Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 3 बिहारी Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 3 बिहारी
Hindi Guide for Class 12 PSEB बिहारी Textbook Questions and Answers
(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दो:
प्रश्न 1.
बिहारी के भक्तिपरक दोहों में श्रीकृष्ण के किस स्वरूप का चित्रण किया गया है ? वर्णन करें।
उत्तर:
बिहारी के भक्तिपरक दोहों में श्रीकृष्ण का जो स्वरूप चित्रण किया गया है उसमें उनके सिर पर मोर के पंख वाला मुकुट लगा है। कमर में उन्होंने तड़ागी पहन रखी है। उन्होंने हाथों में मुरली पकड़ रखी है और उन्होंने गले में वैजयंती माला पहन रखी है।
प्रश्न 2.
बिहारी के भक्तिपरक दोहों की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
बिहारी के भक्तिपरक दोहों में राधा वल्लभ सम्प्रदाय का अनुकरण करते हुए सतसई के आरम्भ में राधा जी की स्तुति की है। दूसरे सतसई में अधिकांश दोहे शृंगारपरक हैं अतः कवि ने शृंगार रस के मुख्य प्रवर्तक श्रीकृष्ण और राधा की युगल मूर्ति की स्तुति की है।
प्रश्न 3.
बिहारी के सौन्दर्य चित्रण में श्रीकृष्ण की तुलना किससे की गई है ?
उत्तर:
बिहारी ने श्रीकृष्ण के सौन्दर्य का चित्रण करते हुए कहा है कि श्रीकृष्ण साँवले शरीर वाले पीले वस्त्र ओढ़े हुए ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो नीलम की मणि के पर्वत पर प्रभात वेला के सूर्य का प्रकाश पड़ रहा हो।
प्रश्न 4.
बिहारी ने गुणों के महत्त्व को बड़प्पन के लिए आवश्यक बताते हुए क्या उदाहरण दिया है ? स्पष्ट
उत्तर:
बिहारी ने गुणों के महत्त्व को बड़प्पन के लिए आवश्यक बताते हुए धतूरे और सोने का उदाहरण दिया है। दोनों को ही कनक कहा जाता है किन्तु धतूरे से गहने नहीं गढ़वाये जा सकते। इसलिए महत्त्व गुणों का है न कि नाम का।
प्रश्न 5.
बिहारी के अनुसार लालची व्यक्ति का कैसा स्वभाव होता है ?
उत्तर:
बिहारी के अनुसार लालची व्यक्ति ने चूंकि आँखों पर लोभ का चश्मा चढ़ाया होता है इसलिए वह प्रत्येक व्यक्ति के पास दीन बनकर भीख माँगने जाता है। लोभ का चश्मा पहनने के कारण उसे छोटा व्यक्ति भी बड़ा दिखाई देता है। वह यह नहीं देखता कि वह व्यक्ति उसे कुछ दे भी सकता है या नहीं।
(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:
प्रश्न 6.
मेरी भव बाधा हरौ …………. दुति होइ।
उत्तर:
कवि कहता है कि जिस चतुर राधा के सुन्दर तन की झलक पड़ने मात्र से अर्थात् जिसके दर्शन मात्र से श्रीकृष्ण प्रसन्न हो उठते हैं, उसी राधा से मेरा निवेदन है कि मेरी सांसारिक मुसीबतों या दुःखों से मुझे मुक्ति दिलाएँ।
प्रश्न 7.
अति अगाधु ……………. प्यास बुझाइ।
उत्तर
जो वस्तु व्यक्ति के समय पर काम आए वही उसके लिए बड़ी होती है इसी तथ्य पर प्रकाश डालते हुए कवि कहते हैं कि नदी, कुआँ, सरोवर और बावड़ी चाहे कितने ही गहरे हों या उथले हों मनुष्य की प्यास जिस जलाशय से बुझती है वही उसके लिए सागर सिद्ध होता है।
PSEB 12th Class Hindi Guide बिहारी Additional Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
बिहारी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
ग्वालियर के निकट गाँव गोबिंदपुर और सन् 1595 में।
प्रश्न 2.
