Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar chhand छन्द Exercise Questions and Answers, Notes.
PSEB 12th Class Hindi Grammar छन्द
छन्द से सम्बन्धित कुछ सामान्य बातें
पद्य, छन्द, गीत, कविता-ये प्रायः समानार्थक शब्द हैं। पद्य (छन्द) अथवा कविता का इतिहास अधिक प्राचीन है। संस्कृत साहित्य की प्राचीनतम रचना ऋग्वेद, छन्दों में ही रची गई है। इससे स्पष्ट होता है कि छन्द आदि मानव के भावों की अभिव्यक्ति का आदिम साधन है। छन्द में एक अद्भुत आकर्षण है। छन्द अथवा ‘पद्यबद्ध रचना शीघ्र कंठस्थ हो जाती है और वह चिरकाल तक याद भी रहती है। गीत हमें कितनी शीघ्र याद हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि पद्य में मात्रा, वर्ण, विराम, गति, लय, स्वर और तुक आदि नियमों का पालन होता है। संगीत तत्व के गुण से युक्त होने के कारण छन्द सहज ही याद हो जाता है। मानवीय हर्ष शोक, प्रेम एवं घृणा आदि की अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम साधन भी छन्द ही है।
मानव ही नहीं पशु-पक्षी तक कविता, पद्य, छन्द की लय पर मुग्ध हो जाते हैं। विषधर (साँप) बीन की मधुर . आवाज़ पर मुग्ध होकर कुछ देर के लिए अपने स्वभाव को ही भूल जाता है। हिरण तो संगीत के लिए अपने प्राण दे देता है। गीत और संगीत अभिन्न हैं। छन्द अजर-अमर होने के कारण प्राचीन काल से मानवीय धरोहर के रूप में सुरक्षित रहे हैं। छन्द का प्रभाव हृदय एवं मस्तिष्क दोनों पर पड़ता है।
छन्द शब्द छिदि धातु से बना है जिसका अर्थ है-ढकना। छन्दों की उपयोगिता ‘छान्दोग्य उपनिषद्’ में एक रूपक द्वारा इस प्रकार स्पष्ट की गई है, “देवताओं ने मृत्यु से डर कर अपने आपको (अपनी रचनाओं को) छन्दों में ढक लिया।” यह भी कहा गया है, “कलाकार और कलाकृति को छन्द अपमृत्यु (शीघ्र मृत्यु) से बचा लेता है।”
सामान्य अर्थ में कहा जा सकता है कि छन्द कविता-कामिनी के शरीर को ढकने का साधन है। जिस प्रकार नग्न शरीर शोभा नहीं देता, उसी प्रकार छन्द-विहीन रचना भी शोभा नहीं देती। छन्द एक प्रकार से सांचा है जिसमें भाव ढल कर सुन्दर एवं आकर्षक रूप धारण करते हैं। अतः “जिस रचना में अक्षरों, मात्राओं, यति, गति, तुक आदि नियमों का पालन हो, उसे छन्द कहते हैं।”
छन्द की रचना
पाद या चरण-
प्रत्येक छन्द में प्राय: चार चरण या पाद होते हैं। चरण की रचना निश्चित वर्णों (अक्षरों) या मात्राओं के अनुसार होती है।
कुछ छन्दों में होते तो चार चरण हैं पर वे लिखे दो ही पंक्तियों में जाते हैं।
उदाहरणार्थ-
दोहा, सोरठा एवं बरवै।
चौपाई के चार पद होते हैं, जो प्रायः दो पंक्तियों में लिखे जाते हैं।
कुछ छन्दों में चरण होते हैं जैसे कुण्डलियां तथा छप्पय।
छन्द के चार चरणों में पहले और तीसरे पाद को विषम पाद तथा दूसरे और चौथे को सम पाद कहते हैं।
1, 3 = विषम पाद
2, 4 = सम पाद
वर्ण और मात्रा-
वर्ण-वह छोटी-से-छोटी ध्वनि है जिसके टुकड़े न हो सकें, उसे वर्ण या अक्षर कहते हैं। वर्णों की गणना करते समय वर्ण चाहे ह्रस्व हो चाहें दीर्घ, उसे एक ही माना जाएगा।
जैसे-नद, नाद, नदी इन तीनों शब्दों में दो-दो वर्ण हैं।
मात्रा-अक्षर या वर्णन के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं। मात्राओं को गिनते समय लघु स्वर की एक मात्रा तथा दीर्घ स्वर की दो मात्राएँ माननी चाहिएं।
उदाहरणार्थ-
क = एक मात्रा
का = दो मात्राएँ
काज = तीन मात्राएँ
काजल = चार मात्राएँ
लघु और गुरु परिचय
लघु-एक मात्रा वाला अक्षर लघु अक्षर कहलाता है। इसके लिए यह चिह्न (।) प्रयुक्त होता है।
यति-यति का अर्थ है-विराम या विश्राम। कविता अथवा छन्द को पढ़ते समय जहाँ हम रुकते हैं या विराम लेते हैं, यति प्रयोग होता है।
उदाहरणार्थ-
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सब का लिया सहारा।
पर नर-व्याघ्र, सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा।
