PSEB 12th Class History Solutions Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

अब्दुस समद स्वाँ 1713-26 ई० (Abdus Samad Khan 1713-26 A.D.)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद सिखों की दशा कैसी थी ? अब्दुस समद खाँ ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया ?
(What was the condition of the Sikhs after the martyrdom of Banda Singh Bahadur ? How did Abdus Samad Khan tackle the Sikhs ?)
अथवा
अब्दुस समद खाँ ने 1713-1716 तक सिखों की शक्ति कुचलने के लिए क्या कदम उठाए ?
(What steps were taken by Abdus Samad Khan to crush the powers of the Sikhs during 1713-1726 ?)
अथवा
अब्दुस समद खाँ के सिखों के साथ 1713 से 1726 तक कैसे संबंध थे ? (What were the relations of the Sikhs with Abdus Samad Khan during 1713 to 1726 ?)
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ को 1713 ई० में मुग़ल सम्राट फर्रुखसियर द्वारा लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया गया था। उसे इस उद्देश्य से इस पद पर नियुक्त किया गया था कि वह पंजाब में सिखों की शक्ति का पूर्णत: दमन कर दे। उसने बंदा सिंह बहादुर को बंदी बना लिया और उसे दिल्ली लाकर 1716 ई० में शहीद कर दिया। फर्रुखसियर अब्दुस समद खाँ की इस कार्यवाई से बहुत प्रसन्न हुआ। अब्दुस समद खाँ के सिखों के साथ संबंधों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—
1. फर्रुखसियर का आदेश (Farrukhsiyar Edict)-1716 ई० में मुग़ल सम्राट् फर्रुखसियर ने एक शाही आदेश जारी किया। इसमें मुग़ल अधिकारियों को यह आदेश दिया कि जो भी सिख तम्हारे हाथ लगे, उसकी हत्या कर दो। सिखों को सहायता अथवा शरण देने वालों को भी यही सज़ा दी जाए। यदि कोई व्यक्ति सिखों को बंदी बनाने में सरकार की सहायता करे तो उसे पुरस्कार दिया जाए।

2. अब्दुस समद खाँ द्वारा सिखों के विरुद्ध उठाए गए पग (Steps taken by Abdus Samad Khan against the Sikhs)—शाही आदेश के जारी होने के पश्चात् अब्दुस समद खाँ ने सिखों पर घोर अत्याचार आरंभ कर दिए। सैंकड़ों निर्दोष सिखों को प्रतिदिन बंदी बनाकर लाहौर लाया जाता। जल्लाद इन सिखों को घोर यातनाएँ देने के पश्चात् शहीद कर देते। अब्दुस समद खाँ की इस कठोर नीति से बचने के लिए बहुत-से सिखों ने लक्खी वन और शिवालिक पर्वत में जाकर शरण ली। इस प्रकार अपने शासनकाल के आरंभिक कुछ वर्षों में अब्दुस समद खाँ की सिखों के विरुद्ध दमनकारी नीति बहुत सफल रही। इससे प्रसन्न होकर फर्रुखसियर ने उसे ‘राज्य की तलवार’ की उपाधि से सम्मानित किया।

3. सिखों में फूट (Split among the Sikhs)—बंदा सिंह बहादुर के बलिदान के पश्चात् सिख परस्पर फूट का शिकार हो गए। वे तत्त खालसा और बंदई खालसा नामक दो मुख्य संप्रदायों में विभाजित हो गए। तत्त खालसा गुरु गोबिंद सिंह जी के धार्मिक सिद्धांतों के दृढ़ समर्थक थे। बंदई खालसा बंदा सिंह बहादुर को अपना नेता मानने लगे थे। तत्त खालसा वाले आपस में मिलते समय ‘वाहिगुरु जी का खालसा वाहिगुरु जी की फतह’ कहते थे जबकि बंदई खालसा ‘फतह धर्म और फतह दर्शन’ शब्दों का प्रयोग करते थे। तत्त खालसा वाले नीले रंग के वस्त्र धारण करते थे जबकि बंदई खालसा वाले लाल रंग के। दोनों संप्रदायों के बीच परस्पर मतभेद दिन प्रतिदिन बढ़ते गए। फलस्वरूप सिख अब्दुस समद खाँ के अत्याचारों का संगठित होकर सामना न कर पाए।

4. परिस्थितियों में परिवर्तन (Change in Circumstances)-1720 ई० के पश्चात् परिस्थितियों में कुछ परिवर्तन आए और सिखों की स्थिति में सुधार होने लगा। शाही दरबार षड्यंत्रों का अड्डा बन कर रह गया था। परिणामस्वरूप केंद्रीय सरकार सिखों की ओर अपना वाँछित ध्यान न दे पाई। पंजाब में अब्दुस समद खाँ भी ईसा खाँ और हुसैन खाँ के विद्रोहों का दमन करने में उलझ गया। भाई मनी सिंह जी ने बैसाखी के अवसर पर 1721 ई० में अमृतसर में तत्त खालसा और बंदई खालसा में परस्पर समझौता करवा दिया । परिणामस्वरूप सिख फिर से एक हो गए।

5. सिखों की कार्यवाहियाँ (Activities of the Sikhs) स्थिति में परिवर्तन आने से सिखों में एक नया जोश पैदा हुआ। उन्होंने सौ-सौ सिखों के जत्थे बना लिए और मुग़ल प्रदेशों में लूटपाट आरंभ कर दी। उन्होंने उन हिंदुओं और मुसलमानों को दंड देना आरंभ कर दिया था जिन्होंने सिखों, उनकी स्त्रियों और बच्चों को मुग़लों के सुपुर्द कर दिया था। अब्दुस समद खाँ ने सिखों को सबक सिखाने के लिए असलम खाँ के अधीन कुछ सेना अमृतसर भेजी। सिखों ने इस सेना पर अचानक आक्रमण करके उसे कड़ी पराजय दी। इस लड़ाई में असलम खाँ को लड़ाई का मैदान छोड़कर भागने के लिए विवश होना पड़ा।

6. अब्दुस समद खाँ की असफलता (Failure of Abdus Samad Khan)-अब्दुस समद खाँ अपने सभी प्रयासों के बावजूद सिखों का दमन करने में विफल रहा। इसके कई कारण थे। पहला, अब्दुस समद खाँ अब बूढ़ा होने लगा था। दूसरा, सिखों में परस्पर एकता स्थापित हो गई थी। तीसरा, अब्दुस समद खाँ को मुग़ल अधिकारियों के षड्यंत्रों का शिकार होना पड़ा। चौथा, उसे केंद्र से पर्याप्त सहायता न प्राप्त हुई। 1726 ई० में अब्दुस समद खाँ को पदच्युत कर दिया गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध 1
MARTYRDOM OF BHAI MANI SINGH JI

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

जकरिया रवाँ 1726-45 ई० (Zakariya Khan 1726-45 A.D.)

प्रश्न 2.
सिखों की शक्ति कुचलने के लिए जकरिया खाँ ने क्या पग उठाए ? उसके प्रयासों से उसे कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई ?
(What measures were adopted by Zakariya Khan to crush the powers of the Sikhs ? How far did he succeed in his efforts ?)
अथवा
जकरिया खाँ के राज्यकाल में सिखों के कत्लेआम का संक्षिप्त वर्णन करें। (Describe briefly the persecution of the Sikhs in the reign of Zakariya Khan.)
अथवा
जकरिया खाँ के सिखों के साथ संबंधों की चर्चा करें।
(Discuss the relations of Zakariya Khan with the Sikhs.)
अथवा
जकरिया खाँ के सिखों के साथ निपटने के लिए किस प्रकार के प्रयत्न किए ? (How did Zakariya Khan treat with the Sikhs ?)
अथवा
सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए जकरिया खाँ ने क्या कदम उठाए ? उसे अपने प्रयत्नों में किस प्रकार सफलता मिली ?
(What measures were adopted by Zakariya Khan to crush the power of the Sikhs ? How far did he succeed in his efforts ?)
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ के बाद उनका पुत्र जकरिया खाँ लाहौर का सूबेदार बना था। वह इस पद पर 1726 ई० से 1745 ई० तक रहा। जकरिया खाँ के शासनकाल तथा उसके सिखों के साथ संबंधों का वर्णन इस प्रकार है—
1. सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाइयाँ (Harsh measures against the Sikhs)—जकरिया खाँ ने पद संभालते ही सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए 20,000 सैनिकों को भर्ती किया। गाँवों के मुकद्दमों तथा चौधरियों को यह आदेश दिया गया कि वे सिखों को अपने क्षेत्र में शरणं न दें। जकरिया खाँ ने यह घोषणा की कि किसी सिख के संबंध में सूचना देने वाले को 10 रुपये, बंदी बनवाने वाले को 25 रुपए, बंदी बनाकर सरकार के सुपुर्द करने वाले को 50 रुपए और सिर काटकर सरकार को भेंट करने वाले को 100 रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा। इस प्रकार सिखों पर अत्याचारों का दौर पुनः आरंभ हो गया। सैंकड़ों सिखों को लाहौर के दिल्ली गेट में शहीद किया जाने लगा। इसके कारण इस स्थान का नाम ही ‘शहीद गंज’ पड़ गया।

2. भाई तारा सिंह जी वाँ का बलिदान (Martyrdom of Bhai Tara Singh Ji Van)-भाई तारा सिंह जी अमृतसर जिला के गाँव वाँ का निवासी था। उसने बंदा सिंह बहादुर की लड़ाइयों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नौशहरा का चौधरी साहिब राय सिखों के खेतों में अपने घोड़े छोड़ देता था। जब सिख इस बात पर आपत्ति उठाते तो वह सिखों का अपमान करता। भाई तारा सिंह जी वाँ के लिए यह बात असहनीय थी। एक दिन उसने साहिब राय की एक घोड़ी को पकड़कर बेच दिया और मिले हुए पैसों को लंगर के लिए दे दिया। इस पर सिखों को सबक सिखाने दे. लिए साहिब राय ने जकरिया खाँ से सहायता की माँग की तो जकरिया खाँ ने 2200 घुड़सवार सिखों के विरुद्ध भेजे। भाई तारा सिंह जी वाँ और उसके 22 साथी मुग़लों का सामना करते हुए शहीद हो गए। परंतु इससे पूर्व उन्होंने 300 मुगल सैनिकों को यमलोक पहुँचा दिया था। एस० एस० सीतल के शब्दों में,
“उस (तारा सिंह) के बलिदान का सिखों के दिलों पर गहरा प्रभाव पड़ा।”1

3. सिखों की जवाबी.कार्यवाइयाँ (Retaliatory measures of the Sikhs)-भाई तारा सिंह जी वाँ और उसके साथियों के बलिदान ने सिखों में एक नया जोश पैदा किया। उन्होंने गुरिल्ला युद्धों द्वारा सरकारी कोषों को लूटना आरंभ कर दिया। उन्होंने कई स्थानों पर आक्रमण करके सरकार के पिठुओं को मार डाला। जब जकरिया खाँ इन सिखों के विरुद्ध अपने सैनिकों को भेजता तो वे झट वनों और पहाड़ों में जा छुपते।

4. हैदरी ध्वज की घटना (Incident of Haidri Flag) जकरिया खाँ ने सिखों का अंत करने के लिए विवश होकर जेहाद का नारा लगाया। हजारों की संख्या में मुसलमान इनायत उल्ला खाँ के ध्वज तले एकत्रित हो गए। उन्हें ईद के शुभ दिन एक हैदरी ध्वज दिया गया और यह कहा गया कि इस ध्वज तले लड़ने वालों को अल्ला अवश्य विजय देगा। परंतु एक दिन लगभग 7 हज़ार सिखों ने इन गाज़ियों पर अचानक आक्रमण करके हज़ारों गाज़ियों की हत्या कर दी। इस घटना से सरकार की प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा।

5. जकरिया खाँ का सिखों से समझौता (Agreement of Zakariya Khan with the Sikhs) अब ज़करिया खाँ ने सिखों को प्रसन्न करने की नीति अपनाई। उसने 1733 ई० में घोषणा की कि यदि सिख सरकार विरोधी कार्यवाइयों को बंद कर दें तो उन्हें एक लाख रुपए वार्षिक आय वाली एक जागीर व उनके नेता को ‘नवाब’ की उपाधि दी जाएगी। पहले तो सिख इस समझौते के विरुद्ध थे, परंतु बाद में उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। सिखों ने नवाब की उपाधि सरदार कपूर सिंह फैज़लपुरिया को दी।

6. बुड्डा दल एवं तरुणा दल का गठन (Formation of Buddha Dal & Taruna Dal)-मुग़लों से समझौता हो जाने पर नवाब कपूर सिंह ने सिखों को यह संदेश भेजा कि वे पुन: अपने घरों में लौट आएं। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिखों की शक्ति दृढ़ करने के उद्देश्य से उन्हें दो जत्थों में संगठित कर दिया। ये जत्थे थेबुड्डा दल और तरुणा दल। बुड्डा दल में 40 वर्ष से बड़ी आयु के सिखों को शामिल किया गया तथा तरुणा दल में उससे कम आयु वाले सिखों को। तरुणा दल को आगे पाँच जत्थों में विभाजित किया गया था। बुड्डा दल धार्मिक स्थानों की देख-रेख करता था जबकि तरुणा दल शत्रुओं का सामना करता था।

7. मुग़लों और सिखों के बीच पुनः संघर्ष (Renewed Struggle between the Mughals and the. Sikhs)-अपनी शक्ति को संगठित करने के बाद सिखों ने अपनी सैनिक कार्यवाइयों को फिर से आरंभ कर दिया। उन्होंने शाही खजाने को लुटना आरंभ कर दिया था। अतः जकरिया खाँ ने क्रोधित होकर सिखों को दी गई जागीर को 1735 ई० में ज़ब्त कर लिया। सिखों के विरुद्ध पुनः कड़ी सैनिक कार्यवाई के आदेश दिए गए। परिणामस्वरूप. सिख वनों की ओर चले गए। इस अवसर का लाभ उठाकर मुग़लों ने हरिमंदिर साहिब पर अधिकार कर लिया।

8. भाई मनी सिंह जी का बलिदान (Martyrdom of Bhai Mani Singh Ji)-भाई मनी सिंह जी 1721 ई० से हरिमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी चले आ रहे थे। उन्होंने जकरिया खाँ को यह निवेदन किया कि यदि वह सिखों को दीवाली के अवसर पर हरिमंदिर साहिब आने की अनुमति दे तो वे 5,000 रुपए भेंट करेंगे। जकरिया खाँ ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। परंतु सिख अमृतसर में एकत्रित हो ही रहे थे, कि जकरिया खाँ के सैनिकों ने उन पर आक्रमण कर दिया और कई निर्दोष सिखों को शहीद कर दिया। फलस्वरूप हरिमंदिर साहिब में दीवाली का उत्सव न मनाया जा सका। जकरिया खाँ ने भाई मनी सिंह जी से 5,000 रुपए की माँग की। भाई मनी सिंह जी यह पैसा देने में असमर्थ रहे अतः उन्हें बंदी बनाकर लाहौर भेज दिया गया। भाई साहिब को इस्लाम ग्रहण करने को कहा गया, परंतु उन्होंने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप उन्हें 1738 ई० में निर्ममतापूर्वक शहीद कर दिया गया। इस घटना से सिखों में रोष की लहर दौड़ गई। प्रसिद्ध इतिहासकार खुशवंत सिंह के विचारानुसार,
“पवित्र एवं पूज्य योग मुख्य पुजारी (भाई मनी सिंह) के बलिदान के कारण सिख भड़क उठे।”2

9. सिखों का नादिरशाह को लूटना (Sikhs robbed Nadir Shah)-1739 ई० में नादिरशाह दिल्ली में भारी लूटपाट करके पंजाब से होता हुआ वापिस ईरान जा रहा था। जब सिखों को यह सूचना मिली तो उन्होंने आक्रमण करके उसका बहुत-सा खज़ाना लूट लिया। नादिरशाह ने जकरिया खाँ को यह चेतावनी दी कि शीघ्र ही सिख पंजाब के शासक होंगे।