बिहारी सतसई में कुल कितने दोहे हैं?
उत्तर:
713 दोहे।
प्रश्न 3.
बिहारी किस संप्रदाय से संबंधित थे?
उत्तर:
राधा वल्लभ संप्रदाय से।
प्रश्न 4.
नायिका के माथे पर लगी बिंदी उसकी सुंदरता को कितना बढ़ा देती है?
उत्तर:
असंख्य गुणा।
प्रश्न 5.
‘नीलमणि के पर्वत पर सुबह की पीली-पीली धूप’ के माध्यम से किसे व्यक्त किया गया है?
उत्तर:
श्री कृष्ण की शोभा को।
प्रश्न 6.
नीति के आधार पर अधिक धन जोड़ने को बिहारी ने कैसा माना है?
उत्तर:
अनुचित।
प्रश्न 7.
बिहारी के काव्य की प्रमुख भाषा कौन-सी है?
उत्तर:
ब्रजभाषा। ।
प्रश्न 8.
लालची व्यक्ति का लालच कब समाप्त होता है?
उत्तर:
कभी भी नहीं।
प्रश्न 9.
बिहारी के अनुसार सबसे बड़ी वस्तु कौन-सी होती है?
उत्तर:
जो वस्तु समय पर काम आए वही सब से बड़ी होती है।
प्रश्न 10.
कोई भी व्यक्ति किससे गुणवान बनता है?
उत्तर:
अपने गुणों से।
प्रश्न 11.
श्री कृष्ण के गले में कौन-सी माला शोभा देती है?
उत्तर:
वैजयंती माला।
प्रश्न 12.
धतूरे और सोने को बिहारी ने किस एक ही नाम से व्यक्त किया है?
उत्तर:
कनक।
प्रश्न 13.
बढ़त-बढ़त संपति सलिल में किन दो अलंकारों का प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश ।
वाक्य पूरे कीजिए
प्रश्न 14.
खाए खरचे जो बचे, तो…..
उत्तर:
जोरियै करोरि।
प्रश्न 15.
घर-घर डोलत दीन ह्वै…..
उत्तर:
जन-जन या चल जाइ।
प्रश्न 16.
घटत-घटत पुनि न घटै………….
उत्तर:
बरू समूल कुम्हिलाइ।
प्रश्न 17.
जा तनको झांई प..
उत्तर:
स्याम हरित-दुति होई।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 18.
बिहारी की काव्य भाषा अवधी थी।
उत्तर:
नहीं।
प्रश्न 19.
बिहारी ने अपने जीवन काल में एक ही पुस्तक की रचना की थी।
उत्तर:
हाँ।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. बिहारी किस काल के कवि हैं ?
(क) आदिकाल
(ख) भक्तिकाल
(ग) रीतिकाल
(घ) आधुनिक काल
उत्तर:
(ग) रीतिकाल
2. बिहारी किस भाषा के कवि थे ?
(क) ब्रज
(ख) अवधी
(ग) खड़ी बोली
(घ) हिंदी
उत्तर:
(क) ब्रज
3. नायिका के माथे पर बिंदी लगाने से उसकी शोभा कितने गुणा बढ़ जाती है ?
(क) अनगिनत
(ख) गिनत
(ग) अत्यंत
(घ) अतीव
उत्तर:
(क) अनगिनत
4. संसार में व्यक्ति किससे गुणवान बनता है ?
