Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 1 सूरदास Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 1 सूरदास
Hindi Guide for Class 12 PSEB सूरदास Textbook Questions and Answers
(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:
प्रश्न 1.
विनय पद के आधार पर सूरदास की भक्ति भावना को 40 शब्दों में स्पष्ट करें।
उत्तर:
सूरदास जी की कृष्ण भक्ति का आधार प्रेम है। विनय भी इसी प्रेम के अन्तर्गत आता है। सूरदास जी भगवान् कृष्ण के करुणामय और समदर्शी रूप के कारण ही उनसे अपना उद्धार करने अर्थात् भवसागर से पार उतारने की प्रार्थना करते हैं। उनकी भक्ति माधुर्य भाव की भक्ति है आत्म-समर्पण और अनन्य भाव माधुर्य-भक्ति के लिए आवश्यक है। सर्वप्रमुख भगवान् श्रीकृष्ण का अनुग्रह ही है। अपने आराध्य की सामर्थ्य, भक्तवत्सलता और अपने अधम जीवन का उद्घाटन सूरदास ने इन विनय पदों में किया है।
प्रश्न 2:
‘खेलन अब मेरी जात बलैया’ में श्रीकृष्ण खेलने क्यों नहीं जाना चाहते हैं-संकलित पद के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
श्रीकृष्ण इसलिए खेलने नहीं जाना चाहते क्योंकि बड़े भैया बलराम उन्हें यह कर चिढ़ाते हैं कि उनके पिता वसुदेव और माता देवकी हैं। नन्द बाबा ने तो उन्हें कुछ दे दिला कर मोल लिया है। ऐसे ही दूसरे ग्वाल भी कह कर उन्हें चिढ़ाते हैं।
प्रश्न 3.
‘जिय तेरे कछु भेद उपजि है जान परायो जायो’ पंक्ति में श्रीकृष्ण माँ यशोदा से क्या कहना चाहते हैं-‘परायो जायो’ की व्याख्या करते हुए श्रीकृष्ण जन्म की घटना का वर्णन करो।
उत्तर:
श्रीकृष्ण माँ यशोदा से कहना चाहते हैं कि चूँकि मैं वसुदेव-देवकी का पुत्र हूँ इसलिए तुम मुझे किसी दूसरे का पुत्र समझ कर डाँट रही हो और दूसरों की बातों पर विश्वास कर रही हो कि कृष्ण ने माखन खाया है या चुराया है।
श्रीकृष्ण के जन्म की घटना
भादों महीने की अष्टमी थी। आधी रात का समय था। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के राजा कंस की जेल में हुआ। श्रीकृष्ण की जननी देवकी कंस की बहन थी। उसने बहन देवकी और उनके पति वसुदेव को कैद कर रखा था। भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी की आठवीं सन्तान के हाथों उसका वध होगा। कंस ने आठवें की प्रतीक्षा न कर देवकी की पहली सात सन्तानों को मरवा डाला था। श्रीकृष्ण के जन्म से पूर्व ही वसुदेव ने ब्रज में अपने मित्र नन्द के साथ समझौता किया था कि जन्म लेते ही वे अपने पुत्र को उनके संरक्षण में सौंप देंगे। संयोग से उसी दिन यशोदा ने भी एक लड़की को जन्म दिया। श्रीकृष्ण के जन्म लेते ही जेल के सब द्वार अपने आप खुल गए और सभी कर्मचारी सो गए। वसुदेव श्रीकृष्ण को एक टोकरी में डाल यमुना पार कर तूफानी रात में नन्द के पास पहुँचे और बच्चों की अदला-बदली कर वापस जेल में पहुँच गए। दूसरे दिन कंस को देवकी द्वारा एक कन्या को जन्म देने का समाचार पहुँचा। निर्दयी कंस ने उस कन्या को भी मरवा दिया।
प्रश्न 4.
सूरदास ने बाल-क्रीड़ा का मनोवैज्ञानिक रूप से कैसे वर्णन किया है ?
