PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 2 मीराबाई

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 2 मीराबाई Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 2 मीराबाई

Hindi Guide for Class 12 PSEB मीराबाई Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
मीराबाई ने ब्रज भूमि की पवित्रता व सुंदरता का कैसे बखान किया है ?
उत्तर:
ब्रज भूमि के घर-घर तुलसी और ठाकुर जी की पूजा होती है। यमुना नदी में निर्मल जल बहता है। वहाँ लोगों को दूध दही खाने को मिलता है और नित्य श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं । वहाँ श्रीकृष्ण तुलसी का मुकुट धारण कर रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान हैं। वहाँ गली-गली में राधा जी श्रीकृष्ण की बाँसुरी की ध्वनि सुनने के लिए घूमती है।

प्रश्न 2.
मीरा के विरह में अलौकिक प्रेम के दर्शन होते हैं-स्पष्ट करें।
उत्तर:
मीरा के विरह में अलौकिक प्रेम के दर्शन होते हैं । वे सूली ऊपर पिया की सेज और गगन मंडल में पिया की सेज कहकर अपने अलौकिक प्रेम की ओर संकेत करती हैं। विरह के कारण वियोगिनी ठीक से सो भी नहीं पाती क्योंकि एक तो सेज सूली के ऊपर है दूसरे वह गगन मंडल में स्थित है।

प्रश्न 3.
मीरा ने ‘वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु’ में किस अमूल्य वस्तु का वर्णन किया है ?
उत्तर:
मीरा ने सद्गुरु द्वारा दी गई रामनाम रूपी धन अर्थात् ईश्वर की भक्ति रूपी धन को अमूल्य वस्तु कहा है जिसे मीरा ने सांसारिक मोह माया और विषय वासनाओं को त्याग कर प्राप्त किया है। यह धन ऐसा है जो खर्चा नहीं जा सकता और न ही इसे चोर चुरा सकते हैं उलटे यह दिन प्रतिदिन सवाया होकर बढ़ता ही जाता है।

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प्रश्न 4.
पाठ्य-पुस्तक में संकलित पदों के आधार पर मीरा बाई की भक्ति भावना एवं विरह का चित्रण करें।
उत्तर:
मीरा बाई की भक्ति माधुर्य भाव से परिपूर्ण है। उनकी भक्ति में प्रेम की पीडा एवं पूर्ण समर्पण की भावना के दर्शन होते हैं। उनकी प्रेम की पीड़ा को मिटाने वाले उनके प्रियतम श्रीकृष्ण ही हैं। वे कहती है मीरा की प्रभु पीर मिटैगी जब वैद साँवलिया होई। अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिए वे लोक लाज त्याग कर पूर्ण शृंगार कर पैरों में घुघरू बाँध कर नाचती भी हैं। मीरा अपने को श्रीकृष्ण की गोपी, उनकी पत्नी मानती हैं। वे उनके वियोग में दीवानी हो गई है। वन-वन डोलती फिरती है किन्तु विरह व्यथा इतनी तीव्र है कि मिलन होना संभव नहीं हो पा रहा क्योंकि मीरा विरह में स्वयं गोपी बन जाती है और उन्हीं की भाँति तड़पती रहती है।

(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 5.
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो….।
उत्तर:
मीरा कहती है कि मैंने सद्गुरु की कृपा से रामनाम रूपी धन अर्थात् प्रभु भक्ति का धन प्राप्त किया है। मेरे सद्गुरु ने कृपा करके मुझे ऐसी अमूल्य वस्तु प्रदान की है जिसे मैंने अपना लिया है अर्थात् ग्रहण कर लिया है। प्रभु भक्ति पाकर ऐसे लगता है कि मैंने जन्म-जन्म की पूँजी पा ली हो भले ही मुझे जगत् की सभी सुख-सुविधाओं को गंवाना पड़ा है। मीरा यहाँ प्रभु भक्ति से सांसारिक विषय-वासनाओं और मोह-माया के नष्ट होने की बात कह रही हैं। यह राम नाम रूपी धन ऐसा है जो न खर्च किया जा सकता है और न कोई चोर इसे चुरा सकता है यह तो प्रतिदिन सवाया होकर बढ़ता जाता है। मीरा कहती हैं कि सत्य की नाव के जब खेवनहार स्वयं सद्गुरु हों, तो व्यक्ति संसार रूपी समुद्र से पार हो ही जाता है। मीरा कहती हैं कि मेरे तो प्रभु गिरिधर नागर अर्थात् श्री कृष्ण हैं जिनके यश का मैं उल्लसित होकर गान करती हूँ।

