PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 तत्सत्

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 22 तत्सत् Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 22 तत्सत्

Hindi Guide for Class 12 PSEB तत्सत् Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
पशु और पेड़-पौधे वन के नाम से भयातुर क्यों होने लगे थे ?
उत्तर:
जंगल में आने वाले शिकारियों ने कहा था कैसा भयानक जंगल है और कितना घना वन है। उनकी बातों में जंगल की भयानकता की बात सुनकर वन के सभी पशु और पेड़-पौधे डर गए। उन्हें लगा कि अवश्य ही वन कोई शेर-चीतों से बढ़कर भयानक होगा।

प्रश्न 2.
शिकारी प्रमुख द्वारा अपने साथियों की सलाह न मानने का क्या कारण था ?
उत्तर:
जंगल के पेड़-पौधों और वनचरों ने आदमियों से जब जंगल दिखाने के लिए कहा नहीं तो उनकी खैर नहीं। इस पर शिकारी के साथियों ने कहा कि यार कह दो जंगल नहीं है। इस पर शिकारी प्रमुख ने मरने से न डरते हुए कहासदा कौन जिया है ? इससे इन भोले प्राणियों को भुलावे में क्यों रखें ? इसी कारण शिकारी प्रमुख ने अपने साथियों की सलाह मानने से इन्कार कर दिया।

प्रश्न 3.
शिकारी जब पुन: वन में आए तो पश और वनस्पतियाँ भड़क उंठीं. क्यों ?
उत्तर:
शिकारी जन जब दोबारा जंगल में आए तो सारा जंगल जाग उठा। वे सब तरह-तरह की बोली बोलकर अपना विरोध दर्शाने लगे। मानो आदमियों की भर्त्सना कर रहे थे। वे सभी इसलिए भड़क उठे क्योंकि आज तक उन्होंने जंगल नाम की कोई वस्तु नहीं देखी थी। आदमियों ने उसे भयानक भी कहा था। इसलिए वे भयानक वस्तु के बारे में जानना चाहते थे।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर लिखें:

प्रश्न 4.
तत्सत् कहानी का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
देखें पाठ के आरम्भ में दिया गया कहानी का सार।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

प्रश्न 5.
‘तत्सत्’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘प्रस्तुत’ कहानी में जैनेन्द्र जी ने पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि आज का व्यक्ति इतना व्यक्तिवादी हो गया है कि उसे अपने सिवा और कुछ सूझता ही नहीं। वह यह नहीं समझता कि उसका अस्तित्व समग्र में एक खण्ड के समान उसी प्रकार है जैसे किसी बाग में किसी फूल का। लेखक ने अपने इस उद्देश्य को स्पष्ट करने के लिए पशुओं और पेड़-पौधों का सहारा लिया है जिन्हें अपने-अपने अलग अस्तित्व का तो बोध है किन्तु अपने समग्र रूप जंगल से वे अनजान हैं। अपनी इसी अज्ञानता के कारण वे सभी अपनी-अपनी ढफली अपना-अपना राग अलापते रहते हैं। अन्त में जब उन्हें समग्रता का बोध होता है तो वे वन की सत्ता को स्वीकार कर लेते हैं।

प्रश्न 6.
‘तत्सत्’ कहानी के नामकरण की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
तत्सत्’ कहानी एक प्रतीकात्मक कहानी है। इसमें लेखक ने कथा निर्माण के लिए वनचरों एवं वनस्पतियों की संवेदना को आधार बना कर किया है। जैनेन्द्र जी ने प्रायः सोद्देश्य शीर्षकों का चयन अधिक किया है। चाहे शीर्षक ‘तत्सत्’ कहानी के शीर्षक की तरह प्रतीकात्मक हों किन्तु यह शीर्षक सार्थक, आकर्षक एवं जिज्ञासा एवं कुतूहल भरा है। लेखक ने इस कहानी के कथानक द्वारा यह सिद्ध किया है कि यह जगत् सत्य नहीं है, अपितु वह ब्रह्म ही सत्य है तथा वही सर्वत्र व्याप्त है। अतः हम कह सकते हैं कि कहानी का शीर्षक अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है। शीर्षक सारगर्भित भी है, रोचक और संक्षिप्त एवं आकर्षक भी है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस शीर्षक में एकजुटता का संदेश भी छिपा है जो हमारी वर्तमान राजनीतिक अवस्था के लिए अत्यन्त ज़रूरी है। देश है तो हम हैं अतः देशहित के लिए हमें निजी स्वार्थों को भूलकर एक हो जाना चाहिए।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें :

7. “जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा वे चलते कैसे हैं ? अपने तने की दो शाखाओं पर भी चलते चले जाते हैं।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रतीकात्मक कहानी ‘तत्सत्’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ बड़ के वृक्ष ने शीशम के वृक्ष से उस समय कही हैं जब शीशम पूछता है कि जंगल को भयानक कहने वाले कौन थे ?