10. जकरिया खाँ द्वारा सिखों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाइयाँ (Strong actions against the Sikhs by Zakariya Khan) नादिरशाह की चेतावनी का जकरियाँ खाँ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसने सिखों के विनाश के लिए अनेक पग उठाए। सिखों का पुनः प्रतिदिन बड़ी निर्दयता से शहीद किया जाने लगा। कुछ प्रमुख शहीदों का वर्णन इस प्रकार है

i) भाई बोता सिंह जी (Bhai Bota Singh Ji)—जकरियाँ खाँ ने असंख्य सिखों को शहीद करने के पश्चात् यह घोषणा की कि उसने सिखों का नामो-निशान मिटा दिया है। सिखों का अस्तित्व दर्शाने के लिए भाई बोता सिंह जी ने सराय नूरदीन में एक चौंकी स्थापित कर ली और वहाँ चुंगीकर लेना आरंभ कर दिया। जकरिया खाँ ने उसे गिरफ्तार करने के लिए कुछ सेना भेजी। भाई बोता सिंह जी शत्रुओं का डटकर सामना करते हुए शहीद हो गए।

ii) भाई मेहताब सिंह जी तथा भाई सुखा सिंह जी (Bhai Mehtab Singh Ji and Bhai Sukha Singh Ji) अमृतसर जिले के मंडियाला गाँव का चौधरी मस्सा रंघड़ हरिमंदिर साहिब की पवित्रता को भंग कर रहा था। इस कारण सिख उसे एक सबक सिखाना चाहते थे। एक दिन भाई मेहताब सिंह जी तथा भाई सखा सिंह जी कुछ बोरियों में पत्थर भर कर तथा ऊपर कुछ सिक्के रखकर हरिमंदिर साहिब पहुँच गए। सैनिकों द्वारा पूछने पर उन्होंने बताया कि वह लगान उगाह कर लाए हैं । मस्सा रंघड़ सिक्कों से भरी बोरियाँ देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। जैसे ही वह ये बोरियाँ लेने नीचे झुका उसी समय भाई मेहताब सिंह जी ने तलवार के एक ही वार से उसका सिर धड़ से अलग कर। बाद में मुग़लों ने भाई मेहताब सिंह जी तथा भाई सुखा सिंह जी को बंदी बनाकर 1740 ई० . में बड़ी निर्दयता से शहीद कर दिया गया।

iii) बाल हकीकत राय जी (Bal Haqiqat Rai Ji)—बाल हकीकत राय जी स्यालकोट का रहने वाला था। एक दिन कुछ मुसलमान लड़कों ने हिंदू देवी-देवताओं के विरुद्ध कुछ अपमानजनक शब्द कहे। बाल हकीकत राय जी यह सहन न कर सके। उसने हज़रत मुहम्मद साहिब के संबंध में कुछ अनुचित शब्द कहे। इस पर बाल .हकीकत राय जी पर मुकद्दमा चलाया गया तथा मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई। यह घटना 1742 ई० की है। इस घटना के कारण लोगों ने ज़ालिम मुग़ल शासन का अंत करने का प्रण लिया।

iv) भाई तारू सिंह जी (Bhai Taru Singh Ji)—भाई तारू सिंह जी माझा क्षेत्र के पूहला गाँव के निवासी थे। वह अपनी आय से अक्सर सिखों की सहायता करते थे। सरकार की दृष्टि में यह एक घोर अपराध था । जकरिया खाँ ने भाई तारू सिंह जी को लाहौर बुलाकर इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि वह किसी भी मूल्य पर सतगुरु की दी हुई पवित्र दात केशों को नहीं दे सकते। हाँ वह अपने केश अपनी खोपड़ी सहित उतरवा सकते हैं। इस पर जल्लादों ने भाई तारू सिंह की खोपड़ी उतार दी। यह घटना 1745 ई० की है। जब भाई साहिब जी की खोपड़ी उतारी जा रही थी तो वह जपुजी साहिब का पाठ कर रहे थे। इस अद्वितीय बलिदान ने सिखों में एक नया जोश उत्पन्न कर दिया।

11. जकरिया खाँ की मृत्यु (Death of Zakariya Khan) जकरिया खाँ ने निस्संदेह अपने शासन काल में सिखों पर घोर अत्याचार किए। वह अपने अथक प्रयत्नों के बावजूद सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा। जकरिया खाँ की 1 जुलाई, 1745 ई० को मृत्यु हो गई। पतवंत सिंह का यह कथन पूर्णतः ठीक है,
“किसी ने भी सिखों का इससे अधिक उत्साह के साथ दमन नहीं किया जितना कि जकरिया खाँ ने।”3

1. “The news of his martyrdom, deeply moved the feelings of the Sikhs.” S.S. Seetal, Rise of the Sikh Power in the Punjab (Ludhiana : 1982) p. 166. .
2. “The killing of the pious and venerable head priest caused deep resentment among the Sikhs.” . Khushwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1989) Vol. 1, p. 237.
3. “No one persecuted the Sikhs with greater zeal than Zakariya Khan.” Patwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1999) p. 83.
याहिया रवाँ 1746-47 ई० (Yahiya Khan 1746 – 47 A.D.)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

प्रश्न 3.
संक्षेप में अब्दुस समद खाँ तथा जकरिया खाँ के सिखों के साथ संबंधों की चर्चा करें।
(Briefly describe the relations of Abdus Samad Khan and Zakariya Khan with the Sikhs.)
उत्तर-
1. सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाइयाँ (Harsh measures against the Sikhs)—जकरिया खाँ ने पद संभालते ही सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए 20,000 सैनिकों को भर्ती किया। गाँवों के मुकद्दमों तथा चौधरियों को यह आदेश दिया गया कि वे सिखों को अपने क्षेत्र में शरणं न दें। जकरिया खाँ ने यह घोषणा की कि किसी सिख के संबंध में सूचना देने वाले को 10 रुपये, बंदी बनवाने वाले को 25 रुपए, बंदी बनाकर सरकार के सुपुर्द करने वाले को 50 रुपए और सिर काटकर सरकार को भेंट करने वाले को 100 रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा। इस प्रकार सिखों पर अत्याचारों का दौर पुनः आरंभ हो गया। सैंकड़ों सिखों को लाहौर के दिल्ली गेट में शहीद किया जाने लगा। इसके कारण इस स्थान का नाम ही ‘शहीद गंज’ पड़ गया।

2. भाई तारा सिंह जी वाँ का बलिदान (Martyrdom of Bhai Tara Singh Ji Van)-भाई तारा सिंह जी अमृतसर जिला के गाँव वाँ का निवासी था। उसने बंदा सिंह बहादुर की लड़ाइयों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नौशहरा का चौधरी साहिब राय सिखों के खेतों में अपने घोड़े छोड़ देता था। जब सिख इस बात पर आपत्ति उठाते तो वह सिखों का अपमान करता। भाई तारा सिंह जी वाँ के लिए यह बात असहनीय थी। एक दिन उसने साहिब राय की एक घोड़ी को पकड़कर बेच दिया और मिले हुए पैसों को लंगर के लिए दे दिया। इस पर सिखों को सबक सिखाने दे. लिए साहिब राय ने जकरिया खाँ से सहायता की माँग की तो जकरिया खाँ ने 2200 घुड़सवार सिखों के विरुद्ध भेजे। भाई तारा सिंह जी वाँ और उसके 22 साथी मुग़लों का सामना करते हुए शहीद हो गए। परंतु इससे पूर्व उन्होंने 300 मुगल सैनिकों को यमलोक पहुँचा दिया था। एस० एस० सीतल के शब्दों में,
“उस (तारा सिंह) के बलिदान का सिखों के दिलों पर गहरा प्रभाव पड़ा।”1

3. सिखों की जवाबी.कार्यवाइयाँ (Retaliatory measures of the Sikhs)-भाई तारा सिंह जी वाँ और उसके साथियों के बलिदान ने सिखों में एक नया जोश पैदा किया। उन्होंने गुरिल्ला युद्धों द्वारा सरकारी कोषों को लूटना आरंभ कर दिया। उन्होंने कई स्थानों पर आक्रमण करके सरकार के पिठुओं को मार डाला। जब जकरिया खाँ इन सिखों के विरुद्ध अपने सैनिकों को भेजता तो वे झट वनों और पहाड़ों में जा छुपते।

4. हैदरी ध्वज की घटना (Incident of Haidri Flag) जकरिया खाँ ने सिखों का अंत करने के लिए विवश होकर जेहाद का नारा लगाया। हजारों की संख्या में मुसलमान इनायत उल्ला खाँ के ध्वज तले एकत्रित हो गए। उन्हें ईद के शुभ दिन एक हैदरी ध्वज दिया गया और यह कहा गया कि इस ध्वज तले लड़ने वालों को अल्ला अवश्य विजय देगा। परंतु एक दिन लगभग 7 हज़ार सिखों ने इन गाज़ियों पर अचानक आक्रमण करके हज़ारों गाज़ियों की हत्या कर दी। इस घटना से सरकार की प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा।

5. जकरिया खाँ का सिखों से समझौता (Agreement of Zakariya Khan with the Sikhs) अब ज़करिया खाँ ने सिखों को प्रसन्न करने की नीति अपनाई। उसने 1733 ई० में घोषणा की कि यदि सिख सरकार विरोधी कार्यवाइयों को बंद कर दें तो उन्हें एक लाख रुपए वार्षिक आय वाली एक जागीर व उनके नेता को ‘नवाब’ की उपाधि दी जाएगी। पहले तो सिख इस समझौते के विरुद्ध थे, परंतु बाद में उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। सिखों ने नवाब की उपाधि सरदार कपूर सिंह फैज़लपुरिया को दी।

6. बुड्डा दल एवं तरुणा दल का गठन (Formation of Buddha Dal & Taruna Dal)-मुग़लों से समझौता हो जाने पर नवाब कपूर सिंह ने सिखों को यह संदेश भेजा कि वे पुन: अपने घरों में लौट आएं। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिखों की शक्ति दृढ़ करने के उद्देश्य से उन्हें दो जत्थों में संगठित कर दिया। ये जत्थे थेबुड्डा दल और तरुणा दल। बुड्डा दल में 40 वर्ष से बड़ी आयु के सिखों को शामिल किया गया तथा तरुणा दल में उससे कम आयु वाले सिखों को। तरुणा दल को आगे पाँच जत्थों में विभाजित किया गया था। बुड्डा दल धार्मिक स्थानों की देख-रेख करता था जबकि तरुणा दल शत्रुओं का सामना करता था।

7. मुग़लों और सिखों के बीच पुनः संघर्ष (Renewed Struggle between the Mughals and the. Sikhs)-अपनी शक्ति को संगठित करने के बाद सिखों ने अपनी सैनिक कार्यवाइयों को फिर से आरंभ कर दिया। उन्होंने शाही खजाने को लुटना आरंभ कर दिया था। अतः जकरिया खाँ ने क्रोधित होकर सिखों को दी गई जागीर को 1735 ई० में ज़ब्त कर लिया। सिखों के विरुद्ध पुनः कड़ी सैनिक कार्यवाई के आदेश दिए गए। परिणामस्वरूप. सिख वनों की ओर चले गए। इस अवसर का लाभ उठाकर मुग़लों ने हरिमंदिर साहिब पर अधिकार कर लिया।

8. भाई मनी सिंह जी का बलिदान (Martyrdom of Bhai Mani Singh Ji)-भाई मनी सिंह जी 1721 ई० से हरिमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी चले आ रहे थे। उन्होंने जकरिया खाँ को यह निवेदन किया कि यदि वह सिखों को दीवाली के अवसर पर हरिमंदिर साहिब आने की अनुमति दे तो वे 5,000 रुपए भेंट करेंगे। जकरिया खाँ ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। परंतु सिख अमृतसर में एकत्रित हो ही रहे थे, कि जकरिया खाँ के सैनिकों ने उन पर आक्रमण कर दिया और कई निर्दोष सिखों को शहीद कर दिया। फलस्वरूप हरिमंदिर साहिब में दीवाली का उत्सव न मनाया जा सका। जकरिया खाँ ने भाई मनी सिंह जी से 5,000 रुपए की माँग की। भाई मनी सिंह जी यह पैसा देने में असमर्थ रहे अतः उन्हें बंदी बनाकर लाहौर भेज दिया गया। भाई साहिब को इस्लाम ग्रहण करने को कहा गया, परंतु उन्होंने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप उन्हें 1738 ई० में निर्ममतापूर्वक शहीद कर दिया गया। इस घटना से सिखों में रोष की लहर दौड़ गई। प्रसिद्ध इतिहासकार खुशवंत सिंह के विचारानुसार,
“पवित्र एवं पूज्य योग मुख्य पुजारी (भाई मनी सिंह) के बलिदान के कारण सिख भड़क उठे।”2

9. सिखों का नादिरशाह को लूटना (Sikhs robbed Nadir Shah)-1739 ई० में नादिरशाह दिल्ली में भारी लूटपाट करके पंजाब से होता हुआ वापिस ईरान जा रहा था। जब सिखों को यह सूचना मिली तो उन्होंने आक्रमण करके उसका बहुत-सा खज़ाना लूट लिया। नादिरशाह ने जकरिया खाँ को यह चेतावनी दी कि शीघ्र ही सिख पंजाब के शासक होंगे।

10. जकरिया खाँ द्वारा सिखों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाइयाँ (Strong actions against the Sikhs by Zakariya Khan) नादिरशाह की चेतावनी का जकरियाँ खाँ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसने सिखों के विनाश के लिए अनेक पग उठाए। सिखों का पुनः प्रतिदिन बड़ी निर्दयता से शहीद किया जाने लगा। कुछ प्रमुख शहीदों का वर्णन इस प्रकार है

i) भाई बोता सिंह जी (Bhai Bota Singh Ji)—जकरियाँ खाँ ने असंख्य सिखों को शहीद करने के पश्चात् यह घोषणा की कि उसने सिखों का नामो-निशान मिटा दिया है। सिखों का अस्तित्व दर्शाने के लिए भाई बोता सिंह जी ने सराय नूरदीन में एक चौंकी स्थापित कर ली और वहाँ चुंगीकर लेना आरंभ कर दिया। जकरिया खाँ ने उसे गिरफ्तार करने के लिए कुछ सेना भेजी। भाई बोता सिंह जी शत्रुओं का डटकर सामना करते हुए शहीद हो गए।

ii) भाई मेहताब सिंह जी तथा भाई सुखा सिंह जी (Bhai Mehtab Singh Ji and Bhai Sukha Singh Ji) अमृतसर जिले के मंडियाला गाँव का चौधरी मस्सा रंघड़ हरिमंदिर साहिब की पवित्रता को भंग कर रहा था। इस कारण सिख उसे एक सबक सिखाना चाहते थे। एक दिन भाई मेहताब सिंह जी तथा भाई सखा सिंह जी कुछ बोरियों में पत्थर भर कर तथा ऊपर कुछ सिक्के रखकर हरिमंदिर साहिब पहुँच गए। सैनिकों द्वारा पूछने पर उन्होंने बताया कि वह लगान उगाह कर लाए हैं । मस्सा रंघड़ सिक्कों से भरी बोरियाँ देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। जैसे ही वह ये बोरियाँ लेने नीचे झुका उसी समय भाई मेहताब सिंह जी ने तलवार के एक ही वार से उसका सिर धड़ से अलग कर। बाद में मुग़लों ने भाई मेहताब सिंह जी तथा भाई सुखा सिंह जी को बंदी बनाकर 1740 ई० . में बड़ी निर्दयता से शहीद कर दिया गया।

iii) बाल हकीकत राय जी (Bal Haqiqat Rai Ji)—बाल हकीकत राय जी स्यालकोट का रहने वाला था। एक दिन कुछ मुसलमान लड़कों ने हिंदू देवी-देवताओं के विरुद्ध कुछ अपमानजनक शब्द कहे। बाल हकीकत राय जी यह सहन न कर सके। उसने हज़रत मुहम्मद साहिब के संबंध में कुछ अनुचित शब्द कहे। इस पर बाल .हकीकत राय जी पर मुकद्दमा चलाया गया तथा मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई। यह घटना 1742 ई० की है। इस घटना के कारण लोगों ने ज़ालिम मुग़ल शासन का अंत करने का प्रण लिया।

iv) भाई तारू सिंह जी (Bhai Taru Singh Ji)—भाई तारू सिंह जी माझा क्षेत्र के पूहला गाँव के निवासी थे। वह अपनी आय से अक्सर सिखों की सहायता करते थे। सरकार की दृष्टि में यह एक घोर अपराध था । जकरिया खाँ ने भाई तारू सिंह जी को लाहौर बुलाकर इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि वह किसी भी मूल्य पर सतगुरु की दी हुई पवित्र दात केशों को नहीं दे सकते। हाँ वह अपने केश अपनी खोपड़ी सहित उतरवा सकते हैं। इस पर जल्लादों ने भाई तारू सिंह की खोपड़ी उतार दी। यह घटना 1745 ई० की है। जब भाई साहिब जी की खोपड़ी उतारी जा रही थी तो वह जपुजी साहिब का पाठ कर रहे थे। इस अद्वितीय बलिदान ने सिखों में एक नया जोश उत्पन्न कर दिया।

11. जकरिया खाँ की मृत्यु (Death of Zakariya Khan) जकरिया खाँ ने निस्संदेह अपने शासन काल में सिखों पर घोर अत्याचार किए। वह अपने अथक प्रयत्नों के बावजूद सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा। जकरिया खाँ की 1 जुलाई, 1745 ई० को मृत्यु हो गई। पतवंत सिंह का यह कथन पूर्णतः ठीक है,
“किसी ने भी सिखों का इससे अधिक उत्साह के साथ दमन नहीं किया जितना कि जकरिया खाँ ने।”3

1. “The news of his martyrdom, deeply moved the feelings of the Sikhs.” S.S. Seetal, Rise of the Sikh Power in the Punjab (Ludhiana : 1982) p. 166. .
2. “The killing of the pious and venerable head priest caused deep resentment among the Sikhs.” . Khushwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1989) Vol. 1, p. 237.
3. “No one persecuted the Sikhs with greater zeal than Zakariya Khan.” Patwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1999) p. 83.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

याहिया रवाँ 1746-47 ई० (Yahiya Khan 1746 – 47 A.D.)

