Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 33 1966 से पंजाब में कृषि का विकास
PSEB 12th Class Economics 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Questions and Answers
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
पंजाब की किसी एक व्यापारिक फसल का वर्णन करें।
उत्तर-
गन्ना (Sugarcane)-पंजाब में गन्ना फरवरी-अप्रैल में बोआ जाता है। गन्ने की फसल जनवरी-अप्रैल में काटी जाती है। पंजाब में गन्ना सभी जिलों में पैदा किया जाता है।
प्रश्न 2.
पंजाब में हरित क्रान्ति का कोई एक कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के कारण इस प्रकार हैं नई कृषि नीति-पंजाब में नई कृषि नीति में उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, आधुनिक मशीनों तथा सिंचाई की सहूलतों में वृद्धि की गई है।
प्रश्न 3.
पंजाब को भारत का अनाज भण्डार क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
2018-19 में पंजाब द्वारा केन्द्रीय भण्डार में गेहूं का योगदान 35% तथा चावल का योगदान 25% रहा।
प्रश्न 4.
पंजाब कृषि में पिछड़ा प्रान्त है।
उत्तर-
ग़लत।
प्रश्न 5.
पंजाब में 2019-20 में कुल उपज 315 लाख मीट्रिक टन हुई।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 6.
पंजाब में कृषि विकास का कारण ……………..
(a) सिंचाई के साधन
(b) मेहनती लोग
(c) हरित क्रान्ति
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति का कोई दोष नहीं।
उत्तर-
ग़लत।
प्रश्न 8.
पंजाब को भारत के अनाज का ………………… कहा जाता है।
उत्तर-
अन्न भण्डार।
प्रश्न 9.
पंजाब की दो खाद्य फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) गेहूँ,
(ii) चावल।
प्रश्न 10.
पंजाब की दो व्यापारिक फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) कपास,
(ii) गन्ना।
प्रश्न 11.
पंजाब में अधिक कृषि उत्पादन के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर-
(i) सिंचाई का विस्तार,
(ii) आधुनिक खाद्य तथा बीजों का प्रयोग।
प्रश्न 12.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अर्थ है कृषि पैदावार में होने वाली भारी वृद्धि जो कि नई कृषि नीति के अपनाने से प्राप्त है।
प्रश्न 13.
पंजाब में हरित क्रान्ति का कोई एक कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में नई कृषि नीति के कारण उचित बीजों और रासायनिक खादों का प्रयोग करने के कारण हरित क्रान्ति प्राप्त होती है।
प्रश्न 14.
पंजाब में सिंचाई के मुख्य तीन साधन बताएं।
उत्तर-
- नहरें,
- ट्यूबवैल,
- कुएँ।
प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएँ।
उत्तर-
हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप हवा और पानी के प्रदूषण के कारण, कैंसर का रोग फैल गया है।
II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई की स्थिति तथा महत्त्व स्पष्ट करें।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए सिंचाई का महत्त्व बहुत अधिक है। पंजाब में वर्ष 1966 के पश्चात् सिंचाई सुविधाओं में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 26.46 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सहूलतें प्राप्त थी जो कि कुल क्षेत्र का 56% भाग था। वर्ष 2015-16 में सिंचाई के अधीन क्षेत्र बढ़कर 41.37 लाख हेक्टेयर हो गया है जोकि कुल कृषि के अधीन क्षेत्र का 97.4% भाग है। पंजाब में लुधियाना, जालन्धर, पटियाला, भटिंडा, अमृतसर, फिरोज़पुर तथा फरीदकोट जिलों में सिंचाई की अधिक सुविधाएं हैं। किन्तु रोपड़ तथा नवांशहर में सिंचाई की सुविधाओं की कमी है। बारहवीं योजना में सिंचाई सुविधाओं पर 1052 करोड़ रुपये व्यय किए गए।
प्रश्न 2.
पंजाब में कृषि विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति निम्नलिखित तत्त्वों द्वारा स्पष्ट हो जाती है-
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि-पंजाब में कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है। कुल अनाज का उत्पादन 1965-66 में 33 लाख टन था। 2019-20 में अनाज का उत्पादन बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है। अनाज के उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि को हरित क्रान्ति (Green Revolution) कहा जाता है।
2. उन्नत कृषि-पंजाब की कृषि बहुत उन्नत तथा अधिक प्रगतिशील है। पंजाब को प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भारत की औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादकता से अधिक है। पंजाब में वर्ष 1965-66 में गेहूँ की उत्पादकता 1236 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की उत्पादकता 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। 2019-20 में गेहँ की उत्पादकता बढकर 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है।
प्रश्न 3.
पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएं।
अथवा
पंजाब में हरित क्रान्ति के दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के केवल अच्छे प्रभाव ही नहीं पड़े बल्कि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी पड़े हैं जोकि इस प्रकार हैं –
- असंतुलित विकास की समस्या-हरित क्रान्ति का मुख्य दोष यह है कि समूचे राज्य में एक समान संतुलित विकास नहीं हुआ। कुछ जिले उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ गए हैं जबकि कुछ जिलों में कृषि का विकास कम हुआ है। जैसे कि फरीदकोट, भटिंडा, फिरोज़पुर में कृषि विकास अधिक हुआ है।
- बेरोज़गारी की समस्या-हरित क्रान्ति से बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न हुई है। गांवों में भूमिहीन श्रमिकों में बेरोज़गारी बढ़ गई है इसलिए रोज़गार की तलाश में प्रतिदिन शहरों में आते हैं।
प्रश्न 4.
पंजाब में हरित क्रान्ति का अर्थ बताएं।
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अर्थ (Meaning of Green Revolution)-प्रो० एफ० आर० फ्रैक्ल के अनुसार, “हरित क्रान्ति एक सुन्दर नारा है जिसके द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि विज्ञान तथा तकनीकी विकास द्वारा कृषि के क्षेत्र में शान्तिपूर्वक रूपान्तर किया जा सकता है अथवा क्रान्ति लाई जा सकती है।” हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली वृद्धि से है जो कृषि में नई नीति के अपनाने के कारण हुआ है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कृषि के क्षेत्र में जो थोड़े समय में असाधारण विकास तथा वृद्धि हुई है, उसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। पंजाब में 1965-66 में 33 लाख टन कृषि उत्पादन किया गया जो कि 2019-20 में बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है।
III. लयु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई के भिन्न-भिन्न साधन कौन-से हैं ? पंजाब में सिंचाई क्षेत्र के विस्तार के कारण बताएं।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए सिंचाई का महत्त्व बहुत अधिक है। पंजाब में वर्ष 1966 के पश्चात् सिंचाई सुविधाओं में काफ़ी वृद्धि हुई है। वर्ष 2019-20 में सिंचाई के अधीन क्षेत्र बढ़कर 29% हो गया है जोकि कुल कृषि के अधीन क्षेत्र का 97.96% भाग है। पंजाब में लुधियाना, जालन्धर, पटियाला, भटिंडा, अमृतसर, फिरोज़पुर तथा फरीदकोट जिलों में सिंचाई की अधिक सुविधाएं हैं। किन्तु रोपड़ तथा नवांशहर में सिंचाई की सुविधाओं की कमी है। बारहवीं योजना में सिंचाई सुविधाओं पर ₹ 493564 करोड़ व्यय किए गए।
सिंचाई के साधन (Means of Irrigation)-पंजाब में सिंचाई के साधन निम्नलिखित हैं-
1. नहरें (Canals)-पंजाब में कुल सिंचाई क्षेत्र के 43% भाग में नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। यह सिंचाई का मुख्य साधन है। पंजाब की मुख्य नहरें-
- भाखड़ा-नंगल नहर
- अपर बारी दोआब नहर
- सरहिन्द नहर
- बिस्त दोआब नहर
- बीकानेर नहर
- शाह नहर इत्यादि हैं।
इन नहरों के अतिरिक्त पंजाब में सतलुज यमुना लिंक, थीन डैम, कंडी नहर, शाह नहर, फीडर, मेलवाहा डैम तथा राष्ट्रीय परियोजना पर कार्य चल रहा है।
2. ट्यूबवैल (Tubewell) पंजाब में 50% क्षेत्र पर ट्यूबवैलों द्वारा सिंचाई की जाती है। इस समय 2019-20 में लगभग 14.76 लाख ट्यूबवैल हैं जिनमें से 13.36 लाख ट्यूबवैल विद्युत् से तथा शेष डीज़ल से चलते हैं।
3. कुएँ (Wells)-पंजाब में पहले कुओं का महत्त्व अधिक था। परन्तु अब कुओं का स्थान ट्यूबवैलों ने ले लिया है किन्तु कुछ क्षेत्रों में आज भी कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है।
इसके अतिरिक्त तालाब इत्यादि साधनों द्वारा भी सिंचाई की जाती है। फरीदकोट जिले में सिंचाई का मुख्य साधन नहरें हैं। इसके अतिरिक्त फिरोज़पुर, अमृतसर तथा लुधियाना ज़िलों में भी नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। ट्यूबवैल लगभग सभी जिलों में सिंचाई के साधन हैं किन्तु संगरूर जिले में ट्यूबवैल सबसे अधिक हैं।
प्रश्न 2.