व्याख्या:
जब शीशम के पेड़ ने जंगल के सबसे बड़े पेड़ बड़ से उन शिकारियों के बारे में पूछना चाहा कि वे कौन थे, जिन्होंने जंगल को भयानक कहा था, तो बड़ ने उत्तर देते हुए कहा कि जब मैं छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। ये ऐसे पेड़ होते हैं जिनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना होता है। तुमने देखा नहीं कि ये लोग कैसे चलते हैं ? अपने तने की दो टहनियों पर ही चलते चले जाते हैं। विशेष-एक पेड़ की आदमी के बारे में जानकारी पर प्रकाश डाला गया है।

8. “मालूम होता है, हवा मेरे भीतर के रिक्त में वन-वन-वन ही कहती हुई घूमती रहती है। पर ठहरती नहीं। हर घड़ी सुनता हूँ, वन है, वन है पर मैं उसे जानता नहीं हूं। क्या वह किसी को दिखा है ?”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रतीकात्मक कहानी ‘तत्सत्’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ बाँस के पेड़ ने जंगल के दूसरे पेड़ों से कहीं हैं।

व्याख्या:
जब सब पेड़ों ने बाँस के पेड़ से पूछा कि वह उन्हें वन के बारे में बताए कि वह क्या है तो बाँस के पेड़ ने कहा कि ऐसा मालूम होता है कि हवा मेरे अन्दर के खाली स्थान में वन-वन-वन कहती घूमती रहती है, पर ठहरती नहीं। मैं हर घड़ी यह तो सुनता हूँ किं वन है, पर मैं उसे जाना नहीं हूँ। क्या वह किसी को दिखाई दिया है ? विशेष-वन के बारे में बांस के पेड़ की प्रतिक्रिया पर प्रकाश डाला गया है।

9. “ओ सिंह भाई, तुम बड़े पराक्रमी हो। जाने कहां कहां छापा मारते हो। एक बात तो बताओ, भाई ?”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रतीकात्मक कहानी ‘तत्सत्’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में जंगल के सबसे बड़े पेड़ बड़ ने जंगल के सबसे शक्तिशाली पशु सिंह से वन के बारे में बताने के लिए कही

व्याख्या:
बड़ को जब जंगल के किसी पेड़ ने वन के बारे कुछ बताने से इन्कार कर दिया तो उसने वहाँ आए सिंह से यही प्रश्न पूछने के लिए प्रस्तुत पंक्तियाँ कहीं है। बड़ ने कहा-अरे सिंह भाई, तुम बड़े बहादुर हो। जाने कहाँ-कहाँ शिकार हासिल करने के लिए छापे मारते हो। एक बात तो बताओ भाई ? बड़ सिंह से वन के बारे में पूछना चाहता है कि क्या उसने कभी वन को देखा है ? विशेष-सिंह से वन के संबंध में बड़दादा पूछ रहे हैं।

PSEB 12th Class Hindi Guide तत्सत् Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जैनेन्द्र कुमार का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
जैनेन्द्र कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के कौडियागंज गाँव में सन् 1905 ई० में हुआ था।

प्रश्न 2.
जैनेन्द्र ने किन-किन विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की थी?
उत्तर:
पंजाब विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से।

प्रश्न 3.
जैनेन्द्र की शिक्षा अधूरी क्यों रह गई थी?
उत्तर:
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ने के कारण।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

प्रश्न 4.
जैनेन्द्र को किस विश्वविद्यालय ने डी० लिट० की उपाधि प्रदान की थी?
उत्तर:
दिल्ली विश्वविद्यालय ने।

प्रश्न 5.
जैनेन्द्र के कहानी संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ध्रुव यात्रा, नीलम देश की राजकन्या, फांसी।

प्रश्न 6.
जैनेन्द्र के चार उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर:
परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी।

प्रश्न 7.
‘तत्सत’ किस शैली में रचित कहानी है?
उत्तर:
प्रतीक शैली।

प्रश्न 8.
जैनेंद्र कैसे दार्शनिक और विचारक थे?
उत्तर:
बुद्धिवादी, दार्शनिक और विचारक।

प्रश्न 9.
कितने शिकारी शिकार की टोह में पहुँचे थे?
उत्तर:
दो शिकारी।

प्रश्न 10.
किस पेड़ ने दूसरे पेड़ को ‘दादा’ कहा था?
उत्तर:
शीशम के पेड़ ने बरगद के पेड़ को ‘दादा’ कहा था।

प्रश्न 11.
बबूल ने बड़दादा से क्या प्रश्न किया था?
उत्तर:
बबूल ने बड़दादा से प्रश्न किया था कि क्या उन्होंने कभी वन देखा था।

प्रश्न 12.
जंगल के प्राणियों ने मनुष्य के बारे में क्या निर्णय किया था?
उत्तर:
उन्होंने निर्णय किया था कि मनुष्य की बात का कोई भरोसा नहीं।

