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PSEB 9th Class Computer Notes Chapter 4 डी०बी०एम०एस० से परिचय
जान-पहचान
डाटा बेस मैनेजमैंट सिस्टम ऐसा टूल है जो डाटा का उचित प्रबन्ध करता है। DBMS का पूरा नाम है-डाटाबेस मैनेजमैंट सिस्टम है। यह एक सॉफ्टवेयर होता है जो यूज़र को डाटाबेस सिस्टम बनाने, संभाल कर रखने, कन्ट्रोल करने और देखने की आज्ञा देता है।
डाटा और सूचना
डाटा वह पदार्थ होते हैं जिन पर कम्प्यूटर प्रोग्राम काम करते हैं । ये अंक, अक्षर, शब्द, विशेष चिन्ह आदि हो सकते हैं। इनका स्वयं में कोई अर्थ नहीं होता। प्रक्रिया के बाद डाटा सूचना में बदल जाता है।
डाटाबेस
कम्प्यूटर डाटा बेस व्यवस्थित रिकार्डज़ का समूह है। जो कम्प्यूटर में स्टोर होता है। डाटाबेस से यूज़र ज़रूरी सूचना प्राप्त कर सकता है। डाटाबेस तैयार करने के लिए एक सॉफ्टवेयर प्रयोग किया जाता है जिसे डाटाबेस मैनेजमैंट सिस्टम कहा जाता है।
- ऐट्रिब्यूट या डाटा आइटम किसी विशेष डाटा आइटम का वर्णन करने के लिए गए अक्षरों के समूह को ऐट्रिब्यूट कहा जाता
- रिकार्ड एक-दूसरे से सम्बन्धित डाटा आइटम के समूह को रिकार्ड कहा जाता है ; जैसे-स्टूडेंट रिकार्ड में प्रयोग की जाने वाली डाटा आइटम, जैसे रोल नम्बर, नाम और अंक आदि रिकार्ड कहलाता है।
- फाइल एक-दूसरे से सम्बन्धित रिकार्ड के समूह को फाइल कहा जाता है।
डी० बी० एम० एस० DBMS का पूरा नाम है-डाटाबेस मैनेजमैंट सिस्टम है। यह एक सॉफ्टवेयर होता है जो यूज़र को डाटाबेस सिस्टम बनाने, संभाल कर रखने, कन्ट्रोल करने और देखने की आज्ञा देता है।
डाटा तथा इनफॉरमेशन डाटा-डाटा कच्चे पदार्थ होते हैं जिन पर कम्प्यूटर प्रोग्राम काम करते हैं। इनफॉरमेशन-प्रोसैस किये गए डाटा को इनफॉरमेशन कहते हैं।
डाटाबेस मैनेजमैंट
सरलतम शब्दों में कोई डाटाबेस किसी विशेष वस्तु या वस्तुओं के समूह के बारे में आपस में सम्बन्धित डाटा का एक संग्रह होता है। उदाहरण के लिए, कोई विश्वविद्यालय अपने विभिन्न कोरों के लिए नामांकित विद्यार्थियों का डाटाबेस बना सकती है और कोई कम्पनी अपने विभिन्न विभागों में कार्य करने वाले कर्मचारियों का डाटाबेस तैयार कर सकती है। ऐसे डाटाबेस किसी एक कार्य के लिए सीमित नहीं होते, बल्कि वे एक साथ कई उद्देश्यों के लिए उपयोगी होते हैं।
वास्तव में, कोई डाटाबेस बनाने का उद्देश्य समस्त आवश्यक डाटा एक ही स्थान पर उपलब्ध कराना होता है, जिसका उपयोग अनेक प्रोग्रामों तथा उपयोगों द्वारा किया जा सकता है। कोई डाटाबेस हमारे दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी होता है, चाहे वह व्यक्तिगत हो या व्यापारिक। उदाहरण के लिए, हम अपने किसी मित्र या सम्बन्धी का पता या टेलीफोन नं० देखने के लिए एडरैस बुक का उपयोग करते हैं, जिसमें हमारे सभी मित्रों तथा सम्बन्धियों के नाम-पते वर्णमाला के क्रम (Alphabetic order) में लिखे होते हैं। ऐसी एडरैस बुक वास्तव में एक डाटाबेस है, हालांकि वह कम्प्यूटर में नहीं है।
