PSEB 9th Class Computer Notes Chapter 3 नेटवर्किंग

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PSEB 9th Class Computer Notes Chapter 3 नेटवर्किंग

नैटवर्क
नेटवर्क दो या दो से ज्यादा कम्प्यूटरों के उस समूह को कहते हैं जिसमें वे आपस में बातचीत कर सकते हैं। ये कम्प्यूटर किसी प्रकार के माध्यम से जुड़े होते हैं। ये कम्प्यूटर आपस में यंत्रों को भी शेयर करते|
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नैटवर्किंग की ज़रूरत
नैटवर्किंग की आवश्यकता डाटा साझा करने तथा अदला-बदली करने के लिए होती है। नैटवर्क का उपयोग

  1. इमेल द्वारा संचार
  2. हार्डवेयर सांझा करना
  3. फाइल शेयर करना
  4. रीमोट साफ्टवेयर तथा आपरेटिंग सिस्टम शेयर करना
  5. सूचना को आसानी से पहुंचाना
  6. विभिन्न यूजरों को एक गेम खेलने की आज्ञा देना
  7. इंटरनैट का प्रयोग करना
  8. डाटा को एक स्थान पर स्टोर करना।

नेटवर्क के भाग नेटवर्क के निम्न भाग होते हैं-

  • कम्प्यूटर-कम्प्यूटर को नोड या क्लाईट भी कहते हैं। यह वह कम्प्यूटर होता है जिस पर सारे स्रोत शेयर किये जाते हैं। इसका प्रयोग यूजर करता है।
  • सरवर-सरवर वह कम्प्यूटर होता है जो नेटवर्क को कंट्रोल करता है तथा सारा समय नैटवर्क के साथ जुड़ा रहता है। यह एक शक्तिशाली कम्प्यूटर होता है।
  • नेटवर्क इंटरफेस कार्ड-यह एक सर्कट बोर्ड होता है जिसका प्रयोग कम्प्यूटर को कम्यूनीकेशन मीडिया से जोड़ने के लिए किया जाता है।

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निम्न प्रकार के नेटवर्क प्रयोग किए जाएं।

  1. तार वाला
  2. बिना तार के।

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हब/स्विच- यह एक ऐसा यंत्र होता है जो ज़्यादा कम्प्यूटरों को आपस में जुड़ने की आज्ञा देता है।
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राऊटर-यह हार्डवेयर डिवाइस होता है जो डाटा प्राप्त करता है, उसका निरीक्षण करता है तथा दूसरे नेटवर्क पर आगे भेजता है।
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नैटवर्क के लाभ तथा हानियाँ
नेटवर्क के लाभ

  1. इससे डाटा, प्रोग्राम आपस में सांझे किये जा सकते हैं।
  2. इससे हम हार्डवेयर तथा साफ्टवेयर शेयर कर सकते हैं।
  3. यह कम्यूनीकेशन का एक बढ़िया साधन है।
  4. इनके प्रयोग से कम यंत्र ज्यादा लोग प्रयोग कर सकते हैं।
  5. नैटवर्क द्वारा फाइलों की अखंडता बनी रहती है।
  6. नैटवर्क द्वारा महंगी मशीनरी की प्रति यूजर कीमत कम होती है।
  7. नैटवर्क सारे स्रोतों को भरोसे से प्रयोग करने की आज्ञा देता है।
  8. नैटवर्क लचकता प्रदान करता है।
  9. नैटवर्क डाटा बैकअप की सहुलियत देता है।
  10. यह डाटा को सुरक्षा प्रदान करता है।
  11. इसे हमारे कार्य ज्यादा गति से होते हैं।

नेटवर्क की हानियाँ

  • ये काफी महंगे बनते हैं।
  • नेटवर्क बन्द होने पर सारा कार्य बन्द हो जाता है।
  • नेटवर्क में डाटा की सुरक्षा में सेंध लगा सकती है।
  • इन पर कार्य यूजर को मुश्किल लगता है।