प्रश्न 13.
बड़दादा ने प्राणियों को ‘वन’ के बारे में क्या समझाया था ?
उत्तर:
बडदादा में प्राणियों को समझाते हुए कहा था कि ‘यह वन ही है हम नहीं’ हम सब ही वन हैं।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 14.
अपने तन की दो शाखों पर ही……..
उत्तर:
चलते चले जाते हैं।

प्रश्न 15.
आस-पास के और पेड़ साल, सेंमर, सिरस…………
उत्तर:
उस बातचीत में हिस्सा लेने लगे।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

प्रश्न 16.
तब सबने घास से पूछा…………
उत्तर:
घास री घास, तू वन को जानती है।

प्रश्न 17.
चढ़ते-चढ़ते वह उसकी…….
उत्तर:
सबसे ऊपर की फुनगी तक पहुँच गया।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
तत्सत् प्रतीक शैली में रचित है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
जंगल में आदमी को देखने की बात बड़ ने स्वीकार की थी?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 20.
“दादा ओ दादा, तुमने बहुत दिन देखे हैं। बताओ कि किसी वन को भी देखा है?”-घास ने कहा।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 21.
बरगद ने सीटी-सी आवाज़ देखकर कहा, “मुझे बताओ, मुझे बताओ।”
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 22.
“मैं पोला हूँ। मैं बहुत जानता हूँ।”-बबूल ने कहा।
उत्तर:
नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. जैनेन्द्र कुमार कैसे कहानीकार हैं ?
(क) मनोवैज्ञानिक
(ख) विचारपरक
(ग) आत्मकथात्मक
(घ) विवेचनात्मक
उत्तर:
(क) मनोवैज्ञानिक

2. तत्सत् किस प्रकार की कहानी है ?
(क) आत्मकथात्मक
(ख) प्रतीकात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) व्यंग्यात्मक
उत्तर:
(ख) प्रतीकात्मक

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

3. शीशम के पेड़ ने किसको दादा कहा ?
(क) बरगद
(ख) पीपल
(ग) वट
(घ) नीम
उत्तर:
(क) बरगद

4. लेखक के अनुसार आज व्यक्ति कैसा बन गया है ?
(क) संस्कारी
(ख) व्यक्तिवादी
(ग) भाववादी
(घ) निराशावादी
उत्तर:
(ख) व्यक्तिवादी

जैनेन्द्र कुमार सप्रसंग व्याख्या

1. “जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा वे चलते कैसे हैं ? अपने तने की दो शाखों पर ही चलते चले जाते हैं।”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से मानव के व्यक्तिवादी होने पर व्यंग्य करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उसका अस्तित्व समग्र में एक खंड जैसा है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन है जब शीशम जंगल के सब से बड़े वृक्ष बड़ से यह पूछता है कि जंगल को भयानक कहने वाले कौन थे ? तब बड़ उत्तर देते हुए कहता है कि जब वह छोटा था तब उसने इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। ये ऐसे पेड़ हैं जिनके पत्ते नहीं होते, केवल तना ही तना होता है। वह शीशम से कहता है कि उसने देखा नहीं कि वे कैसे चलते हैं ? वे अपने तने की दो टहनियों के सहारे ही चलते चले जाते हैं। विशेष-लेखक ने मनुष्य के संबंध में वनस्पतियों की भावनाओं का चित्रण किया है।

2. बड़दादा ने कहा, “हमारी-तुम्हारी तरह इनमें जड़ें नहीं होती। बढ़े तो काहे पर ? इससे वे इधर-उधर चलते रहते हैं, ऊपर की ओर बढ़ना उन्हें नहीं आता। बिना जड़, न जाने वे जीते किस तरह हैं !” इतने में बबूल, जिसमें हवा साफ़ छनकर निकल जाती थी, रुकती नहीं थी और जिसके तन पर काँटे थे, बोला, “दादा, ओ दादा, तुमने बहुत दिन देखे हैं। बताओ कि किसी वन को भी देखा है ? ये आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहे थे। तुमने उस भयावने वन को देखा है ?”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने वन्य पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आज का मनुष्य अपने व्यक्तिगत स्वार्थों में इतना अधिक लिप्त हो गया है कि वह यह भी भूल गया है कि वह उस विराट का ही एक अंश है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन है जब दो शिकारी वन की सघनता और भयानकता का वर्णन करके चले जाते हैं तो वन के वृक्ष आपस में बातें करते हैं। शीशम बड़ से पूछता है कि मनुष्य इतने छोटे कद के क्यों होते हैं ? तब बड़दादा उत्तर देते हैं कि इन मनुष्यों की उनके समान जड़ें नहीं होती हैं इसलिए ये बढ़ते नहीं हैं छोटे ही रहते हैं। ये इधर-उधर चलते-फिरते रहते हैं ऊपर की ओर ये बढ़ना नहीं जानते। बड़ को भी आश्चर्य होता है कि वे बिना जड़ के कैसे जी रहे हैं। तभी बबूल ने कहा कि दादा बड़ आपने तो बहुत समय देखा है। आप बतायें कि क्या आपने किसी वन को भी देखा है ? ये लोग किस वन की बात कर रहे थे ? क्या आपने उस भयानक वन को देखा है ? बबूल के शरीर पर काँटे थे और हवा उसमें से छन कर निकल जाती थी।