प्रश्न 6.
आली म्हाने लागै वृन्दावन नीको……. ।
उत्तर:
मीरा कहती है कि हे सखी ! मुझे वृन्दावन अच्छा लगता है। अच्छा लगने के कारणों पर प्रकाश डालती हुई कवयित्री कहती है कि यहाँ घर-घर में तुलसी और ठाकुर जी की पूजा होती है तथा यहाँ नित्य श्री कृष्ण के दर्शन होते हैं। यहाँ यमुना नदी में साफ-स्वच्छ जल बहता है तथा यहाँ दूध दही खाने को मिलता है अर्थात् यहाँ दूध-दही पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यहाँ श्रीकृष्ण रत्न जड़ित सिंहासन पर स्वयं विराजमान हैं जिन्होंने तुलसी का बना मुकुट धारण कर रखा है। यहाँ की गलियों और वन-उपवन में राधा जी घूमती हैं और श्रीकृष्ण की बाँसुरी की ध्वनि सुनती हैं। मीरा कहती है कि मेरे तो स्वामी प्रभु श्रीकृष्ण हैं, उनके भजन के बिना मनुष्य का जन्म निस्सार है।

PSEB 12th Class Hindi Guide मीराबाई Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मीरा का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
सन् 1498 ई० में जोधपुर जिला के कुड़की गाँव में।

प्रश्न 2.
मीरा का विवाह किससे हुआ था ?
उत्तर:
राणा सांगा के बड़े पुत्र भोज राज से।

प्रश्न 3.
मीरा के द्वारा रचित कुल कितने ग्रंथ प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
सात ग्रंथ।

प्रश्न 4.
मीरा ने सदा किसकी भक्ति की थी?
उत्तर:
श्री कृष्ण की।

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प्रश्न 5.
‘वैद साँबलिया’ किसे कहा गया है?
उत्तर
श्री कृष्ण को।

प्रश्न 6.
‘जौहरि की गति जौहरि जाने’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मृत पति के साथ जीवित जल जाने वाली ही कष्ट को समझती है।

प्रश्न 7.
मीरा की भाषा में किन दो भाषाओं का मिश्रण किया गया है?
उत्तर:
राजस्थानी और ब्रज भाषाओं का।

प्रश्न 8.
मीरा की किस कविता में कहा गया है कि जन्म बार-बार नहीं मिलता?
उत्तर:
उपदेश।

प्रश्न 9.
मीरा स्वयं को किसकी दासी मानती है?
उत्तर: श्री कृष्ण की।

प्रश्न 10.
ब्रजभूमि में किसकी घर-घर में पूजा होती है?
उत्तर:
तुलसी और ठाकुर जी की।

प्रश्न 11.
मीरा को अलौकिक प्रेम के दर्शन किसमें होते हैं?
उत्तर:
विरह में।

प्रश्न 12.
मीरा के अनुसार हमारा जीवन कैसा है ?
उत्तर:
क्षणभंगुर।

प्रश्न 13.
‘निरमल नीर बहत जमना में’–अलंकार का नाम चुन कर लिखिए।
उत्तर:
अनुप्रास।

वाक्य पूरा कीजिए

प्रश्न 1.
मीराँ के प्रभु जीर मिटैगी…………
उत्तर:
जब वैद साँवलिया होय। हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 2.
मीरा की सब से अधिक प्रचलित रचना का नाम ‘पदावली’ है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 3.
मीरा साधु-संतों के साथ भजन नहीं करती थी।
उत्तर:
नहीं।

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प्रश्न 4.
मीरा के प्रभु श्री राम हैं।
उत्तर:
नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. मीराबाई किसकी भक्ति करती थी ?
(क) श्री कृष्ण की
(ख) श्री राम की
(ग) श्री नन्द की
(घ) श्री चन्द की
उत्तर:
(क) श्री कृष्ण की