प्रश्न 4.
याहिया खाँ ने सिखों की ताकत को कुचलने के लिए क्या कदम उठाए ? (What steps were taken by Yahiya Khan to crush the power of the Sikhs ?)
उत्तर-
ज़करिया खाँ की मृत्यु के बाद याहिया खाँ दिल्ली के वज़ीर कमरुद्दीन के सहयोग से 1746 ई० में लाहौर का सूबेदार बना। वह 1747 ई० तक इस पद पर रहा। सिखों पर अत्याचार करने के लिए वह अपने पिता ज़करिया खाँ से एक कदम आगे था। उसके सिखों के साथ संबंधों का वर्णन इस प्रकार है—
1. सिखों की गतिविधियाँ (Activities of the Sikhs)-ज़करिया खाँ की मृत्यु का लाभ उठाकर सिखों ने अपनी शक्ति को संगठित कर लिया था। उन्होंने पंजाब के कई गाँवों में चौधरियों तथा मुकद्दमों की सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के कारण हत्या कर दी थी। इसके अतिरिक्त सिख पंजाब के कई क्षेत्रों में खूब लूटपाट करते थे।

2. जसपत राय की मृत्यु (Death of Jaspat Rai)-1746 ई० में सिखों के एक जत्थे ने गोंदलावाला गाँव से बहुत-सी भेड़-बकरियों को पकड़ लिया। लोगों की शिकायत पर जसपत राय ने सिखों को ये भेड़-बकरियाँ लौटाने का आदेश दिया। सिखों के इंकार करने पर उसने सिखों पर आक्रमण कर दिया। लड़ाई के दौरान जसपत राय मारा गया। इस कारण मुग़ल सेना में भगदड़ मच गई।

3. लखपत राय की सिखों के विरुद्ध कार्यवाही (Actions of Lakhpat Rai against the Sikhs)जसपत राय की मृत्यु का समाचार पाकर उसका भाई दीवान लखपत राय आग-बबूला हो गया। उसने यह प्रण किया कि वह सिखों का नामो-निशान मिटा कर ही दम लेगा। याहिया खाँ ने सिखों को उनके धर्म-ग्रंथों को पढने पर प्रतिबंध लगा दिया। उसने गुरु शब्द के प्रयोग पर रोक लगा दी। इस उद्देश्य से उसने गुड़ के स्थान पर लोगों को रोड़ी शब्द का प्रयोग करने के लिए कहा, क्योंकि गुड़ शब्द की आवाज़ गुरु के साथ मिलती-जुलती थी। इसी प्रकार ग्रंथ के स्थान पर पोथी शब्द का प्रयोग करने का आदेश दिया गया। इन आदेशों का उल्लंघन करने वालों को मृत्यु दंड दिया जाता था। उसने बहुत-से सिखों को बंदी बनाया और उनको लाहौर लाकर शहीद कर दिया।

4. पहला घल्लूघारा (First Holocaust)-1746 ई० में याहिया खाँ और लखपत राय के नेतृत्व में मग़ल सेना ने लगभग 15,000 सिखों को काहनूवान में घेर लिया। सिख बसोली की पहाड़ियों की ओर चले गए। मुग़ल सैनिकों ने उनका पीछा किया। सिख भारी संकट में फंस गए। एक ओर ऊँची पहाड़ियाँ थीं और दूसरी ओर रावी नदी में बाढ़ आई हुई थी। पीछे मुग़ल सैनिक उनका पीछा कर रहे थे। इस आक्रमण में 7,000 सिख शहीद हो गए और 3,000 सिखों को बंदी बना लिया गया। सिखों के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब सिखों की एक बार में ही इतनी भारी प्राण-हानि हुई। इस दर्दनाक घटना को सिख इतिहास में पहला अथवा छोटा घल्लूघारा के नाम से याद किया जाता है। गुरबख्श सिंह का यह कहना पूर्णतः ठीक है,
“1746 के इस विनाशकारी झटके ने सिखों के इस विश्वास को और बल प्रदान किया कि वे अत्याचारियों का सर्वनाश करें।”4

5. याहिया खाँ का पतन (Fall of Yahiya Khan)-नवंबर, 1746 ई० में याहिया खाँ के छोटे भाई शाहनवाज़ खाँ ने विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह चार मास तक रहा। इस विद्रोह के अंत में शाहनवाज़ खाँ सफल रहा और उसने 17 मार्च, 1747 ई० को याहिया खाँ को कारावास में डाल दिया। इस प्रकार उसके अत्याचारों का अंत हुआ।

4. “This devastating blow to the Sikhs in 1746 made them more determined than ever to put an end to the genocide.” Gurbakhsh Singh, The Sikh Faith : A Universal Message (Amritsar : 1997) p. 93.

प्रश्न 5.
1726-1746 तक जकरिया खाँ तथा याहिया खाँ ने सिखों की ताकत कुचलने के लिए क्या कदम उठाए ?
(What steps were taken by Zakariya Khan and Yahiya Khan from 1726-1746 in order to crush the power of the Sikhs ?)
अथवा
ज़करिया खाँ तथा याहिया खाँ के अधीन सिखों पर किए गए अत्याचारों का वर्णन करें।
(Describe the persecution of the Sikhs during the rule of Zakariya Khan and Yahiya Khan.)
उत्तर-
ज़करिया खाँ की मृत्यु के बाद याहिया खाँ दिल्ली के वज़ीर कमरुद्दीन के सहयोग से 1746 ई० में लाहौर का सूबेदार बना। वह 1747 ई० तक इस पद पर रहा। सिखों पर अत्याचार करने के लिए वह अपने पिता ज़करिया खाँ से एक कदम आगे था। उसके सिखों के साथ संबंधों का वर्णन इस प्रकार है—
1. सिखों की गतिविधियाँ (Activities of the Sikhs)-ज़करिया खाँ की मृत्यु का लाभ उठाकर सिखों ने अपनी शक्ति को संगठित कर लिया था। उन्होंने पंजाब के कई गाँवों में चौधरियों तथा मुकद्दमों की सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के कारण हत्या कर दी थी। इसके अतिरिक्त सिख पंजाब के कई क्षेत्रों में खूब लूटपाट करते थे।

2. जसपत राय की मृत्यु (Death of Jaspat Rai)-1746 ई० में सिखों के एक जत्थे ने गोंदलावाला गाँव से बहुत-सी भेड़-बकरियों को पकड़ लिया। लोगों की शिकायत पर जसपत राय ने सिखों को ये भेड़-बकरियाँ लौटाने का आदेश दिया। सिखों के इंकार करने पर उसने सिखों पर आक्रमण कर दिया। लड़ाई के दौरान जसपत राय मारा गया। इस कारण मुग़ल सेना में भगदड़ मच गई।

3. लखपत राय की सिखों के विरुद्ध कार्यवाही (Actions of Lakhpat Rai against the Sikhs)जसपत राय की मृत्यु का समाचार पाकर उसका भाई दीवान लखपत राय आग-बबूला हो गया। उसने यह प्रण किया कि वह सिखों का नामो-निशान मिटा कर ही दम लेगा। याहिया खाँ ने सिखों को उनके धर्म-ग्रंथों को पढने पर प्रतिबंध लगा दिया। उसने गुरु शब्द के प्रयोग पर रोक लगा दी। इस उद्देश्य से उसने गुड़ के स्थान पर लोगों को रोड़ी शब्द का प्रयोग करने के लिए कहा, क्योंकि गुड़ शब्द की आवाज़ गुरु के साथ मिलती-जुलती थी। इसी प्रकार ग्रंथ के स्थान पर पोथी शब्द का प्रयोग करने का आदेश दिया गया। इन आदेशों का उल्लंघन करने वालों को मृत्यु दंड दिया जाता था। उसने बहुत-से सिखों को बंदी बनाया और उनको लाहौर लाकर शहीद कर दिया।

4. पहला घल्लूघारा (First Holocaust)-1746 ई० में याहिया खाँ और लखपत राय के नेतृत्व में मग़ल सेना ने लगभग 15,000 सिखों को काहनूवान में घेर लिया। सिख बसोली की पहाड़ियों की ओर चले गए। मुग़ल सैनिकों ने उनका पीछा किया। सिख भारी संकट में फंस गए। एक ओर ऊँची पहाड़ियाँ थीं और दूसरी ओर रावी नदी में बाढ़ आई हुई थी। पीछे मुग़ल सैनिक उनका पीछा कर रहे थे। इस आक्रमण में 7,000 सिख शहीद हो गए और 3,000 सिखों को बंदी बना लिया गया। सिखों के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब सिखों की एक बार में ही इतनी भारी प्राण-हानि हुई। इस दर्दनाक घटना को सिख इतिहास में पहला अथवा छोटा घल्लूघारा के नाम से याद किया जाता है। गुरबख्श सिंह का यह कहना पूर्णतः ठीक है,
“1746 के इस विनाशकारी झटके ने सिखों के इस विश्वास को और बल प्रदान किया कि वे अत्याचारियों का सर्वनाश करें।”4

5. याहिया खाँ का पतन (Fall of Yahiya Khan)-नवंबर, 1746 ई० में याहिया खाँ के छोटे भाई शाहनवाज़ खाँ ने विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह चार मास तक रहा। इस विद्रोह के अंत में शाहनवाज़ खाँ सफल रहा और उसने 17 मार्च, 1747 ई० को याहिया खाँ को कारावास में डाल दिया। इस प्रकार उसके अत्याचारों का अंत हुआ।

4. “This devastating blow to the Sikhs in 1746 made them more determined than ever to put an end to the genocide.” Gurbakhsh Singh, The Sikh Faith : A Universal Message (Amritsar : 1997) p. 93.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

प्रश्न 6.
1716 ई० से 1747 ई० तक सिखों के कत्लेआम का संक्षिप्त वर्णन करें। (Explain in brief the persecution of the Sikhs during 1716 to 1747 A.D.)
अथवा
1716-1747 के समय दौरान मुग़ल गवर्नरों ने सिखों को कुचलने के लिए क्या प्रयास किया ? मुगल गवर्नर सिखों को कुचलने में क्यों असफल रहे ?
(What steps did the Mughal Governors take to crush the Sikhs between 1716-1747 ? Why did the Mughal Governors fail to suppress the Sikhs ?)
नोट-
उत्तर के लिए विद्यार्थी प्रश्न नं० 1, 2 एवं 4 का उत्तर देखें।

मीर मन्नू 1748-53 ई०. (Mir Mannu 1748-53 A.D.)

प्रश्न 7.
मीर मन्नू के अधीन सिखों पर किए गए अत्याचारों का वर्णन कीजिए। उसकी विफलता के कारण भी बताएँ।
(Discuss the persecution of the Sikhs under Mir Mannu. Explain the causes of his failure also.)
अथवा
मीर मन्नू के सिखों के साथ कैसे संबंध थे ? वह अपने उद्देश्य को पूर्ण करने में क्यों विफल रहा ? (Describe Mir Mannu’s relations with the Sikhs. Why did he fail to achieve his objective ?)
अथवा
मीर मन्नू कौन था ? सिखों को कुचलने में उसकी विफलता के क्या कारण थे ? (Who was Mir Mannu ? What were the causes of his failure to crush the Sikhs ?)
अथवा
मीर मन्नू के सिखों के साथ संबंधों की चर्चा कीजिए। (Describe the relations Mir Mannu had with the Sikhs.)
अथवा
मुईन-उल-मुल्क (मीर मन्नू) के जीवन और सफलताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the career and achievements of Muin-Ul-Mulk (Mir Mannu)).
अथवा
मीर मन्नू ने सिखों के साथ निपटने के लिए क्या प्रयत्न किए? (What was the strategy of Mir Mannu to fight against the sikhs ?)
उत्तर-
मीर मन्नू मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला के वज़ीर कमरुद्दीन का पुत्र था। वह मुईन-उल-मुल्क के नाम से भी जाना जाता था। वह एक वीर, अनुशासित तथा योग्य राजनीतिज्ञ था। मीर मन्नू के इन्हीं गुणों के कारण उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया गया था। वह 1748 ई० से 1753 ई० तक पंजाब का सूबेदार रहा। हरबंस सिंह के अनुसार, “मीर मन्नू अपने पूर्व-अधिकारियों से अधिक सिखों का कट्टर शत्रु सिद्ध हुआ।”5
1. मीर मन्न की मश्किलें (Difficulties of Mir Mannu) मीर मन्न जब पंजाब का सूबेदार बना तब उसके सामने पहाड़ सी मुश्किलें थीं। सिंहासन की प्राप्ति के लिए याहिया खाँ और शाहनवाज खाँ के बीच संघर्ष के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई थी। अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण ने पंजाब की राजनीतिक स्थिति को जटिल बना दिया था। सिखों ने अपनी लूटपाट की कार्यवाइयाँ तेज़ कर दी थीं। राज्यकोष लगभग रिक्त पड़ा था। मीर मन्नू ने इन मुश्किलों पर नियंत्रण करने के लिए विशेष पग उठाने का निर्णय लिया।

2. सिखों के विरुद्ध कार्यवाई (Action against the Sikhs)-मीर मन्नू ने सर्वप्रथम अपना ध्यान सिखों की ओर लगाया। उसने सिखों का विनाश करने के लिए पंजाब के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में अपनी सेना भेजी। उसने जालंधर के फ़ौजदार अदीना बेग को सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने के आदेश दिए। सिखों को प्रतिदिन बंदी बनाया जाने लगा। अदीना बेग और सिखों में हुई एक लड़ाई में 600 सिख शहीद हो गए। फलस्वरूप सिखों ने वनों में शरण ली।

3. रामरौणी दुर्ग का घेरा (Siege of Ramrauni Fort)-सिख अक्तूबर, 1748 ई० में दीवाली के अवसर पर अमृतसर में एकत्रित हुए। जब मीर मन्नू को यह समाचार मिला तो वह एक विशाल सेना के साथ अमृतसर की ओर बढ़ा। सिखों ने रामरौणी दुर्ग में जाकर शरण ली। मीर मन्नू ने रामरौणी दुर्ग को घेर लिया। यह घेरा चार माह तक जारी रहा। ऐसे समय में जस्सा सिंह रामगढ़िया अपने सैनिकों सहित सिखों की सहायता के लिए पहुँचा। इसी समय मीर मन्नू को यह सूचना मिली कि अहमदशाह अब्दाली पंजाब पर आक्रमण करने वाला है। फलस्वरूप मीर मन्नू ने सिखों के साथ समझौता कर लिया और घेरा उठा लिया। समझौते के अनुसार मीर मन्नू ने सिखों को पट्टी में एक जागीर दी ताकि वे शाँति से रहें।

4. अब्दाली का दूसरा आक्रमण (Second Invasion of Abdali)-अहमदशाह अब्दाली ने दिसंबर, 1748 ई० में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। मीर मन्नू ने बुद्धिमानी से काम लेते हुए अब्दाली से समझौता कर लिया। इसके अनुसार मीर मन्नू ने सियालकोट, गुजरात, पसरूर और औरंगाबाद का लगान अब्दाली को देना मान लिया। यह लगान 14 लाख रुपए वार्षिक था।