नैटवर्क टोपोलोजी
किसी नेटवर्क को तैयार करने में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कारक उसकी संरचना होती है। यह वह तरीका है, जिसमें नेटवर्क के कम्प्यूटरों को जोड़ा जाता है। मूल रूप से तीन प्रकार की संरचाएं होती हैं, जिनमें नेटवर्क के उपकरणों को जोड़ा जाता है
1. स्टार टोपोलोजी (Star Topology)
2. बस टोपोलोजी (Bus Topology)
3. रिंग टोपोलोजी (Ring Topology)

1. स्टार नेटवर्क (Star Topology)-इस प्रकार के नेटवर्क में सभी कम्प्यूटरों तथा उपकरणों को एक बड़े केन्द्रीय कम्प्यूटर, जिसे मेजबान कम्प्यूटर (Host Computer) या सर्वर (Server) कहा जाता है, से जोड़ा जाता है, जो कि उन्हें नियंत्रित करता है तथा उनके बीच डाटा के संचार को नियमित करता है। चित्र में एक स्टार नेटवर्क दिखाया गया है। ऐसे नेटवर्क में प्रत्येक बिन्दु (Node) किसी दूसरे बिन्दु तक केवल मेजबान कम्प्यूटर के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकता है। इस नेटवर्क का कार्य स्पष्ट रूप से कम्प्यूटर के ऊपर निर्भर करता है और किसी जुड़े हुए उपकरण या केबिलस की असफलता से नेटवर्क बहुत प्रभावित होता है। ऐसे नेटवर्क का विस्तार करना भी सरल है।
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यह संरचना ऐसे संगठनों के लिए बहुत उपयोगी है, जहां एक बड़े कम्प्यूटर में मास्टर डाटा बेस रखा जाता है। सुरक्षा नियंत्रण तथा देख-रेख की दृष्टि से यह सबसे अच्छा माना जाता है। भारत में रेलों के आरक्षण में इसी संरचना का प्रयोग किया गया है। स्टार नेटवर्क की सबसे बड़ी कमी यह है कि केन्द्रीय कम्प्यूटर के असफल हो जाने पर पूरा असफल हो जाता है।

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2. बस नेटवर्क (Bus Network)-इस प्रकार के नेटवर्क में सभी कम्प्यूटरों और टर्मिनलों को एक साझा संचार चैनल से जोड़ा जाता है, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। ऐसे नेटवर्क में कोई केन्द्रीय कम्प्यूटर नहीं होता। इसमें केबिलों की लम्बाई न्यूनतम होती है। इसमें चैनल काट दिये जाने पर नेटवर्क असफल हो जाता है, लेकिन किसी एक कम्प्यूटर या टर्मिनल के कट जाने पर नेटवर्क ज्यादा प्रभावित नहीं होता। ऐसे नेटवर्क का विस्तार करके और टर्मिनल जोड़ना भी सरल हो जाता है। किसी बहुमंजिली इमारत में नेटवर्क स्थापित करते समय इस संरचना का उपयोग किया जाता है।
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3. रिंग नेटवर्क (Ring Network)-इस प्रकार के नेटवर्क में कम्प्यूटरों को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि वे कुल मिलाकर एक बंद घेरे या वलय (Ring) का रूप लेते हैं। चित्र में एक रिंग नेटवर्क दिखाया गया है। इसमें कोई भी केन्द्रीय कम्प्यूटर नहीं होता। इस नेटवर्क की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें सभी बिन्दु या कम्प्यूटर बराबर होते हैं। हालांकि इसमें कोई सर्वर (Server) भी हो सकता है। ऐसे नेटवर्क में डाटा का प्रवाह केवल एक दिशा में होता है और प्रत्येक कम्प्यूटर एक रिपीटर की तरह डाटा को आगे भेज देता है। संचार पूरा होने पर भेजने वाला कम्प्यूटर संदेश पहुंच जाने की सूचना प्राप्त कर लेता है।
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इस नेटवर्क में सबसे बड़ी कमी यह है कि एक कम्प्यूटर के असफल हो जाने पर पूरा नेटवर्क असफल हो जाता है। लेकिन इस समस्या को बाईपास केबिलों का प्रयोग करके हल किया जाता है। प्रत्येक बाईपास केबिल किसी एक कम्प्यूटर को बाईपास करता है। जैसे ही वह कम्प्यूटर असफल होता है, बाईपास केबल चालू हो जाता है और नेटवर्क का कार्य चलता रहता है। उपरोक्त तीनों प्रकार की मूल संरचनाओं में सुधार करके कुछ उपयोगी संरचनाएं उपयोग में लायी जाती हैं। इनके बारे में आगे बताया गया है(क) कैम्ब्रिज रिंग (The Cambridge Ring)-यह एक प्रकार का रिंग नेटवर्क होता है।