(क) धन से
(ख) तन से
(ग) गुणों से
(घ) शिक्षा से
उत्तर:
(ग) गुणों से
बिहारी सप्रसंग व्याख्या
1. मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोइ।
जा तन को झाँई परें, स्यामु हरित-दुति होई॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
भव = संसार । बाधा = रुकावटें, विघ्न। भव बाथा = सांसारिक दुःख या कष्ट । झाँई = परछाईं, झलक,ध्यान। परै = पड़ते ही। स्यामु = श्रीकृष्ण, काले पदार्थ-दुःख दारिद्र आदि। हरित-दुति = हरे रंग वाला, हरा भरा।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि बिहारी द्वारा लिखित बिहारी सतसई में संकलित ‘भक्ति वर्णन’ शीर्षक दोहों में से लिया गया है। प्रस्तुत दोहे में कवि सतसई के मंगलाचरण के रूप में श्रीराधा जी की स्तुति कर रहा है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि जिस चतुर राधा के सुन्दर तन की झलक पड़ने मात्र से अर्थात् जिसके दर्शन मात्र से श्रीकृष्ण प्रसन्न हो उठते हैं, उसी राधा से मेरा निवेदन है कि मेरी सांसारिक मुसीबतों या दुःखों से मुझे मुक्ति दिलाएँ।
विशेष:
- कवि बिहारी मूलतः राधा वल्लभीय सम्प्रदाय के अनुयायी थे इसी कारण उन्होंने राधा जी से मंगलाचरण में प्रार्थना की है।
- ब्रज भाषा का प्रयोग है।
- श्रृंगार रस एवं लक्षणा शब्द शक्ति का प्रयोग है।
- श्लेष, काव्यलिंग तथा अनुप्रास अलंकार हैं।
2. जप माला छापा तिलक सरै न एकौ काम।
मन काँचै नाचै वृथा, साँचे राँचै राम॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
जप माला = नाम जपने की माला। छापा = माथे पर लगाया जाने वाला छापा-तीन लकीरें । सरै = पूरा नहीं होता। काँचै = कच्चा, भक्ति रहित। वृथा = व्यर्थ में । राँचै = प्रसन्न होता है।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित सतसई के भक्तिवर्णन’ प्रसंग से लिया गया है। जिसमें कवि ने सत्यनिष्ठ भाव से प्रभु भक्ति पर बल दिया है।
व्याख्या:
कवि भक्ति के क्षेत्र में आडम्बर का खंडन करता हुआ भक्ति में सच्ची निष्ठा को कसौटी मानते हुए कहता है कि भगवान् का नाम जपने वाली माला, माथे पर लगाया जाने वाला छापा और तिलक इन सभी से कोई भी काम पूरा नहीं होता क्योंकि यह सब तो दिखावा मात्र है। यदि व्यक्ति के मन में सच्ची भक्ति नहीं है तो वह अकारण ही (व्यर्थ ही) नाचता है। अर्थात् उछलकूद करके भगवान् का कीर्तन या भजन करता है किन्तु भगवान् तो सच्चे भक्त पर ही प्रसन्न होते हैं अर्थात् भगवान् को किसी प्रकार का आडम्बर पसन्द नहीं वह तो सच्ची निष्ठा ही पसन्द करते हैं।
विशेष:
- संत कबीर ने भी कहा है
माला फेरत जग मुया गया न मन का फेर।
कर का मनका डारिके मनका मनका फेर॥
कवि ने आडंबरपूर्ण भक्ति का विरोध किया है। - ब्रज भाषा हैं।
- दोहा छंद एवं संगीतात्मकता का प्रवाह है।
- अनुप्रास एवं यमक अलंकार है।
सौंदर्य वर्णन
3. सोहत औढ़े, पीत पटु,स्याम सलौने गात।
मनौ नीलमनि सैल पर, आतपु परयौ प्रभात॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