5. नासिर खाँ एवं शाह नवाज़ खाँ के विद्रोह (Revolts of Nasir Khan and Shah Nawaz Khan)दिल्ली के वज़ीर सफदरजंग के भड़काने पर फ़ौजदार नासिर खाँ तथा मुलतान के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ ने मीर मन्नू के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। शाहनवाज़ खाँ ने सिखों को भी लाहौर में अशांति फैलाने के लिए उकसाया। मीर मन्नू ने कौड़ा मल को शाहनवाज़ खाँ के विद्रोह का दमन करने के लिए भेजा। इस लड़ाई में शाहनवाज़ खाँ मारा गया।

6. अब्दाली का तीसरा आक्रमण (Third Invasion of Abdali)-अब्दाली ने 1751 ई० के अंत में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण कर दिया। 6 मार्च, 1752 ई० में अहमदशाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच लाहौर के निकट बड़ा घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मीर मन्नू को बंदी बना लिया गया। इस प्रकार अहमदशाह अब्दाली का 1752 ई० में पंजाब पर अधिकार हो गया। अहमदशाह अब्दाली ने मीर मन्नू को ही पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया और उसे सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का आदेश दिया।

7. सिखों पर पुनः अत्याचार (Renewal of Sikh Persecution)—मीर मन्नू ने सिखों का सर्वनाश करने के लिए बड़े जोरदार प्रयास आरंभ कर दिए। सिखों के सिरों के मूल्य निश्चित किए गए। सिखों को शरण देने वालों को कठोर दंड दिए गए। मार्च, 1753 ई० में जब सिख होला मोहल्ला के अवसर पर माखोवाल में एकत्रित हुए थे तो अदीना बेग ने अचानक आक्रमण करके बहुत-से सिखों की हत्या कर दी। सिख स्त्रियों और बच्चों को बंदी बनाकर लाहौर ले जाया गया। इन स्त्रियों और बच्चों पर जो अत्याचार किए गए, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। प्रत्येक स्त्री को सवा-सवा मन अनाज प्रतिदिन पीसने के लिए दिया जाता। छोटे बच्चों को उनकी माताओं से छीनकर उनके सामने हत्या की जाती। इन घोर अत्याचारों के बावजूद सिखों की संख्या कम होने की अपेक्षा बढ़ती चली गई। उस समय यह लोकोक्ति बहुत प्रचलित थी
“मन्नू असाडी दातरी, असीं मन्नू दे सोए।
ज्यों-ज्यों मन्नू वड्दा, असीं दून सवाए होए।”

8. मीर मन्नू की मृत्यु (Death of Mir Mannu)-3 नवंबर, 1753 ई० को मीर मन्नू को यह सूचना मिली कि कुछ सिख तिलकपुर में एक गन्ने के खेत में छुपे हुए हैं। वह तुरंत सिखों का अंत करने के लिए अपने घोड़े पर सवार होकर वहाँ पहुँच गया। वहाँ पर सिखों द्वारा चलाई गई गोलियों के कारण उसका घोड़ा घबरा गया। उसने मीर मन्नू को नीचे गिरा दिया, परंतु उसका एक पाँव घोड़े की रकाब में फंस गया। घोड़ा उसी प्रकार मीर मन्नू को घसीटता गया जिसके कारण मीर मन्नू की मृत्यु हो गई। इस प्रकार प्रकृति ने मीर मन्नू से उसके अत्याचारों का प्रतिशोध ले लिया। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर एन० के० सिन्हा ने ठीक लिखा है,

“अप्रत्यक्ष रूप में मीर मन्नू सिखों की शक्ति बढ़ाने के लिए उत्तरदायी था।”6
1. दल खालसा का संगठन (Organisation of the Dal Khalsa)-मीर मन्नू की विफलता का एक महत्त्वपूर्ण कारण दल खालसा का संगठन था। सिखों ने मीर मन्नू के अत्याचारों का डटकर सामना करने के लिए स्वयं को 12 जत्थों में संगठित कर लिया था। सिख दल खालसा का अत्यधिक सम्मान करते थे और इसके आदेश पर कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार रहते थे। परिणामस्वरूप मीर मन्नू के लिए सिखों का दमन करना कठिन हो गया।

2. सिखों के असाधारण गुण (Uncommon qualities of the Sikhs)–सिखों में अपने धर्म के लिए दृढ़ निश्चय, अपार जोश और असीमित बलिदान की भावनाएँ थीं। वे अत्यधिक मुश्किलों की घड़ी में भी अपने धैर्य का त्याग नहीं करते थे। मीर मन्नू ने सिखों पर असीमित अत्याचार किए, परंतु वह सिखों को विचलित करने में असफल रहा। अतः सिखों के इन असाधारण गुणों के कारण भी मीर मन्नू विफल रहा।

3. सिखों की गुरिल्ला युद्ध नीति (Guerilla tactics of the Sikhs)-सिखों ने मुग़ल सेना के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई अर्थात् सिखों को जब अवसर मिलता, वे मुग़ल सेना पर आक्रमण करते और लूटपाट करने के बाद पुनः वनों में जाकर शरण ले लेते। अतः आमने-सामने की टक्कर के अभाव में मीर मन्नू सिखों की शक्ति का दमन करने में विफल रहा।

4. दीवान कौड़ा मल्ल का सिखों से सहयोग (Cooperation of Diwan Kaura Mal with the Sikhs) दीवान कौड़ा मल्ल मीर मन्न का प्रमुख परामर्शदाता था। सहजधारी सिख होने के कारण वह सिखों से सहानुभूति रखता था। मीर मन्नू उसके परामर्श के बिना सिखों के विरुद्ध कोई कार्यवाई नहीं करता था। जब भी मीर मन्नू ने सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का निर्णय किया तो दीवान कौड़ा मल्ल उसे सिखों से समझौता करने के लिए मना लेता था। अतः दीवान कौड़ा मल्ल का सहयोग भी सिख शक्ति को बचाए रखने में बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ।

5. अदीना बेग की दोहरी नीति (Dual Policy of Adina Beg)—अदीना बेग जालंधर दोआब का फ़ौजदार था। वह मीर मन्नू के बाद पंजाब का सूबेदार बनना चाहता था। मीर मन्नू ने जब भी उसे सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का आदेश दिया तो उसने इसका पालन नहीं किया। वह पंजाब में अशांति के माहौल को बनाए रखना चाहता था। अतः अदीना बेग की दोहरी नीति भी मीर मन्नू की विफलता का कारण बनी।

6. मीर मन्नू की समस्याएँ (Problems of Mir Mannu)-अपने शासनकाल के दौरान कई समस्याओं से घिरा रहने के कारण भी मीर मन्नू सिखों का पूर्ण दमन करने में विफल रहा। उसकी पहली बड़ी समस्या अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण थे। इन आक्रमणों के कारण उसे सिखों के विरुद्ध कार्यवाई स्थगित करनी पड़ती थी। दूसरा, दिल्ली का वज़ीर सफदरजंग भी उसे पदच्युत करने के लिए षड्यंत्र रचता रहता था। उसके कहने पर ही नासिर खाँ और शाह नवाज़ खाँ ने मीर मन्नू के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। फलस्वरूप मीर मन्नू इन समस्याओं से जूझने में ही व्यस्त रहा।

5. “Mir Mannu proved a worse foe of the Sikhs than his predecessors.” Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (New Delhi : 1983) p. 134.
6. “Indirectly, Mir Mannu was responsible for the growth of the power of the Sikhs.” Dr. N.K. Sinha, Rise of the Sikh Power (Calcutta : 1973) p. 19.

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मीर मन्न की विफलता के कारण (Causes of the Failure of Mir Mannu)

प्रश्न 8.
मीर मन्नू की सिखों के विरुद्ध असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the main reasons of the failure of Mir Mannu against the Sikhs ?)
अथवा
मीर मन्नू सिखों को कुचलने में क्यों असफल रहा ?
(Why did Mir Mannu fail to crush the Sikhs ?)
अथवा
मीर मन्नू की असफलता के कारणों की व्याख्या करें।
(Explain the causes of failure of Mir Mannu.) :
उत्तर-
मीर मन्नू ने सिखों का अंत करने के लिए अथक प्रयास किए, परंतु इसके बावजूद वह सिखों का दमन करने में विफल रहा। उसकी विफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. दल खालसा का संगठन (Organisation of the Dal Khalsa)-मीर मन्नू की विफलता का एक महत्त्वपूर्ण कारण दल खालसा का संगठन था। सिखों ने मीर मन्नू के अत्याचारों का डटकर सामना करने के लिए स्वयं को 12 जत्थों में संगठित कर लिया था। सिख दल खालसा का अत्यधिक सम्मान करते थे और इसके आदेश पर कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार रहते थे। परिणामस्वरूप मीर मन्नू के लिए सिखों का दमन करना कठिन हो गया।

2. सिखों के असाधारण गुण (Uncommon qualities of the Sikhs)–सिखों में अपने धर्म के लिए दृढ़ निश्चय, अपार जोश और असीमित बलिदान की भावनाएँ थीं। वे अत्यधिक मुश्किलों की घड़ी में भी अपने धैर्य का त्याग नहीं करते थे। मीर मन्नू ने सिखों पर असीमित अत्याचार किए, परंतु वह सिखों को विचलित करने में असफल रहा। अतः सिखों के इन असाधारण गुणों के कारण भी मीर मन्नू विफल रहा।

3. सिखों की गुरिल्ला युद्ध नीति (Guerilla tactics of the Sikhs)-सिखों ने मुग़ल सेना के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई अर्थात् सिखों को जब अवसर मिलता, वे मुग़ल सेना पर आक्रमण करते और लूटपाट करने के बाद पुनः वनों में जाकर शरण ले लेते। अतः आमने-सामने की टक्कर के अभाव में मीर मन्नू सिखों की शक्ति का दमन करने में विफल रहा।

4. दीवान कौड़ा मल्ल का सिखों से सहयोग (Cooperation of Diwan Kaura Mal with the Sikhs) दीवान कौड़ा मल्ल मीर मन्न का प्रमुख परामर्शदाता था। सहजधारी सिख होने के कारण वह सिखों से सहानुभूति रखता था। मीर मन्नू उसके परामर्श के बिना सिखों के विरुद्ध कोई कार्यवाई नहीं करता था। जब भी मीर मन्नू ने सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का निर्णय किया तो दीवान कौड़ा मल्ल उसे सिखों से समझौता करने के लिए मना लेता था। अतः दीवान कौड़ा मल्ल का सहयोग भी सिख शक्ति को बचाए रखने में बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ।

5. अदीना बेग की दोहरी नीति (Dual Policy of Adina Beg)—अदीना बेग जालंधर दोआब का फ़ौजदार था। वह मीर मन्नू के बाद पंजाब का सूबेदार बनना चाहता था। मीर मन्नू ने जब भी उसे सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का आदेश दिया तो उसने इसका पालन नहीं किया। वह पंजाब में अशांति के माहौल को बनाए रखना चाहता था। अतः अदीना बेग की दोहरी नीति भी मीर मन्नू की विफलता का कारण बनी।

6. मीर मन्नू की समस्याएँ (Problems of Mir Mannu)-अपने शासनकाल के दौरान कई समस्याओं से घिरा रहने के कारण भी मीर मन्नू सिखों का पूर्ण दमन करने में विफल रहा। उसकी पहली बड़ी समस्या अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण थे। इन आक्रमणों के कारण उसे सिखों के विरुद्ध कार्यवाई स्थगित करनी पड़ती थी। दूसरा, दिल्ली का वज़ीर सफदरजंग भी उसे पदच्युत करने के लिए षड्यंत्र रचता रहता था। उसके कहने पर ही नासिर खाँ और शाह नवाज़ खाँ ने मीर मन्नू के विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। फलस्वरूप मीर मन्नू इन समस्याओं से जूझने में ही व्यस्त रहा।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अब्दुस समद खाँ पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on Abdus Samad Khan.)
अथवा
अब्दुस समद खाँ के अधीन सिखों पर किए गए अत्याचारों का संक्षेप में ब्योरा दें।
(Briefly explain the repressions done on the Sikhs by Abdus Samad Khan.)
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ 1713-1726 ई० तक पंजाब का गवर्नर रहा। अब्दुस समद खाँ 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर तथा उसके अन्य साथियों को पकड़ने में सफल हुआ। इसके पश्चात् सिखों पर अत्याचारों का दौर प्रारंभ हो गया। अब्दुस समद खाँ की दमनकारी कार्यवाहियों से प्रसन्न होकर मुग़ल बादशाह फ़र्रुखसियर ने उसको ‘राज्य की तलवार’ का खिताब दिया। अब्दुस समद खाँ अपने पूरे प्रयत्नों के बावजूद सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा। परिणामस्वरूप 1726 ई० में उसको उसके पद से हटा दिया गया।

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प्रश्न 2.
बंदई खालसा तथा तत्त खालसा से क्या अभिप्राय है ? उनके बीच मतभेद कैसे समाप्त हुआ ?
(What do you mean by Bandai and Tat Khalsa ? How were their differences resolved ?)
अथवा
बंदई खालसा व तत्त खालसा में मतभेद कैसे समाप्त हुए ?
(How were the differences between Bandai Khalsa and Tat Khalsa finished ?)
अथवा
तत्त खालसा और बंदई खालसा में क्या मतभेद था ? इनके बीच समझौता किसने करवाया ?
(What was the difference between Tat Khalsa and Bandai Khalsa ? Who compromised them ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद सिखों की क्या स्थिति थी ?
(What was the position of the Sikhs after the martyrdom of Banda Singh Bahadur?)
उत्तर-
1716 ई० में बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद सिख बंदई खालसा एवं तत्त खालसा नामक दो दलों में बँट गए। वे सिख जो गुरु गोबिंद सिंह जी के सिद्धांतों को मानते थे तत्त खालसा तथा जो बंदा सिंह बहादुर के सिद्धांतों में विश्वास रखते थे बंदई खालसा कहलवाए। बंदई खालसा बंदा सिंह बहादुर को अपना गुरु मानते थे जबकि तत्त खालसा वाले गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानते थे। 1721 ई० में हरिमंदिर साहिब के प्रमुख ग्रंथी भाई मनी सिंह जी ने इन दोनों दलों में समझौता करवा दिया। इससे सिख संगठन की शक्ति में वृद्धि हुई।

प्रश्न 3.
जकरिया खाँ ने सिखों के साथ निपटने की किस प्रकार कोशिश की ?
(How did Zakariya Khan try to deal with the Sikhs ?)
अथवा
जकरिया खाँ के अधीन सिखों के दमन का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Discuss briefly the persecution of the Sikhs under Zakariya Khan.)
अथवा
सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए जकरिया खाँ ने क्या कदम उठाए ? (What measures were atopted by Zakariya Khan to crush the power of the Sikhs ?)
अथवा
सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए जकरिया खाँ ने क्या कदम उठाए तथा वह अपने प्रयत्नों में कहां तक सफल रहा ?
(What measures were adopted by Zakariya Khan to crush the power of the Sikhs ? How far did he succeeded in his efforts ?)
उत्तर-
ज़करिया खाँ 1726 ई० में पंजाब का गवर्नर नियुक्त हुआ। उसने सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए कठोर नीति अपनाई। बड़ी संख्या में सिखों को पकड़कर मौत के घाट उतार दिया गया। जब वह सिखों को कुचलने में असफल रहा तो उसने 1733 ई० में सिखों के साथ समझौता कर लिया। कुछ समय के पश्चात् सिखों ने मुग़लों पर पुनः आक्रमण करने शुरू कर दिए। इस कारण जकरिया खाँ को सिखों के प्रति अपनी नीति बदलनी पड़ी। उसने सिखों का फिर से कत्लेआम शुरू कर दिया।

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प्रश्न 4.
तारा सिंह वाँ कौन था ? उसकी शहीदी का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
(Who was Tara Singh Van ? What is the importance of his martyrdom in Sikh History ?)
अथवा
भाई तारा सिंह जी वाँ पर संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Bhai Tara Singh Ji Van.)
उत्तर-
भाई तारा सिंह जी वाँ अपनी पंथ सेवा और वीरता के कारण सिखों में बहुत लोकप्रिय थे। नौशहरा का चौधरी साहिब राय जानबूझ कर सिखों के खेतों में अपने घोड़े छोड़ देता था। एक दिन भाई तारा सिंह वाँ ने साहिब राय की एक घोड़ी को पकड़कर बेच दिया और उन पैसों को लंगर के लिए दे दिया। जब साहिब राय को पता चला तो उसने सिखों को सबक सिखाने के लिए उन पर आक्रमण कर दिया। भाई तारा सिंह वाँ और उसके 22 साथी रात भर मुग़ल सेनाओं से लोहा लेते हुए शहीद हो गए। यह घटना फरवरी, 1726 ई० की है।