पंजाब में कृषि विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति निम्नलिखित तत्त्वों द्वारा स्पष्ट हो जाती है-
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि-पंजाब में कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है। कुल अनाज का उत्पादन 1965-66 में 33 लाख टन था। 2019-20 में अनाज का उत्पादन बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है। अनाज के उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि को हरित क्रान्ति (Green Revolution) कहा जाता है।
2. उन्नत कृषि-पंजाब की कृषि बहुत उन्नत तथा अधिक प्रगतिशील है। पंजाब को प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भारत की औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादकता से अधिक है। पंजाब में वर्ष 1965-66 में गेहूँ की उत्पादकता 1236 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की उत्पादकता 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। 2019-20 में गेहूँ की उत्पादकता बढ़कर 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है।
3. कृषि की उन्नत विधि-पंजाब में कृषि करने की उन्नत विधियों का प्रयोग किया गया है। पंजाब में 2019-20 में गेहूँ तथा चावल के अधीन 100% क्षेत्रफल नए बीजों के प्रयोग से बोआ गया है। मक्की अधीन 90% तथा बाजरे अधीन 60% क्षेत्रफल नए बीजों के प्रयोग द्वारा बोआ गया था।
4. व्यापारिक कृषि-पंजाब में कृषि जीवन निर्वाह के लिए नहीं की जाती बल्कि उत्पादन को मण्डियों में बेचकर अधिक लाभ प्राप्त करने का यत्न किया जाता है। इसलिए कृषि विकास के परिणामस्वरूप व्यापारिक कृषि का प्रचलन हो गया है।
प्रश्न 3.
पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएं।
अथवा
पंजाब में हरित क्रान्ति के दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के केवल अच्छे प्रभाव ही नहीं पड़े बल्कि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी पड़े हैं जोकि इस प्रकार हैं-
- असंतुलित विकास की समस्या–हरित क्रान्ति का मुख्य दोष यह है कि समूचे राज्य में एक समान संतुलित विकास नहीं हुआ। कुछ ज़िले उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ गए हैं जबकि कुछ जिलों में कृषि का विकास कम हुआ है। जैसे कि फरीदकोट, भटिंडा, फिरोजपुर में कृषि विकास अधिक हुआ है।
- बेरोज़गारी की समस्या–हरित क्रान्ति से बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न हुई है। गांवों में भूमिहीन श्रमिकों में बेरोज़गारी बढ़ गई है इसलिए रोज़गार की तलाश में प्रतिदिन शहरों में आते हैं।
- अधिक व्यय की समस्या-हरित क्रान्ति के कारण कृषि में प्रयोग होने वाले साधनों की लागत बहुत अधिक हो गई है। छोटे किसान आधुनिक मशीनों, उर्वरकों तथा नए उन्नत बीजों का प्रयोग नहीं कर सकते।
- अमीर किसानों को लाभ-हरित क्रान्ति का लाभ बड़े अमीर किसानों को हुआ है। इससे अमीर किसान और अमीर हो गए हैं। निर्धन किसानों की हालत और बिगड़ गई है। इस प्रकार अमीर तथा गरीब किसानों में असमानता बढ़ गई है।
IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
वर्ष 1966 से पंजाब की कृषि के विकास की प्रकृति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(Explain the main features of the nature of Agricultural development in Punjab Since 1966.)