उत्तर:
सूरदास जी वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए थे। ऐसा अनेक विद्वानों ने माना है। वास्तव में सूरदास जी ने बाल मनोविज्ञान के अनुरूप ही वात्सल्य सम्बन्धी पदों की रचना की है। यथा पहले पद में श्रीकृष्ण का खेलने न जाने का एक कारण है।
जबहि मोहि देखत लरकिन संग तबहि खिझत बल भैया।।
मोसों कहत तात वसुदेव को देवकी तेरी मैया।।
कोई भी बालक इस बात को लेकर चिढ़ाए जाने पर खेलना पसन्द नहीं करेगा। दूसरे जब श्रीकृष्ण की शिकायत सुन कर नन्द बाबा बलराम को झिड़कते हैं तो बाल सुलभ प्रकृति के कारण श्रीकृष्ण भी मन में प्रसन्न हुए।
सूर नंद बलराम हिं घिरक्यो सुनि मन हरष कन्हैया।।
जिसकी शिकायत की जा रही हो उसे जब दण्ड मिलता है तो शिकायत करने वाला मन ही मन प्रसन्न होता ही है।
(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:
प्रश्न 5.
चरण कमल बन्दौ हरि राई ……. तिहि पाई॥
उत्तर:
सूरदास कहते हैं कि मैं भगवान् श्री कृष्ण के चरण-कमलों की वन्दना करता हूँ। जिनकी कृपा से लंगड़ा भी पर्वत लाँघ जाता है तथा अन्धे को भी सब कुछ दिखाई देने लगता है। बहरा सुनने लगता है, गूंगा फिर से बोलने लगता तथा निर्धन भी सिर पर छत्र धारण करवा कर चलता है अर्थात् सम्राट् बन जाता है। सूरदास कहते हैं कि मेरे स्वामी ऐसे दयालु हैं इसलिए मैं उन के चरणों की बार-बार वन्दना करता हूँ।
प्रश्न 6.
खेलन अब मेरी जात बलैया …… हरख कन्हैया॥
उत्तर:
सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने शिकायत करते हुए कहा कि अब मेरी बला खेलने जाएगी अर्थात् अब मैं खेलने नहीं जाऊँगा। अपनी इस नाराज़गी का कारण बताते हुए बाल श्रीकृष्ण कहते हैं कि बलराम भैया जब भी मुझे लड़कों के साथ खेलता देखते हैं तब मुझे चिढ़ाते हैं। वे मुझ से कहते हैं कि वसुदेव तुम्हारे पिता और देवकी तुम्हारी माता है। बहुत यत्न करके कुछ दे-दिलाकर वसुदेव से तुम्हें खरीदा है। अब तुम नन्द बाबा और यशोदा को माँ कहकर पुकारते हो। इसी प्रकार कह कर सभी मुझे चिढ़ाते हैं। तब मैं खिसिया कर वहाँ से उठकर चला आता हूँ। बाल श्रीकृष्ण की ये बातें पीछे खड़े नन्द बाबा सुन रहे थे उन्होंने हँसते-हँसते श्रीकृष्ण को गले से लगा लिया। सूरदास कहते हैं कि नन्द बाबा ने बलराम को झिड़का, जिसे सुनकर बाल श्रीकृष्ण मन ही मन प्रसन्न हो उठे।
प्रश्न 7.
कृष्ण यशोदा से अपने ग्वाल सखाओं की क्या शिकायत करते हैं ? कृष्ण की बातें सुनकर यशोदा की प्रतिक्रिया को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कृष्ण यशोदा को अपने ग्वाल सखाओं की शिकायत करते हुए कहते हैं कि वे सभी मेरे दुश्मन बन गए हैं और उन्होंने ही ज़बरदस्ती मेरे मुख पर माखन लगा दिया है, मैंने माखन चुरा कर नहीं खाया है। आप भोली हैं, जो उनकी बातों में आ जाती हैं। श्रीकृष्ण की इन क्रोध से भरी बातों को सुनकर यशोदा हंस पड़ती है और कृष्ण को अपने गले लगा लेती है।
PSEB 12th Class Hindi Guide सूरदास Additional Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सूरदास किसकी भक्ति में विश्वास रखते थे?
उत्तर:
श्री कृष्ण की भक्ति में।
प्रश्न 2.
सूरदास का जन्म कहाँ और कब हुआ था?