प्रश्न 5.
भाई मनी सिंह जी कौन थे ? उनकी शहीदी का सिख इतिहास में क्या प्रभाव पड़ा ?
(Who was Bhai Mani Singh Ji ? What is the impact of his martyrdom in Sikh History ?).
अथवा
भाई मनी सिंह जी के बलिदान के कारण लिखो। (What were the causes of the martyrdom of Bhai Mani Singh Ji ?)
अथवा
भाई मनी सिंह जी तथा उनकी शहीदी बारे आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Bhai Mani Singh Ji and his martyrdom ?)
अथवा
भाई मनी सिंह जी की शहीदी के कोई तीन कारण बताओ।
(Write any three causes of the martyrdom of Bhai Mani Singh Ji.)
अथवा
भाई मनी सिंह जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Bhai Mani Singh Ji.)
अथवा
भाई मनी सिंह जी कौन थे ? उनके बलिदान के कारण लिखें। (Who was Bhai Mani Singh Ji ? What were the causes of his martyrdom ?)
उत्तर-
भाई मनी सिंह जी दरबार साहिब, अमृतसर में मुख्य ग्रंथी थे। जकरिया खाँ ने सिखों पर दरबार साहिब जाने पर रोक लगा दी। भाई मनी सिंह जी ने दीवाली के अवसर पर सिखों को दरबार साहिब में एकत्रित होने की जकरिया खाँ से अनुमति ले ली। इसके बदले उन्होंने 5,000 रुपये जकरिया खाँ को देने का वचन दिया। परंतु दीवाली के एक दिन पूर्व ही जकरिया खाँ ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। इस कारण भाई मनी सिंह जी जकरिया खाँ को 5000 रुपए न दे सके। अत: 1738 ई० में उनको लाहौर में बड़ी निर्ममता के साथ शहीद कर दिया गया। इस शहीदी के कारण सिख भड़क उठे।

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प्रश्न 6.
भाई तारू सिंह जी कौन थे ? उनकी शहीदी का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
(Who was Bhai Taru Singh Ji ? What is the significance of his martyrdom in Sikh History ?)
अथवा
भाई तारू सिंह जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Bhai Taru Singh Ji.)
उत्तर-
भाई तारू सिंह जी गाँव पूहला के निवासी थे। वह खेती-बाड़ी का व्यवसाय करते थे और इससे होने वाली आय से सिखों की सहायता करते थे। सरकार की दृष्टि में यह एक घोर अपराध था। परिणामस्वरूप भाई साहिब को गिरफ्तार कर लिया गया। जकरिया खाँ ने भाई तारू सिंह जी को इस्लाम ग्रहण करने के लिए कहा। भाई साहिब जी ने इन दोनों बातों से इंकार कर दिया। इस कारण भाई साहिब जी की खोपड़ी को उतार कर 1 जुलाई, 1745 ई० को शहीद कर दिया गया।

प्रश्न 7.
नादिर शाह कौन था ? उसने भारत पर कब आक्रमण किया ? उसके इस आक्रमण का पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा ?
(Who was Nadir Shah ? When did he invade India ? What was the effect of his invasion on the Punjab ?)
अथवा
नादिर शाह के पंजाब पर आक्रमण तथा इसके प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन करो।
(Give a brief account of Nadir Shah’s invasion on Punjab and its impact.)
उत्तर-
नादिरशाह ईरान का बादशाह था। उसने 1739 ई० में भारत पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के दौरान उसने भयंकर लूटमार मचाई। ईरान लौटते समय जब वह पंजाब में से गुजर रहा था तो सिखों ने उसका बहुत सा खजाना लूट लिया। इस घटना से नादिरशाह आश्चर्यचकित रह गया। नादिरशाह ने जकरिया खाँ को चेतावनी दी कि यदि उसने सिखों के विरुद्ध कठोर पग न उठाए तो सिख शीघ्र ही पंजाब पर अपना अधिकार कर लेंगे। परिणामस्वरूप जकरिया खाँ ने सिखों पर अधिक अत्याचार आरंभ कर दिए।

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प्रश्न 8.
बुड्डा दल और तरुणा दल पर एक सक्षिप्त नोट लिखो।
(Write a brief note on Buddha Dal and Taruna Dal.)
अथवा
बुड्डा दल और तरुणा दल का गठन कब किया गया ? सिख इतिहास में इनका क्या महत्त्व है ?
(When were Buddha Dal and Taruna Dal organised ? What is their importance in Sikh History ?)
अथवा बुड्डा दल तथा तरुणा दल से क्या अभिप्राय है ? संक्षेप में वर्णन करें। (What do you mean by ‘Buddha Dal’ and ‘Taruna Dal’ ? Explain in brief.)
अथवा
तरुणा दल पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
(Write a brief note on Taruna Dal.)
उत्तर-
1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिखों की शक्ति को मजबूत करने के उद्देश्य से उन्हें दो दलों में संगठित कर दिया। ये दल थे बुड्डा दल और तरुणा दल। बुड्ढा दल में 40 वर्ष से अधिक आयु के सिखों को शामिल किया गया। तरुणा दल में चालीस वर्ष से कम आयु वाले अर्थात् युवा सिखों को भर्ती किया गया। तरुणा दल को आगे पाँच भागों में बाँटा गया था। बुड्डा दल धार्मिक स्थानों की देखभाल करता था जबकि तरुणा दल शत्रुओं का मुकाबला करता था। इस प्रकार नवाब कपूर सिंह ने सिखों को भविष्य में होने वाले संघर्ष के लिए तैयार कर दिया।

प्रश्न 9.
याहिया खाँ कौन था ? उसके शासनकाल के संबंध में संक्षेप जानकारी दें। (Who was Yahiya Khan ? Give a brief information of his rule.)
उत्तर-
याहिया खाँ 1746 ई० से 1747 ई० में पंजाब का नया सूबेदार रहा। उसने सिखों के प्रति दमनकारी नीति जारी रखी। 1746 ई० में सिखों के साथ हुई एक लड़ाई में लाहौर के दीवान लखपत राय का भाई जसपत राय मारा गया था। इसका बदला लेने के लिए लखपत राय ने याहिया खाँ के साथ मिलकर काहनूवान (गुरदासपुर) में सिखों पर अचानक आक्रमण कर दिया। परिणामस्वरूप सात हजार सिख शहीद हुए। सिख इतिहास में इस खूनी घटना को ‘छोटा घल्लूघारा’ के नाम से याद किया जाता है। 1747 ई० में याहिया खाँ का तख्ता पलट दिया गया।

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प्रश्न 10.
प्रथम अथवा छोटे घल्लूघारे (1746 ई०) के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the First Holocaust or the Chhota Ghallughara of 1746 ?)
अथवा
पहले घल्लूघारे के बारे में आप क्या जानते हैं?
(What do you know about First Holocaust ?)
अथवा
‘छोटा घल्लूघारा’ पर संक्षेप नोट लिखो। (Write a short note on ‘Chhota Ghallughara’.)
अथवा
‘छोटा घल्लूघारा’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the ‘Chhota Ghallughara’.).
उत्तर-
याहिया खाँ और लखपत राय ने सिखों को कुचलने के लिए एक विशाल सेना तैयार की। इस सेना ने सिखों को अचानक काहनूवान ने घेर लिया। इस आक्रमण में 7,000 सिख शहीद हो गए और 3,000 को बंदी बना लिया गया। सिखों को प्रथम बार इतनी भारी प्राण हानि उठानी पड़ी थी। इसके कारण इस घटना को इतिहास में पहला अथवा छोटा घल्लूघारा कहा जाता है। यह घल्लूघारा मई, 1746 ई० को हुआ। इस घल्लूघारे के बावजूद सिखों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई।

प्रश्न 11.
मीर मन्नू द्वारा सिखों के विरुद्ध की गई कार्यवाहियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Describe briefly the sikh persecution under Mir Mannu.)
अथवा
मीर मन्नू द्वारा सिखों के द्रमन का अध्ययन करें।
(Study the persecution of Sikhs by Mir Mannu.)
अथवा
मार मन्नू आर सिखा के संबंधों का वर्णन कीजिए। (Write briefly the relations of Mir Mannu with the Sikhs.)
उत्तर-
मीर मन्नू 1748 ई० से लेकर 1753 ई० तक पंजाब का सूबेदार रहा। उसने सिखों की शक्ति को । कुचलने के लिए हर संभव प्रयास किए। सिखों को प्रतिदिन बंदी बनाकर लाहौर में शहीद किया जाने लगा। मीर मन्नू के इन अत्याचारों से बचने के लिए सिखों ने जंगलों और पहाड़ों में शरण ली। सिखों के हाथ न आने के कारण मीर मन्नू के सैनिकों ने सिख स्त्रियों और बच्चों को बंदी बनाना आरंभ कर दिया। उन पर अति निर्मम अत्याचार किए गए। इन घोर अत्याचारों के बावजूद मीर मन्नू सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा।

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प्रश्न 12.
मीर मन्नू सिखों की शक्ति को कुचलने में क्यों असफल रहा ? (Why did Mir Mannu fail to crush the Sikh power ?)
अथवा
मीर मन्नू की सिखों के विरुद्ध असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the failure of Mir Mannu against the Sikhs ?)
उत्तर-

  1. मीर मन्नू की असफलता का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि सिख भारी कठिनाइयों के बावजूद कभी साहस नहीं छोड़ते थे।
  2. सिखों की छापामार युद्ध नीति ने मीर मन्नू को असफल बनाने में मुख्य भूमिका निभाई।
  3. मीर मन्नू का दीवान कौड़ा मल सिखों के साथ सहानुभूति रखता था।
  4. जालंधर दोआब के फ़ौजदार अदीना बेग की दुरंगी नीति के कारण भी मीर मन्नू असफल रहा।
  5. मीर मन्नू को अपने शासन काल में बहुतसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ा था। परिणामस्वरूप वह सिखों को कुचलने में कामयाब न हो सका।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
1716 ई० से 1752 ई० तक लाहौर के किसी एक मुग़ल सूबेदार का नाम बताएँ।
अथवा
पंजाब के किसी एक सूबेदार का नाम बताएँ जिसने सिखों पर अत्याचार किए।
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ।

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प्रश्न 2.
अब्दुस समद खाँ लाहौर का सूबेदार कब नियुक्त हुआ था ?
उत्तर-
1713 ई०।

प्रश्न 3.
अब्दुस समद खाँ की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता कौन-सी थी ?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर क्रो बंदी बनाना।

प्रश्न 4.
अब्दुस समद खाँ को मुग़ल सम्राट् फ़र्रुखसियर ने कौन-सी उपाधि दी ?
उत्तर-
‘राज्य की तलवार’

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प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर की मृत्यु के बाद सिखों के जो दो संप्रदाय बन गए थे, उनके नाम बताओ।
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की मृत्यु के पश्चात् सिख कौन-से दो दलों में बँट गए ?
उत्तर-
बंदई खालसा एवं तत्त खालसा।

प्रश्न 6.
बंदई और तत्त खालसा में क्या अंतर था ?
अथवा
बंदई खालसा से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
तत्त खालसा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बंदई खालसा बंदा सिंह बहादुर के सिद्धांतों में तथा तत्त खालसा गुरु गोबिंद सिंह जी के सिद्धांतों में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 7.
बंदई खालसा एवं तत्त खालसा के मध्य झगड़ा कब खत्म हुआ ?
उत्तर-
1721 ई०

प्रश्न 8.
बंदई खालसा एवं तत्त खालसा के मध्य मतभेदों को किसने समाप्त करवाए ?
उत्तर-
भाई मनी सिंह जी।

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प्रश्न 9.
सहजधारी सिख किन्हें कहा जाता था?
उत्तर-
ये वो गैर-सिख थे जो सिख पंथ के सिद्धांतों में तो विश्वास रखते थे, परन्तु इसमें प्रविष्ट नहीं हुए थे।

प्रश्न 10.
जकरिया खाँ कौन था ?
उत्तर-
लाहौर का सूबेदार।

प्रश्न 11.
जकरिया खाँ कब लाहौर का सूबेदार बना ?
उत्तर-
1726 ई०।

प्रश्न 12.
जकरिया खाँ के शासनकाल में शहीद किए जाने वाले किसी एक प्रसिद्ध सिख का नाम बताएँ।
उत्तर-
भाई मनी सिंह जी।

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प्रश्न 13.
जकरिया खाँ ने सिखों के साथ समझौता कब किया ?
उत्तर-
1733 ई०।

प्रश्न 14.
सिखों के उस नेता का नाम बताएँ जिसे 1733 ई० के समझौते के अनुसार नवाब की उपाधि से सम्मानित किया गया था ?
उत्तर-
सरदार कपूर सिंह।

प्रश्न 15.
सिखों के दो दलों के नाम बताओ।
उत्तर-
बुड्डा दल और तरुणा दल।

प्रश्न 16.
बुड्डा दल एवं तरुणा दल की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर-
1734 ई०।

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प्रश्न 17.
बुड्डा दल तथा तरुणा दल की स्थापना कहाँ की गई थी ?
उत्तर-
अमृतसर।

प्रश्न 18.
बुड्डा दल तथा तरुणा दल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह।

प्रश्न 19.
बुड्डा दल से क्या भाव है ?
उत्तर-
बुड्ढा दल 40 वर्ष से अधिक आयु वाले सिखों का दल था।

प्रश्न 20.
तरुणा दल से क्या भाव है ?
उत्तर-
तरुणा दल सिख नौजवानों का दल था।

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प्रश्न 21.
हैदरी झंडे की घटना किसके शासनकाल में हुई ?
उत्तर-
ज़करिया खाँ।

प्रश्न 22.
भाई तारा सिंह जी वाँ कब शहीद हुए ?
उत्तर-
1726 ई०

प्रश्न 23.
भाई मनी सिंह जी कौन थे ?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब, अमृतसर के मुख्य ग्रंथी।

प्रश्न 24.
भाई मनी सिंह जी को कब शहीद किया गया था ?
उत्तर-
1738 ई०।

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प्रश्न 25.
भाई मनी सिंह जी को किसने शहीद करवाया था ?
उत्तर-
ज़करिया खाँ ने।

प्रश्न 26.
नादिर शाह कौन था ?
उत्तर-
ईरान का शासक।

प्रश्न 27.
नादिर शाह ने भारत पर कब आक्रमण किया ?
उत्तर-
1739 ई०।

प्रश्न 28.
नादिर शाह के भारतीय आक्रमण का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
वह भारत पर विजय प्राप्त कर एक महान् विजेता बनना चाहता था।

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प्रश्न 29.
मस्सा रंगड़ कौन था ?
उत्तर-
अमृतसर जिले के मंडियाला गाँव का चौधरी।

प्रश्न 30.
बाल हकीकत राय जी को कब शहीद किया गया था ?
उत्तर-
1742 ई०।

प्रश्न 31.
बाल हकीकत राय जी की शहीदी का क्या कारण था ?
उत्तर-
क्योंकि उसने बीबी फातिमा के संबंध में कुछ अपमानजनक शब्द कहे थे।

प्रश्न 32.
जकरिया खाँ की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
1745 ई० में।

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प्रश्न 33.
याहिया खाँ लाहौर का सूबेदार कब बना ?
उत्तर-
1746 ई० में।

प्रश्न 34.
छोटा अथवा पहला घल्लूघारा कब हुआ ?
उत्तर-
1746 ई०।

प्रश्न 35.
छोटा घल्लूघारा कहाँ हुआ ?
उत्तर-
काहनूवान।

प्रश्न 36.
मीर मन्नू लाहौर का सूबेदार कब बना ?
उत्तर-
1748 ई० में।

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प्रश्न 37.
पंजाब में मुगल शासन का अंत कब हुआ?
उत्तर-
1752 ई०।

प्रश्न 38.
मुइनुल-मुल्क किस अन्य नाम से विख्यात हुआ ?
उत्तर-
मीर मन्नू।

प्रश्न 39.
पंजाब में मुग़लों का अंतिम सूबेदार कौन था ?
अथवा
पंजाब में अफ़गानों का प्रथम सूबेदार कौन था ?
उत्तर-
मीर मन्नू।