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति (Nature of Agricultural Development in Punjab)पंजाब का पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को भाषा के आधार पर किया गया। इसके पश्चात् पंजाब की कृषि में तकनीकी क्रान्ति का आरम्भ हुआ, जिसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। डॉ० आर० एस० जौहर तथा परमिन्द्र के अनुसार, “पंजाब में विशेषतया छठे दशक के मध्य से नई कृषि तकनीक के कारण तीव्रता से रूपांतर हुआ है।” (“The Punjab Agriculture underwent a rapid transformation particularly after the mid sixties in the wake of new farm Technology.” -Dr. R.S. Johar & Parminder Singh)
पंजाब में खनिज पदार्थ प्राप्त नहीं होते। कृषि ही अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। पंजाब की कृषि विकास की प्रकृति का अनुमान निम्नलिखित तत्त्वों से लगाया जा सकता है –
1. उन्नत कृषि (Progressive Agriculture)-पंजाब की कृषि देश के अन्य राज्यों की तुलना में उन्नत तथा प्रगतिशील है। पंजाब में पैदा होने वाली मुख्य फसलों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन भारत की उत्पादन शक्ति से बहुत अधिक है। वर्ष 2019-20 में पंजाब में गेहूँ तथा चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्रमानुसार 5188 किलोग्राम तथा 4132 किलोग्राम था।
2. आर्थिक विकास का आधार (Basis of Economic Development) पंजाब में कृषि आर्थिक विकास का मुख्य आधार बन गई है। वर्ष 1980-81 में पंजाबी कुल आय 5,025 करोड़ में कृषि का योगदान ₹ 2,422 करोड़ था। 2019-20 में पंजाब की आय ₹ 644321 करोड़ हो गई है जिसमें कृषि का योगदान 68% है। इस प्रकार पंजाब के आर्थिक विकास में कृषि आर्थिक विकास का मुख्य साधन है।
3. कृषि का मशीनीकरण (Mechanised Agriculture)-पंजाब की कृषि में मशीनों का योगदान दिन प्रतिदिन बढ़ा है। पंजाब में ट्रैक्टर, हारवैस्टर, ट्यूबवैल आम नज़र आते हैं। राज्य में 85% बोए गए शुद्ध क्षेत्रफल पर एक से अधिक बार फसलें उगाई जाती हैं परिणामस्वरूप कृषि की उत्पादन शक्ति में वृद्धि हुई है।
4. कृषि साधनों का उत्तम प्रयोग (Proper Utilisation of Agricultural Resources)-पंजाब में कृषि के साधनों का उत्तम प्रयोग किया जाता है। कृषि के लिए उचित मिट्टी तथा जलवायु की आवश्यकता होती है। पंजाब में धरती समतल है। इसमें दोमट मिट्टी प्राप्त होती है जो कि फसलों की बोआई के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। पंजाब में जल के लिए तीन नदियां सतलुज, ब्यास तथा रावी बहती हैं। इसलिए गहन कृषि की जाती है। वर्ष में एक-से-अधिक फसलें प्राप्त की जाती हैं।
5. कृषि का अधिक उत्पादन (More Agricultural Production)-पंजाब में कृषि का उत्पादन बहुत अधिक होता है। यह उत्पादन न केवल पंजाब राज्य की आवश्यकताएं पूर्ण करता है बल्कि देश के लिए अन्न भण्डार का साधन है। 1966 के पश्चात् हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप पंजाब में उत्पादन शक्ति में बहुत वृद्धि हुई है। 1965-66 में चावल का उत्पादन 292 हज़ार टन किया गया जो 2019-20 में बढ़ कर 315 लाख टन हो गया है।
6. मुख्य फसलें (Main Crops)-पंजाब की कृषि मुख्यतः दो फसलों गेहूँ तथा चावल पर निर्भर है। पंजाब में बोए गए कुल क्षेत्र का 70% गेहूँ तथा चावल के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि अन्य फसलों में वृद्धि सन्तोषजनक नहीं है।
7. व्यापारिक कृषि (Commercial Agriculture)-पंजाब की कृषि अब केवल जीवन निर्वाह कृषि नहीं है बल्कि कृषि उत्पादन आवश्यकता से अधिक प्राप्त किया जाता है जिसको बाज़ार में बेच कर अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए यत्न किए जाते हैं अर्थात् पंजाब की कृषि व्यापारिक कृषि हो गई है।
8. रोज़गार का साधन (Source of Employment)-पंजाब की कृषि में प्रत्यक्ष तौर पर 65.5% जनसंख्या निर्भर करती है जिसमें कुल कार्यशील जनसंख्या का 56% भाग कृषि में कार्य करता है। इस प्रकार कृषि तथा इससे सम्बन्धित उद्योग राज्य के लोगों को रोज़गार की सुविधाएं प्रदान करते हैं।
प्रश्न 2.
पंजाब में हरित क्रान्ति के क्या कारण हैं ? इसकी सफलताओं अथवा प्रभावों की व्याख्या करें।
(What are the causes of Green Revolution in Punjab ? Discuss the achievements and effects of Green Revolution.)
अथवा
नए कृषि ढांचे से क्या अभिप्राय है ? इसके कारण तथा प्राप्तियों को स्पष्ट करें। (What is new Agricultural Strategy ? Explain its causes and achievements.)