-‘दिनकर’
यति प्रयोग से छन्द में मधुरता, सरस और स्पष्टता आ जाती है।
यति के नियम का पालन बड़े छन्दों में अनिवार्य होता है। यति भंग अथवा इसके अनुचित प्रयोग से अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
गति-कविता में नदी के समान एक प्रकार का प्रवाह होता है, उस प्रवाह को ही गति कहते हैं।
छन्द के प्रकार
वर्ण एवं मात्रा के आधार पर छन्द दो प्रकार के होते हैं
(i) वार्णिक छन्द
(ii) मात्रिक छन्द
वार्णिक छन्द-वर्णों पर आश्रित रहने वाले छन्दों को वर्णिक छन्द कहते हैं। इनकी व्यवस्था वर्णों की गणना के आधार पर की जाती है। वार्णिक छन्दों को वृत्त भी कहते हैं।
गण-तीन वर्गों के समूह को गण कहते हैं।
पहले शब्द में तीन अक्षर लघु तथा दूसरे शब्द में दो गुरु तथा एक लघु है। दोनों शब्दों में गण का नियम है।
आठों गणों को स्मरण रखने के लिए निम्नलिखित सूत्र याद रखें।
यमाताराजभानसलगा
य मा ता रा ज भा न स ल गा
वार्णिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं
सम वार्णिक, अर्द्धसम, विषम।
सम छन्दों में चारों चरणों में समान वर्ण होते हैं।
अर्द्धसम में 1, 3, तथा 2, 4 में समान वर्ण होते हैं।
विषम में चारों चरणों में वर्गों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है।
मात्रिक छन्द-मात्रिक छन्दों की व्यवस्था मात्राओं के आधार पर होती है। इन्हें ‘यति’ छन्द भी कहते हैं।
मात्रिक छन्द भी तीन प्रकार के हैं-
सम, अर्द्धसम, विषम।
1. दोहा
(13, 11 पर यति अर्थात् विषम पादों में 13-13 तथा सम पादों में 11-11 मात्राओं का नियम।)
लक्षण-दोहा छन्द के विषम पादों (पहले और तीसरे चरण) में तेरह-तेरह मात्राएँ तथा सम पादों (दूसरे और चौथे चरण में) ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं।
विशेष-दोहा छन्द में सम चरणों के अन्त में गुरु-लघु का विधान हो तथा विषम चरणों के आरम्भ में जगण का अभाव हो।
उदाहरण-
प्रस्तुत दोहे के विषम पदों में 13-13 तथा सम पादों में 11-11 मात्राएँ होने के कारण वहां दोहा छन्द है।
अन्य उदाहरण-
2. चौपाई
लक्षण-चौपाई के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं, चरण के अन्त में जगण तथा तगण का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
उदाहरण-
यहाँ प्रत्येक चरण में 16 मात्राओं का नियम है। अन्त में जगण तथा तगण का प्रयोग भी नहीं। अतः यहाँ चौपाई छन्द है।
अन्य उदाहरण-
2. जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।
तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥
निज दुख गिरि सम रज करि जाना।
मित्रक दुःख रज मेरु समाना।।
3. नित नूतन मंगल पुर माहीं।
निमिष सरिस दिन जामिनी जाहीं॥
बडो भोर भूपतिमनि जागे।
जाचक गुनगन गावन लागे।
3. सवैया
लक्षण-सवैया छन्द में 22 से लेकर 26 वर्ण होते हैं। इसमें कई भेद हैं। यहाँ कुछ प्रमुख भेदों के लक्षण उदाहरण प्रस्तुत हैं।
(i) मत्त गयंद सवैया- इस सवैया छन्द में प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं। पहले सात भगण (5 ।।) और अन्त में दो गुरु होते हैं।
उदाहरण-
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहुँ पुर को तजि डारौं।
आठह सिद्धि नवौ निधि को सुख नन्द की गाइ चराई बिसातैं।
ए रसखानि जब इन नैनन ते ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ये कलधौत के धाम करील कुंजन ऊपर बारौं ।
(ii) किरीट सवैया-इस सवैया छन्द के प्रत्येक चरण में 24 वर्ण होते हैं। इन 24 वर्गों में आठ भगण (ऽ ।।) होते हैं।
उदाहरण-
मानुस हों, तो वही रसखानि बसौ ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारिन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो, चरो नित नंद की धेनु मँझारिन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जु भयो कर छत्र पुरन्दर-धारनि।
जो खग हौं तो बसेरो करौ मिलि कालिंदि-कूल कदम्ब की डारनि॥