2. मीरा के अनुसार हमारा जीवन कैसा है ?
(क) सस्ता
(ख) क्षणभंगुर
(ग) क्षीणभंगुर
(घ) क्षणिक
उत्तर:
(ख) क्षणभंगुर

3. मीरा के अलौकिक प्रेम के दर्शन किसमें होते हैं ?
(क) जीवन में
(ख) प्रेम में
(ग) विरह में
(घ) दांपत्य में
उत्तर:
(ग) विरह में

4. मीरा के अनुसार भवसागर से कौन पार लगा सकते हैं ?
(क) सत्गुरु
(ख) प्रभु
(ग) कृण्ण
(घ) राम
उत्तर:
(क) सत्गुरु

5. मीरा के अनुसार संसार कैसा है ?
(क) नश्वर
(ख) अनश्वर
(ग) क्षणभंगुर
(घ) चलायमान
उत्तर:
(क) नश्वर

मीराबाई सप्रसंग व्याख्या

आली म्हाने लागे वृन्दावन नीको !
घर घर तुलसी ठाकुर पूजा, दरसन गोविंद जी को !
निरमल नीर बहत जमना में, भोजन दूध दही को !
रतन सिंघासन आप बिराजे, मुगट धर्यो तुलसी को !
कुंजन-कुंजन फिरत राधिका, सबद सुनत मुरली को!
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, भजन बिना नर फीको !!

कठिन शब्दों के अर्थ:
आली = हे सखी। म्हाने = मुझे, मुझको। नीको = अच्छा। ठाकुर = श्रीकृष्ण, मंदिर में रखे पत्थरों को भी ठाकुर कहते हैं। दरसन = दर्शन । मुगट = मुकुट। फीको = व्यर्थ, रसहीन, अस्तित्वहीन, निस्सार।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकालीन कृष्ण भक्ति शाखा की प्रमुख कवयित्री मीरा बाई द्वारा लिखित पदावली में ब्रजभूमि के महात्म्य सम्बन्धी पद है। प्रस्तुत पद में कवयित्री ने वृन्दावन के महात्म्य पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या:
मीरा कहती है कि हे सखी ! मुझे वृन्दावन अच्छा लगता है। अच्छा लगने के कारणों पर प्रकाश डालती हुई कवयित्री कहती है कि यहाँ घर-घर में तुलसी और ठाकुर जी की पूजा होती है तथा यहाँ नित्य श्री कृष्ण के दर्शन होते हैं। यहाँ यमुना नदी में साफ-स्वच्छ जल बहता है तथा यहाँ दूध दही खाने को मिलता है अर्थात् यहाँ दूध-दही पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यहाँ श्रीकृष्ण रत्न जड़ित सिंहासन पर स्वयं विराजमान हैं जिन्होंने तुलसी का बना मुकुट धारण कर रखा है। यहाँ की गलियों और वन-उपवन में राधा जी घूमती हैं और श्रीकृष्ण की बाँसुरी की ध्वनि सुनती हैं। मीरा कहती है कि मेरे तो स्वामी प्रभु श्रीकृष्ण हैं, उनके भजन के बिना मनुष्य का जन्म निस्सार है।

विशेष:

  1. कवयित्री ने ब्रजभूमि की पवित्रता का वर्णन किया है जिसके प्रति उसके हृदय में अगाध प्रेम है।
  2. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
  3. संगीतात्मकता का समावेश है।
  4. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

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समर्पण

हे री मैं तो प्रेम-दिवाणी, मेरो दरद न जाने कोय !
घायल की गति घायल जाणै, कि जिन लाई होय !
जौहरि की गति जौहरि जाणै, की जिन जौहर होय !
सूली ऊपर सेज हमारी, किस विध सोणा होय।।
गगन-मंडल पै सेज पिया की, किस विध मिलणा होय।
दरद की मारी बन-बन डोलूँ, वैद मिल्या नहिं कोय।
मीराँ की प्रभु पीर मिटैगी, जब वैद सँवलिया होय !!