प्रश्न 40.
मीर मन्नू कौन था?
उत्तर-
दिल्ली के वज़ीर कमरुद्दीन का पुत्र।

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प्रश्न 41.
मीर मन्नू सिखों का विरोधी क्यों था ?
उत्तर-
क्योंकि वह पंजाब में सिखों का बढ़ता हुआ प्रभाव सहन करने को तैयार नहीं था।

प्रश्न 42.
मुग़लों के विरुद्ध सिखों की सफलता के क्या कारण थे ? कोई एक बताएँ।
उत्तर-
सिखों का गुरिल्ला युद्ध नीति को अपनाना।

प्रश्न 43.
कौड़ा मल कौन था ?
उत्तर-
मीर मन्नू का दीवान।

प्रश्न 44.
मीर मन्नू की सिखों के विरुद्ध असफलताओं का कोई एक कारण बताएँ।
अथवा
मीर मन्नू सिखों की ताकत को खत्म करने में क्यों असफल रहा ? कोई एक कारण लिखो।
उत्तर-
सिखों की गुरिल्ला युद्ध नीति।।

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प्रश्न 45.
सिख कौड़ा मल को मिट्ठा मल क्यों कहते थे ?
उत्तर-
क्योंकि वह सिखों से सहानुभूति रखता था

प्रश्न 46.
मीर मन्नू की मृत्यु कब हुई थी ?
उत्तर-
1753 ई०।

प्रश्न 47.
अदीना बेग कौन था ?
उत्तर-
मीर मन्नू के समय जालंधर दोआब का फ़ौजदार।

प्रश्न 48.
मुगलानी बेगम कौन थी?
उत्तर-
पंजाब के सूबेदार मीर मन्नू की विधवा।

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प्रश्न 49.
मीर मन्नू की विधवा का क्या नाम था?
उत्तर-
मुग़लानी बेगम।

प्रश्न 50.
मुग़लानी बेगम पंजाब की सूबेदार कब बनी थी ?
उत्तर-
1753 ई०।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
अब्दुस समद खाँ को………में लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया गया।
उत्तर-
(1713 ई०)

प्रश्न 2.
अब्दुस समद खाँ को सिखों के विरुद्ध दमन की नीति के लिए उसे ……….की उपाधि के साथ सम्मानित किया गया।
उत्तर-
(राज्य की तलवार)

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प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद सिख……तथा ……..नामक दो संप्रदायों में बंट गए।
उत्तर-
(तत्त खालसा, बंदई खालसा)

प्रश्न 4.
1721 ई० में……ने तत्त खालसा व बंदई खालसा में समझौता करवाया।
उत्तर-
(भाई मनी सिंह जी)

प्रश्न 5.
जकरिया खाँ से पहले पंजाब का सूबेदार …………. था।
उत्तर-
(अब्दुस समद खाँ)

प्रश्न 6.
जकरिया खाँ……..में लाहौर का सूबेदार नियुक्त हुआ।
उत्तर-
(1726 ई०)

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प्रश्न 7.
जकरिया खाँ ने……में सिखों के साथ समझौता किया।
उत्तर-
(1733 ई०)

प्रश्न 8.
1733 ई० के समझौते अनुसार नवाब का खिताब………को दिया गया।
उत्तर-
(सरदार कपूर सिंह)

प्रश्न 9.
बुड्ढा दल और तरुणा दल का गठन ………… ई० में किया गया।
उत्तर-
(1734 ई०)

प्रश्न 10.
भाई मनी सिंह जी को…..में शहीद किया गया।
उत्तर-
(1738 ई०)

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प्रश्न 11.
मस्सा रंगड़ ……………. गाँव का चौधरी था।
उत्तर-
(मंडियाला)

प्रश्न 12.
अमृतसर जिले के मंडियाला गाँव के चौधरी …….. ने हरिमंदिर साहिब की पवित्रता को भंग कर दिया था।
उत्तर-
(मस्सा रंगड़)

प्रश्न 13.
……….में नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण किया।
उत्तर-
(1739 ई०)

प्रश्न 14.
नादिर शाह………..का शासक था।
उत्तर-
(ईरान)

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प्रश्न 15.
पहला या छोटा घल्लूघारा…….में घटित हुआ।
उत्तर-
(1746 ई०)

प्रश्न 16.
पहले घल्लूघारे के समय पंजाब का सूबेदार………था।
उत्तर-
(याहिया खाँ)

प्रश्न 17.
मीर मन्नू को………के नाम से भी जाना जाता है। .
उत्तर-
(मुइन-उल-मुल्क)

प्रश्न 18.
मीर मन्नू पंजाब का सूबेदार………में नियुक्त हुआ।
उत्तर-
(1748 ई०)

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प्रश्न 19.
मीर मन्नू ……..को जालंधर दोआब का फ़ौजदार नियुक्त किया।
उत्तर-
(अदीना बेग)

प्रश्न 20.
मीर मन्नू की मृत्यु. ….में हुई।
उत्तर-
(1753 ई०)

(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
अब्दुस समद खाँ 1716 ई० में पंजाब का सूबेदार बना।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 2.
अब्दुस समद खाँ को मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर ने पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 3.
अब्दुस समद खाँ को ‘राज की तलवार’ कहा जाता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद पंजाब के सिख तत्त खालसा और बंदई खालसा नामक दो संप्रदायों में बँट गए थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 5.
भाई मनी सिंह जी ने तत्त खालसा और बंदई खालसा में आपसी समझौता करवाया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
तत्त खालसा और बंदई खालसा के मध्य समझौता 1721 ई० में हुआ।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 7.
जकरिया खाँ 1720 ई० में लाहौर का सूबेदार नियुक्त हुआ।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 8.
1726 ई० में भाई तारा सिंह जी वाँ को शहीद किया गया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
जकरिया खाँ ने सिखों के साथ 1733 ई० में समझौता किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
बुड्डा दल व तरुणा दल का गठन सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया ने किया।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 11.
बुड्ढा दल और तरुणा दल की स्थापना 1734 ई० में की गई थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
जकरिया खाँ ने 1738 ई० में भाई मनी सिंह जी को शहीद किया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 13.
नादिर शाह ने 1739 ई० में भारत पर आक्रमण किया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
बाल हकीकत राय जी को अब्दुस समद खाँ के समय शहीद किया गया था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 15.
भाई तारू सिंह जी को 1745 ई० में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
जकरिया खाँ की मौत 1745 ई० में हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 17.
पहला या छोटा घल्लूघारा 1746 ई० में घटित हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
मीर मन्नू 1748 ई० में पंजाब का नया सूबेदार बना।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 19.
अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 20.
मीर मन्नू की मृत्यु 1754 ई० में हुई।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 21.
मीर मन्नू के समय अदीना बेग जालंधर दुआब का फ़ौजदार था।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
1716 ई० में पंजाब का सूबेदार कौन था ?
(i) अब्दुस समद खाँ
(ii) अहमद शाह अब्दाली
(iii) मीर मन्नू
(iv) जकरिया खाँ।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 2.
फर्रुखसियर ने अब्दुस समद खाँ को किस उपाधि से सम्मानित किया ?
(i) खान बहादुर
(ii) राज्य की तलवार
(ii) नासिर खान
(iv) मिट्ठा मल।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 3.
बंदई खालसा और तत्त खालसा में समझौता कब हुआ ?
(i) 1711 ई० में
(ii) 1716 ई० में
(iii) 1721 ई० में
(iv) 1726 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 4.
बंदई खालसा और तत्त खालसा में समझौता किसने करवाया था ?
(i) बाबा दीप सिंह जी ने
(ii) नवाब कपूर सिंह ने
(iii) भाई मनी सिंह जी ने
(iv) भाई तारू सिंह जी ने।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 5.
जकरिया खाँ पंजाब का सूबेदार कब बना ?
(i) 1716 ई० में
(ii) 1717 ई० में
(iii) 1726 ई० में
(iv) 1728 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 6.
हैदरी ध्वज की घटना किसके शासन काल में हुई ?
(i) अब्दुस समद ख़ाँ
(ii) याहिया खाँ
(iii) अहमद शाह अब्दाली
(iv) जकरिया खाँ।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 7.
सिखों और मुग़लों में समझौता कब हुआ ?
(i) 1721 ई० में
(ii) 1724 ई० में
(ii) 1733 ई० में
(iv) 1734 ई० में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 8.
बुडा दल एवं तरुणा दल का गठन कब किया गया था ?
(i) 1730 ई० में
(ii)- 1735 ई० में
(iii) 1733 ई० में
(iv) 1734 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 9.
बुडा दल एवं तरुणा दल का गठन किसने किया था ?
(i) नवाब कपूर सिंह ने
(ii) भाई मनी सिंह जी ने
(iii) बाबा दीप सिंह जी ने
(iv) भाई मेहताब सिंह ने।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 10.
भाई मनी सिंह जी को कब शहीद किया गया था ?
(i) 1721 ई० में
(ii) 1733 ई० में
(iii) 1734 ई० में
(iv) 1738 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 11.
नादिर शाह ने भारत पर कब आक्रमण किया ?
(i) 1736 ई० में
(ii) 1737 ई० में
(iii) 1738 ई० में
(iv) 1739 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 12.
नादिर शाह कहाँ का शासक था ?
(i) अफ़गानिस्तान
(ii) ईराक
(iii) बलोचिस्तान
(iv) ईरान।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 13.
मस्सा रंगड़ कौन था ?
(i) मंडियाला गाँव का चौधरी
(ii) वाँ गाँव का चौधरी
(iii) जालंधर का फ़ौजदार
(iv) सरहिंद का फ़ौजदार।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 14.
बाल हकीकत राय जी को कब शहीद किया गया था ?
(i) 1739 ई० में
(ii) 1740 ई० में
(iii) 1741 ई० में
(iv) 1742 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 15.
जकरिया खाँ की मृत्यु कब हुई ?
(i) 1742 ई० में
(ii) 1743 ई० में
(iii) 1744 ई० में
(iv) 1745 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 16.
पहला घल्लूघारा अथवा छोटा घल्लूघारा कहाँ हुआ था ?
(i) काहनूवान
(ii) कूप
(iii) सरहिंद
(iv) मंडियाला।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 17.
पहला अथवा छोटा घल्लूघारा कब हुआ ?
(i) 1733 ई० में
(ii) 1734 ई० में
(iii) 1739 ई० में
(iv) 1746 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 18.
मीर मन्नू पंजाब का सूबेदार कब बना ?
(i) 1748 ई० में
(ii) 1751 ई० में
(iii) 1752 ई० में
(iv) 1753 ई० में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 19.
अदीना बेग कौन था ?
(i) मीर मन्नू का परामर्शदाता
(ii) जकरिया खाँ का दीवान
(iii) जालंधर दोआब का फ़ौजदार
(iv) गाँव मंडियाला का चौधरी।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 20.
मीर मन्नू की मृत्यु कब हुई ?
(i) 1750 ई० में
(ii) 1751 ई० में
(iii) 1752 ई० में
(iv) 1753 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 21.
मीर मन्नू सिखों के विरुद्ध क्यों असफल रहा ?
(i) अदीना बेग़ की दोहरी नीति के कारण
(ii) सिखों की गुरिल्ला युद्ध नीति के कारण
(iii) मीर मन्नू के अत्याचार के कारण
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 22.
मुगलानी बेगम पंजाब की सूबेदार कब बनी ? ”
(i) 1751 ई० में
(ii) 1752 ई० में
(iii) 1753 ई० में
(iv) 1754 ई० में।
उत्तर-
(iii)

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Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
अब्दुस समद खाँ पर एक नोट लिखो।
(Write a note on Abdus Samad Khan.)
अथवा
1713 से 1726 ई० के दौरान अब्दुस समद खाँ और सिखों के संबंधों की व्याख्या करें।
(Explain Abdus Samad Khan relations with the Sikhs from 1713-1726.)
उत्तर-
पंजाब में सिखों की बढ़ती हुई शक्ति को कुचलने के लिए मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर ने 1713 ई० में अब्दुस समद खाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दुस समद खाँ 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर तथा उसके अन्य साथियों को पकड़ने में सफल हुआ। इससे अब्दुस समद खाँ के हौंसले बुलंद हो गए और उसने सिखों पर अत्याचारों का दौर प्रारंभ कर दिया। प्रतिदिन सिखों को बंदी बनाकर लाहौर लाया जाता और वहाँ शहीद कर दिया जाता। उसकी यह मनकारी नीति बड़ी सफल रही। उसकी सफलता से प्रसन्न होकर मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर ने उसको ‘राज्य की तलवार’ का खिताब दिया। उसके अत्याचारों से बचने के लिए बहुत-से सिख जंगलों तथा पहाड़ों की ओर भाग गए थे पर बाद में उन्होंने मुग़लों पर छापामार आक्रमण कर दिया। अब्दुस समद खाँ सिखों के आक्रमण को रोकने में असफल रहा। परिणामस्वरूप 1726 ई० में उसको उसके पद से हटा दिया गया।

प्रश्न 2.
बंदई खालसा तथा तत्त खालसा से क्या अभिप्राय है ? उनके बीच मतभेद कैसे समाप्त हुआ ? (What do you mean by Bandai and Tat Khalsa ? How were their differences resolved ?)
अथवा
तत्त खालसा और बंदई खालसा में क्या मतभेद था? इनके बीच समझौता किसने करवाया ?
(What was the difference between Tat Khalsa and Bandai Khalsa ? Who compromised them ?)
उत्तर-
1. तत्त खालसा-तत् खालसा कट्टर सिखों का एक संप्रदाय था। यह एक सर्वाधिक शक्तिशाली गुट था। तत् खालसा के सदस्य गुरु ग्रंथ साहिब में पूर्ण विश्वास रखते थे तथा उसके नियमों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते थे। वे गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा निर्धारित नीले वस्त्र पहनते थे। वे एक-दूसरे को मिलते समय वाहेगुरु जी का खालसा एवं वाहेगुरु जी की फतेह’ कहकर सम्बोधन करते थे। वे बंदा सिंह बहादुर द्वारा सिख धर्म में किए गए परिवर्तनों को स्वीकार नहीं करते थे। वे किसी भी प्रकार के चमत्कार दिखाने के विरुद्ध थे। वे बंदा सिंह बहादुर को गुरु की पदवी दिए जाने के विरुद्ध थे।

2. बंदई खालसा-बंदई खालसा सिखों का दूसरा महत्त्वपूर्ण सम्प्रदाय था। बंदा सिंह बहादुर के सैनिक अभियानों ने उनके दिलों पर जादुई प्रभाव डाला था। 1716 ई० में बंदा सिंह बहादुर द्वारा दी गई अद्वितीय शहीदी से वे बहुत प्रभावित हुए। इस कारण बंदई खालसा के लोग बंदा सिंह बहादुर को गुरु समझ कर उसकी उपासना करने लगे। अनेक लोगों का यह विश्वास था कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व बंदा बहादुर को गुरुगद्दी सौंप दी थी। वे बंदा सिंह बहादुर द्वारा दिए गए दो नारों ‘फतेह धर्म’ एवं ‘फतेह दर्शन’ में विश्वास रखते थे। वे बंदा सिंह बहादुर द्वारा निर्धारित लाल रंग के वस्त्र पहनते थे।

3. समझौता-1721 ई० में हरिमंदिर साहिब के प्रमुख ग्रंथी भाई मनी सिंह जी ने दोनों दलों के मध्य समझौता करवा दिया। इस समझौते के परिणामस्वरूप बंदई खालसा व तत्त खालसा एक हो गए। यह समझौता सिख धर्म के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुआ।

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प्रश्न 3.
जकरिया खाँ ने सिखों के साथ निपटने की किस प्रकार कोशिश की ?
(How did Zakariya Khan try to deal with the Sikhs ?)
अथवा
ज़करिया खाँ के अधीन सिखों के दमन का संक्षिप्त वर्णन करें। (Discuss briefly the persecution of the Sikhs under Zakariya Khan.)
उत्तर-
ज़करिया खाँ 1726 ई० में पंजाब का गवर्नर बना। उसने सिखों के प्रति दमन की नीति अपनाई।
1. उसने अपना पद सम्भालते ही सिखों के विरुद्ध दमनकारी कार्यवाहियाँ आरम्भ कर दी। उसने सिखों की शक्ति का पूर्णतः दमन करने के लिए 20,000 सैनिकों को भर्ती किया।