अच्छे डाटा बेस डिजाइन के लिए जरूरी निर्देश अच्छे डाटा बेस के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए
- डाटा सही, पूरा तथा अच्छी तरह बना होना चाहिए।
- डाटा को प्रयोग होने वाले रूप में बनाना चाहिए।
- डाटाबेस का डिजाइन बढ़िया ढंग से होना चाहिए।
- डाटाबेस को भविष्य में आने वाली मुश्किलों को ध्यान में रख कर डिजाइन करना चाहिए।
डाटाबेस एपलीकेशन का उपयोग डाटाबेस एपलीकेशन का उपयोग निम्न स्थानों पर होता है-
- बैंक में अकाऊंट की संभाल
- एयरलाइन रिजर्वेशन
- यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट इनफॉरमेशन तथा कोर्स
- संस्था की महीनेवार स्टेटमैंट
- दूरसंचार के लिए
- सेल तथा परचेज
- खरीद संबंधी जानकारी
- सप्लाई तथा वेयर हाऊस आर्डर
- कर्मचारियों की सैलरी, पे-रोल, टैक्स आदि।
फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम कम्प्यूटर आने से पहले सारी सूचना कागज़ों के ऊपर स्टोर की जाती थी। जब सब सूचना ढूँढ़नी हो तो कागज़ को देखना होता था।
फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम के लाभफाइल प्रोसैसिंग सिस्टम में निम्नलिखित लाभ हैं :
- तकनीकी जानकारी की आवश्यकता नहीं-फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम में किसी भी प्रकार की खास कम्प्यूटर या साफ्टवेयर की जानकारी की आवश्यकता नहीं होती।
- कम डाटा में आसानी-फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम में कम डाटा के साथ काम करने में आसानी . होती है।
- समझने में आसानी-फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम में डाटा की स्ट्रक्चर को समझना डी०वी०एम०एस० से आसान होता है।
- सस्ता-फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम की कीमत कम होती है।
- सरल-फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम सरल होता है।
- फालतू हार्डवेयर की आवश्यकता नहीं-आम करके फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम में किसी हार्डवेयर की आवश्यकता नहीं होती।
- आसान जगह बदली-फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम में डाटा की आसानी से जगह बदली जा सकती है। सिर्फ फाइलें कापी तथा पेस्ट ही करनी होती हैं।
फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम के हानियांफाइल प्रोसैसिंग सिस्टम में निम्नलिखित हानियां हैं :
डाटामैपिंग अकसैस-सब संबंधित सूचना को अलग-अलग फाइल में स्टोर करना होता है पर इनमें किसी भी प्रकार की मैपिंग नहीं होती है।
2. डाटा रिडुयनहुँसी-डुपलीकेट डाटा को वैलिडेट करने के लिए फाइल सिस्टम में कोई भी तरीका नहीं होता है। फाइल सिस्टम में डुपलीकेट डाटा को संभाला नहीं जा सकता। क्योंकि इससे स्पेस घटती है जिससे डाटा को हमेशा संभाल के रखने में मुश्किल होती है। इससे डाटाबेस संभाल सकते हैं।