उत्तर-
पंजाब का 1 नवम्बर, 1966 को पुनर्गठन किया गया है। इस समय में नए कृषि ढांचे (New Agicultural Strategy) को अपनाया गया है। इसके परिणामस्वरूप पंजाब में कृषि का उत्पादन बहुत बढ़ गया तथा हरित क्रान्ति उत्पन्न हुई।
हरित क्रान्ति का अर्थ (Meaning of Green Revolution)-प्रो० एफ० आर० फ्रैक्ल के अनुसार, “हरित क्रान्ति एक सुन्दर नारा है जिसके द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि विज्ञान तथा तकनीकी विकास द्वारा कृषि के क्षेत्र में शान्तिपूर्वक रूपान्तर किया जा सकता है अथवा क्रान्ति लाई जा सकती है।” हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली वृद्धि से है जो कृषि में नई नीति के अपनाने के कारण हुआ है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कृषि के क्षेत्र में जो थोड़े समय में असाधारण विकास तथा वृद्धि हुई है, उसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। पंजाब में 1965-66 में 33 लाख टन कृषि उत्पादन किया गया जो कि 2019-20 में बढ़ कर 315.35 लाख मीट्रिक टन हो गया है।
हरित क्रान्ति के कारण (Causes of Green Revolution)-पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य कारण इस प्रकार हैं
1. भमि सधार (Land Reform)-पंजाब में कृषि क्षेत्र में कई प्रकार के सुधार किए गए हैं। जैसे कि भूमि की चकबन्दी की गई है। छोटे-छोटे टुकड़ों को एक स्थान पर एकत्रित किया गया है। सिंचाई साधनों का विस्तार तथा मशीनों के प्रयोग के कारण हरित क्रान्ति के लिए भूमिका तैयार की गई है।
2. कृषि अधीन क्षेत्रों का विस्तार (Extent in area Under Cultivation)-पंजाब में कृषि अधीन क्षेत्र में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 38 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि अधीन थी जोकि 2019-20 में बढ़ कर 80 लाख हेक्टेयर की गई है।
3. कृषि का मशीनीकरण (Mechanisation of Agriculture)-कृषि में आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जाता है जैसे कि ट्रैक्टर, कंबाइन, हारवैस्टर, डीज़ल इंजन इत्यादि यन्त्रों का प्रयोग होने के कारण उत्पादन शक्ति में बहुत वृद्धि हुई है 1966-67 में पंजाब में 10,000 ट्रैक्टर थे जिनकी संख्या 2019-20 में बढ़कर 5.15 लाख हो गई है।
4. उन्नत बीज (High yielding varieties of seeds)-पंजाब में हरित क्रान्ति का एक और कारण उन्नत बीजों का अधिक प्रयोग किया जाना है। गेहूँ, चावल, बाजरा, मक्की तथा ज्वार की फसलों के लिए बीजों की उन्नत किस्में बनाई गई हैं। गेहूं तथा चावल के लिए 100%, मक्की के लिए 90% तथा बाजरे के लिए 60% अधिक पैदावार देने वाले बीजों का प्रयोग 1999-2000 में किया गया।
5. रासायनिक उर्वरक (Fertilizers)-पंजाब में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण अनाज के उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति आने का एक कारण उर्वरकों का अधिक प्रयोग करना है। 1966-67 में 51 हज़ार टन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया गया था। 2019-20 में 1750 हजार टन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया गया है।
6. सिंचाई (Irrigation)-पंजाब में सिंचाई की अधिक सहूलतों के कारण हरित क्रान्ति पर बहुत प्रभाव पड़ा है। पंजाब में सारा वर्ष चलने वाले तीन दरिया सतलुज, ब्यास तथा रावी हैं जिनसे विद्युत् पैदा की जाती है तथा सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई है। ट्यूबवैल, कुएं तथा तालाब की सिंचाई के साधन हैं। 1965-66 में 59% क्षेत्र पर सिंचाई की जाती थी। 2019-20 में 78.3 लाख हैक्टर क्षेत्र पर सिंचाई की जाती है।
7. साख सहूलतें (Credit Facilities) हरित क्रान्ति के लिए साख सहूलतों का योगदान बहुत अधिक है। 1967-68 में सहकारी समितियों द्वारा ₹ 75 करोड़ की साख सहूलतें प्रदान की गई थीं जो कि 2019-20 में बढ़ कर ₹ 6515 करोड़ हो गई हैं।
8. खोज (Research)-पंजाब में कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना में खोज का कार्य किया जाता है। कृषि यूनिवर्सिटी में नए बीज, भूमि की परख, उर्वरकों का प्रयोग, कीट नाशक दवाइयों के प्रयोग सम्बन्धी अल्प अवधि के कोर्स आरम्भ किए जाते हैं। इससे किसानों को फसलों की देख रेख करने सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। परिणामस्वरूप कृषि के उत्पापर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
हरित क्रान्ति की प्राप्तियां (Achievements of Green Revolution)
अथवा
हरित क्रान्ति के प्रभाव (Effects of Green Revolution)
हरित क्रान्ति की मुख्य प्राप्तियां इस प्रकार हैं –
1. उत्पादन में वृद्धि (Increase in Production) हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप कृषि के उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 33 लाख टन अनाज पैदा किया गया था। हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप वर्ष 2019-20 में कृषि का उत्पादन 315.33 लाख मीट्रिक टन हो गया है।
2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment) हरित क्रान्ति के कारण मशीनों का प्रयोग बढ़ गया है। परन्तु फिर भी वर्ष में कई फसलें पैदा होने लगी हैं इसलिए रोज़गार में वृद्धि हुई है।
3. उद्योगों में वृद्धि (Increase in Industries) हरित क्रान्ति का प्रभाव उद्योगों के विकास पर अच्छा पड़ा है। पंजाब में कृषि यन्त्र हारवैस्टर, थ्रेशर इत्यादि की मांग बढ़ने के कारण बहुत से उद्योग स्थापित किए गए हैं।
4. उत्पादकता में वृद्धि (Increase in Productivity) हरित क्रान्ति के पश्चात् गेहूँ तथा चावल की उत्पादन शक्ति बहुत बढ़ गई है। यद्यपि गेहूँ, मक्की, ज्वार, कपास की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि हुई है जिसका मुख्य कारण अच्छे बीजों, रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग है।
5. ग्रामीण विकास (Rural Development) हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप ग्रामीण लोगों की आय में वृद्धि हो गई है इसलिए ग्रामीण लोगों में उच्च जीवन स्तर व्यतीत करने की इच्छा पैदा हो गई है।
प्रश्न 3.