सोहत = शोभा पाते हैं। पीत पटु = पीले कपड़े। स्याम = साँवले। सलौने = सुन्दर।गात = शरीर। मनौ = मानो। नीलमनि सैल = नीलम मणि के पर्वत पर। आतपु = धूप। प्रभात = प्रातः, सुबह।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि बिहारी द्वारा लिखित ‘बिहारी सतसई’ में संकलित ‘सौंदर्य वर्णन’ शीर्षक दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने नायक के सांवले रूप-सौन्दर्य का चित्रांकन किया है।
व्याख्या:
नायिका की सखी नायक की अनुपम शोभा का वर्णन करके उसके चित्त में अनुराग उत्पन्न करने के लिए कहती है कि-हे सखी! नायक के साँवले वर्ण के सुन्दर शरीर पर पहने हुए वस्त्र ऐसे शोभा पा रहे हैं मानो नीलमणि के पर्वत पर सुबह के समय की पीली-पीली धूप पड़ रही हो।
विशेष:
- नायक के रूप-सौंदर्य का आकर्षक वर्णन किया गया है।
- ब्रजभाषा, दोहा छंद, अनुप्रास तथा उत्पेक्षा अलंकार हैं।
4. कहत सबै बेंदी दिए अंक दस गुनौ होत।
तिय लिलार बेंदी दिए अगनित बढ़तु उदोत॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
बेंदी = बिंदी, बिन्दु, जीरो, सिफर। अंक = हिनसा, अंक, संख्यावाचक।तिय ललार = स्त्री के माथे पर। अगनित = असंख्य, अनगिनत। उदोत = काँति, शोभा, अंक की दृष्टि से मूल्य।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित सतसई के ‘सौंदर्य वर्णन’ प्रसंग से लिया गया है, जिसमें कवि ने नायिका के सौंदर्य का वर्णन किया है।
व्याख्या:
नायिका ने अपने माथे पर बिन्दी लगा रखी है जिससे उसकी सुन्दरता और भी बढ़ गई है। नायिका के इस रूप को देख कर नायक मोहित हो जाता है। वह कहता है कि सभी कहते हैं कि बिन्दु लगाने से अंक दस गुना हो जाता हैजैसे एक को बिन्दु लगाने पर दस और दस को बिन्दु लगाने पर सौ हो जाता है उसका मूल्य दस गुना बढ़ जाता है किन्तु स्त्री के माथे पर बिन्दु लगाने से उसकी शोभा कई गुणा बढ़ जाती है।
विशेष:
- कवि के अंक ज्ञान का परिचय मिलता है। जिसे उसने नायिका की सौंदर्य वृद्धि में प्रयोग किया है।
- ब्रजभाषा है।
- दोहा छंद है।
नीति के दोहे
5. बड़े न हजै मनन बिन, विरद बड़ाई पाय।
कहत धतूरे सौ कनक, गहनो गढ़यो न जाय॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
न हजै = नहीं हो सकता। बिन = बिना। विरद बड़ाई = यश की प्रशंसा। धतूरा = एक नशीला पौधा। कनक = सोना।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि बिहारी द्वारा लिखित ‘बिहारी सतसई’ के ‘नीति’ शीर्षक दोहों में से लिया गया है। इसमें कवि ने मनुष्य के गुणों की महानता की अभिव्यक्ति की है।
व्याख्या:
गुणों के अभाव में केवल व्यर्थ की प्रशंसा के सहारे कोई बड़ा नहीं बन सकता। इसी तथ्य पर प्रकाश डालते हुए कवि कहते हैं कि बिना गुणों के केवल व्यर्थ की प्रशंसा पाकर कोई बड़ा नहीं बन सकता, जिस प्रकार धतूरे को कनक भी कहते हैं जो सोने का पर्याय है किन्तु धतूरे से गहने नहीं गढ़े जा सकते अर्थात् धतूरे को कनक कह देने से उसमें सोने के गुण नहीं आ सकते। अतः महत्त्व गुणों का है न कि व्यर्थ की प्रशंसा का।।
विशेष:
- मनुष्य केवल गुणों से ही महान बन सकता है, झूठी प्रशंसा से नहीं।
- ब्रजभाषा का प्रयोग है।
- उपदेशात्मक शैली है।
- दोहा छंद है।
- अनुप्रास अलंकार है।
6. अति अगाधु, अति औथरौ, नदी, कूपु सुरु बाइ।
सो ताकौ सागरू, जहाँ जाकी प्यास बुझाइ॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
अगाधु = अथाह, गहरे। औथरौ = उथली, छिछला। कूपु = कुआँ। सरू = सरोवर। बाई = बावड़ी, बाऊली।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित सतसई के ‘नीति के दोहे’ प्रसंग से लिया गया है, जिसमें कवि ने समय पर काम आने वाली वस्तु को श्रेष्ठ माना है।
व्याख्या:
जो वस्तु व्यक्ति के समय पर काम आए वही उसके लिए बड़ी होती है इसी तथ्य पर प्रकाश डालते हुए कवि कहते हैं कि नदी, कुआँ, सरोवर और बावड़ी चाहे कितने ही गहरे हों या उथले हों मनुष्य की प्यास जिस जलाशय से बुझती है वही उसके लिए सागर सिद्ध होता है।
विशेष:
- वस्तु वही महान् होती है जो समय पर काम आए। यदि कोई छोटा व्यक्ति भी समय पर काम आता है या सहायता करता है तो वह व्यक्ति छोटा न होकर महान् कहलाता है।
- ब्रज भाषा सरल एवं सरस है।
- दोहा छंद है।
- अनुप्रास अलंकार है।
7. जगत जनायौ जिहि सकलु सो हरि जान्यो नाहिं।
ज्यों आँखिन सब देखिये, आँख न देखी जाहिं॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
जनायौ = ज्ञान दिया गया। जिहि = जिस के द्वारा। सकलु = सम्पूर्ण । हरि = ईश्वर। देखियै = देखा जाता है।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित सतसई के ‘नीति के दोहे’ प्रसंग से लिया गया है, जिसमें कवि ने जीवनोपयोगी तथ्यों का निरूपण किया है।
व्याख्या:
कवि ने यह बताया है कि ईश्वर की सच्ची अनुभूति आत्मज्ञान से ही सम्भव है। कवि कहते हैं कि जिस ईश्वर द्वारा हमें सारे संसार का ज्ञान प्राप्त हुआ उसी ईश्वर को हम नहीं जान पाए। ईश्वर की कृपा के कारण ही हम इस संसार में जन्मे और संसार का ज्ञान प्राप्त कर सके किन्तु यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि हमारे लिए वही ईश्वर अपरिचित रहा अर्थात् हम उसे जान नहीं सके। हमारी स्थिति ठीक उस आँख की तरह है जो संसार भर को देख लेती है किन्तु अपने आप को नहीं देख पाती। मनुष्य की आँखें औरों को देख सकती हैं, अपने आप को नहीं।
विशेष:
- अज्ञानता के कारण मानव ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर पाता।
- ब्रज भाषा है।
- दोहा छंद का प्रयोग है।
- अनुप्रास अलंकार है।
8. घर घर डोलत दीन द्वै, जन जन याचत जाइ।
दिये लोभ-चसमा चखनि, लघु पुनि बड़ो लखाइ॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