3. डाटा डिपेंडेंस-फाइल में डाटा एक विशेष प्रकार से स्टोर किया जाता है ; जैसे कि टैब, कोमा या सैमीकालम जब फाइल का फारमैट बदल दिया जाए। वह फाइल प्रोसैस करने के लिए पूरा प्रोग्राम बदलना पड़ेगा। सारा डाटा खराब हो जाएगा। क्योंकि बहत प्रोग्राम फाइल का प्रयोग करते हैं। इससे फाइलों का प्रयोग काफी मुश्किल हो जाता है।
4. डाटा इनकनसिसटैंसी-एक ही प्रकार के डाटा की भिन्न कापियों में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। इस प्रकार के डाटा को इनकनसिसटैंसी कहते हैं। इसका कारण है कि फाइल की सही सूची नहीं बनी होती जिसके कारण डाटा की एक जैसी कापी नहीं होती है।
5. सुरक्षा-हर फाइल को पासवर्ड लागकर सुरक्षित किया जाता है। परंतु अगर फाइल में से हम कोई रिकार्ड देखते हैं जैसे कि किसी भी यूज़र ने अपना नतीजा देखना हो तो यह फाइल प्रोसैसिंग सिस्टम में बहुत मुश्किल होता है।
डी० बी० एम० एस० DBMS का पूरा नाम डाटाबेस मैनेजमैंट सिस्टम है। यह एक सॉफ्टवेयर होता है। जो यूज़र को डाटाबेस बनाने, संभाल कर रखने, कन्ट्रोल करने और देखने की आज्ञा देता है। DBMS वास्तव में प्रोग्रामों का एक समूह है जो यूज़र को स्टोर करने, बदलने और डाटाबेस में से संक्षेप सूचना निकालने की स्वीकृति देता है।
DBMS के लाभ
- यह अधिकता को कंट्रोल करता है।
- डाटा का मॉडल बनाया जा सकता है।
- डाटा की सांझेदारी की जा सकती है।
- अशुद्धता लागू होती है।
- इसका उचित स्तर होता है।
- इसे बिना आज्ञा कोई व्यक्ति नहीं चला सकता और न ही देख सकता है।
- निजी ज़रूरतों से लेकर उद्योगों की ज़रूरतें पूरी करता है।
- इससे ज़्यादा यूज़र इकट्ठे कार्य कर सकते हैं।
- इसमें बैकअप की यूटिलिटी भी होती है।
हानियां
- यह जटिल होता है।
- इसका छोटे कम्प्यूटर पर उच्च स्तर पर प्रयोग नहीं हो सकता।
- खराब होने का खतरा अधिक होता है।
- आकार काफ़ी बड़ा होता है।
- इसका मूल्य काफ़ी अधिक होता है।
- अतिरिक्त हार्डवेयर की ज़रूरत पड़ती है।
- परिवर्तन का मूल्य काफ़ी अधिक होता है।
डी० बी० ए०
इसका पूरा नाम डाटाबेस एडमिनिस्ट्रेटर है। यह वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है जो डाटाबेस प्रणाली को नियन्त्रण करता है। डी० बी० ए० के प्रकार-
1. एडमिनीस्ट्रेटिव डी० बी० ए०
2. डिवैल्पमेंट डी० बी० ए०
3. आरीटैक्ट डी० बी० ए०
4. डाटा वेयरहाऊस डी० बी० ए० ।
DBA के नीचे लिखे काम और जिम्मेदारियां होती हैं
- डाटाबेस के लिए विषय-वस्तु निर्धारित करना।
- हार्डवेयर यन्त्रों के बारे में फैसला करना।
- यह यूज़र के द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले डाटे के बारे में फैसला करता है।
- बैकअप प्रदान करवाता है।
- यह पुनः प्राप्ति में सहायता करता है।
- डाटाबेस के लिए सुरक्षा प्रदान करता है।
- ज़रूरत के अनुसार डाटाबेस में तबदीली करता है।