उत्तर:
दिल्ली के निकट सीही ग्राम में सन् 1478 ई० में।
प्रश्न 3.
सूरदास किस संप्रदाय से जुड़े हुए थे?
उत्तर:
वल्लभ संप्रदाय से।
प्रश्न 4.
सूरदास के काव्य में किसका और कैसा चित्रण श्रेष्ठतम है?
उत्तर:
श्री कृष्ण के श्रृंगार और वात्सल्य का चित्रण।
प्रश्न 5.
सूरदास की रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी।
प्रश्न 6.
सूरदास की भाषा कौन-सी थी?
उत्तर:
ब्रजभाषा।
प्रश्न 7.
सूरदास का देहांत कब और कहां हुआ था?
उत्तर:
सन् 1583 ई० में, मथुरा के निकट पारसौली गांव में।
प्रश्न 8.
सूरदास ने श्री कृष्ण से किस तरफ ध्यान न देने की प्रार्थना की थी?
उत्तर:
सूरदास के दोषों की तरफ।
प्रश्न 9.
यह सारा संसार किसका भ्रमजाल है?
उत्तर:
मोह-माया का।
प्रश्न 10.
श्री कृष्ण के बचपन संबंधी पदों में सूरदास के काव्य में किस रस की प्रधानता है?
उत्तर:
वात्सल्य रस की।
प्रश्न 11.
श्री कृष्ण ने क्या नहीं खाने की बात कही थी?
उत्तर:
माखन।
वाक्य पूरे कीजिए
प्रश्न 1.
……………..अब मेरी जात बलैया।
उत्तर:
खेलन।
प्रश्न 2.
मैया मेरी, मैं नहि………….।
उत्तर:
माखन खायो।
प्रश्न 3.
यह माया……………कहावत सूरदास सगरो।
उत्तर:
भ्रम जाल।
प्रश्न 4.
…………….सुनै…………….पुनि बोलै।
उत्तर:
बहिरो, मूक।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 5.
श्री कृष्ण राम भक्त थे।
उत्तर:
नहीं।
प्रश्न 6.
सूरदास की भाषा का नाम अवधी था।
उत्तर:
नहीं।
प्रश्न 7.
सूरदास ने ‘समदर्शी’ श्री कृष्ण को कहा है?
उत्तर:
हाँ।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. सूरदास किस भक्ति के कवि थे ?
(क) राम
(ख) कृष्ण
(ग) बुद्ध
(घ) हरि
उत्तर:
(ख) कृष्ण
2. सूरदास किस संप्रदाय के साथ जुड़े थे ?
(क) वल्लभ
(ख) दल्लभ
(ग) शलभ
(घ) विलभ
उत्तर:
(क) वल्लभ
3. सूरदास की भाषा कौन सी थी ?
(क) सधुक्कड़ी
(ख) ब्रज
(ग) अवधी
(घ) हिंदी
उत्तर:
(ख) ब्रज
4. सूरदास के स्वामी कैसे हैं ?
(क) मधुर
(ख) विदुर
(ग) करुणामय
(घ) कारुणिक
उत्तर:
(ग) करुणामय
5. माँ से रूठने पर कृष्ण क्या खाने से मना करते हैं ?
