 7 मिलियन है और 2050 तक 9.5 बिलियन होने का अनुमान है। भारत में भी आज़ादी के समय जनसंख्या 36 करोड़ थी जो 2020-21 में 136 करोड़ के लगभग हो गई है। इस प्रकार तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के लिए अनाज पैदा करना एक चुनौती है। इस कारण भी कृषि में विविधीकरण की आवश्यकता
  3. निर्यात बाज़ार की मांग में वृद्धि (Increase in Export Market Demand) विकासशील देशों में किसान विश्व बाजार में बढ़ रही माँग को देखते हुए, निर्यात करने के लिए विविधीकरण को अपना रहे हैं। आजकल निर्यात करके अधिक आय प्राप्त की जा सकती है, इसलिए भी विविधीकरण की जरूरत है।
  4. सपर बाजार में बिक्री में वृद्धि (Increases in sale in Super-Market)-आजकल विश्व में बड़े बड़े सुपर स्टोर खुल रहे हैं। यहाँ पर इतनी किस्म की वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं कि ग्राहक प्रचून विक्रेता के पास जाने के स्थान पर सुपर बाज़ार में जाकर खरीदारी करनी पसंद करने लगा है। इसलिए विविधीकरण द्वारा सुपर बाज़ार में बिक्री के लिए वस्तुएं पैदा करना अधिक लाभकारी हो गया है।
  5. सरकार की नीतियों में परिवर्तन (Change in Government Policies)-बाज़ार की संभावना अब बढ़ गई हैं क्योंकि सरकार भी किसानों को वह अनाज अधिक मात्रा में पैदा करने को उत्साहिक करती है जिस की बिक्री बदलते बाज़ार के अनुकूल हो। अब किसान अपनी वस्तु मध्यस्थों के द्वारा बिक्री के स्थान पर सीधे खरीददारों को बेच सकता है इससे भी विविधीकरण को उत्साह प्राप्त हुआ है।
  6. पौष्टिक आहार (Nutrient Food)-पुरानी एक अनाज के प्रयोग के आहार में अब परिवर्तन हुआ है और इसके स्थान पर पौष्टिक आहार के विविधीकरण की ओर रुझान बढ़ रहा है।
  7. जोखिम (Risk)-एक ही अनाज को उगाने में अब किसान को अधिक जोखिम उठाना पड़ता है क्योंकि कृषि प्रकृति पर निर्भर है। इसलिए विविधीकरण द्वारा इस जोखिम को कम किया जा सकता है।
  8. शहरीकरण (Urbanization)-शहरीकरण में वृद्धि होने से किसान अब उन वस्तुओं की खेती करना अधिक लाभदायक समझता है जिससे उसकी आय में वृद्धि हो। शहरों में अधिक फल, सब्जियों की माँग होती है इसलिए विविधीकरण की आवश्यकता है।
  9. मौसम में परिवर्तन (Climate Change)-ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में परिवर्तन हो रहा है। . बेमौसमी वर्षा के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। इसलिए बहुत से देशों, जैसे कि कैनेडा, कीनिया, भारत, श्रीलंका आदि में विविधीकरण पर बल दिया जा रहा है।
  10. घरेलू नीति (Domestic Policy)-कृषि में बहुत प्रकार की सहायता दी जाती है। यदि कृषि में सबसिडी (Subsidy) न दी जाए तो किसान अपनी लागत पूरी नहीं कर सकता। इसलिए सरकार अब इस सहायता में परिवर्तन करके विविधीकरण के लिए सहायता दे रही है जिससे किसान आत्मनिर्भर हो सके।

विविधीकरण के प्रकार
(Types of Diversification) विविधीकरण दो प्रकार से किया जाता है –

  • फसल उत्पादन में विविधीकरण (Diversification of Crop Pattern)-जब एक फसल गेहूँ और चावल के स्थान पर बहुत सी फसलें पैदा की जाती हैं तो इसको फसल उत्पादन में विविधीकरण कहा जाता है।
  • उत्पादन क्रिया में विविधीकरण (Diversification of Productive Activities)-इसका अर्थ है कि जब श्रम शक्ति को कृषि के स्थान पर अन्य सम्बन्धित कार्यों और गैर-कृषि कार्यों में लगाया जाता है इसको उत्पादन क्रिया में विविधीकरण कहा जाता है। जैसा कि पशुपालन द्वारा मीट, अण्डे, पशम आदि की पैदावार, दूध तथा दूध उत्पादों में वृद्धि, मछली पालन और बागवानी में श्रम शक्ति का प्रयोग करके किसान की आय में वृद्धि करना।

विविधीकरण के लाभ (Benefits of Diversification) विविधीकरण के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं –
1. आय में वृद्धि (Increase in Income)-विविधीकरण द्वारा किसान एक ही फसल पर निर्भर होने के स्थान पर बहुत सी फसलों को बीजता है तो उसका जोखिम कम हो जाता है और आय में वृद्धि होती है।