- यह डाटे की वैलीडेशन निर्धारित करता है।
डाटा रिडयू.सी डाटा रिडयू.सी का अर्थ है-एक ही प्रकार के डाटा को बार-बार स्टोर करना। एन०टी०टी० तथा एट्रीब्यूट्स वह चीज़ जिसकी जानकारी हम डाटा के रूप में डाटाबेस में स्टोर करते हैं। उसे एन० टी० टी० कहते हैं।
एन० टी० टी० किस्में
1. कमज़ोर एन० टी० टी०-यह एक ऐसी एन० टी० टी० है। जो आपके एट्रीब्यूट्स से अलग नहीं पहचानी जा सकती।
2. बढ़िया एन० टी० टी०-इस में प्राइमरी कीअ लगी होती है। यह एन० टी० टी० बढ़िया से जान सकते हैं। यह डाटा से अलग हो जाती है।
एन०टी०टी० रिलेशनशिप डायाग्राम एनटीटी रिलेशनशिप डायाग्राम वह डायाग्राम होता है जो विभिन्न एन०टी०टी० का आपसी संबंध बताता है इसके दो तरीके हैं-
1. Dr. Peter Chen’s alt
2. James Martin तथा Clive Fine Kelstein वाला
डी० बी० एम० एस० में कीज़
कीअज़ डाटाबेस मैनेजमैंट सिस्टम का महत्त्वपूर्ण भाग है। इनका प्रयोग टेबलज़ को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है। ये यह यकीनी बनाते हैं कि प्रत्येक रिकार्ड फील्डज़ के एक विशेष सैट से पूरी तरह पहचाना जा सके। ये निम्न प्रकार की होती हैं
1. सुपर कीअ-यह कीअ एट्रीब्यूटज़ का वह संग्रह है जो टेबल में रिकार्ड को अलग रूप में पहचानती है। सुपर कीअ कैडीडेट कीअ का सुपर सैट होती है।
2. कैंडीडेट कीअ-कैंडीडेट कीअ फील्डज़ का वह संग्रह होती है जिनसे प्राइमरी कीअ का चुनाव किया जाता है। यह एट्रीब्यूटज़ का सैट होती है जो प्रत्येक रिकार्ड की पहचान के लिए प्राइमरी कीअ का प्रयोग करती है।
3. प्राइमरी कीअ-प्राइमरी कीअ वह कीअ होती है, जो टेबल की मुख्य कीअ बनने के लिए सबसे बढ़िया होती है। यह टेबल के रिकॉर्ड की अलग तौर से पहचान करती है।
4. कम्पोजिट कीअ-कम्पोजिट कीअ वह होती है जो दो या दो से ज्यादा एट्रीब्यूटस की पहचान करती है। कोई भी एट्रीब्यूटज़ जो एक कम्पोजिट कीअ बनाता है वह एक साधारण कीअ नहीं होता।
5. फौरन कीअ-फौरन कीअ दो टेबल में संबंध जोड़ती है। यह टेबल की प्राइमरी कीअ होती है। फौरन कीअ को प्राइमरी कीअ के मुकाबले लागू करना मुश्किल होता है। एक टेबल की प्राइमरी कीअ दूसरे टेबल की फौरन कीअ बन जाती है।
नारमलाइजेशन नारमलाइज़ेशन एक वैज्ञानिक विधि है जिसके द्वारा टेबल को आसान तरीके से यूज़र को समझने योग्य रूप में बदला जा सकता है। टेबल में रिडुयन.सी को कम करने के लिए और डाटाबेस इनकनसिसटैंसी को कम करने और अपने डाटाबेस को मज़बूत करने के लिए आगे कुछ पग दिये हैं।
- सब टेबल में एक आइडेंटीफाईर ज़रूरी होना चाहिए।
- सब टेबल में एक टाइप का एन०टी०टी० स्टोर होना चाहिए।
- नल वैल्यू को कम-से-कम स्टोर करना चाहिए।
- वैलयूज़ बार-बार कम आनी चाहिए।
आमतौर पर नारमल फारमज़ पांच होती है।
- First Normal Form (INF)
- Second Normal Form (2NF)
- Third Normal Form (3NF)
- Fourth Normal Form (4NF)
- Boyce coded Normal Form (BCNF).