(ii) सुन्दरी सवैया- इस सवैया छन्द के प्रत्येक चरण में 25 वर्ण होते हैं। इन 25 वर्गों में आठ सगण (।। s) और एक गुरु होता है।
उदाहरण-
सुख शान्ति रहे सब ओर सदा, अविवेक तथा अध पास न आवें।
गुण-शील तथा बल-बुद्धि बढ़ें, हठ वैर विरोध घटें, मिट जावें,
सब उन्नति के पथ में विचरें, रति-पूर्ण परस्पर पुण्य कमावें,
दृढ़ निश्चय और निरामय होकर निर्भय जीवन में जय पावें।
4. कवित्त
लक्षण-कवित्त छन्द के प्रत्येक चरण में कुल 31 वर्ण होते हैं। 8, 8, 8, 7 पर अथवा 16, 15 वर्गों पर यति होती है। अन्तिम वर्ण गुरु होना चाहिए।
उदाहरण-
जल की न घट भरें मग की न पग धरें,
घर की न कछु करें बैठी भरें सांसु री।
एकै सुनि लोट गई एकै लोट-पोट भई,
– एकनि की दृगनि निकसी आए आँसू री।
कहै रसखानि सो सबै ब्रज बनिता बधि,
बधिक बहाय हाय भई कुल हाँसु री।
कारियै उपाय बाँस डारियै कटाय,
नाहिं उपजैगी बाँस नाहिं बाजे फेर बाँसुरी।
उपर्युक्त पद्यांश में 16, 15 पर यति का विधान तथा प्रत्येक चरण के अन्त में गुरु अक्षर का विधान है। अतः यहाँ कवित्त छन्द है।
दूसरा उदाहरण-
कोऊ भयो मुंडिया संन्यासी कोऊ जोगी भयो,
कोई ब्रह्मचारी कोऊ जाति अनुमानवो।
हिन्दू तुरक कोऊ राफजी इमाम शफी,
मानस की जात सवै एकै पहचानवो।
करता करीम सोई राजक रहीम आई,
दूसरो न भेद कोई भूल भ्रम मानवो।
एक ही की सेव सम ही को गुरुदेव एक,
एक ही सरूप सबै एकै जोति जानवो॥
5. सोरठा
लक्षण-सोरठा दोहा छन्द का उल्टा होता है। इस छन्द के विषम पादों (पहले और तीसरे चरण) में ग्यारह-ग्यारह तथा सम पादों में तेरह-तेरह मात्राएँ होती हैं।
विशेष-पहले और तीसरे चरण के अन्त में गुरु-लघु होते हैं तथा तुक भी मिलती है।
उदाहरण-
यहाँ विषम पादों में तेरह-तेरह तथा सम पादों में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ हैं। अतः यहाँ सोरठा छन्द है। दोहा छन्द को उलट कर लिख देने से सोरठा छन्द बन जाता है।
उदाहरण-
अन्य उदाहरण-
मूक होइ वाचाल, पंगु चढे गिरिवर गहन।
जासु कृपा सु दयाल, द्रवौ सकल कलिमल दहन।
बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न
प्रश्न 1.
‘सोरठा’ छंद के दूसरे चरण में कितनी मात्राएं होती हैं ?
उत्तर:
तेरह मात्राएं।
प्रश्न 2.
‘दोहा’ छंद के चौथे चरण के अंतर्गत कितनी मात्राएं होती हैं?
उत्तर:
ग्यारह मात्राएँ।
प्रश्न 3.
सोरठा छंद के तीसरे चरण में कितनी मात्राएं होती हैं ?
उत्तर:
ग्यारह मात्राएँ।
प्रश्न 4.
दोहा छंद में कितने चरण होते हैं ?
उत्तर:
चार चरण।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
छन्द में समावेश होता है
(क) वर्ण-मात्रा
(ख) यति-गति
(ग) लय
(घ) सभी का।
उत्तर:
(घ) सभी का
प्रश्न 2.
छन्द के कितने भेद होते हैं?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
(ख) दो
प्रश्न 3.
वार्णिक छन्द किस पर आधारित होते हैं?
(क) वर्गों पर
(ख) मात्राओं पर
(ग) पदों पर
(घ) दोहों पर।
उत्तर:
(क) वर्गों पर
प्रश्न 4.
मात्रिक छन्द आधारित होते हैं
(क) वर्गों पर
(ख) मात्राओं पर
(ग) अलंकार पर
(घ) पदों पर।
उत्तर:
(ख) मात्राओं पर
प्रश्न 5.
दोहा छन्द में मात्राएं होती हैं?
(क) 23
(ख) 24
(ग) 25
(घ) 32
उत्तर:
(ख) 24
प्रश्न 6.
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती हैं उसे कहते हैं
(क) दोहा
(ख) चौपाई
(ग) रोला
(घ) हरिगीतिक।
उत्तर:
(ख) चौपाई
प्रश्न 7.
सवैया छन्द के प्रत्येक चरण में वर्ण होते हैं
(क) 22 से 26
(ख) 23 से 25
(ग) 26 से 28
(घ) 22 से 28
उत्तर:
(क) 22 से 26
प्रश्न 8.
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में कुल 31 वर्ण होते हैं और 16, 15 पर यति होती हैं, उसे कहते हैं
(क) दोहा
(ख) सवैया
(ग) कवित्त
(घ) सोरठा।
उत्तर:
(ग) कवित्त
प्रश्न 9.
दोहा छन्द का उल्टा छन्द होता है
(क) चौपाई
(ख) सोरठा
(ग) चोहा
(घ) सवैया।
उत्तर:
(ख) सोरठा।