2. अनाज सुरक्षा (Food Security)-जब किसान एक फसल की बिजाई करता है और मौसम खराब होने से अनाज नष्ट हो जाता है तो इससे अनाज की कमी हो जाती है। विविधीकरण द्वारा अलग-अलग वस्तुओं के उत्पादन से अनाज सुरक्षा बनी रहती है।

3. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment)-जब एक फसल के स्थान पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की पैदावार की जाती है, तो इससे रोज़गार में वृद्धि होती है। फल सब्जियां, और प्रोसैस्ड फूड में अधिक लोगों को काम मिलता है। इस प्रकार दूध, मुर्गी पालन, मछली पालन आदि काम करने से भी रोजगार में वृद्धि होती है।

4. गरीबी को कम करना (Reducing Poverty)-विकासशील देशों में गरीबी की समस्या भी जटिल समस्या है। विविधीकरण द्वारा गरीबी को कम किया जा सकता है। जब विविधीकरण किया जाता है तो गरीब लोगों को काम प्राप्त होता है जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है। आय बढ़ने से गरीबों के जीवन स्तर में सुधार होता है। दूसरे जब विविधीकरण किया जाता है तो निर्यात में वृद्धि होती है इससे भी लोगों की आय में वृद्धि होती है।

5. सीमित साधनों की अधिक उत्पादकता (More Productivity of Scarce Resources)-प्रकृति ने जो साधन दिये हैं वे सीमित मात्रा में हैं जैसे जल, कोयला आदि। इनका उत्तम प्रयोग करने के लिए भी विविधीकरण की जरूरत है। कम जल का प्रयोग करके हम पोल्ट्री फार्म, पशु पालन करके आय अधिक प्राप्त कर सकते हैं।

6. निर्यात में वृद्धि (Increase in Exports) विविधीकरण द्वारा विदेशी उपभोक्ताओं की माँग के अनुसार उत्पादन करके निर्यात में वृद्धि की जा सकती है इससे आय में और वृद्धि होती है।

7. मूल्य में वृद्धि (Adding Value)-यूरोप, अमेरिका आदि देशों में लोगों को तैयार आहार चाहिए जैसे कटा हुआ सलाद, बर्गर, पीज़ा आदि। यदि विविधीकरण द्वारा इन वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाया जाता है तो अनाज के मूल्य में वृद्धि की जा सकती है।

8. सरकार की नीति (Government Policies)-सरकार भी किसानों को विविधीकरण के लिए प्रेरित करती है जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो। बहुत सी सहायता देकर नए किस्म की वस्तुओं को प्रोत्साहित किया जाता है।

9. शहरीकरण (Urbanization)–लोग ज्यादा शहरों में रहना पसंद करते हैं। इससे लोगों के आहार में परिवर्तन हो रहा है जिसको लोगों की माँग के अनुसार बदल कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

10. वातावरण (Environment)-विविधीकरण द्वारा हम भूमि, जल प्रदूषण पर नियन्त्रण कर सकते हैं। इससे धारणीय विकास (Sustainable Development) हो सकता है। इस प्रकार विविधीकरण द्वारा देश में आर्थिक विकास की गति को तेज़ किया जा सकता है। यह न केवल किसानों के हित में है इससे देश का विकास भी तीव्र गति से होगा।

प्रश्न 3.
जैविक खेती से क्या अभिप्राय है ? जैविक खेती के सिद्धान्त बताएं। इसके लाभ तथा त्रुटियाँ बताएँ।
(What is Organic Farming? Explain the principles of organic farming. Explain its merits & limitations.)
उत्तर-
जैविक खेती कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरक शक्ति को बनाए रखने के लिए आवश्यक तथा लाभकारी होता है। विश्व में जनसंख्या की वृद्धि के कारण हरित क्रान्ति ने जन्म लिया। इससे विश्व में रासायनिक खादों का प्रयोग करके अधिक अनाज पैदा करने के लिए यत्न किये गए। इस द्वारा अनाज के उत्पादन में बहुत वृद्धि हुई है परन्तु खाद तथा कीटनाशकों के अधिक प्रयोग के कारण उत्पादन में जहरीला असर बढ़ गया। लोगों को कैंसर, ब्लड प्रेशर, शूगर आदि बीमारियों का शिकार होना पड़ा। इसलिए विश्व भर में जैविक खेती की तरफ रुझान बढ़ रहा है। इसमें पुरातन ढंग से खेती करने का रुझान बढ़ गया है। इसमें पशुओं का गोबर और कूड़ा-कर्कट का प्रयोग करके अनाज की पैदावार की जाती है। इसको जैविक खेती (Organic Farming) कहा जाता है।