विशेष:

  1. लेखक ने मनुष्य की ओछी मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है तथा बताया है कि आज का मनुष्य किस प्रकार अपने स्वार्थ में लिप्त हो गया है कि वह ऊपर उठना ही नहीं चाहता। अपने स्वार्थों में ही डूबा रहना चाहता है।
  2. भाषा सहज, सरल, लाक्षणिक तथा शैली प्रतीकात्मक है। यहाँ संवादात्मक शैली के दर्शन होते हैं।

3. इसी तरह उनमें बातें होने लगीं। वन को उनमें कोई नहीं जानता था। आस-पास के और पेड़ साल, सेंमर, सिरस उस बातचीत में हिस्सा लेने लगे। वन को कोई मानना नहीं चाहता था। किसी को उसका कुछ पता नहीं था। पर अज्ञात भाव से उसका डर सबको था। इतने में पास ही जो बाँस खड़ा था और जो ज़रा हवा चलने पर खड़-खड़, सन्-सन् करने लगता था, उसने अपनी जगह से ही सीटी-सी आवाज़ देकर कहा, “मुझे बताओ, मुझे बताओ, क्या बात है । मैं पोला हूँ। मैं बहुत जानता हूँ।”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने वन्य पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आज का मनुष्य अपने स्वार्थों में लिप्त होकर यह भी भूल गया है कि वह स्वयं कुछ न होकर उस विराट का एक अंश मात्र है।

व्याख्या:
लेखक बताता है कि जब दो शिकारी वन की सघनता और भयंकरता का वर्णन करके चले गए तो वन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों में परस्पर बातचीत होने लगी कि यह सघन और भयानक वन क्या किसी ने देखा है ? परन्तु उनमें से वन को कोई भी नहीं जानता था। वन के साल, सेंमर, सिरस आदि वृक्ष भी इस वार्तालाप में भाग लेने लगे। कोई भी यह स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि वन भी कुछ होता है। किसी को भी वन का कुछ भी पता नहीं था कि वन क्या होता है ? पर उन सबके मन में एक अनजाना-सा भय अवश्य छा गया था कि न जाने वन कैसा भयंकर होगा ? तभी पास उगा हुआ बाँस अपनी जगह से सीटी-सी आवाज़ करते हुए पूछने लगा कि मुझे बताओ कि क्या बात है ? मैं भीतर से खोखला होते हुए भी बहुत कुछ जानता हूँ। बाँस ज़रा-सी हवा के चलने पर ही खड़-खड़, सन्-सन् की आवाज़ करने लगता था।

विशेष:

  1. वन्य जीवों तथा वनस्पति.जगत् में व्याप्त भयंकर वन के काल्पनिक भय का सजीव चित्रण करते हुए लेखक इस ओर संकेत करता है कि मनुष्य भी कई बार अज्ञात भय से भयभीत हो जाता है।
  2. भाषा सहज, सरल, ध्वनि अर्थ व्यंजन से युक्त, प्रवाहमयी है। शैली में संवादात्मकता तथा प्रतीकात्मकता है। बाँस का पोलापन उन लोगों पर व्यंग्य है जो कुछ न जानते हुए भी सर्वज्ञ बनने का ढोंग करते हैं।

4. तब सबने घास से पूछा, “घास री घास, तू वन को जानती है ?”

घास ने कहा, “नहीं तो दादा, मैं उन्हें नहीं जानती। लोगों की जड़ों को ही मैं जानती हूँ। उनके फल मुझसे ऊँचे रहते हैं। पदतल के स्पर्श से सबका परिचय मुझे मिलता है। जब मेरे सिर पर चोट ज्यादा पड़ती है, समझती हूँ यह ताकत का प्रमाण है। धीमे कदम से मालूम होता है, यह कोई दुखियारा जा रहा है।” “दुःख से मेरी बहुत बनती है, दादा ! मैं उसी को चाहती हुई यहाँ से वहाँ तक बिछी रहती हूँ। सभी कुछ मेरे ऊपर से निकलता है। पर वन को मैंने अलग करके कभी नहीं पहचाना।” ।