(क) मक्खन
(ख) लस्सी
(ग) रोटी
(घ) भोजन
उत्तर:
(क) मक्खन
सूरदास सप्रसंग व्याख्या
1. चरण कमल बन्दौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे, अंधे को सब कछु दरसाई।
बहिरौ सुनै मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुणामय, बार बार बन्दौं तिहिं पाई॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
हरि राई = भगवान् श्री कृष्ण । पंगु = लंगड़ा। मूक = गूंगा। रंक = निर्धन, फकीर। करुणामय = दयालु। पाई = चरण।।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकालीन प्रमुख कृष्ण भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ के ‘विनय पद’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पद में कवि की विनयशीलता और भक्ति भावना का परिचय मिलता है।
व्याख्या:
सूरदास कहते हैं कि मैं भगवान् श्री कृष्ण के चरण-कमलों की वन्दना करता हूँ। जिनकी कृपा से लंगड़ा भी पर्वत लाँघ जाता है तथा अन्धे को भी सब कुछ दिखाई देने लगता है। बहरा सुनने लगता है, गूंगा फिर से बोलने लगता तथा निर्धन भी सिर पर छत्र धारण करवा कर चलता है अर्थात् सम्राट् बन जाता है। सूरदास कहते हैं कि मेरे स्वामी ऐसे दयालु हैं इसलिए मैं उन के चरणों की बार-बार वन्दना करता हूँ।
विशेष:
- कवि ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण को सर्वशक्तिमान स्वीकार करते हुए उनके चरणों की वंदना की है।
- ब्रजभाषा एवं गीति शैली है।
- रूपक अनुपात तथा पुनरक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
2. प्रभु मोरे अवगुन चित्त न धरौ।।
समदरसी है नाम तिहारो, चाहो तो पार करौ।।
इक नदिया इक नार कहावत, मैलोहि नीर भरौ।
जब दोनों मिलि एक बरन भये, सुरसरि नाम परौ॥
इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परो।।
पारस गुन अवगुन नहिं चितवत कंचन करत खरो।
यह माया भ्रम जाल कहावत सूरदास सगरो।
अबकि बेर मोहिं पर उतारो नहिं प्रन जात टरो॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
चित्त न धरौ = ध्यान न दो। समदरसी = सबको समान दृष्टि से देखने वाले। पार करो = उद्धार करो, भवसागर से पार करो। नार = नाला। वरन = रंग। सुरसरी = गंगा। बधिक = केसाई। पारस = एक पत्थर जिसके स्पर्श से लोहा शुद्ध स्वर्ण में बदल जाता है। कंचन = सोना। खरो = शुद्ध। जात टरो = टला जाता है। सगरो = सारा।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद सूरदास द्वारा रचित सूरसागर के ‘विनय पद’ से लिया गया है। इस पद में कवि ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण को समदर्शी मानते हुए उनसे अपने अवगुणों को क्षमा करने की प्रार्थना करते हुए भवसागर से पार उतारने की विनती की है।
व्याख्या:
सूरदास प्रभु श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु ! मेरे दोषों पर ध्यान न दें। आपका नाम समदर्शी है अर्थात् आप सब को एक जैसी नज़र से देखते हैं। आप की इसी विशेषता को ध्यान में रखकर मैं आप से प्रार्थना करता हूँ कि यदि आप चाहें तो मुझे इस भवसागर से पार कर दें अर्थात् मेरा उद्धार कर दें। जिस प्रकार स्वच्छ जल से भरी एक नदी है तथा मैले जल से भरा एक नाला है जब दोनों मिल जाते हैं तो एकाकार हो कर स्वच्छ हो जाते हैं और उनका नाम देव नदी गंगा पड़ जाता है। जिस प्रकार एक लोहा पूजा गृह में रखा जाता है तथा दूसरा कसाई के घर पड़ा होता है किन्तु पारस उनके गुण अवगुण को नहीं देखता अर्थात् उनमें भेद नहीं मानता, वह दोनों को ही शुद्ध सोने में बदल देता है। सूरदास कहते हैं यह सारा संसार माया का भ्रमजाल कहलाता है इसलिए हे प्रभु अबकी बार मुझे भव-सागर से अवश्य पार कर दो नहीं तो आप का समदर्शिता तथा पतित पावनता का प्रण टल जाएगा।