कठिन शब्दों के अर्थ:
हे री = ए री, अरी। दरद = पीड़ा। दिवाणी = पगली। घायल = ऐसा व्यक्ति जिसे घाव लगा हो । गति = दशा, हालत। जिन = जिसने। लाई होय = लगाई हो। जौहरि = मृतपति के साथ चिता पर जीवित जल जाने वाली नारी। जौहर = मृत पति के साथ पत्नी का जीवित अवस्था में जलना। सूली = मृत्यु दंड देने का एक उपकरण जो ऊपर से सूई की नोक की तरह तीखा होता है उस पर अपराधी को बिठा देते हैं और उसका शरीर चिर जाता है, यहाँ भाव काँटों से अथवा कंष्टों से है। किस विध = किस तरह । गगन मंडल = आकाश, शून्य । डोलूँ = भटकूँ। वैद = वैद्य, इलाज करने वाला। साँवलिया = श्रीकृष्ण।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकालीन कृष्णभक्त कवयित्री मीरा बाई द्वारा रचित पदावली के ‘समर्पण’ अंश में से लिया गया है। प्रस्तुत पद में मीरा श्रीकृष्ण के वियोग में अपनी विरह पीड़ा का वर्णन कर रही है।

व्याख्या:
मीरा कहती है कि हे री सखी ! मैं तो प्रेम की पीड़ा में पागल हो गई हँ अर्थात् मेरी सोचने समझने की शक्ति जाती रही है। मेरी इस पीड़ा को कोई नहीं जानता। प्रेम की चोट से घायल व्यक्ति की दशा कोई घायल ही जान सकता है या फिर जिसने कभी प्रेम की पीड़ा पाई हो। मृत पति के साथ जीवित अवस्था में (जौहर करने वाली) भस्म हो जाने वाली नारी ही जानती है कि जौहर क्या होता है अर्थात् कष्ट झेलने वाले को ही कष्ट के बारे में पता हो सकता है। तात्पर्य यह है कि मैं तो श्रीकृष्ण के प्रति पूरी तरह समर्पित हो चुकी हूँ। मेरे वास्तविक प्रेम की पीड़ा को श्रीकृष्ण ही जान सकते हैं। क्योंकि दोनों जौहरी हैं भक्त भी और भगवान् भी, प्रेमिका और प्रेमी भी, दोनों प्रेम भावना से युक्त हैं। मीरा कहती है कि हमारी शैय्या तो सूली के ऊपर बनी है अर्थात् वियोग के कारण अत्यंत दुःख पूर्ण है-काँटों भरी है अतः इस पर सोना कैसे हो सकता है। भाव यह कि वियोग के दुःख के कारण नींद कैसे आ सकती है। मेरे प्रियतम की शैय्या तो आकाश में बनी है अत: मेरा उनसे कैसे मिलन हो सकता है। मैं तो प्रेम की इस पीड़ा के कारण वन-वन भटकती फिरती हूँ मेरी इस पीड़ा को दूर करने वाला कोई वैद्य नहीं मिला। हे प्रभु ! मेरी यह पीड़ा तब ही मिटेगी जब वैद्य स्वयं भगवान् कृष्ण होंगे।

विशेष:

  1. मीरा ने प्रस्तुत पद में योग साधना की ओर भी संकेत किया है। गगन मंडल ब्रह्म रंध्र के समान है जहाँ तक पहुँचना कठिन है। ब्रह्मरंध्र में छ: दरवाज़े होते हैं, उन्हें कुण्डलिनी को जगाए बिना खोला नहीं जा सकता। कुण्डलिनी को जगाना बड़ा कठिन है। मीरा यही कहना चाहती है। गगन मंडल का अर्थ ब्रह्म रंध्र भी है। इसी ब्रह्मरंध्र में ब्रह्म का निवास है। योगी लोग प्राणायाम द्वारा वहाँ स्थित ब्रह्म की प्राप्ति करते हैं।
  2. ‘जौहरि की गति जौहरि जानै’ का एक अन्य अर्थ भी किया जा सकता है कि हीरे-जवाहरात के पारखी की दशा कोई जौहरी ही जानता है या फिर वह जानता है जिस के पास हीरे जवाहरात के समान कोई गुण हो।
  3. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार, गीतात्मकता, शृंगार का वियोग पक्ष है।
  4. कवयित्री ने राजस्थान में तब प्रचलित सती-प्रथा की ओर संकेत किया है।

सद्गुरु महिमा

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो !
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, करि किरपा अपणायौ !
जन्म-जन्म की पूँजी पाई, जग में सबै खोवायो।
खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन दिन बढ़त सवायौ !
सत की नाव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तरि आयो !
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरखि-हरखि जस गायौ !!