यह पहली बार अमेरिका के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में विकसित किया गया था, परन्तु मूल डिज़ाइन में अनेक सुधार हो चुके हैं। इसका सुधरा हुआ रूप प्रत्येक निर्माता द्वारा बनाया जाता है। इसमें डाटा का सम्प्रेषण क्रमिक (Serial) विधि से (अर्थात् एक के बाद एक बिट) और लूप पूरा होने तक ही दिशा में किया जाता है, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। नेटवर्क के प्रत्येक उपकरण (या साधन) को एक रिंग स्टेशन (Ring Station) के माध्यम से जोडा जाता है। इनके बीच ही इंटरफेस होता है।
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इसमें एक रिंग स्टेशन दूसरे स्टेशन तक संदेश मिनी पैकेटों के माध्यम से भेजता है। मिनी पैकेट एक मॉनीटर स्टेशन (Monitor Station) द्वारा पैदा किये जाते हैं, प्रारम्भ में वे खाली होते हैं। यदि किसी स्टेशन को किसी दूसरे तक कोई संदेश भेजना होता है, तो वह वहां से गुजरने वाले किसी खाली मिनी पैकेट में डाटा भर देता है और गंतव्य का पता (Destination Address) भी लिख देता है। भरा हुआ पैकेट आगे यात्रा करता रहता है और गंतव्य तक पहुंचने पर संदेश नकल कर लिया जाता है।

साथ ही पैकेट पर उचित चिन्ह लगा दिया जाता है कि संदेश प्राप्त कर लिया गया है। पैकेट की यात्रा जारी रहती है और भेजने वाले स्टेशन तक चलता रहता है। एक बार में एक निश्चित संख्या में ही पैकेट यात्रा में हो सकते हैं। इस प्रकार के नेटवर्क में मॉनीटर स्टेशन की बड़ी जिम्मेदारी होती है। वह पूरे नेटवर्क में डाटा के आवागमन (Traffic) को नियंत्रित करता है और उसका हिसाब रखता है।

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(ख) टोकन रिंग (Token Ring)- यह एक अन्य प्रकार का रिंग नेटवर्क होता है, जिसे टोकन पासिंग रिंग (Token Passing Ring) भी कहते हैं। इसमें एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक एक टोकन गुज़रता रहता है। जब भी किसी स्टेशन पर टोकन आता है, वह स्टेशन उसमें डाटा भरने या भेजने के लिए स्वतंत्र होता है। इस नेटवर्क में किसी मॉनीटर स्टेशन की कोई आवश्यकता नहीं होती और हर स्टेशन अपना मामला खुद देखता है।

(ग) ईथर नेट (Ether Net)-यह एक बस संरचना का लोकल एरिया नेटवर्क होता है। मूलरूप में इसे जीरॉक्स कॉरपोरेशन द्वारा तैयार किया गया था, परन्तु इस तकनीक का प्रयोग अन्य निर्माताओं द्वारा भी व्यापक रूप से किया जाता है। इसलिए उस जैसी संरचना का नाम भी ईथर नेट पड़ गया है। यह कोक्सियल केबल (Coaxial Cable) के या अधिक खंडों (Segments) द्वारा बनता है। प्रत्येक खण्ड लगभग 100 बिंदुओं (Nodes) तथा 500 मीटर की लम्बाई का होता है।

इस प्रकार किसी बड़े नेटवर्क में कई खण्ड हो सकते हैं, जिन्हें रिपीटर द्वारा जोड़ा जाता है। खण्डों से ट्रांसीवर (Transceiver) नामक साधनों (Devices) को जोड़ा जाता है। जो उपकरण नेटवर्क से जुड़ना चाहता है, वह ट्रांसीवर के माध्यम से ही जुड़ता है। ऐसे नेटवर्क में डाटा पैकेटों के रूप में प्रेषित किया जाता है। प्रत्येक पैकेट का आकार 1500 बाइटों तक होता है और ट्रांसफर की दर 10 मेगाबाइट प्रति सेकण्ड होती है।