2. उसने गाँवों के मुकद्दमों, चौधरियों और ज़मींदारों को इस बात के लिए चेतावनी दी कि वे सिखों को अपने अधीन क्षेत्र में शरण न लेने दें और यदि कोई सिख कहीं दिखाई दे तो उसकी सूचना तुरंत सरकार को दी जाए। इसके अतिरिक्त जकरिया खाँ ने एक आदेश द्वारा यह घोषणा की कि किसी सिख के संबंध में सूचना देने वाले को, बंदी बनाने वाले को और सिर काटकर सरकार को भेट करने वाले को विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जाएगा।

3. सैंकड़ों सिखों को प्रतिदिन लाहौर के दिल्ली गेट में शहीद किया जाने लगा। इस कारण इस स्थान का नाम ‘शहीद गंज’ पड़ गया।

4. इसके बावजूद जब वह अपने उद्देश्य में असफल रहा तो उसने सिखों को प्रसन्न करने की योजना बनाई। उसने 1733 ई० में सिखों के नेता सरदार कपूर सिंह को नवाब का खिताब और एक बड़ी जागीर प्रदान की।

5. सिखों ने इस अवसर का लाभ उठाकर अपनी शक्ति को पुनः संगठित करना प्रारंभ कर दिया। जकरिया खाँ इसे सहन करने को तैयार न था। अतः उसने सिखों को पुनः कुचलने का प्रयत्न किया। उसने सिखों को दी गई जागीर वापस ले ली और सिखों को पकड़ कर कत्ल करने के आदेश दिए। परिणामस्वरूप भाई मनी सिंह जी, भाई महताब सिंह जी, भाई तारू सिंह जी और बाल हकीकत राय जी जैसे प्रसिद्ध व्यक्तियों को शहीद कर दिया गया। इसके बावजूद जकरिया खाँ अपने अंत तक सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा।

प्रश्न 4.
तारा सिंह वाँ कौन थे ? उनकी शहीदी का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ? ।
(Who was Tara Singh Van ? What is the importance of his martyrdom in Sikh History ?)
उत्तर-
तारा सिंह अमृतसर जिला के गांव वाँ के निवासी थे। वह अपनी सिख पंथ की सेवा और वीरता के कारण सिखों में बहुत लोकप्रिय थे। उन्होंने बंदा सिंह बहादुर की लड़ाइयों में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। अब वह अपने गाँव में कृषि करने लग पड़े थे। नौशहरा का चौधरी साहिब राय सिखों के खेतों में अपने घोड़े छोड़ देता जिसके कारण वे फसलों को नष्ट कर देते। जब सिख इस बात पर आपत्ति उठाते तो वह सिखों का बड़ा अपमान करता। सिख इस अपमान को सहन नहीं कर सकते थे। एक दिन तारा सिंह वाँ ने साहिब राय की एक घोड़ी को पकड़ कर बेच दिया और उन पैसों का राशन खरीदकर लंगर के लिए दे दिया। जब साहिब राय को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसने जकरिया खाँ से सहायता की माँग की। जकरिया खाँ ने 2200 घुड़सवार सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए भेजे। तारा सिंह वाँ और उनके 22 साथियों ने रात भर मुग़ल सेनाओं के खूब छक्के छुड़ाए तथा अंत में शहीद हो गए। इससे पूर्व उन्होंने 300 मुग़ल सैनिकों को यमलोक पहुँचा दिया था और बहुत-से अन्य को घायल कर दिया था। यह घटना फरवरी, 1726 ई० की है। तारा सिंह वां की शहीदी ने सिखों में एक नया जोश उत्पन्न किया।

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प्रश्न 5.
भाई मनी सिंह जी कौन थे ? उनकी शहीदी का सिख इतिहास में क्या प्रभाव पड़ा ? (Who was Bhai Mani Singh Ji ? What is the impact of his martyrdom in Sikh History ?)
अथवा
भाई मनी सिंह जी के बलिदान के कारण लिखो। (What were the causes of the martyrdom of Bhai Mani Singh Ji ?)
अथवा
भाई मनी सिंह जी तथा उनकी शहीदी के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Bhai Mani Singh Ji and his martyrdom ?)
अथवा भाई मनी सिंह जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Bhai Mani Singh Ji.).
उत्तर-
ज़करिया खाँ के काल की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना भाई मनी. सिंह जी की शहीदी थी। भाई मनी सिंह जी दरबार साहिब, अमृतसर में मुख्य ग्रंथी थे। सिख उनका बहुत मान-सम्मान करते थे। जकरिया खाँ ने सिखों पर दरबार साहिब जाने पर रोक लगा दी। भाई मनी सिंह जी ने 5 हज़ार रुपये के बदले दीवाली के अवसर पर सिखों को दरबार साहिब में एकत्रित होने की जकरिया खाँ से अनुमति ले ली। बड़ी संख्या में सिख अमृतसर में एकत्रित होने शुरू हो गए। परंतु दीवाली के एक दिन पूर्व ही जकरिया खाँ ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। इस कारण सिखों में भगदड़ मच गई और दीवाली पर सिख एकत्रित न हो सके। जकरिया खाँ ने भाई मनी सिंह जी को बंदी बना लिया और उनसे 5 हज़ार रुपए की माँग की। मेला न हो सकने के कारण वह इतनी बड़ी राशि नहीं दे सकते थे। इसके बदले उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने को कहा गया। भाई मनी सिंह जी के इंकार करने पर 1738 ई० में उनको लाहौर में बड़ी निर्ममता के साथ शहीद कर दिया गया। इस शहीदी के कारण सिख भड़क उठे। उन्होंने मुग़ल साम्राज्य को जड़ से उखाड़ने का निर्णय कर लिया।

प्रश्न 6.
भाई तारू सिंह जी कौन थे ? उनकी शहीदी का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
(Who was Bhai Taru Singh Ji ? What is the significance of his martyrdom in Sikh History ?)
अथवा
भाई तारू सिंह जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Bhai Taru Singh Ji.)
उत्तर-
भाई तारू सिंह जी गाँव पूहला के निवासी थे। वह खेती-बाड़ी का व्यवसाय करते थे और इससे होने वाली आय से सिखों की सहायता करते थे। सरकार की दृष्टि में यह एक घोर अपराध था। जंडियाला के हरिभगत नामक व्यक्ति ने भाई साहिब को गिरफ्तार करवा दिया। उनको लाहौर ले जाया गया जहाँ जकरिया खाँ ने भाई तारू सिंह जी को इस्लाम धर्म ग्रहण करने के लिए कहा। इसके बदले उनको दुनिया भर की खुशियाँ देने का लालच दिया गया। भाई साहिब ने इन दोनों बातों से इंकार कर दिया। इस कारण जकरिया खाँ ने भाई तारू सिंह जी की खोपड़ी उतारने के आदेश दिए। आदेश की पालना करते हुए जल्लादों ने भाई साहिब की खोपड़ी उतारनी प्रारंभ कर दी। जब भाई साहिब की खोपड़ी उतारी जा रही थी तब वह जपुजी साहिब का पाठ कर रहे थे। उनका शरीर लहू-लुहान हो गया था पर वह अपने निश्चय पर अटल रहे। वह इसके 22 दिनों बाद 1 जुलाई, 1745 ई० को शहीद हो गए। इस अभूतपूर्व शहीदी ने सिखों में एक नया जोश भर दिया।

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प्रश्न 7.
नादिर शाह कौन था ? उसके आक्रमण का पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा ?
(Who was Nadir Shah ? What was the effect of his invasion on the Punjab ?)
अथवा
नादिर शाह के पंजाब पर आक्रमण तथा इसके प्रभावों का संक्षिप्त वर्णन करो। (Give a brief account of Nadir Shah’s invasion on Punjab and its impact.)
उत्तर-
नादिर शाह ईरान का बादशाह था। उसने भारत पर 1739 ई० में आक्रमण किया। इस आक्रमण के दौरान उसने भारत में भारी लूटमार मचाई। वह इतना क्रूर था कि शत्रु उसका नाम सुनते ही थर-थर काँपने लग जाते थे। वापसी के दौरान जब वह दिल्ली से लूटमार कर पंजाब में से गुजर रहा था तो सिखों ने उस पर अचानक हमला करके उसका बहुत-सा खज़ाना लूट लिया। इस घटना से नादिर शाह आश्चर्यचकित रह गया। उसने इन सिखों के संबंध में पंजाब के सूबेदार जकरिया खाँ से पूछताछ की। उसने जकरिया खाँ को यह चेतावनी दी कि यदि उसने सिखों के विरुद्ध कठोर पग न उठाए तो सिख शीघ्र ही पंजाब पर अपना अधिकार कर लेंगे। परिणामस्वरूप जकरिया खाँ ने सिखों पर अधिक अत्याचार आरंभ कर दिए पर नादिर शाह के आक्रमण के बाद पंजाब में अव्यवस्था फैल गई थी। इस स्थिति का लाभ उठाकर सिखों ने अपनी शक्ति को अधिक संगठित करना आरंभ कर दिया था। शीघ्र ही पंजाब में उनका प्रभुत्व बढ़ गया।

प्रश्न 8.
बड़ा दल और तरुणा दल पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a brief note on Buddha Dal and Taruna Dal.)
अथवा
बुड्डा दल और तरुणा दल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Buddha Dal and Taruna Dal ?)
अथवा
बुड्डा दल तथा तरुणा दल से क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by ‘Buddha Dal’ and ‘Taruna Dal’ ?)
उत्तर-
1733 ई० में सिखों का मुग़लों से समझौता हो जाने के कारण सिखों को अपनी शक्ति संगठित करने का सुनहरी अवसर मिला। नवाब कपूर सिंह ने सिखों को यह संदेश भेजा कि वे जंगलों और पहाड़ों को छोड़कर पुनः अपने घरों को लौट आएँ। इस प्रकार पिछले दो दशकों से मुग़लों और सिखों में चले आ रहे संघर्ष का अंत हुआ और सिखों को कुछ राहत मिली। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिखों की शक्ति को मज़बूत करने के उद्देश्य से उन्हें दो दलों में संगठित कर दिया। ये दल थे बुड्डा दल और तरुणा दल। बुड्डा दल में 40 वर्षों से अधिक आयु के सिखों को शामिल किया गया और इससे कम आयु के सिखों को तरुणा दल में। तरुणा दल को आगे पाँच भागों में बाँटा गया था। प्रत्येक भाग में 1300 से लेकर 2000 सिख थे और प्रत्येक भाग का अपना एक अलग नेता था। बुड्ढा दल धार्मिक स्थानों की देख-भाल करता था जबकि तरुणा दल शत्रुओं का मुकाबला करता था।

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प्रश्न 9.
याहिया खाँ कौन था ? उसके शासन काल के संबंध में संक्षेप जानकारी दें। (Who was Yahiya Khan ? Give a brief information of his rule.)
उत्तर-
ज़करिया खाँ की मृत्यु के बाद याहिया खाँ दिल्ली के वज़ीर कमरुद्दीन के सहयोग से 1746 ई० में लाहौर का सूबेदार बना। वह 1747 ई० तक इस पद पर रहा। सिखों पर अत्याचार करने के लिए वह अपने पिता जकरिया खाँ से एक कदम आगे था। उसके सिखों के साथ संबंधों का वर्णन इस प्रकार है—
1. सिखों की गतिविधियाँ-जकरिया खाँ की मृत्यु का लाभ उठाकर सिखों ने अपनी शक्ति को संगठित कर लिया था। उन्होंने पंजाब के कई गाँवों में चौधरियों तथा मुकद्दमों की सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के कारण हत्या कर दी थी। इसके अतिरिक्त सिख पंजाब के कई क्षेत्रों में खूब लूटपाट करते थे।

2. जसपत राय की मृत्यु-1746 ई० में सिखों के एक जत्थे ने गोंदलावाला गाँव से बहुत-सी भेड़-बकरियों को पकड़ लिया। लोगों की शिकायत पर जसपत राय ने सिखों को ये भेड़-बकरियाँ लौटाने का आदेश दिया। सिखों के इंकार करने पर उसने सिखों पर आक्रमण कर दिया। लड़ाई के दौरान जसपत राय मारा गया। इस कारण मुग़ल सेना में भगदड़ मच गई।

3. लखपत राय की सिखों के विरुद्ध कार्यवाही-जसपत राय की मृत्यु का समाचार पाकर उसके भाई दीवान लखपत राय का खून खौल उठा। उसने यह प्रण किया कि वह सिखों का नामो-निशान मिटा कर ही दम लेगा। याहिया खाँ ने सिखों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए। इन आदेशों का उल्लंघन करने वालों को मृत्यु दंड दिया जाता था। उसने बहुत-से सिखों को बंदी बनाया और उनको लाहौर लाकर शहीद कर दिया।

4. पहला घल्लूघारा-1746 ई० में याहिया खाँ और लखपत राय के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने लगभग 15,000 सिखों को काहनूवान में घेर लिया। इस आक्रमण में 7,000 सिख शहीद हो गए और 3,000 सिखों को बंदी बना लिया गया। सिखों के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब सिखों की एक बार में ही इतनी भारी प्राण-हानि हुई। इस दर्दनाक घटना को सिख इतिहास में पहला अथवा छोटा घल्लूघारा के नाम से याद किया जाता है।

प्रश्न 10.
प्रथम अथवा छोटे घल्लूघारे (1746 ई०) के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the First Holocaust or the Chhota Ghallughara of 1746 ?)
अथवा
‘छोटा घल्लूघारा’ पर संक्षेप नोट लिखो। (Write a short note on ‘Chhota Ghallughara.’)
उत्तर-
सिखों का सर्वनाश करने के लिए याहिया खाँ और लखपत राय ने एक भारी सेना तैयार की। इस सेना ने लगभग 15,000 सिखों को अचानक काहनूवान में घेर लिया। सिख वहाँ से बचकर बसोली की पहाड़ियों की ओर चले गए। मुग़ल सैनिकों ने उनका बड़ी तेजी से पीछा किया। यहाँ पर सिख बहुत मुश्किल में फंस गए। एक ओर ऊँची पहाड़ियाँ थीं और दूसरी ओर रावी नदी में बाढ़ आई हुई थी। पीछे की ओर मुग़ल सैनिक उनका पीछा कर रहे थे तथा आगे पहाड़ी राजा और लोग भी उनके कट्टर शत्रु थे। सिखों के पास खाद्य सामग्री बिल्कुल नहीं थी। चारे की कमी के कारण घोड़ों की भी भूख से बुरी दशा थी। इस आक्रमण में 7,000 सिख शहीद हो गए और मुग़लों ने 3,000 सिखों को बंदी बना लिया। इन सिखों को लाहौर में शहीद कर दिया गया। सिखों के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब सिखों की एक बार में इतनी भारी प्राण-हानि हुई। इसके कारण इस घटना को इतिहास में पहला अथवा छोटा घल्लूघारा के नाम से स्मरण किया जाता है। यह घल्लूघारा मई, 1746 ई० को हुआ। इस विनाशकारी घल्लूघारे के बावजूद सिखों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई।