विशेष:
- कवि ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण को समदर्शी तथा पतितपावन मानते हुए उनसे अपने उद्धार की प्रार्थना की है।
- कोमलकांत ब्रजभाषा का प्रयोग है।
- गीति शैली है।
- अनुप्रास तथा विनयोक्ति अलंकार हैं।
वात्सल्य भाव
1. खेलन अब मेरी जात बलैया।
जबहिं मोहि देखत लरिकन संग तबहिं खिझत बल मैया॥
मोसों कहत तात बसुदेव को देवकी तेरी मैया।
मोल लियो कछु दे बसुदेव को करि करि जतन बहैया।
अब बाबा कहि कहत नंद को जसुमति को कहै मैया
ऐसेहि कहि सब मोहिं खिजावत तब उठि चलौं खिसैया॥
पाछे नन्द सुनत हैं ठाढ़े हँसत हँसत उर लैया।
‘सूर’ नन्द बलरामहि धिरक्यो सुनि मन हरख कन्हैया।।
कठिन शब्दों के अर्थ:
बलैया = बला। बल भैया = बलराम भाई। तात = पिता। बहैया = बहुत। खिसैया = खिसिया कर, झेंपकर। धिरक्यो = झिड़कना। मन हरख = मन में प्रसन्न होना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकालीन प्रमुख कृष्ण भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ में आए वात्सल्य भाव के पदों में से लिया गया है। प्रस्तुत पद में बाल श्री कृष्ण द्वारा बड़े भाई बलराम की शिकायत करने का वर्णन किया गया है।
व्याख्या:
सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने शिकायत करते हुए कहा कि अब मेरी बला खेलने जाएगी अर्थात् अब मैं खेलने नहीं जाऊँगा। अपनी इस नाराज़गी का कारण बताते हुए बाल श्रीकृष्ण कहते हैं कि बलराम भैया जब भी मुझे लड़कों के साथ खेलता देखते हैं तब मुझे चिढ़ाते हैं। वे मुझ से कहते हैं कि वसुदेव तुम्हारे पिता और देवकी तुम्हारी माता है। बहुत यत्न करके कुछ दे-दिलाकर वसुदेव से तुम्हें खरीदा है। अब तुम नन्द बाबा और यशोदा को माँ कहकर पुकारते हो। इसी प्रकार कह कर सभी मुझे चिढ़ाते हैं। तब मैं खिसिया कर वहाँ से उठकर चला आता हूँ। बाल श्रीकृष्ण की ये बातें पीछे खड़े नन्द बाबा सुन रहे थे उन्होंने हँसते-हँसते श्रीकृष्ण को गले से लगा लिया। सूरदास कहते हैं कि नन्द बाबा ने बलराम को झिड़का, जिसे सुनकर बाल श्रीकृष्ण मन ही मन प्रसन्न हो उठे।
विशेष:
- बालसुलभ स्वभाव के कारण श्रीकृष्ण बड़े भाई को झिड़कियाँ दिलाकर प्रसन्न हुए। इसी तथ्य की ओर संकेत किया गया है।
- ब्रजभाषा की कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया गया है।
- अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- वात्सल्य रस है।
2. मैया मोरी, मैं नहिं माखन खायो।
भोर भयो गैयन के पाछे मधुबन मोहिं पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो साँझ परे घर आयो।
मैं बालक बहियन को छोटो छींको केहि बिधि पायो।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं बरबस मुख लपटायो।।
तू जननी मति की अति भोरी इनके कहे पतियायो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है जान परायो जायो॥
यह ले अपनी लकुटि कमरिया बहुतहि नाच नचायो।
‘सूरदास’ तब बिहँसि जसोदा लै उर कण्ठ लगायो।
कठिन शब्दों के अर्थ:
भोर = सुबह। मधुबन = वृन्दावन। पठायो = भेजा। बहियन = भुजाओं से। विधि = तरीका। बरबस = ज़बरदस्ती। मति = बुद्धि। भोरी = भोली। पतियायो = विश्वास करना। लकुटि = (गऊएँ चराने वाली) लकड़ी। कमरिया = कंबली। बिहँसि = हँसकर।।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकालीन प्रमुख कृष्ण भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ में आए वात्सल्य-भाव के पदों में से लिया गया है। प्रस्तुत पद में बाल श्रीकृष्ण माखन चुराते पकड़े जाने पर माता से बहाने बनाकर माखन चुराने की बात का खण्डन कर रहे हैं।
व्याख्या:
बाल श्रीकृष्ण माखन चुराते पकड़े जाते हैं तो माता के पूछने पर वे कहते हैं कि हे माता, मैंने माखन नहीं खाया है। मैं कैसे माखन चुरा कर खा सकता हूँ। प्रातः होते ही तो तुमने मुझे गउओं के पीछे मधुवन भेज दिया था। चार पहर तक अर्थात् दिन भर तो मैं वन में भटकता रहा और संध्या होने पर ही घर लौटा हूँ। मैं तो बालक हूँ मेरी भुजाएँ भी छोटी-छोटी हैं अत: ऊँचा टँगा यह छींका मैं किस प्रकार पा सकता हूँ ? सभी ग्वाल बाल मेरे दुश्मन हैं, उन्होंने ज़बरदस्ती मेरे मुँह पर माखन लगा दिया। तू माता तो अक्ल की भोली है जो उनकी बातों पर विश्वास कर बैठी हो। ऐसा लगता है कि पराया जान कर या दूसरी स्त्री द्वारा जन्म दिए जाने के कारण मेरे प्रति तुम्हारे हृदय में कुछ भेद उत्पन्न हो गया है। यह लो अपनी लकड़ी-जिसे तूने गऊएँ चराने के लिए दिया है और यह लो अपनी कंबली-जिसे ओढ़ कर मैं गउएँ चराने जाता हूँ। तुम ने मुझे बहुत नाच नचाया है अर्थात् बहुत परेशान किया है। सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण के इन क्रोध भरे वचनों को सुनकर माता यशोदा हँस पड़ी और उन्होंने श्रीकृष्ण को गले से लगा लिया।
विशेष:
- कवि ने बाल कृष्ण के रूठने तथा आक्रोश करने का स्वाभाविक चित्रण किया है।
- ब्रजभाषा, गीतात्मकता एवं हाव-भाव का आकर्षक चित्रण है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है। वात्सल्य रस है।
सूरदास Summary
सूरदास जीवन परिचय
महाकवि सूरदास का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
मध्यकालीन सगुणोपासक एवं कृष्णभक्त कवि सूरदास जी का जन्म सन् 1478 ई० में दिल्ली के निकट सीही ग्राम में एक सारस्वत,ब्राह्मण परिवार में हुआ। कुछ विद्वान् इन्हें जन्म से ही अन्धा मानते हैं तो कुछ मानते हैं कि यह किसी कारणवश बाद में अन्धे हो गए लेकिन इसका कोई भी साक्ष्य नहीं मिलता। सूरदास जी वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित हुए और उन्हीं की प्रेरणा से ब्रज में श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन करने लगे। इनके काव्य में श्रृंगार और वात्सल्य का बहुत सहज और स्वाभाविक चित्रण प्राप्त होता है। श्रृंगार के वियोग पक्ष में इन्होंने गोपियों के कृष्ण के विरह में संतप्त हृदय का मार्मिक चित्रण किया है। श्रीकृष्ण लीलाओं में उनकी बाललीलाओं का वर्णन बेजोड़ है। सूरदास जी की भक्ति भावना सख्य भाव की है।
सूरदास जी रचित तीन रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली और साहित्य लहरी हैं। सूरसागर की रचना श्रीमद्भागवत पुराण के आधार पर की गई है। इनका काव्य ब्रजभाषा में रचित, गीतात्मक, माधुर्य गुण से युक्त तथा अलंकारपूर्ण है। इनका देहान्त सन् 1583 ई० में मथुरा के निकट पारसौली गांव में हुआ था।
सूरदास पदों का सार
सूरदास द्वारा रचित प्रथम दो पद विनय से सम्बन्धित हैं, जिनमें कवि ने श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करते हुए उनके चरणकमलों की वन्दना करते हुए उन्हें करुणामय बताया है, जिनकी कृपा से लंगड़ा पर्वतों पर चढ़ सकता है, गूंगा बोल सकता है, बहरा सुन सकता है, अन्धा देख सकता है और निर्धन राजा बन सकता है। दूसरे पद में प्रभु से भवसागर से पार उतारने की प्रार्थना की गई है। वात्सल्य भाव के दो पदों में से प्रथम पद में श्रीकृष्ण की बाललीला का वर्णन करते हुए उन्हें माता यशोदा से बलराम द्वारा चिढ़ाने की शिकायत करते हुए चित्रित किया गया है, इस कारण वे खेलने भी नहीं जाना चाहते। दूसरे पद में श्रीकृष्ण माता यशोदा को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि उन्होंने माखन चुराकर नहीं खाया बल्कि ग्वाल-बालों ने ही ज़बरदस्ती उनके मुख पर माखन लगा दिया है।