डाटा कम्यूनिकेशन दो या ज्यादा कम्प्यूटरों में डाटा साझा करने की प्रक्रिया को डाटा कम्यूनिकेशन कहते हैं। इसमें Sendar, Reciever तथा Communication चैनल मिल कर कार्य करते हैं। डाटा संचार की तीन शर्ते होती हैं।

  1. Delivery : डाटा अपने स्थान तक सही ढंग से पहुंचे
  2. Accuracy : डाटा दोष मुक्त होना चाहिए।
  3. समय की पाबंदी : डाटा वगैर किसी देरी के पहुंचे

डाटा संचार के हिस्से Sendar – जो सूचना तैयार करता तथा भेजता है।
Medium – Sender से Receiver तक ले जाने वाला माध्यम।
Reciever – जो सूचना प्राप्त करता है।
Protocol – सूचना भेजने के नियम
Protocols
Protocols
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डाटा ट्रांसमिशन के तरीके डाटा ट्रांसमिशन के तरीके का अर्थ है-सैंडर तथा रिसीवर के बीच डाटा किस प्रकार जाता है। डाटा भेजने तथा प्राप्त करने के निम्न तरीके हैं।
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1. Simplex-यह संचार का एक तरफा माध्यम होता है। इसमें एक समय पर एक तरफ ही संचार होता है। दूसरी तरफ संचार नहीं होता। उदाहरण के तौर पर टेलीविज़न तथा रेडियो नेटवर्क।
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2. Half Duplex-Half Duplex में दोनों तरफ से संचार हो सकता है परन्तु एक समय पर सिर्फ एक तरफ से ही संचार होता है। दूसरी तरफ से संचार शुरू करने से पहले पहली तरफ का संचार बंद करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर वाकी टाकी सिस्टम।
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3. Full Duplex : इसमें दोनों तरफ से संचार एक ही समय पर हो सकता है। मोबाइल फोन का नेटवर्क इसी का उदाहरण है।
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नेटवर्क की किस्में
कम्प्यूटर नेटवर्क की कई किस्में होती हैं। इनको आकार, प्रयोग आदि के आधार पर कई प्रकार से विभाजित किया जाता है। भौगोलिक आधार से नेटवर्क को आगे दिए भागों में बांटा जा सकता है।
1. पैन-पैन का अर्थ है परसनल एरिया नेटवर्क। (यह एक छोटा नेटवर्क होता है। यह एक नये टाइप का नैटवर्क है। यह अकेले आदमी का नेटवर्क है। इसमें किसी व्यक्ति के परसनल डिवाइस आपस में मिलकर एक नेटवर्क बनाते हैं। यह केबल वाला तथा बिना किसी केबल के भी हो सकता है।
2. लैन-लैन का अर्थ है-लोकल एरिया नेटवर्क। इस का प्रयोग छोटी जगह जैसे एक दफ्तर, बिल्डिंग आदि में किया जाता है। इसके द्वारा कई स्रोत तथा यंत्र सांझे किये जा सकते हैं। यह एक सरल नैटवर्क है। इसमें तारों का अधिकतर प्रयोग होता है।
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3. मैन-यह नेटवर्क ज़्यादा बड़े क्षेत्र में फैला होता है। अकसर यह एक शहर में कोई सुविधा प्रदान करते हैं ; जैसे-टेलीविज़न केवल नेटवर्क। यह सिंगल भी हो सकता है तथा किसी के साथ जुड़ा भी। यह कई लैन का मेल भी हो सकता है। यह 5 से 50 कि०मी० तक फैला हो सकता है।

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4. वैन-वैन का अर्थ है-वाईड एरिया नेटवर्क। यह बहुत बड़े भौगोलिक क्षेत्र में फैला होता है, जैसे पूरा देश, महाद्वीप या सारी दुनिया इसमें बहुत सारे छोटे नेटवर्क होते हैं। इंटरनैट इस की एक बढ़िया उदाहरण है।
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