कठिन शब्दों के अर्थ:
राम रतन धन = रामनाम रूपी रत्न का धन। अमोलक = अमूल्य, जिसका कोई मूल्य नहीं आंका जा सकता। पूँजी = सम्पत्ति, धन-दौलत। खोवायो = गंवा कर। संत = सत्य। खेवटिया = खेवनहार, मल्लाह। हरखि-हरखि = प्रसन्न होकर, उल्लसित होकर। जस = यश।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकालीन कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित पदावली का ‘सदगुरु महिमा ‘ अंश है। प्रस्तुत पद में कवयित्री ने सद्गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए गुरुकृपा से राम नाम रूपी धन प्राप्त होने की बात कही है।

व्याख्या:
मीरा कहती है कि मैंने सद्गुरु की कृपा से रामनाम रूपी धन अर्थात् प्रभु भक्ति का धन प्राप्त किया है। मेरे सद्गुरु ने कृपा करके मुझे ऐसी अमूल्य वस्तु प्रदान की है जिसे मैंने अपना लिया है अर्थात् ग्रहण कर लिया है। प्रभु भक्ति पाकर ऐसे लगता है कि मैंने जन्म-जन्म की पूँजी पा ली हो भले ही मुझे जगत् की सभी सुख-सुविधाओं को गंवाना पड़ा है। मीरा यहाँ प्रभु भक्ति से सांसारिक विषय-वासनाओं और मोह-माया के नष्ट होने की बात कह रही हैं। यह राम नाम रूपी धन ऐसा है जो न खर्च किया जा सकता है और न कोई चोर इसे चुरा सकता है यह तो प्रतिदिन सवाया होकर बढ़ता जाता है। मीरा कहती हैं कि सत्य की नाव के जब खेवनहार स्वयं सद्गुरु हों, तो व्यक्ति संसार रूपी समुद्र से पार हो ही जाता है। मीरा कहती हैं कि मेरे तो प्रभु गिरिधर नागर अर्थात् श्री कृष्ण हैं जिनके यश का मैं उल्लसित होकर गान करती हूँ।

विशेष:

  1. भक्तिकाल के सभी कवि गुरु के महत्त्व को स्वीकारते हैं क्योंकि गुरु ही ईश्वर भक्ति और ईश्वर मिलन का मार्ग दर्शाता है। मीरा ने भी इसी का समर्थन किया है।
  2. भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रज है।
  3. अनुप्रास, रूपक तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार विद्यमान है।

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उपदेश

नहिं ऐसो जनम बारंबार !
का जानें कछु पुण्य प्रगटे, मानुसा अवतार !
बढ़त छिन छिन घटत पल पल, जात न लागे बार !
बिरछ के ज्यूँ पात टूटे, बहुरि न लागे डार !
भौ सागर अति जोर कहिये, अनंत ऊंडी धार !
राम नाम का बाँध बेड़ा, उतर परले पार!
ज्ञान चौसर मँडी चौहटे, सुरत पासा सार !
यान दुनियाँ में रची बाजी, जीत भावै हार !
साधु संत महंत ज्ञानी, चलत करत पुकार !
दासी मीरा लाल गिरधर, जीवणा दिन चार !!

कठिन शब्दों के अर्थ:
कछु पुण्य प्रगटे = किसी पुण्य के प्रताप से। मानुसा अवतार = मनुष्य का शरीर, जन्म। छिन-छिन = हर क्षण, क्षण-क्षण। पल-पल = हर पल, हर समय। बार = देरी । बिरछ = वृक्ष । भौ सागर = भवसागर, संसार रूपी सागर । जोर = शक्तिमान, प्रबल । ऊंडी = ऊँची, गम्भीर, गहरी। परले = दूसरे। जीवणा = जीना।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद भक्तिकालीन कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित पदावली का ‘उपदेश’ अंश है। प्रस्तुत पद में कवयित्री मानव जन्म के दुर्लभ होने और उसकी क्षणभंगुरता पर प्रकाश डालते हुए प्रभु भक्ति की सहायता से संसार रूपी सागर को पार करने का उपदेश दिया है।