पंजाब की प्रमुख फसलों का वर्णन करें। पंजाब में पुनर्गठन के पश्चात् फसलों के ढांचे में कौन-से परिवर्तन हुए हैं ?
उत्तर-
पंजाब में कई प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। इन फसलों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
A. खाद्य फसलें (Food Crops)-ये वह फसलें हैं जोकि भोजन के रूप में खाने के लिए प्रयोग की जाती हैं जैसे कि गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्की, दालें तथा चने इत्यादि।
B. व्यापारिक फसलें (Commercial Crops)-व्यापारिक फसलें वे हैं जिनका प्रयोग उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। जैसे कि गन्ना, कपास, तिलहन इत्यादि।
A. खाहा फसलें (Food Crops)-पंजाब की खाद्य फसलों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है –
1. गेहूँ (Wheat)-पंजाब में गेहूँ भोजन के लिए मुख्य फसल है। गेहूँ की बिजाई नवम्बर-दिसम्बर के महीने में की जाती है जोकि अप्रैल-मई के महीने में काटी जाती है। पंजाब के सब ज़िलों में गेहूँ की बिजाई की जाती है परन्तु संगरूर, फिरोज़पुर तथा लुधियाना जिले में अन्य जिलों से गेहूँ अधिक होती है। 2019-20 में गेहूँ की उत्पादन शक्ति पंजाब में 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। जबकि भारत में गेहूँ की औसत उत्पादकता 3600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। स्पष्ट है कि पंजाब में गेहूँ का उत्पादन 17613 हज़ार मीट्रिक टन है जो अन्य राज्यों से अधिक है।
2. चावल (Rice)- पंजाब में चावल की खाद्य फसलों में से प्रमुख फसल है। इसकी बिजाई मई-जून में की जाती है तथा यह अक्तूबर-नवम्बर तक तैयार हो जाती है। चावल का उत्पादन पंजाब के सब जिलों में होता है परन्तु सबसे अधिक उत्पादन अमृतसर, पटियाला, लुधियाना तथा संगरूर ज़िलों में होता है। 2019-20 में पंजाब में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जबकि समूचे भारत में औसत उत्पादकता 2708 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। पंजाब में चावल का उत्पादन 13311 हज़ार मीट्रिक टन था।
3. जौ (Barley)-पंजाब में जौ रबी की फसल है। इसको पंजाब में सितम्बर-अक्तूबर के महीने में बोआ जाता है तथा यह अप्रैल में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन भटिंडा, होशियारपुर इत्यादि जिलों में होता है। 1965-66 में जौ की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1030 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर था। 2019-20 में इसकी उत्पादन शक्ति बढ़कर 3017 किलोग्राम हो गई है। जौ का उत्पादन 117 हजार मीट्रिक टन हुआ था।
4. मक्की (Maize)-पंजाब में मक्की खरीफ की फसल है। मक्की जून-जुलाई के महीने में बोई जाती है तथा मक्की की फसल सितम्बर, अक्तूबर तक तैयार हो जाती है। पंजाब में अधिकतर मक्की लुधियाना, जालन्धर, होशियारपुर जिलों में पैदा होती है। 1970-71 में प्रति हेक्टेयर उत्पादन शक्ति 1555 किलोग्राम थी। 2019-20 में इसकी उत्पादन शक्ति बढ़कर 3515 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। मक्की का उत्पादन 396 लाख मीट्रिक टन हुआ था।