प्रसंग:
यह गद्यावतरण जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने मनुष्य की स्वार्थी मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है। वह अपने में लीन रह कर यह भूल जाता है कि वह किसी विराट का अंश मात्र है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में लेखक वन के वन्य जीवों तथा वनस्पति जगत् में व्याप्त इस भय को अभिव्यक्ति प्रदान करता है जो उन्हें दो शिकारियों से यह सुनकर हो रहा था कि वन घना और भयंकर है। किसी ने आज तक वन को नहीं देखा था। इसलिए उन्होंने एक दूसरे से वन के बारे में पूछने के बाद तथा उनसे नकारात्मक उत्तर पा कर घास से पूछा कि क्या वह वन को जानती है ? घास ने भी यही उत्तर दिया कि वह वन को नहीं जानती। वह तो केवल उन लोगों को जानती है जिन की जड़ें होती हैं। बाकी सब कुछ उससे बहुत ऊँचा होता है, इसलिए वह उन्हें नहीं जान पाती।

वह तो सब के पैरों के तलवों के स्पर्श से ही सबको पहचानती है। जब किसी के उसके ऊपर चलने से उसे चोट पहुँचती है तो वह उसे समझती है कि यह इस की ताकत का प्रमाण है जो उसे कुचल रहा है। जब कोई धीमे-धीमे कदमों से उसके ऊपर चलता है तो उसे लगता है कि वह कोई दुःखी है जो इस प्रकार चल रहा है। वह दुःखियों की मददगार है क्योंकि दुःख उसे बहुत प्रिय है। दुःखियों की सेवा के लिए वह बिछी रहती है। सब उसके ऊपर से निकल जाते हैं परन्तु उसने वन को अलग से नहीं पहचाना है।

विशेष:

  1. लेखक ने शक्तिशाली द्वारा अशक्त को कुचले जाने पर व्यंग्य किया है तथा दुःखियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।
  2. भाषा सहज परन्तु तत्सम शब्दों से युक्त भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी है। शैली संवादात्मक एवं प्रतीकात्मक है।

5. बड़दादा तो चुप रहे, लेकिन औरों ने कहा कि सिंहराज, तुम्हारे भय से बहुत-से जंतु छिपकर रहते हैं। वे मुँह नहीं दिखाते। वन भी शायद छिपकर रहता हो। तुम्हारा दबदबा कोई कम तो नहीं है। इससे तो साँप धरती में मुँह गाड़कर रहते हैं, ऐसी भेद की बातें उनसे पूछनी चाहिएं। रहस्य कोई जानता होगा, तो अँधेरे में मुँह गाड़कर रहने वाला साँप जैसा जानवर ही जानता होगा। हम पेड़ तो उजाले में सिर उठाए खड़े रहते हैं। इसलिए हम बेचारे क्या जानें।

शेर ने कहा कि जो मैं कहता हूँ, वही सच है। उसमें शक करने की हिम्मत ठीक नहीं है। जब तक मैं हूँ, कोई डर न करो। कैसा साँप और जैसा कुछ और। क्या कोई मुझसे ज्यादा जानता है ?

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने वन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आज का व्यक्ति अपने स्वार्थों में लीन हो कर यह भूल गया है कि उस की अपनी कोई सत्ता नहीं है वह तो उस विराट का अंशमात्र है अतः उसे स्वार्थ सिद्ध के स्थान पर जन कल्याण करना चाहिए।

व्याख्या:
जब वनस्पतियों तथा वन्य प्राणियों से वन का कोई पता नहीं चलता तो कुछ वनस्पतियों ने साँप से वन के विषय में पता करने के लिए सिंह से कहा। उनका मानना था कि शायद सिंह के भय से वन भी अन्य जन्तुओं के समान कहीं छिपकर रहता होगा। वह भी सिंह को अपना मुँह नहीं दिखाना चाहता होगा। वे मानते हैं कि सिंह का बहुत रौब है। उसके इसी प्रभाव से भयभीत होकर अन्य जीव जन्तु उससे मुँह छिपाते फिरते हैं। उन्हें लगता है कि साँप सदा धरती के अन्दर मुँह गाड़कर रहता है इसलिए इस प्रकार की रहस्य पूर्ण बातें उसी में पूछनी चाहिएं।

वह अवश्य ही जानता होगा कि वन क्या है ? वनस्पतियाँ स्वयं को उजाले में सिर उठा कर खड़ी रहने वाली मानती हैं इसलिए वे भेदभाव से दूर रहती हैं। साँप जैसे अंधेरे में मुँह गाड़कर रहने वाले ही भेदभाव की नीति से परिचित हो सकते हैं। शेर उन्हें वन से भय न करने के लिए कहता है तथा उन्हें सांत्वना देता है कि जब तक वह है उन्हें किसी से भयभीत नहीं होना चाहिए। चाहे वह साँप का अन्य कोई क्यों न हो ? सिंह स्वयं को इन सबसे अधिक जमने वाला मानता है।

विशेष:

  1. लेखक ने सिंह जैसे घमंडियों तथा साँप जैसे आस्तीन के साँप लोगों पर व्यंग्य किया है जो अपने सामने किसी के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं।
  2. भाषा सहज, सरल, लाक्षणिक, मुहावरों से युक्त, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। शैली संवादात्मक तथा व्यंग्यात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