ह्वै = होकर। जन-जन = हर व्यक्ति। याचत जाइ = जा जाकर भीख माँगता है। लोभ-चसमा = लालच रूपी चश्मा। चखनि = आँखों पर। लघु = छोटा। पुनि = फिर। लखाइ = दिखाई देता है।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित सतसई के ‘नीति के दोहे’ प्रसंग से लिया गया है, जिसमें कवि ने जीवनोपयोगी तथ्यों का निरूपण किया है। प्रस्तुत दोहे में कवि लोभी व्यक्ति के व्यवहार की निन्दा कर रहे हैं।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि लोभी व्यक्ति अपनी आँखों पर लालच रूपी चश्मा चढ़ाकर और प्रकट रूप से दीन बन कर घर-घर जाता है और हर व्यक्ति से भीख माँगता है। लोभ का चश्मा चढ़ाये होने के फलस्वरूप उसे छोटा व्यक्ति भी बड़ा दिखाई पड़ता है अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति से कुछ-न-कुछ पाने की आस रखता है। लोभ का चश्मा चढ़ा होने के कारण वह यह भी नहीं देख पाता कि व्यक्ति भीख देने में समर्थ है भी या नहीं।
विशेष:
- लालची व्यक्ति का लालच कभी कम नहीं होता है।
- ब्रज भाषा सरल एवं सरस है।
- दोहा छंद है।
- अनुप्रास, रूपक एवं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
9. बढ़त बढ़त संपति-सलिल, मन-सरोज बढ़ि जाइ।
घटत घटत पुनि न घटै, बरू समूल कुम्हिलाइ॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
संपति-सलिल = संपत्ति (धन) रूपी पानी। मन-सरोज = मन रूपी कमल। पुनि न = फिर नहीं। बरू = बल्कि। समूल = जड़ सहित, मूलधन सहित। कुम्हिलाइ = मुरझा जाता है, हानि हो जाती है।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित सतसई के ‘नीति के दोहे’ प्रसंग से लिया गया है, जिस में कवि ने जीवनोपयोगी तथ्यों का निरूपण किया है।
व्याख्या:
कवि धन की प्रकृति पर प्रकाश डालते हुए कवि कहते हैं कि मनुष्य जीवन में धन रूपी जल जैसे-जैसे बढ़ता जाता है उसका मन रूपी कमल भी विकसित होता रहता है अर्थात् उसके मन में अनेक प्रकार की सांसारिक इच्छाएँ उत्पन्न होती रहती हैं किन्तु जब यह धन रूपी जल धीरे-धीरे घटना शुरू होता है तो उसका मन रूपी कमल जड़सहित मुरझा जाता है अर्थात् वह धीरे-धीरे नहीं अपितु जड़सहित नष्ट हो जाता है। जैसे पानी घटने पर कमल एकदम मुरझा जाता है उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में जैसे-जैसे धन की वृद्धि होती.जाती है वैसे-वैसे उसकी इच्छाएँ भी बढ़ती जाती हैं और जब धन घटने लगता है तो उसके मन की इच्छाएँ भी समाप्त हो जाती हैं।.
विशेष:
- मन की कामनाएँ धन की वृद्धि अथवा कमी के अनुसार बढ़ती-घटती रहती हैं।
- ब्रज भाषा सरल, सरस एवं प्रवाहमयी है।
- दोहा छंद है।
- अनुप्रास, रूपक एवं पुनरुक्ति प्रकाश की छटा है।
10. मीत न नीति गलीत हौ, जो धरियै धन जोरि।
खाए खरचे जो बचे, तो जोरियै करोरि॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
मीत = मित्र। न नीति = नीति नहीं है अर्थात् नीति की दृष्टि से उचित नहीं है। गलीत हौ = दुर्दशा में रहकर। धरियै = रखो। जोरि = जोड़कर।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित सतसई के ‘नीति के दोहे’ प्रसंग से लिया गया है, जिसमें कवि ने जीवनोपयोगी तथ्यों का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि धन जोड़ने की नीति बताते हुए कहते हैं कि यदि अपनी दुर्दशा करके धन जोड़ा जाए तो यह नीति की दृष्टि से उचित नहीं है। यदि खाने-खर्चने के बाद अर्थात् आवश्यक वस्तुओं पर खर्च करने के बाद यदि कुछ बचता है तो करोड़ों रुपए जोड़े जा सकते हैं। कहने का भाव यह है कि मन मार कर या आवश्यक वस्तुओं पर खर्च न करके धन जोड़ना उचित नहीं है, हाँ यदि खाने-खर्चने के बाद कुछ धन बच जाता है तो करोड़ों जोड़े जा सकते हैं।