5. ज्वार तथा बाजरा (Jowar and Bazra)-ज्वार तथा बाजरा खरीफ की फसलें हैं। ज्वार मुख्यतः रूपनगर तथा मुक्तसर जिलों में पैदा की जाती है। बाजरे की फसल, गुरदासपुर, फिरोजपुर, फरीदकोट तथा संगरूर में होती है। बाजरे की उत्पादन शक्ति 1965-66 में 548 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जोकि 2019-20 में बढ़कर 987 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। ज्वार का उत्पादन 800 मीट्रिक टन तथा बाजरे का उत्पादन 800 मीट्रिक टन हुआ था।
6. चने (Gram)-यह रबी की फसल है जोकि अक्तूबर-नवम्बर में बोई जाती है। यह फसल अप्रैल-मई तक तैयार हो जाती है। यह फसल भटिंडा तथा मुक्तसर जिलों में होती है क्योंकि रेतीली भूमि इसके लिए अधिक उपयुक्त होती है। इसकी उत्पादकता 1245 kg प्रति हैक्टेयर और उत्पादन 3 हज़ार मीट्रिक टन था।
7. दालें (Pulses) पंजाब में लोगों के भोजन का मुख्य अंग दालें हैं। पंजाब में मांह, मोठ, मूंगी, मसर इत्यादि दालों का प्रयोग किया जाता है। दालों की उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है। 2019-20 में दालों की पैदावार 25 हज़ार मीट्रिक टन थी।
B. व्यापारिक फसलें अथवा नकदी फसलें (Commercial Crops or Cash Crops)-पंजाब में व्यापारिक फसलें मुख्यतः निम्नलिखित है –
1. गन्ना (Sugarcane) पंजाब में गन्ना व्यापारिक खाद्य फसल है। इसका प्रयोग गुड़, शक्कर तथा चीनी तैयार करने के लिए किया जाता है। इसका बिजाई मार्च-अप्रैल तथा कटाई दिसम्बर-मार्च में की जाती है। गन्ना मुख्यतः जालन्धर, गुरदासपुर तथा रूपनगर जिलों में बोआ जाता है। पंजाब में चीनी बनाने के उद्योग के लिए कच्चा माल पंजाब में ही तैयार किया जाता है। 2019-20 में गन्ने का उत्पादन 7744 लाख मीट्रिक टन हुआ था।
2. कपास (Cotton) कपास खरीफ की फसल है। यह अप्रैल से जून तक बोई जाती है जोकि सितम्बर से दिसम्बर तक तैयार हो जाती है। पंजाब में भटिंडा, फरीदकोट, फिरोजपुर में कपास की अमेरिकन किस्म बोई जाती है जबकि अन्य जिलों में देशी कपास बोई जाती है। 2019-20 में कपास का उत्पादन 1283 हज़ार गांठें हुआ।
3. तेलों के बीज (Oil Seeds)-पंजाब में तेलों के बीज मुख्य नकदी फसल है। इसमें सरसों, तारामीरा, अलसी, तिल इत्यादि का उत्पादन होता है। इनमें से कुछ फसलें रबी की हैं तथा कुछ खरीफ की हैं। भटिंडा, फिरोजपुर तथा पटियाला में सरसों तथा तारामीरा, संगरूर में मुख्यतः तारामीरा, लुधियाना में मूंगफली का उत्पादन किया जाता है। 2019-20 में 59.6 हज़ार मीट्रिक टन तेलों के बीज का उत्पादन हुआ।
प्रश्न 4.
पंजाब में कृषि उपज बिक्री के दोष बताएं और इन दोषों को दूर करने के लिये सुझाव दें।
(Discuss the defects of Agricultural Marketing on Punjab. Suggest measures to remove the defects.)