6. उनमें सबको ही अपना-अपना ज्ञान था। अज्ञानी, कोई नहीं था। पर उस वन का जानकार कोई नहीं था। वह नहीं जाने, दो नहीं जानें, दस-बीस नहीं जानें, लेकिन जिसको कोई नहीं जानता, ऐसी भी भला कोई चीज़ कभी हुई है या हो सकती है ? इसलिए उन जंगली जंतुओं में और वनस्पतियों में खूब चर्चा हुई, खूब चर्चा हुई। दूर-दूर तक उनकी तू-तू मैं-मैं सुनाई देती थी। ऐसी चर्चा हुई, ऐसी चर्चा हुई कि विद्याओं पर विद्याएँ उसमें से प्रस्तुत हो गईं। अंत में तय पाया कि दो टाँगों वाला आदमी ईमानदार जीव नहीं है। उसने तभी वन की बात बनाकर कह दी है। वन बन गया है । सच में वह नहीं है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया कि वास्तविकता को जानने के कारण मनुष्य उसी प्रकार भटकता रहता है जैसे वन के विषय में जानकर वन्य प्राणी तथा वन की वनस्पतियाँ भयभीत हो रही थीं।

व्याख्या:
दो शिकारी व्यक्तियों द्वारा वन की भयानकता के विषय में सुनकर सभी वनस्पतियां तथा वन्य प्राणी वन को जानने के लिए व्याकुल हो उठते हैं कि वन है क्या ? परन्तु कोई भी वन को नहीं जानता था। सभी अपना-अपना पक्ष रखते हैं परन्तु समझदार होते हुए भी कोई नहीं बता पाया कि वन क्या है ? वन के विषय में किसी को भी कुछ नहीं पता था। वे सभी इस बात से परेशान थे कि उन में से जब कोई भी वन को नहीं जानता तो क्या वह हो भी सकता है ? उन में खूब तर्क-वितर्क होता है और दूर-दूर तक उन की बहस सुनाई देती है। प्रत्येक अपने कथन के पक्ष में अनेक तर्क प्रस्तुत करता है और एक से एक गहरी बातें करता है। जब कोई समाधान नहीं हुआ तो वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह दो टांगों वाला जीव जो आदमी कहलाता है ईमानदार नहीं है। उसने अपने मन से ही बना कर वन की बात कही है और हम इसे सच मान बैठे जबकि वास्तव में वन कहीं नहीं है।

विशेष:

  1. लेखक ने तर्क-वितर्क की व्यर्थता की ओर संकेत किया है तथा मनुष्य की बेईमानी मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है।
  2. भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा लाक्षणिक है। शैली व्यंग्यात्मक तथा वर्णनात्मक है।

7. उस समय आदमी और बड़दादा में कुछ ऐसी धीमी-धीमी बातचीत हुई कि वह कोई सुन नहीं सका। बातचीत के बाद वह पुरुष उस विशाल बड़ के वृक्ष के ऊपर चढ़ता दिखाई दिया। चढ़ते-चढ़ते वह उसकी सबसे ऊपर की फुनगी तक पहुँच गया। वहाँ दो नए-नए पत्तों की जोड़ी खुले आसमान की तरफ़ मुसकराती हुई देख रही थी। आदमी ने उन दोनों को बड़े प्रेम से पुचकारा। पुचकारते समय ऐसा मालूम हुआ, जैसे मंत्ररूप में उन्हें कुछ संदेश भी दिया है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया है किस प्रकार वास्तविकता से परिचित न होने पर हम भटक जाते हैं तथा विभिन्न प्रकार के व्यर्थ के वाद-विवादों में फँस जाते हैं जैसे कि वन के अस्तित्व से अनजान वन की वनस्पतियों और वन्य प्राणियों की दशा होती है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि जब दुबारा वे शिकारी उस जंगल में आते हैं तो वनस्पतियां उनसे वन के बारे में पूछती हैं। तब वे उन्हें बताते हैं कि वे सब मिलाकर वन हैं। उन्हें इस कथन पर विश्वास नहीं होता। तब बड़दादा और शिकारी में धीरे धीरे कुछ बातचीत होती है। इसे अन्य वनस्पतियां नहीं सुन पातीं। बड़दादा से बातचीत करके वह शिकारी उस विशाल बड़ के पेड़ के ऊपर चढ़ता है और चढ़ते-चढ़ते उसकी सबसे ऊपर वाली फुनगी तक पहुँच जाता है। वह वहाँ देखता है कि दो नए-नए पत्ते खुले आकाश की ओर देख रहे हैं। उन का देखना उसे ऐसा लगा जैसे वे आकाश को देखकर मुस्करा रहे हैं। वह शिकारी उन्हें प्रेमपूर्वक पुचकारता है। जब वह उन्हें ‘पुचकार रहा था तो ऐसा लग रहा था जैसे वह उन्हें मन्त्र के रूप में कोई संदेश भी दे रहा है।