संबंध
DBMS संबंध टेबल को बांटने तथा स्टोर करने की आज्ञा देता है। एक टेबल की फौरन कीअ डाटाबेस के सभी टेबल की प्राइमरी कीअ होती है। इनसे ही संबंध बनते हैं। संबंध निम्न प्रकार के होते हैं-
- एक से एक-एक से एक संबंध एक टेबल के कॉलम को दूसरे टेबल से जोड़ती है। एक का संबंध दूसरे किसी एक से ही होता है।
- एक से अनेक-यह संबंध वहां होता है जहां दो टेबलों की प्राइमरी कीअ तथा फौरन कीअ में संबंध हो। इसमें एक टेबल की रोअ दूसरे टेबल की ज्यादा रोअ से संबंध बनाती है।
- अनेक से अनेक-इसमें जंक्शन टेबल का प्रयोग होता है। एक टेबल के रिकॉर्ड दूसरे टेबल के अनेक रिकॉर्डों से संबंध बनाते हैं।
Oracle Oracle साफ्टवेयर कंपनी की शुरुआत 1877 में Relational Software Corporation के नाम से हुई थी। इसने पहला RDBMS बनाया।
इसके दो उद्देश्य थे
- डाटा बेस को SQL के कंपैटेवल बनाना
- DBMS को C भाषा में बनाना
SQL
SQL एक उच्च स्तरीय भाषा है जो डाटा बेस को संभालने, बदलने के काम आती है। SQL के लाभ
- यह हाई लेबल भाषा है
- इससे एक समय में बहुत डाटाबेस पर काम किया जाता है।
- SQL प्रोग्राम पोर्टेबल होता है।
- SQL समझने में काफी आसान है।
DB2 DB2, IBM द्वारा बनाया RDBMS है। इसका प्रयोग डाटा संभालने, देखने, बदलने के लिए होता है। इसकी स्थापना 1990 में की गई थी।
डाटा मॉडल
डाटा मॉडल वह तरीका है जो हमें डाटाबेस स्ट्रक्चर के बारे में जानकारी देता है। यह तीन प्रकार के होते हैं।
1. ऑब्जैकट ओरीऐंटिड मॉडल-यह लाइन दर लाइन डाटा का वर्णन करते हैं। यह पाँच प्रकार के होते हैं।
- बाइनरी मॉडल
- फंकशन मॉडल
- एन० टी० टी० रिलेशनशिप
- ऑब्जैकट ओरऐंटिड मॉडल
- सिमेटिक डाटा मॉडल। ।
2. रिकार्ड बेस लॉजीकल मॉडल-यह लाइन दर लाइन डाटा का वर्णन करते हैं। पर यह एक फारमैट का प्रयोग करते हैं। इसमें हर एक रिकार्ड के अपने एट्रीब्यट्स और फील्डस होते हैं, जिसे एक निश्चित अधिकार होता है। यह तीन प्रकार के होते हैं।
- नेटवर्क मॉडल
- रिलेशनल मॉडल
- हैरारीकल मॉडल।
3. फिजीकल डाटा मॉडल-फिजीकल डाटा मॉडल का प्रयोग डाटाबेस में से नीचे लेवल के डाटा का वर्णन करने के लिए किया जाता है। यह इस प्रकार है –
- एन० टी० टी०-यह डाटाबेस के अलग-अलग वस्तु के बारे में जानकारी देता है।
- एट्रीब्यूट-यह प्रयोगकर्ता के नाम, पता आदि के एन० टी० टी० के बारे में जानकारी देता है।
- एन० टी० टी० सेट-यह एन० टी० टी० सैट और एट्रीब्यूट सुमेल से बनता है। इसमें अलग-अलग ऐन० टी० टी० और एट्रीब्यूट स्टोर की जाती है।
- रिलेशनशिप-हम जिस भी एन० टी० टी० का प्रयोग कर सकते हैं। वह आपसी डाटाबेस में किसी अन्य एन० टी० टी० से भी जुड़ी हो सकती है। इसी को रिलेशनशिप या संबंध कहते हैं।