उत्तर-
पंजाब में कृषि उपज बिक्री के मुख्य दोष इस प्रकार हैं –
1. ग्रेडिंग का अभाव (Lack of Grading)-पंजाब में किसान अपनी फसल की ग्रेडिंग नहीं करते। जो फसल बाज़ार में बिक्री के लिए भेजी जाती है उसमें मिलावट होने के कारण उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता।
2. उपज के भण्डार का अभाव (Lack of Storage Facilities)-किसान को अपनी उपज कटाई के बाद शीघ्र बेचनी पड़ती है क्योंकि फसलों के संग्रह करने के लिये उचित भण्डार साधन नहीं होते। इसलिए घर पर फसल रखने से उसके नष्ट होने का डर रहता है।
3. संगठन का अभाव (Lack of Organisation) पंजाब में किसानों का कोई संगठन नहीं है जो कि उपज का उचित मूल्य दिला सके। किसान अपनी-अपनी फसल मण्डियों में बेचते हैं जिस कारण उनको उपज की कम कीमत प्राप्त होती है।
4. मण्डियों में अधिक मध्यस्थ (Many Intermediaries in Mandies)-मण्डी में मध्यस्थों की अधिकता के कारण भी किसान को उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता। किसान और उपभोक्ता के बीच कच्चा आढ़तिया, पक्का आढ़तिया, दलाल आदि बहुत-से मध्यस्थ होते हैं। मध्यस्थों के कारण किसान को उपज की पूरी कीमत प्राप्त नहीं होती।
5. मण्डियों में अनुचित ढंग (Malpractices in Mandies) मण्डियों में किसान को कम कीमत देने के लिये कई प्रकार के अनुचित ढंगों का प्रयोग किया जाता है। किसान की उपज को तुरन्त खरीदा नहीं जाता और किसान को कई दिन उपज की सम्भाल करनी पड़ती है। उसको उपज की उचित कीमत का ज्ञान भी नहीं दिया जाता।
6. मण्डियों के बारे में सूचना (Knowledge about Mandies) किसानों को बाज़ार की विभिन्न मण्डियों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती। इसलिये किसान अपनी उपज गांव के पास ही मण्डियों में कम कीमत पर बेच देता है।
7. वित्त का अभाव (Lack of Finance)-किसानों को फसल बीजने से लेकर, इस की कटाई होने तक बहुतसे वित्त की ज़रूरत होती है। पंजाब में बहुत-से किसान वित्त के लिये महाजनों तथा आढ़तियों पर निर्भर होते हैं। इसलिए किसान को अपनी उपज महाजनों तथा आढ़तियों को ही बेचनी पढ़ती है। इसलिए उपज की ठीक कीमत प्राप्त नहीं होती।
8. यातायात सुविधाओं का अभाव (Lack of Transport Facilities)-पंजाब में गांव में यातायात की असुविधाएं होने के कारण किसान को अपनी उपज गांव में या नज़दीक मण्डियों में ही बेचनी पड़ती है। इसलिये किसान को अपने उत्पादन को बहुत ही प्रतिकूल समय, प्रतिकूल दरों पर, प्रतिकूल बाज़ार में बेचना पड़ता है।
9. स्वेच्छा बिक्री का अभाव (Lack of Freedom of Sale)-पंजाब में किसान अपनी उपज स्वेच्छा से बिक्री नहीं कर सकता। उसको बैंक का कर्ज, साहूकार और आढ़तियों का कर्ज देना होता है। इसलिए फसल काटने के तुरन्त बाद उसको अपनी उपज बेचनी पड़ती है।
कृषि उपज की बिक्री के दोषों को दूर करने के लिए सुझाव (Suggestions to Remove the Defects of Agricultural Marketing) कृषि उपज की बिक्री में बहुत से दोष हैं। इन दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जाते हैं –
1. वित्त की सुविधा (Facilities of Finance)-पंजाब के किसानों को वित्त की सुविधा प्रदान करनी चाहिए। भारत सरकार ने इस वित्त की सुविधा को ध्यान में रखते हुए किसानों पर से 2019-20 में ₹ 2000 करोड़ का कर्ज माफ़ कर दिया है और बैंकों में किसानों को अधिक साख देने के लिये कहा है।
2. यातायात की सुविधा (Facilities of Transport)-पंजाब में किसान की उपज को बेचने के लिये सस्ती, कुशल तथा पर्याप्त सुविधाएं होनी चाहिएं। इस प्रकार किसान अपनी उपज को उचित बाज़ार, उचित समय तथा उचित कीमत पर बेच सकता है।
3. संग्रह की सुविधा (Facilities of Storage)-संग्रह की सुविधा भी कृषि उपज की बिक्री के लिए बहुत • ज़रूरी है। किसान के पास गांव में फसलों को संग्रह करने के लिये गड्ढ़े या कोठियां मिट्टी के बने होते हैं। इस कारण बहुत-सी फसल नष्ट हो जाती है। इसलिए संग्रह की सुविधा सरकार द्वारा प्रदान करनी चाहिए।
4. मध्यस्थों पर नियन्त्रण (Control over Middleman)-कृषि उपज की उचित बिक्री के लिये मध्यस्थों पर नियन्त्रण आवश्यक है। मध्यस्थों पर नियन्त्रण करके किसान को उसकी उपज की ठीक कीमत दिलाई जा सकती है।
5. उचित कीमत (Suitable Price)-किसान द्वारा उपज की कीमत दूसरे खरीदार लगाते हैं जबकि उत्पादक अपनी वस्तु की कीमत स्वेच्छा से निर्धारित करते हैं। इसलिए किसान को अपनी उपज की कीमत स्वेच्छा से निर्धारित करने का अधिकार होना चाहिए।