व्याख्या:
मीरा कहती हैं कि मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता। क्या मालूम कौन-से पुण्य के प्रताप से हमें यह मनुष्य का जन्म मिला है। यह मनुष्य शरीर प्रति क्षण बढ़ता जाता है किन्तु हर पल उसकी आयु घटती जाती है। उसे मरते समय ज़रा भी देर नहीं लगती। जिस प्रकार वृक्ष से टूटा हुआ पत्ता फिर डाली से नहीं लगता, उसी प्रकार मृत्यु होने पर जीव फिर मनुष्य योनि में नहीं लौटता। यह संसार रूपी सागर बड़ा प्रबल है, इसमें असंख्य ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं। यदि कोई राम नाम का जहाज़ बना लेता है तो वह ही इस संसार रूपी सागर के पार जा सकता है। ज्ञान की दुनिया में ऐसी बाजी की रचना हुई है कि यहाँ कोई जीत जाता है तो कोई हार जाता है। जितने भी साधु संत महंत और ज्ञानी हैं सभी मरते समय पुकार करते हैं कि यह संसार नश्वर है और जीव भी नश्वर है। मीरा कहती हैं कि मैं तो श्रीकृष्ण की दासी हूँ। मुझे यहाँ चार दिन ही जीना है अर्थात् मेरा जीवन बहुत छोटा है।

विशेष:

  1. मीरा ने मानव जीवन को क्षणभंगुर मानते हुए प्रभु के नाम स्मरण द्वारा संसार रूपी सागर से पार होने का उपदेश दिया है।
  2. राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा है।
  3. अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश तथा रूपक अलंकार हैं।
  4. प्रतीकात्मकता विद्यमान है।

मीराबाई Summary

मीराबाई जीवन परिचय

मीराबाई का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।

मीरा का जन्म सन् 1498 ई० में जोधपुर ज़िला के कुड़की गाँव में राठौर वंश में राव दादू जी के चौथे पुत्र रत्नसिंह के घर हुआ था। बचपन से ही इन्हें श्रीकृष्ण से प्रेम हो गया था और वे उन्हें अपना पति मानने लगी थीं। सोलह वर्ष की अवस्था में इनका विवाह राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराज से हो गया था। सन् 1518 में राणा भोजराज ने एक युद्ध में वीरगति प्राप्त की। विधवा मीरा ने अपना समय श्री कृष्ण की भक्ति में लगा दिया। राजघराने की होते हुए भी मीरा साधु-सन्तों के साथ भजन-कीर्तन करती रही। अन्त में वे घर-बार छोड़कर द्वारिका चली गईं। यहीं सन् 1573 में उनका देहान्त हो गया। मीरा द्वारा लिखित कुल सात ग्रन्थ उपलब्ध हैं जिनमें ‘पदावली’ सबसे प्रसिद्ध है। अन्य रचनाओं में नरसी रो माहेरो, गीत गोबिंद की टीका, राग गोबिंद तथा सोरठा के पद अधिक प्रसिद्ध हैं।

मीराबाई पदों का सार

मीराबाई द्वारा रचित चार पद संकलित हैं। प्रथम पद ‘ब्रजभूमि’ में वृंदावन की पवित्रता का वर्णन किया गया है जहाँ घर-घर में तुलसी और ठाकुर जी की पूजा होती है, कृष्ण जी के दर्शन होते हैं, यमुना जी बहती हैं तथा दूध-दही का भोजन है। वहाँ रत्नसिंहासन पर कृष्ण जी विराजते हैं तथा उनकी मुरली का शब्द सुन कर राधा कुंज-कुंज में विचरण करती है। दूसरा पद ‘समर्पण’ का है जिसमें मीरा स्वयं को श्रीकृष्ण के विरह में व्याकुल होकर उनसे मिलने की कामना कर रही है। तीसरे पद में सद्गुरु की महानता का वर्णन है, जिनकी कृपा से उसे संसार रूपी सागर से पार उतारने का अमूल्य मंत्र मिल गया है तथा चौथे पद ‘उपदेश’ में इस जीवन को क्षण भंगुर बताते हुए प्रभु के नाम स्मरण का उपदेश दिया गया है।

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