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जैविक खेती के मुख्य सिद्धान्त (Main principles of Organic Farming)-UNO के विशेषज्ञों के अनुसार, “जैविक खेती प्राकृतिक तथा धारणीय प्रबन्धक विधि के विशेष मूल्यों पर आधारित है।” (Organic Farming is based on unique values of natural & sustainable farm management practices.” U.N.O. Experts. यह विधि निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित है –
1. सेहत का सिद्धान्त (Principle of Health)-जैविक खेती सेहत के सिद्धान्त को ध्यान में रख कर अपनाई जाती है। इससे भूमि, जल, वायु आदि को प्रदूषित होने से रोका जाता। यह विधि मनुष्य, पशुओं तथा पक्षियों के लिए भी लाभदायक है।

2. वातावरण का सिद्धान्त (Principle of Ecology)-जैविक खेती वातावरण को ठीक रखने के उद्देश्य से अपनाई जाती है। इसके द्वारा न केवल भूमि, जल, वायु और सूर्य की ऊर्जा को ठीक रखा जाता है। बल्कि इस विधि द्वारा मनुष्यों, जानवरों, पशु-पक्षियों को भी प्रदूषण से बचाया जाता है। इसलिए यह विधि वातावरण को शुद्ध रखने के लिए भी उचित मानी जाती है।

3. उचित्ता का सिद्धान्त (Principle of Fairness)-जैविक खेती में लोगों के आहार सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पैदावार करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि इसका देश पर आर्थिक, सामाजिक तथा मनोविज्ञानिक बुरा प्रभाव न पड़े।

4. पूर्ण ध्यान रखने का सिद्धान्त (Principle of Care)-इस विधि द्वारा यह ध्यान रखा जाता है कि जो लोग अलग-अलग किस्म के काम करते हैं उन का सेहत तथा लागत में अधिक प्रभाव न पड़े। इस से लोगों की भलाई को भी ध्यान में रखा जाता है।

जैविक खेती में फसलों के बदलाव (Crop Rotation), देशी खाद, अच्छे शुद्ध बीज, पौधों में उचित दूरी पर पैदावार की जाए, जिससे प्राप्त अनाज की गुणवत्ता कायम रहे। भारत में जैविक खेती को सबसे पहले मध्य प्रदेश में चालू किया गया। पहले प्रत्येक जिले में एक गाँव का चुनाव किया। जिसमें जैविक खेती शुरू की गई। बाद में 2 गाँवों और फिर 5 गाँवों में जैविक खेती चाल की गई। इन गाँवों को जैविक गाँवों का नाम दिया गया। इस समय करीब 4000 गाँवों में जैविक खेती की जा रही है। जैविक खेती से उपजाई गई फसल का रेट काफी अधिक होता है। गेहूँ जोकि जैविक खेती से बनाया जाता है उसका आटा लगभग ₹ 60 प्रति किलो निर्धारित किया जाता है। इस प्रकार जैविक खेती से अधिक आय भी होती है।

जैविक खेती के लाभ (Merits of Organic Farming) –

  1. इस द्वारा सेहत के लिए शुद्ध वातावरण प्राप्त होता है।
  2. इस द्वारा भूमि, जल, वायु आदि को प्रदूषण से हानि नहीं होती।
  3. इस द्वारा भूमि की चिरकालीन उपजाऊ शक्ति बनी रहती है।
  4. प्राकृतिक साधनों का उचित प्रयोग होता है और इससे भविष्य में आने वाली नस्लों को भी अच्छा वातावरण मिलता है।
  5. जैविक खेती से इंधन की लागत कम हो जाती है। इससे प्रत्येक को अच्छा अनाज उचित कीमतों पर प्राप्त होता है।

जैविक खेती में कम ऊर्जा का प्रयोग होता है और फसलों के खराब होने की सम्भावना घट जाती है। इससे कैमीकल क्रियाओं से होने वाला खतरा कम हो जाता है।

जैविक खेती की सीमाएं (Limitations of Organic Farming) –

  • जैविक खाद की सीमित मात्रा होने के कारण सभी लोगों को खाद प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  • जैविक खेती द्वारा अनाज का उत्पादन कम हो जाता है। इसलिए किसान अपनी आय को कम नहीं करना चाहते। यदि उपज कम होती है तो कीमत अधिक रखनी पड़ती है जो कि लोग देना पसंद नहीं करेंगे।
  • जैविक खेती से जो उपज पैदा होती है इसका उचित स्तर भारतीय किसानों द्वारा संभव नहीं है। लोग अधिकतर अनपढ़ होने के कारण इन बातों का ध्यान नहीं रख सकते।
  • जैविक खेती द्वारा उपज के मण्डीकरण की समस्या उत्पन्न हो सकती है भारत में 90% लोगों की आय बहुत कम होने के कारण जैविक अनाज को खरीदना मुश्किल होगा। परन्तु आजकल जैविक खेती की तरफ रुझान बढ़ रहा है।

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