विशेष:

  1. यहाँ लेखक ने प्रकृति के प्रति मानवीय प्रेम को व्यक्त किया है। वह वन संरक्षण का संदेश देता है।
  2. भाषा सहज, सरस, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा काव्यात्मक है। शैली चित्रात्मक तथा भावात्मक है।

8. वन के प्राणी यह सब-कुछ स्तब्ध भाव से देख रहे थे। उन्हें कुछ समझ में न आ रहा था। देखते-देखते पत्तों की वह जोड़ी उद्ग्रीव हुई। मानो उसमें चैतन्य भर आया। उन्होंने अपने आस-पास और नीचे देखा। जाने उन्हें क्या दिखा कि वे काँपने लगे। उनके तन में लालिमा व्याप गई। कुछ क्षण बाद मानो वे एक चमक से चमक आए। जैसे उन्होंने खंड को कुल में देख लिया। देख लिया कि कुल है, खंड कहाँ है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गयी हैं। इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि वास्तविकता से परिचित न होने पर मनुष्य उसी प्रकार से भटक जाता है जैसे वन के अस्तित्व से अनजान वनस्पतियों तथा वन्य प्राणियों की दशा होती है।

व्याख्या:
लेखक उस समय का वर्णन करता है जब एक शिकारी विशाल बड़ के वृक्ष की फुनगी तक पहुँचकर उसे पुचकारता है। वन के समस्त प्राणी यह दृश्य टकटकी लगाकर देखते रहते हैं। उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। उन्होंने देखा कि बड़ के पत्तों की वह जोड़ी उस शिकारी द्वारा पुचकारे जाने पर इस प्रकार ऊपर की ओर उठी जैसे उस में चेतनता आ गयी हो। वे अपने आस-पास और नीचे भी देखने लगीं। यह सब तथा कुछ अनजाना-सा देखकर वे काँप उठीं। उनका शरीर भय से लाल हो गया। परन्तु कुछ ही क्षणों के बाद वे एक अनोखी चमक से चमकने लगीं। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने अपने अंश अथवा खंड को उस पूर्ण में देख लिया है। जिस की वे अंश हैं। उन्होंने सम्पूर्ण को देखने के बाद यह अनुभव किया कि वे उस सम्पूर्ण की ही खंड मात्र हैं।

विशेष:

  1. लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि मनुष्य का अस्तित्व इस संसार में उस विराट के एक खंड के रूप में उसी प्रकार से है जैसे वाटिका में एक पुष्प-पादप। इसी प्रकार से समस्त वनस्पतियां और वन्य प्राणी भी विशाल वन के एक खंड मात्र हैं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा प्रतीकात्मक है। शैली भावपूर्ण एवं प्रतीकात्मक है।

कठिन शब्दों के अर्थ

तत्सत् = उस का सत्य। गहन = घना। वन = जंगल। टोह = खोज। दहशत = भय, डर। अजब = विचित्र। ओछे = छोटे कद वाले, तुच्छ। प्रीति = प्रेम। पोला = खोखला। दीखा = दिखाई देना। पदतल = पैरों के तलवे। वाग्मी = वाचाल, बहुत बोलने वाला, घमंडी। वंश = बाँस। जिज्ञासु = जानने के इच्छुक। दबदबा = रौब। मंथर = धीमी। अतिशय = बहुत अधिक। श्याम = काला। छिद्र = सुराख। अंतर्भेद = अन्दर का हाल, रहस्य। फ़र्जी = नकली। रोज़ = दिन। भर्त्सना = फटकारना। निर्धम = भ्रम रहित, शंकाओं से मुक्त। उद्ग्रीव = ऊपर उठना। अभ्यंतराभ्यंतर = अंत:करण।

तत्सत् Summary

तत्सत् जीवन परिचय

जैनेन्द्र कुमार का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।

जैनेन्द्र कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के कौड़ियागंज गाँव में सन् 1905 ई० में हुआ। इनकी आरम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर जिला मेरठ में हुई। इन्होंने सन् 1919 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास करके काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, किन्तु गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर पढाई छोड कर स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। इन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने डी० लिट की उपाधि से सम्मानित किया था। इनकी रचनाओं में मनोभावों तथा संवेदनाओं का सूक्ष्म चित्रण मिलता है। जीविका चलाने के लिए व्यापार किया, नौकरी भी की किन्तु सफल न हो सके और स्वतन्त्र लेखन को ही जीवन का ध्येय बना लिया। ध्रुवयात्रा, नीलम देश की राजकन्या, फाँसी इनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं। परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी आदि उनके उपन्यास हैं। सन् 1989 ई० में इनका निधन हो गया था।