विशेष:
- मनुष्य को धन-संग्रह अपनी भावनाओं को मार कर नहीं करना चाहिए।
- ब्रज भाषा सरल एवं प्रवाहमयी है।
- ब्रजभाषा एवं संगीतात्मकता का समावेश है।
- दोहा छंद है।
- अनुप्रास अलंकार है।
11. गुनी गुनी सबकै कहैं निगुनी गुनी न होतु।
सुन्यौ कहूँ तरु अरक तें, अरक-समानु उदोतु॥
कठिन शब्दों के अर्थ:
सबकै कहैं = सबके कहने पर। निगुनी = गुण विहीन। गुनी = गुणवान। अरक = आक (मदार) का पौधा। अरक-समानु = सूर्य जैसा। उदोतु = प्रकाश।।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित सतसई के ‘नीति के दोहे’ प्रसंग से लिया गया है, जिस में कवि ने जीवनोपयोगी तथ्यों का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि ने बताया है कि मात्र प्रशंसा करने से कोई अमीर नहीं हो जाता। कवि कहते हैं कि यदि सभी लोग किसी गुण विहीन व्यक्ति को गुणवान कहकर पुकारने लगे तो वह कभी भी गुणवान नहीं हो सकता अर्थात् व्यक्ति गुणवान अपने गुणों से होता है, नाम से नहीं। क्या आक के पौधे से प्रकाश निकलता हुआ देखा है जबकि आक के पौधे और सूर्य दोनों को ही अरक कहा जाता है।
विशेष:
- मात्र प्रशंसा से कोई महान नहीं हो सकता।
- ब्रज भाषा सरस एवं प्रवाहमयी है।
- दोहा छंद है।
- अनुप्रास एवं उपमा अलंकार है।
बिहारी Summary
बिहारी जीवन परिचय
प्रश्न-कवि बिहारी लाल का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि बिहारी लाल का जन्म ग्वालियर के निकट गाँव बसुवा गोबिंदपुर में सन् 1595 को हुआ। इनके पिता केशव राय माथुर चौबे ब्राह्मण थे। सात-आठ वर्ष की अवस्था में आप अपने पिता के साथ ओरछा चले आए, इन्होंने यहीं केशवराय से काव्य की शिक्षा ली थी। विवाह के पश्चात् वे अपनी ससुराल मथुरा में रहने लगे थे। जयपुर नरेश जयसिंह ने इनकी प्रतिभा से प्रसन्न होकर इन्हें अपना राजकवि बना लिया था। यहीं पर इन्होंने ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘बिहारी सतसई’ की रचना की थी। उसके प्रत्येक दोहे पर इन्हें राजा ने एक स्वर्ण मुद्रा पुरस्कारस्वरूप प्रदान की थी। बिहारी सतसई में कुल 713 दोहे हैं। पत्नी का देहान्त होने पर बिहारी विरक्त होकर वृन्दावन आ गए। यहीं सन् 1663 में इनका निधन हो गया।
बिहारी दोहों का सार
बिहारी द्वारा रचित भक्ति के दोहों में राधा जी से सांसारिक बाधाओं से मुक्ति प्रदान करने की याचना की गई है तथा आडंबरपूर्ण भक्ति को व्यर्थ बताया गया है। सौंदर्य-वर्णन में नायक और नायिका के सौंदर्य का आकर्षक चित्रण किया गया है तथा नीति के दोहों में व्यर्थ की प्रशंसा के स्थान पर गुणों को महत्त्व देने, समय पर काम आई वस्तु को श्रेष्ठ मानने, अज्ञानता के कारण ईश्वर को न जानने, लोभ के दुर्गुणों तथा उचित धन संग्रह के संबंधों में बताया गया है।