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प्रश्न 11.
मीर मन्नू कौन था ? उसने अपने शासन काल में सिखों के विरुद्ध क्या कार्यवाही की ? (Who was Mir Mannu ? What steps did he take against the Sikhs during his rule ?)
अथवा
मीर मन्नू द्वारा सिखों के उत्पीड़न का अध्ययन करें। (Study the persecution of Sikhs by Mir Mannu.)
अथवा
मीर मन्नू को और किस नाम से जाना जाता है ? इसका शासन काल सिख शक्ति के उत्थान के लिए कैसे सफल हुआ?
(What was the other name of Mir Mannu ? How did the rule of Mir Mannu help in the rise of Sikh power ?)
अथवा
मीर मन्नू और सिखों के संबंधों का वर्णन कीजिए। (Write briefly the relations of Mir Mannu with the Sikhs.)
उत्तर-
मीर मन्नू को मुइन-उल-मुल्क के नाम से भी जाना जाता था। वह 1748 ई० से लेकर 1752 ई० तक मुगल बादशाह की ओर से तथा 1752 ई० से लेकर 1753 ई० तक अहमदशाह अब्दाली की ओर से पंजाब का सूबेदार रहा। मीर मन्नू सिखों का बहुत कट्टर शत्रु था। अत: मीर मन्नू ने अपना पद संभालने के पश्चात् सर्वप्रथम अपना ध्यान सिखों की ओर लगाया। उन्होंने समूचे पंजाब में बहुत गड़बड़ी फैलाई हुई थी। मीर मन्नू ने सिखों का दमन करने के लिए पंजाब के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में अपनी सैन्य-टुकड़ियाँ भेजीं। उसने जालंधर के फ़ौजदार अदीना बेग को सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने के आदेश दिए। ऐसे ही आदेश पहाड़ी राजाओं को भी दिए गए। फलस्वरूप सिखों को प्रतिदिन बंदी बनाया जाने लगा और उन्हें लाहौर में शहीद किया जाने लगा। जून, 1748 ई० में अदीना बेग और सिखों में हुई एक लड़ाई में 600 सिख शहीद हो गए। अतः सिखों ने आत्म-रक्षा के लिए पर्वतों और वनों में जाकर शरण ली। वे अवसर मिलने पर मुग़ल सेनाओं पर आक्रमण करते और लूटपाट करके पुनः लौट जाते। मीर मन्नू ने सिखों का सर्वनाश करने के लिए बड़े जोरदार प्रयास आरंभ कर दिए। सिखों के सिरों के मूल्य निश्चित किए गए। सिखों को शरण देने वालों को कठोर दंड दिए गए। मार्च, 1753 ई० में जब सिख होला मोहल्ला के अवसर पर माखोवाल में एकत्रित हुए थे तो अदीना बेग ने अचानक आक्रमण करके बहुत-से सिखों की हत्या कर दी। सिख स्त्रियों और बच्चों को बंदी बनाकर लाहौर ले जाया गया। इन स्त्रियों और बच्चों पर जो अत्याचार किए गए, उनका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। प्रत्येक स्त्री को सवा-सवा मन अनाज प्रतिदिन पीसने के लिए दिया जाता। दूध पीते बच्चों को उनकी माताओं से बलपूर्वक छीनकर उनके सामने हत्या की जाती। इन घोर अत्याचारों के बावजूद सिखों की संख्या कम होने की अपेक्षा बढ़ती चली गई। उस समय यह लोकोक्ति बहुत प्रचलित थी—

“मन्नू असाडी दातरी, असीं मन्नू दे सोए।
ज्यों-ज्यों मन्नू वड्दा, असीं दून सवाए होए।”

प्रश्न 12.
मीर मन्नू सिखों की शक्ति को कुचलने में क्यों असफल रहा ? (Why did Mir Mannu fail to crush the Sikh Power ?)
अथवा
मीर मन्नू की सिखों के विरुद्ध असफलता के क्या कारण थे ? कोई छः कारण बतायें।
(What were the causes of the failure of Mir Mannu against the Sikhs ? Write any six Causes.)
अथवा
मीर मन्नू सिखों के विरुद्ध क्यों असफल रहा ?
(Why Mir Mannu was unsuccessful against the Sikhs ?)
उत्तर-
मीर मन्नू ने सिखों का अंत करने के लिए अथक प्रयास किए, परंतु इसके बावजूद वह सिखों का दमन करने में विफल रहा। उसकी विफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. दल खालसा का संगठन—मीर मन्नू की विफलता का एक महत्त्वपूर्ण कारण दल खालसा का संगठन था। सिख दल खालसा का अत्यधिक सम्मान करते थे और इसके आदेश पर कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार रहते थे। परिणामस्वरूप मीर मन्नू के लिए सिखों का दमन करना कठिन हो गया।

2. सिखों के असाधारण गुण सिखों में अपने धर्म के लिए दृढ़ निश्चय, अपार जोश और असीमित बलिदान की भावनाएँ थीं। वे अत्यधिक मुश्किलों की घड़ी में भी अपने धैर्य का त्याग नहीं करते थे। मीर मन्नू ने सिखों पर असीमित अत्याचार किए, परंतु वह सिखों को विचलित करने में विफल रहा।

3. सिखों की गुरिल्ला युद्ध नीति-सिखों ने मुग़ल सेना के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई अर्थात् सिखों को जब अवसर मिलता, वे मुग़ल सेना पर आक्रमण करते और लूटपाट करने के बाद पुनः वनों में जाकर शरण ले लेते। अतः आमने-सामने की टक्कर के अभाव में मीर मन्नू सिखों की शक्ति का दमन करने में विफल रहा।

4. दीवान कौड़ा मल्ल का सिखों से सहयोग-दीवान कौड़ा मल्ल मीर मन्नू का प्रमुख परामर्शदाता था। सहजधारी सिख होने के कारण वह सिखों से सहानुभूति रखता था। अतः जब भी मीर मन्नू ने सिखों के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का निर्णय किया तो दीवान कौड़ा मल्ल उसे सिखों से समझौता करने के लिए मना लेता था। अतः दीवान कौड़ा मल्ल का सहयोग भी सिख शक्ति को बचाए रखने में बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ।।

5. मीर मन्नू की समस्याएँ-मीर मन्नू अपने शासनकाल के दौरान कई समस्याओं से घिरा रहने के कारण भी मीर मन्नू सिखों का पूर्ण दमन करने में विफल रहा। उसकी पहली बड़ी समस्या अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण थे। इन आक्रमणों के कारण उसे सिखों के विरुद्ध कार्यवाई स्थगित करनी पड़ती थी। दूसरा, दिल्ली का वज़ीर सफदरजंग भी उसे पदच्युत करने के लिए षड्यंत्र रचता रहता था। फलस्वरूप मीर मन्नू इन समस्याओं से जूझने में ही व्यस्त रहा।

6. मीर मन्नू के अत्याचार-मीर मन्नू ने सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए निर्दोष लोगों पर भारी अत्याचार किए। इस कारण ये लोग सिखों के साथ मिल गए। इस कारण सिखों की शक्ति बहुत बढ़ गई। परिणामस्वरूप मीर मन्नू सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा।

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Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
शाही आदेश जारी होने के पश्चात् अब्दुस समद खाँ ने सिखों पर घोर अत्याचार आरंभ कर दिए। सैंकड़ों निर्दोष सिखों को प्रतिदिन बंदी बनाकर लाहौर लाया जाता। उन्हें इस्लाम धर्म में शामिल होने पर प्राण-दान का लोभ दिया जाता। किंतु गुरु के सिख ऐसे जीवन से शहीद होना अधिक अच्छा समझते थे। जल्लाद इन सिखों को घोर यातनाएँ देने के पश्चात् उनको शहीद कर देते। अब्दुस समद खाँ की इस कठोर नीति से बचने के लिए बहुत-से सिखों ने लक्खी वन और शिवालिक पहाड़ियों में जाकर शरण ली। यहाँ पर उन्हें भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्हें कई-कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता था अथवा वे वृक्षों के पत्ते और छाल खाकर अपनी भूख मिटाते रहे। मुग़ल अधिकारियों ने पीछे रह गई स्त्रियों और बच्चों पर कहर ढाना आरंभ कर दिया। इस प्रकार अपने शासनकाल के आरंभिक कुछ वर्षों तक अब्दुस समद खाँ की सिखों के विरुद्ध दमनकारी नीति बहुत सफल रही। इससे प्रसन्न होकर फर्रुखसियर ने उसे ‘राज्य की तलवार’ की उपाधि से सम्मानित किया।

  1. अब्दुस समद खाँ कौन था ?
  2. शाही आदेश जारी होने के पश्चात् ……….. ने सिखों पर घोर अत्याचार आरंभ कर दिए।
  3. सिखों को कहाँ शहीद किया जाता था ?
  4. अब्दुस समद खाँ के अत्याचारों से बचने के लिए सिखों ने क्या किया ?
  5. फर्रुखसियर ने अब्दुस समद खाँ को किस उपाधि से सम्मानित किया था ?

उत्तर-

  1. अब्दुस समद खाँ लाहौर का सूबेदार था।
  2. अब्दुस समद खाँ।
  3. सिखों को लाहौर में शहीद किया जाता था।
  4. अब्दुस समद खाँ के अत्याचारों से बचने के लिए सिखों ने जंगलों व शिवालिक पहाड़ियों में जाकर शरण ली।
  5. फर्रुखसियर ने अब्दुस समद खाँ को ‘राज्य की तलवार’ की उपाधि से सम्मानित किया था।

2
ज़करिया खाँ सिखों की दिन-प्रतिदिन बढ़ रही कार्यवाइयों से बहुत परेशान था। उसने सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए जेहाद का नारा लगाया। फलस्वरूप हज़ारों की संख्या में मुसलमान उसके ध्वज तले एकत्रित हो गए। इस सेना का नेतृत्व मीर इनायत उल्ला खाँ को सौंपा गया। उन्हें ईद के शुभ दिन एक हैदरी ध्वज दिया गया और यह घोषणा की गई कि इस ध्वज तले लड़ने वालों को अल्ला अवश्य विजय देगा। जब सिखों को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उन्होंने पुनः वनों और पहाड़ों की शरण ली। एक दिन लगभग 7 हज़ार सिखों ने इन गाज़ियों पर अचानक आक्रमण करके भारी विनाश किया। हज़ारों गाज़ियों की हत्या कर दी गई। इसके अतिरिक्त सिख उनका सामान भी लूटकर ले गए। इस घटना से जहाँ सरकार की प्रतिष्ठा को गहरा आघात लगा वहीं इस अद्वितीय सफलता से सिखों का प्रोत्साहन बढ़ गया।

  1. जकरिया खाँ कौन था ?
  2. जेहाद से क्या भाव है ?
  3. हैदरी झंडे की कमान किसे सौंपी गई थी?
  4. हैदरी झंडे की घटना समय पंजाब का सूबेदार कौन था ?
    • अब्दुस समद खाँ
    • मीर मन्नू
    • जकरिया खाँ
    • अहमद शाह अब्दाली।
  5. सिखों ने कहाँ शरण ली थी ?

उत्तर-

  1. जकरिया खाँ लाहौर का सूबेदार था।
  2. जेहाद से भाव है धार्मिक लड़ाई।
  3. हैदरी झंडे की कमान मीर इनायत उल्ला खाँ को सौंपी गई थी।
  4. जकरिया खाँ।
  5. सिखों ने जंगलों तथा पहाड़ों में जाकर शरण ली।

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3
मुग़लों से समझौता हो जाने पर सिखों को अपनी शक्ति को संगठित करने का स्वर्ण अवसर मिला। नवाब कपूर सिंह ने सिखों को यह संदेश भेजा कि वे वनों और पर्वतों को छोड़कर पुन: अपने घरों में लौट आएँ। इस प्रकार गत दो दशक से मुग़लों और सिखों में चले आ रहे संघर्ष का अंत हुआ और सिखों ने सुख की साँस ली। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिखों की शक्ति दृढ़ करने के उद्देश्य से उन्हें दो जत्थों में संगठित कर दिया। ये जत्थे थे-बुड्डा दल और तरुणा दल। बुड्डा दल में 40 वर्ष से बड़ी आयु के सिखों को सम्मिलित किया गया और इससे कम आयु वाले सिखों को तरुणा दल में। तरुणा दल को आगे पाँच जत्थों में विभाजित किया गया था। प्रत्येक जत्थे में 1300 से 2000 सिख थे और प्रत्येक जत्थे का अपना एक अलग नेता तथा झंडा था। बुड्डा दल धार्मिक स्थानों की देख-रेख करता था जबकि तरुणा दल शत्रुओं का सामना करता था। इन दलों ने भविष्य में सिख इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  1. मुग़लों तथा सिखों के मध्य समझौता कब हुआ ?
  2. मुगलों तथा सिखों के मध्य समझौते समय पंजाब का सूबेदार कौन था ?
    • अहमद शाह अब्दाली
    • मीर मन्नू
    • जकरिया खाँ
    • उपरोक्त में से कोई नहीं।
  3. नवाब कपूर सिंह कौन था ?
  4. बुड्डा दल तथा तरुणा दल का गठन कब किया गया था ?
  5. बुड्डा दल तथा तरुणा दल में कौन-कौन शामिल थे ?

उत्तर-

  1. मुग़लों तथा सिखों के मध्य समझौता 1733 ई० में हुआ था।
  2. जकरिया खाँ।
  3. नवाब कपूर सिंह 18वीं सदी में सिखों का एक प्रसिद्ध नेता था।
  4. बुड्ढा दल तथा तरुणा दल का गठन 1734 ई० में किया गया था।
  5. बुड्डा दल में 40 वर्ष से अधिक आयु के सिख तथा तरुणा दल में नौजवानों को शामिल किया गया था।

4
भाई मनी सिंह जी के बलिदान को सिख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। सिख पंथ की अद्वितीय सेवा के कारण उनका सिखों में बहुत सम्मान था। वे 1721 ई० से हरिमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी चले आ रहे थे। जकरिया खाँ के सैनिकों द्वारा हरिमंदिर साहिब पर अधिकार और वहाँ पर सिखों को न जाने देने के लिए स्थापित की गई सैनिक चौकियों के कारण वे बहत निराश हुए। 1738 ई० में भाई मनी सिंह जी ने जकरिया खाँ को यह निवेदन किया कि यदि वह सिखों को दीवाली के अवसर पर हरिमंदिर साहिब आने की अनुमति दे तो वे 5,000 रुपये भेट करेंगे। जकरिया खाँ ने यह प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया। वास्तव में उसके दिमाग में एक योजना आई। इस योजनानुसार वह अमृतसर में दीवाली के अवसर पर एकत्रित होने वाले सिखों पर अचानक आक्रमण करके उनका सर्वनाश करना चाहता था।

  1. भाई मनी सिंह जी कौन थे ?
  2. भाई मनी सिंह जी ने किसे विनती की कि सिखों को अमृतसर में दीवाली के अवसर पर इकट्ठे होने की आज्ञा दी जाए ?
  3. भाई मनी सिंह जी ने सिखों को अमृतसर आने के लिए जकरिया खाँ को कितने रुपये देने का निवेदन किया ?
    • 2,000 रुपये
    • 3,000 रुपये
    • 4,000 रुपये
    • 5,000 रुपये।
  4. भाई मनी सिंह जी को कब शहीद किया गया था ?
  5. भाई मनी सिंह जी की शहीदी का क्या परिणाम निकला ?

उत्तर-

  1. भाई मनी सिंह जी 1721 ई० में हरिमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी थे।
  2. लाहौर के सूबेदार जकरिया खाँ को।
  3. 5,000 रुपये।
  4. भाई मनी सिंह जी को 1738 ई० में शहीद किया गया था।
  5. इस कारण सिखों में एक नया जोश पैदा हुआ।

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5
सिखों का सर्वनाश करने के लिए याहिया खाँ और लखपत राय ने एक भारी सेना तैयार की। उनके नेतृत्व में मुग़ल सेना ने लगभग 15,000 सिखों को अचानक काहनूवान में घेर लिया। सिख वहाँ से बचकर बसोली की पहाड़ियों की ओर चले गए। मुग़ल सैनिकों ने उनका बड़ी तेज़ी से पीछा किया। यहाँ पर सिख भारी संकट में फंस गए। एक ओर ऊँची पहाड़ियाँ थीं और दूसरी ओर रावी नदी में बाढ़ आई हुई थी। पीछे की ओर मुग़ल सैनिक उनका पीछा कर रहे थे तथा आगे पहाड़ी राजा और लोग भी उनके कट्टर शत्रु थे। सिखों के पास खाद्य सामग्री बिल्कुल नहीं थी। चारे की कमी के कारण घोड़ों की भी भूख से बुरी दशा थी। इस आक्रमण में 7,000 सिख शहीद हो गए और मुग़लों ने 3,000 सिखों को बंदी बना लिया। इन सिखों को लाहौर में शहीद कर दिया गया। सिखों के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब सिखों की एक बार में ही इतनी भारी प्राण-हानि हुई। इस दर्दनाक घटना को सिख इतिहास में पहला अथवा छोटा घल्लूघारा के नाम से स्मरण किया जाता है। यह घल्लूघारा मई, 1746 ई० को हुआ।

  1. पहला घल्लूघारा कब घटित हुआ ?
  2. पहले घल्लूघारे के समय लाहौर का सूबेदार कौन था ?
  3. पहले घल्लूघारे में कितने सिखों ने शहीदी प्राप्त की थी ?
  4. पहले घल्लूघारे में मुगलों ने …………… सिखों को बंदी बना लिया।
  5. पहले घल्लूघारे को अन्य किस नाम से जाना जाता है ?

उत्तर-

  1. पहला घल्लूघारा मई, 1746 ई० में घटित हुआ।
  2. पहले घल्लूघारे के समय लाहौर का सूबेदार याहिया खाँ था।
  3. पहले घल्लूघारे में 7000 सिखों ने शहीदी प्राप्त की थी।
  4. 3000.
  5. पहले घल्लूघारे को छोटे घल्लूघारा के नाम से भी जाना जाता है।

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