तत्सत् कहानी का सार

श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित ‘तत्सत्’ नामक कहानी प्रतीक शैली में लिखी हुई है। इसमें जीवन के सूक्ष्म अनुभवों के स्वतंत्र मौलिक चिंतन द्वारा गूढ प्रश्नों का समाधान दार्शनिक दृष्टिकोण से किया गया है। जैनेन्द्र कुमार बुद्धिवादी दार्शनिक एवं विचारक हैं। वैयक्तिक स्थितियों के आंतरिक चित्रण का सुंदर और सहज रूप इस कहानी में उपलब्ध होता है। – एक घने जंगल में दो शिकारी शिकार की टोह में पहुँचे । दोनों पुराने शिकारी थे पर इतना भयानक वन उन्होंने आज तक न देखा था। एक बड़े पेड़ की छाँह में बैठकर उस भयानक और घने वन के संबंध में बात करते हुए, कुछ देर विश्राम करने के बाद वह दोनों चले गये। उनके चले जाने पर पास के शीशम के पेड़ ने उस.पेड़ से कहा कि.ए बड़ दादा अभी तुम्हारी छाँह में कौन बैठे थे, वे गये। बड़दादा उसे बताते हैं कि वे आदमी कहलाते हैं। उनके न पत्ते होते हैं न जड़ें, बस तना ही तना होता है। अपने तने की दो शाखों पर चलते हैं, इधर-उधर चलते हैं, ऊपर की ओर बढ़ना उन्हें नहीं

आता। तभी बबूल ने बड़दादा से पूछा कि क्या आपने वन देखा है। अभी ये आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहे थे। बड़दादा ने कहा कि मैंने शेर, चीता, भालू, हाथी, भेड़िया सभी जानवर देखे हैं पर वन नाम के जानवर को मैंने अब तक नहीं देखा। आदमी एक टूटी-सी टहनी से आग की लपट छोड़कर शेर-चीतों को मार देता है। उन्हें ऐसे मरते अपने सामने हमने देखा है पर वन की लाश हमने नहीं देखी। वह ज़रूर कोई बड़ा भयानक जानवर होगा।

बड़दादा, शीशम और बबूल में इसी प्रकार बातें हो रही थीं। आस-पास के साल, सेंमर, सिरस, बाँस, घास आदि पेड़ भी इस बातचीत में हिस्सा लेने लगे। उनमें से कोई भी वन को नहीं जानता था। पर सभी अज्ञात रूप से वन से डरने लगे थे। सबमें काफ़ी बहस हुई पर कोई भी यह न बता सका कि वन कौन-सा जानवर है। तभी वहां सिंह आया। बड़दादा ने उससे वन के सम्बन्ध में पूछा। पर सिंह भी न बता सका कि वन कौन है। लोग सलाह करते हैं कि साँप से इस सम्बन्ध में पूछना चाहिए। संयोग से एक नाग भी उधर आ निकला। वन के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की कल्पना की गई पर इसका निश्चय नहीं हो सका कि वह कौन जानवर है। सभी जीव-जन्तु और पेड़-पौधों ने आपस में पूछताछ की और अंत में यह तय हुआ कि दो पैर वाले मनुष्य की बात का कोई भरोसा नहीं। मनुष्य ईमानदार जीव नहीं है। तभी उसने वन की बात कह दी पर वास्तव में वह कुछ नहीं है। बड़दादा ने कहा कि उन आदमियों को फिर आने दो तब उनसे पूछा जायेगा कि वन क्या है ?

एक दिन वे दोनों शिकारी फिर उधर आ निकले। उनके आने पर जंगल के सभी जीव-जन्तु, पेड़-पौधे तरह-तरह की आवाज़ों में बोलकर मानों उनका विरोध करने लगे। इस विचित्र स्थिति में अपने को पाकर आदमियों ने अपनी बंदूकें सम्भाली पर बड़दादा ने बीच में पड़कर जंगल के प्राणियों को शांत किया और उन आदमियों से पूछा कि जिस जंगल की तुम बात किया करते हो बताओ कि वह कहाँ है। आदमियों ने कहा कि जहाँ हम सब हैं यह जंगल ही तो है। इस पर किसी को भला कैसे विश्वास हो सकता था। वह सेंमर है, वह सिरस है, वह घास है, वह सिंह है, वह पानी है फिर भला जंगल कहाँ है। आदमी ने कहा यह सब कुछ जंगल ही है। पर सभी अपना नाम बताते और जंगल या वन कौन है यह कोई मानने को तैयार न था। आदमी और बड़दादा में थोड़ी देर तक धीमी आवाज़ में बातचीत होती रही। इसके बाद बड़दादा ने अन्य प्राणियों को बताया है कि यह वन ही है हम नहीं, हम सब ही वन हैं। समग्रता का बोध होने पर ही बड़दादा वन की सत्ता स्वीकार कर लेता है और अन्य वन्य प्राणियों को भी वन की सत्ता स्वीकार करने के लिए कहता है।

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